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सिआ कांगरी (सिया कांगड़ी) काराकोरम पर्वतमाला की बाल्तोरो मुज़ताग़ उपश्रेणी का एक ऊँचा पर्वत है जो जम्मू और कश्मीर में भारत-प्रशासित क्षेत्र, पाक-प्रशासित कश्मीर और चीन-प्रशासित शक्सगाम घाटी के मिलन बिन्दु के पास स्थित है। इसे भारत पूर्णतः अपना इलाका मानता है। यह विश्व का ६३वाँ सर्वोच्च पर्वत है। इन्हें भी देखें भारत के चरम बिंदुओं की सूची भारत के पर्वत गिलगित-बल्तिस्तान के पर्वत चीन के पर्वत
बोनर कोइल, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। अलीगढ़ जिला के गाँव
ग्रेटर नॉएडा प्रोद्योगिकी संस्थान (जीएनआईओटी)उत्तर प्रदेश, भारतकेग्रेटर नोएडा में एक अभियांत्रिकी महाविद्यालय है। इसे अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद द्वारा अनुमोदित किया गया है और यह डॉ एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय, लखनऊ से संबद्ध है। वर्तमान में यह स्नातक और स्नातकोत्तर दोनों स्तरों पर शिक्षा प्रदान करता है। ग्रेटर नॉएडा प्रोद्योगिकी संस्थान (जीएनआईओटी) जीएनआईओटी संस्थानों के समूह का एक हिस्सा है। इसे श्रीराम शैक्षणिक ट्रस्ट द्वारा वर्ष २००० में स्थापित किया गया था। संस्थान का परिसर ग्रेटर नोएडा के नॉलेज पार्क २ में स्थित है। यह परिसर २० एकड़ जमीन में फैला हुआ है। शैक्षिक भवन के अलावा इसमें एक अस्थायी छात्रावास, औषधालय, क्रीड़ास्थल, व्यायामशाला, छात्र गतिविधि केंद्र और एक सभागार है। परिसर पूरी तरह आवासीय है। संस्थान में निम्नलिखित पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं: इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार अभियांत्रिकी
टाघनडुब्बा नेपालके मेची अंचलके झापा जिला का एक गाँव विकास समिति है।
आरी पंथन (अरी पंथन) भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के बडगाम ज़िले में स्थित एक गाँव है। इन्हें भी देखें जम्मू और कश्मीर के गाँव बडगाम ज़िले के गाँव
पारो आनंद भारत की शीर्ष लेखिकाओं में एक हैं। पारो मुश्किल परिस्थितियों का सामना कर रहे किशोरों पर विस्तार से लिखती रही हैं। पारो आनंद रचनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए 'लिट्रेचर इन एक्शन' नाम से कार्यक्रम चलाती हैं। उनका उपन्यास नो गन्स ऐट माय सन्स फ्यूनरल, हिंसा के बीच बढ़ते हुए एक किशोर की कहानी है। इसे आईबीबीवाय ऑनर लिस्ट, २००६ में शामिल किया गया था। इस उपन्यास पर फ़िल्म बन रही है और इसका जर्मन और स्पैनिश भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। पारो राष्ट्रीय बाल साहित्य केंद्र की प्रमुख भी रह चुकी हैं। उन्होंने ३,००० बच्चों की मदद कर दुनिया का सबसे लंबा समाचार पत्र भी तैयार करवाया है, जो एक वर्ल्ड रिकॉर्ड है। बच्चों के लिए साहित्य में पारो के योगदान के लिए उन्हें राष्ट्रपति की ओर से सम्मानित भी किया जा चुका है।
सिरौली फर्रुखाबाद, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। सस्वती शिशु मन्दिर डॉ राम मनोहर लोहिया कन्या हाई स्कूल स्वामि दीनबंधु इंटर कॉलेज स्कूल : वाला जी पब्लिक स्कूल पहाड़पुर सिरौली फर्रुखाबाद फर्रुखाबाद जिला के गाँव
टूर डी अफ़्रीका विश्व की सबसे लंबी एवं सबसे कठिन साईकल दौड़ स्पर्धा मे से एक है। इस स्पर्धा का आयोजन प्रति वर्ष होता है जिसमे प्रतियोगी मिस्र के काहिरा से दक्षिण अफ़्रीका के केप टाऊन तक साईकल दौड़ाते है। इस स्पर्धा मे लगभग १०० चरण होते है जहॉ प्रतियोगी रुक कर आराम करते है। इस प्रतियोगीता का आयोजन कर्ता कनाडा की कंपनी टूर डी अफ़्रीका लिमिटेड करवाती है। अफ़्रीका मे खेल कूद
टी॰ के॰ राजीव कुमार (जन्म : २० सितम्बर १९६१ को कोट्टयम, भारत में) तिरुवनन्तपुरम से मलयालम सिनेमा में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक हैं। राजीव कुमार ने २००३ से २००६ तक केरल राज्य चलचित्र अकादमी के अध्यक्ष पद पर कार्यरत रहे हैं जो २००२ से वहाँ उपाध्यक्ष थे। उन्हें केरल राज्य फ़िल्म पुरस्कारों के लिए जुरी चैयरमेन के लिए भी नामित किया जा चुका है। राजीव कुमार का जन्म कोट्टयम जिला, केरल में थाज़तहूपुरकल परिवार में हुआ। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा एमटी सेमिनरी हाई स्कूल, कोट्टायम और एसडीवी स्कूल, अलाप्पुझा मे पूर्ण हुई। यूनिवर्सिटी कॉलेज त्रिवेंद्रम से उन्होंने स्नातक की पढ़ाई पूर्ण की। 'मलयालम सिनेमा पर' प्रोफाईल १९६१ में जन्मे लोग
चीन के सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश में खड़ी थ्येनशान पर्वत माले में समुद्र सतह से तीन हजार मीटर ऊंची सीधी खड़ी चट्टानों पर एक विशेष किस्म की वनस्पति उगती है, जो हिम कमल के नाम से चीन भर में मशहूर है। हिम कमल का फूल एक प्रकार की दुर्लभ मूल्यवान जड़ी बूटी है, जिस का चीनी परम्परागत औषधि में खूब प्रयोग किया जाता है। विशेष रूप से ट्यूमर के उपचार में, लेकिन इधर के सालों में हिम कमल की चोरी की घटनाएं बहुत हुआ करती है, इस से थ्येन शान पहाड़ी क्षेत्र में उस की मात्रा में तेजी से गिरावट आयी। वर्ष २००४ से हिम कमल संरक्षण के लिए व्यापक जनता की चेतना उन्नत करने के लिए प्रयत्न शुरू किए गए जिसके फलस्वरूप पहले हिम कमल को चोरी से खोदने वाले पहाड़ी किसान और चरवाहे भी अब हिम कमल के संरक्षक बन गए हैं।
बौद्ध धर्म के धर्मग्रन्थ केवल पालि में ही नहीं हैं बल्कि बहुत बड़ी संख्या में संस्कृत में भी हैं। कुछ ग्रन्थ पालि और संस्कृत के मिश्रित भाषा में भी रचे गये हैं। बुद्धवचनों के अलावा बौद्ध विद्वानों ने दर्शन, न्याय (तर्कशास्त्र), आदि के ग्रन्थ संस्कृत में लिखे हैं। बहुत से ग्रन्थ काल के गाल में समा गये किन्तु उसके बावजूद संस्कृत में रचित बौद्ध गर्न्थ विपुल मात्रा में मिलते हैं। संस्कृत में रचित कुछ प्रमुख बौद्धग्रन्थ सर्वास्तिवाद दीर्घ आगम (कुछ अंश) मध्यम आगम (आंशिक) सर्वास्तिवाद संयुक्त आगम (आंशिक) एकोत्तर आगम (आंशिक) सूत्र निपात (आंशिक) शतसाहस्रिका - १००००० पंक्तियाँ पञ्चविंशतिसाहस्रिका - २५००० पंक्तियाँ अष्टसाहस्रिका - ८००० लाइन्स अध्यार्धसाहस्रिका - २५०० लाइन्स पञ्चशतिका - ५०० लाइन्स वज्रच्छेदिका प्रज्ञापारमिता सूत्र-३०० लाइन्स प्रज्ञापारमिता हृदय सूत्र विमलकीर्ति निर्देश सूत्र अन्य महायान सूत्र धरणी - नेपाल से प्राप्त अनेक ग्रन्थ आर्यशूर द्वारा रचित जातकमाला हरिभट्ट द्वारा रचित जातकमाला प्रज्ञापारमितास्तोत्र - मान्यता है कि इसकी रचना राहुल भद्र ने की थी। धर्मधातुस्तव - नागार्जुन द्वारा रचित मातृचेत द्वारा रचित शतपंचाशिका तथा चतुःशतक आर्यदेव द्वारा रचित चतुःशतक धर्मकीर्ति द्वारा रचित प्रमाणविनिश्चय एवं अन्य ग्रन्थ चन्द्रकीर्ति द्वारा रचित प्रसन्नपदा शान्तिदेव कृत बोधिसत्त्वचर्यावतार कमलशील कृत भवनाक्रम अश्वघोष कृत बुद्धचरित (संस्कृत में आंशिक रूप से उपलब्ध ; चीनी भष में सम्पूर्ण उपलब्ध) अश्वघोष कृत सौन्दरानन्द महाकाव्य आर्यचन्द्र कृत मैत्रेयव्याकरण (आंशिक रूप से) अश्वघोष द्वारा रचित सारिपुत्रप्रकरण (आंशिक रूप में उपलब्ध, ९वाँ एवं अन्तिम अध्याय)
देश की बेटी नंदिनी एक सोनी टीवी पर प्रसारित होने वाला धारावाहिक था। इसका निर्माण रश्मि शर्मा ने किया है। यह धारावाहिक ७ अक्टूबर २०१३ से ८ मई २०१४ तक चला। इसके पश्चात सोनी पर इसके स्थान पर छनछन नाम के धारावाहिक शुरू हुई। कृति नागपुरे (नंदिनी राजवीर रघुवंशी) रफी मलिक (राजवीर रघुवंशी) भारतीय टीवी कार्यक्रम सोनी टीवी के कार्यक्रम
सायली, चम्पावत तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के चम्पावत जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा सायली, चम्पावत तहसील सायली, चम्पावत तहसील
एदि रामा, ४ जुलाई १९६४ मे अल्बानिया में जन्में, एक अल्बानियाई रानीतिज्ञ और कलाकार हैं। वे एक भूतपूर्व बॉस्केटबॉल खिलाड़ी हैं और अल्बानिया समाजवादी दल के सदस्य है। उन्होंने अपनी जीवनवृत्ति (करियर) १९६८ में पैरिस से लौटने के बाद आरम्भ की। पहले वे फ़ातोस नानो की सरकार में संस्कृति, युवा और खेल मंत्री थे और वर्ष २००० में वे तिराना के महापौर चुने गए। एदि रामा २००४ में दूसरी और फिर २००७ में तीसरी बार महापौर चुने गए। अल्बानिया के जुलाई २००५ के संसदीय चुनावों में अल्बानिया समाजवादी दल की हार के बाद, एदि रामा ने फ़ातोस नानो के बाद दल का नेतृत्व सम्भाला। "सिटि मेयर" नामक संजाल समुदाय द्वारा वर्ष २००४ में उन्हें वर्ष का महापौर चुना गया। इन्हें भी देखें तिराना के महापौर तिराना नगर निगम एदि रामा: यूरोपीय नायक २००५ टाइम पत्रिका द्वारा। अल्बानिया के लोग १९६४ में जन्मे लोग
शम्भुनाथ पण्डित (१८२० -- ६ जून १८६७) बंगाल के नवजागरण के उल्लेखनीय व्यक्ति थे जो कोलकाता उच्च न्यायालय प्रथम भारतीय न्यायधीश बने। उनका जन्म कोलकाता में हुआ था। पिता सदाशिव पण्डित काश्मीरी पण्डित मूल के थे।
चुनचुनीडांधरमजयगढ मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़ जिले का एक गाँव है। छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़
भौतिकी में किसी यांत्रिक निकाय स्वतंत्रता कोटि अथवा स्वतंत्रता की कोटि (डिग्रीस ऑफ फ्रीडम; डॉफ) उन स्वतंत्र प्राचलों को निरुपित करने वाली संख्या है जो किसी विन्यास अथवा प्रावस्था (स्टेट) को परिभाषित करते हैं। यांत्रिक अभियांत्रिकी, संरचना इंजीनियरी, वातांतरिक्ष इंजीनियरी, रोबोटिकी आदि में स्वातंत्र्य कोटि एक महत्वपूर्ण संकल्पना है।
इंडोनेशियाई विकिपीडिया विकिपीडिया का इंडोनेशियाई भाषा का संस्करण है और इस पर लेखों की कुल संख्या १,०४,००० से अधिक है (२३ मई २००९)। इस विकिपीडिया का पहला लेख इले़ट्रॉन (विद्युद्णु) ३० मई, २००३ को लिखा गया था, लेकिन इसका मुखपृष्ठ छः महीनों बाद २९ नवंबर को निर्मित किया गया था।
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हॉलीवुड के मशहूर निर्देशक जिन्हें उनकी मशहूर फिल्म पिंक पैंथर के लिए जाना जाता है। एडवर्ड २६ जुलाई १९२२ को ओकलाहोमा के तुलसा में पैदा हुए थे। उनका विवाह सर्वप्रथम पैट्रिसिया से हुआ था, जिनसे उनहें दो बच्चे जेनिफर और जियोफ्रे हुए थे। वर्ष १९६९ में उन्होंने जूली एंड्रयू से दूसरी शादी की। इसके बाद उन्होंने दो बच्चों को गोद लिया था। वह लम्बे समय से बीमार चल रहे थे और उन्हें कैलीफोर्निया के सांता मोनिका में सेंट जोंस अस्पताल में भर्ती कराया गया था। ८८ वर्ष की अवस्था में १५ दिसम्बर २०१० को उनका निधन हो गया। उन्हें सुपरहिट फिल्म 'पिंक पैंथर' के निर्देशन के लिए जाना जाता है। इसके अलावा उन्होंने 'ब्रेकफास्ट और 'डेज ऑफ वाइन एंड रोज' के लिए जाना जाता है। हॉलीवुड के मशहूर निर्देशक एडवर्ड का निधन
अदा जाफ़री एक पाकिस्तानी लेखिका और कवयित्री थीं। यह पहली मुख्य रूप से उर्दू में कविता लिखने वाली महिला बनी। इनकी कहानी के लिए कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। कवयित्री होने के साथ-साथ वे एक लेखिका भी थी और समकालीन उर्दू साहित्य में उनका विशिष्ट स्थान है।< कवयित्री हो साहित्य की दिशा में उनके योगदान के लिय पाकिस्तान राईटर्स गिल्ड, पाकिस्तान सरकार और उत्तरी अमेरिका और यूरोप के साहित्यिक समाजों ने उन्हें पुरस्कार देकर सम्मानित किया था। इनका जन्म उत्तर प्रदेश, भारत में २२ अगस्त १९२४ में हुआ था। इनका बचपन का नाम अज़ीज़ जहान था। वे केवल तीन वर्स्ष की थी जब उन्के पिता, मौलवी बदरूल हसन की मृत्यु हो गयी थी और उनकी माँ ने उनका का पालन-पोषण किया। यह १२ वर्ष के उम्र में ही कविता बनाने लगीं। नुरून हसन जाफरी से लखनऊ में २९ जनवरी १९४७ को शादी हो जाती है। शादी के बाद वह अपने पति के साथ लखनऊ से कराची चले जाते हैं। जहाँ नुरून अँग्रेजी और उर्दू समाचार पत्र में एक लेखक बन जाते हैं। ३ दिसम्बर १९९५ को नुरून की मौत हो जाती है। इसके बाद वह कराची से टोरोंटो में चले जाती हैं। जहाँ वह उर्दू का प्रचार करती हैं। उन्होंने २७ जनवरी १९४७ पर नुरुल हसन जाफरेय से लखनऊ में शादी की। शादी के बाद उन्होंने अदा जाफ्रि का उपनाम ले लिया। उनके पति, नुरुल हसन, भारत की संघीय सरकार में सर्वोच्च पद के सिविल सेवक थे। १९४७ में विभाजन के पश्चात, वे अपने पति के साथ कराची चले गई। उनके पति एक साहित्यकार भी थे और अंग्रेजी एव्ं उर्दु अखबारो में उन्होने समीक्षक के तौर पर काम भी किया था। उनके पति अंजुमन-ए तरक्की-ए उर्दू नाम संस्था के अध्यक्ष भी रह चुके थे। अदा जाफरी अपने पति को अपनी सबसे बडी प्रेरणा मानती थी। उनके पति का देहांत ३ दिसंबर १९९५ को हुआ था। अदा जाफरी और नुरुल जाफ्रि के सबीहा, आजमी और आमिर नाम के तीन बच्चे थे। सबीहा जाफरी ने जुबैर इकबाल से शादी की है और वे पोटोमेक, मेरीलैंड, अमेरिका में बसे है। उन्के, सबा इकबाल, यूसुफ इकबाल और समीर इकबाल नाम के तीन बच्चे हैं। आजमी जाफरी और उनकी पत्नी शूआ जाफ्रि अब एंडोवर, मासेचुसेट्स, अमेरिका में बसे हुए हैं। उनके दो बेटे, फाइज़ और आज़िम हैं। अदा जाफरी अपने बेटे आमिर जाफ्रि और उनकी पत्नी माहा जाफरी के साथ करची में रहा करती थी। उनकी एक बेटी थी, असरा जाफ्रि। बाद का जीवन अदा जाफरी कराची में रहा करती थी।उन्होंने उर्दू भाषा को बढ़ावा देने में एक सक्रिय भूमिका निभाई थी और इसके लिये,वे अकसर कराची और टोरंटो के बीच लगातार यात्रा करती थी। उनके आखरी समय में अदा जाफरी का इलाज कराची में हो रहा था। १२ मार्च २०१५ की शाम को उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के समय वे ९० वर्ष की थी। जाफरी की मौत पर पाकिस्तानी सूचना मंत्री प्रसार तथा राष्ट्रीय विरासत, परवेज राशिद, सिंध के राज्यपाल डॉ इश्रातुल एबाद खान, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री मियां नवाज शरीफ, डॉ मुहम्मद कासिम बुघयो, अध्यक्ष पाल, और ज़ाहिदा परवीन, महानिदेशक पाल, ने दु: ख व्यक्त किया। उन सब ने उर्दु भाषा के प्रति जाफ्रि के योगदान को सराहा। उसके अंतिम संस्कार प्रार्थना अल-हिलाल मस्जिद, कराची में आयोजित किया गया था। उन्हें पि।ई।सि।एच।एस कब्रिस्तान, जमशेद टाउन, कराची, में दफनाया गया था। पहली महिला कवि अदा जाफरी एक पारंपरिक रूप से रूढिवादी समाज का हिस्सा थी जिसमें महिलाओं को स्वतंत्र रूप से सोचने की और अपने खयाल अभिव्यक्त करने की अनुमति थी। पर उन्होंने निडरता से खुद को व्यक्त किया। पारंपिकता में जडे हुए व्यक्तित्व होने के बावजूद उन्होंने आधुनिक कला में भाग लिया। वर्ष १९५० से ही उन्हें 'उर्दू कविता की प्रथम महिला'की मान्यता दी गई थी। उनकी माँ और उसके पति नुरुल हसन ने, सामाजिक कठिनाइयों के बावजूद उन्हें अपने साहित्यिक गतिविधियों को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया। वे अख्तर शीरानी और जफर अली खान असर लखनवी जैसे महान कवोयों की छात्रा थी और उनसे अपनी कविताओं की जाँच और सुधार् करवाती थी। अदा जाफरी लिंग-तटस्थ दृष्टिकोण से लिखती थी, हालांकि उन्होंने कई नारीवादी विषय जैसे ओरतो साथ हो रहे भेदभाव, उनको को यौन वस्तुओं के रूप में देखा जाना और उनका अमानवीकरण आदि पर भी लिखा है। उसका व्यक्तित्व उसकी कविता से अनुपस्थित लगता है। अदा जाफरी ने एक पत्नी और मां के रूप में एक संशोधित पारंपरिक मुहावरा में अपने अनुभवों के बारे में लिखा है, लेकिन यह भी इन रिश्तों के साथ की पूर्ति के अभाव दिखा है। अदा जाफरी की कार्यों की सूची मै ज्यादातर गज़ल है हालांकि उन्होंनें आजाद नज़्म और उर्दू हाइक का भी प्रयोग किया है। उर्दू शायरी की दो शैलियाँ है- नज़्म और ग़ज़ल और उन्होंनें दोनों में महारत हासिल किया था। अपने गज़लों में उन्होंनें उपनाम 'अदा' का प्रयोग किया। कविताओं और गज़ल आदि के अलावा उन्होंनें कुछ मज़ामीन भी लिखे हैं। अदा जाफरी का पहला ग़ज़ल १९४५ में अख्तर शीरानी की पत्रिका, रोमन, में प्रकाशित हुआ था। वर्ष १९५० मे, 'मैं साज़ ढूंढती रही' प्रकाशित हुआ जो की अदा जाफरी की कवोताओं का पहला संग्रह था। वर्ष १९८७ में उनकी पुस्तक 'ग़ज़ल नूमा' प्रकाशित हुआ था जिसमें पिछले उर्दू कवियों पर लघु जीवनी और संक्षिप्त टिप्पणियों के साथ लघु निबंध युक्त थे। इसके अलावा, उन्होंनें उर्दू शायरी के पाँच संग्रह प्रकाशित करवाए थे('शहर-ए-दर्द', 'घज़ालन, तुम तो वाकिफ हो !', 'हर्फ-ए शनासा', 'सफर बाकी', और 'मौसम, मौसम ')। उन्होंने अपनी आत्मकथा (' जो रही सो बेखबरी रही'), और चालीस शोध पत्र उनकी कार्यों की सूची में सम्मिलित हैं। उन्होंनें उर्दू हायकू के अपने संग्रह, 'साज़-ए सुखन बहाना है', को भी प्रकाशित करवाया। उनका गज़ल, 'होठों पे कभी उनके मेरा नाम आए' को उस्ताद अमानत अली खान ने गाया और प्रचलित किया। इस गज़ल का पहला दोहा कुछ इस प्रकार है: १९५५ में, हमदर्द फाउंडेशन, नई दिल्ली ने 'सदी के प्रख्यात महिला कवि' के रूप में उन्हें पहचाना। उसके बाद १९६७ में, उन्हें अपने दूसरे काव्य संग्रह, 'शहर-ए दर्द' के लिए 'पाकिस्तान राइटर्स गिल्ड' द्वारा ओ'अदमजी साहित्य पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। उनके काम की मान्यता में, पाकिस्तान की सरकार वर्ष १९८१ में उन्हें 'उत्कृष्टता के पदक' से सम्मानित किया। १९९४ में उन्होंनें 'पाकिस्तान अकादमी्ट् ओफ लेट्ट्र्स' से बाबा-ए उर्दू, डॉ मौलवी अब्दुल हक पुरस्कार प्राप्त किया और १९९७ में क़ायदे-आज़म साहित्य पुरस्कार मिला। हमदर्द फाउंडेशन, पाकिस्तान ने उन्हें योग्यता का प्रमाण पत्र से सम्मानित किया। अदा जाफरी को विश्व भर में प्रसिद्धि मिली और उन्हें उत्तरी अमेरिका और यूरोप के कई साहित्यिक समाजों से विभिन्न अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। पाकिस्तान की सरकार ने २००२ में उन्हें प्राईड ओफ पेर्फोर्मेन्स अवार्ड फोर लिट्रेचर से सम्मानित किया गया। उन्हें २००३ में पाकिस्तान अकादमी ओफ लेट्ट्र्स द्वारा, साहित्य में आजीवन उपलब्धि के लिए कमल-ए फैन पुरस्कार प्राप्त हुआ था। १९९७ में पाकिस्तान अकादमी ओफ लेट्ट्र्स (पाल) द्वारा स्थापित किए गए इस साहित्यिक पुरस्कार की वे पहली महिला प्राप्तकर्ता थी। अदा जाफरी नारीवाद की समर्थक थी और यह विचार उनके कुछ कार्यों में भी झलकते हैं। उन्होंनें कुछ इस प्रकार अपने विचार व्यक्त किए हैं: मैं पुरुषों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को स्वीकार नहीं करती हूँ, बल्कि मैं केवल उन प्रतिबंधों को स्वीकार करूगी मेरे मन मुझ पर लगायेगा॥। मुझे एक घूंघट के पीछे से चीजों को कहना और अधिक उचित लगता है क्योंकि प्रतीकान्मक्ता और संकेत से भी तो कविता की सुंदरता दिखती है। इन ही विचारो के कारण उन्हें पाकिस्तान की सबसे बहतरीन नारीवाद कवयित्रियों में से एक माना जाता हैं विभिन्न आलोचकों का कहना है कि अदा जाफरी की कविताएँ की अभिव्यक्ति, विनम्रता से भरी है। वे अपनी कविताओं के माध्यम से एक अनूठी कलात्मक तरीके से पुराने और नए विचारों को जोड़ती है। काजी अब्दुल गफ्फा ने अदा जाफरी के छंद के संग्राह के अपने परिचय में विशेष रूप से उनके अभिव्यक्ति की नारीवादी रास्ते के क्षेत्र में उनके नाम का उल्लेख किया। उर्दू कवि और आलोचक, जज़ीब कुरैशी ने कहा: "अदा जाफरी पहली और एकमात्र महिला कवि है जो अपने कविताओं में गालिब, इकबाल, और जिगर के शाश्वत रंग ढालती है" इन्हें भी देखें १९२४ में जन्मे लोग २०१५ में निधन
अन्नपूर्णा पर्वतसमूह उत्तर-मध्य नेपाल के हिमालय में स्थित है जिसमें ८,००० मीटर (२६,००० फीट) से अधिक की एक चोटी शामिल है तथा ७,००० मीटर से अधिक तेरह चोटियाँ, और ६,००० मीटर से अधिक सोलह चोटियाँ शामिल है। यह पूरी पर्वतमाला ५५ किलोमीटर लम्बी है, इसके पश्चिम में काली गंडकी घाटी, उत्तर और पूर्व में मार्शयांगडी नदी और दक्षिण में पोखरा घाटी से घिरा है। इसके पश्चिमी छोर पर अन्नपूर्णा पर्वतमाला ने एक उच्च घाटी को घेरा है जिसे अन्नपूर्णा अभयारण्य के नाम से जाना जाता है। अन्नपूर्णा-१ समुद्र तल से ८,०९१ मीटर की ऊँचाई पर स्थित दुनिया का दसवाँ सबसे ऊँचा पर्वत है। आठ-हजार मीटर की ऊंचाई वाले पर्वतों में सबसे पहले सफल अभियान इसी पर्वत पर हुआ था। अन्नपूर्णा पुंजक में से अधिक छह प्रमुख शिखर हैं ऊंचाई: अन्नपूर्णा हिमाल में कम प्रमुख और अन्य चोटियों में शामिल हैं: अन्नपूर्णा ई केंद्रीय अन्नपूर्णा ई पूर्व नीलगिरि हिमाल उत्तर , सेंट्रल और साउथ इन्हें भी देखें ब्लम, अर्लीन (१९८०)। अन्नपूर्णा: एक महिला का स्थान । सैन फ्रांसिस्को, सीए: सिएरा क्लब बुक्स । आईएसबीएन ०-८७१५६-२३६-७ । हर्ज़ोग, मौरिस (१९५१)। अन्नपूर्णा: ८००० मीटर की चोटी की पहली विजय । नाया मोरीन द्वारा अनुवादित; जेनेट एडम स्मिथ। न्यूयॉर्क: ईपी डटन एंड कंपनी पटनाइक, देवदत्त (२००९)। हिंदू कैलेंडर आर्ट से ७ राज । वेस्टलैंड। आईएसबीएन 9७८-८१-८99७5-6७-८ । आगे की पढाई हर्ज़ोग, मौरिस (१९५२)। अन्नपूर्णा । जोनाथन केप। नीट, जिल। उच्च एशिया: ७००० मीटर की चोटियों का एक सचित्र इतिहास । पर्वतारोही पुस्तकें। आईएसबीएन ०-८९८८६-२३८-८ । ओमोरी, कोइचिरो (१९९८)। हिमालय के ऊपर । क्लाउडकैप प्रेस। आईएसबीएन ०-९३८५६७-३७-३ । टेरै, लियोनेल (१९६३)। बेकार के विजेता । विक्टर गोलान्क लिमिटेड आईएसबीएन ०-८९८८६-७७८-९ । अध्याय ७। नेपाल की पर्वतमालाएँ नेपाल के पर्वत विकिडेटा पर उपलब्ध निर्देशांक
ओरख़ोन नदी (मंगोल: , तूल गोल; अंग्रेज़ी: ऑर्खों रिवर) मंगोलिया के उत्तरी भाग में बहने वाली एक प्रमुख नदी है। यह अरख़ानगई प्रांत के ख़ानगई पर्वतों से शुरू होती है और १,१२४ किमी उत्तर की तरफ़ बहकर सेलेन्गा नदी में विलय कर जाती है, जिसका स्वयं आगे जाकर रूस की बायकल झील में विलय हो जाता है। ओरख़ोन मंगोलिया की सबसे लम्बी नदी है और तूल नदी और तामिर नदी इसकी मुख्य उपनदियाँ हैं। ओरख़ोन नदी की घाटी की मंगोलिया के इतिहास में अहम भूमिका रही है। इसके किनारे प्राचीन उईग़ुर ख़ागानत की राजधानी ओर्दु बालिक़ (ऑर्डू बलिक) और मंगोल साम्राज्य की प्राचीन राजधानी काराकोरुम (काराकोरम) के खँडहर स्थित हैं। इसी नदी के पास ओरख़ोन शिलालेख मिले हैं जो पुरानी तुर्की भाषा के सब से पुराने ज्ञात लेख हैं। नाम का उच्चारण 'ओरख़ोन' में 'ख़' अक्षर के उच्चारण पर ध्यान दें क्योंकि यह बिना बिन्दु वाले 'ख' से ज़रा भिन्न है। इसका उच्चारण 'ख़राब' और 'ख़रीद' के 'ख़' से मिलता है। ओरख़ोन नदी के कुछ नज़ारे इन्हें भी देखें मंगोलिया की नदियाँ
उर्वशी (संस्कृत: रसिव, रोमनकृत: उर्वसी) सबसे प्रमुख अप्सरा (आकाशीय अप्सरा) है जिसका उल्लेख वेदों, महाकाव्यों रामायण और महाभारत, साथ ही पुराणों जैसे हिंदू धर्मग्रंथों में किया गया है। उन्हें सभी अप्सराओं में सबसे सुंदर और एक विशेषज्ञ नर्तकी माना जाता है। मत्स्य पुराण में उर्वशी को अहीर की कन्या बताया गया है। उर्वशी को कई पौराणिक घटनाओं में दिखाया गया है। वह ऋषि नारायण की जांघ से निकली और देवताओं के राजा और स्वर्ग (स्वर्ग) के शासक इंद्र के दरबार में एक विशेष स्थान रखती है। वह पौराणिक चंद्रवंश के पहले राजा पुरुरवा के साथ अपने विवाह के लिए प्रसिद्ध हैं, जिसे बाद में उन्होंने त्याग दिया था। वह हिंदू धर्म में सबसे प्रतिष्ठित संतों में से दो, वशिष्ठ और अगस्त्य के जन्म में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उर्वशी की कहानी विभिन्न कलाओं, प्रदर्शनों और साहित्य के लिए प्रेरणा रही है। कवि कालिदास (४थी-५वीं शताब्दी ई.पू.) ने अपने नाटक विक्रमोर्वशीयम् में मुख्य पात्रों के रूप में उर्वशी और पुरुरवा को रूपांतरित किया है। हिंदू पौराणिक कथाओं में, उर्वशी एक पूर्ण विकसित युवती के रूप में दिव्य-ऋषि नारायण की जांघ से उत्पन्न हुई थी। देवी-भागवत पुराण के अनुसार, ऋषि-भाई नारा और नारायण निर्माता भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करते हैं, लेकिन इससे इंद्र (देवों के राजा) अपने सिंहासन के बारे में असुरक्षित हो जाते हैं और वह नहीं चाहते कि ऋषियों को दिव्य शक्तियां प्राप्त हों . परिणामस्वरूप, वह उनकी तपस्या को भंग करने के लिए कई भ्रम पैदा करता है, लेकिन उसकी सभी चालें विफल हो जाती हैं। अंत में, वह रंभा, मेनका और तिलोत्तमा सहित अपने दरबार की अप्सराओं को नारा-नारायण के पास जाने और उन्हें प्रलोभन के माध्यम से विचलित करने का आदेश देता है। प्रेम के देवता, काम और उनकी पत्नी रति के साथ, अप्सराएँ नारा-नारायण के पास जाती हैं, और उनके सामने आकर्षक नृत्य करना शुरू कर देती हैं। हालाँकि, ऋषि इससे अप्रभावित रहते हैं और अप्सराओं के घमंड को तोड़ने का फैसला करते हैं। नारायण अपनी जांघ पर थपकी देते हैं, जिससे उर्वशी बाहर आ जाती है। उसकी सुंदरता इंद्र की अप्सराओं को अतुलनीय बना देती है, और वे अपने बुरे कृत्य पर शर्मिंदा हो जाते हैं। नारा और नारायण ने इंद्र को आश्वासन दिया कि वे उनका सिंहासन नहीं लेंगे, और उन्हें उर्वशी उपहार में देंगे। उसने इंद्र के दरबार में गौरव का स्थान प्राप्त किया। हिंदी साहित्य कोश, भाग-२, पृष्ठ- ५५ इन्हें भी देखें उर्वशी (महाकाव्य) - रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा रचित हिन्दी काव्य
उड़द एक दलहन होता है। इसकी तासीर ठंडी होती है, अतः इसका सेवन करते समय शुद्धघी में हींग का बघार लगा लेना चाहिए। इसमें भी कार्बोहाइड्रेट, विटामिन्स, केल्शियम व प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। बवासीर, गठिया, दमा एवं लकवा के रोगियों को इसका सेवन कम करना चाहिए। हरे रंग की उड़द को हरी उड़द कहते हैं। यह लखनऊ और निकटवर्ती क्षेत्रों में बहुत मिलती है।
जोड़ी क्या बनाई वाह वाह रामजी २००३ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। अवतार गिल - अजीत राय परेश रावल - रामप्रसाद टीकू तलसानिया - विश्वनाथ नामांकन और पुरस्कार २००३ में बनी हिन्दी फ़िल्म
सिरिसंपिगे कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार चंद्रशेखर कंबार द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् १९९१ में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत कन्नड़ भाषा की पुस्तकें
क्लाइव मडांडे (जन्म १२ अप्रैल २०००) जिम्बाब्वे के क्रिकेटर हैं। उन्होंने ३० मार्च २०२१ को टस्कर्स के लिए २०२०-२१ लोगान कप में प्रथम श्रेणी में पदार्पण किया। उन्होंने ११ अप्रैल २०२१ को टस्कर्स के लिए २०२०-२१ जिम्बाब्वे घरेलू ट्वेंटी २० प्रतियोगिता में ट्वेंटी२० की शुरुआत की। उन्होंने टस्कर्स के लिए २०२०-२१ प्रो५० चैंपियनशिप में १८ अप्रैल २०२१ को लिस्ट ए में पदार्पण किया। जनवरी २०२२ में, मदांडे को श्रीलंका के खिलाफ उनकी श्रृंखला के लिए जिम्बाब्वे के एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) टीम में नामित किया गया था।
जर्मनी की एकीकृत टीम () ने पश्चिम जर्मनी और पूर्वी जर्मनी के एथलीटों की संयुक्त टीम के रूप में १९५६, १९६०, और १९६४ के शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में भाग लिया। १९५६ में टीम में तीसरे ओलंपिक निकाय, सारलैंड ओलंपिक समिति से एथलीट शामिल थे, जिन्होंने १९६० में एक अलग टीम को भेजा था, लेकिन १९६४ में जर्मन राष्ट्रीय ओलंपिक समिति में शामिल होने की प्रक्रिया में था। यह प्रक्रिया फरवरी १९५७ में सारलैंड की फ्र्ग में प्रवेश के बाद पूरी हुई थी। ग्रीष्मकालीन खेलों द्वारा पदक शीतकालीन खेलों द्वारा पदक गर्मियों के खेल से पदक सर्दियों के खेल से पदक
दाढी-२ खगड़िया, खगड़िया, बिहार स्थित एक गाँव है। खगड़िया जिला के गाँव
अब्दुल लतीफ नोमानी,भारत के उत्तर प्रदेश की दूसरी विधानसभा सभा में विधायक रहे। १९५७ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के २१९ - कोपागंज विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया। उत्तर प्रदेश की दूसरी विधान सभा के सदस्य २१९ - कोपागंज के विधायक आजमगढ़ के विधायक कांग्रेस के विधायक
ओलिवर पीटर स्टोन (जन्म ९ अक्टूबर 1९९3) एक इंग्लैंड के क्रिकेट खिलाड़ी है जो वर्तमान में वरिकशायर काउंटी क्रिकेट क्लब और इंग्लैंड क्रिकेट टीम के लिए खेलते हैं। स्टोन दाएं हाथ के तेज गेंदबाज और दाएं हाथ के बल्लेबाज हैं। उनका जन्म नॉरविच, नॉर्फ़क में हुआ था और शहर के थोरपे सेंट एंड्रयू स्कूल में उनकी शिक्षा हुई। उन्होंने अक्टूबर २०१८ में इंग्लैंड के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया। १९९३ में जन्मे लोग दाहिने हाथ के गेंदबाज
डी. विजया कुमार (जन्म २६ अप्रैल १९८०) एक भारतीय फिल्म पार्श्व गायक है। उन्हें ज्यादातर विजय उर्स के रूप में जाना जाता है। उन्होंने कन्नड़ और संस्कृति, कर्नाटक के विभाग से सर्वशिक्षा कालभूषण पुरस्कार जीता है। उसके पेशा संगीत है, जुनून खेती है। उन्होंने भक्ति और लोक, निजी एल्बमों में ५००० से अधिक गाने रिकॉर्ड किए हैं विजय उर्स का जन्म देवराज उर्स और लक्ष्मीमणि उर्स, मैसूर, कर्नाटक में हुआ था। उसका एक भाई और दो बहनें हैं। उन्होंने अपना ब.कॉम, डिप्लोमा पर्सनल मैनेजमेंट में और पोस्ट ग्रेजुएशन इंडस्ट्रियल मैनेजमेंट पूरा किया है। उन्होंने शास्त्रीय पाठ्यक्रम पूरा कर लिया है और एक कार्नेटिक सीनियर है। विजय उर्स शादीशुदा है और उसकी एक बेटी है। विजय उर्स ने अपने करियर की शुरुआत एक एल्बम, भवबिंदु, जो खुद के द्वारा लिखी गई थी, के विमोचन से की। उन्होंने भक्ति और लोक में कन्नड़ में ५००० से अधिक गाने गाए हैं। उन्हें ४५ फिल्मों में उनके गानों के लिए जाना जाता है। उन्होंने लगभग हर संगीत निर्देशक, हमसलेखा, गुरुकिरण, अर्जुन ज्ञान, हरि कृष्ण, केरावनी इत्यादि ,उन्होंने १००० से अधिक गीत लिखे हैं जो अब बाजार में हैं, <रेफ>हप://मियो.तो/आर्टिस्ट/विजय+उर्स </ रेफ> भावार्थे और भक्ति उन्हें इप्र्स (इंडियन परफॉर्मिंग राइट्स सोसाइटी) के एक सदस्य के रूप में मान्यता प्राप्त है। वह सावन और गाना ऐप्स पर एक मान्यता प्राप्त गायक है। <रेफ> हप://वॉ.सावन.कॉम/स/आर्टिस्ट/विजय-उर्स-एल्बम/नऑलगडल-पी_ / रेफ> उन्होंने एस.पी. बालासुब्रह्मण्यम, मनु, नंदिता, शमिता और भी कई। वह १९९८ से ऑर्केस्ट्रा का प्रदर्शन कर रहा है और भारत, मुख्य रूप से दक्षिण भारत में ३००० से अधिक शो पूरे कर चुका है। उन्हें तेलुगू में उनके गीतों के लिए भी जाना जाता है, जिनमें वरुण कावली सबसे पहले धारावाहिक हैं। उन्होंने ३ फिल्मों और कुछ भक्ति गीतों के लिए तमिल में भी गाया है। भारतीय पुरुष फिल्म गायक कन्नड़ पार्श्व गायक तमिल पार्श्व गायक तेलुगु पार्श्व गायक मैसूर के गायक
क्रिकेट इंडोनेशिया स्कूलों में क्रिकेट विकसित करने के लिए सक्रिय है। यह क्रिकेट इंडोनेशिया के विकास अधिकारियों द्वारा प्राप्त किया जाता है। इंडोनेशिया में क्रिकेट के विकास के प्रमुख क्षेत्र हैं बोगोर, बाली, जकार्ता, बांडुंग और फ्लोर्स। क्रिकेट इंडोनेशिया अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद में इंडोनेशिया का प्रतिनिधि है और एक संबद्ध सदस्य है और २००१ से उस निकाय का सदस्य है। यह पूर्वी एशिया-प्रशांत क्रिकेट परिषद का सदस्य भी है। क्रिकेट इंडोनेशिया को २००० से बनाया गया है और इसका नाम बदलकर १३ फरवरी, २०११ को पर्सटुआन क्रिकेट इंडोनेशिया हो गया, जब इसे एक कोनी (कोमिथ ओहरगागा नसेशनल इंडोनेशिया) सदस्य के रूप में स्वीकार किया गया। प्रारंभिक वर्ष में, यह आईसीसी पूर्वी एशिया प्रशांत क्षेत्र में एक संबद्धता सदस्य के रूप में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद में इंडोनेशिया के लिए एक आधिकारिक प्रतिनिधि बन गया। पर्सटुआन क्रिकेट इंडोनेशिया (पीसीआई) का उद्देश्य क्रिकेट को अच्छे प्रदर्शन वाले खेलों में से एक बनाना और इंडोनेशिया में सबसे लोकप्रिय खेल के रूप में तीन बड़े स्थान प्राप्त करना है। यह इंडोनेशिया के हर क्षेत्र में क्रिकेट के अस्तित्व को फैलाने की कोशिश करता है। इसमें आचे से पापुआ तक १७ प्रांत समितियाँ और ३ संघ सदस्य हैं जो बोगोर क्रिकेट एसोसिएशन, बाली क्रिकेट और जकार्ता क्रिकेट एसोसिएशन हैं। उन सदस्यों का कर्तव्य है कि वे समाज में हर प्रतियोगिता का आयोजन, परिचय और सामाजिककरण करें। पीसीआई अपने कार्यक्रमों को करने में सफल रहा है क्योंकि इंडोनेशिया में क्रिकेट तेजी से बढ़ रहा है। पीसीआई अभी भी अपने कार्यक्रमों को योग्य बनाने के लिए विकसित कर रहा है जैसे कि प्रशिक्षकों, रेफरी और क्रिकेट सहायक घटकों के लिए प्रशिक्षण, लघु पाठ्यक्रम और संगोष्ठी देना। सबसे महत्वपूर्ण बात इंडोनेशिया के लिए एक राष्ट्रीय गौरव का खेल बन रहा है। इंडोनेशिया में पहले क्रिकेट एसोसिएशन के रूप में सेट-अप, १९९२ में वापस, जेसीए देश में प्रीमियर क्रिकेट एसोसिएशन है। १० राष्ट्रीयताओं के ४०० से अधिक खिलाड़ियों के साथ ३ मैदानों में खेलना, यह एक सक्रिय और संपन्न एसोसिएशन है। खेल लगभग ३ प्रारूपों (एक ३5 ओवर लीग, टी २० और ६ एस प्रारूप) में और लगभग ५० से अधिक सप्ताह में गैर-स्टॉप खेला जाता है। जेसीए लीग, प्रीमियर प्रतियोगिता में 1६ टीमें हैं, जो सीज़न के सम्मान के लिए २ डिवीजनों में प्रतिस्पर्धा करती हैं। त२० टूर्नामेंट में 1२ टीमों की १० सप्ताह से अधिक की प्रतिस्पर्धा होती है, जो तीव्रता से लड़ी गई प्रतियोगिता होती है और सीज़न के बीच में एक बेहतरीन फिलर के रूप में कार्य करती है। जकार्ता इंटरनेशनल ६स क्रिकेट टूर्नामेंट कई देशों से विदेशी टीमों के लिए क्रिकेट खेलने और इंडोनेशिया द्वारा पेश किए गए महान आतिथ्य का आनंद लेने का एक शानदार अवसर है। एशियाई माह प्रतियोगिता में निर्मित मशीनी अनुवाद वाले लेख
चीन राष्ट्रीय क्रिकेट टीम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का प्रतिनिधित्व करने वाली टीम है। टीम का आयोजन चीनी क्रिकेट संघ द्वारा किया जाता है, जो २००४ में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) का एक संबद्ध सदस्य और २०१७ में एक सहयोगी सदस्य बन गया। चीन ने २००९ के एसीसी ट्रॉफी चैलेंज तक अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी शुरुआत नहीं की थी, हालांकि शंघाई क्रिकेट क्लब ने इससे पहले १८६६ से अंतरराष्ट्रीय टीमों के खिलाफ इंटरपोर्ट मैच खेलने के लिए एक वास्तविक तथ्य के रूप में काम किया था। तब से चीन ने कई अन्य एशियाई क्रिकेट परिषद (एसीसी) टूर्नामेंट, साथ ही २०१० और २०१४ के एशियाई खेलों की क्रिकेट प्रतियोगिताओं में भाग लिया है। हांगकांग (चीन का एक विशेष प्रशासनिक क्षेत्र) और ताइवान (चीन के २३ वें प्रांत के रूप में दावा किया गया है) दोनों अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अलग-अलग टीमें हैं। अप्रैल २०१८ में, आईसीसी ने अपने सभी सदस्यों को पूर्ण ट्वेंटी २० अंतर्राष्ट्रीय (टी२०ई) दर्जा देने का फैसला किया। इसलिए, १ जनवरी २०१9 के बाद चीन और अन्य आईसीसी सदस्यों के बीच खेले जाने वाले सभी ट्वेंटी-२० मैच पूर्ण टी२०ई होंगे।
ए के बालन एक भारतीय राजनीतिज्ञ तथा वर्तमान केरल सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं | भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के राजनीतिज्ञ
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील कांठ, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है। सम्बंधित जनगणना कोड: राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७१८ कांठ तहसील के गाँव
मैकरोनी पुलाव एक अवधी व्यंजन है। इसका मुख्य घटक बासमती चावल है। उत्तर भारत का खाना चावल के व्यंजन
लोकतंत्र की देवी, १९८९ के तियानमेन चौराहा विरोध और नरसंहार के दौरान आन्दोलनारियों द्वारा निर्मित १० मीटर ऊँची फोम को काटकर बनायी गयी मूर्ति थी जिसे चीनी सेना ने नष्ट कर दिया। इसे चार दिन में तैयार किया गया था। इसे 'लोकतंत्र और स्वतंत्रता की देवी', 'लोकतंत्र की आत्मा', और 'स्वतंत्रता की देवी' भी कहते हैं । इस मूल प्रतिमा को चीनी सेना द्वारा नष्ट किये जाने के बाद यह स्वतंत्रता तथा 'भाषण की स्वतंत्रता' का प्रतीक बन गयी है। १९८९ की घटना को याद रखने के लिये विश्व भर में इसकी अनेक प्रतिकृतियाँ बनायी गयीं हैं, जैसे वाशिंगटन डीसी में 'साम्यवाद के शिकारों का स्मारक' (विक्टिम ऑफ कम्युनिज्म मेमोरियल)। चीनी भाषा पाठ वाले लेख
मदारपुर कसवा छिबरामऊ, कन्नौज, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। कन्नौज जिला के गाँव
ध्वनि रिकॉर्डिंग और पुनरुत्पादन एक विद्युत, यांत्रिक, इलेक्ट्रॉनिक, या डिजिटल शिलालेख है और ध्वनि तरंगों का पुनः निर्माण, जैसे कि बोलती आवाज़, गायन, वाद्य संगीत, या ध्वनि प्रभाव। साउंड रिकॉर्डिंग तकनीक के दो मुख्य वर्ग एनालॉग रिकॉर्डिंग और डिजिटल रिकॉर्डिंग हैं। ध्वनिक एनालॉग रिकॉर्डिंग एक माइक्रोफोन डायाफ्राम द्वारा प्राप्त की जाती है जो ध्वनिक ध्वनि तरंगों के कारण वायुमंडलीय दबाव में परिवर्तन करती है और उन्हें ध्वनि तरंगों के यांत्रिक प्रतिनिधित्व के रूप में रिकॉर्ड करती है जैसे कि एक फोनोग्राफ रिकॉर्ड (जिसमें एक स्टाइलस एक रिकॉर्ड पर खांचे काटता है) । मैग्नेटिक टेंप रिकॉर्डिंग में, ध्वनि तरंगें माइक्रोफोन डायाफ्राम को वाइब्रेट करती हैं और एक अलग विद्युत धारा में परिवर्तित हो जाती हैं, जिसे बाद में एक इलेक्ट्रोमैग्नेट द्वारा अलग-अलग चुंबकीय क्षेत्र में बदल दिया जाता है, जो चुंबकीय टेप के साथ प्लास्टिक टेप पर चुंबकीय क्षेत्रों के रूप में ध्वनि का प्रतिनिधित्व करता है। उस पर लेप। एनालॉग साउंड रिप्रोडक्शन रिवर्स प्रक्रिया है, जिसमें एक बड़ा लाउडस्पीकर डायफ्रैग्मैजिकिंग होता है जो वायुमंडलीय दबाव में ध्वनिक ध्वनि तरंगों को बनाता है। डिजिटल रिकॉर्डिंग और प्रजनन नमूना की प्रक्रिया द्वारा माइक्रोफ़ोन द्वारा उठाए गए एनालॉग ध्वनि संकेत को डिजिटल रूप में परिवर्तित करता है। यह ऑडियो डेटा को मीडिया की एक विस्तृत विविधता द्वारा संग्रहीत और प्रेषित करने देता है। डिजिटल रिकॉर्डिंग ऑडियो को द्विआधारी संख्या (शून्य और लोगों की एक श्रृंखला) के रूप में संग्रहीत करता है, समान समय पर ऑडियो सिग्नल के आयाम के नमूनों का प्रतिनिधित्व करता है, नमूना दर पर उच्चतर सभी ध्वनियों को सुनाई देने में सक्षम है। एक डिजिटल ऑडियो सिग्नल को प्लेबैक के दौरान एनालॉग रूप में पुन: स्वरूपित किया जाना चाहिए, क्योंकि यह ध्वनि उत्पन्न करने के लिए लाउडस्पीकर से जुड़ा हुआ है। ध्वनि रिकॉर्डिंग के विकास से पहले, मैकेनिकल सिस्टम थे, जैसे कि विंड-अप म्यूज़िक बॉक्स और बाद में, प्लेयर पियानो, एन्कोडिंग और वाद्य संगीत को पुन: पेश करने के लिए।
नीरकपुर-पाली पालीगंज, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है। पटना जिला के गाँव
गुस्तावो कुएर्तेन ने मराट साफिन को ३-६, ७-६, ७-६ से हराया। लियेटन हेविट / सैंडन स्टोहली ने योनास ब्योर्कमैन / मैक्स मिरन्यी को ७-६, ४-६, ७-६ से हराया। २००० आर सी ए प्रतियोगिता आर सी ए प्रतियोगिता
डेविड मैकलीन स्कॉटिश एडवोकेट और क्रिकेट अंपायर हैं। वह आईसीसी अंपायरों के विकास पैनल के सदस्य हैं। मैकलीन स्कॉटलैंड में स्थानीय घरेलू क्रिकेट में विकेटकीपर के रूप में खेले, २०१४ में अंपायर बने। वह २१ मई २०१९ को स्कॉटलैंड और श्रीलंका के बीच अपने पहले एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) मैच में खड़े थे। वह १६ सितंबर २०१९ को स्कॉटलैंड और नीदरलैंड के बीच अपने पहले ट्वेंटी २० अंतर्राष्ट्रीय (टी२०आई) मैच में खड़े थे। जनवरी २०२२ में, उन्हें वेस्ट इंडीज में २०२२ आईसीसी अंडर-१९ क्रिकेट विश्व कप के लिए ऑन-फील्ड अंपायरों में से एक के रूप में नामित किया गया था।
बरोराह गुरारू, गया, बिहार में स्थित एक गाँव है। गया जिला के गाँव
भूपति मोहन सेन को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७४ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये पश्चिम बंगाल से हैं। १९७४ पद्म भूषण साहित्य और शिक्षा में पद्म भूषण के प्राप्तकर्ता १८८८ में जन्मे लोग १९७८ में निधन
ख़ालेद हुसैनी ( ; ; जन्म ४ मार्च, १९६५) अफ़्ग़ान मूल के अमेरिकी उपन्यासकार और चिकित्सक है। खालेद हुसैनी का जन्म अफगानिस्तान में हुआ था। पांच बच्चो में से वे सबसे बड़े थे। उन्होंने अपना बचपन काबुल में बिताया था। उनके पिता विदेश मंत्रालय में काम करते थे जबकि उनकी माँ फारसी साहित्य सिखाया करती थी। वह भारतीय सिनेमा से बहुत उत्कृस्ट हो गए थे और यही से उन्हें प्रेरणा मिली। वह शास्त्रीय फारसी काव्य में अधिक दिलचस्पी रखा करते थे। उन्हें पतंग उड़ाने का बेहद शोक था और इससे आधारित होकर उन्होंने अपनी पहली पुस्तक " कैट रनर " में इसका वर्णन किया। प्रारंभिक ७० के दशक में, होसैनी के पिता अफगानिस्तान के दूतावास में तैनाथ हुए थे। इसी समय में उन्होंने शास्त्रीय फारसी के भाग में अपना ज्ञान बढ़ाया। वह विदेशी उपन्यास को पढ़कर शास्त्रीय फारसी साहित्यिक परंपरा में अपना ज्ञान बढ़ाना चाहते थे। हालांकि अफगान कि संस्कृति में एक साहित्यिक परंपरा कि लम्बी कमी थी, होसैनी को विदेशी उपन्यास का अनुवाद करना अधिक पसन्द था और उसने अपनी खुद की कहानियाँ लिखना शुरू कर दिया। उसने अपने परिवार के कुक को हजारा जातीय समूह का हिस्सा बनाया। यह एक अल्पसंख्यक था जो लंबे समय से अफगानिस्तान में भेदभाव का सामना कर रहा था। युवा खालेद हुसैनी ने अनपढ़ आदमी को पढ़ना और लिखना सिखाया और अपनी सोसाइटी में अन्याय से उसकी पहली अंतर्दृष्टि प्राप्त की। जब २०० वर्षीय अफगान राजशाही को १९७३ में उखाड़ फेंका गया हुसैनी काबुल में घर पर थे। राजा के चचेरे भाई, दाऊद खान ने खुद को नई गणराज्य का राष्ट्रपति घोषित किया, लेकिन अस्थिरता का एक लंबे युग शुरू हो गया था। १९७६ में, होसैनी के पिता को पेरिस के दूतावास में सौंपा गया था और खालिद उनके परिवार के साथ फ्रांस चले गए। हालांकि उन्हें इस समय यह नहीं पता था कि वो २७ साल के बाद ही अपने देश को वापस देख पाएगा। पेरिस में दो वर्ष रहने के बाद उन्हें खभर आई कि एक कम्युनिस्ट पार्टी ने दौड खान और उसके परिवार की हत्या कर दी है और उन्होंने अफगानिस्तान की सरकार को उखाड़ फेंका है। यद्यपि नई सरकार सिविल सेवकों को पुरानई शासन से मुक्त नहीं कर रही थी, होसैनी को अभ भी आशा थी कि वो वापस अपने परिवार सहित, अफगानिस्तान जा सखे। नए नेताओं के बीच अंदरूनी और ग्रामीण इलाकों में सशस्त्र प्रतिरोध के कारण देश अराजकता में कूद पढ़ा था। होसैनी फ्रांस में तभी थे, जब सोवियत सेना ने १९७९ में अफगानिस्तान में प्रवेश किया। उन्हें निष्कासित करने के लिए कई हथियारबंद गुटों का प्रयास किया गया था। ५ लाख अफगान अपने देश को छोड़कर भाग गए थे, जबकि सोवियत ने पुरे देश को अपने कब्ज़े में ला लिया। अफगानिस्तान में अपने परिवार के साथ वापस आने का सवाल बिलकुल बहार हो चूका था। होसैनी को बहुत आशा थी कि वो वापस आ सके लिकेन इस वक्त यह नामुमकिन नज़र आ रहा था। उन्होंने अमेरिका में राजनीतिक शरण के लिए आवेदन किया। युवा खालिद जो लगभग १५ साल का था, १९८० में कैलिफ़ोर्निया आ पहुंचा। उन्हें ज़रा सी भी अंग्रेजी नहीं आया करती थी। उनके परिवार ने सभ कुछ खो दिया था और उन सब को यह आशा थी कि सारा परिवार जल्द से जल्द काम में लग जाए और इसी सूचना के साथ था पिता और पुत्र, अफगान शरणार्थियों के साथ एक बाज़ार स्टाल में काम करने के लिए चले गए। अमेरिका में स्कूल के पहले वर्ष में, अंग्रेजी के साथ, खालेद हुसैनी ने संघर्ष किया, लेकिन जॉन स्टीनबेक के अवसाद-युग उपन्यास " द ग्रेप्स ऑफ रैथ" ने साहित्य में उनका प्यार बढ़ाया। इस से प्रभावित होकर उसने फिरसे कहानियाँ लिखना शुरू कर दिया. लिकेन एस समय एक अलग बात थी की सारी कहानियाँ अंग्रेज़ी मैं लिखी गयी थी। खालिद के पिता को एक ड्राइविंग अनुदेशक के रूप में काम मिल गया और धीरे-धीरे परिवार की स्थिति में सुधार आने लगे, लेकिन खालिद, सबसे बढ़ा बच्चा था और नए देश में सफल होने के लिए एक विशेष जिम्मेदारी महसूस करने लगा। उन्होंने अपनी रेजीडेंसी उक्ला मेडिकल सेंटर में पूरा कर लिया और पासाडेना में मेडिकल प्रैक्टिस करना शुरू कर दिया। कुछ साल बाद उन्होंने विवाह कर लिया और अपनी पत्नी रोया के साथ अपने परिवारवालो से नजदीक होने के लिए उत्तरी कैलिफोर्निया में लौटने का फैसला लिया। होसैनी, स्वास्थ्य रखरखाव संगठन में शामिल हो गए और एक परिवार शुरू करने के लिए कैलिफोर्निया में बस गए। १९९८ में, सोवियत संघ के प्रस्थान के बाद, तालिबान ने अफगानिस्तान को घेर लिया था। महिलाओं के अधिकार और सभी विदेशी कला या संस्कृति को पूरी तरह से समाप्त किया गया था। होसैनी दुनिया को इस बात के बारे में बताना चाहते थे। उन्होंने अपनी कहानियों को उपन्यास में विस्तार करने का फैसला किया। वे डेढ़ साल तक हर सुबह चार बजे उठ कर अपने उपन्यास पर काम करते थे और उसके बाद पूरा दिन अपने रोगियों को देखते थे। जब संयुक्त राज्य अमेरिका और संबद्ध देशों ने अफगानिस्तान में सैन्य अभियानों की शुरूआत की, तब उन्होंने वह परियोजना छोड़ने पर विचार किया, लेकिन तालिबान की हार के साथ, उन्हें दुनिया को अपनी कहानी बताना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण लगा। जब पूरी दुनिया की आँखें उनके देश पर थी, उन्होंने अपनी कहानी जो दो अफ़ग़ान लड़कों के बारे में थी, कैसे बचपन के दोस्त युद्ध की आपदाओं से अलग हो जाते हैं, और फिर कैसे उनकी ज़िन्दगी दो अलग अलग रास्तों पर रुख ले लेती है -उस कहानी को उन्होंने पूरा किया। हुसैनी ने पांडुलिपि को संभालने के लिए एक एजेंट ढूँढा, और प्रकाशक रिवेर्हेअद पुस्तकें, जो पेंग्विन समूह का एक प्रभाग था उन्हें किताब दे दी गयी। "काईट रनर" २००३ में, थोड़े प्रचार के साथ, प्रकाशित की गयी थी। हार्ड कवर में किताब की प्रारंभिक बिक्री धीमी थी, लेकिन जैसे ही किताब की प्रतियां एक पाठक से दूसरे पाठक तक गयी -और ज्यादा लोगों को इस किताब के बारे में पता चला . पेपरबैक संस्करण ने दुनिया भर में एक उत्साह भरे पाठकों को पाया। "काईट रनर" ने न्यूयॉर्क टाइम्स बेस्टसेलर सूची में दो साल से अधिक साल बिताए, और अपनी आरंभिक उपस्थिति के पांच साल के बाद सूची में लौट आयी . इस लेखन के रूप में, यह ४० से अधिक भाषाओं में प्रकाशित संस्करणों के साथ, १२ लाख से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। हालाकि इसका सब हलकों में प्रशंसा के साथ स्वागत किया गया है, कुछ अफगान अफगानिस्तान में जातीय हुसैनी के पूर्वाग्रह के चित्रण पर आपत्ति जताने लगे। हुसैनी को कोई पछतावा नहीं था, और उन्हें आशा थी कि इस विषय के बारे में वह अपने देशवासियों के बीच एक अरसे से बातचीत कि चिंगारी लगा देंगे। अपनी पुस्तक की सफलता के बाद, हुसैनी २७ साल में पहली बार अफगानिस्तान लौट गए। उन्होंने कहा कि वर्षों के युद्ध से वे अपने बचपन के शहर में जो तबाही हुई है उस से हैरान हैं। साथ ही आतिथ्य और उदारता की पारंपरिक भावना अपरिवर्तित हो रही थी। हर जगह, उन्होंने अपने देशवासियों के त्रासदियों का सामना करने की कहानियाँ सुनी। हुसैनी ने अपनी पुस्तक प्रकाशित होने के बाद डेढ़ वर्ष के लिए दवा का अभ्यास जारी रखा, लेकिन लोगों कि मांग ने अंत में अनुपस्थिति की छुट्टी लेने के लिए उन्हें मजबूर किया। २००६ में उन्होंने दुनिया भर में युद्ध क्षेत्रों में विस्थापित लोगों की सहायता करने, शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त के लिए एक विशेष दूत के रूप में खालेद हुसैनी जी काम करने पर सहमत हुए। इस क्षमता में उन्होंने दारफुर से शरणार्थियों के साथ पूरा करने के लिए पूर्वी चाड करने के लिए कूच किया है और ईरान और पाकिस्तान से लौटे हुए शरणार्थियों के साथ पूरा करने के लिए अफगानिस्तान को लौट गए। अ थाउजेंड स्प्लेंडिड संस अफगानिस्तान में अपने २००३ यात्रा के बाद से, हुसैनी सोवियत कब्जे और गृह युद्ध के दौरान, और तालिबान की तानाशाही के तहत युद्ध पूर्व अफगानिस्तान में महिलाओं के अनुभव पर ध्यान केंद्रित कर, एक दूसरे उपन्यास पर काम कर रहे थे। बेसब्र पाठकों की एक सेना से प्रतीक्षित उनकी एक नई किताब, २००७ में प्रकाशित हुयी थीखालेद हुसैनी "अ थाउजेंड स्प्लेंडिड संस" १७ वीं सदी फारसी कवि "सेब ए तब्र्ज़ी" द्वारा एक कविता से शीर्षक ली हुई यह, कहानी दो महिलाओं, मरियम और लैला, की है जो एक ही अपमानजनक आदमी से शादी कर लेती हैं। अपने पूर्ववर्ती की तरह, "अ थाउजेंड स्प्लेंडिड संस" को जैसे ही प्रकाशित किया गया था, वह बेस्टसेलर सूची में, एक बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय बेस्टसेलर बन गयी।"अ थाउजेंड स्प्लेंडिड संस" ने पेपरबैक संस्करण न्यूयॉर्क टाइम्स बेस्टसेलर सूची में दो साल बिताए। बाद में उस वर्ष, "काईट रनर" दूर पश्चिम चीन के में कशगर प्रांत में बनायीं गयी, एक अत्यधिक प्रशंसित मोशन पिक्चर बन गयी हालाँकि फिल्म के निर्माता अमेरिकी थे, उन्होंने कहानी की प्रामाणिकता को संरक्षित करने के लिए दारी भाषा में फिल्म शूट करना ही सही समझा। क्योंकि एक जवान लड़के के खिलाफ यौन उत्पीड़न का एक दृश्य फिल्म में दिखाया गया है, इस बात पर एक विवाद अफगानिस्तान में भड़क उठा। बाल कलाकार और उसके परिवार के इस चित्रण को परंपरावादी इंसानों द्वारा शर्मनाक माना गया था जो और हिंसा के साथ उन्हें धमकी दी गयी थी। इस कारण लड़के और उसके परिवार के लिए जगह बदली गई, जबकि फिल्म की रिलीज को स्थगित कर दिया गया था। एंड द माउंटेन्स एकोड "एंड द माउंटेन्स एकोड" (२०१३) एक भाई और बहन के बारे में है जिन्हें अलग कर दिया जाता है जब बेटी को उनके परिवार की तंगहाल आर्थिक परिस्थितियों के कारण गोद लेने के लिए दे दिया जाता है। उपन्यास में १९५० की दशकों में अफगानिस्तान के इतिहास में भाई बहन का विचलन दिखाया गया है। अफगानिस्तान के प्रति हुसैनी की भक्ति न सिर्फ उनके लेखन में, लेकिन उनकी सक्रियता में भी देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि २००६ के बाद से, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी, यूएनएचसीआर के लिए एक सद्भावना राजदूत किया गया है, और वे अपनी निजी वेबसाइट द्वारा अफगानिस्तान की मदद कर रहे हैं और उनकी वेबसाइट पर कई सहायता संगठनों के लिए लिंक शामिल हैं। साक्षात्कारकर्ता एक शांत हवा के साथ एक स्मार्ट, खूबसूरत आदमी के रूप में हुसैनी का वर्णन है और टाइम पत्रिका में उन्हें "दुनिया में लगभग निश्चित रूप से सबसे प्रसिद्ध अफ़ग़ान" बताया गया था। कुछ समय के लिए, डॉ॰ हुसैनी ने संयुक्त राष्ट्र के लिए अपने काम लिखने के लिए और जारी रखने के लिए अपने चिकित्सा अभ्यास छोड़ दिया हैउनके तीसरे उपन्यास, "एंड द माउंटेन्स एकोड", का न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा इस प्रकार स्वागत किया गया "अभी तक की सबसे आश्वासन और भावनात्मक रूप से भरी मनोरंजक कहानी "। वे और उनकी पत्नी रोया, और उनके दो बच्चे, उत्तरी कैलिफोर्निया में अपने घर में रहते हैं। १९६५ में जन्मे लोग
प्रदेश सभा नेपाल के प्रदेशों का विधान सभा है। नेपाल के सभी प्रदेशों का विधान सभा एकसदनीय है। नेपाल में सभी प्रदेशों के मिलाकर कुल ५५० प्रदेश सभा सीटें हैं, जिनमें से ३३० सीटों पर हर पार्टी का एक-एक उम्मीदवार या स्वतंत्र उम्मीदवार खड़ा हो सकता है और फर्स्ट पास्ट द पोस्ट मतदान प्रणाली के द्वारा चुना जाता है। बाँकी २२० सीटों पर आनुपातिक प्रतिनिधान मतदान प्रणाली के द्वारा उम्मीदवार चुने जाते हैं। आनुपातिक प्रतिनिधान प्रणाली के अनुसार मतदाता पूरे देश को एकल चुनाव निर्वाचन क्षेत्र समझ कर राजनीतिक दलों के लिए मतदान करते हैं।
राज महल राजस्थान के जयपुर जिले में स्थित जयपुर के तत्कालीन महाराजा का महल है। इस महल का मूल निर्माण १७२९ में किया गया था और समय के साथ पुनर्निर्मित किया गया था। १८२१ में यह राजपुताना के ब्रिटिश निवासी का आधिकारिक निवास बन गया। इसे आर्ट डेको शैली में पुनर्निर्मित किया गया था। जबकि १९५८ में आजादी के बाद महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय ने इसे अपने निजी आवास में बनाया गया था। जयपुर के पर्यटन स्थल
अमावस्या हिन्दू पंचांग के अनुसार माह की ३०वीं और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि है इस दिन का भारतीय जनजीवन में अत्यधिक महत्त्व हैं। हर माह की अमावस्या को कोई न कोई पर्व अवश्य मनाया जाता हैं। सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। अमावस्या के पर्व/व्रत भाद्रपद अमावस्या के दिन पोला मनाया जाता है। कार्तिक अमावस्या के दिन दीपावली पर्व मनाया जाता हैं। शनिवार के दिन आने वाली अमावस्या को #शनिचरी अमावस्या कहते हैं हिन्दू पञ्चांग में अमावस्या का दिन वो दिन होता है जिस दिन चंद्रमा को नहीं देखा जा सकता है। चंद्रमा २८ दिनों में पृथ्वी का एक चक्कर पूर्ण करता है।१५ दिनों के चंद्रमा पृथ्वी की दूसरी ओर होता है और भारतवर्ष से उसको नहीं देखा जा सकता है। वही जिस दिन, जब चंद्रमा पुर्ण रूप से भारतवर्ष नहीं देखा जा सकता है उसे अमावस्या का दिन कहा जाता है। अमावस्या को हिन्दू शास्त्रों में काफी महत्वपुर्ण स्थान प्राप्त है और इसके अनुसार अमावस्या को पित्रों अर्थार्थ गुज़र गए पूर्वजों का दिन भी मन जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अमावस्या के दिन स्नान कर प्रभुः का ध्यान करना चाहिये, बुरे व्यसनों से दूर रहना चाहिए और हो सके तो गरीब, बेसहारा और जरूतमंद बुज़ुर्गों को भोजन करना चाहिये। जैसा की पहले बताया गया है अमावस्या को पित्रों का दिन कहा गया है तो इस दिन किसी को भोजन करने से हम एक तरह से अपने पित्रों को भोजन अर्पित कर रहे हैं। ऐसा करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
अग्रदूत बांग्ला फिल्मों के कुछ प्रमुख व्यक्तियों का समूह है जो एक साथ निर्देशन का काम करते हैं। इसकी स्थापना १९४६ में हुई थी।
कुम्भनदास(१४६८-१५८३) अष्टछाप के प्रसिद्ध कवि थे। ये परमानंददास जी के समकालीन थे। कुम्भनदास का चरित "चौरासी वैष्णवन की वार्ता" के अनुसार संकलित किया जाता है। कुम्भनदास ब्रज में गोवर्धन पर्वत से कुछ दूर "जमुनावतौ" नामक गाँव में रहा करते थे। उनके घर में खेती-बाड़ी होती थी। अपने गाँव से वे पारसोली चन्द्रसरोवर होकर श्रीनाथ जी के मन्दिर में कीर्तन करने जाते थे। उनका जन्म गौरवा क्षत्रिय कुल में हुआ था। कुम्भनदास के सात पुत्र थे, जिनमें चतुर्भजदास को छोड़कर अन्य सभी कृषि कर्म में लगे रहते थे। उन्होंने १४९२ ई० में महाप्रभु वल्लभाचार्य से दीक्षा ली थी। वे पूरी तरह से विरक्त और धन, मान, मर्यादा की इच्छा से कोसों दूर थे। एक बार अकबर बादशाह के बुलाने पर इन्हें फतेहपुर सीकरी जाना पड़ा जहाँ इनका बड़ा सम्मान हुआ। पर इसका इन्हें बराबर खेद ही रहा, जैसा कि इनके इस पद से व्यंजित होता है- संतन को कहा सीकरी सों काम ? आवत जात पनहियाँ टूटी, बिसरि गयो हरि नाम।। जिनको मुख देखे दुख उपजत, तिनको करिबे परी सलाम।। कुभंनदास लाल गिरिधर बिनु और सबै बेकाम।। अनुमानत: कुम्भनदास जी का जन्मगोवर्धन,मथुराके सन्निकट जमुनावतो नामक ग्राम में संवत १५२५ विक्रमी (१४६८ ई.) में चैत्र कृष्ण एकादशी को हुआ था। वेगोरवा क्षत्रिय थे। उनके पिता एक साधारण श्रेणी के व्यक्ति थे।खेती करके जीविका चलाते थे। कुम्भनदास ने भी पैतृक वृत्ति में ही आस्था रखी और किसानी काजीवन ही उन्हें अच्छा लगा। पारसोली में विशेष रूप से खेती का कार्य चलता था। उन्हें पैसे का अभाव आजीवन खटकता रहा पर उन्होंने किसी के सामने हाथ नहींपसारा। भगवद्भक्ति ही उनकी सम्पत्ति थी। उनका कुटुम्ब बहुत बड़ा था, खेती की आय से उसका पालन करते थे। परिवार में इनकी पत्नी के अतिरिक्त सात पुत्र, सातपुत्र-वधुएँ और एक विधवा भतीजी थी। कुम्भनदास परम भगवद्भक्त,आदर्श गृहस्थ और महान विरक्त थे। वे नि:स्पृत, त्यागी और महासन्तोषी व्यक्ति थे।नके चरित्र की विशिष्ट, अलौकिकता यह थी किभगवान साक्षात प्रकट होकर उनके साथ सखा भाव की क्रीड़ाएं करते थे। महाप्रभु वल्लभाचार्य जीउनके दीक्षा-गुरु थे। संवत १५५० विक्रमी (१४९३ ई.) में आचार्य कीगोवर्धन यात्रा के समय उन्होंने ब्रह्मसम्बन्ध लिया था। उनके दीक्षा-काल के पंद्रह साल पूर्व श्रीनाथ जी की मूर्ति प्रकट हुई थी, आचार्य की आज्ञा से वे श्रीनाथ जी की सेवा करने लगे थे। 'पुष्टिमार्ग' में दीक्षित तथा श्रीनाथ जी के मन्दिर में कीर्तनकार के पद पर नियुक्त होने पर भी उन्होंने अपनी वृत्ति नहीं छोड़ी और अन्त तकनिर्धनावस्था में अपने परिवार का भरण-पोषण करते रहे। श्रीनाथ जी की सेवा व गायन श्रीनाथ जी के मन्दिर में कुम्भनदास नित्य नये पद गाकर सुनाने लगे। 'पुष्टि सम्प्रदाय' में सम्मिलित होने पर उन्हें कीर्तन की ही सेवा दी गयी थी। कुम्भनदास भगवत्कृपा को ही सर्वोपरि मानते थे, बड़े-से-बड़े घरेलू संकट में भी वे अपने आस्था-पथ से कभी विचलित नहीं हुए। श्रीनाथ जी के श्रृंगार सम्बन्धी पदों की रचना में उनकी विशेष अभिरुचि थी। एक बार वल्लभाचार्य जी ने उनके युगल लीला सम्बन्धी पद से प्रसन्न होकर कहा था कि-"'तुम्हें तो निकुंज लीला के रस की अनुभूति होगयी।" कुम्भनदास महाप्रभु की कृपा से गद्गद होकर बोल उठे कि- "मुझे तो इसी रस की नितान्त आवश्यकता है।" महाप्रभु वल्लभाचार्यके लीला-प्रवेश के बाद कुम्भनदास गोसाईं विट्टलनाथ के संरक्षण में रहकर भगवान का लीला-गान करने लगे। विट्ठलनाथ महाराजकी उन पर बड़ी कृपा थी। वे मन-ही-मन उनके निर्लोभ जीवन की सराहना किया रते थे। संवत १६०२ विक्रमी में 'अष्टछाप के कवियों' में उनकी गणना हुई। बड़े-बड़े राजा-महाराजा आदि कुम्भनदास का दर्शन करने में अपना सौभाग्य मानते थे।वृन्दावनके बड़े-बड़े रसिक और सन्त महात्मा उनके सत्संग की उत्कृष्ट इच्छा किया करते थे।उन्होंने भगवद्भक्ति का यश सदा अक्षुण्ण रखा, आर्थिक संकट और दीनता से उसे कभी कलंकित नहीं होने दिया। भगवान श्रीनाथ से स्नेह एक बार श्रीविट्ठलनाथ जी उन्हें अपनीद्वारका यात्रा में साथ ले जाना चाहते थे, उनका विचार था किवैष्णवोंकी भेंट से उनकी आर्थिक परिस्थिति सुधर जायगी।कुम्भनदास श्रीनाथ जी का वियोग एक पल के लिये भी नहीं सह सकते थे, पर उन्होंने गोसाईं जी की आज्ञा का विरोध नहीं किया। वे गोसाईं जी के साथ अप्सरा कुण्डतक ही गये थे कि श्रीनाथ जी के सौंदर्य स्मरण से उनके अंग-अंग सिहर उठे, भगवान की मधुर-मधुर मन्द मुस्कान की ज्योत्स्ना विरह-अन्धकार में थिरक उठी, माधुर्यसम्राट नन्दनन्दन की विरह वेदना से उनका हृदय घायल हो चला। उन्होंने श्रीनाथ जी के वियोग में एक पद गाया- केते दिन जु गए बिनु देखैं। तरुन किसोर रसिक नँदनंदन, कछुक उठति मुख रेखैं।। वह सोभा, वह कांति बदन की, कोटिक चंद बिसेखैं। वह चितवन, वह हास मनोहर, वह नटवर बपु भेखैं।। स्याम सुँदर सँग मिलि खेलन की आवति हिये अपेखैं। कुंभनदास लाल गिरिधर बिनु जीवन जनम अलेखैं।। श्रीगोसाईं जी के हृदय पर उनके इस विरह गीतका बड़ा प्रभाव पड़ा। वे नहीं चाहते थे कुम्भनदास पल भर के लिये भी श्रीनाथ जी से अलग रहें। कुम्भनदास को उन्होंने लौटा दिया। श्रीनाथ जीका दर्शन करके कुम्भनदास स्वस्थ हुए। अकबर के समक्ष गायन एक बार मुग़ल बादशाह अकबर की राजसभा में एक गायक ने कुम्भनदास का पद गाया। बादशाह ने उस पद से आकृष्ट होकर कुम्भनदास को फ़तेहपुर सीकरी बुलाया। पहले तो कुम्भनदास जाना नहीं चाहते थे, पर सैनिकऔर दूतों का विशेष आग्रह देखकर वे पैदल ही गये। श्रीनाथ जी के सभा सदस्य को अकबर का ऐश्वर्य दो कौड़ी का लगा। कुम्भनदास की पगड़ी फटी हुई थी, तनिया मैली थी, वे आत्मग्लानि में डूब रहे थे कि किस पाप केफलस्वरूप उन्हें इनके सामने उपस्थित होना पड़ा। बादशाह ने उनकी बड़ी आवभगत की, पर कुम्भनदास को तो ऐसा लगा कि किसी ने उनको नरक में लाकर खड़ा कर दिया है। वे सोचने लगे कि राजसभा से तो कहींउत्तमब्रजहै, जिसमें स्वयं श्रीनाथ जी खेलते रहते हैं, अनेकों क्रीड़ाएं करते करते रहते हैं। अकबर ने पद गाने की प्रार्थना की। कुम्भनदास तोभगवान श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य-माधुर्य के कवि थे, उन्होंने पद-गान किया- भगत को कहा सीकरी काम। आवत जात पन्हैयां टूटीं, बिसरि गयो हरिनाम।। जाको मुख देखैं दुख लागै, ताको करनो पर्यो प्रनाम। कुंभनदास लाल गिरिधर बिनु और सबै बेकाम।। बादशाह सहृदय थे, उन्होंने आदरपूर्वक उनको घर भेज दिया। मानसिंह द्वारा सराहना संवत १६२० विक्रमी में महाराज मानसिंह ब्रजआये थे। उन्होंनेवृन्दावनके दर्शन के बादगोवर्धनकी यात्रा की। श्रीनाथ जी के दर्शन किये। उस समय मृदंग और वीणा के साथ कुम्भनदास जीकीर्तनकर रहे थे। राजा मानसिंह उनकी पद-गान शैली से बहुत प्रभावित हुए। वे उनसे मिलने जमुनावतो गये। कुम्भनदास की दीन-हीन दशा देखकर वे चकित हो उठे। कुम्भनदास भगवान के रूप-चिन्तन में ध्यानस्थ थे। आंख खुलने पर उन्होंने भतीजी से आसन और दर्पण मांगे, उत्तर मिला कि आसन (घास) पड़िया खा गयी, दर्पण (पानी) भी पी गयी।' आशय यह था कि पानी में मुख देखकर वे तिलक करते थे। महाराजा मानसिंह को उनकी निर्धनता का पता लग गया। उन्होंने सोने का दर्पण देना चाहा, भगवान केभक्तने अस्वीकार कर दिया, मोहरों की थैली देनी चाही, विश्वपति के सेवक ने उसकी उपेक्षा कर दी। चलते समय मानसिंह ने जमनुवतो गांव कुम्भनदास के नाम करना चाहा, पर उन्होंने कहा कि "मेरा काम तो करील के पेड़ और बेर के वृक्ष से ही चल जाता है।" राजा मानसिंह ने उनकी नि:स्पृहता और त्याग की सराहना की, उन्होंने कहा कि "माया के भक्त तो मैंने बहुत देखे हैं, पर वास्तविक भगवद्भक्त तो आप ही हैं।" वृद्धावस्था में भी कुम्भनदास नित्य जमुनावतो से श्रीनाथ जी के दर्शन के लियेगोवर्धन आया करते थे। एक दिन संकर्षण कुण्डी पर आन्योदर के निकट वे ठहर गये। 'अष्टछाप' के प्रसिद्ध कविचतुर्भुजदास जी, उनके छोटे पुत्रसाथ थे। उन्होंने चतुर्भुजदास से कहा कि "अब घर चलकर क्या करना है। कुछ समय बाद शरीर ही छूटने वाला है।"गोसाईं विट्ठलनाथ जीउनके देहावसान के समय उपस्थित थे। गोसाईं जी ने पूछा कि "इस समय मनकिस लीला में लगा है?" कुम्भनदास ने कहा-लाल तेरी चितवन चितहि चुरावै और इसके अनन्तर युगल स्वरूपकी छवि के ध्यान में पद गाया- रसिकनी रस में रहत गड़ी। कनक बेलि बृषभानुनंदिनी स्याम तमाल चढ़ी।। बिहरत श्रीगिरिधरन लाल सँग, कोने पाठ पढ़ी। कुंभनदास प्रभु गोबरधनधर रति रस केलि बढ़ी।।" उन्होंने शरीर छोड़ दिया। गोसाईं जी ने करुण स्वर से श्रद्धांजलि अर्पित की कि ऐसे भगवदीय अन्तर्धान हो गये। अब पृथ्वी पर सच्चे भगवद्भक्तों का तिरोधान होनेवास्तव में कुम्भनदास जी नि:स्पृहता के प्रतीकथे, त्याग और तपस्या के आदर्श थे, परम भगवदीय और सीधे-सादे गृहस्थ थे। संवत १६३९ विक्रमी तक वे एक सौ तेरह साल की उम्र पर्यन्त जीवित रहे। कुम्भनदास के पदों की कुल संख्या जो 'राग-कल्पद्रुम ' 'राग-रत्नाकर' तथा सम्प्रदाय के कीर्तन-संग्रहों में मिलते हैं, ५०० के लगभग हैं।इन पदों की संख्या अधिक है। जन्माष्टमी, राधा की बधाई, पालना,धनतेरस, गोवर्द्धनपूजा, इन्हद्रमानभंग,संक्रान्ति, मल्हार, रथयात्रा, हिंडोला, पवित्रा, राखी वसन्त, धमार आदि के पद इसी प्रकार के है। कृष्णलीला से सम्बद्ध प्रसंगों में कुम्भनदास ने गोचार, छाप, भोज, बीरी, राजभोग, शयन आदि के पद रचे हैं जो नित्यसेवा से सम्बद्ध हैं। इनके अतिरिक्त प्रभुरूप वर्णन, स्वामिनी रूप वर्णन, दान, मान, आसक्ति, सुरति, सुरतान्त, खण्डिता, विरह,मुरलीरुक्मिणीहरणआदि विषयों से सम्बद्ध श्रृंगार के पद भी है। कुम्भनदास ने गुरुभक्ति और गुरु के परिजनों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए भी अनेक पदों की रचना की। आचार्य जी की बधाई, गुसाईं जी की बधाई, गुसाईं जी के पालना आदि विषयों से सम्बद्ध पर इसी प्रकार केहैं। कुम्भनदास के पदों के उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि इनका दृष्टिकोण सूर और परमानन्द की अपेक्षा अधिक साम्प्रदायिक था। कवित्त की दृष्टि से इनकी रचना में कोई मौलिक विशेषताएँ नहीं हैं। उसे हमसूरकाअनुकरण मात्र मान सकते हैं कुम्भनदास के पदों का एक संग्रह 'कुम्भनदास' शीर्षक से श्रीविद्या विभाग, कांकरोली द्वारा प्रकाशित हुआ है। टीका टिप्पणी और संदर्भ चौरासी वैष्णवन की वार्ता; अष्टछाप और वल्लभ सम्प्रदाय: डा. दीनदयाल गुप्त अष्टछाप परिचय: श्रीप्रभुदयाल मीतल।
४ जून १९५८ को अवध की माटी में जन्मे देवमणि पांडेय हिंदी, उर्दू और संस्कृत के सहज साधक हैं। महत्वपूर्ण कवि तो हैं ही मंच संचालन के महारथी हैं। कवि सम्मेलन, मुशायरा और सुगम संगीत से लेकर शास्त्रीय संगीत तक के कार्यक्रमों का सहज संचालन करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ताशकंद में सन् २०१२ में सृजनगाथा डाॅट काम की ओर से उन्हें सृजनश्री सम्मान प्राप्त हुआ। मारवाड़ी सम्मेलन मुम्बई की ओर से सन् 201४ में घनश्यामदास सराफ साहित्य पुरस्कार प्रदान किया गया। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के अंतर्राष्ट्रीय साहित्य उत्सव में सन् २०१६ में उन्हें साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। सिनेमा में गीत लेखन - बतौर सिने गीतकार देवमणि पांडेय के कैरियर की शुरूआत निर्देशक तिग्मांशु धूलिया की फ़िल्म 'हासिल' से हुई। फ़िल्म पिंजर में उनके लिखे गीत "चरखा चलाती मां" को सन् २००३ के लिए ज़ी म्यूज़िक की ओर से बेस्ट लिरिक ऑफ दि इयर अवार्ड से नवाज़ा गया। गीतकार देवमणि पांडेय ने 'कहां हो तुम' और 'तारा : दि जर्नी आफ लव' आदि फ़िल्मों को भी अपने गीतों से सजाया है। उन्होंने सोनी चैनल के धारावाहिक 'एक रिश्ता साझेदारी का' स्टार प्लस के सीरियल 'एक चाबी है पड़ोस में' और ऐंड टीवी के धारावाहिक 'येशु' में भी अपने क़लम का जादू दिखाया है। संगीत अलबम गुज़ारिश, तन्हा तन्हा और बेताबी में उनकी ग़ज़लें शामिल हैं। सिनेमा में शामिल प्रमुख गीत- (१) चरखा चलाती मां : फिल्म 'पिंजर', संगीतकार उत्तम सिंह, गायिका प्रीति उत्तम। (२) पुलिस केस ना बन जाए : फिल्म 'हासिल', संगीतकार जतिन ललित, गायिका ऋचा शर्मा। (३) सपनों की वादी में : फिल्म 'कहां हो तुम', संगीतकार रजत ढोलकिया, गायक शंकर महादेवन, के के, शान। (४) छलका है मौसम का जादू : फिल्म' कहां हो तुम', संगीतकार रजत ढोलकिया, गायिका सुनिधि चौहान। (५) परदेसी राजा घर लौट के आ जा: फ़िल्म 'तारा- द जर्नी ऑफ लव', संगीतकार सिद्धार्थ कश्यप, गायिका मधुश्री। देश विदेश की प्रमुख पत्रिकाओं में देवमणि पांडेय की कविताएं, लेख, साक्षात्कार और संस्मरण प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने मुम्बई के सांध्य दैनिक 'संझा जनसत्ता' में कई सालों तक साप्ताहिक स्तम्भ 'साहित्यनामचा' का लेखन किया। मुंबई की सांस्कृतिक निर्देशिका संस्कृति संगम (१९९७-२०१५) के संपादक देवमणि पांडेय फ़िलहाल इंशाद फाउंडेशन के निदेशक हैं। कला, साहित्य एवं संस्कृति के आयोजनों के संचालन और संयोजन में सक्रिय हैं। अब तक इनके चार कविता-संग्रह और संस्मरणों की एक पुस्तक प्रकाशित हुई है। इनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं: काव्य संग्रह- दिल की बातें (१९९९), ख़ुशबू की लकीरें (२००५), अपना तो मिले कोई (२०१२), कहां मंज़िलें कहां ठिकाना ( २०२०) संस्मरण- अभिव्यक्ति के इंद्रधनुष : सिने जगत की सांस्कृतिक संपदा (२०२१)
धार विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र मध्य भारत में मध्य प्रदेश राज्य के २३० विधानसभा (विधान सभा) निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। यह धार जिले का हिस्सा है। धार, धार जिले में स्थित सात विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। यह निर्वाचन क्षेत्र वर्तमान में जिले के धार शहर को कवर करता है। यह धार लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। विधानसभा चुनाव २०१८ इन्हें भी देखें मध्य प्रदेश के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र
कोयंबतूर उपमार्ग दक्षिण भारत के कोयंबतूर शहर के राष्ट्रीय राजमार्ग और राज्य राजमार्ग को जोड़ने वाले सड़कें का सामूहिक नाम है। तमिलनाडु का भूगोल
१९ अक्षांश दक्षिण (१९त परलेल साउथ) पृथ्वी की भूमध्यरेखा के दक्षिण में १९ अक्षांश पर स्थित अक्षांश वृत्त है। यह काल्पनिक रेखा हिन्द महासागर, प्रशांत महासागर व अटलांटिक महासागर के दक्षिणी भाग और दक्षिण अमेरिका, ओशिआनिया (ऑस्ट्रेलिया, इत्यादि) व अफ़्रीका के भूमीय क्षेत्रों से निकलती है। इन्हें भी देखें २० अक्षांश दक्षिण १८ अक्षांश दक्षिण
उत्तरदायित्व का निम्न अर्थ हो सकता हैं - नैगमिक सामाजिक उत्तरदायित्व उत्तरदायित्व का विसरण वैयक्तिक दायित्व (नैतिक दायित्व का पर्यायवाची) वैयक्तिक दायित्व (ज़िम्मेदाराना व्यवहार करने की स्वेच्छा - एक ज़िम्मेदार व्यक्ति') उत्तरदायित्व धारणा - आध्यात्मिकता और व्यक्तिगत विकास के संदर्भों में रेस्पोंसिबिलिटी (गीत), ईसाई पंक बैंड एमएक्सपीएक्स का एक गीत सिंगल दायित्व सिद्धांत वेस्टमिन्स्टर प्रणाली की निम्न संवैधानिक प्रथाएँ - कैबिनेट सामूहिक दायित्व वैयक्तिक मंत्रालयी दायित्व रेस्पोंसिबिलिटी (उपन्यास), एक न्यूज़ीलैण्ड आधारित लेखक नायजल कॉक्स की २००५ की उपन्यास इन्हें भी देखें
कारोना ( बर्गमस्कू : लोम्बार्डी के इतालवी क्षेत्र में बर्गामो प्रांत में एक कम्यून (नगर पालिका) है, जो लगभग मिलान के उत्तर पूर्व और लगभग बर्गमो के उत्तर में स्थित है। कारोना के क़ानून के अनुसार, इसके क्षेत्र में कोई गांव नहीं हैं, लेकिन यह अभी भी कारोना बासा और पग्लियारी के इलाकों को अपना मानता है। कारोना निम्नलिखित नगर पालिकाओं की सीमाओं से लगता है। ब्रान्ज़ी, काइओलो, फोप्पोलो, गैण्डेलिनो, पियाटेडा, वैल्बोन्डियोन, वैलगोग्लियो, वैलिवे। विकिडेटा पर उपलब्ध निर्देशांक इटली की नगरपालिकाएँ
धीरेन्द्र महेता गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास छावणी के लिये उन्हें सन् २०१० में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। धीरेंद्र मेहता का जन्म २९ अगस्त १९४४ को अहमदाबाद में हुआ था। उनका परिवार भुज से था। चार साल की उम्र में, वह अपने दोनों पैरों में पोलियोमाइलाइटिस, जिसे आमतौर पर पोलियो के रूप में जाना जाता है, से पीड़ित हो गए। उन्होंने १९६१ में अल्फ्रेड हाई स्कूल, भुज से मैट्रिक किया। उन्होंने १९६६ में बी.ए. को प्रथम श्रेणी के साथ गुजराती में पूरा किया। १९६८ में, उन्होंने स्कूल ऑफ लैंग्वेजेस, गुजरात विश्वविद्यालय से गुजराती और हिंदी में एम.ए. पूरा किया। १९७६ में उनके शोध प्रबंध, गुजराती नवलकथानो उप्युल्यकी अभयसा, के लिए उन्हें पी.एच.डी. प्राप्त हुई। उन्होंने संक्षिप्त रूप से आकाशवाणी, भुज में काम किया और बाद में एच.के. आर्ट्स कॉलेज में रिसर्च फेलो के रूप में शामिल हुए। उन्होंने १९७० से १९७६ तक गुजरात कॉलेज, अहमदाबाद में विभाग के प्रमुख के रूप में गुजराती साहित्य पढ़ाया। फिर वह भुज चले गए और आर.आर. ललन कॉलेज में गुजराती और स्नातक केंद्र के प्रमुख के रूप में, नवंबर २००६ में अपनी सेवानिवृत्ति तक, गुजराती साहित्य पढ़ाया। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत गुजराती भाषा के साहित्यकार
आला हजरत गेट या अहमद रजा खान बरेलवी गेट या आला हजरत द्वार उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में बरेली शरीफ दरगाह के रास्ते में एक स्मारक है। इसे २०१७ में बरेली नगर परिषद द्वारा विकसित किया गया था। इसके निर्माण का विभिन्न हिंदुत्व कार्यकर्ताओं ने विरोध किया था।
चैत्यालय तारण पंथ के धार्मिक स्थल को कहते हैं। चैत्यालय देश के पांच राज्यों के १६८ स्थानों पर हैं। सर्वाधिक चैत्यालय बासोदा में हैं। व ज़िला स्तर पर दमोह में हैं। नाम चैत्यालय अवश्य है किंतु इसके भीतर वेदी में जिनवाणी रखातीं हैं जिनवाणी अर्थात जैन ग्रंथ।इनके निर्माण के पश्चात वेदी प्रतिष्ठा होती है।इसमें प्रथम दिवस अस्थाप व ध्वजारोहण,द्वितीय दिवस कलशारोहण,तृतीय दिवस वेदीसूतन व तिलक होता है।इसमेंं आयोजक परिवार को तारण तरण महासभा पदवी देती है।इसमें निम्न पदवियां मिलती हैं।क्रमशः सामुहिक,एक बार,दो बार,तीन बार,चार व पांच बार में धर्मप्रेमी, सेठ,सवाई सेठ,श्रीमंत, समाज रत्न और समाज भूषण की पदवी मिलती हैंं। चैत्यालयों में सार्वजनिक समारोह जैसेकि नववर्ष समारोह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसे भी देखें
नवागढ़ भारत में एक जैन तीर्थ ( जैन धर्म के लिए तीर्थस्थल) है। यह मध्य भारत के उत्तर प्रदेश में नवाई गांव में सौजना के पास मध्य प्रदेश सीमा पार स्थित है। यह ललितपुर से पूर्व में ६५ और सागर से उत्तर की ओर ११० किमी कि दूरी पर स्थित है । इस प्राचीन क्षेत्र की खुदाई १९५९ में हुई थी। यह भारत का एकमात्र ऐसा तीर्थ है जहाँ मुख्य देवता भगवान अरनाथ की प्राचीन प्रतिमा है, जो प्राचीन भूमिगत कक्ष में संरक्षित है। नवागढ़ सुन्दर प्राकृतिक आकर्षक और चट्टानी जंगल से घिरा हुआ क्षेत्र है। यह भगवान अरहनाथ की खड्गासन कायोत्सर्ग आकार छवि के लिए प्रसिद्ध है । यह चंदेला शैली में है और बारीक पॉलिश है। इसमें शिलालेख नहीं है, लेकिन एक ही कक्ष से एक शांतिनाथ आप्रतिमा के टुकड़े की तिथि सम्वत १२०२ है। क्षेत्र के पास में प्रागैतिहासिक गुफा हैं जहां जैन साधु के साधना के चित्र है। उत्तरप्रदेश ललितपुर जिलान्तर्गत महरौनी तहसील के सोजना थाना में ७८.८० देशान्तर एवं २४.३४ पर स्थित राजस्व ग्राम नवाई में प्रागैतिहासिक क्षेत्र नवागढ़ है, ज्वालामुखी लावे से निर्मिति चट्टानों के मध्य कई प्राकृतिक गुफायें है, यहाँ लघु पहाड़ियों की श्रृंखलाये है जिनमें रॉक आर्ट सोसायटी भारत के महासचिव डॉ.गीरिराजकुमार, दयाल बाग़ इंस्टिट्यूशन आगरा कई दिन तक सतत सर्वेक्षण करके पाषाणकालीन औजारों एवं कल्प मार्ग १०००० वर्ष प्राचीन का अन्वेषण किया है । इस अन्वेषण में प्रीमैचुलियन(२ लाख से ५ वर्ष प्राचीन) मिडिल मिडिल मैचुलियन (३५ हजार से २ लाख वर्ष) पोस्ट मैचुलियन (१५ हजार से ३५ हजार वर्ष) के औजारों की श्रृंखला प्राप्त हुई है, डॉ मारुतिनंदन प्रसाद तिवारी काशी हिन्दु विश्वविद्यालय वाराणसी के अनुसार प्राकृतिक गुफाओं में गुप्तकालीन(तीसरी सदीं) कायोत्सर्ग मुद्रा एवं चरण चिन्ह उत्कीर्ण हैं इससे सिद्ध होता है नवागढ़ प्राचीन नंदपुर की स्थापना गुप्तकाल में हो गई थी । जहाँ निरन्तरजैन संतो का आवागमन तथा साधना इन गुफाओं में करते थे, जैन पहाड़ियों पर स्थित कच्छप शिला के आधार में संतों का शयन स्थल इसका साक्ष्य है, कच्छय शिला के आधार एवं छत में चित्रित ब्र. जयनिशांत के द्वारा अन्वेषित ६-८ हजार वर्ष प्राचीन शैल चित्रों की श्रृंखला है जिनके अधिकांश चित्रऋतू क्षरित होकर नष्ट हो चुके हैं, शेष चित्र भी नष्ट होने की कगार पर है । इन शैल चित्रों में जैन दर्शन के कई रहस्य छुपे हैं, जिनका अन्वेषण डॉ स्नेहरानी जैन सर हरिसिंह गौर विश्व विद्यालयसागर एवं डॉ.भागचन्द्र भागेन्दु सचिव मध्यप्रदेश शासन के द्वारा हो रहा हैं, पहाडी के निकट प्राप्त मिट्टी एवं पाषाण के मनके तथा मृद भांड यहाँ मानव संस्कृति के साक्ष्य हैं, प्रतिहार कालीन(७२५ ई.) कालीन मूर्ति शिल्प से सिद्ध होता हैं यहाँ जिनालयों का निर्माण ५वी. ६ वी. सदी में हो चुका था, यहाँ की सांस्कृतिक धार्मिक धरोहरों को चंदेल शासक शासक धंगदेव (९५० ई.) मदन वर्मन (११२८ ई.) विकास के विशेष आयाम स्थापित हुए है । नवागढ़ में प्राप्त विशेष विभिन्न मुकुटो वाले राजाओं सामन्तों एवं महारानियो के शीर्षों के अन्वेषण डॉ काशीप्रसाद त्रिपाठी श्री हरि विष्णु अवस्थी इतिहास विद टीकमगढ, डॉ एस. के. दुबे संग्रहालय अधिकारी झाँसी, नरेश पाठक पुरातत्वविद ग्वालियर इसे विशेष व्यापारिक केन्द्र समुन्नत नगर विशिष्ट राज्य सत्ता वाला नगर घोषित करते है, कालिंजर प्रबोध कृति में डॉ हरिओम तत्सत लिखते है चंदेल शासक मदन वर्मन के काल में महोबा, मदनपुर, देवगढ, नवागढ़, पपौरा, सिरोन मदनेशपुर(अहार जी) का विशेष विकास हुआ, नवागढ़ प्राचीन नंदपुर की विशेष ख्याति रही है इसीलिए अहार जी के मूलनायक शांतिनाथ, पपौरा क्षेत्र के आदिनाथ की प्रशस्ति (अभिलेख) में उसका नाम उल्लेख हैं, डॉ काशिप्रसाद त्रिपाठी ने बुंदेलखंड का वृहद इतिहास में उल्लेख किया है, मदनपुर के अभिलेख अनुसार सन ११८२ ई. में (सम्बत १२३९) में चंदेल शासक परमहृदेव से युद्ध करते हुए पृथ्वीराज चौहान ने महोबा, लासपुर, मदनपुर के साथ नवागढ़ को भी ध्वस्त किया था, प. गुलाबचंद्र पुष्प प्रतिष्ठाचार्य ककरवाहा टीकमगढ़ ने अप्रैल १९५९ में टीले पर स्थित इमली वृक्ष के नीचे भूगर्भ में स्थित जैन धर्म के धर्म अठारहवें तीर्थंकर अरहनाथ स्वामी के भरनामस्वामी के कायोत्सर्ग ममूर्ति का अन्वेषण किया खनन कार्य में यहाँ कई जिनालयों के साक्ष्य मिले परन्तु अर्थ भाव में इनका खनन कार्य नहीं हो सका, संग्रहालय में संगठित कायोत्सर्ग एवं पद्माशन मुद्रा की खंडित विशाल प्रतिमाएं इसका साक्ष्य है लाखों वर्ष प्राचीन पाषाण औजारो की श्रृंखला एवं कपमार्क हजारों वर्ष प्राचीन प्राकृतिक शैलाश्रय(गुफाये) गुप्तकालीन (तीसरी सदी) कायोत्सर्ग मुद्रा एवं चरण चिन्ह प्रतिहारकालीन(७२५ ई.) विशिष्ट मूर्ति शिल्प क्षेत्र का इतिहास सन् १९५९ ई. में पं. गुलाबचन्द्र जी 'पुष्प' ककरवाहा से व्यापार हेतु कुछ साथियों के साथ नावई (नवागढ़) गाँव के पास से निकले। वहाँ टीले के ऊपर विशालकाय इमली के पेड के नीचे बहुत सी खण्डित जैन मुर्तियों, झाड़ियों के झुरमुट एवं पत्थरों का ढेर देखा। एक ग्रामीण यहाँ नारियल, फोड़ कर मनौती मांग रहा था। उससे चर्चा करने पर उसने बताया कि यह देव स्थान है। यहां हम अपनी समस्त विपदाओं का निराकरण करते हैं। यहां की धूल भी यदि हम रोगी को लगा दें, तो यह स्वस्थ हो जाता है। पं. पुष्पजी ने गंभीरता से निरीक्षण करके विचार किया कि यहाँ कोई अतिशयकारी प्रतिमा होनी चाहिए, जो ग्रामवासियों की श्रद्धा से उनकी इच्छा पूर्ति करती है। ग्रामवासियों की एकत्रित करके इमली का पेड़ हटाने को कहा, परंतु सभी ने मना कर दिया कि देव स्थान पर हम कुछ भी नहीं करेंगे। कुछ दिनों पश्चात् पुष्प जी ने अपने साथियों नब्बी पठया, स्वरूप पठया, हल्काई सेल, दयाचन्द्र सेठ, कड़ोरे सेठ मैनयार, मनकू सिंघई ककरवाहा, पल्टू मिठया, धर्मदास हैदरपुर, पन्ना सेट सौजना, अनंदी सिंघई अजनौर, हल्कू सिंघई डूंडा, कामता वैद्य गुढ़ा के साथ इमली के पेड़ को हटाने का संकल्प किया। जिसमें उन्हें कोई बाधा नहीं आई, कुछ दिन में ही परिश्रम के फलस्वरूप टीला हटाने पर कुछ खण्डित प्रतिमाएं प्राप्त हुई। जमीन खोदने पर कुछ सांगोपांग तथा कुछ खण्डित प्रतिमाएं पुनः प्राप्त हुई। जमीन में १० फीट नीचे लगभग ९०० वर्ष प्राचीन अतिशयकारी ४.७५ फीट खड्गासन अरनाथ भगवान की प्रतिमा भौंयरे ( भूगर्भ ) में प्राप्त हुई। भगवत् दर्शन से अभिभूत पुष्प जी ने संकल्प किया कि भगवान की पुनः प्रतिष्ठा करके इस क्षेत्र का विकास करूंगा। खोज और विकास १९४० के दशक में क्षेत्र को खंडित मूर्तियों के संग्रह के रूप में दर्ज किया गया था और पास के एक गांव में संवत १२०३ के साथ उत्कीर्ण स्तंभों का एक संग्रह। एक पेड़ के नीचे एक मंच था जिसमें बड़ी संख्या में प्राचीन जैन ऐतिहासिक अवशेष थे। इसकी खोज पं गुलाबचंद जी 'पुष्प' ने की थी। गुलाबचंद्र पुष्प, एक आयुर्वेदिक चिकित्सक (जो बाद में एक प्रतिष्ठाचार्य के रूप में प्रसिद्ध थे) पास के मेनवार गाँव में भ्रमण के दौरान पुरातात्विक अवशेष मिले अन्वेषण ने एक भूमिगत कक्ष में भगवान अर्नथ की छवि तैयार की, साथ ही कई मूर्तियों के साथ-साथ मूर्तियों को भी नुकसान पहुँचाया। १९५९ में सतना के नोट जैन पुरातत्व विशेषज्ञ नीरज जैन की सलाह से व्यवस्थित विकास शुरू किया गया था। चूंकि स्पॉट एक जंगल में था, इसलिए यह प्रस्तावित किया गया था कि मुख्य छवि को पास के शहर में ले जाया जाना चाहिए, हालांकि स्थानीय ग्रामीणों द्वारा इसका विरोध किया गया था। १९९० में, एक प्रारंभिक संरचना एक चारदीवारी के साथ बनाई गई थी। १९८५ और २०११ में गजरथ उत्सव आयोजित किए गए। इसके बाद यह तय किया गया था कि भगवान अरहनाथ की छवि को उसी भूमिगत कक्ष ( भोंइरा ) में रखा जाना चाहिए जो केवल संकीर्ण सीढ़ी के कारण सुलभ था। पूजाघर के सामने एक विशाल कक्ष की खुदाई की गई, जिससे पूजा करने वालों के लिए एक बड़ी जगह मिल सके। तीर्थ का दौरा आचार्य विद्यासागर, वर्धमानसागर, देवनंदी, पद्मनंदी, विरासागर, ज्ञानसागर, विशुद्धसागर, विभवसागर के साथ-साथ कई अन्य मुनि और आर्यिकाओं ने किया है। ऐतिहासिक मूर्तियाँ और शिलालेख भौंरे के अलावा, परिसर में आधुनिक और प्राचीन चित्रों के साथ दो अतिरिक्त मंदिर और एक संग्रहालय शामिल हैं, जहां बड़ी संख्या में ऐतिहासिक मूर्तियां और टुकड़े संरक्षित हैं। इनमें आदिकालीन आयु (५००-१००० ईस्वी) से भगवान आदिनाथ और भगवान पार्श्वनाथ की मूर्तियाँ शामिल हैं। ११ ९ ५ (११३ अध ई.प.) के एक पतले पॉलिश वाले काले विद्वान महावीर की छवि के निचले टुकड़े में गोलपुर्वा महिचंद्र, उनके पुत्र डेल्हान और उनके परिवार के सदस्यों का उल्लेख है। एक बार सोजना में एक जलाशय में पुन: उपयोग किए गए चार कॉलम दिनांकित १२०२ भी संरक्षित हैं। प्रागैतिहासिक क्षेत्र की प्राचीनता नवागढ़ (नंदपुर) के पुरातात्विक, अभिलेखीय एवं ऐतिहासिक साक्ष्य जैन धर्म कि पुरातन परम्परा को सिद्ध करते हैं। डॉ. स्नेहरानी जैन सागर एवं इंजी. एस.एम.जैन सोनीपत के अनुसार यहाँ की ग्रेनाइट की चट्टानें एवं गुफाएँ ज्वालामुखी के लाये से निर्मित हैं जो लाखों वर्ष प्राचीन हैं। नवागढ़ में पाषाणकाल से वर्तमान काल तक निरंतर मानव सभ्यता जीवंत रहने के साक्ष्य प्राप्त हुये हैं। इसमें २८ जनवरी २०१७ ई. से २७ मार्च २०१८ ई. तक प्रोफेसर गिरिराज कुमार आगरा द्वारा अन्वेषित पाषाण कुदालें २ लाख से ५ लाख वर्ष प्राचीन पाषाणकालीन मानव सभ्यता के साक्ष्य है। ६ नवम्बर २01६ ई. को डॉ.एस.के.दुबे झांसी तथा श्री नरेश पाठक ग्वालियर द्वारा अन्वेषित पाषाण उपकरण एवं लघु पाषाण औजार 1२ से 1५ हजार वर्ष प्राचीन मध्य पाषाणकालीन सभ्यता का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। सिद्धों की टौरिया का रॉक कप मार्क १० हजार वर्ष प्राचीन मानव सभ्यता का साक्ष्य है। दिनांक ६ अक्टूबर २014 ई. को ब्र. जयकुमार 'निशांत' द्वारा अन्वेषित कच्छप शिला की चितेरों की चंगेर" शैलचित्र श्रृंखलाएं ६ से ८ हजार वर्ष पूर्व की विकसित मानव सभ्यता, मिट्टी एवं पाषाण के मनके २ हजार वर्ष से लगातार मानवीय सभ्यता के प्रत्यक्ष साक्ष्य हैं। डॉ. भागचन्द्र भागेन्दु' दमोह एवं श्री हरिविष्णु अवस्थी टीकमगढ़ के अनुसार मटकाटोर शिला, कच्छप शिला, बगाज टोरिया की गुफा, फाईटोन पहाड़ी, जैन पहाड़ी की गुफाएँ यहाँ जैन संतों की हजारों वर्ष प्राचीन साधना स्थली को प्रमाणित करती हैं। इसके साक्ष्य गुफा में उत्कीर्ण गुप्तकालीन (५ वीं सदी) कायोत्सर्ग मुद्रा (रॉक कट इमेज) एवं चरण चिन्ह तथा बगाज टोरिया की प्राकृतिक आचार्य गुफा है। नवागढ़ (नंदपुर) में संगृहीत प्रतिहारकालीन शिल्प (सातवीं सदी) शिखर कलश, खंडित तीर्थकर बिम्ब, नवागढ़ के ५ किमी. विस्तार एवं ऐतिहासिक साक्ष्यानुसार यह प्रमाणित होता है कि नवागढ़ वंशी (तीसरी सदी) राजाओं द्वारा स्थापित महानगर था, जिसका संग्रहालय में संगृहीत विशेष मुकुट वाले शीर्ष, राजसत्ता सम्पन्न गौरवमयी नगर होने का संकेत करते हैं। उपाध्याय परमेष्ठी के नवागढ़ में संवत् ११८८ सन् ११३१ ई. के सर्वांग बिम्ब, ४ विलक्षण बिम्ब एवं चारों मानस्तंभ में तीन ओर तीर्थकर बिम्ब तथा एक ओर उपाध्याय बिम्ब के साथ अकलंक निकलंक की राजकुमार अवस्था की प्रतिमा यहाँ प्राचीन कालीन गुरुकुल परम्परा की सशक्त साक्ष्य हैं। डॉ. एम.एन.पी. तिवारी वाराणसी एवं डॉ. ए.पी. गौड़ लखनऊ के अनुसार सन् १०६६ ई. (संवत् ११२३) का आदिनाथ तीर्थंकर का पद्मासन खंडित आसन अत्यंत महत्वपूर्ण है, चंदेलशासक घंगदेव सन् ९५४ ई. (संवत् १०११) के शासनकाल में राज्य सम्मान प्राप्त पाहिल श्रेष्ठी ने मुनि वासवचंद के काल में खजुराहो में जैन मंदिर निर्माण के साथ नंदपुर वर्तमान नवागढ़ में भी जैन मंदिर का निर्माण कराया था। पाहिल के पौत्र महिचंद प्रपौत्र देल्हण ने सन् ११३८ ई. (संवत् ११९५) में महावीर तीर्थंकर की स्थापना कराई थी। डॉ. हरिओऽम तत्सत् शुक्ल कालिंजर प्रबोध में लिखते हैं मदन वर्मन ने राजुराहो, अहार, बानपुर, दुधही, चाँदपुर, नयागढ़, कुण्डलपुर एवं सौरों जैन तीर्थ स्थापित किये। इसी के साथ यहाँ सन् ११४५ ई. (संवत् १२०३) में मानस्तंभ एवं प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी। इससे सिद्ध होता है कि नवागढ़ प्राचीन नंदपुर जिन मंदिरों के वृहद् इतिहास में उल्लेख करते हैं, मदनपुर के अभिलेख त्रिपाठी बुन्देलखण्ड का (संवत् १२३९) में चंदेल शासक परमादिदेव से युद्ध करते हुये पृथ्वीराज चौहान ने महोबा, लासपुर, मदनपुर के साथ नवागढ़ को भी ध्वस्त किया था। जिसके साक्ष्य यहाँ के संग्रहालय में संगृहीत विशालकाय शताधिक खंडित तीर्थंकर प्रतिमाएं एवं कला शिल्प है, डॉ. कस्तूरचन्द्र 'सुमन' दमोह के अनुसार उस काल में नंदपुर वर्तमान नवागढ़ महत्वपूर्ण एवं समृद्धशाली जैन तीर्थ क्षेत्र रहा होगा, इसीलिये सिद्धक्षेत्र अहार जी के मूलनायक शांतिनाथ तीर्थकर सन् ११८० ई. (संवत् १२३७) की प्रशस्ति तथा अतिशय क्षेत्र पपौरा जी के भौंयरा मंदिर क्र. २३ की तीर्थकर प्रतिमा सन् ११४५ ई. (संवत् १२०२) की प्रशस्ति में इसका नामोल्लेख प्राप्त होता है। पुरातन साधना स्थली नवागढ़ के बीहड़ में नैसर्गिक प्राचीन शैलाश्रय एवं गुफाएं हैं इनमें सन् १९६१ ई. में मुनि श्री आदिसागर जी महाराज ( बम्हौरी वालों ) ने साधना की थी। सन् १९६५ एवं ६६ में क्षुल्लक चिदानंदजी महाराज एवं ब्र . आत्मानंद जी ने नवागढ़ में २ चातुर्मास किए। क्षुल्लक महाराज कभी कभी २-३ दिन जंगलों में ध्यानस्थ हो जाते थे । ढूँढने पर भी नहीं मिलते थे । ब्र . निशांत भैया ने सरपंच रामनारायण यादव से इस तथ्य की जानकारी ली तो उन्होंने ' मटकी गुफा ' एवं कुछ अन्य गुफाओं की जानकारी दी , तब निशांत भैया ने सरपंच जी के साथ कई महीने जंगल में घूमने के पश्चात् मंदिर से ३ कि.मी. दूर जैन पहाड़ी में ६ अक्टूबर २014 ई . को एक शैलाश्रय में शैलचित्रों की | खोज तथा २7 फरवरी एवं ११ जून २015 ई . को कुछ विशेष गुफाओं की खोज की जहाँ प्राचीनकाल से आज तक संतों ने सतत् साधना करके जिनशासन की प्रभावना की है। नवागढ़ में खनन से प्राप्त मध्यकालीन आठ फीट उत्तुंग भगवान आदिनाथ, १५ फीट उत्तुंग भगवान शांतिनाथ, पद्मासन भगवान पार्श्वनाथ, विशाल तोरण एवं कई अतिविशिष्ट | शिल्पों के साथ लगभग २०० कलाकृतियाँ क्षेत्र की यशोगाथा की साक्षी हैं । विशाल संग्रहालय "बुन्देली विरासत" की योजना समाज के सहयोग से क्रियान्वित होना शेष है । क्षेत्र की वर्तमान स्थिति क्षेत्र के प्रारंभिक विकास के क्रम में प्रथम बार सन् १९६० में पं. नीरज जैन सतना के निर्देशन में प्रांतीय जैन समाज के सहयोग से भौंयरे का जीर्णोद्धार किया गया । प्रतिष्ठाचार्य पं. गुलाबचन्द्र 'पुष्प' एवं आंचलिक समाज के विशेष सक्रिय सहयोग से वर्ष १९८५ में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं गजरथ महोत्सव के सफल आयोजन के फलस्वरूप शिखर सहित मूलनायक मंदिर, बाहुबली जिनालय एवं धर्मशाला का निर्माण कार्य संपन्न हुआ । ब्र. जय कुमार 'निशांत' भैया जी के निर्देशन में क्षेत्र को नवीन स्वरूप प्रदान कराते हुए वास्तु एवं शिल्पकला के अनुरूप किये गये सौन्दर्यकरण से आज नवागढ़ क्षेत्र जन - जन के लिए आस्था का केंद्र बन चुका है, अरनाथ स्वामी की चक्रवर्ती विभूति १४ रत्न एवं ९ निधियों की कलात्मक शिल्पकला एवं वैभव के अंकन का आकर्षण विलक्षण है भक्तगण यहाँ आकर विधान, जाप्यानुष्ठान आदि करके अपनी समस्याओं का निदान पाकर भगवान अरनाथ स्वामी के प्रति समर्पित हो जाते हैं। तीर्थ का विकास पं गुलाबचंद्र पुष्प द्वारा किया गया है। गुलाबचंद्र पुष्प, जिन्होंने कई जैन मंदिरों की स्थापना के लिए प्रतिष्ठाचार्य के रूप में कार्य किया है, और अब पिता का सपना उनके पुत्र ब्रह्मचारी जयकुमार जैन निशांतजी कर रहे है,जो एक प्रख्यात प्रतिष्ठाचार्य है। पंचतीर्थी पार्श्वनाथ- भूगर्भ से प्राप्त यह मनोज्ञ, विलक्षण, माल्याधर, त्रिछत्र, मृदंगवादक सहित सर्वांग पार्श्वनाथ जिनबिम्ब चंदेलकालीन शिल्पकला की उत्कृष्ट कृति है। राजकुमार अकलंक- निकलंक- एक ही शिलाखण्ड में दोनों राजकुमारों की वस्त्राभूषण से अलंकृत कलाकृति जिसमें अग्रज के हाथ में लम्बायमान शास्त्र पत्र एवं कलम है । उपाध्याय बिम्ब- मनोहारी बिम्ब जिसमें बायें हाथ में लम्ब शास्त्र को विशेष मुद्रा में दिखाया गया है । राजकुमार अरनाथ- कलात्मक शीर्षखंड जिसमें विशाल मुकुट , दीर्घनयन , सुडोल नासिका , मांसल कपोल एवं मुस्कुराते हुये होंठ अत्यंत आकर्षक हैं । तीर्थकर माता - खनन से प्राप्त विभिन्न आभूषणों से सुसज्जित , मातृत्वभाव युक्त तीर्थकर अरनाथ स्वामी की जननी राजमाता ' मित्रा ' की यह विशेष कृति है । वरिष्ठ पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार नवागढ़ क्षेत्र के पूर्व की ओर एक कि.मी. की दूरी पर ३० फीट चौड़ी बावड़ी एवं उसी के पास मंदिर के पुरावशेष हैं । क्षेत्र के उत्तर दिशा में प्राचीन टीला एवं चंदेलकालीन कुआँ है । दक्षिण में स्थित पहाड़ी एवं जंगल में स्थित पहाड़ियों , ग्रामीण अंचलों में विशेष सांस्कृतिक ऐतिहासिक महत्व की पुरा संपदा एवं पाषाण कालीन सभ्यता के और भी अवशेष मिलने की संभावना है । इस ओर समाज एवं प्रशासन का ध्यान अपेक्षित है। क्षेत्र के अतिशय विध्वंस लीला को झेलते हुये मूलनायक अरनाथ भगवान की प्रतिमा का सुरक्षित रहना स्वयं में अतिशय है । ग्रामीण अंचल एवं जैन - जैनेतर समाज की अगाध आस्था अरनाथ प्रभु से जुड़ी है। प्राकृतिक आपदा, पशु पीड़ा का निदान भक्तगणों को निष्काम साधना से निरंतर प्राप्त होता है। आज भी ग्रामवासी अपना कार्य आरंभ करने के पूर्व प्रभु चरणों में धोक देने आते हैं। देवों द्वारा अभिषेक, आंखों की ज्योति आना, पॉव का दर्द ठीक होना, शारीरिक एवं मानसिक बाधा दूर होना, खाली गोद भरने के साथ कैंसर एवं ट्यूमर जैसी असाध्य बीमारी ठीक होना आदि अनेकानेक अतिशयकारी घटनाओं के ग्रामीणजन साक्षी हैं । जिनको दर्शनार्थी श्रावक सुनकर आश्चर्यचकित हुये बिना नहीं रहता व भक्ति पूर्वक प्रभु के चरणों में समर्पित होता चला जाता है। देवाशीष अमृत कूपं- विगत कई वर्षों से मेला के समय क्षेत्र के कुएं में अभिषेक करने लायक जल ही रहता है। मेला आरम्भ होते ही एक ही रात में उसमें ८-१० फीट जल स्यमेव भर जाता है , जिससे हजारों श्रायकों की सम्पूर्ण व्यवस्था होती है । वर्ष २०११ एवं २०१६ पंचकल्याणक के समय हुए इस अतिशय का जन जन प्रत्यक्षदर्शी है । इस क्षेत्र पर आचार्यश्री विद्यासागर जी, आचार्यश्री वर्धमानसागरजी, आचार्यश्री देवनंदीजी, आचार्यश्री पद्मनंदीजी, आचार्यश्री विरागसागरजी, आचार्यश्री ज्ञानसागर जी, आचार्यश्री विशुद्धसागर जी, आचार्यश्री विभवसागरजी, आचार्यश्री विनिश्चयसागर जी मुनिश्री नेमिसागरजी, मुनिश्री समयसागर जी मुनिश्री सुधासागरजी, मुनिश्री अभयसागरजी सहित कई मुनि संघ एवं आर्यिका अनंतमती माताजी, आर्यिका विशाश्री माताजी, आर्यिका गुरुमती माताजी, आर्यिका प्रशांतमती माताजी, गणनी आर्यिका ज्ञानमती माताजी के साथ कई अन्य संघ भी दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर इस क्षेत्र का अतिशय वर्धन कर चुके हैं । मुनिश्री सरलसागर जी महाराज का वर्ष २०१९ का चातुर्मास सानंद सम्पन्न हुआ । आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज द्वारा पुरासम्पदा का अवलोकन मई २०१८ में अतिशय क्षेत्र पपौरा जी में आचार्य भगवंत द्वारा नवागढ़ में संगृहीत पुरासम्पदा का अवलोकन किया गया । आचार्यश्री ने ब्र . जयकुमार जी ' निशांत ' को क्षेत्र के विकास एवं पुरातात्विक धरोहरों को लेकर संबंधित दिशा निर्देश प्रदान किये । क्षेत्र पर आयोजित पंचकल्याणक प्रथम- सन् १०६६ ई. (संवत् ११२३) द्वितीय - सन् ११३८ ई. (संवत् ११९५) तृतीय - सन् ११४५ ई. (संवत् १२०३) चतुर्थ- ३१ जनवरी से ५ फरवरी सन् 198५ ई. (संवत् २०४२) पंचम- १४ जनवरी से १९ जनवरी २०११ ई. (संवत् २०६९) षष्ठ- २९ जनवरी से ४ फरवरी २०१६ ई. (संवत् २०७३) धर्मशाला (धर्मशाला) में २० कमरे हैं। स्वादिष्ट भोजन के लिए एक कैंटीन (भोजशाला) उपलब्ध है। स्थान और पास के तीर्थ अतिशय क्षत्रः पपौरा जी ३०किमी, सिद्धक्षेत्र अहारजी ५५किमी, सिद्धक्षेत्र द्रौणगिरी ५५किमी, सिद्धक्षेत्र बडागांव १५किमी। यह सभी देखें बुंदेलखंड में जैन धर्म ललितपुर ज़िला, उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश का इतिहास विकिडेटा पर उपलब्ध निर्देशांक १२वीं शताब्दी के जैन मंदिर उत्तर प्रदेश के जैन मंदिर मध्यप्रदेश के जैन मंदिर
मृगावती हिंदी प्रेमाख्यान काव्य मृगावत की नायिका है। इसकी रचना १६वीं शताब्दी के आरंभ (१५०३-०४ ई०) में, कुतबन ने की थी। मृगावती की कथा के आधार पर बाद में अनेक लोगो ने हिंदी और बंगला मे रचनाएँ की हैं। मृगावती कंचन नगर के राजा रूप मुरारी की बेटी थी। एक दिन वह मृगी का वेश धारण कर वन में विचरण कर रही थी। उसे चंद्रगिरि के राजा गणपति देव के पुत्र ने देखा और उस पर आसक्त हो गया। वह उसकी खोज में योगी वेश धारण करके निकला। मार्ग में रुपमणि नामक राजकुमारी की राक्षस से रक्षा कर विवाह किया। फिर उसे छोड़ कर मृगावती की खोज में चल पड़ा। नाना कष्ट सहते हुए कंचन नगर पहुँचा और वहाँ मृगावती को राज करते पाया। वहाँ १२ वर्ष रहा। जब वह घर न लौटा तो उसे बुलाने के लिए उसके पिता ने दुत भेजा। रास्ते में वह रुपमणि से मिलता हुआ राजकुमार के पास पहुँचा और उसे लौटा लाया। अंत मे एक दिन आखेट करते हुए राजकुमार की मृत्यु हो गई और मृगावती और रुपमणि उसके साथ सती हो गई।
मुकुर्ती राष्ट्रीय उद्यान दक्षिण भारत के तमिल नाडु राज्य के नीलगिरि ज़िले में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान है। भारत के वन्य अभयारण्य राष्ट्रीय उद्यान, भारत मई २०१३ के लेख जिनमें स्रोत नहीं हैं भारत के राष्ट्रीय उद्यान
४९० ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ
एकेश्वरवाद या एकास्तिक्य वह सिद्धान्त है जहाँ 'ईश्वर के एकल स्वरूप की मान्यता प्राप्त है' अथवा एक ईश्वर है विचार को सर्वप्रमुख रूप में मान्यता देता है। एकेश्वरवादी एक ही ईश्वर में विश्वास रखता है और केवल उसी की पूजा-अर्चना उपासना करता है। इसके साथ ही वह किसी भी ऐसी आलौकिक शक्ति या देवता को नही मानता जो उस ईश्वर का समकक्ष हो अथवा उसका स्थान ले सके। इसी दृष्टि से बह्वास्तिक्य एकेश्वरवाद का विलोम सिद्धान्त कहा जा सकता है। एकेश्वरवाद के विरोधी दार्शनिक मतवादो में सर्वेश्वरवाद, नास्तिकता तथा संशयवाद की गणना की जाती है। सर्वेश्वरवाद ईश्वर और जगत् में अभिन्नता मानता है उसके सिद्धान्त वाक्य हैं सब ईश्वर है तथा ईश्वर सब है । एकेश्वरवाद केवल एक ईश्वर की सत्ता मानता है। सर्वेश्वरवाद ईश्वर और जगत् दोनों की सत्ता मानता है। यद्यपि जगत् की सत्ता के स्वरूप में वमत्य है तथापि ईश्वर और जगत् की एकता अवश्य स्वीकर करता है। ईश्वर एक है वाक्य की सूक्ष्म दार्शनिक मीमांस करने पर यह कहा जा सकता है कि सर्वसत्ता ईश्वर है। यह निष्कर्ष सर्वेश्वरवाद के निकट है। इसीलिए ये वाक्य एक है तथ्य को दो ढंग से प्रकट करता है ।इनका तुलनात्मक अध्ययन करने से यह प्रकट होता है कि 'ईश्वर एक है' वाक्य जहाँ ईश्वर के सर्वव्यापकत्व की ओर संकेत करता है वही सब ईश्वर हैं' वाक्य ईश्वर के सर्वव्यापकत्व की ओर को। कालगत प्रभाव की दृष्टि से विचार करने पर ईश्वर के तीन विषम रूपों के अनुसार तीन प्रकार के एकेश्वरवाद का भी उल्लेख मिलता है: इनमे से तीसरा एकेश्वरवाद सर्वाधिक व्यापक है और इसका सर्वेश्वरवाद से बहुत निकटता है। यह सिद्धान्त केवल ईश्वर की ही पूरी सत्ता पर जोर नहीं देता अपितु जगत् की असत्ता पर भी जोर देता है। किन्तु विभिन्न दार्शनिक दृष्टियों से वह जगत् की सत्ता और असत्ता दोनो का दो प्रकार के सत्यों के रूप में प्रतिपादन भी करता है। जगत् की असत्ता भी समान रूप से जोर देने के कारण कुछ लोग हिन्दू सर्वेश्वरवाद को एकेश्वरवाद के निकट देखते हुए उसके लिए शब्द का प्रयोग अधिक संगत मानते हैं। इस दृष्टि से जगत् की सत्ता केवल प्रतीक मात्र है। हिन्दू एकेश्वरवाद में ऐतिहासिक दृष्टि से अनेक विशेषताएं देखने में आती है। कालानुसार उनके अनेक रूप मिलते हैं। सर्वेश्वरवाद और बह्वास्तिक्य में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। कुछ लोग विकासक्रम की दृष्टि से बह्वास्तिक्य को सर्वप्रथम स्थान देते हैं। भारतीय धारा और चिन्तन के विकास में प्रारम्भिक वैदिक युग में बह्वास्तिक्य की तथा उत्तर वैदिक युग में सभी देवताओं के पीछे एक परम शक्ति की कल्पना मिलती है। दूसरे मत से यद्यपि वैदिक देवता के बहुत्व को देखकर सामान्य पाठक वेदों को बह्वास्तिक कह सकता है तथापि प्रबुद्ध अध्येता को उनमें न तो बह्वास्तिक्य का दर्शन होगा और न ही एकेश्वरवाद का। वह तो भारतीय चिन्तन धारा की एक ऐसी स्थति है जिसे उन दोनों का उत्स मान सकते हैं। वस्तुत: यह धार्मिक स्थिति इतनी विकसित थी कि उक्त दोनों में से किसी एक की ओर वह उन्मुख हो सके। किन्तु जैसे जैसे धर्मचिन्तन की गाम्भीर्य की प्रवृत्ति बढ़ती गई, वैसे वैसे भारतीय चेतना की प्रवृत्ति भी एकेश्वरवाद की ओर बढ़ती गई।कर्मकांडी कर्म स्वत: अपना फल प्रदान करते हैं, इस धारणा ने भी बह्वास्तिक्य के दवताओं की महत्त्व को कम किया। औपनिषदिक काल में ब्रह्मविद्या का प्रचार होने पर एक ईश्वर अथवा शक्ति की विचर प्रधान हो गई। पुराणकाल में अनेक देवताओं की मान्यता होते हुए भी, उनमें से किसी एक को प्रधान मानकर उसकी उपासना पर जोर दिया गया। वेदान्त दर्शन के प्राबल्य होने पर बह्वास्तिक मान्यताएँ और भी दुर्लभ हो गई एवं एक ही ईश्वर अथवा शक्ति का सिद्धान्त प्रमुख हो गया। इन्हीं आधारों पर कुछ लोग एकेश्वरवाद को गम्भीर चिन्तन का फल मानते हैं। वस्तुतः सम्पूर्ण भारतीय धर्मसाधना, चिन्तन और साहित्य के ऊपर विचार करने पर सर्वेश्वरवाद (जो एकेश्वरवाद के अधिक निकट है) की ही व्यापकता सर्वत्र परिक्षित होती है। यह भारतीय मतवाद यद्यपि जनप्रलित बह्वास्तिक्य से बहुत दूर है तथापि नए देशों की तरह यहाँ भी सर्वेश्वरवाद बह्वास्तिक्य से नैकट्य से स्थापित कर रहा है। महाभारत के नारयणीयोपाख्या में श्वतद्वीपीय निवासियों को एकेश्वरवादी भक्ति से सम्पन्न कहा गया है। विष्वकसेन संहिता ने वैदकों की, एकदेववादी न होने तथा वैदिक कर्मकांडी विधानों में विश्वास करने के कारण, कटु आलोचना की है। इसी प्रकार भारतीय धर्मन्तना में एकेश्वरवाद का एक और रूप मिलता है। पहले ब्रह्मा, विष्णु और शिव की विभिन्नता प्रतिपादित हो गई, साथ ही कहीं-कहीं विष्णु और ब्रह्मा को शिव में समाविष्ट भी माना गया। कालातर में एकता की भावना भी विकसत हो गई। केवल शिव में ही शेष दोनों देवताओं के गुण का आरोप हो गया। विष्णु के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार का आरोप मिला है। विष्णु पुराण तो तीनों को एक परमात्मा की अभिव्यक्ति मानता है। यह परमात्मा कहीं शिव रूप में है और कहीं विष्णु रूप में। दूसरा अतिप्रसिद्ध एकेश्वरवाद इस्लामी है। केवल परमात्मा की सत्ता को स्वीकार करते हुए यह मत मानता है कि बह्वास्तिक्य बहुत बड़ा पाप है। ईश्वर एकानन्य है। उसके अतिरिक्त कोई दूसरी सत्ता नहीं है। वह सर्वशक्तिमान है, अतुलनीय है, स्वपम है, सर्वतीत है। वह इस जगत् का कारण है और निर्माता है। वह अवत नहीं लेता। वह देश काल से परे अनादि और असीम है, तथा निर्गुण और एकरस है। इस्लाम के ही अन्तर्गत विकसित सूफ़ी मत में इन विचारों के अतिरिक्त उसे सर्वव्यापी सत्ता माना गया। सर्वत्र उसी की विभूतियों का दर्शन होता है। परिणामत: उन लोगों ने परमात्मा का निवास सब में और सबका निवास परमात्मा में माना। यह एकेश्वरवाद से सर्वेश्वरवाद की ओर होनेवाला विकास का संकेत है, यद्यपि मूल इस्लामी एकेश्वरवाद से यहाँ इसकी भिन्नता भी स्पष्ट दिखई पड़ती है। इन्हें भी देखें बहुदेववाद में समाया एकेश्वरवाद
करीम जानत (जन्म ११ अगस्त १९९८) एक अफगानी क्रिकेटर है। उन्होंने ७ दिसंबर २०१६ को इंग्लैंड लायंस के खिलाफ प्रथम श्रेणी में पदार्पण किया। अपने प्रथम श्रेणी के पदार्पण से पहले, वह २०१६ के अंडर-१९ क्रिकेट विश्व कप के लिए अफगानिस्तान के दस्ते का हिस्सा थे।
डांसिंग क्वीन एक भारतीय नृत्य रियलिटी प्रतियोगिता टेलीविजन श्रृंखला है जो १२ दिसंबर २००८ से ७ मार्च २००९ तक कलर्स टीवी पर प्रसारित हुई थी। श्रृंखला में १० महिला हस्तियां (फिल्म और टेलीविजन) शामिल हैं, जिन्हें एक आकांक्षी के साथ जोड़ा जाता है, जो पूरे शो में उनकी साथी और शागिर्द होंगी और जिन्हें उन्हें सलाह देनी होगी। हर हफ्ते, ये जोड़ियां अपने स्कोर प्राप्त करने के लिए न्यायाधीशों के सामने प्रदर्शन करेंगी और दर्शक एसएमएस के माध्यम से वोट देंगे। भारतीय वास्तविकता टेलीविजन श्रृंखला कलर्स चैनल के कार्यक्रम
जिला पंचायत सदस्य प्रेम किशोर मीणा का परिचय इन्होंने शासकीय माध्यमिक विद्यालय से १२वीं तक की शिक्षा प्राप्त की है यह मीणा समाज के प्रदेश सचिव भी रहे हैं कई अन्य महत्वपूर्ण पदों पर भी रहे हैं २५ वर्षों से लगातार कांग्रेस पार्टी की सेवा कर रहे हैं तीन बार जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीते हैं एक बार मंडी अध्यक्ष चुनाव भारी मतों से जीते हैं े हैं नरसिंहगढ़ विध२०२३ चुनाव में कांग्रेस टिकट के लिए प्रबल दावेदारी कर रहे हैं यह आज तक एक भी चुनाव नहीं हारे हैं प्रेम किशोर मीणा दो बार कांग्रेस ब्लॉक कमेटी के अध्यक्ष भी रहे हैं इन्होंने अध्यक्ष रहते हुए लगभग २०००० कार्यकर्ताओं को कांग्रेस पार्टी से जोड़ा है यह कांग्रेस पार्टी में दिग्विजय सिंह के प्रबल समर्थक माने जाते हैं मीणा समाज की ४०००० मतदाताओं में इनकी एक मजबूत अलग ही छवि है नरसिंहगढ़ तहसील में मीणा मतदाता काफी अच्छी संख्या में है इनकी संख्या करीब ४० ४५००० के करीब है मीना वोटर की ताकत का अंदर आप इस बात से लगा सकते है मीणा समाज की कद्दावर नेता लक्ष्मी नारायण पचवारिया को भाजपा ने टिकट नहीं दिया इसके चलते मीना वॉटर भाजपा से नाराज हो गए और कांग्रेस प्रत्याशी ग्रेस भंडारी को २३००० वोटो से जिताया आप इस बात से तहसील में मीना वॉटर के दबदबे को समझ सकते हैं प्रेम किशोर मीणा को नेताजी के नाम से भी जाना जाता है तहसील के सामाजिक कार्यक्रमों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं उनकी सक्रियता के चलते ही तहसील में उनकी मजबूत छवि है अपनी मजबूत छवि के चलते भविष्य में कांग्रेस पार्टी इन्हें अपना दावेदार घोषित कर सकती है
आप की खातिर १९७७ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। नामांकन और पुरस्कार १९७७ में बनी हिन्दी फ़िल्म
२०१८ टी-१० लीग टी-१० लीग का दूसरा सत्र था। मैचों में ९० मिनट की अवधि के साथ १०-ओवर-ए-साइड प्रारूप था। टूर्नामेंट को राउंड रॉबिन के रूप में खेला गया था जिसके बाद से सेमीफाइनल और फाइनल में खेला गया था। यह शारजाह क्रिकेट स्टेडियम में २१ नवंबर से २ दिसंबर २०१८ तक खेला गया था। पिछले सीजन से टीम श्रीलंका के बहिष्कार के साथ तीन नई टीम टूर्नामेंट में शामिल हो गईं। टूर्नामेंट की शुरुआत से पहले, पाकिस्तानी अदालत के आदेश कराची किंग्स के साथ पहचान के संघर्ष का हवाला देते हुए पाकिस्तानी अदालत के आदेश के बाद कराची लोगों ने अपना नाम बदलकर सिंधियों को बदल दिया। क्वालीफायर फाइनल के लिए उन्नत एलिमिनेटर फाइनल १ के लिए उन्नत एलिमिनेटर फाइनल १ एलिमिनेटर फाइनल २ तीसरी जगह प्लेऑफ
बॊंदलदिन्नॆ (अनंतपुर) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अनंतपुर जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
एमआइयूआइ () (एमआइ यूजर इंटरफेस का संक्षिप्त नाम और "मी यू आई" के रूप में उच्चारण) [१] शाओमी द्वारा विकसित स्मार्टफोन और टैबलेट कंप्यूटरों के लिए स्टॉक और आफ्टरमार्केट फर्मवेयर है । [२] फर्मवेयर गूगल के एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम पर आधारित है । [३] मीयूआइ में विभिन्न विशेषताऐं जैसे थीमिंग समर्थन शामिल हैं। [४] शाओमी ने विभिन्न स्मार्टफोन जारी किए हैं, लेकिन सभी मी आ१ , मी आ२ और मी आ२ लाइट्स हैं जो मीयूआइ के पूर्ण संस्करण के साथ पहले से इंस्टॉल आते हैं। [५] इसने विभिन्न ऐप्स और फीचर्स को मीयूआइ के आफ्टरमार्केट वर्जन में उपलब्ध नहीं कराया है। शाओमी अपने इन-हाउस स्मार्टफोन्स और टैबलेट्स को सपोर्ट करने के अलावा, सैमसंग, सोनी, एचटीसी, ब्लू, वनप्लस और नेक्सस जैसे अन्य स्मार्टफोन ब्रांड्स पर मीयूआइ को फ्लैश करने की भी पेशकश करता है। २४ फरवरी २०१६ को शाओमी ने कहा कि मीयूआइ रोम के दुनिया भर में १७० मिलियन से अधिक उपयोगकर्ता हैं, और इसे ३४० से अधिक हैंडसेट का समर्थन किया गया था। मूल मीयूआइ रोम एंड्रॉइड २.२.क्स फ्रोयो पर आधारित थे और शुरुआत में चीनी स्टार्टअप शाओमी टेक द्वारा चीनी भाषा में विकसित किए गए थे। [६] शाओमी ने बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए कई ऐप जोड़े; उन नोट्स, बैकअप, संगीत और गैलरी शामिल हैं। [[] मीयूआइ का अनुवाद स्वतंत्र डेवलपर्स और फैंटेसी के समूहों द्वारा अन्य भाषाओं में अनौपचारिक संस्करणों में किया जाता था। अभी भी अनौपचारिक बंदरगाह बनाए जा रहे हैं लेकिन शाओमी द्वारा अपने सेल फोन जारी करने के बाद उनकी लोकप्रियता कम हो गई है। अपडेट आमतौर पर हर गुरुवार (सीएसटी) पर ओवर-द-एयर प्रदान किया जाता है। मीयूआइ और गूगल प्ले सेवाएं गूगल का चीन सरकार के साथ मदभेद रहा है, और कई गूगल सेवाओं तक पहुंच अवरुद्ध है। मीयूआइ मुख्य भूमि चीन में गूगल प्ले सेवाओं के साथ जहाज नहीं करता है। हालाँकि, शाओमी ने चीन के बाहर अपने परिचालन का विस्तार किया है; मुख्य भूमि चीन के बाहर एंड्रॉइड डिवाइसों के लिए मीयूआइ रिलीज़ में गूगल प्ले सेवाएं और गूगल ऐप जैसे जीमेल, गूगल मैप्स, गूगल प्ले स्टोर पहले से इंस्टॉल और किसी अन्य एंड्रॉइड डिवाइस की तरह कार्य कर रहा है। मीयूआइ वैश्विक संस्करण गूगल द्वारा प्रमाणित हैं। सभी मीयूआइ वेरिएंट्स की तुलना मीयूआइ बनाम एंड्रॉइड यद्यपि मीयूआइ एंड्रॉइड प्लेटफ़ॉर्म पर बनाया गया है, लेकिन इसके पहले पुनरावृत्तियों का डिफ़ॉल्ट उपयोगकर्ता इंटरफ़ेस होम पैनल में उत्पन्न आइकनों की ग्रिड के साथ एप्लिकेशन ट्रे [११] की अनुपस्थिति के कारण आईओएस से समान रूप से समानता रखता था। अन्य आईओएस समानताओं में समान आकार, डायलर और इन-कॉल इंटरफ़ेस, सेटिंग ऐप के संगठन और यूआइ में टॉगल के दृश्य उपस्थिति में ऐप आइकन शामिल हैं। इसने कुछ पर्यवेक्षकों को यह बताने के लिए प्रेरित किया कि मीयूआइ पर चलने वाले डिवाइस आईओएस उपयोगकर्ताओं से एंड्रॉइड प्लेटफ़ॉर्म पर स्विच करने की अपील कैसे कर सकते हैं। [११] हाल ही में, हालांकि, मीयूआइ तेजी से एक सौंदर्य सौंदर्य की ओर बढ़ रहा है जो स्टॉक एंड्रॉइड के समान है। उदाहरण के लिए, संकेत मिलता है कि मीयूआइ १० बिल्ड में कई तत्व एंड्रॉइड पी को मल्टीटास्किंग मेनू और जेस्चर कंट्रोल जैसे टेबल पर लाएंगे। [१२] यह बदलाव पहली बार मीयूआइ ९ (वेर. ८.५.११) में देखा गया था जिसे शाओमी मी मिक्स २स के साथ शिप किया गया था। मीयूआइ फर्मवेयर पहले ही स्टॉक एंड्रॉइड प की तरह दिख रहा था। [१३] एक अन्य महत्वपूर्ण अंतर जो मीयूआइ को एंड्रॉइड से अलग करता है, वह थीम के लिए सिस्टम का समर्थन है। उपयोगकर्ता एमआइ मार्केट से थीम पैक डाउनलोड कर सकते हैं, जो एक बार स्थापित होने पर डिवाइस के उपयोगकर्ता इंटरफ़ेस को काफी बदल सकता है। यह भी उन्नत उपयोगकर्ताओं को अपने हैंडसेट के हार्ड-कोडेड फर्मवेयर को ट्वीक करने की अनुमति देता है। [१४] आलोचना और विवाद यह भी देखें
"चन्द्रमुखी" एक टी.वी सिरीयल है। यह सीरीयल ३० अक्टूबर २००७ को डीडी नेशनल पर प्रसारित हुआ था। ये सिरीयल हर मंगलवार रात १० बजे प्रसारीत होता था। इस सिरीयल की कहानी राजकुमारी चन्द्रमुखी पर आधारित है जो रुपनगर की राजकुमारी है जिसको पाने के लिये अनेक राजकुमार आते है पर चन्द्रमुखी के महल में रहने वाले षडयंत्रकारी सबको बँदी बना लेते है। अलकापुरी का राजकुमार वनराज जो अपने पिता कीद्रष्टि लोटाने के लिये राजकुमारी चन्द्रमुखी के राज्य में जाता है।वनराज अमावस के श्राप से श्रापित है जो अमावस की रात को भेङिया बन जाता है। मामिक सिंह ... राजकुमार सूर्यप्रताप सिंह पिकु शर्मा ... राजकुमारी चन्द्रमुखी / कलावती नताशा सिन्हा ... रानी पद्मावती कृतिका देसाई ... दुर्गेश्वरी विंदु दारा सिंह ... राजकुमार भानूप्रताप सिंह ये एपिसोड पूरा नही है निर्देशक से निवेदन है फिर से सुरु करे और पूरे एपिसोड भी करे। भारतीय टेलीविजन धारावाहिक
८ मार्च ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ६७वॉ (लीप वर्ष में 6८ वॉ) दिन है। साल में अभी और 29८ दिन बाकी है। अंतराष्ट्रीय नारी दिवस (संयुक्त राष्ट्र संघ) ८ मार्च- पन्नाधाय की जयंती ८ मार्च २०१६ में इनकी ५०५वीं जयंती मनाई गई। पन्नाधाय ने मेवाड़ के कुंवर राणा उदय सिंह को बचाने के लिए अपने पुत्र चंदन का सहर्ष बलिदान दिया। इसी बलिदान के कारण राणा उदय सिंह के पुत्र महाराणा प्रताप सिंह को इतिहास में हल्दी घाटी के शेर के रूप में जाना जाता है। तहसील के माद पंचायत के गांव कमेरी में महा बलिदानी पन्नाधाय स्मारक संस्थान कमेरी की बैठक कमेरी बस स्टैण्ड पर रखी गई। इसमें महाबलिदानी पन्नाधाय स्मारक संस्थान के सभी सदस्य मौजूद थे। इसमें निर्णय लिया कि ८ मार्च को पन्नाधाय जयंती मनाई जाएगी। इस दौरान अध्यक्ष दिनेश धाभाई, सचिव गहरीलाल गुर्जर, लाल सिंह सहित सदस्य उपस्थित थे। १९११ - अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रथम बार मनाया गया। १९१७ - रूस में फ़रवरी क्रांति की शुरुआत हुई। १९२४- यूटा, संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई कैसल गेट खान दुर्घटना में १७२ कोयला खनिक मारे गए। *१९५० - सोवियत संघने अपने पास परमाणु बम होने की घोषणा की। १९५२ - एन्टोइन पिने फ़्रान्स के प्रधानमंत्री बने। १९५७ - मिस्र ने स्वेज नहर दुबारा खोल दिया। १९६१ - मेक्स कोनरेड ने ८ दिन, १८ घंटे और ४९ मिनट में पृथ्वी की परिक्रमा करके नया विश्व रिकार्ड स्थापित किया। १९६५ - वियतनाम युद्ध: ३,५०० अमरीकी मरीनों ने दक्षिण वियेतनाम में पहुचकर सैनिक ठिकाना बनाया। ह १९६६ - वियतनाम युद्ध: ऑस्ट्रेलिया ने वियतनाम में सैनिकों कि संख्या बढ़ाने की घोषणा की। १९७४ - पेरिस, फ़्रान्स में चार्ल्स दे गोल हवाई अड्डा खुला। १९८३ - राष्ट्रपती रीगन सोवियत संघ को "बुराई का साम्राज्य" केहकर पुकारते हैं। २०१८ - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राजस्थान के झुंझुनू जिले में ''बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ'' कार्यक्रम को देश के सभी ६४० जिलों में लागू किया गया। नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के नेता नेफ्यू रियो ने चौथी बार नगालैंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। इस प्रकार नेफ्यू रियो नगालैंड राज्य के २०वें मुख्यमंत्री बन गए । नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने महिला उद्यमियता मंच - डब्ल्यू ई पी का शुभारंभ किया। ब्रिटेन में भारतीय मूल के इस्पात कारोबारी संजीव गुप्ता को राजकुमार चार्ल्स ने औद्योगिक कैडेट्स कार्यक्रम का आधिकारिक दूत नियुक्त किया । १७१४ - कार्ल फ़िलिप इमेन्युअल बाक, संगीतकार, जोहान्न सेबेस्टियन बाक के पुत्र (म्रु. १७८८) १८२७ - ब्लीक, भाषा के अभ्यासी, (म्रु. १८७५) १८४१ - ओलिवर वेन्डेल होम्स जुनियर, सर्वोच्च न्यायालय जज, (म्रु. १९३५) १८५९ - केन्नेथ ग्राहम, लेखक, (म्रु. १९३२) १८७९ - ओट्टो हाह्न, रसायन शास्त्र में नोबेल इनाम विजेता १९४४, (म्रु. १९६८) १९२१ - चेरिस्स, अभिनेत्री, न्रुत्यांगणा सिड करिस, अमेरिकी अभिनेत्री और नृत्यांगना (मृ. २००८) मिज़ुकी साइज़रु, जापानी लेखक राल्फ एच. बेअर, जर्मनी में जन्मे अमेरिकी आविष्कारक इवजेनिय मतवेयेव, रूसी अभिनेता और फिल्म निर्देशक (मृ. २००३) १९२३ - वोल्टर जेन्स, लेखक १९४३ - लिन्न रेडग्रेव, अभिनेत्री १९४५ - मिक्की डोलेन्ज़, अभिनेता, निर्देषक १९४५ - कीफ़र १९४८ - गेरी नुमन, गायक ११४४ - पोप सेलेसस्टीन द्वितिय १७०२ - राजा इंग्लेंड के विलियम त्रुतीय, (ज. १६५०) १८४१ - राजा चार्ल्स चौदहवे १८६९ - हेक्टर, संगीतकार (ज. १८०३) १८७४ - अमरीका के १३ वे प्रधानमंत्री (ज. १८००) १९३० - टाफ़्ट, अमरीका के प्रधानमंत्री (ज. १८५७) १९४१ - शेरवूड एन्डरसन, लेखक, (ज. १८७६) १९७१ - लोय्ड, अभिनेता, (ज. १८९३) १९७५ - जोर्ज स्टीवन्स, निर्देषक, निर्माता (ज. १९०४) १९८३ - विलियम वोल्टन, संगीतकार, (ज. १९०२) १९९२ - रेड, संगीतकार १९९३ - बिली, जेज़ संगीतकार, (ज. १९१४) १९९९ - जो डिमेज्जियो, (ज. १९१४) २००३ - अडम फ़ैथ, अंग्रेज़ गायक और अभिनेता, (ज.१९४०) इन्हें भी देखें मार्च ७ - मार्च ९ - फ़र्वरी ८ - अप्रैल ८ -- सभी दिनों की सूची जनवरी, फ़रवरी, मार्च, अप्रैल, मै, जून, जुलाई, अगस्त, सितंबर, अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर विधु विबोध १९७९ बीबीसी पे यह दिन
कनाडा में धर्म विभिन्न समूहों और सिद्धान्तों की विस्तृत स्थिति को वर्णित करता है। कनाडा की धार्मिक जनगणना २००१ कनाडाई चर्च पाठन
पाल्तु-छीतनी नौबतपुर, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है। पटना जिला के गाँव
फ़िन (फिन) एक ऐसे पंख को बोलते हैं जिसके ज़रिये हवा, पानी या किसी और द्रव या गैस में कोई जीव या मशीन अपने आप को धकेल सके या अधिक आसानी से बह सके। यह शब्द पहले मछलियों के पंखों के लिए ही इस्तेमाल होता था लेकिन अब दुसरे जानवरों और मशीनों में ऐसे पंखों के लिए भी प्रयोग होता है। फ़िन कई जगहों पर देखे जाते हैं - मछलियों के शरीरों पर फ़िन होते हैं जिनके इस्तेमाल से मछलियाँ किसी भी दिशा में तैरती हैं तीरों के पीछे लगे हुए तीरपंख एक प्रकार के फ़िन ही होते हैं जो उड़ते हुए तीर का संतुलन ठीक रखते हैं ताकि वह मुड़कर ऊपर-नीचे या दाएँ-बाएँ किसी ग़लत दिशा में न चले जाएँ ग़ोताख़ोरी में ग़ोताख़ोर अपने पाऊँ पर तैरने के फ़िन पहनते हैं ताकि ज़्यादा आसानी से तैर सकें पनडुब्बियों में फ़िन लगे होते हैं जिस से उनके चलते हुए पानी का प्रतिरोध कम हो जाता है और वह संतुलित रहतीं हैं इन्हें भी देखें खेल के उपकरण हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
पूरनपुर फर्रुखाबाद, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। फर्रुखाबाद जिला के गाँव
राधामोहन दास अग्रवाल,भारत के उत्तर प्रदेश की पंद्रहवी विधानसभा सभा में विधायक रहे। २००७ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के गोरखपुर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा की ओर से चुनाव में भाग लिया। उत्तर प्रदेश १५वीं विधान सभा के सदस्य गोरखपुर के विधायक
गल्फ़ एयर ( तयरां अल-खलीज) बहरीन राजशाही की प्रधान ध्वजवाहक वायुसेवा है। मुहर्रक में इसका मुख्यालय आधारित, है जो बहरीन अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र के निकटस्थ, है। यह वायुसेवा अफ़्रीका, यूरोप और एशिया में ३० देशों में ४१ गंतव्यों में सेवा प्रदान करती है। कंपनी का मुख्य आधार बहरीन अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र में स्थित है व इसके प्रधान गंतव्यों में लंदन, पैरिस, रोम, फ़्रैंकफ़र्ट, दुबई, कराची, मुंबई, बंगलुरु एवं नई दिल्ली हैं। बहरीन की वायुसेवाएं
ऐनी मोन्सन एक अंग्रेजी वनस्पतिशास्त्री और पौधों और कीड़ों के संग्रहकर्त्ता थी। उनका जन्म १७२६ में डार्लिंगटन, इंग्लैंड में हुआ था। वह हेनरी वेन की बेटी और चार्ल्स द्वितीय की पोती थी। १७४६ में, उन्होंने क्रेगिएहॉल के चार्ल्स होप-वेरे से शादी की और उसके दो बेटे थे। फिर बाद में १७५७ में, उन्होंने लिंकनशायर के कर्नल जॉर्ज मोनसन से शादी की चूंकि उसके नए पति का कैरियर भारतीय सेना के साथ था, उसने अपना अधिकांश समय कलकत्ता में बिताया, जहां वह एंग्लो-भारतीय समाज में प्रमुख बन गई। १७६० में, वह पहले से ही एक "उल्लेखनीय महिला वनस्पतिशास्त्री" के रूप में वनस्पति समुदाय के लिए अच्छी तरह से जानी जाती थी। १८ फरवरी १७७६ को कलकत्ता में उनकी मृत्यु हो गई। इंग्लैंड के लोग
हर्कापूर, इंद्रवेल्लि मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
आनन्द सेन,भारत के उत्तर प्रदेश की पंद्रहवी विधानसभा सभा में विधायक रहे। २००७ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के मिल्कीपुर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से बसपा की ओर से चुनाव में भाग लिया। उत्तर प्रदेश १५वीं विधान सभा के सदस्य मिल्कीपुर के विधायक
जीन-पियरे कोटेज़ (जन्म २३ अप्रैल १९९४) एक नामीबिया के क्रिकेटर हैं। जनवरी २०१८ में, उन्हें नामीबिया की टीम में २०१८ आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन टू टूर्नामेंट के लिए नामित किया गया था। मार्च २०१९ में, उन्हें २०१९ आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन टू टूर्नामेंट के लिए नामीबिया की टीम में रखा गया था। नामीबिया टूर्नामेंट में शीर्ष चार स्थानों में समाप्त हो गया, इसलिए एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) दर्जा प्राप्त किया। कोटेज़ ने टूर्नामेंट के फाइनल में, ओमान के खिलाफ, २७ अप्रैल २०१९ को नामीबिया के लिए अपना वनडे डेब्यू किया। जून २०१९ में, वह क्रिकेट नामीबिया के एलीट मेंस स्क्वाड में नामांकित होने वाले पच्चीस क्रिकेटरों में से एक था, जो २०१९-२० के अंतर्राष्ट्रीय सत्र से पहले था। उन्होंने २० अगस्त २०१९ को बोत्सवाना के नामीबिया के दौरे के दौरान नामीबिया के खिलाफ नामीबिया के लिए अपने ट्वेंटी २० अंतर्राष्ट्रीय (टी२०ई) की शुरुआत की। पदार्पण पर, वह ४३ गेंदों पर १०१ रन बनाकर नाबाद रहे। वह नामीबिया के लिए टी२०ई मैच में शतक बनाने वाले पहले बल्लेबाज बने। अगस्त में, कोटेज़ को नामीबिया के २०१९ संयुक्त राज्य ट्राई-नेशन सीरीज़ के ओडीआई टीम में नामित किया गया था। २० सितंबर २०१९ को, संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ मैच में, उन्होंने नामीबिया के लिए एकदिवसीय क्रिकेट में शतक बनाने के लिए १३६ रन बनाए। उसी महीने बाद में, उन्हें संयुक्त अरब अमीरात में २०१९ आईसीसी टी २० विश्व कप क्वालीफायर टूर्नामेंट के लिए नामीबिया के टीम में नामित किया गया था। टूर्नामेंट से आगे, अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने उन्हें नामीबिया के टीम में प्रमुख खिलाड़ी के रूप में नामित किया। १९९४ में जन्मे लोग
ओरसकॉम इन्वेस्टमेंट होल्डिंग एक मिस्र की कंपनी है जिसकी स्थापना २०११ में हुई थी। यह संचार और उन्नत आधुनिक तकनीक के क्षेत्र में काम करती है। इसके निदेशक मंडल का नेतृत्व मिस्र के व्यवसायी नागुइब सविरिस करते हैं। यह सूचना और संचार प्रौद्योगिकी और एंटीना इंटरनेट के क्षेत्र में काम करती है।.
जब किसी वस्तु पर कोई ऐसा बाह्य बल लगाते हैं जिसकी आवृत्ति वस्तु की स्वाभाविक आवृत्ति से भिन्न हो, तो प्रारंभ में वह वस्तु अपनी स्वाभाविक आवृत्ति से ही कंपन करने का प्रयास करती है.. "जब कोई वस्तु जिस पर कोई बाह्य आवर्त बल की आवृत्ति से कम्पन करती है तो वस्तु के कंपन्नो को प्रणोदित कम्पन (फ़ोर्स्ड विब्रेशन) कहते हैं
टांडा जलप्रपाल मिर्जापुर शहर से लगभग ७ मील की दूरी पर स्थित है। टंडा जलप्रपात से कुछ दूरी पर खजूरी बांध और विन्ध्याम झरना भी स्थित है। विन्ध्याम झरना वन विभाग के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से हैं। झरने के पास ही पार्क और वन विहार का निर्माण भी किया गया है। प्राकृतिक सुंदरता का अनुभव करने के लिए काफी संख्या में पर्यटक इस जगह पर आते हैं। [श्रेणी:भारत के जल प्रपात|उत्तर प्रदेश] [श्रेणी:मिर्जापुर जिले के पर्यटन स्थल]
आलन्दी (आलंदी) भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे ज़िले में स्थित एक नगर व नगर परिषद है। यह एक तीर्थ स्थान है। यहीं पर सन्त ज्ञानेश्वर की समाधि है जिन्होने अपना कुछ समय यहीं व्यतीत किया था। अलंदी का एक लंबा इतिहास रहा है, लेकिन १३वीं शताब्दी में प्रमुखता प्राप्त हुई जब ज्ञानेश्वर (१२७५-१२९६) ने १२९६ में तत्कालीन मौजूदा सिद्धेश्वर मंदिर परिसर के तहत समाधि में खुद को समाधि में ले जाने का फैसला किया, जिसे संजीवन समाधि के रूप में जाना जाता है। समाधि के ऊपर अम्बेकर देशपांडे द्वारा लगभग १५८०-१६०० में एक मंदिर का निर्माण कराया गया था। मराठा साम्राज्य काल के दौरान मराठा कुलीनों और पेशवा द्वारा मंदिर में और परिवर्धन किए गए थे। १७७८ में, पेशवा द्वारा उस समय मराठा संघ के शक्तिशाली मराठा राजनेता महादजी शिंदे को अलंदी प्रदान की गई थी। उसके बाद के दो दशकों तक, शिंदे परिवार मंदिर के विभिन्न जीर्णोद्धार के मुख्य प्रायोजक थे। १८२० के दशक में, ग्वालियर के सिंधिया के एक दरबारी हैबत्रोबुवा अर्फालकर ने वार्षिक वारी के दौरान ज्ञानेश्वर की पादुका (प्रतिकृति चांदी के सैंडल) को पंढरपुर ले जाने की आधुनिक पालकी परंपरा शुरू की। हैबत्रोबुवा को उनकी इच्छा के अनुसार मंदिर परिसर की पहली सीढ़ी के नीचे दफनाया गया था। एक छोटा शहर होने के बावजूद, प्रारंभिक ब्रिटिश राज के दौरान इसे नगरपालिका का दर्जा दिया गया था। परिषद तीर्थयात्रियों पर कर लगाकर राजस्व जुटाएगी जो १९ वीं शताब्दी के अंत में लगभग ५०,००० हुआ करती थी। अलंदी (१८४०३७.४२न ७३५३४७.७६ए) शहर के उत्तरी किनारे के पास पुणे जिले के खेड़ तालुका से १८.८ किमी (११.७ मील) दूर इंद्रायणी नदी के तट पर स्थित है। पुणे का। अलंदी की औसत ऊंचाई 5७७ मीटर (१,८93 फीट) है। २०११ में, अलंदी की आबादी २८,५७६ थी। जनसंख्या का ५६% पुरुष और ४४% महिलाएं हैं। लिंगुआ फ़्रैंका मराठी है। अलंदी की औसत साक्षरता दर ७३% (८२% पुरुष, ६८% महिलाएं) है, जो राष्ट्रीय औसत ७४.०४% से कम है। १३% आबादी ६ साल से कम उम्र की है। नगर जनगणना में सभी जातियों का प्रतिनिधित्व किया जाता है। निकट से संबंधित मराठा वंश, कुरहाडे-पाटिल और घुंडारे-पाटिल, शहर के नागरिक जीवन पर हावी हैं। परंपरागत रूप से, कई हिंदू विधवाएं पंढरपुर और आलंदी जैसे तीर्थ स्थानों में निवास करने आई हैं। अलंदी में एक नगर परिषद है जिसे सीधे मेयर (नगराध्यक्ष) के रूप में चुना जाता है। परिषद के लिए २०१६ के चुनाव में, भाजपा उम्मीदवार वैजयंती उमेरगेकर-कांबले को शिवसेना उम्मीदवार भाग्यश्री रंधवे को हराकर महापौर चुना गया था। १८ सदस्यीय नगर परिषद में भाजपा के पास बहुमत है। अलंदी खेड़ तालुका के पुणे जिला उप-मंडल के अंतर्गत आता है। यह खेड़ अलंदी के महाराष्ट्र विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र का एक हिस्सा है जो बदले में शिरूर संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है। फिलहाल इस विधानसभा सीट पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के डॉ. अमोल कोल्हे का प्रशासन है। इन्हें भी देखें महाराष्ट्र के शहर पुणे ज़िले के नगर पुणे ज़िले में पर्यटन आकर्षण
पापुआ न्यू गिनी के गवर्नर-जनरल यानि महाराज्यपाल, पापुआ न्यू गिनी की रानी के निवासिय स्थानीय राजप्रतिनिधि का पद है। गवर्नर-जनरल, पापुआ न्यू गिनी की रानी, जोकी पापुआ न्यू गिनी और यूनाइटेड किंगडम समेत कुल १६ प्रजाभूमियों की शासी नरेश एवं राष्ट्रप्रमुख हैं, के अनुपस्थिति में उनके संवैधानिक कार्यों का निर्वाह करते हैं। पदाधिकारियों की सूचि इन्हें भी देखें पापुआ न्यू गिनी पापुआ न्यू गिनी का राजतंत्र गवर्नर-जनरलों की सूचि पापुआ न्यू गिनी के गवर्नर जनरल पापुआ न्यू गिनी की राजनीति राष्ट्रमण्डल प्रजाभूमियों के गवर्नर-जनरल
मंचाल (कर्नूलु) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कर्नूलु जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
मान्यवर एक पुरुष एथनिक वियर ब्रांड है जिसकी स्थापना भारत में उद्यमी रवि मोदी ने १९९९ में अपनी कंपनी वेदांत फैशन के तहत की थी। मानवर शेरवानी, कुर्ता और पुरुषों के लिए इंडो-वेस्टर्न कपड़े प्रदान करता है। ब्रांड ने कोलकाता में १५० वर्ग फुट की दुकान के साथ शुरू किया और अब भारत और विदेश में १८० शहरों में ५७० से अधिक स्टोरों में विस्तार किया है। मानवर ने २००१ में अलग-अलग मल्टी-ब्रांड आउटलेट्स (एमबीओ) की आपूर्ति शुरू की। यह २००८ में था, हालांकि दूसरा विशेष ब्रांड आउटलेट स्टोर कम अचल संपत्ति की कीमतों के परिणामस्वरूप लॉन्च किया गया था जो आर्थिक मंदी के कारण यथार्थवादी थे। तब से ब्रांड ने हर हफ्ते औसतन दो स्टोर खोले हैं। २०१२ में, ब्रांड ने दिल्ली में अपना २०० वां स्टोर २१,००० वर्ग फुट में फैलाया। २०१४ में, मान्यावर ने अपना दूसरा सबसे बड़ा स्टोर लोअर परेल, मुंबई में १६,००० वर्ग फुट में खोला। मनवीर २०१८ में इंडियन प्रीमियर लीग में चार टीमों के प्रमुख प्रायोजक थे: कोलकाता नाइट राइडर्स, दिल्ली डेयरडेविल्स, सनराइजर्स हैदराबाद और राजस्थान रॉयल्स । इन टीमों के हर सीजन के प्रमुख खिलाड़ियों को विज्ञापनों के लिए मानवीर के कपड़े पहने हुए देखा गया। आईपीएल के माध्यम से पदोन्नति ने मानवर को बढ़ती जागरूकता के मामले में लाभान्वित किया है। मनवीर २०१४-२०१५ सत्र के लिए बांग्लादेश फुटबॉल लीग के लिए एक शीर्षक प्रायोजक भी थे। मानस, रवि मोदी द्वारा शुरू किया गया एक फाउंडेशन एक सामाजिक संगठन है जो कम विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए दिल की सर्जरी करता है। संगठन एकल के माध्यम से कई स्कूलों को चलाने में मदद करता है और साथ ही चिकित्सा और वित्तीय राहत प्रदान करके आदिवासी समुदाय का समर्थन करता है। पुरस्कार और मान्यता 'द मोस्ट एडमायर्ड ब्रांड ऑफ़ द इयर' (२०१५) 'सर्वोच्च नौकरी निर्माता' और 'सर्वश्रेष्ठ वित्तीय प्रदर्शन' पुरस्कार, ईटी बंगाल कॉर्पोरेट पुरस्कार (२०१५) 'इमर्जिंग लीडर', कमा मैनेजमेंट एक्सिलेंस फॉर मिस्टर रवि मोदी, एमडी एट वेंडेंट फैशन्स (२०१५) ईटी बंगाल कॉर्पोरेट अवार्ड्स (२०१४) पायनियर इन एशियन रिटेल बिज़नेस एट एशिया रिटेल कांग्रेस (२०१४) सबसे तेजी से बढ़ती कंपनी (२०१३) रीटेल बिज़नेस (ईस्ट इंडिया), ईआईआरएस कोलकाता (२०१३) में सबसे उत्कृष्ट कलाकार आईएफएफ, मुंबई (२०१२, २०११) में वर्ष के सबसे अधिक पुरुषों की भारतीय परिधान पहनें
& टीवी या एंड टीवी एक भारतीय हिन्दी भाषा में एक नई चैनल है जिसका स्वामित्व ज़ी के पास है। इस चैनल के कार्यक्रम का प्रसारण २ मार्च २015 रात ७:३० बजे से प्रारंभ हुआ। इस चैनल पर २ मार्च २015 को ठीक रात के ७:३० बजे से धारावाहिक का प्रसारण शुरू हुआ। इसमें सबसे पहले रज़िया सुल्तान और उसके ३० मिनट पश्चात भाग्यलक्ष्मी आदि के कार्यक्रम शुरू हुए। इसी के साथ शाहरुख खान द्वारा प्रस्तुत इंडिया पूछेगा सब से शाणा कौन? कार्यक्रम भी था। जो ठीक रात को ९ बजे से शुरू हुआ। वर्तमान सभी कार्यक्रम जो पहले दिन शुरू हुए वह सोमवार से शुक्रवार तक देते हैं। यह ६ कार्यक्रम भिन्न भिन्न शैली में बने हैं। इसके कुछ दिनों के पश्चात ७ मार्च २015 को इस चैनल में दो नए धारावाहिक को भी जोड़ा गया, जो शनिवार व रविवार को ९ और १० बजे क्रमश: शुरू होते हैं। यह चैनल भारत में एयरटेल डिजिटल टीवी में ११४, डिश टीवी में १०७, टाटा स्काई में ११५, वीडियोकॉन में ११५, रिलायंस डिजिटल टीवी पर २१५ पर आता है। इसके अलावा यह अन्य देशों में स्काई ७९५ और वर्जन केबल टीवी पर ८११ पर आता है। इसके साथ ही इसका उच्च संस्करण डिश टीवी पर ३ और एयरटेल डिजिटल टीवी पर ११५ में आता है। एंड टीवी के धारावाहिक में देखें। आधिकारिक जालस्थल (सेवा बंद)
खगोल विज्ञान में, ध्रुववृत्त खगोलीय ध्रुवों के साथ-साथ प्रेक्षक (दर्शक) के स्थान के शिरोबिंदु और अधोबिंदु के माध्यम से गुजरने वाला वृत्त है। नतीजतन, इसमें क्षितिज पर उत्तर और दक्षिण बिंदु भी शामिल हैं, और यह खगोलीय विषुवत और क्षितिज के लंबवत होता है। खगोल विज्ञान में ध्रुववृत्त भौगोलिक देशान्तर या याम्योत्तर रेखा के समतुल्य है। ध्रुववृत्त पृथ्वी के अक्ष से गुजरने वाले सभी तलों के समूह हैं । ध्रुवों के अतिरिक्त हर स्थान के लिए एक अपना ध्रुववृत्त है । कोई भी ध्रुववृत्त पृथ्वी के तल को काटता हुआ दो देशान्तर रेखाएँ बनाता है , क्योंकि देशान्तर रेखाएँ पूर्ण वृत्त नहीं होती । ध्रुववृत्त को अर्धवृत्तों में विभाजित करने के कई तरीके हैं। क्षैतिज निर्देशांक प्रणाली में, प्रेक्षक के ध्रुववृत्त को क्षितिज के उत्तर और दक्षिण बिंदुओं द्वारा समाप्त किए गए हिस्सों में विभाजित किया जाता है। प्रेक्षक का ऊपरी ध्रुववृत्त शिरोबिंदु से होकर गुजरता है जबकि निचला ध्रुववृत्त अधोबिंदु से होकर गुजरता है। एक अन्य तरीके से, ध्रुववृत्त को विभाजित किया जाता है, एक अर्धवृत्त जिसमें प्रेक्षक का शिरोबिंदु और दोनों आकाशीय ध्रुव होते हैं, और विपरीत अर्धवृत्त, जिसमें अधोबिंदु और दोनों ध्रुव होते हैं। खगोलीय निर्देशांक प्रणाली यह भी देखें
बिरहा लोकगायन की एक विधा है जो पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बिहार के भोजपुरीभाषी क्षेत्र में प्रचलित है। बिरहा प्रायः गाँव देहात के लोगो द्वारा गाया जाता हैं । इसका अतिम शब्द प्रायः बहुत खींचकर गाया जाता है । जैसे,बेद, हकीम बुलाओ कोई गोइयाँ कोई लेओ री खबरिया मोर । खिरकी से खिरकी ज्यों फिरकी फिरति दुओ पिरकी उठल बड़ जोर ॥ बिरहा, 'विरह' से उत्पन्न हुई है जिसमें लोगों के सामाजिक वेदना को आसानी से दर्शाया जाता हैं और श्रोता मनोरजंन के साथ-साथ छन्द, काव्य, गीत व अन्य रसों का आनन्द भी ले पाते हैं। बिरहा अहीरों का लोकप्रिय हृदय गीत है। पूर्वांचल की यह लोकगायकी मनोरंजन के अलावा थकावट मिटाने के साथ ही एकरसता की ऊब मिटाने का उत्तम साधन है। बिरहा गाने वालों में पुरुषों के साथ ही महिलाओं की दिनों-दिन बढ़ती संख्या इसकी लोकप्रियता और प्रसार का स्पष्ट प्रमाण है। आजकल पारम्परिक गीतों के तर्ज और धुनों को आधार बनाकर बिरहा काव्य तैयार किया जाता है। पूर्वी, कहरवा, खेमटा, सोहर, पचरा, जटावर, जटसार, तिलक गीत, बिरहा गीत, विदाई गीत, निर्गुण, छपरहिया, टेरी, उठान, टेक, गजल, शेर, विदेशिया, पहपट, आल्हा, और खड़ी खड़ी और फिल्मी धुनों पर अन्य स्थानीय लोक गीतों का बिरहा में समावेश होता है। बिरहा के शुरूआती दौर के कवि जतिरा, अधर, हफ्तेजूबान, शीसा पलट, कैदबन्द, सारंगी, शब्दसोरबा, डमरू, छन्द, कैद बन्द, चित्रकॉफ और अनुप्राश अलंकार का प्रयोग करते थे। यह विधा भारत के बाहर मॉरीसस, मेडागास्कर और आस-पास के भोजपुरी क्षेत्रों की बोली वाले क्षेत्र में अपनी पैठ बढ़ाकर दिनों-दिन और लोकप्रिय हो रही है। कुछ प्रसिद्ध बिरहा गायक आदिगुरु बिहारी यादव (बिरहा के जनक माने जाते है , गाज़ीपुर १८३७), ,गणेश यादव, पत्तू यादव, (पद्मश्री) हीरालाल यादव ,रामदेव यादव, , काशी एवम बुल्लु ,बिरहा जगत में उच्च शिक्षित सांस्कृतिक प्रदूषण से मुक्त बिरहा के महाकवि कवि चंद्रिका यादव जी को कहा जाता है, पंडित लक्ष्मण त्रिपाठी वाराणसी मिर्जापुरी कजरी घर आने से आए पारिवारिक, सामाजिक,साहित्यिक गायन शैली एवं स्पष्ट संवाद के लिए मशहूर लोकगायक(बिरहा) एवं आकाशवाणी कलाकार इंजीनियर सुनील यादव, शिक्षा :पी. एच. डी.*(कम्प्यूटर सा. एंड इंजी.,राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान पटना) ,(एम.टेक(साइबर सिक्योरिटी गोल्डमेडलिस्ट), बी.टेक(कम्प्यूटर सा. एंड इंजी.) ,प्रौद्योगिकी संस्थान में असिस्टेंट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत) ,चुनार मिर्ज़ापुर,उत्तर प्रदेश डॉक्टर मन्नू यादव जो मारीशस तक बिरहा जाकर के गाए हैं पंडित भगवानदास यादव जो बिरहा को कजली मैं गाने की क्षमता रखते हैं जो चंदौली जनपद मैं बिरहा की आदि भूमि बरह से आते हैं पंडित परशुराम यादव सुरेंद्र यादव बलिया दिनेश लाल यादव (निरहुआ) ,ओमप्रकाश यादव,बल्लीयादव,बालचरण यादव ,रामकिशुन यादव(कुड़वां, गाजीपुर), सुरेन्द्र यादव ,छेदी, पंचम, करिया, गोगा, मोलवी, मुंशी, मिठाई लाल यादव, खटाई, खरपत्तू, लालमन, सहदेव, अक्षयबर, बरसाती, सतीश चन्द्र यादव, रामाधार, जयमंगल, पतिराम, महावीर, रामलोचन, मेवा सोनकर, मुन्नीलाल, पलकधारी, बेचन राजभर, रामसेवक सिंह, रामदुलार, रामाधार कहार, रामजतन मास्टर, जगन्नाथ आदि। बलेसर यादव (बालेश्वर यादव) हैदरअली, उजाला यादव, बाबू राम यादव (अम्बारी,आज़मगढ़)उदयराज यादव, त्रिभुवन नाथ यादव बिरहा की उत्पत्ति बिरहा की उत्पत्ति के सूत्र १९वीं शताब्दी के प्रारम्भ में मिलते हैं जब ब्रिटिश शासनकाल में ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन कर महानगरों में मजदूरी करने की प्रवृत्ति बढ़ गयी थी। ऐसे श्रमिकों को रोजी-रोटी के लिए लम्बी अवधि तक अपने घर-परिवार से दूर रहना पड़ता था। दिन भर के कठोर श्रम के बाद रात्रि में अपने विरह व्यथा को मिटाने के लिए छोटे-छोटे समूह में ये लोग बिरहा को ऊँचे स्वरों में गायन किया करते थे। कालान्तर में लोक-रंजन-गीत के रूप में बिरहा का विकास हुआ। पर्वों-त्योहारों अथवा मांगलिक अवसरों पर 'बिरहा' गायन की परम्परा रही है। किसी विशेष पर्व पर मंदिर के परिसरों में 'बिरहा दंगल' का प्रचलन भी है। बिरहा गायन के आज दो प्रकार सुनने को मिलते हैं। पहले प्रकार को "खड़ी बिरहा" कहा जाता है और दूसरा रूप है "मंचीय बिरहा"। खड़ी बिरहा में वाद्यों की संगति नहीं होती, परन्तु गायक की लय एकदम पक्की होती है । पहले मुख्य गायक तार सप्तक के स्वरों में गीत का मुखड़ा आरम्भ करता है और फिर गायक दल उसमें सम्मिलित हो जाता है। बिरहा के दंगली स्वरुप में गायकों की दो टोलियाँ होती हैं जो बारी-बारी से बिरहा गीतों का गायन करते हैं। ऐसी प्रस्तुतियों में गायक दल परस्पर सवाल-जवाब और एक दूसरे पर कटाक्ष भी करते हैं। इस प्रकार के गायन में आशुसर्जक लोक-गीतकार को प्रमुख स्थान मिलता है। बिरहा के अंग बिरहा एकबारह मजाचीज की तरह है, जिसकी भाषा कबीरदास की तरह'पंचमेल खिचड़ी'है । बिरहा में हिंदी, संस्कृत, उर्दू , अंग्रेजी और भोजपुरी आदि सभी भाषाओं का प्रयोग किया जाता है । बिरहा के अंग निम्नलिखित प्रकार के होते है : बिरहा का आरंभ किसी वंदना से होता है जिसमें ईश वंदना, सरस्वती वंदना या गुरु वंदना कुछ भी हो सकती है । वंदना में दोहा छंद का प्रयोग किया जाता है । बिरहा के कवियों का दोहा लय पर आधारित होता है; हिंदी की तरह मात्रा पर नहीं । अर्थात्भोजपुरी दोहाके प्रथम और तृतीय चरण में १३-१३ मात्राएं में तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में ११-११ मात्राएं होना अनिवार्य नहीं । बिरहा जगत में भूमिका की अहम भूमिका है । बिरहा के कवियों में जो जितनी ही अच्छी भूमिका लिखता है, वह उतना ही बड़ा (श्रेष्ठ) कवि होता है । भूमिका बिरहा का आधार होती है; जिस प्रकार मकान की नींव । भूमिका में बिरहा में प्रयुक्त कथा की संक्षिप्त कथावस्तु होती है । बिरहा की भूमिका ८ पंक्ति की होती है, जिसमें पंक्तिगत मात्रा निश्चित नहीं होती है । भूमिका लिखने का ढंग एक ही होता है जबकि गाने का ढंग अनेक होता है । ग़ज़ल या कव्वाली बिरहा में भूमिका के तुरंत बाद एक गजल या कव्वाली रखने का उपक्रम है । बिरहा का कवि किसी ग़ज़ल या कव्वाली की तर्ज पर बिरहा की कहानी से संबंधित कोई ग़ज़ल या कव्वाली रचता है । जिसमें मात्र मुखड़ा (बोल) ही होता है, अंतरा नहीं । दौड़ शेर (नज़्म) ग़ज़ल या कव्वाली के पश्चात् दौड़ शेर होता है, जिसे नज़्म भी कहते हैं । दौड़ शेर के द्वारा बिरहा की कहानी का आरंभ होता है । वैसे तो दौड़ शेर आठ पंक्ति का निश्चित किया गया है, किंतु कुछ मनमाने कवि १६ से २० पंक्ति का भी दौड़ शेर प्रयोग करते हैं । ऐसे ही कवि बिरहा की कहानी का आरंभ भी दौड़ शेर की बजाय किसी गीत या पद से ही कर देते हैं । दौड़ शेर (नज़्म) उर्दू साहित्य की विधा है, जिसमें मात्रा नहीं बहर (बहाव) का ध्यान रखा जाता है । जौहरी भी एक नज़्म ही है, किंतु इसका प्रयोग केवल वीर रस के बिरहा में किया जाता है । जौहरी के लिए निश्चित पंक्ति का कोई बंधन नहीं, अर्थात इसमें ८ से अधिक पंक्तियां हो सकती हैं । बिरहा में गीतों के प्रयोग की भी अनिवार्यता है । नज्म़ या जौ़हरी के पश्चात् एक गीत होती है । गीत किसी लोकगीत या हिंदी गीत की तर्ज पर होती है, जो बिरहा की कहानी में बाधक न होकर साधक होती है । कविवर प्रबुद्ध नारायण बौद्ध के अनुसार - " बिरहा में अधिक से अधिक पांच गीत होनी चाहिए । " गीत अंतरा सहित होती है, जिसमें एक या दो अंतरा होता है । बिरहा में टेरी दो बार होती है । एक टेरी बिरहा के मध्य में और एक टेरी बिरहा के अंत में होती है । कुछ कवि मनमाने और मनचाहे ढंग से टेरी का प्रयोग करते हैं । कविवर प्रबुद्ध नारायण बौद्ध जी के अनुसार - " टेरी दौड़ शेर के पश्चात तथा विदेशिया के पूर्व होनी चाहिए । " टेरी समुद्र के ज्वार - भाटा की भांति चढ़ाव और उतराव से युक्त होती है । टेरी हिंदी में भी होती है और भोजपुरी में भी । विदेशिया एक करुण रस का पद होता है । 'विदेशिया' शब्द विदेश का रूपांतरण है, जिसका आशय वियोग से है । विदेशिया की कोई प्रतिबंधित पंक्ति नहीं होती । कुछ कवियों द्वारा विदेशिया की जगह कोई अन्य करुण पद या गीत भी प्रयोग किया जाता है । बिरहा में विदेशिया का प्रयोग करुण स्थान पर ही किया जाता है । एक गीत की भांति अंतरा सहित पद होता है । पोहपट रचते समय अनुप्रास अलंकार का विशेष ध्यान रखा जाता है । बिरहा का आल्हा, मूल आल्हा से भिन्न होता है और लय भी भिन्न होती है । बिरहा में आल्हा दो तरह से गाया जाता है । दोनों तरह के आल्हा में केवल भैया, बाबू जुड़ने या ना जुड़ने का ही अंतर होता है । आल्हा की पंक्ति निश्चित नहीं । पोहपट की तरह ही खड़ी की भी लय निश्चित नहीं है । खड़ी में भी पोहपट की तरह एक या दो अंतरा होता है । वैसे, बिरहा की कहानी आल्हा में ही पूरी हो जाती है और खड़ी द्वारा कहानी का उद्देश्य और संदेश प्रकट किया जाता है, किंतु कुछ कवि बिरहा की कहानी को खड़ी तक खींचकर ले आते हैं । बिरहा को समाप्त करने से पूर्व बिरहा कवि उसमें एक छापा जोड़ते हैं । छापा में बिरहा कवि के अखाड़े और उससे संबंधित मुख्य कवियों का नाम होता है । अंतिम की टेरी छापा के साथ ही जुड़ी होती है । जिसकी अंतिम पंक्ति में गायक और रचयिता कवि का नाम जुड़ा होता है । इस प्रकार छापा के साथ ही बिरहा का अंत हो जाता है ।
मिश्रिख (मिसरीख) या मिस्रिख भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के सीतापुर ज़िले में स्थित एक नगर है। समीप ही नैमिषारण्य स्थित है जो "नीमसार" भी कहलाता है, जिस कारणवश इस शहर को मिस्रिख नीमसार (मिसरीख निम्सर) भी कहते हैं। उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में नैमिषारण्य से दस किलोमीटर की दूरी पर मिश्रिख या मिसरिख है। मिश्रिख की प्रसिद्धि दधीचि कुंड के कारण है। मिश्रिख में महर्षि दधीचि का आश्रम है । कथा है कि एक बार समस्त देवता और इंद्र वृत्तासुर राक्षस से पराजित हो गए। ब्रह्मा और विष्णु जी ने देवताओं से कहा की वृत्तासुर को पराजित करने के लिए ऋषि दधीचि की हड्डियों से यदि एक धनुष बनाया जाय तभी उस धनुष से इस राक्षस को मारा जा सकता है । दधीचि ऋषि उस समय घोर जंगल में तप में लीन थे और उस स्थान का पता लगा पाना बहुत कठिन था। देवताओं ने भगवान विष्णु से इसमें सहायता का आग्रह किया। इस पर भगवान ने अपना सुदर्शन चक्र फ़ेंक कर कहा कि जहां यह चक्र गिरेगा उसी के पास में ऋषि दधीचि तप करते हुए मिलेंगे । यह चक्र नैमिषारण्य में गिरा जहाँ पर आज भी चक्र तीर्थ है। चक्र की नेमि (धुरी) इस स्थान पर गिरने के कारण ही इस स्थान का नाम नैमिषारण्य हुआ। इसके पास में मिश्रिख में ऋषि दधीचि तप करते हुए मिले। इन्द्रदेव और सभी देवों ने ऋषि से अपनी हड्डियां देने का आग्रह किया जिससे राक्षस वृत्तासुर का वध किया जा सके। ऋषि ने देव कल्याण के लिए यह अनुरोध स्वीकार कर लिया पर कहा कि वह मृत्यु से पहले सभी तीर्थों के जल से स्नान करना चाहते हैं। इंद्र ने सभी तीर्थों को वही बुलवा लिया और तीर्थों ने दधीचि को स्नान करवाया स्नान का जल दधीचि के यज्ञ कुंड में संग्रहित हो गया । कुंड आज भी मिश्रिख में है। क्योंकि इस कुंड में सभी तीर्थों का जल मिश्रित था अतः इस स्थान का नाम भी मिश्रित पड़ा। अब इस स्थान को मिश्रिख या मिसरिख भी कहते हैं। इन्हें भी देखें उत्तर प्रदेश के नगर सीतापुर ज़िले के नगर
गन्ने को पेरने (दबाने से) गन्ने का रस निकलता है। दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया, मिस्र, लैटिन अमेरिका और ब्राजील आदि में यह पेय के रूप में प्रयुक्त होता है। गन्ने के रस से गुड़ और चीनी भी बनती है। गन्ने का रस निकालने के लिये गन्ने को (छिलका निकालकर या बिना छिलका निकाले) एक कोल्हू (मिल) में पेरा (क्रश किया) जाता है। फिर इसे छान कर उसमें बर्फ डालकर व नमक मसाला डालकर पिया जाता है। यह पीलिया के रोगी को फायदा करता है। यह स्वाद में मीठा होता है।
भांकरी भारतीय राज्य राजस्थान के करौली जिले की मंडरायल तहसील में एक गाँव और ग्राम पंचायत है। भांकरी की कुल जनसंख्या ३,६४७ है। भांकरी मंडरायल कस्बे से ३३ किलोमीटर की दुरी पर है तथा करौली जिले के मुख्यालय से २० किलोमीटर की दुरी पर है। यहाँ का मुख्य व्यवसाय पशुपालन है जबकि कुछ लोग तथा लाल पत्थर की खानों में मजदूरी करके अपनी आजीविका निर्वहन करते हैं। गर्मियों के दिनों में यहाँ विशेषकर पानी की काफी समस्या हो जाती है जिससे पशुपालन तथा आमजन के लिए जीवन दुष्कर हो जाता है। २०११ के जनगणना आँकड़ों के अनुसार, भांकरी की कुल जनसंख्या ३,६४७ है जिसमें २,००७पुरुष एवं १,६४०स्त्रियाँ शामिल हैं। गाँव में ०-६ वर्ष आयु वर्ग की जनसंख्या ६19 है जो कुल जनसंख्या का 1६.९७% है। औसत लिंगानुपात ८१७ जो राजस्थान के औसत लिंगानुपात ९२८ की तुलना में कुछ कम है जबकि शिशु लिंगानुपात ८५३ है और यह भी राज्य के औसत ८८८ से कम ही है। भांकरी में साक्षरता की स्थिति राजस्थान के औसत की तुलना में अच्छी नहीं है, वर्ष २०११ में यह ५८.२२% थी जबकि राजस्थान का औसत ६६.११% था। इसमें पुरुषों में साक्षरता दर ७२.३३% एवं स्त्री साक्षरता मात्र ४०.५१% दर्ज की गयी। राजस्थान के गाँव
विद्यालयी मनोविज्ञान (स्कूल साइकोलॉजी) वह विधा है जो शैक्षिक मनोविज्ञान और विकासात्मक मनोविज्ञान आदि के सिद्धान्तों का उपयोग करते हुए बच्चों एवं किशोर-किशोरियों के व्यवहार सम्बन्धी स्वास्थ्य तथा सीखने से सम्बन्धित आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
सिल कन्वर्टर एक देवनागरी फॉण्ट परिवर्तक है। यह बॉब ईटन द्वारा विकसित किया गया है। यह माइक्रोसॉफ्ट वर्ड तथा ऍक्सल में फॉर्मेटिंग बरकरार रखते हुये परिवर्तन कर सकता है। यदि अंग्रेजी टैक्स्ट भिन्न फॉण्ट में हो तो उसे अपरिवर्तित रखा जा सकता है। बल्क कन्वर्टर द्वारा बड़ी आकार की फाइलों को तेज गति से परिवर्तित किया जा सकता है। इसकी एकमात्र कमी यह है कि इसमें सीमित फॉण्टों हेतु समर्थन है हालाँकि इसमें वैज्ञानिक एवं तकनीकी हिन्दी समूह के परिवर्तकों को जोड़कर समर्थित फॉण्टों की संख्या को बढ़ाया जा सकता है। सिल कन्वर्टर में निम्नलिखित फॉण्टों हेतु समर्थन है। सिल कॉन्वेर्टर : कृतिदेव, शुषा इत्यादि फ़ॉन्टों को यूनिकोड में १००% शुद्धता से परिवर्तित करने वाला कन्वर्टर सिल कन्वर्टर + गूगल तकनीकी हिन्दी समूह फ़ॉन्ट कन्वर्टर = पाठ फ़ॉर्मेटिंग सुविधा सहित दर्जनों फ़ॉन्ट कन्वर्टर