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| nirveda - weeping, sighing,indifference,dicouragement
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| glani - guilty
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| sanka - doubt (apprehension)
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| asuya/irsya - jealousy (envy)
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| mada - madness (intoxication)
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| srama - fatigue
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| alasya/alasata - laziness,sitting idle (unwililng to work)
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| dainya - meekness (depression),(despair)
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| cinta - contemplation (anxiety/reflection)
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| moha - bewilderment,[a feeling of being perplexed and confused] (distraction)
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| smrti - rememberance (recollection)
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| dhriti - forbearance,indifference abstenance (equanimity)
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| vrida - shame
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| capalya/capalatha/capala - impudence [rude behavior that does not show respect for others] (unsteadiness)
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| harsa - jubiliation,enjoyment (joy)
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| avega - intense emotion (agitation/flurry)
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| jadya/jadatha - invalidity,looking with steadfast gaze,unable to think properly
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| garva - pride
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| visada - moroseness, sad [quality of being unhappy, annoyed, and unwilling to speak or smile]
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| autsukya - eagerness (impatience/longing)
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| nidra - sleep (drowsiness)
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| apasmara - forgetfulness (epilepsy/dementedness)
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| supti/supta - deep sleep (dreaming)
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| prabodha/vibodha - awakening
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| amarsa - impatience of opposition
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| avahittha - concealment (hiding of true feelings)
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| augrya/ugrata - violence,battle (cruelity/sterness)
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| mati - attention,instructing pupils (resolve)
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| vyadhi - disease (sickness)
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| unmada - craziness (insanity/madness)
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| mriti/marana - death
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| trasa - shock,fear (fright/alarm)
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| vitarka - argument (doubt)
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| utsuka - restless/anxious
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| tarka -deliberation [long and careful consideration or discussion]
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| rati - romantic
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| lajja - shy
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| marsa - patience
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| tyaga - sacrifice
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| vimochana - releif
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| utsaha - hyped/enthused
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| shraddhaadaya - confidence,trust
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| krodha - anger
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| karuna - pity,kind
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| veera - royality,valour,greatness
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| shanta - serene,peaceful,pleasant
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| vismaya - exaggeration/wonder/surprise/pride/doubt
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| bhakti - devotion
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| no emotion
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यावत्प्रतापनिधिराक्रमतेनभानुरह्नायतावदरुणेनतमोनिरस्तम्|आयोधनाग्रसरतांत्वयिवीरयातेकिंवारिपूंस्तवगुरुःस्वयमुच्छिनत्ति | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 1 | 0 | 0 |
शय्यांजहत्युभयपक्षविनीतनिद्राःस्तम्बेरमामुखरशृङ्खलकर्षिणस्ते|येषांविभातितरुणारुणरागयोगाद्भिन्नाद्रिगैरिकतटाइवदन्तकोशाः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 1 | 0 | 0 |
दीर्घेष्वमीनियमिताःपटमण्डपेषुनिद्रांविहायवनजाक्षवनायुदेश्याः|वक्त्रोष्मणामलिनयन्तिपुरोगतानिलेह्यानिसैन्धवशिलाशकलानिवाहाः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 1 | 0 | 0 |
भवतिविरलभक्तिर्म्लानपुष्पोपहारःस्वकिरणपरिवेषोद्भेदशून्याःप्रदीपाः|अयमपिचगिरंनस्त्वत्प्रबोधप्रयुक्तामनुवदतिशुकस्तेमञ्जुवाक्पञ्जरस्थः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 1 | 0 | 0 |
इतिविरचितवाग्भिर्बन्दिपुत्रैःकुमारःसपदिविगतनिद्रस्तल्पमुज्झांचकार|मदपटुनिनदद्भिर्बोधितोराजहंसैःसुरगजइवगाङ्गंसैकतंसुप्रतीकः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 1 | 0 | 0 |
अथविधिमवसाय्यशास्त्रदृष्टंदिवसमुखोचितमञ्चिताक्षिपक्ष्मा|कुशलविरचितानुकूलवेशःक्षितिपसमाजमगात्स्वयंवरस्थम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 1 | 0 | 0 |
इतिकालिदासकृतरघुवंशमहाकाव्येपंचमःसर्गः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
सतत्रमञ्चेषुमनोज्ञवेषान्सिंहासनस्थानुपचारवत्सु|वैमानिकानाम्मरुतामपश्यदाकृष्टलीलान्नरलोकपालान् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
रतेर्गृहीतानुनयेनकामम्प्रत्यर्पितस्वाङ्गमिवेश्वरेण|काकुत्स्थमालोकयताम्नृपाणाम्मनोबभूवेन्दुमतीनिराशम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
वैदर्भनिर्दिष्टमसौकुमारःकॢप्तेनसोपानपथेनमञ्चम्|शिलाविभङ्गैर्मृगराजशावस्तुङ्गम्नगोत्सङ्गमिवारुरोह | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 1 | 0 | 0 |
परार्ध्यवर्णास्तरणोपपन्नमासेदिवान्रत्नवदासनम्सः|भूयिष्ठमासीदुपमेयकान्तिर्मयूरपृष्ठाश्रयिणागुहेन | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 1 | 0 | 0 |
तासुश्रियाराजपरंपरासुप्रभाविशेषोदयदुर्निरीक्ष्यः|सहस्रधात्माव्यरुचद्विभक्तःपयोमुचाम्पङ्क्तिषुविद्युतेव | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
तेषाम्महार्हासनसंस्थितानामुदारनेपथ्यभृताम्समध्ये|रराजधाम्नारघुसूनुरेवकल्पद्रुमाणामिवपारिजातः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 1 | 0 | 0 |
नेत्रव्रजाःपौरजनस्यतस्मिन्विहायसर्वान्नृपतीन्निपेतुः|मदोत्कटेरेचितपुष्पवृक्षागन्धद्विपेवन्यइवद्विरेफाः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अथस्तुतेबन्दिभिरन्वयज्ञैःसोमार्कवंश्येनरदेवलोके|संचारितेचागुरुसारयोनौधूपेसमुत्सर्पतिवैजयन्तीः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
पुरोपकण्टोपवनाश्रयाणाम्कलापिनामुद्धतनृत्तहेतौ|प्रध्मातशङ्खेपरितोदिगन्तांस्तूर्यस्वनेमूर्च्छतिमङ्गलार्थे | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
मनुष्यवाह्यम्चतुरन्तयानमध्यास्यकन्यापरिवारशोभि|विवेशमञ्चान्तरराजमार्गम्पतिंवराकॢप्तविवाहवेषा | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
तस्मिन्विधानातिशयेविधातुःकन्यामयेनेत्रशतैकलक्ष्ये|निपेतुरन्तःकरणैर्नरेन्द्रादेहैःस्थिताःकेवलमासनेषु | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
ताम्प्रत्यभिव्यक्तमनोरथानांमहीपतीनाम्प्रणयाग्रदूत्यः|प्रवालशोभाइवपादपानांशृङ्गारचेष्टाविविधाबभूवुः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
कश्चित्कराभ्यामुपगूढनालमालोलपत्राभिहतद्विरेफम्|रजोभिरन्तःपरिवेषबन्धिलीलारविन्दम्भ्रमयांचकार | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
विस्रस्तमंसादपरोविलासीरत्नानुविद्धाङ्गदकोटिलग्नम्|प्रालम्बमुत्कृष्ययथावकाशम्निनायसाचीकृतचारुवक्त्रः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
आकुञ्चिताग्राङ्गुलिनाततोऽन्यःकिञ्चित्समावर्जितनेत्रशोभः|तिर्यग्विसंसर्पिनखप्रभेणपादेनहैमम्विलिलेखपीठम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
निवेश्यवामम्भुजमासनार्धेतत्संनिवेशात्अधिकोन्नतांसः|कश्चिद्विवृत्तत्रिकभिन्नहारःसुहृत्समाभाषणतत्परोऽभूत् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
विलासिनीविभ्रमदन्तपत्रमपाण्डुरम्केतकबर्हमन्यः|प्रियानितम्बोचितसंनिवेशैर्विपाटयामासयुवानखाग्रैः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
कुशेशयाताम्रतलेनकश्चित्करेणरेखाध्वजलाञ्छनेन|रत्नाङ्गुलीयप्रभयानुविद्धानुदीरयामाससलीलमक्षान् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
कश्चिद्यथाभागमवस्थितेऽपिस्वसंनिवेशाद्व्यतिलङ्घिनीव|वज्रांशुगर्भाङ्गुलिरन्ध्रमेकम्व्यापारयामासकरम्किरीटे | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
ततोनृपाणाम्श्रुतवृत्तवंशापुंवत्प्रगल्भाप्रतिहाररक्षी|प्राक्संनिकर्षम्मगधेश्वरस्यनीत्वाकुमारीमवदत्सुनन्दा | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
असौशरण्यःशरणोन्मुखानामगाधसत्त्वोमगधप्रतिष्ठः|राजाप्रजारञ्जनलब्धवर्णःपरंतपोनामयथार्थनामा | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
कामम्नृपाःसन्तुसहस्रशोऽन्येराजन्वतीमाहुरनेनभूमिम्|नक्षत्रताराग्रहसंकुलापिज्योतिष्मतीचन्द्रमसैवरात्रिः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
क्रियाप्रबन्धादयमध्वराणामजस्रमाहूतसहस्रनेत्रः|शच्याश्चिरम्पाण्डुकपोललम्बान्मन्दारशून्यानलकांश्चकार | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अनेनचेदिच्छसिगृह्यमाणम्पाणिम्वरेण्येनकुरुप्रवेशे|प्रासादवातायनसंस्थितानाम्नेत्रोत्सवम्पुष्पपुराङ्गनानाम् | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
एवम्तयोक्तेतमवेक्ष्यकिंचिद्विस्रंसिदूर्वाङ्कमधूकमाला|ऋजुप्रणामक्रिययैवतन्वीप्रत्यादिदेशैनमभाषमाणा | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
ताम्सैववेत्रग्रहणेनियुक्ताराजान्तरम्राजसुताम्निनाय|समीरणोत्थेवतरंगरेखापद्मान्तरम्मानसराजहंसीम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
जगादचैनामयमङ्गनाथःसुराङ्गनाप्रार्थितयौवनश्रीः|विनीतनागःकिलसूत्रकारैरैन्द्रम्पदम्भूमिगतोऽपिभुङ्क्ते | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अनेनपर्यासयताश्रुबिन्दून्मुक्ताफलस्थूलतमान्स्तनेषु|प्रत्यर्पिताःशत्रुविलासिनीनामुन्मुच्यसूत्रेणविनैवहाराः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
निसर्गभिन्नास्पदमेकसंस्थमस्मिन्द्वयम्श्रीश्चसरस्वतीच|कान्त्यागिरासूनृतयाचयोग्यात्वमेवकल्याणितयोस्तृतीया | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अथाङ्गराजदवतार्यचक्षुर्याहीतिजन्यामवदत्कुमारी|नासौनकाम्योनचवेदसम्यग्द्रष्टुम्नसाभिन्नरुचिर्हिलोकः | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
ततःपरम्दुःप्रसहम्द्विषद्भिर्नृपम्नियुक्ताप्रतिहारभूमौ|निदर्शयामासविशेषदृश्यमिन्दुम्नवोत्थानमिवेन्दुमत्यै | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अवन्तिनाथोऽयमुग्रबाहुर्विशालवक्षास्तनुवृत्तमध्यः|आरोप्यचक्रभ्रममुष्णतेजास्त्वष्ट्रेवयत्नोल्लिखितोविभाति | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अस्यप्रयाणेषुसमग्रशक्तेरग्रेसरैर्वाजिभिरुत्थितानि|कुर्वन्तिसामन्तशिखामणीनाम्प्रभाप्ररोहास्तमयम्रजांसि | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
असौमहाकालनिकेतनस्यवसन्नदूरेकिलचन्द्रमौलेः|तमिस्रपक्षेऽपिसहप्रियाभिर्ज्योत्स्नावतोनिर्विशतिप्रदोषान् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अनेनयूनासहपार्थिवेनरम्भोरुकच्चिन्मनसोरुचिस्ते|सिप्रातरंगानिलकम्पितासुविहर्तुमुद्यानपरंपरासु | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तस्मिन्नभिद्योतितबन्धुपद्मेप्रतापसंशोषितशत्रुपङ्के|बबन्धसानोत्तमसौकुमार्याकुमुद्वतीभानुमतीवभावम् | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तामग्रतस्तामरसान्तराभामनूपराजस्यगुणैरनूनाम्|विधायसृष्टिम्ललिताम्विधातुर्जगादभूयःसुदतीम्सुनन्दा | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
सङ्ग्रामनिर्विष्टसहस्रबाहुरष्टादशद्वीपनिखातयूपः|अनन्यसाधारणराजशब्दोबभूवयोगीकिलकार्तवीर्यः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अकार्यचिन्तासमकालमेवप्रादुर्भवंश्चापधरःपुरस्तात्|अन्तःशरीरेष्वपियःप्रजानाम्प्रत्यादिदेशाविनयम्विनेता | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
ज्याबन्धनिष्पन्दभुजेनयस्यविनिःश्वसद्वक्त्रपरंपरेण|कारागृहेनिर्जितवासवेनलङ्केश्वरेणोषितमाप्रसादात् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तस्यान्वयेभूपतिरेषजातःप्रतीपइत्यागमवृद्धसेवी|येनःश्रियःसंश्रयदोषरूढम्स्वभावलोलेत्ययशम्प्रमृष्टम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
आयोधनेकृष्णगतिम्सहायमवाप्ययःक्षत्रियकालरात्रिम्|धाराम्शिताम्रामपरश्वधस्यसंभावयत्युत्पलपत्रसाराम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अस्याङ्कलक्ष्मीर्भवदीर्घबाहोर्माहिष्मतीवप्रनितम्बकाञ्चीम्|प्रासादजालैर्जलवेणिरम्याम्रेवाम्यदिप्रेक्षितुमस्तिकामः | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तस्याःप्रकामम्प्रियदर्शनोऽपिनसक्षितीशोरुचयेबभूव|शरत्प्रमृष्टाम्बुधरोपरोधःशशीवपर्याप्तकलोनलिन्याः | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
साशूरसेनाधिपतिम्सुषेणमुद्दिश्यलोकान्तरगीतकीर्तिम्|आचारशुद्धोभयवंशदीपम्शुद्धान्तरक्ष्याजगदेकुमारी | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
नीपान्वयःपार्थिवएषयज्वागुणैर्यमाश्रित्यपरस्परेण|सिद्धाश्रमम्शान्तमिवेत्यसत्त्वैर्नैसर्गिकोऽप्युत्ससृजेविरोधः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 1 | 0 | 0 | 0 |
यस्यात्मगेहेनयनाभिरामाकान्तिर्हिमांशोरिवसंनिविष्टा|हर्म्याग्रसंरूढतृणाङ्कुरेषुतेजोऽविषह्यम्रिपुमन्दिरेषु | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 1 | 0 | 0 | 0 |
यस्यावरोधस्तनचन्दनानाम्प्रक्षालनाद्वारिविहारकाले|कलिन्दकन्यामथुराम्गतापिगङ्गोर्मिसंसक्तजलेवभाति | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
त्रस्तेनतार्क्ष्यात्किलकालियेनमणिम्विसृष्टम्यमुनौकसायः|वक्षःस्थलव्यापिरुचम्दधानःसकौस्तुभम्ह्रेपयतीवकृष्णम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 1 | 0 | 0 |
संभाव्यभर्तारममुम्युवानम्मृदुप्रवालोत्तरपुष्पशय्ये|वृन्दावनेचैत्ररथादनूनेनिर्विश्यताम्सुन्दरियौवनश्रीः | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अध्यास्यचाम्भःपृषतोक्षितानिशैलेयगन्धीनिशिलातलानि|कलापिनाम्प्रावृषिपश्यनृत्यम्कान्तासुगोवर्धनकन्दरासु | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
नृपम्तमावर्तमनोज्ञनाभिःसाव्यत्यगादन्यवधूर्भवित्री|महीधरम्मार्गवशादुपेतम्स्रोतोवहासागरगामिनीव | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अथाङ्गदालिष्टभुजम्भुजिष्याहेमाङ्गदम्नामकलिङ्गनाथम्|आसेदुषीम्सादितशत्रुपक्षम्बालामबालेन्दुमुखीम्बभाषे | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
असौमहेन्द्रादिसमानसारःपतिर्महेन्द्रस्यमहोदधेश्च|यस्यक्षरत्सैन्यगजच्छलेनयात्रासुयातीवपुरोमहेन्द्रः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
ज्याघातरेखेसुभुजोभुजाभ्याम्बिभर्तियश्चापभृताम्पुरोगः|रिपुश्रियाम्साञ्जनबाष्पसेकेबन्दीकृतानामिवपद्धतीद्वे | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
यमात्मनःसद्मनिसंनिकृष्टोमन्द्रध्वनित्याजितयामतूर्यः|प्रासादवातायनदृश्यवीचिःप्रबोधयत्यर्णवएवसुप्तम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अनेनसार्धम्विहराम्बुराशेस्तीरेषुतालीवनमर्मरेषु|द्वीपान्तरानीतलवङ्गपुष्पैरपाकृतस्वेदलवामरुद्भिः | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
प्रलोभिताप्याकृतिलोभनीयाविदर्भराजावरजातयैवम्|तस्मादपावर्ततदूरकृष्टानीत्येवलक्ष्मीःप्रतिकूलदैवात् | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अथोरगाख्यस्यपुरस्यनाथम्दौवारिकीदेवसरूपमेत्य|इतश्चकोराक्षिविलोकयेतिपूर्वानुशिष्टाम्निजगादभोज्याम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
पाण्ड्योऽयमंसार्पितलम्बहारःकॢप्ताङ्गरागोहरिचन्दनेन|आभातिबालातपरक्तसानुःसनिर्झरोद्गारइवाद्रिराजः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
विन्ध्यस्यसंस्तम्भयितामहाद्रेर्निःशेषपीतोज्झितसिन्धुराजः|प्रीत्याश्वमेधावभृथार्द्रमूर्तेःसौस्नातिकोयस्यभवत्यगस्त्यः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 1 | 0 |
अस्त्रम्हरादाप्तवतादुरापम्येनेन्द्रलोकावजयायदृप्तः|पुराजनस्थानविमर्दशङ्कीसंधायलङ्काधिपतिःप्रतस्थे | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
अनेनपाणौविधिवद्गृहीतेमहाकुलीनेनमहीवगुर्वी|रत्नानुविद्धार्णवमेखलायादिशःसपत्नीभवदक्षिणस्याः | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
ताम्बूलवल्लीपरिणद्धपूगास्वेलालतालिङ्गितचन्दनासु|तमालपत्रास्तरणासुरन्तुम्प्रसीदशश्वन्मलयस्थलीषु | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
इन्दीवरश्यामतनुर्नृपोऽसौत्वम्रोचनागौरशरीरयष्टिः|अन्योन्यशोभापरिवृद्धयेवाम्योगस्तडित्तोयदयोरिवास्तु | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
स्वसुर्विदर्भाधिपतेस्तदीयोलेभेऽन्तरम्चेतसिनोपदेशः|दिवाकरादर्शनबद्धकोशेनक्षत्रनाथांशुरिवारविन्दे | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
संचारिणीदीपशिखेवरात्रौयम्यम्व्यतीयायपतिंवरासा|नरेन्द्रमार्गाट्टइवप्रपेदेविवर्णभावम्ससभूमिपालः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तस्याम्रघोःसूनुरुपस्थितायाम्वृणीतमाम्नेतिसमाकुलोऽभूत्|वामेतरःसंशयमस्यबाहुःकेयूरबन्धोच्छ्वसितैर्नुनोद | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तम्प्राप्यसर्वावयवानवद्यम्व्यावर्ततान्योपगमात्कुमारी|नहिप्रफुल्लम्सहकारमेत्यवृक्षान्तरम्काङ्क्षतिषट्पदाली | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तस्मिन्समावेशितचित्तवृत्तिमिन्दुप्रभामिन्दुमतीमवेक्ष्य|प्रचक्रमेवक्तुमनुक्रमज्ञासविस्तरम्वाक्यमिदम्सुनन्दा | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
इक्ष्वाकुवंश्यःककुदम्नृपाणाम्ककुत्स्थइत्याहितलक्षणोऽभूत्|काकुत्स्थशब्दम्यतउन्नतेच्छाःश्लाघ्यम्दधत्युत्तरकोसलेन्द्राः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
महेन्द्रमास्थायमहोक्षरूपम्यःसंयतिप्राप्तपिनाकिलीलः|चकारबाणैरसुराङ्गनानाम्गण्डस्थलीःप्रोषितपत्रलेखाः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
ऐरावतस्फालनविश्लथम्यःसंघट्टयन्नङ्गदमङ्गदेन|उपेयुषःस्वामपिमूर्तिमग्र्यामर्धासनम्गोत्रभिदोऽधितष्ठौ | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 1 | 0 | 0 |
जातःकुलेतस्यकिलोरुकीर्तिःकुलप्रदीपोनृपतिर्दिलीपः|अतिष्ठदेकोनशतक्रतुत्वेशक्राभ्यसूयाविनिवृत्तयेयः | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
यस्मिन्महीम्शासतिवाणिनीनाम्निद्राम्विहारार्धपथेगतानाम्|वातोऽपिनास्रंसयदंशुकानिकोलम्बयेदाहरणायहस्तम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
पुत्रोरघुस्तस्यपदम्प्रशास्तिमहाक्रतोर्विश्वजितःप्रयोक्ता|चतुर्दिगावर्जितसंभृताम्योमृत्पात्रशेषामकरोद्विभूतिम् | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
आरूढमद्रीनुदधीन्वितीर्णम्भुजंगमानाम्वसतिम्प्रविष्टम्|ऊर्ध्वम्गतम्यस्यनचानुबन्धियशःपरिच्छेत्तुमियत्तयालम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 |
असौकुमारस्तमजोऽनुजातस्त्रिविष्टपस्येवपतिम्जयन्तः|गुर्वीम्धुरम्योजगतस्यपित्राधुर्येणदम्यःसदृशम्बिभर्ति | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
कुलेनकान्त्यावयसानवेनगुणैश्चतैस्तैर्विनयप्रधानैः|त्वमात्मनस्तुल्यममुम्वृणीष्वरत्नम्समागच्छतुकाञ्चनेन | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
ततःसुनन्दावचनावसानेलज्जाम्तनूकृत्यनरेन्द्रकन्या|दृष्ट्याप्रसादामलयाकुमारम्प्रत्यग्रहीत्संवरणस्रजेव | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
सायूनितस्मिन्नभिलाषबन्धम्शशाकशालीनतयानवक्तुम्|रोमाञ्चलक्ष्येणसगात्रयष्टिम्भित्त्वानिराक्रामदरालकेश्याः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तथागतायाम्परिहासपूर्वम्सख्याम्सखीवेत्रभृदाबभाषे|आर्येव्रजामोऽन्यतइत्यथैनाम्वधूरसूयाकुटिलम्ददर्श | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
साचूर्णगौरम्रघुनन्दनस्यधात्रीकराभ्याम्करभोपमोरूः|आसञ्जयामासयथाप्रदेशम्कण्ठेगुणम्मूर्तमिवानुरागम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तयास्रजामङ्गलपुष्पमय्याविशालवक्षःस्थललम्बयासः|अमंस्तकण्ठार्पितबाहुपाशाम्विदर्भराजावरजाम्वरेण्यः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
शशिनमुपगतेयम्कौमुदीमेघमुक्तंजलनिधिमनुरूपम्जह्नुकन्यावतीर्णा|इतिसमगुणयोगप्रीतयस्तत्रपौराःश्रवणकटुनृपाणामेकवाक्यम्विवव्रुः | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
प्रमुदितवरपक्षमेकतस्तत्क्षितिपतिमण्डलमन्यतोवितानम्|उषसिसरइवप्रफुल्लपद्मम्कुमुदवनप्रतिपन्ननिद्रमासीत् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 |
इतिकालिदासकृतरघुवंशमहाकाव्येषष्ठःसर्गः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
अथोपयन्त्रासदृशेणयुक्ताम्स्कन्देनसाक्षादिवदेवसेनाम्।स्वसारमादायविदर्भनाथःपुरप्रवेशाभिमुखोबभूव | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 |
सेनानिवेशान्पृथिवीक्षितोऽपिजग्मुर्विभातग्रहमन्दभासः।भोज्याम्प्रतिव्यर्थमनोरथत्वाद्रूपेषुवेशेषुचसाभ्यसूया | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
सांनिध्ययोगात्किलतत्रशच्याःस्वयंवरक्षोभकृतामभावः।काकुत्स्थमुद्दिश्यसमत्सरोऽपिशशामतेनक्षितिपाललोकः | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
तावत्प्रकीर्णाभिनवोपचारमिन्द्रायुधद्योतिततोरणाङ्कम्।वरःसवध्वासहराजमार्गम्प्रापध्वजच्छायनिवारितोष्णम् | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
ततस्तदालोकनतत्पराणाम्सौधेषुचामीकरजालवत्सुबभूवुरित्थम्पुरसुन्दरीणाम्त्यक्तान्यकार्याणिविचेष्टितानि | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
आलोकमार्गम्सहसाव्रजन्त्याकयाचिदुद्वेष्टनवान्तमाल्यः।बद्धुम्नसंभावितएवतावत्करेणरुद्धोऽपिचकेशपाशः | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 1 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 | 0 |
Subsets and Splits