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Sleeping
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{ | |
"title": "१. पठमपण्णासकं", | |
"book_name": "२३. रागपेय्यालं", | |
"chapter": "१. किमत्थियसुत्तं", | |
"gathas": [ | |
"किमत्थियं चेतना च, तयो उपनिसापि च।", | |
"समाधि सारिपुत्तो च, झानं सन्तेन विज्जयाति॥", | |
"‘‘कामच्छन्दो च ब्यापादो, थिनमिद्धञ्च भिक्खुनो।", | |
"उद्धच्चं विचिकिच्छा च, सब्बसोव न विज्जति॥", | |
"‘‘असेखेन", | |
"विमुत्तिया च सम्पन्नो, ञाणेन च तथाविधो॥", | |
"‘‘स वे पञ्चङ्गसम्पन्नो, पञ्च अङ्गे", | |
"इमस्मिं धम्मविनये, केवली इति वुच्चती’’ति॥ दुतियं।", | |
"सेनासनञ्च पञ्चङ्गं, संयोजनाखिलेन च।", | |
"अप्पमादो आहुनेय्यो, द्वे नाथा द्वे अरियावासाति॥", | |
"‘अत्थस्स पत्तिं हदयस्स सन्तिं,", | |
"जेत्वान सेनं पियसातरूपं।", | |
"एकोहं", | |
"तस्मा जनेन न करोमि सक्खिं", | |
"सक्खी", | |
"‘अत्थस्स", | |
"जेत्वान सेनं पियसातरूपं।", | |
"एकोहं झायं सुखमनुबोधिं,", | |
"तस्मा", | |
"सक्खी न सम्पज्जति केनचि मे’ति॥", | |
"सीहाधिवुत्ति", | |
"काळी च द्वे महापञ्हा, कोसलेहि परे दुवेति॥", | |
"‘‘आपायिको", | |
"वग्गरतो अधम्मट्ठो, योगक्खेमा पधंसति।", | |
"सङ्घं समग्गं भिन्दित्वा", | |
"‘‘सुखा", | |
"समग्गरतो धम्मट्ठो, योगक्खेमा न धंसति।", | |
"सङ्घं समग्गं कत्वान, कप्पं सग्गम्हि मोदती’’ति॥ दसमं।", | |
"उपालि ठपना उब्बाहो, उपसम्पदनिस्सया।", | |
"सामणेरो च द्वे भेदा, आनन्देहि परे दुवेति॥", | |
"विवादा", | |
"सक्को महालि अभिण्हं, सरीरट्ठा च भण्डनाति॥", | |
"सचित्तञ्च सारिपुत्त, ठिति च समथेन च।", | |
"परिहानो च द्वे सञ्ञा, मूला पब्बजितं गिरीति॥", | |
"अविज्जा", | |
"नळकपाने द्वे वुत्ता, कथावत्थूपरे दुवेति॥", | |
"‘‘धनेन धञ्ञेन च योध वड्ढति,", | |
"पुत्तेहि दारेहि चतुप्पदेहि च।", | |
"स भोगवा होति यसस्सि पूजितो,", | |
"ञातीहि मित्तेहि अथोपि राजुभि॥", | |
"‘‘सद्धाय सीलेन च योध वड्ढति,", | |
"पञ्ञाय चागेन सुतेन चूभयं।", | |
"सो", | |
"दिट्ठेव धम्मे उभयेन वड्ढती’’ति॥ चतुत्थं।", | |
"आकङ्खो कण्टको इट्ठा, वड्ढि च मिगसालाय।", | |
"तयो धम्मा च काको च, निगण्ठा द्वे च आघाताति॥", | |
"‘‘पुरिसस्स हि जातस्स, कुठारी जायते मुखे।", | |
"याय छिन्दति अत्तानं, बालो दुब्भासितं भणं॥", | |
"‘‘यो निन्दियं पसंसति, तं वा निन्दति यो पसंसियो।", | |
"विचिनाति मुखेन सो कलिं, कलिना तेन सुखं न विन्दति॥", | |
"‘‘अप्पमत्तको अयं कलि, यो अक्खेसु धनपराजयो।", | |
"सब्बस्सापि सहापि अत्तना, अयमेव महत्तरो कलि।", | |
"यो सुगतेसु मनं पदूसये॥", | |
"‘‘सतं", | |
"यमरियगरही निरयं उपेति, वाचं मनञ्च पणिधाय पापक’’न्ति॥", | |
"‘‘पुरिसस्स", | |
"याय छिन्दति अत्तानं, बालो दुब्भासितं भणं॥", | |
"‘‘यो", | |
"विचिनाति मुखेन सो कलिं, कलिना तेन सुखं न विन्दति॥", | |
"‘‘अप्पमत्तको अयं कलि, यो अक्खेसु धनपराजयो।", | |
"सब्बस्सापि सहापि अत्तना, अयमेव महत्तरो कलि।", | |
"यो सुगतेसु मनं पदूसये॥", | |
"‘‘सतं सहस्सानं निरब्बुदानं, छत्तिंसति पञ्च च अब्बुदानि।", | |
"यमरियगरही निरयं उपेति, वाचं मनञ्च पणिधाय पापक’’न्ति॥ नवमं।", | |
"वाहनानन्दो पुण्णियो, ब्याकरं कत्थिमानिको।", | |
"नपियक्कोसकोकालि, खीणासवबलेन चाति॥", | |
"कामभोगी", | |
"कोकनुदो आहुनेय्यो, थेरो उपालि अभब्बोति॥", | |
"सञ्ञा", | |
"धोवनं तिकिच्छा वमनं निद्धमनं द्वे असेखाति॥", | |
"‘‘अप्पका ते मनुस्सेसु, ये जना पारगामिनो।", | |
"अथायं इतरा पजा, तीरमेवानुधावति॥", | |
"‘‘ये च खो सम्मदक्खाते, धम्मे धम्मानुवत्तिनो।", | |
"ते जना पारमेस्सन्ति, मच्चुधेय्यं सुदुत्तरं॥", | |
"‘‘कण्हं", | |
"ओका अनोकमागम्म, विवेके यत्थ दूरमं॥", | |
"‘‘तत्राभिरतिमिच्छेय्य, हित्वा कामे अकिञ्चनो।", | |
"परियोदपेय्य अत्तानं, चित्तक्लेसेहि पण्डितो॥", | |
"‘‘येसं", | |
"आदानपटिनिस्सग्गे, अनुपादाय ये रता।", | |
"खीणासवा जुतिमन्तो", | |
"‘‘अप्पका ते मनुस्सेसु, ये जना पारगामिनो।", | |
"अथायं इतरा पजा, तीरमेवानुधावति॥", | |
"‘‘ये", | |
"ते जना पारमेस्सन्ति, मच्चुधेय्यं सुदुत्तरं॥", | |
"‘‘कण्हं धम्मं विप्पहाय, सुक्कं भावेथ पण्डितो।", | |
"ओका अनोक मागम्म, विवेके यत्थ दूरमं॥", | |
"‘‘तत्राभिरतिमिच्छेय्य, हित्वा कामे अकिञ्चनो।", | |
"परियोदपेय्य अत्तानं, चित्तक्लेसेहि पण्डितो॥", | |
"‘‘येसं सम्बोधियङ्गेसु, सम्मा चित्तं सुभावितं।", | |
"आदानपटिनिस्सग्गे, अनुपादाय ये रता।", | |
"खीणासवा जुतिमन्तो, ते लोके परिनिब्बुता’’ति॥ छट्ठं।", | |
"तयो अधम्मा अजितो, सङ्गारवो च ओरिमं।", | |
"द्वे चेव पच्चोरोहणी, पुब्बङ्गमं आसवक्खयोति॥", | |
"‘‘अप्पका", | |
"अथायं", | |
"‘‘ये च खो सम्मदक्खाते, धम्मे धम्मानुवत्तिनो।", | |
"ते जना पारमेस्सन्ति, मच्चुधेय्यं सुदुत्तरं॥", | |
"‘‘कण्हं धम्मं विप्पहाय, सुक्कं भावेथ पण्डितो।", | |
"ओका अनोकमागम्म, विवेके यत्थ दूरमं॥", | |
"‘‘तत्राभिरतिमिच्छेय्य, हित्वा कामे अकिञ्चनो।", | |
"परियोदपेय्य अत्तानं, चित्तक्लेसेहि पण्डितो॥", | |
"‘‘येसं", | |
"आदानपटिनिस्सग्गे, अनुपादाय ये रता।", | |
"खीणासवा जुतिमन्तो, ते लोके परिनिब्बुता’’ति॥ ततियं।", | |
"‘‘अप्पका", | |
"अथायं इतरा पजा, तीरमेवानुधावति॥", | |
"‘‘ये च खो सम्मदक्खाते, धम्मे धम्मानुवत्तिनो।", | |
"ते जना पारमेस्सन्ति, मच्चुधेय्यं सुदुत्तरं॥", | |
"‘‘कण्हं", | |
"ओका अनोकमागम्म, विवेके यत्थ दूरमं॥", | |
"‘‘तत्राभिरतिमिच्छेय्य, हित्वा कामे अकिञ्चनो।", | |
"परियोदपेय्य अत्तानं, चित्तक्लेसेहि पण्डितो॥", | |
"‘‘येसं", | |
"आदानपटिनिस्सग्गे, अनुपादाय ये रता।", | |
"खीणासवा जुतिमन्तो, ते लोके परिनिब्बुता’’ति॥ चतुत्थं।" | |
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