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"title": "१२. सत्तसतिकक्खन्धकं", | |
"book_name": "१२. सत्तसतिकक्खन्धकं", | |
"chapter": "११. पञ्चसतिकक्खन्धकं", | |
"gathas": [ | |
"पण्डुलोहितका", | |
"तादिसे उपसङ्कम्म, उस्सहिंसु च भण्डने॥", | |
"अनुप्पन्नापि जायन्ति", | |
"अप्पिच्छा पेसला भिक्खू, उज्झायन्ति पदस्सतो", | |
"सद्धम्मट्ठितिको बुद्धो, सयम्भू अग्गपुग्गलो।", | |
"आणापेसि तज्जनीयकम्मं सावत्थियं जिनो॥", | |
"असम्मुखाप्पटिपुच्छाप्पटिञ्ञाय", | |
"अनापत्ति अदेसने, देसिताय कतञ्च यं॥", | |
"अचोदेत्वा असारेत्वा, अनारोपेत्वा च यं कतं।", | |
"असम्मुखा अधम्मेन, वग्गेन चापि", | |
"अप्पटिपुच्छा अधम्मेन, पुन वग्गेन", | |
"अप्पटिञ्ञाय अधम्मेन, वग्गेन चापि", | |
"अनापत्ति", | |
"अदेसनागामिनिया, अधम्मवग्गमेव च॥", | |
"देसिताय", | |
"अचोदेत्वा", | |
"असारेत्वा अधम्मेन, वग्गेनापि तथेव च।", | |
"अनारोपेत्वा अधम्मेन, वग्गेनापि तथेव च॥", | |
"कण्हवारनयेनेव, सुक्कवारं विजानिया।", | |
"सङ्घो आकङ्खमानो च यस्स तज्जनियं करे॥", | |
"भण्डनं बालो संसट्ठो, अधिसीले अज्झाचारे।", | |
"अतिदिट्ठिविपन्नस्स, सङ्घो तज्जनियं करे॥", | |
"बुद्धधम्मस्स", | |
"तिण्णन्नम्पि च भिक्खूनं, सङ्घो तज्जनियं करे॥", | |
"भण्डनं कारको एको, बालो संसग्गनिस्सितो।", | |
"अधिसीले अज्झाचारे, तथेव अतिदिट्ठिया॥", | |
"बुद्धधम्मस्स सङ्घस्स, अवण्णं यो च भासति।", | |
"तज्जनीयकम्मकतो, एवं सम्मानुवत्तना॥", | |
"उपसम्पदनिस्सया, सामणेरं उपट्ठना।", | |
"ओवादसम्मतेनापि, न करे तज्जनीकतो॥", | |
"नापज्जे तञ्च आपत्तिं, तादिसञ्च ततो परं।", | |
"कम्मञ्च कम्मिके चापि, न गरहे तथाविधो॥", | |
"उपोसथं पवारणं, पकतत्तस्स नट्ठपे।", | |
"सवचनिं", | |
"सारणं", | |
"उपसम्पदनिस्सया, सामणेरं उपट्ठना॥", | |
"ओवादसम्मतेनापि, पञ्चहङ्गेहि", | |
"तञ्चापज्जति आपत्तिं, तादिसञ्च ततो परं॥", | |
"कम्मञ्च कम्मिके चापि, गरहन्तो न सम्मति।", | |
"उपोसथं", | |
"ओकासो चोदनञ्चेव, सारणा सम्पयोजना।", | |
"इमेहट्ठङ्गेहि यो युत्तो, तज्जनानुपसम्मति॥", | |
"कण्हवारनयेनेव, सुक्कवारं विजानिया।", | |
"बालो आपत्तिबहुलो, संसट्ठोपि च सेय्यसो॥", | |
"नियस्सकम्मं सम्बुद्धो, आणापेसि महामुनि।", | |
"कीटागिरिस्मिं द्वे भिक्खू, अस्सजिपुनब्बसुका॥", | |
"अनाचारञ्च", | |
"पब्बाजनीयं सम्बुद्धो, कम्मं सावत्थियं जिनो।", | |
"मच्छिकासण्डे सुधम्मो, चित्तस्सावासिको अहु॥", | |
"जातिवादेन खुंसेति, सुधम्मो चित्तुपासकं।", | |
"पटिसारणीयकम्मं, आणापेसि तथागतो॥", | |
"कोसम्बियं छन्नं भिक्खुं, निच्छन्तापत्तिं पस्सितुं।", | |
"अदस्सने", | |
"छन्नो तंयेव आपत्तिं, पटिकातुं न इच्छति।", | |
"उक्खेपनाप्पटिकम्मे, आणापेसि विनायको॥", | |
"पापदिट्ठि", | |
"दिट्ठियाप्पटिनिस्सग्गे", | |
"नियस्सकम्मं पब्बज्जं", | |
"अदस्सनाप्पटिकम्मे", | |
"दवानाचारूपघाति, मिच्छाआजीवमेव च।", | |
"पब्बाजनीयकम्मम्हि, अतिरेकपदा इमे॥", | |
"अलाभावण्णा द्वे पञ्च, द्वे पञ्चकाति नामका", | |
"पटिसारणीयकम्मम्हि, अतिरेकपदा इमे॥", | |
"तज्जनीयं नियस्सञ्च, दुवे कम्मापि सादिसा", | |
"पब्बज्जा", | |
"तयो उक्खेपना कम्मा, सदिसा ते विभत्तितो।", | |
"तज्जनीयनयेनापि, सेसकम्मं विजानियाति॥", | |
"पारिवासिका", | |
"अभिवादनं पच्चुट्ठानं, अञ्जलिञ्च सामीचियं॥", | |
"आसनं", | |
"पत्तं नहाने परिकम्मं, उज्झायन्ति च पेसला॥", | |
"दुक्कटं सादियन्तस्स, मिथु पञ्च यथावुड्ढं", | |
"उपोसथं पवारणं, वस्सिकोणोजभोजनं॥", | |
"सम्मा च वत्तना तत्थ, पकतत्तस्स गच्छन्तं।", | |
"यो च होति परियन्तो, पुरे पच्छा तथेव च", | |
"आरञ्ञपिण्डनीहारो, आगन्तुके उपोसथे।", | |
"पवारणाय दूतेन, गन्तब्बो च सभिक्खुको॥", | |
"एकच्छन्ने", | |
"आसने नीचे चङ्कमे, छमायं चङ्कमेन च॥", | |
"वुड्ढतरेन अकम्मं, रत्तिच्छेदा च सोधना।", | |
"निक्खिपनं समादानं, वत्तंव पारिवासिके", | |
"मूलाय", | |
"अब्भानारहे नयो चापि, सम्भेदं नयतो", | |
"पारिवासिकेसु तयो, चतु मानत्तचारिके।", | |
"न समेन्ति रत्तिच्छेदेसु", | |
"द्वे कम्मा सदिसा सेसा, तयो कम्मा समासमाति", | |
"अप्पटिच्छन्ना", | |
"पञ्चाहपक्खदसन्नं, आपत्तिमाह महामुनि॥", | |
"सुद्धन्तो", | |
"तत्थ सञ्ञिनो द्वे यथा, वेमतिका तथेव च॥", | |
"मिस्सकदिट्ठिनो", | |
"द्वे चेव सुद्धदिट्ठिनो॥", | |
"तथेव च एको छादेति, अथ मक्खमतेन च।", | |
"उम्मत्तकदेसनञ्च, मूला अट्ठारस", | |
"आचरियानं विभज्जपदानं", | |
"महाविहारवासीनं, वाचना सद्धम्मट्ठितियाति॥", | |
"छब्यापुत्तेहि मे मेत्तं, मेत्तं कण्हागोतमकेहि च॥", | |
"‘‘अपादकेहि", | |
"चतुप्पदेहि मे मेत्तं, मेत्तं बहुप्पदेहि मे॥", | |
"‘‘मा मं अपादको हिंसि, मा मं हिंसि द्विपादको।", | |
"मा मं चतुप्पदो हिंसि, मा मं हिंसि बहुप्पदो॥", | |
"‘‘सब्बे सत्ता सब्बे पाणा, सब्बे भूता च केवला।", | |
"सब्बे भद्रानि पस्सन्तु, मा किञ्चि पापमागमा॥", | |
"‘‘अप्पमाणो बुद्धो, अप्पमाणो धम्मो,", | |
"अप्पमाणो सङ्घो, पमाणवन्तानि सरीसपानि", | |
"‘‘अहि विच्छिका सतपदी, उण्णनाभि सरबू मूसिका।", | |
"कता मे रक्खा कतं मे परित्तं, पटिक्कमन्तु भूतानि॥", | |
"‘‘सोहं", | |
"रुक्खे", | |
"विगय्ह मल्लको कच्छु, जरा च पुथुपाणिका॥", | |
"वल्लिकापि च पामङ्गो, कण्ठसुत्तं न धारये।", | |
"कटि ओवट्टि कायुरं, हत्थाभरणमुद्दिका॥", | |
"दीघे कोच्छे फणे हत्थे, सित्था उदकतेलके।", | |
"आदासुदपत्तवणा, आलेपोम्मद्दचुण्णना॥", | |
"लञ्छेन्ति अङ्गरागञ्च, मुखरागं तदूभयं।", | |
"चक्खुरोगं गिरग्गञ्च, आयतं सरबाहिरं॥", | |
"अम्बपेसिसकलेहि, अहिच्छिन्दि च चन्दनं।", | |
"उच्चावचा पत्तमूला, सुवण्णो बहला वली॥", | |
"चित्रा", | |
"परिभण्डं तिणं चोळं, मालं कुण्डोलिकाय च॥", | |
"थविका", | |
"खिले मञ्चे च पीठे च, अङ्के छत्ते पणामना॥", | |
"तुम्बघटिछवसीसं, चलकानि पटिग्गहो।", | |
"विप्फालिदण्डसोवण्णं, पत्ते पेसि च नाळिका॥", | |
"किण्णसत्तु सरितञ्च, मधुसित्थं सिपाटिकं।", | |
"विकण्णं बन्धिविसमं, छमाजिरपहोति च॥", | |
"कळिम्भं", | |
"अङ्गुले पटिग्गहञ्च, वित्थकं थविकबद्धका॥", | |
"अज्झोकासे नीचवत्थु, चयो चापि विहञ्ञरे।", | |
"परिपति तिणचुण्णं, उल्लित्तअवलित्तकं॥", | |
"सेतं काळकवण्णञ्च, परिकम्मञ्च गेरुकं।", | |
"मालाकम्मं लताकम्मं, मकरदन्तकपाटिकं॥", | |
"चीवरवंसं रज्जुञ्च, अनुञ्ञासि विनायको।", | |
"उज्झित्वा पक्कमन्ति च, कथिनं परिभिज्जति॥", | |
"विनिवेठियति कुट्टेपि, पत्तेनादाय गच्छरे।", | |
"थविका बन्धसुत्तञ्च, बन्धित्वा च उपाहना॥", | |
"उपाहनत्थविकञ्च, अंसबद्धञ्च सुत्तकं।", | |
"उदकाकप्पियं मग्गे, परिस्सावनचोळकं॥", | |
"धम्मकरणं द्वे भिक्खू, वेसालिं अगमा मुनि।", | |
"दण्डं ओत्थरकं तत्थ, अनुञ्ञासि परिस्सावनं॥", | |
"मकसेहि", | |
"चङ्कमनजन्ताघरं", | |
"तयो", | |
"अज्झोकासे तिणचुण्णं, उल्लित्तअवलित्तकं॥", | |
"सेतकं", | |
"मालाकम्मं लताकम्मं, मकरदन्तकपाटिकं॥", | |
"वंसं चीवररज्जुञ्च, उच्चञ्च वत्थुकं करे।", | |
"चयो सोपानबाहञ्च, कवाटं पिट्ठसङ्घाटं॥", | |
"उदुक्खलुत्तरपासकं, वट्टिञ्च कपिसीसकं।", | |
"सूचिघटिताळच्छिद्दं, आविञ्छनञ्च रज्जुकं॥", | |
"मण्डलं धूमनेत्तञ्च, मज्झे च मुखमत्तिका।", | |
"दोणि दुग्गन्धा दहति, उदकट्ठानं सरावकं॥", | |
"न सेदेति च चिक्खल्लं, धोवि निद्धमनं करे।", | |
"पीठञ्च कोट्ठके कम्मं, मरुम्बा सिला निद्धमनं॥", | |
"नग्गा छमाय वस्सन्ते, पटिच्छादी तयो तहिं।", | |
"उदपानं लुज्जति नीचं, वल्लिया कायबन्धने॥", | |
"तुलं कटकटं चक्कं, बहू भिज्जन्ति भाजना।", | |
"लोहदारुचम्मखण्डं, सालातिणापिधानि च॥", | |
"दोणिचन्दनि पाकारं, चिक्खल्लं निद्धमनेन च।", | |
"सीतिगतं पोक्खरणिं, पुराणञ्च निल्लेखणं॥", | |
"चातुमासं", | |
"आसित्तकं", | |
"वड्ढो बोधि न अक्कमि, घटं कतकसम्मज्जनि।", | |
"सक्खरं कथलञ्चेव, फेणकं पादघंसनी॥", | |
"विधूपनं तालवण्टं, मकसञ्चापि चामरी।", | |
"छत्तं विना च आरामे, तयो सिक्काय सम्मुति॥", | |
"रोमसित्था नखा दीघा, छिन्दन्तङ्गुलिका दुक्खा।", | |
"सलोहितं पमाणञ्च, वीसति दीघकेसता॥", | |
"खुरं सिलं सिपाटिकं, नमतकं खुरभण्डकं।", | |
"मस्सुं कप्पेन्ति वड्ढेन्ति, गोलोमिचतुरस्सकं॥", | |
"परिमुखं", | |
"आबाधा कत्तरिवणो, दीघं सक्खरिकाय च॥", | |
"पलितं थकितं उच्चा, लोहभण्डञ्जनी सह।", | |
"पल्लत्थिकञ्च आयोगो, वटं सलाकबन्धनं॥", | |
"कलाबुकं देड्डुभकं, मुरजं मद्दवीणकं।", | |
"पट्टिका सूकरन्तञ्च, दसा मुरजवेणिका।", | |
"अन्तो सोभं गुणकञ्च, पवनन्तोपि जीरति॥", | |
"गण्ठिका उच्चावचञ्च, फलकन्तेपि ओगाहे।", | |
"गिहिवत्थं हत्थिसोण्डं, मच्छकं चतुकण्णकं॥", | |
"तालवण्टं सतवलि, गिहिपारुतपारुपं।", | |
"संवेल्लि", | |
"कण्ठे", | |
"यमेळे लोकायतकं, परियापुणिंसु वाचयुं॥", | |
"तिरच्छानकथा", | |
"वाताबाधो दुस्सति च, दुग्गन्धो दुक्खपादुका॥", | |
"हिरियन्ति पारुदुग्गन्धो, तहं तहं करोन्ति च।", | |
"दुग्गन्धो कूपं लुज्जन्ति, उच्चवत्थु चयेन च॥", | |
"सोपानालम्बनबाहा अन्ते, दुक्खञ्च पादुका।", | |
"बहिद्धा दोणि कट्ठञ्च, पिठरो च अपारुतो॥", | |
"वच्चकुटिं कवाटञ्च, पिट्ठसङ्घाटमेव च।", | |
"उदुक्खलुत्तरपासो, वट्टिञ्च कपिसीसकं॥", | |
"सूचिघटिताळच्छिद्दं, आविञ्छनच्छिद्दमेव च।", | |
"रज्जु उल्लित्तावलित्तं, सेतवण्णञ्च काळकं॥", | |
"मालाकम्मं लताकम्मं, मकरं पञ्चपटिकं।", | |
"चीवरवंसं रज्जुञ्च, जरादुब्बलपाकारं॥", | |
"कोट्ठके चापि तथेव, मरुम्बं पदरसिला।", | |
"सन्तिट्ठति निद्धमनं, कुम्भिञ्चापि सरावकं॥", | |
"दुक्खं", | |
"लोहभण्डं", | |
"ठपयित्वा सन्दिपल्लङ्कं, दारुपत्तञ्च पादुकं।", | |
"सब्बं दारुमयं भण्डं, अनुञ्ञासि महामुनि॥", | |
"कतकं", | |
"सब्बम्पि मत्तिकाभण्डं, अनुञ्ञासि अनुकम्पको॥", | |
"यस्स वत्थुस्स निद्देसो, पुरिमेन यदि समं।", | |
"तम्पि संखित्तं उद्दाने, नयतो तं विजानिया॥", | |
"एवं दससता वत्थू, विनये खुद्दकवत्थुके।", | |
"सद्धम्मट्ठितिको चेव, पेसलानञ्चनुग्गहो॥", | |
"सुसिक्खितो विनयधरो, हितचित्तो सुपेसलो।", | |
"पदीपकरणो धीरो, पूजारहो बहुस्सुतोति॥", | |
"‘‘सीतं उण्हं पटिहन्ति", | |
"सरीसपे च मकसे, सिसिरे चापि वुट्ठियो॥", | |
"‘‘ततो", | |
"लेणत्थञ्च सुखत्थञ्च, झायितुञ्च विपस्सितुं॥", | |
"‘‘विहारदानं सङ्घस्स, अग्गं बुद्धेन", | |
"तस्मा हि पण्डितो, पोसो सम्पस्सं अत्थमत्तनो॥", | |
"‘‘विहारे कारये रम्मे, वासयेत्थ बहुस्सुते।", | |
"तेसं", | |
"ददेय्य उजुभूतेसु, विप्पसन्नेन चेतसा॥", | |
"‘‘ते तस्स धम्मं देसेन्ति, सब्बदुक्खापनूदनं।", | |
"यं सो धम्मं इधञ्ञाय, परिनिब्बाति अनासवो’’ति॥", | |
"‘‘सतं हत्थी सतं अस्सा, सतं अस्सतरीरथा।", | |
"सतं कञ्ञासहस्सानि, आमुक्कमणिकुण्डला।", | |
"एकस्स पदवीतिहारस्स, कलं नाग्घन्ति सोळसिं", | |
"‘‘अभिक्कम गहपति अभिक्कम गहपति।", | |
"अभिक्कन्तं ते सेय्यो नो पटिक्कन्त’’न्ति॥", | |
"‘‘सतं हत्थी सतं अस्सा, सतं अस्सतरीरथा।", | |
"सतं कञ्ञासहस्सानि, आमुक्कमणिकुण्डला।", | |
"एकस्स पदवीतिहारस्स, कलं नाग्घन्ति सोळसिं॥", | |
"‘‘अभिक्कम गहपति अभिक्कम गहपति,", | |
"अभिक्कन्तं ते सेय्यो नो पटिक्कन्त’’न्ति॥", | |
"यो न लिम्पति कामेसु, सीतिभूतो निरूपधि॥", | |
"‘‘सब्बा आसत्तियो छेत्वा, विनेय्य हदये दरं।", | |
"उपसन्तो सुखं सेति, सन्तिं पप्पुय्य चेतसा’’ति", | |
"दिट्ठे धम्मे च पासंसा, सम्पराये च सुग्गती’’ति॥", | |
"‘‘सीतं उण्हं पटिहन्ति, ततो वाळमिगानि च।", | |
"सरीसपे", | |
"‘‘ततो वातातपो घोरो, सञ्जातो पटिहञ्ञति।", | |
"लेणत्थञ्च सुखत्थञ्च, झायितुञ्च विपस्सितुं॥", | |
"‘‘विहारदानं", | |
"तस्मा हि पण्डितो पोसो, सम्पस्सं अत्थमत्तनो॥", | |
"‘‘विहारे कारये रम्मे, वासयेत्थ बहुस्सुते।", | |
"तेसं अन्नञ्च पानञ्च, वत्थसेनासनानि च।", | |
"ददेय्य उजुभूतेसु, विप्पसन्नेन चेतसा॥", | |
"‘‘ते तस्स धम्मं देसेन्ति, सब्बदुक्खापनूदनं।", | |
"यं सो धम्मं इधञ्ञाय, परिनिब्बाति अनासवो’’ति॥", | |
"विहारं", | |
"तहं तहं निक्खमन्ति, वासा ते जिनसावका॥", | |
"सेट्ठी गहपति दिस्वा, भिक्खूनं इदमब्रवि।", | |
"कारापेय्यं वसेय्याथ, पटिपुच्छिंसु नायकं॥", | |
"विहारं अड्ढयोगञ्च, पासादं हम्मियं गुहं।", | |
"पञ्चलेणं अनुञ्ञासि, विहारे सेट्ठि कारयि॥", | |
"जनो विहारं कारेति, अकवाटं असंवुतं।", | |
"कवाटं पिट्ठसङ्घाटं, उदुक्खलञ्च उत्तरि॥", | |
"आविञ्छनच्छिद्दं", | |
"सूचिघटिताळच्छिद्दं", | |
"यन्तकं सूचिकञ्चेव, छदनं उल्लित्तावलित्तं।", | |
"वेदिजालसलाकञ्च, चक्कलि सन्थरेन च॥", | |
"मिड्ढि बिदलमञ्चञ्च, सोसानिकमसारको।", | |
"बुन्दिकुळिरपादञ्च, आहच्चासन्दि उच्चके॥", | |
"सत्तङ्गो च भद्दपीठं, पीठकेळकपादकं।", | |
"आमलाफलका कोच्छा, पलालपीठमेव च॥", | |
"उच्चाहिपटिपादका, अट्ठङ्गुलि च पादका।", | |
"सुत्तं अट्ठपदं चोळं, तूलिकं अड्ढकायिकं॥", | |
"गिरग्गो भिसियो चापि, दुस्सं सेनासनम्पि च।", | |
"ओनद्धं हेट्ठा पतति, उप्पाटेत्वा हरन्ति च॥", | |
"भत्तिञ्च हत्थभत्तिञ्च, अनुञ्ञासि तथागतो।", | |
"तित्थिया विहारे चापि, थुसं सण्हञ्च मत्तिका॥", | |
"इक्कासं पाणिकं कुण्डं, सासपं सित्थतेलकं।", | |
"उस्सन्ने पच्चुद्धरितुं, फरुसं गण्डुमत्तिकं॥", | |
"इक्कासं", | |
"परिपतन्ति आळका, अड्ढकुट्टं तयो पुन॥", | |
"खुद्दके", | |
"चीवरवंसं रज्जुञ्च, आळिन्दं किटिकेन च॥", | |
"आलम्बनं", | |
"अज्झोकासे ओतप्पति, सालं हेट्ठा च भाजनं॥", | |
"विहारो कोट्ठको चेव, परिवेणग्गिसालकं।", | |
"आरामे च पुन कोट्ठे, हेट्ठञ्ञेव नयं करे॥", | |
"सुधं अनाथपिण्डि च, सद्धो सीतवनं अगा।", | |
"दिट्ठधम्मो निमन्तेसि, सह सङ्घेन नायकं॥", | |
"आणापेसन्तरामग्गे, आरामं कारयी गणो।", | |
"वेसालियं नवकम्मं, पुरतो च परिग्गहि॥", | |
"को अरहति भत्तग्गे, तित्तिरञ्च अवन्दिया।", | |
"परिग्गहितन्तरघरा, तूलो सावत्थि ओसरि॥", | |
"पतिट्ठापेसि आरामं, भत्तग्गे च कोलाहलं।", | |
"गिलाना वरसेय्या च, लेसा सत्तरसा तहिं॥", | |
"केन नु खो कथं नु खो, विहारग्गेन भाजयि।", | |
"परिवेणं", | |
"निस्सीमं सब्बकालञ्च, गाहा सेनासने तयो।", | |
"उपनन्दो च वण्णेसि, ठितका समकासना॥", | |
"समानासनिका भिन्दिंसु, तिवग्गा च दुवग्गिकं।", | |
"असमानासनिका दीघं, साळिन्दं परिभुञ्जितुं॥", | |
"अय्यिका च अविदूरे, भाजितञ्च कीटागिरे।", | |
"आळवी", | |
"आलोकसेतकाळञ्च", | |
"भण्डिखण्डपरिभण्डं, वीस तिंसा च कालिका॥", | |
"ओसिते अकतं विप्पं, खुद्दे छप्पञ्चवस्सिकं।", | |
"अड्ढयोगे च सत्तट्ठ, महल्ले दस द्वादस॥", | |
"सब्बं विहारं एकस्स, अञ्ञं वासेन्ति सङ्घिकं।", | |
"निस्सीमं सब्बकालञ्च, पक्कमि विब्भमन्ति च॥", | |
"कालञ्च", | |
"उम्मत्तखित्तचित्ता च, वेदनापत्तिदस्सना॥", | |
"अप्पटिकम्मदिट्ठिया, पण्डका थेय्यतित्थिया।", | |
"तिरच्छानमातुपितु, अरहन्ता च दूसका॥", | |
"भेदका लोहितुप्पादा, उभतो चापि ब्यञ्जनका।", | |
"मा सङ्घस्स परिहायि, कम्मं अञ्ञस्स दातवे॥", | |
"विप्पकते च अञ्ञस्स, कते तस्सेव पक्कमे।", | |
"विब्भमति", | |
"पच्चक्खातो च सिक्खाय, अन्तिमज्झापन्नको यदि।", | |
"सङ्घोव सामिको होति, उम्मत्तखित्तवेदना॥", | |
"अदस्सनाप्पटिकम्मे, दिट्ठि तस्सेव होति तं।", | |
"पण्डको थेय्यतित्थी च, तिरच्छानमातुपेत्तिकं॥", | |
"घातको दूसको चापि, भेदलोहितब्यञ्जना।", | |
"पटिजानाति यदि सो, सङ्घोव होति सामिको॥", | |
"हरन्तञ्ञत्र", | |
"दुस्सञ्च चम्मचक्कली, चोळकं अक्कमन्ति च॥", | |
"अल्ला उपाहनानिट्ठु, लिखन्ति अपस्सेन्ति च।", | |
"अपस्सेनं लिखतेव, धोतपच्चत्थरेन च॥", | |
"राजगहे न सक्कोन्ति, लामकं भत्तुद्देसकं।", | |
"कथं नु खो पञ्ञापकं, भण्डागारिकसम्मुति॥", | |
"पटिग्गाहभाजको चापि, यागु च फलभाजको।", | |
"खज्जकभाजको चेव, अप्पमत्तकविस्सज्जे॥", | |
"साटियग्गाहापको चेव, तथेव पत्तग्गाहको।", | |
"आरामिकसामणेर, पेसकस्स च सम्मुति॥", | |
"सब्बाभिभू लोकविदू, हितचित्तो विनायको।", | |
"लेणत्थञ्च सुखत्थञ्च, झायितुञ्च विपस्सितुन्ति॥", | |
"तं विगतभयं सुखिं असोकं, देवा नानुभवन्ति दस्सनाया’’ति॥", | |
"सक्कारो कापुरिसं हन्ति, गब्भो अस्सतरिं यथा’’ति॥", | |
"‘‘मा कुञ्जर नागमासदो, दुक्खञ्हि कुञ्जर नागमासदो।", | |
"न हि नागहतस्स कुञ्जर सुगति, होति इतो परं यतो॥", | |
"‘‘मा च मदो मा च पमादो, न हि पमत्ता सुगतिं वजन्ति ते।", | |
"त्वञ्ञेव तथा करिस्ससि, येन त्वं सुगतिं गमिस्ससी’’ति॥", | |
"अदण्डेन असत्थेन, नागो दन्तो महेसिना’’ति॥", | |
"पापं पापेन सुकरं, पापमरियेहि दुक्कर’’न्ति॥", | |
"‘‘महावराहस्स महिं विक्रुब्बतो", | |
"भिङ्कोव", | |
"न च हापेति वचनं, न च छादेति सासनं॥", | |
"‘‘असन्दिद्धो च अक्खाति", | |
"स वे तादिसको भिक्खु, दूतेय्यं गन्तुमरहती’’ति॥", | |
"‘‘मा जातु कोचि लोकस्मिं, पापिच्छो उदपज्जथ।", | |
"तदमिनापि", | |
"‘‘पण्डितोति समञ्ञातो, भावितत्तोति सम्मतो।", | |
"जलंव यससा अट्ठा, देवदत्तोति मे सुतं॥", | |
"‘‘सो पमादं अनुचिण्णो, आसज्ज नं तथागतं।", | |
"अवीचिनिरयं पत्तो, चतुद्वारं भयानकं॥", | |
"‘‘अदुट्ठस्स हि यो दुब्भे, पापकम्मं अक्रुब्बतो।", | |
"तमेव पापं फुसति, दुट्ठचित्तं अनादरं॥", | |
"‘‘समुद्दं विसकुम्भेन, यो मञ्ञेय्य पदूसितुं", | |
"न सो तेन पदूसेय्य, भेस्मा हि उदधी महा॥", | |
"‘‘एवमेव", | |
"समग्गतं", | |
"‘‘तादिसं मित्तं क्रुब्बेथ", | |
"यस्स मग्गानुगो भिक्खु, खयं दुक्खस्स पापुणे’’ति॥", | |
"वग्गरतो अधम्मट्ठो, योगक्खेमा पधंसति।", | |
"सङ्घं समग्गं भिन्दित्वा, कप्पं निरयम्हि पच्चती’’ति॥", | |
"समग्गरतो धम्मट्ठो, योगक्खेमा न धंसति।", | |
"सङ्घं समग्गं कत्वान, कप्पं सग्गम्हि मोदती’’ति॥", | |
"अनुपिये अभिञ्ञाता, सुखुमालो न इच्छति।", | |
"कसा वपा अभि निन्ने, निद्धा लावे च उब्बहे॥", | |
"पुञ्जमद्दपलालञ्च, भुसओफुणनीहरे।", | |
"आयतिम्पि न खीयन्ति, पितरो च पितामहा॥", | |
"भद्दियो अनुरुद्धो च, आनन्दो भगु किमिलो।", | |
"सक्यमानो च कोसम्बिं, परिहायि ककुधेन च॥", | |
"पकासेसि पितुनो च, पुरिसे सिलं नाळागिरिं।", | |
"तिकपञ्चगरुको खो, भिन्दि थुल्लच्चयेन च।", | |
"तयो अट्ठ पुन तीणि, राजि भेदा सिया नु खोति॥", | |
"सउपाहना छत्ता च, ओगुण्ठि सीसं पानीयं।", | |
"नाभिवादे न पुच्छन्ति, अहि उज्झन्ति पेसला॥", | |
"ओमुञ्चि छत्तं खन्धे च, अतरञ्च पटिक्कमं।", | |
"पत्तचीवरं निक्खिपा, पतिरूपञ्च पुच्छिता॥", | |
"आसिञ्चेय्य धोवितेन, सुक्खेनल्लेनुपाहना।", | |
"वुड्ढो नवको पुच्छेय्य, अज्झावुट्ठञ्च गोचरा॥", | |
"सेक्खा", | |
"कालं", | |
"पटिपादो", | |
"अपस्सेनुल्लोककण्णा, गेरुका काळ अकता॥", | |
"सङ्कारञ्च भूमत्थरणं, पटिपादकं मञ्चपीठं।", | |
"भिसि निसीदनम्पि, मल्लकं अपस्सेन च॥", | |
"पत्तचीवरं भूमि च, पारन्तं ओरतो भोगं।", | |
"पुरत्थिमा पच्छिमा च, उत्तरा अथ दक्खिणा॥", | |
"सीतुण्हे च दिवारत्तिं, परिवेणञ्च कोट्ठको।", | |
"उपट्ठानग्गि साला च, वत्तं वच्चकुटीसु च॥", | |
"पानी परिभोजनिया, कुम्भि आचमनेसु च।", | |
"अनोपमेन पञ्ञत्तं, वत्तं आगन्तुकेहिमे", | |
"नेवासनं न उदकं, न पच्चु न च पानियं।", | |
"नाभिवादे नपञ्ञपे, उज्झायन्ति च पेसला॥", | |
"वुड्ढासनञ्च उदकं, पच्चुग्गन्त्वा च पानियं।", | |
"उपाहने एकमन्तं, अभिवादे च पञ्ञपे॥", | |
"वुत्थं", | |
"कत्तरं कतिकं कालं, नवकस्स निसिन्नके॥", | |
"अभिवादये", | |
"निद्दिट्ठं सत्थवाहेन वत्तं आवासिकेहिमे॥", | |
"गमिका दारुमत्ति च, विवरित्वा न पुच्छिय।", | |
"नस्सन्ति च अगुत्तञ्च, उज्झायन्ति च पेसला॥", | |
"पटिसामेत्वा", | |
"भिक्खु वा सामणेरो वा, आरामिको उपासको॥", | |
"पासाणकेसु च पुञ्जं, पटिसामे थकेय्य च।", | |
"सचे उस्सहति उस्सुक्कं, अनोवस्से तथेव च॥", | |
"सब्बो", | |
"अप्पेवङ्गानि सेसेय्युं, वत्तं गमिकभिक्खुना॥", | |
"नानुमोदन्ति थेरेन, ओहाय चतुपञ्चहि।", | |
"वच्चितो मुच्छितो आसि, वत्तानुमोदनेसुमे॥", | |
"छब्बग्गिया दुन्निवत्था, अथोपि च दुप्पारुता।", | |
"अनाकप्पा च वोक्कम्म, थेरे अनुपखज्जने॥", | |
"नवे भिक्खू च सङ्घाटि, उज्झायन्ति च पेसला।", | |
"तिमण्डलं", | |
"न वोक्कम्म पटिच्छन्नं, सुसंवुतोक्खित्तचक्खु।", | |
"उक्खित्तोज्जग्घिकासद्दो, तयो चेव पचालना॥", | |
"खम्भोगुण्ठिउक्कुटिका, पटिच्छन्नं सुसंवुतो।", | |
"ओक्खित्तुक्खित्तउज्जग्घि, अप्पसद्दो तयो चला॥", | |
"खम्भोगुण्ठिपल्लत्थि च, अनुपखज्ज नासने।", | |
"ओत्थरित्वान उदके, नीचं कत्वान सिञ्चिया॥", | |
"पटि सामन्ता सङ्घाटि, ओदने च पटिग्गहे।", | |
"सूपं उत्तरिभङ्गेन, सब्बेसं समतित्थि च॥", | |
"सक्कच्चं", | |
"न थूपतो पटिच्छादे, विञ्ञत्तुज्झानसञ्ञिना॥", | |
"महन्तमण्डलद्वारं, सब्बहत्थो न ब्याहरे।", | |
"उक्खेपो छेदनागण्ड, धुनं सित्थावकारकं॥", | |
"जिव्हानिच्छारकञ्चेव, चपुचपु सुरुसुरु।", | |
"हत्थपत्तोट्ठनिल्लेहं, सामिसेन पटिग्गहे॥", | |
"याव", | |
"पटि सामन्ता सङ्घाटि, नीचं कत्वा छमाय च॥", | |
"ससित्थकं निवत्तन्ते, सुप्पटिच्छन्नमुक्कुटि।", | |
"धम्मराजेन पञ्ञत्तं, इदं भत्तग्गवत्तनं॥", | |
"दुन्निवत्था", | |
"दूरे अच्च चिरं लहुं, तथेव पिण्डचारिको॥", | |
"पटिच्छन्नोव", | |
"उक्खित्तोज्जग्घिकासद्दो, तयो चेव पचालना॥", | |
"खम्भोगुण्ठिउक्कुटिका, सल्लक्खेत्वा च सहसा।", | |
"दूरे अच्च चिरं लहुं, आसनकं कटच्छुका॥", | |
"भाजनं वा ठपेति च, उच्चारेत्वा पणामेत्वा।", | |
"पटिग्गहे न उल्लोके, सूपेसुपि तथेव तं॥", | |
"भिक्खु सङ्घाटिया छादे, पटिच्छन्नेव गच्छियं।", | |
"संवुतोक्खित्तचक्खु च, उक्खित्तोज्जग्घिकाय च।", | |
"अप्पसद्दो तयो चाला, खम्भोगुण्ठिकउक्कुटि॥", | |
"पठमासनवक्कार", | |
"पच्छाकङ्खति भुञ्जेय्य, ओपिलापेय्य उद्धरे॥", | |
"पटिसामेय्य", | |
"हत्थविकारे भिन्देय्य, वत्तिदं पिण्डचारिके॥", | |
"पानी परि अग्गिरणि, नक्खत्तदिसचोरा च।", | |
"सब्बं नत्थीति कोट्टेत्वा, पत्तंसे चीवरं ततो॥", | |
"इदानि अंसे लग्गेत्वा, तिमण्डलं परिमण्डलं।", | |
"यथा पिण्डचारिवत्तं, नये आरञ्ञकेसुपि॥", | |
"पत्तंसे चीवरं सीसे, आरोहित्वा च पानियं।", | |
"परिभोजनियं अग्गि, अरणी चापि कत्तरं॥", | |
"नक्खत्तं सप्पदेसं वा, दिसापि कुसलो भवे।", | |
"सत्तुत्तमेन पञ्ञत्तं, वत्तं आरञ्ञकेसुमे॥", | |
"अज्झोकासे ओकिरिंसु, उज्झायन्ति च पेसला।", | |
"सचे विहारो उक्लापो, पठमं पत्तचीवरं॥", | |
"भिसिबिब्बोहनं मञ्चं, पीठञ्च खेळमल्लकं।", | |
"अपस्सेनुल्लोककण्णा, गेरुका काळ अकता॥", | |
"सङ्कारं", | |
"परिभोजनसामन्ता, पटिवाते च अङ्गणे॥", | |
"अधोवाते अत्थरणं, पटिपादकमञ्चो च।", | |
"पीठं", | |
"पत्तचीवरं", | |
"पुरत्थिमा च पच्छिमा, उत्तरा अथ दक्खिणा॥", | |
"सीतुण्हे च दिवा रत्तिं, परिवेणञ्च कोट्ठको।", | |
"उपट्ठानग्गिसाला च, वच्चकुटी च पानियं॥", | |
"आचमनकुम्भि वुड्ढे च, उद्देसपुच्छना सज्झा।", | |
"धम्मो पदीपं विज्झापे, न विवरे नपि थके॥", | |
"येन वुड्ढो परिवत्ति, कण्णेनपि न घट्टये।", | |
"पञ्ञपेसि महावीरो, वत्तं सेनासनेसु तं॥", | |
"निवारियमाना द्वारं, मुच्छितुज्झन्ति पेसला।", | |
"छारिकं", | |
"परिवेणं कोट्ठको साला, चुण्णमत्तिकदोणिका।", | |
"मुखं पुरतो न थेरे, न नवे उस्सहति सचे॥", | |
"पुरतो उपरिमग्गो, चिक्खल्लं मत्ति पीठकं।", | |
"विज्झापेत्वा थकेत्वा च, वत्तं जन्ताघरेसुमे॥", | |
"नाचमेति यथावुड्ढं, पटिपाटि च सहसा।", | |
"उब्भजि", | |
"फरुसा कूप सहसा, उब्भजि चपु सेसेन।", | |
"बहि अन्तो च उक्कासे, रज्जु अतरमानञ्च॥", | |
"सहसा उब्भजि ठिते, नित्थुने कट्ठ वच्चञ्च।", | |
"पस्साव खेळ फरुसा, कूपञ्च वच्चपादुके॥", | |
"नातिसहसा", | |
"न सेसये पटिच्छादे, उहतपिधरेन च॥", | |
"वच्चकुटी", | |
"आचमने च उदकं, वत्तं वच्चकुटीसुमे॥", | |
"उपाहना दन्तकट्ठं, मुखोदकञ्च आसनं।", | |
"यागु उदकं धोवित्वा, उद्धारुक्लाप गाम च॥", | |
"निवासना कायबन्धा, सगुणं पत्तसोदकं।", | |
"पच्छा तिमण्डलो चेव, परिमण्डल बन्धनं॥", | |
"सगुणं धोवित्वा पच्छा, नातिदूरे पटिग्गहे।", | |
"भणमानस्स आपत्ति, पठमागन्त्वान आसनं॥", | |
"उदकं पीठकथलि, पच्चुग्गन्त्वा निवासनं।", | |
"ओतापे", | |
"पानीयं उदकं नीचं, मुहुत्तं न च निदहे।", | |
"पत्तचीवरं भूमि च, पारन्तं ओरतो भोगं॥", | |
"उद्धरे पटिसामे च, उक्लापो च नहायितुं।", | |
"सीतं उण्हं जन्ताघरं, चुण्णं मत्तिक पिट्ठितो॥", | |
"पीठञ्च चीवरं चुण्णं, मत्तिकुस्सहति मुखं।", | |
"पुरतो थेरे नवे च, परिकम्मञ्च निक्खमे॥", | |
"पुरतो उदके न्हाते, निवासेत्वा उपज्झायं।", | |
"निवासनञ्च सङ्घाटि, पीठकं आसनेन च॥", | |
"पादो", | |
"उक्लापं सुसोधेय्य, पठमं पत्तचीवरं॥", | |
"निसीदनपच्चत्थरणं, भिसि बिब्बोहनानि च।", | |
"मञ्चो पीठं पटिपादं, मल्लकं अपस्सेन च॥", | |
"भूम सन्तान आलोक, गेरुका काळ अकता।", | |
"भूमत्थरपटिपादा, मञ्चो पीठं बिब्बोहनं॥", | |
"निसीदत्थरणं खेळ, अपस्से पत्तचीवरं।", | |
"पुरत्थिमा", | |
"सीतुण्हञ्च", | |
"उपट्ठानग्गिसाला", | |
"आचमं अनभिरति, कुक्कुच्चं दिट्ठि च गरु।", | |
"मूलमानत्तअब्भानं, तज्जनीयं नियस्सकं॥", | |
"पब्बाज पटिसारणी, उक्खेपञ्च कतं यदि।", | |
"धोवे कातब्बं रजञ्च, रजे सम्परिवत्तकं॥", | |
"पत्तञ्च चीवरञ्चापि, परिक्खारञ्च छेदनं।", | |
"परिकम्मं वेय्यावच्चं, पच्छा पिण्डं पविसनं॥", | |
"न सुसानं दिसा चेव, यावजीवं उपट्ठहे।", | |
"सद्धिविहारिकेनेतं, वत्तुपज्झायकेसुमे॥", | |
"ओवादसासनुद्देसा, पुच्छा पत्तञ्च चीवरं।", | |
"परिक्खारो गिलानो च, न पच्छासमणो भवे॥", | |
"उपज्झायेसु", | |
"सद्धिविहारिके वत्ता, तथेव अन्तेवासिके॥", | |
"आगन्तुकेसु ये वत्ता, पुन आवासिकेसु च।", | |
"गमिकानुमोदनिका, भत्तग्गे पिण्डचारिके॥", | |
"आरञ्ञकेसु यं वत्तं, यञ्च सेनासनेसुपि।", | |
"जन्ताघरे वच्चकुटी, उपज्झा सद्धिविहारिके॥", | |
"आचरियेसु", | |
"एकूनवीसति वत्थू, वत्ता चुद्दस खन्धके॥", | |
"वत्तं अपरिपूरेन्तो, न सीलं परिपूरति।", | |
"असुद्धसीलो दुप्पञ्ञो, चित्तेकग्गं न विन्दति॥", | |
"विक्खित्तचित्तोनेकग्गो, सम्मा धम्मं न पस्सति।", | |
"अपस्समानो सद्धम्मं, दुक्खा न परिमुच्चति॥", | |
"यं", | |
"विसुद्धसीलो सप्पञ्ञो, चित्तेकग्गम्पि विन्दति॥", | |
"अविक्खित्तचित्तो एकग्गो, सम्मा धम्मं विपस्सति।", | |
"सम्पस्समानो सद्धम्मं, दुक्खा सो परिमुच्चति॥", | |
"तस्मा हि वत्तं पूरेय्य, जिनपुत्तो विचक्खणो।", | |
"ओवादं बुद्धसेट्ठस्स, ततो निब्बानमेहितीति॥", | |
"तस्मा छन्नं विवरेथ, एवं तं नातिवस्सती’’ति॥", | |
"उपोसथे", | |
"मोग्गल्लानेन निच्छुद्धो, अच्छेरा जिनसासने॥", | |
"निन्नोनुपुब्बसिक्खा च, ठितधम्मो नातिक्कम्म।", | |
"कुणपुक्खिपति सङ्घो, सवन्तियो जहन्ति च॥", | |
"सवन्ति परिनिब्बन्ति, एकरस विमुत्ति च।", | |
"बहु धम्मविनयोपि, भूतट्ठारियपुग्गला॥", | |
"समुद्दं", | |
"उपोसथे पातिमोक्खं, न अम्हे कोचि जानाति॥", | |
"पटिकच्चेव उज्झन्ति, एको द्वे तीणि चत्तारि।", | |
"पञ्च छ सत्त अट्ठानि, नवा च दसमानि च॥", | |
"सील-आचार-दिट्ठि च, आजीवं चतुभागिके।", | |
"पाराजिकञ्च सङ्घादि, पाचित्ति पाटिदेसनि॥", | |
"दुक्कटं पञ्चभागेसु, सीलाचारविपत्ति च।", | |
"अकताय कताय च, छभागेसु यथाविधि॥", | |
"पाराजिकञ्च सङ्घादि, थुल्लं पाचित्तियेन च।", | |
"पाटिदेसनियञ्चेव", | |
"सीलाचारविपत्ति च, दिट्ठिआजीवविपत्ति।", | |
"या च अट्ठा कताकते, तेनेता सीलाचारदिट्ठिया॥", | |
"अकताय कतायापि, कताकतायमेव च।", | |
"एवं नवविधा वुत्ता, यथाभूतेन ञायतो॥", | |
"पाराजिको विप्पकता, पच्चक्खातो तथेव च।", | |
"उपेति पच्चादियति, पच्चादानकथा च या॥", | |
"सीलाचारविपत्ति च, तथा दिट्ठिविपत्तिया।", | |
"दिट्ठसुतपरिसङ्कितं, दसधा तं विजानाथ॥", | |
"भिक्खु", | |
"सो येव तस्स अक्खाति", | |
"वुट्ठाति", | |
"मनुस्सअमनुस्सा च, वाळसरीसपा जीविब्रह्मं॥", | |
"दसन्नमञ्ञतरेन, तस्मिं अञ्ञतरेसु वा।", | |
"धम्मिकाधम्मिका", | |
"कालभूतत्थसंहितं", | |
"कायवाचसिका मेत्ता, बाहुसच्चं उभयानि॥", | |
"कालभूतेन सण्हेन, अत्थमेत्तेन चोदये।", | |
"विप्पटिसारधम्मेन, तथा वाचा", | |
"धम्मचोदचुदितस्स, विनोदेति विप्पटिसारो।", | |
"करुणा हितानुकम्पि, वुट्ठानपुरेक्खारतो॥", | |
"चोदकस्स पटिपत्ति, सम्बुद्धेन पकासिता।", | |
"सच्चे चेव अकुप्पे च, चुदितस्सेव धम्मताति॥", | |
"पब्बज्जं", | |
"कपिलवत्थु वेसालिं, अगमासि विनायको॥", | |
"रजोकिण्णेन कोट्ठके, आनन्दस्स पवेदयि।", | |
"भब्बोति", | |
"वस्ससतं तदहु च, अभिक्खुपच्चासीसना।", | |
"पवारणा गरुधम्मा, द्वे वस्सा अनक्कोसना॥", | |
"ओवटो च अट्ठ धम्मा, यावजीवानुवत्तना।", | |
"गरुधम्मपटिग्गाहो सावस्सा उपसम्पदा॥", | |
"वस्ससहस्सं पञ्चेव, कुम्भथेनकसेतट्टि।", | |
"मञ्जिट्ठिकउपमाहि, एवं सद्धम्महिंसना॥", | |
"आळिं बन्धेय्य पाएव, पुन सद्धम्मसण्ठिति।", | |
"उपसम्पादेतुं अय्या, यथावुड्ढाभिवादना॥", | |
"न", | |
"ओवादं पातिमोक्खञ्च, केन नु खो उपस्सयं॥", | |
"न जानन्ति च आचिक्खि, न करोन्ति च भिक्खुहि।", | |
"पटिग्गहेतुं भिक्खूहि, भिक्खुनीहि पटिग्गहो॥", | |
"आचिक्खि कम्मं भिक्खूहि, उज्झायन्ति भिक्खुनीहि वा।", | |
"आचिक्खितुं भण्डनञ्च, रोपेत्वा उप्पलाय च॥", | |
"सावत्थिया कद्दमोद, अवन्दि काय ऊरु च।", | |
"अङ्गजातञ्च ओभासं, सम्पयोजेन्ति वग्गिका॥", | |
"अवन्दियो", | |
"आवरणञ्च", | |
"बाला वत्थुविनिच्छया, ओवादं सङ्घो पञ्चहि।", | |
"दुवे तिस्सो न गण्हन्ति, बाला गिलानगमिकं॥", | |
"आरञ्ञिको नारोचेन्ति, न पच्चागच्छन्ति च।", | |
"दीघं विलीवचम्मञ्च, दुस्सा च वेणिवट्टि च।", | |
"चोळवेणि च वट्टि च, सुत्तवेणि च वट्टिका॥", | |
"अट्ठिल्लं गोहनुकेन, हत्थकोच्छं पादं तथा।", | |
"ऊरुं मुखं दन्तमंसं, आलिम्पोमद्दचुण्णना॥", | |
"लञ्छेन्ति अङ्गरागञ्च, मुखरागं तथा दुवे।", | |
"अवङ्गं विसेसोलोको, सालोकेन नच्चेन च", | |
"वेसी", | |
"दासं दासिं कम्मकरं, कम्मकारिं उपट्ठय्युं॥", | |
"तिरच्छानहरीतकि, सन्धारयन्ति नमतकं।", | |
"नीलं पीतं लोहितकं, मञ्जिट्ठकण्हचीवरा॥", | |
"महारङ्गमहानामअच्छिन्ना दीघमेव च।", | |
"पुप्फफलकञ्चुकञ्च, तिरीटकञ्च धारयुं॥", | |
"भिक्खुनी", | |
"निय्यादिते", | |
"भिक्खुस्स सामणेरस्स, उपासकस्सुपासिका।", | |
"अञ्ञेसञ्च परिक्खारे, निय्याते भिक्खुइस्सरा॥", | |
"मल्ली", | |
"उस्सन्नञ्च बाळ्हतरं, सन्निधिकतमामिसं॥", | |
"भिक्खूनं यादिसं भोट्ठं", | |
"सेनासनं उतुनियो, मक्खीयति पटाणि च॥", | |
"छिज्जन्ति सब्बकालञ्च, अनिमित्तापि दिस्सरे।", | |
"निमित्ता लोहिता चेव, तथेव धुवलोहिता॥", | |
"धुवचोळपग्घरन्ती, सिखरणित्थिपण्डका।", | |
"वेपुरिसी च सम्भिन्ना, उभतोब्यञ्जनापि च॥", | |
"अनिमित्तादितो कत्वा, याव उभतोब्यञ्जना।", | |
"एतं पेय्यालतो हेट्ठा, कुट्ठं गण्डो किलासो च॥", | |
"सोसापमारो मानुसी, इत्थीसि भुजिस्सासि च।", | |
"अणणा न राजभटी, अनुञ्ञाता च वीसति॥", | |
"परिपुण्णा च किन्नामा, कानामा ते पवत्तिनी।", | |
"चतुवीसन्तरायानं, पुच्छित्वा उपसम्पदा॥", | |
"वित्थायन्ति अननुसिट्ठा, सङ्घमज्झे तथेव च।", | |
"उपज्झागाह सङ्घाटि, उत्तरन्तरवासको॥", | |
"सङ्कच्चुदकसाटि च, आचिक्खित्वान पेसये।", | |
"बाला", | |
"एकतोउपसम्पन्ना, भिक्खुसङ्घे तथा पुन।", | |
"छाया उतु दिवसा च, सङ्गीति तयो निस्सये॥", | |
"अट्ठ अकरणीयानि, कालं सब्बत्थ अट्ठेव।", | |
"न पवारेन्ति भिक्खुनी, भिक्खुसङ्घं तथेव च॥", | |
"कोलाहलं", | |
"उपोसथं पवारणं, सवचनीयानुवादनं॥", | |
"ओकासं चोदे सारेन्ति, पटिक्खित्तं महेसिना।", | |
"तथेव भिक्खु भिक्खुनी, अनुञ्ञातं महेसिना॥", | |
"यानं गिलानयुत्तञ्च, यानुग्घातड्ढकासिका।", | |
"भिक्खु सिक्खा सामणेर, सामणेरी च बालाय॥", | |
"अरञ्ञे", | |
"न सम्मति नवकम्मं, निसिन्नगब्भएकिका॥", | |
"सागारञ्च गरुधम्मं, पच्चक्खाय च सङ्कमि।", | |
"अभिवादनकेसा च, नखा च वणकम्मना॥", | |
"पल्लङ्केन गिलाना च, वच्चं चुण्णेन वासितं।", | |
"जन्ताघरे पटिसोते, अतित्थे पुरिसेन च॥", | |
"महागोतमी आयाचि, आनन्दो चापि योनिसो।", | |
"परिसा चतस्सो होन्ति, पब्बज्जा जिनसासने॥", | |
"संवेगजननत्थाय", | |
"आतुरस्साव भेसज्जं, एवं बुद्धेन देसितं॥", | |
"एवं विनीता सद्धम्मे, मातुगामापि इतरा।", | |
"यायन्ति", | |
"परिनिब्बुते", | |
"आमन्तयि भिक्खुगणं, सद्धम्ममनुपालको।", | |
"पावायद्धानमग्गम्हि, सुभद्देन पवेदितं।", | |
"सङ्गायिस्साम", | |
"एकेनून पञ्चसतं, आनन्दम्पि च उच्चिनि।", | |
"धम्मविनयसङ्गीतिं, वसन्तो गुहमुत्तमे॥", | |
"उपालिं", | |
"पिटकं तीणि सङ्गीतिं, अकंसु जिनसावका॥", | |
"न पुच्छि अक्कमित्वान, वन्दापेसि न याचि च॥", | |
"पब्बज्जं", | |
"पुराणो ब्रह्मदण्डञ्च, ओरोधो उदेनेन सह॥", | |
"ताव बहु दुब्बलञ्च, उत्तरत्थरणा भिसि।", | |
"भूमत्थरणा पुञ्छनियो, रजो चिक्खल्लमद्दना॥", | |
"सहस्सचीवरं उप्पज्जि, पठमानन्दसव्हयो।", | |
"तज्जितो ब्रह्मदण्डेन, चतुस्सच्चं अपापुणि।", | |
"वसीभूता पञ्चसता, तस्मा पञ्चसती इति॥", | |
"‘‘रागदोसपरिक्लिट्ठा, एके समणब्राह्मणा।", | |
"अविज्जानिवुटा", | |
"‘‘सुरं पिवन्ति मेरयं, पटिसेवन्ति मेथुनं।", | |
"रजतं जातरूपञ्च, सादियन्ति अविद्दसू॥", | |
"‘‘मिच्छाजीवेन जीवन्ति, एके समणब्राह्मणा।", | |
"एते उपक्किलेसा वुत्ता, बुद्धेनादिच्चबन्धुना॥", | |
"‘‘येहि उपक्किलेसेहि उपक्किलिट्ठा, एके समणब्राह्मणा।", | |
"न तपन्ति न भासन्ति, असुद्धा सरजा मगा॥", | |
"‘‘अन्धकारेन ओनद्धा, तण्हादासा सनेत्तिका।", | |
"वड्ढेन्ति कटसिं घोरं, आदियन्ति पुनब्भवन्ति॥", | |
"दस", | |
"चत्तारो पुन रूपञ्च, कोसम्बि च पावेय्यको॥", | |
"मग्गो सोरेय्यं सङ्कस्सं, कण्णकुज्जं उदुम्बरं।", | |
"सहजाति च मज्झेसि, अस्सोसि कं नु खो मयं॥", | |
"पत्तनावाय उज्जवि, रहोसि उपनामयं", | |
"गरु" | |
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