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{ | |
"title": "१०. कोसम्बकक्खन्धको", | |
"book_name": "१०. कोसम्बकक्खन्धको", | |
"chapter": "९. चम्पेय्यक्खन्धको", | |
"gathas": [ | |
"‘‘यदा हवे पातुभवन्ति धम्मा।", | |
"आतापिनो झायतो ब्राह्मणस्स।", | |
"अथस्स कङ्खा वपयन्ति सब्बा।", | |
"यतो पजानाति सहेतुधम्म’’न्ति॥", | |
"‘‘यदा हवे पातुभवन्ति धम्मा।", | |
"आतापिनो झायतो ब्राह्मणस्स।", | |
"अथस्स कङ्खा वपयन्ति सब्बा।", | |
"यतो खयं पच्चयानं अवेदी’’ति॥", | |
"‘‘यदा हवे पातुभवन्ति धम्मा।", | |
"आतापिनो झायतो ब्राह्मणस्स।", | |
"विधूपयं तिट्ठति मारसेनं।", | |
"सूरियोव", | |
"निहुंहुङ्को निक्कसावो यतत्तो।", | |
"वेदन्तगू वुसितब्रह्मचरियो।", | |
"धम्मेन सो ब्रह्मवादं वदेय्य।", | |
"यस्सुस्सदा नत्थि कुहिञ्चि लोके’’ति॥", | |
"अब्यापज्जं सुखं लोके, पाणभूतेसु संयमो॥", | |
"अस्मिमानस्स यो विनयो, एतं वे परमं सुख’’न्ति॥", | |
"‘‘किच्छेन", | |
"रागदोसपरेतेहि, नायं धम्मो सुसम्बुधो॥", | |
"‘‘पटिसोतगामिं", | |
"रागरत्ता न दक्खन्ति, तमोखन्धेन आवुटा", | |
"‘‘पातुरहोसि मगधेसु पुब्बे।", | |
"धम्मो असुद्धो समलेहि चिन्तितो।", | |
"अपापुरेतं", | |
"सुणन्तु धम्मं विमलेनानुबुद्धं॥", | |
"‘‘सेले यथा पब्बतमुद्धनिट्ठितो।", | |
"यथापि पस्से जनतं समन्ततो।", | |
"तथूपमं धम्ममयं सुमेध।", | |
"पासादमारुय्ह समन्तचक्खु।", | |
"सोकावतिण्णं", | |
"अवेक्खस्सु जातिजराभिभूतं॥", | |
"‘‘उट्ठेहि", | |
"सत्थवाह अणण", | |
"देसस्सु", | |
"अञ्ञातारो भविस्सन्ती’’ति॥", | |
"‘किच्छेन मे अधिगतं, हलं दानि पकासितुं।", | |
"रागदोसपरेतेहि, नायं धम्मो सुसम्बुधो॥", | |
"‘पटिसोतगामिं निपुणं, गम्भीरं दुद्दसं अणुं।", | |
"रागरत्ता न दक्खन्ति, तमोखन्धेन आवुटा’ति॥", | |
"‘‘पातुरहोसि", | |
"धम्मो असुद्धो समलेहि चिन्तितो।", | |
"अपापुरेतं अमतस्स द्वारं।", | |
"सुणन्तु धम्मं विमलेनानुबुद्धं॥", | |
"‘‘सेले यथा पब्बतमुद्धनिट्ठितो।", | |
"यथापि पस्से जनतं समन्ततो।", | |
"तथूपमं", | |
"पासादमारुय्ह समन्तचक्खु।", | |
"सोकावतिण्णं जनतमपेतसोको।", | |
"अवेक्खस्सु जातिजराभिभूतं॥", | |
"‘‘उट्ठेहि वीर विजितसङ्गाम।", | |
"सत्थवाह अणण विचर लोके।", | |
"देसस्सु भगवा धम्मं।", | |
"अञ्ञातारो भविस्सन्ती’’ति॥", | |
"‘किच्छेन मे अधिगतं, हलं दानि पकासितुं।", | |
"रागदोसपरेतेहि, नायं धम्मो सुसम्बुधो॥", | |
"‘पटिसोतगामिं निपुणं, गम्भीरं दुद्दसं अणुं।", | |
"रागरत्ता न दक्खन्ति, तमोखन्धेन आवुटा’ति॥", | |
"‘‘पातुरहोसि मगधेसु पुब्बे।", | |
"धम्मो असुद्धो समलेहि चिन्तितो।", | |
"अपापुरेतं अमतस्स द्वारं।", | |
"सुणन्तु धम्मं विमलेनानुबुद्धं॥", | |
"‘‘सेले यथा पब्बतमुद्धनिट्ठितो।", | |
"यथापि पस्से जनतं समन्ततो।", | |
"तथूपमं धम्ममयं सुमेध।", | |
"पासादमारुय्ह समन्तचक्खु।", | |
"सोकावतिण्णं जनतमपेतसोको।", | |
"अवेक्खस्सु जातिजराभिभूतं॥", | |
"‘‘उट्ठेहि वीर विजितसङ्गाम।", | |
"सत्थवाह अणण विचर लोके।", | |
"देसस्सु भगवा धम्मं।", | |
"अञ्ञातारो भविस्सन्ती’’ति॥", | |
"‘‘अपारुता तेसं अमतस्स द्वारा।", | |
"ये सोतवन्तो पमुञ्चन्तु सद्धं।", | |
"विहिंससञ्ञी पगुणं न भासिं।", | |
"धम्मं पणीतं मनुजेसु ब्रह्मे’’ति॥", | |
"सब्बेसु धम्मेसु अनूपलित्तो।", | |
"सब्बञ्जहो तण्हाक्खये विमुत्तो,", | |
"सयं अभिञ्ञाय कमुद्दिसेय्यं॥", | |
"सदेवकस्मिं लोकस्मिं, नत्थि मे पटिपुग्गलो॥", | |
"एकोम्हि सम्मासम्बुद्धो, सीतिभूतोस्मि निब्बुतो॥", | |
"अन्धीभूतस्मिं लोकस्मिं, आहञ्छं", | |
"जिता", | |
"‘‘बद्धोसि सब्बपासेहि, ये दिब्बा ये च मानुसा।", | |
"महाबन्धनबद्धोसि, न मे समण मोक्खसी’’ति॥", | |
"‘‘मुत्ताहं", | |
"महाबन्धनमुत्तोम्हि, निहतो त्वमसि अन्तकाति॥", | |
"तेन तं बाधयिस्सामि, न मे समण मोक्खसीति॥", | |
"एत्थ मे विगतो छन्दो, निहतो त्वमसि अन्तका’’ति॥", | |
"‘‘बद्धोसि मारपासेहि, ये दिब्बा ये च मानुसा।", | |
"महाबन्धनबद्धोसि", | |
"‘‘मुत्ताहं मारपासेहि, ये दिब्बा ये च मानुसा।", | |
"महाबन्धनमुत्तोम्हि", | |
"नेरञ्जरायं भगवा, उरुवेलकस्सपं जटिलं अवोच।", | |
"‘‘सचे ते कस्सप अगरु, विहरेमु अज्जण्हो अग्गिसालम्ही’’ति", | |
"‘‘न खो मे महासमण गरु।", | |
"फासुकामोव तं निवारेमि।", | |
"चण्डेत्थ नागराजा।", | |
"इद्धिमा आसिविसो घोरविसो।", | |
"सो", | |
"‘‘अप्पेव मं न विहेठेय्य।", | |
"इङ्घ त्वं कस्सप अनुजानाहि अग्यागार’’न्ति।", | |
"दिन्नन्ति नं विदित्वा।", | |
"अभीतो", | |
"दिस्वा इसिं पविट्ठं, अहिनागो दुम्मनो पधूपायि।", | |
"सुमनमनसो अधिमनो", | |
"मक्खञ्च", | |
"तेजोधातुसु कुसलो, मनुस्सनागोपि तत्थ पज्जलि॥", | |
"उभिन्नं सजोतिभूतानं।", | |
"अग्यागारं आदित्तं होति सम्पज्जलितं सजोतिभूतं।", | |
"उदिच्छरे जटिला।", | |
"‘‘अभिरूपो वत भो महासमणो।", | |
"नागेन विहेठियती’’ति भणन्ति॥", | |
"अथ", | |
"हता नागस्स अच्चियो होन्ति", | |
"इद्धिमतो पन ठिता", | |
"अनेकवण्णा अच्चियो होन्ति॥", | |
"नीला अथ लोहितिका।", | |
"मञ्जिट्ठा पीतका फलिकवण्णायो।", | |
"अङ्गीरसस्स काये।", | |
"अनेकवण्णा अच्चियो होन्ति॥", | |
"पत्तम्हि", | |
"अहिनागं ब्राह्मणस्स दस्सेसि।", | |
"‘‘अयं ते कस्सप नागो।", | |
"परियादिन्नो अस्स तेजसा तेजो’’ति॥", | |
"‘‘किमेव दिस्वा उरुवेलवासि, पहासि अग्गिं किसकोवदानो।", | |
"पुच्छामि तं कस्सप, एतमत्थं कथं पहीनं तव अग्गिहुत्तन्ति॥", | |
"‘‘रूपे च सद्दे च अथो रसे च।", | |
"कामित्थियो चाभिवदन्ति यञ्ञा।", | |
"एतं मलन्ति उपधीसु ञत्वा।", | |
"तस्मा न यिट्ठे न हुते अरञ्जिन्ति॥", | |
"‘‘एत्थेव ते मनो न रमित्थ (कस्सपाति भगवा)।", | |
"रूपेसु सद्देसु अथो रसेसु।", | |
"अथ को चरहि देवमनुस्सलोके।", | |
"रतो मनो कस्सप, ब्रूहि मेतन्ति॥", | |
"‘‘दिस्वा", | |
"अकिञ्चनं कामभवे असत्तं।", | |
"अनञ्ञथाभाविमनञ्ञनेय्यं।", | |
"तस्मा न यिट्ठे न हुते अरञ्जि’’न्ति॥", | |
"‘‘दन्तो दन्तेहि सह पुराणजटिलेहि, विप्पमुत्तो विप्पमुत्तेहि।", | |
"सिङ्गीनिक्खसवण्णो, राजगहं पाविसि भगवा॥", | |
"‘‘मुत्तो", | |
"सिङ्गीनिक्खसवण्णो, राजगहं पाविसि भगवा॥", | |
"‘‘तिण्णो", | |
"विप्पमुत्तो विप्पमुत्तेहि।", | |
"सिङ्गीनिक्खसुवण्णो।", | |
"राजगहं पाविसि भगवा॥", | |
"‘‘सन्तो सन्तेहि सह पुराणजटिलेहि।", | |
"विप्पमुत्तो विप्पमुत्तेहि।", | |
"सिङ्गीनिक्खसवण्णो।", | |
"राजगहं पाविसि भगवा॥", | |
"‘‘दसवासो दसबलो, दसधम्मविदू दसभि चुपेतो।", | |
"सो दससतपरिवारो", | |
"‘‘यो धीरो सब्बधि दन्तो, सुद्धो अप्पटिपुग्गलो।", | |
"अरहं सुगतो लोके, तस्साहं परिचारको’’ति॥", | |
"‘‘अप्पं", | |
"अत्थेनेव मे अत्थो, किं काहसि ब्यञ्जनं बहु’’न्ति॥", | |
"तेसञ्च यो निरोधो, एवंवादी महासमणो’’ति॥", | |
"अदिट्ठं अब्भतीतं, बहुकेहि कप्पनहुतेहीति॥", | |
"अप्पं वा बहुं वा भासस्सु, अत्थंयेव मे ब्रूहि।", | |
"अत्थेनेव मे अत्थो, किं काहसि ब्यञ्जनं बहु’’न्ति॥", | |
"‘‘ये धम्मा हेतुप्पभवा, तेसं हेतुं तथागतो आह।", | |
"तेसञ्च यो निरोधो, एवंवादी महासमणो’’ति॥", | |
"एसेव धम्मो यदि तावदेव, पच्चब्यत्थ पदमसोकं।", | |
"अदिट्ठं अब्भतीतं, बहुकेहि कप्पनहुतेहीति॥", | |
"गम्भीरे", | |
"विमुत्ते अप्पत्ते वेळुवनं, अथ ने सत्था ब्याकासि॥", | |
"एते द्वे सहायका, आगच्छन्ति कोलितो उपतिस्सो च।", | |
"एतं मे सावकयुगं, भविस्सति अग्गं भद्दयुगन्ति॥", | |
"‘‘आगतो", | |
"सब्बे सञ्चये नेत्वान", | |
"‘‘आगतो खो महासमणो, मागधानं गिरिब्बजं।", | |
"सब्बे सञ्चये नेत्वान, कंसु दानि नयिस्सती’’ति॥", | |
"‘‘नयन्ति वे महावीरा, सद्धम्मेन तथागता।", | |
"धम्मेन नयमानानं", | |
"‘‘आगतो खो महासमणो, मागधानं गिरिब्बजं।", | |
"सब्बे सञ्चये नेत्वान, कंसु दानि नयिस्सती’’ति॥", | |
"‘‘नयन्ति वे महावीरा, सद्धम्मेन तथागता।", | |
"धम्मेन नयमानानं, का उसूया विजानत’’न्ति॥", | |
"विनयम्हि महत्थेसु, पेसलानं सुखावहे।", | |
"निग्गहानञ्च पापिच्छे, लज्जीनं पग्गहेसु च॥", | |
"सासनाधारणे चेव, सब्बञ्ञुजिनगोचरे।", | |
"अनञ्ञविसये खेमे, सुपञ्ञत्ते असंसये॥", | |
"खन्धके विनये चेव, परिवारे च मातिके।", | |
"यथात्थकारी कुसलो, पटिपज्जति योनिसो॥", | |
"यो", | |
"एवं", | |
"पमुट्ठम्हि च सुत्तन्ते, अभिधम्मे च तावदे।", | |
"विनये", | |
"तस्मा सङ्गाहणाहेतुं", | |
"पवक्खामि यथाञायं, सुणाथ मम भासतो॥", | |
"वत्थु", | |
"दुक्करं तं असेसेतुं, नयतो तं विजानथाति॥", | |
"बोधि राजायतनञ्च, अजपालो सहम्पति।", | |
"ब्रह्मा आळारो उदको, भिक्खु च उपको इसि॥", | |
"कोण्डञ्ञो वप्पो भद्दियो, महानामो च अस्सजि।", | |
"यसो चत्तारो पञ्ञास, सब्बे पेसेसि सो दिसा॥", | |
"वत्थु मारेहि तिंसा च, उरुवेलं तयो जटी।", | |
"अग्यागारं महाराजा, सक्को ब्रह्मा च केवला॥", | |
"पंसुकूलं पोक्खरणी, सिला च ककुधो सिला।", | |
"जम्बु", | |
"फालियन्तु उज्जलन्तु, विज्झायन्तु च कस्सप।", | |
"निमुज्जन्ति मुखी मेघो, गया लट्ठि च मागधो॥", | |
"उपतिस्सो कोलितो च, अभिञ्ञाता च पब्बजुं।", | |
"दुन्निवत्था पणामना, किसो लूखो च ब्राह्मणो॥", | |
"अनाचारं आचरति, उदरं माणवो गणो।", | |
"वस्सं बालेहि पक्कन्तो, दस वस्सानि निस्सयो॥", | |
"न वत्तन्ति पणामेतुं, बाला पस्सद्धि पञ्च छ।", | |
"यो सो अञ्ञो च नग्गो च, अच्छिन्नजटिलसाकियो॥", | |
"मगधेसु पञ्चाबाधा, एको राजा", | |
"मागधो च अनुञ्ञासि, कारा लिखि कसाहतो॥", | |
"लक्खणा", | |
"सद्धं कुलं कण्टको च, आहुन्दरिकमेव च॥", | |
"वत्थुम्हि दारको सिक्खा, विहरन्ति च किं नु खो।", | |
"सब्बं मुखं उपज्झाये, अपलाळन कण्टको॥", | |
"पण्डको थेय्यपक्कन्तो, अहि च मातरी पिता।", | |
"अरहन्तभिक्खुनीभेदा, रुहिरेन च ब्यञ्जनं॥", | |
"अनुपज्झायसङ्घेन, गणपण्डकपत्तको।", | |
"अचीवरं", | |
"हत्था पादा हत्थपादा, कण्णा नासा तदूभयं।", | |
"अङ्गुलिअळकण्डरं, फणं खुज्जञ्च वामनं॥", | |
"गलगण्डी लक्खणा चेव, कसा लिखितसीपदी।", | |
"पापपरिसदूसी च, काणं कुणि तथेव च॥", | |
"खञ्जं", | |
"जरान्धमूगबधिरं, अन्धमूगञ्च यं तहिं॥", | |
"अन्धबधिरं यं वुत्तं, मूगबधिरमेव च।", | |
"अन्धमूगबधिरञ्च, अलज्जीनञ्च निस्सयं॥", | |
"वत्थब्बञ्च तथाद्धानं, याचमानेन लक्खणा", | |
"आगच्छतु विवदन्ति, एकुपज्झायेन कस्सपो॥", | |
"दिस्सन्ति उपसम्पन्ना, आबाधेहि च पीळिता।", | |
"अननुसिट्ठा वित्थेन्ति, तत्थेव अनुसासना॥", | |
"सङ्घेपि", | |
"उल्लुम्पतुपसम्पदा, निस्सयो एकको तयोति॥", | |
"तित्थिया बिम्बिसारो च, सन्निपतितुं तुण्हिका।", | |
"धम्मं रहो पातिमोक्खं, देवसिकं तदा सकिं॥", | |
"यथापरिसा समग्गं, सामग्गी मद्दकुच्छि च।", | |
"सीमा महती नदिया, अनु द्वे खुद्दकानि च॥", | |
"नवा", | |
"सम्मन्ने", | |
"असम्मता", | |
"उदकुक्खेपो भिन्दन्ति, तथेवज्झोत्थरन्ति च॥", | |
"कति", | |
"धम्मं विनयं तज्जेन्ति, पुन विनयतज्जना॥", | |
"चोदना कते ओकासे, अधम्मप्पटिक्कोसना।", | |
"चतुपञ्चपरा आवि, सञ्चिच्च चेपि वायमे॥", | |
"सगहट्ठा अनज्झिट्ठा, चोदनम्हि न जानति।", | |
"सम्बहुला न जानन्ति, सज्जुकं न च गच्छरे॥", | |
"कतिमी कीवतिका दूरे, आरोचेतुञ्च नस्सरि।", | |
"उक्लापं आसनं दीपो, दिसा अञ्ञो बहुस्सुतो॥", | |
"सज्जुकं", | |
"गग्गो चतुतयो द्वेको, आपत्तिसभागा सरि॥", | |
"सब्बो सङ्घो वेमतिको, न जानन्ति बहुस्सुतो।", | |
"बहू समसमा थोका, परिसा अवुट्ठिताय च॥", | |
"एकच्चा वुट्ठिता सब्बा, जानन्ति च वेमतिका।", | |
"कप्पतेवाति कुक्कुच्चा, जानं पस्सं सुणन्ति च॥", | |
"आवासिकेन आगन्तु, चातुपन्नरसो पुन।", | |
"पाटिपदो पन्नरसो, लिङ्गसंवासका उभो॥", | |
"पारिवासानुपोसथो", | |
"एते विभत्ता उद्दाना, वत्थुविभूतकारणाति॥", | |
"उपगन्तुं", | |
"न इच्छन्ति च सञ्चिच्च, उक्कड्ढितुं उपासको॥", | |
"गिलानो", | |
"भिक्खुगतिको विहारो, वाळा चापि सरीसपा॥", | |
"चोरो चेव पिसाचा च, दड्ढा तदुभयेन च।", | |
"वूळ्होदकेन वुट्ठासि, बहुतरा च दायका॥", | |
"लूखप्पणीतसप्पाय, भेसज्जुपट्ठकेन", | |
"इत्थी वेसी कुमारी च, पण्डको ञातकेन च॥", | |
"राजा चोरा धुत्ता निधि, भेदअट्ठविधेन", | |
"वजसत्था च नावा च, सुसिरे विटभिया च॥", | |
"अज्झोकासे", | |
"छवकुटिका छत्ते च, चाटिया च उपेन्ति ते॥", | |
"कतिका पटिस्सुणित्वा, बहिद्धा च उपोसथा।", | |
"पुरिमिका पच्छिमिका, यथाञायेन योजये॥", | |
"अकरणी पक्कमति, सकरणी तथेव च।", | |
"द्वीहतीहा च पुन च", | |
"सत्ताहनागता चेव, आगच्छेय्य न एय्य वा।", | |
"वत्थुद्दाने अन्तरिका, तन्तिमग्गं निसामयेति॥", | |
"वस्संवुट्ठा कोसलेसु, अगमुं सत्थु दस्सनं।", | |
"अफासुं पसुसंवासं, अञ्ञमञ्ञानुलोमता॥", | |
"पवारेन्ता पणामञ्च", | |
"राजा चोरा च धुत्ता च, भिक्खुपच्चत्थिका तथा॥", | |
"पञ्च चतुतयो द्वेको, आपन्नो वेमती सरि।", | |
"सब्बो सङ्घो वेमतिको, बहू समा च थोकिका॥", | |
"आवासिका", | |
"गन्तब्बं", | |
"सवरेहि खेपिता मेघो, अन्तरा च पवारणा।", | |
"न इच्छन्ति पुरम्हाकं, अट्ठपिता च भिक्खुनो॥", | |
"किम्हि वाति कतमञ्च, दिट्ठेन सुतसङ्काय।", | |
"चोदको चुदितको च, थुल्लच्चयं वत्थु भण्डनं।", | |
"पवारणासङ्गहो च, अनिस्सरो पवारयेति॥", | |
"नेक्खम्मं", | |
"अब्यापज्जाधिमुत्तस्स, उपादानक्खयस्स च॥", | |
"तण्हक्खयाधिमुत्तस्स", | |
"दिस्वा आयतनुप्पादं, सम्मा चित्तं विमुच्चति॥", | |
"तस्स", | |
"कतस्स पटिचयो नत्थि, करणीयं न विज्जति॥", | |
"सेलो यथा एकग्घनो, वातेन न समीरति।", | |
"एवं रूपा रसा सद्दा, गन्धा फस्सा च केवला॥", | |
"इट्ठा धम्मा अनिट्ठा च, न पवेधेन्ति तादिनो।", | |
"ठितं", | |
"अरियो न रमती पापे, पापे न रमती सुची’’ति॥", | |
"राजा च मागधो सोणो, असीतिसहस्सिस्सरो।", | |
"सागतो गिज्झकूटस्मिं, बहुं दस्सेति उत्तरिं॥", | |
"पब्बज्जारद्धभिज्जिंसु", | |
"नीला पीता लोहितिका, मञ्जिट्ठा कण्हमेव च॥", | |
"महारङ्गमहानामा, वद्धिका च पटिक्खिपि।", | |
"खल्लका पुटपालि च, तूलतित्तिरमेण्डजा॥", | |
"विच्छिका मोरचित्रा च, सीहब्यग्घा च दीपिका।", | |
"अजिनुद्दा मज्जारी च, काळलुवकपरिक्खटा॥", | |
"फलितुपाहना", | |
"तालवेळुतिणं चेव, मुञ्जपब्बजहिन्ताला॥", | |
"कमलकम्बलसोवण्णा", | |
"फलिका कंसकाचा च, तिपुसीसञ्च तम्बका॥", | |
"गावी यानं गिलानो च, पुरिसायुत्तसिविका।", | |
"सयनानि महाचम्मा, गोचम्मेहि च पापको॥", | |
"गिहीनं चम्मवद्धेहि, पविसन्ति गिलायनो।", | |
"महाकच्चायनो सोणो, सरेन अट्ठकवग्गिकं॥", | |
"उपसम्पदं पञ्चहि, गुणङ्गुणा धुवसिना।", | |
"चम्मत्थरणानुञ्ञासि, न ताव गणनूपगं।", | |
"अदासि मे वरे पञ्च, सोणत्थेरस्स नायकोति॥", | |
"कालेन सक्कच्च ददाति यागुं।", | |
"दसस्स ठानानि अनुप्पवेच्छति।", | |
"आयुञ्च वण्णञ्च सुखं बलञ्च॥", | |
"पटिभानमस्स", | |
"खुद्दं पिपासञ्च ब्यपनेति वातं।", | |
"सोधेति वत्थिं परिणामेति भुत्तं।", | |
"भेसज्जमेतं सुगतेन वण्णितं॥", | |
"तस्मा हि यागुं अलमेव दातुं।", | |
"निच्चं मनुस्सेन सुखत्थिकेन।", | |
"दिब्बानि", | |
"मनुस्ससोभग्यतमिच्छता वाति॥", | |
"‘‘यस्मिं पदेसे कप्पेति, वासं पण्डितजातियो।", | |
"सीलवन्तेत्थ भोजेत्वा, सञ्ञते ब्रह्मचारयो", | |
"‘‘या तत्थ देवता आसुं, तासं दक्खिणमादिसे।", | |
"ता पूजिता पूजयन्ति, मानिता मानयन्ति नं॥", | |
"‘‘ततो", | |
"देवतानुकम्पितो पोसो, सदा भद्रानि पस्सती’’ति॥", | |
"‘‘ये तरन्ति अण्णवं सरं।", | |
"सेतुं कत्वान विसज्ज पल्ललानि।", | |
"कुल्लञ्हि जनो बन्धति।", | |
"तिण्णा मेधाविनो जना’’ति॥", | |
"चतुन्नं", | |
"संसितं दीघमद्धानं, तासु तास्वेव जातिसु॥", | |
"तानि", | |
"उच्छिन्नं मूलं दुक्खस्स, नत्थिदानि पुनब्भवोति॥", | |
"‘‘अग्गिहुत्तमुखा यञ्ञा, सावित्ती छन्दसो मुखं।", | |
"राजा मुखं मनुस्सानं, नदीनं सागरो मुखं॥", | |
"‘‘नक्खत्तानं मुखं चन्दो, आदिच्चो तपतं मुखं।", | |
"पुञ्ञं आकङ्खमानानं सङ्घो, वे यजतं मुख’’न्ति॥", | |
"सारदिके", | |
"कसावेहि पण्णं फलं, जतु लोणं छकणञ्च॥", | |
"चुण्णं चालिनि मंसञ्च, अञ्जनं उपपिसनी", | |
"अञ्जनी उच्चापारुता, सलाका सलाकठानिं", | |
"थविकंसबद्धकं", | |
"नत्थुकरणी धूमञ्च, नेत्तञ्चापिधनत्थवि॥", | |
"तेलपाकेसु मज्जञ्च, अतिक्खित्तं अब्भञ्जनं।", | |
"तुम्बं सेदं सम्भारञ्च, महा भङ्गोदकं तथा॥", | |
"दककोट्ठं लोहितञ्च, विसाणं पादब्भञ्जनं।", | |
"पज्जं सत्थं कसावञ्च, तिलकक्कं कबळिकं॥", | |
"चोळं", | |
"वणतेलं विकासिकं, विकटञ्च पटिग्गहं॥", | |
"गूथं करोन्तो लोळिञ्च, खारं मुत्तहरीतकं।", | |
"गन्धा विरेचनञ्चेव, अच्छाकटं कटाकटं॥", | |
"पटिच्छादनि", | |
"गुळं मुग्गं सोवीरञ्च, सामंपाका पुनापचे॥", | |
"पुनानुञ्ञासि दुब्भिक्खे, फलञ्च तिलखादनी।", | |
"पुरेभत्तं कायडाहो, निब्बत्तञ्च भगन्दलं॥", | |
"वत्थिकम्मञ्च सुप्पिञ्च, मनुस्समंसमेव च।", | |
"हत्थिअस्सा सुनखो च, अहि सीहञ्च दीपिकं", | |
"अच्छतरच्छमंसञ्च, पटिपाटि च यागु च।", | |
"तरुणं अञ्ञत्र गुळं, सुनिधावसथागारं॥", | |
"गङ्गा कोटिसच्चकथा, अम्बपाली च लिच्छवी।", | |
"उद्दिस्स कतं सुभिक्खं, पुनदेव पटिक्खिपि॥", | |
"मेघो यसो मेण्डको, च गोरसं पाथेय्यकेन च।", | |
"केणि अम्बो जम्बु चोच, मोचमधुमुद्दिकसालुकं॥", | |
"फारुसका डाकपिट्ठं, आतुमायं नहापितो।", | |
"सावत्थियं फलं बीजं, किस्मिं ठाने च कालिकेति॥", | |
"तिंस", | |
"वस्संवुट्ठोकपुण्णेहि, अगमुं जिनदस्सनं॥", | |
"इदं वत्थु कथिनस्स, कप्पिस्सन्ति च पञ्चका।", | |
"अनामन्ता असमाचारा, तथेव गणभोजनं॥", | |
"यावदत्थञ्च उप्पादो, अत्थतानं भविस्सति।", | |
"ञत्ति एवत्थतञ्चेव, एवञ्चेव अनत्थतं॥", | |
"उल्लिखि धोवना चेव, विचारणञ्च छेदनं।", | |
"बन्धनो वट्टि कण्डुस, दळ्हीकम्मानुवातिका॥", | |
"परिभण्डं", | |
"कुक्कु सन्निधि निस्सग्गि, न कप्पञ्ञत्र ते तयो॥", | |
"अञ्ञत्र पञ्चातिरेके, सञ्छिन्नेन समण्डली।", | |
"नाञ्ञत्र पुग्गला सम्मा, निस्सीमट्ठोनुमोदति॥", | |
"कथिनानत्थतं होति, एवं बुद्धेन देसितं।", | |
"अहताकप्पपिलोति, पंसु पापणिकाय च॥", | |
"अनिमित्तापरिकथा, अकुक्कु च असन्निधि।", | |
"अनिस्सग्गि कप्पकते, तथा तिचीवरेन च॥", | |
"पञ्चके वातिरेके वा, छिन्ने समण्डलीकते।", | |
"पुग्गलस्सत्थारा", | |
"एवं", | |
"पक्कमनन्ति निट्ठानं, सन्निट्ठानञ्च नासनं॥", | |
"सवनं", | |
"कतचीवरमादाय, ‘‘न पच्चेस्स’’न्ति गच्छति॥", | |
"तस्स तं कथिनुद्धारा,ए होति पक्कमनन्तिको।", | |
"आदाय चीवरं याति, निस्सीमे इदं चिन्तयि॥", | |
"‘‘कारेस्सं न पच्चेस्स’’न्ति, निट्ठाने कथिनुद्धारो।", | |
"आदाय निस्सीमं नेव, ‘‘न पच्चेस्स’’न्ति मानसो॥", | |
"तस्स तं कथिनुद्धारो, सन्निट्ठानन्तिको भवे।", | |
"आदाय चीवरं याति, निस्सीमे इदं चिन्तयि॥", | |
"‘‘कारेस्सं न पच्चेस्स’’न्ति, कयिरं तस्स नस्सति।", | |
"तस्स तं कथिनुद्धारो, भवति नासनन्तिको॥", | |
"आदाय याति ‘‘पच्चेस्सं’’, बहि कारेति चीवरं।", | |
"कतचीवरो सुणाति, उब्भतं कथिनं तहिं॥", | |
"तस्स तं कथिनुद्धारो, भवति सवनन्तिको।", | |
"आदाय याति ‘‘पच्चेस्सं’’, बहि कारेति चीवरं॥", | |
"कतचीवरो बहिद्धा, नामेति कथिनुद्धारं।", | |
"तस्स तं कथिनुद्धारो, सीमातिक्कन्तिको भवे॥", | |
"आदाय याति ‘‘पच्चेस्सं’’, बहि कारेति चीवरं।", | |
"कतचीवरो", | |
"तस्स", | |
"आदाय च समादाय, सत्त-सत्तविधा गति॥", | |
"पक्कमनन्तिका नत्थि, छक्के विप्पकते", | |
"आदाय निस्सीमगतं, कारेस्सं इति जायति॥", | |
"निट्ठानं सन्निट्ठानञ्च, नासनञ्च इमे तयो।", | |
"आदाय ‘‘न पच्चेस्स’’न्ति, बहिसीमे करोमिति॥", | |
"निट्ठानं सन्निट्ठानम्पि, नासनम्पि इदं तयो।", | |
"अनधिट्ठितेन नेवस्स, हेट्ठा तीणि नयाविधि॥", | |
"आदाय", | |
"‘‘न पच्चेस्स’’न्ति कारेति, निट्ठाने कथिनुद्धारो॥", | |
"सन्निट्ठानं नासनञ्च, सवनसीमातिक्कमा।", | |
"सह भिक्खूहि जायेथ, एवं पन्नरसं गति॥", | |
"समादाय विप्पकता, समादाय पुना तथा।", | |
"इमे ते चतुरो वारा, सब्बे पन्नरसविधि॥", | |
"अनासाय च आसाय, करणीयो च ते तयो।", | |
"नयतो तं विजानेय्य, तयो द्वादस द्वादस॥", | |
"अपविलाना नवेत्थ", | |
"पलिबोधापलिबोधा, उद्दानं नयतो कतन्ति॥", | |
"‘‘या अन्नपानं ददतिप्पमोदिता।", | |
"सीलूपपन्ना सुगतस्स साविका।", | |
"ददाति दानं अभिभुय्य मच्छरं।", | |
"सोवग्गिकं सोकनुदं सुखावहं॥", | |
"‘‘दिब्बं सा लभते आयुं", | |
"आगम्म मग्गं विरजं अनङ्गणं।", | |
"सा पुञ्ञकामा सुखिनी अनामया।", | |
"सग्गम्हि कायम्हि चिरं पमोदती’’ति॥", | |
"राजगहको", | |
"पुन राजगहं गन्त्वा, रञ्ञो तं पटिवेदयि॥", | |
"पुत्तो", | |
"जीवतीति कुमारेन, सङ्खातो जीवको इति॥", | |
"सो हि तक्कसीलं गन्त्वा, उग्गहेत्वा महाभिसो।", | |
"सत्तवस्सिकआबाधं, नत्थुकम्मेन नासयि॥", | |
"रञ्ञो", | |
"ममञ्च इत्थागारञ्च, बुद्धसङ्घं चुपट्ठहि॥", | |
"राजगहको च सेट्ठि, अन्तगण्ठि तिकिच्छितं।", | |
"पज्जोतस्स महारोगं, घतपानेन नासयि॥", | |
"अधिकारञ्च सिवेय्यं, अभिसन्नं सिनेहति।", | |
"तीहि उप्पलहत्थेहि, समत्तिंसविरेचनं॥", | |
"पकतत्तं वरं याचि, सिवेय्यञ्च पटिग्गहि।", | |
"चीवरञ्च गिहिदानं, अनुञ्ञासि तथागतो॥", | |
"राजगहे जनपदे बहुं, उप्पज्जि चीवरं।", | |
"पावारो कोसियञ्चेव, कोजवो अड्ढकासिकं॥", | |
"उच्चावचा च सन्तुट्ठि, नागमेसागमेसुं च।", | |
"पठमं पच्छा सदिसा, कतिका च पटिहरुं॥", | |
"भण्डागारं अगुत्तञ्च, वुट्ठापेन्ति तथेव च।", | |
"उस्सन्नं कोलाहलञ्च, कथं भाजे कथं ददे॥", | |
"सकातिरेकभागेन, पटिवीसो कथं ददे।", | |
"छकणेन", | |
"आरोपेन्ता भाजनञ्च, पातिया च छमाय च।", | |
"उपचिकामज्झे जीरन्ति, एकतो पत्थिन्नेन च॥", | |
"फरुसाच्छिन्नच्छिबन्धा", | |
"वीमंसित्वा सक्यमुनि, अनुञ्ञासि तिचीवरं॥", | |
"अञ्ञेन", | |
"चातुद्दीपो वरं याचि, दातुं वस्सिकसाटिकं॥", | |
"आगन्तुगमिगिलानं, उपट्ठाकञ्च भेसज्जं।", | |
"धुवं उदकसाटिञ्च, पणीतं अतिखुद्दकं॥", | |
"थुल्लकच्छुमुखं खोमं, परिपुण्णं अधिट्ठानं।", | |
"पच्छिमं कतो गरुको, विकण्णो सुत्तमोकिरि॥", | |
"लुज्जन्ति", | |
"अन्धवने अस्सतिया, एको वस्सं उतुम्हि च॥", | |
"द्वे भातुका राजगहे, उपनन्दो पुन द्विसु।", | |
"कुच्छिविकारो गिलानो, उभो चेव गिलानका", | |
"नग्गा कुसा वाकचीरं, फलको केसकम्बलं।", | |
"वाळउलूकपक्खञ्च, अजिनं अक्कनाळकं॥", | |
"पोत्थकं नीलपीतञ्च, लोहितं मञ्जिट्ठेन च।", | |
"कण्हा महारङ्गनाम, अच्छिन्नदसिका तथा॥", | |
"दीघपुप्फफणदसा", | |
"अनुप्पन्ने पक्कमति, सङ्घो भिज्जति तावदे॥", | |
"पक्खे ददन्ति सङ्घस्स, आयस्मा रेवतो पहि।", | |
"विस्सासगाहाधिट्ठाति, अट्ठ चीवरमातिकाति॥", | |
"चम्पायं", | |
"आगन्तुकानमुस्सुक्कं, अकासि इच्छितब्बके", | |
"पकतञ्ञुनोति ञत्वा, उस्सुक्कं न करी तदा।", | |
"उक्खित्तो", | |
"अधम्मेन", | |
"धम्मेन वग्गकम्मञ्च, पतिरूपकेन वग्गिकं॥", | |
"पतिरूपकेन समग्गं, एको उक्खिपतेककं।", | |
"एको च द्वे सम्बहुले, सङ्घं उक्खिपतेकको॥", | |
"दुवेपि सम्बहुलापि, सङ्घो सङ्घञ्च उक्खिपि।", | |
"सब्बञ्ञुपवरो सुत्वा, अधम्मन्ति पटिक्खिपि॥", | |
"ञत्तिविपन्नं यं कम्मं, सम्पन्नं अनुसावनं।", | |
"अनुस्सावनविपन्नं, सम्पन्नं ञत्तिया च यं॥", | |
"उभयेन विपन्नञ्च, अञ्ञत्र धम्ममेव च।", | |
"विनया सत्थु पटिकुट्ठं, कुप्पं अट्ठानारहिकं॥", | |
"अधम्मवग्गं", | |
"धम्मेनेव च सामग्गिं, अनुञ्ञासि तथागतो॥", | |
"चतुवग्गो पञ्चवग्गो, दसवग्गो च वीसति।", | |
"परोवीसतिवग्गो च", | |
"ठपेत्वा उपसम्पदं, यञ्च कम्मं पवारणं।", | |
"अब्भानकम्मेन सह, चतुवग्गेहि कम्मिको॥", | |
"दुवे कम्मे ठपेत्वान, मज्झदेसूपसम्पदं।", | |
"अब्भानं पञ्चवग्गिको, सब्बकम्मेसु कम्मिको॥", | |
"अब्भानेकं ठपेत्वान, ये भिक्खू दसवग्गिका।", | |
"सब्बकम्मकरो", | |
"भिक्खुनी", | |
"पच्चक्खातन्तिमवत्थू, उक्खित्तापत्तिदस्सने॥", | |
"अप्पटिकम्मे दिट्ठिया, पण्डको थेय्यसंवासकं।", | |
"तित्थिया तिरच्छानगतं, मातु पितु च घातकं॥", | |
"अरहं भिक्खुनीदूसि, भेदकं लोहितुप्पादं।", | |
"ब्यञ्जनं नानासंवासं, नानासीमाय इद्धिया॥", | |
"यस्स सङ्घो करे कम्मं, होन्तेते चतुवीसति।", | |
"सम्बुद्धेन पटिक्खित्ता, न हेते गणपूरका॥", | |
"पारिवासिकचतुत्थो, परिवासं ददेय्य वा।", | |
"मूला मानत्तमब्भेय्य, अकम्मं न च करणं॥", | |
"मूला", | |
"न कम्मकारका पञ्च, सम्बुद्धेन पकासिता॥", | |
"भिक्खुनी सिक्खमाना च, सामणेरो सामणेरिका।", | |
"पच्चक्खन्तिमउम्मत्ता, खित्तावेदनदस्सने॥", | |
"अप्पटिकम्मे दिट्ठिया, पण्डकापि च ब्यञ्जना", | |
"नानासंवासका सीमा, वेहासं यस्स कम्म च॥", | |
"अट्ठारसन्नमेतेसं,", | |
"भिक्खुस्स पकतत्तस्स, रुहति पटिक्कोसना॥", | |
"सुद्धस्स दुन्निसारितो, बालो हि सुनिस्सारितो।", | |
"पण्डको थेय्यसंवासो, पक्कन्तो तिरच्छानगतो॥", | |
"मातु पितु अरहन्त, दूसको सङ्घभेदको।", | |
"लोहितुप्पादको चेव, उभतोब्यञ्जनो च यो॥", | |
"एकादसन्नं एतेसं, ओसारणं न युज्जति।", | |
"हत्थपादं तदुभयं, कण्णनासं तदूभयं॥", | |
"अङ्गुलि अळकण्डरं, फणं खुज्जो च वामनो।", | |
"गण्डी लक्खणकसा, च लिखितको च सीपदी॥", | |
"पापा", | |
"इरियापथदुब्बलो, अन्धो मूगो च बधिरो॥", | |
"अन्धमूगन्धबधिरो मूगबधिरमेव च।", | |
"अन्धमूगबधिरो च, द्वत्तिंसेते अनूनका॥", | |
"तेसं", | |
"दट्ठब्बा पटिकातब्बा, निस्सज्जेता न विज्जति॥", | |
"तस्स उक्खेपना कम्मा, सत्त होन्ति अधम्मिका।", | |
"आपन्नं अनुवत्तन्तं, सत्त तेपि अधम्मिका॥", | |
"आपन्नं नानुवत्तन्तं, सत्त कम्मा सुधम्मिका।", | |
"सम्मुखा पटिपुच्छा च, पटिञ्ञाय च कारणा॥", | |
"सति", | |
"पब्बाजनीय पटिसारो, उक्खेपपरिवास च॥", | |
"मूला मानत्तअब्भाना, तथेव उपसम्पदा।", | |
"अञ्ञं करेय्य अञ्ञस्स, सोळसेते अधम्मिका॥", | |
"तं तं करेय्य तं तस्स, सोळसेते सुधम्मिका।", | |
"पच्चारोपेय्य अञ्ञञ्ञं, सोळसेते अधम्मिका॥", | |
"द्वे द्वे तम्मूलकं तस्स", | |
"एकेकमूलकं चक्कं, ‘‘अधम्म’’न्ति जिनोब्रवि॥", | |
"अकासि तज्जनीयं कम्मं, सङ्घो भण्डनकारको।", | |
"अधम्मेन वग्गकम्मं, अञ्ञं आवासं गच्छि सो॥", | |
"तत्थाधम्मेन समग्गा, तस्स तज्जनीयं करुं।", | |
"अञ्ञत्थ वग्गाधम्मेन, तस्स तज्जनीयं करुं॥", | |
"पतिरूपेन वग्गापि, समग्गापि तथा करुं।", | |
"अधम्मेन समग्गा च, धम्मेन वग्गमेव च॥", | |
"पतिरूपकेन वग्गा च, समग्गा च इमे पदा।", | |
"एकेकमूलकं कत्वा, चक्कं बन्धे विचक्खणो॥", | |
"बाला", | |
"पटिसारणीयं कम्मं, करे अक्कोसकस्स च॥", | |
"अदस्सनाप्पटिकम्मे", | |
"तेसं उक्खेपनीयकम्मं, सत्थवाहेन भासितं॥", | |
"उपरि", | |
"तेसंयेव अनुलोमं, सम्मा वत्तति याचिते", | |
"पस्सद्धि तेसं कम्मानं, हेट्ठा कम्मनयेन च।", | |
"तस्मिं तस्मिं तु कम्मेसु, तत्रट्ठो च विवदति॥", | |
"अकतं दुक्कटञ्चेव, पुनकातब्बकन्ति च।", | |
"कम्मे पस्सद्धिया चापि, ते भिक्खू धम्मवादिनो॥", | |
"विपत्तिब्याधिते दिस्वा, कम्मप्पत्ते महामुनि।", | |
"पटिप्पस्सद्धिमक्खासि, सल्लकत्तोव ओसधन्ति॥", | |
"सङ्घस्मिं भिज्जमानस्मिं, नाञ्ञं भिय्यो अमञ्ञरुं॥", | |
"याविच्छन्ति मुखायामं, येन नीता न तं विदू॥", | |
"ये", | |
"ये च तं नुपनय्हन्ति, वेरं तेसूपसम्मति॥", | |
"अवेरेन च सम्मन्ति, एसधम्मो सनन्तनो॥", | |
"ये च तत्थ विजानन्ति, ततो सम्मन्ति मेधगा॥", | |
"रट्ठं विलुम्पमानानं, तेसम्पि होति सङ्गति॥", | |
"‘‘कस्मा तुम्हाक नो सिया।", | |
"सद्धिंचरं साधुविहारि धीरं।", | |
"अभिभुय्य सब्बानि परिस्सयानि।", | |
"चरेय्य तेनत्तमनो सतीमा॥", | |
"सद्धिं चरं साधुविहारि धीरं।", | |
"राजाव रट्ठं विजितं पहाय।", | |
"एको चरे मातङ्गरञ्ञेव नागो॥", | |
"नत्थि बाले सहायता।", | |
"एको", | |
"अप्पोस्सुक्को मातङ्गरञ्ञेव नागो’’ति॥", | |
"समेति चित्तं चित्तेन, यदेको रमती वने’’ति॥", | |
"‘‘सङ्घस्स", | |
"अत्थेसु जातेसु विनिच्छयेसु च।", | |
"कथंपकारोध नरो महत्थिको।", | |
"भिक्खु कथं होतिध पग्गहारहोति॥", | |
"‘‘अनानुवज्जो", | |
"अवेक्खिताचारो सुसंवुतिन्द्रियो।", | |
"पच्चत्थिका नूपवदन्ति धम्मतो।", | |
"न हिस्स तं होति वदेय्यु येन नं॥", | |
"‘‘सो तादिसो सीलविसुद्धिया ठितो।", | |
"विसारदो होति विसय्ह भासति।", | |
"नच्छम्भति परिसगतो न वेधति।", | |
"अत्थं न हापेति अनुय्युतं भणं॥", | |
"‘‘तथेव पञ्हं परिसासु पुच्छितो।", | |
"न चेव पज्झायति न मङ्कु होति।", | |
"सो कालागतं ब्याकरणारहं वचो।", | |
"रञ्जेति विञ्ञूपरिसं विचक्खणो॥", | |
"‘‘सगारवो वुड्ढतरेसु भिक्खुसु।", | |
"आचेरकम्हि च सके विसारदो।", | |
"अलं पमेतुं पगुणो कथेतवे।", | |
"पच्चत्थिकानञ्च विरद्धिकोविदो॥", | |
"‘‘पच्चत्थिका", | |
"महाजनो सञ्ञपनञ्च गच्छति।", | |
"सकञ्च", | |
"वियाकरं", | |
"‘‘दूतेय्यकम्मेसु", | |
"सङ्घस्स किच्चेसु च आहु नं यथा।", | |
"करं वचो भिक्खुगणेन पेसितो।", | |
"अहं करोमीति न तेन मञ्ञति॥", | |
"‘‘आपज्जति यावतकेसु वत्थुसु।", | |
"आपत्तिया होति यथा च वुट्ठिति।", | |
"एते विभङ्गा उभयस्स स्वागता।", | |
"आपत्ति वुट्ठानपदस्स कोविदो॥", | |
"‘‘निस्सारणं गच्छति यानि चाचरं।", | |
"निस्सारितो होति यथा च वत्तना", | |
"ओसारणं तंवुसितस्स जन्तुनो।", | |
"एतम्पि जानाति विभङ्गकोविदो॥", | |
"‘‘सगारवो वुड्ढतरेसु भिक्खुसु।", | |
"नवेसु थेरेसु च मज्झिमेसु च।", | |
"महाजनस्सत्थचरोध पण्डितो।", | |
"सो तादिसो भिक्खु इध पग्गहारहो’’ति॥", | |
"कोसम्बियं", | |
"नुक्खिपेय्य यस्मिं तस्मिं, सद्धायापत्ति देसये॥", | |
"अन्तोसीमायं", | |
"पालिलेय्या च सावत्थि, सारिपुत्तो च कोलितो॥", | |
"महाकस्सपकच्चाना, कोट्ठिको कप्पिनेन च।", | |
"महाचुन्दो च अनुरुद्धो, रेवतो उपालि चुभो॥", | |
"आनन्दो", | |
"सेनासनं विवित्तञ्च, आमिसं समकम्पि च॥", | |
"न केहि छन्दो दातब्बो, उपालिपरिपुच्छितो।", | |
"अनानुवज्जो सीलेन, सामग्गी जिनसासनेति॥" | |
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