Spaces:
Sleeping
Sleeping
{ | |
"title": "१. पठमपण्णासकं", | |
"book_name": "(१८) ८. रागपेय्यालं", | |
"chapter": "१. भयसुत्तं", | |
"gathas": [ | |
"भयं लक्खणचिन्ती च, अच्चयञ्च अयोनिसो।", | |
"अकुसलञ्च सावज्जं, सब्याबज्झखतं मलन्ति॥", | |
"ञातो", | |
"अपण्णकत्ता देवो च, दुवे पापणिकेन चाति॥", | |
"‘‘निहीयति", | |
"न च हायेथ कदाचि तुल्यसेवी।", | |
"सेट्ठमुपनमं उदेति खिप्पं,", | |
"तस्मा अत्तनो उत्तरिं भजेथा’’ति॥ छट्ठं।", | |
"‘‘निहीयति", | |
"न च हायेथ कदाचि तुल्यसेवी।", | |
"सेट्ठमुपनमं उदेति खिप्पं,", | |
"तस्मा अत्तनो उत्तरिं भजेथा’’ति॥ सत्तमं।", | |
"‘‘न चेव भोगा तथारूपा, न च पुञ्ञानि कुब्बति।", | |
"उभयत्थ कलिग्गाहो, अन्धस्स हतचक्खुनो॥", | |
"‘‘अथापरायं अक्खातो, एकचक्खु च पुग्गलो।", | |
"धम्माधम्मेन सठोसो", | |
"‘‘थेय्येन कूटकम्मेन, मुसावादेन चूभयं।", | |
"कुसलो होति सङ्घातुं", | |
"इतो सो निरयं गन्त्वा, एकचक्खु विहञ्ञति॥", | |
"‘‘द्विचक्खु पन अक्खातो, सेट्ठो पुरिसपुग्गलो।", | |
"धम्मलद्धेहि भोगेहि, उट्ठानाधिगतं धनं॥", | |
"‘‘ददाति", | |
"उपेति भद्दकं ठानं, यत्थ गन्त्वा न सोचति॥", | |
"‘‘अन्धञ्च", | |
"द्विचक्खुं", | |
"‘‘अवकुज्जपञ्ञो पुरिसो, दुम्मेधो अविचक्खणो।", | |
"अभिक्खणम्पि चे होति, गन्ता भिक्खून सन्तिके॥", | |
"‘‘आदिं", | |
"उग्गहेतुं न सक्कोति, पञ्ञा हिस्स न विज्जति॥", | |
"‘‘उच्छङ्गपञ्ञो", | |
"अभिक्खणम्पि चे होति, गन्ता भिक्खून सन्तिके॥", | |
"‘‘आदिं कथाय मज्झञ्च, परियोसानञ्च तादिसो।", | |
"निसिन्नो आसने तस्मिं, उग्गहेत्वान ब्यञ्जनं।", | |
"वुट्ठितो नप्पजानाति, गहितं हिस्स", | |
"‘‘पुथुपञ्ञो च पुरिसो, सेय्यो एतेहि", | |
"अभिक्खणम्पि चे होति, गन्ता भिक्खून सन्तिके॥", | |
"‘‘आदिं कथाय मज्झञ्च, परियोसानञ्च तादिसो।", | |
"निसिन्नो आसने तस्मिं, उग्गहेत्वान ब्यञ्जनं॥", | |
"‘‘धारेति सेट्ठसङ्कप्पो, अब्यग्गमानसो नरो।", | |
"धम्मानुधम्मप्पटिपन्नो, दुक्खस्सन्तकरो सिया’’ति॥ दसमं।", | |
"समिद्ध", | |
"सेवि-जिगुच्छ-गूथभाणी, अन्धो च अवकुज्जताति॥", | |
"‘‘ब्रह्माति मातापितरो, पुब्बाचरियाति वुच्चरे।", | |
"आहुनेय्या च पुत्तानं, पजाय अनुकम्पका॥", | |
"‘‘तस्मा हि ने नमस्सेय्य, सक्करेय्य च पण्डितो।", | |
"अन्नेन अथ पानेन, वत्थेन सयनेन च।", | |
"उच्छादनेन न्हापनेन", | |
"‘‘ताय नं पारिचरियाय, मातापितूसु पण्डिता।", | |
"इधेव", | |
"‘‘सङ्खाय लोकस्मिं परोपरानि", | |
"यस्सिञ्जितं नत्थि कुहिञ्चि लोके।", | |
"सन्तो", | |
"अतारि सो जातिजरन्ति ब्रूमी’’ति॥ दुतियं।", | |
"‘‘पहानं कामसञ्ञानं, दोमनस्सान चूभयं।", | |
"थिनस्स च पनूदनं, कुक्कुच्चानं निवारणं॥", | |
"‘‘उपेक्खासतिसंसुद्धं", | |
"अञ्ञाविमोक्खं पब्रूमि, अविज्जाय पभेदन’’न्ति", | |
"‘‘लोभजं दोसजञ्चेव", | |
"यं तेन पकतं कम्मं, अप्पं वा यदि वा बहुं।", | |
"इधेव तं वेदनियं, वत्थु अञ्ञं न विज्जति॥", | |
"‘‘तस्मा लोभञ्च दोसञ्च, मोहजञ्चापि विद्दसु।", | |
"विज्जं उप्पादयं भिक्खु, सब्बा दुग्गतियो जहे’’ति॥ चतुत्थं।", | |
"यो न लिम्पति", | |
"‘‘सब्बा आसत्तियो छेत्वा, विनेय्य हदये दरं।", | |
"उपसन्तो सुखं सेति, सन्तिं पप्पुय्य चेतसो’’ति॥ पञ्चमं।", | |
"‘‘चतुक्कण्णो चतुद्वारो, विभत्तो भागसो मितो।", | |
"अयोपाकारपरियन्तो, अयसा पटिकुज्जितो॥", | |
"‘‘तस्स", | |
"समन्ता", | |
"‘‘चोदिता", | |
"ते दीघरत्तं सोचन्ति, हीनकायूपगा नरा॥", | |
"‘‘ये च खो देवदूतेहि, सन्तो सप्पुरिसा इध।", | |
"चोदिता नप्पमज्जन्ति, अरियधम्मे कुदाचनं॥", | |
"‘‘उपादाने", | |
"अनुपादा विमुच्चन्ति, जातिमरणसङ्खये॥", | |
"‘‘ते अप्पमत्ता", | |
"सब्बवेरभयातीता, सब्बदुक्खं उपच्चगु’’न्ति॥ छट्ठं।", | |
"‘‘चातुद्दसिं", | |
"पाटिहारियपक्खञ्च, अट्ठङ्गसुसमागतं।", | |
"उपोसथं उपवसेय्य, योपिस्स", | |
"‘‘चातुद्दसिं पञ्चदसिं, या च पक्खस्स अट्ठमी।", | |
"पाटिहारियपक्खञ्च, अट्ठङ्गसुसमागतं।", | |
"उपोसथं उपवसेय्य, योपिस्स मादिसो नरो’’ति॥", | |
"‘‘चातुद्दसिं पञ्चदसिं, या च पक्खस्स अट्ठमी।", | |
"पाटिहारियपक्खञ्च, अट्ठङ्गसुसमागतं।", | |
"उपोसथं उपवसेय्य, योपिस्स मादिसो नरो’’ति॥", | |
"‘‘चातुद्दसिं पञ्चदसिं, या च पक्खस्स अट्ठमी।", | |
"पाटिहारियपक्खञ्च, अट्ठङ्गसुसमागतं।", | |
"उपोसथं उपवसेय्य, योपिस्स मादिसो नरो’’ति॥", | |
"‘‘ब्याधिधम्मा जराधम्मा, अथो मरणधम्मिनो।", | |
"यथाधम्मा", | |
"‘‘अहञ्चे तं जिगुच्छेय्यं, एवंधम्मेसु पाणिसु।", | |
"न मेतं पतिरूपस्स, मम एवं विहारिनो॥", | |
"‘‘सोहं एवं विहरन्तो, ञत्वा धम्मं निरूपधिं।", | |
"आरोग्ये योब्बनस्मिञ्च, जीवितस्मिञ्च ये मदा॥", | |
"‘‘सब्बे", | |
"तस्स मे अहु उस्साहो, निब्बानं अभिपस्सतो॥", | |
"‘‘नाहं भब्बो एतरहि, कामानि पटिसेवितुं।", | |
"अनिवत्ति भविस्सामि, ब्रह्मचरियपरायणो’’ति॥ नवमं।", | |
"‘‘नत्थि", | |
"अत्ता ते पुरिस जानाति, सच्चं वा यदि वा मुसा॥", | |
"‘‘कल्याणं", | |
"यो सन्तं अत्तनि पापं, अत्तानं परिगूहसि॥", | |
"‘‘पस्सन्ति", | |
"लोकस्मिं बालं विसमं चरन्तं।", | |
"तस्मा हि अत्ताधिपतेय्यको च", | |
"लोकाधिपो च निपको च झायी॥", | |
"‘‘धम्माधिपो च अनुधम्मचारी,", | |
"न", | |
"पसय्ह मारं अभिभुय्य अन्तकं,", | |
"यो च फुसी जातिक्खयं पधानवा।", | |
"सो तादिसो लोकविदू सुमेधो,", | |
"सब्बेसु धम्मेसु अतम्मयो मुनी’’ति॥ दसमं।", | |
"ब्रह्म आनन्द सारिपुत्तो, निदानं हत्थकेन च।", | |
"दूता दुवे च राजानो, सुखुमालाधिपतेय्येन चाति॥", | |
"‘‘दस्सनकामो सीलवतं, सद्धम्मं सोतुमिच्छति।", | |
"विनये मच्छेरमलं, स वे सद्धोति वुच्चती’’ति॥ दुतियं।", | |
"‘‘सब्भि दानं उपञ्ञत्तं, अहिंसा संयमो दमो।", | |
"मातापितु उपट्ठानं, सन्तानं ब्रह्मचारिनं॥", | |
"‘‘सतं एतानि ठानानि, यानि सेवेथ पण्डितो।", | |
"अरियो दस्सनसम्पन्नो, स लोकं भजते सिव’’न्ति॥ पञ्चमं।", | |
"‘‘यथापि पब्बतो सेलो, अरञ्ञस्मिं ब्रहावने।", | |
"तं रुक्खा उपनिस्साय, वड्ढन्ते ते वनप्पती॥", | |
"‘‘तथेव", | |
"उपनिस्साय वड्ढन्ति, पुत्तदारा च बन्धवा।", | |
"अमच्चा ञातिसङ्घा च, ये चस्स अनुजीविनो॥", | |
"‘‘त्यास्स", | |
"पस्समानानुकुब्बन्ति, अत्तमत्थं", | |
"‘‘इध धम्मं चरित्वान, मग्गं सुगतिगामिनं।", | |
"नन्दिनो देवलोकस्मिं, मोदन्ति कामकामिनो’’ति॥ नवमं।", | |
"सम्मुखी ठानत्थवसं, पवत्ति पण्डित सीलवं।", | |
"सङ्खतं पब्बतातप्पं, महाचोरेनेकादसाति", | |
"‘‘उपनीयति", | |
"जरूपनीतस्स न सन्ति ताणा।", | |
"एतं भयं मरणे पेक्खमानो,", | |
"पुञ्ञानि कयिराथ सुखावहानि॥", | |
"‘‘योध", | |
"तं तस्स पेतस्स सुखाय होति,", | |
"यं जीवमानो पकरोति पुञ्ञ’’न्ति॥", | |
"‘‘आदित्तस्मिं अगारस्मिं, यं नीहरति भाजनं।", | |
"तं तस्स होति अत्थाय, नो च यं तत्थ डय्हति॥", | |
"‘‘एवं आदित्तो खो", | |
"नीहरेथेव दानेन, दिन्नं होति सुनीहतं", | |
"‘‘योध कायेन संयमो, वाचाय उद चेतसा।", | |
"तं तस्स पेतस्स सुखाय होति,", | |
"यं जीवमानो पकरोति पुञ्ञ’’न्ति॥ दुतियं।", | |
"‘‘इति कण्हासु सेतासु, रोहिणीसु हरीसु वा।", | |
"कम्मासासु सरूपासु, गोसु पारेवतासु वा॥", | |
"‘‘यासु", | |
"धोरय्हो बलसम्पन्नो, कल्याणजवनिक्कमो।", | |
"तमेव भारे युञ्जन्ति, नास्स वण्णं परिक्खरे॥", | |
"‘‘एवमेवं मनुस्सेसु, यस्मिं कस्मिञ्चि जातिये।", | |
"खत्तिये ब्राह्मणे वेस्से, सुद्दे चण्डालपुक्कुसे॥", | |
"‘‘यासु कासुचि एतासु, दन्तो जायति सुब्बतो।", | |
"धम्मट्ठो सीलसम्पन्नो, सच्चवादी हिरीमनो॥", | |
"‘‘पहीनजातिमरणो, ब्रह्मचरियस्स केवली।", | |
"पन्नभारो विसंयुत्तो, कतकिच्चो अनासवो॥", | |
"‘‘पारगू सब्बधम्मानं, अनुपादाय निब्बुतो।", | |
"तस्मिंयेव", | |
"‘‘बाला", | |
"बहिद्धा देन्ति दानानि, न हि सन्ते उपासरे॥", | |
"‘‘ये च सन्ते उपासन्ति, सप्पञ्ञे धीरसम्मते।", | |
"सद्धा च नेसं सुगते, मूलजाता पतिट्ठिता॥", | |
"‘‘देवलोकञ्च ते यन्ति, कुले वा इध जायरे।", | |
"अनुपुब्बेन निब्बानं, अधिगच्छन्ति पण्डिता’’ति॥ सत्तमं।", | |
"‘‘अनुच्चावचसीलस्स, निपकस्स च झायिनो।", | |
"चित्तं यस्स वसीभूतं, एकग्गं सुसमाहितं॥", | |
"‘‘तं वे तमोनुदं धीरं, तेविज्जं मच्चुहायिनं।", | |
"हितं देवमनुस्सानं, आहु सब्बप्पहायिनं॥", | |
"‘‘तीहि विज्जाहि सम्पन्नं, असम्मूळ्हविहारिनं।", | |
"बुद्धं अन्तिमदेहिनं", | |
"अथो जातिक्खयं पत्तो, अभिञ्ञावोसितो मुनि॥", | |
"‘‘एताहि तीहि विज्जाहि, तेविज्जो होति ब्राह्मणो।", | |
"तमहं वदामि तेविज्जं, नाञ्ञं लपितलापन’’न्ति॥", | |
"‘‘यो सीलब्बतसम्पन्नो, पहितत्तो समाहितो।", | |
"चित्तं यस्स वसीभूतं, एकग्गं सुसमाहितं॥", | |
"अथो जातिक्खयं पत्तो, अभिञ्ञावोसितो मुनि॥", | |
"‘‘एताहि", | |
"तमहं वदामि तेविज्जं, नाञ्ञं लपितलापन’’न्ति॥", | |
"द्वे", | |
"पलोकवच्छो तिकण्णो, सोणि सङ्गारवेन चाति॥", | |
"‘‘ये", | |
"अनरियगुणमासज्ज, अञ्ञोञ्ञविवरेसिनो॥", | |
"‘‘दुब्भासितं", | |
"अञ्ञोञ्ञस्साभिनन्दन्ति, तदरियो कथनाचरे", | |
"‘‘सचे चस्स कथाकामो, कालमञ्ञाय पण्डितो।", | |
"धम्मट्ठपटिसंयुत्ता, या अरियचरिता", | |
"‘‘तं कथं कथये धीरो, अविरुद्धो अनुस्सितो।", | |
"अनुन्नतेन मनसा, अपळासो असाहसो॥", | |
"‘‘अनुसूयायमानो सो, सम्मदञ्ञाय भासति।", | |
"सुभासितं अनुमोदेय्य, दुब्भट्ठे नापसादये", | |
"‘‘उपारम्भं न सिक्खेय्य, खलितञ्च न गाहये", | |
"नाभिहरे", | |
"‘‘अञ्ञातत्थं पसादत्थं, सतं वे होति मन्तना।", | |
"एवं खो अरिया मन्तेन्ति, एसा अरियान मन्तना।", | |
"एतदञ्ञाय मेधावी, न समुस्सेय्य मन्तये’’ति॥ सत्तमं।", | |
"‘‘पाणं", | |
"मुसा न भासे न च मज्जपो सिया।", | |
"अब्रह्मचरिया", | |
"रत्तिं न भुञ्जेय्य विकालभोजनं॥", | |
"‘‘मालं न धारे न च गन्धमाचरे,", | |
"मञ्चे छमायं व सयेथ सन्थते।", | |
"एतञ्हि अट्ठङ्गिकमाहुपोसथं,", | |
"बुद्धेन दुक्खन्तगुना पकासितं॥", | |
"‘‘चन्दो च सूरियो च उभो सुदस्सना,", | |
"ओभासयं अनुपरियन्ति यावता।", | |
"तमोनुदा ते पन अन्तलिक्खगा,", | |
"नभे पभासन्ति दिसाविरोचना॥", | |
"‘‘एतस्मिं यं विज्जति अन्तरे धनं,", | |
"मुत्ता मणि वेळुरियञ्च भद्दकं।", | |
"सिङ्गी सुवण्णं अथ वापि कञ्चनं,", | |
"यं जातरूपं हटकन्ति वुच्चति॥", | |
"‘‘अट्ठङ्गुपेतस्स", | |
"कलम्पि ते नानुभवन्ति सोळसिं।", | |
"चन्दप्पभा तारगणा च सब्बे॥", | |
"‘‘तस्मा", | |
"अट्ठङ्गुपेतं", | |
"पुञ्ञानि कत्वान सुखुद्रयानि,", | |
"अनिन्दिता सग्गमुपेन्ति ठान’’न्ति॥ दसमं।", | |
"तित्थभयञ्च वेनागो, सरभो केसमुत्तिया।", | |
"साळ्हो चापि कथावत्थु, तित्थियमूलुपोसथोति॥", | |
"‘‘न पुप्फगन्धो पटिवातमेति,", | |
"न चन्दनं तगरमल्लिका", | |
"सतञ्च गन्धो पटिवातमेति,", | |
"सब्बा दिसा सप्पुरिसो पवायती’’ति॥ नवमं।", | |
"छन्नो आजीवको सक्को, निगण्ठो च निवेसको।", | |
"दुवे भवा सीलब्बतं, गन्धजातञ्च चूळनीति॥", | |
"‘‘सेखस्स", | |
"खयस्मिं पठमं ञाणं, ततो अञ्ञा अनन्तरा॥", | |
"‘‘ततो अञ्ञाविमुत्तस्स", | |
"अकुप्पा मे विमुत्तीति, भवसंयोजनक्खये’’ति॥ पञ्चमं। ( )", | |
"‘‘अधिसीलं", | |
"थामवा धितिमा झायी, सतो गुत्तिन्द्रियो", | |
"‘‘यथा पुरे तथा पच्छा, यथा पच्छा तथा पुरे।", | |
"यथा अधो तथा उद्धं, यथा उद्धं तथा अधो॥", | |
"‘‘यथा", | |
"अभिभुय्य दिसा सब्बा, अप्पमाणसमाधिना॥", | |
"‘‘तमाहु सेखं पटिपदं", | |
"तमाहु लोके सम्बुद्धं, धीरं पटिपदन्तगुं॥", | |
"‘‘विञ्ञाणस्स निरोधेन, तण्हाक्खयविमुत्तिनो।", | |
"पज्जोतस्सेव निब्बानं, विमोक्खो होति चेतसो’’ति॥ दसमं।", | |
"समणो गद्रभो खेत्तं, वज्जिपुत्तो च सेक्खकं।", | |
"तयो च सिक्खना वुत्ता, द्वे सिक्खा सङ्कवाय चाति॥", | |
"अच्चायिकं पविवेकं, सरदो परिसा तयो।", | |
"आजानीया पोत्थको च, लोणं धोवति निमित्तानीति॥", | |
"पुब्बेव", | |
"अतित्ति द्वे च वुत्तानि, निदानानि अपरे दुवेति॥", | |
"सुचिं सोचेय्यसम्पन्नं, आहु निन्हातपापक’’न्ति॥ नवमं।", | |
"‘‘कायमुनिं वचीमुनिं, चेतोमुनिं अनासवं।", | |
"मुनिं मोनेय्यसम्पन्नं, आहु सब्बप्पहायिन’’न्ति॥ दसमं।", | |
"आपायिको", | |
"अपण्णको च कम्मन्तो, द्वे सोचेय्यानि मोनेय्यन्ति॥", | |
"‘‘नाहं भगवतो दस्सनस्स, तित्तिमज्झगा", | |
"सङ्घस्स उपट्ठानस्स, सद्धम्मसवनस्स च॥", | |
"‘‘अधिसीलं सिक्खमानो, सद्धम्मसवने रतो।", | |
"तिण्णं धम्मानं अतित्तो, हत्थको अविहं गतो’’ति॥ पञ्चमं।", | |
"‘‘अगुत्तं", | |
"मक्खिकानुपतिस्सन्ति", | |
"‘‘कटुवियकतो", | |
"आरका होति निब्बाना, विघातस्सेव भागवा॥", | |
"‘‘गामे वा यदि वारञ्ञे, अलद्धा समथमत्तनो", | |
"परेति", | |
"‘‘ये च सीलेन सम्पन्ना, पञ्ञायूपसमेरता।", | |
"उपसन्ता सुखं सेन्ति, नासयित्वान मक्खिका’’ति॥ छट्ठं।", | |
"कुसिनारभण्डना", | |
"कटुवियं द्वे अनुरुद्धा, पटिच्छन्नं लेखेन ते दसाति॥", | |
"योधो परिसमित्तञ्च, उप्पादा केसकम्बलो।", | |
"सम्पदा वुद्धि तयो, अस्सा तयो मोरनिवापिनोति॥", | |
"‘‘सुनक्खत्तं सुमङ्गलं, सुप्पभातं सुहुट्ठितं", | |
"सुखणो सुमुहुत्तो च, सुयिट्ठं ब्रह्मचारिसु॥", | |
"‘‘पदक्खिणं कायकम्मं, वाचाकम्मं पदक्खिणं।", | |
"पदक्खिणं मनोकम्मं, पणीधि ते पदक्खिणे", | |
"पदक्खिणानि कत्वान, लभन्तत्थे", | |
"‘‘ते अत्थलद्धा सुखिता, विरुळ्हा बुद्धसासने।", | |
"अरोगा सुखिता होथ, सह सब्बेहि ञातिभी’’ति॥ दसमं।", | |
"अकुसलञ्च सावज्जं, विसमासुचिना सह।", | |
"चतुरो खता वन्दना, पुब्बण्हेन च ते दसाति॥", | |
"सतिपट्ठानं सम्मप्पधानं, इद्धिपादिन्द्रियेन च।", | |
"बलं बोज्झङ्गो मग्गो च, पटिपदाय योजयेति॥", | |
"पाणं अदिन्नमिच्छा च, मुसावादी च पिसुणा।", | |
"फरुसा सम्फप्पलापो च, अभिज्झा ब्यापाददिट्ठि च।", | |
"कम्मपथेसु पेय्यालं, तिककेन नियोजयेति॥", | |
"मक्खपळासइस्सा च, मच्छरिमायासाठेय्या॥", | |
"थम्भसारम्भमानञ्च, अतिमानमदस्स च।", | |
"पमादा सत्तरस वुत्ता, रागपेय्यालनिस्सिता॥", | |
"एते", | |
"परिञ्ञाय परिक्खया, पहानक्खयब्बयेन।", | |
"विरागनिरोधचागं, पटिनिस्सग्गे इमे दस॥", | |
"सुञ्ञतो अनिमित्तो च, अप्पणिहितो च तयो।", | |
"समाधिमूलका पेय्यालेसुपि ववत्थिता चाति॥" | |
] | |
} |