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{ | |
"title": "१. अट्ठकवग्गो", | |
"book_name": "१६. सारिपुत्तसुत्तनिद्देसो", | |
"chapter": "Kapitel nicht gefunden", | |
"gathas": [ | |
"", | |
"‘‘अद्दसं काम ते मूलं, सङ्कप्पा काम जायसि।", | |
"न तं सङ्कप्पयिस्सामि, एवं काम न होहिसी’’ति", | |
"‘‘कामं कामयमानस्स, तस्स चे तं समिज्झति।", | |
"अद्धा पीतिमनो होति, लद्धा मच्चो यदिच्छती’’ति॥", | |
"", | |
"चोरा हरन्ति राजानो, अग्गि दहति नस्सति।", | |
"अथ अन्तेन जहति", | |
"एतदञ्ञाय मेधावी, भुञ्जेथ च ददेथ च॥", | |
"‘‘तस्स चे कामयानस्स, छन्दजातस्स जन्तुनो।", | |
"ते कामा परिहायन्ति, सल्लविद्धोव रुप्पती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘यो कामे", | |
"सोमं विसत्तिकं लोके, सतो समतिवत्तती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘आमाय", | |
"सामञ्च एके उपयन्ति दास्यं, भयापनुण्णापि भवन्ति दासा’’ति॥", | |
"‘‘खेत्तं वत्थुं हिरञ्ञं वा, गवास्सं दासपोरिसं।", | |
"थियो बन्धू पुथु कामे, यो नरो अनुगिज्झती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अनत्थजननो लोभो, लोभो चित्तप्पकोपनो।", | |
"भयमन्तरतो जातं, तं जनो नावबुज्झति॥", | |
"‘‘लुद्धो अत्थं न जानाति, लुद्धो धम्मं न पस्सति।", | |
"अन्धन्तमं", | |
"‘‘अनत्थजननो", | |
"भयमन्तरतो जातं, तं जनो नावबुज्झति॥", | |
"‘‘कुद्धो अत्थं न जानाति, कुद्धो धम्मं न पस्सति।", | |
"अन्धन्तमं", | |
"‘‘अनत्थजननो", | |
"भयमन्तरतो जातं, तं जनो नावबुज्झति॥", | |
"‘‘मूळ्हो अत्थं न जानाति, मूळ्हो धम्मं न पस्सति।", | |
"अन्धन्तमं तदा होति, यं मोहो सहते नर’’न्ति॥", | |
"‘‘लोभो", | |
"हिंसन्ति अत्तसम्भूता, तचसारंव सम्फल’’न्ति॥", | |
"‘‘रागो च दोसो च इतोनिदाना, अरति रति लोमहंसो इतोजा।", | |
"इतो समुट्ठाय मनोवितक्का, कुमारका धङ्कमिवोस्सजन्ती’’ति", | |
"‘‘अबला नं बलीयन्ति, मद्दन्ते नं परिस्सया।", | |
"ततो नं दुक्खमन्वेति, नावं भिन्नमिवोदक’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘तस्सायं पच्छिमको भवो, चरिमोयं समुस्सयो।", | |
"जातिमरणसंसारो, नत्थि तस्स पुनब्भवो’’ति॥", | |
"‘‘तस्मा जन्तु सदा सतो, कामानि परिवज्जये।", | |
"ते पहाय तरे ओघं, नावं सित्वाव पारगू’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अद्दसं काम ते मूलं, सङ्कप्पा काम जायसि।", | |
"न तं सङ्कप्पयिस्सामि, एवं काम न होहिसी’’ति॥ –", | |
"‘‘सत्तो गुहायं बहुनाभिछन्नो, तिट्ठं नरो मोहनस्मिं पगाळ्हो।", | |
"दूरे विवेका हि तथाविधो सो, कामा हि लोके न हि सुप्पहाया’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘नाहं सहिस्सामि पमोचनाय, कथंकथिं धोतक किञ्चि लोके।", | |
"धम्मञ्च", | |
"‘‘अत्तनाव", | |
"अत्तना अकतं पापं, अत्तनाव विसुज्झति।", | |
"सुद्धी असुद्धि पच्चत्तं, नाञ्ञो अञ्ञं विसोधये’’ति॥", | |
"‘‘इच्छानिदाना भवसातबद्धा, ते दुप्पमुञ्चा न हि अञ्ञमोक्खा।", | |
"पच्छा पुरे वापि अपेक्खमाना, इमे व कामे पुरिमे व जप्प’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘कामेसु", | |
"दुक्खूपनीता परिदेवयन्ति, किंसू भविस्साम इतो चुतासे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘जीवितं अत्तभावो च, सुखदुक्खा च केवला।", | |
"एकचित्तसमायुत्ता, लहुसो वत्तते खणो॥", | |
"‘‘चुल्लासीतिसहस्सानि", | |
"नत्वेव तेपि जीवन्ति, द्वीहि चित्तेहि संयुता॥", | |
"‘‘ये निरुद्धा मरन्तस्स, तिट्ठमानस्स वा इध।", | |
"सब्बेपि सदिसा खन्धा, गता अप्पटिसन्धिका॥", | |
"‘‘अनन्तरा च ये भग्गा", | |
"तदन्तरे निरुद्धानं, वेसमं नत्थि लक्खणे॥", | |
"‘‘अनिब्बत्तेन न जातो, पच्चुप्पन्नेन जीवति।", | |
"चित्तभग्गा मतो लोको, पञ्ञत्ति परमत्थिया॥", | |
"‘‘यथा निन्ना पवत्तन्ति, छन्देन परिणामिता।", | |
"अच्छिन्नधारा वत्तन्ति, सळायतनपच्चया॥", | |
"‘‘अनिधानगता", | |
"निब्बत्ता ये च", | |
"‘‘निब्बत्तानञ्च", | |
"पलोकधम्मा तिट्ठन्ति, पुराणेहि अमिस्सिता॥", | |
"‘‘अदस्सनतो आयन्ति, भङ्गा गच्छन्ति दस्सनं।", | |
"विज्जुप्पादोव आकासे, उप्पज्जन्ति वयन्ति चा’’ति॥", | |
"‘‘न च केनचि कोचि हायति, गन्धब्बा च इमे हि सब्बसो।", | |
"पुरिमेहि पभाविका इमे, येपि पभाविका ते पुरे मता।", | |
"पुरिमापि च पच्छिमापि", | |
"‘‘अप्पमायु मनुस्सानं, हीळेय्य नं सुपोरिसो।", | |
"चरेय्यादित्तसीसोव नत्थि मच्चुस्सनागमो॥", | |
"‘‘अच्चयन्ति अहोरत्ता, जीवितं उपरुज्झति।", | |
"आयु खिय्यति मच्चानं, कुन्नदीनंव ओदक’’न्ति॥", | |
"‘‘तस्मा हि सिक्खेथ इधेव जन्तु, यं किञ्चि जञ्ञा विसमन्ति लोके।", | |
"न तस्स हेतू विसमं चरेय्य, अप्पञ्हिदं जीवितमाहु धीरा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पस्सामि लोके परिफन्दमानं, पजं इमं तण्हगतं भवेसु।", | |
"हीना नरा मच्चुमुखे लपन्ति, अवीततण्हासे भवाभवेसू’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘ममायिते", | |
"एतम्पि दिस्वा अममो चरेय्य, भवेसु आसत्तिमकुब्बमानो’’ति॥", | |
"", | |
"यदत्तगरही तदकुब्बमानो, न लिम्पती", | |
"‘‘उभोसु अन्तेसु विनेय्य छन्दं, फस्सं परिञ्ञाय अनानुगिद्धो।", | |
"यदत्तगरही तदकुब्बमानो, न लिम्पती दिट्ठसुतेसु धीरो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘कायमुनिं वाचामुनिं, मनोमुनिमनासवं।", | |
"मुनिं मोनेय्यसम्पन्नं, आहु सब्बप्पहायिनं॥", | |
"‘‘कायमुनिं वाचामुनिं, मनोमुनिमनासवं।", | |
"मुनिं मोनेय्यसम्पन्नं, आहु निन्हातपापक’’न्ति", | |
"‘‘न", | |
"यो च तुलंव पग्गय्ह, वरमादाय पण्डितो॥", | |
"‘‘पापानि परिवज्जेति, स मुनि तेन सो मुनि।", | |
"यो मुनाति उभो लोके, मुनि तेन पवुच्चति॥", | |
"‘‘असतञ्च सतञ्च ञत्वा धम्मं, अज्झत्तं बहिद्धा च सब्बलोके।", | |
"देवमनुस्सेहि", | |
"‘‘सञ्ञं", | |
"अब्बूळ्हसल्लो चरमप्पमत्तो, नासीसती लोकमिमं परञ्चा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘वदन्ति", | |
"वादञ्च जातं मुनि नो उपेति, तस्मा मुनी नत्थि खिलो कुहिञ्ची’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सकञ्हि", | |
"सयं", | |
"", | |
"‘‘नासिस्सं", | |
"नपि पस्सं निपातेस्सं, तण्हासल्ले अनूहते’’ति॥", | |
"विभवञ्च भवञ्च विप्पहाय, वुसितवा खीणपुनब्भवो स भिक्खू’’ति॥", | |
"‘‘यो", | |
"अनरियधम्मं कुसला तमाहु, यो आतुमानं सयमेव पावा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पज्जेन", | |
"परिनिब्बानगतो वितिण्णकङ्खो।", | |
"विभवञ्च", | |
"वुसितवा खीणपुनब्भवो स भिक्खू’’ति॥", | |
"‘‘सन्तो च भिक्खु अभिनिब्बुतत्तो, इतिहन्ति सीलेसु अकत्थमानो।", | |
"तमरियधम्मं कुसला वदन्ति, यस्सुस्सदा नत्थि कुहिञ्चि लोके’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पकप्पिता सङ्खता यस्स धम्मा, पुरक्खता सन्ति अवीवदाता।", | |
"यदत्तनि पस्सति आनिसंसं, तं निस्सितो कुप्पपटिच्चसन्ति’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘दिट्ठीनिवेसा न हि स्वातिवत्ता, धम्मेसु निच्छेय्य समुग्गहीतं।", | |
"तस्मा नरो तेसु निवेसनेसु, निरस्सती आदियती च धम्म’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘धोनस्स", | |
"मायञ्च मानञ्च पहाय धोनो, स केन गच्छेय्य अनूपयो सो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘उपयो हि धम्मेसु उपेति वादं, अनूपयं केन कथं वदेय्य।", | |
"अत्ता निरत्ता न हि तस्स अत्थि, अधोसि सो दिट्ठिमिधेव सब्ब’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘पस्सामि सुद्धं परमं अरोगं, दिट्ठेन संसुद्धि नरस्स होति।", | |
"एवाभिजानं परमन्ति ञत्वा, सुद्धानुपस्सीति पच्चेति ञाण’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘दिट्ठेन चे सुद्धि नरस्स होति, ञाणेन वा सो पजहाति दुक्खं।", | |
"अञ्ञेन सो सुज्झति सोपधीको, दिट्ठी हि नं पाव तथा वदान’’न्ति॥", | |
"", | |
"बाहित्वा सब्बपापकानि, [सभियाति भगवा]", | |
"विमलो साधुसमाहितो ठितत्तो।", | |
"संसारमतिच्च केवली सो, असितो", | |
"‘‘न ब्राह्मणो अञ्ञतो सुद्धिमाह, दिट्ठे सुते सीलवते मुते वा।", | |
"पुञ्ञे च पापे च अनूपलित्तो, अत्तञ्जहो नयिध पकुब्बमानो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पुरिमं पहाय अपरं सितासे, एजानुगा ते न तरन्ति सङ्गं।", | |
"ते उग्गहायन्ति निरस्सजन्ति, कपीव साखं पमुञ्चं गहाया’’ति॥", | |
"", | |
"वेदानि विचेय्य केवलानि, [सभियाति भगवा]", | |
"समणानं यानीधत्थि", | |
"सब्बवेदनासु वीतरागो, सब्बं वेदमतिच्च वेदगू सोति॥", | |
"‘‘सयं समादाय वतानि जन्तु, उच्चावचं गच्छति सञ्ञसत्तो।", | |
"विद्वा च वेदेहि समेच्च धम्मं, न उच्चावचं गच्छति भूरिपञ्ञो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘कामा", | |
"ततिया खुप्पिपासा ते, चतुत्थी तण्हा वुच्चति॥", | |
"‘‘पञ्चमी", | |
"सत्तमी विचिकिच्छा ते, मक्खो थम्भो ते अट्ठमो॥", | |
"‘‘लाभो सिलोको सक्कारो, मिच्छालद्धो च यो यसो।", | |
"यो चत्तानं समुक्कंसे, परे च अवजानति॥", | |
"‘‘एसा", | |
"न नं असुरो जिनाति, जेत्वाव लभते सुख’’न्ति॥", | |
"‘‘स सब्बधम्मेसु विसेनिभूतो, यं किञ्चि दिट्ठं व सुतं मुतं वा।", | |
"तमेव दस्सिं विवटं चरन्तं, केनीध लोकस्मि विकप्पयेय्या’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘न कप्पयन्ति न पुरेक्खरोन्ति, अच्चन्तसुद्धीति न ते वदन्ति।", | |
"आदानगन्थं गथितं विसज्ज, आसं न कुब्बन्ति कुहिञ्चि लोके’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सीमातिगो", | |
"न रागरागी न विरागरत्तो, तस्सीध नत्थि परमुग्गहीत’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘परमन्ति दिट्ठीसु परिब्बसानो, यदुत्तरिं कुरुते जन्तु लोके।", | |
"हीनाति अञ्ञे ततो सब्बमाह, तस्मा विवादानि अवीतिवत्तो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘यदत्तनी पस्सति आनिसंसं, दिट्ठे सुते सीलवते मुते वा।", | |
"तदेव सो तत्थ समुग्गहाय, निहीनतो पस्सति सब्बमञ्ञ’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘तं वापि गन्थं कुसला वदन्ति, यं निस्सितो पस्सति हीनमञ्ञं।", | |
"तस्मा हि दिट्ठं व सुतं मुतं वा, सीलब्बतं भिक्खु न निस्सयेय्या’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘दिट्ठिम्पि", | |
"समोति अत्तानमनूपनेय्य, हीनो न मञ्ञेथ विसेसि वापी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अत्तं पहाय अनुपादियानो, ञाणेनपि सो निस्सयं नो करोति।", | |
"स वे वियत्तेसु न वग्गसारी, दिट्ठिम्पि सो न पच्चेति किञ्ची’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘यस्सूभयन्ते", | |
"निवेसना तस्स न सन्ति केचि, धम्मेसु निच्छेय्य समुग्गहीत’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘तस्सीध", | |
"तं ब्राह्मणं दिट्ठिमनादियानं, केनीध लोकस्मिं विकप्पयेय्या’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘न", | |
"न", | |
"", | |
"‘‘जीवितं अत्तभावो च, सुखदुक्खा च केवला।", | |
"एकचित्तसमायुत्ता, लहुसो वत्तते खणो॥", | |
"‘‘चुल्लासीतिसहस्सानि, कप्पा तिट्ठन्ति ये मरू।", | |
"न त्वेव तेपि जीवन्ति, द्वीहि चित्तेहि संयुता", | |
"‘‘ये", | |
"सब्बेपि सदिसा खन्धा, गता अप्पटिसन्धिका॥", | |
"‘‘अनन्तरा", | |
"तदन्तरे निरुद्धानं, वेसमं नत्थि लक्खणे॥", | |
"‘‘अनिब्बत्तेन", | |
"चित्तभग्गा मतो लोको, पञ्ञत्ति परमत्थिया॥", | |
"‘‘यथा", | |
"अच्छिन्नधारा वत्तन्ति, सळायतनपच्चया॥", | |
"‘‘अनिधानगता भग्गा, पुञ्जो नत्थि अनागते।", | |
"निब्बत्ता ये च तिट्ठन्ति, आरग्गे सासपूपमा॥", | |
"‘‘निब्बत्तानञ्च धम्मानं, भङ्गो नेसं पुरक्खतो।", | |
"पलोकधम्मा तिट्ठन्ति, पुराणेहि अमिस्सिता॥", | |
"‘‘अदस्सनतो आयन्ति, भङ्गा गच्छन्ति दस्सनं।", | |
"विज्जुप्पादोव आकासे, उप्पज्जन्ति वयन्ति चा’’ति॥", | |
"‘‘न च केनचि कोचि हायति, गन्धब्बा च इमे हि सब्बसो।", | |
"पुरिमेहि पभाविका इमे, येपि पभाविका ते पुरे मता।", | |
"पुरिमापि च पच्छिमापि च, अञ्ञमञ्ञं न कदाचि मद्दसंसू’’ति॥", | |
"‘‘अप्पमायु मनुस्सानं, हीळेय्य नं सुपोरिसो।", | |
"चरेय्यादित्तसीसोव नत्थि मच्चुस्सनागमो॥", | |
"‘‘अच्चयन्ति", | |
"आयु खिय्यति मच्चानं, कुन्नदीनंव ओदक’’न्ति॥", | |
"‘‘फलानमिव पक्कानं, पातो पतनतो", | |
"एवं जातान मच्चानं, निच्चं मरणतो भयं॥", | |
"‘‘यथापि कुम्भकारस्स, कता मत्तिकभाजना।", | |
"सब्बे भेदनपरियन्ता, एवं मच्चान जीवितं॥", | |
"‘‘दहरा च महन्ता च, ये बाला ये च पण्डिता।", | |
"सब्बे मच्चुवसं यन्ति, सब्बे मच्चुपरायना॥", | |
"‘‘तेसं मच्चुपरेतानं, गच्छतं परलोकतो।", | |
"न पिता तायते पुत्तं, ञाती वा पन ञातके॥", | |
"‘‘पेक्खतञ्ञेव ञातीनं, पस्स लालप्पतं पुथु।", | |
"एकमेकोव", | |
"एवमब्भाहतो लोको, मच्चुना च जराय चा’’ति॥", | |
"‘‘अप्पं वत जीवितं इदं, ओरं वस्ससतापि मिय्यति।", | |
"यो चेपि अतिच्च जीवति, अथ खो सो जरसापि मिय्यती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सोचन्ति जना ममायिते, न हि सन्ति निच्चा परिग्गहा।", | |
"विनाभावं सन्तमेविदं, इति दिस्वा नागारमावसे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पुब्बेव", | |
"असस्सता भोगिनो कामकामी, तस्मा न सोचामहं सोककाले॥", | |
"‘‘उदेति आपूरति वेति चन्दो, अत्तं गमेत्वान पलेति सूरियो।", | |
"विदिता मया सत्तुक लोकधम्मा, तस्मा न सोचामहं सोककाले’’ति॥", | |
"‘‘कुहा", | |
"न ते धम्मे विरूहन्ति, सम्मासम्बुद्धदेसिते॥", | |
"‘‘निक्कुहा निल्लपा धीरा, अत्थद्धा सुसमाहिता।", | |
"ते वे धम्मे विरूहन्ति, सम्मासम्बुद्धदेसिते’’॥", | |
"‘‘मरणेनपि तं पहीयति, यं पुरिसो ममिदन्ति मञ्ञति।", | |
"एतम्पि विदित्वान पण्डितो, न ममत्ताय नमेथ मामको’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सुपिनेन यथापि सङ्गतं, पटिबुद्धो पुरिसो न पस्सति।", | |
"एवम्पि पियायितं जनं, पेतं कालङ्कतं न पस्सती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘दिट्ठापि", | |
"नामंयेवावसिस्सति, अक्खेय्यं पेतस्स जन्तुनो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सोकप्परिदेवमच्छरं, न जहन्ति गिद्धा ममायिते।", | |
"तस्मा मुनयो परिग्गहं, हित्वा अचरिंसु खेमदस्सिनो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पतिलीनचरस्स", | |
"सामग्गियमाहु तस्स तं, यो अत्तानं भवने न दस्सये’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सब्बत्थ मुनी अनिस्सितो, न पियं कुब्बति नोपि अप्पियं।", | |
"तस्मिं परिदेवमच्छरं, पण्णे वारि यथा न लिम्पती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘उदबिन्दु यथापि पोक्खरे, पदुमे वारि यथा न लिम्पति।", | |
"एवं मुनि नोपलिम्पति, यदिदं दिट्ठसुतमुतेसु वा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘धोनो", | |
"नाञ्ञेन विसुद्धिमिच्छति, न हि सो रज्जति नो विरज्जती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘मेथुनमनुयुत्तस्स", | |
"विघातं ब्रूहि मारिस।", | |
"सुत्वान तव सासनं, विवेके सिक्खिस्सामसे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘मेथुनमनुयुत्तस्स, [मेत्तेय्याति भगवा]", | |
"मुस्सते वापि सासनं।", | |
"मिच्छा च पटिपज्जति, एतं तस्मिं अनारिय’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘एको पुब्बे चरित्वान, मेथुनं यो निसेवति।", | |
"यानं भन्तंव तं लोके, हीनमाहु पुथुज्जन’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘यसो कित्ति च या पुब्बे, हायते वापि तस्स सा।", | |
"एतम्पि दिस्वा सिक्खेथ, मेथुनं विप्पहातवे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सङ्कप्पेहि परेतो सो, कपणो विय झायति।", | |
"सुत्वा परेसं निग्घोसं, मङ्कु होति तथाविधो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अथ", | |
"एस ख्वस्स महागेधो, मोसवज्जं पगाहती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पण्डितोति समञ्ञातो, एकच्चरियं अधिट्ठितो।", | |
"स चापि मेथुने युत्तो, मन्दोव परिकिस्सती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘एतमादीनवं ञत्वा, मुनि पुब्बापरे इध।", | |
"एकच्चरियं दळ्हं कयिरा, न निसेवेथ मेथुन’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘विवेकञ्ञेव सिक्खेथ, एतं अरियानमुत्तमं।", | |
"न तेन सेट्ठो मञ्ञेथ, स वे निब्बानसन्तिके’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘रित्तस्स", | |
"ओघतिण्णस्स पिहयन्ति, कामेसु गधिता पजा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘इधेव", | |
"यं निस्सिता तत्थ सुभं वदाना, पच्चेकसच्चेसु पुथू निविट्ठा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘ते", | |
"वदन्ति ते अञ्ञसिता कथोज्जं, पसंसकामा कुसलावदाना’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘युत्तो कथायं परिसाय मज्झे, पसंसमिच्छं विनिघाति होति।", | |
"अपाहतस्मिं पन मङ्कु होति, निन्दाय सो कुप्पति रन्धमेसी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘यमस्स वादं परिहीनमाहु, अपाहतं पञ्हविमंसकासे।", | |
"परिदेवति सोचति हीनवादो, उपच्चगा मन्ति अनुत्थुनाती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘एते विवादा समणेसु जाता, एतेसु उग्घातिनिघाति होति।", | |
"एतम्पि", | |
"", | |
"‘‘पसंसितो वा पन तत्थ होति, अक्खाय वादं परिसाय मज्झे।", | |
"सो हस्सती उन्नमती च तेन, पप्पुय्य तमत्थं यथा मनो अहू’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘या उन्नती सास्स विघातभूमि, मानातिमानं वदते पनेसो।", | |
"एतम्पि दिस्वा न विवादयेथ, न हि तेन सुद्धिं कुसला वदन्ती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सूरो यथा राजखादाय पुट्ठो, अभिगज्जमेति पटिसूरमिच्छं।", | |
"येनेव सो तेन पलेहि सूर, पुब्बेव नत्थि यदिदं युधाया’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘ये दिट्ठिमुग्गय्ह विवादयन्ति, इदमेव सच्चन्ति च वादयन्ति।", | |
"ते", | |
"", | |
"‘‘कामा ते पठमा सेना, दुतिया अरति वुच्चति…पे॰…।", | |
"न नं असुरो जिनाति, जेत्वाव लभते सुख’’न्ति॥", | |
"‘‘विसेनिकत्वा पन ये चरन्ति, दिट्ठीहि दिट्ठिं अविरुज्झमाना।", | |
"तेसु त्वं किं लभेथ पसूर, येसीध नत्थि परमुग्गहीत’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘अथ त्वं पवितक्कमागमा, मनसा दिट्ठिगतानि चिन्तयन्तो।", | |
"धोनेन युगं समागमा, न हि त्वं सक्खसि सम्पयातवे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘दिस्वान तण्हं अरतिं रगञ्च, नाहोसि छन्दो अपि मेथुनस्मिं।", | |
"किमेविदं", | |
"", | |
"", | |
"‘‘इदं वदामीति न तस्स होति, [मागण्डियाति भगवा]", | |
"धम्मेसु निच्छेय्य समुग्गहीतं।", | |
"पस्सञ्च दिट्ठीसु अनुग्गहाय।", | |
"अज्झत्तसन्तिं पचिनं अदस्स’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘विनिच्छया", | |
"ते वे मुनी ब्रूसि अनुग्गहाय।", | |
"अज्झत्तसन्तीति यमेतमत्थं, कथं नु धीरेहि पवेदितं त’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘न दिट्ठिया न सुतिया न ञाणेन, [मागण्डियाति भगवा]", | |
"सीलब्बतेनापि न सुद्धिमाह।", | |
"अदिट्ठिया अस्सुतिया अञाणा, असीलता अब्बता नोपि तेन।", | |
"एते च निस्सज्ज अनुग्गहाय, सन्तो अनिस्साय भवं न जप्पे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘नो चे किर दिट्ठिया न सुतिया न ञाणेन, [इति मागण्डियो]", | |
"सीलब्बतेनापि न सुद्धिमाह।", | |
"अदिट्ठिया अस्सुतिया अञाणा, असीलता अब्बता नोपि तेन।", | |
"मञ्ञामहं मोमुहमेव धम्मं, दिट्ठिया एके पच्चेन्ति सुद्धि’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘दिट्ठिञ्च", | |
"समुग्गहीतेसु पमोहमागा।", | |
"इतो च नाद्दक्खि अणुम्पि सञ्ञं, तस्मा तुवं मोमुहतो दहासी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘समो विसेसी उद वा निहीनो, यो मञ्ञति सो विवदेथ तेन।", | |
"तीसु विधासु अविकम्पमानो, समो विसेसीति न तस्स होती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सच्चन्ति सो ब्राह्मणो किं वदेय्य, मुसाति वा सो विवदेथ केन।", | |
"यस्मिं समं विसमं वापि नत्थि, स केन वादं पटिसंयुजेय्या’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘ओकं पहाय अनिकेतसारी, गामे अकुब्बं मुनि सन्थवानि।", | |
"कामेहि रित्तो अपुरेक्खरानो, कथं न विग्गय्ह जनेन कयिरा’’ति॥", | |
"‘‘ओकं", | |
"कामेहि", | |
"‘‘ओकं पहाय अनिकेतसारी, गामे अकुब्बं मुनि सन्थवानि।", | |
"कामेहि रित्तो अपुरेक्खरानो, कथं न विग्गय्ह जनेन कयिरा’’ति॥", | |
"", | |
"आगुं", | |
"सब्बसञ्ञोगे विसज्ज बन्धनानि।", | |
"सब्बत्थ न सज्जति विमुत्तो, नागो तादी पवुच्चते तथत्ता॥", | |
"‘‘येहि विवित्तो विचरेय्य लोके, न तानि उग्गय्ह वदेय्य नागो।", | |
"एलम्बुजं कण्डकवारिजं यथा, जलेन पङ्केन चनूपलित्तं।", | |
"एवं मुनी सन्तिवादो अगिद्धो, कामे च लोके च अनूपलित्तो’’ति॥", | |
"", | |
"वेदानि विचेय्य केवलानि, [सभियाति भगवा]", | |
"समणानं यानीधत्थि ब्राह्मणानं।", | |
"सब्बवेदनासु वीतरागो, सब्बं वेदमतिच्च वेदगू सोति॥", | |
"‘‘न वेदगू दिट्ठिया न मुतिया, स मानमेति न हि तम्मयो सो।", | |
"न कम्मुना नोपि सुतेन नेय्यो, अनूपनीतो स निवेसनेसू’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सञ्ञाविरत्तस्स", | |
"सञ्ञञ्च दिट्ठिञ्च ये अग्गहेसुं, ते घट्टमाना विचरन्ति लोके’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘कथंदस्सी कथंसीलो, उपसन्तोति वुच्चति।", | |
"तं मे गोतम पब्रूहि, पुच्छितो उत्तमं नर’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘वीततण्हो पुराभेदा, [इति भगवा]", | |
"पुब्बमन्तमनिस्सितो।", | |
"वेमज्झे नुपसङ्खेय्यो,", | |
"तस्स नत्थि पुरक्खत’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘अक्कोधनो असन्तासी, अविकत्थी अकुक्कुचो।", | |
"मन्तभाणी अनुद्धतो, स वे वाचायतो मुनी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘निरासत्ति", | |
"विवेकदस्सी फस्सेसु, दिट्ठीसु च न नीयती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पतिलीनो अकुहको, अपिहालु अमच्छरी।", | |
"अप्पगब्भो अजेगुच्छो, पेसुणेय्ये च नो युतो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अस्सद्धो अकतञ्ञू च, सन्धिच्छेदो च यो नरो।", | |
"हतावकासो वन्तासो, स वे उत्तमपोरिसो’’ति॥", | |
"‘‘सातियेसु अनस्सावी, अतिमाने च नो युतो।", | |
"सण्हो च पटिभानवा, न सद्धो न विरज्जती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘लाभकम्या", | |
"अविरुद्धो च तण्हाय, रसेसु नानुगिज्झती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘दन्तं नयन्ति समितिं, दन्तं राजाभिरूहति।", | |
"दन्तो सेट्ठो मनुस्सेसु, योतिवाक्यं तितिक्खति॥", | |
"‘‘वरमस्सतरा", | |
"कुञ्जरा च महानागा, अत्तदन्तो ततो वरं॥", | |
"‘‘न हि एतेहि यानेहि, गच्छेय्य अगतं दिसं।", | |
"यथात्तना सुदन्तेन, दन्तो दन्तेन गच्छति॥", | |
"‘‘विधासु", | |
"दन्तभूमिमनुप्पत्ता, ते लोके विजिताविनो॥", | |
"‘‘यस्सिन्द्रियानि", | |
"निब्बिज्झ इमं", | |
"‘‘उपेक्खको सदा सतो, न लोके मञ्ञते समं।", | |
"न विसेसी न नीचेय्यो, तस्स नो सन्ति उस्सदा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘यस्स निस्सयता नत्थि, ञत्वा धम्मं अनिस्सितो।", | |
"भवाय विभवाय वा, तण्हा यस्स न विज्जती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘तं ब्रूमि उपसन्तोति, कामेसु अनपेक्खिनं।", | |
"गन्था तस्स न विज्जन्ति, अतरी सो विसत्तिक’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘न", | |
"अत्ता वापि निरत्ता वा, न तस्मिं उपलब्भती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘येन नं वज्जुं पुथुज्जना, अथो समणब्राह्मणा।", | |
"तं तस्स अपुरक्खतं, तस्मा वादेसु नेजती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘वीतगेधो", | |
"न समेसु न ओमेसु, कप्पं नेति अकप्पियो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘यस्स", | |
"धम्मेसु च न गच्छति, स वे सन्तोति वुच्चती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘कुतोपहूता कलहा विवादा, परिदेवसोका सहमच्छरा च।", | |
"मानातिमाना सहपेसुणा च, कुतोपहूता ते तदिङ्घ ब्रूही’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पियप्पहूता कलहा विवादा, परिदेवसोका सहमच्छरा च।", | |
"मानातिमाना सहपेसुणा च, मच्छेरयुत्ता कलहा विवादा।", | |
"विवादजातेसु च पेसुणानी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पिया", | |
"आसा च निट्ठा च कुतोनिदाना, ये सम्परायाय नरस्स होन्ती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘आसाय", | |
"आसाय वाणिजा यन्ति, समुद्दं धनहारका।", | |
"याय आसाय तिट्ठामि, सा मे आसा समिज्झती’’ति॥", | |
"‘‘छन्दानिदानानि पियानि लोके, ये चापि लोभा विचरन्ति लोके।", | |
"आसा च निट्ठा च इतोनिदाना, ये सम्परायाय नरस्स होन्ती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘छन्दो नु लोकस्मिं कुतोनिदानो, विनिच्छता चापि कुतोपहूता।", | |
"कोधो मोसवज्जञ्च कथंकथा च, ये चापि धम्मा समणेन वुत्ता’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सातं असातन्ति यमाहु लोके, तमूपनिस्साय पहोति छन्दो।", | |
"रूपेसु दिस्वा विभवं भवञ्च, विनिच्छयं कुब्बति जन्तु लोके’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘कोधो मोसवज्जञ्च कथंकथा च, एतेपि धम्मा द्वयमेव सन्ते।", | |
"कथंकथी ञाणपथाय सिक्खे, ञत्वा पवुत्ता समणेन धम्मा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सातं असातञ्च कुतोनिदाना, किस्मिं असन्ते न भवन्ति हेते।", | |
"विभवं भवञ्चापि यमेतमत्थं, एतं मे पब्रूहि यतोनिदान’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘फस्सनिदानं सातं असातं, फस्से असन्ते न भवन्ति हेते।", | |
"विभवं", | |
"", | |
"‘‘फस्सो नु लोकस्मिं कुतोनिदानो, परिग्गहा चापि कुतोपहूता।", | |
"किस्मिं असन्ते न ममत्तमत्थि, किस्मिं विभूते न फुसन्ति फस्सा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘नामञ्च रूपञ्च पटिच्च फस्सो, इच्छानिदानानि परिग्गहानि।", | |
"इच्छायसन्त्या न ममत्तमत्थि, रूपे विभूते न फुसन्ति फस्सा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘कथं समेतस्स विभोति रूपं, सुखं दुखञ्चापि कथं विभोति।", | |
"एतं मे पब्रूहि यथा विभोति, तं जानियामाति मे मनो अहू’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘न सञ्ञसञ्ञी न विसञ्ञसञ्ञी, नोपि असञ्ञी न विभूतसञ्ञी।", | |
"एवं समेतस्स विभोति रूपं, सञ्ञानिदाना हि पपञ्चसङ्खा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘यं तं अपुच्छिम्ह अकित्तयी नो, अञ्ञं तं पुच्छाम तदिङ्घ ब्रूहि।", | |
"एत्तावतग्गं नु वदन्ति हेके, यक्खस्स सुद्धिं इध पण्डितासे।", | |
"उदाहु अञ्ञम्पि वदन्ति एत्तो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘एत्तावतग्गम्पि वदन्ति हेके, यक्खस्स सुद्धिं इध पण्डितासे।", | |
"तेसं पनेके समयं वदन्ति, अनुपादिसेसे कुसलावदाना’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘एते च ञत्वा उपनिस्सिताति, ञत्वा मुनी निस्सये सो वीमंसी।", | |
"ञत्वा विमुत्तो न विवादमेति, भवाभवाय न समेति धीरो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सकं सकं दिट्ठिपरिब्बसाना, विग्गय्ह नाना कुसला वदन्ति।", | |
"यो एवं जानाति स वेदि धम्मं, इदं पटिक्कोसमकेवली सो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘एवम्पि विग्गय्ह विवादयन्ति, बालो परो अक्कुसलोति चाहु।", | |
"सच्चो नु वादो कतमो इमेसं, सब्बेव हीमे कुसलावदाना’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘परस्स चे धम्ममनानुजानं, बालोमको होति निहीनपञ्ञो।", | |
"सब्बेव बाला सुनिहीनपञ्ञा, सब्बेविमे दिट्ठिपरिब्बसाना’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सन्दिट्ठिया चेव नवीवदाता, संसुद्धपञ्ञा कुसला मुतीमा।", | |
"तेसं न कोचि परिहीनपञ्ञो, दिट्ठी हि तेसम्पि तथा समत्ता’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘न वाहमेतं तथियन्ति ब्रूमि, यमाहु बाला मिथु अञ्ञमञ्ञं।", | |
"सकं", | |
"", | |
"‘‘यमाहु", | |
"एवम्पि विग्गय्ह विवादयन्ति, कस्मा न एकं समणा वदन्ती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘एकञ्हि सच्चं न दुतीयमत्थि, यस्मिं पजा नो विवदे पजानं।", | |
"नाना", | |
"", | |
"‘‘कस्मा नु सच्चानि वदन्ति नाना, पवादियासे कुसलावदाना।", | |
"सच्चानि सुतानि बहूनि नाना, उदाहु ते तक्कमनुस्सरन्ती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘न हेव सच्चानि बहूनि नाना, अञ्ञत्र सञ्ञाय निच्चानि लोके।", | |
"तक्कञ्च दिट्ठीसु पकप्पयित्वा, सच्चं मुसाति द्वयधम्ममाहू’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘दिट्ठे", | |
"विनिच्छये ठत्वा पहस्समानो, बालो परो अक्कुसलोति चाहा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘येनेव बालोति परं दहाति, तेनातुमानं कुसलोति चाह।", | |
"सयमत्तना सो कुसलावदानो, अञ्ञं विमानेति तदेव पावा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अतिसारदिट्ठिया सो समत्तो, मानेन मत्तो परिपुण्णमानी।", | |
"सयमेव सामं मनसाभिसित्तो, दिट्ठी हि सा तस्स तथा समत्ता’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘परस्स चे हि वचसा निहीनो, तुमो सहा होति निहीनपञ्ञो।", | |
"अथ चे सयं वेदगू होति धीरो, न कोचि बालो समणेसु अत्थी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अञ्ञं इतो याभिवदन्ति धम्मं, अपरद्धा सुद्धिमकेवली ते।", | |
"एवम्पि", | |
"", | |
"‘‘इधेव सुद्धिं इति वादयन्ति, नाञ्ञेसु धम्मेसु विसुद्धिमाहु।", | |
"एवम्पि तित्थ्या पुथुसो निविट्ठा, सकायने तत्थ दळ्हं वदाना’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सकायने वापि दळ्हं वदानो, कमेत्थ बालोति परं दहेय्य।", | |
"सयंव", | |
"", | |
"‘‘विनिच्छये ठत्वा सयं पमाय, उद्धंस लोकस्मिं विवादमेति।", | |
"हित्वान सब्बानि विनिच्छयानि, न मेधगं कुब्बति जन्तु लोके’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘ये केचिमे दिट्ठिपरिब्बसाना, इदमेव सच्चन्ति च वादयन्ति।", | |
"सब्बेव ते निन्दमन्वानयन्ति, अथो पसंसम्पि लभन्ति तत्था’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अप्पञ्हि", | |
"एतम्पि दिस्वा न विवादयेथ, खेमाभिपस्सं अविवादभूमि’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘या", | |
"अनूपयो सो उपयं किमेय्य, दिट्ठे सुते खन्तिमकुब्बमानो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सीलुत्तमा सञ्ञमेनाहु सुद्धिं, वतं समादाय उपट्ठितासे।", | |
"इधेव सिक्खेम अथस्स सुद्धिं, भवूपनीता कुसलावदाना’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सचे चुतो सीलवततो होति, पवेधती कम्मविराधयित्वा।", | |
"पजप्पती पत्थयती च सुद्धिं, सत्थाव हीनो पवसं घरम्हा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सीलब्बतं वापि पहाय सब्बं, कम्मञ्च सावज्जनवज्जमेतं।", | |
"सुद्धिं असुद्धिन्ति अपत्थयानो, विरतो चरे सन्तिमनुग्गहाया’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘तमूपनिस्साय", | |
"उद्धंसरा सुद्धिमनुत्थुनन्ति, अवीततण्हासे भवाभवेसू’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पत्थयमानस्स हि जप्पितानि, पवेधितं वापि पकप्पितेसु।", | |
"चुतूपपातो इध यस्स नत्थि, स केन वेधेय्य कुहिं व जप्पे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘यमाहु धम्मं परमन्ति एके, तमेव हीनन्ति पनाहु अञ्ञे।", | |
"सच्चो नु वादो कतमो इमेसं, सब्बेव हीमे कुसलावदाना’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सकञ्हि धम्मं परिपुण्णमाहु, अञ्ञस्स धम्मं पन हीनमाहु।", | |
"एवम्पि विग्गय्ह विवादयन्ति, सकं सकं सम्मुतिमाहु सच्च’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘परस्स", | |
"पुथू हि अञ्ञस्स वदन्ति धम्मं, निहीनतो सम्हि दळ्हं वदाना’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सद्धम्मपूजापि पना तथेव, यथा पसंसन्ति सकायनानि।", | |
"सब्बेव वादा तथिया भवेय्युं, सुद्धी हि नेसं पच्चत्तमेवा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘न ब्राह्मणस्स परनेय्यमत्थि, धम्मेसु निच्छेय्य समुग्गहीतं।", | |
"तस्मा विवादानि उपातिवत्तो, न हि सेट्ठतो पस्सति धम्ममञ्ञ’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘जानामि पस्सामि तथेव एतं, दिट्ठिया एके पच्चेन्ति सुद्धिं।", | |
"अदक्खि चे किञ्हि तुमस्स तेन, अतिसित्वा अञ्ञेन वदन्ति सुद्धि’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘पस्सं", | |
"कामं बहुं पस्सतु अप्पकं वा, न हि तेन सुद्धिं कुसला वदन्ती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘निविस्सवादी न हि सुब्बिनायो, पकप्पिता दिट्ठिपुरेक्खरानो।", | |
"यं निस्सितो तत्थ सुभं वदानो, सुद्धिं वदो तत्थ तथद्दसा सो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘न ब्राह्मणो कप्पमुपेति सङ्खा, न दिट्ठिसारी नपि ञाणबन्धु।", | |
"ञत्वा च सो सम्मुतियो पुथुज्जा, उपेक्खती उग्गहणन्ति मञ्ञे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘विस्सज्ज गन्थानि मुनीध लोके, विवादजातेसु न वग्गसारी।", | |
"सन्तो असन्तेसु उपेक्खको सो, अनुग्गहो उग्गहणन्ति मञ्ञे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पुब्बासवे हित्वा नवे अकुब्बं, न छन्दगू नोपि निविस्सवादी।", | |
"स विप्पमुत्तो दिट्ठिगतेहि धीरो, न लिम्पति लोके अनत्तगरही’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘कामा ते पठमा सेना, दुतिया अरति वुच्चति…पे॰…", | |
"न नं असुरो जिनाति, जेत्वाव लभते सुख’’न्ति॥", | |
"‘‘कायमुनिं वाचामुनिं, मनोमुनिमनासवं।", | |
"मुनिं मोनेय्यसम्पन्नं, आहु सब्बप्पहायिनं॥", | |
"‘‘कायमुनिं वाचामुनिं, मनोमुनिमनासवं।", | |
"मुनिं मोनेय्यसम्पन्नं, आहु निन्हातपापक’’न्ति", | |
"‘‘न मोनेन मुनि होति, मूळ्हरूपो अविद्दसु।", | |
"यो च तुलंव पग्गय्ह, वरमादाय पण्डितो॥", | |
"‘‘पापानि", | |
"यो मुनाति उभो लोके, मुनि तेन पवुच्चति॥", | |
"‘‘असतञ्च", | |
"देवमनुस्सेहि पूजितो यो, सङ्गजालमतिच्च सो मुनि’’॥", | |
"‘‘स सब्बधम्मेसु विसेनिभूतो, यं किञ्चि दिट्ठं व सुतं मुतं वा।", | |
"स पन्नभारो मुनि विप्पमुत्तो, न कप्पियो नूपरतो न पत्थियो’’॥[इति भगवाति]", | |
"", | |
"‘‘पुच्छामि तं आदिच्चबन्धु, विवेकं सन्तिपदञ्च महेसि।", | |
"कथं दिस्वा निब्बाति भिक्खु, अनुपादियानो लोकस्मिं किञ्ची’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘मूलं पपञ्चसङ्खाय, [इति भगवा]", | |
"मन्ता अस्मीति सब्बमुपरुन्धे।", | |
"या काचि तण्हा अज्झत्तं, तासं विनया सदा सतो सिक्खे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘यं किञ्चि धम्ममभिजञ्ञा, अज्झत्तं अथ वापि बहिद्धा।", | |
"न तेन थामं कुब्बेथ, न हि सा निब्बुति सतं वुत्ता’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सेय्यो", | |
"फुट्ठो अनेकरूपेहि, नातुमानं विकप्पयं तिट्ठे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अज्झत्तमेवुपसमे, न अञ्ञतो भिक्खु सन्तिमेसेय्य।", | |
"अज्झत्तं उपसन्तस्स, नत्थि अत्ता कुतो निरत्ता वा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘मज्झे यथा समुद्दस्स, ऊमि नो जायती ठितो होति।", | |
"एवं ठितो अनेजस्स, उस्सदं भिक्खु न करेय्य कुहिञ्ची’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सेले", | |
"तथूपमं धम्ममयं सुमेध, पासादमारुय्ह समन्तचक्खु।", | |
"सोकावतिण्णं जनतमपेतसोको, अवेक्खस्सु जातिजराभिभूत’’न्ति॥", | |
"‘‘न तस्स अदिट्ठमिधत्थि किञ्चि, अथो अविञ्ञातमजानितब्बं।", | |
"सब्बं अभिञ्ञासि यदत्थि नेय्यं, तथागतो तेन समन्तचक्खू’’ति॥", | |
"‘‘अनत्थजननो", | |
"भयमन्तरतो जातं, तं जनो नावबुज्झति॥", | |
"‘‘लुद्धो", | |
"अन्धन्तमं", | |
"‘‘अनत्थजननो दोसो, दोसो चित्तप्पकोपनो।", | |
"भयमन्तरतो जातं, तं जनो नावबुज्झति॥", | |
"‘‘कुद्धो अत्थं न जानाति, कुद्धो धम्मं न पस्सति।", | |
"अन्धन्तमं तदा होति, यं दोसो सहते नरं॥", | |
"‘‘अनत्थजननो", | |
"भयमन्तरतो जातं, तं जनो नावबुज्झति॥", | |
"‘‘मूळ्हो अत्थं न जानाति, मूळ्हो धम्मं न पस्सति।", | |
"अन्धन्तमं तदा होति, यं मोहो सहते नर’’न्ति॥", | |
"‘‘लोभो", | |
"हिंसन्ति अत्तसम्भूता, तचसारंव सम्फल’’न्ति॥", | |
"‘‘रागो च दोसो च इतो निदाना, अरती रती लोमहंसो इतोजा।", | |
"इतो समुट्ठाय मनोवितक्का, कुमारका धङ्कमिवोस्सजन्ती’’ति॥", | |
"‘‘अकित्तयी विवटचक्खु, सक्खिधम्मं परिस्सयविनयं।", | |
"पटिपदं वदेहि भद्दन्ते, पातिमोक्खं अथ वापि समाधि’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘चक्खूहि नेव लोलस्स, गामकथाय आवरये सोतं।", | |
"रसे च नानुगिज्झेय्य, न च ममायेथ किञ्चि लोकस्मि’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘फस्सेन यदा फुट्ठस्स, परिदेवं भिक्खु न करेय्य कुहिञ्चि।", | |
"भवञ्च नाभिजप्पेय्य, भेरवेसु च न सम्पवेधेय्या’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अन्नानमथो पानानं, खादनीयानमथोपि वत्थानं।", | |
"लद्धा न सन्निधिं कयिरा, न च परित्तसे तानि अलभमानो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘झायी न पादलोलस्स, विरमे कुक्कुच्चा नप्पमज्जेय्य।", | |
"अथासनेसु", | |
"", | |
"‘‘निद्दं", | |
"तन्दिं मायं हस्सं खिड्डं, मेथुनं विप्पजहे सविभूस’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘कुहा", | |
"न ते धम्मे विरूहन्ति, सम्मासम्बुद्धदेसिते॥", | |
"‘‘निक्कुहा निल्लपा धीरा, अत्थद्धा सुसमाहिता।", | |
"ते वे धम्मे विरूहन्ति, सम्मासम्बुद्धदेसिते’’॥", | |
"‘‘आथब्बणं सुपिनं लक्खणं, नो विदहे अथोपि नक्खत्तं।", | |
"विरुतञ्च गब्भकरणं, तिकिच्छं मामको न सेवेय्या’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘निन्दाय", | |
"लोभं सह मच्छरियेन, कोधं पेसुणियञ्च पनुदेय्या’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘कयविक्कये न तिट्ठेय्य, उपवादं भिक्खु न करेय्य कुहिञ्चि।", | |
"गामे च नाभिसज्जेय्य, लाभकम्या जनं न लपयेय्या’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘न", | |
"पागब्भियं न सिक्खेय्य, कथं विग्गाहिकं न कथयेय्या’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘मोसवज्जे न निय्येथ, सम्पजानो सठानि न कयिरा।", | |
"अथ जीवितेन पञ्ञाय, सीलब्बतेन नाञ्ञमतिमञ्ञे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सुत्वा रुसितो बहुं वाचं, समणानं वा पुथुजनानं।", | |
"फरुसेन ने न पटिवज्जा, न हि सन्तो पटिसेनिं करोन्ती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘एतञ्च धम्ममञ्ञाय, विचिनं भिक्खु सदा सतो सिक्खे।", | |
"सन्तीति निब्बुतिं ञत्वा, सासने गोतमस्स नप्पमज्जेय्या’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अभिभू", | |
"तस्मा हि तस्स भगवतो सासने, अप्पमत्तो सदा नमस्समनुसिक्खे’’॥ [इति भगवाति]", | |
"", | |
"‘‘चतुक्कण्णो", | |
"अयोपाकारपरियन्तो", | |
"‘‘तस्स अयोमया भूमि, जलिता तेजसा युता।", | |
"समन्ता योजनसतं, फरित्वा तिट्ठति सब्बदा॥", | |
"‘‘कदरियातपना घोरा, अच्चिमन्तो दुरासदा।", | |
"लोमहंसनरूपा च, भिस्मा पटिभया दुखा॥", | |
"‘‘पुरत्थिमाय भित्तिया, अच्चिक्खन्धो समुट्ठितो।", | |
"दहन्तो पापकम्मन्ते, पच्छिमाय पटिहञ्ञति॥", | |
"‘‘पच्छिमाय च भित्तिया, अच्चिक्खन्धो समुट्ठितो।", | |
"दहन्तो पापकम्मन्ते, पुरत्थिमाय पटिहञ्ञति॥", | |
"‘‘उत्तराय", | |
"दहन्तो पापकम्मन्ते, दक्खिणाय पटिहञ्ञति॥", | |
"‘‘दक्खिणाय", | |
"दहन्तो पापकम्मन्ते, उत्तराय पटिहञ्ञति॥", | |
"‘‘हेट्ठतो च समुट्ठाय, अच्चिक्खन्धो भयानको।", | |
"दहन्तो पापकम्मन्ते, छदनस्मिं पटिहञ्ञति॥", | |
"‘‘छदनम्हा", | |
"दहन्तो पापकम्मन्ते, भूमियं पटिहञ्ञति॥", | |
"‘‘अयोकपालमादित्तं, सन्तत्तं जलितं यथा।", | |
"एवं अवीचिनिरयो, हेट्ठा उपरि पस्सतो॥", | |
"‘‘तत्थ सत्ता महालुद्दा, महाकिब्बिसकारिनो।", | |
"अच्चन्तपापकम्मन्ता, पच्चन्ति न च मिय्यरे", | |
"‘‘जातवेदसमो कायो, तेसं निरयवासिनं।", | |
"पस्स कम्मानं दळ्हत्तं, न भस्मा होति नपी मसि॥", | |
"‘‘पुरत्थिमेनपि धावन्ति, ततो धावन्ति पच्छिमं।", | |
"उत्तरेनपि धावन्ति, ततो धावन्ति दक्खिणं॥", | |
"‘‘यं यं दिसं पधावन्ति", | |
"अभिनिक्खमितासा ते, सत्ता मोक्खगवेसिनो॥", | |
"‘‘न ते ततो निक्खमितुं, लभन्ति कम्मपच्चया।", | |
"तेसञ्च पापकम्मन्तं, अविपक्कं कतं बहु’’न्ति॥", | |
"‘‘अत्तदण्डा भयं जातं, जनं पस्सथ मेधगं।", | |
"संवेगं कित्तयिस्सामि, यथा संविजितं मया’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘फन्दमानं", | |
"अञ्ञमञ्ञेहि ब्यारुद्धे, दिस्वा मं भयमाविसी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘किञ्चापि", | |
"रूपे रणं दिस्वा सदा पवेधितं, तस्मा न रूपे रमती सुमेधो॥", | |
"‘‘मच्चुनाब्भाहतो लोको, जराय परिवारितो।", | |
"तण्हासल्लेन ओतिण्णो, इच्छाधूमायितो", | |
"‘‘सब्बो आदीपितो", | |
"सब्बो पज्जलितो लोको, सब्बो लोको पकम्पितो’’ति॥", | |
"‘‘लाभो", | |
"एते अनिच्चा मनुजेसु धम्मा, असस्सता विपरिणामधम्मा’’ति॥", | |
"‘‘समन्तमसारो लोको, दिसा सब्बा समेरिता।", | |
"इच्छं भवनमत्तनो, नाद्दसासिं अनोसित’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘ओसाने त्वेव ब्यारुद्धे, दिस्वा मे अरती अहु।", | |
"अथेत्थ सल्लमद्दक्खिं, दुद्दसं हदयस्सित’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘येन सल्लेन ओतिण्णो, दिसा सब्बा विधावति।", | |
"तमेव सल्लमब्बुय्ह, न धावति न सीदती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘तत्थ", | |
"न तेसु पसुतो सिया, निब्बिज्झ सब्बसो कामे।", | |
"सिक्खे निब्बानमत्तनो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सच्चो सिया अप्पगब्भो, अमायो रित्तपेसुणो।", | |
"अक्कोधनो लोभपापं, वेविच्छं वितरे मुनी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘न पण्डिता उपधिसुखस्स हेतु, ददन्ति दानानि पुनब्भवाय।", | |
"कामञ्च ते उपधिपरिक्खयाय, ददन्ति दानं अपुनब्भवाय॥", | |
"‘‘न", | |
"कामञ्च ते उपधिपरिक्खयाय, भावेन्ति झानं अपुनब्भवाय॥", | |
"‘‘ते", | |
"नज्जो यथा सागरमज्झुपेता", | |
"‘‘निद्दं तन्दि सहे थीनं, पमादेन न संवसे।", | |
"अतिमाने न तिट्ठेय्य, निब्बानमनसो नरो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘मोसवज्जे न निय्येथ, रूपे स्नेहं न कुब्बये।", | |
"मानञ्च परिजानेय्य, साहसा विरतो चरे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पुराणं नाभिनन्देय्य, नवे खन्तिं न कुब्बये।", | |
"हीयमाने न सोचेय्य, आकासं न सितो सिया’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘गेधं", | |
"आरम्मणं पकम्पनं, कामपङ्को दुरच्चयो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सच्चा अवोक्कमं मुनि, थले तिट्ठति ब्राह्मणो।", | |
"सब्बं सो पटिनिस्सज्ज, स वे सन्तोति वुच्चती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘स वे विद्वा स वेदगू, ञत्वा धम्मं अनिस्सितो।", | |
"सम्मा सो लोके इरियानो, न पिहेतीध कस्सची’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘योध कामे अच्चतरि, सङ्गं लोके दुरच्चयं।", | |
"न सो सोचति नाज्झेति, छिन्नसोतो अबन्धनो’’ति॥", | |
"", | |
"", | |
"‘‘यं पुब्बे तं विसोसेहि, पच्छा ते माहु किञ्चनं।", | |
"मज्झे चे नो गहेस्ससि, उपसन्तो चरिस्ससी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘जीनो", | |
"सब्बेसु", | |
"‘‘पुब्बेव मच्चं विजहन्ति भोगा, मच्चो धने पुब्बतरं जहासि।", | |
"असस्सता", | |
"‘‘उदेति आपूरति वेति चन्दो, अन्धं तपेत्वान", | |
"विदिता मया सत्तुक लोकधम्मा, तस्मा न सोचामहं सोककाले’’ति॥", | |
"‘‘चिरस्सं", | |
"अनन्दिं अनीघं भिक्खुं, तिण्णं लोके विसत्तिक’’न्ति॥", | |
"‘‘सब्बसो", | |
"असता च न सोचति, स वे लोके न जीयती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सुञ्ञतो", | |
"अत्तानुदिट्ठिं ऊहच्च", | |
"एवं लोकं अवेक्खन्तं, मच्चुराजा न पस्सती’’ति॥", | |
"‘‘सुद्धधम्मसमुप्पादं, सुद्धसङ्खारसन्ततिं।", | |
"पस्सन्तस्स यथाभूतं, न भयं होति गामणि॥", | |
"‘‘तिणकट्ठसमं लोकं, यदा पञ्ञाय पस्सति।", | |
"नाञ्ञं पत्थयते किञ्चि, अञ्ञत्र अप्पटिसन्धिया’’ति", | |
"‘‘कं नु सत्तोति पच्चेसि, मार दिट्ठिगतं नु ते।", | |
"सुद्धसङ्खारपुञ्जोयं, नयिध सत्तुपलब्भति॥", | |
"‘‘यथा हि", | |
"एवं खन्धेसु सन्तेसु, होति सत्तोति सम्मुति", | |
"‘‘दुक्खमेव हि सम्भोति, दुक्खं तिट्ठति वेति च।", | |
"नाञ्ञत्र दुक्खा सम्भोति, नाञ्ञं दुक्खा निरुज्झती’’ति॥", | |
"‘‘यस्स", | |
"ममत्तं सो असंविन्दं, नत्थि मेति न सोचती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अनिट्ठुरी अननुगिद्धो, अनेजो सब्बधी समो।", | |
"तमानिसंसं पब्रूमि, पुच्छितो अविकम्पिन’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘अनेजस्स विजानतो, नत्थि काचि निसङ्खति।", | |
"विरतो सो वियारब्भा, खेमं पस्सति सब्बधी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘न समेसु न ओमेसु, न उस्सेसु वदते मुनि।", | |
"सन्तो सो वीतमच्छरो, नादेति न निरस्सति’’॥ [इति भगवा]", | |
"", | |
"‘‘न मे दिट्ठो इतो पुब्बे, [इच्चायस्मा सारिपुत्तो]", | |
"न सुतो उद कस्सचि।", | |
"एवं वग्गुवदो सत्था, तुसिता गणिमागतो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पतिरूपको मत्तिकाकुण्डलोव, लोहड्ढमासोव", | |
"चरन्ति लोके परिवारछन्ना, अन्तो असुद्धा बहि सोभमाना’’ति", | |
"‘‘दूरे", | |
"असन्तेत्थ न दिस्सन्ति, रत्तिं खित्ता", | |
"‘‘सेले यथा पब्बतमुद्धनिट्ठितो, यथापि पस्से जनतं समन्ततो।", | |
"तथूपमं धम्ममयं सुमेध, पासादमारुय्ह", | |
"सोकावतिण्णं जनतमपेतसोको, अवेक्खस्सु जातिजराभिभूत’’न्ति॥", | |
"‘‘न तस्स अदिट्ठमिधत्थि किञ्चि, अथो अविञ्ञातमजानितब्बं।", | |
"सब्बं अभिञ्ञासि यदत्थि नेय्यं, तथागतो तेन समन्तचक्खू’’ति॥", | |
"‘‘तण्हादुतियो", | |
"इत्थभावञ्ञथाभावं", | |
"‘‘एतमादीनवं ञत्वा, तण्हं दुक्खस्स सम्भवं।", | |
"वीततण्हो अनादानो, सतो भिक्खु परिब्बजे’’ति॥", | |
"‘‘एकायनं जातिखयन्तदस्सी, मग्गं पजानाति हितानुकम्पी।", | |
"एतेन मग्गेन तरिंसु", | |
"‘‘सदेवकस्स लोकस्स, यथा दिस्सति चक्खुमा।", | |
"सब्बं तमं विनोदेत्वा, एकोव रतिमज्झगा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘तस्सायं", | |
"जातिमरणसंसारो, नत्थि तस्स पुनब्भवो’’ति॥", | |
"‘‘तं", | |
"बहूनमिध बद्धानं, अत्थि पञ्हेन आगम’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘भिक्खुनो विजिगुच्छतो, भजतो रित्तमासनं।", | |
"रुक्खमूलं सुसानं वा, पब्बतानं गुहासु वा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘उच्चावचेसु सयनेसु, किवन्तो तत्थ भेरवा।", | |
"ये हि भिक्खु न वेधेय्य, निग्घोसे सयनासने’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अनत्थजननो लोभो, लोभो चित्तप्पकोपनो।", | |
"भयमन्तरतो जातं, तं जनो नावबुज्झति॥", | |
"‘‘लुद्धो अत्थं न जानाति, लुद्धो धम्मं न पस्सति।", | |
"अन्धन्तमं", | |
"‘‘अनत्थजननो दोसो, दोसो चित्तप्पकोपनो।", | |
"भयमन्तरतो जातं, तं जनो नावबुज्झति॥", | |
"‘‘कुद्धो अत्थं न जानाति, कुद्धो धम्मं न पस्सति।", | |
"अन्धन्तमं तदा होति, यं दोसो सहते नरं॥", | |
"‘‘अनत्थजननो मोहो, मोहो चित्तप्पकोपनो।", | |
"भयमन्तरतो जातं, तं जनो नावबुज्झति॥", | |
"‘‘मूळ्हो अत्थं न जानाति, मूळ्हो धम्मं न पस्सति।", | |
"अन्धन्तमं तदा होति, यं मोहो सहते नर’’न्ति॥", | |
"‘‘लोभो दोसो च मोहो च, पुरिसं पापचेतसं।", | |
"हिंसन्ति अत्तसम्भूता, तचसारंव सम्फल’’न्ति॥", | |
"‘‘रागो च दोसो च इतोनिदाना, अरती रती लोमहंसो इतोजा।", | |
"इतो समुट्ठाय मनोवितक्का, कुमारका धङ्कमिवोस्सजन्ती’’ति॥", | |
"‘‘समतित्तिकं अनवसेसं, तेलपत्तं यथा परिहरेय्य।", | |
"एवं सचित्तमनुरक्खे, पत्थयानो", | |
"‘‘कति", | |
"ये भिक्खु अभिसम्भवे, पन्तम्हि सयनासने’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘नासिस्सं न पिविस्सामि, विहारतो न निक्खमे", | |
"नपि पस्सं निपातेस्सं, तण्हासल्ले अनूहते’’ति॥", | |
"‘‘क्यास्स ब्यप्पथयो अस्सु, क्यास्सस्सु इध गोचरा।", | |
"कानि सीलब्बतानास्सु, पहितत्तस्स भिक्खुनो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘कं सो सिक्खं समादाय, एकोदि निपको सतो।", | |
"कम्मारो रजतस्सेव, निद्धमे मलमत्तनो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘विजिगुच्छमानस्स", | |
"रित्तासनं सयनं सेवतो वे।", | |
"सम्बोधिकामस्स यथानुधम्मं, तं ते पवक्खामि यथा पजान’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘पञ्चन्नं धीरो भयानं न भाये, भिक्खु सतो सपरियन्तचारी।", | |
"डंसाधिपातानं सरीसपानं, मनुस्सफस्सानं चतुप्पदान’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘परधम्मिकानम्पि", | |
"अथापरानि अभिसम्भवेय्य, परिस्सयानि कुसलानुएसी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘आतङ्कफस्सेन", | |
"सो तेहि फुट्ठो बहुधा अनोको, वीरियपरक्कमं दळ्हं करेय्या’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘थेय्यं न कारे न मुसा भणेय्य, मेत्ताय फस्से तसथावरानि।", | |
"यदाविलत्तं मनसो विजञ्ञा, कण्हस्स पक्खोति विनोदयेय्या’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘कोधातिमानस्स वसं न गच्छे, मूलम्पि तेसं पलिखञ्ञ तिट्ठे।", | |
"अथप्पियं वा पन अप्पियं वा, अद्धा भवन्तो अभिसम्भवेय्या’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पञ्ञं", | |
"अरतिं सहेथ सयनम्हि पन्ते, चतुरो सहेथ परिदेवधम्मे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘मगधं", | |
"मिगा विय असङ्घचारिनो", | |
"‘‘साधु", | |
"अत्थपुच्छनं पदक्खिणं कम्मं, एतं सामञ्ञं अकिञ्चनस्सा’’ति॥", | |
"‘‘किंसू असिस्सं कुव वा असिस्सं, दुक्खं वत सेत्थ कुवज्ज सेस्सं।", | |
"एते", | |
"", | |
"‘‘अन्नञ्च लद्धा वसनञ्च काले, मत्तं स जञ्ञा इध तोसनत्थं।", | |
"सो तेसु गुत्तो यतचारि गामे, रुसितोपि वाचं फरुसं न वज्जा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘ओक्खित्तचक्खु न च पादलोलो, झानानुयुत्तो बहुजागरस्स।", | |
"उपेक्खमारब्भ समाहितत्तो, तक्कासयं कुक्कुच्चञ्चुपच्छिन्दे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘निधीनंव", | |
"निग्गय्हवादिं मेधाविं, तादिसं पण्डितं भजे॥", | |
"‘‘तादिसं भजमानस्स, सेय्यो होति न पापियो।", | |
"ओवदेय्यानुसासेय्य, असब्भा च निवारये।", | |
"सतञ्हि सो पियो होति, असतं होति अप्पियो’’ति॥", | |
"‘‘यो वे", | |
"एवं सो निहतो सेति, कोकिलायेव", | |
"‘‘चुदितो वचीभि सतिमाभिनन्दे, सब्रह्मचारीसु खिलं पभिन्दे।", | |
"वाचं पमुञ्चे कुसलं नातिवेलं, जनवादधम्माय न चेतयेय्या’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘रागो", | |
"एतं रजं विप्पजहित्वा", | |
"‘‘दोसो रजो न च पन रेणु वुच्चति…पे॰…।", | |
"विहरन्ति ते विगतरजस्स सासने॥", | |
"‘‘मोहो रजो न च पन रेणु वुच्चति…पे॰…।", | |
"विहरन्ति ते विगतरजस्स सासने’’॥", | |
"‘‘अथापरं पञ्च रजानि लोके, येसं सतीमा विनयाय सिक्खे।", | |
"रूपेसु सद्देसु अथो रसेसु, गन्धेसु फस्सेसु सहेथ राग’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘काले पग्गण्हति चित्तं, निग्गण्हति पुनापरे", | |
"सम्पहंसति कालेन, काले चित्तं समादहे॥", | |
"‘‘अज्झुपेक्खति कालेन, सो योगी कालकोविदो।", | |
"किम्हि कालम्हि पग्गाहो, किम्हि काले विनिग्गहो॥", | |
"‘‘किम्हि", | |
"उपेक्खाकालं चित्तस्स, कथं दस्सेति योगिनो॥", | |
"‘‘लीने चित्तम्हि पग्गाहो, उद्धतस्मिं विनिग्गहो।", | |
"निरस्सादगतं चित्तं, सम्पहंसेय्य तावदे॥", | |
"‘‘सम्पहट्ठं यदा चित्तं, अलीनं भवतिनुद्धतं।", | |
"समथस्स च सो", | |
"‘‘एतेन मेवुपायेन, यदा होति समाहितं।", | |
"समाहितचित्तमञ्ञाय, अज्झुपेक्खेय्य तावदे॥", | |
"‘‘एवं", | |
"कालेन कालं चित्तस्स, निमित्तमुपलक्खये’’ति॥", | |
"‘‘एतेसु धम्मेसु विनेय्य छन्दं, भिक्खु सतिमा सुविमुत्तचित्तो।", | |
"कालेन सो सम्मा धम्मं परिवीमंसमानो, एकोदिभूतो विहने तमं सो’’॥ [इति भगवाति]" | |
] | |
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