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Sleeping
Sleeping
{ | |
"title": "सासनपट्ठानं", | |
"book_name": "सासनपट्ठानं", | |
"chapter": "नयसमुट्ठानं", | |
"gathas": [ | |
"यं", | |
"तस्सेत सासनवरं, विदूहि ञेय्यं नरवरस्स॥", | |
"द्वादस पदानि सुत्तं, तं सब्बं ब्यञ्जनञ्च अत्थो च।", | |
"तं विञ्ञेय्यं उभयं, को अत्थो ब्यञ्जनं कतमं॥", | |
"सोळसहारा नेत्ति", | |
"अट्ठारसमूलपदा, महकच्चानेन", | |
"हारा", | |
"उभयं परिग्गहीतं, वुच्चति सुत्तं यथासुत्तं॥", | |
"या चेव देसना यञ्च, देसितं उभयमेव विञ्ञेय्यं।", | |
"तत्रायमानुपुब्बी, नवविधसुत्तन्तपरियेट्ठीति॥", | |
"देसना", | |
"चतुब्यूहो च आवट्टो, विभत्ति परिवत्तनो॥", | |
"वेवचनो च पञ्ञत्ति, ओतरणो च सोधनो।", | |
"अधिट्ठानो परिक्खारो, समारोपनो सोळसो", | |
"एते सोळस हारा, पकित्तिता अत्थतो असंकिण्णा।", | |
"एतेसञ्चेव भवति, वित्थारतया नयविभत्तीति॥", | |
"पठमो नन्दियावट्टो, दुतियो च तिपुक्खलो।", | |
"सीहविक्कीळितो नाम, ततियो नयलञ्जको", | |
"दिसालोचनमाहंसु", | |
"पञ्चमो अङ्कुसो नाम, सब्बे पञ्च नया गताति॥", | |
"तण्हा", | |
"चतुरो च विपल्लासा, किलेसभूमी नव पदानि॥", | |
"समथो", | |
"चतुरो सतिपट्ठाना, इन्द्रियभूमी नव पदानि॥", | |
"नवहि च पदेहि कुसला, नवहि च युज्जन्ति अकुसलपक्खा।", | |
"एते खो मूलपदा, भवन्ति अट्ठारस पदानीति॥", | |
"अस्सादादीनवता", | |
"आणत्ती च भगवतो, योगीनं", | |
"यं पुच्छितञ्च विस्सज्जितञ्च, सुत्तस्स या च अनुगीति।", | |
"सुत्तस्स यो पविचयो, हारो", | |
"सब्बेसं हारानं, या भूमी यो च गोचरो तेसं।", | |
"युत्तायुत्तपरिक्खा, हारो", | |
"धम्मं देसेति जिनो, तस्स च धम्मस्स यं पदट्ठानं।", | |
"इति याव सब्बधम्मा, एसो हारो", | |
"वुत्तम्हि एकधम्मे, ये धम्मा एकलक्खणा केचि।", | |
"वुत्ता भवन्ति सब्बे, सो हारो", | |
"नेरुत्तमधिप्पायो, ब्यञ्जनमथ देसनानिदानञ्च।", | |
"पुब्बापरानुसन्धी, एसो हारो", | |
"एकम्हि पदट्ठाने, परियेसति सेसकं पदट्ठानं।", | |
"आवट्टति पटिपक्खे,", | |
"धम्मञ्च", | |
"साधारणे असाधारणे च नेय्यो", | |
"कुसलाकुसले धम्मे, निद्दिट्ठे भाविते पहीने च।", | |
"परिवत्तति पटिपक्खे, हारो", | |
"वेवचनानि", | |
"यो जानाति सुत्तविदू,", | |
"एकं", | |
"सो आकारो ञेय्यो,", | |
"यो च पटिच्चुप्पादो, इन्द्रियखन्धा च धातु आयतना।", | |
"एतेहि ओतरति यो,", | |
"विस्सज्जितम्हि पञ्हे, गाथायं पुच्छितायमारब्भ।", | |
"सुद्धासुद्धपरिक्खा, हारो सो", | |
"एकत्तताय धम्मा, येपि च वेमत्तताय निद्दिट्ठा।", | |
"तेन विकप्पयितब्बा, एसो हारो", | |
"ये धम्मा यं धम्मं, जनयन्तिप्पच्चया परम्परतो।", | |
"हेतुमवकड्ढयित्वा, एसो हारो", | |
"ये धम्मा यं मूला, ये चेकत्था पकासिता मुनिना।", | |
"ते समरोपयितब्बा, एस", | |
"तण्हञ्च अविज्जम्पि च, समथेन विपस्सना यो नेति।", | |
"सच्चेहि योजयित्वा, अयं नयो", | |
"यो अकुसले समूलेहि, नेति कुसले च कुसलमूलेहि।", | |
"भूतं तथं अवितथं,", | |
"यो नेति विपल्लासेहि, किलेसे इन्द्रियेहि सद्धम्मे।", | |
"एतं नयं नयविदू,", | |
"वेय्याकरणेसु", | |
"मनसा वोलोकयते, तं खु", | |
"ओलोकेत्वा", | |
"सब्बे कुसलाकुसले, अयं नयो", | |
"सोळस हारा पठमं, दिसलोचनतो", | |
"सङ्खिपिय अङ्कुसेन हि, नयेहि तीहि निद्दिसे सुत्तं॥", | |
"अक्खरं पदं ब्यञ्जनं, निरुत्ति तथेव निद्देसो।", | |
"आकारछट्ठवचनं, एत्ताव ब्यञ्जनं सब्बं॥", | |
"सङ्कासना", | |
"एतेहि छहि पदेहि, अत्थो कम्मञ्च निद्दिट्ठं॥", | |
"तीणि च नया अनूना, अत्थस्स च छप्पदानि गणितानि।", | |
"नवहि पदेहि भगवतो, वचनस्सत्थो समायुत्तो॥", | |
"अत्थस्स नवप्पदानि, ब्यञ्जनपरियेट्ठिया चतुब्बीस।", | |
"उभयं सङ्कलयित्वा", | |
"‘‘कामं", | |
"अद्धा पीतिमनो होति, लद्धा मच्चो यदिच्छती’’ति॥", | |
"‘‘तस्स", | |
"ते कामा परिहायन्ति, सल्लविद्धोव रुप्पती’’ति॥", | |
"‘‘यो कामे परिवज्जेति, सप्पस्सेव पदा सिरो।", | |
"सोमं विसत्तिकं लोके, सतो समतिवत्तती’’ति॥", | |
"‘‘खेत्तं वत्थुं हिरञ्ञं वा, गवास्सं दासपोरिसं।", | |
"थियो बन्धू पुथू कामे, यो नरो अनुगिज्झती’’ति॥", | |
"‘‘अबला नं बलीयन्ति, मद्दन्ते नं परिस्सया।", | |
"ततो नं दुक्खमन्वेति, नावं भिन्नमिवोदक’’न्ति॥", | |
"‘‘तस्मा जन्तु सदा सतो, कामानि परिवज्जये।", | |
"ते पहाय तरे ओघं, नावं सित्वाव पारगू’’ति॥", | |
"‘‘धम्मो हवे रक्खति धम्मचारिं, छत्तं महन्तं यथ वस्सकाले।", | |
"एसानिसंसो धम्मे सुचिण्णे, न दुग्गतिं गच्छति धम्मचारी’’ति॥", | |
"‘‘सब्बे सङ्खारा अनिच्चा’’ति…पे॰…", | |
"‘‘सब्बे सङ्खारा", | |
"‘‘सब्बे धम्मा अनत्ता’’ति, यदा पञ्ञाय पस्सति।", | |
"अथ निब्बिन्दति दुक्खे, एस मग्गो विसुद्धिया’’ति॥", | |
"‘‘चक्खुमा", | |
"पण्डितो जीवलोकस्मिं, पापानि परिवज्जये’’ति॥", | |
"‘‘‘सुञ्ञतो लोकं अवेक्खस्सु,", | |
"मोघराजा’ति आणत्ति, ‘सदा सतो’ति उपायो।", | |
"‘अत्तानुदिट्ठिं ऊहच्च", | |
"‘‘अस्सादादीनवता, निस्सरणम्पि च फलं उपायो च।", | |
"आणत्ती च भगवतो, योगीनं देसनाहारो’’ति॥", | |
"‘‘केनस्सु", | |
"केनस्सु नप्पकासति।", | |
"किस्साभिलेपनं ब्रूसि, किं सु तस्स महब्भय’’न्ति॥", | |
"‘‘अविज्जाय निवुतो लोको, [अजिताति भगवा,]", | |
"विविच्छा", | |
"जप्पाभिलेपनं ब्रूमि, दुक्खमस्स महब्भय’’न्ति॥", | |
"‘‘दूरे", | |
"असन्तेत्थ न दिस्सन्ति, रत्तिं खित्ता", | |
"ते गुणेहि पकासन्ति, कित्तिया च यसेन चा’’ति॥", | |
"‘‘रत्तो", | |
"अन्धन्तमं", | |
"सवन्ति सब्बधि सोता, [इच्चायस्मा अजितो,]", | |
"सोतानं किं निवारणं।", | |
"सोतानं संवरं ब्रूहि, केन सोता पिधीयरे", | |
"‘‘यानि सोतानि लोकस्मिं, [अजिताति भगवा,]", | |
"सति तेसं निवारणं।", | |
"सोतानं संवरं ब्रूमि, पञ्ञायेते पिधीयरे’’ति॥", | |
"‘‘पञ्ञा चेव सति च, [इच्चायस्मा अजितो,]", | |
"नामरूपञ्च मारिस।", | |
"एतं मे पुट्ठो पब्रूहि, कत्थेतं उपरुज्झती’’ति॥", | |
"‘‘यमेतं", | |
"यत्थ नामञ्च रूपञ्च, असेसं उपरुज्झति।", | |
"विञ्ञाणस्स निरोधेन, एत्थेतं उपरुज्झती’’ति॥", | |
"‘‘पञ्ञा", | |
"एतं मे पुट्ठो पब्रूहि, कत्थेतं उपरुज्झती’’ति॥", | |
"यथा पुरे तथा पच्छा, यथा पच्छा तथा पुरे।", | |
"यथा दिवा तथा रत्तिं", | |
"‘‘यमेतं", | |
"यत्थ नामञ्च रूपञ्च, असेसं उपरुज्झति।", | |
"विञ्ञाणस्स निरोधेन, एत्थेतं उपरुज्झती’’ति॥", | |
"‘‘ये च", | |
"ये च सेक्खा पुथू इध।", | |
"तेसं मे निपको इरियं, पुट्ठो पब्रूहि मारिसा’’ति॥", | |
"‘‘कामेसु नाभिगिज्झेय्य, [अजिताति भगवा]", | |
"मनसानाविलो सिया।", | |
"कुसलो सब्बधम्मानं, सतो भिक्खु परिब्बजे’’ति॥", | |
"‘‘कामेसु नाभिगिज्झेय्य, [अजिताति भगवा]", | |
"मनसानाविलो सिया।", | |
"कुसलो सब्बधम्मानं, सतो भिक्खु परिब्बजे’’ति॥", | |
"‘‘केनस्सुब्भाहतो", | |
"केन सल्लेन ओतिण्णो, किस्स धूपायितो सदा’’ति॥", | |
"‘‘मच्चुनाब्भाहतो", | |
"तण्हासल्लेन ओतिण्णो, इच्छाधूपायितो सदा’’ति॥", | |
"‘‘आसा", | |
"अञ्ञाणमूलप्पभवा पजप्पिता, सब्बा मया ब्यन्तिकता समूलका’’ति", | |
"‘‘येसञ्च", | |
"अकिच्चं ते न सेवन्ति, किच्चे सातच्चकारिनो’’॥", | |
"‘‘धम्मो हवे रक्खति धम्मचारिं, छत्तं महन्तं यथ वस्सकाले", | |
"एसानिसंसो धम्मे सुचिण्णे, न दुग्गतिं गच्छति धम्मचारी’’ति॥", | |
"‘‘चोरो यथा सन्धिमुखे गहीतो, सकम्मुना हञ्ञति", | |
"एवं अयं पेच्च पजा परत्थ, सकम्मुना हञ्ञति", | |
"‘‘सुखकामानि", | |
"अत्तनो सुखमेसानो, पेच्च सो न लभते सुख’’न्ति॥", | |
"‘‘मिद्धी", | |
"महावराहोव निवापपुट्ठो, पुनप्पुनं गब्भमुपेति मन्दो’’ति॥", | |
"‘‘अप्पमादो अमतपदं", | |
"अप्पमत्ता न मीयन्ति, ये पमत्ता यथा मता’’ति॥", | |
"‘‘नन्दति पुत्तेहि पुत्तिमा, गोमा", | |
"उपधी हि नरस्स नन्दना, न हि सो नन्दति यो निरूपधी’’ति॥", | |
"‘‘सोचति पुत्तेहि पुत्तिमा, गोपिको", | |
"उपधी हि नरस्स सोचना, न हि सो सोचति यो निरूपधी’’ति॥", | |
"‘‘सचेपि", | |
"नेव सम्माविमुत्तानं, बुद्धानं अत्थि इञ्जितं॥", | |
"नभं फलेय्यप्पथवी चलेय्य, सब्बेव पाणा उद सन्तसेय्युं।", | |
"सल्लम्पि चे उरसि कम्पयेय्युं", | |
"‘‘न तं दळ्हं बन्धनमाहु धीरा, यदायसं दारुजपब्बजञ्च", | |
"सारत्तरत्ता मणिकुण्डलेसु, पुत्तेसु दारेसु च या अपेक्खा’’ति॥", | |
"‘‘एतं दळ्हं बन्धनमाहु धीरा, ओहारिनं सिथिलं दुप्पमुञ्चं।", | |
"एतम्पि छेत्वान परिब्बजन्ति, अनपेक्खिनो कामसुखं पहाया’’ति॥", | |
"‘‘आतुरं असुचिं पूतिं, दुग्गन्धं देहनिस्सितं।", | |
"पग्घरन्तं दिवा रत्तिं, बालानं अभिनन्दित’’न्ति॥", | |
"‘‘उच्छिन्द", | |
"सन्तिमग्गमेव ब्रूहय, निब्बानं सुगतेन देसित’’न्ति॥", | |
"‘‘कामन्धा जालसञ्छन्ना, तण्हाछदनछादिता।", | |
"पमत्तबन्धना", | |
"जरामरणमन्वेन्ति, वच्छो खीरपकोव मातर’’न्ति॥", | |
"‘‘रत्तो अत्थं न जानाति, रत्तो धम्मं न पस्सति।", | |
"अन्धन्तमं तदा होति, यं रागो सहते नर’’न्ति॥", | |
"‘‘यस्स पपञ्चा ठिती च नत्थि, सन्दानं पलिघञ्च", | |
"तं नित्तण्हं मुनिं चरन्तं, न विजानाति सदेवकोपि लोको’’ति॥", | |
"‘‘आरम्भथ", | |
"धुनाथ मच्चुनो सेनं, नळागारंव कुञ्जरो’’ति॥", | |
"यथापि", | |
"एवम्पि तण्हानुसये अनूहते, निब्बत्तती दुक्खमिदं पुनप्पुनं॥", | |
"‘‘सब्बपापस्स अकरणं, कुसलस्स उपसम्पदा।", | |
"सचित्तपरियोदापनं", | |
"‘‘धम्मो हवे रक्खति धम्मचारिं, छत्तं महन्तं यथ वस्सकाले।", | |
"एसानिसंसो", | |
"‘‘तस्मा रक्खितचित्तस्स", | |
"सम्मादिट्ठिपुरेक्खारो, ञत्वान उदयब्बयं।", | |
"थिनमिद्धाभिभू भिक्खु, सब्बा दुग्गतियो जहे’’ति॥", | |
"‘‘आसा च पिहा अभिनन्दना च, अनेकधातूसु सरा पतिट्ठिता।", | |
"अञ्ञाणमूलप्पभवा पजप्पिता, सब्बा मया ब्यन्तिकता समूलिका’’ति॥", | |
"‘‘असङ्खतं अनतं", | |
"अजज्जरं धुवं अपलोकितं", | |
"‘‘अमतं पणीतञ्च सिवञ्च खेमं, तण्हाक्खयो अच्छरियञ्च अब्भुतं।", | |
"अनीतिकं अनीतिकधम्मं", | |
"‘‘अजातं अभूतं अनुपद्दवञ्च, अकतं असोकञ्च अथो विसोकं।", | |
"अनूपसग्गंनुपसग्गधम्मं, निब्बानमेतं सुगतेन देसितं॥", | |
"‘‘गम्भीरञ्चेव दुप्पस्सं, उत्तरञ्च अनुत्तरं।", | |
"असमं अप्पटिसमं, जेट्ठं सेट्ठन्ति वुच्चति॥", | |
"‘‘लेणञ्च ताणं अरणं अनङ्गणं, अकाच मेतं विमलन्ति वुच्चति।", | |
"दीपो सुखं अप्पमाणं पतिट्ठा, अकिञ्चनं अप्पपञ्चन्ति वुत्त’’न्ति॥", | |
"‘‘तुलमतुलञ्च", | |
"अज्झत्तरतो समाहितो, अभिन्दि", | |
"यो दुक्खमद्दक्खि यतोनिदानं, कामेसु सो जन्तु कथं नमेय्य।", | |
"कामा हि लोके सङ्गोति ञत्वा, तेसं सतीमा विनयाय सिक्खेति॥", | |
"‘‘मोहसम्बन्धनो", | |
"उपधिबन्धनो", | |
"अस्सिरी विय", | |
"‘‘उद्धं अधो सब्बधि विप्पमुत्तो, अयं अहस्मीति", | |
"एवं विमुत्तो उदतारि ओघं, अतिण्णपुब्बं अपुनब्भवाया’’ति॥", | |
"‘‘ये केचि सोका परिदेविता वा, दुक्खा", | |
"पियं पटिच्चप्पभवन्ति एते, पिये असन्ते न भवन्ति एते॥", | |
"तस्मा", | |
"तस्मा असोकं विरजं पत्थयानो, पियं न कयिराथ कुहिञ्चि लोके’’ति॥", | |
"तस्मा हि ते सुखिनो वीतसोका, येसं पियं नत्थि कुहिञ्चि लोके।", | |
"तस्मा असोकं विरजं पत्थयानो, पियं न कयिराथ कुहिञ्चि लोकेति॥", | |
"कामं", | |
"अद्धा पीतिमनो होति, लद्धा मच्चो यदिच्छति॥", | |
"तस्स चे कामयानस्स, छन्दजातस्स जन्तुनो।", | |
"ते कामा परिहायन्ति, सल्लविद्धोव रुप्पति॥", | |
"यो कामे परिवज्जेति, सप्पस्सेव", | |
"सोमं विसत्तिकं लोके, सतो समतिवत्ततीति॥", | |
"तदेव नामरूपं पञ्चक्खन्धो। अयं खन्धेहि ओतरणा।", | |
"तदेव नामरूपं अट्ठारस धातुयो। अयं धातूहि ओतरणा।", | |
"‘‘यो कामे परिवज्जेति, सप्पस्सेव पदा सिरो।", | |
"सोमं विसत्तिकं लोके, सतो समतिवत्तती’’ति॥", | |
"‘‘केनस्सु निवुतो लोको, केनस्सु नप्पकासति।", | |
"किस्साभिलेपनं ब्रूसि, किंसु तस्स महब्भय’’न्ति॥", | |
"‘‘अविज्जाय", | |
"विविच्छा पमादा नप्पकासति।", | |
"जप्पाभिलेपनं ब्रूमि, दुक्खमस्स महब्भय’’न्ति॥", | |
"‘‘सवन्ति", | |
"सोतानं किं निवारणं।", | |
"सोतानं संवरं ब्रूहि, केन सोता पिधीयरे’’ति॥", | |
"‘‘यानि सोतानि लोकस्मिं, [अजिताति भगवा]", | |
"सति तेसं निवारणं।", | |
"सोतानं संवरं ब्रूमि, पञ्ञायेते पिधीयरे’’ति॥", | |
"‘‘पञ्ञा चेव सति च, [इच्चायस्मा अजितो]", | |
"नामरूपञ्च", | |
"एतं मे पुट्ठो पब्रूहि, कत्थेतं उपरुज्झती’’ति॥", | |
"‘‘यमेतं पञ्हं अपुच्छि, अजित तं वदामि ते।", | |
"यत्थ नामञ्च रूपञ्च, असेसं उपरुज्झति।", | |
"विञ्ञाणस्स निरोधेन, एत्थेतं उपरुज्झती’’ति॥", | |
"‘‘सब्बपापस्स अकरणं, कुसलस्स उपसम्पदा।", | |
"सचित्तपरियोदपनं, एतं बुद्धान सासन’’न्ति॥", | |
"‘‘ये धम्मा यं मूला, ये चेकत्था पकासिता मुनिना।", | |
"ते समारोपयितब्बा, एस समारोपनो हारो’’ति॥", | |
"‘‘सोळस", | |
"सङ्खिपिय अङ्कुसेन हि, नयेहि तीहि निद्दिसे सुत्त’’न्ति॥", | |
"‘‘अरक्खितेन चित्तेन", | |
"थिनमिद्धाभिभूतेन, वसं मारस्स गच्छती’’ति॥", | |
"सब्बे", | |
"यथाकम्मं गमिस्सन्ति, पुञ्ञपापफलूपगा।", | |
"निरयं पापकम्मन्ता, पुञ्ञकम्मा च सुग्गतिं।", | |
"अपरे च मग्गं भावेत्वा, परिनिब्बन्तिनासवाति", | |
"तत्थ", | |
"‘‘तस्मा रक्खितचित्तस्स, सम्मासङ्कप्पगोचरो।", | |
"सम्मादिट्ठिपुरेक्खारो, ञत्वान उदयब्बयं।", | |
"थिनमिद्धाभिभू भिक्खु, सब्बा दुग्गतियो जहे’’ति॥", | |
"‘‘तस्मा", | |
"सम्मादिट्ठिपुरेक्खारो, ञत्वान उदयब्बयं।", | |
"थिनमिद्धाभिभू भिक्खु, सब्बा दुग्गतियो जहे’’ति॥", | |
"‘‘सोळस हारा पठमं, दिसलोचनतो दिसा विलोकेत्वा।", | |
"सङ्खिपिय अङ्कुसेन हि, नयेहि तीहि निद्दिसे सुत्त’’न्ति॥", | |
"‘‘कामन्धा जालसञ्छन्ना, तण्हाछदनछादिता।", | |
"पमत्तबन्धना", | |
"जरामरणमन्वेन्ति, वच्छो खीरपकोव", | |
"‘‘छन्दा दोसा भया मोहा, यो धम्मं अतिवत्तति।", | |
"निहीयति तस्स यसो, काळपक्खेव चन्दिमा’’ति॥", | |
"‘‘मनोपुब्बङ्गमा धम्मा, मनोसेट्ठा मनोमया।", | |
"मनसा चे पदुट्ठेन, भासति वा करोति वा।", | |
"ततो नं दुक्खमन्वेति, चक्कंव वहतो पद’’न्ति॥", | |
"‘‘मिद्धी", | |
"महावराहोव निवापपुट्ठो, पुनप्पुनं गब्भमुपेति मन्दो’’ति॥", | |
"‘‘अयसाव मलं समुट्ठितं, ततुट्ठाय", | |
"एवं अतिधोनचारिनं, सानि", | |
"‘‘चोरो", | |
"एवं अयं पेच्च पजा परत्थ, सकम्मुना हञ्ञति बज्झते चा’’ति॥", | |
"‘‘सुखकामानि भूतानि, यो दण्डेन विहिंसति।", | |
"अत्तनो सुखमेसानो, पेच्च सो न लभते", | |
"‘‘गुन्नं", | |
"सब्बा ता जिम्हं गच्छन्ति, नेत्ते जिम्हं गते", | |
"‘‘एवमेव मनुस्सेसु, यो होति सेट्ठसम्मतो।", | |
"सो चे अधम्मं चरति, पगेव इतरा पजा।", | |
"सब्बं रट्ठं दुक्खं सेति, राजा चे होति अधम्मिको’’ति॥", | |
"‘‘सुकिच्छरूपावतिमे मनुस्सा, करोन्ति पापं उपधीसु रत्ता।", | |
"गच्छन्ति ते बहुजनसन्निवासं, निरयं अवीचिं कटुकं भयानक’’न्ति॥", | |
"‘‘फलं", | |
"सक्कारो कापुरिसं हन्ति, गब्भो अस्सतरिं यथा’’ति॥", | |
"‘‘कोधमक्खगरु भिक्खु, लाभसक्कारगारवो", | |
"सुखेत्ते पूतिबीजंव, सद्धम्मे न विरूहती’’ति॥", | |
"‘‘पदुट्ठचित्तं ञत्वान, एकच्चं इध पुग्गलं।", | |
"एतमत्थञ्च ब्याकासि, बुद्धो", | |
"इमम्हि", | |
"निरयं उपपज्जेय्य, चित्तं हिस्स पदूसितं।", | |
"चेतोपदोसहेतु हि, सत्ता गच्छन्ति दुग्गतिं॥", | |
"यथाभतं निक्खिपेय्य, एवमेव तथाविधो।", | |
"कायस्स भेदा दुप्पञ्ञो, निरयं सोपपज्जती’’ति॥", | |
"‘‘सचे भायथ दुक्खस्स, सचे वो दुक्खमप्पियं।", | |
"माकत्थ पापकं कम्मं, आवि", | |
"‘‘सचे", | |
"न वो दुक्खा पमुत्यत्थि, उपेच्चपि पलायत’’न्ति॥", | |
"‘‘अधम्मेन धनं लद्धा, मुसावादेन चूभयं।", | |
"ममेति बाला मञ्ञन्ति, तं कथं नु भविस्सति॥", | |
"‘‘अन्तराया सु भविस्सन्ति, सम्भतस्स विनस्सति।", | |
"मता सग्गं न गच्छन्ति, ननु एत्तावता हता’’ति॥", | |
"‘‘कथं खणति अत्तानं, कथं मित्तेहि जीरति।", | |
"कथं विवट्टते धम्मा, कथं सग्गं न गच्छति॥", | |
"‘‘लोभा", | |
"लोभा विवट्टते धम्मा, लोभा सग्गं न गच्छती’’ति॥", | |
"‘‘चरन्ति बाला दुम्मेधा, अमित्तेनेव अत्तना।", | |
"करोन्ता पापकं कम्मं, यं होति कटुकप्फलं", | |
"‘‘न", | |
"यस्स अस्सुमुखो रोदं, विपाकं पटिसेवती’’ति॥", | |
"‘‘दुक्करं दुत्तितिक्खञ्च, अब्यत्तेन च", | |
"बहू हि तत्थ सम्बाधा, यत्थ बालो विसीदति॥", | |
"‘‘यो हि अत्थञ्च धम्मञ्च, भासमाने तथागते।", | |
"मनं पदोसये बालो, मोघं खो तस्स जीवितं॥", | |
"‘‘एतञ्चाहं अरहामि, दुक्खञ्च इतो च पापियतरं भन्ते।", | |
"यो अप्पमेय्येसु तथागतेसु, चित्तं पदोसेमि अवीतरागो’’ति॥", | |
"‘‘अप्पमेय्यं", | |
"अप्पमेय्यं पमायिनं", | |
"‘‘पुरिसस्स हि जातस्स, कुठारी", | |
"याय छिन्दति अत्तानं, बालो दुब्भासितं भणं॥", | |
"‘‘न", | |
"एवं विरद्धं पातेति, वाचा दुब्भासिता यथा’’ति॥", | |
"‘‘यो निन्दियं पसंसति, तं वा निन्दति यो पसंसियो।", | |
"विचिनाति मुखेन सो कलिं, कलिना तेन सुखं न विन्दति॥", | |
"‘‘अप्पमत्तो अयं कलि, यो अक्खेसु धनपराजयो।", | |
"सब्बस्सापि सहापि अत्तना, अयमेव महन्ततरो", | |
"यो सुगतेसु मनं पदोसये॥", | |
"‘‘सतं सहस्सानं निरब्बुदानं, छत्तिंसती पञ्च च अब्बुदानि।", | |
"यमरियगरही", | |
"‘‘यो लोभगुणे अनुयुत्तो, सो वचसा", | |
"अस्सद्धो कदरियो", | |
"‘‘मुखदुग्ग", | |
"पुरिसन्त कली अवजातपुत्त", | |
"‘‘रजमाकिरसी अहिताय, सन्ते गरहसि किब्बिसकारी।", | |
"बहूनि दुच्चरितानि चरित्वा, गच्छसि खो पपतं चिररत्त’’न्ति॥", | |
"‘‘मनोपुब्बङ्गमा", | |
"मनसा चे पसन्नेन, भासति वा करोति वा।", | |
"ततो नं सुखमन्वेति, छायाव अनपायिनी’’ति", | |
"‘‘सुखकामानि भूतानि, यो दण्डेन न हिंसति।", | |
"अत्तनो सुखमेसानो, पेच्च सो लभते सुख’’न्ति॥", | |
"‘‘गुन्नञ्चे", | |
"सब्बा ता उजुं गच्छन्ति, नेत्ते उजुं गते सति॥", | |
"‘‘एवमेव मनुस्सेसु, यो होति सेट्ठसम्मतो।", | |
"सो सचे", | |
"सब्बं रट्ठं सुखं सेति, राजा चे होति धम्मिको’’ति॥", | |
"‘‘एकपुप्फं", | |
"देवे चेव मनुस्से च, सेसेन परिनिब्बुतो’’ति॥", | |
"‘‘अस्सत्थे", | |
"एकं बुद्धगतं", | |
"‘‘अज्ज तिंसं ततो कप्पा, नाभिजानामि दुग्गतिं।", | |
"तिस्सो विज्जा सच्छिकता, तस्सा सञ्ञाय वासना’’ति॥", | |
"‘‘पिण्डाय", | |
"अनुकम्पको पुरेभत्तं, तण्हानिघातको मुनि॥", | |
"‘‘पुरिसस्स वटंसको हत्थे, सब्बपुप्फेहिलङ्कतो।", | |
"सो अद्दसासि सम्बुद्धं, भिक्खुसङ्घपुरक्खतं॥", | |
"‘‘पविसन्तं राजमग्गेन, देवमानुसपूजितं।", | |
"हट्ठो चित्तं पसादेत्वा, सम्बुद्धमुपसङ्कमि॥", | |
"‘‘सो तं वटंसकं सुरभिं, वण्णवन्तं मनोरमं।", | |
"सम्बुद्धस्सुपनामेसि, पसन्नो सेहि पाणिभि॥", | |
"‘‘ततो अग्गिसिखा वण्णा, बुद्धस्स लपनन्तरा।", | |
"सहस्सरंसि विज्जुरिव, ओक्का निक्खमि आनना॥", | |
"‘‘पदक्खिणं करित्वान, सीसे आदिच्चबन्धुनो।", | |
"तिक्खत्तुं परिवट्टेत्वा, मुद्धनन्तरधायथ॥", | |
"‘‘इदं दिस्वा अच्छरियं, अब्भुतं लोमहंसनं।", | |
"एकंसं चीवरं कत्वा, आनन्दो एतदब्रवि॥", | |
"‘‘‘को हेतु सितकम्मस्स, ब्याकरोहि महामुने।", | |
"धम्मालोको भविस्सति, कङ्खं वितर नो मुने॥", | |
"‘‘‘यस्स", | |
"कङ्खिं", | |
"‘‘‘यो सो आनन्द पुरिसो, मयि चित्तं पसादयि।", | |
"चतुरासीतिकप्पानि, दुग्गतिं न गमिस्सति॥", | |
"‘‘‘देवेसु देवसोभग्गं, दिब्बं रज्जं पसासिय।", | |
"मनुजेसु मनुजिन्दो, राजा रट्ठे भविस्सति॥", | |
"‘‘‘सो चरिमं पब्बजित्वा, सच्छिकत्वान", | |
"पच्चेकबुद्धो धुतरागो, वटंसको नाम भविस्सति॥", | |
"‘‘‘नत्थि चित्ते", | |
"तथागते वा सम्बुद्धे, अथ वा तस्स सावके॥", | |
"‘‘‘एवं", | |
"अचिन्तिये पसन्नानं, विपाको होति अचिन्तियो’’’ति॥", | |
"‘‘पसन्नचित्तं ञत्वान, एकच्चं इध पुग्गलं।", | |
"एतमत्थञ्च ब्याकासि, बुद्धो", | |
"‘‘इमम्हि", | |
"सग्गम्हि उपपज्जेय्य, चित्तं हिस्स पसादितं॥", | |
"‘‘चेतोपसादहेतु हि, सत्ता गच्छन्ति सुग्गतिं।", | |
"यथाभतं निक्खिपेय्य, एवमेवं तथाविधो।", | |
"कायस्स भेदा सप्पञ्ञो, सग्गं सो उपपज्जती’’ति॥", | |
"‘‘सुवण्णच्छदनं", | |
"ओगाहसि", | |
"‘‘केन ते तादिसो वण्णो, आनुभावो जुति च ते।", | |
"उप्पज्जन्ति च ते भोगा, ये केचि मनसिच्छिता॥", | |
"‘‘पुच्छिता देवते संस, किस्स कम्मस्सिदं फलं।", | |
"सा देवता अत्तमना, देवराजेन पुच्छिता॥", | |
"‘‘पञ्हं", | |
"अद्धानं पटिपन्नाहं, दिस्वा थूपं मनोरमं॥", | |
"‘‘तत्थ चित्तं पसादेसिं, कस्सपस्स यसस्सिनो।", | |
"पद्धपुप्फेहि पूजेसिं, पसन्ना सेहि तस्सेव।", | |
"कम्मस्स फलं विपाको, एतादिसं कतपुञ्ञा लभन्ती’’ति॥", | |
"‘‘दानकथा सीलकथा सग्गकथा पुञ्ञकथा पुञ्ञविपाककथा’’ति।", | |
"‘‘देवपुत्तसरीरवण्णा, सब्बे सुभगसण्ठिती।", | |
"उदकेन पंसुं तेमेत्वा, थूपं वड्ढेथ कस्सपं॥", | |
"‘‘अयं सुगत्ते सुगतस्स थूपो, महेसिनो दसबलधम्मधारिनो।", | |
"तस्मिं", | |
"‘‘उळारं वत तं आसि, याहं थूपं महेसिनो।", | |
"उप्पलानि", | |
"‘‘अज्ज तिंसं ततो कप्पा, नाभिजानामि दुग्गतिं।", | |
"विनिपातं न गच्छामि, थूपं पूजेत्व", | |
"‘‘बात्तिंसलक्खणधरस्स, विजितविजयस्स लोकनाथस्स।", | |
"सतसहस्सं कप्पे, मुदितो थूपं अपूजेसि॥", | |
"‘‘यं", | |
"रज्जानि च कारितानि, अनागन्तुन विनिपातं॥", | |
"‘‘यं चक्खु अदन्तदमकस्स, सासने पणिहितं तथा।", | |
"चित्तं तं मे सब्बं, लद्धं विमुत्तचित्तम्हि विधूतलतो’’ति॥", | |
"‘‘सामाकपत्थोदनमत्तमेव हि, पच्चेकबुद्धम्हि अदासि दक्खिणं।", | |
"विमुत्तचित्ते अखिले अनासवे, अरणविहारिम्हि असङ्गमानसे॥", | |
"‘‘तस्मिञ्च", | |
"एवं विहारीहि मे सङ्गमो सिया, भवे कुदासुपि च मा अपेक्खवा॥", | |
"‘‘तस्सेव कम्मस्स विपाकतो अहं, सहस्सक्खत्तुं कुरुसूपपज्जथ", | |
"दीघायुकेसु अममेसु पाणिसु, विसेसगामीसु अहीनगामिसु॥", | |
"‘‘तस्सेव कम्मस्स विपाकतो अहं, सहस्सक्खत्तुं तिदसोपपज्जथ।", | |
"विचित्रमालाभरणानुलेपिसु, विसिट्ठकायूपगतो यसस्सिसु॥", | |
"‘‘तस्सेव कम्मस्स विपाकतो अहं, विमुत्तचित्तो अखिलो अनासवो।", | |
"इमेहि मे अन्तिमदेहधारिभि, समागमो", | |
"‘‘पच्चक्खं", | |
"यथा यथा मे मनसा विचिन्तितं, तथा समिद्धं अयमन्तिमो भवो’’ति॥", | |
"‘‘एकतिंसम्हि कप्पम्हि जिनो अनेजो, अनन्तदस्सी भगवा सिखीति।", | |
"तस्सापि राजा भाता सिखिद्धे", | |
"‘‘परिनिब्बुते लोकविनायकम्हि, थूपं सकासि विपुलं महन्तं।", | |
"समन्ततो गावुतिकं महेसिनो, देवातिदेवस्स नरुत्तमस्स॥", | |
"‘‘तस्मिं मनुस्सो बलिमाभिहारी, पग्गय्ह जातिसुमनं पहट्ठो।", | |
"वातेन पुप्फं पतितस्स एकं, ताहं गहेत्वान तस्सेव दासि॥", | |
"‘‘सो मं अवोचाभिपसन्नचित्तो, तुय्हमेव एतं पुप्फं ददामि।", | |
"ताहं गहेत्वा अभिरोपयेसिं, पुनप्पुनं बुद्धमनुस्सरन्तो॥", | |
"‘‘अज्ज", | |
"विनिपातञ्च न गच्छामि, थूपपूजायिदं फल’’न्ति॥", | |
"‘‘कपिलं नाम नगरं, सुविभत्तं महापथं।", | |
"आकिण्णमिद्धं फीतञ्च, ब्रह्मदत्तस्स राजिनो॥", | |
"‘‘कुम्मासं", | |
"सोहं", | |
"‘‘हट्ठो चित्तं पसादेत्वा, निमन्तेसिं नरुत्तमं।", | |
"अरिट्ठं धुवभत्तेन, यं मे गेहम्हि विज्जथ॥", | |
"‘‘ततो च कत्तिको पुण्णो", | |
"नवं दुस्सयुगं गय्ह, अरिट्ठस्सोपनामयिं॥", | |
"‘‘पसन्नचित्तं ञत्वान, पटिग्गण्हि नरुत्तमो।", | |
"अनुकम्पको कारुणिको, तण्हानिघातको मुनि॥", | |
"‘‘ताहं कम्मं करित्वान, कल्याणं बुद्धवण्णितं।", | |
"देवे चेव मनुस्से च, सन्धावित्वा ततो चुतो॥", | |
"‘‘बाराणसियं नगरे, सेट्ठिस्स एकपुत्तको।", | |
"अड्ढे कुलस्मिं उप्पज्जिं, पाणेहि च पियतरो॥", | |
"‘‘ततो च विञ्ञुतं पत्तो, देवपुत्तेन चोदितो।", | |
"पासादा ओरूहित्वान, सम्बुद्धमुपसङ्कमिं॥", | |
"‘‘सो मे धम्ममदेसयि, अनुकम्पाय गोतमो।", | |
"दुक्खं दुक्खसमुप्पादं, दुक्खस्स च अतिक्कमं॥", | |
"‘‘अरियं", | |
"चत्तारि अरियसच्चानि, मुनि धम्ममदेसयि॥", | |
"‘‘तस्साहं वचनं सुत्वा, विहरिं सासने रतो।", | |
"समथं पटिविज्झाहं, रत्तिन्दिवमतन्दितो॥", | |
"‘‘अज्झत्तञ्च बहिद्धा च, ये मे विज्जिंसु", | |
"सब्बे आसुं समुच्छिन्ना, न च उप्पज्जरे पुन॥", | |
"‘‘परियन्तकतं दुक्खं, चरिमोयं समुस्सयो।", | |
"जातिमरणसंसारो, नत्थिदानि पुनब्भवो’’ति॥", | |
"‘‘उद्धं अधो सब्बधि विप्पमुत्तो, अयं अहस्मीति", | |
"एवं विमुत्तो उदतारि ओघं, अतिण्णपुब्बं अपुनब्भवाया’’ति॥", | |
"‘‘यदा", | |
"अथस्स कङ्खा वपयन्ति सब्बा, यतो पजानाति सहेतुधम्म’’न्ति॥", | |
"‘‘यदा हवे पातुभवन्ति धम्मा, आतापिनो झायतो ब्राह्मणस्स।", | |
"अथस्स कङ्खा वपयन्ति सब्बा, यतो खयं पच्चयानं अवेदी’’ति॥", | |
"‘‘किंनु", | |
"कोधमानमक्खविनयत्थं हि, तिस्स ब्रह्मचरियं वुस्सती’’ति॥", | |
"‘‘कदाहं नन्दं पस्सेय्यं, आरञ्ञं", | |
"अञ्ञातुञ्छेन यापेन्तं, कामेसु अनपेक्खिन’’न्ति॥", | |
"‘‘किंसु छेत्वा सुखं सेति, किंसु छेत्वा न सोचति।", | |
"किस्सस्सु", | |
"‘‘कोधं", | |
"कोधस्स विसमूलस्स, मधुरग्गस्स ब्राह्मण।", | |
"वधं अरिया पसंसन्ति, तं हि छेत्वा न सोचती’’ति॥", | |
"‘‘किंसु हने उप्पतितं, किंसु जातं विनोदये।", | |
"किञ्चस्सु पजहे धीरो, किस्साभिसमयो सुखो॥", | |
"‘‘कोधं", | |
"अविज्जं पजहे धीरो, सच्चाभिसमयो सुखो’’ति॥", | |
"‘‘सत्तिया विय ओमट्ठो, डय्हमानोव", | |
"कामरागप्पहानाय, सतो भिक्खु परिब्बजे॥", | |
"‘‘सत्तिया विय ओमट्ठो, डय्हमानोव मत्थके।", | |
"सक्कायदिट्ठिप्पहानाय, सतो भिक्खु परिब्बजे’’ति॥", | |
"‘‘सब्बे खयन्ता निचया, पतनन्ता समुस्सया।", | |
"सब्बेसं मरणमागम्म, सब्बेसं जीवितमद्धुवं।", | |
"एतं भयं मरणे", | |
"‘‘सब्बे खयन्ता निचया, पतनन्ता समुस्सया।", | |
"सब्बेसं मरणमागम्म, सब्बेसं जीवितमद्धुवं।", | |
"एतं भयं मरणे पेक्खमानो, लोकामिसं पजहे सन्तिपेक्खो’’ति॥", | |
"‘‘सुखं", | |
"येसं झानरतं चित्तं, पञ्ञवा सुसमाहितो।", | |
"आरद्धवीरियो पहितत्तो, ओघं तरति दुत्तरं॥", | |
"‘‘विरतो कामसञ्ञाय, सब्बसंयोजनातीतो", | |
"नन्दिभवपरिक्खीणो", | |
"‘‘सद्दहानो अरहतं, धम्मं निब्बानपत्तिया।", | |
"सुस्सूसं लभते पञ्ञं, अप्पमत्तो विचक्खणो॥", | |
"पतिरूपकारी", | |
"सच्चेन कित्तिं पप्पोति, ददं मित्तानि गन्थति।", | |
"अस्मा लोका परं लोकं, एवं", | |
"‘‘सब्बगन्थपहीनस्स, विप्पमुत्तस्स ते सतो।", | |
"समणस्स न तं साधु, यदञ्ञमनुसाससीति॥", | |
"‘‘येन केनचि वण्णेन, संवासो सक्क जायति।", | |
"न तं अरहति सप्पञ्ञो, मनसा अनुकम्पितुं", | |
"‘‘मनसा चे पसन्नेन, यदञ्ञमनुसासति।", | |
"न तेन होति संयुत्तो, यानुकम्पा अनुद्दया’’ति॥", | |
"‘‘रागो च दोसो च कुतोनिदाना, अरती रती", | |
"कुतो समुट्ठाय मनोवितक्का, कुमारका धङ्कमिवोस्सजन्ति॥", | |
"‘‘रागो", | |
"इतो समुट्ठाय मनोवितक्का, कुमारका धङ्कमिवोस्सजन्ति॥", | |
"‘‘स्नेहजा अत्तसम्भूता, निग्रोधस्सेव खन्धजा।", | |
"पुथु विसत्ता कामेसु, मालुवाव वितता वने॥", | |
"‘‘ये नं पजानन्ति यतोनिदानं, ते नं विनोदेन्ति सुणोहि यक्ख।", | |
"ते दुत्तरं ओघमिमं तरन्ति, अतिण्णपुब्बं अपुनब्भवाया’’ति॥", | |
"‘‘दुक्करं", | |
"‘‘दुक्करं वापि करोन्ति, [कामदाति भगवा]", | |
"सेक्खा सीलसमाहिता।", | |
"ठितत्ता अनगारियुपेतस्स, तुट्ठि होति सुखावहा’’ति॥", | |
"‘‘दुल्लभा", | |
"‘‘दुल्लभं वापि लभन्ति, [कामदाति भगवा]", | |
"चित्तवूपसमे रता।", | |
"येसं दिवा च रत्तो च, भावनाय रतो मनो’’ति॥", | |
"‘‘दुस्समादहं भगवा यदिदं चित्त’’न्ति।", | |
"‘‘दुस्समादहं वापि समादहन्ति, [कामदाति भगवा]", | |
"इन्द्रियूपसमे रता।", | |
"ते छेत्वा मच्चुनो जालं, अरिया गच्छन्ति कामदा’’ति॥", | |
"‘‘दुग्गमो भगवा विसमो मग्गो’’ति।", | |
"‘‘दुग्गमे", | |
"अनरिया विसमे मग्गे, पपतन्ति अवंसिरा।", | |
"अरियानं समो मग्गो, अरिया हि विसमे समा’’ति॥", | |
"‘‘इदं हि", | |
"आवुत्थं धम्मराजेन, पीतिसञ्जननं मम॥", | |
"‘‘कम्मं विज्जा च धम्मो च, सीलं जीवितमुत्तमं।", | |
"एतेन मच्चा सुज्झन्ति, न गोत्तेन धनेन वा॥", | |
"‘‘तस्मा हि पण्डितो पोसो, सम्पस्सं अत्थमत्तनो।", | |
"योनिसो विचिने धम्मं, एवं तत्थ विसुज्झति॥", | |
"‘‘सारिपुत्तोव", | |
"योपि पारङ्गतो भिक्खु, एतावपरमो सिया’’ति॥", | |
"‘‘अतीतं नान्वागमेय्य, नप्पटिकङ्खे अनागतं।", | |
"यदतीतं पहीनं", | |
"‘‘पच्चुप्पन्नञ्च", | |
"असंहीरं असंकुप्पं, तं विद्वा मनुब्रूहये॥", | |
"‘‘अज्जेव किच्चमातप्पं", | |
"न हि नो सङ्गरं तेन, महासेनेन मच्चुना॥", | |
"‘‘एवं विहारिं आतापिं, अहोरत्तमतन्दितं।", | |
"तं वे ‘‘भद्देकरत्तो’’ति, सन्तो आचिक्खते मुनी’’ति॥", | |
"‘‘यस्स सेलूपमं चित्तं, ठितं नानुपकम्पति।", | |
"विरत्तं रजनीयेसु, कोपनेय्ये न कुप्पति।", | |
"यस्सेवं भावितं चित्तं, कुतो नं", | |
"‘‘यो", | |
"वेदन्तगू वूसितब्रह्मचरियो, धम्मेन सो ब्रह्मवादं वदेय्य।", | |
"यस्सुस्सदा नत्थि कुहिञ्चि लोके’’ति॥", | |
"‘‘बाहित्वा पापके धम्मे, ये चरन्ति सदा सता।", | |
"खीणसंयोजना बुद्धा, ते वे लोकस्मि", | |
"‘‘यत्थ आपो च पथवी, तेजो वायो न गाधति।", | |
"न तत्थ सुक्का जोतन्ति, आदिच्चो नप्पकासति।", | |
"न तत्थ चन्दिमा भाति, तमो तत्थ न विज्जति॥", | |
"‘‘यदा च अत्तनावेदि", | |
"अथ रूपा अरूपा च, सुखदुक्खा पमुच्चती’’ति॥", | |
"‘‘यदा सकेसु", | |
"अथ एतं पिसाचञ्च, पक्कुलञ्चातिवत्तती’’ति॥", | |
"‘‘नाभिनन्दति", | |
"सङ्गा सङ्गामजिं मुत्तं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मण’’न्ति॥", | |
"‘‘न", | |
"यम्हि सच्चञ्च धम्मो च, सो सुची सो च ब्राह्मणो’’ति॥", | |
"‘‘यदा", | |
"विधूपयं तिट्ठति मारसेनं, सूरियोव ओभासयमन्तलिक्ख’’न्ति॥", | |
"‘‘सन्तिन्द्रियं पस्सथ इरियमानं, तेविज्जपत्तं अपहानधम्मं।", | |
"सब्बानि योगानि उपातिवत्तो, अकिञ्चनो इरियति पंसुकूलिको॥", | |
"‘‘तं देवता सम्बहुला उळारा, ब्रह्मविमानं उपसङ्कमित्वा।", | |
"आजानियं जातिबलं निसेधं, निध नमस्सन्ति पसन्नचित्ता॥", | |
"‘‘नमो ते पुरिसाजञ्ञ, नमो ते पुरिसुत्तम।", | |
"यस्स ते नाभिजानाम, किं त्वं निस्साय झायसी’’ति॥", | |
"‘‘सहाया वतिमे भिक्खू, चिररत्तं समेतिका।", | |
"समेति नेसं सद्धम्मो, धम्मे बुद्धप्पवेदिते’’॥", | |
"‘‘सुविनीता", | |
"धारेन्ति अन्तिमं देहं, जेत्वा मारं सवाहिनि’’न्ति", | |
"‘‘नयिदं सिथिलमारब्भ, नयिदं अप्पेन थामसा।", | |
"निब्बानं अधिगन्तब्बं, सब्बदुक्खप्पमोचनं", | |
"‘‘अयञ्च", | |
"धारेति अन्तिमं देहं, जेत्वा मारं सवाहिनि’’न्ति॥", | |
"‘‘दुब्बण्णको लूखचीवरो, मोघराजा सदा सतो।", | |
"खीणासवो विसंयुत्तो, कतकिच्चो अनासवो॥", | |
"‘‘तेविज्जो", | |
"धारेति अन्तिमं देहं, जेत्वा मारं सवाहिनि’’न्ति॥", | |
"‘‘छन्नमतिवस्सति", | |
"तस्मा छन्नं विवरेथ, एवं तं नातिवस्सती’’ति॥", | |
"‘‘न तं दळ्हं बन्धनमाहु धीरा, यदायसं दारुजपब्बजञ्च", | |
"सारत्तरत्ता मणिकुण्डलेसु, पुत्तेसु दारेसु च या अपेक्खा’’ति।", | |
"अयं संकिलेसो॥", | |
"‘‘एतं दळ्हं बन्धनमाहु धीरा, ओहारिनं सिथिलं दुप्पमुञ्चं।", | |
"एतम्पि छेत्वान परिब्बजन्ति, अनपेक्खिनो कामसुखं पहाया’’ति॥", | |
"‘‘यो इमं समुद्दं सगहं सरक्खसं,", | |
"सऊमिं सावट्टं सभयं दुत्तरं अच्चतरि।", | |
"स वेदन्तगू वुसितब्रह्मचरियो, लोकन्तगू पारगतोति वुच्चती’’ति॥", | |
"‘‘अयं लोको सन्तापजातो, फस्सपरेतो रोगं वदति अत्ततो", | |
"येन येन हि मञ्ञति", | |
"‘‘अञ्ञथाभावी", | |
"यदभिनन्दति तं भयं।", | |
"यस्स भायति तं दुक्ख’’न्ति। अयं संकिलेसो॥", | |
"‘‘भवविप्पहानाय खो पनिदं ब्रह्मचरियं वुस्सती’’ति। अयं निब्बेधो।", | |
"‘‘एवमेतं यथाभूतं, सम्मप्पञ्ञाय पस्सतो।", | |
"भवतण्हा पहीयति, विभवं नाभिनन्दति।", | |
"सब्बसो तण्हानं खया, असेसविरागनिरोधो निब्बान’’न्ति।", | |
"अयं निब्बेधो॥", | |
"‘‘तस्स निब्बुतस्स भिक्खुनो, अनुपादा पुनब्भवो न होति।", | |
"अभिभूतो मारो विजितसङ्गामो, उपच्चगा सब्बभवानि तादी’’ति॥", | |
"‘‘लद्धान मानुसत्तं द्वे, किच्चं अकिच्चमेव च।", | |
"सुकिच्चं चेव पुञ्ञानि, संयोजनविप्पहानं वा’’ति॥", | |
"‘‘पुञ्ञानि करित्वान, सग्गा सग्गं वजन्ति कतपुञ्ञा।", | |
"संयोजनप्पहाना, जरामरणा विप्पमुच्चन्ती’’ति॥", | |
"‘‘न हि पापं कतं कम्मं, सज्जुखीरंव मुच्चति।", | |
"डहन्तं", | |
"‘‘यस्सिन्द्रियानि समथङ्गतानि", | |
"पहीनमानस्स अनासवस्स, देवापि तस्स पिहयन्ति तादिनो’’ति॥", | |
"‘‘सब्बा दिसा अनुपरिगम्म चेतसा, नेवज्झगा पियतरमत्तना क्वचि।", | |
"एवं पियो पुथु अत्ता परेसं, तस्मा न हिंसे परमत्तकामो’’ति", | |
"‘‘ये केचि भूता भविस्सन्ति ये वापि", | |
"तं सब्बजानिं कुसलो विदित्वा, आतापियो", | |
"‘‘पियो गरु भावनीयो, वत्ता च वचनक्खमो।", | |
"गम्भीरञ्च कथं कत्ता, न चट्ठाने नियोजको।", | |
"तं मित्तं मित्तकामेन, यावजीवम्पि सेविय’’न्ति॥", | |
"‘‘यञ्च कामसुखं लोके, यञ्चिदं दिवियं सुखं।", | |
"तण्हक्खयसुखस्सेते", | |
"‘‘सुसुखं", | |
"असोकं विरजं खेमं, यत्थ दुक्खं निरुज्झती’’ति॥", | |
"‘‘मातरं पितरं हन्त्वा, राजानो द्वे च खत्तिये।", | |
"रट्ठं सानुचरं हन्त्वा’’ति इदं धम्माधिट्ठानं॥", | |
"‘‘अनीघो याति ब्राह्मणो’’ति। इदं सत्ताधिट्ठानं।", | |
"इदं सत्ताधिट्ठानञ्च धम्माधिट्ठानञ्च॥", | |
"‘‘यं तं लोकुत्तरं ञाणं, सब्बञ्ञू येन वुच्चति।", | |
"न तस्स परिहानत्थि, सब्बकाले पवत्तती’’ति॥", | |
"‘‘पञ्ञा", | |
"याय सम्मा पजानाति, जातिमरणसङ्खय’’न्ति॥", | |
"‘‘कित्तयिस्सामि", | |
"दिट्ठे धम्मे अनीतिहं।", | |
"यं विदित्वा सतो चरं, तरे लोके विसत्तिकं॥", | |
"‘‘तञ्चाहं", | |
"यं विदित्वा सतो चरं, तरे लोके विसत्तिकं॥", | |
"‘‘यं किञ्चि सम्पजानासि, [धोतकाति भगवा]", | |
"उद्धं अधो तिरियञ्चापि मज्झे।", | |
"एतं विदित्वा सङ्गोति लोके,", | |
"भवाभवाय माकासि तण्ह’’न्ति॥", | |
"‘‘चतुन्नं अरियसच्चानं, यथाभूतं अदस्सना।", | |
"संसितं", | |
"‘‘तानि एतानि दिट्ठानि, भवनेत्ति समूहता।", | |
"उच्छिन्नं मूलं दुक्खस्स, नत्थि दानि पुनब्भवो’’ति॥", | |
"‘‘ये अरियसच्चानि विभावयन्ति, गम्भीरपञ्ञेन सुदेसितानि।", | |
"किञ्चापि ते होन्ति भुसं पमत्ता", | |
"‘‘यथिन्दखीलो", | |
"तथूपमं", | |
"‘‘यस्सिन्द्रियानि भावितानि", | |
"निब्बिज्झ इमं परञ्च लोकं, कालं कङ्खति भावितो सदन्तो’’ति॥", | |
"‘‘सब्बपापस्स अकरणं, कुसलस्स उपसम्पदा।", | |
"सचित्तपरियोदापनं, एतं बुद्धान सासन’’न्ति॥", | |
"‘‘पथवीसमो नत्थि वित्थतो, निन्नो पातालसमो न विज्जति।", | |
"मेरुसमो नत्थि उन्नतो, चक्कवत्तिसदिसो नत्थि पोरिसो’’ति॥", | |
"‘‘भिय्यो", | |
"तस्मा भुसेन दण्डेन, धीरो बालं निसेधये’’ति॥", | |
"‘‘एतदेव अहं मञ्ञे, बालस्स पटिसेधनं।", | |
"परं सङ्कुपितं ञत्वा, यो सतो उपसम्मती’’ति॥", | |
"‘‘एतदेव", | |
"यदा नं मञ्ञति", | |
"अज्झारुहति दुम्मेधो, गोव भिय्यो पलायिन’’न्ति॥", | |
"‘‘कामं मञ्ञतु वा मा वा, भया म्यायं तितिक्खति।", | |
"सदत्थपरमा अत्था, खन्ता भिय्यो न विज्जति॥", | |
"‘‘यो", | |
"तमाहु परमं खन्तिं, निच्चं खमति दुब्बलो॥", | |
"‘‘अबलं तं बलं आहु, यस्स बालबलं बलं।", | |
"बलस्स धम्मगुत्तस्स, पटिवत्ता न विज्जति॥", | |
"‘‘तस्सेव तेन पापियो, यो कुद्धं पटिकुज्झति।", | |
"कुद्धं अप्पटिकुज्झन्तो, सङ्गामं जेति दुज्जयं॥", | |
"‘‘उभिन्नमत्थं", | |
"परं सङ्कुपितं ञत्वा, यो सतो उपसम्मति॥", | |
"‘‘उभिन्नं तिकिच्छन्तानं, अत्तनो च परस्स च।", | |
"जना मञ्ञन्ति बालोति, ये धम्मस्स अकोविदा’’ति॥", | |
"‘‘अत्तानञ्चे पियं जञ्ञा, न नं पापेन संयुजे।", | |
"न हि तं सुलभं होति, सुखं दुक्कटकारिना॥", | |
"‘‘अन्तकेनाधिपन्नस्स", | |
"किं हि तस्स सकं होति, किञ्च आदाय गच्छति।", | |
"किञ्चस्स अनुगं होति, छायाव अनपायिनी॥", | |
"‘‘उभो पुञ्ञञ्च पापञ्च, यं मच्चो कुरुते इध।", | |
"तञ्हि तस्स सकं होति, तंव आदाय गच्छति।", | |
"तंवस्स अनुगं होति, छायाव अनपायिनी॥", | |
"‘‘तस्मा", | |
"पुञ्ञानि परलोकस्मिं, पतिट्ठा होन्ति पाणिन’’न्ति॥", | |
"‘‘आकङ्खतो ते नरदम्मसारथि", | |
"सब्बे न जञ्ञा कसिणापि पाणिनो, सन्तं समाधिं अरणं निसेवतो।", | |
"किन्तं भगवा आकङ्खती’’ति॥", | |
"‘‘बाराणसिं गमिस्सामि, अहं तं अमतदुन्दुभिं।", | |
"धम्मचक्कं पवत्तेतुं, लोके अप्पटिवत्तिय’’न्ति॥", | |
"‘‘मादिसा", | |
"जिता मे पापका धम्मा, तस्माहं उपका जिनो’’ति॥", | |
"‘‘अन्तकेनाधिपन्नस्स", | |
"किं हि तस्स सकं होति, किञ्च आदाय गच्छति।", | |
"किञ्चस्स अनुगं होति, छायाव अनपायिनी॥", | |
"‘‘उभो पुञ्ञञ्च पापञ्च, यं मच्चो कुरुते इध।", | |
"तञ्हि तस्स सकं होति, तंव", | |
"तंवस्स अनुगं होति, छायाव अनपायिनी’’ति॥", | |
"‘‘सट्ठिवस्ससहस्सानि, परिपुण्णानि सब्बसो।", | |
"निरये पच्चमानानं", | |
"‘‘नत्थि अन्तो कुतो अन्तो, न अन्तो पटिदिस्सति", | |
"तदा हि पकतं पापं, तुय्हं मय्हञ्च मारिसा’’ति॥", | |
"‘‘अधम्मचारी हि नरो पमत्तो, यहिं यहिं गच्छति दुग्गतिं यो।", | |
"सो नं अधम्मो चरितो हनाति, सयं गहीतो यथा कण्हसप्पो॥", | |
"‘‘न हि", | |
"अधम्मो निरयं नेति, धम्मो पापेति सुग्गति’’न्ति॥", | |
"‘‘वाचानुरक्खी मनसा सुसंवुतो, कायेन च नाकुसलं कयिरा", | |
"एते तयो कम्मपथे विसोधये, आराधये मग्गमिसिप्पवेदित’’न्ति॥", | |
"‘‘यस्स कायेन वाचाय, मनसा नत्थि दुक्कटं।", | |
"संवुतं तीहि ठानेहि, तमहं ब्रूमि ब्राह्मण’’न्ति॥", | |
"‘‘यस्स", | |
"करोति सो तथत्तानं, यथा नं इच्छती दिसो’’ति॥", | |
"‘‘अत्तना हि कतं पापं, अत्तजं अत्तसम्भवं।", | |
"अभिमत्थति", | |
"‘‘दस", | |
"गरहा च भवन्ति देवते, बालमती निरयेसु पच्चरे’’ति॥", | |
"‘‘यादिसं", | |
"कल्याणकारी कल्याणं, पापकारी च पापक’’न्ति॥", | |
"‘‘सुभेन कम्मेन वजन्ति सुग्गतिं, अपायभूमिं असुभेन कम्मुना।", | |
"खया च कम्मस्स विमुत्तचेतसो, निब्बन्ति ते जोतिरिविन्धनक्खया’’॥", | |
"‘‘यथापि भमरो पुप्फं, वण्णगन्धमहेठयं", | |
"पलेति", | |
"‘‘नत्थि पुत्तसमं पेमं, नत्थि गोसमितं", | |
"नत्थि सूरियसमा", | |
"‘‘नत्थि", | |
"नत्थि पञ्ञासमा आभा, वुट्ठिवेपरमा सरा’’ति॥", | |
"‘‘किंसूध भीता जनता अनेका, मग्गो चनेकायतनो पवुत्तो", | |
"पुच्छामि तं गोतम भूरिपञ्ञ, किस्मिं ठितो परलोकं न भायेति॥", | |
"‘‘वाचं मनञ्च पणिधाय सम्मा, कायेन पापानि अकुब्बमानो।", | |
"बह्वन्नपानं घरमावसन्तो, सद्धो मुदू संविभागी वदञ्ञू।", | |
"एतेसु धम्मेसु ठितो चतूसु, धम्मे ठितो परलोकं न भाये’’ति॥", | |
"‘‘सब्बपापस्स अकरणं, कुसलस्स उपसम्पदा।", | |
"सचित्तपरियोदापनं, एतं बुद्धानसासनं’’॥", | |
"‘‘मग्गानट्ठङ्गिको", | |
"विरागो सेट्ठो धम्मानं, द्विपदानञ्च चक्खुमा’’ति॥", | |
"‘‘सब्बलोकुत्तरो", | |
"गणो च नरसीहस्स, तानि तीणि विस्सिस्सरे॥", | |
"‘‘समणपदुमसञ्चयो गणो, धम्मवरो च विदूनं सक्कतो।", | |
"नरवरदमको च चक्खुमा, तानि तीणि लोकस्स उत्तरि॥", | |
"‘‘सत्था च अप्पटिसमो, धम्मो च सब्बो निरुपदाहो।", | |
"अरियो च गणवरो, तानि", | |
"‘‘सच्चनामो जिनो खेमो सब्बाभिभू, सच्चधम्मो नत्थञ्ञो तस्स उत्तरि।", | |
"अरियसङ्घो निच्चं विञ्ञूनं पूजितो, तानि तीणि लोकस्स उत्तरि॥", | |
"‘‘एकायनं जातिखयन्तदस्सी, मग्गं पजानाति हितानुकम्पी।", | |
"एतेन मग्गेन तरिंसु पुब्बे, तरिस्सन्ति ये च", | |
"‘‘तं तादिसं देवमनुस्ससेट्ठं।", | |
"सत्ता नमस्सन्ति विसुद्धिपेक्खा’’ति॥", | |
"‘‘नवहि च पदेहि कुसला, नवहि च युज्जन्ति अकुसलप्पक्खा।", | |
"एते खलु मूलपदा, भवन्ति अट्ठारस पदानी’’ति॥" | |
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