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Sleeping
Sleeping
{ | |
"title": "१. पठमपण्णासकं", | |
"book_name": "३. रागपेय्यालं", | |
"chapter": "१. संखित्तसुत्तं", | |
"gathas": [ | |
"संखित्तं वित्थतं दुक्खा, भतं सिक्खाय पञ्चमं।", | |
"समापत्ति च कामेसु, चवना द्वे अगारवाति॥", | |
"अननुस्सुतकूटञ्च, संखित्तं वित्थतेन च।", | |
"दट्ठब्बञ्च पुन कूटं, चत्तारोपि हितेन चाति॥", | |
"द्वे अगारवुपक्किलेसा, दुस्सीलानुग्गहितेन च।", | |
"विमुत्तिसमाधिपञ्चङ्गिका, चङ्कमं नागितेन चाति॥", | |
"‘‘यथापि चन्दो विमलो, गच्छं आकासधातुया।", | |
"सब्बे तारागणे लोके, आभाय अतिरोचति॥", | |
"‘‘तथेव सीलसम्पन्नो, सद्धो पुरिसपुग्गलो।", | |
"सब्बे मच्छरिनो लोके, चागेन अतिरोचति॥", | |
"‘‘यथापि", | |
"थलं निन्नञ्च पूरेति, अभिवस्सं वसुन्धरं॥", | |
"‘‘एवं दस्सनसम्पन्नो, सम्मासम्बुद्धसावको।", | |
"मच्छरिं अधिगण्हाति, पञ्चठानेहि पण्डितो॥", | |
"‘‘आयुना", | |
"स वे भोगपरिब्यूळ्हो", | |
"‘‘अग्गतो वे पसन्नानं, अग्गं धम्मं विजानतं।", | |
"अग्गे बुद्धे पसन्नानं, दक्खिणेय्ये अनुत्तरे॥", | |
"‘‘अग्गे धम्मे पसन्नानं, विरागूपसमे सुखे।", | |
"अग्गे सङ्घे पसन्नानं, पुञ्ञक्खेत्ते अनुत्तरे॥", | |
"‘‘अग्गस्मिं", | |
"अग्गं आयु च वण्णो च, यसो कित्ति सुखं बलं॥", | |
"‘‘अग्गस्स दाता मेधावी, अग्गधम्मसमाहितो।", | |
"देवभूतो मनुस्सो वा, अग्गप्पत्तो पमोदती’’ति॥ दुतियं।", | |
"‘‘यो नं भरति सब्बदा, निच्चं आतापि उस्सुको।", | |
"सब्बकामहरं पोसं, भत्तारं नातिमञ्ञति॥", | |
"‘‘न", | |
"भत्तु च गरुनो सब्बे, पटिपूजेति पण्डिता॥", | |
"‘‘उट्ठाहिका", | |
"भत्तु मनापं", | |
"‘‘या एवं वत्तती नारी, भत्तुछन्दवसानुगा।", | |
"मनापा नाम ते देवा, यत्थ सा उपपज्जती’’ति॥ ततियं।", | |
"‘‘ददं पियो होति भजन्ति नं बहू,", | |
"कित्तिञ्च पप्पोति यसो च वड्ढति", | |
"अमङ्कुभूतो परिसं विगाहति,", | |
"विसारदो होति नरो अमच्छरी॥", | |
"‘‘तस्मा हि दानानि ददन्ति पण्डिता,", | |
"विनेय्य मच्छेरमलं सुखेसिनो।", | |
"ते", | |
"देवानं सहब्यगता रमन्ति ते", | |
"‘‘कतावकासा कतकुसला इतो चुता", | |
"सयंपभा अनुविचरन्ति नन्दनं", | |
"ते तत्थ नन्दन्ति रमन्ति मोदरे,", | |
"समप्पिता कामगुणेहि पञ्चहि।", | |
"‘‘कत्वान वाक्यं असितस्स तादिनो,", | |
"रमन्ति सग्गे", | |
"‘‘ददमानो पियो होति, सतं धम्मं अनुक्कमं।", | |
"सन्तो नं सदा भजन्ति", | |
"‘‘ते तस्स धम्मं देसेन्ति, सब्बदुक्खापनूदनं।", | |
"यं सो धम्मं इधञ्ञाय, परिनिब्बाति अनासवो’’ति॥ पञ्चमं।", | |
"‘‘काले ददन्ति सप्पञ्ञा, वदञ्ञू वीतमच्छरा।", | |
"कालेन दिन्नं अरियेसु, उजुभूतेसु तादिसु॥", | |
"‘‘विप्पसन्नमना तस्स, विपुला होति दक्खिणा।", | |
"ये तत्थ अनुमोदन्ति, वेय्यावच्चं करोन्ति वा।", | |
"न तेन", | |
"‘‘तस्मा ददे अप्पटिवानचित्तो, यत्थ दिन्नं महप्फलं।", | |
"पुञ्ञानि परलोकस्मिं, पतिट्ठा होन्ति पाणिन’’न्ति॥ छट्ठं।", | |
"‘‘आयुदो बलदो धीरो, वण्णदो पटिभानदो।", | |
"सुखस्स दाता मेधावी, सुखं सो अधिगच्छति॥", | |
"‘‘आयुं दत्वा बलं वण्णं, सुखञ्च पटिभानकं", | |
"दीघायु यसवा होति, यत्थ यत्थूपपज्जती’’ति॥ सत्तमं।", | |
"‘‘साखापत्तफलूपेतो", | |
"मूलवा फलसम्पन्नो, पतिट्ठा होति पक्खिनं॥", | |
"‘‘मनोरमे आयतने, सेवन्ति नं विहङ्गमा।", | |
"छायं छायत्थिका", | |
"‘‘तथेव सीलसम्पन्नं, सद्धं पुरिसपुग्गलं।", | |
"निवातवुत्तिं अत्थद्धं, सोरतं सखिलं मुदुं॥", | |
"‘‘वीतरागा", | |
"पुञ्ञक्खेत्तानि लोकस्मिं, सेवन्ति तादिसं नरं॥", | |
"‘‘ते तस्स धम्मं देसेन्ति, सब्बदुक्खापनूदनं।", | |
"यं सो धम्मं इधञ्ञाय, परिनिब्बाति अनासवो’’ति॥ अट्ठमं।", | |
"भतो वा नो भरिस्सति, किच्चं वा नो करिस्सति॥", | |
"‘‘कुलवंसो चिरं तिट्ठे, दायज्जं पटिपज्जति।", | |
"अथ", | |
"‘‘ठानानेतानि सम्पस्सं, पुत्तं इच्छन्ति पण्डिता।", | |
"तस्मा सन्तो सप्पुरिसा, कतञ्ञू कतवेदिनो॥", | |
"‘‘भरन्ति मातापितरो, पुब्बे कतमनुस्सरं।", | |
"करोन्ति", | |
"‘‘ओवादकारी भतपोसी, कुलवंसं अहापयं।", | |
"सद्धो सीलेन सम्पन्नो, पुत्तो होति पसंसियो’’ति॥ नवमं।", | |
"‘‘यथा हि पब्बतो सेलो, अरञ्ञस्मिं ब्रहावने।", | |
"तं रुक्खा उपनिस्साय, वड्ढन्ते ते वनप्पती॥", | |
"‘‘तथेव सीलसम्पन्नं, सद्धं कुलपुत्तं इमं", | |
"उपनिस्साय वड्ढन्ति, पुत्तदारा च बन्धवा।", | |
"अमच्चा", | |
"‘‘त्यस्स सीलवतो सीलं, चागं सुचरितानि च।", | |
"पस्समानानुकुब्बन्ति, ये भवन्ति विचक्खणा॥", | |
"‘‘इमं धम्मं चरित्वान, मग्गं", | |
"नन्दिनो देवलोकस्मिं, मोदन्ति कामकामिनो’’ति॥ दसमं।", | |
"सुमना चुन्दी उग्गहो, सीहो दानानिसंसको।", | |
"कालभोजनसद्धा च, पुत्तसालेहि ते दसाति॥", | |
"‘‘भुत्ता भोगा भता भच्चा", | |
"उद्धग्गा दक्खिणा दिन्ना, अथो पञ्चबलीकता।", | |
"उपट्ठिता सीलवन्तो, सञ्ञता ब्रह्मचारयो॥", | |
"‘‘यदत्थं भोगं इच्छेय्य, पण्डितो घरमावसं।", | |
"सो मे अत्थो अनुप्पत्तो, कतं अननुतापियं॥", | |
"‘‘एतं", | |
"इधेव नं पसंसन्ति, पेच्च सग्गे पमोदती’’ति", | |
"‘‘हितो बहुन्नं पटिपज्ज भोगे, तं देवता रक्खति धम्मगुत्तं।", | |
"बहुस्सुतं सीलवतूपपन्नं, धम्मे ठितं न विजहति", | |
"‘‘धम्मट्ठं", | |
"नेक्खं जम्बोनदस्सेव, को तं निन्दितुमरहति।", | |
"देवापि नं पसंसन्ति, ब्रह्मुनापि पसंसितो’’ति॥ दुतियं।", | |
"‘‘आयुं वण्णं यसं कित्तिं, सग्गं उच्चाकुलीनतं।", | |
"रतियो पत्थयानेन", | |
"‘‘अप्पमादं पसंसन्ति, पुञ्ञकिरियासु पण्डिता।", | |
"‘‘अप्पमत्तो", | |
"‘‘दिट्ठे धम्मे च", | |
"अत्थाभिसमया धीरो, पण्डितोति पवुच्चती’’ति॥ ततियं।", | |
"‘‘मनापदायी लभते मनापं,", | |
"यो उज्जुभूतेसु", | |
"अच्छादनं सयनमन्नपानं", | |
"नानाप्पकारानि च पच्चयानि॥", | |
"‘‘चत्तञ्च मुत्तञ्च अनुग्गहीतं", | |
"खेत्तूपमे अरहन्ते विदित्वा।", | |
"सो", | |
"मनापदायी लभते मनाप’’न्ति॥", | |
"‘‘मनापदायी लभते मनापं,", | |
"अग्गस्स दाता लभते पुनग्गं।", | |
"वरस्स दाता वरलाभि होति,", | |
"सेट्ठं ददो सेट्ठमुपेति ठानं॥", | |
"‘‘यो", | |
"दीघायु यसवा होति, यत्थ यत्थूपपज्जती’’ति॥ चतुत्थं।", | |
"‘‘महोदधिं", | |
"बहुभेरवं रत्नगणानमालयं।", | |
"नज्जो यथा नरगणसङ्घसेविता", | |
"पुथू सवन्ती उपयन्ति सागरं॥", | |
"‘‘एवं", | |
"सेय्यानिसज्जत्थरणस्स दायकं।", | |
"पुञ्ञस्स धारा उपयन्ति पण्डितं,", | |
"नज्जो यथा वारिवहाव सागर’’न्ति॥ पञ्चमं।", | |
"सीलञ्च यस्स कल्याणं, अरियकन्तं पसंसितं॥", | |
"‘‘सङ्घे पसादो यस्सत्थि, उजुभूतञ्च दस्सनं।", | |
"अदलिद्दोति तं आहु, अमोघं तस्स जीवितं॥", | |
"‘‘तस्मा सद्धञ्च सीलञ्च, पसादं धम्मदस्सनं।", | |
"अनुयुञ्जेथ मेधावी, सरं बुद्धान सासन’’न्ति॥ सत्तमं।", | |
"अत्थोध लब्भा", | |
"सोचन्तमेनं दुखितं विदित्वा,", | |
"पच्चत्थिका अत्तमना भवन्ति॥", | |
"‘‘यतो च खो पण्डितो आपदासु,", | |
"न वेधती अत्थविनिच्छयञ्ञू।", | |
"पच्चत्थिकास्स", | |
"दिस्वा मुखं अविकारं पुराणं॥", | |
"‘‘जप्पेन", | |
"अनुप्पदानेन पवेणिया वा।", | |
"यथा यथा यत्थ", | |
"तथा तथा तत्थ परक्कमेय्य॥", | |
"‘‘सचे", | |
"मयाव", | |
"असोचमानो अधिवासयेय्य,", | |
"कम्मं दळ्हं किन्ति करोमि दानी’’ति॥ अट्ठमं।", | |
"‘‘न सोचनाय परिदेवनाय,", | |
"अत्थोध लब्भा अपि अप्पकोपि।", | |
"सोचन्तमेनं दुखितं विदित्वा,", | |
"पच्चत्थिका अत्तमना भवन्ति॥", | |
"‘‘यतो", | |
"न वेधती अत्थविनिच्छयञ्ञू।", | |
"पच्चत्थिकास्स दुखिता भवन्ति,", | |
"दिस्वा मुखं अविकारं पुराणं॥", | |
"‘‘जप्पेन मन्तेन सुभासितेन,", | |
"अनुप्पदानेन पवेणिया वा।", | |
"यथा यथा यत्थ लभेथ अत्थं,", | |
"तथा तथा तत्थ परक्कमेय्य॥", | |
"‘‘सचे", | |
"मयाव अञ्ञेन वा एस अत्थो।", | |
"असोचमानो अधिवासयेय्य,", | |
"कम्मं दळ्हं किन्ति करोमि दानी’’ति", | |
"आदियो सप्पुरिसो इट्ठा, मनापदायीभिसन्दं।", | |
"सम्पदा च धनं ठानं, कोसलो नारदेन चाति॥", | |
"‘‘सल्लपे", | |
"आसीविसम्पि आसीदे", | |
"‘‘नत्वेव", | |
"मुट्ठस्सतिं", | |
"‘‘अथोपि दुन्निवत्थेन, मञ्जुना भणितेन च।", | |
"नेसो जनो स्वासीसदो, अपि उग्घातितो मतो॥", | |
"‘‘पञ्च कामगुणा एते, इत्थिरूपस्मिं दिस्सरे।", | |
"रूपा सद्दा रसा गन्धा, फोट्ठब्बा च मनोरमा॥", | |
"‘‘तेसं कामोघवूळ्हानं, कामे अपरिजानतं।", | |
"कालं गति", | |
"‘‘ये", | |
"ते वे पारङ्गता लोके, ये पत्ता आसवक्खय’’न्ति॥ पञ्चमं।", | |
"‘‘ब्याधिधम्मा जराधम्मा, अथो मरणधम्मिनो।", | |
"यथा धम्मा तथा सत्ता", | |
"‘‘अहञ्चे तं जिगुच्छेय्यं, एवं धम्मेसु पाणिसु।", | |
"न मेतं पतिरूपस्स, मम एवं विहारिनो॥", | |
"‘‘सोहं एवं विहरन्तो, ञत्वा धम्मं निरूपधिं।", | |
"आरोग्ये योब्बनस्मिञ्च, जीवितस्मिञ्च ये मदा॥", | |
"‘‘सब्बे मदे अभिभोस्मि, नेक्खम्मं दट्ठु खेमतो", | |
"तस्स मे अहु उस्साहो, निब्बानं अभिपस्सतो॥", | |
"‘‘नाहं भब्बो एतरहि, कामानि पटिसेवितुं।", | |
"अनिवत्ति", | |
"‘‘मातापितुकिच्चकरो, पुत्तदारहितो सदा।", | |
"अन्तोजनस्स अत्थाय, ये चस्स अनुजीविनो॥", | |
"‘‘उभिन्नञ्चेव अत्थाय, वदञ्ञू होति सीलवा।", | |
"ञातीनं पुब्बपेतानं, दिट्ठे धम्मे च जीवतं", | |
"‘‘समणानं ब्राह्मणानं, देवतानञ्च पण्डितो।", | |
"वित्तिसञ्जननो होति, धम्मेन घरमावसं॥", | |
"‘‘सो करित्वान कल्याणं, पुज्जो होति पसंसियो।", | |
"इधेव नं पसंसन्ति, पेच्च सग्गे पमोदती’’ति॥ अट्ठमं।", | |
"आवरणं रासि अङ्गानि, समयं मातुपुत्तिका।", | |
"उपज्झा ठाना लिच्छवि, कुमारा अपरा दुवेति॥", | |
"‘‘सद्धाय", | |
"पञ्ञाय चागेन सुतेन चूभयं।", | |
"सो तादिसो सप्पुरिसो विचक्खणो,", | |
"आदीयती सारमिधेव अत्तनो’’ति॥ ततियं।", | |
"‘‘सद्धाय सीलेन च या पवड्ढति", | |
"पञ्ञाय चागेन सुतेन चूभयं।", | |
"सा तादिसी सीलवती उपासिका,", | |
"आदीयती सारमिधेव अत्तनो’’ति॥ चतुत्थं।", | |
"द्वे च सञ्ञा द्वे वड्ढी च, साकच्छेन च साजीवं।", | |
"इद्धिपादा च द्वे वुत्ता, निब्बिदा चासवक्खयाति॥", | |
"द्वे चेतोविमुत्तिफला, द्वे च धम्मविहारिनो।", | |
"योधाजीवा च द्वे वुत्ता, चत्तारो च अनागताति॥", | |
"रजनीयो", | |
"पटिसम्भिदा च सीलेन, थेरो सेखा परे दुवेति॥", | |
"द्वे", | |
"सुतं कथा आरञ्ञको, सीहो च ककुधो दसाति॥", | |
"सारज्जं", | |
"आनन्द सीलासेखा च, चातुद्दिसो अरञ्ञेन चाति॥", | |
"कुलूपको पच्छासमणो, समाधिअन्धकविन्दं।", | |
"मच्छरी वण्णना इस्सा, दिट्ठिवाचाय वायमाति॥", | |
"गिलानो सतिसूपट्ठि, द्वे उपट्ठाका दुवायुसा।", | |
"वपकाससमणसुखा, परिकुप्पं ब्यसनेन चाति॥", | |
"चक्कानुवत्तना राजा, यस्संदिसं द्वे चेव पत्थना।", | |
"अप्पंसुपति भत्तादो, अक्खमो च सोतेन चाति॥", | |
"दत्वा अवजानाति आरभति च, सारन्दद तिकण्ड निरयेन च।", | |
"मित्तो असप्पुरिससप्पुरिसेन, समयविमुत्तं अपरे द्वेति॥", | |
"तयो सम्मत्तनियामा, तयो सद्धम्मसम्मोसा।", | |
"दुक्कथा चेव सारज्जं, उदायिदुब्बिनोदयाति॥", | |
"द्वे आघातविनया, साकच्छा साजीवतो पञ्हं।", | |
"पुच्छा निरोधो चोदना, सीलं निसन्ति भद्दजीति॥", | |
"‘‘यो", | |
"लोके अदिन्नं आदियति, परदारञ्च गच्छति।", | |
"सुरामेरयपानञ्च, यो नरो अनुयुञ्जति॥", | |
"‘‘अप्पहाय पञ्च वेरानि, दुस्सीलो इति वुच्चति।", | |
"कायस्स भेदा दुप्पञ्ञो, निरयं सोपपज्जति॥", | |
"‘‘यो", | |
"लोके अदिन्नं नादियति, परदारं न गच्छति।", | |
"सुरामेरयपानञ्च", | |
"‘‘पहाय पञ्च वेरानि, सीलवा इति वुच्चति।", | |
"कायस्स", | |
"‘‘निरयेसु भयं दिस्वा, पापानि परिवज्जये।", | |
"अरियधम्मं समादाय, पण्डितो परिवज्जये॥", | |
"‘‘न हिंसे पाणभूतानि, विज्जमाने परक्कमे।", | |
"मुसा च न भणे जानं, अदिन्नं न परामसे॥", | |
"‘‘सेहि दारेहि सन्तुट्ठो, परदारञ्च आरमे", | |
"मेरयं वारुणिं जन्तु, न पिवे चित्तमोहनिं॥", | |
"‘‘अनुस्सरेय्य", | |
"अब्यापज्जं", | |
"‘‘उपट्ठिते देय्यधम्मे, पुञ्ञत्थस्स जिगीसतो", | |
"सन्तेसु पठमं दिन्ना, विपुला होति दक्खिणा॥", | |
"‘‘सन्तो हवे पवक्खामि, सारिपुत्त सुणोहि मे।", | |
"इति", | |
"‘‘कम्मासासु सरूपासु, गोसु पारेवतासु वा।", | |
"यासु कासुचि एतासु, दन्तो जायति पुङ्गवो॥", | |
"‘‘धोरय्हो बलसम्पन्नो, कल्याणजवनिक्कमो।", | |
"तमेव", | |
"‘‘एवमेवं", | |
"खत्तिये ब्राह्मणे वेस्से, सुद्दे चण्डालपुक्कुसे॥", | |
"‘‘यासु कासुचि एतासु, दन्तो जायति सुब्बतो।", | |
"धम्मट्ठो सीलसम्पन्नो, सच्चवादी हिरीमनो॥", | |
"‘‘पहीनजातिमरणो, ब्रह्मचरियस्स केवली।", | |
"पन्नभारो विसंयुत्तो, कतकिच्चो अनासवो॥", | |
"‘‘पारगू सब्बधम्मानं, अनुपादाय निब्बुतो।", | |
"तस्मिञ्च विरजे खेत्ते, विपुला होति दक्खिणा॥", | |
"‘‘बाला च अविजानन्ता, दुम्मेधा अस्सुताविनो।", | |
"बहिद्धा ददन्ति दानानि, न हि सन्ते उपासरे॥", | |
"‘‘ये च सन्ते उपासन्ति, सप्पञ्ञे धीरसम्मते।", | |
"सद्धा च नेसं सुगते, मूलजाता पतिट्ठिता॥", | |
"‘‘देवलोकञ्च ते यन्ति, कुले वा इध जायरे।", | |
"अनुपुब्बेन निब्बानं, अधिगच्छन्ति पण्डिता’’ति॥ नवमं।", | |
"सारज्जं", | |
"पीति वणिज्जा राजानो, गिही चेव गवेसिनाति॥", | |
"अरञ्ञं चीवरं रुक्ख, सुसानं अब्भोकासिकं।", | |
"नेसज्जं सन्थतं एकासनिकं, खलुपच्छापिण्डिकेन चाति॥", | |
"‘‘नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।", | |
"नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।", | |
"नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्सा’’ति॥", | |
"‘‘पद्मं", | |
"पातो सिया फुल्लमवीतगन्धं।", | |
"अङ्गीरसं पस्स विरोचमानं,", | |
"तपन्तमादिच्चमिवन्तलिक्खे’’ति॥", | |
"सोणो", | |
"सुपिना च वस्सा वाचा, कुलं निस्सारणीयेन चाति॥", | |
"किमिलो", | |
"विनिबन्धं यागु कट्ठं, गीतं मुट्ठस्सतिना चाति॥", | |
"अक्कोसभण्डनसीलं", | |
"अपासादिका द्वे वुत्ता, अग्गिस्मिं मधुरेन चाति॥", | |
"द्वे दीघचारिका वुत्ता, अतिनिवासमच्छरी।", | |
"द्वे च कुलूपका भोगा, भत्तं सप्पापरे दुवेति॥", | |
"आवासिको", | |
"बहूपकारो अनुकम्पको च।", | |
"तयो अवण्णारहा चेव,", | |
"मच्छरिया दुवेपि चाति", | |
"दुच्चरितं", | |
"चतूहि परे द्वे सिवथिका, पुग्गलप्पसादेन चाति॥", | |
"अभिञ्ञाय परिञ्ञाय परिक्खयाय,", | |
"पहानाय खयाय वयेन च।", | |
"विरागनिरोधा चागञ्च,", | |
"पटिनिस्सग्गो इमे दसाति॥", | |
"सेखबलं", | |
"मुण्डनीवरणञ्च सञ्ञञ्च, योधाजीवञ्च अट्ठमं।", | |
"थेरं ककुधफासुञ्च, अन्धकविन्दद्वादसं।", | |
"गिलानराजतिकण्डं, सद्धम्माघातुपासकं।", | |
"अरञ्ञब्राह्मणञ्चेव, किमिलक्कोसकं तथा।", | |
"दीघाचारावासिकञ्च, दुच्चरितूपसम्पदन्ति॥" | |
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