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{ | |
"title": "१. पठमपण्णासकं", | |
"book_name": "(१०) ५. रागपेय्यालं", | |
"chapter": "१. सम्बोधिसुत्तं", | |
"gathas": [ | |
"सम्बोधि निस्सयो चेव, मेघिय नन्दकं बलं।", | |
"सेवना सुतवा सज्झो, पुग्गलो आहुनेय्येन चाति॥", | |
"नादो सउपादिसेसो च, कोट्ठिकेन समिद्धिना।", | |
"गण्डसञ्ञा कुलं मेत्ता, देवता वेलामेन चाति॥", | |
"तिठानं खळुङ्को तण्हा, सत्तपञ्ञा सिलायुपो।", | |
"द्वे वेरा द्वे आघातानि, अनुपुब्बनिरोधेन चाति॥", | |
"द्वे विहारा च निब्बानं, गावी झानेन पञ्चमं।", | |
"आनन्दो ब्राह्मणा देवो, नागेन तपुस्सेन चाति॥", | |
"‘‘सम्बाधे गतं", | |
"यो झानमबुज्झि बुद्धो, पटिलीननिसभो मुनी’’ति॥", | |
"सम्बाधो", | |
"उभतोभागो सन्दिट्ठिका द्वे।", | |
"निब्बानं परिनिब्बानं,", | |
"तदङ्गदिट्ठधम्मिकेन चाति॥", | |
"खेमो", | |
"निरोधो अनुपुब्बो च, धम्मं पहाय भब्बेन चाति॥", | |
"सिक्खा", | |
"मच्छेरं उद्धम्भागिया अट्ठमं, चेतोखिला विनिबन्धाति॥", | |
"यथेव", | |
"चत्तारो इद्धिपादा च, तथेव सम्पयोजयेति॥" | |
] | |
} |