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| nirveda - weeping, sighing,indifference,dicouragement
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| glani - guilty
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| sanka - doubt (apprehension)
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| asuya/irsya - jealousy (envy)
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| mada - madness (intoxication)
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| srama - fatigue
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| alasya/alasata - laziness,sitting idle (unwililng to work)
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| dainya - meekness (depression),(despair)
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| cinta - contemplation (anxiety/reflection)
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| moha - bewilderment,[a feeling of being perplexed and confused] (distraction)
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| smrti - rememberance (recollection)
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| dhriti - forbearance,indifference abstenance (equanimity)
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| vrida - shame
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| capalya/capalatha/capala - impudence [rude behavior that does not show respect for others] (unsteadiness)
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| harsa - jubiliation,enjoyment (joy)
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| avega - intense emotion (agitation/flurry)
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| jadya/jadatha - invalidity,looking with steadfast gaze,unable to think properly
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| garva - pride
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| visada - moroseness, sad [quality of being unhappy, annoyed, and unwilling to speak or smile]
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| autsukya - eagerness (impatience/longing)
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| nidra - sleep (drowsiness)
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| apasmara - forgetfulness (epilepsy/dementedness)
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| supti/supta - deep sleep (dreaming)
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| prabodha/vibodha - awakening
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| amarsa - impatience of opposition
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| avahittha - concealment (hiding of true feelings)
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| augrya/ugrata - violence,battle (cruelity/sterness)
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| mati - attention,instructing pupils (resolve)
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| vyadhi - disease (sickness)
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| unmada - craziness (insanity/madness)
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| mriti/marana - death
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| trasa - shock,fear (fright/alarm)
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| vitarka - argument (doubt)
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| utsuka - restless/anxious
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| tarka -deliberation [long and careful consideration or discussion]
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| rati - romantic
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| lajja - shy
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| marsa - patience
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| tyaga - sacrifice
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| vimochana - releif
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| utsaha - hyped/enthused
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| shraddhaadaya - confidence,trust
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| krodha - anger
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| karuna - pity,kind
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| veera - royality,valour,greatness
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| shanta - serene,peaceful,pleasant
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| vismaya - exaggeration/wonder/surprise/pride/doubt
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| bhakti - devotion
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| no emotion
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अपतुषारतयाविशदप्रभैःसुरतसङ्गपरिश्रमनोदिभिः।कुसुमचापमतेजयदम्शुभिर्हिमकरोमकरोर्जितकेतनम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
हुतहुताशनदीप्तिवनश्रियःप्रतिनिधिःकनकाभरणस्ययत्।युवतयःकुसुमंदधुराहितम्तदलकेदलकेसरपेशलम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अलिभिरञ्जनबिन्दुमनोहरैःकुसुमपङ्क्तिनिपातिभिरङ्कितः।नखलुशोभयतिस्मवनस्थलीम्नतिलकस्तिलकःप्रमदामिव | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
अमदयन्मधुगन्धसनाथयाकिसलयाधरसम्गतयामनः।कुसुमसम्भृतयानवमल्लिकास्मितरुचातरुचारुविलासिनी | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अरुणरागनिषेधिभिरम्शुकैःश्रवणलब्धपदैश्चयवाङ्कुरैः।परभृताविरुतैश्चविलासिनःस्मरबलैरबलैकरसाःकृताः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
उपचितावयवाशुचिभिःकणैरलिकदम्बकयोगमुपेयुषी।सदृशकान्तिरक्ष्यतमञ्जरीतिलकजालकजालकमौक्तिकैः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
ध्वजपटम्मदनस्यधनुर्भृतश्छविकरम्मुखचुर्णमृतुश्रियः।कुसुमकेसररेणुमलिव्रजाःसपवनोपवनोत्थितमन्वयुः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 |
अनुभवन्नवदोलमृतुत्सवम्पटुरपिप्रियकण्ठजिघृक्षया।अनयदासनरज्जुपरिग्रहेभुजलताम्जलतामबलाजनः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
त्यजतमानमलम्बतविग्रहैर्नपुनरेतिगतम्चतुरम्वयः।परभृताभिरितीवनिवेदितेस्मरमतेरमतेस्मवधुजनः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अथयथासुखमार्तवमुत्सवम्समनुभुयविलासवतीसखः।नरपतिश्चकमेमृगयारतिम्समधुमन्मधुमन्मथसम्निभः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
परिचयम्चललक्ष्यनिपातनेभयरुचोश्चतदिङ्गितबोधनम्।श्रमजयात्प्रगुणाम्चकरोत्यसौतनुमतोऽनुमतःसचिवैर्ययौ | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
मृगवनोपगमक्षमवेषभृद्विपुलकण्ठनिषक्तशरासनः।गगनमश्वखुरोद्धतरेणुभिर्नृसवितासवितानमिवाकरोत् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
ग्रथितमौलिरसौवनमालयातरुपलाशसवर्णतनुच्छदः।तुरगवल्गनचञ्चलकुण्डलोविरुरुचेरुरुचेष्टितभुमिषु | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तनुलताविनिवेशितविग्रहाभ्रमरसम्क्रमितेक्षणवृत्तयः।ददृशुरध्वनितम्वनदेवताःसुनयनम्नयनन्दितकोसलम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 1 | 0 | 0 |
श्वगणिवागुरिकैःप्रथमास्थितम्व्यपगतानलदस्युविवेशसः।स्थिरतुरम्गमभुमिनिपानवन्मृगवयोगवयोपचितम्वनम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
अथनभस्यइवत्रिदशायुधम्कनकपिङ्गतडिद्गुणसम्युतम्।धनुरधिज्यमनाधिरुपाददेनरवरोरवरोषितकेसरी | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 1 | 0 | 0 |
तस्यस्तनप्रणयिभिर्मुहुरेणशाबैर्व्याहन्यमानहरिणीगमनम्पुरस्तात्।आविर्बभुवकुशगर्भमुखम्मृगाणाम्युथम्तदग्रसरगर्वितकृष्णसारम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
तत्प्रार्थितम्जवनवाजिगतेनराज्ञातुणीमुखोद्धृतशरेणविशीर्णपङ्क्ति।श्यामीचकारवनमाकुलदृष्टिपातैर्वातेरितोत्पलदलप्रकरैरिवार्द्रैः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
लक्ष्यीकृतस्यहरिणस्यहरिप्रभावःप्रेक्ष्यस्थिताम्सहचरीम्व्यवधायदेहम्।आकर्णकृष्टमपिकामितयासधन्वीबाणम्कृपामृदुमनाःप्रतिसम्जहार | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तस्यापरेष्वपिमृगेषुशरान्मुमुक्षोःकर्णान्तमेत्यबिभिदेनिबिडोऽपिमुष्टिः।त्रासातिमात्रचटुलैःस्मरतःसुनेत्रैःप्रौढप्रियानयनविभ्रमचेष्टितानि | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
उत्तस्थुषःसपदिपल्वलपङ्कमध्यान्मुस्ताप्ररोहकवलावयवानुकीर्णम्।जग्राहसद्रुतवराहकुलस्यमार्गम्सुव्यक्तमार्द्रपदपङ्क्तिभिरायताभिः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तम्वाहनादवनतोत्तरकायमीषद्विध्यन्तमुद्धृतसटाःप्रतिहन्तुमीषुः।नात्मानमस्यविविदुःसहसावराहावृक्षेषुविद्धमिषुभिर्जघनाश्रयेषु | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तेनाभिघातरभसस्यविकृष्यपत्रीवन्यस्यनेत्रविवरेमहिषस्यमुक्तः।निर्भिद्यविग्रहमशोणितलिप्तपुङ्खस्तम्पातयाम्प्रथममासपपातपश्चात् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
प्रायोविषाणपरिमोक्षलघूत्तमाङ्गान्खड्गाम्श्चकारनृपतिर्निशितैःक्षुरप्रैः।शृङ्गम्सदृप्तविनयाधिकृतःपरेषामत्युच्छ्रितम्नममृषेनतुदीर्घमायुः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
व्याघ्रानभीरभिमुखोत्पतितान्गुहाभ्यःफुल्लासनाग्रविटपानिववायुरुग्णान्।शिक्षाविशेषलघुहस्ततयानिमेषात्तुणीचकारशरपुरितवक्त्ररन्ध्रान् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
निर्घातोग्रैःकुञ्जलीनाञ्जिघाम्सुर्ज्यानिर्घोषैःक्षोभयामाससिम्हान्।नुनम्तेषामभ्यसुयापरोऽभुद्वीर्योदग्रेराजशब्दोमृगेषु | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तान्हत्वागजकुलबद्धतीव्रवैरान्काकुत्स्थःकुटिलनखाग्रलग्नमुक्तान्।आत्मानम्रणकृतकर्मणाम्गजानामानृण्यम्गतमिवमार्गणैरमम्स्त | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
चमरान्परितःप्रवर्तिताश्वःक्वचिदाकर्णविकृष्टभल्लवर्षी।नृपतीनिवतान्वियोज्यसद्यःसितबालव्यजनैर्जगामशान्तिम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अपितुरगसमीपादुत्पतन्तम्मयुरम्नसरुचिरकलापम्बाणलक्ष्यीचकार।सपदिगतमनस्कश्चित्रमाल्यानुकीर्णेरतिविगलितबन्धेकेशपाशेप्रियायाः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तस्यकर्कशविहारसम्भवम्स्वेदमाननविलग्नजालकम्।आचचामसतुषारशीकरोभिन्नपल्लवपुटोवनानिलः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
इतिविस्मृतान्यकरणीयमात्मनःसचिवावलम्बितधुरम्धराधिपम्।परिवृद्धरागमनुबन्धसेवयामृगयाजहारचतुरेवकामिनी | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
सललितकुसुमप्रवालशय्याम्ज्वलितमहौषधिदीपिकासनाथाम्।नरपतिरतिवाहयाम्बभुवक्वचिदसमेतपरिच्छदस्त्रियामाम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
उषसिसगजयुथकर्णतालैःपटुपटहध्वनिभिर्विनीतनिद्रः।अरमतमधुराणितत्रशृण्वन्विहगविकुजितवन्दिमङ्गलानि | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 |
अथजातुरुरोर्गृहीतवर्त्माविपिनेपार्श्वचरैरलक्ष्यमाणः।श्रमफेनमुचातपस्विगाढाम्तमसाम्प्रापनदीम्तुरम्गमेण | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
कुम्भपुरणभवःपटुरुच्चैरुच्चचारनिनदोऽम्भसितस्याः।तत्रसद्विरदबृम्हितशङ्कीशब्दपातिनमिषुम्विससर्ज | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
नृपतेःप्रतिषिद्धमेवतत्कृतवान्पङ्क्तिरथोविलङ्घ्ययत्।अपथेपदमर्पयन्तिहिश्रुतवन्तोऽपिरजोनिमीलिताः | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
हातातेतिक्रन्दितमाकर्ण्यविषण्णस्तस्यान्विष्यन्वेतसगुढम्प्रभवम्सः।शल्यप्रोतम्प्रेक्ष्यसकुम्भम्मुनिपुत्रम्तापादन्तःशल्यइवासीत्क्षितिपोऽपि | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तेनावतीर्यतुरगात्प्रथितान्वयेनपृष्टान्वयःसजलकुम्भनिषण्णदेहः।तस्मैद्विजेतरतपस्विसुतम्स्खलद्भिरात्मानमक्षरपदैःकथयाम्बभुव | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तच्चोदितःसतमनुद्धृतशल्यमेवपित्रोःसकाशमवसन्नदृशोर्निनाय।ताभ्याम्तथागतमुपेत्यतमेकपुत्रमज्ञ्यानतःस्वचरितम्नृपतिःशशम्स | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तौदम्पतीबहुविलप्यशिशोःप्रहर्त्राशल्यम्निखातमुदहारयतामुरस्तः।सोऽभूत्परासुरथभुमिपतिम्शशापहस्तार्पितैर्नयनवारिभिरेववृद्धः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
दिष्टान्तमाप्स्यतिभवानपिपुत्रशोकादन्त्येवयस्यहमिवेतितमुक्तवन्तम्।आक्रान्तपुर्वमिवमुक्तविषम्भुजम्गम्प्रोवाचकोसलपतिःप्रथमापराद्धः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
शापोऽप्यदृष्टतनयाननपद्मशोभेसानुग्रहोभगवतामयिपातितोऽयम्।कृष्याम्दहन्नपिखलुक्षितिमिन्धनेद्धोबीजप्ररोहजननीम्ज्वलनःकरोति | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
इत्थम्गतेगतघृणःकिमयम्विधत्ताम्वध्यस्तवेत्यभिहितोवसुधाधिपेन।एधान्हुताशनवतःसमुनिर्ययाचेपुत्रम्परासुमनुगन्तुमनाःसदारः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
प्राप्तानुगःसपदिशासनमस्यराजासम्पाद्यपातकविलुप्तधृतिर्निवृत्तः।अन्तर्निविष्टपदमात्मविनाशहेतुम्शापम्दधज्ज्वलनमौर्वमिवाम्बुराशिः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
इतिकालिदासकृतरघुवम्शमहाकाव्येनवमःसर्गः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
पृथिवीम्शासतस्तस्यपाकशासनतेजसः।किन्चिदूनमनूनर्द्धेःशरदामयुतम्ययौ | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
नचोपलेभेपूर्वेषामृणनिर्मोक्षसाधनम्।सुताभिधानम्सज्योतिःसद्यःशोकतमोपहम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अतिष्ठत्प्रत्ययापेक्षसम्ततिःसचिरम्नृपः।प्राङ्मन्थादनभिव्यक्तरत्नोत्पत्तिरिवार्णवः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
ऋष्यशृङ्गादयस्तस्यसन्तःसन्तानकाङ्क्षिणः।आरेभिरेजितात्मानःपुत्रीयामिष्टिमृत्विजः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
तस्मिन्नवसरेदेवाःपौलस्त्योपप्लुताहरिम्।अभिजग्मुर्निदाघार्ताश्छायावृक्षमिवाध्वगाः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तेचप्रापुरुदन्वन्तम्बुबुधेचादिपूरुषः।अव्याक्षेपोभविष्यन्त्याःकार्यसिद्धेर्हिलक्षणम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
भोगिभोगासनासीनम्ददृशुस्तम्दिवौकसः।तत्फणामण्डलोदर्चिर्मणिद्योतितविग्रहम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
श्रियःपद्मनिषण्णायाःक्षौमान्तरितमेखले।अङ्केनिक्षिप्तचरणमास्तीर्णकरपल्लवे | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
प्रबुद्धपुण्डरीकाक्षम्बालातपनिभाम्शुकम्।दिवसम्शारदमिवप्रारम्भसुखदर्शनम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 |
प्रभानुलिप्तश्रीवत्सम्लक्ष्मीविभ्रमदर्पणम्।कौस्तुभाख्यमपाम्सारम्बिभ्राणम्बृहतोरसा | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
बहुभिर्विटपाकारैर्दिव्याभरणभूषितैः।आविर्भूतमपाम्मध्येपारिजातमिवापरम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
दैत्यस्त्रीगण्डलेखानाम्मदरागविलोपिभिः।हेतिभिश्चेतनावद्भिरुदीरितजयस्वनम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
मुक्तशेषविरोधेनकुलिशव्रणलक्ष्मणा।उपस्थितम्प्राञ्जलिनाविनीतेनगरुत्मता | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
योगनिद्रान्तविशदैःपावनैरवलोकनैः।भृग्वादीननुगृह्णन्तम्सौखशायनिकानृषीन् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
प्रणिपत्यसुरास्तस्मैशमयित्रेसुरद्विषाम्।अथैनम्तुष्टुवुःस्तुत्यमवाङ्मनसगोचरम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
नमोविश्वसृजेपूर्वम्विश्वम्तदनुबिभ्रते।अथविश्वस्यसम्हर्त्रेतुभ्यम्त्रेधास्थितात्मने | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
रसान्तराण्येकरसम्यथादिव्यम्पयोऽश्नुते।देशेदेशेगुणेष्वेवमवस्थास्त्वमविक्रियः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
अमेयोमितलोकस्त्वमनर्थीप्रार्थनावहः।अजितोजिष्णुरत्यन्तमव्यक्तोव्यक्तकारणम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
हृदयस्थमनासन्नमकामम्त्वाम्तपस्विनम्।दयालुमनघस्पृष्टम्पुराणमजरम्विदुः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
सर्वज्ञस्त्वमविज्ञातःसर्वयोनिस्त्वमात्मभूः।सर्वप्रभुरनीशस्त्वमेकस्त्वम्सर्वरूपभाक् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
सप्तसामोपगीतम्त्वाम्सप्तार्णवजलेशयम्।सप्तार्चिमुखमाचख्युःसप्तलोकैकसम्श्रयम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
चतुर्वर्गफलम्ज्ञानम्कालावस्थाश्चतुर्युगाः।चतुर्वर्णमयोलोकस्त्वत्तःसर्वम्चतुर्मुखात् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
अभ्यासनिगृहीतेनमनसाहृदयाश्रयम्।ज्योतिर्मयम्विचिन्वन्तियोगिनस्त्वाम्विमुक्तये | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
अजस्यगृह्णतोजन्मनिरीहस्यहतद्विषः।स्वपतोजागरूकस्ययाथार्थ्यम्वेदकस्तव | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
शब्दादीन्विषयान्भोक्तुम्चरितुम्दुश्चरम्तपः।पर्याप्तोऽसिप्रजाःपातुमौदासीन्येनवर्तितुम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
बहुधाप्यागमैर्भिन्नाःपन्थानःसिद्धिहेतवः।त्वय्येवनिपतन्त्योघाजाह्नवीयाइवार्णवे | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
त्वय्यावेशितचित्तानाम्त्वत्समर्पितकर्मणाम्।गतिस्त्वम्वीतरागाणामभूयःसम्निवृत्तये | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
प्रत्यक्षोऽप्यपरिच्छेद्योमह्यादिर्महिमातव।आप्तवागनुमानाभ्याम्साध्यम्त्वाम्प्रतिकाकथा | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
केवलम्स्मरणेनैवपुनासिपुरुषम्यतः।अनेनवृत्तयःशेषानिवेदितफलास्त्वयि | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
उदधेरिवरत्नानितेजाम्सीवविवस्वतः।स्तुतिभ्योव्यतिरिच्यन्तेदूराणिचरितानिते | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
अनवाप्तमवाप्तव्यम्नतेकिञ्चनविद्यते।लोकानुग्रहएवैकोहेतुस्तेजन्मकर्मणोः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
महिमानम्यदुत्कीर्त्यतवसम्ह्रियतेवचः।श्रमेणतदशक्त्यावानगुणानामियत्तया | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
इतिप्रसादयामासुस्तेसुरास्तमधोक्षजम्।भूतार्थव्याहृतिःसाहिनस्तुतिःपरमेष्ठिनः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
तस्मैकुशलसम्प्रश्नव्यञ्जितप्रीतयेसुराः।भयमप्रलयोद्वेलादाचख्युर्नैरृतोदधेः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अथवेलासमासन्नशैलरन्ध्रानुवादिना।स्वरेणोवाचभगवान्परिभूतार्णवध्वनिः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
पुराणस्यकवेस्तस्यवर्णस्थानसमीरिता।बभूवकृतसम्स्काराचरितार्थैवभारती | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
बभौसदशनज्योत्स्नासाविभोर्वदनोद्गता।निर्यातशेषाचरणाद्गङ्गेवोर्ध्वप्रवर्तिनी | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
जानेवोरक्षसाक्रान्तावनुभावपराक्रमौ।अङ्गिनाम्तमसेवोभौगुणौप्रथममध्यमौ | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
विदितम्तप्यमानम्चतेनमेभुवनत्रयम्।अकामोपनतेनेवसाधोर्हृदयमेनसा | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
कार्येषुचैककार्यत्वादभ्यर्थ्योऽस्मिनवज्रिणा।स्वयमेवहिवातोऽग्नेःसारथ्यम्प्रतिपद्यते | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
स्वासिधारापरिहृतःकामम्चक्रस्यतेनमे।स्थापितोदशमोमूर्धालभ्याम्शइवरक्षसा | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
स्रष्टुर्वरातिसर्गात्तुमयातस्यदुरात्मनः।अत्यारूढम्रिपोःसोढम्चन्दनेनेवभोगिनः | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
धातारम्तपसाप्रीतम्ययाचेसहिराक्षसः।दैवात्सर्गादवध्यत्वम्मर्त्येष्वास्थापराङ्मुखः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
सोऽहम्दाशरथिर्भूत्वारणभूमेर्बलिक्षमम्।करिष्यामिशरैस्तीक्ष्णैस्तच्छिरःकमलोच्चयम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अचिराद्यज्वभिर्भागम्कल्पितम्विधिवत्पुनः।मायाविभिरनालीढमादास्यध्वेनिशाचरैः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
वैमानिकाःपुण्यकृतस्त्यजन्तुमरुताम्पथि।पुष्पकालोकसम्क्षोभम्मेघावरणतत्पराः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
मोक्ष्यध्वेस्वर्गबन्दीनाम्वेणीबन्धनदूषितान्।शापयन्त्रितपौलस्त्यबलात्कारकचग्रहैः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
रावणावग्रहक्लान्तमितिवागमृतेनसः।अभिवृष्यमरुत्सस्यम्कृष्णमेघस्तिरोदधे | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
पुरहूतप्रभृतयःसुरकार्योद्यतम्सुराः।अम्शैरनुययुर्विष्णुम्पुष्पैर्वायुमिवद्रुमाः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
अथतस्यविशाम्पत्युरन्तेकामस्यकर्मणः।पुरुषःप्रबभूवाग्नेर्विस्मयेनसहर्त्विजाम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
हेमपात्रगतम्दोर्भ्यामादधानःपयश्चरुम्।अनुप्रवेशादाद्यस्यपुम्सस्तेनापिदुर्वहम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
प्राजापत्योपनीतम्तदन्नम्प्रत्यग्रहीन्नृपः।वृषेवपयसाम्सारमाविष्कृतमुदन्वता | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अनेनकथिताराज्ञोगुणास्तस्यान्यदुर्लभाः।प्रसूतिम्चकमेतस्मिम्स्त्रैलोक्यप्रभवोऽपियत् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
सतेजोवैष्णवम्पत्न्योर्विभेजेचरुसम्ज्ञितम्।द्यावापृथिव्योःप्रत्यग्रमहर्पतिरिवातपम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अर्चितातस्यकौसल्याप्रियाकेकयवम्शजा।अतःसम्भाविताम्ताभ्याम्सुमित्रामैच्छदीश्वरः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
Subsets and Splits