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रावुडि में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अनंतपुर जिले का एक गाँव है।
दूदॆकॊंड में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कर्नूलु जिले का एक गाँव है।
211 ईसा पूर्व ईसा मसीह के जन्म से पूर्व के वर्षों को दर्शाता है। ईसा के जन्म को अधार मानकर उसके जन्म से 211 ईसा पूर्व या वर्ष पूर्व के वर्ष को इस प्रकार प्रदर्शित किया जाता है। यह जूलियन कलेण्डर पर अधारित एक सामूहिक वर्ष माना जाता है। अधिकांश विश्व में इसी पद्धति के आधार पर पुराने वर्षों की गणना की जाती है। भारत में इसके अलावा कई पंचाग प्रसिद्ध है जैसे विक्रम संवत जो ईसा के जन्म से 57 या 58 वर्ष पूर्व शुरु होती है। इसके अलावा शक संवत भी प्रसिद्ध है। शक संवत भारत का प्राचीन संवत है जो ईसा के जन्म के 78 वर्ष बाद से आरम्भ होता है। शक संवत भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है। भारत में प्रचलित कुछ अन्य प्राचीन संवत इस प्रकार है उपरोक्त अन्तर के आधार पर 211 ईसा पूर्व के अनुसार विक्रमी संवत, सप्तर्षि संवत, कलियुग संवत और प्राचीन सप्तर्षि आदि में वर्ष आदि निकाले जा सकते हैं।
वैदिक धर्मपर एक श्रेणी का भाग मोक्ष ध्यान योग हिन्दू धर्म एक धर्म है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत ,नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म कहा जाता है। इसे वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है। विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है। यह धर्म अपने अन्दर कई अलगअलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए हैं। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवीदेवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है। इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम हिन्दु आगम है। हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है। सनातन धर्म पृथ्वी के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है हालाँकि इसके इतिहास के बारे में अनेक विद्वानों के अनेक मत हैं। आधुनिक इतिहासकार हड़प्पा, मेहरगढ़ आदि पुरातात्विक अन्वेषणों के आधार पर इस धर्म का इतिहास कुछ हज़ार वर्ष पुराना मानते हैं। जहाँ भारत की सिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। इनमें एक अज्ञात मातृदेवी की मूर्तियाँ, भगवान शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएँ, शिवलिंग, पीपल की पूजा, इत्यादि प्रमुख हैं। इतिहासकारों के एक दृष्टिकोण के अनुसार इस सभ्यता के अन्त के दौरान मध्य एशिया से एक अन्य जाति का आगमन हुआ, जो स्वयं को आर्य कहते थे और संस्कृत नाम की एक हिन्द यूरोपीय भाषा बोलते थे। एक अन्य दृष्टिकोण के अनुसार सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग स्वयं ही आर्य थे और उनका मूलस्थान भारत ही था। आर्यों की सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहते हैं। पहले दृष्टिकोण के अनुसार लगभग 1700 ईसा पूर्व में आर्य अफ़्ग़ानिस्तान, कश्मीर, पंजाब और हरियाणा में बस गए। तभी से वो लोग अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए वैदिक संस्कृत में मन्त्र रचने लगे। पहले चार वेद रचे गए, जिनमें ऋग्वेद प्रथम था। उसके बाद उपनिषद जैसे ग्रन्थ आए। हिन्दू मान्यता के अनुसार वेद, उपनिषद आदि ग्रन्थ अनादि, नित्य हैं, ईश्वर की कृपा से अलगअलग मन्त्रद्रष्टा ऋषियों को अलगअलग ग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त हुआ जिन्होंने फिर उन्हें लिपिबद्ध किया। बौद्ध और धर्मों के अलग हो जाने के बाद वैदिक धर्म में काफ़ी परिवर्तन आया। नये देवता और नये दर्शन उभरे। इस तरह आधुनिक हिन्दू धर्म का जन्म हुआ। दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार हिन्दू धर्म का मूल कदाचित सिन्धु सरस्वती परम्परा से भी पहले की भारतीय परम्परा में है। भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने हिन्दुस्थान नाम दिया था, जिसका अपभ्रंश हिन्दुस्तान है। बृहस्पति आगम के अनुसार: हिन्दू शब्द सिन्धु से बना माना जाता है। संस्कृत में सिन्धु शब्द के दो मुख्य अर्थ हैं पहला, सिन्धु नदी जो मानसरोवर के पास से निकल कर लद्दाख़ और पाकिस्तान से बहती हुई समुद्र में मिलती है, दूसरा कोई समुद्र या जलराशि। ऋग्वेद की नदीस्तुति के अनुसार वे सात नदियाँ थीं : सिन्धु, सरस्वती, वितस्ता, शुतुद्रि, विपाशा, परुषिणी और अस्किनी । एक अन्य विचार के अनुसार हिमालय के प्रथम अक्षर हि एवं इन्दु का अन्तिम अक्षर न्दु, इन दोनों अक्षरों को मिलाकर शब्द बना हिन्दु और यह भूभाग हिन्दुस्थान कहलाया। हिन्दू शब्द उस समय धर्म के बजाय राष्ट्रीयता के रूप में प्रयुक्त होता था। चूँकि उस समय भारत में केवल वैदिक धर्म को ही मानने वाले लोग थे, बल्कि तब तक अन्य किसी धर्म का उदय नहीं हुआ था इसलिए हिन्दू शब्द सभी भारतीयों के लिए प्रयुक्त होता था। भारत में केवल वैदिक धर्मावलम्बियों के बसने के कारण कालान्तर में विदेशियों ने इस शब्द को धर्म के सन्दर्भ में प्रयोग करना शुरु कर दिया। आम तौर पर हिन्दू शब्द को अनेक विश्लेषकों ने विदेशियों द्वारा दिया गया शब्द माना है। इस धारणा के अनुसार हिन्दू एक फ़ारसी शब्द है। हिन्दू धर्म को सनातन धर्म या वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म भी कहा जाता है। ऋग्वेद में सप्त सिन्धु का उल्लेख मिलता है वो भूमि जहाँ आर्य सबसे पहले बसे थे। भाषाविदों के अनुसार हिन्द आर्य भाषाओं की स् ध्वनि ईरानी भाषाओं की ह् ध्वनि में बदल जाती है। इसलिए सप्त सिन्धु अवेस्तन भाषा में जाकर हफ्त हिन्दु में परिवर्तित हो गया । इसके बाद ईरानियों ने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिन्दु नाम दिया। जब अरब से मुस्लिम हमलावर भारत में आए, तो उन्होंने भारत के मूल धर्मावलम्बियों को हिन्दू कहना शुरू कर दिया। चारों वेदों में, पुराणों में, महाभारत में, स्मृतियों में इस धर्म को हिन्दु धर्म नहीं कहा है, वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म कहा है। हिन्दू धर्म में कोई एक अकेले सिद्धान्तों का समूह नहीं है जिसे सभी हिन्दुओं को मानना ज़रूरी है। ये तो धर्म से ज़्यादा एक जीवन का मार्ग है। हिन्दुओं का कोई केन्द्रीय चर्च या धर्मसंगठन नहीं है और न ही कोई पोप। इसके अन्तर्गत कई मत और सम्प्रदाय आते हैं और सभी को बराबर श्रद्धा दी जाती है। धर्मग्रन्थ भी कई हैं। फ़िर भी, वो मुख्य सिद्धान्त, जो ज़्यादातर हिन्दू मानते हैं, इन सब में विश्वास: धर्म, कर्म, पुनर्जन्म का सांसारिक चक्र, मोक्ष और बेशक, ईश्वर। हिन्दू धर्म स्वर्ग और नरक को अस्थायी मानता है। हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के सभी प्राणियों में आत्मा होती है। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो इस लोक में पाप और पुण्य, दोनो कर्म भोग सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। हिन्दू धर्म में चार मुख्य सम्प्रदाय हैं : वैष्णव, शैव, शाक्त और स्मार्त । लेकिन ज्यादातर हिन्दू स्वयं को किसी भी सम्प्रदाय में वर्गीकृत नहीं करते हैं। प्राचीनकाल और मध्यकाल में शैव, शाक्त और वैष्णव आपस में लड़ते रहते थे। जिन्हें मध्यकाल के संतों ने समन्वित करने की सफल कोशिश की और सभी संप्रदायों को परस्पर आश्रित बताया। संक्षेप में, हिन्दुत्व के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैंहिन्दूधर्म हिन्दूकौन? गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः। पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति स्मृतः।।अर्थात गोमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म में जिसका विश्वास होवही हिन्दू है। मेरुतन्त्र 33 प्रकरण के अनुसार हीनं दूषयति स हिन्दु अर्थात जो हीन को दूषित समझता है वह हिन्दु है। लोकमान्य तिलक के अनुसार असिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका। पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात् सिन्धु नदी के उद्गमस्थान से लेकर सिन्धु तक सम्पूर्ण भारत भूमि जिसकी पितृभू तथा पुण्यभू है, वह हिन्दु कहलाता है। हिन्दु शब्द मूलतः फा़रसी है इसका अर्थ उन भारतीयों से है जो भारतवर्ष के प्राचीन ग्रन्थों, वेदों, पुराणों में वर्णित भारतवर्ष की सीमा के मूल एवं पैदायसी प्राचीन निवासी हैं। कालिका पुराण, मेदनी कोष आदि के आधार पर वर्तमान हिन्दू ला के मूलभूत आधारों के अनुसार वेदप्रतिपादित वर्णाश्रम रीति से वैदिक धर्म में विश्वास रखने वाला हिन्दू है। यद्यपि कुछ लोग कई संस्कृति के मिश्रित रूप को ही भारतीय संस्कृति मानते है, जबकि ऐसा नहीं है। जिस संस्कृति या धर्म की उत्पत्ती एवं विकास भारत भूमि पर नहीं हुआ है, वह धर्म या संस्कृति भारतीय कैसे हो सकती है। हिन्दू धर्म के सिद्धान्त के कुछ मुख्य बिन्दु: हिन्दू धर्मग्रन्थ उपनिषदों के अनुसार ब्रह्म ही परम तत्त्व है । वो ही जगत का सार है, जगत की आत्मा है। वो विश्व का आधार है। उसी से विश्व की उत्पत्ति होती है और विश्व नष्ट होने पर उसी में विलीन हो जाता है। ब्रह्म एक और सिर्फ़ एक ही है। वो विश्वातीत भी है और विश्व के परे भी। वही परम सत्य, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ है। वो कालातीत, नित्य और शाश्वत है। वही परम ज्ञान है। ब्रह्म के दो रूप हैं : परब्रह्म और अपरब्रह्म। परब्रह्म असीम, अनन्त और रूपशरीर विहीन है। वो सभी गुणों से भी परे है, पर उसमें अनन्त सत्य, अनन्त चित् और अनन्त आनन्द है। ब्रह्म की पूजा नहीं की जाती है, क्योंकि वो पूजा से परे और अनिर्वचनीय है। उसका ध्यान किया जाता है। प्रणव ॐ ब्रह्मवाक्य है, जिसे सभी हिन्दू परम पवित्र शब्द मानते हैं। हिन्दू यह मानते हैं कि ओम् की ध्वनि पूरे ब्रह्माण्ड में गूंज रही है। ध्यान में गहरे उतरने पर यह सुनाई देता है। ब्रह्म की परिकल्पना वेदान्त दर्शन का केन्द्रीय स्तम्भ है और हिन्दू धर्म की विश्व को अनुपम देन है। ब्रह्म और ईश्वर में क्या सम्बन्ध है, इसमें हिन्दू दर्शनों की सोच अलग अलग है। अद्वैत वेदान्त के अनुसार जब मानव ब्रह्म को अपने मन से जानने की कोशिश करता है, तब ब्रह्म ईश्वर हो जाता है, क्योंकि मानव माया नाम की एक जादुई शक्ति के वश में रहता है। अर्थात जब माया के आइने में ब्रह्म की छाया पड़ती है, तो ब्रह्म का प्रतिबिम्ब हमें ईश्वर के रूप में दिखायी पड़ता है। ईश्वर अपनी इसी जादुई शक्ति माया से विश्व की सृष्टि करता है और उस पर शासन करता है। इस स्थिति में हालाँकि ईश्वर एक नकारात्मक शक्ति के साथ है, लेकिन माया उसपर अपना कुप्रभाव नहीं डाल पाती है, जैसे एक जादूगर अपने ही जादू से अचंम्भित नहीं होता है। माया ईश्वर की दासी है, परन्तु हम जीवों की स्वामिनी है। वैसे तो ईश्वर रूपहीन है, पर माया की वजह से वो हमें कई देवताओं के रूप में प्रतीत हो सकता है। इसके विपरीत वैष्णव मतों और दर्शनों में माना जाता है कि ईश्वर और ब्रह्म में कोई फ़र्क नहीं हैऔर विष्णु ही ईश्वर हैं। न्याय, वैषेशिक और योग दर्शनों के अनुसार ईश्वर एक परम और सर्वोच्च आत्मा है, जो चैतन्य से युक्त है और विश्व का सृष्टा और शासक है। जो भी हो, बाकी बातें सभी हिन्दू मानते हैं : ईश्वर एक और केवल एक है। वो विश्वव्यापी और विश्वातीत दोनो है। बेशक, ईश्वर सगुण है। वो स्वयंभू और विश्व का कारण है। वो पूजा और उपासना का विषय है। वो पूर्ण, अनन्त, सनातन, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी है। वो रागद्वेष से परे है, पर अपने भक्तों से प्रेम करता है और उनपर कृपा करता है। उसकी इच्छा के बिना इस दुनिया में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। वो विश्व की नैतिक व्यवस्था को कायम रखता है और जीवों को उनके कर्मों के अनुसार सुखदुख प्रदान करता है। श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार विश्व में नैतिक पतन होने पर वो समयसमय पर धरती पर अवतार रूप ले कर आता है। ईश्वर के अन्य नाम हैं : परमेश्वर, परमात्मा, विधाता, भगवान । इसी ईश्वर को मुसल्मान अल्लाह, ख़ुदा, ईसाई गॉड और यहूदी याह्वेह कहते हैं। हिन्दू धर्म में कई देवता हैं, जिनको अंग्रेज़ी में ग़लत रूप से Gods कहा जाता है। ये देवता कौन हैं, इस बारे में तीन मत हो सकते हैं : एक बात और कही जा सकती है कि ज़्यादातर वैष्णव और शैव दर्शन पहले दो विचारों को सम्मिलित रूप से मानते हैं। जैसे, कृष्ण को परमेश्वर माना जाता है जिनके अधीन बाकी सभी देवीदेवता हैं और साथ ही साथ, सभी देवीदेवताओं को कृष्ण का ही रूप माना जाता है। तीसरे मत को धर्मग्रन्थ मान्यता नहीं देते। जो भी सोच हो, ये देवता रंगबिरंगी हिन्दू संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। वैदिक काल के मुख्य देव थे इन्द्र, अग्नि, सोम, वरुण, रूद्र, विष्णु, प्रजापति, सविता और देवियाँ सरस्वती, ऊषा, पृथ्वी, इत्यादि । बाद के हिन्दू धर्म में नये देवी देवता आये गणेश, राम, कृष्ण, हनुमान, कार्तिकेय, सूर्यचन्द्र और ग्रह और देवियाँ जैसे दुर्गा, पार्वती, लक्ष्मी, शीतला, सीता, काली, इत्यादि। ये सभी देवता पुराणों में उल्लिखित हैं और उनकी कुल संख्या 33 कोटी बतायी जाती है। पुराणों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव साधारण देव नहीं, बल्कि महादेव हैं और त्रिमूर्ति के सदस्य हैं।इन सबके अलावा हिन्दू धर्म में गाय को भी माता के रूप में पूजा जाता है। यह माना जाता है कि गाय में सम्पूर्ण 33 कोटी देवि देवता वास करते हैं। हिंदू धर्म मान्यताओं में पांच प्रमुख देवता पूजनीय है। ये एक ईश्वर के ही अलगअलग रूप और शक्तियाँ हैं। देवताओं के गुरु बृहस्पति माने गए हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वे महर्षि अंगिरा के पुत्र थे। भगवान शिव के कठिन तप से उन्होंने देवगुरु का पद पाया। उन्होंने अपने ज्ञान बल व मंत्र शक्तियों से देवताओं की रक्षा की। शिव कृपा से ये गुरु ग्रह के रूप में भी पूजनीय हैं। गुरुवार, गुरु बृहस्पतिदेव की उपासना का विशेष दिन है। दानवों के गुरु शुक्राचार्य माने जाते हैं। ब्रह्मदेव के पुत्र महर्षि भृगु इनके पिता थे। शुक्राचार्य ने ही शिव की कठोर तपस्या कर मृत संजीवनी विद्या प्राप्त की, जिससे वह मृत शरीर में फिर से प्राण फूंक देते थे। ब्रह्मदेव की कृपा से यह शुक्र ग्रह के रूप में पूजनीय हैं। शुक्रवार शुक्र देव की उपासना का ही विशेष दिन है। हिन्दू धर्म के अनुसार हर चेतन प्राणी में एक अभौतिक आत्मा होती है, जो सनातन, अव्यक्त, अप्रमेय और विकार रहित है। हिन्दू धर्म के मुताबिक मनुष्य में ही नहीं, बल्कि हर पशु और पेड़पौधे, यानि कि हर जीव में आत्मा होती है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा आत्मा के लक्षण इस प्रकार बताए गए हैं: किसी भी जन्म में अपनी आज़ादी से किये गये कर्मों के मुताबिक आत्मा अगला शरीर धारण करती है। जन्ममरण के चक्र में आत्मा स्वयं निर्लिप्त रह्ते हुए अगला शरीर धारण करती है। अच्छे कर्मफल के प्रभाव से मनुष्य कुलीन घर अथवा योनि में जन्म ले सकता है जबकि बुरे कर्म करने पर निकृष्ट योनि में जन्म लेना पड़ता है। जन्म मरण का सांसारिक चक्र तभी ख़त्म होता है जब व्यक्ति को मोक्ष मिलता है। उसके बाद आत्मा अपने वास्तविक सत्चित्आनन्द स्वभाव को सदा के लिये पा लेती है। मानव योनि ही अकेला ऐसा जन्म है जिसमें मनुष्य के कर्म, पाप और पुण्यमय फल देते हैं और सुकर्म के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति मुम्किन है। आत्मा और पुनर्जन्म के प्रति यही धारणाएँ बौद्ध धर्म और सिख धर्म का भी आधार है। हिंदू धर्म के पवित्र ग्रन्थों को दो भागों में बाँटा गया है श्रुति और स्मृति। श्रुति हिन्दू धर्म के सर्वोच्च ग्रन्थ हैं, जो पूर्णत: अपरिवर्तनीय हैं, अर्थात् किसी भी युग में इनमे कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। स्मृति ग्रन्थों में देशकालानुसार बदलाव हो सकता है। श्रुति के अन्तर्गत वेद : ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद ब्रह्म सूत्र व उपनिषद् आते हैं। वेद श्रुति इसलिये कहे जाते हैं क्योंकि हिन्दुओं का मानना है कि इन वेदों को परमात्मा ने ऋषियों को सुनाया था, जब वे गहरे ध्यान में थे। वेदों को श्रवण परम्परा के अनुसार गुरू द्वारा शिष्यों को दिया जाता था। हर वेद में चार भाग हैं संहितामन्त्र भाग, ब्राह्मणग्रन्थगद्य भाग, जिसमें कर्मकाण्ड समझाये गये हैं, आरण्यकइनमें अन्य गूढ बातें समझायी गयी हैं, उपनिषद्इनमें ब्रह्म, आत्मा और इनके सम्बन्ध के बारे में विवेचना की गयी है। अगर श्रुति और स्मृति में कोई विवाद होता है तो श्रुति ही मान्य होगी। श्रुति को छोड़कर अन्य सभी हिन्दू धर्मग्रन्थ स्मृति कहे जाते हैं, क्योंकि इनमें वो कहानियाँ हैं जिनको लोगों ने पीढ़ी दर पीढ़ी याद किया और बाद में लिखा। सभी स्मृति ग्रन्थ वेदों की प्रशंसा करते हैं। इनको वेदों से निचला स्तर प्राप्त है, पर ये ज़्यादा आसान हैं और अधिकांश हिन्दुओं द्वारा पढ़े जाते हैं । प्रमुख स्मृति ग्रन्थ हैं: इतिहासरामायण और महाभारत, भगवद गीता, पुराण, मनुस्मृति, धर्मशास्त्र और धर्मसूत्र, आगम शास्त्र। भारतीय दर्शन के 6 प्रमुख अंग हैं सांख्य दर्शन, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त। हिंदू धर्मग्रंथों के मुताबिक देवता धर्म के तो दानव अधर्म के प्रतीक हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पौराणिक मान्यताओं में देवदानवों को एक ही पिता, किंतु अलगअलग माताओं की संतान बताया गया है। इसके मुताबिक देवदानवों के पिता ऋषि कश्यप हैं। वहीं, देवताओं की माता का नाम अदिति और दानवों की माता का नाम दिति है। विश्व में अधिकतम हिन्दू जनसँख्या वाले 20 राष्ट्र प्राचीन काल में आर्य लोग वैदिक मंत्रों और अग्नियज्ञ से कई देवताओं की पूजा करते थे। आर्य देवताओं की कोई मूर्ति या मन्दिर नहीं बनाते थे। प्रमुख आर्य देवता थे : देवराज इन्द्र, अग्नि, सोम और वरुण। उनके लिये वैदिक मन्त्र पढ़े जाते थे और अग्नि में घी, दूध, दही, जौ, इत्यागि की आहुति दी जाती थी। प्रजापति ब्रह्मा, विष्णु और शिव का उस समय कम ही उल्लेख मिलता है। भारत एक विशाल देश है, लेकिन उसकी विशालता और महानता को हम तब तक नहीं जान सकते, जब तक कि उसे देखें नहीं। इस ओर वैसे अनेक महापुरूषों का ध्यान गया, लेकिन आज से बारह सौ वर्ष पहले आदिगुरू शंकराचार्य ने इसके लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होनें चारों दिशाओं में भारत के छोरों पर, चार पीठ स्थापित उत्तर में बदरीनाथ के निकट ज्योतिपीठ, दक्षिण में रामेश्वरम् के निकट श्रृंगेरी पीठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी में गोवर्धन पीठ और पश्चिम में द्वारिकापीठ। तीर्थों के प्रति हमारे देशवासियों में बड़ी भक्ति भावना है। इसलिए शंकराचार्य ने इन पीठो की स्थापना करके देशवासियों को पूरे भारत के दर्शन करने का सहज अवसर दे दिया। ये चारों तीर्थ चार धाम कहलाते है। लोगों की मान्यता है कि जो इन चारों धाम की यात्रा कर लेता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है। ज्यादातर हिन्दू भगवान की मूर्तियों द्वारा पूजा करते हैं। उनके लिये मूर्ति एक आसान सा साधन है, जिसमें कि एक ही निराकार ईश्वर को किसी भी मनचाहे सुन्दर रूप में देखा जा सकता है। हिन्दू लोग वास्तव में पत्थर और लोहे की पूजा नहीं करते, जैसा कि कुछ लोग समझते हैं। मूर्तियाँ हिन्दुओं के लिये ईश्वर की भक्ति करने के लिये एक साधन मात्र हैं। हिन्दुओं के उपासना स्थलों को मन्दिर कहते हैं। प्राचीन वैदिक काल में मन्दिर नहीं होते थे। तब उपासना अग्नि के स्थान पर होती थी जिसमें एक सोने की मूर्ति ईश्वर के प्रतीक के रूप में स्थापित की जाती थी। एक नज़रिये के मुताबिक बौद्ध और जैन धर्मों द्वारा बुद्ध और महावीर की मूर्तियों और मन्दिरों द्वारा पूजा करने की वजह से हिन्दू भी उनसे प्रभावित होकर मन्दिर बनाने लगे। हर मन्दिर में एक या अधिक देवताओं की उपासना होती है। गर्भगृह में इष्टदेव की मूर्ति प्रतिष्ठित होती है। मन्दिर प्राचीन और मध्ययुगीन भारतीय कला के श्रेष्ठतम प्रतीक हैं। कई मन्दिरों में हर साल लाखों तीर्थयात्री आते हैं। अधिकाँश हिन्दू चार शंकराचार्यों को हिन्दू धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु मानते हैं। नववर्ष द्वादशमासै: संवत्सर:। ऐसा वेद वचन है, इसलिए यह जगत्मान्य हुआ। सर्व वर्षारंभों में अधिक योग्य प्रारंभदिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है। इसे पूरे भारत में अलगअलग नाम से सभी हिन्दू धूमधाम से मनाते हैं। यद्यपि प्राचीनकालमे माघशुक्ल प्रतिपदासे शिशिर ऋत्वारम्भ उत्तरायणारम्भ और नववर्षाम्भ तिनौं एक साथ माना जाता था। हिन्दू धर्म में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है, किन्तु काल क्रम में अब यह बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश वासियों तक ही सीमित रह गया है। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रोत्सव आरंभ होता है। नवरात्रोत्सव में घटस्थापना करते हैं। अखंड दीप के माध्यम से नौ दिन श्री दुर्गादेवी की पूजा अर्थात् नवरात्रोत्सव मनाया जाता है। श्रावण कृष्ण अष्टमी पर जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाता है। इस तिथि में दिन भर उपवास कर रात्रि बारह बजे पालने में बालक श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है, उसके उपरांत प्रसाद लेकर उपवास खोलते हैं, अथवा अगले दिन प्रात: दहीकलाकन्द का प्रसाद लेकर उपवास खोलते हैं। आश्विन शुक्ल दशमी को विजयादशमी का त्यौहार मनाया जाता है। दशहरे के पहले नौ दिनों में दसों दिशाएं देवी की शक्ति से प्रभासित होती हैं, व उन पर नियंत्रण प्राप्त होता है, दसों दिशाओंपर विजय प्राप्त हुई होती है। इसी दिन राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी। किसी भी हिन्दू का शाकाहारी होना आवश्यक नहीं है हालांकि शाकाहार को सात्विक आहार माना जाता है। आवश्यकता से अधिक तला भुना शाकाहार ग्रहण करना भी राजसिक माना गया है। मांसाहार को इसलिये अच्छा नहीं माना जाता, क्योंकि मांस पशुओं की हत्या से मिलता है, अत: तामसिक पदार्थ है। वैदिक काल में पशुओं का मांस खाने की अनुमति नहीं थी, एक सर्वेक्षण के अनुसार आजकल लगभग 70% हिन्दू, अधिकतर ब्राह्मण व गुजराती और मारवाड़ी हिन्दू पारम्परिक रूप से शाकाहारी हैं। वे गोमांस भी कभी नहीं खाते, क्योंकि गाय को हिन्दू धर्म में माता समान माना गया है। कुछ हिन्दू मन्दिरों में पशुबलि चढ़ती है, पर आजकल यह प्रथा हिन्दुओं द्वारा ही निन्दित किये जाने से समाप्तप्राय: है। प्राचीन हिंदू व्यवस्था में वर्ण व्यवस्था और जाति का विशेष महत्व था। चार प्रमुख वर्ण थे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। पहले यह व्यवस्था कर्म प्रधान थी। अगर कोई सेना में काम करता था तो वह क्षत्रिय हो जाता था चाहे उसका जन्म किसी भी जाति में हुआ हो। लेकिन आज के समय में ऐसा नहीं है वैष्णव धर्मावलंबी और अधिकतर हिंदू भगवान विष्णु के 10 अवतार मानते हैं: मत्स्य, कूर्म, वराह, वामन, नरसिंह, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि हिन्दू अथवा सनातन बौद्ध सिख जैन इस्लाम अन्य
जेजू लवलैंड या जेजू प्रणयस्थल, दक्षिण कोरिया के जेजू द्वीप पर स्थित एक शिल्प उद्यान है। खुली हवा के इस शिल्प उद्यान का मुख्य विषय विभिन्न रूपों में दर्शायी गयी कामुकता है। उद्यान में विभिन्न यौन आसनों में लिप्त 140 प्रतिमायें लगाई गयी हैं। यहाँ पर यौन विषयक शैक्षणिक फिल्में भी दिखाई जाती हैं। कोरियाई युद्ध के अंत के बाद, जेजू द्वीप कोरियाई परिवारों के बीच एक लोकप्रिय अवकाश स्थल के रूप में प्रचलित हो गया, विशेष रूप से नवविवाहित जोड़ों के बीच जो अपना मधुमास यहाँ बिताने आते थे। कुछ समय पहले तक भारतीय समाज के अनुरूप कोरियाई समाज में भी अधिकतर विवाह माता पिता की मर्जी से और उनके द्वारा नियत जीवन साथी के साथ ही संपन्न होते थे और नवविवाहितों को पहली बार अपने मधुमास के दौरान ही एक दूसरे को जानने और समझने का मौका मिलता था। इसीलिए जेजू पर स्थित अधिकतर संस्थान, यौन शिक्षा को समर्पित हैं। 2002 में, होंगिक विश्वविद्यालय, सियोल के स्नातक छात्रों, ने उद्यान के लिए मूर्तियां बनाने का काम शुरू किया था और इसका उद्घाटन 16 नवम्बर 2004 को किया गया था। दो फुटबाल मैदानों के आकार के इस उद्यान का भ्रमण एक घंटे में किया जा सकता है है और हर महीने स्थिर शिल्पों के अतिरिक्त कोरियाई शिल्पकारों द्वारा निर्मित अन्य शिल्पों को भी प्रदर्शन हेतु रखा जाता है। उद्यान के विचरण के लिए आगंतुक की आयु 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए। अव्यस्कों के लिए अलग से एक क्षेत्र नियत है, बशर्ते वो किसी व्यस्क के साथ आये हों। निर्देशांक: 332706N 1262924E 33.451638N 126.490E 33.451638 126.490
चित्रसारी में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद जिले का एक गाँव है।
नरही पीढ़ी में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद जिले का एक गाँव है।
हरोली, कोश्याँकुटोली तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है।
मस्जिद अलअक्सा यरूशलम में स्थित यह मस्जिद इस्लाम धर्म में मक्का और मदीना के बाद तीसरा पवित्र स्थल है। यरूशलम पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब के जीवनकाल के दौरान और उनकी मृत्यु के तुरंत बाद के वर्षों के दौरान एक दूरदर्शी प्रतीक रहा जैसा कि मुस्लिमों ने इराक और उसके बाद सीरिया को नियंत्रित किया लेकिन यरुशलम 640 ईस्वी के दशक में मुस्लिमों के नियन्त्रण आया था, जिसके बाद यरूशलम एक मुस्लिम शहर बन गया और यरूशलम में अल अक्सा मस्जिद मुस्लिम साम्राज्य में सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक बनी। इस शहर के जटिल और युद्ध के इतिहास के दौरान, अक्सा मस्जिद यरूशलम के लिए संघर्ष स्थल रहा है। मुस्लिम, ईसाई और यहूदी सभी के साथ मस्जिद के नीचे की जमीन को विशेष रूप से पवित्र माना जाता है, जिस कारण इस जमीन के इतिहास को समझने का महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। जब पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब ने पांच दैनिक प्रार्थनाओं में मुस्लिम समुदाय की अगुवाई करने के लिए भगवान से आदेश प्राप्त किया, तो उनकी प्रार्थनाएं पवित्र शहर यरूशलम की तरफ इशारा करती थीं। मुसलमान नमाज यरूशलम की तरफ मुंह करके पढ़ते थे लेकिन बाद में ईश्वरीय आदेश के बाद पैग़म्बर हजरत मुहम्मद साहब ने मुसलमानों को मक्का की तरफ मुंह करके नमाज पढ़ने का हुक्म दिया,मुसलमानों के लिए यरूशलम शहर एक महत्वपूर्ण स्थल है। इस्लाम के कई पैग्बर, सुलेमान, और ईसा के शहर के रूप में, यह शहर इस्लाम के पैग्बरो का प्रतीक था। जब पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने मक्का से यरूशलम और चढ़ाई के चमत्कारिक रात की यात्रा को स्वर्ग में उस रात, तो उस जगह पर एक अतिरिक्त महत्व प्राप्त हुआ जहां पैगंबर ने पहले के सभी पैगम्बरो का नेतृत्व किया प्रार्थना में और फिर स्वर्ग में। इज़राइल के मुस्लिम निवासी और पूर्वी यरूशलेम में रहने वाले फिलिस्तीनियों आमतौर पर हरम अलशरीफ में प्रवेश कर सकते हैं और अकसा में मस्जिद प्रार्थना कर सकते हैं। लेकिन कभीकभी कुछ मुसलमानों के प्रवेश में बाधा डालते हैं। ये प्रतिबंध समयसमय पर भिन्न होते हैं। कभीकभी शुक्रवार की प्रार्थनाओं के दौरान प्रतिबंध लगाए जाते हैं।. गाजा के निवासियों के लिए प्रतिबंध अधिक कठोर हैं। इजरायली सरकार का दावा है कि सुरक्षा पर प्रतिबंध लगाए गए हैं।. 1967 के युद्ध के बाद टेम्पल माउन्ट के बाहर खुदाई हुईं। 1970 में, इजराइल के अधिकारियों ने दक्षिणी और पश्चिमी दोनों ओर मस्जिद के बगल में दीवारों के बाहर गहन खुदाई शुरू की। पैलेसस्टीनियों का मानना था कि अलअक्सा मस्जिद के नीचे सुरंगों को खोला जा रहा था जो नींव को कमजोर करने के लिए है, जिसे इस्राएलियों ने अस्वीकार कर दिया था, जिन्होंने दावा किया था कि मस्जिद के निकटतम खुदाई दक्षिण में लगभग 70 मीटर थी। इजराइल के धार्मिक मामलों के मंत्रालय के पुरातत्व विभाग ने एक सुरंग खोद दी 1984 में मस्जिद के पश्चिमी हिस्से में। यूनेस्को के विशेष दूत यरुसलम में ओलेग ग्रैबर के अनुसार, टेम्पल माउंट पर इमारतों और संरचनाएं ज्यादातर इज़राइली, फिलिस्तीनी और जॉर्डन सरकारों के बीच विवादों के कारण बिगड़ रही हैं। फरवरी 2007 में, विभाग ने एक ऐसे स्थान पर पुरातात्विक अवशेषों के लिए एक स्थल को खोदना शुरू किया जहां सरकार एक पैदल यात्री पुल का पुनर्निर्माण करना चाहता थी, जो मुगबरी गेट की ओर अग्रसर था, जो कि गैरमुसलमानों के लिए टेम्पल माउंट परिसर में प्रवेश द्वार था। यह साइट 60 थी मस्जिद से मीटर दूर।. खुदाई ने इस्लामी दुनिया भर में क्रोध हुआ, और इज़राइल पर मस्जिद की नींव को नष्ट करने का प्रयास करने का आरोप लगाया गया था। इस्लाम हनिया तब फिलिस्तीनी राष्ट्रीय प्राधिकरण के प्रधान मंत्री और हमास नेता थे उन्होंने खुदाई का विरोध करने के लिए एकजुट होने के लिए फिलीस्तीनियों से कहा, जबकि फतह संगठन ने कहा कि वे इज़राइल के साथ युद्धविराम खत्म कर देंगे।. इज़राइल ने उनके खिलाफ सभी आरोपों का खंडन किया।.
हिन्दू मिथकों के अनुसार शरभ भगवान शिव के एक अवतार माने जाते है। इनके शरीर का आधा भाग सिंह का, तथा आधा भाग पक्षी का था। संस्कृत साहित्य के अनुसार वे दो पंख, चोंच, सहस्र भुजा, शीश पर जटा, मस्तक पर चंद्र से युक्त थे। वे सिंह और हाथी से भी अधिक शक्तिशाली माने जाते है। वे किसी घाटि को एक ही छलांग में पार कर सकने की क्षमता रखते थे। शिवमहापुराणम् में इनकी कथा का वर्णन आता है। तत्पश्चात् के साहित्य में शरभ एक 8 पैर वाले हिरण के रूप में वर्णित है।
रामनाम का शाब्दिक अर्थ है राम का नाम। रामनाम से आशय विष्णु के अवतार राम की भक्ति से है या फिर निर्गुण निरंकार परम ब्रह्म से। हिन्दू धर्म के विभिन्न सम्रदायों में राम के नाम का कीर्तन या जप किया जाता है। श्रीराम जय राम जय जय राम एक प्रसिद्ध मंत्र है जिसे पश्चिमी भारत में समर्थ रामदास ने लोकप्रिय बनाया। भारतीय साहित्य में वैदिक काल से लेकर गाथा काल तक रामसंज्ञक अनेक महापुरुषों का उल्लेख मिलता है किंतु उनमें सर्वाधिक प्रसिद्धि वाल्मीकि रामायण के नायक अयोध्यानरेश दशरथ के पुत्र राम की हुई। उनका चरित् जातीय जीवन का मुख्य प्रेरणास्रोत बन गया। शनै: शनै: वे वीर पुरुष से पुरुषोत्तम और पुरुषोत्तम से परात्पर ब्रह्म के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। ईसा की दूसरी से चौथी शताब्दी के बीच विष्णु अथवा नारायण के अवतार के रूप में उनकी पूजा भी आरंभ हो गई। आलवारों में शठकोप, मधुर कवि तथा कुलशेखर और वैष्णवाचार्यों में रामानुज ने रामावतार में विशेष निष्ठा व्यक्त की परंतु चौदहवीं शताब्दी के अंत तक रामोपासना व्यक्तिगत साधना के रूप में ही पल्लवित होती रही उसे स्वतंत्र संप्रदाय के रूप में संगठित करने का श्रेय स्वामी रामानंद को प्राप्त है। उन्होंने रामतारक अथवा षडक्षर राममंत्र को वैष्णव साधना के इतिहास में पहली बार बीज मंत्र का गौरव प्रदान किया और मनुष्यमात्र को रामनाम जप का अधिकार घोषित किया। इन्हीं की परंपरा में आविर्भूत गोस्वामी तुलसीदास ने इस विचारधारा का समर्थन करते हुए रामनाम को मंत्रराज, बीज मंत्र तथा महामंत्र की संज्ञा देकर कलिग्रस्त जीवों के उद्धार का एकमात्र साधन बताया। उन्होंने उसे वेदों का प्राण, त्रिदेवों का कारण और ब्रह्म राम से भी अधिक महिमायुक्त कहकर नामाराधन में एकांत निष्ठा व्यक्त की। सांप्रदायिक रामभक्ति के विकसित होने पर अर्थानुसंधानपूर्वक रामनाम जप साधना का एक आवश्यक अंग माना जाने लगा। अन्य नामों की अपेक्षा ब्रह्म के गुणों की अभिव्यक्ति की क्षमता राम में अधिक देखकर उसे प्रणव की समकक्षता की महत्ता प्रदान की गई। वैष्णव भक्तों ने सांप्रदायिक विश्वासों के अनुकूल रामनाम की विभिन्न व्यख्याएँ प्रस्तुत कीं। सगुणमार्गी मर्यादावादी भक्तों ने उसे लोकसंस्थापनार्थ ऐश्वर्यपूर्ण लीलाओं के विधायक रामचंद्र और रसिक भक्तों ने सौंदर्य माधुर्यादि दिव्य गुणों से विभूषित साकेतविहारी युगल सरकार का व्यंजक बताया किंतु निर्गुणमार्गी संतों ने उसे योगियों के चित्त को रमानेवाले, सर्वव्यापक, सर्वातर्यामी, जगन्निवास निराकार ब्रह्म का ही बोधक माना। रामनाम की इस लोकप्रियता ने रामभक्ति के विकास का मार्ग प्रशस्त कर दिया। उसकी असीम तारक शक्ति, सर्वसुलभता तथा भक्तवत्सलता का अनुभव कर भावुक उपासकों ने अर्चन तथा पादसेवन को छोड़कर नाम के प्रति सप्तधा भक्ति अर्पित की, जिनमें श्रवण, कीर्तन तथा स्मरण को विशेष महत्व मिला। तुलसी ने उसे स्वामी और सखा दोनों रूपों में ध्येय माना और बनादास ने उससे मधुर दास्यभाव का संबंध स्थापित किया। यह नामोपासना रामभक्ति शाखा में ही सीमित न रही। लीलापुरुषोत्तम के आराधक सूर और मीरा ने भी अपनी कृतियों में प्रगाढ़ रामनामासक्ति व्यंजित की है। रामभक्ति की रसिक शाखा में नामभक्ति की प्राप्ति के लिए नामसाधना की अनेक प्रणालियाँ प्रवर्तित हुई। रासखा ने चित्रकूट के कामदवन में अनुष्ठानपूर्वक बारह वर्ष तक और बनादास ने अयोध्या के रामघाट पर गुफा बनाकर चौदह वर्ष तक अहर्निश नामजप में लीन रकर आराध्य का दर्शनलाभ किया। युगलानन्यशरण ने नाम अभ्यास की एक अन्य व्यवस्थित प्रक्रिया प्रवर्तित की। इसकी तीन भूमिकाएँ हैं भूमिशोधन, नामजप और नामध्यान। प्रथम के अंतर्गत संयम नियम द्वारा नामजप की पात्रता प्राप्त करने के लिए उपयुक्त पृष्ठभमि तैयार की जाती है। दूसरी में नाम के महत्व, अर्थपरत्व तथा जपविधि का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। नाध्यानसंज्ञक तीसरी स्थिति नामसाधना का अंतिम सोपान है। इसके तीन स्तर हैं ताड़नध्यान, आरतीध्यान और मौक्तिकध्यान। ताड़न का अर्थ है दंड देना। अत: प्रथम अवस्था में रामनाम की निरंतर चोट देकर अंत:करण से वासना निकाली जाती है। विषयनिवृत्ति से अंत:स्थ ईश्वर का ज्योतिर्मय स्वरूप प्रकट हो जाता है। उसकी दिव्य आभा से साधक के मानसनेत्र खुल जाते हैं। तब वह अपनी उद्बुद्ध प्रज्ञा से ध्येय का अभिनंदन अथवा आरती करता है। तीसरी अवस्था में भवबंधन से मुक्त साधक अपने स्थूल शरीर से पृथक् चित् देह अथवा भावदेह का साक्षात्कार कर परमपुरुषार्थ की प्राप्ति करता है। इसके फलस्वरूप लोकयात्रा में जीवन्मुक्ति का सुख भोगता हुआ साधक स्वेच्छानुसार शरीर त्यागकर उपास्य की नित्यलीला में प्रवेश करता है। स्वामी रामानंद से प्रत्यक्ष प्रेरणा ग्रहण करने के कारण अवतारवाद के घोर विरोधी संतमत में भी रामनाम की प्रतिष्ठा अक्षुण्ण बनी रही। आदि संत कबीर ने निर्गुण ब्रह्म से उसका तादात्म्य स्थापित कर नामसाधना को एक नया मोड़ दिया। उनके परवर्ती नानक, दादू, गुलाल, जगजीवन आदि तत्वज्ञ महात्माओं ने एक स्वर से उसे निर्गुणपंथ का मूल मंत्र स्वीकार किया। इनकी नाम अथवा जिकिर साधना तांत्रिक आदर्श पर निर्मित होने से प्रणायाम की जटिल विधियों से समन्वित थी। अँगुलियों से माला फेरने और जिह्वा से रामनाम रटने को निर्थक बताते हुए इन संतों ने आंतरिक चित्तवृत्ति के साथ परम तत्व के परामर्श को ही जप की संज्ञा दी, जिसकी सिद्धि इड़ा पिंगला को छोड़कर सुषुम्ना मार्ग से श्वास का अवधारण करके रामनामस्थ होने से होती है, और अनाहत नाम सुनाई पड़ने लगता है। उससे नि:सृत रामनामरस पानकर व्यष्टिजीव आत्मविभोर हो जाता है संतों ने नामामृत पान के लिए कायायोग द्वारा परम तत्व के साथ एकात्मता का अनुभव आवश्यक बताया है। मात्र भावावेशपूर्ण नामोच्चारण से इसकी उपलब्धि असंभव है। मनरति के तनरति की यह अनिवार्यता संतों की नामसाधना में योगतत्व की प्रमुखता सिद्ध करती है। संतों तथा वैष्णव भक्तों द्वारा प्रवर्तित नामसाधना की उपर्युक्त पद्धतियों में विभिन्नता का मुख्य कारण है उनका सैद्धांतिक मतभेद। साकारवादी, भक्ति में शुद्ध प्रेम अथवा भाव तत्व को अधिक महत्व देते हैं, किंतु निराकारवादी, ज्ञान तथा योग तत्व को। सगुणोपासक रूप के बिना नाम की कल्पना ही नहीं कर सकते। अत: वे आराध्य के आंगिक सौंदर्य तथा लीलामाधुर्य के वर्णन एवं ध्यान में मग्न होते हैं। इस स्थिति में उपासक के हृदय में उपास्य से अपने पृथक् अस्तित्व की अनुभूति निरंतर होती रहती है किंतु नाम रस से छके हुए तत्वज्ञानस्पृही निर्गुणमार्गी सत वितर्कहीन स्थिति में पहुँचकर अपने को भूल जाते हैं। वहाँ ध्याता और ध्येय की पृथक् सत्ता का आभास ही नहीं होता। उनकी अंतर्मुखी चेतना ब्रह्मानुभव ने निरत हो तद्रूप हो जाती है।
बचीनगर नं. 1, हल्द्वानी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है।
निर्देशांक: 253640N 850838E 25.611N 85.144E 25.611 85.144 परानपुर धनरूआ, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है।
निर्देशांक: 213610N 711305E 21.602871N 71.21817E 21.602871 71.21817बडा आँकडीया भारत देश में गुजरात प्रान्त के सौराष्ट्र विस्तार में अमरेली जिले के 11 तहसील में से एक अमरेली तहसील का महत्वपूर्ण गाँव है। बड़ा आँकडीया गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, खेतमजूरी, पशुपालन और रत्नकला कारीगरी है। यहाँ पे गेहूँ, मुहफली, तल, अनाज, कठोल, सब्जी इत्यादी की खेती होती है। गाँव में विद्यालय, पंचायत घर जैसी सुविधाएँ हैं। गाँव से सबसे नजदीकी शहर अमरेली है।
हल्दिया, पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर जिला में स्थित एक औद्योगिक शहर है। यह भारत के पूर्वी समुद्रतट का एक प्रमुख बंदरगाह और औद्योगिक केन्द्र है, जो कलकत्ता से लगभग 125 किलोमीटर दक्षिणपश्चिम की ओर, हुगली नदी के मुहाने के पास स्थित है। हल्दिया नगर की सीमा हल्दी नदी से सटी है, जो गंगा नदी की एक शाखा है। हल्दिया शहर कई पेट्रोकेमिकल व्यवसायों का केंद्र है, और इसे कोलकाता और इसके अंतर्देशीय क्षेत्र के लिए एक प्रमुख व्यापारी बंदरगाह के रूप में कार्य करने के लिए विकसित किया जा रहा है। 2011 की जनगणना के अनुसार, हल्दिया की आबादी 2,00,762 थी, जिसमें से 1,04,852 पुरुष थे और 95,910 महिलाएं थीं। 7 साल से कम आयु के शिशुओं की जनसंख्या 21,122 थी और 7 के नागरिकिओं की आबादी के लिए साक्षरता दर 89.06% प्रतिशत दर्ज की गई थी। हल्दिया नगर हुगली नदी के मुहाने पर स्थित है। यह हुगली नदी और हल्दी नदी के संगम पर स्थित है, जोकि गंगा नदी की दो शाखाएं हैं। यह नगर 2202N 8804E 22.03N 88.06E 22.03 88.06. पर अवस्थित है, और समुद्र सतह से इसकी औसत ऊँचाई 8 मीटर है। हल्दिया में कई भारी औद्योगिक कम्पनियाँ स्थापित हैं, जिनमें साउथ एशियन पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, एक्साइड, शॉ वालेस, टाटा केमिकल्स, हल्दिया पेट्रोकेमिकल्स, इंडिया पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड, हिंदुस्तान लीवर और मित्सुबिशी केमिकल कॉरपोरेशन भी शामिल हैं। Haldia travel guide from Wikivoyage
भौतिकी में, त्वरण के परिवर्तन की दर को प्रतिक्षेप या झटका या धक्का कहते हैं। यह एक सदिश राशि है। इसकी विमा है और एसआई इकाई ms3 है। प्रतिक्षेप को गुरुत्व प्रति सेकेण्ड के रूप में भी अभिव्यक्त किया जा सकता है।
नवाबजादा मालिक आमद खान एक राजनीतिज्ञ है पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा में वह NA71 निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है पाकिस्तानी पंजाब के लिए
क्रीमिया या क्राईमिया पूर्वी यूरोप में युक्रेन देश का एक स्वशासित अंग है जो उस राष्ट्र की प्रशासन प्रणाली में एक स्वशासित गणराज्य का दर्जा रखता है। यह कृष्ण सागर के उत्तरी तट पर स्थित एक प्रायद्वीप है। इस क्षेत्र के इतिहास में क्रीमिया का महत्व रहा है और बहुत से देशों और जातियों में इस पर क़ब्ज़े को लेकर झड़पें हुई हैं। 18 मार्च 2014 को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन क्रीमिया को रूसी संघ में मिलाने के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए। इसके साथ ही क्रीमिया रूसी संघ का हिस्सा बन गया है। क्रीमिया का क्षेत्रफल 26,200 वर्ग किमी है। इसपर स्थित प्रान्त की राजधानी सिमफ़रोपोल है। इसपर कभी क्रीमियाई तातारों की बहुतायत थी लेकिन जोसेफ़ स्टालिन के ज़माने में उन्हें ज़बरदस्ती मध्य एशिया भेज दिया गया। समय के साथ उनमें से कुछ वापस आ गए हैं और अब तातार लोग इस प्रायद्वीप की आबादी का 13% हैं। वर्तमान में इस क्षेत्र का सबसे बड़ा समुदाय रूसी लोग हैं। यूनानी, स्किथी, गोथ, हूण, ख़ज़र, बुलगार, उसमानी तुर्क, मंगोल और बहुत से अन्य साम्राज्यों ने वक़्तवक़्त पर क्रीमिया पर क़ब्ज़ा जमाया है। 18 वीं सदी के बाद इसपर रूसी साम्राज्य का अधिकार बन गया और फिर 1917 की सोवियत क्रांति के बाद यह सोवियत संघ का हिस्सा बना। 20 वीं सदी के अंत में युक्रेन आज़ाद हुआ और तब से यह उस राष्ट्र का हिस्सा है। 26 फ़रवरी 2014 को हथियारबंद रूस समर्थकों ने यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप में संसद और सरकारी इमारतों पर को कब्जा कर लिया। 2 मार्च को रूस की संसद ने भी राष्ट्रपति पुतिन के यूक्रेन में रूसी सेना भेजने के निर्णय का अनुमोदन कर दिया।इसके पीछे तर्क दियागया कि वहां रूसी मूल के लोग बहुतायत में हैं जिनके हितों की रक्षा करना रूस की जिम्मेदारी है। दुनिया भर में इस संकट से चिंता छा गई और कई देशों के राजनयिक अमले हरकत में आ गए। 6 मार्च को क्रीमिया की संसद ने रूसी संघ का हिस्सा बनने के पक्ष में मतदान किया।जनमत संग्रह के परिणामों को आधार बनाकर 18 मार्च 2014 को क्रीमिया को रूसी फेडरेशन में मिलाने के प्रस्ताव पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हस्ताक्षर कर दिए। इसके साथ ही क्रीमिया रूसी फेडरेशन का हिस्सा बन गया है। उल्लेखनीय है कि क्रीमिया 18वीं सदी से रूस का हिस्सा रहा है लेकिन 1954 में तत्कालीन रूसी नेता ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को भेंट के तौर पर क्रीमिया दिया था।
हुकुम सिंह बिसेन,भारत के उत्तर प्रदेश की प्रथम विधानसभा सभा में विधायक रहे। 1952 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के 273 कैसरगंज विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया।
ऐसे कथन को अर्धसत्य कहते हैं जिसका अधिकांश भाग असत्य होता है किन्तु चालाकी से जानबूझकर उसमें सत्य का थोड़ा सा अंश मिला दिया जाता है। ऐसे कथन धोखा देने के लिये डिजाइन किये जाते हैं।
अमेरिका में प्रवासी हिन्दी लेखक।
उन्नीसवीं शती के अन्त से लेकर वर्तमान समय तक के दर्शन को समकालीन दर्शन कहते हैं। लॉक से लेकर कांट और हीगेल तक जिस दार्शनिक विचारधारा का विकास हुआ, 19वीं शती के अंत तक उसे मात्र ऐतिहासिक तथ्य समझा जाने लगा। कांट एवं हीगेल की विचारधारा इस शती के अंत तक पूरे यूरोप में फैल चुकी थी, विशेषकर नव्य हीगेलवादी धारा तो अमेरिका, इंग्लैंड एव रूस में व्यपक रूप से विकसित हो चुकी थी। हीगेलीय दर्शन में ज्ञानोपलब्धि के लिए तर्क को सर्वोपरि स्थान दिया गया। वास्तविकता तर्कसाध्य है और जो तर्कसाध्य है, वही वास्तविकता है। परस्पर विरोधी, परिवर्तनशील एवं नाम रूप का ऐंद्रिय जगत् भ्रामक है। वास्तविकता अद्वैत है, देशातीत एवं कालातीत है। यह अमूर्त है, इसलिए इसे तर्कशास्त्र, गणित एवं ज्यामिति की पद्धति से ही जाना जा सकता है। इस विचारधारा में अनुभूमि, इच्छा एवं संवेदना को तिरस्कृत करने के साथ साथ ऐंद्रिय जगत् का भी निषेध किया गया। इस प्रकार मष्तिष्क एवं हृदय के बीच तनाव काफी बढ़ गया। समकालीन दर्शन का अभ्युदय उपर्युक्त विचारधारा के विरोध में हुआ। दर्शन का यह युग प्रणालीविरोधी रहा है। यह प्रवृत्ति क्रमश: अराजकता की ओर बढ़ती गई। दूसरे, व्यक्तिगत अनुभवों को अधिक महत्व दिया गया। तत्वमीमांसा पर प्रबल आक्रमण किए गए। इसके लिए किसी स्कूल ने धर्म और मनोविज्ञान का आश्रय लिया, किसी ने अनुभूति का, तो किसी ने विज्ञान और तार्किक विश्लेषण का। फिर तत्वमीमांसा के सिद्धांत नए स्तर पर स्थापित किए गए। सैमुउल अलेक्जैंडर, निकोलाई हार्टमान एवं अल्फ्रेड नार्थ ह्वाइटहेड इसके उदाहण हैं। धार्मिक अनुभवों, एवं मनोवैज्ञानिक सत्यों को विलियम जेम्स ने पर्याप्त महत्व दिया। जेम्स ने हीगेल के पूर्वनिर्धांरित एवं गतिहीन जगत् की कटु आलोचना की। उनके अनुसार वास्तविकता परिवर्तनशल है और इसका ज्ञान संवेदनाओं के माध्यम से ही हो सकता है। फलत: चेतनाप्रवह का सिद्धांत प्रस्तुत किया गया। देश काल की वास्तविकता को ही वास्तविकता स्वीकार कर लिया गया। जेम्स ने विश्वास की इच्छा का सिद्धांत प्रतिपादित किया, जिसके अनुसार, विश्वास की कसौटी तथ्य नहीं, सफलता है। इस विचारधारा को व्यावहारिकतावाद या प्रैग्मैटिज्म कहते हैं। इसमें वास्तविकता की जा कल्पना की गई वह व्यापारवाद, अवसरवाद एवं स्वार्थवाद की ओर प्रेरित करती है। जान डिवी, शिलर, चार्ल्स पियर्स और स्वयं जेम्स इस विचारधारा के प्रसिद्ध व्याख्याता थे। फ्रांसीसी दार्शनिक हेनरी बर्गसाँ ने जेम्स के दृष्टिकोण की प्रशंसा की। किंतु वे उपयोगिता को बुद्धिजन्य मानते थे। इसलिए उपयोगिता एवं बुद्धि दोनों ज्ञान प्राप्त करने में बाधक बतलाई गईं। बर्गसाँ ने मनन, सहजानुभूति एव मूल प्रवृत्तियों को महत्व दिय। जीवन एवं परिवर्तन को वास्तविकता के रूप में स्वीकार किया। उनके अनुसार भौतिक जगत, जो देश में स्थित है, बुद्धिगम्य है और काल जिसमें सभी कुछ स्थित है, सहजानुभूतिगम्य है। वर्गसाँ का दर्शन एक तरह से नव्य प्लेटोवादी परंपरा का सुधरा हुआ रूप है। उन्होंने रहस्यवाद का, प्रगति एवं काल की वास्तविकता से समन्वय करने का प्रयत्न किया है। 19वीं शती के अंत में जर्मन प्रत्ययवाद के विरुद्ध विद्रोह होने लगे थे। जेम्स और बर्गसाँ के अतिरिक्त तर्कशास्त्रियों ने भी हीगेलीय पद्धति में दोष ढूँढ़ निकाला। यदि एक ओर तार्किक भाववाद भाषीय विश्लेषण के माध्यम से आगे आया तो अस्तित्ववाद नई और जटिल भाषा लेकर उदित हुआ। फ्रैंज ब्रैन्तैनो के विचारों से प्रभावित होकर एडमंड हुसर्ल ने प्रतिभासवाद का सिद्धांत प्रणीत किया। कभी कभी एक ही स्कूल के भीतर मतवैभिन्न्य एवं अस्पष्टता की भरमार मिलती है। एक तरह से मूल प्रवृत्ति प्रणालीविरोधी होने के कारण अराजक एवं अणुवादी रही है। द्वंद्वात्मक भौतिकवाद रूस एवं चीन का राष्ट्रीय दर्शन होने के कारण सबसे अधिक प्रभावशाली दर्शन रहा है, क्योंकि सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक, दोनों पक्षों से उसे जीवन में ग्रहण किया गया। दर्शन शास्त्र का जीवन के लिए ऐसा उपयोग समकालीन समाज में कहीं नहीं है। मार्क्स एवं एंगेल्स ने इसकी स्थापना की, जिसे लेनिन, प्लैखनोव, स्टेलिन एवं माऔत्सेतुंग ने आगे विकसित किया। यहाँ तार्किक भाववाद, प्रतिभासवाद एव अस्तित्ववाद का संक्षिप्त परिचय देना पर्याप्त होगा। किंतु इसके पहले हमें नव्य टामसवाद पर कुछ शब्द कह देना चाहिए। जाके मेरितें ने टामस एक्वीनास के विचारों का आधुनिकीकरण करने का प्रयत्न किया, किंतु यह दर्शन मूलत: धार्मिक शिक्षाओं पर आधारित है। व्यक्तिवादी प्रवृत्ति से भिन्न होते हुए भी, इसमें ईश्वर के प्रति आत्मसमर्पण की शिक्षा ही महत्वपूर्ण समझी जाती है। इसमें ज्ञानमीमांसा आदि की व्याख्या हुई है, किंतु नैतिक एवं धार्मिक शिक्षाएँ ही सर्वोपरि स्थान पा सकी हैं। फलत: यह कैथालिक चर्च का दर्शन बन कर रह गया। कभी कभी ये अपने को वास्तविक अर्थों में अस्तित्ववादी कहते हैं। किंतु ईश्वर, आत्मा, स्वर्ग आदि की कल्पनाओं को अधिक महत्व देने के कारण वे भौतिक जीवन को तिरस्कृत करते हैं और उन्हें अस्तित्ववादी नहीं कहा जा सकता। प्रतिभासवाद 19वीं शती की प्रधान दार्शनिक धारा है। मुख्यत: फ्रैंज ब्रैन्तैनो के विचारों का आधार बनाकर एडमंड हुसर्ल ने इसे विकसित किया। जर्मनी के बाद इसका प्रभाव सारे यूरोप में फैल गया। मूर, हार्टमान इत्यादि पर प्रतिभासवाद का अलग अलग प्रभाव पड़ा। प्रतिभासवादियों में मैक्स शे का नाम उल्लेखनीय है। इस सिद्धांत के अनुसार दर्शन का प्रतिभास है। प्रतिभास से अर्थ है, जो भी प्रदत्त वस्तु प्रत्यक्षानुभूति का विषय बनती हो। फलत: प्रकृति विज्ञान के विपरीत युद्ध अपनाते हुए भी सह प्रत्ययवाद से भी अलग पड़ता है। प्रतिभासवाद, ज्ञानमीमांसा से अध्ययन प्रारंभ नहीं करता। दूसरी विशेषता यह है कि प्रतिभासवाद सारतत्वों को विषयवस्तु के रूप में चुनता है। ये सारतत्व प्रतिभासी आदर्श एवं बोधगम्य होते हैं। ये प्रत्याक्षानुभूति की क्रिया में मन में छूट जाते हैं इसीलिए इसे सारतत्वों का दर्शन भी कहते हैं। एडमंड हुसर्ल फ्रैंज ब्रैंतैनो के अतिरिक्त, स्कॉलेस्टिसिज्म, नव्य कांटवाद आदि का प्रभाव स्पष्ट है। गणित में उनका विशेष अध्ययन है। प्रतिभासवाद माध्यम से उन्होंने नामवाद, अज्ञेयवाद, भाववाद आदि का खंडन करने का प्रयत्न किया है। हुसर्ल ने अपने अर्थ के सिद्धांत के अनुमान मानसिक प्रत्ययों, बिंबों, अवधारणाओं, घटनाओं, अनुभवों आदि की व्याख्या करने का प्रयत्न किया है। फलत: उनका सिद्धांत अंत में प्रतिभासवादी होकर रह जाता है। प्रतिभासवादी पद्धति को दर्शन के विज्ञान के रूप में विकसित करने के लिए हुसर्ल ने इसे प्रत्यक्षानुभूति से शु डिग्री किया है। समान्य अर्थों में देखने की क्रिया से जिसे वे प्रमुख चेतना कहते हैं जो प्रदत्त वस्तुओं को प्रत्यक्षत: प्रस्तुत करती है। यह मूल वस्तु का ज्ञान प्राप्त करने के लिए अनिवार्य साधन है। प्रतिभासवाद का यह प्रथम नियम है। हम चेतना में वस्तुओं को जिस रूप में देखते हैं, वह उनका अर्थ है, इस प्रदत्त को प्रतिभास कहते हैं, क्योंकि वह चेतना में प्रतिभासित हाता है। प्रतिभासवाद में प्रतिभासों के अतिरिक्त किसी अज्ञेय तत्व को महत्व नहीं दिया गया है। फलत: यह आनुभविक या निगमात्मक पद्धति को महत्व नहीं देता। प्रदत्त की व्याख्या से इसका संबंध है। इस प्रकार सरतत्वों की ओर ही इसका आग्रह होता है। विषयी की क्रिया भी इसके अध्ययन की वस्तु हो सकती है। किंतु सर्वप्रथम ज्ञात, संदेहास्पद, प्रेममूलक वस्तुओं को ही ग्रहण किया जाता है। हुसर्ल के अनुसार प्रत्येक वस्तु में उसका सारतत्व निहित होता है। यद्यपि प्रत्येक वस्तु संभाव्य या अनिश्चित वास्तविकता होती है, फिर भी उसमें सार तत्व होता है, जिसे शुद्ध प्रत्यय कह सकते हैं। इस प्रकार प्रतिभासवद बौद्धिक सहजानुभूति के माध्यम से सारतत्वों का अध्ययन करता है। अनुभवातीत न्यूनीकरण के माध्यम से इन सारतत्वों की खोज की जाती है। इसी सिद्धात से साभिप्रायिकता का सिद्धांत भी जुड़ा हुआ है। इसमें चेतना और इसकी क्रियाओं का अध्ययन होता है। हुसर्ल के अनुसार जीव के विभिन्न विभागों से प्रतिभासवाद की सीमा निर्धारित होती है। इसमें से एक है शुद्ध चेतना। इसे साभिप्रायिकता के आधार पर प्राप्त करते हैं। सामिप्रायिकता इस शुद्ध चेतना से संबंधित होती है। प्रेम, आस्वादन, इत्यादि चेतना हैं, ये साभिप्रायिक अनुभव हैं। ये साभिप्रायिक अनुभव जिस वस्तु को ग्रहण करते हैं, उसे संपूर्ण रूप से जान लेते हैं। अनुभव स्वयं शुद्ध क्रिया है। साभिप्रायिक वस्तु और शुद्ध चेतना का साभिप्रायिक संबंध ही यह क्रिया है। इस प्रकार संपूर्ण वास्तविकता शुद्ध क्रिया है। साभिप्रायिक वस्तु और शुद्ध चेतना का साभिप्रायिक संबध ही यह क्रिया है। इस प्रकार संपूर्ण वास्तविकता शुद्ध क्रिया के रूप में अनुभवप्रवाह है। अनुभवप्रवाह में ही ऐद्रिय पदार्थ एव साभिप्रायिक रूप का अंतर स्पष्ट करते हुए, साभिप्रायिक अनुभवप्रक्रिया की गूढ़ व्याख्या करते हैं। अंत में वे प्रत्ययवादी सिद्धांतों के अनुरूप ही अपना सिद्धांत पूर्ण करते हैं। तार्किक भाववाद की पृष्ठभूमि में कांत, मिल, माख, ह्यूम इत्यादि का प्रभाव महत्वपूर्ण है। जी.ई. मूर, बट्रेंड रसेल, ह्वाइटहेड एवं आइन्सटीन के भौतिक शास्त्र का प्रभाव भी इस शाखा पर स्पष्टत: लक्षित होता है। किंतु इस स्कूल का संगठन वियना में मोरिज श्लिक की अध्यक्षता में हुआ। एर्केटनिस इस स्कूल का मुखपत्र था, बाद में इसका नाम Journal of Unified Science हो गया। प्राग, कोनिंग्सबर्ग, कापेनहेगेन, पेरिस और कैंब्रिज में इसकी महत्वपूर्ण बैठकें हुईं। अमरीका से इस स्कूल के International Encyclopedia of Unified Science का प्रकाशन हुआ। इस स्कूल के प्रतिनिधि मुख्यत: जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस और अमरीका रूडाल्फ कर्नप हैन्स रीखेनबाख, श्लिक, ओट्टो न्यूराथ, ऐ.जे. आयर, गिलबर्ट राइल, जान विज्डम आदि का नाम महत्वपूर्ण है। लुडविग वित्गीन्सताइन के भाषा संबंधी विश्लेषण का इस स्कूल पर गहरा प्रभाव है। इन सारे व्यक्तियों में परस्प्र मतभेद है, फिर भी वे तर्क, गणित और विज्ञान को एक स्वर से वास्तविकता का साधन मानते हैं। तत्वमीमांसा पर इस स्कूल ने घातक आक्रमण किया। तार्किक भाववाद के अनुसार तत्वमीमांसा ने भाषा के नियमों का उल्लंघन किया है। इसलिए उसका विश्लेषण करना आवश्यक है। प्रमाणीकरण की पद्धत्ति से तत्वमीमांसा का अध्ययन करने के बाद कहा गया कि उसके सारे वाक्य अर्थहीन हैं। ईश्वर, आत्मा, अमरता आदि को प्रमाणित नहीं किया जा सकता। दर्शन का काम वास्तविकता की खोज करना नहीं, बल्कि वैज्ञानिक वाक्यों का अध्ययन करना हे। इस प्रकार कोई भी वाक्य प्रमाणीकरण के सिद्धांत पर खरा उतरता है तो उसे सार्थक कहा जा सकता है, नहीं उतरता तो वह अर्थहीन है। तत्वमीमांसा की समस्याओं को घिसी पिटी समस्याएँ कहकर उड़ा दिया गया। इस प्रकार तार्किक भाववाद अपने मूल रूप में विश्लेषणात्मक दर्शन है। भाषा का तार्किक विश्लेषण इत्यादि सिद्धांतों से लगता है कि तार्किक भाववाद वस्तुवादी विश्लेषण इत्यादि सिद्धांतों से लगता है कि तार्किक भाववाद वस्तुवादी सिद्धांत है। किंतु ज्ञानमीमांसा की दृष्टि से यह वर्कले के आत्मगत प्रत्ययवाद के निकट पड़ता है। यद्यपि यह वैज्ञानिक संकेत, प्रतीक, वाक्यों इत्यादि की शब्दार्थ विज्ञान के अनुसार व्याख्या करता है, तथापि इसे बाह्य जगत् में विश्वास नहीं है। तार्किक भाववाद के अनुसार हमें बाह्य जगत् का ज्ञान नहीं हो सकता। हम सिर्फ अपने संवेदों को जान सकते हैं, बस। गुलाब स्वयं में क्या है, नहीं कहा जा सकता। लेकिन वह लाल है, सुगंधित और कोमल है, यही कहा जा सकता है। जिस गुलाब को हम जानते हैं, वह हमारे संवेदों से निर्मित होता है। यहीं इस दर्शन की सीमा समाप्त होती है। अस्तित्ववाद का उदय द्वितीय महायुद्ध के बाद हुआ। किंतु इस परंपरा में रोमांटिक कवि, साहित्यकार एवं विचारकों का नाम लिया जा सकता है। सारैन किर्कगार्ड ने हीगेल के सिद्धांतों पर निरंतर आक्रमण किया। किर्कगार्ड ने सर्वभक्षी प्रत्यय से व्यक्ति को सुरक्षित करने का प्रयास किया। उनके अनुसार अस्तित्व प्रथम है, सारतत्व गौण है। तर्क से वास्तविकता का ज्ञान असंभव है। इसके लिए विश्वास, प्रेम, अनुभूति आदि की जरूरत है। प्रतिविवेकवाद की नींव किर्कगार्ड ने डाली, इसी पर पूरा अस्तित्ववाद खड़ा हुआ। इस सन्दर्भ में नीत्शे का नाम भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। वैसे इस वाद पर हुसर्ल, बर्गसाँ, डिल्थी का व्यापक प्रभाव है। इस स्कूल के प्रधान व्याख्याता हेडगर, मार्सेल, कार्ल यास्पर्स, एवं ज्याँपाल सार्च हैं। विचारकों ने अपने अपने मत का अधिकतर व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर व्यक्त किया है। किंतु सब में कुछ सामान्य समानताएँ हैं, जिससे वे लोग एक स्कूल के विचारक सिद्ध होते हैं। अस्तित्ववाद में मृत्यु को दर्शन का आरंभिक बिंदु माना गया है। यास्पर्स के अनुसार दार्शनिकता का अर्थ है यह सीखना कि हम कैसे मृत्यु को प्राप्त हों। हेडगर की मृत्यु की प्रेरणा और सात्र का नासिया इसके दूसरे रूप हैं। इसी को कहते हैं कि अस्तित्ववाद की समस्या आदमी की अस्तित्वपरक समस्या है। अस्तित्व ही इस स्कूल के अनुसार अध्ययन की मूल वस्तु है। अस्तित्व की परिभाषा प्राय: लोगों ने अलग अलग दी है। किंतु इन सबके अनुसार, अस्तित्व आदमी के अस्तित्व के अतिरिक्त कोई दूसरी वस्तु नहीं है। आदमी स्वयं अपना अस्तित्व है। फलत: वह आत्मोन्मुख वास्तविकता है। लेकिन यह वास्तविकता ससीम है। आदमी स्वयं अपना निर्माण करता है और यह निर्माण उसकी स्वतंत्रता सिद्ध करता है। सार्त्र कट्टर नास्तिक है। दूसरे लोग ईश्वर की अलग अलग कल्पना करते हैं। इसके वाबजूद मृत्यु, भय पीड़ा, स्वतंत्रता, असफलता, उत्तरदायित्व इत्यादि की व्याख्या लोगों ने समान अर्थों में की है। अस्तित्ववाद का मूल स्वर निराशावादी है। जीवन के निषेधात्म्क पक्षों पर ही उसमें अधिक विचार किया गया है। सामान्यत: यह स्वीकार किया गया है कि आदमी भाग्याधीन है और चरम रूप से वह अपनी परिस्थितियों में निर्धारित है। उनकी अधिकतर परिभाषाएँ अस्पष्ट और गढ़े हुए मुहावरों के कारण असंप्रेषणीय एवं दुरूह होती गई हैं। एक अर्थ में, इसमें अनुभवों का अतिरेक के साथ वर्णन हुआ है। सामाजिक संबंधों का अध्ययन मुख्यत: मनोवैज्ञानिक एवं दार्शनिक स्तर पर किया गया है। अस्तित्व दूसरे के लिए, संप्रेषण, तूँ, इत्यादि शब्दों से इस संबंध का विश्लेषण किया गया है। अस्तित्ववाद में तत्वमीमांसा को पर्याप्त स्थान मिला है। फलत: प्रत्ययवादी प्रवृत्ति से यह स्कूल मुक्त नहीं हो सका है। यास्पर्स, हेडगर एव सार्त्र में इसके पर्याप्त उदाहरण वर्तमान है। यास्पर्स तो कांट से काफी प्रभावित हैं। अस्तित्ववादियों के अनुसार बौद्धिकता वास्तविकता की ओर नहीं ले जाती। ज्ञान की उपलब्धि अनुभव के माध्यम से ही हो सकती है। वास्तविकता अनुभूति गम्य है। प्रेम, घृणा, दया, करुणा, हिंसा इत्यादि मनुष्य की वास्तविक अभिव्यक्तियाँ हैं। अपनी लघुता के ज्ञान के साथ ही आदमी अनुभव का महत्व देने लगता है। फलत: अस्तित्ववाद बुद्धिविरोधी दर्शन हैं। यही कारण है कि इसने 19वीं शती के साहित्य को दूर तक प्रभावित किया। किंतु यह जीवनदर्शन बन सकने की स्थिति में नहीं आ सका। सार्त्र जैसे अस्तित्ववदी तो मार्क्सवाद को वस्तविक जीवनदर्शन स्वीकार करते हैं, लेकिन उसमें स्वतंत्रता को अपनी ओर से जोड़ने का प्रयत्न करते हैं।
राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान, अगरतला, त्रिपुरा की स्थापना वर्ष 1955 में की गई थी और दिनांक 1 अप्रैल 2006 को केन्द्र सरकार के पूर्णत: वित्त पोषित संस्थान के रूप में अधिग्रहित किया गया और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, अगरतला बनाया गया। संस्थान अवरस्नातक स्तर पर प्रति वर्ष 266 विद्यार्थियों की भर्ती कर 7 कोर्स संचालित करता है।
यह एक प्रमुख हवाई अड्डा हैं
इन्दौर जनसंख्या की दृष्टि से भारत के मध्य प्रदेश राज्य का सबसे बड़ा शहर है। यह इन्दौर ज़िला और इंदौर संभाग दोनों के मुख्यालय के रूप में कार्य करता है। इंदौर मध्य प्रदेश राज्य की वाणिज्यिक राजधानी भी है।यह राज्य के शिक्षा हब के रूप में माना जाता है। इंदौर भारत का एकमात्र शहर है, जहाँ भारतीय प्रबन्धन संस्थान व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दोनों स्थापित हैं। मालवा पठार के दक्षिणी छोर पर स्थित इंदौर शहर, राज्य की राजधानी से 190 किमी पश्चिम में स्थित है। भारत की जनगणना,2011 के अनुसार 2167447 की आबादी सिर्फ 530 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में वितरित है। यह मध्यप्रदेश में सबसे अधिक घनी आबादी वाले प्रमुख शहर है। यह भारत में के तहत आता है। इंदौर मेट्रोपोलिटन एरिया की आबादी राज्य में 21 लाख लोगों के साथ सबसे बड़ी है। इंदौर अपने स्थापना के इतिहास में 16वीं सदी क डेक्कन और दिल्ली के बीच एक व्यापारिक केंद्र के रूप में अपने निशान पाता है। मराठा पेशवा बाजीराव प्रथम के मालवा पर पूर्ण नियंत्रण ग्रहण करने के पश्चात, 18 मई 1724 को इंदौर मराठा साम्राज्य में सम्मिलित हो गया था। और मल्हारराव होलकर को वहाँ का सुबेदार बनाया गया। जो आगे चल कर होलकर राजवंश की स्थापना की। ब्रिटिश राज के दिनों में, इन्दौर रियासत एक 19 गन सेल्यूट रियासत था जो की उस समय थी। अंग्रेजी काल के दौरान में भी यह होलकर राजवंश द्वारा शासित रहा। भारत के स्वतंत्र होने के कुछ समय बाद यह भारत अधिराज्य में विलय कर दिया गया। इंदौर के रूप में सेवा की राजधानी मध्य भारत 1950 से 1956 तक। इंदौर एक वित्तीय जिले के समान, मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी के रूप में कार्य करता है। और भारत का तीसरा सबसे पुराने शेयर बाजार, मध्यप्रदेश स्टॉक एक्सचेंज इंदौर में स्थित है।यहाँ का अचल संपत्ति बज़ार, मध्य भारत में सबसे महंगा है। यह एक औद्योगिक शहर है। यहाँ लगभग 5,000 से अधिक छोटेबडे उद्योग हैं। यह सारे मध्य प्रदेश में सबसे अधिक वित्त पैदा करता है। पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में 400 से अधिक उद्योग हैं और इनमे 100 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के उद्योग हैं। पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र के प्रमुख उद्योग व्यावसायिक वाहन बनाने वाले व उनसे सम्बन्धित उद्योग हैं।व्यावसायिक क्षेत्र में मध्य प्रदेश की प्रमुख वितरण केन्द्र और व्यापार मंडीयाँ है। यहाँ मालवा क्षेत्र के किसान अपने उत्पादन को बेचने और औद्योगिक वर्ग से मिलने आते है। यहाँ के आस पास की ज़मीन कृषिउत्पादन के लिये उत्तम है और इंदौर मध्यभारत का गेहूँ, मूंगफली और सोयाबीन का प्रमुख उत्पादक है। यह शहर, आसपास के शहरों के लिए प्रमुख खरीददारी का केन्द्र भी है। इन्दौर अपने नमकीनों व खानपान के लिये भी जाना जाता है। प्र.म. नरेंद्र मोदी के स्मार्ट सिटी मिशन में 100 भारतीय शहरों को चयनित किया गया है जिनमें से इंदौर भी एक स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किया जाएगा। स्मार्ट सिटी मिशन के पहले चरण के अंतर्गत बीस शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किया जायेगा और इंदौर भी इस प्रथम चरण का हिस्सा है। स्वच्छ सर्वेक्षण 2017 के परिणामों के अनुसार इन्दौर भारत का सबसे स्वच्छ नगर है। उज्जैन पर विजय पाने की राह में, राजा इंद्र सिंह काह्न नदी और विकृत नाम खान) के निकट एक शिविर रखी और वे इस जगह की प्राकृतिक हरियाली से बहुत प्रभावित हुए। इस प्रकार वह नदियों काह्न और सरस्वती के संगम की जगह पर एक शिवलिंग रखी और इंद्रेश्वर मंदिर का निर्माण प्रारंभ किया। साथ ही इंद्रपुर की स्थापना की गई। कई वर्षों बाद जब पेशवा बाजीराव1 द्वारा, मराठा शासन के तहत, इसे मराठा सूबेदार मल्हार राव होलकर को दिया गया था तब से इसका नाम इंदूर पड़ा। ब्रिटिश राज के दौरान यह नाम अपने वर्तमान रूप इंदौर में बदल गया था। 1715 में स्थानीय ज़मींदारों ने इन्दौर को नर्मदा नदी घाटी मार्ग पर व्यापार केन्द्र के रूप में बसाया था। पहले इन्दौर का नाम इन्दुर था लेकिन 1731 ई. में बने इंद्रेश्वर मंदिर के कारण यहाँ का नाम इन्दौर पड़ा। यह मराठा होल्कर की पूर्व इन्दौर रियासत की राजधानी बन गया। मध्य प्रदेश में स्थित प्रसिद्ध शहर इन्दौर को अठारहवीं सदी के मध्य में मल्हारराव होल्कर द्धारा स्थापित किया गया था। होल्कर ने दूसरे पेशवा बाजीराव प्रथम की ओर से अनेक लड़ाइयाँ जीती थीं। 1733 में बाजीराव पेशवा ने इन्दौर को मल्हारराव होल्कर को पुरस्कार के रूप में दिया था। उसने मालवा के दक्षिणपश्चिम भाग में अधिपत्य कर होल्कर राजवंश की नींव रखी और इन्दौर को अपनी राजधानी बनाया। उसकी मृत्यु के पश्चात दो अयोग्य शासक गद्दी पर बैठे, किंतु तीसरी शासिका अहिल्या बाई ने शासन कार्य बड़ी सफलता के साथ निष्पादित किया। जनवरी 1818 में इन्दौर ब्रिटिश शासन के अधीन हो गया। यह ब्रिटिश मध्य भारत संस्था का मुख्यालय एवं मध्य भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी था। इन्दौर में होल्कर नरेशों के प्रासाद उल्लेखनीय हैं। शहर में बढ़ रही व्यावसायिक गतिविधियों के कारण स्थानीय परगना मुख्यालय कम्पेल से इंदौर के लिए 1720 में स्थानांतरित कर दिया गया। 18 मई 1724 को, निज़ाम ने बाजीराव प्रथम द्वारा क्षेत्र से चौथ इकट्ठा करने के लिए मंज़ूरी दे दी। 1733 में, पेशवा ने मालवा का पूर्ण नियंत्रण ग्रहण किया, और कमांडर मल्हारराव होलकर प्रान्त के सूबेदार के रूप में नियुक्त किया। नंदलाल चौधरी ने मराठों का आधिपत्य स्वीकार कर लिया। मराठा शासन के दौरान,गुर्जर चौधरीयों को मंडलोई के रूप में जाना जाने लगा। होलकरों ने नंदलाल के परिवार को राव राजा की विभूति प्रदान की। साथ ही साथ होलकर शासकों दशहरा पर होलकर परिवार से पहले शमी पूजन करने की अनुमति भी दे दी। 29 जुलाई 1732, बाजीराव पेशवा प्रथम ने होलकर राज्य में 28 और आधा परगना में विलय कर दी जिससे मल्हारराव होलकर ने होलकर राजवंश की स्थापना की।उनकी पुत्रवधू देवी अहिल्याबाई होलकर ने 1767 में राज्य की नई राजधानी महेश्वर में स्थापित की। लेकिन इंदौर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और सैन्य केंद्र बना रहा। 1818 में, तीसरे एंग्लोमराठा युद्ध के दौरान, महिदपुर की लड़ाई में होलकर, ब्रिटिश से हार गए थे, जिसके परिणामस्वरूप राजधानी फिर से महेश्वर से इंदौर स्थानांतरित हो गयी। इंदौर में ब्रिटिश निवास स्थापित किया गया, लेकिन मुख्य रूप से दीवान तात्या जोग के प्रयासों के कारण होलकरों ने इन्दौर रियासत पर रियासत के रूप में शासन करना जारी रखा। उस समय, इंदौर में ब्रिटिश मध्य भारत एजेंसी का मुख्यालय स्थापित किया गया। उज्जैन मूल रूप से मालवा का वाणिज्यिक केंद्र था। लेकिन जॉन मैल्कम जैसे ब्रिटिश प्रबंधन अधिकारियों ने इंदौर को उज्जैन के लिए एक विकल्प के रूप में बढ़ावा देने का फैसला किया क्योंकि उज्जैन के व्यापारियों ने ब्रिटिश विरोधी तत्वों का समर्थन किया था। 1906 में शहर में बिजली की आपूर्ति शुरू की गई था, 1909 में फायर ब्रिगेड स्थापित किया गया था और 1918 में, शहर के पहले मास्टरयोजना का उल्लेख वास्तुकार और नगर योजनाकार, पैट्रिक गेडडेज़ द्वारा किया गया था। की अवधि के दौरान महाराजा तुकोजी राव होलकर द्वितीय के द्वारा इंदौर के औद्योगिक व नियोजित विकास के लिए प्रयास किए गए थे। 1875 में रेलवे की शुरूआत के साथ, इंदौर में व्यापार महाराजा तुकोजीराव होलकर तृतीय, यशवंतराव होलकर द्वितीय, महाराजा शिवाजी राव होलकर के शासनकाल तक तरक्की करता रहा। 1947 में भारत की आजादी के बाद, कुमावत राज्य ने, अन्य पड़ोसी रियासतों के साथ साथ, भारतीय संघ को स्वीकार कर लिया। 1948 में मध्य भारत के गठन के साथ इंदौर, राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी बन गया। परन्तु 1 नवंबर, 1956 को मध्यप्रदेश राज्य के गठन के साथ, राज्य की राजधानी भोपाल स्थानांतरित कर दी गयी थी। इंदौर, लगभग 21 लाख निवासियों के एक शहर आज, एक पारंपरिक वाणिज्यिक शहरी केंद्र से राज्य की एक आधुनिक गतिशील वाणिज्यिक राजधानी में परिवर्तित हो गया है। इंदौर मालवा पठार के दक्षिणी किनारे पर मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है। क्षिप्रा नदी की सहायक नदियों, सरस्वती और कान नदियों, पर स्थित हैं और समुद्र तल से औसत ऊंचाई के 553.00 मीटर है। यह एक ऊंचा मैदान है जिसके दक्षिण पर विंध्य रेंज है। यशवंत झील के अलावा, वहाँ कई झील जैसे की सिरपुर टैंक, बिलावली तालाब, सुखनिवास झील और पिपलियापाला तालाब सहित शहर को पानी की आपूर्ति कर रहे हैं। शहर क्षेत्र में मिट्टी मुख्य रूप से काली है। उपनगरों में, मिट्टी काफी हद तक लाल और काले रंग की है। क्षेत्र के अंतर्निहित चट्टान काली बेसाल्ट से बनी है, और उनके अम्लीय और बुनियादी वेरिएंट क्रीटेशयस युग तक जाते हैं। इस क्षेत्र को भारत के भूकंपीय जोन तृतीय क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसके अनुसार रिक्टर पैमाने पर 6.5 व ऊपर की तीव्रता के एक भूकंप उम्मीद की जा सकती है। पश्चिम में, पीथमपुर और बेटमा जैसे शहरों के साथ इंदौर ज़िले की सीमा धार के प्रशासनिक जिले के साथ लगी हुई हैं और साथ ही उत्तरपश्चिम में हातोद व देपालपुर उत्तर की ओर सांवेर की उज्जैन जिले के साथ पूर्वोत्तर में माँगलिया सड़क की देवास ज़िले के साथ दक्षिण पूर्व में सिमरोल दक्षिण में महू, और मानपुर की सीमा खंडवा जिले के साथ।इन शहरों को मिलाकर इंदौर एक सन्निहित निर्मित शहरी क्षेत्र इंदौर महानगर क्षेत्र कहलाता है। जो की एक अनौपचारिक प्रशासनिक जिला माना जाता है। इंदौर में बार्डरलाइन नम उपोष्णकटिबंधीय जलवायु है। तीन अलग मौसम होते है: गर्मी, वर्षा और शीत ऋतु। ग्रीष्मकाल मार्च के मध्य में शुरू होता हैं और अप्रैल और मई में बेहद गर्म हो सकता है। दिन का तापमान स्पर्श 48 से. कर सकते हैं एक से अधिक अवसर पर। लेकिन नमी बहुत कम है औसत गर्मियों में तापमान के रूप में 40 से. परिवर्तित रूप में उच्च जा सकते हैं। शीत ऋतु मध्यम और आमतौर पर सूखी होती है। 2 से. 6 से. परिवर्तित रूप में कम जा सकते हैं। बारिश से दक्षिणपश्चिम मानसून के कारण हैं। ठेठ मानसून के मौसम, मध्य सितंबर तक 15 जून से चला जाता है 3235 & nbsp योगदान वार्षिक बारिश के इंच। बारिश का 95% मानसून के मौसम के दौरान होते हैं। इंदौर में जुलाईसितम्बर में दक्षिणपूर्व मानसून के चलते 185 से 360 मिलीमीटर की मध्यम वर्षा होती है। इंदौर ज़िले में धर्म हिन्दू इस्लाम जैन सिक्ख ईसाई बौद्ध अन्य इंदौर मध्य प्रदेश में सबसे अधिक आबादी वाला शहर है। मध्य भारत में इंदौर सबसे बड़ा नगर है। भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार, इंदौर शहर की जनसंख्या 19,64,086 है। इंदौर महानगर की आबादी 21,67,447 है। 2010 में, शहर वर्ग मील, यह सबसे घनी मध्यप्रदेश में 1,00,000 से अधिक आबादी वाले सभी नगर पालिकाओं की आबादी प्रतिपादन। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, इंदौर शहर 87.38% की एक औसत साक्षरता दर 74% के राष्ट्रीय औसत से अधिक है। पुरुष साक्षरता 91.84% थी, और महिला साक्षरता 82.55% था। इंदौर की जिला प्रशासन। 2009 इंदौर में लिया, जनसंख्या का 12.72% उम्र के 6 वर्ष से कम है। जनसंख्या की औसत वार्षिक वृद्धि दर 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार।हिन्दी इंदौर शहर की आधिकारिक भाषा है, और जनसंख्या के बहुमत द्वारा बोली जाती हैं जैसे बुंदेली, मालवी और छत्तीसगढ़ी भी बोली जाती हैं। वक्ताओं में से एक पर्याप्त संख्या के साथ अन्य भाषाएँ जैसे बंगाली, उर्दू, मराठी शामिल हैं, सिंधी और गुजराती। 2012 के आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तानी हिन्दू प्रवासी शहर में रहते हैं इंदौर के सामान एवम् सेवाओं के लिए एक वाणिज्यिक केंद्र है। 2011 में इंदौर का सकल घरेलू उत्पाद $14,000,000,000 था शहर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में कई देशों से निवेशकों को आकर्षित करता है। इंदौर के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र में निम्न सम्मिलित हैं : पीथमपुर के आसपास के क्षेत्रों में अकेले 1500 बड़े, मध्यम और लघु औद्योगिक सेटअप हैं।, इंदौर के विशेष आर्थिक क्षेत्र ,, सांवेर औद्योगिक बेल्ट, लक्ष्मीबाई नगर औद्योगिक क्षेत्र, राऊ, भागीरथपुरा काली बिल्लोद, , रणमल बिल्लोद, शिवाजी नगर भिंडिको, हातोद, क्रिस्टल आईटी पार्क, आईटी पार्क परदेशीपुरा ), इलेक्ट्रॉनिक कॉम्प्लेक्स, व्यक्तिगत टीसीएस SEZ, इंफोसिस SEZ आदि।, डायमंड पार्क, रत्न और आभूषण पार्क, फूड पार्क, परिधान पार्क, नमकीन क्लस्टर और फार्मा क्लस्टर। पीथमपुर भी भारत के डेट्रॉइट के रूप में जाना जाता है पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र विभिन्न दवा उत्पादन कम्पनियाँ जैसे इप्का लैबोरेटरीज़, सिप्ला, ल्यूपिन लिमिटेड, ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स, यूनिकेम लेबोरेटरीज और बड़ी ऑटो कंपनियों इनमें से प्रमुख फोर्स मोटर्स, वोल्वो आयशर वाणिज्यिक, महिंद्रा वाहन लिमिटेड उत्पादन कर रहे हैं मध्य प्रदेश स्टॉक एक्सचेंज मूल रूप से 1919 में स्थापना के बाद से मध्य भारत का एकमात्र शेयर बाज़ार और भारत में तीसरा सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज है जो कि इंदौर में स्थित है।कुछ ही दिनों पूर्व नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने शहर में एक निवेशक सेवा केंद्र की स्थापना की। औद्योगिक रोजगार ने इंदौर के आर्थिक भूगोल को प्रभावित किया। 1956 में मध्यप्रदेश में विलय के बाद, इंदौर ने उच्च स्तर के उपनगरीय विस्तार और अधिकाधिक कार स्वामित्व का अनुभव किया। कार्यबल विकेन्द्रीकरण और परिवहन सुधार उपनगरों में छोटे पैमाने पर निर्माण की स्थापना के लिए यह संभव बना दिया। कई कंपनियों अपेक्षाकृत सस्ते भूमि का फायदा उठाते हुए विशाल, उपनगरीय स्थानों जहां पार्किंग, उपयोग और यातायात भीड़ को कम से कम थे में एक मंजिला संयंत्रों की निर्माण की। कपड़ा उत्पादन और व्यापार अर्थव्यवस्था में बहुत समय से योगदान कर रहें हैं, रियल एस्टेट कंपनियों डीएलएफ लिमिटेड, सनसिटी, ज़ी समूह, ओमेक्स, सहारा, पार्श्वनाथ, अंसल एपीआई, एम्मार एमजीएफ ने पहले से ही आवासीय परियोजनाओं इंदौर में शुरू किया है। यह परियोजनाओं इंदौर बाईपास पर आम तौर पर बनाई जा रहीं हैं। यह सड़क कासा ग्रीन्स, सिल्वर स्प्रिंग, कालिंदी, और मिलान हाइट्स सहित कई स्थानीय और क्षेत्रीय रियल एस्टेट कंपनियों की परियोजनाओं का एक फेवरेट स्थान है। इंफोसिस सुपर कॉरिडोर पर एक चरण में 100 करोड़ रुपये के निवेश से इंदौर में एक नया विकास केंद्र स्थापित कर रही है इंफोसिस 130 एकड़ क्षेत्र में इंदौर में अपनी नई कैम्पस खोला है जिससे लगभग 13,000 लोगों को रोजगार देने का वायदा किया है। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज इंदौर में अपने परिसर का निर्माण कार्य शुरू कर दिया है, सरकार द्वारा भूमि का आवंटन किया गया है कोल्लाबेरा ने भी इंदौर में परिसरों खोलने की योजना की घोषणा की। इन के अलावा, वहाँ कई छोटे और मध्यम आकार सॉफ्टवेयर इंदौर में विकास कंपनियाँ हैं। राजबाड़ा, शिवविलास पैलेस, लालबाग, मल्हार आश्रम, मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, गोपाल मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर, बांकेबिहारी मंदिर, जनरल लाइब्रेरी, आड़ा बाजार, बिजासन माता मन्दिर, अन्नपूर्णा देवी मन्दिर, यशवंत निवास, जमींदार बाडा, हरसिद्धी मंदिर, पंढ़रीनाथ, टाउन हॉल, शिवाजी राव स्कूल, अहिल्याश्रम, एसपी ऑफिस, छत्रीबाग, ओल्ड मेडिकल कॉलेज, आर्ट स्कूल, होलकर कॉलेज, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, एमवाय अस्पताल, माणिक बाग, सुखनिवास, फूटीकोठी, दुर्गादेवी मंदिर, इमामबाडा, गणेश मंडल, बक्षीबाग, खजराना मंदिर,कांच मंदिर ,मयुर हॉस्पिटलश्री ऋद्धि सिद्धि चिन्तामन गणेश मंदिर, कुम्हार मोहल्ला, जूनी इंदौर ,आदि इन्दौर के प्रमुख धरोहरें हैं। यह नगर के बीचोबीच स्थित है। 1984 के दंगों के समय इसमें आग लग जाने से इसको बहुत क्षति पहुँची थी। उसके बाद इसको कुछ सीमा तक पुनर्निर्मित करने का प्रयत्न किया गया। यह एक जैन मन्दिर है जिसमें दीवारों पर अन्दर की तरफ कांच से सजाया गया है। इन्दौर में एक नदी भी बहती है जिसका पुराना नाम कृष्णा या कान्ह नदी है। खान नदी, कान्ह का अपभ्रंश है। इसलिए इसका नाम बदलकर काह्न रख दिया गया है।किन्तु पानी की कमी एवं जलमल निकासी को इस नदी में छोड़ने के कारण यह अब एक नाले में बदल चुकी है। इसी के किनारे छतरियां हैं। यह स्थान राजबाड़े से लगभग 100 मीटर की दूरी पर है। खजराना मंदिर भगवान गणेश का एक सुन्दर मंदिर है। ये मंदिर विजय नगर से पास है। ये मंदिर अहिल्या बाई होलकर ने दक्षिण शैली में बनवाया था। यह मंदिर इन्दौरवासियों की आस्था का केंद्र है। यहाँ पर भगवान गणेश के साथ माता दुर्गा, लक्ष्मी, साईबाबा आदि भगवान के मंदिर है। इंदौर का विमानक्षेत्र इसे भारत के प्रमुख शहरो से हवाई मार्ग से जोड़ता है।सार्वजनिक यातायात की दृष्टि से सन् 2005 तक इन्दौर बहुत पिछड़ा था किन्तु उसके बाद इन्दौर नगर निगम ने नगर बस सेवा आरम्भ की जो भारत में सर्वोत्तम कही जा सकती है। रेल यातायात की दृष्टि से इन्दौर मुख्य रेल मार्ग पर स्थित नहीं है। तथापि यहां से दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, हैदराबाद, पटना, देहरादून तथा जम्मूतवी के लिये सीधी गाडियाँ उपलब्ध हैं। इन्दौर से भोपाल और खण्डवा के लिये बहुत अच्छी बस सेवा उपलब्ध है। इंदौर जंक्शन 50 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व के साथ एक ए1 ग्रेड रेलवे स्टेशन है। सिटी पश्चिम रेलवे की रतलाम रेलवे डिवीजन के अंतर्गत आता है। इंदौर सीधे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, पुणे, लखनऊ, कोच्चि, जयपुर, अहमदाबाद आदि जैसे प्रमुख शहरों से जुड़ा है। मीटर गेज ट्रेन का परिचालन फ़रवरी 2015 से बंद कर दिया गया। इंदौरमहू अनुभाग अब ब्रॉड गेज करने के लिए उन्नत किया जा रहा है। इंदौर देवास उज्जैन विद्युतीकरण जून 2012 में पूरा कर लिया और रतलाम इंदौर ब्रॉडगेज रूपांतरण सितंबर 2014 में पूरा कर लिया गया प्लैटफॉर्म क्र. 1 को ब्रॉड गेज करने के लिए उन्नत किया जा रहा है दो नए प्लेटफार्मों के साथ आधुनिक स्टेशन परिसर राजकुमार रेलवे ओवर ब्रिज के करीब विकसित किया जा रहा है मुख्य जंक्शन को छोड़कर, इंदौर महानगरीय क्षेत्र में 7 अन्य रेलवे स्टेशनों भी हैं जो है: इंदौर में एक अच्छी तरह से विकसित परिवहन प्रणाली है। अटल इंदौर सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड, एक पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप योजना बसों और रेडियो टैक्सियां शहर में चल रही है। नामित बसों सिटी बस 36 मार्गों पर, संचालित करीब 170 बस स्टॉप के साथ। बसें कलरकोडेड उनके मार्ग के अनुसार कर रहे हैं। उनमें से कई गैरएसी हैं और जीपीएस सिस्टम और दुर्घटना से बचें से लैस हैं। इंदौर बीआरटीएस एक बस रैपिड ट्रांजिट प्रणाली है जिसका 10 मई 2013 से परिचालन शुरू किया गया है। यह वातानुकूलित बसों के साथ चलती हैं। इन बसों में भी जीपीएस और आईवीआर जैसी सेवाओं जैसे एलईडी प्रदर्शन है।यह निरंजनपुर और राजीव गांधी चौराहा के बीच समर्पित गलियारे में चलाई जाती ही। जिसके आगे राऊ को राजीव गांधी चौराहा से सामान्य सड़क गलियारे से इस सेवा के लिए आगे महू जो की बिना एक समर्पित गलियारे के कार्य करेंगे। शहर के प्रमुख बसअड्डे हैं : सफ़ेद बाघ, हिमालयी भालू और सफेद मोर, इसकी प्रजातियों के लिए जाना जाता है, इंदौर चिड़ियाघर भी प्रजनन, संरक्षण और जानवरों, पौधों और उनके निवास की प्रदर्शनी के लिए एक केंद्र है। सिनेमा इंदौर में और साथ ही साथ पूरे देश में मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय माध्यम है। शहर में कई सिनेमाघर हैं जैसे की इंदौर में कई मॉल, जो दर्शकों के लिए विभिन्न प्रकार और आराम प्रदान करने के लिए मेज़बान है। ट्रेजर आईलैंड, मंगल सिटी मॉल, इंदौर सेंट्रल मॉल, C21 मॉल, मल्हार मेगा मॉल, ऑर्बिट मॉल बहुत अच्छी तरह से जाना जाता है।2011 में, वॉलमार्ट की एक शाखा, नामित बेस्ट प्राइस भी दुकानदारों छूट माल खरीदने के लिए खोला गया। इंदौर मध्य भारत में सबसे अधिक मॉल होने का रिकार्ड बना रही है 2011 के बाद से विकसित किया गया है इंदौर महाविद्यालयो और विद्यालयो की श्रृंखला के लिए जाना जाता है। इंदौर में एक बड़े छात्र आबादी है और यह मध्य भारत में एक बड़ा शिक्षा का केंद्र है, यह भी मध्य भारत के एजुकेशन हब है इंदौर में अधिकांश प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त है। हालांकि, स्कूलों की संख्या में काफी कुछ आईसीएसई बोर्ड, एनआईओएस बोर्ड, CBSEi बोर्ड और राज्य स्तर सांसद के साथ संबद्ध हैं। डेली कॉलेज, 1882 में स्थापना की, दुनिया में सबसे पुराना सहशिक्षा बोर्डिंग स्कूलो में से एक है, जो मराठा की केन्द्रीय भारतीय रियासतों के शासकों को शिक्षित करने के लिए स्थापित किया गया था। होलकर विज्ञान महाविद्यालय, आधिकारिक तौर पर सरकार के मॉडल स्वायत्त होलकर साइंस कॉलेज के रूप में जाना जाता है। महाविद्यालय की स्थापना 10 जून, 1891 को शिवाजी राव होलकर द्वारा की गई थी। इंदौर भारत में एकमात्र शहर है जहाँ भारतीय प्रबन्धन संस्थान व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दोनों स्थापित है। सोशल वर्क इंदौर स्कूल सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में एक स्कूल है जो दोनों शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में कार्य करता है। वर्ष 1951 से पेशेवर सामाजिक कार्यकर्ताओ को प्रशिक्षण प्रदान कर रहा है। देवी अहिल्या विश्वविद्यालयय, जो डी ए वी वी के रूप में जाना कई अपने तत्वावधान ऑपरेटिंग कॉलेजों के साथ इंदौर में एक विश्वविद्यालय है। यह शहर के भीतर दो परिसरों, तक्षशिला परिसर में एक और रवींद्र नाथ टैगोर रोड, इंदौर में है। विश्वविद्यालय सहित कई विभागों चलाता इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, संगणक विज्ञान एवं सूचना प्रौद्योगिकी का विद्यालय, कानून के स्कूल, इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, शैक्षिक मल्टीमीडिया रिसर्च सेंटर, व्यावसायिक अध्ययन के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट, फार्मेसी के स्कूल, ऊर्जा और पर्यावरण अध्ययन के स्कूल एम टेक के लिए प्राइमर स्कूलों में से एक।, पत्रकारिता के स्कूल और फ्यूचर्स अध्ययन और योजना है, जो दो एम टेक चलाता स्कूल। प्रौद्योगिकी प्रबंधन और सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग, एमबीए, और एमएससी में विशेषज्ञता के साथ पाठ्यक्रम। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार में। परिसर में कई अन्य अनुसंधान और शिक्षा विभाग, हॉस्टल, खेल के मैदानों और कैफ़े के घरों। महात्मा गांधी स्मारक चिकित्सा महाविद्यालय एक और पुरानी संस्था है, और पूर्व में किंग एडवर्ड मेडिकल कॉलेज के रूप में जाना जाता था श्री गोविन्दराम सेकसरिया प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान को 1952 में स्थापित किया गया। डेली कालेज भा.प्र.स. इ.प.स. अकादमी भा.प्रौ.स. म.गा.स.चि.म. श्री गो.से.त.प्र.स. वहाँ के बारे में 20 हिन्दी दैनिक समाचार पत्रों, 7 अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्रों, 24 साप्ताहिक और मासिक, 4 चतुर्मासिक, 2 द्विमासिक पत्रिका, एक वार्षिक कागज, और एक मासिक हिंदी भाषा शैक्षिक कैम्पस डायरी नाम अखबार शहर से प्रकाशित हो रहे हैं। भारत की पंप उद्योग पर केवल पत्रिका पंप्स भारत और वाल्व पत्रिका वाल्व भारत यहां से प्रकाशित किया जाता है प्रमुख हिंदी अखबारों और राष्ट्रीय मीडिया घरानों इंदौर में अपने क्षेत्रीय कार्यालय है। रेडियो उद्योग निजी और सरकारी स्वामित्व वाली एफएम चैनलों के शुरू होने के साथ विस्तार किया गया है।निम्न एफ़एम रेडियो चैनल है जो कि शहर में प्रसारण कर रहें हैं। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा चलाए डिजिटलीकरण के दूसरे चरण के तहत 2013 में केबल टीवी का डिजिटलीकरण पूर्ण कर दिया था। सिटी केबल सीटी केबल एक डिजिटल सिटी के 70% कवरेज के साथ केबल वितरण कंपनी है। मध्य प्रदेश क्षेत्र का प्रधान कार्यालय इंदौर है और सिटी केबल 7 स्थानीय चैनलों भी चलाता है। इंदौर को प्रकाशीय तन्तु तारों के एक नेटवर्क के द्वारा कवर किया जाता है।यहाँ लैंडलाइन के तीन ऑपरेटर हैं बीएसएनएल, रिलायंस और एयरटेल।वहीं आठ मोबाइल फोन कंपनियों, जिसमें जीएसएम में निम्न खिलाड़ी में शामिल हैं जबकि सीडीएमए सेवाओं में बीएसएनएल और रिलायंस हैं।स्टूडियो और ट्रांसमिशन के साथ दूरदर्शन केन्द्र इंदौर जुलाई 2000 से शुरू कर दिया गया। इंदौर में लगभग 15 हिंदी समाचार पोर्टल, 5 अंग्रेजी समाचार पोर्टल हैं khabarhulchal.com, localindore.com, dainikbhaskar.com, और kninews.com सहित हैं। विभिन्न स्थानों पर्यटकों और इंदौर के नागरिकों सप्ताहांत और अवसर या छुट्टियों के लिए यात्रा करने के लिए की तरह है जो कर रहे हैं। महेश्वर महेश्वर मध्य प्रदेश राज्य के खरगोन जिले में एक शहर है यह 6 जनवरी 1818 तक मराठा होलकर एस के शासनकाल, जब राजधानी मल्हार राव होलकर तृतीय द्वारा इंदौर में स्थानांतरित कर दिया गया था के दौरान मालवा की राजधानी थी।महेश्वर 5 वीं सदी के बाद से हथकरघा बुनाई का एक केंद्र रहा है। महेश्वर भारत के हाथ करघा कपड़े परंपराओं में से एक का घर है। यह मंदिरों, घाटों, किले और महलों में जाना जाता है। इंदौर से 90 किमी की दूरी पर है। मांडवगढ़ या मांडू माण्डू है धार जिले की वर्तमान दिन माण्डव क्षेत्र में एक बर्बाद कर दिया किलाशहर है।इसके बारे में बहुत सी बातें कही जाती है। इन्दौर से 99 किमी दूर और अपने किलों, महलों और प्राकृतिक परिदृश्य के लिए जाना जाता है। पातालपानी झरना यह इंदौर से 35 किमी दूर है इंदौर के उपनगर महू की और सीतला माता झरना यह पर्यटकों के आकर्षण के मानसून सत्र में अपने झरने के लिए जाना जाता है। टिनचा झरना टिनचा झरना मानसून के मौसम का एक झरना है। बाज़ बहादुर महल, मांडू जामी मस्जिद, मांडू जहाज महल, मांडू पातालपानी झरना टिनचा झरना महेश्वर के अहिल्या किले से नर्मदा दर्शन क्रिकेट शहर में सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक है। इंदौर मध्य प्रदेश क्रिकेट संघ, मध्य प्रदेश टेबल टेनिस एसोसिएशन के लिए घर है और शहर के एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट ग्राउंड, होलकर क्रिकेट स्टेडियम है। राज्य में पहली बार क्रिकेट वनडे मैच जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, इंदौर में खेला गया था। क्रिकेट के अलावा, इंदौर कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए एक केंद्र है। शहर ने दक्षिण एशियाई चैम्पियनशिप की मेजबानी की और बिलियर्ड तीन दिवसीय राष्ट्रीय ट्रायथलन चैंपियनशिप है, जिसमें लगभग 450 खिलाड़ियों और 250 खेल के 23 राज्यों से संबंधित अधिकारियों को कार्रवाई में भाग लेने के लिए एक मेजबान है। इंदौर भी बास्केटबॉल के लिए एक पारंपरिक केंद्र है, और एक वर्ग के इनडोर बास्केटबाल स्टेडियम के साथ भारत का पहला नेशनल बास्केटबॉल एकेडमी का घर है। इंदौर में सफलतापूर्वक विभिन्न नेशनल बास्केटबॉल चैंपियनशिप का आयोजन किया गया है। निम्न प्रमुख खेल स्टेडियम में शामिल हैं: इंदौर में दो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स दर्ज है।दुनिया में सबसे बड़ी चाय पार्टी के लिए और दुनिया के सबसे बड़े बर्गर बनाने के लिए शामिल किया गया था। इंदौर नमकीन, पोहा और जलेबी, चाट, कचोरी और समोसे, विभिन्न रेस्तरां में विभिन्न प्रकार के व्यंजनों, और मराठा, मुगलई, बंगाली, राजस्थानी, महाद्वीपीय और हलवाई की दुकान मिठाई, की एक किस्म के साथ ही इस तरह के दल के रूप में स्थानीय व्यंजनों है Bafla। सर्राफा बाजार में भारतीय फास्ट फूड की एक श्रृंखला उपलब्ध है। छप्पन दुकान इंदौर, एक प्रमुख खाद्य जंक्शन है। आम तौर पर, नमकीन इंदौर में प्रमुखता से परोसा जाता है। सैव परमल यहाँ का प्रसिद नास्ता है। जो की मालवा का नास्ता माना जाता है। इंदौर में जीवन की दोपहर का भोजन जो सदा ही लोकप्रिय बेसन की तैयारी भी शामिल है के द्वारा पीछा के साथ गरम गरम पोहा और जलेबी चाय का चुस्कियों के साथ जल्दी शुरू होता है। समोसा, पैटीज़, बेक्ड समोसा, भेल पुरी, पानी पुरी, बाद में दिन में एक बड़ी आसानी से खमण, आलू कचौड़ी, दाल कचौड़ी आदि कचौरी की तरह नाश्ता मिल सकता है मठरी, साबूदाना खिचड़ी आदि मिठाई की कई दुकानों इंदौर में अच्छा व्यवसाय मिली है। गजक, गुलाब जामुन, गराड़ू भुट्टा का कीस रबड़ी, गर्म उबला हुआ दूध, आलू टिकिया, गाजर का हलवा, मूंग, आइसक्रीम आदि औरपान। विशिष्टताएँ: मिठाई: मूंग का हलवा, गाजर का हलवा, राबड़ी, मालपुए, फालूदा कुल्फी, गुलाब जामुन, रासमलाई, रास गुल्ला। नमकीन: अपने सभी किस्मों के मिश्रण, धनियाचिवड़ा, दल मोठ, पापड़ी, गाठिया, खमण, कचौरीसमोसा, पैटीज़, गराड़ू, आलू टिकिया, पानीपुरी, भेलपुरी, साबूदाना खिचड़ी, दही के साथ सेंव वड़ा, पकोड़ा, भुट्टे का कीस व पोहा। शीतल पेय: शिकंजी, लस्सी, ठंडा दूध, मलाई और सूखे मेवे केशर, जलजीरा, निम्बूशिकंजी, फलों का रस, कुल्फ़ी सोडा, साथ में गर्म उबला हुआ दूध। मैकडोनल्ड, डोमिनोज़, पिज्जा हट, केएफसी, सबवे, बरिस्ता लवाज़ा और कैफे कॉफी डे तरह हाल ही में कई राष्ट्रीय कंपनियों इंदौर में अपनी शाखाएं खोल दिया है।
कुंज रतोडा, अल्मोडा तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
ऐन्टिमोनी एक रासायनिक तत्त्व है। ऐंटीमनी के 3 संयोगी Sb तथा 5 संयोजी Sb यौगिक ज्ञात है। ऐंटीमनी आक्साइड श्वेत चूर्ण जो जल में विलेय है। यह उभयधर्मी है।टार्टर एमेटिक बनाने तथा औषधि के रूप में प्रयुक्त. ऐंटीमनी आक्साइड पीत ठोस जो जल में अविलेय होता है। इसे ऐंटीमनीपेंटाक्लोराइड के जल अपघटन द्वारा या ऐंटीमनी को नाइट्रिक अम्ल के साथ गर्मकरकेप्राप्त करते हैं। यह उत्तम आक्सीकारक है और पोटैसियम आयोडाइड के अम्लीय विलयनमें से आयोडीन मुक्त करता है। SbCl52KI SbCl3 2KHCl I ऐंटीमनी क्लोराइड ऐंटीमनी ट्राइक्लोराइड श्वेत जलग्राही ठोस जोजल द्वारा अपघटित होकर आक्सीक्लोराइड बनाता है SbCl3 H2O3 SbOCl 2HHCl ऐंटीमनी क्लोराइड एंटीमनी पेंटाक्लोराइड. रंगहीन द्रव्य जिसे संलितट्राइक्लोराइड के साथ क्लोरीन की अभिक्रिया कराकर बनाया जाता है। यह प्रबलक्लोरीनीकारक है। ऐंटीमनी पोटैसियम टार्टरेट या टार्टर एमेटिक या पोटैसियम ऐंटीमोनिल टार्टरेट श्वेत विषैला चूर्ण जिसका उपयोग एमेटिक के रूप में तथारंगबन्धक के रूप में होता है। ऐंटीमनी सल्फाइड ऐंटीमनी ट्राइसल्फाइड, या स्टिब्नाइट काला यालाल अविलेय क्रिस्टलीय ठोस, जिसका उपयोग दियासलाई बनाने में तथा आतिशवाजी मेंहोता है। ऐंटीमनी सल्फाइड, ऐंटीमनी पेंटासल्फाइड पीला अविलेय चूर्ण जिसकाउपयोग रंजक के रूप में तथा रबर के बल्वनीकरण में किया जाता है। ऐंटीमनी सल्फेट Sb2 श्वेत क्रिस्टलीय अविलेय ठोस जो विस्फोटक के रूप मेंप्रयुक्त होता है। ऐंटीमनी हाइड्राइड या स्टिबीन अस्थायी रंगहीन गैस जो सरलता से अपघटितहोकर ऐंटीमनी उत्पन्न करती है। Flame test Kovov antimon Kovov antimon
अयोध्या के राजा।
सिया, काफलीगैर तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है।
अमृता शेरगिल भारत के प्रसिद्ध चित्रकारों में से एक थीं। उनका जन्म बुडापेस्ट में हुआ था। कला, संगीत व अभिनय बचपन से ही उनके साथी बन गए। 20वीं सदी की इस प्रतिभावान कलाकार को भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण ने 1976 और 1979 में भारत के नौ सर्वश्रेष्ठ कलाकारों में शामिल किया है। सिख पिता उमराव सिंह शेरगिल और हंगरी मूल की यहूदी ओपेरा गायिका मां मेरी एंटोनी गोट्समन की यह संतान 8 वर्ष की आयु में पियानोवायलिन बजाने के साथसाथ कैनवस पर भी हाथ आजमाने लगी थी। 1921 में अमृता का परिवार समर हिल शिमला में आ बसा। बाद में अमृता की मां उन्हें लेकर इटली चली गई व फ्लोरेंस के सांता अनुंज़ियाता आर्ट स्कूल में उनका दाखिला करा दिया। पहले उन्होंने ग्रैंड चाऊमीअर में पीअरे वेलण्ट के और इकोल डेस बीउक्सआर्टस में ल्यूसियन सायमन के मार्गदर्शन में अभ्यास किया। सन 1934 के अंत में वह भारत लौटी। बाईस साल से भी कम उम्र में वह तकनीकी तौर पर चित्रकार बन चुकी थी और असामान्य प्रतिभाशाली कलाकार के लिए आवश्यक सारे गुण उनमें आ चुके थे। पूरी तरह भारतीय न होने के बावजूद वह भारतीय संस्कृति को जानने के लिए बड़ी उत्सुक थी। उनकी प्रारंभिक कलाकृतियों में पेरिस के कुछ कलाकारों का पाश्चात्य प्रभाव प्रभाव साफ झलकता है। जल्दी ही वे भारत लौटीं और अपनी मृत्यु तक भारतीय कला परंपरा की पुन: खोज में जुटी रहीं। उन्हें मुगल व पहाडी कला सहित अजंता की विश्वविख्यात कला ने भी प्रेरितप्रभावित किया। भले ही उनकी शिक्षा पेरिस में हुई पर अंततः उनकी तूलिका भारतीय रंग में ही रंगी गई। उनमें छिपी भारतीयता का जीवंत रंग हैं उनके चित्र। अमृता ने अपने हंगेरियन चचेरे भाई से 1938 में विवाह किया, फिर वे अपने पुश्तैनी घर गोरखपुर में आ बसीं। 1941 में अमृता अपने पति के साथ लाहौर चली गई, वहाँ उनकी पहली बडी एकल प्रदर्शनी होनी थी, किंतु एकाएक वह गंभीर रूप से बीमार पडीं और मात्र 28 वर्ष की आयु में शून्य में विलीन हो गई।
गान्धींवाद : अहिंसा और सत्याग्रह पर आधारित मोहनदास कर्मचन्द गान्धीं को जिसने राष्ट्र्पति महात्मा गान्धीं बना दिया।
उत्तरी साईप्रस तुर्की गणराज्य जिसे प्रायः उत्तरी साइप्रस कहते हैं, एक स्वयंघोषित राज्य है । वस्तुतः यह साईप्रस द्वीप का उत्तरपूर्वी भाग ही उतरी साइप्रस है। यह केवल तुर्की द्वारा मान्य राज्य है तथा शेष देशों द्वारा अब भी साइप्रस का ही भाग मान्य है। साँचा:Countries bordering the Mediterranean Seaसाँचा:Countries of Southwest Asia साँचा:Modern Turkic states Autonomous Republic of Abkhazia Autonomous Republic of Adjara FriuliVenezia Giulia Sardinia Sicily TrentinoAlto AdigeSdtirol Valle dAosta Adygea Bashkortostan Chechnya Chuvashia Dagestan Ingushetia KabardinoBalkaria Kalmykia KarachayCherkessia Karelia Komi Mari El Mordovia Nenets AO North OssetiaAlania Tatarstan Udmurtia land Islands, Finland Azores, Portugal Crimea, Ukraine Gagauzia, Moldova Kosovo and Metohija, Serbia Madeira, Portugal Mount Athos, Greece Nakhchivan, Azerbaijan1 Srpska, Bosnia & Herzegovina Vojvodina, Serbia Faroe Islands Greenland2 Akrotiri and Dhekelia Gibraltar Guernsey Isle of Man Jersey
कैंटोनी विकिपीडिया विकिपीडिया का कैंटोनी भाषा का संकरण है। यह 25 मार्च, 2006 में आरंभ किया गया था और इस पर लेखों की कुल संख्या 25 मई, 2009 तक 10,750 है। यह विकिपीडिया का तिरासीवां सबसे बड़ा संकरण है। अंग्रेज़ी सेबुआनो स्वीडिश जर्मन डच फ़्रान्सीसी रूसी इतालवी स्पेनी विनैरे पोलिश वियतनामी जापानी पुर्तगाली चीनी यूक्रेनी कैटलन फ़ारसी अरबी नॉर्वेजियाई सर्बोक्रोएशियाई फ़िनिश हंगेरियाई इण्डोनेशियाई कोरियाई चेक रोमानियाई सर्बियाई तुर्क मलय बास्क इस्परान्तो बुल्गारियाई डैनिश मिनांगकाबाउ आर्मिनियाई कज़ाख़ स्लोवाक हिब्रू लिथुआनियाई क्रोएशियाई चैचन अंग्रेज़ी स्लोवेनियाई एस्टोनीयाई बेलारूसी गैलिसियाई नॉर्वेजियाई यूनानी उज़्बैक लातिन साधारण अंग्रेज़ी वोलापूक हिन्दी अज़रबैजानी थाई जॉर्जियाई उर्दू मिन नान ऑकिटन मैसिडोनियाई तमिल मालागासे नेपाल भाषा वेल्श टाटर बोस्नियाई लातवियाई तागलोग पीड्मॉण्टी तेलुगू बेलारूसी ब्रिटन हैतियाई क्रियोल अल्बानियाई जावानी किर्घिज़ अस्तूरियाई लग्ज़म्बर्गी मराठी मराठी मलयालम आइसलैण्डी ताजिक बांग्ला अफ़्रीकान्स आयरिश पश्चिमी पंजाबी स्कॉट्स बश्किर चुवाश पश्चिमी फ़्रिसियाई लुम्बार्ट म्यान्मारी स्वाहिली योरूबा अरागोनियाई नेपाली ईडो गुजराती सिसलीयाई विष्णुप्रिया मणिपुरी निम्न सैक्सन कुर्द आलेमैनिक पंजाबी क्वैचुआ सुन्दा भाषा कन्नड़ बवारियाई सोरानी मंगोलियाई अन्तरभाषिक मिस्री अरबी नीपोलिटाई सामोगितियाई बुगिनी वॉलून स्कॉटिश गैलिक अम्हारिक यिद्दी बान्युमासन भाषा माज़न्दारिनी फ़ैरोई सिंहला नाहुआतल वैनितियाई याकूत लिम्बुर्गियाई ऑसिशियाई उड़िया पश्चिमी मारी संस्कृत ऊपरी सोर्बियाई टारण्टीनो कापमपंगन पूर्वी मारी दक्षिण अज़रबैजानी इलोकानो उत्तरी सामी माओरी बिकोल फ़िजी हिन्दी इमिलियाईरोमग्नोल गन हक्का ज़ाज़ाकी भोजपुरी गिलाकी डच निम्न सैक्सन पश्चिमी फ़्लैमिश सैक्सन रूसिन सैक्सन तिब्बती सैक्सन वोरो सैक्सन मिंग्रिलियाई कॉर्सिकाई सार्डिनियाई तुर्कमैनी वैस्पियाई उत्तरी लूरी मांक्स काशुबियाई ख्मेर कोमी सिन्धी क्राइमियाई टाटर ज़ीलैण्डी उत्तरी फ़्रिसियाई प्राचीन चीनी सिलीसियाई वू असमिया सैटरलैण्ड फ़्रिसियाई सोमाली उदमुर्त आयमार कॉर्निश मिन डॉङ्ग नॉर्मन रोमान्श कोमीपेर्मायक लाडिनो पाश्चात्य भाषा फ़्रियुलियाई माल्टी पिकार्ड पिकार्ड लिगुरियाई निम्न सोर्बियाई दिवेही लिंगला पैन्सिलवेनियाई जर्मन टोंगीयाई
निर्देशांक: 2753N 7804E 27.89N 78.06E 27.89 78.06 लगला फकीरा इगलास, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
विद्युत आवेशों के मौजूदगी और बहाव से जुड़े भौतिक परिघटनाओं के समुच्चय को विद्युत कहा जाता है। विद्युत से अनेक जानीमानी घटनाएं जुड़ी है जैसे कि तडित, स्थैतिक विद्युत, विद्युतचुम्बकीय प्रेरण, तथा विद्युत धारा। इसके अतिरिक्त, विद्युत के द्वारा ही वैद्युतचुम्बकीय तरंगो का सृजन एवं प्राप्ति सम्भव होता है? विद्युत के साथ चुम्बकत्व जुड़ी हुई घटना है। विद्युत आवेश वैद्युतचुम्बकीय क्षेत्र पैदा करते हैं। विद्युत क्षेत्र में रखे विद्युत आवेशों पर बल लगता है। समस्त विद्युत का आधार इलेक्ट्रॉन हैं। इलेक्ट्रानों के हस्तानान्तरण के कारण ही कोई वस्तु आवेशित होती है। आवेश की गति ही विद्युत धारा है। विद्युत के अनेक प्रभाव हैं जैसे चुम्बकीय क्षेत्र, ऊष्मा, रासायनिक प्रभाव आदि। जब विद्युत और चुम्बकत्व का एक साथ अध्ययन किया जाता है तो इसे विद्युत चुम्बकत्व कहते हैं। विद्युत को अनेकों प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है किन्तु सरल शब्दों में कहा जाये तो विद्युत आवेश की उपस्थिति तथा बहाव के परिणामस्वरूप उत्पन्न उस सामान्य अवस्था को विद्युत कहते हैं जिसमें अनेकों कार्यों को सम्पन्न करने की क्षमता होती है। विद्युत चल अथवा अचल इलेक्ट्रान या प्रोटान से सम्बद्ध एक भौतिक घटना है। किसी चालक में विद्युत आवेशों के बहाव से उत्पन्न उर्जा को विद्युत कहते हैं। ईसा से लगभग 600 वर्ष पूर्व यूनान निवासी थेलीज़ इस बात से परिचित थे कि कुछ वस्तुएँ रगड़ने के पश्चात हलकी वस्तुओं को आकर्षित करती हैं। इसका उल्लेख थीआफ्रैस्टस ने 321 ई.पू. में तथा प्लिनि ने सन् 70 में किया था। इस आकर्षण शक्ति का अध्ययन 16 वीं शताब्दी में विलियम गिलबर्ट द्वारा हुआ तथा उन्होंने इसे इलेक्ट्रिक कहा। आधुनिक शब्द इलेक्ट्रॉन का उपयेग यूनानी भाषा में अंबर के लिए किया जाता है। इलेक्ट्रिसिटी शब्द का उपयोग सन् 1650 में वाल्टर शार्ल्टन ने किया। इसी समय राबर्ट बायल ने पता लगाया कि आवेशित वस्तुएँ हल्की वस्तुओं को शून्य में भी आकर्षित करती हैं, अर्थांत् विद्युत के प्रभाव के लिए हवा का माध्यम होना आवश्यक नहीं है। सन् 1729 में स्टीफ़न ग्रे ने अपने प्रयोगों के आधार पर कहा कि यह आकर्षण शक्ति किसी वस्तु के एक भाग से दूसरे भाग को संचारित की जा सकती है। ऐसी वस्तुओं को देसाग्युलियर्स ने चालक कहा। सभी प्रकार की धातुएँ इस श्रेणी में आती हैं। वे वस्तुएँ जिनमें इस शक्ति को संचारित नहीं किया जा सकता, विद्युतरोधी कहलाती हैं। इस श्रेणी में अंबर, मोम, सूखी हवा, सूखा काँच, रबर, लाख इत्यादि हैं। वस्तुओं की रगड़ के कारण विद्युत दो प्रकार की होती है, घनात्मक एवं ऋणात्मक। पहले इनके क्रमश: काचाभ तथा रेजिनी नाम प्रचलित थे। सन् 1737 में डूफे ने बताया कि सजातीय आवेश एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं तथा विजातीय आकर्षित करते हैं। 1745 में क्लाइस्ट ने क्यूमिन में, मसेनब्रूक ने लाइडेन में, तथा विलियम वाटसन ने लंदन में कहा कि विद्युत का संचय भी किया जा सकता है, इनके प्रयोगों तथा विचारों ने प्रसिद्ध संचायक लीडेन जार को जन्म दिया। लगभग इसी समय विद्युत को पर्याप्त मात्रा में प्राप्त करने के प्रयत्न भी जारी थे तथा विभिन्न प्रकार के विद्युत यंत्रों का आविष्कार हुआ। विलिय वटसन का विचार था कि विद्युत एक प्रकार का प्रत्यास्थ तरल होती है जो प्रत्येक वस्तु में विद्यमान होती है। आवेशविहीन वस्तुओं में यह साधारण मात्रा में होती है अत: इसका निरीक्षण नहीं किया जा सकता। वाटसन के तरल सिद्धांत के अनुसार विद्युत एक वस्तु से दूसरी वस्तु में चली जाती है। अमरीकी वैज्ञानिक तथा राजनीतिज्ञ बेंजामिन फ्रैंकलिन ने इस सिद्धांत का समर्थन कर, विस्तार किया। फ्रैंकलिन ने कहा कि विद्युत न तो उत्पन्न की जा सकती है, न नष्ट ही। फ्रैंकलिन ने लीडेन जार का अध्ययन कर उसकी क्रिया को समझाने की चेष्टा की। पर फ्रैंकलिन का सबसे प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण वह प्रयोग था, सिसमें उन्होंने सिद्ध किया कि मेघों से मेघगर्जन के समय विद्युत तथा साधारण विद्युत के गुण समान हैं। उन्होंने यह भी कहा कि विद्युत के कण एक दूसरे पर बल डालते हैं। फ्रैंकलिन के पश्चात एपीनुस ने इन विचारों को लिया तथा इसका आभास दिया कि दो वस्तुओं का बल उनके बीच की दूरी बढ़ाने पर घट जाता है। इस सिद्धांत का विस्तार जाजेफ प्रीस्टलि तथा हेनरी कैवेंडिश ने किया। फिर कूलॉम ने खोज की कि दो आवेशों के बीच का बल, उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युतक्रमानुपाती तथा आवेशों के गुणनफल के समानुपाती होता है। विद्युत का यह मूल नियम अब भी कूलॉम का बलनियम कहा जाता है। सन् 1837 में माइकल फैराडे ने किन्हीं दो आवेशित वस्तुओं के बीच के विद्युत बल पर माध्यम के प्रभाव का अध्ययन किया तथा पता लगाया कि यदि माध्यम हवा के स्थान पर कोई और विद्युतरोधी हो तो विद्युत बल घट जाता है, विद्युत रोधी के इस गुण को उन्होंने विशिष्ट पारवैद्युतता अथवा पराविद्युत कहा। उन्होंने अपने बर्फ के बरतनवाले प्रसिद्ध प्रयोग द्वारा दर्शाया कि यदि किसी आवेशित चालक का एक बरतन में लाया जाए, तो बरतन के अंदर की ओर विजातीय आवेश प्रेरित होता है तथा बाहर की ओर सजातीय अवेश। फैराडे ने पराविद्युत का गहन अध्ययन किया तथा उनके विभिन्न प्रभावों को समझाने के लिए विद्युत बल रेखाओं का विचार उपस्थित किया तथा आवेशित वस्तुओं के बीच के खाली स्थान को क्षेत्र कहा। फैराडे के क्षेत्र सिद्धांत को गणित की सहायता से गाउस ने आगे बढ़ाया। अठ्ठारहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में आवेशों के चलन के संबंध में कई प्रयोग तथा सिद्धांत प्रकाश में आने लगे थे। सन् 1780 में इटली के ल्युगी गैलवानी ने मेढक के ऊपर विद्युत प्रवाह के कई प्रयोग किए। सन् 1800 में वोल्टा ने तनु अम्ल अथवा लवण विलयन से भीगी हुई दो असमान धातुओं में विद्युत प्रभाव पाए तथा उनसे विद्युत धारा प्राप्त की। इस विद्युत प्रवाह को कई गुना करने के लिए उन्होंने ऐसी कई असमान धातुओं के जोड़ों को लेकर एक पुंज बनाया जिसे वोल्टीय पुंज कहते हैं। वोल्टा द्वारा इन प्रयोगों के अनुसार विद्युद्धारा प्राप्त करने के लिए वोल्टीय सेल की रचना हुई। उसी वर्ष इंग्लैंड में निकल्सन तथा कार्लाइल ने इस बात का पता लगाया कि यदि पानी में विद्युत धारा प्रवाहित की जाए तो पानी के हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन में अपघटन को जाता है। ऐसे अपघटन को वैद्युत् अपघटन कहते हैं। क्रुकशैक ने पता लगाया कि विलयन के धातुलवण भी इसी प्रकार अपघटित किए जा सकते हैं। इसके पश्चात् फैराडे ने इस क्रिया का नियमित अध्ययन किया तथा फैराडे के नियमों की स्थापना की। इन नियमों अथवा इनसे संबंधित प्रयोगों के आधार पर विद्युत धारा उत्पादन करनेवाले विभिन्न प्रकार के सेल तथा संचायकों की रचना की गई है। सन् 1820 में हैंस क्रिश्चियन अरस्टेड ने खोज किया कि एक तार में प्रवाहित विद्युत धारा के साथ उससे संबंधित एक चुंबकीय क्षेत्र भी होता है। इस महत्वपूर्ण खोज को किप्रो तथा सावार ने और ऐंपियर ने गणित एवं प्रयोगों की सहायता से आगे बढ़ाया। ऐंपियर ने यह दिखाया कि दो समांतर तारों में विद्युत धारा की दिशा समान होने पर आकर्षण तथा विपरीत होने पर प्रतिकर्षण होता है। आरस्टेड के सिद्धांतों को फैराडे ने विकसित किया तथा विद्युतचुंबकीय प्रेरण के नियमों की स्थापना की। प्रेरण का अध्ययन बाद में नाइमन तथा वेबर ने भी किया परंतु प्ररेणा संबंधी विचारों का महत्वपूर्ण उपयोग क्लार्क मैक्सवेल ने सन् 1851 में किया तथा मैक्सवेल समीकरणों की स्थापना कर विद्युच्चुंबकीय सिद्धांतों को गणित की सहायता से एक सुलझा हुआ रूप दिया। आधुनिक भौतिकी में इन समीकरणों का विशेष स्थान है। सन् 1822 में जेबेक ने देखा कि यदि एक परिपथ में दो असमान धातुओं को जोड़ दिया जाए और एक जोड़ को गरम किया जाए तो परिपथ में विद्युत प्रवाहित होती है। ऐसी विद्युत को ऊष्मा विद्युत कहते हैं। सन् 1826 में जार्ज साइमन ओम ने प्रसिद्ध ओम के नियम की स्थापना की। सन् 1841 में जूल ने विद्युत के ऊष्मा प्रभाव का अध्ययन किया तथा बतलाया कि किसी सेल की रासायनिक ऊर्जा, जो परिपथ में धारा प्रवाहित करती है, उस परिपथ में उत्पादित ऊष्मा उर्जा के बराबर होती है। हेल्म होल्टज़, विलियम टॉमसन, केलविन, लार्डं, आदि ने विद्युत ऊर्जा संबंधी अन्य सिद्धांतों का विकास किया। सन् 1848 में किर्खहाफ़ ने विद्युद्धारा संबंधी नियमों को प्रस्तुत किया। सन् 1851 में लार्ड केलविन ने ऊष्मा विद्युत का ऊष्मागतिकी के सिद्धातों द्वारा विश्लेषण किया। सन् 1855 में मैक्सवेल द्वारा विद्युत तथा प्रकोशतरंग संबंधी विचारों की नींव पड़ी। सन् 1884 में जॉन हेनरी पांइटिंग ने विद्युत चुंबकीय क्षेत्र में ऊर्जा प्रवाह का अध्ययन किया। सन् 1886 में हाइन्रिख हेर्ट्स की सहायता से मैक्सवेल के सिद्धांतों को प्रायोगिक समर्थन मिला। इसके पश्चात् विद्युच्चुंबकीय तरंगों के विषय में कई वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित हुआ। मारकोनी ने सन् 1896 में इनका प्रयोग संदेश भेजने में किया। इसी समय के लगभग भारत के जगदीशचंद्र बसु, ने उच्च आवृत्तिवाली विद्युच्चंबकीय तरंगों का जनन किया तथा इनके गुणों को प्रकाश के सिद्धांतों से समझाने की चेष्टा की। इसके पश्चात् इस विषय की पर्याप्त प्रगति हुई जिसे फलस्वरूप रेडियो, टेलिविजन तथा इलेक्ट्रॉनिकी का क्षेत्र विकसित हुआ। हेर्ट्स के अन्य प्रयोगों ने प्रकाशविद्युत की भी खोज की जिसको आइंसटीन ने क्वांटम सिद्धांतों द्वारा सन् 1905 में समझाया। सन् 1895 में तथा उसी समय के लगभग भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी आंदोलन आया। सन् 1895 में रंटगेन ने एक्सरे का, 1896 में बेक्रेल ने ने रेडियोसक्रियता का तथा 1897 में सर जे.जे. टॉमसन ने इलेक्ट्रान का आविष्कार किया। टामसन् ने गैसों में से विद्युद्विसर्जन के विषय का भी अध्ययन किया। इस विषय में इनसे पहले, आरंभ में गाइसलर, प्लकर, हिटॉर्फ, गोल्डस्टीन आदि ने कार्य किया था। बाद के वैज्ञानिकों में से प्रमुख हैं जे.एस. टाउनसेंड तथा उनके साथी। सन् 1902 में रिचर्डसन् ने तापायनिक विषय की नींव डाली। तापायन धारा के सिद्धांत पर रेडियो वाल्व तथा इलेक्ट्रॉनिकी के अन्य वाल्वों की रचना हुई है। बीसवीं शताब्दी में एक के पश्चात् एक महत्वपूर्ण खोजों का ताँता बँध गया जिनके परिणाम स्वरूप आज के हाइड्रोजन बम, संगलन ऊर्जा, स्पुतनिक तथा अन्य उपग्रह इत्यादि। इनके पनपने में किसी न किसी रूप में विद्युत के सिद्धांतों का उपयोग हुआ है।
धर्मी रावत,भारत के उत्तर प्रदेश की पंद्रहवी विधानसभा सभा में विधायक रहे। 2007 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के सिद्धौर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से बसपा की ओर से चुनाव में भाग लिया।
मन की बात आकाशवाणी पर प्रसारित किया जाने वाला एक कार्यक्रम है जिसके जरिये भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत के नागरिकों को संबोधित करते हैं। इस कार्यक्रम का पहला प्रसारण 3 अक्तूबर 2014 को किया गया। जनवरी 2015 में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी उनके साथ इस कार्यक्रम में भाग लिया तथा भारत की जनता के पत्रों के उत्तर दिए। गुजरात विधान सभा चुनाव 2002 2007 2012 भारत के प्रधान मंत्री लोक सभा चुनाव, 2014 शपथग्रहण वैश्विक योगदान भारत
भारत का राष्ट्रीय रेडियो खगोल भौतिकी केन्द्र, पुणे विश्वविद्यालय परिसर में स्थित है। यह टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान का ही एक भाग है। खोडद में, पुणे से 80 कि.मी दूर, वृहत मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप, विश्व का सबसे बड़ा रेडियो दूरदर्शी निर्माण एवं स्थापित किया है। यह मीटर तरंगदैर्घ्य पर संचालित है। इसमें 30 पूर्णतया घुमाने लायक डिश लगी हैं, जिसमे से हर डिश का व्यास 45 मीटर हैं। एवं पूरी स्थापना 25 वर्ग कि॰मी॰ के क्षेत्र में फैली हुई है। निर्देशांक: 190600N 740300E 19.10000N 74.05000E 19.10000 74.05000
मिलर प्रमेय किसी विद्युत परिपथ के तुल्य दूसरे विद्युत परिपथ की गणना करने से सम्बन्धित प्रमेय है। इसके अनुसार, माना किसी रैखिक परिपथ में एक शाखा है जिसकी प्रतिबाधा Z है, और यह शाखा दो नोड को जोड़ती है जिनके वोल्टेज क्रमशः U1 एवं U2 हैं। माना M V2V1 है। हम Zप्रतिबाधा वाली उस शाखा को परिपथ से हटाकर पहले नोड और ग्राउण्ड के बीच Z1Z तथा दूसरे नोड और ग्राउण्ड के बीच Z2MZ प्रतिबाधा लगा सकते हैं। इस परिवर्तन से उस परिपथ के सभी नोडों के वोल्टेज अपरिवर्तित रहते हैं।
नीला गुम्बद नई दिल्ली के दीनापनाह यानि पुराना किला के निकट निज़ामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में मथुरा रोड के निकट स्थित एक ऐतिहासिक स्मारक है। एक मुगलकालीन इमारत है। गुलाम वंश के समय में यह भूमि किलोकरी किले में स्थित थी, जो कि नसीरुद्दीन के पुत्र तत्कालीन सुल्तान केकूबाद की राजधानी हुआ करती थी।
मिरात उलउरूस नज़ीर अहमद देहलवी द्वारा लिखा गया और सन् 1869 में प्रकाशित हुआ एक उर्दू उपन्यास है। यह उपन्यास भारतीय और मुस्लिम समाज में महिला शिक्षा को बढ़ावा देने वाले कुछ तत्वों के लिए प्रसिद्ध है और इससे प्रेरित होकर हिन्दी, पंजाबी, कश्मीरी और भारतीय उपमहाद्वीप की अन्य भाषाओं में भी इस विषय पर आधारित उपन्यास लिखे गए। छपने के 20 वर्षों के अन्दरअन्दर इस किताब की 1 लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी थीं। यह अक्सर उर्दू भाषा का पहला उपन्यास माना जाता है। यह कहानी दिल्ली की दो मुस्लिम बहनों अकबरी और असग़री पर आधारित है। उपन्यास का पहला भाग अकबरी की दास्तान बताता है जिसने अमीरी और आराम में जन्म लिया। उसे आलसी और कम पढ़ालिखा बताया गया है। जब वह विवाह के बाद अपने पति के घर जाती है तो अपने नासमझी और बुरे बर्ताव से उसपर तरहतरह के दुख पड़ते हैं। उपन्यास के दुसरे भाग में असग़री की कहानी है जो सदाचारी, मेहनती और अधिक शिक्षित है। उसे बेकार की गपशप से घृणा है और वह अपने मोहल्ले की प्यारी है। जब उसकी शादी होती है तो उसके जीवन में भी कई कठिन बदलाव आते हैं लेकिन अपनी मेहनत, अच्छे स्वभाव और शिक्षित व्यवहार से वह अपने पति के परिवार और अपने नए मोहल्ले के लोगों में प्रेमपूर्वक बस जाती है। कहानी में इन दोनों स्त्रियों के जीवन को तरहतरह के उतारचढ़ाव से गुज़रते हुए दिखाया गया है। 1873 में नज़ीर अहमद ने इस उपन्यास की दूसरी कढ़ी बनात उलनाश के नाम से प्रकाशित की। इसमें असग़री को अपने मोहल्ले में एक कन्यापाठशाला चलते हुए दिखाया गया है। पाकिस्तान टेलिविज़न ने मिरात उलउरूस ही के नाम का एक धारावाहिक बनाया जिसमें आरिफ़ा सिद्दीक़ी ने असग़री का पात्र अदा किया।
उत्तर अमेरिका महाअमेरिका का उत्तरी महाद्वीप है, जो पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में स्थित है और पूर्णतः पश्चिमी गोलार्ध में आता है। उत्तर में यह आर्कटिक महासागर, पूर्व में उत्तरी अन्ध महासागर, दक्षिणपूर्व में कैरिबियाई सागर और पश्चिम में उत्तरी प्रशान्त महासागर से घिरा हुआ है। उत्तर अमेरिका का मुख्य भाग 40 उत्तरी अक्षांश से 830 उत्तरी अक्षांश तथआ 530 पश्चिमी देशान्तर से 1680 पश्चिमी देशान्तर के बीच स्थित है। इसका आकार त्रिभुज के समान है जिसका शीर्ष दक्षिण की ओर और आधार उत्तर की ओर है। उत्तर अमेरिका का कुल भूभाग 2,47,09,000 वर्ग किलोमीटर है, पृथ्वी की कुल सतह का 4.8% या कुल भूभाग का 16.5%। जुलाई, 2008 तक, इसकी अनुमानित जनसंख्या 52.9 करोड़ थी। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह एशिया और अफ़्रीका के बाद विश्व का तीसरा सबसे बड़ा और जनसंख्या की दृष्टि से यह एशिया, अफ़्रीका और यूरोप के बाद चौथा सबसे बड़ा महाद्वीप है। व्यापक रूप से यह माना जाता है, की उत्तर और दक्षिण अमेरिका का यह नाम मार्टिन वाल्डसिम्यूलर और मात्थियास रिंगमन नामक दो जर्मन मानचित्रकारों द्वारा, अमेरिगो वेस्पूची के नाम पर रखा गया, जो एक इतालवी खोजकर्ता था। वेस्पूची ही वह पहला यूरोपीय व्यक्ति था जिसने यह सुझाया कि महाअमेरिका पूर्वी इंडीस नहीं हैं, बल्कि एक नई दुनिया है जो यूरोपीयनों को अज्ञात है। दूसरा कम प्रचलित प्रमेय यह है, की यह नाम ब्रिस्टल के एक अंग्रेज़ व्यापारी रिचर्ड अमेरीक के नाम पर पड़ा, जिसने जॉन कैबॉट की 1497 में इंग्लैंड से न्यूफ़ाउण्डलैण्ड तक की गई यात्रा में पैसा लगाया था। एक अन्य प्रमेय यह है कि यह नाम अमेरिण्डिया भाषा से आया। जब प्रथम यूरोपीय खोजकर्ता यहाँ पहुँचे थे तो उस समय यह क्षेत्र एशिया से देशज लोगों द्वारा किए गए अप्रवासन से बसासित था जो बेरिंग की खाड़ी से होते हुए यहाँ पहुँचे थे। यूरोपीय उपनिवेशवाद का क्रम इस महाद्वीप में इस प्रकार था: स्पेनी, फ़्रान्सीसी और अंग्रेज़ जिन्होनें पूर्वी तट से लेखर पश्चिमी तट तक इस महाद्वीप पर शासन किया। कुल मिलाकर यूरोपीय उपनिवेशवाद यहाँ के मूल लोगों के लिए हानिकर रहा। इस उपनिवेशवाद के कारण मूल लोगों का पार्श्वीकरण और निर्मूलन हुआ और जो लोग बच गए वे सबसे कम उपजाऊ, ऊसर और बंजर स्थानों पर रहने के लिए विवश हो गए। यूरोपीय उपनिवेशवाद अपने साथ बहुत सी बीमारियाँ भी लेकर आया जो स्थानीय लोगों के लिए नई थी और इस कारण भी बहुत से मूल लोगों का विनाश हुआ क्योंकि इन नई बीमारियों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता मूल निवासियों में नहीं थी। उत्तर अमेरिका की जलवायु और वनस्पति में बहुत विविधता पाई जाती है और विश्व के लगभग सभी जलवायु प्रकार यहाँ पाए जाते हैं। उत्तर में आर्कटिक टुंड्रा ), विविध प्रकार के वन, रेगिस्तान, मैदान, शायर लौगूनेरा, वायुशिफ जैसे जलवायु प्रकार यहाँ पाए जाते हैं। उत्तर अमेरिका की तीन प्रमुख भाषाएँ है : अंग्रेज़ी, स्पेनी और फ़्रान्सीसी। एंग्लोअमेरिका शब्द कभीकभी दोनों अमेरिकी महाद्वीपों में अंग्रेज़ी भाषी देशों के लिए प्रयुक्त होता है। लैटिन अमेरिका शब्द उन देशों के लिए प्रयुक्त होता है जहाँ रोमान्स भाषाएँ प्रमुखता से बोली जातीं हैं। दोनो ही शब्दों का उपयोग उत्तर अमेरिकी महाद्वीप के लिए किया जा सकता है। जनसांख्यकीय दृष्टि से उत्तर अमेरिका प्रजातीय और नस्लीय रूप से बहुत विविध है। तीन प्रमुख नस्लीय समूह हैं श्वेत, मेस्तिज़ो और अश्वेत। इनके अतिरिक्त बड़ी संख्या में अमेरिण्डियन और एशियाई लोग भी इस महाद्वीप में रहते हैं। उत्तर अमेरिका के पाँच सर्वाधिक जनसंख्या वाले महानगरः1. मेक्सिको नगर, मेक्सिको 2. न्यूयॉर्क नगर, संयुक्त राज्य अमेरिका 3. लास एंजेल्स, संयुक्त राज्य अमेरिका 4. शिकागो, संयुक्त राज्य अमेरिका 5. टोरण्टो, कनाडा मानव संसाधन विकास सूचकांक के अनुसार उत्तर अमेरिका के तीन प्रमुख देश:1. कनाडा 0.967 2. संयुक्त राज्य अमेरिका 0.950 3. मेक्सिको 0.842 उत्तर अमेरिका की नदियाँ विभिन्न दिशाओं में बहती हैं। अधिकांश नदियाँ पश्चिमी कार्डलेरा अर्थात राकी पर्वतमाला से निकलती हैं। राकी पर्वतमाला से निकलकर पूर्व से पश्चिम बहती हुई प्रशान्त महासागर में गिरने वाली प्रमुख नदियाँ यूकन, फ्रेजर, कोलम्बिया, स्नेक एवं सैक्रामेण्टे हैं। यूकन नदी बेरिंग सागर में गिरती है तथा कोलोरेडो नदी दक्षिणपश्चिम की और बहती हुई कैलीफोर्निया की खाड़ी में प्रवेश करती है। उत्तर अमेरिका राजनैतिक दृष्टि से तीन स्वतन्त्र और सम्प्रभुता सम्पन्न देशो में बँटा हुआ है: कनाडा, संराअमेरिका और मेक्सिको। इनके अतिरिक्त तीन अधिनस्थ क्षेत्र भी इस महाद्वीप में हैं: ग्रीनलैंड, बरमूडा और सन्त पियर और मिकलान। नोट: 1. ग्रीनलैण्ड डेनमार्क राजशाही का एक स्वायत्तशासी क्षेत्र है। 2. बरमूडा एक ब्रिटिश पारसमुद्री क्षेत्र है। 3. सन्त पियर और मिकलान एक फ़्रान्सीसी पारसमुद्री क्षेत्र है। पर्वत मैदान द्वीप
क्रमचयसंचय गणित में अपविन्यास समुच्चय के उस क्रमचय को कहते हैं जिसमें कोई भी अवयव अपनी मूल अवस्था में प्रदर्शित नहीं होता।इन संख्याओं को ! n {displaystyle !n} द्वारा लिखा जाता है।
यूटीसी5:40 या समन्वयित विश्वव्यापी समय 5:40 एक ऐतिहासिक समय है, जो 1986 तक नेपाल के काठमाण्डू में उपयोग किया जाता रहा। जो कि 8519E या 5:41:16 है। लेकिन 1986 के बाद यहाँ यूटीसी 5:45 का उपयोग होने लगा।
कनाडा की लिबरल पार्टी का नेतृत्व चुनाव 2013 में तब लड़ा गया जब पूर्व अध्यक्ष माइकल इग्नैटिफ़ ने 3 मई 2011 को पार्टी के कनाडा के संघीय चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद इस्तीफ़े की पेशकश कर दी। 25 मई, 2011 को बॉब रे को अंतरिम अध्यक्ष चुना गया। अप्रैल 14, 2013 को ओटावा में पार्टी ने जस्टिन ट्रूडो को अपना नया नेता व अध्यक्ष चुना। पहले यह चुनाव 2829 अक्तूबर 2011 को ही होने वाला था लेकिन लिबरल दल के तमाम सांसद व नेता हाल ही में हुए चुनावों के बाद इतने जल्दी कोई चुनाव नही चाहते थे और किसी अंतरिम नेतृत्व के निर्देशन में दल को हार से उबारना चाहते थे। इसके बाद एक आंतरिक संविधान संसोधन करके चुनावों को 1 मार्च से 30 जून 2013 तक के लिये टाल दिया गया। हर संघीय चुनावी जिले के 100 अंक होते हैं, जिनका निर्धारण जिले में निर्वाचकों द्वारा किया जाता है।
रॉटेन टोमेटोज़, अगस्त 1998 में शुरू की गयी एक फिल्म समीक्षा और समाचार समर्पित वेबसाइट है यह व्यापक रूप फिल्म समीक्षा एग्रीगेटर के रूप में जाना जाता है।
लैब्राडोर कुत्ता, या सिर्फ लैब्राडोर, एक प्रकार का शिकारी कुता है। लैब्राडोर कनाडा में सबसे लोकप्रिय नस्लों में से एक है, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका ।कई देशों में एक पसंदीदा विकलांगता की सहायता की जाती है, लैब्राडोरस को अक्सर अंधा, ऑटिज़्म वाले लोगों, चिकित्सा के रूप में कार्य करने या कानून प्रवर्तन और अन्य आधिकारिक एजेंसियों के लिए स्क्रीनिंग और पता लगाने का काम करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। इसके अतिरिक्त, वे खेल और शिकार कुत्ते के रूप में बेशकीमती हैं। 1880 के दशक के दौरान, माल्म्स्बरी के तीसरे अर्ल, बुक्कलेच के 6 वें ड्यूक और घर के 12 वें अर्ल ने आधुनिक लैब्राडोर नस्ल को विकसित और स्थापित करने के लिए सहयोग किया।वंश को आधुनिक लैब्रेडर्स के पूर्वजों माना जाता है। आधुनिक लैब्राडोर के पूर्वजों न्यूफ़ाउंडलैंड द्वीप पर उत्पन्न हुए, अब न्यूफ़ाउंडलैंड और लैब्राडोर प्रांत, कनाडा का हिस्सा है।लैब्राडोर की संस्थापक नस्ल सेंट जॉन के पानी के कुत्ते थे, 16 वीं शताब्दी में द्वीप के शुरुआती बसने वालों द्वारा तदर्थ प्रजनन के माध्यम से उभरी एक नस्ल।सेंट जॉन कुत्ते के पूर्वाभास ज्ञात नहीं हैं, लेकिन अंग्रेजी, आयरिश और पुर्तगाली कामकाजी नस्लों का एक यादृच्छिक मिश्रित मिश्रण होने की संभावना नहीं थी।न्यूफ़ाउंडलैंड संभवतः 16 वीं शताब्दी के बाद से अपतटीय मछली पकड़ने वाले पुर्तगाली मछुआरों की पीढ़ियों द्वारा द्वीप में लाया गया मास्टिफ़ के साथ सेंट जॉन कुत्ते प्रजनन का परिणाम है। छोटेछोटे लेपित सेंट जॉन कुत्ता को पानी से जाल में लाने और खींचने के लिए इस्तेमाल किया गया था। ये छोटे कुत्ते लैब्राडोर रिट्रीएवर के पूर्व पूर्वज थे अब जो लैब्राडोर रिट्रीइवर है, उसका मूलभूत नस्ल सेंट जॉन पानी के कुत्ते, सेंट जॉन के कुत्ते या लेसर न्यूफाउंडलैंड के रूप में जाना जाता है। जब कुत्तों को बाद में इंग्लैंड में लाया गया था, तब उन्हें भौगोलिक क्षेत्र लैब्राडोर के नाम से जाना जाता था या बस लैब्राडोर में उन्हें बड़ा न्यूफ़ाउंडलैंड नस्ल, हालांकि नस्ल अधिक दक्षिणी एवलॉन प्रायद्वीप से थी दो नस्लें के नाम और मूल एक बार इंग्लैंड और अमेरिका में चले गए थे। लैब्राडोर के कुत्ते का हम बड़े और लंबे समय तक कुत्ते थे जो हम देखते हैं और आज जानते हैं, और न्यूफ़ाउंडलैंड का कुत्ता लैब्राडोर बन गया है। नस्ल का पहला लिखित संदर्भ 1814 में था, 1823 में प्रथम चित्र, और पहला 1856 में तस्वीर ।1870 तक लैब्राडोर रिट्रीइवर नाम इंग्लैंड में आम हो गया। रिकॉर्ड पर पहले पीले लैब्राडोर का जन्म 1899 में हुआ था, और नस्ल 1903 में केनेल क्लब द्वारा मान्यता प्राप्त थी।पहली अमेरिकी किनेल क्लब पंजीकरण 1917 में था।
संस्थापकवाद एक बौद्धिक दृष्टिकोण है, जिसमें किसी राज्य के संस्थापकों के लिए सबल श्रधा होती हैं। यह शब्द एक अपमानजनक नामविशेषण के रूप में देखा जाता हैं, व यथाचिन्हीतों पर ऐसे वैश्विक नज़रिये रखने का आरोप लगाता हैं जो संस्थापन को जड़ासक्ति में बदलने के लिए ऐतिहासिक परिशुद्धि का त्याग करता हैं। विरोधार्थी संस्थापकवादविरोध उनके प्रयुक्त किया जाता हैं, जिन्हें यकीनन लगता हैं कि राज्य के उद्गमों में कुछ तो गम्भीरतापूर्वक ग़लत था।
उत्पादन सिद्धांत उत्पादन से सम्बन्धित प्रक्रियाओं के अर्थशास्त्रीय अध्ययन को कहते हैं, जिसमें कच्चे माल को पूर्ण किये गये उत्पादन से सम्बन्धित प्रक्रियाओं, व्यय, आय, इत्यादि को समझा जाता है, और भिन्न परिस्थितियों में उत्पादन में लाभ व अन्य सुधार करने के लिये समाधानों को खोजा जाता है।
701 ईसा पूर्व ईसा मसीह के जन्म से पूर्व के वर्षों को दर्शाता है। ईसा के जन्म को अधार मानकर उसके जन्म से 701 ईसा पूर्व या वर्ष पूर्व के वर्ष को इस प्रकार प्रदर्शित किया जाता है। यह जूलियन कलेण्डर पर अधारित एक सामूहिक वर्ष माना जाता है। अधिकांश विश्व में इसी पद्धति के आधार पर पुराने वर्षों की गणना की जाती है। भारत में इसके अलावा कई पंचाग प्रसिद्ध है जैसे विक्रम संवत जो ईसा के जन्म से 57 या 58 वर्ष पूर्व शुरु होती है। इसके अलावा शक संवत भी प्रसिद्ध है। शक संवत भारत का प्राचीन संवत है जो ईसा के जन्म के 78 वर्ष बाद से आरम्भ होता है। शक संवत भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है। भारत में प्रचलित कुछ अन्य प्राचीन संवत इस प्रकार है उपरोक्त अन्तर के आधार पर 701 ईसा पूर्व के अनुसार विक्रमी संवत, सप्तर्षि संवत, कलियुग संवत और प्राचीन सप्तर्षि आदि में वर्ष आदि निकाले जा सकते हैं।
महेश चन्द्र गुप्ता,भारत के उत्तर प्रदेश की पंद्रहवी विधानसभा सभा में विधायक रहे। 2007 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के बदायूं विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा की ओर से चुनाव में भाग लिया।
2064 ईसा पूर्व ईसा मसीह के जन्म से पूर्व के वर्षों को दर्शाता है। ईसा के जन्म को अधार मानकर उसके जन्म से 2064 ईसा पूर्व या वर्ष पूर्व के वर्ष को इस प्रकार प्रदर्शित किया जाता है। यह जूलियन कलेण्डर पर अधारित एक सामूहिक वर्ष माना जाता है। अधिकांश विश्व में इसी पद्धति के आधार पर पुराने वर्षों की गणना की जाती है। भारत में इसके अलावा कई पंचाग प्रसिद्ध है जैसे विक्रम संवत जो ईसा के जन्म से 57 या 58 वर्ष पूर्व शुरु होती है। इसके अलावा शक संवत भी प्रसिद्ध है। शक संवत भारत का प्राचीन संवत है जो ईसा के जन्म के 78 वर्ष बाद से आरम्भ होता है। शक संवत भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है। भारत में प्रचलित कुछ अन्य प्राचीन संवत इस प्रकार है उपरोक्त अन्तर के आधार पर 2064 ईसा पूर्व के अनुसार विक्रमी संवत, सप्तर्षि संवत, कलियुग संवत और प्राचीन सप्तर्षि आदि में वर्ष आदि निकाले जा सकते है।
} निर्देशांक: 2753N 7804E 27.89N 78.06E 27.89 78.06 कोथिया कोइल, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
स्विस इंटरनेशनल एयरलाइंस एजी स्विट्ज़रलैंड की ध्वजवाहिका वायुसेवा है। यह उत्तरी अमरीका, दक्षिणी अमरीका, अफ़्रीका एवं एशिया में अनुसूचित उड़ानें संचाक्लित करती है। यह कंपनी 2002 में स्विसएयर के दीवालिया हो जाने पर स्थापित हुई थी। स्विसएयर देश की पूर्व ध्वजवाहिका वायुसेवा थी। स्विस एक जर्मन वायुसेवा लुफ़्थान्सा की सहभागी कंपनी है, जिसका मुख्यालय यूरो एयरपोर्ट बेसल मलहाउसफ़्रीबर्ग, निकट बेसल, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है, एवं एक कार्यालय क्लोटेन, स्विट्ज़रलैंड में ज़्यूरिख विमानक्षेत्र में भी स्थित है। कंपनी का प्ण्जीकृत कार्यालय बेसल में स्थित है। यह वायुसेवा IATA कूट LX का प्रयोग करती है, जो इसे स्विस क्षेत्रीय वायुसेवा क्रॉसएयर से विरासत में मिला है। इसका ICAO कूट है SWR और यह भी स्विसएयर से विरासत में मिला है, जिससे अन्तर्राष्ट्रीय वायु परिवहन अधिकार सुरक्षित रखे जा सकें।
कमलेश्वरसिद्धेश्वर मंदिर श्रीनगर, गढ़वाल का सर्वाधिक पूजित मंदिर है। कहा जाता है कि जब देवता असुरों से युद्ध में परास्त होने लगे तो भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र प्राप्त करने के लिये भगवान शिव की आराधना की। उन्होंने उन्हें 1,000 कमल फूल अर्पित किये तथा प्रत्येक अर्पित फूल के साथ भगवान शिव के 1,000 नामों का ध्यान किया। उनकी जांच के लिये भगवान शिव ने एक फूल को छिपा दिया। भगवान विष्णु ने जब जाना कि एक फूल कम हो गया तो उसके बदले उन्होंने अपनी एक आंख चढ़ाने का निश्चय किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान कर दिया, जिससे उन्होंने असुरों का विनाश किया। चूंकि भगवान विष्णु ने कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष के चौदहवें दिन सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था, इसलिये बैकुंठ चतुर्दशी का उत्सव यहां बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यही वह दिन है जब संतानहीन मातापिता एक जलते दीये को अपनी हथेली पर रखकर खड़े रहकर रातभर पूजा करते हैं। माना जाता है कि उनकी इच्छा पूरी होती है। इसे खड रात्रि कहा जाता है और कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं इस मंदिर पर अपनी पत्नी जामवंती के आग्रह पर इस प्रकार की पूजा की थी। कहा जाता है कि इस मंदिर का ढ़ांचा देवों द्वारा आदि शंकराचार्य की प्रार्थना पर तैयार किया गया, जो उन 1,000 मंदिरों में से एक है, जिसका निर्माण रातोंरात गढ़वाल में हुआ था। मूलरूप में यह एक खुला मंदिर था जहां 12 नक्काशीपूर्ण सुंदर स्तंभ थे। संपूर्ण निर्माण काले पत्थरों से हुआ है, जिसे संरक्षण के लिये रंगा गया है। वर्ष 1960 के दशक में बिड़ला परिवार ने इस मंदिर को पुनर्जीवित किया तथा इसके इर्दगिर्द दीवारें बना दी। यहां का शिवलिंग स्वयंभू है तथा मंदिर से भी प्राचीन है। कहा जाता है कि गोरखों ने इस शिवलिंग को खोदकर निकालना चाहा पर 122 फीट जमीन खोदने के बाद भी वे लिंग का अंत नहीं पा सके। तब उन्होंने क्षमा याचना की, गढ़ढे को भर दिया तथा मंदिर को यह कहकर प्रमाणित किया कि मंदिर में कोई तोड़फोड़ नहीं हो सकता। अन्य प्राचीन प्रतिमाओं में एक खास, सुंदर एवं असामान्य गणेश की प्रतिमा है। वे पद्माशन में बैठे है, एक कमंडल हाथ में है तथा गले से लिपटा एक सांप है। ऐसी चीजें जो उनके पिता भगवान शिव से संबद्ध होती हैं। मंदिर को पंवार राजाओं का संरक्षण प्राप्त था तथा उन्होंने 64 गांवों का अनुदान दिया, जिसकी आय से ही मंदिर का खर्च चलाया जाता था। बलभद्र शाह के समय का रिकार्ड, प्रदीप शाह के समय का तांबे का प्लेट एवं प्रद्युम्न शाह तथा गोरखों का समय प्रमाणित करते हैं कि मंदिर का उद्भव एवं पवित्रता प्राचीन है। आयुक्त ट्रैल ने कोलकाता भेजे गये अपने रिपोर्ट में गढ़वाल के जिन पांच महत्त्वपूर्ण मंदिरों का वर्णन किया था उनमें से एक यह मंदिर भी था। मंदिर के बगल में बने भवन भी उतने ही पुराने हैं तथा छोटेछोटे कमरे की भूलभुलैया जैसे हैं और प्रत्येक कमरे से दूसरे कमरे में जाया जा सकता है जिसे घूपरा कहते है। कहा जाता है कि जब गोरखों का आक्रमण हुआ तो प्रद्युम्न शाह यहीं किसी कमरे में तब तक छिपा रहा, जहां से कि सुरक्षित अवस्था में उसे बाहर निकाल लिया गया। मंदिर के पीछे, का वर्गाकार स्थल का इस्तेमाल परंपरागत रूप से श्रीनगर के प्रसिद्ध रामलीला के लिये होता रहा है। वर्ष 1894 में गोहना झील में आए उफान से विनाशकारी बाढ़ में शहर का अधिकांश भाग बह गया लेकिन मंदिर को क्षति नहीं पहुंची। कहा जाता है कि नदी का जलस्तर बढ़ता गया लेकिन ज्यों ही मंदिर के शिवलिंग से स्पर्श हुआ, जल स्तर कम हो गया। अगस्त 1970 में जब झील की दीवाल ढह गयी तो पुन: विशाल भूस्खलन हुआ लेकिन मंदिर अछूता रहा। मंदिर के महंथ आशुतोष पुरी के अनुसार मंदिर का प्रशासन सदियों से पुरी वंश के महंथों के हाथ रहा है। यहां गुरूशिष्य परंपरा का पालन होता है तथा प्रत्येक महंथ अपने उत्तराधिकारी के रूप में अपने सबसे निपुण शिष्य को चुनता है।
थाइरॉक्सिन एक कार्बनिक यौगिक है।
गंगाबल झील या गंगबल झील भारत के जम्मू व कश्मीर राज्य के गान्दरबल ज़िले में हरमुख पर्वत के चरणों में स्थित एक स्वच्छ पर्वतीय झील है। भौगोलिक दृष्टि से यह एक टार्न झील या गिरिताल की श्रेणी में आती है। हिन्दू मान्यता में यह हरिद्वार जितनी पवित्र है और लोग यहाँ धार्मिक पूजा करने व अपने मृत परिजनों की अस्थियाँ विसर्जित करने आते हैं। हर वर्ष यहाँ पारम्परिक तीनदिवसीय धर्मयात्रा चलती है। ढाई कि॰मी॰ लम्बी और एक कि॰मी॰ चौड़ी इस झील में पानी पास की पिघलती हिमानियों के झरनों से आता है। झील से बाहर पानी एक धारा में पास की छोटीसी नन्दकोल झील में जाता है और वहाँ से वंगथ नामक झरने में निकलता है जो आगे जाकर सिन्द नदी में विलय हो जाता है। गंगाबल झील में ट्राउट समेत कई मछलियों की प्रजातियाँ मिलती हैं। यहाँ पहुँचने के लिये श्रीनगर से 45 कि॰मी॰ गान्दरबल से आगे नारानाग बस्ती तक का सड़क का सफ़र और फिर 15 कि॰मी॰ की पैदल चढ़ाई है जो घोड़े पर भी तय की जा सकती है। यहाँ आसपास के मर्ग में चरवाहे अक्सर अपनी भेड़बकरियाँ लेकर आते हैं। यहाँ पहुँचने का दूसरा रास्ता सोनमर्ग से विशनसर झील से होते हुए 4,100 मीटर ऊँचे निचनई दर्रे को पार करके आता है। बांडीपूर की आरीन बस्ती से भी यहाँ पैदलमार्ग आता है।
अलंकार चन्द्रोदय के अनुसार हिन्दी कविता में प्रयुक्त एक अलंकार
जीने दो 1990 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
जिओसुए कार्डुच्चीनोबेल पुरस्कार साहित्य विजेता, 1906
निर्देशांक: 2433N 7610E 24.55N 76.17E 24.55 76.17 झालरापाटन राजस्थान का एक प्रमुख नगर एवं राजस्थान की एक प्राचीन रियासत। वर्तमान झालरापाटन नगर एक पर्वत उपत्यका में स्थित है। प्राचीन नगर कुछ दूर चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित था। नाम के मूल के संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है। कुछ का मत है कि झाला राजपूतों के बसने के कारण इसका नाम झालरापाटन प्रचलित हो गया। इसके विरुद्ध अन्य विद्वानों का विचार है कि निकटस्थित पर्वत से निरंतर जल निकलते रहने के कारण इसका यह नाम पड़ा। टाड के मतानुसार, यहाँ के प्राचीन मंदिरों मे, जिनका निर्माण 600 ई0 में हुआ, अधिक संख्या में घंटे होने के कारण झालरापाटन नाम प्रचलित हुआ। मन्दिरों की सुंदरता की प्रशंसा जनरल कनिंघम आदि अनेक लेखकों ने की है। झाम के हाथों इन मंदिरों का विनाश हुआ। जालिम सिंह नामक एक सरदार ने सन् 1796 में वर्तमान झामपटन और झालरापाटन छावनी की स्थापना की। नगर और एक सड़क से जुड़े हैं। कालांतर में छावनी में बस्तियाँ बन गई।
आश्विन शुक्ल द्वादशी भारतीय पंचांग के अनुसार सातवें माह की बारहवी तिथि है, वर्षान्त में अभी 168 तिथियाँ अवशिष्ट हैं।
मत्स्य, छठी शताब्दी ई0पू0 में उदित 16 महाजनपदों में से एक था। सरस्वती नदी के तट पर स्थित यह महाजनपद राजतंत्रात्मक था। वर्तमान राजस्थान के अलवर, भरतपुर और जयपुर इसके अंतर्गत आते थे। इसकी राजधानी बैठान अथवा विराटनगर थी जो वर्तमान राजस्थान के जयपुर जिले का एक शहर है।
महेला जयवर्धने श्रीलंकाई क्रिकेट खिलाड़ी हैं।
मुज़फ़्फ़रनगर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश का एक शहर है। ये मुज़फ़्फ़रनगर जिले का मुख्यालय भी है। यह समुद्र तल से 237245 मीटर ऊपर, दिल्ली से लगभग 116 किमी दूर, उत्तर प्रदेश के उत्तर में उत्तरी अक्षांश 29 11 30 से 29 45 15 तक और पूर्वी रेखांश 77 3 45 से 78 7 तक स्थित है। यह राष्ट्रीय राज मार्ग 58 पर सहारनपुर मण्डल के अंतर्गत गंगा और यमुना के दोआब में, दक्षिण में मेरठ और उत्तर में सहारनपुर जिलों के बीच स्थित है। पश्चिम में शामली मुज़फ़्फ़र नगर को हरियाणा के पानीपत और करनाल से और पूर्व में गंगा नदी उत्तर प्रदेश के बिजनोर जिले से अलग करती है। मुज़फ़्फ़र नगर का क्षेत्रफल 4008 वर्ग किलोमीटर है। मुजफ़्फ़र नगर में पहली जनसंख्या 1847 में हुई और तब मुजफ़्फ़र नगर की जनसंख्या 537,594 थी। 2001 की जनसंख्या के अनुसार मुज़फ़्फ़र नगर जिले की आबादी 35,43,360 है और औसत 31,600 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर में रहते हैं। मुज़फ़्फ़र नगर जिले में 1 लोक सभा, 6 विधान सभा, 5 तहसिल, 14 खण्ड, 5 नगर पालिकाएं, 20 टाऊन एरिया, 1027 गांव, 28 पुलिस स्टेशन, 15 रेलवे स्टेशन हैं। 2001 में 557 औघोगिक कम्पनियाँ और 30,792 स्माल स्केल कम्पनियाँ थी। मुजफ्फरनगर से प्रकाशित दैनिक अमरीश समाचार बुलेटिन सांध्यकालीन समय का लोकप्रिय समाचार पत्र है। इतिहास और राजस्व प्रमाणों के अनुसार दिल्ली के बादशाह, शाहजहाँ, ने सरवट नाम के परगना को अपने एक सरदार सैयद मुजफ़्फ़र खान को जागीर में दिया था जहाँ पर 1633 में उसने और उसके बाद उसके बेटे मुनव्वर लश्कर खान ने मुजफ़्फ़र नगर नाम का यह शहर बसाया। परन्तु इस स्थान का इतिहास बहुत पुराना है। काली नदी के किनारे सदर तहसिल के मंडी नाम के गाँव में हड़प्पा कालीन सभ्यता के पुख्ता अवशेष मिले हैं। अधिक जानकारी के लिये भारतीय सर्वेक्षण विभाग वहां पर खुदाई कार्य करवा रहा है। सोने की अंगूठी जैसे आभूषण और बहुमूल्य रत्नों का मिलना यह दर्शाता है कि यह स्थान प्राचीन समय में व्यापार का केन्द्र था। तैमूर आक्रमण के समय के फारसी इतिहास में भी इस स्थान का वर्णन मिलता है। शहर से छह किलोमीटर दूर सहारनपुर रोड़ पर काली नदी के ऊपर बना बावन दरा पुल, करीब 1512 ईस्वी में शेरशह सूरी ने बनवाया था। शेरशाह सूरी उस समय मुगल सम्राट हुमायूं को पराजित कर दिल्ली की गद्दी पर बैठा था। उसने सेना के लश्कर के आने जाने के लिये सड़क का निर्माण कराया था जो बाद में ग्रांट ट्रंक रोड़ के नाम विख्यात हुई। इसी मार्ग पर बावन दर्रा पुल है। माना जाता है कि इसे इसे उस समय इस प्रकार डिजाईन किया गया था कि यदि काली नदी में भीषण बाढ़ आ जाये तो भी पानी पुल के किनारे पार न कर सके। पुल में कुल मिला कर 52 दर्रे बनाये गये हैं। जर्जर हो जाने के कारण अब इसका प्रयोग नहीं किया जा रहा है। वहलना गांव में शेरशाह सूरी की सेना के पड़ाव के लिये गढ़ी बनायी गई थी। इस गढ़ी का लखौरी ईटों का बना गेट अभी भी मौजूद है। ग्राम गढ़ी मुझेड़ा में स्थित सैयद महमूद अली खां की मजार मुगलकाल की कारीगरी की मिसाल है। 400 साल पुरानी मजार और गांव स्थित बाय के कुआं की देखरेख पुरातत्व विभाग करता है। मुगल समा्रट औरगजेब की मौत के बाद दिल्ली की गद्दी पर जब मुगल साम्राज्य की देखरेख करने वाला कोई शासक नहंी बचा तो जानसठ के सैयद बन्धु उस समय नामचीन हस्ती माने जाते थे। उनकी मर्जी के बिना दिल्ली की गद्दी पर कोई शासक नहंी बैठ सकता था। जहांदार शाह तथा मौहम्मद शाह रंगीला को सैयद बंधुओं ने ही दिल्ली का शासक बनाया था। इन्ही सैयद बंधुओं में से एक का नाम सैयद महमूद खां था। उन्हीं की मजार गा्रम गढ़ीमुझेड़ासादात में स्थित हैं। जिसमें मुगल करीगरी की दिखाई पड़ती है। 400 साल पुरानी उक्त सैयद महमूद अली खां की मजार तथा प्राचीन बाय के कुयेंं के सम्बन्ध में किदवदन्ती है कि दोनो का निर्माण कारीगरों द्वारा एक ही रात में किया गया था।लम्बे समय तक मुगल आधिपत्य में रहने के बाद ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 1826 में मुज़फ़्फ़र नगर को जिला बना दिया। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में शामली के मोहर सिंह और थानाभवन के सैयदपठानों ने अंगेजों को हरा कर शामली तहसिल पर कब्जा कर लिया था परन्तु अंग्रेजों ने क्रूरता से विद्रोह का दमन कर शामली को वापिस हासिल कर लिया। 6 अप्रैल 1919 को डॉ॰ बाबू राम गर्ग, उगर सेन, केशव गुप्त आदि के नेतृत्व में इण्डियन नेशनल कांगेस का कार्यालय खोला गया और पण्डित मदन मोहन मालवीय, महात्मा गांधी, मोती लाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, सरोजनी नायडू, सुभाष चन्द्र बोस आदि नेताओं ने समयसमय पर मुज़फ़्फ़र नगर का भ्रमण किया। खतौली के पण्डित सुन्दर लाल, लाला हरदयाल, शान्ति नारायण आदि बुद्धिजीवियों ने स्वतंत्रता आन्दोलन में बढ़चढ़ कर भाग लिया। 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने पर केशव गुप्त के निवास पर तिरंगा फ़हराने का कार्यक्रम रखा गया।मुजफ्फरनगर से दो किमोमीटर दूर एक गाँव हैं मुस्तफाबाद और इसके साथ लगा गाँव हैं पचेंडा, कहते हैं यह पचेंडा गाव महाभारत काल में कौरव पांडव की सेना का पड़ाव स्थल था, मुस्तफाबाद के पश्चिम में पंडावली नामक टीला हैं जहां पांडव की सेना पडी हुई थी तथा पूर्व में कुरावली हैं जहां कौरव की सेना डेरा डाले पडी थी, पचेंडा में एक महाभारतकालीन भेरो का मंदिर और देवी का स्थल भी हैं मुज़फ़्फ़र नगर का क्षेत्रफल 4049 वर्ग किलोमीटर है। मुजफ़्फ़र नगर में पहली जनगणना 1847 में हुई और तब मुजफ़्फ़र नगर की जनसंख्या 537,594 थी। 2001 की जनगणना के अनुसार मुज़फ़्फ़र नगर जिले की आबादी 35,43,360 है और औसत 31,600 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर में रहते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार मुजफ्फरनगर की कुल जनसंख्या 4138605, लिंग अनुपात 886 तथा साक्षरता दर 70.11 है मुजफ्फरनगर एक महत्वपूर्ण औद्योगिक शहर है, चीनी, इस्पात और कागज के साथ अनाज यहाँ के प्रमुख उत्पाद है। यहाँ की ज़्यादातर आबादी कृषि में लगी हुई है जो कि इस क्षेत्र की आबादी का 70% से अधिक है। मुजफ्फरनगर का गुड़ बाजार एशिया में सबसे बड़ा गुड़ का बाजार है। मुजफ्फर नगर में खतौली की पुली सम्पूर्ण भारत में महत्वपूर्ण है सबसे ज्यादा पृशिद है गन्ना भारत में सबसे अधिक पैदा होता है गन्ने के मिल भी सबसे ज्यादा संख्या में है यह एक उत्तराखंड बॉर्डर पर स्थित हे। यह स्थान सड़क जाम ओर चाट के लिए परसिद्ध हे। पुरकाज़ी को एनएच58 दो भागों में बाँटता हे। पुरकाज़ी में उत्तर प्रदेश परिवहन का मेन अड्डा हे।इस के पास से गंगा नदी भी बहती हे। यह स्थान हिन्दुओं का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल माना जाता है। गंगा नदी के तट पर स्थित शुक्रतल जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि इस जगह पर अभिमन्यु के पुत्र और अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित के पश्चात् केवल महर्षि सुखदेव जी ने भागवत गीता का वर्णन किया था। इसके समीप स्थित वट वृक्ष के नीचे एक मंदिर का निर्माण किया गया था। इस वृक्ष के नीचे बैठकर ही सुखदेव जी भागवत गीता के बारे में बताया करते थे। सुखदेव मंदिर के भीतर एक यज्ञशाला भी है। राजा परीक्षित महाराजा सुखदेव जी से भागवत गीता सुना करते थे। इसके अतिरिक्त यहां पर पर भगवान गणेश की 35 फीट ऊंची प्रतिमा भी स्थापित है। इसके साथ ही इस जगह पर अक्षय वट और भगवान हनुमान जी की 72 फीट ऊंची प्रतिमा बनी हुई है। यह गंगा के किनारे बसा है। जहाँ देश विदेश से कई लाख प्र्य्ट्क आते है। काली नदी के तट पर स्थित मुजफ्फरनगर शहर नई दिल्ली के उत्तरपूर्व से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस शहर की स्थापना खानएजहां ने 1633 ई. में की थी। उनके पिता मुजफ्फरखान के नाम पर इस जगह का नाम रखा गया है। मुजफ्फरनगर स्थित खतौली एक शहर है। यह जगह मुजफ्फरनगर से 21 किलोमीटर की दूरी पर और राष्ट्रीय राजमार्ग 58 द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है। यहां स्थित जैन मंदिर काफी खूबसूरत है। इसके अतिरिक्त एक विशाल सराय भी है। इनका निर्माण शाहजहां द्वारा करवाया गया था। खतौली का नाम पहले ख़ित्ता वली था जो बाद में खतौली हो गयायहाँ त्रिवेणी शुगर मिल एशिया का सबसे बड़ा मिल हैखतौली तहसील का सबसे मुख्य विलेज खेड़ी कुरेश है इस गांव में अनुसूचित जाति की संख्या का बाहुल क्षेत्र है अनुसूचित जातियो में चेतना पैदा करने में अग्रणी है यहां का सबसे निकटतम हवाई अड्डा दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी अंर्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। दिल्ली से मुजफ्फनगर 116 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मुजफ्फरनगर रेलमार्ग द्वारा भारत के प्रमुख शहरों से पहुंचा जा सकता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 58 द्वारा मुजफ्फनगर पहुंचा जा सकता है। भारत के कई प्रमुख शहरों जैसे नई दिल्ली, देहरादून, सहारनपुर और मसूरी आदि से यहां पहुंच सकते हैं। यहॉ इस शहर में बहुत से प्रतिष्ठत स्कूल व कालेज हैं। शहर में एक निजी वित्त पोषित इंजीनियरिंग कॉलेज और एक मेडिकल कॉलेज है। इन में शामिल हैं: गांधी पालीटेक्निक, आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज, आयुर्वेद अनुसंधान केन्द्र, कृषि कॉलेज, कृषि विज्ञान केन्द्र, अस्पतालों, नेत्र अस्पताल, डिग्री कालेजों, इंटर कालेज, वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों, नवोदय स्कूल, केन्द्रीय विधालय,, जूनियर हाई स्कूल, प्राथमिक स्कूलों, संस्कृत पाठशाला नयी राहे स्पेशल स्कूलभारतीय बाल एंव मानव कल्याण परिषद दिल्ली, ब्लाइंड स्कूल, योग प्रशिक्षण केन्द्र, अम्बेडकर छात्रावास, धर्मशाला, अनाथालय, वृद्वाआश्रम, बूढ़ी गाय के संरक्षण केन्द्र और कई अन्य आध्यात्मिक और धार्मिक केंद्र। मुज़फ़्फ़र नगर से जुड़ी कुछ खास बातें http:muzaffarnagar.nic.in
चंदर प्रकाश भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य की विजयपुर सीट से भारतीय जनता पार्टी के विधायक हैं। 2014 के चुनावों में वे जम्मू एण्ड कश्मीर नेशनल काँफ्रेंस के उम्मीदवार सुरजीत सिंह सलाथिया को 12172 वोटों के अंतर से हराकर निर्वाचित हुए।
कारवां पत्रिका, मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय, पूर्व रेलवे, सियालदह, कलकत्ता14, से प्रकाशित होती है।
चन्द्रकोट, कालाढूगी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है।
असगडपू0मनि01, पौडी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है।
निर्देशांक: 2449N 8500E 24.81N 85E 24.81 85 बारा 2 इमामगंज, गया, बिहार स्थित एक गाँव है।
जलपुरा में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद जिले का एक गाँव है।
षड्यंत्र का सिद्धांत एक ऐसा शब्द है, जो मूलत: किसी नागरिक, आपराधिक या राजनीतिक षड्यंत्र के दावे के एक तटस्थ विवरणक के लिए उपयोग किया जाता है। हालांकि, यह बाद में काफी अपमानजनक हो गया और पूरी तरह सिर्फ हाशिये पर स्थित उस सिद्धांत के लिए प्रयुक्त होने लगा, जो किसी ऐतिहासिक या वर्तमान घटना को लगभग अतिमानवीय शक्ति प्राप्त और चालाक षड़यंत्रकारियों की गुप्त साजिश के परिणाम के रूप में व्याख्यायित करता है। षड्यंत्र के सिद्धांत को विद्वानों द्वारा संदेह के साथ देखा जाता है, क्योंकि वह शायद ही किसी निर्णायक सबूत द्वारा समर्थित होता है और संस्थागत विश्लेषण के विपरीत होता है, जो सार्वजनिक रूप से ज्ञात संस्थाओं में लोगों के सामूहिक व्यवहार पर केंद्रित होती है और जो ऐतिहासिक और वर्तमान घटनाओं की व्याख्या के लिए विद्वतापूर्ण सामग्रियों और मुख्यधारा की मीडिया रपटों में दर्ज तथ्यों पर आधारित होती है, न कि घटना के मकसद और व्यक्तियों की गुप्त सांठगांठ की कार्रवाइयों की अटकलों पर. इसलिए यह शब्द अक्सर हल्के रूप से एक विश्वास को चित्रित करने के प्रयास के रूप में प्रयुक्त होता है, जो विचित्र तरह का झूठ हो और सनकी के रूप में चिह्नित किये हुए या उन्मादी प्रकृति के लोगों वाले समूह द्वारा व्यक्त किया गया हो. इस तरह का चित्रण अपने संभावित अनौचित्य और अनुपयुक्तता के कारण अक्सर विवाद का विषय होता है। राजनीति वैज्ञानिक माइकल बारकुन के मुताबिक षड्यंत्र के सिद्धांत कभी हाशिये पर या कुछ थोड़े लोगों तक सीमित होते थे, पर अब जनप्रचार माध्यमों के लिए आम हो गये हैं। वे तर्क देते हैं कि इसने षड्यंत्रवाद की अवधारणा पैदा होने में योगदान दिया, जो 20 वीं सदी के आखिर और 21 वीं सदी के प्रारंभ में संयुक्त राज्य अमेरिका में सांस्कृतिक घटना के रूप में उभरा और जनता के मन में राजनीतिक कार्रवाई के प्रभावी प्रतिमान के रूप में लोकतंत्र के संभावित प्रतिस्थापन के रूप में साजिश को माना गया। मानवविज्ञानी टॉड सैंडर्स और हैरी जी वेस्ट के मुताबिक सबूत से पता चलता है कि आज अमेरिकियों का एक व्यापक वर्ग ..... षड्यंत्र के कम से कम कुछ सिद्धांतों को सही मानता है। इसलिए षड्यंत्र के सिद्धांतों में विश्वास समाजशास्त्रियों, मनोवैज्ञानिकों और लोककथाओं के विशेषज्ञों की रुचि का एक विषय हो गया है। षड्यंत्र का सिद्धांत शब्द सिविल, आपराधिक या राजनीतिक साजिश के किसी वैध या अवैध दावे के लिए एक तटस्थ सूत्रधार हो सकता है। षड्यंत्र करने का मतलब है, किसी अवैध या गलत कार्य को पूरा करने के लिए एक गुप्त समझौता करना या किसी वैध मकसद को हासिल करने के लिए ऐसे तरीकों का उपयोग करना. हालांकि, षड्यंत्र के सिद्धांत का प्रयोग एक वर्णनात्मक विधा की ओर इंगित करने के लिए भी होता है, जिसमें बड़े षड्यंत्रों के अस्तित्व के लिए व्यापक तर्कों का एक गड़ा चयन शामिल हो. इस अर्थ में सिद्धांत शब्द कभीकभी मुख्यधारा के वैज्ञानिक सिद्धांत के बजाय अटकल या प्राक्कल्पना के रूप में ज्यादा अनौपचारिक माना जाता है। इसके अलावा साजिश शब्द आम तौर पर शक्तिशाली चेहरों, अक्सर उन प्रतिष्ठानों के लिए प्रयुक्त होता है, जिनपर एक बड़ी जनसंख्या को धोखा देने का विश्वास किया जाता है, जैसे राजनीतिक भ्रष्टाचार. हालांकि कुछ षड्यंत्र वास्तव में सिद्धांत नहीं होते, लेकिन वे अक्सर आम जनता द्वारा इस रूप में चिह्नित कर दिये जाते हैं। षड्यंत्र के सिद्धांत वाक्यांश का पहला दर्ज उपयोग 1909 से दिखता है। मूलतः यह एक तटस्थ शब्द था, लेकिन 1960 के दशक में हुई राजनीतिक उठापटक के बाद इसने अपने वर्तमान अपमानजनक अर्थ को धारण किया। ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में यह 1997 के आखिर में पूरक के रूप में शामिल हुआ। षड्यंत्र सिद्धांत शब्द विद्वानों और लोकप्रिय संस्कृतियों द्वारा लोगों से ताकत, पैसा या आजादी का हरण करने के मकसद से की गईं गुप्त सैन्य, बैंकिंग, या राजनीतिक कार्रवाइयों की पहचान के लिए बार बार प्रयोग किया जाता रहा है। कम प्रचलित अर्थ में यह लोककथा और शहरी इतिहास कथा व विविध तरह के व्याख्यात्मक किस्म के कथोपकथन के रूप में प्रयुक्त होता है, जो पौराणिक कथाओं से जुड़े होते हैं। यह शब्द इन दावों को स्वत: खारिज करने के अपमानजनक अर्थ में भी इस्तेमाल होता है, जो हास्यास्पद, नासमझीपूर्ण, पागलपन भरा, निराधार, विचित्र या अतार्किक हो. उदाहरण के लिए वाटरगेट षड्यंत्र सिद्धांत शब्द आम तौर पर स्वीकृत अर्थ के लिए नहीं होता है, जिसमें वास्तव में कई प्रतिभागियों को षड्यंत्र के चलते दोषी ठहराया गया और दूसरों को आरोप दर्ज करने से पहले ही माफ़ कर दिया गया, बल्कि इसका वैकल्पिक और अतिरिक्त सिद्धांतों वाले अर्थ के लिए किया जाता है जैसे ये दावे कि डीप थ्रोट कहा जाने वाला सूचना स्रोत गढ़ा हुआ था। एडेप्टेड फ्रॉम ए स्टडी प्रिपेयर्ड फॉर सीआईए नामक अपने प्रारंभिक लेख में डैनियल पाइप्स ने इसे परिभाषित करने का प्रयास किया, जो मानसिकता षडयंत्र को विचारों के अधिक पारंपरिक पैटर्न से अलग करने में विश्वास जताता है। उन्होंने इसे इस रूप में परिभाषित किया: जो दिखता है, वह धोखा है षड्यंत्र इतिहास को संचालित करता है कुछ भी अव्यवस्थित नहीं है, दुश्मन हमेशा ताकत, शोहरत, पैसा और सेक्स हासिल करता है। वेस्ट और सैंडर्स के अनुसार जब वियतनाम युग में षड्यंत्र के बारे में बात की जा रही थी तो पाइप्स ने इसमें हाशिये पर पड़े तत्वों को इस सोच को शामिल किया कि षड्यंत्रों ने प्रमुख राजनीतिक घोटालों और हत्याओं में एक प्रमुख भूमिका निभाई, जिसने वियतनाम युग में अमेरिकी राजनीति को हिला दिया. वह उत्पीड़न के किसी भी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक या सामाजिकवैज्ञानिक विश्लेषण में उन्मादी शैली को देखते हैं। राजनीति वैज्ञानिक माइकल बारकुन ने चौड़ाई के आरोही क्रम में षड्यंत्र के सिद्धांतों को श्रेणीबद्ध किया है, जो इस प्रकार हैं: एक वैश्विक विचार षड्यंत्र के सिद्धांतों को केंद्रित रूप में इतिहास में कभीकभी षड्यंत्रवाद के रूप में दर्ज करता है। इतिहासकार रिचर्ड होफ्सटैडटर 1964 में प्रकाशित द पैरानॉयड स्टाइल ऑफ अमेरिकन पॉलिटिक्स नाम के निबंध में पूरे अमेरिकी इतिहास में व्यामोह और षड्यंत्रवाद की भूमिका की चर्चा की है। बर्नार्ड बेलिन की शास्त्रीय पुस्तक द आइडियोलॉजिकल ओरिजिन्स ऑफ अमेरिकन रिवोल्युशन में कहा गया है कि इस तरह की अवधारणा अमेरिकी क्रांति के दौरान पायी जा सकती है। तब षड्यंत्रवाद लोगों के नजरिये और साथ ही षड्यंत्र के सिद्धांतों के उन प्रकारों को चिह्नित करता है, जो अनुपात में ज्यादा वैश्विक और ऐतिहासिक हैं। षड्यंत्रवाद शब्द 1980 के दशक में शिक्षाविद फ्रैंक पी. मिंट्ज द्वारा लोकप्रिय किया गया। षड्यंत्र के सिद्धांतों और षड्यंत्रवाद के संबंध में शैक्षणिक कार्य से विधा के अध्ययन के आधार के रूप में अंशोद्धरण की एक व्यापक श्रेणियां पेश की जा सकी हैं। षड्यंत्रवाद के अग्रणी विद्वानों में शामिल हैं: होफ्सटैडटर, कार्ल पॉपर, माइकल बारकुन, रॉबर्ट एलन गोल्डवर्ग, डैनियल पाइप्स, मार्क फेंस्टर, मिंट्ज, कार्ल सैगन, जॉर्ज जॉनसन और गेराल्ड पोसनर. मिंट्ज के अनुसार षड्यंत्रवाद एक संकेतक है: खुले इतिहास में षड्यंत्रों की प्रधानता में विश्वास.: षड्यंत्रवाद अमेरिका और अन्य जगहों में विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक समूहों की जरूरत को पूरा करता है। यह संभ्रांत वर्ग की पहचान करता है, उन्हें आर्थिक और सामाजिक महाविपत्ति के लिए दोषी ठहराता है और मानता है कि एक बार लोकप्रिय कार्रवाई के जरिये उन्हें सत्ता के पदों से हटाया जाता तो हालात कुछ अच्छे हो सकते थे। जैसे, षड्यंत्र के सिद्धांत एक खास युगकाल या विचारधारा के प्रकार नहीं बताते. पूरे मानव इतिहास के दौरान राजनीतिक और आर्थिक नेता सचमुच भारी संख्या में मौतों और आपदा के कारण बने हैं और वे कभीकभी एक ही समय में अपने लक्ष्यों के बारे में षड्यंत्र के सिद्धांतों को बढ़ावा देने में शामिल हुए हैं। हिटलर और स्टालिन सबसे प्रमुख् उदाहरणों में से हैं अन्य सारे उदाहरण भी हैं। कुछ मामलों में दावों को षड्यंत्र के सिद्धांत कहकर खारिज कर दिया गया, पर बाद में वे सही साबित साबित हुए. इस विचार कि इतिहास खुद बड़े दीर्घावधि तक चले षड्यंत्रों द्वारा नियंत्रित है, को इतिहासकार ब्रूस क्यूमिंग्स द्वारा अस्वीकार कर दिया गया: लेकिन अगर षड्यंत्र मौजूद हैं, वे शायद ही कभी इतिहास को बदलते हैं वे समयसमय पर सीमांत पर फर्क ला सकते हैं, लेकिन उनके रचनाकारों के नियंत्रण के बाहर एक तर्क के अप्रत्याशित परिणामों के साथ: और यही षड्यंत्र सिद्धांत के साथ गलत बात है। इतिहास मानव समूहों की बड़ी ताकतों और व्यापक संरचनाओं द्वारा बदला जाता है। षड्यंत्रवाद शब्द का उपयोग माइकेल केली, चिप बर्लेट और मैथ्यू एन. लियोंस के लेखन में हुआ है। बर्लेट और लियोंस के अनुसार, षड्यंत्रवाद बलि का बकरा बनाने का एक खास वृतांतात्मक रूप है, जो पैशाचिक दुश्मनों को एक आम तौर पर भले कार्य के खिलाफ बड़ी आंतरिक साजिश में फंसाता है, जबकि यह बलि के उस बकरे को खतरे की घंटी बजाने वाले वाले नायक के रूप में आंकता है। षड्यंत्र के सिद्धांत शिक्षाविदों, राजनेताओं और प्रचार माध्यमों द्वारा व्यापक आलोचना का विषय है। शायद षड्यंत्र के सिद्धांत का सबसे विवादास्पद पहलू किसी विशेष सिद्धांत के सच को उजागर करने की समस्या है, जिससे इसे रचने वाले और इसका विरोध करने वाले दोनों संतुष्ट हो सकें. षड्यंत्र के कुछ खास आरोप काफी अलगअलग हो सकते है, लेकिन उनकी संभावित सत्यवादिता के आकलन के लिए प्रत्येक मामले में लागू कुछ आम मानकों को लागू कर सकती है। संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिष्ठान के शैक्षिक आलोचक नोम चोमस्की षड्यंत्र के सिद्धांत को कम या अधिक संस्थागत विश्लेषण के विपरीत रखा है, जो व्यक्तियों के गुप्त साठगांठ के बदले मुख्यत: जनता, सार्वजनिक रूप से ज्ञात संस्थाओं के दीर्घावधि व्यवहार व मुख्यधारा की मीडिया रपटों पर ज्यादा केंद्रित होती है। विवाद किन्हीं खास षड़यंत्रपूर्ण दावों की खूबियों से पैदा विवादों से अलग षड्यंत्र के सिद्धांत की आम चर्चा स्वयं कुछ सार्वजनिक सहमति का एक मामला है। विभिनन पर्यवेक्षकों द्वारा षड्यंत्र सिद्धांत शब्द को एक षड्यंत्रपूर्ण दावे का निष्पक्ष वर्णन करार किया गया है, जो एक अपमानजनक शब्द है, जिसका प्रयोग इस तरह के दावे को बिना परीक्षा के खारिज करने के लिए किया जाता है और इस तरह के दावे को बढ़ावा देने वालों द्वारा सकारात्मक समर्थन देने का संकेत करने के लिए भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता है। कुछ लोगों द्वारा इस शब्द का प्रयोग वैसे तर्क के लिए किया जा सकता है, जिन पर वे पूरी तरह विश्वास नहीं करते, लेकिन इसे परिवर्तनमूलक और रोमांचक मानते हैं। इस शब्द का सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत अर्थ वह है, जो लोकप्रिय संस्कृति और शैक्षणिक उपयोग के चलन में है और निश्चित रूप से इसका वक्ता की संभावित सत्यवादिता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इंटरनेट पर षड्यंत्र के सिद्धांत अक्सर हाशिये पर स्थित समूह बताकर खारिज कर दिये जाते है, लेकिन सबूत से पता चलता है कि आज अमेरिकियों का एक बड़ा हिस्सा, भले ही वे किसी भी जातीय, लिंग, शिक्षा, पेशा और अन्य समूहों के हों कम से कम कुछ षड्यंत्र सिद्धांतों को विश्वसनीय मानते हैं। इस शब्द के लोकप्रिय अर्थ को देखते हुए भी इनका वास्तव में ठोस और पूरे सबूतों वाले आरोपों को खारिज करने के साधन के रूप में अवैध रूप से और अनुपयुक्त प्रयोग किया जा सकता है। इसलिए ऐसे हर उपयोग की वैधता कुछ विवादों का विषय होगी. 1996 में माइकल पारेंटी लिखे गये अपने निबंध द जेकेएफ एसेसिनेशन 2: कांसपिरेसीफोबिया ऑन द लेफ्ट, जिसमें इस शब्द के उपयोग में प्रगतिशील मीडिया भूमिका की परख की गई है, में लिखा गया है, वास्तुवादी और संस्थागत विश्लेषण से पता चलता है कि इस शब्द का तब दुरुपयोग किया जाता है, जब वह उन संस्थाओं पर लागू होता है, जो अपने स्वीकृत लक्ष्यों के अनुसार कार्य कर रहे हैं, जैसे मुनाफे में वृद्धि के लिए जब निगमों का एक समूह के मूल्य को स्थिर करने में संलग्न होता है। यूएफओ जैसी अवधारणाओं के लिए जटिलताएं आ सकती हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ है अनआइडेंटीफायड फ्लाइंग ऑब्जेक्ट, लेकिन इसका अर्थ एक विदेशी अंतरिक्ष यान के साथ भी जुड़ा हुआ है, जो अवधारणा षड्यंत्र के कुछ सिद्धांतों से जुड़ी हुई है और इस तरह यह कुछ खास सामाजिक कलंक से भी जुड़ा होता है। माइकल पारेंटी इस शब्द के प्रयोग का एक उदाहरण देते हैं, जो इसके खुद के प्रयोग में परस्पर विरोधी दिखता है। वे लिखते हैं, षड्यंत्र सिद्धांत शब्द खुद षड्यंत्र सिद्धांत का एक प्रकार का विषय है, जो यह तर्क देता है कि शब्द का प्रयोग चर्चा के विषय के प्रति दर्शकों के उपेक्षा भाव में जोड़तोड़ करने के लिए किया जाता है, या तो सच को छुपाने के जानबूझकर किये गये प्रयास के रूप में या जानबूझकर की गई साजिश के छलावे के रूप में. जब षड्यंत्र के सिद्धांतों को आधिकारिक दावों के रूप में पेश किया जाता है, तो उन्हें आम तौर पर षड्यंत्र के सिद्धांत के रूप में विचार नहीं किया जाता. उदाहरण के रूप में हाउस अनअमेरिकन एक्टीविटिज कमेटी की कुछ तय गतिविधियों को षड्यंत्र सिद्धांत को बढ़ावा देने की आधिकारिक कोशिश कहा जा सकता है, हालांकि शायद ही कभी इसके दावों को इस रूप में संदर्भित किया जाता है। आगे इस शब्द के सिद्धांत की अस्पष्टता से कठिनाइयां पैदा होती हैं। लोकप्रिय उपयोग में, इस शब्द का अक्सर निराधार या कमजोर तथ्यों पर आधारित अटकलों के रूप में उल्लेख किया जाता है, जिससे यह विचार उभरता है कि अगर यह वास्तव में सच है तो यह एक षड्यंत्र का सिद्धांत नहीं है। 1936 में अमेरिकी टीकाकार एच. एल. मेनकेन ने लिखा: कम से कम 1960 के दशक के बाद से षड्यंत्र के सिद्धांतों में विश्वास समाजशास्त्रियों, मनोवैज्ञानिकों और लोककथाओं के विशेषज्ञों के लिए रुचि का एक विषय बन गया, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की हत्या के बाद अंततः वॉरेन आयोग की रिपोर्ट में दर्ज तथ्यों के आधार पर मामले के सरकारी संस्करण के खिलाफ जनता की एक अभूतपूर्व प्रतिक्रिया आई. कुछ मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, अगर एक व्यक्ति षड्यंत्र के एक सिद्धांत में विश्वास करता है तो दूसरों में भी विश्वास करेगा एक व्यक्ति जो षड्यंत्र के एक सिद्धांत में विश्वास नहीं करता है, तो वह दूसरे पर भी विश्वास नहीं करेगा.ऐसा सूचनाओं के बीच मतभेदों के कारण भी हो सकता है, जिस पर दल अपने निष्कर्ष तैयार करने में विश्वास करते है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि षड्यंत्रवाद और षड्यंत्र के सिद्धांत के विकास में अर्थ की तलाश आम बात है और यह अकेले इतना शक्तिशाली हो सकता है, जो सबसे पहले एक विचार का निर्माण कर सके. एक बार संज्ञान होने पर पुष्टि का पूर्वाग्रह और संज्ञानात्मक विस्वरता का परिहार विश्वास को सुदृढ़ कर सकता है। एक संदर्भ में, जहां एक साजिश का सिद्धांत एक सामाजिक समूह में लोकप्रिय हो गया है, तो साम्प्रदायिक सुदृढीकरण भी समान रूप से एक भूमिका का हिस्सा हो सकता है। ब्रिटेन के केंट विश्वविद्यालय में किये गये कुछ शोध से पता चलता है कि लोग यह जाने बिना षड्यंत्र के सिद्धांतों से प्रभावित हो सकते हैं कि उनका नजिरया बदल गया है। वाल्स की राजकुमारी डायना की मौत के बारे में उजागर साजिश के कुछ लोकप्रिय सिद्धांतों के अध्ययन के बाद इसके प्रतिभागियों ने सहीसही यह अनुमान लगाया कि उनके साथियों का रवैया कितना बदल गया है, लेकिन महत्वपूर्ण रूप से उन्होंने इस बात को काफी कम करके आंका कि षड्यंत्र के सिद्धांतों के पक्ष में उनका दृष्टिकोण कितना बदल गया है। लेखकों ने निष्कर्ष निकाला कि षड्यंत्र के सिद्धांतों में एक छिपी हुई शक्ति होती है, जो लोगों को प्रभावित करती हैं। मानवतावादी मनोवैज्ञानिकों का तर्क है कि भले ही साजिश के पीछे एक गुप्त दल हमेशा से शत्रुतापूर्ण रुख वाला रहा है, फिर भी षड्यंत्र के सिद्धांतकारों के लिए उसमें आश्वासन का एक तत्व होता है, क्योंकि यह सोचना सांत्वना प्रदान करता है कि मानव से जुड़े मामलों की जटिलताएं और उठापटक कम से कम मानवों द्वारा ही पैदा की जाती हैं, मानव नियंत्रण से बाहर के कारकों द्वारा नहीं. इस तरह के एक गुप्त दल खुद को आश्वस्त करने का एक उपकरण हैं कि कुछ घटनाएं यादृच्छिक नहीं हैं, लेकिन मानव बुद्धि के द्वारा आदेशित हैं। यह प्रदर्शित करता है कि इस तरह की घटनांएं सुबोध और संभावित रूप से नियंत्रण करने योग्य होती हैं। अगर एक गुप्त दल के कारनामों को घटनाओं के एक अनुक्रम में आलिप्त किया जा सकता है, वहां हमेशा क्षीण ही सही, लेकिन उम्मीद बंधती है, लेकिन एक छोटे गुप्त समूह की ताकत को कमजोर करने के लिए या इसमें शामिल होने और खुद उस शक्ति का प्रयोग करने के लिए. अंत में एक छोटे गुप्त समूह की ताकत में विश्वास मानव गरिमा का निर्विवाद अभिकथन है भले ही अवचेतन में, लेकिन आवश्यक रूप से निश्चयपूर्वक घोषणा है कि आदमी बिल्कुल असहाय नहीं है, लेकिन कम से कम कुछ मामलों में खुद के भाग्य के लिए वह जिम्मेदार है। कुछ इतिहासकारों का तर्क है कि षड्यंत्रवाद में मनोवैज्ञानिक प्रक्षेपण का एक तत्व होता है। तर्क के मुताबिक, यह प्रक्षेपण साजिश करने वालों के लिए स्वयं की विशेषताओं के अवांछनीय रोपण के रूप में प्रकट होता है। रिचर्ड होफ्सटैडटर ने अपने निबंध द पारानायड स्टाइल इन अमेरिकन पॉलिटिक्स में लिखा है कि ... इस निष्कर्ष का प्रतिकार मुश्किल है कि यह दुश्मन कई मामलों में स्वयं के प्रक्षेपण का विरोधी है, आदर्श और स्वयं को अस्वीकार्य करने के पहलुओं दोनों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। दुश्मन महानगरीय बुद्धिजीवी हो सकता है, लेकिन व्यामोहपीड़ित अपनी शैक्षणिक उपलब्धियों के उपकरण के रूप में उससे आगे बढ़ेगा ... कू क्लूस क्लान ने पुरोहित के पहनावे को धारण करने, एक विस्तृत रस्म विकसित करने और एक समान रूप से विस्तृत पदानुक्रम के बिदु पर कैथोलिकवाद का अनुकरण किया। जॉन बिर्च सोसायटी कम्युनिस्ट समूहों और अर्धगुप्त आपरेशन को अग्रणी समूहों के माध्यम से मिलाती है और कम्युनिस्ट दुश्मन में मिलने वाली समान प्रवृत्तियों के साथ वैचारिक युद्ध का एक क्रूर अभियोजन का एक धार्मिक संदेश देती है। विभिन्न कट्टरपंथी कम्युनिस्ट विरोधी योद्धाओं के प्रवक्ता खुलेआम कम्युनिस्ट हितों के लिए समर्पण और अनुशासन के प्रति अपना प्रशंसा भाव व्यक्त करते हैं। होफ्सटैडटर ने यह भी लिखा है कि यौन स्वतंत्रता एक व्यसन है, जो बारबार षड्यंत्रवादी के निशाने वाले समूह पर आरोपित किया जाता है, यह दर्ज करते हुए कि सच्चे विश्वासियों की कल्पनाओं से अक्सर सॉडोमैसोस्टिक रास्तों के प्रति आग्रह मजबूती से व्यक्त किया जाता है। उदाहरण के लिए तांत्रिक तरीके से दिये गये दंड की क्रूरता से तंत्र विरोधियों में खुशी देखी जाती है। Novelist William Gibson, October 2007. यह संभव है कि कुछ बुनियादी मानव ज्ञान सिंद्धांत पूर्वाग्रह परीक्षण वाली सामग्रियों पर केंद्रित की जायें. एक अध्ययन के अनुसार मनुष्य रूल ऑफ थंब लागू करता है, जिसके जरिये हम उम्मीद करते हैं कि महत्वपूर्ण घटना का महत्वपूर्ण कारण होता है। यह अध्ययन विषयों के लिए घटनाओं के चार संस्करण पेश करता है, जिसमें एक विदेशी संगठन प्रमुख की सफलतापूर्वक हत्या कर दी गई, घायल हुआ, लेकिन बच गया, घाव के बावजूद बच गये, लेकिन बाद की तारीख में दिल के दौरे की मृत्यु हो गई और पूरी तरह बच गये। बड़ी घटनाओं के मामलों में विषय महत्वपूर्ण रूप से संदिग्ध षड्यंत्र की ओर इशारा कर सकते हैं जिसमें संगठन प्रमुख की मौत हो गई तब अन्य मामलों की तुलना में उनके पास उपलब्ध अन्य सबूत समान हों. पैरीडोलिया से जुड़े होने के कारण मानवों की आनुवांशिक प्रवृत्ति है कि वह संयोग में पैटर्न खोजने की कोशिश करता है और यह किसी महत्वपूर्ण घटना में षड्यंत्र की खोज की अनुमति देता है। एक अन्य इपिस्टेमिक रूल ऑफ थंबअन्य मानवों की भागीदारी वाले रहस्यों पर गलत रूप से लागू किया जा सकता है, जो कुई बोनो होगा. अन्य लोगों के छिपे हुए उद्देश्यों के लिए यह संवेदनशीलता और एक मानव चेतना के सार्वभौमिक लक्षण के रूप में शामिल हो सकती है। हालांकि, यह जासूसों के उपयोग के लिए एक वैध रूल ऑफ थंब हो सकता है, जब जांच के लिए संदिग्धों की एक सूची बनाई जा रही हो. किसके पास मकसद, साधन और अवसर है के रूप में प्रयोग इस रूल ऑफ थंब का एक पूरी तरह से वैध उपयोग है। कुछ व्यक्तियों के लिए साजिश के एक सिद्धांत पर विश्वास करने, साबित करने या या फिर से बताने की एक जुनूनी मजबूरी हो सकती है और यह इस बात का संकेत है कि एक या एक से अधिक पूरी तरह समझी हुई मनोवैज्ञानिक स्थिति और अन्य काल्पनिक स्थितियां : व्यामोह, इनकार, एक प्रकार का पागलपन मीन वर्ल्ड सिंड्रोम हो सकती हैं। क्रिस्टोफर हिट्चेंस षड्यंत्र के सिद्धांतों को लोकतंत्र के गैस का निकास मानते हैं, जो भारी संख्या में लोगों के बीच परिसंचारी जानकारी की बड़ी राशि का एक अपरिहार्य परिणाम होती है। अन्य सामाजिक टीकाकारों और समाजशास्त्रियों का कहना है कि षड्यंत्र के सिद्धांत उन विविधताओं से पैदा होते हैं, जो एक लोकतांत्रिक समाज के भीतर बदल सकते है। षड़यंत्रपूर्ण घटनाएं तब भावनात्मक रूप से संतोषजनक हो सकती हैं, जब उन्हें एक सहज बोधगम्य व नैतिक संदर्भ में रखा जाये. सिद्धांत को ग्राहक के लिए एक भावनात्मक रूप से परेशान कर घटना या व्यक्तियों का एक स्पष्ट रूप से कल्पना समूह की स्थिति के लिए नैतिक जिम्मेदारी प्रदान करने में सक्षम है। महत्वपूर्ण बात है यह कि समूह आस्तिकों को शामिल नहीं करता . आस्तिक निदान के लिए कोई नैतिक या राजनीतिक दायित्व से मुक्त महसूस कर सकता है, भले ही कोई संस्थागत या सामाजिक खामी मतभेद का वास्तविक स्रोत हो सकता है। जहां जिम्मेदार सामाजिक व्यवहार सामाजिक स्थितियों द्वारा रोका जाता है या साधारणत: एक व्यक्ति की क्षमता से परे होता है, तो षड्यंत्र का सिद्धांत भावनात्मक मुक्ति या बंद की प्रक्रिया को आसान बनाता है, जहां ऐसी भावनात्मक चुनौतियों की जरूरत होती है। नैतिक आतंक की तरह षड्यंत्र के सिद्धांत उन समुदायों में बारबार उभरते हैं, जो सामाजिक अलगाव और राजनीतिक नि:सशक्तिकरण का अनुभव करते हैं। मार्क फेंस्टर का तर्क है कि सिर्फ इसलिए कि मेहराबनुमा षड्यंत्र के सिद्धांत गलत हैं, इसका मतलब यह नहीं कि वे कुछ नहीं बिगाड़ सकते. विशेष रूप से, वे सैद्धांतिक रूप से वास्तविक संरचनात्मक अन्याय को संबोधित होते हैं, एक जर्जर नागरिक समाज के लिए एक प्रतिक्रिया देते हैं और उत्पादन के साधनों के स्वामित्व के प्रति एकाग्र होते हैं, जो एक साथ राजनीतिक विषय को मान्यता और सार्वजनिक दायरे में सूचित करने की योग्यता से परे कर देते हैं। . सामाजिक इतिहासकार होल्गन हरविग नेप्रथम विश्व युद्ध के मूल कारणों के लिए जमर्नी के स्पष्टीकरण का अध्ययन किया : यह सामान्य प्रक्रिया कई तरह के प्रभावों द्वारा बदली जा सकती है। व्यक्तिगत स्तर पर मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं पर जोर देने से प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है और हमारे कुछ सार्वभौमिक मानसिक औजार इप्सटेमिक ब्लाइंड स्पॉट है। एक समूह या सामाजिक स्तर पर ऐतिहासिक कारक संतोषजनक अर्थ निर्दिष्ट करने की प्रक्रिया को कम या अधिक समस्याग्रस्त कर सकते हैं। वैकल्पिक रूप से षड्यंत्र के सिद्धांत तब उत्पन्न हो सकते हैं, जब सार्वजनिक रिकॉर्ड में उपलब्ध सबूत घटनाओं के सामान्य या सरकारी संस्करण के साथ मेल नहीं खायें. इस संबंध में षड्यंत्र के सिद्धांत कभीकभी घटनाओं के आम या आधिकारिक व्याख्याओं में ब्लाइंड स्पॉट को उजागर कर सकते हैं। मीडिया टीकाकार नियमित रूप से ज्यादा जटिल संरचनात्मक पक्ष के विपरीत व्यक्तिगत एजेंटों के चश्मे के जरिये घटनाओं को समझने की समाचार मीडिया और लोकप्रिय संस्कृति की प्रवृत्ति को नोट करते हैं। यदि यह प्रेक्षण सच है तो यह उम्मीद की जा सकती है कि दर्शक इस पक्ष पर जोर देने की मांग और इसका उपभोग दोनों करता है और यह अपने आप के लिए व्यक्तिगत और सामाजिक घटनाओं के नाटकीय विवरण के प्रति ज्यादा ग्रहणशील है। मीडिया की एक दूसरी, शायद संबंधित, आलंकारिक भाषा में नकारात्मक घटनाओं के लिए व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय करने का प्रयास होता है। मीडिया में एक प्रवृत्ति है कि अगर एक घटना होती है तो वह अपराधियों की तलाश शुरू करता है और इतना महत्वपूर्ण होता है कि यह कुछ दिनों के भीतर अपनी खबर के एजेंडे से इसे नहीं हटाता. इस प्रवृत्ति को लेकर यह कहा गया है कि एक विशुद्ध दुर्घटना की अवधारणा के लिए एक खबर में जगह नहीं होती. फिर, अगर यह एक सही अवलोकन है, तो वह उस वास्तविक परिवर्तन में प्रतिबिंबित हो सकता है कि कैसे मीडिया उपभोक्ता नकारात्मक घटनाओं को देखता है। हॉलीवुड के सिनेमा और टीवी शो निगमों और सरकारों के मानक कामकाज के रूप में षड्यंत्र में विश्वास को स्थाई बनाये रखने और विस्तारित करने में लगे रहते हैं। इनिमी ऑफ द स्टेट एंड शूटर्स जैसी फीचर फिल्में उन बहुत सारी फिल्मों में से हैं, जो षड्यंत्र को एक सामान्य कामकाज के रूप में आगे बढ़ाती है और ये षड्यंत्रों पर सवाल उठाने की प्रवृत्ति को भी त्याग देती हैं, जो करीब 1970 से पहले के फिल्म युग में एक खासियत थी। जेएफके की हत्या के संदर्भ में शूटर इसी प्रणाली से काम करता है, जैसे षड्यंत्र काम करते हैं. यह दिलचस्प है कि फिल्में और टीवी शो मुद्दों के मानवीकरण और नाटकीकरण के संबंध में समाचार मीडिया की तरह काम करता है, जिन्हें एक षड्यंत्र के सिद्धांत में शामिल करना आसान होता है। घर आना वियतनाम युद्ध के घायल सैनिक के लौटने को एक बड़ी समस्या में बदल देता है, क्योंकि एक मौका दिखता है कि घायल सैनिक प्रेम जाल में फंस जायेगा और जब वह ऐसा करता है तो इसका एक मजबूत निष्कर्ष यह निकलता है कि एक बड़ी समस्या का हल हो गया। यह पहलू हॉलीवुड की पटकथा के विकास का एक प्राकृतिक परिणाम है, जो एक या दो प्रमुख पात्रों को ज्यादा महत्व देते हैं, जिनका अभिनय बड़े सितारे करते हैं और इस प्रकार फिल्म के विपणन का एक अच्छा तरीका स्थापित हो जाता है, लेकिन परीक्षण के बाद अवैध लोगों के चक्रव्यूह का पर्दाफाश हो जाता है। उसके बाद संदिग्ध रूप से उचित ठहराये गये एक सुखद अंत की जरूरत पड़ती है, हालांकि, दर्शकों को इसकी उम्मीद होती है, पर वास्तव इसका एक दूसरा प्रभाव झूठे और काल्पनिक कहानियों की भावना को बढ़ाचढ़ा कर पेश करने के रूप में आता है और वस्तुतः इससे जन प्रचार माध्यम के कथन में जनता के विश्वास खोने को उचित ठहराता है। विश्वास के नुकसान से जो शून्य पैदा होता है, वह षड्यंत्र के सिद्धांत के स्पष्टीकरण को ध्वस्त कर देता है। वास्तविक या काल्पनिक घटनाओं के नाटकीकरण का कार्य भी एक स्तर पर असत्यता और जानबूझकर किये गये प्रयासों को पोषित करता है, जिसे आज मीडिया के जानकार आसानी से पहचान सकते हैं। काल्पनिक पत्रकारिता की अवधारणा में आजकल समाचार का लगभग हमेशा नाटकीकरण हो रहा है, कम से कम एक पक्ष को दूसरे के मुकाबले पेश किया जाता है, जिस अवधारणा के मुताबिक सभी कहानियों में दोनों पक्षों को शामिल किया जाना चाहिए या फीचर फिल्मों की तरह अधिक गहन नाटकीय घटनाक्रम होना चाहिए. इस स्पष्ट नाटकीकरण के द्वारा मीडिया इस विचार को मजबूत करता है कि सभी चीजें जानबूझकर किसी के लाभ के लिए होती हैं, जो इसकी एक और परिभाषा हो सकती है, कम से कम, राजनीतिक षड्यंत्र के सिद्धांतों के लिए.हिस्ट्री ऑफ अमेरिकन सिनेमा डॉ॰ चार्ल्स हारपोल, स्क्राइबनरयू काल्फि प्रेस. वॉशिंगटन पोस्ट के एक पत्रकार और वाम व दक्षिणपंथी दोनों तरह की युद्ध विरोधी गतिविधियों के आलोचक माइकल केली ने युद्ध विरोधी गतिविधियों और नागरिक स्वतंत्रता से जुड़े वाम व दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं के राजनीतिक अभिसरण को संदर्भित करने के लिए एकरूपता का व्यामोह नामक शब्द गढ़ा, जो उनके मुताबिक षड्यंत्रवाद या सरकार विरोधी विचारों में एक साझा विश्वास से प्रेरित हैं। सामाजिक आलोचकों ने इस शब्द का उल्लेख इस संदर्भ में किया कि कैसे व्यामोहयुक्त षड्यंत्र सिद्धांत का संष्लेषण, जो कभी हाशिये पर पड़े कुछ अमेरिकी दर्शकोंतक सीमित था, अब एक जन अपील बन गया हैं और जन संचार माध्यमों में एक सामान्य स्थान हासिल कर चुका हैं और इस तरह 20 वीं और के अंत और 21 वीं शताब्दी की शुरूआत में भविष्यसूचक सहस्त्राब्दी परिदृश्य के लिए सक्रिय रूप से तैयारी कर रहे लोगों के प्रतिद्वंद्वीविहीन काल खंड का उद्घाटन हो रहा है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यह घटना न केवल एकल आतंकवाद को बढ़ावा देगी, बल्कि यह अमेरिकी लोगों के राजनीतिक जीवन पर घातक प्रभाव डालेगी, जैसे विद्रोही दक्षिणपंथी पॉपुलिस्ट मूवमेंट का उभार स्थापित राजनीतिक ताकतों को नष्ट करने में सक्षम होगी. डैनियल पाइप्स ने 2004 में जेरूसलम पोस्ट में फ्यूजन पैरानोरिया नामक लेख लिखा था : The politically disaffected: Blacks, the hard Right, and other alienated elements . Their theories imply a political agenda, but lack much of a following. The culturally suspicious: These include Kennedy assassinologists, ufologists, and those who believe a reptilian race runs the earth and alien installations exist under the earths surface. Such themes enjoy enormous popularity, but carry no political agenda. The major new development, reports Barkun, professor of political science in the Maxwell School at Syracuse University, is not just an erosion in the divisions between these two groups, but their joining forces with occultists, persons bored by rationalism. Occultists are drawn to what Barkun calls the cultural dumping ground of the heretical, the scandalous, the unfashionable, and the dangerous such as spiritualism, Theosophy, alternative medicine, alchemy, and astrology. Thus, the author who worries about the Secret Service taking orders from the Bavarian Illuminati is old school the one who worries about a joint ReptilianBavarian Illuminati takeover is at the cutting edge of the new synthesis. These bizarre notions constitute what Michael Kelly termed fusion paranoia, a promiscuous absorption of fears from any source whatsoever. Conspiracy theories exist in the realm of myth, where imaginations run wild, fears trump facts, and evidence is ignored. As a superpower, the United States is often cast as a villain in these dramas. अपने दो खंडों वाले लेखन द ओपन सोसाइटी एंड इट्स इनिमीज में पॉपर ने षड्यंत्र के सिद्धांत शब्द का प्रयोग फासीवाद, नाजीवाद और साम्यवाद से प्रभावित विचारधाराओं की आलोचना करने के संदर्भ में किया। पॉपर ने तर्क दिया कि सर्वसत्तावाद का निर्माण षड्यंत्र के सिद्धांतों पर हुआ, जिसने जनजातीयतावाद, वर्चस्ववाद या नस्लवाद पर व्यामोहयुक्त परिदृश्यों द्वारा संचालित काल्पनिक योजनाओं को पैदा किया। पॉपर ने दैनिक षड्यंत्र के अस्तित्व के खिलाफ बहस नहीं की पॉपर ने षड्यंत्र शब्द का प्रयोग प्लेटो के शास्त्रीय एथेंस में साधारण राजनीतिक गतिविधियों का वर्णन करने के लिए किया बीसवीं सदी के सर्वसत्तावािदयों की आलोचना करते हुए पॉपर ने लिखा कि मैं यह नहीं कहूंगा कि षड्यंत्र नहीं होते, इसके विपरीत, वे ठेठ सामाजिक घटनाएं हैं। उन्होंने अपनी बात दोहरायी कि षड्यंत्र होते हैं, यह स्वीकार किया जाना चाहिए. लेकिन दर्ज करने योग्य तथ्य, जो अपने घटने के बावजूद षड्यंत्र के सिद्धांत को गलत साबित करते है, यह है कि इनमें से कुछ षड्यंत्र अंतत: सफल रहे हैं। साजिशकर्ता शायद ही साजिश को पूरा कर पाते हैं। उनकी नाटकीय संभावनाओं के बावजूद षड्यंत्र रोमांचक और वैज्ञानिक कथा में एक लोकप्रिय कथ्य रहा है। जटिल इतिहास अलगअलग भूमिकाएं प्रदान करता है, जैसे नैतिकता के नाटक में बुरे लोग बुरी घटनाओं का कारण बनते हैं और अच्छे लोग उनकी पहचान करते हैं व उन्हें पराजित करते हैं। काल्पनिक षड्यंत्र के सिद्धांत स्वच्छ, सहज वृतांतात्म्क होते हैं, जिनमें साजिशकर्ता की योजना कहानी के ढांचे के नाटकीय जरूरतों में काफी उपयुक्त होता है। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है षड्यंत्र के सिद्धांत का कुई बोनो ? पहलू रहस्यजनक कहानियों का एक तत्व है: संभवतः एक छिपे मकसद की खोज के लिए. 1964 में डॉ॰ स्ट्रैंजलोव ने आधुनिक परमाणु युद्ध के बारे में एक कॉमेडी लिखी. सैक की परमाणु हवाई शाखा का नियंत्रण करने वाले जनरल जैक डी रिप्पर का भ्रम है कि दुनिया का खत्मा हो जायेगा. जनरलन रिप्पर का विश्वास है कि एक ऐसी कम्युनिस्ट साजिश है कि फ्लोराइडयुक्त पानी के जरिये अमेरिकी लोगों के शरीर के महत्वपूर्ण तरल पदार्थ के धीरेधीरे कमजोर होने और अशुद्ध होने का खतरा पैदा हो गया है। 1997 की एक थ्रीलर फिल्म में षड़यन्त्र सिद्धान्त था, जिसमें एक टैक्सी ड्राइवर एक न्यूजलेटर प्रकाशित करता है, जिसमें वह संदिग्ध सरकारी षड्यंत्रों की चर्चा करता है और यह साबित होता है कि उनमें से एक या अधिक सही हैं। 1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक के प्रारंभ में द एक्स फाइल्स एक लोकप्रिय टीवी शो था, जो मुख्य रूप से एफबीआई के दो एजेंटों फॉक्स मुल्डर और डाना स्कुली की जांच पर आगे बढ़ती थी, जिन्हें षड्यंत्र सिंद्धांतकार लांग गुनमैन के समूह द्वारा भी कभीकभी मदद मिलती थी। इसकी कई कड़ियां अमेरिकी सरकार के तत्वों द्वारा विदेशी हमले, जिसका नेतृत्व सिगरेट पीते एक आदमी तथा और भी रहस्यमय अंतरराष्ट्रीय सिंडिकेट की आशंका से निपटने पर आधारित हैं। उस श्रृंखला की प्रसिद्ध टैग लाइन, की व्याख्या ऊपर चर्चा की गई शैली की प्रकृति के अर्थ खोजने के संदर्भ में की जा सकती है। अम्बर्टो इको का उपन्यास फोकाल्ट पेंडुलम षड्यंत्रवाद पर एक करारा व्यंग्य है, जिसमें चरित्र सभी द्वारा समर्थित षड्यंत्र सिद्धांत बनाने का प्रयास होता है और जिसमें सैनिक धर्मसंधि और बावेरियन धर्मगुरुओं, तर्क का अध्ययन करने वाले रोसिक्रुसियन समूह, हॉलो अर्थ इंथूजियास्ट, कैथारसीय और रोमन कैथोलिक पुजारियों सभी शामिल थे। रॉबर्ट शिया और रॉबर्ट एंटोन विल्सन के तीन खंडों वाला उपन्यास इल्युमिनट्स ! काफी व्यंग्यात्मक और चेतना जागृत करने वाला है, जो जटिल बाइजेंटीन षड्यंत्रों का वर्णन करता है इसमें योजनाओं के स्तर और योजनाकारों के दुस्साहस के साथ और अधिक बड़े षड्यंत्र भी गुंथे हुए हैं। जैसेजैसे कहानी आगे बढ़ती है, विचारों का और अधिक विस्तार होता है और इसमें कई मौजूदा षड्यंत्र सिद्धांतों जैसे एक बावेरियन धर्मगुरुओं, एक छोटे गुप्त समूह, वैटिकन, माफिया, छोटीबड़ी सरकारों, वाम और दक्षिणपंथी समर्थकों के छोटे समूहों के आसपास घूमती है। उनकी योजना का कई काल्पनिक संगठनों की व्यापक योजनाओं में विलय हो जाता है और यह भी कि इसका जो वास्तविक धर्म होता है, वह सिर्फ मजाक बनकर रह जाता है। षड्यंत्र के सिद्धांतों ने यहां तक कि वीडियो खेलों को भी प्रभावित किया है। समीक्षकों द्वारा बहुप्रशंसित आरपीजी शूटर डीयुस एक्स और इसकी उत्तरकथा, डीयुस एक्स : इनविजिबल वार वर्तमान समय के षड्यंत्र सिद्धांतों पर बने हुए हैं, जैसे मैजेस्टिक 12, एरिया 51 और द इल्युमिनिटी. अन्य उपन्यास, जैसे डैन ब्राउन की 2000 की विवादास्पद पुस्तक एंजिल्स एंड डेमोन्स ने भी षड्यंत्र के सिद्धांतों को लोकप्रिय बनाया. यह पुस्तक हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक काल्पनिक प्रतीकवादी रॉबर्ट लैंगडॉन की तलाश के इर्दगिर्द घूमती है, जो इल्युमिनिटी नाम के एक गुप्त समाज के रहस्यों से पर्दा उठाने पर आमादा है। ब्राउन के उपन्यास और दूसरे समान उपन्यास एक अज्ञात के विचारों को षड्यंत्र सिद्धांतकारों की जीवनी शक्ति मानते हैं। अमेरिकी संस्कृति में षड्यंत्रवाद के अध्ययन में विशेषज्ञता हासिल कर रहे राजनीति वैज्ञानिक माइकल बारकुन लिखते हैं कि 1997 की फिल्म कांसपिरेसी थ्योरी ने एक विशाल दर्शक समूह को सामने लाकर यह विशवास दिलाया अमेरिकी सरकार काले रंग के हेलीकाप्टरों में बैठी एक गुप्त टीम द्वारा नियंत्रित है हालांकि यह विचार कभी दक्षिणपंथी अतिवादियों तक ही सीमित था। अमेरिकी लेखक डॉन ब्राउन ने 2003 में जासूसीरहस्यात्मक उपन्यास द विंची कोड लिखी. यह प्रतीकवादी रॉबर्ट लांगडोन और सोफी नेवीयू का अनुसरण करता है, क्योंकि वे पेरिस के लौवर संग्रहालय में एक हत्या की छानबीन करते हैं और एक षड़यन्त्र का पता लगाते हैं, जो नासरत के यीशु मसीह के मरियम मगदलीनी से शादी की संभावना कर संभावना के आसपास घूमती है। साँचा:Conspiracy theories
उदैपुरा एटा जिला के अलीगंज प्रखण्ड एक गाँव है।
ओस्तानएक़ज़्वीन ईरान के उत्तर पश्चिम में स्थित एक प्रांत है। 1996 में तेहरान प्रांत से अलग कर बनाया था। ये सोलहवीं सदी में सफ़वियों की राजधानी रहा था। आजकल यह बुनकरों के काम के लिए मशहूर है। देश है।
यह लेख स्वामी राम के बारे में है, स्वामी रामतीर्थ के लिए उस लेख पर जाँय। स्वामी राम एक योगी थे जिन्होने हिमालयन इन्टरनेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ योगा सांइस एण्ड फिलासफी सहित अनेकानेक संस्थानों की स्थापना की। उन्होने लगभग 44 सर्वाधिक विक्रीत पुस्तकों की भी रचना की।
नाम का प्रयोग एक वस्तु को दूसरी से अलग करने में सहायक होता है। नाम किसी एक वस्तु का हो सकता है या बहुत सी वस्तुओं के समूह का हो सकता है। किसी वस्तु का नाम व्यक्तिवाचक संज्ञा कहलाती है।
केंह नतु केंह कश्मीरी भाषा के विख्यात साहित्यकार सैयद रसूल पोम्पुर द्वारा रचित एक निबंधसंग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1993 में कश्मीरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
लक्ष्मी नारायण मंदिर बिड़ला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर दिल्ली के प्रमुख मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण 1938 में हुआ था और इसका उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया था। बिड़ला मंदिर अपने यहाँ मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के लिए भी प्रसिद्ध है। इसके वास्तुशिल्प की बात की जाए तो यह मंदिर उड़ियन शैली में निर्मित है। मंदिर का बाहरी हिस्सा सफेद संगमरमर और लाल बलुआपत्थिर से बना है जो मुगल शैली की याद दिलाता है। मंदिर में तीन ओर दो मंजिला बरामदे हैं और पिछले भाग में बगीचे और फव्वारे हैं। यह मंदिर मूल रूप में 1622 में वीर सिंह देव ने बनवाया था, उसके बाद पृथ्वी सिंह ने 1793 में इसका जीर्णोद्धार कराया। सन 1938 में भारत के बड़े औद्योगिक परिवार, बिड़ला समूह ने इसका विस्तार और पुनरोद्धार कराया। परिसर में एक मंदिर गरुड़ स्तंभ परिसर में एक मंदिर धर्मशाला से दृश्य किनारे की भित्ति शोभा जन्माष्टमी के अवसर पर सजा हुआ मंदिर मंदिर में एक योगी की मूर्ति निर्देशांक: 283758N 771156E 28.6327N 77.19895E 28.6327 77.19895
बारातांग, जिसे बारातांग द्वीप के नाम से भी जाना जाता है भारत के अण्डमान द्वीपसमूह का एक द्वीप है। यह 1207N 9247E 12.117N 92.783E 12.117 92.783) पर स्थित है और इसका क्षेत्रफल लगभग 238 वर्ग किलोमीटर है। Ferry with public,and vehicles crossing from Baratang to Middle Strait point, Andaman Islands, India Baratang Island Middle Strait entry point, Andaman Islands, India Baratang Island near Middle Strait entry point, Andaman Islands, India Mud Volcano Baratang Island, Andaman Island, India, Mud volcano in Baratang
थॉमस हार्डी प्रकृतिवादी आंदोलन के अंग्रेजी उपन्यासकार और कवि थे।अपने जीवनकाल में वह अपने उपन्यासों के लिए अधिक प्रसिद्ध थे जबकि उन्होंने स्वंय को मुख्य रूप से कवि माना है। हार्डी की अंग्रेजी साहित्य को महत्वपूर्ण देन है। उन्होंने एक छोटे से क्षेत्र का विशेष अध्ययन किया और क्षेत्रीय साहित्य की सृष्टि की। हिन्दी में इस प्रकार के साहित्य को आंचलिक साहित्य कह रहे हैं। उन्होंने मानव जीवन के संबंध में अपने साहित्य में आधारभूत प्रश्न उठाए तथा जो मर्यादा पूर्वकाल में महाकाव्य और दु:खांत नाटक को प्राप्त थी, वह उपन्यास को प्रदान की। वे अनेक पात्रों के स्रष्टा और अद्भुत् कहानीकार थे किंतु इनके पात्रों में सबसे अधिक सशक्त बेसेक्स है। इस पात्र ने काल का प्रवाह उदासीनताभरे नेत्रों से देखा है, जिनमें न्याय और उचित अनुचित की कोई अपेक्षा नहीं। टॉमस हार्डी का जन्म वेसेक्स प्रदेश में हुआ। यह प्रदेश प्राचीन काल में इंग्लैंड के नक्शे पर था, किंतु अब नहीं है। उनका सभी साहित्य वेसेक्स से संबंधित है। उनके उपन्यास वेसेक्स के उपन्यास कहलाते हैं और उनकी कविता वेसेक्स की कविता। थॉमस हार्डी का जन्म इंग्लैंड के हायर बॉकहैम्पटन के डॉरसेट में हुआ था। उनके पिता एक राज और स्थानीय निर्माता के रूप में काम करते थे। उनकी माँ जेमिमा सुशिक्षित थीं और उन्होंने तब तक थॉमस को पढ़ाया जब तक वह आठ साल की उम्र में बॉकहैम्पटन में अपने पहले स्कूल में पढ़ने नहीं चले गए। कई सालों तक वह श्री लास्ट द्वारा संचालित स्कूल में पढ़ते रहे। यहां उन्होंने लैटिन भाषा सीखी और शैक्षिक प्रतिभा का परिचय दिया। लेकिन हार्डी के परिवार की सामाजिक स्थिति ऐसी न थी कि उन्हें शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय भेजा जा सके और 16 वर्ष की आयु में उनकी औपचारिक शिक्षा समाप्त हो गई और वह जॉन हिक्स, एक स्थानीय वास्तुकार के यहां शिक्षु बन गए। डोरचेस्टर में वास्तुकार के रूप में प्रशिक्षित होकर हार्डी 1862 में लंदन चले गए वहां उन्होंने किंग्स कॉलेज, लंदन में छात्र के रूप में दाखिला लिया। उन्होंने रॉयल इंस्टिट्यूट ऑफ़ ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स और आर्किटेक्चुरल एसोसिएशन से पुरस्कार जीते। लंदन में हार्डी को कभी अपनापन अनुभव नहीं हुआ। वह वर्ग विभाजन और अपनी सामाजिक हीनता के प्रति बहुत सचेत थे। तथापि, सामाजिक सुधार में उनकी दिलचस्पी थी और वह जॉन स्टुअर्ट मिल के काम से परिचित थे। इस अवधि के दौरान उनके डोरसेट के मित्र होरेस मॉल ने उनका परिचय चार्ल्स फ़ोरियर और ऑगस्टे कॉम्टे के काम से करवाया. पांच साल बाद, अपने स्वास्थ्य के कारण वह डोरसेट लौट आए और स्वंय को लेखन के प्रति समर्पित करने का फ़ैसला किया। 1870 में, कॉर्नवॉल में सेंट जुलिएट के पारिश चर्च के जीर्णोद्धार के वास्तुशिल्प मिशन पर आए हार्डी की मुलाकात एमा लैविनिया गिफ़र्ड से हुई और उनमें प्यार हो गया, 1874 में उन्होंने उससे शादी कर ली। हालांकि वह बाद में पत्नी से अलग हो गए पर 1912 में उसकी मौत से उन्हें गहरा सदमा पहुंचा। उसकी मृत्यु के बाद, अपने प्रणय संबंध से जुड़े स्थानों की दोबारा यात्रा करने हार्डी कॉर्नवॉल गए, पोयम्स 191213 में उसकी मृत्यु की छाप मिलती है। 1914 में, हार्डी ने अपने से 39 साल छोटी, अपनी सचिव फ्लोरेंस एमिली डगडेल से शादी कर ली। फिर भी वह अपनी पहली पत्नी की मौत से उभर नहीं पाए और काव्यलेखन से अपने दुख को भुलाने की कोशिश करते रहे। दिसंबर 1927 में हार्डी को फुस्फुस के आवरण में शोथ का रोग हो गया और 11 जनवरी 1928 को रात के 9 बजे अपनी पत्नी को अपनी अंतिम कविता लिखवाने के बाद वह चल बसे मृत्यु प्रमाणपत्र में मृत्यु का कारण दिया गया, ह्रदय की मूर्च्छा, बुढ़ापा एक अंशदायी कारक के रूप में उद्धृत था। 16 जनवरी को उनका अंतिम संस्कार वेस्टमिंस्टर एबे में हुआ जो एक विवादास्पद अवसर साबित हुआ क्योंकि हार्डी, उनके परिवार और मित्रों की इच्छा थी कि उन्हें स्टिन्सफ़र्ड में उनकी पहली पत्नी एमा की कब्र में ही दफ़नाया जाए. तथापि, उनके निष्पादक, सर सिडनी कारलाइल कॉकेरल ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उन्हें ऐबी के प्रसिद्ध पोयट्स कॉर्नर में दफ़न किया जाए. एक समझौते किया गया और उनका दिल स्टिन्सफ़र्ड में एमा के साथ और अस्थियां पोयट्स कॉर्नर में दफ़नाई गई। हार्डी के मृत्यु के फौरन बाद, उनकी संपत्ति के निष्पादकों ने उनके पत्रों और नोटबुक्स को जला दिया। बारह रिकॉर्ड बचे, उनमें से एक में 1820 के दशक के नोट्स और अखबार में छपी कहानियों के उद्धरण थे। इनके शोध से पता चला कि कैसे हार्डी ने उन पर नज़र रखी और किस तरह उनका प्रयोग अपने बाद के कार्य में किया। जिस साल उनकी मृत्यु हुई उसी साल श्रीमती हार्डी ने द अर्ली लाइफ़ ऑफ़ थॉमस हार्डी,18411891 प्रकाशित करवाई: जो समकालीन नोट्स, पत्रों, डायरी, संस्मरण और कई बरसों की मौखिक बातचीत का संकलन था। हार्डी के काम की डी.एच. लॉरेंस और वर्जीनिया वुल्फ़ जैसे कई लेखकों ने प्रशंसा की। अपनी आत्मकथा गुडबाय टू ऑल दैट में रॉबर्ट ग्रेव्स ने 1920 के दशक के शुरू में डोरसेट में हार्डी के साथ भेंट की याद को ताज़ा किया है। हार्डी ने उसका और उसकी नई पत्नी का गर्मजोशी से स्वागत किया और उसके काम की सराहना की। 1910 में, हार्डी को ऑर्डर ऑफ़ मेरिट से सम्मानित किया गया। डोरचेस्टर में बॉकहैम्पटन और मैक्स गेट में हार्डी के मकान राष्ट्रीय ट्रस्ट के स्वामित्व में हैं। हार्डी ने कवितालेखन से साहित्यसेवा आरंभ की, किंतु प्राथमिक रचनाएँ उन्होंने नष्ट कर दीं। 1870 से 1898 तक उन्होंने कथासाहित्य को समृद्ध किया। वे जीवन और संसार के परिचालन में कोई न्याय अथवा व्यवस्था न देखते थे उनके अनुसार एक अंधी शक्ति इस जगत् के कार्यकलापों का परिचालन करती थी। इस अंधी शक्ति को वे इम्मेनेंट विल कहते थे ऐसी चालकशक्ति जो जीवन और संसार में निहित है। अपने कथासाहित्य में हार्डी ने जगत् के व्यापारों पर अपना आक्रमण उत्तरोत्तर अधिक तीखा किया। पहले उपन्यासों में यह अपेक्षाकृत हल्का है। 1879 में उनकी पहली उपलब्ध रचना प्रकाशित हुई, डेस्परेट रिमेडीज़, 1872 में दूसरी, अंडर दि ग्रीनवुड ट्री और 1873 में तीसरी ए पेयर ऑव ब्ल्यू आइज। अगली रचना फार फ्राम दि मैडिंग क्राउड अधिक प्रौढ़ कृति है और इसके प्रकाशन के बाद उनकी ख्याति बढ़ी। आत्मविश्वास प्राप्त कर हार्डी ने विश्व की गति पर अपना आघात अधिक तीव्र कर दिया। इस काल की रचनाओं में सर्वश्रेष्ठ हैं दि वुडलैंडर्स, दि रिटर्न ऑव दि नेटिव, दि ट्रंपेट मेजर और दि मेयर ऑव वास्टरब्रिज। इसके बाद दो उपन्यास और लिखे गए जिनमें हार्डी घोर निराशा में डूब गए हैं। आलोचकों के प्रहारों से घबराकर हार्डी ने उपन्यास लिखना छोड़कर कविता लिखना शुरु किया। बीस वर्ष तक उन्होंने कविता लिखी और अपने लिए ख्याति के नए द्वार खोले। कविता में भी हार्डी अपने विचारदर्शन को व्यक्त करते रहे, किंतु कविताओं में व्यक्त आघातों से पाठक और आलोचक उस हद तक मर्माहत न हुए। हार्डी का कहना था कि यदि गैलिलियो ने कविता में लिखा होता कि पृथ्वी घूमती है, तो शायद उन्हें इतनी तकलीफ न सहनी पड़ती। कविता को एक बार पुन: अपनाकर हार्डी अपने साहित्यिक जीवन के प्रथम प्रेम की ओर मुड़े थे। इसी बीच इन्होंने अपनी सबसे महत्वपूर्ण कृति दि डाइनास्ट्स लिखी। यह तीन भागों में प्रकाशित हुई। यह रचना नाटक के रूप में महाकाव्य है। इसे भौतिक रंगमंच पर नहीं खेला जा सकता। इसका अभिनय कल्पना के मंच पर ही संभव है। कथावस्तु नैपोलियन के अभियान से संबंधित है। यह विश्वविजेता भी क्रूर नियति का शिकार था। जीवन की शक्ति कालचक्र को घुमाती रहती है और सदाचारी तथा दुराचारी सभी उसमें पिसते रहते हैं। इस रचना में हार्डी का विचारदर्शन बहुत स्पष्टता से व्यक्त हुअ है। हार्डी का परिवार अंगरेज़ी चर्च को मानता था लेकिन कट्टर अनुयायी नहीं था। पांच सप्ताह की उम्र में उनका बपतिस्मा हुआ और वह चर्च को जाया करते थे, जहां उनके पिता और चाचा संगीत के लिए योगदान देते थे। फिर भी वह इंग्लैंड की स्थानीय चर्च के स्कूल में नहीं गए, उन्हें तीन मील दूर श्री लास्ट के स्कूल में भेजा गया। नौजवान युवा के रूप में, उनकी दोस्ती हेन्री आर. बैस्टो से हुई जिसने वास्तुकार छात्र के रूप में भी काम किया और जो बैप्टिस्ट चर्च में वयस्क बपतिस्मा की तैयारी कर रहा था। हार्डी ने धर्म परिवर्तन पर विचार तो किया पर फिर परिवर्तित न होने का फैसला किया। बैस्टो ऑस्ट्रेलिया चला गया, लंबे अरसे तक उनके बीच पत्राचार चलता रहा लेकिन अंततः हार्डी इस आदानप्रदान से थक गए और पत्राचार बंद हो गया। इसके साथ ही बैपटिस्ट के साथ हार्डी का संबंध समाप्त हो गया। जीवन में भाग्य के बारे में हार्डी का विचार परमेश्वर के साथ दार्शनिक संघर्ष में परिलक्षित हुआ। हालांकि हार्डी का विश्वास बरकरार रहा किन्तु जीवन की विडंबनाओं और संघर्षों के कारण उन्होंने परमेश्वर के बारे में पारंपरिक ईसाई दृष्टिकोण पर सवाल उठाए: हार्डी के धार्मिक जीवन में अज्ञेयवाद, आस्तिकता और अध्यात्मवाद का मिलाजुला रूप देखने को मिलता है। एक बार, जब एक पादरी ने पत्र द्वारा पीड़ा की यातना को प्यार करने वाले परमेश्वर की नेकी के साथ मिलाने को कहा, हार्डी ने जवाब दिया, फिर भी, हार्डी अक्सर ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली अलौकिक शक्तियों के बारे में सोचा करते थे और लिखा करते थे, वह ऐसा किसी दृढ़ विश्वास की बजाए निरपेक्ष भाव में और मौज में आकर करते थे। इसके अलावा, हार्डी के लेखन से कुछ हद तक भूतों और आत्माओं के प्रति उनके आकर्षण का भी पता चलता है। इन भावनाओं के बावजूद, हार्डी ईसाई उपासना और चर्च की रस्मों से भावनात्मक रूप से जुड़े रहे, विशेषकर जो ग्रामीण समुदायों में प्रचलित हैं, जीवन के प्रारंभिक वर्षों में उन पर इनका बहुत निर्माणात्मक प्रभाव पड़ा और हार्डी के अनेक उपन्यासों में बाइबिल सन्दर्भों की भरमार देखी जा सकती है। जॉन हिक्स के यहां शिक्षुता के दौरान हार्डी के दोस्तों में शामिल थे होरेस मॉल और कवि विलियम बार्न्स, दोनो ही पादरी थे। मॉल ज़िंदगी भर हार्डी के करीबी दोस्त रहे और बाइबल की शाब्दिक व्याख्या पर संदेह उठाने वाली नई वैज्ञानिक खोजों से जैसे कि गिदोन मैंटेल की, उनका परिचय करवाया . मॉल ने 1858 में हार्डी को मैंटेल की पुस्तक द वंडर्स ऑफ़ जियोलॉजी की प्रति दी, एडेलिन बक्लैंड का विचार है कि मैंटेल के भूवैज्ञानिक वर्णन और ए पेयर ऑफ़ ब्लू आइज़ के क्लिफ़हैंगर वाले खंड में अकाट्य समानताएं हैं। यह सुझाव भी दिया गया है कि ए पेयर ऑफ़ ब्लू आइज़ में हेन्री नाइट का पात्र होरेस मॉल पर आधारित था। 1867 में पूर्ण किया गया हार्डी का पहला उपन्यास, द पूअर मैन एंड द लेडी को प्रकाशित करने के लिए कोई प्रकाशक राजी नहीं हुआ और हार्डी ने पांडुलिपि नष्ट कर दी, इसलिए उपन्यास के कुछ हिस्से ही उपलब्ध हैं। उनके गुरु और दोस्त, विक्टोरियन उपन्यासकार और कवि जॉर्ज मेरेडिथ ने उन्हें दोबारा प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित किया। डेस्परिट रेमेडीज़ और अंडर द ग्रीनवुड ट्री अज्ञात रूप से प्रकाशित किए गए थे। हार्डी के अपनी पहली पत्नी के साथ प्रणय संबंधों पर आधारित उपन्यास ए पेयर ऑफ़ ब्लू आइज़ 1873 में उनके अपने नाम से प्रकाशित हुआ। क्लिफ़हैंगर शब्द का उद्भव इस कहानी के धारावाहिक रूपांतर से माना जाता है जिसमें एक नायक हेन्री नाइट को वास्तव में चट्टान से लटकता हुआ छोड़ दिया जाता है। हार्डी ने कहा कि उन्होंने पहली बार वेसेक्स को अपने अगले उपन्यास फ़ार फ़्रॉम द मैडिंग क्राउड में पेश किया। यह इतना सफल रहा कि हार्डी ने वास्तुशिल्प का काम छोड़कर साहित्य को अपनी जीवनवृत्ति के रूप में अपना लिया। अगले पच्चीस सालों के समयकाल में हार्डी ने दस से अधिक उपन्यासों की रचना की। हार्डी परिवार लंदन से येओविल और फिर स्टरमिंस्टर न्यूटन चला गया, जहां उन्होंने द रिटर्न ऑफ़ द नेटिव की रचना की। 1885 में, वे अंतिम बार डोरचेस्टर के बाहर हार्डी द्वारा डिज़ाइन किए गए और उनके भाई द्वारा निर्मित मकान मैक्स गेट में जा बसे। यहां उन्होंने द मेयर ऑफ़ केस्टरब्रिज, द वुडलैंडर्स और टेस ऑफ़ दी डीउर्बरविल्स लिखे, इनमें से अंतिम उपन्यास में पतित स्त्री के सहानुभूतिपूर्ण चित्रण की काफ़ी आलोचना की गई और शुरू में इसके प्रकाशन से इन्कार कर दिया गया था। इसके उपशीर्षक, ए प्योर वुमन: फ़ेथफ़ुली प्रेज़ेंटेड की मंशा विक्टोरिया काल के मध्यम वर्ग पर उँगली उठानी थी। 1895 में प्रकाशित जूड द ऑबस्क्योर में यौन के मुक्त विवेचन की विक्टोरियन जनता ने ओर भी निंदा की और इसे प्रायः जूड द ऑबसीन कहकर पुकारा जाता था। कामोन्माद जैसी संकल्पनाओं को प्रस्तुत कर विवाह की संस्था पर खुलेआम चोट करने के लिए भारी रूप से निंदित इस पुस्तक ने हार्डी के पहले से डांवाडोल वैवाहिक जीवन पर और नकारात्मक दवाब डाला क्योंकि एमा हार्डी को चिंता थी कि जूड द ऑबस्क्योर को आत्मकथा के रूप में पढ़ा जाएगा. कुछ पुस्तक विक्रेताओं ने उपन्यास को भूरे रंग के लिफ़ाफ़ों में डालकर बेचा और कहा जाता है कि बिशप ऑफ़ वेकफ़ील्ड ने अपनी प्रति जला दी। 1912 के अपने उपसंहार में, हार्डी ने इस घटना का हवाला मज़ाक के तौर पर पुस्तक के कैरियर का भाग कहकर दिया: प्रेस के इन फ़ैसलों के बाद इसका अगला दुर्भाग्य एक बिशप द्वारा जलाया जाना था शायद मुझे न जला पाने की हताशा में. इस आलोचना के बावजूद, 1900 के दशक तक कई बेहद सफल उपन्यास लिखकर हार्डी अंग्रेजी साहित्य में अपना स्थान बना चुके थे किन्तु अपनी दो बड़ी कृतियों पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया से उनमें विरक्ति जाग उठी और उन्होंने उपन्यास लेखन पूरी तरह छोड़ दिया। हार्डी द्वारा लिखित अन्य उपन्यासों में शामिल है खगोल विज्ञान के जगत पर आधारित एक प्रेम कहानी टू ऑन ए टावर हालांकि उन्होंने काफ़ी कविताएं लिखीं पर 1898 तक अधिकतर अप्रकाशित ही रहीं इसलिए हार्डी को 1871 और 1895 के बीच लिखे उपन्यासों की श्रृंखला और छोटी कहानियों के लिए ही ज़्यादा याद किया जाता है। उनके उपन्यास वेसेक्स, दक्षिण और दक्षिण पश्चिम इंग्लैंड का विशाल क्षेत्र जिसका नाम उस क्षेत्र के एंग्लोसैक्सन राज्य के नाम पर पड़ा, के काल्पनिक जगत की पृष्ठभूमि में रचित हैं। हार्डी दो दुनियाओं का हिस्सा थे। अपने बचपन के ग्रामीण जीवन से भी उनका गहरा भावनात्मक लगाव था पर साथ ही वह हो रहे परिवर्तनों और प्रचलित सामाजिक समस्याओं, कृषि क्षेत्र में नवाचारों से औद्योगिक क्रांति के कारण अंग्रेजी देहात में हुए परिवर्तनों से ज़रा पहले के युग की नब्ज़ पकड़ने से लेकर विक्टोरियन समाज के यौन व्यवहार के अनौचित्य और पाखंड के प्रति वह जागरूक थे हार्डी ऐसे सामाजिक बन्धनों के आलोचक थे जो 19वीं सदी में रहने वाले लोगों के जीवन में बाधा डालते थे। विक्टोरिया काल के यथार्थवादी लेखक माने जाने वाले हार्डी ने सामाजिक बन्धनों को परखा जो विक्टोरियन यथास्थिति का हिस्सा हैं और माना कि ये बन्धन सभी शामिल लोगों के जीवन में बाधा डालते हैं और आखिरकार दुख का कारण बनते हैं। टू ऑन ए टावर में हार्डी इन नियमों के खिलाफ़ आवाज़ उठाते दिखाई पड़ते हैं और सामाजिक संरचना की पृष्ठभूमि में एक कहानी रचते हैं, प्रेम की ऐसी दास्तान जो वर्ग की सीमाओं को पार लेती है। पाठक प्रेम के लिए स्थापित परंपराओं को तोड़ने का विचार करने पर मजबूर हो जाता है। उन्नीसवीं सदी के समाज में ये परम्पराएं लागू हैं और सामाजिक दबाव इनका अनुपालन सुनिश्चित करता है। स्विथिन सेंट क्लीव का आदर्शवाद उन्हें समकालीन सामाजिक बन्धनों के मुकाबले में खड़ा कर देता है। एक आत्मइच्छाशक्ति वाले मनुष्य को सामाजिक नियमों और आचार के कड़े नियंत्रण का सामना करना है। हार्डी की कहानियाँ जीवन की घटनाओं और उनके प्रभावों पर विचार करती हैं। उनके बहुत से उपन्यासों के विषयगत आधार के रूप में भाग्य एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पात्र निरंतर स्वंय को जीवन के चौराहे पर खड़ा पाते हैं जो अवसर और परिवर्तन के बिंदु का प्रतीक है। फ़ार फ़्रॉम द मैडिंग क्राउड जीवन की ऐसी कहानी कहती है जिसका निर्माण संयोग ने किया है। उदाहरणार्थ अगर बथशेबा ने वेलन्टाइन न भेजा होता, अगर फ़ैनी उसकी शादी पर मौजूद होती, तो कहानी ने एकदम अलग मोड़ ले लिया होता. समय का चक्र चल पड़ा है तो पूरा होकर ही रहेगा. हार्डी के पात्र भाग्य के शिकंजे में फंसे हैं। हार्डी 19वीं सदी के ग्रामीण जीवन का सजीव चित्रण करते हैं, जो अपने सभी सुख और दुख के साथ अंधविश्वासों और अन्याय से भरा भाग्यवादी जगत है। उनके नायक और नायिकाएं अक्सर समाज से कटे हुए होते हैं और उन्हें शायद ही कभी दोबारा अपनाया जाता है। वह अपने उपन्यासों में मुख्य रूप से मध्यम वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं और उन पर भाग्य की भावशून्य और नकारात्मक शक्तियों पर बल देते हैं। अपनी पुस्तकों में हार्डी मौलिक जुनून, गहरी भावना और अज्ञेय परिवर्तन का शिकार घातक एवं गलत अवधारणा वाले कानूनों के खिलाफ़ संघर्ष करती मानवीय इच्छा को दर्शाते हैं। उदाहरणार्थ टेस ऑफ़ दी डीउर्बरविल्स समाप्त होती है: विशेष रूप से, हार्डी का उपन्यास जूड द ऑबस्क्योर अंतिम विक्टोरिया काल के संकट की भावना से ओतप्रोत है । इसमें दो नए सामाजिक प्रकार के व्यक्तियों की त्रासदी का वर्णन है, जूड फॉली, कामकाजी आदमी जो स्वंय शिक्षित होने का प्रयास करता है और उसकी प्रेमिका और चचेरी बहन सू ब्राइडहैड जो 1890 के दशक की नई स्त्री का प्रतिनिधित्व करती है। उनकी महारत, लेखक और कवि दोनों के रूप में, सूक्ष्म अवलोकन और तीव्र संवेदनशीलता के माध्यम से खोज करते हुए प्राकृतिक वातावरण के सृजन में निहित है। छोटी से छोटी बात भी उनकी नज़र से नहीं चूकती, इसके साथ ही वह उदास या सौम्य मौज में अपने वेसेक्स के विशाल परिदृश्य को भी चित्रित करने में सक्षम हैं। । 1898 में हार्डी ने 30 वर्षों से ज़्यादा अवधि के दौरान लिखी गई कविताओं का अपना पहला काव्यसंग्रह वेसेक्स पोयम्स प्रकाशित किया। हार्डी का दावा था कि कविता उनका पहला प्यार है और 1928 में अपनी मृत्यु तक वह संग्रह प्रकाशित करते रहे। हालांकि उनके समकालिकों ने उपन्यासों की तरह उनकी कविताओं का स्वागत नहीं किया, हार्डी को अब बीसवीं सदी के महानतम कवियों के रूप में मान्यता प्राप्त है। उनकी कविताओं का बाद के लेखकों पर गहरा प्रभाव पड़ा, विशेषकर फिलिप लार्किन जिसने 1973 में संपादित ऑक्सफ़ोर्ड बुक ऑफ़ टवेंटियथ सेंचुरी इंगलिश वर्स के संस्करण में हार्डी की कई कविताओं को शामिल किया। हाल में लिखी हार्डी की एक जीवनी में, क्लेयर टॉमलिन ने तर्क पेश किया है कि अपनी पहली पत्नी एमा की मृत्यु के बाद ही हार्डी वास्तविक रूप में अंग्रेजी के महान कवि बने, शुरुआत हुई उसकी याद में लिखे शोकगीतों से, उसने इन कविताओं को, अंग्रेजी काव्य में मृतकों का बेहतरीन और अजब अनुष्ठान करार दिया है। उनकी अधिकांश कविताएं जैसे न्यूट्रल टोन्स जीवन और प्रेम में निराशा तथा मानवीय पीड़ा के प्रति निरपेक्षता के विरूद्ध लंबे समय से चले आ रहे मानवता के संघर्ष के विषय में हैं। द डार्कलिंग थ्रश और एन ऑगस्ट मिडनाइट जैसी कुछ कविताएं काव्य लेखन के बारे में हैं क्योंकि उनमें वर्णित प्रकृति से हार्डी को उन्हें लिखने की प्रेरणा मिलती है। अक्सर साधारण दिखते विषयों में पश्चाताप की हूक सुनाई देती है। उनकी रचनाएं तीनखंडों वाले महाकाव्य श्रव्य द डाइनैस्ट्स से लेकर छोटे और प्रायः आशावादी या खुशी के पलों के गाथागीत जैसे लगभग अज्ञात द चिल्ड्रन एंड सर नेमलैस, मार्टिन्स के मकबरों, एथलहैम्पटन के निर्माताओं से प्रेरित हास्य कविता की विभिन्न शैली में मिलती हैं। वेसेक्स पोयम्स में विशेष रूप से प्रमुख विषयवस्तु उन्नीसवीं सदी पर नेपोलियन के युद्धों की लंबी छाया है उदाहरणार्थ, द सार्जेंट सांग और लेपज़िग में और जिस तरह वे यादें अंग्रेजी परिदृश्य और इसके निवासियों में वास करती हैं। हार्डी की कुछ कविताएं जैसे द ब्लाइंडेड बर्ड ) प्राकृतिक जगत के प्रति उनके प्रेम और पशु क्रूरता के खिलाफ़ उनके दृढ़ रूख को दर्शाती हैं जो उनके जीवच्छेदनविरोधी विचारों और RSPCA की सदस्यता से भी व्यक्त होता है। जिन संगीतकारों ने हार्डी के पाठ्य को संगीत दिया है उनमें शामिल हैं गेराल्ड फ़िन्ज़ी, जिसने हार्डी की कविताओं के लिए छह गीतचक्र बनाए हैं, बेंजामिन ब्रिटन जिसका गीतचक्र विंटर वर्ड्स हार्डी के काव्य पर आधारित है, राल्फ़ वॉन विलियम्स और गुस्ताव होल्स्ट. होल्स्ट की भी आखिरी आर्केस्ट्रा संबंधी रचना एडगॉन हीथ हार्डी के काम पर आधारित है। संगीतकार ली हॉयबी द्वारा द डार्कलिंग थ्रश की सेटिंग मल्टीमीडिया ओपेरा डार्कलिंग का आधार बना और टिमॉथी टकाच, सेंट ओलफ़ के स्नातक ने भी चारभाग मिश्रित गायकवृन्द के लिए द डार्कलिंग थ्रश का संयोजन किया है। साँचा:Offtopicother बर्कशायर उत्तरी वेसेक्स है, डेवॉन लोअर वेसेक्स है, डोरसेट दक्षिण वेसेक्स है, सोमरसेट बाहरी या निचला वेसेक्स है, विल्टशायर मध्यवेसेक्स है, बेरे रीजिस टेस का किंग्सबेरे है, बिनकॉम्ब डाउन चौराहा ए मेलन्कली हसर में सेना द्वारा वध किए जाने का दृश्य है। यह एक सत्य कथा है, जर्मन सेना के भगोड़ों को 1801 में गोली मार दी गई थी और उनके नाम पल्ली रजिस्टर में दर्ज है। बिंडन एबे जहां क्लेयर उसे ले गए। बोर्नमाउथ हैंड आफ़ इथलबर्टा की सैंडबर्न और टेस ऑफ़ दी डीउर्बरविल्स है, ब्रिडपोर्टपोर्ट ब्रेडी है, चारबरो हाउस और 504638.75N 267.09W 50.7774306N 2.1019694W 50.7774306 2.1019694पर इसकी फ़ॉली टावर उपन्यास टू ऑन ए टावर में वेलैंड हाउस का मॉडल है। कॉर्फ़ कासल हैंड ऑफ़ इथलबर्टा का कॉर्व्सगेटकासल है। क्रेनबर्न चेज़ टेस के फरेब का द चेज़ दृश्य है। मिल्बर्न सेंट एंड्रयू फ़ार फ़्रॉम द मैडिंग क्राउड में मिलपोंड सेंट जूडस है। चारबरो हाउस स्टरमिंस्टर मार्शल और बेरे रीजिस के बीच स्थित है। चारबरो हाउस और इसकी फ़ॉली टावर 5046 38.75 N 267.09W 50.7774306N 2.1019694W 50.7774306 2.1019694 थॉमस हार्डी के टू ऑन ए टावर उपन्यास में वेलैंड हाउस का मॉडल है। लिटल इंग्लैंड कॉटेज, मिल्बर्न सेंट एंड्रयू स्विथिन सेंट क्लीवज़ के घर की जगह है और आज तक उसी रूप में वर्णित है। डोरचेस्टर, डोरसेट केस्टरब्रिज है, द मेयर ऑफ़ केस्टरब्रिज का दृश्य. सोमरसेट में डन्स्टर कासल ए लॉडिशिअन का कासल डी स्टैंसी है। फॉरडिंग्टन मूर डर्नओवर मूर और फ़ील्ड्स है। बेरे रीजिस के पास ग्रीनहिल फ़ेयर वुडबरी हिल फ़ेयर है, लल्वर्थ कोव लल्स्टेड कोव है, मार्नहल टेस ऑफ़ दी डीउर्बरविल्स की मार्लेट है, एवरशॉट के पास मेल्बरी हाउस ए ग्रुप ऑफ़ नोबल डेम्स में ग्रेट हिंटॉक कोर्ट है। मिंटेरेन लिटल हिंटॉक है, ओएरमोइन वेसेक्स टेल्स में नेदर मॉयन्टन है। पिडलहिन्टन और पिडल ट्रेनथाइड ए फ़यू क्रस्टेड कैरेक्टर्स के लोंगपडल हैं। पडलटाउन हीथ, मोर्टन हीथ, टिनक्लेटन हीथ और बेरे हीथ एडॉन हीथ हैं। लाइफ़्स लिटल आयरनीज़ में पूल हेवनपूल है। पोर्टलैंड द परसूट ऑफ़ द वेलबिलव्ड का दृश्य है। पडलटाउन वैदरबरी है फ़ार फ़्रॉम द मैडिंग क्राउड में, रीवर फ़्रोम वैली टेस में टलबोथेज़ डेयरी का दृश्य है। सैल्सबरी ऑन द वेस्टर्न सरक्युट, लाइफ़्स लिटल आयरनीज़ और जूड द ऑबस्क्योर आदि में मेल्चेस्टर है। शैफ़्टस्बरी टेस ऑफ़ दी डीउर्बरविल्स और जूड द ऑबस्क्योर में शैस्टन है। शेरबर्न शैर्टनअब्बास है, शेरबर्न कासल ए ग्रुप ऑफ़ नोबल डेम्स में लेडी बैक्सबी का घर है। स्टोनहेन्ज टेस की आशंका का दृश्य है। सटन पॉयन्ट्ज़ ओवरकॉम्बे है।स्वॉनएज हैंड ऑफ़ इथलबर्टा का नॉलसी है। टाउन्टन हार्डी की कविताओं और उपन्यासों दोनों में टोनबोरो के रूप में जाना जाता है। वॉन्टेज जूड द ऑबस्क्योर का अल्फ़्रेडस्टन है। फ़ॉली, बर्कशायर जूड द ऑबस्क्योर का मैरीग्रीन है। वेहिलवेडन प्रायर्स है,वेमाउथ बडमाउथ रेजिस है, ट्रम्पेट मेजर और अन्य उपन्यासों के भागों का दृश्य विनचेस्टर विन्टन्सेस्टर है जहां टेस का वध किया गया था। विम्बर्न टू ऑन ए टॉवर का वॉरबर्न है।डोरचेस्टर के पास वुल्फ़टन हाउस ए ग्रुप ऑफ़ नोबल डेम्स में द लेडी पेनेलोप का दृश्य है। वुल स्टेशन के पास वुलब्रिज ओल्ड मैनर हाउस टेस के बयान और हनीमून का दृश्य है। डी.एच.लॉरेंस की स्टडी ऑफ़ थॉमस हार्डी के प्रेरणा स्रोत हार्डी हैं। हालांकि यह कार्य एक मानक साहित्यिक अध्ययन की बजाए लॉरेंस के अपने दर्शन को विकसित करने का मंच बन गया, जिस तरह हार्डी पात्रों का निरूपण करते हैं उसका प्रभाव और हार्डी के उपन्यासों की केंद्रबिंदु तत्वमीमांसा के प्रति लॉरेंस की अपनी प्रतिक्रिया ने द रेनबो और वुमन इन लव के विकास में काफ़ी मदद की। डब्ल्यू सोमरसेट मॉघैम के उपन्यास केक्स एंड ऐल में उपन्यासकार एडवर्ड ड्रिफ़ील्ड के पात्र पर स्पष्ट रूप से हार्डी का प्रभाव था। क्रिस्टोफ़र डुरैंग के द मैरिज ऑफ़ बेट एंड बू की कथा में थॉमस हार्डी के कार्य प्रमुखता से दिखाई देते हैं जिसमें टेस ऑफ़ दी डीउर्बरविल्स के विश्लेषणात्मक स्नातक थीसिस में मैट के परिवार के तंत्र रोग के विश्लेषण का उल्लेख मिलता है। हार्डी ने अपने उपन्यासों और संग्रहित लघु कथाओं को तीन वर्गों में विभाजित किया: चरित्र और पर्यावरण संबंधी उपन्यास रोमांस और कल्पना नॉवल्स ऑफ़ इनजेनयुटी हार्डी ने कई लघु किस्सों और एक सहयोगात्मक उपन्यास, द स्पैक्टर ऑफ़ द रिअल भी लिखा. एक और लघु कहानी संग्रह, उपर्युक्त वर्णित के अतिरिक्त, ए चेंज्ड मैन एंड अदर टेल्स है। उनकी कृतियों को 24खंड वेसेक्स संस्करण और 37खंड मेलस्टॉक संस्करण के रूप में एकत्र किया गया है। उनकी बड़े पैमाने पर स्वंयलिखी आत्मजीवनी उनकी दूसरी पत्नी के नाम से 192830 के बीच दो खंडों, द अर्ली लाइफ़ ऑफ़ थॉमस हार्डी, 184091 और द लेटर यिर्ज़ ऑफ़ थॉमस हार्डी 18921928, मिलती है जो अब माइकल मिल्गेट द्वारा संपादित द लाइफ़ एंड वर्क ऑफ़ थॉमस हार्डी के नाम से एकखंड संस्करण के रूप में प्रकाशित की गई है। लघु कहानी संग्रह लाइफ़्स लिटल आयरनीज़ लघु कथाएँ
वसीम अब्बास एक पाकिस्तानी टेलीविजन, फिल्म अभिनेता और निर्देशक है। वह प्रसिद्ध अभिनेत्री सबा हमीद के पति हैं। उनका जन्म 9 सितंबर 1960 लाहौर, पंजाब, पाकिस्तान में हुआ था। वह प्रसिद्ध गायक और अभिनेता इनायत हुसैन भट्टी के पुत्र हैं। उन्होंने एक टीवी अभिनेता के रूप में अपना करियर शुरू किया लाहौर में।
सरकार की द्विदलीय संसदीय प्रणाली में एक त्रिशंकु संसद तब बनती है जब किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल को सीटों की संख्या के अनुसार संसद में पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं होता है। इसे कभीकभार संतुलित संसद या बिना किसी नियंत्रण वाली विधायिका भी कहा जाता है। यदि विधायिका द्विसदनीय है और सरकार केवल अवर सदन के प्रति जिम्मेदार है, तब त्रिशंकु संसद शब्द का उपयोग केवल उसी सदन के लिए किया जाता है। दो पार्टी प्रणाली के अधिकांश चुनावों में एक पार्टी को पूर्ण बहुमत प्राप्त हो जाता है और वह जल्द ही एक नई सरकार का गठन कर लेती है त्रिशंकु संसद इस ढांचे का एक अपवाद है और इसे अनियमित या अवांछनीय माना जा सकता है। एक या दोनो मुख्य पार्टियां कुछ अन्य छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन सरकार बनाने, या कुछ अन्य पार्टियों अथवा स्वतंत्र सदस्यों की सहायता से एक अल्पमत वाली सरकार बनाने की चेष्टा कर सकती हैं। यदि ये प्रयास विफल हो जाते है, संसद भंग करने और नए सिरे से चुनाव कराए जाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचता है। जैसा कि अनुपातिक प्रतिनिधित्व द्वारा निर्वाचित विधानसभाओं में आमतौर पर होता है, एक बहुपार्टी प्रणाली में चुनाव पश्चात गठबंधन सरकार के गठन के लिए बातचीत का किया जाना काफी सामान्य है त्रिशंकु संसद शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है। यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा, इन सभी की वर्तमान संसद त्रिशंकु संसद हैं। राष्ट्रीय स्तर पर इतनी अधिक संख्या में त्रिशंकु संसदों का होना राष्ट्रमंडल राष्ट्रों के लिए काफी असामान्य है। प्रथम विश्व युद्ध से पहले यूनाइटेड किंगडम में कई पीढ़ियों तक, एक काफी हद तक स्थिर दोदलीय प्रणाली अस्तित्व में थी पारंपरिक तौर पर केवल टोरी और व्हिग्स, या उन्नीसवीं सदी के मध्य से कंजर्वेटिव तथा लिबरल पार्टियां संसद में काफी अधिक संख्या में अपने सदस्यों को निर्वाचित करने में सफल रहीं। इस प्रकार उन्नीसवीं सदी में त्रिशंकु संसद काफी दुर्लभ थी। एक्ट ऑफ यूनियन 1800 के बाद कई आयरिश संसद सदस्यों द्वारा संसद में पहुँचने के साथ इसमें परिवर्तन की संभावना पैदा हुई, हालांकि शुरुआत में वे पारंपरिक पक्षों का ही अनुसरण करते थे। तथापि, दो सुधार अधिनियमों ने मताधिकार को काफी व्यापक रूप से बढ़ाकर निर्वाचन क्षेत्रों को पुनर्गठित कर दिया, संयोगवश उसी समय में आयरिश राजनितिज्ञ में भी काफी बदलाव सामने आये थे। 1885 के आम चुनावों के बाद किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। आयरिश संसदीय दल के पास सत्ता की कुंजी थी और उसने अपने समर्थन के लिए आयरिश स्वराज्य को एक शर्त के रूप में पेश किया। हालांकि, लिबरल पार्टी आयरिश स्वराज्य के मुद्दे पर विभाजित हो गई, जिसके परिणामस्वरूप 1886 में फिर से आम चुनाव हुए जिसमें कंजरवेटिव ने अधिकांश सीटों पर कब्जा करते हुए स्वराज्य का विरोध करने वाली लिबरल युनिअनिस्ट पार्टी के समर्थन से शासन किया। जनवरी 1910 और दिसंबर 1910 के चुनावों ने एक त्रिशंकु संसद को जन्म दिया जिसमें सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी और कंजर्वेटिव पार्टी ने लगभग समान सीटे जीतीं। ऐसा संसदीय संकट तथा लेबर पार्टी के उदय के कारण हुआ था। 1929 के चुनावों के परिणामस्वरूप उभर कर आने वाली त्रिशंकु संसद के बाद कई वर्षों तक ऐसा नहीं हुआ इस दरम्यान लेबर पार्टी, लिबरल पार्टी को हटाकर दो प्रमुख पार्टियों में से एक बन गयी। 1929 के चुनावों के बाद से, ब्रिटेन में दो आम चुनावों में त्रिशंकु संसद सामने आई है। पहला था फरवरी 1974 का चुनाव और गठित संसद केवल अक्टूबर तक ही चली. दूसरा चुनाव मई 2010 का था जिसके फलस्वरूप एक त्रिशंकु संसद सामने आई और जिसमें कंजर्वेटिव पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई थी। तीन मुख्य पार्टियों के परिणाम इस प्रकार थे कंजर्वेटिव्स 307, लेबर 258, लिबरल डेमोक्रेट्स 57. उपचुनाव में हार के कारण सरकार के क्षीण बहुमत के खत्म होने, तथा संसद सदस्यों द्वारा विपक्षी दल में शामिल होने, अथवा हाउस ऑफ कॉमन के सांसदों द्वारा इस्तीफा दिए जाने के कारण भी त्रिशंकु संसद का जन्म हो सकता है। ऐसा दिसंबर 1996 में जॉन मेजर की कंजर्वेटिव सरकार और 1978 के मध्य में जेम्स कैलहन की लेबर सरकार के साथ हुआ था इस बाद की अवधि को असंतोष का शीतकाल के नाम से जाना जाता है। जिम कैलहन की अल्पमत सरकार तब आई जब 1977 की शुरुआत में लिबरल द्वारा बहुमत गंवाने के बाद लेबर ने अपना 15 महीने का समझौता समाप्त कर दिया। शोधकर्ता एंड्रयू ब्लिक और स्टुअर्ट विल्क्सहीग के अनुसार त्रिशंकु संसद शब्द का यूके में आम उपयोग 1970 के दशक के मध्य के बाद ही शुरु हुआ था और प्रेस में इसका पहली बार उपयोग पत्रकार सिमोन होगार्ट द्वारा 1974 में द गार्जियन में किया गया। त्रिशंकु संसद से संबंधित अध्ययनों में शामिल हैं, डेविड बटलर की गवर्निंग विदआउट ए मेजोरिटी: डिलेमाज फॉर हंग पार्लियामेंट इन ब्रिटेन और वेर्नोन बोगडेनोर की मल्टीपार्टी पोलिटिक्स एंड दी कॉन्स्टीट्यूशन . कनाडा की वर्तमान संसद, 38वीं तथा 39वीं संसद की ही तरह त्रिशंकु संसद है हालांकि, कनाडा में इस शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसके जगह, अल्पमत सरकार या अल्पसंख्यक संसद शब्द का प्रयोग किया जाता है। हालांकि अल्पसंख्यक सरकारें अक्सर अल्पकालिक होती हैं, प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर के नेतृत्व वाली वर्तमान अल्पसंख्यक सरकार फरवरी 2006 के बाद से सत्ता में बने रहने में सफल रही है। हार्पर की कंजर्वेटिव पार्टी ने अक्टूबर 2008 के संघीय चुनाव में अपनी अल्पसंख्यक स्थिति में सुधार किया था यह भी एक त्रिशंकु संसद है। हार्पर और कंजरवेटिव के लोकप्रिय मतों के प्रतिशत में एक छोटी वृद्धि देखने को मिली है, लेकिन वास्तविक लोकप्रिय मतों में एक छोटी कमी और कनाडा के हाउस ऑफ कॉमन्स में 308 सीटों में से 143 सीटों के साथ प्रतिनिधित्व में वृद्धि भी देखने को मिली। ऑस्ट्रेलिया में संघीय स्तर पर त्रिशंकु संसद दुर्लभ हैं, क्योंकि यहां की प्रणाली लगभग एक दो दलीय प्रणाली के समान है जिसमें ऑस्ट्रेलियाई लेबर पार्टी कंजर्वेटिव पार्टियों के एक गठबंधन के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करती है। 1910 से पहले किसी भी पार्टी को प्रतिनिधि सभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं था क्योंकि वहां दो गैरलेबर पार्टियां प्रतिस्पर्धा में थीं। जिसके परिणामस्वरूप वहाँ की सरकार लगातार बदलती रहती थी, जिनमे से कई बदलाव तो संसद के कार्यकाल के दौरान ही घटित होते थे। 1910 में जब दो दलीय व्यवस्था को मजबूती मिली, उसके बाद से वहाँ केवल दो बार त्रिशंकु संसद देखने को मिली हैं, 1940 और 2010 में. 1940 के संघीय चुनाव में निवर्तमान प्रधानमंत्री रॉबर्ट मेनज़ाइस ने दो स्वतंत्र निर्दलीय सदस्यों का समर्थन प्राप्त किया और सत्ता में बने रहे, लेकिन संसदीय कार्यकाल के दौरान निर्दलीय सदस्यों ने अपना समर्थन लेबर को दे दिया और जॉन कर्टिन सत्ता में आ गए। 2010 के संघीय चुनाव में निवर्तमान प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड ने चार निर्दलीय सदस्यों का समर्थन प्राप्त किया और सत्ता में बनी रहीं। त्रिशंकु संसद राज्य स्तर पर कहीं अधिक सामान्य हैं। तस्मानिया की विधानसभा और ऑस्ट्रेलियाई राजधानी क्षेत्र की एक सदनीय संसद, इन दोनों को हेयरक्लार्क आनुपातिक प्रतिनिधित्व द्वारा चुना जाता है इसलिए चुनावों में आमतौर पर त्रिशंकु संसद सामने आती है। अन्य राज्यों और क्षेत्रों में मुख्यतः दो दलीय प्रणाली है, लेकिन कई बार त्रिशंकु संसद सामने आती है जिसमें सत्ता की कुंजी स्वतंत्र सांसदों और छोटे दलों के प्रतिनिधियों के पास होती है। हाल के उदाहरणों में शामिल हैं 1991 में न्यू साउथ वेल्स, 1995 में क्वींसलैंड में, 1999 में विक्टोरिया, 2002 में दक्षिण ऑस्ट्रेलिया और 2008 में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया। निर्णायक चुनाव परिणामों के आदी देशों में त्रिशंकु संसद को अक्सर नकारात्मक परिणाम के तौर पर देखा जाता है जिससे अपेक्षाकृत कमजोर और अस्थिर सरकार का जन्म होता है। चुनाव के बाद अनिश्चितता की अवधि सामान्य है, क्योंकि प्रमुख पार्टी के नेता निर्दलीय और छोटे दलों के साथ बातचीत करके बहुमत स्थापित करने की कोशिश करते हैं। सरकार बनाने की इच्छा रखने वाला नेता, गठबंधन सरकार बनाने की कोशिश कर सकता है वेस्टमिंस्टर प्रणाली में, एक स्थायी बहुमत प्राप्त करने बदले इसमें आमतौर पर एक संयुक्त विधायी कार्यक्रम और गठबंधन की छोटी पार्टियों को कई मंत्री पद दिया जाना शामिल होता है। वैकल्पिक रूप से, पूर्व सहमत नीतिगत रियायतों या मुद्दा आधारित समर्थन के आधार पर विश्वासपरक तथा आपूर्ति समझौतों के साथ एक अल्पमत वाली सरकार का गठन किया जा सकता है। फ़रवरी 1974 के आम चुनाव में वर्तमान प्रधानमंत्री एडवर्ड हीथ ने विपक्षी लेबर पार्टी की तुलना में कम सीटे जीतने के बावजूद एक गठबंधन सरकार बनाने का प्रयास करने के लिए इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था। वे ऐसा करने में असमर्थ रहे, इसलिए हेरोल्ड विल्सन के नेतृत्व में लेबर पार्टी ने एक अल्पमत सरकार का गठन किया। ब्रिटेन के 2010 के आम चुनावों में एक और त्रिशंकु संसद अस्तित्व में आई और एक स्थिर सरकार बनाने का प्रयास करने के लिए व्यापक विचारविमर्श किया गया। इसके परिणामस्वरूप एक गठबंधन सरकार का गठन किया गया जो कि एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार भी थी यह सरकार चुनाव में अधिकांश सीटों तथा मतों को जीतने वाली कंजर्वेटिव पार्टी और लिबरल डेमोक्रेटस की गठबंधन सरकार थी। 2008 में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के राज्य चुनावों में 24 के मुकाबले 28 सीटों के साथ ऑस्ट्रेलियन लेबर पार्टी ने लिबरल पार्टी पर जीत हासिल की। तीन निर्दलीय विधायकों के साथ नेशनल पार्टी के पास दोनों पार्टियों में से किसी एक को बहुमत दिलाने के लिए आवश्यक सीटें थीं। लिबरल पार्टी को सरकार के गठन में सहायता करने के लिए नेशनल पार्टी ने इस शर्त पर समर्थन दिया कि क्षेत्रीय नीति पर रॉयल्टी को लागू किया जायेगा. 1999 के विक्टोरियन राज्य चुनाव में लेबर पार्टी ने 42 सीटें जीतीं, जबकि निवर्तमान लिबरल नेशनल गठबंधन ने 43 सीटें कायम रखीं और तीन सीटों पर निर्दलीय ने जीत हासिल की। लेबर पार्टी ने 3 निर्दलियों के साथ मिलकर अल्पमत सरकार का गठन किया। 2010 के तस्मानी राज्य चुनाव के परिणामस्वरूप त्रिंशकु संसद सामने आई. कुछ समय तक बातचीत करने के बाद डेविड ब्रेरलेट के नेतृत्व वाली लेबर सरकार फिर से सता में आई, लेकिन उसमें तस्मेनियन ग्रीन्स के नेता निक मैककिम एक मंत्री के रूप में और ग्रीन्स के कैसी ओकॉनर कैबिनेट सचिव के रूप में शामिल हुए. 2010 के संघीय चुनाव में, लेबर तथा लिबरण पार्टियों में से किसी को भी अपने दम पर सरकार बनाने के लिए आवश्यक सीटें नहीं मिलीं। अंत में, जूलिया गिलार्ड द्वारा ऑस्ट्रलियाई प्रतिनिधि सभा के तीन निर्दलीय सदस्यों और ग्रीन्स के एक सदस्य की मदद से सरकार का गठन किया गया। कई बार ऐसा भी हुआ है जब एक संसद या विधानसभा तकनीकी रूप से तो त्रिशंकु है, लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी के पास कार्यकारी बहुमत मौजूद है। उदाहरण के लिए यूनाइटेड किंगडम में परंपरा के अनुसार स्पीकर वोट नहीं करता है और सिन फीन के सांसद कभी अपनी सीटों को ग्रहण नहीं करते हैं, इसलिए इन्हें विपक्ष की संख्या से घटाया जा सकता है। वेल्स में 2005 में, वेल्स की राष्ट्रीय संसद में ऐसा ही हुआ था जहां ब्लेनू ग्वेंट निर्वाचन क्षेत्र के 2005 वेस्टमिंस्टर चुनाव में आधिकारिक प्रत्याशी के खिलाफ खड़े होने के लिए पीटर लौ को निष्काषित किये जाने के कारण लेबर को अपना बहुमत गंवाना पड़ा था। जब विधानसभा पहली बार 1 मई 2003 को निर्वाचित हुई, लेबर ने 30 सीटें जीती, प्लेड साइमरू ने 12, कंजरवेटिव्स ने 11, लिबरल डेमोक्रेट ने 6 और जॉन मैरेक स्वतंत्र पार्टी से एक सीट जीती। जब डेफैड एलिसथॉमस एक पीठासीन अधिकारी के रूप में पुनः चुने गए, तब वोट करने वाले विपक्षियों की संख्या घटकर 29 रह गयी क्योंकि एक पीठासीन अधिकारी टाई होने की स्थिति में ही वोट कर सकता है और वो भी अपनी पार्टी के मत के अनुसार नहीं बल्कि स्पीकर डेनिसन के नियमानुसार. इस प्रकार लेबर के पास केवल एक सीट का कार्यकारी बहुमत रह गया। और लौ द्वारा ब्लेनू ग्वेंट में हारने के साथ यह भी खतम हो गया।
छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस, पूर्व में जिसे विक्टोरिया टर्मिनस कहा जाता था, एवं अपने लघु नाम वी.टी., या सी.एस.टी. से अधिक प्रचलित है। यह भारत की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई का एक ऐतिहासिक रेलवेस्टेशन है, जो मध्य रेलवे, भारत का मुख्यालय भी है। यह भारत के व्यस्ततम स्टेशनों में से एक है, जहां मध्य रेलवे की मुंबई में, व मुंबई उपनगरीय रेलवे की मुंबई में समाप्त होने वाली रेलगाड़ियां रुकती व यात्रा पूर्ण करती हैं। आंकड़ों के अनुसार यह स्टेशन ताजमहल के बाद भारत का सर्वाधिक छायाचित्रित स्मारक है। इस स्टेशन की अभिकल्पना फ्रेडरिक विलियम स्टीवन्स, वास्तु सलाहकार 18871888, ने 16.14 लाख रुपयों की राशि पर की थी। स्टीवन ने नक्शाकार एक्सल हर्मन द्वारा खींचे गये इसके एक जलरंगीय चित्र के निर्माण हेतु अपना दलाली शुल्क रूप लिया था। इस शुल्क को लेने के बाद, स्टीवन यूरोप की दसमासी यात्रा पर चला गया, जहां उसे कई स्टेशनों का अध्ययन करना था। इसके अंतिम रूप में लंदन के सेंट पैंक्रास स्टेशन की झलक दिखाई देती है। इसे पूरा होने में दस वर्ष लगे और तब इसे शासक सम्राज्ञी महारानी विक्टोरिया के नाम पर विक्टोरिया टर्मिनस कहा गया। सन 1996 में, शिवसेना की मांग पर, तथा नामों को भारतीय नामों से बदलने की नीति के अनुसार, इस स्टेशन का नाम, राज्य सरकार द्वारा सत्रहवीं शताब्दी के मराठा शूरवीर शासक छत्रपति शिवाजी के नाम पर छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस बदला गया। फिर भी वी.टी. नाम आज भी लोगों के मुंह पर चढ़ा हुआ है। 2 जुलाई, 2004 को इस स्टेशन को युनेस्को की विश्व धरोहर समिति द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया। इस स्टेशन की इमारत विक्टोरियन गोथिक शैली में बनी है। इस इमारत में विक्टोरियाई इतालवी गोथिक शैली एवं परंपरागत भारतीय स्थापत्यकला का संगम झलकता है। इसके अंदरूनी भागों में लकड़ी की नक्काशि की हुई टाइलें, लौह एवं पीतल की अलंकृत मुंडेरें व जालियां, टिकटकार्यालय की ग्रिलजाली व वृहत सीढ़ीदार जीने का रूप, बम्बई कला महाविद्यालय के छात्रों का कार्य है। यह स्टेशन अपनी उन्नत संरचना व तकनीकी विशेषताओं के साथ, उन्नीसवीं शताब्दी के रेलवे स्थापत्यकला आश्चर्यों के उदाहरण के रूप में खड़ा है। मुंबई उपनगरीय रेलवे, जो इस स्टेशन से बाहर मुंबई नगर के सभी भागों के लिये निकलतीं हैं, नगर की जीवन रेखा सिद्ध होतीं हैं। शहर के चलते रहने में इनका बहुत बड़ा हाथ है। यह स्टेशन लम्बी दूरी की गाड़ियों व दो उपनगरीय लाइनों सेंट्रल लाइन, व बंदरगाह लाइन के लिये सेवाएं देता है। स्थानीय गाड़ियां कर्जत, कसरा, पन्वेल, खोपोली, चर्चगेट व दहनु पर समाप्त होतीं हैं। विक्टोरिया टर्मिनस, 1903 100 वर्ष पूर्व का एक चित्र टर्मिनस का एक उपनगरीय स्टेशन भीड़ के समय स्टेशन का एक आंतरिक दृश्य छत्रपति शिवाजी टर्मिनस मस्जिद सैंडहर्स्ट रोड डॉकयार्ड रोड रिए रोड कॉटन ग्रीन सेवरी वडाला रोड गुरु तेग बहादुर नगर चूनाभट्टी कुर्ला तिलक नगर चेंबूर गोवंडी मानखुर्द वाशी सानपाड़ा जुईनगर नेरुल सीवुड्स सी.बी.डी बेलापुर खारगर मानसरोवर खांडेश्वर पन्वेल
जैविक Complex Complex adaptive Conceptual Database management Dynamical Economical
1893 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। अरविंद घोष 14 वर्ष बाद भारत लौटे। उन्होंने राजनीतिक एवं आध्यात्मिक चिंतन को नई दिशा दी। अपने लेख न्यू लैंप्स फ़ॉर ओल्ड में तत्कालीन नरमपंथी राजनीति की आलोचना की।
एंड्रियास डियोंनीसिओउ लिवरस साइप्रस के पैदा हुए एक ब्रिटिश व्यवसायी थे, जो मामूली संसाधनों से अपने खुद के बलबूते आगे बढ़े और सफल बेकरी उद्योग और नौका चार्टर कंपनी का निर्माण किया। उनकी नागरिकता ब्रिटन और साइप्रस की थी। वे नवंबर 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के दौरान मारे गये थे। एंड्रियास लिवरस साइप्रस में एक चरवाहे के घर पैदा हुए नौ बच्चों में से पहले थे । 1963 में लिवरस अपने परिवार के साथ लंदन के केंसिंग्टन जिले में आए, जहां उन्होंने पेस्ट्री बेचने और फ्लेर डी लाइस नामक बेकरी में डिलीवरी ट्रक चलाने का काम किया। उन्होंने पांच साल बाद उस बेकरी कंपनी को खरीदा, इसे यूरोप में सबसे बड़े जमे हुए केक निर्माताओं में से एक बनने के लिए विस्तारित किया, फिर इसे 1985 में एक्सप्रेस डेयरी को बेच दिया। इस प्रक्रीया मे हुए वित्तलाभ को उन्होने यॉट यानि की पर्यट्न हेतु बनाइ जाने वाली नाव के उद्योग मे लगाते हुए लिवरस यॉट्स नामकी मोन्टे कार्लो स्थित कंपनी शुरू की। यह कंपनी नावों की मालिकी रखने एव्ं किराए पर देने का काम करती है। 1992 में लिवरस और उनके बेटे डायनीसियोस ने लंदन में लॉरेन पैस्त्टसरीज़ की शुरुआत की, बाद में कंपनी को नॉटिंघमशायर में नेवार्कऑनट्रेंट में ले जाया गया। उसके परिवार ने लॉरेन को ब्रिटेन में सबसे बड़े क्रीम से भरी पेस्ट्री के उत्पादकों में से एक बनाया। कंपनी को 2006में आइसलैंडिक Bakkavr समूह द्वारा 130 मिलियन मे खरीदा गया था। नवंबर 2008 के मुंबई हमलों के दौरान 27 नवंबर 2008 को ताज होटल में आतंकवादियों ने लिवरस की हत्या कर दी थी, जहां वह ब्रितानी प्रसारण निगम को साक्षात्कार देने के कुछ ही समय बाद भोजन के लिए गए थे। उनकी मृत्यु के समय उनके चार बच्चे थे, और वो यूनाइटेड किंगडम के सबसे धनी लोगों के, द संडे टाइम्स रिच लिस्ट मे 265 वें स्थान पर थे। वह एक विधुर थे, उनके अवसान के बाद उनकी तीन बेटियां और एक बेटा बचा है, और वो सभी लंदन में रहते हैं।
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय भारत का एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। विश्वविद्यालय की स्थापना भारत सरकार ने सन् 1996 में संसद द्वारा पारित एक अधिनियम द्वारा की थी। इस अधिनियम को भारत के राजपत्र में 8 जनवरी सन् 1997 को प्रकाशित किया गया। यह विश्वविद्यालय महाराष्ट्र के वर्धा में स्थित है। गान्धी जी, हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं के प्रबल पक्षधर थे। इसलिये इस विश्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर रखना सर्वथा सार्थक है। वर्धा भारत के केन्द्र में स्थित होने के कारण इस विश्वविद्यालय के लिये यह स्थान भी सर्वथा उपयुक्त है। प्रारम्भ में इसके 8 विद्यापीठ अधिकल्पित किये गये जिनके नाम तथा विभाग इस प्रकार हैं: वाणिज्य एवं प्रबंधन विभाग विश्वविद्यालय के अधिनियम की धारा 4 में उल्लिखित विश्वविद्यालय के उद्देश्यों में बताया गया है किविश्वविद्यालय का उद्देश्य दूरस्थ शिक्षा पद्धति के माध्यम से हिन्दी को लोकप्रिय बनाना होगा। साथ हीधारा 5 के उपबन्ध के अन्तर्गत विश्वविद्यालय को प्रदत्त शक्तियों में यह बताया गया है कि दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से उन व्यक्तियों को जिनके बारे में वह निर्धारित करे, सुविधाएँ प्रदान करना है इस पृष्ठभूमि के आलोक में 15 जून, 2007 को महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम का उदघाटन भारत के राष्ट्रपति महामहिम डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा किया गया। लीला प्रयोगशाला सभी आईटी शिक्षण संबंधित लर्निंग, रिसर्च, और विश्वविद्यालय के आईटी विस्तार से संबंधित गतिविधियों का समर्थन करता है. यह छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए कंप्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी की सुविधाएं प्रदान करता है। लीला प्रयोगशाला विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों स्थापना, वित्त, लाइब्रेरी, स्कूल, केंद्र और इस विश्वविद्यालय के अन्य विभागों के लिए कार्यालय स्वचालन उपकरण के विकास के लिए काम किया जा रहा है, साथ ही विश्वविद्यालय के वेबसाइट का रखरखाव एवं अद्यतन कार्य भी लीला लैब की जिम्मेदारी है। विश्वविद्यालय की सभी सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित गतिविधियों के लिए लीला की परिकल्पना एक केंद्रीय सुविधा के रूप में की गई है। पाठयक्रमों में सूचना प्रौद्योगिकी के घटकों को पूर्ण करना लीला विभाग के दायित्वो मे से एक है। इसके तहत एक सर्टिफिकेट कोर्स कंप्यूटर फंडामेंटलस् एवं अनुप्रयोग एम ए पाठ्यक्रमों के लिए चलाया जा रहा है। यह पाठ्यक्रम एम ए के सभी पाठ्यक्रमों में एक अनिवार्य विषय के रूप में है। लीला द्वारा एम फिल एवं पीएच डी के शोधार्थियों के शोध कोर्सवर्क के लिए दिये गये दिशा निर्देशो के अनुरूप पाठ्यक्रम का निर्माण एवं संचालन किया जा रहा है। इस पाठ्यक्रम का नाम कम्प्यूटर ऑपरेशन एवं अनुप्रयोग है। हिंदी दुनिया की सबसे प्रमुख भाषाओं में से एक है। भारत और दुनिया के दूसरे देशों में इसे बोलने और समझने वालों की संख्या बहुत बड़ी है। पिछले दशकों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी हिंदी के प्रभाव और हस्तक्षेप को महसूस किया गया है। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के प्रमुख दायित्वों में से एक हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करना भी है। अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी के विकास के लिए केंद्रीय और समन्वयक अभिकरण के रूप में कार्य करने के लिए विश्वविद्यालय निरंतर प्रयत्नशील है। आठवें और नवें विश्व हिंदी सम्मेलनों में विश्वविद्यालय को इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य सौंपे गए थे। नवें विश्व हिंदी सम्मेलन में विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी शिक्षण के लिए मॉडल पाठ्यक्रम निर्माण का विशेष दायित्व भी विश्वविद्यालय को सौंपा गया है। विश्वविद्यालय ने सौंपे गए और अपेक्षित दायित्वों को पूरा करने के लिए विदेशी शिक्षण प्रकोष्ठ की स्थापना की है। प्रकोष्ठ का लक्ष्य सब प्रकार से हिंदी को एक समर्थ अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में विकसित करने के साथसाथ ही दुनिया के दूसरे भाषाभाषी देशों के साथ सांस्.तिक संबंध के विस्तार और संवाद के सेतु का निर्माण करना भी है। यह प्रकोष्ठ विदेशी विद्यार्थियों के लिए विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रमों का संचालन, प्रबंधन, नियमन और शिक्षण करता है। प्रकोष्ठ द्वारा विदेशी विद्यार्थियों के लिए विदेशी भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण के कई पाठ्यक्रम संचालित हैं। इनमें 34 सप्ताह के गहन हिंदी प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम, तीन माह और छह माह के प्रमाणपत्र तथा एक वर्ष का डिप्लोमा पाठ्यक्रम मुख्य है। अब तक इन पाठ्यक्रमों में यूरोप, अमेरिका और एशिया के कई देशों जर्मनी, पोलैंड, बेल्जियम, क्रोएशिया, हंगरी, श्रीलंका, थाइलैंड, मॉरिशस, चीन, मलेशिया, जापान, सिंगापुर, नेपाल, कोरिया, यू.एस.ए. आदि के विद्यार्थी अध्ययन कर चुके हैं। कई देशों के विद्यार्थी विभिन्न अनुशासनों में नियमित एम.ए.एम.फिल.पीएच.डी. पाठ्यक्रमों में अध्ययन और शोध परियोजनाओं में कार्य कर रहे हैं। विश्वविद्यालय ने अपने शैक्षणिकअकादमिक गतिविधियों के विस्तार कार्यक्रम के अंतर्गत दुनिया के 7 देशों के 9 विश्वविद्यालयों संस्थान के साथ शैक्षणिक अनुबंध किया है और भविष्य में कई अन्य विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ अनुबंध की योजना है। इन अनुबंधों के अंतर्गत महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय और अनुबंधित विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियोंशोधार्थियों और शिक्षकों के बीच परस्पर शैक्षणिकअकादमिक गतिविधियों के आवश्यकताओं के अनुरूप आदानप्रदान के कार्यक्रम होते हैं। 240 यू.एस. डॉलर प्रतिमाह नागपुर एयरपोर्ट अथवा वर्धासेवाग्राम रेलवे स्टेशन से से विश्वविद्यालय परिसर तक आगमन एवं प्रस्थान के समय फादर कामिल बुल्के अंतरराष्ट्रीय छात्रावास में आवासीय सुविधा अकादमिक प्रवेश अधिष्ठाता : भाषा विद्यापीठ प्रभारी : विदेशी शिक्षण प्रकोष्ठ Phone : 917152230084 Fax : 917152230903 Mobile : 919403783977 कुलसचिव : अकादमिक Phone:917152251661 Moblie: 919422905760 धर्मपाल से उदयन वाजपेयी की बातचीत रामानुज अस्थाना रामानुज अस्थाना शान्ति, अहिंसा, सत्याग्रह, खादी, चरखा, स्वराज और जनता के हित के लिये आत्मबल का सन्देश देने वाले महात्मा गान्धी हिन्दी के भी उतने ही बड़े हिमायती थे। वे मानते थे कि आजादी की लड़ाई में हिन्दी का उपयोग एक निर्णायक हथियार के रूप में किया जा सकता है। उन्होंने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा और राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा की स्थापना की थी। इन दोनों संस्थाओं ने अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में हिन्दी के प्रचारप्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इन्हीं में से एक राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के प्रयासों से 1975 में नागपुर में हुए पहले विश्व हिन्दी सम्मेलन में स्वीकृत एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव के अनुरूप 1997 में भारत की संसद में पारित एक विशेष अधिनियम के तहत वर्धा में अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ ही भारतेन्दु की एक अधूरी आकांक्षा भी पूरी हुई। भारतेन्दु की संचित अभिलाषा थी अपने उद्योग से मैं एक शुद्ध हिन्दी यूनिवर्सिटी स्थापित करना। गान्धी जी द्वारा हिन्दी के संवर्धन के लिये किये गये कार्यों को देखते हुए उन्हीं के नाम पर भारत के बीचोंबीच स्थित वर्धा में पाँच टीलों पर यह अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बना। विश्वविद्यालय की परिकल्पना शिक्षा की एक वैकल्पिक संस्था के रूप में की गयी। यह सतत विचार प्रक्रिया का परिणाम है जिसमें अपने उद्देश्यों को पाने के लिय् शैक्षणिक तकनीकों में निरन्तर नवीनीकरण एवं मूल्यानुरूप नीतियों के लिये अनवरत प्रयास करना शामिल है। यह विश्वविद्यालय अपने ज्ञानात्मक आधारों में वैश्विक एवं अपनी संरचना में अन्तरराष्ट्रीय है। विश्वविद्यालय का यह प्रयास होगा कि राष्ट्रीय नेताओं एवं हिन्दी प्रेमियों की यह एक उत्कट आकांक्षा रही है कि हिन्दी भारतीयों की भावनाओं एवं विचारों की अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ के अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर अपना समुचित स्थान ग्रहण करे। दूसरी ओर उनकी यह सोच भी थी कि न केवल विदेशों में अपितु समूचे विश्व में फैले हुए भारतीय मूल के व्यक्तियों के बीच भाषायी आदानप्रदान के समन्वय हेतु हिन्दी का एक अन्तर्राष्ट्रीय सचिवालय स्थापित किया जाए। इसके अतिरिक्त उनकी यह भी परिकल्पना थी कि अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी की सम्पूर्ण सम्भावनाओं के विकास और संवर्धन के लिये एक केन्द्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की स्थापना की जाये। क्षेत्रीय भाषा, राष्ट्रभाषा और अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी का संवर्धन और विकास
सगुण उपासना पद्धति में ईश्वर को सगुण रूप में स्वीकार कर पूजा अर्चना की जाती है।
भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग, भारत की केन्द्रीय सरकार द्वारा संस्थापित और सम्भाले जानी वाली लंबी दूरी की सड़के है। मुख्यतः यह सड़के 2 पंक्तियो की है, प्रत्येक दिशा में जाने के लिए एक पंक्ति। भारत के राजमार्गो की कुल दूरी लगभग 122434 किमी है, जिसमे से केवल 4,885 किमी की सड़को के मध्य पक्का विभाजन बनाया गया है। राजमार्गो की लंबाई भारत के सड़को का मात्र 2% है, लेकिन यह कुल यातायात का लगभग 40% भार उठाते है। 1995 में पास संसदीय विदेहक के तहत इन राजमार्गो को बनाने और रखरखाव के लिए निजी संस्थानो की हिस्सेदारी को मंजूरी दी गई। हाल के समय में इन राजमार्गो का तेजी से विकास हुआ जिनके तहत भारत के शहर और कस्बो के बीच यातायात के समय में गिरावट आई। कुछ शहरो के बीच 4 और 6 पंक्तियों के राजमार्गो का भी विकास हुआ। भारत का सबसे बड़ा राजमार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग 7 है, जो उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर को भारत के दक्षिणी कोने, तमिलनाडु के कन्याकुमारी शहर के साथ जोड़ता है। इसकी लंबाई 2369 किमी है। सबसे छोटा राजमार्ग 5 किलोमीटर लंबा राष्ट्रीय राजमार्ग NH71B है,।काफ़ी सारे राजमार्गों का अभी भी विकास हो रहा है। ज्यादतर राजमार्गों को कंक्रीट का नहीं बनाया गया है। मुम्बई पुणे एक्सप्रेसवे इसका एक अपवाद है।
नक्षत्रांचे देणे मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार सी. टी. खानोलकर द्वारा रचित एक कवितासंग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1978 में मराठी भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
कश्मीर घाटी के निवासी हिन्दुओं को काश्मीरी पण्डित या काश्मीरी ब्राह्मण कहते हैं। ये सभी ब्राह्मण माने जाते हैं। सदियों से कश्मीर में रह रहे कश्मीरी पंडितों को 1990 में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद की कारण से घाटी छोड़नी पड़ी! पनुन कश्मीर काश्मीरी पंडितों का संगठन है। भारत के विभाजन के तुरंत बाद ही कश्मीर पर पाकिस्तान ने कबाइलियों के साथ मिलकर आक्रमण कर दिया और बेरहमी से कई दिनों तक कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार किए गए! 24 अक्टूबर 1947 की बात है, पाकिस्तान ने पठान जातियों के कश्मीर पर आक्रमण को उकसाया, भड़काया और समर्थन दिया। तब तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद का आग्रह किया। नेशनल कांफ्रेंस, जो कश्मीर सबसे बड़ा लोकप्रिय संगठन था व उसके अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला थे, ने भी भारत से रक्षा की अपील की। पहले अलगाववादी संगठन ने कश्मीरी पंडितों से केंद्र सरकार के खिलाफ विद्रोह करने के लिए कहा था, लेकिन जब पंडितों ने ऐसा करने से इनकार दिया तो उनका संहार किया जाने लगा।4 जनवरी 1990 को कश्मीर का यह मंजर देखकर कश्मीर से 1.5 लाख हिंदू पलायन कर गए।1998 और 2003 में भी हुई हिंसक घटनाओं के बाद बचेखुचे लोगों ने भी पलायन का रास्ता पकड़ लिया,1947 से ही गुलाम कश्मीर में कश्मीर और भारत के खिलाफ आतंकवाद का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस आतंकवाद के चलते जो कश्मीरी पंडित गुलाम कश्मीर से भागकर भारतीय कश्मीर में आए थे उन्हें इधर के कश्मीर से भी भागना पड़ा और आज वे जम्मू या दिल्ली में शरणार्थियों का जीवन जी रहे हैं।घाटी से पलायन करने वाले कश्मीरी पंडित जम्मू और देश के विभिन्न इलाकों में में रहते हैं। कश्मीरी पंडितों की संख्या 1 लाख से 2 लाख के बीच मानी जाती है, जो भागने पर विवश हुए।
अब्दुल सत्तर इदी पाकिस्तान के सुप्रसिद्ध मानवतावादी एवं इदी फाउण्डेशन के अध्यक्ष थे। इदी फाउन्डेशन पाकिस्तान एवं विश्व के अन्य देशों में कार्यरत है। उनकी पत्नी बेगम बिलकिस इदी, बिलकिस इदी फाउन्डेशन की अध्यक्षा हैं। पतिपत्नी को सम्मिलित रूप से सन् 1986 का रमन मैगसेसे पुरस्कार समाजसेवा के लिये प्रदान किया गया था। उन्हे लेनिन शान्ति पुरस्कार एवं बलजन पुरस्कार भी मिले हैं। गिनीज विश्व कीर्तिमान के अनुसार इदी फाउन्डेशन के पास संसार की सबसे बड़ी निजी एम्बुलेंस सेवा हैं। मौलाना एधी सन् 1928 में भारत के गुजरात राज्य के बनतवा शहर में पैदा हुए थे। उनके पिता कपड़े के व्यापारी थे। वह जन्मजात लीडर थे और शुरू से ही अपने दोस्तों की छोटेछोटे काम और खेलतमाशे करने पर होसला अफ़ज़ाई करते थे। जब अनकी मां उनको स्कूल जाते समय दो पैसे देतीं थी तो वह उन में से एक पैसा खर्च कर लेते थे और एक पैसा किसी अन्य जरूरतमंद को दे देते थे। सन् 1947 में भारत विभाजन के बाद उनका परिवार भारत से पाकिस्तान आया और कराची में बस गया। 1951 में आपने अपनी जमा पूंजी से एक छोटी सी दुकान ख़रीदी और उसी दुकान में आपने एक डाक्टर की मदद से छोटी सी डिस्पेंसरी खोली।
गया चेन्नई एक्स्प्रेस 2389 भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन गया जंक्शन रेलवे स्टेशन से 05:45AM बजे छूटती है और चेन्नई एग्मोर रेलवे स्टेशन पर 08:45PM बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है 39 घंटे 0 मिनट।
बेगम अख़्तर के नाम से प्रसिद्ध, अख़्तरी बाई फ़ैज़ाबादी भारत की प्रसिद्ध गायिका थीं, जिन्हें दादरा, ठुमरी व ग़ज़ल में महारत हासिल थी। उन्हें कला के क्षेत्र में भारत सरकार पहले पद्म श्री तथा सन 1975 में मरणोपरांत पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उन्हें मल्लिकाएग़ज़ल के ख़िताब से नवाज़ा गया था। 2014 की फ़िल्म डेढ़ इश्क़िया में विशाल भारद्वाज ने बेगम अख़्तर की प्रसिद्ध ठुमरी हमरी अटरिया पे का आधुनिक रीमिक्स रेखा भारद्वाज की आवाज में प्रस्तुत किया।
मोबाइल नम्बर पोर्टेबिलिटी या मोबाइल अंक सुवाह्यता वह सेवा है जिसके द्वारा उपभोक्ताओं को अपना मोबाइल नम्बर बदले बिना सेवा प्रदाता कम्पनी बदलने की सुविधा मिलती है। भारत में यह सेवा 20 जनवरी, 2011 को लागू की गई थी। इससे पूर्व छोटे स्तर पर भारत में यह सेवा सबसे पहले हरियाणा राज्य से आरम्भ हुई। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण ने अपने 23 सितम्बर, 2009 को जारी मसौदे में उन नियमों और विनियमों की घोषणा की जिनका मोबाइल अंक सुवाह्यता के लिए पालन किया जाएगा। भारत सरकार ने 31 दिसम्बर, 2009 से महानगरों और वर्ग ए सेवा क्षेत्रों के लिए तथा 20 मार्च, 2010 को देश के बाकी भागों में एमएनपी लागू करने का निर्णय लिया है। 31 मार्च, 2010 को यह महानगरों और वर्ग ए सेवा क्षेत्रों में से स्थगित कर दिया गया। बहरहाल, सरकारी कम्पनियों बीएसएनएल और एमटीएनएल द्वारा बारबार पैरवी के कारण मोबाइल अंक सुवाह्यता के कार्यान्वयन में बहुत बार देरी हुई है। नवीनतम प्रतिवेदनों ने सुझाया है कि अन्ततः बीएसएनएल और एमटीएनएल 31 अक्टूबर, 2010 से मोबाइल अंक सुवाह्यता लागू करने के लिए मान गए हैं। ताजा सरकारी प्रतिवेदन है कि मोबाइल अंक सुवाह्यता को धीरेधीरे चरणबद्ध किया जाएगा, एमएनपी को 1 नवम्बर, 2010 से या उसके तुरन्त बाद हरियाणा से आरम्भ किया जायेगा। इस सेवा के अन्तर्गत प्रदान की जाने वाली सुविधाएँ इस प्रकार हैं: इस सुविधा का उपयोग करने के लिए अपनाई जाने वाली चरणबद्ध प्रक्रिया इस प्रकार है: सेवा प्रदाता कम्पनियों के हितों के संरक्षण के लिए ट्राइ द्वारा इस सेवा की कुछ सीमाएँ भी तय कर दी गई हैं:
सल्तनत मुकुल आनन्द द्वारा निर्देशित 1986 की हिन्दी भाषा की फिल्म है। फिल्म में धर्मेंद्र, सनी देओल, श्रीदेवी, अमरीश पुरी, शक्ति कपूर, टॉम आल्टर ने अभिनय किया है। यह फ़िल्म करण कपूर और जूही चावला की पहली फ़िल्म भी थी। यह फ़िल्म टिकट खिड़की पर सफल नहीं रही थी। संगीत कल्याणजी आनंदजी द्वारा दिया गया है।
अधिकार पृच्छा एक याचिका है जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति से यह पूछा जाता है कि उसने किस अधिकार या शक्ति के तहत अमुक काम किया है या निर्णय लिया है।
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील बिलारी, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है। सम्बंधित जनगणना कोड: राज्य कोड :09 जिला कोड :135 तहसील कोड : 00720
वर्णक्रमात्मक व्यवस्थित जम्मू dm, भारत के उत्तरतम राज्य जम्मू एवं कश्मीर में तीन में से एक प्रशासनिक खण्ड है। यह क्षेत्र अपने आप में एक राज्य नहीं वरन जम्मू एवं कश्मीर राज्य का एक भाग है। क्षेत्र के प्रमुख जिलों में डोडा, कठुआ, उधमपुर, राजौरी, रामबन, रियासी, सांबा, किश्तवार एवं पुंछ आते हैं। क्षेत्र की अधिकांश भूमि पहाड़ी या पथरीली है। इसमें ही पीर पंजाल रेंज भी आता है जो कश्मीर घाटी को वृहत हिमालय से पूर्वी जिलों डोडा और किश्तवार में पृथक करता है। यहाम की प्रधान नदी चेनाब है। जम्मू शहर, जिसे आधिकारिक रूप से जम्मूतवी भी कहते हैं, इस प्रभाग का सबसे बड़ा नगर है और जम्मू एवं कश्मीर राज्य की शीतकालीन राजधानी भी है। नगर के बीच से तवी नदी निकलती है, जिसके कारण इस नगर को यह आधिकारिक नाम मिला है। जम्मू नगर को मन्दिरों का शहर भी कहा जाता है, क्योंकि यहां ढेरों मन्दिर एवं तीर्थ हैं जिनके चमकते शिखर एवं दमकते कलश नगर की क्षितिजरेखा पर सुवर्ण बिन्दुओं जैसे दिखाई देते हैं और एक पवित्र एवं शांतिपूर्ण हिन्दू नगर का वातावरण प्रस्तुत करते हैं। यहां कुछ प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ भी हैं, जैसे वैष्णो देवी, आदि जिनके कारण जम्मू हिन्दू तीर्थ नगरों में गिना जाता है। यहाम की अधिकांश जनसंख्या हिन्दू ही है। हालांकि दूसरे स्थान पर यहां सिख धर्म ही आता है। वृहत अवसंरचना के कारण जम्मू इस राज्य का प्रमुख आर्थिक केन्द्र बनकर उभरा है। कई इतिहासकारों एवं स्थानीय लोगों के विश्वास के अनुसार जम्मू की स्थापना राजा जम्बुलोचन ने 14वीं शताब्दी ई.पू. में की थी और नाम रखा जम्बुपुरा जो कालांतर में बिगड़ कर जम्मू हो गया। राय जम्बुलोचन राजा बाहुलोचन का छोटा भाई था। में बाहुलोचन ने तवी नदी के तट पर बाहु किला बनवाया था और जम्बुलोचन ने जम्बुपुरा नगर बसवाया था। राजा एक बार आखेट करते हुए तवी नदी के तट पर एक स्थान पर पहुंचा जहां उसने देखा कि एक शेर व बकरी एक साथ एक ही घाट पर पानी पी रहे हैं। पानी पीकर दोनों जानवर अपने अपने रास्ते चले गये। राजा आश्चर्यचकित रह गया और आखेट का विचार छोड़कर अपने साथियों के पास पहुंचा व सारी कथा विस्तार से बतायी। सबने कहा कि यह स्थान शंति व सद्भाव भरा होगा जहां शेर व बकरी एक साथ पानी पी रहे हों। तब उसने आदेश दिया कि इस स्थान पर एक किले का निर्माण किया जाये व उसके निकट ही शहर बसाया जाये। इस शहर का नाम ही जम्बुपुरा या जम्बुनगर पड़ा और कालांतर में जम्मू हो गया। आज भी यहां बाहु का किला एक ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल है। नगर के नाम का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। जम्मू शहर से 32 किलोमीटर दूरस्थ अखनूर में पुरातात्त्विक खुदाई के बाद इस जम्मू नगर के हड़प्पा सभ्यता के एक भाग होने के साक्ष्य भी मिले हैं। जम्मू में मौर्य, कुशाण, कुशानशाह और गुप्त वंश काल के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। 480 ई. के बाद इस क्षेत्र पर एफ्थलाइटिस का अधिकार हो गया था और यहां कपीस और काबुल से भी शासन हुआ था। इनके उत्तराधिकारी कुशानोहेफ्थालाइट वंश हुए जिनका अधिकार 565 से 670 ई. तक रहा। तदोपरांत 670 ई. से लेकर 11वीं शताब्दी केआरंभ तक शाही राजवंश का राज रहा जिसे ग़ज़्नवी के अधीनस्थों ने छीन लिया। जम्मू का उल्लेख तैमूर के विजय अभियानों के अभिलेखों में भी मिलता है। इस क्षेत्र ने सिखों एवं मुगलों के आक्रमणों के साथ एक बार फिर से शक्तिपरिवर्तन देखा और अन्ततः ब्रिटिश राज का नियंत्रण हो गया। यहां 840 ई. से 1860 ई. तक देव वंश का शासन भिरहा था। तब नगर अन्य भारतीय नगरों से अलगथलग पड़ गया और उनसे पिछड़ गया था। उसके उपरांत डोगरा शासक आये और जम्मू शहर को अपनी खोई हुई आभा व शान वापस मिली। उन्होंने यहां बड़े बड़े मन्दिरों व तीर्थों का निर्माण किया व पुराने स्थानों का जीर्णोद्धार करवाया, साथ ही कई शैक्षिक संस्थाण भी बनवाये। उस काल में नगर ने काफ़ी उन्नति की। डोगरा शसकों से जम्मू का शासन 19वीं शताब्दी में महाराजा रंजीत सिंह जी के नियंत्रण में आया और इस प्रकार जम्मू सिख साम्राज्य का भाग बना। महाराजा रंजीत सिंह ने गुलाब सिंह को जम्मू का शासक नियुक्त किया। किन्तु ये शासन अधिक समय नहीं चल पाया और महाराजा रंजीत सिंह के देहान्त के बाद ही सिख साम्राज्य कमजोर पड़ गया और महाराजा दलीप सिंह के शासन के बाद ही ब्रिटिश सेना के अधिकार में आ गया और दलीप सिंह को कंपनी के आदेशानुसार इंग्लैंड ले जाया गया। किन्तु ब्रिटिश राज के पास पंजाब के कई भागों पर अधिकार करने के कारण उस समय पहाड़ों में युद्ध करने लायक पर्याप्त साधन नहीं थे। अतः उन्होंने महाराजा गुलाब सिंह को सतलुज नदी के उत्तरी क्षेत्र का सबसे शक्तिमान शासक मानते हुए जम्मू और कश्मीर का शासक मान लिया। किन्तु इसके एवज में उन्होंने महाराज से 75 लाख नकद लिये। यह नगद भुगतान महाराजा के सिख साम्राज्य के पूर्व जागीरदार रहे होने के कारण वैध माना गया और इस संधि के दायित्त्वों में भी आता था। इस प्रकार महाराजा गुलाब सिंह जम्मू एवं कश्मीर के संस्थापक के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उन्हीं के वंशज महाराजा हरिसिंह भारत के विभाजन के समय यहां के शासक थे और भारत के अधिकांश अन्य रजवाड़ों की भांति ही उन्हें भी भारत के विभाजन अधिनियम 1947 के अन्तर्गत्त ये विकल्प मिले कि वे चाहें तो अपने निर्णय अनुसार भारत या पाकिस्तान से मिल जायें या फ़िर स्वतंत्र राज्य ले लें हालांकि रजवाड़ों को ये सलाह भी दी गई थी कि भौगोलिक एवं संजातीय परिस्थितियों को देखते हुए किसी एक अधिराज्य में विलय हो जायें। अन्ततः जम्मू प्रान्त भारतीय अधिराज्य में ही विलय हो गया। जातीयता के स्तर पर देखें तो, जम्मू मुख्यतः डोगरा बहुल है और यहां की 67% से अधिक आबादी डोगरी है। इनके अलावा पंजाबियों की अपेक्षाकृत काफ़ी कम किन्तु उल्लेखनीय गिनती है, जिनमें अधिकांश हिन्दू या सिख हैं। जम्मू राज्य का अकेला हिन्दू बहुल इलाका है, जहां इनके अलावा 27% मुसलमान और शेष सिख बसते हैं।जम्मू के अधिकांश हिन्दू डोगरा, कश्मीरी पंडित तथा कोटली एवं मीरपुर के प्रवासी हैं। हिन्दू जनसंख्या प्रायः जम्मू शहर और उधमपुर में और निकट ही मिलती है। बहुत से सिख परिवार पाक अधिकृत कश्मीर के मुज़फ़्फ़राबाद और पुंछ सेक्टर के पाकिस्तान द्व्रा 1947 में अधिकृत किये गए क्षेत्रों से आये हुए हैं। जम्मू के लोग मुख्यतः डोगरी, पुंछी, गोजरी, कोटली, मीरपुरी पोतवारी, हिन्दी, पंजाबी तथा कुछ उर्दु भाषा भी बोलते हैं। जम्मू क्षेत्र के हिन्दू कई जातियों से हैं, जिनमें ब्राह्मण एवं राजपूत जाति का बाहुल्य है। 1941 की जनगणना के अनुसार तब 30% ब्राह्मण, 27% राजपूत, 15% ठक्कर, 4% जाट एवं 8% खत्री थे। इस क्षेत्र में राजौरी, पुंछ, डोडा, किश्तवार में ही मुस्लिम आबादी अधिक है, अन्यथा शेष सभि जिलों में हिन्दू बाहुल्य है। मुसलमानों में प्रमुख जातियां हैं डोगरा, गूजर, बकरवाल और ये कश्मीरी मुसलमानों से भिन्न जातियां एवं भाषाएं बोलने वाले हैं। जम्मू क्षेत्र के अधिकांश मुस्लिमों के भारत से अलग होने के विचार नहीं रखते हैं। जम्मू क्षेत्र कश्मीर से मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा 1990 में भगाये गए लगभग 1 लाख से अधिक शरणार्थी भी हैं। इनके कैम्प जम्मू शहर के निकट ही बने हैं। जम्मू के उत्तरी ओर कश्मीर है, पूर्व में लद्दाख एवं दक्षिण में पंजाब और हिमाचल प्रदेश राज्य हैं। पश्चिम दिशा में नियंत्रण रेखा इसे पाक अधिकृत कश्मीर से विभक्त करती है। उत्तर में कश्मीर घाटी और दक्षिण में दमन कोह के मैदानों के बीच स्थित जम्मू क्षेत्र का अधिकांश भाग हिमालय के शिवालिक रेंज में आता है। पीर पंजाल रेंज, त्रिकुटा पर्वत एवं कम ऊंचाई के तवी नदी बेसिन के द्वारा जम्मू इलाके की सुंदरता और विविधता में और निखार आ जाता है। पीर पंजाल रेंज जम्मू को कश्मीर घाटी से अलग करता है। जम्मूकी अधिकांश जनसंख्या डोगरी है और ये डोगरी भाषा ही बोलते हैं, जो उत्तर भारत एवं पाकिस्तान में बोली जाने वाली हिन्दीहिन्दुस्तानी उर्दु भाषाओं का मिलाजुला रूप ही है। क्षेत्र का मौसम यहां की ऊंचाई के संग ही बदलता है। जम्मू नगर में एवं पास के इलाकों कामौसम निकटवर्ती पंजाब के क्षेत्र जैसा ही है जिसमें उष्ण ग्रीष्मकाल, बारिशों वाला वर्षाकाल और ठंडे शीतकाल होते हैं। हालांकि जम्मू नगर विशेष में हिमपात नहीं होता है, किन्तु इस क्षेत्र के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में कम से कम सर्दियों में हिमाच्छादित शिखर मिल जाते हैं। देश भर एवं विदेशि सैलानी यहां के प्रसिद्ध पर्वतीय पर्यटन स्थल पटनीटॉप घूमने आते हैं जहां जाड़ों की बर्फ़ सुलभ होती है। प्रसिद्ध तीर्थ वैष्णो देवी गुफा क्षेत्र शीतकाल में हिमाच्छादित रहता है और यहां हिमपात भी होता है। जम्मू क्षेत्र को कश्मीर क्षेत्र से जोड़ने वाला बनिहाल दर्रा प्रायः भारी हिमपात के कारण शीतकाल में बंद होता रहता है। वर्ष 2012 के अनुसार जम्मू मंडल में कुल 10 जिले हैं: भारत के विभाजन एवं स्वतंत्रता से पूर्व महाराजा के शासन के समय निम्न जिले भी जम्मू क्षेत्र के ही भाग थे:भीमबर, कोटली, मीरपुर, पुंछ, हवेली, भाग और सुधनति। वर्तमान स्थिति में ये पाक अधिकृत कश्मीर के भाग हैं और भारत द्वारा दावा किये जाते हैं। क्षेत्रकी महत्त्वपूर्ण राजनैतिक पार्टियों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, जम्मू कश्मीर नेशनल कान्फ़्रेंस, जम्मू एंड कश्मीर पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और जम्मू एंड कश्मीर नेशनल पैन्थर्स पार्टी हैं। जम्मू के कुछ हिन्दू और स्थानीय भाजपा शाखा जम्मू को वर्तमान कश्मीर राज्य से विलग कर एक अलग राज्य बनाकर भारतीय संघ में विलय कर देने की मांग करते रहे हैं। इसका कारण है कि सभी नीतियां कश्मीरकेन्द्रित होने के कारण जम्मू क्षेत्र की अनदेखी होती जा रही है। जम्मू अपनी प्राकृतिक सुंदरता वाले स्थानों सहित प्राचीन मन्दिरों, हिन्दू तीर्थों, मुबारक मंडी महल, अमर महल जो अब संग्रहालय बन गया है, बागबगीचों और किलों के लिये प्रसिद्ध है। यहां दो बड़े एवं प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ हैं: अमरनाथ गुफा और वैष्णो देवी गुफा, जहां प्रतिवर्ष लाखों यात्री आते हैं। दोनों के लिये ही मुख्य पड़ाव जम्मू बन जाता है। वैष्णो देवी के बहुत से यात्री साथ में जम्मू घूमने की योजना बना कर आते हैं। इनके अलावा जम्मू की नैसर्गिक सुंदरता के कारण ये उत्तर भारत में एड्वेन्चर टूरिज़्म के लिये भी चहेता स्थान रहा है। जम्मू के ऐतिहासिक स्मारकों में प्राचीन हिन्दू वास्तुकला दिखती है। पुरमंडल, जिसे छोटा काशी भी कह दिया जाता है, जम्मू शहर से लगभग 35 कि.मी दूर स्थित है। यह एक प्राचीन तीर्थ स्थान है जहां शिव और अन्य देवी देवताओं के ढेरों मन्दिर हैं। शिवरात्रि के अवसर पर यहां तीन दिनों का मेला लगता है और शहर की रौनक एवं भीड़ देखते ही बनती है। मुख्य लेख : वैष्णो देवी जम्मू के निकट ही कटरा है, जहां से वैष्णो देवी की पैदल चढ़ाई आरंभ होती है। यह गुफा त्रिकुटा पर्वत पर 1700 मी. की ऊंचाई पर स्थित है, जहां मां वैष्णो देवी की पवित्र गुफा स्थित है। जम्मू शहर से कटरा की दूरी मात्र 30 कि.मी है और वहां से दुफा की चढ़ाइ दूरी 13 कि.मी है। ये गुफा 30 मी. लम्बी और मात्र 1.5 मीटर ऊंची है। बंद गुफा के अंत में माता के स्वरूप की प्रतीक तीन पिण्डियाँ रखी हैं जो क्रमशः महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवी की प्रतीक हैं। ये तीनों देवियां ही मिल कर वैष्णो देवी के रूप में भैरों नामक पापी के दमन हेतु अवतरित हुई थीं। तीर्थ यात्री नीचे कटरा से ही पैदल ही टोलियों में 13 कि.मी लम्बी यात्रा करते हैं और साथ साथ माता के जयकारे घोष लगाते हैं। बीच रास्ते में अर्धकुवांरी, हाथी मत्था और सांझी छत मध्यांतर पड़ते हैं और अंत में जाकर मुख्य गुफा आती है जहां प्रवेश से पूर्व यात्री शीतल जल में स्नान करते हैं और संकरे मुंह वाली गुफा में प्रवेश करते हैं। गुफा में नीचे शीतल जल धारा बहती है जिसे चरणगंगा कहा जाता है। कहते हैं कि माता भैरों से छिपने हेतु इस गुफा में आयीं थीं और भैरों के आने पर उसका संहार कर दिया था। भैरों ने मरते हुए मांता से क्षमा मांगी और उनकी शरण में आ गया, तो मां ने उसे क्षमा कर दिया किंतु त्रिशूल से कटा उसका सिर एक अन्य ऊंची पहाड़ी के ऊपर जा गिरा और धड़ यहीं गुफा के मुख पर गिर गया जो अब पत्थर बन गया है। उसी पर चढ़ कर गुफा में प्रवेश करते हैं। वैष्णों देवी गुफा से कुछ और ऊपर एक अन्य पहाड़ी के ऊपर भैरों का सिर जाकर गिरा था। माता की शरण में आ जाने से सरलहृदया माता ने उसे क्षमा कर दिया और कहा कि मेरी गुफा की यात्रा तभी पूरी होगी जब यात्री उसके बाद भैरों मंदिर भी जायेंगे। अधिकांश यात्री माता की गुफा के दर्शन के बाद ही वहीं से सीधे ऊपर भैरों मंदिर में दर्शन कर सीधे नीचे उतरते हैं और यात्रा पूर्ण करते हैं। नंदिनी वन्य जीवन अभयारण्य तीतर एवं अन्य पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों के लिये जाना जाता है, जहां घने जंगलों को घेरकर वन्य जीवन प्रजातियों को संरक्षण दिया गया है। यह अपनी तीतरों व अन्य समान पक्षी प्रजातियों के लिये प्रसिद्ध है जिनमें से कुछ विशेष हैं: मैना, भारतीय मोर, ब्लू रॉक कबूतर, रेड जंगलफ़ो, चीयर ईज़ेंट और चकोर। अभयारण्य लगभग 34 कि.मी2 में फैला है और यहाम पशुओं की भी ढेरों प्रजातियां हैं। इन प्रजातियों में से जंगलि जानवरों में तेंदुआ, जंगली सूअर, र्हेसस बंदर, भराल और काला लंगूर भी आते हैं। मुख्य लेख : मानसर सरोवरजम्मू से 62 कि.मी दूर स्थित मानसर झील एक सुंदर सरोवर है जिसको जंगलों से ढंके पहाड़ घेरे हुए हैं। यह झील लगभग 1 मील लम्बी और आधा मील चौड़ी है। 324146N 750849E 32.69611N 75.14694E 32.69611 75.14694 जम्मू से निकटस्थ स्थित शहर से बाहर के भ्रमण के लिये एक लोकप्रिय स्थान है। इस स्थान की हिन्दू धर्म में मान्यता भी है और इसकी पवित्रता और कथाएं मानसरोवर झील से जुड़ी हुई हैं। मानसर झील के पूर्वी तट पर एक शेषनाग को समर्पित मन्दिर है, यह वो नाग है जो भगवान विष्णु के लिये शेष शय्या बनाता है और इसके कई सिर कहलाते हैं। इस स्थान पर एक बड़ा शिलाखण्ड है जिसके ऊपर कई लोहे की जंजीरें बंधी हुई हैं। ये संभवतः शेषनाग के स्वागत में प्रतीक्षारत छोटे सांपों के प्रतीक हैं। नवविवाहित युगल को इस झील की तीन परिक्रमा करना शुभ और लाभदायक माना जाता है। इसी परिसर में दो अन्य प्राचीन मन्दिर भी हैं जो उमापति महादेव और नृसिंह भगवान को समर्पित हैं और कुछ दूरी पर एक देवी दुर्गा का मन्दिर भी है जहां बहुत से दर्शनार्थी शृद्धालु आते हैं। त्योहारों के अवसर पर लोग झील में डुबकी भी लगाते हैं। कई हिन्दू परिवार यहां अपने लड़कों का मुंडन संस्कार भी करवाने आते हैं। मानसर झील में र्ज्य पर्यटन विभाग द्वारा नौकायन की सुविधा भी उपलब्ध है। मानसर झील एक अन्य सड़क से भि जुड़ती है, जो पठानकोट को सीधे उधमपुर से जोड़ती है। उधमपुर राष्ट्रीय राजमार्क 1अ पर बसा सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण शहर है। मानसर या सांबा से उधमपुर का एक छोटा मार्ग भी है जो जम्मू शहर के बाहर से निकल जाता है और मानसर झील से निकलता है। एक अन्य छोटा सरोवर भी मानसर झील से जुड़ा है, सुरिन्सर सरोवर। यह जम्मू शहर से 244 कि.मी दूर उसी बायपास मार्ग पर स्थित है। मुख्य लेख : बाहू का किला यह त्योहार वसंत के आगमन का सूचक होता है जिसे बड़े और मुख्य रूप से मकर संक्रांति नाम से मनाया जाता है। भारत के अलगअलग राज्यों में इसे लोहड़ी, भोगालीबिहु, खिचड़ी, पोंगल आदि नामों से मनाते हैं। पंजाब व जम्मू क्षेत्र में इसे लोहड़ी के नाम से मनाया जाता है। पूरे क्षेत्र में इस दिन एक खुशी की लहर सी दौड़ जाती है। हजारों लोग नदियों में पवित्र डुबकी लगाकर स्नान करते हैं और मंदिरों में हवन और यज्ञ होते हैं। गांवों और शहरी क्षेत्र में भी नवविवाहित युगल या नवजात बच्चे के मातापिता के लिये ये त्योहार विशेष महत्त्व वाला माना जाता है। इस अवसर पर एक विशेष नृत्य छज्जा भी किया जाता है। लड़कों को जलूस आदि में सड़कों पर रंगीन कागज और फ़ूलों से सजे छज्जे लेकर नाचते हुए वहां लुभावना दॄश्य देखते ही बनता है। इस अवसर पर पूरे जम्मू क्षेत्र में नवजीवन का संचार हो जाता है। बैसाखी नाम विक्रम संवत के माह वैशाख से लिया हुआ है। बैसाखी यहां के एक प्रमुख त्योहार में आता है। प्रत्येक वर्ष कर्क संक्रांति के अवसर पर देश भर में यह त्योहार अलग अलग नामों से मनाया जाता है, जैसे बोहागबिहू या रंगालीबिहु, आदि। यही त्योहार पंजाब एवं जम्मू क्षेत्र में बैसाखी नाम से मनाया जाता है। यह त्योहार शस्योत्सव यानि फ़सल कटने के त्योहार के रूप में मनाया जाता है और विवाह आदि के लिये इसका विशेष महत्त्व माना जाता है। लोग इस अवसर पर नदी, तलाबों में पवित्र स्नान करते हैं। बहुत से लोग नववर्ष आगमन उत्सव को देखने प्रसिद्ध नागबनी मंदिर भी जाते हैं। इस अवसर पर कई स्थानों पर मेले भी लगते हैं, जहां लोग मस्त होकर भांगड़ा एवं गिद्दा नृत्य करते हैं। सिखों के दसवें गुरू, गुरु गोविंद सिंह जी ने इसी दिन 1699 में खाल्सा की स्थापना की थी। सिख लोगों से इस दिन गुरुद्वारे भरे रहते हैं, जहां कीर्तन, शबद और लंगर होते हैं तथा कड़ाह प्रसाद बंटता है। वर्ष में दो बार बाहु के किले में स्थित काली माता मंदिर में बड़े मेले का आयोजन होता है। चैत्रे चौदश उत्तर बहनी और पुरमंडल में मनाया जाता है जो जम्मू शहर से क्रमशः 25 कि.मी और 28 कि.मी दूर स्थित हैं। उत्तर बहनी का नाम वहां बहने वाली देविका नदी से पड़ा है, क्योंकि वह यहां उत्तरवाहिनी होती है। उत्तरवाहिनी से बिगड़ कर अपभ्रंश शब्द उत्तरबहनी हो गया है। पुरमंडल जम्मू शहर से 39 कि.मी दूर है। शिवरात्रि के अवसार पर इस कस्बे में शोभा देखते ही बनती है। लोग इस अवसर पर यहां भगवान शिव का मां पार्वती से विवाह समारोह मनाते हैं। जम्मू के लोग भी इस अवसर पर शहर से निकल कर आते हैं और पीरखोह गुफा मंदिर, रणबीरेश्वर मंदिर और पंजभक्तर मन्दिर जाते हैं। असल में यदि कोई शिवरात्रि के अवसर पर जम्मू आये तो उसे हर जगह त्योहार का माहौल ही दिखाई देगा। यह त्योहार एक स्थानीय कृषक बाबा जीतु के सम्मान में मनाया जाता है, जिसने स्थानीय ज़मींदार के सामने अपनी मेहनत की उपजी फ़सल को बांटने की गलत मांग के सामने झुकने से मर जाना बेहतर समझा। उसने अपने आप को झीरी गांव में मारा था, जो जम्मू शहर से लगभग 14 कि.मी दूर है। यहां बाबा और उनके भक्तों की मान्यता की कई किंवदंतियां प्रचलित हैं, जिनको मानकर उत्तर भारत से बहुत से लोग यहां एकत्रित होते हैं। हालांकि प्रसिद्ध तीर्थ माता वैष्णों देवी के दरबार की यात्रा वर्ष भर चलती रहती है, किन्तु इस यात्रा का नवरात्रि में विशेष महत्त्व होता है। क्षेत्र की संस्कृति, विरासत और परंपराओं को उजागर करने एवं पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु राज्य सरकार के पर्यटन विभाग ने शारदीय नवरात्रि के नौ दिनों को वार्षिक आयोजन के रूप में घोषित किया हुआ है। इस समय वर्ष भर की यात्रियों का सबसे बडआ प्रतिशत वैष्णो देवी यात्रा के लिये आता है। इसके अलावा मार्चअप्रैल में आने वाले चैत्रीय नवरात्रों में भि भक्तों की बड़ी मात्रा आती है। जम्मू से गुजरने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 1अ जम्मू शहर और क्षेत्र को कश्मीर घाटी से जोड़ता है। इसके अलावा राष्ट्रीय राजमार्ग 1ब इसे पुंछ शहर से जोड़ता है। जम्मू कठुआ से सड़क मार्ग द्वारा मात्र 80 किलोमीटर की दूरी पर है और उधमपुर से 68 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से हिन्दू तीर्थ वैष्णो देवी का निकटवर्ती पड़ाव कटरा 49 किलोमीटर की सड़क दूरी पर है। शहर में मिनी बस द्वारा नगर बस सेवा उपलब्ध है जिसके निश्चित मार्ग शहर भर में परिवहन सुलभ कराते हैं। इनके अलावा मैटाडोर भी उपलब्ध हैं। बसों के सिवाय ऑटोरिक्शा और स्थानीय टैक्सी सेवा भी मिलती है। छोटी दूरी तय करने हेतु साइकिल रिक्शा भी सदा उपलब्ध रहती हैं। जम्मू विमानक्षेत्र जम्मू शहर से मात्र 7 किलोमीटर की दूरी पर सतबाड़ी नामक क्षेत्र में बना है। यहां से श्रीनगर, लेह, दिल्ली, चंडीगढ़, मुंबई, बंगलुरु आदि कई बड़े शहरों की सीधी वायु सेवा उपलब्ध है। जम्मूक्षेत्र में कुल 11 रेलवे स्टेशन हैं, जिनमें प्रमुख स्टेशन जम्मू तवी है। यह स्टेशन भारत के प्रमुख नगरों से भलीभांति जुड़ा हुआ है। सियालकोट को जाने वाली पुरानी रेलवे लाइन अब भारत के विभाजन के समय से बंद हो चुकी है और तभी से 1971 तक जम्मू में कोई रेलसेवा नहीं रही थी। 1975 में भारतीय रेल ने जम्मूपठानकोट रेलवे लाइन का कार्य पूर्ण किया और जम्मू एक बार फिर से देश से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा। कश्मीर रेलवे केआरंभ हो जाने से जम्मू तवी रेलवे स्टेशन का महत्त्व दोहरा हो गया है। कश्मीर घाटी को जाने वाली सभी रेलगाड़ियां इस स्टेशन से होकर ही जाती हैं। कश्मीर घाटी रेलवे परियोजन का कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है और इसका ट्रैक उधमपुर तक पहुंच चुका है। जम्मू तवी की कई गाड़ियां उधमपुर तक विस्तृत की जा चुकी है और आगे कटरा तक विस्तार की जायेगी। 2013 में उधमपुरकटरा रेलवे लाइन के कार्य पूरे हो जाने से जम्मू लाइन कटरा तक विस्तृत हो जायेगी। जालंधर पठानकोट रेल लाइन का दोहरीकरण हो चुका है और का विद्युतिकरण कार्य 2013 तक पूरा होना नियोजित है। एक नई पीरपंजाल रेल सुरंग तैयार हो चुकी है और प्रचालन में भी दी जा चुकी है। इसके द्वारा बनिहाल की बिचलेरी घाटी को कश्मीर घाटी के काज़ीगुंड क्षेत्र से जोड़ गया है। सुरंग की खुदाई का कार्य 2011 तक पूरा हो चुका था और इसमें रेल लाइन स्थापन अगले वर्ष पूरा हो गया। उसी वर्ष अर्थात 2012 के अंत तक परीक्षण रेल भी आरंभ हो गयी थी एवं जून 2013 के अंत तक यहाँ यात्री गाड़ियाँ भी चलने लगीं। इस रेल कड़ी के साथ पीरपंजाल रेल सुरंग का उद्घाटन 23 जून 2013 को हुआ था। इस कड़ी के द्वारा बनिहाल और काज़ीगुंड के बीच की दूरी 17 कि.मी कम हो गई है। यह सुरंग भारत में सबसे लंबी और एशिया की तीसरी लंबी रेलवे सुरंग है। इस सुरंग का निर्माण समुद्र सतह से 5770 फ़ीट की औसत ऊंचाई पर और वर्तमान सड़क मार्ग की सुरंग से 1440 फ़ीट नीचे हुआ है। इसका निर्माण हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी ने इरकॉन के उधमपुरश्रीनगरबारामुला रेल लिंक परियोजना के एक भाग के लिये किया है। इस रेल कड़ी के तैयार हो जाने से यातायात में काफ़ी सुविधा हो गयी है, विशेषकर सर्दियों के मौसम में जब भीषण ठंड और हिमपात के कारण जम्मूश्रीनगर राजमार्ग की सुरंग कई बार बंद करनी पड़ जाती है। 2018 तक इस परियोजना की उधमपुरबनिहाल कड़ी भी पूरी हो जायेगी और पूरा जम्मूश्रीनगर मार्ग रेलमार्ग द्वारा सुलभ हो जायेगा। तब तक लोगों को बनिहाल तक सड़क द्वारा जाना पड़ता है और वहां से श्रीनगर की रेल मिलती है।