Spaces:
Sleeping
Sleeping
{ | |
"title": "१. पठमपाराजिकं", | |
"book_name": "४. निस्सग्गियकण्डं", | |
"chapter": "सुदिन्नभाणवारो", | |
"gathas": [ | |
"मक्कटी वज्जिपुत्ता च, गिही नग्गो च तित्थिया।", | |
"दारिकुप्पलवण्णा च, ब्यञ्जनेहिपरे दुवे॥", | |
"माता", | |
"द्वे", | |
"सुन्दरेन सह पञ्च, पञ्च सिवथिकट्ठिका।", | |
"नागी यक्खी च पेती च, पण्डकोपहतो छुपे॥", | |
"भद्दिये अरहं सुत्तो, सावत्थिया चतुरो परे।", | |
"वेसालिया तयो माला, सुपिने भारुकच्छको॥", | |
"सुपब्बा", | |
"वेसिया पण्डको गिही, अञ्ञमञ्ञं वुड्ढपब्बजितो मिगोति॥", | |
"रजकेहि पञ्च अक्खाता, चतुरो अत्थरणेहि च।", | |
"अन्धकारेन वे पञ्च, पञ्च हारणकेन च॥", | |
"निरुत्तिया पञ्च अक्खाता, वातेहि अपरे दुवे।", | |
"असम्भिन्ने कुसापातो, जन्तग्गेन", | |
"विघासेहि पञ्च अक्खाता, पञ्च चेव अमूलका।", | |
"दुब्भिक्खे कुरमंसञ्च", | |
"छपरिक्खारथविका", | |
"खादनीयञ्च विस्सासं, ससञ्ञायपरे दुवे॥", | |
"सत्त", | |
"सङ्घस्स अवहरुं सत्त, पुप्फेहि अपरे दुवे॥", | |
"तयो च वुत्तवादिनो, मणि तीणि अतिक्कमे।", | |
"सूकरा च मिगा मच्छा, यानञ्चापि पवत्तयि॥", | |
"दुवे पेसी दुवे दारू, पंसुकूलं दुवे दका।", | |
"अनुपुब्बविधानेन", | |
"सावत्थिया", | |
"सङ्घस्स भाजयुं सत्त, सत्त चेव अस्सामिका॥", | |
"दारुदका मत्तिका द्वे तिणानि।", | |
"सङ्घस्स सत्त अवहासि सेय्यं।", | |
"सस्सामिकं न चापि नीहरेय्य।", | |
"हरेय्य सस्सामिकं तावकालिकं॥", | |
"चम्पा राजगहे चेव, वेसालिया च अज्जुको।", | |
"बाराणसी च कोसम्बी, सागला दळ्हिकेन चाति॥", | |
"संवण्णना", | |
"वुड्ढपब्बजिताभिसन्नो, अग्गवीमंसनाविसं॥", | |
"तयो", | |
"वासी गोपानसी चेव, अट्टकोतरणं पति॥", | |
"सेदं नत्थुञ्च सम्बाहो, न्हापनब्भञ्जनेन च।", | |
"उट्ठापेन्तो निपातेन्तो, अन्नपानेन मारणं॥", | |
"जारगब्भो सपत्ती च, माता पुत्तं उभो वधि।", | |
"उभो", | |
"पतोदं निग्गहे यक्खो, वाळयक्खञ्च पाहिणि।", | |
"तं मञ्ञमानो पहरि, सग्गञ्च निरयं भणे॥", | |
"आळविया तयो रुक्खा, दायेहि अपरे तयो।", | |
"मा किलमेसि न तुय्हं, तक्कं सोवीरकेन चाति॥", | |
"निकच्च कितवस्सेव, भुत्तं थेय्येन तस्स तं॥", | |
"पापा पापेहि कम्मेहि, निरयं ते उपपज्जरे॥", | |
"यञ्चे भुञ्जेय्य दुस्सीलो, रट्ठपिण्डं असञ्ञतोति॥", | |
"अधिमाने", | |
"संयोजना रहोधम्मा, विहारो पच्चुपट्ठितो॥", | |
"न दुक्करं वीरियमथोपि मच्चुनो।", | |
"भायावुसो विप्पटिसारि सम्मा।", | |
"विरियेन योगेन आराधनाय।", | |
"अथ वेदनाय अधिवासना दुवे॥", | |
"ब्राह्मणे पञ्च वत्थूनि, अञ्ञं ब्याकरणा तयो।", | |
"अगारावरणा कामा, रति चापि अपक्कमि॥", | |
"अट्ठि पेसि उभो गावघातका।", | |
"पिण्डो साकुणिको निच्छवि ओरब्भि।", | |
"असि च सूकरिको सत्ति मागवि।", | |
"उसु च कारणिको सूचि सारथि॥", | |
"यो च सिब्बीयति सूचको हि सो।", | |
"अण्डभारि अहु गामकूटको।", | |
"कूपे निमुग्गो हि सो पारदारिको।", | |
"गूथखादी अहु दुट्ठब्राह्मणो॥", | |
"निच्छवित्थी", | |
"मङ्गुलित्थी अहु इक्खणित्थिका।", | |
"ओकिलिनी", | |
"सीसच्छिन्नो अहु चोरघातको॥", | |
"भिक्खु भिक्खुनी सिक्खमाना।", | |
"सामणेरो अथ सामणेरिका।", | |
"कस्सपस्स विनयस्मिं पब्बजं।", | |
"पापकम्ममकरिंसु तावदे॥", | |
"तपोदा राजगहे युद्धं, नागानोगाहनेन च।", | |
"सोभितो अरहं भिक्खु, पञ्चकप्पसतं सरेति॥", | |
"मेथुनादिन्नादानञ्च, मनुस्सविग्गहुत्तरि।", | |
"पाराजिकानि चत्तारि, छेज्जवत्थू असंसयाति॥", | |
"सुपिनोच्चारपस्सावो", | |
"भेसज्जं कण्डुवं मग्गो, वत्थि जन्ताघरुपक्कमो", | |
"सामणेरो च सुत्तो च, ऊरु मुट्ठिना पीळयि।", | |
"आकासे थम्भं निज्झायि, छिद्दं कट्ठेन घट्टयि॥", | |
"सोतो", | |
"वालिका कद्दमुस्सेको", | |
"माता", | |
"सुत्ता मता तिरच्छाना, दारुधितलिकाय च॥", | |
"सम्पीळे सङ्कमो मग्गो, रुक्खो नावा च रज्जु च।", | |
"दण्डो पत्तं पणामेसि, वन्दे वायमि नच्छुपेति॥", | |
"लोहितं कक्कसाकिण्णं, खरं दीघञ्च वापितं।", | |
"कच्चि संसीदति मग्गो, सद्धा दानेन कम्मुनाति॥", | |
"कथं", | |
"किं दज्जं केनुपट्ठेय्यं, कथं गच्छेय्यं सुग्गतिन्ति॥", | |
"सुत्ता", | |
"कलहं कत्वान सम्मोदि, सञ्चरित्तञ्च पण्डकेति॥", | |
"उप्पज्जतीमस्स मणिस्स हेतु।", | |
"तं ते न दस्सं अतियाचकोसि।", | |
"न चापि ते अस्सममागमिस्सं॥", | |
"तासेसि", | |
"तं ते न दस्सं अतियाचकोसि।", | |
"न चापि ते अस्सममागमिस्स’’न्ति॥", | |
"विदेस्सो", | |
"नागो", | |
"अदस्सनञ्ञेव तदज्झगमा’’ति॥", | |
"‘अपाहं ते न जानामि, रट्ठपाल बहू जना।", | |
"तस्माहं तं न याचामि, मा मे विदेस्सना अहू’ति॥", | |
"विस्सट्ठि", | |
"सञ्चरित्तं कुटी चेव, विहारो च अमूलकं॥", | |
"किञ्चिलेसञ्च भेदो च, तस्सेव अनुवत्तका।", | |
"दुब्बचं कुलदूसञ्च, सङ्घादिसेसा तेरसाति॥", | |
"अलं कम्मनियञ्चेव, तथेव च नहेव खो।", | |
"अनियता सुपञ्ञत्ता, बुद्धसेट्ठेन तादिनाति॥", | |
"उब्भतं कथिनं तीणि, धोवनञ्च पटिग्गहो।", | |
"अञ्ञातकानि तीणेव, उभिन्नं दूतकेन चाति॥", | |
"कोसिया", | |
"द्वे च लोमानि उग्गण्हे, उभो नानप्पकारकाति॥", | |
"द्वे च पत्तानि भेसज्जं, वस्सिका दानपञ्चमं।", | |
"सामं वायापनच्चेको, सासङ्कं सङ्घिकेन चाति॥" | |
] | |
} |