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"title": "११. दसुत्तरसुत्तं", | |
"book_name": "११. दसुत्तरसुत्तं", | |
"chapter": "१०. सङ्गीतिसुत्तं", | |
"gathas": [ | |
"‘सीहोति", | |
"अमञ्ञि कोत्थु मिगराजाहमस्मि।", | |
"तथेव", | |
"के च छवे सिङ्गाले के पन सीहनादे’ति॥", | |
"‘अञ्ञं", | |
"याव अत्तानं न पस्सति, कोत्थु ताव ब्यग्घोति मञ्ञति॥", | |
"तथेव", | |
"के च छवे सिङ्गाले के पन सीहनादे’ति॥", | |
"‘भुत्वान भेके", | |
"कटसीसु खित्तानि च कोणपानि", | |
"महावने सुञ्ञवने विवड्ढो,", | |
"अमञ्ञि कोत्थु मिगराजाहमस्मि॥", | |
"तथेव सो सिङ्गालकं अनदि।", | |
"के च छवे सिङ्गाले के पन सीहनादे’ति॥", | |
"‘खत्तियो सेट्ठो जनेतस्मिं, ये गोत्तपटिसारिनो।", | |
"विज्जाचरणसम्पन्नो, सो सेट्ठो देवमानुसे’ति॥", | |
"‘खत्तियो", | |
"विज्जाचरणसम्पन्नो, सो सेट्ठो देवमानुसे’ति॥", | |
"‘‘सच्चे च धम्मे च दमे च संयमे,", | |
"सोचेय्यसीलालयुपोसथेसु च।", | |
"दाने अहिंसाय असाहसे रतो,", | |
"दळ्हं समादाय समत्तमाचरि", | |
"‘‘सो तेन कम्मेन दिवं समक्कमि", | |
"सुखञ्च खिड्डारतियो च अन्वभि", | |
"ततो चवित्वा पुनरागतो इध,", | |
"समेहि पादेहि फुसी वसुन्धरं॥", | |
"‘‘ब्याकंसु वेय्यञ्जनिका समागता,", | |
"समप्पतिट्ठस्स न होति खम्भना।", | |
"गिहिस्स वा पब्बजितस्स वा पुन", | |
"तं लक्खणं भवति तदत्थजोतकं॥", | |
"‘‘अक्खम्भियो", | |
"पराभिभू सत्तुभि नप्पमद्दनो।", | |
"मनुस्सभूतेनिध होति केनचि,", | |
"अक्खम्भियो तस्स फलेन कम्मुनो॥", | |
"‘‘सचे", | |
"नेक्खम्मछन्दाभिरतो विचक्खणो।", | |
"अग्गो न सो गच्छति जातु खम्भनं,", | |
"नरुत्तमो एस हि तस्स धम्मता’’ति॥", | |
"‘‘पुरे पुरत्था पुरिमासु जातिसु,", | |
"मनुस्सभूतो बहुनं सुखावहो।", | |
"उब्भेगउत्तासभयापनूदनो,", | |
"गुत्तीसु रक्खावरणेसु उस्सुको॥", | |
"‘‘सो", | |
"सुखञ्च खिड्डारतियो च अन्वभि।", | |
"ततो चवित्वा पुनरागतो इध,", | |
"चक्कानि पादेसु दुवेसु विन्दति॥", | |
"‘‘समन्तनेमीनि सहस्सरानि च,", | |
"ब्याकंसु वेय्यञ्जनिका समागता।", | |
"दिस्वा", | |
"परिवारवा हेस्सति सत्तुमद्दनो॥", | |
"तथा ही चक्कानि समन्तनेमिनि,", | |
"सचे", | |
"वत्तेति चक्कं पथविं पसासति,", | |
"तस्सानुयन्ताध", | |
"‘‘महायसं संपरिवारयन्ति नं,", | |
"सचे च पब्बज्जमुपेति तादिसो।", | |
"नेक्खम्मछन्दाभिरतो विचक्खणो,", | |
"देवामनुस्सासुरसक्करक्खसा", | |
"‘‘गन्धब्बनागा विहगा चतुप्पदा,", | |
"अनुत्तरं देवमनुस्सपूजितं।", | |
"महायसं संपरिवारयन्ति न’’न्ति॥", | |
"‘‘मारणवधभयत्तनो", | |
"पटिविरतो परं मारणायहोसि।", | |
"तेन सुचरितेन सग्गमगमा", | |
"सुकतफलविपाकमनुभोसि॥", | |
"‘‘चविय पुनरिधागतो समानो,", | |
"पटिलभति इध तीणि लक्खणानि।", | |
"भवति विपुलदीघपासण्हिको,", | |
"ब्रह्माव सुजु सुभो सुजातगत्तो॥", | |
"‘‘सुभुजो सुसु सुसण्ठितो सुजातो,", | |
"मुदुतलुनङ्गुलियस्स होन्ति।", | |
"दीघा तीभि", | |
"चिरयपनाय", | |
"‘‘भवति यदि गिही चिरं यपेति,", | |
"चिरतरं पब्बजति यदि ततो हि।", | |
"यापयति", | |
"इति दीघायुकताय तं निमित्त’’न्ति॥", | |
"‘‘खज्जभोज्जमथ लेय्य सायियं,", | |
"उत्तमग्गरसदायको अहु।", | |
"तेन सो सुचरितेन कम्मुना,", | |
"नन्दने चिरमभिप्पमोदति॥", | |
"‘‘सत्त", | |
"हत्थपादमुदुतञ्च विन्दति।", | |
"आहु ब्यञ्जननिमित्तकोविदा,", | |
"खज्जभोज्जरसलाभिताय नं॥", | |
"‘‘यं गिहिस्सपि", | |
"पब्बज्जम्पि च तदाधिगच्छति।", | |
"खज्जभोज्जरसलाभिरुत्तमं,", | |
"आहु सब्बगिहिबन्धनच्छिद’’न्ति॥", | |
"‘‘दानम्पि चत्थचरियतञ्च", | |
"पियवादितञ्च समानत्ततञ्च", | |
"करियचरियसुसङ्गहं बहूनं,", | |
"अनवमतेन गुणेन याति सग्गं॥", | |
"‘‘चविय पुनरिधागतो समानो,", | |
"करचरणमुदुतञ्च जालिनो च।", | |
"अतिरुचिरसुवग्गुदस्सनेय्यं,", | |
"पटिलभति दहरो सुसु कुमारो॥", | |
"‘‘भवति", | |
"महिमं आवसितो सुसङ्गहितो।", | |
"पियवदू", | |
"अभिरुचितानि गुणानि आचरति॥", | |
"‘‘यदि च जहति सब्बकामभोगं,", | |
"कथयति धम्मकथं जिनो जनस्स।", | |
"वचनपटिकरस्साभिप्पसन्ना", | |
"सुत्वान धम्मानुधम्ममाचरन्ती’’ति॥", | |
"‘‘अत्थधम्मसहितं", | |
"एरयं बहुजनं निदंसयि।", | |
"पाणिनं हितसुखावहो अहु,", | |
"धम्मयागमयजी", | |
"‘‘तेन", | |
"सुग्गतिं", | |
"लक्खणानि च दुवे इधागतो,", | |
"उत्तमप्पमुखताय", | |
"‘‘उब्भमुप्पतितलोमवा ससो,", | |
"पादगण्ठिरहु साधुसण्ठिता।", | |
"मंसलोहिताचिता तचोत्थता,", | |
"उपरिचरणसोभना", | |
"‘‘गेहमावसति चे तथाविधो,", | |
"अग्गतं वजति कामभोगिनं।", | |
"तेन उत्तरितरो न विज्जति,", | |
"जम्बुदीपमभिभुय्य इरियति॥", | |
"‘‘पब्बजम्पि", | |
"अग्गतं वजति सब्बपाणिनं।", | |
"तेन उत्तरितरो न विज्जति,", | |
"सब्बलोकमभिभुय्य विहरती’’ति॥", | |
"‘‘सिप्पेसु विज्जाचरणेसु कम्मेसु", | |
"कथं विजानेय्युं", | |
"यदूपघाताय", | |
"वाचेति खिप्पं न चिरं किलिस्सति॥", | |
"‘‘तं कम्मं कत्वा कुसलं सुखुद्रयं", | |
"जङ्घा मनुञ्ञा लभते सुसण्ठिता।", | |
"वट्टा सुजाता अनुपुब्बमुग्गता,", | |
"उद्धग्गलोमा सुखुमत्तचोत्थता॥", | |
"‘‘एणेय्यजङ्घोति तमाहु पुग्गलं,", | |
"सम्पत्तिया खिप्पमिधाहु", | |
"गेहानुलोमानि यदाभिकङ्खति,", | |
"अपब्बजं खिप्पमिधाधिगच्छति", | |
"‘‘सचे", | |
"नेक्खम्मछन्दाभिरतो विचक्खणो।", | |
"अनुच्छविकस्स यदानुलोमिकं,", | |
"तं विन्दति खिप्पमनोमविक्कमो", | |
"‘‘पुरे पुरत्था पुरिमासु जातिसु,", | |
"अञ्ञातुकामो परिपुच्छिता अहु।", | |
"सुस्सूसिता पब्बजितं उपासिता,", | |
"अत्थन्तरो अत्थकथं निसामयि॥", | |
"‘‘पञ्ञापटिलाभगतेन", | |
"मनुस्सभूतो सुखुमच्छवी अहु।", | |
"ब्याकंसु उप्पादनिमित्तकोविदा,", | |
"सुखुमानि अत्थानि अवेच्च दक्खिति॥", | |
"‘‘सचे न पब्बज्जमुपेति तादिसो,", | |
"वत्तेति चक्कं पथविं पसासति।", | |
"अत्थानुसिट्ठीसु परिग्गहेसु च,", | |
"न तेन सेय्यो सदिसो च विज्जति॥", | |
"‘‘सचे", | |
"नेक्खम्मछन्दाभिरतो विचक्खणो।", | |
"पञ्ञाविसिट्ठं लभते अनुत्तरं,", | |
"पप्पोति बोधिं वरभूरिमेधसो’’ति॥", | |
"‘‘अक्कोधञ्च अधिट्ठहि अदासि", | |
"दानञ्च वत्थानि सुखुमानि सुच्छवीनि।", | |
"पुरिमतरभवे", | |
"महिमिव सुरो अभिवस्सं॥", | |
"‘‘तं", | |
"उपपज्जि", | |
"कनकतनुसन्निभो इधाभिभवति,", | |
"सुरवरतरोरिव इन्दो॥", | |
"‘‘गेहञ्चावसति", | |
"मिच्छं महतिमहिं अनुसासति", | |
"पसय्ह सहिध सत्तरतनं", | |
"पटिलभति विमल", | |
"‘‘लाभी अच्छादनवत्थमोक्खपावुरणानं,", | |
"भवति यदि अनागारियतं उपेति।", | |
"सहितो", | |
"न भवति कतस्स पनासो’’ति॥", | |
"‘‘पुरे पुरत्था पुरिमासु जातिसु,", | |
"चिरप्पनट्ठे सुचिरप्पवासिनो।", | |
"ञाती सुहज्जे सखिनो समानयि,", | |
"समङ्गिकत्वा अनुमोदिता अहु॥", | |
"‘‘सो तेन", | |
"सुखञ्च खिड्डारतियो च अन्वभि।", | |
"ततो चवित्वा पुनरागतो इध,", | |
"कोसोहितं विन्दति वत्थछादियं॥", | |
"‘‘पहूतपुत्तो", | |
"परोसहस्सञ्च", | |
"सूरा च वीरा च", | |
"गिहिस्स पीतिंजनना पियंवदा॥", | |
"‘‘बहूतरा पब्बजितस्स इरियतो,", | |
"भवन्ति पुत्ता वचनानुसारिनो।", | |
"गिहिस्स वा पब्बजितस्स वा पुन,", | |
"तं लक्खणं जायति तदत्थजोतक’’न्ति॥", | |
"‘‘तुलिय पटिविचय चिन्तयित्वा,", | |
"महाजनसङ्गहनं", | |
"अयमिदमरहति तत्थ तत्थ,", | |
"पुरिसविसेसकरो पुरे अहोसि॥", | |
"‘‘महिञ्च", | |
"फुसति करेहि उभोहि जण्णुकानि।", | |
"महिरुहपरिमण्डलो अहोसि,", | |
"सुचरितकम्मविपाकसेसकेन॥", | |
"‘‘बहुविविधनिमित्तलक्खणञ्ञू,", | |
"अतिनिपुणा मनुजा ब्याकरिंसु।", | |
"बहुविविधा", | |
"पटिलभति दहरो सुसु कुमारो॥", | |
"‘‘इध", | |
"गिहिपतिरूपका बहू भवन्ति।", | |
"यदि च जहति सब्बकामभोगं,", | |
"लभति अनुत्तरं उत्तमधनग्ग’’न्ति॥", | |
"‘‘सद्धाय सीलेन सुतेन बुद्धिया,", | |
"चागेन धम्मेन बहूहि साधुहि।", | |
"धनेन", | |
"पुत्तेहि दारेहि चतुप्पदेहि च॥", | |
"‘‘ञातीहि मित्तेहि च बन्धवेहि च,", | |
"बलेन वण्णेन सुखेन चूभयं।", | |
"कथं न हायेय्युं परेति इच्छति,", | |
"अत्थस्स मिद्धी च", | |
"‘‘स", | |
"समवट्टक्खन्धो", | |
"पुब्बे सुचिण्णेन कतेन कम्मुना,", | |
"अहानियं पुब्बनिमित्तमस्स तं॥", | |
"‘‘गिहीपि धञ्ञेन धनेन वड्ढति,", | |
"पुत्तेहि दारेहि चतुप्पदेहि च।", | |
"अकिञ्चनो पब्बजितो अनुत्तरं,", | |
"पप्पोति बोधिं असहानधम्मत’’न्ति", | |
"‘‘न", | |
"सत्थेन वा मरणवधेन", | |
"उब्बाधनाय परितज्जनाय वा,", | |
"न हेठयी जनतमहेठको अहु॥", | |
"‘‘तेनेव", | |
"सुखप्फलं करिय सुखानि विन्दति।", | |
"समोजसा", | |
"इधागतो लभति रसग्गसग्गितं॥", | |
"‘‘तेनाहु नं अतिनिपुणा विचक्खणा,", | |
"अयं नरो सुखबहुलो भविस्सति।", | |
"गिहिस्स वा पब्बजितस्स वा पुन", | |
"तं लक्खणं भवति तदत्थजोतक’’न्ति॥", | |
"‘‘न च विसटं न च विसाचि", | |
"उजुं तथा पसटमुजुमनो, पियचक्खुना बहुजनं उदिक्खिता॥", | |
"‘‘सुगतीसु", | |
"अनुभवति तत्थ मोदति।", | |
"इध च पन भवति गोपखुमो,", | |
"अभिनीलनेत्तनयनो सुदस्सनो॥", | |
"‘‘अभियोगिनो च निपुणा,", | |
"बहू पन निमित्तकोविदा।", | |
"सुखुमनयनकुसला मनुजा,", | |
"पियदस्सनोति", | |
"‘‘पियदस्सनो गिहीपि सन्तो च,", | |
"भवति बहुजनपियायितो।", | |
"यदि", | |
"पियो बहूनं सोकनासनो’’ति॥", | |
"‘‘पुब्बङ्गमो सुचरितेसु अहु,", | |
"धम्मेसु धम्मचरियाभिरतो।", | |
"अन्वायिको बहुजनस्स अहु,", | |
"सग्गेसु वेदयित्थ पुञ्ञफलं॥", | |
"‘‘वेदित्वा", | |
"उण्हीससीसत्तमिधज्झगमा।", | |
"ब्याकंसु ब्यञ्जननिमित्तधरा,", | |
"पुब्बङ्गमो बहुजनं हेस्सति॥", | |
"‘‘पटिभोगिया मनुजेसु इध,", | |
"पुब्बेव तस्स अभिहरन्ति तदा।", | |
"यदि खत्तियो भवति भूमिपति,", | |
"पटिहारकं बहुजने लभति॥", | |
"‘‘अथ", | |
"धम्मेसु होति पगुणो विसवी।", | |
"तस्सानुसासनिगुणाभिरतो,", | |
"अन्वायिको बहुजनो भवती’’ति॥", | |
"‘‘सच्चप्पटिञ्ञो पुरिमासु जातिसु,", | |
"अद्वेज्झवाचो अलिकं विवज्जयि।", | |
"न सो विसंवादयितापि कस्सचि,", | |
"भूतेन तच्छेन तथेन भासयि", | |
"‘‘सेता सुसुक्का मुदुतूलसन्निभा,", | |
"उण्णा सुजाता", | |
"न", | |
"एकेकलोमूपचितङ्गवा अहु॥", | |
"‘‘तं लक्खणञ्ञू बहवो समागता,", | |
"ब्याकंसु", | |
"उण्णा च लोमा च यथा सुसण्ठिता,", | |
"उपवत्तती ईदिसकं बहुज्जनो॥", | |
"‘‘गिहिम्पि सन्तं उपवत्तती जनो,", | |
"बहु पुरत्थापकतेन कम्मुना।", | |
"अकिञ्चनं पब्बजितं अनुत्तरं,", | |
"बुद्धम्पि सन्तं उपवत्तति जनो’’ति॥", | |
"‘‘वेभूतियं सहितभेदकारिं,", | |
"भेदप्पवड्ढनविवादकारिं।", | |
"कलहप्पवड्ढनआकिच्चकारिं,", | |
"सहितानं भेदजननिं न भणि॥", | |
"‘‘अविवादवड्ढनकरिं सुगिरं,", | |
"भिन्नानुसन्धिजननिं अभणि।", | |
"कलहं", | |
"सहितेहि नन्दति पमोदति च॥", | |
"‘‘सुगतीसु सो फलविपाकं,", | |
"अनुभवति तत्थ मोदति।", | |
"दन्ता इध होन्ति अविरळा सहिता,", | |
"चतुरो दसस्स मुखजा सुसण्ठिता॥", | |
"‘‘यदि", | |
"अविभेदियास्स परिसा भवति।", | |
"समणो च होति विरजो विमलो,", | |
"परिसास्स होति अनुगता अचला’’ति॥", | |
"‘‘अक्कोसभण्डनविहेसकारिं,", | |
"उब्बाधिकं", | |
"अबाळ्हं गिरं सो न भणि फरुसं,", | |
"मधुरं भणि सुसंहितं", | |
"‘‘मनसो", | |
"वाचा सो एरयति कण्णसुखा।", | |
"वाचासुचिण्णफलमनुभवि,", | |
"सग्गेसु वेदयथ", | |
"‘‘वेदित्वा सो सुचरितस्स फलं,", | |
"ब्रह्मस्सरत्तमिधमज्झगमा।", | |
"जिव्हास्स होति विपुला पुथुला,", | |
"आदेय्यवाक्यवचनो भवति॥", | |
"‘‘गिहिनोपि इज्झति यथा भणतो,", | |
"अथ चे पब्बजति सो मनुजो।", | |
"आदियन्तिस्स", | |
"बहुनो बहुं सुभणितं भणतो’’ति॥", | |
"‘‘न सम्फप्पलापं न मुद्धतं", | |
"अविकिण्णवचनब्यप्पथो अहोसि।", | |
"अहितमपि च अपनुदि,", | |
"हितमपि च बहुजनसुखञ्च अभणि॥", | |
"‘‘तं", | |
"सुकतफलविपाकमनुभोसि।", | |
"चविय पुनरिधागतो समानो,", | |
"द्विदुगमवरतरहनुत्तमलत्थ॥", | |
"‘‘राजा होति सुदुप्पधंसियो,", | |
"मनुजिन्दो मनुजाधिपति महानुभावो।", | |
"तिदिवपुरवरसमो", | |
"सुरवरतरोरिव इन्दो॥", | |
"‘‘गन्धब्बासुरयक्खरक्खसेभि", | |
"सुरेहि न", | |
"तथत्तो यदि भवति तथाविधो,", | |
"इध दिसा च पटिदिसा च विदिसा चा’’ति॥", | |
"‘‘मिच्छाजीवञ्च अवस्सजि समेन वुत्तिं,", | |
"सुचिना सो जनयित्थ धम्मिकेन।", | |
"अहितमपि", | |
"हितमपि च बहुजनसुखञ्च अचरि॥", | |
"‘‘सग्गे वेदयति नरो सुखप्फलानि,", | |
"करित्वा निपुणेभि विदूहि सब्भि।", | |
"वण्णितानि तिदिवपुरवरसमो,", | |
"अभिरमति रतिखिड्डासमङ्गी॥", | |
"‘‘लद्धानं", | |
"चवित्वान सुकतफलविपाकं।", | |
"सेसकेन पटिलभति लपनजं,", | |
"सममपि सुचिसुसुक्कं", | |
"‘‘तं वेय्यञ्जनिका समागता बहवो,", | |
"ब्याकंसु निपुणसम्मता मनुजा।", | |
"सुचिजनपरिवारगणो भवति,", | |
"दिजसमसुक्कसुचिसोभनदन्तो॥", | |
"‘‘रञ्ञो होति बहुजनो,", | |
"सुचिपरिवारो महतिं महिं अनुसासतो।", | |
"पसय्ह", | |
"हितमपि च बहुजनसुखञ्च चरन्ति॥", | |
"‘‘अथ चे पब्बजति भवति विपापो,", | |
"समणो समितरजो विवट्टच्छदो।", | |
"विगतदरथकिलमथो,", | |
"इममपि च परमपि च", | |
"‘‘तस्सोवादकरा बहुगिही च पब्बजिता च,", | |
"असुचिं गरहितं धुनन्ति पापं।", | |
"स हि सुचिभि परिवुतो भवति,", | |
"मलखिलकलिकिलेसे पनुदेही’’ति", | |
"‘‘पाणातिपातो", | |
"परदारगमनञ्चेव, नप्पसंसन्ति पण्डिता’’ति॥", | |
"‘‘छन्दा दोसा भया मोहा, यो धम्मं अतिवत्तति।", | |
"निहीयति यसो तस्स", | |
"‘‘छन्दा", | |
"आपूरति यसो तस्स", | |
"‘‘होति पानसखा नाम,", | |
"होति सम्मियसम्मियो।", | |
"यो च अत्थेसु जातेसु,", | |
"सहायो होति सो सखा॥", | |
"‘‘उस्सूरसेय्या", | |
"वेरप्पसवो", | |
"पापा", | |
"एते छ ठाना पुरिसं धंसयन्ति॥", | |
"‘‘पापमित्तो पापसखो,", | |
"पापआचारगोचरो।", | |
"अस्मा लोका परम्हा च,", | |
"उभया धंसते नरो॥", | |
"‘‘अक्खित्थियो वारुणी नच्चगीतं,", | |
"दिवा सोप्पं पारिचरिया अकाले।", | |
"पापा च मित्ता सुकदरियता च,", | |
"एते छ ठाना पुरिसं धंसयन्ति॥", | |
"‘‘अक्खेहि दिब्बन्ति सुरं पिवन्ति,", | |
"यन्तित्थियो", | |
"निहीनसेवी", | |
"निहीयते काळपक्खेव चन्दो॥", | |
"‘‘यो वारुणी अद्धनो अकिञ्चनो,", | |
"पिपासो पिवं पपागतो", | |
"उदकमिव इणं विगाहति,", | |
"अकुलं", | |
"‘‘न दिवा सोप्पसीलेन, रत्तिमुट्ठानदेस्सिना", | |
"निच्चं मत्तेन सोण्डेन, सक्का आवसितुं घरं॥", | |
"‘‘अतिसीतं अतिउण्हं, अतिसायमिदं अहु।", | |
"इति विस्सट्ठकम्मन्ते, अत्था अच्चेन्ति माणवे॥", | |
"‘‘योध", | |
"करं पुरिसकिच्चानि, सो सुखं", | |
"‘‘अञ्ञदत्थुहरो होति, अप्पेन बहुमिच्छति", | |
"भयस्स किच्चं करोति, सेवति अत्थकारणा॥", | |
"‘‘अञ्ञदत्थुहरो", | |
"अनुप्पियञ्च यो आह, अपायेसु च यो सखा॥", | |
"एते अमित्ते चत्तारो, इति विञ्ञाय पण्डितो।", | |
"आरका परिवज्जेय्य, मग्गं पटिभयं यथा’’ति॥", | |
"‘‘उपकारो", | |
"अत्थक्खायी च यो मित्तो, यो च मित्तानुकम्पको॥", | |
"‘‘एतेपि मित्ते चत्तारो, इति विञ्ञाय पण्डितो।", | |
"सक्कच्चं पयिरुपासेय्य, माता पुत्तं व ओरसं।", | |
"पण्डितो सीलसम्पन्नो, जलं अग्गीव भासति॥", | |
"‘‘भोगे संहरमानस्स, भमरस्सेव इरीयतो।", | |
"भोगा सन्निचयं यन्ति, वम्मिकोवुपचीयति॥", | |
"‘‘एवं भोगे समाहत्वा", | |
"चतुधा विभजे भोगे, स वे मित्तानि गन्थति॥", | |
"‘‘एकेन भोगे भुञ्जेय्य, द्वीहि कम्मं पयोजये।", | |
"चतुत्थञ्च निधापेय्य, आपदासु भविस्सती’’ति॥", | |
"‘‘मातापिता दिसा पुब्बा, आचरिया दक्खिणा दिसा।", | |
"पुत्तदारा", | |
"‘‘दासकम्मकरा", | |
"एता दिसा नमस्सेय्य, अलमत्तो कुले गिही॥", | |
"‘‘पण्डितो सीलसम्पन्नो, सण्हो च पटिभानवा।", | |
"निवातवुत्ति अत्थद्धो, तादिसो लभते यसं॥", | |
"‘‘उट्ठानको अनलसो, आपदासु न वेधति।", | |
"अच्छिन्नवुत्ति मेधावी, तादिसो लभते यसं॥", | |
"‘‘सङ्गाहको मित्तकरो, वदञ्ञू वीतमच्छरो।", | |
"नेता विनेता अनुनेता, तादिसो लभते यसं॥", | |
"‘‘दानञ्च पेय्यवज्जञ्च, अत्थचरिया च या इध।", | |
"समानत्तता च धम्मेसु, तत्थ तत्थ यथारहं।", | |
"एते", | |
"‘‘एते च सङ्गहा नास्सु, न माता पुत्तकारणा।", | |
"लभेथ मानं पूजं वा, पिता वा पुत्तकारणा॥", | |
"‘‘यस्मा च सङ्गहा", | |
"तस्मा", | |
"सिखिस्सपि च", | |
"‘‘वेस्सभुस्स च", | |
"नमत्थु", | |
"‘‘कोणागमनस्स नमत्थु, ब्राह्मणस्स वुसीमतो।", | |
"कस्सपस्स च", | |
"‘‘अङ्गीरसस्स नमत्थु, सक्यपुत्तस्स सिरीमतो।", | |
"यो इमं धम्मं देसेसि", | |
"‘‘ये चापि निब्बुता लोके, यथाभूतं विपस्सिसुं।", | |
"ते जना अपिसुणाथ", | |
"‘‘हितं देवमनुस्सानं, यं नमस्सन्ति गोतमं।", | |
"विज्जाचरणसम्पन्नं, महन्तं वीतसारदं॥", | |
"यस्स चुग्गच्छमानस्स, संवरीपि निरुज्झति।", | |
"यस्स चुग्गते सूरिये, ‘दिवसो’ति पवुच्चति॥", | |
"‘‘रहदोपि", | |
"एवं तं तत्थ जानन्ति, ‘समुद्दो सरितोदको’॥", | |
"‘‘इतो", | |
"यं दिसं अभिपालेति, महाराजा यसस्सि सो॥", | |
"‘‘गन्धब्बानं अधिपति", | |
"रमती नच्चगीतेहि, गन्धब्बेहि पुरक्खतो॥", | |
"‘‘पुत्तापि तस्स बहवो, एकनामाति मे सुतं।", | |
"असीति दस एको च, इन्दनामा महब्बला॥", | |
"ते", | |
"दूरतोव नमस्सन्ति, महन्तं वीतसारदं॥", | |
"‘‘नमो ते पुरिसाजञ्ञ, नमो ते पुरिसुत्तम।", | |
"कुसलेन समेक्खसि, अमनुस्सापि तं वन्दन्ति।", | |
"सुतं नेतं अभिण्हसो, तस्मा एवं वदेमसे॥", | |
"‘‘‘जिनं वन्दथ गोतमं, जिनं वन्दाम गोतमं।", | |
"विज्जाचरणसम्पन्नं, बुद्धं वन्दाम गोतमं’॥", | |
"पाणातिपातिनो लुद्दा", | |
"‘‘इतो", | |
"यं दिसं अभिपालेति, महाराजा यसस्सि सो॥", | |
"‘‘कुम्भण्डानं अधिपति, ‘विरूळ्हो’ इति नामसो।", | |
"रमती नच्चगीतेहि, कुम्भण्डेहि पुरक्खतो॥", | |
"‘‘पुत्तापि तस्स बहवो, एकनामाति मे सुतं।", | |
"असीति दस एको च, इन्दनामा महब्बला॥", | |
"ते चापि बुद्धं दिस्वान, बुद्धं आदिच्चबन्धुनं।", | |
"दूरतोव नमस्सन्ति, महन्तं वीतसारदं॥", | |
"‘‘नमो", | |
"कुसलेन समेक्खसि, अमनुस्सापि तं वन्दन्ति।", | |
"सुतं नेतं अभिण्हसो, तस्मा एवं वदेमसे॥", | |
"‘‘‘जिनं", | |
"विज्जाचरणसम्पन्नं, बुद्धं वन्दाम गोतमं’॥", | |
"यस्स चोग्गच्छमानस्स, दिवसोपि निरुज्झति।", | |
"यस्स चोग्गते सूरिये, ‘संवरी’ति पवुच्चति॥", | |
"‘‘रहदोपि तत्थ गम्भीरो, समुद्दो सरितोदको।", | |
"एवं तं तत्थ जानन्ति, ‘समुद्दो सरितोदको’॥", | |
"‘‘इतो ‘सा पच्छिमा दिसा’, इति नं आचिक्खती जनो।", | |
"यं", | |
"‘‘नागानञ्च", | |
"रमती नच्चगीतेहि, नागेहेव पुरक्खतो॥", | |
"‘‘पुत्तापि तस्स बहवो, एकनामाति मे सुतं।", | |
"असीति दस एको च, इन्दनामा महब्बला॥", | |
"ते चापि बुद्धं दिस्वान, बुद्धं आदिच्चबन्धुनं।", | |
"दूरतोव नमस्सन्ति, महन्तं वीतसारदं॥", | |
"‘‘नमो ते पुरिसाजञ्ञ, नमो ते पुरिसुत्तम।", | |
"कुसलेन समेक्खसि, अमनुस्सापि तं वन्दन्ति।", | |
"सुतं नेतं अभिण्हसो, तस्मा एवं वदेमसे॥", | |
"‘‘‘जिनं वन्दथ गोतमं, जिनं वन्दाम गोतमं।", | |
"विज्जाचरणसम्पन्नं, बुद्धं वन्दाम गोतमं’॥", | |
"मनुस्सा तत्थ जायन्ति, अममा अपरिग्गहा॥", | |
"‘‘न", | |
"अकट्ठपाकिमं सालिं, परिभुञ्जन्ति मानुसा॥", | |
"‘‘अकणं अथुसं सुद्धं, सुगन्धं तण्डुलप्फलं।", | |
"तुण्डिकीरे", | |
"‘‘गाविं एकखुरं कत्वा, अनुयन्ति दिसोदिसं।", | |
"पसुं एकखुरं कत्वा, अनुयन्ति दिसोदिसं॥", | |
"‘‘इत्थिं वा वाहनं", | |
"पुरिसं वाहनं कत्वा, अनुयन्ति दिसोदिसं॥", | |
"‘‘कुमारिं", | |
"कुमारं वाहनं कत्वा, अनुयन्ति दिसोदिसं॥", | |
"‘‘ते याने अभिरुहित्वा,", | |
"सब्बा दिसा अनुपरियायन्ति", | |
"पचारा तस्स राजिनो॥", | |
"‘‘हत्थियानं अस्सयानं, दिब्बं यानं उपट्ठितं।", | |
"पासादा सिविका चेव, महाराजस्स यसस्सिनो॥", | |
"‘‘तस्स च नगरा अहु,", | |
"अन्तलिक्खे सुमापिता।", | |
"आटानाटा कुसिनाटा परकुसिनाटा,", | |
"नाटसुरिया", | |
"‘‘उत्तरेन", | |
"जनोघमपरेन च।", | |
"नवनवुतियो अम्बरअम्बरवतियो,", | |
"आळकमन्दा नाम राजधानी॥", | |
"‘‘कुवेरस्स", | |
"तस्मा कुवेरो महाराजा, ‘वेस्सवणो’ति पवुच्चति॥", | |
"‘‘पच्चेसन्तो", | |
"ओजसि तेजसि ततोजसी, सूरो राजा अरिट्ठो नेमि॥", | |
"‘‘रहदोपि तत्थ धरणी नाम, यतो मेघा पवस्सन्ति।", | |
"वस्सा यतो पतायन्ति, सभापि तत्थ सालवती", | |
"‘‘यत्थ", | |
"नाना दिजगणा युता, मयूरकोञ्चाभिरुदा।", | |
"कोकिलादीहि वग्गुहि॥", | |
"‘‘जीवञ्जीवकसद्देत्थ, अथो ओट्ठवचित्तका।", | |
"कुक्कुटका", | |
"‘‘सुकसाळिकसद्देत्थ, दण्डमाणवकानि च।", | |
"सोभति सब्बकालं सा, कुवेरनळिनी सदा॥", | |
"‘‘इतो ‘सा उत्तरा दिसा’, इति नं आचिक्खती जनो।", | |
"यं दिसं अभिपालेति, महाराजा यसस्सि सो॥", | |
"‘‘यक्खानञ्च अधिपति, ‘कुवेरो’ इति नामसो।", | |
"रमती नच्चगीतेहि, यक्खेहेव पुरक्खतो॥", | |
"‘‘पुत्तापि", | |
"असीति दस एको च, इन्दनामा महब्बला॥", | |
"‘‘ते चापि बुद्धं दिस्वान, बुद्धं आदिच्चबन्धुनं।", | |
"दूरतोव नमस्सन्ति, महन्तं वीतसारदं॥", | |
"‘‘नमो ते पुरिसाजञ्ञ, नमो ते पुरिसुत्तम।", | |
"कुसलेन समेक्खसि, अमनुस्सापि तं वन्दन्ति।", | |
"सुतं नेतं अभिण्हसो, तस्मा एवं वदेमसे॥", | |
"‘‘‘जिनं वन्दथ गोतमं, जिनं वन्दाम गोतमं।", | |
"विज्जाचरणसम्पन्नं, बुद्धं वन्दाम गोतम’’’न्ति॥", | |
"‘‘इन्दो सोमो वरुणो च, भारद्वाजो पजापति।", | |
"चन्दनो कामसेट्ठो च, किन्नुघण्डु निघण्डु च॥", | |
"‘‘पनादो", | |
"चित्तसेनो च गन्धब्बो, नळो राजा जनेसभो", | |
"‘‘सातागिरो हेमवतो, पुण्णको करतियो गुळो।", | |
"सिवको", | |
"‘‘गोपालो सुप्परोधो च", | |
"पञ्चालचण्डो आळवको, पज्जुन्नो सुमनो सुमुखो।", | |
"दधिमुखो मणि माणिवरो", | |
"सिखिस्सपि च नमत्थु, सब्बभूतानुकम्पिनो॥", | |
"‘वेस्सभुस्स च नमत्थु, न्हातकस्स तपस्सिनो।", | |
"नमत्थु ककुसन्धस्स, मारसेनापमद्दिनो॥", | |
"‘कोणागमनस्स नमत्थु, ब्राह्मणस्स वुसीमतो।", | |
"कस्सपस्स च नमत्थु, विप्पमुत्तस्स सब्बधि॥", | |
"‘अङ्गीरसस्स नमत्थु, सक्यपुत्तस्स सिरीमतो।", | |
"यो इमं धम्मं देसेसि, सब्बदुक्खापनूदनं॥", | |
"‘ये चापि निब्बुता लोके, यथाभूतं विपस्सिसुं।", | |
"ते जना अपिसुणाथ, महन्ता वीतसारदा॥", | |
"‘हितं देवमनुस्सानं, यं नमस्सन्ति गोतमं।", | |
"विज्जाचरणसम्पन्नं, महन्तं वीतसारदं॥", | |
"यस्स चुग्गच्छमानस्स, संवरीपि निरुज्झति।", | |
"यस्स चुग्गते सूरिये, ‘‘दिवसो’’ति पवुच्चति॥", | |
"‘रहदोपि", | |
"एवं तं तत्थ जानन्ति, ‘‘समुद्दो सरितोदको’’॥", | |
"‘इतो ‘‘सा पुरिमा दिसा’’, इति नं आचिक्खती जनो।", | |
"यं दिसं अभिपालेति, महाराजा यसस्सि सो॥", | |
"‘गन्धब्बानं अधिपति, ‘‘धतरट्ठो’’ति नामसो।", | |
"रमती नच्चगीतेहि, गन्धब्बेहि पुरक्खतो॥", | |
"‘पुत्तापि तस्स बहवो, एकनामाति मे सुतं।", | |
"असीति दस एको च, इन्दनामा महब्बला॥", | |
"‘ते चापि बुद्धं दिस्वान, बुद्धं आदिच्चबन्धुनं।", | |
"दूरतोव नमस्सन्ति, महन्तं वीतसारदं॥", | |
"‘नमो ते पुरिसाजञ्ञ, नमो ते पुरिसुत्तम।", | |
"कुसलेन समेक्खसि, अमनुस्सापि तं वन्दन्ति।", | |
"सुतं नेतं अभिण्हसो, तस्सा एवं वदेमसे॥", | |
"‘‘जिनं वन्दथ गोतमं, जिनं वन्दाम गोतमं।", | |
"विज्जाचरणसम्पन्नं, बुद्धं वन्दाम गोतमं’’॥", | |
"पाणातिपातिनो लुद्दा, चोरा नेकतिका जना॥", | |
"‘इतो", | |
"यं दिसं अभिपालेति, महाराजा यसस्सि सो॥", | |
"‘कुम्भण्डानं अधिपति, ‘‘विरूळ्हो’’ इति नामसो।", | |
"रमती नच्चगीतेहि, कुम्भण्डेहि पुरक्खतो॥", | |
"‘पुत्तापि तस्स बहवो, एकनामाति मे सुतं।", | |
"असीति दस एको च, इन्दनामा महब्बला॥", | |
"‘ते चापि बुद्धं दिस्वान, बुद्धं आदिच्चबन्धुनं।", | |
"दूरतोव नमस्सन्ति, महन्तं वीतसारदं॥", | |
"‘नमो", | |
"कुसलेन समेक्खसि, अमनुस्सापि तं वन्दन्ति।", | |
"सुतं नेतं अभिण्हसो, तस्मा एवं वदेमसे॥", | |
"‘‘जिनं वन्दथ गोतमं, जिनं वन्दाम गोतमं।", | |
"विज्जाचरणसम्पन्नं, बुद्धं वन्दाम गोतमं’’॥", | |
"यस्स चोग्गच्छमानस्स, दिवसोपि निरुज्झति।", | |
"यस्स चोग्गते सूरिये, ‘‘संवरी’’ति पवुच्चति॥", | |
"‘रहदोपि तत्थ गम्भीरो, समुद्दो सरितोदको।", | |
"एवं तं तत्थ जानन्ति, समुद्दो सरितोदको॥", | |
"‘इतो ‘‘सा पच्छिमा दिसा’’, इति नं आचिक्खती जनो।", | |
"यं दिसं अभिपालेति, महाराजा यसस्सि सो॥", | |
"‘नागानञ्च", | |
"रमती नच्चगीतेहि, नागेहेव पुरक्खतो॥", | |
"‘पुत्तापि तस्स बहवो, एकनामाति मे सुतं।", | |
"असीति दस एको च, इन्दनामा महब्बला॥", | |
"‘ते चापि बुद्धं दिस्वान, बुद्धं आदिच्चबन्धुनं।", | |
"दूरतोव नमस्सन्ति, महन्तं वीतसारदं॥", | |
"‘नमो ते पुरिसाजञ्ञ, नमो ते पुरिसुत्तम।", | |
"कुसलेन समेक्खसि, अमनुस्सापि तं वन्दन्ति।", | |
"सुतं नेतं अभिण्हसो, तस्मा एवं वदेमसे॥", | |
"‘‘जिनं वन्दथ गोतमं, जिनं वन्दाम गोतमं।", | |
"विज्जाचरणसम्पन्नं, बुद्धं वन्दाम गोतमं’’॥", | |
"मनुस्सा तत्थ जायन्ति, अममा अपरिग्गहा॥", | |
"‘न", | |
"अकट्ठपाकिमं सालिं, परिभुञ्जन्ति मानुसा॥", | |
"‘अकणं अथुसं सुद्धं, सुगन्धं तण्डुलप्फलं।", | |
"तुण्डिकीरे पचित्वान, ततो भुञ्जन्ति भोजनं॥", | |
"‘गाविं एकखुरं कत्वा, अनुयन्ति दिसोदिसं।", | |
"पसुं एकखुरं कत्वा, अनुयन्ति दिसोदिसं॥", | |
"‘इत्थिं वा वाहनं कत्वा, अनुयन्ति दिसोदिसं।", | |
"पुरिसं वाहनं कत्वा, अनुयन्ति दिसोदिसं॥", | |
"‘कुमारिं", | |
"कुमारं वाहनं कत्वा, अनुयन्ति दिसोदिसं॥", | |
"‘ते याने अभिरुहित्वा,", | |
"सब्बा दिसा अनुपरियायन्ति।", | |
"पचारा तस्स राजिनो॥", | |
"‘हत्थियानं अस्सयानं,", | |
"दिब्बं यानं उपट्ठितं।", | |
"पासादा सिविका चेव,", | |
"महाराजस्स यसस्सिनो॥", | |
"‘तस्स च नगरा अहु,", | |
"अन्तलिक्खे सुमापिता।", | |
"आटानाटा कुसिनाटा परकुसिनाटा,", | |
"नाटसुरिया परकुसिटनाटा॥", | |
"‘उत्तरेन कसिवन्तो,", | |
"जनोघमपरेन च।", | |
"नवनवुतियो अम्बरअम्बरवतियो,", | |
"आळकमन्दा नाम राजधानी॥", | |
"‘कुवेरस्स खो पन, मारिस, महाराजस्स विसाणा नाम राजधानी।", | |
"तस्मा कुवेरो महाराजा, ‘‘वेस्सवणो’’ति पवुच्चति॥", | |
"‘पच्चेसन्तो", | |
"ओजसि तेजसि ततोजसी, सूरो राजा अरिट्ठो नेमि॥", | |
"‘रहदोपि तत्थ धरणी नाम, यतो मेघा पवस्सन्ति।", | |
"वस्सा यतो पतायन्ति, सभापि तत्थ सालवती नाम॥", | |
"‘यत्थ", | |
"नाना दिजगणा युता, मयूरकोञ्चाभिरुदा।", | |
"कोकिलादीहि वग्गुहि॥", | |
"‘जीवञ्जीवकसद्देत्थ, अथो ओट्ठवचित्तका।", | |
"कुक्कुटका कुळीरका, वने पोक्खरसातका॥", | |
"‘सुकसाळिक सद्देत्थ, दण्डमाणवकानि च।", | |
"सोभति सब्बकालं सा, कुवेरनळिनी सदा॥", | |
"‘इतो ‘‘सा उत्तरा दिसा’’, इति नं आचिक्खती जनो।", | |
"यं दिसं अभिपालेति, महाराजा यसस्सि सो॥", | |
"‘यक्खानञ्च अधिपति, ‘‘कुवेरो’’ इति नामसो।", | |
"रमती नच्चगीतेहि, यक्खेहेव पुरक्खतो॥", | |
"‘पुत्तापि तस्स बहवो, एकनामाति मे सुतं।", | |
"असीति दस एको च, इन्दनामा महब्बला॥", | |
"‘ते चापि बुद्धं दिस्वान, बुद्धं आदिच्चबन्धुनं।", | |
"दूरतोव नमस्सन्ति, महन्तं वीतसारदं॥", | |
"‘नमो ते पुरिसाजञ्ञ, नमो ते पुरिसुत्तम।", | |
"कुसलेन समेक्खसि, अमनुस्सापि तं वन्दन्ति।", | |
"सुतं नेतं अभिण्हसो, तस्मा एवं वदेमसे॥", | |
"‘‘जिनं वन्दथ गोतमं, जिनं वन्दाम गोतमं।", | |
"विज्जाचरणसम्पन्नं, बुद्धं वन्दाम गोतम’’न्ति॥", | |
"‘इन्दो सोमो वरुणो च, भारद्वाजो पजापति।", | |
"चन्दनो कामसेट्ठो च, किन्नुघण्डु निघण्डु च॥", | |
"‘पनादो ओपमञ्ञो च, देवसूतो च मातलि।", | |
"चित्तसेनो च गन्धब्बो, नळो राजा जनेसभो॥", | |
"‘सातागिरो हेवमतो, पुण्णको करतियो गुळो।", | |
"सिवको मुचलिन्दो च, वेस्सामित्तो युगन्धरो॥", | |
"‘गोपालो सुप्परोधो च, हिरि नेत्ति च मन्दियो।", | |
"पञ्चालचण्डो आळवको, पज्जुन्नो सुमनो सुमुखो।", | |
"दधिमुखो मणि माणिवरो दीघो, अथो सेरीसको सह॥", | |
"‘‘दसुत्तरं पवक्खामि, धम्मं निब्बानपत्तिया।", | |
"दुक्खस्सन्तकिरियाय, सब्बगन्थप्पमोचनं’’॥", | |
"पाथिको", | |
"सम्पसादनपासादं", | |
"सिङ्गालाटानाटियकं", | |
"एकादसहि सुत्तेहि, पाथिकवग्गोति वुच्चति॥" | |
] | |
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