Spaces:
Sleeping
Sleeping
{ | |
"title": "१. पठमपण्णासकं", | |
"book_name": "(११). रागपेय्यालं", | |
"chapter": "१. मेत्तासुत्तं", | |
"gathas": [ | |
"‘‘यो", | |
"तनू संयोजना होन्ति, पस्सतो उपधिक्खयं॥", | |
"‘‘एकम्पि", | |
"मेत्तायति कुसली तेन होति।", | |
"सब्बे च पाणे मनसानुकम्पी,", | |
"पहूतमरियो पकरोति पुञ्ञं॥", | |
"‘‘ये सत्तसण्डं पथविं विजेत्वा,", | |
"राजिसयो यजमाना अनुपरियगा।", | |
"अस्समेधं पुरिसमेधं,", | |
"सम्मापासं वाजपेय्यं निरग्गळं॥", | |
"‘‘मेत्तस्स चित्तस्स सुभावितस्स,", | |
"कलम्पि ते नानुभवन्ति सोळसिं।", | |
"चन्दप्पभा तारगणाव सब्बे,", | |
"यथा न अग्घन्ति कलम्पि सोळसिं", | |
"‘‘यो न हन्ति न घातेति, न जिनाति न जापये।", | |
"मेत्तंसो सब्बभूतानं, वेरं तस्स न केनची’’ति॥ पठमं।", | |
"‘‘लाभो अलाभो च यसायसो च,", | |
"निन्दा पसंसा च सुखं दुखञ्च।", | |
"एते", | |
"असस्सता विपरिणामधम्मा॥", | |
"‘‘एते च ञत्वा सतिमा सुमेधो,", | |
"अवेक्खति विपरिणामधम्मे।", | |
"इट्ठस्स धम्मा न मथेन्ति चित्तं,", | |
"अनिट्ठतो नो पटिघातमेति॥", | |
"‘‘तस्सानुरोधा", | |
"विधूपिता अत्थङ्गता न सन्ति।", | |
"पदञ्च ञत्वा विरजं असोकं,", | |
"सम्मप्पजानाति भवस्स पारगू’’ति॥ पञ्चमं।", | |
"‘‘लाभो अलाभो च यसायसो च,", | |
"निन्दा पसंसा च सुखं दुखञ्च।", | |
"एते अनिच्चा मनुजेसु धम्मा,", | |
"असस्सता विपरिणामधम्मा॥", | |
"‘‘एते च ञत्वा सतिमा सुमेधो,", | |
"अवेक्खति विपरिणामधम्मे।", | |
"इट्ठस्स", | |
"अनिट्ठतो नो पटिघातमेति॥", | |
"‘‘तस्सानुरोधा", | |
"विधूपिता अत्थङ्गता न सन्ति।", | |
"पदञ्च ञत्वा विरजं असोकं,", | |
"सम्मप्पजानाति भवस्स पारगू’’ति॥ छट्ठं।", | |
"‘‘संवासायं", | |
"मक्खी थम्भी पळासी च, इस्सुकी मच्छरी सठो॥", | |
"‘‘सन्तवाचो जनवति, समणो विय भासति।", | |
"रहो करोति करणं, पापदिट्ठि अनादरो॥", | |
"‘‘संसप्पी च मुसावादी, तं विदित्वा यथातथं।", | |
"सब्बे समग्गा हुत्वान, अभिनिब्बज्जयाथ", | |
"‘‘कारण्डवं", | |
"ततो पलापे वाहेथ, अस्समणे समणमानिने॥", | |
"‘‘निद्धमित्वान पापिच्छे, पापआचारगोचरे।", | |
"सुद्धासुद्धेहि संवासं, कप्पयव्हो पतिस्सता।", | |
"ततो समग्गा निपका, दुक्खस्सन्तं करिस्सथा’’ति॥ दसमं।", | |
"मेत्तं", | |
"देवदत्तो च उत्तरो, नन्दो कारण्डवेन चाति॥", | |
"‘‘असज्झायमला मन्ता, अनुट्ठानमला घरा।", | |
"मलं वण्णस्स कोसज्जं, पमादो रक्खतो मलं॥", | |
"‘‘मलित्थिया दुच्चरितं, मच्छेरं ददतो मलं।", | |
"मला वे पापका धम्मा, अस्मिं लोके परम्हि च।", | |
"ततो मला मलतरं, अविज्जा परमं मल’’न्ति॥ पञ्चमं।", | |
"‘‘यो वे न ब्यथति", | |
"न च हापेति वचनं, न च छादेति सासनं॥", | |
"‘‘असन्दिद्धञ्च", | |
"स वे तादिसको भिक्खु, दूतेय्यं गन्तुमरहती’’ति॥ छट्ठं।", | |
"वेरञ्जो", | |
"दूतेय्यं द्वे च बन्धना, पहारादो उपोसथोति॥", | |
"‘‘मनुस्सलाभं", | |
"ये खणं नाधिगच्छन्ति, अतिनामेन्ति ते खणं॥", | |
"‘‘बहू हि अक्खणा वुत्ता, मग्गस्स अन्तरायिका।", | |
"कदाचि करहचि लोके, उप्पज्जन्ति तथागता॥", | |
"‘‘तयिदं", | |
"मनुस्सपटिलाभो च, सद्धम्मस्स च देसना।", | |
"अलं वायमितुं तत्थ, अत्तकामेन", | |
"‘‘कथं", | |
"खणातीता हि सोचन्ति, निरयम्हि समप्पिता॥", | |
"‘‘इध चे नं विराधेति, सद्धम्मस्स नियामतं", | |
"वाणिजोव अतीतत्थो, चिरत्तं", | |
"‘‘अविज्जानिवुतो पोसो, सद्धम्मं अपराधिको।", | |
"जातिमरणसंसारं, चिरं पच्चनुभोस्सति॥", | |
"‘‘ये च लद्धा मनुस्सत्तं, सद्धम्मे सुप्पवेदिते।", | |
"अकंसु सत्थु वचनं, करिस्सन्ति करोन्ति वा॥", | |
"‘‘खणं पच्चविदुं लोके, ब्रह्मचरियं अनुत्तरं।", | |
"ये मग्गं पटिपज्जिंसु, तथागतप्पवेदितं॥", | |
"‘‘ये", | |
"तेसु", | |
"‘‘सब्बे अनुसये छेत्वा, मारधेय्यपरानुगे।", | |
"ते वे पारङ्गता", | |
"मनोमयेन कायेन, इद्धिया उपसङ्कमि॥", | |
"‘‘यथा मे अहु सङ्कप्पो, ततो उत्तरि देसयि।", | |
"निप्पपञ्चरतो बुद्धो, निप्पपञ्चं अदेसयि॥", | |
"‘‘तस्साहं धम्ममञ्ञाय, विहासिं सासने रतो।", | |
"तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता, कतं बुद्धस्स सासन’’न्ति॥ दसमं।", | |
"द्वे", | |
"द्वे बला अक्खणा वुत्ता, अनुरुद्धेन ते दसाति॥", | |
"", | |
"धम्मा एते सप्पुरिसानुयाता।", | |
"एतञ्हि मग्गं दिवियं वदन्ति,", | |
"एतेन हि गच्छति देवलोक’’न्ति॥ दुतियं।", | |
"‘‘यथापि", | |
"देवे सम्पादयन्तम्हि", | |
"‘‘अनीतिसम्पदा होति, विरूळ्ही भवति सम्पदा।", | |
"वेपुल्लसम्पदा होति, फलं वे होति सम्पदा॥", | |
"‘‘एवं सम्पन्नसीलेसु, दिन्ना भोजनसम्पदा।", | |
"सम्पदानं उपनेति, सम्पन्नं हिस्स तं कतं॥", | |
"‘‘तस्मा सम्पदमाकङ्खी, सम्पन्नत्थूध पुग्गलो।", | |
"सम्पन्नपञ्ञे", | |
"‘‘विज्जाचरणसम्पन्ने, लद्धा चित्तस्स सम्पदं।", | |
"करोति कम्मसम्पदं, लभति चत्थसम्पदं॥", | |
"‘‘लोकं ञत्वा यथाभूतं, पप्पुय्य दिट्ठिसम्पदं।", | |
"मग्गसम्पदमागम्म, याति सम्पन्नमानसो॥", | |
"‘‘ओधुनित्वा", | |
"मुच्चति सब्बदुक्खेहि, सा होति सब्बसम्पदा’’ति॥ चतुत्थं।", | |
"‘‘सुचिं पणीतं कालेन, कप्पियं पानभोजनं।", | |
"अभिण्हं ददाति दानं, सुखेत्तेसु", | |
"‘‘नेव", | |
"एवं दिन्नानि दानानि, वण्णयन्ति विपस्सिनो॥", | |
"‘‘एवं यजित्वा मेधावी, सद्धो मुत्तेन चेतसा।", | |
"अब्याबज्झं", | |
"‘‘बहूनं", | |
"मातरं पितरं पुब्बे, रत्तिन्दिवमतन्दितो॥", | |
"‘‘पूजेति सहधम्मेन, पुब्बेकतमनुस्सरं।", | |
"अनागारे पब्बजिते, अपचे ब्रह्मचारयो", | |
"‘‘निविट्ठसद्धो पूजेति, ञत्वा धम्मे च पेसलो", | |
"रञ्ञो हितो देवहितो, ञातीनं सखिनं हितो॥", | |
"‘‘सब्बेसं", | |
"विनेय्य मच्छेरमलं, स लोकं भजते सिव’’न्ति॥ अट्ठमं।", | |
"द्वे दानानि वत्थुञ्च, खेत्तं दानूपपत्तियो।", | |
"किरियं द्वे सप्पुरिसा, अभिसन्दो विपाको चाति॥", | |
"‘‘पाणं न हञ्ञे", | |
"मुसा न भासे न च मज्जपो सिया।", | |
"अब्रह्मचरिया विरमेय्य मेथुना,", | |
"रत्तिं न भुञ्जेय्य विकालभोजनं॥", | |
"‘‘मालं न धारे न च गन्धमाचरे", | |
"मञ्चे छमायं व सयेथ सन्थते।", | |
"एतञ्हि अट्ठङ्गिकमाहुपोसथं,", | |
"बुद्धेन दुक्खन्तगुना पकासितं॥", | |
"‘‘चन्दो", | |
"ओभासयं", | |
"तमोनुदा ते पन अन्तलिक्खगा,", | |
"नभे पभासन्ति दिसाविरोचना॥", | |
"‘‘एतस्मिं", | |
"मुत्ता मणि वेळुरियञ्च भद्दकं।", | |
"सिङ्गीसुवण्णं अथ वापि कञ्चनं,", | |
"यं जातरूपं हटकन्ति वुच्चति॥", | |
"‘‘अट्ठङ्गुपेतस्स उपोसथस्स,", | |
"कलम्पि ते नानुभवन्ति सोळसिं।", | |
"चन्दप्पभा तारगणा च सब्बे॥", | |
"‘‘तस्मा हि नारी च नरो च सीलवा,", | |
"अट्ठङ्गुपेतं उपवस्सुपोसथं।", | |
"पुञ्ञानि कत्वान सुखुद्रयानि,", | |
"अनिन्दिता सग्गमुपेन्ति ठान’’न्ति॥ दुतियं।", | |
"‘‘पाणं न हञ्ञे न चदिन्नमादिये,", | |
"मुसा न भासे न च मज्जपो सिया।", | |
"अब्रह्मचरिया विरमेय्य मेथुना,", | |
"रत्तिं न भुञ्जेय्य विकालभोजनं॥", | |
"‘‘मालं न धारे न च गन्धमाचरे,", | |
"मञ्चे", | |
"एतञ्हि अट्ठङ्गिकमाहुपोसथं,", | |
"बुद्धेन दुक्खन्तगुना पकासितं॥", | |
"‘‘चन्दो च सुरियो च उभो सुदस्सना,", | |
"ओभासयं अनुपरियन्ति यावता।", | |
"तमोनुदा", | |
"नभे पभासन्ति दिसाविरोचना॥", | |
"‘‘एतस्मिं यं विज्जति अन्तरे धनं,", | |
"मुत्ता", | |
"सिङ्गीसुवण्णं अथ वापि कञ्चनं,", | |
"यं जातरूपं हटकन्ति वुच्चति॥", | |
"‘‘अट्ठङ्गुपेतस्स", | |
"कलम्पि ते नानुभवन्ति सोळसिं।", | |
"चन्दप्पभा तारगणा च सब्बे॥", | |
"‘‘तस्मा हि नारी च नरो च सीलवा,", | |
"अट्ठङ्गुपेतं उपवस्सुपोसथं।", | |
"पुञ्ञानि कत्वान सुखुद्रयानि,", | |
"अनिन्दिता सग्गमुपेन्ति ठान’’न्ति॥ ततियं।", | |
"‘‘पाणं", | |
"मुसा न भासे न च मज्जपो सिया।", | |
"अब्रह्मचरिया", | |
"रत्तिं न भुञ्जेय्य विकालभोजनं॥", | |
"‘‘मालं", | |
"मञ्चे छमायं व सयेथ सन्थते।", | |
"एतञ्हि अट्ठङ्गिकमाहुपोसथं,", | |
"बुद्धेन दुक्खन्तगुना पकासितं॥", | |
"‘‘चन्दो च सुरियो च उभो सुदस्सना,", | |
"ओभासयं अनुपरियन्ति यावता।", | |
"तमोनुदा ते पन अन्तलिक्खगा,", | |
"नभे पभासन्ति दिसाविरोचना॥", | |
"‘‘एतस्मिं यं विज्जति अन्तरे धनं,", | |
"मुत्ता मणि वेळुरियञ्च भद्दकं।", | |
"सिङ्गीसुवण्णं अथ वापि कञ्चनं,", | |
"यं जातरूपं हटकन्ति वुच्चति॥", | |
"‘‘अट्ठङ्गुपेतस्स उपोसथस्स,", | |
"कलम्पि ते नानुभवन्ति सोळसिं।", | |
"चन्दप्पभा तारगणा च सब्बे॥", | |
"‘‘तस्मा", | |
"अट्ठङ्गुपेतं उपवस्सुपोसथं।", | |
"पुञ्ञानि कत्वान सुखुद्रयानि,", | |
"अनिन्दिता सग्गमुपेन्ति ठान’’न्ति॥ पञ्चमं।", | |
"‘‘यो", | |
"तं सब्बकामदं", | |
"‘‘न चापि सोत्थि भत्तारं, इस्सावादेन रोसये।", | |
"भत्तु च गरुनो सब्बे, पटिपूजेति पण्डिता॥", | |
"‘‘उट्ठाहिका", | |
"भत्तु मनापं चरति, सम्भतं अनुरक्खति॥", | |
"‘‘या एवं वत्तति नारी, भत्तु छन्दवसानुगा।", | |
"मनापा नाम ते", | |
"‘‘यो नं भरति सब्बदा, निच्चं आतापि उस्सुको।", | |
"तं सब्बकामदं पोसं, भत्तारं नातिमञ्ञति॥", | |
"‘‘न", | |
"भत्तु च गरुनो सब्बे, पटिपूजेति पण्डिता॥", | |
"‘‘उट्ठाहिका अनलसा, सङ्गहितपरिज्जना।", | |
"भत्तु मनापं चरति, सम्भतं अनुरक्खति॥", | |
"‘‘या एवं वत्तति नारी, भत्तु छन्दवसानुगा।", | |
"मनापा नाम ते", | |
"‘‘यो", | |
"तं सब्बकामदं पोसं, भत्तारं नातिमञ्ञति॥", | |
"‘‘न चापि सोत्थि भत्तारं, इस्सावादेन रोसये।", | |
"भत्तु च गरुनो सब्बे, पटिपूजेति पण्डिता॥", | |
"‘‘उट्ठाहिका अनलसा, सङ्गहितपरिज्जना।", | |
"भत्तु मनापं चरति, सम्भतं अनुरक्खति॥", | |
"‘‘या एवं वत्तति नारी, भत्तु छन्दवसानुगा।", | |
"मनापा नाम ते", | |
"‘‘सुसंविहितकम्मन्ता, सङ्गहितपरिज्जना।", | |
"भत्तु मनापं चरति, सम्भतं अनुरक्खति॥", | |
"‘‘सद्धा सीलेन सम्पन्ना, वदञ्ञू वीतमच्छरा।", | |
"निच्चं मग्गं विसोधेति, सोत्थानं सम्परायिकं॥", | |
"‘‘इच्चेते अट्ठ धम्मा च, यस्सा विज्जन्ति नारिया।", | |
"तम्पि सीलवतिं आहु, धम्मट्ठं सच्चवादिनिं॥", | |
"‘‘सोळसाकारसम्पन्ना, अट्ठङ्गसुसमागता।", | |
"तादिसी सीलवती उपासिका।", | |
"उपपज्जति देवलोकं मनाप’’न्ति॥ नवमं।", | |
"‘‘सुसंविहितकम्मन्ता, सङ्गहितपरिज्जना।", | |
"भत्तु मनापं चरति, सम्भतं अनुरक्खति॥", | |
"‘‘सद्धा सीलेन सम्पन्ना, वदञ्ञू वीतमच्छरा।", | |
"निच्चं मग्गं विसोधेति, सोत्थानं सम्परायिकं॥", | |
"‘‘इच्चेते अट्ठ धम्मा च, यस्सा विज्जन्ति नारिया।", | |
"तम्पि सीलवतिं आहु, धम्मट्ठं सच्चवादिनिं॥", | |
"‘‘सोळसाकारसम्पन्ना, अट्ठङ्गसुसमागता।", | |
"तादिसी सीलवती उपासिका, उपपज्जति देवलोकं मनाप’’न्ति॥ दसमं।", | |
"संखित्ते वित्थते विसाखे, वासेट्ठो बोज्झाय पञ्चमं।", | |
"अनुरुद्धं पुन विसाखे, नकुला इधलोकिका द्वेति॥", | |
"‘‘उट्ठाता कम्मधेय्येसु, अप्पमत्तो विधानवा।", | |
"समं कप्पेति जीविकं", | |
"‘‘सद्धो सीलेन सम्पन्नो, वदञ्ञू वीतमच्छरो।", | |
"निच्चं", | |
"‘‘इच्चेते", | |
"अक्खाता सच्चनामेन, उभयत्थ सुखावहा॥", | |
"‘‘दिट्ठधम्महितत्थाय, सम्परायसुखाय च।", | |
"एवमेतं गहट्ठानं, चागो पुञ्ञं पवड्ढती’’ति॥ चतुत्थं।", | |
"‘‘उट्ठाता कम्मधेय्येसु, अप्पमत्तो विधानवा।", | |
"समं कप्पेति जीविकं, सम्भतं अनुरक्खति॥", | |
"‘‘सद्धो सीलेन सम्पन्नो, वदञ्ञू वीतमच्छरो।", | |
"निच्चं मग्गं विसोधेति, सोत्थानं सम्परायिकं॥", | |
"‘‘इच्चेते अट्ठ धम्मा च, सद्धस्स घरमेसिनो।", | |
"अक्खाता सच्चनामेन, उभयत्थ सुखावहा॥", | |
"‘‘दिट्ठधम्महितत्थाय, सम्परायसुखाय च।", | |
"एवमेतं गहट्ठानं, चागो पुञ्ञं पवड्ढती’’ति॥ पञ्चमं।", | |
"‘‘भयं", | |
"पङ्को गब्भो च उभयं, एते कामा पवुच्चन्ति।", | |
"यत्थ सत्तो पुथुज्जनो॥", | |
"‘‘ओतिण्णो सातरूपेन, पुन गब्भाय गच्छति।", | |
"यतो च भिक्खु आतापी, सम्पजञ्ञं", | |
"‘‘सो इमं पलिपथं दुग्गं, अतिक्कम्म तथाविधो।", | |
"पजं जातिजरूपेतं, फन्दमानं अवेक्खती’’ति॥ छट्ठं।", | |
"‘‘चत्तारो", | |
"एस सङ्घो उजुभूतो, पञ्ञासीलसमाहितो॥", | |
"‘‘यजमानानं मनुस्सानं, पुञ्ञपेक्खान पाणिनं।", | |
"करोतं ओपधिकं पुञ्ञं, सङ्घे दिन्नं महप्फल’’न्ति॥ नवमं।", | |
"‘‘चत्तारो च पटिपन्ना, चत्तारो च फले ठिता।", | |
"एस", | |
"‘‘यजमानानं मनुस्सानं, पुञ्ञपेक्खान पाणिनं।", | |
"करोतं ओपधिकं पुञ्ञं, एत्थ दिन्नं महप्फल’’न्ति॥ दसमं।", | |
"गोतमी ओवादं संखित्तं, दीघजाणु च उज्जयो।", | |
"भया द्वे आहुनेय्या च, द्वे च अट्ठ पुग्गलाति॥", | |
"‘‘तुलमतुलञ्च", | |
"अज्झत्तरतो समाहितो, अभिन्दि कवचमिवत्तसम्भव’’न्ति॥", | |
"इच्छा", | |
"विमोक्खो द्वे च वोहारा, परिसा भूमिचालेनाति॥", | |
"‘‘उट्ठाता कम्मधेय्येसु, अप्पमत्तो विधानवा।", | |
"समं कप्पेति जीविकं, सम्भतं अनुरक्खति॥", | |
"‘‘सद्धो", | |
"निच्चं मग्गं विसोधेति, सोत्थानं सम्परायिकं॥", | |
"‘‘इच्चेते अट्ठ धम्मा च, सद्धस्स घरमेसिनो।", | |
"अक्खाता सच्चनामेन, उभयत्थ सुखावहा॥", | |
"‘‘दिट्ठधम्महितत्थाय, सम्परायसुखाय च।", | |
"एवमेतं गहट्ठानं, चागो पुञ्ञं पवड्ढती’’ति॥ पञ्चमं।", | |
"‘‘उट्ठाता कम्मधेय्येसु, अप्पमत्तो विधानवा।", | |
"समं कप्पेति जीविकं, सम्भतं अनुरक्खति॥", | |
"‘‘सद्धो", | |
"निच्चं मग्गं विसोधेति, सोत्थानं सम्परायिकं॥", | |
"‘‘इच्चेते अट्ठ धम्मा च, सद्धस्स घरमेसिनो।", | |
"अक्खाता सच्चनामेन, उभयत्थ सुखावहा॥", | |
"‘‘दिट्ठधम्महितत्थाय, सम्परायसुखाय च।", | |
"एवमेतं गहट्ठानं, चागो पुञ्ञं पवड्ढती’’ति॥ छट्ठं।", | |
"द्वे", | |
"इच्छा अलं परिहानं, कुसीतारम्भवत्थूनीति॥", | |
"‘‘यं समणेन पत्तब्बं, ब्राह्मणेन वुसीमता।", | |
"यं वेदगुना पत्तब्बं, भिसक्केन अनुत्तरं॥", | |
"‘‘यं निम्मलेन पत्तब्बं, विमलेन सुचीमता।", | |
"यं ञाणिना च पत्तब्बं, विमुत्तेन अनुत्तरं॥", | |
"‘‘सोहं विजितसङ्गामो, मुत्तो मोचेमि बन्धना।", | |
"नागोम्हि परमदन्तो, असेखो परिनिब्बुतो’’ति॥ पञ्चमं।", | |
"सतिपुण्णियमूलेन", | |
"यसो पत्तप्पसादेन, पटिसारणीयञ्च वत्तनन्ति॥" | |
] | |
} |