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Sleeping
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{ | |
"title": "खग्गविसाणसुत्तनिद्देसो", | |
"book_name": "खग्गविसाणसुत्तो", | |
"chapter": "वत्थुगाथा", | |
"gathas": [ | |
"कोसलानं", | |
"आकिञ्चञ्ञं पत्थयानो, ब्राह्मणो मन्तपारगू॥", | |
"सो अस्सकस्स विसये, मळकस्स", | |
"वसि गोधावरीकूले, उञ्छेन च फलेन च॥", | |
"तस्सेव", | |
"ततो जातेन आयेन, महायञ्ञमकप्पयि॥", | |
"महायञ्ञं यजित्वान, पुन पाविसि अस्समं।", | |
"तस्मिं पटिपविट्ठम्हि, अञ्ञो आगञ्छि ब्राह्मणो॥", | |
"उग्घट्टपादो", | |
"सो", | |
"तमेनं बावरी दिस्वा, आसनेन निमन्तयि।", | |
"सुखञ्च कुसलं पुच्छि, इदं वचनमब्रवि", | |
"‘‘यं खो मम देय्यधम्मं, सब्बं विसज्जितं मया।", | |
"अनुजानाहि मे ब्रह्मे, नत्थि पञ्चसतानि मे’’॥", | |
"‘‘सचे", | |
"सत्तमे दिवसे तुय्हं, मुद्धा फलतु सत्तधा’’॥", | |
"अभिसङ्खरित्वा कुहको, भेरवं सो अकित्तयि।", | |
"तस्स तं वचनं सुत्वा, बावरी दुक्खितो अहु॥", | |
"उस्सुस्सति अनाहारो, सोकसल्लसमप्पितो।", | |
"अथोपि एवं चित्तस्स, झाने न रमती मनो॥", | |
"उत्रस्तं दुक्खितं दिस्वा, देवता अत्थकामिनी।", | |
"बावरिं उपसङ्कम्म, इदं वचनमब्रवि॥", | |
"‘‘न सो मुद्धं पजानाति, कुहको सो धनत्थिको।", | |
"मुद्धनि मुद्धपाते", | |
"‘‘भोती", | |
"मुद्धं मुद्धाधिपातञ्च", | |
"‘‘अहम्पेतं न जानामि, ञाणं मेत्थ न विज्जति।", | |
"मुद्धनि मुद्धाधिपाते च, जिनानञ्हेत्थ", | |
"‘‘अथ", | |
"मुद्धं मुद्धाधिपातञ्च, तं मे अक्खाहि देवते’’॥", | |
"‘‘पुरा कपिलवत्थुम्हा, निक्खन्तो लोकनायको।", | |
"अपच्चो ओक्काकराजस्स, सक्यपुत्तो पभङ्करो॥", | |
"‘‘सो हि ब्राह्मण सम्बुद्धो, सब्बधम्मान पारगू।", | |
"सब्बाभिञ्ञाबलप्पत्तो", | |
"सब्बकम्मक्खयं पत्तो, विमुत्तो उपधिक्खये॥", | |
"‘‘बुद्धो सो भगवा लोके, धम्मं देसेति चक्खुमा।", | |
"तं त्वं गन्त्वान पुच्छस्सु, सो ते तं ब्याकरिस्सति’’॥", | |
"सम्बुद्धोति", | |
"सोकस्स तनुको आसि, पीतिञ्च विपुलं लभि॥", | |
"सो", | |
"‘‘कतमम्हि गामे निगमम्हि वा पन, कतमम्हि वा जनपदे लोकनाथो।", | |
"यत्थ गन्त्वान पस्सेमु, सम्बुद्धं द्विपदुत्तमं’’॥", | |
"‘‘सावत्थियं कोसलमन्दिरे जिनो, पहूतपञ्ञो वरभूरिमेधसो।", | |
"सो सक्यपुत्तो विधुरो अनासवो, मुद्धाधिपातस्स विदू नरासभो’’॥", | |
"ततो", | |
"‘‘एथ माणवा अक्खिस्सं, सुणाथ वचनं मम॥", | |
"‘‘यस्सेसो दुल्लभो लोके, पातुभावो अभिण्हसो।", | |
"स्वाज्ज लोकम्हि उप्पन्नो, सम्बुद्धो इति विस्सुतो।", | |
"खिप्पं गन्त्वान सावत्थिं, पस्सव्हो द्विपदुत्तमं’’॥", | |
"‘‘कथं चरहि जानेमु, दिस्वा बुद्धोति ब्राह्मण।", | |
"अजानतं नो पब्रूहि, यथा जानेमु तं मयं’’॥", | |
"‘‘आगतानि हि मन्तेसु, महापुरिसलक्खणा।", | |
"द्वत्तिंसानि च ब्याक्खाता, समत्ता अनुपुब्बसो॥", | |
"‘‘यस्सेते होन्ति गत्तेसु, महापुरिसलक्खणा।", | |
"द्वेयेव तस्स गतियो, ततिया हि न विज्जति॥", | |
"‘‘सचे अगारं आवसति, विजेय्य पथविं इमं।", | |
"अदण्डेन असत्थेन, धम्मेन अनुसासति॥", | |
"‘‘सचे च सो पब्बजति, अगारा अनगारियं।", | |
"विवट्टच्छदो", | |
"‘‘जातिं गोत्तञ्च लक्खणं, मन्ते सिस्से पुनापरे।", | |
"मुद्धं मुद्धाधिपातञ्च, मनसायेव पुच्छथ॥", | |
"‘‘अनावरणदस्सावी, यदि बुद्धो भविस्सति।", | |
"मनसा पुच्छिते पञ्हे, वाचाय विसज्जिस्सति’’", | |
"बावरिस्स", | |
"अजितो तिस्समेत्तेय्यो, पुण्णको अथ मेत्तगू॥", | |
"धोतको उपसीवो च, नन्दो च अथ हेमको।", | |
"तोदेय्य-कप्पा दुभयो, जतुकण्णी च पण्डितो॥", | |
"भद्रावुधो", | |
"मोघराजा च मेधावी, पिङ्गियो च महाइसि॥", | |
"पच्चेकगणिनो सब्बे, सब्बलोकस्स विस्सुता।", | |
"झायी झानरता धीरा, पुब्बवासनवासिता॥", | |
"बावरिं अभिवादेत्वा, कत्वा च नं पदक्खिणं।", | |
"जटाजिनधरा सब्बे, पक्कामुं उत्तरामुखा॥", | |
"मळकस्स पतिट्ठानं, पुरमाहिस्सतिं", | |
"उज्जेनिञ्चापि गोनद्धं, वेदिसं वनसव्हयं॥", | |
"कोसम्बिञ्चापि साकेतं, सावत्थिञ्च पुरुत्तमं।", | |
"सेतब्यं कपिलवत्थुं, कुसिनारञ्च मन्दिरं॥", | |
"पावञ्च भोगनगरं, वेसालिं मागधं पुरं।", | |
"पासाणकं चेतियञ्च, रमणीयं मनोरमं॥", | |
"तसितोवुदकं सीतं, महालाभंव वाणिजो।", | |
"छायं घम्माभितत्तोव तुरिता पब्बतमारुहुं॥", | |
"भगवा तम्हि समये, भिक्खुसङ्घपुरक्खतो।", | |
"भिक्खूनं धम्मं देसेति, सीहोव नदती वने॥", | |
"अजितो", | |
"चन्दं यथा पन्नरसे, परिपूरं", | |
"अथस्स गत्ते दिस्वान, परिपूरञ्च ब्यञ्जनं।", | |
"एकमन्तं ठितो हट्ठो, मनोपञ्हे अपुच्छथ॥", | |
"‘‘आदिस्स जम्मनं ब्रूहि, गोत्तं ब्रूहि सलक्खणं।", | |
"मन्तेसु पारमिं ब्रूहि, कति वाचेति ब्राह्मणो’’॥", | |
"‘‘वीसं", | |
"तीणिस्स लक्खणा गत्ते, तिण्णं वेदान पारगू॥", | |
"‘‘लक्खणे इतिहासे च, सनिघण्डुसकेटुभे।", | |
"पञ्चसतानि वाचेति, सधम्मे पारमिं गतो’’॥", | |
"‘‘लक्खणानं पविचयं, बावरिस्स नरुत्तम।", | |
"तण्हच्छिद", | |
"‘‘मुखं जिव्हाय छादेति, उण्णस्स भमुकन्तरे।", | |
"कोसोहितं वत्थगुय्हं, एवं जानाहि माणव’’॥", | |
"पुच्छञ्हि", | |
"विचिन्तेति जनो सब्बो, वेदजातो कतञ्जली॥", | |
"‘‘को नु देवो वा ब्रह्मा वा, इन्दो वापि सुजम्पति।", | |
"मनसा पुच्छिते पञ्हे, कमेतं पटिभासति॥", | |
"‘‘मुद्धं मुद्धाधिपातञ्च, बावरी परिपुच्छति।", | |
"तं ब्याकरोहि भगवा, कङ्खं विनय नो इसे’’॥", | |
"‘‘अविज्जा", | |
"सद्धासतिसमाधीहि, छन्दवीरियेन संयुता’’॥", | |
"ततो वेदेन महता, सन्थम्भेत्वान माणवो।", | |
"एकंसं अजिनं कत्वा, पादेसु सिरसा पति॥", | |
"‘‘बावरी ब्राह्मणो भोतो, सह सिस्सेहि मारिस।", | |
"उदग्गचित्तो सुमनो, पादे वन्दति चक्खुम’’॥", | |
"‘‘सुखितो बावरी होतु, सह सिस्सेहि ब्राह्मणो।", | |
"त्वञ्चापि सुखितो होहि, चिरं जीवाहि माणव॥", | |
"‘‘बावरिस्स च तुय्हं वा, सब्बेसं सब्बसंसयं।", | |
"कतावकासा पुच्छव्हो, यं किञ्चि मनसिच्छथ’’॥", | |
"सम्बुद्धेन कतोकासो, निसीदित्वान पञ्जली।", | |
"अजितो पठमं पञ्हं, तत्थ पुच्छि तथागतं॥", | |
"‘‘केनस्सु", | |
"केनस्सु नप्पकासति।", | |
"किस्साभिलेपनं ब्रूसि, किंसु तस्स महब्भयं’’॥", | |
"‘‘अविज्जाय", | |
"वेविच्छा पमादा नप्पकासति।", | |
"जप्पाभिलेपनं ब्रूमि, दुक्खमस्स महब्भयं’’॥", | |
"‘‘सवन्ति सब्बधि सोता, [इच्चायस्मा अजितो]", | |
"सोतानं किं निवारणं।", | |
"सोतानं संवरं ब्रूहि, केन सोता पिधिय्यरे’’॥", | |
"‘‘यानि सोतानि लोकस्मिं, [अजिताति भगवा]", | |
"सति तेसं निवारणं।", | |
"सोतानं संवरं ब्रूमि, पञ्ञायेते पिधिय्यरे’’॥", | |
"‘‘पञ्ञा चेव सति चापि", | |
"नामरूपञ्च मारिस।", | |
"एतं मे पुट्ठो पब्रूहि, कत्थेतं उपरुज्झति’’॥", | |
"‘‘यमेतं पञ्हं अपुच्छि, अजित तं वदामि ते।", | |
"यत्थ नामञ्च रूपञ्च, असेसं उपरुज्झति।", | |
"विञ्ञाणस्स निरोधेन, एत्थेतं उपरुज्झति’’॥", | |
"‘‘ये च सङ्खातधम्मासे, ये च सेखा", | |
"तेसं मे निपको इरियं, पुट्ठो पब्रूहि मारिस’’॥", | |
"‘‘कामेसु नाभिगिज्झेय्य, मनसानाविलो सिया।", | |
"कुसलो सब्बधम्मानं, सतो भिक्खु परिब्बजे’’ति॥", | |
"‘‘कोध", | |
"कस्स नो सन्ति इञ्जिता।", | |
"को उभन्तमभिञ्ञाय, मज्झे मन्ता न लिप्पति", | |
"कं ब्रूसि महापुरिसोति, को इध सिब्बिनिमच्चगा’’ति", | |
"‘‘कामेसु", | |
"वीततण्हो सदा सतो।", | |
"सङ्खाय निब्बुतो भिक्खु, तस्स नो सन्ति इञ्जिता॥", | |
"‘‘सो उभन्तमभिञ्ञाय, मज्झे मन्ता न लिप्पति।", | |
"तं ब्रूमि महापुरिसोति, सो इध सिब्बिनिमच्चगा’’ति॥", | |
"‘‘अनेजं मूलदस्साविं, [इच्चायस्मा पुण्णको]", | |
"अत्थि पञ्हेन आगमं।", | |
"किं निस्सिता इसयो मनुजा, खत्तिया ब्राह्मणा देवतानं।", | |
"यञ्ञमकप्पयिंसु पुथूध लोके, पुच्छामि तं भगवा ब्रूहि मेतं’’॥", | |
"‘‘ये केचिमे इसयो मनुजा, [पुण्णकाति भगवा]", | |
"खत्तिया ब्राह्मणा देवतानं।", | |
"यञ्ञमकप्पयिंसु पुथूध लोके, आसीसमाना पुण्णक इत्थत्तं।", | |
"जरं सिता यञ्ञमकप्पयिंसु’’॥", | |
"‘‘ये", | |
"खत्तिया ब्राह्मणा देवतानं।", | |
"यञ्ञमकप्पयिंसु पुथूध लोके, कच्चिसु ते भगवा यञ्ञपथे अप्पमत्ता।", | |
"अतारुं जातिञ्च जरञ्च मारिस, पुच्छामि तं भगवा ब्रूहि मेतं’’॥", | |
"‘‘आसीसन्ति थोमयन्ति, अभिजप्पन्ति जुहन्ति। [पुण्णकाति भगवा]", | |
"कामाभिजप्पन्ति पटिच्च लाभं, ते याजयोगा भवरागरत्ता।", | |
"नातरिंसु जातिजरन्ति ब्रूमि’’॥", | |
"‘‘ते चे नातरिंसु याजयोगा, [इच्चायस्मा पुण्णको]", | |
"यञ्ञेहि जातिञ्च जरञ्च मारिस।", | |
"अथ को चरहि देवमनुस्सलोके, अतारि जातिञ्च जरञ्च मारिस।", | |
"पुच्छामि तं भगवा ब्रूहि मेतं’’॥", | |
"‘‘सङ्खाय", | |
"यस्सिञ्जितं नत्थि कुहिञ्चि लोके।", | |
"सन्तो विधूमो अनीघो निरासो, अतारि सो जातिजरन्ति ब्रूमी’’ति॥", | |
"‘‘पुच्छामि तं भगवा ब्रूहि मेतं, [इच्चायस्मा मेत्तगू]", | |
"मञ्ञामि तं वेदगुं भावितत्तं।", | |
"कुतो नु दुक्खा समुदागता इमे, ये केचि लोकस्मिमनेकरूपा’’॥", | |
"‘‘दुक्खस्स", | |
"तं ते पवक्खामि यथा पजानं।", | |
"उपधिनिदाना पभवन्ति दुक्खा, ये केचि लोकस्मिमनेकरूपा॥", | |
"‘‘यो वे अविद्वा उपधिं करोति, पुनप्पुनं दुक्खमुपेति मन्दो।", | |
"तस्मा पजानं उपधिं न कयिरा, दुक्खस्स जातिप्पभवानुपस्सी’’॥", | |
"‘‘यं तं अपुच्छिम्ह अकित्तयी नो, अञ्ञं तं पुच्छाम तदिङ्घ ब्रूहि।", | |
"‘कथं नु धीरा वितरन्ति ओघं, जातिं जरं सोकपरिद्दवञ्च’।", | |
"तं मे मुनि साधु वियाकरोहि, तथा हि ते विदितो एस धम्मो’’॥", | |
"‘‘कित्तयिस्सामि ते धम्मं, [मेत्तगूति भगवा]", | |
"दिट्ठे धम्मे अनीतिहं।", | |
"यं विदित्वा सतो चरं, तरे लोके विसत्तिकं’’॥", | |
"‘‘तञ्चाहं अभिनन्दामि, महेसि धम्ममुत्तमं।", | |
"यं विदित्वा सतो चरं, तरे लोके विसत्तिकं’’॥", | |
"‘‘यं किञ्चि सम्पजानासि, [मेत्तगूति भगवा]", | |
"उद्धं अधो तिरियञ्चापि मज्झे।", | |
"एतेसु नन्दिञ्च निवेसनञ्च, पनुज्ज विञ्ञाणं भवे न तिट्ठे॥", | |
"‘‘एवंविहारी", | |
"जातिं जरं सोकपरिद्दवञ्च, इधेव विद्वा पजहेय्य दुक्खं’’॥", | |
"‘‘एताभिनन्दामि", | |
"अद्धा हि भगवा पहासि दुक्खं, तथा हि ते विदितो एस धम्मो॥", | |
"‘‘ते चापि नूनप्पजहेय्यु दुक्खं, ये त्वं मुनि अट्ठितं ओवदेय्य।", | |
"तं तं नमस्सामि समेच्च नाग, अप्पेव मं भगवा अट्ठितं ओवदेय्य’’॥", | |
"‘‘यं ब्राह्मणं वेदगुमाभिजञ्ञा, अकिञ्चनं कामभवे असत्तं।", | |
"अद्धा हि सो ओघमिमं अतारि, तिण्णो च पारं अखिलो अकङ्खो॥", | |
"‘‘विद्वा च यो वेदगू नरो इध, भवाभवे सङ्गमिमं विसज्ज।", | |
"सो वीततण्हो अनीघो निरासो, अतारि सो जातिजरन्ति ब्रूमी’’ति॥", | |
"‘‘पुच्छामि तं भगवा ब्रूहि मेतं, [इच्चायस्मा धोतको]", | |
"वाचाभिकङ्खामि महेसि तुय्हं।", | |
"तव सुत्वान निग्घोसं, सिक्खे निब्बानमत्तनो’’॥", | |
"‘‘तेनहातप्पं करोहि, [धोतकाति भगवा]", | |
"इधेव निपको सतो।", | |
"इतो सुत्वान निग्घोसं, सिक्खे निब्बानमत्तनो’’॥", | |
"‘‘पस्सामहं देवमनुस्सलोके, अकिञ्चनं ब्राह्मणमिरियमानं।", | |
"तं तं नमस्सामि समन्तचक्खु, पमुञ्च मं सक्क कथंकथाहि’’॥", | |
"‘‘नाहं", | |
"धम्मञ्च सेट्ठं अभिजानमानो", | |
"‘‘अनुसास ब्रह्मे करुणायमानो, विवेकधम्मं यमहं विजञ्ञं।", | |
"यथाहं आकासोव अब्यापज्जमानो, इधेव सन्तो असितो चरेय्यं’’॥", | |
"‘‘कित्तयिस्सामि", | |
"दिट्ठे धम्मे अनीतिहं।", | |
"यं विदित्वा सतो चरं, तरे लोके विसत्तिकं’’॥", | |
"‘‘तञ्चाहं अभिनन्दामि, महेसि सन्तिमुत्तमं।", | |
"यं विदित्वा सतो चरं, तरे लोके विसत्तिकं’’॥", | |
"‘‘यं किञ्चि सम्पजानासि, [धोतकाति भगवा]", | |
"उद्धं अधो तिरियञ्चापि मज्झे।", | |
"एतं विदित्वा सङ्गोति लोके, भवाभवाय माकासि तण्ह’’न्ति॥", | |
"‘‘एको अहं सक्क महन्तमोघं, [इच्चायस्मा उपसीवो]", | |
"अनिस्सितो नो विसहामि तारितुं।", | |
"आरम्मणं ब्रूहि समन्तचक्खु, यं निस्सितो ओघमिमं तरेय्यं’’॥", | |
"‘‘आकिञ्चञ्ञं", | |
"नत्थीति निस्साय तरस्सु ओघं।", | |
"कामे पहाय विरतो कथाहि, तण्हक्खयं नत्तमहाभिपस्स’’॥", | |
"‘‘सब्बेसु कामेसु यो वीतरागो, [इच्चायस्मा उपसीवो]", | |
"आकिञ्चञ्ञं निस्सितो हित्वा मञ्ञं।", | |
"सञ्ञाविमोक्खे परमे विमुत्तो", | |
"‘‘सब्बेसु कामेसु यो वीतरागो, [उपसीवाति भगवा]", | |
"आकिञ्चञ्ञं निस्सितो हित्वा मञ्ञं।", | |
"सञ्ञाविमोक्खे परमे विमुत्तो, तिट्ठेय्य सो तत्थ अनानुयायी’’॥", | |
"‘‘तिट्ठे चे सो तत्थ अनानुयायी, पूगम्पि वस्सानं समन्तचक्खु।", | |
"तत्थेव सो सीतिसिया विमुत्तो, चवेथ विञ्ञाणं तथाविधस्स’’॥", | |
"‘‘अच्चि", | |
"अत्थं पलेति न उपेति सङ्खं।", | |
"एवं मुनी नामकाया विमुत्तो, अत्थं पलेति न उपेति सङ्खं’’॥", | |
"‘‘अत्थङ्गतो सो उद वा सो नत्थि, उदाहु वे सस्सतिया अरोगो।", | |
"तं मे मुनी साधु वियाकरोहि, तथा हि ते विदितो एस धम्मो’’॥", | |
"‘‘अत्थङ्गतस्स न पमाणमत्थि, [उपसीवाति भगवा]", | |
"येन नं वज्जुं तं तस्स नत्थि।", | |
"सब्बेसु धम्मेसु समूहतेसु, समूहता वादपथापि सब्बे’’ति॥", | |
"‘‘सन्ति", | |
"जना वदन्ति तयिदं कथंसु।", | |
"ञाणूपपन्नं मुनि नो वदन्ति, उदाहु वे जीवितेनूपपन्नं’’॥", | |
"‘‘न दिट्ठिया न सुतिया न ञाणेन, मुनीध नन्द कुसला वदन्ति।", | |
"विसेनिकत्वा अनीघा निरासा, चरन्ति ये ते मुनयोति ब्रूमि’’॥", | |
"‘‘ये केचिमे समणब्राह्मणासे, [इच्चायस्मा नन्दो]", | |
"दिट्ठस्सुतेनापि वदन्ति सुद्धिं।", | |
"सीलब्बतेनापि वदन्ति सुद्धिं,", | |
"अनेकरूपेन वदन्ति सुद्धिं।", | |
"कच्चिस्सु ते भगवा तत्थ यता चरन्ता,", | |
"अतारु जातिञ्च जरञ्च मारिस।", | |
"पुच्छामि तं भगवा ब्रूहि मेतं’’॥", | |
"‘‘ये केचिमे समणब्राह्मणासे, [नन्दाति भगवा]", | |
"दिट्ठस्सुतेनापि वदन्ति सुद्धिं।", | |
"सीलब्बतेनापि वदन्ति सुद्धिं, अनेकरूपेन वदन्ति सुद्धिं।", | |
"किञ्चापि ते तत्थ यता चरन्ति, नातरिंसु जातिजरन्ति ब्रूमि’’॥", | |
"‘‘ये", | |
"दिट्ठस्सुतेनापि वदन्ति सुद्धिं।", | |
"सीलब्बतेनापि वदन्ति सुद्धिं, अनेकरूपेन वदन्ति सुद्धिं।", | |
"ते चे मुनि ब्रूसि अनोघतिण्णे, अथ को चरहि देवमनुस्सलोके।", | |
"अतारि जातिञ्च जरञ्च मारिस, पुच्छामि तं भगवा ब्रूहि मेतं’’॥", | |
"‘‘नाहं", | |
"जातिजराय निवुताति ब्रूमि।", | |
"ये सीध दिट्ठं व सुतं मुतं वा, सीलब्बतं वापि पहाय सब्बं।", | |
"अनेकरूपम्पि पहाय सब्बं, तण्हं परिञ्ञाय अनासवासे।", | |
"ते वे नरा ओघतिण्णाति ब्रूमि’’॥", | |
"‘‘एताभिनन्दामि वचो महेसिनो, सुकित्तितं गोतमनूपधीकं।", | |
"ये सीध दिट्ठं व सुतं मुतं वा, सीलब्बतं वापि पहाय सब्बं।", | |
"अनेकरूपम्पि पहाय सब्बं, तण्हं परिञ्ञाय अनासवासे।", | |
"अहम्पि ते ओघतिण्णाति ब्रूमी’’ति॥", | |
"‘‘ये मे पुब्बे वियाकंसु, [इच्चायस्मा हेमको]", | |
"हुरं गोतमसासना।", | |
"इच्चासि इति भविस्सति, सब्बं तं इतिहीतिहं।", | |
"सब्बं तं तक्कवड्ढनं, नाहं तत्थ अभिरमिं॥", | |
"‘‘त्वञ्च मे धम्ममक्खाहि, तण्हानिग्घातनं मुनि।", | |
"यं विदित्वा सतो चरं, तरे लोके विसत्तिकं’’॥", | |
"‘‘इध दिट्ठसुतमुतविञ्ञातेसु, पियरूपेसु हेमक।", | |
"छन्दरागविनोदनं, निब्बानपदमच्चुतं॥", | |
"‘‘एतदञ्ञाय", | |
"उपसन्ता च ते सदा, तिण्णा लोके विसत्तिक’’न्ति॥", | |
"‘‘यस्मिं", | |
"तण्हा यस्स न विज्जति।", | |
"कथंकथा च यो तिण्णो, विमोक्खो तस्स कीदिसो’’॥", | |
"‘‘यस्मिं कामा न वसन्ति, [तोदेय्याति भगवा]", | |
"तण्हा यस्स न विज्जति।", | |
"कथंकथा च यो तिण्णो, विमोक्खो तस्स नापरो’’॥", | |
"‘‘निराससो सो उद आससानो", | |
"मुनिं अहं सक्क यथा विजञ्ञं, तं मे वियाचिक्ख समन्तचक्खु’’॥", | |
"‘‘निराससो सो न च आससानो, पञ्ञाणवा सो न च पञ्ञकप्पी।", | |
"एवम्पि तोदेय्य मुनिं विजान, अकिञ्चनं कामभवे असत्त’’न्ति॥", | |
"‘‘मज्झे सरस्मिं तिट्ठतं, [इच्चायस्मा कप्पो]", | |
"ओघे जाते महब्भये।", | |
"जरामच्चुपरेतानं, दीपं पब्रूहि मारिस।", | |
"त्वञ्च मे दीपमक्खाहि, यथायिदं नापरं सिया’’॥", | |
"‘‘मज्झे सरस्मिं तिट्ठतं, [कप्पाति भगवा]", | |
"ओघे जाते महब्भये।", | |
"जरामच्चुपरेतानं, दीपं पब्रूमि कप्प ते॥", | |
"‘‘अकिञ्चनं", | |
"निब्बानं इति नं ब्रूमि, जरामच्चुपरिक्खयं॥", | |
"‘‘एतदञ्ञाय ये सता, दिट्ठधम्माभिनिब्बुता।", | |
"न ते मारवसानुगा, न ते मारस्स पट्ठगू’’ति", | |
"‘‘सुत्वानहं वीरमकामकामिं, [इच्चायस्मा जतुकण्णि]", | |
"ओघातिगं पुट्ठुमकाममागमं।", | |
"सन्तिपदं ब्रूहि सहजनेत्त, यथातच्छं भगवा ब्रूहि मेतं॥", | |
"‘‘भगवा हि कामे अभिभुय्य इरियति, आदिच्चोव पथविं तेजी तेजसा।", | |
"परित्तपञ्ञस्स मे भूरिपञ्ञ, आचिक्ख धम्मं यमहं विजञ्ञं।", | |
"जातिजराय इध विप्पहानं’’॥", | |
"‘‘कामेसु विनय गेधं, [जतुकण्णीति भगवा]", | |
"नेक्खम्मं दट्ठु खेमतो।", | |
"उग्गहितं निरत्तं वा, मा ते विज्जित्थ किञ्चनं॥", | |
"‘‘यं पुब्बे तं विसोसेहि, पच्छा ते माहु किञ्चनं।", | |
"मज्झे चे नो गहेस्ससि, उपसन्तो चरिस्ससि॥", | |
"‘‘सब्बसो नामरूपस्मिं, वीतगेधस्स ब्राह्मण।", | |
"आसवास्स न विज्जन्ति, येहि मच्चुवसं वजे’’ति॥", | |
"‘‘ओकञ्जहं", | |
"नन्दिञ्जहं ओघतिण्णं विमुत्तं।", | |
"कप्पञ्जहं अभियाचे सुमेधं, सुत्वान नागस्स अपनमिस्सन्ति इतो॥", | |
"‘‘नानाजना जनपदेहि सङ्गता,", | |
"तव वीर वाक्यं अभिकङ्खमाना।", | |
"तेसं तुवं साधु वियाकरोहि, तथा हि ते विदितो एस धम्मो’’॥", | |
"‘‘आदानतण्हं विनयेथ सब्बं, [भद्रावुधाति भगवा]", | |
"उद्धं अधो तिरियञ्चापि मज्झे।", | |
"यं यञ्हि लोकस्मिमुपादियन्ति, तेनेव मारो अन्वेति जन्तुं॥", | |
"‘‘तस्मा पजानं न उपादियेथ, भिक्खु सतो किञ्चनं सब्बलोके।", | |
"आदानसत्ते इति पेक्खमानो, पजं इमं मच्चुधेय्ये विसत्त’’न्ति॥", | |
"‘‘झायिं विरजमासीनं, [इच्चायस्मा उदयो]", | |
"कतकिच्चं अनासवं।", | |
"पारगुं सब्बधम्मानं, अत्थि पञ्हेन आगमं।", | |
"अञ्ञाविमोक्खं पब्रूहि, अविज्जाय पभेदनं’’॥", | |
"‘‘पहानं कामच्छन्दानं, [उदयाति भगवा]", | |
"दोमनस्सान चूभयं।", | |
"थिनस्स च पनूदनं, कुक्कुच्चानं निवारणं॥", | |
"‘‘उपेक्खासतिसंसुद्धं", | |
"अञ्ञाविमोक्खं पब्रूमि, अविज्जाय पभेदनं’’॥", | |
"‘‘किंसु संयोजनो लोको, किंसु तस्स विचारणं।", | |
"किस्सस्स विप्पहानेन, निब्बानं इति वुच्चति’’॥", | |
"‘‘नन्दिसंयोजनो लोको, वितक्कस्स विचारणं।", | |
"तण्हाय विप्पहानेन, निब्बानं इति वुच्चति’’॥", | |
"‘‘कथं सतस्स चरतो, विञ्ञाणं उपरुज्झति।", | |
"भगवन्तं पुट्ठुमागम्म, तं सुणोम वचो तव’’॥", | |
"‘‘अज्झत्तञ्च बहिद्धा च, वेदनं नाभिनन्दतो।", | |
"एवं सतस्स चरतो, विञ्ञाणं उपरुज्झती’’ति॥", | |
"‘‘यो अतीतं आदिसति, [इच्चायस्मा पोसालो]", | |
"अनेजो छिन्नसंसयो।", | |
"पारगुं सब्बधम्मानं, अत्थि पञ्हेन आगमं॥", | |
"‘‘विभूतरूपसञ्ञिस्स, सब्बकायप्पहायिनो।", | |
"अज्झत्तञ्च बहिद्धा च, नत्थि किञ्चीति पस्सतो।", | |
"ञाणं सक्कानुपुच्छामि, कथं नेय्यो तथाविधो’’॥", | |
"‘‘विञ्ञाणट्ठितियो सब्बा, [पोसालाति भगवा]", | |
"अभिजानं तथागतो।", | |
"तिट्ठन्तमेनं जानाति, विमुत्तं तप्परायणं॥", | |
"‘‘आकिञ्चञ्ञसम्भवं ञत्वा, नन्दी संयोजनं इति।", | |
"एवमेतं अभिञ्ञाय, ततो तत्थ विपस्सति।", | |
"एतं", | |
"‘‘द्वाहं", | |
"न मे ब्याकासि चक्खुमा।", | |
"यावततियञ्च देवीसि, ब्याकरोतीति मे सुतं॥", | |
"‘‘अयं लोको परो लोको, ब्रह्मलोको सदेवको।", | |
"दिट्ठिं ते नाभिजानाति, गोतमस्स यसस्सिनो॥", | |
"‘‘एवं अभिक्कन्तदस्साविं, अत्थि पञ्हेन आगमं।", | |
"कथं लोकं अवेक्खन्तं, मच्चुराजा न पस्सति’’॥", | |
"‘‘सुञ्ञतो लोकं अवेक्खस्सु, मोघराज सदा सतो।", | |
"अत्तानुदिट्ठिं ऊहच्च, एवं मच्चुतरो सिया।", | |
"एवं लोकं अवेक्खन्तं, मच्चुराजा न पस्सती’’ति॥", | |
"‘‘जिण्णोहमस्मि अबलो वीतवण्णो, [इच्चायस्मा पिङ्गियो]", | |
"नेत्ता न सुद्धा सवनं न फासु।", | |
"माहं नस्सं मोमुहो अन्तराव, आचिक्ख धम्मं यमहं विजञ्ञं।", | |
"जातिजराय इध विप्पहानं’’॥", | |
"‘‘दिस्वान रूपेसु विहञ्ञमाने, [पिङ्गियाति भगवा]", | |
"रुप्पन्ति रूपेसु जना पमत्ता।", | |
"तस्मा तुवं पिङ्गिय अप्पमत्तो, जहस्सु रूपं अपुनब्भवाय’’॥", | |
"‘‘दिसा", | |
"न तुय्हं अदिट्ठं असुतं अमुतं", | |
"आचिक्ख धम्मं यमहं विजञ्ञं, जातिजराय इध विप्पहानं’’॥", | |
"‘‘तण्हाधिपन्ने", | |
"सन्तापजाते जरसा परेते।", | |
"तस्मा तुवं पिङ्गिय अप्पमत्तो, जहस्सु तण्हं अपुनब्भवाया’’ति॥", | |
"अजितो तिस्समेत्तेय्यो, पुण्णको अथ मेत्तगू।", | |
"धोतको उपसीवो च, नन्दो च अथ हेमको॥", | |
"तोदेय्यकप्पा दुभयो, जतुकण्णी च पण्डितो।", | |
"भद्रावुधो उदयो च, पोसालो चापि ब्राह्मणो।", | |
"मोघराजा च मेधावी, पिङ्गियो च महाइसि॥", | |
"एते बुद्धं उपागच्छुं, सम्पन्नचरणं इसिं।", | |
"पुच्छन्ता निपुणे पञ्हे, बुद्धसेट्ठं उपागमुं॥", | |
"तेसं बुद्धो पब्याकासि, पञ्हे पुट्ठो यथातथं।", | |
"पञ्हानं वेय्याकरणेन, तोसेसि ब्राह्मणे मुनि॥", | |
"ते तोसिता चक्खुमता, बुद्धेनादिच्चबन्धुना।", | |
"ब्रह्मचरियमचरिंसु, वरपञ्ञस्स सन्तिके॥", | |
"एकमेकस्स पञ्हस्स, यथा बुद्धेन देसितं।", | |
"तथा यो पटिपज्जेय्य, गच्छे पारं अपारतो॥", | |
"अपारा पारं गच्छेय्य, भावेन्तो मग्गमुत्तमं।", | |
"मग्गो सो पारं गमनाय, तस्मा पारायनं इति॥", | |
"‘‘पारायनमनुगायिस्सं", | |
"यथाद्दक्खि तथाक्खासि, विमलो भूरिमेधसो।", | |
"निक्कामो निब्बनो", | |
"‘‘पहीनमलमोहस्स, मानमक्खप्पहायिनो।", | |
"हन्दाहं कित्तयिस्सामि, गिरं वण्णूपसञ्हितं॥", | |
"‘‘तमोनुदो", | |
"अनासवो सब्बदुक्खप्पहीनो, सच्चव्हयो ब्रह्मे उपासितो मे॥", | |
"‘‘दिजो यथा कुब्बनकं पहाय, बहुप्फलं काननमावसेय्य।", | |
"एवम्पहं अप्पदस्से पहाय, महोदधिं हंसोरिव अज्झपत्तो॥", | |
"‘‘येमे पुब्बे वियाकंसु, हुरं गोतमसासना।", | |
"इच्चासि इति भविस्सति।", | |
"सब्बं तं इतिहीतिहं, सब्बं तं तक्कवड्ढनं॥", | |
"‘‘एको तमनुदासिनो, जुतिमा सो पभङ्करो।", | |
"गोतमो भूरिपञ्ञाणो, गोतमो भूरिमेधसो॥", | |
"‘‘यो मे धम्ममदेसेसि, सन्दिट्ठिकमकालिकं।", | |
"तण्हक्खयमनीतिकं, यस्स नत्थि उपमा क्वचि’’॥", | |
"‘‘किं नु तम्हा विप्पवससि, मुहुत्तमपि पिङ्गिय।", | |
"गोतमा भूरिपञ्ञाणा, गोतमा भूरिमेधसा॥", | |
"‘‘यो ते धम्ममदेसेसि, सन्दिट्ठिकमकालिकं।", | |
"तण्हक्खयमनीतिकं, यस्स नत्थि उपमा क्वचि’’॥", | |
"‘‘नाहं तम्हा विप्पवसामि, मुहुत्तमपि ब्राह्मण।", | |
"गोतमा भूरिपञ्ञाणा, गोतमा भूरिमेधसा॥", | |
"‘‘यो मे धम्ममदेसेसि, सन्दिट्ठिकमकालिकं।", | |
"तण्हक्खयमनीतिकं, यस्स नत्थि उपमा क्वचि॥", | |
"नमस्समानो विवसेमि रत्तिं, तेनेव मञ्ञामि अविप्पवासं॥", | |
"‘‘सद्धा", | |
"नापेन्तिमे गोतमसासनम्हा।", | |
"यं यं दिसं वजति भूरिपञ्ञो, स तेन तेनेव नतोहमस्मि॥", | |
"‘‘जिण्णस्स मे दुब्बलथामकस्स, तेनेव कायो न पलेति तत्थ।", | |
"सङ्कप्पयन्ताय", | |
"‘‘पङ्के सयानो परिफन्दमानो, दीपा दीपं उपल्लविं।", | |
"अथद्दसासिं सम्बुद्धं, ओघतिण्णमनासवं॥", | |
"‘‘यथा अहू वक्कलि मुत्तसद्धो, भद्रावुधो आळविगोतमो च।", | |
"एवमेव त्वम्पि पमुञ्चस्सु सद्धं, गमिस्ससि त्वं पिङ्गिय मच्चुधेय्यस्स पारं’’", | |
"‘‘एस भिय्यो पसीदामि, सुत्वान मुनिनो वचो।", | |
"विवट्टच्छदो सम्बुद्धो, अखिलो पटिभानवा॥", | |
"‘‘अधिदेवे अभिञ्ञाय, सब्बं वेदि परोपरं।", | |
"पञ्हानन्तकरो सत्था, कङ्खीनं पटिजानतं॥", | |
"‘‘असंहीरं असंकुप्पं, यस्स नत्थि उपमा क्वचि।", | |
"अद्धा गमिस्सामि न मेत्थ कङ्खा, एवं मं धारेहि अधिमुत्तचित्त’’न्ति", | |
"", | |
"‘‘केनस्सु निवुतो लोको, [इच्चायस्मा अजितो]", | |
"केनस्सु नप्पकासति।", | |
"किस्साभिलेपनं ब्रूसि, किंसु तस्स महब्भय’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘अविज्जाय", | |
"वेविच्छा पमादा नप्पकासति।", | |
"जप्पाभिलेपनं ब्रूमि, दुक्खमस्स महब्भय’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘सवन्ति सब्बधि सोता, [इच्चायस्मा अजितो]", | |
"सोतानं किं निवारणं।", | |
"सोतानं संवरं ब्रूहि, केन सोता पिधिय्यरे’’॥", | |
"", | |
"‘‘यानि सोतानि लोकस्मिं, [अजिताति भगवा]", | |
"सति तेसं निवारणं।", | |
"सोतानं संवरं ब्रूमि, पञ्ञायेते पिधिय्यरे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पञ्ञा", | |
"नामरूपञ्च मारिस।", | |
"एवं मे पुट्ठो पब्रूहि, कत्थेतं उपरुज्झती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘यमेतं पञ्हं अपुच्छि, अजित तं वदामि ते।", | |
"यत्थ नामञ्च रूपञ्च, असेसं उपरुज्झति।", | |
"विञ्ञाणस्स निरोधेन, एत्थेतं उपरुज्झती’’ति॥", | |
"", | |
"तेसं चायं", | |
"जातिमरणसंसारो, नत्थि नेसं पुनब्भवोति॥", | |
"‘‘ये", | |
"तेसं मे निपको इरियं, पुट्ठो पब्रूहि मारिसा’’ति॥", | |
"", | |
"अद्दसं काम ते मूलं, सङ्कप्पा काम जायसि।", | |
"न तं सङ्कप्पयिस्सामि, एवं काम न हेहिसीति॥", | |
"पज्जेन कतेन", | |
"परिनिब्बानगतो वितिण्णकङ्खो।", | |
"विभवञ्च भवञ्च विप्पहाय, वुसितवा खीणपुनब्भवो स भिक्खूति॥", | |
"‘‘कामेसु", | |
"कुसलो सब्बधम्मानं, सतो भिक्खु परिब्बजे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘कोध सन्तुसितो लोके, [इच्चायस्मा तिस्समेत्तेय्यो]", | |
"कस्स नो सन्ति इञ्जिता।", | |
"को उभन्तमभिञ्ञाय, मज्झे मन्ता न लिप्पति।", | |
"कं ब्रूसि महापुरिसोति, को", | |
"", | |
"‘‘कामेसु ब्रह्मचरियवा, [मेत्तेय्याति भगवा]", | |
"वीततण्हो सदा सतो।", | |
"सङ्खाय निब्बुतो भिक्खु, तस्स नो सन्ति इञ्जिता’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सो", | |
"तं ब्रूमि महापुरिसोति, सो इध सिब्बिनिमच्चगा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अनेजं मूलदस्साविं, [इच्चायस्मा पुण्णको]", | |
"अत्थि पञ्हेन आगमं।", | |
"किं निस्सिता इसयो मनुजा, खत्तिया ब्राह्मणा देवतानं।", | |
"यञ्ञमकप्पयिंसु पुथूध लोके, पुच्छामि तं भगवा ब्रूहि मेत’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘ये केचिमे इसयो मनुजा, [पुण्णकाति भगवा]", | |
"खत्तिया ब्राह्मणा देवतानं।", | |
"यञ्ञमकप्पयिंसु पुथूध लोके, आसीसमाना पुण्णक इत्थत्तं।", | |
"जरं सिता यञ्ञमकप्पयिंसू’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘ये केचिमे इसयो मनुजा, [इच्चायस्मा पुण्णको]", | |
"खत्तिया ब्राह्मणा देवतानं।", | |
"यञ्ञमकप्पयिंसु", | |
"अतारु जातिञ्च जरञ्च मारिस, पुच्छामि तं भगवा ब्रूहि मेत’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘आसीसन्ति थोमयन्ति, अभिजप्पन्ति जुहन्ति। [पुण्णकाति भगवा]", | |
"कामाभिजप्पन्ति पटिच्च लाभं, ते याजयोगा भवरागरत्ता।", | |
"नातरिंसु जातिजरन्ति ब्रूमी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘ते चे नातरिंसु याजयोगा, [इच्चायस्मा पुण्णको]", | |
"यञ्ञेहि जातिञ्च जरञ्च मारिस।", | |
"अथ को चरहि देवमनुस्सलोके, अतारि जातिञ्च जरञ्च मारिस।", | |
"पुच्छामि तं भगवा ब्रूहि मेत’’न्ति॥", | |
"", | |
"मानो", | |
"जिव्हा सुजा हदयं", | |
"‘‘सङ्खाय", | |
"यस्सिञ्जितं नत्थि कुहिञ्चि लोके।", | |
"सन्तो विधूमो अनीघो निरासो, अतारि सो जातिजरन्ति ब्रूमी’’ति॥", | |
"", | |
"वेदानि", | |
"समणानं यानीधत्थि", | |
"सब्बवेदनासु वीतरागो।", | |
"सब्बं वेदमतिच्च वेदगू सोति॥", | |
"‘‘दन्तं नयन्ति समितिं, दन्तं राजाभिरूहति।", | |
"दन्तो", | |
"‘‘वरमस्सतरा दन्ता, आजानीया च", | |
"कुञ्जरा च", | |
"‘‘न हि एतेहि यानेहि, गच्छेय्य अगतं दिसं।", | |
"यथात्तना सुदन्तेन, दन्तो दन्तेन गच्छति॥", | |
"‘‘विधासु", | |
"दन्तभूमिं अनुप्पत्ता, ते लोके विजिताविनो॥", | |
"‘‘यस्सिन्द्रियानि भावितानि, अज्झत्तञ्च बहिद्धा च सब्बलोके।", | |
"निब्बिज्झ इमं परञ्च लोकं, कालं कङ्खति भावितो स दन्तो’’ति", | |
"‘‘पुच्छामि तं भगवा ब्रूहि मेतं, [इच्चायस्मा मेत्तगू]", | |
"मञ्ञामि तं वेदगू भावितत्तं।", | |
"कुतो नु दुक्खा समुदागता इमे, ये केचि लोकस्मिमनेकरूपा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘दुक्खस्स", | |
"तं ते पवक्खामि यथा पजानं।", | |
"उपधिनिदाना पभवन्ति दुक्खा, ये केचि लोकस्मिमनेकरूपा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘यो वे अविद्वा उपधिं करोति, पुनप्पुनं दुक्खमुपेति मन्दो।", | |
"तस्मा", | |
"", | |
"कायमुनिं वचीमुनिं", | |
"मुनिं मोनेय्यसम्पन्नं, आहु सब्बप्पहायिनं॥", | |
"कायमुनिं वचीमुनिं, मनोमुनिमनासवं।", | |
"मुनिं मोनेय्यसम्पन्नं, आहु निन्हातपापकन्ति॥", | |
"न मोनेन मुनी", | |
"यो च तुलंव पग्गय्ह, वरमादाय पण्डितो॥", | |
"पापानि परिवज्जेति, स मुनी तेन सो मुनि।", | |
"यो मुनाति उभो लोके, मुनि तेन पवुच्चति॥", | |
"असतञ्च सतञ्च ञत्वा धम्मं, अज्झत्तं बहिद्धा च सब्बलोके।", | |
"देवमनुस्सेहि पूजनीयो", | |
"‘‘यं तं अपुच्छिम्ह अकित्तयी नो, अञ्ञं तं पुच्छाम तदिङ्घ ब्रूहि।", | |
"कथं नु धीरा वितरन्ति ओघं, जातिं जरं सोकपरिद्दवञ्च।", | |
"तं मे मुनी साधु वियाकरोहि, तथा हि ते विदितो एस धम्मो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘कित्तयिस्सामि ते धम्मं, [मेत्तगूति भगवा]", | |
"दिट्ठे धम्मे अनीतिहं।", | |
"यं विदित्वा सतो चरं, तरे लोके विसत्तिक’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘तञ्चाहं अभिनन्दामि, महेसि धम्ममुत्तमं।", | |
"यं विदित्वा सतो चरं, तरे लोके विसत्तिक’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘यं किञ्चि सम्पजानासि, [मेत्तगूति भगवा]", | |
"उद्धं अधो तिरियञ्चापि मज्झे।", | |
"एतेसु नन्दिञ्च निवेसनञ्च, पनुज्ज विञ्ञाणं भवे न तिट्ठे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘एवंविहारी सतो अप्पमत्तो, भिक्खु चरं हित्वा ममायितानि।", | |
"जातिं जरं सोकपरिद्दवञ्च, इधेव विद्वा पजहेय्य दुक्ख’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘एताभिनन्दामि वचो महेसिनो, सुकित्तितं गोतमनूपधीकं।", | |
"अद्धा हि भगवा पहासि दुक्खं, तथा हि ते विदितो एस धम्मो’’ति॥", | |
"", | |
"आगुं न करोति किञ्चि लोके, [सभियाति भगवा]", | |
"सब्बसंयोगे", | |
"सब्बत्थ न सज्जती विमुत्तो, नागो तादि पवुच्चते तथत्ताति॥", | |
"‘‘ते", | |
"तं तं नमस्सामि समेच्च नाग, अप्पेव", | |
"", | |
"बाहित्वा सब्बपापकानि, [सभियाति भगवा]", | |
"विमलो साधुसमाहितो ठितत्तो।", | |
"संसारमतिच्च केवली सो, असितो", | |
"तस्सायं पच्छिमको भवो, चरिमोयं समुस्सयो।", | |
"जातिमरणसंसारो, नत्थि तस्स पुनब्भवोति॥", | |
"‘‘यं ब्राह्मणं वेदगुमाभिजञ्ञा, अकिञ्चनं कामभवे असत्तं।", | |
"अद्धा हि सो ओघमिमं अतारि, तिण्णो च पारं अखिलो अकङ्खो’’ति॥", | |
"", | |
"वेदानि विचेय्य केवलानि, [सभियाति भगवा]", | |
"समणानं यानीधत्थि ब्राह्मणानं।", | |
"सब्बवेदनासु वीतरागो, सब्बं वेदमतिच्च वेदगू सो॥", | |
"‘‘विद्वा च यो वेदगू नरो इध, भवाभवे सङ्गमिमं विसज्ज।", | |
"सो वीततण्हो अनीघो निरासो, अतारि सो जातिजरन्ति ब्रूमी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पुच्छामि तं भगवा ब्रूहि मेतं, [इच्चायस्मा धोतको]", | |
"वाचाभिकङ्खामि महेसि तुय्हं।", | |
"तव सुत्वान निग्घोसं, सिक्खे निब्बानमत्तनो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘तेनहातप्पं करोहि, [धोतकाति भगवा]", | |
"इधेव निपको सतो।", | |
"इतो सुत्वान निग्घोसं, सिक्खे निब्बानमत्तनो’’ति॥", | |
"", | |
"बाहित्वा सब्बपापकानि, [सभियाति भगवा]", | |
"विमलो साधुसमाहितो ठितत्तो।", | |
"संसारमतिच्च केवली सो, असितो तादि पवुच्चते स ब्रह्माति॥", | |
"‘‘न तस्स अद्दिट्ठमिधत्थि", | |
"सब्बं अभिञ्ञासि यदत्थि नेय्यं, तथागतो तेन समन्तचक्खू’’ति॥", | |
"‘‘पस्सामहं देवमनुस्सलोके, अकिञ्चनं ब्राह्मणमिरियमानं।", | |
"तं तं नमस्सामि समन्तचक्खु, पमुञ्च मं सक्क कथंकथाही’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अत्तना हि", | |
"अत्तना अकतं पापं, अत्तनाव विसुज्झति।", | |
"सुद्धि असुद्धि पच्चत्तं, नाञ्ञो अञ्ञं विसोधये’’ति॥", | |
"‘‘नाहं", | |
"धम्मञ्च सेट्ठं आजानमानो, एवं तुवं ओघमिमं तरेसी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अनुसास", | |
"यथाहं आकासोव अब्यापज्जमानो, इधेव सन्तो असितो चरेय्य’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘कित्तयिस्सामि ते सन्तिं, [धोतकाति भगवा]", | |
"दिट्ठे धम्मे अनीतिहं।", | |
"यं विदित्वा सतो चरं, तरे लोके विसत्तिक’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘तञ्चाहं अभिनन्दामि, महेसि सन्तिमुत्तमं।", | |
"यं", | |
"", | |
"‘‘यं किञ्चि सम्पजानासि, [धोतकाति भगवा]", | |
"उद्धं अधो तिरियञ्चापि मज्झे।", | |
"एतं विदित्वा सङ्गोति लोके, भवाभवाय माकासि तण्ह’’न्ति॥", | |
"", | |
"न", | |
"सब्बं अभिञ्ञासि यदत्थि नेय्यं, तथागतो तेन समन्तचक्खूति॥", | |
"‘‘एको अहं सक्क महन्तमोघं, [इच्चायस्मा उपसीवो]", | |
"अनिस्सितो नो विसहामि तारितुं।", | |
"आरम्मणं ब्रूहि समन्तचक्खु, यं निस्सितो ओघमिमं तरेय्य’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘आकिञ्चञ्ञं", | |
"नत्थीति निस्साय तरस्सु ओघं।", | |
"कामे पहाय विरतो कथाहि, तण्हक्खयं", | |
"", | |
"‘‘सब्बेसु कामेसु यो वीतरागो, [इच्चायस्मा उपसीवो]", | |
"आकिञ्चञ्ञं निस्सितो हित्वा मञ्ञं।", | |
"सञ्ञाविमोक्खे परमेधिमुत्तो, तिट्ठे नु सो तत्थ अनानुयायी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सब्बेसु कामेसु यो वीतरागो, [उपसीवाति भगवा]", | |
"आकिञ्चञ्ञं निस्सितो हित्वा मञ्ञं।", | |
"सञ्ञाविमोक्खे परमेधिमुत्तो, तिट्ठेय्य सो तत्थ अनानुयायी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘तिट्ठे चे सो तत्थ अनानुयायी, पूगम्पि वस्सानि समन्तचक्खु।", | |
"तत्थेव सो सीतिसिया विमुत्तो, चवेथ विञ्ञाणं तथाविधस्सा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अच्चि यथा वातवेगेन खित्ता, [उपसीवाति भगवा]", | |
"अत्थं पलेति न उपेति सङ्खं।", | |
"एवं मुनी नामकाया विमुत्तो, अत्थं पलेति न उपेति सङ्ख’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘अत्थङ्गतो सो उद वा सो नत्थि, उदाहु वे सस्सतिया अरोगो।", | |
"तं मे मुनी साधु वियाकरोहि, तथा हि ते विदितो एस धम्मो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अत्थङ्गतस्स न पमाणमत्थि, [उपसीवाति भगवा]", | |
"येन नं वज्जुं तं तस्स नत्थि।", | |
"सब्बेसु धम्मेसु समूहतेसु, समूहता वादपथापि सब्बे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सन्ति लोके मुनयो, [इच्चायस्मा नन्दो]", | |
"जना वदन्ति तयिदं कथंसु।", | |
"ञाणूपपन्नं मुनि नो वदन्ति, उदाहु वे जीवितेनूपपन्न’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘कामा ते पठमा सेना, दुतिया अरति वुच्चति।", | |
"ततिया खुप्पिपासा ते, चतुत्थी तण्हा पवुच्चति॥", | |
"‘‘पञ्चमं थिनमिद्धं ते, छट्ठा भीरू पवुच्चति।", | |
"सत्तमी विचिकिच्छा ते, मक्खो थम्भो ते अट्ठमो।", | |
"लाभो सिलोको सक्कारो, मिच्छालद्धो च यो यसो॥", | |
"‘‘यो", | |
"एसा नमुचि ते सेना", | |
"न नं असूरो जिनाति, जेत्वा च लभते सुख’’न्ति॥", | |
"‘‘न दिट्ठिया न सुतिया न ञाणेन, मुनीध", | |
"विसेनिकत्वा अनीघा निरासा, चरन्ति ये ते मुनयोति ब्रूमी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘ये केचिमे समणब्राह्मणासे, [इच्चायस्मा नन्दो]", | |
"दिट्ठस्सुतेनापि वदन्ति सुद्धिं।", | |
"सीलब्बतेनापि वदन्ति सुद्धिं, अनेकरूपेन वदन्ति सुद्धिं॥", | |
"‘‘कच्चिस्सु", | |
"अतारु जातिञ्च जरञ्च मारिस।", | |
"पुच्छामि तं भगवा ब्रूहि मेत’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘ये केचिमे समणब्राह्मणासे, [नन्दाति भगवा]", | |
"दिट्ठस्सुतेनापि वदन्ति सुद्धिं।", | |
"सीलब्बतेनापि वदन्ति सुद्धिं, अनेकरूपेन वदन्ति सुद्धिं।", | |
"किञ्चापि ते तत्थ यता चरन्ति, नातरिंसु जातिजरन्ति ब्रूमी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘ये", | |
"दिट्ठस्सुतेनापि", | |
"सीलब्बतेनापि वदन्ति सुद्धिं, अनेकरूपेन वदन्ति सुद्धिं॥", | |
"ते चे मुनी ब्रूसि अनोघतिण्णे, अथ को चरहि देवमनुस्सलोके।", | |
"अतारि जातिञ्च जरञ्च मारिस, पुच्छामि तं भगवा ब्रूहि मेत’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘नाहं सब्बे समणब्राह्मणासे, [नन्दाति भगवा]", | |
"जातिजराय निवुताति ब्रूमि।", | |
"ये सीध दिट्ठं व सुतं मुतं वा, सीलब्बतं वापि पहाय सब्बं॥", | |
"अनेकरूपम्पि पहाय सब्बं, तण्हं परिञ्ञाय अनासवासे।", | |
"ते वे नरा ओघतिण्णाति ब्रूमी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘एताभिनन्दामि वचो महेसिनो, सुकित्तितं गोतमनूपधीकं।", | |
"ये सीध दिट्ठं व सुतं मुतं वा, सीलब्बतं वापि पहाय सब्बं॥", | |
"अनेकरूपम्पि पहाय सब्बं, तण्हं परिञ्ञाय अनासवासे।", | |
"अहम्पि ते ओघतिण्णाति ब्रूमी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘ये मे पुब्बे वियाकंसु, [इच्चायस्मा हेमको]", | |
"हुरं गोतमसासना।", | |
"इच्चासि इति भविस्सति, सब्बं तं इतिहीतिहं।", | |
"सब्बं तं तक्कवड्ढनं, नाहं तत्थ अभिरमि’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘त्वञ्च मे धम्ममक्खाहि, तण्हानिग्घातनं मुनि।", | |
"यं विदित्वा सतो चरं, तरे लोके विसत्तिक’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘इध दिट्ठसुतमुतविञ्ञातेसु, पियरूपेसु हेमक।", | |
"छन्दरागविनोदनं, निब्बानपदमच्चुत’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘एतदञ्ञाय", | |
"उपसन्ता च ते सदा, तिण्णा लोके विसत्तिक’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘यस्मिं कामा न वसन्ति, [इच्चायस्मा तोदेय्यो]", | |
"तण्हा यस्स न विज्जति।", | |
"कथंकथा च यो तिण्णो, विमोक्खो तस्स कीदिसो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘यस्मिं कामा न वसन्ति, [तोदेय्याति भगवा]", | |
"तण्हा यस्स न विज्जति।", | |
"कथंकथा च यो तिण्णो, विमोक्खो तस्स नापरो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘निराससो सो उद आससानो, पञ्ञाणवा सो उद पञ्ञकप्पी।", | |
"मुनिं अहं सक्क यथा विजञ्ञं, तं मे वियाचिक्ख समन्तचक्खू’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘निराससो सो न च आससानो, पञ्ञाणवा सो न च पञ्ञकप्पी।", | |
"एवम्पि तोदेय्य मुनिं विजान, अकिञ्चनं कामभवे असत्तन्ति॥", | |
"", | |
"‘‘मज्झे सरस्मिं तिट्ठतं, [इच्चायस्मा कप्पो]", | |
"ओघे जाते महब्भये।", | |
"जरामच्चुपरेतानं, दीपं पब्रूहि मारिस।", | |
"त्वञ्च", | |
"", | |
"‘‘मज्झे सरस्मिं तिट्ठतं, [कप्पाति भगवा]", | |
"ओघे जाते महब्भये।", | |
"जरामच्चुपरेतानं, दीपं पब्रूमि कप्प ते’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अकिञ्चनं अनादानं, एतं दीपं अनापरं।", | |
"निब्बानं इति नं ब्रूमि, जरामच्चुपरिक्खय’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘एतदञ्ञाय ये सता, दिट्ठधम्माभिनिब्बुता।", | |
"न ते मारवसानुगा, न ते मारस्स पद्धगू’’ति॥", | |
"", | |
"विरतो इध सब्बपापकेहि, निरयदुक्खं अतिच्च वीरियवा", | |
"सो वीरियवा पधानवा, वीरो तादि पवुच्चते तथत्ताति॥", | |
"‘‘सुत्वानहं वीर अकामकामिं, [इच्चायस्मा जतुकण्णि]", | |
"ओघातिगं", | |
"सन्तिपदं ब्रूहि सहजनेत्त, यथातच्छं भगवा ब्रूहि मेत’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘भगवा हि कामे अभिभुय्य इरियति, आदिच्चोव पथविं तेजी तेजसा।", | |
"परित्तपञ्ञस्स मे भूरिपञ्ञो, आचिक्ख धम्मं यमहं विजञ्ञं।", | |
"जातिजराय इध विप्पहान’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘कामेसु", | |
"नेक्खम्मं दट्ठु खेमतो।", | |
"उग्गहितं निरत्तं वा, मा", | |
"", | |
"‘‘यं पुब्बे तं विसोसेहि, पच्छा ते माहु किञ्चनं।", | |
"मज्झे चे नो गहेस्ससि, उपसन्तो चरिस्ससी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सब्बसो नामरूपस्मिं, वीतगेधस्स ब्राह्मण।", | |
"आसवास्स न विज्जन्ति, येहि मच्चुवसं वजे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘ओकञ्जहं", | |
"नन्दिञ्जहं ओघतिण्णं विमुत्तं।", | |
"कप्पञ्जहं अभियाचे सुमेधं, सुत्वान नागस्स अपनमिस्सन्ति इतो’’ति॥", | |
"", | |
"विरतो इध सब्बपापकेहि, निरयदुक्खं अतिच्च वीरियवा सो।", | |
"सो वीरियवा पधानवा, वीरो तादि पवुच्चते तथत्ताति॥", | |
"‘‘नानाजना जनपदेहि सङ्गता, तव वीर वाक्यं अभिकङ्खमाना।", | |
"तेसं तुवं साधु वियाकरोहि, तथा", | |
"", | |
"‘‘आदानतण्हं विनयेथ सब्बं, [भद्रावुधाति भगवा]", | |
"उद्धं अधो तिरियञ्चापि मज्झे।", | |
"यं यञ्हि लोकस्मिमुपादियन्ति, तेनेव मारो अन्वेति जन्तु’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘तस्मा पजानं न उपादियेथ, भिक्खु", | |
"आदानसत्ते इति पेक्खमानो, पजं इमं मच्चुधेय्ये विसत्त’’न्ति॥", | |
"", | |
"रागो रजो न च पन रेणु वुच्चति,", | |
"रागस्सेतं अधिवचनं रजोति।", | |
"एतं रजं विप्पजहित्वा", | |
"दोसो रजो न च पन रेणु वुच्चति, दोसस्सेतं अधिवचनं रजोति।", | |
"एतं रजं विप्पजहित्वा चक्खुमा, तस्मा जिनो विगतरजोति वुच्चति॥", | |
"मोहो", | |
"एतं रजं विप्पजहित्वा चक्खुमा, तस्मा जिनो विगतरजोति वुच्चतीति॥ –", | |
"नगस्स", | |
"सावका पयिरुपासन्ति, तेविज्जा मच्चुहायिनोति॥", | |
"यस्स च विसता", | |
"किच्चाकिच्चप्पहीनस्स, परिळाहो न विज्जतीति॥", | |
"‘‘झायिं विरजमासीनं, [इच्चायस्मा उदयो]", | |
"कतकिच्चं अनासवं।", | |
"पारगुं सब्बधम्मानं, अत्थि पञ्हेन आगमं।", | |
"अञ्ञाविमोक्खं पब्रूहि, अविज्जाय पभेदन’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘पहानं कामच्छन्दानं, [उदयाति भगवा]", | |
"दोमनस्सान चूभयं।", | |
"थिनस्स च पनूदनं, कुक्कुच्चानं निवारण’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘उपेक्खासतिसंसुद्धं, धम्मतक्कपुरेजवं।", | |
"अञ्ञाविमोक्खं पब्रूमि, अविज्जाय पभेदन’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘किंसु संयोजनो लोको, किंसु तस्स विचारणं।", | |
"किस्सस्स विप्पहानेन, निब्बानं इति वुच्चती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘नन्दिसंयोजनो", | |
"तण्हाय विप्पहानेन, निब्बानं इति वुच्चती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘कथं सतस्स चरतो, विञ्ञाणं उपरुज्झति।", | |
"भगवन्तं पुट्ठुमागमा, तं सुणोम वचो तवा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अज्झत्तञ्च बहिद्धा च, वेदनं नाभिनन्दतो।", | |
"एवं सतस्स चरतो, विञ्ञाणं उपरुज्झती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘यो", | |
"अनेजो छिन्नसंसयो।", | |
"पारगुं सब्बधम्मानं, अत्थि पञ्हेन आगम’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘विभूतरूपसञ्ञिस्स, सब्बकायप्पहायिनो।", | |
"अज्झत्तञ्च बहिद्धा च, नत्थि किञ्चीति पस्सतो।", | |
"ञाणं सक्कानुपुच्छामि, कथं नेय्यो तथाविधो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘विञ्ञाणट्ठितियो सब्बा, [पोसालाति भगवा]", | |
"अभिजानं तथागतो।", | |
"तिट्ठन्तमेनं जानाति, धिमुत्तं तप्परायण’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘आकिञ्चञ्ञासम्भवं ञत्वा, नन्दिसंयोजनं इति।", | |
"एवमेतं अभिञ्ञाय, ततो तत्थ विपस्सति।", | |
"एतं ञाणं तथं तस्स, ब्राह्मणस्स वुसीमतो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सेले यथा पब्बतमुद्धनिट्ठितो, यथापि पस्से जनतं समन्ततो।", | |
"तथूपमं धम्ममयं सुमेध, पासादमारुय्ह समन्तचक्खु।", | |
"सोकावतिण्णं", | |
"‘‘न तस्स अद्दिट्ठमिधत्थि किञ्चि, अथो अविञ्ञातमजानितब्बं।", | |
"सब्बं अभिञ्ञासि यदत्थि नेय्यं, तथागतो तेन समन्तचक्खू’’ति॥", | |
"‘‘द्वाहं", | |
"न मे ब्याकासि चक्खुमा।", | |
"यावततियञ्च देवीसि, ब्याकरोतीति मे सुत’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘अयं", | |
"दिट्ठिं ते नाभिजानाति, गोतमस्स यसस्सिनो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘एवं अभिक्कन्तदस्साविं, अत्थि पञ्हेन आगमं।", | |
"कथं लोकं अवेक्खन्तं, मच्चुराजा न पस्सती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सुद्धं धम्मसमुप्पादं, सुद्धसङ्खारसन्ततिं।", | |
"पस्सन्तस्स यथाभूतं, न भयं होति गामणि॥", | |
"‘‘तिणकट्ठसमं", | |
"नाञ्ञं", | |
"‘‘सुञ्ञतो", | |
"अत्तानुदिट्ठिं ऊहच्च, एवं मच्चुतरो सिया।", | |
"एवं लोकं अवेक्खन्तं, मच्चुराजा न पस्सती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘जिण्णोहमस्मि", | |
"नेत्ता न सुद्धा सवनं न फासु।", | |
"माहं", | |
"जातिजराय इध विप्पहान’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘दिस्वान रूपेसु विहञ्ञमाने, [पिङ्गियाति भगवा]", | |
"रुप्पन्ति रूपेसु जना पमत्ता।", | |
"तस्मा तुवं पिङ्गिय अप्पमत्तो, जहस्सु रूपं अपुनब्भवाया’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘दिसा चतस्सो विदिसा चतस्सो, उद्धं अधो दस दिसा इमायो।", | |
"न तुय्हं अदिट्ठं अस्सुतं अमुतं, अथो अविञ्ञातं किञ्चि नमत्थि लोके।", | |
"आचिक्ख धम्मं यमहं विजञ्ञं, जातिजराय इध विप्पहान’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘तण्हाधिपन्ने मनुजे पेक्खमानो, [पिङ्गियाति भगवा]", | |
"सन्तापजाते जरसा परेते।", | |
"तस्मा तुवं पिङ्गिय अप्पमत्तो, जहस्सु तण्हं अपुनब्भवाया’’ति॥", | |
"", | |
"", | |
"", | |
"‘‘एते बुद्धं उपागच्छुं, सम्पन्नचरणं इसिं।", | |
"पुच्छन्ता निपुणे पञ्हे, बुद्धसेट्ठं उपागमु’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘तेसं बुद्धो पब्याकासि, पञ्हं पुट्ठो यथातथं।", | |
"पञ्हानं वेय्याकरणेन, तोसेसि ब्राह्मणे मुनी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘ते तोसिता चक्खुमता, बुद्धेनादिच्चबन्धुना।", | |
"ब्रह्मचरियमचरिंसु, वरपञ्ञस्स सन्तिके’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘एकमेकस्स", | |
"तथा यो पटिपज्जेय्य, गच्छे पारं अपारतो’’ति॥", | |
"", | |
"मग्गो पन्थो पथो पज्जो", | |
"नावा उत्तरसेतु च, कुल्लो च भिसि सङ्कमो", | |
"‘‘अपारा पारं गच्छेय्य, भावेन्तो मग्गमुत्तमं।", | |
"मग्गो सो पारं गमनाय, तस्मा पारायनं इती’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पारायनमनुगायिस्सं, [इच्चायस्मा पिङ्गियो]", | |
"यथाद्दक्खि तथाक्खासि, विमलो भूरिमेधसो।", | |
"निक्कामो निब्बनो नागो, किस्स हेतु मुसा भणे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पहीनमलमोहस्स, मानमक्खप्पहायिनो।", | |
"हन्दाहं कित्तयिस्सामि, गिरं वण्णूपसंहित’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘तमोनुदो", | |
"अनासवो सब्बदुक्खप्पहीनो, सच्चव्हयो ब्रह्मे उपासितो मे’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘दिजो यथा कुब्बनकं पहाय, बहुप्फलं काननमावसेय्य।", | |
"एवमहं अप्पदस्से पहाय, महोदधिं हंसोरिव अज्झपत्तो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘ये मे पुब्बे वियाकंसु, हुरं गोतमसासना।", | |
"‘इच्चासि इति भविस्स’ति।", | |
"सब्बं", | |
"", | |
"‘‘तण्हादुतियो पुरिसो, दीघमद्धान संसरं।", | |
"इत्थभावञ्ञथाभावं, संसारं नातिवत्तति॥", | |
"‘‘एतमादीनवं", | |
"वीततण्हो अनादानो, सतो भिक्खु परिब्बजे’’ति॥", | |
"‘‘एकायनं", | |
"एतेन मग्गेन तरिंसु", | |
"नगस्स पस्से आसीनं, मुनिं दुक्खस्स पारगुं।", | |
"सावका पयिरुपासन्ति, तेविज्जा मच्चुहायिनोति॥", | |
"धजो रथस्स पञ्ञाणं, धूमो", | |
"राजा रट्ठस्स पञ्ञाणं, भत्ता पञ्ञाणमित्थियाति॥", | |
"‘‘एको तमोनुदासीनो, जुतिमा सो पभङ्करो।", | |
"गोतमो भूरिपञ्ञाणो, गोतमो भूरिमेधसो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘यो मे धम्ममदेसेसि, सन्दिट्ठिकमकालिकं।", | |
"तण्हक्खयमनीतिकं, यस्स नत्थि उपमा क्वची’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘किंनु तम्हा विप्पवसि, मुहुत्तमपि पिङ्गिय।", | |
"गोतमा भूरिपञ्ञाणा, गोतमा भूरिमेधसा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘यो ते धम्ममदेसेसि, सन्दिट्ठिकमकालिकं।", | |
"तण्हक्खयमनीतिकं, यस्स नत्थि उपमा क्वची’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘नाहं", | |
"गोतमा भूरिपञ्ञाणा, गोतमा भूरिमेधसा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘यो", | |
"तण्हक्खयमनीतिकं, यस्स नत्थि उपमा क्वची’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पस्सामि नं मनसा चक्खुनाव, रत्तिन्दिवं ब्राह्मण अप्पमत्तो।", | |
"नमस्समानो विवसेमि रत्तिं, तेनेव मञ्ञामि अविप्पवास’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘सद्धा", | |
"यं यं दिसं वजति भूरिपञ्ञो, स तेन तेनेव नतोहमस्मी’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘जिण्णस्स मे दुब्बलथामकस्स, तेनेव कायो न पलेति तत्थ।", | |
"सङ्कप्पयन्ताय वजामि निच्चं, मनो हि मे ब्राह्मण तेन युत्तो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पङ्के सयानो परिफन्दमानो, दीपा दीपं उपल्लविं।", | |
"अथद्दसासिं सम्बुद्धं, ओघतिण्णमनासव’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘यथा अहू वक्कलि मुत्तसद्धो, भद्रावुधो आळविगोतमो च।", | |
"एवमेव त्वम्पि पमुञ्चस्सु सद्धं,", | |
"गमिस्ससि", | |
"", | |
"‘‘एस भिय्यो पसीदामि, सुत्वान मुनिनो वचो।", | |
"विवटच्छदो सम्बुद्धो, अखिलो पटिभानवा’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अधिदेवे", | |
"पञ्हानन्तकरो सत्था, कङ्खीनं पटिजानत’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘असंहीरं असंकुप्पं, यस्स नत्थि उपमा क्वचि।", | |
"अद्धा गमिस्सामि न मेत्थ कङ्खा, एवं मं धारेहि अधिमुत्तचित्त’’न्ति॥", | |
"", | |
"‘‘तण्हादुतियो", | |
"इत्थभावञ्ञथाभावं, संसारं नातिवत्तति॥", | |
"‘‘एतमादीनवं ञत्वा, तण्हं दुक्खस्स सम्भवं।", | |
"वीततण्हो अनादानो, सतो भिक्खु परिब्बजे’’ति॥", | |
"‘‘एकायनं जातिखयन्तदस्सी, मग्गं पजानाति हितानुकम्पी।", | |
"एतेन मग्गेन तरिंसु पुब्बे, तरिस्सन्ति ये च तरन्ति ओघ’’न्ति॥", | |
"‘‘सब्बेसु भूतेसु निधाय दण्डं, अविहेठयं अञ्ञतरम्पि तेसं।", | |
"न पुत्तमिच्छेय्य कुतो सहायं, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
"", | |
"चतुक्कण्णो चतुद्वारो, विभत्तो भागसो मितो।", | |
"अयोपाकारपरियन्तो, अयसा पटिकुज्जितो॥", | |
"तस्स अयोमया भूमि, जलिता तेजसा युता।", | |
"समन्ता योजनसतं, फरित्वा तिट्ठति सब्बदा॥", | |
"कदरियातपना", | |
"लोमहंसनरूपा च, भेस्मा पटिभया दुखा॥", | |
"पुरत्थिमाय च भित्तिया, अच्चिक्खन्धो समुट्ठितो।", | |
"डहन्तो", | |
"पच्छिमाय च भित्तिया, अच्चिक्खन्धो समुट्ठितो।", | |
"डहन्तो पापकम्मन्ते, पुरिमाय पटिहञ्ञति॥", | |
"दक्खिणाय च भित्तिया, अच्चिक्खन्धो समुट्ठितो।", | |
"डहन्तो पापकम्मन्ते, उत्तराय पटिहञ्ञति॥", | |
"उत्तराय", | |
"डहन्तो पापकम्मन्ते, दक्खिणाय पटिहञ्ञति॥", | |
"हेट्ठतो च समुट्ठाय, अच्चिक्खन्धो भयानको।", | |
"डहन्तो पापकम्मन्ते, छदनस्मिं पटिहञ्ञति॥", | |
"छदनम्हा", | |
"डहन्तो पापकम्मन्ते, भूमियं पटिहञ्ञति॥", | |
"अयोकपालमादित्तं, सन्तत्तं जलितं यथा।", | |
"एवं अवीचिनिरयो, हेट्ठा उपरि पस्सतो॥", | |
"तत्थ सत्ता महालुद्दा, महाकिब्बिसकारिनो।", | |
"अच्चन्तपापकम्मन्ता, पच्चन्ति न च मिय्यरे", | |
"जातवेदसमो कायो, तेसं निरयवासिनं।", | |
"पस्स कम्मानं दळ्हत्तं, न भस्मा होति नपि मसि॥", | |
"पुरत्थिमेनपि धावन्ति, ततो धावन्ति पच्छिमं।", | |
"उत्तरेनपि धावन्ति, ततो धावन्ति दक्खिणं॥", | |
"यं यं दिसं पधावन्ति, तं तं द्वारं पिधीयति।", | |
"अभिनिक्खमितासा", | |
"न ते ततो निक्खमितुं, लभन्ति कम्मपच्चया।", | |
"तेसञ्च पापकम्मन्तं, अविपक्कं कतं बहुन्ति॥", | |
"‘‘संसग्गजातस्स", | |
"आदीनवं", | |
"", | |
"‘‘मित्ते सुहज्जे अनुकम्पमानो, हापेति अत्थं पटिबद्धचित्तो।", | |
"एतं भयं सन्थवे पेक्खमानो, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘वंसो विसालोव यथा विसत्तो, पुत्तेसु दारेसु च या अपेक्खा।", | |
"वंसक्कळीरोव असज्जमानो, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘मिगो अरञ्ञम्हि यथा अबद्धो, येनिच्छकं गच्छति गोचराय।", | |
"विञ्ञू नरो सेरितं पेक्खमानो, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘आमन्तना होति सहायमज्झे, वासे ठाने गमने चारिकाय।", | |
"अनभिज्झितं सेरितं पेक्खमानो, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
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"‘‘खिड्डा", | |
"पियविप्पयोगं विजिगुच्छमानो, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
"", | |
"अनत्थजननो लोभो, लोभो चित्तप्पकोपनो।", | |
"भयमन्तरतो जातं, तं जनो नावबुज्झति॥", | |
"लुद्धो अत्थं न जानाति, लुद्धो धम्मं न पस्सति।", | |
"अन्धतमं तदा होति, यं लोभो सहते नरं॥", | |
"अनत्थजननो दोसो, दोसो चित्तप्पकोपनो।", | |
"भयमन्तरतो जातं, तं जनो नावबुज्झति॥", | |
"दुट्ठो", | |
"अन्धतमं तदा होति, यं दोसो सहते नरं॥", | |
"अनत्थजननो मोहो, मोहो चित्तप्पकोपनो।", | |
"भयमन्तरतो जातं, तं जनो नावबुज्झति॥", | |
"मूळ्हो", | |
"अन्धतमं तदा होति, यं मोहो सहते नरन्ति॥", | |
"‘‘लोभो दोसो च मोहो च, पुरिसं पापचेतसं।", | |
"हिंसन्ति अत्तसम्भूता, तचसारंव सम्फल’’न्ति", | |
"‘‘रागो च दोसो च इतोनिदाना, अरती रती लोमहंसो इतोजा।", | |
"इतो समुट्ठाय मनोवितक्का, कुमारका धङ्कमिवोस्सजन्ती’’ति", | |
"‘‘चातुद्दिसो", | |
"परिस्सयानं सहिता अछम्भी, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘दुस्सङ्गहा", | |
"अप्पोस्सुक्को परपुत्तेसु हुत्वा, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
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"विरतो इध", | |
"सो वीरियवा पधानवा, धीरो", | |
"‘‘ओरोपयित्वा गिहिब्यञ्जनानि, सञ्छिन्नपत्तो यथा कोविळारो,", | |
"छेत्वान वीरो गिहिबन्धनानि।", | |
"एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
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"‘‘सचे लभेथ निपकं सहायं, सद्धिं", | |
"अभिभुय्य सब्बानि परिस्सयानि, चरेय्य तेनत्तमनो सतीमा’’ति॥", | |
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"‘‘नो", | |
"राजाव रट्ठं विजितं पहाय, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
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"‘‘अद्धा पसंसाम सहायसम्पदं, सेट्ठा समा सेवितब्बा सहाया।", | |
"एते अलद्धा अनवज्जभोजी, एको", | |
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"‘‘दिस्वा", | |
"सङ्घट्टयन्तानि दुवे भुजस्मिं, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’॥", | |
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"तण्हादुतियो पुरिसो, दीघमद्धान संसरं।", | |
"इत्थभावञ्ञथाभावं, संसारं नातिवत्ततीति॥", | |
"‘‘एवं दुतीयेन सहा ममस्स, वाचाभिलापो अभिसज्जना वा।", | |
"एतं", | |
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"‘‘कामा", | |
"आदीनवं कामगुणेसु दिस्वा, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
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"भयं दुक्खञ्च रोगो च, गण्डो सल्लञ्च सङ्गो च।", | |
"पङ्को गब्भो च उभयं, एते कामा पवुच्चन्ति।", | |
"यत्थ सत्तो पुथुज्जनो॥", | |
"ओतिण्णो सातरूपेन, पुन गब्भाय गच्छति।", | |
"यतो च भिक्खु आतापी, सम्पजञ्ञं न रिच्चति", | |
"सो इमं पलिपथं दुग्गं, अतिक्कम्म तथाविधो।", | |
"पजं जातिजरूपेतं, फन्दमानं अवेक्खतीति॥", | |
"ईती च गण्डो च उपद्दवो च, रोगो च सल्लञ्च भयञ्च मेतं॥", | |
"‘‘ईती च गण्डो च उपद्दवो च, रोगो च सल्लञ्च भयञ्च मेतं।", | |
"एतं भयं कामगुणेसु दिस्वा, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
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"‘‘सीतञ्च", | |
"सब्बानिपेतानि अभिसम्भवित्वा, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
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"आगुं न करोति किञ्चि लोके, सब्बसंयोगे विसज्ज बन्धनानि।", | |
"सब्बत्थ न सज्जति विमुत्तो, नागो तादि पवुच्चते तथत्ता॥", | |
"‘‘नागोव यूथानि विवज्जयित्वा, सञ्जातखन्धो पदुमी उळारो।", | |
"यथाभिरन्तं विहरे अरञ्ञे, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘अट्ठानतं सङ्गणिकारतस्स, यं फस्सये सामयिकं विमुत्तिं।", | |
"आदिच्चबन्धुस्स वचो निसम्म, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
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"‘‘दिट्ठीविसूकानि उपातिवत्तो, पत्तो नियामं पटिलद्धमग्गो।", | |
"उप्पन्नञाणोम्हि अनञ्ञनेय्यो, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘निल्लोलुपो निक्कुहो निप्पिपासो, निम्मक्खो निद्धन्तकसावमोहो।", | |
"निराससो सब्बलोके भवित्वा, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
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"‘‘पापं", | |
"सयं न सेवे पसुतं पमत्तं, एको चरे खग्गविसाणकप्पो॥", | |
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"‘‘बहुस्सुतं धम्मधरं भजेथ, मित्तं उळारं पटिभानवन्तं।", | |
"अञ्ञाय अत्थानि विनेय्य कङ्खं, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
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"‘‘खिड्डं रतिं कामसुखञ्च लोके, अनलङ्करित्वा अनपेक्खमानो।", | |
"विभूसट्ठाना विरतो सच्चवादी, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
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"‘‘पुत्तञ्च दारं पितरञ्च मातरं, धनानि धञ्ञानि च बन्धवानि।", | |
"हित्वान कामानि यथोधिकानि, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
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"‘‘सङ्गो एसो परित्तमेत्थ सोख्यं, अप्पस्सादो दुक्खमेत्थ भिय्यो।", | |
"गळो एसो इति ञत्वा मतिमा, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
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"‘‘सन्दालयित्वान संयोजनानि, जालंव भेत्वा सलिलम्बुचारी।", | |
"अग्गीव दड्ढं अनिवत्तमानो, एको", | |
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"‘‘ओक्खित्तचक्खु न च पादलोलो, गुत्तिन्द्रियो रक्खितमानसानो।", | |
"अनवस्सुतो अपरिडय्हमानो, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
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"‘‘ओहारयित्वा गिहिब्यञ्जनानि, सञ्छन्नपत्तो यथा पारिछत्तको।", | |
"कासायवत्थो अभिनिक्खमित्वा, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
"", | |
"अनञ्ञपोसिमञ्ञातं", | |
"खीणासवं वन्तदोसं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणन्ति॥", | |
"‘‘रसेसु", | |
"कुले कुले अप्पटिबद्धचित्तो, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
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"‘‘पहाय", | |
"अनिस्सितो छेत्व सिनेहदोसं, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘विपिट्ठिकत्वान सुखं दुखञ्च, पुब्बेव च सोमनस्सदोमनस्सं।", | |
"लद्धानुपेक्खं समथं विसुद्धं, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
"", | |
"नासिस्सं न पिविस्सामि, विहारतो न निक्खमे।", | |
"नपि पस्सं निपातेस्सं, तण्हासल्ले अनूहतेति॥", | |
"‘‘आरद्धवीरियो परमत्थपत्तिया, अलीनचित्तो अकुसीतवुत्ति।", | |
"दळ्हनिक्कमो थामबलूपपन्नो, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘पटिसल्लानं झानमरिञ्चमानो, धम्मेसु निच्चं अनुधम्मचारी।", | |
"आदीनवं सम्मसिता भवेसु, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
"", | |
"तस्सायं पच्छिमको भवो, चरिमोयं समुस्सयो।", | |
"जातिमरणसंसारो", | |
"‘‘तण्हक्खयं पत्थयमप्पमत्तो, अनेळमूगो सुतवा सतीमा।", | |
"सङ्खातधम्मो नियतो पधानवा, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सीहोव", | |
"पदुमंव तोयेन अलिम्पमानो, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘सीहो", | |
"सेवेथ पन्तानि सेनासनानि, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
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"‘‘मेत्तं उपेक्खं करुणं विमुत्तिं, आसेवमानो", | |
"सब्बेन लोकेन अविरुज्झमानो, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
"", | |
"‘‘रागञ्च दोसञ्च पहाय मोहं, सन्दालयित्वान संयोजनानि।", | |
"असन्तसं जीवितसङ्खयम्हि, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
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"‘‘भजन्ति", | |
"अत्तत्थपञ्ञा असुची मनुस्सा, एको चरे खग्गविसाणकप्पो’’ति॥", | |
"अजितो", | |
"धोतको उपसीवो च, नन्दो च अथ हेमको॥", | |
"तोदेय्य-कप्पा दुभयो, जतुकण्णी च पण्डितो।", | |
"भद्रावुधो उदयो च, पोसालो चापि ब्राह्मणो।", | |
"मोघराजा च मेधावी, पिङ्गियो च महाइसि॥", | |
"सोळसानं", | |
"पारायनानं निद्देसा, तत्तका च भवन्ति हि", | |
"खग्गविसाणसुत्तानं, निद्देसापि तथेव च।", | |
"निद्देसा दुविधा ञेय्या, परिपुण्णा सुलक्खिताति॥" | |
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