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उचकुदुक
उचकुदुक (उज़बेक: Учқудуқ, उचक़ुदुक़; अंग्रेज़ी: Uchkuduk) मध्य एशिया के उज़बेकिस्तान देश के नवोई प्रान्त का एक शहर है। भौगोलिक निर्देशांकों के हिसाब से यह नगर ४२°९'२४ उत्तर और ६३°३३'२० पूर्व में स्थित है। सन् २००७ में इसकी आबादी २७,००० से थोड़ी ज़्यादा अनुमानित की गई थी। यह शहर किज़िल कुम रेगिस्तान के बीच में पड़ता है। सोवियत संघ के ज़माने में यह एक 'बंद शहर' था (यानि बहार वालों को यहाँ आने पर पाबंदी थी) क्योंकि यहाँ से सोवियत संघ के परमाणु हथियारों के लिए युरेनियम की खाने चलाई जाती थी। उज़बेक भाषा में 'उचकुदुक' शब्द का अर्थ 'तीन कूएँ' होता है। सम्बंधित तथ्य उचकुदुक शहर से सम्बंधित एक घटना १० जुलाई १९८५ को घटी जब यहाँ एरोफ़्लोट उड़ान संख्या ७४२५ का विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ। इस हादसे में २०० लोगों की जाने गई। उचकुदुक यहाँ से उभरे 'याल्ला' (Ялла, Yalla) नाम के एक संगीत गुट के लिए भी मशहूर है जो १९७० और १९८० के दशकों में पूरे सोवियत संघ और कुछ अन्य पूर्व यूरोपीय देशों में प्रसिद्ध हुआ। इनका सबसे मशहूर गाना 'उचकुदुक - त्रि कोलोदत्सा' था। इन्हें भी देखें नवोई प्रान्त किज़िल कुम रेगिस्तान बाहरी कड़ियाँ यू-ट्यूब पर 'याल्ला' संगीत गुट का 'उचकुदुक - त्रि कोलोदत्सा' नामक गाना सन्दर्भ नवोई प्रान्त उज़्बेकिस्तान के नगर उज़्बेकिस्तान मध्य एशिया के शहर
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लाल लिफ़ाफ़ा
लाल लिफ़ाफ़ा (अंग्रेज़ी: Red envelope, चीनी: 红包, कैंटोनी उच्चारण: लाइ सी, मैंडारिन उच्चारण: होंगबाओ) चीन और अन्य पूर्वी एशियाई व दक्षिणपूर्व एशियाई संस्कृतियों में त्यौहारों, जन्मदिनों, शादियों व अन्य विशेष दिनों पर दिए जाने वाले पैसे के उपहार को कहते हैं। यह पैसा अक्सर लाल रंग के लिफ़ाफ़ों में दिया जाता है। सन् २०१४ में "वी चैट" नामक मोबाइल ऐप्प ने पैसे भेजने की एक प्रणाली बनाई जिसमें पैसा मिलने वाले को लाल लिफ़ाफ़ा दिखता था और फिर उसमें से पैसे मिलते थे। इन्हें भी देखें लिफ़ाफ़ा सन्दर्भ लिफ़ाफ़े चीनी संस्कृति कोरियाई संस्कृति इण्डोनेशियाई संस्कृति मलेशियाई संस्कृति वियतनामी संस्कृति सिंगापुरी संस्कृति काग़ज़ उत्पाद सौभाग्य देना विवाह उपहार
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%94%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
औरोक्स
औरोक्स आधुनिक पालतू गाय की पूर्वज नस्ल थी। यह एक बड़े अकार की जंगली गाय थी जो एशिया, यूरोप और उत्तर अफ़्रीका में रहा करती थी लेकिन विलुप्त हो गई। यूरोप में यह सन् १६२७ तक पाई गई थी। इस नस्ल के सांड के कंधे ज़मीन से १.८ मीटर (५ फ़ुट १० इंच) तक ऊँचे होते थे और गाय १.५ मीटर (४ फ़ुट ११ इंच) ऊँची होती थी। माना जाता है कि विश्व की सभी पालतू गाय औरोक्स के ही वंशज हैं। अन्य भाषाओँ में औरोक्स को अंग्रेज़ी में "aurochs" लिखा जाता है और इसका वैज्ञानिक नाम "बॉस प्रिमिजिनियस" (Bos primigenius) है। उपनस्लें औरोक्स की तीन जंगली उपनस्लें पाई गई हैं: भारतीय उपनस्ल (वैज्ञानिक नाम: बॉस प्रिमिजिनियस नामाडिकस, Bos primigenius namadicus) - यह भारतीय उपमहाद्वीप के गरम रेगिस्तानी क्षेत्रों में रहा करती थी और औरोक्स की सब से प्राचीन उपनस्ल थी। इस उपनस्ल की उत्पत्ति वर्तमान से २० लाख वर्ष पूर्व हुई और यही बाक़ी दो औरोक्स उपनस्लों की पूर्वजा थी। भारत की ज़ेबू गाय (साधारण सफ़ेद-भूरे रंग की भारतीय गाय) इसी से उत्पन्न हुई है और इसलिए अत्यंत सूखे में भी जी सकती है। भारत में ज़ेबू गाय को लगभग ९००० ईसापूर्व में पालतू बनाया गया। यूरेशियाई उपनस्ल (वैज्ञानिक नाम: बॉस प्रिमिजिनियस प्रिमिजिनियस, Bos primigenius primigenius) - यह यूरोप, साइबेरिया और मध्य एशिया में रहा करती थी और लगभग ६००० ईसापूर्व में इसे पालतू बनाया गया। रोमन साम्राज्य में इन्हें युद्ध के पशु की तरह इस्तेमाल किया जाता था और इनका शिकार भी किया जाता था। १३वी सदी तक शिकार से इनकी संख्या इतनी कम हो गई के केवल राजाओं और उनके दरबारियों को ही इनका शिकार करने की अनुमति दी जाती थी। फिर भी इनकी संख्या घटती गई। आखरी ज्ञात जीवित औरोक्स एक मादा (गाय) थी जो पोलैंड के याक्तोरोव वन में १६२७ में प्राकृतिक कारणों से मर गई। उत्तर अफ़्रीकी उपनस्ल (वैज्ञानिक नाम: बॉस प्रिमिजिनियस मौरेटैनिकस, Bos primigenius mauretanicus) - यह उत्तर अफ़्रीका के वनों और घासवाले इलाकों में रहती थी। माना जाता है की भारतीय उपनस्ल मध्यपूर्व से होती हुई उत्तर अफ़्रीका जा पहुँची और इस उपनस्ल में परिवर्तित हो गई। संभव है के मिस्र में पालतू गाय कभी इसी उपनस्ल की वंशज हुआ करती थी। बाद में भारतीय ज़ेबू गाय मिस्र पहुँच गई और वही मिस्र में पाली जाने लगी। हाल ही में अनुवांशिकी (जॅनॅटिक) अनुसंधान से देखा गया है कि कुछ उत्तर अफ़्रीकी गायों में ज़ेबू से भिन्न तत्व हैं जो इन उत्तर अफ़्रीकी औरोक्स से हो सकते हैं। इन्हें भी देखें गाय सन्दर्भ विलुप्त स्तनधारी स्तनधारी गाय गोवंश हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
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परागज ज्वर
एलर्जी के कारण नाक के वायुमार्गों का प्रदाह होना परागज ज्वर (Hay Fever या Allergic rhinitis) कहलाता है। नाक की श्लेष्मा कला जब पौधों के पराग के प्रति ऐलर्जी (allergy) के कारण प्रभावित होती है, जिससे व्यक्ति की नाक में खुजली होती है, आँख से पानी गिरता है और छींके आती हैं, तब यह अवस्था परागज ज्वर कहलाती है। इसे पहले 'स्वर्णदंड ज्वर' या 'गुलाब ज्वर' भी कहते थे। वैसे इस रोग में ज्वर नहीं आता तथा फूलों से भी इसका कम संबंध है, किंतु इसका नाम परागज ज्वर ही प्रचलित है। एलर्जी पराग के का कारण हो सकती है या अन्य कई वस्तुमों के कारण भी। जब यह एलर्जी पराग के कारण होती है तो इस रोग को 'परागज ज्वर' (हे फीवर) कहते हैं। परिचय परागज ज्वर ऐलर्जी संबंधी एक रोग है। जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे प्रोटीन के, जो दूसरों पर काई कुप्रभाव नहीं डालता, संपर्क में आने के कारण विपरीत रूप में प्रभावित होता है, तो इस अवस्था का ऐलर्जी कहते हैं। इस प्रोटीन के शरीर में पहुँचने की रीति तथा प्रभावित अंगों पर ही रोग के लक्षण निर्भर करते हैं। परागज ज्वर में नाक पर प्रभाव पड़ता है तथा पराग हवा द्वारा साँस के तथा नाक तक पहुँचता है। इसके रोगियों को इस प्रकार की ऐलर्जी अपने पूर्वजों से या शारीरिक बनावट द्वारा प्राप्त होती है। जब उपर्युक्त कोई प्रोटीन किसी ऐलर्जीवाले व्यक्ति की नाक के संपर्क में आता है तब एक प्रक्रिया ऐंटीजेन या प्रतिजन तथा ऐंटीबाडी या प्रतिपिंड के मध्य होती है। इससे हिस्टामीन नामक पदार्थ की उत्पत्ति होती है, जो श्लेष्माकला में सूजन पैदा करता है तथा तंतुद्रव को बाहर निकालता है। पराग वायु में मीलों दूर तक फैलकर परागज ज्वर उत्पन्न करते हैं। परागज ज्वर विशेष प्रकार का होता है। एक रोगी एक पराग से और दूसरा दूसरे पराग से प्रभावित हो सकता है। परागज ज्वर का निदान इसके विशिष्ट प्रकार के विवरण से ही होता है। इसकी चिकित्सा के लिए उस परागविशेष का अन्वेषण आवश्यक हो जाता है। सूई देकर दोषी पराग का पता लगाया जाता है। दोषी पराग से सूई के स्थान के चारों ओर लाली और सूजन आ जाती है। दोषी पराग से बचना ही परागजज्वर की सर्वोत्त्म चिकित्सा है, पर ऐसा संभव न होने पर हिस्टामिनरोधी ओषधियों के व्यवहार से परागज ज्वर के लक्षणों को दूर करने में सहायता मिलती है। हार्मोन का व्यवहार भी लाभकारी सिद्ध हुआ है। एफेड्रिन सदृश ओषधियाँ श्लेष्माकला की सूजन को कम करती हैं। रोग प्रतिरक्षण उत्पन्न करने के लिए दोषी पराग की थोड़ी मात्रा से प्रांरभ कर, मात्रा को धीरे धीरे बढ़ाते हुए, सुई देने से शरीर में इतनी निरापदता आ जाती है कि उससे फिर रोग उत्पन्न होने की संभावना नहीं रहती। प्रारंभ में रोग का उपचार न करने से उसे दमे में बदल जाने की संभावना हो सकती है। बाहरी कड़ियाँ एलर्जी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B2%E0%A5%80%20%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%B8%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF
इसराइली पुलिस का राष्ट्रीय मुख्यालय
इजरायली पुलिस का राष्ट्रीय मुख्यालय (हिब्रू:בניין המטה הארצי של משטרת ישראל National Headquarters of the Israel Police) यरुशलम में है। यह किर्यात मेनचेम बेगिन नामक सरकारी भवनों के शंकुल में स्थित है। परिचय इसराइल के पहले दो दशकों के दौरान, इसराइल पुलिस मुख्यालय तेल अवीव में था। जब इस संगठन के आकार में वृद्धि हुई है, एक नए कर्मचारियों के निर्माण के लिए की जरूरत है स्पष्ट हो गया। छह दिन के युद्ध के बाद, जो इसराइल यरूशलेम के सब पर कब्जा कर लिया है, एक नए स्थान पूर्वी जेरूसलम में चुना गया था माउंट Scopus और शहर के पश्चिमी भाग के बीच. मूल निर्माण, 1 जार्डन अवधि के दौरान एक अस्पताल के रूप में की योजना बनाई है, वास्तुकार दान एटन द्वारा बदल दिया गया था और 1973 में का उद्घाटन किया है, जिस पर एक दूसरे और बड़े इमारत टाई के रूप में जोड़ा. सार्वजनिक सुरक्षा इमारत के मंत्रालय बाद में पुलिस मुख्यालय के बगल में बनाया गया था। बाहरी कड़ियाँ Israel police यरुशलम इज़राइल
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शाह नवाज खान
मेजर जनरल शाह नवाज खान (24 जनवरी 1914 – 9 दिसम्बर 1983) आजाद हिन्द फौज के प्रसिद्ध अधिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त होने पर जनरल शाहनवाज खान, कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों तथा कर्नल प्रेम सहगल के ऊपर अंग्रेज सरकार ने मुकद्दमा चलाया। बॉलीवुड फिल्म अभिनेता शाहरुख खान की मॉं को उन्होंने मुंहबोली बेटी माना था । खान एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय राष्ट्रीय सेना में एक अधिकारी के रूप में कार्य किया था। युद्ध के बाद, उसे देशद्रोह के लिए दोषी ठहराया गया, और ब्रिटिश भारतीय सेना द्वारा किए गए एक सार्वजनिक न्यायालय-मार्शल में मौत की सजा सुनाई गई। भारत में अशांति और विरोध के बाद भारतीय सेना के कमांडर-इन-चीफ ने सजा को कम कर दिया था। द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक नाटकीय बदलाव आया। 15 अगस्त 1947 भारत को आजादी मिलने तक, भारतीय राजनैतिक मंच विविध जनान्दोलनों का गवाह रहा। इनमें से सबसे अहम् आन्दोलन, आजाद हिन्द फौज के 17 हजार जवानों के खिलाफ चलने वाले मुकदमे के विरोध में जनाक्रोश के सामूहिक प्रदर्शन थे। मेजर जनरल शहनवाज को मुस्लिम लीग और ले. कर्नल गुरुबख्श सिंह ढिल्लन को अकाली दल ने अपनी ओर से मुकदमा लड़ने की पेशकश की, लेकिन इन देशभक्त सिपाहियों ने कांग्रेस द्वारा जो डिफेंस टीम बनाई गई थी, उसी टीम को ही अपना मुकदमा पैरवी करने की मंजूरी दी। मजहबी भावनाओं से ऊपर उठकर सहगल, ढिल्लन, शहनवाज का यह फैसला सचमुच प्रशंसा के योग्य था। हिन्दुस्तानी तारीख में 'लाल किला ट्रायल' का अहम् स्थान है। लाल किला ट्रायल के नाम से प्रसिध्द आजाद हिन्द फौज के ऐतिहासिक मुकदमे के दौरान उठे इस नारे 'लाल किले से आई आवाज-सहगल, ढिल्लन, शाहनवाज़' ने उस समय हिन्दुस्तान की आजादी के हक के लिए लड रहे लाखों नौजवानों को एक सूत्र में बांध दिया था। वकील भूलाभाई देसाई इस मुकदमे के दौरान जब लाल किले में बहस करते, तो सड़कों पर हजारों नौजवान नारे लगा रहे होते। पूरे देश में देशभक्ति का एक वार सा उठता। 15 नवम्बर 1945 से 31 दिसम्बर 1945 यानी, 57 हिन्दुस्तान की आजादी के संघर्ष में टर्निंग पॉइंट था। यह मुकदमा कई मोर्चों पर हिन्दुस्तानी एकता को मजबूत करने वाला साबित हुआ। इस ट्रायल ने पूरी दुनिया में अपनी आजादी के लिए लड़ रहे लाखों लोगों के अधिकारों को जागृत किया। सहगल, ढिल्लन और शाहनवाज के अलावा आजाद हिन्द फौज के अनेक सैनिक जो जगह-जगह गिरफ्तार हुए थे और जिन पर सैकड़ों मुकदमे चल रहे थे, वे सभी रिहा हो गए। 3 जनवरी 1946 को आजाद हिन्द फौज के जांबाज सिपाहियों की रिहाई पर 'राईटर एसोसिएशन ऑफ अमेरिका' तथा ब्रिटेन के अनेक पत्रकारों ने अपने अखबारों में मुकदमे के विषय में जमकर लिखा। इस तरह यह मुकदमा अंतर्राष्ट्रीय रूप से चर्चित हो गया। अंग्रेजी सरकार के कमाण्डर-इन-चीफ सर क्लॉड अक्लनिक ने इन जवानों की उम्र कैद सजा माफ कर दी। हवा का रुख भांपकर वे समझ गए, कि अगर इनको सजा दी गई तो हिन्दुस्तानी फौज में बगावत हो जाएगी। विचारणा के दौरान ही भारतीय जलसेना में विद्रोह शुरू हो गया। मुम्बई, कराची, कोलकाता, विशाखापत्तनम आदि सब जगह विद्रोह की ज्वाला फैलते देर न लगी। इस विद्रोह को जनता का भी भरपूर समर्थन मिला। सन्दर्भ इन्हें भी देखें आजाद हिन्द फौज आजाद हिन्द फौज पर अभियोग भारतीय स्वतंत्रता सेनानी आज़ाद हिन्द फ़ौज भारतीय राजनीतिज्ञ 1914 में जन्मे लोग १९८३ में निधन प्रथम लोक सभा सदस्य द्वितीय लोक सभा के सदस्य ५वीं लोक सभा के सदस्य भारतीय मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%9F%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%A8%20%E0%A4%87%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%89%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%80
मोटरवाहन इलेक्ट्रॉनिकी
मोटरवाहन इलेक्ट्रॉनिकी (Automotive electronics) से आशय मोटरवाहनों में लगे इलेक्ट्रानिक प्रणालियों से है, जैसे इंजन प्रबन्धन, इग्नीशन, रेडियो, कारप्यूटर आदि। विभिन्न श्रेणी के मोटरवाहनों में अलग-अलग इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियाँ हो सकतीं हैं किन्तु कुछ प्रणालियाँ सबमें होतीं हैं। आजकल के मोटरवाहनों में इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियाँ इतनी अधिक हो गयीं हैं कि वाहन के मूल्य में इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों के मूल्य का अंश अच्छा-खासा है और लगातार बढता जा रहा है। सन १९५१ में इलेक्ट्रॉनिक प्राणालियों का हिस्सा लगभग १ प्रतिशत था जो २०१० में लगभग ३०% हो गया। आधुनिक मोटरकारें अपनी मुख्य गति के लिए शक्ति इलेक्ट्रॉनिकी पर निर्भर होतीं है। इसके अलावा बैटरी प्रणाली और स्वतः स्टार्ट (सेल्फ स्टार्ट) भी शक्ति इलेक्ट्रॉनिकी पर निर्भर है। भविष्य में मोटरवाहन बिना किसी चालक के भी चलेंगे, जिसके लिए शक्तिशाली कम्प्यूटर, बहुत सारे संसूचक (सेन्सर), नेटवर्किंग, और उपग्रह नौचालन (सैटेलाइट नेविगेशन) की आवश्यकता होगी। ये सारी चीजें इलेक्ट्रॉनिकी से सम्बन्धित हैं। सन्दर्भ इन्हें भी देखें इलेक्ट्रॉनिक नियंत्रण इकाई (Electronic Control Unit) बाहरी कड़ियाँ इलेक्ट्रॉनिकी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9D%E0%A5%80%20%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF
माझी जाति
माझी जनजाति का तात्पर्य नाव चलाने वाले से है। मल्लाह, भोई, कहार केवट, नाविक,निषाद इसके पर्यायवाची हैं। ये विश्वास करते हैं कि इनके पूर्वज पहले गंगा के तटों पर या वाराणसी अथवा इलाहाबाद में रहते थे। बाद में यह जनजाति मध्य प्रदेश के शहडोल, रीवा, सतना, पन्ना, छतरपुर,जबलपुर और टीकमगढ़ ज़िलों में आकर बस गयी। सन 1981 की जनगणना के अनुसार मध्य प्रदेश में माझी समुदाय की कुल जनसंख्या 11,074 है। इनके बोलचाल की भाषा बुन्देली है। ये देवनागरी लिपि का उपयोग करते हैं। ये सर्वाहारी होते हैं तथा मछली, बकरा का गोश्त खाते हैं। इनका मुख्य भोजन चावल, गेहूँ, दाल, सरसों, तिली आदि महुआ के तेल से बनाते हैं। इनके गोत्र कश्यप, सनवानी, चौधरी, तेलियागाथ, कोलगाथ हैं। वर्तमान में या संपूर्ण मध्यप्रदेश में पाई जाने लगी है। अनुसूचित जनजाति को क्रमांक 29 में रखा गया है। इनमें से कुछ बिहार में भी हैं। यह उत्तर प्रदेश में ही पाए जाते हैं उत्तर प्रदेश के अयोध्या अंबेडकर नगर आजमगढ़ बस्ती गोरखपुर बलरामपुर बाराबंकी वाराणसी जौनपुर आदि जिलों में मांझी जन जाति के लोग पाए जाते हैं मध्य प्रदेश और बिहार में जो माझी जाति पाए जाते हैं वह सब एससी कैटेगरी में आते हैं और उत्तर प्रदेश में जो मां जी जाति के लोग आते हैं वह सब ओबीसी कैटेगरी में आते हैं|मछुआरा समुदाय के लोग आर्थिक,सामाजिक और शैक्षणिक स्तर पर अति पिछड़े है।सरकारी नौकरियों में इनकी उपस्थिति न के बराबर है। प्रमुख व्यक्ति जीतन राम मांझी तिलका मांझी मुकेश साहनी डॉक्टर संजय निषाद शंखलाल माझी दशरथ मांझी विस्तृत पाठन
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उत्तरी रेशम मार्ग
उत्तरी रेशम मार्ग (Northern Silk Road) वर्तमान जनवादी गणतंत्र चीन के उत्तरी क्षेत्र में स्थित एक ऐतिहासिक मार्ग है जो चीन की प्राचीन राजधानी शिआन से पश्चिम की ओर जाते हुए टकलामकान रेगिस्तान से उत्तर निकलकर मध्य एशिया के प्राचीन बैक्ट्रिया और पार्थिया राज्य और फिर और भी आगे ईरान और प्राचीन रोम पहुँचता था। यह मशहूर रेशम मार्ग की उत्तरतम शाखा है और इसपर हज़ारों सालों से चीन और मध्य एशिया के बीच व्यापारिक, फ़ौजी और सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती रहीं हैं। पहली सहस्राब्दी (यानि हज़ार साल) ईसापूर्व में चीन के हान राजवंश ने इस मार्ग को चीनी व्यापारियों और सैनिकों के लिए सुरक्षित बनाने के लिए यहाँ पर सक्रीय जातियों के खिलाफ़ बहुत अभियान चलाए जिस से इस मार्ग का प्रयोग और विस्तृत हुआ। चीनी सम्राटों ने विशेषकर शियोंगनु लोगों के प्रभाव को कम करने के बहुत प्रयास किये। शाखाएँ उत्तरी रेशम मार्ग गांसू प्रान्त के हेशी गलियारे से निकलकर तीन उपमार्गों में बंटता है - एक टकलामकान रेगिस्तान से उत्तर में गुज़रता है और दूसरा उसके नीचे से और फिर यह दोनों कशगार शहर के नख़लिस्तान (ओएसिस) में फिर एक हो जाते हैं। कशगार से आगे यह फिर बंट जाते हैं। एक शाखा किरगिज़स्तान की अलई वादी से होते हुए उज़बेकिस्तान के तिरमिज़ क्षेत्र और अफ़्ग़ानिस्तान के बल्ख़ क्षेत्र जाती है। दूसरी शाखा फ़रग़ना वादी में ख़ोक़न्द से होकर काराकुम रेगिस्तान से निकलती हुई मर्व पहुँचती है। तीसरा मार्ग तियान शान के पर्वतों से उत्तर निकलकर तूरफ़ान और फिर कज़ाख़स्तान के अल्माती शहर पहुँचता है। एक शाखा ऐसी भी है जो उत्तरपश्चिम की तरफ़ निकलकर पहले अरल सागर और कैस्पियन सागर और फिर उस से आगे कृष्ण सागर पहुँचती है। इन्हें भी देखें कशगार हेशी गलियारा सन्दर्भ रेशम मार्ग मध्य एशिया का इतिहास चीन का इतिहास ऐतिहासिक मार्ग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%88%E0%A4%B5%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A4%A8
जैव संसाधन
जैव संसाधन: जो संसाधन जैव मण्डल(जीवमंडल) से आते हैं उन्हें जैव संसाधन कहते हैं। उदाहरण: मनुष्य, वनस्पति, मछलियाँ, प्राणिजात, पशुधन, आदि। वर्गीकरण मोटे तौर पर इसे दो भागों में बांटा गया है। १. वनस्पती जात संसाधन २. जन्तु या प्राणी जात संसाधन विशेषताएं मनुष्य जो इसमें आता है, सबसे बुद्धिमान प्राणी है। वह ही अन्य सभी प्रकार के संसाधनों को अपने विवेक से काम में लेता है। प्रमुख विषय विज्ञान, भूगोल, सामाजिक विज्ञान आदि विषयों में इनका अध्ययन किया जाता है। उपयोगिता मानव के लिए यही संसाधन सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं।
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गोमुख
गोमुख (Gomukh) या गौमुख (Gaumukh), भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी ज़िले में गंगोत्री हिमानी का अंतिम छोर है, जहाँ से भागीरथी नदी आरम्भ होती है जो गंगा नदी की एक प्रमुख स्रोतधारा है। 4,023 मीटर (13,200 फुट) पर स्थित यह स्थान हिन्दू धर्म में एक पवित्र स्थल व तीर्थ है। यह गंगोत्री बस्ती से लगभग 18 किमी दूर है और पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय हाईकिंग पगडण्डी भी यहाँ आती है। गोमुख से 14 किलोमीटर दूर भोजबासा में एक पर्यटक बंगला है जहाँ पर्यटकों के ठहरने और भोजन की व्‍यवस्‍था होती है। सन् 1972 में मॉरीशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री, शिवसागर रामगुलाम, यहाँ से जल लेकर गए थे, जिसे मॉरीशस में ग्रों बास्सें नामक ज्वालामुखीय झील में मिलाया गया, जिसे गंगा तलाब भी कहा जाता है और जो एक हिन्दू तीर्थस्थल है। इन्हें भी देखें गंगोत्री हिमानी भागीरथी नदी गंगा तलाब, मॉरिशस सन्दर्भ उत्तराखण्ड की हिमानियाँ उत्तरकाशी ज़िले का भूगोल भारत में हिन्दू तीर्थस्थल
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महिला टेस्ट क्रिकेट में शतकों की सूची
टेस्ट क्रिकेट क्रिकेट के खेल का सबसे लंबा संस्करण है। टेस्ट मैच चार पारियों में प्रत्येक ग्यारह खिलाड़ियों की अंतरराष्ट्रीय टीमों के बीच खेले जाते हैं; प्रत्येक टीम दो बार बल्लेबाजी करती है। महिलाओं के संस्करण में, खेल चार दिनों तक चलने वाला है। 1926 में इंग्लैंड में महिला क्रिकेट संघ का गठन किया गया था, और पहला महिला टेस्ट 1934 में इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेला गया था। इंग्लैंड की टीम ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के दौरे पर थी, जिसकी व्यवस्था डब्ल्यूसीए ने की थी। अंतर्राष्ट्रीय महिला क्रिकेट परिषद का गठन 1958 में महिला क्रिकेट की शासी निकाय के रूप में किया गया था। 2005 में, महिला क्रिकेट को पुरुष क्रिकेट के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के अंतर्गत लाया गया; उस समय परिषद के 104 सदस्यों में से 89 ने महिला क्रिकेट को विकसित करना शुरू कर दिया था। जुलाई 2019 तक, कुल दस टीमों ने कुल 140 महिला टेस्ट मैच खेले हैं और 2 मैच रद्द कर दिए गए थे। इंग्लैंड ने सबसे अधिक मैच (95) खेले हैं जबकि श्रीलंका, आयरलैंड और नीदरलैंड ने केवल एक-एक टेस्ट खेला है। सन्दर्भ क्रिकेट में शतकों की सूची
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फ्रमजी कोवासजी बानाजी
फ्रमजी कोवासजी बानाजी (FRAMJI COWASJI BANAJI ; १७६७ -- १८५२ ) पारसी समुदाय के नेता तथा मुम्बई के प्रथम 'जस्टिस ऑफ द पीस' थे। वे समृद्ध व्यापारी और जहाजों के अपने समय के सबसे बड़े ठेकेदार थे। जनकल्याणार्थ अनेक संस्थाओं के उत्थान के लिए आपने खुले दिल से सहायता दी। आप ही सर्वप्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने जी.आई.पी. रेलवे कंपनी (अब जो सेंट्रल रेलवे के नाम से जानी जाती है) का हिस्सा खरीदा। आप कॉटन वीविंग ऐंड स्पिनिंग इंडस्ट्रीज़ और बीमा कंपनियों आदि में हिस्सा लेनेवालों में अग्रणी थे। आप बंबई की चेंबर ऑव कॉमर्स के भी सदस्य थे। इन सब में महत्वपूर्ण है फ्रमजी का देश की आर्थिक उन्नति में रुचि लेना जिसके फलस्वरूप आपने कृषि और बागवानी के सुधार में तत्परता दिखलाई। बंबई की पवई एस्टेट का अधिकारी होने का गर्व आपको ही प्राप्त था। यह कई ग्रामों का सम्मिलित रूप था जिसकी उन्नति में आपकी वैयक्तिक रुचि थी। बंबई के राज्यपाल जॉन मैलकॉम ने अत्यंत प्रसन्नता के साथ आपके उन सुधारों की चर्चा की थी जो आपने उस एस्टेट के लिए किए थे। इस स्थान को उपयोगी और वैभिन्यपूर्ण बनाने के लिए आपने बहुत अधिक पैसा लगाया। अनेक कुएँ खुदवाए, अनेक मकान तथा उत्तम सड़कों का निर्माण करवाया, शहतूत और नील के पौधे रेशम के कीड़ों के लिए लगवाए। इसके अतिरिक्त चीनी की एक उत्तम मिल बनवाई और नील बनाने के लिए आवश्यक भवनों का भी निर्माण करवाया था। आपके जातिगत और विजातीय दोनों ही दान स्मरणीय हैं जिनमें प्रमुख हैं- पूजा के स्थानों का निर्माण, कुएँ खुदवाना, गरीब और अकालग्रस्तों की रक्षा, शिक्षण संस्थाओं को अनुदान आदि। जब ८५ वर्ष की आयु में आपका देहांत हो गया, आपको श्रद्धांजलि अर्पित करने के हेतु सर्वसाधारण की सभा की गई। सर्वसम्मति से यह निश्चित किया गया कि आपके नाम से 'फ्रमजी कावासजी संस्था' नामक संस्था स्थापित की जाए जो नागरिकता के क्रियाकलापों के केंद्र रूप में कार्य करेगी। इन्हें भी देखें A Tribute to FRAMJI COWASJI BANAJI, 1838, the original landowner of Powai पारसी लोग
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आतिथ्य
यह लेख आतिथ्य की परिभाषा के सम्बन्ध में है। होटल प्रबंधन के शैक्षिक अध्ययन के लिये आतिथ्य प्रबंधन अध्ययन तथा आतिथ्य उद्योग देखें. आतिथ्य एक मेहमान तथा मेज़बान के मध्य संबंध अथवा सत्कारशीलता का कृत्य अथवा प्रचलन है। जोकि मेहमान, आगंतुक अथवा अजनबियों; आश्रयस्थल, सदस्यता क्लब, कन्वेंशन, आकर्षणों, विशेष घटनाओं का स्वागत तथा मनोरंजन तथा यात्रियों तथा पर्यटकों के लिये अन्य सेवाये हैं। "आतिथ्य" का आशय उन लोगों के प्रति देखभाल तथा दयालुता प्रदान करना भी हो सकता है जिनको इसकी आवश्यकता है। आतिथ्य का अर्थ अंग्रेज़ी के शब्द hospitality, अर्थात् आतिथ्य, का उद्गम लैटिन शब्द hospes से हुआ है; तथा hospes की उत्पत्ति hostis से हुई है, जिसका मूल अर्थ है, शक्ति होना. शाब्दिक रूप से "मेजबान" का अर्थ "अजनबियों का स्वामी" होता है hostire का अर्थ बराबर अथवा प्रतिपूर्ति करना होता है। होमेरिक काल में आतिथ्य यूनानी देवकुल के मुख्य देवता जियस के अधीन था। जियस को 'ज़ेनिअस ज़ौस' (क्सेनोस का अर्थ है, अजनबी) की उपाधि भी प्रदान की गयी है जो इस तथ्य पर जोर देता है कि आतिथ्य सबसे महत्त्वपूर्ण था। एक यूनानी घर के बाहर सेजरने वाले किसी अजनबी को परिवार द्वारा घर के अंदर आमंत्रित किया जा सकता था। मेज़बान अजनबी के पैर धोने, खाना तथा शराब पेश करने तथा मेहमान के आरामदायक होने के बाद ही उसका नाम पूछ सकता था। पवित्र आतिथ्य की यूनानी धारणा की व्याख्या टेलीमैकस तथा नेस्टर की कहानी में की गई है। जब टेलीमैकस नेस्टर से मिलने आया, नेस्टर इससे अनभिज्ञ था कि उसका अतिथि उसके पुराने मित्र ओडीसियस का पुत्र है। लेकिन फिर भी नेस्टर ने टेलीमैकस तथा उसकी पार्टी का मुक्तहस्त से स्वागत किया, इस प्रकार hostis "अजनबी" तथा hostire "समतुल्य या बराबर" के मध्य सम्बन्ध का प्रदर्शन किया कि किस तरह आतिथ्य की धारणा में ये दो मिलते हैं। बाद में, नेस्टर के पुत्रों में से एक इस बात की देखभाल करते हुए कि उसे कोई तकलीफ न हो, टेलीमैकस के नजदीक के बिस्तर पर सो गया। नेस्टर ने एक बग्गी तथा घोड़े भी टेलीमैकस के लिये छोड़े जिससे वह पायलस से स्पारटा तक थल मार्ग से यात्रा कर सकें तथा अपने पुत्र पिसिसट्राटस को सारथी के रूप में नियुक्त किया। यह प्राचीन ग्रीक आतिथ्य के दो अन्य घटकों बचाव तथा मार्गदर्शन की व्याख्या करता है। उपर्युक्त कहानी तथा उसके वर्तमान अर्थ के आधार पर आतिथ्य का तात्पर्य अजनबी को मेज़बान के बराबर/समतुल्य रखना, उसकी देखभाल करना तथा उसे सुरक्षित महसूस कराना होता है, तथा उसकी मेजबानी के अंत में उसे अगले पड़ाव का मार्गदर्शन प्रदान करना होता है। समसामयिक प्रयोग समसामयिक पश्चिम में आतिथ्य दुर्लभतः बचाव तथा अस्तित्व का मसला है, तथा अधिकतर शिष्टाचार तथा मनोरंजन से सम्बन्धित है। हालांकि इसमें आज भी अपने अतिथि के लिये आदर प्रदर्शित करना, उनकी आवश्यकताओं को पूरा करना तथा उनको बराबर का मानना शामिल है। व्यक्तिगत मित्रों एवं किसी के समूह के सदस्य की तुलना में अजनबियों के प्रति आतिथ्य का प्रदर्शन संस्कृतियों एवं उपसंस्कृतियों के अनुरूप भिन्न-भिन्न होता है। आतिथ्य सेवा उद्योग में होटल, कैसीनो एवं आश्रयस्थल शामिल हैं जो अजनबियों को आराम तथा निर्देश प्रदान करते हैं, लेकिन केवल व्यापार संबंधों के भाग के रूप में. हॉस्पिटल, हॉस्पाइस एवं हॉस्टल शब्द भी "होस्पीटेलिटी" से लिये गये हैं तथा ये संस्थान व्यक्तिगत देखभाल की ओर अधिक इशारा करते हैं। आतिथ्य आचरण शास्त्र एक विषय है जो आतिथ्य के प्रयोग का अध्ययन करता है। पश्चिमी संदर्भ में, एथेन्स तथा येरुशलम के मध्य गतिशील तनाव के साथ दो अवस्थाओं में अधिक प्रगतिशील संक्रमण के साथ अन्तर देखा जा सकता है: एक व्यक्तिगत कर्तव्य बोध महसूस करने के आधार पर आतिथ्य तथा एक संगठित परंतु अज्ञात सामाजिक सेवाओं के लिये सरकारी संस्थानों पर आधारित होता है: जिनमें गरीब, अनाथ, बीमार, विदेशी, अपराधी आदि विशेष प्रकार के अजनबियों हेतु विशेष स्थान है। शायद, इस प्रगतिशील संस्थानीकरण को मध्य काल तथा पुनर्जागरण काल के मध्य संक्रमण से गठबंधित किया जा सकता है (इवान इलिच, द रिवर्स नार्थ ऑफ द फ्यूचर). "आय एम गोइंग टु गेट यू ए पिलो एण्ड मेक यू फील रिअल गुड", आतिथ्य का एक उदाहरण हो सकता है। यह अतिथि के आतिथ्य को दर्शाता है। विश्व में आतिथ्य बाइबल संबंधी तथा मध्यपूर्वी मध्य पूर्वीय संस्कृति में, आपके मध्य रहने वाले अजनबियों तथा विदेशियों की देखभाल को सांस्कृतिक मानदण्ड माना गया। ये मानदण्ड बाइबल संबंधी कई आज्ञाएं तथा उदाहरणों में प्रतिबिंबित किये गये हैं। संभवतः सर्वाधिक चरम उदाहरण जेनेसिस (प्रथम खण्ड) में दिया गया है। ईश्वर, फरिश्तों के समूह को आतिथ्य प्रदान करता है (जिन्हें वह केवल इंसान मानता है); जब भीड़ उनका बलात्कार करने का प्रयास करती है तो वे इस हद तक चले जाते हैं कि वे फरिश्तों के स्थान पर अपनी पुत्रियों को प्रस्तुत कर देते हैं। यह कहते हुए कि, "इन व्यक्तियों के साथ कुछ नहीं करो, क्योंकि ये मेरी शरण में आये हैं।" (जैनेसिस 19:8, एन आई वी) मेज़बान तथा अतिथि दोनों के लिये कठोर बाध्यतायें हैं। यह बंधन एक छत के नीचे नमक खाकर स्थापित किया जाता है, तथा इतना कठोर होता है कि एक अरबी कहानी बताती है कि एक चोर ने एक वस्तु का स्वाद यह सोच कर चखा कि वह चीनी है तथा, यह जानकर कि वह नमक है, उसने वो सभी चीजें वहां वापस रख दीं जो उसने उठाई थीं तथा चला गया। प्राचीन विश्व प्राचीन ग्रीक तथा रोमन लोगों के लिये आतिथ्य एक दैवीय स्थिति थी। मेज़बान से अतिथियों की आवश्यकताओं को पूरा करना सुनिश्चित करने की अपेक्षा की जाती थी। प्राचीन ग्रीक शब्द ज़ीनिया, अथवा थिओज़िनिया देवता के शामिल होने पर अनुष्ठात्मक अतिथि-मित्रता संबंध को अभिव्यक्त करता है। प्राचीन विश्व में आतिथ्य के महत्त्व का एक उदाहरण बाउसिस तथा फिलमोन की कहानी है। इस कहानी में, प्राचीन देवता जीयस तथा हार्मिस फ्रिगिया के शहर में साधारण किसान के रूप में वेश बदलकर जाते हैं। खाने तथा रात में रुकने की खोज में उन्होंने कई बन्द दरवाजे देखे, जब तक कि वे फिलमोन तथा बाउसिस के घर में नहीं आये. यद्यपि वह गरीब थे, परंतु दम्पत्ति ने अच्छे मेज़बान की तरह व्यवहार करते हुए, अतिथि को उनके पास जो कुछ थोड़ा बहुत था वह दिया, तथा जब वह यह समझ पाते हैं कि उनके अतिथि वास्तव में भेष बदल कर आये देवता है, वे अपने घर की रक्षा करने वाले एक कलहंस (गूज़) को बलि करने का प्रस्ताव करते हैं। शहर में आई बाढ़ से शेष गैर सत्कारशील शहरी व्यक्तियों के स्थान पर उस दम्पती को बचाने के अलावा, पुरस्कार के रूप में देवता उनकी एक इच्छा पूरी करने का वचन देते हैं। केल्टिक संस्कृतियों में आतिथ्य केल्टिक सोसायटियों ने भी आतिथ्य की धारणा का सम्मान किया है, विशेषकर बचाव के संबंध में. एक मेज़बान, जिसने एक व्यक्ति को शरण देने की स्वीकृति दी है, उससे अपने अतिथि को केवल भोजन तथा आश्रय देने की ही अपेक्षा नहीं की जाती परंतु उसे यह भी सुनिश्चित करना होता है कि उनकी देखभाल के अधीन मेहमान को कोई हानि न हो. इसका वास्तविक जीवन का उदाहरण मूलतः 17वीं शताब्दी प्रारंभ के स्कॉटिश क्लान मैक ग्रेगर के इतिहास में है। क्लेन लेमान्ट का मुखिया ग्लेनस्ट्रा में मैक ग्रेगर मुखिया के घर में आया तथा उसने उसे बताया कि वह शत्रुओं से बचता घूम रहा है तथा शरण देने की प्रार्थना की. मैक ग्रेगर ने अपने मुखिया भाई का स्वागत किया तथा कोई प्रश्न नहीं किया। बाद में उस रात मैक ग्रेगर क्लेन के सदस्य लेमॉन्ट मुखिया को देखने आये, तथा उन्होंने मुखिया को सूचित किया कि वास्तव में लेमॉन्ट ने अपने पुत्र तथा वारिस की झगड़े में हत्या कर दी है। आतिथ्य के धार्मिक नियम को ध्यान में रखते हुए, मैक ग्रेगर ने लेमॉन्ट को न केवल उनके गोत्र के व्यक्तियों को सौंपने से मना किया बल्कि अगली सुबह उसे उसकी पूर्वजों की जमीन तक छोड़ा. इस कृत्य की बाद में प्रतिपूर्ति हुई जब मेक ग्रेगर्स भगोड़े घोषित किये गये, लेमॉन्ट ने उनके कई लोगों को सुरक्षित स्थान दिया. भारत में आतिथ्य भारत संसार की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है, तथा प्रत्येक संस्कृति के समान उसकी अपनी पसंदीदा कहानियां हैं जिनमें से कुछ आतिथ्य पर भी हैं। जैसे कि कोई अनाड़ी अपना छोटा सा टुकड़ा बिन बुलाए मेहमान के साथ बांटता है, इस खोज में कि मेहमान भेष बदल कर आये देवता हो सकते हैं, जो उसकी उदारता का प्रचुर मात्रा में पुरस्कार देंगे. जैसे कि एक स्त्री, जितना संभव हो, प्रेमपूर्वक उतनी खिचड़ी पकाती है, उन सभी के लिये जो भूखे है, उस दिन तक जब वह खाने का अपना हिस्सा भी आखरी भूखे व्यक्ति को दे देती है, तथा भेष बदल कर आये हुए देवता उसे कभी न समाप्त होने वाला खिचड़ी का बर्तन पुरस्कार में देते हैं। अधिकतर वयस्क भारतीय अपने बालपन से इस प्रकार की कहानियां सुनते हुए बड़े हुए हैं। वे "अतिथि देवो भव" के दर्शन शास्त्र में विश्वास रखते हैं, जिसका अर्थ है "अतिथि भगवान होता है". इस मूल मन्त्र से घर में आये अतिथियों के संबंध में दयालुता का भारतीय दृष्टिकोण तथा अन्य सभी सामाजिक परिस्थितियां प्रमाणित होती हैं। भारत का अर्थ आधुनिक भारत से नहीं है, 1947 में विभाजन के पहले भारत तथा पाकिस्तान एक ही देश थे। इसलिये जब भारतीय सभ्यता की बात की जाती है, इसका आश्य भारत तथा पाकिस्तान दोनों के संबंध में है। सांस्कृतिक मूल्य या मान सांस्कृतिक मान या मूल्य के रूप में आतिथ्य एक स्थापित समाजशास्त्रीय परिस्थिति है, जिसके बारे में लोग अध्ययन करते एवं लिखते हैं (संदर्भ देखें, एवं आतिथ्य आचार शास्त्र). एक विशेष प्रकार के आतिथ्य का प्रदर्शन करते हुए कुछ क्षेत्र एक ही परंपरा में ढ़ल गये हैं। उदाहरण के लिए: मिनिसोटा नाइस दक्षिणी आतिथ्य आतिथ्य आचार शास्त्र "आतिथ्य आचार शास्त्र" शब्द का प्रयोग दो भिन्न, परंतु संबंधित, अध्ययन क्षेत्रों के लिये किया जाता है: आतिथ्य संबंधों एवं अभ्यासों में नैतिक दायित्वों का दार्शनिक अध्ययन. व्यापार आचार शास्त्र की शाखा जो वाणिज्यिक आतिथ्य एवं पर्यटन उद्योगों में आचार शास्त्र पर ध्यान केन्द्रित करती है। क्या किया जाना चाहिये, बताने के लिये आचार शास्त्र जहाँ "क्या किया गया है" के परे जाता है; आतिथ्य आचार शास्त्र आतिथ्य से जुड़े हुए मसलों में "क्या किया जाना चाहिये " बताता है। आतिथ्य सिद्धांत एवं मानक विभिन्न संस्कृतियों एवं परंपराओं में; एवं पूरे इतिहास में आतिथ्य प्रचलनों, प्रक्रियाओं एवं संबंधों के जटिल विश्लेषण से लिये गये हैं। अंततः, आतिथ्य सिद्धांतों को वाणिज्यक एवं गैर-वाणिज्यक व्यवस्थाओं में प्रयुक्त किया गया है। आचारण के एक मानक के रूप में, संपूर्ण इतिहास में आतिथ्य को एक कानून, एक आचार शास्त्र, एक सिद्धांत, एक कोड (संहिता), एक कर्त्तव्य, एक गुण इत्यादि के रूप में माना गया है। इन परामर्शों को अतिथियों, मेजबानों, नागरिकों एवं अपरिचितों के मध्य अनिश्चित संबंधों के निपटारे हेतु सृजित किया गया था। अपने प्राचीन उद्भव एवं मानव संस्कृतियों में सर्वव्यापकता के बावजूद, आतिथ्य के सिद्धांत पर नैतिक दार्शनिकों ने तुलनात्मक रूप से कम ध्यान दिया है, तथा उन्होंने अपना ध्यान अन्य नैतिक सिद्धांतों यथा - अच्छा, बुरा, सही एवं गलत आदि पर केन्द्रित किया। अब तक नैतिक आदेश, या आचार शास्त्रीय दृष्टिकोण के रूप में आतिथ्य ने आचार शास्त्रीय व्यवहार हेतु कई अन्य परामर्शों को पीछे छोड़ा है: प्राचीन मध्यपूर्व, यूनान एवं रोमन संस्कृतियों में आतिथ्य का आचार शास्त्र एक कोड था जो अतिथियों एवं मेजबानों से एक निश्चित प्रकार के आचरण की माँग करता था। एक उदाहरणः शूरवीरता में स्टेशन (ठहराव) के व्यक्तियों द्वारा अन्य व्यक्तियों के माँगे जाने पर भोजन एवं आवास प्रदान करना आवश्यक है। कई रूपों में, व्यवहार के ये मानक वर्तमान समय में वाणिज्यिक आतिथ्य उद्योग तक मौजूद रहे हैं, जहाँ प्राचीन विचारों के वंशज वर्तमान मानकों एवं प्रचलनों को सूचित करते रहते हैं। प्रचलन में आतिथ्य आचार शास्त्र वाणिज्यिक आतिथ्य व्यवस्थाओं में आचार शास्त्र. अनुप्रयुक्त आचार शास्त्र, आचार शास्त्र की वह शाखा है जो हमारे आचार शास्त्रीय सिद्धांतों एवं निर्णयों की पड़ताल करती है। अनुप्रयुक्त आचार शास्त्र की कई शाखायें हैं: व्यापार आचार शास्त्र, व्यावसायिक आचार शास्त्र, चिकित्सा आचार शास्त्र, शैक्षणिक आचार शास्त्र, पर्यावरणीय आचार शास्त्र एवं अन्य. आतिथ्य आचार शास्त्र अनुप्रयुक्त आचार शास्त्र की एक शाखा है। व्यवहार में, यह अनुप्रयुक्त आचार शास्त्र की अन्य शाखाओं के संबंधों को मिलाता है, जैसे कि व्यापार आचार शास्त्र, पर्यावरणीय आचार शास्त्र, व्यावसायिक आचार शास्त्र, एवं अन्य. उदाहरण के लिए, जब एक स्थानीय आतिथ्य उद्योग तरक्की करता है, तब संभावित आचार शास्त्रीय दुविधायें प्रचुरता से सामने आती हैं: उद्योग के प्रचलनों का पर्यावरण पर क्या प्रभाव होता है? मेज़बान समुदाय पर क्या प्रभाव होता है? स्थानीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव होता है? स्थानीय समुदाय; बाहरी व्यक्तियों, पर्यटकों एवं अतिथियों के बारे में नागरिकों के रवैये पर क्या प्रभाव होता है? ये ऐसे कुछ प्रश्न हैं जो कि अनुप्रयुक्त आचार शास्त्र के एक संस्करण के रूप में आतिथ्य आचार शास्त्र पूछ सकता है। चूँकि आतिथ्य एवं पर्यटन सम्मिलित रूप से विश्व में सबसे बड़े सेवा उद्योगों का सृजन करता है, अतः आतिथ्य एवं पर्यटन से जुड़े व्यक्तियों के लिये अच्छे और बुरे व्यवहार तथा सही और गलत कार्यों की बहुत संभावनायें हैं। इन उद्योगों में आचार शास्त्र आचरण संहिताओं, कर्मचारी मैनुअल, उद्योग मानकों (चाहे अस्पष्ट या स्पष्ट) एवं कई अन्य द्वारा निर्देशित होता है। यद्यपि विश्व पर्यटन संगठन ने आचार शास्त्र के उद्योग अनुसार कोड प्रस्तावित किये हैं, आतिथ्य उद्योग के लिये वर्तमान में कोई वैश्विक संहिता नहीं है। वाणिज्यिक आतिथ्य व्यवस्थाओं में आचार शास्त्र संबंधी विभिन्न पाठ्य पुस्तकें हाल ही में प्रकाशित की गयी हैं एवं वर्तमान में आतिथ्य शिक्षा पाठ्यक्रमों में प्रयुक्त हो रही हैं। इन्हें भी देखें स्विटज़रलैंड व्यवसाय प्रबंधन का अंतर्राष्ट्रीय स्कूल आतिथ्य प्रबंधन अध्ययन होटल प्रबंधक कम खर्च और सामान में यात्रा करना (यात्रा) काउचसर्फिंग आतिथ्य क्लब आतिथ्य सेवा, आधुनिक दिन का आतिथ्य नेटवर्क. छात्रावास मोटल सन्दर्भ अतिरिक्त पठन क्रिस्टीन जेसज़े. (2006). एथिकल डिसीज़न-मेकिंग इन द होस्पीटेलिटी इंडसट्री करेन लिबरमेन और ब्रूस निसन. (2006). एथिक्स इन द होस्पीटेलिटी एंड टूरिज़्म इंडसट्री रोज़ालीन डफी और मिक स्मिथ. द एथिक्स ऑफ़ टूरिज़्म डेवलपमेंट कॉनराड लैश्ले और एलिसन मोरिसन इन सर्च ऑफ़ होस्पीटेलिटी कॉनराड लैश्ले और एलिसन मोरिसन द्वारा होस्पीटेलिटी: अ सोशल लेंस रे ओल्डेनबर्ग द्वारा द ग्रेट गुड प्लेस पॉल रुफिनो द्वारा कस्टमर सर्विस एंड द लग्ज़री गेस्ट फुस्टेल डी कौलानगेस द एन्शिएन्ट सिटी: रिलिजन, लौज़, एंड इंस्टीट्यूशनज़ ऑफ़ ग्रीस एंड रोम बोलकेज़ी होस्पीटेलिटी इन ऐन्टिक्विटी: लिवि'ज़ कांसेप्ट ऑफ़ इट्स ह्युमनाइज़िन्ग फ़ोर्स जैकस डेरिडॉ॰ (2000). ऑफ़ होस्पीटेलिटी. ट्रांस. रेचल बौलबाय. स्टैनफोर्ड: स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस. स्टीव रीस. (1993). द स्ट्रेंजर'ज़ वेलकम: ओरल थिअरी एंड द एस्थेटिक्स ऑफ़ द होमरिक होस्पीटेलिटी सीन. एन आर्बर: मिशिगन प्रेस की यूनिवर्सिटी. मिरिल रोज़ेलो. (2001). पोस्टक्लोनिअल होस्पीटेलिटी. द इमिग्रेंट एज़ गेस्ट. स्टैनफोर्ड सीए: स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस. क्लिफोर्ड जे. रूट्स. 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Grant Thornton IBR 2008 Hospitality industry focus Starkey International Institute of Household Managers DCT University Center, एक स्विस आतिथ्य स्कूल The California State University Hospitality Management Education Initiative उत्तरी एरिजोना विश्वविद्यालय में स्थित The Isbell Hospitality Ethics Center रमाडा होटल और आश्रयस्थल के संस्थापक, मेरिओन डबल्यू. इज़्बेल के परिवार द्वारा भेंट में दिया गया है। इज़्बेल होस्पीटेलिटी एथिक्स सेंटर का मिशन है: आतिथ्य छात्रों और प्रबंधकों में नैतिक जागरूकता बढ़ाने के द्वारा आतिथ्य उद्योग की नैतिक जलवायु में सुधार लाना. "César Ritz” Colleges Switzerland, स्विस होटल स्कूल और विश्वविद्यालय केंद्र समाज-शास्र शिष्टाचार आतिथ्य उद्योग
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जापान की जनसांख्यिकी
जापान की आबादी की जनसांख्यिकीय सुविधाओं में जनसंख्या घनत्व, जातीयता, शिक्षा स्तर, जनसंख्या का स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति, धार्मिक संबद्धता और आबादी के संबंध में अन्य पहलुओं शामिल हैं। आबादी अक्टूबर 2010 से जनगणना के आधार पर, जापान की आबादी 128,057,352 पर पहुंच गई थी। 1 अक्टूबर, 2015 तक, जनसंख्या 127,094,745 थी| उस समय यह दुनिया का दसवां सबसे अधिक आबादी वाला देश बना। पांच साल पहले जनगणना के समय से 0.8 प्रतिशत की गिरावट आई थी, पहली बार 1945 की जनगणना के बाद से यह गिरावट आई थी। जापान की आबादी के आकार को 19वीं सदी के अंत और 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में अनुभवी उच्च वृद्धि दर के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। 2010 से, जापान ने 2016 में 85.00 वर्षों में दुनिया में सबसे ज्यादा जीवन प्रत्याशाओं में से एक होने के बावजूद जन्म दर गिरने और लगभग कोई आप्रवासन के कारण शुद्ध जनसंख्या हानि का अनुभव किया है (यह 2006 के अनुसार 81.25 था)। प्रत्येक वर्ष अक्टूबर के लिए वार्षिक अनुमान का उपयोग करते हुए, 2008 में जनसंख्या 128,083,960 पर पहुंच गई और अक्टूबर 2011 तक 285,256 गिर गई। 1990 में जापान की जनसंख्या रैंकिंग 7 वीं से 8 वीं तक, 1998 में 9वीं और 21 वीं शताब्दी की शुरुआत में 10 वीं थी। संयुक्त राष्ट्र और पीआरबी दोनों के मुताबिक, 2015 में यह 11 वें स्थान पर आ गया। 2010-2015 की अवधि में, जनसंख्या लगभग दस लाख तक गिर गई| नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉप्युलेशन एंड सोशल सिक्योरिटी रिसर्च से 2012 के आंकड़ों के आधार पर, आने वाले दशकों में जापान की आबादी हर साल लगभग दस लाख लोगों की गिरावट जारी रखेगी, जो जापान को 2110 में 42 मिलियन की आबादी के साथ छोड़ देगी। जीवन शैली जापानी लोग जीवन स्तर के उच्च स्तर का आनंद लेते हैं, और लगभग 90% आबादी खुद को मध्यम वर्ग का हिस्सा मानती है। हालांकि, जीवन के साथ खुशी और संतुष्टि पर कई अध्ययन यह पाते हैं कि अत्यधिक विकसित दुनिया की तुलना में जापानी लोग जीवन संतुष्टि और खुशी के अपेक्षाकृत हैं सन्दर्भ जापान
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A5%89%E0%A4%A8%20%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%A1%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%A8
डॉन ब्रैडमैन
सर डोनाल्ड जॉर्ज ब्रेडमैन (27 अगस्त 1908-25 फ़रवरी 2001), जिन्हें प्रायः द डॉन कहा जाता है, ऑस्ट्रेलिया के एक क्रिकेट खिलाड़ी थे जिन्हें विश्व का महानतम् बल्लेबाज माना जाता है। टेस्ट क्रिकेट में उनका बल्लेबाजी का औसत ९९़.९७ था जिसे प्रायः किसी भी बड़े खेल में किसी भी खिलाड़ी द्वारा अर्जित सबसे बड़ी उपलब्धि माना जाता है। कम उम्र में ही डॉन ने करियर की ऊँछाइयों को छू लिया था। २२ वर्ष की आयु पूरी होने तक तो उन्होंनें कई कीर्तिमान बना दिए थे, जिनमें से कुछ तो अभी भी कायम हैं। अपने २० वर्ष के क्रिकेट करियर के दौरान उन्होंने निरंतरता से प्रदर्शन करते हुए इतने रन बनाए जो, भूतपूर्व अॉस्ट्रिलेयाई कप्तान बिल वुडफुल के शब्दों में- तीन बल्लेबाजों के बराबर तो होंगे। इनसे पार पाने के लिए इंगलैण्ड की टीम के द्वारा बॉडीलाइन जैसी विवादास्पद तरकीबें भी इजाद की गईं। कप्तान और प्रशासक के रूप में ब्रैडमैन हमेशा आक्रामक और रोमांचक क्रिकेट के लिए समर्पित रहे। उन्हें देखने रिकॉर्डतोड़ भीड़ उमड़ पड़ती थी। वे अपनी लगातार प्रसिद्धी से असहज रहते थे और इससे उनका व्यवहार भी प्रभावित हुआ। वे एक तनहाईपसंद तरह के इंसान समझे जाते थे। सेवानिवृत्ति के पश्चात् भी वे तीन दशकों तक तक प्रशासक, चयनकर्ता व लेखक के रूप में क्रिकेट की सेवा करते रहे। २००१ में जब इन्हें सेवानिवृत्त हुए ५० वर्ष से भी अधिक का समय हो गया था, एक समय में ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री जॉन हावर्ड ने इन्हें महानतम जीवित ऑस्ट्रेलियन कहा था। ब्रैडमैन के चित्र के साथ डाक टिकटें भी जारी हुईं, सिक्के भी ढाले गए। इनके जीवित रहते ही इनके नाम पर एक संग्रहालय भी बनाया जा चुका था। २७ अगस्त २००८ को इनकी जन्मशती पर ऑस्ट्रेलिया में $५ मूल्य की स्वर्णमुद्राएँ भी जारी की गईं। १९ नवम्बर २००९ को डॉन ब्रैडमैन को आईसीसी हाल ऑफ फेम में शामिल किया गया। लोकप्रियता ब्रैडमैन का नाम क्रिकेट की दुनिया और अन्य व्यापक रूपों में असाधारण श्रेष्ठता का प्रयाय बन गया। शब्द ब्रैडमैनेस्क़ क्रिकेट और गैर-क्रिकेट दोनों में काम में लिए जाने वाले शब्द के रूप में गढ़ा जा चुका है। जीवन डोनाल्ड जॉर्ज ब्रैडमैन जो जॉर्ज और एमिली परिवार के सबसे छोटे पुत्र थे ब्रैडमैन का जन्म २७ अगस्त १९०८ को कूटामुण्डरा ,न्यू साउथ वेल्स में हुआ था। इनका एक भाई भी है और तीन बहने है जिसमें भाई का नाम विक्टर तथा बहिनों के नाम आइलेट ,लिलियन और एलिजाबेथ मेय है। एक दादा एक महान इटालियन व्यक्ति थे जो १८२६ ईस्वी में ऑस्ट्रेलिया जाकर बसे थे। ब्रैडमैन के माता और पिता स्टाकिंबिंगल के येवू येवू शहर में रहते थे। एमिली ने ब्रैडमैन को अपने घर कूटामुण्डरा जन्म दिया था जो अब वर्तमान में ब्रैडमैन बर्थप्लेस म्यूजियम है। एमिली जो न्यू साउथ वेल्स के मितगोंग की रहने वाली थीं और १९११ जब डॉन ब्रैडमैन ढाई साल के थे तब इनके माता पिता ने यह निर्णय लिया था कि वो मितगोंग को छोड़कर बोवरा चले जाएंगे और वहीं बस जाएंगे। ब्रैडमैन बचपन से ही बल्लेबाजी करने का अभ्यास करते रहते थे। इसके बाद इन्होंने खुद ने सोलो क्रिकेट की स्थापना की थी जिसमें क्रिकेट के स्टम्पों बल्ला और गोल्फ की गेंद का प्रयोग किया जाता है।इन्होंने बचपन में बहुत क्रिकेट खेला था और पहला शतक जब १२ साल के थे तब बनाया था उस मैच में इन्होंने १२५ रनों की पारी खेली थी और वह मैच बोवरा पब्लिक स्कूल के लिए खेलते हुए मितगोंग हाई स्कूल के सामने खेला गया था l सांख्यिकीय सारांश टेस्ट क्रिकेट प्रदर्शन डॉन ब्रैडमेन ने अपने टेस्ट क्रिकेट की शुरुआत ३० नवम्बर १९२८ को इंग्लैंड टीम के खिलाफ खेलकर की थी और इन्होंने अपना अंतिम टेस्ट मुकाबला १८ अगस्त १९४८ को इंग्लैंड के ही खिलाफ खेला था। ब्रैडमेन ने अपने टेस्ट कैरियर में कुल ५२ टेस्ट मैच खेले थे जिसमें ९९.९४ की बल्लेबाजी औसत से कुल ६,९९६ रन बनाए थे जिसमें २९ शतक और १३ अर्द्धशतक भी शामिल है। ब्रैडमेन ने अपने टेस्ट कार्यकाल में एक पारी में सबसे ज्यादा ३३४ रनों की पारी खेली थी जो कि इनका सर्वाधिक स्कोर है। इन्होंने अपने टेस्ट कार्यकाल में कुल १६० गेंदें फेंकी जिसमें ८ विकेट भी लिए थे। प्रथम श्रेणी क्रिकेट प्रदर्शन चित्र सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ ब्रैडमैन म्यूजियम एंड ब्रैडमैन ओवल ब्रैडमैन डिजिटल लाइब्रेरी—स्टेट लाइब्रेरी ऑफ़ साउथ ऑस्ट्रेलिया द ब्रैडमैन ट्रैल डॉन ब्रैडमैन ऑन पिक्चर ऑस्ट्रेलिया ब्रैडमैन का साक्षात्कार 1930 डॉन ब्रैडमैन — टीवी वृत्तचित्र — ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कारपोरेशन डॉन ब्रैडमैन के कुछ चित्र जिनमें से कुछ उनकी बल्लेबाजी की तकनीक को दिखाती हैं। ऑस्ट्रैलियानस्क्रीन ऑनलाइन के एशेज दौरे के बाद युवा डॉन ब्रैडमैन को सुनें। ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट खिलाड़ी ऑस्ट्रेलिया के लोग 1908 में जन्मे लोग २००१ में निधन दाहिने हाथ के बल्लेबाज़ ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट कप्तान‎
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%80%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%20%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80%20%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%98%2C%20%E0%A4%A0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%87
पश्चिमी भारत सनदी लेखाकार विद्यार्थी संघ, ठाणे
पश्चिमी भारत सनदी लेखाकार विद्यार्थी संघ, ठाणे (), "विकासा, ठाणे" () के रूप में संक्षेपाक्षरित, भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान के पश्चिमी भारत क्षेत्रीय परिषद के ठाणे शहर के अध्याय का विद्यार्थी अंग हैं। इस संघ का मुख्य संगठन, पश्चिमी भारत सनदी लेखाकार विद्यार्थी संघ हैं, जो पूर्ण पश्चिमी भारत के सनदी लेखाकार के विद्यार्थियों का संघ हैं। समिति ठाणे विकासा एक सात-सदस्यीय समिति हैं, जिसमें अध्यक्ष एक सीए होते हैं और बाकी छः सदस्य सीए अभ्यासक्रम के विद्यार्थी होते हैं। वित्तीय वर्ष 2016-17 की समिति निम्न प्रकार हैं - सीए सुरेन ठाकुरदेसाई - अध्यक्ष मधुर सुर्वे - उपाध्यक्ष आयुषी माहेश्वरी - सचिव जितेश अगरवाल - कोषाध्यक्ष मोहित सोमानी - समिति सदस्य अथर्व जोशी - समिति सदस्य मानस मादरेचा - समिति सदस्य आस्था पाण्ड्या - समिति सदस्य इन्हें भी देखें पश्चिमी भारत सनदी लेखाकार विद्यार्थी संघ सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ ठाणे अध्याय का जालस्थल ठाणे विकासा के मासिक समाचारपत्र ठाणे
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फरहान अख्तर
फ़रहान अख़्तर ( जन्म - 9 जनवरी 1974), एक भारतीय फ़िल्म निर्माता, पटकथा लेखक, अभिनेता, पार्श्वगायक, गीतकार, फ़िल्म निर्माता और टीवी होस्ट है। निर्देशक के रूप में उनकी पहली फ़िल्म (दिल चाहता है, 2001) की काफी प्रशंसा की गई थी और तभी से एक खास दर्शक वर्ग में उनकी अलग पहचान है। आनंद सुरापुर की फ़िल्म, द फकीर ऑफ वेनिस (2007) और रॉक ऑन!! (2008) से उन्होंने अपने अभिनय करियर की शुरुआत की। 2008 निजी जीवन और पृष्ठभूमि फरहान अख्तर मुंबई के पटकथा लेखक जावेद अख्तर और हनी ईरानी के घर पैदा हुए. उनका जन्म एक ईरानी-मुस्लिम परिवार में हुआ। उन्होंने जुहू के मानिक जी कूपर स्कूल में स्कूली शिक्षा पायी और बाद में कामर्स में डिग्री के लिए एचआर कॉलेज में दाखिला लिया, हालांकि दूसरे साल उन्होंने उसे छोड़ दिया। अभिनेत्री शबाना आज़मी उनकी सौतेली माँ है। वह उर्दू कवि जान निसार अख्तर के पोते और बॉलीवुड की फ़िल्म निर्देशक और नृत्य कोरियोग्राफर फराह खान के चचेरे भाई हैं। उसकी बहन, जोया अख्तर ने हाल में ही लक बाइ चांस फ़िल्म से निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा, जिसमें फरहान मुख्य भूमिका में थे। उनका विवाह एक हेयर स्टाइलिस्ट अधुना भावनी अख्तर के साथ हुआ, जो अपने भाई के साथ बी ब्लंट सैलून चलाती हैं। उनकी दो बेटियां-अकीरा और शाक्य हैं। फरहान और रितिक रोशन बचपन से ही अच्छे दोस्त हैं। 24 अप्रैल 2017 में दोनो ने तलाक लेने के फैसला लिया वर्तमान में फरहान अभिनेत्री और माडल शिबानी दांडेकर के साथ मार्च 2022 में शादी करने वाले है। करियर फरहान अख्तर ने अपना करियर 17 साल की उम्र में लमहे (1991) जैसी फ़िल्मों के लिए सिनेमाटोग्राफर-निर्देशक मनमोहन सिंह के साथ प्रशिक्षु के रूप में शुरू किया था। 1997 में फ़िल्म हिमालय पुत्र (1997) में निर्देशक पंकज पराशर के सहायक के तौर पर काम करने के बाद तीन साल के लिए एक टेलीविजन प्रोडक्शन हाउस को सेवा देनेवाले फरहान विभिन्न तरह के कार्य कर रहे हैं। उन्हों‍ने 2001 की हिट फ़िल्म- दिल चाहता है के साथ हिंदी सिनेमा में लेखन और निर्देशन करियर की शुरुआत की, जिसका निर्माण एक्सेल एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड (Excel Entertainment Pvt. Ltd) ने किया, जिसका निर्माण 1999 में उन्होंने रितेश सिदवानी के साथ किया था। यह फ़िल्म तीन दोस्तों (आमिर खान, सैफ अली खान और अक्षय खन्ना ने इसमें अभिनय किया) की कहानी है, जो हाल ही में कॉलेज से स्नातक डिग्री लेते हैं और फ़िल्म‍ प्यार और दोस्ती के इर्द-गिर्द घूमती है। इसे समीक्षकों ने तो सराहा ही, व्यावसायिक कामयाबी भी मिली, खासकर युवा पीढ़ी में यह काफी लोकप्रिय हुई। इस फ़िल्म को विभिन्न अवार्ड समारोहों में सर्वश्रेष्ठ पटकथा, निर्देशन और फ़िल्म सहित कई नामांकन मिले। फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ हिंदी फ़िल्म का उस साल का राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला। अख्तर फिर अपनी अगली परियोजना, ऋतिक रोशन और प्रीति जिंटा अभिनीत फ़िल्म लक्ष्य (2004), के निर्माण में जुटे, जो उन लक्ष्यहीन नौजवानों के बारे में थी, जो आखिर में अपने लिए एक लक्ष्य तय करने में कामयाब होते हैं। हालांकि फ़िल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी हासिल नहीं की, पर बहुत सारे समीक्षकों ने प्रशंसा की। फ़िल्म की स्क्रिप्ट उनके पिता जावेद अख्तर ने लिखी थी। इस बीच, उन्होंने गुरिंदर चड्ढा की 2004 की हॉलीवुड फ़िल्म ब्राइड एंड प्रिज्युडिस के लिए भी गीत लिखे. उसके बाद उन्होंने 1978 की अमिताभ बच्चन की फ़िल्म डॉन का रीमेक डॉन - द चेज़ विगिंस अगेन शुरू किया, जिसमें मुख्य भूमिका में शाहरुख खान थे। 20 अक्टूबर 2006 को फ़िल्म रिलीज हुई। हालांकि समीक्षकों ने इसकी काफी आलोचना की, पर यह बॉक्स ऑफिस पर खूब कामयाब रही। इसने 50 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार तो किया ही, साथ में साल की पांचवीं सबसे हिट फ़िल्म भी रही। 2007 में उन्होंने फ़िल्म हनीमून ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड का निर्माण किया, जिसने बाक्स ऑफिस पर काफी अच्छा प्रदर्शन किया। 2007 में उन्होंने HIV के कलंक और रोगी के प्रति परिवारवालों की सहानुभुति की जरूरत पर 12 मिनट की लघु फ़िल्म, पोजिटिव का निर्देशन किया। मुंबई में इसकी शूटिंग हुई और यह 'एडस जागो रे'(AIDS Awake) की चार लघु फ़िल्मों की सिरीज का एक हिस्सा थी, जिसका निर्देशन मीरा नायर, संतोष सिवान, विशाल भारद्वाज और फरहान अख्तर ने किया। यह सिरीज मीराबाई फ़िल्म्स, स्वयंसेवी संगठन आवाहन तथा बिल एंड मिलिंडा गेटस फाउंडेशन की संयुक्त पहल का नतीजा थी। इस फ़िल्म में बोमन ईरानी, शबाना आजमी और एक नए अभिनेता अर्जुन माथुर ने भुमिकाएं निभाईं. 2008 में, अख्तर ने रॉक ऑन!! से अपने अभिनय कला की शुरुआत की। इस फ़िल्म को समीक्षकों ने तो सराहा ही, बॉक्स आफिस पर, खासकर महानगरों में यह उम्मीद से ज्यादा चली. वे निर्देशन के क्षेत्र में पहला कदम रखने वाली अपनी बहन जोया की फ़िल्म लक बाइ चांस में लीड पुरुष अभिनेता के रूप में दिखे. वह आगामी तीन फ़िल्मों: कार्तिक कॉलिंग कार्तिक, ध्रुव और गुलेल (इनमें केवल उनका अभिनय है, निर्माण नहीं) में भी दिखेंगे. अख्तर ने गायन के क्षेत्र में पहला कदम रॉक ऑन!! से रखा और फ़िल्म के ज्यादातर गाने गाये. यहां तक कि फ़िल्म ब्लू में भी वह गाने वाले थे, जिसे संगीत से ए आर रहमान ने सजाया है। हालांकि कार्तिक कॉलिंग कार्तिक की शूटिंग में व्यस्त रहने के कारण समय नहीं निकाल सके। वह डांस रियलिटी शो नच बलिये (2005) के पहले सत्र में एक जज के रूप में टेलीविजन के कुछ शो और फेमिना मिस इंडिया (2002 में) में जज के रूप में दिखे. वे NDTV इमेजिन पर अपने शो ओए!, इट इज फ्राइडे के लिए टीवी शो मेजबान के भी रूप में दिखे.It's Friday! फ़िल्मोग्राफी निर्देशक दिल चाहता है (2001) लक्ष्य (2004) डॉन - द चेज़ बिगिंस अगेन (2006) पोज़िटिव (2007) डॉन 2 - द चेज़ कंटिन्युज़ (निर्माणाधीन) अभिनेता निर्माता डॉन - द चेज़ बिगिन्स अगेन (2006) हनीमून ट्रेवल्स प्राइवेट लिमिटेड (2006) रॉक ऑन!! (2008) लक बाइ चांस (2009) कार्तिक कॉलिंग कार्तिक (निर्माणाधीन) डॉन 2 - द चेज़ कंटिन्युज़ (निर्माणाधीन) क्रूक्ड (फ़िल्म) (निर्माणाधीन) ध्रुव (निर्माणाधीन) लेखक दिल चाहता है (2001) डॉन - द चेज़ बिगिन्स अगेन (2006) लक बाई चांस (2009) डॉन 2 - द चेज़ कंटिन्युज़ (निर्माणाधीन) पार्श्व गायक रॉक ऑन!! (2008) पटकथा लेखक क्या कहना गीतकार ब्राइड & प्रीज्यूडिस (2004) पुरस्कार नैशनल अवार्ड्स 2002: हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फ़िल्म के लिए नैशनल फ़िल्म आवर्ड: दिल चाहता है फ़िल्मफेयर अवार्ड्स 2002: सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिए फ़िल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड: दिल चाहता है फ़िल्मफेयर बेस्ट डाइरेक्टर 2002 - नामांकित (दिल चाहता है) 2004 - नामांकित (लक्ष्य) 2009: बेस्ट डेब्यू के लिए फ़िल्मफेयर अवार्ड - पुरुष: रॉक ऑन!! फ़िल्मफेयर बेस्ट स्क्रीनप्ले ** 2002 - जीता (दिल चाहता है) स्टार स्क्रीन आवार्ड्स अधिकांश होनहार नवागंतुक के लिए स्टार स्क्रीन अवार्ड्स - पुरुष ** 2009 - जीता (रॉक ऑन!!) सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ फरहान अख्तर का एक बहुआयामी व्यक्तित्व फरहान अख्तर की प्रशिद्ध शायरियाँ BBC में फरहान अख्तर 1974 में जन्मे लोग जीवित लोग भारतीय फ़िल्म निर्देशक भारतीय फिल्म निर्माता भारतीय मुस्लिम फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता मुंबई के लोग गूगल परियोजना पटकथा लेखक
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रक्षा पर संसदीय स्थायी समिति
भारत में, रक्षा पर संसदीय स्थायी समिति (एससीओडी) रक्षा नीतियों के विधायी निरीक्षण और रक्षा मंत्रालय के निर्णय लेने के उद्देश्य से भारत की संसद द्वारा गठित संसद के चयनित सदस्यों की एक विभाग से संबंधित स्थायी समिति (डीआरएससी) है। यह उन 24 डीआरएससी में से एक है जिन्हें मंत्रालय के विशिष्ट निरीक्षण के कठिन कार्य के साथ अनिवार्य किया गया है। समिति में इकतीस सदस्य होते हैं जिनमें इक्कीस संसद के निचले सदन लोकसभा से चुने जाते हैं, और संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा से दस से अधिक सदस्य नहीं होते हैं। सदस्यों का कार्यकाल एक वर्ष का होता है और वे एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के अनुसार अपने-अपने सदनों से वार्षिक रूप से चुने जाते हैं। अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है। एक मंत्री समिति का सदस्य बनने के योग्य नहीं है और एक सदस्य को मंत्री बनने पर अपनी सीट छोड़ देनी चाहिए। संदर्भ संसदीय समितियाँ
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जगबीर सिंह
जगबीर सिंह (जन्म 20 फरवरी 1965) पूर्व भारतीय फील्ड हॉकी सेंटर फॉरवर्ड ने दो ओलंपिक (1988 और 1992), 1990 विश्व कप में भारत का प्रतिनिधित्व किया और सभी प्रमुख टूर्नामेंटों में भारतीय टीम का एक प्रमुख प्रकाश था, एक के लिए दो एशियाई खेलों (1986 और 1990), 1989 एशिया कप और चैंपियंस ट्रॉफी सहित, 1985-95 तक। उन्हें 1990 में भारत सरकार द्वारा हॉकी के लिए अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया, 2004 में "लक्ष्मण अवार्ड" और वर्ष 2015-16 के लिए सर्वोच्च नागरिक सम्मान "यश भारती अवार्ड" (सरकार द्वारा) उत्तर प्रदेश). मार्च 2017 में, भारत सरकार के युवा मामले और खेल मंत्रालय ने उन्हें हॉकी के लिए राष्ट्रीय पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त किया। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा जगबीर का जन्म और परवरिश आगरा में हुआ, उत्तर प्रदेश में, उनके पिता दर्शन सिंह ने भी हॉकी खेली और शहर में अखिल भारतीय ध्यानचंद टूर्नामेंट का आयोजन किया. वह गुरु गोबिंद सिंह स्पोर्ट्स कॉलेज, लखनऊ के पूर्व छात्र हैं। कैरियर अपने खेल के दिनों में 'स्ट्राइकिंग-सर्कल हत्यारे' के रूप में वर्णित, बेड़े-पैर वाले सरदार को ऑल-स्टार एशिया इलेवन का प्रतिनिधित्व करने का भी सम्मान मिला, जिसने 1990 में कुआलालंपुर में '5 महाद्वीप विश्व क्लासिक कप' जीता और विश्व के लिए खेला। मंचइंग्लैंद्बाक में 1993 में XI (मैत्रीपूर्ण मैच)। 1992-97 से जर्मन हॉकी बुंडेसलिगा 'प्रीमियर लीग में एचटीसी स्टटगार्ट किकर्स के लिए जर्मनी में खेलने वाला एकमात्र भारतीय खिलाड़ी। कोचिंग कैरियर वह 2004 के ओलंपिक में एथेंस में भारतीय पुरुष टीम के कोच थे, पाकिस्तान / स्पेन / फ्रांस के खिलाफ टेस्ट श्रृंखला और उसी वर्ष लाहौर में चैंपियंस ट्रॉफी आयोजित की गई थी। उन्होंने विभिन्न FIH कोचिंग सेमिनार और FIH के 'उन्नत कोचिंग' पाठ्यक्रमों में भाग लिया है। एफआईएच ने उन्हें 2008 में नेपाल में आयोजित ओलंपिक सॉलिडैरिटी कोचिंग प्रोग्राम के लिए कोचिंग कोर्स कंडक्टर के रूप में नियुक्त किया। वह हॉकी इंडिया लीग 2013 में जेपी पंजाब वारियर्स टीम के कोच भी हैं। मीडिया स्तंभकार और टिप्पणीकार कैरियर वे भारत के कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और क्षेत्रीय समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में हॉकी पर एक लोकप्रिय टिप्पणीकार और स्तंभकार और राय बनाने वाले के बाद एक लोकप्रिय लेखक रहे हैं। वह लगभग सभी प्रमुख प्रतियोगिताओं जैसे ओलंपिक, विश्व कप, राष्ट्रमंडल खेल, एशियाई खेल, एशिया कप, और ESPN, टेन स्पोर्ट्स, दूरदर्शन, NDTV, टाइम्स पर अन्य अंतरराष्ट्रीय और घरेलू टूर्नामेंटों में कमेंट्री और विशेषज्ञ विश्लेषण टीम का हिस्सा रहे हैं। अब, सीएनएन आईबीएन आदि। सन्दर्भ 1965 में जन्मे लोग भारतीय सिख जीवित लोग अर्जुन पुरस्कार के प्राप्तकर्ता
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A8%20%E0%A4%A6%20%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B5%E0%A5%80%202017%3A%20%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%8F%E0%A4%A1%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%B0%20%E0%A4%87%E0%A4%A8%20%E0%A4%A6%20%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%9A%E0%A5%80
डोरेमोन द मूवी 2017: ग्रेट एडवेंचर इन द अंटार्कटिका काची कोची
डोरेमोन द मूवी 2017: ग्रेट एडवेंचर इन द अंटार्कटिका काची कोची (ドラえもん のび太の南極カチコチ大冒険) एक जापानी एनिमेटेड साइंस-फिक्शन फिल्म है। यह डोरेमोन फिल्म श्रृंखला की 37वीं किस्त है। यह अत्सुशी ताकाहाशी द्वारा निर्देशित और लिखित है। इसे 4 मार्च, 2017 को जापान में रिलीज़ किया गया था। प्रसारण क्योंकि गर्म गर्मी बर्दाश्त नहीं कर सका, डोरेमोन ने नोबिता, शिज़ुका, ताकेशी और सुनियो को दक्षिण प्रशांत में तैरते हुए एक हिमखंड पर गर्मी से बचने के लिए ले लिया, बर्फ की मूर्तिकला टीम का उपयोग करके एक बर्फ मनोरंजन पार्क बनाया, और गलती से एक सुनहरा कंगन मिला, डोरेमोन ने प्रॉप्स का इस्तेमाल यह मापने के लिए किया कि 100,000 साल पहले दक्षिणी ध्रुव में सोने का ब्रेसलेट जम गया था। मामले की जांच करने के लिए, नोबिता और उसके दोस्त ध्रुवीय अभियान सूट में बदल गए और सोने के कंगन के मालिक को खोजने के लिए अंटार्कटिका गए। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%A2%E0%A4%BC%E0%A4%88
बढ़ई
बढ़ई या काष्ठकार(Carpenter) लकड़ी का काम करने वाले लोगों को कहते हैं। ये प्राचीन काल से समाज के प्रमुख अंग रहे हैं। घर व मंदिरो की आवश्यक काष्ठ की वस्तुएँ बढ़ई द्वारा बनाई जाती हैं। परिचय वैदिक काल में इनका कर्म यज्ञ पात्र बनाना, मंदिरो को बनाना, मंदिरो में मूर्ति बनाना, । भारत में वर्णव्यवस्था बहुत प्राचीन काल से चल रही है। कार्य के अनुसार ही जातियों की उत्पत्ति हुई है। जैसे लकड़ी के काम करने वाले 'बढ़ई' कहलाए। प्राचीन व्यवस्था के अनुसार बढ़ई जीवन निर्वाह के लिए वार्षिक वृत्ति पाते थे। इनको मजदूरी के रूप में विभिन्न त्योहारों पर भोजन, फसल कटने पर अनाज तथा विशेष अवसरों पर कपड़े तथा अन्य सहायता दी जाती थी। इनका परिवार काम करानेवाले घराने से आजन्म संबंधित रहता था। आवश्यकता पड़ने पर इनके अतिरिक्त कोई और व्यक्ति काम नहीं कर सकता था। पर अब नकद मजदूरी देकर कार्य कराने की प्रथा चल पड़ी है। इनके ईस्ट देव भगवन विष्णु व विश्वकर्मा है। विश्वकर्मा पूजा के शुभ अवसर पर ये अपने सभी यंत्र, औजार तथा मशीन साफ करके रखते हैं। घर की सफाई करते हैं। हवन इत्यादि करते हैं। कहते हैं, ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तथा विश्वकर्मा ने शिल्पों की। प्राचीन काल में उड़न खटोला, पुष्पक विमान, उड़नेवाला घोड़ा, बाण तथा तरकस और विभिन्न प्रकार के रथ इत्यादि का विवरण मिलता है जिससे पता चलता है कि काष्ठ के कार्य करनेवाले अत्यंत निपुण थे। इनकी कार्यकुशलता वर्तमान समय के शिल्पियों से ऊँची थी। पटना के निकट बुलंदी बाग में मौर्य काल के बने खंभे और दरवाजे अच्छी हालत में मिले है, जिनसे पता चलता है कि प्राचीन काल में काष्ठ शुष्कन तथा काष्ठ परिरक्षण निपुणता से किया जाता था। भारत के विभिन्न स्थानों पर जैसे वाराणसी में लकड़ी की खरीदी हुई वस्तुएँ, बरेली में लकड़ी के घरेलू सामान तथा मेज, कुर्सी, आलमारी इत्यादि सहारनपुर में चित्रकारीयुक्त वस्तुएँ, मेरठ तथा देहरादून में खेल के सामान, श्रीनगर में क्रिकेट के बल्ले तथा अन्य खेल के सामान, मैनपुरी में तारकशी का काम, नगीना तथा धामपुर में नक्काशी का काम, रुड़की में ज्यामितीय यंत्र, लखनऊ में विभिन्न खिलौने बनते तथा हाथीदाँत का काम होता है। वर्तमान समय में बढ़ईगीरी की शिक्षा आधुनिक ढंग से देने के लिए बरेली तथा इलाहाबाद में बड़े बड़े विद्यालय हैं, जहाँ इससे संबंधित विभिन्न शिल्पों की शिक्षा दी जाती हैं। बढ़ई आधुनिक यंत्रों के उपयोग से लाभ उठा सकें, इसके लिए गाँव गाँव में सचल विद्यालय भी खोले गए हैं। इन्हें भी देखें सुथार रथयात्रा इंद्रद्युम्न सन्दर्भ लकड़ी उत्पाद
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सूचना पुनर्प्राप्ति
सूचना पुनर्प्राप्ति (आईआर) सूचना प्रणाली संसाधनों को प्राप्त करने की गतिविधि है जो उन संसाधनों के संग्रह से एक सूचना की आवश्यकता के लिए प्रासंगिक हैं। खोज पूर्ण-पाठ या अन्य सामग्री-आधारित अनुक्रमण पर आधारित हो सकती हैं। सूचना पुनर्प्राप्ति एक दस्तावेज में जानकारी की खोज करने, स्वयं दस्तावेजों की खोज करने, और डेटा का वर्णन करने वाले मेटाडेटा, और ग्रंथों, छवियों या ध्वनियों के डेटाबेस के लिए खोज करने का विज्ञान है। सूचना अधिभार कम करने के लिए स्वचालित सूचना पुनर्प्राप्ति प्रणाली का उपयोग किया जाता है। आईआर प्रणाली एक सॉफ्टवेयर प्रणाली है जो पुस्तकों, पत्रिकाओं और अन्य दस्तावेजों तक पहुंच प्रदान करती है; उन दस्तावेज़ों को संग्रहीत और प्रबंधित करता है। वेब खोज इंजन सबसे अधिक दिखाई देने वाले आईआर अनुप्रयोग हैं। अवलोकन उपयोगकर्ता द्वारा सिस्टम में एक प्रश्न दर्ज करने पर एक सूचना पुनर्प्राप्ति प्रक्रिया शुरू होती है। क्वेरी सूचना की जरूरतों के औपचारिक विवरण हैं। सूचना पुनर्प्राप्ति में एक क्वेरी संग्रह में एक भी वस्तु की विशिष्ट पहचान नहीं करती है। इसके बजाय, कई ऑब्जेक्ट क्वेरी से मेल खा सकते हैं, शायद प्रासंगिकता के विभिन्न डिग्री के साथ। एक वस्तु एक इकाई है जिसे सामग्री संग्रह या डेटाबेस में जानकारी द्वारा दर्शाया जाता है। उपयोगकर्ता क्वेरी डेटाबेस जानकारी मिलान किया जाता हैं। हालाँकि, डेटाबेस के क्लासिक एसक्यूएल(SQL) प्रश्नों के विपरीत, सूचना पुनर्प्राप्ति में परिणाम लौटे या क्वेरी से मेल नहीं खा सकते हैं, इसलिए परिणाम आमतौर पर रैंक किए जाते हैं। परिणामों की यह रैंकिंग डेटाबेस खोज की तुलना में सूचना पुनर्प्राप्ति खोज का एक महत्वपूर्ण अंतर है। अनुप्रयोग के आधार पर डेटा ऑब्जेक्ट हो सकते हैं, उदाहरण के लिए, पाठ दस्तावेज़, चित्र, ऑडियो, मन के नक्शे या वीडियो। अक्सर दस्तावेज़ को आईआर सिस्टम में सीधे नहीं रखा या संग्रहीत नहीं किया जाता है, बल्कि दस्तावेज़ सरोगेट्स या मेटाडेटा द्वारा सिस्टम में प्रतिनिधित्व किया जाता है। अधिकांश IR सिस्टम एक संख्यात्मक स्कोर की गणना करते हैं कि डेटाबेस में प्रत्येक ऑब्जेक्ट क्वेरी से कितनी अच्छी तरह मेल खाता है, और इस मूल्य के अनुसार वस्तुओं को रैंक करता है। शीर्ष रैंकिंग ऑब्जेक्ट तब उपयोगकर्ता को दिखाए जाते हैं। यदि उपयोगकर्ता क्वेरी को परिशोधित करना चाहता है तो यह प्रक्रिया तब पुनरावृत्त हो सकती है। इतिहास 1945 में वननेवर बुश द्वारा As We May Think लेख में प्रासंगिक जानकारी के लिए खोज करने के लिए कंप्यूटर का उपयोग करने के विचार को लोकप्रिय बनाया गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि बुश 1920 के दशक में इमानुएल गोल्डबर्ग द्वारा दायर एक 'स्टैटिस्टिकल मशीन' के लिए प्रेरित हुए थे और 30 के दशक में - जिसने फिल्म पर संग्रहीत दस्तावेजों की खोज की थी। जानकारी के लिए खोज करने वाले कंप्यूटर का पहला विवरण 1948 में होल्मस्ट्रॉम द्वारा वर्णित किया गया था, यूनीवैक कंप्यूटर के प्रारंभिक उल्लेख का विवरण देते हुए। 1950 के दशक में स्वचालित सूचना पुनर्प्राप्ति प्रणाली शुरू की गई, 1957 की रोमांटिक कॉमेडी, डेस्क सेट में भी एक को चित्रित किया गया। 1960 के दशक में, कॉर्नेल में जेरार्ड सैलटन द्वारा पहली बड़ी सूचना पुनर्प्राप्ति अनुसंधान समूह का गठन किया गया था। 1970 के दशक तक कई अलग-अलग पुनर्प्राप्ति तकनीकों को क्रैनफील्ड संग्रह जैसे छोटे पाठसंग्रह पर अच्छा प्रदर्शन करने के लिए दिखाया गया था । 1992 में, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड्स एंड टेक्नोलॉजी,NIST के साथ अमेरिकी रक्षा विभाग ने TIPSTER पाठ कार्यक्रम के भाग के रूप में टेक्स्ट रिट्रीवल कॉन्फ्रेंस (TREC) को मंजूरी दी। इसका उद्देश्य बहुत बड़े पाठसंग्रह पर पाठ पुनर्प्राप्ति विधियों के मूल्यांकन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की आपूर्ति करके सूचना पुनर्प्राप्ति समुदाय को देखना था। इसने बड़े कॉर्पोरा के पैमाने पर अनुसंधानों को उत्प्रेरित किया। वेब सर्च इंजनों की शुरूआत ने बहुत बड़े पैमाने पर पुनर्प्राप्ति प्रणाली की आवश्यकता को और अधिक बढ़ावा दिया है। मॉडल के प्रकार आईआर रणनीतियों द्वारा प्रासंगिक दस्तावेजों को प्रभावी ढंग से प्राप्त करने के लिए, दस्तावेजों को आम तौर पर एक उपयुक्त प्रतिनिधित्व में बदल दिया जाता है। प्रत्येक पुनर्प्राप्ति रणनीति में इसके दस्तावेज़ प्रतिनिधित्व उद्देश्यों के लिए एक विशिष्ट मॉडल शामिल है। दाईं ओर की तस्वीर कुछ सामान्य मॉडल के रिश्ते को दर्शाती है। चित्र में, मॉडल को दो आयामों के अनुसार वर्गीकृत किया गया है: गणितीय आधार और मॉडल के गुण। पहला आयाम: गणितीय आधार सेट-थियोरेटिक मॉडल शब्दों या वाक्यांशों के समुच्चय के रूप में दस्तावेजों का प्रतिनिधित्व करते हैं। समानताएं आमतौर पर उन सेटों पर सेट-सिद्धांत संचालन से ली गई हैं। बीजगणितीय मॉडल आमतौर पर वैक्टर, मैट्रिस या ट्यूपल्स के रूप में दस्तावेजों और प्रश्नों का प्रतिनिधित्व करते हैं। क्वेरी वेक्टर और दस्तावेज़ वेक्टर की समानता को स्केलर मान के रूप में दर्शाया गया है। संभाव्य मॉडल एक संभावित संभाव्यता के रूप में दस्तावेज़ पुनर्प्राप्ति की प्रक्रिया का इलाज करते हैं। समानताओं की गणना संभाव्यता के रूप में की जाती है जो किसी दिए गए प्रश्न के लिए एक दस्तावेज प्रासंगिक है। इन मॉडलों में प्रायः बेय का सिद्धांत जैसे संभाव्य सिद्धांत का उपयोग किया जाता है। फ़ीचर-आधारित रिट्रीवल मॉडल दस्तावेज़ों को फ़ीचर फ़ंक्शंस (या सिर्फ फीचर्स) के वैक्टर के रूप में देखते हैं और इन विशेषताओं को एकल प्रासंगिकता स्कोर में संयोजित करने का सबसे अच्छा तरीका खोजते हैं, आमतौर पर रैंक विधियों को सीखकर। फ़ीचर फ़ंक्शंस दस्तावेज़ और क्वेरी के मनमाने कार्य हैं, और जैसे आसानी से लगभग किसी भी अन्य पुनर्प्राप्ति मॉडल को केवल एक अन्य सुविधा के रूप में शामिल किया जा सकता है। दूसरा आयाम: मॉडल के गुण शब्द-अंतर्निर्भरता के बिना मॉडल विभिन्न शब्दों को स्वतंत्र मानते हैं। इस तथ्य को आमतौर पर वैक्टर मॉडल में शब्द वैक्टरों की ओर्थोगोनालिटी धारणा या शब्द चर के लिए एक स्वतंत्र धारणा द्वारा संभाव्य मॉडल में दर्शाया जाता है। आसन्न अवधि के अन्योन्याश्रितताओं वाले मॉडल शर्तों के बीच अन्योन्याश्रितताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि दो शर्तों के बीच अन्योन्याश्रय की डिग्री मॉडल द्वारा ही परिभाषित की जाती है। यह आमतौर पर दस्तावेजों के पूरे सेट में उन शर्तों की सह-घटना से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्युत्पन्न होता है। ट्रान्सेंडेंट शब्द अन्योन्याश्रयता वाले मॉडल शर्तों के बीच अन्योन्याश्रितताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन वे यह आरोप नहीं लगाते हैं कि दो शर्तों के बीच अन्योन्याश्रयता कैसे परिभाषित की जाती है। वे दो शर्तों के बीच अन्योन्याश्रय की डिग्री के लिए एक बाहरी स्रोत पर भरोसा करते हैं। (उदाहरण के लिए, एक मानव या परिष्कृत एल्गोरिदम।) प्रदर्शन और शुद्धता माप सूचना पुनर्प्राप्ति प्रणाली का मूल्यांकन यह आकलन करने की प्रक्रिया है कि कोई प्रणाली अपने उपयोगकर्ताओं की सूचना की जरूरतों को कितनी अच्छी तरह से पूरा करती है। सामान्य तौर पर, माप खोजे जाने वाले दस्तावेज़ों का एक संग्रह और एक खोज क्वेरी मानता है। पारंपरिक मूल्यांकन मेट्रिक्स, जिसे बूलियन रिट्रीवल या टॉप-K रिट्रीवल के लिए डिज़ाइन किया गया है, इसमें सटीकता और रिकॉल शामिल हैं। सभी उपाय प्रासंगिकता की जमीनी सत्य धारणा मानते हैं: प्रत्येक दस्तावेज़ को किसी विशेष प्रश्न के लिए प्रासंगिक या गैर-प्रासंगिक माना जाता है। व्यवहार में, प्रश्न बीमार हो सकते हैं और प्रासंगिकता के विभिन्न शेड हो सकते हैं। प्रमुख सम्मेलन SIGIR: सूचना पुनर्प्राप्ति में अनुसंधान और विकास पर सम्मेलन ECIR: सूचना पुनर्प्राप्ति पर यूरोपीय सम्मेलन WWW: इंटरनेशनल वर्ल्ड वाइड वेब सम्मेलन ICTIR: सूचना पुनर्प्राप्ति के सिद्धांत पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन क्षेत्र में पुरस्कार टोनी केंट स्ट्रीक्स पुरस्कार जेरार्ड सल्टन पुरस्कार करेन स्पार्क जोन्स पुरस्कार यह भी देखें प्रतिकूल सूचना पुनर्प्राप्ति XML पुनर्प्राप्ति कंप्यूटर मेमोरी आँकड़ा खनन अंतरजाल खनन सूचना निकासी क्रॉस-भाषा की जानकारी पुनर्प्राप्ति सन्दर्भ अग्रिम जानकारी रिकार्डो बैजा-येट्स, बर्थिएर रिबेरो-नेटो, आधुनिक सूचना पुनर्प्राप्ति: खोज के पीछे अवधारणा और प्रौद्योगिकी (दूसरा संस्करण) एडिसन-वेस्ले, यूके, 2011 स्टीफन ब्युचर, चार्ल्स एल. ए. क्लार्क, और गॉर्डन वी. कोरमैक सूचना पुनर्प्राप्ति: कार्यान्वयन और खोज इंजन का मूल्यांकन एमआईटी प्रेस, कैम्ब्रिज, मैसाचुसेट्स, 2010 क्रिस्टोफर डी. मैनिंग, प्रभाकर राघवन, और हेनरिक शुट्ज़े सूचना पुनर्प्राप्ति का परिचय सूकैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 2008 सूचना पुनर्प्राप्ति प्राकृतिक भाषा संसाधन
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आलोचनात्मक चिन्तन
तथ्यों का वस्तुपरक विश्लेषण (objective analysis) करते हुए कोई निर्णय लेना आलोचनात्मक चिन्तन' या समीक्षात्मक चिन्तन (क्रिटिकल थिंकिंग) कहलाता है। यह विषय एक जटिल विषय है और आलोचनात्मक चिन्तन की भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ हैं जिनमें प्रायः तथ्यों का औचित्यपूर्ण, स्केप्टिकल और पक्षपातरहित विश्लेषण शामिल होता है। समीक्षात्मक चिन्तन सम्बन्धी अनुसन्धान एडवर्ड एम ग्लेसर (Edward M. Glaser) के अनुसार समीक्षात्मक चिन्तन के लिए तीन बातें जरुरी हैं- (१) व्यक्ति के समक्ष आने वाली समस्याओं और विषयों को गहराई से विचारने की प्रवृत्ति (२) तर्कपूर्ण परीक्षण और विचारणा की विधियों का ज्ञान (३) इन विधियों को लागू करने का कुछ कौशल समीक्षात्मक चिन्तन की शिक्षा शैक्षिक चिन्तकों में जॉन डिवी ने सबसे पहले पहचाना कि समीक्षात्मक चिन्तन के कौशल को बढ़ाने वाले पाठ्यक्रम से विद्यार्थियों, समाज और सम्पूर्ण लोकतंत्र को लाभ होगा। इंग्लैण्ड और वेल्श के स्कूलों में १६ से १८ वर्ष के आयुवर्ग के विद्यार्थी समीक्षात्मक चिन्तन एक विषय के रूप में ले सकते हैं। प्रभावकता सन १९९५ में उच्च शिक्षा की प्रभावकता से सम्बन्धित साहित्य का विश्लेषण करने से पता चला कि उच्च शिक्षा, उच्च शिक्षित नागरिकों की आवश्यकता की पूर्ति करने में असफल रही है। इस विश्लेषण का निष्कर्ष यह था कि यद्यपि प्राध्यापक विद्यार्थियों में चिन्तन के कौशलों को विकसित करने की इच्छा रखते हैं किन्तु वास्तविकता में वैसा नहीं हो पाता और विद्यार्थी प्रायः निम्नतम श्रेणी के चिन्तन का उपयोग करते हुए तथ्यों और कांसेप्ट को जानने का ही लक्ष्य रखते हैं। सार्वभौमिक बौद्धिक मानक समीक्षात्मक चिन्तन फाउण्डेशन के डॉ रिचर्ड पॉल और डॉ लिण्डा एल्डर ने सात बौद्धिक मानक बताये हैं जिनका उपयोग किसी समस्या, विषय या परिस्थिति से सम्बन्धित चिन्तन की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने के लिए किया जाना चाहिये। समीक्षात्मक चिन्तन के लिए इन मानकों पर प्रवीणता प्राप्त करना होगा। स्पष्टता (clarity): कोई प्रस्ताव किस प्रकार दिया जाना चाहिये, यथार्थता (accuracy): परिशुद्धता (precision) : प्रासंगिकता/उपयुक्तता/औचित्य (Relevance) : गहराई (Depth) : आयाम (Amplitude) : तर्क (Logic) क्या-क्या समीक्षात्मक चिन्तन नहीं है समीक्षात्मक चिन्तन, नकारात्मक सोच या दूसरे की गलती या दोष निकालना नहीं है। वास्तव में अपने और दूसरों के सभी रायों और कथनों का पक्षपातरहित और तटस्थ होकर मूल्यांकन करना ही समीक्षात्मक चिन्तन है। सभी लोगों को एक ही तरह की सोच बनाने का प्रयास करना समीक्षात्मक चिन्तन नहीं है। समीक्षात्मक चिन्तन का अर्थ 'अपने व्यक्तित्व को बदलना' नहीं है। किसी प्रकार का 'विश्वास' कोई समीक्षात्मक चिन्तन नहीं है। समीक्षात्मक चिन्तन, सभी 'विश्वासों' की जाँच-परख करता है, यह स्वयं 'विश्वास' नहीं है, यह एक प्रक्रिया या विधि है। समीक्षात्मक चिन्तन, अनुभूतियों या भावनाओं को कम करना या समाप्त करना नहीं है। फिर भी कुछ निर्णय, जैसे विवाह करना या बच्चे पैदा करना, जो कि भवनात्मक निर्णय है, किन्तु इनमें भी समीक्षात्मक चिन्तन करना चाहिये और अलग-अलग दृष्टिकोण से सोचना चाहिये। समीक्षात्मक चिन्तन, विशिष्ट रूप से वैज्ञानिक कार्यों का समर्थन या उनका प्रतिनिधित्व नहीं करता। यह आवश्यक नहीं है कि समीक्षात्मक चिन्तन पर आधारित तर्क सदा सबसे अधिक अनुनयात्मक (persuasive) हों। प्रायः देखने में आता है कि डर, दबाव, आवशयकता आदि साबसे मूलभूत भावनाओं का सहारा लेकर किये गये तर्क ज्यादा अनुनयात्मक होते हैं। समीक्षात्मक चिन्तन के विभिन्न चरण पहला चरण : समीक्षात्मक चिन्तक की अभिवृत्ति धारण करना दूसरा चरण : समीक्षात्मक चिन्तक के मार्ग में आने वाली बाधाओं और पक्षपात (biases) को समझना तीसरा चरण : तर्कों की पहचान करना और उनका विशिष्टीकरण (characterization) करना चौथा चरण : सूचना (जानकारी) के स्रोतों का मूल्यांकन और परीक्षण पाँचवाँ : तर्कों का मूल्यांकन तर्कों के मूल्यांकन के लिए आवशयक परीक्षण उपर्युक्त पांच चरणों को समझने के बाद समीक्षात्मक विचारक को चाहिये कि वह निम्नलिखित बातों की भी त्वरित जाँच कर ले: क्या कोई अस्पष्टता, अन्ध क्षेत्र या कमजोरियां हैं जो तर्क की मेरी समझ को अवरुद्ध करती हैं? यहाँ प्रयुक्त तर्कों में कोई दोष (fallacy) तो नहीं है? क्या भाषा अत्यन्त भावनात्मक या घुमावदर है? क्या मैंने तर्क (प्रमाण) और मान्यताओं या प्रासंगिक तथ्यों को अप्रासंगिक जानकारी, प्रस्तुत की गयी काल्पनिक स्थितियों (परिकल्पनाओं), काल्पनिक उदाहरणों या असत्यापित जानकारी से अलग किया है? क्या मैंने जाँच लिया है कि तर्क करने में प्रयुक्त कौन सी मान्यताएँ (assumptions) सही हैं और कौन नहीं? क्या मैं किसी तर्क और उसके किसी उप-तर्क के कारणों या साक्ष्यों को सूचीबद्ध कर सकता हूँ? क्या मैंने निष्कर्ष का समर्थन करने वाले साक्ष्य की सच्चाई, प्रासंगिकता, निष्पक्षता, अखंडता, पूर्णता, महत्त्व और पर्याप्तता का मूल्यांकन किया है? क्या मुझे किसी तर्क पर उचित निर्णय लेने के लिए अतिरिक्त जानकारी की आवश्यकता है? इन्हें भी देखें उच्च कोटि चिन्तन तर्कदोष (fallacies) तर्कदोषों की सूची दुष्प्रचार विचार की स्वतंत्रता स्वतंत्र विचार तर्क (argument) यूरोपीय ज्ञानोदय (Age of Enlightenment) अंतर्राष्ट्रीय दर्शन ओलंपियाड दर्शन शिक्षा आलोचनात्मक चिन्तन शिक्षा दर्शन शैक्षिक मनोविज्ञान
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पाटा
पाट (स्त्री० पाटी) अर्थात् बैठने के लिए प्रयुक्त पीढ़ा। प्रायः यह काठ का होता है किन्तु चाँदी आदि धातुओं के पात भी प्रयुक्त होते हैं। विवाह में कन्यादान के उपरांत वर के पीढ़े पर कन्या और कन्या के पीढ़े पर वर को बैठाया जाता है। बीकानेर के पाटे राजस्थान में करीब पाँच सौ वर्षों से अधिक प्राचीन एवं दीर्घ कालावधि तक परकोटे में सिमटे रहे ऐतिहासिक एवं पारम्परिक शहर बीकानेर की अपनी विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान है। जातीय आधार पर विभिन्न चौकों/गुवाडों (मौहल्लों) में आबाद इस परकोटायुक्त शहर में आकर्षण का केन्द्र है विभिन्न चौकों/गुवाडों में अथवा घरों के बाहर पाय जाने वाले ’’पाटे‘‘ (तख्त)। ’’पाटियों‘‘ (लकडी की पट्टियों) से निर्मित ’’पाटे‘‘ सामान्यतः घरों के भीतर १ बाई १ या २ बाई २ वर्गफुट से लेकर मौहल्लों में १० बाई ८ वर्गफुट के होते हैं। घरों के भीतर पाटों की बनावट एवं सुन्दरता की भिन्नता उनमें व्यक्त प्रतिष्ठा एवं सम्मान की भिन्नता के अर्थ लिये हुए होती है। अतिथियों के भोजन या आनुष्ठानिक सामग्री की थाली रखने, विवाह में दूल्हा-दुल्हन को बिठाने आदि के लिए इन पाटों का प्रयोग होता है। लकड़ी के साधारण पाटों की अपेक्षा चाँदी के कलात्मक पाटे उच्च स्तर, प्रतिष्ठा एवं सम्मान के द्योतक होते हैं। मोहल्लों में स्थित विशाल पाटे तीन प्रकार के हैं- पहला: अतीत में बीकानेर नरेश के कृपा-पात्र व्यक्तियों द्वारा निर्मित एवं स्थापित पाटे, जो उनके राजनीतिक व प्रशासनिक प्रभुत्व, सामाजिक प्रतिष्ठा, आर्थिक सम्पन्नता एवं सांस्कृतिक योगदानों के द्योतक रहे हैं। दूसरा: कतिपय जातियों द्वारा स्थापित पाटे, जो जाति विशेष की उच्च स्थिति को इंगित करने के साथ-साथ अन्तरजातीय संबंधों, जातीय सदस्यों के अन्तर्सम्बन्धों, सार्वजनिक क्रियाकलापों, अथवा गतिविधियां, दान-पुण्य की क्रियाओं आदि के केन्द्र रहे हैं। तीसरा: किसी जाति अथवा मौहल्ले में किसी प्रकार-विशेष द्वारा स्थापित पाटे जो जाति-विशेष के परिवार की प्रतिष्ठा/सम्पन्नता को दर्शाते हैं। ये पाटे पारिवारिक, वैवाहिक, जातीय, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, आनुष्ठानिक, साहित्यिक, जनसंचार आदि विभिन्न क्रियाकलापों के जटिल संकुल हैं जो आज भी अस्तित्व में हैं। परकोटायुक्त शहर बीकानेर में पाटा संस्कृति का भाग है। सामान्य जन द्वारा इस शहर के जीवन को पाटा संस्कृति कहा जाता है। पाटा संस्कृति एवं पाटों के सांस्कृतिक सन्दर्भ की व्याख्या करने से पहले संस्कृति के अर्थ एवं संस्कृति की संरचना की विवेचना करनी होगी। परकोटायुक्त शहर बीकानेर में पाटों का अभिप्राय पाटा ऐतिहासिक एवं परम्परावादी शहर बीकानेर की मौलिक विशेषता है जिसे दृश्य रूप में परकोटायुक्त शहर में जातीय आधार पर बसे विभिन्न चौकों, गुवाडों, मौहल्लों में सार्वजनिक रूप से देखा जा सकता है। सामान्य तौर पर पाटा लकड़ी या लोहे से निर्मित बैठक या चौपाल है जिस पर मौहल्ले के निवासी बैठकर अपना सुख-दुःख बाँटते हैं। लेकिन सामाजिक एवं सास्कृतिक दृष्टि से पाटा परकोटायुक्त शहर की नियामक इकाई है, जिस पर अनेक परम्पराएँ एवं रीति-रिवाज सम्पन्न होते हैं। अतः पाटों के अर्थ को दो अर्थों में स्पष्ट किया जा सकता है। पाटों का शाब्दिक अर्थ पाटा संस्कृत भाषा के शब्द से बना है जिसका अर्थ दो किनारों के बीच की दूरी अर्थात् नदियों के दो तटों के बीच में जो दूरीयाँ होती है वह पाट कहलाती है। उसी तरह दो व्यक्तियों या दो जातीयों के बीच सामाजिक समागम की सीमा निर्धारित करने वाली इकाई पाटा कहलाता है अर्थात सामान्य व विशिष्ट व्यक्तियों या उच्च व निम्न जातीयों के बीच दूरियाँ मर्यादित करने वाला स्थान पाटा कहलाता है। जो प्रारम्भ में वैचारिक था, कालान्तर में स्थानिक हो गया और भौतिक प्रतिमान के रूप में उभर कर सामने आया। लेकिन वर्तमान में यह अर्थ कमजोर होता जा रहा है। पाटों का सांस्कृतिक अर्थ पाटा संस्कृति का एक भाग है लेकिन परकोटायुक्त शहर में यह अपने-आप में संस्कृति है। साधारण बोलचाल में इस शहर की संस्कृति को पाटा संस्कृति कहा जाता है। वास्तव में पाटा भौतिक दृश्यमान वस्तु है जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है तथा मूक दर्शक के रूप में गतिहीन मगर चेतन है। लेकिन पाटों का एक सांस्कृतिक क्षेत्र है। इनसे सम्बन्धित अनेक प्रतिमान है। यह अनेक सांस्कृतिक तत्त्वों का संकुल है। इस पर जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त तक के संस्कार सम्पन्न होते हैं। धार्मिक एवं सामाजिक उत्सवों में पाटों की उपस्थिति आवश्यक है। पाटा पूर्वजों की कर्मस्थली है। तभी तो इस परकोटायुक्त शहर में ८० वर्ष की स्त्री पाटों के आगे से निकलते समय घूंघट अवश्य करती है। जबकि पाटों पर उनकी सन्तान के बराबर के व्यक्ति बैठे होते हैं। जब उस स्त्री से पूछा गया कि आपने घूंघट क्यों किया ? पाटों पर बैठे सभी व्यक्ति आपकी सन्तान तुल्य हैं तो उस औरत का उत्तर था कि पाटा हमारे दादा-ससुर व ससुर की पहचान व बैठने की जगह है। उनकी आत्मा तो पाटों पर ही रहती हैं क्योंकि उन्होंने पूरा जीवन इन्हीं पाटों पर बिताया है। इस दृष्टि से मानवशास्त्रीय अर्थ में पाटा ’’टोटम‘‘ है जो एक पवित्र वस्तु होने के साथ-साथ सामाजिक नियन्त्रण का कार्य करता है। पाटा-परम्परा का उदय/पाटों की उत्पत्ति परम्परा अमूर्त एवं अलिखित होती है। कालान्तर में लिखित साहित्य के साक्ष्य पर आधारित हो जाती है। अतः परम्परा तो शाश्वत है, जो स्वतः विकसित होती हैं और धीरे-धीरे सामाजिक विरासत व सामाजिक प्रतिमान बन जाती है। पाटा और पाटों की परम्परा की उत्पत्ति का पता लगाना एक कठिन कार्य है। ५०० वर्षों के परकोटायुक्त शहर बीकानेर के इतिहास में पाटों की उत्पत्ति के बारे में ऐतिहासिक प्रमाण खोजने के दोरान कुछ ऐतिहासिक प्रमाण मिले जिनके आधार पर पाटों की उत्पत्ति के बारे में निम्न निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं- १. कवि श्री उदयचन्द खरतरगच्छ मथेन की ’’बीकानेर गजल‘‘ १७०९ नामक रचना में नगर व बाजार वर्णन काव्य में चौक का सन्दर्भ शामिल है, जिसमें लिखा गया है कि - ’’चौहटे बिच सुन्दर चौक, गुदरी जुरत है बहु लोक, सुन्दर सेठ बैसे आय, वागे खूब अंग बणाय।।‘‘ अर्थात् बाजार के बीचोंबीच चौक (पाटे) लगे हुए हैं जिन पर सेठ-साहुकार आकर बैठते हैं और व्यापार, परिवार तथा पूरे संसार की बातें करते हैं। उसी प्रकार गोदा चौकी का भी उल्लेख इस रचना में होता है। गोदा वास्तुशास्त्री था जिसने भांडासर जैन मन्दिर का निर्माण किया और उसी की याद में परकोटायुक्त शहर के रांगडी चौक में पत्थर की सुन्दर चौकी बनाई गई है। यह चौकी सुन्दर नक्काशी के लिए उस समय प्रसिद्ध थी। यह चौकी पाटे के आकार की बनी हुई थी, शोधवेत्ता कृष्णकुमार शर्मा के अनुसार इसी चौकी पर पगौडी शैली में सात पाटे रखे जाते थे। प्रसिद्ध भांडासर जैन मन्दिर का निर्माण पगौडी शैली में ही बनाया गया है। कुद लोगों का कहना है मन्दिर का निर्माण पाटों की इस शैली को देखने के बाद किया गया तो अन्य लोगों का मत है कि वास्तुकार गोदा की याद में यह पगौडा शैली के पाटों की परम्परा प्रारम्भ की गई। पिछले १० वर्षों से एक पाटे पर सात पाटे रखने की पगौडा शैली परम्परा समाप्त हो गई है। २. बीकानेर जैन संघ का विज्ञप्ति पत्र सन् १८३८ में अजीमगंज में विराजित खतरगच्छ नामक श्री सौभाग्य सूरिजी को आमन्त्रणार्थ भेजा गया जिसमें चित्रमय बीकानेर नगर का वर्णन किया गया है। राजा के सिंहासन की जगह पाटा दर्शाया गया है। इसी प्रकार उसमें गोदैरी चौकी, बोथरा चौकी, मालुवां री चौकी का चित्रण किया गया है। रास्ते में लोगों की भीड में पाटों का चित्रण दर्शाया गया है। ३. बीकानेर के शासक जोरावरसिंह (१७४०) के शासन में मोहता दीवान बख्तावरसिंह के मकान के आगे पाटा रखा हुआ है। इसका उल्लेख हरसुदास मोहता की बही (१९०६) में मिलता है। दीवान साहब की हवेली व शान-शौकत से तत्कालीन सरदार अमरसिंह व राजा जोरावरसिंह के चचेरे भाई उनके विरोधी बन गये। बाद में दीवान बख्तावरसिंह ने अमरसिंह की जगह, उनके भाई गजसिंहजी को सन्तानहीन शासक की मृत्यु के बाद बीकानेर का शासक बनाया। इन ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर बीकानेर शहर में १७०८ से पाटों की परम्परा चलती आ रही है लेकिन लोक-मान्यताओं के आधार पर राव बीका के समय से ही पाटों की परम्परा चलती आ रही है क्योंकि शासक स्वयं पाटों पर बैठकर ही शासन चलाते थे। स्थानीय भाषा में सिंहासनासीब होने को ’’पाट बैठना‘‘ कहा जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रारम्भ में पाटे सरदारों के डेरों में लगते थे। जब राव बीका ने अपने पिता राव जोधा से राज चिह्न माँगे तो उन्होंने अपनी मृत्यु के बाद देने का वादा किया। जब उनकी मृत्यु हो गई तब उन्होंने अपने सौतेले भाई राव सूजाजी से ये चिह्न माँगे तो उन्होंने देने से मना कर दिया। तब राव बीका ने जोधपुर पर आक्रमण कर दिया और मजबूर होकर जोधपुर नरेश को वे राज चिह्न देने पडे। यह राव बीका की प्रथम राजनीतिक जीत थी। इन राजचिह्नों में छत्र, चंवर, ढाल, तलवार, कटार, नागणेचीजी देवी की अठारहभुजी मूर्ति, तख्त, करण्ड, भवरढोल, बैरीसाल नगाडा, दलसिगार घोडा और भूजाई है। जिनमें तख्त राजदरबार का पवित्र सिंहासन है। इसका आकार पाटे के समान है। जब राव बीका इस तख्त पर बैठे तब उन्होंने अपने सरदारों से कहा था कि ’’हम बैठे अपने दरबार पाट, तुम सब बैठो अपने डेरे पाट‘‘ अर्थात् आज से हम दरबार में सिंहासन पर बैठ गये हैं और तुम सब भी अपने डेरे (मकान) में सिंहासन पर बैठो। उसी दिन से पाटे डेरों के आगे लगने लगे। इसके अलावा जातीय पंचायतों की बहियों में भी पाटों की स्थापना का उल्लेख मिलता है। जैसे सूरदासाणी पंचायत की बही में सन् १८०९ में पाटों के निर्माण का उल्लेख मिलता है। लखोटियों के चौक में लखोटियों की पंचायत बही में भी पंचायत का पाटा भी १८वीं शताब्दी में मौजूद था। इस प्रकार परकोटायुक्त शहर बीकानेर में १८वीं शताब्दी से पाटों की परम्परा लोक-जीवन में चलती आ रही है। जबकि लोक-मान्यताओं के आधार पर यह ५०० वर्षों से बीकानेर में राव बीका के समय से प्रचलित है। प्रारम्भ में लकड़ी के पाटों की जगह पत्थर की चौकियाँ प्रत्येक मौहल्ले में स्थापित थी। पाटों की संख्यात्मक स्थिति परकोटायुक्त शहर बीकानेर में पाटों के समाजशास्त्रीय अध्ययन के लिए विभिन्न मौहल्ले, चौक, गुवाड में स्थित पाटों के बारे में प्राथमिक तथ्यों के संकलन हेतु पाटों पर बैठने वाले वृद्ध एवं प्रौढ उत्तरदाताओं तथा मौहल्ले के घरों में से चुने गये उत्तरदाताओं से व्यक्तिगत साक्षात्कार के दौरान निम्नलिखित जानकारियाँ प्राप्त हुई हैं- १. परकोटायुक्त शहर में वर्तमान में विभिन्न मौहल्लों में ९३ पाटे स्थित हैं। २. १९५० से पहले बीकानेर शहर में लगभग १२० पाटे स्थित थे। इस तरह वर्तमान में २७ पाटे लुप्त हो गये। ३. वर्तमान में स्थित पाटों में १४ पाटों का पुराने पाटों की जगह नवनिर्माण कराया गया है। ४. वर्तमान में ७० प्रतिशत पाटों की देखरेख जातीय पंचायत के द्वारा की जाती है। २० प्रतिशत पाटे परिवार-विशेष द्वारा तथा १० प्रतिशत पाटों की देखरेख सामूहिक रूप से की जाती है। ५. परकोटायुक्त शहर के पाटों में ९० प्रतिशत पाटे पूर्ण रूप से लकड़ी के निर्मित हैं। १० प्रतिशत पाटे लोहे के बने हैं। लेकिन पट्टियाँ लकड़ी की हैं। इनके अलावा २२ प्रतिशत पाटे कलात्मक एवं अधिक पैर (पागे) वाले हैं शेष साधारण हैं। ६. पाटों के निरीक्षण के दौरान पाया गया कि ३० प्रतिशत पाटे अत्यन्त पुराने हो गये हैं। उनकी स्थिति अत्यन्त खराब है। लम्बे समय से देखरेख के अभाव के कारण ये जर्जर अवस्था में पहुँच गये हैं। ७. परकोटायुक्त शहर के प्रत्येक हिन्दू व जैन परिवार में पाटों का उपयोग किया जाता है। ८. घरों में पाटे विभिन्न प्रकार के, जैसे चाँदी की पात वाले, कलात्मक पाटे, लकड़ी की नक्काशी वाले पाटे, सुन्दर चित्रकारी के पाटे तथा साधारण परिवार में साधारण लकड़ी के पाटे देखे गये हैं। पाटों के सांस्कृतिक एवं सामाजिक प्रकार्य परकोटायुक्त शहर के सर्वेक्षण व निरीक्षण के दौरान प्राप्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि पाटा एक जटिल सांस्कृतिक स्कूल है, जिसके अनेक स्वरूप, प्रकार्य एवं आयाम हैं। शहर बीकानेर के जीवन में पाटों की उपादेयता अपने आप में एक प्रतिमानकता हे। जिसे निम्नलिखित तथ्यगत विवरण के आधार पर स्पष्ट किया जा रहा है ः- धार्मिक कर्मकाण्ड एवं पाटे बीकानेर शहर, जिसे स्थानीय लोग धर्मनगर कहते हैं, आजादी से पहले इसी शहर को छोटा काशी भी कहते थे क्योंकि यहाँ प्रतिरोज कोई-ना-कोई धार्मिक आयोजन, जैसे यज्ञ, अनुष्ठान, कथावाचन होते रहते हैं। यहाँ जितने भी धार्मिक कर्मकाण्ड आयोजित किये जाते हैं उनकी खास पहचान पाटों की धार्मिक मान्यता एवं उनका उपयोग है। जीवन में पाटों का उपयोग हर जगह किया जाता है। चाहे मन्दिर हो या मकान या धार्मिक संस्कार, सभी जगह पाटों को पवित्र माना जाता है। क्योंकि शास्त्रों में लकडी, हवा, फल, बहता पानी व अग्नि को पवित्र माना जाता है। पाटे लकड़ी के बने होते हैं इसलिए वे धार्मिक कर्मकाण्डों में पवित्र माने जाते हैं। राजस्थानी संस्कृति
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B8%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%AE
बहामास क्रिकेट टीम
बहामास क्रिकेट टीम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में बहामास का प्रतिनिधित्व करती है। टीम, बहामास क्रिकेट एसोसिएशन द्वारा संचालित की जाती है, जो सन् 2017 में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद का एक एसोसिएट सदस्य के रूप मे चुना गया। टूर्नामेंट इतिहास विश्व कप 1975 से 1987: पात्र नहीं, आईसीसी सदस्य नहीं 1992 से 2003: पात्र नहीं, आईसीसी संबद्ध सदस्य 2007: क्वालीफाई नहीं किया विश्व क्रिकेट लीग 2008: डिवीज़न पांच: ग्यारहवें स्थान पर आईसीसी ट्रॉफी 1979 से 1986: पात्र नहीं, आईसीसी सदस्य नहीं 1990 से 2001: पात्र नहीं, आईसीसी संबद्ध सदस्य 2005: क्वालीफाई नहीं किया आईसीसी अमेरिका चैम्पियनशिप 2000: भाग नहीं लिया 2002: 5 वाँ स्थान 2004: 6 वाँ स्थान 2006: डिवीजन टू द्वितीय विजेता 2008: डिवीजन टू द्वितीय विजेता 2010: डिवीजन दो चैंपियन 2010: डिवीजन वन 6 वें स्थान पर वर्तमान खिलाड़ी ''निम्नलिखित सूची में बहामास के ये खिलाडी बरमूडा के खिलाफ 2019 को खेले थे। ग्रेगरी टेलर (कप्तान) व्हिटक्लिफ एटकिंसन जोनाथन बैरी माक्र्स बो रूडोल्फ फॉक्स डेरेक गिटेंस ग्रेगरी इरविन मार्क लेवी अल्बर्ट पीटर्स जूनियर स्कॉट ऑरलैंडो स्टुअर्ट रयान टापिन मार्क टेलर संदर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%A5
खाकी पंथ
खाकी पंथ, उत्तर भारत का एक वैष्णव पंथ जिसकी स्थापना कृष्णदास पयहारी के शिष्य कील्ह ने की थी। इस नाम के भी मूल में फारसी शब्द 'खाक' (राख, धूल) ही है। इस पंथ के लोगों का कहना है कि रामचंद्र के वन जाते समय लक्ष्मण ने अपने अंग में राख मल ली थी इससे उनका नाम खाकी पड़ा और उसी नाम को इन लोगों ने ग्रहण किया है। नवाब शुजाउद्दौला के राज्याधिकारी दयाराम ने इस पंथ का एक अखाड़ा संवत्‌ 1905 में स्थापित किया। उस समय वहाँ 150 व्यक्ति थे। तबसे वहाँ अखाड़ा कायम है और उसका संचालन एक महंत करते हैं। इस पंथ का एक दूसरा अखाड़ा रेवा काँठा स्थित लुनावाड़ा में है और उसकी एक शाखा अहमदाबाद में है। इस पंथ के लोग मिट्टी अथवा राख में रँगा वस्त्र पहनते हैं। राम, सीता और हनुमान इनके आराध्य देव हैं। ये लोग शैवो की भाँति जटा धारण करते है और शरीर में राख लपेटते हैं। इनकी धारणा है कि नदी के प्रवाह के समान साधु को सदा भ्रमणशील होना चाहिए। अत: इस पंथ के साधु कहीं एक जगह नहीं ठहरते। हिन्दुओं के सम्प्रदाय
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चंदेरी
चंदेरी (Chanderi) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के अशोक नगर ज़िले का एक ऐतिहासिक नगर है। यह इसी नाम की तहसील का मुख्यालय भी है। मालवा और बुन्देलखंड की सीमा पर बसा यह नगर शिवपुरी से १२७ किलोमीटर, ललितपुर से ३७ किलोमीटर और ईसागढ़ से लगभग ४५ किलोमीटर की दूरी पर है। बेतवा नदी के पास बसा चंदेरी पहाड़ी, झीलों और वनों से घिरा एक शांत नगर है, जहां सुकून से कुछ समय गुजारने के लिए लोग आते हैं। खंगार राजपूतों और मालवा के सुल्तानों द्वारा बनवाई गई अनेक इमारतें यहां देखी जा सकती है। इस ऐतिहासिक नगर का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। ११वीं शताब्दी में यह नगर एक महत्वपूर्ण सैनिक केंद्र था और प्रमुख व्यापारिक मार्ग भी यहीं से होकर जाते थे। वर्तमान में बुन्देलखंडी शैली में बनी हस्तनिर्मित साड़ियों के लिए चन्देरी काफी चर्चित है। यह प्राचीन जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इतिहास चंदेरी को चित्तौड़ के राणा सांगा ने सुलतान महमूद खिलजी से जीतकर अपने अधिकार में कर लिया था। लगभग सन् १५२७ में मेदिनी राय नाम के एक राजपूत सरदार ने चंदेरी में अपनी शक्ति स्थापित की। उस समय तक अवध को छोड़ सभी प्रदेशों पर मुगल शासक बाबर का प्रभुत्व स्थापित हो चुका था। फिर रुद्र प्रताप देव ने इसे जीता और बुन्देला शाशन स्थापित किया व बुन्देलखंड राज्य में शामिल कर लिया। 1857 में यंहा के बुन्देला राजा मर्दनसिंह जूदेव बहादुर ने अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। मुख्य आकर्षण चन्देरी किला यह किला चन्देरी का सबसे प्रमुख आकर्षण है। बुन्देला राजपूत राजाओं द्वारा बनवाया गया यह विशाल किला उनकी स्थापत्य कला की जीवंत मिशाल है। किले के मुख्य द्वार को खूनी दरवाजा कहा जाता है। यह किला पहाड़ी की एक चोटी पर बना हुआ है। यह पहाड़ी की चोटी नगर से 71 मीटर ऊपर है। यह मुगावली से ३८ किलोमीटर मीटर दूर है। कोशक महल इस महल को 1445 ई. में मालवा के महमूद खिलजी ने बनवाया था। यह महल चार बराबर हिस्सों में बंटा हुआ है। कहा जाता है कि सुल्तान इस महल को सात खंड का बनवाना चाहता था लेकिन मात्र ३ खंड का ही बनवा सका। महल के हर खंड में बॉलकनी, खिड़कियों की कतारें और छत की गई शानदार नक्कासियां हैं। परमेश्वर ताल इस खूबसूरत ताल को बुन्देला राजपूत राजाओं ने बनवाया था। ताल के निकट ही एक मंदिर बना हुआ है। राजपूत राजाओं के तीन स्मारक भी यहां देखे जा सकते हैं। चन्देरी नगर के उत्तर पश्चिम में लगभग आधे मील की दूरी पर यह ताल स्थित है। ईसागढ़ चन्देरी से लगभग ४५ किलोमीटर दूर ईसागढ़ तहसील के कडवाया गांव में अनेक खूबसूरत मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों में एक मंदिर दसवीं शताब्दी में कच्चापगहटा शैली में बना है। मंदिर का गर्भगृह, अंतराल और मंडप मुख्य आकर्षण है। चंदल मठ यहां का अन्य लोकप्रिय और प्राचीन मंदिर है। इस गांव में एक क्षतिग्रस्त बौद्ध मठ भी देखा जा सकता है। बूढ़ी चन्देरी ओल्ड चन्देरी सिटी को बूढ़ी नाम से जाना जाता है। 9वीं और 10वीं शताब्दी में बने जैन मंदिर यहां के मुख्य आकर्षण हैं। जिन्हें देखने हेतु हर साल बड़ी संख्या में जैन धर्म के अनुयायी आते हैं। शहजादी का रोजा यह स्मारक कुछ अनजान राजकुमारियों को समर्पित है। स्मारक के अंदरूनी हिस्से में शानदार सजावट की गई है। स्मारक की संरचना ज्यामिती से प्रभावित है। जामा मस्जिद चन्देरी में बनी जामा मस्जिद मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी मस्जिदों में एक है। मस्जिद के उठे हुए गुंबद और लंबी वीथिका काफी सुंदर हैं। देवगढ़ किला चन्देरी से 25 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व में देवगढ़ किला स्थित है। किले के भीतर 9वीं और 10 वीं शताब्दी में बने जैन मंदिरों का समूह है जिसमें प्राचीन काल की कुछ मूर्तियां देखी जा सकती हैं। किले के निकट ही 5वीं शताब्दी का विष्णु दशावतार मंदिर बना हुआ है, जो अपनी सुंदर मूर्तियों और नक्कासीदार स्तंभों के लिए जाना जाता है। आवागमन वायु मार्ग- ग्वालियर चन्देरी का निकटतम एयरपोर्ट है, जो लगभग 227 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चन्देरी पहुंचने के लिए यहां से बसों और टैक्सियों की व्यवस्था है। रेल मार्ग- अशोक नगर और ललितपुर निकटतम रेलवे स्टेशन हैं। यहां से नियमित अंतराल में बसें चन्देरी के लिए चलती हैं। सड़क मार्ग- राष्ट्रीय राजमार्ग 346 यहाँ से गुज़रता है और इसे देशभर से जोड़ता है। राज्य के अधिकांश हिस्सों से सड़क मार्ग के द्वारा चन्देरी पहुंचा जा सकता है। झांसी, ग्वालियर, टीकमगढ़ आदि शहरों से नियमित बसों की सुविधा चन्देरी के लिए उपलब्ध है। इन्हें भी देखें बेतवा नदी अशोक नगर ज़िला चन्देरी साड़ी ग्वालियर दुर्ग बाहरी कड़ियाँ ऐतिहासिक ही नहीं, वैदिक शहर भी है चंदेरी (प्रभासाक्षी) बुंदेलखंड दर्शन में चंदेरी का इतिहास श्री दिगाम्बर हैन अतिशय क्षेत्र चौबीसी बड़ा मन्दिर, चंदेरी श्री दिगाम्बर हैन अतिशय क्षेत्र चौबीसी बड़ा मन्दिर खंडरगिरि श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र थुवोंजी तूमैन सन्दर्भ अशोक नगर ज़िला मध्य प्रदेश के शहर अशोक नगर ज़िले के नगर मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्थल जैन तक्षित-शिला वास्तुकला
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अबू बक्र सिराजुद्दीन
Articles having different image on Wikidata and Wikipedia मार्टिन लिंग्स (24 जनवरी 1909 - 12 मई 2005), जिन्हें अबू बक्र सिराजुद्दीन के नाम से भी जाना जाता है, एक अंग्रेजी लेखक, इस्लामी विद्वान और दार्शनिक थे। स्विस तत्वमीमांसा फ्रिथजॉफ शुआन के एक छात्र और विलियम शेक्सपियर के काम पर एक निर्णायक थे, उन्हें पुस्तक 'मुहम्मद: हिज लाइफ बेस्ड ऑन द अर्लीस्ट सोर्सेज' के लेखक के रूप में भी जाना जाता है जो पहली बार 1983 में प्रकाशित हुई थी और अभी भी प्रिंट में है। उन्होंने 1940 में इस्लाम धर्म अपना लिया। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा लिंग्स का जन्म बर्नेज , मैनचेस्टर में 1909 में एक प्रोटेस्टेंट परिवार में हुआ था। युवा लिंग्स ने अपने पिता के रोजगार के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका में महत्वपूर्ण समय बिताते हुए, कम उम्र में यात्रा करने का परिचय प्राप्त किया। लिंग्स ने क्लिफ्टन कॉलेज [3] में भाग लिया और मैग्डेलन कॉलेज, ऑक्सफोर्ड गए , जहां उन्होंने अंग्रेजी भाषा और साहित्य में बी.ए. प्राप्त किया। मैग्डलेन में, वह एक छात्र था और फिर सीएस लुईस का करीबी दोस्त था। ऑक्सफ़ोर्ड से स्नातक करने के बाद लिंग्स लिथुआनिया में व्यातुतास मैग्नस विश्वविद्यालय गए, जहाँ उन्होंने एंग्लो-सैक्सन और मध्य अंग्रेजी पढ़ाया ऑक्सफ़ोर्ड में रहने के दौरान सबसे महत्वपूर्ण घटना रेने गुएनोन , एक फ्रांसीसी तत्वमीमांसा और मुस्लिम धर्मान्तरित फ्रिथजॉफ़ शुआन से मिलना थी। इसके बाद, लिंग्स अपने शेष जीवन के लिए शुआन के शिष्य और प्रतिपादक बने रहे। कैरियर 1939 में, लिंग काहिरा , मिस्र गए , एक दोस्त से मिलने के लिए जो रेने गुएनॉन के सहायक थे। काहिरा पहुंचने के तुरंत बाद, उनके दोस्त की मृत्यु हो गई और लिंग्स ने अरबी का अध्ययन करना शुरू कर दिया । काहिरा एक दशक से अधिक समय तक उनका घर बना रहा; वह काहिरा विश्वविद्यालय में एक अंग्रेजी भाषा के शिक्षक बने और सालाना शेक्सपियर के नाटकों का निर्माण किया। लिंग्स ने 1944 में लेस्ली स्माले से शादी की और पिरामिड के पास एक गांव में उसके साथ रहने लगे। मिस्र में आराम से बसने के बावजूद, लिंग्स को ब्रिटिश विरोधी गड़बड़ी के बाद 1952 में छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। 1948 में लिंग। यूनाइटेड किंगडम लौटने पर उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी, अरबी में बीए और स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज (लंदन विश्वविद्यालय) से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की । उनकी डॉक्टरेट थीसिस अल्जीरियाई सूफी अहमद अल-अलवी पर एक किताब बन गई। 1959 में अपने डॉक्टरेट को पूरा करने के बाद, लिंग्स ने ब्रिटिश संग्रहालय और बाद में ब्रिटिश लाइब्रेरी में काम किया, पूर्वी पांडुलिपियों और अन्य शाब्दिक कार्यों की देखरेख की, 1970-73 में ओरिएंटल मुद्रित पुस्तकों और पांडुलिपियों के रक्षक के पद तक पहुंचे। तुलनात्मक धर्म में अध्ययन पत्रिका में भी उनका लगातार योगदान रहा। इस पूरी अवधि के दौरान एक लेखक, लिंग के जीवन की अंतिम तिमाही में उत्पादन में वृद्धि हुई। जबकि अहमद अल-अलावी पर उनकी थीसिस के काम को अच्छी तरह से माना जाता था, उनका सबसे प्रसिद्ध काम मुहम्मद की जीवनी थी, जिसे 1983 में लिखा गया था, जिसने उन्हें मुस्लिम दुनिया में प्रशंसा और पाकिस्तान और मिस्र की सरकारों से पुरस्कार प्राप्त किया। इस्लामाबाद में राष्ट्रीय सीरत सम्मेलन में उनके काम को "अंग्रेजी में पैगंबर की सर्वश्रेष्ठ जीवनी" के रूप में प्रतिष्ठित किया गया था। उन्होंने बड़े पैमाने पर यात्रा करना भी जारी रखा, हालांकि उन्होंने केंट में अपना घर बना लिया था। 12 मई 2005 को उनका निधन हो गया। लिंग्स और अबू बिलाल मुस्तफा अल-कनादी नाम के एक सलाफिस्ट विद्वान ने लिंग की मुहम्मद की जीवनी के कुछ खातों के बारे में सार्वजनिक बहस की थी। एक्सचेंज सऊदी राजपत्र द्वारा प्रकाशित किया गया था। शेक्सपियर छात्रवृत्ति में उनका योगदान शेक्सपियर के नाटकों में पाए जाने वाले गहरे गूढ़ अर्थों और स्वयं शेक्सपियर की आध्यात्मिकता को इंगित करना था। शेक्सपियर पर लिंग्स की किताबों के हाल के संस्करणों में चार्ल्स, प्रिंस ऑफ वेल्स द्वारा प्रस्तावना शामिल है। अपनी मृत्यु से ठीक पहले उन्होंने इस विषय पर एक साक्षात्कार दिया था, जिसे मरणोपरांत शेक्सपियर की आध्यात्मिकता: एक परिप्रेक्ष्य फिल्म में बनाया गया था। डॉ. मार्टिन लिंग्स के साथ एक साक्षात्कार। सन्दर्भ 2005 में निधन 1909 में जन्मे लोग इस्लाम में परिवर्तित लोगों की सूची लेखक अंग्रेज़ी विकिपीडिया से अनूदित पृष्ठ विलियम शेक्सपीयर
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शिद्दत
शिद्दत वर्ष 2021 की हिन्दी फ़िल्म है जिसे कुणाल देशमुख द्वारा निर्देशित किया गया है। भूषण कुमार, कृष्ण कुमार और दिनेश विजान द्वारा उनके बैनर टी-सीरीज़ एवं मैडॉक फिल्म्स के तहत इसे निर्मित किया गया है। फिल्म में सनी कौशल, राधिका मदन, मोहित रैना और डायना पेंटी हैं। फिल्म का 1 अक्टूबर 2021 को डिज़्नी+ हॉटस्टार पर जारी किया गया था। फ़िल्म को नकारात्मक समीक्षाएँ प्राप्त हुईं। कथानक फिल्म गौतम (मोहित रैना) और ईरा (डायना पेंटी) की शादी के साथ शुरू होती है। जग्गी (सनी कौशल), अपने दोस्तों के साथ शादी की पार्टी में घुस जाता है। वहां वो बखेड़ा खड़ा करता है और फिर बाद में पकड़ा जाता है। 3 साल बाद, जग्गी अवैध रूप से सीमा पार करते हुए लंदन पहुंचना चाहता है। लेकिन उसे सीमा बल द्वारा पकड़ लिया जाता है और भारतीय दूतावास ले जाया जाता है। वहां गौतम काम करता है। जग्गी उसे समझाता है कि रिसेप्शन के दिन गौतम के भाषण से प्रेरित होकर वह ऐसा कर रहा है। वह अपने प्यार के लिए लंदन पहुंचना चाहता है। फिर तीन महीने पहले की कहानी दिखाई जाती है। जग्गी एक हॉकी खिलाड़ी था जिसकी मुलाकात कार्तिका (राधिका मदन) से होती है। दोनों शुरू में एक दूसरे के साथ झगड़ा करते हैं। लेकिन बाद में वो एक साथ समय बिताना शुरू कर देते हैं और करीब आ जाते हैं। जग्गी को पता चलता है कि उसकी शादी हो रही है। वो उसे शादी तोड़ने के लिए कहता है। तो कार्तिका उससे कहती है कि अगर उसकी भावनाएँ सच्ची हैं तो वह तीन महीने बाद लंदन आ जाएँ। ऐसा होने पे वह शादी रद्द कर देगी। जग्गी उसकी शादी होने से पहले लंदन पहुँचने के लिए अवैध रूप से यूरोपीय संघ में प्रवेश करता है। वह फ़्रांस तक पहुँच जाता है जहाँ मोहित उसे मिलता है। अब उसकी बातें सुनकर मोहित उसे ब्रिटेन पहुँचने में मदद करता है। लेकिन विमान से गिरने के बाद जग्गी की मौत हो जाती है और कार्तिका का दिल टूट जाता है। फिल्म के अंत में कार्तिका, गौतम, इरा और उनके सभी दोस्त जग्गी के जीवन का जश्न मनाते हैं। किरदार सनी कौशल — जोगिंदर ढिल्लों "जग्गी" राधिका मदन — कार्तिका भोसले मोहित रैना — गौतम सहगल डायना पेंटी — इरा शर्मा अर्जुन सिंह — केतन विधात्री बंदी — शीना गौरव अमलानी — पिंकेश गंधर्व दीवान — राणा "राणे" चौधरी चिराग मल्होत्रा — बिलाल सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ 2021 में बनी हिन्दी फ़िल्म
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रसायन विज्ञान की शब्दावली
रसायन विज्ञान के प्रयोग रासायन शास्त्र की शब्दावली में रसायन विज्ञान से सम्बंधित कुछ शब्दों और परिभाषाओं की सूची है जिसमें रासायनिक नियम, चित्र एवं सूत्र, प्रयोगशाला उपकरण, शीशे के बर्तन और अन्य उपकरण शामिल हैं। रसायन विज्ञान पदार्थ के गुणधर्मों, संरचना एवं संयोजन के साथ-साथ किसी रासायनिक अभिक्रिया के दौरान इसमें होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। इसमें बड़ी मात्रा में पारिभाषिक शब्द और पर्याप्त मात्रा में शब्दजाल शामिल है। नोट: आवर्त सारणी के सभी संदर्भ आईयूपीएसी की आवर्त सारणी की शैली को संदर्भित करते हैं। स्वर से आरम्भ होने वाले क-वर्ग से आरम्भ होने वाले च-वर्ग से आरम्भ होने वाले   ट-वर्ग से आरम्भ होने वाले  अप्रतिबिंबी त्रिविम समावयव भी। त-वर्ग से आरम्भ होने वाले प-वर्ग से आरम्भ होने वाले (dependent variable) य-व से आरम्भ होने वाले और जैसे विभिन्न पदार्थों से मिलकर बना हो।}} श-ह से आरम्भ होने वाले इन्हें भी देखें रसायन शास्त्र की रूपरेखा रसायन विज्ञान लेखों का सूचकांक रासायनिक तत्वों की सूची गणित के क्षेत्रों की शब्दावली जीव विज्ञान की शब्दावली इंजीनियरिंग की शब्दावली भौतिकी की शब्दावली सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ रासायनिक शब्दावली का IUPAC संग्रह रसायन विज्ञान शब्दावली (परिभाषा सहित) संरक्षा जोखिम रसायन शास्त्र
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माइक्रोसॉफ़्ट
माइक्रोसॉफ़्ट - विश्व की एक जानी मानी बहुराष्ट्रीय कम्पनी है जो मुख्यत: संगणक अभियान्त्रिकी के क्षेत्र में काम करती है। माइक्रोसॉफ़्ट विश्व की सबसे बड़ी सॉफ़्टवेयर कम्पनी है।माइक्रोसॉफ्ट एप्पल,एमेज़न, गूगल, और फेसबुक इंक. के साथ प्रौद्योगिकी के बिग फाइव में से एक माना जाता है । 100 से भी अधिक देशों में फैली इसकी शाखाओं में 7,00,00 से भी अधिक लोग काम करते हैं। इसका वार्षिक व्यापार लगभग 20 खरब रूपयों (~ 45 बिलियन डॉलर्स) का है। कम्पनी का मुख्यालय अमेरिका में रेडमण्ड, वॉशिंगटन में स्थित है। इसकी स्थापना बिल गेट्स ने 4 अप्रैल 1975 को हुई थी। इसका मुख्य उत्पाद विण्डोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम है। इसके अलावा माइक्रोसॉफ़्ट विभिन्न प्रकार के सॉफ़्टवेयर भी बनाती है। यह कम्प्यूटर सॉफ़्टवेयर, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, व्यक्तिगत कम्प्यूटर और सम्बन्धित सेवाओं का विकास, निर्माण, लाइसेंस, समर्थन और बिक्री करती है। इसके सबसे प्रसिद्ध सॉफ़्टवेयर उत्पाद ऑपरेटिंग सिस्टम, माइक्रोसॉफ़्ट ऑफिस सूट और इण्टरनेट एक्सप्लोरर और एज वेब ब्राउज़र के माइक्रोसॉफ़्ट विण्डोज लाइन हैं। इसके प्रमुख हार्डवेयर उत्पाद Xbox वीडियो गेम कंसोल और टचस्क्रीन पर्सनल कम्प्यूटर के Microsoft सरफेस लाइनअप हैं। 2016 में, यह राजस्व के हिसाब से विश्व की सबसे बड़ा सॉफ़्टवेयर निर्माता थी। (वर्तमान में अल्फाबेट / गूगल के पास अधिक राजस्व है)। [3] "माइक्रोसॉफ़्ट" शब्द "माइक्रो कम्प्यूटर" और "सॉफ़्टवेयर" का एक पोर्टमाण्टे है। [4] Microsoft कुल राजस्व से सबसे बड़े संयुक्त राज्य निगमों की 2018 फॉर्च्यून 500 रैंकिंग में 30 वें स्थान पर है। [5] Microsoft की स्थापना बिल गेट्स और पॉल एलन द्वारा 4 अप्रैल, 1975 को की गई थी, जिसने Altair 8800 के लिए BASIC दुभाषियों को विकसित करने और बेचने के लिए। यह 1980 के दशक के मध्य तक MS-DOS के साथ पर्सनल कंप्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम के बाजार पर हावी हो गया, Microsoft Windows के बाद । कंपनी के 1986 के आरम्भिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) और उसके शेयर की कीमत में बाद में वृद्धि ने तीन अरबपति और माइक्रोसॉफ्ट के कर्मचारियों के बीच अनुमानित 12,000 करोड़पति पैदा किए। 1990 के दशक के बाद से, इसने ऑपरेटिंग सिस्टम के बाजार से तेजी से विविधता हासिल की है और कई कॉर्पोरेट अधिग्रहण किए हैं, उनका सबसे बड़ा दिसम्बर 2016 में लिंक्डइन का अधिग्रहण $ 26.2 बिलियन में किया जा रहा है, [6] इसके बाद स्काइप टेक्नोलॉजीज का अधिग्रहण 8.5 बिलियन डॉलर में हो गया।[7] 2015 के रूप में, आईबीएम पीसी संगत ऑपरेटिंग सिस्टम बाजार और कार्यालय सॉफ्टवेयर सूट बाजार में Microsoft बाजार में अग्रणी है, हालाँकि इसने एण्ड्रॉइड के समग्र ऑपरेटिंग सिस्टम बाजार का अधिकांश हिस्सा खो दिया है।[8] कम्पनी डेस्कटॉप, लैपटॉप, टैब, गैजेट्स और सर्वरों के लिए इण्टरनेट खोज (बिंग के साथ), डिजिटल सेवा बाजार (एमएसएन के माध्यम से), मिश्रित वास्तविकता (HoloLens), क्लाउड कम्प्यूटिंग सहित अन्य उपभोक्ता और उद्यम सॉफ्टवेयर की एक विस्तृत श्रंखला का उत्पादन करती है। (एज़्योर), और सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट (विजुअल स्टूडियो)। 2000 में स्टीव बाल्मर ने गेट्स को सीईओ के रूप में प्रतिस्थापित किया, और बाद में "उपकरणों और सेवाओं" की रणनीति की कल्पना की।[९] यह 2008 में माइक्रोसॉफ़्ट द्वारा खतरे में पड़ने वाले इंकॉर्फ़ के साथ सामने आया,[10] जून 2012 में पहली बार टैबलेट कम्प्यूटरों के माइक्रोसॉफ़्ट सर्फेस लाइन के लॉन्च के साथ पर्सनल कम्प्यूटर प्रोडक्शन मार्केट में प्रवेश किया, और बाद में नोकिया के उपकरणों के अधिग्रहण के माध्यम से माइक्रोसॉफ्ट मोबाइल का निर्माण किया। और सेवा प्रभाग। चूंकि 2014 में सत्य नडेला ने सीईओ के रूप में पदभार सम्भाला था, कम्पनी ने हार्डवेयर पर वापस पैठ बना ली है और इसके बजाय क्लाउड कंप्यूटिंग पर ध्यान केन्द्रित किया है, एक कदम जिसने दिसम्बर 1999 के बाद से कम्पनी के शेयरों को अपने उच्चतम मूल्य तक पहुँचने में सहायता की।[११] [१२] 2018 में, माइक्रोसॉफ़्ट ने एप्पल इंक को 2010 में Apple द्वारा अलग किए जाने के बाद दुनिया की सबसे मूल्यवान सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली कम्पनी के रूप में पीछे छोड़ दिया। [13] अप्रैल 2019 में, माइक्रोसॉफ्ट ट्रिलियन-डॉलर मार्केट कैप पर पहुंच गया, क्रमशः Apple और Amazon के बाद $ 1 ट्रिलियन से अधिक मूल्य वाली तीसरी अमेरिकी सार्वजनिक कम्पनी बन गई। [14] Microsoft दुनिया की सबसे मूल्यवान कम्पनी है। [१५] [परिपत्र संदर्भ] अंतर्वस्तु 1 इतिहास 1.1 1972-1985: माइक्रोसॉफ्ट की स्थापना 1.2 1985–1994: विंडोज और कार्यालय 1.3 1995-2007: वेब, विंडोज 95, विंडोज एक्सपी, और एक्सबॉक्स में फ़ॉरेस्ट 1.4 2007–2011: Microsoft Azure, विंडोज विस्टा, विंडोज 7 और माइक्रोसॉफ्ट स्टोर्स 1.5 2011–2014: विंडोज 8 / 8.1, एक्सबॉक्स वन, आउटलुक डॉट कॉम और सरफेस डिवाइस 1.6 2014-वर्तमान: विंडोज 10, माइक्रोसॉफ्ट एज और होलोन्स 2 कॉर्पोरेट मामले 2.1 निदेशक मंडल 2.2 वित्तीय 2.3 विपणन 2.4 छंटनी 2.5 संयुक्त राज्य सरकार 3 कॉर्पोरेट पहचान 3.1 कॉर्पोरेट संस्कृति 3.2 पर्यावरण 3.3 मुख्यालय 3.4 फ्लैगशिप स्टोर 3.5 लोगो 3.6 प्रायोजन 4 इसे भी देखें 5 सन्दर्भ 6 बाहरी लिंक इतिहास मुख्य लेख: Microsoft का इतिहास, Microsoft की समयरेखा और Microsoft Windows संस्करण इतिहास 1972-1985: माइक्रोसॉफ्ट की स्थापना पॉल एलन और बिल गेट्स 19 अक्टूबर 1981 को कैमरे के लिए पोज़ देते हैं, जो आईबीएम के साथ एक पिवट कॉन्ट्रैक्ट साइन करने के बाद पीसी से घिरे होते हैं। [16]: 228 बचपन के दोस्त बिल गेट्स और पॉल एलन ने कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में अपने साझा कौशल का उपयोग करते हुए एक व्यवसाय बनाने की मांग की। [१ates] 1972 में उन्होंने अपनी पहली कंपनी की स्थापना की, जिसका नाम ट्राफ-ओ-डेटा था, जिसने ऑटोमोबाइल ट्रैफ़िक डेटा को ट्रैक और विश्लेषण करने के लिए एक अल्पविकसित कंप्यूटर बेचा। जबकि गेट्स ने हार्वर्ड में दाखिला लिया, एलन ने वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की, हालांकि बाद में वह हनीवेल में काम करने के लिए स्कूल से बाहर हो गए। [१]] लोकप्रिय इलेक्ट्रॉनिक्स के जनवरी 1975 के अंक में माइक्रो इंस्ट्रूमेंटेशन एंड टेलीमेट्री सिस्टम्स (एमआईटीएस) अल्टेयर 8800 माइक्रो कंप्यूटर, [19] को दिखाया गया, जिसने एलन को यह सुझाव देने के लिए प्रेरित किया कि वे डिवाइस के लिए एक बेसिक दुभाषिया का कार्यक्रम कर सकते हैं। गेट्स के एक कॉल के बाद काम करने वाले दुभाषिया होने का दावा करते हुए, MITS ने एक प्रदर्शन का अनुरोध किया। चूँकि वे अभी तक एक नहीं हुए थे, एलेन ने Altair के लिए एक सिम्युलेटर पर काम किया जबकि गेट्स ने दुभाषिया विकसित किया। हालांकि उन्होंने विकास किया एक सिम्युलेटर पर दुभाषिया और वास्तविक उपकरण नहीं, यह त्रुटिपूर्ण रूप से काम करता है जब उन्होंने मार्च 1975 में दुभाषियों को अल्बुकर्क, न्यू मैक्सिको में प्रदर्शन किया। MITS ने इसे वितरित करने पर सहमति व्यक्त की, इसे अल्टेयर बेसिक के रूप में विपणन किया। [१६]: १० 112, ११२-११४ गेट्स और एलन ने आधिकारिक तौर पर ४ अप्रैल १ ९ 1975५ को गेट्स के साथ सीईओ के रूप में माइक्रोसॉफ्ट की स्थापना की। [२०] "माइक्रो-सॉफ्ट" (माइक्रो कंप्यूटर सॉफ़्टवेयर के लिए संक्षिप्त) का मूल नाम एलन द्वारा सुझाया गया था। [२१] [२२] अगस्त 1977 में कंपनी ने जापान में ASCII मैगज़ीन के साथ एक समझौता किया, जिसके परिणामस्वरूप पहला अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय, "ASCII Microsoft" था। जनवरी 1979 में Microsoft ने अपने मुख्यालय को Bellevue, Washington में स्थानांतरित कर दिया। [20] Microsoft ने 1980 में यूनिक्स के अपने स्वयं के संस्करण के साथ ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) व्यवसाय में प्रवेश किया, जिसे Xenix कहा जाता है। [२४] हालांकि, यह एमएस-डॉस था जिसने कंपनी के प्रभुत्व को मजबूत किया। डिजिटल अनुसंधान के साथ वार्ता विफल होने के बाद, आईबीएम ने सीपीसी / एम ओएस का एक संस्करण प्रदान करने के लिए नवंबर 1980 में माइक्रोसॉफ्ट को एक अनुबंध प्रदान किया, जिसे आगामी आईबीएम पर्सनल कंप्यूटर (आईबीएम पीसी) में उपयोग करने के लिए निर्धारित किया गया था। [25] इस सौदे के लिए, माइक्रोसॉफ्ट ने सिएटल कंप्यूटर उत्पादों से 86-डॉस नामक एक सीपी / एम क्लोन खरीदा, जिसे उसने एमएस-डॉस के रूप में ब्रांड किया, हालांकि आईबीएम ने इसे आईबीएम पीसी डॉस के लिए रीब्रांड किया। अगस्त 1981 में IBM PC की रिलीज़ के बाद, Microsoft ने MS-DOS के स्वामित्व को बनाए रखा। चूंकि आईबीएम ने आईबीएम पीसी BIOS को कॉपीराइट किया था, इसलिए आईबीएम पीसी कॉम्पिटिबल्स के रूप में चलाने के लिए गैर-आईबीएम हार्डवेयर के लिए अन्य कंपनियों को इसे रिवर्स करना पड़ता था, लेकिन ऑपरेटिंग सिस्टम पर ऐसा कोई प्रतिबंध लागू नहीं था। विभिन्न कारकों के कारण, जैसे कि MS-DOS के लिए उपलब्ध सॉफ़्टवेयर चयन, Microsoft अंततः अग्रणी पीसी ऑपरेटिंग सिस्टम विक्रेता बन गया। [२६] [२ such]: २१० कंपनी १ ९ such३ में Microsoft माउस की रिलीज़ के साथ नए बाजारों में विस्तारित हुई। साथ ही साथ माइक्रोसॉफ्ट प्रेस नामक एक प्रकाशन प्रभाग के साथ। [१६]: २३२ पॉल एलन ने 1983 में हॉजकिन की बीमारी के विकास के बाद माइक्रोसॉफ्ट से इस्तीफा दे दिया। [२ publishing] एलन ने दावा किया, उनकी पुस्तक आइडिया मैन: ए मेमॉयर इन द को-फाउंडर ऑफ माइक्रोसॉफ्ट, कि गेट्स कंपनी में अपने हिस्से को पतला करना चाहते थे, जब उन्हें हॉजकिन की बीमारी का पता चला क्योंकि उन्हें नहीं लगता था कि वह काफी मेहनत कर रहे थे। [29] ] एलन ने बाद में कम-तकनीकी क्षेत्रों, खेल टीमों, वाणिज्यिक अचल संपत्ति, तंत्रिका विज्ञान, निजी अंतरिक्ष यान और बहुत कुछ में निवेश किया। 1985-1994: विंडोज और ऑफिस विंडोज 1.0 को 20 नवंबर 1985 को माइक्रोसॉफ्ट विंडोज लाइन के पहले संस्करण के रूप में जारी किया गया था अगस्त 1985 में आईबीएम के साथ संयुक्त रूप से एक नया ऑपरेटिंग सिस्टम, OS / 2 विकसित करने के बावजूद, [31] Microsoft ने Microsoft Windows, MS-DOS के लिए 20 नवंबर को एक चित्रमय एक्सटेंशन जारी किया। [16]: 242–243, 246 Microsoft 26 फरवरी, 1986 को बेलेव्यू से रेडमंड, वाशिंगटन में अपना मुख्यालय स्थानांतरित कर दिया, और 13 मार्च को सार्वजनिक हो गया, [32] जिसके परिणामस्वरूप स्टॉक में वृद्धि हुई और अनुमानित रूप से चार अरबपति और 12,000 करोड़पति Microsoft कर्मचारियों से बन गए। [33] Microsoft ने 2 अप्रैल, 1987 को मूल उपकरण निर्माताओं (ओईएम) के लिए OS / 2 का अपना संस्करण जारी किया। [16] 1990 में, आईबीएम के साथ साझेदारी के कारण, संघीय व्यापार आयोग ने संभव मिलीभगत के लिए Microsoft पर अपनी नज़र रखी, और अमेरिकी सरकार के साथ एक दशक से अधिक कानूनी संघर्ष की शुरुआत को चिह्नित किया। [34] : २४३-२४४ इस बीच, कंपनी ३२-बिट ओएस, माइक्रोसॉफ्ट विंडोज एनटी पर काम कर रही थी, जो उनके ओएस / २ कोड की कॉपी पर आधारित था। यह 21 जुलाई, 1993 को एक नए मॉड्यूलर कर्नेल और Win32 एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफ़ेस (एपीआई) के साथ, 16-बिट (MS-DOS- आधारित) विंडोज से पोर्टिंग को आसान बनाता है। एक बार जब Microsoft ने IBM के NT को सूचित कर दिया, तो OS / 2 की साझेदारी बिगड़ गई। [३५] 1990 में, Microsoft ने अपना ऑफिस सूट, Microsoft Office पेश किया। सुइट ने अलग-अलग उत्पादकता अनुप्रयोगों, जैसे कि माइक्रोसॉफ्ट वर्ड और माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल को बंडल किया। [१६]: २०२ मई २२ को, माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज ३.० को लॉन्च किया, जिसमें सुव्यवस्थित उपयोगकर्ता इंटरफ़ेस ग्राफिक्स और इंटेल ३ processor६ प्रोसेसर के लिए संरक्षित मोड क्षमता में सुधार हुआ। [३६] कार्यालय और विंडोज दोनों ही अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभावी हो गए। [३ 38] [३ domin] 27 जुलाई, 1994 को, यूएस डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस, एंटीट्रस्ट डिवीजन ने एक प्रतिस्पर्धात्मक प्रभाव स्टेटमेंट दायर किया, जिसमें कहा गया था: "1988 में शुरुआत, और 15 जुलाई 1994 तक जारी रहा, माइक्रोसॉफ्ट ने प्रति प्रोसेसर को निष्पादित करने के लिए कई ओईएम को प्रेरित किया" "लाइसेंस। प्रति प्रोसेसर लाइसेंस के तहत, एक Microsoft प्रत्येक कंप्यूटर के लिए एक रॉयल्टी का भुगतान करता है, जिसमें यह एक विशेष माइक्रोप्रोसेसर होता है, चाहे वह कंप्यूटर को Microsoft ऑपरेटिंग सिस्टम या गैर-Microsoft ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ बेचता हो। वास्तव में, रॉयल्टी भुगतान। Microsoft के लिए जब किसी Microsoft उत्पाद का उपयोग किसी प्रतिस्पर्धी पीसी ऑपरेटिंग सिस्टम के OEM के उपयोग पर जुर्माना, या कर के रूप में नहीं किया जा रहा हो, 1988 के बाद से, Microsoft का प्रति प्रोसेसर लाइसेंस का उपयोग बढ़ गया है। "[39] 1995-2007: वेब, विंडोज 95, विंडोज एक्सपी और एक्सबॉक्स में फ़ॉरे 1996 में, माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज सीई जारी किया, जो व्यक्तिगत डिजिटल सहायकों और अन्य छोटे कंप्यूटरों के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम का एक संस्करण था। 26 मई, 1995 को बिल गेट्स के आंतरिक "इंटरनेट टाइडल वेव मेमो" के बाद, Microsoft ने अपने ओ को फिर से परिभाषित करना शुरू किया कंप्यूटर नेटवर्किंग और वर्ल्ड वाइड वेब में अपनी उत्पाद लाइन का विस्तार और विस्तार करना। [४०] नेटस्केप जैसी नई कंपनियों के कुछ अपवादों के साथ, माइक्रोसॉफ्ट एकमात्र प्रमुख और स्थापित कंपनी थी जिसने शुरुआत से ही व्यावहारिक रूप से वर्ल्ड वाइड वेब का एक हिस्सा बनने के लिए पर्याप्त तेजी से काम किया। अन्य कंपनियों जैसे बोरलैंड, वर्डप्रफेक्ट, नोवेल, आईबीएम और लोटस, नई स्थिति के अनुकूल होने के लिए बहुत धीमी हैं, माइक्रोसॉफ्ट को एक बाजार का प्रभुत्व देगी। [४१] कंपनी ने 24 अगस्त, 1995 को विंडोज 95 जारी किया, जिसमें प्री-इप्टिव मल्टीटास्किंग, एक नई शुरुआत बटन के साथ पूरी तरह से नया यूजर इंटरफेस और 32-बिट संगतता थी; NT के समान, इसने Win32 API प्रदान किया। [४२] [४३]: २० विंडोज ९ ० ऑनलाइन सेवा एमएसएन के साथ बंडल आया, जो पहले इंटरनेट पर एक प्रतियोगी होने का इरादा था, [संदिग्ध - चर्चा] और (ओईएम के लिए) ) इंटरनेट एक्सप्लोरर, एक वेब ब्राउज़र। इंटरनेट एक्सप्लोरर को खुदरा विंडोज 95 बक्से के साथ बंडल नहीं किया गया था, क्योंकि टीम वेब ब्राउज़र को समाप्त करने से पहले बक्से मुद्रित किए गए थे, और इसके बजाय विंडोज 95 प्लस में शामिल किया गया था! पैक। [44] 1996 में नए बाजारों में पहुंची, माइक्रोसॉफ्ट और जनरल इलेक्ट्रिक की एनबीसी यूनिट ने एक नया 24/7 केबल न्यूज चैनल, एमएसएनबीसी बनाया। [45] Microsoft ने विंडोज़ CE 1.0 बनाया, एक नया ओएस जिसे कम मेमोरी और अन्य बाधाओं वाले उपकरणों के लिए डिज़ाइन किया गया था, जैसे व्यक्तिगत डिजिटल सहायक। [४६] अक्टूबर 1997 में, न्याय विभाग ने संघीय जिला न्यायालय में एक प्रस्ताव दायर किया, जिसमें कहा गया कि Microsoft ने 1994 में हस्ताक्षरित एक समझौते का उल्लंघन किया और अदालत से विंडोज़ के साथ इंटरनेट एक्सप्लोरर के बंडल को रोकने के लिए कहा। [16]: 323–324 Microsoft ने 2001 में कंसोल की Xbox श्रृंखला में पहली किस्त जारी की। Xbox, अपने प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में ग्राफिक रूप से शक्तिशाली है, जिसमें एक मानक पीसी का 733 मेगाहर्ट्ज इंटेल पेंटियम III प्रोसेसर है। 13 जनवरी 2000 को बिल गेट्स ने 1980 से कंपनी के पुराने दोस्त और गेट्स कंपनी के सीईओ स्टीव बाल्मर को सीईओ पद सौंप दिया, जबकि उन्होंने खुद के लिए मुख्य सॉफ्टवेयर आर्किटेक्ट के रूप में एक नया स्थान बनाया। [16]: 111, 228 [२०] माइक्रोसॉफ्ट सहित विभिन्न कंपनियों ने अक्टूबर १ ९९९ में ट्रस्टेड कंप्यूटिंग प्लेटफार्म एलायंस का गठन किया (अन्य बातों के अलावा) हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में परिवर्तन की पहचान के माध्यम से सुरक्षा बढ़ाते हैं और बौद्धिक संपदा की रक्षा करते हैं। आलोचकों ने गठबंधन को इस बात के रूप में बताया कि उपभोक्ता सॉफ्टवेयर का उपयोग कैसे करते हैं, और कंप्यूटर कैसे व्यवहार करते हैं, और डिजिटल अधिकार प्रबंधन के रूप में अंधाधुंध प्रतिबंधों को लागू करने का एक तरीका है: उदाहरण के लिए वह परिदृश्य जहां एक कंप्यूटर न केवल अपने मालिक के लिए सुरक्षित है, बल्कि सुरक्षित भी है। इसके मालिक के खिलाफ भी। [४]] [४]] 3 अप्रैल 2000 को, संयुक्त राज्य अमेरिका बनाम माइक्रोसॉफ्ट कॉर्प के मामले में एक निर्णय दिया गया था। [४ ९] कंपनी को "अपमानजनक एकाधिकार" कहना। [५०] बाद में माइक्रोसॉफ्ट ने २००४ में अमेरिकी न्याय विभाग के साथ समझौता किया। [32] 25 अक्टूबर 2001 को, Microsoft ने NT कोडबेस के तहत OS की मुख्यधारा और NT लाइनों को एकजुट करते हुए Windows XP जारी किया। [51] कंपनी ने उस साल बाद में Xbox जारी किया, जिसमें सोनी और निन्टेंडो के प्रभुत्व वाले वीडियो गेम कंसोल बाज़ार में प्रवेश किया गया। [५२] मार्च 2004 में, यूरोपीय संघ ने कंपनी के खिलाफ विरोधात्मक कानूनी कार्रवाई की, जिसमें विंडोज़ ओएस के साथ इसके प्रभुत्व का दुरुपयोग किया गया, जिसके परिणामस्वरूप € 497 मिलियन ($ 613 मिलियन) का निर्णय हुआ और माइक्रोसॉफ्ट को विंडोज मीडिया प्लेयर के साथ विंडोज एक्सपी के नए संस्करणों का उत्पादन करने की आवश्यकता हुई। : विंडोज एक्सपी होम एडिशन एन और विंडोज एक्सपी प्रोफेशनल एन। [५३] [५४] नवंबर 2005 में, कंपनी का दूसरा वीडियो गेम कंसोल, Xbox 360, जारी किया गया था। दो संस्करण थे, $ 299.99 के लिए एक मूल संस्करण और $ 399.99 के लिए एक डीलक्स संस्करण। [55] 2007–2011: Microsoft Azure, विंडोज विस्टा, विंडोज 7 और माइक्रोसॉफ्ट स्टोर्स 2008 में MIX इवेंट में CEO स्टीव बाल्मर। 2005 में अपनी प्रबंधन शैली के बारे में एक साक्षात्कार में, उन्होंने उल्लेख किया कि उनकी पहली प्राथमिकता उन लोगों को प्राप्त करना है जिन्हें वे क्रम में रखते हैं। बाल्मर ने उदाहरण के रूप में विंडोज के साथ मूल प्रयासों का हवाला देते हुए, यदि प्रारंभिक प्रयास विफल हो जाते हैं, तो भी नई तकनीकों को जारी रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। जनवरी 2007 में जारी, विंडोज, विस्टा के अगले संस्करण में, सुविधाओं, सुरक्षा और एक पुन: डिज़ाइन किए गए उपयोगकर्ता इंटरफ़ेस पर ध्यान केंद्रित किया गया, जो एयरो को डूबा हुआ था। [५ero] [५]] माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस 2007, एक ही समय में जारी किया गया, जिसमें एक "रिबन" यूजर इंटरफेस था, जो अपने पूर्ववर्तियों से एक महत्वपूर्ण प्रस्थान था। 2007 में दोनों उत्पादों की अपेक्षाकृत मजबूत बिक्री ने रिकॉर्ड लाभ कमाने में मदद की। [59] यूरोपीय संघ ने माइक्रोसॉफ्ट के 27 फरवरी, 2008 के फैसले के अनुपालन की कमी के लिए € 899 मिलियन ($ 1.4 बिलियन) का एक और जुर्माना लगाया, यह कहते हुए कि कंपनी ने अपने कार्यसमूह और बैकग्राउंड सर्वर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी के लिए प्रतिद्वंद्वियों से अनुचित मूल्य वसूला। Microsoft ने कहा कि यह अनुपालन में था और "ये जुर्माना पिछले मुद्दों के बारे में है जिन्हें हल किया गया है"। [60] सन और आईबीएम जैसी सर्वर कंपनियों के कदमों का अनुसरण करते हुए 2007 ने Microsoft में एक मल्टी-कोर यूनिट का निर्माण भी देखा। [61] गेट्स 27 जून, 2008 को मुख्य सॉफ्टवेयर वास्तुकार के रूप में अपनी भूमिका से सेवानिवृत्त हुए, एक निर्णय जून 2006 में घोषित किया गया, जबकि अन्य पॉज़िटियो को बरकरार रखा गया। धित ns। [62] [63] विंडोज के लिए क्लाउड कंप्यूटिंग बाजार में कंपनी की एज़्योर सर्विसेज प्लेटफ़ॉर्म, 27 अक्टूबर 2008 को लॉन्च हुई। [64] 12 फरवरी, 2009 को, Microsoft ने Microsoft-ब्रांडेड खुदरा स्टोरों की एक श्रृंखला खोलने के अपने इरादे की घोषणा की, और 22 अक्टूबर, 2009 को स्कॉटलैंड, एरिज़ोना में पहला खुदरा Microsoft स्टोर खोला; उसी दिन विंडोज 7 आधिकारिक तौर पर जनता के लिए जारी किया गया था। विंडोज 7 का ध्यान विस्टा को आसानी से उपयोग करने की विशेषताओं और प्रदर्शन में वृद्धि के साथ परिष्कृत करने पर था, बजाय विंडोज के एक व्यापक कार्यकारी के। [६५] [६६] [६]]। जैसा कि 2007 में स्मार्टफोन उद्योग में उछाल आया था, Microsoft ने आधुनिक स्मार्टफोन ऑपरेटिंग सिस्टम प्रदान करने में अपने प्रतिद्वंद्वियों Apple और Google के साथ बनाए रखने के लिए संघर्ष किया था। परिणामस्वरूप, 2010 में माइक्रोसॉफ्ट ने अपने पुराने फ्लैगशिप मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम विंडोज मोबाइल को नया विंडोज फोन ओएस के साथ बदल दिया। Microsoft ने सॉफ़्टवेयर उद्योग के लिए एक नई रणनीति लागू की जिसमें उन्हें स्मार्टफोन निर्माताओं, जैसे कि नोकिया के साथ और अधिक निकटता से काम करना था, और विंडोज फोन ओएस का उपयोग करके सभी स्मार्टफोन में एक सुसंगत उपयोगकर्ता अनुभव प्रदान करना था। इसने एक नई उपयोगकर्ता इंटरफ़ेस डिज़ाइन भाषा का उपयोग किया, जिसका नाम "मेट्रो" था, जिसमें न्यूनतम आकार की अवधारणा का उपयोग करते हुए सरल आकृतियों, टाइपोग्राफी और आइकनोग्राफी को प्रमुखता से इस्तेमाल किया गया था। Microsoft 23 मार्च 2011 को शुरू हुई ओपन नेटवर्किंग फाउंडेशन का एक संस्थापक सदस्य है। फेलो संस्थापक गूगल, एचपी, याहू, !, वेरिजॉन कम्युनिकेशंस, ड्यूश टेलीकॉम और 17 अन्य कंपनियां थीं। यह गैर-लाभकारी संगठन सॉफ्टवेयर-परिभाषित नेटवर्किंग नामक एक नई क्लाउड कंप्यूटिंग पहल के लिए सहायता प्रदान करने पर केंद्रित है। [68] यह पहल दूरसंचार नेटवर्क, वायरलेस नेटवर्क, डेटा केंद्र और अन्य नेटवर्किंग क्षेत्रों में सरल सॉफ्टवेयर परिवर्तनों के माध्यम से नवाचार को गति देने के लिए है। [६ ९] 2011–2014: विंडोज 8 / 8.1, एक्सबॉक्स वन, आउटलुक डॉट कॉम और सरफेस डिवाइस भूतल प्रो 3, माइक्रोसॉफ्ट द्वारा लैपलेट्स की सरफेस श्रृंखला का हिस्सा विंडोज फोन के विमोचन के बाद, माइक्रोसॉफ्ट ने निगम के लोगो, उत्पादों, सेवाओं और वेबसाइटों के साथ-साथ मेट्रो डिजाइन भाषा के सिद्धांतों और अवधारणाओं को अपनाने के साथ 2011 और 2012 के दौरान अपने उत्पाद रेंज का क्रमिक पुन: संचालन किया। [70] जून 2011 में ताइपे में माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज 8, एक ऑपरेटिंग सिस्टम का अनावरण किया, जो पर्सनल कंप्यूटर और टैबलेट कंप्यूटर दोनों को बिजली देने के लिए बनाया गया था। [71] एक डेवलपर पूर्वावलोकन 13 सितंबर को जारी किया गया था, जिसे बाद में 29 फरवरी, 2012 को उपभोक्ता पूर्वावलोकन द्वारा बदल दिया गया और मई में जनता के लिए जारी किया गया। [72] 18 जून को द सरफेस का अनावरण किया गया, जो कंपनी के इतिहास का पहला ऐसा कंप्यूटर बन गया, जिसमें उसका हार्डवेयर Microsoft द्वारा बनाया गया था। [73] 74] 25 जून को, Microsoft ने सोशल नेटवर्क यमर को खरीदने के लिए US $ 1.2 बिलियन का भुगतान किया। [75] 31 जुलाई को, उन्होंने Gmail से प्रतिस्पर्धा करने के लिए Outlook.com वेबमेल सेवा शुरू की। [76] 4 सितंबर 2012 को, माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज सर्वर 2012 जारी किया। [77] जुलाई 2012 में, Microsoft ने एमएसएनबीसी में अपनी 50% हिस्सेदारी बेच दी, जिसे उसने 1996 से एनबीसी के साथ एक संयुक्त उद्यम के रूप में चलाया था। [78] 1 अक्टूबर को, माइक्रोसॉफ्ट ने न्यूज ऑपरेशन, एक नए रूप वाले एमएसएन का हिस्सा लॉन्च करने की घोषणा की, जिसमें बाद में महीने में विंडोज 8 था। 26 अक्टूबर 2012 को, माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज 8 और माइक्रोसॉफ्ट सरफेस लॉन्च किया। [74] [80] तीन दिन बाद, विंडोज फोन 8 लॉन्च किया गया। [81] उत्पादों और सेवाओं की मांग में वृद्धि की संभावना का सामना करने के लिए, Microsoft ने 2012 में खुलने वाले "ईंटों-और-मोर्टार" Microsoft स्टोरों की बढ़ती संख्या के पूरक के लिए अमेरिका भर में कई "हॉलिडे स्टोर" खोले। [82] 29 मार्च 2013 को, Microsoft ने एक पेटेंट ट्रैकर लॉन्च किया। [83] अगस्त 2012 में, न्यूयॉर्क सिटी पुलिस विभाग ने डोमेन अवेयरनेस सिस्टम के विकास के लिए Microsoft के साथ एक साझेदारी की घोषणा की, जिसका उपयोग न्यूयॉर्क शहर में पुलिस निगरानी के लिए किया जाता है। [84] Xbox One कंसोल, 2013 में रिलीज़ किया गया Kinect, Microsoft द्वारा बनाया गया एक मोशन-सेंसिंग इनपुट डिवाइस है और वीडियो गेम कंट्रोलर के रूप में डिज़ाइन किया गया है, जिसे पहली बार नवंबर 2010 में पेश किया गया था, इसे 2013 में Xbox One वीडियो गेम कंसोल के रिलीज़ के लिए अपग्रेड किया गया था। मई 2013 में किनेक्ट की क्षमताओं का पता चला: एक अल्ट्रा-वाइड 1080p कैमरा, अंधेरे में एक इन्फ्रारेड सेंसर, हाई-एंड प्रोसेसिंग पावर और नए सॉफ्टवेयर के कारण काम करना, बारीक मूवमेंट्स के बीच अंतर करने की क्षमता (जैसे अंगूठा मूवमेंट), और उनके चेहरे को देखकर उपयोगकर्ता की हृदय गति निर्धारित करना। [rate५] Microsoft ने 2011 में एक पेटेंट आवेदन दायर किया था जो बताता है कि निगम काइनेट कैमरा सिस्टम का उपयोग कर सकता है ताकि देखने के अनुभव को और अधिक इंटरैक्टिव बनाने के लिए एक योजना के हिस्से के रूप में टेलीविजन दर्शकों के व्यवहार की निगरानी कर सके। 19 जुलाई 2013 को, चौथी तिमाही के बाद रिपोर्ट में निवेशकों के बीच विंडोज 8 और सर्फेस टैबलेट दोनों के खराब प्रदर्शन पर चिंता व्यक्त की गई थी, Microsoft स्टॉक ने वर्ष 2000 के बाद से अपनी सबसे बड़ी एक दिवसीय प्रतिशत बिक्री को बंद कर दिया। Microsoft को 32 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ। [86] जुलाई 2013 में परिपक्व पीसी व्यवसाय के अनुरूप, माइक्रोसॉफ्ट ने घोषणा की करेगा, अर्थात् ऑपरेटिंग सिस्टम, ऐप्स, क्लाउड और डिवाइसेस। पिछले सभी विभाजनों को बिना किसी कार्यबल में कटौती के नए प्रभागों में भंग कर दिया जाएगा। [be be] 3 सितंबर, 2013 को, माइक्रोसॉफ्ट ने एमी हुड को सीएफओ की भूमिका निभाने के बाद नोकिया की मोबाइल इकाई को $ 7 बिलियन [88] में खरीदने पर सहमति व्यक्त की। [89] 2014-वर्तमान: विंडोज 10, माइक्रोसॉफ्ट एज और होलोन्स सत्य नडेला ने फरवरी 2014 में स्टीव बाल्मर को माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ के रूप में कामयाबी दिलाई 4 फरवरी, 2014 को, स्टीव बाल्मर ने माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ के रूप में कदम रखा और सत्य नडेला द्वारा सफल रहे, जिन्होंने पहले माइक्रोसॉफ्ट के क्लाउड और एंटरप्राइज डिवीजन का नेतृत्व किया। [90] उसी दिन, बिल गेट्स के स्थान पर जॉन डब्ल्यू। थॉम्पसन ने अध्यक्ष की भूमिका निभाई, जिन्होंने प्रौद्योगिकी सलाहकार के रूप में भाग लेना जारी रखा। [91] थॉमसन माइक्रोसॉफ्ट के इतिहास में दूसरे अध्यक्ष बने। [92] 25 अप्रैल, 2014 को, Microsoft ने 7.2 बिलियन डॉलर में नोकिया डिवाइसेस एंड सर्विसेज का अधिग्रहण किया। [93] इस नई सहायक कंपनी का नाम बदलकर Microsoft Mobile Oy कर दिया गया। [94] 15 सितंबर 2014 को, Microsoft ने वीडियो गेम डेवलपमेंट कंपनी Mojang का अधिग्रहण किया, जो कि Minecraft के लिए $ 2.5 बिलियन के लिए जाना जाता है। 8 जून, 2017 को, Microsoft ने $ 100 मिलियन के लिए एक इजरायली सुरक्षा फर्म Hexadite का अधिग्रहण किया। [96] [97] 21 जनवरी 2015 को, Microsoft ने अपने पहले इंटरएक्टिव व्हाइटबोर्ड, Microsoft सरफेस हब की घोषणा की। [98] 29 जुलाई 2015 को, विंडोज 10 को जारी किया गया, [99] अपने सर्वर सिबलिंग के साथ, विंडोज सर्वर 2016, सितंबर 2016 में जारी किया गया। Q1 2015 में, Microsoft मोबाइल फोन का तीसरा सबसे बड़ा निर्माता था, जिसने 33 मिलियन यूनिट (7.2%) बेची सब)। जबकि उनमें से एक बड़ा बहुमत (कम से कम 75%) विंडोज फोन के किसी भी संस्करण को नहीं चलाता है - उन अन्य फोन को गार्टनर द्वारा स्मार्टफोन के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है - एक ही समय सीमा में 8 मिलियन विंडोज स्मार्टफोन (सभी स्मार्टफोन का 2.5%) बनाया गया था सभी निर्माताओं द्वारा (लेकिन ज्यादातर Microsoft द्वारा)। [१००] जनवरी 2016 में अमेरिकी स्मार्टफोन बाजार में Microsoft की हिस्सेदारी 2.7% थी। [101] 2015 की गर्मियों के दौरान कंपनी ने अपने मोबाइल-फोन व्यवसाय से संबंधित 7.6 बिलियन डॉलर खो दिए, जिससे 7,800 कर्मचारियों को निकाल दिया गया। [102] 1 मार्च 2016 को, Microsoft ने अपने पीसी और Xbox डिवीजनों के विलय की घोषणा की, फिल स्पेंसर ने घोषणा की कि यूनिवर्सल विंडोज प्लेटफॉर्म (UWP) ऐप्स भविष्य में Microsoft के गेमिंग के लिए ध्यान केंद्रित करेंगे। [103] 24 जनवरी, 2017 को, Microsoft ने लंदन में BETT 2017 शिक्षा प्रौद्योगिकी सम्मेलन में शिक्षा के लिए इंट्यून का प्रदर्शन किया। [104] शिक्षा के लिए Intune शिक्षा क्षेत्र के लिए एक नया क्लाउड-आधारित अनुप्रयोग और डिवाइस प्रबंधन सेवा है। [१०५] मई 2016 में, कंपनी ने घोषणा की कि वह 1,850 कर्मचारियों की छंटनी कर रहा है, और $ 950 मिलियन का एक हानि और पुनर्गठन शुल्क ले रहा है। [102] जून 2016 में, Microsoft ने Microsoft Azure Information Protection नामक एक परियोजना की घोषणा की। इसका उद्देश्य उद्यमों को अपने डेटा को सुरक्षित रखने में मदद करना है क्योंकि यह सर्वर और उपकरणों के बीच चलता है। [१०६] नवंबर 2016 में, माइक्रोसॉफ्ट लिनक्स कनेक्ट के दौरान प्लेटिनम सदस्य के रूप में लिनक्स फाउंडेशन में शामिल हो गया; न्यूयॉर्क में डेवलपर घटना। [१० in] प्रत्येक प्लेटिनम सदस्यता की लागत प्रति वर्ष 500,000 अमेरिकी डॉलर है। [108] कुछ विश्लेषकों ने इस अकल्पनीय को दस साल पहले माना था, हालांकि 2001 में तब के सीईओ स्टीव बाल्मर ने लिनक्स को "कैंसर" कहा था। Microsoft ने "आने वाले हफ्तों में" शिक्षा के लिए Intune का पूर्वावलोकन शुरू करने की योजना बनाई है, जो कि स्प्रिंग 2017 के लिए सामान्य उपलब्धता के साथ निर्धारित है, इसकी कीमत $ 30 प्रति डिवाइस या वॉल्यूम लाइसेंसिंग समझौतों के माध्यम से है। [110] नोकिया लूमिया 1320, माइक्रोसॉफ्ट लूमिया 535 और नोकिया लूमिया 530, जो सभी अब बंद किए गए विंडोज फोन ऑपरेटिंग सिस्टम में से एक पर चलते हैं। जनवरी 2018 में, माइक्रोसॉफ्ट ने इंटेल के मेल्टडाउन सुरक्षा उल्लंघन से संबंधित सीपीयू समस्याओं के लिए विंडोज 10 को पैच किया। पैच इंटेल के CPU आर्किटेक्चर पर निर्भर Microsoft Azure वर्चुअल मशीनों के साथ समस्याओं का कारण बना। 12 जनवरी को, Microsoft ने MacOS और लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए PowerShell Core 6.0 जारी किया। [111] फरवरी 2018 में, Microsoft ने अपने विंडोज फोन उपकरणों के लिए अधिसूचना समर्थन को मार दिया, जिसने बंद किए गए उपकरणों के लिए फर्मवेयर अपडेट को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया। [111] मार्च 2018 में, माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज 10 एस को एक अलग और अद्वितीय ऑपरेटिंग सिस्टम के बजाय विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए एक मोड में बदलने के लिए याद किया। मार्च में कंपनी ने दिशानिर्देश भी स्थापित किए जो Office 365 के उपयोगकर्ताओं को निजी दस्तावेजों में अपवित्रता का उपयोग करने से रोकते हैं। [१११] अप्रैल 2018 में, Microsoft ने कार्यक्रम की 20 वीं वर्षगांठ मनाने के लिए MIT लाइसेंस के तहत विंडोज फ़ाइल प्रबंधक के लिए स्रोत कोड जारी किया। अप्रैल में कंपनी ने आगे चलकर लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम के अपने व्युत्पन्न के रूप में Azure क्षेत्र की घोषणा करके खुले स्रोत की पहल को अपनाने की इच्छा व्यक्त की। [१११] मई 2018 में, Microsoft ने अमेरिकी नागरिकों को ट्रैक करने वाले उत्पादों को विकसित करने के लिए 17 अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के साथ भागीदारी की। परियोजना को "एज़ुर सरकार" करार दिया गया है और इसमें संयुक्त उद्यम रक्षा अवसंरचना (जेईडीआई) निगरानी कार्यक्रम है। [१११] 4 जून, 2018 को, Microsoft ने आधिकारिक तौर पर $ 7.5 बिलियन के लिए GitHub के अधिग्रहण की घोषणा की, जो कि क्लो icrosoft ने जनता के लिए सरफेस गो प्लेटफॉर्म का खुलासा किया। बाद में महीने में इसने माइक्रोसॉफ्ट टीम्स को ग्रिटिस में बदल दिया। [111] अगस्त 2018 में, Microsoft ने Microsoft AccountGuard और Defending Democracy नामक दो प्रोजेक्ट जारी किए। इसने एआरएम वास्तुकला पर विंडोज 10 के लिए स्नैपड्रैगन 850 संगतता का भी अनावरण किया। [114] [115] [111] सितंबर 2016 में Microsoft HoloLens मिश्रित वास्तविकता हेडसेट का उपयोग कर अपोलो 11 अंतरिक्ष यात्री बज़ एल्ड्रिन अगस्त 2018 में, टोयोटा त्सुशो ने जल प्रबंधन से संबंधित इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) प्रौद्योगिकियों के लिए Microsoft Azure एप्लिकेशन सूट का उपयोग करके मछली पालन उपकरण बनाने के लिए Microsoft के साथ साझेदारी शुरू की। किंडई विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा भाग में विकसित, पानी पंप तंत्र कृत्रिम बुद्धि का उपयोग करके एक कन्वेयर बेल्ट पर मछलियों की संख्या की गणना करते हैं, मछली की संख्या का विश्लेषण करते हैं, और मछली द्वारा प्रदान किए गए डेटा से पानी के प्रवाह की प्रभावशीलता को कम करते हैं। प्रक्रिया में उपयोग किए जाने वाले विशिष्ट कंप्यूटर प्रोग्राम Azure Machine Learning और Azure IoT Hub प्लेटफार्मों के अंतर्गत आते हैं। [११६] सितंबर 2018 में, माइक्रोसॉफ्ट ने स्काइप क्लासिक को बंद कर दिया। [111] 10 अक्टूबर, 2018 को, Microsoft 60,000 से अधिक पेटेंट रखने के बावजूद ओपन इन्वेंशन नेटवर्क समुदाय में शामिल हो गया। [117] नवंबर 2018 में, Microsoft ने संयुक्त राज्य अमेरिका के सैन्य को 100,000 "शत्रु से पहले पता लगाने, निर्णय लेने और संलग्न करने की क्षमता को बढ़ाकर" घातकता को बढ़ाने के लिए Microsoft HoloLens हेडसेट की आपूर्ति करने पर सहमति व्यक्त की। Microsoft Azure के लिए कारक प्रमाणीकरण [119] दिसंबर 2018 में, Microsoft ने Microsoft सरफेस और हाइपर- V उत्पादों में उपयोग किए गए यूनिफाइड एक्स्टेंसिबल फ़र्मवेयर इंटरफ़ेस (UEFI) कोर के एक ओपन सोर्स रिलीज़ प्रोजेक्ट म्यू की घोषणा की। परियोजना एक सेवा के रूप में फर्मवेयर के विचार को बढ़ावा देती है। [१२०] उसी महीने, माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज फॉर्म और विंडोज प्रेजेंटेशन फाउंडेशन (डब्ल्यूपीएफ) के ओपन सोर्स कार्यान्वयन की घोषणा की, जो कंपनी के आगे के आंदोलन के लिए विंडोज डेस्कटॉप एप्लिकेशन और सॉफ्टवेयर विकसित करने में उपयोग किए जाने वाले महत्वपूर्ण फ्रेमवर्क की पारदर्शी रिलीज की अनुमति देगा। दिसंबर में कंपनी ने अपने ब्राउज़र के लिए क्रोमियम बैकएंड के पक्ष में Microsoft एज प्रोजेक्ट को बंद कर दिया। [११ ९] 20 फरवरी, 2019 Microsoft कॉर्प ने कहा कि वह अपनी साइबर सुरक्षा सेवा की पेशकश करेगा जर्मनी, फ्रांस और स्पेन सहित यूरोप के 12 नए बाजारों में सुरक्षा घेरा बंद करने और ग्राहकों को हैकिंग से राजनीतिक स्थान में सुरक्षा प्रदान करने के लिए। फरवरी 2019 में, सैकड़ों Microsoft कर्मचारियों ने संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना के लिए आभासी वास्तविकता हेडसेट विकसित करने के लिए 480 मिलियन डॉलर के अनुबंध से कंपनी के युद्ध का विरोध किया। [122] निगमित मामलों इसे भी देखें: Microsoft की आलोचना; चीन में इंटरनेट सेंसरशिप; और गले लगाओ, विस्तार करो, और बुझाओ निदेशक मंडल कंपनी का संचालन निदेशक मंडल द्वारा किया जाता है, जो ज्यादातर कंपनी बाहरी लोगों से बना होता है, जैसा कि सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली कंपनियों के लिए प्रथागत है। जनवरी 2018 तक निदेशक मंडल के सदस्य बिल गेट्स, सत्या नडेला, रीड हॉफमैन, ह्यूग जॉनसन, टेरी लिस्ट-स्टोल, चार्ल्स नोस्की, हेल्मुट पैंके, सैंडी पीटरसन, पेनी प्रिट्जकर, चार्ल्स श्राफ, अर्ने सोरेनसन, जॉन डब्ल्यू स्टैंटनन हैं। , जॉन डब्ल्यू। थॉम्पसन और पद्मश्री योद्धा। [123] बोर्ड के सदस्य हर साल बहुमत के वोट सिस्टम का उपयोग करते हुए वार्षिक शेयरधारकों की बैठक में चुने जाते हैं। बोर्ड के भीतर पाँच समितियाँ हैं जो अधिक विशिष्ट मामलों की देखरेख करती हैं। इन समितियों में लेखा परीक्षा समिति शामिल है, जो लेखा परीक्षा और रिपोर्टिंग सहित कंपनी के साथ लेखांकन मुद्दों को संभालती है; मुआवजा समिति, जो कंपनी के सीईओ और अन्य कर्मचारियों के मुआवजे को मंजूरी देती है; वित्त समिति, जो विलय और अधिग्रहण के प्रस्ताव जैसे वित्तीय मामलों को संभालती है; शासन और नामांकन समिति, जो बोर्ड के नामांकन सहित विभिन्न कॉर्पोरेट मामलों को संभालती है; और एंटीट्रस्ट कम्प्लायंस कमेटी, जो कंपनी प्रथाओं को विरोधाभासी कानूनों का उल्लंघन करने से रोकने का प्रयास करती है। [१२४] वित्तीय NASDAQ का पांच साल का इतिहास ग्राफ: 17 जुलाई 2013 को MSFT स्टॉक [125] जब Microsoft ने सार्वजनिक किया और 1986 में अपनी आरंभिक सार्वजनिक पेशकश (IPO) लॉन्च की, तो स्टॉक की शुरुआती कीमत $ 21 थी; कारोबारी दिन के बाद, मूल्य $ 27.75 पर बंद हुआ। जुलाई 2010 तक, कंपनी के नौ स्टॉक विभाजन के साथ, किसी भी आईपीओ शेयरों को 288 से गुणा किया जाएगा; अगर कोई आज आईपीओ खरीदता है, तो स्प्लिट्स और अन्य कारकों को देखते हुए, इसकी कीमत लगभग 9 सेंट होगी। [१६]: २३५-२३६ [१२६] [१२]] १ ९९९ में स्टॉक की कीमत लगभग $ ११ ९ ($ ६०.९ २,) पर पहुंच गई, जिसके लिए समायोजन किया गया। विभाजन)। [128] कंपनी ने 16 जनवरी, 2003 को लाभांश की पेशकश शुरू की, जिसके बाद वित्त वर्ष के लिए प्रति शेयर आठ सेंट शुरू हुआ और उसके बाद आने वाले वर्ष में प्रति शेयर सोलह सेंट का लाभांश था, जो 2005 में वार्षिक तिमाही से बढ़कर आठ सेंट प्रति शेयर था। तिमाही और वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही के लिए प्रति शेयर तीन डॉलर का एक विशेष भुगतान। [१२]] [१२ ९] हालांकि कंपनी ने बाद में लाभांश भुगतान में वृद्धि की थी, माइक्रोसॉफ्ट के स्टोक की कीमत स्टैंडर्ड एंड पूअर्स एंड मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस, दोनों ने माइक्रोसॉफ्ट को एएए रेटिंग दी है, जिसकी संपत्ति असुरक्षित ऋण में केवल 8.5 बिलियन डॉलर की तुलना में 41 बिलियन डॉलर थी। नतीजतन, फरवरी 2011 में Microsoft ने सरकारी बॉन्ड की तुलना में अपेक्षाकृत कम उधार दरों के साथ 2.25 बिलियन डॉलर की राशि का कॉर्पोरेट बॉन्ड जारी किया। [११ February] 20 साल में पहली बार Apple इंक ने Q1 2011 में Microsoft को पीछे छोड़ दिया और पीसी की बिक्री में मंदी और Microsoft के ऑनलाइन सर्विसेज डिवीजन (जिसमें इसका सर्च इंजन बिंग शामिल है) में भारी नुकसान जारी है। Microsoft का मुनाफा 5.2 बिलियन डॉलर था, जबकि Apple Inc. का मुनाफा क्रमशः $ 14.5 बिलियन और $ 24.7 बिलियन के राजस्व पर $ 6 बिलियन था। [82] Microsoft का ऑनलाइन सेवा प्रभाग 2006 से लगातार घाटे में चल रहा है और Q1 2011 में इसने 726 मिलियन डॉलर का नुकसान किया। यह वर्ष 2010 के लिए $ 2.5 बिलियन का नुकसान है। [133] 20 जुलाई 2012 को, माइक्रोसॉफ्ट ने तिमाही और वित्त वर्ष के लिए रिकॉर्ड राजस्व अर्जित करने के बावजूद अपना पहला त्रैमासिक घाटा पोस्ट किया, विज्ञापन कंपनी एवेन्यू से संबंधित एक रिटेन के कारण $ 492 मिलियन का शुद्ध घाटा हुआ, जिसे $ 6.2 बिलियन का अधिग्रहण किया गया था। 2007 में वापस। [134] जनवरी 2014 तक, Microsoft का बाजार पूंजीकरण $ 314B था, [135] जो इसे बाजार पूंजीकरण द्वारा दुनिया की 8 वीं सबसे बड़ी कंपनी बना रहा था। [136] 14 नवंबर, 2014 को, Microsoft ने एक्सॉनमोबिल को बाजार पूंजीकरण द्वारा दूसरी सबसे मूल्यवान कंपनी बनने के लिए पछाड़ दिया, केवल Apple Inc. के पीछे। इसका कुल बाजार मूल्य $ 410B से अधिक था - शेयर की कीमत $ 50.04 प्रति शेयर के साथ, 2000 की शुरुआत से उच्चतम। [137] 2015 में, रॉयटर्स ने बताया कि Microsoft कॉर्प की विदेश में कमाई $ 76.4 बिलियन थी जो आंतरिक राजस्व सेवा द्वारा अप्रभावित थे। अमेरिकी कानून के तहत, निगमों को विदेशी मुनाफे पर आयकर का भुगतान नहीं करना है, जब तक कि लाभ संयुक्त राज्य अमेरिका में नहीं लाया जाता है। [१३]] वर्ष राजस्व सैन्य में। यूएस $ [१३ ९] शुद्ध आय सैन्य में। यूएस $ [१३ ९] कुल संपत्ति सैन्य में। यूएस $ [139] कर्मचारियों [139] 2005 39.788 12.254 70.815 61.000 2006 44.282 12.599 69.597 71.000 2007 51.122 14.065 63.171 79.000 2008 60.420 17.681 72.793 91.000 2009 58.437 14.569 77.888 93.000 2010 62.484 18.760 86.113 89.000 2011 69.943 23.150 108.704 90.000 2012 73.723 16.978 121.271 94.000 2013 77.849 21.863 142.431 99.000 2014 86.833 22.074 172.384 128.000 2015 93.580 12.193 174.472 118.000 2016 91.154 20.539 193.468 114.000 2017 96.571 25.489 250.312 124.000 2018 110.360 16.571 258.848 131.000 2019 125.843 39.240 286.556 144,106 नवंबर 2018 में, कंपनी ने अमेरिकी सैनिकों के साथ अमेरिकी सैनिकों के हथियार प्रदर्शनों की सूची में संवर्धित वास्तविकता (एआर) हेडसेट प्रौद्योगिकी लाने के लिए $ 480 मिलियन का सैन्य अनुबंध जीता। बोली प्रक्रिया का वर्णन करने वाले दस्तावेज के अनुसार, दो साल के अनुबंध के परिणामस्वरूप 100,000 से अधिक हेडसेट्स के फॉलो-ऑन ऑर्डर हो सकते हैं। संवर्धित वास्तविकता प्रौद्योगिकी के लिए अनुबंध की टैग लाइनों में से एक "पहली लड़ाई से पहले 25 रक्तहीन लड़ाई" को सक्षम करने की अपनी क्षमता प्रतीत होती है, यह सुझाव देते हुए कि वास्तविक मुकाबला प्रशिक्षण संवर्धित वास्तविकता हेडसेट क्षमताओं का एक अनिवार्य पहलू होने जा रहा है। [140] विपणन 25 अक्टूबर, 2012 को अकिहबारा, टोक्यो में विंडोज 8 लॉन्च इवेंट 2004 में, Microsoft ने अनुसंधान फर्मों को लिनक्स पर विंडोज सर्वर 2003 के स्वामित्व (TCO) की कुल लागत की तुलना में स्वतंत्र अध्ययन करने के लिए कमीशन किया; फर्मों ने निष्कर्ष निकाला कि कंपनियों ने लिनक्स की तुलना में विंडोज को प्रशासित करना आसान पाया, इस प्रकार विंडोज का उपयोग करने वाले लोग अपनी कंपनी (यानी निचला टीसीओ) के लिए कम लागत के परिणामस्वरूप तेजी से प्रशासित करेंगे। [141] इससे संबंधित अध्ययनों की एक लहर चली; यांकी ग्रुप के एक अध्ययन के निष्कर्ष में कहा गया है कि विंडोज सर्वर के एक संस्करण से दूसरे में अपग्रेड करने से विंडोज सर्वर से लिनक्स पर स्विच करने की लागत का एक हिस्सा खर्च होता है, हालांकि सर्वेक्षण में कंपनियों ने लिनक्स सर्वरों की बढ़ती सुरक्षा और विश्वसनीयता पर ध्यान दिया और माइक्रोसॉफ्ट के उपयोग में बंद होने के बारे में चिंता व्यक्त की। उत्पादों। [142] ओपन सोर्स डेवलपमेंट लैब्स द्वारा जारी एक अन्य अध्ययन में दावा किया गया कि Microsoft अध्ययन "बस आउटडेटेड और वन साइडेड" थे और उनके सर्वेक्षण ने निष्कर्ष निकाला कि लिनक्स के TCO लिनक्स प्रशासकों के औसत और अन्य कारणों से अधिक सर्वर का प्रबंधन करने के कारण कम था। [ 143] "तथ्यों को प्राप्त करें" अभियान के भाग के रूप में, Microsoft ने .NET फ्रेमवर्क ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर प्रकाश डाला, जो उसने लंदन स्टॉक एक्सचेंज के लिए एक्सेंचर की साझेदारी में विकसित किया था, यह दावा करते हुए कि उसने "पांच निंस" विश्वसनीयता प्रदान की है। विस्तारित डाउनटाइम और अविश्वसनीयता से पीड़ित होने के बाद [१४४] [१४५] लंदन स्टॉक एक्सचेंज ने २०० ९ में घोषणा की कि वह अपने Microsoft समाधान को छोड़ने और २०१० में एक लिनक्स-आधारित स्विच करने की योजना बना रहा है। [१४६] [१४]] 2012 में, माइक्रोसॉफ्ट ने मार्क पेन नामक एक राजनीतिक पोलस्टर को काम पर रखा, जिसे न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने राजनीतिक विरोधियों [148] को कार्यकारी उपाध्यक्ष, विज्ञापन और रणनीति के रूप में "बुलडोज़र के लिए प्रसिद्ध" कहा। पेन ने Microsoft के प्रमुख प्रतियोगियों में से एक, Google को लक्षित करते हुए कई नकारात्मक विज्ञापन बनाए। विज्ञापन, " le, Google के सशुल्क विज्ञापनदाताओं के पक्ष में धांधली करने वाले खोज परिणामों के साथ" पेंच "कर रहा है, जो Gmail अपने उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता का उल्लंघन करता है, ताकि उनके ईमेल और खरीदारी के परिणामों से संबंधित विज्ञापन परिणाम प्राप्त हो सकें Google उत्पाद। TechCrunch जैसे तकनीकी प्रकाशन विज्ञापन अभियान के अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं, [149] जबकि Google कर्मचारियों ने इसे अपनाया है। [150] छंटनी मुख्य लेख: Microsoft की आलोचना जुलाई 2014 में, Microsoft ने 18,000 कर्मचारियों को बंद करने की योजना की घोषणा की। Microsoft ने 5 जून 2014 तक 127,104 लोगों को रोजगार दिया, जिससे इसके कार्यबल में लगभग 14 प्रतिशत की कमी आई, क्योंकि यह अब तक का सबसे बड़ा Microsoft था। इसमें 12,500 पेशेवर और कारखाने के कर्मचारी शामिल थे। इससे पहले, Microsoft ने 2008–2017 के महान मंदी के अनुरूप 2009 में 5,800 नौकरियों को समाप्त कर दिया था। [151] [152] सितंबर 2014 में, माइक्रोसॉफ्ट ने सिएटल-रेडमंड क्षेत्र में 747 लोगों सहित 2,100 लोगों को रखा, जहां कंपनी का मुख्यालय है। पहले की घोषणा की गई छंटनी की दूसरी लहर के रूप में फायरिंग आई। इसने 18,000 अपेक्षित कटौती में से 15,000 को कुल संख्या में लाया। [153] अक्टूबर 2014 में, Microsoft ने बताया कि यह लगभग 18,000 कर्मचारियों को खत्म करने के साथ किया गया था, जो इसकी सबसे बड़ी छंटनी थी। [154] जुलाई 2015 में, Microsoft ने अगले कई महीनों में 7,800 नौकरियों में कटौती की घोषणा की। [155] मई 2016 में, Microsoft ने (Nokia) मोबाइल फोन डिवीजन में 1,850 नौकरियों में कटौती की घोषणा की। नतीजतन, कंपनी लगभग $ 950 मिलियन के एक हानि और पुनर्गठन शुल्क को रिकॉर्ड करेगी, जिसमें से लगभग $ 200 मिलियन विच्छेद भुगतान से संबंधित होंगे। [156] संयुक्त राज्य सरकार मुख्य लेख: Microsoft की आलोचना Microsoft फिक्स के सार्वजनिक रिलीज़ से पहले संयुक्त राज्य सरकार की खुफिया एजेंसियों को अपने सॉफ़्टवेयर में सूचना दी बग के बारे में जानकारी प्रदान करता है। Microsoft के एक प्रवक्ता ने कहा है कि निगम कई कार्यक्रम चलाता है जो अमेरिकी सरकार के साथ ऐसी जानकारी साझा करने की सुविधा प्रदान करते हैं। [157] मई 2013 में, PRISM, NSA के विशाल इलेक्ट्रॉनिक निगरानी कार्यक्रम के बारे में मीडिया रिपोर्टों के बाद, कई प्रौद्योगिकी कंपनियों को प्रतिभागियों के रूप में पहचाना गया, जिसमें Microsoft भी शामिल था। [158] उक्त कार्यक्रम के लीक के अनुसार, Microsoft 2007 में PRISM कार्यक्रम में शामिल हुआ। [159] हालाँकि, जून 2013 में, Microsoft के एक आधिकारिक बयान ने कार्यक्रम में उनकी भागीदारी से इनकार कर दिया: "हम ग्राहक डेटा केवल तभी प्रदान करते हैं जब हम ऐसा करने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी आदेश या उप-प्राप्त करते हैं, और स्वैच्छिक आधार पर कभी नहीं। इसके अलावा हम कभी भी केवल विशिष्ट खातों या पहचानकर्ताओं के बारे में आदेशों का पालन करते हैं। यदि सरकार के पास व्यापक स्वैच्छिक राष्ट्रीय है। ग्राहक डेटा इकट्ठा करने के लिए सुरक्षा कार्यक्रम, हम इसमें भाग नहीं लेते हैं। "[160] 2013 में पहले छह महीनों के दौरान, Microsoft को 15,000 और 15,999 खातों के बीच प्रभावित होने वाले अनुरोध मिले थे। [161] दिसंबर 2013 में, कंपनी ने इस तथ्य को और अधिक बल देने के लिए बयान दिया कि वे अपने ग्राहकों की गोपनीयता और डेटा सुरक्षा को बहुत गंभीरता से लेते हैं, यहां तक ​​कि यह भी कहते हैं कि "सरकारी स्नूपिंग संभावित रूप से" उन्नत लगातार खतरा है, "परिष्कृत मैलवेयर और साइबर हमलों के साथ"। [162] वक्तव्य ने माइक्रोसॉफ्ट के एन्क्रिप्शन और पारदर्शिता प्रयासों को बढ़ाने के लिए तीन-भाग कार्यक्रम की शुरुआत को भी चिह्नित किया। 1 जुलाई 2014 को, इस कार्यक्रम के एक भाग के रूप में उन्होंने (बहुत से) माइक्रोसॉफ्ट ट्रांसपेरेंसी सेंटर खोले, जो "हमारे प्रमुख उत्पादों के लिए स्रोत कोड की समीक्षा करने की क्षमता के साथ भाग लेने वाली सरकारें प्रदान करता है, अपने सॉफ़्टवेयर अखंडता का आश्वासन देता है, और वहां पुष्टि करता है। कोई "बैक डोर" नहीं हैं। [१६३] माइक्रोसॉफ्ट ने यह भी तर्क दिया है कि उपभोक्ता डेटा की सुरक्षा के लिए संयुक्त राज्य कांग्रेस को मजबूत गोपनीयता नियम बनाने चाहिए। [१६४] अप्रैल 2016 में, कंपनी ने अमेरिकी सरकार पर मुकदमा दायर किया, यह तर्क देते हुए कि गोपनीयता आदेश कंपनी को ग्राहकों और कंपनी के अधिकारों के उल्लंघन में वारंट का खुलासा करने से रोक रहे थे। Microsoft ने तर्क दिया कि Microsoft द्वारा उपयोगकर्ताओं को यह सूचित करने से रोकना कि सरकार उनके ईमेल और अन्य दस्तावेजों का अनुरोध करने के लिए अनिश्चित काल के लिए असंवैधानिक थी, और चौथा संशोधन ने इसे बना दिया ताकि लोगों को या व्यवसायों को यह जानने का अधिकार था कि क्या सरकार खोजती है या जब्त करती है उनकी संपत्ति। 23 अक्टूबर, 2017 को, Microsoft ने कहा कि यह यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ़ जस्टिस (DoJ) द्वारा एक नीति परिवर्तन के परिणामस्वरूप मुकदमा छोड़ देगा। DoJ ने "इंटरनेट उपयोगकर्ताओं को उनकी जानकारी तक पहुंचने वाली एजेंसियों के बारे में सचेत करने के लिए डेटा अनुरोध नियमों को बदल दिया था।" कॉर्पोरेट पहचान कॉर्पोरेट संस्कृति डेवलपर्स के लिए तकनीकी संदर्भ और विभिन्न Microsoft पत्रिकाओं जैसे Microsoft सिस्टम्स जर्नल (MSJ) के लिए तकनीकी संदर्भ Microsoft डेवलपर नेटवर्क (MSDN) के माध्यम से उपलब्ध हैं। MSDN भी कंपनियों और व्यक्तियों के लिए सदस्यता प्रदान करता है, और अधिक महंगी सदस्यता आमतौर पर Microsoft सॉफ़्टवेयर के पूर्व-रिलीज़ बीटा संस्करणों तक पहुँच प्रदान करती है। [165] [166] अप्रैल 2004 में माइक्रोसॉफ्ट ने लॉन्च किया उपयोगकर्ताओं के लिए एक सामुदायिक साइट, जिसका शीर्षक चैनल 9 है, जो विकि और इंटरनेट मंच प्रदान करता है। [१६]] 3 मार्च 2006 को लॉन्च की गई एक और सामुदायिक साइट, जो दैनिक वीडियोज़ और अन्य सेवाएं प्रदान करती है, On10.net। [168] नि: शुल्क तकनीकी सहायता पारंपरिक रूप से ऑनलाइन यूज़नेट न्यूज़ग्रुप्स के माध्यम से प्रदान की जाती है, और अतीत में कंपूवेर, Microsoft कर्मचारियों द्वारा निगरानी की जाती है; किसी एकल उत्पाद के लिए कई समाचार समूह हो सकते हैं। Microsoft सर्वाधिक मूल्यवान व्यावसायिक (MVP) स्थिति के लिए सहकर्मी या Microsoft कर्मचारियों द्वारा मददगार लोगों का चुनाव किया जा सकता है, जो उन्हें पुरस्कार और अन्य लाभों के लिए विशेष सामाजिक स्थिति और संभावनाओं के एक प्रकार की ओर आकर्षित करता है। [१६ ९] इसकी आंतरिक व्याख्या के लिए, अभिव्यक्ति "अपने कुत्ते के भोजन को खाने" का उपयोग Microsoft के अंदर उत्पादों के पूर्व-रिलीज़ और बीटा संस्करणों का उपयोग करने की नीति का वर्णन करने के लिए किया जाता है, ताकि वे "वास्तविक दुनिया" स्थितियों में परीक्षण कर सकें। [170] यह आमतौर पर सिर्फ "कुत्ते के भोजन" के लिए छोटा किया जाता है और इसे संज्ञा, क्रिया और विशेषण के रूप में उपयोग किया जाता है। शब्दजाल, FYIFV या FYIV ("भाड़ में जाओ तुम, मैं [पूरी तरह से] निहित हूं") का एक और प्रयोग, एक कर्मचारी द्वारा यह इंगित करने के लिए किया जाता है कि वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं और वे जब चाहें काम से बच सकते हैं। [171] कंपनी को अपनी भर्ती प्रक्रिया के लिए भी जाना जाता है, अन्य संगठनों में नकल की और "माइक्रोसॉफ्ट साक्षात्कार" को डब किया, जो ऑफ-द-वॉल सवालों के लिए कुख्यात है जैसे "मैनहोल कवर राउंड क्यों?" [172] Microsoft H-1B वीजा पर टोपी का एक मुखर प्रतिद्वंद्वी है, जो अमेरिकी कंपनियों को कुछ विदेशी श्रमिकों को रोजगार देने की अनुमति देता है। बिल गेट्स का दावा है कि H1B वीज़ा पर कैप को कंपनी के लिए कर्मचारियों को नियुक्त करना मुश्किल हो जाता है, 2005 में "मुझे निश्चित रूप से H1B कैप से छुटकारा मिलेगा"। [173] एच 1 बी वीजा के आलोचकों का तर्क है कि सीमा को कम करने से एच 1 बी श्रमिकों के कम वेतन पर काम करने के कारण अमेरिकी नागरिकों के लिए बेरोजगारी बढ़ जाएगी। [174] ह्यूमन राइट्स कैम्पेन कॉर्पोरेट इक्वैलिटी इंडेक्स, एलजीबीटी कर्मचारियों के प्रति कंपनी की नीतियों को कितना प्रगतिशील बताता है, की एक रिपोर्ट ने 2002 से 2004 तक माइक्रोसॉफ्ट को 87% और 2005 से 2010 तक 100% रेटिंग दी, जब उन्होंने लिंग अभिव्यक्ति की अनुमति दी। [175] अगस्त 2018 में, Microsoft ने सभी कंपनियों के लिए एक नीति लागू की, जो प्रत्येक कर्मचारी को 12 सप्ताह का भुगतान माता-पिता की छुट्टी के लिए आवश्यक थी। यह 2015 से पूर्व आवश्यकता पर विस्तार करता है और प्रत्येक वर्ष 15 दिनों के भुगतान की छुट्टी और बीमार अवकाश की आवश्यकता होती है। [176] 2015 में, Microsoft ने जन्म देने वाले माता-पिता के लिए अतिरिक्त 8 सप्ताह के साथ माता-पिता की छुट्टी के लिए 12 सप्ताह की छूट देने के लिए अपनी स्वयं की अभिभावकीय अवकाश नीति की स्थापना की। [177] वातावरण 2011 में, ग्रीनपीस ने अपने डेटा केंद्रों के लिए बिजली के स्रोतों पर क्लाउड कंप्यूटिंग में शीर्ष दस बड़े ब्रांडों की एक रिपोर्ट जारी की। उस समय, डेटा केंद्र सभी वैश्विक बिजली का 2% तक उपभोग करते थे और इस राशि को बढ़ाने का अनुमान था। ग्रीनपीस के फिल रेडफोर्ड ने कहा, "हम चिंतित हैं कि बिजली के उपयोग में यह नया विस्फोट हमें आज उपलब्ध स्वच्छ ऊर्जा के बजाय पुराने, प्रदूषणकारी ऊर्जा स्रोतों में बंद कर सकता है," [178] और "अमेज़ॅन, माइक्रोसॉफ्ट और सूचना के अन्य नेताओं को बुलाया। -टेक्नॉलॉजी उद्योग को अपने क्लाउड-आधारित डेटा केंद्रों को बिजली देने के लिए स्वच्छ ऊर्जा को ग्रहण करना चाहिए। "[179] 2013 में, Microsoft ने अपने एक डेटा सेंटर को पावर देने के लिए एक टेक्सास विंड प्रोजेक्ट द्वारा उत्पादित बिजली खरीदने पर सहमति व्यक्त की। [180] ग्रीनपीस की गाइड टू ग्रीनर इलेक्ट्रॉनिक्स (16 वें संस्करण) में Microsoft को 17 वें स्थान पर रखा गया है, जो विषाक्त रसायनों, रीसाइक्लिंग और जलवायु परिवर्तन पर अपनी नीतियों के अनुसार 18 इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं को रैंक करता है। [181] सभी उत्पादों में ब्रोमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेंट (बीएफआर) और फोथलेट्स को चरणबद्ध करने के लिए माइक्रोसॉफ्ट की समयरेखा 2012 है लेकिन पीवीसी को चरणबद्ध करने के लिए इसकी प्रतिबद्धता स्पष्ट नहीं है। जनवरी 2011 तक, इसमें ऐसे उत्पाद नहीं हैं जो पीवीसी और बीएफआर से पूरी तरह मुक्त हैं। [182] 2008 में माइक्रोसॉफ्ट के मुख्य यूएस कैंपस को लीडरशिप इन एनर्जी एंड एनवायर्नमेंटल डिज़ाइन (LEED) प्रोग्राम से सिल्वर सर्टिफिकेशन मिला, और इसकी सिलिकॉन वैली कैंपस में इसकी बिल्डिंगों के ऊपर 2,000 से अधिक सोलर पैनल लगे, जिससे कुल ऊर्जा का लगभग 15 प्रतिशत उत्पन्न हुआ। अप्रैल 2005 में सुविधाओं के अनुसार। [183] माइक्रोसॉफ्ट पारगमन के वैकल्पिक रूपों का उपयोग करता है। इसने दुनिया के सबसे बड़े निजी बस सिस्टम में से एक, "कनेक्टर" को कंपनी के बाहर से लोगों को लाने के लिए बनाया; ऑन-कैंपस परिवहन के लिए, "शटल कनेक्ट" ईंधन बचाने के लिए हाइब्रिड कारों के एक बड़े बेड़े का उपयोग करता है। कंपनी साउंड ट्रांजिट और किंग काउंटी मेट्रो द्वारा प्रोत्साहन के रूप में प्रदान किए गए क्षेत्रीय सार्वजनिक परिवहन को भी सब्सिडी देती है। [१3३] [१izes३] हालांकि फरवरी 2010 में, Microsoft ने स्टेट रूट 520 के लिए अतिरिक्त सार्वजनिक परिवहन और उच्च-अधिभोग वाहन (HOV) लेन को जोड़ने के खिलाफ एक कदम उठाया और इसका फ्लोटिंग ब्रिज रेडमंड को सिएटल से जोड़ता है; कंपनी निर्माण में और देरी नहीं करना चाहती थी। [१ to५] 2011 में ग्रेट प्लेस टू वर्क इंस्टीट्यूट द्वारा विश्व के सर्वश्रेष्ठ बहुराष्ट्रीय कार्यस्थलों की सूची में Microsoft को नंबर 1 स्थान दिया गया था। [183] मुख्यालय Microsoft रेडमंड परिसर का पश्चिम परिसर कॉर्पोरेट मुख्यालय, जिसे अनौपचारिक रूप से Microsoft Redmo के रूप में जाना जाता है टन में वन माइक्रोसॉफ्ट वे पर स्थित है। Microsoft शुरू में 26 फरवरी, 1986 को परिसर के मैदान में चला गया था। कंपनी 13 मार्च को सार्वजनिक हुई थी। मुख्यालय की स्थापना के बाद से कई विस्तार हुए हैं। यह अनुमानित रूप से 8 मिलियन ft2 (750,000 m2) कार्यालय स्थान और 30,000-40,000 कर्मचारियों से अधिक है। [187] अतिरिक्त कार्यालय बेलव्यू और इस्साक्वा, वाशिंगटन (दुनिया भर में 90,000 कर्मचारी) में स्थित हैं। कंपनी अपने माउंटेन व्यू, कैलिफोर्निया, कैंपस को भव्य पैमाने पर अपग्रेड करने की योजना बना रही है। कंपनी ने 1981 से इस परिसर पर कब्जा कर रखा है। 2016 में, कंपनी ने 32-एकड़ परिसर खरीदा, जिसमें 25% की मरम्मत और विस्तार करने की योजना थी। [188] Microsoft शार्लोट, उत्तरी कैरोलिना में एक पूर्वी तट मुख्यालय का संचालन करता है। [१ headquarters ९] फ्लैगशिप स्टोर माइक्रोसॉफ्ट के टोरंटो फ्लैगशिप स्टोर 26 अक्टूबर 2015 को, कंपनी ने न्यूयॉर्क शहर में फिफ्थ एवेन्यू पर अपना खुदरा स्थान खोला। स्थान में पांच मंजिला ग्लास स्टोरफ्रंट है और यह 22,270 वर्ग फुट है। [190] कंपनी के अधिकारियों के अनुसार, Microsoft 2009 से एक प्रमुख स्थान की तलाश में था। [191] कंपनी के खुदरा स्थान अपने उपभोक्ताओं के साथ संबंध बनाने में मदद करने के लिए एक बड़ी रणनीति का हिस्सा हैं। स्टोर की शुरुआत सरफेस बुक और सरफेस प्रो 4 के लॉन्च के साथ हुई। [192] 12 नवंबर, 2015 को माइक्रोसॉफ्ट ने सिडनी के पिट स्ट्रीट मॉल में स्थित एक दूसरा प्रमुख स्टोर खोला। [193] प्रतीक चिन्ह Microsoft ने 1987 में स्कॉट बेकर द्वारा डिजाइन किए गए तथाकथित "पीएसी-मैन लोगो" को अपनाया। बेकर ने कहा "हेल्वेटिका इटैलिक टाइपफेस में नया लोगो, ओ और एस के बीच एक स्लैश है जो" नरम "भाग पर जोर देता है।" नाम और संदेश गति और गति। "[१ ९ ४] डेव नॉरिस ने पुराने लोगो को बचाने के लिए एक आंतरिक मजाक अभियान चलाया, जो हरे रंग में था, सभी अपरकेस में, और एक काल्पनिक पत्र O को चित्रित किया, जिसमें ब्लिबेट का उपनाम दिया गया था, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया था। [१ ९ ५ ९] ] टैगलाइन के साथ Microsoft का लोगो "आपकी क्षमता। हमारा जुनून।" - मुख्य कॉर्पोरेट नाम के नीचे - 2008 में उपयोग किए गए एक नारा Microsoft पर आधारित है। 2002 में, कंपनी ने संयुक्त राज्य में लोगो का उपयोग करना शुरू कर दिया और आखिरकार नारा के साथ एक टेलीविजन अभियान शुरू किया, जो "आप कहाँ हैं" की पिछली टैगलाइन से बदल गया है आज जाना चाहते हैं? "[१ ९ ६] [१ ९ 19] [१ ९ the] २०१० में निजी एमजीएक्स (माइक्रोसॉफ्ट ग्लोबल एक्सचेंज) सम्मेलन के दौरान, माइक्रोसॉफ्ट ने कंपनी की अगली टैगलाइन" बी वॉट्स नेक्स्ट "का अनावरण किया। [१ ९९] उन्होंने एक नारा भी दिया था / टैगलाइन "यह सब समझ में आता है।" [200] 23 अगस्त 2012 को, Microsoft ने बोस्टन में अपने 23 वें Microsoft स्टोर के उद्घाटन पर एक नए कॉर्पोरेट लोगो का अनावरण किया, जो कंपनी की क्लासिक शैली से टाइल-केंद्रित आधुनिक इंटरफ़ेस पर ध्यान केंद्रित करने का संकेत देता है, जिसका उपयोग विंडोज पर करता है / उपयोग करेगा फ़ोन प्लेटफ़ॉर्म, Xbox 360, विंडोज 8 और आगामी कार्यालय सूट [201] नए लोगो में तत्कालीन वर्तमान विंडोज लोगो के रंगों के साथ चार वर्ग भी शामिल हैं जिनका उपयोग Microsoft के चार प्रमुख उत्पादों: विंडोज (नीला), कार्यालय (लाल), Xbox (हरा) और बिंग (पीला) का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया गया है। [202] ] लोगो विंडोज़ 95 के विज्ञापनों में से एक के उद्घाटन से मिलता जुलता है। [203] [204] Microsoft लोगो इतिहास 1975-1980: 1975 में पहला माइक्रोसॉफ्ट लोगो   1980-1982: 1980 में दूसरा माइक्रोसॉफ्ट लोगो   1982-1987: 1982 में तीसरा माइक्रोसॉफ्ट लोगो   1987–2012: माइक्रोसॉफ्ट "पीएसी-मैन" लोगो, जिसे स्कॉट बेकर द्वारा डिज़ाइन किया गया था और 1987 से 2012 [196] [197] तक उपयोग किया गया था   2012-वर्तमान: पाँचवाँ Microsoft लोगो, 23 अगस्त 2012 को पेश किया गया [205] प्रायोजन कंपनी यूरोस्केट 2015 में फिनलैंड की राष्ट्रीय बास्केटबॉल टीम की आधिकारिक जर्सी प्रायोजक थी। [206 उत्पाद और सेवाएँ ऑपरेटिंग सिस्टम डॉस (डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम) विंडोज विंडोज १ (१.०१, १.०२, १.०३, १.०४) विंडोज २ (२.०३, २.१०, २.११) विंडोज ३ (३.०, ३.१, एन टी ३.१, ३.२, एन टी ३.५, एन टी ३.५१) विंडोस ९५ (९५ प्लस, ९५ एस पी १, ९५ ओ एस आर १/२/२.१/२.५) विंडोज एन टी ४.० विंडोज़ 98 विंडोज एम् इ विंडोज २००० (प्रोफेशनल, सर्वर, एडवांस सर्वर, डाटासेंटर सर्वर) विंडोज एक्स पी (स्टार्टर, होम, प्रोफेशनल) विंडोज सर्वर २००३ (स्टार्टर, वेब, इंटरप्राइस, डाटासेंटर) विंडोस विस्ता (स्टार्टर, होम, बिजनस, इंटरप्राइस, अल्टीमेट) विंडोज सर्वर २००८ (वेब, स्टैण्डर्ड, इंटरप्राइस, डाटासेंटर) विंडोज ७ विंडोज ८ विंडोज ८.1 विंडोज 10 अप्लिकेशन सॉफ्टवेर ऑफिस वर्ड एक्स़ल पावर पॉइंट आउटलुक एक्सेस इन्फोपाथ पब्लिशर वननोट अन्य शेयर पॉइंट माइक्रोसॉफ्ट सरफेस माइक्रोसॉफ्ट विजुअल स्टूडियो एमएसएन .नेट फ्रेमवर्क [Dharme] सॉफ़्टवेयर कम्पनियाँ माइक्रोसॉफ़्ट बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अमेरिकी कम्पनियाँ
9,118
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%8B%E0%A4%B2
इकोनाज़ोल
इकोनाज़ोल एक है ऐंटिफंगल दवा की imidazole वर्ग। यह ब्रांड नाम के तहत स्पेक्ट्राज़ोल ( संयुक्त राज्य अमेरिका ) और इकोस्टैटिन ( कनाडा ), दूसरों के बीच बेचा जाता है। यह Pevisone, Ecoderm-TA और ECOSONE ( econazole / triamcinolol ) का एक घटक है। यह 1968 में पेटेंट कराया गया था, और 1974 में चिकित्सा उपयोग के लिए अनुमोदित किया गया था। चिकित्सा उपयोग करता है एथलीट फुट, टिनिआ, पायरियासिस वर्सीकोलर, दाद, और जॉक खुजली जैसे त्वचा के संक्रमण के इलाज के लिए एकॉनज़ोल का उपयोग क्रीम के रूप में किया जाता है। इसे योनि थ्रश के इलाज के लिए योनि डिंब के रूप में ब्रांड नाम इकोस्टैटिन के तहत कनाडा में भी बेचा जाता है। इकोनाजोल नाइट्रेट केरातिन-पचाने वाले सामान्य कपड़े मोथ टिनोला बिसेलीएला के खिलाफ मजबूत विरोधी खिला गुणों को प्रदर्शित करता है । प्रतिकूल प्रभाव लगभग 3% रोगियों ने इकोनाजोल नाइट्रेट क्रीम से उपचारित होने के दुष्प्रभाव बताए। सबसे आम लक्षण जलन, खुजली, लालिमा ( एरीथेमा ), और एक प्रुरिटिक दाने का प्रकोप था। संश्लेषण नाइट्रो समूह से रहित इमिडाज़ोल्स में अब कोई एंटीप्रोटोज़ोअल गतिविधि नहीं होती है, हालांकि, ऐसी दवाएं प्रभावी एंटीफंगल एजेंट हैं ।
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मोहम्मद उस्मान
ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान मसऊदी, एमवीसी (15 जुलाई 1912 - 3 जुलाई 1948) भारत-पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैन्य अधिकारी थे। भारत के विभाजन के समय उन्होंने कई अन्य मुस्लिम अधिकारियों के साथ पाकिस्तान सेना में जाने से इनकार कर दिया और भारतीय सेना के साथ सेवा जारी रखी। जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी सैनिकों से लड़ते हुए 3 जुलाई 1948 में वो शहीद हो गए थे। तदोपरांत उन्हें दुश्मन के सामने बहादुरी के लिए भारत के दूसरे सबसे बड़े सैन्य पदक महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। जन्म और शिक्षा मोहम्मद उस्मान मसऊदी का जन्म अन्य पिछड़ा वर्ग मुस्लिम मसऊदी (डफाली) ब्रिटिश भारत में संयुक्त प्रांत के मऊ जिले में 15 जुलाई 1912 को हुआ था। उस्मान मसऊदी ने बचपन में ही सेना में शामिल होने के लिए अपना मन बना लिया था और भारतीयों के लिए कमीशन रैंक पाने के लिए सीमित अवसरों तथा कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद वह प्रतिष्ठित रॉयल मिलिटरी एकेडमी (आरएमएएस) में प्रवेश प्राप्त करने में सफल रहे। सैन्य जीवन सैन्य जीवन के अंत में अपने वर्ष के साथ केमीरोनीयनज़ पर, 19 मार्च 1935 में, उन्होंने नियुक्त किया गया करने के लिए भारतीय सेना और प्रकाशित किया गया था करने के लिए 5 वीं बटालियन के 10 वीं बलूच रेजिमेंट (5/10 Baluch). बाद में वर्ष में उन्होंने देखा कि सक्रिय सेवा पर उत्तर-पश्चिम फ्रंटियर के दौरान भारत के मोहमंद अभियान के 1935. वह योग्य के रूप में एक 1st क्लास दुभाषिया में उर्दू में मई 1935. उस्मान को पदोन्नत किया गया था के रैंक लेफ्टिनेंट पर 30 अप्रैल 1936 और कप्तान पर 31 अगस्त 1941. अप्रैल 1944 में, वह था एक अस्थायी प्रमुखहै । उन्होंने सेवा में बर्मा और था में उल्लेख किया डिस्पैच के रूप में एक अस्थायी प्रमुख में लंदन राजपत्र 27 सितंबर 1945. वह आज्ञा दी 14 वीं बटालियन के 10 वीं बलूच रेजिमेंट (14/10 Baluch) से अप्रैल 1945 के अप्रैल 1946 के दौरान भारत के विभाजन, उस्मान, जा रहा है एक मुस्लिम अधिकारी की बलूच रेजिमेंट था, से तीव्र दबाव के तहत पाकिस्तानी नेतृत्व करने के लिए चुनते के लिए पाकिस्तान की सेना. हालांकि, के बावजूद तथ्य यह है कि वह वादा किया गया था, एक भविष्य की स्थिति के रूप में पाकिस्तान के सेना प्रमुख था, वह असहमत हैं । जब बलूच रेजिमेंट आवंटित किया गया था करने के लिए पाकिस्तान, उस्मान को सौंप दिया गया था डोगरा रेजिमेंट भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947 भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947 में पाकिस्तान भेजा आदिवासी irregulars में सामंती राज्य के जम्मू और कश्मीर में एक प्रयास करने के लिए कब्जा है और इसे स्वीकार करने के लिए यह पाकिस्तान है । उस्मान, तो कमांडिंग 77th पैराशूट ब्रिगेड को भेजा गया था, करने के लिए आदेश में 50 पैराशूट ब्रिगेडहै, जो तैनात किया गया था पर Jhangar में दिसंबर 1947. 25 दिसंबर, 1947 के साथ, खड़ी बाधाओं के खिलाफ भारी ब्रिगेड, पाकिस्तानी बलों पर कब्जा कर लिया Jhangar. के जंक्शन पर स्थित सड़कों से आ रहा है, मीरपुर और कोटली, Jhangar सामरिक महत्व का था. पर उस दिन उस्मान ने एक व्रत पीछे हटा करने के लिए Jhangar – एक उपलब्धि है वह पूरा किया तीन महीने के बाद, लेकिन की कीमत पर अपने स्वयं के जीवन है । जनवरी में–फरवरी 1948 उस्मान खदेड़ा भीषण हमलों पर नॉवशेरा और Jhangar, दोनों बेहद रणनीतिक स्थानों में जम्मू और कश्मीर. के दौरान रक्षा की नॉवशेरा भारी बाधाओं के खिलाफ, संख्या और भारतीय सेना को दिए गए 2000 के आसपास हताहतों की संख्या पर पाकिस्तानियों के बारे में (1000 मर चुका है और 1000 घायल), जबकि भारतीय सेना का सामना करना पड़ा केवल 33 मृत और 102 घायल हो गए. उसकी रक्षा कमाया उसे उपनाम शेर के नॉवशेरा. पाकिस्तानी बलों की घोषणा की तो राशि 50,000 रुपये का एक पुरस्कार के रूप में उसके सिर के लिए. से अप्रभावित प्रशंसा और बधाई, उस्मान जारी रखा सोने के लिए एक चटाई पर फर्श पर रखी के रूप में वह की कसम खाई थी कि वह नहीं होगा पर सोने के लिए एक बिस्तर तक वह पुनः कब्जा Jhangar, जहां वह था में वापस लेने के लिए देर से 1947. तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल केएम करियप्पा (बाद में जनरल और चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ और सेवानिवृत्ति के बाद के वर्षों में बने फील्ड मार्शल), जो पर ले लिया था के रूप में पश्चिमी सेना के कमांडर लाया है, अपने सामरिक मुख्यालय के लिए आगे जम्मू की निगरानी के लिए संचालन के लिए दो महत्वपूर्ण कार्यों, अर्थात् का कब्जा Jhangar और पुंछहै । संचालन कॉलेज के अंतिम सप्ताह में फरवरी 1948. 19 वीं इन्फैंट्री ब्रिगेड के साथ उन्नत उत्तरी रिज, जबकि 50 पैराशूट ब्रिगेड को मंजूरी दे दी पहाड़ियों पर हावी नॉवशेरा-Jhangar सड़क दक्षिण में है । दुश्मन था अंत में संचालित क्षेत्र से, और Jhangar पुनः कब्जा किया गया था. पाकिस्तान लाया अपने नियमित बलों मैदान में मई 1948 में. Jhangar एक बार फिर गया था के अधीन करने के लिए भारी तोपखाने बमबारी, और कई निर्धारित हमलों का शुभारंभ कर रहे थे पर Jhangar द्वारा पाकिस्तान की सेना. हालांकि, उस्मान निराश उनके सभी प्रयास करने के लिए इसे हटा देना है । यह था के दौरान यह रक्षा के Jhangar कि उस्मान को मार डाला गया था पर 3 जुलाई, 1948 में, एक दुश्मन द्वारा 25 पाउंड खोल । वह 12 दिन से कम अपने 36 वें जन्मदिन है. उनके अंतिम शब्द थे, "मैं मर रहा हूँ लेकिन न जाने हम इस क्षेत्र के लिए लड़ रहे थे के लिए गिर दुश्मन". उनके प्रेरणादायी नेतृत्व और महान साहस, उन्होंने से सम्मानित किया गया महा वीर चक्र मरणोपरांत. भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने भाग लिया अंतिम संस्कार के उस्मान — "सर्वोच्च रैंकिंग सैन्य कमांडर आज तक" नीचे रखना करने के लिए अपने जीवन में युद्ध के मैदान. वह दिया गया था एक राज्य के अंतिम संस्कार के एक शहीद है. एक भारतीय पत्रकार ख्वाजा अहमद अब्बास, के बारे में लिखा था उसकी मौत, "एक कीमती जीवन की कल्पना और अडिग देशभक्ति, गिर गया है शिकार करने के लिए सांप्रदायिक कट्टरता है । ब्रिगेडियर उस्मान की बहादुर उदाहरण होगा एक मानने के लिए प्रेरणा का स्रोत मुक्त भारत"है । उस्मान से सम्मानित किया गया था महा वीर चक्र मरणोपरांत. स्मारक मोहम्मद उस्मान मसऊदी है एक कब्र में दफन में जामिया मिलिया इस्लामिया के परिसर में नई दिल्ली. Upender सूद, एक फिल्म निर्देशक, का उत्पादन किया गया है पर एक फिल्म के जीवन उस्मान है । उनकी जन्म शताब्दी मनाया गया 2012 में भारतीय सेना द्वारा पर झज्जर, हरियाणा. एक पैरामोटर अभियान द्वारा आयोजित किया गया था गोरखा प्रशिक्षण केन्द्र की स्मृति में ब्रिगेडियर उस्मान है । संदर्भ 1912 में जन्मे लोग १९४८ में निधन भारतीय मुस्लिम उत्तर प्रदेश के लोग महावीर चक्र सम्मानित लोग आज़मगढ़ के महत्वपूर्ण व्यक्तित्व
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मराकेश
मराकेश (), मोरक्को का चौथा बड़ा शहर है जो ब्लाड-एल-हमरा (Blad el Hamra) नामक विस्तृत मैदान में कासाब्लांका से १६० मील दक्षिण-पश्चिम में १,५०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। लताकुंजों की अधिकता एवं पर्वतीय दृश्यों के कारण यह आकर्षक नगर है। मराकेश के मध्य में जेम्मा-एल-फना (Djemma el Fna) नामक विशाल चौक है। सुल्तान का महल भी एक विस्तृत भाग में स्थित है। इसके बाहर एगुडालका शाही पार्क है जिसके दो मील लंबे एवं ५,००० फुट चौड़े क्षेत्र में फलदार वृक्ष लगे हुए हैं। मराकेश चहारदीवारी से घिरा हुआ है जिसमें कई प्रवेशद्वार हैं। कास्बा द्वार बहुत ही सुंदर है। धार्मिक भवनों में कुतुबिया मस्जिद (१२वीं शताब्दी की) बहुत ही महत्वपूर्ण है जिसका गुंबद २२१ फुट ऊँचा है तथा यह मराकेश के स्मारकों में सबसे अधिक आकर्षक है। कास्बा मस्जिद के पास में सादी शरीफों के मकबरे हैं। बाईआ प्रासाद रेजीडेंट का आवास रहा है। सन्दर्भ मोरक्को के नगर
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बच्छनाभ
बच्छनाभ या ऐकोनाइट (Aconite) रैननकुलेसी (Ranunculaceae) या बटरकप (Buttercup) कुल का पौधा है। यह उत्तरी गोलार्ध का देशज है। इसकी लगभग 100 जातियाँ ज्ञात हैं। भारत में भी इसकी कुछ जातियाँ पाई जाती हैं। ऐकोनाइट बहुत ही विषैला होता है। इसकी जड़ों, पत्तों, बीजों और कभी-कभी फूलों में भी विष रहता है। किंतु नियन्त्रित मात्रा में सेवन करने से इनमें औषधीय गुण होते हैं। ब्रिटेन में एकोनाइटम नेपेलस (Aconitum napellus L.) मान्य औषधि है। यह जाति तो भारत में नहीं होती, किंतु इसके वंश की अन्य जातियां पाई जाती हैं जो उतनी ही उपयोगी हैं। इसके फूलों का रंग बैंगनी-नीला से लेकर पीला और सफेद तक होता है तथा कुछ फूल द्विरंगी भी होते हैं। फूलों की सुंदर और टोप के आकार के होने के कारण बच्छनाभ के पेड़ उद्यानों की शोभा बढ़ाने के लिए लगाए जाते हैं। बच्छनाभ का व्यवहार आयुर्वैदिक एवं होम्योपैथिक औषधियों में भी होता है। इसका लेप तंत्रिका शूल (Neuralgia) और आमवात (rhumatic pain) में प्रयुक्त होता है; अत: यह पीड़ाहारी होता है। मुखसेवन से यह स्वेदनकारी होता है। अत: ज्वर में शरीर के ताप को कम करता है, पर इसकी मात्रा बड़ी अल्प रहती है, अन्यथा यह घातक हो सकता है। इसकी जड़ों से टिंचर तैयार होता है और उस टिंचर से होम्योपैथिक डाईल्यूसन का निर्माण किया जाता है। टिंचर को एक बार में पाँच बूंद से अधिक मात्रा में व्यवहार नहीं किया जाता। अति विषाक्त होने के कारण इसके व्यवहार में बड़ी सावधानी बरती जाती है। डाक्टर की अनुमति के बिना इसका व्यवहार नहीं करना चाहिए। जो ऐकोनाइट ओषधि के लिए व्यवहृत होता है वह ऐकोनाइट नैपेलस (Aconite napellus) कहलाता है। इसके विष का कारण एक ऐल्क्लॉयड है, जिसका नाम एकोनिटिन (aconitin) दिया गया है। यह शुद्धावस्था में प्राप्त किया गया है और इसकी संरचना भी मालूम कर ली गई है। जातियाँ अतीस वैज्ञानिक नाम : आकोनीटुम हेटेरोफील्लुम (Aconitum heterophyllum Wall.) कश्मीरी - अतीस, अतिविष, पोदिस) यह एक छोटा सा पौधा है जो उत्तर पश्चिम हिमालय में 2,000 से 4,000 मी ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। अतीस के प्रकंद ज्वर एवं ज्वर के बाद दुर्बलता दूर करने के लिए उपयोगी बताये जाते हैं। अतीस में बलवर्धक गुण तो अवश्य हैं, किंतु ज्वरनाशक के रूप में इसकी मान्यता अधिक नहीं है। यह अतिसार व पेचिश में भी उपयोगी है। बनबलनाग वैज्ञानिक नाम : आकोनीटुम कासमांथुम (Aconitum chasmanthum Stapf) यह पौधा भी उसी क्षेत्र में पाया जाता है जहां अतीस होता है। यद्यपि इस पौधे के प्रकंदों में ब्रिटेन वाले अकोनाइट से उपयोगी तत्वों की मात्रा लगभग दस गुना अधिक होती है, फिर भी उनकी क्षमता उतनी नहीं होती। ब्रिटेन वाली जाति के स्थान पर बनबलनाग प्रयोग करने के लिए उपयुक्त बताया जाता है। बाहरी कड़ियाँ James Grout: Aconite Poisoning, part of the Encyclopædia Romana Photographs of Aconite plants बच्छनाभ बच्छनाभ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8B%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A5%80%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A4
तोमानीवी पर्वत
तोमानीवी पर्वत (Mount Tomanivi), जो पहले विक्टोरिया पर्वत (Mount Victoria) कहलाता था, प्रशांत महासागर में स्थित फ़िजी देश का सबसे ऊँचा पर्वत है। यह उस देश के विति लेवु द्वीप की उत्तरी उच्चभूमियों में खड़ा है और वास्तव में एक मृत ज्वालामुखी है। विति लेवु द्वीप की मुख्य नदियाँ - रेवा नदी, नवुआ नदी, सिन्गातोका नदी और बा नदी - इसी पर्वत की ढलानों से शुरु होती हैं। इन्हें भी देखें विति लेवु रेवा नदी सन्दर्भ विति लेवु फ़िजी के पर्वत फ़िजी के ज्वालामुखी देशानुसार सर्वोच्च बिन्दु
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प्रोजेक्ट टाइगर
29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस मनाया जाता है,वन्य जीव जंतुओं में बाघ प्रमुख प्रजातियों में से एक है। 1973 में, अधिकारियों ने पाया कि शताब्दी के आरम्भ में बाघों की आबादी अनुमानित 5,000 से घटकर 1,827 हो गई है। बाघों की आबादी के लिए कई बड़े संकट हैं जैसे व्यापार के लिए अवैध शिकार, संकुचित आवास, शिकार आधार प्रजातियों की कमी, बढ़ती मानव आबादी, आदि। बाघ की खाल का व्यापार और चीनी पारंपरिक दवाओं में उनकी हड्डियों का उपयोग, विशेष रूप से एशियाई देशों में बाघों की आबादी की विलुप्ति के कगार पर छोड़ दिया गया है। चूँकि भारत और नेपाल दुनिया में बाघों की लगभग दो-तिहाई आबादी को आवास प्रदान करते हैं, इसलिए ये दोनों राष्ट्र अवैध शिकार और अवैध व्यापार के प्रमुख लक्ष्य बन गए। बाघ परियोजना, दुनिया में अच्छी तरह से प्रचारित वन्यजीव अभियानों में से एक, 1973 में शुरू किया गया था। बाघ संरक्षण को केवल एक लुप्तप्राय प्रजातियों को बचाने के प्रयास के रूप में ही नहीं, बल्कि बड़े परिमाण के जैव-प्रजातियों को संरक्षित करने के साधन के रूप में समान महत्व के साथ देखा गया है। उत्तराखंड में जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान, पश्चिम बंगाल में सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान, मध्य प्रदेश में बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान में सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान, असम में मानस राष्ट्रीय उद्यान और केरल में पेरियार राष्ट्रीय उद्यान भारत के कुछ बाघ अभयारण्य हैं। सन्दर्भ वन्य जीवन संरक्षण बाघ
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डकैती
डकैती हिंसा या हिंसा की धमकी से ग़ैर-क़ानूनी ढंग से किसी अन्य व्यक्ति का धन, माल, जान, पशुधन या अन्य वस्तु छीन लेने को कहते हैं। डकैती करने वाले व्यक्तियों को डाकू या दस्यु कहा जाता है। डाकू अक्सर गिरोहों का भाग होते हैं और ऐसे क्षेत्रों में अड्डे बनाते हैं जहाँ पुलिस और अन्य क़ानून के रखवालों का पहुँचना कठिन राहज़नी एक विशेष प्रकार की डकैती होती है जिसमें यात्रा कर रहे लोगों पर आक्रमण कर के उनसे चोरी की जाती है या स्वयं उन पर बलात्कार या हत्या जैसा अपराध किया जाता है। बाग़ी कुछ डाकू अपने जीवन के आरम्भ में शरीफ़ लोग हुआ करते थे जिनकी किसी शक्तिशाली व्यक्ति या सरकार से लड़ाई हो गई हो और उन्हें जान बचने के लिए भागना पड़ता था। सरकार और पुलिस उनका शिकार कर रही होती थी इसलिए वे अपने बचाव के लिए हथियार उठा लेते थे और जीने के लिए खाने-पैसे की वजह से अपराध का रास्ता लेते थे। ऐसे विद्रोही डाकुओं को पुराने काल में अक्सर 'बाग़ी' बुलाया जाता था। अन्य भाषाओँ में 'डाकू' को अंग्रेज़ी में 'बैन्डिट' (bandit) या 'ब्रिगन्ड' (brigand) कहते हैं। 'राहज़नो' को अंग्रेज़ी में 'हाइवेमॅन' (highwaymen) कहा जाता था लेकिन अंग्रेज़ीभाषी देशों में क़ानून व्यवस्था अच्छी होने से यह १५० वर्षों से देखे नहीं गए हैं। अमेरिका में डाकुओं को 'आउटलॉ' (outlaw) कहा जाता था। मेक्सिको में स्पेनी भाषा का 'देस्पेरादो' (desperado) शब्द इस्तेमाल होता था। बाग़ी डाकुओं को अमेरिका में 'रॅबॅल आउटलॉ' (rebel outlaw) कहा जाता था। प्रसिद्ध डाकू भारतीय संस्कृति में अतीत के कुछ जाने-माने डाकू आज भी याद किये जाते हैं, जैसे कि बिजनौर का सुल्ताना डाकू, जिसपर एक मशहूर नौटन्की आधारित है। आधुनिक काल में फूलन देवी एक महिला डाकू थी जो आगे चलकर भारत की सांसद भी बनी। अन्य देशों में भी प्रसिद्ध डाकू हुए हैं। मसलन अमेरिका में जॅस्सी जेम्ज़ (Jesse James) और बिली द किड (Billy the Kid) मशहूर हैं। मध्यकालीन इंग्लैंड में रॉबिन हुड एक मशहूर बाग़ी डाकू (रॅबॅल आउटलॉ) था। इटली में प्रसिद्ध था Carmine Crocco इन्हें भी देखें फूलन देवी राहज़नी समुद्री डकैती सन्दर्भ डाकू अपराध
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इआईआईएलएम विश्वविद्यालय
इस्‍टर्न इंस्‍टीट्यूट फॉर इंटीग्रेटि‍ड लर्निंग इन मैनेजमेंट यूनि‍वर्सिटी या ईआईआईएलएम वि‍श्‍ववि‍द्यालय, सिक्किम के जोरेठांग में स्थित विश्वविद्यालय है। इसकी स्‍थापना सि‍क्‍कि‍म राज्‍य वि‍धान अधि‍नि‍यम संख्‍या 4, 2006, सि‍क्‍कि‍म सरकार के तहत हुई है। यह वि‍श्‍ववि‍द्यालय अनुदान आयोग द्वारा मई, 2008 से पूरी तरह मान्‍यता और स्‍वीकृति‍ प्राप्‍त है। ईआईआईएलएम वि‍श्‍ववि‍द्यालय भारत का पहला वि‍श्‍ववि‍द्यालय है जि‍से यूकेएएस द्वारा प्रति‍ष्‍ठि‍त आईएसओ 9001:14001 प्रमाणपत्र प्रदान कि‍या गया है। ईआईआईएलएम वि‍श्‍ववि‍द्यालय का प्रयोजक नि‍काय, ‘इस्‍टर्न इंस्‍टीट्यूट फॉर इंटीग्रेटि‍ड लर्निंग इन मैनेजमेंट (ईआईआईएलएम)–कोलकाता’ है जि‍सकी स्‍थापना वि‍वि‍ध प्रोग्राम्‍स के माध्‍यम से भारत में बेहतरीन तथा कैरियर उन्‍नमुखी शि‍क्षा प्रदान करने के उद्देश्‍य 1995 में की गई थी। इतिहास अपने स्‍थापना काल से ही भारत सरकार की अखि‍ल भारतीय तकनीकी शि‍क्षा परि‍षद ने ईआईआईएलएम के व्‍यापार प्रबंधन में स्‍नातकोत्‍तर डि‍प्‍लोमा (पीजीडीबीएम) को स्‍वीकृति‍ दे दी थी। संस्‍थान ने वि‍श्‍व भारती, जो 1951 से केन्‍द्रीय वि‍श्‍ववि‍द्यालय है, के माध्‍यम से एमबीए प्रोग्राम प्रारंभ कर दि‍ए थे। ईआईआईएलएम को वि‍श्‍व भारती के संघटक महावि‍द्यालय का दर्जा प्राप्‍त हुआ। वि‍श्‍व भारती ने अपने बोर्ड ऑफ स्टडीज़ में ईआईआईएलएम वि‍श्‍ववि‍द्यालय के प्रति‍नि‍धि‍यों को शामि‍ल कि‍या था। ईआईआईएलएम के वि‍भि‍न्‍न फैक्‍लटी सदस्‍यों द्वारा परीक्षा पत्र तैयार कि‍ए गए थे और उनकी जांच भी की गई थी। ईआईआईएलएम इंस्‍टीट्यूट, कोलकाता को अक्‍तूबर 2007 में बि‍जनेस इंडि‍या द्वारा ‘ए’ ग्रेड प्रदान कि‍या गया है। इस संस्‍थान ने सभी शीर्ष उद्योगों और कारपोरेट के साथ समझौता कि‍या है और शत-प्रति‍शत प्‍लेसमेंट का रि‍कार्ड इसके नाम है। बाहरी कड़ियाँ ईआईआईएलएम वि‍श्‍ववि‍द्यालय का जालघर (हिंदी) भारत के विश्वविद्यालय सिक्किम
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A4%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%B0%E0%A4%A3%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A3%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80
द्रवचालित संचरण प्रणाली
शक्तिप्रेषण की विधियों में द्रवचालित प्रणाली (हाइड्रॉलिक सिस्टम) सबसे आधुनिक है। द्रवचालित प्रणाली में शक्ति एक तरल की सहायता से प्रेषित की जाती है। यह तरल बहुधा तेल होता है, किंतु कभी कभी जल का भी व्यवहार किया जाता है। द्रवचालित प्रणाली को दो विभागों में विभाजित किया जा सकता है : द्रवचालित स्थितिज प्रणाली और द्रवचालित गतिज प्रणाली। द्रवचालित स्थितिज प्रणाली द्रवचालित स्थितिज प्रणाली में तरल का मुख्य कार्य दाब की सहायता से शक्ति को प्रेषित करना है। इस प्रणाली के मुख्य अंग हैं : पंप करने का यंत्र, द्रवचालित मोटर और दो मुख्य अंगों को मिलाने के लिए उपकरण। चूँकि पंप करने का तंत्र तरल दाब को प्रेषित करता है, इसलिए यंत्र को प्रेषी कहते हैं। द्रवचालित मोटर तरल दाब की सहायता से शक्ति प्राप्त करता है, इसलिए मोटर को ग्राही (receiver) कहा जाता है। इस प्रकार की प्रणाली का उदाहरण है, द्रवचालित संपीडक (Hydraulic Press)। इसमें पंप करने का यंत्र प्रेषी है और द्रवचालित संपीडक ग्राही। पंप द्वारा किए गए कार्य का उपयोग बल के विरुद्ध तेल को विस्थापित करने के लिए किया जाता है। द्रवचालित संपीडक-पिस्टन (piston) की गति से उत्पन्न अवरोध से बल की उत्पत्ति होती है। द्रवचालित गतिज प्रणाली द्रवचालित गतिज प्रणाली में, क्रियाशील तरल के प्रवाह की गति के परिवर्तन की सहायता से शक्ति प्रेषित की जाती है। इसमें दाब के परिवर्तन को यथासाध्य कम करने का प्रयास किया जाता है। द्रवचालित गतिज प्रेषी के मुख्य अंग हैं : चालक शैफ्ट पर स्थित अपकेंद्री पंप प्रणोदक और चालित शैफ्ट पर स्थित अपकेंद्री पंप प्रणोदक और चालित शैफ्ट पर स्थित तेल टरबाइन रोटर (rotar)। पंप प्रणोदक और टरबाइन रोटर के बीच तेल के परिवहन से शक्ति चालक शैफ्ट को प्रेषित होती है। इसप्रकार की प्रणाली के उदाहरण हैं : द्रवचालित युग्मन (Hydraulic Coupling), द्रवचालित बलआघूर्ण परिवर्तक (Hydraulic Torque Converter) आदि। आजकल शक्तिप्रेषण के द्रवचालित तरीके का उपयोग यंत्र को चलाने में अधिक हो रहा है। तरल की दाब की सहायता से आधुनिक यंत्रों में विभिन्न प्रकार की गतियों को प्राप्त किया जाता है। एक या एक से अधिक पंप के द्वारा तेल उच्च दाब पर भेजा जाता है। हाल के कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति हुई है। यंत्र में शक्तिप्रेषण के लिए इस विधि के उपयोग से ये लाभ होते हैं : (1) गति एक समान रूप से और धीरे धीरे परिवर्तित की जा सकती है, (2) विस्तृत गतिसीमा प्राप्त होती है, (3) यांत्रिक प्रेषण द्वारा युक्त यंत्र की तुलना में इस विधि से चलनेवाला यंत्र 50% अधिक टिकाऊ होता है, (4) गति की उत्क्रमणीयता शीघ्र एवं आघातहीन रूप में प्राप्त की जा सकती है तथा (5) इस विधि से चलनेवाले यंत्र की डिजाइन और निर्माणविधि आसान होती है। आधुनिक युग में व्यवहृत प्राय: सभी यंत्रों एवं उपकरणों में शक्तिप्रेषण की इस विधि का प्रयोग हो रहा है। शक्तिप्रेषण की द्रवचालित स्थैतिक प्रणाली का उपयोग इसके अलावा निम्नलिखित यंत्रों में भी होता है : द्रवचालित दाबक, द्रवचालि क्रेन, द्रवचालित लिफ्ट (Hydraulic Lift) आदि। कृषि संबंधी यंत्रों, जैसे ट्रैक्टर आदि में भी शक्तिप्रेषण के द्रवचालित तरीकों का उपयोग होता है। द्रवचालित गतिज प्रणाली के आधार पर शक्तिप्रेषण के लिए निर्मित, द्रवचालि युग्मन में चालक शैफ्ट और चालित शैफ्ट में कोई यांत्रिक संबंध नहीं रहता है। इस तरह के यंत्र में आघात और कंपन नहीं होता है। द्रवचालित युग्मन में शाक्ति को प्रेषित करते समय चालक और चालित शैफ्ट पर समान बलआधूर्ण कार्य करता बलआधूर्ण की वृद्धि करता है। द्रवचालित युग्मन का उपयोग रेलगाड़ियों और मोटर गाड़ियों में अंतर्दहन इंजन से गतिपाल चक्र को शक्ति प्रेषित करने में किया जाता है। डीजल इंजन चालित युद्धयान में बड़े आकार के द्रवचालित युग्मन का प्रयोग होता है। 1 अश्वशक्ति से लेकर 36,000 अश्वशक्ति तक के द्रवचालित युग्मन का निर्माण हो चुका है। द्रवचालित युग्मन और बलआधूर्ण परिवकं के अनुसंधान के" बाद आधुनिक मोटर गाड़ियों में शक्तिप्रेषण के पुराने प्रकार के उपकरण जैसे दंतिधान आदि का व्यवहार कम ही होने लगा है। इस तरह शक्तिप्रेषण के द्रवचालित तरीकों की उपयोगिता बहुत ही बढ़ गई है और अभी भी नित्य नई नई खोजें हो रही हैं, ताकि इस प्रणाली का कार्यक्षेत्र और भी विस्तृत हो जाए। इन्हें भी देखें द्रवचालित मशीन संचरण (यांत्रिकी) पास्कल का सिद्धान्त तरल यांत्रिकी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B2
वर्गमूल
गणित में किसी संख्या x का वर्गमूल (square root () या ) वह संख्या (r) होती है जिसका वर्ग करने पर x प्राप्त होता है; अर्थात् यदि r‍‍2 = x हो तो r को x का वर्गमूल कहते हैं। उदाहरण- १०० का वर्गमूल १० है क्योंकि १०२ = १०० १६ का वर्गमूल ४ है क्योंकि ४२ = १६ (क२ + ख२ + २ क ख) का वर्गमूल (क+ख) है क्योंकि (क+ख)२ = (क२ + ख२ + २ क ख) कुछ संख्यायों के वर्गमूल गुण जहाँ . जहाँ . , अर्थात वर्गमूल फलन, बढ़ते ही जाने वाला (strictly increasing) फलन है। किसी भी वास्तविक संख्या के लिए सत्य है। इसके विपरीत केवल अऋणात्मक के लिए सत्य है। इतिहास प्राचीन भारत में कम से कम शुल्बसूत्र के समय से ही वर्ग एवं वर्गमूल के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक पक्षों का ज्ञान था। शुल्ब सूत्रों की रचना ८०० ईसापूर्व से ५०० ईसापूर्व तक बतायी जाती है किन्तु ये इससे भी बहुत पुराने हो सकते हैं। बौधायन का शुल्बसूत्र में २ और ३ के वर्गमूल का बहुत ही शुद्ध मान निकालने की विधि दी गयी है। आर्यभट ने आर्यभटीय के खण्ड २.४ में अनेकों अंकों वाली संख्याओं के वर्गमूल निकालने की विधि दी है । समिश्र संख्या का प्रधान वर्गमूल तो z का प्रधान वर्गमूल निम्नलिखित ढंग से परिभाषित किया जाता है: इसे त्रिकोणमितीय फलन के रूप में भी अभिव्यक्त कर सकते हैं- सन्दर्भ इन्हें भी देखें वर्ग घनमूल वर्गमूल निकालने की विधियाँ बाहरी कड़ियाँ Algorithms, implementations, and more - Paul Hsieh's square roots webpage How to manually find a square root प्रारम्भिक गणित
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%AC%E0%A4%9C%E0%A4%9F
पारिवारिक बजट
किसी परिवार या एक व्यक्ति के संसाधनों (आय) और व्यय के समन्वय के लिए निर्मित योजना को पारिवारिक बजट या व्यक्तिगत बजट (एक व्यक्ति के बजट के लिए) या घरेलू बजट (एक ही घर में रहने वाले एक या एक से अधिक व्यक्तियों के लिए) कहते हैं। व्यक्तिगत बजट बनाने के उद्देश्य पारिवारिक बजट आमतौर पर किसी व्यक्ति या परिवार को अपने खर्च को नियंत्रित करने और अपने वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करने के लिए बनाए जाते हैं। बजट बनाने से लोगों को अपने वित्त पर अधिक नियंत्रण महसूस करने में मदद मिल सकती है और उनके लिए अधिक खर्च न करना और पैसे बचाना आसान हो जाता है। जो लोग अपने पैसे का बजट बनाते हैं, उनके बड़े ऋण लेने की संभावना कम होती है, और वे सेवानिवृत्ति के बाद आरामदायक जीवन जीने में सक्षम होते हैं और आपात स्थिति के लिए तैयार रहते हैं। सन्दर्भ निजी वित्त
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%A8-%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%A8
निष्पादन-मूल्यांकन
निष्पादन-मूल्यांकन, कर्मचारी मूल्यांकन के रूप में भी ज्ञात, एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा किसी कर्मचारी के कार्य निष्पादन को मूल्यांकित किया जाता है (साधारणतया गुण, मात्रा, लागत एवं समय के संबंध में). निष्पादन-मूल्यांकन जीवन-वृत्ति विकास का ही एक हिस्सा है। निष्पादन-मूल्यांकन, संगठनों में कर्मचारी निष्पादन की नियमित समीक्षा है। साधारणतः, निष्पादन-मूल्यांकन के निम्न उद्देश्य हैं: कर्मचारियों के निष्पादन पर प्रतिपुष्टि देना. कर्मचारी के प्रशिक्षण की आवश्यकताओं की पहचान करना। संगठनात्मक इनामों को आवंटित करने के लिए प्रयुक्त दस्तावेज़ का मानदंड वेतन-वृद्धि, पदोन्नति, अनुशासनात्मक कार्रवाई, इत्यादि से संबंधित व्यक्तिगत फैसलों के लिए एक आधार तैयार करना। संगठनात्मक निदान और विकास के लिए अवसर प्रदान करना। कर्मचारी और प्रशासन के मध्य संचार की सुविधा प्रदान करना। संघीय समान रोजगार अवसर की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए चयन तकनीकों और मानव संसाधन नीतियों को मान्य करना। किसी संख्यासूचक या अदिश श्रेणी पद्धति का प्रयोग करना, निष्पादन को मूल्यांकित करने का एक सामान्य तरीका है जिसमें प्रबंधकों को अनगिनत उद्देश्यों/लक्षणों के आधार पर किसी व्यक्ति विशेष को चिन्हित (स्कोर) करने के लिए कहा जाता है। कुछ कंपनियों में, आत्म-मूल्यांकन का निष्पादन करने पर भी कर्मचारियों को उनके प्रबंधक, समपदस्थ-कर्मचारियों, अधीनस्थ-कर्मचारियों और ग्राहकों से मूल्यांकन प्राप्त होते हैं। इसे 360° मूल्यांकन के रूप में जाना जाता है, जो अच्छी संचार व्यवस्था तैयार करता है। निष्पादन-मूल्यांकन प्रक्रिया के रूप में प्रयुक्त हो रही सर्वाधिक लोकप्रिय विधियां निम्न हैं: उद्देश्य-आधारित प्रबंधन 360 डिग्री मूल्यांकन व्यवहारिक अवलोकन मानदंड व्यावहारिकी स्थिर श्रेणी मानदंड व्यवसायिक संस्थाओं द्वारा आम तौर पर सत्यनिष्ठा और अंतर्विवेकशीलता जैसे कारकों पर आश्रित लक्षण पर आधारित पद्धतियों का भी प्रयोग किया जाता है। इस विषय पर वैज्ञानिक साहित्य यह सबूत प्रदान करता है कि ऐसे कारकों पर कर्मचारियों को मूल्यांकित करने की पद्धति को त्याग देना चाहिए। इसके दोहरे कारण हैं: चूंकि परिभाषा के अनुसार लक्षण पर आधारित पद्धतियां व्यक्तित्व के लक्षणों पर आधारित होती हैं, इसलिए प्रतिपुष्टि प्रदान करने में प्रबंधक को कठिनाई होती है जो कर्मचारी के निष्पादन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है। इसका कारण यही है कि व्यक्तित्व के आयाम अधिकांश रूप से स्थिर होते हैं और जबकि कर्मचारी किसी विशेष व्यवहार को तो परिवर्तित कर सकता है लेकिन अपने व्यक्तित्व को परिवर्तित नहीं कर सकता है। उदाहरणस्वरूप, जिस व्यक्ति में सत्यनिष्ठा का अभाव होता है, वह प्रबंधक के सम्मुख झूठ बोलना बंद कर सकता है क्योंकि उन्हें पकड़ लिया गया है, लेकिन उनमें अभी भी सत्यनिष्ठा की भावना बहुत कम होती है और जब पकड़े जाने का डर चला जाता है तो फिर से झूठ बोलने की संभावना बन जाती है। चूंकि लक्षण पर आधारित पद्धतियां अस्पष्ट होती हैं, इसलिए ये बड़ी आसानी से कार्यालय की राजनीति से प्रभावित हो जाती हैं जिसके कारण ये किसी कर्मचारी के सटीक निष्पादन के सूचना-स्त्रोत के रूप में कम विश्वसनीय होती हैं। इन साधनों की अस्पष्टता प्रबंधकों को इस बात की अनुमति प्रदान करता है कि वे जिन्हें चाहते हैं अथवा उन्हें जो उचित लगता हैं कि उनकी उन्नति होनी चाहिए, तो वे इस आधार पर उनका चयन कर सकते हैं जबकि इसकी जगह वे कर्मचारियों के उन विशेष व्यवहारों पर आधारित अंकों के आधार पर भी उनका चयन कर सकते थे जिन व्यवहारों में उन्हें व्यस्त होना/नहीं होना चाहिए। ये पद्धतियां भेदभाव के दावों के लिए किसी कंपनी को खुला छोड़ देने जैसा ही हैं क्योंकि कोई भी प्रबंधक उनके विशेष व्यवहारिक सूचना की सहायता के बिना ही पक्षपातपूर्ण निर्णय ले सकता है। PTF रिपोर्ट में इस बात का दावा किया गया कि "यद्यपि मंत्रालयों और विभागों के वार्षिक रिपोर्ट अनिवार्य हैं, लेकिन शायद ही कभी उन्हें तैयार किया जाता है और सरकार के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है और जहां वे प्रस्तुत किएय जाते हैं वहां या तो विषय-वस्तु या प्रारूप के संबंध में वे अपर्याप्त होते हैं और शायद ही किसी मानक की पुष्टि करते हैं। सिफ़ारिश यही थी कि मंत्रालयों द्वारा लक्ष्य निर्धारण होना चाहिए जहां ठोस और औसत उपलब्धि का अनुमान लगाया जा सके (PTF रिपोर्ट धारा 10 उपधारा 10.1). इन्हें भी देखें रोजगार सत्यनिष्ठा परीक्षण स्रोत 1998, आर्चर नॉर्थ & एसोसिएट्स, निष्पादन-मूल्यांकन का उपक्रम, https://web.archive.org/web/20091218090346/http://www.performance-appraisal.com/intro.htm आतंरिक U.S. विभाग, परफॉर्मेंस अप्रेज़ल हैंडबुक बाहरी कड़ियाँ निष्पादन-मूल्यांकन के प्रति तार्किक दृष्टिकोण, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय निष्पादन-मूल्यांकन पर की गई चर्चा और प्रारूप मानव संसाधन प्रबंधन गूगल परियोजना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A8%20%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%A8
विदिन टेम्पटेशन
विदिन टेम्पटेशन () एक डच सिम्फोनिक मेटल बैंड है जिसकी स्थापना १९९६ में गायिका शेरोन डेन एडल और गिटार वादक रॉबर्ट वेस्टरहोल्ट ने की थी। इनके संगीत को सिम्फोनिक मेटल कहा गया है हालांकि उनकी शुरूआती सामग्री, जैसे की इंटर, गोथिक मेटल थी। एक साक्षात्कार में एडल ने कहा था की वे सिम्फोनिक रॉक प्रकार में कई प्रेरणास्रोतों के करण उतरे. अपने पहले अल्बम इंटर की रिलीज़ के पश्च्यात बैंड एक डच बैंड के रूप में स्थापित हो गया। २००१ में आम जनता के समक्ष वे अपने अल्बम मदर अर्थ के गीत "आइस क्वीन" के कारण लोकप्रिय बन गए जो डच चार्ट पर दूसरे क्रमांक पर रहा. सदस्य वर्तमान सदस्य शेरोन डेन एडल - मुख्य गायिका (१९९६ - अबतक) रॉबर्ट वेस्टरहोल्ट - रिदम गिटार (१९९६ - अबतक) जेरोएँ वैन वीन - बॉस गिटार (१९९६ - अबतक) रुड जोली - मुख्य गिटार (२००१ - अबतक) मार्टिन स्पेरंबर्ग - कीबोर्ड्स (२००१ - अबतक) माइक कुलेन - ड्रम (२०११ - अबतक) टूरिंग सदस्य स्टीफन हेलेबाल्ड - रिदम गिटार (२०११ - अबतक) डिस्कोग्राफी इंटर (१९९७) मदर अर्थ (२०००) द साइलंट फ़ोर्स (२००४) द हार्ट ऑफ़ एवरीथिंग (२००७) द अन्फोर्गिविंग (२०११)
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इस्त्वार द ल लितरेत्यूर ऐंदुई ऐ ऐंदुस्तानी
इस्त्वार द ल लितरेत्यूर ऐंदुई ऐ ऐंदुस्तानी (Histoire de la littérature hindoue e hindoustani) के लेखक गार्सा द तासी हैं। इस ग्रंथ को उर्दू - हिन्दी अथवा हिन्दुस्तानी साहित्य का सर्व प्रथम इतिहास ग्रंथ माना जाता है। इसमें हिन्दी उर्दू के अनेक कवियों और लेखकों की जीवनियाँ, ग्रंथ विवरण और उद्धरण हैं। इसका पहला संस्करण दो भागों में सन् १८३९ तथा १८४७ में प्रकाशित हुआ था। इस ग्रंथ ने हिन्दी साहित्य की दीर्घकालीन परम्परा के बिखराव को सूत्रबद्ध किया है। सन्दर्भ हिन्दी साहित्य
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%98%E0%A4%B5%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%96%E0%A5%80
दीर्घवृत्तलेखी
दीर्घवृत्त खींचने के लिए उसके दो गुणों का उपयोग किया गया है : (१) दीर्घवृत्त पर स्थित किसी भी बिंदु से उसकी नाभीय दूरियों का योगफल सदा दीर्घ अक्ष के बराबर रहता है तथा (२) यदि नियत लंबाई की ऋजु रेखा के सिरे दो लंब रेखाओं पर खिसकें, तो उसके रेखा पर स्थित कोई भी आंतरिक अथवा बाह्य बिंदु दीर्घवृत्तीय चाप की रचना करेगा। पहले गुण का उपयोग करने के लिए दो पिन और अवितान्य (inextensible) धागे की आवश्यकता होगी। मान लें दीर्घ अक्ष (2a) और लघु अक्ष (2b) का दीर्घवृत्त अभीष्ट है, तो नाभियों के बीच की दूरी 2d = होगी। अब दूरी (2d) पर दो पिन गाड़े जाएँ और (2d+2a) लंबाई के धागे के दोनों सिरों को आपस में बाँधकर इस डोरपाश को पिनों पर पहनाकर पेंसिल या लेखनी की नोक से पाश को तना रखकर पेंसिल चलाई जाए, तो नोक से अभीष्ट दीर्धवृत्त खिंच जाएगा। इस विधि से उद्यान आदि में बड़े दीर्घवृत्त अब भी खींचे जाते हैं। किंतु पूर्णत: अवितान्य डोर कदाचित्‌ ही उपलब्ध होती है। यह विधि सूक्ष्म कार्य के लिए अनुपयुक्त है। इस विधि से छोटे दीर्घवृत्त खींचने में सुगमता लाने की दृष्टि से विभिन्न युक्तियाँ स्टेनले, हैज़र्ड (सन्‌ १८८४), कानटोंज (सन्‌ १८९५), प्रोफेसर हनी, रेन आदि ने दी हैं : दूसरे गुण का उपयोग कर दीर्घवृत्त ट्रेमेल (trammel) की रचना की गई है, जो सामान्य रेखाचित्र के उपयुक्त दीर्घवृत्त खींचने के लिए सरलतम और सर्वाधिक उपयुक्त यंत्र है। इस यंत्र से सुगमतापूर्वक विभिन्न मापों और अनुपात के दीर्घवृत्त खींचे जा सकते हैं। दीर्घवृत्त ट्रेमेल का प्रारंभिक रूप यह था कि वज्राकार धातुपट्ट में नीचे की ओर एक दूसरे पर लंब दो खाँचे (groove) बने रहते थे और नीचे लगी पिनों द्वारा ट्रेमेल कागज पर स्थिर हो जाता था। इन खाँचों में जड़े दो स्लाइडरों में ऊपर की ओर छिद्रयुक्त सिर थे, जिनमें होकर एक दंड जाता था, जो हरेक सिर से जकड़ दिया जाता था। लेखनी या पेंसिल दंड के सिरे पर कस दी जाती थी। यदि (A P = c) तथा (B P = d) तो लंब खाँचों के सापेक्ष दीर्घवृत्त का समीकरण (x2/a2+y2/ b2 = 1) है तथा दीर्घवृत्त की चौड़ाई = (c - d)। इस प्रकार पूरा दीर्घवृत्त तभी खींचा जा सकता है जब उसकी चौड़ाई प्रत्येक खाँचे की अर्ध लंबाई से कम रहे। वज्र की एक बाहु (उदाहरणत: अर) काट देने पर जो अर्धदीर्घवृत्त ट्रेमेल मिलता है उससे कुछ अधिक चौड़ाई के दीर्घवृत्त खींचे जा सकते हैं, क्योंकि अब लघुअक्ष पहले से दुगुना तक लिया जा सकता है। अर्ध ट्रेमेल से एक बार में आधा दीर्घवृत्त खींचा जा सकता है। लघु परिमाण के दीर्घवृत्त खींचने के लिए जॉन फैरी ने सन्‌ १८१० में सामान्य ट्रेमेल में एक परिवर्धन किया। मूल परिवर्धित यंत्र सोसायटी ऑव आर्ट्स, लंदन को १८१२ ई. में भेंट किया गया और उसके उपलक्ष्य में फैरी को स्वर्ण पदक पुरस्कार में मिला। फैरी यंत्र में सामान्य खाँचों के स्थान पर दो जोड़ी समांतर दंड एक दूसरे पर लंबत: नियत रहते हैं। हरेक संर्पक लगभग ४ इंच व्यास का वृत्तीय वलय होता है और इन वलयों के बीच की दूरी चूड़ीदार (milled) सिरवाले दंडचक्री द्वारा ० से १.२ इंच तक बदली जा सकती है। दोनों वृत्तों में यही एक आपेक्षित गति संभव है, अन्यथा वे दीर्घवृत्त खींचते समय एक दृढ़ पिंड की भाँति चलते हैं। ऊपर के वलय से लगा एक फिरकी सॉकेट (swivel socket) रहता है, जिसमें एक सामान्य परकार की एक बाहु का सिरा स्थिर किया जा सकता है। इसके कारण आलेखन बिंदु की स्थिति शीघ्रता और सुगमता से ठीक की जा सकती है। इस चौखट से दो आक्षुरित सिरवाले पेचों द्वारा एक पटरी जड़ी रहती है। पटरी में नीचे की ओर दो सूई की नोकें निकली रहती हैं। सन्निकट स्थिति में पटरी रखने पर चौखटे को दीर्घवृत्त खींचने के लिए शुद्ध स्थिति में लाया जा सकता है। यंत्र के इस रूप में फैरी ने आगे चलकर कई एक संशोधन किए, जिससे यंत्र का भ्रमण अधिक संयत और धीर हो गया। एक अन्य प्रकार के दीर्घवृत्तलेखी में वृत्तीय और ऋजुरेखीय दोनों गतियों का समन्वय है। सामान्य ट्रेमेल में निर्दिष्ट लंबाई की रेखा का मध्य बिंदु एक वृत्त में चलता है, इसलिए यदि मध्य बिंदु म को मूलबिंदु अ से एक भ्रमण शील दंड द्वारा मिला दिया जाए तो एक ऋजुरेखीय खाँचे की आवश्यकता नहीं रहती। इस प्रकार का ट्रेमेल पहले जेम्स फिने ने १८५५ ई. में बनाया; आगे चलकर स्टेनले ने इसमें पर्याप्त सुधार किए। १८७१ ई. में एडवर्ड बर्सटो ने एक शृंखला, या चक्र गिअर (gear), द्वारा इन दो प्रकार की गतियों का संयोजन किया। यदि अ म के साथ साथ म क भी इस प्रकार घूमता है कि Ð म अ क = Ð म क अ, तो दूसरे खाँचे की भी आवश्यकता नहीं रहती। इस प्रकार के भी कुछ दीर्घवृत्तलेखी बने हैं, जिनमें से एक फ्रेंक जे. ग्रे (सन्‌ १९०१) का है और जर्नल ऑव दि सोसायटी ऑव दि सोसायटी ऑव आर्ट्स (१९०२ ई.) में इसका विस्तृत विवरण है। इन यंत्रों में जब स्याही की साधारण लेखनी प्रयुक्त होती है तब रेखाएँ एक समान मोटाई की नहीं होती। कर्ण गिअर (steering gear) की सहायता से प्रोफेसर ऐलेक्जैंडर और एफ. जे. ग्रे, ने इस दोष को भी दूर किया। बाहरी कड़ियाँ Cutting ellipses in wood Photo of a Kentucky Do-Nothing Instructions on how to build a Kentucky Do-Nothing Video of a Do-Nothing made from Lego bricks "Wonky Trammel of Archimedes" An exploration of a generalized trammel. Patent for ellipse cutting guide allowing small ellipses परंपरागत खिलौने मेकैनिज्म शांकव गणित
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https://hi.wikipedia.org/wiki/2014%20%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%A8%20%E0%A4%93%E0%A4%B2%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A5%E0%A5%81%E0%A4%86%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
2014 शीतकालीन ओलंपिक में लिथुआनिया
लिथुआनिया ने 2014 शीतकालीन ओलंपिक में सोची, रूस में 7 से 23 फरवरी 2014 तक हिस्सा लिया। टीम के पांच खेल में प्रतिस्पर्धा नौ एथलीटों के होते हैं। नौ एथलीटों ने सबसे अधिक एथलीटों को चिह्नित किया है जो देश ने कभी शीतकालीन ओलंपिक के लिए योग्यता प्राप्त की है। 19 दिसंबर 2013 को ब्रुसेल्स में बेल्जियम के लिथुआनियाई राष्ट्रपति डालिया ग्रेबॉस्कायते ने कहा कि वह रूस की राजनीति के कारण खेलों में नहीं जाएंगे और कहा, "वर्तमान स्थिति में जहां मैं मानवाधिकारों का उल्लंघन देखता हूं, साथ ही साथ पूर्वी के प्रति दृष्टिकोण और उपचार लिथुआनिया सहित पार्टनर्स, और लिथुआनिया के खिलाफ लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों को, मुझे सोची खेलों में जाने की राजनीतिक संभावना नहीं है"। सन्दर्भ देश अनुसार शीतकालीन ओलंपिक २०१४
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%20%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97
पाकिस्तान राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग
पाकिस्तान राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, पाकिस्तान में पान्थिक अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए एक आयोग है। यह धार्मिक मामलों के मन्त्रालय और अन्तर-धार्मिक सद्भाव के अधीन है। पृष्ठभूमि जून 2014 में, पेशावर चर्च बमबारी मामले में पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने संघीय सरकार को अल्पसंख्यकों के लिए एक राष्ट्रीय परिषद बनाने का आदेश दिया। 2018 तक ऐसा कोई आयोग नहीं बना था। इसलिए सेण्टर फ़ॉर सोशल जस्टिस , पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग और सेसिल और आइरिस चौधरी फ़ाउण्डेशन ने फैसले को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। 19 फरवरी 2020 को, धार्मिक मामलों के मन्त्रालय और अन्तर-धार्मिक सद्भाव ने सर्वोच्च न्यायालय से आयोग के गठन के लिए और समय देने का अनुरोध किया और न्यायालय ने आयोग के गठन के लिए 2 महीने का समय दिया। संरचना आयोग में तीन साल की अवधि के लिए अध्यक्ष सहित छह आधिकारिक और 12 गैर-आधिकारिक सदस्य होते हैं। 6 आधिकारिक सदस्य इस्लामिक विचारधारा परिषद के अध्यक्ष, धार्मिक मामलों के मन्त्रालय के सचिव, आन्तरिक मन्त्रालय, कानून और न्याय मन्त्रालय, मानवाधिकार मन्त्रालय और संघीय शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण से एक सदस्य हैं। 12 गैर-सरकारी सदस्यों में 2 मुस्लिम, 3 हिन्दू, 3 ईसाई, 3 सिख, 1 पारसी और 1 कालशा सदस्य शामिल होंगे। हिन्दू उत्पीड़न हिन्दू विरोधी पाकिस्तान में अत्याचार हिन्दी
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सुकरात
सुकरात ( युनानी-Σωκράτης ;  470-399 ईसा पूर्व ) एथेंस के एक प्राचीन यूनानी दार्शनिक थे , जिन्हें पाश्चात्य दर्शन के संस्थापक और पहले  नैतिक दार्शनिकों में से एक के रूप में श्रेय दिया जाता है। सुकरात ने स्वयं कोई ग्रंथ नहीं लिखा, इसलिये उन्हें, मुख्य रूप से शास्त्रीय लेखकों , विशेष रूप से उनके छात्र प्लेटो और ज़ेनोफ़न के मरणोपरांत वृतान्तों के माध्यम से जाना जाता है। प्लेटो द्वारा रचित ये वृत्तांत, संवाद के रूप में लिखे गए हैं , जिसमें सुकरात और उनके वार्ताकार, प्रश्न और उत्तर की शैली में किसी विषय की समिक्षा करते हैं;  उन्होंने सुकरातीय संवाद, साहित्यिक शैली को जन्म दिया। एथेनियन समाज में सुकरात एक विवादित व्यक्ति थे, इतना अधिक कि, हास्य नाटककारों के नाटकों में उनका अक्सर मजाक उड़ाया जाता था (अरिस्टोफेन्स् द्वारा रचित नेफेलाइ ("बादलें") उसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है।) 399 ईसा पूर्व में, उन पर युवाओं को भ्रष्ट करने और धर्मपरायणहीनता करने का आरोप लगाया गया था । एक दिन तक चले अभियोग के बाद , उन्हें मृत्यु की सजा सुनाई गई थी । प्राचीन काल से बचे प्लेटो के संवाद सुकरात के सबसे व्यापक उल्लेखों में से हैं। ये संवाद तर्कवाद और नैतिकता सहित दर्शन के क्षेत्रों के लिए सुकरातीय दृष्टिकोण का प्रदर्शन करते हैं । प्लेटोनीय सुकरात ने सुकरातीय पद्धति या एलेन्चस को प्रतिपादित किया जो,  युक्तिपुर्ण संवाद (Argumentative dialogue), या द्वंद्वात्मकता के माध्यम से दार्शनिक विमर्श करता है। पूछताछ की सुकरातीय पद्धति , छोटे प्रश्नों और उत्तरों का उपयोग करते हुए संवाद में आकार लेती है, जो उन प्लेटोनिक ग्रंथों के प्रतीक हैं, जिनमें सुकरात और उनके वार्ताकार किसी मुद्दे या अमूर्त अर्थ के विभिन्न पहलुओं की विश्लेषण करते हैं,( जो आमतौर, पर किसी सद्गुणों में से, एक से संबंधित होते हैं), और स्वयं को गतिरोध में पाते हैं। जो उन्होंने क्या सोचा था कि वे समझ गए हैं,वे उसको परिभाषित करने में पूरी तरह से असमर्थ रहते हैं । सुकरात अपनी पूर्ण अज्ञानता की घोषणा के लिए जाने जाते हैं ; वह कहते थे कि केवल एक चीज जिसे वह जानते थे, वह यह थी उनकी अज्ञानता का बोध दर्शनशास्त्र का पहला कदम है। दार्शनिक सुकरात वैसे ही बने हुए हैं, जैसे वे अपने जीवनकाल में थे, एक पहेली, एक अचूक व्यक्ति, जो कुछ भी नहीं लिखे जाने के बावजूद, उन्हें, उन मुट्ठी भर दार्शनिकों में से एक माना जाता है जिन्होंने हमेशा के लिए दर्शनशास्त्र की परिकल्पना बदल दी। उनके बारे में, हमारी सारी जानकारी पुरानी है और इसमें से अधिकांश अत्यंत विवादास्पद है, लेकिन तब भी, एथेनियन लोकतंत्र के हाथों से उसका परीक्षण और तदोपरान्त मृत्यु, दर्शनशास्त्र के अधिविद्य विधा का संस्थापक मिथक है,एवं उसका प्रभाव दर्शन से कहीं दूर,हर युग में, महसूस किया गया है। सुकरात ने बाद की पुरातनता में दार्शनिकों पर एक मजबूत प्रभाव डाला और आधुनिक युग में भी ऐसा करना जारी रखा है । सुकरात का अध्ययन मध्ययुगीन और इस्लामी विद्वानों द्वारा किया गया था और विशेष रूप से मानवतावादी आंदोलन के भीतर इतालवी पुनर्जागरण के विचार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । सुकरात में रुचि बेरोकटोक जारी रही, जैसा कि सोरेन कीर्केगार्ड और फ्रेडरिक नीस्चे के कार्यों में परिलक्षित होता है । कला, साहित्य और लोकप्रिय संस्कृति में सुकरात के चित्रण ने उन्हें पश्चिमी दार्शनिक परंपरा में एक व्यापक रूप से ज्ञात व्यक्ति बना दिया है। जीवनी सुकरात का जन्म 470 या 469 ईसा पूर्व में सोफ्रोनिस्कस और फाएनारिती के घर हुआ था , जो एलोपेसी के एथेनियन क्षेत्र में क्रमशः एक प्रस्तरकर्मी और एक प्रसाविका थे; इसलिए, वह एक एथेनियन नागरिक थे, जिसका जन्म अपेक्षाकृत समृद्ध एथेनियाई लोगों के घर हुआ था। वह अपने पिता के रिश्तेदारों के करीब रहते थे और परंपरागत रूप से, उन्हें अपने पिता की संपत्ति का एक हिस्सा विरासत में मिला था, जिससे उन्हें वित्तीय चिंताओं से मुक्त जीवन मिला। उनकी शिक्षा एथेंस के कानूनों और रीति-रिवाजों के अनुसार हुई। उन्होंने पढ़ने और लिखने के बुनियादी कौशल सीखे और अधिकांश अमीर एथेनियाई लोगों की तरह, जिमनास्टिक, कविता और संगीत जैसे कई अन्य क्षेत्रों में अतिरिक्त शिक्षा प्राप्त की। उनकी दो बार शादी हुई थी (कौन पहली बार हुई यह स्पष्ट नहीं है): ज़ैंथिप्पे से उनकी शादी तब हुई जब सुकरात अपने पचास के दशक में थे, और दूसरी शादी एथेनियन राजनेता एरिस्तिदीज़ की बेटी के साथ हुई थी। ज़ानथिप्पे से उनके तीन बेटे थे। प्लेटो के अनुसार, सुकरात ने पेलोपोनेसियन युद्ध के दौरान अपनी सैन्य सेवा पूरी की और तीन अभियानों में स्वयं को प्रतिष्ठित किया।  एक और घटना जो कानून के प्रति सुकरात के सम्मान को दर्शाती है वह है लियोन द सलामिनियन का प्रग्रहण।जैसा कि प्लेटो ने अपनी अपॉलॉजि में वर्णन किया है , सुकरात और चार अन्य को थोलोस में बुलाया गया था और तीस निरंकुशों (जो 404 ईसा पूर्व में शासन करना शुरू कर दिया था) के प्रतिनिधियों द्वारा लियोन को फांसी के लिए प्रग्रहण करने के लिए कहा गया था। फिर से सुकरात ही एकमात्र परहेजगार था, जिसने जिसे वह अपराध मानता था, उसमें भाग लेने के बजाय अत्याचारियों के क्रोध और प्रतिशोध का जोखिम उठाना चुना। सुकरात ने एथेनियन जनता और विशेष रूप से एथेनियन युवाओं की विशेष रुचि आकर्षित की। ​​वह बेहद बदसूरत थे, उसकी नाक चपटी, उभरी हुई आंखें और बड़ा पेट था; उनके दोस्त, उनकी शक्ल का मज़ाक उड़ाया करते थे। सुकरात अपने रूप और व्यक्तिगत आराम के साथ भौतिक सुखों के प्रति उदासीन थे। उन्होंने व्यक्तिगत स्वच्छता की उपेक्षा की, बहुत कम स्नान किया, नंगे पैर चलते थे , और केवल एक फटा हुआ कोट रखते थे। उन्होंने अपने खाने-पीने और योनक्रिया में संयम बरता, हालाँकि उन्होंने पूर्ण परहेज़ नहीं किया। सुकरात युवाओं के प्रति आकर्षित थे, जैसा कि प्राचीन ग्रीस में आम था और स्वीकृत भी था, हाँलाकि उन्होंने युवा पुरुषों के प्रति अपने वासना का विरोध किया क्योंकि, जैसा कि प्लेटो का वर्णन है, वह उनकी आत्माओं को शिक्षित करने में अधिक रुचि रखते थे। सुकरात अपने शिष्यों से यौन संबंध नहीं चाहते थे, जैसा कि अक्सर एथेंस में वृद्ध और युवा पुरुषों के बीच होता था। राजनीतिक रूप से, उन्होंने एथेंस में लोकतंत्र और अल्पतंत्र वर्गों के बीच प्रतिद्वंद्विता में किसी का पक्ष नहीं लिया; उन्होंने दोनों की आलोचना की। सुकरात का चरित्र जैसा कि एपोलॉजी, क्रिटो, फेडो और सिम्पोजियम में प्रदर्शित है, एक हद तक अन्य स्रोतों से सहमत है जो इन कार्यों में प्लेटो के सुकरात के वास्तविक सुकरात के प्रतिनिधि के रूप में चित्रण पर विश्वास दिलाता है। अपवित्रता और युवाओं के धर्म-भ्रष्टाचार का अभियोग, जो केवल एक दिन तक चला, उसके बाद 399 ईसा पूर्व में एथेंस में सुकरात की मृत्यु हो गई। उन्होंने अपना आखिरी दिन जेल में दोस्तों और अनुयायियों के बीच बिताया, जिन्होंने उन्हें भागने का रास्ता दिया, पर जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया।अगली सुबह, उसकी सजा के अनुसार, हेमलॉक विश पीने के बाद उसकी मृत्यु हो गई। उन्होंने कभी भी एथेंस नहीं छोड़ा था, सिवाय उन सैन्य अभियानों के, जिनमें उन्होंने भाग लिया था। जीवन परिचय सुकरात/सोक्रातेस् (Σωκράτης) को मौलिक शिक्षा और आचार द्वारा उदाहरण देना ही पसंद था। साधारण शिक्षा तथा मानव सदाचार पर वह जोर देता था और उन्हीं की तरह पुरानी रूढ़ियों पर प्रहार करता था। वह कहता था, सच्चा ज्ञान संभव है बशर्ते उसके लिए ठीक तौर पर प्रयत्न किया जाए; जो बातें हमारी समझ में आती हैं या हमारे सामने आई हैं, उन्हें तत्संबंधी घटनाओं पर हम परखें, इस तरह अनेक परखों के बाद हम एक सचाई पर पहुँच सकते हैं। ज्ञान के समान पवित्रतम कोई वस्तु नहीं हैं।' बुद्ध की भाँति सुकरात ने भी कोई ग्रन्थ नही लिखा। बुद्ध के शिष्यों ने उनके जीवनकाल में ही उपदेशों को कंठस्थ करना शुरु किया था जिससे हम उनके उपदेशों को बहुत कुछ सीधे तौर पर जान सकते हैं; किंतु सुकरात के उपदेशों के बारे में यह भी सुविधा नहीं। सुकरात का क्या जीवनदर्शन था यह उसके आचरण से ही मालूम होता है, लेकिन उसकी व्याख्या भिन्न-भिन्न लेखक भिन्न-भिन्न ढंग से करते हैं। कुछ लेखक सुक्रात की प्रसन्नमुखता और मर्यादित जीवनयोपभोग को दिखलाकर कहते हैं कि वह भोगी था। दूसरे लेखक शारीरिक कष्टों की ओर से उसकी बेपर्वाही तथा आवश्यकता पड़ने पर जीवनसुख को भी छोड़ने के लिए तैयार रहने को दिखलाकर उसे सादा जीवन का पक्षपाती बतलाते हैं। सुकरात को हवाई बहस पसंद न थी। वह अथेन्स के बहुत ही गरीब घर में पैदा हुआ था। गंभीर विद्वान् और ख्यातिप्राप्त हो जाने पर भी उसने वैवाहिक जीवन की लालसा नहीं रखी। ज्ञान का संग्रह और प्रसार, ये ही उसके जीवन के मुख्य लक्ष्य थे। उसके अधूरे कार्य को उसके शिष्य अफलातून और अरस्तू ने पूरा किया। इसके दर्शन को दो भागों में बाँटा जा सकता है, पहला सुक्रात का गुरु-शिष्य-यथार्थवाद और दूसरा अरस्तू का प्रयोगवाद। तरुणों को बिगाड़ने, देवनिंदा और नास्तिक होने का झूठा दोष उसपर लगाया गया था और उसके लिए उसे जहर देकर मारने का दंड मिला था। सुकरात ने जहर का प्याला खुशी-खुशी पिया और जान दे दी। उसे कारागार से भाग जाने का आग्रह उसे शिष्यों तथा स्नेहियों ने किया किंतु उसने कहा- भाइयो, तुम्हारे इस प्रस्ताव का मैं आदर करता हूँ कि मैं यहाँ से भाग जाऊँ। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन और प्राण के प्रति मोह होता है। भला प्राण देना कौन चाहता है? किंतु यह उन साधारण लोगों के लिए हैं जो लोग इस नश्वर शरीर को ही सब कुछ मानते हैं। आत्मा अमर है फिर इस शरीर से क्या डरना? हमारे शरीर में जो निवास करता है क्या उसका कोई कुछ बिगाड़ सकता है? आत्मा ऐसे शरीर को बार बार धारण करती है अत: इस क्षणिक शरीर की रक्षा के लिए भागना उचित नहीं है। क्या मैंने कोई अपराध किया है? जिन लोगों ने इसे अपराध बताया है उनकी बुद्धि पर अज्ञान का प्रकोप है। मैंने उस समय कहा था-विश्व कभी भी एक ही सिद्धांत की परिधि में नहीं बाँधा जा सकता। मानव मस्तिष्क की अपनी सीमाएँ हैं। विश्व को जानने और समझने के लिए अपने अंतस् के तम को हटा देना चाहिए। मनुष्य यह नश्वर कायामात्र नहीं, वह सजग और चेतन आत्मा में निवास करता है। इसलिए हमें आत्मानुसंधान की ओर ही मुख्य रूप से प्रवृत्त होना चाहिए। यह आवश्यक है कि हम अपने जीवन में सत्य, न्याय और ईमानदारी का अवलंबन करें। हमें यह बात मानकर ही आगे बढ़ना है कि शरीर नश्वर है। अच्छा है, नश्वर शरीर अपनी सीमा समाप्त कर चुका। टहलते-टहलते थक चुका हूँ। अब संसार रूपी रात्रि में लेटकर आराम कर रहा हूँ। सोने के बाद मेरे ऊपर चादर ओढा देना। सुकरात ने अपनी शिक्षाओं का दस्तावेजीकरण नहीं किया। हम उसके बारे में केवल दूसरों के वृत्तांतों से जानते हैं: मुख्यतः दार्शनिक प्लेटो और इतिहासकार ज़ेनोफ़न, जो उनके दोनों शिष्य थे; एथेनियन हास्य नाटककार अरिस्टोफेन्स (सुकरात के समकालीन);और प्लेटो के शिष्य अरस्तू, जो सुकरात की मृत्यु के बाद पैदा हुए थे। इन प्राचीन वृत्तांतों की अक्सर विरोधाभासी कहानियाँ केवल सुकरात के सच्चे विचारों को मज़बूती से फिर से संगठित करने की विद्वानों की क्षमता को जटिल बनाती हैं, एक ऐसी स्थिति जिसे सुकराती समस्या के रूप में जाना जाता है। प्लेटो, ज़ेनोफ़ोन और अन्य लेखकों की रचनाएँ जो सुकरात के चरित्र को एक खोजी उपकरण के रूप में उपयोग करते हैं, सुकरात और उनके वार्ताकारों के बीच एक संवाद के रूप में लिखे गए हैं और सुकरात के जीवन और विचार पर जानकारी का मुख्य स्रोत प्रदान करते हैं। सुकराती संवाद (लोगो सोक्राटिकोस) इस नवगठित साहित्यिक शैली का वर्णन करने के लिए अरस्तू द्वारा गढ़ा गया एक शब्द था। जबकि उनकी रचना की सटीक तिथियां अज्ञात हैं, कुछ शायद सुकरात की मृत्यु के बाद लिखी गई थीं। जैसा कि अरस्तू ने पहले उल्लेख किया था, जिस हद तक संवाद सुकरात को प्रामाणिक रूप से चित्रित करते हैं, वह कुछ बहस का विषय है। इन्हें भी देखें अरस्तु दर्शनशास्त्र सन्दर्भ स्रोत ग्रंथ बाहरी कड़ियाँ यूनान के दार्शनिक पाश्चात्य दर्शन
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कृपाबाई सथ्यानाधन
कृपाबाई सथ्यानाधन (1862 – 1894) एक भारतीय लेखक थीं जिन्होंने अंग्रेजी भाषा में लिखा था। प्रारंभिक जीवन कृपाबाई का जन्म अहमदनगर में हुआ था| उनके माता-पिता का नाम हरिपंत और राधाबाई खिसती था जो कि हिंदू से ईसाई धर्म में परिवर्तित हुए थे। कृपाबाई के बचपन में ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी, और उनकी माँ और बड़े भाई भास्कर द्वारा उसका पालन पोषण किया गया। भास्कर, जो कि बहुत अधिक उम्र के थे, कृपाबाई पर उनका एक मजबूत प्रभाव था और भास्कर ने पुस्तकों को उधार लेकर और कृपाबाई साथ कई मुद्दों पर चर्चा करके उनकी बुद्धि को जगाने का प्रयास किया। हालाँकि, उनकी भी युवा मृत्यु हो गई, और क्रुपाबाई ने उन्हें अपने अर्ध-आत्मकथात्मक उपन्यास सगुना: ए स्टोरी ऑफ़ नेटिव क्रिस्चियन लाइफ में अमर कर दिया। उन्होंने 'कमला, ए स्टोरी ऑफ हिंदू लाइफ' (1894) नामक एक और उपन्यास भी लिखा। ये दोनों उपन्यास बिलडुंग्स्रोमन हैं, जिसमें वह लिंग, जाति, जातीयता और सांस्कृतिक पहचान के बारे में बात करती हैं। सामाजिक मिलिशिया में अंतर के बावजूद, दो उपन्यास एक समान विषय से संबंधित हैं:जो कि महिलाओं की भविष्यवाणी जो घरेलूता के फंसे हुए साँचे में डाली जाने का विरोध करता है। कमला और सगुना दोनों ही पुस्तकों से आकर्षित हैं और अलग-अलग डिग्री की दुश्मनी का सामना करते हैं। सगुण काफी हद तक आत्मकथात्मक है। एक ईसाई की बेटी के रूप में परिवर्तित, बाधाओं के बावजूद, न केवल औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए, बल्कि एक मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पाने के लिए संघर्ष करती है और अंततः एक ऐसे व्यक्ति से मिलती है जो उसके जीवन को समान रूप से साझा कर सकता है। चिकित्सा में प्रशिक्षण भास्कर की मौत से कृपाबाई को गहरा आघात लगा और दो यूरोपीय मिशनरी महिलाओं ने उनकी पूरी जिम्मेदारी उठाई। क्लोज क्वार्टर में अंग्रेजों के साथ उनकी यह पहली मुठभेड़ थी, और जैसा कि सगुना दिखाती है कि यह एक मिश्रित अनुभव था। बाद में वह बॉम्बे शहर में बोर्डिंग स्कूल गई। वह वहां एक अमेरिकी महिला डॉक्टर से मिलीं, जिसने उन्हें दवा में दिलचस्पी दिखाई। क्रुपाबाई ने अपने पिता के मिशनरी आदर्शों को जीवन में जल्दी ही आत्मसात कर लिया था और तय किया था कि एक डॉक्टर बनकर वह अन्य महिलाओं की मदद कर सकती हैं, खासकर उन लोगों की जो पुरदाह में हैं । इस समय तक उसका स्वास्थ्य पहले से ही बिगड़ने के संकेत दिखा रहा था, इसलिए यद्यपि उसने इंग्लैंड जाने और दवा का अध्ययन करने के लिए छात्रवृत्ति जीती, लेकिन उसे जाने की अनुमति नहीं थी। हालांकि, मद्रास मेडिकल कॉलेज ने 1878 में उसे स्वीकार करने के लिए सहमति व्यक्त की, और वह रेवरेंड डब्ल्यूटी सतथियाधन के घर में एक बोर्डर बन गई, जो एक बहुत ही प्रसिद्ध ईसाई मिशनरी है। उसका शैक्षणिक प्रदर्शन शुरू से ही शानदार था, लेकिन तनाव और अधिक काम के कारण एक साल बाद उन्हें स्वास्थ्य में पहली बार टूटना पड़ा और 1879 में उन्हें अपनी बहन के पास पुणे लौटना पड़ा। टीचिंग करियर एक साल बाद वह मद्रास वापस आ गई, जहाँ वह रेवरेंड के बेटे सैमुअल सथ्यानाधन से मिली और दोस्ती की। 1881 में सैमुअल और क्रुपाबाई की शादी हो गई। इसके तुरंत बाद सैमुअल को ऊटाकामंड में ब्रिक्स मेमोरियल स्कूल में प्रधानाध्यापक के रूप में एक नौकरी मिल गई। ऊटाकामुंड में क्रुपाबाई ने चर्च मिशनरी सोसाइटी की मदद से मुस्लिम लड़कियों के लिए एक स्कूल शुरू किया, और उन्होंने कई अन्य महिला पाठशालाओं में भी पढ़ाया। ऊटाकामुंड एक पहाड़ी स्टेशन है जो अपनी जलवायु के लिए प्रसिद्ध है और कृपाबाई का स्वास्थ्य वहाँ ठीक रहता था। वह लिखने के लिए समय और ऊर्जा खोजने में सक्षम थी, और उन्होने प्रमुख पत्रिकाओं में बायलाइन 'एन इंडियन लेडी' के तहत लेख भी प्रकाशित किया था। तीन साल बाद दंपति राजामुंदरी चले गए, और वहाँ कृपाबाई फिर से बीमार हो गईं, इसलिए वे कुंभकोणम चले गए। उसके स्वास्थ्य की अस्थिरता के बावजूद, यह उसके लिए एक बहुत ही उत्पादक अवधि थी, और 1886 में जब वे स्थायी रूप से मद्रास लौट आए, तब तक वह एक पूर्ण-स्तरीय उपन्यास शुरू करने के लिए तैयार थी। सगुना को 1887 और 1888 के बीच प्रतिष्ठित मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज पत्रिका में क्रमबद्ध किया गया था। हालाँकि, इस दौरान उसके पहले जन्मदिन तक पहुँचने से पहले ही उसके एकमात्र बच्चे की मृत्यु हो गई और वह अवसाद में डूब गई जिसके लिए उसे उपचार की आवश्यकता थी। उसके तपेदिक का निदान बॉम्बे में किया गया था लेकिन उसे इलाज से परे प्रमाणित किया गया था। यह जानकर कि उसके पास जीने के लिए बहुत कम समय है, उसने अपनी किताब कमला पर काम करना शुरू कर दिया।|अपने ससुर के एक संस्मरण को लिखने के लिए और अपनी सास के अधूरेपन को पूरा करने के लिए उसने अपनी मृत्यु तक किताब पर लगातार काम किया| उनकी मौत उनके प्रशंसकों के लिए एक बड़ा झटका बन गई और कुछ ही महीने बाद मद्रास मेडिकल कॉलेज में उनकी स्मृति में महिलाओं के लिए छात्रवृत्ति रखी गई और अंग्रेजी में सर्वश्रेष्ठ महिला मैट्रिकुलेशन उम्मीदवार के लिए मद्रास विश्वविद्यालय में एक स्मारक पदक स्थापित किया गया। उनके उपन्यासों को पुस्तकों के रूप में प्रकाशित किया गया और तमिल में अनुवाद किया गया। संदर्भ Saguna: A Story of Native Christian Life, edited by Chandani Lokugé, (New Delhi: Oxford University Press, 1998). Kamala: A Story of Hindu Life, edited by Chandani Lokuge. The Satthianadhan Family Album, by Eunice de Souza. 1862 में जन्मे लोग भारतीय ईसाई
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बिहार
बिहार भारत के उत्तर-पूर्वी भाग के मध्य में स्थित एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक राज्य है और इसकी राजधानी पटना है। यह जनसंख्या की दृष्टि से भारत का तीसरा सबसे बड़ा प्रदेश है जबकि क्षेत्रफल की दृष्टि से बारहवां है। १५ नवम्बर, सन् २००० ई॰ को बिहार के दक्षिणी हिस्से को अलग कर एक नया राज्य झारखण्ड बनाया गया। बिहार के उत्तर में नेपाल, दक्षिण में झारखण्ड, पूर्व में पश्चिम बंगाल, और पश्चिम में उत्तर प्रदेश स्थित है। यह क्षेत्र गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदानों में बसा है। गंगा इसमें पश्चिम से पूर्व की तरफ बहती है। बिहार भारत के सबसे महान् राज्यों मे से एक है। बिहार की जनसंख्या का अधिकांश भाग ग्रामीण है और केवल ११.३ प्रतिशत लोग नगरों में रहते हैं। इसके अलावा बिहार के ५८% लोग २५ वर्ष से कम आयु के हैं। प्राचीन काल में बिहार विशाल साम्राज्यों, शिक्षा केन्द्रों एवं संस्कृति का गढ़ था। बिहार नाम का प्रादुर्भाव बौद्ध सन्यासियों के ठहरने के स्थान विहार शब्द से हुआ। 'बिहार', 'विहार' का अपभ्रंश है। १२ फरवरी वर्ष १९४८ में महात्मा गांधी के अस्थि कलश जिन १२ तटों पर विसर्जित किए गए थे, त्रिमोहिनी संगम भी उनमें से एक है। इतिहास वर्तमान बिहार विभिन्न ऐतिहासिक क्षेत्रों से मिलकर बना है। बिहार के क्षेत्र जैसे-मगध, मिथिला और अंग- धार्मिक ग्रंथों और प्राचीन भारत के महाकाव्यों में वर्णित हैं। प्राचीन काल सारण जिले में गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर चिरांद, नवपाषाण युग (लगभग ४५००-२३४५ ईसा पूर्व) और ताम्र युग ( २३४५-१७२६ ईसा पूर्व) से एक पुरातात्विक रिकॉर्ड है। मिथिला को पहली बार इंडो-आर्यन लोगों ने विदेह साम्राज्य की स्थापना के बाद प्रतिष्ठा प्राप्त की। देर वैदिक काल (सी। १६००-११०० ईसा पूर्व) के दौरान, विदेह् दक्षिण एशिया के प्रमुख राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्रों में से एक बन गया, कुरु और पंचाल् के साथ। विदेह साम्राज्य के राजा यहांजनक कहलाते थे। मिथिला के राजा सिरध्वज जनक की पुत्री एक थी सीता जिसका वाल्मीकि द्वारा लिखी जाने वाली हिंदू महाकाव्य, रामायण में भगवान राम की पत्नी के रूप में वर्णित है। बाद में विदेह राज्य के वाजिशि शहर में अपनी राजधानी था जो वज्जि समझौता में शामिल हो गया, मिथिला में भी है। वज्जि के पास एक रिपब्लिकन शासन था जहां राजा राजाओं की संख्या से चुने गए थे। जैन धर्म और बौद्ध धर्म से संबंधित ग्रंथों में मिली जानकारी के आधार पर, वज्जि को ६ ठी शताब्दी ईसा पूर्व से गणराज्य के रूप में स्थापित किया गया था, गौतम बुद्ध के जन्म से पहले ५६३ ईसा पूर्व में, यह दुनिया का पहला गणतंत्र था। जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म वैशाली में हुआ था। आधुनिक-पश्चिमी पश्चिमी बिहार के क्षेत्र में मगध १००० वर्षों के लिए भारत में शक्ति, शिक्षा और संस्कृति का केंद्र बने। ऋग्वेदिक् काल मे यह बृहद्रथ वंश का शासन था।सन् ६८४ ईसा पूर्व में स्थापित हरयंक वंश, राजगृह (आधुनिक राजगीर) के शहर से मगध पर शासन किया। इस वंश के दो प्रसिद्ध राजा बिंबिसार और उनके बेटे अजातशत्रु थे, जिन्होंने अपने पिता को सिंहासन पर चढ़ने के लिए कैद कर दिया था। अजातशत्रु ने पाटलिपुत्र शहर की स्थापना की जो बाद में मगध की राजधानी बन गई। उन्होंने युद्ध की घोषणा की और बाजी को जीत लिया। हिरुआँ वंश के बाद शिशुनाग वंश का पीछा किया गया था। बाद में नंद वंश ने बंगाल से पंजाब तक फैले विशाल साम्राज्य पर शासन किया। भारत की पहली साम्राज्य, मौर्य साम्राज्य द्वारा नंद वंश को बदल दिया गया था। मौर्य साम्राज्य और बौद्ध धर्म का इस क्षेत्र में उभार रहा है जो अब आधुनिक बिहार को बना देता है। ३२५ ईसा पूर्व में मगध से उत्पन्न मौर्य साम्राज्य, चंद्रगुप्त मौर्य ने स्थापित किया था, जो मगध में पैदा हुआ था। इसकी पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) में इसकी राजधानी थी। मौर्य सम्राट, अशोक, जो पाटलीपुत्र (पटना) में पैदा हुए थे, को दुनिया के इतिहास में सबसे बड़ा शासक माना जाता है। मौर्य साम्राज्य भारत की आजतक की सबसे बड़ी सम्राजय थी ये पश्चिम मे ईरान से लेकर पूर्व मे बर्मा तक और उत्तर मे मध्य-एशिया से लेकर दक्षिण मे श्रीलंका तक पूरा भारतवर्ष मे फैला था। इस साम्राज्य के पहले राजा चन्द्रगुप्त मौर्य ने कै ग्रीक् सतराप् को हराकर अफ़ग़ानिस्तां के हिस्से को जीता। इनकी सबसे बड़ी विजय ग्रीस से पश्चिम-एशिय थक के यूनानी राजा सेलेक्यूज़ निकेटर को हराकर पर्शिया का बड़ा हिस्सा जीत लिया था और संधि मे यूनानी राजकुमारी हेलेन से विवाह किये जो कि सेलेक्यूज़ निकटोर कि पुत्री थी और हमेसा के लिए यूनाननियो को भारत से बाहर रखा। इनके प्रधानमंत्री अर्चाय चाणक्य ने अर्थशास्त्र कि रचना कि जो इनके गुरु और मार्गदर्शक थे। इनके पुत्र बिन्दुसार ने इस साम्राज्य को और दूर तक फैलाया व दक्षिण तक स्थापित किया। सम्राट अशोक इस सम्राजय के सबसे बड़े राजा थे। इनका पूरा राज नाम देवानामप्रिय प्रियादर्शी एवं राजा महान सम्राट अशोक था। इन्होंने अपने उपदेश स्तंभ, पहाद्, शीलालेख पे लिखाया जो भारत इतिहास के लिया बहुत महत्वपूर्ण है। येे लेख् ब्राह्मी, ग्रीक, अरमिक् मे पूरे अपने सम्राज्य मे अंकित् किया। इनके मृत्यु के बाद मौर्य सम्राज्य को इनके पुुत्रौ ने दो हिस्से मे बाँट कर पूर्व और पश्चिम मौर्य राज्य कि तरह राज किया। इस साम्राज्य कि अंतिम शासक ब्रिहद्रत् को उनके ब्राह्मिन सेनापति पुष्यमित्र शूंग ने मारकर वे मगध पे अपना शासन स्थापित किया। सन् २४० ए में मगध में उत्पन्न गुप्त साम्राज्य को विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, वाणिज्य, धर्म और भारतीय दर्शन में भारत का स्वर्णिम युग कहा गया। इस वंश के समुद्रगुप्त ने इस सम्राजय को पूरे दक्षिण एशिया मे स्थापित किया। इनके पुत्र चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने भारत के सारे विदेशी घुसपैट्या को हरा कर देश से बाहर किया इसीलिए इन्हे सकारी की उपाधि दी गई। इन्ही गुप्त राजाओं मे से प्रमुख स्कंदगुप्त ने भारत मे हूणों का आक्रमं रोका और उनेे भारत से बाहर भगाया और देश की बाहरी आक्रमण कारी से रक्षा की। उस समय गुप्त साम्राज्य दुनिया कि सबसे बड़ी शक्तिशाली साम्राज्य था। इसका राज्य पश्चिम मे पर्शिया या बग़दाद से पूर्व मे बर्मा तक और उत्तर मे मध्य एशिया से लेकर दक्षिण मे कांचीपुरम तक फैला था। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (पटना वर्तमान में) था। इस साम्राज्य का प्रभाव पूरी विश्व मे था रोम, ग्रीस, अरब से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया तक था। मध्यकाल मगध में बौद्ध धर्म मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी के आक्रमण की वजह से गिरावट में पड़ गया, जिसके दौरान कई बिहार के नालंदा और विक्रमशिला के विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों को नष्ट कर दिया गया। यह दावा किया गया कि १२ वीं शताब्दी के दौरान हजारों बौद्ध भिक्षुओं की हत्या हुई थी। डी.एन. झा सुझाव देते हैं, इसके बजाय, ये घटनाएं सर्वोच्चता के लिए लड़ाई में बौद्ध ब्राह्मण की झड़पों का परिणाम थीं। १५४० में, महान पस्तीस के मुखिया, सासाराम के शेर शाह सूरी, हुमायूं की मुगल सेना को हराकर मुगलों से उत्तरी भारत ले गए थे। शेर शाह ने अपनी राजधानी दिल्ली की घोषणा की और ११ वीं शताब्दी से लेकर २० वीं शताब्दी तक, मिथिला पर विभिन्न स्वदेशीय राजवंशों ने शासन किया था। इनमें से पहला, जहां कर्नाट, अनवर राजवंश, रघुवंशी और अंततः राज दरभंगा के बाद। इस अवधि के दौरान मिथिला की राजधानी दरभंगा में स्थानांतरित की गई थी। आधुनिक काल १८५७ के प्रथम सिपाही विद्रोह में बिहार के बाबू कुंवर सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। १९०५ में बंगाल का विभाजन के फलस्वरूप बिहार नाम का राज्य अस्तित्व में आया। १९३६ में उड़ीसा इससे अलग कर दिया गया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बिहार में चंपारण के विद्रोह को, अंग्रेजों के खिलाफ बग़ावत फैलाने में अग्रण्य घटनाओं में से एक गिना जाता है। स्वतंत्रता के बाद बिहार का एक और विभाजन हुआ और १५ नवंबर २००० में झारखंड राज्य को इससे अलग कर दिया गया। भारत छोड़ो आन्दोलन में भी बिहार की अहम भूमिका रही थी।यह भी देखें भारत छोड़ो आन्दोलन और बिहार भौगोलिक स्थिति उत्तर भारत में २४°२०'१०" ~ २७°३१'१५" उत्तरी अक्षांश तथा ८३°१९'५०" ~ ८८°१७'४०" पूर्वी देशांतर के बीच बिहार एक हिंदी भाषी राज्य है। राज्य का कुल क्षेत्रफल ९४,१६३ वर्ग किलोमीटर है जिसमें ९२,२५७.५१ वर्ग किलोमीटर ग्रामीण क्षेत्र है। झारखंड के अलग हो जाने के बाद बिहार की भूमि मुख्यतः नदियों के मैदान एवं कृषियोग्य समतल भूभाग है। गंगा के पूर्वी मैदान में स्थित इस राज्य की औसत ऊँचाई १७३ फीट है। भौगोलिक तौर पर बिहार को तीन प्राकृतिक विभागो में बाँटा जाता है- उत्तर का पर्वतीय एवं तराई भाग, मध्य का विशाल मैदान तथा दक्षिण का पहाड़ी किनारा। उत्तर का पर्वतीय प्रदेश सोमेश्वर श्रेणी का हिस्सा है। इस श्रेणी की औसत उचाई ४५५ मीटर है परन्तु इसका सर्वोच्च शिखर ८७४ मीटर उँचा है। सोमेश्वर श्रेणी के दक्षिण में तराई क्षेत्र है। यह दलदली क्षेत्र है जहाँ साल वॄक्ष के घने जंगल हैं। इन जंगलों में प्रदेश का इकलौता बाघ अभयारण्य वाल्मिकीनगर में स्थित है। मध्यवर्ती विशाल मैदान बिहार के ९५% भाग को समेटे हुए हैं। भौगोलिक तौर पर इसे चार भागों में बाँटा जा सकता है:- १- तराई क्षेत्र यह सोमेश्वर श्रेणी के तराई में लगभग १० किलोमीटर चौ़ड़ा कंकर-बालू का निक्षेप है। इसके दक्षिण में तराई उपक्षेत्र है जो प्रायः दलदली है। २-भांगर क्षेत्र यह पुराना जलोढ़ क्षेत्र है। समान्यतः यह आस पास के क्षेत्रों से ७-८ मीटर ऊँचा रहता है। ३-खादर क्षेत्र इसका विस्तार गंडक से कोसी नदी के क्षेत्र तक सारे उत्तरी बिहार में है। प्रत्येक वर्ष आने वाली बाढ़ के कारण यह क्षेत्र बहुत उपजाऊ है। परन्तु इसी बाढ़ के कारण यह क्षेत्र तबाही के कगार पर खड़ा है। गंगा नदी राज्य के लगभग बीचों-बीच बहती है। उत्तरी बिहार बागमती, कोशी, बूढी गंडक, गंडक, घाघरा और उनकी सहायक नदियों का समतल मैदान है। सोन, पुनपुन, फल्गू तथा किऊल नदी बिहार में दक्षिण से गंगा में मिलनेवाली सहायक नदियाँ है। बिहार के दक्षिण भाग में छोटानागपुर का पठार, जिसका अधिकांश हिस्सा अब झारखंड है, तथा उत्तर में हिमालय पर्वत की नेपाल श्रेणी है। हिमालय से उतरने वाली कई नदियाँ तथा जलधाराएँ बिहार होकर प्रवाहित होती है और गंगा में विसर्जित होती हैं। वर्षा के दिनों में इन नदियों में बाढ़ की एक बड़ी समस्या है। राज्य का औसत तापमान गृष्म ऋतु में ३५-४५ डिग्री सेल्सियस तथा जाड़े में ५-१५ डिग्री सेल्सियस रहता है। जाड़े का मौसम नवंबर से मध्य फरवरी तक रहता है। अप्रैल में गृष्म ऋतु का आरंभ होता है जो जुलाई के मध्य तक रहता है। जुलाई-अगस्त में वर्षा ऋतु का आगमन होता है जिसका अवसान अक्टूबर में होने के साथ ही ऋतु चक्र पूरा हो जाता है। औसतन १२०५ मिलीमीटर वर्षा का का वार्षिक वितरण लगभग ५२ दिनों तक रहता है जिसका अधिकांश भाग मानसून से होनेवाला वर्षण है। उत्तर में भूमि प्रायः सर्वत्र उपजाऊ एवं कृषि योग्य है। धान, गेंहूँ, दलहन, मक्का, तिलहन, तम्बाकू,सब्जी तथा केला, आम और लीची जैसे कुछ फलों की खेती की जाती है। हाजीपुर का केला एवं मुजफ्फरपुर की लीची बहुत ही प्रसिद्ध है। भाषा और संस्कृति हिंदी बिहार की राजभाषा और मैथिली द्वितीय राजभाषा है।मैथिली भारतीय संविधान के अष्टम अनुसूची में सम्मिलित एकमात्र बिहारी भाषा है।भोजपुरी, मगही, अंगिका तथा बज्जिका बिहार में बोली जाने वाली अन्य प्रमुख भाषाओं और बोलियों में सम्मिलित हैं।प्रमुख पर्वों में छठ, होली, दीपावली, दशहरा, महाशिवरात्रि, नागपंचमी, श्री पंचमी, मुहर्रम, ईद,तथा क्रिसमस हैं। सिक्खों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म स्थान होने के कारण पटना सिटी (पटना) में उनकी जयन्ती पर भी भारी श्रद्धार्पण देखने को मिलता है। बिहार ने हिंदी को सबसे पहले राज्य की अधिकारिक भाषा माना है। खानपान बिहार अपने खानपान की विविधता के लिए प्रसिद्ध है। शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनो व्यंजन पसंद किये जाते हैं। मिठाईयों की विभिन्न किस्मों के अतिरिक्त अनरसा की गोली, खाजा, मोतीचूर लड्डू,गया की तिलकुट,थावे(गोपालगंज) के पेरुकिया ,रफीगंज का छेना, यहाँ की खास पसंद है। सत्तू, चूड़ा-दही और लिट्टी-चोखा जैसे स्थानीय व्यंजन तो यहाँ के लोगों की कमजोरी हैं। लहसुन की चटनी भी बहुत पसंद करते हैं। लालू प्रसाद के रेल मंत्री बनने के बाद तो लिट्टी-चोखा भारतीय रेल के महत्वपूर्ण स्टेशनों पर भी मिलने लगा है। सुबह के नास्ते में चूड़ा-दही या पूरी-जलेबी खूब खाये जाते हैं। चावल-दाल-सब्जी और रोटी बिहार का सामान्य भोजन है। बिहार की मालपुआ काफी स्वादिष्ट होता है। यह उत्तर भारत में बनाये जाने वाली डिश है। बिहार की बाकी व्यंजनों में दालपूरी, खाजा, मखाना खीर, पुरूकिया (गुजिया), ठेकुआ, भेलपुरी, खजुरी, बैगन का भरता आदि शामिल है। खेलकूद भारत के अन्य कई जगहों की तरह क्रिकेट यहाँ भी सर्वाधिक लोकप्रिय है। इसके अलावा फुटबॉल, हाकी, टेनिस, खो-खो और गोल्फ भी पसन्द किया जाता है। बिहार का अधिकांश हिस्सा ग्रामीण होने के कारण पारंपरिक भारतीय खेल कबड्डी हैं। बिहार राज्य के प्रमुख् उद्योग राज्‍य के मुख्‍य उद्योग हैं - मुंगेर में सिगरेट कारखाना आई टी सी मुंगेर में आई टी सी के अन्य उत्पाद अगरबत्ती, माचिस तथा चावल-आटा आदि का निर्माण मुंगेर में बंदुक फैक्टरी मुेंगेर के जमालपुर में रेल कारखाना एशिया प्रसिद्ध रेल क्रेन कारखाना जमालपुर भागलपुर में शिल्क उधाेग मुजफ्फरपुर और मोकामा में 'भारत वैगन लिमिटेड' का रेलवे वैगन संयंत्र, बरौनी में भारतीय तेल निगम का तेलशोधक कारख़ाना है। बरौनी का एच.पी.सी.एल. और अमझोर का पाइराइट्स फॉस्‍फेट एंड कैमिकल्‍स लिमिटेड (पी.पी.सी.एल.) राज्‍य के उर्वरक संयंत्र हैं। सीवान, भागलपुर, पंडौल, मोकामा और गया में पांच बड़ी सूत कताई मिलें हैं। उत्तर व दक्षिण बिहार में 13 चीनी मिलें हैं, जो निजी क्षेत्र की हैं तथा 15 चीनी मिलें सार्वजनिक क्षेत्र की हैं जिनकी कुल पेराई क्षमता 45,00 टी. पश्चिमी चंपारण, मुजफ्फरपुर और बरौनी में चमड़ा प्रसंस्‍करण के उद्योग है। कटिहार और समस्‍तीपुर में तीन बड़े पटसन के कारखाने हैं। हाजीपुर में दवाएं बनाने का कारख़ाना ,औरंगाबाद और पटना में खाद्य प्रसंस्‍करण और वनस्‍पति बनाने के कारखाने हैं। इसके अलावा बंजारी के कल्‍याणपुर सीमेंट लिमिटेड नामक सीमेंट कारखाने का बिहार के औद्योगिक नक्‍शे में महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। औरंगाबाद का नया श्री सीमेंट का कारखाना रेल इंजन कारखाना, मधेपुरा रेल इंजन कारखाना मढ़ौरा मोकामा के दरियापुर मे बाटा नामक कम्पनी के जुते के कारखाने है । मधेपुरा की यह फैक्ट्री अपने आप में देश में सबसे आधुनिक है. फैक्ट्री के निर्माण में ऑल्स्टम कंपनी ने 74 प्रतिशत राशि का निवेश किया है, वहीं भारतीय रेलवे की इस फैक्ट्री में 26 प्रतिशत हिस्सेदारी है. 260 एकड़ में फैली हुई है यह फैक्ट्री । सिंचाई बिहार में कुल सिंचाई क्षमता 28.63 लाख हेक्‍टेयर है। यह क्षमता बड़ी तथा मंझोली सिंचाई परियोजनाओं से जुटाई जाती है। यहाँ बड़ी और मध्‍यम सिंचाई परियोजनाओं का सृजन किया गया है और 48.97 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्रफल की सिंचाई प्रमुख सिंचाई योजनाओं के माध्‍यम से की जाती है। बिहार में शिचाई नलकूप, कुंआ,और मानसून पर निर्भर करता है शिक्षा एक समय बिहार शिक्षा के सर्वप्रमुख केन्द्रों में गिना जाता था। नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा ओदंतपुरी विश्वविद्यालय प्राचीन बिहार के गौरवशाली अध्ययन केंद्र थे। १९१७ में खुलने वाला पटना विश्वविद्यालय काफी हदतक अपनी प्रतिष्ठा कायम रखने में सफल रहा। किंतु स्वतंत्रता के पश्चात शैक्षणिक संस्थानों में राजनीति तथा अकर्मण्यता करने से शिक्षा के स्तर में गिरावट आई। हाल के दिनों में उच्च शिक्षा की स्थिति सुधरने लगी है। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की स्थिति भी अच्छी हो रही है। हाल में पटना में एक भारतीय प्राद्यौगिकी संस्थान और राष्ट्रीय प्राद्यौगिकी संस्थान तथा हाजीपुर में केंद्रीय प्लास्टिक इंजिनियरिंग रिसर्च इंस्टीच्युट तथा केंद्रीय औषधीय शिक्षा एवं शोध संस्थान खोला गया है, जो अच्छा संकेत है। बिहार के सभी जिलों मे 2019 में एक-एक सरकारी इंजिनियरिंग कॉलेज खोला गया है। विश्वविद्यालय भारतीय सूचना प्रोद्योगिकी संस्थान, भागलपुर महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, पूर्वी चम्पारण दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय, बोधगया बिहार कृषि विशवविधालय सबौर, भागलपुर पटना विश्वविद्यालय, पटना पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, पटना मगध विश्वविद्यालय, बोधगया बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय, छपरा भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा मुंगेर विश्वविद्यालय, मुंगेर पूर्णिया विश्वविद्यालय, पूर्णिया वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय, पटना मौलाना मजहरुल हक़ अरबी-फ़ारसी विश्वविद्यालय, पटना राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय, पटना चिकित्सा संस्थान पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल, पटना इंदिरागाँधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना नालन्दा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, पटना बुद्धा दंत चिकित्सा संस्थान एवं अस्पताल, पटना श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, मुजफ्फरपुर राय बहादुर टुनकी साह होमियोपैथिक कॉलेज और अस्पताल, मुजफ्फरपुर अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, गया दरभंगा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, लहेरियासराय कटिहार मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, कटिहार जवाहरलाल नेहरू मेडिकल काॅलेज और अस्पताल, भागलपुर वर्धमान इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइन्स, पावापुरी, नालंदा एम्स पटना मधुबनी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, मधुबनी नारायण मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल, रोहतास इंजीनियरी संस्थान राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना मुजफ्फरपुर प्रौद्योगिकी संस्थान अन्य प्रमुख शैक्षणिक संस्थान शेरिकलचर इंसटीचयूट भागलपुर चाणक्य विधि विश्वविद्यालय, पटना अनुग्रह नारायण सामाजिक परिवर्तन संस्थान, पटना ललितनारायण मिश्रा सामाजिक परिवर्तन संस्थान, पटना केंद्रीय प्लास्टिक इंजिनियरिंग रिसर्च इंस्टीच्युट (सिपेट), हाजीपुर केंद्रीय औषधीय शिक्षा एवं शोध संस्थान (नाइपर), हाजीपुर होटल प्रबंधन, खानपान एवं पोषाहार संस्थान, हाजीपुर प्राकृत जैनशास्त्र एवं अहिंसा संस्थान, वैशाली भर्ती एजेंसी बिहार लोक सेवा आयोग बिहार कर्मचारी चयन आयोग बिहार पुलिस अधीनस्थ सेवा आयोग बिहार सरकार बिहार राज्य भारतीय गणराज्य के संघीय ढाँचे में द्विसदनीय व्यवस्था के अन्तर्गत आता है। राज्य का संवैधानिक मुखिया राज्यपाल है लेकिन वास्तविक सत्ता मुख्यमंत्री और मंत्रीपरिषद के हाथ में होता है। विधानसभा में चुनकर आनेवाले विधायकों द्वारा मुख्यमंत्री का चुनाव पाँच वर्षों के लिए किया जाता है जबकि राज्यपाल की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। प्रत्यक्ष चुनाव में बहुमत प्राप्त करनेवाले राजनीतिक दल अथवा गठबंधन के आधार पर सरकार बनाए जाते हैं। उच्च सदन या विधान परिषद के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष ढंग से ६ वर्षों के लिए होता है। प्रशासन प्रशासनिक सुविधा के लिए बिहार राज्य को 9 प्रमंडल तथा 38 मंडल (जिला) में बाँटा गया है। जिलों को क्रमश: 101 अनुमंडल, 534 प्रखंड (अंचल), 8,471 पंचायत, 45,103 गाँव में बाँटा गया है। राज्य का मुख्य सचिव नौकरशाही का प्रमुख होता है जिसे श्रेणीक्रम में आयुक्त, जिलाधिकारी, अनुमंडलाधिकारी, प्रखंड विकास पदाधिकारी या अंचलाधिकारी तथा इनके साथ जुड़े अन्य अधिकारी एवं कर्मचारीगण रिपोर्ट करते हैं। पंचायत तथा गाँवों का कामकाज़ सीधेतौर पर चुनाव कराकर मुखिया, सरपंच तथा वार्ड सदस्यों के अधीन संचालित किया जाता है। नगरपालिका आम निर्वाचन 2017 के बाद बिहार में नगर निगमों की संख्या 19, नगर परिषदों की संख्या 49 और नगर पंचायतों की संख्या 80 है।इसके साथ ही बिहार की सरकार अपने नागरिको के लिए सभी सुविधा जनक कार्य भी करते है जैसे की हाल ही में उनके द्वारा online portal rtps जारी किया गया. पटना, तिरहुत, सारण, दरभंगा, कोशी, पूर्णिया, भागलपुर, मुंगेर तथा मगध प्रमंडल के अन्तर्गत आनेवाले जिले इस प्रकार हैं: अररिया अरवल औरंगाबाद कटिहार किशनगंज खगड़िया गया गोपालगंज छपरा जमुई जहानाबाद दरभंगा नवादा नालंदा पटना पश्चिम चंपारण पूर्णिया पूर्वी चंपारण बक्सर बाँका बेगूसराय भभुआ भोजपुर भागलपुर मधेपुरा मुंगेर मुजफ्फरपुर मधुबनी सासाराम लखीसराय वैशाली सहरसा समस्तीपुर सीतामढी सुपौल शिवहर शेखपुरा दर्शनीय स्थल कटिहार त्रिमोहिनी संगम बिहार के कटिहार जिले के अंतर्गत कुर्सेला प्रखंड के कटरिया गांव के NH-31 से रास्ता त्रिमोहिनी संगम की ओर जाती है।प्रकृति की अनुपम दृश्य देखने को मिलता है। यहाँ तीन नदियों का संगम है जिसमे प्रमुख रूप से गंगा और कोशी का मिलन है। गंगा नदी दक्षिण से उत्तर दिशा में प्रवाहित होती है। कलबलिया नदी की एक छोटी धारा इस उत्तरवाहिनी गंगा तट से मिलकर संगम करती है। 12 फरवरी वर्ष 1948 में महात्मा गांधी के अस्थि कलश जिन 12 तटों पर विसर्जित किए गए थे, त्रिमोहिनी संगम भी उनमें से एक है | पटना एवं आसपासः पटना राज्य की वर्तमान राजधानी तथा महान ऐतिहासिक स्थल है। अतीत में यह सत्ता, धर्म तथा ज्ञान का केंद्र रहा है। निम्न स्थल पटना के महत्वपूर्ण दार्शनिक स्थल हैं: प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतें: कुम्रहार परिसर, अगमकुआँ, महेन्द्रूघाट, शेरशाह के द्वारा बनवाए गए किले का अवशेष ब्रिटिश कालीन भवन: जालान म्यूजियम, गोलघर, पटना संग्रहालय, विधान सभा भवन, हाईकोर्ट भवन, सदाकत आश्रम धार्मिक स्थल : महावीर मंदिर,बड़ी पटनदेवी,छोटी पटनदेवी,शीतला माता मंदिर,इस्कॉन मंदिर,हरमंदिर(पटना), महाबोधि मंदिर(गया),एनआईटी घाट, माता सीता की जन्मस्थली(सीतामढ़ी), कवि विद्यापति सह उगना महादेव मंदिर(मधुबनी), द•भारत स्थापत्यकला विष्णु मंदिर(सुपौल), सिहेश्वरनाथ मंदिर(मधेपुरा),काली मंदिर रामनगर महेश(कुमारखंड,मधेपुरा),सबसे ऊँची काली मंदिर(अररिया), नृसिंह अवतार स्थल(पूर्णियाँ), सूर्य मंदिर,नवलख्खा मंदिर,थावे(गोपालगंज)माँ दुर्गा माता मंदिर,नेचुआ जलालपुर रामबृक्ष धाम, दुर्गा मंदिर, अमनौर वैष्णो धाम ,आमी अम्बिका दुर्गा मंदिर,माँ दुर्गा की मंदिर छपरा, सीता जी का जन्म स्थान, पादरी की हवेली, शेरशाह की मस्जिद, बेगू ह्ज्जाम की मस्जिद, पत्थर की मस्जिद, जामा मस्जिद, फुलवारीशरीफ में बड़ी खानकाह, मनेरशरीफ - सूफी संत हज़रत याहया खाँ मनेरी की दरगाह, भारत की प्रथम महिला सूफी संत हजरत बीबी कमाल का कब्र (जहानाबाद) mithilanchal ज्ञान-विज्ञान के केंद्र: पटना तारामंडल, पटना विश्वविद्यालय, सच्चिदानंद सिन्हा लाइब्रेरी, संजय गाँधी जैविक उद्यान, श्रीकृष्ण सिन्हा विज्ञान केंद्र, खुदाबक़्श लाइब्रेरी एवं विज्ञान परिसर सारण तथा आसपास प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा से लगनेवाला सोनपुर मेला, सारण जिला का नवपाषाण कालीन चिरांद गाँव, कोनहारा घाट, नेपाली मंदिर, रामचौरा मंदिर, १५वीं सदी में बनी मस्जिद, दीघा-सोनपुर रेल-सह-सड़क पुल, महात्मा गाँधी सेतु, गुप्त एवं पालकालीन धरोहरों वाला चेचर गाँव वैशाली तथा आसपासछठी सदी इसापूर्व में वज्जिसंघ द्वारा स्थापित विश्व का प्रथम गणराज्य के अवशेष, अशोक स्तंभ, बसोकुंड में भगवान महावीर की जन्म स्थली, अभिषेक पुष्करणी, विश्व शांतिस्तूप, राजा विशाल का गढ, चौमुखी महादेव मंदिर, भगवान महावीर के जन्मदिन पर वैशाख महीने में आयोजित होनेवाला वैशाली महोत्सव राजगीर तथा आसपास राजगृह मगध साम्राज्य की पहली राजधानी तथा हिंदू, जैन एवं बौध धर्म का एक प्रमुख दार्शनिक स्थल है। भगवान बुद्ध तथा वर्धमान महावीर से जुडा कई स्थान अति पवित्र हैं। वेणुवन, सप्तपर्णी गुफा, गृद्धकूट पर्वत, जरासंध का अखाड़ा, गर्म पानी के कुंड, मख़दूम कुंड आदि राजगीर के महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल हैं। नालंदा तथा आसपासनालंदा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष, पावापुरी में भगवान महावीर का परिनिर्वाण स्थल एवं जलमंदिर, बिहारशरीफ में मध्यकालीन किले का अवशेष एवं १४वीं सदी के सूफी संत की दरगाह (बड़ी दरगाह एवं छोटी दरगाह), नवादा के पास ककोलत जलप्रपात गया एवं बोधगया हिंदू धर्म के अलावे बौद्ध धर्म मानने वालों का यह सबसे प्रमुख दार्शनिक स्थल है। पितृपक्ष के अवसर पर यहाँ दुनिया भर से हिंदू आकर फल्गू नदी किनारे पितरों को तर्पण करते हैं। विष्णुपद मंदिर, बोधगया में भगवान बुद्ध से जुड़ा पीपल का वृक्ष तथा महाबोधि मंदिर के अलावे तिब्बती मंदिर, थाई मंदिर, जापानी मंदिर, बर्मा का मंदिर, बौधनी पहाड़ी { इमामगंज } भागलपुर तथा आसपासप्राचीन शिक्षा स्थल के अलावे यह बिहार में तसर सिल्क उद्योग केंद्र है। पाल शासकों द्वारा बनवाये गये प्राचीन विश्व विख्यात विक्रमशिला विश्वविद्यालय का अवशेष, वैद्यनाथधाम मंदिर, सुलतानगंज, मुंगेर में बनवाया मीरकासिम का किला और मंदार पर्वत बौंसी बाँका एक प्रमुख धार्मिक स्थल जो तीन धर्मो का संगम स्थल है। विष्णुपुराण के अनुसार समुद्र मंथन यही संपन्न हुआ था और यही पर्वत जिसका प्राचीन नाम मंद्राचल पर्वत( मंदार वर्तमान में) जो मथनी के रूप में प्रयुक्त हुआ था। चंपारण सम्राट अशोक द्वारा लौरिया में स्थापित स्तंभ, लौरिया का नंदन गढ़, नरकटियागंज का चानकीगढ़, वाल्मीकिनगर जंगल, बापू द्वारा स्थापित भीतीहरवा आश्रम, तारकेश्वर नाथ तिवारी का बनवाया रामगढ़वा हाई स्कूल, स्वतंत्रता आन्दोलन के समय महात्मा गाँधी एवं अन्य सेनानियों की कर्मभूमि तथा अरेराज में भगवान शिव का मन्दिर, केसरिया में दुनिया का सबसे बड़ा बुद्ध स्तूप जो पूर्वी चंपारण में एक आदर्श पर्यटन स्थल है | . सीतामढी तथा आसपास पुनौरा में देवी सीता की जन्मस्थली, जानकी मंदिर एवं जानकी कुंड, हलेश्वर स्थान, पंथपाकड़, यहाँ से सटे नेपाल के जनकपुर जाकर भगवान राम का स्वयंवर स्थल भी देखा जा सकता है। सासाराम अफगान शैली में बनाया गया अष्टकोणीय शेरशाह का मक़बरा वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। देव - देव सूर्य मंदिर देव सूर्य मंदिर, देवार्क सूर्य मंदिर या केवल देवार्क के नाम से प्रसिद्ध, यह भारतीय राज्य बिहार के औरंगाबाद जिले में देव नामक स्थान पर स्थित एक हिंदू मंदिर है जो देवता सूर्य को समर्पित है। यह सूर्य मंदिर अन्य सूर्य मंदिरों की तरह पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है। देवार्क मंदिर अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए भी जाना जाता है। पत्थरों को तराश कर बनाए गए इस मंदिर की नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना है। इतिहासकार इस मंदिर के निर्माण का काल छठी - आठवीं सदी के मध्य होने का अनुमान लगाते हैं जबकि अलग-अलग पौराणिक विवरणों पर आधारित मान्यताएँ और जनश्रुतियाँ इसे त्रेता युगीन अथवा द्वापर युग के मध्यकाल में निर्मित बताती हैं। परंपरागत रूप से इसे हिंदू मिथकों में वर्णित, कृष्ण के पुत्र, साम्ब द्वारा निर्मित बारह सूर्य मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर के साथ साम्ब की कथा के अतिरिक्त, यहां देव माता अदिति ने की थी पूजा मंदिर को लेकर एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया। अतिरिक्त पुरुरवा ऐल, और शिवभक्त राक्षसद्वय माली-सुमाली की अलग-अलग कथाएँ भी जुड़ी हुई हैं जो इसके निर्माण का अलग-अलग कारण और समय बताती हैं। एक अन्य विवरण के अनुसार देवार्क को तीन प्रमुख सूर्य मंदिरों में से एक माना जाता है, अन्य दो लोलार्क (वाराणसी) और कोणार्क हैं। मंदिर में सामान्य रूप से वर्ष भर श्रद्धालु पूजा हेतु आते रहते हैं। हालाँकि, यहाँ बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में विशेष तौर पर मनाये जाने वाले छठ पर्व के अवसर पर भारी भीड़ उमड़ती है। जमुई कोकिलचंद बाबा मंदिर, गंगरा जमुई जिले में गंगरा एक गाँव है, जो बाबा कोकिलचंद के पैतृक निवास के लिए प्रसिद्ध है। कोकिलचंद बाबा मंदिर में चारों ओर से लोग पूजा करने आते हैं। यह 700 साल पुराना माना जाता है। इस गाँव के कोई भी लोग शराब नहीं पीते है। यहाँ लगभग 700 वर्षों से शराबबंदी हैं। जीवन उन्नयन के लिऐ बाबा कोकिलचंद का त्रिसूत्रीय संदेश मूल मंत्र के समान है । ये त्रिसूत्र है - 1* शराब से दूर रहना 2*नारी का सम्मान करना 3* अन्न की रक्षा करना जो आज भी प्रासंगिक है । बाबा कोकिलचंद धाम गंगरा सदियों से शराब मुक्त है । इन्हें भी देखें बिहार का इतिहास पटना के पर्यटन स्थल बिहारी खाना सुपर-३० सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ बिहार सरकार का जालस्थल बिहार में गीत-संगीत बिहार के पर्यटन स्थल - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर बिहार में वैकेंसी की जानकारी भारत के राज्य बिहार
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राव कदमसिंह गुजर
राजा कदमसिंह 1857 ई0 के स्वतंत्रता संग्राम मे मेरठ के पूर्वी क्षेत्र में क्रान्तिकारियों का नेता था। उसके साथ दस हजार क्रान्तिकारी थे, जो कि प्रमुख रूप से मवाना, हस्तिनापुर और बहसूमा क्षेत्र के थे। ये क्रान्तिकारी कफन के प्रतीक के तौर पर सिर पर सफेद पगड़ी बांध कर चलते थे। 10 मई की संध्या को मेरठ क्रान्ति की शूरूआत धन सिंह द्वारा हो चुकी थी। मेरठ के तत्कालीन कलक्टर आर0 एच0 डनलप द्वारा मेजर जनरल हैविट को 28 जून 1857 को लिखे पत्र से पता चलता है कि क्रान्तिकारियों ने पूरे जिले में खुलकर विद्रोह कर दिया और परीक्षतगढ़ के राजा कदम सिंह को पूर्वी परगने का राजा घोषित कर दिया। राजा कदम सिंह और दलेल सिंह के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों ने परीक्षतगढ़ की पुलिस पर हमला बोल दिया और उसे मेरठ तक खदेड दिया। उसके बाद, अंग्रेजो से सम्भावित युद्व की तैयारी में परीक्षतगढ़ के किले पर तीन तोपे चढ़ा दी। ये तोपे तब से किले में ही दबी पडी थी जब सन् 1803 में अंग्रेजो ने दोआब में अपनी सत्ता जमाई थी। इसके बाद हिम्मतपुर ओर बुकलाना के क्रान्तिकारियों ने राजा कदम सिंह के नेतृत्व में गठित क्रान्तिकारी सरकार की स्थापना के लिए अंग्रेज परस्त गाॅवों पर हमला बोल दिया और बहुत से गद्दारों को मौत के घाट उतार दिया। क्रान्तिकारियों ने इन गांव से जबरन लगान वसूला। राजा कदम सिंह बहसूमा परीक्षतगढ़ रियासत के अंतिम राजा नैनसिंह गुर्जर के भाई का पौत्र था। राजा नैनसिंह गुर्जर के समय रियासत में 349 गांव थे और इसका क्षेत्रफल लगभग 800 वर्ग मील था। 1818 में नैन सिंह के मृत्यू के बाद अंग्रेजो ने रियासत पर कब्जा कर लिया था। इस क्षेत्र के लोग पुनः अपना राज चाहते थे, इसलिए क्रान्तिकारियों ने कदम सिंह को अपना राजा घोषित कर दिया। 10 मई 1857 को मेरठ में हुए सैनिक विद्रोह की खबर फैलते ही मेरठ के पूर्वी क्षेत्र में क्रान्तिकारियों ने राजा कदम सिंह के निर्देश पर सभी सड़के रोक दी और अंग्रेजों के यातायात और संचार को ठप कर दिया। मार्ग से निकलने वाले सभी यूरोपियनो को लूट लिया। मवाना-हस्तिनापुर के क्रान्तिकारियों ने राजा कदम सिंह के भाई दलेल सिंह, पिर्थी सिंह और देवी सिंह के नेतृत्व में बिजनौर के विद्रोहियों के साथ साझा मोर्चा गठित किया और बिजनौर के मण्डावर, दारानगर और धनौरा क्षेत्र में धावे मारकर वहाँ अंग्रेजी राज को हिला दिया। इनकी अगली योजना मण्डावर के क्रान्तिकारियों के साथ बिजनौर पर हमला करने की थी। मेरठ और बिजनौर दोनो ओर के घाटो, विशेषकर दारानगर और रावली घाट, पर राजा कदमसिंह का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। ऐसा प्रतीत होता है कि कदम सिंह विद्रोही हो चुकी बरेली बिग्रेड के नेता बख्त खान के सम्पर्क में था क्योकि उसके समर्थकों ने ही बरेली बिग्रेड को गंगा पर करने के लिए नावे उपलब्ध कराई थी। इससे पहले अंग्रेजो ने बरेली के विद्रोहियों को दिल्ली जाने से रोकने के लिए गढ़मुक्तेश्वर के नावो के पुल को तोड दिया था। 27 जून 1857 को बरेली बिग्रेड का बिना अंग्रेजी विरोध के गंगा पार कर दिल्ली चले जाना खुले विद्रोह का संकेत था। जहाँ बुलन्दशहर मे विद्रोहियों का नेता वलीदाद खान वहाँ का स्वामी बन बैठा, वही मेरठ में क्रान्तिकारियों ने कदम सिंह को राजा घोषित किया और खुलकर विद्रोह कर दिया। 28 जून 1857 को मेजर नरल हैविट को लिखे पत्र में कलक्टर डनलप ने मेरठ के हालातो पर चर्चा करते हुये लिखा कि यदि हमने शत्रुओ को सजा देने और अपने दोस्तों की मदद करने के लिए जोरदार कदम नहीं उठाए तो जनता हमारा पूरी तरह साथ छोड़ देगी और आज का सैनिक और जनता का विद्रोह कल व्यापक क्रान्ति में परिवर्तित हो जायेगा। मेरठ के क्रान्तिकारी हालातो पर काबू पाने के लिए अंग्रेजो ने मेजर विलयम्स के नेतृत्व में खाकी रिसाले का गठन किया। जिसने 4 जुलाई 1857 को पहला हमला पांचली गांव पर किया। इस घटना के बाद राजा कदम सिंह ने परीक्षतगढ़ छोड दिया और बहसूमा में मोर्चा लगाया, जहाँ गंगा खादर से उन्होने अंग्रेजो के खिलाफ लडाई जारी रखी। 18 सितम्बर को राजा कदम सिंह के समर्थक क्रान्तिकारियों ने मवाना पर हमला बोल दिया और तहसील को घेर लिया। खाकी रिसाले के वहाँ पहुचने के कारण क्रान्तिकारियों को पीछे हटना पडा। 20 सितम्बर को अंग्रेजो ने दिल्ली पर पुनः अधिकार कर लिया। हालातों को देखते हुये राजा कदम सिंह एवं दलेल सिंह अपने हजारो समर्थको के साथ गंगा के पार बिजनौर चले गए जहाँ नवाब महमूद खान के नेतृत्व में अभी भी क्रान्तिकारी सरकार चल रही थी। थाना भवन के काजी इनायत अली और दिल्ली से तीन मुगल शहजादे भी भाग कर बिजनौर पहुँच गए। राजा कदम सिंह आदि के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों ने बिजनौर से नदी पार कर कई अभियान किये। उन्होने रंजीतपुर मे हमला बोलकर अंग्रेजो के घोडे छीन लिये। 5 जनवरी 1858 को नदी पार कर मीरापुर मुज़फ्फरनगर मे पुलिस थाने को आग लगा दी। इसके बाद हरिद्वार क्षेत्र में मायापुर गंगा नहर चौकी पर हमला बोल दिया। कनखल में अंग्रेजो के बंगले जला दिये। इन अभियानों से उत्साहित होकर नवाब महमूद खान ने कदम सिंह एवं दलेल सिंह आदि के साथ मेरठ पर आक्रमण करने की योजना बनाई परन्तु उससे पहले ही 28 अप्रैल 1858 को बिजनौर में क्रान्तिकारियों की हार हो गई और अंग्रेजो ने नवाब को रामपुर के पास से गिरफ्तार कर लिया। उसके बाद बरेली मे मे भी क्रान्तिकारी हार गए। कदम सिंह एवं दलेल सिंह का उसके बाद क्या हुआ कुछ पता नही चलता। 1857 की क्रांति की शुरूआत इतिहास की पुस्तकें कहती हैं कि 1857 की क्रान्ति की शुरूआत 10 मई 1857 की संध्या को मेरठ मे हुई थी और इसको समस्त भारतवासी 10 मई को प्रत्येक वर्ष क्रान्ति दिवस के रूप में मनाते हैं, क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है 10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध साझा मोर्चा गठित कर क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। सैनिकों के विद्रोह की खबर फैलते ही मेरठ की शहरी जनता और आस-पास के गांव विशेषकर पांचली, घाट, नंगला, गगोल इत्यादि के हजारों ग्रामीण मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए। इसी कोतवाली में धनसिंह गुर्जर कोतवाल (प्रभारी) के पद पर कार्यरत थे। मेरठ की पुलिस बागी हो चुकी थी। धन सिंह कोतवाल क्रान्तिकारी भीड़ (सैनिक, मेरठ के शहरी, पुलिस और किसान) में एक प्राकृतिक नेता के रूप में उभरे। उनका आकर्षक व्यक्तित्व, उनका स्थानीय होना, (वह मेरठ के निकट स्थित गांव पांचली के रहने वाले थे), पुलिस में उच्च पद पर होना और स्थानीय क्रान्तिकारियों का उनको विश्वास प्राप्त होना कुछ ऐसे कारक थे जिन्होंने धन सिंह को 10 मई 1857 के दिन मेरठ की क्रान्तिकारी जनता के नेता के रूप में उभरने में मदद की। उन्होंने क्रान्तिकारी भीड़ का नेतृत्व किया और रात दो बजे मेरठ जेल पर हमला कर दिया। जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी। जेल से छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले पुलिस फोर्स के नेतृत्व में क्रान्तिकारी भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया। मंगल पाण्डे 8 अप्रैल, 1857 को बैरकपुर, बंगाल में शहीद हो गए थे। मंगल पाण्डे ने चर्बी वाले कारतूसों के विरोध में अपने एक अफसर को 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर छावनी, बंगाल में गोली से उड़ा दिया था। जिसके पश्चात उन्हें गिरफ्तार कर बैरकपुर (बंगाल) में 8 अप्रैल को फासी दे दी गई थी। 10 मई, 1857 को मेरठ में हुए जनक्रान्ति के विस्फोट से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है। क्रान्ति के दमन के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने 10 मई, 1857 को मेरठ मे हुई क्रान्तिकारी घटनाओं में पुलिस की भूमिका की जांच के लिए मेजर विलियम्स की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई। मेजर विलियम्स ने उस दिन की घटनाओं का भिन्न-भिन्न गवाहियों के आधार पर गहन विवेचन किया तथा इस सम्बन्ध में एक स्मरण-पत्र तैयार किया, जिसके अनुसार उन्होंने मेरठ में जनता की क्रान्तिकारी गतिविधियों के विस्फोट के लिए धनसिंह गुर्जर को मुख्य रूप से दोषी ठहराया, उसका मानना था कि यदि धनसिंह गुर्जर ने अपने कर्तव्य का निर्वाह ठीक प्रकार से किया होता तो संभवतः मेरठ में जनता को भड़कने से रोका जा सकता था। धन सिंह कोतवाल को पुलिस नियंत्रण के छिन्न-भिन्न हो जाने के लिए दोषी पाया गया। क्रान्तिकारी घटनाओं से दमित लोगों ने अपनी गवाहियों में सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि धन सिंह कोतवाल क्योंकि स्वयं गुर्जर है इसलिए उसने क्रान्तिकारियों, जिनमें गुर्जर बहुसंख्या में थे, को नहीं रोका। उन्होंने धन सिंह पर क्रान्तिकारियों को खुला संरक्षण देने का आरोप भी लगाया। एक गवाही के अनुसार क्रान्तिकरियों ने कहा कि धन सिंह कोतवाल ने उन्हें स्वयं आस-पास के गांव से बुलाया है यदि मेजर विलियम्स द्वारा ली गई गवाहियों का स्वयं विवेचन किया जाये तो पता चलता है कि 10 मई, 1857 को मेरठ में क्रांति का विस्फोट काई स्वतः विस्फोट नहीं वरन् एक पूर्व योजना के तहत एक निश्चित कार्यवाही थी, जो परिस्थितिवश समय पूर्व ही घटित हो गई। नवम्बर 1858 में मेरठ के कमिश्नर एफ0 विलियम द्वारा इसी सिलसिले से एक रिपोर्ट नोर्थ - वैस्टर्न प्रान्त (आधुनिक उत्तर प्रदेश) सरकार के सचिव को भेजी गई। रिपोर्ट के अनुसार मेरठ की सैनिक छावनी में ”चर्बी वाले कारतूस और हड्डियों के चूर्ण वाले आटे की बात“ बड़ी सावधानी पूर्वक फैलाई गई थी। रिपोर्ट में अयोध्या से आये एक साधु की संदिग्ध भूमिका की ओर भी इशारा किया गया था। विद्रोही सैनिक, मेरठ शहर की पुलिस, तथा जनता और आस-पास के गांव के ग्रामीण इस साधु के सम्पर्क में थे। मेरठ के आर्य समाजी, इतिहासज्ञ एवं स्वतन्त्रता सेनानी आचार्य दीपांकर के अनुसार यह साधु स्वयं दयानन्द जी थे और वही मेरठ में 10 मई, 1857 की घटनाओं के सूत्रधार थे। मेजर विलियम्स को दो गयी गवाही के अनुसार कोतवाल स्वयं इस साधु से उसके सूरजकुण्ड स्थित ठिकाने पर मिले थे। हो सकता है ऊपरी तौर पर यह कोतवाल की सरकारी भेंट हो, परन्तु दोनों के आपस में सम्पर्क होने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता। वास्तव में कोतवाल सहित पूरी पुलिस फोर्स इस योजना में साधु (सम्भवतः स्वामी दयानन्द) के साथ देशव्यापी क्रान्तिकारी योजना में शामिल हो चुकी थी। 10 मई को जैसा कि इस रिपोर्ट में बताया गया कि सभी सैनिकों ने एक साथ मेरठ में सभी स्थानों पर विद्रोह कर दिया। ठीक उसी समय सदर बाजार की भीड़, जो पहले से ही हथियारों से लैस होकर इस घटना के लिए तैयार थी, ने भी अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियां शुरू कर दीं। धनसिंह गुर्जर ने योजना के अनुसार बड़ी चतुराई से ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादार पुलिस कर्मियों को कोतवाली के भीतर चले जाने और वहीं रहने का आदेश दिया। आदेश का पालन करते हुए अंग्रेजों के वफादार पिट्ठू पुलिसकर्मी क्रान्ति के दौरान कोतवाली में ही बैठे रहे। इस प्रकार अंग्रेजों के वफादारों की तरफ से क्रान्तिकारियों को रोकने का प्रयास नहीं हो सका, दूसरी तरफ उसने क्रान्तिकारी योजना से सहमत सिपाहियों को क्रान्ति में अग्रणी भूमिका निभाने का गुप्त आदेश दिया, फलस्वरूप उस दिन कई जगह पुलिस वालों को क्रान्तिकारियों की भीड़ का नेतृत्व करते देखा गया। धनसिंह गुर्जर अपने गांव पांचली और आस-पास के क्रान्तिकारी गुर्जर बाहुल्य गांव घाट, नंगला, गगोल आदि की जनता के सम्पर्क में थे, धन सिंह कोतवाल का संदेश मिलते ही हजारों की संख्या में गुर्जर क्रान्तिकारी रात में मेरठ पहुंच गये। मेरठ के आस-पास के गांवों में प्रचलित किवंदन्ती के अनुसार इस क्रान्तिकारी भीड़ ने धनसिंह गुर्जर के नेतृत्व में देर रात दो बजे जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल को आग लगा दी। मेरठ शहर और कैंट में जो कुछ भी अंग्रेजों से सम्बन्धित था उसे यह क्रान्तिकारियों की भीड़ पहले ही नष्ट कर चुकी थी। उपरोक्त वर्णन और विवेचना के आधार पर हम निःसन्देह कह सकते हैं कि धन सिंह कोतवाल ने 10 मई, 1857 के दिन मेरठ में मुख्य भूमिका का निर्वाह करते हुए क्रान्तिकारियों को नेतृत्व प्रदान किया था।1857 की क्रान्ति की औपनिवेशिक व्याख्या, (ब्रिटिश साम्राज्यवादी इतिहासकारों की व्याख्या), के अनुसार 1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह था जिसका कारण मात्र सैनिक असंतोष था। इन इतिहासकारों का मानना है कि सैनिक विद्रोहियों को कहीं भी जनप्रिय समर्थन प्राप्त नहीं था। ऐसा कहकर वह यह जताना चाहते हैं कि ब्रिटिश शासन निर्दोष था और आम जनता उससे सन्तुष्ट थी। अंग्रेज इतिहासकारों, जिनमें जौन लोरेंस और सीले प्रमुख हैं ने भी 1857 के गदर को मात्र एक सैनिक विद्रोह माना है, इनका निष्कर्ष है कि 1857 के विद्रोह को कही भी जनप्रिय समर्थन प्राप्त नहीं था, इसलिए इसे स्वतन्त्रता संग्राम नहीं कहा जा सकता। राष्ट्रवादी इतिहासकार वी0 डी0 सावरकर और सब-आल्टरन इतिहासकार रंजीत गुहा ने 1857 की क्रान्ति की साम्राज्यवादी व्याख्या का खंडन करते हुए उन क्रान्तिकारी घटनाओं का वर्णन किया है, जिनमें कि जनता ने क्रान्ति में व्यापक स्तर पर भाग लिया था, इन घटनाओं का वर्णन मेरठ में जनता की सहभागिता से ही शुरू हो जाता है। समस्त पश्चिम उत्तर प्रदेश के बन्जारो, रांघड़ों और गुर्जर किसानों ने 1857 की क्रान्ति में व्यापक स्तर पर भाग लिया। पूर्वी उत्तर प्रदेश में ताल्लुकदारों ने अग्रणी भूमिका निभाई। बुनकरों और कारीगरों ने अनेक स्थानों पर क्रान्ति में भाग लिया। 1857 की क्रान्ति के व्यापक आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक कारण थे और विद्रोही जनता के हर वर्ग से आये थे, ऐसा अब आधुनिक इतिहासकार सिद्ध कर चुके हैं। अतः 1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह नहीं वरन् जनसहभागिता से पूर्ण एक राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम था। परन्तु 1857 में जनसहभागिता की शुरूआत कहाँ और किसके नेतृत्व में हुई ? इस जनसहभागिता की शुरूआत के स्थान और इसमें सहभागिता प्रदर्शित वाले लोगों को ही 1857 की क्रान्ति का जनक कहा जा सकता है। क्योंकि 1857 की क्रान्ति में जनता की सहभागिता की शुरूआत कोतवाल धनसिंह गुर्जर के नेतृत्व में मेरठ की जनता ने की थी। अतः ये ही 1857 की क्रान्ति के जनक कहे जाते हैं। 10, मई 1857 को मेरठ में जो महत्वपूर्ण भूमिका धन सिंह और उनके अपने ग्राम पांचली के भाई बन्धुओं ने निभाई उसकी पृष्ठभूमि में अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान छुपी हुई है। ब्रिटिश साम्राज्य की औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था की कृषि नीति का मुख्य उद्देश्य सिर्फ अधिक से अधिक लगान वसूलना था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अंग्रेजों ने महलवाड़ी व्यवस्था लागू की थी, जिसके तहत समस्त ग्राम से इकट्ठा लगान तय किया जाता था और मुखिया अथवा लम्बरदार लगान वसूलकर सरकार को देता था। लगान की दरें बहुत ऊंची थी, और उसे बड़ी कठोरता से वसूला जाता था। कर न दे पाने पर किसानों को तरह-तरह से बेइज्जत करना, कोड़े मारना और उन्हें जमीनों से बेदखल करना एक आम बात थी, किसानों की हालत बद से बदतर हो गई थी। धन सिंह कोतवाल भी एक किसान परिवार से सम्बन्धित थे। किसानों के इन हालातों से वे बहुत दुखी थे। धन सिंह के पिता पांचली ग्राम के मुखिया थे, अतः अंग्रेज पांचली के उन ग्रामीणों को जो किसी कारणवश लगान नहीं दे पाते थे, उन्हें धन सिंह के अहाते में कठोर सजा दिया करते थे, बचपन से ही इन घटनाओं को देखकर धन सिंह के मन में आक्रोष जन्म लेने लगा। ग्रामीणों के दिलो दिमाग में ब्रिटिष विरोध लावे की तरह धधक रहा था। 1857 की क्रान्ति में धन सिंह और उनके ग्राम पांचली की भूमिका का विवेचन करते हुए हम यह नहीं भूल सकते कि धन सिंह गुर्जर जाति में जन्में थे, उनका गांव गुर्जर बहुल था। 1707 ई0 में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात गुर्जरों ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपनी राजनैतिक ताकत काफी बढ़ा ली थी। लढ़ौरा, मुण्डलाना, टिमली, परीक्षितगढ़, दादरी, समथर-लौहा गढ़, कुंजा बहादुरपुर इत्यादि रियासतें कायम कर वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक गुर्जर राज्य बनाने के सपने देखने लगे थे। 1803 में अंग्रेजों द्वारा दोआबा पर अधिकार करने के वाद गुर्जरों की शक्ति क्षीण हो गई थी, गुर्जर मन ही मन अपनी राजनैतिक शक्ति को पुनः पाने के लिये आतुर थे, इस दषा में प्रयास करते हुए गुर्जरों ने सर्वप्रथम 1824 में कुंजा बहादुरपुर के ताल्लुकदार विजय सिंह और कल्याण सिंह उर्फ कलवा गुर्जर के नेतृत्व में सहारनपुर में जोरदार विद्रोह किये। पश्चिमी उत्तर प्रदेष के गूजरों ने इस विद्रोह में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया परन्तु यह प्रयास सफल नहीं हो सका। 1857 के सैनिक विद्रोह ने उन्हें एक और अवसर प्रदान कर दिया। समस्त पश्चिमी उत्तर प्रदेष में देहरादून से लेकिन दिल्ली तक, मुरादाबाद, बिजनौर, आगरा, झांसी तक। पंजाब, राजस्थान से लेकर महाराष्ट्र तक के गूजर इस स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। हजारों की संख्या में गुर्जर शहीद हुए और लाखों गुर्जरों को ब्रिटेन के दूसरे उपनिवेषों में कृषि मजदूर के रूप में निर्वासित कर दिया। इस प्रकार धन सिंह और पांचली, घाट, नंगला और गगोल ग्रामों के गुर्जरों का संघर्ष गुर्जरों के देशव्यापी ब्रिटिष विरोध का हिस्सा था। यह तो बस एक शुरूआत थी। 1857 की क्रान्ति के कुछ समय पूर्व की एक घटना ने भी धन सिंह और ग्रामवासियों को अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए प्रेरित किया। पांचली और उसके निकट के ग्रामों में प्रचलित किंवदन्ती के अनुसार घटना इस प्रकार है, ”अप्रैल का महीना था। किसान अपनी फसलों को उठाने में लगे हुए थे। एक दिन करीब 10 11 बजे के आस-पास बजे दो अंग्रेज तथा एक मेम पांचली खुर्द के आमों के बाग में थोड़ा आराम करने के लिए रूके। इसी बाग के समीप पांचली गांव के तीन किसान जिनके नाम मंगत सिंह, नरपत सिंह और झज्जड़ सिंह (अथवा भज्जड़ सिंह) थे, कृषि कार्यो में लगे थे। अंग्रेजों ने इन किसानों से पानी पिलाने का आग्रह किया। अज्ञात कारणों से इन किसानों और अंग्रेजों में संघर्ष हो गया। इन किसानों ने अंग्रेजों का वीरतापूर्वक सामना कर एक अंग्रेज और मेम को पकड़ दिया। एक अंग्रेज भागने में सफल रहा। पकड़े गए अंग्रेज सिपाही को इन्होंने हाथ-पैर बांधकर गर्म रेत में डाल दिया और मेम से बलपूर्वक दायं हंकवाई। दो घंटे बाद भागा हुआ सिपाही एक अंग्रेज अधिकारी और 25-30 सिपाहियों के साथ वापस लौटा। तब तक किसान अंग्रेज सैनिकों से छीने हुए हथियारों, जिनमें एक सोने की मूठ वाली तलवार भी थी, को लेकर भाग चुके थे। अंग्रेजों की दण्ड नीति बहुत कठोर थी, इस घटना की जांच करने और दोषियों को गिरफ्तार कर अंग्रेजों को सौंपने की जिम्मेदारी धन सिंह के पिता, जो कि गांव के मुखिया थे, को सौंपी गई। ऐलान किया गया कि यदि मुखिया ने तीनों बागियों को पकड़कर अंग्रेजों को नहीं सौपा तो सजा गांव वालों और मुखिया को भुगतनी पड़ेगी। बहुत से ग्रामवासी भयवश गाँव से पलायन कर गए। अन्ततः नरपत सिंह और झज्जड़ सिंह ने तो समर्पण कर दिया किन्तु मंगत सिंह फरार ही रहे। दोनों किसानों को 30-30 कोड़े और जमीन से बेदखली की सजा दी गई। फरार मंगत सिंह के परिवार के तीन सदस्यों के गांव के समीप ही फांसी पर लटका दिया गया। धन सिंह के पिता को मंगत सिंह को न ढूंढ पाने के कारण छः माह के कठोर कारावास की सजा दी गई। इस घटना ने धन सिंह सहित पांचली के बच्चे-बच्चे को विद्रोही बना दिया। जैसे ही 10 मई को मेरठ में सैनिक बगावत हुई धन सिंह और ने क्रान्ति में सहभागिता की शुरूआत कर इतिहास रच दिया। क्रान्ति मे अग्रणी भूमिका निभाने की सजा पांचली व अन्य ग्रामों के किसानों को मिली। मेरठ गजेटियर के वर्णन के अनुसार 4 जुलाई, 1857 को प्रातः चार बजे पांचली पर एक अंग्रेज रिसाले ने तोपों से हमला किया। रिसाले में 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपची थे। पूरे ग्राम को तोप से उड़ा दिया गया। सैकड़ों किसान मारे गए, जो बच गए उनमें से 46 लोग कैद कर लिए गए और इनमें से 40 को बाद में फांसी की सजा दे दी गई। आचार्य दीपांकर द्वारा रचित पुस्तक स्वाधीनता आन्दोलन और मेरठ के अनुसार पांचली के 80 लोगों को फांसी की सजा दी गई थी। पूरे गांव को लगभग नष्ट ही कर दिया गया। ग्राम गगोल के भी 9 लोगों को दशहरे के दिन फाँसी की सजा दी गई और पूरे ग्राम को नष्ट कर दिया। आज भी इस ग्राम में दश्हरा नहीं मनाया जाता। इन्हे भी देखे १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम धन सिंह गुर्जर आशादेवी गुजरी दयाराम खारी संदर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80
दारिंगबाड़ी
दारिंगबाड़ी (Daringbadi) भारत के ओड़िशा राज्य के कंधमाल ज़िले में स्थित एक नगर है। यह पूर्वी घाट की पहाड़ियों में 915 मीटर (3002 फ़ुट) की ऊँचाई पर बसा हुआ एक रमणीय पर्यटक क्षेत्र है, जिसे कभी-कभी "ओड़िशा का कश्मीर" कहा जाता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 59 यहाँ से गुज़रता है। ऋषिकुल्या नदी, जो ओड़िशा की एक महत्वपूर्ण नदी है, यहीं समीप ही उत्पन्न होती है। इन्हें भी देखें कंधमाल ज़िला सन्दर्भ कंधमाल ज़िला ओड़िशा के शहर कंधमाल ज़िले के नगर ओड़िशा में पर्यटन ओड़िशा में हिल स्टेशन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%B0%20%E0%A4%85%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%96%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%A8
शेर अफ़्ग़ान ख़ान
#शेर अफगान शेर अफगान खान के बचपन का नाम अली कुली था। बाद में उसे फिर मुगल शासक द्वारा शेर अफगान का उपनाम मिला।शेर अफगान की पत्नी का नाम मेहर-उन-निशा था। शेर अफगान की मृत्यु हो जाती है तब मेहरून्निसा से जहांगीर 1611 मे शादी कर लेता है । जहांगीर मेहरून्निसा को प्यार से नूर-ए-महल का उपनाम दिया था। इस नाम से मेहरून्निसा प्रसन्न नहीं थी क्योंकि इस नाम का मतलब एक महल की सबसे खूबसूरत औरत होता है।फिर बाद में उसे नूर-ए-जहां का उपनाम मिला। इसकी की बेटी का नाम लाडली बेगम था। अली कुली बेग को शेर अफगान की उपाधि मुगल शासक जहाँगीर ने एक शेर को मारने के उपरांत प्रदान की थी जिसकी मृत्यु 1607 में हुई थी (((इससे पहले 1605 में जागीर पुत्र खुसरो ने विद्रोह किया जिसे पकड़ा कर अंदर करवा दिया था खुसरो की मदद करने वाले सिख गुरु पांचवें गुरु अर्जुन देव को फांसी पर चढ़ा दिया था। "अभिषेक सिंह गौतम 1289 (बिहार)के द्वारा संपादित है" मुगलकालीन व्यक्ति
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%B2%E0%A4%BE
घोंसला
नीड़ एक प्राणी विशेष तौर पर एक पक्षी का शरण स्थल है जहां पर यह अंडे देते हैं, रहते हैं और अपनी सन्तानो को पालते हैं। एक नीड़ सामान्यतः कार्बनिक सामग्री जैसे टहनी, घास और पत्ती; आदि से बना होता है पर, कभी कभी यह जमीन में एक गड्ढा, पेड़ का कोटर, चट्टान या इमारत में छेद के रूप मे भी हो सकता है। मानव निर्मित धागे, प्लास्टिक, कपड़े, बाल या कागज जैसे पदार्थों का प्रयोग भी प्राणी नीड़ बनाने मे करते हैं। साधारणतः प्रत्येक प्रजाति के नीड़ की एक विशिष्ट शैली होती है। नीड़ों को विभिन्न पर्यावासों में पाया जा सकता है। यह मुख्यतः पक्षियों द्वारा बनाए जाते हैं पर स्तनधारी जन्तु (जैसे गिलहरी), मछली, कीट और सरीसृप भी नीड़ों को निर्मित करते हैं। पक्षियों के नीड़ सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BE
कार्तिक पूर्णिमा
हिंदू धर्म में पूर्णिमा का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष 12 पूर्णिमाएं होती हैं। जब अधिकमास व मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 13 हो जाती है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा व गङ्गा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। इस पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अन्त किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है। इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। इस दिन गङ्गा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल मिलता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन तमिलनाडु मै अरुणाचलम पर्वत की १३ किमी की परिक्रमा होती है। सब पूर्णिमा मै से ये सबसे बड़ी परिक्रमा कहलाती है । लाखों लोग यहाँ आकर परिक्रमा करके पुण्य कमाते है । अरुणाचलम पर्वत पर कार्तिक स्वामी का आश्रम है वहां उन्होंने स्कन्दपुराण का लिखान किया था । पौराणिक और लोककथाएँ पुराणों में इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था। महाभारत में महाभारत काल में हुए १८ दिनों के विनाशकारी युद्ध में योद्धाओं और सगे संबंधियों को देखकर जब युधिष्ठिर कुछ विचलित हुए तो भगवान श्री कृष्ण पांडवों के साथ गढ़ खादर के विशाल रेतीले मैदान पर आए। कार्तिक शुक्ल अष्टमी को पांडवों ने स्नान किया और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे यज्ञ किया। इसके बाद रात में दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए दीपदान करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। इसलिए इस दिन गंगा स्नान का और विशेष रूप से गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ नगरी में आकर स्नान करने का विशेष महत्व है। मान्यता मान्यता यह भी है कि इस दिन पूरे दिन व्रत रखकर रात्रि में वृषदान यानी बछड़ा दान करने से शिवपद की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति इस दिन उपवास करके भगवान भोलेनाथ का भजन और गुणगान करता है उसे अग्निष्टोम नामक यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इस पूर्णिमा को शैव मत में जितनी मान्यता मिली है उतनी ही वैष्णव मत में भी। वैष्णव मत में कार्तिक पूर्णिमा को गोलोक के रासमण्डल में श्री कृष्ण ने श्री राधा का पूजन किया था। हमारे तथा अन्य सभी ब्रह्मांडों से परे जो सर्वोच्च गोलोक है वहां इस दिन राधा उत्सव मनाया जाता है तथा रासमण्डल का आयोजन होता है। कार्तिक पूर्णिमा को श्री हरि के बैकुण्ठ धाम में देवी तुलसी का मंगलमय पराकाट्य हुआ था। कार्तिक पूर्णिमा को ही देवी तुलसी ने पृथ्वी पर जन्म ग्रहण किया था। कार्तिक पूर्णिमा को राधिका जी की शुभ प्रतिमा का दर्शन और वन्दन करके मनुष्य जन्म के बंधन से मुक्त हो जाता है। इस दिन बैकुण्ठ के स्वामी श्री हरि को तुलसी पत्र अर्पण करते हैं। कार्तिक मास में विशेषतः श्री राधा और श्री कृष्ण का पूजन करना चाहिए। जो कार्तिक में तुलसी वृक्ष के नीचे श्री राधा और श्री कृष्ण की मूर्ति का पूजन (निष्काम भाव से) करते हैं उन्हें जीवनमुक्त समझना चाहिए। तुलसी के अभाव में हम आवंले के वृक्ष के नीचे भी बैठकर पूजा कर सकते है। कार्तिक मास में पराये अन्न, गाजर, दाल, चावल, मूली, बैंगन, घीया, तेल लगाना, तेल खाना, मदिरा, कांजी का त्याग करें। कार्तिक मास में अन्न का दान अवश्य करें। कार्तिक पूर्णिमा को बहुत अधिक मान्यता मिली है। इस पूर्णिमा को महाकार्तिकी भी कहा गया है। यदि इस पूर्णिमा के दिन भरणी नक्षत्र हो तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। अगर रोहिणी नक्षत्र हो तो इस पूर्णिमा का महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। इस दिन कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और बृहस्पति हो तो यह महापूर्णिमा कहलाती है। कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो "पद्मक योग" बनता है जिसमें गंगा स्नान करने से पुष्कर से भी अधिक उत्तम फल की प्राप्ति होती है। महत्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है। इस दिन किये जाने वाले अन्न, धन एव वस्त्र दान का भी बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन जो भी दान किया जाता हैं उसका कई गुणा लाभ मिलता है। मान्यता यह भी है कि इस दिन व्यक्ति जो कुछ दान करता है वह उसके लिए स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में उसे पुनःप्राप्त होता है। शास्त्रों में वर्णित है कि कार्तिक पुर्णिमा के दिन पवित्र नदी व सरोवर एवं धर्म स्थान में जैसे, गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरूक्षेत्र, अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर व्यक्ति को बिना स्नान किए नहीं रहना चाहिए स्नान और दान विधि महर्षि अंगिरा ने स्नान के प्रसंग में लिखा है कि यदि स्नान में कुशा और दान करते समय हाथ में जल व जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाए तो कर्म फल की प्राप्ति नहीं होती है। शास्त्र के नियमों का पालन करते हुए इस दिन स्नान करते समय पहले हाथ पैर धो लें फिर आचमन करके हाथ में कुशा लेकर स्नान करें, इसी प्रकार दान देते समय में हाथ में जल लेकर दान करें। आप यज्ञ और जप कर रहे हैं तो पहले संख्या का संकल्प कर लें फिर जप और यज्ञादि कर्म करें। गुरुनानक जयंती सिख सम्प्रदाय में कार्तिक पूर्णिमा का दिन प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि इस दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन सिख सम्प्रदाय के अनुयायी सुबह स्नान कर गुरूद्वारों में जाकर गुरूवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताये रास्ते पर चलने की सौगंध लेते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है। इन्हें भी देखें हिन्दू उत्सव होली - पूर्णिमा को मनाया जाने वाला एक पर्व देवदीवाली सन्दर्भ हिन्दू धर्म संस्कृति हिन्दू त्यौहार पूर्णिमा
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%28%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%29
पारदर्शिता (वित्त)
अर्थशास्त्र में, बाजार पारदर्शी होता है यदि बहुत से लोग इसके बारे में बहुत कुछ जानते हैं कि कौन से उत्पाद और सेवाएं या पूंजीगत संपत्ति उपलब्ध हैं, बाजार की गहराई (उपलब्ध मात्रा), कहां और क्या कीमत है। पारदर्शिता महत्वपूर्ण है क्योंकि यह किसी मुक्त बाजार के कुशल होने के लिए आवश्यक सैद्धांतिक शर्तों में से एक है। हालाँकि, मूल्य पारदर्शिता उच्च कीमतों को जन्म दे सकती है। उदाहरण के लिए, यदि यह विक्रेताओं को कुछ खरीदारों को भारी छूट देने के लिए अनिच्छुक बनाता है (जैसे खरीदारों के बीच मूल्य फैलाव को बाधित करना), या यदि यह मिलीभगत की सुविधा देता है, और मूल्य अस्थिरता एक और चिंता का विषय है। आपूर्ति मूल्य निर्धारण के बारे में खरीदार के बढ़ते ज्ञान के कारण उच्च स्तर की बाज़ार पारदर्शिता के परिणामस्वरूप मध्यस्थता हो सकती है। मूल्य पारदर्शिता दो प्रकार की होती है: 1. मुझे पता है कि मुझसे कितनी कीमत ली जाएगी, और 2. मुझे पता है कि आपसे कितनी कीमत ली जाएगी। मूल्य पारदर्शिता के दो प्रकार के अंतर मूल्य निर्धारण के लिए अलग-अलग निहितार्थ हैं। एक पारदर्शी बाजार को गुणवत्ता और अन्य उत्पाद सुविधाओं के बारे में आवश्यक जानकारी भी प्रदान करनी चाहिए, हालांकि कुछ वस्तुओं, जैसे कि कलाकृतियां, के लिए गुणवत्ता का अनुमान लगाना बहुत कठिन हो सकता है। जबकि शेयर बाजार अपेक्षाकृत पारदर्शी है, हेज फंड कुख्यात रूप से गुप्त हैं। इस क्षेत्र के शोधकर्ताओं ने हेज फंड द्वारा पारदर्शिता और अपूर्ण पारदर्शिता के अवांछनीय प्रभावों के माध्यम से अपने व्यापार से बाहर भीड़ के बारे में चिंताओं को पाया है। वॉल स्ट्रीट के दिग्गज जेरेमी फ्रॉमर सहित कुछ वित्तीय पेशेवर ट्रेडिंग डेस्क से लाइव प्रसारण और विस्तृत पोर्टफोलियो ऑनलाइन पोस्ट करके फंड को हेज करने के लिए पारदर्शिता के आवेदन में अग्रणी हैं। महत्वपूर्ण पारदर्शिता लेखांकन में एक समृद्ध साहित्य है जो बारीकियों और सीमाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए बाजार पारदर्शिता के लिए एक महत्वपूर्ण परिप्रेक्ष्य लेता है। उदाहरण के लिए, कुछ शोधकर्ता इसकी उपयोगिता पर सवाल उठाते हैं (जैसे एट्ज़ियोनी)। यह मात्रात्मक मॉडल या "प्रतिक्रियाशीलता" के प्रदर्शन से भी जुड़ता है। विशिष्ट मामलों में कला बाजार में पारदर्शिता शामिल है। वित्त से ऐसे अध्ययन भी हैं जो बाजार की पारदर्शिता से संबंधित चिंताओं को नोट करते हैं, जैसे बाजार की तरलता में कमी और कीमतों में उतार-चढ़ाव सहित प्रतिकूल प्रभाव। यह उन बाजारों के लिए एक प्रेरणा है जो चुनिंदा रूप से पारदर्शी हैं, जैसे "डार्क पूल"। पारदर्शिता की गतिशीलता निवेश बाजारों, कैंबिस्ट बाजारों के बीच भी भिन्न हो सकती है जहां माल का उपयोग किए बिना व्यापार होता है, और अन्य प्रकार के बाजार, उदा. वस्तुएं और सेवाएं। उचित मूल्य लेखांकन (एफवीए) में, पारदर्शिता इस तथ्य से जटिल हो सकती है कि स्तर 2 और 3 संपत्तियों को सख्ती से बाजार में चिह्नित नहीं किया जा सकता है, यह देखते हुए कि कोई प्रत्यक्ष बाजार मौजूद नहीं है, इन संपत्तियों के लिए पारदर्शिता का क्या अर्थ है, इस बारे में प्रश्न पैदा करना। स्तर 2 की संपत्ति को मॉडल के रूप में चिह्नित किया जा सकता है, वित्त के सामाजिक अध्ययन में रुचि का विषय हो सकता है, जबकि स्तर 3 की संपत्ति में प्रबंधन की अपेक्षाओं या मान्यताओं सहित इनपुट की आवश्यकता हो सकती है। विदेशी मुद्रा बाजार में ऐसे कुछ बाजार हैं जिन्हें विदेशी मुद्रा (एफएक्स) बाजार के रूप में अपने प्रतिभागियों के बीच गोपनीयता, ईमानदारी और विश्वास के स्तर की आवश्यकता होती है। यह व्यापारियों, निवेशकों और संस्थानों को दूर करने के लिए बड़ी बाधाएं पैदा करता है क्योंकि पारदर्शिता की कमी है, जिससे व्यापारिक भागीदारों के साथ विश्वास विकसित करने और सामाजिक माध्यमों जैसे "सूचना के उपहार" के माध्यम से इन संबंधों को विकसित करने की आवश्यकता होती है, जो यहां तक ​​​​कि संस्थागत निवेशकों की सेवा करने वाले वैश्विक निवेश बैंकों के व्यापारिक तल पर देखा जाता है। पारदर्शिता के बिना, लेनदेन को सत्यापित करने की व्यापारी की क्षमता लगभग असंभव हो जाती है, कम से कम अगर किसी को विश्वास नहीं है कि बाजार एक्सचेंज अच्छी तरह से चल रहा है, तो एक समस्या जो संस्थागत निवेशकों के लिए खुली प्रमुख ब्रोकरेज सेवाओं के साथ संभव नहीं है। (जैसे रॉयटर्स, ब्लूमबर्ग, और टेलीरेट)। एक समस्याग्रस्त बाजार विनिमय में पारदर्शिता की कमी की स्थिति में, ग्राहक और दलाल के बीच कोई विश्वास नहीं होगा, फिर भी आश्चर्यजनक रूप से, डार्क पूल में व्यापार करने की मांग है। यह वित्तीय नवाचार का एक क्षेत्र भी बन गया है। विदेशी मुद्रा बाजार अब नए ब्लॉकचैन नवाचारों के लिए भी एक लक्ष्य हैं, जो केंद्रीकृत एक्सचेंजों के बाहर व्यापार की अनुमति देंगे या इन एक्सचेंजों के संचालन के तरीके को बदल देंगे। सन्दर्भ अर्थशास्त्र
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अपराध अन्वेषण
अपराध अन्वेषण (criminal investigation) एक अनुप्रयुक्त विज्ञान है जिसमें तथ्यों का अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाता है ताकि अपराधी की पहचान की जा सके। इसमें तलाशी लेना, साक्षात्कार लेना (बातचीत करना), पूछताछ करना, साक्ष्य एकत्र करना, आदि सम्मिलित है। आधुनिक अपराध अन्वेषण में न्यायालयिक विज्ञान नामक वैज्ञानिक तकनीक का प्रायः उपयोग किया जाता है। पुलिस अनुसन्धान अपराध से पीड़ित लोग अथवा उसके प्रत्यक्षदर्शी, पुलिस के पास किसी भी प्रकार के अपराध के संबंध में जा सकते हैं। कुछ प्रकार के अपराध, जिन्हे संज्ञेय अपराध कहते हैं, में पुलिस का तुरन्त परिवादी की शिकायत दर्ज करना आवश्यक है। इसे प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) कहते हैं। यदि पीड़ित ने FIR में किसी का नाम दिया है या पुलिस को यह प्रतीत हो कि किसी ने कोई अपराध करवाया है, तो वह उनसे सवाल कर सकते हैं। बाहरी कड़ियाँ पुलिस अनुसंधान संज्ञेय अपराधों की एफआईआर और अन्वेषण अपराध शास्त्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%A8
सुनीता कृष्णन
सुनीता कृष्णन (जन्म-१९७२), एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता, मुख्य कार्यवाहक व प्रज्वला के सह संस्थापक है। यह एक गैर सरकारी संघठन है जों यौन उत्पीड़न वाले पीड़ितों को समाज में बचाते है, पुनर्वास कराते व पुनर्गठन करते हैं। कृष्णन मानव तस्करी और सामाजिक नीति के छेत्र में काम करती हैं। उनकी संस्था, प्रज्वला देश के सबसे बड़े पुनर्वास घरो में से एक है वहाँ बच्चों और महिलाओ को आश्रय दिया जाता है। वह एनजीओ संस्थानों की मदद से कोशिश कर रहे हैं के सयुक्त रूप से महिलाओ और बच्चो के लिए सुरक्षात्मक व पुनर्वास सेवाए दे सके। उन्हें २०१६, में भारत के चौथे उच्चतम नागरिक पुरुस्कार- पदमश्री से नवाज़ा गया। प्रारंभिक जीवन कृष्णन का जन्म बुन्ग्लुरु के पालक्कड़ मलयाली माता पिता, राजा कृष्णन और नलिनी कृष्णन के घर हुआ था। एक जगह से दूसरी जगह यात्रा कर कर के वह भारत का अधिकाँश हिस्सा देख चुकी थी। उनके पिता सर्वेक्षण विभाग में काम करते थे जों पूरे देश के लिए नक़्शे बनाते है। उनके अंदर सामाजिक कार्य के लिए जूनून तभी से प्रकट हो चूका था जब उन्होंने ८ साल की उम्र से मानसिक रूप से चुनोतिपूर्ण बच्चो को नृत्य सीखना शुरू किया। १२ वर्ष की आयु में वह वंचित बच्चो के लिए स्कूल चलती थी। १५ वर्ष की आयु में कृष्णन के साथ एक अभियान में काम करते हुए उन्हें बलात्कार का सामना करना पड़ा। इस घटना के बाद जों भी वह आज कर रही है उन्हें उससे बहुत ताकत मिली। कृष्णन ने भूटान और बंगलौर के केंद्र के स्चूलो में शिक्षा प्राप्त की। बंगलोर में सेंट जोसफ कॉलेज से पर्यवरण विज्ञान में स्नातक करके उन्होंने मंगलोर से एमएसदुब्लू (चिकित्सा और मनोरोग) की शिक्षा पूरी की। कैरियर प्रज्वला हैदराबाद(१९९६), में लाल बत्ती इलाके महबूब की गली में रहने वाले सेक्स वर्कर्स को हटाया गया। इसके नतीज़तन हजारो महिलाये जों वेश्यावृत्ति के चंगुल में पकडे गए वो बेघर हो चुके थे। एक मिशनरी में सामान विचारधारा वाले व्यक्ति से मिल के, दूसरी पीढ़ी को तस्करी होने से रोकने से बचने के लिए उन्होंने खाली वेश्यालय में एक स्कूल शुरू कर दिया। आज प्रज्वला ५ स्तंभों पर आधारित है- रोकथाम, बचाव, पुनर्वास, पुनर्मिलन और वकालत। संघठन पीड़ितों के लिए नैतिक, वीत्त्ये, कानूनी और सामाजिक समर्थन प्राप्त करता है और यह सुनिशिचित करता है कि अपराधियों को न्याय के लिए लाया जाये। आज तक प्रज्वला ने १२,००० से अधिक जीवीत बचे लोगो को बचाया, पुनर्वास व सेवा की हैं और परिचालन के पैमाने पे उन्हें दुनिया का सबसे बड़ा एंटी-ट्रैफिकिंग आश्रय बना दिया हैं। सन्दर्भ 1972 में जन्मे लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80%20%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%82
नदी वेदिकाएं
नदी वेदिकाएं ( - रिवर टेरेस) एक प्रमुख प्रवाही जल (नदी) कृत सीढ़ीनुमा अपरदनात्मक स्थलरुप हैं। जब कभी प्रौढावस्था की नदी का पुनरूत्थान हो जाता है तो वह अपनी घाटी को पुनः गहरा काटने का कार्य करने लगती है। ऐसी दशा में पूर्व निर्मित बाढ़ के मैदान नदी के तल से बहुत ऊंचे हो जाते हैं जिससे नदी घाटी के दोनों और वे चौड़ी एवं ऊंची वेदिका ओं के समान प्रतीत होने लगते हैं घाटी के गहरे हो जाने से इन ऊंची वेदिकाओं का छोर बहुत डलवा हो जाता है। अतः जलधारा के दोनों और तीव्र चोर वाली ऊंची और चौड़ी स्थल पार्टियों को ही नदी में दिखाएं अथवा जल और वेदिका कहा जाता है। प्रवाही जल (नदी) कृत स्थलाकृति प्रवाही जल (नदी) कृत अपरदनात्मक स्थलरुप
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मार्क्सवाद की समालोचना
मार्क्सवाद की समालोचना विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं और अकादमिक विषयों द्वारा की गई है। इसमें आंतरिक सामंजस्य की कमी, ऐतिहासिक भौतिकवाद से संबंधित आलोचना, इसका एक प्रकार का ऐतिहासिक नियतत्ववाद होना, व्यक्तिगत अधिकारों के दमन की आवश्यकता, साम्यवाद के कार्यान्वयन के साथ-साथ आर्थिक मुद्दे, जैसे मूल्य संकेतों का विरूपण (और उनकी अनुपस्थिति) और प्रोत्साहन की कमी शामिल हैं। इसके अलावा, अनुभवजन्य और ज्ञानमीमांसा से सम्बंधित समस्याओं की अक्सर पहचान की जाती है। सामान्य आलोचना कुछ लोकतांत्रिक समाजवादी और सामाजिक लोकतंत्र इस विचार को खारिज करते हैं कि समाज केवल वर्ग संघर्ष और सर्वहारा क्रांति के माध्यम से समाजवाद प्राप्त कर सकते हैं। कई अराजकतावादी एक क्षणिक राज्य चरण (सर्वहारा की तानाशाही) की आवश्यकता को अस्वीकार करते हैं। कुछ विचारकों ने मार्क्सवाद के मूल सिद्धांतों जैसे ऐतिहासिक भौतिकवाद और मूल्य के श्रम सिद्धांत को खारिज कर दिया है और पूंजीवाद की आलोचना और अन्य तर्कों का उपयोग करते हुए समाजवाद की वकालत की है। मार्क्सवाद के कुछ समकालीन समर्थक मार्क्सवादी विचारधारा के कई पहलुओं को व्यवहार्य मानते हैं, लेकिन उनका तर्क है कि आर्थिक, राजनीतिक या सामाजिक सिद्धांत के कुछ पहलुओं के संबंध में यह अधूरा है या पुराना हो चुका है। इसलिए वे अन्य मार्क्सवादियों के विचारों के साथ कुछ मार्क्सवादी अवधारणाओं को जोड़ सकते हैं (जैसे कि मैक्स वेबर)- फ्रैंकफर्ट स्कूल इस दृष्टिकोण का एक उदाहरण प्रदान करता है। इतिहासकार पॉल जॉनसन ने लिखा है: "सच्चाई यह है, कि मार्क्स द्वारा किए गए सबूतों के प्रयोग की सबसे सतही स्तर की जांच भी व्यक्ति को उनके द्वारा लिखी गई हर उस चीज़ को शक़ की नज़र से देखने के लिए मजबूर करती है, जिसके लिए उन्होंने तथ्यात्मक डेटा का सहारा लिया था"। उदाहरण के लिए, जॉनसन ने कहा: "दास कैपिटल का मुख्य अध्याय आठ पूरा का पूरा जानबूझकर और व्यवस्थित ढंग से किया गया मिथ्याकरण है, जिसका प्रयोग एक ऐसी थीसिस को साबित करने के लिए किया गया है, जिसे तथ्यों की वस्तुनिष्ठ परीक्षा करने पर अप्राप्य पाया गया"। ऐतिहासिक भौतिकवाद ऐतिहासिक भौतिकवाद मार्क्सवाद के बौद्धिक आधारों में से एक है। इसके अनुसार उत्पादन के साधनों में तकनीकी प्रगति अनिवार्य रूप से उत्पादन के सामाजिक संबंधों में बदलाव लाती है। समाज का यह आर्थिक " आधार " वैचारिक "अधिरचना " द्वारा परिलक्षित होता है और उसे प्रभावित करता है, जिसमें संस्कृति, धर्म, राजनीति और मानवता की सामाजिक चेतना के अन्य सभी पहलू समाहित हैं। इस प्रकार यह आर्थिक, तकनीकी और मानव इतिहास के विकास और परिवर्तनों के कारणों, भौतिक कारकों, साथ ही जनजातियों, सामाजिक वर्गों और राष्ट्रों के बीच भौतिक हितों के टकराव के कारणों की तलाश करता है। कानून, राजनीति, कला, साहित्य, नैतिकता और धर्म को मार्क्स द्वारा समाज के आर्थिक आधार के प्रतिबिंब के रूप में अधिरचना बनाने के लिए समझा जाता है। कई आलोचकों ने तर्क दिया है कि यह समाज की प्रकृति का निरीक्षण है और दावा करते हैं कि जिसे मार्क्स ने सुपरस्ट्रक्चर कहा जाता है, उसका प्रभाव (यानी विचार, संस्कृति और अन्य पहलुओं का प्रभाव) उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि समाज की कार्यप्रणाली में आर्थिक आधार। । हालाँकि, मार्क्सवाद यह दावा नहीं करता है कि समाज का आर्थिक आधार समाज में एकमात्र निर्धारित तत्व है जैसा कि फ्रेडरिक एंगेल्स (मार्क्स के लंबे समय तक के योगदानकर्ता) द्वारा लिखित निम्न पत्र द्वारा प्रदर्शित किया गया है-According to the materialist conception of history, the ultimately determining element in history is the production and reproduction of real life. More than this neither Marx nor I ever asserted. Hence if somebody twists this into saying that the economic element is the only determining one he transforms that proposition into a meaningless, abstract, senseless phrase. इतिहास के भौतिकवादी गर्भाधान के अनुसार, इतिहास में अंततः निर्धारण तत्व वास्तविक जीवन का उत्पादन और प्रजनन है। इससे अधिक न तो मार्क्स और न ही मैंने कभी जोर दिया। इसलिए अगर कोई यह कहता है कि आर्थिक तत्व एकमात्र निर्धारित करने वाला है तो वह उस प्रस्ताव को एक व्यर्थ, अमूर्त, अर्थहीन वाक्यांश में बदल देता है।आलोचकों के अनुसार, यह मार्क्सवाद के लिए एक और समस्या खड़ी करता है। यदि अधिरचना भी आधार को प्रभावित करती है तो मार्क्स को निरंतर यह दावा करने की कोई आवश्यकता नहीं थी कि समाज का इतिहास आर्थिक वर्ग संघर्ष का इतिहास है। यह एक क्लासिक मुर्ग़ी-या-अंडा का तर्क बन जाता है कि आधार पहले आता है या अधिरचना। पीटर सिंगर का प्रस्ताव है कि इस समस्या को यह समझ कर हाल किया जा सकता है कि मार्क्स ने आर्थिक आधार को अंततः मानते थे। मार्क्स का मानना था कि मानवता को परिभाषित करने वाली विशेषता उसके उत्पादन के साधन हैं। अतः, मनुष्य को स्वयं को उत्पीड़न से मुक्त करने का एकमात्र तरीका उसके लिए उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण रखना था। मार्क्स के अनुसार, यही इतिहास का लक्ष्य है और अधिरचना के तत्व इतिहास के उपकरण के रूप में कार्य करते हैं। मार्क्स ने कहा था कि भौतिक आधार और वैचारिक अधिरचना के बीच का संबंध एक निर्धारण सम्बन्ध (determination relation) था न कि एक कारण संबंध (causal relation)। हालांकि, मार्क्स के कुछ आलोचकों ने जोर देकर कहा है कि मार्क्स ने दावा किया कि सुपरस्ट्रक्चर आधार के कारण होने वाला एक प्रभाव था। उदाहरण के लिए, अराजक-पूंजीवादी मरी रॉथबार्ड ने ऐतिहासिक भौतिकवाद की आलोचना करते हुए तर्क दिया कि मार्क्स ने दावा किया कि समाज का "आधार" (इसके प्रौद्योगिकी और सामाजिक संबंध) अधिरचना (सुपरस्ट्रक्चर) में अपनी "चेतना" का निर्धारण करता है। लुडविग वॉन मीज़ेज़ के तर्कों पर आधारित, रॉथबार्ड मानते हैं कि यह मानवीय चेतना है जो प्रौद्योगिकी और सामाजिक संबंधों के विकास का कारण बनता है और उन्हें आगे बढ़ाता है। मार्क्स के इस ऐतिहासिक भौतिक शक्तियों के कारण आधार के निर्मित होने के दावे को दरकिनार करते हुए, रॉथबार्ड तर्क देते हैं कि मार्क्स इस बात की अनदेखी करते हैं कि आधार उत्पन्न कैसे होता है। इससे यह तथ्य छिप जाता है कि असली कारण पथ अधिरचना से आधार की ओर होता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि मनुष्य प्रौद्योगिकी और उन सामाजिक सम्बन्धों के विकास का निर्धारण करते हैं, जिन्हें वे आगे बढ़ाने की इच्छा रखते हैं। रॉथबार्ड ने वॉन मीज़ेज़ के हवाले से कहा, "हम मार्क्सवादी सिद्धांत को इस तरह संक्षेप में प्रस्तुत कर सकते हैं: शुरुआत में 'भौतिक उत्पादक बल' यानी मानव उत्पादक प्रयासों के तकनीकी उपकरण, औज़ार और मशीनें होती हैं। उनकी उत्पत्ति से संबंधित कोई भी सवाल पूछने की इजाज़त नहीं है; वे हैं, बस; हमें यह मानना है कि ये आसमान से गिरे हैं।" ऐतिहासिक नियतत्ववाद मार्क्स के इतिहास के सिद्धांत को ऐतिहासिक नियतत्ववाद (यह धारणा कि घटनाएँ पहले से निर्धारित हैं, या किन्हीं ताक़तों द्वारा जकड़ी हुई हैं, जिसके आधार पर कहा जाता है कि मनुष्य के कार्य स्वतंत्र नहीं होते) माना गया है। सामाजिक परिवर्तन के लिए एक अंतर्जात तंत्र के रूप में द्वंद्वात्मक भौतिकवाद पर (उस सिद्धांत की) निर्भरता से जुड़ा हुआ है। मार्क्स ने लिखा:At a certain stage of development, the material productive forces of society come into conflict with the existing relations of production or – this merely expresses the same thing in legal terms – with the property relations within the framework of which they have operated hitherto. From forms of development of the productive forces these relations turn into their fetters. Then begins an era of social revolution. The changes in the economic foundation lead sooner or later to the transformation of the whole immense superstructure. विकास के एक निश्चित चरण में, समाज की भौतिक उत्पादक शक्तियाँ उत्पादन के मौजूदा संबंधों के साथ संघर्ष में आती हैं या- यह केवल कानूनी रूप में वही बात व्यक्त करती है- संपत्ति के संबंधों के साथ, जिसके ढांचे के भीतर उन्होंने उस समय तक काम किया है। उत्पादक शक्तियों के विकास के रूपों से ये संबंध उनकी ज़ंजीरों में तब्दील हो जाते हैं। फिर शुरू होता है सामाजिक क्रांति का युग। आर्थिक नींव में होने वाले बदलाव कुछ समय बाद पूरी अपार अधिरचना के परिवर्तन का नेतृत्व करते हैं।डायलेक्टिक (द्वंद्वात्मक तर्कपद्धति) की अवधारणा प्राचीन ग्रीक दार्शनिकों के संवादों से उभरती है। लेकिन इसे 19 वीं शताब्दी की शुरुआत में हेगेल ने ऐतिहासिक विकासवाद की (अक्सर परस्पर रूप से विरोधी) ताकतों के लिए एक वैचारिक ढांचे के रूप में सामने लाया था। ऐतिहासिक निर्धारकवाद भी अर्नाल्ड ट्वानबी और ओसवाल्ड स्पेंगलर जैसे विद्वानों के साथ जुड़ा हुआ है, लेकिन वर्तमान में इस वैचारिक दृष्टिकोण का प्रयोग नहीं होता। इतिहास की ताकतों की समझ के लिए इस दृष्टिकोण को पुनः स्थापित करने के प्रयास में, प्रभात रंजन सरकार ने ऐतिहासिक विकास पर मार्क्स के विचारों के संकीर्ण वैचारिक आधार की आलोचना की। 1978 की पुस्तक द डाउनफॉल ऑफ कैपिटलिज्म एंड कम्युनिज्म में, रवि बत्रा ने सरकार और मार्क्स के ऐतिहासिक निर्धारक दृष्टिकोणों में महत्वपूर्ण अंतर बताया।Sarkar's main concern with the human element is what imparts universality to his thesis. Thus while social evolution according to Marx is governed chiefly by economic conditions, to Sarkar this dynamic is propelled by forces varying with time and space: sometimes physical prowess and high-spiritedness, sometimes intellect applied to dogmas and sometimes intellect applied to the accumulation of capital (p. 38). [...] The main line of defence of the Sarkarian hypothesis is that unlike the dogmas now in disrepute, it does not emphasise one particular point to the exclusion of all others: it is based on the sum total of human experience – the totality of human nature. Whenever a single factor, however important and fundamental, is called upon to illuminate the entire past and by implication the future, it simply invites disbelief, and after closer inspection, rejection. Marx committed that folly, and to some extent so did Toynbee. They both offered an easy prey to the critics, and the result is that today historical determinism is regarded by most scholars as an idea so bankrupt that it can never be solvent again. सरकार की थीसिस को सार्वभौमिकता इस कारण से मिलती है कि उनका चिंतन मानवीय तत्व पर मुख्य रूप से आधारित है। इस प्रकार, जहाँ मार्क्स के अनुसार सामाजिक विकास मुख्य रूप से आर्थिक परिस्थितियों द्वारा शासित होता है, सरकार के लिए यह गतिशील समय और स्थान के साथ बदलते बलों द्वारा प्रेरित किया जाता है: कभी-कभी शारीरिक कौशल और उच्च-उत्साह, कभी-कभी हठधर्मिता में लगाई गई बुद्धि, और कभी-कभी पूंजी के संचय के लिए लागू की जाने वाली बुद्धि (पृष्ठ 38)। [...] सरकार की परिकल्पना को बचाने वाली मुख्य पंक्ति यह है कि वर्तमान में विवादित हठधर्मिताओँ के विपरीत, यह विशेष बिंदु पर जोर देकर अन्य सभी का बहिष्कार नहीं करता है: यह मानव अनुभव के कुल योग पर आधारित है - मानव प्रकृति की समग्रता पर। जब भी किसी एक कारक, चाहे वह कितना भी महत्वपूर्ण और मौलिक हो, से पूरे अतीत (और इसी प्रकार, भविष्य पर) पर प्रकाश डालने की कोशिश की जाती है, तो इससे मन में बस अविश्वास उत्पन्न होता है, और क़रीबी निरीक्षण के बाद, अस्वीकृति। मार्क्स ने यही मूर्खता की, और कुछ हद तक तो ट्वानबी ने भी। उन दोनों ने आलोचकों को एक आसान शिकार दे दिया, और इसका नतीजा यह है कि आज ऐतिहासिक नियतत्ववाद को अधिकांश विद्वानों ने एक विचार के रूप में इतना दिवालिया माना है कि जो कभी उबर न पाएगा।टेरी ईगलटन लिखते हैं कि मार्क्स के लेखन "का अर्थ यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि जो कुछ भी हुआ है वह वर्ग संघर्ष का परिणाम है। इसका मतलब यह है कि, वर्ग संघर्ष मानव इतिहास के लिए सबसे अधिक मौलिक है "। व्यक्तिगत अधिकारों का दमन विभिन्न विचारकों ने तर्क दिया है कि एक कम्युनिस्ट राज्य अपने स्वभाव से ही अपने नागरिकों के अधिकारों का हनन करेगा, जो कि सर्वहारा वर्ग की हिंसक क्रांति और तानाशाही, उसके समूहवादी (न कि व्यक्तिवादी) स्वभाव, लोगों के बजाय "जनसाधारण" पर निर्भरता, ऐतिहासिक नियतत्ववाद और केन्द्रिय नियोजित अर्थव्यवस्था के कारण है। अमेरिकी नवशास्त्रीय अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन ने तर्क दिया कि समाजवाद के तहत एक मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की अनुपस्थिति अनिवार्य रूप से एक सत्तावादी राजनीतिक शासन (तानाशाही) को जन्म देगी। फ्रीडमैन के दृष्टिकोण से फ़्रीड्रिक हायक भी सहमत थे। वे मानते थे कि किसी देश में स्वतंत्रता पनपने के लिए पूंजीवाद का पहले से होना ज़रूरी है। कुछ उदारवादी सिद्धांतकारों का तर्क है कि संपत्ति का किसी भी प्रकार से किया जाने वाला पुनर्वितरण एक तरह का ज़ुल्म है। अराजकतावादियों ने यह भी तर्क दिया है कि केंद्रीकृत साम्यवाद अनिवार्य रूप से जबरदस्ती और राज्य के वर्चस्व को बढ़ावा देता है। मिखाइल बाकुनिनका मानना था कि मार्क्सवादी शासन "एक नए और अल्प-संख्यक अभिजात वर्ग द्वारा आबादी के निरंकुश नियंत्रण" के लिए नेतृत्व करेंगे। भले ही इस नए अभिजात वर्ग की उत्पत्ति सर्वहारा वर्ग के बीच से हुई हो, लेकिन बाकुनिन ने तर्क दिया कि उनकी नव-प्राप्त शक्ति मौलिक रूप से उनका समाज के बारे में दृष्टिकोण को बदल देगी और वे "सीधी-सादी कामगार जनता को तुच्छ दृष्टि से देखेंगे"। आर्थिक कई कारणों से मार्क्सवादी अर्थशास्त्र की आलोचना की गई है। कुछ आलोचक पूँजीवाद के मार्क्सवादी विश्लेषण की ओर इशारा करते हैं जबकि अन्य लोग तर्क देते हैं कि मार्क्सवाद द्वारा प्रस्तावित आर्थिक प्रणाली असाध्य है। यह भी संदेह है कि पूंजीवाद में लाभ की दर मार्क्स की भविष्यवाणी के अनुसार गिर जाएगी। 1961 में, मार्क्सवादी अर्थशास्त्री नोबुओ ओकिशियो ने यह दिखाते हुए एक प्रमेय ( ओकिशियो का प्रमेय ) दिया कि यदि पूंजीपति लागत में कटौती की तकनीक का अनुसरण करते हैं और यदि वास्तविक मजदूरी वेतन नहीं बढ़ता है, तो लाभ की दर में वृद्धि होनी चाहिए। मूल्य का श्रम सिद्धांत मूल्य का श्रम सिद्धांत (labour theory of value) मार्क्सवाद के सबसे अधिक आलोचनात्मक मूल सिद्धांतों में से एक है। ऑस्ट्रियन स्कूल का तर्क है कि शास्त्रीय अर्थशास्त्र का यह मौलिक सिद्धांत गलत है और कार्ल मेन्जर द्वारा अपनी पुस्तक प्रिंसिपल्स ऑफ इकोनॉमिक्समें दिए गए आधुनिक व्यक्तिनिष्ठ मूल्य सिद्धान्त को प्राथमिकता देता है। मूल्य के श्रम सिद्धांत में मार्क्सवादी और शास्त्रीय विश्वास की आलोचना करने में ऑस्ट्रियाई स्कूल अकेला नहीं था। अर्थशास्त्री अल्फ्रेड मार्शल (Alfred Marshall) ने मार्क्स पर हमला करते हुए कहा: "यह सच नहीं है कि एक कारखाने में सूत की कताई [...] परिचालकों के श्रम का उत्पाद है। यह नियोक्ता और अधीनस्थ प्रबंधकों के साथ, और नियोजित पूंजी के साथ, उनके श्रम का उत्पाद है। मार्शल दिखाते हैं कि जिस धन का उपयोग पूंजीपति अभी कर सकता है, उसे वह व्यापार में निवेश के रूप में लगाता है, जो अंततः कर्म पैदा करता है। इस तर्क के अनुसार, पूंजीपति का कारखाने के कर्म और उत्पादकता में योगदान होता है क्योंकि निवेश के कारण वह विलम्ब परितोषण (delaying gratification) करता है। आपूर्ति और मांग के कानून के माध्यम से, मार्शल ने मूल्य के मार्क्सियन सिद्धांत पर हमला किया। मार्शल के अनुसार, मूल्य (value) या क़ीमत (price) केवल आपूर्ति से नहीं, बल्कि उपभोक्ता की मांग से निर्धारित होता है। श्रम लागत में योगदान भले ही देता हो, लेकिन लागत उपभोक्ताओं की ज़रूरतों और इच्छाओं पर भी निर्भर करती है। जब श्रम को मूल्यांकन के स्त्रोत के रूप में देखने के बजाय फ़ोकस व्यक्तिपरक मूल्यांकन से सारे मूल्य के निर्माण पर दिया जाता है, तो मार्क्स के आर्थिक निष्कर्ष और कुछ सामाजिक सिद्धांतों निरर्थक हो जाते हैं। शिमशोन बिक्लर और जोनाथन निट्ज़ैन (Shimshon Bichler and Jonathan Nitzan) का तर्क है कि मूल्य के श्रम सिद्धांत के अनुभवजन्य साक्ष्य को दर्शाने के लिए किए जाने वाले अधिकांश अध्ययन अक्सर कई आर्थिक क्षेत्रों की कुल क़ीमत की कुल श्रम मूल्य की तुलना करके पद्धतिगत त्रुटियां करते हैं। इसके परिणामस्वरूप एक मजबूत समग्र सहसंबंध तो प्राप्त हो जाता है लेकिन यह एक सांख्यिकीय अतिशयोक्ति ही है। लेखकों का तर्क है कि प्रत्येक क्षेत्र में श्रम मूल्य और क़ीमत के बीच संबंध अक्सर बहुत कम अथवा महत्वहीन होता है। बाइक्लर और निट्ज़ैन का यह भी तर्क है कि चूँकि श्रम को मापने का एक तरीका निर्धारित करना मुश्किल है, इसलिए शोधकर्ता धारणाएँ बनाने के लिए मजबूर होते हैं। हालांकि, बिक्लर और निट्ज़ैन का तर्क है कि इन धारणाओं में परिपत्र तर्क (circular reasoning) शामिल हैं-The most important of these assumptions are that the value of labour power is proportionate to the actual wage rate, that the ratio of variable capital to surplus value is given by the price ratio of wages to profit, and occasionally also that the value of the depreciated constant capital is equal to a fraction of the capital’s money price. In other words, the researcher assumes precisely what the labour theory of value is supposed to demonstrate.इन धारणाओं में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि श्रम शक्ति का मूल्य वास्तविक मजदूरी दर के अनुपात में होता है, कि परिवर्तनशील पूंजी का अधिशेष मूल्य से अनुपात लाभ और मजदूरी के मूल्य के अनुपात द्वारा दिया जाता है, और कभी-कभी यह भी कि मूल्यह्रास स्थिर पूंजी (depreciated constant capital) का मूल्य पूंजी के पैसे की कीमत के एक अंश (fraction of the capital’s money price) के बराबर है। दूसरे शब्दों में, शोधकर्ता वही मान कर अध्ययन शुरू करता है, जो (मूल्य के श्रम सिद्धांत से) उसे सिद्ध करना है। विकृत या अनुपस्थित मूल्य संकेत यहाँ समस्या यह है कि अर्थव्यवस्था में संसाधनों को तर्कसंगत रूप से कैसे वितरित किया जाए। मुक्त बाजार (free market) मूल्य तंत्र (price mechanism) पर निर्भर करता है। इसमें संसाधनों का वितरण इस आधार पर किया जाता है कि लोग व्यक्तिगत रूप से विशिष्ट वस्तुओं या सेवाओं ख़रीदने के लिए कितने पैसे देने को तैयार हैं। मूल्य में संसाधनों की प्रचुरता के साथ-साथ उनकी वांछनीयता (आपूर्ति और मांग) के बारे में जानकारी समाहित होती है। इस जानकारी से व्यक्तिगत सहमति से लिए गए निर्णयों के आधार पर ऐसे सुधार किए जा सकते हैं जो कमी और अधिशेष बनने से रोकते हैं। मीज़ेज़ और हायक ने तर्क दिया कि क़ीमतें तय करने का यही एकमात्र संभव समाधान है। बाजार की कीमतों द्वारा प्रदान की गई जानकारी के बिना समाजवाद में तर्कसंगत रूप से संसाधनों को आवंटित करने के लिए कोई विधि नहीं है। जो लोग इस आलोचना से सहमत हैं, उनका तर्क है कि यह समाजवाद का खंडन है और यह दर्शाता है कि समाजवादी नियोजित अर्थव्यवस्था कभी काम नहीं कर सकती। 1920 और 1930 के दशक में इस पर बहस छिड़ गई और बहस के उस विशिष्ट दौर को आर्थिक इतिहासकारों ने "समाजवादी गणना बहस" के रूप में जाना। रिचर्ड एबेलिंग के अनुसार, "समाजवाद के खिलाफ मीज़ेज़ का तर्क यह है कि सरकार द्वारा केंद्रीय योजना प्रतिस्पर्धी रूप से गठित बाजार मूल्य को नष्ट कर देती है, जो समाज में लोगों के तर्कसंगत आर्थिक निर्णय लेने के लिए आवश्यक उपकरण है। प्रोत्साहन की कमी समाजवाद के कुछ आलोचकों का तर्क है कि आय का बंटवारा करने से काम करने के लिए व्यक्तिगत प्रोत्साहन कम हो जाते हैं और इसलिए आय को अधिक से अधिक व्यक्तिगत ही किया जाना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया है कि जिस समाज में हर कोई बराबर धन रखता है (जो कि उनका मानना है कि यह समाजवाद का परिणाम है), वहाँ काम करने के लिए कोई भौतिक प्रोत्साहन नहीं हो सकता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि किसी को अच्छी तरह से किए गए कार्य के लिए पुरस्कार नहीं मिलता है। वे आगे तर्क देते हैं कि प्रोत्साहन से सभी लोगों की उत्पादकता बढ़ती है, और इसके बिना ठहराव आ जाता है। इसके अतिरिक्त, अर्थशास्त्री जॉन केनेथ गैलब्रेथ ने समाजवाद के सांप्रदायिक रूपों की आलोचना की है जो मानव प्रेरणा के बारे में अपनी मान्यताओं में मजदूरी या मुआवजे के रूप में समतावाद को बढ़ावा देते हैं। उनका मानना है कि इस प्रकार की विचारधाराएँ सही ढंग से यह नहीं भाँप पातीं कि इंसान को कार्य करने की प्रेरणा कहाँ से मिलती है:This hope [that egalitarian reward would lead to a higher level of motivation], one that spread far beyond Marx, has been shown by both history and human experience to be irrelevant. For better or worse, human beings do not rise to such heights. Generations of socialists and socially oriented leaders have learned this to their disappointment and more often to their sorrow. The basic fact is clear: the good society must accept men and women as they are.यह आशा [कि समतावादी इनाम प्रेरणा के उच्च स्तर तक ले जाएगा], जो कि मार्क्स से परे फैल चुका है, इसे इतिहास और मानव अनुभव दोनों ने व्यर्थ सिद्ध किया है। चाहे यह अच्छा हो या बुरा, मनुष्य ऐसी ऊंचाइयों तक नहीं पहुँचता है। समाजवादियों और सामाजिक रूप से उन्मुख नेताओं ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी निराश होकर और अक्सर दुखी होकर यह सीखा है। मूल तथ्य स्पष्ट है- एक अच्छे समाज को पुरुषों और महिलाओं को वैसे स्वीकार करना चाहिए जैसे वे हैं। असंगति 1898 में व्लादिमीर करपोविच दिमित्रिक ने लेडिसलस वॉन बॉर्टिकविज़ लेखन और बाद के आलोचकों ने आरोप लगाया है कि कार्ल मार्क्स के मूल्य सिद्धांत और पतन की दर की प्रवृत्ति के कानून आंतरिक रूप से असंगत हैं। दूसरे शब्दों में, आलोचकों का आरोप है कि मार्क्स ने ऐसे निष्कर्ष निकाले जो वास्तव में उनके स्वयं के सैद्धांतिक परिसर से नहीं आते हैं। एक बार उन त्रुटियों को ठीक करने के बाद, मार्क्स का निष्कर्ष (कि कुल मूल्य और लाभ कुल मूल्य और अधिशेष मूल्य के बराबर होते हैं और उन्हीं के द्वारा निर्धारित होते हैं निर्धारण किया जाता है) ग़लत साबित होता है। चूँकि मार्क्स का यह निष्कर्ष ग़लत है, परिणामस्वरूप उनका यह सिद्धांत, कि श्रमिकों का शोषण ही लाभ का एकमात्र स्रोत है, भी संदेहास्पद है। 1970 के दशक से असंगतता के आरोप मार्क्सवादी अर्थशास्त्र की बहस की प्रमुख विशेषता रहे हैं। एंड्रयू क्लिमन का तर्क है कि चूँकि आंतरिक रूप से असंगत सिद्धांतों का सही होना सम्भव नहीं है, इससे मार्क्स की राजनीतिक अर्थव्यवस्था की समालोचना और उस पर आधारित वर्तमान अनुसंधान के साथ-साथ मार्क्स की कथित विसंगतियों के सुधार के प्रयास भी कमज़ोर पड़े हैं। कई पूर्व और वर्तमान मार्क्सियन और / या श्राफियन अर्थशास्त्रियों ने भी असंगति के आरोप लगाए हैं, जैसे पॉल स्वेज़ी, नोबुओ ओकिशियो, इयान स्टैडमैन, जॉन रोमर, गैरी मोंगडियोवी और डेविड लाइबमैन, जो प्रस्तावित करते हैं कि मूल रूप में मार्क्स की राजनीतिक अर्थशास्त्र की आलोचना के बजाय उनके अर्थशास्त्र के सही संस्करणों के आधार पर विषय तैयार किया जाना चाहिए, उस मूल रूप में जिसे उन्होंने उन्होंने दास कैपिटल में प्रस्तुत और विकसित किया। अप्रासंगिकता यह आलोचना भी की गई है कि मार्क्सवाद अप्रासंगिक हो चुका है। कई अर्थशास्त्रियों ने इसके मूल सिद्धांतों और मान्यताओं को खारिज कर दिया है। जॉन मेनार्ड कीन्स ने कैपिटल को "एक अप्रचलित पाठ्यपुस्तक" के रूप में संदर्भित किया है "जिसे मैं न केवल वैज्ञानिक रूप से त्रुटिपूर्ण लेकिन आधुनिक दुनिया के लिए अरुचिकर या उपयोगहीन मानता हूँ"। जॉर्ज स्टिगलर के अनुसार, "मार्क्सवादी-श्राफियन परंपरा में काम करने वाले अर्थशास्त्री आधुनिक अर्थशास्त्रियों के एक छोटे से अल्पसंख्यक दल का प्रतिनिधित्व करते हैं", और यह कि "उनके लेखन का प्रमुख अंग्रेजी भाषा के विश्वविद्यालयों में अधिकांश अर्थशास्त्रियों के पेशेवर काम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है"। द न्यू पालग्रेव डिक्शनरी ऑफ इकोनॉमिक्स के पहले संस्करण की समीक्षा में, रॉबर्ट सोलो ने आधुनिक अर्थशास्त्र में मार्क्सवाद को अत्यधिक महत्व देने के लिए इसकी आलोचना की-Marx was an important and influential thinker, and Marxism has been a doctrine with intellectual and practical influence. The fact is, however, that most serious English-speaking economists regard Marxist economics as an irrelevant dead end.मार्क्स एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली विचारक थे और मार्क्सवाद बौद्धिक और व्यावहारिक प्रभाव वाला सिद्धांत रहा है। हालांकि, तथ्य यह है कि अधिकांश अंग्रेजी बोलने वाले गंभीर अर्थशास्त्री मार्क्सवादी अर्थशास्त्र को एक अप्रासंगिक मृत अंत मानते हैं।अमेरिकी प्रोफेसरों के 2006 के राष्ट्रीय प्रतिनिधि सर्वेक्षण में पाया गया कि उनमें से केवल 3% मार्क्सवादी थे। यह हिस्सा मानविकी में 5% तक बढ़ जाता है और सामाजिक वैज्ञानिकों के बीच लगभग 18% है। सामाजिक सामाजिक आलोचना इस दावे पर आधारित है कि समाज की मार्क्सवादी अवधारणा मौलिक रूप से त्रुटिपूर्ण है। इतिहास के मार्क्सवादी चरणों, वर्ग विश्लेषण और सामाजिक विकास के सिद्धांत की आलोचना की गई है। ज्यां-पाल सार्त्र ने निष्कर्ष निकाला कि "वर्ग" एक समरूप इकाई नहीं थी और वह कभी भी क्रांति नहीं ला सकती थी, लेकिन फिर भी वे मार्क्सवादी मान्यताओं की वकालत करते रहे।मार्क्स ने स्वयं स्वीकार किया था कि उनका सिद्धांत एशियाई सामाजिक प्रणाली (जो उन्होंने मुख्यतः भारत को साक्ष्य में रखकर समझी थी) के आंतरिक विकास की व्याख्या नहीं कर सकता है, जहां दुनिया की ज़्यादातर आबादी हजारों वर्षों से रहती आई थी। ज्ञानमीमांसीय मार्क्सवाद के खिलाफ तर्क अक्सर ज्ञानमीमांसीय (epistemological) तर्क पर आधारित होते हैं। विशेष रूप से, विभिन्न आलोचकों ने तर्क दिया है कि मार्क्स या उनके अनुयायियों के पास एपिस्टेमोलॉजी के लिए एक त्रुटिपूर्ण दृष्टिकोण है। लेसज़ेक कोलाकोव्स्की के अनुसार, द्वंद्वात्मकता के नियम (जो मार्क्सवाद का मूल आधार हैं) मौलिक रूप से त्रुटिपूर्ण हैं। इनमें से कुछ "स्वयंसिद्ध सत्य (truism) हैं, जिनमें कोई विशिष्ट मार्क्सवादी सामग्री नहीं है"। बाक़ी कुछ "दार्शनिक हठधर्मिताएँ हैं जिन्हें वैज्ञानिक आधार पर साबित नहीं किया जा सकता", और कुछ अन्य हैं जो कि "निरर्थक" हैं। कुछ मार्क्सवादी "क़ानून" अस्पष्ट हैं और उनकी व्याख्या अलग-अलग तरीके से की जा सकती है, लेकिन ये व्याख्याएँ भी आम तौर पर खामियों की उपरोक्त श्रेणियों में ही आती हैं। हालांकि, मार्क्सवादी राल्फ़ मिलिबैंड ने यह कहकर कोलाकोव्स्की के तर्क को ख़ारिज कर दिया कि उन्हें मार्क्सवाद और लेनिनवाद और स्टालिनवाद के संबंध के बारे में गलत समझ थी। अर्थशास्त्री थॉमस सोवेल ने 1985 में लिखा था-What Marx accomplished was to produce such a comprehensive, dramatic, and fascinating vision that it could withstand innumerable empirical contradictions, logical refutations, and moral revulsions at its effects. The Marxian vision took the overwhelming complexity of the real world and made the parts fall into place, in a way that was intellectually exhilarating and conferred such a sense of moral superiority that opponents could be simply labelled and dismissed as moral lepers or blind reactionaries. Marxism was – and remains – a mighty instrument for the acquisition and maintenance of political power. मार्क्स ने जो कुछ किया, वह इतना व्यापक, नाटकीय और आकर्षक नज़रिया पैदा करने के लिए था कि वह असंख्य अनुभवजन्य अंतर्विरोधों, तार्किक प्रतिशोधों और घृणात्मक नैतिक प्रभावों का सामना कर सके। मार्क्सवादी दृष्टि ने वास्तविक दुनिया की व्यापक जटिलता को लिया और उसके हिस्सों को सही जगह पर स्थापित किया, एक ऐसे ढंग से जो बौद्धिक रूप से प्राणपोषक था और नैतिक श्रेष्ठता की ऐसी भावना प्रदान करने वाला था कि विरोधियों को आसानी से नैतिक रूप से कोढ़ी या अंधे प्रतिक्रियावादियों के रूप में तमग़ा देकर और खारिज किया जा सके। मार्क्सवाद राजनीतिक शक्ति के अधिग्रहण और रखरखाव के लिए एक शक्तिशाली साधन था- और है।कार्ल पॉपर, डेविड प्राइचिटको, रॉबर्ट सी॰ एलन और फ्रांसिस फुकुयामा जैसे कई उल्लेखनीय शिक्षाविदों का तर्क है कि मार्क्स की कई भविष्यवाणियां विफल रही हैं। मार्क्स ने भविष्यवाणी की कि मजदूरी वेतन कम होता जाएगा और पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाएँ आर्थिक संकटों से जूझेंगीं जिनसे उथल-पुथल मचेगी, बद से बदतर होते हालात के कारण पूँजीवादी व्यवस्था को अंततः उखाड़ फेंका जाएगा। समाजवादी क्रांति सबसे उन्नत पूंजीवादी राष्ट्रों में पहले होगी और एक बार सामूहिक स्वामित्व स्थापित हो जाने के बाद, वर्ग संघर्ष के सभी स्रोत गायब हो जाएंगे। मार्क्स की भविष्यवाणियों के उलट, कम्युनिस्ट क्रांतियाँ संयुक्त राज्य अमेरिका या यूनाइटेड किंगडम जैसे औद्योगिक देशों के बजाय लैटिन अमेरिका और एशिया में अविकसित क्षेत्रों में हुईं। पॉपर ने तर्क दिया है कि मार्क्स की ऐतिहासिक पद्धति की अवधारणा के साथ-साथ इसके अनुप्रयोग दोनों ही अमिथ्यापनीय हैं- इन्हें सही या गलत साबित नहीं किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, मार्क्स ने इन सिद्धांतों को "वैज्ञानिक" बताकर यह कहने की कोशिश की है कि इन्हें झुठलाया नहीं जा सकता, जबकि वास्तविकता में मिथ्यापनीयता वैज्ञानिक सिद्धांतों की विशेषता होती है। विज्ञान में जब कोई घटना किसी सिद्धांत के उलट होती है, तो उस सिद्धांत को नकार दिया जाता है। इस तरह से देखा जाए, तो मार्क्सवाद एक छद्म विज्ञान (pseudoscience) है।The Marxist theory of history, in spite of the serious efforts of some of its founders and followers, ultimately adopted this soothsaying practice. In some of its earlier formulations (for example in Marx's analysis of the character of the 'coming social revolution') their predictions were testable, and in fact falsified. Yet instead of accepting the refutations the followers of Marx re-interpreted both the theory and the evidence in order to make them agree. In this way they rescued the theory from refutation; but they did so at the price of adopting a device which made it irrefutable. They thus gave a 'conventionalist twist' to the theory; and by this stratagem they destroyed its much advertised claim to scientific status. इतिहास के मार्क्सवादी सिद्धांत ने, इसके कुछ संस्थापकों और अनुयायियों के गंभीर प्रयासों के बावजूद, अंततः यह भविष्यवाणी करने की आदत डाल ली। इसके कुछ पुराने योगों में (उदाहरण के लिए मार्क्स के "आने वाली सामाजिक क्रांति" के चरित्र के विश्लेषण में) उनकी भविष्यवाणियां परीक्षण योग्य थीं, और वास्तव में ग़लत साबित हुईं। फिर भी प्रतिवादों को स्वीकार करने के बजाय मार्क्स के अनुयायियों ने सिद्धांत और साक्ष्य दोनों की फिर से व्याख्या की, ताकि वे उन्हें आपस में सहमत करा सकें। इस तरह से उन्होंने इस सिद्धांत को प्रतिनियुक्ति से तो बचा लिया; लेकिन यह उन्होंने एक ऐसा उपकरण अपनाने की कीमत पर किया, जिसने इसे अकाट्य बना दिया। उन्होंने इस प्रकार सिद्धांत को एक 'परंपरावादी मोड़' दिया; और ऐसा करके उन्होंने अपने वैज्ञानिक होने के बहु-विज्ञापित दावे को नष्ट कर दिया।पॉपर का मानना था कि मार्क्सवाद शुरू में वैज्ञानिक था, कि मार्क्स ने एक ऐसा सिद्धांत प्रतिपादित किया था जो वास्तव में भविष्य बता सकता था। जब मार्क्स की भविष्यवाणियां ग़लत साबित होने लगीं, तो पॉपर का तर्क है कि सिद्धांत को तदर्थ परिकल्पनाओं (ad-hoc hypotheses) का प्रयोग करके मिथ्याकरण से बचाया गया, ताकि इसे तथ्य-संगत बनाया जा सके। इस माध्यम से, एक सिद्धांत जो शुरू में वास्तविक रूप से वैज्ञानिक था, उसे छद्म वैज्ञानिक हठ में तब्दील कर दिया गया। पॉपर इस बात से सहमत थे कि सामाजिक विज्ञान सामान्य तौर पर अमिथ्यापनीय होते हैं, लेकिन इसके बजाय उन्होंने इसे केंद्रीय योजना और सार्वभौमिक इतिहासकारी विचारधाराओं के खिलाफ एक तर्क के रूप में इस्तेमाल किया। पॉपर ने मार्क्सवादी विचार के बचाव में द्वंद्वात्मकता (dialectic) के प्रयोग बहुत ध्यान दिया। पॉपर की आलोचनाओं के खिलाफ मार्क्सवाद का बचाव करने में वीए लेक्टोर्स्की ने भी इसी रणनीति का प्रयोग किया। पॉपर के निष्कर्षों में से एक यह था कि मार्क्सवादी द्वंद्वात्मकता का प्रयोग आलोचनाओं से बचने और उन्हें दरकिनार करने के लिए करते थे, न कि उनका प्रत्युत्तर देने या उन्हें सम्बोधित करने में- Hegel thought that philosophy develops; yet his own system was to remain the last and highest stage of this development and could not be superseded. The Marxists adopted the same attitude towards the Marxian system. Hence, Marx's anti-dogmatic attitude exists only in the theory and not in the practice of orthodox Marxism, and dialectic is used by Marxists, following the example of Engels' Anti-Dühring, mainly for the purposes of apologetics – to defend the Marxist system against criticism. As a rule critics are denounced for their failure to understand the dialectic, or proletarian science, or for being traitors. Thanks to dialectic the anti-dogmatic attitude has disappeared, and Marxism has established itself as a dogmatism which is elastic enough, by using its dialectic method, to evade any further attack. It has thus become what I have called reinforced dogmatism. हेगेल ने सोचा कि दर्शन विकसित होता है; लेकिन उनकी खुद की प्रणाली इस विकास का अंतिम और उच्चतम स्तर है और इससे आगे नहीं जाया जा सकता। मार्क्सवादियों ने मार्क्सवादी व्यवस्था के प्रति यही रवैया अपनाया। इसलिए, मार्क्स का हठधर्मिता-विरोधी रवैया केवल सिद्धांत में ही मौजूद है, न कि रूढ़िवादी मार्क्सवाद के चलन में, और डायलेक्टिक का उपयोग मार्क्सवादियों द्वारा मार्क्सवादी प्रणाली का बचाव करने या आलोचना के खिलाफ किया जाता है, जैसा कि एंगेल्स के एंटी-ड्यूरिंग के उदाहरण में देखा जा सकता है, यह मुख्य रूप से बचाव-कर्ताओं के लिए ही है। एक नियम बन चुका है कि आलोचकों को यह कहकर नकार दिया जाए कि यह उनकी डायलेक्टिक या सर्वहारा विज्ञान को समझने की विफलता है, या वे उन्हें ग़द्दार क़रार कर दिया जाता है। द्वंद्वात्मकता के कारण, हठधर्मिता-विरोधी रवैया गायब हो गया है, और मार्क्सवाद ने खुद को एक ऐसी दृढ़ोक्ति के रूप में स्थापित किया है, जो कि पर्याप्त रूप से लचीली है, और अपनी द्वंद्वात्मक पद्धति का उपयोग करके किसी भी हमले से बचने में समर्थ है। इस प्रकार यह वह बन गया है जिसे मैंने प्रबलित दृढ़ोक्ति कहा है।बर्ट्रेंड रसेल ने प्रगति को सार्वभौमिक कानून मानने में मार्क्स के विश्वास को अवैज्ञानिक बताकर उसकी आलोचना की है। रसेल ने कहा: "मार्क्स ने स्वयं को नास्तिक बताया, लेकिन एक ऐसा ब्रह्मांडीय आशावाद बनाए रखा जिसे केवल आस्तिकता ही सही ठहरा सकती है"। थॉमस रिगिन्स जैसे मार्क्सवादियों ने दावा किया है कि रसेल ने मार्क्स के विचारों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया। यह सभी देखें अराजकतावाद और मार्क्सवाद कम्युनिस्ट पार्टी के शासन की आलोचना समाजवाद की आलोचना परिवर्तन की समस्या संदर्भ बाहरी संबंध मार्क्सवाद बेपर्दा: भ्रांति से विनाश तक मार्क्स और अधिनायकवाद मार्क्सवाद के मुख्य पाठ्यक्रम। वॉल्यूम I: द फाउंडर्स, वॉल्यूम II: द गोल्डन एज, वॉल्यूम III: ब्रेकडाउन Leszek Kołakowski द्वारा आलोचना ओपन सोसाइटी और उसके दुश्मन। आयतन II: भविष्यवाणी का उच्च स्तर (हेगेल, मार्क्स और उसके बाद) क्रिट पॉपर द्वारा आलोचना विज्ञान और Pseudoscience (प्रतिलेख) Imre Lakatos द्वारा एक आलोचना शामिल है अर्नेस्ट वैन डेन हैग द्वारा छद्म विज्ञान के रूप में मार्क्सवाद मार्क्स द्वारा प्रतिपादित भौतिकवाद के सिद्धांत के विरुद्ध अध्यात्मवाद मार्क्सवाद साम्यवाद
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उत्कल विश्वविद्यालय
उत्कल विश्वविद्यालय (ଉତ୍କଳ ବିଶ୍ୱବିଦ୍ୟାଳୟ) ओडिशा का सबसे पुराना विश्वविद्यालय और भारत का 17 वाँ सबसे पुराना विश्वविद्यालय है। राजधानी भुवनेश्वर में स्थित यह विश्वविद्यालय ओडिशा का प्रमुख शैक्षिक केंद्र है। इतिहास अप्रैल 1936 में ओडिशा के बिहार से अलग होकर एक नया प्रांत बन जाने के बाद ्राज्य का एक अपना विश्वविद्यालय बनाने की आवश्यकता महसूस की गई। 1936 तक ओड़िसा के सभी कॉलेज पटना विश्वविद्यालय या आंध्र विश्वविद्यालय के अंतर्गत थे। इसके बाद श्री विश्वनाथ दास, ओडिशा में एक अलग विश्वविद्यालय स्थापित करने की संभावना की जांच करने के लिए अपने अध्यक्ष के रूप में पंडित नीलकंठ दास के साथ, 2 मार्च, 1938 को एक समिति नियुक्त की। पंडित गोदवारिश मिश्रा, ओडिशा की सरकार में शिक्षा के तत्कालीन मंत्री ओडिशा विधानसभा में उत्कल विश्वविद्यालय विधेयक पेश किया जो ३० जून १९४३ पर ओडिशा विधानसभा द्वारा पारित किया गया था। वर्तमान परिसर की आधारशिला भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद द्वारा रखी गई थी और विश्वविद्यालय परिसर भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के द्वारा २ जनवरी १९६३ में उद्घाटन किया गया था। स्थान विश्वविद्यालय परिसर,भुवनेश्वर शहर के दिल में है। यह मास्टर कैंटीन में स्थित मुख्य रेलवे स्टेशन और वरमुंडा में स्थित बस स्टैंड दोनों से लगभग 5 किमी दूर है। उल्लेखनीय पूर्व छात्र अच्युत सामंत, प्रसिद्ध सामाजिक उद्यमी और केआईआईटी संस्थानों समूह के संस्थापक। गोपाल बल्लभ पटनायक, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश। जानकी बल्लभ पटनायक, ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री और असम के पूर्व राज्यपाल। जयंती पटनायक, संसद, लेखक और संपादक। मिहिर सेन, 1958 में इंग्लिश चैनल में तैरने वाले प्रथम एशियाई। एच आर खान, पूर्व डिप्टी गवर्नर, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया धर्मेंद्र प्रधान,केंद्रीय शिक्षा मंत्री भारत सरकार सन्दर्भ भारत के विश्वविद्यालय
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आइटेनीयम
आइटेनीयम () 64-बिट इंटेल माइक्रोप्रोसेसरों का एक परिवार है जो इंटेल आइटेनीयम आर्किटेक्चर (जिसे पूर्व में आईए -64 कहा जाता था) को लागू करता है। इंटेल ने एंटरप्राइज़ सर्वर और उच्च प्रदर्शन कंप्यूटिंग प्रणाली के लिए इसे प्रोसेसर बाजार में रखा है। आइटेनीयम आर्किटेक्चर का आरम्भ हैवलेट-पैकार्ड (एचपी) में हुआ था, और बाद में इसे संयुक्त रूप से हैवलेट-पैकर्ड (एचपी) और इंटेल द्वारा विकसित किया गया था। आइटेनीयम-आधारित सिस्टम एचपी (एचपी इंटीग्रिटी सर्वर लाइन) और कई अन्य निर्माताओं द्वारा उत्पादित किए गए हैं। 2008 में, x86-64, पावर आर्किटेक्चर और एसपीएआरसी के बाद आइटेनीयम एंटरप्राइज़-क्लास सिस्टम के लिए चौथा सबसे आम माइक्रोप्रोसेसर आर्किटेक्चर था। फरवरी 2017 में, इंटेल ने मौजूदा पीढ़ी के, किट्ट्सन को परीक्षण ग्राहकों के लिए जारी किया, और मई में साधारण रुप से भेजना शुरू कर दिया। यह आइटेनीयम परिवार का अंतिम प्रोसेसर है। इतिहास विकास: १९८९-२००० १९८९ में, एचपी ने निर्धारित किया कि कम निर्देश सेट कंप्यूटिंग (आरआईएससी) आर्किटेक्चर प्रति चक्र एक निर्देश घड़ी चक्र सीमा के करीब आ रहे थे। एचपी शोधकर्ताओं ने एक नए वास्तुकला की जांच की, जिसे बाद में स्पष्टीकरण समांतर निर्देश कंप्यूटिंग (ईपीआईसी) नाम दिया गया, जो प्रोसेसर को प्रत्येक घड़ी चक्र में कई निर्देश निष्पादित करने की अनुमति देता है। ईपीआईसी बहुत लंबे निर्देश शब्द (वीएलआईडब्ल्यू) वास्तुकला का एक रूप लागू करता है, जिसमें एक एकल निर्देश शब्द में कई निर्देश होते हैं।एचपी के अनुसार, ईपीआईसी के साथ, संकलक पहले से निर्धारित कर लेता है कि कौन से निर्देश एक ही समय में निष्पादित किए जा सकते हैं, इसलिए माइक्रोप्रोसेसर केवल निर्देशों को निष्पादित करता है और समानांतर में निष्पादित करने के निर्देशों को निर्धारित करने के लिए विस्तृत तंत्र की आवश्यकता नहीं होती है। इस दृष्टिकोण के दो लक्ष्य है: समांतर निष्पादन के लिए अतिरिक्त अवसरों की पहचान करने के लिए संकलन समय पर कोड के गहन निरीक्षण को सक्षम करने के लिए, और प्रोसेसर डिज़ाइन को सरल बनाने और रनटाइम शेड्यूलिंग सर्किट्री की आवश्यकता को समाप्त कर ऊर्जा खपत को कम करने के लिए। एचपी का मानना था कि माइक्रोप्रोसेसरों के विकास निजी एंटरप्राइज सिस्टम कंपनियों जैसे खुद एचपी के लिए लागत-प्रभावी नहीं था कि, इसलिए आईए-64 वास्तुकला,, जो ईपीआईसी से प्राप्त हुई थी के विकास के लिए 1994 में इंटेल के साथ भागीदारी की गयी। इंटेल आईए-64 पर एक बहुत बड़ा विकास प्रयास करने के लिए तैयार था, जिसके परिणामस्वरूप माइक्रोप्रोसेसर का उपयोग बहुसंख्य उद्यम प्रणालियों के निर्माताओं द्वारा किया जाना था। एचपी और इंटेल ने १९९८ में प्रथम उत्पाद, मर्सिड, को वितरित करने के लक्ष्य के साथ एक बड़ा संयुक्त विकास प्रयास शुरू किया। विकास के दौरान, इंटेल, एचपी और उद्योग विश्लेषकों ने भविष्यवाणी की कि आईए -64 सर्वर, वर्कस्टेशन और उच्च अंत वाले डेस्कटॉप पर हावी हो जाएगा, और अंततः सभी सामान्य प्रयोजन के लिए आरआईएससी और जटिल अनुदेश सेट कंप्यूटिंग (सीआईएससी) आर्किटेक्चर को जड़ से हटा देगा। कॉम्पैक और सिलिकॉन ग्राफिक्स ने अल्फा और एमआईपीएस आर्किटेक्चर के और विकास को आईए-64 के लिए माइग्रेट करने के पक्ष में छोड़ने का फैसला किया। कई समूहों ने इस आर्किटेक्चर के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम पोर्ट किया, जिसमें माइक्रोसॉफ्ट विंडोज, ओपनवीएमएस, लिनक्स, एचपी-यूएक्स, सोलारिस, ट्रू 64 यूनिक्स, [10] और मोंटेरे / 64 शामिल हैं। बाद वाले तीन बाजार पहुंचने से पहले रद्द कर दिए गए थे। 1997 तक, यह स्पष्ट था कि आईए -64 आर्किटेक्चर और कंपाइलर मूल रूप से विचार से लागू करने के लिए और अधिक कठिन थे, और मर्सिड के डिलीवरी की समय सीमा फिसल गई। तकनीकी कठिनाइयों में व्यापक निर्देश शब्दों और बड़े कैशों का समर्थन करने के लिए आवश्यक बहुत उच्च ट्रांजिस्टर गणना शामिल थीं। [उद्धरण वांछित] परियोजना के भीतर संरचनात्मक समस्याएं भी थीं, क्योंकि संयुक्त टीम के दो हिस्सों ने विभिन्न पद्धतियों का उपयोग किया था और उनकी कुछ अलग प्राथमिकताओं थी। [उद्धरण वांछित] चूंकि मर्सिड पहला ईपीआईसी प्रोसेसर था, इसलिए विकास के प्रयास में टीम के आदी होने की तुलना में अधिक अप्रत्याशित समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसके अलावा, ईपीआईसी अवधारणा संकलक क्षमताओं पर निर्भर करती है जिसे पहले कभी लागू नहीं किया गया था, इसलिए अधिक शोध की आवश्यकता थी।[उद्धरण वांछित] इंटेल ने 4 अक्टूबर 1999 को प्रोसेसर, आइटेनीयम के आधिकारिक नाम की घोषणा की। घंटों के भीतर, आइटैनिक नाम का उपयोग यूज़नेट न्यूज़ ग्रुप पर किया गया था, जो आरएमएस टाइटैनिक की ओर इशारा करता है, "न डुब सकने वाला" महासागर लाइनर जो 1912 में अपनी पहली यात्रा पर डूब गया था। "आइटैनिक(अंग्रेजी में लिखा इटानिक जाता है)" का उपयोग अक्सर रजिस्टर द्वारा किया जाता है, और अन्य, यह दर्शाता है: आइटेनीयम में बहु अरब डॉलर का निवेश - और इसके साथ जुड़े शुरुआती प्रचार-प्रसार - और इसके बाद इसका अपेक्षाकृत त्वरित पतन। आइटेनीयम (मर्सिड): २००१ जून 2001 में आइटेनीयम जारी किए जाने तक, इसका प्रदर्शन प्रतिस्पर्धी आरआईएससी और सीआईएससी प्रोसेसर से बेहतर नहीं था। आइटेनीयम ने x86 प्रोसेसर के आधार पर सर्वरों के साथ कम अंत (मुख्य रूप से चार-सीपीयू और छोटे सिस्टम) पर प्रतिस्पर्धा की, और आईबीएम के पावर आर्किटेक्चर और सन माइक्रोसिस्टम्स के एसपीएआरसी आर्किटेक्चर के साथ उच्च अंत में प्रतिस्पर्धा की। इंटेल ने उच्च अंत व्यापार और एचपीसी कंप्यूटिंग पर ध्यान केंद्रित करने के लिए आइटेनीयम को दोहराया, x86 के सफल "क्षैतिज" बाजार (यानी, एकल वास्तुकला, एकाधिक सिस्टम विक्रेताओं) को डुप्लिकेट करने का प्रयास किया। इस शुरुआती प्रोसेसर संस्करण की सफलता एचपी सिस्टम में पीए-आरआईएससी, कॉम्पैक सिस्टम में अल्फा और एसजीआई सिस्टम में एमआईपीएस को बदलने के लिए सीमित थी, हालांकि आईबीएम ने इस प्रोसेसर के आधार पर एक सुपरकंप्यूटर भी दिया था। पावर और एसपीएआरसी मजबूत बनी हुई थी, जबकि 32-बिट x86 आर्किटेक्चर एंटरप्राइज़ स्पेस में बढ़ता जा रहा था, जिसने इसके विशाल स्थापित बेस को ईंधन की तरह इस्तेमाल कर अर्थव्यवस्थाओं पर पकड़ा। अपेक्षाकृत खराब प्रदर्शन, उच्च लागत और सीमित सॉफ्टवेयर उपलब्धता के कारण, मूल मर्सिड आइटेनीयम प्रोसेसर का उपयोग करके केवल कुछ हज़ार सिस्टम बेचे गए थे। यह पहचानते हुए कि सॉफ्टवेयर की कमी भविष्य के लिए एक गंभीर समस्या हो सकती है, इंटेल ने हजारों प्रारंभिक प्रणालियों को विकास को प्रोत्साहित करने के लिए स्वतंत्र सॉफ्टवेयर विक्रेताओं (आईएसवी) के लिए उपलब्ध कराया। एचपी और इंटेल ने एक साल बाद बाजार के लिए अगली पीढ़ी के आइटेनीयम 2 प्रोसेसर लाया। आइटेनीयम २: २००२-२०१० आइटेनीयम प्रोसेसर 2002 में जारी किया गया था, और उच्च अंत कंप्यूटिंग के पूरे मैदान के बजाय एंटरप्राइज़ सर्वर के लिए विपणन किया गया था। पहला आइटेनीयम 2, कोड नामित मैककिनले, संयुक्त रूप से एचपी और इंटेल द्वारा विकसित किया गया था। इसने मूल आइटेनीयम प्रोसेसर की कई प्रदर्शन समस्याओं को राहत दी, जो ज्यादातर एक अक्षम स्मृति उपप्रणाली के कारण थे। मैककिनले में 221 मिलियन ट्रांजिस्टर (जिनमें से 25 मिलियन तर्क के लिए हैं) हैं, इसका नाप 19.5 मिमी 21.6 मिमी (421 मिमी२) मापा गया है और यह 180 एनएम में बना हुआ है, थोक सीएमओएस प्रक्रिया और एल्यूमीनियम धातुकरण की छः परतों के साथ। 2003 में, एएमडी ने ओपर्टन सीपीयू जारी किया, जो एएमडी 64 नामक अपनी 64-बिट आर्किटेक्चर लागू करता है। ऑप्टरन ने एंटरप्राइज़ सर्वर स्पेस में तेजी से स्वीकृति प्राप्त की क्योंकि यह x86 से आसान अपग्रेड प्रदान करता है। माइक्रोसॉफ्ट द्वारा प्रभाव में, इंटेल ने 2004 में अपने ज़ीऑन माइक्रोप्रोसेसरों में आईए -64 के बजाय एएमडी के x86-64 निर्देश सेट आर्किटेक्चर को कार्यान्वित करके जवाब दिया, जिसके परिणामस्वरूप एक नया उद्योग-व्यापी वास्तविक तथ्य था। इंटेल ने 2003 में मैडिसन नामक एक नया आइटेनीयम 2 पारिवारिक सदस्य जारी किया। मैडिसन 130 एनएम प्रक्रिया का उपयोग करता है और जून 2006 में मोंटेसिटो के जारी होने तक सभी नए आइटेनीयम प्रोसेसर का आधार था। मार्च 2005 में, इंटेल ने घोषणा की कि वह 2007 में रिलीज़ होने वाले कूट-नामित टुकविला(पहले कोड-नाम टैंगलवुड था) के नए आइटेनीयम प्रोसेसर पर काम कर रहा था। टुकविला में चार प्रोसेसर कोर होंगे और आइटेनीयम बस को एक नए कॉमन सिस्टम इंटरफेस के साथ बदल देंगे, जिसमें एक नये ज़ीऑन प्रोसेसर का उपयोग भी किया जाएगा । उस वर्ष बाद में, इंटेल ने टुकविला की डिलीवरी तिथि संशोधित की- 2008 के अंत तक। नवंबर 2005 में, प्रमुख आइटेनीयम सर्वर निर्माता आर्किटेक्चर को बढ़ावा देने और सॉफ्टवेयर पोर्टिंग में तेजी लाने के लिए इंटेल और कई सॉफ़्टवेयर विक्रेता साथ में आइटेनीयम सॉल्यूशंस एलायंस बनाने के लिए शामिल हुए। गठबंधन ने घोषणा की कि उसके सदस्य दशकों के अंत तक आइटेनीयम समाधान में $ 10 बिलियन का निवेश करेंगे। 2006 में, इंटेल ने मोंटेसिटो (आइटेनीयम 2 9000 शृंखला के रूप में विपणन किया), एक दोहरे कोर वाला प्रोसेसर को वितरित किया जो लगभग दोगुना प्रदर्शन करता था और लगभग 20 प्रतिशत तक ऊर्जा खपत में कमी लाया। इंटेल ने नवंबर 2007 में आइटेनीयम 2 9100 श्रृंखला, कोडेनामेड मोंटवाले जारी की। मई 2009 में, टुकविला वाली अनुसूची, इसके अनुवर्ती अनुसूची को फिर से संशोधित किया गया था, 2010 की पहली तिमाही के लिए ओइएमों को जारी करने की योजना के साथ। आइटेनीयम 9300 (टुकविला): २०१० आइटेनीयम 9300 शृंखला प्रोसेसर, कोडनामयुक्त टुकविला, 8 फरवरी, 2010 को अधिक प्रदर्शन और स्मृति क्षमता के साथ जारी किया गया था। यह डिवाइस 65 एनएम प्रक्रिया का उपयोग करता है, इसमें दो से चार कोर, 24 एमबी ऑन-डाई कैश, हाइपर-थ्रेडिंग तकनीक और एकीकृत मेमोरी नियंत्रक शामिल हैं। यह डबल-डिवाइस डेटा सुधार लागू करता है, जो स्मृति त्रुटियों को ठीक करने में मदद करता है। टुकविला आइटेनीयम बस-आधारित वास्तुकला को प्रतिस्थापित करने के लिए इंटेल क्विकपैथ इंटरकनेक्ट (क्यूपीआई) भी लागू करता है। इसमें 96 जीबी / एस की चोटी इंटरप्रोसेसर बैंडविड्थ और 34 जीबी / एस की एक शीर्ष मेमोरी बैंडविड्थ है। क्विकपैथ के साथ, प्रोसेसर ने क्यूपीआई इंटरफेस का उपयोग करके अन्य प्रोसेसर और आई / ओ हब से सीधे कनेक्ट करने के लिए मेमोरी कंट्रोलर को एकीकृत किया है और मेमोरी को सीधे इंटरफेस किया है। नेहलेम माइक्रोआर्किटेक्चर का उपयोग करके इंटेल प्रोसेसर पर क्विकपैथ का भी उपयोग किया जाता है, जिससे यह संभव हो जाता है कि टुकविला और नेहलेम एक ही चिपसेट का उपयोग करने में सक्षम होंगे। टुकविला में चार मेमोरी कंट्रोलर शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक एक अलग मेमोरी कंट्रोलर के माध्यम से एकाधिक डीडीआर 3 डीआईएमएम का समर्थन करता है, [35] नेहलेम आधारित ज़ीओन प्रोसेसर कोड-नामक बेकटन के जैसे। आइटेनीयम 9500 (पॉलसन): २०१२ इटानियम 9500 सीरीज़ प्रोसेसर, कोडेनामेड पोल्सन, टुकविला के फॉलो-ऑन प्रोसेसर हैं और 8 नवंबर, 2012 को जारी किए गए थे। [उद्धरण में नहीं] इंटेल के मुताबिक, यह 45 एनएम प्रोसेस टेक्नोलॉजी को छोड़ देता है और 32 एनएम प्रक्रिया प्रौद्योगिकी का उपयोग करता है । इसमें आठ कोर हैं और इसमें 12-चौड़ा मुद्दा आर्किटेक्चर, मल्टीथ्रेडिंग एन्हांसमेंट्स और समांतरता का लाभ उठाने के लिए नए निर्देश हैं, खासकर वर्चुअलाइजेशन में। पोल्सन एल 3 कैश आकार 32 एमबी है। एल 2 कैश आकार 6 एमबी, 512 आई केबी, 256 डी केबी प्रति कोर है। डाइ आकार 544 मिमी² है, जो इसके पूर्ववर्ती टुकविला (698.75 मिमी²) से भी कम है। आईएसएससीसी 2011 में, इंटेल ने मिशन क्रिटिकल सर्वर के लिए "ए 32 एनएम 3.1 बिलियन ट्रांजिस्टर 12-वाइड-इश्यु आइटेनीयम प्रोसेसर" नामक एक पेपर प्रस्तुत किया। आईएसएससीसी में आइटेनीयम माइक्रोप्रोसेसरों के बारे में जानकारी देने के इंटेल के इतिहास को देखते हुए, यह पत्र (सबसे अधिक संभावना है) पॉलसन को संदर्भित करता है। विश्लेषक डेविड कन्टर ने अनुमान लगाया कि पॉलसन एकल थ्रेडेड और मल्टीथ्रेड वर्कलोड के प्रदर्शन में सुधार के लिए दो धागे तक उपयोग करने वाले मल्टीथ्रेडिंग के एक और उन्नत रूप के साथ एक नए माइक्रोआर्किटेक्चर का उपयोग करेगा। हॉट चिप्स सम्मेलन में कुछ नई जानकारी जारी की गई थी। नई जानकारी मल्टीथ्रेडिंग, लचीलापन सुधार (इंटेल इंस्ट्रक्शन रीप्ले आरएएस) और कुछ नए निर्देशों (थ्रेड प्राथमिकता, पूर्णांक निर्देश, कैश प्रीफेचिंग, और डेटा एक्सेस संकेत) में सुधार प्रस्तुत करती है। इंटेल के उत्पाद परिवर्तन अधिसूचना (पीसीएन) 111456-01 में आइटेनीयम 9500 शृंखला सीपीयू के चार मॉडल सूचीबद्ध हैं, जिन्हें बाद में संशोधित दस्तावेज़ में हटा दिया गया था। बाद में भागों को इंटेल की सामग्री घोषणा डेटा शीट्स (एमडीडीएस) डेटाबेस में सूचीबद्ध किया गया था। इंटेल ने बाद में आइटेनीयम 9500 संदर्भ पुस्तिका पोस्ट की। मॉडल निम्नलिखित हैं: एचपी बनाम ऑरेकल 2012 हेवलेट-पैकार्ड कंपनी वी। ओरेकल कॉर्प समर्थन मुकदमे के दौरान, सांता क्लारा काउंटी कोर्ट के न्यायाधीश द्वारा अदालत के दस्तावेजों से पता चला कि 2008 में, हेवलेट-पैकार्ड ने 2009 से आइटेनीयम माइक्रोप्रोसेसरों के उत्पादन और अद्यतन को बनाए रखने के लिए इंटेल को $ 440 मिलियन का भुगतान किया था। 2014 में, दोनों कंपनियों ने 250 मिलियन डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किए, जिसने इंटेल को 2017 तक एचपी की मशीनों के लिए आइटेनीयम सीपीयू बनाने के लिए बाध्य किया। समझौते की शर्तों के तहत, एचपी को इंटेल से चिप्स के लिए भुगतान करना पड़ता है, जबकि इंटेल ने टुकविला लॉन्च किया , पॉलसन, किटसन, और किटसन + चिप्स धीरे-धीरे प्रदर्शन को बढ़ावा देने के लिए होड़ लगाते हैं। आइटेनीयम 9700 (किटसन): २०१७ पॉलसन के उत्तराधिकारी (कोड नाम किटसन) की अफवाहें 2012-2013 में फैलनी शुरू हुईं। यह पहली बार आने वाले 22 एनएम सिकुड़ से जुड़ा हुआ था, और बाद में इसे कम-महत्वाकांक्षी 32 एनएम नोड तक आइटेनीयम की बिक्री में गिरावट के चेहरे में संशोधित किया गया था। अप्रैल 2015 में, इंटेल, हालांकि उसने अभी तक औपचारिक विनिर्देशों की पुष्टि नहीं की थी, इस बात की पुष्टि की कि यह परियोजना पर काम करना जारी रखा है। इस बीच, आक्रामक मल्टीकोर ज़ीऑन ई 7 मंच ने इंटेल रोडमैप में आइटेनीयम-आधारित समाधानों को विस्थापित कर दिया। जुलाई 2016 में, हेवलेट पैकार्ड एंटरप्राइज (एचपीई) नामक एचपी स्पिनऑफ नेकंप्यूटर वर्ल्ड में घोषणा की कि किटसन को 2017 के मध्य में रिलीज़ किया जाएगा। [55] [56] फरवरी 2017 में, इंटेल ने बताया कि वह उस वर्ष के बाद वॉल्यूम में शिप करने की योजना के साथ, ग्राहकों का परीक्षण करने के लिए किटसन भेज रहा था। इंटेल ने आधिकारिक तौर पर 11 मई, 2017 को आइटेनीयम 9700 शृंखला प्रोसेसर परिवार लॉन्च किया। विशेष रूप से, किटसन में पोल्सन पर से कोई माइक्रोआर्किटेक्चर सुधार नहीं है, केवल उच्च गति की घड़ी है। इंटेल ने घोषणा की है कि 9 700 शृंखला उत्पादित अंतिम आइटेनीयम चिप्स होगी। कंपनी के अनुसार, मॉडल हैं: बाजार शेयर सर्वर प्रोसेसर के ज़ीऑन परिवार की तुलना में, आइटेनीयम इंटेल के लिए उच्च मात्रा वाला उत्पाद कभी नहीं रहा है। इंटेल उत्पादन संख्या जारी नहीं करता है। एक उद्योग विश्लेषक ने अनुमान लगाया कि 2007 में उत्पादन दर सालाना 200,000 प्रोसेसर थी। गार्टनर इंक के अनुसार, 2007 में सभी विक्रेताओं द्वारा बेचे जाने वाले आइटेनीयम सर्वर (प्रोसेसर नहीं) की कुल संख्या लगभग 55,000 थी। (यह स्पष्ट नहीं है कि क्लस्टर सर्वर एक सर्वर के रूप में गिना जाता है या नहीं।) यह 417,000 आरआईएससी सर्वर (सभी आरआईएससी विक्रेताओं में फैला हुआ) और 8.4 मिलियन x86 सर्वरों के साथ तुलना करता है। आईडीसी रिपोर्ट करता है कि कुल 184,000 आइटेनीयम-आधारित सिस्टम 2001 से 2007 तक बेचे गए थे। संयुक्त पावर / एसपीएआरसी / आइटेनीयम सिस्टम बाजार के लिए, आईडीसी रिपोर्ट करता है कि पॉवर ने 42% राजस्व पर कब्जा कर लिया और एसपीएआरसी ने 32% पर कब्जा कर लिया, जबकि आइटेनीयम आधारित सिस्टम राजस्व 2008 की दूसरी तिमाही में 26% तक पहुंच गया। एक आईडीसी विश्लेषक के अनुसार, 2007 में, एचपी ने आइटेनीयम सिस्टम राजस्व का शायद 80% हिस्सा लिया था। गर्टनर के अनुसार, 2008 में, एचपी ने आइटेनीयम की बिक्री के 95% के लिए जिम्मेदार ठहराया। 2008 के अंत में एचपी की आइटेनीयम प्रणाली की बिक्री 4.4 बिलियन डॉलर की वार्षिक दर से थी, और 2009 के अंत तक 3.5 अरब डॉलर तक पहुंच गई, सन माइक्रोसिस्टमस के लिए यूनिक्स सिस्टम राजस्व में 35% की गिरावट और आईबीएम 11% की गिरावट के मुकाबले, इस अवधि के दौरान x86-64 सर्वर राजस्व में 14% की वृद्धि हुई। दिसंबर 2012 में, आईडीसी ने एक शोध रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया था कि आइटेनीयम सर्वर शिपमेंट 2016 के माध्यम से 26,000 सिस्टम (2008 में शिपमेंट की तुलना में 50% से अधिक की गिरावट के साथ) के साथ सपाट रहेगा। हार्डवेयर समर्थन प्रणाली 2006 तक, एचपी ने सभी आइटेनीयम सिस्टमों में से कम से कम 80% का निर्माण किया, और 2006 की पहली तिमाही में 7,200 बेचे। बड़े पैमाने पर तकनीकी कंप्यूटिंग के लिए एंटरप्राइज़ सर्वर और मशीनें बेची गईं, प्रति सिस्टम औसत बिक्री मूल्य के साथ यूएस $ 200,000 का। एक ठेठ प्रणाली आठ या अधिक आइटेनीयम प्रोसेसर का उपयोग करती है। 2012 तक, केवल कुछ एचपी, बुल, एनईसी, इंसपुर और हुआवेई सहित निर्माताओं ने आइटेनीयम सिस्टम की पेशकश की। इसके अलावा, इंटेल ने एक चेसिस की पेशकश की जिसका उपयोग सिस्टम इंटीग्रेटर्स द्वारा आइटेनीयम सिस्टम बनाने के लिए किया जा सकता है। 2015 तक, केवल एचपी ने आइटेनीयम-आधारित सिस्टम की आपूर्ति की। चिपसेट आइटेनीयम बस चिपसेट के माध्यम से शेष सिस्टम में इंटरफेस करता है। एंटरप्राइज़ सर्वर निर्माता चिपसेट्स को डिजाइन और विकसित करके अपने सिस्टम को अलग करते हैं जो प्रोसेसर को स्मृति, इंटरकनेक्शन और परिधीय नियंत्रकों को इंटरफ़ेस करते हैं। चिपसेट प्रत्येक सिस्टम डिज़ाइन के लिए सिस्टम-स्तरीय आर्किटेक्चर का "दिल" है। एक चिपसेट का विकास लाखों डॉलर खर्च करता है और आइटेनीयम के उपयोग के लिए एक प्रमुख प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करता है। आईबीएम ने 2003 में एक चिपसेट बनाया, और 2002 में इंटेल ने, लेकिन उनमें से किसी ने भी नई प्रौद्योगिकियों जैसे डीडीआर 2 या पीसीआई एक्सप्रेस का समर्थन करने के लिए चिपसेट विकसित नहीं किया। "ट्कविला" एफएसबी से दूर चले जाने से पहले, ऐसी प्रौद्योगिकियों का समर्थन करने वाले चिप्ससेट सभी आइटेनीयम सर्वर विक्रेताओं, जैसे एचपी, फुजित्सु, एसजीआई, एनईसी, और हिताची द्वारा निर्मित किए गए थे। "टुकविला" आइटेनीयम प्रोसेसर मॉडल को इंटेल ज़ीऑन प्रोसेसर इएक्स (इंटेल का ज़ीऑन प्रोसेसर चार प्रोसेसर वाले या और बड़े सर्वरों के लिए डिज़ाइन किया गया) के साथ एक सामान्य चिपसेट साझा करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। लक्ष्य सिस्टम विकास को व्यवस्थित करना और सर्वर ओइएम के लिए लागत को कम करना था, जिनमें से कई आइटेनीयम- और ज़ीऑन-आधारित सर्वर दोनों विकसित करते थे। हालांकि, 2013 में, इस लक्ष्य को "भविष्य के कार्यान्वयन के अवसरों के लिए मूल्यांकन" पर धकेल दिया गया था। सॉफ्टवेयर समर्थन निम्नलिखित ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा आइटेनीयम समर्थित है या था (समर्थित विंडोज संस्करण अब खरीदा नहीं जा सकता है): एचपी-यूएक्स 11आइ; इंटेल 64 (x86-64) पोर्ट प्रस्तावित किया गया था, लेकिन बाद में रद्द कर दिया गया। विंडोज परिवार विंडोज एक्सपी 64-बिट संस्करण (असमर्थित; समर्थन करने के लिए पहला विंडोज संस्करण) विंडोज सर्वर 2003 (असमर्थित) विंडोज सर्वर 2008 (14 जनवरी, 2020 तक विस्तारित समर्थन । विस्तारित समर्थन केवल बग फिक्स प्राप्त करेगा और भविष्य में सीपीयू के लिए समर्थन सहित कोई नई विशेषताएं नहीं होगी।) विंडोज सर्वर 2008 आर 2 (14 जनवरी, 2020 तक विस्तारित समर्थन। यह आइटेनीयम का समर्थन करने के लिए विंडोज का अंतिम संस्करण है।) लिनक्स वितरण जेंटू एसयूएसई के एसएलएस (एसएलएस 12 के रूप में असमर्थित; एसएलएस 11 एसपी 4 द्वारा समर्थित ) टर्बोलिंक्स (2001 में संस्करण 7 के साथ समर्थन करने वाला पहला लिनक्स था) फ्रीबीएसडी (वर्तमान 11 में असमर्थित; विरासत संस्करण (अप्रैल 2018 ईओएल) द्वारा समर्थित 10.3: "फ्रीबीएसडी 10 के माध्यम से टियर 2। इसके बाद असमर्थित।" ) नेटबीएसडी (केवल विकास शाखा, लेकिन "कोई औपचारिक रिलीज़ उपलब्ध नहीं है"।) ओपनवीएमएस आई 64 (2020 तक ); इंटेल 64 (x86-64) पोर्ट विकसित किया जा रहा है। नॉनस्टॉप ओएस; एक इंटेल 64 (x86-64) पोर्ट विकसित किया गया था। बुल जीसीओएस 8 एनईसी एसीओएस -4 (सितंबर 2012 के अंत में, एनईसी ने एसीओएस -4 के लिए मालिकाना मेनफ्रेम प्रोसेसर की पिछली एनओएएच लाइन से आईए -64 से वापसी की घोषणा की।) माइक्रोसॉफ्ट ने घोषणा की कि विंडोज सर्वर 2008 आर 2 आइटेनीयम (एक्सपी के साथ समर्थन शुरू) का समर्थन करने के लिए विंडोज सर्वर का अंतिम संस्करण होगा, और यह विजुअल स्टूडियो और एसक्यूएल सर्वर के आइटेनीयम संस्करणों के विकास को भी बंद कर देगा। इसी तरह, रेड हैट् इंटरप्राइज लिनक्स 5 (पहली बार मार्च 2007 में जारी किया गया) रेड हैट् इंटरप्राइज लिनक्स का अंतिम आइटेनीयम संस्करण था और डेबियन अब आइटेनीयम का समर्थन नहीं करता है और इसके अलावा कैनोनिकल ने उबंटू 10.04 एलटीएस के लिए आइटेनीयम का समर्थन नहीं करना चुना (अप्रैल में जारी 2010, अब बंद कर दिया गया)। एचपी आइटेनीयम 9300 (तुकविला) सर्वर पर लिनक्स का समर्थन या प्रमाणन नहीं करेगा। सितंबर 2012 के आखिर में, एनईसी ने आईए -64 से मालिकाना मेनफ्रेम प्रोसेसर की पिछली एनओएएच लाइन में वापसी की घोषणा की, जो अब एनओएएच -6 नामक 40 एनएम पर क्वाड-कोर संस्करण में उत्पादित है। एचपी आइटेनीयम वर्चुअल मशीन नामक आइटेनीयम के लिए वर्चुअलाइजेशन टेक्नोलॉजी बेचता है। आइटेनीयम पर चलाने के लिए अधिक सॉफ़्टवेयर को बढ़ावा देने के लिए, इंटेल ने मंच के लिए ऑप्टिमाइज़ किए गए कंपाइलर्स के विकास का समर्थन किया, खासकर अपने स्वयं के कंपाइलरों का सूट। नवंबर 2010 से, नए उत्पाद सूटों के परिचय के साथ, इंटेल आइटेनीयम कंपाइलर्स को अब एक ही उत्पाद में इंटेल x86 कंपाइलर्स के साथ बंडल नहीं किया गया था। इंटेल विभिन्न उत्पाद बंडलों में स्वतंत्र रूप से कंपाइलर्स सहित आइटेनीयम उपकरण और इंटेल x86 उपकरण प्रदान करता है। जीसीसी,ओपन 64 और माइक्रोसॉफ्ट विजुअल स्टूडियो 2005 (और बाद में) आइटेनीयम के लिए मशीन कोड भी तैयार करने में सक्षम हैं। 2008 के आरंभ में आइटेनीयम आधारित प्रणालियों के लिए 13,000 से अधिक अनुप्रयोगों के आइटेनीयम सॉल्यूशंस एलायंस के मुताबिक, हालांकि, सन ने अतीत में आइटेनीयम अनुप्रयोगों की गणना की है। आईएसए ने एक आइटेनीयम एचपीसी उपयोगकर्ता समूह और डेवलपर समुदाय जेलाटो का भी समर्थन किया जो आइटेनीयम के लिए ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर पोर्ट्रेट और समर्थित था। अनुकरण अनुकरण(इम्यूलेशन ) एक ऐसी तकनीक है जो कंप्यूटर को एक अलग प्रकार के कंप्यूटर के लिए संकलित बाइनरी कोड निष्पादित करने की अनुमति देती है। आईबीएम के 2009 में क्विकट्रांसिट के अधिग्रहण से पहले, आईआरआईएक्स / एमआईपीएस और सोलारिस / एसपीएआरसी के लिए आवेदन बाइनरी सॉफ्टवेयर लिनक्स / आइटेनीयम पर "गतिशील बाइनरी अनुवाद" नामक इम्यूलेशन के माध्यम से चलाया जा सकता था। इसी तरह, एचपी ने पीए-आरआईएससी / एचपी-यूएक्स को इम्यूलेशन के माध्यम से आइटेनीयम/ एचपी-यूएक्स पर निष्पादित करने के लिए एक विधि लागू की, ताकि पीए-आरआईएससी ग्राहकों के मूल रूप से अलग आइटेनीयम निर्देश सेट में माइग्रेशन को सरल बनाया जा सके। आइटेनीयम प्रोसेसर ग्रुप बुल से मेनफ्रेम पर्यावरण जीसीओएस और निर्देश सेट सिमुलेटर के माध्यम से कई x86 ऑपरेटिंग सिस्टम भी चला सकते हैं। प्रतिस्पर्धा आइटेनीयम का उद्देश्य एंटरप्राइज़ सर्वर और उच्च प्रदर्शन कंप्यूटिंग (एचपीसी) बाजारों के लिए है। अन्य उद्यम- और एचपीसी-केंद्रित प्रोसेसर लाइनों में ओरेकल और फुजीत्सू के एसपीएआरसी प्रोसेसर और आईबीएम के पावर माइक्रोप्रोसेसर शामिल हैं। बेची गई मात्रा के आधार पर, आइटेनीयम की सबसे गंभीर प्रतिस्पर्धा इंटेल की अपनी ज़ीऑन लाइन और एएमडी की ओपर्टन लाइन सहित x86-64 प्रोसेसर से आती है। 2009 से, अधिकांश सर्वरों को x86-64 प्रोसेसर के साथ भेज दिया गया था। 2005 में, आइटेनीयम सिस्टम लगभग 14% एचपीसी सिस्टम राजस्व के लिए जिम्मेदार थे, लेकिन उद्योग के x86-64 क्लस्टर की ओर स्थानांतरित होने के कारण प्रतिशत में कमी आई है। तुकविला प्रोसेसर पर एक अक्टूबर 2008 गार्टनर की रिपोर्ट में कहा गया है कि "... आइटेनीयम के लिए भविष्य का रोडमैप किसी भी आरआईएससी पीयर जैसे पावर या स्पार्क के रूप में मजबूत दिखता है।" सुपरकंप्यूटर और उच्च प्रदर्शन कंप्यूटिंग एक आइटेनीयम आधारित कंप्यूटर नवंबर 2001 में शीर्ष ५०० सुपरकंप्यूटर की सूची में पहली बार दिखाई दिया। सूची में आइटेनीयम २ आधारित सिस्टम द्वारा हासिल की जाने वाली सबसे अच्छी स्थिति # २ थी (जबकि अब सभी प्रणालियों ने सूची छोड़ दी है), जून 2004 में हासिल की गई, जब थंडर (लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लेबोरेटरी) ने 19.94 तेराफ्लॉप के आरएमएक्स के साथ सूची में प्रवेश किया। नवंबर 2004 में, कोलंबिया ने 51.8 टेराफ्लॉप के साथ # २ पर सूची में प्रवेश किया, और तब तक शीर्ष १० में से कम से कम एक आइटेनीयम आधारित कंप्यूटर था, तब से जून 2007 तक। सूची में आइटेनीयम आधारित मशीनों की शीर्ष संख्या नवंबर में हुई 2004 की सूची में ८४ सिस्टम (१६.८%); जून 2012 तक, यह एक प्रणाली (०.२%) तक गिर गयी थी, और नवंबर 2012 में कोई आइटेनीयम प्रणाली सूची में नहीं रही थी। प्रोसेसर जारी प्रोसेसर आइटेनीयम प्रोसेसर परिवार समय के साथ क्षमता में एक प्रगति दिखाते हैं। मर्सिड अवधारणा का सबूत था। मैककिनले ने स्मृति पदानुक्रम में नाटकीय रूप से सुधार किया और आइटेनीयम को उचित रूप से प्रतिस्पर्धी बनने की इजाजत दी। मैडिसन, 130 एनएम प्रक्रिया में बदलाव के साथ, प्रमुख प्रदर्शन बाधाओं को दूर करने के लिए पर्याप्त कैश स्पेस के की क्षमता दी गई। 90 एनएम प्रक्रिया के साथ मोंटेसिटो, एक दोहरे कोर कार्यान्वयन और प्रति वाट प्रदर्शन में एक बड़ा सुधार के लिए अनुमति दी। मोंटवाले ने तीन नई विशेषताएं जोड़े: कोर-लेवल लॉकस्टेप, मांग-आधारित स्विचिंग और 667 मेगाहट्र्ज तक की फ्रंट-साइड बस आवृत्ति। सन्दर्भ प्रोजेक्ट टाइगर लेख प्रतियोगिता के अंतर्गत बनाए गए लेख References
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%A3
सात्विक गुण
सात्विक गुण, प्रकृति के तीन गुणों में एक है। यह गुण हल्का या लघु और प्रकाश करने वाला है। प्रकृति से पुरुष का संबंध इसी गुण से होता है। बुद्धिगत सत्य में पुरुष अपना बिम्ब देखकर अपने को कर्ता मानने लगता है। सत्वगत मलिनता आदि का अपने में आरोप करने लगता है। सत्व की मलिनता या शुद्धता के अनुसार व्यक्ति की बुद्धि मलिन या शुद्ध होती है। अत: योग और सांख्य दर्शनों में सत्व शुद्धि पर जोर दिया गया है। जिन वस्तुओं से बुद्धि निर्मल होती है उन्हें सात्विक कहते हैं-- आहार, व्यवहार, विचार आदि पवित्र हों तो सत्व गुण की अभिवृद्धि होती है जिससे बुद्धि निर्मल होती है। अत्यंत निर्मल बुद्धि में पड़े प्रतिबिंब से पुरुष को अपने असली केवल, निरंजन रूप का ज्ञान हो जाता है और वह मुक्त हो जाता है।... भारतीय दर्शन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%AC%E0%A4%88%20%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
दुबई अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र
दुबई अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र () दुबई को सेवा देने वाला एक अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र है। यह मध्य पूर्व का एक प्रधान विमानन केन्द्र (एविएशन हब) है एवं दुबई का प्रमुख विमानक्षेत्र है। यह दुबई केन्द्र से दक्षिण-पूर्व दिशा में अल गर्हौद जिले में स्थित है। विमानक्षेत्र का संचालन नागर विमानन विभाग करता है और यही विमानक्षेत्र दुबई की अन्तर्राष्ट्रीय वायुसेवाओं जैसे एमिरेट्स, फ़्लाइदुबई, एमिरेट्स स्काईकार्गो का गृह-आधार भि है। एमिरेट्स का आधार (बेस) मध्यपूर्व का सबसे बड़ा वायुसेवा हब है। यह हब यहाम का ६०% यात्री भार वहन करता है एवं सभी विमान यातायात का ३८% भाग संचालित करता है। इसके साथ ही यहां दुबई के निम्न-लागत वाहक सेवा फ़्लाईदुबई का भी हब है। अप्रैल २०१३ से एमिरेट्स एवं क्वान्टाज़ के एक बड़े समझौते के बाद यहां क्वान्टाज़ का भी द्वितीयक हब आरंभ हुआ है। क्वान्टाज़ अब दुबई को अपनी यूरोप को जाती उड़ानों के लिये एक मुख्य विराम केन्द्र के रूप में प्रयोग कर सकेगा। सितंबर २०१२ के आंकड़ों के अनुसार यहां से १३० वायुसेवाओं द्वारा ६००० उड़ानें प्रति सप्ताह विश्व के २२० गंतव्यों को गयीं। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ दुबई अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र - आधिकारिक जालस्थल दुबई अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र संयुक्त अरब अमीरात
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हिन्दी समर्थन युक्त सॉफ्टवेयरों की सूची
इस लेख में ऐसे सॉफ्टवेयरों की सूची दी गयी है जो कि हिन्दी/इण्डिक यूनिकोड का समर्थन करते हैं। प्रचालन तन्त्र माइक्रोसॉफ्ट विण्डोज़ - विण्डोज २००० एवं बाद के सभी संस्करण - विण्डोज ऍक्सपी, विण्डोज़ २००३, विण्डोज़ विस्ता, विण्डोज़ ७। विण्डोज २०००, ऍक्सपी तथा २००३ में पूर्ण समर्थन हेतु कण्ट्रोल पैनल में इण्डिक समर्थन सक्षम करना होता है जबकि विण्डोज़ विस्ता तथा विण्डोज़ ७ में भारतीय भाषी पूर्ण समर्थन स्वतः सक्षम रहता है। लिनक्स के सभी नये संस्करण। बॉस लिनक्स - हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं हेतु सीडैक द्वारा निर्मित विशेष वितरण। मॅक ओऍस - मॅक ओऍस ९ में इण्डियन लैंग्वेज टूलकिट नामक अलग सॉफ्टवेयर द्वारा, मॅक ओऍस ऍक्स १० से अन्तर्निर्मित। सिम्बियन प्लेटफॉर्म - S60v3 में हिन्दी प्रदर्शन समर्थन है। आइओऍस - आइफोन ओऍस ३ से आंशिक, आइओऍस ४ से पूर्ण प्रदर्शन समर्थन, आइओऍस ५ में हिन्दी कीबोर्ड आया। ऍण्ड्रॉइड - ऍण्ड्रॉइड में संस्करण ४.० (आइस क्रीम सैंडविच) एवं उससे बाद के संस्करणों में हिन्दी प्रदर्शन एवं हिन्दी कीबोर्ड शामिल है। बेहतर सुविधाओं युक्त स्विफ्टकी जैसे थर्ड पार्टी कीबोर्ड भी उपलब्ध हैं। ग्राफिक्स बिटमैप ग्राफिक्स फोटोशॉप मिडल ईस्टर्न वर्जन में काफी हद तक हिन्दी समर्थन होता था। संस्करण CS6 से हिन्दी का पूर्ण समर्थन उपलब्ध हो गया। हिन्दी के लिये अडॉबी देवनागरी नामक फॉण्ट भी शामिल है। गिम्प पेंट.नेट वैक्टर ग्राफिक्स इंकस्केप कोरल ड्रॉ - संस्करण X5 में केवल मंगल फॉण्ट में सम्भव, X6 से पूर्ण हिन्दी समर्थन। पाठ सम्पादित्र नोटपैड++ ऑफिस सुइट माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस ओपनऑफिस लिब्रेऑफिस पीडीऍफ रीडर अडॉबी रीडर फॉक्सिट रीडर यहाँ यह उल्लेखनीय है कि यूनिकोड हिन्दी में बनायी गयी किसी पीडीऍफ फाइल से किसी PDF to Word जैसे सॉफ्टवेयर द्वारा परिवर्तन करने पर वर्ड फाइल में हिन्दी का कचरा हो जाता है। फिलहाल यूनिकोड हिन्दी युक्त पीडीऍफ से हिन्दी टैक्स्ट सही रूप में प्राप्त करने का तरीका उपलब्ध नहीं है। डीटीपी माइक्रोसॉफ्ट पब्लिशर (माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस में सम्मिलित पेजलेआउट प्रोग्राम) अडॉबी इनडिजाइन - मिडल ईस्टर्न वर्जन में कुछ हद तक हिन्दी समर्थन था, सामान्य संस्करणों में CS2 से CS5 तक के लिये इण्डिकप्लस नामक थर्ड पार्टी प्लगइन के जरिये देवनागरी की सही रैंडरिंग सम्भव थी। संस्करण CS6 से हिन्दी का पूर्ण समर्थन उपलब्ध हो गया। हिन्दी के लिये अडॉबी देवनागरी नामक फॉण्ट भी शामिल है। कम्प्रैशन यूटिलिटी ७-जिप - हिन्दी नाम वाली फाइलों तथा फोल्डरों को कम्प्रैस तथा ऍक्स्ट्रैक्ट करने में सक्षम। इण्टरनेट ब्राउजर फायरफॉक्स - संस्करण ३ से पूर्ण समर्थन। इण्टरनेट ऍक्सप्लोरर - संस्करण ५ से आंशिक, संस्करण ७ से पूर्ण समर्थन। गूगल क्रोम ऑपेरा - आंशिक, कुछ स्थानों पर हिन्दी सही नहीं दिखती। सफारी ऑपेरा मिनी - बिटमैप फॉण्ट वाले विकल्प का प्रयोग कर बिना हिन्दी समर्थन वाले फोन में भी हिन्दी देखी जा सकती है। ऑपेरा मोबाइल - फोन में आंशिक हिन्दी समर्थन होने पर भी हिन्दी सही दिखाता है। ईमेल सेवा जीमेल - सर्वश्रेष्ठ हिन्दी यूनिकोड समर्थन। हिन्दी आदि भारतीय भाषाओं में मेल लिखने हेतु ट्राँसलिट्रेशन सुविधा इनबिल्ट। इंस्टैंट मैसेंजर गूगल टॉक याहू मैसेंजर - संस्करण १० से हिन्दी टाइप समर्थन। ईमेल क्लाइंट थंडरबर्ड प्रोग्रामिंग भाषायें जावा - जावा यूनिकोड समर्थन प्रदान करने वाली पहली भाषा थी। १९९५ में इसके संस्करण १.० में यूनिकोड १.१ (यूटीऍफ-१६) का समर्थन उपलब्ध हुआ। विजुअल स्टूडियो २००३ एवं बाद के सभी संस्करण - २००५, २००८ तथा २०१० हिन्दवी प्रोग्रामिंग सिस्टम - हिन्दी एवं भाऱतीय भाषाओं में प्रोग्रामिंग हेतु एक मुक्त स्रोत प्रोग्रामिंग सुइट। इन्हें भी देखें इण्डिक यूनिकोड फ्रीवेयर की सूची मुफ्त एवं मुक्त स्रोत सॉफ्टवेयरों की सूची बाहरी कड़ियाँ Alan Wood’s Unicode Resources - इण्टरनेट पर यूनिकोड के शुरुआती दिनों में ऍलन वुड द्वारा संकलित यूनिकोड सम्बन्धी संसाधनों की सूची। सन्दर्भ सॉफ्टवेयर की सूची हिन्दी कम्प्यूटिंग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A3%20%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%B5
रम्माण उत्सव
रम्माण, उत्तराखंड के चमोली जिले के सलूड़ गांव में प्रतिवर्ष वैशाख (अप्रैल) में आयोजित होने वाला उत्सव है। यह उत्सव युनेस्को की विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित है। रामायण से जुड़े प्रसंगों के कारण इसे “रम्माण” उत्सव कहते हैं। रामायण को स्थानीय गढ़वाली भाषा मे 'रम्माण' भी बोला जाता है। राम से जुड़े प्रसंगों के कारण इसे लोक शैली में प्रस्तुतिकरण, लोकनाट्य, स्वांग, देवयात्रा, परमपरागत पूजा, अनुष्ठान, भूमियाल देवता की वार्षिक पूजा, गांव के देवताओं की वार्षिक भेट आदि आयोजन इस उत्सव में होते हैं। इसमें विभिन्न चरित्र लकड़ी के मुखौटे पहनते हैं जिन्हें 'पत्तर' कहते हैं। पत्तर शहतूत (केमू ) की लकड़ी पर कलात्मक तरीके से उत्कीर्ण किये होते हैं। सलूड़ गाँव के अलावा डुंग्री, बरोशी, सेलंग गांवों में भी रम्माण का आयोजन किया जाता है। इसमें सलूड़ गांव का रम्माण ज्यादा लोकप्रिय है। इसका आयोजन सलूड़-डुंग्रा की संयुक्त पंचायत करती है। रम्माण मेला कभी 11 दिन तो कभी 13 दिन तक भी मनाया जाता है। यह विविध कार्यक्रमों, पूजा और अनुष्ठानों की एक शृंखला है। इसमें सामूहिक पूजा, देवयात्रा, लोकनाट्य, नृत्य, गायन, मेला आदि विविध रंगी आयोजन होते हैं। इसमें परम्परागत पूजा-अनुष्ठान तथा मनोरंजक कार्यक्रम भी आयोजित होते है। यह भूम्याल देवता के वार्षिक पूजा का अवसर भी होता है एवं परिवारों और ग्राम-क्षेत्र के देवताओं से भेंट करने का मौका भी होता है। रम्माण, सलूड़ गांव की 500 वर्ष से भी ज्यादा पुरानी परम्परा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन यूनेस्को द्वारा साल 2009 में इस रम्माण को विश्व की सांस्कृतिक धरोहर का दर्जा दिया गया था। ७ जोड़े पारंपरिक ढोल-दमाऊं की थाप पर मोर-मोरनी नृत्य, बण्या-बाणियांण, ख्यालरी, माल नृत्य सबको रोमांचित करने वाला होता है और कुरजोगी सबका मनोरंजन करता है। मान्यता है कि आदिगुरु शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म में नई जान फूकने के लिए पूरे देश में चार मठों की स्थापना की। जोशीमठ के आस पास, शंकराचार्य के आदेश पर उनके कुछ शिष्यों ने गांव-गांव में जाकर पौराणिक मुखौटों से नृत्य करके लोगों में चेतना जगाने का प्रयास किया था जो धीरे-धीरे इन क्षेत्रों में इस समाज का अभिन्न अंग बन गया। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ रम्माण उत्सव – यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर में घोषित उत्सव उत्तराखण्ड के उत्सव
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4
नमन्गान प्रान्त
नमन्गान प्रान्त (उज़बेक: Наманган вилояти, नमन्गान विलोयती; अंग्रेज़ी: Namangan Province) मध्य एशिया में स्थित उज़बेकिस्तान देश का एक विलायात (प्रान्त) है जो उस देश के सुदूर पूर्वी भाग की फ़रग़ना घाटी के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित है। प्रान्त का कुल क्षेत्रफल ७,९०० वर्ग किमी है और २००५ में इसकी अनुमानित आबादी १९,७०,००० थी। इस सूबे के ६०% से अधिक लोग ग्रामीण इलाक़ों में रहते हैं। नमन्गान प्रान्त की राजधानी नमन्गान शहर है। इन्हें भी देखें उज़बेकिस्तान उज़बेक लोग उज़बेक भाषा सन्दर्भ उज़्बेकिस्तान के प्रान्त उज़्बेकिस्तान फ़रग़ना वादी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%A4%E0%A4%BE
लोड़ता
लोड़ता राजस्थान के जोधपुर ज़िले के बालेसर तहसील का एक गाँव तथा ग्राम पंचायत है। इतिहास लोड़ता जोधपुर ज़िले से लगभग ९२-९३ किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटा सा गांव है जिनकी जनसंख्या लगभग २००० हज़ार है। लोड़ता गांव की स्थापना लगभग ५०० साल पूर्व हुई थी तथा गांव का नाम एक कुम्हार (कुम्भार) के नाम पर पड़ा है जिनका नाम लोहट जी अर्थात लोलोजी कुम्भार था क्योंकि लोहट जी ने गांव में मीठे पानी का कुआं बताया था इस कारण गांव का नाम लोड़ता रखा गया उस वक्त लोड़ता गांव में चौहान राज वंश का शासन था इसलिए चौहान राज कर रहे थे फिर अचलसिंह देवराज यहां पर आए और आज चौहानों से युद्ध किया और उनके पश्चात यहां अचलावतां गांव की स्थापना की थी जो वर्तमान में लोड़ता के नाम से जाना जाता है। प्राचीन मन्दिर लोड़ता गांव में लगभग ११० साल पुराना एक नागणेच्या माता का भव्य मन्दिर है तथा बाबा मुणपुरी का भी मन्दिर है। इनके अलावा प्राचीन राजपूती छतरियाँ भी है। लोड़ता में बाबा रामदेव का मंदिर है मेघवाल समाज द्वारा बनाया गया है और प्राचीन मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि बाबा रामदेव जोधपुर जाते समय यहां पर ठहरते थे। शिक्षा लोड़ता गाँव में एक सरकारी उच्च माध्यमिक तथा दो सरकारी उच्च प्राथमिक विद्यालय है इनके अलावा कई प्राथमिक तथा गैर सरकारी (प्राइवेट) विद्यालय भी है। सन्दर्भ जोधपुर ज़िले के गाँव बालेसर तहसील के गाँव राजस्थान के गाँव
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%BE%20%E0%A4%B6%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0
युवा शक्ति विचार
मानव सभ्यता सदियों से विकसित हुई है। हर पीढ़ी की अपनी सोच और विचार होते हैं जो समाज के विकास की दिशा में योगदान देते हैं। हालांकि एक तरफ मानव मन और बुद्धि समय गुज़रने के साथ काफी विकसित हो गई है वही लोग भी काफी बेसब्र हो गए हैं। आज का युवा प्रतिभा और क्षमता वाला हैं लेकिन इसे भी आवेगी और बेसब्र कहा जा सकता है। आज का युवा सीखने और नई चीजों को तलाशने के लिए उत्सुक हैं। अब जब वे अपने बड़ों से सलाह ले सकते हैं तो वे हर कदम पर उनके द्वारा निर्देशित नहीं होना चाहते हैं। युवा पीढ़ी आज विभिन्न चीजों को पूरा करने की जल्दबाजी में है और अंत में परिणाम प्राप्त करने की दिशा में इतना मग्न हो जाता है कि उन्होंने इसका चयन किस लिए किया इसकी ओर भी ध्यान नहीं देते हैं। हालांकि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, गणित, वास्तुकला, इंजीनियरिंग और अन्य क्षेत्रों में बहुत प्रगति हुई है पर हम इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकते हैं कि अपराध की दर में भी समय के साथ काफ़ी वृद्धि हुई है। आज दुनिया में पहले से ज्यादा हिंसा हो रही है और इस हिंसा के एक प्रमुख हिस्से के लिए युवा जिम्मेदार हैं। युवाओं के बीच अपराध को बढ़ावा देने वाले कारक कई कारक हैं जो युवा पीढ़ी को अपराध करने के लिए उकसाते हैं। यहाँ इनमें से कुछ पर एक नज़र डाली गई है: शिक्षा की कमी बेरोज़गारी पावर प्ले जीवन की ओर पनपता असंतोष बढ़ती प्रतिस्पर्धा निष्कर्ष यह माता-पिता का कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों का पोषण करें और उन्हें अच्छा इंसान बनने में मदद करें। देश के युवाओं के निर्माण में शिक्षक भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं। उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी गंभीरता से निभानी चाहिए। ईमानदार और प्रतिबद्ध व्यक्तियों को पोषित करके वे एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण कर रहे हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95
वोल्टता नियंत्रक
वोल्टता नियंत्रक (voltage regulator) वह एलेक्ट्रॉनिक युक्ति है जो स्वत: वोल्टता को एक निश्चित मान के पास बनाकर रखती है। यह प्रत्यावर्ती वोल्तता के नियंत्रण के लिये बनायी जा सकती है या दिष्ट वोल्टता के लिये। इसमें विद्युतयांत्रिक युक्तियाँ (जैसे मोटर, रिले, जनित्र आदि) लगी होतीं हैं; या ये आधुनिक अर्धचालक युक्तियों (डायोड, ट्रांजिस्टर, मॉसफेट, आईजीबीटी आदि) एवं कुछ पैसिव युक्तियों (प्रतिरोध, संधारित्र आदि) के योग से बनायी जा सकती है। इसके द्वारा नियंत्रित वोल्टता मिलने से जो युक्तियाँ चलती हैं वे खराब नहीं होतीं एवं अपना काम भी नियत तरीके से करती हैं। उदाहरण के लिये जिन गाँवों में सप्लाई वोल्टेज बहुत घटता-बढ़ता रहता है वहाँ Voltage Stabilizer का उपयोग किया जाता है, ये बिजली से चलने वाली वस्तुओं की Voltage के उतार चढ़ाव से सुरक्षित रखता है विभिन्न प्रकार एलेक्ट्रानिक वोल्टता नियंत्रक विद्युतचुम्बकीय नियंत्रक कुण्डली-घूर्णन पर आधारित नियंत्रक एसी वोल्टेज स्टैब्लाइजर विद्युतचुम्बकीय नियत वोल्टता ट्रांसफार्मर (Constant-voltage transformer / CVT) डीसी वोल्टेज स्टैब्लाइजर ऐक्टिव नियंत्रक रैखिक नियंत्रक स्विचिंग नियंत्रक एस सी आर नियंत्रक (SCR regulators) मिश्रित नियंत्रक (hybrid regulators) नियंत्रक की गुणवत्ता के मापडण्ड लाइन नियंत्रण (Line regulation) लोड रेगुलेशन (Load regulation) अन्य : ताप गुणांक आरम्भिक यथार्थता (initial accuracy) ड्रॉप-आउट वोल्टेज (dropout voltage) क्षणिक अनुक्रिया (transient response) शांत धारा (Quiescent current) निर्गत रव (output noise) जनरेटर के लिए वोल्टेज नियामक। जनरेटर, जैसा कि पावर स्टेशनों में या स्टैंडबाय पावर सिस्टम में उपयोग किया जाता है, में अपने वोल्टेज को स्थिर करने के लिए ऑटोमैटिक वोल्टेज रेगुलेटर (AVR) होगा, क्योंकि जेनरेटर में लोड पर बदलाव होता है। जनरेटर के लिए पहले स्वचालित वोल्टेज नियामक विद्युत प्रणाली थे, लेकिन एक आधुनिक एवीआर ठोस-राज्य उपकरणों का उपयोग करता है। एक AVR एक प्रतिक्रिया नियंत्रण प्रणाली है जो जनरेटर के आउटपुट वोल्टेज को मापता है, उस आउटपुट को एक निर्धारित बिंदु से तुलना करता है, और एक त्रुटि संकेत उत्पन्न करता है जिसका उपयोग जनरेटर के उत्तेजना को समायोजित करने के लिए किया जाता है। जैसे-जैसे जनरेटर की फील्ड वाइंडिंग में एक्साइटमेंट करंट बढ़ता है, वैसे-वैसे इसका टर्मिनल वोल्टेज बढ़ता जाएगा। AVR विद्युत इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग करके वर्तमान को नियंत्रित करेगा; आम तौर पर जनरेटर के आउटपुट का एक छोटा सा हिस्सा फ़ील्ड वाइंडिंग के लिए वर्तमान प्रदान करने के लिए उपयोग किया जाता है। जहां एक जनरेटर अन्य स्रोतों के साथ समानांतर में जुड़ा हुआ है जैसे कि विद्युत संचरण ग्रिड, जनरेटर को उसके टर्मिनल वोल्टेज की तुलना में जनरेटर द्वारा उत्पादित प्रतिक्रियात्मक शक्ति पर प्रभाव को बदलने से अधिक होता है, जो कि ज्यादातर कनेक्टेड पावर सिस्टम द्वारा निर्धारित होता है। जहां कई जनरेटर समानांतर में जुड़े होते हैं, एवीआर सिस्टम में सभी जनरेटर एक ही शक्ति कारक पर काम करना सुनिश्चित करने के लिए सर्किट होंगे। [१] ग्रिड से जुड़े पावर स्टेशन जनरेटर पर AVRs के पास अतिरिक्त लोड करने की सुविधा हो सकती है ताकि अचानक लोड लॉस या दोष के कारण अपसेट के खिलाफ विद्युत ग्रिड को स्थिर करने में मदद मिल सके। एसी वोल्टेज स्टेबलाइजर्स कुंडल-रोटेशन एसी वोल्टेज नियामक घूर्णन-कुंडल एसी वोल्टेज नियामक के लिए मूल डिजाइन सिद्धांत और सर्किट आरेख। यह एक पुराने प्रकार का नियामक है जो 1920 के दशक में उपयोग किया गया था जो एक निश्चित-स्थिति फ़ील्ड कॉइल के सिद्धांत का उपयोग करता है और एक दूसरे फ़ील्ड कॉइल है जो कि वैरिएबल के समान निश्चित कॉइल के समानांतर एक अक्ष पर घुमाया जा सकता है। जब चल कॉइल को निश्चित कॉइल के लंबवत स्थित किया जाता है, तो चल कॉइल पर काम करने वाले चुंबकीय बल एक दूसरे से बाहर निकलते हैं और वोल्टेज आउटपुट अपरिवर्तित रहता है। केंद्र की स्थिति से एक दिशा या दूसरे में कॉइल को घुमाए जाने से माध्यमिक जंगम कॉइल में वोल्टेज में वृद्धि या कमी होगी। इस प्रकार के नियामक को वोल्टेज वृद्धि या कमी प्रदान करने के लिए चल कॉइल स्थिति को आगे बढ़ाने के लिए एक सर्वो नियंत्रण तंत्र के माध्यम से स्वचालित किया जा सकता है। चलती कॉइल पर अभिनय करने वाले शक्तिशाली चुंबकीय बलों के खिलाफ घूमने वाले कॉइल को पकड़ने के लिए एक ब्रेकिंग मैकेनिज्म या उच्च अनुपात गियरिंग का उपयोग किया जाता है। विद्युत एसी विद्युत वितरण लाइनों पर वोल्टेज को विनियमित करने के लिए वोल्टेज स्टेबलाइजर्स या टैप-चेंजर्स नामक इलेक्ट्रोमैकेनिकल नियामकों का भी उपयोग किया गया है। ये रेगुलेटर एक टोमेट्रांसिज्म का उपयोग करके कई नलों के साथ एक ऑटोट्रांसफॉर्मर पर उपयुक्त नल का चयन करने के लिए या वाइपर को लगातार परिवर्तनीय ऑटो ट्रांसफोमर पर ले जाकर संचालित करते हैं। यदि आउटपुट वोल्टेज स्वीकार्य सीमा में नहीं है, तो servomechanism नल को स्विच करता है, ट्रांसफार्मर के घुमाव अनुपात को बदलकर, माध्यमिक वोल्टेज को स्वीकार्य क्षेत्र में स्थानांतरित करने के लिए। नियंत्रण एक मृत बैंड प्रदान करते हैं जिसमें नियंत्रक कार्य नहीं करेगा, नियंत्रक को लगातार वोल्टेज ("शिकार") को समायोजित करने से रोकता है क्योंकि यह स्वीकार्य रूप से छोटी राशि से भिन्न होता है। लगातार वोल्टेज ट्रांसफार्मर फेरेरोसोनेंट ट्रांसफॉर्मर, फेरेरोसोनेंट रेगुलेटर या निरंतर-वोल्टेज ट्रांसफॉर्मर एक प्रकार का संतृप्त ट्रांसफार्मर है जिसका उपयोग वोल्टेज रेगुलेटर के रूप में किया जाता है। ये ट्रांसफार्मर एक उच्च-वोल्टेज गुंजयमान घुमावदार और एक संधारित्र से बना एक टैंक सर्किट का उपयोग करते हैं, जिसमें एक अलग इनपुट करंट या अलग-अलग लोड के साथ लगभग निरंतर औसत आउटपुट वोल्टेज का उत्पादन होता है। सर्किट में चुंबक शंट के एक तरफ प्राथमिक और दूसरी तरफ ट्यून्ड सर्किट कॉइल और सेकेंडरी होता है। विनियमन माध्यमिक के चारों ओर अनुभाग में चुंबकीय संतृप्ति के कारण है। औसत इनपुट वोल्टेज में भिन्नता को अवशोषित करने के लिए टैंक सर्किट के वर्ग लूप संतृप्ति विशेषताओं पर भरोसा करते हुए, सक्रिय घटकों की कमी के कारण फेरसोनेंट दृष्टिकोण आकर्षक है। संतृप्त ट्रांसफार्मर एक एसी बिजली की आपूर्ति को स्थिर करने के लिए एक सरल बीहड़ विधि प्रदान करते हैं। फेरोसोनेंट ट्रांसफॉर्मर के पुराने डिजाइन में उच्च हार्मोनिक सामग्री के साथ एक आउटपुट था, जिससे विकृत आउटपुट तरंग उत्पन्न होती थी। आधुनिक उपकरणों का उपयोग एक परिपूर्ण साइन लहर के निर्माण के लिए किया जाता है। फेरसोनेंट एक्शन वोल्टेज रेगुलेटर के बजाय फ्लक्स सीमक है, लेकिन एक निश्चित आपूर्ति आवृत्ति के साथ यह लगभग निरंतर औसत आउटपुट वोल्टेज बनाए रख सकता है, क्योंकि इनपुट वोल्टेज व्यापक रूप से भिन्न होता है। फेरोंसोनेंट ट्रांसफार्मर, जिन्हें कॉन्स्टेंट वोल्टेज ट्रांसफॉर्मर (सीवीटी) या फेरोस के रूप में भी जाना जाता है, वे भी अच्छे सर्ज सप्रेसर्स हैं, क्योंकि वे उच्च अलगाव और अंतर्निहित शॉर्ट-सर्किट सुरक्षा प्रदान करते हैं। एक फेरसोनेंट ट्रांसफार्मर एक इनपुट वोल्टेज रेंज% 40% या नाममात्र वोल्टेज से अधिक के साथ काम कर सकता है। आउटपुट पावर फैक्टर 0.96 या आधे से अधिक पूर्ण लोड की सीमा में रहता है क्योंकि यह एक आउटपुट वोल्टेज तरंग, पुन: उत्पादन विकृति को पुन: उत्पन्न करता है, जो आमतौर पर 4% से कम होता है, जो किसी भी इनपुट वोल्टेज विरूपण से स्वतंत्र है, जिसमें खुजली भी शामिल है। पूर्ण लोड पर दक्षता आमतौर पर 89% से 93% की सीमा में है। हालांकि, कम भार पर, दक्षता 60% से नीचे जा सकती है। वर्तमान-सीमित क्षमता भी एक बाधा बन जाती है जब सीवीटी का उपयोग एक आवेदन में किया जाता है, जिसमें मध्यम से उच्चतर विद्युत प्रवाह जैसे कि मोटर, ट्रांसफार्मर या मैग्नेट होते हैं। इस मामले में, सीवीटी को चरम वर्तमान को समायोजित करने के लिए आकार देना पड़ता है, इस प्रकार यह कम भार और खराब दक्षता पर चलने के लिए मजबूर करता है। न्यूनतम रखरखाव की आवश्यकता होती है, क्योंकि ट्रांसफार्मर और कैपेसिटर बहुत विश्वसनीय हो सकते हैं। कुछ इकाइयों ने निरर्थक संधारित्रों को शामिल किया है ताकि कई संधारित्रों को डिवाइस के प्रदर्शन पर ध्यान देने योग्य प्रभाव के बिना निरीक्षणों के बीच विफल हो सकें। आपूर्ति आवृत्ति में प्रत्येक 1% परिवर्तन के लिए आउटपुट वोल्टेज 1.2% के बारे में भिन्न होता है। उदाहरण के लिए, जनरेटर आवृत्ति में एक 2 हर्ट्ज परिवर्तन, जो बहुत बड़ा है, केवल 4% के आउटपुट वोल्टेज में परिवर्तन होता है, जिसका अधिकांश भारों पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है। यह 100% एकल-चरण स्विच-मोड बिजली की आपूर्ति को बिना किसी आवश्यकता के स्वीकार करता है, जिसमें सभी तटस्थ घटक शामिल हैं। इनपुट वर्तमान विरूपण 100% से अधिक वर्तमान THD के साथ नॉनलाइन लोड की आपूर्ति करते हुए भी 8% THD से कम रहता है। सीवीटी की कमियां उनका बड़ा आकार, श्रव्य गुनगुनाहट और संतृप्ति के कारण उच्च ताप उत्पादन है। वाणिज्य उपयोग वोल्टेज नियामक या स्टेबलाइजर्स का उपयोग मुख्य शक्ति में वोल्टेज के उतार-चढ़ाव की भरपाई के लिए किया जाता है। बड़े नियामकों को स्थायी रूप से वितरण लाइनों पर स्थापित किया जा सकता है। छोटे पोर्टेबल नियामकों को संवेदनशील उपकरणों और एक दीवार आउटलेट के बीच प्लग किया जा सकता है। बिजली की मांग में उतार-चढ़ाव को स्थिर करने के लिए, आपातकालीन बिजली आपूर्ति में, जहाजों पर जनरेटर सेट पर स्वचालित वोल्टेज नियामकों का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, जब एक बड़ी मशीन चालू होती है, तो बिजली की मांग अचानक बहुत अधिक हो जाती है। वोल्टेज नियामक लोड में परिवर्तन के लिए क्षतिपूर्ति करता है। वाणिज्यिक वोल्टेज नियामक आमतौर पर वोल्टेज की एक सीमा पर काम करते हैं, उदाहरण के लिए 150-240 वी या 90-280 वी। सर्वो स्टेबलाइजर्स भी एशिया में व्यापक रूप से निर्मित और उपयोग किए जाते हैं। सर्वो स्टेबलाइजर एक सर्वो मोटर नियंत्रित स्थिरीकरण प्रणाली है जो बक / बूस्ट ट्रांसफार्मर बूस्टर का उपयोग करके इष्टतम वोल्टेज की आपूर्ति करती है जो इनपुट से वोल्टेज में उतार-चढ़ाव को पकड़ती है और वर्तमान को सही आउटपुट में नियंत्रित करती है। एक एसी सिंक्रोनस मोटर क्लॉकवाइज या एंटिक्लॉकवाइज दिशा में वोल्टेज को समायोजित करता है और नियंत्रण कार्ड, डिमर, तुलनित्र, ट्रांजिस्टर, मॉस्क जैसे घटकों के साथ आउटपुट वोल्टेज का प्रबंधन करता है। लंबी एसी बिजली वितरण लाइनों पर वोल्टेज को नियंत्रित करने के लिए वोल्टेज नियामकों का एक तीन-चरण बैंक उपयोग किया जाता है। यह बैंक लकड़ी के पोल की संरचना पर बना हुआ है। प्रत्येक नियामक का वजन लगभग 1200 किलोग्राम है और इसे 576 kVA का दर्जा दिया गया है। डीसी वोल्टेज स्टेबलाइजर्स कई सरल डीसी बिजली की आपूर्ति या तो श्रृंखला या शंट नियामकों का उपयोग करके वोल्टेज को विनियमित करती है, लेकिन अधिकांश एक ज़ेनर डायोड, हिमस्खलन ब्रेकडाउन डायोड, या वोल्टेज नियामक ट्यूब जैसे शंट नियामक का उपयोग करके एक वोल्टेज संदर्भ लागू करते हैं। इन उपकरणों में से प्रत्येक एक निर्दिष्ट वोल्टेज पर आचरण करना शुरू कर देता है और एक गैर-आदर्श बिजली स्रोत से जमीन पर अक्सर अधिक वर्तमान को विचलन करके उस निर्दिष्ट वोल्टेज को अपने टर्मिनल वोल्टेज को रखने के लिए आवश्यक के रूप में अधिक वर्तमान का संचालन करेगा, जो अक्सर अपेक्षाकृत कम-मूल्य रोकनेवाला के माध्यम से होता है। अतिरिक्त ऊर्जा का प्रसार करें। बिजली की आपूर्ति केवल वर्तमान की अधिकतम मात्रा की आपूर्ति करने के लिए डिज़ाइन की गई है जो शंट विनियमन डिवाइस की सुरक्षित परिचालन क्षमता के भीतर है। यदि स्टेबलाइजर को अधिक शक्ति प्रदान करनी चाहिए, तो शंट रेगुलेटर आउटपुट का उपयोग केवल इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के लिए मानक वोल्टेज संदर्भ प्रदान करने के लिए किया जाता है, जिसे वोल्टेज स्टेबलाइजर के रूप में जाना जाता है। वोल्टेज स्टेबलाइजर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है, जो मांग पर बहुत बड़ी धाराओं को वितरित करने में सक्षम है। सक्रिय नियामक सक्रिय नियामक कम से कम एक सक्रिय (प्रवर्धित) घटक जैसे कि एक ट्रांजिस्टर या परिचालन एम्पलीफायर को रोजगार देते हैं। शंट नियामक अक्सर (लेकिन हमेशा नहीं) निष्क्रिय और सरल होते हैं, लेकिन हमेशा अक्षम होते हैं क्योंकि वे (अनिवार्य रूप से) अतिरिक्त प्रवाह को डंप करते हैं जो लोड के लिए उपलब्ध नहीं है। जब अधिक बिजली की आपूर्ति की जानी चाहिए, तो अधिक परिष्कृत सर्किट का उपयोग किया जाता है। सामान्य तौर पर, इन सक्रिय नियामकों को कई वर्गों में विभाजित किया जा सकता है: रैखिक श्रृंखला नियामक स्विचिंग नियामकों SCR नियामक.. इन्हें भी देखें डीसी से डीसी परिवर्तक धारा स्रोत - जो एक तरह का 'धारा नियंत्रक' है। वैद्युत शक्ति नियंत्रण इलेक्ट्रॉनिक्स
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5%20%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8
उमराव जान
उमराव जान 1981 में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है। यह फ़िल्म मिर्ज़ा हादी रुस्वा (1857 से 1931) के उपन्यास उमराव जान ‘अदा’ पर आधारित है। इस बात को लेकर आज भी विवाद है कि उमराव जान कोई वास्तविक चरित्र था या फिर मिर्ज़ा हादी रुस्वा की कल्पना. संक्षेप मुख्य कलाकार रेखा - अमीरन फ़ारुख़ शेख़ - नवाब सुल्तान नसीरुद्दीन शाह - गौहर मिर्जा राजबब्बर - फ़ैज अली प्रेमा नारायण - बिस्मिल्लाह अकबर रशीद गजानन जागीरदार - मौलवी दीना पाठक - हुसैनी रीता रानी कौल शाहीन सुल्तान भारत भूषण - खान साहब लीला मिश्रा मुकरी - परनन अजीज युनुस परवेज़ सतीश शाह - दरोगा दिलावर दल संगीत रोचक तथ्य परिणाम बौक्स ऑफिस समीक्षाएँ पुरस्कार व नामांकन |- | rowspan="4"|१९८१ | रेखा | राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार - सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | |- | आशा भोंसले | राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार - सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका | |- | खय्याम | राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार - सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक | |- | मंजूर | राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार - सर्वश्रेष्ठ कला निर्देशक | |- | rowspan="3"|१९८२ | मुज़फ्फर अली | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार | |- | खय्याम | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार | |- | रेखा | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | |} सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ अजब दास्ताँ है मेरी ज़िंदगी की… 1981 में बनी हिन्दी फ़िल्म
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%A8%20%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE
बोलन दर्रा
बोलन पास ( उर्दू : درۂ بولان ) पाकिस्तान में बलूचिस्तान का एक प्रमुख दर्रा है जो क्वेटा को जैकोबाबाद से जोड़ता है। यह एक घाटी और एक प्राकृतिक प्रवेश द्वार है,  पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में टोबा ककर रेंज [ उद्धरण वांछित ] के माध्यम से , अफगानिस्तान सीमा के 120 किमी (75 मील) दक्षिण में। दर्रा दक्षिण में रिंदली से लेकर उत्तर में कोलपुर के पास दरवाजा तक बोलन नदी घाटी का 89 किमी (55 मील) का हिस्सा है। यह कई संकीर्ण घाटियों और हिस्सों से बना है।  यह सड़क और रेलवे द्वारा क्वेटा को सिबी से जोड़ता है। रणनीतिक रूप से स्थित, व्यापारियों, आक्रमणकारियों और खानाबदोश जनजातियों ने भी इसे दक्षिण एशिया से आने-जाने के प्रवेश द्वार के रूप में उपयोग किया है।  बोलन दर्रा बलूच सीमा पर एक महत्वपूर्ण दर्रा है, जो जैकबाबाद और झंग को मुल्तान से जोड़ता है, जिसने हमेशा अफगानिस्तान में ब्रिटिश अभियानों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान पर कब्जा कर लिया है । भूगोल बोलन दर्रा टोबा ककर रेंज में है, जो हिंदू कुश पर्वत श्रृंखला के दक्षिण में स्थित है। बोलन दर्रे को एक उच्च श्रेणी के पास के रूप में वर्णित किया गया है जो खड्डों और घाटियों से भरा है ।  बोलन दर्रे की पर्वत श्रृंखला भारतीय प्लेट और ईरानी पठार के बीच दक्षिणी भौगोलिक सीमा है । दर्रे का दक्षिणी बिंदु, धादर के पास, सिंधु घाटी  की पश्चिमी सीमा है और इसे पाकिस्तान , अफगानिस्तान , ईरान और अरब सागर के बीच एक महान रणनीतिक बिंदु के रूप में देखा जाता है । इतिहास बोलन दर्रा खैबर दर्रे का दक्षिणी समकक्ष है , और भारतीय उपमहाद्वीप पर आक्रमण के लिए पूरे इतिहास में दोनों श्रेणियों का उपयोग किया गया है।  1748 में, अफगान राजा अहमद शाह दुर्रानी ने पारंपरिक खैबर दर्रा मार्ग के अलावा बोलन दर्रे का उपयोग करके भारत पर आक्रमण किया। दुर्रानी राजधानी कंधार पास के पास स्थित थी, जिसने भारतीय भूमि तक त्वरित पहुँच प्रदान की। 1837 में, खैबर और बोलन दर्रे के माध्यम से दक्षिण एशिया के संभावित रूसी आक्रमण की धमकी के कारण , एक ब्रिटिश दूत को अमीर , दोस्त मोहम्मद का समर्थन हासिल करने के लिए काबुल भेजा गया था । फरवरी 1839 में प्रथम एंग्लो-अफगान युद्ध के दौरान , सर जॉन कीन के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने बोलन दर्रे से 12,000 लोगों को लिया और कंधार में प्रवेश किया , जिसे अफगान राजकुमारों ने छोड़ दिया था; वहां से वे हमला करने के लिए आगे बढ़ेंगे और गजनी को उखाड़ फेंकेंगे । उन्होंने जो रास्ता चुना वह वही नहीं था जो आधुनिक रेलवे लाइन द्वारा उपयोग किया जाता था, लेकिन आगे पश्चिम में सिरी-बोलन था। बंगाल तोपखाने का एक ब्रिटिश अधिकारी1841 में बोलन दर्रे का वर्णन इन शब्दों में किया गया है:"इस दर्रे के माध्यम से सड़क, कुछ और दुर्लभ अपवादों के साथ, एक पर्वत-धारा का बिस्तर क्या है, जब बर्फ या भारी बारिश के पिघलने से भर जाता है, और ढीली झिलमिलाती बजरी से बना होता है, जो आपके नीचे से निकलता है पैर, और सूखा के लिए बहुत कठिन है: ऊंट अच्छी तरह से चलते हैं। यह काकुरों से प्रभावित है, जो डकैती करके जीते हैं; और पहाड़ियाँ कभी-कभी सड़क के करीब आ जाती हैं, जो धारा के बिस्तर से भर जाती है, जो सौ फीट ऊँची चट्टानी खाई से होकर गुजरती है, जिसके ऊपर से लुटेरे यात्रियों पर पत्थरों से हमला करते हैं; और यदि वे जितने निर्भीक और कपटी हैं, उतने ही निर्भीक हों, तो वे सभी आने वालों के विरुद्ध अपनी जगह बना सकते हैं। मेरे साथ मौजूद गाइडों ने मुझे कई जगहों की ओर इशारा किया, जैसा कि हिंसा के कृत्यों से संकेत मिलता है, कई यूरोपीय अधिकारियों ने देश पर हमारे कब्जे के दौरान अपना सामान खो दिया था। अगर पहाड़ों के ऊंचे हिस्सों में बारिश होती है, तो धारा कई बार बिना किसी चेतावनी के लगभग लंबवत मात्रा में नीचे आ जाती है, और इसके सामने सभी को झाड़ देती है, जैसा कि मेरे एक दोस्त ने अनुभव किया, जब उसने पुरुषों, घोड़ों की एक पार्टी को देखा, और ऊँट और उसकी सारी सम्पत्ति जो उसके द्वारा वहन की गई; जब वह और उसके साथ कुछ लोग पहाड़ी के लगभग लंबवत भाग पर चढ़कर भाग निकले। उस अवसर पर लगभग सैंतीस पुरुष बह गए।"1883 में, सर रॉबर्ट ग्रोव्स सैंडमैन ने कलात के खान , खुदादाद खान के साथ बातचीत की और वार्षिक शुल्क के बदले पास पर ब्रिटिश नियंत्रण हासिल किया। पाकिस्तान के पहाड़ी दर्रे दर्रा ऐतिहासिक मार्ग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%20%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8
अनुप्रस्थ द्रव्यमान
अनुप्रस्थ द्रव्यमान कण भौतिकी में उपयोग की जाने वाली एक महत्त्वपूर्ण भौतिक राशी है जिस रूप में यह z दिशा के अनुदिश लोरेन्ट्स अभिवर्धन में निश्चर रहती है। प्राकृत विमा में जहाँ z-दिशा कीरण पूँज की दिशा में है। और कीरण पूँज की दिशा के लम्बवत दिशा में संवेग हैं तथा द्रव्यमान है। हैड्रोन संघट्ट भौतिक विज्ञानी अनुप्रस्थ द्रव्यमान की अलग परिभाषा का उपयोग करते हैं, किसी कण के द्वि-कण क्षय की स्थिति में: जहाँ प्रत्येक पुत्री कण की अनुप्रस्थ ऊर्जा है, जो इनके सत्य निश्चर द्रव्यमान की परिभाषा का उपयोग करते हुए परिभाषित की गयी धनात्मक राशी निम्न होगी: अतः इसी प्रकार, द्रव्यमान रहित क्षय कणों के लिए, जहाँ , अनुप्रस्थ ऊर्जा साधारण रूप से प्राप्त होती है और अनुप्रस्थ द्रव्यमान निम्न होगा जहाँ अनुप्रस्थ समतल में पुत्री कणों के मध्य कोण है: का वितरण, मातृ कण के सत्य द्रव्यमान पर अन्तिम बिन्दु रखता है। इसे टेवाट्रॉन में का द्रव्यमान ज्ञात करने के लिए किया जाता था। सन्दर्भ - अनुच्छेद 38.5.2 () और 38.6.1 () निश्चर द्रव्यमान के लिए देखें। - अनुच्छेद 43.5.2 () और 43.6.1 () अनुप्रस्थ द्रव्यमान की परिभाषा के लिए देखें। कण भौतिकी शुद्ध गतिविज्ञान
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%95%E0%A5%8B%20%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%95%2C%20%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%82%20%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%A8
इको पार्क, न्यू टाउन
इको पार्क (प्रकृति तीर्थ), न्यू टाउन कोलकाता में स्थित एक शहरी पार्क और भारत का अब तक का सबसे बड़ा पार्क है। यह पार्क 480 एकड़ (190 हेक्टेयर) भूखण्ड में फैला हुआ तथा पार्क बीच एक द्वीप के साथ 104 एकड़ (42 हेक्टेयर) वाटर बॉडी से घिरा हैं, जो वहाँ की सुन्दरता को ओर बढ़ा देता है। इस पार्क का निर्माण इको-टूरिज़्म को बढ़ावा देने साथ गैर-प्रदूषण से प्राकृतिक परिदृशय के संरक्षण माध्यम से प्रकृति पर प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए बनाया गया। इस पार्क की परिकल्पना जुलाई 2011 में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा प्रस्तावित कि गयी थी। पश्चिम बंगाल हाउसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉपोरेशन (HIDCO) पार्क के निर्माण के साथ; विभिन्न सरकारी निकाय ने पार्क के अन्दर कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदारी ली है। इको पार्क को तीन भागों में विभाजित किया गया हैं -1) परिस्थितिक क्षेत्र जैसे आर्द्रभूमि, घास का मैदान और शहरी जंगल 2) उद्यान क्षेत्र जैसे थीम गार्डन, खुले क्षेत्र 3) मनोरंजन क्षेत्र। इसके अलावा विभिन्न लगाए गए जीवों के अनुसार इको पार्क को विभिन्न उप-भागों में विभाजित किया गया है। यहाँ दुनिया के सात अजूबों की नकल प्रर्यटको को ओर अधिक अकर्षित करती है। योजना के अनुसार, पार्क में जंगली घास का मैदान, बांस उधान, उष्णकटिबंधीय पेड़ उधान, बोन्साई उधान, चाय बगान, कैक्टस वॉक, हेलिकॉप्टर उधान, तितली उधान जैसे विभिन्न क्षेत्र होगें। इसके अलावा सार्वजनिक, निजी साझदारी द्वारा एक इको-रिसॉट विकसित करने की योजना हैं और इसमें एक ऐसा क्षेत्र भी शामिल होगा जहाँ राज्य के विभिन्न हिस्सों के हस्तशिल्प प्रदर्शित किए जाएँगे। इस पार्क का उद्घाटन 29 दिसम्बर 2012 को ममता बनर्जी ने किया और 01 जनवरी 2013 को दर्शनार्थियों के लिए खोल दिया गया। अवस्थिति इको पार्क कोलकाता के मेजर आटॉरी रोड (बिस्वा बंगला सारनी) एक्शन एरिया 2 न्यू टाउन में स्थित है। पार्क उत्तर में कोलकाता के म्यूजियम ऑफ मॉर्डन आर्ट, पूर्व में केन्द्रीय व्यापार जिला, अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय हब, कोलकाता इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर, HIDCO भवन, रवीन्द्र तीर्थ और पश्चिम में हटियारा स्थित है। यह VIP रोड और ईएम बाईपास से जुड़ा हुआ है। इको पार्क यहाँ के अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डे से लगभग 10 किमी, उल्ट्राडांगा से 13.6 किमी और चिगरीहाटा से 10.8 किमी दूर है। कोलकाता और उसके बाकी हिस्सों से बस, टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा सीटी से बस नंबर C8 सीधे इको टूरिज़्म पार्क को जाती है। एस्प्लेनेड के आसपास रहने वाले चिनार पार्क या सिटी सेंटर 2 से बस नंबर 46B और 217B की उपलब्धता है। आकर्षण केन्द्र इको पार्क के विशेष तौर पर आकर्षीत केन्द्र यहाँ के उष्णकटिबंधीय वृक्ष उधान, घास का मैदान, रोज गार्डन, टॉपिकल ट्री गार्डन, हर्व गार्डन, बाँस का जंगल, संगीत फव्वारा, फलों का बगीचा, बटरफ्लाई पार्क, फूड पार्क, बांग्लार हाट, चिल्ड्रन पार्क, शिल्पी कुटी, कॉटेज और कॉन्फ्रेस हॉल, शिशु केन्द्र, इसके साथ दुनिया का सात अजुबें- गीजा का पिरामिड (मिस्त्र), जॉडन का पेट्रा, रोम का कोलोसियम, अर्बन म्जूजीयम, चीन की दीवार, ब्रांजील का क्राइस्ट द रिडीमर और भारत का ताजमहल सम्मलित हैा आमोद-प्रमोद के साधन पार्क के अन्दर अनेक आमोद-प्रमोद के साधन उपलब्ध हैं, जैसे तीरंदाजी, बेबी साइकिलिंग, डुओ साइकिलिंग, ई-वाइक, इको कार्ट, गेमिंग जोन, स्पीड बोट, कयाकिंग, मिकी माउस, पैडल बोटिंग, राइफल सूटिंग, रोलर स्केट्स, एंगलिंग, क्रूज, रिमोट कार, ट्रैम्पोलिन, ट्रॉय ट्रेन की सवारी आदि1 सुविधाएँ पार्क में अर्थितीयों के ठहरने के लिए व्यक्तिव किराए के तौर पर कॉटेज और कॉफेन्स हॉल की सुविधा हैा इसके साथ एक बड़ी पार्किंग, भोजन, ऑनलाइन टिकट बुकिंग आदि की उपलब्धता दी जाती हैा पार्क का समय ग्रीष्मकालीन ऋत्रु (1 मार्च से 31 अक्टूबर) में मंगलवार से शनिवार दोपहर 2.30 - 8.30 बजे तक खुला रहता हैा रविवार औऱ अवकाश दिन दोपहर 12.00 से 8.30 बजे तक खुला रहता हैा शीतकालिन ऋत्रु (1 नंवबर से 28 फरवरी) में मंगलवार से शनिवार दोपहर 12.00 से 7.30 बजे तक खुला रहता हैा रविवार औऱ अवकाश दिन सुबह 11.00 से 7.30 बजे तक खुला रहता हैा सोमवार को पार्क बंद रहती हैा पार्क के प्रवेश शुल्क 30 रू0 प्रति व्यक्ति हैा यहाँ का टिकट काउंटर शाम 5.30 बजे बंद कर दी जाती हैा पर्थप्रदशन मानचित्र इन्हें भी देखें निक्को पार्क (कोलकाता) एक्वाटिका (कोलकाता) सन्दर्भ कोलकाता के दर्शनीय स्थल कोलकाता पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय उद्यान
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गया लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र
गया लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र भारत के बिहार राज्य का एक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र है। विधानसभा क्षेत्र वर्तमान में, गया लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में निम्नलिखित छह विधानसभा (विधान सभा क्षेत्र) शामिल हैं: शेरघाटी बाराचट्टी बोधगया गया टाउन बेलागंज वजीरगंज संसद के सदस्य इस लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए संसद सदस्यों की सूची निम्नलिखित है: 1952: सत्येंद्र नारायण सिन्हा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (गया पूर्व) 1952: विजनेश्वर मिसिर, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी 1957: ब्रजेश्वर प्रसाद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1962: ब्रजेश्वर प्रसाद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1967: राम धनी दास, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1971: ईश्वर चौधरी, जनसंघ 1977: ईश्वर चौधरी, जनता पार्टी 1980: राम स्वरूप राम, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1984: राम स्वरूप राम, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1989: ईश्वर चौधरी, जनता दल 1991: राजेश कुमार, जनता दल 1996: भगवती देवी, जनता दल 1998: कृष्ण कुमार चौधरी, भारतीय जनता पार्टी 1999: रामजी मांझी, भारतीय जनता पार्टी 2004: राजेश कुमार मांझी, राष्ट्रीय जनता दल 2009: हरि मांझी, भारतीय जनता पार्टी 2014: हरि मांझी, भारतीय जनता पार्टी 2019: विजय कुमार मांझी, जनता दल(यूनाइटेड) बाहरी कड़ियाँ बिहार के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र मुख्य मेनू खोलें विकिपीडिया खोजें गया लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र भाषा PDF डाउनलोड करें ध्यान रखें संपादित करें गया लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र भारत के बिहार राज्य का एक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र है। गया लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र — लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र — निर्देशांक: (निर्देशांक ढूँढें) समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) देश भारत राज्य बिहार ज़िला गया विधानसभा क्षेत्र संसद के सदस्य संपादित करें इस लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए संसद सदस्यों की सूची निम्नलिखित है: [1][2] 1952: सत्येंद्र नारायण सिन्हा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (गया पूर्व) 1952: विजनेश्वर मिसिर, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी 1957: ब्रजेश्वर प्रसाद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1962: ब्रजेश्वर प्रसाद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1967: राम धनी दास, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1971: ईश्वर चौधरी, जनसंघ 1977: ईश्वर चौधरी, जनता पार्टी 1980: राम स्वरूप राम, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1984: राम स्वरूप राम, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1989: ईश्वर चौधरी, जनता दल 1991: राजेश कुमार, जनता दल 1996: भगवती देवी, जनता दल 1998: कृष्ण कुमार चौधरी, भारतीय जनता पार्टी 1999: रामजी मांझी, भारतीय जनता पार्टी 2004: राजेश कुमार मांझी, राष्ट्रीय जनता दल 2009: हरि मांझी, भारतीय जनता पार्टी 2014: हरि मांझी, भारतीय जनता पार्टी 2019: विजय कुमार मांझी, जनता दल(यूनाइटेड) बाहरी कड़ियाँ संपादित करें भारतीय निर्वाचन आयोग के जालस्थलपर गया लोक सभा निर्वाचन क्षेत्रमें १९७७ से राजनैतिक दलोंके चुनाव परिणामोंका ब्यौरा (अंग्रेजी भाषा में) "Election Commission of India" Archived जनवरी 31, 2009 at the Wayback Machine "Lok Sabha Former Members" Archived जून 16, 2008 at the Wayback Machine अंतिम बार 3 वर्ष पहले EatchaBot द्वारा संपादित किया गया RELATED PAGES भागलपुर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र मधेपुरा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र नवादा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र विकिपीडिया उपलब्ध सामग्री CC BY-SA 4.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। गोपनीयता नीति उपयोग की शर्तेंडेस्कटॉप
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महादेव
महादेव जो शिव का एक नाम है। महादेव (गणितज्ञ) -- उन्होंने १३१६ में ग्रहों की गति के लिये 'महादेवी सारणी' बनायी। महादेव जो १९८९ में बनी एक फ़िल्म है। महादेवी वर्मा – हिन्दी की एक अग्रणी कवयित्री और लेखिका। महादेव गोविंद रानडे – एक भारतीय न्यायाधीश, लेखक एवं समाज सुधारक। महादेव देसाईं – भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी एवं राष्ट्रवादी लेखक। महादेव खंडेला – भारतीय राजनीतिज्ञ और पंद्रहवीं लोकसभा लोकसभा के सदस्य। महादेव मंदिर, इतगी – इतगी कर्नाटक में कोप्पल जिले का एक गाँव। महादेव धूमट प्रपात – छत्तीसगढ़ में स्थित एक जलप्रपात।
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शिरस्थान
शिरस्थान नेपाल का एक हिन्दू धार्मिक स्थल है। यह स्थान पश्चिम नेपाल के दैलेख जिले में अवस्थि है । यह स्थान पंचकोशी के पांच स्थानों में से एक है । ज्वाला क्षेत्र में रहे यह शिरस्थान एक महत्वपूर्म धार्मिक क्षेत्र है । ईस स्थान को श्रीस्थान भी कहाजाता है। शिरस्थान मन्दिर के ज्वाला दर्शन के लिए दैलेख जिला का मुख्यालय दैलेख बजार से १ घंटे की पैदल यात्रा या आधे घंटे की सवारी साधन में पहुंचा जासकता है । नेपाल की भूमी में सब से महत्वपूर्ण मानागया शिरस्थान में जलज्वाला सदियों से निरंतर जलते हुए दिखा जा सकता है । नदी के किनारे किनारे पर भी कई सारे ज्वालायें जलते हुए यहां देखने को मिलता है। दैलेख जिला के मुख्यालय से ८ किलोमिटर पश्चिम गमौडी गाविस में रहे श्रीस्थान ज्वालायें अभी तक जलरहे हें । ईस जगह पर नदी के पानी तक में आग की ज्वालायें जलते हुए देखनेको मिलता है । वि.सं. १६२५ में दुल्लु राज्य के राजा प्रताप शाही व वेलासपुर राज्य के राजा संग्राम शाही ने संयुक्त रुप में शिरस्थान ज्वाला मन्दिर निर्माण किया हुआ यहां अवस्थित शिलालेख में उल्लेख है । दैलेख जिला वासीयों का कहना है, आदमी की मृत्यु संसार में कहिं भी हो परन्तु दाह संस्कार के लिए शिरस्थान व नाभिस्थान के ज्वाला की अग्नी से किया जाय तो मृत आत्मा का वास स्वर्ग में होता है और पूनर्जन्म से मुक्ति मिलजाती है । ईस ही कारण शिरस्थान व नाभीस्थान में दैलेख जिले के सब से बडे श्मसान घाट बने हें । जिले के कई जगह से दाह संस्कार हेतु यहां शव लाय जातें हें । सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ नेपाल नेपाल में पर्यटन हिन्दू तीर्थ स्थल नेपाल में हिन्दू मंदिर
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कन्होपत्रा
कन्होपत्रा एक 15 वीं सदी के मराठी संत-कवयत्रि थी। हिंदू धर्म के वारकरी संप्रदाय द्वारा सम्मानित थी। कान्होपत्रा एक वेश्या और नाचने वाली गणीका कि लडकी थी। वह बीदर के बादशाह (राजा) की उपपत्नी से बिना वर्कारी के हिंदू भगवान विठोबा-देवता संरक्षक को आत्मसमर्पण करने के लिए चुनाए।वह पंढरपुर में विठोबा के मुख्य मंदिर में निधन हो गया।सिर्फ उन्हो एक ही व्यक्ति किसके समाधि मंदिर के परिसर के भीतर है। कन्होपत्रा मराठी ओवी और अभंगा अपने पेशे के साथ उसका शील संतुलन के लिए विठोबा के प्रति उसकी भक्ति और उसके संघर्ष की कविता कह लिखि थी। उनकी कविताओं में, भगवान विठोबा उसके रक्षक बनते थे और अपने पेशे के चंगुल से उसे रिहा करने के लिए प्रार्थना कर रहि थी। उसकी तीस अभंगा आज भी बच गया है और आज भी लोगा गाते है।वह सिर्फ एक ही महिला संत वरकारि,जिन्होंने पवित्रता केवल उनकी भक्ति के आधार गुरु बिना प्राप्त किये है। जीवन कन्होपत्रा के इतिहास सदियों से माध्यम से लोग जानते है कि उनके कहानियों नीचे पारित कर दिया गया है और उनके कहानियों मे तथ्य और कल्पना करने के लिए मुश्किल बना गयि है। उसके जन्म के बारे में शमा कर के लोग मानते है और उसकि मौत विठोबा मंदिर जब बीदर के बादशाह ने उसको चाह। हालांकि, सदाशिव मालगुजर (आरोप लगा हुआ पिता) और हौसा नौकरानी के पात्रों उनकि चरित्राओं में नहीं दिखाई देते है। प्रारंभिक जीवन कन्होपत्रा एक अमीर वेश्या शमा कि बेठी थी, जो पंढरपुर के मंगलवेद शेहर मे रहते थे। कन्होपत्रा के अलावा मंगलवेद संतों वरकारि चोखामेला और डमाजि का भी शमा कन्होपत्रा के पिता की पहचान के बारे में अनिश्चित था, लेकिन यह संदेह था कि शहर के सिर मैन सदाशिव मालगुजर जन्मस्थान है। कन्होपत्रा उसकी माँ के महलनुमा घर में उसके बचपन बिताया थी और कई नौकरानियों द्वारा सेवा कराते थे। कन्होपत्रा की सामाजिक स्थिति बहुत ही कम था।कन्होपत्रा बचपन से ही नृत्य और गीत में प्रशिक्षित किया गया था ताकि वह अपनी माँ के पेशे में शामिल होने सकि। वह एक प्रतिभाशाली नर्तकी और गायक बन गए।उसकी सुंदरता अप्सरा (स्वर्गीय अप्सरा) मेनका से तुलना करते थे।शमा ने कन्होपत्रा को सुझाए गया कि बादशाह (मुस्लिम राजा) को मिलना है, तब जो उसकी सुंदरता और उपहार उसे पैसे और गहने पूजा होगी लेकिन कन्होपत्र साफ ​​इनकार कर दिया। कन्होपत्रा की मा शामा ने कन्होपत्रा को शादी करवाने के लिये सोचा था। विद्वान तारा भवलकार कहा गया है कि कन्होपत्रा की शादी के लिए मना किया गया था क्यों कि वह एक दासि कि बेठी है। कन्होपत्रा को वेश्या के जीवन मे आशा नहि थी लेकिन उसके लिये घ्रुणा किये थे और भी लोग कहते हेय कि वह वेश्या बनने के लिये मजबूति से मना कि थी। कुछ लेखकों का मानना ​​है कि हो सकता है कि वह भी एक वेश्या के रूप में काम किया है। भक्ति पथ सदाशिव मालगुजर, कन्होपात्रा की अपेक्षा की पिता, कन्होपत्रा की सुंदरता के बारे में सुना है और उसके नृत्य को देखने के लिए कामना की, लेकिन कन्होपत्रा से इनकार कर दिया।तदनुसार, सदाशिव कन्होपत्रा और शमा को परेशान करना शुरू कर दिया था।शमा उसे समझा दिया है कि वह कन्होपत्रा का पिता था और इस तरह उन्हें छोड़ देना चाहिए की कोशिश की, लेकिन सदाशिव उसे विश्वास नहीं किया।वह अपने उत्पीड़न जारी रखा, शमा के धन धीरे-धीरे समाप्त हो गया।आखिरकार, शमा सदाशिव के लिए माफी मांगी और उसे करने के लिए कन्होपत्रा पेश करने की पेशकश की। कन्होपत्रा, तथापि, एक नौकरानी के रूप में प्रच्छन्न उसकी वृद्ध नौकरानी हौसा की मदद से पंढरपुर के लिए भाग गए। कुछ किंवदंतियों में, होउसा वर्णित के रूप में एक वरकारि भक्ति करने के लिए कन्होपत्रा की यात्रा के लिए श्रेय दिया।अन्य खातों वरकारि तीर्थयात्रियों जो पंढरपुर में विठोबा मंदिर के लिए अपने रास्ते पर कन्होपत्रा के घर से पारित क्रेडिट दिया। एक कहानी के अनुसार, उदाहरण के लिए, वह विठोबा के बारे में एक गुजर वरकारि से पूछा। वरकारि कहा कि विठोबा ", उदार बुद्धिमान, सुंदर और सही" है, उसकी महिमा का वर्णन से परे है और उसकी सुंदरता से बढ़कर लक्ष्मी, सौंदर्य की देवी का है। कन्होपत्रा आगे पूछा कि क्या विठोबा एक भक्त के रूप में उसे स्वीकार करेंगे क्या और वरकारि कह कि वह कन्होपत्रा को स्वीकार करेंगे।इस आश्वासन,पंढरपुर जाने के लिए उसके संकल्प को मजबूत बनाया। कन्होपत्रा तुरंत वरकारि तीर्थयात्रियों के साथ विठोबा-के भजन पंढरपुर-गायन के लिए छोड़ देता है या पंढरपुर उसके साथ उसकी माँ को भी समझाकर जाति थी। जब कन्होपत्रा ने पहलि बार् पंढरपुर की विठोबा छवि को देखा है,तब उन्होंने अभंगाओं को गाने के लिए शुरु कर दिया। वह एक अभंगा में गायि थी कि उसे आध्यात्मिक योग्यता पूरी की थी और वह विठोबा के पैरों देखा है के लिए आशीर्वाद दिया था। वह अद्वितीय सौंदर्य वह विठोबा में उसके दूल्हे की मांग में पाया था। वह भगवान से "विवाहित" खुद को माना और पंढरपुर में बस गए।वह समाज से वापस ले लिया। कन्होपत्रा हौसा के साथ पंढरपुर में एक झोपड़ी में ले जाया गया और एक तपस्वी का जीवन जिया। वह विठोबा मंदिर में गाया और नृत्य किया था, और यह एक दिन में दो बार साफ किया थी। वह लोगों के संबंध में प्राप्त की,और लोग मानते थे कि वह एक किसान कि बेठी थी।इस अवधि पर , कन्होपत्रा विठोबा के लिए समर्पित ओवी कविताओं की रचना की। मौत इस अवधि पर सदाशिव बादशाह से मदद माँगा। कन्होपत्रा की सुंदरता के किस्से सुनकर बादशाह उसकी रखैल बनने के लिए उसे आदेश दिया।जब उसने मना कर दिया, राजा बल द्वारा उसे पाने के लिए अपने आदमियों को भेजा था। कन्होपत्रा विठोबा मंदिर में शरण ली। राजा के सैनिकों मंदिर को घेर लिया और इसे नष्ट करने के लिए अगर कन्होपत्रा उन्हें सौंप दिया गया था नहीं की धमकी दी। कन्होपत्रा ले जाया जा रहा से पहले विठोबा के साथ एक पिछली बैठक का अनुरोध किया। सभी इसाब के द्वारा, कन्होपत्रा तो विठोबा छवि के पैर में निधन हो गया, लेकिन हालात स्पष्ट नहीं थे। लोकप्रिय परंपरा के अनुसार, कन्होपत्रा शादी-कुछ कन्होपत्रा के लिए इंतज़ार के एक फार्म में विठोबा की छवि के साथ विलय कर दिया। अन्य सिद्धांतों का सुझाव है कि वह खुद को मार डाला है, या कि वह उसकी निरंकुशता के लिए मार डाला गया था। अधिकांश। इसाब कहते है कि कन्होपत्रा के शरीर विठोबा के चरणों में रखी गई थी और उसके बाद मंदिर के दक्षिणी भाग के पास दफनाया गया था।पौराणिक कथा के सभी संस्करणों के अनुसार, एक तरति पेड़-जो उसके तीर्थयात्रियों द्वारा पूजा की जाती है की मौके पर ही स्मरण-उठी जहां कन्होपत्रा दफनाया गया था। कन्होपत्रा केवल एक ही व्यक्ति जिसका समाधि (समाधि) विठोबा मंदिर के परिसर में है। दिनांकन कई इतिहासकारों कन्होपत्रा के जीवन और मृत्यु की तिथि को स्थापित करने का प्रयास किया है। एक अनुमान उसकी बीदर के बहमनी एक राजा, जो अक्सर कन्होपत्रा कहानी हालांकि ज्यादातर खातों में, कि राजा को स्पष्ट रूप से नामित कभी नहीं जाता है के साथ जुड़ा हुआ है के संबंध में से लगभग 1428 सीई उसके जीवन देता है। पवार का अनुमान है कि वह 1480 में मृत्यु हो गई थी। दूसरों को 1448, 1468 या 1470, या बस की तारीखों का कहना है कि वह 15 वीं सदी या दुर्लभ मामलों में, 13 वीं या 16 वीं सदी में रहते थे का सुझाव है। जेल्लियट के अनुसार, वह संत-कवियों चोखामेला (14 वीं सदी) और नामदेवा (c.1270-c.1350) के समकालीन थे। साहित्यिक कृतियों और शिक्षाओं कन्होपत्रा कई अभंगा बना है माना जाता है, लेकिन सबसे लिखित रूप में नहीं थे: उसे का केवल तीस या ओविस आज जीवित रहते हैं। सकल संत-गाथा कहा जाता तेईस उसकी कविताओं के छंद वरकारि संतों के संकलन में शामिल किए गए हैं। इन गीतों में से अधिकांश आत्मकथात्मक हैं करुणा का एक तत्व के साथ लिखा गया है। उसकी शैली, काव्य उपकरणों के द्वारा सादे समझने में आसान के रूप में वर्णित है, और अभिव्यक्ति की एक सादगी के साथ किया जाता है। देशपांडे के मुताबिक,कन्होपत्रा की कविता और महिला रचनात्मक अभिव्यक्ति का उदय, लैंगिक समानता की भावना वरकारि परंपरा द्वारा लागू द्वारा प्रज्वलित "दलित की जागृति" को दर्शाता है। कन्होपत्रा के अभंगा अक्सर अपने पेशे और विठोबा के प्रति उसकी भक्ति वरकारि के संरक्षक देवता के बीच उसके संघर्ष को चित्रित है। वह खुद को एक महिला को गहरा उसे उसे उसके पेशे के असहनीय बंधन से बचाने के लिए विठोबा के लिए समर्पित है, और निवेदन करना के रूप में प्रस्तुत करता है।कन्होपत्रा उसका अपमान और समाज से उसके निर्वासन अपने पेशे और सामाजिक कद के कारण के बोलति है। नाको में देवराय अन्ता आता पर माना जाता है उसके जीवन-असमर्थ उसे भगवान से अलग होने के बारे में सोचा सहन करने की अंतिम अभंगा होने के लिए, कन्होपत्रा उसके दुख को समाप्त करने के विठोबा भी जन्म देती है। विरासत और स्मरण कन्होपत्रा औपचारिक रूप से संतों की सूची में शामिल किया गया है, पाठ भक्तिविजय में मराठी में संतों अर्थ दिया गया है। सन्दर्भ https://web.archive.org/web/20170205153234/http://premikan.com/2009/08/sant-kanhopatra/ https://web.archive.org/web/20170504064000/http://marathi.mangalwedha.com/Home/shri_sant_chokhamela/sri-sant-kanhopatra https://web.archive.org/web/20170211155810/http://www.aathavanitli-gani.com/Natak/Sant_Kanhopatra https://web.archive.org/web/20170211075902/http://godivinity.org/kanhopatra/
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३० अगस्त
30 अगस्त ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 242वॉ (लीप वर्ष मे 243 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 123 दिन बाकी है। प्रमुख घटनाएँ 1842- एंग्लो चीन युद्ध समाप्त हुआ 1923- उत्तर-पूर्वी टर्क और केको के उष्णकटीबंधीए आँधी के साथ तूफान का मौसम शुरू हुआ। 1947- भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए डॉ॰ भीम राव अंबेडकर के नेतृत्व में एक प्रारूप समिति का गठन किया गया 2003- समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने 2009- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान प्रथम औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया। 2011- हिन्दी विकिपीडिया एक लाख का आँकड़ा पार करने वाला प्रथम भारतीय भाषा विकिपीडिया संस्करण बना। जन्म 30 अगस्त को चांपा के अस्पताल में पत्रकार राजेन्द्र राठौर का जन्म हुआ। बीए, एलएलबी की पढ़ाई करने के बाद वे पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़ गए। वर्तमान में जांजगीर-चांपा जिले में ‘पत्रिका’ के जिला प्रतिनिधि है। इससे पहले वे हरिभूमि, नवभारत तथा नईदुनिया प्रेस में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। प्रेस में काम करने के अलावा वे एक स्वतंत्र लेखक भी है। समाज व देश दुनिया की घटनाओं तथा उपलब्धियों को वे अपने ब्लॉग जन-आवाज, जन-वाणी तथा जन-पहल के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने संकल्पित हैं। उनकी लेख व रचनाएं आए दिन कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है। निधन बहारी कडियाँ बीबीसी पे यह दिन अगस्त
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भारतीय शिक्षण मण्डल
भारतीय शिक्षण मण्डल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक आनुसंगिक संगठन है जो शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुनरुत्थान के उद्देश्य से कार्यरत है। इसकी स्थापना सन १९६९ में रामनवमी के दिन हुई थी। इसके मुख्य उद्देश्य हैं- भारत की एकात्म जीवनदृृष्टि पर आधारित तथा देश की सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक अनुभूति से उपजी, राष्ट्र के समग्र विकास पर केंद्रित राष्ट्रीय शिक्षा नीति, पाठ्यचर्या, व्यवस्था तथा शिक्षणविधि का विकास आदि। इसका केन्द्रीय कार्यालय नागपुर में है। कार्यप्रणाली भारतीय शिक्षण मंडल शिक्षा में पुनः भारतीयता प्रतिष्ठित करने में कार्यरत एक अखिल भारतीय संगठन है। शिक्षा नीति, पाठ्यक्रम एवं पद्धत्ति तीनों भारतीय मूल्यों पर आधारित, भारत केन्द्रित तथा भारत हित की हो, इस दृष्टि से संगठन वैचारिक, शैक्षिक और व्यावहारिक गतिविधियों का नियमित आयोजन करता है। इस निमित्त भारतीय शिक्षा मंडल ने अनुसन्धान, प्रबोधन, प्रशिक्षण, प्रकाशन तथा इन सभी के लिए संगठन - ऐसी एक पञ्चआयामी कार्यप्रणाली विकसित की है। (१) अनुसन्धान – सभी विषयों में भारतीय ज्ञानपरंपरा तथा भारतीय विचारदृष्टि से अनुसंधान को प्रोत्साहित करना। विश्वविद्यालयों में अध्ययन समूहों का गठन करना। भारतीयता पर आधारित पाठ्यक्रम तैयार करना। (२) प्रबोधन – संगोष्ठियों, सम्मेलनों एवं कार्यशालाओं के माध्यम से नीतिनिर्धारकों, शिक्षकों तथा समाज के प्रबुद्ध वर्ग में भारतीय दृष्टि जागृत करना। (३) प्रशिक्षण – शिक्षक स्वाध्याय , अभिभावक उद्बोधन तथा संस्थाचालक परामर्श आदि संदर्भित कार्यशालाओं का आयोजन करना। (४) प्रकाशन – मराठी व अंग्रेजी में मासिक तथा हिंदी में त्रैमासिक का प्रकाशन। हिंदी, असमिया, तेलुगु, गुजराती, कन्नड तथा मराठी में विविध पुस्तकें। (५) संगठन – देश के 24 राज्यों में भारतीय शिक्षण मंडल की इकाइयाँ है। शिक्षा में रुचि रखनेवाले सभी लोगों के लिए साप्ताहिक ’मंडल’ तथा विषय के विशेषज्ञों के लिए 'अध्ययन समूह' का गठन। गतिविधियाँ महिला प्रकल्प गुरुकुल प्रकल्प शालेय प्रकल्प शैक्षिक प्रकोष्ठ अनुसन्धान प्रकोष्ठ युवा आयाम प्रचार व संपर्क विभाग प्रकाशन विभाग युवा आयाम – युवाओं में राष्ट्रभक्ति के साथ ही राष्ट्रगौरव का भाव जागृत करने तथा युवाओं की प्रतिभा और उत्साह को राष्ट्र समर्पण हेतु तैयार करने के उद्देश्य से भारतीय शिक्षण मंडल ने युवा आयाम प्रारम्भ किया है। गुरुकुल प्रकल्प – भारतीय शिक्षण मंडल की मान्यता है कि गुरुकुल व्यवस्था शिक्षा की सनातन और स्थापित व्यवस्था है। वर्तमान में यह पद्धति युगानुकूल होकर भविष्योन्मुखी पद्धति का रुप धारण कर रही है तथा शिक्षा जगत की सम्पूर्ण समस्याओं और चुनौतियों का सामना करने में सक्षम सिद्ध हो रही है। इसलिए भारतीय शिक्षण मंडल आदर्श गुरुकुल तथा समाजपोषित शिक्षा व्यवस्था स्थापित करने की दिशा में प्रयासरत है। संगठन गीत भारतीय शिक्षा से हो, भारत माँ का पुनरुत्थान विश्व गुरु के पद पर बैठी, माता पाए गौरव स्थान ॥०॥ मुक्तकरी हो विद्या फिर से, मुक्त करे जो जीवमात्र को निर्धनता के अंधकार के, दास्यभाव के तोड़ बंध को युक्त करी हो शिक्षा अपनी, स्वाभिमान से भर दे मन को अर्थकरी हो स्वावलंबि हो, राष्ट्र जागरण का अभियान ॥१॥ शासन से हो पूर्ण मुक्त यह, समाजपोषित शिक्षा नीति पूर्ण स्वतंत्र हो पूर्ण मुक्त हो, विद्वानों की शाश्वत थाती नगर ग्राम जनपद से निकली, पूर्ण विकेन्द्रित निर्णय रीती आर्थिक शैक्षिक सामाजिक हो, शिक्षा का स्वायत्त विधान ॥२॥ राष्ट्रभाव से पाठ भरे हों, सत्य सनातन मूल्याधिष्ठित गौरव जागे भक्ति उपजे, सेवावृत्त में हर जन स्थापित पूर्ण विकसित हर चरित्र हो, सर्वकला सम्पन्न सुनिश्चित कौशल विकसे तेज भी चमके, छात्र-छात्र फिर बने महान ॥३॥ रसमय होवे सारी शिक्षा, वातावरण हो खुला प्रसन्न नाचें गाए खेलें कूदें, चिति को सींचे खिलें सुमन भीतर जलता ज्ञानदीप जो, करे प्रकाशित विश्व गगन एकलव्य से शिष्य बने सब, शिक्षक सब चाणक्य समान ॥४॥ मिलजुल कर हम शिक्षा बदलें, जागृत वैचारिक आंदोलन शोध करें हम करें जागरण, और प्रशिक्षण और प्रकाशन नित्य करें साप्ताहिक चिंतन, गढ़ें मंडलम् गढ़ें संगठन साथ मिलें सब साथ विचारें, साथ करें अब कार्य महान ॥५॥ सन्दर्भ इन्हें भी देखें विद्या भारती राष्ट्रीय शिक्षा नीति बाहरी कड़ियाँ भारतीय शिक्षण मण्डल का जालघर RSS-Affiliate Bharatiya Shikshan Mandal to Design New University Ranking System राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF%20%28%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29
प्रकृति (धर्म)
अनेकों भारतीय दर्शनों में प्रकृति की चर्चा हुई है। प्रकृति मूल कारण, स्वभाव या रूप। सांख्य दर्शन में सत्कार्यवाद के अनुसार कार्य अपने कारण में उत्पत्ति के पूर्व भी वर्तमान रहता है। कारण सूक्ष्म कार्य है तथा कार्य, कारण का स्थूल रूप है। तत्वत: कार्य और कारण में भेद नहीं है। कारण का परिणाम होने से कार्य की अवस्था आती है। संसार मे जो कुछ चेतनाविहीन पदार्थ है वह सुख, दु:ख या मोह का कारण है। अत: ये जड़ पदार्थ किसी ऐसे एक कारण के परिणाम हैं जिसमें सुख, दु:ख और मोह को उत्पन्न करनेवाले गुण वर्तमान हैं। यह कारण सबका मूल होगा और इसका दूसरा कोई कारण न होगा। यह कारण एक और अविभाज्य होगा। इसमें तीनों गुण अपनी साम्यावस्था में स्थित होंगे। ये तीन गुण क्रमश: सत्व, रजस् ओर तमस् कहे गए हैं। इनकी साम्यावस्था ही मूल प्रकृति कही जाती है। यह किसी का विकार नहीं है पर सभी जड़ पदार्थ इसके विकार हैं। पुरुष की सन्निधि से प्रकृति में रजोगुण का परिस्पंद होने से क्रिया उत्पन्न होती हैं। रजोगुण क्रिया का मूल है परन्तु प्रकृति में चेतना न होने से यह क्रिया स्वयंचालित है, किसी चेतन द्वारा चालित नहीं है। गुणों की साम्यावस्था में विक्षोभ होने से बुद्धि या महत् की उत्पत्ति होती है। महत् से अहंकार की, अहंकार से पाँच ज्ञानेंद्रियों, पाँच कर्मेन्द्रियों, मन और पाँच तन्मात्राओं की उत्पत्ति होती है। तन्मात्रों से पंचभूतों की उत्पत्ति मानी गई है। यही प्रकृति का विस्तार है। व्याकरण में व्याकरण में प्रकृति वह मूल शब्द है जिससे प्रत्यय आदि जोड़ कर नए शब्दों का निर्माण होता है। इन्हें भी देखें प्रकृति (निसर्ग) पुरुष भारतीय दर्शन
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मिंट
मिंट भारत में प्रकाशित होने वाला अंग्रेजी भाषा का एक समाचार पत्र (अखबार) है। यह दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर, चंडीगढ व पुणे में प्रकाशित होता है। इन्हें भी देखें भारत में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों की सूची सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ NEWSPAPERS.co.in - A dedicated portal showcasing online newspapers from all over India Newspaper Index - Newspapers from India - Most important online newspapers in India ThePaperboy.com India - Comprehensive directory of more than 110 Indian online newspapers भारत में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र अंग्रेजी भाषा के समाचार पत्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%B2%20%E0%A4%8F%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2
एल एस्कोरियाल
सैन लोरेंजो डी एल एस्कोरियाल का शाही स्थल (; मोनास्टरियो वाई सिटियो डे एल एस्कैरियल एन माद्रीद), जिसे आमतौर पर मोनास्टरियो देल एस्कोरियाल के रूप में जाना जाता है, स्पेन के राजा का एक ऐतिहासिक निवास है, जो सैन लोरेनियो डी एल एस्कोरियाल के बारे में है। स्पेन की राजधानी मैड्रिड से 45 किलोमीटर (28 मील) उत्तर-पश्चिम में। यह स्पेनिश शाही स्थलों में से एक है और एक मठ, बेसिलिका, शाही महल, पेंटहोन, पुस्तकालय, संग्रहालय, विश्वविद्यालय, स्कूल और अस्पताल के रूप में कार्य करता है। यह एल एस्कोरियाल शहर से 2.06 किमी दूर घाटी में स्थित है। यूनेस्को द्वारा इसे विश्व विरासत स्थानों में शामिल किया गया है। यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। उपयोग और इतिहास ये स्पेन के शाही स्थानों में से एक है। ये एक इसाई मठ, अजाइबघर और स्कूल के तौर पे इसका इस्तेमाल किआ जाता है। यहाँ से 2.06 किलोमीटर दूर एल एस्कोरल का शहर स्थित है। एल एस्कोरल दो महान ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के परिसरों से बनाया गया है। पहला शाही महल और दूसरा ला ग्रंजिला दे ला फ्रेस्नेदा एल एस्कोरल, जो एक शाही शिकार लॉज था,यह यहां से पांच किलोमीटर की दूरी पर है। स्पेन के फ़िलिप द्वितीय (जिन्होंने 1556-1598 तक शासन किया) ने स्पेनिश वास्तुकार जुआन बॉतिस्ता डे टोलेडो को एल एस्कैरियल के परिसर के नवीनीकरण और विस्तार में उनका सहयोगी बनने के लिए लगा दिया। जुआन बॉतिस्ता ने अपने करियर का बड़ा हिस्सा रोम में बिताया था, जहाँ उन्होंने सेंट पीटर के बेसिलिका पर और नेपल्स में काम किया था, जहाँ उन्होंने राजा के वाइसराय की सेवा की थी, जिसकी सिफारिश ने उन्हें फिलिप के ध्यान में लाया। फिलिप ने उन्हें 1559 में राज-वास्तुकार नियुक्त किया, और साथ में उन्होंने एल एस्कैरियल को स्पेन की एक स्मारक के रूप में ईसाई जगत के केंद्र के रूप में डिजाइन किया। विश्व धरोहर 2 नवंबर 1984 को, यूनेस्को ने एल एस्कैरोरियाल की सैन लोरेंजो की रॉयल सीट को विश्व विरासत स्थल घोषित किया। यह एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है, जो अक्सर मैड्रिड से पर्यटक द्वारा दौरा किया जाता है - हर साल 500,000 से अधिक आगंतुक एल एस्कैरियाल आते हैं। चित्र दीर्घा इन्हें भी देखें स्पेन के फ़िलिप द्वितीय यूनेस्को मैड्रिड सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ El Escorial site Jardin del Monasterio de El Escorial - a Gardens Guide review El Escorial Monastery - History and Photos 74 Photos of El Escorial Maps showing areas of outstanding natural beauty, educational, scientific or cultural importance in Spain El Escorial tourist and travel connexions guide (Eng) HISTORIA DEL REAL MONASTERIO DE SAN LORENZO स्पेन के गिरजाघर स्पेन का इतिहास स्पेन के पुरातात्विक स्थल स्पेन में महल स्पेन के संग्रहालय स्पेन के स्मारक स्पेन में पर्यटन आकर्षण
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राबर्ट फिस्क
रॉबर्ट फिस्क ( जन्म : 12 जुलाई 1946) मेडस्टोन, केंट के रहने वाले एक ब्रिटिश पत्रकार एवं लेखक हैं, जो कि मध्य पूर्व में अपनी बहादुर पत्रकारी के लिए जाने जाते हैं। फिस्क १२ वर्षों से ज्यादा समय तक अंग्रेज़ी अख़बार द इंडिपेंडेंट के लिए मध्य पूर्व के मुख्यत: बेरुत में संवाददाता रह चुके हैं। किसी भी अन्य पत्रकार कि तुलना में फिस्क को पत्रकारिता से संबन्धित कहीं अधिक ब्रिटिश व अंतरराष्ट्रिय पुरस्कार मिल चुके हैं। उन्हें ७ बार ब्रिटेन का वार्षिक अंतरराष्ट्रिय पत्रकार पुरस्कार मिल चुका है। उन्होंने विभिन्न युद्धों व सैन्य टकरावटों पे किताबें प्रकाशित की हैं। अरबी भाषा बोलने वाले वे उन कुछेक ऐसे पश्चिमी पत्रकारों में हैं जिन्होने ओसामा बिन लादेन का साक्षात्कार किया है। १९९३ से १९९७ के बीच में उन्होने ऐसा ३ बार किया है। प्रारंभिक जीवन व शिक्षा मेडस्टोन, केंट में जन्मे फिस्क अपने पिता कि इकलौती संतान थे। उनके पिता मेडस्टोन कॉउन्सिल में खजांची थे और प्रथम विश्व युद्ध लड चुके थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा यार्डले कोर्ट नामक विद्दालय मे हुई थी सॉटन वैलेंस विद्दालय और लैंकास्टर विश्वविद्दालय, जहॉं उन्होने पहली बार () नामक छात्र पत्रिका में पत्रकारिता में हाथ आजमाया। बाद में १९८३ में ट्रिनिटी विश्वविद्दालय, डबलिन से उन्होंने राजनीति विज्ञान में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। पेशा समाचारपत्र संवाददाता जॉन जुनोर से विवाद जिसने उन्हें द टाइम्स से जुड़ने के लिए प्रेरित किया, के पहले फिस्क संडे एक्सप्रेस में दैनिक स्तम्भ लेखक के तौर पर कार्यरत थे। १९७२-७५ के दौरान फिस्क ने बेलफ़ास्ट में द टाइम्स के सवांददाता के तौर पर काम किया। फिर वो पुर्तगाल में सवांददाता बने और कार्नेसन क्रांति के परिणामों के समाचार भेजे। इसके बाद उन्हें मध्य पूर्व में सवांददाता के तौर पर नियुक्ति मिलि (1976–1988). रूपर्ट मर्डोक के आने के बाद जब १९८९ में उनके एक लेख को छापने से रोक दिया गया तो वो द इंडिपेंडेंट से जुड़ गए। न्यूयार्क टाइम्स ने एक बार उन्हें ब्रिटेन का सबसे प्रसिद्ध विदेशी संवाददाता बताया। उन्होंने १९७० में द ट्रबल्स : उत्तरी आयरलैंड का गृह युद्ध पर पत्रकारिता की फिर १९७४ में कार्नेसन क्रांति, लेबनान का गृहयुद्ध, १९७९ में ईरान की इस्लामी क्रांति, अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत युद्ध, बोस्निया का युद्ध, अल्जीरिया का गृहयुद्ध, कोसोवो का युद्ध, २००१ में अफगानिस्तान में अंतर्राष्ट्रीय आक्रमण, २००३ में ईराक पर अमेरिकी आक्रमण, २०१० से प्रारंभ होने वाली अरब जगत की क्रांतिकारी लहर और सीरिया का गृहयुद्ध में पत्रकारिता की और संवाददाता की भूमिका निभाई। युद्ध के संवाददाता फिस्क बेरुत में १९७६ से पूरे लेबनानी गृहयुद्ध के दौरान रहे। लेबनान में शाबरा और शतिला और सीरिया में हमा के नरसंहार की जगह पहुंचने वाले वो पहले पत्रकार थे। लेबनान के गृहयुद्ध पर उनकी किताब (पिटी द नेशन) १९९० मे प्रकशित हुई थी। उन्होने अरब बनाम इज़रायल के युद्ध, बोस्निया का युद्ध, कोसोवो का युद्ध, अल्जीरिया का गृहयुद्ध के साथ साथ कई युद्धों में पत्रकरिता की है। इराक-इरान के युद्ध के दौरान इराकी युद्ध क्षेत्र के अत्यधिक नजदीक होने के कारण वो लगभग बहरे भी हो गये थे। २००१ में अफगानिस्तान पर अमेरिकी सेनाओं के आक्रमण के बाद उस क्षेत्र की सूचनाऍ भेजने के लिए उन्हें पाकिस्तान भेजा गया। इस दौरान वहॉं पर अफगानी शरणार्थीयों के एक समूह जो कि अमेरिकी सेना की भारी बमबारी से बच के भाग रहा था, ने उन पर हमला कर दिया। उन्हें इस हमले से एक दूसरे अफगान शरणार्थी ने बचाया। इस पिटाई का चित्रण करते हुए फिस्क कहते हैं कि हिंदी अनुवाद: अंग्रेजी में: व्यक्तिगत जीवन फिस्क ने १९९४ में अमेरिकी पत्रकार लारा मार्लोवे से शादी की और २००६ में दोनो ने तलाक ले लिया और अलग हो गए। कार्य किताबें उन्होंने कई किताबें लिखी हैं। किताबें अंग्रेज़ी में हैं और उन का अभी तक हिन्दी में अनुवाद होना बाकी है। नीचे उन किताबों के नाम हैं - फिस्क, रॉबर्ट, (1975). द प्वांट ऑफ नो रिटर्न: द स्ट्राइक विच ब्रोक द ब्रिटिश इन अल्स्टर फिस्क, रॉबर्ट, (1983). इन टाइम ऑफ वार: आयरलैंड, अल्स्टर एंड द प्राइस ऑफ न्युट्रालिटी १९३९-४५ फिस्क, रॉबर्ट, (2001). पिटी द नेशन : लेबनान एट वार फिस्क, रॉबर्ट, (2005). द ग्रेट वार ऑफ सिविलाइज़ेशन: द कॉन्क्वेस्ट ऑफ द मिडिल ईस्ट, हार्पर पेरेनियल, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ ISBN 978-1-84115-008-6 चलचित्र दस्तावेज़ फिस्क ने १९९३ में फ्रॉम बेरूत टू बोस्निया नामक एक तीन हिस्सों वाली ऋँखला का निर्माण किया। फिस्क के अनुसार इस ऋँखला का उद्देश्य यह पता लगाना था की मुस्लिम लोग आखिर इतनी भारी संख्या मे पश्चिम जगत से घृणा क्यों करते हैं।" फिस्क कहते है कि डिस्कवरी चैनल ने शुरु में इन्हें पूरा दिखाने के बाद भी इज़रायल समर्थक गुटों द्वारा पत्र आधारित अभियान चलाए जाने के कारण इन चलचित्रों का दोबारा प्रसारण नही किया। फिस्क ने २००४ मे निर्मित चलचित्र पीस, प्रोपैगेंडा & द प्रॉमिस्ड लैंड में अभिनय भी किया है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका पर राबर्ट फिस्क के बारे में एक लेख द इंडिपेंडेंट में राबर्ट फिस्क के लेख राबर्ट फिस्क के सभी लेख पत्रकार साहित्यकार 1946 में जन्मे लोग जीवित लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%AE%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%87%20%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%202021
बांग्लादेश क्रिकेट टीम का ज़िम्बाब्वे दौरा 2021
बांग्लादेश क्रिकेट टीम ने जुलाई 2021 में एक टेस्ट, तीन एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) और तीन ट्वेंटी-20 अंतर्राष्ट्रीय (टी20आई) मैच खेलने के लिए ज़िम्बाब्वे का दौरा किया। वनडे श्रृंखला उद्घाटन 2020–2023 आईसीसी क्रिकेट विश्व कप सुपर लीग का हिस्सा बनी। बांग्लादेश ने आखिरी बार जिम्बाब्वे का दौरा अप्रैल और मई 2013 में किया था। मूल रूप से, दौरे पर दो टेस्ट मैच खेले जाने थे, लेकिन उनमें से एक को अतिरिक्त टी20ई मैच के स्थान पर हटा दिया गया था। कोविड-19 महामारी के कारण खेल गतिविधि के निलंबन के बावजूद, जिम्बाब्वे के खेल और मनोरंजन आयोग (एसआरसी) ने दौरे को आगे बढ़ाने की अनुमति दी। जून 2021 में, जिम्बाब्वे क्रिकेट द्वारा दौरे के कार्यक्रम की पुष्टि की गई, जिसमें सभी मैच बंद दरवाजों के पीछे हरारे स्पोर्ट्स क्लब में जैव-सुरक्षित वातावरण में खेले गए। बांग्लादेश क्रिकेट टीम बांग्लादेश में बारह टीमों के टी20 टूर्नामेंट के बाद 30 जून 2021 को जिम्बाब्वे पहुंची। एकमात्र टेस्ट मैच के दौरान, बांग्लादेश के महमूदुल्लाह ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास की घोषणा की। बांग्लादेश ने यह टेस्ट मैच 220 रन से जीत लिया। बांग्लादेश ने पहला एकदिवसीय मैच 155 रन से और दूसरा मैच तीन विकेट से जीतकर एक मैच शेष रहते श्रृंखला जीत ली। बांग्लादेश ने तीसरा एकदिवसीय मैच पांच विकेट से जीतकर श्रृंखला 3-0 से जीत ली। 19 जुलाई 2021 को, दोनों क्रिकेट बोर्ड टी20आई जुड़नार के मामूली पुनर्निर्धारण के लिए सहमत हुए। "शेड्यूलिंग और लॉजिस्टिक चुनौतियों" के कारण दौरे की समाप्ति तिथि दो दिनों के लिए आगे लाई गई थी। श्रृंखला का पहला टी20आई मैच भी बांग्लादेश द्वारा खेला जाने वाला 100 वां टी20आई था। अपनी आठ विकेट की जीत के साथ, वे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में अपना 100वां मैच जीतने वाली ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान के बाद तीसरी टीम बन गईं। जिम्बाब्वे ने दूसरा टी20आई मैच 23 रनों से जीतकर श्रृंखला को एक मैच खेलने के साथ समतल किया। बांग्लादेश ने तीसरा टी20आई मैच पांच विकेट से जीतकर श्रृंखला 2-1 से जीत ली। दस्ते बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड (बीसीबी) द्वारा दौरे के लिए टीम घोषित किए जाने के तीन दिन बाद महमूदुल्लाह को बांग्लादेश की टेस्ट टीम में शामिल किया गया। शुरुआत में चोट के कारण गेंदबाजी नहीं कर पाने के कारण महमूदुल्लाह को टेस्ट टीम में शामिल नहीं किया गया था। शुरू में टी20आई मैचों से बाहर होने के बाद, बांग्लादेश के मुशफिकुर रहीम ने खुद को जुड़नार के लिए उपलब्ध कराया। हालाँकि, बाद में उन्होंने पारिवारिक कारणों से वनडे और टी20आई टीम से नाम वापस ले लिया। तमीम इकबाल घुटने की चोट के कारण बांग्लादेश की टी20आई टीम से बाहर हो गए थे। शॉन विलियम्स को शुरू में एकमात्र टेस्ट के लिए जिम्बाब्वे के कप्तान के रूप में नामित किया गया था। हालाँकि, विलियम्स और क्रेग एर्विन दोनों को एक ऐसे व्यक्ति के निकट संपर्क में रहने के बाद आत्म-अलगाव में जाना पड़ा, जो कोविड-19 पॉजिटिव था। नतीजतन, ब्रेंडन टेलर को मैच के लिए जिम्बाब्वे के कप्तान के रूप में नामित किया गया था। टेलर को जिम्बाब्वे की एकदिवसीय टीम के कप्तान के रूप में भी नामित किया गया था, जिसमें विलियम्स और एर्विन अलग-थलग रहे। सिकंदर रजा को मैचों के लिए जिम्बाब्वे के कप्तान के रूप में नामित करने के साथ ब्रेंडन टेलर को टी20आई जुड़नार के लिए आराम दिया गया था। वार्म-अप मैच केवल टेस्ट वनडे सीरीज पहला वनडे दूसरा वनडे तीसरा वनडे टी20आई सीरीज पहला टी20आई दूसरा टी20आई तीसरा टी20आई सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ ईएसपीएन क्रिकइन्फो पर सीरीज होम 2021 में बांग्लादेशी क्रिकेट 2021 में ज़िम्बाब्वे क्रिकेट २०२१ में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट प्रतियोगिताएं बांग्लादेश क्रिकेट टीम का जिम्बाब्वे दौरा
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B8%20%E0%A4%8F%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%8F%E0%A4%B6%E0%A4%A8%20%E0%A4%91%E0%A4%AB%20%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया
रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (RAI) एक भारतीय रिटेल ट्रेड एसोसिएशन है। नॉट-फॉर-प्रॉफिट संगठन, यह भारतीय खुदरा विक्रेताओं के अधिकारों का प्रतिनिधित्व करता है। इसके सदस्यों में पूरे भारत में चेन स्टोर रिटेलर्स, स्वतंत्र रिटेलर्स, ई-कॉमर्स रिटेलर्स और रिटेल सर्विस प्रोवाइडर शामिल हैं। आरएआई खुदरा वकालत, सम्मेलनों के आयोजन, ज्ञान-साझा पहल और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ शामिल है। जुड़ाव RAI फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल रिटेल एसोसिएशंस (FIRA), नेशनल रिटेल फेडरेशन, US का एक सदस्य है, जो ज्ञान और अंतरराष्ट्रीय मानकों के आदान-प्रदान और भारतीय खुदरा क्षेत्र में सर्वोत्तम व्यवहार के हस्तांतरण में सक्षम बनाता है। RAI, रिटेलर्स एंड रिटेल एसोसिएट्स ऑफ इंडिया (TRRAIN) के साथ उद्योग को जोड़ने और 12 दिसंबर को रिटेल कर्मचारी दिवस मनाने के लिए ट्रस्ट के साथ काम करता है। संदर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%AE%20%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%93%E0%A4%82%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%9A%E0%A5%80
ग्रैंड स्लैम टेनिस विजेताओं की सूची
List of Men's Singles Grand Slam tournaments tennis champions: वर्ष के क्रम में विजेता ग्रैंड स्लैम दशक के हिसाब से Total Grand Slams won <table><tr> Total Grand Slams won (Open Era) 14: पीट सेमप्रास 11: ब्योन बोर्ग, रॉजर फ़ेडरर 8: आन्द्रे अगासी, जिमी कोनर्स, इवान लेंडल 7: जॉन मेकनरो, मैट्स विलेंडर 6: बोरिस बेकर, स्टीफन एडबर्ग 5: रॉड लेवर, जॉन न्यूकॉम्ब 4: केन रोसेवाल, गुलिरमो विलास, जिम कोरियर 3: आर्थर ऐश, गुस्तावो कुर्तेन, Jan कोड्स, रफाएल नदाल 2: स्टैन स्मिथ, Lleyton Hewitt, मराट साफिन, पैट्रिक रैफ्टर, इली नास्तासे, येवगेनी केफेलनिकोव, Johan Kriek, सर्गेई ब्रुगुएरा 1: Goran इवानिसेविक, एंडी रॉडिक, रिचर्ड क्राजिचेक, माइकल स्टिच, पैट कैश, Manuel Orantes, Gastón Gaudio, हुआन कार्लोस फरेरो, अल्बर्ट कोस्टा, कार्लोस मोया, थॉमस मस्टर, आंद्रेज़ गोमेज़, माइकल चाँग, यानिक नोहा, एद्रियानो पनाटा, आंद्रेज़ गिमेनो, थॉमस जोहानसन, Petr कोर्दा, Brian Teacher, Roscoe Tanner, Mark Edmondson, Vitas Gerulaitis Bold: वर्तमान खिलाड़ी Grand Slams by country (Open Era) Trivia Winners of the Grand Slam: डॉन बज़ (1938) रॉड लेवर (1962 & 1969)Winners of 3 consecutive Grand Slam titles: जैक क्रॉफर्ड (1933) टोनी ट्रैबर्ट (1955) लियू होड (1956) रॉय इमरसन (1964-65) पीट सेमप्रास (1993-94) रॉजर फ़ेडरर (2005-06, 2006-07) Winners of 4 or more titles at one Grand Slam tournament: विलियम रेनशॉ - विम्बलडन (7) रिचर्ड सीअर्स - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता (7) बिल टिल्डेन - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता (7) हेनरी कोचे - Roland Garros (4) रॉय इमरसन - ऑस्ट्रेलियाई Championships (6) लॉरी डोहर्टी - विम्बलडन (5) जैक क्रॉफर्ड - ऑस्ट्रेलियाई Championships (4) रॉड लेवर - विम्बलडन (4, 2 in the Open Era) Open Era ब्योन बोर्ग - Roland Garros (6) & विम्बलडन (5) जिमी कोनर्स - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता (5) जॉन मेकनरो - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता (4) पीट सेमप्रास - विम्बलडन (7) & U.S. (5) आन्द्रे अगासी - ऑस्ट्रेलियाई Open (4) रॉजर फ़ेडरर - विम्बलडन (5) Winners of 3 or more consecutive titles at one Grand Slam tournament: रिचर्ड सीअर्स - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता 7 (1881-87) विलियम रेनशॉ - विम्बलडन 6 (1881-86) बिल टिल्डेन - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता 6 (1920-25) लॉरी डोहर्टी - विम्बलडन 5 (1902-06) विलियम लार्न्ड - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता 5 (1907-11) ब्योन बोर्ग - विम्बलडन 5 (1976-80) रॉजर फ़ेडरर - विम्बलडन 5 (2003-07) रॉजर फ़ेडरर - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता 4 (2004-07) Reginald Doherty - विम्बलडन 4 (1897-1900) Tony Wilding - विम्बलडन 4 (1910-13) ब्योन बोर्ग - Roland Garros 4 (1978-81) रॉय इमरसन - ऑस्ट्रेलियाई Championships 4 (1963-67) पीट सेमप्रास - विम्बलडन 3 (1993-95) & विम्बलडन 4 (1997-2000) Oliver Campbell - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता 3 (1890-92) मैल्कम विटमैन - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता 3 (1898-00) जैक क्रॉफर्ड - ऑस्ट्रेलियाई Championships 3 (1931-33) फ्रैड पैरी - विम्बलडन 3 (1934-36) जॉन मेकनरो - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता 3 (1979-81) इवान लेंडल - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता 3 (1985-87) रफाएल नदाल - Roland Garros 3 (2005-07) Open Era ब्योन बोर्ग - विम्बलडन 5 (1976-80) & Roland Garros 4 (1978-81) पीट सेमप्रास - विम्बलडन 3 (1993-95) & विम्बलडन 4 (1997-2000) रॉजर फ़ेडरर - विम्बलडन 5 (2003-07) & अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता 3 (2004-06) जॉन मेकनरो - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता 3 (1979-81) इवान लेंडल - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता 3 (1985-87) रफाएल नदाल - Roland Garros 3 (2005-07) Trebles ऑस्ट्रेलियाई Championships/Open - Roland Garros - विम्बलडन treble: (1933) जैक क्रॉफर्ड (1938) डॉन बज़ (1956) लियू होड (1962) रॉड लेवर (1969) रॉड लेवर (2) ऑस्ट्रेलियाई Championships/Open - Roland Garros - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता/Open treble: (1938) डॉन बज़ (1962) रॉड लेवर (1969) रॉड लेवर (2) (1988) मैट्स विलेंडर ऑस्ट्रेलियाई Championships/Open - विम्बलडन - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता/Open treble: (1934) फ्रैड पैरी (1938) डॉन बज़ (1958) ऐशली कूपर (1962) रॉड लेवर (1964) रॉय इमरसन (1969) रॉड लेवर (2) (1974) जिमी कोनर्स (2004) रॉजर फ़ेडरर (2006) रॉजर फ़ेडरर (2) Roland Garros - विम्बलडन - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता/Open treble: (1938) डॉन बज़ (1955) टोनी ट्रैबर्ट (1962) रॉड लेवर (1969) रॉड लेवर (2) Doubles ऑस्ट्रेलियाई Championships/Open - Roland Garros double: (1933) जैक क्रॉफर्ड (1938) डॉन बज़ (1953) केन रोसेवाल (1956) लियू होड (1962) रॉड लेवर (1963) रॉय इमरसन (1967) रॉय इमरसन (2) (1969) रॉड लेवर (2) (1988) मैट्स विलेंडर (1992) जिम कोरियर ऑस्ट्रेलियाई Championships/Open - विम्बलडन double: (1933) जैक क्रॉफर्ड (1934) फ्रैड पैरी (1938) डॉन बज़ (1951) Dick Savitt (1956) लियू होड (1958) ऐशली कूपर (1959) एलेक्स ओलमिडो (1962) रॉड लेवर (1964) रॉय इमरसन (1965) रॉय इमरसन (2) (1969) रॉड लेवर (2) (1974) जिमी कोनर्स (1994) पीट सेमप्रास (1997) पीट सेमप्रास (2) (2004) रॉजर फ़ेडरर (2006) रॉजर फ़ेडरर (2) (2007) रॉजर फ़ेडरर (3) ऑस्ट्रेलियाई Championships/Open - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता/Open double: (1934) फ्रैड पैरी (1938) डॉन बज़ (1958) ऐशली कूपर (1961) रॉय इमरसन (1962) रॉड लेवर (1964) रॉय इमरसन (2) (1969) रॉड लेवर (2) (1973) जॉन न्यूकॉम्ब (1974) जिमी कोनर्स (1988) मैट्स विलेंडर (2004) रॉजर फ़ेडरर (2006) रॉजर फ़ेडरर (2) Roland Garros - विम्बलडन double: (1925) रेने लेकोस्ते (1933) जैक क्रॉफर्ड (1935) फ्रैड पैरी (1938) डॉन बज़ (1950) बज़ पैटी (1955) टोनी ट्रैबर्ट (1956) लियू होड (1962) रॉड लेवर (1969) रॉड लेवर (2) (1978) ब्योन बोर्ग (1979) ब्योन बोर्ग (2) (1980) ब्योन बोर्ग (3) Roland Garros - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता/Open double: (1927) रेने लेकोस्ते (1928) हेनरी कोचे (1938) डॉन बज़ (1955) टोनी ट्रैबर्ट (1962) रॉड लेवर (1969) रॉड लेवर (2) (1977) गुलिरमो विलास (1986) इवान लेंडल (1987) इवान लेंडल (2) (1988) मैट्स विलेंडर (1999) आन्द्रे अगासी विम्बलडन - अमेरिकी ओपन प्रतियोगिता/Open double: (1903) लॉरी डोहर्टी (1920) बिल टिल्डेन (1921) बिल टिल्डेन (2) (1932) एल्सवर्थ वाइन्स (1934) फ्रैड पैरी (1936) फ्रैड पैरी (2) (1937) डॉन बज़ (1938) डॉन बज़ (2) (1939) बॉबी रिग्स (1947) जैक क्रेमर (1952) फ्रैंक सैजमैन (1955) टोनी ट्रैबर्ट (1958) ऐशली कूपर (1960) नील फ्रेसर (1962) रॉड लेवर (1964) रॉय इमरसन (1967) जॉन न्यूकॉम्ब (1969) रॉड लेवर (2) (1974) जिमी कोनर्स (1981) जॉन मेकनरो (1982) जिमी कोनर्स (2) (1984) जॉन मेकनरो (2) (1989) बोरिस बेकर (1993) पीट सेमप्रास (1995) पीट सेमप्रास (2) (2004) रॉजर फ़ेडरर (2005) रॉजर फ़ेडरर (2) (2006) रॉजर फ़ेडरर (3) See also Chronological list of men's major tennis champions Male tennis players with most singles major championship wins List of Grand Slam Women's Singles champions List of Grand Slam Men's Doubles champions List of Grand Slam Women's Doubles champions List of Grand Slam Mixed Doubles champions Tennis statistics ग्रैंड स्लैम टेनिस प्रतियोगिता Grand Slam Men's Singles champions
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BE%20%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%88%E0%A4%B8%20%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE
अल्फ़ा ग्रुईस तारा
अल्फ़ा ग्रुईस, जिसके बायर नामांकन में भी यही नाम (α Gru या α Gruis) दर्ज है, आकाश में सारस तारामंडल में स्थित एक उपदानव तारा है। यह पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से ३२वाँ सब से रोशन तारा है। अल्फ़ा ग्रुईस हमसे १०१ प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है और पृथ्वी से इसका औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) १.७४ है। अन्य भाषाओं में अल्फ़ा ग्रुईस को अंग्रेज़ी में "ऑलनेअर" (Alnair) भी कहा जाता है। यह अरबी भाषा के "अन-नाईर" () से लिया गया है जिसका अर्थ "रोशन वाला" है। वर्णन अल्फ़ा ग्रुईस एक B7 IV श्रेणी का उपदानव तारा है। इसकी निहित चमक (निरपेक्ष कान्तिमान) सूरज की ३८० गुना है और व्यास हमारे सूरज के व्यास का ३.६ गुना है। इसका सतही तापमान १३,५०० कैल्विन अनुमानित किया गया है। इन्हें भी देखें उपदानव तारा सारस तारामंडल सन्दर्भ तारे उपदानव तारे सारस तारामंडल हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%97%E0%A4%BE%20%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%AA%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B8
आगा खान पैलेस
आगा खान पैलेस पुणे के येरावाड़ा में स्थित एक एतिहासिक भवन है। इसे सुल्तान मुहम्मद शाह आगा खान द्वितीय ने १८९२ में बनवाया था। इस भवन में महात्मा गाँधी को उनके अन्य सहयोगीयो से साथ सन १९४२ में बंदी बना कर रखा गया था। कस्तूरबा गांधी का निधन इसी भवन में हुआ था। उनकी समाधि भी यहां पर स्थित है। अब यह भवन एक संग्राहलय है। यह स्मारक ६.५ हेक्टेयर में फैलीहुई है। १८९२ में शाह आगा खां तृतीय ने इसे बनवाया था। १९५६ तक यह भवन उनका महल रहा। १९६९ में, आगा खां चतुर्थ ने इसे भारत सरकार को दान दे दिया था। महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी और महात्मा जी के सचिव महादेवभाई देसाई 2 साल तक यहां रहे और इसी प्रवास के दौरान उनकी मृत्यु हुई थी। उनकी अस्थियां स्मारक के बागीचे में रखी गई हैं। गांधी जी के जीवन पर एक फोटो-प्रदर्शनी और उनकी व्यक्तिगत उपयोग की वस्तुएं जैसे उनकी चप्पलें और चश्मे यहां रखे गए हैं। सन्दर्भ पुणे
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%B2%E0%A4%9F%E0%A5%87%20%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8
उलटे हनुमान
उलटे हनुमान। भगवान हनुमान के एक विशेष मंदिर तक जो साँवेर नामक स्थान पर स्थित है। इस मंदिर की खासियत यह है कि इसमें हनुमानजी की उलटी मूर्ति स्थापित है। और इसी वजह से यह मंदिर उलटे हनुमान के नाम से मालवा क्षेत्र में प्रसिद्ध है। स्थिति ऐतिहासिक धार्मिक नगरी उज्जैन से मात्र 30 किमी की दूरी पर स्थित इस मंदिर को यहाँ के निवासी रामायणकालीन बताते हैं। मंदिर में हनुमानजी की उलटे चेहरे वाली सिंदूर लगी मूर्ति है। कथा यहाँ के लोग एक पौराणिक कथा का जिक्र करते हुए कहते हैं कि जब अहिरावण और महिरावण भगवान श्रीराम व लक्ष्मण का अपहरण कर पाताल लोक ले गए थे साँवेर के उलटे हनुमान मंदिर में श्रीराम, सीता, लक्ष्मणजी, शिव-पार्वती की मूर्तियाँ हैं। मंगलवार को हनुमानजी को चौला भी चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि तीन मंगलवार, पाँच मंगलवार यहाँ दर्शन करने से जीवन में आई कठिन से कठिन विपदा दूर हो जाती है। कहते हैं भक्ति में तर्क के बजाय आस्था का महत्त्व अधिक होता है। यहाँ प्रतिष्ठित मूर्ति अत्यन्त चमत्कारी मानी जाती है। यहाँ कई संतों की समाधियाँ हैं। सन् 1200 तक का इतिहास यहाँ मिलता है। निकटवर्ती उलटे हनुमान मंदिर परिसर में पीपल, नीम, पारिजात, तुलसी, बरगद के पेड़ हैं। यहाँ वर्षों पुराने दो पारिजात के वृक्ष हैं। पुराणों के अनुसार पारिजात वृक्ष में हनुमानजी का भी वास रहता है। मंदिर के आसपास के वृक्षों पर तोतों के कई झुंड हैं। इस बारे में एक दंतकथा भी प्रचलित है। तोता ब्राह्मण का अवतार माना जाता है। हनुमानजी ने भी तुलसीदासजी के लिए तोते का रूप धारण कर उन्हें भी श्रीराम के दर्शन कराए थे। साँवेर के उलटे हनुमान मंदिर में श्रीराम, सीता, लक्ष्मणजी, शिव-पार्वती की मूर्तियाँ हैं। मंगलवार को हनुमानजी को चौला भी चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि तीन मंगलवार, पाँच मंगलवार यहाँ दर्शन करने से जीवन में आई कठिन से कठिन विपदा दूर हो जाती है। यही आस्था श्रद्धालुओं को यहाँ तक खींच कर ले आती है। चित्र दीर्घा गम्यता सड़क मार्ग: उज्जैन (30 किमी), इंदौर (30 किमी) से यहाँ आने-जाने के ‍लिए बस तथा टैक्सी उपलब्ध है। हवाई मार्ग: निकटतम एयरपोर्ट इंदौर 30 किमी दूरी पर स्थित। हनुमान मंदिर मध्य प्रदेश के तीर्थ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%AE%E0%A4%A8%20%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%B2
साइमन डोल
साइमन ब्लेयर डोल (जन्म 6 अगस्त 1969) न्यूजीलैंड के एक रेडियो व्यक्तित्व, कमेंटेटर और पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर हैं। वह दाएं हाथ के मध्यम तेज गेंदबाज थे, जो दाएं हाथ से दूर गेंदबाजी करने में सक्षम थे, साइमन डोल चोटों से त्रस्त थे जिसके परिणामस्वरूप उनका अंतरराष्ट्रीय करियर छोटा हो गया था। न्यूजीलैंड की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के लिए खेलते हुए, उन्होंने केवल 32 टेस्ट और 42 एकदिवसीय मैचों में क्रमशः 98 और 36 विकेट लिए। डोल का सबसे अच्छा समय तब आया जब उन्होंने 1998 में बॉक्सिंग डे वेलिंगटन टेस्ट में भारत के खिलाफ 7-65 रन बनाए। उन्होंने कमेंट्री और प्रसारण की ओर रुख करने से पहले मार्च 2000 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना आखिरी टेस्ट खेला। वह लिंकन डोल के छोटे भाई हैं, जो 1990 के दशक की शुरुआत में वेलिंगटन के लिए खेले थे। डोल ने 1998 में वेलिंगटन में बेसिन रिजर्व में भारत के खिलाफ बॉक्सिंग डे टेस्ट में 65 रन देकर 7 विकेट लेकर अपने करियर की सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी की। उस प्रदर्शन के कारण, वह 26 दिसंबर 1998 को आईसीसी प्लेयर रैंकिंग में करियर की उच्च रैंकिंग 6 पर पहुंच गए। डोल को अपने पूरे करियर में लगातार चोटें लगीं, जिसमें कई पीठ की समस्याएं और न्यूजीलैंड के 1999 के इंग्लैंड दौरे के दौरान घुटने की चोट के कारण घुटने की चोट शामिल थी। क्रिकेट के बाद वर्तमान में, डोल न्यूजीलैंड के मैजिक टॉक के लिए एक क्रिकेट कमेंटेटर के रूप में काम करता है। कुछ समय पहले तक वह रेडियो स्टेशन द रॉक पर मॉर्निंग रंबल टीम का हिस्सा थे। वह 2008 में शुरू से ही इंडियन प्रीमियर लीग के लिए कमेंट्री टीम का हिस्सा रहे हैं। सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%A8%20%E0%A4%93%E0%A4%B2%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97
शीतकालीन ओलंपिक में कर्लिंग
कर्लिंग 1924 में चेमोनिक्स में उद्घाटन शीतकालीन ओलंपिक खेलों के कार्यक्रम में शामिल किया गया था। 2006 तक अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने उस प्रतियोगिता के परिणामों को आधिकारिक नहीं माना था कर्लिंग 1932 के खेलों में एक प्रदर्शन खेल था, और फिर 1988 और 1992 में एक लंबी अनुपस्थिति के बाद। खेल को अंततः 1998 के नागानो गेम्स के आधिकारिक कार्यक्रम में जोड़ा गया। 1936 और 1964 में हिम स्टॉक स्पोर्ट्स (जर्मन में ईस्टस्टॉक्सिचिन) का प्रदर्शन किया गया था। इन घटनाओं को कर्लिंग के अतिरिक्त प्रदर्शन नहीं माना जाता है। दो घटनाएं लड़ी हुई हैं, पुरुषों और महिलाओं की। एक तीसरा, मिश्रित डबल्स, 2010 शीतकालीन ओलंपिक में शामिल करने के लिए माना जाता था। हालांकि, इसे अस्वीकार कर दिया गया था क्योंकि ओलंपिक कार्यक्रम आयोग ने महसूस किया कि यह पर्याप्त रूप से विकसित नहीं हुआ है। जून 2015 में आईओसी कार्यकारी बोर्ड की बैठक के बाद मिश्रित डबल्स को 2018 के शीतकालीन ओलंपिक में शामिल करने के लिए मंजूरी दी गई थी। भाग लेने वाले देशों प्रत्येक टूर्नामेंट में प्रत्येक टीम के लिए अंतिम प्लेसमेंट निम्न तालिकाओं में दिखाया गया है। पदक तालिका 2014 शीतकालीन ओलंपिक के रूप में जीता कर्लिंग मेडल में स्थिति। पदक सारांश पुरुष महिलाओं मिश्रित डबल सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B8%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B8%20%281978%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29
देस परदेस (1978 फ़िल्म)
देस परदेस(अंग्रेजी: Home and Foreign Land) 1978 में देव आनंद द्वारा निर्मित व निर्देशित हिन्दी फिल्म है| इस पारिवारिक कथा के मुख्य पात्र देव आनंद व टीना मुनीम ने निभाए है| टीना मुनीम की यह पहली फिल्म है| इनके सहायक कलाकार है अजीत, प्राण, अमज़द खान, श्रीराम लागू, टॉम एल्टर, बिन्दू, प्रेम चोपड़ा, ए के हंगल, सुजीत कुमार, महमूद व पेंटल और संगीतकार राजेश रोशन है| इस कथा में कुछ समकालीन लोगों में विदेश जाए धन कमाने की इच्छा और दलालों द्वारा भोले लोगों का छल से वहाँ लिए जाए सताना दिखाया गया है| संक्षेप समीर साहनी (प्राण) नामक किसान अपने पिता (गजानन जागीरदार), माँ, पत्नी रमा (इन्द्रानी मुखर्जी), कन्या व छोटे भाई वीर (देव आनंद) के साथ रहता है| समीर को इंग्लैण्ड में काम करने का प्रस्ताव आता है जिसे अपनाए वह चला जाता है| कुछ समय बाद वह सभी को वहीँ लिए जाना चाहता है| समीर पत्र द्वारा अपने परिवार से सम्पर्क रखता है| कुछ वर्ष बाद अचानक उसका पत्र आना बंद होता है| उसका परिवार चिंतित हुए वीर को उसका पता लगाने इंग्लैण्ड भेजता है| वहां जाए वह कई हज़ारों भारतीय बदतर जिंदगी जीना देखता है, जैसे उनका नकली पासपोर्ट, कम वेतन पर काम करना, उसका आधा हिस्सा वहां के दलालों को देना जो उन्हें धोखे से वहां लाए है, निर्वासन का भय इत्यादि| उसे अपने भाई का पता नहीं चलता और बईमानी व हत्याओं का जंजाल पाता है| अपने भाई का पता लगाने में कहाँ तक सफल होता है, आगे की कहानी में दिखाया गया है| चरित्र मुख्य कलाकार देव आनंद - वीर साहनी प्राण - समीर साहनी गजानन जागीरदार - मि. साहनी इन्द्रानी मुखर्जी - रमा साहनी अजीत - गुरनाम टॉम एल्टर - इंस्पेक्टर मार्टिन बिंदू - सिल्विया प्रेम चोपड़ा - बंसीलाल ए के हंगल - पुजारी जानकी दास - दयाल भारत कपूर - मुरारीलाल अमज़द खान - भूत सिंह/अवतार सिंह सुजीत कुमार - गंगाराम श्रीराम लागू - मि. बांड महमूद - अनवर टीना - गौरी कीथ स्टीवेंसन - ए टुपर बीरबल - उद्घोषक सुधीर - कश्यप पेंटल गूफी पेंटल शरत सक्सेना शेखर वधावन मृदुला परवेज़ मल्लिक प्रेम सागर राज मेहरा गुर्जिंदर वर्क सय्यद लेन युसूफ खान दल निर्देशक - देव आनंद लेखक - देव आनंद, सूरज सनिम निर्माता - देव आनंद, अमित खन्ना निर्माण संस्था - नवकेतन इंटरनैशनल फिल्म्स, नवकेतन छायांकन - फाली मिस्त्री, डी के प्रभाकर संगीतकार - राजेश रोशन गीतकार - अमित खन्ना पार्श्वगायक - विजय बेनेडिक्ट, अमित कुमार, किशोर कुमार, लता मंगेशकर, मनहर उधास संगीत गीत "तू पी और जी" बिनाका गीत माला की 1978 वार्षिक सूची में 9वीं पायदान पर रही| गीत "आप कहें और हम न आए" बिनाका गीत माला की 1978 वार्षिक सूची में 13वीं पायदान पर रही| गीत "जैसा देस वैसा भेस" बिनाका गीत माला की 1978 वार्षिक सूची में 22वीं पायदान पर रही| रोचक तथ्य परिणाम बौक्स ऑफिस समीक्षाएँ नामांकन और पुरस्कार उल्लेख बाहरी कड़ियाँ बॉलीवुड 1978 में बनी हिन्दी फ़िल्म भारतीय फ़िल्में हिन्दी फ़िल्में
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सामर्थ्य और सीमा
सामर्थ्य और सीमा सुप्रसि़द्घ कथाकार भगवती चरण वर्मा का बहुचर्चित उपन्यास है। इसमें अपने सामर्थ्य की अनुभूति से पूर्ण कुछ ऐसे विशिष्ट व्यक्तियों की कहानी है जिन्हें परिस्थितियाँ एक स्थान पर एकत्रित कर देती है। हर व्यक्ति अपनी महत्ता, अपनी शक्ति और सामर्थ्य से सुपरिचित था – हरेक को अपने पर अटूट विश्वास था; लेकिन परोझ की शक्तियों को कौन जानता था जो उनके इस दर्प को चकनाचूर करने को तैयार हो रही थी। इस उपन्यास में आज के महान सघंर्ष से युक्त जीवन का सशक्त और रोचक चित्रण हुआ है। इसके द्वारा कथाकार ने जहाँ मानवीय प्रयत्नों की गरिमा को पूरी कलात्मकता से उजागर किया है, वही यह भी सिद्घ किया है कि मनुष्य नियति और प्रकति के हाथों महज एक खिलौना है। वह समर्थ है, प्रबुद्घ और ज्ञानी भी है, लेकिन उसके सारे सामर्थ्य और ज्ञान की एक सीमा है, जिससे वह अनजान बना रहता है। वैसे तुम चेतन हो, तुम प्रबुद्घ ज्ञानी हो, तुम समर्थ, तुम कर्ता, अतिशय अभिमानी हो, लेकिन अचरज इतना तुम कितने भोले हो, ऊपर से ठोस दिखो, अन्दर से पोले हो, बनकर मिट जाने की एक तुम कहानी हो ! भगवती बाबू के इस उपन्यास में मनुष्य की इसी सीमा का प्रभावशाली चित्रण है। भगवती चरण वर्मा पुस्तकें
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%B2%20%E0%A4%AC%E0%A5%89%E0%A4%9F%E0%A4%AE
बेल बॉटम
बेल बॉटम एक स्पाय थ्रिलर फिल्म है जिसमें अक्षय कुमार है और रंजीत एम तिवारी द्वारा निर्देशित है। इस फिल्म का निर्माण वाशु भगनानी, जैकी भगनानी, दीपशिखा देशमुख, मोनिशा आडवाणी, मधु भोजवानी और निखिल आडवाणी ने पूजा फिल्म्स और एम्मी एंटरटेनमेंट के साथ मिलकर किया। बेल बॉटम १९८० के दशक में भारत में 1984 इंडियन एयरलाइंस आईसी 421 हाइजैक जैसी वास्तविक जीवन हाइजैक की घटनाओं से प्रेरित है। फिल्म का ट्रेलर 3 अगस्त 2021 को रिलीज किया गया था। यह फिल्म 22 जनवरी, 2021 को रिलीज़ के लिए तैयार है। कहानी फिल्म की कहानी 24 अगस्त 1984 को दिल्ली से उड़ान भरने वाली इंडियन एयरलाइंस की उड़ान IC 691 के अपहरण के इर्द-गिर्द घूमती है। पिछले सात वर्षों में यह पांचवां इंडियन एयरलाइंस का विमान अपहरण था और तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी (लारा दत्ता) इस अपहरण से नाराज है। जबकि प्रधान मंत्री गांधी ने पाकिस्तानी सरकार को चार अपहर्ताओं (जब विमान लाहौर में उतरा है) के साथ बातचीत करने की योजना बनाई है, अंडर-कवर रॉ एजेंट अंशुल मल्होत्रा (अक्षय कुमार), कोड-नाम बेल बॉटम, की एक अलग योजना है। उसका दिमाग। वह न केवल 210 यात्रियों को छुड़ाना चाहता है बल्कि अपहर्ताओं को भी गिरफ्तार करना चाहता है। बाकी की कहानी दुबई में IC 691 के यात्रियों को बचाने के इस गुप्त मिशन के इर्द-गिर्द घूमती है। किरदार अक्षय कुमार वाणी कपूर हुमा कुरैशी लारा दत्ता - इन्दिरा गांधी डेन्ज़िल स्मिथ अनिरुद्ध दवे आदिल हुसैन थलाइवाजल विजय मामिक सिंह – आशु मल्होत्रा समीक्षा द हिंदुस्तान टाइम्स की मोनिका रावल कुकरेजा ने इस फिल्म की सराहना की, जो एक बेहतरीन थ्रिलर थी। विवाद फिल्म को तीन खाड़ी देशों, सऊदी अरब, कुवैत और कतर में प्रतिबंधित कर दिया गया था। फिल्म प्रमाणन अधिकारियों ने ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ के आधार पर इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह बताया गया था कि 1984 की घटना में वास्तव में संयुक्त अरब अमीरात के रक्षा मंत्री शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम और संयुक्त अरब अमीरात के अधिकारियों ने अपहर्ताओं को पकड़ लिया था, जबकि फिल्म ने कुमार के चरित्र और उनकी टीम को मिशन के वास्तविक नायकों के रूप में चित्रित किया था। बॉक्स ऑफ़िस बेल बॉटम ने भारत में पहले हफ्ते में करीब 18.75 करोड़ रुपये की कमाई की। इसने अपने दूसरे वीकेंड में करीब 4.25 करोड़ रुपये की कमाई की। इन्हें भी देखें नीरजा (फ़िल्म) इण्डियन एयरलाइंस फ्लाइट ८१४ संदर्भ बाहरी कड़ियाँ भारतीय फ़िल्में हिन्दी फ़िल्में हिन्दी फ़िल्में वर्णक्रमानुसार सत्य घटना पर आधारित फिल्में
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राजेन्द्र शाह
राजेन्द्र केशवलाल शाह (; २८ जनवरी १९१३, कपाड़वनज, भारत - २ जनवरी २०१०) एक गुजराती भाषा के साहित्यकार थे। उन्होंने गुजराती में २० से अधिक काव्य और गीतों के संकलन रचे हैं, ज़्यादातर प्रकृति की सुंदरता और जनजाति और मछुआरों की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के विषयों पर। संस्कृत छंदों में रची उनकी कविताओं पर रविन्द्रनाथ टगोर की कृतियों का गहरा असर रहा है। उनके अनेक पेशों में उन्होंने बम्बई में प्रिंटिंग प्रेस भी चलाया है, जहाँ से उन्होंने कविलोक नाम की कविता पत्रिका छापी। हर रविवार सुबह उनके प्रेस में कवि आया करते थे, जो अपने आप में एक अहम प्रथा बन गयी। काव्यों के अलावा शाह ने गुजराती में कई अनुवाद भी किए हैं, जिनमें से कुछ : टगोर का कविता संकलन बलाक, जयदेव रचित गीतगोविन्द, अंग्रेज़ी कवि कॉलरिज की द राइम ऑफ़ द एन्शियंट मेरिनर और इटली के दांते की प्रसिद्ध कृति डिवाइन कॉमेडी हैं। शाह को वर्ष २००१ के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। निर्णायकों का कहना था, "इनके जज़बातों की तीव्रता और इनके काव्यों के रूप और अभिव्यक्ति में नयापन इन्हें एक ख़ास और मह्त्वपूर्ण कवि बतलाता है। इनकी कविता की आद्यात्मिकता कबीर और नरसी मेहता जैसे मध्यकालीन महान कवियों की परम्परा में है।" सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ एक भेंटवार्ता, शाह के साथ २०१० में निधन साहित्यकार ज्ञानपीठ सम्मानित साहित्य अकादमी फ़ैलोशिप से सम्मानित 1913 में जन्मे लोग गुजरात के लोग
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बेगूसराय (धारावाहिक)
बेगूसराय एक भारतीय हिन्दी धारावाहिक है, जिसका प्रसारण एंड टीवी पर 2 मार्च 2015 से सोमवार से शुक्रवार रात 10 बजे होता है। कहानी यह काल्पनिक कहानी बेगूसराय नामक एक स्थान की है, जहाँ फूलन ठाकुर और उसका परिवार रहता है। पूनम और प्रियोम एक दूसरे से प्यार करते रहते हैं, लेकिन प्रियोम के पिता लाखन से पूनम की शादी करा देते हैं। इसके बाद प्रियोम क्रोध में पैसे का लालच दे कर बिंदिया से शादी करने का नाटक करता है। बाद में प्रियोम की मौत हो जाती है। कलाकार बड़ी दादी सरताज गिल - प्रियोम ठाकुर शिवांगी जोशी - पूनम श्वेता तिवारी - बिंदिया विशाल आदित्य सिंह - लाखन फूलन ठाकुर नरेन्द्र झा - फूलन ठाकुर अरु वर्मा - राजकुमार फूलन ठाकुर दर्शन दवे - मिथिलेश फूलन ठाकुर वैष्णवी धनराज - माया मिथिलेश ठाकुर धीरज मिगलनी - घुँघरू माधवी गोखते सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक जालस्थल
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हंगरी के राष्ट्रपति
हंगरी गणराज्य के राष्ट्रपति [टिप्पणी 1] ( हंगरी : Magyarország köztársasági elnöke , államelnök , या államfő ) है राज्य के सिर के हंगरी । कार्यालय एक मुख्यतः औपचारिक (है कल्पित सरदार ) भूमिका, लेकिन यह भी हो सकता है वीटो कानून या के लिए भेजें कानून संवैधानिक न्यायालय की समीक्षा के लिए। अधिकांश अन्य कार्यकारी शक्तियां, जैसे कि सरकार के मंत्रियों का चयन करना और विधायी पहल करना, इसके बजाय प्रधान मंत्री के कार्यालय में निहित हैं । गणतंत्र के वर्तमान राष्ट्रपति जानोस whoडर हैं , जिन्होंने 10 मई 2012 को पदभार संभाला था।
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