Spaces:
Sleeping
Sleeping
{ | |
"title": "४. महावग्गो", | |
"book_name": "४. महावग्गो", | |
"chapter": "३. चूळवग्गो", | |
"gathas": [ | |
"‘‘खेत्तूपमा", | |
"बीजूपमं देय्यधम्मं, एत्तो निब्बत्तते फलं॥", | |
"‘‘एतं बीजं कसि खेत्तं, पेतानं दायकस्स च।", | |
"तं पेता परिभुञ्जन्ति, दाता पुञ्ञेन वड्ढति॥", | |
"‘‘इधेव", | |
"सग्गञ्च कमति", | |
"‘‘कायो", | |
"मुखं ते सूकरस्सेव, किं कम्ममकरी पुरे’’", | |
"‘‘कायेन सञ्ञतो आसिं, वाचायासिमसञ्ञतो।", | |
"तेन मेतादिसो वण्णो, यथा पस्ससि नारद॥", | |
"‘‘तं", | |
"माकासि", | |
"‘‘दिब्बं सुभं धारेसि वण्णधातुं, वेहायसं तिट्ठसि अन्तलिक्खे।", | |
"मुखञ्च ते किमयो पूतिगन्धं, खादन्ति किं कम्ममकासि पुब्बे’’॥", | |
"‘‘समणो अहं पापोतिदुट्ठवाचो", | |
"लद्धा च मे तपसा वण्णधातु, मुखञ्च मे पेसुणियेन पूति॥", | |
"‘‘तयिदं तया नारद सामं दिट्ठं,", | |
"अनुकम्पका ये कुसला वदेय्युं।", | |
"‘मा पेसुणं मा च मुसा अभाणि,", | |
"यक्खो तुवं होहिसि कामकामी’’’ति॥", | |
"‘‘यं", | |
"पुब्बपेते च आरब्भ, अथ वा वत्थुदेवता॥", | |
"‘‘चत्तारो च महाराजे, लोकपाले यसस्सिने", | |
"", | |
"कुवेरं धतरट्ठञ्च, विरूपक्खं विरूळ्हकं।", | |
"ते", | |
"‘‘न", | |
"न तं पेतस्स अत्थाय, एवं तिट्ठन्ति ञातयो॥", | |
"‘‘अयञ्च खो दक्खिणा दिन्ना, सङ्घम्हि सुप्पतिट्ठिता।", | |
"दीघरत्तं हितायस्स, ठानसो उपकप्पती’’ति॥", | |
"", | |
"द्वारबाहासु तिट्ठन्ति, आगन्त्वान सकं घरं॥", | |
"‘‘पहूते अन्नपानम्हि, खज्जभोज्जे उपट्ठिते।", | |
"न तेसं कोचि सरति, सत्तानं कम्मपच्चया॥", | |
"‘‘एवं", | |
"सुचिं पणीतं कालेन, कप्पियं पानभोजनं।", | |
"‘इदं वो ञातीनं होतु, सुखिता होन्तु ञातयो’॥", | |
"‘‘ते च तत्थ समागन्त्वा, ञातिपेता समागता।", | |
"पहूते अन्नपानम्हि, सक्कच्चं अनुमोदरे॥", | |
"‘‘‘चिरं जीवन्तु नो ञाती, येसं हेतु लभामसे।", | |
"अम्हाकञ्च कता पूजा, दायका च अनिप्फला’॥", | |
"‘‘‘न हि तत्थ कसि अत्थि, गोरक्खेत्थ न विज्जति।", | |
"वणिज्जा तादिसी नत्थि, हिरञ्ञेन कयाकयं", | |
"इतो", | |
"‘‘‘उन्नमे", | |
"एवमेव इतो दिन्नं, पेतानं उपकप्पति’॥", | |
"‘‘‘यथा वारिवहा पूरा, परिपूरेन्ति सागरं।", | |
"एवमेव इतो दिन्नं, पेतानं उपकप्पति’॥", | |
"‘‘‘अदासि", | |
"पेतानं दक्खिणं दज्जा, पुब्बे कतमनुस्सरं’॥", | |
"‘‘‘न हि रुण्णं वा सोको वा, या चञ्ञा परिदेवना।", | |
"न तं पेतानमत्थाय, एवं तिट्ठन्ति ञातयो’॥", | |
"‘‘‘अयञ्च खो दक्खिणा दिन्ना, सङ्घम्हि सुप्पतिट्ठिता।", | |
"दीघरत्तं हितायस्स, ठानसो उपकप्पति’॥", | |
"‘‘सो ञातिधम्मो च अयं निदस्सितो, पेतान पूजा च कता उळारा।", | |
"बलञ्च भिक्खूनमनुप्पदिन्नं, तुम्हेहि पुञ्ञं पसुतं अनप्पक’’न्ति॥", | |
"‘‘नग्गा", | |
"मक्खिकाहि परिकिण्णा", | |
"‘‘अहं भदन्ते", | |
"पापकम्मं", | |
"‘‘कालेन पञ्च पुत्तानि, सायं पञ्च पुनापरे।", | |
"विजायित्वान खादामि, तेपि ना होन्ति मे अलं॥", | |
"‘‘परिडय्हति धूमायति, खुदाय", | |
"पानीयं न लभे पातुं, पस्स मं ब्यसनं गत’’न्ति॥", | |
"‘‘किं नु कायेन वाचाय, मनसा दुक्कटं कतं।", | |
"किस्स कम्मविपाकेन, पुत्तमंसानि खादसी’’ति॥", | |
"‘‘सपती", | |
"साहं पदुट्ठमनसा, अकरिं गब्भपातनं॥", | |
"‘‘तस्सा", | |
"तदस्सा माता कुपिता, मय्हं ञाती समानयि।", | |
"सपथञ्च मं कारेसि, परिभासापयी च मं॥", | |
"‘‘साहं घोरञ्च सपथं, मुसावादं अभासिसं।", | |
"पुत्तमंसानि खादामि, सचे तं पकतं मया॥", | |
"‘‘तस्स कम्मस्स विपाकेन", | |
"पुत्तमंसानि खादामि, पुब्बलोहितमक्खिता’’ति॥", | |
"‘‘नग्गा", | |
"मक्खिकाहि", | |
"‘‘अहं भदन्ते पेतीम्हि, दुग्गता यमलोकिका।", | |
"पापकम्मं करित्वान, पेतलोकं इतो गता॥", | |
"‘‘कालेन सत्त पुत्तानि, सायं सत्त पुनापरे।", | |
"विजायित्वान खादामि, तेपि ना होन्ति मे अलं॥", | |
"‘‘परिडय्हति धूमायति, खुदाय हदयं मम।", | |
"निब्बुतिं नाधिगच्छामि, अग्गिदड्ढाव आतपे’’ति॥", | |
"‘‘किं नु कायेन वाचाय, मनसा दुक्कटं कतं।", | |
"किस्स कम्मविपाकेन, पुत्तमंसानि खादसी’’ति॥", | |
"‘‘अहू मय्हं दुवे पुत्ता, उभो सम्पत्तयोब्बना।", | |
"साहं पुत्तबलूपेता, सामिकं अतिमञ्ञिसं॥", | |
"‘‘ततो मे सामिको कुद्धो, सपत्तिं मय्हमानयि।", | |
"सा च गब्भं अलभित्थ, तस्सा पापं अचेतयिं॥", | |
"‘‘साहं", | |
"तस्सा तेमासिको गब्भो, पुब्बलोहितको", | |
"‘‘तदस्सा माता कुपिता, मय्हं ञाती समानयि।", | |
"सपथञ्च मं कारेसि, परिभासापयी च मं॥", | |
"‘‘साहं", | |
"‘पुत्तमंसानि खादामि, सचे तं पकतं मया’॥", | |
"‘‘तस्स", | |
"पुत्तमंसानि खादामि, पुब्बलोहितमक्खिता’’ति॥", | |
"‘‘किं", | |
"खाद खादाति लपसि, गतसत्तं जरग्गवं॥", | |
"‘‘न हि अन्नेन पानेन, मतो गोणो समुट्ठहे।", | |
"त्वंसि बालो च", | |
"‘‘इमे पादा इदं सीसं, अयं कायो सवालधि।", | |
"नेत्ता तथेव तिट्ठन्ति, अयं गोणो समुट्ठहे॥", | |
"‘‘नाय्यकस्स हत्थपादा, कायो सीसञ्च दिस्सति।", | |
"रुदं मत्तिकथूपस्मिं, ननु त्वञ्ञेव दुम्मती’’ति॥", | |
"‘‘आदित्तं वत मं सन्तं, घतसित्तंव पावकं।", | |
"वारिना विय ओसिञ्चं, सब्बं निब्बापये दरं॥", | |
"‘‘अब्बही", | |
"यो मे सोकपरेतस्स, पितुसोकं अपानुदि॥", | |
"‘‘स्वाहं अब्बूळ्हसल्लोस्मि, सीतिभूतोस्मि निब्बुतो।", | |
"न सोचामि न रोदामि, तव सुत्वान माणव’॥", | |
"एवं", | |
"विनिवत्तयन्ति सोकम्हा, सुजातो पितरं यथाति॥", | |
"‘‘गूथञ्च", | |
"अयं नु किं कम्ममकासि नारी, या सब्बदा लोहितपुब्बभक्खा॥", | |
"‘‘नवानि वत्थानि सुभानि चेव, मुदूनि सुद्धानि च लोमसानि।", | |
"दिन्नानि मिस्सा कितका", | |
"‘‘भरिया ममेसा अहू भदन्ते, अदायिका मच्छरिनी कदरिया।", | |
"सा मं ददन्तं समणब्राह्मणानं, अक्कोसति च परिभासति च॥", | |
"‘‘‘गूथञ्च मुत्तं रुहिरञ्च पुब्बं, परिभुञ्ज त्वं असुचिं सब्बकालं।", | |
"एतं ते परलोकस्मिं होतु, वत्था च ते किटकसमा भवन्तु’।", | |
"एतादिसं दुच्चरितं चरित्वा, इधागता चिररत्ताय खादती’’ति॥", | |
"‘‘का", | |
"उपनिक्खमस्सु भद्दे, पस्साम तं बहिट्ठित’’न्ति॥", | |
"‘‘अट्टीयामि", | |
"केसेहम्हि पटिच्छन्ना, पुञ्ञं मे अप्पकं कत’’न्ति॥", | |
"‘‘हन्दुत्तरीयं ददामि ते, इदं दुस्सं निवासय।", | |
"इदं दुस्सं निवासेत्वा, एहि निक्खम सोभने।", | |
"उपनिक्खमस्सु भद्दे, पस्साम तं बहिट्ठित’’न्ति॥", | |
"‘‘हत्थेन हत्थे ते दिन्नं, न मय्हं उपकप्पति।", | |
"एसेत्थुपासको सद्धो, सम्मासम्बुद्धसावको॥", | |
"‘‘एतं अच्छादयित्वान, मम दक्खिणमादिस।", | |
"तथाहं", | |
"तञ्च ते न्हापयित्वान, विलिम्पेत्वान वाणिजा।", | |
"वत्थेहच्छादयित्वान, तस्सा दक्खिणमादिसुं॥", | |
"समनन्तरानुद्दिट्ठे", | |
"भोजनच्छादनपानीयं", | |
"ततो सुद्धा सुचिवसना, कासिकुत्तमधारिनी।", | |
"हसन्ती विमाना निक्खमि, ‘दक्खिणाय इदं फल’’’न्ति॥", | |
"‘‘सुचित्तरूपं रुचिरं, विमानं ते पभासति।", | |
"देवते पुच्छिताचिक्ख, किस्स कम्मस्सिदं फल’’न्ति॥", | |
"‘‘भिक्खुनो", | |
"अदासिं उजुभूतस्स, विप्पसन्नेन चेतसा॥", | |
"‘‘तस्स कम्मस्स कुसलस्स, विपाकं दीघमन्तरं।", | |
"अनुभोमि विमानस्मिं, तञ्च दानि परित्तकं॥", | |
"‘‘उद्धं", | |
"एकन्तकटुकं घोरं, निरयं पपतिस्सहं॥", | |
"", | |
"अयोपाकारपरियन्तं, अयसा पटिकुज्जितं॥", | |
"‘‘तस्स", | |
"समन्ता योजनसतं, फरित्वा तिट्ठति सब्बदा॥", | |
"‘‘तत्थाहं दीघमद्धानं, दुक्खं वेदिस्स वेदनं।", | |
"फलञ्च पापकम्मस्स, तस्मा सोचामहं भुस’’न्ति॥", | |
"‘‘पुरतोव", | |
"पच्छा च कञ्ञा सिविकाय नीयति, ओभासयन्ती दस सब्बतो", | |
"‘‘तुम्हे पन मुग्गरहत्थपाणिनो, रुदंमुखा छिन्नपभिन्नगत्ता।", | |
"मनुस्सभूता", | |
"‘‘पुरतोव यो गच्छति कुञ्जरेन, सेतेन नागेन चतुक्कमेन।", | |
"अम्हाक पुत्तो अहु जेट्ठको सो", | |
"‘‘यो", | |
"अम्हाक पुत्तो अहु मज्झिमो सो, अमच्छरी दानवती विरोचति॥", | |
"‘‘या सा च पच्छा सिविकाय नीयति, नारी सपञ्ञा मिगमन्दलोचना।", | |
"अम्हाक धीता अहु सा कनिट्ठिका, भागड्ढभागेन सुखी पमोदति॥", | |
"‘‘एते", | |
"मयं पन मच्छरिनो अहुम्ह, परिभासका समणब्राह्मणानं।", | |
"एते च दत्वा परिचारयन्ति, मयञ्च", | |
"‘‘किं तुम्हाकं भोजनं किं सयानं, कथञ्च यापेथ सुपापधम्मिनो।", | |
"पहूतभोगेसु अनप्पकेसु, सुखं विराधाय", | |
"‘‘अञ्ञमञ्ञं वधित्वान, पिवाम पुब्बलोहितं।", | |
"बहुं पित्वा न धाता होम, नच्छादिम्हसे", | |
"‘‘इच्चेव मच्चा परिदेवयन्ति, अदायका पेच्च", | |
"ये ते विदिच्च", | |
"‘‘ते", | |
"कम्मानि कत्वान दुखुद्रानि, अनुभोन्ति दुक्खं कटुकप्फलानि॥", | |
"‘‘इत्तरं हि धनं धञ्ञं, इत्तरं इध जीवितं।", | |
"इत्तरं इत्तरतो ञत्वा, दीपं कयिराथ पण्डितो॥", | |
"‘‘ये ते एवं पजानन्ति, नरा धम्मस्स कोविदा।", | |
"ते दाने नप्पमज्जन्ति, सुत्वा अरहतं वचो’’ति॥", | |
"‘‘उरगोव", | |
"एवं सरीरे निब्भोगे, पेते कालङ्कते सति॥", | |
"‘‘डय्हमानो न जानाति, ञातीनं परिदेवितं।", | |
"तस्मा एतं न रोदामि, गतो सो तस्स या गति’’॥", | |
"‘‘अनब्भितो", | |
"यथागतो तथा गतो, तत्थ का", | |
"‘‘डय्हमानो", | |
"तस्मा एतं न रोदामि, गतो सो तस्स या गति’’॥", | |
"‘‘सचे रोदे किसा अस्सं, तत्थ मे किं फलं सिया।", | |
"ञातिमित्तसुहज्जानं, भिय्यो नो अरती सिया॥", | |
"‘‘डय्हमानो न जानाति, ञातीनं परिदेवितं।", | |
"तस्मा एतं न रोदामि, गतो सो तस्स या गति’’॥", | |
"‘‘यथापि दारको चन्दं, गच्छन्तमनुरोदति।", | |
"एवं सम्पदमेवेतं, यो पेतमनुसोचति॥", | |
"‘‘डय्हमानो न जानाति, ञातीनं परिदेवितं।", | |
"तस्मा एतं न रोदामि, गतो सो तस्स या गति’’॥", | |
"‘‘यथापि ब्रह्मे उदकुम्भो, भिन्नो अप्पटिसन्धियो।", | |
"एवं सम्पदमेवेतं, यो पेतमनुसोचति॥", | |
"‘‘डय्हमानो न जानाति, ञातीनं परिदेवितं।", | |
"तस्मा", | |
"खेत्तञ्च सूकरं पूति, पिट्ठं चापि तिरोकुट्टं।", | |
"पञ्चापि", | |
"तथा खल्लाटियं नागं, द्वादसं उरगञ्चेवाति॥", | |
"‘‘नग्गा", | |
"उप्फासुलिके", | |
"‘‘अहं भदन्ते पेतीम्हि, दुग्गता यमलोकिका।", | |
"पापकम्मं करित्वान, पेतलोकं इतो गता’’ति॥", | |
"‘‘किं नु कायेन वाचाय, मनसा दुक्कटं कतं।", | |
"किस्स कम्मविपाकेन, पेतलोकं इतो गता’’ति॥", | |
"‘‘अनुकम्पका मय्हं नाहेसुं भन्ते, पिता च माता अथवापि ञातका।", | |
"ये मं नियोजेय्युं ददाहि दानं, पसन्नचित्ता समणब्राह्मणानं॥", | |
"‘‘इतो अहं वस्ससतानि पञ्च, यं एवरूपा विचरामि नग्गा।", | |
"खुदाय", | |
"‘‘वन्दामि तं अय्य पसन्नचित्ता, अनुकम्प मं वीर महानुभाव।", | |
"दत्वा च मे आदिस यं हि किञ्चि, मोचेहि मं दुग्गतिया भदन्ते’’ति॥", | |
"साधूति सो पटिस्सुत्वा, सारिपुत्तोनुकम्पको।", | |
"भिक्खूनं आलोपं दत्वा, पाणिमत्तञ्च चोळकं।", | |
"थालकस्स च पानीयं, तस्सा दक्खिणमादिसि॥", | |
"समनन्तरानुद्दिट्ठे, विपाको उदपज्जथ।", | |
"भोजनच्छादनपानीयं, दक्खिणाय इदं फलं॥", | |
"ततो", | |
"विचित्तवत्थाभरणा, सारिपुत्तं उपसङ्कमि॥", | |
"‘‘अभिक्कन्तेन वण्णेन, या त्वं तिट्ठसि देवते।", | |
"ओभासेन्ती दिसा सब्बा, ओसधी विय तारका॥", | |
"‘‘केन तेतादिसो वण्णो, केन ते इध मिज्झति।", | |
"उप्पज्जन्ति च ते भोगा, ये केचि मनसो पिया॥", | |
"‘‘पुच्छामि", | |
"केनासि एवं जलितानुभावा, वण्णो", | |
"‘‘उप्पण्डुकिं किसं छातं, नग्गं सम्पतितच्छविं", | |
"मुनि कारुणिको लोके, तं मं अद्दक्खि दुग्गतं॥", | |
"‘‘भिक्खूनं आलोपं दत्वा, पाणिमत्तञ्च चोळकं।", | |
"थालकस्स च पानीयं, मम दक्खिणमादिसि॥", | |
"‘‘आलोपस्स फलं पस्स, भत्तं वस्ससतं दस।", | |
"भुञ्जामि कामकामिनी, अनेकरसब्यञ्जनं॥", | |
"‘‘पाणिमत्तस्स चोळस्स, विपाकं पस्स यादिसं।", | |
"यावता नन्दराजस्स, विजितस्मिं पटिच्छदा॥", | |
"‘‘ततो बहुतरा भन्ते, वत्थानच्छादनानि मे।", | |
"कोसेय्यकम्बलीयानि, खोमकप्पासिकानि च॥", | |
"‘‘विपुला च महग्घा च, तेपाकासेवलम्बरे।", | |
"साहं तं परिदहामि, यं यं हि मनसो पियं॥", | |
"‘‘थालकस्स च पानीयं, विपाकं पस्स यादिसं।", | |
"गम्भीरा चतुरस्सा च, पोक्खरञ्ञो सुनिम्मिता॥", | |
"‘‘सेतोदका सुप्पतित्था, सीता अप्पटिगन्धिया।", | |
"पदुमुप्पलसञ्छन्ना, वारिकिञ्जक्खपूरिता॥", | |
"‘‘साहं", | |
"मुनिं कारुणिकं लोके, भन्ते वन्दितुमागता’’ति॥", | |
"‘‘नग्गा", | |
"उप्फासुलिके किसिके, का नु त्वं इध तिट्ठसि’’॥", | |
"‘‘अहं", | |
"उपपन्ना पेत्तिविसयं, खुप्पिपाससमप्पिता॥", | |
"‘‘छड्डितं", | |
"वसञ्च डय्हमानानं, विजातानञ्च लोहितं॥", | |
"‘‘वणिकानञ्च यं घान-सीसच्छिन्नान लोहितं।", | |
"खुदापरेता भुञ्जामि, इत्थिपुरिसनिस्सितं॥", | |
"‘‘पुब्बलोहितं भक्खामि", | |
"अलेणा अनगारा च, नीलमञ्चपरायणा॥", | |
"‘‘देहि पुत्तक मे दानं, दत्वा अन्वादिसाहि मे।", | |
"अप्पेव नाम मुच्चेय्यं, पुब्बलोहितभोजना’’ति॥", | |
"मातुया वचनं सुत्वा, उपतिस्सोनुकम्पको।", | |
"आमन्तयि मोग्गल्लानं, अनुरुद्धञ्च कप्पिनं॥", | |
"चतस्सो कुटियो कत्वा, सङ्घे चातुद्दिसे अदा।", | |
"कुटियो अन्नपानञ्च, मातु दक्खिणमादिसी॥", | |
"समनन्तरानुद्दिट्ठे, विपाको उदपज्जथ।", | |
"भोजनं पानीयं वत्थं, दक्खिणाय इदं फलं॥", | |
"ततो सुद्धा सुचिवसना, कासिकुत्तमधारिनी।", | |
"विचित्तवत्थाभरणा, कोलितं उपसङ्कमि॥", | |
"‘‘अभिक्कन्तेन", | |
"ओभासेन्ती दिसा सब्बा, ओसधी विय तारका॥", | |
"‘‘केन तेतादिसो वण्णो, केन ते इध मिज्झति।", | |
"उप्पज्जन्ति च ते भोगा, ये केचि मनसो पिया॥", | |
"‘‘पुच्छामि तं देवि महानुभावे, मनुस्सभूता किमकासि पुञ्ञं।", | |
"केनासि एवं जलितानुभावा, वण्णो च ते सब्बदिसा पभासती’’ति॥", | |
"‘‘सारिपुत्तस्साहं माता, पुब्बे अञ्ञासु जातीसु।", | |
"उपपन्ना पेत्तिविसयं, खुप्पिपाससमप्पिता॥", | |
"‘‘छड्डितं खिपितं खेळं, सिङ्घाणिकं सिलेसुमं।", | |
"वसञ्च डय्हमानानं, विजातानञ्च लोहितं॥", | |
"‘‘वणिकानञ्च यं घान-सीसच्छिन्नान लोहितं।", | |
"खुदापरेता भुञ्जामि, इत्थिपुरिसनिस्सितं॥", | |
"‘‘पुब्बलोहितं भक्खिस्सं, पसूनं मानुसान च।", | |
"अलेणा अनगारा च, नीलमञ्चपरायणा॥", | |
"‘‘सारिपुत्तस्स", | |
"मुनिं कारुणिकं लोके, भन्ते वन्दितुमागता’’ति॥", | |
"‘‘नग्गा दुब्बण्णरूपासि, किसा धमनिसन्थता।", | |
"उप्फासुलिके", | |
"‘‘अहं मत्ता तुवं तिस्सा, सपत्ती ते पुरे अहुं।", | |
"पापकम्मं करित्वान, पेतलोकं इतो गता’’ति॥", | |
"‘‘किं नु कायेन वाचाय, मनसा दुक्कटं कतं।", | |
"किस्स कम्मविपाकेन, पेतलोकं इतो गता’’ति॥", | |
"‘‘चण्डी", | |
"ताहं दुरुत्तं वत्वान, पेतलोकं इतो गता’’ति॥", | |
"सब्बं", | |
"अञ्ञञ्च खो तं पुच्छामि, केनासि पंसुकुन्थिता’’ति॥", | |
"‘‘सीसंन्हाता तुवं आसि, सुचिवत्था अलङ्कता।", | |
"अहञ्च खो", | |
"‘‘तस्सा मे पेक्खमानाय, सामिकेन समन्तयि।", | |
"ततो मे इस्सा विपुला, कोधो मे समजायथ॥", | |
"‘‘ततो पंसुं गहेत्वान, पंसुना तं हि ओकिरिं", | |
"तस्स", | |
"‘‘सच्चं अहम्पि जानामि, पंसुना मं त्वमोकिरि।", | |
"अञ्ञञ्च खो तं पुच्छामि, केन खज्जसि कच्छुया’’ति॥", | |
"‘‘भेसज्जहारी उभयो, वनन्तं अगमिम्हसे।", | |
"त्वञ्च भेसज्जमाहरि, अहञ्च कपिकच्छुनो॥", | |
"‘‘तस्सा त्याजानमानाय, सेय्यं त्याहं समोकिरिं।", | |
"तस्स कम्मविपाकेन, तेन खज्जामि कच्छुया’’ति॥", | |
"‘‘सच्चं", | |
"अञ्ञञ्च खो तं पुच्छामि, केनासि नग्गिया तुव’’न्ति॥", | |
"‘‘सहायानं समयो आसि, ञातीनं समिती अहु।", | |
"त्वञ्च आमन्तिता आसि, ससामिनी नो च खो अहं॥", | |
"‘‘तस्सा त्याजानमानाय, दुस्सं त्याहं अपानुदिं।", | |
"तस्स कम्मविपाकेन, तेनम्हि नग्गिया अह’’न्ति॥", | |
"‘‘सच्चं अहम्पि जानामि, दुस्सं मे त्वं अपानुदि।", | |
"अञ्ञञ्च खो तं पुच्छामि, केनासि गूथगन्धिनी’’ति॥", | |
"‘‘तव", | |
"गूथकूपे अधारेसिं", | |
"तस्स कम्मविपाकेन, तेनम्हि गूथगन्धिनी’’ति॥", | |
"‘‘सच्चं अहम्पि जानामि, तं पापं पकतं तया।", | |
"अञ्ञञ्च खो तं पुच्छामि, केनासि दुग्गता तुव’’न्ति॥", | |
"‘‘उभिन्नं समकं आसि, यं गेहे विज्जते धनं।", | |
"सन्तेसु देय्यधम्मेसु, दीपं नाकासिमत्तनो।", | |
"तस्स कम्मविपाकेन, तेनम्हि दुग्गता अहं॥", | |
"‘‘तदेव", | |
"न हि पापेहि कम्मेहि, सुलभा होति सुग्गती’’’ति॥", | |
"‘‘वामतो मं त्वं पच्चेसि, अथोपि मं उसूयसि।", | |
"पस्स", | |
"‘‘ते घरा ता च दासियो", | |
"ते अञ्ञे परिचारेन्ति, न भोगा होन्ति सस्सता॥", | |
"‘‘इदानि भूतस्स पिता, आपणा गेहमेहिति।", | |
"अप्पेव ते ददे किञ्चि, मा सु ताव इतो अगा’’ति॥", | |
"‘‘नग्गा दुब्बण्णरूपाम्हि, किसा धमनिसन्थता।", | |
"कोपीनमेतं इत्थीनं, मा मं भूतपिताद्दसा’’ति॥", | |
"‘‘हन्द किं वा त्याहं", | |
"येन त्वं सुखिता अस्स, सब्बकामसमिद्धिनी’’ति॥", | |
"‘‘चत्तारो", | |
"अट्ठ भिक्खू भोजयित्वा, मम दक्खिणमादिस।", | |
"तदाहं सुखिता हेस्सं, सब्बकामसमिद्धिनी’’ति॥", | |
"साधूति सा पटिस्सुत्वा, भोजयित्वाट्ठ भिक्खवो।", | |
"वत्थेहच्छादयित्वान, तस्सा दक्खिणमादिसी॥", | |
"समनन्तरानुद्दिट्ठे", | |
"भोजनच्छादनपानीयं, दक्खिणाय इदं फलं॥", | |
"ततो सुद्धा सुचिवसना, कासिकुत्तमधारिनी।", | |
"विचित्तवत्थाभरणा, सपत्तिं उपसङ्कमि॥", | |
"‘‘अभिक्कन्तेन वण्णेन, या त्वं तिट्ठसि देवते।", | |
"ओभासेन्ती", | |
"‘‘केन तेतादिसो वण्णो, केन ते इध मिज्झति।", | |
"उप्पज्जन्ति च ते भोगा, ये केचि मनसो पिया॥", | |
"‘‘पुच्छामि तं देवि महानुभावे, मनुस्सभूता किमकासि पुञ्ञं।", | |
"केनासि एवं जलितानुभावा, वण्णो च ते सब्बदिसा पभासती’’ति॥", | |
"‘‘अहं मत्ता तुवं तिस्सा, सपत्ती ते पुरे अहुं।", | |
"पापकम्मं करित्वान, पेतलोकं इतो गता॥", | |
"‘‘तव दिन्नेन दानेन, मोदामि अकुतोभया।", | |
"चीरं जीवाहि भगिनि, सह सब्बेहि ञातिभि।", | |
"असोकं विरजं ठानं, आवासं वसवत्तिनं॥", | |
"‘‘इध", | |
"विनेय्य मच्छेरमलं समूलं, अनिन्दिता सग्गमुपेहि ठान’’न्ति॥", | |
"‘‘काळी", | |
"पिङ्गलासि कळारासि, न तं मञ्ञामि मानुसि’’न्ति॥", | |
"‘‘अहं", | |
"पापकम्मं करित्वान, पेतलोकं इतो गता’’ति॥", | |
"‘‘किं", | |
"किस्स कम्मविपाकेन, पेतलोकं इतो गता’’ति॥", | |
"‘‘चण्डी च फरुसा चासिं", | |
"ताहं दुरुत्तं वत्वान, पेतलोकं इतो गता’’ति॥", | |
"‘‘हन्दुत्तरीयं ददामि ते, इमं", | |
"इमं दुस्सं निवासेत्वा, एहि नेस्सामि तं घरं॥", | |
"‘‘वत्थञ्च अन्नपानञ्च, लच्छसि त्वं घरं गता।", | |
"पुत्ते च ते पस्सिस्ससि, सुणिसायो च दक्खसी’’ति॥", | |
"‘‘हत्थेन हत्थे ते दिन्नं, न मय्हं उपकप्पति।", | |
"भिक्खू च सीलसम्पन्ने, वीतरागे बहुस्सुते॥", | |
"‘‘तप्पेहि अन्नपानेन, मम दक्खिणमादिस।", | |
"तदाहं सुखिता हेस्सं, सब्बकामसमिद्धिनी’’ति॥", | |
"साधूति सो पटिस्सुत्वा, दानं विपुलमाकिरि।", | |
"अन्नं पानं खादनीयं, वत्थसेनासनानि च।", | |
"छत्तं गन्धञ्च मालञ्च, विविधा च उपाहना॥", | |
"भिक्खू च सीलसम्पन्ने, वीतरागे बहुस्सुते।", | |
"तप्पेत्वा अन्नपानेन, तस्सा दक्खिणमादिसी॥", | |
"समनन्तरानुद्दिट्ठे", | |
"भोजनच्छादनपानीयं, दक्खिणाय इदं फलं॥", | |
"ततो", | |
"विचित्तवत्थाभरणा, सामिकं उपसङ्कमि॥", | |
"‘‘अभिक्कन्तेन वण्णेन, या त्वं तिट्ठसि देवते।", | |
"ओभासेन्ती दिसा सब्बा, ओसधी विय तारका॥", | |
"‘‘केन तेतादिसो वण्णो, केन ते इध मिज्झति।", | |
"उप्पज्जन्ति च ते भोगा, ये केचि मनसो पिया॥", | |
"‘‘पुच्छामि", | |
"केनासि एवं जलितानुभावा, वण्णो च ते सब्बदिसा पभासती’’ति॥", | |
"‘‘अहं", | |
"पापकम्मं करित्वान, पेतलोकं इतो गता॥", | |
"‘‘तव दिन्नेन दानेन, मोदामि अकुतोभया।", | |
"चिरं जीव गहपति, सह सब्बेहि ञातिभि।", | |
"असोकं विरजं खेमं, आवासं वसवत्तिनं॥", | |
"‘‘इध धम्मं चरित्वान, दानं दत्वा गहपति।", | |
"विनेय्य मच्छेरमलं समूलं, अनिन्दितो सग्गमुपेहि ठान’’न्ति॥", | |
"", | |
"बाहा पग्गय्ह कन्दसि, वनमज्झे किं दुक्खितो तुव’’न्ति॥", | |
"‘‘सोवण्णमयो पभस्सरो, उप्पन्नो रथपञ्जरो मम।", | |
"तस्स चक्कयुगं न विन्दामि, तेन दुक्खेन जहामि जीवित’’न्ति॥", | |
"‘‘सोवण्णमयं मणिमयं, लोहितकमयं", | |
"आचिक्ख मे भद्दमाणव, चक्कयुगं पटिपादयामि ते’’ति॥", | |
"सो", | |
"सोवण्णमयो रथो मम, तेन चक्कयुगेन सोभती’’ति॥", | |
"‘‘बालो खो त्वं असि माणव, यो त्वं पत्थयसे अपत्थियं।", | |
"मञ्ञामि तुवं मरिस्ससि, न हि त्वं लच्छसि चन्दसूरिये’’ति॥", | |
"‘‘गमनागमनम्पि दिस्सति, वण्णधातु उभयत्थ वीथिया।", | |
"पेतो कालकतो न दिस्सति, को निध कन्दतं बाल्यतरो’’ति॥", | |
"‘‘सच्चं खो वदेसि माणव, अहमेव कन्दतं बाल्यतरो।", | |
"चन्दं विय दारको रुदं, पेतं कालकताभिपत्थयि’’न्ति॥", | |
"‘‘आदित्तं वत मं सन्तं, घतसित्तंव पावकं।", | |
"वारिना विय ओसिञ्चं, सब्बं निब्बापये दरं॥", | |
"‘‘अब्बही", | |
"यो मे सोकपरेतस्स, पुत्तसोकं अपानुदि॥", | |
"‘‘स्वाहं अब्बूळ्हसल्लोस्मि, सीतिभूतोस्मि निब्बुतो।", | |
"न सोचामि न रोदामि, तव सुत्वान माणवा’’ति॥", | |
"‘‘देवता", | |
"को वा त्वं कस्स वा पुत्तो, कथं जानेमु तं मय’’न्ति॥", | |
"‘‘यञ्च कन्दसि यञ्च रोदसि, पुत्तं आळाहने सयं दहित्वा।", | |
"स्वाहं कुसलं करित्वा कम्मं, तिदसानं सहब्यतं गतो’’ति॥", | |
"‘‘अप्पं", | |
"उपोसथकम्मं वा तादिसं, केन कम्मेन गतोसि देवलोक’’न्ति॥", | |
"‘‘आबाधिकोहं दुक्खितो गिलानो, आतुररूपोम्हि सके निवेसने।", | |
"बुद्धं विगतरजं वितिण्णकङ्खं, अद्दक्खिं सुगतं अनोमपञ्ञं॥", | |
"‘‘स्वाहं मुदितमनो पसन्नचित्तो, अञ्जलिं अकरिं तथागतस्स।", | |
"ताहं कुसलं करित्वान कम्मं, तिदसानं सहब्यतं गतो’’ति॥", | |
"‘‘अच्छरियं वत अब्भुतं वत, अञ्जलिकम्मस्स अयमीदिसो विपाको।", | |
"अहम्पि मुदितमनो पसन्नचित्तो, अज्जेव बुद्धं सरणं वजामी’’ति॥", | |
"‘‘अज्जेव बुद्धं सरणं वजाहि, धम्मञ्च सङ्घञ्च पसन्नचित्तो।", | |
"तथेव सिक्खाय पदानि पञ्च, अखण्डफुल्लानि समादियस्सु॥", | |
"‘‘पाणातिपाता विरमस्सु खिप्पं, लोके अदिन्नं परिवज्जयस्सु।", | |
"अमज्जपो मा च मुसा भणाहि, सकेन दारेन च होहि तुट्ठो’’ति॥", | |
"‘‘अत्थकामोसि मे यक्ख, हितकामोसि देवते।", | |
"करोमि तुय्हं वचनं, त्वंसि आचरियो ममाति॥", | |
"‘‘उपेमि सरणं बुद्धं, धम्मञ्चापि अनुत्तरं।", | |
"सङ्घञ्च नरदेवस्स, गच्छामि सरणं अहं॥", | |
"‘‘पाणातिपाता", | |
"अमज्जपो नो च मुसा भणामि। सकेन दारेन च होमि तुट्ठो’’ति॥", | |
"‘‘उट्ठेहि", | |
"यो च तुय्हं सको भाता, हदयं चक्खु च", | |
"तस्स वाता बलीयन्ति, ससं जप्पति", | |
"‘‘तस्स", | |
"तरमानरूपो वुट्ठासि, भातुसोकेन अट्टितो॥", | |
"‘‘किं नु उम्मत्तरूपोव, केवलं द्वारकं इमं।", | |
"ससो ससोति लपसि, कीदिसं ससमिच्छसि॥", | |
"‘‘सोवण्णमयं मणिमयं, लोहमयं अथ रूपियमयं।", | |
"सङ्खसिलापवाळमयं, कारयिस्सामि ते ससं॥", | |
"‘‘सन्ति अञ्ञेपि ससका, अरञ्ञवनगोचरा।", | |
"तेपि ते आनयिस्सामि, कीदिसं ससमिच्छसी’’ति॥", | |
"‘‘नाहमेते ससे इच्छे, ये ससा पथविस्सिता।", | |
"चन्दतो ससमिच्छामि, तं मे ओहर केसवा’’ति॥", | |
"‘‘सो नून मधुरं ञाति, जीवितं विजहिस्ससि।", | |
"अपत्थियं पत्थयसि, चन्दतो ससमिच्छसी’’ति॥", | |
"‘‘एवं चे कण्ह जानासि, यथञ्ञमनुसाससि।", | |
"कस्मा", | |
"‘‘न यं लब्भा मनुस्सेन, अमनुस्सेन वा पन।", | |
"जातो मे मा मरि पुत्तो, कुतो लब्भा अलब्भियं॥", | |
"‘‘न", | |
"सक्का आनयितुं कण्ह, यं पेतमनुसोचसि॥", | |
"‘‘महद्धना", | |
"पहूतधनधञ्ञासे, तेपि नो", | |
"‘‘खत्तिया ब्राह्मणा वेस्सा, सुद्दा चण्डालपुक्कुसा।", | |
"एते चञ्ञे च जातिया, तेपि नो अजरामरा॥", | |
"‘‘ये मन्तं परिवत्तेन्ति, छळङ्गं ब्रह्मचिन्तितं।", | |
"एते चञ्ञे च विज्जाय, तेपि नो अजरामरा॥", | |
"‘‘इसयो वापि", | |
"सरीरं तेपि कालेन, विजहन्ति तपस्सिनो॥", | |
"‘‘भावितत्ता अरहन्तो, कतकिच्चा अनासवा।", | |
"निक्खिपन्ति इमं देहं, पुञ्ञपापपरिक्खया’’ति॥", | |
"‘‘आदित्तं वत मं सन्तं, घतसित्तंव पावकं।", | |
"वारिना विय ओसिञ्चं, सब्बं निब्बापये दरं॥", | |
"‘‘अब्बही", | |
"यो मे सोकपरेतस्स, पुत्तसोकं अपानुदि॥", | |
"‘‘स्वाहं", | |
"न सोचामि न रोदामि, तव सुत्वान भातिक’’", | |
"एवं करोन्ति सप्पञ्ञा, ये होन्ति अनुकम्पका।", | |
"निवत्तयन्ति सोकम्हा, घटो जेट्ठंव भातरं॥", | |
"यस्स एतादिसा होन्ति, अमच्चा परिचारका।", | |
"सुभासितेन अन्वेन्ति, घटो जेट्ठंव भातरन्ति॥", | |
"‘‘नग्गो", | |
"उप्फासुलिको किसिको, को नु त्वमसि मारिस’’॥", | |
"‘‘अहं भदन्ते पेतोम्हि, दुग्गतो यमलोकिको।", | |
"पापकम्मं करित्वान, पेतलोकं इतो गतो’’॥", | |
"‘‘किं नु कायेन वाचाय, मनसा दुक्कटं कतं।", | |
"किस्स कम्मविपाकेन, पेतलोकं इतो गतो’’॥", | |
"‘‘नगरं अत्थि पण्णानं", | |
"तत्थ सेट्ठि पुरे आसिं, धनपालोति मं विदू॥", | |
"‘‘असीति सकटवाहानं, हिरञ्ञस्स अहोसि मे।", | |
"पहूतं मे जातरूपं, मुत्ता वेळुरिया बहू॥", | |
"‘‘ताव महद्धनस्सापि, न मे दातुं पियं अहु।", | |
"पिदहित्वा", | |
"‘‘अस्सद्धो मच्छरी चासिं, कदरियो परिभासको।", | |
"ददन्तानं करोन्तानं, वारयिस्सं बहु जने", | |
"‘‘विपाको", | |
"पोक्खरञ्ञोदपानानि, आरामानि च रोपिते।", | |
"पपायो च विनासेसिं, दुग्गे सङ्कमनानि च॥", | |
"‘‘स्वाहं", | |
"उपपन्नो पेत्तिविसयं, खुप्पिपाससमप्पितो॥", | |
"‘‘पञ्चपण्णासवस्सानि, यतो कालङ्कतो अहं।", | |
"नाभिजानामि भुत्तं वा, पीतं वा पन पानियं॥", | |
"‘‘यो संयमो सो विनासो,यो विनासो सो संयमो।", | |
"पेता हि किर जानन्ति, यो संयमो सो विनासो॥", | |
"‘‘अहं", | |
"सन्तेसु देय्यधम्मेसु, दीपं नाकासिमत्तनो।", | |
"स्वाहं पच्छानुतप्पामि, अत्तकम्मफलूपगो॥", | |
"", | |
"एकन्तकटुकं घोरं, निरयं पपतिस्सहं॥", | |
"", | |
"अयोपाकारपरियन्तं, अयसा पटिकुज्जितं॥", | |
"", | |
"समन्ता योजनसतं, फरित्वा तिट्ठति सब्बदा॥", | |
"", | |
"फलं पापस्स कम्मस्स, तस्मा सोचामहं भुसं॥", | |
"‘‘तं वो वदामि भद्दं वो, यावन्तेत्थ समागता।", | |
"माकत्थ पापकं कम्मं, आवि वा यदि वा रहो॥", | |
"‘‘सचे तं पापकं कम्मं, करिस्सथ करोथ वा।", | |
"न वो दुक्खा पमुत्यत्थि", | |
"‘‘मत्तेय्या होथ पेत्तेय्या, कुले जेट्ठापचायिका।", | |
"सामञ्ञा होथ ब्रह्मञ्ञा, एवं सग्गं गमिस्सथा’’ति॥", | |
"‘‘नग्गो", | |
"आचिक्ख मे तं अपि सक्कुणेमु, सब्बेन वित्तं पटिपादये तुव’’न्ति॥", | |
"‘‘बाराणसी", | |
"अदाता गेधितमनो आमिसस्मिं, दुस्सील्येन यमविसयम्हि पत्तो॥", | |
"‘‘सो सूचिकाय किलमितो तेहि,", | |
"तेनेव ञातीसु यामि आमिसकिञ्चिक्खहेतु।", | |
"अदानसीला न च सद्दहन्ति,", | |
"दानफलं होति परम्हि लोके॥", | |
"‘‘धीता", | |
"तमुपक्खटं परिविसयन्ति ब्राह्मणा", | |
"तमवोच राजा ‘‘अनुभवियान तम्पि,", | |
"एय्यासि खिप्पं अहमपि कस्सं पूजं।", | |
"आचिक्ख मे तं यदि अत्थि हेतु,", | |
"सद्धायितं हेतुवचो सुणोमा’’ति॥", | |
"‘तथा’ति वत्वा अगमासि तत्थ, भुञ्जिंसु भत्तं न च दक्खिणारहा।", | |
"पच्चागमि", | |
"दिस्वान पेतं पुनदेव आगतं, राजा अवोच ‘‘अहमपि किं ददामि।", | |
"आचिक्ख मे तं यदि अत्थि हेतु, येन तुवं चिरतरं पीणितो सिया’’ति॥", | |
"‘‘बुद्धञ्च सङ्घं परिविसियान राज, अन्नेन पानेन च चीवरेन।", | |
"तं दक्खिणं आदिस मे हिताय, एवं अहं चिरतरं पीणितो सिया’’ति॥", | |
"ततो", | |
"आरोचेसि पकतं", | |
"सो पूजितो अतिविय सोभमानो, पातुरहोसि पुरतो जनाधिपस्स।", | |
"‘‘यक्खोहमस्मि परमिद्धिपत्तो, न मय्हमत्थि समा सदिसा", | |
"‘‘पस्सानुभावं अपरिमितं ममयिदं, तयानुदिट्ठं", | |
"सन्तप्पितो सततं सदा बहूहि, यामि अहं सुखितो मनुस्सदेवा’’ति॥", | |
"‘‘यस्स", | |
"अयं कामददो यक्खो, इमं यक्खं नयामसे॥", | |
"‘‘इमं यक्खं गहेत्वान, साधुकेन पसय्ह वा।", | |
"यानं आरोपयित्वान, खिप्पं गच्छाम द्वारक’’न्ति॥", | |
"", | |
"न तस्स साखं भञ्जेय्य, मित्तदुब्भो हि पापको’’ति॥", | |
"‘‘यस्स रुक्खस्स छायाय, निसीदेय्य सयेय्य वा।", | |
"खन्धम्पि तस्स छिन्देय्य, अत्थो चे तादिसो सिया’’ति॥", | |
"‘‘यस्स", | |
"न तस्स पत्तं भिन्देय्य", | |
"‘‘यस्स रुक्खस्स छायाय, निसीदेय्य सयेय्य वा।", | |
"समूलम्पि तं अब्बुहे", | |
"‘‘यस्सेकरत्तिम्पि घरे वसेय्य, यत्थन्नपानं पुरिसो लभेथ।", | |
"न तस्स पापं मनसापि चिन्तये, कतञ्ञुता", | |
"‘‘यस्सेकरत्तिम्पि घरे वसेय्य, अन्नेन पानेन उपट्ठितो सिया।", | |
"न तस्स पापं मनसापि चिन्तये, अदुब्भपाणी दहते मित्तदुब्भिं॥", | |
"‘‘यो पुब्बे कतकल्याणो, पच्छा पापेन हिंसति।", | |
"अल्लपाणिहतो", | |
"‘‘नाहं देवेन वा मनुस्सेन वा, इस्सरियेन वाहं सुप्पसय्हो।", | |
"यक्खोहमस्मि परमिद्धिपत्तो, दूरङ्गमो वण्णबलूपपन्नो’’ति॥", | |
"‘‘पाणि ते सब्बसो वण्णो, पञ्चधारो मधुस्सवो।", | |
"नानारसा पग्घरन्ति, मञ्ञेहं तं पुरिन्दद’’न्ति॥", | |
"‘‘नाम्हि देवो न गन्धब्बो, नापि सक्को पुरिन्ददो।", | |
"पेतं मं अङ्कुर जानाहि, रोरुवम्हा", | |
"‘‘किंसीलो", | |
"केन ते ब्रह्मचरियेन, पुञ्ञं पाणिम्हि इज्झती’’ति॥", | |
"‘‘तुन्नवायो पुरे आसिं, रोरुवस्मिं तदा अहं।", | |
"सुकिच्छवुत्ति कपणो, न मे विज्जति दातवे॥", | |
"‘‘निवेसनञ्च", | |
"सद्धस्स दानपतिनो, कतपुञ्ञस्स लज्जिनो॥", | |
"‘‘तत्थ याचनका यन्ति, नानागोत्ता वनिब्बका।", | |
"ते च मं तत्थ पुच्छन्ति, असय्हस्स निवेसनं॥", | |
"‘‘कत्थ गच्छाम भद्दं वो, कत्थ दानं पदीयति।", | |
"तेसाहं पुट्ठो अक्खामि, असय्हस्स निवेसनं॥", | |
"‘‘पग्गय्ह दक्खिणं बाहुं, एत्थ गच्छथ भद्दं वो।", | |
"एत्थ दानं पदीयति, असय्हस्स निवेसने॥", | |
"‘‘तेन पाणि कामददो, तेन पाणि मधुस्सवो।", | |
"तेन मे ब्रह्मचरियेन, पुञ्ञं पाणिम्हि इज्झती’’ति॥", | |
"‘‘न किर त्वं अदा दानं, सकपाणीहि कस्सचि।", | |
"परस्स दानं अनुमोदमानो, पाणिं पग्गय्ह पावदि॥", | |
"‘‘तेन पाणि कामददो, तेन पाणि मधुस्सवो।", | |
"तेन ते ब्रह्मचरियेन, पुञ्ञं पाणिम्हि इज्झति॥", | |
"‘‘यो", | |
"सो हित्वा मानुसं देहं, किं नु सो दिसतं गतो’’ति॥", | |
"‘‘नाहं पजानामि असय्हसाहिनो, अङ्गीरसस्स गतिं आगतिं वा।", | |
"सुतञ्च मे वेस्सवणस्स सन्तिके, सक्कस्स सहब्यतं गतो असय्हो’’ति॥", | |
"‘‘अलमेव कातुं कल्याणं, दानं दातुं यथारहं।", | |
"पाणिं कामददं दिस्वा, को पुञ्ञं न करिस्सति॥", | |
"‘‘सो हि नून इतो गन्त्वा, अनुप्पत्वान द्वारकं।", | |
"दानं पट्ठपयिस्सामि, यं ममस्स सुखावहं॥", | |
"‘‘दस्सामन्नञ्च पानञ्च, वत्थसेनासनानि च।", | |
"पपञ्च उदपानञ्च, दुग्गे सङ्कमनानि चा’’ति॥", | |
"‘‘केन", | |
"अक्खीनि च पग्घरन्ति, किं पापं पकतं तया’’ति॥", | |
"‘‘अङ्गीरसस्स", | |
"तस्साहं दानविस्सग्गे, दाने अधिकतो अहुं॥", | |
"‘‘तत्थ याचनके दिस्वा, आगते भोजनत्थिके।", | |
"एकमन्तं अपक्कम्म, अकासिं कुणलिं मुखं॥", | |
"‘‘तेन", | |
"अक्खीनि मे पग्घरन्ति, तं पापं पकतं मया’’ति॥", | |
"‘‘धम्मेन", | |
"अक्खीनि च पग्घरन्ति, यं तं परस्स दानस्स।", | |
"अकासि कुणलिं मुखं॥", | |
"‘‘कथं हि दानं ददमानो, करेय्य परपत्तियं।", | |
"अन्नं पानं खादनीयं, वत्थसेनासनानि च॥", | |
"‘‘सो हि नून इतो गन्त्वा, अनुप्पत्वान द्वारकं।", | |
"दानं पट्ठपयिस्सामि, यं ममस्स सुखावहं॥", | |
"‘‘दस्सामन्नञ्च पानञ्च, वत्थसेनासनानि च।", | |
"पपञ्च उदपानञ्च, दुग्गे सङ्कमनानि चा’’ति॥", | |
"ततो हि सो निवत्तित्वा, अनुप्पत्वान द्वारकं।", | |
"दानं पट्ठपयि अङ्कुरो, यंतुमस्स", | |
"अदा अन्नञ्च पानञ्च, वत्थसेनासनानि च।", | |
"पपञ्च उदपानञ्च, विप्पसन्नेन चेतसा॥", | |
"‘‘को छातो को च तसितो, को वत्थं परिदहिस्सति।", | |
"कस्स सन्तानि योग्गानि, इतो योजेन्तु वाहनं॥", | |
"‘‘को छत्तिच्छति गन्धञ्च, को मालं को उपाहनं।", | |
"इतिस्सु तत्थ घोसेन्ति, कप्पका सूदमागधा", | |
"सदा सायञ्च पातो च, अङ्कुरस्स निवेसने॥", | |
"‘‘‘सुखं", | |
"दुक्खं", | |
"‘‘‘सुखं सुपति अङ्कुरो’, इति जानाति मं जनो।", | |
"दुक्खं सिन्धक सुपामि, अप्पके सु वनिब्बके’’ति॥", | |
"‘‘सक्को चे ते वरं दज्जा, तावतिंसानमिस्सरो।", | |
"किस्स सब्बस्स लोकस्स, वरमानो वरं वरे’’ति॥", | |
"‘‘सक्को चे मे वरं दज्जा, तावतिंसानमिस्सरो।", | |
"कालुट्ठितस्स मे सतो, सुरियुग्गमनं पति।", | |
"दिब्बा भक्खा पातुभवेय्युं, सीलवन्तो च याचका॥", | |
"‘‘ददतो", | |
"ददं चित्तं पसादेय्यं, एतं सक्कं वरं वरे’’ति॥", | |
"‘‘न सब्बवित्तानि परे पवेच्छे, ददेय्य दानञ्च धनञ्च रक्खे।", | |
"तस्मा हि दाना धनमेव सेय्यो, अतिप्पदानेन कुला न होन्ति॥", | |
"‘‘अदानमतिदानञ्च, नप्पसंसन्ति पण्डिता।", | |
"तस्मा हि दाना धनमेव सेय्यो, समेन वत्तेय्य स धीरधम्मो’’ति॥", | |
"‘‘अहो वत रे अहमेव दज्जं, सन्तो च मं सप्पुरिसा भजेय्युं।", | |
"मेघोव", | |
"‘‘यस्स याचनके दिस्वा, मुखवण्णो पसीदति।", | |
"दत्वा अत्तमनो होति, तं घरं वसतो सुखं॥", | |
"‘‘यस्स याचनके दिस्वा, मुखवण्णो पसीदति।", | |
"दत्वा अत्तमनो होति, एसा यञ्ञस्स", | |
"", | |
"दत्वा अत्तमनो होति, एसा यञ्ञस्स", | |
"सट्ठि वाहसहस्सानि, अङ्कुरस्स निवेसने।", | |
"भोजनं दीयते निच्चं, पुञ्ञपेक्खस्स जन्तुनो॥", | |
"तिसहस्सानि सूदानि हि", | |
"अङ्कुरं उपजीवन्ति, दाने यञ्ञस्स वावटा", | |
"सट्ठि पुरिससहस्सानि, आमुत्तमणिकुण्डला।", | |
"अङ्कुरस्स महादाने, कट्ठं फालेन्ति माणवा॥", | |
"सोळसित्थिसहस्सानि, सब्बालङ्कारभूसिता।", | |
"अङ्कुरस्स महादाने, विधा पिण्डेन्ति नारियो॥", | |
"सोळसित्थिसहस्सानि, सब्बालङ्कारभूसिता।", | |
"अङ्कुरस्स महादाने, दब्बिगाहा उपट्ठिता॥", | |
"बहुं", | |
"सक्कच्चञ्च सहत्था च, चित्तीकत्वा पुनप्पुनं॥", | |
"बहू मासे च पक्खे च, उतुसंवच्छरानि च।", | |
"महादानं पवत्तेसि, अङ्कुरो दीघमन्तरं॥", | |
"एवं", | |
"सो हित्वा मानुसं देहं, तावतिंसूपगो अहु॥", | |
"कटच्छुभिक्खं दत्वान, अनुरुद्धस्स इन्दको।", | |
"सो हित्वा मानुसं देहं, तावतिंसूपगो अहु॥", | |
"दसहि ठानेहि अङ्कुरं, इन्दको अतिरोचति।", | |
"रूपे सद्दे रसे गन्धे, फोट्ठब्बे च मनोरमे॥", | |
"आयुना यससा चेव, वण्णेन च सुखेन च।", | |
"आधिपच्चेन अङ्कुरं, इन्दको अतिरोचति॥", | |
"तावतिंसे यदा बुद्धो, सिलायं पण्डुकम्बले।", | |
"पारिच्छत्तकमूलम्हि, विहासि पुरिसुत्तमो॥", | |
"दससु", | |
"पयिरुपासन्ति सम्बुद्धं, वसन्तं नगमुद्धनि॥", | |
"न कोचि देवो वण्णेन, सम्बुद्धं अतिरोचति।", | |
"सब्बे देवे अतिक्कम्म", | |
"योजनानि", | |
"अविदूरेव बुद्धस्स", | |
"ओलोकेत्वान सम्बुद्धो, अङ्कुरञ्चापि इन्दकं।", | |
"दक्खिणेय्यं सम्भावेन्तो", | |
"‘‘महादानं तया दिन्नं, अङ्कुर दीघमन्तरं।", | |
"अतिदूरे", | |
"चोदितो भावितत्तेन, अङ्कुरो इदमब्रवि।", | |
"‘‘किं मय्हं तेन दानेन, दक्खिणेय्येन सुञ्ञतं॥", | |
"‘‘अयं सो इन्दको यक्खो, दज्जा दानं परित्तकं।", | |
"अतिरोचति अम्हेहि, चन्दो तारगणे यथा’’ति॥", | |
"‘‘उज्जङ्गले यथा खेत्ते, बीजं बहुम्पि रोपितं।", | |
"न विपुलफलं होति, नपि तोसेति कस्सकं॥", | |
"‘‘तथेव दानं बहुकं, दुस्सीलेसु पतिट्ठितं।", | |
"न विपुलफलं होति, नपि तोसेति दायकं॥", | |
"‘‘यथापि", | |
"सम्मा धारं पवेच्छन्ते, फलं तोसेति कस्सकं॥", | |
"‘‘तथेव सीलवन्तेसु, गुणवन्तेसु तादिसु।", | |
"अप्पकम्पि कतं कारं, पुञ्ञं होति महप्फल’’न्ति॥", | |
"विचेय्य", | |
"विचेय्य दानं दत्वान, सग्गं गच्छन्ति दायका॥", | |
"विचेय्य", | |
"एतेसु दिन्नानि महप्फलानि, बीजानि वुत्तानि यथा सुखेत्तेति॥", | |
"दिवाविहारगतं", | |
"तं पेती उपसङ्कम्म, दुब्बण्णा भीरुदस्सना॥", | |
"केसा चस्सा अतिदीघा", | |
"केसेहि सा पटिच्छन्ना, समणं एतदब्रवि॥", | |
"‘‘पञ्चपण्णासवस्सानि, यतो कालङ्कता अहं।", | |
"नाभिजानामि भुत्तं वा, पीतं वा पन पानियं।", | |
"देहि त्वं पानियं भन्ते, तसिता पानियाय मे’’ति॥", | |
"‘‘अयं सीतोदिका गङ्गा, हिमवन्ततो", | |
"पिव एत्तो गहेत्वान, किं मं याचसि पानिय’’न्ति॥", | |
"‘‘सचाहं भन्ते गङ्गाय, सयं गण्हामि पानियं।", | |
"लोहितं मे परिवत्तति, तस्मा याचामि पानिय’’न्ति॥", | |
"‘‘किं नु कायेन वाचाय, मनसा दुक्कटं कतं।", | |
"किस्स कम्मविपाकेन, गङ्गा ते होति लोहित’’न्ति॥", | |
"‘‘पुत्तो मे उत्तरो नाम", | |
"सो", | |
"‘‘चीवरं", | |
"तमहं परिभासामि, मच्छेरेन उपद्दुता॥", | |
"‘‘यं त्वं मय्हं अकामाय, समणानं पवेच्छसि।", | |
"चीवरं पिण्डपातञ्च, पच्चयं सयनासनं॥", | |
"‘‘एतं", | |
"तस्स कम्मस्स विपाकेन, गङ्गा मे होति लोहित’’न्ति॥", | |
"‘‘अहं", | |
"तस्स विपाको विपुलफलूपलब्भति, बहुका च मे उप्पज्जरे", | |
"‘‘पुप्फाभिकिण्णं रमितं", | |
"साहं भुञ्जामि च पारुपामि च, पहूतवित्ता न च ताव खीयति॥", | |
"‘‘तस्सेव कम्मस्स विपाकमन्वया, सुखञ्च सातञ्च इधूपलब्भति।", | |
"साहं गन्त्वा पुनदेव मानुसं, काहामि", | |
"‘‘सत्त तुवं वस्ससता इधागता,", | |
"जिण्णा च वुड्ढा च तहिं भविस्ससि।", | |
"सब्बेव ते कालकता च ञातका,", | |
"किं तत्थ गन्त्वान इतो करिस्ससी’’ति॥", | |
"‘‘सत्तेव वस्सानि इधागताय मे, दिब्बञ्च सुखञ्च समप्पिताय।", | |
"साहं गन्त्वान पुनदेव मानुसं, काहामि पुञ्ञानि नयय्यपुत्त म’’न्ति॥", | |
"सो", | |
"‘‘वज्जेसि अञ्ञम्पि जनं इधागतं, ‘करोथ पुञ्ञानि सुखूपलब्भति’’॥", | |
"‘‘दिट्ठा", | |
"कम्मञ्च कत्वा सुखवेदनीयं, देवा मनुस्सा च सुखे ठिता पजा’’ति॥", | |
"‘‘सोण्णसोपानफलका", | |
"तत्थ सोगन्धिया वग्गू, सुचिगन्धा मनोरमा॥", | |
"‘‘नानारुक्खेहि सञ्छन्ना, नानागन्धसमेरिता।", | |
"नानापदुमसञ्छन्ना, पुण्डरीकसमोतता", | |
"‘‘सुरभिं सम्पवायन्ति, मनुञ्ञा मालुतेरिता।", | |
"हंसकोञ्चाभिरुदा च, चक्कवक्काभिकूजिता॥", | |
"‘‘नानादिजगणाकिण्णा", | |
"नानाफलधरा रुक्खा, नानापुप्फधरा वना॥", | |
"‘‘न मनुस्सेसु ईदिसं, नगरं यादिसं इदं।", | |
"पासादा बहुका तुय्हं, सोवण्णरूपियामया।", | |
"दद्दल्लमाना आभेन्ति", | |
"‘‘पञ्च दासिसता तुय्हं, या तेमा परिचारिका।", | |
"ता", | |
"‘‘पल्लङ्का बहुका तुय्हं, सोवण्णरूपियामया।", | |
"कदलिमिगसञ्छन्ना", | |
"‘‘यत्थ त्वं वासूपगता, सब्बकामसमिद्धिनी।", | |
"सम्पत्तायड्ढरत्ताय", | |
"‘‘उय्यानभूमिं", | |
"तस्सा", | |
"‘‘ततो ते कण्णमुण्डो सुनखो, अङ्गमङ्गानि खादति।", | |
"यदा च खायिता आसि, अट्ठिसङ्खलिका कता।", | |
"ओगाहसि पोक्खरणिं, होति कायो यथा पुरे॥", | |
"‘‘ततो त्वं अङ्गपच्चङ्गी", | |
"वत्थेन पारुपित्वान, आयासि मम सन्तिकं॥", | |
"‘‘किं नु कायेन वाचाय, मनसा दुक्कटं कतं।", | |
"किस्स कम्मविपाकेन, कण्णमुण्डो सुनखो तवअङ्गमङ्गानि खादती’’ति॥", | |
"‘‘किमिलायं", | |
"तस्साहं भरिया आसिं, दुस्सीला अतिचारिनी॥", | |
"‘‘सो", | |
"‘नेतं छन्नं", | |
"‘‘साहं घोरञ्च सपथं, मुसावादञ्च भासिसं।", | |
"‘नाहं तं अतिचरामि, कायेन उद चेतसा॥", | |
"‘‘‘सचाहं तं अतिचरामि, कायेन उद चेतसा।", | |
"कण्णमुण्डो यं सुनखो, अङ्गमङ्गानि खादतु’॥", | |
"‘‘तस्स कम्मस्स विपाकं, मुसावादस्स चूभयं।", | |
"सत्तेव वस्ससतानि, अनुभूतं यतो हि मे।", | |
"कण्णमुण्डो", | |
"‘‘त्वञ्च देव बहुकारो, अत्थाय मे इधागतो।", | |
"सुमुत्ताहं कण्णमुण्डस्स, असोका अकुतोभया॥", | |
"‘‘ताहं", | |
"भुञ्ज अमानुसे कामे, रम देव मया सहा’’ति॥", | |
"‘‘भुत्ता", | |
"ताहं सुभगे याचामि, खिप्पं पटिनयाहि म’’न्ति॥", | |
"अहु", | |
"अहोरत्तानमच्चया, राजा कालमक्रुब्बथ", | |
"तस्स आळाहनं गन्त्वा, भरिया कन्दति उब्बरी", | |
"ब्रह्मदत्तं अपस्सन्ती, ब्रह्मदत्ताति कन्दति॥", | |
"इसि च तत्थ आगच्छि, सम्पन्नचरणो मुनि।", | |
"सो च तत्थ अपुच्छित्थ, ये तत्थ सुसमागता॥", | |
"‘‘कस्स इदं आळाहनं, नानागन्धसमेरितं।", | |
"कस्सायं कन्दति भरिया, इतो दूरगतं पतिं।", | |
"ब्रह्मदत्तं अपस्सन्ती, ‘ब्रह्मदत्ता’ति कन्दति’’॥", | |
"ते", | |
"‘‘ब्रह्मदत्तस्स भदन्ते", | |
"‘‘तस्स", | |
"तस्सायं कन्दति भरिया, इतो दूरगतं पतिं।", | |
"ब्रह्मदत्तं अपस्सन्ती, ‘ब्रह्मदत्ता’ति कन्दति’’॥", | |
"‘‘छळासीतिसहस्सानि, ब्रह्मदत्तस्सनामका।", | |
"इमस्मिं आळाहने दड्ढा, तेसं कमनुसोचसी’’ति॥", | |
"‘‘यो राजा चूळनीपुत्तो, पञ्चालानं रथेसभो।", | |
"तं भन्ते अनुसोचामि, भत्तारं सब्बकामद’’न्ति॥", | |
"‘‘सब्बे वाहेसुं राजानो, ब्रह्मदत्तस्सनामका।", | |
"सब्बेवचूळनीपुत्ता, पञ्चालानं रथेसभा॥", | |
"‘‘सब्बेसं", | |
"कस्मा पुरिमके हित्वा, पच्छिमं अनुसोचसी’’ति॥", | |
"‘‘आतुमे", | |
"यस्सा मे इत्थिभूताय, संसारे बहुभाससी’’ति॥", | |
"‘‘अहु इत्थी अहु पुरिसो, पसुयोनिम्पि आगमा।", | |
"एवमेतं अतीतानं, परियन्तो न दिस्सती’’ति॥", | |
"‘‘आदित्तं वत मं सन्तं, घतसित्तंव पावकं।", | |
"वारिना विय ओसिञ्चं, सब्बं निब्बापये दरं॥", | |
"‘‘अब्बही वत मे सल्लं, सोकं हदयनिस्सितं।", | |
"यो मे सोकपरेताय, पतिसोकं अपानुदि॥", | |
"‘‘साहं", | |
"न सोचामि न रोदामि, तव सुत्वा महामुनी’’ति॥", | |
"तस्स तं वचनं सुत्वा, समणस्स सुभासितं।", | |
"पत्तचीवरमादाय, पब्बजि अनगारियं॥", | |
"सा च पब्बजिता सन्ता, अगारस्मा अनगारियं।", | |
"मेत्ताचित्तं अभावेसि, ब्रह्मलोकूपपत्तिया॥", | |
"गामा गामं विचरन्ती, निगमे राजधानियो।", | |
"उरुवेला नाम सो गामो, यत्थ कालमक्रुब्बथ॥", | |
"मेत्ताचित्तं", | |
"इत्थिचित्तं विराजेत्वा, ब्रह्मलोकूपगा अहूति॥", | |
"मोचकं", | |
"द्वे सेट्ठी तुन्नवायो च, उत्तर", | |
"‘‘अभिज्जमाने", | |
"नग्गो पुब्बद्धपेतोव मालधारी अलङ्कतो।", | |
"कुहिं गमिस्ससि पेत, कत्थ वासो भविस्सती’’ति॥", | |
"‘‘चुन्दट्ठिलं", | |
"अन्तरे वासभगामं, बाराणसिं च", | |
"तञ्च दिस्वा महामत्तो, कोलियो इति विस्सुतो।", | |
"सत्तुं भत्तञ्च पेतस्स, पीतकञ्च युगं अदा॥", | |
"नावाय तिट्ठमानाय, कप्पकस्स अदापयि।", | |
"कप्पकस्स पदिन्नम्हि, ठाने पेतस्स दिस्सथ", | |
"ततो सुवत्थवसनो, मालधारी अलङ्कतो।", | |
"ठाने ठितस्स पेतस्स, दक्खिणा उपकप्पथ।", | |
"तस्मा दज्जेथ पेतानं, अनुकम्पाय पुनप्पुनं॥", | |
"सातुन्नवसना", | |
"पेता भत्ताय गच्छन्ति, पक्कमन्ति दिसोदिसं॥", | |
"दूरे एके", | |
"छाता पमुच्छिता भन्ता, भूमियं पटिसुम्भिता॥", | |
"ते च", | |
"पुब्बे अकतकल्याणा, अग्गिदड्ढाव आतपे॥", | |
"‘‘मयं पुब्बे पापधम्मा, घरणी कुलमातरो।", | |
"सन्तेसु देय्यधम्मेसु, दीपं नाकम्ह अत्तनो॥", | |
"‘‘पहूतं", | |
"सम्मग्गते पब्बजिते, न च किञ्चि अदम्हसे॥", | |
"‘‘अकम्मकामा", | |
"आलोपपिण्डदातारो, पटिग्गहे परिभासिम्हसे", | |
"‘‘ते", | |
"ते अञ्ञे परिचारेन्ति, मयं दुक्खस्स भागिनो॥", | |
"‘‘वेणी वा अवञ्ञा होन्ति, रथकारी च दुब्भिका।", | |
"चण्डाली कपणा होन्ति, कप्पका", | |
"‘‘यानि यानि निहीनानि, कुलानि कपणानि च।", | |
"तेसु तेस्वेव जायन्ति, एसा मच्छरिनो गति॥", | |
"‘‘पुब्बे च कतकल्याणा, दायका वीतमच्छरा।", | |
"सग्गं ते परिपूरेन्ति, ओभासेन्ति च नन्दनं॥", | |
"‘‘वेजयन्ते च पासादे, रमित्वा कामकामिनो।", | |
"उच्चाकुलेसु जायन्ति, सभोगेसु ततो चुता॥", | |
"‘‘कूटागारे च पासादे, पल्लङ्के गोनकत्थते।", | |
"बीजितङ्गा", | |
"‘‘अङ्कतो अङ्कं गच्छन्ति, मालधारी अलङ्कता।", | |
"धातियो उपतिट्ठन्ति, सायं पातं सुखेसिनो॥", | |
"‘‘नयिदं", | |
"असोकं नन्दनं रम्मं, तिदसानं महावनं॥", | |
"‘‘सुखं अकतपुञ्ञानं, इध नत्थि परत्थ च।", | |
"सुखञ्च कतपुञ्ञानं, इध चेव परत्थ च॥", | |
"‘‘तेसं सहब्यकामानं, कत्तब्बं कुसलं बहुं।", | |
"कतपुञ्ञा हि मोदन्ति, सग्गे भोगसमङ्गिनो’’ति॥", | |
"कुण्डिनागरियो", | |
"पोट्ठपादोति नामेन, समणो भावितिन्द्रियो॥", | |
"तस्स", | |
"पापकम्मं", | |
"ते", | |
"उत्तसन्ता", | |
"तस्स भाता वितरित्वा, नग्गो एकपथेकको।", | |
"चतुकुण्डिको भवित्वान, थेरस्स दस्सयीतुमं॥", | |
"थेरो चामनसिकत्वा, तुण्हीभूतो अतिक्कमि।", | |
"सो च विञ्ञापयी थेरं, ‘भाता पेतगतो अहं’॥", | |
"‘‘माता", | |
"पापकम्मं करित्वान, पेतलोकं इतो गता॥", | |
"‘‘ते दुग्गता सूचिकट्टा, किलन्ता नग्गिनो किसा।", | |
"उत्तसन्ता महत्तासा, न दस्सेन्ति कुरूरिनो॥", | |
"‘‘अनुकम्पस्सु कारुणिको, दत्वा अन्वादिसाहि नो।", | |
"तव दिन्नेन दानेन, यापेस्सन्ति कुरूरिनो’’ति॥", | |
"थेरो चरित्वा पिण्डाय, भिक्खू अञ्ञे च द्वादस।", | |
"एकज्झं सन्निपतिंसु, भत्तविस्सग्गकारणा॥", | |
"थेरो सब्बेव ते आह, ‘‘यथालद्धं ददाथ मे।", | |
"सङ्घभत्तं करिस्सामि, अनुकम्पाय ञातिनं’’॥", | |
"निय्यादयिंसु थेरस्स, थेरो सङ्घं निमन्तयि।", | |
"दत्वा अन्वादिसि थेरो, मातु पितु च भातुनो।", | |
"‘‘इदं मे ञातीनं होतु, सुखिता होन्तु ञातयो’’॥", | |
"समनन्तरानुद्दिट्ठे, भोजनं उदपज्जथ।", | |
"सुचिं पणीतं सम्पन्नं, अनेकरसब्यञ्जनं॥", | |
"ततो उद्दस्सयी", | |
"‘‘पहूतं भोजनं भन्ते, पस्स नग्गाम्हसे मयं।", | |
"तथा भन्ते परक्कम, यथा वत्थं लभामसे’’ति॥", | |
"थेरो", | |
"पिलोतिकं", | |
"दत्वा अन्वादिसी थेरो, मातु पितु च भातुनो।", | |
"‘‘इदं मे ञातीनं होतु, सुखिता होन्तु ञातयो’’॥", | |
"समनन्तरानुद्दिट्ठे, वत्थानि उदपज्जिसुं।", | |
"ततो सुवत्थवसनो, थेरस्स दस्सयीतुमं॥", | |
"‘‘यावता", | |
"ततो बहुतरा भन्ते, वत्थानच्छादनानि नो॥", | |
"‘‘कोसेय्यकम्बलीयानि, खोम कप्पासिकानि च।", | |
"विपुला च महग्घा च, तेपाकासेवलम्बरे॥", | |
"‘‘ते मयं परिदहाम, यं यं हि मनसो पियं।", | |
"तथा भन्ते परक्कम, यथा गेहं लभामसे’’ति॥", | |
"थेरो पण्णकुटिं कत्वा, सङ्घे चातुद्दिसे अदा।", | |
"दत्वा अन्वादिसी थेरो, मातु पितु च भातुनो।", | |
"‘‘इदं मे ञातीनं होतु, सुखिता होन्तु ञातयो’’॥", | |
"समनन्तरानुद्दिट्ठे", | |
"कूटागारनिवेसना, विभत्ता भागसो मिता॥", | |
"‘‘न मनुस्सेसु ईदिसा, यादिसा नो घरा इध।", | |
"अपि दिब्बेसु यादिसा, तादिसा नो घरा इध॥", | |
"‘‘दद्दल्लमाना", | |
"‘तथा भन्ते परक्कम, यथा पानीयं लभामसे’’ति॥", | |
"थेरो करणं", | |
"दत्वा अन्वादिसी थेरो, मातु पितु च भातुनो।", | |
"‘‘इदं मे ञातीनं होतु, सुखिता होन्तु ञातयो’॥", | |
"समनन्तरानुद्दिट्ठे, पानीयं उदपज्जथ।", | |
"गम्भीरा चतुरस्सा च, पोक्खरञ्ञो सुनिम्मिता॥", | |
"सीतोदिका", | |
"पदुमुप्पलसञ्छन्ना, वारिकिञ्जक्खपूरिता॥", | |
"तत्थ न्हत्वा पिवित्वा च, थेरस्स पटिदस्सयुं।", | |
"‘‘पहूतं पानीयं भन्ते, पादा दुक्खा फलन्ति नो’’॥", | |
"‘‘आहिण्डमाना खञ्जाम, सक्खरे कुसकण्टके।", | |
"‘तथा भन्ते परक्कम, यथा यानं लभामसे’’’ति॥", | |
"थेरो सिपाटिकं लद्धा, सङ्घे चातुद्दिसे अदा।", | |
"दत्वा अन्वादिसी थेरो, मातु पितु च भातुनो।", | |
"‘‘इदं मे ञातीनं होतु, सुखिता होन्तु ञातयो’’॥", | |
"समनन्तरानुद्दिट्ठे", | |
"‘‘अनुकम्पितम्ह भदन्ते, भत्तेनच्छादनेन च॥", | |
"‘‘घरेन पानीयदानेन, यानदानेन चूभयं।", | |
"मुनिं कारुणिकं लोके, भन्ते वन्दितुमागता’’ति॥", | |
"‘‘वेळुरियथम्भं", | |
"तत्थच्छसि देवि महानुभावे, पथद्धनि", | |
"‘‘वण्णो च ते कनकस्स सन्निभो, उत्तत्तरूपो भुस दस्सनेय्यो।", | |
"पल्लङ्कसेट्ठे अतुले निसिन्ना, एका तुवं नत्थि च तुय्ह सामिको॥", | |
"‘‘इमा च ते पोक्खरणी समन्ता, पहूतमल्या", | |
"सुवण्णचुण्णेहि समन्तमोत्थता, न तत्थ पङ्को पणको च विज्जति॥", | |
"‘‘हंसा", | |
"समय्य वग्गूपनदन्ति सब्बे, बिन्दुस्सरा दुन्दुभीनंव घोसो॥", | |
"‘‘दद्दल्लमाना यससा यसस्सिनी, नावाय च त्वं अवलम्ब तिट्ठसि।", | |
"आळारपम्हे", | |
"‘‘इदं", | |
"इच्छामहं नारि अनोमदस्सने, तया सह नन्दने इध मोदितु’’न्ति॥", | |
"‘‘करोहि कम्मं इध वेदनीयं, चित्तञ्च ते इध निहितं भवतु", | |
"कत्वान कम्मं इध वेदनीयं, एवं ममं लच्छसि कामकामिनि’’न्ति॥", | |
"‘‘साधू’’ति सो तस्सा पटिस्सुणित्वा, अकासि कम्मं तहिं वेदनीयं।", | |
"कत्वान कम्मं तहिं वेदनीयं, उपपज्जि सो माणवो तस्सा सहब्यतन्ति॥", | |
"‘‘भुसानि", | |
"तुवञ्च", | |
"‘‘अयं", | |
"अयं मंसानि खादित्वा, मुसावादेन वञ्चेति॥", | |
"‘‘अहं मनुस्सेसु मनुस्सभूता, अगारिनी सब्बकुलस्स इस्सरा।", | |
"सन्तेसु परिगुहामि, मा च किञ्चि इतो अदं॥", | |
"‘‘मुसावादेन छादेमि, ‘नत्थि एतं मम गेहे।", | |
"सचे सन्तं निगुहामि, गूथो मे होतु भोजनं’॥", | |
"‘‘तस्स कम्मस्स विपाकेन, मुसावादस्स चूभयं।", | |
"सुगन्धं सालिनो भत्तं, गूथं मे परिवत्तति॥", | |
"‘‘अवञ्झानि च कम्मानि, न हि कम्मं विनस्सति।", | |
"दुग्गन्धं किमिनं", | |
"अच्छेररूपं सुगतस्स ञाणं, सत्था यथा पुग्गलं ब्याकासि।", | |
"उस्सन्नपुञ्ञापि भवन्ति हेके, परित्तपुञ्ञापि भवन्ति हेके॥", | |
"अयं", | |
"न यक्खभूता न सरीसपा", | |
"सुनखापिमस्स पलिहिंसु पादे, धङ्का सिङ्गाला", | |
"गब्भासयं पक्खिगणा हरन्ति, काका पन अक्खिमलं हरन्ति॥", | |
"नयिमस्स", | |
"नक्खत्तयोगम्पि न अग्गहेसुं", | |
"एतादिसं उत्तमकिच्छपत्तं, रत्ताभतं सीवथिकाय छड्डितं।", | |
"नोनीतपिण्डंव पवेधमानं, ससंसयं जीवितसावसेसं॥", | |
"तमद्दसा", | |
"‘‘अयं कुमारो नगरस्सिमस्स, अग्गकुलिको भविस्सति भोगतो च’’", | |
"‘‘किस्स", | |
"एतादिसं ब्यसनं पापुणित्वा, तं तादिसं पच्चनुभोस्सतिद्धि’’न्ति॥", | |
"बुद्धपमुखस्स भिक्खुसङ्घस्स, पूजं अकासि जनता उळारं।", | |
"तत्रस्स चित्तस्सहु अञ्ञथत्तं, वाचं अभासि फरुसं असब्भं॥", | |
"सो तं वितक्कं पविनोदयित्वा, पीतिं पसादं पटिलद्धा पच्छा।", | |
"तथागतं जेतवने वसन्तं, यागुया उपट्ठासि सत्तरत्तं॥", | |
"तस्स", | |
"एतादिसं ब्यसनं पापुणित्वा, तं तादिसं पच्चनुभोस्सतिद्धिं॥", | |
"ठत्वान", | |
"कायस्स भेदा अभिसम्परायं, सहब्यतं गच्छति वासवस्साति॥", | |
"‘‘नग्गा", | |
"उप्फासुलिके किसिके, का नु त्वं इध तिट्ठसी’’ति॥", | |
"‘‘अहं भदन्ते पेतीम्हि, दुग्गता यमलोकिका।", | |
"पापकम्मं करित्वान, पेतलोकं इतो गता’’ति॥", | |
"‘‘किं नु कायेन वाचाय, मनसा कुक्कटं कतं।", | |
"किस्स कम्मविपाकेन, पेतलोकं इतो गता’’ति॥", | |
"‘‘अनावटेसु तित्थेसु, विचिनिं अड्ढमासकं।", | |
"सन्तेसु देय्यधम्मेसु, दीपं नाकासिमत्तनो॥", | |
"‘‘नदिं उपेमि तसिता, रित्तका परिवत्तति।", | |
"छायं उपेमि उण्हेसु, आतपो परिवत्तति॥", | |
"‘‘अग्गिवण्णो च मे वातो, डहन्तो उपवायति।", | |
"एतञ्च भन्ते अरहामि, अञ्ञञ्च पापकं ततो॥", | |
"‘‘गन्त्वान", | |
"‘धीता च ते मया दिट्ठा, दुग्गता यमलोकिका।", | |
"पापकम्मं करित्वान, पेतलोकं इतो गता’॥", | |
"‘‘अत्थि मे एत्थ निक्खित्तं, अनक्खातञ्च तं मया।", | |
"चत्तारिसतसहस्सानि, पल्लङ्कस्स च हेट्ठतो॥", | |
"‘‘ततो मे दानं ददतु, तस्सा च होतु जीविका।", | |
"दानं दत्वा च मे माता, दक्खिणं अनुदिच्छतु", | |
"तदाहं", | |
"‘‘साधू’’ति", | |
"‘धीता च ते मया दिट्ठा, दुग्गता यमलोकिका।", | |
"पापकम्मं करित्वान, पेतलोकं इतो गता’॥", | |
"‘‘सा मं तत्थ समादपेसि, ( )", | |
"‘धीता च ते मया दिट्ठा, दुग्गता यमलोकिका।", | |
"पापकम्मं करित्वान, पेतलोकं इतो गता’॥", | |
"‘‘अत्थि च मे एत्थ निक्खित्तं, अनक्खातञ्च तं मया।", | |
"चत्तारिसतसहस्सानि, पल्लङ्कस्स च हेट्ठतो॥", | |
"‘‘ततो मे दानं ददतु, तस्सा च होतु जीविका।", | |
"दानं दत्वा च मे माता, दक्खिणं अनुदिच्छतु ( )", | |
"‘तदा सा सुखिता हेस्सं, सब्बकामसमिद्धिनी’’’ति॥", | |
"ततो हि सा दानमदा, तस्सा दक्खिणमादिसी।", | |
"पेती च सुखिता आसि, तस्सा चासि सुजीविकाति॥", | |
"‘‘नरनारिपुरक्खतो", | |
"दिवसं अनुभोसि कारणं, किमकासि पुरिमाय जातिया’’ति॥", | |
"‘‘अहं", | |
"मिगलुद्दो", | |
"‘‘अविरोधकरेसु पाणिसु, पुथुसत्तेसु पदुट्ठमानसो।", | |
"विचरिं अतिदारुणो सदा", | |
"‘‘तस्स", | |
"सोपि", | |
"‘‘‘माकासि पापकं कम्मं, मा तात दुग्गतिं अगा।", | |
"सचे इच्छसि पेच्च सुखं, विरम पाणवधा असंयमा’॥", | |
"‘‘तस्साहं वचनं सुत्वा, सुखकामस्स हितानुकम्पिनो।", | |
"नाकासिं सकलानुसासनिं, चिरपापाभिरतो अबुद्धिमा॥", | |
"‘‘सो मं पुन भूरिसुमेधसो, अनुकम्पाय संयमे निवेसयि।", | |
"‘सचे दिवा हनसि पाणिनो, अथ ते रत्तिं भवतु संयमो’॥", | |
"‘‘स्वाहं", | |
"रत्ताहं परिचारेमि, दिवा खज्जामि दुग्गतो॥", | |
"‘‘तस्स कम्मस्स कुसलस्स, अनुभोमि रत्तिं अमानुसिं।", | |
"दिवा पटिहताव", | |
"‘‘ये च ते सततानुयोगिनो, धुवं पयुत्ता सुगतस्स सासने।", | |
"मञ्ञामि ते अमतमेव केवलं, अधिगच्छन्ति पदं असङ्खत’’न्ति॥", | |
"‘‘कूटागारे", | |
"पञ्चङ्गिकेन तुरियेन, रमसि सुप्पवादिते॥", | |
"‘‘ततो", | |
"अपविद्धो सुसानस्मिं, बहुदुक्खं निगच्छसि॥", | |
"‘‘किं", | |
"किस्स कम्मविपाकेन, इदं दुक्खं निगच्छसि’’॥", | |
"‘‘अहं", | |
"मिगलुद्दो पुरे आसिं, लुद्दो चासिमसञ्ञतो॥", | |
"‘‘तस्स मे सहायो सुहदयो, सद्धो आसि उपासको।", | |
"तस्स कुलुपको भिक्खु, आसि गोतमसावको।", | |
"सोपि मं अनुकम्पन्तो, निवारेसि पुनप्पुनं॥", | |
"‘‘‘माकासि पापकं कम्मं, मा तात दुग्गतिं अगा।", | |
"सचे इच्छसि पेच्च सुखं, विरम पाणवधा असंयमा’॥", | |
"‘‘तस्साहं वचनं सुत्वा, सुखकामस्स हितानुकम्पिनो।", | |
"नाकासिं सकलानुसासनिं, चिरपापाभिरतो अबुद्धिमा॥", | |
"‘‘सो मं पुन भूरिसुमेधसो, अनुकम्पाय संयमे निवेसयि।", | |
"‘सचे दिवा हनसि पाणिनो, अथ ते रत्तिं भवतु संयमो’॥", | |
"‘‘स्वाहं दिवा हनित्वा पाणिनो, विरतो रत्तिमहोसि सञ्ञतो।", | |
"रत्ताहं परिचारेमि, दिवा खज्जामि दुग्गतो॥", | |
"‘‘तस्स", | |
"दिवा पटिहताव कुक्कुरा, उपधावन्ति समन्ता खादितुं॥", | |
"‘‘ये च ते सततानुयोगिनो, धुवं पयुत्ता", | |
"मञ्ञामि ते अमतमेव केवलं, अधिगच्छन्ति पदं असङ्खत’’न्ति॥", | |
"‘‘माली", | |
"पसन्नमुखवण्णोसि, सूरियवण्णोव सोभसि॥", | |
"‘‘अमानुसा पारिसज्जा, ये तेमे परिचारका।", | |
"दस कञ्ञासहस्सानि, या तेमा परिचारिका।", | |
"ता", | |
"‘‘महानुभावोसि तुवं, लोमहंसनरूपवा।", | |
"पिट्ठिमंसानि अत्तनो, सामं उक्कच्च", | |
"‘‘किं", | |
"किस्स कम्मविपाकेन, पिट्ठिमंसानि अत्तनो।", | |
"सामं उक्कच्च खादसी’’ति॥", | |
"‘‘अत्तनोहं अनत्थाय, जीवलोके अचारिसं।", | |
"पेसुञ्ञमुसावादेन, निकतिवञ्चनाय च॥", | |
"‘‘तत्थाहं परिसं गन्त्वा, सच्चकाले उपट्ठिते।", | |
"अत्थं", | |
"‘‘एवं सो खादतत्तानं, यो होति पिट्ठिमंसिको।", | |
"यथाहं अज्ज खादामि, पिट्ठिमंसानि अत्तनो॥", | |
"‘‘तयिदं तया नारद सामं दिट्ठं, अनुकम्पका ये कुसला वदेय्युं।", | |
"मा पेसुणं मा च मुसा अभाणि, मा खोसि पिट्ठिमंसिको तुव’’न्ति॥", | |
"‘‘अन्तलिक्खस्मिं", | |
"मुखञ्च ते किमयो पूतिगन्धं, खादन्ति किं कम्ममकासि पुब्बे॥", | |
"‘‘ततो", | |
"खारेन परिप्फोसित्वा, ओक्कन्तन्ति पुनप्पुनं॥", | |
"‘‘किं नु कायेन वाचाय, मनसा दुक्कटं कतं।", | |
"किस्स कम्मविपाकेन, इदं दुक्खं निगच्छसी’’ति॥", | |
"‘‘अहं राजगहे रम्मे, रमणीये गिरिब्बजे।", | |
"इस्सरो धनधञ्ञस्स, सुपहूतस्स मारिस॥", | |
"‘‘तस्सायं मे भरिया च, धीता च सुणिसा च मे।", | |
"ता मालं उप्पलञ्चापि, पच्चग्घञ्च विलेपनं।", | |
"थूपं हरन्तियो वारेसिं, तं पापं पकतं मया॥", | |
"‘‘छळासीतिसहस्सानि", | |
"थूपपूजं विवण्णेत्वा, पच्चाम निरये भुसं॥", | |
"‘‘ये", | |
"आदीनवं पकासेन्ति, विवेचयेथ", | |
"‘‘इमा च पस्स आयन्तियो, मालधारी अलङ्कता।", | |
"मालाविपाकंनुभोन्तियो", | |
"‘‘तञ्च दिस्वान अच्छेरं, अब्भुतं लोमहंसनं।", | |
"नमो करोन्ति सप्पञ्ञा, वन्दन्ति तं महामुनिं॥", | |
"‘‘सोहं", | |
"थूपपूजं करिस्सामि, अप्पमत्तो पुनप्पुन’’न्ति॥", | |
"अभिज्जमानो कुण्डियो", | |
"कुमारो गणिका चेव, द्वे लुद्दा पिट्ठिपूजना।", | |
"वग्गो तेन पवुच्चतीति॥", | |
"वेसाली", | |
"दिस्वान पेतं नगरस्स बाहिरं, तत्थेव पुच्छित्थ तं कारणत्थिको॥", | |
"‘‘सेय्या निसज्जा नयिमस्स अत्थि, अभिक्कमो नत्थि पटिक्कमो च।", | |
"असितपीतखायितवत्थभोगा, परिचारिका", | |
"‘‘ये ञातका दिट्ठसुता सुहज्जा, अनुकम्पका यस्स अहेसुं पुब्बे।", | |
"दट्ठुम्पि ते दानि न तं लभन्ति, विराजितत्तो", | |
"‘‘न ओग्गतत्तस्स भवन्ति मित्ता, जहन्ति मित्ता विकलं विदित्वा।", | |
"अत्थञ्च दिस्वा परिवारयन्ति, बहू मित्ता उग्गतत्तस्स होन्ति॥", | |
"‘‘निहीनत्तो सब्बभोगेहि किच्छो, सम्मक्खितो", | |
"उस्सावबिन्दूव पलिम्पमानो, अज्ज सुवे जीवितस्सूपरोधो॥", | |
"‘‘एतादिसं उत्तमकिच्छप्पत्तं, उत्तासितं पुचिमन्दस्स सूले।", | |
"‘अथ त्वं केन वण्णेन वदेसि यक्ख, जीव भो जीवितमेव सेय्यो’’’ति॥", | |
"‘‘सालोहितो", | |
"दिस्वा च मे कारुञ्ञमहोसि राज, मा पापधम्मो निरयं पतायं", | |
"‘‘इतो चुतो लिच्छवि एस पोसो, सत्तुस्सदं निरयं घोररूपं।", | |
"उपपज्जति दुक्कटकम्मकारी, महाभितापं कटुकं भयानकं॥", | |
"‘‘अनेकभागेन गुणेन सेय्यो, अयमेव सूलो निरयेन तेन।", | |
"एकन्तदुक्खं कटुकं भयानकं, एकन्ततिब्बं निरयं पतायं", | |
"‘‘इदञ्च", | |
"तस्मा अहं सन्तिके न भणामि, मा मे कतो जीवितस्सूपरोधो’’॥", | |
"‘‘अञ्ञातो एसो", | |
"ओकासकम्मं सचे नो करोसि, पुच्छाम तं नो न च कुज्झितब्ब’’न्ति॥", | |
"‘‘अद्धा पटिञ्ञा मे तदा अहु", | |
"अकामा सद्धेय्यवचोति कत्वा, पुच्छस्सु मं कामं यथा विसय्ह’’न्ति", | |
"‘‘यं", | |
"दिस्वाव तं नोपि चे सद्दहेय्यं, करेय्यासि", | |
"‘‘सच्चप्पटिञ्ञा", | |
"अञ्ञत्थिको", | |
"सब्बम्पि अक्खिस्सं", | |
"‘‘सेतेन अस्सेन अलङ्कतेन, उपयासि सूलावुतकस्स सन्तिके।", | |
"यानं इदं अब्भुतं दस्सनेय्यं, किस्सेतं कम्मस्स अयं विपाको’’ति॥", | |
"‘‘वेसालिया", | |
"गोसीसमेकाहं पसन्नचित्तो, सेतं", | |
"‘‘एतस्मिं पादानि पतिट्ठपेत्वा, मयञ्च अञ्ञे च अतिक्कमिम्हा।", | |
"यानं इदं अब्भुतं दस्सनेय्यं, तस्सेव कम्मस्स अयं विपाको’’ति॥", | |
"‘‘वण्णो च ते सब्बदिसा पभासति, गन्धो च ते सब्बदिसा पवायति।", | |
"यक्खिद्धिपत्तोसि महानुभावो, नग्गो चासि किस्स अयं विपाको’’ति॥", | |
"‘‘अक्कोधनो", | |
"तस्सेव कम्मस्स अयं विपाको, दिब्बो मे वण्णो सततं पभासति॥", | |
"‘‘यसञ्च कित्तिञ्च धम्मे ठितानं, दिस्वान मन्तेमि", | |
"तस्सेव कम्मस्स अयं विपाको, दिब्बो मे गन्धो सततं पवायति॥", | |
"‘‘सहायानं", | |
"खिड्डत्थिको नो च पदुट्ठचित्तो, तेनम्हि नग्गो कसिरा च वुत्ती’’ति॥", | |
"‘‘यो कीळमानो पकरोति पापं, तस्सेदिसं कम्मविपाकमाहु।", | |
"अकीळमानो पन यो करोति, किं तस्स कम्मस्स विपाकमाहू’’ति॥", | |
"‘‘ये दुट्ठसङ्कप्पमना मनुस्सा, कायेन वाचाय च सङ्किलिट्ठा।", | |
"कायस्स भेदा अभिसम्परायं, असंसयं ते निरयं उपेन्ति॥", | |
"‘‘अपरे", | |
"कायस्स भेदा अभिसम्परायं, असंसयं ते सुगतिं उपेन्ती’’ति॥", | |
"‘‘तं किन्ति जानेय्यमहं अवेच्च, कल्याणपापस्स अयं विपाको।", | |
"किं वाहं दिस्वा अभिसद्दहेय्यं, को वापि मं सद्दहापेय्य एत’’न्ति॥", | |
"‘‘दिस्वा", | |
"कल्याणपापे उभये असन्ते, सिया नु सत्ता सुगता दुग्गता वा॥", | |
"‘‘नो", | |
"नाहेसुं सत्ता सुगता दुग्गता वा, हीना पणीता च मनुस्सलोके॥", | |
"‘‘यस्मा", | |
"तस्मा हि सत्ता सुगता दुग्गता वा, हीना", | |
"‘‘द्वयज्ज कम्मानं विपाकमाहु, सुखस्स दुक्खस्स च वेदनीयं।", | |
"ता देवतायो परिचारयन्ति, पच्चन्ति बाला द्वयतं अपस्सिनो॥", | |
"‘‘न मत्थि कम्मानि सयंकतानि, दत्वापि मे नत्थि यो", | |
"अच्छादनं सयनमथन्नपानं, तेनम्हि नग्गो कसिरा च वुत्ती’’ति॥", | |
"‘‘सिया नु खो कारणं किञ्चि यक्ख, अच्छादनं येन तुवं लभेथ।", | |
"आचिक्ख मे त्वं यदत्थि हेतु, सद्धायिकं", | |
"‘‘कप्पितको", | |
"गुत्तिन्द्रियो संवुतपातिमोक्खो, सीतिभूतो उत्तमदिट्ठिपत्तो॥", | |
"‘‘सखिलो वदञ्ञू सुवचो सुमुखो, स्वागमो सुप्पटिमुत्तको च।", | |
"पुञ्ञस्स खेत्तं अरणविहारी, देवमनुस्सानञ्च", | |
"‘‘सन्तो विधूमो अनीघो निरासो, मुत्तो विसल्लो अममो अवङ्को।", | |
"निरूपधी सब्बपपञ्चखीणो, तिस्सो विज्जा अनुप्पत्तो जुतिमा॥", | |
"‘‘अप्पञ्ञातो", | |
"जानन्ति तं यक्खभूता अनेजं, कल्याणधम्मं विचरन्तं लोके॥", | |
"‘‘तस्स", | |
"पटिग्गहीतानि च तानि अस्सु, ममञ्च पस्सेथ सन्नद्धदुस्स’’न्ति॥", | |
"‘‘कस्मिं पदेसे समणं वसन्तं, गन्त्वान पस्सेमु मयं इदानि।", | |
"यो मज्ज", | |
"‘‘एसो निसिन्नो कपिनच्चनायं, परिवारितो देवताहि बहूहि।", | |
"धम्मिं", | |
"‘‘तथाहं", | |
"पटिग्गहितानि च तानि अस्सु, तुवञ्च पस्सेमु सन्नद्धदुस्स’’न्ति॥", | |
"‘‘मा अक्खणे पब्बजितं उपागमि, साधु वो लिच्छवि नेस धम्मो।", | |
"ततो च काले उपसङ्कमित्वा, तत्थेव पस्साहि रहो निसिन्न’’न्ति॥", | |
"तथाति वत्वा अगमासि तत्थ, परिवारितो दासगणेन लिच्छवि।", | |
"सो तं नगरं उपसङ्कमित्वा, वासूपगच्छित्थ सके निवेसने॥", | |
"ततो", | |
"विचेय्य पेळातो च युगानि अट्ठ, गाहापयी दासगणेन लिच्छवि॥", | |
"सो तं पदेसं उपसङ्कमित्वा, तं अद्दस समणं सन्तचित्तं।", | |
"पटिक्कन्तं", | |
"तमेनमवोच उपसङ्कमित्वा, अप्पाबाधं फासुविहारञ्च पुच्छि।", | |
"‘‘वेसालियं लिच्छविहं भदन्ते, जानन्ति मं लिच्छवि अम्बसक्करो॥", | |
"‘‘इमानि मे अट्ठ युगा सुभानि", | |
"तेनेव अत्थेन इधागतोस्मि, यथा अहं अत्तमनो भवेय्य’’न्ति॥", | |
"‘‘दूरतोव", | |
"पत्तानि भिज्जन्ति च ते", | |
"‘‘अथापरे पादकुठारिकाहि, अवंसिरा समणा पातयन्ति।", | |
"एतादिसं पब्बजिता विहेसं, तया कतं समणा पापुणन्ति॥", | |
"‘‘तिणेन तेलम्पि न त्वं अदासि, मूळ्हस्स", | |
"अन्धस्स दण्डं सयमादियासि, एतादिसो कदरियो असंवुतो तुवं।", | |
"अथ त्वं केन वण्णेन किमेव दिस्वा,", | |
"अम्हेहि सह संविभागं करोसी’’ति॥", | |
"‘‘पच्चेमि", | |
"खिड्डत्थिको नो च पदुट्ठचित्तो, एतम्पि मे दुक्कटमेव भन्ते॥", | |
"‘‘खिड्डाय यक्खो पसवित्वा पापं, वेदेति दुक्खं असमत्तभोगी।", | |
"दहरो युवा नग्गनियस्स भागी, किं सु ततो दुक्खतरस्स होति॥", | |
"‘‘तं दिस्वा संवेगमलत्थं भन्ते, तप्पच्चया वापि", | |
"पटिगण्ह भन्ते वत्थयुगानि अट्ठ, यक्खस्सिमा गच्छन्तु दक्खिणायो’’ति॥", | |
"‘‘अद्धा हि दानं बहुधा पसत्थं, ददतो च ते अक्खयधम्ममत्थु।", | |
"पटिगण्हामि", | |
"ततो हि सो आचमयित्वा लिच्छवि, थेरस्स दत्वान युगानि अट्ठ।", | |
"‘पटिग्गहितानि च तानि अस्सु, यक्खञ्च पस्सेथ सन्नद्धदुस्सं’॥", | |
"तमद्दसा चन्दनसारलित्तं, आजञ्ञमारूळ्हमुळारवण्णं।", | |
"अलङ्कतं साधुनिवत्थदुस्सं, परिवारितं यक्खमहिद्धिपत्तं॥", | |
"सो", | |
"कम्मञ्च दिस्वान महाविपाकं, सन्दिट्ठिकं चक्खुना सच्छिकत्वा॥", | |
"तमेनमवोच", | |
"न चापि मे किञ्चि अदेय्यमत्थि, तुवञ्च मे यक्ख बहूपकारो’’ति॥", | |
"‘‘तुवञ्च मे लिच्छवि एकदेसं, अदासि दानानि अमोघमेतं।", | |
"स्वाहं", | |
"‘‘गती च बन्धू च परायणञ्च", | |
"याचामि तं", | |
"‘‘सचे तुवं अस्सद्धो भविस्ससि, कदरियरूपो विप्पटिपन्नचित्तो।", | |
"त्वं नेव मं लच्छसि", | |
"‘‘सचे पन त्वं भविस्ससि धम्मगारवो, दाने रतो सङ्गहितत्तभावो।", | |
"ओपानभूतो समणब्राह्मणानं, एवं ममं लच्छसि दस्सनाय॥", | |
"‘‘दिस्वा च तं आलपिस्सं भदन्ते, इमञ्च सूलतो लहुं पमुञ्च।", | |
"यतो निदानं अकरिम्ह सक्खिं, मञ्ञामि सूलावुतकस्स कारणा॥", | |
"‘‘ते", | |
"सक्कच्च धम्मानि समाचरन्तो, मुच्चेय्य सो निरया च तम्हा।", | |
"कम्मं सिया अञ्ञत्र वेदनीयं॥", | |
"‘‘कप्पितकञ्च उपसङ्कमित्वा, तेनेव", | |
"सयं मुखेनूपनिसज्ज पुच्छ, सो ते अक्खिस्सति एतमत्थं॥", | |
"‘‘तमेव भिक्खुं उपसङ्कमित्वा, पुच्छस्सु अञ्ञत्थिको नो च पदुट्ठचित्तो।", | |
"सो ते सुतं असुतञ्चापि धम्मं,", | |
"सब्बम्पि", | |
"सो तत्थ रहस्सं समुल्लपित्वा, सक्खिं करित्वान अमानुसेन।", | |
"पक्कामि सो लिच्छवीनं सकासं, अथ ब्रवि परिसं सन्निसिन्नं॥", | |
"‘‘सुणन्तु भोन्तो मम एकवाक्यं, वरं वरिस्सं लभिस्सामि अत्थं।", | |
"सूलावुतो", | |
"‘‘एत्तावता वीसतिरत्तिमत्ता, यतो आवुतो नेव जीवति न मतो।", | |
"ताहं मोचयिस्सामि दानि, यथामतिं अनुजानातु सङ्घो’’ति॥", | |
"‘‘एतञ्च अञ्ञञ्च लहुं पमुञ्च, को तं वदेथ", | |
"यथा पजानासि तथा करोहि, यथामतिं अनुजानाति सङ्घो’’ति॥", | |
"सो", | |
"‘मा भायि सम्मा’ति च तं अवोच, तिकिच्छकानञ्च उपट्ठपेसि॥", | |
"‘‘कप्पितकञ्च", | |
"सयं मुखेनूपनिसज्ज लिच्छवि, तथेव पुच्छित्थ नं कारणत्थिको॥", | |
"‘‘सूलावुतो पुरिसो लुद्दकम्मो, पणीतदण्डो", | |
"एत्तावता वीसतिरत्तिमत्ता, यतो आवुतो नेव जीवति न मतो॥", | |
"‘‘सो मोचितो गन्त्वा मया इदानि, एतस्स यक्खस्स वचो हि भन्ते।", | |
"सिया नु खो कारणं किञ्चिदेव, येन सो निरयं नो वजेय्य॥", | |
"‘‘आचिक्ख भन्ते यदि अत्थि हेतु, सद्धायिकं हेतुवचो सुणोम।", | |
"न तेसं कम्मानं विनासमत्थि, अवेदयित्वा इध ब्यन्तिभावो’’ति॥", | |
"‘‘सचे", | |
"मुच्चेय्य सो निरया च तम्हा, कम्मं सिया अञ्ञत्र वेदनीय’’न्ति॥", | |
"‘‘अञ्ञातो", | |
"अनुसास मं ओवद भूरिपञ्ञ, यथा अहं नो निरयं वजेय्य’’न्ति॥", | |
"‘‘अज्जेव", | |
"तथेव सिक्खाय पदानि पञ्च, अखण्डफुल्लानि समादियस्सु॥", | |
"‘‘पाणातिपाता विरमस्सु खिप्पं, लोके अदिन्नं परिवज्जयस्सु।", | |
"अमज्जपो मा च मुसा अभाणी, सकेन दारेन च होहि तुट्ठो।", | |
"इमञ्च अरियं", | |
"‘‘चीवरं पिण्डपातञ्च, पच्चयं सयनासनं।", | |
"अन्नं पानं खादनीयं, वत्थसेनासनानि च।", | |
"ददाहि उजुभूतेसु, विप्पसन्नेन चेतसा", | |
"‘‘भिक्खूपि सीलसम्पन्ने, वीतरागे बहुस्सुते।", | |
"तप्पेहि अन्नपानेन, सदा पुञ्ञं पवड्ढति॥", | |
"‘‘एवञ्च धम्मानि", | |
"मुञ्च तुवं", | |
"‘‘अज्जेव बुद्धं सरणं उपेमि, धम्मञ्च सङ्घञ्च पसन्नचित्तो।", | |
"तथेव सिक्खाय पदानि पञ्च, अखण्डफुल्लानि समादियामि॥", | |
"‘‘पाणातिपाता विरमामि खिप्पं, लोके अदिन्नं परिवज्जयामि।", | |
"अमज्जपो नो च मुसा भणामि, सकेन दारेन च होमि तुट्ठो।", | |
"इमञ्च अरियं अट्ठङ्गवरेनुपेतं, समादियामि कुसलं सुखुद्रयं॥", | |
"‘‘चीवरं", | |
"अन्नं पानं खादनीयं, वत्थसेनासनानि च॥", | |
"‘‘भिक्खू", | |
"ददामि न विकम्पामि", | |
"एतादिसा लिच्छवि अम्बसक्करो, वेसालियं अञ्ञतरो उपासको।", | |
"सद्धो मुदू कारकरो च भिक्खु, सङ्घञ्च सक्कच्च तदा उपट्ठहि॥", | |
"सूलावुतो च अरोगो हुत्वा, सेरी", | |
"भिक्खुञ्च आगम्म कप्पितकुत्तमं, उभोपि सामञ्ञफलानि अज्झगुं॥", | |
"एतादिसा सप्पुरिसान सेवना, महप्फला होति सतं विजानतं।", | |
"सूलावुतो अग्गफलं अफस्सयि", | |
"", | |
"यथा कथं इतरितरेन चापि, सुभासितं तञ्च सुणाथ सब्बे॥", | |
"यो सो अहु राजा पायासि नाम", | |
"सो मोदमानोव सके विमाने, अमानुसो मानुसे अज्झभासीति॥", | |
"‘‘वङ्के", | |
"सुदुग्गमे वण्णुपथस्स मज्झे, वङ्कंभया नट्ठमना मनुस्सा॥", | |
"‘‘नयिध फला मूलमया च सन्ति, उपादानं नत्थि कुतोध भक्खो", | |
"अञ्ञत्र पंसूहि च वालुकाहि च, तताहि उण्हाहि च दारुणाहि च॥", | |
"‘‘उज्जङ्गलं तत्तमिवं कपालं, अनायसं परलोकेन तुल्यं।", | |
"लुद्दानमावासमिदं पुराणं, भूमिप्पदेसो अभिसत्तरूपो॥", | |
"‘‘‘अथ तुम्हे केन वण्णेन, किमासमाना इमं पदेसं हि।", | |
"अनुपविट्ठा सहसा समच्च, लोभा भया अथ वा सम्पमूळ्हा’’’ति॥", | |
"‘‘मगधेसु अङ्गेसु च सत्थवाहा, आरोपयित्वा पणियं पुथुत्तं।", | |
"ते यामसे सिन्धुसोवीरभूमिं, धनत्थिका उद्दयं पत्थयाना॥", | |
"‘‘दिवा पिपासं नधिवासयन्ता, योग्गानुकम्पञ्च समेक्खमाना।", | |
"एतेन वेगेन आयाम सब्बे, रत्तिं मग्गं पटिपन्ना विकाले॥", | |
"‘‘ते", | |
"सुदुग्गमे वण्णुपथस्स मज्झे, दिसं न जानाम पमूळ्हचित्ता॥", | |
"‘‘इदञ्च", | |
"ततुत्तरिं जीवितमासमाना, दिस्वा पतीता सुमना उदग्गा’’ति॥", | |
"‘‘पारं समुद्दस्स इमञ्च वण्णुं, वेत्ताचरं", | |
"नदियो पन पब्बतानञ्च दुग्गा, पुथुद्दिसा गच्छथ भोगहेतु॥", | |
"‘‘पक्खन्दियान विजितं परेसं, वेरज्जके मानुसे पेक्खमाना।", | |
"यं वो सुतं वा अथ वापि दिट्ठं, अच्छेरकं तं वो सुणोम ताता’’ति॥", | |
"‘‘इतोपि अच्छेरतरं कुमार, न नो सुतं वा अथ वापि दिट्ठं।", | |
"अतीतमानुस्सकमेव सब्बं, दिस्वा न तप्पाम अनोमवण्णं॥", | |
"‘‘वेहायसं पोक्खरञ्ञो सवन्ति, पहूतमल्या", | |
"दुमा चिमे निच्चफलूपपन्ना, अतीव गन्धा सुरभिं पवायन्ति॥", | |
"‘‘वेळूरियथम्भा सतमुस्सितासे, सिलापवाळस्स च आयतंसा।", | |
"मसारगल्ला सहलोहितङ्गा, थम्भा इमे जोतिरसामयासे॥", | |
"‘‘सहस्सथम्भं अतुलानुभावं, तेसूपरि साधुमिदं विमानं।", | |
"रतनन्तरं कञ्चनवेदिमिस्सं, तपनीयपट्टेहि च साधुछन्नं॥", | |
"‘‘जम्बोनदुत्तत्तमिदं", | |
"दळ्हो च वग्गु च सुसङ्गतो च", | |
"‘‘रतनन्तरस्मिं बहुअन्नपानं, परिवारितो अच्छरासङ्गणेन।", | |
"मुरजआलम्बरतूरियघुट्ठो, अभिवन्दितोसि थुतिवन्दनाय॥", | |
"‘‘सो मोदसि नारिगणप्पबोधनो, विमानपासादवरे मनोरमे।", | |
"अचिन्तियो सब्बगुणूपपन्नो, राजा यथा वेस्सवणो नळिन्या", | |
"‘‘देवो नु आसि उदवासि यक्खो, उदाहु देविन्दो मनुस्सभूतो।", | |
"पुच्छन्ति तं वाणिजा सत्थवाहा, आचिक्ख को नाम तुवंसि यक्खो’’ति॥", | |
"‘‘सेरीसको नाम अहम्हि यक्खो, कन्तारियो वण्णुपथम्हि गुत्तो।", | |
"इमं पदेसं अभिपालयामि, वचनकरो वेस्सवणस्स रञ्ञो’’ति॥", | |
"‘‘अधिच्चलद्धं परिणामजं ते, सयं कतं उदाहु देवेहि दिन्नं।", | |
"पुच्छन्ति तं वाणिजा सत्थवाहा, कथं तया लद्धमिदं मनुञ्ञ’’न्ति॥", | |
"‘‘नाधिच्चलद्धं न परिणामजं मे, न सयं कतं न हि देवेहि दिन्नं।", | |
"सकेहि कम्मेहि अपापकेहि, पुञ्ञेहि मे लद्धमिदं मनुञ्ञ’’न्ति॥", | |
"‘‘किं", | |
"पुच्छन्ति तं वाणिजा सत्थवाहा, कथं तया लद्धमिदं विमान’’न्ति॥", | |
"‘‘ममं", | |
"नत्थिकदिट्ठि कदरियो पापधम्मो, उच्छेदवादी च तदा अहोसिं॥", | |
"‘‘समणो च खो आसि कुमारकस्सपो, बहुस्सुतो चित्तकथी उळारो।", | |
"सो मे तदा धम्मकथं अभासि, दिट्ठिविसूकानि विनोदयी मे॥", | |
"‘‘ताहं तस्स धम्मकथं सुणित्वा, उपासकत्तं पटिदेवयिस्सं।", | |
"पाणातिपाता विरतो अहोसिं, लोके अदिन्नं परिवज्जयिस्सं।", | |
"अमज्जपो नो च मुसा अभाणिं, सकेन दारेन च अहोसि तुट्ठो॥", | |
"‘‘तं मे वतं तं पन ब्रह्मचरियं, तस्स सुचिण्णस्स अयं विपाको।", | |
"तेहेव कम्मेहि अपापकेहि, पुञ्ञेहि मे लद्धमिदं विमान’’न्ति॥", | |
"‘‘सच्चं किराहंसु नरा सपञ्ञा, अनञ्ञथा वचनं पण्डितानं।", | |
"यहिं यहिं गच्छति पुञ्ञकम्मो, तहिं तहिं मोदति कामकामी॥", | |
"‘‘यहिं यहिं सोकपरिद्दवो च, वधो च बन्धो च परिक्किलेसो।", | |
"तहिं तहिं गच्छति पापकम्मो, न मुच्चति दुग्गतिया कदाची’’ति॥", | |
"‘‘सम्मूळ्हरूपोव", | |
"जनस्सिमस्स तुय्हञ्च कुमार, अप्पच्चयो केन नु खो अहोसी’’ति॥", | |
"‘‘इमे च सिरीसवना", | |
"ते सम्पवायन्ति इमं विमानं, दिवा च रत्तो च तमं निहन्त्वा॥", | |
"‘‘इमेसञ्च खो वस्ससतच्चयेन, सिपाटिका फलति एकमेका।", | |
"मानुस्सकं वस्ससतं अतीतं, यदग्गे कायम्हि इधूपपन्नो॥", | |
"‘‘दिस्वानहं वस्ससतानि पञ्च, अस्मिं विमाने ठत्वान ताता।", | |
"आयुक्खया पुञ्ञक्खया चविस्सं, तेनेव सोकेन पमुच्छितोस्मी’’ति॥", | |
"‘‘कथं नु सोचेय्य तथाविधो सो, लद्धा विमानं अतुलं चिराय।", | |
"ये चापि खो इत्तरमुपपन्ना, ते नून सोचेय्युं परित्तपुञ्ञा’’ति॥", | |
"‘‘अनुच्छविं ओवदियञ्च मे तं, यं मं तुम्हे पेय्यवाचं वदेथ।", | |
"तुम्हे च खो ताता मयानुगुत्ता, येनिच्छकं तेन पलेथ सोत्थि’’न्ति॥", | |
"‘‘गन्त्वा मयं सिन्धुसोवीरभूमिं, धन्नत्थिका उद्दयं पत्थयाना।", | |
"यथापयोगा परिपुण्णचागा, काहाम सेरीसमहं उळार’’न्ति॥", | |
"‘‘मा", | |
"पापानि कम्मानि विवज्जयाथ, धम्मानुयोगञ्च अधिट्ठहाथ॥", | |
"‘‘उपासको अत्थि इमम्हि सङ्घे, बहुस्सुतो सीलवतूपपन्नो।", | |
"सद्धो च चागी च सुपेसलो च, विचक्खणो सन्तुसितो मुतीमा॥", | |
"‘‘सञ्जानमानो", | |
"वेभूतिकं पेसुणं नो करेय्य, सण्हञ्च वाचं सखिलं भणेय्य॥", | |
"‘‘सगारवो सप्पटिस्सो विनीतो, अपापको अधिसीले विसुद्धो।", | |
"सो मातरं पितरञ्चापि जन्तु, धम्मेन पोसेति अरियवुत्ति॥", | |
"‘‘मञ्ञे सो मातापितूनं कारणा, भोगानि परियेसति न अत्तहेतु।", | |
"मातापितूनञ्च यो अच्चयेन, नेक्खम्मपोणो चरिस्सति ब्रह्मचरियं॥", | |
"‘‘उजू अवङ्को असठो अमायो, न लेसकप्पेन च वोहरेय्य।", | |
"सो तादिसो सुकतकम्मकारी, धम्मे ठितो किन्ति लभेथ दुक्खं॥", | |
"‘‘तं कारणा पातुकतोम्हि अत्तना, तस्मा धम्मं पस्सथ वाणिजासे।", | |
"अञ्ञत्र तेनिह भस्मी", | |
"तं खिप्पमानेन लहुं परेन, सुखो हवे सप्पुरिसेन सङ्गमो’’ति॥", | |
"‘‘किं", | |
"मयम्पि नं दट्ठुकामम्ह यक्ख, यस्सानुकम्पाय इधागतोसि।", | |
"लाभा हि तस्स यस्स तुवं पिहेसी’’ति॥", | |
"‘‘यो कप्पको सम्भवनामधेय्यो, उपासको कोच्छफलूपजीवी।", | |
"जानाथ नं तुम्हाकं पेसियो सो, मा खो नं हीळित्थ सुपेसलो सो’’ति॥", | |
"‘‘जानामसे यं त्वं पवदेसि यक्ख, न खो नं जानाम स एदिसोति।", | |
"मयम्पि नं पूजयिस्साम यक्ख, सुत्वान तुय्हं वचनं उळार’’न्ति॥", | |
"‘‘ये केचि इमस्मिं सत्थे मनुस्सा, दहरा महन्ता अथवापि मज्झिमा।", | |
"सब्बेव ते आलम्बन्तु विमानं, पस्सन्तु पुञ्ञानं फलं कदरिया’’ति॥", | |
"ते तत्थ सब्बेव ‘अहं पुरे’ति, तं कप्पकं तत्थ पुरक्खत्वा", | |
"सब्बेव ते आलम्बिंसु विमानं, मसक्कसारं विय वासवस्स॥", | |
"ते तत्थ सब्बेव ‘अहं पुरे’ति, उपासकत्तं पटिवेदयिंसु।", | |
"पाणातिपाता पटिविरता अहेसुं, लोके अदिन्नं परिवज्जयिंसु।", | |
"अमज्जपा नो च मुसा भणिंसु, सकेन दारेन च अहेसुं तुट्ठा॥", | |
"ते", | |
"पक्कामि सत्थो अनुमोदमानो, यक्खिद्धिया अनुमतो पुनप्पुनं॥", | |
"गन्त्वान ते सिन्धुसोवीरभूमिं, धनत्थिका उद्दयं", | |
"यथापयोगा परिपुण्णलाभा, पच्चागमुं पाटलिपुत्तमक्खतं॥", | |
"गन्त्वान ते सङ्घरं सोत्थिवन्तो, पुत्तेहि दारेहि समङ्गिभूता।", | |
"आनन्दी वित्ता सुमना पतीता, अकंसु सेरीसमहं उळारं।", | |
"सेरीसकं ते परिवेणं मापयिंसु॥", | |
"एतादिसा", | |
"एकस्स अत्थाय उपासकस्स, सब्बेव सत्ता सुखिता", | |
"राजा", | |
"मोरियानं उपट्ठानं गन्त्वा, सुरट्ठं पुनरागमा॥", | |
"उण्हे मज्झन्हिके", | |
"अद्दस मग्गं रमणीयं, पेतानं तं वण्णुपथं", | |
"सारथिं", | |
"‘‘अयं मग्गो रमणीयो, खेमो सोवत्थिको सिवो।", | |
"इमिना सारथि याम, सुरट्ठानं सन्तिके इतो’’॥", | |
"तेन", | |
"उब्बिग्गरूपो पुरिसो, सोरट्ठं एतदब्रवि॥", | |
"‘‘कुम्मग्गं पटिपन्नम्हा, भिंसनं लोमहंसनं।", | |
"पुरतो दिस्सति मग्गो, पच्छतो च न दिस्सति॥", | |
"‘‘कुम्मग्गं पटिपन्नम्हा, यमपुरिसान सन्तिके।", | |
"अमानुसो वायति गन्धो, घोसो सुय्यति", | |
"संविग्गो राजा सोरट्ठो, सारथिं एतदब्रवि।", | |
"‘‘कुम्मग्गं पटिपन्नम्हा, भिंसनं लोमहंसनं।", | |
"पुरतो दिस्सति मग्गो, पच्छतो च न दिस्सति॥", | |
"‘‘कुम्मग्गं पटिपन्नम्हा, यमपुरिसान सन्तिके।", | |
"अमानुसो वायति गन्धो, घोसो सुय्यति दारुणो’’॥", | |
"हत्थिक्खन्धं समारुय्ह, ओलोकेन्तो चतुद्दिसं", | |
"अद्दस निग्रोधं रमणीयं", | |
"नीलब्भवण्णसदिसं, मेघवण्णसिरीनिभं॥", | |
"सारथिं", | |
"नीलब्भवण्णसदिसो, मेघवण्णसिरीनिभो’’॥", | |
"‘‘निग्रोधो सो महाराज, पादपो छायासम्पन्नो।", | |
"नीलब्भवण्णसदिसो", | |
"तेन पायासि सोरट्ठो, येन सो दिस्सते ब्रहा।", | |
"नीलब्भवण्णसदिसो, मेघवण्णसिरीनिभो॥", | |
"हत्थिक्खन्धतो ओरुय्ह, राजा रुक्खं उपागमि।", | |
"निसीदि रुक्खमूलस्मिं, सामच्चो सपरिज्जनो।", | |
"पूरं पानीयसरकं, पूवे वित्ते च अद्दस॥", | |
"पुरिसो", | |
"उपसङ्कमित्वा राजानं, सोरट्ठं एतदब्रवि॥", | |
"‘‘स्वागतं ते महाराज, अथो ते अदुरागतं।", | |
"पिवतु देवो पानीयं, पूवे खाद अरिन्दम’’॥", | |
"पिवित्वा राजा पानीयं, सामच्चो सपरिज्जनो।", | |
"पूवे खादित्वा पित्वा च, सोरट्ठो एतदब्रवि॥", | |
"‘‘देवता नुसि गन्धब्बो, अदु सक्को पुरिन्ददो।", | |
"अजानन्ता तं पुच्छाम, कथं जानेमु तं मय’’न्ति॥", | |
"‘‘नाम्हि देवो न गन्धब्बो, नापि", | |
"पेतो अहं महाराज, सुरट्ठा इध मागतो’’ति॥", | |
"‘‘किंसीलो किंसमाचारो, सुरट्ठस्मिं पुरे तुवं।", | |
"केन ते ब्रह्मचरियेन, आनुभावो अयं तवा’’ति॥", | |
"‘‘तं सुणोहि महाराज, अरिन्दम रट्ठवड्ढन।", | |
"अमच्चा पारिसज्जा च, ब्राह्मणो च पुरोहितो॥", | |
"‘‘सुरट्ठस्मिं अहं देव, पुरिसो पापचेतसो।", | |
"मिच्छादिट्ठि च दुस्सीलो, कदरियो परिभासको॥", | |
"‘‘‘ददन्तानं", | |
"अञ्ञेसं ददमानानं, अन्तरायकरो अहं॥", | |
"‘‘‘विपाको नत्थि दानस्स, संयमस्स कुतो फलं।", | |
"नत्थि आचरियो नाम, अदन्तं को दमेस्सति॥", | |
"‘‘‘समतुल्यानि", | |
"नत्थि बलं वीरियं वा, कुतो उट्ठानपोरिसं॥", | |
"‘‘‘नत्थि दानफलं नाम, न विसोधेति वेरिनं।", | |
"लद्धेय्यं लभते मच्चो, नियतिपरिणामजं", | |
"‘‘‘नत्थि", | |
"नत्थि दिन्नं नत्थि हुतं, सुनिहितं न विज्जति॥", | |
"‘‘‘योपि", | |
"न कोचि कञ्चि हनति, सत्तन्नं विवरमन्तरे॥", | |
"‘‘‘अच्छेज्जाभेज्जो हि", | |
"योजनानं सतं पञ्च, को जीवं छेत्तुमरहति॥", | |
"‘‘‘यथा सुत्तगुळे खित्ते, निब्बेठेन्तं पलायति।", | |
"एवमेव च सो जीवो, निब्बेठेन्तो पलायति॥", | |
"‘‘‘यथा गामतो निक्खम्म, अञ्ञं गामं पविसति।", | |
"एवमेव च सो जीवो, अञ्ञं बोन्दिं पविसति॥", | |
"‘‘‘यथा", | |
"एवमेव च सो जीवो, अञ्ञं बोन्दिं पविसति॥", | |
"‘‘‘चुल्लासीति", | |
"ये बाला ये च पण्डिता, संसारं खेपयित्वान।", | |
"दुक्खस्सन्तं करिस्सरे॥", | |
"‘‘‘मितानि सुखदुक्खानि, दोणेहि पिटकेहि च।", | |
"जिनो सब्बं पजानाति’, सम्मूळ्हा इतरा पजा॥", | |
"‘‘एवंदिट्ठि पुरे आसिं, सम्मूळ्हो मोहपारुतो।", | |
"मिच्छादिट्ठि च दुस्सीलो, कदरियो परिभासको॥", | |
"‘‘ओरं मे छहि मासेहि, कालङ्किरिया भविस्सति।", | |
"एकन्तकटुकं घोरं, निरयं पपतिस्सहं॥", | |
"", | |
"अयोपाकारपरियन्तं, अयसा पटिकुज्जितं॥", | |
"", | |
"समन्ता योजनसतं, फरित्वा तिट्ठति सब्बदा॥", | |
"‘‘वस्सानि", | |
"लक्खो एसो महाराज, सतभागवस्सकोटियो॥", | |
"‘‘कोटिसतसहस्सानि", | |
"मिच्छादिट्ठी च दुस्सीला, ये च अरियूपवादिनो॥", | |
"‘‘तत्थाहं दीघमद्धानं, दुक्खं वेदिस्स वेदनं।", | |
"फलं पापस्स कम्मस्स, तस्मा सोचामहं भुसं॥", | |
"‘‘तं", | |
"धीता मय्हं महाराज, उत्तरा भद्दमत्थु ते॥", | |
"‘‘करोति भद्दकं कम्मं, सीलेसुपोसथे रता।", | |
"सञ्ञता संविभागी च, वदञ्ञू वीतमच्छरा॥", | |
"‘‘अखण्डकारी सिक्खाय, सुण्हा परकुलेसु च।", | |
"उपासिका सक्यमुनिनो, सम्बुद्धस्स सिरीमतो॥", | |
"‘‘भिक्खु च सीलसम्पन्नो, गामं पिण्डाय पाविसि।", | |
"ओक्खित्तचक्खु सतिमा, गुत्तद्वारो सुसंवुतो॥", | |
"‘‘सपदानं चरमानो, अगमा तं निवेसनं।", | |
"‘तमद्दस महाराज, उत्तरा भद्दमत्थु ते’॥", | |
"‘‘पूरं पानीयसरकं, पूवे वित्ते च सा अदा।", | |
"‘पिता मे कालङ्कतो, भन्ते तस्सेतं उपकप्पतु’॥", | |
"‘‘समनन्तरानुद्दिट्ठे, विपाको उदपज्जथ।", | |
"भुञ्जामि कामकामीहं, राजा वेस्सवणो यथा॥", | |
"‘‘तं सुणोहि महाराज, अरिन्दम रट्ठवड्ढन।", | |
"सदेवकस्स लोकस्स, बुद्धो अग्गो पवुच्चति।", | |
"तं बुद्धं सरणं गच्छ, सपुत्तदारो अरिन्दम॥", | |
"‘‘अट्ठङ्गिकेन मग्गेन, फुसन्ति अमतं पदं।", | |
"तं धम्मं सरणं गच्छ, सपुत्तदारो अरिन्दम॥", | |
"‘‘चत्तारो", | |
"एस सङ्घो उजुभूतो, पञ्ञासीलसमाहितो।", | |
"तं सङ्घं सरणं गच्छ, सपुत्तदारो अरिन्दम॥", | |
"‘‘पाणातिपाता", | |
"अमज्जपो मा च मुसा अभाणी, सकेन दारेन च होहि तुट्ठो’’ति॥", | |
"‘‘अत्थकामोसि मे यक्ख, हितकामोसि देवते।", | |
"करोमि तुय्हं वचनं, त्वंसि आचरियो मम॥", | |
"‘‘उपेमि सरणं बुद्धं, धम्मञ्चापि अनुत्तरं।", | |
"सङ्घञ्च नरदेवस्स, गच्छामि सरणं अहं॥", | |
"‘‘पाणातिपाता विरमामि खिप्पं, लोके अदिन्नं परिवज्जयामि।", | |
"अमज्जपो नो च मुसा भणामि, सकेन दारेन च होमि तुट्ठो॥", | |
"‘‘ओफुणामि", | |
"वमामि पापिकं दिट्ठिं, बुद्धानं सासने रतो’’॥", | |
"इदं वत्वान सोरट्ठो, विरमित्वा पापदस्सना", | |
"नमो", | |
"", | |
"नेस्साम तं यत्थ थुनन्ति दुग्गता, समप्पिता", | |
"इच्चेव", | |
"पच्चेकबाहासु गहेत्वा रेवतं, पक्कामयुं देवगणस्स सन्तिके॥", | |
"‘‘आदिच्चवण्णं", | |
"कस्सेतमाकिण्णजनं विमानं, सुरियस्स रंसीरिव जोतमानं॥", | |
"‘‘नारीगणा चन्दनसारलित्ता", | |
"तं दिस्सति सुरियसमानवण्णं, को मोदति सग्गपत्तो विमाने’’ति॥", | |
"‘‘बाराणसियं नन्दियो नामासि, उपासको अमच्छरी दानपति वदञ्ञू।", | |
"तस्सेतमाकिण्णजनं विमानं, सुरियस्स रंसीरिव जोतमानं॥", | |
"‘‘नारीगणा चन्दनसारलित्ता, उभतो विमानं उपसोभयन्ति।", | |
"तं दिस्सति सुरियसमानवण्णं, सो मोदति सग्गपत्तो विमाने’’ति॥", | |
"‘‘नन्दियस्साहं", | |
"भत्तु विमाने रमिस्सामि दानहं, न पत्थये निरयदस्सनाया’’ति॥", | |
"‘‘एसो ते निरयो सुपापधम्मे, पुञ्ञं तया अकतं जीवलोके।", | |
"न हि मच्छरी रोसको पापधम्मो, सग्गूपगानं लभति सहब्यत’’न्ति॥", | |
"‘‘किं नु गूथञ्च मुत्तञ्च, असुची पटिदिस्सति।", | |
"दुग्गन्धं किमिदं मीळ्हं, किमेतं उपवायती’’ति॥", | |
"‘‘एस संसवको नाम, गम्भीरो सतपोरिसो।", | |
"यत्थ वस्ससहस्सानि, तुवं पच्चसि रेवते’’ति॥", | |
"‘‘किं", | |
"केन संसवको लद्धो, गम्भीरो सतपोरिसो’’ति॥", | |
"‘‘समणे ब्राह्मणे चापि, अञ्ञे वापि वनिब्बके।", | |
"मुसावादेन वञ्चेसि, तं पापं पकतं तया॥", | |
"‘‘तेन संसवको लद्धो, गम्भीरो सतपोरिसो।", | |
"तत्थ वस्ससहस्सानि, तुवं पच्चसि रेवते॥", | |
"‘‘हत्थेपि छिन्दन्ति अथोपि पादे, कण्णेपि छिन्दन्ति अथोपि नासं।", | |
"अथोपि काकोळगणा समेच्च, सङ्गम्म खादन्ति विफन्दमान’’न्ति॥", | |
"‘‘साधु खो मं पटिनेथ, काहामि कुसलं बहुं।", | |
"दानेन समचरियाय, संयमेन दमेन च।", | |
"यं कत्वा सुखिता होन्ति, न च पच्छानुतप्परे’’ति॥", | |
"‘‘पुरे तुवं पमज्जित्वा, इदानि परिदेवसि।", | |
"सयं कतानं कम्मानं, विपाकं अनुभोस्ससी’’ति॥", | |
"‘‘को देवलोकतो मनुस्सलोकं, गन्त्वान पुट्ठो मे एवं वदेय्य।", | |
"‘निक्खित्तदण्डेसु ददाथ दानं, अच्छादनं सेय्य", | |
"न हि मच्छरी रोसको पापधम्मो, सग्गूपगानं लभति सहब्यतं’॥", | |
"‘‘साहं नून इतो गन्त्वा, योनिं लद्धान मानुसिं।", | |
"वदञ्ञू सीलसम्पन्ना, काहामि कुसलं बहुं।", | |
"दानेन समचरियाय, संयमेन दमेन च॥", | |
"‘‘आरामानि च रोपिस्सं, दुग्गे सङ्कमनानि च।", | |
"पपञ्च उदपानञ्च, विप्पसन्नेन चेतसा॥", | |
"‘‘चातुद्दसिं", | |
"पाटिहारियपक्खञ्च, अट्ठङ्गसुसमागतं॥", | |
"‘‘उपोसथं उपवसिस्सं, सदा सीलेसु संवुता।", | |
"न च दाने पमज्जिस्सं, सामं दिट्ठमिदं मया’’ति॥", | |
"इच्चेवं", | |
"खिपिंसु निरये घोरे, उद्धंपादं अवंसिरं॥", | |
"‘‘अहं पुरे मच्छरिनी अहोसिं, परिभासिका समणब्राह्मणानं।", | |
"वितथेन च सामिकं वञ्चयित्वा, पच्चामहं निरये घोररूपे’’ति॥", | |
"‘‘इदं", | |
"तं दानि मे न", | |
"‘‘हञ्ञामि", | |
"स्वाहं छिन्नथामो कपणो लालपामि, किस्स", | |
"‘‘विघातो चाहं परिपतामि छमायं, परिवत्तामि वारिचरोव घम्मे।", | |
"रुदतो च मे", | |
"‘‘छातो", | |
"पुच्छामि तं एतमत्थं भदन्ते, कथं नु उच्छुपरिभोगं लभेय्य’’न्ति॥", | |
"‘‘पुरे तुवं कम्ममकासि अत्तना, मनुस्सभूतो पुरिमाय जातिया।", | |
"अहञ्च तं एतमत्थं वदामि, सुत्वान त्वं एतमत्थं विजान॥", | |
"‘‘उच्छुं", | |
"सो च तं पच्चासन्तो कथेसि, तस्स तुवं न किञ्चि आलपित्थ॥", | |
"‘‘सो च तं अभणन्तं अयाचि, ‘देहय्य उच्छु’न्ति च तं अवोच।", | |
"तस्स तुवं पिट्ठितो उच्छुं अदासि, तस्सेतं कम्मस्स अयं विपाको॥", | |
"‘‘इङ्घ त्वं गन्त्वान पिट्ठितो गण्हेय्यासि", | |
"तेनेव त्वं अत्तमनो भविस्ससि, हट्ठो चुदग्गो च पमोदितो चा’’ति॥", | |
"गन्त्वान", | |
"तेनेव सो अत्तमनो अहोसि, हट्ठो चुदग्गो च पमोदितो चाति॥", | |
"‘‘सावत्थि", | |
"तत्थ आसुं द्वे कुमारा, राजपुत्ताति मे सुतं॥", | |
"‘‘सम्मत्ता", | |
"पच्चुप्पन्नसुखे गिद्धा, न ते पस्सिंसुनागतं॥", | |
"‘‘ते चुता च मनुस्सत्ता, परलोकं इतो गता।", | |
"तेध घोसेन्त्यदिस्सन्ता, पुब्बे दुक्कटमत्तनो॥", | |
"‘‘‘बहूसु वत", | |
"नासक्खिम्हा च अत्तानं, परित्तं कातुं सुखावहं॥", | |
"‘‘‘किं ततो पापकं अस्स, यं नो राजकुला चुता।", | |
"उपपन्ना पेत्तिविसयं, खुप्पिपाससमप्पिता", | |
"‘‘सामिनो इध हुत्वान, होन्ति असामिनो तहिं।", | |
"भमन्ति", | |
"‘‘एतमादीनवं ञत्वा, इस्सरमदसम्भवं।", | |
"पहाय", | |
"कायस्स भेदा सप्पञ्ञो, सग्गं सो उपपज्जती’’ति॥", | |
"पुब्बे", | |
"रूपे सद्दे रसे गन्धे, फोट्ठब्बे च मनोरमे॥", | |
"नच्चं गीतं रतिं खिड्डं, अनुभुत्वा अनप्पकं।", | |
"उय्याने परिचरित्वा, पविसन्तो गिरिब्बजं॥", | |
"इसिं सुनेत्त", | |
"अप्पिच्छं हिरिसम्पन्नं, उञ्छे पत्तगते रतं॥", | |
"हत्थिक्खन्धतो ओरुय्ह, लद्धा भन्तेति चाब्रवि।", | |
"तस्स पत्तं गहेत्वान, उच्चं पग्गय्ह खत्तियो॥", | |
"थण्डिले", | |
"‘‘रञ्ञो कितवस्साहं पुत्तो, किं मं भिक्खु करिस्ससि’’॥", | |
"तस्स", | |
"यं राजपुत्तो वेदेसि, निरयम्हि समप्पितो॥", | |
"छळेव चतुरासीति, वस्सानि नवुतानि च।", | |
"भुसं दुक्खं निगच्छित्थो, निरये कतकिब्बिसो॥", | |
"उत्तानोपि च पच्चित्थ, निकुज्जो वामदक्खिणो।", | |
"उद्धंपादो ठितो चेव, चिरं बालो अपच्चथ॥", | |
"बहूनि", | |
"भुसं दुक्खं निगच्छित्थो, निरये कतकिब्बिसो॥", | |
"एतादिसं खो कटुकं, अप्पदुट्ठप्पदोसिनं।", | |
"पच्चन्ति पापकम्मन्ता, इसिमासज्ज सुब्बतं॥", | |
"सो तत्थ बहुवस्सानि, वेदयित्वा बहुं दुखं।", | |
"खुप्पिपासहतो नाम", | |
"एतमादीनवं ञत्वा", | |
"पहाय इस्सरमदं, निवातमनुवत्तये॥", | |
"दिट्ठेव धम्मे पासंसो, यो बुद्धेसु सगारवो।", | |
"कायस्स भेदा सप्पञ्ञो, सग्गं सो उपपज्जतीति॥", | |
"‘‘गूथकूपतो", | |
"निस्संसयं पापकम्मन्तो, किं नु सद्दहसे तुव’’न्ति॥", | |
"‘‘अहं भदन्ते पेतोम्हि, दुग्गतो यमलोकिको।", | |
"पापकम्मं करित्वान, पेतलोकं इतो गतो’’॥", | |
"‘‘किं नु कायेन वाचाय, मनसा दुक्कटं कतं।", | |
"किस्स कम्मविपाकेन, इदं दुक्खं निगच्छसी’’ति॥", | |
"‘‘अहु", | |
"अज्झोसितो मय्हं घरे, कदरियो परिभासको॥", | |
"‘‘तस्साहं", | |
"तस्स कम्मविपाकेन, पेतलोकं इतो गतो’’ति॥", | |
"‘‘अमित्तो मित्तवण्णेन, यो ते आसि कुलूपको।", | |
"कायस्स भेदा दुप्पञ्ञो, किं नु पेच्च गतिं गतो’’ति॥", | |
"‘‘तस्सेवाहं पापकम्मस्स, सीसे तिट्ठामि मत्थके।", | |
"सो च परविसयं पत्तो, ममेव परिचारको॥", | |
"‘‘यं भदन्ते हदन्तञ्ञे, एतं मे होति भोजनं।", | |
"अहञ्च खो यं हदामि, एतं सो उपजीवती’’ति॥", | |
"‘‘गूथकूपतो", | |
"निस्संसयं पापकम्मन्ता, किं नु सद्दहसे तुव’’न्ति॥", | |
"‘‘अहं भदन्ते पेतीम्हि, दुग्गता यमलोकिका।", | |
"पापकम्मं करित्वान, पेतलोकं इतो गता’’ति॥", | |
"‘‘किं नु कायेन वाचाय, मनसा दुक्कटं कतं।", | |
"किस्स कम्मविपाकेन, इदं दुक्खं निगच्छसी’’ति॥", | |
"‘‘अहु आवासिको मय्हं, इस्सुकी कुलमच्छरी।", | |
"अज्झोसितो मय्हं घरे, कदरियो परिभासको॥", | |
"‘‘तस्साहं वचनं सुत्वा, भिक्खवो परिभासिसं।", | |
"तस्स कम्मविपाकेन, पेतलोकं इतो गता’’ति॥", | |
"‘‘अमित्तो", | |
"कायस्स भेदा दुप्पञ्ञो, किं नु पेच्च गतिं गतो’’ति॥", | |
"‘‘तस्सेवाहं पापकम्मस्स, सीसे तिट्ठामि मत्थके।", | |
"सो च परविसयं पत्तो, ममेव परिचारको॥", | |
"‘‘यं", | |
"अहञ्च खो यं हदामि, एतं सो उपजीवती’’ति॥", | |
"‘‘नग्गा", | |
"उप्फासुलिका", | |
"‘‘मयं भदन्ते पेताम्हा, दुग्गता यमलोकिका।", | |
"पापकम्मं करित्वान, पेतलोकं इतो गता’’ति॥", | |
"‘‘किं", | |
"किस्स कम्मविपाकेन, पेतलोकं इतो गता’’ति॥", | |
"‘‘अनावटेसु तित्थेसु, विचिनिम्हद्धमासकं।", | |
"सन्तेसु देय्यधम्मेसु, दीपं नाकम्ह अत्तनो॥", | |
"‘‘नदिं उपेम तसिता, रित्तका परिवत्तति।", | |
"छायं उपेम उण्हेसु, आतपो परिवत्तति॥", | |
"‘‘अग्गिवण्णो च नो वातो, डहन्तो उपवायति।", | |
"एतञ्च भन्ते अरहाम, अञ्ञञ्च पापकं ततो॥", | |
"‘‘अपि योजनानि", | |
"अलद्धाव", | |
"‘‘छाता पमुच्छिता भन्ता, भूमियं पटिसुम्भिता।", | |
"उत्ताना पटिकिराम, अवकुज्जा पतामसे॥", | |
"‘‘ते च तत्थेव पतिता", | |
"उरं सीसञ्च घट्टेम, अहो नो अप्पपुञ्ञता॥", | |
"‘‘एतञ्च भन्ते अरहाम, अञ्ञञ्च पापकं ततो।", | |
"सन्तेसु देय्यधम्मेसु, दीपं नाकम्ह अत्तनो॥", | |
"‘‘ते हि नून इतो गन्त्वा, योनिं लद्धान मानुसिं।", | |
"वदञ्ञू सीलसम्पन्ना, काहाम कुसलं बहु’’न्ति॥", | |
"‘‘दिट्ठा", | |
"पेता असुरा अथवापि मानुसा देवा। सयमद्दस कम्मविपाकमत्तनो,", | |
"नेस्सामि तं पाटलिपुत्तमक्खतं। तत्थ गन्त्वा कुसलं करोहि कम्मं’’॥", | |
"‘‘अत्थकामोसि मे यक्ख, हितकामोसि देवते।", | |
"करोमि तुय्हं वचनं, त्वंसि आचरियो मम॥", | |
"‘‘दिट्ठा मया निरया तिरच्छानयोनि, पेता असुरा अथवापि मानुसा देवा।", | |
"सयमद्दसं", | |
"‘‘अयञ्च ते पोक्खरणी सुरम्मा, समा सुतित्था च महोदका च।", | |
"सुपुप्फिता भमरगणानुकिण्णा, कथं तया लद्धा अयं मनुञ्ञा॥", | |
"‘‘इदञ्च ते अम्बवनं सुरम्मं, सब्बोतुकं धारयते", | |
"सुपुप्फितं भमरगणानुकिण्णं, कथं तया लद्धमिदं विमानं’’॥", | |
"‘‘अम्बपक्कं दकं", | |
"धीताय दिन्नदानेन, तेन मे इध लब्भति’’॥", | |
"‘‘सन्दिट्ठिकं", | |
"दासी अहं अय्यकुलेसु हुत्वा, सुणिसा होमि अगारस्स इस्सरा’’ति॥", | |
"‘‘यं", | |
"उभयं तेन दानेन", | |
"‘‘मयं", | |
"ते अञ्ञे परिभुञ्जन्ति, मयं दुक्खस्स भागिनी’’ति॥", | |
"", | |
"निरये पच्चमानानं, कदा अन्तो भविस्सति’’॥", | |
"", | |
"तथा हि पकतं पापं, तुय्हं मय्हञ्च मारिसा", | |
"", | |
"सन्तेसु देय्यधम्मेसु, दीपं नाकम्ह अत्तनो॥", | |
"", | |
"वदञ्ञू सीलसम्पन्नो, काहामि कुसलं बहु’’न्ति॥", | |
"‘‘किं", | |
"निस्संसयं पापकम्मन्तो", | |
"‘‘अहं", | |
"पापकम्मं करित्वान, पेतलोकं इतो गतो॥", | |
"‘‘सट्ठि कूटसहस्सानि, परिपुण्णानि सब्बसो।", | |
"सीसे मय्हं निपतन्ति, ते भिन्दन्ति च मत्थक’’न्ति॥", | |
"‘‘किं नु कायेन वाचाय, मनसा दुक्कटं कतं।", | |
"किस्स कम्मविपाकेन, इदं दुक्खं निगच्छसि॥", | |
"‘‘सट्ठि", | |
"सीसे तुय्हं निपतन्ति, ते भिन्दन्ति च मत्थक’’न्ति॥", | |
"‘‘अथद्दसासिं सम्बुद्धं, सुनेत्तं भावितिन्द्रियं।", | |
"निसिन्नं रुक्खमूलस्मिं, झायन्तं अकुतोभयं॥", | |
"‘‘सालित्तकप्पहारेन, भिन्दिस्सं तस्स मत्थकं।", | |
"तस्स कम्मविपाकेन, इदं दुक्खं निगच्छिसं॥", | |
"‘‘सट्ठि कूटसहस्सानि, परिपुण्णानि सब्बसो।", | |
"सीसे मय्हं निपतन्ति, ते भिन्दन्ति च", | |
"‘‘धम्मेन ते कापुरिस, सट्ठिकूटसहस्सानि, परिपुण्णानि सब्बसो।", | |
"सीसे तुय्हं निपतन्ति, ते भिन्दन्ति च मत्थक’’न्ति॥", | |
"अम्बसक्करो", | |
"द्वे कुमारा दुवे गूथा, गणपाटलिअम्बवनं॥", | |
"अक्खरुक्खभोगसंहरा, सेट्ठिपुत्तसट्ठिकूटा।", | |
"इति सोळसवत्थूनि, वग्गो तेन पवुच्चति॥", | |
"उरगो उपरिवग्गो, चूळमहाति चतुधा।", | |
"वत्थूनि एकपञ्ञासं, चतुधा भाणवारतो॥" | |
] | |
} |