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"title": "पठमपण्णासकं", | |
"book_name": "११. रागपेय्यालं", | |
"chapter": "१. पठमपियसुत्तं", | |
"gathas": [ | |
"‘‘सद्धाबलं", | |
"सतिबलं समाधि च, पञ्ञा वे सत्तमं बलं।", | |
"एतेहि बलवा भिक्खु, सुखं जीवति पण्डितो।", | |
"‘‘योनिसो", | |
"पज्जोतस्सेव निब्बानं, विमोक्खो होति चेतसो’’ति॥ ततियं।", | |
"‘‘सद्धाबलं वीरियञ्च, हिरी ओत्तप्पियं बलं।", | |
"सतिबलं समाधि च, पञ्ञा वे सत्तमं बलं।", | |
"एतेहि बलवा भिक्खु, सुखं जीवति पण्डितो॥", | |
"‘‘योनिसो विचिने धम्मं, पञ्ञायत्थं विपस्सति।", | |
"पज्जोतस्सेव निब्बानं, विमोक्खो होति चेतसो’’ति॥ चतुत्थं।", | |
"‘‘सद्धाधनं", | |
"सुतधनञ्च चागो च, पञ्ञा वे सत्तमं धनं॥", | |
"‘‘यस्स एते धना अत्थि, इत्थिया पुरिसस्स वा।", | |
"अदलिद्दोति तं आहु, अमोघं तस्स जीवितं॥", | |
"‘‘तस्मा", | |
"अनुयुञ्जेथ मेधावी, सरं", | |
"‘‘सद्धाधनं सीलधनं, हिरी ओत्तप्पियं धनं।", | |
"सुतधनञ्च चागो च, पञ्ञा वे सत्तमं धनं॥", | |
"‘‘यस्स एते धना अत्थि, इत्थिया पुरिसस्स वा।", | |
"अदलिद्दोति तं आहु, अमोघं तस्स जीवितं॥", | |
"‘‘तस्मा सद्धञ्च सीलञ्च, पसादं धम्मदस्सनं।", | |
"अनुयुञ्जेथ मेधावी, सरं बुद्धान सासन’’न्ति॥ छट्ठं।", | |
"‘‘सद्धाधनं सीलधनं, हिरी ओत्तप्पियं धनं।", | |
"सुतधनञ्च चागो च, पञ्ञा वे सत्तमं धनं॥", | |
"‘‘यस्स एते धना अत्थि, इत्थिया पुरिसस्स वा।", | |
"स वे महद्धनो लोके, अजेय्यो देवमानुसे॥", | |
"‘‘तस्मा सद्धञ्च सीलञ्च, पसादं धम्मदस्सनं।", | |
"अनुयुञ्जेथ मेधावी, सरं बुद्धान सासन’’न्ति॥ सत्तमं।", | |
"द्वे", | |
"उग्गं संयोजनञ्चेव, पहानं मच्छरियेन चाति॥", | |
"दुवे अनुसया कुलं, पुग्गलं उदकूपमं।", | |
"अनिच्चं दुक्खं अनत्ता च, निब्बानं निद्दसवत्थु चाति॥", | |
"‘‘दस्सनं", | |
"सवनञ्च अरियधम्मानं, अधिसीले न सिक्खति॥", | |
"‘‘अप्पसादो च भिक्खूसु, भिय्यो भिय्यो पवड्ढति।", | |
"उपारम्भकचित्तो च, सद्धम्मं सोतुमिच्छति॥", | |
"‘‘इतो च बहिद्धा अञ्ञं, दक्खिणेय्यं गवेसति।", | |
"तत्थेव च पुब्बकारं, यो करोति उपासको॥", | |
"‘‘एते खो परिहानिये, सत्त धम्मे सुदेसिते।", | |
"उपासको सेवमानो, सद्धम्मा परिहायति॥", | |
"‘‘दस्सनं भावितत्तानं, यो न हापेति उपासको।", | |
"सवनञ्च अरियधम्मानं, अधिसीले च सिक्खति॥", | |
"‘‘पसादो चस्स भिक्खूसु, भिय्यो भिय्यो पवड्ढति।", | |
"अनुपारम्भचित्तो च, सद्धम्मं सोतुमिच्छति॥", | |
"‘‘न", | |
"इधेव च पुब्बकारं, यो करोति उपासको॥", | |
"‘‘एते", | |
"उपासको सेवमानो, सद्धम्मा न परिहायती’’ति॥ नवमं।", | |
"‘‘दस्सनं", | |
"सवनञ्च अरियधम्मानं, अधिसीले न सिक्खति॥", | |
"‘‘अप्पसादो च भिक्खूसु, भिय्यो भिय्यो पवड्ढति।", | |
"उपारम्भकचित्तो च, सद्धम्मं सोतुमिच्छति॥", | |
"‘‘इतो च बहिद्धा अञ्ञं, दक्खिणेय्यं गवेसति।", | |
"तत्थेव च पुब्बकारं, यो करोति उपासको॥", | |
"‘‘एते", | |
"उपासको सेवमानो, सद्धम्मा परिहायति॥", | |
"‘‘दस्सनं", | |
"सवनञ्च अरियधम्मानं, अधिसीले च सिक्खति॥", | |
"‘‘पसादो चस्स भिक्खूसु, भिय्यो भिय्यो पवड्ढति।", | |
"अनुपारम्भचित्तो च, सद्धम्मं सोतुमिच्छति॥", | |
"‘‘न", | |
"इधेव च पुब्बकारं, यो करोति उपासको॥", | |
"‘‘एते खो अपरिहानिये, सत्त धम्मे सुदेसिते।", | |
"उपासको सेवमानो, सद्धम्मा न परिहायती’’ति॥ एकादसमं।", | |
"सारन्द", | |
"बोधिसञ्ञा द्वे च हानि, विपत्ति च पराभवोति॥", | |
"‘‘सत्थुगरु धम्मगरु, सङ्घे च तिब्बगारवो।", | |
"समाधिगरु आतापी", | |
"‘‘अप्पमादगरु", | |
"अभब्बो परिहानाय, निब्बानस्सेव सन्तिके’’ति॥ पठमं।", | |
"‘‘सत्थुगरु धम्मगरु, सङ्घे च तिब्बगारवो।", | |
"समाधिगरु आतापी, सिक्खाय तिब्बगारवो॥", | |
"‘‘हिरि ओत्तप्पसम्पन्नो, सप्पतिस्सो सगारवो।", | |
"अभब्बो परिहानाय, निब्बानस्सेव सन्तिके’’ति॥ दुतियं।", | |
"‘‘सत्थुगरु", | |
"समाधिगरु आतापी, सिक्खाय तिब्बगारवो॥", | |
"‘‘कल्याणमित्तो सुवचो, सप्पतिस्सो सगारवो।", | |
"अभब्बो परिहानाय, निब्बानस्सेव सन्तिके’’ति॥ ततियं।", | |
"‘‘दुद्ददं ददाति मित्तो, दुक्करञ्चापि कुब्बति।", | |
"अथोपिस्स दुरुत्तानि, खमति दुक्खमानि च", | |
"‘‘गुय्हञ्च तस्स", | |
"आपदासु न जहाति, खीणेन नातिमञ्ञति॥", | |
"‘‘यम्हि एतानि ठानानि, संविज्जन्तीध", | |
"सो मित्तो मित्तकामेन, भजितब्बो तथाविधो’’ति॥ पञ्चमं।", | |
"‘‘पियो गरु भावनीयो, वत्ता च वचनक्खमो।", | |
"गम्भीरञ्च कथं कत्ता, नो चट्ठाने नियोजको", | |
"‘‘यम्हि एतानि ठानानि, संविज्जन्तीध पुग्गले।", | |
"सो मित्तो मित्तकामेन, अत्थकामानुकम्पतो।", | |
"अपि नासियमानेन, भजितब्बो तथाविधो’’ति॥ छट्ठं।", | |
"अप्पमादो हिरी चेव, द्वे सुवचा दुवे मित्ता।", | |
"द्वे पटिसम्भिदा द्वे वसा, दुवे निद्दसवत्थुनाति॥", | |
"ठिति च परिक्खारं द्वे, अग्गी सञ्ञा च द्वे परा।", | |
"मेथुना संयोगो दानं, नन्दमातेन ते दसाति॥", | |
"‘‘पस्स पुञ्ञानं विपाकं, कुसलानं सुखेसिनो", | |
"मेत्तं चित्तं विभावेत्वा, सत्त वस्सानि भिक्खवो", | |
"सत्तसंवट्टविवट्टकप्पे", | |
"‘‘संवट्टमाने", | |
"विवट्टमाने लोकस्मिं, सुञ्ञब्रह्मूपगो अहुं॥", | |
"‘‘सत्तक्खत्तुं महाब्रह्मा, वसवत्ती तदा अहुं।", | |
"छत्तिंसक्खत्तुं देविन्दो, देवरज्जमकारयिं॥", | |
"‘‘चक्कवत्ती", | |
"मुद्धावसित्तो", | |
"‘‘अदण्डेन असत्थेन, विजेय्य पथविं इमं।", | |
"असाहसेन कम्मेन", | |
"‘‘धम्मेन रज्जं कारेत्वा, अस्मिं पथविमण्डले।", | |
"महद्धने महाभोगे, अड्ढे अजायिहं कुले॥", | |
"‘‘सब्बकामेहि सम्पन्ने", | |
"बुद्धा सङ्गाहका लोके, तेहि एतं सुदेसितं॥", | |
"‘‘एसो हेतु महन्तस्स, पथब्यो मे न विपज्जति", | |
"पहूतवित्तूपकरणो, राजा होति", | |
"‘‘इद्धिमा यसवा होति", | |
"को सुत्वा नप्पसीदेय्य, अपि कण्हाभिजातियो॥", | |
"‘‘तस्मा", | |
"सद्धम्मो गरुकातब्बो, सरं बुद्धानसासन’’न्ति॥ नवमं।", | |
"‘‘पदुट्ठचित्ता", | |
"अञ्ञेसु रत्ता अतिमञ्ञते पतिं।", | |
"धनेन कीतस्स वधाय उस्सुका,", | |
"या एवरूपा पुरिसस्स भरिया।", | |
"‘वधा च भरिया’ति च सा पवुच्चति॥", | |
"‘‘यं इत्थिया विन्दति सामिको धनं,", | |
"सिप्पं वणिज्जञ्च कसिं अधिट्ठहं।", | |
"अप्पम्पि तस्स अपहातुमिच्छति,", | |
"या", | |
"‘चोरी च भरिया’ति च सा पवुच्चति॥", | |
"‘‘अकम्मकामा", | |
"फरुसा च चण्डी दुरुत्तवादिनी।", | |
"उट्ठायकानं अभिभुय्य वत्तति,", | |
"या एवरूपा पुरिसस्स भरिया।", | |
"‘अय्या च भरिया’ति च सा पवुच्चति॥", | |
"‘‘या", | |
"माताव पुत्तं अनुरक्खते पतिं।", | |
"ततो धनं सम्भतमस्स रक्खति,", | |
"या एवरूपा पुरिसस्स भरिया।", | |
"‘माता च भरिया’ति च सा पवुच्चति॥", | |
"‘‘यथापि जेट्ठा भगिनी कनिट्ठका", | |
"सगारवा होति सकम्हि सामिके।", | |
"हिरीमना", | |
"या एवरूपा पुरिसस्स भरिया।‘भगिनी च भरिया’ति च सा पवुच्चति॥", | |
"‘‘याचीध दिस्वान पतिं पमोदति,", | |
"सखी सखारंव चिरस्समागतं।", | |
"कोलेय्यका सीलवती पतिब्बता,", | |
"या एवरूपा पुरिसस्स भरिया।", | |
"‘सखी च भरिया’ति च सा पवुच्चति॥", | |
"‘‘अक्कुद्धसन्ता वधदण्डतज्जिता,", | |
"अदुट्ठचित्ता पतिनो तितिक्खति।", | |
"अक्कोधना भत्तुवसानुवत्तिनी,", | |
"या एवरूपा पुरिसस्स भरिया।", | |
"‘दासी च भरिया’ति च सा पवुच्चति॥", | |
"‘‘याचीध भरिया वधकाति वुच्चति,", | |
"‘चोरी च अय्या’ति च या पवुच्चति।", | |
"दुस्सीलरूपा फरुसा अनादरा,", | |
"कायस्स भेदा निरयं वजन्ति ता॥", | |
"‘‘याचीध", | |
"‘दासी च भरिया’ति च सा पवुच्चति।", | |
"सीले ठितत्ता चिररत्तसंवुता,", | |
"कायस्स भेदा सुगतिं वजन्ति ता’’ति॥", | |
"‘‘कोधनो दुब्बण्णो होति, अथो दुक्खम्पि सेति सो।", | |
"अथो अत्थं गहेत्वान, अनत्थं अधिपज्जति", | |
"‘‘ततो", | |
"कोधाभिभूतो पुरिसो, धनजानिं निगच्छति॥", | |
"‘‘कोधसम्मदसम्मत्तो", | |
"ञातिमित्ता सुहज्जा च, परिवज्जन्ति कोधनं॥", | |
"भयमन्तरतो जातं, तं जनो नावबुज्झति॥", | |
"‘‘कुद्धो अत्थं न जानाति, कुद्धो धम्मं न पस्सति।", | |
"अन्धतमं तदा होति, यं कोधो सहते नरं॥", | |
"‘‘यं", | |
"पच्छा सो विगते कोधे, अग्गिदड्ढोव तप्पति॥", | |
"‘‘दुम्मङ्कुयं पदस्सेति", | |
"यतो पतायति कोधो, येन कुज्झन्ति मानवा॥", | |
"‘‘नास्स हिरी न ओत्तप्पं", | |
"कोधेन अभिभूतस्स, न दीपं होति किञ्चनं॥", | |
"‘‘तपनीयानि कम्मानि, यानि धम्मेहि आरका।", | |
"तानि आरोचयिस्सामि, तं सुणाथ यथा तथं॥", | |
"‘‘कुद्धो हि पितरं हन्ति, हन्ति कुद्धो समातरं।", | |
"कुद्धो हि ब्राह्मणं हन्ति, हन्ति कुद्धो पुथुज्जनं॥", | |
"‘‘याय", | |
"तम्पि पाणददिं सन्तिं, हन्ति कुद्धो पुथुज्जनो॥", | |
"‘‘अत्तूपमा हि ते सत्ता, अत्ता हि परमो", | |
"हन्ति", | |
"‘‘असिना हन्ति अत्तानं, विसं खादन्ति मुच्छिता।", | |
"रज्जुया बज्झ मीयन्ति, पब्बतामपि कन्दरे॥", | |
"‘‘भूनहच्चानि", | |
"करोन्ता नावबुज्झन्ति", | |
"‘‘इतायं कोधरूपेन, मच्चुपासो गुहासयो।", | |
"तं दमेन समुच्छिन्दे, पञ्ञावीरियेन दिट्ठिया॥", | |
"‘‘यथा मेतं", | |
"तथेव धम्मे सिक्खेथ, मा नो दुम्मङ्कुयं अहु॥", | |
"‘‘वीतकोधा अनायासा, वीतलोभा अनुस्सुका", | |
"दन्ता कोधं पहन्त्वान, परिनिब्बन्ति अनासवा’’ति", | |
"अब्याकतो पुरिसगति, तिस्स सीह अरक्खियं।", | |
"किमिलं सत्त पचला, मेत्ता भरिया कोधेकादसाति॥", | |
"‘‘सीलं", | |
"अनुबुद्धा इमे धम्मा, गोतमेन यसस्सिना॥", | |
"‘‘इति बुद्धो अभिञ्ञाय, धम्ममक्खासि भिक्खुनं।", | |
"दुक्खस्सन्तकरो सत्था, चक्खुमा परिनिब्बुतो’’ति॥ दुतियं।", | |
"हिरीसूरियं उपमा, धम्मञ्ञू पारिछत्तकं।", | |
"सक्कच्चं भावना अग्गि, सुनेत्तअरकेन चाति॥", | |
"चतुरो विनयधरा, चतुरो चेव सोभना।", | |
"सासनं अधिकरण-समथेनट्ठमे दसाति॥", | |
"भिक्खुं", | |
"वेदगू अरियो अरहा, असद्धम्मा च सद्धम्माति॥", | |
"‘‘छद्वारारम्मणेस्वेत्थ, विञ्ञाणेसु च फस्सेसु।", | |
"वेदनासु च द्वारस्स, सुत्ता होन्ति विसुं अट्ठ॥", | |
"‘‘सञ्ञा सञ्चेतना तण्हा, वितक्केसु विचारे च।", | |
"गोचरस्स विसुं अट्ठ, पञ्चक्खन्धे च पच्चेके॥", | |
"‘‘सोळसस्वेत्थ मूलेसु, अनिच्चं दुक्खमनत्ता।", | |
"खया वया विरागा च, निरोधा पटिनिस्सग्गा॥", | |
"‘‘कमं अट्ठानुपस्सना, योजेत्वान विसुं विसुं।", | |
"सम्पिण्डितेसु सब्बेसु, होन्ति पञ्च सतानि च।", | |
"अट्ठवीसति सुत्तानि, आहुनेय्ये च वग्गिके’’" | |
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