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{ | |
"title": "१. नकुलपितुवग्गो", | |
"book_name": "१३. झानसंयुत्तं", | |
"chapter": "१. नकुलपितुसुत्तं", | |
"gathas": [ | |
"‘‘ओकं पहाय अनिकेतसारी,", | |
"गामे अकुब्बं", | |
"कामेहि रित्तो अपुरक्खरानो", | |
"कथं न विग्गय्ह जनेन कयिरा’’ति॥", | |
"‘‘ओकं पहाय अनिकेतसारी,", | |
"गामे अकुब्बं मुनिसन्थवानि।", | |
"कामेहि रित्तो अपुरक्खरानो,", | |
"कथं न विग्गय्ह जनेन कयिरा’’ति॥", | |
"नकुलपिता देवदहा, द्वेपि हालिद्दिकानि च।", | |
"समाधिपटिसल्लाणा, उपादापरितस्सना", | |
"अतीतानागतपच्चुप्पन्ना, वग्गो तेन पवुच्चति॥", | |
"अनिच्चं दुक्खं अनत्ता, यदनिच्चापरे तयो।", | |
"हेतुनापि तयो वुत्ता, आनन्देन च ते दसाति॥", | |
"‘‘भारा हवे पञ्चक्खन्धा, भारहारो च पुग्गलो।", | |
"भारादानं दुखं लोके, भारनिक्खेपनं सुखं॥", | |
"‘‘निक्खिपित्वा", | |
"समूलं तण्हमब्बुय्ह", | |
"भारं", | |
"अस्सादा च तयो वुत्ता, अभिनन्दनमट्ठमं।", | |
"उप्पादं अघमूलञ्च, एकादसमो पभङ्गूति॥", | |
"नतुम्हाकेन", | |
"आनन्देन च द्वे वुत्ता, अनुधम्मेहि द्वे दुकाति॥", | |
"अत्तदीपा पटिपदा, द्वे च होन्ति अनिच्चता।", | |
"समनुपस्सना खन्धा, द्वे सोणा द्वे नन्दिक्खयेन चाति॥", | |
"नकुलपिता", | |
"अत्तदीपेन पञ्ञासो, पठमो तेन पवुच्चतीति॥", | |
"उपयो बीजं उदानं, उपादानपरिवत्तं।", | |
"सत्तट्ठानञ्च सम्बुद्धो, पञ्चमहालि आदित्ता॥", | |
"वग्गो निरुत्तिपथेन चाति॥", | |
"उपादियमञ्ञमाना, अथाभिनन्दमानो च।", | |
"अनिच्चं दुक्खं अनत्ता च, अनत्तनीयं रजनीयसण्ठितं।", | |
"राधसुराधेन ते दसाति॥", | |
"‘‘सुखिनो वत अरहन्तो, तण्हा तेसं न विज्जति।", | |
"अस्मिमानो समुच्छिन्नो, मोहजालं पदालितं॥", | |
"‘‘अनेजं", | |
"लोके अनुपलित्ता ते, ब्रह्मभूता अनासवा॥", | |
"‘‘पञ्चक्खन्धे", | |
"पसंसिया सप्पुरिसा, पुत्ता बुद्धस्स ओरसा॥", | |
"‘‘सत्तरतनसम्पन्ना, तीसु सिक्खासु सिक्खिता।", | |
"अनुविचरन्ति महावीरा, पहीनभयभेरवा॥", | |
"‘‘दसहङ्गेहि सम्पन्ना, महानागा समाहिता।", | |
"एते खो सेट्ठा लोकस्मिं, तण्हा तेसं न विज्जति॥", | |
"‘‘असेखञाणमुप्पन्नं, अन्तिमोयं", | |
"यो सारो ब्रह्मचरियस्स, तस्मिं अपरपच्चया॥", | |
"‘‘विधासु", | |
"दन्तभूमिमनुप्पत्ता, ते लोके विजिताविनो॥", | |
"‘‘उद्धं तिरियं अपाचीनं, नन्दी तेसं न विज्जति।", | |
"नदन्ति ते सीहनादं, बुद्धा लोके अनुत्तरा’’ति॥ चतुत्थं।", | |
"‘‘यदा", | |
"सदेवकस्स लोकस्स, सत्था अप्पटिपुग्गलो॥", | |
"‘‘सक्कायञ्च", | |
"अरियञ्चट्ठङ्गिकं मग्गं, दुक्खूपसमगामिनं॥", | |
"‘‘येपि दीघायुका देवा, वण्णवन्तो यसस्सिनो।", | |
"भीता सन्तासमापादुं, सीहस्सेवितरे मिगा॥", | |
"अवीतिवत्ता", | |
"सुत्वा अरहतो वाक्यं, विप्पमुत्तस्स तादिनो’’ति॥ छट्ठं।", | |
"‘‘नमो", | |
"यस्स ते नाभिजानाम, यम्पि निस्साय झायसी’’ति॥ सत्तमं।", | |
"‘‘द्वे खन्धा तञ्ञेव सियं, अधिवचनञ्च हेतुना।", | |
"सक्कायेन दुवे वुत्ता, अस्सादविञ्ञाणकेन च।", | |
"एते दसविधा वुत्ता, होति भिक्खु पुच्छाया’’ति॥ दसमं।", | |
"अस्सादो", | |
"सीहो खज्जनी पिण्डोल्यं, पालिलेय्येन पुण्णमाति॥", | |
"आनन्दो", | |
"अस्सजि खेमको छन्नो, राहुला अपरे दुवे॥", | |
"‘‘फेणपिण्डूपमं रूपं, वेदना बुब्बुळूपमा", | |
"मरीचिकूपमा सञ्ञा, सङ्खारा कदलूपमा।", | |
"मायूपमञ्च विञ्ञाणं, देसितादिच्चबन्धुना॥", | |
"‘‘यथा यथा निज्झायति, योनिसो उपपरिक्खति।", | |
"रित्तकं तुच्छकं होति, यो नं पस्सति योनिसो॥", | |
"‘‘इमञ्च", | |
"पहानं तिण्णं धम्मानं, रूपं पस्सथ", | |
"‘‘आयु", | |
"अपविद्धो", | |
"‘‘एतादिसायं सन्तानो, मायायं बाललापिनी।", | |
"वधको एस अक्खातो, सारो एत्थ न विज्जति॥", | |
"‘‘एवं खन्धे अवेक्खेय्य, भिक्खु आरद्धवीरियो।", | |
"दिवा वा यदि वा रत्तिं, सम्पजानो पटिस्सतो॥", | |
"‘‘जहेय्य सब्बसंयोगं, करेय्य सरणत्तनो।", | |
"चरेय्यादित्तसीसोव, पत्थयं अच्चुतं पद’’न्ति॥ ततियं।", | |
"नदी पुप्फञ्च फेणञ्च, गोमयञ्च नखासिखं।", | |
"सुद्धिकं द्वे च गद्दुला, वासीजटं अनिच्चताति॥", | |
"उपयो अरहन्तो च, खज्जनी थेरसव्हयं।", | |
"पुप्फवग्गेन पण्णास, दुतियो तेन वुच्चतीति॥", | |
"अन्तो दुक्खञ्च सक्कायो, परिञ्ञेय्या समणा दुवे।", | |
"सोतापन्नो अरहा च, दुवे च छन्दप्पहानाति॥", | |
"अविज्जा विज्जा द्वे कथिका, बन्धना परिपुच्छिता दुवे।", | |
"संयोजनं उपादानं, सीलं सुतवा द्वे च कप्पेनाति॥", | |
"समुदयधम्मे तीणि, अस्सादो अपरे दुवे।", | |
"समुदये च द्वे वुत्ता, कोट्ठिके अपरे तयोति॥", | |
"कुक्कुळा तयो अनिच्चेन, दुक्खेन अपरे तयो।", | |
"अनत्तेन तयो वुत्ता, कुलपुत्तेन द्वे दुकाति॥", | |
"अज्झत्तिकं एतंमम, सोअत्ता नोचमेसिया।", | |
"मिच्छासक्कायत्तानु द्वे, अभिनिवेसा आनन्देनाति॥", | |
"अन्तो", | |
"ततियो पण्णासको वुत्तो, निपातोति पवुच्चतीति", | |
"मारो सत्तो भवनेत्ति, परिञ्ञेय्या समणा दुवे।", | |
"सोतापन्नो अरहा च, छन्दरागापरे दुवेति॥", | |
"मारो", | |
"दुक्खेन च दुवे वुत्ता, अनत्तेन", | |
"खयवयसमुदयं, निरोधधम्मेन द्वादसाति॥", | |
"मारो", | |
"दुक्खेन च दुवे वुत्ता, अनत्तेन तथेव च।", | |
"खयवयसमुदयं, निरोधधम्मेन द्वादसाति॥", | |
"मारो च मारधम्मो च, अनिच्चेन अपरे दुवे।", | |
"दुक्खेन च दुवे वुत्ता, अनत्तेन तथेव च।", | |
"खयवयसमुदयं, निरोधधम्मेन द्वादसाति॥", | |
"वातं", | |
"नत्थि करोतो हेतु च, महादिट्ठेन अट्ठमं॥", | |
"सस्सतो लोको च, असस्सतो च अन्तवा च।", | |
"अनन्तवा च तं जीवं तं सरीरन्ति।", | |
"अञ्ञं जीवं अञ्ञं सरीरन्ति च॥", | |
"होति तथागतो परं मरणाति।", | |
"न होति तथागतो परं मरणाति।", | |
"नेव होति न न होति तथागतो परं मरणाति॥", | |
"वातं एतं मम सो, अत्ता नो च मे सिया।", | |
"नत्थि करोतो हेतु च, महादिट्ठेन अट्ठमं॥", | |
"सस्सतो असस्सतो", | |
"तं जीवं अञ्ञं जीवञ्च, तथागतेन चत्तारो॥", | |
"रूपी अत्ता होति, अरूपी च अत्ता होति।", | |
"रूपी च अरूपी च अत्ता होति।", | |
"नेव रूपी नारूपी अत्ता होति, एकन्तसुखी अत्ता होति॥", | |
"एकन्तदुक्खी अत्ता होति, सुखदुक्खी अत्ता होति।", | |
"अदुक्खमसुखी अत्ता होति, अरोगो परं मरणाति।", | |
"इमे छब्बीसति सुत्ता, दुतियवारेन देसिता॥", | |
"पुरिमगमने अट्ठारस वेय्याकरणा।", | |
"दुतियगमने छब्बीसं वित्थारेतब्बानि॥", | |
"ततियगमने", | |
"चतुत्थगमने छब्बीसं वित्थारेतब्बानि॥", | |
"चक्खु", | |
"सञ्ञा च चेतना तण्हा, धातु खन्धेन ते दसाति॥", | |
"चक्खु", | |
"सञ्ञा च चेतना तण्हा, धातु खन्धेन ते दसाति॥", | |
"चक्खु", | |
"सञ्ञा च चेतना तण्हा, धातु खन्धेन ते दसाति॥", | |
"विवेकजं अवितक्कं, पीति उपेक्खा चतुत्थकं।", | |
"आकासञ्चेव विञ्ञाणं, आकिञ्चं नेवसञ्ञिना।", | |
"निरोधो नवमो वुत्तो, दसमं सूचिमुखी चाति॥", | |
"सुद्धिकं", | |
"तस्स सुतं चतुरो च, दानूपकारा च तालीसं।", | |
"पण्णास पिण्डतो सुत्ता, नागम्हि सुप्पकासिताति॥", | |
"सुद्धिकं हरन्ति चेव, द्वयकारी च चतुरो।", | |
"दानूपकारा तालीसं, सुपण्णे सुप्पकासिताति॥", | |
"सुद्धिकञ्च सुचरितं, दाता हि अपरे दस।", | |
"दानूपकारा सतधा, गन्धब्बे सुप्पकासिताति॥", | |
"सुद्धिकं सुचरितञ्च दानूपकारपञ्ञासं।", | |
"सीतं उण्हञ्च अब्भञ्च वातवस्सवलाहकाति॥", | |
"अञ्ञाणा अदस्सना चेव, अनभिसमया अननुबोधा।", | |
"अप्पटिवेधा असल्लक्खणा, अनुपलक्खणेन अप्पच्चुपलक्खणा।", | |
"असमपेक्खणा अप्पच्चुपेक्खणा, अप्पच्चक्खकम्मन्ति॥", | |
"समाधि", | |
"गोचरा अभिनीहारो सक्कच्च, सातच्च अथोपि सप्पायन्ति॥", | |
"खन्ध राधसंयुत्तञ्च, दिट्ठिओक्कन्त", | |
"किलेस सारिपुत्ता च, नागा सुपण्ण गन्धब्बा।", | |
"वलाह वच्छझानन्ति" | |
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