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[ | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 1, | |
"text": "[ज]\nसवर्गं तरिविष्टपं पराप्य मम पूर्वपितामहाः\nपाण्डवा धार्तराष्ट्राश च कानि सथानानि भेजिरे" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 2, | |
"text": "एतद इच्छाम्य अहं शरॊतुं सर्वविच चासि मे मतः\nमहर्षिणाभ्यनुज्ञातॊ वयासेनाद्भुत कर्मणा" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 3, | |
"text": "[वै]\nसवर्गं तरिविष्टपं पराप्य तव पूर्वपितामहाः\nयुधिष्ठिरप्रभृतयॊ यद अकुर्वत तच छृणु" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 4, | |
"text": "सवर्गं तरिविष्टपं पराप्य धर्मराजॊ युधिष्ठिरः\nदुर्यॊधनं शरिया जुष्टं ददर्शासीनम आसने" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 5, | |
"text": "भराजमानाम इवादित्यं वीर लक्ष्म्याभिसंवृतम\nदेवैर भराजिष्णुभिः साध्यैः सहितं पुण्यकर्मभिः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 6, | |
"text": "ततॊ युधिष्ठिरॊ दृष्ट्व दुर्यॊधनम अमर्षितः\nसहसा संनिवृत्तॊ ऽभूच छरियं दृष्ट्वा सुयॊधने" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 7, | |
"text": "बरुवन्न उच्चैर वचस तान वै नाहं दुर्यॊधनेन वै\nसहितः कामये लॊकाँल लुब्धेनादीर्घ दर्शिना" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 8, | |
"text": "यत्कृते पृथिवी सर्वा सुहृदॊ बान्धवास तथा\nहतास्माभिः परसह्याजौ कलिष्टैः पूर्वं महावने" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 9, | |
"text": "दरौपदी च सभामध्ये पाञ्चाली धर्मचारिणी\nपरिक्लिष्टानवद्याङ्गी पत्नी नॊ गुरुसंनिधौ" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 10, | |
"text": "सवस्ति देवा न मे कामः सुयॊधनम उदीक्षितुम\nतत्राहं गन्तुम इच्छामि यत्र ते भरातरॊ मम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 11, | |
"text": "मैवम इत्य अब्रवीत तं तु नारदः परहसन्न इव\nसवर्गे निवासॊ राजेन्द्र विरुद्धं चापि नश्यति" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 12, | |
"text": "युधिष्ठिर महाबाहॊ मैवं वॊचः कथं चन\nदुर्यॊधनं परति नृपं शृणु चेदं वचॊ मम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 13, | |
"text": "एष दुर्यॊधनॊ राजा पूज्यते तरिदशैः सह\nसद्भिश च राजप्रवरैर य इमे सवर्गवासिनः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 14, | |
"text": "वीरलॊकगतिं पराप्तॊ युद्धे हुत्वात्मनस तनुम\nयूयं सवर्गे सुरसमा येना युद्धे समासिताः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 15, | |
"text": "स एष कषत्रधर्मेण सथानम एतद अवाप्तवान\nभये महति यॊ ऽभीतॊ बभूव पृथिवीपतिः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 16, | |
"text": "न तन मनसि कर्तव्यं पुत्र यद दयूतकारितम\nदरौपद्याश च परिक्लेशं न चिन्तयतुम अर्हसि" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 17, | |
"text": "ये चान्ये ऽपि परिक्लेशा युष्माकं दयूतकारिताः\nसंग्रामेष्व अथ वान्यात्र न तान संस्मर्तुम अर्हसि" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 18, | |
"text": "समागच्छ यथान्यायं राज्ञा दुर्यॊधनेन वै\nसवर्गॊ ऽयं नेह वैराणि भवन्ति मनुजाधिप" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 19, | |
"text": "नारदेनैवम उक्तस तु कुरुराजॊ युधिष्ठिरः\nभरातॄन पप्रच्छ मेधावी वाक्यम एतद उवाच ह" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 20, | |
"text": "यदि दुर्यॊधनस्यैते वीरलॊकः सनातनाः\nअधर्मज्ञस्य पापस्य पृथिवी सुहृद अद्रुहः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 21, | |
"text": "यत्कृते पृथिवी नष्टा सहया सरथ दविपा\nवयं च मन्युना दग्धा वैरं परतिचिकीर्षवः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 22, | |
"text": "ये ते वीरा महात्मानॊ भरातरॊ मे महाव्रताः\nसत्यप्रतिज्ञा लॊकस्य शूरा वै सत्यवादिनः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 23, | |
"text": "तेषाम इदानीं के लॊका दरष्टुम इच्छामि तान अहम\nकर्णं चैव महात्मानं कौन्तेयं सत्यसंगरम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 24, | |
"text": "धृष्टद्युम्नं सात्यकिं च धृष्टद्युम्नस्य चात्मजान\nये च शस्त्रैर वधं पराप्ताः कषत्रधर्मेण पार्थिवाः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 25, | |
"text": "कव नु ते पार्थिवा बरह्मन्न एतान पश्यामि नारद\nविराटद्रुपदौ चैव धृष्टकेतुमुखांश च तान" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 1, | |
"shloka": 26, | |
"text": "शिखण्डिनं च पाञ्चाल्यं दरौपदेयांश च सर्वशः\nअभिमन्युं च दुर्धर्षं दरष्टुम इच्छामि नारद" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 1, | |
"text": "[य]\nनेह पश्यामि विबुधा राधेयम अमितौजसम\nभरातरौ च महात्मानौ युधामन्यूत्तमौजसौ" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 2, | |
"text": "जुहुवुर ये शरीराणि रणवह्नौ महारथाः\nराजानॊ राजपुत्राश च ये मदर्थे हता रणे" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 3, | |
"text": "कव ते महारथाः सर्वे शार्दूलसमविक्रमाः\nतैर अप्य अयं जितॊ लॊकः कच चित पुरुषसत्तमैः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 4, | |
"text": "यदि लॊकान इमान पराप्तास ते च सर्वे महारथाः\nसथितं वित्तहि मां देवाः सहितं तैर महात्मभिः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 5, | |
"text": "कच चिन न तैर अवाप्तॊ ऽयं नृपैर लॊकॊ ऽकषयः शुभः\nन तैर अहं विना वत्स्ये जञातिभिर भरातृभिस तथा" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 6, | |
"text": "मातुर हि वचनं शरुत्वा तदा सलिलकर्मणि\nकर्णस्य करियतां तॊयम इति तप्यामि तेन वै" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 7, | |
"text": "इदं च परितप्यामि पुनः पुनर अहं सुराः\nयन मातुः सदृशौ पादौ तस्याहम अमितौजसः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 8, | |
"text": "दृष्ट्वैव तं नानुगतः कर्णं परबलार्दनम\nन हय अस्मान कर्ण सहिताञ जयेच छक्रॊ ऽपि संयुगे" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 9, | |
"text": "तम अहं यत्र तत्रस्थं दरष्टुम इच्छामि सूर्यजम\nअविज्ञातॊ मया यॊ ऽसौ घातितः सव्यसाचिना" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 10, | |
"text": "भीमं च भीमविक्रान्तं पराणेभ्यॊ ऽपि परियं मम\nअर्जुनं चेन्द्र संकाशं यमौ तौ च यमॊपमौ" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 11, | |
"text": "दरष्टुम इच्छामि तां चाहं पाञ्चालीं धर्मचारिणीम\nन चेह सथातुम इच्छामि सत्यम एतद बरवीमि वः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 12, | |
"text": "किं मे भरातृविहीनस्य सवर्गेण सुरसत्तमाः\nयत्र ते स मम सवर्गॊ नायं सवर्गॊ मतॊ मम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 13, | |
"text": "[देवाह]\nयदि वै तत्र ते शरद्धा गम्यतां पुत्र माचिरम\nपरिये हि तव वर्तामॊ देवराजस्य शासनात" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 14, | |
"text": "[वै]\nइत्य उक्त्वा तं ततॊ देवा देवदूतम उपादिशम\nयुधिष्ठिरस्य सुहृदॊ दर्शयेति परंतप" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 15, | |
"text": "ततः कुन्तीसुतॊ राजा देवदूतश च जग्मतुः\nसहितौ राजशार्दूल यत्र ते पुरुषर्षभाः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 16, | |
"text": "अग्रतॊ देवदूतस तु ययौ राजा च पृष्ठतः\nपन्थानम अशुभं दुर्गं सेवितं पापकर्मभिः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 17, | |
"text": "तपसा संवृतं घॊरं केशशौवल शाद्वलम\nयुक्तं पापकृतां गन्धैर मांसशॊणितकर्दमम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 18, | |
"text": "दंशॊत्थानं सझिल्लीकं मक्षिका मशकावृतम\nइतश चेतश च कुणपैः समन्तात परिवारितम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 19, | |
"text": "अस्थि केशसमाकीर्णं कृमिकीट समाकुलम\nजवलनेन परदीप्तेन समन्तात परिवेष्टितम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 20, | |
"text": "अयॊ मूखैश च काकॊलैर गृध्रैश च समभिद्रुतम\nसूचीमुखैस तथा परेतैर विन्ध्यशैलॊपमैर वृतम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 21, | |
"text": "मेदॊ रुधिरयुक्तैश च छिन्नबाहूरुपाणिभिः\nनिकृत्तॊदर पादैश च तत्र तत्र परवेरितैः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 22, | |
"text": "स तत कुणप दुर्गन्धम अशिवं रॊमहर्षणम\nजगाम राजा धर्मात्मा मध्ये बहु विचिन्तयन" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 23, | |
"text": "ददर्शॊष्णॊदकैः पूर्णां नदीं चापि सुदुर्गमाम\nअसि पत्रवनं चैव निशितक्षुर संवृतम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 24, | |
"text": "करम्भ वालुकास तप्ता आयसीश च शिलाः पृथक\nलॊहकुम्भीश च तैलस्य कवाथ्यमानाः समन्ततः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 25, | |
"text": "कूटशाल्मलिकं चापि दुस्पर्शं तिक्ष्ण कण्टकम\nददर्श चापि कौन्तेयॊ यातनाः पापकर्मिणाम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 26, | |
"text": "स तं दुर्गन्धम आलक्ष्य देवदूतम उवाच ह\nकियद अध्वानम अस्माभिर गन्तव्यम इदम ईदृशम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 27, | |
"text": "कव च ते भरातरॊ मह्यं तन ममाख्यातुम अर्हसि\nदेशॊ ऽयं कश च देवानाम एतद इच्छामि वेदितुम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 28, | |
"text": "स संनिववृते शरुत्वा धर्मराजस्य भाषितम\nदेवदूतॊ ऽबरवीच चैनम एतावद गमनं तव" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 29, | |
"text": "निवर्तितव्यं हि मया तथास्म्य उक्तॊ दिवौकसैः\nयदि शरान्तॊ ऽसि राजेन्द्र तवम अथागन्तुम अर्हसि" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 30, | |
"text": "युधिष्ठिरस तु निर्विण्णस तेन गन्धेन मूर्छितः\nनिवर्तने धृतमनाः पर्यावर्तत भारत" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 31, | |
"text": "स संनिवृत्तॊ धर्मात्मा दुःखशॊकसमन्वितः\nशुश्राव तत्र वदतां दीना वाचः समन्ततः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 32, | |
"text": "भॊ भॊ धर्मज राजर्षे पुण्याभिजन पाण्डव\nअनुग्रहार्थम अस्माकं तिष्ठ तावन मुहूर्तकम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 33, | |
"text": "आयाति तवयि दुर्धर्षे वाति पुण्यः समीरणः\nतव गन्धानुगस तात येनास्मान सुखम आगमत" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 34, | |
"text": "ते वयं पार्थ दीर्घस्य कालस्य पुरुषर्षभ\nसुखम आसादयिष्यामस तवां दृष्ट्वा राजसत्तम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 35, | |
"text": "संतिष्ठस्व महाबाहॊ मुहूर्तम अपि भारत\nतवयि तिष्ठति कौरव्य यतनास्मान न बाधते" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 36, | |
"text": "एवं बहुविधा वाचः कृपणा वेदनावताम\nतस्मिन देशे स शुश्राव समन्ताद वदतां नृप" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 37, | |
"text": "तेषां तद वचनं शरुत्वा दयावान दीनभाषिणाम\nअहॊ कृच्छ्रम इति पराह तस्थौ स च युधिष्ठिरः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 38, | |
"text": "स ता गिरः पुरस्ताद वै शरुतपूर्वाः पुनः पुनः\nगलानानां दुःखितानां च नाभ्यजानत पाण्डवः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 39, | |
"text": "अबुध्यमानस ता वाचॊ धर्मपुत्रॊ युधिष्ठिरः\nउवाच के भवन्तॊ वै किमर्थम इह तिष्ठथ" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 40, | |
"text": "इत्य उक्तास ते ततः सर्वे समन्ताद अवभाषिरे\nकर्णॊ ऽहं भीमसेनॊ ऽहम अर्जुनॊ ऽहम इति परभॊ" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 41, | |
"text": "नकुलः सहदेवॊ ऽहं धृष्टद्युम्नॊ ऽहम इत्य उत\nदरौपदी दरौपदेयाश च इत्य एवं ते विचुक्रुशुः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 42, | |
"text": "ता वाचः सा तदा शरुत्वा तद देशसदृशीर नृप\nततॊ विममृशे राजा किं नव इदं दैवकारितम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 43, | |
"text": "किं नु तत कलुषं कर्मकृतम एभिर महात्मभिः\nकर्णेन दरौपदेयैर वा पाञ्चाल्या वा सुमध्यया" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 44, | |
"text": "य इमे पापगन्धे ऽसमिन देशे सन्ति सुदारुणे\nन हि जानामि सर्वेषां दुष्कृतं पुण्यकर्मणाम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 45, | |
"text": "किं कृत्वा धृतराष्ट्रस्य पुत्रॊ राजसुयॊधनः\nतथा शरिया युतः पापः सह सर्वैः पदानुगैः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 46, | |
"text": "महेन्द्र इव लक्ष्मीवान आस्ते परमपूजितः\nकस्येदानीं विकारॊ ऽयं यद इमे नरकं गतः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 47, | |
"text": "सर्वधर्मविदः शूराः सत्यागम परायणाः\nकषात्र धर्मपराः पराज्ञा यज्वानॊ भूरिदक्षिणाः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 48, | |
"text": "किं नु सुप्तॊ ऽसमि जागर्मि चेतयानॊ न चेतये\nअहॊ चित्तविकारॊ ऽयं सयाद वा मे चित्तविभ्रमः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 49, | |
"text": "एवं बहुविधं राजा विममर्श युधिष्ठिरः\nदुःखशॊकसमाविष्टश चिन्ताव्याकुलितेन्द्रियः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 50, | |
"text": "करॊधम आहारयच चैव तीव्रं धर्मसुतॊ नृपः\nदेवांश च गर्हयाम आस धर्मं चैव युधिष्ठिरः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 51, | |
"text": "स तीव्रगन्धसंतप्तॊ देवदूतम उवाच ह\nगम्यतां भद्र येषां तवं दूतस तेषाम उपान्तिकम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 52, | |
"text": "न हय अहं तत्र यास्म्यामि सथितॊ ऽसमीति निवेद्यताम\nमत संश्रयाद इमे दूत सुखिनॊ भरातरॊ हि मे" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 53, | |
"text": "इत्य उक्तः स तदा दूतः पाण्डुपुत्रेण धीमता\nजगाम तत्र यत्रास्ते देवराजः शतक्रतुः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 2, | |
"shloka": 54, | |
"text": "निवेदयाम आस च तद धर्मराज चिकीर्षितम\nयथॊक्तं धर्मपुत्रेण सर्वम एव जनाधिप" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 1, | |
"text": "[वै]\nसथिते मुहूर्तं पार्थे तु धर्मराजे युधिष्ठिरे\nआजग्मुस तत्र कौरव्य देवाः शक्रपुरॊगमाः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 2, | |
"text": "सवयं विग्रहवान धर्मॊ राजानं परसमीक्षितुम\nतत्राजगाम यत्रासौ कुरुराजॊ युधिष्ठिरः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 3, | |
"text": "तेषु भास्वरदेहेषु पुण्याभिजन कर्मसु\nसमागतेषु देवेषु वयगमत तत तमॊ नृप" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 4, | |
"text": "नादृश्यन्त च तास तत्र यातनाः पापकर्मिणाम\nनदी वैतरणी चैव कूटशाल्मलिना सह" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 5, | |
"text": "लॊहकुम्भ्यः शिलाश चैव नादृश्यन्त भयानकाः\nविकृतानि शरीराणि यानि तत्र समन्ततः\nददर्श राजा कौन्तेयस तान्य अदृश्यानि चाभवन" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 6, | |
"text": "ततॊ वयुः सुखस्पर्शः पुण्यगन्धवहः शिवः\nववौ देवसमीपस्थः शीतलॊ ऽतीव भारत" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 7, | |
"text": "मरुतः सह शक्रेण वसवश चाश्विनौ सह\nसाध्या रुद्रास तथादित्या ये चान्ये ऽपि दिवौकसः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 8, | |
"text": "सर्वे तत्र समाजग्मुः सिद्धाश च परमर्षयः\nयत्र राजा महातेजा धर्मपुत्रः सथितॊ ऽभवत" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 9, | |
"text": "ततः शक्रः सुरपतिः शरिया परमया युतः\nयुधिष्ठिरम उवाचेदं सान्त्वपूर्वम इदं वचः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 10, | |
"text": "युधिष्ठिर महाबाहॊ परीता देवगणास तव\nएह्य एहि पुरुषव्याघ्र कृतम एतावता विभॊ\nसिद्धिः पराप्ता तवया राजँल लॊकाश चाप्य अक्षयास तव" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 11, | |
"text": "न च मन्युस तवया कार्यः शृणु चेदं वचॊ मम\nअवश्यं नरकस तात दरष्टव्यः सर्वराजभिः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 12, | |
"text": "शुभानाम अशुभानां च दवौ राशीपुरुषर्षभ\nयः पूर्वं सुकृतं भुङ्क्ते पश्चान निरयम एति सः\nपूर्वं नरकभाग्यस तु पश्चात सवगम उपैति सः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 13, | |
"text": "भूयिष्ठं पापकर्मा यः स पूर्वं सवर्गम अश्नुते\nतेन तवम एवं गमितॊ मया शरेयॊ ऽरथिना नृप" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 14, | |
"text": "वयाजेन हि तवया दरॊण उपचीर्णः सुतं परति\nवयाजेनैव ततॊ राजन दर्शितॊ नरकस तव" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 15, | |
"text": "यथैव तवं तथा भीमस तथा पार्थॊ यमौ तथा\nदरौपदी च तथा कृष्णा वयाजेन नरकं गताः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 16, | |
"text": "आगच्छ नरशार्दूल मुक्तास ते चैव किल्बिषात\nसवपक्षाश चैव ये तुभ्यं पार्थिवा निहता रणे\nसर्वे सवर्गम अनुप्राप्तास तान पश्य पुरुषर्षभ" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 17, | |
"text": "कर्णश चैव महेष्वासः सर्वशस्त्रभृतां वरः\nस गतः परमां सिद्धिं यदर्थं परितप्यसे" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 18, | |
"text": "तं पश्य पुरुषव्याघ्रम आदित्यतनयं विभॊ\nसवस्थानस्थं महाबाहॊ जहि शॊकं नरर्षभ" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 19, | |
"text": "भरातॄंश चान्यांस तथा पश्य सवपक्षांश चैव पार्थिवान\nसवं सवं सथानम अनुप्राप्तान वयेतु ते मानसॊ जवरः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 20, | |
"text": "अनुभूय पूर्वं तवं कृच्छ्रम इतः परभृति कौरव\nविहरस्व मया सार्धं गतशॊकॊ निरामयः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 21, | |
"text": "कर्मणां तात पुण्यानां जितानां तपसा सवयम\nदानानां च महाबाहॊ फलं पराप्नुहि पाण्डव" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 22, | |
"text": "अद्य तवां देवगन्धर्वा दिव्याश चाप्सरसॊ दिवि\nउपसेवन्तु कल्याणं विरजॊऽमबरवाससः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 23, | |
"text": "राजसूय जिताँल लॊकान अश्वमेधाभिवर्धितान\nपराप्नुहि तवं महाबाहॊ तपसश च फलं महत" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 24, | |
"text": "उपर्य उपरि राज्ञां हि तव लॊका युधिष्ठिर\nहरिश्चन्द्र समाः पार्थ येषु तवं विहरिष्यसि" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 25, | |
"text": "मान्धाता यत्र राजर्षिर यत्र राजा भगीरथः\nदौःषन्तिर यत्र भरतस तत्र तवं विहरिष्यसि" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 26, | |
"text": "एषा देव नदी पुण्या पर्थ तरैलॊक्यपावनी\nआकाशगङ्गा राजेन्द्र तत्राप्लुत्य गमिष्यसि" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 27, | |
"text": "अत्र सनातस्य ते भावॊ मानुषॊ विगमिष्यति\nगतशॊकॊ निरायासॊ मुक्तवैरॊ भविष्यसि" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 28, | |
"text": "एवं बरुवति देवेन्द्रे कौरवेन्द्रं युधिष्ठिरम\nधर्मॊ विग्रहवान साक्षाद उवाच सुतम आत्मनः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 29, | |
"text": "भॊ भॊ राजन महाप्राज्ञ परीतॊ ऽसमि तव पुत्रक\nमद्भक्त्या सत्यवाक्येन कषमया च दमेन च" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 30, | |
"text": "एषा तृतीया जिज्ञास तव राजन कृता मया\nन शक्यसे चालयितुं सवभावात पार्थ हेतुभिः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 31, | |
"text": "पूर्वं परीक्षितॊ हि तवम आसीर दवैतवनं परति\nअरणी सहितस्यार्थे तच च निस्तीर्णवान असि" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 32, | |
"text": "सॊदर्येषु विनष्टेषु दरौपद्यां तत्र भारत\nशवरूपधारिणा पुत्र पुनस तवं मे परीक्षितः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 33, | |
"text": "इदं तृतीयं भरातॄणाम अर्थे यत सथातुम इच्छसि\nविशुद्धॊ ऽसि महाभाग सुखी विगतकल्मषः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 34, | |
"text": "न च ते भरातरः पार्थ नरकस्था विशां पते\nमायैषा देवराजेन महेन्द्रेण परयॊजिता" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 35, | |
"text": "अवश्यं नरकस तात दरष्टव्यः सर्वराजभिः\nततस तवया पराप्तम इदं मुहूर्तं दुःखम उत्तमम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 36, | |
"text": "न सव्यसाची भीमॊ वा यमौ वा पुरुषर्षभौ\nकर्णॊ वा सत्यवाक शूरॊ नरकार्हाश चिरं नृप" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 37, | |
"text": "न कृष्णा राजपुत्री च नारकार्हा युधिष्ठिर\nएह्य एहि भरतश्रेष्ठ पश्य गङ्गां तरिलॊकगाम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 38, | |
"text": "एवम उक्तः स राजर्षिस तव पूर्वपितामहः\nजगाम सहधर्मेण सर्वैश च तरिदशालयैः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 39, | |
"text": "गङ्गां देव नदीं पुण्यां पावनीम ऋषिसंस्तुताम\nअवगाह्य तु तां राजा तनुं तत्याज मानुषीम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 40, | |
"text": "ततॊ दिव्यवपुर भूत्वा धर्मराजॊ युधिष्ठिरः\nनिर्वैरॊ गतसंतापॊ जले तस्मिन समाप्लुतः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 3, | |
"shloka": 41, | |
"text": "ततॊ ययौ वृतॊ देवैः कुरुराजॊ युधिष्ठिरः\nधर्मेण सहितॊ धर्मान सतूयमानॊ महर्षिभिः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 1, | |
"text": "[वै]\nततॊ युधिष्ठिरॊ राजा देवैः सर्पि मरुद्गणैः\nपूज्यमानॊ ययौ ततत्र यत्र ते कुरुपुंगवाः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 2, | |
"text": "ददर्श तत्र गॊविन्दं बराह्मेण वपुषान्वितम\nतेनैव दृष्टपूर्वेण सादृश्येनॊपसूचितम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 3, | |
"text": "दीप्यमानं सववपुषा दिव्यैर अस्त्रैर उपस्थितम\nचक्रप्रभृतिभिर घॊरैर दिव्यैः पुरुषविग्रहैः\nउपास्यमानं वीरेण फल्गुनेन सुवर्चसा" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 4, | |
"text": "अपरस्मिन्न अथॊद्देशे कर्णं शस्त्रभृतां वरम\nदवादशादित्य सहितं ददर्श कुरुनन्दनः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 5, | |
"text": "अथापरस्मिन्न उद्देशे मरुद्गणवृतं परभुम\nभीमसेनम अथापश्यत तेनैव वपुषान्वितम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 6, | |
"text": "अश्विनॊस तु तथा सथाने दीप्यमानौ सवतेजसा\nनकुलं सहदेवं च ददर्श कुरुनन्दनः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 7, | |
"text": "तथा ददर्श पाञ्चालीं कमलॊत्पलमालिनीम\nवपुषा सवर्गम आक्रम्य तिष्ठन्तीम अर्कवर्चसम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 8, | |
"text": "अथैनां सहसा राजा परष्टुम ऐच्छद युधिष्ठिरः\nततॊ ऽसय भगवान इन्द्रः कथयाम आस देवराट" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 9, | |
"text": "शरीर एषा दरौपदी रूपा तवदर्थे मानुषं गता\nअयॊनिजा लॊककान्ता पुण्यगन्धा युधिष्ठिर" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 10, | |
"text": "दरुपदस्य कुले जाता भवद्भिश चॊपजीविता\nरत्यर्थं भवतां हय एषा निमिता शूलपाणिना" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 11, | |
"text": "एते पञ्च महाभागा गन्धर्वाः पावकप्रभाः\nदरौपद्यास तनया राजन युष्माकम अमितौजसः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 12, | |
"text": "पश्य गन्धर्वराजानं धृतराष्ट्रं मनीषिणम\nएनं च तवं विजानीहि भरातरं पूर्वजं पितुः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 13, | |
"text": "अयं ते पूर्वजॊ भराता कौन्तेयः पावकद्युतिः\nसूर्यपुत्रॊ ऽगरजः शरेष्ठॊ राधेय इति विश्रुतः\nआदित्यसहितॊ याति पश्यैनं पुरुषर्षभ" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 14, | |
"text": "साध्यानाम अथ देवानां वसूनां मरुताम अपि\nगणेषु पश्य राजेन्द्र वृष्ण्यन्धकमहारथान\nसात्यकिप्रमुखान वीरान भॊजांश चैव महारथान" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 15, | |
"text": "सॊमेन सहितं पश्य सौभद्रम अपराजितम\nअभिमन्युं महेष्वासं निशाकरसमद्युतिम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 16, | |
"text": "एष पाण्डुर महेष्वासः कुन्त्या माद्र्या च संगतः\nविमानेन सदाभ्येति पिता तव ममान्तिकम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 17, | |
"text": "वसुभिः सहितं पश्य भीष्मं शांतनवं नृपम\nदरॊणं बृहस्पतेः पार्श्वे गुरुम एनं निशामय" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 18, | |
"text": "एते चान्ये महीपाला यॊधास तव च पाण्डव\nगन्धर्वैः सहिता यान्ति यक्षैः पुण्यजनैस तथा" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 4, | |
"shloka": 19, | |
"text": "गुह्यकानां गतिं चापि के चित पराप्ता नृसत्तमाः\nतयक्त्वा देहं जितस्वर्गाः पुण्यवाग बुद्धिकर्मभिः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 1, | |
"text": "[ज]\nभीष्मद्रॊणौ महात्मानौ धृतराष्ट्रश च पार्थिवः\nविराटद्रुपदौ चॊभौ शङ्खश चैवॊत्तरस तथा" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 2, | |
"text": "धृष्टकेतुर जयत्सेनॊ राजा चैव स सत्यजित\nदुर्यॊधन सुताश चैव शकुनिश चैव सौबलः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 3, | |
"text": "कर्ण पुत्राश च विक्रान्ता राजा चैव जयद्रथः\nघटॊत्चकादयश चैव ये चान्ये नानुकीर्तिताः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 4, | |
"text": "ये चान्ये कीर्तितास तत्र राजानॊ दीप्तमूर्तयः\nसवर्गे कालं कियन्तं ते तस्थुस तद अपि शंस मे" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 5, | |
"text": "आहॊस्विच छाश्वतं सथानं तेषां तत्र दविजॊत्तम\nअन्ये वा कर्मणः कां ते गतिं पराप्ता नरर्षभाः\nएतद इच्छाम्य अहं शरॊतुं परॊच्यमानं तवया दविज" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 6, | |
"text": "[सूत]\nइत्य उक्तः स तु विप्रर्षिर अनुज्ञातॊ महात्मना\nवयासेन तस्य नृपतेर आख्यातुम उपचक्रमे" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 7, | |
"text": "[वै]\nगन्तव्यं कर्मणाम अन्ते सर्वेण मनुजाधिप\nशृणु गुह्यम इदं राजन देवानां भरतर्षभ\nयद उवाच महातेजा दिव्यचक्षुः परतापवान" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 8, | |
"text": "मुनिः पुराणः कौरव्य पाराशर्यॊ महाव्रतः\nअगाध बुद्धिः सर्वज्ञॊ गतिज्ञः सर्वकर्मणाम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 9, | |
"text": "वसून एव महातेजा भीष्मः पराप महाद्युतिः\nअष्टाव एव हि दृश्यन्ते वसवॊ भरतर्षभ" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 10, | |
"text": "बृहस्पतिं विवेशाथ दरॊणॊ हय अङ्गिरसां वरम\nकृतवर्मा तु हार्दिक्यः परविवेश मरुद्गणम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 11, | |
"text": "सनत कुमारं परद्युम्नः परविवेश यथागतम\nधृतराष्ट्रॊ धनेशस्य लॊकान पराप दुरासदान" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 12, | |
"text": "धृतराष्ट्रेण सहिता गान्धारी च यशस्विनी\nपत्नीभ्यां सहितः पाण्डुर महेन्द्र सदनं ययौ" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 13, | |
"text": "विराटद्रुपदौ चॊभौ धृष्टकेतुश च पार्थिव\nनिशठाक्रूर साम्बाश च भानुः कम्पॊ विडूरथः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 14, | |
"text": "भूरिश्रवाः शलश चैव भूरिश च पृथिवीपतिः\nउग्रसेनस तथा कंसॊ वसुदेवश च वीर्यवान" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 15, | |
"text": "उत्तरश च सह भरात्रा शङ्खेन नरपुंगवः\nविश्वेषां देवतानां ते विविशुर नरसत्तमाः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 16, | |
"text": "वर्चा नाम महातेजाः सॊमपुत्रः परतापवान\nसॊ ऽभिमन्युर नृसिंहस्य फल्गुनस्य सुतॊ ऽभवत" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 17, | |
"text": "स युद्ध्वा कषत्रधर्मेण यथा नान्यः पुमान कव चित\nविवेश सॊमं धर्मात्मा कर्मणॊ ऽनते महारथः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 18, | |
"text": "आविवेश रविं कर्णः पितरं पुरुषर्षभ\nदवापरं शकुनिः पराप धृष्टद्युम्नस तु पावकम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 19, | |
"text": "धृतराष्ट्रात्मजाः सर्वे यातुधाना बलॊत्कटाः\nऋद्धिमन्तॊ महात्मानः शस्त्रपूता दिवं गताः\nधर्मम एवाविशत कषत्ता राजा चैव युधिष्ठिरः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 20, | |
"text": "अनन्तॊ भगवान देवः परविवेश रसातलम\nपितामह नियॊगाद धि यॊ यॊगाद गाम अधारयत" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 21, | |
"text": "षॊडश सत्रीसहस्राणि वासुदेव परिग्रहः\nनयमज्जन्त सरस्वत्यां कालेन जनमेजय\nताश चाप्य अप्सरसॊ भूत्वा वासुदेवम उपागमन" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 22, | |
"text": "हतास तस्मिन महायुद्धे ये वीरास तु महारथाः\nघटॊत्कचादयः सर्वे देवान यक्षांश च भेजिरे" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 23, | |
"text": "दुर्यॊधन सहायाश च राक्षसाः परिकीर्तिताः\nपराप्तास ते करमशॊ राजन सर्वलॊकान अनुत्तमान" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 24, | |
"text": "भवनं च महेन्द्रस्य कुबेरस्य च धीमतः\nवरुणस्य तथा लॊकान विविशुः पुरुषर्षभाः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 25, | |
"text": "एतत ते सर्वम आख्यातं विस्तरेण महाद्युते\nकुरूणां चरितं कृत्स्नं पाण्डवानां च भारत" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 26, | |
"text": "[सूत]\nएतच छरुत्वा दविजश्रेष्ठात स राजा जनमेजयः\nविस्मितॊ ऽभवद अत्यर्थं यज्ञकर्मान्तरेष्व अथ" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 27, | |
"text": "ततः समापयाम आसुः कर्म तत तस्य याजकाः\nआस्तीकश चाभवत परीतः परिमॊक्ष्य भुजंगमान" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 28, | |
"text": "ततॊ दविजातीन सर्वांस तान दक्षिणाभिर अतॊषयत\nपूजिताश चापि ते राज्ञा ततॊ जग्मुर यथागतम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 29, | |
"text": "विसर्जयित्वा विप्रांस तान राजापि जनमेजयः\nततस तक्षशिलायाः स पुनर आयाद गजाह्वयम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 30, | |
"text": "एतत ते सर्वम आख्यातं वैशम्पायन कीर्तितम\nवयासाज्ञया समाख्यातं सर्पसत्त्रे नृपस्य ह" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 31, | |
"text": "पुण्यॊ ऽयम इतिहासाख्यः पवित्रं चेदम उत्तमम\nकृष्णेन मुनिना विप्र नियतं सत्यवादिना" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 32, | |
"text": "सर्वज्ञेन विधिज्ञेन धर्मज्ञानवता सता\nअतीन्द्रियेण शुचिना तपसा भावितात्मना" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 33, | |
"text": "ऐश्वर्ये वर्तता चैव सांख्ययॊगविदा तथा\nनैकतन्त्र विबुद्धेन दृष्ट्वा दिव्येन चक्षुषा" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 34, | |
"text": "कीर्तिं परथयता लॊके पाण्डवानां महात्मनाम\nअन्येषां कषत्रियाणां च भूरि दरविण तेजसाम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 35, | |
"text": "य इदं शरावयेद विद्वान सदा पर्वणि पर्वणि\nधूतपाप्मा जितस्वर्गॊ बरह्मभूयाय गच्छति" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 36, | |
"text": "यश चेदं शरावयेच छराद्धे बराह्मणान पादम अन्ततः\nअक्षय्यम अन्नपानं वै पितॄंस तस्यॊपतिष्ठते" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 37, | |
"text": "अह्ना यद एनः कुरुते इन्द्रियैर मनसापि वा\nमहाभारतम आख्याय पश्चात संध्यां परमुच्यते" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 38, | |
"text": "धर्मे चार्थे च कामे च मॊक्षे च भरतर्षभ\nयद इहास्ति तद अन्यत्र यन नेहास्ति न तत कव चित" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 39, | |
"text": "यजॊ नामेतिहासॊ ऽयं शरॊतव्यॊ भूतिम इच्छता\nरज्ञा राजसुतैश चापि गर्भिण्या चैव यॊषिता" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 40, | |
"text": "सवर्गकामॊ लभेत सवर्गं जय कामॊ लभेज जयम\nगर्भिणी लभते पुत्रं कन्यां वा बहु भागिनीम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 41, | |
"text": "अनागतं तरिभिर वर्षैः कृष्णद्वैपायनः परभुः\nसंदर्भं भारतस्यास्य कृतवान धर्मकाम्यया" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 42, | |
"text": "नारदॊ ऽशरावयद देवान असितॊ देवलः पितॄन\nरक्षॊयक्षाञ शुकॊ मर्त्यान वैशम्पायन एव तु" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 43, | |
"text": "इतिहासम इमं पुण्यं महार्थं वेद संमितम\nशरावयेद यस तु वर्णांस तरीन कृत्वा बराह्मणम अग्रतः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 44, | |
"text": "स नरः पापनिर्मुक्तः कीरितं पराप्येह शौनक\nगच्छेत परमिकां सिद्धिम अत्र मे नास्ति संशयः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 45, | |
"text": "भारताध्ययनात पुण्याद अपि पादम अधीयतः\nशरद्दधानस्य पूयन्ते सर्वपापान्य अशेषतः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 46, | |
"text": "महर्षिर भगवान वयासः कृत्वेमां संहितां पुरा\nशलॊकैश चतुर्भिर भगवान पुत्रम अध्यापयच छुकम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 47, | |
"text": "माता पितृसहस्राणि पुत्रदारशतानि च\nसंसारेष्व अनुभूतानि यान्ति यास्यन्ति चापरे" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 48, | |
"text": "हर्षस्थान सहस्राणि भयस्थान शतानि च\nदिवसे दिवसे मूढम आविशन्ति न पण्डितम" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 49, | |
"text": "ऊर्ध्वबाहुर विरौम्य एष न च कश चिच छृणॊति मे\nधर्माद अर्थश च कामश च स किमर्थं न सेव्यते" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 50, | |
"text": "न जातु कामान न भयान न लॊभाद; धर्मं तयजेज जीवितस्यापि हेतॊः\nनित्यॊ धर्मः सुखदुःखे तव अनित्ये; जीवॊ नित्यॊ हेतुर अस्य तव अनित्यः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 51, | |
"text": "इमां भारत सावित्रीं परातर उत्थाय यः पठेत\nस भारत फलं पराप्य परं बरह्माधिगच्छति" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 52, | |
"text": "यथा समुद्रॊ भगवान यथा च हिमवान गिरिः\nखयाताव उभौ रत्ननिधी तथा भारतम उच्यते" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 53, | |
"text": "महाभारतम आख्यानं यः पठेत सुसमाहितः\nस गच्छेत परमां सिद्धिम इति मे नास्ति संशयः" | |
}, | |
{ | |
"book": 18, | |
"chapter": 5, | |
"shloka": 54, | |
"text": "दवैपायनॊष्ठपुटनिःसृतम अप्रमेयं; पुण्यं पवित्रम अथ पापहरं शिवं च\nयॊ भारतं समधिगच्छति वाच्यमानं; किं तस्य पुष्करजलैर अभिषेचनेन" | |
} | |
] |