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{ | |
"title": "४. रागपेय्यालं", | |
"book_name": "४. रागपेय्यालं", | |
"chapter": "३. सामञ्ञवग्गो", | |
"gathas": [ | |
"‘‘नमो ते पुरिसाजञ्ञ, नमो ते पुरिसुत्तम।", | |
"यस्स ते नाभिजानाम, यम्पि निस्साय झायसी’’ति॥", | |
"‘‘नमो ते पुरिसाजञ्ञ, नमो ते पुरिसुत्तम।", | |
"यस्स ते नाभिजानाम, यम्पि निस्साय झायसी’’ति॥", | |
"‘‘नमो ते पुरिसाजञ्ञ, नमो ते पुरिसुत्तम।", | |
"यस्स ते नाभिजानाम, यम्पि निस्साय झायसी’’ति॥ नवमं।", | |
"‘‘खत्तियो सेट्ठो जनेतस्मिं, ये गोत्तपटिसारिनो।", | |
"विज्जाचरणसम्पन्नो, सो सेट्ठो देवमानुसे’’ति", | |
"‘‘खत्तियो", | |
"विज्जाचरणसम्पन्नो, सो सेट्ठो देवमानुसे’’ति॥ दसमं।", | |
"किमत्थिया", | |
"द्वे सञ्ञा मनसिकारो, सद्धो मोरनिवापकन्ति॥", | |
"द्वे", | |
"मेत्ता अट्ठको गोपालो, चत्तारो च समाधिनाति॥", | |
"नव सुत्तसहस्सानि, भिय्यो पञ्चसतानि च", | |
"सत्तपञ्ञास सुत्तन्ता" | |
] | |
} |