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Sleeping
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{ | |
"title": "१. पठमपण्णासकं", | |
"book_name": "१३. रागपेय्यालं", | |
"chapter": "१. पठमआहुनेय्यसुत्तं", | |
"gathas": [ | |
"द्वे आहुनेय्या इन्द्रिय, बलानि तयो आजानीया।", | |
"अनुत्तरिय अनुस्सती, महानामेन ते दसाति॥", | |
"‘‘यो पपञ्चमनुयुत्तो, पपञ्चाभिरतो मगो।", | |
"विराधयी सो निब्बानं, योगक्खेमं अनुत्तरं॥", | |
"‘‘यो च पपञ्चं हित्वान, निप्पपञ्चपदे रतो।", | |
"आराधयी सो निब्बानं, योगक्खेमं अनुत्तर’’न्ति॥ चतुत्थं।", | |
"‘‘यो पपञ्चमनुयुत्तो, पपञ्चाभिरतो मगो।", | |
"विराधयी सो निब्बानं, योगक्खेमं अनुत्तरं॥", | |
"‘‘यो च पपञ्चं हित्वान, निप्पपञ्चपदे रतो।", | |
"आराधयी सो निब्बानं, योगक्खेमं अनुत्तर’’न्ति॥ पञ्चमं।", | |
"द्वे सारणी निसारणीयं, भद्दकं अनुतप्पियं।", | |
"नकुलं सोप्पमच्छा च, द्वे होन्ति मरणस्सतीति॥", | |
"‘‘भयं दुक्खं रोगो गण्डो, सङ्गो पङ्को च उभयं।", | |
"एते कामा पवुच्चन्ति, यत्थ सत्तो पुथुज्जनो॥", | |
"‘‘उपादाने", | |
"अनुपादा विमुच्चन्ति, जातिमरणसङ्खये॥", | |
"‘‘ते खेमप्पत्ता सुखिनो, दिट्ठधम्माभिनिब्बुता।", | |
"सब्बवेरभयातीता", | |
"‘‘ये दस्सनानुत्तरं", | |
"लाभानुत्तरियं लद्धा, सिक्खानुत्तरिये रता", | |
"‘‘उपट्ठिता पारिचरिया, भावयन्ति अनुस्सतिं।", | |
"विवेकप्पटिसंयुत्तं, खेमं अमतगामिनिं॥", | |
"‘‘अप्पमादे", | |
"ते वे कालेन पच्चेन्ति", | |
"सामको", | |
"कच्चानो द्वे च समया, उदायी अनुत्तरियेनाति॥", | |
"‘‘सत्थुगरु", | |
"अप्पमादगरु भिक्खु, पटिसन्थारगारवो।", | |
"अभब्बो परिहानाय, निब्बानस्सेव सन्तिके’’ति॥ दुतियं।", | |
"‘‘सत्थुगरु धम्मगरु, सङ्घे च तिब्बगारवो।", | |
"हिरिओत्तप्पसम्पन्नो, सप्पतिस्सो सगारवो।", | |
"अभब्बो परिहानाय, निब्बानस्सेव सन्तिके’’ति॥ ततियं।", | |
"दत्वा अत्तमनो होति, एसा यञ्ञस्स", | |
"‘‘वीतरागा", | |
"खेत्तं यञ्ञस्स सम्पन्नं, सञ्ञता ब्रह्मचारयो", | |
"‘‘सयं आचमयित्वान, दत्वा सकेहि पाणिभि।", | |
"अत्तनो परतो चेसो, यञ्ञो होति महप्फलो॥", | |
"अब्यापज्जं सुखं लोकं, पण्डितो उपपज्जती’’ति॥ सत्तमं।", | |
"सेखा द्वे अपरिहानि, मोग्गल्लान विज्जाभागिया।", | |
"विवाददानत्तकारी निदानं, किमिलदारुक्खन्धेन नागितोति॥", | |
"‘‘मनुस्सभूतं सम्बुद्धं, अत्तदन्तं समाहितं।", | |
"इरियमानं ब्रह्मपथे, चित्तस्सूपसमे रतं॥", | |
"‘‘यं", | |
"देवापि तं", | |
"‘‘सब्बसंयोजनातीतं, वना निब्बन", | |
"कामेहि नेक्खम्मरतं", | |
"‘‘सब्बे अच्चरुची नागो, हिमवाञ्ञे सिलुच्चये।", | |
"सब्बेसं", | |
"‘‘नागं वो", | |
"सोरच्चं अविहिंसा च, पादा नागस्स ते दुवे॥", | |
"‘‘तपो च ब्रह्मचरियं, चरणा नागस्स त्यापरे।", | |
"सद्धाहत्थो महानागो, उपेक्खासेतदन्तवा॥", | |
"‘‘सति", | |
"धम्मकुच्छिसमातपो, विवेको तस्स वालधि॥", | |
"‘‘सो झायी अस्सासरतो, अज्झत्तं सुसमाहितो", | |
"गच्छं समाहितो नागो, ठितो नागो समाहितो॥", | |
"‘‘सेय्यं समाहितो नागो, निसिन्नोपि समाहितो।", | |
"सब्बत्थ", | |
"‘‘भुञ्जति अनवज्जानि, सावज्जानि न भुञ्जति।", | |
"घासमच्छादनं लद्धा, सन्निधिं परिवज्जयं॥", | |
"‘‘संयोजनं अणुं थूलं, सब्बं छेत्वान बन्धनं।", | |
"येन येनेव गच्छति, अनपेक्खोव गच्छति॥", | |
"‘‘यथापि उदके जातं, पुण्डरीकं पवड्ढति।", | |
"नुपलिप्पति", | |
"‘‘तथेव लोके सुजातो, बुद्धो लोके विहरति।", | |
"नुपलिप्पति लोकेन, तोयेन पदुमं यथा॥", | |
"‘‘महागिनीव", | |
"सङ्खारेसूपसन्तेसु", | |
"‘‘अत्थस्सायं विञ्ञापनी, उपमा विञ्ञूहि देसिता।", | |
"विञ्ञस्सन्ति", | |
"‘‘वीतरागो", | |
"सरीरं विजहं नागो, परिनिब्बिस्सति", | |
"‘‘दालिद्दियं दुक्खं लोके, इणादानञ्च वुच्चति।", | |
"दलिद्दो इणमादाय, भुञ्जमानो विहञ्ञति॥", | |
"‘‘ततो अनुचरन्ति नं, बन्धनम्पि निगच्छति।", | |
"एतञ्हि बन्धनं दुक्खं, कामलाभाभिजप्पिनं॥", | |
"‘‘तथेव अरियविनये, सद्धा यस्स न विज्जति।", | |
"अहिरीको", | |
"‘‘कायदुच्चरितं कत्वा, वचीदुच्चरितानि च।", | |
"मनोदुच्चरितं कत्वा, ‘मा मं जञ्ञू’ति इच्छति॥", | |
"‘‘सो", | |
"पापकम्मं पवड्ढेन्तो, तत्थ तत्थ पुनप्पुनं॥", | |
"‘‘सो पापकम्मो दुम्मेधो, जानं दुक्कटमत्तनो।", | |
"दलिद्दो इणमादाय, भुञ्जमानो विहञ्ञति॥", | |
"‘‘ततो", | |
"गामे", | |
"‘‘सो पापकम्मो दुम्मेधो, जानं दुक्कटमत्तनो।", | |
"योनिमञ्ञतरं गन्त्वा, निरये वापि बज्झति॥", | |
"‘‘एतञ्हि बन्धनं दुक्खं, यम्हा धीरो पमुच्चति।", | |
"धम्मलद्धेहि भोगेहि, ददं चित्तं पसादयं॥", | |
"‘‘उभयत्थ कटग्गाहो, सद्धस्स घरमेसिनो।", | |
"दिट्ठधम्महितत्थाय, सम्परायसुखाय च।", | |
"एवमेतं गहट्ठानं, चागो पुञ्ञं पवड्ढति॥", | |
"‘‘तथेव अरियविनये, सद्धा यस्स पतिट्ठिता।", | |
"हिरीमनो च ओत्तप्पी, पञ्ञवा सीलसंवुतो॥", | |
"‘‘एसो खो अरियविनये, ‘सुखजीवी’ति वुच्चति।", | |
"निरामिसं सुखं लद्धा, उपेक्खं अधितिट्ठति॥", | |
"‘‘पञ्च नीवरणे हित्वा, निच्चं आरद्धवीरियो।", | |
"झानानि उपसम्पज्ज, एकोदि निपको सतो॥", | |
"‘‘एवं ञत्वा यथाभूतं, सब्बसंयोजनक्खये।", | |
"सब्बसो अनुपादाय, सम्मा चित्तं विमुच्चति॥", | |
"‘‘तस्स सम्मा विमुत्तस्स, ञाणं चे होति तादिनो।", | |
"‘अकुप्पा मे विमुत्ती’ति, भवसंयोजनक्खये॥", | |
"‘‘एतं खो परमं ञाणं, एतं सुखमनुत्तरं।", | |
"असोकं विरजं खेमं, एतं आनण्यमुत्तम’’न्ति॥ ततियं।", | |
"‘‘न उस्सेसु न ओमेसु, समत्ते नोपनीयरे", | |
"खीणा जाति वुसितं ब्रह्मचरियं, चरन्ति संयोजनविप्पमुत्ता’’ति॥ सत्तमं।", | |
"‘‘सुनेत्तो", | |
"कुद्दालको अहु सत्था, हत्थिपालो च माणवो॥", | |
"‘‘जोतिपालो च गोविन्दो, अहु सत्तपुरोहितो।", | |
"अहिंसका", | |
"‘‘निरामगन्धा करुणेधिमुत्ता", | |
"कामरागं विराजेत्वा, ब्रह्मलोकूपगा अहुं", | |
"‘‘अहेसुं सावका तेसं, अनेकानि सतानिपि।", | |
"निरामगन्धा करुणेधिमुत्ता, कामसंयोजनातिगा।", | |
"कामरागं विराजेत्वा, ब्रह्मलोकूपगा अहुं", | |
"‘‘येते", | |
"पदुट्ठमनसङ्कप्पो, यो नरो परिभासति।", | |
"बहुञ्च सो पसवति, अपुञ्ञं तादिसो नरो॥", | |
"‘‘यो चेकं दिट्ठिसम्पन्नं, भिक्खुं बुद्धस्स सावकं।", | |
"पदुट्ठमनसङ्कप्पो", | |
"अयं ततो बहुतरं, अपुञ्ञं पसवे नरो॥", | |
"‘‘न साधुरूपं आसीदे, दिट्ठिट्ठानप्पहायिनं।", | |
"सत्तमो पुग्गलो एसो, अरियसङ्घस्स वुच्चति॥", | |
"‘‘अवीतरागो कामेसु, यस्स पञ्चिन्द्रिया मुदू।", | |
"सद्धा सति च वीरियं, समथो च विपस्सना॥", | |
"‘‘तादिसं भिक्खुमासज्ज, पुब्बेव उपहञ्ञति।", | |
"अत्तानं उपहन्त्वान, पच्छा अञ्ञं विहिंसति॥", | |
"‘‘यो", | |
"तस्मा रक्खेय्य अत्तानं, अक्खतो पण्डितो सदा’’ति॥ द्वादसमं।", | |
"नागमिगसाला इणं, चुन्दं द्वे सन्दिट्ठिका दुवे।", | |
"खेमइन्द्रिय आनन्द, खत्तिया अप्पमादेन धम्मिकोति॥", | |
"‘‘नेक्खम्मं", | |
"अब्यापज्जाधिमुत्तस्स, उपादानक्खयस्स च॥", | |
"‘‘तण्हाक्खयाधिमुत्तस्स", | |
"दिस्वा आयतनुप्पादं, सम्मा चित्तं विमुच्चति॥", | |
"‘‘तस्स सम्मा विमुत्तस्स, सन्तचित्तस्स भिक्खुनो।", | |
"कतस्स पटिचयो नत्थि, करणीयं न विज्जति॥", | |
"‘‘सेलो", | |
"एवं रूपा रसा सद्दा, गन्धा फस्सा च केवला॥", | |
"‘‘इट्ठा धम्मा अनिट्ठा च, नप्पवेधेन्ति तादिनो।", | |
"ठितं चित्तं विप्पमुत्तं", | |
"तं ब्रूमि महापुरिसोति, सोध सिब्बिनि", | |
"‘‘यो उभोन्ते विदित्वान, मज्झे मन्ता न लिप्पति।", | |
"तं ब्रूमि महापुरिसोति, सोध सिब्बिनिमच्चगा’’ति॥", | |
"नेते", | |
"सङ्कप्परागो पुरिसस्स कामो,", | |
"तिट्ठन्ति चित्रानि तथेव लोके।", | |
"अथेत्थ धीरा विनयन्ति छन्द’’न्ति॥", | |
"सोणो", | |
"मज्झे ञाणं निब्बेधिकं, सीहनादोति ते दसाति॥", | |
"अनागामि अरहं मित्ता, सङ्गणिकारामदेवता।", | |
"समाधि सक्खिभब्बं बलं, तज्झाना अपरे दुवेति॥", | |
"दुक्खं", | |
"महन्तत्तं द्वयं निरये", | |
"सीतिभावं आवरणं, वोरोपिता सुस्सूसति।", | |
"अप्पहाय पहीनाभब्बो, तट्ठाना चतुरोपि चाति॥", | |
"पातुभावो", | |
"निब्बानं अनवत्थि, उक्खित्तासि अतम्मयो।", | |
"भवा तण्हायेका दसाति॥", | |
"रागदुच्चरितवितक्क, सञ्ञा धातूति वुच्चति।", | |
"अस्सादअरतितुट्ठि, दुवे च उद्धच्चेन वग्गोति॥" | |
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