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{ | |
"title": "१. सुद्धसच्चिकट्ठो", | |
"book_name": "कथावत्थुपाळि", | |
"chapter": "१. अनुलोमपच्चनीकं", | |
"gathas": [ | |
"‘‘स सत्तक्खत्तुपरमं, सन्धावित्वान पुग्गलो।", | |
"दुक्खस्सन्तकरो होति, सब्बसंयोजनक्खया’’ति", | |
"खन्धेसु भिज्जमानेसु, सो चे भिज्जति पुग्गलो।", | |
"उच्छेदा भवति दिट्ठि, या बुद्धेन विवज्जिता॥", | |
"खन्धेसु भिज्जमानेसु, नो चे भिज्जति पुग्गलो।", | |
"पुग्गलो सस्सतो होति, निब्बानेन समसमोति॥", | |
"‘‘सुञ्ञतो लोकं अवेक्खस्सु, मोघराज सदा सतो।", | |
"अत्तानुदिट्ठिं ऊहच्च", | |
"एवं लोकं अवेक्खन्तं, मच्चुराजा न पस्सती’’ति", | |
"‘‘किन्नु सत्तोति पच्चेसि, मार दिट्ठिगतं नु ते।", | |
"सुद्धसङ्खारपुञ्जोयं, नयिध सत्तुपलब्भति॥", | |
"‘‘यथा हि", | |
"एवं खन्धेसु सन्तेसु, होति सत्तोति सम्मुति", | |
"‘‘दुक्खमेव हि सम्भोति, दुक्खं तिट्ठति वेति च।", | |
"नाञ्ञत्र दुक्खा सम्भोति, नाञ्ञं दुक्खा निरुज्झती’’ति", | |
"अट्ठकनिग्गहपेय्याला, सन्धावनिया उपादाय।", | |
"चित्तेन पञ्चमं कल्याणं, इद्धिसुत्ताहरणेन अट्ठमं॥", | |
"‘‘उच्चावचा हि पटिपदा", | |
"न पारं दिगुणं यन्ति, नयिदं एकगुणं मुत’’न्ति", | |
"‘‘वीततण्हो", | |
"छिन्नस्स छेदियं नत्थि, ओघपासो समूहतो’’ति॥", | |
"‘‘तस्स सम्मा विमुत्तस्स, सन्तचित्तस्स भिक्खुनो।", | |
"कतस्स पतिचयो नत्थि, करणीयं न विज्जति॥", | |
"‘‘सेलो यथा एकग्घनो, वातेन न समीरति।", | |
"एवं रूपा रसा सद्दा, गन्धा फस्सा च केवला॥", | |
"‘‘इट्ठा धम्मा अनिट्ठा च, नप्पवेधेन्ति तादिनो।", | |
"ठितं चित्तं विप्पमुत्तं, वयं चस्सानुपस्सती’’ति", | |
"‘‘अनुपुब्बेन मेधावी, थोकं थोकं खणे खणे।", | |
"कम्मारो रजतस्सेव, निद्धमे मलमत्तनो’’ति", | |
"‘‘सहावस्स दस्सनसम्पदाय,", | |
"तयस्सु धम्मा जहिता भवन्ति।", | |
"सक्कायदिट्ठी विचिकिच्छितञ्च,", | |
"सीलब्बतं वापि यदत्थि किञ्चि।", | |
"चतूहपायेहि च विप्पमुत्तो,", | |
"छच्चाभिठानानि अभब्ब", | |
"‘‘अहेसुं ते", | |
"निरामगन्धा करुणेधिमुत्ता", | |
"‘‘कामरागं विराजेत्वा, ब्रह्मलोकूपगा अहु।", | |
"अहेसुं सावका तेसं, अनेकानि सतानिपि॥", | |
"‘‘निरामगन्धा करुणेधिमुत्ता, कामसंयोजनातिगा।", | |
"कामरागं विराजेत्वा, ब्रह्मलोकूपगा अहू’’ति", | |
"‘‘सीलं", | |
"अनुबुद्धा इमे धम्मा, गोतमेन यसस्सिना॥", | |
"‘‘इति बुद्धो अभिञ्ञाय, धम्ममक्खासि भिक्खुनं।", | |
"दुक्खस्सन्तकरो सत्था, चक्खुमा परिनिब्बुतो’’ति", | |
"उपलब्भो", | |
"परिञ्ञा कामरागप्पहानं, सब्बत्थिवादो आयतनं।", | |
"अतीतानागतो सुभङ्गो", | |
"‘‘सहावस्स", | |
"तयस्सु धम्मा जहिता भवन्ति।", | |
"सक्कायदिट्ठी विचिकिच्छितञ्च,", | |
"सीलब्बतं वापि यदत्थि किञ्चि।", | |
"चतूहपायेहि च विप्पमुत्तो,", | |
"छच्चाभिठानानि अभब्ब कातु’’न्ति॥", | |
"‘‘यदा", | |
"आतापिनो झायतो ब्राह्मणस्स।", | |
"अथस्स कङ्खा वपयन्ति सब्बा,", | |
"यतो पजानाति सहेतुधम्मन्ति॥", | |
"‘‘यदा", | |
"आतापिनो झायतो ब्राह्मणस्स।", | |
"अथस्स कङ्खा वपयन्ति सब्बा,", | |
"यतो खयं पच्चयानं अवेदीति॥", | |
"‘‘यदा हवे पातुभवन्ति धम्मा,", | |
"आतापिनो झायतो ब्राह्मणस्स।", | |
"विधूपयं तिट्ठति मारसेनं,", | |
"सूरियोव", | |
"‘‘या काचि कङ्खा इध वा हुरं वा,", | |
"सकवेदिया वा परवेदिया वा।", | |
"झायिनो", | |
"आतापिनो", | |
"‘‘ये कङ्खासमतिक्कन्ता, कङ्खाभूतेसु पाणिसु।", | |
"असंसया विसंयुत्ता, तेसु दिन्नं महप्फलन्ति॥", | |
"‘‘एतादिसी धम्मपकासनेत्थ,", | |
"न तत्थ किं कङ्खति कोचि सावको।", | |
"नित्थिण्णओघं", | |
"बुद्धं नमस्साम जिनं जनिन्दा’’ति", | |
"‘‘नाहं सहिस्सामि", | |
"कथङ्कथिं धोतक कञ्चि", | |
"धम्मञ्च", | |
"एवं तुवं ओघमिमं तरेसी’’ति", | |
"‘आरब्भथ", | |
"धुनाथ मच्चुनो सेनं, नळागारंव कुञ्जरो॥", | |
"‘यो", | |
"पहाय जातिसंसारं, दुक्खस्सन्तं करिस्सती’’’ति", | |
"‘‘सुखो विवेको तुट्ठस्स, सुतधम्मस्स पस्सतो।", | |
"अब्यापज्जं सुखं लोके, पाणभूतेसु संयमो॥", | |
"‘‘सुखा", | |
"अस्मिमानस्स यो विनयो, एतं वे परमं सुखं", | |
"‘‘तं सुखेन सुखं पत्तं, अच्चन्तसुखमेव तं।", | |
"तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता, एतं वे परमं सुख’’न्ति॥", | |
"‘‘अनुपुब्बेन मेधावी, थोकं थोकं खणे खणे।", | |
"कम्मारो रजतस्सेव, निद्धमे मलमत्तनो’’ति", | |
"‘‘सहावस्स दस्सनसम्पदाय,", | |
"तयस्सु धम्मा जहिता भवन्ति।", | |
"सक्कायदिट्ठी विचिकिच्छितञ्च,", | |
"सीलब्बतं वापि यदत्थि किञ्चि।", | |
"चतूहपायेहि च विप्पमुत्तो,", | |
"छच्चाभिठानानि अभब्ब कातु’’न्ति॥", | |
"परूपहारो अञ्ञाणं, कङ्खा परवितारणा।", | |
"वचीभेदो दुक्खाहारो, चित्तट्ठिति च कुक्कुळा।", | |
"अनुपुब्बाभिसमयो, वोहारो च निरोधकोति॥", | |
"‘‘मंसचक्खुं", | |
"एतानि तीणि चक्खूनि, अक्खासि पुरिसुत्तमो॥", | |
"‘‘मंसचक्खुस्स उप्पादो, मग्गो दिब्बस्स चक्खुनो।", | |
"यदा च ञाणं उदपादि, पञ्ञाचक्खुं अनुत्तरं।", | |
"तस्स चक्खुस्स पटिलाभा, सब्बदुक्खा पमुच्चती’’ति", | |
"‘‘नेव", | |
"चेतोपरियाय इद्धिया, सोतधातुविसुद्धिया।", | |
"चुतिया उपपत्तिया, पणिधि मे न विज्जती’’ति", | |
"बलं", | |
"विमुत्तं विमुच्चमानं, अत्थि चित्तं विमुच्चमानं॥", | |
"अट्ठमकस्स पुग्गलस्स, दिट्ठिपरियुट्ठानं पहीनं।", | |
"अट्ठमकस्स पुग्गलस्स, नत्थि पञ्चिन्द्रियानि चक्खुं॥", | |
"सोतं धम्मुपत्थद्धं, यथाकम्मूपगतं ञाणं।", | |
"देवेसु संवरो असञ्ञ-सत्तेसु सञ्ञा एवमेव भवग्गन्ति॥", | |
"‘‘सब्बाभिभू सब्बविदूहमस्मि,", | |
"सब्बेसु धम्मेसु अनुपलित्तो।", | |
"सब्बञ्जहो", | |
"सयं अभिञ्ञाय कमुद्दिसेय्यं॥", | |
"‘‘न मे आचरियो अत्थि, सदिसो मे न विज्जति।", | |
"सदेवकस्मिं लोकस्मिं, नत्थि मे पटिपुग्गलो॥", | |
"‘‘अहञ्हि अरहा लोके, अहं सत्था अनुत्तरो।", | |
"एकोम्हि सम्मासम्बुद्धो, सीतिभूतोस्मि निब्बुतो॥", | |
"‘‘धम्मचक्कं पवत्तेतुं, गच्छामि कासिनं पुरं।", | |
"अन्धीभूतस्मिं", | |
"‘‘मादिसा वे जिना होन्ति, ये पत्ता आसवक्खयं।", | |
"जिता मे पापका धम्मा, तस्माहं उपक जिनो’’ति", | |
"‘‘चित्तञ्हिदं चेतसिका च धम्मा,", | |
"अनत्ततो संविदितस्स होन्ति।", | |
"हीनप्पणीतं तदुभये विदित्वा,", | |
"सम्मद्दसो वेदि पलोकधम्म’’न्ति॥", | |
"‘‘सद्धा", | |
"धम्मा एते सप्पुरिसानुयाता।", | |
"एतञ्हि मग्गं दिवियं वदन्ति,", | |
"एतेन हि गच्छति देवलोक’’न्ति", | |
"‘‘नभञ्च दूरे पथवी च दूरे,", | |
"पारं समुद्दस्स तदाहु दूरे।", | |
"यतो", | |
"पभङ्करो यत्थ च अत्थमेति॥", | |
"‘‘ततो", | |
"सतञ्च धम्मं असतञ्च धम्मं।", | |
"अब्यायिको होति सतं समागमो,", | |
"यावम्पि तिट्ठेय्य तथेव होति॥", | |
"‘‘खिप्पञ्हि", | |
"तस्मा सतं धम्मो असब्भि आरका’’ति", | |
"‘‘आरामरोपा वनरोपा, ये जना सेतुकारका।", | |
"पपञ्च उदपानञ्च, ये ददन्ति उपस्सयं॥", | |
"‘‘तेसं", | |
"धम्मट्ठा सीलसम्पन्ना, ते जना सग्गगामिनो’’ति", | |
"‘‘उन्नमे उदकं वुट्ठं, यथानिन्नं पवत्तति।", | |
"एवमेव", | |
"‘‘यथा", | |
"एवमेव इतो दिन्नं, पेतानं उपकप्पति॥", | |
"‘‘न हि तत्थ कसी अत्थि, गोरक्खेत्थ न विज्जति।", | |
"वणिज्जा तादिसी नत्थि, हिरञ्ञेन कयाकयं", | |
"इतो दिन्नेन यापेन्ति, पेता कालङ्कता तहि’’न्ति", | |
"‘‘पञ्च ठानानि सम्पस्सं, पुत्तं इच्छन्ति पण्डिता।", | |
"भटो वा नो भरिस्सति, किच्चं वा नो करिस्सति॥", | |
"‘‘कुलवंसो चिरं तिट्ठे, दायज्जं पटिपज्जति।", | |
"अथ", | |
"‘‘ठानानेतानि सम्पस्सं, पुत्तं इच्छन्ति पण्डिता।", | |
"तस्मा सन्तो सप्पुरिसा, कतञ्ञू कतवेदिनो॥", | |
"‘‘भरन्ति मातापितरो, पुब्बे कतमनुस्सरं।", | |
"करोन्ति तेसं किच्चानि, यथा तं पुब्बकारिनं॥", | |
"‘‘ओवादकारी भटपोसी, कुलवंसं अहापयं।", | |
"सद्धो सीलेन सम्पन्नो, पुत्तो होति पसंसियो’’ति", | |
"‘‘असाधारणमञ्ञेसं, अचोरहरणो निधि।", | |
"कयिराथ मच्चो पुञ्ञानि, सचे सुचरितं चरे’’ति", | |
"‘‘पञ्च कामगुणा लोके, मनोच्छट्ठा पवेदिता।", | |
"एत्थ छन्दं विराजेत्वा, एवं दुक्खा पमुच्चती’’ति", | |
"‘‘सङ्कप्परागो पुरिसस्स कामो,", | |
"न ते कामा यानि चित्रानि लोके।", | |
"सङ्कप्परागो पुरिसस्स कामो,", | |
"तिट्ठन्ति चित्रानि तथेव लोके।", | |
"अथेत्थ धीरा विनयन्ति छन्द’’न्ति", | |
"‘‘आपायिको", | |
"वग्गरतो अधम्मट्ठो, योगक्खेमा पधंसति।", | |
"सङ्घं समग्गं भेत्वान", | |
"‘‘पठमं कललं होति, कलला होति अब्बुदं।", | |
"अब्बुदा जायते पेसि", | |
"घना पसाखा जायन्ति, केसा लोमा नखापि च॥", | |
"‘‘यञ्चस्स", | |
"तेन सो तत्थ यापेति, मातुकुच्छिगतो नरो’’ति", | |
"‘‘अत्तनाव कतं पापं, अत्तना संकिलिस्सति।", | |
"अत्तना अकतं पापं, अत्तनाव विसुज्झति।", | |
"सुद्धि असुद्धि पच्चत्तं, नाञ्ञो अञ्ञं विसोधये’’ति", | |
"‘‘सब्बे सङ्खारा अनिच्चाति, यदा पञ्ञाय पस्सति।", | |
"अथ निब्बिन्दति दुक्खे, एस मग्गो विसुद्धिया॥", | |
"‘‘सब्बे सङ्खारा दुक्खाति, यदा पञ्ञाय पस्सति।", | |
"अथ निब्बिन्दति दुक्खे, एस मग्गो विसुद्धिया॥", | |
"‘‘सब्बे", | |
"अथ निब्बिन्दति दुक्खे, एस मग्गो विसुद्धिया’’ति", | |
"‘‘कम्मुना वत्तती", | |
"कम्मनिबन्धना सत्ता, रथस्साणीव यायतो", | |
"‘‘कम्मेन कित्तिं लभते पसंसं,", | |
"कम्मेन जानिञ्च वधञ्च बन्धं।", | |
"तं कम्मं नानाकरणं विदित्वा,", | |
"कस्मा वदे नत्थि कम्मन्ति लोके’’ति॥", | |
"‘‘आहुतिं जातवेदोव, महामेघंव मेदनी।", | |
"सङ्घो समाधिसम्पन्नो, पटिग्गण्हाति दक्खिण’’न्ति॥", | |
"‘‘यजमानानं मनुस्सानं, पुञ्ञपेक्खान पाणिनं।", | |
"करोतं ओपधिकं पुञ्ञं, कत्थ दिन्नं महप्फलन्ति॥", | |
"‘‘चत्तारो च पटिपन्ना, चत्तारो च फले ठिता।", | |
"एस सङ्घो उजुभूतो, पञ्ञासीलसमाहितो॥", | |
"‘‘यजमानानं मनुस्सानं, पुञ्ञपेक्खान पाणिनं।", | |
"करोतं ओपधिकं पुञ्ञं, सङ्घे दिन्नं महप्फल’’न्ति", | |
"‘‘एसो हि सङ्घो विपुलो महग्गतो,", | |
"एसप्पमेय्यो उदधीव सागरो।", | |
"एते हि सेट्ठा नरवीरसावका", | |
"पभङ्करा धम्ममुदीरयन्ति॥", | |
"‘‘तेसं सुदिन्नं सुहुतं सुयिट्ठं,", | |
"ये सङ्घमुद्दिस्स ददन्ति दानं।", | |
"सा", | |
"महप्फला लोकविदून वण्णिता॥", | |
"‘‘एतादिसं यञ्ञमनुस्सरन्ता,", | |
"ये वेदजाता विचरन्ति", | |
"विनेय्य मच्छेरमलं समूलं,", | |
"अनिन्दिता सग्गमुपेन्ति ठान’’न्ति", | |
"‘‘नयिमस्मिं वा लोके परस्मिं", | |
"बुद्धेन सेट्ठो च समो च विज्जति।", | |
"यमाहुनेय्यानं अग्गतं गतो,", | |
"पुञ्ञत्थिकानं विपुलप्फलेसिन’’न्ति", | |
"‘‘आपायिको नेरयिको, कप्पट्ठो सङ्घभेदको।", | |
"वग्गरतो अधम्मट्ठो, योगक्खेमा पधंसति।", | |
"सङ्घं समग्गं भेत्वान, कप्पं निरयम्हि पच्चती’’ति", | |
"‘‘न", | |
"सोमो यमो वेस्सवणो च राजा।", | |
"सकानि कम्मानि हनन्ति तत्थ, इतो पणुन्नं", | |
"‘‘चतुक्कण्णो चतुद्वारो, विभत्तो भागसो मितो।", | |
"अयोपाकारपरियन्तो, अयसा पटिकुज्जितो॥", | |
"‘‘तस्स अयोमया भूमि, जलिता तेजसा युता।", | |
"समन्ता योजनसतं, फरित्वा तिट्ठति सब्बदा’’ति", | |
"‘‘मग्गानं अट्ठङ्गिको सेट्ठो, सच्चानं चतुरो पदा।", | |
"विरागो सेट्ठो धम्मानं, द्विपदानञ्च चक्खुमा’’ति", | |
"महानियामो", | |
"परप्पवादमद्दना, सुत्तमूलसमाहिता।", | |
"उज्जोतना सत्थुसमये, कथावत्थुपकरणेति॥" | |
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