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स्वर-परीक्षण
किसी अभिनेता, गायक, संगीतकार, नर्तक या अन्य कलाकार द्वारा दिया गया नमूना प्रदर्शन स्वर-परीक्षण या ऑडिशन (audition) कहलाता है। इसमें आमतौर पर पहले से याद किए गए और रिहर्सल किए गए सोलो पीस के माध्यम से या ऑडिशन में या उससे कुछ समय पहले कलाकार को दिए गए काम या टुकड़े को प्रदर्शित करके अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करना शामिल होता है। कुछ मामलों में, जैसे कि एक मॉडल या कलाबाज के साथ, व्यक्ति को पेशेवर कौशल की एक श्रृंखला प्रदर्शित करने के लिए कहा जा सकता है। अभिनेताओं को एक एकालाप प्रस्तुत करने के लिए कहा जा सकता है। गायक एक लोकप्रिय संगीत संदर्भ या शास्त्रीय संदर्भ में एक गीत में एक प्रदर्शन करेंगे। एक नर्तक एक विशिष्ट शैली में एक दिनचर्या प्रस्तुत करेगा, जैसे कि बैले, टैप डांस या हिप-हॉप, या अपनी नृत्य क्षमता को जल्दी से सीखने की क्षमता दिखाना। निष्पादन कलाएँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%AC%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF%20%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%9A%202019
मैरीलेबोन क्रिकेट क्लब विश्वविद्यालय मैच 2019
2019 मैरीलेबोन क्रिकेट क्लब विश्वविद्यालय मैच क्रिकेट मैचों की एक श्रृंखला थी जो अठारह काउंटी चैम्पियनशिप टीमों और इंग्लैंड और वेल्स की छह मैरीलेबोन क्रिकेट क्लब विश्वविद्यालय टीमों (एमसीसीयू) के बीच खेली गई थी। जुड़नार के पहले दो राउंड को प्रथम श्रेणी मैचों के रूप में वर्गीकृत किया गया था। प्रत्येक काउंटी पक्ष ने 2019 काउंटी चैम्पियनशिप की शुरुआत से पहले एक एमसीसीयू पक्ष के खिलाफ एक स्थिरता निभाई। फिक्स्चर के शुरुआती दौर में, एलिस्टर कुक ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद से अपने पहले मैच में कैम्ब्रिज एमसीसीयू के खिलाफ एसेक्स के लिए नाबाद 150 रन बनाए। शुरूआती दौर में समरसेट ने कार्डिफ एमसीसीयू को 568 रन से हराया, जो इंग्लैंड में प्रथम श्रेणी मैच के लिए रिकॉर्ड अंतर था। तीसरे और अंतिम दौर के मैचों में, इंग्लैंड के टेस्ट क्रिकेटर हसीब हमीद ने प्रथम श्रेणी में बिना किसी फिक्सचर के, एक दोहरा शतक बनाया। संदर्भ
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तुलसीराम सिलावट
तुलसीराम सिलावट ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे सिपहसलार माने जाते हैं वे सिंधिया के साथ मार्च 2020 में अपनी विधानसभा की सदस्यता व मंत्री पद छोड़ कांग्रेस से भाजपा में शामिल हो गए थे इसके बाद जब नवंबर 2020 में सांवेर विधानसभा के उपचुनाव हुए तो यह उपचुनाव वाली 29 सीटों में से सबसे हॉट सीट मानी गई यहां कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी लेकिन इसके बावजूद वे 50 हज़ार के भी बड़े अन्तर से चुनाव जीते थे। वे मध्य प्रदेश विधानसभा में विधायक हैं व मध्यप्रदेश सरकार में जल संसाधन मंत्री हैं और भारतीय जनता पार्टी के राजनेता हैं। सन्दर्भ जीवित लोग 1954 में जन्मे लोग
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जोसे मैनुअल बरासो
जोसे मैनुअल दुराओ बरासो, जिनका जन्म लिस्बन में २३ मार्च, १९५६) को हुआ था पुर्तगाली राजनेता एवं यूरोपीय संघ के ग्यारहवें अध्यक्ष हैं। वे पहले ऐसे पुर्तगाली हैं जो इस पद पर पहुंचे हैं। वे ६ अप्रैल २००२ से १७ जुलाई २००४ तक पुर्तगाल के प्रधानमंत्री रहे जब उन्होंने यूरोपीय संघ की अध्यक्षता के लिए अपना त्यागपत्र दिया था। यूरोपीय संसद के अनुमोदन के बाद उन्होंने उस वर्ष २२ जुलाई को अपने निवर्तमान अध्यक्ष रोमानो प्रोदी से पदभार ग्रहण किया। हलाकि बरासो आयोग ने इसका अनुमोदन २३ नवंबर २००४ को किया। अपनी मातृभाषा पुर्तगाली के अतिरिक्त श्री बरासो अंग्रेजी, जर्मन एवं फ्रेंच में निपुण माने जाते हैं। जिसने यूरोपीय संघ की अध्यक्षता हासिल करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अकादमिक कैरीयर श्री बरासो ने कानून के क्षेत्र में लिस्बन विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की एवं जेनेवा विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र एवं सामाजिक विज्ञान में एमएससी की उपाधि हासिल की। उन्होंने अपने अकादमिक कैरियर की शुरुआत कानून के सहायक प्रोफेसर में लिस्बन विश्वविद्यालय से की, बाद में उन्होंने अमरीका के वाशिंगटन स्थित जॉर्जटाऊन विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। राजनैतिक जीवन पुर्तगाल ईराक युद्ध के पक्ष में बरासो के उत्तराधिकारी यूरोपीय संघ सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक जालस्थल - यूरोपीय संघ यूरोपीय संघ पुर्तगाल के प्रधानमंत्री
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हेनरी कोंडा हवाई अड्डा
बुखारेस्ट हेनरी कोंडा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा ( ) रोमानिया का सबसे व्यस्त अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो बुखारेस्ट के शहर के केंद्र के उत्तर में ओटोपेनी में की दूरी पर स्थित है। यह वर्तमान में रोमानिया की राजधानी की सेवा करने वाले दो हवाई अड्डों में से एक है। उनमें से एक ऑरेल व्लाइकू हवाई अड्डा है, जहाँ से अब एयरलाइनों की अनुसूचित यात्री यातायात की उडानें नहीं उडती हैं। हवाई अड्डे का नाम रोमानियाई उड़ान अग्रणी हेनरी कोंडा के नाम पर रखा गया है, जो कोंडा-1910 विमान के निर्माता और तरल पदार्थ के कोंडा प्रभाव के खोजकर्ता हैं। मई 2004 से पहले, आधिकारिक नाम बुखारेस्ट ओटोपेनी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा ( रोमानियाई : एयरोपोर्टुल इंटरनेशनल बुकुरेस्टी ओटोपेनी ) था। हेनरी कोंडा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर देश की राष्ट्रीय एयरलाइन टैरोम का मुख्यालय भी है। यह कम लागत वाली एयरलाइंस एनिमाविंग्स, ब्लू एयर, रयानएयर और विज़ एयर और चार्टर एयरलाइंस एयर बुखारेस्ट और गुलिवएयर के संचालन आधार के रूप में भी कार्य करता है। इसका प्रबंधन द नेशनल कंपनी बुखारेस्ट एयरपोर्ट्स एसए ( कंपानिया नैशनलए एयरोपोर्टुरी बुकुरेस्टी एसए ) द्वारा किया जाता है। हवाई अड्डे के सैन्य खंड का उपयोग रोमानियाई वायु सेना के 90 वें एयरलिफ्ट फ्लोटिला द्वारा किया जाता है। इतिहास प्रारंभिक वर्षों द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, ओटोपेनी में हवाई अड्डे का इस्तेमाल जर्मन वायु सेना द्वारा एक हवाई अड्डे के रूप में किया गया था। 1965 तक, यह रोमानियाई वायु सेना के लिए एक प्रमुख हवाई क्षेत्र था, जिसमें बुनेसा हवाई अड्डा बुखारेस्ट के वाणिज्यिक हवाई अड्डे के रूप में सेवा कर रहा था। 1965 में, हवाई यातायात की वृद्धि के साथ, ओटोपेनी एयरबेस को एक वाणिज्यिक हवाई अड्डे में बदल दिया गया था। रनवे का आधुनिकीकरण किया गया और इसे तक बढ़ा दिया गया जिससे यह उस समय यूरोप में सबसे लंबे उडानपट्टियों में से एक हो गया। पहले इसकी लंबाई थी। अगस्त 1969 में, जब संयुक्त राज्य के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने रोमानिया का दौरा किया, एक वीआईपी लाउंज का उद्घाटन किया गया। प्रति वर्ष 1,200,000 यात्रियों की क्षमता वाला एक नया यात्री टर्मिनल (सीज़र लेज़ेरेस्कु द्वारा डिज़ाइन किया गया), घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के लिए 13 अप्रैल 1970 को खोला गया था। 1986 में एक सुधार कार्यक्रम के अंतर्गत एक दूसरा रनवे जोड़ा गया जिससे यहाँ प्रति घंटे 35 विमान आवागमनों की क्षमता का विस्तार हुआ। 1992 में, ओटोपेनी एयरपोर्ट एयरपोर्ट काउंसिल इंटरनेशनल (एसीआई) का नियमित सदस्य बन गया। 1990 के दशक से विस्तार 1994 और 1998 के बीच होने वाली योजना के पहले चरण (चरण I) में एक नए प्रस्थान टर्मिनल का निर्माण और पांच जेटवे और नौ द्वार (जिसे 'फिंगर' कहा जाता है) के साथ-साथ एक नए एयरसाइड कॉनकोर्स का निर्माण शामिल था। हवाई अड्डे के रैंप और उनसे जुड़े टैक्सीवे का विस्तार भी हुआ। योजना के दूसरे चरण (चरण II / IIe लेबल) ने घरेलू उड़ानों और एक बहु-मंजिला कार पार्क (2003) के लिए समर्पित एक टर्मिनल का निर्माण किया, नियंत्रण टावर का पूरा कायाकल्प (2005 और 2007 के बीच) हुआ। साथ ही एक समर्पित आगमन हॉल (2000 में) के रूप में पुराने टर्मिनल भवन का परिवर्तन हुआ। उसी चरण के दौरान, दो उच्च गति वाले टैक्सीवे (विक्टर और व्हिस्की) का निर्माण किया गया। दूसरा चरण 2007 में पूरा हुआ। योजना के तीसरे चरण (चरण III), जो 2009 में शुरू हुआ, में 15 नए द्वार (जिनमें से नौ जेटवे हैं) के साथ-साथ प्रस्थान हॉल के विस्तार के साथ एयरसाइड कॉनकोर्स ('द फिंगर') का विस्तार शामिल था। (8 नए फाटकों के साथ)। स्टूडियो कैपेली आर्किटेटुरा एंड एसोसिएटी द्वारा डिज़ाइन किया गया एयरसाइड कॉन्कोर्स विस्तार जिसका क्षेत्रफल है का उद्घाटन 29 मार्च 2011 को हुआ था। इसके बाद, नवंबर 2012 में, प्रस्थान हॉल का विस्तार के कुल क्षेत्रफल में किया गया। मार्च 2012 में, व्यापार हवाई यातायात को छोड़कर सभी हवाई यातायात को ऑरेल व्लाइकू अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (उस समय बुखारेस्ट के कम लागत वाले केंद्र) से हेनरी कोंडो अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे तक स्थानांतरित कर दिया गया था। टर्मिनल हवाई अड्डे की सुविधाओं में तीन मुख्य सुविधाओं (बोलचाल की भाषा में "टर्मिनल" के रूप में संदर्भित) के साथ एक टर्मिनल शामिल है: प्रस्थान हॉल/टर्मिनल, आगमन हॉल/टर्मिनल, और फ़िंगर टर्मिनल (एयरसाइड कॉनकोर्स)। दुकानों के साथ एक पैदल मार्ग प्रस्थान और आगमन भवनों को जोड़ता है। एयरसाइड कॉनकोर्स पर दो (घरेलू और अंतरराष्ट्रीय) यात्रियों का प्रवाह मिलता है। पूरे टर्मिनल में 104 चेक-इन डेस्क, 38 द्वार (जिनमें से 14 जेटवे से सुसज्जित हैं), और ) का कुल फर्श क्षेत्र है। भविष्य के विकास चरण III से परे, वर्तमान स्थान के पूर्वी छोर पर एक नया टर्मिनल भवन (हेनरी कोआंडो 2) की परिकल्पना की गई है। हेनरी कोंडा 2 एक मॉड्यूलर डिजाइन का होगा, जिसमें चार अलग-अलग भवन होंगे, जिनमें से प्रत्येक सालाना 50 लाख यात्रियों को संभालने में सक्षम होगा। यातायात की मांग के अनुसार प्रत्येक अनुभाग का निर्माण किया जाएगा। 2030 तक, टर्मिनल 2 अकेले प्रति वर्ष 2 करोण यात्रियों की अपेक्षित मात्रा को संभालने में सक्षम होना चाहिए। टर्मिनल सीधे ए3 मोटरवे और रेलवे सिस्टम से जुड़ा होगा। हालाँकि, धन की समस्याओं के कारण योजनाओं में देरी हो सकती है। हालांकि इस बात की भी संभावना है कि यदि समय पर धनराशि आवंटित की जा सकती है, तो हवाईअड्डा 2025 तक अपना नया टर्मिनल खोल सकता है। 18 जनवरी 2021 को, यह घोषणा की गई कि हवाईअड्डे ने विस्तार शुरू करने के लिए आवश्यक सभी भूमि खरीद ली है। हालांकि, कोविड-19 महामारी के कारण, काम 2023 में शुरू होने वाला है। आंकड़े यात्री 2018 में, 13,824,830 यात्री हवाई अड्डे से गुजरे जो कि 2017 की तुलना में 7.95% की वृद्धि है। 2018 में, हवाई अड्डे ने 13.8 मिलियन यात्रियों (रोमानियाई हवाई अड्डों द्वारा किए गए यात्रियों की कुल संख्या का 63.3%) और 39,534 टन कार्गो (रोमानियाई हवाई अड्डों द्वारा संचालित कार्गो की कुल राशि का 81.4%) को संभाला। व्यस्ततम मार्ग कैसे पहुंचे रेल मुख्य रेलवे स्टेशन, गारा डी नॉर्ड (बुखारेस्ट नॉर्थ) के लिए एक हवाईअड्डा रेल लिंक सेवा, आगमन हॉल के पार्किंग स्थल के पास स्थित हवाई अड्डे के रेलवे स्टेशन से चलती है। अगस्त 2021 तक, सीएफआर और टीएफसी द्वारा वैकल्पिक रूप से संचालित ट्रेनें सप्ताह के सातों दिन हर 40 मिनट में प्रस्थान करती हैं। एकतरफा यात्रा में 20-25 मिनट लगते हैं। एक नई मेट्रो लाइन एम6 की भी योजना है, जो हवाई अड्डे को गारा डे नॉर्ड ट्रेन स्टेशन से जोड़ती है, और हवाई अड्डे को बुखारेस्ट मेट्रो नेटवर्क में एकीकृत करती है। बस हेनरी कोंडा हवाई अड्डा सार्वजनिक परिवहन कंपनी एसटीबी प्रणाली से जुड़ा है। 783 मार्ग शहर के केंद्र ( पियासा यूनिरी ) के लिए एक्सप्रेस बस सेवा प्रदान करता है। नगर केंद्र के लिए मार्ग 783 24 घंटे खुला रहता है। गाड़ी हवाई अड्डा मध्य बुखारेस्ट के उत्तर में दूर है, जिससे यह मार्ग डीएन1 द्वारा जुड़ा हुआ है। ए3 मोटरमार्ग भविष्य के टर्मिनल 2 और शहर को जोड़ेगा। टैक्सी मई 2013 तक, हेनरी कोआंडो हवाई अड्डे की सेवा करने वाली टैक्सियों को आगमन टर्मिनल में टच स्क्रीन सिस्टम का उपयोग करने का आदेश दिया जा सकता है, जिससे टैक्सी ड्राइवरों को पिक-अप क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति मिलती है। यह उपाय यात्रियों की कई शिकायतों के बाद किया गया था, जिन्हें अवैध, उच्च कीमत वाली टैक्सियों का उपयोग करते समय समस्याओं का सामना करना पड रहा था। हवाई अड्डे पर उबर और बोल्ट भी उपलब्ध हैं। घटनाएं और दुर्घटनाएं 31 मार्च 1995 को, टारोम फ्लाइट 371, एक एयरबस A310-324 वाईआर-एलसीसी के रूप में पंजीकृत, को उडान के लिए जाते समय असममित जोर का अनुभव हुआ और उसका एक पायलट अक्षम हो गया। उड़ान भरने के दो मिनट बाद ही विमान बालोटेस्टी के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसमें सवार सभी 60 लोगों की मौत हो गई। 30 दिसंबर 2007 को, एक टारोम बोइंग 737-300 (वाईआर-बीजीसी "कॉन्स्टैंटा"), उड़ान उड़ान 3107 शर्म-अल-शेख के लिए उड़ान भरते समय रनवे पर एक कार से टकरा गई। विमान को रनवे पर रोकना पडा क्योंकि वह बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। यह भी देखें यात्री यातायात की श्रेणी में यूरोप के सबसे व्यस्त हवाई अड्डों की सूची रोमानिया में सबसे व्यस्त हवाई अड्डों की सूची संदर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट गूगल मैप - हवाई दृश्य विकिडेटा पर उपलब्ध निर्देशांक रोमानिया के हवाई अड्डे विकिपरियोजना हवाई अड्डा लेख Pages with unreviewed translations
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बालागंज उपज़िला
बालागंज उपजिला, बांग्लादेश का एक उपज़िला है, जोकी बांग्लादेश में तृतीय स्तर का प्रशासनिक अंचल होता है (ज़िले की अधीन)। यह सिलेट विभाग के सिलेट ज़िले का एक उपजिला है, जिसमें, ज़िला सदर समेत, कुल 13 उपज़िले हैं, और मुख्यालय सिलेट सदर उपज़िला है। यह बांग्लादेश की राजधानी ढाका से उत्तर-पूर्व की दिशा में अवस्थित है। यह मुख्यतः एक ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है। जनसांख्यिकी यहाँ की आधिकारिक स्तर की भाषाएँ बांग्ला और अंग्रेज़ी है। तथा बांग्लादेश के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह ही, यहाँ की भी प्रमुख मौखिक भाषा और मातृभाषा बांग्ला है। बंगाली के अलावा अंग्रेज़ी भाषा भी कई लोगों द्वारा जानी और समझी जाती है, जबकि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक निकटता तथा भाषाई समानता के कारण, कई लोग सीमित मात्रा में हिंदुस्तानी(हिंदी/उर्दू) भी समझने में सक्षम हैं। यहाँ का बहुसंख्यक धर्म, इस्लाम है, जबकि प्रमुख अल्पसंख्यक धर्म, हिन्दू धर्म है। सिलेट विभाग में, जनसांख्यिकीक रूप से, इस्लाम के अनुयाई, आबादी के औसतन करीब ८८% है, जबकि शेष जनसंख्या प्रमुखतः हिन्दू धर्म की अनुयाई है। यह मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है। अवस्थिती बालागंज उपजिला बांग्लादेश के पूर्वी सीमान्त में स्थित, सिलेट विभाग के सिलेट जिले में स्थित है। इन्हें भी देखें बांग्लादेश के उपजिले बांग्लादेश का प्रशासनिक भूगोल सिलेट विभाग उपज़िला निर्वाहि अधिकारी सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ उपज़िलों की सूची (पीडीएफ) (अंग्रेज़ी) जिलानुसार उपज़िलों की सूचि-लोकल गवर्नमेंट इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट, बांग्लादेश http://hrcbmdfw.org/CS20/Web/files/489/download.aspx (पीडीएफ) श्रेणी:सिलेट विभाग के उपजिले बांग्लादेश के उपजिले
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%20%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE
सूचना सुरक्षा जागरुकता
साइबर सुरक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका निरंतर चलती रहेगी, लोगों में प्रारंभ और बढावा देने के लिए एवं विद्यमान जागरूकता और प्रयास उन तक पहुँचाने के लिए साइबर सुरक्षा जागरूकता की एक विशाल भूमिका रही है और आगे भी रहेगी। क्षेत्र या आकार का विचार किये बिना, प्रत्येक नागरिक, सभी स्तरों की सरकार, शिक्षा संस्थान और उद्योगों को सुरक्षित साइबरस्पेस को बढावा देना चाहिये/समर्थन करना चाहिये। समाधान में समाविष्ट प्रमुख स्टेकहोल्डर्स की सूची असीमित है और इसीलिये, समस्या का समाधान व्यवस्थित सार्वजनिक-निजी सहभागिता के परिणाम के रूप में सामने आएगा। संपूर्ण देश में जनसाधारण, शिक्षा संस्थान और निजी उद्योगों को साइबर सुरक्षा और साइबर सुरक्षा को बढावा देने में उनकी भूमिका के प्रति एक राष्ट्रीय जागरूकता अभियान और एक रणनीति चलाने की आवश्यकता है। पाठशाला के विद्यार्थी, शिक्षकगण और पाठशालाऍं तथा विद्यापीठ इन सब की भूमिका को पहचानते हुए, उन सब तक साइबर सुरक्षा पहुँचाने के लिए एक रणनीति बनाई गई है। साथ ही, हमें प्रत्येक समर्पित राज्य और स्थानीय जनसेवकों को, जिन्होंने राज्य और स्थानीय सरकारी एजेंसियों में साइबर सुरक्षा जागरूकता को बढावा देने का उत्तरदायित्व बाँटा है, संगठित करना होगा। प्रकल्प का उद्देश्य एवं व्याप्ति 1. उद्योग, शैक्षिक क्षेत्र और जनसाधारण के लिए व्यापक राष्ट्रीय जागरूकता अभियान की पहचान, संरचना, कार्यान्वयन और संयोजन करना। 2. जागरूकता अभियान चलाना उदा. कार्यशालाएँ और संगोष्ठी। 3. साइबर सुरक्षा की तैयारी के लिए सुरक्षा मार्गदर्शक पुस्तकों का विकास करना। 4. साइबर सुरक्षा पर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से एक राष्ट्रीय सेवा अभियान को समर्थन, प्रोत्साहन देना और प्रारंभ करना। 5. गृह उपयोगकर्ता, विद्यार्थी और गृहिणियों के लिए एक ओपन सोर्स साइबर सुरक्षा टूल किट विकसित करना। 6. उपयुक्त साइबर सुरक्षा आचरण संबंधी जागरूकता बढाने के लिए विद्यार्थी और उच्च शिक्षा संस्थानों में सामग्री वितरण तथा विकास के लिए शैक्षिक समूह, पाठशाला बोर्डस्, सुपरिंटेंडेंटस्, शिक्षकगण और महाविद्यालय एवं विद्यापीठों के सहभागिता करना। 7. अभ्यासक्रम के घटक के स्वरूप में साइबर सुरक्षा एवं नीतिशास्त्र पाठ्यक्रम उपलब्ध करवाना और जागरूकता घटक की पहचान करवाने के लिए अवसरों की खोज करना एवं वेब पोर्टल के माध्यम से कार्यान्वयन में मदद करना। 8. सूचना सुरक्षा का उत्तम अभ्यास, विविध स्टकेहोल्डर्स के जागरूकता स्तर और सूचना सुरक्षा जागरूकता तक पहुँच (विशिष्ट मध्यवर्ती घटनाओं के साथ डिपस्टिक विश्लेषण/अभ्यास भौतिक उपलब्धियाँ)
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संयुक्त राज्य भूयोजना अफ्रीका के लिए
पूर्वी अफ्रीका बरंडी कोमोरोस जिबूती इरिट्रिया इथियोपिया केन्या मेडागास्कर मलावी मॉरीशस मैयट मोजाम्बिक रीयूनियन रवांडा सेशेल्स सोमालिया युगांडा तंजानिया ज़ाम्बिया जिम्बाब्वे मध्य अफ्रीका अंगोला कैमरून मध्य अफ्रीकी गणराज्य चाड काँगो गणराज्य इक्वेटोरियल गिनी गैबून कांगो गणराज्य साओ टोम और प्रिंसिपे उत्तरी अफ्रीका अल्जीरिया मिस्र लीबिया मोरक्को सूडान ट्यूनीशिया पश्चिमी सहारा दक्षिणी अफ्रीका बोत्सवाना लेसोथो नामीबिया दक्षिण अफ्रीका स्वाजीलैंड पश्चिमी अफ्रीका बेनिन बुर्किना फासो केप वर्दे कोटे डी आइवर गाम्बिया घाना गिनी गिनी -बिसाऊ लाइबेरिया माली मॉरिटानिया नाइजर नाइजीरिया सेंट हेलेना सेनेगल सियरा लियोन टोगो Geography of Africa Articles lacking sources (Erik9bot) Africa
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A4%B5%20%28%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%29
तद्भव (पत्रिका)
तद्भव हिन्दी की एक पत्रिका है। यह पत्रिका हर बार आधुनिक रचनाशीलता पर केन्द्रित एक विशिष्ट संचयन होती है तथा विशुद्ध साहित्यिक सामग्रियों को प्रकाशन में महत्त्व देती है। समकालीन हिन्दी कथा-साहित्य के एक प्रमुख हस्ताक्षर अखिलेश ने इस पत्रिका का प्रकाशन मार्च, 1999 से प्रारंभ किया। इसका प्रकाशन लखनऊ, उत्तर प्रदेश से होता है। यह एक त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अपनी निर्दिष्ट पत्रिकाओं की सूची में इस पत्रिका को शामिल किया है। बाहरी कड़ियाँ तद्‌भव पत्रिका कविता कोश पर सन्दर्भ हिन्दी हिन्दी पत्रिकाएँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9D%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%96%E0%A4%82%E0%A4%A1%20%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%20%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BE%20%28%E0%A4%AC%E0%A5%80%29
झारखंड मुक्ति मोर्चा (बी)
झारखंड मुक्ति मोर्चा (बी), भारत में 1980-1990 तक एक राजनीतिक दल थी। झामुमो नेता बिनोद बिहारी महतो ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने के झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के फैसले के बाद झामुमो (बी) का गठन किया। 1987 में झामुमो अध्यक्ष निर्मल महतो की कथित तौर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ हत्या के बाद बिनोद बिहारी महतो झामुमो में वापस लौट आए। जनवरी 1990 में झामुमो (बी) का झामुमो में विलय हो गया। इन्हें भी देखें बिनोद बिहारी महतो झारखंड मुक्ति मोर्चा सन्दर्भ
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माता
माता वह है जिसके द्वारा कोई प्राणी जन्म लेता है। भा माता का संस्कृत मूल मातृ है। हिन्दी में इस शब्द का प्रयोग प्रायः इष्टदेवी को संबोधित करने के लिए किए जाता है, पर सामान्यरूप से माँ शब्द का प्रयोग ज्यादा होता है। परिभाषा इंसानों के परिपेक्ष में माता अपने गर्भ में बच्चे को धारण करती है और भ्रूण के विकास के बाद उसे जन्म देती है। माँ, हर एक के जीवन में महत्वपूर्ण व सर्वश्रेष्ठ होती है क्योंकि इस दुनिया में किसी भी चीज को माँ की ममता से नहीं तोला जा सकता। मातृत्व दिवस अन्तर्राष्ट्रीय मातृत्व दिवस सम्पूर्ण मातृ-शक्ति को समर्पित एक महत्वपूर्ण दिवस है, जिसे मदर्स डे, मातृ दिवस या माताओं का दिन चाहे जिस नाम से पुकारें यह दिन सबके मन में विशेष स्थान लिए हुए है। पूरी जिंदगी भी समर्पित कर दी जाए तो माँ के ऋण से उऋण नहीं हुआ जा सकता है। संतान के लालन-पालन के लिए हर दुख का सामना बिना किसी शिकायत के करने वाली माँ के साथ बिताये दिन सभी के मन में आजीवन सुखद व मधुर स्मृति के रूप में सुरक्षित रहते हैं। भारतीय संस्कृति में माँ के प्रति लोगों में अगाध श्रद्धा रही है, लेकिन आज आधुनिक दौर में जिस तरह से मदर्स डे मनाया जा रहा है, उसका इतिहास भारत में बहुत पुराना नहीं है। इसके बावजूद दो-तीन दशक से भी कम समय में भारत में मदर्स डे काफी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। पर्यायवाची जननी माँ मातृ अम्मा ममा माँ बनने की सही उम्र क्या है गर्भवती होने के लिए सही उम्र 30 वर्ष से कम होती है क्योंकि 30 वर्ष के बाद महिलाओं के प्रजनन स्तर में कमी आ जाती है। जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती है, वैसे ही शरीर में अंडे का उत्पादन घटता है जिससे आप में बांझपन का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए जब आपकी उम्र। 17 से 30 के बीच है, तब वो प्रेग्नेन्सी का सही उम्र समय है। अमेरिकी सोसाइटी ऑफ रिप्रोडक्टिव मेडिसिन के मुताबिक 30 साल की उम्र के बाद हर गुजरते महीने में गर्भवती होने की संभावना 20 फीसदी कम हो जाती है, भले ही एक महिला कितनी स्वस्थ क्यों न हो। और एक बार जब आप 35 की उम्र तक पहुँच जाती हैं, तो प्रेग्नेंट होने, गर्भावस्था बनाए रखने और स्वस्थ बच्चे को जन्म देने की संभावना काफी कम हो जाती है। नोवा मेडिकल सेंटर्स की स्टडी के अनुसार 31 साल या उससे अधिक की आयु की 68% महिलाओं ने फर्टिलिटी ट्रीटमेंट का विकल्प चुना जबकि लगभग 31 से 35 साल की 36% महिलाओं और 35 साल से अधिक उम्र की 32% महिलाओं ने यह विकल्प चुना। अगर आप 35 वर्ष के बाद या ज़्यादा उम्र में माँ बनने का सोचती हैं तो आपको सी-सेक्शन ( सीजेरियन आपरेशन) कराना पड़ सकता है। इतना ही नहीं, देर से गर्भधारण में आपके बच्चे में न्यूरल ट्यूब दोष या डाउन सिंड्रोम जैसी जेनेटिक असमानताएँ विकसित होने की संभावनाएँ अधिक रहती हैं। हालाँकि नियमित रूप से अल्ट्रासाउंड और एम्नियोसेन्टेसिस टेस्ट (amniocentesis - कुछ खास तरह के जन्मजात दोषों का पता लगाने की लिए टेस्ट) के साथ आप गर्भ में पल रहे बच्चे के समग्र विकास और ग्रोथ पर एक नजर रख सकते हैं। चर्चित माताएँ यशोदा कुन्ती सीता पार्वती मायादेवी पन्ना धाय देखें परिवार मातृत्व का बंधन सन्दर्भ रिश्ते
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पॉप (भूत)
पॉप ( ) थाई लोककथाओं की एक नरभक्षी भावना है। यह खुद को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में प्रकट करता है जो मानव विसरा को खाना पसंद करता है। पॉप फी फा भावना से संबंधित है। दंतकथाएं एक पारंपरिक किंवदंती कहती है कि बहुत समय पहले एक फूल उन्हें नियंत्रित कर सकता था। एक बार राजकुमार ने जादुई शब्द कहे और एक जानवर के शरीर में प्रवेश कर गया। उसके नौकर ने उन शब्दों को सुना, उन्हें दोहराया और राजकुमार के शरीर में प्रवेश कर गया। नौकर ने लोगों को यह सोचकर मूर्ख बनाया कि वह राजकुमार है। यह देखकर राजकुमार जल्दी से एक पक्षी के शरीर में प्रवेश कर गया और अपनी पत्नी को सच्चाई बताने के लिए दौड़ पड़ा। यह सुनकर राजकुमार की पत्नी ने नौकर के शरीर को नष्ट कर दिया और राजकुमार ने झूठे राजकुमार को जानवर के शरीर में प्रवेश करने की चुनौती दी। जब नौकर ने मूर्खता से प्रवेश किया और जानवर के शरीर पर नियंत्रण कर लिया, तो असली राजकुमार अपने शरीर में फिर से प्रवेश कर गया। नौकर अपने शरीर में फिर से प्रवेश करने में असमर्थ था क्योंकि वह नष्ट हो गया था। इसके बाद, उसकी बदला लेने वाली आत्मा उसकी आंतों को खाकर एक शरीर से दूसरे शरीर में जाती है। गाँव की किंवदंतियों का कहना है कि यह भूत एक जादूगरनी के अंदर रहता है और नींद के दौरान अपना शरीर छोड़ देता है। इससे पहले कि चुड़ैल मर सके, आत्मा को एक शरीर खोजना होगा जिसमें पुरानी जादूगरनी की कुछ लार का सेवन करके पॉप को प्रेषित किया जाएगा। ये भूत शक्तिशाली होते हैं। यदि वे किसी को परेशान करने में सफल हो जाते हैं, तो वे नींद के दौरान उस व्यक्ति की आंतें खा लेंगे। इनसे छुटकारा पाने का एक तरीका है किसी उपचारात्मक नर्तक को बुलाना। यह स्पिरिट डॉक्टर कताई नृत्य के माध्यम से पॉप का पीछा करता है। जब रोगी नृत्य देख रहा होता है, पॉप कताई आंदोलन में प्रवेश करेगा और शरीर से पीछा किया जाएगा। 2007 में, कालासिन प्रांत के सैम चाई जिले में चार ग्रामीणों की रहस्यमय और अचानक मौत के बाद, लगभग 1000 निवासियों ने, बुरी आत्माओं के कारण होने वाली मौतों के डर से, पॉप के भूत भगाने के लिए लगभग 35,000 थाई बहत जुटाए, कथित तौर पर इनमें से दो में निवास कर रहे थे। महिला ग्रामीण। 2012 में लाओस के चंपा प्रांत के पाक्से में अचानक 10 पुरुषों की मौत हो गई थी। लोगों का मानना था कि ये मौतें पॉप की वजह से हुई हैं. शैक्षणिक दृष्टि से तकनीकी विवरण में, पॉप के रूप में वर्णित एक सामाजिक प्रक्रिया है। यानी समाज या समुदाय से अलग-थलग पड़े लोगों को नकारना। अभियुक्त एक पॉप है जिसे मण्डली या गाँव से घृणा और निष्कासित कर दिया जाएगा और ध्यान दिया जाएगा कि यह विश्वास केवल कुछ क्षेत्रों पर लागू होता है, जिसमें ऊपरी पूर्वोत्तर और मध्य में कुछ क्षेत्र शामिल हैं। यह अन्य क्षेत्रों में नहीं मिलेगा।
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कलचुरि कालीन बुंदेली समाज और संस्कृति
बुंदेलखंड के कलचुरियों के समाज में नीति, मर्यादा, धर्मनिष्ठा के साथ युद्धों की अधिकता थी अत: अनिश्चय का वातावरण था। शैवोपासना का प्रसार युवराज देव के समय में हुआ। इस समय शोण नदी के तट पर मत्तमयूर शैवों का बहुत बड़ा मठ बनाया गया। इतिहासकारों के विचार से युवराजदेव के राज में शैव सिद्धांत, शैवागम, शैवाचार्य, शैवमठ मन्दिरों की बाढ़ सी आ गई थी। बुंदेलखंड में ज्ञान साधना के केन्द्रों के रूप में अनेक मठों का निर्माण किया गया। गुर्गी और बिलहारी के मठ और मंदिर इस समय में साहित्य और अन्य विद्याओं की अभूतपूर्व उन्नति। शैवों के साथ सिद्ध भी जुड़े हुए हैं। कदम्ब गुहा शैव-सिद्धों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है तथा गोलकी मठ के साथ तो अनेक ग्रामों की आय भी जुड़ी थी। युवराज देव के समय में साहित्य के क्षेत्र में कवि "राजशेखर' का बुंदेलखंड में आना और "विद्वशाल भंजिका' नाटक, कर्पूरमंजरी तथा बालरामायण की रचना तत्कालीन साहित्यिक वातावरण को प्रस्तुत करती है। ग्यारवीं शताब्दी में कर्ण ने काशी में "कर्णमेह' नाम से शिव का प्रसिद्ध प्रसाद बनवाया था। ऐसा ही अमकंटक में चित्रकूट देवालय के नाम से निर्माण किया गया। स्थापत्य और वास्तुकला की दृष्टि से यह उत्कृष्ट कलाकृति है। बारहवीं शताब्दी में चंदेलों की बढ़ती हुई शक्ति के समक्ष कलचुरियों का पराभव हुआ। कलचुरिवंश लगभग तीन सौ वर्ष तक दक्षिण बुंदेलखंड का शासक रहा। इनके मदिरों में शिव मंदिर अधिक है साथ ही सामान्यतयर त्रिदेवों की पूजा भी होती थी। मूर्तियों में अलंकरण का प्रावधान और प्राधान्य था। समाज में विभिन्न वर्गों में उपजातियों का निर्माण इसी काल में हुआ था। क्षत्रिय युद्धों में, वैश्य व्यापार में और ब्राह्मण अपनी जीविका के साधनों के लिए सामंतों के आश्रित तो ये ही साथ ही आचार-विचार और रीतिरिवाजों के कठोरकार रहे थे। कलचुरियों के बाद चंदेलकाल में इसका विस्तार ही हुआ। चंदेल काल : आठवीं नवीं शताब्दी के उपरांत बुंदेलखंड के समाज में विशेष परिवर्तन आया। विदेशी आक्रमणकारियों के संस्कृत के कारण हिन्दु समाज में कट्टरता की भावना बढ़ी। आर० सी० मजूमदार ने ब्राह्मणों की निरंकुशता को एक अनिवार्य कारण माना जिसके कारण शेष समाज को उनके अधीन बन जाना पड़। दसवीं ग्यारहवीं शताब्दी के इतिहासकार इब्नशुर्दद्व के लेखों में भी इस का समर्थ नहीं मिलता है। चन्देलकाल में जाति विभाजन के दो पहलू थे - व्यावसायिक और विवाह जन्म जो बारहवीं शताब्दी के अंत तक स्थिर न रह सके। जातीय वर्ग विश्रंखलन सभी वर्णों में घटित हुआ। सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए समाज को ब्राह्मणों की ओर देखना पड़ता था। अलबेरुनी ने लिखा है महमूद ने भारतवर्ष की सभी अर्जित घाती और उसका सौंदर्य सोलह आने नष्ट कर दिया। हिन्दुओं के विचार क्रमश: संकीर्णता की ओर बढ़ते गए। इस समय परिवार की दशा व्यावसायिक थी और उपजीविका से संबंध रखती थी। मध्ययुग तक वैश्य केवल कृषि का कार्य करते थे परंतु इस काल में वे कृषि कार्य से एक दम विरक्त हो गए और बूढ़ों के साथ ब्राह्मणों और क्षत्रियों ने इस हस्तगत कर लिया। केशव प्रसाद मिश्र के अनुसार विवाह जैसे संस्कार में भी ब्राह्मणों को अन्य जाति (क्षत्रियों, वैश्य) की कन्या से विवाह वर्जित था। मध्ययुग के उत्तर में बाल-विवाह भी प्रचलित हुए और उसके निर्मित मनु-समृति और पराशर संहिता की व्यवस्थाओं को दुहराया गया - अष्ट वर्षा भवेगौरी नव वर्षा तु रोहिणी। दश वर्षा भवेत्कन्या तत उर्दू रजस्वला।। प्राप्तेषु द्वादश वर्षे कन्यां यो न प्रयच्छति। मसि मसि रजस्तस्या: पिवन्ति पितर: स्वयं।। (पराशर संहिता) बाल्यविवाह का एक कारण मुसलमानों अथवा विदेशियों के अत्याचार भी था। विधवा विवाह मना किया गया। बहुविवाह प्रथा प्रचलित रही। धीरे-धीरे जाति के बाहर का संबंध निषिद्ध हुआ। चंदेल राजाओं ने समकुलशील वालों के यहाँ भी विवाह संबंध किए हैं। नारियों की दशा इसी के साथ साथ गिरी और कन्या उत्पन्न करने पर उस ही दृष्टि से देखा गया। नारियों के अभिशप्त दशा में पहुँचने पर पारिवारिक विश्रंखलता आनी स्वाभाविक थी। भोजन और पेय में शूद्रों को छोड़ कर शेष सभी वर्ण आपस में मिलते जुलते थे। शूद्र कि स्थिती दिन-प्रतिदिन गिरती गई। ब्राह्मण से शूद्र का यह निर्देश "टूरे तावत्स्थीयताम्। ब्राह्मण प्रस्वेद कनिका प्रसरन्ति' उनकी स्थिति का ज्ञापन कराता है। मद्यपान यद्यपि घृणित था परंतु यह प्रचलित था। वस्रों में पैजाम, पगड़ी, मिरजई का चलन था। आभूषण प्राय: सभी स्री-पुरुष पहनते थे। सामाजिक रीत-रिवाजों में परिशुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता था। कृषि कार्य में बैसाख सुदी तीज को कृषि वर्ष का आरंभ माना जाता था। देवशयन आषाढ़ सुदी ११ को और देव जागरण कार्तिक सुदी ११ को मानना कृषि संबंधी पूजा की रीति थी। सामान्य लोगों में कर्म और उनके फलों का विश्वास था (प्राय: सुकृतिनामर्थे देवायान्ति सहायताम् प्रबोध चन्दोदयय पृ० १४१) पर अनार्य जातियों में विशेषकर गौड़ और सौरों में भूतप्रेत में विश्वास दृढ़ था। फलस्वरुप ये अनेक काल्पनिक देवताओं की पूजा करके धर्म भावना की तृप्ति करते थे। भाव-जगतम, जवार, झाड़ फूँक पर लोगों को औषधियों से भी अधिक विश्वास था। यह तांत्रिकों और अघोरपंथियों का युग था। वर्तमान बुंदेलखंड में जिम ग्राम देवताओं (खेरमाता, भिड़ोहिया, घटोइया, गौड़ बाब, मसानबाबा, नट बाबा, छीट) का प्रचलन है तथा जिन महामारियों की देवियों और शक्तियों की पूजा प्रचलित है वह इन्हीं की देन है। मनोरंजन के क्षेत्र में उच्चस्तरीय वर्गों में गायन, वादन और नृत्य, अभिनय आदि थे तो शेष वर्गों में पर्यटनशील सपेरे, अभिचार और ऐन्द्रजालिक कार्य थे। इस प्रकार जिन बुराईयों का श्री गणेश इन शताब्दियों में हुआ वह कालान्तर में प्रौढ़ हो गई। आर्थिक दशा सामान्यत: अच्छी थी पर धार्मिक विवाद और संप्रदायगत संघर्ष बढ़ते ही गए। हठयोग #ौर तंत्र का प्रसार भी हुआ। धार्मिक अनैक्य के रहते हुए भी बौद्धधर्म का तिरोहण हुआ परन्तु कुमारिल और शंकर के अभियान के बावजूद जैन धर्म पल्लवित होता रहा। खजुराहो और महोबा में बने जैन मन्दिर इसके प्रमाण हैं। चंदेह शासकों का धर्म हिन्दु था पर वे जैन धर्म के प्रति उदार थे। धर्म में वैष्णव सम्प्रदाय के स्वरुप में परिवर्तन आया। बुद्ध विष्णु के अवतार के रूप में घोषित हो चुके थे। अहिंसा के समादार से वैष्णव धर्म ने जैन धर्म को आसन्त किया है शैव मत प्रसार वैष्णव मते के समानतर ही रहा परन्तु शाक्त को भी लोग मानते रहे। इस प्रकार विष्णु, देवी, गणेश, सूर्य आदि की पूजा प्रचलित थी परन्तु वैदिक विधियां तपंण, सूर्योपासना और हवन क्रमश: महत्वहीन होती गई। प्रत्येक हिन्दु गृह में किसी न किसी देव की लघु मूर्ति प्रतिष्ठित होती गई। हिन्दुओं के पंचांग त्यौहार से भरे पड़े थे। तीर्थ यात्रा की महिमा स्थापित हुई। मन्दिरों का जीर्णोद्धार, तालाब खुदवाना धार्मिक कृत्य बन गया। जहां तक इस्लाम की बात है बुंदेलखंड में इसका प्रभाव मुगलकाल में भी प्राय: नगण्य रहा है। देशी राज्यों के उदय से प्रदेशीय भाषाओं का उदय भी हुआ। चन्देल साम्राज्य के अंतर्गत बुंदेली की विकास हुआ। अन्य भाषाओं में गौणी, बघेली का विकास हो रहा था। बुंदेली साहित्य का निर्माण इसी समय प्रारंभ हुआ। संस्कृत में उपदेशात्मक साहित्य, सोमदेवकृत कथा सरित्सागर, त्रिविक्रम भ कृत नल चम्पू, कृष्ण मिश्र रचित प्रबोध चन्द्रोदय (नाटक) तथा धार्मिक साहित्य पर भाष्य लिखे गये। ललित कलाओं, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि पर ग्रन्थों का प्रणयन हुआ। चन्देलों ने जलाशयों और दुर्गों के निर्माण में विशेष शक्ति लगाई कालंजर का दुर्ग यद्यपरि ७वीं शती का निर्मित माना जाता है पर यह चन्देल साम्राज्य का विशेष आकर्षण था। अजयगढ़, बारीगढ़, मतियागढ़ मारफ, मौधा, मरहर, देवगढ़ आदि इसी युग का स्मरण कराते हैं। मुद्राओं में चन्देल और कलचुरियों के सिक्के मिलते जुलते हैं। चन्देलों ने उस संक्रमण काल में शासन किया है जिसमें मुसलमान क्रमश: विजय की ओर और हिन्दु पतन की ओर बढ़ रहे थे। शासकों की राजनितिक दृष्टि में संकीर्णता होने के कारण राष्ट्रीयता का सार्वभौम भाव प्राय: लुप्त था। देश बाहर और भीतर से संघर्ष की भट्टी में था। कुल मिलाकर धर्म, समाज, संस्कृति और साहित्य में परिस्थितियों से साक्षात् करने वाली दृष्टियों को अपनाया गया। धार्मिक उदारता तो रही पर भीतर से समाज धर्म और संस्कृति में एक कठोर व्यवस्था का ताना बाना बुन रही थी। तांत्रिकों और अघोरपंथियों के उदय के साथ मैथुन और मदिरा का उसी प्रकार प्राबलय हो गया जिस प्रकार वज्रयानियों और मंत्रयानियों में था। हिन्दुधर्म में उपासना के और अनेक माध्यम स्थापित हो गये। धर्म यात्रा, तीर्थ, दान, त्यौहार और व्रतों की मान्यता अधिक हो गई। यही चन्देल कालीन बुंदेली समाज का स्वरुप और संस्कृति थी। बुंदेलखंड
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पाईगाह, पंजाब
पाईगाह , पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के डेरा ग़ाज़ी ख़ान ज़िले का एक कस्बा और यूनियन परिषद् है। यहाँ बोले जाने वाली प्रमुख भाषा पंजाबी है, जबकि उर्दू प्रायः हर जगह समझी जाती है। साथ ही अंग्रेज़ी भी कई लोगों द्वारा काफ़ी हद तक समझी जाती है। प्रभुख प्रशासनिक भाषाएँ उर्दू और अंग्रेज़ी है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें पाकिस्तान के यूनियन काउंसिल पाकिस्तान में स्थानीय प्रशासन पंजाब (पाकिस्तान) डेरा ग़ाज़ी ख़ान ज़िला बाहरी कड़ियाँ D.G। खान जिले के यूनियन परिषदों की सूची पाकिस्तान ब्यूरो ऑफ़ स्टॅटिस्टिक्स की आधिकारिक वेबसाइट-1998 की जनगणना(जिलानुसार आँकड़े) डेरा ग़ाज़ी ख़ान ज़िले के यूनियन परिषद् पाकिस्तानी पंजाब के नगर
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राज कुमार
जीवन परिचय हिन्दी सिनेमा जगत में यूं तो अपने दमदार अभिनय से कई सितारों ने दर्शकों के दिल पर राज किया लेकिन एक ऐसा भी सितारा हुआ, जिसे सिर्फ दर्शकों ने ही नहीं बल्कि पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री ने भी 'राजकुमार' माना और वह थे संवाद अदायगी के बेताज बादशाह कुलभूषण पंडित उर्फ राजकुमार।          पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में 8 अक्टूबर 1926 को जन्मे राजकुमार स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद  मुंबई के माहिम थाने में सब इंस्पेक्टर के रूप में काम करने लगे। अभिनेता के रूप में शुरुआत एक दिन रात में गश्त के दौरान एक सिपाही ने राजकुमार से कहा कि हजूर आप रंग-ढंग और कद-काठी में किसी हीरो से कम नहीं है। फ़िल्मों में यदि आप हीरो बन जायें तो लाखों दिलों पर राज कर सकते हैं और राजकुमार को सिपाही की यह बात जंच गयी।          राजकुमार मुंबई के जिस थाने मे कार्यरत थे। वहां अक्सर फ़िल्म उद्योग से जुड़े लोगों का आना-जाना लगा रहता था। एक बार पुलिस स्टेशन में फ़िल्म निर्माता बलदेव दुबे कुछ जरूरी काम के लिये आये हुए थे। वह राजकुमार के बातचीत करने के अंदाज से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने राजकुमार से अपनी फ़िल्म 'शाही बाजार' में अभिनेता के रूप में काम करने की पेशकश की। राजकुमार सिपाही की बात सुनकर पहले ही अभिनेता बनने का मन बना चुके थे। इसलिए उन्होंने तुरंत ही अपनी सब इंस्पेक्टर की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और निर्माता की पेशकश स्वीकार कर ली।                 शाही बाजार को बनने में काफी समय लग गया और राजकुमार को अपना जीवनयापन करना भी मुश्किल हो गया। इसलिए उन्होंने वर्ष 1952 मे प्रदर्शित फ़िल्म 'रंगीली' में एक छोटी सी भूमिका स्वीकार कर ली। यह फ़िल्म सिनेमा घरों में कब लगी और कब चली गयी। यह पता ही नहीं चला। इस बीच उनकी फ़िल्म 'शाही बाजार' भी प्रदर्शित हुई। जो बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी। शाही बाजार की असफलता के बाद राजकुमार के तमाम रिश्तेदार यह कहने लगे कि तुम्हारा चेहरा फ़िल्म के लिये उपयुक्त नहीं है। और कुछ लोग कहने लगे कि तुम खलनायक बन सकते हो। वर्ष 1952 से 1957 तक राजकुमार फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे।          'रंगीली' के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली राजकुमार उसे स्वीकार करते चले गए। इस बीच उन्होंने 'अनमोल' 'सहारा', 'अवसर', 'घमंड', 'नीलमणि' और 'कृष्ण सुदामा' जैसी कई फ़िल्मों में अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई। फ़िल्म जगत में सफलता वर्ष 1957 में प्रदर्शित महबूब ख़ान की फ़िल्म मदर इंडिया में राज कुमार गांव के एक किसान की छोटी सी भूमिका में दिखाई दिए। हालांकि यह फ़िल्म पूरी तरह अभिनेत्री नरगिस पर केन्द्रित थी फिर भी राज कुमार अपनी छोटी सी भूमिका में अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे। इस फ़िल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति भी मिली और फ़िल्म की सफलता के बाद राज कुमार बतौर अभिनेता फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए। फ़िल्मों में मिली कामयाबी वर्ष 1959 में प्रदर्शित फ़िल्म 'पैग़ाम' में उनके सामने हिन्दी फ़िल्म जगत के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे लेकिन राज कुमार ने यहाँ भी अपनी सशक्त भूमिका के ज़रिये दर्शकों की वाहवाही लूटने में सफल रहे। इसके बाद राज कुमार 'दिल अपना और प्रीत पराई-1960', 'घराना- 1961', 'गोदान- 1963', 'दिल एक मंदिर- 1964', 'दूज का चांद- 1964' जैसी फ़िल्मों में मिली कामयाबी के ज़रिये राज कुमार दर्शको के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुए ऐसी स्थिति में पहुँच गये जहाँ वह फ़िल्म में अपनी भूमिका स्वयं चुन सकते थे। वर्ष 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म काजल की जबर्दस्त कामयाबी के बाद राज कुमार बतौर अभिनेता अपनी अलग पहचान बना ली। वर्ष 1965 बी.आर.चोपड़ा की फ़िल्म वक़्त में अपने लाजवाब अभिनय से वह एक बार फिर से अपनी ओर दर्शक का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहे। फ़िल्म वक़्त में राज कुमार का बोला गया एक संवाद "चिनाय सेठ जिनके घर शीशे के बने होते है वो दूसरों पे पत्थर नहीं फेंका करते या फिर चिनाय सेठ ये छुरी बच्चों के खेलने की चीज़ नहीं हाथ कट जाये तो ख़ून निकल आता है" दर्शकों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ। फ़िल्म वक़्त की कामयाबी से राज कुमार शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुँचे। ऐसी स्थिति जब किसी अभिनेता के सामने आती है तो वह मनमानी करने लगता है और ख्याति छा जाने की उसकी प्रवृति बढ़ती जाती है और जल्द ही वह किसी ख़ास इमेज में भी बंध जाता है। लेकिन राज कुमार कभी भी किसी ख़ास इमेज में नहीं बंधे इसलिये अपनी इन फ़िल्मो की कामयाबी के बाद भी उन्होंने 'हमराज़- 1967', 'नीलकमल- 1968', 'मेरे हूजूर- 1968', 'हीर रांझा- 1970' और 'पाकीज़ा- 1971' में रूमानी भूमिका भी स्वीकार की जो उनके फ़िल्मी चरित्र से मेल नहीं खाती थी इसके बावजूद भी राज कुमार यहाँ दर्शकों का दिल जीतने में सफल रहे। अभिनय और विविधता वर्ष 1978 में प्रदर्शित फ़िल्म कर्मयोगी में राज कुमार के अभिनय और विविधता के नए आयाम दर्शकों को देखने को मिले। इस फ़िल्म में उन्होंने दो अलग-अलग भूमिकाओं में अपने अभिनय की छाप छोड़ी। अभिनय में एकरुपता से बचने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिए राज कुमार ने अपने को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। इस क्रम में वर्ष 1980 में प्रदर्शित फ़िल्म बुलंदी में वह चरित्र भूमिका निभाने से भी नहीं हिचके और इस फ़िल्म के जरिए भी उन्होंने दर्शको का मन मोहे रखा। इसके बाद राज कुमार ने 'कुदरत- 1981', 'धर्मकांटा- 1982', 'शरारा- 1984', 'राजतिलक- 1984', 'एक नयी पहेली- 1984', 'मरते दम तक- 1987', 'सूर्या- 1989', 'जंगबाज- 1989', 'पुलिस पब्लिक- 1990' जैसी कई सुपरहिट फ़िल्मों के ज़रिये दर्शको के दिल पर राज किया। वर्ष 1991 में प्रदर्शित फ़िल्म 'सौदागर' में राजकुमार के अभिनय के नए आयाम देखने को मिले। सुभाष घई की निर्मित इस फ़िल्म में राजकुमार 1959 में प्रदर्शित फ़िल्म 'पैगाम' के बाद दूसरी बार दिलीप कुमार के सामने थे और अभिनय की दुनिया के इन दोनों महारथियों का टकराव देखने लायक था। नब्बे का दशक नब्बे के दशक में राज कुमार ने फ़िल्मों मे काम करना काफ़ी कम कर दिया। इस दौरान राज कुमार की 'तिरंगा- 1992', 'पुलिस और मुजरिम इंसानियत के देवता- 1993', 'बेताज बादशाह- 1994', 'जवाब- 1995', 'गॉड और गन' जैसी फ़िल्में प्रदर्शित हुई। नितांत अकेले रहने वाले राज कुमार ने शायद यह महसूस कर लिया था कि मौत उनके काफ़ी क़रीब है इसीलिए अपने पुत्र पुरू राज कुमार को उन्होंने अपने पास बुला लिया और कहा, "देखो मौत और ज़िंदगी इंसान का निजी मामला होता है। मेरी मौत के बारे में मेरे मित्र चेतन आनंद के अलावा और किसी को नहीं बताना। मेरा अंतिम संस्कार करने के बाद ही फ़िल्म उद्योग को सूचित करना।" राजकुमार से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से राजकुमार बेहद मुंहफट आदमी थे। जो दिल में आता था, उसे शब्दों का बाण बनाकर सामने वाले पर दाग देते थे। ये बात तो सोचते भी नहीं थे कि सामने वाले को इसका बुरा लगेगा या नहीं। पेश हैं कुछ ऐसे किस्से, जो बॉलीवुड में बहुत मशहूर हैं। ये कितने सही हैं या गलत, ये तो हम नहीं बता सकते, लेकिन इन्हें खूब चटखारे लेकर सुनाया गया। राजकुमार और गोविंदा एक फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। गोविंदा झकाझक शर्ट पहने हुए राजकुमार के साथ शूटिंग खत्म होने के बाद वक्त बिता रहे थे।। राजकुमार ने गोविंदा से कहा यार तुम्हारी शर्ट बहुत शानदार है। चीची इतने बड़े आर्टिस्ट की यह बात सुनकर बहुत खुश हो गए। उन्होंने कहा कि सर आपको यह शर्ट पसंद आ रही है तो आप रख लीजिए। राजकुमार ने गोविंदा से शर्ट ले ली। गोविंदा खुश हुए कि राजकुमार उनकी शर्ट पहनेंगे। दो दिन चीची ने देखा कि राजकुमार ने उस शर्ट का एक रुमाल बनवाकर अपनी जेब में रखा हुआ है। एक पार्टी में संगीतकार बप्पी अक्खड़ राजकुमार से मिले। अपनी आदत के मुताबिक बप्पी ढेर सारे सोने से लदे हुए थे। बप्पी को राजकुमार ने ऊपर से नीचे देखा और फिर कहा वाह, शानदार। एक से एक गहने पहने हो, सिर्फ मंगलसूत्र की कमी रह गई है। बप्पी का मुंह खुला का खुला ही रह गया होगा। जीनत अमान फिल्म इंडस्ट्री में फेमस हो गई थी। दम मारो दम गाना धूम मचा चुका था। फिल्म निर्माता अपनी फिल्म में जीनत को साइन करने के लिए मरे जा रहे थे। एक पार्टी में जीनत की मुलाकात राजकुमार से हुई। जीनत को लगा तारीफ के दो-चार शब्द राजकुमार जैसे कलाकार से सुनने को मिलेगी। जीनत को राजकुमार ने देखा और कहा कि तुम इतनी सुंदर हो, फिल्मों में कोशिश क्यों नहीं करती। अब ये बात सुनकर जीनत का क्या हाल हुआ होगा, समझा ही जा सकता है। राजकुमार के दमदार डायलॉग फ़िल्मी दुनिया के सरताज अभिनेता राजकुमार 3 जुलाई 1996 में के दिन हमें छोड़कर चले गए थे। लेकिन राजकुमार की एक्टिंग स्टाईल, उनके सफेद जूते और उनके डायलॉग आज तक दर्शकों के जेहन में जिंदा हैं। फ़िल्म पाकीज़ा में राज कुमार का बोला गया एक संवाद “आपके पांव देखे बहुत हसीन हैं इन्हें ज़मीन पर मत उतारियेगा मैले हो जायेगें” इस क़दर लोकप्रिय हुआ कि लोग राज कुमार की आवाज़ की नक़्ल करने लगे। इसी प्रकार- चिनॉय सेठ, जिनके घर शीशे के बने होते हैं वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकते। फ़िल्म 'वक्त'  आपके पैर बहुत खूबसूरत हैं। इन्हें ज़मीन पर मत रखिए, मैले हो जाएंगे। फ़िल्म 'पाकीजा' हम तुम्हें मारेंगे और जरूर मारेंगे। लेकिन वह वक्त भी हमारा होगा। बंदूक भी हमारी होगी और गोली भी हमारी होगी। फ़िल्म 'सौदागर' काश कि तुमने हमे आवाज दी होती तो हम मौत की नींद से भी उठकर चले आते। फ़िल्म 'सौदागर' हमारी जुबान भी हमारी गोली की तरह है। दुश्मन से सीधी बात करती है। फ़िल्म 'तिरंगा' हम आंखो से सुरमा नहीं चुराते। हम आंखें ही चुरा लेते हैं। फ़िल्म 'तिरंगा' हम तुम्हें वह मौत देंगे जो न तो किसी कानून की किताब में लिखी होगी और न ही किसी मुजरिम ने सोची होगी। फ़िल्म 'तिरंगा' दादा तो इस दुनिया में दो ही हैं। एक ऊपर वाला और दूसरा मैं। फ़िल्म 'मरते दम तक'  हम कुत्तों से बात नहीं करते। 'मरते दम तक' बाजार के किसी सड़क छाप दर्जी को बुलाकर उसे अपने कफन का नाप दे दो। 'मरते दम तक'  हम तुम्हें ऐसी मौत मारेंगे कि तुम्हारी आने वाली नस्लों की नींद भी उस मौत को सोचकर उड़ जाएगी। फ़िल्म 'मरते दम तक' पुरस्कार राज कुमार ने 'दिल एक मंदिर' और 'वक़्त' के लिए फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार प्राप्त किया। फिल्म उद्योग का नोबेल,फिल्म जगत का सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहेब फाल्के पुरस्कार 1996 से भी इ नवाजा गया। मृत्यु अपने संजीदा अभिनय से लगभग चार दशक तक दर्शकों के दिल पर राज करने वाले महान अभिनेता राज कुमार 3 जुलाई 1996 के दिन इस दुनिया को अलविदा कह गए।[1] प्रमुख फिल्में फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता हिन्दी अभिनेता 1926 में जन्मे लोग १९९६ में निधन बलूचिस्तान के लोग
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अरुणा आसफ़ अली
अरुणा आसफ़ अली (बंगाली: অরুণা আসফ আলী) (१६ जुलाई १९०९ – २९ जुलाई १९९६) भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं। उनका जन्म का नाम अरुणा गांगुली था। उन्हे 1942 में भारत छोडो आंदोलन के दौरान, मुंबई के गोवालीया मैदान में कांग्रेस का झंडा फ्हराने के लिये हमेशा याद किया जाता है। जीवन अरुणा जी का जन्म बंगाली परिवार में 16 जुलाई सन 1909 ई. को हरियाणा, तत्कालीन पंजाब के 'कालका' नामक स्थान में हुआ था। इनका परिवार जाति से ब्राह्मण था। इनका नाम 'अरुणा गांगुली' था। अरुणा जी ने स्कूली शिक्षा नैनीताल में प्राप्त की थी। नैनीताल में इनके पिता का होटल था। यह बहुत ही कुशाग्र बुद्धि और पढ़ाई लिखाई में बहुत चतुर थीं। बाल्यकाल से ही कक्षा में सर्वोच्च स्थान पाती थीं। बचपन में ही उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और चतुरता की धाक जमा दी थी। लाहौर और नैनीताल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह शिक्षिका बन गई और कोलकाता के 'गोखले मेमोरियल कॉलेज' में अध्यापन कार्य करने लगीं।[1] अरुणा जी ने 1930, 1932 और 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के समय जेल की सज़ाएँ भोगीं। उनके ऊपर जयप्रकाश नारायण, डॉ॰ राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादियों के विचारों का अधिक प्रभाव पड़ा। इसी कारण 1942 ई. के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में अरुणा आसफ अली जी ने अंग्रेज़ों की जेल में बन्द होने के बदले भूमिगत रहकर अपने अन्य साथियों के साथ आन्दोलन का नेतृत्व करना उचित समझा। गांधी जी आदि नेताओं की गिरफ्तारी के तुरन्त बाद मुम्बई में विरोध सभा आयोजित करके विदेशी सरकार को खुली चुनौती देने वाली वे प्रमुख महिला थीं। फिर गुप्त रूप से उन कांग्रेसजनों का पथ-प्रदर्शन किया, जो जेल से बाहर रह सके थे। मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली आदि में घूम-घूमकर, पर पुलिस की पकड़ से बचकर लोगों में नव जागृति लाने का प्रयत्न किया। लेकिन 1942 से 1946 तक देश भर में सक्रिय रहकर भी वे पुलिस की पकड़ में नहीं आईं। 1946 में जब उनके नाम का वारंट रद्द हुआ, तभी वे प्रकट हुईं। सारी सम्पत्ति जब्त करने पर भी उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया। कांग्रेस कमेटी की निर्वाचित अध्यक्ष दो वर्ष के अंतराल के बाद सन् 1946 ई. में वह भूमिगत जीवन से बाहर आ गईं। भूमिगत जीवन से बाहर आने के बाद सन् 1947 ई. में श्रीमती अरुणा आसफ़ अली दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा निर्वाचित की गईं। दिल्ली में कांग्रेस संगठन को इन्होंने सुदृढ़ किया। कांग्रेस से सोशलिस्ट पार्टी में सन 1948 ई. में श्रीमती अरुणा आसफ़ अली 'सोशलिस्ट पार्टी' में सम्मिलित हुयीं और दो साल बाद सन् 1950 ई. में उन्होंने अलग से ‘लेफ्ट स्पेशलिस्ट पार्टी’ बनाई और वे सक्रिय होकर 'मज़दूर-आंदोलन' में जी जान से जुट गईं। अंत में सन 1955 ई. में इस पार्टी का 'भारतीय कम्यनिस्ट पार्टी' में विलय हो गया। भाकपा में श्रीमती अरुणा आसफ़ अली भाकपा की केंद्रीय समिति की सदस्या और ‘ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ की उपाध्यक्षा बनाई गई थीं। सन् 1958 ई. में उन्होंने 'मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी' भी छोड़ दी। सन् 1964 ई. में पं. जवाहरलाल नेहरू के निधन के पश्चात वे पुनः 'कांग्रेस पार्टी' से जुड़ीं, किंतु अधिक सक्रिय नहीं रहीं। दिल्ली नगर निगम की प्रथम महापौर श्रीमती अरुणा आसफ़ अली सन् 1958 ई. में 'दिल्ली नगर निगम' की प्रथम महापौर चुनी गईं। मेयर बनकर उन्होंने दिल्ली के विकास, सफाई, और स्वास्थ्य आदि के लिए बहुत अच्छा कार्य किया और नगर निगम की कार्य प्रणाली में भी उन्होंने यथेष्ट सुधार किए। संगठनों से सम्बंध श्रीमती अरुणा आसफ़ अली ‘इंडोसोवियत कल्चरल सोसाइटी’, ‘ऑल इंडिया पीस काउंसिल’, तथा ‘नेशनल फैडरेशन ऑफ इंडियन वूमैन’, आदि संस्थाओं के लिए उन्होंने बड़ी लगन, निष्ठा, ईमानदारी और सक्रियता से कार्य किया। दिल्ली से प्रकाशित वामपंथी अंग्रेज़ी दैनिक समाचार पत्र ‘पेट्रियट’ से वे जीवनपर्यंत कर्मठता से जुड़ी रहीं। सम्मानः- 1975ः शांति एवं सौहार्द के क्षेत्र में लेनिन प्राइज़ से सम्मानित किया गया। 1991ः ज्ञान के लिए जवाहर लाल नेहरू सम्मान से सम्मानित किया गया। 1992ः प्रतिष्ठित पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। 1997ः भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। अरुणा असफ अली बाहरी कड़ियाँ अरुणा आसफ अली : दिल्ली की पहली महापौर भारतीय स्वतंत्रता सेनानी 1909 में जन्मे लोग १९९० में निधन भारत रत्न सम्मान प्राप्तकर्ता स्वतंत्रता सेनानी
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ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा के यूनियन परिषदों की सूची
यूनियन परिषद या यूनियन काउंसिल पाकिस्तान का हीनतम् प्रशासनिक इकाई होती है। क्रमशः यह पाकिस्तान में छठे स्तर का प्रशासनिक निकाय है: यानी पहले संघीय सरकार, फिर प्रांत, फिर प्रमंडल, फिर जिले फिर तहसील और अंत्यतः यूनियन परिषद। लेकिन 2007 के बाद परिमंडल को समाप्त कर दिया गया इसलिए अब यूनियन परिषद पांचवें-स्तर की इकाई है। संघ परिषद स्थानीय सरकार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। संघ परिषद में 21 पार्षद होते हैं जिनकी अध्यक्षता नाज़िम और उप मॉडरेटर करते हैं। पाकिस्तान में इस समय 6000 से अधिक संघ परिषद हैं। यूनियन परिषदों की सूची ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा के यूनियन परिषदों की सूची: एबटाबाद एबटाबाद केंद्र शेख ालबांडी बगीचा, खैबर पख्तूनख्वा बगनूतर बकोट बालडखीरिय बांड िती खान बांडह पीर खान व्यापारी गली बैरोट कलां बोई, खैबर पख्तूनख्वा Chamhad दलोलह देओल तीतर पक्षी धमतोड़ गढ़ी फलगराँ गवरीनी हवेलियां नागरिक जरल शरीफ झंग झनगड़ा काकोल कीहाल नागरिक ककमनग कठयालह कठवाल लनगड़ह, खैबर पख्तूनख्वा लाँगरियाल लोरह देश पुरा नागरिक मीरपुर, खैबर पख्तूनख्वा मोजूहान नगरी ऊपर नगरी तूतयाल नमबल, खैबर पख्तूनख्वा नमली मीरह नाड़ह, खैबर पख्तूनख्वा नथीअगली नौवां शहर नागरिक पलक, खैबर पख्तूनख्वा पट्टन कलां पावह, खैबर पख्तूनख्वा फलकोट फलह पिंड कार्गो खान सलहड सरबना सैर ग़रबी सैर स़रकी भटयाँ शेरवानी, पाकिस्तान ताजवाल बनूँ बटगराम बुनेर तौर गर चारसदा ाबाज़ई आगरा कवज़ बटगराम बहलोलह चंद्र डॉग दरगई माँगह धन पुरा ढकी ढेरी कृदाद दोसहरह गंधरा गविंडा निर्माता हाजी ज़ई हरि चंद हसन ज़ई हसारह नहरी हसारह यासीन ज़ई कांगड़ा कतवज़ई खान मछली बहराम ढेरी निचले मायरह ामदरज़ई मनदनी मत्ता मुगल ख़ैल मेरा पाराँग मरज़ाधर मुहम्मद नारी नीसाटा पनजपाउ राजड़ राशाकई सरकी तीटारा शियसु शियरपाो शोडाग तंगी तरनाब तरनगज़ई ामदरज़ई ज़ईम चित्राल डेरा इस्माइल खान हंगू हरिपुर कर्क कोहाट पहाड़ी बतीरह पाईन मुद्दा ख़ैल बसे कोलई शालिनी बसे कनशियर शईराकोट हारान शारियाल ऊपर शारियाल निचले कवज़ पारो कोटा कोट शरीद पैच बेला बानखाद रनोलियह दोपेर पाईन दोबीर विशेष दोबीर ऊपर जजाल पतन सगायून चौवा दर्रा कायाल बुरी यार गोशाली जालकोट निचले जालकोट ऊपर दासो साआभन हरबान कोमीला सेव सगलो परवाह निचले ठोटी क्रेन कारनग गब्राल लकी मरूत िबदोल ख़ैल अहमद ख़ैल बेसत ख़ैल बखमल अहमद ज़ई बेगू ख़ैल बहराम ख़ैल दर्रा तंग अनुरह सलमान ख़ैल दर्रा पीज़ो गंदी खान ख़ैल ग़ज़नी ख़ैल ासषाक ख़ैल काकाखील खारो ख़ैल पकह कोट कश्मीर लांडीवा मामा ख़ैल मार्मनडी महान मश मस्ती छेडछाड माशा मंसूर नर अबू समद बेगू ख़ैल पहर ख़ैल थल समंदी सीरई नोरनग शहाब ख़ैल शाखा कुली ख़ैल ताजा ज़ई ताजवरी पट्टिका ख़ैल तीतार ख़ैल गली जान निचले देर ासबन बाडोान बालाम्बट बगीचे दश ख़ैल बांडगई बशगराम दरनथान गुल मैदान हाज्ीरई काम्बट खादगज़ई खानपोर वित्त सुनगी कोटीगराम कोटके कोटो लाजबोक लाल किले दरिद्र, देर निचले गुणवत्ता मियां क्ले मुंडा मूनजय नोरह ख़ैल ऊच देर निचले रबात, देर निचले तमरबाग सदबर क्ले तीमगतह आभमदारा तीर्थ ढूँढ़ मालाकंड थाना परवपर थाना बांडह श्रेणियाँ थाना आधुनिक डखीरई, मालाकंड ाललाडंड पिल्लई खार धीरे जूलागराम मालाकंड तूतकान पीरील आगरा (संघ परिषद) सीलई पट्टी कोट (संघ परिषद) दरगई वारतईर खारकई गढ़ी उस्मान ख़ैल हीरो शाह कूपर बदरथान शाहकोट परवपर शाहकोट बांडह श्रेणियाँ शाहकोट आधुनिक बट खीलह ऊपर बट खीलह पूर्व बट खीलह निचले मानसेहरा मरदान आलू बाबनी बाबवज़ई, मरदान बखशाली ऊपर गढ़ी चमतर चारगली दगई ढेरी गढ़ी धन ज़ई गढ़ी इस्माइल ज़ई गरियाला गुजर गढ़ी हथीाँ होती लोनद सुड़ मुस्लिम आबादी रोस्तम श्मवज़ई सौरव शाह टक्कर ्ोरो नौशहरा पेशावर शांग्ला सवाब सलीम खान, सवाब चक नोएडा शेख जाना ासूता शिव पार्मोलिय नारानजी किलो खान आदीन ासमाीलह तोरलंडी तुर्कई दागई बाचई पनचपेर श्मनदर ठंड को ही मारगवज़ कालाबट सहायक मूनाड़ा ज़ारोबी कोठा, खैबर पख्तूनख्वा बाम ख़ैल झांडा पाबीनिय खान कबगनी गिनी चित्रा गुंडप्पा गासबसनी कर्नल शेर कल सवाब सवाब मुनीर मुनीर ऊपर मुनीर पाईन टोपी पूर्व टोपी पश्चिम ज़ायदा सुंडा अंबार बांका मनकी जहांगीर जलबी जालसई लाहौर ग़रबी लाहौर स़रकी सुधीर याकूब ठंड चीनह (ठंडा फव्वारा) यार हुसैन (ग़रबी) यार हुसैन (स़रकी) दोबियान माथानी चानगान थोरधर स्वात अमान कोट फैजाबाद इक्का मारोफ बउम्मी ख़ैल संकेत बहरीन बीदरह बालाकोट बर ाबाखील बन एंग्री डीरई भेड़ बांडई (ऊपर बांडई) बरिकोट बर थाना (ऊपर थाना) भेड़ समई बशगराम बहा चारबाग चोरपरियाल दरमई दनगराम डखीरई दीलई दरवश ख़ैल विजेता जयपुर गलीगई गली उद्यान गलकडा गवालारी हज़ारा इस्लाम जयपुर जानो चमतले किले क्ले कालाम खवाज़ह खीलह कशोरह कोकारई कोटा कोटनई कवज़ ाबाखील (निचले ाबाखील) चीनी मिट्टी बांडई मिद्यान देश बसे मलकानान लंडे किस मनगलाोर मनकयाल मत्ता खारई स्वात रहीम बसे रंग मुहल्ला रोनियाल कम्बर किले गई सीदो शरीफ सख़रह शाह दोहराई शाहदरा शालपन श्मवज़ई स्नान शियरपलाम शेन, स्वात तलीगराम टनदो डॉग तईरात घाटी तोतानो बांडई ोडीगराम ातरोर टैंक मलाज़ई इमानुएल पाए, टैंक गुल इमाम रानीवाल शाह आलम, टैंक टैंक शहर -1 टैंक शहर -2 जितातार गारह बलोच वारसपोन टाटा, टैंक दाबारा उत्तर, टैंक गोमल सरनगज़ोना ऊपरी देर ाखागराम बांडह नहाग बरिकोट बिरुली (संघ परिषद) बांड नहाग बबियाोड़ चकयानान दारोड़ह दरिकंड दीसलाोड़ देर (संघ परिषद) डौग दर्रा गनवरी गवालदई पश्चिम जावा कालकोट रिशफलाम कोटके देर ऊपर नहाग पाशतह पाटरक पालाम देर ऊपर सावन शियरनगल शल्फ़लाम शाहीकोट सनदलम तारापटार तोर्मनग कोलंडी वाड़ी, देर ऊपर इन्हें भी देखें पाकिस्तान में स्थानीय प्रशासन यूनियन परिषद् पाकिस्तान की राजनीति सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ पाकिस्तान के यूनियन परिषद पाकिस्तान में स्थानीय प्रशासन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AE%E0%A4%A8%20%E0%A4%97%E0%A5%83%E0%A4%B9%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7
रोमन गृहयुद्ध
प्राचीन रोम में कई नागरिक युद्ध थे, विशेष रूप से रोमन गणराज्य के अंतिम दौर पर। इनमें से सबसे प्रसिद्ध 40 ईसा पूर्व में जूलियस सीजर और पोम्पी के नेतृत्व में सीनेट अभिजात वर्ग में, और आगे चल कर सीज़र के उत्तराधिकारियों और ओप्टिमाते गुट के बीच, इसके अलावा 30 ईसा पूर्व में ओक्ताविस ​​और मार्क एंटनी के बीच युद्ध रहे हैं। यहाँ प्राचीन रोम में गृह युद्ध की सूची है: गत गणराज्य रोमन गणराज्य का संकट - 133 ई.पूर्व से 30 ई. पूर्व के बीच राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक अशांति की एक विस्तारित अवधि के बारे में। सामाजिक युद्ध (91-88 ई.पू.) - रोम और उसके कई इतालवी सहयोगी दलों के बीच - रोम की जीत। सुल्ला का प्रथम गृहयुद्ध (88 -87 ई.पू.) - लुसियस कॉर्नेलियस सुल्ला के समर्थकों और गयुस मारिअस की सेनाओं के बीच। - सुल्ला की जीत सेरटोरियन युद्ध (83-72 ई.पू.), रोम और हिस्पानिया के प्रांतों, क्विन्टस सेरटोरिस के नेतृत्व में, गयुस मारिअस के समर्थको के बीच। सुल्ला का दूसरा गृहयुद्ध (82 -81 ई.पू.) - सुल्ला और मारिअस 'के समर्थकों के बीच। - सुल्ला की जीत लिपिड्स विद्रोह (77 ई. पूर्व), जब लिपिड्स ने सुल्ला शासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया। कैटिलीन षड़यन्त्र (63-62 ई.पू.), सीनेट और कैटिलीन के असंतुष्ट अनुयायियों के बीच - समितीय जीत। सीजर का गृहयुद्ध (49-45 ई.पू.), जूलियस सीजर और ऑप्टीमेट्स, शुरू में पोम्पी के नेतृत्व में के बीच - सीजेरियन जीत। पोस्ट-सीजेरियन गृहयुद्ध (44-43 ई.पू.), सीनेट की सेना (पहले सिसरो और फिर ओक्टवियस के नेतृत्व में) और एंटनी, लिपिड्स की सेना, और उनके सहयोगि बलों के बीच मुक्तिदाता गृहयुद्ध (44-42 ई.पू.),दूसरी त्रिशक्तियों और मुक्तिदाताओ (ब्रूटस और कैसियस, सीजर के हत्यारों) के बीच - त्रिशक्तियों की जीत। सिसिली का विद्रोह (44-36 ई.पू.), दूसरी त्रिशक्तियों (विशेष रूप से ओक्टवियस ​​और अग्रिप्पा) और सेक्सटस पोम्पी, पोम्पी के बेटे के बीच - त्रिशक्तियों की जीत। पेरसिने युद्ध (41-40 ई.पू.), ओक्टवियस ​​की बलो के बीच, लुसियस एंटोनियस और फुल्विया के खिलाफ (मार्क एंटनी के छोटे भाई और पत्नी) - ओक्टवियस ​​जीत। रोमन गणराज्य का अंतिम युद्ध (32-31 ईसा पूर्व), ओक्टवियस ​​तथा उसके दोस्त सेनापति अग्रिप्पा और मार्क एंटनी और क्लियोपेट्रा के बीच - ओक्टवियस की ​​जीत। प्रारंभिक साम्राज्य चार सम्राटों का वर्ष (69 ईसवी) ,सम्राट नीरो (69 ईसवी) की मृत्यु के बाद विभिन्न रोमनों के बीच। नीरो की आत्महत्या के बाद, जनरलों गलबा, ओथो, और विटेलिउस एक दूसरे से एक महीने के भीतर सिंहासन हथिया लिया। जनरल वेस्पेसियन, जो अब तक यहूदी विद्रोहियों से लड़ रहा थे, विजयी रहे। उन्होंने फ्लावियन राजवंश की स्थापना की। मध्य साम्राज्य पांच सम्राटों का वर्ष और बाद का गृहयुद्ध (ईसवी 193-196), छह सम्राटों का वर्ष (ईसवी 238), जनरलों सेप्टिमिस सेवेरस, पेसेंनिस नाइजर और क्लोडियस अल्बिनउस के बीच तीसरी शताब्दी के संकट के दौरान (ईसवी 235-284), विभिन्न जनरलों ने सम्राट बनने के लिए एक दूसरे के साथ लड़ाई लड़ी और सम्राट इन हड़पनेवालो के खिलाफ लड़ाई लड़ी है गत साम्राज्य टेट्रार्च का गृहयुद्ध (ई 306-324), मसेन्टिस के अपहरण और फ्लेवियस वलेरिस सेवेरस की हार के साथ शुरुआत हुआ, और 324 ईस्वी में कोनस्टैनटिन प्रथम के हाथों में लिसिनिस की हार के साथ समाप्त हुआ 350-351 ईसवी का गृहयुद्ध, जब सम्राट कोन्सटांटिउस द्वितीय ने मागनेंटीस को हराया। 394 ईसवी का गृहयुद्ध, जब पूर्वी सम्राट थेओडोसियस प्रथम ने यूगेनिउस को पराजित किया। गिलडोनिक विद्रोह (ई 398), जब गिल्दो ने पश्चिमी सम्राट होनोरिस के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इन्हें भी देखें रोमन गणराज्य रोमन साम्राज्य गृहयुद्धों की सूची रोमन साम्राज्य गृहयुद्ध रोमन सभ्यता सन्दर्भ Kohn, George Childs, 'Dictionary of Wars, Revised Edition' (Checkmark Books, New York, 1999)
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%91%E0%A4%B2%20%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%A8%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%20%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B8%20%E0%A4%8F%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%8F%E0%A4%B6%E0%A4%A8
ऑल इंडियन सिने वर्कर्स एसोसिएशन
ऑल इंडियन सिने वर्कर्स एसोसिएशन ( AICWA ) मुंबई में पंजीकृत एक गैर-लाभकारी संगठन है । जो सुरेश श्यामलाल गुप्ता द्वारा स्थापित किया गया है ।AICWA भारतीय फिल्म उद्योग के सिने कार्यकर्ताओं और कलाकारों की सुरक्षा के लिए काम करता है। इसका गठन भारतीय फिल्म उद्योग में श्रमिकों और कलाकारों की बेहतरी और उन्हें उनकी शिकायतों के समाधान के लिए उन्हें एक मंच देने के लिए किया गया था, जो महाराष्ट्र सरकार से सम्बन्धित है। संगठन ऑल इंडियन सिने वर्कर्स एसोसिएशन (AICWA) भारतीय फिल्म उद्योग के लिए एक संगठित गैर-सरकारी श्रमिक संघ है।AICWA ने श्रम मंत्रालय के साथ एक बैठक आयोजित करके एक सरकारी समिति बनाकर एक क्रांति की, जिसमें AICWA एक समिति का सदस्य है, और भारतीय फिल्म उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों और कलाकारों का प्रतिनिधित्व करता है। AICWA भारतीय फिल्म उद्योग के कलाकारों और श्रमिकों की बेहतरी के लिए काम करने वाले अग्रणी और विशिष्ट संघों में से एक है। AICWA के अध्यक्ष सुरेश श्यामलाल गुप्ता महाराष्ट्र सरकार में श्रम, ऊर्जा और उद्योग समिति के सदस्य हैं। AICWA ने पुलवामा आतंकी हमले के दौरान भारत में पाकिस्तानी कलाकारों पर प्रतिबंध लगा दिया था। जब से भारतीय फिल्म उद्योग का निर्माण हुआ, तब से श्रमिकों के लिए कोई मानक नियम नहीं थे। AICWA इस उद्योग को संगठित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है, ताकि श्रमिकों को किसी भी कठिनाई का सामना न करना पड़े। फिल्म उद्योग से हर वर्ष लगभग 2 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिलता है, लेकिन इसमें से 1% भी मेहनती मजदूरों और श्रमिकों को वापस नहीं किया जाता है, जो एक दिन में 18 घंटे से अधिक समय तक काम करते हैं और अभी भी खराब परिस्थितियों में रह रहे हैं, उन्हें कोई सरकारी सुविधा नहीं दी गई है। इस संगठन को बनाने का पूरा विचार यह सुनिश्चित करना है कि श्रमिकों को वह मिले जिसके वे हकदार हैं, और उनके जीवन स्तर को और ज्यादा बेहतर बनाया जा सके । उसी का समर्थन करते हुए, संगठन ने महाराष्ट्र सरकार से राहत कोष की गुहार लगाई है। साथ ही COVID-19 महामारी के दौरान अपने काम से वंचित सिने श्रमिकों के लिए वित्तीय मदद की मांग की। इसके अलावा AICWA ने महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष नाना पटोले को एक प्रतिनिधित्व देकर सिने वर्कर्स वेलफेयर फंड की मांग उठाई। जिसे अनुदान के लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के सामने रखा गया था। AICWA की उपस्थिति महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात और जम्मू-कश्मीर में है, जिसमें देश भर से सक्रिय सदस्य हैं। इसका मुख्यालय मुंबई, महाराष्ट्र में है, अन्य राज्यों में लगभग 15 सक्रिय कार्यालय हैं। AICWA के प्रमुख लोग सिने-टेलीविज़न कलाकारों और कार्यकर्ताओं के आधिकारिक रूप से नियुक्त प्रतिनिधि के रूप में महाराष्ट्र सरकार से संबद्ध रखते हैं। COVID-19 महामारी की पहली लहर के दौरान एआईसीडब्ल्यूए के अध्यक्ष सुरेश एस गुप्ता द्वारा एक आवश्यक कदम उठाया गया था, उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक पत्र लिखकर फिल्म उद्योग के श्रमिकों के लिए वित्तीय मदत की मांग की थी, जोकि लॉकडाउन महामारी से लड़ने के लिए था, क्यूंकि श्रमिकों को आजीविका के लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता थी, इसलिए कुछ फिल्मी सितारों, निर्देशकों को उनकी मदद करने की कोशिश किया गया लेकिन यह पर्याप्त नहीं था, इसलिए AICWA ने राज्य सरकार से प्रत्येक परिवार के श्रमिकों को उनकी आजीविका के लिए मासिक आधार पर 5000 का भुगतान करने का अनुरोध किया। उद्देश्य ऑल इंडियन सिने वर्कर्स एसोसिएशन के मानकों का उद्देश्य व्यापक रूप से सिने कार्यकर्ताओं और कलाकारों के लिए सुरक्षा और सम्मान पर ध्यान देने के साथ सुलभ, उत्पादक और टिकाऊ काम की स्थिति सुनिश्चित करना है। इस असंगठित क्षेत्र (फिल्म उद्योग) को एक संगठित ढांचे में बनाने के लिए जहां श्रमिकों के हितों को प्राथमिकता दी जाती है और इसे प्राप्त करने के लिए उचित परिश्रम किया जाता है। सिने कर्मियों की समस्याओं का समय पर और जिम्मेदारी से समाधान सुनिश्चित करने के लिए संगठन के दिन-प्रतिदिन के कामकाज के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया स्थापित करना। उद्योग और समाज में काम और जीवन की स्थिति और श्रमिकों की स्थिति में तेजी से सुधार सुनिश्चित करना। श्रमिकों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बढ़ाने के लिए कार्य करना। सिनेमा के साथ-साथ टीवी उद्योग के कलाकारों और कार्यकर्ताओं को कानूनी और सामाजिक सहायता प्रदान करना। सिनेमा और टीवी उद्योग के श्रमिकों और कलाकारों को स्थायी सेवाएं प्रदान करने के लिए यह संगठन राज्य सरकारों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है। तनाव प्रबंधन सत्र आयोजित करना। महिला/बाल उत्पीड़न के खिलाफ गठित समिति। न्यूनतम काम के घंटे, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, भविष्य निधि, ईएसआईसी, जीवन बीमा और मेडिक्लेम, सिने कलाकारों और श्रमिकों के लिए सुरक्षा के लिए कानून बनाने में सरकार की मदद करना। श्रमिक मुद्दों के समय पर समाधान के लिए क्षेत्रीय कार्यालयों का गठन करके अखिल भारतीय स्तर पर बढ़ावा देना। श्रमिकों के बीच एकजुटता, सेवा, भाईचारा, सहयोग और आपसी मदद की भावना को बढ़ावा देना। उद्योग और समुदाय के प्रति जिम्मेदारी की भावना विकसित करना। काम करने की अच्छी परिस्थितियाँ बनाकर श्रमिकों का मनोबल बढ़ाना। प्रमुख विवाद COVID-19 महामारी की पहली लहर के दौरान, जबकि सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार पूर्ण लॉकडाउन लागू थी और 19 से 31 मार्च 2020 तक सभी शूटिंग को भी रोक दिया गया था। एआईसीडब्ल्यूए के अध्यक्ष सुरेश श्यामलाल गुप्ता ने कहा कि वास्तव में कुछ शूटिंग अभी भी नहीं रुकी थी और साथ ही सुरक्षा निर्देशों का भी पालन नहीं किया गया था।गोरेगांव फिल्म सिटी में केवल 50 प्रतिशत शूटिंग रोकी गई थी और बाकी को सुरक्षा दिशानिर्देशों का पालन किए बिना जारी रखा गया था। स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. प्रदीप व्यास की ओर से अधिसूचना जारी होने के बाद भी शूटिंग के दौरान सुरक्षा स्वच्छता का पालन करना चाहिए, फिर भी सभी सुरक्षा और स्वच्छता की उपेक्षा की गई। 2018 में, सिने विस्टा स्टूडियो के प्रबंधन को एआईसीडब्ल्यूए के गुस्से का सामना करना पड़ा क्योंकि स्टूडियो मालिकों, प्रोडक्शन हाउस और निर्माता की लापरवाही के कारण एक क्रू सदस्य की जान चली गई। गुप्ता ने कहा, "हालांकि सेट पर बड़ी मात्रा में लकड़ी का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन उन्होंने सुरक्षा उपायों को नहीं अपनाया था। यूनियन के कई सदस्यों ने इसकी शिकायत की है। बाद में सिने विस्टा को इस संबंध में नोटिस भेजा गया था। एआईसीडब्ल्यूए ने शीर्ष मीडिया सेवा प्रदाता के खिलाफ 11 जुलाई 2018 को चेंबूर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी, क्यूंकि नेटफ्लिक्स, में नवाजुद्दीन सिद्दीकी की नई सीरीज सेक्रेड गेम्स के निर्माता दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी का अपमान किये थे । इस घटना पर प्रकाश डालते हुए, सुरेश श्यामलाल गुप्ता ने कहा, "मैं आपका ध्यान 'सेक्रेड गेम्स' नामक एक धारावाहिक की ओर आकर्षित करना चाहूंगा, जो नेटफ्लिक्स पर शुरू हुआ है, जिसमें चौथे एपिसोड का एक दृश्य है जिसमें मुख्य अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी हमारे दिवंगत प्रधानमंत्री को गाली देते हुए दिखाई दे रहे हैं। 2019 के पुलवामा हमले के बाद ऑल इंडियन सिने वर्कर्स एसोसिएशन ने भारतीय फिल्म उद्योग में पाकिस्तानी अभिनेताओं और कलाकारों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की, और कहा कि इसका उल्लंघन करने वाले किसी भी संगठन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। एआईसीडब्ल्यूए ने भारत के माननीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से औपचारिक अनुरोध लिखकर पाकिस्तानी कलाकारों, राजनयिकों और द्विपक्षीय संबंधों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। "एआईसीडब्ल्यूए पाकिस्तानी कलाकारों, राजनयिकों और पाकिस्तान और उसके लोगों के साथ कोई द्विपक्षीय संबंध नहीं रखने की मांग करता है।" संघ के अध्यक्ष ने गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साहसिक फैसलों की सराहना की। ऑल इंडियन सिने वर्कर्स एसोसिएशन ने 19 फरवरी को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को एक पत्र लिखा, जिसमें पुलवामा आतंकी हमले के बाद पाकिस्तानी कलाकारों को निर्वासित करने और उनका वीजा रद्द करने की मांग की गईAICWA ने कहा कि यह हमला "पाकिस्तान का कायरतापूर्ण, शर्मनाक और सबसे शर्मनाक कृत्य" था। एसोसिएशन ने कहा कि 'राष्ट्र पहले आता है' और इस तरह के भयानक और अमानवीय कृत्यों के समय में राष्ट्र के साथ खड़े होने का दावा किया। इसने पुलवामा की घटना के बाद पाक कलाकारों पर प्रतिबंध की घोषणा की और केंद्र से सभी पाकिस्तानी कलाकारों के वर्क वीजा को रद्द करने का अनुरोध किया। जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान स्थित पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद ऑल-इंडियन सिने वर्कर्स एसोसिएशन ने पाकिस्तानी कलाकारों और गायकों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा की जिस वजह से पाकिस्तानी नागरिक शेख लतीफ ने पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों के व्यापार और प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर लाहौर उच्च न्यायालय का रुख किया। 8 अगस्त 2019 को, एआईसीडब्ल्यूए ने पाकिस्तान द्वारा सीमा पार भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाने के बाद पाकिस्तानी कलाकारों, राजनयिकों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की। AICWA के बयान में कहा गया है, "पूरे फिल्म उद्योग और सिने कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तानी फिल्म निर्माताओं, कलाकारों और व्यापार भागीदार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने तक काम फिर से शुरू करने से इनकार कर दिया है।" जब मीका सिंह ने पाकिस्तान में एक शादी में परफॉर्म किया तो AICWA ने मीका सिंह को फिल्म इंडस्ट्री से बैन कर दिया और उनका बहिष्कार कर दिया। पूर्व तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ के रिश्तेदारों के समारोह में पाकिस्तान में एक कार्यक्रम में प्रदर्शन करने के बाद एसोसिएशन के सदस्यों ने मीका सिंह के घर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। बयान के अनुसार, "AICWA कार्यकर्ता यह सुनिश्चित करेंगे कि भारत में कोई भी मीका सिंह के साथ काम न करे और यदि कोई ऐसा करता है, तो उन्हें कानून की अदालत में कानूनी परिणामों का सामना करना पड़ेगा"। एआईसीडब्ल्यूए ने इस संबंध में सूचना और प्रसारण मंत्रालय के हस्तक्षेप का भी अनुरोध किया। 10 जून, 2020 को ऑल इंडियन सिने वर्कर्स एसोसिएशन (AICWA) ने एक आधिकारिक बयान जारी कर भारतीय निर्माता एकता कपूर की 'XXX (वेब ​​सीरीज़)' में कथित रूप से अपमानजनक दृश्यों को बताया। एसोसिएशन ने भारतीय सेना को अपमानित करने के लिए एकता कपूर और एएलटी बालाजी प्रोडक्शन के खिलाफ एफआईआर की मांग की है, और सूचना और प्रसारण मंत्रालय को लिखा है कि 'ओटीटी प्लेटफॉर्म पर सामग्री, दृश्यों और अश्लीलता को नियंत्रित करने के लिए सेंसर बोर्ड की जरूरत है।' AICWA ने पाकिस्तानी कलाकारों को कास्ट करने के लिए पंजाबी फिल्म चल मेरा पुट पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। इस संबंध में एसोसिएशन ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को औपचारिक पत्र भेजा है। इसकी एक प्रति माननीय श्री प्रकाश जावड़ेकर (सूचना और प्रसारण मंत्री), माननीय श्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर (पूर्व विदेश मंत्री) और माननीय श्री प्रसून जोशी (अध्यक्ष, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड) को भी अध्ययन के लिए भेजी गई थी। योगी आदित्यनाथ द्वारा उत्तर प्रदेश में एक नई फिल्म सिटी की घोषणा के बाद, एआईसीडब्ल्यूए के अध्यक्ष ने कहा, "वैसे, लखनऊ में कई फिल्मों की शूटिंग चल रही है। यह कभी-कभी संभव है लेकिन सभी फिल्मों की शूटिंग नहीं होगी। मुंबई में महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं। मुंबई में करीब 30 फीसदी महिलाएं फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी हैं। मुझे संदेह है कि क्या उन्हें वहां दिन-रात काम करने की आजादी मिल पाएगी?" ऑल इंडियन सिने वर्कर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश श्यामलाल गुप्ता ने श्रमिकों के वेतन से जुड़े मुद्दों को उठाया। लॉकडाउन महामारी के दौरान मजदूरों को मजदूरी और काम का भुगतान न होने के कारण मानसिक तनाव और आत्महत्या के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए आवाज उठाई। ऑल इंडिया सिने वर्कर्स यूनियन ने जाने-माने कला निर्देशक राजू सप्ते की आत्महत्या की एसआईटी जांच की मांग की है। जिस वजह से गृह मंत्री दिलीप वलसे-पाटिल और राज्य के गृह मंत्री सतेज पाटिल के नेतृत्व में बैठक कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के आदेश दिए गए। इस मामले में ऑल इंडियन सिने वर्कर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश श्यामलाल गुप्ता ने महाराष्ट्र सरकार को एक पत्र सौंपा, जिसमें नामजद आरोपितों का फेडरेशन से जुड़ाव पर प्रकाश डाला गया. बाहरी कड़ियाँ ऑल इंडियन सिने वर्कर्स एसोसिएशन की आधिकारिक वेबसाइट सन्दर्भ   फ़िल्म संगठन समाज कार्य
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%AD%20%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%AA
७ जिप
७ जिप एक मुफ्त तथा मुक्त स्रोत जिप सॉफ्टवेयर है। यह कई कम्प्रैशन फॉर्मेट के साथ कार्य करता है जिनमें बहुप्रचलित जिप, रार आदि फॉर्मेट शामिल हैं। इसके अतिरिक्त इसका एक अपना फॉर्मेट .7z है। यह सम्पीड़ित (कम्प्रैस) की गई फाइलों की सैल्फ ऍग्जीक्यूटेबल फाइल भी बना सकता है। यह वर्तमान में प्रचलित सभी कम्प्रैशन यूटिलिटियों में सर्वाधिक यूनिकोड मित्र है तथा हिन्दी नाम तथा सामग्री वाली फाइलों के साथ पूर्ण रूप से सही प्रकार से कार्य करता है। बाहरी कड़ियाँ डाउनलोड मुफ्त सॉफ्टवेयर मुक्त स्रोत सॉफ्टवेयर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%A3%E0%A4%9C%E0%A5%80%20%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%89%E0%A4%AB%E0%A5%80%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%AA%202019-20
रणजी ट्रॉफी प्लेट ग्रुप 2019-20
2019–20 रणजी ट्रॉफी, रणजी ट्रॉफी का 86 वां सत्र है, जो प्रथम श्रेणी क्रिकेट टूर्नामेंट है जो वर्तमान में भारत में हो रहा है। प्लेट ग्रुप में दस टीमों के साथ, इसे चार समूहों में विभाजित 38 टीमों द्वारा चुना जा रहा है। समूह चरण 9 दिसंबर 2019 से 15 फरवरी 2020 तक चला। प्लेट ग्रुप में शीर्ष टीम ने प्रतियोगिता के क्वार्टर फाइनल में प्रगति की। जनवरी 2020 में, मेघालय और मणिपुर के बीच राउंड छह में, मणिपुर को उनकी सर्वश्रेष्ठ पारी में केवल 27 रन पर आउट कर दिया गया। दो दिनों के अंदर मिजोरम को हराकर, अंतिम दौर के मैचों में, गोवा ने प्लेट ग्रुप से क्वालीफाई किया। अंक तालिका फिक्स्चर राउंड 1 राउंड 2 राउंड 3 राउंड 4 राउंड 5 राउंड 6 राउंड 7 राउंड 8 राउंड 9 सन्दर्भ
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तीसरी मंज़िल
तीसरी मंज़िल सन् 1966 में प्रदर्शित व विजय आनन्द द्वारा निर्देशित संगीतमय-रोमांचक हिन्दी फ़िल्म है। जिसमें शम्मी कपूर, आशा पारेख, प्रेमनाथ तथा प्रेम चोपड़ा सरीखे अभिनेता मुख्य भूमिका में है। संक्षेप एक लड़की रूपा का तीसरी मंज़िल से गिरकर खून हो जाता है। जांच-पड़ताल में पुलिस का शक उसके मित्र अनिल पर जाता है लेकिन अनिल को रूपा के मंगेतर रमेश पर संदेह होता है क्योंकि उसका रूपा से झगड़ा हुआ होता है। पुलिस को सुराग में एक कीमती कोट का बटन मिलता है जो संभवत: कातिल का है। चरित्र संगीत फ़िल्म को संगीत राहुल देव बर्मन ने दिया है। सभी गीतों के लेखक मजरुह सुल्तानपुरी हैं। रोचक तथ्य फ़िल्म में पहले मुख्य किरदार के लिए देव आनन्द का चयन किया गया था। फ़िल्म की शूटिंग के दौरान शम्मी कपूर की पत्नी गीता बाली का निधन हो गया था जिस कारण इसकी शूटिंग 3 महीने तक रुकी रही। मशहूर फिल्म लेखक सलीम ख़ान ने भी इसमें छोटा-सा अभिनय किया है। परिणाम फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर बड़ी हिट साबित हुई। इसके संगीत की भी बहुत प्रशंसा हुई जिसकी झलक आज भी कई म्यूजिक एलबम में दिखाई पड़ती है।इसके साथ ही संगीतकार आर. डी. बर्मन संगीत की दुनिया का एक बड़ा नाम बन गए। बाहरी कड़ियाँ 1966 में बनी हिन्दी फ़िल्म आर॰ डी॰ बर्मन द्वारा संगीतबद्ध फिल्में
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डब्बू रत्नाणी
डब्बू रत्नाणी एक प्रमुख भारतीय फैशन फोटोग्राफर है। उन्को बॉलीवुड के सारे सेलिब्रिटी बहुत ही पसंद करते हैं। वह काफी मशहूर सेलिब्रिटीयों के लिए अनेक चित्र ले चुके है। वह एक अव्वल फोटोग्राफर है और उन्होंने फिल्मफेयर, हाय ब्लिट्ज, ठीक भारत, एली, दम, फेमिना, आदमी और बेहतर घरों और गार्डन तरह की सभी प्रमुख पत्रिकाओं के लिए चित्र खींचे है। वह अपनी वार्षिक कैलेंडर के लिए जाने जाते हैं। २००६ में, वह मिस इंडिया प्रतियोगिता के लिए निर्णायक मंडल में थे। २०१५ और २०१६ मैं वह "भारत की नेक्स्ट टॉप मॉडल" टीवी शो मे निर्णायक मंडल मे थे और अभी भी है। जीवनी उनका जन्म २४ दिसंबर, मुंबई मैं हुआ। वह पहले-पहले सुमित चोपड़ा के साथ काम करते थे। वह सुमित चोपड़ा के अंतर्गत काम कर रहे थे। १९९४ के बाद से स्वतंत्र रूप से काम कर रहा है। वह अपने बीवी और तीन बच्चों से बहुत प्यार करते हैं। काम डब्बू रत्नाणी भारतीय सिनेमा के प्रमुख चित्र और सेलिब्रिटी फोटोग्राफर में से एक है। उनका इस उद्योग में प्रारंभ उनकी अच्छी किस्मत से हुआ। कई सालों से उनकी पत्नी उन्के साथ काम कर रही है। उनको फिल्मों के वजह से काफी संपादकीय काम करने को मिला और वे फिर मॉडल के पोर्टफोलियो का काम करने लगे। और इन सब के कारण डब्बू रत्नाणी विज्ञापन में चले गए। अपने फिल्म विज्ञापन और प्रचार अभियानों के लिए उन्हें इस्तेमाल किया गया है। कैलेंडर डब्बू रत्नाणी का सबसे अच्छा काम उनका वार्षिक कैलेंडर है। उन्का इस सिनेमा मे अपने इस कैलेंडर के वजह से ही नाम हुआ है। उन्होंने सबसे प्रसिद्ध सेलिब्रिटीयो के साथ २००४ से काम करना प्रारंभ कर दिया था। २००४ - पेरिजाद जोराबियन, उर्मिला मातोंडकर, प्रियंका चोपड़ा, नेहा धूपिया, बिपाशा बसु, ईशा देओल, प्रीति जिंटा, अमृता अरोड़ा, ऐश्वर्या राय, रानी मुखर्जी, रवीना टंडन, अमृता राव, शिल्पा शेट्टी, लारा दत्ता, दीया मिर्जा, कैटरीना कैफ, समीरा रेड्डी, सोहा अली खान, अमीषा पटेल, तब्बू, ईशा कोप्पिकर, पूजा भट्ट, रिया सेन, महिमा चौधरी, शाहरुख खान २००५ - बिपाशा बसु, शाहिद कपूर, प्रियंका चोपड़ा, अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय, जॉन अब्राहम, उर्मिला मातोंडकर, अजय देवगन, रितिक रोशन, रिया सेन, फरदीन खान, लारा दत्ता, जायद खान, संजय दत्त, अमीषा पटेल, अभिषेक बच्चन, कोएना मित्रा, शाहरुख खान, करीना कपूर, समीरा रेड्डी, अर्जुन रामपाल, प्रीति जिंटा, सलमान खान २००६ - मल्लिका शेरावत, आमिर खान, शाहरुख खान, संजय दत्त, रानी मुखर्जी, सेलिना जेटली, अर्जुन रामपाल, लारा दत्ता, बिपाशा बसु, शाहिद कपूर, रिया सेन, अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय, ईशा देओल, सलमान खान, करीना कपूर २००७ - काजोल, ऋतिक रोशन, अमिताभ बच्चन, बिपाशा बसु, जॉन अब्राहम, ऐश्वर्या राय, अर्जुन रामपाल, सैफ अली खान, अक्षय कुमार, आयशा टाकिया, रिया सेन, शाहरुख खान, विद्या बालन, ईशा देओल, रानी मुखर्जी, प्रियंका चोपड़ा, अजय देवगन, प्रीति जिंटा, अभिषेक बच्चन, बॉबी देओल, मल्लिका शेरावत, रितेश देशमुख, सलमान खान, विद्या बालन २०१० - रितिक रोशन, बिपाशा बसु, रणबीर कपूर, सैफ अली खान, जेनेलिया डिसूजा, जॉन अब्राहम, कंगना राणावत, इमरान खान, करीना कपूर, अभिषेक बच्चन, प्रियंका चोपड़ा, अक्षय कुमार, काजोल, अर्जुन रामपाल, दीपिका पादुकोण, फरहान अख्तर, कैटरीना कैफ, अमिताभ बच्चन, सोनम कपूर, शाहरुख खान, ऐश्वर्या राय, सलमान खान, असिन थोट्टूमकल, विद्या बालन और इस साल २०१६ मे - अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, अभिषेक बच्चन, अक्षय कुमार, जॉन अब्राहम, रणबीर कपूर, रितिक रोशन, फरहान अख्तर, रणवीर सिंह , वरुण धवन , सिद्धार्थ मल्होत्रा, अर्जुन रामपाल, विद्या बालन, प्रियंका चोपड़ा, आलिया भट्ट , लिसा हेडन, ऐश्वर्या राय बच्चन, अथिया शेट्टी, श्रद्धा कपूर, परिणीति चोपड़ा, जैकलिन फर्नांडीज, सोनाक्षी सिन्हा, अनुष्का शर्मा। उनका पहला कैलेंडर २००४ मे प्रक्षेपण हुआ था। सारे सेलिब्रिटी बेसब्री से इस कैलेंडर शूट का इंतजार करते हैं। फिल्म प्रचार डब्बू रत्नाणी ने कई फिल्मों के पोस्टर पर काम किया है और प्रशंसा भी पाई है। फिल्म जैसे ओम शांति ओम, आतिश, ब्लैकमेल, फिजा, हेरा फेरी, भगत सिंह के लीजेंड, आवारा पागल दीवाना, झंकार बीट्स, जिस्म, जो बोले सो निहाल, कहो ना ... प्यार है के पोस्टरों पर काम किया है। इन्हें भी देखें वरुण आदित्य नेमाई घोष शेरू फोटोग्राफर मनीष रायशिंघन लाला दीन दयाल रतिका रामस्वामी सन्दर्भ
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मैसूर सिल्क
भारत में कुल 14,000 मीट्रिक टन का शहतूत रेशम उत्पादन होता है, कर्नाटक  में  ही ९००० मीट्रिक टन क उत्पादन होता है।   देश में, इस प्रकार से कर्नाटक देश के कुल शहतूत रेशम का ७०% भाग का योगदान करता है। कर्नाटक में रेशम मुख्य रूप से  मैसूर जिला में उगाया जाता है। इतिहास  रेशम उद्योग क विकास  मैसूर राज्य  में टीपू सुल्तान के शासनकाल के दौरान शुरु हुआ  ।    रेशम उद्योग ने 19वीं शताब्दी की शुरुआत में कई अलग-अलग आर्थिक कारकों के कारण लगातार गिरावट का अनुभव किया। लेकिन मैसूर शाही परिवार के महाराजा कृष्णराजा वोडेयार चतुर्थ बिना किसी लड़ाई के हार मानने वाले नहीं थे। उन्होंने मैसूर में एक रेशम उत्पादन सुविधा की स्थापना की और ब्रिटेन में महारानी विक्टोरिया के जन्मदिन समारोह को देखने के बाद स्विट्जरलैंड से 32 पावरलूम खरीदे। उनके नेतृत्व में, रेशम उत्पादन का विकास हुआ क्योंकि यूनिट की क्षमता में वृद्धि जारी रही और महाराजा ने अंततः 138 अतिरिक्त करघे हासिल कर लिए। कर्नाटक रेशम उद्योग निगम द्वारा संचालित भारत की सबसे पुरानी रेशम उत्पादन सुविधाओं में से एक के रूप में, यह 17 एकड़ की रेशम मिल स्वतंत्रता के बाद सरकार के रेशम उत्पादन विभाग (केएसआईसी) की देखरेख में आई। इन्हें भी देखें रेयान आर्ट सिल्क सिल्क रोड मकड़ी के रेशम (की एक चर्चा के साथ सिंथेटिक रेशम)  भारतीय उपमहाद्वीप में रेशम  इतिहास में रेशम रेशम कीड़ा रेशम सन्दर्भ
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राजस्थान प्रशासनिक सेवा
राजस्थान प्रशासनिक सेवा को लोकप्रिय आरएएस के नाम से जाना जाता है। यह भारत के राजस्थान राज्य की सर्वोच्च नागरिक सेवा है। इसमें हर वर्ष विभिन्न पदों पर भर्तियाँ नकलती है। पाठ्यक्रम 1.सामान्य ज्ञान एवं सामान्य विज्ञान (अनिवार्य) 2.कृषि 3.कृषि इंजीनियरिंग 4.पशुपालन और पशु चिकित्सा विज्ञान 5.वनस्पति विज्ञानं 6.रसायन शास्त्र 7.सिविल इंजीनियरिंग 8.व्यापार 9.बागवानी के साथ फसल कृषि 10.कंप्यूटर इंजीनियरिंग 11.कंप्यूटर विज्ञान 12.डेयरी प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी 13.अर्थशास्त्र 14.इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग 15.इलेक्ट्रॉनिक्स और टेली कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग 16.भूगोल 17.भूतत्त्व 18.गृह विज्ञान 19.भारतीय इतिहास 20.कानून 21.गणित 22.यांत्रिक अभियंत्रण 23.खनन अभियांत्रिकी 24.दर्शन 25.फिजिक्स 26.राजनीतिक विज्ञान और अंतरराष्ट्रीय संबंध 27.मनोविज्ञान 28.लोक प्रशासन 29.समाजशास्त्र 30.आंकड़े 31.प्राणि विज्ञान 32.मनुष्य जाति का विज्ञान 33.प्रबंध 34.अंग्रेजी 35.हिंदी 36.उर्दू 37.संस्कृत 38.सिंधी 39.इतिहास सन्दर्भ राजस्थान राजस्थान सरकार
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जुम्मा खान मर्री
Articles with hCards जुम्मा खान मर्री बलोचिस्तान के एक वरिष्ठ बलोच राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। वह बलोच अलगाववादी समूहों का पूर्व सदस्य थे। फरवरी 2018 में, मैरी ने कहा कि उन्होंने और उनके समर्थकों ने अलगाववादी समूहों को छोड़ दिया है। उन्होंने और उनके समर्थकों ने पाकिस्तान के प्रति अपनी निष्ठा का वचन दिया और विदेशों में रहने वाले बलूच लोगों के लिए 'ओवरसीज पाकिस्तानी बलोची यूनिटी' (ओपीबीयू) की स्थापना की। यह भी देखें पिताजी शाही बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी बलूच छात्र संगठन बलूच छात्र संगठन- अवामी बलूची स्वायत्तवादी आंदोलन संदर्भ जन्म वर्ष अज्ञात (जीवित लोग) बलोचिस्तान जीवित लोग बलोचिस्तान मुक्ति सेना स्वतन्त्रता मानवाधिकार बलोचिस्तान नागरिक
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मुंडेश्वरी मंदिर
मुंडेश्‍वरी मंदिर, बिहार के कैमूर जिले के रामगढ़ गाँव के पंवरा पहाड़ी पर स्थित है जिसकी ऊँचाई लगभग 600 फीट है वर्ष 1812 ई0 से लेकर 1904 ई0 के बीच ब्रिटिश यात्री आर.एन.मार्टिन, फ्रांसिस बुकानन और ब्लाक ने इस मंदिर का भ्रमण किया था Iपुरातत्वविदों के अनुसार यहाँ से प्राप्त शिलालेख 389 ई0 के बीच का है जो इसकी पुरानता को दर्शाता है I मुण्डेश्वरी भवानी के मंदिर के नक्काशी और मूर्तियों उतरगुप्तकालीन है I यह पत्थर से बना हुआ अष्टकोणीय मंदिर है I इस मंदिर के पूर्वी खंड में देवी मुण्डेश्वरी की पत्थर से भव्य व प्राचीन मूर्ति मुख्य आकर्षण का केंद्र है I माँ वाराही रूप में विराजमान है, जिनका वाहन महिष है I मंदिर में प्रवेश के चार द्वार हैं जिसमे एक को बंद कर दिया गया है और एक अर्ध्द्वर है I इस मंदिर के मध्य भाग में पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है I जिस पत्थर से यह पंचमुखी शिवलिंग निर्मित किया गया है उसमे सूर्य की स्थिति के साथ साथ पत्थर का रंग भी बदलता रहता है I मुख्य मंदिर के पश्चिम में पूर्वाभिमुख विशाल नंदी की मूर्ति है, जो आज भी अक्षुण्ण है I यहाँ पशु बलि में बकरा तो चढ़ाया जाता है परंतु उसका वध नहीं किया जाता है बलि की यह सात्विक परंपरा पुरे भारतवर्ष में अन्यत्र कहीं नहीं है । बेलोन मंदिर परिचय बिहार के भभुआ जिला केद्र से चौदह किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है कैमूर की पहाड़ी। साढ़े छह सौ फीट की ऊंचाई वाली इस पहाड़ी पर माता मुंडेश्वरी एवं महामण्डलेश्वर महादेव का एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर को भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है, पर कितना प्राचीन, इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। हां! इतना प्रमाण अवश्य मिल रहा है कि इस मंदिर में तेल एवं अनाज का प्रबंध एक स्थानीय राजा के द्वारा संवत्सर के तीसवें वर्ष के कार्तिक (मास) में २२वां दिन किया गया था। इसका उल्लेख एक शिलालेख में उत्कीर्ण राजाज्ञा में किया गया है। अर्थात्‌ शिलालेख पर उत्कीर्ण राजाज्ञा के पूर्व भी यह मंदिर था यह पता चलता है। वर्तमान में पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर भग्नावशेष के रूप में है। ऐसा लगता है कि किसी ने इस मंदिर को तोड़ा है। मूर्तियों के अंग ऐसे टूटे हैं मानो किसी तेज हथियार से उन पर चोट की गयी हो। पंचमुखी महादेव का मंदिर तो ध्वस्त स्थिति में है। इसी के एक भाग में माता की प्रतिमा को दक्षिणमुखी स्वरूप में खड़ा कर पूजा-अर्चना की जाती है। माता की साढ़े तीन फीट की काले पत्थर की प्रतिमा है, जो भैंस पर सवार है। इस मंदिर का उल्लेख कनिंघ्म ने भी अपनी पुस्तक में किया है। उसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि कैमूर में मं◌ुडेश्वरी पहाड़ी है, जहां मंदिर ध्वस्त रूप में विद्यमान है। इस मंदिर का पता तब चला जब कुछ गड़ेरिये पहाड़ी के ऊपर गए और मंदिर के स्वरूप को देखा। यह कुल २०-२५ वर्ष पूर्व की बात है। तब इसकी इतनी ख्याति नहीं थी जितनी अब है। प्रारम्भ में पहाड़ी के नीचे निवास करने वाले लोग ही इस मंदिर में दीया जलाते और पूजा-अर्चना करते थे। वर्तमान में धार्मिक न्यास बोर्ड, बिहार द्वारा इस मंदिर को व्यवस्थित किया गया और पूजा-अर्चना की व्यवस्था की गई। माघ पंचमी से पूर्णिमा तक इस पहाड़ी पर एक मेला लगता है जिसमें दूर-दूर से भक्त आते हैं। कहते हैं कि चंड-मुंड के नाश के लिए जब देवी उद्यत हुई थीं तो चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गया था और यहीं पर माता ने उसका वध किया था। अतएव यह मुंडेश्वरी माता के नाम से स्थानीय लोगों में जानी जाती हैं। एक मजेदार बात, आश्चर्य एवं श्रद्धा चाहे जो कहिए, यहां भक्तों की कामनाओं के पूरा होने के बाद बकरे की बलि चढ़ाई जाती है। पर, माता रक्त की बलि नहीं लेतीं, बल्कि बलि चढ़ने के समय भक्तों में माता के प्रति आश्चर्यजनक आस्था पनपती है। जब बकरे को माता की मूर्ति के सामने लाया जाता है तो पुजारी अक्षत (चावल के दाने) को मूर्ति को स्पर्श कराकर बकरे पर फेंकते हैं। बकरा तत्क्षण अचेत, मृतप्राय हो जाता है। थोड़ी देर के बाद अक्षत फेंकने की प्रक्रिया फिर होती है तो बकरा उठ खड़ा होता है। बलि की यह क्रिया माता के प्रति आस्था को बढ़ाती है। पहाड़ी पर बिखरे हुए पत्थर एवं स्तम्भ को देखते हैं तो उन पर श्रीयंत्र सरीखे कई सिद्ध यंत्र एवं मंत्र उत्कीर्ण हैं। प्रत्येक कोने पर शिवलिंग है। ऐसा लगता है कि पहाड़ी के पूर्वी-उत्तरी क्षेत्र में माता मुण्डेश्वरी का मंदिर स्थापित रहा होगा और उसके चारों तरफ विभिन्न देवी-देवताओं के मूर्तियां स्थापित थीं। खण्डित मूर्तियां पहाड़ी के रास्ते में रखीं हुई हैं या फिर पटना संग्रहालय में हैं। जैसा कि शिलालेख मं◌े उल्लेख है कि यहां का स्थान एक गुरुकुल आश्रम के रूप में व्यवस्थित था। पहाड़ी पर एक गुफा भी है जिसे सुरक्षा की दृष्टि से बंद कर दिया गया है। इस मंदिर के रास्ते में सिक्के भी मिले हैं और तमिल, सिंहली भाषा में पहाड़ी के पत्थरों पर कुछ अक्षर भी खुदे हुए हैं। कहते हैं कि यहां पर श्रीलंका से भी भक्त आया करते थे। बहरहाल, मंदिर के गर्भ में अभी कई रहस्य छिपे हुए हैं, बहुत कुछ पता नहीं है, बस माता की अर्चना होती है। भक्त माता एवं महादेव की आस्था में लीन रहते हैं। मंदिर की यात्रा के क्रम में ऐसा प्रतीत हुआ कि मंदिर अपने आप में कई अनुभवी आध्यात्मिक स्वरूपों को छिपाये हुए है, बस आवरण नहीं उठ रहा है। लेखक को कई तथ्यात्मक अनुभूतियों से साक्षात्कार हुआ। मंदिर की प्राचीनता एवं माता के प्रति बढ़ती आस्था को देख राज्य सरकार द्वारा भक्तों की सुविधा लिए यहां पर विश्रामालय, रज्जुमार्ग आदि का निर्माण कराया जा रहा है। पहाड़ पर स्थित मंदिर में जाने के लिए एक सड़क का निर्माण कराया गया है, जिस पर छोटे वाहन सीधे मंदिर द्वार तक जा सकते हैं। मंदिर तक जाने के लिए सीढ़ियों का भी उपयोग किया जा सकता है। बिहार राज्य पर्यटन निगम की बसें प्रतिदिन पटना से पहाड़ी के नीचे बसा गांव रामगढ़ तक जाती हैं। यहां रेल से पहुंचने के लिए पटना या गया से मोहनियां स्टेशन उतरना पड़ता है। मोहनियां से मंदिर तक पहुंचने के लिए टेम्पो, जीप, मिनी बस की सहायता ली जा सकती है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ भारत के प्राचीनतम मंदिर ‘मुंडेश्‍वरी’ को देखने एक बार जरूर जाएं! भारत में मंदिर बिहार में पर्यटन आकर्षण
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वृंदावन उद्यान
बृंदावन उद्यान भारत के कर्नाटक राज्य के मैसूर नगर में स्थित एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह उद्यान कावेरी नदी में बने कृष्णासागर बांध के साथ सटा है। इस उद्यान की आधारशिला १९२७ में रखी गयी थी और इसका कार्य १९३२ में सम्पन्न हुआ।. वार्षिक लगभग २० लाख पर्यटकों द्वारा देखा जाने वाला यह उद्यान मैसूर के मुख्य आकर्षणों में से एक है। इतिहास कृष्णाराजासागर बांध को मैसूर राज्य के दीवान सर मिर्ज़ा इस्माइल की देखरेख में बनाया गया था। बांध के सौन्दर्य को बढाने के लिए सर मिर्ज़ा इस्माइल ने उद्यान के विकास की कल्पना की जो कि मुग़ल शैली जैसे कि कश्मीर में स्थित शालीमार उद्यान के जैसा बनाया गया। इस उद्यान का कार्य १९२७ में आरंभ हुआ। इसको छ्त्त की प्रणाली के अनुसार बनाया गया और कृष्णाराजेन्द्र छ्त्त उद्यान का नाम दिया गया।. इसके प्रमुख वास्तुकार जी.एच.कृम्बिगल थे जो कि उस समय के मैसूर सरकार के उद्यानों के लिये उच्च अधिकारी नियुक्त थे।. उद्यान इस उद्यान को कावेरी निरावरी निगम (कावेरी सिंचाई विभाग), जो कि कर्नाटक सरकार का एक उपक्रम है। . यह उद्यान क्षेत्रफल में बना है। इसके साथ ही एक फल उद्यान है, जो कि क्षेत्रफल में बना है और दो खेत बागवानी के हैं, नागवन (३०एकड़) और चन्द्रवन (५ एकड़) क्षेत्रफल में बने हैं।). यह उद्यान तीन छतों में बना है जिसमें पानी के फव्वारे, पेड़, बेलबूटे और फूलों के पौधे गेंदा, बोगेनबेलिया शामिल हैं।]]. यह उद्यान सामान्य जनता के लिये निःशुल्क खुला रहता है। उद्यान में कर्तनकला(यहाँ झाडियों को जानवरों के आकार में काटकर बनाया गया है।) लता मंडप (विसर्पी पौधों की लताओं से ढका रास्ता) और धारागृह . भी स्थित है। लेकिन इस उद्यान का प्रमुख आकर्षण संगीतमय फुव्वारा है, जिसमें पानी की बौछारें संगीतमय गीत की ताल पर झूम उठती हैं। और साथ ही इस उद्यान के अन्दर ही एक झील स्थित है जिसमें पर्यटकों के लिये नाव में सवारी की सुविधा भी उपलब्ध है।. इस उद्यान का पुनर्निर्माण २००५ में हुआ जिसकी लागत करीब ५ करोड़ रुपये आई। इस उद्यान के पुर्ननिर्माण में मुख्यतः संगीतमय फुव्वारे की सजावट शामिल है जिसमें कि संगीतमय फुव्वारे का आधुनिकीकरण और खराब फुव्वारों की मरम्मत शामिल था।. सन २००७ में इस उद्यान को कुछ समय के लिए सुरक्षा कारणों, कावेरी नदी के पानी के विवाद के लिए बंद रखना पड़ा। वित्त व्यवस्था वर्ष २००३-२००४ में प्रवेश शुल्क का संकलन २.०७ करोड़ था जो कि २००४-२००५ में बढ़्कर २.६९ करोड़ हो गया और २००५-२००६ में फिर बढ़कर ४.३ करोड़ हो गया। . इस आमदनी को कावेरी निरावारी निगम और कर्नाटक राज्य पर्यटन विकास कार्पोरेशन (KSTDC) आपस में मिलकर बाँटते हैं, जिसका अनुपात ३:१ है।. सन्दर्भ इन्हें भी देखें कृष्णराजसागर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या भारत के उद्यान कर्नाटक में पर्यटन मैसूर के दर्शनीय स्थल हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
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द नेल्सन रूम्स
द नेल्सन रूम्स () मॉनमाउथ, मॉनमाउथशायर, वेल्स में स्थित एक ग्रेड द्वितीय सूचीबद्ध इमारत है। इमारत एतिहासिक सड़क ग्लेनडोवर स्ट्रीट पर मध्यकालीन समय की शहर को घेरने वाली दीवारों के अंदर स्थित है। इसके पड़ोस से ही एजिंकोर्ट स्ट्रीट निकलती है। इमारत अपने शुरुआती वर्षों में एक व्यायामशाला थी तथा इसे मॉनमाउथ शहर को उपहार के तौर पे लेडी लॅनगाटोक ने समर्पित किया था। इमारत की परोपकारी लेडी लॅनगाटोक की मृत्यु के पश्चात इसको नेल्सन संग्रहालय के रूप में खोला गया, जहाँ नौ-सेनाध्यक्ष होरेशियो नेलसन से जुड़ी उनकी यादगार चीजों, जिन्हें लेडी लॅनगाटोक ने संकलित कर रखा था, उनकी प्रदर्शनी लगाई जाती थी। नेल्सन संग्रहालय को वर्ष 1969 में मार्केट हॉल स्थित नए क्वार्टर में स्थानान्तरित कर दिया गया था। पूर्व व्ययामशाला और संग्रहालय अब निवर्तमान समय में एक अपार्टमेंट है। सन्दर्भ मॉनमाउथ मॉनमाउथशायर का इतिहास मॉनमाउथशायर के भवन और संरचनाएँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%A4%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
द्वैतवाद
संस्कृत शब्द 'द्वैत', 'दो भागों में' अथवा 'दो भिन्न रूपों वाली स्थिति' को निरूपित करने वाला एक शब्द है। इस शब्द के अर्थ में विषयवार भिन्नता आ सकती है। दर्शन अथवा धर्म में इसका अर्थ पूजा अर्चना से लिया जाता है जिसके अनुसार प्रार्थना करने वाला और सुनने वाला दो अलग रूप हैं। इन दोनों की मिश्रित रचना को द्वैतवाद कहा जाता है। इस सिद्धान्त के प्रथम प्रवर्तक मध्वाचार्य (1199-1303) थे। शब्द-मूल द्वैतवाद को 'द्वित्ववाद' के नाम से भी जाना जाता है। द्वैतवाद के अनुसार सम्पूर्ण सृष्टि के अन्तिम सत् दो हैं। इसका एकत्वाद या अद्वैतवाद के सिद्धान्त से मतभेद है जो केवल एक ही सत् की बात स्वीकारता है। द्वैतवाद में जीव, जगत्, तथा ब्रह्म को परस्पर भिन्न माना जाता है। कहीं कहीं दो से अधिक सत् वाले बहुत्ववाद के अर्थ में भी द्वैतवाद का प्रयोग मिलता है। यह वेदान्त है क्योंकि इसे श्रुति, स्मृति, एवं ब्रह्मसूत्र के प्रमाण मान्य हैं। ब्रह्म को प्राप्त करना इसका लक्ष्य है, इसलिए यह ब्रह्मवाद है। द्वैतवाद 13वीं शताब्दी से शुरु हुआ। यह अलग बात है कि इसके प्रवर्तक मध्वाचार्य ने इसे पारम्परिक मत बताया है। इस मत के अनुयायी सम्पूर्ण भारत में मिलते हैं परन्तु महाराष्ट्र, कर्नाटक, तथा गोवा से लेकर कर्नाटक तक के पश्चिमी तट में इनकी संख्या काफी है। इनके ग्यारह मठों में से आठ कर्नाटक में ही हैं। मध्वाचार्य ने श्रुति तथा तर्क के आधार पर सिद्ध किया कि संसार मिथ्या नहीं है, जीव ब्रह्म का आभास नहीं है, और ब्रह्म ही एकमात्र सत् नहीं है। उन्होंने इस प्रकार अद्वैतवाद का खण्डन किया तथा पाँच नित्य भेदों को सिद्ध किया। इस कारण इस सिद्धान्त को 'पंचभेद सिद्धान्त' भी कहा जाता है। पाँच भेद ये हैं - ईश्वर का जीव से नित्य भेद है। ईश्वर का जड़ पदार्थ से नित्य भेद है। जीव का जड़ पदार्थ ने नित्य भेद है। एक जीव का दूसरे जीव से नित्य भेद है। एक जड़ पदार्थ का दूसरे जड़ पदार्थ ने नित्य भेद है। द्वैतवाद में कुल दस पदार्थ माने गये हैं - द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, विशिष्ट, अंशी, शक्ति, सादृश्य, तथा अभाव। प्रथम पांच तथा अन्तिम वैशेषिक पदार्थ हैं। विशिष्ट, अंशी, शक्ति, तथा सादृश्य को जोड़ देना ही मध्व मत की वैशेषिक मत से विशिष्टता है। इस मत में द्रव्य बीस हैं - परमात्मा, लक्ष्मी, जीव, अव्याकृत, आकाश, प्रकृति, गुणत्रय, अहंकारतत्त्व, बुद्धि, मन, इन्द्रिय, मात्रा, भूत, ब्रह्माण्ड, अविद्या, वर्ण, अन्धकार, वासना, काल, तथा प्रतिबिम्ब। द्वैतवाद और अद्वैतवाद का परस्पर खण्डन-मण्डन द्वैतवाद के खण्डन के लिए अद्वैतवादी मधुसूदन सरस्वती ने न्यायामृत तथा अद्वैतसिद्धि जैसे ग्रन्थों की रचना की। इसी तरह द्वैतवाद के खण्डन के लिए जयतीर्थ ने बादावली तथा व्यासतीर्थ ने न्यायामृत नामक ग्रंथों की रचना की थी। रामाचार्य ने न्यायामृत की टीका तरंगिणी नाम से लिखी तथा अद्वैतवाद का खण्डन कर द्वैतवाद की पुनर्स्थापना की। फिर तरंगिणी की आलोचना में ब्रह्मानन्द सरस्वती ने गुरुचन्द्रिका तथा लघुचंद्रिका नामक ग्रन्थ लिखे। इन ग्रन्थों को गौड़-ब्रह्मानन्दी भी कहा जाता है। अप्पय दीक्षित ने मध्वमतमुखमर्दन नामक ग्रन्थ लिखा तथा द्वैतवाद का खण्डन किया। वनमाली ने गौड़-ब्रह्मानन्दी तथा मध्वमुखमर्दन का खण्डन किया तथा द्वैतवाद को अद्वैतवाद के खण्डनों से बचाया। इस प्रकार के खण्डन-मण्डन के आधार उपनिषदों की भिन्न व्याख्याएं रही हैं। उदाहरण के लिए, 'तत्त्वमसि' का अर्थ अद्वैतवादियों ने 'वह, तू है' किया जबकि मध्वाचार्य ने इसका अर्थ निकाला 'तू, उसका है'। इसी प्रकार 'अयम् आत्मा ब्रह्म' का अद्वैतवादियों ने अर्थ निकाला, 'यह आत्मा ब्रह्म है', तथा द्वैतवादियों ने अर्थ निकाला - 'यह आत्मा वर्धनशील है'। इस प्रकार व्याख्याएं भिन्न होने से मत भी भिन्न हो गये। इन्हें भी देखें वेदान्त अद्वैतवाद द्वैताद्वैत शुद्धाद्वैत विशिष्टाद्वैत सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ वेदान्त : जागिये आप देवता हैं ! दर्शनसिद्धान्त
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ऊँचे लोग (1985 फ़िल्म)
ऊँचे लोग 1985 में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है। संक्षेप चरित्र मुख्य कलाकार प्रदीप कुमार - ठाकुर विक्रम सिंह प्रीती सप्रू - सोनिया पिंचू कपूर रज़ा मुराद - ख़ान सलमा आग़ा - पूनम सिंह प्रेम चोपड़ा - ठाकुर प्रताप सिंह डैनी डेन्जोंगपा राजेश खन्ना देवेन वर्मा - मुबारक अली गीत : अनजान संगीत :राहुलदेव बर्मन रोचक तथ्य फ़िल्म में एक गीत बहुत ही प्रसिद्ध हुआ, "तुझको अपना न बनाया तो"। इसका संगीत पाकिस्तान की एक फ़िल्म के एक गीत से लिया गया है। इस गीत का मुखड़ा भी समान है। परिणाम बौक्स ऑफिस समीक्षाएँ नामांकन और पुरस्कार बाहरी कड़ियाँ 1985 में बनी हिन्दी फ़िल्म
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एंड्रू वैल्स
एंड्रू वाइल्स (अंग्रेज़ी: Andrew Wiles, जन्म: ११ अप्रैल १९५३) एक ब्रिटिश गणितज्ञ है जिन्होंने १९९४ में फर्मा का अंतिम प्रमेय साबित किया था। जन्म और शिक्षा वाइल्स का जन्म कैम्ब्रिज, इंग्लैंड में हुआ था । उन्हें १९७४ में ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय से बीए मिले और 19८० में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी मिल गए। फर्मा का अंतिम प्रमेय का प्रमाण वाइल्स बडी गणित समसयाओं के लिए कोई अजनबी नहीं थे: उनका पीएचडी शोधलेख बर्च और स्विन्नरटन-डैयर अनुमान के बारे में था जो अब एक सहस्राब्दी पुरस्कार समस्या है। १९९४ में वाइल्स ने मौड्युलैरिटी प्रमेय (:en:Modularity theorem) का एक हिस्सा साबित की जिसका एक परिणाम फर्मा का अंतिम प्रमेय है। इसके लिए उन्हें 1998 में इंटरनेशनल मैथमेटिकल यूनियन (आईएमयू) से एक चाँदी की पट्टिका सम्मानित किया गया था और २०१६ में एबेल पुरस्कार सम्मानित किया गया था। सन्दर्भ 1953 में जन्मे लोग जीवित लोग गणितज्ञ
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चौलाई
चौलाई (अंग्रेज़ी : आमारान्थूस्), पौधों की एक जाति है जो पूरे विश्व में पायी जाती है। अब तक इसकी लगभग ६० प्रजातियां पाई व पहचानी गई हैं, जिनके पुष्प पर्पल एवं लाल से सुनहरे होते हैं। गर्मी और बरसात के मौसम के लिए चौलाई बहुत ही उपयोगी पत्तेदार सब्जी होती है। अधिकांश साग और पत्तेदार सब्जियां शित ऋतु में उगाई जाती हैं, किन्तु चौलाई को गर्मी और वर्षा दोनों ऋतुओं में उगाया जा सकता है। इसे अर्ध-शुष्क वातावरण में भी उगाया जा सकता है पर गर्म वातावरण में अधिक उपज मिलती है। इसकी खेती के लिए बिना कंकड़-पत्थर वाली मिट्टी सहित रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। इसकी खेती सीमांत भूमियों में भी की जा सकती है। औषधीय उपयोगिता चौलाई का सेवन भाजी व साग (लाल साग) के रूप में किया जाता है जो विटामिन सी से भरपूर होता है। इसमें अनेकों औषधीय गुण होते हैं, इसलिए आयुर्वेद में चौलाई को अनेक रोगों में उपयोगी बताया गया है। सबसे बड़ा गुण सभी प्रकार के विषों का निवारण करना है, इसलिए इसे विषदन भी कहा जाता है। इसमें सोना धातु पाया जाता है जो किसी और साग-सब्जियों में नहीं पाया जाता। औषधि के रूप में चौलाई के पंचाग यानि पांचों अंग- जड, डंठल, पत्ते, फल, फूल काम में लाए जाते हैं। इसकी डंडियों, पत्तियों में प्रोटीन, खनिज, विटामिन ए, सी प्रचुर मात्रा में मिलते है। लाल साग यानि चौलाई का साग एनीमिया में बहुत लाभदायक होता है। चौलाई पेट के रोगों के लिए भी गुणकारी होती है क्योंकि इसमें रेशे, क्षार द्रव्य होते हैं जो आंतों में चिपके हुए मल को निकालकर उसे बाहर धकेलने में मदद करते हैं जिससे पेट साफ होता है, कब्ज दूर होता है, पाचन संस्थान को शक्ति मिलती है। छोटे बच्चों के कब्ज़ में चौलाई का औषधि रूप में दो-तीन चम्मच रस लाभदायक होता है। प्रसव के बाद दूध पिलाने वाली माताओं के लिए भी यह उपयोगी होता है। यदि दूध की कमी हो तो भी चौलाई के साग का सेवन लाभदायक होता है। इसकी जड़ को पीसकर चावल के माड़ (पसावन) में डालकर, शहद मिलाकर पीने से श्वेत प्रदर रोग ठीक होता है। जिन स्त्रियों को बार-बार गर्भपात होता है, उनके लिए चौलाई साग का सेवन लाभकारी है। अनेक प्रकार के विष जैसे चूहे, बिच्छू, संखिया, आदि का विष चढ गया हो तो चौलाई का रस या जड़ के क्वाथ में काली मिर्च डालकर पीने से विष दूर हो जाता है। चौलाई का नित्य सेवन करने से अनेक विकार दूर होते हैं। प्रजातियाँ चौलाई की कई प्रजातियां भारत में मिलती और प्रयोग की जाती हैं। छोटी चौलाई इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। इसके पौधे सीधे बढ़वार वाले तथा छोटे आकार के होते है, पत्तियाँ छोटी तथा हरे रंग की होती है। यह किस्म वसंत तथा बरसात में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। बङी चौलाई इस किस्म को भी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किया गया है। इसकी पत्तियाँ बङी तथा हरे रंग की होती है और तने मोटे, मुलायम एवं हरे रंग के होते हैं। यह ग्रीष्म ऋतु में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। पूसा कीर्ति इसकी पत्तियाँ हरे रंग की काफी बड़ी, ६-८ सेमी० लम्बी और ४-६ सेमी० चौङई होती है तथा डंठल ३-४ सेमी० लम्बा होता है। इसका तना हरा और मुलायम होता है। यह ग्रीष्म ऋतु में उगाने के लिए बहुत उपयुक्त किस्म है। पूसा लाल चौलाई इस किस्म को भी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा ही विकसित किया गया है। इसकी पत्तियाँ लाल रंग की काफी बङी लगभग ७.५ सेमी० लम्बी और ६.५ सेमी० चौङी होती हैं। इसकी पत्तियों के डंठल की लम्बाई ४ सेमी० होती है। इसका तना भी गहरे लाल रंग का होता है तथा तना और पत्ती का अनुपात १:५ का होता है। पूसा किरण यह बरसात के मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी पत्तियाँ मुलायम हरे रंग की तथा चौङी होती है और पत्ती के डंठल की लम्बाई ५-६.५ सेमी० होती है। मोरपंखी यह बरसात के मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म होती है। इसकी पत्तियाँ मुलायम हरे तथा लाल रंग की तथा चौङी होती है और पत्ती के डंठल की लम्बाई ५-६.५ सेमी० होती है। इसका फूल बहुत सुंदर होता है और इसे सजावट के रूप में गमलों में भि लगाया जा सकता है। चित्र दीर्घा सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ हरी पत्तेदार सब्जियों की पोषणात्मक गुणवत्ता औषधीय गुणों से भरपूर चौलाई Glossary of Asian Vegetables. चौलाई खाने के फायदे अनाज साग उष्णकटिबन्धीय पौधे
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https://hi.wikipedia.org/wiki/1868%20%E0%A4%8F%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%AA
1868 एरिका भूकंप
1868 एरिका भूकंप, 13 अगस्त 1868 को 21:30 बजे (यूटीसी) एरिका के पास आया था। एरिका उस समय पेरू का हिस्सा था जो वर्तमान में चिली का अभिन्न अंग हैं। रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता 8.5 और 9.0 के बीच अनुमानित की गई। इस भूकम्प द्वारा प्रशांत महासागर में निर्मित सूनामी (या सुनामियाँ) हवाई, जापान और न्यूजीलैंड तक महसूस की गई। विवर्तनिक सेटिंग भूकम्प नाज़का प्लेट और दक्षिण अमेरिकी प्लेट की सीमा पर आया था। भूकम्प क्षेप-भ्रंश के परिणाम के समान था, जो दक्षिण अमेरिकी प्लेट के नीचे नाज़का प्लेट के निमज्जन की वजह से आया। नुकसान भूकम्प से पेरू का दक्षिणी हिस्सा लगभग तबाह हो गया जिसमें एरिका, टक्ना, मोक़ेगुवा, मोलेण्डो, इलो, ईकीके, टोरट और आरक्विपा शामिल हैं। इसमें सम्भावित रूप से 25,000 लोग हताहत हुये। सुनामी ने तीन जहाज़ों को लगभग 800 मीटर अंतःस्थलीय दूरी तक धकेल दिया जो बंदरगाह पर लंगर डाले हुए थे। सुनामी से हवाई में काफी क्षति हुई थी, न्यूजीलैंड में, चैथम द्वीपों और बैंकों प्रायद्वीप को काफी नुकसान हुआ था, काफ़ी घर बह गए थे और कई नावों क्षतिग्रस्त हो गई थी पर केवल एक मौत दर्ज की गई थी। विशेषताएँ भूकम्प दो अलग-अलग भूकम्पों का वर्णन किया गया था लेकिन संम्भवतः वे दोनों शायद एक ही घटना का वर्णन करते है। भूकम्प समान्को, पेरू से 1400 किलोमीटर (870 मील) पश्चिमोत्तर और बोलीविया से 224 किलोमीटर पूर्व तक के विस्तृत क्षेत्र में महसूस किया गया। यह रिक्टर पैमाने पर 8.5 से 9.0 की तीव्रता रखता था। उसी वर्ष 25 अगस्त तक लगभग 400 झटके महसूस किये गये। सूनामी हालांकि इस घटना ने एक सुनामी को जन्म दिया जो प्रशांत क्षेत्र में दर्ज़ की गई लेकिन अधिकांश नुकसान दक्षिणी पेरू के तटों और उत्तरी चिली पर स्थानीयकृत में हुआ। पहली लहर भूकम्प के 52 मिनट बाद 12 मीटर ऊँचाई के साथ एरिका पर पहुँची। इसके 73 मिनट बाद सबसे बड़ी 16 ऊँचाई वाली लहर पहुँची। सन्दर्भ पेरू में भूकंप चिली भूकम्प 19वीं सदी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%97%E0%A4%A2%E0%A4%BC%20%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AE%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय भारत के प्रमुख केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में से एक है जो उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में स्थित है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक आवासीय शैक्षणिक संस्थान है। इसकी स्थापना 1920 में सर सैयद अहमद खान द्वारा की गई थी और 1921 में भारतीय संसद के एक अधिनियम के माध्यम से केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की तर्ज पर ब्रिटिश राज के समय बनाया गया पहला उच्च शिक्षण संस्थान था। मूलतः यह मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल काॅलेज था, जिसे महान मुस्लिम समाज सुधारक सर सैयद अहमद खान द्वारा स्थापित किया गया था। कई प्रमुख मुस्लिम नेताओं, उर्दू लेखकों और उपमहाद्वीप के विद्वानों ने विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त कर रखी है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में शिक्षा के पारंपरिक और आधुनिक शाखा में 250 से अधिक पाठ्यक्रम पढ़ाए जाते हैं। अपने समय के महान समाज सुधारक सर सैयद अहमद खान ने आधुनिक शिक्षा की आवश्यकता को महसूस किया और 1875 में एक स्कूल शुरू किया, जो बाद में मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल काॅलेज और अंततः 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना। कई विभागों और स्थापित संस्थानों के साथ यह प्रमुख केन्द्रीय विश्वविद्यालय दुनिया के सभी कोनों से, विशेष रूप से अफ्रीका, पश्चिमी एशिया और दक्षिणी पूर्व एशिया के छात्रों को आकर्षित करता है। कुछ पाठ्यक्रमों में सार्क और राष्ट्रमंडल देशों के छात्रों के लिए सीटें आरक्षित हैं। विश्वविद्यालय सभी जाति, पंथ, धर्म या लिंग के छात्रों के लिए खुला है। अलीगढ़ दिल्ली के दक्षिण पूर्वी में 130 किमी दूरी पर दिल्ली-कोलकाता रेलवे और ग्रांड ट्रंक रूट की स्थित है। हैदराबाद के सातवे निज़ाम- मीर उस्मान अली खान ने वर्ष 1951 में इस विश्‍वविद्यालय के प्रति 5 लाख रुपैये का दान दिया। एएमयू की लाइब्रेरी एएमयू की मौलान आजाद लाइब्रेरी में 13.50 लाख पुस्तको के साथ तमाम दुर्लभ पांडुलिपियां भी मौजूद है। एएमयू के संग्रहालय में मुख्य वस्तुएँ तथा पांडुलिपियां। 1877 इस्वी में लाइब्रेरी की स्थापना। यह रखी इंडेक्स इस्लामिक्स की कीमत 12 लाख रुपये। फारसी पांडुलिपि का कैटलॉग। साढ़े चार लाख दुर्लभ पुस्तकें पांडुलिपिया व शोधपत्र ऑनलाइन। अकबर के दरबारी फैजी की फारसी में अनुवादित गीता। 400 साल पहले फारसी में अनुवादित महाभारत की पांडुलीपि। तमिल भाषा में लिखे भोजपत्र। 1400 साल पुरानी कुरान। मुगल शासकों के कुरान लिखे विशेष कुर्ते जिन्हे रक्षा कबज कहते हैं। सर सैयद की पुस्तकें व पांडुलिपिया। जहांगीर के पेंटर मंसूर नक्काश ती अद्भुत पेंटिग मौजूद है। एएमयू का संग्रहालय एएमयू के मूसा डाकरी संग्रहालय में अनेक ऐतिहासिक महत्वपूर्ण वस्तुएँ तो हैं ही सर सैयद अहमद का 27 देव प्रतिभाओं का वह कलेक्शन भी है जिसे उन्होने अलग अलग स्थानों का भ्रमण कर जुटाया था। एएमयू के संग्रहालय में उपस्थित महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर वस्तुएँ; महावीर जैन का स्तूप और स्तूप के चारों ओर आदिनाथ की 23 प्रतिमाएं है। सुनहरे पत्थर से बने पिलर में कंकरीट की सात देव प्रतिमाए। एटा व फतेहपुर सीकरी से खोजे गे बतर्न, पत्थर व लोहे के हथियार। शेष शैया पर लेटे भगवान विष्णु. कंकरीट के सूर्यदेव महाभारत काल की भी कई चीजे, डायनासोर के अवशेष वीमेंस कॉलेज का संस्थापक पापा मियां की ब्रिट्रिस काल की पॉइट्री। चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन व उनके बेटे शमसाद की बनाई पेंटिंग्स। एएमयू के विक्टोरिया गेट से उतारी गई प्राचीन घड़ी। उदयपुर की जवार खान से मिली ढाई हजार साल पुरानी रिटार्ट। विश्वविद्यालय के पुरस्कार प्राप्त व्यक्ति भारतरत्न डॉ0 जाकिर हुसैन (1963) खान अब्दुल गफ्फार खान (1983) पद्मविभूषण डॉ0 जाकिर हुसैन (1954) हाफिज मुहम्मद इब्राहिम (1967) सैयद बसीर हुसैन जैदी (1976) प्रो. आवेद सिद्दीकी (2006) प्रो. राजा राव (2007) प्रो. एआर किदवई (2010) पद्मभूषण शेख मोहम्मद अब्दुल्लाह (1964) प्रो. सैयद जुहूर कासिम (1982) प्रो. आले अहमद सुरुर (1985) नसीरुद्दीन शाह (2003) प्रो. इरफान हबीब (2005) कुर्रातुल एन हैदर (2005) जावेद अख्तर (2007) डॉ. अशोक सेठ (2014) पद्मश्री विश्वविद्यालय के 53 महानुभावो को। ज्ञानपीठ कुर्रतुलऐन हैदर (1989) अली सरदार जाफरी (1997) प्रो. शहरयार (2008) भारतीय न्याय क्षेत्र में विश्वविद्यालय का योगदान सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस बहारुल इस्लाम जस्टिस सैयद मुर्तजा फजल अली जस्टिस एस. सगहीर अहमद जस्टिस आरपी सेठी हाईकोर्ट के जज एएमयू से हाईकोर्ट 47 जज विश्वविद्यालय के प्रमुख व्यक्तित्व जाकिर हुसैन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति। लियाकत अली खान, पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री। अली अशरफ फातमी, भारत सरकार में पूर्व मानव संसाधन राज्यमंत्री (२००४-२००९)। साहिब सिंह वर्मा, भाजपा नेता एवं दिल्ली के भूतपूर्व मुख्यमंत्री, केन्द्रीय श्रम मंत्री मोहम्मद हामिद अंसारी, भारत के भूतपूर्व उपराष्ट्रपति। ध्यानचंद, प्रमुख हॉकी खिलाड़ी। मुश्ताक अली, भारत के भूतपूर्व क्रिकेट खिलाड़ी एवं कप्तान लाला अमरनाथ, भूतपूर्व क्रिकेट खिलाड़ी मोहिंदर अमरनाथ के पिता इरफान हबीब, इतिहासकार ईश्वरी प्रसाद, इतिहासकार। पियारा सिंह गिल, भौतिकशास्त्री। के आसिफ, मुगले-आजम फिल्म के निर्देशक। नसीरुद्दीन शाह, फिल्म अभिनेता अनुभव सिन्हा, हिन्दी फिल्मों के निर्देशक दलीप ताहिल, फिल्म अभिनेता शाद खान, टी.वी. कलाकार जैस चौहान अभिनेता पत्रकार और लेखक आरफ़ा ख़ानम शेरवानी, दी वायर बशारत पीर हसरत मोहानी, कवि जिब्रान उद्दीन, ज़ी मीडिया असगर वजाहत, लेखक असरारुल हक़ मजाज़, कवि रोमाना ईसार खान, एबीपी न्यूज़ कैफी आजमी, उर्दू कवि' राही मासूम रजा, लेखक। रवीन्द्र जैन, गीतकार, संगीतकार, गायक जलीस शेरवानी, शायर, गीतकार जावेद अख्तर, गीतकार एवं शायर। सन्दर्भ विश्‍वविद्यालय, अलीगढ मुस्लिम उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय विश्‍वविद्यालय, अलीगढ मुस्लिम विश्‍वविद्यालय, अलीगढ मुस्लिम
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वर्ण परिचय
१. वर्णविचार   प्रस्ताविक जानकारी भाषा मे  " कर्ता Subject", "कर्म Object"  और  " क्रिया Verb" इन को लेके वाक्य बनता है। कभी कर्म रहेगा कभी नहीं रहेगा।   एक वाक्य लेते है।  बालक पुस्तक पढ़ता है। इस वाक्य में  बालक " कर्ता Subject" है, पुस्तक "कर्म Object" है और पढ़ता है  " क्रिया Verb" है। दूसरा एक वाक्य देखते है। = बालक हसता है। इस वाक्य में बालक “कर्ता Subject" है और "हसता है “क्रिया Verb" है  परन्तु "कर्म Object" नहीं है। तो हमने दो प्रकार की क्रियाएं देखीं ( १. ) ( सकर्मक) बालक पुस्तक पढ़ता है।   और ( २. )  (अकर्मक) बालक  हँसता है। कोई भी भाषा का अर्थ पूर्ण वाक्य बनने के लिए वाक्य में एक या एक से अधिक शब्द होते है। और इन शब्दों को तीन प्रकार से विभाजित किया है। वह – नाम, क्रिया और अव्यय  है। इसमें से नाम और क्रिया सर्वनाम, विशेषण और क्रियाविशेषण में भी विभाजित हो सकते है यह उपयोग कर्ता के उपर निर्भर है।   व्याकरण
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%80%20%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE
श्रीबरदी उपज़िला
श्रीबरदी उपजिला, बांग्लादेश का एक उपज़िला है, जोकी बांग्लादेश में तृतीय स्तर का प्रशासनिक अंचल होता है (ज़िले की अधीन)। यह मय़मनसिंह विभाग के शेरपुर ज़िले का एक उपजिला है। इसमें, ज़िला सदर समेत, कुल 5 उपज़िले हैं। यह बांग्लादेश की राजधानी ढाका से उत्तर की दिशा में अवस्थित है। यह मुख्यतः एक ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है। जनसांख्यिकी यहाँ की आधिकारिक स्तर की भाषाएँ बांग्ला और अंग्रेज़ी है। तथा बांग्लादेश के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह ही, यहाँ की भी प्रमुख मौखिक भाषा और मातृभाषा बांग्ला है। बंगाली के अलावा अंग्रेज़ी भाषा भी कई लोगों द्वारा जानी और समझी जाती है, जबकि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक निकटता तथा भाषाई समानता के कारण, कई लोग सीमित मात्रा में हिंदुस्तानी(हिंदी/उर्दू) भी समझने में सक्षम हैं। यहाँ का बहुसंख्यक धर्म, इस्लाम है, जबकि प्रमुख अल्पसंख्यक धर्म, हिन्दू धर्म है। जनसांख्यिकीक रूप से, यहाँ, इस्लाम के अनुयाई, आबादी के औसतन ९१% के करीब है। शेष जनसंख्या प्रमुखतः हिन्दू धर्म की अनुयाई है। यह मयख्यातः एक ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है। अवस्थिति श्रीबरदी उपजिला बांग्लादेश के उत्तरी सीमा से सटे, म़यमनसिंह विभाग के शेरपुर जिले में स्थित है। इन्हें भी देखें बांग्लादेश के उपजिले बांग्लादेश का प्रशासनिक भूगोल मय़मनसिंह विभाग सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ उपज़िलों की सूची (पीडीएफ) (अंग्रेज़ी) जिलानुसार उपज़िलों की सूचि-लोकल गवर्नमेंट इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट, बांग्लादेश http://hrcbmdfw.org/CS20/Web/files/489/download.aspx (पीडीएफ) श्रेणी:मयमनसिंह विभाग के उपजिले बांग्लादेश के उपजिले
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%B0
सिंजार
सिंजार (अरबी: , कुर्दी: Şengal, सीरियाई: ܫܝܓܪ, अंग्रेज़ी: Sinjar) पश्चिमोत्तरी इराक़ के नीनवा प्रान्त का एक शहर है। यह सीरिया की सरहद के बहुत पास स्थित है। सिंजार में अधिकतर यज़ीदी लोग रहते हैं, हालांकि कुछ कुर्द, अरब और असीरियाई लोग भी हैं। इस शहर के आसपास के क्षेत्र को 'सिंजार मैदान' बुलाया जाता है और यहाँ के नज़दीक स्थित पहाड़ों को भी 'सिंजार पहाड़', या अरबी भाषा में 'जबल सिंजार', कहा जाता है। आधुनिक काल में सिंजार का इलाक़ा ही यज़ीदी समुदाय का प्रमुख केंद्र है। इतिहास सिंजार के मैदान में मानवी बस्तियाँ ६,००० वर्षों से चल रही है। यह क्षेत्र कभी उबैद संस्कृति (, Ubaid culture) के उत्तरी हिस्से का भाग हुआ करता था। सरहद के पार सीरिया में तेल हमूकार (, Tell Hamoukar) नामक पुरातत्व-स्थल में बहुत सी संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं, जिनमें से कुछ (जैसे कि 'हसूना') ९,००० साल पुराने हैं। यहाँ २०० से ज़्यादा बस्तियों व पड़ावों के निशान हैं। कुछ चुनी तस्वीरें इन्हें भी देखें नीनवा प्रान्त यज़ीदी सन्दर्भ इराक़ के शहर नीनवा प्रान्त
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एकल परिपथ आरेख
शक्ति इंजीनियरी में एकल-लाइन आरेख (one-line diagram या single-line diagram / SLD), तीन-फेजी शक्ति परिपथों को सरलीकृत करके दिखाने वाला एक आरेख है इसमें तीनों शक्ति-परिपथ के तीनों लाइनों में लगे अवयवों को दिखाने के बजाय एक ही लाइन (फेज) में जुडी हुई चीजें दिखायी जातीं हैं और मान लिया जाता है कि तीनों फेजों में उसी तरह के कनेक्शन हैं। इससे परिपथ बहुत सरल दिखता है और कोई भी जानकारी छिपाने की आवश्यकता नहीं होती। एकल-लाइन आरेख का सर्वाधिक उपयोग शक्ति प्रवाह अध्ययन (Power flow study) में किया जाता है। शक्ति परिपथ में लगाये जाने वाले परिपथ विच्छेदक, ट्रान्सफॉर्मर, संधारित्र, बस-बार, और चालक आदि अपने-अपने मानक प्रतीकों द्वारा दर्शाए जाते हैं। वास्तव में यह ब्लॉक आरेख का ही एक रूप है। सन्दर्भ विद्युत परिपथ विद्युत शक्ति प्रणाली आरेख
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ऑल योर बेस आर बिलॉन्ग टू अस
ऑल योर बेस आर बिलॉन्ग टू अस (अंग्रेज़ी: All your base are belong to us) एक टूटी-फूटी अंग्रेज़ी का सूत्रवाक्य है जो सन् 2000-2002 के समय में तेज़ी से इन्टरनेट पर फैल गया। यह एक "ज़ीरो विंग" (Zero Wing, अर्थ: शून्य पंख) नाम के जापानी विडीयो खेल में जापानी से अंग्रेज़ी अनुवाद में ग़लतियों की वजह से बन गया था। इसका सही अनुवाद "ऑल योर बेसिज़ बिलॉन्ग टू अस" होना चाहिए था, जिसका अर्थ है "तुम्हारे सब डेरों पर हमारा क़ब्ज़ा हो गया है"। पहले तो इस वाक्य का मज़ाक उड़ाया गया लेकिन अब इसे कई समुदायों में "हम तुम पर छा गए हैं" के अर्थ के साथ अन्दर के लतीफ़े की तरह प्रयोग किया जाता है। मूल आलेख और अनुवाद ज़ीरो विंग का की शुरुआत में यह वार्तालाप होता है, जिसमें कई अनुवाद की ग़लतियाँ हैं (हिन्दी अनुवाद में तोड़-मोड़ द्वारा यह ग़लतियाँ दर्शाई गयी हैं) - इन्हें भी देखें अन्दर के लतीफ़े सन्दर्भ अन्दर के लतीफ़े अंग्रेज़ी के सूत्रवाक्य सूत्रवाक्य हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना परीक्षित लेख
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क्रूसयुद्ध
यूरोप के ईसाइयों ने 1098 और 1291 के बीच अपने धर्म की पवित्र भूमि फिलिस्तीन और उसकी राजधानी जेरूसलम में स्थित ईसा की समाधि का गिरजाघर मुसलमानों से छीनने और अपने अधिकार में करने के प्रयास में जो युद्ध किए उनको सलीबी युद्ध, ईसाई धर्मयुद्ध, क्रूसेड (crusades) अथवा क्रूश युद्ध कहा जाता है। इतिहासकार ऐसे सात क्रूश युद्ध मानते हैं। युद्धों की पृष्ठभूमि ईसाई मतावलंबियों की पवित्र भूमि और उसके मुख्य स्थान साथ के मानचित्र में दिखाए गए हैं। यात्रा की प्रमुख मंजिल जेरूसलम नगर में वह बड़ा गिरजाघर था जिसे रोम के प्रथम ईसाई सम्राट् कोंस्टेंटैन की माँ ने ईसा की समाधि के पास चौथी सदी में बनवाया था। यह क्षेत्र रोम के साम्राज्य का अंग था जिसके शासक चौथी सदी से ईसाई मतावलंबी हो गए थे। सातवीं सदी में इस्लाम का प्रचार बड़ी तीव्र गति से हुआ और पैग़ंबर के उत्तराधिकारी ख़लीफ़ाओं ने निकट और दूर के देशों पर अपना शासन स्थापित कर लिया। फ़िलिस्तीन तो पैगंबर की मृत्यु के 10 वर्ष के भीतर ही उनके अधीन हो गया था। मुसलमान ईसा को भी ईश्वर का पैगंबर मानते हैं। साथ ही, अरब जाति में सहिष्णुता भी थी, इससे यहूदियों को अपनी पवित्र भूमि के स्थलों की यात्रा में कोई बाधा या कठिनाई नहीं हुई। 11वीं सदी में यह स्थिति बदल गई। मध्य एशियाई तुर्क जाति की इतनी जनवृद्धि हुई कि वह और फैली तथा इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया। ख़ासकर इस समय सल्जूक तुर्कों ने (जो अपने एक सरदार सेल्जुक के नाम से प्रसिद्ध है) कैस्पियन सागर से जेरुशलम तक अपनी शक्ति बहुत बढ़ा ली। उधर पूर्व में तुर्कों की एक दूसरी शाखा ने सुलतान महमूद के नेतृत्व में भारत पर आक्रमण किया और उसका पश्चिमोत्तर भाग दबा लिया। सल्जूकों ने कई देशों के अनंतर फिलिस्तीन पर भी कब्जा किया और जेरूसलम तथा वहाँ के पवित्र स्थान 1071 ई. उसके अधीन हो गए। इस समय से ईसाइयों की यात्रा कठिन और आशंकापूर्ण हो गई। दूसरी ओर पश्चिमी यूरोप में नार्मन जाति की शक्ति का विकास हुआ। नार्मन इंग्लैंड के शासक बन गए; फ्रांस के एक भाग पर वे पहले से ही छाए हुए थे, 1070 के लगभग उन्होंने सिसिली, द्वीप मुसलमानों से जीता और उससे मिला हुआ इटली का दक्षिणी भाग भी दबा लिया। फलस्वरूप, भूमध्यसागर, जो उत्तरी अफ्रीका के मुसलमान शासकों के दबाव में था, इस समय के ईसाइयों के लिए खुल गया। इटली के कई स्वंतत्र नगर (जिनमें वेनिस, जेनोआ और पीसा प्रमुख थे) वाणिज्य में कुशल थे और अब और भी उन्नतिशील हो गए। उनकी नौसेना बढ़ी और ईसाइयों को अपनी पवित्र भूमि के लिए नया मार्ग भी उपलब्ध हो गया। पर ईसाई में प्रबल फूट भी थी। 395 ई. में रोमन साम्राज्य दो भागों में बँट गया था। पश्चिमी भाग, जिसकी राजधानी रोम थी, 476 में उत्तर की बर्बर जातियों के आक्रमण से टूट गया। पर पोप का प्रभाव स्थिर रहा और इन जातियों के ईसाई हो जाने पर बहुत बढ़ गया; यहाँ तक कि पश्चिमी यूरोप पर पोप का निर्विवाद आधिपत्य था। इसके शासक पोप से आशीर्वाद प्राप्त करते थे और यदि पोप अप्रसन्न होकर किसी शासक का बहिष्कार करता, तो उसे कठिन प्रायश्चित्त करना होता था और प्रचूर धन दंड के रूप में पोप को देना पड़ता था। इस क्षेत्र के शासकों में से एक सम्राट् निर्वाचित होता था जो पोप का सहकारी माना जाता था और पवित्र रोमन सम्राट् कहलाता था। ईसाई जगत् के पूर्वी भाग की राजधानी कुस्तुंतुनियाँ (आधुनिक इस्तांबुल नगर) में थी और वहाँ ग्रीक (यूनानी) जाति के सम्राट् शासन करते थे। पूर्वी यूरोप के अतिरिक्त उनका राज्य एशिया माइनर पर भी था। तुर्को ने एशिया माइनर के अधिकांश भाग पर कब्जा कर लिया था, केवल राजधानी के निकट का और कुछ समुद्रतट का क्षेत्र रोमन (जाति से ग्रीक) सम्राट् के पास रह गया था। सम्राट् ने इस संकट में पश्चिमी ईसाइयों की सहायता माँगी। रोम का पोप स्वयं ही पवित्र भूमि को तुर्को से मुक्त कराने का इच्छुक था। एक प्रभावशाली प्रचारक (आमिया निवासी पीतर संन्यासी) ने फ्रांस और इटली में धर्मयुद्ध के लिए जनता को उत्साहित किया। फलस्वरूप लगभग छह लाख क्रूशधर प्रस्तुत हो गए। ईसाई जगत् के पूर्वी और पश्चिमी भागों में धार्मिक मतभेद इतना था कि 1054 में रोम के पोप और कोस्तांतीन नगर के पात्रिआर्क (जो पूर्वी ईसाइयों का अध्यक्ष था) ने एक दूसरे को जातिच्युत कर दिया था। पश्चिम का उन्नतिशील राजनीतिक दल (अर्थात् नार्मन जाति) पूर्वी सम्राट् को, जो यूनानी था, निकम्मा समझता था। उसकी धारणा थी कि इस साम्राज्य में नार्मन शासन स्थापित होने पर ही तुर्की से युद्ध में जीत हो सकती है। इन विरोधों तथा मतभेदों का क्रूश युद्धों के इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा। प्रथम क्रूश युद्ध (1098-1099) इस युद्ध में दो प्रकार के क्रूशधरों ने भाग लिया। एक तो फ्रांस, जर्मनी और इटली के जनसाधारण, जो लाखों की संख्या में पोप और संन्यासी पीतर की प्रेरणा से (बहुतेरे) अपने बाल बच्चों के साथ गाड़ियों पर समान लादकर पीतर और अन्य श्रद्धोन्मत्त नेताओं के पीछे पवित्र भूमि की ओर मार्च, 1096 में थलमार्ग से चल दिए। बहुतेरे इनमें उद्दंड थे और विधर्मियों के प्रति तो सभी द्वेषरत थे। उनके पास भोजन सामग्री और परिवहन साधन का अभाव होने के कारण वे मार्ग में लूट खसोट और यहूदियों की हत्या करते गए जिसके फलस्वरूप बहुतेरे मारे भी गए। इनको यह प्रवृत्ति देखकर पूर्वी सम्राट् ने इनके कोंस्तांतीन नगर पहुँचने पर दूसरे दल की प्रतीक्षा किए बिना बास्फोरस के पार उतार दिया। वहाँ से बढ़कर जब वे तुर्को द्वारा शासित क्षेत्र में घुसे तो, मारे गए। दूसरा दल पश्चिमी यूरोप के कई सुयोग्य सामंतों की सेनाओं का था जो अलग अलग मार्गो से कोंस्तांतीन पहुँचे। इनके नाम इस प्रकार हैं:- लरेन का ड्यूक गाडफ्रे और उसका भाई बाल्डविन; दक्षिण फ्रांस स्थित तूलू का ड्यूक रेमों; सिसिली के विजेता नार्मनों का नेता बोहेमों (जो पूर्वी सम्राट् का स्थान लेने का इच्छुक भी था)। पूर्वी सम्राट् ने इन सेनाओं को मार्गपरिवहन इत्यादि की सुविधाएँ और स्वयं सैनिक सहायता देने के बदले इनसे यह प्रतिज्ञा कराई कि साम्राज्य के भूतपूर्व प्रदेश, जो तुर्को ने हथिया लिए थे, फिर जीते जाने पर सम्राट् को दे दिए जाएँगे। यद्यपि इस प्रतिज्ञा का पूरा पालन नहीं हुआ और सम्राट् की सहायता यथेष्ट नहीं प्राप्त हुई, फिर भी क्रूशधर सेनाओं को इस युद्ध में पर्याप्त सफलता मिली। (कोंस्तांतीन से आगे इन सेनाओं का मार्ग मानचित्र में अंकित है।) सर्वप्रथम उनका सामना होते ही तुर्को ने निकाया नगर और उससे संबंधित प्रदेश सम्राट् को दे दिए। फिर सेना ने दोरीलियम स्थान पर तुर्को को पराजित किया ओर वहाँ से अंतिओक में पहुँचकर आठ महीने के घेरे के बाद उसे जीत लिया। इससे पहले ही बाल्डविन ने अपनी सेना अलग कर के पूर्व की ओर अर्मीनिया के अंतर्गत एदेसा प्रदेश पर अपना अधिकार कर लिया। अंतिओक से नवबंर, 1098 में चलकर सेनाएँ मार्ग में स्थित त्रिपोलिस, तीर, तथा सिज़रिया के शासकों से दंड लेते हुए जून, 1099 में जेरूसलम पहुँची और पाँच सप्ताह के घेरे के बाद जुलाई, 1099 में उसपर अधिकार कर लिया। उन्होंने नगर के मुसलमान और यहूदी निवासियों की (उनकी स्त्रियों और बच्चों के साथ) निर्मम हत्या कर दी। इस विजय के बाद क्रूशधरों ने जीते हुए प्रदेशों में अपने चार राज्य स्थापित किए (जो नीचे के मानचित्र में दिखाए गए हैं)। पूर्वी रोमन सम्राट् इससे अप्रसन्न हुआ पर इन राज्यों को वेनिस, जेनोआ इत्यादि समकालीन महान शक्तियों की नौसेना की सहायता प्राप्त थी जिनका वाणिज्य इन राज्यों के सहारे एशिया में फैलता था। इसके अतिरिक्त धर्मसैनिकों के दो दल, जो मठरक्षक (नाइट्स टेंप्लर्स) और स्वास्थ्यरक्षक (नाइट्स हास्पिटलर्स) के नाम से प्रसिद्ध हैं, इनके सहायक थे। पादरियों और भिक्षुओं के समान ये धर्मसैनिक पोप से दीक्षा पाते थे और आजीवन ब्राहृचर्य रखने तथा धर्म, असहाय स्त्रियों और बच्चों की रक्षा करने की शपथ लेते थे। द्वितीय क्रूश युद्ध (1145-1149) सन् 1144 में मोसल के तुर्क शासक इमाद उद्दीन ज़ंगी ने एदेसा को ईसाई शासक से छीन लिया। पोप से सहायता की प्रार्थना की गई और उसके आदेश से प्रसिद्ध संन्यासी संत बर्नार्ड ने धर्मयुद्ध का प्रचार किया। इस युद्ध के लिए पश्चिमी यूरोप के दो प्रमुख राजा (फ्रांस के सातवें लुई और जर्मनी के तीसरे कोनराड) तीन लाख की सेना के साथ थलमार्ग से कोंस्तांतीन होते हुए एशिया माइनर पहुँचे। इनके परस्पर वैमनस्य और पूर्वी सम्राट् की उदासीनता के कारण इन्हें सफलता न मिली। जर्मन सेना इकोनियम के युद्ध में 1147 में परास्त हुई और फ्रांस की अगले वर्ष लाउदीसिया के युद्ध में। पराजित सेनाएँ समुद्र के मार्ग से अंतिओक होती हुई जेरूसलम पहुँची और वहाँ के राजा के सहयोग से दमिश्क पर घेरा डाला, पर बिना उसे लिए हुए ही हट गई। इस प्रकार यह युद्ध नितांत असफल रहा। तृतीय क्रूश युद्ध (1188-1189) इस युद्ध का कारण तुर्की की शक्ति का उत्थान था। सुलतान सलाउद्दीन (1137-1193) के नेतृत्व में उनका बड़ा साम्राज्य बन गया जिसमें उत्तरी अफ्रीका में मिस्र, पश्चिमी एशिया में फ़िलिस्तीन, सीरिया, अरब, ईरान तथा इराक सम्मिलित थे। उसने 1187 में जेरूसलम के ईसाई राजा को हत्तिन के युद्ध में परास्त कर बंदी कर लिया और जेरूसलम पर अधिकार कर लिया। समुद्रतट पर स्थित तीर पर उसका आक्रमण असफल रहा और इस बंदर का बचाव 1188 में करने के बाद ईसाई सेना ने दूसरे बंदर एकर को सलाउद्दीन से लेने के लिए उसपर अगस्त, 1189 में घेरा डाला जो 23 महीने तक चला। सलाउद्दीन ने घेरा डालनेवालों को घेरे में डाल दिया। जब 1191 के अप्रैल में फ्रांस की सेना और जून में इंग्लैंड की सेना वहाँ पहुँची तब सलाउद्दीन ने अपनी सेना हटा ली और इस प्रकार जेरूसलम के राज्य में से (जो 1199 में स्थापित चार फिरंगी राज्यों में प्रमुख था) केवल समुद्रतट का वह भाग, जिसमें ये बंदर (एकर तथा तीर) स्थित थे, शेष रह गया। इस युद्ध के लिए यूरोप के तीन प्रमुख राजाओं ने बड़ी तैयारी की थी पर वह सहयोग न कर सके और पारस्परिक विरोध के कारण असफल रहे। प्रथम जर्मन सम्राट् फ्रेडरिक लालमुँहा (बार्बरोसा), जिसकी अवस्था 80 वर्ष से अधिक थी, 1189 के आरंभ में ही अपने देश से थलमार्ग से चल दिया और एशिया माइनर में तुर्की क्षेत्र में प्रवेश करके उसने उसका कुछ प्रदेश जीत भी लिया, पर अर्मीनिया की एक पहाड़ी नदी को तैरकर पार करने में डूबकर जून, 1190 में मर गया। उसकी सेना के बहुत सैनिक मारे गए, बहुत भाग निकले; शेष उसके पुत्र फ्रेडरिक के साथ एकर के घेरे में जा मिले। दूसरा फ्रांस का राजा फिलिप ओगुस्तू अपनी सेना जेनोआ के बंदर से जहाजों पर लेकर चला, पर सिसिली में इंग्लैंड के राजा से (जो अब तक उसका परम मित्र था) विवादवश एक वर्ष नष्ट करके अप्रैल, 1181 में एकर पहुँच पाया। इस क्रूश युद्ध का प्रमुख इंग्लैंड का राजा रिचर्ड प्रथम था, जो फ्रांस के एक प्रदेश का ड्यूक भी था और अपने पिता के राज्यकाल में फ्रांस के राजा का परम मित्र रहा था। इसने अपनी सेना फ्रांस में ही एकत्र की और वह फ्रांस की सेना के साथ ही समुद्रतट तक गई। इंग्लैंड का समुद्री बेड़ा 1189 में ही वहाँ से चलकर मारसई के बंदर पर उपस्थित था। सेना का कुछ भाग उसपर और कुछ रिचर्ड के साथ इटली होता हुआ सिसिली पहुँचा, जहाँ फ्रांस नरेश से अनबन के कारण लगभग एक वर्ष नष्ट हुआ था। वहाँ से दोनों अलग हो गए और रिचर्ड ने कुछ समय साइप्रस का द्वीप जीतने और अपना विवाह करने में व्यय किया। इस कारण वह फ्रांस के राजा से दो महीने बाद एकर पहुँचा (तीनों राजाओं की सेनाओं का मार्ग मानचित्र में दिखाया गया है)। एकर के मुक्त हो जाने पर राजाओं का मतभेद भड़क उठा। फ्रांस का राजा अपने देश लौट गया। रिचर्ड ने अकेले ही तुर्को के देश मिरुा की ओर बढ़ने का प्रयास किया जिसमें उसने नौ लड़ाइयाँ लड़ीं। वह जेरूसलम से छह मील तक बढ़ा पर उसपर घेरा न डाल सका। वहाँ से लौटकर उसने समुद्रतट पर जफ्फा में सितंबर, 1192 में सलाउद्दीन से संधि कर ली जिससे ईसाई यात्रियों को बिना रोक टोक के यात्रा करने की सुविधा दे दी गई और तीन वर्ष के लिए युद्ध को विराम दिया गया। युद्धविराम की अवधि के उपरांत जर्मन सम्राट् हेनरी षष्ठ ने फिर आक्रमण किया और उसकी सहायता के लिए दो सेनाएँ समुद्री मार्ग से भी आई। पर सफलता न मिली। चतुर्थ क्रूश युद्ध (1291) इस युद्ध का प्रवर्तक पोप इन्नोसेंत तृतीय था। उसकी प्रबल इच्छा ईसाई मत के दोनों संप्रदायों (पूर्वी और पश्चिमी) को मिलाने की थी जिसके लिए वह पूर्वी सम्राट् को भी अपने अधीन करना चाहता था। पोप की शक्ति इस समय चरम सीमा पर थी। वह जिस राज्य को जिसे चाहता, दे देता था। उसकी इस नीति को उस समय नौसेना और वाणिज्य में सबसे शक्तिशाली राज्य वेनिस और नार्मन जाति की भी सहानुभूति और सहयोग प्राप्त था। पोप का उद्देश्य इस प्रकार ईसाई जगत् में एकता उत्पन्न करके मुसलमानों को पवित्र भूमि से निकाल देना था। पर उसके सहायकों का लक्ष्य राजनीतिक और आर्थिक था। सन् 1202 में पूर्वी सम्राट् ईजाक्स को उसके भाई आलेक्सियस ने अंधा करके हटा दिया था और स्वयं सम्राट् बन बैठा था। पश्चिमी सेनाएँ समुद्र के मार्ग से कोंस्तांतान पहुँचा और आलेक्सियस को हराकर ईजाक्स की गद्दी पर बैठाया। उसकी मृत्यु हो जाने पर कोंस्तांतीन पर फिर घेरा डाला गया और विजय के बाद वहाँ बल्डिविन का, जो पश्चिमी यूरोप में फ़्लैंडर्स (बेल्जियम) का सामंत था, सम्राट् बनाया गया। इस प्रकार पूर्वी साम्राज्य भी पश्चिमी फिरंगियों के शासन में आ गया और 60 वर्ष तक बना रहा। इस क्रांति के अतिरिक्त फिरंगी सेनाओं ने राजधानी को भली प्रकार लूटा। वहाँ के कोष से धन, रत्न और कलाकृतियों लेने के अतिरिक्त प्रसिद्ध गिरजाघर संत साफिया को भी लूटा जिसकी छत में, कहा जाता है, एक सम्राट् ने 18 टन सोना लगाया था। बालकों का धर्मयुद्ध (Children's crusade) सन् 1212 में फ्रांस के स्तेफ़ाँ नाम के एक किसान ने, जो कुछ चमत्कार भी दिखाता था, घोषणा की कि उसे ईश्वर ने मुसलमानों को परास्त करने के लिए भेजा है और यह पराजय बालकों द्वारा होगी। इस प्रकार बालकों के धर्मयुद्ध का प्रचार हुआ, जो एक विचित्र घटना है। 30,000 बालक बालिकाएँ, जिनमें से अधिकांश 12 वर्ष से कम अवस्था के थे, इस काम के लिए सात जहाजों में फ्रांस के दक्षिणी बंदर मारसई से चले। उन्हें समुद्रयात्रा पैदल ही संपन्न होने का विश्वास दिलाया गया। दो जहाज तो समुद्र में समस्त यात्रियों समेत डूब गए, शेष के यात्री सिकंदरिया में दास बनाकर बेच दिए गए। इनमें से कुछ 17 वर्ष उपरांत संधि द्वारा मुक्त हुए। इसी वर्ष एक दूसरे उत्साहों ने 20,000 बालकों का दूसरा दल जर्मनी में खड़ा किया और वह उन्हें जनाआ तक ले गया। वहाँ के बड़े पादरी ने उन्हें लौट जाने का परामर्श दिया। लौटते समय उनमें से बहुत से पहाड़ों की यात्रा में मर गए। पाँचवाँ क्रूश युद्ध (1228-29) 1228-29 में सम्राट् फ्रेडरिक द्वितीय ने मिरुा के शाक से संधि करके, पवित्र भूमि के मुख्य स्थान जरूसलम बेथलहम, नज़रथ, तौर और सिदान तथा उनके आसपास के क्षेत्र प्राप्त करके अपने को जेरूसलम के राजपद पर आभीषक्त किया। छठा क्रूश युद्ध (1248-54) कुछ ही वर्ष उपरांत जेरूसलम फिर मुसलमानों ने छीन लिया। जलालुद्दीन, ख्वारज़्मशाह, जो खोबा का शासक था, चगेज़ खाँ से परास्त होकर, पश्चिम गया और 1144 में उसने जेरूसलम लेकर वहाँ के पवित्र स्थानों की क्षति पहुँचाई और निवासियों की हत्या की। इस पर फ्रांस के राजा लुई नवें ने (जिसे संत की उपाधि प्राप्त हुई) 1248 और 54 के बीच दो बार इन स्थानों को फिर से लेने का प्रयास किया। फ्रांस से समुद्रमार्ग से चलकर वह साइप्रस पहुँचा और वहाँ से 1249 में मिरुा में दमिएता ले लिया, पर 1250 में मसूरी की लड़ाई में परास्त हुआ और अपनी पूरी सेना के साथ उसने पूर्ण आत्मसमर्पण किया। चार लाख स्वर्णमुद्रा का उद्धारमूल्य चुकाकर, दामएता वापस कर मुक्ति पाई। इसके उपरांत चार वर्ष उसने एकर के बचाव का प्रयास किया, पर सफल न हुआ। सप्तम क्रूश युद्ध (1270-72) जब 1268 में तुर्को ने ईसाइयों से अंतिअकि ले लिया, तब लुई नवम ने एक और क्रूश युद्ध किया। उसकी आशा थी कि उत्तरी अफ्रीका में त्यूानस का राजा ईसाई हो जाऐगा। वहाँ पहुँकर उसने काथेज 1270 मेलियो, पर थोड़े ही दिनों में प्लेग से मर गया। इस युद्ध को इसका मृत्यु के बाद इंग्लैंड के राजकुमार एडवर्ड ने, जो आगे चलकर राजा एडवर्ड प्रथम हुआ, जारी रखा। परंतु उसने अफ्रीका में और कोई कार्यवाही नहीं की। वह सिसला होता हुआ। फिलिस्तीन पहुँचा। उसने एकर का घेरा हटा दिया ओर मुसलमानों को दस वर्ष के लिए युद्धविराम करने को बाध्य किया। एकर ही एक स्थान फिलिस्तीन में ईसाइयों के हाथ में बचा था और वह अब उनके छोटे से राज्य की राजधानी थी। 1291 में तुर्को ने उसे भी ले लिया। धर्मयुद्धों का प्रभाव इन धर्मयुद्धों के इतिहास में इस बात का ज्वलंत प्रमाण मिलता है कि धार्मिक अंधविश्वास और कट्टरता को उत्तेजित करने से मुनष्य में स्वयं विचार करने की शक्ति नहीं रह जाती। कट्टरता के प्रचार से ईसाइयत जैसे शंतिपूर्ण मत के अनुयायी भी कितना अत्याचार और हत्याकांड कर सकते हैं, यह इससे प्रकट है। जो धर्मसैनिक यात्रियों की चिकित्सा के लिए अथवा मंदिर की रक्षा के लिए दीक्षित हुए, वे यहाँ के वातावरण में संसारी हो गए। वे महाजनी करने लगे। इन युद्धों से यूरोप को बहुत लाभ भी हुआ। बहुतेरे कलहप्रिय लोग इन युद्धों में काम आए जिससे शासन का काम सुगम हो गया। युद्धों में जानेवाले यूरोपीय पूर्व के निवासियों के संपर्क में आए और उनसे उन्होंने बहुत कुछ सीखा, क्योंकि इनके रहन सहन का स्तर यूरोप से बहुत ऊँचा था। वाणिज्य को भी बहुत प्रोत्साहन मिला और भूमध्यसागर के बंदरगाह, विशेषत: वेनिस, जेनीआ, पीसा की खाड़ी की उन्नति हुई। पूर्वी साम्राज्य, जो 11वीं शताब्दी में समाप्त होने ही को था, 300 वर्ष और जीवित रहा। पोप का प्रभुत्व और भी बढ़ गया और साथ ही राजाओं की शक्ति बढ़ने से दोनों में कभी कभी संघर्ष भी हुआ। इन्हें भी देखें न्यायाधिकरण (इनक्विज़िशन) जेहाद बाहरी कड़ियाँ E.L. Skip Knox, The Crusades, a virtual college course through Boise State University. Paul Crawford, Crusades: A Guide to Online Resources, 1999. Thomas F. Madden, The Real History of the Crusades, an essay by a Crusades historian The Society for the Study of the Crusades and the Latin East—an international organization of professional Crusade scholars De Re Militari: The Society for Medieval Military History—contains articles and primary sources related to the Crusades Resources > Medieval Jewish History > The Crusades The Jewish History Resource Center - Project of the Dinur Center for Research in Jewish History, The Hebrew University of Jerusalem The Crusades Encyclopedia - articles, primary and secondary sources, and bibliographies An Islamic View of the Battlefield an article that provides indepth analysis of the theological basis of human wars इतिहास इस्लाम ईसाई धर्म इजराइल का इतिहास इज़राइल
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%87%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B2%20%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A7
भारत-इज़राइल सम्बन्ध
भारत-इज़राइल सम्बन्ध, भारत तथा इज़राइल के मध्य द्विपक्षीय सम्बन्धों को दर्शाते हैं। 1992 तक भारत तथा इज़राइल के मध्य किसी प्रकार के सम्बन्ध नहीं रहे। इसके मुख्यतः दो कारण थे- पहला, भारत गुट निरपेक्ष राष्ट्र था जो की पूर्व सोवियत संघ का समर्थक था तथा दूसरे गुट निरपेक्ष राष्ट्रों की तरह इज़राइल को मान्यता नहीं देता था। दूसरा मुख्य कारण भारत फिलिस्तीन की स्वतन्त्रता का समर्थक रहा। यहाँ तक की 1947 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र फिलिस्तीन (उन्स्कोप) नामक संगठन का निर्माण किया परन्तु 1989 में कश्मीर में विवाद तथा सोवियत संघ के पतन तथा पाकिस्तान के गैर-कानूनी घुसपैठ के चलते राजनितिक परिवेश में परिवर्तन आया और भारत ने अपनी सोच बदलते हुए इज़राइल के साथ सम्बन्धों को मजबूत करने पर जोर दिया और 1992 से नया दौर आरम्भ हुआ। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पराजय के पश्चात भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आते ही भारत और इज़राइल के मध्य सहयोग बढ़ा और दोनों राजनितिक दलों की इस्लामी कट्टरपन्थ के प्रति एक जैसे मानसिकता होने के कारण से और मध्य पूर्व में यहूदी समर्थक नीति की वजह से भारत और इज़राइल के सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए। आज इज़राइल, रूस के बाद भारत का सबसे बड़ा सैनिक सहायक और निर्यातक है। सैनिक तथा कूटनीतिक सम्बन्ध भारत तथा इज़राइल में आतंकवाद के बढ़ने के साथ ही भारत तथा इज़राइल के सम्बन्ध भी मजबूत हुए। अब तक भारत ने इज़राइल के लगभग 8 सैन्य उपग्रहों को भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन के माध्यम से प्रक्षेपित किया है। कालक्रम 17 सितम्बर 1950: को भारत ने इज़राइल राष्ट्र को आधिकारिक तौर पर मान्यता प्रदान की। 1992: इज़राइल के साथ भारत के राजनयिक सम्बन्ध स्थापित हुए। प्रधानमन्त्री नरसिंह राव ने इज़राइल के साथ कूटनीतिक सम्बन्ध शुरू करने को मंजूरी दी। भूतपूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल अवधि में इज़राइल के साथ सम्बन्धों को नए आयाम तक पहुँचने की पुरजोर कोशिश की गयी। अटल बिहारी के प्रधानमन्त्री रहते हुए ही इज़राइल के तत्कालीन राष्ट्रपति एरियल शेरोन ने भारत की यात्रा की थी। वह यात्रा भी किसी इज़राइल राष्ट्रपति की पहली यात्रा थी। 2015: पहली बार भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का इज़राइल दौरा। जुलाई 2017: पहली बार भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की इज़राइल यात्रा। इतिहास गैर-मान्यता 1948-50 इज़राइल राज्य की स्थापना पर भारत की स्थिति कई कारकों से प्रभावित थी, जिसमें धार्मिक आधार पर भारत का अपना विभाजन और अन्य देशों के साथ भारत के संबंध शामिल थे। भारतीय स्वतंत्रता नेता महात्मा गांधी का मानना ​​था कि यहूदियों के पास इज़राइल के लिए एक अच्छा मामला और एक पूर्व दावा था, लेकिन धार्मिक [२०] [२३] या अनिवार्य शर्तों पर इज़राइल के निर्माण का विरोध किया। गांधी का मानना ​​था कि अरब फिलिस्तीन के असली कब्जेदार थे, और उनका विचार था कि यहूदियों को अपने मूल देशों में लौट जाना चाहिए। अल्बर्ट आइंस्टीन ने भारत को यहूदी राज्य की स्थापना का समर्थन करने के लिए मनाने के लिए 13 जून, 1947 को जवाहरलाल नेहरू को चार पन्नों का एक पत्र लिखा था। हालाँकि, नेहरू आइंस्टीन के अनुरोध को स्वीकार नहीं कर सके, और उनकी दुविधा को यह कहते हुए समझाया कि राष्ट्रीय नेताओं को "दुर्भाग्य से" ऐसी नीतियों का पालन करना पड़ता है जो "अनिवार्य रूप से स्वार्थी" हैं। भारत ने 1947 की फिलिस्तीन योजना के विभाजन के खिलाफ मतदान किया और 1949 में संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के प्रवेश के खिलाफ मतदान किया। अनौपचारिक मान्यता 1950-91 17 सितंबर 1950 को, भारत ने आधिकारिक तौर पर इज़राइल राज्य को मान्यता दी। भारत द्वारा इस्राइल को मान्यता दिए जाने के बाद, भारतीय प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा, "हमने [इसराइल को मान्यता दी है] बहुत पहले, क्योंकि इज़राइल एक सच्चाई है। हमने अरब देशों में अपने दोस्तों की भावनाओं को ठेस न पहुँचाने की अपनी इच्छा के कारण परहेज किया।" १९५३ में, इज़राइल को बॉम्बे (अब मुंबई) में एक वाणिज्य दूतावास खोलने की अनुमति दी गई थी। हालांकि, नेहरू सरकार इजरायल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंधों को आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी क्योंकि यह फिलिस्तीनी कारणों का समर्थन करती थी, और यह मानती थी कि इजरायल को नई दिल्ली में एक दूतावास खोलने की अनुमति देने से अरब दुनिया के साथ संबंध खराब होंगे। घनिष्ठता 1992–वर्तमान दशकों की गुटनिरपेक्ष और अरब-समर्थक नीति के बाद, भारत ने औपचारिक रूप से इज़राइल के साथ संबंध स्थापित किए जब उसने जनवरी 1992 में तेल अवीव में एक दूतावास खोला। दोनों देशों के बीच संबंध तब से फले-फूले हैं, मुख्य रूप से साझा रणनीतिक हितों और सुरक्षा खतरों के कारण। ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक को-ऑपरेशन (OIC) का गठन, जिसने कथित तौर पर भारतीय मुसलमानों की भावनाओं की उपेक्षा की, और पाकिस्तान द्वारा भारत को OIC में शामिल होने से रोकने को इस कूटनीतिक बदलाव का कारण माना जाता है। राजनयिक स्तर पर, दोनों देश फिलिस्तीनी क्षेत्रों में इजरायल की सैन्य कार्रवाइयों की भारत की बार-बार कड़ी निंदा के बावजूद स्वस्थ संबंध बनाए रखने में कामयाब रहे हैं, जो विश्लेषकों द्वारा भारत में मुस्लिम वोटों के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार की इच्छा से प्रेरित माना जाता है। . आधिकारिक दौरे मोदी की 2017 की इज़राइल यात्रा जुलाई 2017 में, नरेन्द्र मोदी इज़राइल का दौरा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमन्त्री बने। यह नोट किया गया था कि प्रधानमन्त्री मोदी यात्रा के दौरान फिलिस्तीन नहीं गए थे, सम्मेलन से टूट गए थे। केन्द्रीय मन्त्री राजनाथ सिंह के एकमात्र अपवाद के साथ, भारतीय मन्त्रियों और राष्ट्रपति मुखर्जी की पिछली यात्राओं में इज़राइल और फिलिस्तीन दोनों के दौरे शामिल थे। भारतीय मीडिया ने इस कदम को दोनों राज्यों के साथ भारत के सम्बन्धों का "निर्वनीकरण" बताया। एक व्यक्तिगत इशारे के रूप में, इज़राइल ने नरेन्द्र मोदी की यात्रा के एक नए प्रकार के गुलदाउदी फूल का नाम दिया। दोनों देशों के मीडिया हाउसों ने इस यात्रा को 'ऐतिहासिक' करार दिया था, जहाँ भारत ने आखिरकार इज़रायल के साथ अपने सम्बन्धों को मजबूत कर दिया था। यात्रा के दौरान, भारत और इज़राइल ने 7 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए, जो नीचे सूचीबद्ध हैं: भारत-इज़राइल औद्योगिक अनुसन्धान और विकास और तकनीकी नवाचार कोष (I4F) की स्थापना के लिए समझौता ज्ञापन भारत में जल संरक्षण के लिए समझौता ज्ञापन भारत में राज्य जल उपयोगिता सुधार पर समझौता ज्ञापन भारत-इज़राइल विकास सहयोग - कृषि 201820 में 3-वर्षीय कार्य कार्यक्रम परमाणु घड़ियों के सम्बन्ध में सहयोग की योजना GEO-LEO ऑप्टिकल लिंक में सहयोग के बारे में समझौता ज्ञापन लघु उपग्रहों के लिए इलेक्ट्रिक प्रणोदन में सहयोग के बारे में समझौ‌ता ज्ञापन भारत और इज़राइल ने भी एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, अपने द्विपक्षीय सम्बन्धों को एक 'रणनीतिक साझेदारी' में अपग्रेड किया। यात्रा के दौरान, प्रधानमन्त्री मोदी ने तेल अवीव में एक उच्च टेलीविज़न कार्यक्रम में इज़राइल में भारतीय प्रवासियों को भी सम्बोधित किया। अपनी मातृभूमि से भारतीय प्रवासियों के लिए एक भारतीय स्वागत का चित्रण करते हुए, उन्होंने प्रवासी भारतीय मूल के यहूदियों के लिए ओवरसीज सिटीजनशिप ऑफ़ इण्डिया कार्ड की घोषणा की, जिन्होंने इज़रायल की रक्षा सेना में अपनी अनिवार्य सैन्य सेवा पूरी की थी और तेल अविव में एक प्रमुख भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र के निर्माण का भी वादा किया था। मोदी ने उत्तरी इज़रायल के शहर हाइफा का भी दौरा किया, जहाँ उन्होंने भारतीय सेना के उन भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि दी, जो हाइफा की लड़ाई में यहूदी भूमि को बचाने के लिए गिर गए थे, और मेजर दलपत सिंह के दृढ़ सैन्य नेतृत्व की प्रशंसा करते हुए एक विशेष पट्टिका का अनावरण किया था, जो ओटोमन साम्राज्य से प्राचीन शहर को मुक्त कराया। नेतन्याहू की 2018 की भारत यात्रा जनवरी में, भारतीय-इज़रायल सम्बन्धों के 25 वर्ष पूरे होने के अवसर पर, इज़रायल के प्रधानमन्त्री, बेंजामिन नेतन्याहू की भारत में एक उच्च टेलीविज़न यात्रा हुई, जिसके दौरान नेतन्याहू और भारत के प्रधानमन्त्री मोदी दोनों ने आपसी विवादों का आदान-प्रदान किया। यह यात्रा एरियल शेरोन की 2003 की भारत यात्रा के बाद पहली थी। नेतन्याहू, 130 सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल के साथ, अब तक के सबसे बड़े इजरायल प्रीमियर के साथ, तीन वर्षों में भारत को निर्यात में 25 प्रतिशत की वृद्धि करना चाहते है। इज़रायल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यात्रा से पहले कहा था कि इजराइल ने पर्यटन, प्रौद्योगिकी, कृषि और नवाचार जैसे क्षेत्रों में 68.6 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। इस यात्रा के दौरान, एक आधिकारिक स्मरणोत्सव समारोह हुआ, जिसमें प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हाइफा की लड़ाई में मारे गए भारतीय सैनिकों को सम्मानित किया गया, जहाँ हैदराबाद, जोधपुर और मैसूर लांसर का प्रतिनिधित्व करने वाले 'तीन मूर्ति चौक' का नाम बदलकर 'तीन भारती हाइफा चौक' रखा गया। इज़रायल के प्रधानमन्त्री की आधिकारिक यात्रा के दौरान, दोनों देशों ने सायबर सुरक्षा, तेल और गैस उत्पादन, वायु परिवहन, होम्योपैथिक चिकित्सा, फिल्म निर्माण, अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में 9 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए, उन्होंने बॉलीवुड फिल्म उद्योग के प्रमुखों के साथ मुलाकात भी की। नेतन्याहू की भारतीय यात्रा में दिल्ली के लिए राफ़ेल मिसाइलों को पुनर्जीवित करने का प्रयास भी शामिल था। नेतन्याहू को गेस्ट ऑफ़ ऑनर भी मिला था, और भारत के वार्षिक रणनीतिक और राजनयिक सम्मेलन, रायसीना डायलॉग में उद्घाटन भाषण दिया, जहाँ उन्होंने उच्च तकनीक और नवाचार आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में इजरायल की सफलता की कहानी के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला, और चुनौतियों के बारे में भी बताया मध्य पूर्व, भारत के साथ अपने देश के सम्बन्धों के भविष्य के लिए आशा और आशावाद व्यक्त करते हुए। उनके सम्मेलन में शामिल होने वाले उल्लेखनीय नेताओं में नरेन्द्र मोदी, सुषमा स्वराज, अफ़गानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई, भारतीय राज्यमन्त्री एम॰ जे॰ अकबर और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नेता शशि थरूर शामिल थे। नेतन्याहू के बेटे यायर नेतन्याहू को भारतीय राज्य की यात्रा पर इज़रायल प्रीमियर के साथ जाना था, लेकिन केवल एक हफ्ते पहले यायर की निजी यात्रा के बारे में एक स्ट्रिप क्लब में अपने दोस्तों के साथ एक निन्दनीय रिकॉर्डिंग पर जाने के लिए इज़रायल टेलीविजन चैनल मुख्य प्रसारण पर खुलासा किया गया था। सैन्य और रणनीतिक सम्बन्ध नई दिल्ली ने इज़राइल के रक्षा उद्योग में हथियारों का एक उपयोगी स्रोत पाया, एक जो इसे उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकी के साथ आपूर्ति कर सकता था। इस तरह एक हथियार बनाने वाले व्यापार का आधार स्थापित किया गया, जो 2016 में लगभग $ 60 करोड़ तक पहुँच गया, जिससे रूस के बाद इजरायल भारत के लिए रक्षा उपकरणों का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत बन गया। भारत और इज़राइल ने राजनयिक सम्बन्धों की स्थापना के बाद से सैन्य और खुफिया उद्यमों में सहयोग बढ़ाया है। दोनों राष्ट्रों में इस्लामी चरमपन्थी आतंकवाद के उदय ने दोनों के बीच एक मजबूत रणनीतिक गठबन्धन उत्पन्न किया है। by Martin Sherman,The Jewish Institute for National Security Affairs</ref> 2008 में, भारत ने अपने भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन के माध्यम से इज़रायल के लिए एक सैन्य उपग्रह टेकसार को लॉन्च किया। 1996 में, भारत ने इज़राइल से 32 IAI खोजकर्ता मानवरहित हवाई वाहन (UAV), इलेक्ट्रॉनिक समर्थन उपाय सेंसर और एक एयर कॉम्बैट Manoeuvering इंस्ट्रूमेंटेशन सिम्युलेटर सिस्टम खरीदा। तब से इज़राइल एयरोस्पेस इण्डस्ट्रीज (IAI) ने भारतीय वायु सेना के साथ कई बड़े अनुबन्ध किए हैं, जिसमें IAF के रूसी निर्मित मिग -21 ग्राउण्ड अटैक एयरक्राफ्ट का उन्नयन और मानव रहित हवाई वाहनों के साथ-साथ लेजर-निर्देशित बमों की बिक्री भी शामिल है।,The Jewish Institute for National Security Affairs</ref> 1997 में, इज़राइल के राष्ट्रपति एज़र वीज़मैन भारत का दौरा करने वाले यहूदी राज्य के पहले प्रमुख बने। उन्होंने भारतीय राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, उपराष्ट्रपति के॰ आर॰ नारायणन और प्रधानमन्त्री एच॰ डी॰ देवेगौड़ा के साथ मुलाकात की। वेइज़मैन ने दोनों देशों के बीच पहले हथियारों के सौदे पर बातचीत की, जिसमें बराक 1 को इज़रायल से खड़ी सतह से हवा (एसएएम) मिसाइलों की खरीद शामिल थी। बराक -1 में हार्पून जैसी जहाज रोधी मिसाइलों को रोकने की क्षमता है।<ref name="JINSA03"> इन्हें भी देखें भारत-फिलिस्तीन के संबंध सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ साझे की सफल फसल भारत-इजराइल संबंध (नमस्ते इजराइल) इजराइल का बढ़ता वैश्विक प्रभुत्व (चौथी दुनिया) Israeli Prez in India: 5 things you should know about the bilateral relations भारत और इजराइल के बीच बढ़ते संबंध भारत का कितना बड़ा मददगार है इसराइल? (जनवरी २०१६) नए आयाम पर पहुंचा भारत-इजरायल संबंध, दोनों के बीच हुए 7 अहम समझौते (जुलाई २०१७) भारत के द्विपक्षीय संबंध इज़राइल
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A8%20%E0%A4%85%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8B
केविन अविनो
केविन अविनो (जन्म 6 जून 1997) युगांडा की एक महिला क्रिकेटर हैं। जुलाई 2018 में, उन्हें 2018 आईसीसी महिला विश्व ट्वेंटी 20 क्वालीफायर टूर्नामेंट के लिए युगांडा की टीम में नामित किया गया था। उन्हें टीम के लिए कप्तान के रूप में चुना गया था। अप्रैल 2019 में, उन्हें जिम्बाब्वे में 2019 आईसीसी महिला क्वालीफायर अफ्रीका टूर्नामेंट के लिए युगांडा के दस्ते के कप्तान के रूप में नामित किया गया था। सन्दर्भ 1997 में जन्मे लोग जीवित लोग
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प्रमोद मुथालिक
प्रमोद मुथालिक (जन्म: १९६३) श्री राम सेना नमक हिन्दूवादी संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जीवन परिचय उत्तर कर्नाटक के बगलकोट में जन्मे मुथालिक ने अपने शुरुआती दिन हिंदू दक्षिणपंथी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ गुजारे. वे 13 साल की उम्र से ही शाखा जाने लगे थे। 1996 में आरएसएस में उनके वरिष्ठो ने मुथालिक को अपने सहयोगी संगठन बजरंग दल में भेज दिया। दल का दक्षिण भारत का संयोजक बनने में मुथालिक को एक साल से भी कम समय लगा। मुथालिक को जानने वाले इन्हें महत्वाकांक्षी, समर्पित और तीखा वक्ता कहते हैं। आरएसएस और इसके दूसरे संगठनों के साथ अपने 23 साल के जुड़ाव में मुथालिक का कई बार कानून से आमना-सामना हुआ और अपने ऊपर लगे भड़काऊ भाषण देने के आरोपों के चलते इनको कई बार जेल भी जाना पड़ा। हिंदुत्व के प्रति उसके तथाकथित समर्पण का जब इन्हें कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिला तो 2004 में उसने आरएसएस से अपना नाता तोड़ लिया। इन्होने दावा किया कि आरएसएस और इससे जुड़े अन्य संगठन पर्याप्त सख्ती न अपनाकर हिंदू हितों से गद्दारी कर रहे हैं। इसके बाद यह अपेक्षित ही था कि 2007 में स्थापना के बाद से ही अत्यंत कट्टर हिंदुत्व की राजनीति श्री राम सेना की पहचान बन गई। मुथालिक कहते हैं कि हिंसा ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है। राजनीति के केंद्रीय रंगमंच पर आने की कोशिश में 2008 में मुथालिक ने राष्ट्रीय हिंदुत्व सेना का गठन किया, जो श्री राम सेना का राजनीतिक धड़ा है। लेकिन यह बुरी तरह से नाकाम रही। चुनाव लड़ने वाला इसका कोई भी उम्मीदवार अपनी मौजूदगी तक दर्ज नहीं करा सका। तहलका नामक समाचार पत्र से बात करते हुए मुथालिक ने कैमरे के सामने यह स्वीकार किया कि उसके उम्मीदवार राज्य चुनाव इसलिए हार गए क्योंकि 'हमें कामयाब होने के लिए पैसा, धर्म और ठगों की जरूरत है। हमें यह पता नहीं था। आज की राजनीतिक स्थिति बदतर हो गई है।' चुनावी राजनीति में फिर से लौटने की कोशिश के फेर में मुथालिक और श्री राम सेना ने और अधिक कट्टर रुख अपनाते हुए 'हिंदू' पहचान को मजबूती देने की योजनाओं के एक सिलसिले की शुरुआत की। हालांकि इस संगठन का मजबूत आधार तटीय और उत्तर कर्नाटक के कुछ इलाकों में है, लेकिन इसकी गतिविधियां इन्हीं इलाकों तक सीमित नहीं हैं। 24 अगस्त 2008 को दिल्ली में श्री राम सेना के कुछ सदस्य सहमत नामक एनजीओ द्वारा आयोजित एक कला प्रदर्शनी में घुस गए और एमएफ हुसैन की अनेक तसवीरों को नष्ट कर दिया। एक माह बाद सितंबर में मंगलौर में एक सार्वजनिक सभा में बोलते हुए मुथालिक ने बैंगलोर बम धमाकों का जिक्र किया, और यह घोषणा की कि सेना के 700 सदस्य आत्मघाती हमले करने के लिए प्रशिक्षण ले रहे थे। उसने घोषणा की, 'अब हमारे पास और धैर्य नहीं है। हिंदुत्व को बचाने के लिए जैसे को तैसा का ही एकमात्र मंत्र हमारे पास बचा है। अगर हिंदुओं के धार्मिक महत्व के स्थलों को निशाना बनाया गया तो विरोधियों को कुचल दिया जाएगा। अगर हिंदू लड़कियों का दूसरे धर्म के लड़कों द्वारा इस्तेमाल किया जाएगा तो अन्य धर्मों की दोगुनी लड़कियों को निशाना बनाया जाएगा।' सन 2014 में में वे भारतीय जनता पार्टी नाम के रजनैतिक दल से जुड़े थे लेकिन तुरंत बाद ही उन्हें उस पार्टी से निष्काषित कर दिया गया था। सन्दर्भ 1963 में जन्मे लोग राजनीतिज्ञ जीवित लोग
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रामचन्द्र लाल
रामचन्द्र लाल रामचन्द्र लाल (1821 – 1880) एक भारतीय गणितज्ञ थे। उनकी पुस्तक 'ट्रीटाइज ऑन प्रॉबुलेम्स ऑफ मैक्सिमा ऐण्ड मिनिमा' (Treatise on Problems of Maxima and Minima) को प्रसिद्ध गणितज्ञ आगस्तस डी मॉर्गन ने प्रचारित-प्रसारित किया। रामचन्द्र लाल का जन्म पानीपत में 1821 में हुआ था। इनके पिता राय सुंदर लाल कायस्थ पानीपत के नायब तहसीलदार थे। शिक्षा दिल्ली कालेज से प्राप्त की। वही प्रोफेसर बन गए। दिल्ली से 1846 में एक पत्रिका प्रकाशित की। अपने एक मित्र के साथ ईसाई धर्म अपना लिया। 1857 में थामसन इंजीनियरिंग कालेज रुड़की (वर्तमान आई आई टी रूड़की) के हेडमास्टर बन गए। गणितज्ञ होने के नाते गणित विषय पर किताब लिखी। बाद में पटियाला रियासत में शिक्षा मंत्री (दीवान ) बन गए। वहां कालेज की स्थापना करवाई। भारतीय गणितज्ञ 1821 में जन्मे लोग १८८० में निधन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%81%20%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8
किनाबालु उद्यान
किनाबालु उद्यान (मलय: तामन किनाबालु) 1964 में मलेशिया के पहले राष्ट्रीय उद्यानों में से एक के रूप में स्थापित राष्ट्रीय उद्यान है। यह मलेशिया की पहली विश्व धरोहर स्थल है जो दिसंबर 2000 में युनेस्को द्वारा अपने "उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्यों" के लिए नामित है और 326 पक्षी प्रजातियों और लगभग 100 स्तनपायी प्रजातियों और 110 से अधिक भूमि घोंघा प्रजातियों सहित वनस्पतियों और जीवों की 4,500 से अधिक प्रजातियों के साथ दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण जैविक साइटों में से एक है। मलेशियाई बोर्नियो के साबाह राज्य में यह पहला उद्यान है। साबाह के पश्चिमी तट पर स्थित यह उद्यान माउंट किनाबालु के आस-पास 754 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करता है। उद्यान सामान्य रूप से साबाह और मलेशिया में सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। 1967 में 987,653 से अधिक आगंतुक और 43,430 से अधिक पर्वतारोहियों ने उद्यान का दौरा किया। इतिहास इस क्षेत्र को 1964 में राष्ट्रीय उद्यान के रूप में नामित किया गया था। ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासक और प्रकृतिवादी ह्यूग लो ने 1851 में तुरेन से इस क्षेत्र में एक अभियान का नेतृत्व किया। वह माउंट किनाबालु की चोटी तक पहुंचने वाले पहले रिकॉर्ड किए गए व्यक्ति भी बने। पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी को बाद में उसके नाम पर रखा गया - लो का पीक। भूगोल किनाबालु उद्यान साबाह के पश्चिमी तट पर क्रॉकर रेंज पर स्थित है। उद्यान को क्रॉकर रेंज राष्ट्रीय उद्यान के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए जो दक्षिण में एक अलग उद्यान है। उद्यान विभिन्न पक्षियों, कीड़ों, स्तनधारियों, उभयचर, और सरीसृपों के मेजबान भी बजाता है। प्रशासन और उद्यान की विशेषताएं पार्क मुख्यालय कोटा किनाबालु शहर से 88 किलोमीटर दूर है। यह 1,563 मीटर (5,128 फीट) की ऊंचाई पर, किनाबालु पार्क की दक्षिणी सीमा पर स्थित है। यह उद्यान साबाह उद्यान नामक संगठन द्वारा प्रशासित है। पर्वत शिखर निशान टिम्पोहन में शुरू होता है। मेसिलौ ट्रेल नामक एक वैकल्पिक मार्ग भी है। उद्यान की एक उल्लेखनीय विशेषता लो गुली है। गैलरी संदर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%97%E0%A4%B5%E0%A4%A6%20%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A4
भगवद मुदित
भगवत मुदित का समय संवत् 1630 तथा सं. 1720 वि. के मध्य में था। यह आगरा में शुजाअ के दीवान थे और वहाँ से विरक्त होकर वृंदावन में आ बसे थे। इन्हें हित संप्रदाय के भक्तों का भी सत्संग प्राप्त था और इन्होंने इस संप्रदाय के 35 भक्तों का चरित्र रसिक अनन्यमाल में ग्रंथित किया है। प्रबोधानंद सरस्वती के अनेक वृंदावन शतकों में से एक का इन्होंने पद्यानुवाद किया है, जो संवत् 1707 की रचना है। इनके दो सौ सात स्फुट पद अब तक मिले हैं। यह भी चैतन्य संप्रदाय के राधारमणी वैष्णव थे। इनके पिता माधव मुदित चैतन्य संप्रदाय के भक्त सुकवि तथा आगरा के निवासी थे। सन्दर्भ भक्त कवि
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उत्तराखण्ड के राज्यपालों की सूची
उत्तराखण्ड के राज्यपाल भारत के उत्तराखण्ड राज्य के राज्यपाल को कहते हैं। उत्तराखण्ड के राज्यपाल का आधिकारिक आवास राजभवन है, जो राज्य की राजधानी देहरादून में स्थित है। उत्तराखण्ड के राज्यपालों की सूची ९ नवम्बर २००० को राज्य स्थापना से लेकर अब तक हुए राज्यपालों की सूची इस प्रकार है: {| class="wikitable" | # | नाम | पद ग्रहण | पद छोड़ा |- | 1 | सुरजीत सिंह बरनाला | ९ नवम्बर २००० | ७ जनवरी २००३ |- | 2 | सुदर्शन अग्रवाल | ८ जनवरी २००३ | २८ अक्टूबर २००७ |- | 3 | बनवारी लाल जोशी | २९ अक्टूबर २००७ | ५ अगस्त २००९ |- | 4 | मार्गरेट अल्वा | ६ अगस्त २००९ | १४ मई २०१२ |- | 5 | अज़ीज़ कुरैशी | १५ मई २०१२ | ८ जनवरी २०१५ |- | 6 | कृष्ण कांत पॉल | ८ जनवरी २०१५ | २५ अगस्त २०१८ |- | 7 | बेबी रानी मौर्य | 26 अगस्त 2018 | 26 अगस्त 2018 | 08 सितंबर 2021 |- | 8 | लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह | 09-09-2021 | अबतक |- उत्तराखण्ड के राज्यपालों की सूची 9 नवंबर 2000 को अपनी स्थापना के बाद से उत्तराखंड के राज्यपालों की सूची निम्नलिखित है:- इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के मुख्यमन्त्री उत्तराखण्ड बारह कड़ी सन्दर्भ उत्तराखण्ड के राज्यपाल राज्यपाल
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6
बद्रीनाथ प्रसाद
बद्रीनाथ प्रसाद (१२ जनवरी १८९९ - १८ जनवरी १९६६) भारत के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ एवं शिक्षाशास्त्री थे। उन्हे साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६३ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। जीवनी बद्रीनाथ प्रसाद का जन्म 12 जनवरी 1899 ई. को जिला आजमगढ़ के मुहम्मदाबाद गोहना ग्राम के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। इनकी पढ़ाई अपने ग्राम मुहम्मदाबाद, सीवान (सारन), पटना और वाराणसी में हुई। पटना विश्वविद्यालय से सन् 1919 में बी. एस-सी. उतीर्ण कर इन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में एम. एस-सी. की उपाधि प्राप्त की। लिवरपूल विश्वविद्यालय से 1931 ई. में पी-एच. डी. की और 1932 ई. में पैरिस विश्वविद्यालय से स्टेट डी. एस-सी. की उपाधि प्राप्त की। लिवरपूल और पेरिस विश्वविद्यालयों में सुप्रसिद्ध गणितज्ञों के अधीन इन्होंने अध्ययन और अनुसंधान कार्य संपन्न किया था। ये हिंदू विश्वविद्यालय में सुप्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ डॉ॰ गणेश प्रसाद के प्रिय शिष्यों में से थे और उनके अधीन इन्होंने वास्तविक चरवाले फलनों के सिद्धांतों तथा श्रेणियों, विशेषतया फूर्यें श्रेणी, तथा उनसे संबद्ध अन्य श्रेणियों की, आकलनीयता पर गवेषणा की। इंग्लैंड में अपने एक प्रोफेसर के साथ आबेल आकलनीयता की निरपेक्ष विधि ज्ञात करने तथा उपयोग करने का सम्मान बँटाने का श्रेय प्राप्त किया। दो वर्ष (1922-24) तक हिंदू विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहने के पश्चात् ये जुलाई, 1924 ई. में इलाहाबाद विश्वविद्यालय चले गए, जहाँ लेक्चरर, रीडर, प्रोफेसर तथा गणित विभाग के अध्यक्ष पद पर रहे। बीच में दो वर्षों के लिए ये पटना कालेज में भी गणित के प्रोफेसर तथा अध्यक्ष पद पर चले गए थे। इन्होंने भारत के बाहर अनेक देशों की यात्रा की थी। विज्ञान के नैशनल इंस्टिट्यूट तथा नैशनल एकेडेमी के ये पुराने फेलो थे। इंडियन मैथेमैटिकल सोसायटी और विज्ञान परिषद के अध्यक्ष थे। भारतीय विज्ञान कांग्रेस के पुराने सदस्य और उत्साही कार्यकर्ता थे। 1945 ई. में गणित तथा सांख्यिकी अनुभाग की अध्यक्षता भी आपने की थी। भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 53वें अधिवेशन (1965) के प्रधान अध्यक्ष रहे। भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण की उपाधि से 1963 ई. में विभूषित किया था और 1964 ई. में संसद् राज्य सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। 18 जनवरी 1966 ई. को हृदयगति बंद हो जाने से आपकी सहसा मृत्यु हो गई। १९६३ पद्म भूषण
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उटंगन नदी
उटंगन नदी (Utangan River), जो गम्भीर नदी (Gambhir River) भी कहलाती है, भारत के राजस्थान व उत्तर प्रदेश राज्यों में बहने वाली एक नदी है। यह राजस्थान में करौली ज़िले में अरावली पहाड़ियों में उत्पन्न होती है। धौलपुर ज़िले में इसका कुछ भाग राजस्थान व उत्तर प्रदेश की राज्य सीमा निर्धारित करता है। यह नदी केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को पानी प्रदान करती है और अंत में जाकर यमुना नदी में विलय हो जाती है। इसका कुल मार्ग 288 किमी है। इन्हें भी देखें करौली ज़िला केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान सन्दर्भ राजस्थान की नदियाँ उत्तर प्रदेश की नदियाँ धौलपुर ज़िला करौली ज़िला
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%81%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%81
जुड़वाँ
एक ही गर्भावस्था के दौरान पैदा होने वाली दो संतानों को जुड़वां कहते हैं। जुड़वां या तो एक जैसे हो सकते हैं (वैज्ञानिक भाषा में, "एकयुग्मनज/मोनोज़ाईगोटिक"), जिसका अर्थ है कि वे एक ही युग्मनज से पनपे हैं जो विभाजित होता है और दो भ्रूणों का रूप ले लेता है, या भ्रात्रिक ("द्वियुग्मनज/डाईज़ाईगोटिक") हो सकते हैं क्योंकि वे दो अलग अलग अंडो में दो विभिन्न शुक्राणुओं द्वारा निषेचित होते हैं। इसके विपरीत, एक भ्रूण जो गर्भ में अकेले विकसित होता है उसको सिंगलटन कहा जाता है और एक साथ जन्मी एकाधिक संतानों में से एक को मल्टीपल कहा जाता है। सैद्धांतिक रूप से ऐसा संभव है कि दो सिंगलटन एक समान हों यदि मां और पिता के दोनों गेमेट के सभी 23 गुणसूत्र एक जन्म से अगले जन्म तक सटीक रूप से मिलते हों. जबकि प्राकृतिक परिस्थितियों में ऐसा होना सांख्यिकीय रूप से असंभव है (एक अरब-अरब-अरब में किसी एक से कम), किसी दिन एक नियंत्रित संसर्ग संभव हो सकता है। एक कम जटिल उपाय क्लोनिंग प्रक्रिया के माध्यम से आनुवंशिक रूप से समान संतानों का निर्माण करना है, एक प्रक्रिया जिसे स्तनधारियों की कई प्रजातियों पर सफलतापूर्वक आजमाया जा चुका है। जुड़वा बच्चों की पहचान करने के लिए एंटीबायोटिक नामक टेस्ट का प्रयोग किया जाता है आंकड़े (सांख्यिकी) ऐसा अनुमान है कि दुनिया की आबादी का लगभग 1.9% भाग जुड़वां बच्चे हैं, जिनमे से एकयुग्मनज/मोनोजाइगोटिक जुड़वां कुल आबादी के 0.2% - और सभी जुड़वाओं के 8% हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में जुड़वां जन्म दर प्रति 1000 जीवित जन्मों में से 32 जुड़वां जन्मों से थोड़ा ऊपर है, जबकि प्रति 1000 जीवित जन्मों में से 45 जुड़वां जन्मों के साथ पूरी दुनिया में जुड़वां बच्चों की सर्वाधिक दर योरुबा में है, जिसका कारण संभवतः एक विशिष्ट प्रकार के जिमीकंद का उच्च सेवन है, जिसमें एक प्रकार का प्राकृतिक फाइटोईस्ट्रोजन होता है, जो प्रत्येक पक्ष के अंडाशय को अंडे छोड़ने के लिए उत्तेजित कर सकता है। मां के गर्भ के सीमित आकार के कारण, एक से अधिक गर्भावस्थाओं की पूरी अवधि तक रहने की संभावना एकाकी गर्भावस्था की तुलना में बहुत ही कम होती है, जिसके कारण जुड़वां गर्भावस्था की औसत अवधि केवल 37 सप्ताह रह होती है (पूर्ण अवधि से 3 सप्ताह कम). युग्मनजता युग्मनजता जुड़वां बच्चों के जीनोम की समानता का स्तर है। युग्म बनाने के पांच आम प्रकारान्तर हैं। तीन सबसे आम प्रकारों में सभी भ्रात्रिक हैं (द्वियुग्मनज/डाईज़ाईगोटिक): सबसे आम परिणाम पुरुष-महिला जुड़वां होते हैं, भ्रात्रिक जुड़वां तथा जुड़वाओं के सर्वाधिक आम समूह का 50 प्रतिशत. महिला-महिला भ्रात्रिक जुड़वां (कभी कभी इन्हें "सोरोरल जुड़वां" कहते हैं) पुरुष-पुरुष भ्रात्रिक जुड़वां अन्य दो प्रकार समान जुड़वां (एकयुग्मनज/मोनोज़ाईगोटिक) हैं: महिला-महिला समान जुड़वां पुरुष-पुरुष समान जुड़वां (सामान्यतः ऐसा बहुत कम होता है) गैर-जुड़वां जन्मों में, पुरुष सिंगलटनों का होना महिला सिंगलटनों की तुलना में थोड़ा (लगभग पांच प्रतिशत) अधिक आम है। सिंगलटन की दर हर देश में थोड़ी अलग है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में जन्म का लिंग अनुपात 1.05 पुरुष/महिला है, जबकि इटली में यह 1.07 पुरुष/महिला है। हालांकि, मादाओं की अपेक्षा नर गर्भ में मृत्यु के प्रति अधिक संवेदनशील भी होते हैं तथा चूंकि जुड़वांओं की गर्भ में मृत्यु दर अधिक है, इसके परिणामस्वरूप नर जुड़वांओं की तुलना में मादा जुड़वांओं का अधिक होना आम है। आपसी (द्वियुग्मनज) जुड़वां सहोदर या द्वियुग्मनज (DZ) जुड़वां (कभी कभी "भिन्न जुड़वां", "असमान जुड़वां", बाइओव्लयूर जुड़वां" भी कहा जाता है और महिलाओं की स्थिति में, कभी-कभी सोरोरल जुड़वां कहा जाता है) आमतौर पर तब पैदा होते हैं जब एक ही समय में गर्भाशय की दीवारों पर दो निषेचित अंडे प्रत्यारोपित होते हैं। जब दो अंडे स्वतंत्र रूप से दो भिन्न शुक्राणुओं द्वारा निषेचित होते हैं तो परिणामस्वरूप दो आपसी जुड़वां पैदा होते हैं। दो अंडे, या ओवा, दो युग्मनज बनाते हैं, इसलिए उन्हें द्वियुग्मनज और बाइओव्लयूर कहते हैं। किन्ही भी अन्य भाई बहनों की तरह, आपसी जुड़वाओं का एक ही गुणसूत्र प्रारूप होने की बहुत कम सम्भावना होती है। किन्हीं अन्य सहोदरों की भांति भ्रात्रिक जुड़वां समान दिख सकते हैं, विशेषकर इसलिए क्योंकि उनकी आयु समान होती है। हालांकि, आपसी जुड़वां एक दूसरे से बहुत अलग भी दिख सकते है। वे विभिन्न लिंगों या एक ही लिंग के हो सकते है। एक ही माता पिता से हुए भाइयों और बहनों के लिए भी यही सच है, जिसका अर्थ है कि भ्रात्रिक जुड़वां केवल भाई और/या बहिनें हैं, जो एक ही आयु के हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि आपसी जुड़वां बच्चे पैदा होने का एक आनुवंशिक आधार है। हालांकि, यह केवल मां होती है, जिसका भ्रात्रिक जुड़वां होने की संभावना पर प्रभाव होता है; ऐसी कोई ज्ञात प्रक्रिया नहीं है जिसके द्वारा एक पिता एक से अधिक डिंबों के मुक्त होने का कारक बन सके। द्वियुग्मनज जुड़वां होने की दर जापान में छः प्रति हजार जन्म (एकयुग्मनज जुड़वां की दर के समान) से लेकर कुछ अफ्रीकी देशों में 14 और अधिक प्रति हजार तक है। अधिक आयु की माताओं में भी भ्रात्रिक जुड़वां अधिक होते हैं, क्योंकि 35 से अधिक आयु की माताओं में जुड़वां की दर दोगुनी होती है। महिलाओं को गर्भवती होने में सहायता करने के लिए प्रौद्योगिकी और तकनीकों के अविष्कार के साथ, आपसी जुड़वां बच्चों की दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए, न्यूयॉर्क शहर के ऊपरी ईस्ट छोर में 1995 में 3,707, 2003 में 4153 और 2004 में 4,655 जुड़वाओं का जन्म हुआ था। 1995 में 60 से 2004 में 299 तक ट्रिप्लेट (तिकड़ी) जन्मों में भी बढ़ोतरी हुई है। समान (एकयुग्मनज/मोनोज़ाईगोटिक) जुड़वां समान या एकयुग्मनज/मोनोज़ाईगोटिक (MZ) जुड़वां तब होते हैं जब एक अंडा एक युग्मनज को बनाने के लिए निषेचित होता है (इसलिए "एकयुग्मनज/मोनोज़ाईगोटिक") जो बाद में दो भिन्न भ्रूणों में विभाजित हो जाता है। एक अनुमान के अनुसार आज दुनिया भर में एक करोड़ समान जुड़वां और ट्रिप्लेट हैं। क्रियाविधि सहज या प्राकृतिक एकयुग्मज युग्म के बारे में, हाल का एक सिद्धांत मानता है कि एकयुग्मज जुड़वां तब होते हैं जब एक बीजगुहा अनिवार्य रूप से टूट जाता है और प्रजनक कोशिकाएं आधी-आधी विभाजित होकर (जिनमें शरीर की मूल अनुवांशिकी पदार्थ होता है) सामान अनुवांशिक पदार्थ को विभाजित कर भ्रूण के दोनों ओर विपरीत पक्षों में छोड़ देती हैं। आखिरकार, दो अलग अलग भ्रूण विकसित होते हैं। युग्मनज का दो भ्रूणों में सहज विभाजन एक वंशगत विशेषता नहीं बल्कि एक सहज या यादृच्छिक घटना कहलाता है। एकयुग्मज जुड़वा बच्चों को भ्रूण के विखंडन द्वारा कृत्रिम रूप से भी बनाया जा सकता है। इसका आईवीएफ के विस्तार के रूप में भ्रूण स्थानांतरण के लिए भ्रूणों की संख्या बढाने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। विस्तार एकयुग्मज जुड़वां, दुनिया भर में लगभग तीन प्रति 1000 प्रसव की दर से बनते हैं। एक निषेचन से समान जुड़वां होने की संभावना दुनिया भर की आबादी में समान रूप से वितरित है। यह भ्रात्रिक जुड़वां बच्चों की संभावना के विपरीत है जो जापान में छः प्रति एक हज़ार जन्म (लगभग समान जुडवाओं की दर के सामान, जो 4-5 के आसपास है) से 15 और भारत के कुछ भागों में 15 और अधिक प्रति हज़ार और अमेरिका में 24 तक है, जिसका प्रमुख कारण मुख्य रूप से आईवीएफ (कृत्रिम परिवेशी निषेचन/इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) हो सकता है। एक युग्मनज का दो भ्रूणों में बंटने का निश्चित कारण अज्ञात है। कृत्रिम परिवेशी निषेचन तकनीकों से जुड़वां बनने की सम्भावना अधिक होती है। प्रति 1000 प्रसव में से प्राकृतिक गर्भाधान से केवल तीन जोड़े जुड़वां प्रति हजार प्रसव होते हैं, जबकि आईवीएफ प्रसव में प्रति 1000 लगभग 21 जुड़वाओं के जोड़े जन्म लेते हैं। आनुवंशिक और पश्चजनन सम्बन्धी समानता एकयुग्मज जुड़वां आनुवंशिक रूप से समान होते हैं (जब तक विकास के दौरान परिवर्तन नहीं हुआ है) और वे लगभग हमेशा ही एक लिंग के होते हैं। दुर्लभ अवसरों पर, जुड़वां अलग लक्षण व्यक्त कर सकते हैं (आमतौर पर पर्यावरणीय कारक या महिला समान जुड़वां बच्चों के गुणसूत्रों में एक्स क्रियाशीलता के कम होने के कारण) और कुछ अत्यंत दुर्लभ मामलों में, असामान्य संख्या में गुणसूत्रों के कारण, जुड़वां विभिन्न प्रकार के यौन लक्षण व्यक्त कर सकते हैं, जो कि आम तौर पर एक XXY क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम के कारण युग्मनज के असमान रूप से विभाजित होने के कारण होता है। वास्तव में समान जुड़वाओं में डीएनए लगभग समान होता है और बदलता पर्यावरण जीवन भर उन जीनों पर प्रभाव डालता है जो बंद या चालू होते हैं। इसे पश्चजनन सम्बन्धी रूपांतरण कहा जाता है। तीन साल से 74 की उम्र तक 80 मानव जुड़वा जोड़ों के अध्ययन से पता चला कि कम उम्र के जुड़वाओं में अपेक्षाकृत कुछ कम पश्चजनन सम्बन्धी मतभेद हैं। पश्चजनन सम्बन्धी मतभेदों की संख्या समान जुड़वा बच्चों में उम्र के साथ बढ़ जाती है। पचास वर्षीय जुड़वाओं में तीन वर्षीय जुड़वों से तीन गुना अधिक पश्चजनन सम्बन्धी मतभेद थे। जिन जुड़वां बच्चों ने अलग जीवन बिताया था (उनके जन्म के समय अलग अलग माता पिता द्वारा अपनाये गए) उनमें सबसे अधिक अंतर थे। हालांकि, कुछ लक्षण उम्र बढ़ने के साथ एक जैसे हो जाते हैं, जैसे कि बौद्धिक स्तर और व्यक्तित्व. यह घटना मानवीय विशेषताओं और व्यवहार के कई पहलुओं पर आनुवंशिकी के प्रभाव को दिखाती है। लक्षणों में समानता समान जुड़वां लगभग हमेशा एक ही लिंग के होते हैं और उनके लक्षण और शारीरिक रूप भी बहुत हद तक समान होते हैं पर बिलकुल सामान नहीं होते. एकयुग्मज जुड़वां एक जैसे दिखते हैं, हालांकि उनके फिंगरप्रिंट एक जैसे नहीं होते (जो पर्यावरणीय और अनुवांशिक हैं). परिपक्व होने पर, समान जुड़वां बच्चों में अक्सर अलग जीवन शैली विकल्पों या बाहरी प्रभावों के कारण समानता कम हो जाती है। समान जुड़वां भाइयों के बच्चे आनुवंशिक परीक्षण में चचेरे भाई के बजाय आधे भाई बहन होते हैं। अर्ध-समान जुड़वां अर्ध समान या अर्द्ध-समान जुड़वां ("अर्ध जुड़वां" भी कहा जाता है") जुड़वां बच्चों का एक अत्यंत दुर्लभ प्रकार हैं, जिसमें जुड़वां अपनी मां से समान किन्तु पिता से अलग अलग जीन ग्रहण करते हैं। हालांकि अर्ध-समान जुड़वाओं का उदाहरण पाया गया है, उनकी अवधारणा का सटीक तंत्र अच्छी तरह से समझा नहीं जा सका है, लेकिन सैद्धांतिक रूप से ऐसा पोलर बॉडी (डिंब के अन्दर की कोशिका संरचना) ट्विनिंग में हो सकता है जहां शुक्राणु कोशिकाएं डिंब और डिंब के अन्दर की कोशिका संरचना को निषेचित कर सकती हैं। यह स्थिति आपसी जुड़वां बच्चों के सामान्य प्रकार के अनुरूप नहीं होती जिसमें आनुवंशिक रूप से दो अलग ओवा, आनुवंशिक रूप से दो अलग शुक्राणुओं द्वारा निषेचित होते हैं। इस मामले में, ओवा आनुवंशिक रूप से समान हैं। किस्में ऐसी तीन क्रियाविधियां है जिनके द्वारा ऐसा हो सकता है: पोलर जुड़वां (या "पोलर बॉडी जुड़वां"), जहां दो शुक्राणु एक डिंब को निषेचित करते हैं; या दो में से एक किसी पोलर बॉडी को निषेचित करता है या जहां एक डिंब दो समान प्रतियों में विखंडित हो जाता है, जिसमे से एक में पोलर बॉडी होती है, निषेचन से पहले इसका दो विभिन्न शुक्राणुओं द्वारा निषेचन होने देती है। सेस्कुईज़ाईगोटिक जुड़वां, जिसमें दो शुक्राणु एक डिंब को निशेचित करके एक ट्रिपलोईड बनाते हैं और उसके बाद विखंडित होते हैं। विस्तार बिना दिल के एक मृत ट्रिपलोईड XXX जुड़वां भ्रूण पर 1981 में हुए एक अध्ययन से पता चला कि यद्यपि इसकी भ्रूण संबंधी विकास से लगता था कि यह एक समान जुड़वां है, चूंकि यह अपने स्वस्थ जुड़वां के साथ एक ही नाल को साझा करता था, परीक्षणों से पता चला कि इसके एक पोलर बॉडी ट्विन होने की संभावना थी। लेखक यह बताने में असमर्थ थे कि क्या एक स्वस्थ भ्रूण पोलर बॉडी ट्विनिंग के परिणामस्वरूप हो सकता है। 2003 में एक अध्ययन का तर्क था कि कई मामलों में अर्ध-समान जुड़वां बच्चों के कारण ट्रिपलोईडिटी के कई मामले बढ़े हैं। 2007 में, एक अध्ययन ने एक जीवित जुड़वां बच्चों के जोड़े के बारे में बताया जिनमे से एक द्विलिंगी और एक फिनोटिपिकल पुरुष था। दोनों जुड़वां चिमेराज़ पाए गए और अपने सभी मातृ डीएनए को तथा केवल आधे पितृ डीएनए को साझा करते पाए गए। निषेचन के सटीक तंत्र का निर्धारण नहीं किया जा सका किन्तु अध्ययन ने बताया कि इसके पोलर बॉडी ट्विनिंग होने की संभावना नहीं थी। अलग होने की स्थिति गर्भाशयांतर्गत जुड़वाओं की भिन्नता का स्तर इस बात पर निर्भर करता है कि क्या वे दो युग्मनजों में विभाजित हुए हैं और कब हुए हैं। द्वियुग्मनज जुड़वां हमेशा दो युग्मनज थे। एकयुग्मज जुड़वां गर्भावस्था के समय में बहुत जल्दी दो युग्मनजों में विभाजित हो जाते हैं। इस विभाजन का समय गर्भावस्था के चिरकालिकता समय और एम्नियोसिटी (जर्दी थैलियों की संख्या) को निर्धारित करता है। डाईकोर्यिओनिक जुड़वां या तो विभाजित नहीं होते (यानी द्वियुग्मजन जुड़वां थे) या वे पहले 4 दिनों में विभाजित होते हैं। मोनोएम्निओनिक जुड़वां पहले सप्ताह के बाद विभाजित होते हैं। बहुत दुर्लभ मामलों में, जुड़वां बच्चे संयुक्त जुड़वां होते हैं। इसके अलावा, गर्भ में जुड़वां बच्चों द्वारा साझे किये गए वातावरण के कई स्तर हो सकते हैं, जिससे गर्भावस्था में जटिलता की संभावना बढ़ जाती है। यह एक आम गलत धारणा है कि दो नाल का मतलब है द्वियुग्मनज जुड़वां (असमान). लेकिन अगर एक युग्मनज जुड़वां काफी पहले अलग हो जाते हैं, तो गर्भाशय में थैलियों और नाल की व्यवस्था का द्वियुग्मनज जुड़वां से भेद करना कठिन है। जनसांख्यिकी एक ताजा अध्ययन में पाया गया है कि डेयरी उत्पादों में पाया जाने वाला इंसुलिन जैसा वृद्धि कारक द्वियुग्मनज जुड़वां बच्चों की संभावना में वृद्धि कर सकता है। विशेष रूप से, अध्ययन में पाया गया कि शाकाहारी मांओं (जिनके आहार में डेयरी उत्पाद नहीं हैं) में जुड़वां बच्चों के पैदा होने की संभावना शाकाहारी या सर्वाहारी माताओं की तुलना में 1/5 होती है और यह निष्कर्ष निकाला कि "बढे हुए आईजीएफ (IGF) और डेयरी उत्पादों वाले आहार को को बढ़ावा देने वाले जीनोटाइप, विशेकर उन क्षेत्रों में जहाँ पशुओं को ग्रोथ हार्मोन दिए जाते हैं, डिम्बग्रंथि के उत्तेजित होने के कारण एकाधिक गर्भधारण की संभावना में वृद्धि हो जाती है।" 1980-1997 तक, संयुक्त राज्य अमेरिका में जुड़वा बच्चों की जन्म संख्या 52% बढ़ी है। इस वृद्धि का आंशिक कारण क्लोमिड जैसी प्रजनन दवाएं और परखनली निषेचन की बढ़ती लोकप्रियता है, जिसके कारण बिना बाह्य सहायता के होने वाले प्रजनन की अपेक्षा एकाधिक जन्म अक्सर अधिक होते हैं। ऐसा भोजन में विकास हार्मोनों की वृद्धि के कारण भी हो सकता है। जातीयता 90 मानव जन्मों में से 1 (1.1%) परिणाम जुड़वाओं के रूप में होते हैं। द्वियुग्मनज जुड़वां बच्चों की दर जातीय समूहों में काफी अलग है, जो योरुबा में प्रति 1000 में 45 जितनी उच्च से लेकर लिन्हा साओ पेड्रो, ब्राज़ील का एक छोटा क्षेत्र जो कैंडिडो गोडोई शहर से संबंधित है, में 10% तक है। केंडिडो गोडोई में, पांच में से एक गर्भधारण में जुड़वां बच्चे होते हैं। अर्जेंटीना के इतिहासकार जॉर्ज कामरासा ने एक सिद्धांत पेश किया है इस क्षेत्र में जुड़वाओं के उच्च अनुपात के लिए नाजी डॉक्टर जोसेफ मेंगेले जिम्मेदार हो सकते थे। उनके सिद्धांत को ब्राजील के वैज्ञानिकों द्वारा अस्वीकार कर दिया गया जिन्होंने लिन्हा साओ पैड्रो में रहने वाले जुड़वाओं का अध्ययन किया था; उनके अनुसार उस समुदाय के अन्दर आनुवांशिक कारक अधिक जिम्मेदार थे। दुनिया के कई अन्य स्थानों पर भी जुड़वां बच्चों की दर में अधिकता पाई गई है जिनमे नाइजीरिया में ल्ग्बो-ओरा और भारत में कोडिन्जी शामिल है। प्रजनन दवाओं के व्यापक प्रयोग से होने वाले अधिअंडोत्सर्ग (मां द्वारा एकाधिक अंडों का उत्तेजित उत्सर्ग) के कारण, जिसे कुछ लोग "एकाधिक जन्मों की महामारी" कहते हैं, फैल रही है। 2001 में, अमेरिका में पहली बार, जुड़वां बच्चों की जन्म दर सभी जन्मों से 3% अधिक हो गई। फिर भी, दुनिया भर में एकयुग्मनज जुड़वाओं की जन्म दर 333 में 1 बनी हुई है। नाइजीरिया के सवाना क्षेत्र में रहने वाली 5750 हौसा महिलाओं पर हुए अध्ययन से पता चला कि वहां प्रत्येक 1000 जन्मों में 40 जुड़वां और 2 ट्रिप्लेट थे। 26 प्रतिशत जुड़वां एकयुग्मनज थे। एकाधिक जन्मों की घटना, जो किसी भी पश्चिमी आबादी से पांच गुना अधिक है, अन्य जातीय समूहों, जो देश के दक्षिणी भाग की गर्म और आर्द्र जलवायु में रहते हैं, की तुलना में काफी कम थी। एकाधिक जन्मों की घटना को मातृ आयु से जोड़ा गया था किन्तु जलवायु या मलेरिया के प्रसार से इसका कोई संबंध नहीं था। रोगप्रवणता कारक एकयुग्मनज बच्चों के रोगप्रवणता कारक अज्ञात हैं। जब निम्नलिखित कारक महिला में मौजूद हों तो द्वियुग्मनज जुड़वां गर्भधारण की संभावना थोड़ी अधिक होती है: वह पश्चिमी अफ़्रीकी वंश की है (विशेष रूप से योरूबा) उसकी आयु 30 और 40 वर्ष के बीच है वह औसत ऊंचाई और वजन से अधिक बड़ी है उसने पहले भी कई बार गर्भधारण किया है। कुछ प्रजनन उपचार के दौर से गुजरने वाली महिलाओं में द्वियुग्मनज एकाधिक जन्मों की अधिक संभावना हो सकती है। यह इस पर निर्भर कर सकता है कि किस प्रकार का प्रजनन उपचार किया गया है। इन विट्रो निषेचन (IVF), में ऐसा होने का मुख्य कारण गर्भाशय में एकाधिक भ्रूणों की प्रविष्टि है। कुछ अन्य उपचार जैसे क्लोमिड दवा एक महिला को कई गुना अंडे छोड़ने के लिए प्रेरित कर सकती है, जिससे एकाधिक बच्चों के जन्म की संभावना बढ़ जाती है। प्रसव अंतराल हेस में 15 साल तक सामान्य प्रसव से जन्मे 8220 जुड़वां बच्चों (अर्थात 4110 गर्भधारण) पर हुए एक जर्मन अध्ययन के अनुसार औसत प्रसव समय अन्तराल 13.5 मिनट है। जुड़वा बच्चों के बीच प्रसव अंतराल निम्नानुसार मापा गया था: 15 मिनट के भीतर: 75.8% 16-30 मिनट: 16.4% 31-45 मिनट: 4.3% 46-60 मिनट: 1.7% 60 मिनट से अधिक: 1.8% (72 मामले) अध्ययन में कहा गया कि "एक से दुसरे जुड़वां के प्रसव समय अन्तराल में वृद्दि का होना" जटिलताओं के बढ़ने से जुड़ा पाया गया था और सुझाव दिया कि अन्तराल कम रखा जाए, हालांकि यह उल्लेखनीय है कि अध्ययन ने जटिलताओं के कारणों की जांच नहीं की थी और दाई के अनुभव का स्तर, महिलाओं की जन्म देने की इच्छा, या दूसरे जुड़वां को जन्म देने की 'प्रबंधन रणनीति" जैसे कारकों पर नियंत्रण नहीं किया था। जुड़वां गर्भावस्था की जटिलताएं लुप्त जुड़वां शोधकर्ताओं को संदेह है कि 8 में से 1 गर्भधारण एकाधिक के रूप में शुरू होता है, किन्तु केवल एक ही भ्रूण कार्यकाल पूरा करता है, क्योंकि अन्यों का गर्भावस्था के शुरू में ही निधन हो जाता है और उन्हें देखा या दर्ज नहीं किया जाता है। शुरूआती प्रसूति अल्ट्रासोनोग्राफी परीक्षणों से कभी कभी एक "अतिरिक्त" भ्रूण का पता चलता है, जो विकसित होने में विफल रहता है और इसके बजाए विखंडित और लुप्त हो जाता है। इसे वैनिशिंग ट्विन सिंड्रोम के रूप में जाना जाता है। संयुक्त जुड़वां संयुक्त जुड़वां (या प्रतिस्थापित शब्द "स्यामी जुड़वां") एकयुग्मनज जुड़वां होते हैं जिनके शरीर गर्भावस्था के दौरान एक दूसरे के साथ जुड़ जाते हैं। यह वहां होता है जहां MZ जुड़वां बच्चों का एकल युग्मनज अलग होने में पूरी तरह से विफल रहता है और निषेचन के 12 दिन पश्चात् युग्मनज का विभाजन शुरू होता है। 50000 मानव गर्भधारणों में से किसी एक में ऐसी स्थिति पाई जाती है। अधिकांश संयुक्त जुड़वां बच्चों को अलग कार्यात्मक शरीर के रूप में अलग करने के प्रयास के लिए, अब सर्जरी के लिए उनका मूल्यांकन किया जाता हैं। कठिनाई तब अधिक बढ़ जाती है जब कोई महत्वपूर्ण अंग या संरचना दोनों जुड़वां बच्चों में साझी हो, जैसे मस्तिष्क, दिल या जिगर. चिमेरिस्म एक चिमेरा एक साधारण व्यक्ति या जानवर है जिसमे अपवादस्वरूप कुछ अंग वास्तव में उसके जुड़वां या मां से आए हैं। एक चिमेरा या तो एकयुग्मनज जुड़वां भ्रूण से पैदा होता है (जहां इसका पता लगाना असंभव हो जाएगा), या द्वियुग्मनज भ्रूणों से, जिसमे शरीर के विभिन्न भागों से गुणसूत्र तुलना द्वारा पहचान की जा सकती है। प्रत्येक भ्रूण से प्राप्त की गई कोशिकाओं में शरीर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक भिन्नता हो सकती है और इसके कारण अक्सर मानव चिमेरा में मोजेइकिज्म त्वचा के रंग की विशेषताओं में वृद्धि होती है। चिमेरा इंटरसेक्स अर्थात पुरुष जुड़वां और महिला जुड़वां की कोशिकाओं से निर्मित हो सकता है। इसके अलावा, कुछ मामलों में व्यक्ति या चिमेरा में डीएनए के दो सेट हो सकते हैं। परजीवी जुड़वां कभी कभी एक जुड़वां भ्रूण पूरी तरह से विकसित होने में विफल होता है और अपने जीवित जुड़वां के लिए समस्याएं पैदा करना जारी रखता है। एक भ्रूण अन्य के लिए एक परजीवी की तरह व्यवहार करता है। कभी कभी परजीवी जुड़वां दूसरे का लगभग अप्रभेद्य हिस्सा बन जाता है और कभी कभी इसके साथ चिकित्सा द्वारा निपटा जाता है। आंशिक मोलर जुड़वां परजीवी जुड़वां बच्चों का एक बहुत दुर्लभ प्रकार है जिसमें एक ही व्यवहार्य जुड़वां लुप्तप्राय है, जब दूसरा युग्मनज कैंसर कारक या मोलर हो जाता है। इसका मतलब यह है कि एकयुग्मनज का कोशिका विभाजन अनियंत्रित रूप से जारी रहता है, जो एक व्यवहार्य भ्रूण से बढ़ कर एक कैंसर वृद्धि का रूप ले लेता है। आमतौर पर, ऐसा तब होता है जब एक जुड़वां को ट्रिपलोइडी हो या पूर्ण पैतृक यूनीपेरेंटल नाल ऊंचा हो गया हो जिसके परिणामस्वरूप छोटा भ्रूण अथवा कोई भ्रूण नहीं होता और एक कैंसरजनक, अधिक बड़े भ्रूण जैसी संरचना बन जाती है जो अंगूर के गुच्छों जैसी दिखती है। जुड़वां गर्भपात कभी कभी, एक औरत को गर्भावस्था के दौरान गर्भपात होजाता है, फिर भी गर्भावस्था जारी रहती है; एक जुड़वां का गर्भपात हो गया था, लेकिन दूसरा अपनी अवधि पूरी करने में सक्षम रता है। यह घटना वैनिशिंग ट्विन सिंड्रोम के समान है, लेकिन आम तौर पर वैनिशिंग ट्विन सिंड्रोम के बाद घटित होती है। जन्म के समय कम वजन आमतौर पर जुड़वां बच्चों का जन्म के समय वज़न कम होता है और समय से पूर्व प्रसव की संभावना अधिक होती है जैसा कि आम तौर पर अधिकतर एकाधिक प्रसवों में होता है। अपने पूरे जीवनकाल के दौरान औसतन जुड़वां बच्चे सिंगलटन की अपेक्षाकृत छोटे होते हैं। ट्विन-टू-ट्विन ट्रांसफ्यूज़न सिंड्रोम एकयुग्मनज जुड़वां बच्चों में, जो एक नाल से जुड़े होते हैं, ट्विन-टू-ट्वि. इस अवस्था का अर्थ है कि एक जुड़वां से खून दूसरे जुड़वां को बंट जाता है। एक जुड़वां, जो 'दाता' जुड़वां है छोटा और खून की कमी का शिकार है और, दूसरा प्राप्तकर्ता जुड़वां बड़ा और पोलीसाइथेमिक है। इस हालत से दोनों जुड़वा बच्चों का जीवन खतरे में पड़ जाता हैं। मनुष्यों के जुड़वाओं का अध्ययन जुड़वाओं के अध्ययन का प्रयोग यह निर्धारित करने में होता है कि किसी भी एक खास विशेषता का कितना बड़ा कारण आनुवंशिकी या पर्यावरणीय प्रभाव हैं। ये अध्ययन एकयुग्मनज और द्वियुग्मनज जुड़वां बच्चों की चिकित्सीय, आनुवांशिक या मनोवैज्ञानिक विशेषताओं की तुलना करके यह प्रयास करते हैं कि जीन अभिव्यक्तियों या पर्यावर्णीय प्रभाव से आनुवांशिकी प्रभाव को अलग कर सकें. वे जुड़वां जो जीवन की शुरुआत में अलग कर दिए गए हैं और अलग घरों में पले हैं, को विशेषकर इस प्रकार के अध्ययनों के लिए चुना जाता है, जिन्हें मानव स्वभाव के अन्वेषण में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। हालांकि, इन जुड़वां बच्चों के अध्ययन की उपयोगिता और सटीकता पर प्रश्नचिन्ह लगाया गया है और यह विवादास्पद बना हुआ है। जुड़वाओं से संबंधित श्रेष्ठ अध्ययन अब आणविक आनुवंशिक अध्ययन के साथ पढ़े जाते हैं जो व्यक्तिगत जीनों की पहचान करते हैं। असामान्य जुड़वां दुर्लभ मामलों में, द्वियुग्मनज जुड़वाओं के बीच, दो या दो से अधिक बार यौन संबंधों के कारण अलग अलग समय पर अंडे निषेचित होते हैं, ये क्रिया या तो एक ही मासिक चक्र में होती है (सुपरफिकन्डेशन) या और अधिक दुर्लभ रूप से, गर्भावस्था के बाद के चरण में होती है (सुपरफेटेशन). इसके परिणामस्वरूप एक औरत को अलग अलग पिताओं से भ्रात्रिक जुड़वां पैदा होने की संभावना बन जाती है (अर्थात अर्ध जुड़वां). इस घटना को हीट्रोपेटर्नल सुपरफिकन्डेशन के रूप में जाना जाता है। 1992 के एक अध्ययन का अनुमान है कि द्वियुग्मनज जुड़वां बच्चों में हीट्रोपेटर्नल सुपरफिकन्डेशन की आवृति, जिनके अभिभावक पितृत्व मुकद्दमों में शामिल थे, लगभग 2.4% थी, अधिक जानकारी के लिए, नीचे संदर्भ अनुभाग देखें. भिन्न नस्लों के जोड़ों से उत्पन्न द्वियुग्मनज जुड़वां कभी कभी मिश्रित जुड़वां हो सकते हैं, जो अलग अलग जातीय और नस्लीय विशेषताओं को प्रदर्शित करते हैं। 2008 में जर्मनी से एक श्वेत पिता और घाना से एक अश्वेत मां से ऐसे ही एक जोड़े का जन्म हुआ था। हीट्रोटॉपिक गर्भावस्था एक निहायत ही दुर्लभ किस्म के द्वियुग्मनज जुड़वां का प्रकार है जिसमे एक जुड़वां का प्रत्यारोपण सामान्य रूप से गर्भाशय में किया जाता है तथा दूसरा अस्थानिक गर्भावस्था के रूप में फैलोपियन ट्यूब में रहता है। अस्थानिक गर्भधारण का अवश्य ही निदान किया जाना चाहिए क्योंकि वे मां के लिए जानलेवा हो सकते हैं। हालांकि, ज्यादातर मामलों में, अंतर्गर्भाशयी गर्भावस्था को बचाया जा सकता है। अत्यंत दुर्लभ मामलों में, एकयुग्मनज जुड़वां बच्चों में, जुड़वा बच्चे विपरीत लिंगों (एक पुरुष, एक महिला) के साथ पैदा होते हैं। इस की संभावना इतनी कम है (केवल 3 प्रलेखित मामले हैं) कि विभिन्न लिंगों के साथ पैदा हुए एकाधिक बच्चों को दुनिया भर में इस ठोस आधार पर चिकित्सीय अनुसन्धान के लिए स्वीकार गया है कि गर्भाशय में एकाधिक बच्चे एकयुग्मनज नहीं हैं। जब एकयुग्मनज जुड़वां अलग लिंगों के साथ पैदा होते हैं तो ऐसा गुणसूत्र जन्म दोष के कारण होता है। इस मामले में, जुड़वा हालांकि एक ही अंडे से आते हैं, किन्तु उन्हें आनुवंशिक रूप से समान कहना गलत है, क्योंकि उनके कार्योटाइप (नाभिक में गुणसूत्रों की संख्या तथा उपस्थिति) अलग अलग हैं। अर्द्ध-समान जुड़वां एकयुग्मनज अलग अलग जीनों के सक्रिय होने के कारण अलग अलग तरीकों से विकसित हो सकते हैं। "अर्द्ध-समान जुड़वां" अधिक असामान्य हैं। ये "आधे-समान जुड़वां" बच्चों की परिकल्पना तब होती है जब एक अनिषेचित अंडा दो समान ओवा (Ova) में विभक्त हो जाता है तथा ये ओवा निषेचन के अनुकूल होते हैं। दोनों क्लोन ओवा अलग अलग शुक्राणुओं द्वारा निषेचित होते हैं और ये अंडे संगठित हो कर चिमेरिक ब्लास्टोमेर के रूप में विकसित हो कर एक और कोशिका दोहराव से गुज़रते हैं। यदि यह ब्लास्टोमेर एक जुड़वां घटना के रूप में बदल जाए, तो दो भ्रूण बनेंगे, जिनमें से प्रत्येक का अलग पैतृक जीन और समान मातृ जीन होगा। परिणामस्वरूप मां की तरफ से समान जीन लेकिन पिता की ओर से भिन्न जीनों के साथ जुड़वा बच्चे पैदा होंगे। प्रत्येक भ्रूण की कोशिकाएं किसी भी शुक्राणु से जीन ग्रहण करेंगी, जिसके परिणामस्वरूप चिमेरा बच्चे होंगे। पश्चिमी चिकित्सा में अभी हाल ही में दर्ज होने तक इस किस्म के बारे में अटकलें लगाई जाती रहीं थी। जुड़वां पशु जानवरों की कई प्रजातियों में जुड़वां बच्चे आम हैं जैसे बिल्ली, भेड़, नेवले तथा हिरण. मवेशियों में जुड़वां बच्चे होने की संभावना 1-4% है और जुड़वाओं की विषमताओं में सुधार के लिए शोध जारी हैं, जो ब्रीडर के लिए अधिक लाभदायक हो सकते हैं यदि जटिलताओं से बचा जा सके या उनका सही ढंग से प्रबंधन किया जा सके। नौ धारियों वाली अर्माडिल्लो (देसिपुस नोवेमकिंकटस) के आसाधारण मामलों की बजाए नियमित प्रजनन के रूप में समान जुड़वां बच्चे होते हैं। इन्हें भी देखें पौराणिक कथाओं में जुड़वां मिथुन (ज्योतिष) जुड़वा बच्चों के बीच अगम्यागमन संयुक्त जुड़वां गुणज जन्मों की सूची गुणज जन्म जुड़वा बच्चों की सूची एक जैसे दिखने वाले एक साथ पैदा हुए बच्चे (जानवर) सन्दर्भ आगे पढ़ें बेकन केट,. ट्विन्स इन सोसाइटी: पेरेंट्स, बॉडीज़, स्पेस एंड टॉक (Twins in Society: Parents, Bodies, Space, and Talk) (पैलग्रेव मैकमिलन, 2010) 221 पृष्ठ; ब्रिटेन को ध्यान में रख कर जुड़वा बच्चों, वयस्क जुड़वां और जुड़वां बच्चों के माता पिता के अनुभवों के बारे में बताया गया है। जुड़वां प्रजनन जीव विज्ञान
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%20%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80
राम कुमार शास्‍त्री
राम कुमार शास्‍त्री,भारत के उत्तर प्रदेश की प्रथम विधानसभा सभा में विधायक रहे। 1952 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के बस्‍ती जिले के 285 - बांसी (दक्षिण) विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया। श्री राम कुमार शास्त्री जी मूल रूप से बस्ती जिले के खेसरहां ब्लाक खेसरहां गांव के मूल निवासी थे जो कि अब सिद्धार्थ नगर जिले में आता है खेसरहां के नाम पर ब्लाक गांव थाना और विधानसभा क्षेत्र भी है सन्दर्भ उत्तर प्रदेश की प्रथम विधान सभा के सदस्य 285 - बांसी (दक्षिण) के विधायक बस्‍ती के विधायक कांग्रेस के विधायक
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9B%20%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%AE%E0%A4%BF%20%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%AF
कच्छ मरुभूमि वन्य अभयारण्य
कच्छ मरुभूमि वन्य अभयारण्य (Kutch Desert Wildlife Sanctuary) भारत के गुजरात राज्य के कच्छ ज़िले में कच्छ के रण पर स्थित एक वन्य अभयारण्य है। क्षेत्रफल के आधार पर फरवरी 1986 में घोषित यह संरक्षित क्षेत्र भारत का सबसे बड़ा अभयारण्य है। हर वर्ष में मॉनसून के महीनों में यहाँ 0.5 से 1.5 मीटर खारा पानी भर जाता है जो अक्तूबर-नवम्बर तक सूखकर इसे एक मरुभूमि बना देता है। यह विश्व की सबसे बड़ी लवणीय (नमकग्रस्त) आर्द्रभूमियों में से एक है। यहाँ हज़ारों की संख्या में राजहंस (फ्लैमिंगों) के समूह देखे जा सकते हैं। इन्हें भी देखें कच्छ का रण कच्छ ज़िला सन्दर्भ गुजरात के वन्य अभयारण्य भारत की घासभूमियाँ भारत की आर्द्रभूमियाँ कच्छ ज़िले के संरक्षित क्षेत्र
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डीडी उत्तर प्रदेश
दूरदर्शन उत्तर प्रदेश या संक्षिप्त रूप में डीडी उत्तर प्रदेश दूरदर्शन केन्द्र लखनऊ से प्रसारित किया जाने वाला एक 24 घंटे का क्षेत्रीय उपग्रह टीवी चैनल है। यह राज्य के स्वामित्व वाले दूरदर्शन टीवी नेटवर्क का एक हिस्सा है। यह मुख्यत: उत्तर प्रदेश के भारतीय राज्य में कार्य करता है। इन्हें भी देखें डीडी नेशनल पर प्रसारित कार्यक्रमों की सूची ऑल इंडिया रेडियो डीडी डायरेक्ट प्लस देश अनुसार दक्षिण एशियाई टेलीविजन चैनलों की सूची चेन्नई में मीडिया सूचना और प्रसारण मंत्रालय बाहरी कड़ियाँ दूरदर्शन की आधिकारिक इंटरनेट साईट दूरदर्शन न्यूज़ साईट PFC पर एक लेख मीडिया वर्ल्ड एशिया सन्दर्भ हिन्दी टीवी चैनल दूरदर्शन चैनल
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महापुराण
महापुराण, जैन धर्म से संबंधित दो भिन्न प्रकार के काव्य ग्रंथों का नाम है, जिनमें से एक की रचना संस्कृत में हुई है तथा दूसरे की अपभ्रंश में। संस्कृत में रचित 'महापुराण' के पूर्वार्ध (आदिपुराण) के रचयिता आचार्य जिनसेन हैं तथा उत्तरार्ध (उत्तरपुराण) के रचयिता आचार्य गुणभद्र। अपभ्रंश में रचित बृहत् ग्रंथ 'महापुराण' के रचयिता महाकवि पुष्पदन्त हैं। महापुराण (संस्कृत) इस महाग्रंथ की पुष्पिका में स्वीकृत मुख्य नाम त्रिषष्टिलक्षणमहापुराणसंग्रह है तथा अपर नाम 'महापुराण' है। इसके आदि भाग (आदिपुराण) के रचयिता आचार्य जिनसेन तथा उत्तर भाग (उत्तरपुराण) के रचयिता आचार्य जिनसेन के शिष्य आचार्य गुणभद्र हैं। आदिपुराण जिनसेन स्वामी ने सभी ६३ शलाका पुरुषों का चरित्र लिखने की इच्छा से महापुराण का प्रारंभ किया था, परंतु बीच में ही शरीरान्त हो जाने से उनकी यह इच्छा पूर्ण न हो सकी और महापुराण अधूरा रह गया जिसे उनकी मृत्यु के उपरांत उनके शिष्य गुणभद्र ने पूरा किया। महापुराण के दो भाग हैं, एक आदिपुराण और दूसरा उत्तरपुराण। आदिपुराण में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ या ऋषभदेव का चरित्र है और उत्तर पुराण में शेष २३ तीर्थंकरों तथा अन्य शलाका पुरुषों का। आदिपुराण में बारह हजार श्लोक तथा ४७ पर्व या अध्याय हैं। इनमें से ४२ पर्व पूरे तथा ४३वें पर्व के ३ श्लोक आचार्य जिनसेन के और शेष चार पर्वों के १६२० श्लोक उनके शिष्य आचार्य गुणभद्र द्वारा रचित हैं। इस तरह आदिपुराण के १०,३८० श्लोकों के रचयिता आचार्य जिनसेन हैं। आदिपुराण जैनागम के प्रथमानुयोग ग्रंथों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। विविध विषयों का अपने ढंग से विवेचन करने के अतिरिक्त आचार्य जिनसेन ने अपने से पूर्ववर्ती सिद्धसेन, समंतभद्र, श्रीदत्त, यशोभद्र, प्रभाचंद्र, शिवकोटि आदि सोलह विद्वानों का भी उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त देशविभाग में सुकोशल, अवन्ती, पुण्ड्र, कुरु, काशी आदि प्रदेशों का भी विवरण आया है। उत्तरपुराण उत्तरपुराण महापुराण का पूरक भाग है। इसमें अजितनाथ से आरंभ कर २३ तीर्थंकर, सगर से आरंभ कर 11 चक्रवर्ती, ९ बलभद्र, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण तथा उनके काल में होने वाले विशिष्ट पुरुषों के कथानक दिये गये हैं। इन विशिष्ट कथानकों में कितने ही कथानक इतने रोचक ढंग से लिखे गये हैं कि उन्हें प्रारंभ करने पर पूरा किये बिना बीच में छोड़ने की इच्छा नहीं होती। यद्यपि आठवें, सोलहवें, बाईसवें, तेईसवें और चौबीसवें तीर्थंकर को छोड़कर अन्य तीर्थंकरों के चरित्र अत्यंत संक्षिप्त रूप से लिखे गये हैं परंतु वर्णन शैली की मधुरता के कारण वह संक्षेप भी अरूचिकर नहीं होता है। इस ग्रंथ में न केवल पौराणिक कथानक ही है किंतु कुछ ऐसी स्थल भी हैं जिनमें सिद्धांत की दृष्टि से सम्यक् दर्शन आदि का और दार्शनिक दृष्टि से सृष्टिकर्तृत्व आदि विषयों का भी अच्छा विवेचन हुआ है। महापुराण (अपभ्रंश) अपभ्रंश भाषा में रचित महान ग्रंथ 'महापुराण' महाकवि पुष्पदंत की लेखनी से प्रसूत अमर काव्य है। इसमें कुल 102 संधियाँ हैं जिनमें क्रमश: 24 जैन तीर्थकरों, 12 चक्रवर्तियों, 9 वासुदेवों, 9 प्रतिवासुदेवों और 9 बलदेवों, इस प्रकार 63 शलाकापुरुषों अर्थात्‌ महापुरुषों का चरित्र सुंदर काव्य की रीति से वर्णित है। आदि का अधिकांश भाग, जो 'आदिपुराण' भी कहलाता है, आदि तीर्थंकर ऋषभदेव और उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती के जीवनचरित्‌ विषयक है। शेष शलाकापुरुषों का चरित्विषयक भाग 'उत्तरपुराण' कहलाता है। महापुराण के आदि कवि ने अपने पूर्ववर्ती भरत, पिंगल, भामह तथा दंडी का तथा मंचमहाकाव्यों का भी उल्लेख किया है। इन्हें भी देखें जैन धर्म आदिपुराण उत्तरपुराण सन्दर्भ जैन ग्रंथ संस्कृत ग्रन्थ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%AB%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97
मौफलांग
मौफलांग (Mawphlang) भारत के मेघालय राज्य के पूर्व खासी हिल्स ज़िले में स्थित एक गाँव है। यह राज्य राजधानी, शिलांग, से २५ किमी दूर स्थित है। स्थानीय खासी भाषा में इसका अर्थ है माव=पत्थर और फलांग= घास, यानि घास वाला पत्थर। यह नाम अन्य बहुत से उन गांवों के नाम में से एक है जो वहाँ स्थापित मोनोलिथ संरचनाओं पर आधारित हैं। विवरण १८९० के दशक में मौफलांग खासी पर्वत पर प्रेसबिटेरियन गिरजे मिशनरी एवं चिकित्सा गतिविधियों का केन्द्र रहा है। यहाँ १८७८ में ब्रिनमॉवर, ऍबर्डेरॉन के डॉ॰ग्रिफ़िथ ग्रिफ़िथ्स द्वारा एक डिस्पेन्सरी और (तब) क्लीनिक भी खोले गए थे, बाद में डॉक्तर की मृत्यु भी २२ अप्रैल १८९२ में मौफलांग में ही हुई थी। उनके बाद एक अन्य डॉ॰विलियम विलियम्स (मिशनरी) यहां आये और मृत्योपर्यन्त यहीं रहे। मौफलांग पवित्र वन मौफलांग पवित्र वन (अंग्रेज़ी:मौफलांग सैकरेड फ़ॉरेस्ट, खासी :लाव लिंगडोह) मेघालय की राजधानी शिलांग से लगभग २७ कि॰मी. दूर पूर्वी खासी हिल्स जिले में स्थित मौफलांग ग्राम में स्थित एक संरक्षित एवं स्थानीय खासी लोगों द्वारा पवित्र माना जाने वाला एक वन है। सागर सतह से ५,००० फीट की ऊँचाई पर बसे इस स्थान का इतिहास काफ़ी पुराना है। आंकड़ों के अनुसार इन पवित्र जंगलों में ३४० वंश और १३१ कुलों का प्रतिनिधित्व करने वाली कम से कम ५१४ प्रजातियां उपस्थित हैं। भारत के अन्य राज्यों से अलग मेघालय राज्य के अधिकांश पर्वत व पहाड़ियां निजी स्वामित्व के अधीन हैं। अधिकतर संरक्षित वन नदियों के तराई क्षेत्रों में हैं। लुम-शिलांग नोंगक्रिम पवित्र वन ८ धाराओं के स्रोत हैं। खासी संरक्षण एक स्थानीय के अनुसार यहां मान्यता है कि पवित्र जंगल में उनके देवताओं का अदृश्य रूप में वास है तथा इसकी किसी भी प्रकार की हानि करना अथवा जंगल के भीतर बुरा सोचना-बोलना किसी बड़े अपराध से कम नहीं। यहां के स्थानीय देवता इसकी अत्यन्त घातक सजा दे सकते हैं। इसी विश्वास और जंगल पर सामुदायिक अधिकार ने लम्बे समय तक मौफलांग के वन को बचाए रखा। इस वन पर अधिकार और उत्तरदायित्त्व दोनों ही स्थानीय हिमाओं के हाथ में है। हिमा अर्थात खासी आदिवासी सामुदायिक सत्ता, जिसे संवैधानिक शब्दों में कई ग्राम समूहों की अपनी सरकार कह सकते हैं। मौफलांग के वन के बीच खडे़ विशाल पाषाण शिलाएं इस सत्य की मूक साक्षी हैं कि हिमाओं ने इन वनों की ब्रिटिश काल में भी सुरक्षा की और इसके लिये ब्रिटिश से सामुदायिक अधिकार हेतु खड़े थे। हिमाओं की पहल स्थानीय मान्यता अनुसार मौफलांग के कई वृक्षों की आयु उतनी ही है, जितनी कि खासी जनजाति की, अर्थात लगभग ८००-१००० वर्ष। किंतु इस काल में एक समय ऐसा भी आया था, जब मौफलांग के जंगलों पर तथाकथित उन्नति करने वालों का अधिकार होने लगा था जिसके चलते बाहरी लोगों के सहयोग से २००० से वर्ष २००५ के बीच मौफलांग वन में लगातार गिरावट हुई। पूर्वी खासी पर्वत जिले के वन क्षेत्रफल प्रतिशत में ५.६ की गिरावट दर्ज की गई थी। यहां कोयले, चूने और भवन निर्माण सामग्री हेतु किये गए अत्याधिक खनन तथा निर्बाध वन कटाव ने जिले के वनों को बड़े स्तर पर बर्बाद किया। इसी हानि पर मौफलांग की स्थानीय खासी आदिवासी सामुदायिक सत्ता - हिमा ने साहसिक कदम उठाए। हिमाओं को कम्युनिटी फाॅरेस्टरी इंटरनेशनल नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन (सीएफआई) के सहयोग से मेघालय में वन-संरक्षण के सामुदायिक प्रयासों को संरक्षण देने में सहायता मिली। तब तक वन-संरक्षण को वायुमण्डल में हानिकारक विकिरणों व गैसों की मात्रा में कमी करने जैसे योगदान पर ध्यान रखते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ’कार्बन क्रेडिट’ कार्यक्रम का आरम्भ होने लगा था। संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से कार्बन क्रेडिट हेतु मानक व प्रक्रिया भी बनाये जा चुके थे।मौफलांग के जैविक विविधता की समृद्धि एवं भूमिगत जल भण्डार का आधार स्थानीय खासी समुदायों की आस्था और पारंपरिक जीवन शैली ही है। संस्था द्वारा इस पारम्परिक ज्ञान और व्यवहार के आधार पर मौफलांग समुदाय को भारत का प्रथम रेड पायलट समुदाय चयनित करने की मुहिम आरम्भ की। मेघालय सरकार और खासी हिल स्वायत्त जिला परिषद के द्वारा इसका भरपूर समर्थन किया गया। इस कार्य में बेथानी सोसाइटी ने समन्वयक का कार्य किया। १० हिमाओं (४२५० परिवार) ने इस काम के लिए आपसी एकजुटता दिखाई एवं तम्बोर लिंगदोह ने इसका नेतृत्व किया। इस परियोजना क्षेत्र के रूप ८,३७९ हेक्टेयर भूमि तय की गई। इस तरह ’रेड’ प्रक्रिया और वन संरक्षण, प्रबंधन और पुनर्जीवन गतिविधियों की योजना हेतु सीएफआई और मौफलांग के हिमाओं के संघ के बीच सहयोग तय हुआ। रेड रेड (REDD) – रिड्युसिंग एमिशंस फ्रॉम डीफ़ॉरेस्टेशन एण्ड डीग्रेडेशन -अर्थात वनों की कटाई और वन क्षरण से होने वाले उत्सर्जन की रोकथांम। इस परियोजना के लिए मौफलांग को भारत का प्रथम रेड पायलट समुदाय बनाया गया है। वैसे इस परियोजना में वन में नये सिरे से वृक्षारोपण किया गया, जबकि वास्तव में यह एक जल परियोजना है। गाँवों के लिये बिना धुंए का चूल्हा, मवेशियों के लिए चारे की विशेष व्यवस्था, किसी प्रकार के खनन पर प्रतिबंध, वन में पुनर्वृक्षारोण तथा जल संचयन जैसे कार्य किये गए। संरक्षण हेतु निकटवर्ती उमियम झील बेसिन का ७५ हेक्टेयर का क्षेत्र प्रयोग किया गया। इस प्रकार के कई वर्षों के सतत् प्रयासों परिणामस्वरूप इस परियोजना को प्लान विवो मानक के तहत् मई, २०११ में खासी हिल्स कम्युनिटी रेड प्लस प्रोजेक्ट का प्रमाणपत्र दिया गया। संरक्षण, प्रबंधन और पुनर्जीवन प्रथम चरण २०१६ में पूर्ण हुआ एवं द्वितीय चरण २०१७-२०२१ में चालू है। यहां की धरोहर परियोजना बहुत उत्साह और जोरशोर के साथ आरम्भ तो हुई थी और किसी तरह प्रथम चरण पूर्ण भी हो गया, किन्तु सरकार की उदासीनता तथा भ्रष्टाचार के चलते इसे बहुत हानि हुई और अब ढुलमुल रवैये के कारण शिथिल सी होती जा रही है। कार्बन क्रेडिट वर्ष २०११ के आँकडे़ के अनुसार, मौफलांग समुदाय को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर १३,७६१ कार्बन क्रेडिट मिले हैं, जिन्हें अन्तरराष्ट्रीय बाजार में ४२ हजार से ८० हजार अमेरिकी डाॅलर में बदला जा सकता है। प्रथम चरण ही होने के कारण हालांकि यह कोई बड़ी धनराशि नहीं थी किन्तु मान्यता देने वाली अन्तर्राष्ट्रीय संस्था तथा सलाहकार के शुल्क का भुगतान भी इसी में से किया गया, और इस प्रकार संरक्षण से आय भी होती है। चित्र दीर्घा इन्हें भी देखें मौफलांग विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र पूर्व खासी हिल्स ज़िला बाहरी कड़ियाँ मौफलांग पवित्र वन सन्दर्भ मेघालय के गाँव पूर्व खासी हिल्स ज़िला पूर्व खासी हिल्स ज़िले के गाँव मेघालय की संस्कृति मेघालय की स्थलाकृतियाँ मेघालय में पर्यटन आकर्षण मेघालय में पर्यटन मेघालय में स्थापत्य
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कुरुक्षेत्र (2000 फ़िल्म)
कुरुक्षेत्र सन् 2000 की एक्शन फ़िल्म है। इसका कहानी लेखन और निर्देशन महेश मांजरेकर द्वारा किया गया है। इसमें संजय दत्त और महिमा चौधरी मुख्य भूमिकाओं में हैं। अन्य कलाकारों में ओम पुरी, मुकेश ऋषि, शिवाजी सतम, सलिल अंकोला, सयाजी शिंदे और प्रमोद मुथु शामिल हैं। संक्षेप पुलिस कमांडर पृथ्वीराज सिंह (संजय दत्त) एक ईमानदार और बहादुर पुलिस अधिकारी हैं। सभी बेईमान पुलिस अधिकारी, बदमाश, अपराधी और भ्रष्ट राजनेता उससे डरते हैं। जिस दिन वह मुंबई में ड्यूटी में शामिल हो जाता है, वह इकबाल पसीना (मुकेश ऋषि) के सभी अवैध व्यापार को नष्ट कर देता है। अपने निजी जीवन में, पृथ्वीराज अपनी पत्नी अंजली (महिमा चौधरी) और बहन आरती के साथ रहता है। आरती को इंस्पेक्टर अविनाश से प्यार है। एक दिन, एक टाइकून तस्करी और रिंगलीडर बाबुराराव देशमुख के बेटे अंबर और उसका दोस्त रोहित, होटल के कमरे में गीता नाम की एक लड़की को फँसाते हैं और उससे दोनों बलात्कार करते हैं। यह क्रूर घटना "कुरुक्षेत्र" की लड़ाई में उभरती है। युद्ध बाबूराव और पुलिस कमांडर पृथ्वीराज के बीच लड़ा गया है। बाबू राव देशमुख (ओम पुरी) के पास पैसा, ताकत और सरकारी आधारभूत संरचना है और पृथ्वी राज सिंह को विपक्षी नेता संभाजी यादव और सर इकबाल पसीना से समर्थन मिला है। संभाजी यादव ने बाद में पृथ्वीराज को धोखा दिया और बाबूराव के साथ हाथ मिलाया। अंत में, पृथ्वीराज को पता चलता है कि कानून असहाय है और बाबूराव और संभाजी यादव को बलात्कार की घटना का बदला लेने और न्याय दिलाने के लिए मार देता है। मुख्य कलाकार संजय दत्त - एसीपी पृथ्वीराज सिंह महिमा चौधरी - अंजलि सिंह ओम पुरी - सीएम बाबुराव देशमुख मुकेश ऋषि - इकबाल पसीना शिवाजी सतम - संभाजी यादव राखी सावंत - गीता नायक आरती राना - आरती सिंह सलिल अंकोला - सब-इंस्पेक्टर अविनाश प्रमोद मुथो - एसीपी पटवर्धन के रूप में सुमन रंगनाथन - आइटम नंबर "नही मालेगा ऐसा घाघरा" में। सयाजी शिंदे - कॉन्स्टेबल गोपीनाथ सर्वे पाटिल "गोपी" अन्ना पिल्लई - महेश आनंद रजत शर्मा - खुद के रूप में (अतिथि उपस्थिति) संगीत संगीत हिमेश रेशमिया द्वारा दिया गया है। "बन ठन" को संगीतबद्ध सुखविंदर सिंह ने किया है। बोल सुधाकर शर्मा और देव कोहली द्वारा प्रदान किये गए। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ 2000 में बनी हिन्दी फ़िल्म हिमेश रेशमिया द्वारा संगीतबद्ध फिल्में
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झेंगझोऊ
झेंगझोऊ (郑州, Zhengzhou) मध्य चीन के हेनान प्रांत की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है। यह एक उपप्रांत (प्रीफ़ेक्चर, दिजी) का दर्जा रखने वाला एक नगर है। प्राचीन चीन में यह नगर चीन की राजधानी रहा है। सन् २०१० की जनगणना में इसकी आबादी ८६,२६,५०५ अनुमानित की गई थी जिसमें से ३९,८०,२५० इसके शहरी क्षेत्र में रह रहे थे। अपने लम्बे इतिहास के कारण झेंगझोऊ में बहुत से पुरातन स्थल हैं। शहर से ५० मील दक्षिण-पश्चिम में शाओलिन मंदिर स्थित है जिसे सन् ४९५ ईसवी में भारत से आये बातुओ नामक भिक्षु के लिए निर्मित किया गया था। ५३७ ईसवी में यहाँ बोद्धिधर्म नाम का एक और भारतीय भिक्षु आकर शिक्षा देने लगा और उसने कुंग-फ़ू सिखाई। मौसम झेंगझोऊ में गर्मियों में मौसम गरम और नम होता है। जुलाई में औसत तापमान २७ °सेंटीग्रेड होता है। गर्मियों में बारिशें भी पड़ती हैं। सर्दियों में तापमान शून्य से नीचे गिर जाता है और कभी-कभी बर्फ़ गिरती है। जनवरी का औसत तापमान ०.१ °सेंटीग्रेड रहता है। इन्हें भी देखें हेनान सन्दर्भ हेनान हेनान के शहर चीन के शहर चीनी जनवादी गणराज्य के नगर
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बेहज़ाद लखनवी
बेहज़ाद लखनवी (जन्म सरदार हसन खान, 01 जनवरी 1900 – 10 अक्टूबर 1974 ) पाकिस्तान के एक उर्दू कवि और गीतकार थे। उन्होंने मुख्य रूप से नात और ग़ज़ल लिखी और कभी कभीऑल इंडिया रेडियो, दिल्ली और बाद में के लिये के बाद पाकिस्तान जाने के बाद रेडियो पाकिस्तान के लिये रेडियो नाटक लिखे। भारत छो़ड़कर जाने से पहले वह बारह साल की उम्र में मुशायरों में भाग लेते थे, जब जुल्फिकार अली बुखारी ने उन्हें ऑल इंडिया रेडियो से परिचित कराया था। उन्होंने रोटी, ताजमहल और धनवान सहित सत्रह फिल्मों के लिए नगमें लिखे। सन्दर्भ मुहाजिर लोग १९७४ में निधन 1900 में जन्मे लोग
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डॉ. रविंदर रवी
डॉ. रविंदर सिंह रवी (1943-1989), पंजाबी लेखक, साहित्यिक आलोचक, अध्यापक और वामपंथी आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता और प्रख्यात मार्क्सवादी विचारक थे। वे अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और साहित्य चिंतन के क्षेत्र में अपनी सैधान्त्क परिपक्वता के लिए जाना जाता है। जीवन रवी का जन्म 1943 में लुधियाना जिले के गांव किला हांस में हुआ। उसने स्नातक की उपाधि गवर्नमेंट कॉलेज, लुधियाना से प्राप्त की। इस के बाद वे पंजाबी युनिवर्सिटी, पटियाला आ गए। पंजाबी युनिवर्सिटी से पी एच डी पद हासिल करने वाला वह पहला विद्यार्थी था। उस ने 'पंजाबी राम-काव्य' पर अपना अनुसंधान प्रबंधन लिखा। यहाँ पंजाबी युनिवर्सिटी के पंजाबी विभाग में ही शिक्षक के रूप में उसकी नियुक्ति हो गी। पंजाबी युनिवर्सिटी के शिक्षकों के संगठन 'पंजाबी युनिवर्सिटी शिक्षक संघ (पूटा) में सक्रिय रूप से काम करते हूए वे इसका महासचिव चुना गया और अपने जीवन के आखिरी क्षण तक वे शिक्षकों के संघ की गतिविधियों में सक्रिय रूप से काम करते रहे। इसी तरह वह पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ सीनेट के सदस्य चुने गए थे। वे पंजाबी लेखकों के उत्कृष्ट संगठन 'केंद्रीय पंजाबी लेखक सभा महासचिव रहे और पंजाब में लेखकों में प्रगतिशील की नई लहर को जन्म दिया। उस ने  पंजाब के गांवों और कस्बों के साहित्यिक संगठनों में जा कर रचना प्रक्रिया और साहित्यिक सिद्धांतकारी के बारे में कई भाषण दिए। इस तरह से वह साहित्य-चिंतन-अध्ययन और साहित्य सृजन के बीच बढ़ रही खाई को कम करने के गंभीर प्रयास किये। पंजाब संकट के दिनों में उसने लेखकों में प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष विचारधारा का प्रचार प्रसारण किया। पंजाब संकट के शीर्ष के दिनों में वह अपने धर्मनिरपेक्ष सोच पर दृढ़ता से पहरा दिया और पंजाबी विश्वविद्यालय में खालिस्तान की विचारधारा की खाड़कू-अल्ट्रा प्रवृत्ति को बढने से रोका। अपनी इस प्रतिबद्धता के कारण उसे, आपना बलिदान देना पढ़ा। 19 मई 1989 को उनके घर में ही खालिस्तानी आतंकवादियों ने गोली मार कर उसकी हत्या कर दी। उसकी यादों को ज़िंदा रखने के लिए उनके प्रशंसकों ने 'डॉ. रविंदर रवी मेमोरियल ट्रस्ट, पटियाला' की स्थापना कर ली, जो हर वर्ष पंजाबी आलोचना और चिंतन के क्षेत्र में योगदान के लिए डॉ. रविंदर रवी पुरस्कार' प्रदान करता है। इसी तरह, पंजाबी विश्वविद्यालय के एक शिक्षक मंच ने उनके नाम पर 'डॉ. रविंदर सिंह रवी मेमोरियल लेक्चर' भी शुरू किया है। कुछ साल पहले पंजाबी विश्वविद्यालय के पंजाबी विभाग द्वारा भी 'डॉ. रविंदर सिंह रवि मेमोरियल लेक्चर सीरीज' शुरू करने का निर्णय किया गया था। योगदान डॉ. रविंदर सिंह रवी पंजाबी साहित्यिक आलोचना की दूसरी पीढ़ी के प्रमुख मार्क्सवादी आलोचक थे। उनकी रुचि साहित्य, सिद्धांत और कविता के क्षेत्र में ज़ियादा थी। इसके अलावा उस ने पंजाबी संस्कृति के सौंदर्यशास्त्र और पंजाबी भाषा के विकास की समस्याओं के बारे में बहुत मौलिक विचार प्रस्तुत किये।वे पंजाबी के शायद एक ही ऐसा आलोचक है जिसने उस आलोचना प्रणाली के बारे में एक मुक्न्म्ल किताब लिखी जिस के प्रति उसका दृष्टिकोण आलोचनातमक था। पंजाबी में आम रूप में साहित्यिक आलोचना प्रणालियों के बारे में लिखी गई पुस्तकों वर्णनात्मक और प्रशंसात्मक हैं क्योंकि यह उन आलोचना प्रणालियों के समर्थकों या अनुयायियों द्वारा लिखी गई हैं। रवी ने नवीन अमेरिकी आलोचना प्रणाली के मुख्य विचारकों क्लीन ब्रूक्स, विम्सैट, एलन टेट और आई ए रिचर्ड्स की रचनाएँ का आलोचनातमक विश्लेषण किया है और साहित्यिक पाठ के अध्ययन में इन विचारकों की अवधारणाओं और मॉडलों की प्रासंगिकता के सवाल को निपटने की कोशिश की है। मुख्य पुस्तकें पंजाबी-राम-कविता विरसा और वर्तमान नवीन अमेरिकी आलोचना प्रणाली प्रगतिवाद और साहित रवी चेतना (उनके शोध पत्रों का संपादित संग्रह) सन्दर्भ पंजाबी लेखक
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ऐल्कोहॉल
ऐल्कोहॉल (अंग्रेज़ी: Alcohol), कार्बनिक यौगिक से एक या एक से अधिक हाइड्रोजन परमाणु का प्रतिस्थापन एक या एक से अधिक -O-H समूह द्वारा कर दिया जाए तो बनने वाले यौगिक अल्कोहल कहलाते है। यौगिक मे उपस्थित -OH समूह की संख्या के आधार पर इसे चार भागो मे बाँटा गया है। मोनो हाइड्रिक अल्कोहल डाइ हाइड्रिक अल्कोहल ट्राई हाइड्रिक अल्कोहल पॉली हाइड्रिक अल्कोहल मोनो हाइड्रिक अल्कोहल :- जब कार्बनिक यौगिक से एक हाइड्रोजन परमाणु का प्रतिस्थापन एक -OH समूह द्वारा कर दिया जाता है तो इससे प्राप्त अल्कोहल मोनो हाइड्रिक अल्कोहल कहलाती है। इसे जल का मोनो एल्किल व्युत्पन्न माना जाता है। इसका सामान्य सूत्र CnH2n+1OH है। इसे तीन भागो मे बाँटा गया है :- प्राथमिक ऐल्कोहॉल :- जब प्राथमिक कार्बन से हाइड्रोजन परमाणु का प्रतिस्थापन -OH समूह द्वारा कर दिया जाता है तो प्राथमिक अलकोहल बनता है। जैसे :- मेथेनॉल। द्वितीयक ऐल्कोहॉल :- जब द्वितीयक कार्बन से हाइड्रोजन परमाणु का प्रतिस्थापन -OH समूह द्वारा कर दिया जाता है तो द्वितीयक अल्कोहल बनता है। जैसे :- 2-प्रोपेनॉल तृतीयक ऐल्कोहॉल :- जब तृतीयक कार्बन से हाइड्रोजन परमाणु का प्रतिस्थापन -OH समूह द्वारा कर दिया जाता है तो तृतीयक अल्कोहल बनता है। जैसे :- मेथिल प्रोपेन 2-ऑल। ऐल्कोहॉल का नामकरण Methal---al---=methenol निर्माण ऐल्कोहॉल के निर्माण की कई विधियाँ है :- एल्कीन के जलयोजन से:- जब एल्कीन पर जल की अभिक्रिया तनु H2SO4 की उपस्थिति में की जाती है तो अल्कोहल बनता है। CH2=CH2 + H2O → CH3-CH2OH ग्रीन्यार अभिकर्मक से :- ग्रीन्यार अभिकर्मक पर जब ऑक्सीज़न की क्रिया की जाती है तो योगत्पाद बनता है, जिसका जल योजन करवाने पर अल्कोहल बनता है। उद्योग में ऐल्कोहल उद्योग में मेथिल एल्कोहल तथा एथिल एल्कोहल का प्रमुख स्थान है। कुछ समय पहले तक व्यापारिक मात्रा में मेथिल ऐल्कोहल केवल लकड़ी के शुष्क आसवन द्वारा ही प्राप्त किया जाता था। इस विधि में लकड़ी को लोहे के बड़े-बड़े बकयंत्रों (रिटॉर्टों) में, जिनमें शीतक लगे रहते हैं, हवा की अनुपस्थिति में ५००° सेंटीग्रेड पर गर्म करने से निम्नलिखित पदार्थ बनते हैं : (क) काष्ट गैंस यह गैसों का मिश्रण तथा एक उपयोगी ईधंन है। इसमें मिथेन, कार्बन मोनोक्साइड और हाइड्रोजन की मात्रा अधिक तथा एथेन, अथिलीन और ऐसिटिलीन की मात्रा कम होती है। (ख) एक द्रव-स्रव (डिस्टिलेट) जो स्थिर होने पर दो परतों में अलग हो जाता है। ऊपरवाले द्रव परत को पाइरोलिगनस अम्ल कहते है; इसमें ऐसिटिक अम्ल १०% तक, मेथिल ऐल्कोहल २ से ४% तक तथा अन्य पदार्थ, जैसे ऐसिटोन आदि अति न्यूना मात्रा में होते हैं। नीचे की काली परत को काष्ट तारकोल कहते हैं; इसमें फिनोल श्रेणी के तथा कुछ दूसरे यौगिक रहते हैं। (ग) लकड़ी का कोयला जो बकयंत्रों से बच रहता है। पाइरोलिगनस अम्ल में से अम्ल कैल्सियम ऐसिटेट के रूप में अलग कर लिया जाता है; अब जो द्रव बच रहता है उसमें से चूने की बरी द्वारा ऐसीटोन अलग कर लेते हैं। इस काष्ट स्पिरिट में शुद्ध मेथिल ऐल्कोहल ७० से ८०% तक होता है। इस विधि में व्यय अधिक तथा ऐल्कोहल की प्राप्ति कम होती है। अत: उद्योग के लिए ऐल्कोहल संश्लेषण विधि द्वारा तैयार करते हैं। पचास या इससे अधिक वायुमंडल दाब पर जल-गैस को किसी उपयुक्त उत्प्रेरक (ज़िंक आक्साइड+क्रोमियम आक्साइड; या ज़िंक आक्साइड+ताम्र आक्साइड) के साथ ४००° सें. पर गर्म करने से मेथिल ऐल्कोहल बनता है। मेथिल ऐल्कोहल तीव्र विषैला पदार्थ है। अत: इसका मुख्यतम उपेयाग एथिल ऐल्कोहल को अपेय बनाने के लिए होता है। लाह और रेज़िन के लिए, जिनका उपयेग वार्निश तथा पॉलिश के उद्योग में होता है यह एक उपयुक्त विलेयक है। इसका आक्सीकरण करने से फार्मैलिल्डऐमाइन, कृत्रिम रंग, औषधि तथा सुगंधित पदार्थों के निर्माण में भी इसका अधिक उपयोग होता है। प्रमुख ऐल्कोहॉल एथिल ऐल्कोहल C²H⁵OH सन्दर्भ इन्हें भी देखें अल्कोहलीय ईंधन अल्कोहलीय पेय बाहरी कड़ियाँ अल्कोहल फंक्शनल समूह अल्कोहल
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मार्ली एण्ड मी (फिल्म)
मार्ली एण्ड मी , डेविड फ्रैन्केल द्वारा निर्देशित, 2008 की एक अमेरिकी ड्रामेडी फिल्म है। स्कॉट फ्रैंक और डॉन रूस की पटकथा, जॉन ग्रोगन के इसी शीर्षक वाले संस्मरण पर आधारित है। इस फिल्म को 25 दिसम्बर 2008 को संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में रिलीज़ किया गया था जिसने टिकटों की बिक्री से 14.75 मिलियन डॉलर की आय के साथ अब तक के सबसे बड़े क्रिसमस डे बॉक्स ऑफिस के लिए कीर्तिमान स्थापित किया। कथानक जॉन और जेनी ग्रोगन अपनी शादी के तुरंत बाद कठोर सर्दियों के मौसम में मिशिगन से भाग जाते हैं और दक्षिणी फ्लोरिडा में एक झोपड़ी में जाकर रहने लगते हैं जहां उन्हें प्रतिस्पर्धी समाचारपत्रों के पत्रकारों के रूप में नियुक्त किया जाता है। द पाम बीच पोस्ट में जेनी को तुरंत सामने के प्रमुख पृष्ठ का काम मिल जाता है जबकि साउथ फ्लोरिडा सन-सेंटिनल में जॉन को स्थानीय कूड़े के ढ़ेर में लगी आग जैसे सांसारिक समाचारों के बारे में दो-अनुच्छेदों वाले लेख और मृतविवरणों को लिखने का काम मिलता है। जब जॉन को एहसास होता है कि जेनी मां बनने के बारे में सोच-विचार कर रही है, तो उसके दोस्त और साथ में काम करने वाला सेबस्टियन ट्यूनी (एरिक डेन) दोनों को यह देखने के लिए एक कुत्ते को गोद लेने की सलाह देता है कि वे परिवार बढ़ाने के लिए तैयार हैं या नहीं. एक साथ पैदा हुए नवजात पीले लैब्राडोर रिट्रीवरों (कुत्तों) में से वे मार्ली (जिसका नामकरण रेगी गायक बॉब मार्ली के नाम पर किया गया था) का चयन करते हैं, जो बहुत जल्द एक असुधार्य कुत्ता साबित होता है। वे उसे सुश्री कॉर्नब्लट (कैथलीन टर्नर) के पास ले जाते हैं, जिन्हें पूरा विश्वास है कि किसी भी कुत्ते को प्रशिक्षित किया जा सकता है, लेकिन जब मार्ली आदेशों का पालन करने से मना कर देता है, तब वह उसे अपनी कक्षा से बाहर निकाल देती हैं। संपादक आर्नी क्लेन (एलन आर्किन) जॉन को सप्ताह में दो बार प्रकाशित होने वाला एक कॉलम (स्तम्भ) प्रदान करते हैं जिसमें वह दैनिक जीवन की मजेदार बातों और दोषों पर विचार-विमर्श कर सके। शुरू में विषय-सामग्रियों के लिए डींग हांकने वाले जॉन को समझ में आता है कि मार्ली के दुष्ट कारनामे उसकी पहली रचना के लिए एकदम सही विषय बन सकते हैं। आर्नी राजी हो जाता है और जॉन अपनी नई स्थिति में सामंजस्य स्थापित कर लेता है। मार्ली घर में तबाही मचाता रहता है जिससे जॉन को अपने कॉलम के लिए विषय-सामग्रियों का खजाना मिल जाता है जिसे पाठक काफी पसंद करने लगते हैं और इससे समाचारपत्र की खपत को बढ़ाने में मदद मिलती है। जेनी गर्भवती हो जाती है, लेकिन अपनी पहली तिमाही के आरम्भ में ही वह अपना बच्चा खो देती है। वह और जॉन एक विलम्बित हनीमून के लिए आयरलैंड की यात्रा पर निकलते हैं और अपने उस उपद्रवी कुत्ते को एक जवान महिला की देखभाल में छोड़ जाते हैं जिसे नियंत्रित करना उस महिला के लिए असंभव जान पड़ता है, ख़ास तौर पर बार-बार होने वाले बादलों की गर्जन के दौरान उसे नियंत्रित करना उसके लिए और भी मुश्किल होता है। अपनी छुट्टियां बिताकर लौटने के तुरंत बाद जेनी को पता चलता है कि वह फिर से गर्भवती है और इस बार वह एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देती हैं जिसका नाम पैट्रिक रखा जाता है। जब उसका दूसरा बेटा होता है, जिसका नाम कॉनर रखा जाता है, तो वह अपनी नौकरी छोड़ने का विकल्प चुनती है और एक घर पर रहने वाली मां बन जाती है और वेतन वृद्धि के लिए दैनिक कॉलम लेने के लिए जॉन को उत्साहित करती है। अपराध दर की वजह से दोनों बोका रेटन के सुरक्षित पड़ोस में एक बड़े से घर में जाने का फैसला करते हैं, जहां मार्ली को पिछवाड़े के तालाब में तैरने में ख़ुशी मिलती है। हालांकि जेनी इस बात से इनकार करती है कि वह प्रसवोत्तर अवसाद के दौर से गुजर रही है, लेकिन उसमें इसके सभी लक्षण साफ़ दिखाई देते हैं जिसमें मार्ली और जॉन को लेकर बढ़ रही उसकी अधीरता भी शामिल है। जॉन सेबस्टियन को कुत्ते की देखभाल करने के लिए कहता है जबकि जेनी उसे दान कर देने की जिद करती है। बहुत जल्द उसे समझ में आता है कि वह परिवार का एक अभिन्न अंग बन गया है और वह उसे वहीं अपने घर में रखने की बात पर राजी हो जाती है। सेबस्टियन, द न्यूयॉर्क टाइम्स की तरफ से मिलने वाली नौकरी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है और चला जाता है। कुछ साल बाद, जॉन और जेनी अपने परिवार में एक बेटी का स्वागत करते हैं जिसका नाम कॉलीन रखा जाता है। जॉन अपना 40वां जन्मदिन मनाता है। अपने काम से उत्तरोत्तर विरक्त होने के बाद वह जेनी के आशीर्वाद से द फिलाडेल्फिया इन्क्वायरर के साथ एक पत्रकार के के रूप में काम करने के प्रस्ताव को स्वीकार करने का फैसला करता है और वह अपने परिवार सहित ग्रामीण पेन्सिल्वेनिया के एक फार्म में स्थानांतरित हो जाता है। जॉन को बहुत जल्द समझ में आता है कि वह एक पत्रकार की तुलना में एक बेहतर कॉलमनिस्ट (स्तंभकार) है और अपने सम्पादक के सामने वह कॉलम का विचार रखता है। उनका जीवन तब तक सुखद बना रहता है जब तक बूढ़े हो रहे मार्ली में गठिया और बहरेपन के लक्षण दिखाई नहीं देने लगते हैं। गैस्ट्रिक डिलटेशन वॉलन्यूलस के दौरे में वह लगभग मरणासन्न हो जाता है, लेकिन वह ठीक हो जाता है। जब दूसरा दौरा पड़ता है, तो यह बात साफ़ हो जाती है कि सर्जरी से उसे कोई मदद नहीं मिलेगी और मार्ली जॉन की बगल में चैन की मौत मर जाता है। अपने आंगन में एक पेड़ के नीचे अपने प्यारे पालतू जानवर को दफनाकर वे उसके प्रति अपना अंतिम सम्मान व्यक्त करते हैं। निर्माण इस फिल्म में एक कुत्ते के जीवन के 14 वर्षों का फिल्मांकन होने की वजह से 22 अलग-अलग पीले लैब्राडोर कुत्तों ने मार्ली की भूमिका निभाई. फिल्म की शूटिंग पेन्सिल्वेनिया के वेस्ट चेस्टर और फिलाडेल्फिया के अलावा फ्लोरिडा के वेस्ट पाम बीच, फोर्ट लॉडरडेल, हॉलीवुड, मियामी और डॉल्फिन स्टेडियम के लोकेशन में हुई थी। फिल्म के स्कोर को थियोडोर शैपिरो ने कम्पोज़ किया था जिन्होंने पहले द डेविल वियर्स प्राडा पर निर्देशक डेविड फ्रैन्केल के साथ काम किया था। उन्होंने इसकी रिकॉर्डिंग 20थ सेंचुरी फॉक्स (20th Century Fox) के न्यूमैन स्कोरिंग स्टेज के हॉलीवुड स्टूडियो सिम्फनी (Hollywood Studio Symphony) के साथ की। जॉन ग्रोगन के साथी और दक्षिण फ्लोरिडा के हास्य स्तंभकार, डेव बैरी, ग्रोगन के 40वें जन्मदिन के अवसर पर आयोजित सरप्राइज़ पार्टी में एक अतिथि के रूप में एक अनाकलित कैमियो भूमिका निभाते हैं। कलाकारगण ओवेन विल्सन - जॉन ग्रोगन जेनिफर एनिस्टन - जेनी ग्रोगन एरिक डेन - सेबस्टियन ट्यूनी एलन आर्किन - आर्नी क्लेन हैली हडसन - डेबी हैली बेनेट - लिसा कैथलीन टर्नर - सुश्री कॉर्नब्लट नाथन गैंबल - पैट्रिक ग्रोगन (10 वर्षीय) ब्राइस रॉबिन्सन - पैट्रिक ग्रोगन (7 वर्षीय) डायलन हेनरी - पैट्रिक ग्रोगन (3 वर्षीय) फिनले जैकबसेन - कॉनर ग्रोगन (8 वर्षीय) बेन हायलैंड - कॉनर ग्रोगन (5 वर्षीय) लुसी मरियम - कॉलीन ग्रोगन आलोचनात्मक अभिग्रहण मार्ली एण्ड मी को मिश्रित से लेकर सकारात्मक समीक्षाएं प्राप्त हुई। रॉटन टोमैटोज़ पर इस फिल्म ने 61% फ्रेश रेटिंग और मेटाक्रिटिक पर 53% सकारात्मक रेटिंग प्राप्त करने में कामयाबी हासिल की है। वेराइटी के टॉड मैकार्थी ने कहा कि फिल्म "उतना ही व्यापक और स्पष्ट है जितना व्यापक और स्पष्ट यह हो सकता था, लेकिन यह सब कुछ यह अपने खुशमिजाज सुन्दर सितारों, ओवेन विल्सन और जेनिफर एनिस्टन, के दरम्यान जोशीले रसायन और अंतिम रील की अचल भावना-दोहन की मदद से अपने बलबूते पर प्रदान करता है। यहां फॉक्स का एक विजेता है, जिसकी चंगुल से बिल्लियों को छोड़कर लगभग कोई नहीं बच सकता है।.. एनिमेटेड और भावनात्मक रूप से सुलभ, एनिस्टन अपने अधिकांश फीचर फिल्मों की तुलना में यहां बेहतर प्रदर्शन प्रस्तुत करती है और विल्सन फिल्म के कमजोर क्षणों में भी अच्छी तरह से उसका सामना करता है, वह साबित कर देता है कि उसे आमने-सामने की अशिष्टता की तुलना में अपरिहासशील सामग्रियों वाला थोड़ा कम ख़ास आधार प्राप्त हुआ है। द हॉलीवुड रिपोर्टर की किर्क हनीकट के अनुसार "शायद ही कभी किसी स्टूडियो रिलीज़ में इतना कम नाटक होता है - और सिर्फ उस दृश्य को छोड़कर इसमें बहुत ज्यादा कॉमेडी भी नहीं है, जब कुत्ता मसखरी करता है।.. विवाह की चुनौतियों या करियर और परिवार के बीच संतुलन स्थापित करने के बारे में मार्ली [जो] कुछ भी बनना चाहता है, वह सब पालतू जानवर की चालों से शामिल हो जाता है। कुत्ते को चाहने वाले लोग परवाह नहीं करेंगे और मूल रूप से वे ही फिल्म के दर्शक हैं। फॉक्स की दृष्टि से, यह काफी हो सकता है।.. मार्ली एण्ड मी एक गर्म और धुंधली फिल्म है लेकिन आप चाहते हैं कि कम से कम एक बार कोई कुत्ते को चुनौती दे." शिकागो सन-टाइम्स के रोजर एबर्ट ने फिल्म को "एक सुखद पारिवारिक फिल्म" बताया और कहा कि, "विल्सन और एनिस्टन प्रदर्शित करते हैं क्योंकि वे प्रतिभाशाली हास्य अभिनेता हैं। उनका जो रिश्ता है वह बहुत ज्यादा हास्यमय भी नहीं है और न ही बहुत ज्यादा भावुक है, बल्कि ज्यादातर स्मार्ट और यथार्थवादी है", जबकि एंटरटेनमेंट वीकली के ओवेन ग्लिबरमैन ने इस फिल्म को यह कहते हुए A- का दर्जा दिया कि यह "कई दशकों से इन्सान और कुत्ते के सम्बन्ध के बारे में एकमात्र सबसे प्रीतिकर और प्रामाणिक फिल्म है। हालांकि, चूंकि इसका निर्देशन डेविड फ्रैन्केल ने किया है, इसलिए यह इससे कुछ ज्यादा: पारिवारिक जीवन की खुशहाल अस्तव्यस्तता का एक शांत, मज़ेदार, हार्दिक हास्य दर्शन भी है।" सेंट पीटर्सबर्ग टाइम्स के स्टीव पर्साल भी काफी सकारात्मक थे, उन्होंने इस फिल्म को B का दर्जा दिया और टिप्पणी किया, "मार्ली एण्ड मी व्यावहारिक रूप से दुलार पाने की कामना रखने वाले एक पाउंड पिल्ले की तरह दर्शकों पर कूद पड़ता है और यह उसकी भरपाई करता है यदि यह किसी चीज़ के लायक नहीं है।.. चीज़ें अधिक भावुक या मूर्खतापूर्ण हो सकती थीं, लेकिन आम तौर पर अधिक अप्रिय सामग्रियों को सँभालने वाले फ्रैन्केल और पटकथालेखक स्कॉट फ्रैंक और डॉन रूस आसान, भीड़ को अच्छा लगने वाला खेल खेलने से मना कर देते हैं। ग्रोगन की लोगों और पालतू जानवरों में वफ़ादारी की सरल कहानी में उनकी आस्था अद्वितीय है और इसका प्रतिफल भी प्राप्त हुआ है।.. [यह] असाधारण सिनेमा नहीं है, बल्कि यह दर्शकों में से रोजमर्रा के लोगों से इस तरीके से सम्बन्ध स्थापित करता है जिसे कुछ फ़िल्में बिना कुंठित हुए करती हैं।" सैन फ्रांसिस्को क्रॉनिकल के वॉल्टर एडीगो ने कहा, "आदमी के सबसे अच्छे दोस्त को लिखा गया यह प्रेम पात्र श्वानमौजियों को लोट-पोट कर देगा और उन्हें चालाकियां करने के लिए प्रेरित करेगा. यह इतना नेकदिल है कि आप दौड़कर इस सबसे करीबी बड़े, लापरवाह कुत्ते को गले लगाना चाहेंगे. फिलाडेल्फिया इन्क्वायरर के कैरी रिकी ने भी इसकी तारीफ़ की और इस फिल्म को चार में से तीन सितारों से सम्मानित किया और कहा, "मार्ली एण्ड मी इस धारणा पर संचालित है कि ख़ुशी एक गर्म जिह्वा स्नान है। और इस विश्वास का समर्थन करने वाले इस झबरा कुत्ते की कहानी का मजा लेंगे... वास्तविक संरचना एक मनोरंजक फिल्म के लिए नहीं है। एक बात है, तब तक कोई विवाद पैदा नहीं होता है जब तक आप एक आदमी और उसके अप्रशिक्षणयोग्य कुत्ते के बीच के तनाव पर ध्यान नहीं देते हैं। फिर भी मार्ली, जानवरों के चुम्बकत्व को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है।.. चापलूसीभरा? कभी-कभी. लेकिन अक्सर बहुत हास्यापद और कभी-कभी बहुत हृदयग्राही. हालांकि इस फिल्म की आलोचना भी की गई थी, लॉस एंजिलिस टाइम्स के बेट्सी शार्की ने इसे "एक अपूर्ण, गन्दा और कभी-कभी कोशिश करने वाला फिल्म बताया जिसमें सैकरीन और उदासी के बीच में छिड़के गए विशुद्ध मिठास और हास्य के क्षण हैं।" द गार्जियन के पीटर ब्रेडशॉ पर इस फिल्म का कोई प्रभाव नहीं पड़ा जिन्होंने इस फिल्म को पांच में से एक सितारे से सम्मानित किया और टिप्पणी किया, "इस रुआंसे बुरा लगने वाले कॉमेडी में दयाहीन भावुक घिनौना और मूर्खतापूर्ण रूढ़िबद्धता ने मुझे इस फिल्म की एक उबलते गर्म नाक के समकक्ष आलोचना करने पर मजबूर कर दिया," जबकि द ऑब्ज़र्वर के फिलिप फ्रेंच ने कहा, "क्षतिपूर्ति की विशेषता वाली ऐसी किसी चीज़ की मौजूदगी है जैसा कि विल्सन की उस भयानक भावहीन नाटकीय कलाकार एलन आर्किन नामक एक कॉमेडियन या हास्यकर के सम्पादक की है जो अपना सिर हिलाए बिना डबल-टेक कर सकता है।" अगली आलोचना मैंक्स इंडिपेंडेंट के कॉल्म एंड्रयू की तरफ से हुई जिन्होंने कहा कि "मार्ली खुद आश्चर्यजनक रूप से एक-आयामी है" और अंत अति-भावनात्मक था, जो "दिल को कष्ट देने वाली दया से सरोबार था जो हमेशा एक प्रतिक्रिया को भड़काएगा लेकिन ऐसा बिल्कुल दयारहित होता है।" मार्ली एण्ड मी को 20 फिल्मों की नामावली में 5 नंबर पर रखा गया जो लोगों को रूला देता है। बॉक्स ऑफिस इस फिल्म का शुभारम्भ 25 दिसम्बर 2008 को अमेरिका और कनाडा में 3,480 परदों पर हुआ। इसने अपने रिलीज़ के पहले दिन 14.75 मिलियन डॉलर की कमाई की और 2001 में अली द्वारा स्थापित 10.2 मिलियन डॉलर के पिछले कीर्तिमान को पीछे छोड़ते हुए अब तक का सर्वश्रेष्ठ क्रिसमस डे बॉक्स ऑफिस टेक का कीर्तिमान स्थापित किया। इसने चार दिवसीय सप्ताहांत की अवधि में कुल 51.7 मिलियन डॉलर की कमाई की और बॉक्स ऑफिस पर इसने #1 का स्थान प्राप्त किया जहां यह दो सप्ताह तक बना रहा। 13 अगस्त 2009 तक के आंकड़ों के अनुसार इसने अमेरिका में कुल 143,153,751 डॉलर और विदेशी बाजारों में कुल 99,563,362 डॉलर की कमाई की और इस तरह इसने दुनिया भर के बॉक्स ऑफिस में कुल 242,717,113 डॉलर की कमाई की। पुरस्कार और नामांकन होम मीडिया रिलीज 20थ सेंचुरी फ़ॉक्स होम एंटरटेनमेंट (20th Century Fox Home Entertainment) ने इस फिल्म को 31 मार्च 2009 को डीवीडी और ब्लू-रे डिस्क पर रिलीज़ किया। दर्शकों के पास एक एकल डिस्क और एक दो-डिस्क वाले सेट का विकल्प है जिसे बैड डॉग एडिशन कहा जाता है। यह फिल्म एनामॉर्फिक वाइडस्क्रीन फॉर्मेट में है जिसके ऑडियो ट्रैक अंग्रेज़ी, फ्रेंच और स्पेनिश में और उपशीर्षक अंग्रेज़ी और स्पेनिश में हैं। दो-डिस्क वाले सेट के बोनस फीचर में फाइंडिंग मार्ली, ब्रेकिंग द गोल्डन रुल, ऑन सेट विथ मार्ली: डॉग ऑफ़ ऑल ट्रेड्स, एनीमल एडॉप्शन, व्हेन नॉट टु पी, हाउ मेनी टेक्स, एक गैग रील और पुरिना डॉग चाऊ वीडियो हॉल ऑफ़ फेम और मार्ली एण्ड मी वीडियो प्रतियोगिता के अंतिम दौर का समावेश है। इसकी डीवीडी की कुल 3,514,154 प्रतियों की बिक्री हुई है जिससे बिक्री राजस्व के रूप में 61.41 मिलियन डॉलर प्राप्त हुआ है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ 2008 की फ़िल्में 2000 के दशक की हास्य फिल्में अमेरिकी हास्य-नाट्य फ़िल्में कुत्तों पर आधारित फ़िल्में वास्तविक घटनाओं पर आधारित फिल्में गैर-कल्पनात्मक पुस्तकों पर आधारित फिल्में फ्लोरिडा में सेट की गई फ़िल्में फ्लोरिडा में शूट की गई फ़िल्में पेन्सिल्वेनिया में सेट की गई फ़िल्में पेन्सिल्वेनिया में शूट की गई फ़िल्में 1980 के दशक में सेट की गई फ़िल्में 1990 के दशक में सेट की गई फ़िल्में 20थ सेंचुरी फ़ॉक्स की फ़िल्में रीजेंसी फ़िल्में श्रेष्ठ लेख योग्य लेख गूगल परियोजना
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क़ादियां
क़ादियां भारत के पंजाब राज्य के गुरदासपुर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का चौथा बड़ा शहर और नगर निगम है, और अमृतसर से पूर्वोत्तर दिशा में स्थित है। यह स्थान पंडित लेखराम नगर के नाम से भी जाना जाता है। इतिहास सन् 1530 में मिर्ज़ा हादी बेग़ ने इस नगर को बसाया था, जिनका परिवार मुग़ल शासक बाबर के काल में समरक़न्द से भारता आया था। संस्था के संस्थापक ने 13 मार्च 1903 में इसकी नींव रखी। क़ादियाँ को अहमदिय्या मुस्लिम जमात की नींव रखने वाले मिर्ज़ा हादी बेग़ का जन्मस्थान होने पर यह वैश्विक स्तर पर पहचान रखता है। अहमदिया जमात मुख्य दफ़्तर यहाँ है। आर्य समाज का इतिहास यह नगर आर्य समाज के कारण भी प्रमुख रहा है। पंडित लेखराम जी ने इस नगर मे आर्यसमाज की स्थापना की थी और साथ ही साथ गौ रक्षा के लिए बहुत कार्य किया और यहीं उनका बलिदान हुआ. इन्हें भी देखें अहमदिया धर्म मिर्ज़ा हादी बेग़ गुरदासपुर ज़िला सन्दर्भ पंजाब के शहर गुरदासपुर ज़िला गुरदासपुर ज़िले के नगर अहमदिया धर्म
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आदियोगी शिव प्रतिमा
आदियोगी शिव प्रतिमा, शंकर की ११२ फ़ीट की ऊँची प्रतिमा है जो कोयम्बटूर में वर्ष २०१७ में स्थापित की गयी थी। इसकी अभिकल्पना (डिजाइन) सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने की है। सद्गुरु का विचार है कि यह प्रतिमा योग के प्रति लोगों में प्रेरणा जगाने के लिये हैं, इसीलिये इसका नाम 'आदियोगी' (=प्रथम योगी) है। शिव को योग का प्रवर्तक माना जाता है। उल्लेख आदियोगी शिव ईशा योग परिसर में स्थित है, जो पश्चिमी घाटों की एक श्रृंखला, वेल्लियन्गिरि पर्वत की तलहटी में तमिलनाडु के कोयम्बटूर में ध्यानलिंग पर स्थित है। प्रतिमा को दो साल और आठ महीने में तैयार किया गया था। प्रतिमा की ऊंचाई, 112 फीट (34 मीटर), सद्गुरु ने यह भी कहा कि ऊंचाई मानव तंत्र में 112 चक्रों का प्रतिनिधित्व करती है। ईशा फाउंडेशन, वाराणसी, मुंबई और दिल्ली में भारत के पूर्वी, पश्चिमी और उत्तरी हिस्सों में ऐसी तीन मूर्तियों को खड़ा करने की योजना बना रही है। सबसे ऊंची शिव प्रतिमा, नेपाल में कैलाशनाथ महादेव प्रतिमा है, जो कि राजधानी काटमांडु के पूर्व में 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो कि 44 मीटर (143 फीट) लंबा है। पीएम नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को महाशिवरात्रि के पावन मौके पर ईशा योग केंद्र में भगवान शिव के 112 फुट ऊंचे चेहरे का अनावरण किया। ईशा फाउंडेशन की विज्ञप्ति के मुताबिक धरती के इस सबसे विशाल चेहरे की प्रतिष्ठा मानवता को आदियोगी शिव के अनुपम योगदान के सम्मान में की गई है। भगवान शिव के इस विशाल चेहरे को सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने डिजाइन किया है। भारत स्थित प्रतिमाएँ
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जोनास हेनरिक्सन (क्रिकेटर)
जोनास हेनरिक्सन (जन्म 17 अप्रैल 2000) एक डेनिश क्रिकेटर हैं। अप्रैल 2018 में, उन्हें मलेशिया में 2018 आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन चार टूर्नामेंट के लिए डेनमार्क की टीम में नामित किया गया था। वह डेनमार्क के टूर्नामेंट के चौथे मैच में युगांडा के खिलाफ खेले। सितंबर 2018 में, उन्हें ओमान में 2018 आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन थ्री टूर्नामेंट के लिए डेनमार्क के दस्ते में नामित किया गया था। मई 2019 में, ग्वेर्नसे में 2018-19 आईसीसी टी20 विश्व कप यूरोप क्वालीफ़ायर टूर्नामेंट के क्षेत्रीय फ़ाइनल की तैयारी में, आयरलैंड में लीनस्टर लाइटनिंग के खिलाफ पांच मैचों की श्रृंखला के लिए डेनमार्क के दस्ते में नामित किया गया था। अगस्त 2019 में, उन्हें 2019 मलेशिया क्रिकेट विश्व कप चैलेंज लीग ए टूर्नामेंट के लिए डेनमार्क की टीम में नामित किया गया था। उन्होंने 16 सितंबर 2019 को क्रिकेट विश्व कप चैलेंज लीग ए टूर्नामेंट में मलेशिया के खिलाफ डेनमार्क के लिए अपनी लिस्ट ए की शुरुआत की। सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B9%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A3
पंजदेह प्रकरण
पंजदेह (अब तुर्कमेनिस्तान का सेरहेताबत) भारत के पड़ोसी देश अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पर स्थित एक गाँव तथा ज़िला। यह मर्व नगर से 100 मील की दूरी पर दक्षिण में स्थित है। इतिहास में पंजदेह अपने सामरिक महत्त्व के कारण काफ़ी प्रसिद्ध था। एक समय ऐसा भी आया, जब इस जगह को लेकर रूस तथा इंग्लैण्ड आमने-सामने आ गए और उनमें युद्ध की भी सम्भावना प्रबल हो गई। पंजदेह प्रकरण (1885) ने रूस और ब्रिटेन के मध्य कूटनीतिक संकट पैदा कर दिया था। उस वक्त रूस और अफगानिस्तान के बीच सीमा को लेकर विवाद चल रहा था। 29 मार्च 1885 को रूसी सेना ने कुश्क नदी के पूर्वी तट पर पंजदेह (अब तुर्कमेनिस्तान का सेरहेताबत) में डेरा डालते हुए अफगान फौजों से पीछे हटने के लिए कहा। उनके ऐसा न करने पर रूसी सेना ने 30 मार्च को उन पर हमला करते हुए उन्हें पुल-इखिश्ति सेतु तक खदेड़ दिया। रूसी सेना के इस कदम से ब्रिटेन उत्तेजित हो उठा, जो उस वक्त रूस की तरह मध्य व दक्षिण एशिया में अपना प्रभुत्व बढ़ाने में लगा था। यदि ये युद्ध होता तो निश्चित रूप से दो शक्तियों के बीच अफ़ग़ानिस्तान ही युद्ध का मैदान बन जाता और उसे बहुत नुकसान उठाना पड़ता, किंतु अफ़ग़ानिस्तान के अमीर अब्दुर्रहमान की बुद्धिमानी से युद्ध टल गया। इंग्लैण्ड-रूस युद्ध की आशंका 1884 ई. में रूसियों ने मर्व पर अधिकार कर लिया, जो अफ़ग़ानिस्तान की सीमा से 150 मील की दूरी पर स्थित है। कुछ अंग्रेज़ सैनिक अधिकारी तथा राजनीतिज्ञ झूठमूठ पंजदेह को बहुत अधिक सामरिक महत्त्व प्रदान कर रहे थे। अत: मर्व पर रूस का अधिकार हो जाने से इंग्लैण्ड में भारी खलबली मच गई। 1885 ई. में रूसी अफ़ग़ान सीमा की ओर और अधिक आगे बढ़े और उन्होंने मार्च, 1885 ई. में अफ़ग़ानों को पंजदेह से निकाल दिया। इससे इंग्लैण्ड में बेचैनी और बढ़ गई। अंग्रेज़ों को अफ़ग़ानिस्तान पर रूसी हमले का भय होने लगा। अत: उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान के मित्र तथा रक्षक होने का नाटक करके, किंतु वास्तव में अफ़ग़ानिस्तान न होकर भारत की दिशा में आगे बढ़ने से रोकने के लिए, रूसियों की इस कारवाई पर गहरी नाराजगी प्रकट की और इस बात की आशंका की जाने लगी कि पंजदेह के प्रश्न को लेकर इंग्लैण्ड और रूस में लड़ाई छिड़ जायेगी। अब्दुर्रहमान की बुद्धिमता इस घटना के वक्त रावलपिंडी में ब्रिटिश भारत के वायसराय लॉर्ड डफरिन के साथ बैठक कर रहे अफगानिस्तान के तत्कालीन शासक अब्दुल रहमान ने इसे महज एक सीमांत संघर्ष बताया, लेकिन लॉर्ड रिपन (डफरिन के पूर्ववर्ती) जैसे ब्रिटिश मंत्रियों का यही मानना था कि उस इलाके से अफगान फौजों के हटने से वहां अराजक हालात पैदा हो सकते हैं और रूस की दखलंदाजी आगे भी बढ़ सकती है। हालांकि अमीर अब्दुर्रहमान की बुद्धिमता से यह लड़ाई टल गई। उसने दूरदर्शिता से यह समझ लिया था कि यदि पंजदेह के प्रश्न पर इंग्लैण्ड और रूस के बीच लड़ाई हुई तो अफ़ग़ानिस्तान युद्धभूमि बन जायेगा और वह इस विपत्ति को दूर रखना चाहता था। उसने घोषणा की कि यह निश्चित नहीं है कि पंजदेह वास्तव में अफ़ग़ानिस्तान का हिस्सा है और यदि पंजदेह और अफ़ग़ानिस्तान के बीच जुल्फिकार दर्रे पर उसका अधिकार मान लिया जाये तो उसे संतोष हो जायेगा। अमीर अब्दुर्रहमान के इस समझौतापरक रवैये से ब्रिटिश सरकार को अपना रवैया बदलना पड़ा। सीमा कमीशन इस घटना के बाद अफगानिस्तान की उत्तरी सीमा के निर्धारण के लिए एंग्लो-रशियन सीमा आयोग गठित किया गया। इस आयोग में कोई अफगानी नहीं था, जिससे आगे चलकर अफगानिस्तान ब्रिटिश भारत और रूसी साम्राज्य के बीच बफर स्टेट बनकर रह गया। उसने जिस सीमा रेखा कि सिफारिश की, उसे 1887 ई. में स्वीकार कर लिया गया। इस सीमा रेखा के अनुसार पंजदेह पर रूसियों का अधिकार और जुल्फिकार दर्रे पर अफ़ग़ानिस्तान का अधिकार मान लिया गया। इस सिफारिश के अनुसार पामीर की दिशा में रूसियों के बढ़ाव पर कोई रोक टोक नहीं लगायी गई। सन्दर्भ इतिहास एशिया का इतिहास अफ़ग़ानिस्तान का इतिहास
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2%20%28%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%29
चौपाल (सार्वजनिक स्थान)
चौपाल (چوپال) उत्तर भारत और पाकिस्तान में ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक भवन अथवा स्थान को कहा जाता है। यह ग्रामीणों, विशेष रूप से पुरुष निवासियों के लिए सामुदायिक जीवन का केन्द्र होता है। छोटे गाँवों में यह नीम, बरगद अथवा पीपल के पेड़ की छाया में साधारण चबुतरे पर ही होती है। बड़े गाँवों में सामुदायिक अतिथि गृह (अथवा मेहमान ख़ाना) के रूप में विस्तृत सरंचना भी हो सकती है। चौपाल का निर्माण और रखरखाव सामुदायिक कोष से किया जाता है जो कई बार गाँव के समुदायों से चन्दे के रूप में इकट्ठा किया जाता है। सन्दर्भ भारतीय संस्कृति पाकिस्तानी संस्कृति
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%A6%E0%A5%87%20%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%AE%E0%A5%87%20%28%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%8F%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B8%29
इग्लेसिया दे सान बारतोलोमे (पुएल्लेस)
इग्लेसिया दे सान बारतोलोमे (पुएल्लेस) अस्तूरियास, स्पेन का गिरजाघर है। इसमें एक खिड़की है जो अपने से पुराने गिरजाघर की याद दिलाती है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Spain By Zoran Pavlovic, Reuel R. Hanks, Charles F. Gritzner Some Account of Gothic Architecture in SpainBy George Edmund Street Romanesque Churches of Spain: A Traveller's Guide Including the Earlier Churches of AD 600-1000 Giles de la Mare, 2010 - Architecture, Romanesque - 390 pages A Hand-Book for Travellers in Spain, and Readers at Home: Describing the ...By Richard Ford The Rough Guide to Spain स्पेन के गिरजाघर स्पेन के स्मारक
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B8%20%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97
अष्टांग विन्यास योग
अष्टांग विन्यास योग, योग की एक शैली है जिसे २०वीं शताब्दी के दौरान कृष्ण पट्टाभि जोयीस ने लोकप्रिय बनाया। इसे प्रायः परम्परागत भारतीय योग का एक आधुनिक रूप माना जाता है। कृष्ण पट्टाभि जोयीस के अनुसार उन्होंने अपने गुरु तिरुमलाई कृष्णमाचार्य से इस प्रणाली को सीखा है। योग की इस शैली में शरीर के अंगों की गति के साथ सांस को समकालिक (सिंक्रनाइज़) किया जाता है। इसके आसन , विन्यास से सम्बद्ध हैं। सन्दर्भ इन्हें भी देखें अष्टांग योग योग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%97%E0%A4%A2%E0%A4%BC
शामगढ़
शामगढ़ (Shamgarh) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के मंदसौर ज़िले में स्थित एक नगर है | यह नगर मेवाड़ में आता है तथा मालवा पठार पर स्थित हैं | शामगढ़ के संस्थापक दरबार श्यामसिंह पंवार हैं |। धर्मराजेश्वर मंदिर शामगढ़ में 9वीं शताब्दी में एक ही शिला से तराशा गया धर्मराजेश्वर मंदिर स्थापित है। यह एक 50 मीटर लम्बी, 20 मीटर चौड़ी और 9 मीटर गहरी शिला काटकर बनाया गया। इसमें गर्भगृह, सभामंडप और आंगन है। मंदिर का शिखर उत्तर भारतीय शैली में बना है और इसकी वास्तुशैली की तुलना एलोरा के कैलाश मंदिर से करी गई है। बीच में 14.53 मीटर लम्बाई और 10 मीटर चौड़ाई का एक बड़ा मंदिर स्थित है, जिसके इर्दगिर्द सात छोटे मंदिर हैं। मुख्य मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति सहित शिवलिंग स्थापित है। प्रवेशद्वार पर लक्ष्मी व विष्णु की प्रतिमाएँ तराशी हुई हैं। इनके अलावा भैरव, काली, शिव, गरुड़ और पार्वती की मूर्तियाँ हैं। मंदिर शिव व विष्णु दोनों को समर्पित प्रतीत होता है। इन्हें भी देखें मंदसौर ज़िला सन्दर्भ मध्य प्रदेश के शहर मंदसौर ज़िला मंदसौर ज़िले के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%81%20%E0%A4%A6%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%87
पुबुदु दस्सानायके
पुबुदु दस्सानायके श्रीलंका के क्रिकेट खिलाड़ी हैं। वह नेपाली राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के प्रमुख प्रशिक्षक भी रह चुके हैं। उन्होने चार बर्ष तक नेपाली क्रिकेट प्रशिक्षण की बागडोर संभाली थी। नेपाली टीम प्रशिक्षण नेपाल क्रिकेट संघ (CAN) ने नेपाली राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के प्रशिक्षक में सन् 23, अगस्त 2011 में छ महीने कार्यकाल के लिए दसानायके को नियुक्त किया था। दसानायके के कार्यकाल में नेपाल डिवीजन 3 तक के यात्रा पूरा करने सफल हुआ था। पुबुदुकी ही प्रशिक्षण काल में नेपाल ने एशोशियट टीम के रूप में अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में खोल चुका है। 2015 अक्टूबर में दसानायके ने नेपाली टीम के कोच से व्याक्तिगत कारण दिखाते हुए पीछे हटे हैं। पुबुदु ने आपने चार बर्षे पदावधी में नेपाल,के क्रिकेट के विकास में अतूलनिय योगदान दिए हैं। सन्दर्भ जीवित लोग 1970 में जन्मे लोग श्रीलंकाई क्रिकेट खिलाड़ी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%88%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BF
सालबाई की संधि
17 मई 1782 को मराठा साम्राज्य और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रतिनिधियों द्वारा प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध(1775ई.-1782ई.) को समाप्त करने के लिए लंबी बातचीत के बाद सिन्धिया ने पेशवा व अग्रेजों के मध्य सालबाई की संधि' (1782 ) करवा दी । इसकी शर्तों के तहत, कंपनी ने साल्सेट और भरूच पर नियंत्रण बनाए रखा और गारंटी ली कि मराठा मैसूर के हैदर अली को हरा देंगे और कर्नाटिक क्षेत्र को वापिस हासिल करेंगे। मराठों ने यह भी गारंटी दी कि फ्रांसीसी अपने क्षेत्रों पर बस्तियां स्थापित करने से प्रतिबंधित होंगे। बदले में, अंग्रेज़ों ने अपने शागिर्द, रघुनाथ राव को पेंशन देने पर सहमति जताई और माधवराव द्वितीय को मराठा साम्राज्य के पेशवा के रूप में स्वीकार किया। अंग्रेजों ने जुमना नदी के पश्चिम में महादजी सिंधिया के क्षेत्रीय दावों को भी मान्यता दी और पुरंदर की संधि के बाद अंग्रेजों द्वारा कब्जा किए गए सभी क्षेत्रों को मराठों को वापस दे दिया गया। सालबाई की संधि के परिणामस्वरूप 1802 में द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध छिड़ने तक मराठा साम्राज्य और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच (20 वर्ष) सापेक्ष शांति का दौर चला। डेविड एंडरसन ने ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से सालबाई की संधि का समापन किया। ये भी देखें ग्वालियर रेज़िडेन्सी संदर्भ सूत्र ओल्सन, जेम्स स्टुअर्ट और शैडल, रॉबर्ट। ब्रिटिश साम्राज्य का ऐतिहासिक शब्दकोश'' । ग्रीनवुड प्रेस, 1996।   मुम्बई का इतिहास ग्वालियर का इतिहास मराठा साम्राज्य की संधियाँ ईस्ट इंडिया कंपनी की संधियाँ भारत की शांति संधियाँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE
खसरा
खसरा श्वसन प्रणाली में वायरस, विशेष रूप से मोर्बिलीवायरस के जीन्स पैरामिक्सोवायरस के संक्रमण से होता है। मोर्बिलीवायरस भी अन्य पैरामिक्सोवायरसों की तरह ही एकल असहाय, नकारात्मक भावना वाले आरएनए वायरसों द्वारा घिरे होते हैं। इसके लक्षणों में बुखार, खांसी, बहती हुई नाक, लाल आंखें और एक सामान्यीकृत मेकुलोपापुलर एरीथेमाटस चकते भी शामिल है। खसरा (कभी-कभी यह अंग्रेज़ी नाम मीज़ल्स से भी जाना जाता है) श्वसन के माध्यम से फैलता है (संक्रमित व्यक्ति के मुंह और नाक से बहते द्रव के सीधे या वायुविलय के माध्यम से संपर्क में आने से) और बहुत संक्रामक है तथा 90% लोग जिनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं है और जो संक्रमित व्यक्ति के साथ एक ही घर में रहते हैं, वे इसके शिकार हो सकते हैं। यह संक्रमण औसतन 14 दिनों (6-19 दिनों तक) तक प्रभावी रहता है और 2-4 दिन पहले से दाने निकलने की शुरुआत हो जाती है, अगले 2-5 दिनों तक संक्रमित रहता है (अर्थात् कुल मिलाकर 4-9 दिनों तक संक्रमण रहता है). अंग्रेजी बोलने वाले देशों में खसरा का एक वैकल्पिक नाम रुबेओला है, जिसे अक्सर रुबेला (जर्मन खसरा) के साथ जोड़ा जाता है; हालांकि दोनों रोगों में कोई संबंध नहीं हैं। संकेत और लक्षण खसरे के खास लक्षणों में चार दिन का बुखार, तीनों सी -कफ (खांसी), कोरिज़ा (बहती हुई नाक) और नेत्रश्लेष्मलाशोथ (लाल आंखें) शामिल है। बुखार 40°C(104°F) तक पहुंच सकता है। खसरे के समय मुंह के अंदर दिखाई देने वाले कॉपलिक धब्बे रोगनिदानात्मक हैं, लेकिन अक्सर ये दिखाई नहीं देते हैं, यहां तक कि खसरे के असली मामलों में भी, क्योंकि वे क्षणिक होते हैं और उत्पन्न होने के एक दिन के भीतर ही गायब हो जाते हैं। खसरे के दाने, खास तौर पर व्यापक मेकुलोपापुलर, एरीथेमेटस दानों के रूप में वर्णित किये जाते हैं, जो बुखार होने के कई दिनों के बाद शुरू होते हैं। यह सिर से शुरू होता है और बाद में पूरे शरीर में फैल जाता है, इससे अक्सर खुजली होती है। इस दाने को "दाग़" कहा जाता है, जो गायब होने से पहले, लाल रंग से बदलकर गहरे भूरे रंग का हो जाता है। जटिलताएं खसरे की जटिलताएं अपेक्षाकृत साधारण ही हैं, जिसमें हल्के और कम गंभीर दस्त से लेकर, निमोनिया और मस्तिष्ककोप, (अर्धजीर्ण कठिन संपूर्ण मस्तिष्‍क शोथ), कनीनिका व्रणोत्पत्ति और फिर उसकी वजह से कनीनिका में घाव के निशान रह जाने के खतरे हैं। आमतौर पर जटिलताएं वयस्कों में ज्यादा होती हैं जो वायरस के शिकार हो जाते हैं। विकसित देशों में स्वस्थ लोगों में खसरे की वजह से मौत की दर प्रति हज़ार में तीन मौतें या 0.3% है। अविकसित देशों में कुपोषण और बुरी स्वास्थ्य सेवा की अधिकता की वजह से मृत्यु दर 28% की ऊंचाई तक पहुंच गयी है। प्रतिरक्षा में अक्षम मरीज़ों में (उदाहरण के रूप में एड्स पीड़ित लोगों में) मृत्यु दर लगभग 30% है। कारण खसरा के रोगियों को सांस लेने की सुविधाओं के साथ रखा जाना चाहिए. केवल मनुष्य ही खसरा के ज्ञात पोषक हैं, हालांकि यह वायरस गैर मानव पशु प्रजातियों को भी संक्रमित कर सकता है। मीजल्स रूबेला जीसे हम खसरा कहते है। मिजिल्स रूबेला से ग्रस्त व्यक्ति के संपर्क में आने से भी यह रोग दूसरे व्यक्ति को संक्रमणीत कर सकता है। रोगी के छीकने और खासने से यह वायरस फैलता है। छोटे शिशु को अगर निमोनिया,दस्त,क्रुप हो जाये तो यह भी एक कारण होता है। बड़े व्यक्तियों में भी यह बीमारी गंभीर रूप से होने की संभावना होती है। निदान खसरे के रोग का निदान करने के लिए कम से कम तीन दिन के बुखार के साथ ही तीन सी (खांसी, सर्दी-जुकाम, नेत्रश्लेष्मलाशोथ) (कफ, कोरिज़ा, कंजंक्टीवाइटिस) में से एक का होना अति आवश्यक है।कोप्लिक्स के दाग के निरीक्षण से भी खसरे का निदान हो सकता है। वैकल्पिक रूप से, खसरे का प्रयोगशाला निदान श्वसन के नमूनों से खसरा के सकारात्मक आईजीएम प्रतिपिण्डों या खसरे के वायरस आरएनए के अलगाव की पुष्टि होने से किया जा सकता है। बच्चों में जहां शिराछेदन अनुपयुक्त होता है, वहां विशिष्ट आइजीए जांच के लिए लारमय खसरा की लार को इक्ट्ठा किया जा सकता है। खसरा के अन्य रोगियों के साथ सकारात्मक संपर्क में आना महामारी विज्ञान में मजबूत प्रमाण जोड़ सकते हैं। संक्रमित व्यक्ति के साथ सेक्स के माध्यम से वीर्य, लार या बलगम सहित, किसी भी तरह का कोई भी संपर्क संक्रमण पैदा कर सकता है। रोकथाम विकसित देशों में अधिकतर बच्चों को 18 महीने की आयु तक साधारण तौर पर त्रि-स्तरीय एमएमआर वैक्सीन (खसरा, कण्ठमाला और रुबेओला) के भाग के रूप में खसरा के खिलाफ प्रतिरक्षित कर दिया जाता है। इससे पहले आमतौर पर 18 महीने से छोटे बच्चों को यह टीका नहीं दिया जाता है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान मां के शरीर से इनके अंदर खसरा विरोधी प्रतिरक्षक-ग्लॉब्युलिन (प्राकृतिक प्रतिरक्षी) संचारित हो जाते हैं। रोगक्षमता की दरों को बढ़ाने के लिए आमतौर पर चार और पांच साल के बच्चों को दूसरी खुराक दी जाती है। खसरा को अपेक्षाकृत असामान्य बनाने के लिए ही टीकाकरण की दरों को काफी बढ़ा दिया गया था। यहां तक कि कॉलेज के छात्रावास या इसी तरह के समायोजन में अक्सर स्थानीय टीकाकरण कार्यक्रम में ऐसा एक मामला उजागर होता है, यदि ऐसे लोगों में से किसी एक की पहले से प्रतिरक्षा नहीं हुई हो. विकासशील देशों में जहां खसरा उच्च स्थानिक है, वहां डब्ल्यूएचओ ने छह महीने और नौ महीने की उम्र में टीके की दो खुराक देने का सुझाव दिया है। बच्चा एचआईवी संक्रमित हो या नहीं उसे टीका दिया जाना चाहिए. एचआईवी संक्रमित शिशुओं में टीका कम प्रभावी है, लेकिन प्रतिकूल प्रतिक्रिया के जोखिम कम हैं। टीका नहीं लिये होने पर आबादी को रोग का खतरा रहता है। 2000 के प्रारंभ में उत्तरी नाइज़ीरिया में धार्मिक और राजनीतिक आपत्तियों के कारण टीकाकरण की दरों में गिरावट आयी और तेजी से मामलों में इजाफा हुआ और सैकड़ों बच्चों की मौत हो गयी। 1998 में संयुक्त राज्य में एमएमआर टीका विवाद में एमएमआर के संयुक्त टीके (बच्चों को मम्प्स, मीज़ल्स और रुबेओला का टीकाकरण दिया जा रहा था) और स्वलीनता (ऑटिज़्म) में संभावित कड़ी होने के बाद भी "खसरा पार्टी" में इज़ाफा हुआ, जहां माता-पिता ने अपने बच्चों को जानबूझकर इंजेक्शन न दिलाकर मीज़ल्स होने दिया, इस उम्मीद पर कि ऐसा करने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जायेगी. इस अभ्यास से बच्चों में कई जानलेवा बीमारियां पैदा हो गयीं, इसी वजह से सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों ने ऐसा करने से रोका. वैज्ञानिक सबूत इस परिकल्पना का समर्थन बिल्कुल नहीं करते हैं कि स्वलीनता (ऑटिज़्म) में एमएमआर की कोई भूमिका है। 2009 में, संडे टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया कि वेकफील्ड ने 1998 में अपने अखबारों में रोगियों की संख्या में हेरफेर किया और गलत परिणाम दिखाते हुए स्वलीनता के साथ संबंध दर्शाया था। द लान्सेट ने 2 फ़रवरी 2010 को 1998 के अखबार को झुठला दिया. जनवरी 2010 में, शिष्ट बच्चों के एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि खसरा, कण्ठमाला और रूबेला जैसे रोग के लिए टीकाकरण ऑटिस्टिक (स्वलीनता) के विकार को बढ़ावा देने का जोखिम कारक नहीं था, बल्कि जिन मरीजों ने टीका लगवा लिया था उन मरीजों में ऑटिस्टिक के विकार पैदा होने का खतरा थोड़ा कम था, हालांकि इसके पीछे के तंत्र की वास्तविक कार्रवाई अज्ञात है और यह परिणाम संयोग हो सकता है। ब्रिटेन में ऑटिज़्म से संबंधित एमएमआर अध्ययन की वजह से टीकाकरण के प्रयोग में तेजी से कमी आयी और फिर से खसरे के मामलों की वापसी हुई: 2007 में वेल्स और इंग्लैंड में खसरे के 971 मामले सामने आये, जो अब तक के खसरे के मामलों में सबसे ज्यादा वृद्धि दर्शाता है, जबकि 1995 में खसरे के रिकार्ड रखने की शुरूआत की गयी थी। 2005 में इंडियाना में खसरे का प्रकोप उन बच्चों पर पड़ा जिनके मां-बाप ने टीकाकरण से इंकार कर दिया था। मीज़ल्स इनिशियेटिव के सदस्यों द्वारा जारी किये गये एक संयुक्त बयान में खसरे के खिलाफ लड़ाई का एक और फायदा सामने आया: "खसरा टीकाकरण अभियानों ने अन्य कारणों से हो रही बच्चों की मौतों में कमी करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वे अन्य जीवन रक्षक उपायों - जैसे कि मलेरिया से बचने के लिए मच्छरदानी, कीड़े मारने वाली दवा और विटामिन ए जैसी परिपूरक दवाओं का वितरण करने वाला जरिया बन गये हैं। खसरा टीकाकरण को अन्य स्वास्थ्य हस्तक्षेपों से मिलाना मिलेनियम डेवलप्मेंट गोल संख्या 4 (सहस्राब्दि विकास लक्ष्य) की उपलब्धि में एक महत्वपूर्ण योगदान है: 1990 से 2015 तक बच्चों की मौत में दो तिहाई कटौती करना." 26 जुलाई 2016 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आधिकारिक तौर पर ब्राजील को खसरा रोग मुक्त घोषित किया है। यह घोषणा वर्ष 2015 में ब्राजील में खसरा रोग का एक भी केस सामने न आने पर की गई है। खसरा रोग एक संक्रामक रोग है, जो लार और बलगम के माध्यम से फैलता है। ब्राजील में खसरा उन्मूलन कार्यक्रम विश्व स्वास्थ्य संगठन और पेन अमेरिका स्वास्थ्य संगठन के संयुक्त प्रयासों से चलाया जा रहा था। उपचार वहां खसरे के लिए कोई विशेष उपचार नहीं है। हल्के और सरल खसरा से पीड़ित अधिकांश रोगी आराम और सहायक उपचार से ठीक हो जाएंगे. हालांकि, यदि मरीज अधिक बीमार हो जाता है, तब चिकित्सा सलाह लेना महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि हो सकता है उनमें जटिलताएं विकसित हो रही हों. कुछ रोगियों में खसरे की अगली कड़ी के रूप में निमोनिया का विकास हो सकता है। अन्य जटिलताओं में कान का संक्रमण, ब्रोंकाइटिस (श्वसनीशोथ) और इन्सेफेलाइटिस (मस्तिष्कशोथ) शामिल हैं। तीव्र खसरा श्वसनीशोथ से होने वाली मृत्यु की दर 15% है। हालांकि खसरा मस्तिष्कशोथ का कोई विशेष इलाज नहीं है, प्रतिजैविक निमोनिया के लिए प्रतिजैविकों की जरूरत होती है, खसरे के बाद विवरशोथ और श्वसनीशोथ हो सकता है। अन्य सभी उपचार के साथ बुखार कम करने और दर्द कम करने के लिए आइबुफेन या एक्टेमिनोफेन (पैरासीटामोल भी कहा जाता है) दिया जा सकता है और यदि आवश्यक हो, तेज खांसी से राहत पाने के लिए श्वसनी विस्फारक (ब्रान्कोडायलेटर) भी दिया जा सकता है। ध्यान रहे कि छोटे बच्चों को बिना चिकित्सा सलाह के कभी भी एस्पिरीन नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि इससे रे'ज सिंड्रोम जैसी बीमारी होने का खतरा रहता है। इलाज में विटामिन ए के उपयोग की जांच की जा चुकी है। इसके इस्तेमाल से होनेवाले प्रयोग की व्यवस्थित समीक्षा करने से समग्र मृत्यु दर में कमी लाने में कोई सफलता नहीं मिली, लेकिन इसने 2 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर को जरूर कम किया। पूर्वानुमान हालांकि खसरे से पीड़ित अधिकतर मरीज बच गये, लेकिन कई जटिलताएं रह गयीं और अक्सर जटिलताएं पैदा होती हैं तथा उनमें श्वसनीशोथ, निमोनिया, मध्य कर्णशोथ, रक्तस्रावी (हेमरैगिक) जटिलताएं, तीव्र प्रसरित मस्तिष्क सुषु्म्ना शोथ, तीव्र खसरा मस्तिष्कशोथ, अर्धजीर्ण कठिन संपूर्ण मस्तिष्‍क शोथ एसएसपीई (sspe) अंधत्व, वधिरता और मौत भी शामिल हो सकती है। सांख्यिकीय तौर पर खसरा के 1000 मामलों में से 2-3 मरीज मर जाते हैं और 5-105 जटिलताओं से पीड़ित रहते हैं। जिन रोगियों में जटिलताएं पैदा नहीं होती हैं, आमतौर पर उनके रोग का निदान बढ़िया होता है। हालांकि, अधिकांश मरीज बच जाते हैं फिर भी टीका लगाना अति महत्वपूर्ण है क्योंकि खसरा के 15 प्रतिशत मरीजों में जटिलताएं मिलती हैं, कुछ में बहुत कम तो दूसरों में (जैसे कि अर्धजीर्ण कठिन संपूर्ण मस्तिष्‍क शोथ) आम तौर पर बहुत घातक जटिलताएं होती हैं। इसके अलावा, भले ही वह रोगी खसरा से सिक्वेला या मृत्यु के बारे में चिंतित न हो लेकिन वह निमोनिया की विशाल कोशिका से प्रतिरक्षा में अक्षम रोगियों तक बीमारी फैला सकता है, जिनकी मृत्यु का जोखिम बहुत अधिक रहता है। खसरे के वायरस के संक्रमण का एक और गंभीर खतरा तीव्र खसरा श्वसनीशोथ है। यह खसरे के दाने का निकलना शुरू होने के दूसरे दिन से लेकर एक सप्ताह तक, बहुत तेज बुखार, गंभीर सिर दर्द, कंपकंपी और अस्वाभाविक मनोभाव के साथ शुरू होता है। इससे रोगी कोमा में जा सकता है, उसकी मृत्यु भी हो सकती है या उसके मस्तिष्क को क्षति पहुंच सकती है। महामारी विज्ञान (एपिडेमियोलॉजी) ] विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ (WHO) के अनुसार, खसरे का टीका लगाने का प्रमुख कारण यह है कि यह बच्चों के मृत्यु दर को रोकने में काफी सहायक है। दुनिया भर में, मीज़ल्स इनिशियेटिव के भागीदारों, द अमेरिकन रेड क्रॉस, द यूनाइटेड स्टेट्स सेंटर्स फॉर डिज़िज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन सीडीसी (CDC), द यूनाइटेड नेशंस फाउंडेशन, यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ (WHO), के नेतृत्व में टीकाकरण अभियान से मृत्यु दर में काफी कमी आई है। विश्व स्तर पर, खसरे से हो रही मौतों में 60% की अनुमानित गिरावट देखी गयी, 1999 में हुई 873,000 मौतों की तुलना में 2005 में केवल 345,000 मौतें हुईं. विश्व स्तर पर 2008 में हुई 164,000 तक मौतों में गिरावट आने का अनुमान है, जिसमें दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में 2008 में 77% लोगों का निधन खसरा की वजह से हुआ। डब्ल्यूएचओ (WHO) के छह में से पांच क्षेत्रों ने खसरा को समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है और मई 2010 में 63 वें वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में प्रतिनिधियों ने 2000 में देखे गये स्तर से 2015 तक खसरे की वजह से होने वाली मृत्यु दर में 95% की कटौती के वैश्विक लक्ष्य पर सहमति बनाई है तथा साथ ही इसके पूरी तरह से उन्मूलन की दिशा में कदम उठाने का निश्चय किया है। हालांकि, मई 2010 में वैश्विक स्तर पर इसके पूर्ण उन्मूलन की किसी विशिष्ट तिथि का लक्ष्य तय करने पर अभी तक सहमति नहीं हुई है। इतिहास और संस्कृति इतिहास 165-180 ई.पू. का एन्टोनिन प्लेग, जो प्लेग ऑफ गालेन के नाम से भी जाना जाता है, चेचक या खसरा के रूप में वर्णित है। इस बीमारी ने कुछ क्षेत्रों में एक तिहाई से अधिक की आबादी और रोमन सेना को पूरी तरह से खत्म कर दिया. पहली बार खसरा के साथ उसके भेद चेचक और छोटी माता के वैज्ञानिक विवरण पता करने का श्रेय फारसी चिकित्सक मोहम्मद इब्न ज़कारिया अर-रज़ी को जाता है, जो पश्चिम में "राज़ेस" के नाम से जाने जाते हैं, जिन्होंने द बुक ऑफ स्मॉल पॉक्स एंड मीज़ल्स (अरबी में: किताब फी अल ज़दारी-वा अल-हस्बा) शीर्षक पुस्तक प्रकाशित की. खसरा एक स्थानिक रोग है, जिसका अर्थ है कि यह एक समुदाय में लगातार मौजूद रहता है और अधिकतर लोग इससे प्रतिरोध की क्षमता का विकास कर लेते हैं। ऐसी आबादी में जिसका सामना खसरा जैसी बीमारी से नहीं हुआ हो, एक नये रोग से सामना होने पर विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। 1529 में, क्यूबा में खसरे की महामारी ने दो तिहाई वाशिंदों की जान ले ली जो पहले चेचक से बच गये थे। दो साल बाद होंडूरस की आधी आबादी की मौत खसरे की वजह से हुई थी, जिसने मेक्सिको, सेंट्रल अमेरिका और इंका सभ्यता को उजाड़ दिया था। मोटे तौर पर पिछले 150 वर्षों में खसरा से विश्वभर में 200 लाख लोगों के मारे जाने का अनुमान है। 1850 में खसरा ने हवाई की आबादी के पांचवे हिस्से को मार दिया था। 1875 में खसरा से फिजी के 40,000 लोगों की मौत हो गयी, जो अनुमान के तौर पर पूरी आबादी का एक तिहाई हिस्सा था। 19 वीं सदी में इस रोग ने अंडमानी आबादी का भी नाश कर दिया. 1954 में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के एक 11 वर्षीय बच्चे डेविड एडमॉनस्टन के शरीर से इस बीमारी को फैलाने वाले वायरस को अलग किया गया था और उसे चूजे के भ्रूण उत्तक संस्कृति पर अनुकूलित और प्रचारित किया गया। अब तक खसरा वायरस के 21 उपभेदों की पहचान की गई है। मर्क में मोरिस हिलमैन ने पहले सफल वैक्सीन को विकसित किया। 1963 में इस बीमारी की रोकथाम के लिए लाइसेंस प्राप्त टीके उपलब्ध हो गये। हाल की महामारियां 2009 में सितंबर के शुरुआत में दक्षिण अफ्रीका में गोटांग के एक शहर जोहान्सबर्ग में खसरा के 48 मामलों की सूचना मिली. इस महामारी के तुरंत बाद सरकार ने सभी बच्चों को टीका लगाये जाने का आदेश जारी कर दिया. उस समय सभी स्कूलों में टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया गया और अभिभावकों को अपने छोटे बच्चों को टीका दिलवाने की सलाह दी जाती थी। कई लोग टीकाकरण कराने के लिए तैयार नहीं होते थे, क्योंकि उनका मानना था कि यह असुरक्षित और अप्रभावी है। स्वास्थ्य विभाग ने जनता को यकीन दिलाया कि उनका कार्यक्रम वास्तव में सुरक्षित है। अटकलें लगायी जाती थीं कि पता नहीं नई सूइयों का इस्तेमाल किया भी जाता था या नहीं. मध्य अक्टूबर तक कम से कम 940 मामलों को दर्ज किया गया था, जिनमें 4 मौतें हुई थीं। 19 फ़रवरी 2009 को उत्तरी वियतनाम के 12 प्रांतों में खसरा के 505 मामलों की सूचना मिली, जिसमें हनोई के 160 मामले दर्ज किये गये थे। मस्तिष्कावरणशोथ (मैनिंजाइटिस) और मस्तिष्कशोथ (इन्सेफेलाइटिस) सहित उच्च दर की जटिलताओं ने स्वास्थ्य कर्मचारियों को चिंता में डाल दिया था और यू.एस.सीडीसी (U.S.CDC) ने सभी पर्यटकों को खसरे का टीका दिलाये जाने की सिफारिश कर दी थी। 1 अप्रैल 2009 को उत्तरी वेल्स के दो स्कूलों में महामारी फैल गयी। वेल्स में वाइगोल जॉन ब्राइट और वाइगोल फॉर्ड डफरिन को यह बीमारी हुई थे, इसलिए वे पूरी कोशिश करते थे कि हर बच्चे को खसरे का टीका लगे. 2007 में जापान में विशाल महामारी फैल गयी जिसकी वजह से अधिकतर विश्वविद्यालयों और दूसरे संस्थानों को बंद कर दिया गया ताकि इस बीमारी को फैलने से रोका जा सके. इज़रायल में अगस्त 2007 और मई 2008 के बीच में इस बीमारी के तकरीबन 1000 मामलों की सूचना मिली थी (इससे ठीक एक साल पहले इसके विपरीत सिर्फ कुछ दर्जन मामले ही दर्ज किये गये थे). रूढ़िवादी यहूदी समुदायों में कई बच्चों को टीकाकरण कवरेज से अलग रखने के कारण वे इस बीमारी से प्रभावित हुए. 2008 में यह बीमारी स्थानीय थी जिसकी वजह से 2008 में ब्रिटेन में इस बीमारी के 1,217 मामलों का निदान किया गया था। और स्विट्जरलैंड, इटली तथा आस्ट्रिया से भी महामारी की खबरें मिलीं. इसके लिए टीकाकरण की कम दर जिम्मेदार हैं। मार्च 2010 में फिलीपींस ने खसरा के मामलों को लगातार बढ़ता देख महामारी की घोषणा कर दी. अमेरिका उत्तरी, केंद्रीय और दक्षिणी अमेरिका से स्वदेशी खसरा के पूर्ण रूप से सफाया होने की घोषणा की गयी; 12 नवम्बर 2002 को इस क्षेत्र में एक आखिरी स्थानीय मामले की सूचना मिली; पर उत्तरी अर्जेंटीना, कनाडा के ग्रामीण प्रांतों में, खासकर ओंटारियो, क्युबेक और अल्बर्टा के कुछ क्षेत्रों में मामूली स्थानीय स्थिति बनी हुई है। हालांकि दुनिया के दूसरे प्रदेशों से खसरा के वायरसों का आयात होने से महामारियां अब भी हो रही हैं। जून 2006 में, बोस्टन में महामारी फैल गयी जब वहां का एक निवासी भारत में संक्रमित हुआ और अक्टूबर 2007 में मिशिगन की एक लड़की को टीका लगाया गया, जब वह स्वीडन में इस बीमारी का शिकार हुई. 1 जनवरी और 25 अप्रैल 2008 के बीच संयुक्त राष्ट्र में खसरा के 64 मामलों की पुष्टि हुई और सेंटर फॉर डिसिज़ कंट्रोल एंड प्रीवेंशन को दर्ज की गयी, जो 2001 के बाद से किसी भी वर्ष में दर्ज की गयी रिपोर्ट में सबसे अधिक है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में अन्य देशों से खसरा के आयात के 64 मामलों में से 54 संयुक्त राज्य अमेरिका से सम्बंधित थे और 64 में से 63 रोगी ऐसे थे जिन्हें टीका नहीं दिया गया था या अन्य टीकाकरण की स्थिति से अज्ञात थे। 9 जुलाई 2008 तक 15 राज्यों में कुल 127 मामलों की सूचना मिली (जिनमें से 22 एरिजोना के थे), जो 1997 के बाद से सबसे बड़ा प्रकोप था (जब 138 मामलों की सूचना दी गयी थी). अधिकांश मामलों का अधिग्रहण संयुक्त राज्य के बाहर हुआ और वे व्यक्ति प्रभावित हुए जिन्हें टीका नहीं दिया गया था। 30 जुलाई 2008 तक मामलों की संख्या बढ़कर 131 तक पहुंच गयी। इनमें से आधे, में वे बच्चे शामिल हैं जिनके माता पिता ने अपने बच्चों का टीकाकरण कराने से मना कर दिया था। 131 मामले 7 विभिन्न महामारियों में हुए थे। कोई मौत नहीं हुई थी और १५ लोगों को अस्पताल में दाखिल करना पड़ा था। 11 मामलों में रोगियों ने खसरा के टीके की कम से कम एक खुराक प्राप्त की थी। 122 मामले ऐसे थे जिसमें बच्चों को टीका नहीं दिया गया था या जिनके टीकाकरण की स्थिति अज्ञात थी। इनमें से कुछ एक वर्ष की आयु से कम के थे और इतनी कम उम्र के थे जब टीकाकरण की सिफारिश की जाती है, लेकिन 63 मामलों में धार्मिक या दार्शनिक कारणों से टीकाकरण कराने से मना कर दिया गया था। अतिरिक्त छवियां इन्हें भी देखें मसूरिका स्वलीनता संक्रामक रोग महामारी की सूची एमएमआर टीके मम्प्स पैरामिक्सोवायरस रास्योला ("बेबी मीज़ल्स") रूबेला (जर्मन खसरा) अर्धजीर्ण कठिन संपूर्ण मस्तिष्‍क शोथ टीका सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ WHO.int'इनिशियेटिव फॉर वैक्सीन रिसर्च (IVR):' मीज़ल्स', विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) Measles FAQ संयुक्त राज्य अमेरिका में रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों से खसरे पर किये गए सवाल. एक वयस्क पुरुष के खसरे का मामला (चेहरे की तस्वीर) खसरा के नैदानिक चित्र डच लोनवर्ड्स विषाणुजनित रोग मोनोनेगावायरल्स बाल चिकित्सक चाइल्डहूड एक्ज़ान्थेम्स वायरस से संबंधित कटानियस स्थिति श्रेष्ठ लेख योग्य लेख गूगल परियोजना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%80
कसार देवी
कसार देवी उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा के निकट एक गाँव है। यह कसार देवी मंदिर के कारण प्रसिद्ध है। मंदिर दूसरी शताब्दी का है। स्वामी विवेकानन्द १८९० में यहाँ आये थे। इसके अलावा अनेकों पश्चिमी साधक यहाँ आये और रहे। यह क्रैंक रिज के लिये भी प्रसिद्ध है जहाँ १९६०-७० के दशक के हिप्पी आन्दोलन में बहुत प्रसिद्ध हुआ था। आज भी देशी-विदेशी पर्वतारोही और पर्यटक यहाँ आते रहते हैं। प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा (नवम्बर-दिसम्बर में) को यहाँ कसार देवी का मेला लगता है। कसार देवी जी पी एस 8 ( KASAR DEVI GPS 8) :- कसार देवी मंदिर परिसर में जी पी एस 8 ( KASAR DEVI GPS 8) वह पॉइंट है, जिसके बारे में अमेरिका की संस्था नासा (NASA, AMERICA) ने ग्रेविटी पॉइंट के बारे में बताया है। मुख्य मंदिर के द्वार के बायीँ ओर नासा के द्वारा यह स्थान चिन्हित करते ही GPS 8 लिखा है। स्थलीय निरीक्षण के बाद लिखा लेख- गौरी शंकर काण्डपाल, संस्कृतिकर्मी, अल्मोड़ा/नैनीताल (+918909848043) बाहरी कड़ियाँ अन्तरराष्ट्रीय बौद्ध आश्रम (कसारदेवी) भारत का स्विटजरलैण्ड है अल्मोड़ा उत्तराखण्ड के गाँव उत्तराखण्ड का भूगोल उत्तराखण्ड में पर्यटन आकर्षण उत्तराखण्ड में हिन्दू मन्दिर
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पीसा की मीनार
इटली में ‘लीनिंग टावर ऑफ़ पीसा’ को वास्तुशिल्प का अदभुत नमूना माना जाता है| अपने निर्माण के बाद से ही मीनार लगातार नीचे की ओर झुकती रही है और इसी झुकने की वजह से वह दुनिया भर में भी मशहूर रही है| इस वजह से ख़तरा बना हुआ था कि ये एक दिन गिर जाएगी| परियोजना पिछले दस साल से एक विशेष परियोजना चल रही थी जिसका मक़सद लीनिंग टावर ऑफ़ पीसा को स्थायित्व देना था। इसके तहत टावर के उत्तर से ज़मीन से 70 टन मिट्टी खोदी गई ताकि इसे सीधा खड़ा किया जा सके| जब ये काम ख़त्म हो गया तो टावर लगातार सीधा खड़ा होता नज़र आने लगा| सात साल बाद अब ये टावर 48 सेंटीमीटर सीधा हुआ है| इंजीनियरों का कहना है कि पहली बार ये मीनार अब बिल्कुल स्थिर है| वास्तुशिल्पा का नमूना जब 20वीं सदी में मीनार का निर्माण चल रहा था तो कामगारों को लगने लगा था कि ये एक तरफ़ झुक रही है| कामगारों ने इसे ठीक करने की कोशिश की लेकिन पूरी तरह तैयार होने के बाद भी मीनार थोड़ी सी झुकी हुई ही थी| बाद में मीनार की नींव में और मीनार के अंदर एक हाईटेक कैमरा लगाया| इससे पता चला है कि लीनिंग टावर ऑफ़ पीसा का झुकना बंद हो गया है| इस कार्यक्रम की निगरानी करने वाले अधिकारी कहते हैं कि अगले कम से कम दो सौ साल तक मीनार स्थिर रहनी चाहिए| दुनिया भर में हज़ारों लोग इस मीनार को देखने के लिए पीसा आते हैं| कुछ वर्ष पहले मीनार को गिरने के ख़तरे की वजह से बंद कर दिया गया था। 11 साल तक बंद रहने के बाद दिसंबर 2001 में इसे फिर खोल दिया गया था। पीसा की झुकी हुई मीनार वर्ष 1173 में बननी शुरु हुई थी लेकिन इस मीनार को पूरा करने में 200 साल लगे| मीनार फिर खुली 1173 ई. मे निर्मित आठ मंजिला मीनार का वास्तुकार बोनेब्रस था। यह ऊध्वार्धर से ५ मीटर से भी अधिक झुकी है। चित्र दीर्घा सन्दर्भ External links Official website The Leaning Tower of Pisa Virtual reality movies How the process of inclination was stopped Pictures of Leaning structures Piazza dei Miracoli digital media archive (creative commons-licensed photos, laser scans, panoramas), data from a University of Ferrara/CyArk research partnership, includes 3D scan data from Leaning Tower. पीसा की इमारतें इटली की मीनारें झुकी मीनारें रोमन स्थापत्य इटली में विश्व धरोहर स्थल ११७० के स्थापत्य १३७० के स्थापत्य पीसा के दर्शनीय स्थल पीसा इटली आश्चर्य
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गणराज्य (बहुविकल्पी)
एक गणराज्य सरकार का एक रूप हैं। गणराज्य या गणतंत्र या रिपब्लिक का सन्दर्भ निम्न से भी हो सकता हैं: सरकार गणराज्यों की सूची संघीय गणराज्य, सरकार के गणतांत्रिक रूप वाले राज्यों का एक संघ पहला गणराज्य (बहुविकल्पी) दूसरा गणराज्य (बहुविकल्पी) तीसरा गणराज्य (बहुविकल्पी) चौथा गणराज्य (बहुविकल्पी) पाँचवा गणराज्य (बहुविकल्पी) आयरलैण्ड गणराज्य, कभी कभी "द रिपब्लिक" भी बुलाया जाता हैं, ताकि उत्तरी आयरलैण्ड या आयरलैण्ड द्वीप से भेद समझ सकें दक्षिण अफ़्रीका गणराज्य सोवियत संघ के गणराज्य दक्षिण कोरिया का छठवाँ गणराज्य रोमन गणराज्य यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका, कभी कभी "द रिपब्लिक" कहा जाता हैं, विशेषकर क्लासिकी अर्थ में वीमर गणराज्य कला, मनोरंजन, और मीडिया संयुक्त राज्य में स्थान रिपब्लिक, कैन्सस रिपब्लिक, मिशिगन रिपब्लिक, मिसौरी रिपब्लिक, ओहायो रिपब्लिक, पेनसिल्वेनिया रिपब्लिक, वॉशिंगटन रिपब्लिक, पश्चिम वर्जिनिया उपक्रम रिपब्लिक (retailer), एक ब्रिटिश कपड़ा विक्रेता रिपब्लिक पिक्चर्स, एक अमेरिकी मूवी और धारावाहिक निर्माण कंपनी रिपब्लिक रिकॉर्ड्स, यूनिवर्सल म्यूज़िक ग्रुप की एक सब्सिडरी राजनीतिक वक़ालत रिपब्लिक (राजनीतिक संगठन), एक ब्रिटिश गणतांत्रिक संगठन परिवहन इन्हें भी देखें रिपब्लिकन (बहुविकल्पी)
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%A8%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%95%2C%20%E0%A4%8F%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97
नेल्सन स्मारक, एडिनबर्ग
नेल्सन स्मारक या नेल्सन्स् माॅन्युमेन्ट() एडिनबर्ग के नज़दीक काॅल्टन पहाड़ी पर स्थित एक टावर है जिसे एक ब्रिटिश नौसेना अधिकारी वाइस ऐडमिरल होराशियो नेल्सन की यादगार के तौर पर वर्ष १८०७ से १८१५ के बीच, नेल्सन की ट्रफ़ालगर की लड़ाई में स्पेनियाई और फ़्रान्सिसी सेनाओं पर वजय प्रापती की खुशी के स्मरण में, बनाया गया था। इसी लड़ाई में नेल्सन की मृत्यू भी हो गई थी। यह टावर काॅल्टन पहाड़ के सबसे ऊंचे स्थान पर स्थित है और इसे लीथ बंदर्गाह के किसी भी कोने से साफ़-साफ़ देखा जा सकता है। इसके पास में ही स्काॅटलैन्ड का अधनिर्मित राष्ट्रीय स्मारक भी स्थित है। इस पर एक टाइम बाॅल(कालगेंद) है, जो आज भी हर रोज़ ठीक १ बजे अपने मानक स्थान से गिरता है। हर ट्रफ़ालगर डेऽ(ट्रफ़ालगर दिवस) पर शाही नौसेना के सफेद पर्चम को इस पर से फ़हराया जाता है, जिसपर नेल्सन के प्रसिद्ध संदेश "इंगलेन्ड एक्सपेक्ट्स् दैट एव़्री मैन व़िल डू हिज़ ड्यूटी"("इंगलैंड उम्मीद करती है की हर व्यक्ती अपने करतव्य का पालन करेगा") अंकित होता है। २००९ में अंतिम बार इसकी मरम्मत की गई थी। नामकरण वाइस ऐडमियल होराटियो नेल्सन, फ़र्स्ट वास्काँन्ट नेल्सन की याद में बने इस स्मारक को अंग्रेज़ी में नेल्सन माॅन्युमेन्ट(Nelson Monument) कहा जाता है, जिसे हिंदी में नेल्सन स्मारक कहा जा सकता है। अंग्रेज़ी में माॅन्युमेन्ट(Monument) का अर्थ होता है स्मारक। संरचनात्मक विवरण ३२ मीटर ऊंचा यह स्मारक काॅल्टन पहाड़ी पर मान समुद्र स्तर से १७१ मीटर की अवनती पर स्थित है। यह मूलतः एक दांतेदार मिनार नुमा संरचना है, जिसे इसके वास्तुकार राॅबर्ट बऱ्न ने बड़ी बारीकी से, एक उलटे रखे टेलिस्कोप(दूरदर्शी) के आकार का बनाया है(एक ऐसी वस्तू जो नेल्सन की ज़िन्दगी से काफ़ी हद तक जुड़ी हुई थी)। इसके टावर के नीचे एक पंचकोणाकार दांतेदार वेदिका वाली ईमारत है जो इस मिनारनुमा संरचना के आधार के कार्य करती है। यह पूरी संरचना मूलरूप से एक ईंट-निर्मित भवन है एवं इस्का आवरण भी स्मान्य ईंटों की बनावट की है। इस ५-मंज़िला टावर पर बड़ी गोलाकार छत वाली खिड़कियां भी हर तल पर देखी जा सकती हैं। उपर पांचवे तल पर एक दर्शण पटल है जिस पर से नीचे के शहर एवं समुद्र का एक बेहद खूबसूरत नज़ारा देखा जा सकता है। इस मिनार में कुल १४३ सीढ़ियां हैं जो आगंतुकों को ऊपर बारजा तक ले जाती हैं। इसके ऊपर सैन जोज़ेफ़ नामक एक जहाज़ की छोटी नकल बनाई गई है, जिस पर नेल्सन ने सेन्ट विन्सेन्ट की लड़ाई में कब्ज़ा कर लिया था। इसकी छत पर एक टाइम बाॅल(कालगेंद) भी है, जसे पहले समुद्री जहाज़ों को सटीक समय का संकेत देने के लिये उपयोग किया जाता था। इतिहास मौजूदा स्मारक को एक पुराने टावर रूपी ढाँचे के स्थान पर बनाया गया था जिसे समंदर में पोतों को निर्देश या संकेत देने के लिये इस्तमाल किया जाता था। इसे पूरी तरह सार्वडनिक भागीदारी व सार्वजनिक सदस्यता द्वारा वित्त्यित किया गया था। इसकी प्राथमिक योजना को ऐलेक्ज़ैन्डर नैस्मिथ ने तईयार किया था। उनके स्तूप-रूपी परियोजना को अधिक खर्चीला होने के कारण वास्तवीकरण के लिये अनुप्युक्त समझा गया। मौजूदा उलटे टेलीस्कोप वाले डिज़ाइन को राॅबर्ट बॅऱ्न ने तईयार किया था। इसपर काम 1807 में शुरू किया गया, और लगभग पूरा कर भी लिया गया था जब पैसे खतम हो गए। साथ ही बॅऱ्न की 1815 में मृत्यू हो गई। इसके नीचे की दांतेदार वेदिका वाले पंचकोणीय भवन को थाॅमस बोनार ने 1814 से 1816 के बीच पूरा किया था। इसे मूलतः जहाजों को संकेत देने के लिये बनाया गया था। नीचे वाले कमरों को उस समय नाविकों के सहन-सहन के लिये इस्तमाल कियाजाता था। बाद में इनहें भवन के केयरटेकर के रहन के लिये इस्तमाल किया जाने लगा। 2009 में इसे पुनःनवीनिकरण किया गया और आज यह यूके का एक ए श्रेणी की सूची में आता है। टाइम बाॅल नेल्सन स्मारक पर लगी कालगेंद को १८५३ में लगाया गया था। इसे मूलरूप से लीथ बंदर्गाह पर जहाज़ों को सही समय का संकेत देने के लिये लगाया गया था, ताकी वे अमनी समुद्री कालमापियों को सटीक रूपसे निर्देशित कर सकें। इस समय गेंद का तंत्र(मेकैनिज़म), लैम्बेथ के, मौडस्ले, संस एंड फील्ड नामक कंपनी का काम था, जिन्होंने पहले ग्रीनविच की शाही वेधशाला के लिए भी समय गेंद तंत्र का निर्माण किया था। इसे जेम्स रिची ऐंड सन्स् (क्लाॅकमास्टर्स) लिमिटेड नामक कंपनी द्वारा अपनी जगह पर स्थापित किया गया था, जिन्हें अभी भी एडिनबर्ग सिटी काउन्सिल(एडिनबर्ग नगर परिशद) द्वारा इस समय गेंद के संचालन एवं रख-रखाव करने के लिए बरकरार रखा गया है। यह कलगेन्द स्काॅटलैन्ड के शाही खगोलशास्त्री चार्ल्स पियाज़्ज़ी स्मिथ का मनसज था, जिसे मूलतः पास मे स्थित सिटी ऑब्ज़र्वेटॅरी(नगर वेधशाला) से भूतलीय तारों द्वारी संचालित किया जाता था। इसकी गेंद ज़िंक की परत-चढ़ी लकड़ी से बनी है, इसका कुल वज़न ७६२ कीलो है। इसे पहले सिटी ऑब्जर्वेटरी द्वारा निर्देशित समयनुसार ठीक दोपहर १ बजे गिराया जाता था। १८६१ में एडिनबर्ग कासल में कुहासे की दिनों के लिये एक बजे की बन्दूक को चलाना शुरू किया गया। इसे लगातार कुल १५० वर्षों तक चलाया गया, जबतक २००७ में एक तूफ़ान के कारण यह टूट गया। २००९ में हुई मरम्मत-कार्य के दौरान इसे हटा दिया गया और पुनः ठीक कर के २४ सितंबर २००९ में फिर से आपनी जगह पर लगा दिया गया। इसके बाद से, इसे एक बजे की बन्दूक के आधार पर हास्तसंचालित किया जाता है। इन्हें भी देखें काॅल्टन पहाड़ी ट्रफ़ालगर की लड़ाई स्काॅटलैंड का राष्ट्रीय स्मारक होराशियो नेल्सन सन्दर्भ स्मारक एडिनबर्ग स्काॅटलैन्ड के दर्शनीय स्थल एडिनबर्ग के दर्शनीय स्थल
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF
भारत की मौद्रिक नीति
भारत की मौद्रिक नीति का क्रियान्वयन भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किया जाता है। मौद्रिक नीति एक ऐसी नीति होती है जिसके माध्यम से किसी देश का मौद्रिक प्राधिकरण खासकर उस देश का सेंट्रल बैंक उस देश की अर्थव्यवस्था के अन्दर ब्याज़ की दरों के नियंत्रण के माध्यम से मुद्रा की पूर्ति को नियमित और नियंत्रित करता है ताकि वस्तुओं के दामों में बढ़ोत्तरी से बचा जा सके और अर्थव्यवस्था को विकास की तरफ अग्रसर किया जा सके. भारत की मौद्रिक नीति के उद्देश्य 1. मूल्य स्थिरता मूल्य स्थिरता की आवश्यकता आर्थिक विकास के साथ-साथ मूल्यों के बढ़ने की गति के ऊपर विराम लगाने के लिए अत्यंत जरुरी होता है. इस रणनीति के तहत उन पर्यावरणीय तथ्यों को बढ़ावा देना है जो न केवल वास्तुकला के विकास के लिए जरूरी हों बल्कि उनके विकास की गति को भी बनाये रख सकें. साथ ही मूल्य वृद्धि के तार्किक महत्व को समझ सकें. 2. बैंक के ऋणों की बढ़ोत्तरी पर नियंत्रण बना रहे भारतीय रिजर्व बैंक के महत्वपूर्ण कार्यों में से एक उत्पादन को प्रभावित किए बिना उधार पर दिए जाने वाले ऋणों को कम करना है. साथ ही मौसमी आवश्यकताओं और उत्पादों को ध्यान में रखते हुए बैंक ऋण और मुद्रा आपूर्ति का नियंत्रित विकास करना है. 3. स्थिर निवेश का संवर्धन गैर-जरूरी और निश्चित निवेश को सीमित करके निवेश की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए योजना बनाना है. 4. माल की पूर्ति पर प्रतिबंध उत्पादों की भरमार और उनकी अधिकता एवं सामानों के अधिक मात्रा में आपूर्ति के कारण इकाईयां बीमार हो रही हैं. इसी समस्या के सन्दर्भ में केंद्रीय मौद्रिक प्राधिकरण नें सामानों के प्रवाह पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण निर्णय लिया है. इस रणनीति के तहत कई कार्य किये गए हैं. जैसे सामानों के स्टॉक होने से बचना और संगठन के अंतर्गत सुस्त मुद्रा को रोकना. 5. निर्यात को संवर्धन और खाद्यान्न खरीद प्रक्रिया का संचालन मौद्रिक नीति निर्यात को बढ़ावा देने और व्यापार की सुविधा सन्दर्भ में विशेष जोर देता है. यह मौद्रिक नीति का एक स्व-नियंत्रित उपाय है. 6. ऋण का वांछित वितरण मौद्रिक प्राधिकरण छोटे उधारकर्ताओं और प्राथमिक क्षेत्रकों को दिए जाने वाले ऋण के आवंटन से संबंधित फैसलों पर नियंत्रण करता है. 7. ऋण का समान वितरण रिजर्व बैंक की नीति के अंतर्गत अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को समान लाभ का अवसर उपलब्ध कराया जाता है. 8. दक्षता को बढ़ावा देना यह वित्तीय प्रणाली के प्रभाव को बढ़ावा देता है. साथ ही संरचनात्मक परिवर्तनों जैसे ऋण वितरण प्रणाली में आसान परिचालन, व्याज दरों के वृद्धि पर नियंत्रण आदि स्थापित करता है. इसके अलावा मुद्रा के सन्दर्भ में बाज़ार में नए-नए मानदंडो को भी स्थापित करता है. 9. कठोरता को कम करना यह अधिक प्रतिस्पर्धी माहौल और विविधीकरण को प्रोत्साहित करता है. उपकरण रेपो रेट (रीपो रेट, रीपरचेज़ रेट -Repo Rate, Repurchase Rate) रिवर्स रेपो रेट (रिवर्स रीपरचेज़ रेट, - Reverse Repo Rate, Reverse Repurchase Rate) नकद आरक्षी अनुपात (कैश रिज़र्व रेशो, सी आर आर - Cash Reserve Ratio, CRR) ओपन मार्केट ऑपरेशन खुले बाजार मै क्रय विक्रय (ओ एम ओ, Open Market Operations) बैंक दर (बी आर, Bank Rate) 2013-14, 2014-15 सन्दर्भ भारत की मौद्रिक नीति भारत की अर्थव्यवस्था भारतीय रिज़र्व बैंक
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योनि कैंसर
योनि कैंसर एक घातक ट्यूमर है जो योनि के ऊतकों में बनता है। प्राथमिक ट्यूमर आमतौर पर स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा होते हैं। प्राथमिक ट्यूमर दुर्लभ होते हैं, और आमतौर पर योनि कैंसर एक माध्यमिक ट्यूमर के रूप में होता है। ५० साल से अधिक उम्र के महिलाओं में योनि का कैंसर अधिक होता है, लेकिन किसी भी उम्र में, यहां तक ​​कि बचपन में भी हो सकता है। शुरुआती चरणों में पाया और इलाज किया जाता है तो यह अक्सर ठीक किया जा सकता है। अकेले सर्जरी या श्रोणि विकिरण के साथ सर्जरी आमतौर पर योनि कैंसर के इलाज के लिए प्रयोग की जाती है। उन्नत योनि कैंसर से बच्चों का निदान किया जा सकता है। सर्जरी, विकिरण चिकित्सा, और कीमोथेरेपी द्वारा उनका इलाज किया जाता है। बच्चों में योनि कैंसर दोबारा शुरू हो सकता है। योनि कैंसर का इलाज करने के लिए जीन थेरेपी वर्तमान में नैदानिक ​​परीक्षणों में है। योनि का कार्सिनोमा २% से कम महिलाओं में श्रोणि घातक ट्यूमर के साथ होता है। स्क्वैमस कार्सिनोमा योनि कैंसर का सबसे आम प्रकार है। मानव पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) योनि कैंसर से दृढ़ता से जुड़ा हुआ है। योनि (51%) के ऊपरी तिहाई में योनि का कैंसर होता है, ३०% निचले तिहाई में पाए जाते हैं, और मध्य तीसरे में १९% होते हैं। योनि कैंसर उपकला सतह या अल्सर की तरह, उथले अवसाद से निकलने वाले ऊंचे घाव के रूप में उपस्थित हो सकता है। परिभाषित निदान बायोप्सी द्वारा निर्धारित किया जाता है। संकेत और लक्षण अधिकांश योनि कैंसर जल्दी संकेत या लक्षण नहीं पैदा करते हैं। जब योनि कैंसर लक्षण पैदा करता है, तो उनमें शामिल कुछ लक्षण निम्न हैं: योनि निर्वहन या असामान्य रक्तस्राव रक्त का असामान्य रूप से भारी प्रवाह रजोनिवृत्ति के बाद रक्तस्राव अवधि के बीच रक्तस्राव; या कोई अन्य रक्तस्राव जो सामान्य से अधिक लंबा है मल या मूत्र में रक्त पेशाब करने की लगातार या तत्काल आवश्यकता कब्ज यौन संभोग के दौरान दर्द योनि में एक गांठ या वृद्धि जिसे महसूस किया जा सकता है विस्तारित श्रोणि लिम्फ नोड्स कभी-कभी पैल्पेटेड हो सकते हैं जोखिम डायथिलस्टिलबेस्ट्रॉल के लिए प्रसवपूर्व संपर्क मानव पैपिलोमावायरस (एचपीवी) के साथ संक्रमण मानव इम्यूनोडेफिशियेंसी वायरस (एचआईवी) के साथ संक्रमण गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का पिछला इतिहास धूम्रपान क्रोनिक वल्वर खुजली या जलती हुई प्रकार योनि कैंसर के दो प्राथमिक प्रकार होते हैं: स्क्वैमस-सेल कार्सिनोमा और एडेनोकार्सीनोमा योनि का स्क्वैमस-सेल कार्सिनोमा स्क्वैमस कोशिकाओं (एपिथेलियम) से उत्पन्न होता है जो योनि को रेखांकित करता है। योनि कैंसर का यह सबसे आम प्रकार है। यह 60 या उससे अधिक उम्र के महिलाओं में अक्सर पाया जाता है। योनि की परत में ग्रंथि (गुप्त) कोशिकाओं से योनि एडेनोकार्सीनोमा उत्पन्न होता है। एडेनोकार्सीनोमा फेफड़ों और लिम्फ नोड्स में फैल जाने की अधिक संभावना है। साफ़ सेल एडेनोकार्सीनोमा १९३८ और १९७३ (बाद में संयुक्त राज्य अमेरिका के बाहर) महिलाओं के एक छोटे प्रतिशत (जिसे "डीईएस-बेटियों" कहा जाता है) में होता है जो गर्भाशय में दवा डायथिलस्टिलबेस्ट्रॉल (डीईएस) के संपर्क में आते थे। संभव गर्भपात और समयपूर्व जन्म को रोकने के लिए डीईएस को ५ से १० मिलियन माताओं की अवधि निर्धारित की गई थी। आमतौर पर, महिलाओं को 30 साल से पहले डीईएस से संबंधित एडेनोकार्सीनोमा विकसित होता है, लेकिन बढ़ते सबूत बाद के युग में संभव प्रभाव या कैंसर (योनि ग्रंथि संबंधी ट्यूमर के अन्य रूपों सहित) का सुझाव देते हैं। महिलाओं में डीईएस-एक्सपोजर भी विभिन्न बांझपन और गर्भावस्था जटिलताओं से जुड़ा हुआ है। गर्भाशय में डीईएस के संपर्क में आने वाली बेटियों में मध्यम/गंभीर गर्भाशय ग्रीवा कोशिका डिस्प्लेसिया और स्तन कैंसर का खतरा बढ़ने का जोखिम भी बढ़ सकता है। लगभग १००० (0.1%) डीईएस बेटियों में से एक स्पष्ट सेल एडेनोकार्सीनोमा का निदान किया जाएगा। डीईएस के संपर्क में आने वाली प्रीमेनोपॉज़ल महिलाओं में जोखिम लगभग मौजूद नहीं है। योनि रोगाणु कोशिका ट्यूमर (मुख्य रूप से टेराटोमा और एंडोडर्मल साइनस ट्यूमर) दुर्लभ होते हैं। वे अक्सर शिशुओं और बच्चों में पाए जाते हैं। सरकोमा बोट्रीओइड्स, एक रबडोडायर्सकोमा भी शिशुओं और बच्चों में अक्सर पाया जाता है। योनि में दिखाई देने वाली मेलेनोमा योनि मेलेनोमा मूल्यांकन योनि कैंसर का निदान करने के लिए कई परीक्षणों का उपयोग किया जाता है, जिनमें निम्न शामिल हैं: शारीरिक परीक्षा और इतिहास श्रौणिक जांच पैप स्मीयर बायोप्सी योनिभित्तिदर्शन योनि कैंसर वाली महिलाओं के लिए सिफारिशें कैंसर की निगरानी के लिए नियमित निगरानी इमेजिंग नहीं है जब तक कि उनके पास नए लक्षण या बढ़ते ट्यूमर मार्कर न हों। इन संकेतों के बिना इमेजिंग निराश है क्योंकि पुनरावृत्ति का पता लगाने या अस्तित्व में सुधार होने की संभावना नहीं है, और क्योंकि इसकी अपनी लागत और साइड इफेक्ट्स हैं। एमआरआई योनि कैंसर की सीमा के दृश्यता प्रदान करता है। सन्दर्भ महिला स्वास्थ्य महिला स्वास्थ्यविषयक लेख प्रतियोगिता २०१८ के अन्तर्गत बनाये गये लेख
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नरेश बेदी
नरेश बेदी एक भारतीय फ़िल्म निर्माता है, जो वन्य-जीवन से संबंधित फिल्म निर्माण के लिए जाने जाते हैं। उन्हें वृत्तचित्र, एनिमेशन और लघुफिल्मों के लिए आयोजित मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव-2016, (एम.आई.एफ.एफ-2016) के उद्घाटन समारोह में वी शांताराम लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्हें उनके प्रकृति तथा वन्य जीवन पर फिल्मांकन के लिए इससे पूर्व वाइल्ड स्क्रीन अवार्ड, पृथ्वी रत्न पुरस्कार, द ह्वेल अवार्ड जैसे अनेकों पुरस्कार दिये जा चुके हैं। इनकी एक अन्य फिल्म ‘गंगा घड़ियाल’ ने वाइल्ड स्क्रीन रेड पांडा पुरस्कार, जिसे ग्रीन आस्कर कहा जाता है, जीता है। यह पुरस्कार जीतने वाले वे प्रथम एशियाई हैं। उन्होंने अपने फिल्मों में दुर्लभ वन्य जीव क्षणों को फिल्माया है। इनके फिल्मों को बी.बी.सी. नेशनल ज्योग्राफिक, डिस्कवरी और कैनल प्लस जैसे प्रतिष्ठित चैनलों पर प्रसारित किया गया है। उनका जन्म उत्तराखंड के हरिद्वार में हुआ और वे वहीं पर पले बढ़े। जंगलों तथा जंतुओं के प्राकृतिक आवास का इन्होंने नजदीक से अध्ययन किया है। सन्दर्भ फ़िल्म निर्माता जीवित लोग
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ब्रिटिश अंटार्कटिक क्षेत्र
ब्रिटिश अंटार्कटिक क्षेत्र (अंग्रेज़ी- British Antarctic Territory (BAT) (बीएटी ) अंटार्कटिका का एक क्षेत्र है जो ब्रिटिश समुद्रपार प्रदेशो में से एक है। इस क्षेत्र में ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण और अन्य संगठनों द्वारा संचालित और रखरखाव के अनुसंधान और समर्थन स्टेशनों के कर्मचारियों द्वारा बड़े पैमाने पर निवास किया जाता है। इतिहास 1833 से यूनाइटेड किंगडम में दक्षिण अटलांटिक को सम्मिलित किया गया जब उसने फ़ॉकलैंड द्वीप पर कब्जा कर लिया था। 1908 में ब्रिटेन ने जिन क्षेत्रों पर दावा किया था, उनमें वर्तमान रूप से ब्रिटिश अंटार्कटिक क्षेत्र के साथ-साथ दक्षिण जॉर्जिया और दक्षिण सैंडविच द्वीप समूह भी हैं। अंटार्कटिक क्षेत्र ब्रिटेन के प्रायद्वीप
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गो-स्टॉप
गो-स्टॉप (कोरियाई: 고스톱; आरआर: गोसेटोप), जिसे गोडोरी भी कहा जाता है (कोरियाई: 고도리, खेल में जीतने के बाद) एक कोरियाई मछली पकड़ने का कार्ड गेम है जो हानाफुडा डेक के साथ खेला जाता है (कोरियाई में, ह्वातु (कोरियाई: 화투) ) खेल को "मात्गो" (Matgo, कोरियाई: 맞고) कहा जा सकता है जब केवल दो खिलाड़ी खेल रहे हों। यह खेल इसी तरह के जापानी मछली पकड़ने के खेल जैसे हाना-अवेज़ और हचिहाची से लिया गया है, हालांकि जापानी हानाफुडा खेल कोई-कोई बदले में आंशिक रूप से गो-स्टॉप से लिया गया है। आधुनिक कोरियाई-निर्मित ह्वाटू डेक में आमतौर पर बोनस कार्ड शामिल होते हैं जो विशेष रूप से जापानी हानाफुडा डेक के विपरीत गो-स्टॉप के साथ खेलने के लिए अभिप्रेत हैं। आम तौर पर दो या तीन खिलाड़ी होते हैं, हालांकि एक भिन्नता होती है जहां चार खिलाड़ी खेल सकते हैं। इस खेल का उद्देश्य न्यूनतम पूर्व निर्धारित अंकों की संख्या, आमतौर पर तीन या सात, और फिर "गो" या "स्टॉप" को कॉल करना है, जहां खेल का नाम प्राप्त होता है।जब एक "गो" कहा जाता है, तो खेल जारी रहता है, और अंकों की संख्या या राशि को पहले बढ़ाया जाता है, और फिर दोगुना, तिगुना, चौगुना और इसी तरह किया जाता है। "गो" को कॉल करने वाला एक खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ी को न्यूनतम स्कोर करने और स्वयं सभी अंक जीतने का जोखिम उठाता है। यदि "स्टॉप" कहा जाता है, तो खेल समाप्त हो जाता है और कॉलर अपनी जीत एकत्र करता है। सेट अप एक डीलर (선; सौन; लिट। 'फर्स्ट') का चयन करने के लिए, प्रत्येक खिलाड़ी डेक से यादृच्छिक कार्ड चुनता है और जो व्यक्ति सबसे पुराना या नवीनतम महीने का कार्ड चुनता है, वह डीलर बन जाता है, यह इस पर निर्भर करता है कि यह रात का समय है या दिन का, सबसे पहले महीने के कार्ड, यानी जनवरी के पक्ष में रात के समय के साथ, और नवीनतम महीने के कार्ड को दिन के समय, यानी दिसंबर के दौरान पसंद किया जाता है। (밤일낮장) कार्डों को निपटाए जाने से पहले, डीलर कार्डों को बाएं हाथ में डेक को नीचे की ओर रखकर और दाएं हाथ से कार्डों के यादृच्छिक ढेर को ऊपर से स्टैक करने के लिए खींचकर कार्डों को फेरबदल करता है। कार्ड को पर्याप्त रूप से फेरबदल करने के लिए डीलर को इस प्रक्रिया को कई बार दोहराना होगा। फेरबदल करने के बाद, डीलर डेक को काटने के लिए खिलाड़ी को उनके बाईं ओर रखता है। यदि केवल दो खिलाड़ी हैं, तो प्रतिद्वंद्वी डेक काट देता है। सौदा दो खिलाड़ी: डीलर टेबल पर चार कार्ड फेस-अप रखता है फिर अपने प्रतिद्वंद्वी के हाथ में पांच कार्ड और उनके हाथ में पांच कार्ड देता है। फिर, डीलर टेबल पर एक और चार कार्ड फेस-अप रखता है और प्रतिद्वंद्वी के साथ शुरू करते हुए, प्रत्येक खिलाड़ी के हाथ में एक और पांच कार्ड देता है। तीन खिलाड़ी: डीलर टेबल पर तीन कार्ड फेस-अप रखता है, फिर प्रत्येक खिलाड़ी के हाथ में चार कार्ड देता है, जो खिलाड़ी के दाईं ओर से शुरू होता है और वामावर्त जारी रहता है।फिर, डीलर टेबल पर एक और तीन कार्ड फेस-अप रखता है और प्रत्येक खिलाड़ी के हाथ में एक और तीन कार्ड डील करता है, फिर से दाईं ओर खिलाड़ी के साथ शुरू होता है। गेमप्ले खेल डीलर के साथ शुरू होता है और वामावर्त जारी रहता है। एक खिलाड़ी के हाथ में उसी महीने के कार्ड के साथ टेबल पर आमने-सामने पड़े कार्डों में से एक का मिलान करने का प्रयास करने वाले खिलाड़ी के साथ एक मोड़ शुरू होता है। यदि एक ही महीने के दो कार्ड पहले से ही टेबल पर हैं, तो खिलाड़ी उनमें से एक का चयन कर सकता है। यदि खिलाड़ी के पास टेबल पर कार्ड से मेल खाने वाले कार्ड नहीं हैं, तो खिलाड़ी टेबल पर एक कार्ड छोड़ देता है। खिलाड़ी ड्रॉ पाइल से शीर्ष कार्ड पर फ़्लिप करने के साथ बारी जारी रखता है और टेबल पर उसी महीने के कार्ड की तलाश करता है।यदि खिलाड़ी टेबल पर एक मिलान कार्ड ढूंढता है, तो खिलाड़ी चरण 2 में मिलान किए गए कार्ड के साथ दोनों कार्ड एकत्र करता है। अन्यथा, खींचा गया कार्ड तालिका में जोड़ा जाता है। यदि चरण 3 में ड्रा पाइल के ऊपर से निकाला गया पत्ता चरण 2 में मिलान किए गए दो पत्तों से मेल खाता है, तो तीन पत्ते मेज पर रह जाते हैं। इसे ppeok (뻑; पौक) के रूप में जाना जाता है। तीन कार्ड तब तक बने रहते हैं जब तक कोई खिलाड़ी उसी महीने के चौथे कार्ड का उपयोग करके उन्हें एकत्र नहीं कर लेता। यदि कोई खिलाड़ी एक कार्ड खींचता है जो चरण 2 में छोड़े गए कार्ड से मेल खाता है, तो खिलाड़ी प्रत्येक प्रतिद्वंद्वी के स्टॉक पाइल से दोनों कार्ड और साथ ही एक जंक कार्ड (पीआई) एकत्र करता है। इसे चोक के नाम से जाना जाता है। यदि कोई खिलाड़ी चरण 2 में एक कार्ड खेलता है जिसके लिए दो मिलान कार्ड पहले से ही टेबल पर हैं, और फिर चरण 3 में ड्रॉ पाइल से चौथा मिलान कार्ड खींचता है, तो खिलाड़ी सभी चार कार्ड और साथ ही एक जंक कार्ड (pi) एकत्र करता है प्रत्येक प्रतिद्वंद्वी के स्टॉक ढेर से। इसे तदक के नाम से जाना जाता है। खेल का उद्देश्य तीन (तीन खिलाड़ियों के लिए) या सात (दो खिलाड़ियों के लिए) के स्कोर तक अंक जमा करने के लिए स्कोरिंग संयोजन बनाना है, जिस बिंदु पर "गो" या "स्टॉप" कहा जाना चाहिए। एक गेम जो न तो "गो" और न ही "स्टॉप" कॉल के साथ समाप्त होता है, उसे नागारी गेम (나가리; नागारी) कहा जाता है। निम्नलिखित खेल का डीलर और खेलने का क्रम नागारी खेल के समान ही रहता है, और जब खेल समाप्त होता है, तो हारने वाले को विजेता को दोगुना पैसा देना पड़ता है। अतिरिक्त नियम कोई भी खिलाड़ी जिसके हाथ में एक ही महीने के तीन कार्डों का एक सेट होता है, वह उन्हें अन्य खिलाड़ियों को दिखा सकता है, जिसे "शेकिंग" कार्ड (흔들기; हेंडेल्गी) कहा जाता है। हर बार जब कोई खिलाड़ी एक हाथ से हिलता है, तो उस खिलाड़ी के हाथ जीतने की स्थिति में अंतिम अंक दोगुने हो जाते हैं। यदि किसी खिलाड़ी के हाथ में एक ही महीने के तीन कार्डों का एक सेट है और उस महीने का चौथा कार्ड टेबल पर स्थित है, तो खिलाड़ी एक ही बारी में तीनों कार्ड खेल सकता है और सभी चार कार्ड और साथ ही एक जंक कार्ड एकत्र कर सकता है, (पीआई) प्रत्येक खिलाड़ी के स्टॉक ढेर से। इसे पोकटन (폭탄; पोगटन; शाब्दिक अर्थ 'बम') के रूप में जाना जाता है। पोकटन खेलने से पहले ताश को हिलाना भी एक विकल्प है। एक खिलाड़ी जिसने पोकटन खेला है, वह ऊपर के चरण 2 को दो मोड़ों में छोड़ना चुन सकता है (यानी खिलाड़ी की बारी में ड्रॉ पाइल से केवल एक कार्ड खींचना होता है)। कोई भी खिलाड़ी जिसके पास एक ही महीने के चार कार्डों का सेट है, वह उन्हें अन्य खिलाड़ियों को दिखा सकता है और तुरंत हाथ जीत सकता है। यदि टेबल पर एक ही महीने के तीन कार्डों का एक सेट है, तो उन्हें एक स्टैक में जोड़ दिया जाता है। जो खिलाड़ी उस महीने के चौथे कार्ड का उपयोग करके ढेर जमा करता है, वह प्रत्येक खिलाड़ी के स्टॉक पाइल से एक जंक कार्ड (피) भी एकत्र करेगा। यदि टेबल पर एक ही महीने के चार कार्डों का एक सेट होता है, तो कार्डों में फेरबदल किया जाता है और उसी डीलर द्वारा पुनः सौदा किया जाता है। यदि प्रारंभिक सौदे के दौरान टेबल पर कोई बोनस कार्ड होता है, तो डीलर बोनस कार्ड एकत्र करता है और ड्रॉ पाइल के शीर्ष कार्ड को फेस-अप करता है और उसे टेबल पर रखता है। यदि किसी खिलाड़ी को एक बोनस कार्ड दिया जाता है, तो वे किसी भी मोड़ की शुरुआत में इसे अपने स्टॉक पाइल में जोड़ सकते हैं और ड्रा पाइल से एक कार्ड अपने हाथ में बदलने के लिए निकाल सकते हैं। यदि कोई खिलाड़ी अपनी नियमित बारी के दौरान ड्रा पाइल से एक बोनस कार्ड खींचता है, तो वे उस मोड़ के दौरान मिलान किए गए किसी भी अन्य कार्ड के साथ स्वचालित रूप से इसे एकत्र कर लेंगे, केवल एक पीओक की स्थिति को छोड़कर, जिसमें सभी चार कार्ड (यानी तीन कार्ड पीओक में शामिल प्लस बोनस कार्ड) टेबल पर ही रहना चाहिए। खिलाड़ी तब तसलीम कर सकता है जब खिलाड़ी के पास दूसरों का जीत-कार्ड हो। वह कार्ड जो दूसरे खिलाड़ी को मिलता है, अन्य लोग खेल जीतते हैं उसे जीत-कार्ड कहा जाता है। अगला खिलाड़ी पूछता है "क्या आप शो डाउन प्राप्त करेंगे?" प्रगति की दिशा में। यदि अगला खिलाड़ी "नहीं" कहता है, तो खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ी का विन-कार्ड रख देता है। यदि सभी "हाँ" कहते हैं, तो खेल नागरी खेल होगा। प्वाइंट सिस्टम गो-स्टॉप में अंक एकत्र करने के कई तरीके हैं। ब्राइट कार्ड (광; उज्ज्वल) गो-स्टॉप में अंक जमा करने का एक तरीका पांच ब्राइट कार्ड्स (ग्वैंग) में से तीन या अधिक एकत्र करना है। अधिकांश कोरियाई ह्वातु डेक में, इन्हें चीनी वर्ण 光 के साथ पहचाना जाता है; गुआंग; 'उज्ज्वल'। जब दिसंबर के महीने के अलावा तीन ग्वांग (जिसे बी ग्वांग, द्वि अर्थ "बारिश" कहा जाता है) एकत्र किया जाता है, तो इसे "थ्री ब्राइट्स" (सैम ग्वांग) के रूप में जाना जाता है और इसका मूल्य तीन अंक होता है। जब दिसंबर के महीने के अलावा तीन ग्वांग (जिसे बी ग्वांग, द्वि अर्थ "बारिश" कहा जाता है) एकत्र किया जाता है, तो इसे "थ्री ब्राइट्स" (सैम ग्वांग) के रूप में जाना जाता है और इसका मूल्य तीन अंक होता है। हालांकि, अगर थ्री ब्राइट्स में बाय ग्वांग शामिल है, तो इसे "वेट थ्री ब्राइट्स" (बाय सैम ग्वांग) कहा जाता है, और इसका मूल्य दो अंक होता है। जब चार ग्वांग एकत्र किए जाते हैं, तो इसे "फोर ब्राइट्स" (सा ग्वांग) कहा जाता है और इसका मूल्य चार अंक होता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि 'द्वि ग्वांग' "फोर ब्राइट्स" में शामिल है या नहीं। जब सभी पांच ग्वांग एकत्र किए जाते हैं, तो इसे "फाइव ब्राइट्स" (ओ ग्वांग) कहा जाता है और घर के नियमों के आधार पर इसका मूल्य पंद्रह से पचास अंक होता है। रिबन कार्ड (띠; फीता) अंक जमा करने का एक अन्य तरीका नौ रिबन कार्डों में से पांच या अधिक प्राप्त करना है। किन्हीं पाँच रिबन कार्डों के एक सेट का मूल्य एक अंक है, और पाँच के बाद प्रत्येक अतिरिक्त रिबन कार्ड का एक अतिरिक्त अंक है। उदाहरण के लिए, छह रिबन कार्डों के एक सेट का मूल्य दो बिंदुओं का होता है और सात रिबन कार्डों के एक सेट का मूल्य तीन बिंदुओं का होता है। हालांकि रिबन के साथ दस कार्ड हैं, दिसंबर के लिए रिबन कार्ड को बाहर रखा गया है। पांच या अधिक रिबन कार्ड से जुड़े बिंदुओं के अलावा, तीन मिलान वाले रिबन कार्डों का एक सेट एकत्र करके अंक भी जमा किए जा सकते हैं। तीन नीले रिबन कार्ड (청단; चोंग डान), कविता के साथ तीन लाल रिबन कार्ड (홍단; होंग डान), और कविता के बिना तीन लाल रिबन कार्ड (초단; चो डान) हैं। ध्यान दें कि दिसंबर रिबन कार्ड, जो भी लाल है और बिना कविता के है, को बाहर रखा गया है। इनमें से प्रत्येक संयोजन तीन बिंदुओं के लायक है। इसके अलावा, रिबन कार्ड के माध्यम से अंक जमा करने के दो तरीके संयुक्त हैं। यदि कोई खिलाड़ी सभी तीन लाल कविता रिबन और सभी तीन नीले रिबन सहित छह रिबन कार्ड एकत्र करता है, तो खिलाड़ी होंग डैन के लिए तीन अंक, चोंग डैन के लिए तीन अंक और छह रिबन कार्ड रखने के लिए अतिरिक्त दो अंक का दावा कर सकता है। आठ बिंदुओं में से। पशु कार्ड (끗; ‘पांच’) अंक जमा करने का तीसरा तरीका नौ में से पांच या अधिक पशु कार्ड एकत्र करना है। पशु कार्ड की स्कोरिंग प्रणाली काफी हद तक रिबन कार्ड के समान है। किसी भी पांच पशु कार्ड का एक सेट एक अंक के लायक है, और पांच के बाद प्रत्येक अतिरिक्त पशु कार्ड एक अतिरिक्त अंक के लायक है। उदाहरण के लिए, छह एनिमल कार्ड्स के एक सेट का मूल्य दो पॉइंट्स का होता है, और सात एनिमल कार्ड्स के एक सेट का मूल्य तीन पॉइंट्स का होता है। जानवरों के साथ उज्ज्वल कार्ड (जनवरी और नवंबर) को बाहर रखा गया है। दो पशु कार्ड में जानवरों की तस्वीर नहीं है: मई (पुल) और सितंबर (कप)। इन दो कार्डों को इसके बजाय डबल जंक कार्ड के रूप में गिना जा सकता है। इसके अलावा, यदि पशु कार्डों में, पक्षियों के साथ तीन कार्डों का एक विशेष सेट एकत्र किया जाता है, जो गीज़ (अगस्त सूट में), कोयल (अप्रैल) और नाइटिंगेल (फरवरी) से बना होता है, तो यह सेट है गोडोरी (고도리; गोदोली; शाब्दिक रूप से 'पांच पक्षी') कहा जाता है और इसकी कीमत पांच अंक है। हालांकि दिसंबर के एनिमल कार्ड में एक पक्षी होता है, लेकिन इसे गोडोरी में नहीं गिना जाता है। स्कोरिंग के दोनों तरीके संयुक्त हैं, जैसे कि रिबन कार्ड के साथ। इस प्रकार, यदि कोई खिलाड़ी गोडोरी सहित छह पशु कार्ड एकत्र करता है, तो खिलाड़ी गोडोरी के लिए पांच अंक और छह पशु कार्ड रखने के लिए दो अतिरिक्त अंक, कुल सात अंकों के लिए दावा कर सकता है। जंक कार्ड्स (피; 'स्किन') अंक जमा करने का चौथा और सबसे आम तरीका जंक कार्ड इकट्ठा करना है। दस जंक कार्डों का कोई भी सेट एक अंक के लायक है और दस के बाद प्रत्येक अतिरिक्त कार्ड एक अतिरिक्त अंक के लायक है। जंक कार्ड वे हैं जिन्हें चमकीले, रिबन या पशु कार्ड के रूप में नहीं गिना जाता है। इसके अलावा, डबल जंक (쌍피; सांग पी) नामक विशेष जंक कार्ड हैं, जिन्हें दो जंक कार्ड के रूप में गिना जाता है। बारह सूटों में से दस में प्रत्येक में दो जंक कार्ड हैं; नवंबर (दो जंक कार्ड और एक डबल जंक कार्ड) और दिसंबर (एक डबल जंक कार्ड) अपवाद हैं। साथ ही, ऊपर बताए गए जानवरों के बिना पशु कार्ड (मई और सितंबर के सूट के लिए) को आमतौर पर डबल जंक कार्ड के रूप में गिना जाता है। खेल खत्म जब कोई खिलाड़ी कम से कम तीन (तीन खिलाड़ियों के लिए) या सात (दो खिलाड़ियों के लिए) अंक जमा करता है, तो खिलाड़ी को यह तय करना होगा कि क्या वे "गो" (고; गो) कहकर उस हाथ को जारी रखेंगे या "स्टॉप" कहकर हाथ समाप्त करेंगे। (스톱; स्टोब)। यदि कोई खिलाड़ी एक बार "गो" कहता है, तो खिलाड़ी को "गो" या "स्टॉप" को कॉल करने का एक और अवसर देने के लिए अपने स्कोर को कम से कम एक अंक बढ़ाना चाहिए। एक खिलाड़ी जो एक बार "गो" कहता है, उसके अंतिम स्कोर में एक अंक जुड़ जाता है। दो "गो" के साथ, दो अंक जुड़ जाते हैं। तीसरे "गो" के साथ, स्कोर दोगुना हो जाता है। तीसरे "गो" के बाद (जिसमें स्कोर को दो से गुणा किया जाता है), स्कोर को उस संख्या से गुणा किया जाता है, जितनी बार विजेता ने "गो" कहा था। हालांकि, "गो" को कॉल करने से पहले, विजेता को यह विचार करना चाहिए कि क्या कोई अन्य खिलाड़ी अगले मोड़ के भीतर अपने स्कोर को कम से कम तीन या सात अंक तक बढ़ा सकता है। जब "स्टॉप" को कॉल किया जाता है, तो "गो" कॉल करने वाले किसी भी गैर-विजेता खिलाड़ी पर उनका जुर्माना (विजेता खिलाड़ी के कुल अंकों से गणना) दोगुना होगा। इसे गो बक कहते हैं। यदि एक गैर-विजेता खिलाड़ी के पास कोई ब्राइट कार्ड नहीं है, जब विजेता ने ब्राइट कार्ड एकत्र करके अंक जमा किए हैं, तो बिना ब्राइट कार्ड वाले खिलाड़ी का जुर्माना दोगुना हो जाएगा। इसे ग्वांग बक के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा, यदि एक गैर-विजेता खिलाड़ी के पास छह से कम जंक कार्ड हैं और विजेता ने जंक कार्ड एकत्र करके अंक अर्जित किए हैं, तो गैर-विजेता खिलाड़ी का जुर्माना दोगुना होगा। इसे पाई बक के नाम से जाना जाता है। ये सभी संचयी हैं। एक उदाहरण के रूप में, यदि कोई खिलाड़ी केवल रिबन कार्ड और पशु कार्ड के माध्यम से सात या अधिक अंक जमा करता है, तो खिलाड़ी "गो" कह सकता है। यदि, हालांकि, पहले खिलाड़ी को "गो" या "स्टॉप" कॉल करने का एक और मौका दिया जाता है, तो कोई अन्य खिलाड़ी ब्राइट कार्ड और जंक कार्ड दोनों के माध्यम से कम से कम सात अंक जमा करता है और बाद में "स्टॉप" कहता है, पहला खिलाड़ी जाने के अधीन होगा बक, ग्वांग बक और पाई बक। इस प्रकार, खिलाड़ी का दंड तीन गुना, दूसरे शब्दों में, आठ से गुणा किया जाएगा जुआ खेल आमतौर पर जुए के हल्के रूप के रूप में प्रयोग किया जाता है। हालांकि खेल को बिना पैसे के खेला जा सकता है, खेल को जुआ के पहलू के साथ अधिक मनोरंजक माना जाता है, जिसमें घर आमतौर पर ₩100 प्रति बिंदु पर खेलते हैं। हालाँकि, किसी भी राशि को बिंदु पर असाइन किया जा सकता है। खेल परिवार के घर के बाहर बड़ी सावधानी के साथ खेला जाता है, यदि कभी खेला जाता है, क्योंकि जुआ पहलू धोखाधड़ी के माध्यम से अविश्वास लाता है, जिसमें ताश के पत्तों को छिपाना और हाथ को बेहतर बनाने के लिए विदेशी कार्डों की शुरूआत शामिल है, जैसा कि सामान्य उदाहरण हैं। यह सभी देखें ताज्जा, ह यंग-मैन द्वारा एक दक्षिण कोरियाई कॉमिक जिसे फिल्मों और टेलीविजन में रूपांतरित किया गया है। गो-स्टॉप का एक संस्करण, जहां हारने वाले को कलाई पर मारा जाता है, Her Private Life "उसके निजी जीवन" (कोरियाई: 그녀의 사생활) के एपिसोड 12 में मुख्य पात्रों द्वारा खेला गया था। संदर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE%20%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B0
प्रेम मन्दिर
प्रेम मंदिर भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले के समीप वृंदावन में स्थित है। इसका निर्माण जगद्गुरु कृपालु महाराज द्वारा भगवान कृष्ण और राधा के मन्दिर के रूप में करवाया गया है। प्रेम मन्दिर का लोकार्पण १७ फरवरी को किया गया था। इस मन्दिर के निर्माण में ११ वर्ष का समय और लगभग १०० करोड़ रुपए की धन राशि लगी है। इसमें इटैलियन करारा संगमरमर का प्रयोग किया गया है और इसे राजस्थान और उत्तरप्रदेश के एक हजार शिल्पकारों ने तैयार किया है। इस मन्दिर का शिलान्यास १४ जनवरी २००१ को कृपालुजी महाराज द्वारा किया गया था। ग्यारह वर्ष के बाद तैयार हुआ यह भव्य प्रेम मन्दिर सफेद इटालियन करारा संगमरमर से तराशा गया है। मन्दिर दिल्ली – आगरा – कोलकाता के राष्ट्रीय राजमार्ग २ पर छटीकरा से लगभग ३ किलोमीटर दूर वृंदावन की ओर भक्तिवेदान्त स्वामी मार्ग पर स्थित है। यह मन्दिर प्राचीन भारतीय शिल्पकला के पुनर्जागरण का एक नमूना है। इतिहास सम्पूर्ण मन्दिर ५४ एकड़ में बना है तथा इसकी ऊँचाई १२५ फुट, लम्बाई १२२ फुट तथा चौड़ाई ११५ फुट है। इसमें फव्वारे, राधा-कृष्ण की मनोहर झाँकियाँ, श्री गोवर्धन लीला, कालिया नाग दमन लीला, झूलन लीला की झाँकियाँ उद्यानों के बीच सजायी गयी है। यह मन्दिर वास्तुकला के माध्यम से दिव्य प्रेम को साकार करता है। सभी वर्ण, जाति, देश के लोगों के लिये खुले मन्दिर के लिए द्वार सभी दिशाओं में खुलते है। मुख्य प्रवेश द्वारों पर आठ मयूरों के नक्काशीदार तोरण हैं तथा पूरे मन्दिर की बाहरी दीवारों पर राधा-कृष्ण की लीलाओं को शिल्पांकित किया गया है। इसी प्रकार मन्दिर की भीतरी दीवारों पर राधाकृष्ण और कृपालुजी महाराज की विविध झाँकियों का भी अंकन हुआ है। मन्दिर में कुल 94 स्तम्भ हैं जो राधा-कृष्ण की विभिन्न लीलाओं से सजाये गये हैं। अधिकांश स्तम्भों पर गोपियों की मूर्तियाँ अंकित हैं, जो सजीव जान पड़ती है। मन्दिर के गर्भगृह के बाहर और अन्दर प्राचीन भारतीय वास्तुशिल्प की उत्कृष्ट पच्चीकारी और नक्काशी की गयी है तथा संगमरमर की शिलाओं पर राधा गोविन्द गीत सरल भाषा में लिखे गये हैं। मंदिर परिसर में गोवर्धन पर्वत की सजीव झाँकी बनायी गयी है। प्रेम मंदिर वृंदावन समय प्रेम मंदिर उद्घाटन समय 5.30 बजे है और समापन समय 8.30 बजे है। नीचे की मेज के अनुसार मंदिर के अंदर विभिन्न आरती का प्रदर्शन किया जाता है। आरती के समय मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त इकट्ठे होते हैं। मंदिर के अंदर प्रवेश करने के लिए कोई प्रवेश शुल्क नहीं है और प्रवेश सभी के लिए पूरी तरह से नि: शुल्क है। पूरे मंदिर को कवर करने के लिए कम से कम दो घंटे की आवश्यकता है सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ प्रेम मंदिर के बारे में सब जाने बाँके बिहारी मन्दिर, वृंदावन का आधिकारिक जालस्थल जगद्गुरु कृपालु परिषद् विकिमैपिया पर देखें - बाँके बिहारी जी मन्दिर इन्हें भी देखें कृपालु महाराज वृंदावन उत्तर प्रदेश में हिन्दू मंदिर कृष्ण राधा मंदिर
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डायरेक्ट ब्रॉडकास्ट सैटेलाइट
घर पहुँच सेवा या डायरेक्ट ब्रॉडकास्ट सैटेलाइट (डीबीएस) या डायरेक्ट टू होम (डीटीएच) उपग्रह से सीधे टीवी प्रसारण सेवा सुविधा है। इस प्रसारण में उपभोक्ता को अपने घर में डिश लगानी होती है। इस प्रसारण में केबल टीवी ऑपरेटर की भूमिका खत्म हो जाती है और प्रसारणकर्त्ता सीधे उपभोगताओं को सेवा प्रदान करता है। डीटीएच नेटवर्क प्रसारण केन्द्र, उपग्रह, एनकोडर, मल्टीपिल्क्सर, मॉडय़ूलेटर और उपभोगताओं से मिलकर बनता है। एक डीटीएच सेवा प्रदाता को उपग्रह से केयू बैंड ट्रांसपोंडर को लीज या किराए पर लेना होता है। इसके बाउ एनकोडर ऑडियो, वीडियो व डाटा सिगनल को डिजिटल फॉरमेट में बदल देता है। मल्टीपिल्कसर इन संकेतों को मिश्रित करता है और इसके बाद उपभोगता के घर पर लगे सैट टॉप बॉक्स या डिश एंटीना डी-कोड कर कार्यक्रमों को टीवी पर प्रसारित करते हैं। डीबीएस को प्रायः पर मिनी डिश सिस्टम भी कहा जाता है। डीबीएस में ४ बैंड के ऊपरी हिस्से व बैंड के कुछ हिस्सों को उपयोग में लिया जाता है। संशोधित डीबीएस को सी-बैंड उपग्रह से भी संचालित किया जा सकता है। अधिकांश डीबीएस डीवीबी-एस मानकों को अपने प्रसारण के लिए उपयोग में लाते हैं। इन मानको को पे-टीवी सेवाओं के तहत रखा गया है। इतिहास दूरदर्शन की यात्रा टेरिस्टेरियल प्रसारण से आरंभ हुई और केबल नेटवर्क से आगे बढ़ते हुए डायरेक्ट टू होम (डीटीएच) पर पहुँच चुकी है, जिसने आम उपभोक्ताओ को एक साथ कई विकल्प दिए हैं। बदलती प्रौद्योगिकी से दूरदर्शन चैनलों की संख्या में लगातार बढोत्तरी हो रही है और आनेवाले समय में चैनलों की संख्या के ५०० के भी पार होने की संभावना है।१९६२ में पहला उपग्रह टेलिविजन सिग्नल यूरोप से टेलिस्टार उपग्रह से उत्तरी अमेरिका में प्रसारित किया गया था। विश्व का पहला व्यवसायिक संचार उपग्रह इंटेलसैट-१६ अप्रैल १९६५ में लांच किया गया था। डीटीएच के विकास में इन तीन कदमों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। पहले डीटीएच टीवी प्रसारण को इकरान नाम दिया गया था। यह १९७६ में तत्कालीन सोवियत रूस में प्रसारित हुआ था। भारत में १९९६ में डीटीएच सेवाओं को लागू करने का प्रस्ताव आया था और २००० में इसके प्रसारण आरंभ हुए। मानदण्ड आज बाजार में डाइरेक्ट टू होम (डीटीएच) स्पेस में भागीदारी के लिए अब जरूरत से ज्यादा प्रतियोगी हो गए हैं, जैसे अकेले भारत में ही डिश टीवी, टाटा स्काई, बिग टीवी, एयरटेल डिजिटल, सन डाइरेक्ट और वीडियोकोन डी2एच, आदि। डीटीएच सेवा प्रदाताओं को चुनते हुए ध्यान योग्य कुछ खास बिन्दुओं का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। पिक्चर की गुणवत्ता, विपरीत मौसम में प्रसारण, पैकेज की अनुरूपता, कीमत के अलावा वैल्यू ऐडेड सर्विस आदि बिन्दु चुनाव करते समस्य अवश्य ध्यान दिए जाने चाहिए। तस्वीर की गुणवत्ता जिसकी प्रदाता की पिक्चर क्वालिटी अच्छी होगी, वह डीटीएच सेवा भी उतनी अच्छी कहलाएगी। कुछ सेवाप्रदाताओं द्वारा एमपीईजी4 पिक्चर क्वालिटी उपलब्ध कराई जाती है, जबकि कुछ डीवीडी क्वालिटी डिजिटल ट्रांसमिशन प्रदान करते हैं। नया स्टैंडर्ड एमपीईजी4 के साथ डीवीबी-एस-2 है, जिसे डिजिटल वीडियो ब्रॉडकास्टिंग-दूसरी पीढ़ी से जोड़ा जाता है। यह मानक उसी समय विकसित हुआ जिस समय एच.264 वीडियो कोडेक विकसित हुआ। इस मानक में हाई-डेफिनेशन (एचडी) क्वालिटी का प्रावधान है। इंटरनेट के साथ जुड़कर इसकी सेवाओं का दायरा और अधिक व्यापक हो जाता है। केवल, बाहर भेजे जाने वाले डाटा को दूसरे प्रसारण तरीकों से भेजने की आवश्यकता होती है। संवेष्ठ (पैकेज) डिजिटल क्वालिटी और वैल्यू एडेड सर्विसेज के आधार पर चैनलों के गठन की विधि को भी देखा जाना आवश्यक होता है। प्रत्येक सुविधादाता के आधारभूत पैकेज में फ्री-टू-एअर चैनल की अधिकता होती है और उसमें कुछ अन्य चैनल डाल दिए जाते हैं। भारत में एक अच्छे व्यापक पैकेज के लिए 350 रुपये का विकल्प बढ़िया होगा जिसके तहत यदि प्रति चैनल कीमत की बात की जाए तो पैसे की पूरी कीमत वसूली जा सकती है। इसके जरिए कुछ पे-पर-व्यू फिल्में और सक्रिय सेवाओं तक भी पहुँच बनेगी। इसके अलावा डीटीएच प्रोवाइडर्स द्वारा प्रवेश के लिए आकर्षक सुविधाएं भी दी जा रही हैं, जिसमें स्थापित करने और हार्डवेयर का खर्च शामिल है। मांग पर फिल्में (मूवी ऑन डिमांड) डीटीएच सेवा प्रदाता ऐसे चैनल उपलब्ध कराते हैं, जहां पे-पर-व्यू फिल्में निर्धारित आरंभिक समय में दिखाई जाती हैं। यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि कितने चैनल्स डिमांड पर फिल्म दिखा रहे हैं, इससे कहीं अधिक जरूरी यह है कि वह किस तरह की फिल्में दिखाते हैं। कुछ सेवा प्रदाता सामयिक कंटेंट देते हैं, तो कुछ पर पुरानी फिल्में दिखाई जाती हैं। संवादात्मक सेवायें (इंटरेक्टिव सर्विस) अधिकतर सेवाप्रदाता इंटरेक्टिव सर्विसेज उपलब्ध कराते हैं, जिसमें आप सेवाओं से संपर्क कर सकते हैं। (भारत में सन टीवी ये अभि उपलब्ध नहीं कराता है) उदाहरण के लिए कुकिंग शो देखते समय उपभोक्ता के पास पॉप-अप होता है, जिसके अनुसार किसी खास बटन को दबाकर वे उस रेसिपी विशेष को देख सकते हैं अथवा किसी क्विज चैनल को देख सकते हैं। भ्रमण आधारित आंकड़े कुछ डीटीएच सेवाप्रदाता जैसे डिश टीवी विवाह सेवा अथवा नौकरी सेवा जालस्थलों आदि ऑनलाइन स्रोतों का कंटेंट उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा एयरटेल, विजट स्थापित करने की सुविधा देता है, जो मौसम, स्टॉक अपडेट, ब्रेक्रिंग न्यूज, स्पॉर्ट्स आदि जानकारी व खबरें एक बटन दबाने मात्र से उपलब्ध कराता है, इसके लिए मुख्य स्क्रीन से दूर हटने की जरूरत भी नहीं होगी। उपभोक्ता इंटरफेस उपभोक्ता को प्रोग्रामिंग के सागर में दिशा दिखाने वाली इलेक्ट्रॉनिक प्रोग्रामिंग गाइड (ईपीजी) का स्वरूप भी जरूरी होता है। उदाहरण के लिए बिग टीवी गाइड में चैनल को एल्फाबेट के अनुसार अथवा नंबर के रूप में व्यवस्थित किया जाता है। वीडियोकॉन इंटरफेस को बहुभाषा में देता है साथ ही उपभोक्ताओं के पास कुछ सीमा तक ऑन स्क्रीन को कस्टमाइज्ड करने का विकल्प होता है। एक अच्छा इंटरफेस, आपको एडवांस में ही कम से कम सात दिन पहले आने वाले प्रोग्राम्स के बारे में जानकारी उपलब्ध कराता है। वर्तमान में क्या चल रहा है और कई अन्य सुविधाएं भी इसमें शामिल होती हैं। केबल से तुलना केबल नेटवर्क से डीटीएच की तुलना करएं तो तार द्वारा प्रसारित होने के कारण केबल नेटवर्क की पहुँच लगभग महानगरों और बड़े शहरों तक ही सीमित है; जबकि डीटीएच की पहुँच महानगरों शहरों के साथ-साथ सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक भी उतनी ही सुलभ है। केबल नेटवर्क जहां अब भी एनालॉग आधारित प्रसारण ही दर्शकों को उपलब्ध कराते हैं, वहीं डीटीएच सेवा द्वारा उपलब्ध कराई जानेवाली तकनीकी उत्कृष्ट दृश्य-श्रव्य गुणवत्ता उपलब्ध कराती है, जिसे केबल सेवा किसी भी परिस्थिति में उपलब्ध नहीं करा सकती है। डीटीएच की सबसे बड़ी खूबी है कि इसके द्वारा उपभोक्ताओं को आवश्यकता के अनुसार चैनल चुनने और उनका भुगतान करने की स्वतंत्रता मिलती है। यह केबल ऑपरेटर की सेवा के विपरीत है, जहां दर्शक चैनलों की संख्या या सेवा गुणवत्ता के बिना मासिक शुल्क देने को बाध्य होते हैं। डीटीएच प्लेटफॉर्म के प्रति उपभोक्ताओं की दिलचस्पी बढ़ने का मुख्य कारण अत्यधिक उच्च गुणवत्ता है। डीटीएच सेवा उपभोक्ता को इसके माध्यम से आनेवाली सामग्री के नियंत्रण की लचीली व्यवस्था प्रदान करती है। इसके अलावा डीटीएच, कंडिशनल एक्सेस सिस्टम (सीएएस) और इंटरनेट प्रोटोकॉल टेलीविजन (आईपीटीवी) जैसे डिजिटल माध्यमों में ऐसी व्यवस्था होती है, कि उनकी पहुँच बच्चों तक होने से रोका जा सके। सशर्त पहुँच मॉड्यूल (कंडीशनल एक्सेस मॉड्यूल) कैम या कंडीशनल एक्सेस माडय़ूल एक छोटा सा उपकरण होता है जिसे उपभोक्ता अपने सेट टॉप बॉक्स में लगा सकते हैं। यह ग्राहक को बिना नया सेट टॉप बॉक्स खरीदे दूसरे सेवा प्रदाता के साथ जुड़ने की सुविधा देता है। फिलहाल तो डीटीटीएच सेवा देने वाली कंपनियां सेट टॉप बॉक्स की कीमतों में आकर्षक छूट देने की होड़ में लगी हैं। कैम के जरिए ज्यादा ग्राहक जोड़ने की पूरी योजना की कामयाबी इस पर निर्भर करेगी कि वह प्रदाता इसकी कीमत कितनी रखता है। इस बारे में भारतीय दूरभाष नियामक प्राधिकरण (ट्राई) का नियम यह है कि हर ऑपरेटर के सेट टॉप बॉक्स में कैम लगाने की जगह उपलब्ध और खाली होनी चाहिए ताकि उपभोक्ता अपनी पसंद और जरूरत के अनुसार कैम को फिट कर सके। भारत में डीटीएच भारत में डीटीएच ग्राहकों की संख्या अगले दो वर्षों में, यानी २०११ तक दोगुनी होकर ३.२ करोड़ के पार होने की संभावना है। वर्तमान में भारत में डीटीएच ग्राहकों की संख्या १.६ करोड़ है। आंकड़ों के अनुसार घरों में एलसीडी तथा एलईडी सेटों की संख्या में भी बढ़ोतरी के साथ ही भारत के उपभोक्ता बड़ी तेजी से केबल आपरेटर सेवा से डीटीएच की ओर जा रहे हैं। रिलायंस बिग टीवी के मुख्य मार्केटिंग अधिकारी उमेश राव के अनुसार, डीटीएच के प्रति उपभोक्ताओं की रुचि बढ़ने का मुख्य कारण उच्च गुणवत्ता वाली बिना बाधा की सेवा तथा घर पर संपूर्ण मनोरंजन का आनंद उठाने की आवश्यकता रही है। विशेषज्ञों के अनुसार आगामी २ वर्षों में एलसीडी टीवी सेटों की कीमतों में ३५ प्रतिशत की कमी संभावित है, ये सेट सीआरटी टीवी के बनिस्बत अधिक पसंद किए जा रहे हैं। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ एसईएस ऍस्ट्रा लिंक्स ब्रॉडकास्ट निःशुल्क डायरेक्ट ब्रॉडकास्ट सैटेलाइट नेटवर्क टीवी चैनल संचार उपग्रह दूरदर्शन प्रौद्योगिकी हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%B0%20%E0%A4%9A%E0%A5%88%E0%A4%AA%E0%A4%B2
ट्रेवर चैपल
ट्रेवर मार्टिन चैपल (जन्म 12 अक्टूबर 1952) एक पूर्व ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर हैं, जो दक्षिण ऑस्ट्रेलियाई चैपल परिवार के सदस्य हैं, जिन्होंने क्रिकेट में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के लिए 3 टेस्ट और 20 एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच खेले। उन्होंने न्यू साउथ वेल्स के साथ दो बार शेफील्ड शील्ड जीती और 1983 विश्व कप में भारत के खिलाफ ऑस्ट्रेलिया के लिए शतक बनाया। हालांकि, उनका करियर 1981 में एक घटना से प्रभावित हुआ, जिसमें उन्होंने न्यूजीलैंड के क्रिकेटर ब्रायन मैककेनी को एक अंडरआर्म गेंद फेंकी, ताकि बल्लेबाज को छक्का लगाने से रोका जा सके। 1986 में प्रथम श्रेणी क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, चैपल 1996 में श्रीलंका क्रिकेट टीम के क्षेत्ररक्षण कोच बने और 2001 में बांग्लादेश क्रिकेट टीम के कोच बने। वह सिंगापुर क्रिकेट टीम के राष्ट्रीय कोच हुआ करते थे। सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%9F%E0%A5%80
वारंटी
व्यापार और कानूनी लेनदेन में, अश्वस्ति या वारन्टी (waranty), एक पार्टी द्वारा दूसरी पार्टी को दिया गया यह आश्वासन है कि कुछ ख़ास तथ्य या स्थितियां सही हैं, या होंगी; दूसरी पार्टी को उस आश्वासन पर भरोसा करने की अनुमति दी जाती है और अगर वह आश्वासन गलत होता है या उसका पालन नहीं किया जाता है तो उसके लिए कुछ उपचार हासिल करने की व्यवस्था होती है। अचल संपत्ति के लेनदेन में, एक वारंटी विलेख यह वादा है कि एक भूमि के खरीदार के स्वामित्व का बचाव किया जाएगा. एक वारंटी को व्यक्त किया जा सकता है या वह निहित हो सकती है। एक्सप्रेस वारंटी उत्पाद के विक्रेता की तरफ से एक गारंटी है जो उस सीमा को निर्दिष्ट करती है जबतक उस उत्पाद की गुणवत्ता या प्रदर्शन का आश्वासन का भरोसा दिया जाता है और उन स्थितयों का स्पष्टीकरण होता है जिनके अंतर्गत उस उत्पाद को वापस किया जा सकता है, बदला जा सकता है, या मरम्मत की जा सकती है। इसे अक्सर एक विशिष्ट, लिखित "वारंटी" दस्तावेज के रूप में दिया जाता है। हालांकि, विक्रेता द्वारा माल के विवरण और शायद उनके स्रोत और गुणवत्ता के आधार पर क़ानूनी नियमों से भी एक वारंटी उत्पन्न हो सकती है और उस विनिर्देश से किसी भी प्रकार की सामग्री भिन्नता गारंटी का उल्लंघन होगी. उदाहरण के लिए, किसी उत्पाद का वर्णन करने वाला विज्ञापन अक्सर एक्सप्रेस वारंटी से भरा होता है; उस उत्पाद को विज्ञापित विवरण के अनुकूल होना चाहिए. कई विज्ञापनदाता इस उद्देश्य के लिए अस्वीकरण शामिल करते हैं (जैसे, "वास्तविक रंग/क्षमता/परिणाम भिन्न हो सकते हैं", या "वास्तविक आकार नहीं दिखाया गया है"). सामान्यतः, एक लिखित वारंटी खरीदार को विश्वास दिलाती है कि उस वस्तु की गुणवत्ता अच्छी है और वह "सामग्री और बनावट" में दोष रहित है। एक एक्सप्रेस वारंटी को मौखिक रूप से, लिखित और वास्तव में विक्रेता द्वारा वारंटी बनाने के किसी इरादे के बिना बनाया जा सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, एक विक्रेता को मूल्य के लिए अपनी राय बनाने की अनुमति होती है जिसे पफरी (अति प्रशंसा) के रूप में जाना जाता है और जिस पर एक खरीदार सौदे के आधार के रूप में भरोसा नहीं कर सकता. उदाहरण के लिए, "यह शिकारी चाकू दुनिया में सबसे बेहतरीन चाकू है" मात्र अति प्रशंसा है, जबकि एक बयान जैसे कि "इस शिकारी चाकू को धार करने की कभी आवश्यकता नहीं है" को एक एक्सप्रेस वारंटी के रूप में समझा जा सकता है जब तक कि उस चाकू को उसके इच्छित प्रयोजन के लिए इस्तेमाल किया जाता है। कुछ अन्य देशों में (जैसे ब्रिटेन, कनाडा और ताइवान), ऐसे उपभोक्ता संरक्षण कानून मौजूद हैं जो विज्ञापनदाताओं को असत्य या असिद्ध बयान देने से रोकते हैं। किसी प्रसिद्ध ट्रेडमार्क का दुरुपयोग भी एक एक्सप्रेस वारंटी को व्यक्त कर सकता है, जिसका उल्लंघन "पासिंग ऑफ़" कहलाता है; माल के स्रोत और गुणवत्ता को गलत प्रस्तुत किया गया। वारंटी कार्यान्वयन कुछ उत्पादों के साथ वारंटी होती है जिसके तहत महीने, साल या आजीवन मरम्मत या प्रतिस्थापन का वादा होता है। सिद्धांत रूप में, एक व्यक्ति मरम्मत के लिए किसी उत्पाद को "डीलर" को वापस कर सकता है, लेकिन अधिकांश दुकानें -और निर्माता भी- जो इस तरह के उत्पादों को बेचते हैं उनके पास मरम्मत सुविधाओं का अभाव होता है। कार डीलरों के पास ऐसी मरम्मत की दुकानें होती हैं जिसके चलते बहुत से लोग नई कारें खरीदते हैं; कंप्यूटर डीलर और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स डीलरों के पास 1990 के दशक में इस तरह की दुकानें हुआ करती थीं, लेकिन इनमें से अधिकांश अब लुप्त हो चुकी हैं। अभ्यास में, एक उत्पाद जो एक महीने के भीतर विफल हो जाता है उसे दुकान की गारंटी के तहत नए द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है; या एक उत्पाद जो दुकान की गारंटी के समाप्त होने के बाद विफल होता है लेकिन जिसकी निर्माता की गारंटी बाकी है उसे निर्माता द्वारा बदला जा सकता है - स्टोर गारंटी और निर्माता की वारंटी परस्पर अनन्य हैं। कभी ऐसी मरम्मत की दुकानें हुआ करती थीं जो छोटे विद्युत उपकरणों के लिए वारंटी सेवा प्रदान करती थीं, जैसे कि विद्युत् रेज़र या लैंप और टोस्टर; लेकिन 1980 के दशक में, उनमें से अधिकांश पत्र अग्रेषण सेवा में बदल गए जो वारंटी वाले उत्पाद को निर्माताओं के पास प्रतिस्थापित करने के लिए भेजते थे और उनमें से अधिकांश 1990 के दशक में गायब हो गए। कुछ अपवाद भी हैं: कुछ कंपनियां - विशेषकर तोशिबा (Toshiba) - वास्तव में वारंटी के अंतर्गत उत्पादों की मरम्मत करती है। थामस फ्रीडमैन बताते हैं कि कैसे तोशिबा ने यूपीएस के मामले में वारंटी कार्यों को सभालने के लिए एक व्यवस्था का निर्माण किया: एक ग्राहक, जिसने तोशिबा की वेबसाइट से सीधे कंप्यूटर का आर्डर दिया है, वह यूपीएस के माध्यम से खराब कंप्यूटर को तोशिबा को भेज सकता है। वास्तव में, वह कभी तोशिबा तक नहीं पहुंचता है। बल्कि यूपीएस, तोशिबा-कंप्यूटर की मरम्मत की स्वयं की दुकानें रखता है। जब यूपीएस, उपयोगकर्ता के कंप्यूटर को उठाता है, वह उसे यूपीएस की दुकान पर भेज देता है, जहां उसे ठीक किया जाता है, परीक्षण किया जाता है और एक निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर उपयोगकर्ता के पास लौटा दिया जाता है। सामान्य तौर पर, उपयोगकर्ता के सॉफ्टवेयर और डेटा को संरक्षित रखा जाता है। निहित वारंटी एक निहित वारंटी वह होती है जो विक्रेता के व्यक्त अभ्यावेदन की बजाय सौदे की प्रकृति और खरीदार द्वारा निहित समझ से उत्पन्न होती है। वाणिज्योपयोगिता की वारंटी गर्भित होती है, जब तक कि नाम द्वारा स्पष्ट रूप से अस्वीकार ना हो, या बिक्री को इस वाक्यांश के साथ पहचाना गया हो "यथा रूप में" या "सभी दोषों के साथ." "विक्रेय" होने के लिए, माल को एक साधारण क्रेता की उम्मीदों के यथोचित अनुकूल होना चाहिए, अर्थात् वे वही हैं जो वे कहते हैं। उदाहरण के लिए, एक फल जिसका स्वरूप और खुशबू अच्छी है लेकिन जिसमें छुपे हुए दोष हैं, वह वाणिज्योपयोगिता की वारंटी का उल्लंघन करेगा अगर उसकी गुणवत्ता ऐसे फल के मानकों को पूरा नहीं करती जो "व्यापार में आमतौर पर स्थापित है". मैसाचुसेट्स के उपभोक्ता संरक्षण कानून में, घरेलु उपभोक्ता वस्तुओं पर इस वारंटी को अस्वीकार करना गैरकानूनी है आदि. विशेष उद्देश्य के लिए फिटनेस की वारंटी तब निहित होती है जब एक खरीदार एक विशिष्ट अनुरोध के अनुकूल माल चयन के लिए विक्रेता पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, इस वारंटी का तब उल्लंघन होता है, जब एक खरीदार एक मैकेनिक से स्नो टायर की मांग करता है और बदले में ऐसे टायर प्राप्त करता है जो बर्फ में प्रयोग के लिए असुरक्षित हैं। इस निहित वारंटी को नाम द्वारा स्पष्ट रूप से अस्वीकार किया जा सकता है, जिससे खराबी के जोखिम को वापस खरीदार पर डाल दिया जाता है। लाइफटाइम वारंटी एक आजीवन वारंटी, आमतौर पर बाज़ार में एक उत्पाद के जीवन पर होती है न कि उपभोक्ता के जीवनकाल पर, (सटीक अर्थ को वास्तविक वारंटी दस्तावेज में परिभाषित किया जाना चाहिए). यदि एक उत्पाद को बंद कर दिया गया है और अब उपलब्ध नहीं है, तो वारंटी एक सीमित अवधि तक लम्बी चल सकती है। उदाहरण के लिए, सिस्को सीमित जीवनकाल वारंटी उत्पाद को बंद कर दिए जाने के बाद वर्तमान में पांच साल तक रहती है। सेकेण्ड-हैंड उत्पाद वारंटी कुल बाजार (नया + सेकेण्ड-हैंड) के हिस्से के रूप में प्रयुक्त/सेकेण्ड-हैंड उत्पाद बाजार का महत्व इक्कीसवीं सदी की शुरुआत के बाद से काफी बढ़ रहा है। सेकेण्ड-हैंड उत्पादों में वे उत्पाद शामिल हैं जो पहले किसी उपभोक्ता/उपयोगकर्ता द्वारा इस्तेमाल किये जा चुके हैं। उपयोगकर्ता अपने उत्पादों को तब भी बदल देते हैं जब वह अच्छी हालत में हैं। कंप्यूटर और मोबाइल फोन जैसे कुछ उत्पादों का एक लघु जीवनकाल होता है और इन उत्पादों की प्रौद्योगिकियां बाज़ार में आए दिन जारी होती रहती हैं। नतीजतन, नए उत्पादों की बिक्री अक्सर, बदले जाने की व्यवस्था से जुडी होती है, जिससे सेकेण्ड-हैंड उत्पादों के लिए एक बाजार फलित होता है। उदाहरण के लिए, फ्रांस में इस्तेमाल की गई कारों की इकाई बिक्री 1990 और 2005 के बीच 4.7 मीलियन से बढ़कर 5.4 मिलियन हो गई, उसी समयावधि में नए कारों की बिक्री 2.3 मीलियन से घटकर 2.07 मीलियन इकाई हो गई। वारंटी का उल्लंघन एक वारंटी का उल्लंघन तब होता है जब वादे को तोड़ा जाता है; बिक्री के समय जब माल वैसा नहीं होता जैसी उससे उम्मीद होती है, चाहे वह दोष स्पष्ट हो या नहीं. विक्रेता को उस वारंटी का सम्मान करते हुए समय से पैसे वापस या वास्तु का प्रतिस्थापन करना चाहिए. अगर विक्रेता वारंटी का सम्मान करने से इनकार कर देता है तो वारंटी के उल्लंघन की अदालती शिकायत के लिए वह बिक्री अवधि सम्बन्धी क़ानून के तहत समय को शुरू कर देती है। इस अवधि को अक्सर वहां अनदेखा किया जाता है जहां एक "विस्तारित वारंटी" होती है, जिसमें एक विक्रेता या निर्माता उस विस्तारित अवधि के भीतर विफल होने वाले माल की मरम्मत या उसे प्रतिस्थापित करने की अतिरिक्त सेवा प्रदान करने का अनुबंध करता है। हालांकि, अगर माल बिक्री के समय ही खराब थे और सम्बंधित अवधि सम्बन्धी क़ानून समाप्त नहीं हुआ है, तो किसी भी "विस्तारित वारंटी" का अस्तित्व या अवधि द्वितीयक होती है: वहां एक प्राथमिक वारंटी का उल्लंघन होता है जिसके लिए विक्रेता उत्तरदायी हो सकता था। अप्रासंगिक विस्तारित वारंटी की समाप्ति का दावा करते हुए प्राथमिक वारंटी के उल्लंघन की जवाबदेही से बचने का प्रयास करना एक अनुचित और भ्रामक व्यापार अभ्यास (एक सांविधिक प्रकार की धोखाधड़ी) हो सकता है। एक अनुबंध में अवधि सम्बन्धी क़ानून का दावा एक अपकृत्य दावे की तुलना में छोटा हो सकता है (या लम्बा) और वारंटी उल्लंघन के कुछ मामले देर से दायर किये जाते हैं और उन्हें एक धोखाधड़ी या अन्य संबंधित अपकृत्य के रूप में पहचाना जाता है। उदाहरण के लिए, एक उपभोक्ता एक वस्तु खरीदता है जो पैकेज से बाहर करने से पहले ही पता चलता है कि टूटी हुई है या उसके हिस्से लापता हैं। यह एक दोषपूर्ण उत्पाद है और उसे विक्रेता को लौटाया जा सकता है या बदला जा सकता है, बिना इसकी परवाह किये कि विक्रेता की "वापसी नीति" क्या है (सेकेण्ड-हैंड या "जैसा भी है" बिक्री के सीमित अपवाद के साथ), तब भी जब इस समस्या का उद्धाटन "विस्तारित वारंटी" के समाप्त हो जाने के बाद हुआ हो. इसी तरह, अगर उत्पाद समय से पहले ही खराब हो जाता है, तो हो सकता है कि वह उसी समय खराब था जब उसे बेचा गया था और तब उसे लौटाया या बदला जा सकता था। यदि विक्रेता वारंटी का अपमान करता है, तो एक अनुबंध दावे को अदालत में शुरू किया जा सकता है। उत्पाद दायित्व भी देखें जहां व्यक्तिगत हानि को उत्पन्न करने वाले दोष के लिए देयता, लापरवाह पूर्ण डिजाइन या निर्माण या फिर कठोर देयता के आधार पर एक वारंटी अवधि के परे भी जा सकती है। संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा खुदरा व्यापार में, एक वारंटी (या "विस्तारित वारंटी"), सामान्यतः साधारण प्रयोग की शर्तों के तहत एक उत्पाद की विश्वसनीयता की गारंटी को संदर्भित करती है। इसे "विस्तारित" वारंटी कहा जाता है क्योंकि इसके तहत उन दोषों को शामिल किया जाता है जो बिक्री की तारीख के बाद उत्पन्न हो सकते हैं। अगर एक उत्पाद खरीदने के बाद, समय की निर्धारित अवधि के भीतर खराब होता है तो तो निर्माता या वितरक के लिए यह आम तौर पर आवश्यक होता है कि वह ग्राहक के लिए उस वस्तु को बदल दे, या मरम्मत करे, या पैसे वापस करे. ऐसी वारंटी में आमतौर पर, "प्राकृतिक आपदा", मालिक द्वारा दुरुपयोग, दुर्भावनापूर्ण विनाश, वाणिज्यिक उपयोग, या वैसी ही कुछ बात जो सामान्य निजी उपयोग में हुई यांत्रिक खराबी के बाहर हुई हो. अधिकांश वारंटी के अंतर्गत वे हिस्से शामिल नहीं किये जाते जो सामान्य रूप से खराब होने वाले होते हैं और वे आपूर्तियां जिन्हें निश्चित समयावधि के बाद प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए क्योंकि सामान्य रूप से उनका उपयोग किया जा चूका होता है (जैसे एक वाहन के टायर और चिकनाई). एक विस्तारित वारंटी को खरीद मूल्य में शामिल किया जा सकता है, या वैकल्पिक रूप से एक अतिरिक्त शुल्क के साथ विस्तारित किया जा सकता है और उनका वार्षिक विस्तार हो सकता है और साथ ही साथ उस उत्पाद में "आजीवन" जैसे अस्पष्ट शब्द हो सकते हैं। एक निर्माता या वितरक के लिए यह आवश्यक हो सकता है कि वह अपने वित्तीय संतुलन खाते में "वारंटी के अंतर्गत" आने वाले उत्पादों के लिए आरक्षित धन रखे ताकि वह संभावित सेवाओं को प्रदान कर सके या पैसा वापस कर सके. तृतीय-पक्ष वारंटी प्रदाता, ढेरों उत्पादों के लिए वैकल्पिक "विस्तारित वारंटी" समझौता प्रदान करते हैं, जिसे उस उत्पाद के लिए बीमा का एक अनुबंध माना जाता है। तृतीय-पक्ष को विभिन्न छोटी, स्व-बीमित कंपनियों के माध्यम से बेचा जाता है और साथ ही साथ विशाल, प्रसिद्ध स्टोर श्रृंखला द्वारा भी जैसे कि बेस्ट बाई और सर्किट सिटी. जैसा कि बीमा के अन्य प्रकार के मामले में होता है, कंपनियां जुआ खेलती हैं कि उत्पाद विश्वसनीय होंगे और वारंटी को भूल जाया जाएगा, या किसी भी तरह के दावे को सस्ते में निपटा दिया जायेगा. कुछ तृतीय पक्ष की कंपनियां खुद की सहायता प्रदान करती हैं जैसे कि जेटीएफ बिजनेस सिस्टम; ये कंपनियां खराब हिस्सों को निकाल देती हैं और प्रतिस्थापन के लिए निर्माता के पास वापस भेज देती हैं। विस्तारित वारंटी को आमतौर पर निर्माता के माध्यम से प्रदान नहीं किया जाता है, बल्कि स्वतंत्र प्रशासकों के माध्यम से बढ़ाया जाता है। कुछ परिस्थितियों में यह उपभोक्ता के हित में काम कर सकता है कि उत्पाद का बीमा एक ऐसी कंपनी से किया गया है जो खरीद के स्थान और/या सेवा के स्थान से बाहर की है। उदाहरण के लिए, जब एक ऑटो वारंटी को एक कार डीलरशिप के माध्यम से प्रदान किया जाता है, तो यह आमतौर पर एक उप-अनुबंधित वारंटी होती है (अक्सर न्यूनतम पेशकश वाले फुटकर विक्रेता द्वारा), जहां वाहन की मरम्मत का सौदा निम्न दर पर तय किया जाता है, जिसमें अक्सर सेवा, श्रम और पार्ट के साथ निम्न मानक पर समझौता किया जाता है। कई बार इस प्रकार की वारंटी के लिए मरम्मत के समय एक अप्रत्याशित खर्च की आवश्यकता होती है, जैसे कि: -वारंटी शर्तों के बाहर प्रदान की गई अप्रत्याशित सेवाएं -गैर-वारंटी हिस्से और श्रम दर -पूर्ण शेष राशि का भुगतान करना जबकि एक प्रतिपूर्ति की व्यवस्था डीलरशिप/वारंटी दावा कार्यालयों के माध्यम से की गई हो. कुछ यांत्रिकी और व्यापारी सेवा केन्द्र आवश्यक मरम्मत को टाल सकते हैं या बदल सकते हैं जब तक कि डीलरशिप वारंटी समाप्त न हो गई हो ताकि मरम्मत की लागत उनकी (आतंरिक) वारंटी के अंतर्गत ना आए, या साधारण (उच्च) दुकान दर लागू हो. कुल परिसंपत्ति मूल्य $4800 + (मानक इलेक्ट्रॉनिक्स, विलासिता इलेक्ट्रॉनिक्स, प्राचीन वस्तुएं और संग्रह-वस्तु, सामान, वाहन, घर, आदि) वाले अधिकांश अमेरिकी उपभोक्ताओं या प्रति वर्ष $122,000 से कम की एक औसत संयुक्त घरेलू आय वाले उपभोक्ताओं में, अपने उत्पाद, घर या वाहन के बाजार मूल्य को 86% अधिक बढ़ाने की संभावना होती है और अपनी बचत (वारंटी विस्तार की लागत बनाम $4800 मूल्य से अधिक की संपत्ति पर उचित सेवा और मरम्मत की लागत) को तिगुना करने की संभावना होती है जब उनके पास एक संघ अनुबंधित और बीमित वारंटी होती है। ~drp.report2007 एक बीमा सेवा समझौते का *सच्चा साहित्य आपके विस्तारित ऑटो वारंटी की गुणवत्ता को निर्धारित करने का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। एक पूरी तरह से बीमित ऑटो वारंटी, जो कभी-कभी थोक दरों या इसी तरह पर मिल जाती है, वह मूल्य अंतर के लायक हो सकती है, यदि कोई है तो. सच्चा साहित्य एक अनुबंध है जो आपकी ओर से लिखा गया हो जिसमें आपका नाम ज़रूर होना चाहिए और आपकी उत्पाद आईडी संख्या (PIN) या वाहन आईडी संख्या (VIN) कागज पर जरुर लिखी होनी चाहिए. यह आपका सच्चा साहित्य है और जब भी किसी अनुबंध के साथ कार्य करते हैं तो वहां हमेशा भिन्न "नियम एवं शर्तें," होती हैं, तो सुनिश्चित करें कि आप सिर्फ उन्ही कंपनियों के साथ सौदा करें जो ऐसा सेवा अनुबंध प्रदान करते हैं (अक्सर एक सक्रिय आवेदन की आवश्यकता होती है). इस प्रकार की वारंटी कंपनी, उप-अनुबंधित, आतंरिक, खुदरा और थर्ड-पार्टी वारंटी कंपनियों की तुलना में उल्लेखनीय रूप से काफ़ी अलग होती है, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह उच्च दुकान दर को आवृत करेगी और ग्राहक को डीलरशिप के बाहर और साथ ही साथ देश भर में एक अलग मैकेनिक का चयन करने की अनुमति देगी. बीमित वारंटी अक्सर वाहन की सर्विस होने से पहले ही (अप-फ्रंट भुगतान) मरम्मत, श्रम दर और प्रयुक्त पार्ट्स की लागत के लिए भुगतान कर देती हैं, जिससे मालिक को मरम्मत किये गए वाहन या उत्पाद को प्राप्त करते समय सिर्फ न्यून सह-भुगतान/कटौती देना होता है। वारंटी और अस्वीकरण के कानूनी पहलू संयुक्त राज्य अमेरिका में खरीदारों और विक्रेताओं के अधिकार और उपचार को यूनिफ़ॉर्म कमर्शिअल कोड (UCC) के अनुच्छेद 2 द्वारा शासित किया गया है क्योंकि इसके स्वरूप में एक राज्य से दूसरे राज्य से भिन्नता है। UCC, एक्सप्रेस वारंटी और निहित वारंटी, दोनों को नियंत्रित करता है। इसमें उन सीमाओं को भी शामिल किया गया है जिसके अंतर्गत विक्रेता कुछ ख़ास तरह की वारंटी को अस्वीकार कर सकते हैं (उदाहरण, वाणिज्योपयोगी वारंटी या विशेष उद्देश्य हेतु योग्यता या "जैसा भी है" वाले बिके माल के मामले में सभी वारंटी को अस्वीकार कर सकता है। जबकि अमेरिका में, वारंटी को आम तौर पर लिखित रूप में दिया जाता है जो कानून के नियंत्रण के अधीन है, अन्य देशों में वारंटी विशिष्ट विधियों से नियंत्रित हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, एक देश का कानून यह व्यवस्था दे सकता है कि माल को विक्रेता द्वारा 12 महीने की अवधि के लिए बीमित किया जाना चाहिए और और एक उत्पाद की विफलता की स्थिति में अन्य विशेष अधिकार और उपचार उपलब्ध करा सकता है। हालांकि, अमेरिका में भी ऐसे विशिष्ट कानून है जो खरीददारों को वारंटी या वारंटी की तरह आश्वासन उपलब्ध करा सकता है। उदाहरण के लिए, कई राज्यों में नए आवास निर्माण पर वैधानिक वारंटियां हैं और कई में तथाकथित "लेमन लॉ" हैं जो बार-बार खराब होने वाले मोटर वाहनों को शासित करता है। "अभ्यावेदन और वारंटियां" जटिल व्यावसायिक लेनदेन में, खरीदार और विक्रेता आपस में एक विशिष्ट अभ्यावेदन और वारंटी प्रदान कर सकते हैं। आम भाषा में, इन्हें "अभ्यावेदन और वारंटी" के रूप में जाना जाता है। ये बयान है जिसके द्वारा एक पक्ष दूसरे पक्ष को कुछ निश्चित आश्वासन देता है और जिस पर दूसरा पक्ष भरोसा कर सकता है। इस संदर्भ में, एक अभ्यावेदन आमतौर पर एक विशिष्ट तथ्य है जिसे सही होने या गलत होने के रूप में सत्यापित किया जा सकता है, "विक्रेता अभ्यावेदित करता है कि यह एक विधिवत आयोजित निगम है और डेलावेयर राज्य के कानूनों के तहत विधिपूर्वक मौजूद है।" यहां, एक वारंटी, आश्वासन के रूप में अधिक है, जैसे "आपूर्तिकर्ता वारंटी देता है कि इस परियोजना पर काम कर रहे उसके सभी कर्मचारी गोपनीयता समझौतों के अधीन होंगे जिसमें उल्लंघन के लिए निषेधाज्ञा राहत पाने की आपूर्तिकर्ता की क्षमता शामिल है।" अगर अभ्यावेदन और वारंटी सही नहीं हैं या पूरी नहीं की जाती हैं तो अक्सर ऐसी स्थिति के लिए विशिष्ट उपचार या परिणाम निर्दिष्ट हैं। उदाहरण के लिए, एक विक्रेता यह अभ्यावेदन और वारंटी दे सकता है कि बिके हुए सामान में उसका पूर्ण स्वामित्व अधिकार है और उस लेनदेन को लेकर विक्रेता के लिए कोई कानूनी बाधा नहीं है। अगर पता चलता है कि विक्रेता के पास पूर्ण अधिकार नहीं है या वह किसी अन्य सहमति के अधीन है जिसने बिक्री को प्रतिबंधित किया और अगर इसके चलते खरीददार के स्वामित्व में असर पड़ता है तो या उसे उसके लिए व्यय करना पड़ता है, तो खरीदार के पास समझौते के तहत विक्रेता से राहत पाने का अधिकार है। इन लेनदेनों में पार्टियां आमतौर पर उन मुद्दों को लेकर अभ्यावेदन और वारंटी की मांग करती हैं जिनको लेकर वे चिंतित हैं। अभ्यावेदन और वारंटी बनाने के परिणामों की वजह से, आमतौर पर पार्टियां उसकी सीमाओं को प्रतिबंधित करने की कोशिश करती हैं। इन दो बिंदुओं के बीच तनाव, पार्टियों के बीच नियम और समझौते की शर्तों को लेकर होने वाली बातचीत को आकार देने में मदद करता है। कार वारंटी एक कार वारंटी न्यूनतम 1 वर्ष, आमतौर पर 3 वर्ष और 5 साल तक विस्तारित होती है। हालांकि, कुछ कार निर्माताओं ने 10 वर्षों तक की वारंटी दी है। क्रेट इंजन निर्माता भी, निर्माताओं और कारीगरी वारंटी के आधार पर वारंटी देते हैं। कुछ कंपनियां 12 साल तक पुराने वाहनों के लिए विस्तारित वारंटी या प्रयुक्त कार वारंटी प्रदान करते हैं। शब्द विस्तारित वारंटी . गैर-निर्माता आधारित वारंटी को तकनीकी तौर पर मोटर वाहन सेवा समझौता या सेवा अनुबंध कहा जाता है। आवास वारंटी एक आवास वारंटी, आवास की उच्च लागत और उपकरण मरम्मत के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करती है, जिसके लिए वह आवास, टाउन होम्स, सह-स्वामित्व, चल आवास और नए निर्माण घरों के लिए आवास वारंटी कवरेज की पेशकश करता है। जब किसी बीमित उपकरण या यांत्रिक प्रणाली, जैसे कि एक वातानुकूलन इकाई या भट्ठी के साथ कोई समस्या उत्पन्न होती है तो एक सेवा तकनीशियन उसकी मरम्मत करता है या उसे बदल देता है। गृहस्वामी एक सेवा कॉल शुल्क का भुगतान करता है और आवास वारंटी कंपनी, बीमित उपकरण की मरम्मत या उसके प्रतिस्थापन के लिए शेष राशि का भुगतान करती है। इन्हें भी देखें वारंटी टोलिंग व्यापार कानून उपभोक्ता संरक्षण उचित परिश्रम अभ्यावेदन और वारंटी अतिरिक्त या लम्बी वारंटी के रूप में उपभोक्ताओं को दी गई विस्तारित वारंटी मेग्नुसन-मोस वारंटी अधिनियम (यूएसए) वारंटी वाले उत्पाद के संशोधन के आधार पर व्यर्थ वारंटी या अस्वीकार दावों के लिए सुरक्षा प्रतिभू (गारंटी) भूमि लेनदेन में वारंटी विलेख FGMW वित्तीय वैश्विक मुद्रा वारंटी सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ (यूएसए) संघीय व्यापार आयोग: वारंटी सूचना नई कार फैक्टरी वारंटी सूची संविदा कानून
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%AE%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%20%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%202020
श्रीलंका क्रिकेट टीम का भारत दौरा 2020
श्रीलंका क्रिकेट टीम ने जनवरी 2020 में तीन ट्वेंटी 20 अंतर्राष्ट्रीय (टी20ई) मैच खेलने के लिए भारत का दौरा किया। मूल रूप से, जिम्बाब्वे भारत का दौरा करने वाले थे। हालांकि, 25 सितंबर 2019 को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने जिम्बाब्वे क्रिकेट के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के निलंबन के बाद जिम्बाब्वे श्रृंखला को रद्द कर दिया। श्रीलंका दौरे के लिए उनके प्रतिस्थापन के रूप में पुष्टि की गई थी। सभी प्रारूप, स्थान और तिथियां समान थीं। पहला मैच न खेल पाने के कारण भारत ने 2-0 से सीरीज़ जीती। दस्तों टी20ई सीरीज पहला टी20ई दूसरा टी20ई तीसरा टी20ई सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
फोरेंसिक बायोमैकेनिक्स
फोरेंसिक बायोमैकेनिक्स विज्ञान एक शाखा है जो मानव शरीर की संरचनात्मक क्षेत्रों के विघटन के लिए यांत्रिक बलों संबंधित है।फोरेंसिक बायोमैकेनिक्स जानकारी के मूल्यवान स्रोत देता है जो इस्तेमाल होता है, पेशेवर चोटों की प्रकृति का निर्धारण देता है, दुर्घटनाओं के निहितार्थ को समझने मे मदद करता है जो सिविल और आपराधिक जांच मे काम आता है। इतिहास सन २००५- २०१५ मे, न्यूयॉर्क शहर के न्यायालयों नवाचार और बायोमैकेनिकल विशेषज्ञों के व्यापक उपयोग के गवाह बने। न्यूयॉर्क शहर, प्रमुख परीक्षण वकीलों की अदालतों में बायोमैकेनिकल विशेषज्ञों की नवीनता हुए। आवेदन मानव चोट के बायोमैकेनिक्स पहलुओं और बलों है कि यह कारण बल देता है। चोटों की प्रकृति के रूप में अच्छी तरह से गणना शामिल निर्धारित करने के लिए प्रस्तुत विज्ञान, गणित, और उपकरण है। खोजी प्रक्रियाओं, सबूत और गवाही दोनों दीवानी और आपराधिक मामलों के लिए लागू विवरण। रूपों, सारणीयन टेबल, और गणना में इस्तेमाल के लिए फार्मूले प्रदान करता है। १०० से अधिक चित्र और आंकड़े कि उदाहरण देकर स्पष्ट चर्चा की अवधारणाओं शामिल है। सन्दर्भ न्यायालयिक विज्ञान
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अजीत आगरकर
अजीत भालचन्द्र अगरकर (मराठी:अजीत भालचन्द्र आगरकर) (जन्म 4 दिसम्बर, 1977 मुम्बई में) भारतीय टीम के पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी हैं। वर्तमान में ये भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य चयनकर्ता के पद पर कार्यरत हैं। व्यक्तिगत जीवन अगरकर माटुंगा में रुरल कॉलेज के पूर्व छात्र हैं। उन्होंने फातिमा घाडली से विवाह किया और उनके साथ राज नाम का एक बेटा है। वह महाराष्ट्र में दक्षिण मुम्बई के वरली सीफेस पर Narayan पुजारी नगर में रहते हैं। सन्दर्भ भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी जीवित लोग 1977 में जन्मे लोग हरफनमौला खिलाड़ी मुम्बई के लोग भारतीय एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी भारतीय टेस्ट क्रिकेट खिलाड़ी दाहिने हाथ के गेंदबाज
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इमली (धारावाहिक)
इमली (अनुवाद। इमली) एक भारतीय टेलीविज़न ड्रामा सीरीज़ है, जिसका प्रीमियर 16 नवंबर 2020 को स्टारप्लस पर हुआ और यह डिज़्नी+ हॉटस्टार पर स्ट्रीम हुआ। 4 लायंस फिल्म्स के तहत गुल खान द्वारा निर्मित, इसमें सुंबुल तौकीर खान, फहमान खान, मयूरी देशमुख और गशमीर महाजनी हैं। यह बंगाली श्रृंखला इष्टी कुटुम का एक ढीला रूपांतरण है। कथानक उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थित पगडंडिया नामक गांव की रहने वाली एक 18 वर्षीय लड़की इमली है। उसकी माँ, मीठी ने एक शहर के व्यक्ति देव चतुर्वेदी के साथ वन नाइट स्टैंड किया था, जिसने मीठी को गर्भवती छोड़ दिया था। इसलिए गांव वालों ने एक नियम बनाया कि अगर कोई पुरुष किसी लड़की के साथ रात बिताता है तो उसे शादी करनी ही पड़ती है। सत्यकाम एक किसान से विद्रोही बन गया है, जो पगडंडिया के अधिकारों के लिए लड़ रहा है, इमली के पिता-आकृति है। डिग्री हासिल करने के बाद इमली को छात्रवृत्ति मिलती है। वह अपने पालक पिता और अपनी अविवाहित मां को सहायता प्रदान करने के लिए एक पुलिस अधिकारी बनना चाहती थी। आदित्य "आदि" कुमार त्रिपाठी दिल्ली के भास्कर टाइम्स में कार्यरत पत्रकार हैं। सात साल से उनकी प्रेमिका मालिनी चतुर्वेदी (देव की बेटी) हैं। उनकी सगाई से पहले, आदि सत्यकाम का साक्षात्कार लेने के लिए पगडंडिया के लिए रवाना होता है, जहां वह दुनिया को साबित करता है कि वह एक क्रांतिकारी है, विद्रोही नहीं। इमली आदि को गाँव का मार्गदर्शन करने में मदद करता है, जहाँ उन दोनों को भारी बारिश और गरज के कारण एक झोपड़ी में रहना पड़ा। अगले दिन इमली की नानी और गांव वालों ने आदि को जान से मारने की धमकी दी कि अगर वह इम्ली से शादी नहीं करता है तो यह सोचकर कि उन दोनों ने एक साथ रात बिताई है। आदि शादी नहीं करना चाहता था, इसके बजाय, वह मरने के लिए तैयार था। जबकि ग्रामीणों ने आदि को मारने की कोशिश की, इमली ने उन्हें रोक दिया और अपनी जान बचाने के लिए आदि से शादी करने के लिए सहमत हो गया। वह आदि के फोन से मालिनी से संपर्क करने की कोशिश करती है, लेकिन जब ग्रामीणों को इसका पता चलता है तो प्रयास व्यर्थ हो जाता है। इमली और आदि जबरन शादी कर लेते हैं। कलाकार मुख्य इम्ली आर्यन सिंह राठौर के रूप में सुंबुल तौकीर खान: भास्कर टाइम्स के कार्यकारी रिपोर्टर; स्वतंत्र पत्रकार; मीठी और देव की बेटी; मालिनी की सौतेली बहन; आदित्य की पूर्व पत्नी; आर्यन की पत्नी; चीनी और जग्गू की चाची (2020-मौजूदा) फहमान खान आर्यन सिंह राठौर के रूप में: भास्कर टाइम्स सहित राठौर ग्रुप ऑफ कंपनीज के मालिक और सीईओ; नर्मदा का पुत्र: अर्पिता का छोटा भाई; इमली के पति; चीनी और जग्गू के चाचा (2021-वर्तमान) गश्मीर महाजनी / मनस्वी वशिष्ठ आदित्य कुमार त्रिपाठी के रूप में: भास्कर टाइम्स के वरिष्ठ रिपोर्टर; अपर्णा और पंकज का बेटा; इमली और मालिनी के पूर्व पति; चीनी के पिता (2020-2022)/(2022) मालिनी चतुर्वेदी (पूर्व में त्रिपाठी) के रूप में मयूरी देशमुख ; सिटी कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर और बाद में डीन के रूप में पेश हुए; अनुजा और देव की बेटी; इमली की बड़ी सौतेली बहन; आदित्य की पूर्व पत्नी; चेनी की मां (2020–मौजूदा) पुनरावर्ती चीनी त्रिपाठी के रूप में केवा शेफाली: आदित्य और मालिनी की बेटी; देव और अनुजा की पोती; इमली और आर्यन की भतीजी (2022-वर्तमान) जगदीप "जग्गू" प्रसाद के रूप में रियांश डाभी: सुंदर और अर्पिता का बेटा; नर्मदा के पोते; आर्यन और इमली का भतीजा (2022-वर्तमान) किरण खोजे मीठी के रूप में: दुलारी की बेटी; देव की पूर्व पत्नी; सत्यकाम की पत्नी; इमली की मां (2020–मौजूदा) सत्यकाम के रूप में विजय कुमार: पगडंडिया के आदिवासी नेता; मीठी का पति; इमली के पिता-आकृति (2020-वर्तमान) मीना नैथानी दुलारी देवी के रूप में: मीठी की माँ; इमली की दादी। (2020-वर्तमान) गौरव मुकेश सुंदर प्रसाद के रूप में: त्रिपाठी की पूर्व गृहिणी; अर्पिता का दूसरा पति; जग्गू के पिता (2020–मौजूदा) अर्पिता प्रसाद (नी राठौर) के रूप में राजश्री रानी : नर्मदा की बेटी; आर्यन की बड़ी बहन; इमली की भाभी; अरविंद की विधवा; सुंदर की पत्नी; जग्गू की मां (2021-वर्तमान) नर्मदा राठौर के रूप में नीतू पांडे: आर्यन और अर्पिता की मां; जग्गू की दादी (2021-वर्तमान) देव चतुर्वेदी के रूप में इंद्रनील भट्टाचार्य : जानकी का पुत्र; मीठी के पूर्व पति; अनुजा के पति; मालिनी और इमली के पिता; चेनी के दादा (2020–मौजूदा) अनुजा "अनु" चतुर्वेदी के रूप में ज्योति गौबा : देव की पत्नी, मालिनी की मां; इमली की सौतेली माँ; चीनी की दादी (2020–मौजूदा) जानकी चतुर्वेदी के रूप में पीलू विद्यार्थी: देव की मां; मालिनी और इमली की दादी; चेनी की परदादी (2020–2021) अपर्णा त्रिपाठी के रूप में रितु चौधरी: पंकज की पत्नी; आदित्य की माँ; चीनी की दादी (2020-2022) पंकज त्रिपाठी के रूप में चंद्रेश सिंह : हरीश का भाई; अपर्णा का पति; आदित्य के पिता; चीनी के दादा (2020-2022) राकेश मौदगल - हरीश त्रिपाठी: पंकज का भाई; राधा का पति; ध्रुव, रूपाली और निशांत के पिता; तनुश्री और प्रशांत के दादा (2020–2022) राधा त्रिपाठी के रूप में विजयलक्ष्मी सिंह: हरीश की पत्नी; ध्रुव, रूपाली और निशांत की मां; तनुश्री और प्रशांत की दादी (2020–2022) रूपाली "रूपी" त्रिपाठी के रूप में प्रीत कौर नायक : राधा और हरीश की बेटी; ध्रुव और निशांत की बहन; प्रणव की पूर्व पत्नी; तनुश्री की मां (2020–2022) तनुश्री "ट्विंकल" त्रिपाठी के रूप में तशीन शाह: रूपाली'और प्रणव की बेटी; प्रशांत के चचेरे भाई; हरीश और राधा की पोती (2020-2021) अरहम अब्बासी निशांत त्रिपाठी के रूप में; राधा और हरीश का पुत्र; ध्रुव और रूपाली का भाई; पल्लवी के पति (2020-2022) पल्लवी त्रिपाठी (नी ठाकुर) के रूप में चांदनी भगवानानी : निशांत की पत्नी (2021) फैसल सैयद ध्रुव त्रिपाठी के रूप में: राधा और हरीश के बड़े बेटे; निधि के पति; प्रशांत के पिता; तनुश्री की कजिन (2020-2021) निधि त्रिपाठी के रूप में आस्था अग्रवाल : ध्रुव की पत्नी; प्रशांत की मां (2020–2021) प्रशांत "सनी" त्रिपाठी के रूप में जारेड सेविल: निधि और ध्रुव का बेटा (2020-2021) इमली की दोस्त के रूप में कोमल कुशवाहा (2020) संजू के रूप में अमित आनंद राउत: इमली का अपहरणकर्ता (2020) अमरनाथ कुमार बालमेश के रूप में: आदित्य के मुखबिर (2020) अरविंद शेखावत के रूप में करण ठाकुर: अर्पिता के पहले पति (मृत) (2021) कुणाल चौहान के रूप में विश्व गुलाटी: एक वकील जो मालिनी को पसंद करता था (2021) प्रकाश के रूप में नरेन कुमार: सत्यकाम के दत्तक पुत्र; इमली की सबसे अच्छी दोस्त (2021) शैलेश गुलाबानी प्रणव के रूप में: रूपाली के पूर्व पति; तनुश्री के पिता (2021) सूरज सोनिक शशांक "शंकी" के रूप में: मालिनी के चचेरे भाई (2020) त्रिपाठी के पारिवारिक चिकित्सक के रूप में विशाल शर्मा (2020) नीला के रूप में नीलिमा सिंह: आर्यन और अर्पिता की चाची (2022-वर्तमान) रेशम प्रशांत प्रीता "गुड़िया" के रूप में: नीला की भतीजी; आर्यन का बचपन का दोस्त जो अपनी दौलत के लिए आर्यन चाहता है (2022-वर्तमान) सूर्यांश मिश्रा माधव तिवारी के रूप में जो इमली के गाँव पगडंडिया से हैं; इमली का कैमरामैन और दोस्त (2022) उदय के रूप में वीर सिंह: अर्पिता की पूर्व मंगेतर (2022) वैभवी कपूर - ज्योति रावत: आर्यन की कॉलेज फ्रेंड; हरिंदर की पूर्व पत्नी (2022) नरगिस के नाम से अनजान : हरिंदर की बहन फिगर। ज्योति द्वारा रची गई एक कार दुर्घटना के कारण, वह कोमा में चली गई (2022) हरिंदर "हैरी" के रूप में आमिर सलीम खान: ज्योति के पूर्व पति; नरगिस का भाई जैसा फिगर (2022) संदर्भ स्टार प्लस के धारावाहिक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक Pages with unreviewed translations
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%98%E0%A4%A8%20%E0%A4%9A%E0%A4%95
सघन चक
Bcjm bसघन चक (सघन:कॉम्पैक्ट + चक (ती):डिस्क) या कॉम्पैक्ट डिस्क (इसे सीडी के रूप में भी जाना जाता है) एक प्रकाशीय चक होती है जिसमे आंकड़े अंकीय प्रारूप मे संचित रहते हैं। मूल रूप से इसका विकास ध्वनि रिकॉर्डिंग के संचय के लिए हुआ था, लेकिन बाद में इसका प्रयोग अन्य आंकड़ों के संचय के लिए भी किया जाने लगा। श्रृव्य चक (ऑडियो सीडी) तो अक्टूबर 1982 से व्यावसायिक रूप से उपलब्ध है। 2009 में भी यह श्रृव्य आंकड़ों के भौतिक भंडारण का मानक माध्यम बनी हुई हैं। सीडी का मानक या प्रसिद्ध व्यास (diameters) १२ सेंटीमीटर या १२० मिलीमीटर (4.7 in) होता है। जो कि ८० मिनट का डेटा (जानकारी) या लगभग ७०० मेगा बाइट डेटा (जानकारी) रखता है। और भी अन्य तरह कि कम व्यास कि भी सीडीया (मिनी सीडी) आती है। मिनी सीडी के विभिन्न 60 से 80 मिलीमीटर (2.4 - 3.1in) लेकर व्यास (diameters) है। 'शारीरिक विवरण सामान्य रूप से इस के चार भाग (परत) होते है। A)(पहली परत):एक polycarbonate डिस्क परत धक्कों द्वारा बनाये एन्कोडेड डेटा रखती र्है। B)(दुसरी परत): एक चमकदार परत लेजर को प्रतिबिंबितं (reflect) करता है। C)(तीसरी परत):एक परत जो चमकदार परत (दुसरी परत) की रक्षा करती है। D)(चौथा परत):यह एक कलाकृति होती है जो डिस्क के शीर्ष पर मुद्रित होती है। ईस पर सीडी का नाम या कुछ चित्र आदि हो सकते है। E) यह सीडी को पद्ने (read) वाली लेजर होती है। एक सीडी मै डेटा का एक ही सर्पिल ट्रैक होता है, जिस पर सारा डेटा होत है। जो कि डिस्क के अंदर से बाहर कि ओर चक्कर दार होता है। यह सर्पिल ट्रैक होता है। सीडी प्लेयर सीडी पर धक्कों के रूप में संग्रहीत डेटा को खोजने और पढ़ने का काम है। सीडी प्लेयर के तीन बुनियादी घटक होते हैं: १) एक ड्राइव मोटर डिस्क spins. इस ड्राइव मोटर 200 और 500 rpm से ट्रैक को पढ़ती है। २) एक लेजर और एक लेंस प्रणाली: CD पर ध्यान केंद्रित करने और पढ़ने के लिये। ३) एक ट्रैकिंग प्रणाली लेजर : जिससे लेजर बीम सर्पिल ट्रैक का अनुसरण कर सके।
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जेसन रॉय
जेसन रॉय () (जन्म ;२१ जुलाई १९९० ,डरबन ,दक्षिण अफ्रीका ) एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर के क्रिकेट खिलाड़ी है जो इंग्लैंड की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के लिए खेलते हैं। जेसन रॉय का जन्म तो दक्षिण अफ्रीका के डरबन शहर में हुआ था लेकिन वे अफ्रीका के बजाय इंग्लैंड क्रिकेट टीम के लिए खेलना पसन्द किया। इन्होंने अपने एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कैरियर की शुरुआत आयरलैण्ड टीम के खिलाफ ०८ मई २०१५ को की थी जबकि ट्वेन्टी-ट्वेन्टी क्रिकेट कैरियर की शुरुआत ०७ सितम्बर २०१४ को भारत के खिलाफ खेलकर की थी। रॉय बल्लेबाजी के अलावा गेंदबाजी भी करते हैं ये दायें हाथ से मध्यम गति से गेंदबाजी करते हैं। सन्दर्भ जीवित लोग 1990 में जन्मे लोग इंग्लैंड के क्रिकेट खिलाड़ी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%98%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9%20%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8
राघवेन्द्र सिंह चौहान
राघवेन्द्र सिंह चौहान (जन्म 24 दिसंबर 1959) एक भारतीय न्यायाधीश हैं। वर्तमान में, वह उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश हैं। वह तेलंगाना उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश हैं। उन्होंने तेलंगाना उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी कार्य किया। वे राजस्थान उच्च न्यायालय, कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी रहे हैं। उनका मूल उच्च न्यायालय राजस्थान उच्च न्यायालय है। करियर राघवेन्द्र सिंह चौहान जन्म 24 दिसंबर 1959 को हुआ था। उन्होंने 13 नवंबर 1983 को राजस्थान उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया। उनकी विशेषज्ञता का क्षेत्र आपराधिक और सेवा मामलों में है। उन्हें 13 जून 2005 को राजस्थान उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। जबकि 24 जनवरी, 2002 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। फिर उन्हें 10 मार्च 2015 को कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद उन्हें 8 नवंबर 2018 को तेलंगाना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में स्थानांतरित किया गया। 3 अप्रैल 2019 को तेलंगाना उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। और 22 जून 2019 को उन्हें तेलंगाना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया। 31 दिसंबर 2020 को उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया और 7 जनवरी 2021 को शपथ ली। सन्दर्भ 1959 में जन्मे लोग जीवित लोग भारतीय न्यायाधीश
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हरदीप सिंह पुरी
हरदीप सिंह पुरी एक भारतीय राजनीतिज्ञ तथा वर्तमान में केन्द्रीय नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार), भारत सरकार हैं। वे राज्यसभा से सांसद हैं। वे भारतीय जनता पार्टी के राजनेता है। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा हरदीप सिंह पुरी का जन्म दिल्ली में हुआ था। उनके पिता एक राजनयिक थे, और उन्होंने भारत में बोर्डिंग स्कूल में भाग लिया क्योंकि उनके पिता उन देशों में तैनात थे जहाँ अंग्रेजी भाषा की शिक्षा के लिए कोई विकल्प नहीं थे। [१] उन्होंने इतिहास में कला स्नातक और हिंदू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में मास्टर ऑफ आर्ट्स हासिल किया। उन्होंने सेंट स्टीफन कॉलेज, दिल्ली में इतिहास में व्याख्याता के रूप में काम किया। [३] करियर सिविल सेवा हरदीप ने 1994 से 1997 तक और 1999 से 2002 तक विदेश मंत्रालय में भारत सरकार के संयुक्त सचिव के रूप में कार्य किया है। उन्होंने 1997 से 1999 तक रक्षा मंत्रालय में भारत सरकार के संयुक्त सचिव के रूप में भी कार्य किया है। 2009 से 2013 तक विदेश मंत्रालय में भारत सरकार (आर्थिक संबंध) के सचिव के रूप में। पुरी को ब्राजील, जापान, श्रीलंका और यूनाइटेड किंगडम में महत्वपूर्ण राजनयिक पदों पर तैनात किया गया है। 1988 से 1991 के बीच, वह बहुपक्षीय व्यापार वार्ता के उरुग्वे दौर में विकासशील देशों की मदद करने के लिए UNDP / UNCTAD बहुपक्षीय व्यापार वार्ता परियोजना के समन्वयक थे। [४] उन्होंने जनवरी 2011 से फरवरी 2013 तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद आतंकवाद-रोधी समिति के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया और अगस्त 2011 और नवंबर 2012 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। सन्दर्भ जीवित लोग 1952 में जन्मे लोग मोदी मंत्रिमंडल
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चेरोकान
{[चेरोकान}]--चेरोकान या चेरव या छिरऊ [{मिज़ोरम}] का पारंपरिक बाँस नृत्य है। चेरोकान या बाँस नृत्य मिज़ोरम का पारंपरिक नृत्य है। इसे मिजोरम के सबसे पुराने नृत्यों में से एक माना जाता है। माना जाता है कि नृत्य एक अनुष्ठान से निकला है। नृत्य के रूप में, बांस को जमीन पर क्षैतिज या क्रॉस रूप में रखा जाता है। इन बांस के जोड़ों को छह से आठ लोगों द्वारा पकड़ा जाता है। पुरुष नर्तक इन बांसों को एक लयबद्ध ताल पर ले जाते हैं, जबकि महिला नर्तक बांस की संरचनाओं से अंदर और बाहर कदम रखते हुए शान से नृत्य करती हैं। बाँस को एक साथ ताल पर पुरुष नर्तक द्वारा बजाया जाता है। मिज़ोरम का परिद्ध लोक नृत्य है जिसमें पुरुषों को बांस को फर्श के करीब रखा जाता है वे संगीत की ताल के साथ लाठी को खोलते और बंद करते हैं। रंग-बिरंगे परिधानों में महिलाएं संगीत के साथ बांस के बीच और बाहर कदम रखते हुए, शीर्ष पर नृत्य करती हैं। इसके लिए समन्वय और कौशल की आवश्यकता होती है। मिज़ोरम के लोक नृत्य
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निज़ामाबाद, उत्तर प्रदेश
निज़ामाबाद (Nizamabad) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के आज़मगढ़ ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले के मुख्यालय, आज़मगढ़, से लगभग 17 किमी पश्चिम में स्थित है। विवरण माना जाता है कि यहां पर एक शेख, सूफी संत "निज़ाम-उद-दीन" का मकबरा स्थित है। इसके अतिरिक्त, यहां स्थित गुरूद्वारा भी काफी प्रसिद्ध है। माना जाता है कि एक बार गुरू नानक देव इस जगह पर घूमने के लिए आए थे। गुरूद्वारे में गुरू नानक देव जी के ऊन के स्लीपर और कतार मौजूद है। इसके अलावा, यह प्रसिद्ध कवि अयोध्या सिंह हरिऔध की जन्मभूमि है। इन्हें भी देखें अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' आज़मगढ़ ज़िला सन्दर्भ उत्तर प्रदेश के नगर आज़मगढ़ ज़िला आज़मगढ़ ज़िले के नगर
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किराँत लिपि
नेपाल में गोपाल वंशी, महिषपाल वंशीपछि किराँत वंश का शासन प्रारम्भ होता है। नवीं शताब्दी के बाद किरातवंशी राजा गालीजंगा का पोता शिरिजंगा ने पूर्वी नेपाल के अनेक स्वतन्त्र राजाओं को पराजित कर अपना आधिपत्य कायम किया और नईं लिपि का आविष्कार कर किराँतक्षेत्र में विद्या प्रचार किया ऐसी जनश्रुति है। किराँत वंश द्वारा बनाई गई लिपि होने के कारण इस लिपि को किराँत लिपि और चन्द्र पुलिंग लिपि भी कहते हैं। यह लिपि धरान के बूढासुब्बा मन्दिर के आसपास के क्षेत्रों में प्रचलित है। आजकल राई जाति के लोग इस लिपि का प्रयोग और प्रचारप्रसार कर रहे हैं। किराँत शासन नेपाल का प्रारम्भिक शासनकाल होते हुए भी गुप्त लिपि और कुटिला लिपि के बाद ही किराँत लिपि प्रचलन में आई थी। इसका मूलकारण किराँतकालीन इतिहास आज तक प्रामाणिक न होना बताया जाता है। लिपि नेपाल
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जीनिवीव नाजी
जीनिवीव नाजी, (3 मई, 1979 को बाइसे, इमो प्रदेश, नाइजीरिया में जन्म), एक नाइजीरियाई अभिनेत्री हैं। उन्होंने 2005 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए अफ़्रीकी मूवी एकेडमी पुरस्कार जीता था। प्रारंभिक जीवन। जेनवीव नाजी नाइजीरिया की वित्तीय राजधानी, लेगोस, में बड़ी हुई। वो आठ संतानों में से चौथी थीं, एवं उनका पालन पोषण एक मध्यमवर्गीय वातावरण में हुआ। उनके पिता एक इंजीनियर थे एवं उनकी माँ एक अध्यापिका थीं। याबा के मेथोडिस्ट गर्ल्स कॉलेज में शिक्षा प्राप्त करने के बाद वो लेगोस विश्वविद्यालय गई। जब जेनवीव विश्वविद्यालय में थीं, तब उन्होंने अनेक नॉलीवुड परियोजनाओं में अभिनय करने के लिए ऑडीशन देने प्रारंभ किए। कैरियर। जेनवीव ने 8 वर्ष की आयु में एक बाल अभिनेत्री के रूप में अपना अभिनय कैरियर उस समय के के एक लोकप्रिय दूरदर्शन सोप ओपेरा, रिपल्स, में प्रारंभ किया। वो अनेक कॉमर्शियलों में भी फ़ीचर की गईं जिनमें से कुछ हैं - प्रोंटो बीवरेज एवं ओमो डिटरजेंट। 1998 में, 19 वर्ष की आयु में, चलचित्र "मोस्ट वॉण्टेड" के साथ वो विकासशील नाइजीरियाई चलचित्र उद्योग में परिचित कराई गईं। उनके अगले चलचित्रों में लास्ट पार्टी, मार्क ऑफ़ द बीस्ट एवं इजेले सम्मिलित हैं। जेनवीव ने अपने कार्य के लिए अनेक पुरस्कारों को प्राप्त किया है, जिनमें सम्मिलित हैं - 2001 सिटी पीपल एवार्ड्स में वर्ष की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए नामांकित होना एवं 2005 में अफ़्रीकन मूवी एकेडमी एवार्ड्स (ए एम ए ए) में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का प्रथम सम्मान प्राप्त करना। 2004 में उन्होंने घानाईयन रिकॉर्ड लेबल के साथ एक रिकॉर्डिंग ठेके पर हस्ताक्षर किए एवं एक अलबम प्रकाशित किया। 2004 में ही, उन्होंने पोशाकों की एक पंक्ति, “सेंट जेनवीव" का प्रक्षेपण किया, जो अपनी आय का कुछ प्रतिशत दान में देता है। फ़िल्मोग्राफ़ी। 30 Days Above Death: In God We Trust Above the Law Agbako Age Of My Agony Agony Battleline Blood Sisters Break Up Broken Tears(with Van Vicker, Kate Henshaw-Nuttal and Grace Amah) Bumper To Bumper Butterfly By His Grace Camourflage Caught In The Act Church Business Confidence Could This Be Love Critical Decision Dangerous Sisters Day of Doom Deadly Mistake Death Warrant Emergency Wedding Emerald For Better For Worse Formidable Force Games Women Play (with Omotola Jalade Ekeinde and Desmond Elliot) Girls Cot Goodbye Newyork God Loves Prostitutes He Lives In Me Honey Ijele Into Temptation Jack Knife Jealous Lovers Keeping Faith Last Weekend Late Marriage Letter to a Stranger Love Love Affair Love Boat Man of Power More Than Sisters Never Die For Love Not Man Enough Passion And Pain Passions Player Power Of Love Power Play Private Sin Prophecy Rip Off Rising Sun Runs Secret Evil Sharon Stone Sharon Stone In Abuja Stand By Me Super Love Sympathy The Chosen One The Coming of Amobi The Rich Also Cry The Wind Treasure Two Together U Or Never Unbreakable Valentino Warrior's Heart Women Affair सन्दर्भ नाइजीरिया के अभिनेताओं नाइजीरियाई गायक 1979 में जन्मे लोग जीवित लोग
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द्वैतवाद (बहुविकल्पी)
द्वैतवाद (Dualism) से निम्नलिखित सिद्धान्तों का बोध होता है- द्वैतवाद -- भारतीय दर्शन के सन्दर्भ में वेदान्त की एक दार्शनिक विचारधारा जो अद्वैतवाद के विरुद्ध है। मन और शरीर का द्वैत (Mind–body dualism), मन और पदार्थ के अन्तर्सम्बन्ध सम्बन्धी दार्शनिक विचारों का एक समुच्चय। इसका मुख्य प्रतिपाद्य यह है कि मानसिक कार्य, कुछ मामलों में, अशारीरिक हैं। Property dualism, a philosophy of mind and a subbranch of emergent materialism Epistemological dualism, a philosophical concept also known as representative realism, indirect realism, and the veil of perception Dualistic cosmology, the moral, spiritual, or religious belief that two fundamental concepts exist, which often oppose each other Soul dualism, the belief that a person has two (or more) kinds of souls Ethical dualism, the attribution of good solely to one group of people and evil to another द्वैतवाद (विधि), इस सिद्धान्त का मानना है कि अन्तरराष्ट्रीय विधि तथा स्थानीय विधि, दो अलग-अलग चीजें हैं और अन्तरराष्ट्रीय विधि वहीं तक लागू होती है जहाँ तक वह स्थानीय विधि के विरुद्ध न हो। द्वैतवाद (राजनीति), कैबिनेट और संसद के उत्तरदायित्वों को अलग-अलग रखने की नीति द्वैत (गणित) Duality (physics), media with properties that can be associated with the mechanics of two different phenomena, such as wave-particle duality Dualism (cybernetics), systems or problems in which an intelligent adversary attempts to exploit the weaknesses of the investigator इन्हें भी देखें द्वैत (विद्युत परिपथ) द्वैतों की सूची
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मटिया
मटिया () एक गांव है, जो कि भारत के बिहार राज्य के वैशाली जिले में स्थित है। यह बिहार के चार जिले से घिरा हुआ है, इसके पूर्व में समस्तीपुर, पश्चिम में सारण, उत्तर में मुजफ्फरपुर और दक्षिण में पटना है। इसके निकटतम शहर हाजीपुर यहां से लगभग 23 किमी (ट्रेन के माध्यम से) और 31 किमी (सड़क के माध्यम से) दूर है। यहां से निकटतम रेलवे स्टेशन पश्चिम में देसरी (लगभग 2 किमी) और पूर्व में सहदेई बुजुर्ग (लगभग 3 किमी) दूर है। भूगोल जनगणना 2011 की सूचना के अनुसार मटिया गांव का स्थान कोड या गांव कोड 236029 है। यह बिहार, भारत में वैशाली जिले के सहदेई बुजुर्ग तहसील में स्थित है। 2009 के आंकड़ों के मुताबिक, चकजमाल मटिया के ग्राम पंचायत है। गांव का कुल भौगोलिक क्षेत्र 225 हेक्टेयर है। पवित्र स्थान काली मंदिर (बिशहर स्थान) इस गांव में एक सुंदर मंदिर है। यह एक बहुत ही सुंदर मंदिर है, इस मंदिर का अद्भुत नजारा पूरे गांव के लिए एक अद्वितीय पहचान देता है। भगवान और देवी के आशीर्वाद से हमेशा सभी ग्रामीण खुश रहते हैं। मंदिर विशाल पेड़ों से घिरे हुए हैं जो मिठासभरी और आशीर्वादमय छाया प्रदान करते हैं। शिक्षा राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय, एक सरकारी माध्यमिक विद्यालय है, जो विद्यार्थियो को कक्षा 1 से 8 तक की शिक्षा प्रदान करता है। यह काली मंदिर के सामने स्थित है। आगामी परिसर राजकीय उच्च विद्यालय, मटिया एक आगामी परिसर है जो विद्यार्थियो को 9वीं और 10वीं कक्षा के अध्ययन को प्रदान करेगी। यह भी काली मंदिर के सामने बनाया जा रहा है। परिवहन ट्रेन से(निकटतम रेलवे स्टेशन-देसरी)हाजीपुर - 21 किलोमीटर (13 मील)बरौनी - 66 किलोमीटर (41 मील)मुजफ्फरपुर - 74 किलोमीटर (46 मील)पटना - 53 किलोमीटर (33 मील) सड़क सेहाजीपुर - 31 किलोमीटर (19 मील) NH103 के माध्यम सेबरौनी - 74 किलोमीटर (46 मील) SH93 के माध्यम सेमुजफ्फरपुर - 81 किलोमीटर (50 मील) NH103 के माध्यम सेपटना - 44 किलोमीटर (27 मील) NH103 के माध्यम से अस्पताल और स्वास्थ्य आप 10 किमी के दायरे के भीतर किसी भी स्वास्थ्य से संबंधित समस्या के लिए बहुत से अस्पतालों और चिकित्सा स्थल पा सकते हैं। आसपास के गांव इन्हें भी देखें बाहरी कड़ियाँ मटिया अंग्रेजी में वैशाली ज़िले के गाँव
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