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जोनाथन गर्थ (क्रिकेटर, जन्म 2000)
जोनाथन जेम्स गर्थ (जन्म 19 दिसंबर 2000) एक आयरिश क्रिकेटर हैं। गार्थ एक क्रिकेटिंग परिवार से हैं, जिसमें उनके पिता जोनाथन, मां ऐनी-मैरी मैकडोनाल्ड और उनकी बहन किम सभी एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयरलैंड का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने 1 अगस्त 2018 को बांग्लादेश ए के खिलाफ आयरलैंड ए के लिए अपनी लिस्ट ए की शुरुआत की। अपनी लिस्ट ए की शुरुआत से पहले, उन्हें 2018 अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप के लिए आयरलैंड के टीम में नामित किया गया था। उन्होंने 5 जनवरी 2019 को श्रीलंका ए के खिलाफ आयरलैंड ए के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पदार्पण किया। उन्होंने 22 जून 2019 को इंटर-प्रांतीय ट्रॉफी 2018 में मुंस्टर रेड्स के लिए अपना ट्वेंटी 20 डेब्यू किया। 10 जुलाई 2020 को, इंग्लैंड क्रिकेट टीम के खिलाफ वनडे इंटरनेशनल (वनडे) श्रृंखला के लिए बंद दरवाजों के पीछे प्रशिक्षण शुरू करने के लिए इंग्लैंड की यात्रा के लिए गर्थ को आयरलैंड के 21 सदस्यीय दल में नामित किया गया था। प्रशिक्षण दल में शामिल किए जाने के बाद, गर्थ ने कहा कि वह टीम में नामित होने के लिए "आश्चर्यचकित लेकिन प्रसन्न" था। फरवरी 2021 में, गार्थ को उनके बांग्लादेश दौरे के लिए आयरलैंड वूल्व्स टीम में रखा गया था। उसी महीने के अंत में, गर्थ शापूरजी पलोनजी क्रिकेट आयरलैंड अकादमी के लिए सेवन का हिस्सा था। सन्दर्भ 2000 में जन्मे लोग
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जड़भरत
जड़भरत का प्रकृत नाम 'भरत' है, जो पूर्वजन्म में स्वायंभुव वंशी ऋषभदेव के पुत्र थे। मृग के छौने में तन्मय हो जाने के कारण इनका ज्ञान अवरुद्ध हो गया था और वे जड़वत् हो गए थे जिससे ये जड़भरत कहलाए। जड़भरत की कथा विष्णुपुराण के द्वितीय भाग में और भागवत पुराण के पंचम काण्ड में आती है। इसके अलावा यह जड़भरत की कथा आदिपुराण नामक जैन ग्रन्थ में भी आती है। शालग्राम तीर्थ में तप करते समय इन्होंने सद्य: जात मृगशावक की रक्षा की थी। उस मृगशावक की चिंता करते हुए इनकी मृत्यु हुई थी, जिसके कारण दूसरे जन्म में जंबूमार्ग तीर्थ में एक "जातिस्मर मृग" के रूप इनका जन्म हुआ था। बाद में पुन: जातिस्मर ब्राह्मण के रूप में इनका जन्म हुआ। आसक्ति के कारण ही जन्मदु:ख होते हैं, ऐसा समझकर ये आसक्तिनाश के लिए जड़वत् रहते थे। इनको सौवीरराज की डोली ढोनी पड़ी थी पर सौवीरराज को इनसे ही आत्मतत्वज्ञान मिला था। परिचय भरत प्राचीन भारत के एक प्रतापी राजा थे। वे भगवान ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे। श्रीमद्भागवत के पंचम स्कन्ध में उनके जीवन एवं अन्य जन्मों का वर्णन आता है। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने संन्यास लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे। श्रीमद्भागवत के पंचम स्कन्ध के सप्तम अध्याय में भरत चरित्र का वर्णन है। कई करोड़ वर्ष धर्मपूर्वक शासन करने के बाद उन्होंने राजपाट पुत्रों को सौंपकर वानप्रस्थ आश्रम ग्रहण किया तथा भगवान की भक्ति में जीवन बिताने लगे। एक बार नदी में बहते मृग को बचाकर वे उसका उपचार करने लगे। धीरे-धीरे उस मृग से उनका मोह हो गया। मृग के मोह में पड़ने के कारण अगले जन्म में उन्होंने मृगयोनि में जन्म लिया।मृगयोनि में जन्म लेने पर भी उन्हें पुराने पुण्यों के कारण अपने पूर्वजन्म का भान था अतः मृगयोनि में रहते हुये भी वे भगवान का ध्यान करते रहे। अगले जन्म में उन्होंने एक ब्राह्मण कुल में जन्म लिया। पुराने जन्मों की याद होने से इस बार वे संसार से पूरी तरह विरक्त रहे। उनकी विरक्ति के कारण लोग उन्हें पागल समझने लगे तथा उनका नाम जड़भरत पड़ गया। जड़भरत के रूप में वे जीवनपर्यन्त भगवान की आराधना करते हुये अन्तः में मोक्ष को प्राप्त हुये। सन्दर्भ जड भरत (संस्कृत) इन्हें भी देखें भारत नाम की उत्पत्ति भरत चक्रवर्ती बाहरी कड़ियाँ विष्णुपुराण में जड़भरत की कथा भागवत में जड़भरत की कथा प्रोफेसर कृष्णमूर्ति द्वारा जड़भरत की कथा स्वामी विवेकानन्द द्वारा जड़भरत की कथा भारतीय संस्कृति भारतीय संस्कृति
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ओम प्रकाश मुंजाल
ओम प्रकाश मुंजाल (26 अगस्त 1928 - 13 अगस्त 2015), हीरो साइकिल के सेवानिवृत्त अध्यक्ष और हीरो ग्रुप के सह-संस्थापक थे। उन्होंने वर्ष 1956 में ‘हीरो ग्रुप’ कंपनी के गठन के साथ ही भारत की पहली साइकिल का निर्माण करने वाली ईकाई की शुरूआत की थी, जो वर्ष 1980 के दौर में दुनिया में सबसे ज्यादा साइकिल की निर्माता कंपनी बन गई। विश्व के सबसे बड़े साइकिल निर्माता के तौर पर वर्ष 1986 में हीरो साइकिल का नाम ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में भी दर्ज हुआ।वे अपने काम के प्रति बेहद ईमानदार थे। वे अपने ग्राहकों को कभी भी निराश नहीं करते थे। एक बार जब उनकी कंपनी के कार्यकर्ता हड़ताल पर थे तो उन्होने खुद ही फैक्ट्री में काम करना शुरू कर दिया। इसे देखते हुए कार्यकर्ताओं ने हड़ताल बंद कर वापस काम में लग गए थे। सन्दर्भ मै देश के लिए कुछ करना चाहता हु । श्री मुंजाल जी, आप ने अभी जो hiro optima जैसी ईलेकट्रीक टुविलर लोंच की है, उसमे थोड़ा संशोधन करने की जरूरत है । क्या उसमे 1 या 2 लीटर की पेट्रोल टंकी फीट हो सकती है? यदि ऐसा होता है तो कस्टमर को बहुत ही अच्छा रहेगा । इसकी वजह है, हमारे देश मे मध्यम वर्ग ज्यादा है अगर 1-2 लोगो को 50, 100 कि,मी जाना हो तो वो आराम से जा सकता है। बीच मे अगर चार्जीग पुरा होने का डर नही रहेगा। ऐसी गाड़ी हमारे देश मे तो चलेगी ही, लेकिन विदेशो मे भी चलेगी । जय हिंद, ,,, बाहरी कड़ियाँ हीरो मोटर का आधिकारिक जाल स्थल उद्यमी 1928 में जन्मे लोग
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बेचराजी
बेचराजी (Becharaji) या बहुचराजी (Bahucharaji) भारत के गुजरात राज्य के महेसाणा ज़िले में स्थित एक नगर है। यह एक हिन्दू धार्मिक स्थल है जहाँ बहुचरा माता का एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर अहमदाबाद हवाई अड्डा से 103 की.मी. एवं महेसाना रेलवे स्टेशन से 35 कि.मी.है | देवी के सिद्ध पीठ होने के कारण से यहाँ छोटे बच्चों का मुंडन करते हैं | यहाँ पर बधाई के लिए उभयलिंगी ( हिजड़ों) की उपलब्धता है | बच्चों की कामना से बहुत लोग दर्शनार्थ आतें है जिनकी मनोकामना पूर्ण होती है। बहुचरा माता मंदिर सफेद संगमरमर की किलेनुमा अत्यंत प्राचीन अद्भुत मूर्ति आखें बस निहारती ही रह जाती हैं। विशाल प्रागंण में इसके अलावा नर्मदेश्वर महादेव मंदिर एवं विशाल यज्ञशाला है। बाहरी तरफ पक्षियों के दाना पानी का विशाल स्तंभ है। बहरी दीवार प्राचीन किले एवं बावड़ी अद्भुत छवि देखते ही बनती है। Gujarat, Part 3," People of India: State series, Rajendra Behari Lal, Anthropological Survey of India, Popular Prakashan, 2003, ISBN 9788179911068</ref> इन्हें भी देखें बहुचरा माता महेसाणा ज़िला सन्दर्भ गुजरात के शहर महेसाणा ज़िला महेसाणा ज़िले के नगर
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वाग्भट
वाग्भट नाम से कई महापुरुष हुए हैं। इनका वर्णन इस प्रकार है: वाग्भट (१) आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथ अष्टांगसंग्रह तथा अष्टांगहृदय के रचयिता। प्राचीन संहित्यकारों में यही व्यक्ति है, जिसने अपना परिचय स्पष्ट रूप में दिया है। अष्टांगसंग्रह के अनुसार इनका जन्म सिंधु देश में हुआ। इनके पितामह का नाम भी वाग्भट था। ये अवलोकितेश्वर गुरु के शिष्य थे। इनके पिता का नाम सिद्धगुप्त था। यह सनातन धर्म में विश्वास करते थे। इत्सिंग ने लिखा है कि उससे एक सौ वर्ष पूर्व एक व्यक्ति ने ऐसी संहिता बनाई जिसें आयुर्वेद के आठो अंगों का समावेश हो गया है। अष्टांगहृदय का तिब्बती भाषा में अनुवाद हुआ था। आज भी अष्टांगहृदय ही ऐसा ग्रंथ है जिसका जर्मन भाषा में अनुवाद हुआ है। गुप्तकाल में पितामह का नाम रखने की प्रवृत्ति मिलती है : चंद्रगुप्त का पुत्र समुद्रगुप्त, समुद्रगुप्त का पुत्र चंद्रगुप्त (द्वितीय) हुआ। ह्वेन्साँग का समय 675 और 685 शती ईसवी के आसपास है। वाग्भट इससे पूर्व हुए हैं। वाग्भट की भाषा में कालिदास जैसा लालित्य मिलता है। छंदों की विशेषता देखने योग्य है (संस्कृत साहित्य में आयुर्वेद, भाग 3.)। वाग्भट का समय पाँचवीं शती के लगभग है। ये ऋषि थे, यह बात ग्रंथों से स्पष्ट है (अष्टांगसग्रंह की भूमिका, अत्रिदेव लिखित)। वाग्भट नाम से व्याकरण शास्त्र के एक विद्वान् भी प्रसिद्ध हैं। वराहमिहिर ने भी बृहत्संहिता में (अध्याय 76) माक्षिक औषधियों का एक पाठ दिया है। यह पाठ अष्टांगसंग्रह के पाठ से लिया जान पड़ता है (उत्तर. अ. 49)। रसशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रंथ रसरत्नसमुच्चय का कर्ता भी वाग्भट कहा जाता है। इसके पिता का नाम सिंहगुप्त था। पिता और पुत्र के नामों में समानता देखकर, कई विद्वान् अष्टांगसंग्रह और रसरत्नसमुच्चय के कर्ता को एक ही मानते हैं परंतु वास्तव में ये दोनों भिन्न व्यक्ति हैं (रसशास्त्र, पृष्ठ 110)। वाग्भट के बनाए आयुर्वेद के ग्रंथ अष्टांगसंग्रह और अष्टांगहृदय हैं। अष्टांगहृदय की जितनी टीकाएँ हुई हैं उतनी अन्य किसी ग्रंथ की नहीं। इनन दोनों ग्रंथों का पठन पाठन अत्यधिक है। अन्य कृतियाँ वाग्भट को अनेक अन्य आयुर्वेद ग्रन्थों का भी रचयिता माना जाता है। रसरत्नसमुच्चय अष्टाङ्गहृदयवैद्यूर्यकभाष्य -- अष्टाङ्गहृदयम का स्वरचित भाष्य अष्टाङ्गहृदयदीपिका (भाष्य ग्रन्थ) हृदयटिप्पण अष्टाङ्गनिघण्टु अष्टाङ्गसार अष्टाङ्गावतार भावप्रकाश द्वादशार्थनिरूपण कालज्ञान पदार्थचन्द्रिका शास्त्रदर्पण शतश्लोकी वाग्भट वाग्भटीय वाहटनिघण्टु वमनकल्प वाग्भट (२) वाग्भटालंकार के रचयिता जैन संप्रदाय के विद्वान्। प्राकृत भाषा में इनका नाम "वाहट" था और ये "सोम" के पुत्र थे। इनके ग्रंथ के टीकाकार सिंहगणि के कथानुसार ये कवींद्र, महाकवि और राजमंत्री थे। ग्रंथ में उदाहृत पद्य ग्रंथकार द्वारा प्रणीत हैं जिसमें कर्ण के पुत्र जयसिंह का वर्णन किया गया है। वाग्भट का काल प्राप्त प्रमाणों के अधार पर 1121 से 1156 तक निश्चित है। वाग्भटालंकार में कुल पाँच परिच्छेद हैं। प्रथम चार परिच्छेदों में काव्यलक्षण, काव्यहेतु, कविसमय, शिक्षा, काव्योपयोगी संस्कृत आदि चार भाषाएँ, काव्य के भेद, दोष, गुण, शब्दालंकार, अर्थालंकार और वैदर्भी आदि रीतियों का सरल विवेचन है। पाँचवें परिच्छेद में नव रस, नायक एवं नायिका भेद आदि का निरूपण है। इन्होंने चार शब्दालंकार और 35 अर्थालंकारों को मान्यता दी है। वाग्भटालंकार सिंहगणि की टीका के साथ काव्यमाला सीरीज से मुद्रित एवं प्रकाशित है। वाग्भट (३) काव्यानुशासन नामक ग्रंथ के रचयिता। इनका समय लगभग 14वीं सदी ई. हैं। इनके पिता का नाम नेमिकुमार और माता का नाम महादेवी था। यह ग्रंथ सूत्रों में प्रणीत है जिसपर ग्रंथकार ने ही "अलंकार तिलक" नाम की टीका भी की है। टीका में उदाहरण दिए गए हैं और सूत्रों की विस्तृत व्याख्या की गई है। काव्यानुशासन पाँच अध्यायों में विभक्त है। इसमें काव्यप्रयोजन, कविसमय, काव्यलक्षण, दोष, गुण, रीति, अर्थालंकार, शब्दालंकार, रस, विभावादि का विवेचन और नायक-नायिका-भेद आदि पर क्रमबद्ध प्रकाश डाला गया है। ग्रंथकार ने अलंकारों के प्रकरण में भट्टि, भामह, दंडी और रुद्रट आदि द्वारा आविष्कृत कुछ ऐसे अलंकारों को भी स्थान दिया है जिनके ऊपर ग्रंथाकार के पूर्ववर्ती और अलंकारों के आविष्कारकों के परवर्ती मम्मट आदि विद्वानों ने कुछ भी विचार नहीं किया है। ग्रंथकार ने "अन्य" और "अपर" नाम के दो नवीन अलंकारों को भी मान्यता दी है। इस ग्रंथ का उपजीव्य काव्यप्रकाश, काव्यमीमांसा आदि ग्रंथ हैं। इन्होंने 64 अर्थालंकार और 6 शब्दालंकार माने हैं। ग्रंथ के प्रारंभ में ग्रंथकार ने स्वयं अपना परिचय दिया है और "वाग्भटालंकार" के प्रणेता का नामोल्लेख "इतिवामनवाग्भटादिप्रणीत दश काव्यगुणा:" कहकर किया है। अत: यह "वाग्भटालंकार" के प्रणेता वाग्भट से भिन्न और परवर्ती हैं। वाग्भट (४) नेमिनिर्वाण नामक महाकाव्य के रचयिता। ये हेमचन्द्र के समकालीन विद्वान् हैं। इनका समय ई. 1140 के लगभग है। नेमिनिर्वाण महाकाव्य में कुल 15 सर्ग हैं। जैसा नाम से ही प्रकट है, इस महाकाव्य में जैन तीर्थंकर श्री नेमिनाथ के चरित्र का वर्णन किया गया है। इनकी कविता प्रसाद और माधुर्य गुणों से युक्त एवं सरस है। इन्हें भी देखें 'अष्टांगसंग्रह अष्टांगहृदय बाहरी कड़ियाँ वाग्भट एवं अष्टांगह्रदय रसरत्नसमुच्चय (हिन्दी टीका सहित) (गूगल पुस्तक ; व्याख्याकार - धनंजय शर्मा) संस्कृत आयुर्वेद
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सूती साड़ी
सूती साड़ी पतले सूती यार्न से बुनाई गई एक कपड़े का टुकड़ा है जिस्की लंबाई साडे-चार से आठ मीटर और चौड़ाई में एक मीटर तक होती है। यह कपड़ा भारतीय महिलाऍ अलग अलग तरीकों से शरीर के चारों ओर लपेटती है। साड़ी शरीर के एक ओर से लेकर कमर के चारों ओर लपेट कर, दूसरे ढीले ओर को कंधे पर आराम से छोड दिया जाता है या फिर सामने कमर के एक तरफ घुसाया जाता है। सूती साड़ी दुनिया भर में महिलाऍ इच्छा से इन्हें पहनती है क्योंकि ये उन्के खूबसूरती को बढाती हैं। व्युत्पत्ती सूती साड़ी सबसे पुरानी परिधान है जिसने अपना रूप नही बदला और जो आज भी बहुत प्रचलित है। माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति 3000 ईसा पूर्व और बाद में मेसोपोटामिया सभ्यता के दौरान हुई जब कपास की खेती और बुनाई की कला विकसित हुई थी। किसान होने के नाते वैदिक आर्यों ने प्राथमिक रूप से कपास की खेती की और अपने प्रवास के दौरान दुनिया भर में फैला दिया। खुदाई के दौरान कुछ मलमल और कपास के टुकड़े हड़प्पा शहर में पाए गये थे जो उस समय भी कपास के अस्तित्व को साबित करता है। कपड़ों की इस शैली को सुमेर के निवासी, अश्शूरी, कसदियों और फारसियों ने भी अभ्यास किया। आर्यों ने उत्तरी और दक्षिणी भारत की यात्रा की और शरीर के चारों ओर एक साधारण कपड़े को पहने की इस शैली को फैला दिया। इस सरल सूती कपड़े कि शैलि को विश्व प्रसिद्ध सूती साड़ी का अग्रदूत माना जाता है। सूती साड़ियों के प्रकार चाहे वह किसी क्षेत्र या राज्य के हैं उनकी सादगी, सुंदरता और आरामदायक गुणों के कारण सूती साड़ी सबसे अधिक महिलाओं के ईष्ट प्रिय रहे हैं। देश में लंबे समय तक गर्मियों के महीनों के कारण वे अच्छे पोशाक के रूप में अधिक्तर उपयोगित रहे हैं। उनकी लोकप्रियता और उपयोगता बडी। समय के दौरान, सूती साड़ी के निर्माण में सुधार हुआ और आज यह विभिन्न प्रकार से बाजार में उपलब्ध हैं, जैसे: खादी: मोटे खादी सामग्री से बनी साड़ियां जिन्हे आज पूरे देश कि महिलाओं ने से स्वीकार कर लिया है। टन्ट (बंगाल की साड़ी): यह व्यापक रूप से अपनी कुरकुरा बनावट के लिए महिलाओं द्वारा इस्तेमाल की जाती है जो आज बाजार में विभिन्न डिजाइनों मे उपलब्द है। ढाकाइ: बांग्लादेश में उद्भूत, इस प्रकार कि कढ़ाई के कपडे कोलकत्ता में बनाए गये और साधारण रूप से ढाकाइ साड़ी और झांदनी ढाकाइ साड़ी के रूप मे बेची जाती है जो सुनहरे रंग कि कढ़ाई से रूपन्तिथ हैं। लखनवी चिकन: लखनऊ में आधारित, इस तरह कि छिद्रित कढ़ाई है जो विषम रंगों के साथ की जाती है। साबल्पुरि: ओडिशा में निर्मित, यह एक आकर्षक 'पल्लू' है जो विस्तृत कढ़ाई में डिजाइन किया गया है। चंदेरी: इसका एक लंबा इतिहास है और यह वैदिक काल से ही प्रचलित है। इसमें बहुत से जरी का काम किया गया है और प्रदर्शन में राजसीय है। जाम्दनी: ये कपास सुनहरी कढ़ाई साड़ियां हैं जो ज्यादातर उनके जटिल डिजाइन और रंग के लिए जानी जाती है। लोकप्रियता इन कपड़ों की स्वीकार्यता घर-घर से विवाह और पार्टियों में फैला हुआ है| भारत भर में कई फिल्म अभिनेत्रियों द्वारा पहने जाते हैं। सन्दर्भ
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इंडियन बैडमिंटन लीग
भारतीय बैडमिंटन लीग(संछिप्त में आई॰बी॰एल) भारतीय बैडमिंटन संघ (बीएआई) द्वारा शुरू की गयी फ्रेंचाइजी आधारित बैडमिंटन प्रतियोगिता है। इस प्रतियोगिता का पहला संस्करण 14 से 31 अगस्त 2013 तक भारत में खेला जायेगा। इसमें भारतीय खिलाड़ियों के साथ-साथ विदेशी खिलाड़ी भी शामिल होंगे। पहले आई॰बी॰एल के लिए खिलाड़ियों की नीलामी 22 जुलाई 2013 को दिल्ली में आयोजित की गई थी। इस लीग में 6 टीमें हिस्सा लेंगी। इन छह फ्रेंचाइजी टीमों में हैदराबाद हॉटशॉट्स, बांगा बीट्स, क्रिश दिल्ली स्मैशर्स, अवध वारियर्स, पुणे पिस्टंस और मुम्बई मास्टर्स शामिल हैं। बीएआई ने सभी शीर्ष बैडमिंटन खिलाड़ियों के लिए इस लीग में भाग लेना अनिवार्य कर दिया गया है। नीलामी पहले सीज़न की नीलामी, जो की पहले 30 जून 2013 को अनुसूचित की गयी थी, पहले 19 जुलाई 2013 तक और फ़िर 22 जुलाई 2013 तक के लिए टाल दी गयी। अंतत: 22 जुलाई को दिल्ली में नीलामी पूरी हुई। हर टीम में चार विदेशी और छह भारतीय खिलाड़ी शामिल हैं। टीमें कुछ इस प्रकार हैं - बांगा बीट्स हैदराबाद हॉटशॉट्स क्रिश दिल्ली स्मैशर्स मुम्बई मास्टर्स पुणे पिस्टंस अवध वारियर्स सन्दर्भ बैडमिंटन भारतीय बैडमिंटन इंडियन बैडमिंटन लीग
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चुम्बकीय बेयरिंग
चुम्बकीय धारुक या चुम्बकीय बेयरिंग (magnetic bearing) ऐसा बेयरिंग है जो किसी शैफ्ट को चुम्बकीय बलों के द्वारा एक अक्ष पर बनाये रखता है। चुम्बकीय बीयरिंग बिना किसी भौतिक-सम्पर्क के ही चलायमान अवयवों को एक सीमा में धारण किये रहते हैं। इस कारण चुम्बकीय बेयरिंग सबसे अधिक गति से चलने वाले शैफ्टों आदि को भी धारण करने में सक्षम हैं। मोटे तौर पर चुम्बकीय बेयरिंग दो तरह के होते हैं- (१) अक्रिय चुम्बकीय बेयरिंग (Passive magnetic bearings) -- इनमें स्थायी चुम्बक प्रयुक्त होते हैं। (२) सक्रिय चुम्बकीय बेयरिंग (active magnetic bearings) -- इनमें विद्युतचुम्बक प्रयुक्त होते हैं जिनको काम करने के लिये लगातार (सही मात्रा में, नियंत्रित) विद्युत-धारा देते रहना पड़ता है। (३) मिश्रित डिजाइन -- इसमें स्थायी चुम्बक के साथ विद्युत चुम्बक भी लगाये जाते हैं। भविष्य में आने वाली प्रगत तकनीकें अक्षीय होमोपोलर विद्युतगतिकीय बीयरिंग सन्दर्भ इन्हें भी देखें बीयरिंग चुम्बकीय प्रोत्थापन (magnetic levitation) विद्युतचुम्बकीय चक्र (electrodynamic wheel) चुम्बकत्व बेयरिंग
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वांग शुआन-त्सो
वांग शुआन-त्सो ( , पिनयिन- wáng xuáncè), 7 वीं शताब्दी में तांग राजवंश के एक संरक्षक अधिकारी और राजनयिक थे। 648 में, तांग राजवंश के महाराजा ताईज़ोंग ने भारतीय सम्राट हर्षवर्धन के चीन में राजदूत भेजने के प्रतिक्रियास्वरूप उन्हें भारत भेजा था। हालाँकि उनके भारत पहुँचते ही उन्हें पता चला कि हर्षवर्धन की मृत्यु हो गई, और नए राजा अर्जुन झा ने वांग और उनके ३० घुड़सवार अधीनस्थों पर हमला किया। इसके बाद वांग तिब्बत भाग गये और फिर उन्होंने 7,000 से अधिक नेपाली घुड़सवार पैदल सेना और 1,200 तिब्बती पैदल सेना लेकर भारतीय राज्य पर 16 जून को जवाबी हमला किया। इस हमले की सफलता ने वांग को "ग्रैंड मास्टर फॉर द क्लोज़िंग कोर्ट" का प्रतिष्ठित खिताब दिलवाया। उन्होंने चीन के लिए एक कथित बौद्ध अवशेष भी हासिल किया। मगध साम्राज्य से २००० कैदियों को नेपाली और तिब्बती सेनाओँ द्वारा वांग के अधीन ले जाया गया। तिब्बती और चीनी लेखन दस्तावेज़ में तिब्बत के सैनिकों के साथ भारत पर वांग के हमले का वर्णन है। नेपाल को तिब्बती राजा सोंगत्सेन ने अपने अधीन कर लिया। बंदियों के बीच भारतीय ढोंगी भी था। युद्ध 649 में हुआ। ताईज़ोंग की कब्र में भारतीय ढोंगी की मूर्ति थी। उसका नाम चीनी रिकॉर्ड में "ना-फू-टी ओ-लो-न-शुएन" के रूप में दर्ज किया गया था। युद्ध 3 दिनों तक चला था। उन्होंने पुस्तक झांग तियानझू गुओटू (मध्य भारत का व्याख्याकृत वर्णन) लिखी, जिसमें भौगोलिक जानकारी का खजाना शामिल था। संदर्भ इतिहास भारत का इतिहास चीन का इतिहास नेपाल का इतिहास तिब्बत का इतिहास चीन भारत-चीन सम्बन्ध
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A5%81%E0%A4%9C%E0%A4%BE%20%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B0%2C%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A6
चारभुजा मन्दिर, राजसमंद
चारभुजा जी एक ऐतिहासिक एवं प्राचीन हिन्दू मन्दिर है जो भारतीय राज्य राजस्थान के राजसमंद ज़िले की कुम्भलगढ़ तहसील के गढ़बोर गांव में स्थित है। उदयपुर से 112 और कुम्भलगढ़ से 32 कि.मी. की दूरी पर यह मेवाड़ का जाना–माना तीर्थ स्थल है, जहां चारभुजा जी की बड़ी ही पौराणिक एवं चमत्कारिक प्रतिमा है। मेवाड़ के सांवलियाजी मंदिर, केशरियानाथ जी मंदिर, एकलिंगनाथ जी मंदिर, श्रीनाथजी मंदिर, द्वारिकाधीशजी मंदिर, रूपनारायणजी मंदिर व चारभुजानाथ मंदिर सुप्रसिद्ध हैं!यह मन्दिर जयपुर से 315 किलोमीटर स्थित है। मंदिर के निकट एक बावड़ी भी बनी है। मंदिर के सामने हनुमानजी मंदिर भी है। चारभुजा जी के दर्शन कुछ सीढ़ियां चढ़ने पर होते हैं। यहाँ सीढ़ियों के दोनों तरफ गोखड़ों पर विशाल हाथी बने हैं। जून, 2023 में मंदिर के बाहर जीर्णोद्धार का कार्य प्रगति पर है। विवरण इस मन्दिर का निर्माण खरवड़ राजपूत शासक गंगदेव ने करवाया था। चारभुजा के शिलालेख के अनुसार सन् १४४४ ई. (वि.स. १५०१) में खरवड़ ठाकुर महिपालसिंह व उसके पुत्र राजकुमार लक्ष्मण ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। एक मन्दिर में मिले शिलालेख के अनुसार यहां इस क्षेत्र का नाम "बद्री" था जो कि बद्रीनाथ से मेल खाता है। पौराणिक कथा के अनुसार श्रीकृष्ण भगवान ने उद्धव को हिमालय में तपस्या कर सद्गति प्राप्त करने का आदेश देते हुए स्वयं गौलोक जाने की इच्छा जाहिर की, तब उद्धव ने कहा कि मेरा तो उद्धार हो जाएगा परंतु आपके परमभक्त पांडव व सुदामा तो आपके गौलोक जाने की ख़बर सुनकर प्राण त्याग देंगे। ऐसे में श्रीकृष्ण ने विश्वकर्मा से स्वयं व बलराम की मूर्तियां बनवाईं, जिसे राजा इन्द्र को देकर कहा कि ये मूर्तियां पांडव युधिष्ठिर व सुदामा को सुपुर्द करके उन्हें कहना कि ये दोनों मूर्तियां मेरी है और मैं ही इनमें हूं। प्रेम से इन मूर्तियों का पूजन करते रहें, कलियुग में मेरे दर्शन व पूजा करते रहने से मैं मनुष्यों की इच्छा पूर्ण करूंगा। इन्द्र देवता ने श्रीकृष्ण की मूर्ति सुदामा को प्रदान की और पांडव व सुदामा इन मूर्तियों की पूजा करने लगे। वर्तमान में गढ़बोर में चारभुजा जी के नाम से स्थित प्रतिमा पांडवों द्वारा पूजी जाने वाली मूर्ति और सुदामा द्वारा पूजी जाने वाली मूर्ति रूपनारायण के नाम से सेवंत्री गांव में स्थित है। कहा जाता है कि पांडव हिमालय जाने से पूर्व मूर्ति को जलमग्न करके गए थे ताकि इसकी पवित्रता को कोई खंडित न कर सके। गढ़बोर के तत्कालीन राजपूत शासक गंगदेव को चारभुजानाथ ने स्वप्न में आकर आदेश दिया कि पानी में से निकालकर मूर्ति मंदिर बनाकर स्थापित करो। राजा ने ऐसा ही किया, उसने जल से प्राप्त मूर्ति को मंदिर में स्थापित करवा दी। कहा जाता है कि मुग़लों के अत्याचारों को देखते हुए मूर्ति को कई बार जलमग्न रखा गया है। महाराणा मेवाड़ ने चारभुजानाथ के मंदिर को व्यवस्थित कराया था। कहा जाता है कि एक बार मेवाड़ महाराणा उदयपुर से यहां दर्शन को आए लेकिन देर हो जाने से पुजारी देवा ने भगवान चारभुजाजी का शयन करा दिया और हमेशा महाराणा को दी जाने वाली भगवान की माला खुद पहन ली। इसी समय महाराणा वहां आ गए। माला में सफेद बाल देखकर पुजारी से पूछा कि क्या भगवान बूढे़ होने लगे है? पुजारी ने घबराते हुए हां कह दिया। महाराणा ने जांच का आदेश दे दिया। दूसरे दिन भगवान के केशों में से एक केश सफेद दिखाई दिया। इसे ऊपर से चिपकाया गया केश मानकर जब उसे उखाडा़ गया तो श्रीविग्रह (मूर्ति) से रक्त की बूंदें निकल पड़ी। इस तरह भक्त देवा की भगवान ने लाज रख दी। उसी रात्रि को महाराणा ने सपना देखा जिसमें भगवान ने कह दिया कि भविष्य में कोई भी महाराणा दर्शन के लिए गढ़बोर न आवे तब से पंरपरा का निर्वाह हो रहा है, यहां मेवाड़ महाराणा नहीं आते है। लेकिन महाराणा बनने से पूर्व युवराज के अधिकार से इस मंदिर पर आकर जरूर दर्शन करते है और फिर महाराणा की पदवी ली जाती है। इसी गढ़बोर पर कभी चौहान नाम से पहचान रखने वाले क्षत्रियों के पूर्वज विहलजी चौहान के अनूठे शौर्य पर मेवाड़ के शासक रावल जैतसी ने विहलजी को रावत का खिताब व गढ़बोर का राज्य इनाम में दिया था। आज भी विहलजी चौहान का दुर्ग चारभुजा से सेवंत्री जाने वाले मार्ग पर खण्डहर हालात में विद्यमान है। गढ़बोर में चारभुजानाथ का प्रतिवर्ष भाद्रपद मास की एकादशी (जलझुलनी एकादशी) को विशाल मेला लगता है। चारभुजा गढ़बोर में हर वर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। यहां पर आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। बाहरी कड़ियाँ चारभुजा मन्दिर https://web.archive.org/web/20190416193400/http://charbhujaji.com/ https://web.archive.org/web/20200604082443/https://shreeroopnarayanjimandir.net.eu.org/ सन्दर्भ राजस्थान में हिन्दू मन्दिर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A4
सादुद्दीन कायनात
सादुद्दीन कायनात (1895–3 फ़रवरी 1961) एक प्रमुख तुर्की शास्त्रीय संगीत के संगीतकार थे। जीवन सादुद्दीन का जन्म इस्तांबुल में हुआ था। वे कम आयु में ही हाफ़िज़ बने। उन्होंने [[इस्तांबुल विश्वविद्यालय से संगीत की शिक्षा प्राप्त की। इसके पश्चात उन्होंने अनातोलिया जाकर वहाँ की तुर्क लोक संगीत पर शोध किया। गणराज्य के समर्थकों ने सादुद्दीन को प्रोत्साहित किया। वे तुर्क शास्त्रीय संगीत के सबसे प्रमुख संगीतकार थे। उन्होंने अद्वितीय मक़ाम गतिविधियों में पश्चिमी मनोभाव जोड़े। उन्होंने अतातुर्क द्वारा किए गए सुधारों का समर्थन किया। एक इमाम होने के बावजूद वे पहले धार्मिक व्यक्ति थे जिसने अज़ान को तुर्की भाषा में दिया। उन्होंने शास्त्रीय तुर्की संगीत में 300 गीत लिखे हैं। 1955 में उन्हें एक दिल का दौरा पड़ा और 3 फ़रवरी 1961 में अपनी मृत्यु तक वे फ़ालिज से जूजते रहे। मुख्य काम Dertliyim ruhuma hicranını (segah-nihavend) Bir esmer dilberin vuruldum hüsnüne (kürdilihicazkar) Leyla (hicazkar) Enginde yavaş yavaş (hicaz) Kalplerden dudaklara (nihavent) Ben güzele güzel demem (mahur) Batan gün kana benziyor (muhayyer) Çıkar yücelerden haber sorarım (hüzzam). इन्हें भी देखें लाइको सन्दर्भ InleyenNagmeler.com - Many Different Biographies of Saadettin Kaynak Biyografi.net - Biography of Sadettin Kaynak तुर्क संगीतकार 1895 में जन्मे लोग १९६१ में निधन
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२०२० छत्तीसगढ़, भारत में कोरोनावायरस महामारी
छत्तीसगढ़ में कोरोनावायरस से संक्रमण का पहला मामला, १८ मार्च २०२० को रायपुर में लंदन से लौटी २४ वर्षीय युवती के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि से पता चला था । युवती और उसके माता पिता को रायपुर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में निगरानी हेतु रखा गया था। २५ अप्रैल २०२० तक छत्तीसगढ़ में ११३८६ लोगों का टेस्ट किया जा चुका है जिनमें से ३७ संक्रमित पाए गए और इनमें से ३२ मरीज अबतक ठीक हो चुके हैं।  राज्य में अभी २५ अप्रैल २०२० तक करोना के कारण किसी की मृत्यु नहीं हुई है। दिनांक १८ मई २०२० तक राज्य में कोरोना प्रभावित कुल ३४ सक्रिय मरीज हैं। एम्स रायपुर में २० मरीज, कोविड अस्पताल माना रायपुर में ०६ मरीज, कोविड अस्पताल बिलासपुर में ०५ मरीज मेडिकल कॉलेज अस्पताल अंबिकापुर में ०२ मरीज भर्ती है। तिथि अनुसार मुख्य आंकड़े ५ मई २०२० तक छत्तीसगढ़ में कुल ५८ मामलों की पुष्टि हुई है जिनमें से ० व्यक्ति की मृत्यु तथा स्वास्थ्य हो चुके लोगों की संख्या ३६ है। ९ मई २०२० तक छत्तीसगढ़ में कुल ५९ मामलों की पुष्टि हुई है जिनमें से ० व्यक्ति की मृत्यु तथा स्वास्थ्य हो चुके लोगों की संख्या ३८ है। १८ मई २०२० तक छत्तीसगढ़ में कुल ९३ मामलों की पुष्टि हुई है जिनमें ५९ स्वास्थ्य हो चुके लोगों की संख्या, ३४ सक्रीय मामले तथा अब तक ० व्यक्ति की मृत्यु हुई है। विस्तृत आंकड़े चूँकि ये आंकड़े प्रतिदिन / घण्टे बदलते रहते है अतः इनके ताजा आंकड़े हेतु आधिकारिक वेबसाइट भी देखें।  छत्तीसगढ़ के १३ जिले कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें कोरोनावायरस २०२० मध्य प्रदेश, भारत में कोरोनावायरस महामारी कोरोनावायरस से सम्बंधित ग़लत जानकारी बाहरी कड़ियाँ स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय,भारत सरकार का आधिकारिक जालस्थल स्वास्थ्य विभाग और परिवार कल्याण एवं चिकित्सीय शिक्षा, छत्तीसगढ़ सरकार का आधिकारिक जालस्थल २०२० भारत में कोरोनावायरस महामारी कोरोनावायरस
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कतर में खेल
कतर में खेल प्राथमिक रूप से भागीदारी और दर्शकों के मामले में फुटबॉल पर केंद्रित है। इसके अतिरिक्त, एथलेटिक्स, बास्केटबाल, हैंडबॉल, वॉलीबॉल, ऊंट रेसिंग, घुड़दौड़, क्रिकेट और तैराकी भी व्यापक रूप से प्रचलित हैं। वर्तमान में देश में 11 बहु-खेल क्लब हैं, और 7 सिंगल-स्पोर्ट्स क्लब हैं। कतर में आयोजित सबसे बड़ा खेल आयोजन 2006 में एशियाई खेलों था, जो दोहा में आयोजित किया गया था। 39 कार्यक्रमों से 46 विषयों की प्रतियोगिता हुई थी। 2 दिसंबर 2010 को, कतर ने 2022 फीफा विश्व कप की मेजबानी करने का अधिकार जीता, इस प्रकार टूर्नामेंट की मेजबानी करने वाला पहला अरब राष्ट्र बन गया फुटबॉल फुटबॉल कतर में अब तक का सबसे लोकप्रिय खेल है, और इसे स्थानीय और प्रवासी द्वारा समान रूप से खेला और समर्थित किया जाता है। देश में घरेलू पेशेवर फुटबॉल लीग के दो स्तर हैं। कतर सितारे लीग के नाम से जाना जाने वाला शीर्ष स्तर पिछले कई सालों में कई विस्तारों से गुजर चुका है। 2009 में, लीग दस से बारह क्लबों तक फैली, और फिर मई 2013 में दो क्लबों द्वारा विस्तारित किया गया, जिससे पहले विभाजन में टीमों की कुल संख्या चौदह हो गई। टीमों की लोकप्रियता के आधार पर क्यूएसएल मैचों में उपस्थिति 2,000 से 10,000 के बीच है। कतररी सरकार के मंत्रालयों और विभागों द्वारा आयोजित एक 2014 के सर्वेक्षण में, 1,079 उत्तरदाताओं में से 65% ने संकेत दिया कि वे पिछले लीग सत्र में फुटबॉल मैच में शामिल नहीं हुए थे। 2022 फीफा विश्व कप 2 दिसंबर 2010 को, कतर ने 2022 फीफा विश्व कप की मेजबानी करने के लिए अपनी बोली जीती। क्रिकेट क्रिकेट कतर का दूसरा सबसे लोकप्रिय खेल है, यद्यपि स्थानीय नागरिक बहुत कम खेलते हैं। इसके बावजूद, भारतीय उपमहाद्वीप के श्रमिकों और निवासियों को इस खेल को खेलना अच्छा लगता है, जिसे उनके घर के इलाकों में एक धर्म के पास माना जाता है, और क्योंकि उपमहाद्वीप कतर में लगभग आधे नागरिकों के लिए जिम्मेदार है, इसलिए खेल तेजी से अपनी गति उठा रहा है। यद्यपि स्थानीय कतर राष्ट्रीय टीम लोकप्रिय नहीं है, आईसीसी विश्व कप और आईसीसी विश्व ट्वेंटी 20 जैसे क्रिकेट टूर्नामेंट जो कतर को बाहर करते हैं, लेकिन देश में अधिकांश प्रवासी देशों के लिए जिम्मेदार राष्ट्र शामिल हैं, जो सबसे ज्यादा देखी जाने वाली खेल आयोजनों में से एक हैं | गोल्फ़ कतर ने 1998 से वाणिज्यिक बैंक कतर मास्टर्स, एक यूरोपीय टूर गोल्फ कार्यक्रम की मेजबानी की है| ऊंट रेसिंग ऐतिहासिक रूप से ऊंट रेसिंग कतर के बेडौइन जनजातियों में एक परंपरा थी और शादी के विशेष अवसरों पर प्रदर्शन किया जाएगा। कतर की आजादी के एक साल बाद 1972 तक यह नहीं था कि ऊंट रेसिंग पेशेवर स्तर पर प्रचलित थी। आम तौर पर, ऊंट रेसिंग का मौसम सितंबर से मार्च तक होता है। प्रतिस्पर्धाओं में लगभग 22,000 रेसिंग ऊंट का उपयोग किया जाता है जो मुख्य रूप से देश के प्राथमिक ऊंट रेसिंग स्थल, अल-शाहनिआ कैमल रैसेट्रैक में आयोजित होते हैं। ऊंटों की दौड़ की स्थिति के आधार पर ऐसी दौड़ की औसत दूरी आमतौर पर 4 से 8 किमी होती है। संदर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%AE%E0%A5%89%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%B5%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A7
भारत-मॉल्डोवा सम्बन्ध
भारत-मॉल्डोवा सम्बन्ध भारत गणराज्य और मोल्दोवा गणराज्य के बीच द्विपक्षीय संबंधों को संदर्भित करता है। मॉल्डोवा पहले सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करता था, जिसके विघटन के बाद यह आज़ाद हुआ। भारत ने 28 दिसंबर 1991 को इस देश को मान्यता दी और अगले ही वर्ष, दोनों ने संबंध स्थापित किए। मॉल्डोवा में भारतीय दूतावास बुखारेस्ट, रोमानिया से मान्यता प्राप्त है; जबकि मॉल्डोवा नई दिल्ली में एक मानद वाणिज्य दूतावास और मुंबई में एक वाणिज्य दूतावास रखता है। दोनों देशों के सम्बन्ध मामूली स्तर पर हैं, लेकिन दोनों ने ही संबंधों को गहरा करने के लिए कई कदम उठाए हैं। दोनों देशों पारस्परिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र जैसे कई अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्मों पर एक दूसरे का समर्थन करते हैं। भारत-मॉल्डोवा द्विपक्षीय व्यापार मामूली रहा है। 2012-13 के दौरान द्विपक्षीय व्यापार को यूएस $ 9.63 मिलियन डॉलर (भारत का निर्यात यूएस $ 8.94 मिलियन, आयात यूएस $ 0.69 मिलियन) पर मापा गया था। 2011-12 में, द्विपक्षीय व्यापार 8 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया था (भारत का निर्यात यूएस $ 7.5 मिलियन और आयात यूएस $ 0.5 मिलियन था)। हाल ही में भारत ने मॉल्डोवा को अपनी अर्थव्यवस्था को विकसित करने के लिए 50 लाख रुपये से अधिक का ऋण दिया है। 2015 में, भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 27 अगस्त को मॉल्डोवा के राष्ट्रीय दिवस पर मॉल्डोवा को बधाई दी। संदर्भ बाहरी कड़ियाँ भारत का दूतावास, बुखारेस्ट, रोमानिया - मोल्डोवा भारत में मोल्दोवा का वाणिज्य दूतावास भारत के द्विपक्षीय संबंध मोल्दोवा
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थानेश्वर महादेव सिद्ध पीठ
थानेश्वर महादेव सिद्ध पीठ उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के अति प्राचीनतम शिवालयों में से एक महत्वपूर्ण शिवालय है। यह मंदिर ग्राम थनूल,ब्लॉक कल्जीखाल,पट्टी मनियारस्यूं, जिला जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड में स्थित है। समुद्रतल से लगभग ६००० फीट की ऊंचाई पर पर्वत श्रृखंलाओं के मध्य एक अत्यन्त रमणीक, शांत एवं पवित्र स्थान पर अवस्थित है। ५ किमी० फैले जंगल के मध्य में स्थित यह थानेश्वर धाम अध्यात्मिक चेतना, धर्मपरायणता व सहिष्णुता का आस्था केन्द्र है। इतिहास इस सिद्धपीठ का इतिहास सदियों पुराना है। माना जाता हैं कि इस मंदिर की स्थापना स्वयं आदि आदि गुरु शंकराचार्यद्वारा की गयी थी। मन्दिर की बनावट गुप्तकालीन कला से मिलती जुलती है। मन्दिर समिति के धार्मिक एवं सांस्कृतिक सचिव के अनुसार इस स्थल व शिवालय का वर्णन पुराणों के केदारखण्ड में भी किया गया हैं। स्थानीय लूं के अनुसार मूल रूप से इस मंदिर की स्थापना थनगढ़ नदी के उत्तरी छोर पर स्थित महादेव सैंण नामक स्थान पर की गयीं थी जिसे कालांतर में नदी के दक्षिण छोर पर स्थित थनुल गांव की सीमा पर प्रतिस्थापित कर दिया गया और समय के साथ यह थानेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हो गया। वैसे तो यहां वर्ष पर्यन्त नवदम्पति चतुदर्शी एवं सोमवार को जलाभिषेक कर मनन्त मांगने आते हैं पर बैकुंठ चतुर्दर्शी को प्रतिवर्ष मेला लगता हैं। उस दिन नि:सन्तान दम्पतियों द्वारा सन्तान प्राप्ति को लेकर रात भर दीप जलाकर शिव आराधना की जाती है। जिससे उन्हें सन्तान प्राप्त होती हैं। यहां पहुंचने के लिए बनेख से थनुल गांव तक सड़क मार्ग से उसके बाद मन्दिर तक एक किलोमीटर पैदल दूरी तय करनी पड़ती हैं। वही ब्यासचट्टी बादियूं-जखनोली-चौण्डली तक सड़क मार्ग से फिर एक किलोमीटर की मन्दिर तक की दूरी पैदल ही तय करनी पड़ती है। उत्सव थानेश्वर महादेव सिद्ध पीठ मंदिर में मुख्यरूप से दो उत्सव होते हैं: शिवरात्रि बैकुन्ठ चतुर्दशी वैसे तो दोनों अवसरों पर श्रद्धालु भक्तो की अपार भीड़ यहां दर्शनार्थ व पूजा अर्चना हेतु यहां आती है। परन्तु बैकुन्ठ चतुर्दशी के अवसर पर यहां इतनी भीड़ होती है कि वर्तमान में इसने एक विशाल मेले का रूप ले लिया है। थानेश्वर महादेव सिद्ध पीठ मंदिर की प्रसिद्धि इतनी है कि यहाँ दूसरे राज्यों से भी लोग आकर अपनी संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी करते है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ थानेश्वर महादेव में दो नवंबर को होगा बैकुंठ चतुर्दशी मेला थानेश्वर महादेव मंदिर में बैकुंठ चतुर्दशी मेला-२०१७ पौड़ी गढ़वाल ज़िला उत्तराखंड के हिन्दू मन्दिर
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आयन रोपण
आयन रोपण (Ion implantation), पदार्थ इंजीनियरी का एक प्रक्रम है जिसमें किसी पदार्थ के आयनों को विद्युत क्षेत्र की सहायता से त्वरित करते हुए किसी दूसरे ठोस पदार्थ पर टकराया जाता है। इस प्रकार के टक्कर के कारण उस पदार्थ के भौतिक, रासायनिक एवं वैद्युत गुण बदल जाते हैं। आयन रोपण का उपयोग अर्धचालक युक्तियों के निर्माण (जैसे आईसी निर्माण) में किया जाता है। इसके अलावा इसका उपयोग धातु परिष्करण (मेटल फिनिशिंग) एवं पदार्थ विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान में किया जाता है। पदार्थ विज्ञान अर्धचालक युक्ति निर्माण
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सर्वप्रिया सांगवान
सर्वप्रिया सांगवान (जन्म 16 दिसम्बर 1989) एक पत्रकार हैं । सर्वप्रिया सांगवान हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में बड़ा नाम है। वो फिलहाल बीबीसी हिंदी में ब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट के रुप में कार्यरत हैं। उनकी पहचान उनकी पत्रकारिता के अलावा अच्छी लेखनी के रुप में भी की जाती है। सोशल मीडिया पर उनके लेखों से एक बड़ा तबका प्रभावित रहता है। इससे पहले वो एनडीटीवी इंडिया में एंकर के रुप में कार्यरत रही हैं। सर्वप्रिया 2011 में दिल्ली आती हैं और एनडीटीवी के पत्रकारिता संस्थान में पढ़ाई शुरु करती हैं और वहीं से एनडीटीवी हिंदी में नौकरी पाती हैं। वो एनडीटीवी के मैनेजिंग एडिटर रविश कुमार की टीम में बतौर रिसर्चर भी रहीं। 2017 में वो एनडीटीवी छोड़ बीबीसी हिंदी में पत्रकारिता का अपना नया सफर शुरु करती हैं। इससे पहले की जिंदगी में उनका पत्रकारिता से कोई नाता नहीं था और वो अपने गृह जिले रोहतक में ही रहकर दंत चिकित्सक की पढ़ाई कर रही थी। बचपन और शिक्षा सर्वाप्रिया सांगवान का जन्म हरियाणा के रोहतक में हुआ। उन्होंने यूनिवर्सिटी कैंपस स्कूल (रोहतक) से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की, और उच्च शिक्षा भी उन्होंने रोहतक की महर्षी दयानंद यूनिवर्सिटी से दंत चिकित्सा में प्राप्त की। इसके बाद वो 2011 में दिल्ली आ गई और यहां उन्होंने एनडीटीवी के संस्थान से पत्रकारिता की। 2019 आते आते उन्होंने गुडगांव की एक यूनिवर्सिटी से वकालत की डिग्री भी हासिल कर ली है। पुरस्कार रामनाथ गोयनका अवार्ड राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों (2020 में प्रदान किया गया). डिजीपब वर्ल्ड पुरस्कार - 2019 - बेस्ट आर्टिकल ऑफ द इयर रेड इंक पुरस्कार - तीन बार प्राप्त किया अलग अलग श्रेणीयों में सन्दर्भ हिंदी पत्रकार जीवित लोग भारतीय पत्रकार 1989 में जन्मे लोग
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संकेतन
संकेतन (Signalling), या संकेत संप्रेषण, का युद्ध में दीर्घ काल से प्रयोग हो रहा है। साधारण जीवन में भी संदेश भेजने की आवश्यकता बहुधा पड़ती ही है, पर सेना की एक टुकड़ी से दूसरी को, अथवा एक पोत से अन्य को, सूचनाएँ, आदेश आदि भेजने के कार्य का महत्व विशेष है। इसके लिए प्रत्येक संभव उपाय काम में लाए जाते हैं। पैदल और घुड़सवार, संदेशवाहकों के सिवाय, प्राचीन काल में झंडियों, प्रकाश तथा धुएँ द्वारा संकेतों से संदेश भेजने के प्रमाण मिलते हैं। अफ्रीका में यही कार्य नगाड़ों से लिया जाता रहा है। आधुनिक काल में संकेतन का उपयोग सड़कों पर आवागमन तथा रेलगाड़ियों के नियंत्रण में भी किया जा रहा है। परिचय एवं इतिहास कहा जाता है, ग्रीसवासियों ने ट्रॉय नगर की विजय (1194 ईसा पूर्व) की सूचना प्रज्वलित अग्नि के प्रकाश द्वारा 300 मील दूर पहुँचाई थी। इंग्लैंड में स्पेन के जहाजी बेड़े, आर्मेडा, की चढ़ाई (1588 ई.) की सूचना, 6 से 8 मील की दूरीवाले स्थानों पर अग्नि जलाकर, समस्त दक्षिणी इंग्लैंड में भेजी गई। संकेतों द्वारा संदेशों के पहुँचाने के इसी प्रकार के अन्य अनेक उदाहरण इतिहास में उपस्थित हैं। कालांतर में जिस प्रकार स्थल पर संकेतन का विकास हुआ उसी प्रकार और लगभग वैसे ही साधनों से सागर पर जहाजों के बीच भी संदेश भेजने की रीतियाँ प्रचलित हुईं। सन् 1666 में घड़ीमुख की सूइयों से मिलते जुलते उपकरण की सहायता से आधुनिक सेमाफोर कूट (code) सदृश संकेतन का आविष्कार इंग्लैंड में हुआ और सन् 1792 में क्लॉड शाप (Claude Chappe) नामक फ्रांससीसी ने सेमाफोर संकेतन नियमों के अनुसार, लील (Lille) और पेरिस के पध्य, दूरसंदेश भेजने का प्रबंध किया। आगे चलकर कई लोगों ने सेमाफोर पद्धति का विकास किया, किंतु इनमें सबसे सरल तथा उपयोगी दो बाँहों से सेमाफोर संकेतन प्रणाली थी, जिसको ऐडमिरल सर होम पॉर्फम ने सन् 1803 में जन्म दिया और जो आज तक नौसेनाओं में प्रयुक्त होती है। दूरसंकेतन के लिए सूर्य के प्रकाश का उपयोग बहुत प्राचीन काल से चला आ रहा है। कहते हैं, सिकंदर ने इस कार्य के लिए ढाल पर चमचमाती धातु की सतह का प्रयोग किया था, किंतु बाद में दर्पणों का तथा इन्हीं के समुन्नत रूप, हीलियोग्राफ, का प्रयोग होना आरंभ हुआ। इस उपकरण द्वारा संदेश भारत में सन् 1877-78 में, सन् 1879-80 के अफ़गान और जुलू युद्ध में, सन् 1899-1901 के दक्षिणी अफ्रीकी युद्ध में और प्रथम विश्वयुद्ध के समय पूर्वी क्षेत्रों में, बराबर भेजे गए। संकेतन के लिए ऐसे लैंपों का, जिनके सम्मुख चलकपाट लगे होते हैं प्रयोग सन् 1914 तक होता रहा है। बिजली के लैंप बन जाने पर, इनके जलाने और बुझाने का काम चलकपाट के स्थान पर स्विचों से लिया जाने लगा। इनका भी प्रथम विश्वयुद्ध में बहुत प्रयोग हुआ। सन् 1852 में मॉर्स कूट (code) के आविष्कार तथा बिजली के विकास के कारण, ध्वनि से संकेत भेजने की रीति निकली। सन् 1854 के क्रीमिया युद्ध में क्षेत्रीय तार (टेलीग्राम) का सर्वप्रथम उपयोग किया गया। दक्षिणी अफ्रीका के युद्ध में विभिन्न मुख्यावासों को क्षेत्रीय टेलिग्राफों से संबंद्ध किया गया था, यद्यपि युद्ध के अग्रक्षेत्रों में संपर्क स्थापित करने का कार्य हीलियोग्राफ़ और झंडों से ही लिया जाता रहा। संदेश भेजने के लिए टेलिफोन का प्रयोग सर्वप्रथम सन् 1904-05 के रूस जापान युद्ध में और सन् 1907 से ब्रिटिश सेना में किया गया, पर सैन्यदलों में व्यापक रूप से इसका प्रयोग सन् 1914 के विश्वयुद्ध से प्रारंभ हुआ। बेतार के तार का उपयोग भी सर्वप्रथम दक्षिणी अफ्रीका के युद्ध में हुआ, पर सन् 1918 तक यह हयदल की स्वतंत्र टुकड़ियों तक सीमित रहा। युद्ध के अग्रिम क्षेत्रों में उपयोग के लिए, सन् 1919 से 1939 तक के काल में, बेतार के टेलिफोन बनाए गए और इन्हें कवचित टुकड़ियों के उपयोग के लिए विकसित किया गया। सन् 1941 से 1944 के बीच सब सैन्यदलों में रेडियो टेलिफोन का प्रयोग होने लगा। तार वाले टेलिफोनों का प्रयोग निश्चल स्थिति के समय तथा बेतार के टेलिफोनों का चल कार्यवाहियों में सामान्य हो गया। बेतार (wireless) के तार (telegraph) या टेलिफोन के प्रयोग का फल यह हुआ कि भेजे हुए संदेश शत्रु सैन्य द्वारा भी प्राप्य हो गए और इस कारण सुरक्षा के विचार से संदेशों को कूट रूप में भेजना आवश्यक हो गया तथा संकेत विभाग के कर्तव्यों में कूटों तथा बीजांकों को तैयार करने, संबंधित अनुभागों तथा सैन्य टुकड़ियों में इनका वितरण करने और बेतार के तार की शृंखलाओं की जाँच करने का कार्य बढ़ गया। अनुसमुद्री संकेतन एक जहाज से दूसरे जहाज के बीच संकेतन की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। यह कार्य प्राचीन काल से प्रकाश, पाल और झंडों के, विविध प्रयोगों, या तोपों की बाढ़ से, किया जाता रहा है, किंतु ये पुरातन रीतियाँ सर्वथा संतोषजनक सिद्ध नहीं हुई। सन् 1777 में ब्रिटिश जहाजी बेड़े के प्रधान, लॉर्ड हाउ (Howe), ने झंडों द्वारा संदेश भेजने की प्रणाली पर एक पुस्तक तैयार की। बाद में इसें दिए संकेतों में अनेक सुधार हुए, किंतु फिर भी ये संकेत पूर्णत: संतोषजनक नहीं सिद्ध हुए। आगे चलकर जिन संदेशों के लिए निर्देश उपर्युक्त पुस्तक में नहीं थे, उनके लिए 19वीं शती में सेमाफोर तथा स्फुरित लैंपों का प्रयोग किया जाने लगा। सर्चलाइटों (searchlights) में चलकपाट लगाकर और बादलों से प्रकाश का परावर्तन कराकर, संदेश अधिक स्पष्ट और बहुत दूर तक भेजना संभव हो गया। 20वीं शती के प्रारंभ में यह स्पष्ट हो गया कि समुद्र पर संवादवहन के लिए बेतार का तार बड़े काम की चीज है। इसमें शीघ्र प्रगति हुई और सन् 1914 तक बेतार के तार से संकेतन का सब जगह प्रचलन हो गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जहाजी बेड़ों में संकेतन तथा तोपों की मार यिंत्रण के लिए बेतार के तार का प्रयोग पूर्ण रूप से विकसित हो गया और सब जहाजों पर प्रशिक्षित कूटज्ञ, बेतार के तार का प्रयोग जाननेवाले नाविक तथा उच्च योग्यता वाले संकेतज्ञ नियुक्त किए गए। अंतर्राष्ट्रीय संकेतन 19वीं शती के आरंभ में अंतर्राष्ट्रीय प्रयोग के लिए संकेत प्रणालियाँ तैयार और प्रकाशित की गईं। इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध कैप्टेन मैरयैट की प्रणाली थी, जिसमें किसी भी संकेतन के लिए अधिक से अधिक चार झंडों का प्रयोग कर, 9,000 संकेत भेजे जा सकते थे। सन् 1855 में एक समिति ने ऐसा कूट तैयार किया जिसमें 70,000 संकेत थे और 18 झंडों (flags) का प्रयोग कर, (X) और ज़ेड (Z) को छोड़कर, अंग्रेजी वर्णमाला के सब व्यंजनों का निरूपण हो जाता था। सन् 1889 में वाशिंगटन में हुई अंतर्राष्ट्रीय परिषद् ने अंग्रेजी वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर के लिए एक झंडा अर्थात् कुल 26 झंडों का, एक कूट तथा जवाबी पताका (pendant) स्थिर की। इस कूट का प्रयोग प्रथम विश्वयुद्ध में किया गया, पर यह भी असंतोषजनक सिद्ध हुआ। इसलिए सन् 1927 वाली विभिन्न राष्ट्रों की वाशिंगटन परिषद् ने सुधार के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए : (1) रेडियो टेलिग्राफी तथा चाक्षुष संकेतन के लिए अलग अलग संकेत पुस्तकें तैयार की जाएँ, (2) अंकों के लिए दस झंडे तथा तीन प्रतिस्थापित झंडे और बढ़ा दिए जाएँ, (3) मॉर्स के संकेतन को रेडियो टेलिग्राफी के अनुकूल कर दिया जाए, (4) दूरसंकेत और अचल सेमाफोर को बंदल कर दिया जाए तथा (5) जहाजों के संकेताक्षर वे ही होने चाहिए जो रेडियो बुलाने के हो तथा ये चार अक्षरों से बनने चाहिए। इन सुझावों के अनुसार स्थिर निश्चयों में भी आवश्यकतानुसार सामान्य परिवर्तन किए गए हैं। सेमाफोर वर्णमाला का, जिसका उपयोग हाथामें में लिए झंड़ो द्वारा किया जाता है, तथा मॉर्स कोड का, जिसको स्फुर प्रकाश ध्वनि, या बेतार के तार द्वारा संकेतन के काम में लाया जाता है, प्रयोग सभी देश समान रूप में करते हैं। महत्व के सब बंदरगाहों में तूफानों के तथा ज्वारभाटा के आने की सूचनाओं के लिए विशिष्ट संकेत ऊँचाई पर, या मस्तूलों पर, प्रदर्शित किए जाते हैं। वैमानिकीय संकेत वैमानिकी में चाक्षुष संकेतन का स्थान रेडियो टेलिफोन तथा रेडियो टेलिग्राफी ने ले लिया है, किंतु एयरोड्रोम की कार्यविधि का निर्देश करनेवाले कुछ चाक्षुष संकेत एयरोड्रोम की भूमि पर तथा ऊँचे ध्वजदंड पर प्रदर्शित किए जाते हैं। जिन वायुयानों में रेडियो टेलिफोन नहीं होता, उनको एयरोड्रोम नियंत्रक के आदेश मॉर्स कूट में एक विशेष प्रकार के लैंप द्वारा, दिए जाते हैं। अन्य संदेशों और संकेतों के लिए रेडियो टेलिफोन का प्रयोग किया जाता है। रेलवे संकेतन ग्रिगरी ने सन् 1841 में, यातायात की सुरक्षा के लिए, यंत्रचालित सेमाफोर संकेतन की युक्ति निकाली थी, पर बाद में इसका स्थान अन्य रीतियों ने, जैसे रंगीन प्रकाश द्वारा संकेतन, मार्ग परिपथ (track circuit) तथा स्वयंचालित गाड़ीनियंत्रण उपस्कर (automatic train control equipment) ने ले लिया। रंगीन प्रकाश द्वारा संकेतन की एक विधि में तीन रंगों के प्रकाश का प्रयोग किया जाता है। लाल रंग से ""रुक जाओ"", पीले से "आगे के सिग्नल पर रुकने के लिए तैयार रहते हुए आगे बड़ो"" तथा हरे प्रकाश से "आगे बढ़े जाओ"" का संकेत किया जाता है चार प्रकार की प्रकाशवाली विधि में एक के ऊपर दूसरा, ऐसे दो पीले प्रकाशों का प्रयोग भी किया जाता है, जिसका अर्थ होता है कि ""सावधानी से आगे बढ़ो और आगे एक पीले, अथवा दो पीले प्रकाशों पर अन्य संकेत के लिए तैयार रहो।"" मार्गपरिपथवाली रीति में लाइन पर गाड़ी का आगमन एक रिले स्विच द्वारा संकेत प्रचालन परिपथ को खोल देता है। स्वयंचालित गाड़ीनियंत्रण उपस्कर में, रेलपथ पर स्थित ऐसी युक्ति होती है, जो रेल के इंजन तथा गाड़ी के बाहर रहते हुए भी, रेल के इंजन के नियंत्रकों का आवश्यकतानुसार परिचालन करती है। उपर्युक्त रीतियों के सिवाय, संदेशप्रेषण के लिए अब उच्चावृत्ति, लघुपरास रेडियो के तथा रेडार के उपयोग की संभावनाओं की जाँच की जा रही है। संचार
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%9F%20%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%88
नानापट कोंचरोनेकाई
नानापत कोंचारोएनकाई (जन्म 11 सितंबर 2000) एक थाई क्रिकेटर है। वह 2017 महिला क्रिकेट विश्व कप क्वालीफायर में थाईलैंड महिला राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के लिए फरवरी 2017 में खेला था। उन्होंने 2018 के महिला ट्वेंटी 20 एशिया कप में 3 जून 2018 को थाईलैंड के लिए महिला ट्वेंटी 20 अंतर्राष्ट्रीय (मटी20ई) की शुरुआत की। टूर्नामेंट के समापन के बाद, उसे अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) द्वारा थाईलैंड के स्क्वाड के उभरते हुए सितारे के रूप में नामित किया गया था। नवंबर 2018 में, महिला बिग बैश लीग (डब्ल्यूबीबीएल) क्लबों के खिलाफ जुड़नार खेलने के लिए उन्हें महिला वैश्विक विकास दल में नामित किया गया था। अगस्त 2019 में, स्कॉटलैंड में 2019 आईसीसी महिला विश्व ट्वेंटी 20 क्वालीफायर टूर्नामेंट के लिए उन्हें थाईलैंड की टीम में नामित किया गया था। जनवरी 2020 में, उन्हें ऑस्ट्रेलिया में 2020 आईसीसी महिला टी 20 विश्व कप के लिए थाईलैंड की टीम में नामित किया गया था। सन्दर्भ 2000 में जन्मे लोग जीवित लोग
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बैलिस्टिक सीमा
बैलिस्टिक सीमा या सीमा का वेग मतलब वेग जो एक विशेष फेंकने के लिए आवश्यक मज़बूती (समय की कम से कम ५०%) की एक विशेष टुकडे मे घुसे। दूसरे शब्दों में, एक दिया फेंकने के आम तौर पर एक दिए गए लक्ष्य को बेध नहीं होगा जब फेंकने का वेग बैलिस्टिक सीमा से कम है। अवधि बैलिस्टिक सीमा का कवच के संदर्भ में विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है; सीमा का वेग अन्य संदर्भों में प्रयोग किया जाता है। टुकड़े के लिए बैलिस्टिक सीमा का समीकरण, के रूप में रीड और वेन द्वारा निकाली गई: - बैलिस्टिक सीमा - फेंकने के निरंतर प्रयोगात्मक निर्धारित - टुकड़े टुकड़े का घनत्व - स्थिर रैखिक लोचदार संपीड़न सीमा - फेंकने के व्यास - टुकड़े टुकड़े की मोटाई - फेंकने के लिए बड़े पैमाने बैलिस्टिक TM5-855-1 द्वारा सजातीय कवच में छोटे कैलिबर के लिए सीमा है; - बैलिस्टिक सीमा का वेग - फेंकने का कैलिबर - सजातीय कवच की मोटाई - झुकाव का कोण - फेंकने का वजन सन्दर्भ विस्फोटक
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आयलर संकलन
अभिसरण और अपसारी श्रेणी की गणित में आयलर संकलन एक संकलनीय विधि है। अर्थात् यह किसी श्रेणी को एक मान निर्दिष्ट करने की, आंशिक योग के सीमान्त मान वाली पारम्परिक विधियों से अलग एक विधि है। यदि किसी श्रेणी Σan का आयलर रुपांतरण इसके योग पर अभिसरित होता है तो इस योग को मूल श्रेणी का आयलर संकलन कहते हैं। इसी प्रकार अपसारी श्रेणी के लिए मान परिभाषित करने के लिए आयलर योग को श्रेणी के तीव्र अभिसरण के लिए काम में लिया जा सकता है। आयलर योग को (E, q) द्वारा निरुपित किये गये जाने वाली विधियों के एक परिवार के रूप में व्यापकीकृत किया जा सकता है, जहाँ q ≥ 0 है। योग (E, 0) प्रायिक (अभिसारी) योग है जबकि (E, 1) साधारण आयलर योग है। ये सभी विधियाँ वास्तव में बोरेल संकलन से दुर्बल हैं; q > 0 के लिए एबल संकलन के तुल्य होता है। परिभाषा आयलर संकलन एकान्तर चिह्न वाली श्रेणियों के अभिसरण को त्वरित करने और उनके अपसारी योग को ज्ञात करने के लिए काम में लिया जाता है। आयलर संकलन प्रारम्भिक श्रेणी को छोटा करता है क्योंकि इस विधि को अपने आप में पुनरावृत्ति अनुप्रयोग के रूप में उन्नत नहीं किया जा सकता सन्दर्भ गणितीय श्रेणी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%80
खासी
खासी (या खासिया, या खासा) एक जनजाति है जो भारत के मेघालय, असम तथा बांग्लादेश के कुछ क्षेत्रों में निवास करते हैं। ये खासी तथा जयंतिया की पहाड़ियों में रहनेवाली एक मातृकुलमूलक जनजाति है। इनका रंग काला मिश्रित पीला, नाक चपटी, मुँह चौड़ा तथा सुघड़ होता है। ये लोग हृष्टपुष्ट और स्वभावत: परिश्रमी होते हैं। स्त्री तथा पुरुष दोनों सिर पर बड़े बड़े बाल रखते हैं, निर्धन लोग सिर मुँडवा लेते हैं। परिचय खासियों की विशेषता उनका मातृमूलक परिवार है। विवाह होने पर पति ससुराल में रहता है। परंपरानुसार पुरूष की विवाहपूर्व कमाई पर मातृपरिवार का और विवाहोत्तर कमाई पर पत्नीपरिवार का अधिकार होता है। वंशावली नारी से चलती है और सम्पत्ति की स्वामिनी भी वही है। संयुक्त परिवार की संरक्षिका कनिष्ठ पुत्री होती है। समुदाय के लोग बताते हैं कि प्राचीन समय में पुरुष युद्ध के लिए लंबे समय तक घर से दूर रहते थे। ऐसे में परिवार और समाज की देखरेख का जिम्मा महिलाएं संभालती थीं। तभी से यहां महिला प्रधान सिस्टम का चलन है। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि खासी समुदाय में पहले महिलाएं बहुविवाह करती थीं। इसलिए बच्चे का सरनेम उसे जन्म देने वाली मां के नाम पर ही रख दिया जाता था। अब कुछ खासिए शिलांग आदि में संयुक्त परिवार से अलग व्यापार, नौकरी आदि कृषितर वृत्ति भी करने लगे हैं। परंपरागत पारिवारिक जायदाद बेचना निषिद्ध है। विवाह के लिए कोई विशेष रस्म नहीं है। लड़की और माता पिता की सहमति होने पर युवक ससुराल में आना जाना शुरू कर देता है और संतान होते ही वह स्थायी रूप से वहीं रहने लगता है। संबंधविच्छेद भी अक्सर सरलतापूर्वक होते रहते हैं। संतान पर पिता का कोई अधिकार नहीं होता। खासियों में ईश्वर की कल्पना होते हुए भी केवल उपदेवताओं की पूजा होती है। कुछ खासियों ने काली और महादेव जैसे हिन्दू देवदेवियों को अपना लिया है। रोग होने पर ये लोग ओषधि का उपयोग न कर संबंधित देवता को बलि द्वारा प्रसन्न करते हैं। शव का दाह किया जाता है और मृत्यु के तुरन्त बाद काग की और कभी कभी बैल या गाय की भी बलि दी जाती है। मृत्युपरांत महीनों तक कर्मकांड का सिलसिला चलता रहता है और अन्त में अवश्ष्टि अस्थियों को परिवार-समाधिशाला में रखते समय बैल की बलि दी जाती है और इस अवसर पर तीन चार दिन तक नृत्यगान तथा दावतें होती हैं। खासियों का विश्वास है कि जिनका अन्त्येष्टि संस्कार विधिवत् सम्पन्न होता है उनकी आत्माएँ ईश्वर के उद्यान में निवास करती हैं, अन्यथा पशु-पक्षी बनकर पृथ्वी पर घूमती हैं। खासिया खेतिहर हैं और धान के अतिरिक्त नारंगी, पान तथा सुपारी का उत्पादन करते हैं। ये लोग कपड़ा बुनना बिलकुल नहीं जानते और एतत्संबंधी आवश्यकता बाहर से पूरी करते है। खासिया अनेकानेक शाखाओं में विभक्त हैं। खासी, सिंतेंग, वार और लिंग्गम, उनकी चार मुख्य शाखाएँ हैं। इनके बीच परस्पर विवाहसंबंध होता है। केवल अपने कुल या कबीले में विवाहसंबंध निषिद्ध है। प्रत्येक कबीले में राजवंश, पुरोहित, मन्त्री तथा जन सामान्य ये चार श्रेणियाँ हैं। किंतु वार शाखा में विशिष्ट सामाजिक श्रेणियाँ नहीं हैं। कबीले के सरदार या मन्त्री संबंधित विशिष्ट श्रेणी के सदस्य ही बन सकते हैं। एक कबीले में स्त्री ही सर्वोच्च शासक होती है और वह अपने पुत्र अथवा भांजे को लिंगडोह (मुख्य मन्त्री) बनाकर उसके द्वारा शासन करती है। खासी समुदाय की परंपरागत बैठक, जिन्हें दरबार कहा जाता है, उनमें महिलाएं शामिल नहीं होतीं। इनमें केवल पुरुष सदस्य होते हैं, जो समाज से जुड़े राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करते हें और जरूरी फैसले लेते हैं। अनेक खासियों ने पिछले डेढ़-दो सौ वर्ष में ईसाई धर्म ईसाई तथा हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया है, फिर भी विभिन्न मतावलंबी एक ही परिवार के सदस्य हैं। शिलांग खासियों के क्षेत्र में स्थित है; फलत: खासियों पर बाहरी संस्कृति तथा आधुनिक सभ्यता का बराबर प्रभाव पड़ रहा हैं। अब अनेक खासिए व्यापार तथा नौकरी और कुछ पढ़ लिखकर अध्यापकी एवं वकालत जैसे पेशे भी करने लगे हैं। इन्हें भी देखें खासी भाषा सेंग खासी सन्दर्भ भारत की जनजातियाँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B5%E0%A4%A7%E0%A4%BF%20%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BE
अवधि सीमा
एक अवधि सीमा एक कानूनी प्रतिबंध है जो किसी विशेष निर्वाचित कार्यालय में एक अधिकारी की सेवा की कार्यकाल की संख्या को सीमित करता है। जब राष्ट्रपति और अर्ध-राष्ट्रपति प्रणालियों में कार्यकाल की सीमाएं पाई जाती हैं, तो वे एकाधिकार की संभावना को रोकने की एक विधि के रूप में कार्य करते हैं, जहां एक नेता प्रभावी रूप से "जीवन के लिए राष्ट्रपति" बन जाता है। इसका उद्देश्य एक गणतंत्र को वास्तविक तानाशाही (de facto dictatorship) बनने से बचाना है। एक कार्यालयधारक द्वारा सेवा की जाने वाली शर्तों की संख्या पर अवधि सीमा को आजीवन सीमा के रूप में लागू किया जा सकता है,या प्रतिबंधों को उनके द्वारा दी जाने वाली लगातार कार्यकाल की संख्या पर एक सीमा के रूप में लागू किया जा सकता है। इतिहास यूरोप अवधि सीमाएं प्राचीन ग्रीस और रोमन गणराज्य के साथ-साथ वेनिस गणराज्य की हैं।प्राचीन एथेनियन लोकतंत्र में, कई कार्यालयधारक एक ही कार्यकाल तक सीमित थे। परिषद के सदस्यों को अधिकतम दो कार्यकाल की अनुमति थी। स्ट्रैटेगोस की स्थिति अनिश्चित अवधि के लिए रखी जा सकती है। रोमन गणराज्य में, सेंसर के कार्यालय पर एक कार्यकाल की सीमा लगाते हुए एक कानून पारित किया गया था। ट्रिब्यून ऑफ प्लेब्स, एडाइल, क्वैस्टर, प्रेटोर और कौंसल सहित वार्षिक मजिस्ट्रेटों को कई वर्षों तक पुन: निर्वाचित होने से मना किया गया था। तानाशाह का पद इस अपवाद के साथ लगभग अप्रतिबंधित था कि यह एक छह महीने की अवधि तक सीमित था। लगातार रोमन नेताओं ने इस प्रतिबंध को तब तक कमजोर किया जब तक कि जूलियस सीजर एक शाश्वत तानाशाह नहीं बन गया और गणतंत्र को समाप्त नहीं कर दिया। मध्यकालीन यूरोप में नोवगोरोड गणराज्य, प्सकोव गणराज्य, जेनोआ गणराज्य और फ्लोरेंस गणराज्य के माध्यम से अवधि सीमा वापस आ गई। पहली आधुनिक संवैधानिक अवधि सीमा 1795 के संविधान द्वारा फ्रांसीसी प्रथम गणराज्य में स्थापित की गई थी, जिसने फ्रांसीसी निर्देशिका के लिए पांच साल की शर्तें स्थापित कीं और लगातार शर्तों पर प्रतिबंध लगा दिया। 1799 में नेपोलियन ने जूलियस सीजर की तरह ही टर्म लिमिट की प्रथा को समाप्त कर दिया था। 1848 के फ्रांसीसी संविधान ने अवधि सीमाओं को फिर से स्थापित किया, लेकिन इसे नेपोलियन के भतीजे, नेपोलियन III द्वारा समाप्त कर दिया गया। सोवियत संघ के बाद के कई गणराज्यों ने 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद पांच साल की अवधि की सीमा के साथ राष्ट्रपति प्रणाली की स्थापना की। रूस के राष्ट्रपति को अधिकतम दो लगातार कार्यकाल की अनुमति है, लेकिन रूस के संविधान में 2020 के संशोधन ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को इस सीमा से मुक्त कर दिया। बेलारूस के राष्ट्रपति दो कार्यकाल तक सीमित थे, लेकिन 2004 में इस सीमा को समाप्त कर दिया गया था। सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%B7%20%E0%A4%B9%E0%A5%89%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%AE
भारतीय राष्ट्रीय पुरुष हॉकी टीम
भारतीय हॉकी टीम भारत की राष्ट्रीय मैदानी हॉकी टीम है। 1928 में भारतीय हॉकी टीम अंतर्राष्ट्रीय हॉकी महासंघ की पहली गैर यूरोपीय सदस्य टीम बनी। 1928 में, टीम ने अपना पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता और 1956 तक ओलंपिक में भारतीय पुरुष टीम नाबाद रही, लगातार छह स्वर्ण पदक जीते। भारतीय हॉकी टीम ने अबतक आठ ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते है, जो सभी राष्ट्रीय टीमों से अधिक है। इतिहास ग्रीष्मकालीन ओलंपिक भारत ने ओलिंपिक में कुल 12 पदक जीते हैं जिनमे ८ स्वर्ण, एक रजत और तीन कांस्य पदक शामिल हैं। वर्ष 1928 के एम्सटर्मड ओलंपिक में पहला स्वर्ण पदक प्राप्त किया और ओलिंपिक खेलों में वर्ष 1928 से वर्ष 1956 तक लगातार छह स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया था। अन्य दो स्वर्ण वर्ष 1964 में टोक्यो और वर्ष 1980 में मॉस्को ओलंपिक में मिले। 1928 – एम्स्टर्डैम, नीदरलैंड्स 1932– लॉस एंजेलेस, संयुक्त राज्य अमेरिका 1936 – बर्लिन, जर्मनी 1948 – लंदन, यूनाइटेड किंगडम 1952 – हेलसिंकी, फिनलैंड 1956 - मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया 1960 – रोम, इटली 1964 – टोक्यो, जापान 1968 - मेक्सिको सिटी, मेक्सिको 1972 – म्यूनिख, जर्मनी 1980 - मॉस्को, सोवियत रूस 2020 – टोक्यो, जापान एशियाई खेल एशियाई खेलों में भारतीय टीम ने तीन बार स्वर्ण पदक जीता है। पहला स्वर्ण पदक 1966 के बैंकाक (थाईलैंड) एशियाड में भारत ने पाकिस्तान को 1-0 से हरा कर जीता था। दूसरा स्वर्ण पदक 1998 में बैंकाक में हुए एशियाई खेलों में धनराज पिल्ले की अगुवाई में स्वर्ण जीता था। तीसरा स्वर्ण पदक एशियाई खेल 2014 में पाकिस्तान को पेनल्टी शूट आउट में हराकर जीता। इसके साथ ही टीम ने रियो ओलंपिक 2016 के लिये क्वालीफाई कर लिया। कोच वर्त्तमान में ऑस्ट्रेलिया के ग्राहम रीड भारतीय पुरूष हॉकी टीम के कोच हैं। इसके पहले भारत के हॉकी टीम के हरेन्द्र सिंह कोच नियुक्त थे। सन्दर्भ इन्हें भी देखें भारतीय महिला हॉकी टीम भारत की हॉकी टीम भारत में हॉकी राष्ट्रीय पुरुष हॉकी टीम
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6%20%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B2
राजेश्वर प्रसाद मंडल
राजेश्वर प्रसाद मंडल (२० फ़रवरी १९२० - १० अक्टूबर १९९२) न्यायविद, साहित्यकार एवं हिन्दीसेवी थे। पटना उच्च न्यायालय में हिन्दी में न्यायादेश लिखने वाले वे प्रथम न्यायधीश थे। परिचय बहुमुखी प्रतिभा के धनी और हिन्दी में न्यायादेश लिखने वाले पटना उच्च न्यायालय के प्रथम न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेश्वर प्रसाद मंडल ‘मणिराज’ का जन्म मधेपुरा जिला के गढिया में २० फ़रवरी १९२० को हुआ था। आपके दादा रासबिहारी मंडल सुख्यात जमींदार एवं बिहार के अग्रणी कांग्रेसी थे। रासबिहारी मंडल के तीन पुत्र भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल, कमलेश्वरी प्रसाद मंडल तथा बिन्ध्येश्वरी प्रसाद मंडल राजनीति में सक्रिय थे। राजेश्वर पिता भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल और माता सुमित्रा देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे। टीएनबी कॉलेज भागलपुर से अर्थशास्त्र में स्नातक और पटना वि०वि० से एम०ए० करने के बाद इन्होने १९४१ में पटना विधि महाविद्यालय से वकालत की डिग्री हासिल की. १९४० में आपके विवाह पटना में भाग्यमणी देवी से हुआ। राजेश्वर प्रसाद मंडल १९४२ में वकालत पेशे से जुड़े. १९४६ तक मधेपुरा में वकालत करने के बाद ये १९४७ में मुंसिफ के पद पर गया में नियुक्त हुए.१९६६ में ये पटना हाई कोर्ट के डिप्टी रजिस्ट्रार बनाये गए तथा १९६९ में दुमका में एडीजे बने. १९७३ में हजारीबाग के जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में पदस्थापित हुए और फिर १९७९ में पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जैसे उत्कर्ष पद पर. १९८२ में अवकाश ग्रहण करने के पूर्व वे समस्तीपुर जेल फायरिंग जांच समिति के चेयरमैन नियुक्त हुए. १९९० में ये राष्ट्रीय एकता परिषद के सदस्य तथा १९९० में ही पटना उच्च न्यायालय में सलाहकार परिषद के सदस्य जज मनोनीत हुए. १० अक्टूबर १९९२ को इनके जीवन यात्रा का समापन पटना में ही हो गया। उपलब्धियाँ बहुत सी महत्वपूर्ण उपलब्धियों से सजा था उनका जीवन. बहुत अच्छे खिलाड़ी ही नही, बहुत अच्छे इंसान भी थे वे. हिन्दी में न्यायादेश लिखने वाले पटना उच्च न्यायलय के प्रथम न्यायाधीश थे वे. उन्होंने हजार पृष्ठ से भी अधिक विस्तार में साहित्य-सर्जना की जिनमे सभ्यता की कहानी, धर्म, देवता और परमात्मा, भारत वर्ष हिंदुओं का देश, ब्राह्मणों की धरती आदि ग्रंथों में वंचितों के प्रति अपनी पक्षधरता द्वारा यह प्रमाणित किया किया है। ’जहाँ सुख और शान्ति मिलती है’ जैसे रोचक उपन्यास में उन्होंने पाश्चात्य की तुलना में भारतीय संस्कृति का औचित्य प्रतिपादित किया है तो ‘सतयुग और पॉकेटमारी’ कहानी संग्रह में अपनी व्यंग दक्षता का प्रमाण दिया है। ’अँधेरा और उजाला’ के द्वारा उनके नाटककार व्यक्तित्व का परिचय मिलता है तो ‘चमचा विज्ञान’ से कवि प्रतिभा का. सार रूप में कहें तो राजेश्वर प्रसाद मंडल मानवता के पुजारी, रूढियों के भंजक, प्रगतिकामी, सामाजिक परिवर्तन के शब्द-साधक मसीहा और सर्वोपरि एक नेक इंसान थे। न्यायविद हिन्दीसेवी हिन्दी साहित्यकार
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रीता फारिया
रीता फारिया पॉवेल (1945) मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने वाली पहली भारतीय और एशियाई मूल की महिला हैं। वे पहली भारतीय मिस वर्ल्ड हैं, जिन्होने चिकित्सा शास्त्र में विशेषज्ञता हासिल की। शिक्षा एवं करियर मुंबई में 1945 में जन्मी रीता पहली भारतीय और एशियाई मूल की महिला हैं जिन्होंने 1966 में मिस वर्ल्ड का टाइटिल जीता। एक साल मॉ‌डलिंग की ऊंचाइयों को छूने के बाद रीता ने डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की और इस क्षेत्र में अपना कैरियर बनाया। उन्होने मुंबई स्थित ग्रांट मेडिकल कॉलेज और सर जमशेदजी जीजाबाई ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल से एम बी बी एस में स्नातक किया। उसके बाद वे किंग्स कॉलेज एवं अस्पताल, लंदन में उच्च अध्ययन हेतु चली गई। 1971 में उन्होने डेविड पॉवेल से शादी की और 1973 में दोनों डबलिन में रहने लगे, जहां उन्होने डोकटरी की प्रेक्टिस करना शुरू किया। उन्होने दोबारा फैशन की दुनिया में 1998 में फेमिना मिस इंडिया की जज के तौर पर कमबैक किया। वे मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में भी बतौर जज शामिल हो चुकी हैं। सम्मान/पुरस्कार मिस वर्ल्ड 1966 में व्यक्तिगत जीवन उनकी शादी 1971 में हुई। वर्तमान में वे डबलिन, आयरलैंड में अपने एंडोक्राइनोलॉजिस्ट पति डेविड पॉवेलके साथ रहती है। उनके दो बेटे और पाँच पोते-पोतियाँ हैं। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ https://web.archive.org/web/20060908014245/http://www.pageantopolis.com/international/world_1966.htm https://web.archive.org/web/20180129180858/https://www.missworld.com/ 1945 में जन्मे लोग जीवित लोग अंतर्राष्ट्रीय सुन्दरता प्रतियोगिता सुन्दरता प्रतियोगिता भारतीय महिलाएँ महाराष्ट्र के लोग विश्व सुन्दरी प्रवासी भारतीय
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सप्तक
में संगीत, एक सप्तक (: आठवें) या सही सप्तक है के अंतराल के बीच एक संगीत पिच और एक अन्य आधे के साथ या इसकी आवृत्ति है । यह द्वारा परिभाषित किया गया है एएनएसआई की इकाई के रूप में आवृत्ति के स्तर जब लघुगणक का आधार दो है । सप्तक संबंध एक प्राकृतिक घटना है कि किया गया है के रूप में भेजा "साधारण चमत्कार के संगीत", का उपयोग है जो "आम में सबसे संगीत सिस्टम". सबसे महत्वपूर्ण संगीत तराजू आम तौर पर कर रहे हैं का उपयोग कर लिखा आठ नोट्स, और के बीच के अंतराल को पहली और आखिरी नोट एक सप्टक. उदाहरण के लिए, सी मेजर पैमाने पर है, आमतौर पर लिखित C D E F G A B C, प्रारंभिक और अंतिम सीएस जा रहा है एक अलग सप्टक. दो नोट्स के द्वारा अलग एक सप्तक है एक ही पत्र के नाम और कर रहे हैं एक ही पिच वर्ग. अंतराल के बीच पहले और दूसरे harmonics के हार्मोनिक श्रृंखला है एक सप्टक. सप्टक है कभी कभी के रूप में भेजा गया एक पैमानाहै । करने के लिए जोर है कि यह एक सही अंतराल (सहित सामंजस्य, सही चौथा, और सही पांचवें), सप्तक है निर्दिष्ट P8. सप्तक ऊपर या नीचे एक संकेत नोट है, कभी कभी संक्षिप्त ८एक या ८वा (), ८वा bassa (, कभी कभी भी ८वा), या बस ८ के लिए सप्तक द्वारा संकेत दिशा में रखकर इस निशान से ऊपर या नीचे के कर्मचारियों. उदाहरण के लिए, यदि एक नोट की एक आवृत्ति ४४० हर्ट्ज़, नोट एक सप्तक ऊपर है पर ८८० हर्ट्ज़, और नोट के नीचे एक सप्टक है पर २२० हर्ट्ज़. अनुपात की आवृत्तियों के दो नोट एक अलग सप्टक है इसलिए २:१ है । आगे octaves के एक नोट पर होते हैं 2एन बार की आवृत्ति है कि ध्यान दें (जहां n एक पूर्णांक है), इस तरह के रूप में २,४,८,१६, आदि. और उस के पारस्परिक श्रृंखला है । उदाहरण के लिए, 55 हर्ट्ज़ और 440 हर्ट्ज़ से एक हैं और दो octaves से दूर 110 हर्ट्ज़ क्योंकि वे कर रहे हैं १/२ (या 2-1) और 4 (या 22) टाइम्स आवृत्ति, क्रमशः. सप्टक रेंज = लॉग (आधार २) उच्च आवृत्ति कम आवृत्ति के बाद एक सुर , सप्तक सरलतम अंतराल में संगीत है । मानव कान के लिए जाता है, सुना है दोनों नोटों के रूप में किया जा रहा है अनिवार्य रूप से "," एक ही कारण के लिए बारीकी से संबंधित harmonics नोट्स के द्वारा अलग एक सप्तक "अंगूठी" एक साथ जोड़ने, एक सुखदायक ध्वनि करने के लिए संगीत . इस कारण के लिए, नोट्स एक सप्तक भी दिए गए हैं में एक ही नाम के पश्चिमी प्रणाली के संगीत संकेतन के नाम का एक नोट भी है, एक सप्तक ऊपर एक भी ए यह कहा जाता है सप्तक समानक , इस धारणा है कि पिचों कर रहे हैं एक या एक से अधिक octaves अलग कर रहे हैं संगीत की दृष्टि से बराबर कई मायनों में, के लिए अग्रणी सम्मेलन "है कि तराजूकर रहे हैं, विशिष्ट रूप से परिभाषित द्वारा निर्दिष्ट अंतराल के भीतर एक सप्टक. " की अवधारणा पिच होने के रूप में दो आयामों, पिच ऊंचाई (पूर्ण आवृत्ति) और पिच (सप्तक के भीतर सापेक्ष स्थिति), स्वाभाविक सप्तक घेरा है । इस प्रकार सभी C ♯एस, या सभी 1s (यदि C = 0), किसी भी सप्तक का हिस्सा है, एक ही पिच वर्ग . सप्तक के तुल्यता का एक हिस्सा है, सबसे "उन्नत संगीत संस्कृतियों", लेकिन सार्वभौमिक से दूर है में "आदिम" और जल्दी संगीत . भाषा में जो सबसे पुराना मौजूदा लिखित दस्तावेजों पर ट्यूनिंग कर रहे हैं लिखा है, सुमेरियन और अक्कादी , कोई ज्ञात शब्द के लिए "octave". हालांकि, यह माना जाता है कि एक सेट के कीलाकार गोलियाँ है कि सामूहिक रूप से वर्णन नौ-तारवाला साधन ट्यूनिंग के, एक बेबीलोन कूड़े , सात तार के लिए tunings, शेष दो स्ट्रिंग्स धुन करने के लिए दो सप्तक के सात देखते तार लियोन Crickmore हाल ही में प्रस्तावित है कि "सप्तक नहीं हो सकता है के बारे में सोचा एक इकाई के रूप में अपने ही अधिकार में है, लेकिन बल्कि सादृश्य द्वारा पहले दिन की तरह से एक नए सात दिन का सप्ताह". संदर्भ
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मार्शल मैक्लुहान
मार्शल मैक्लुहान (२१ जुलाई १९११ - ३१ दिसंबर १९८०) एक कनाडाई प्रोफेसर, दार्शनिक और बौद्धिक थे। उनका काम मीडिया अध्ययन के मुख्य स्तंभों में से एक के रूप में देखा जाता है, साथ ही विज्ञापन और टेलीविजन उद्योगों में व्यावहारिक तरीके से उपयोग में भी आता है। वे वाक्यांश "ग्लोबल विलेज" (वैश्विक गांव) के जनक हैं। जीवन हर्बर्ट मार्शल मैक्लुहान का जन्म 21 जुलाई 1911 को एडमोंटन, अल्बर्टा, में हुआ था। एल्सी नाओमी (नी हॉली) के बेटे और हर्बर्ट अर्नेस्ट मैक्लुहान दोनों ही कनाडा में पैदा हुए थे। उसका भाई मौरिस दो साल बाद पैदा हुआ था। "मार्शल" उनकी ममिया दादी का सरनेम था। उनकी माँ एक बैपटिस्ट स्कूल की शिक्षिका थीं जो बाद में एक अभिनेत्री बन गई। उनके पिता मेथोडिस्ट थे और एडमोंटन में उनका एक रीयल एस्टेट का व्यवसाय था। विश्व युद्ध प्रथम में विफल होने पर व्यापार भी विफल हो गया और मैक्लुहान के पिता ने उन्हें कनाडाई सेना में भर्ती करा दिया। एक साल की सेवा के बाद, उन्होंने इन्फ्लूएंजा करार किया और कनाडा में बने रहे, सीमा रेखाओं से दूर। 1915 में सेना से अपने निर्वहन के बाद, मैक्लुहान परिवार को लेकर विनीपेग, मैनिटोबा में चले गए, जहाँ मार्शल बड़ा हुआ और स्कूल गया, 1928 में मैनिटोबा विश्वविद्यालय में दाखिला लेने से पहले वह केल्विन टेक्निकल स्कूल में पढ़ रहे थे। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ 1911 में जन्मे लोग १९८० में निधन कनाडा के लोग‎
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A8%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%A8
राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान
राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान (एनआईडी) की स्थापना १९६१ में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत एक स्वायत्रशासी संस्थान के रूप में की गई जो डिजाइन शिक्षा, व्यावहारिक शोध, प्रशिक्षण, डिजाइन परामर्शी सेवाएं और बाहय कार्यक्रमों के क्षेत्र में बहुविषयक अग्रणी संस्थान के रूप में अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर पहचान प्राप्त की है। एनआईडी १२वीं स्तर के विद्यार्थियों के लिए चार वर्षीय डिजाइन में स्नातक डिप्लोमा कार्यक्रम (जीडीपीडी) तथा उन्नत कला/आर्किटेक्चर/प्रौद्योगिकी/इंजीनियरिंग इत्यादि में स्नातकों के लिए दो ढाई-वर्षीय डिजाइन में परा स्नातक कार्यक्रम (पीजीडीपीडी) अपने तीन कैंपसों (अहमदाबाद/गांधीनगर/बैंगलुरू) में कुल १६ डिजाइन डोमेनों में विशिष्टता के साथ चलाता है। एनआईडी का डिजाइन परामर्श सेवाएं तथा बाह्य कार्यक्रम छात्रों को उनके अध्ययन के दौरान डिजाइनों के अभ्यास के अवसर को प्रदान करता है। एनआईडी उद्योग के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे लोगों के लिए डिजाइन तथा डिजाइन प्रबंधन कार्यक्रम में अल्प समय में टेलरमेड अनाज्ञयता कार्यक्रम भी प्रदान करता है। परिचय हाल में घोषित भारत की 'राष्ट्रीय डिजाइन नीति' में एनआईडी को डिजाइन के क्षेत्र में एक प्रमुख संस्थान के रूप में मान्यता दी गई है तथा भारत में डिजाइन शिक्षा के फैलाव की उसे जिम्मेदारी दी गई है। एनआईडी को भारत में डिजाइन शिक्षा और उत्कृष्ट अनुसंधान को प्रोत्साहित करने का दायित्व सौंपा गया है। इनमें विश्वस्तरीय डिजाइनरों की पहचान, प्रोत्साहन तथा विकास के लिए उपयुक्त प्रणालियों के डिजाइन के लिए कदम उठाने का दायित्व शामिल है। इसका अर्थ हुआ कि संस्थान को क्षमतावान डिजाइनर्स चुनने, शिक्षण और भविष्य के लिए डिजाइनर्स तैयार करने हेतु वातावरण बनाने के लिए डिजाइनिंग प्रणाली में नेतृत्व करने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान (एनआईडी) अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर औद्योगिक संप्रेषण, वस्त्र और आईटी समन्वित (प्रायौगिक) डिजाइन के लिए महत्वपूर्ण शिक्षण और अनुसंधान संस्थानों में से एक है। एनआईडी एक राष्ट्रीय उत्कृष्टता प्राप्त स्वायत्त संस्थान है और वह वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन है जिसमें डिजाइन से जुड़े व्यापक क्षेत्र में शिक्षा, अनुप्रयुक्त अनुसंधान, सेवा और उन्नत प्रशिक्षण की व्यवस्था है। एक प्रमुख राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान के रूप में एनआईडी की जिम्मेदारियों का विस्तार इसके सांगठनिक दायरे से अधिक है। इसके दायित्वों में प्रतिभा विकास और देश में डिजाइन के संगत क्षमताओं का विकास करना शामिल है। एनआईडी को व्यावहारिक रूप में लगातार राष्ट्र की क्षमताओं को बढ़ाने तथा डिजाइनर्स के विकास की आवश्यकता है जिनसे भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी और जीवन के स्तर में सुधार होगा। उत्कृष्ट चयन प्रक्रिया के विकास का दायित्व निभाने और अन्य डिजाइन संस्थानों तक इसका विस्तार करने के वास्ते भारत में लघु दृष्टिकोण के साथ यह तय किया गया कि एनआईडी अपनी चयन प्रक्रिया को संशोधित करेगा और अन्य समान डिजाइन संस्थानों में लागू प्रभावी चयन प्रणाली तैयार करने के लिए इसमें जरूरी सुधार करेगा। चयन प्रक्रिया से ऐसे प्रतिभावान व्यक्तियों की पहचान में मदद मिलेगी जिनमें एक डिजाइनर की क्षमता है और इस प्रक्रिया को एक पैमाने के रूप में डिजाइनर संस्थानों द्वारा प्रयोग किया जा सकेगा। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान का जालघर राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान D-Schools: The Global List - BusinessWeek डिजाइन स्कूल गुजरात के महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय भारतीय डिजाइन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AE%E0%A4%AF%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A6%20%E0%A4%96%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%A4
उमय्यद ख़िलाफ़त
उमय्यद खिलाफ़त; (Umayyad Caliphate) हजरत मुहम्मद साहब की मृत्यु के बाद स्थापित प्रथम रशीदुन चार खलीफाओं के बाद उमय्यद इस्लामी खिलाफत का हिस्सा बने, उमय्यद खलीफा बनू उमय्या बंश से या उमय्या के पुत्र जो मक्का शहर से जूड़े हुए थे। उमय्यद परिवार पहले रशीदुन खिलाफत के तीसरे खलीफा उस्मान इब्न अफ्फान (644-656) के अधीन सत्ता में रहे थे लेकिन उमय्यद शासन की स्थापना मुआविया इब्न अबी सुफीयान जो लम्बे समय तक रशीदुन शासन काल में सीरिया के गवर्नर रहे जिस कारण उन्होंने उमय्यद खिलाफत अथवा शासन स्थापना की थी, प्रथम मुस्लिम फितना (गृहयुद्ध) के समय में भी सीरिया उमय्यदो का प्रमुख शाक्ति केन्द्र बना रहा और राजधानी दमिश्क में स्थापित की जिसके साथ उमय्यदो ने मुस्लिम विजय अभियान जारी रखे जिसमें काकेशस, ट्रोक्सियाकिसयाना, सिन्ध, मगरीब (माघरेब) और इबेरिया प्रायद्वीप (अल अन्डालस) की विजय के साथ मुस्लिम दूनिया में शामिल किया गया। उमय्यदो की शक्ति; उमय्यद खलीफाओं ने 11.100.000 वर्ग किलो मीटर (4.300.000 वर्ग मील) क्षेत्र और 62 मिलियन लोग थे जिससे उमय्यद दूनिया की 29 प्रतिशत आबादी पर शासन किया करते जिसके साथ क्षेत्रफल के अनुपात में विश्व के बड़े और महान साम्राज्यो में से एक था। शासन उमय्याद खलीफा धर्मनिरपेक्ष थे। उस समय, उमय्यद के प्रशासनिक कुछ मुसलमानों द्वारा अन्यायपूर्ण माने जाते थे। ईसाई और यहूदी जनसंख्या भी स्वायत्तता थी; उनके न्यायिक मामलों को अपने स्वयं के कानूनों के अनुसार और अपने स्वयं के धार्मिक प्रमुखों या उनके नियुक्त व्यक्तियों के साथ पेश किया गया, हालांकि उन्होंने केंद्रीय राज्य के लिए पुलिस के लिए एक कर का भुगतान किया। हजरत मुहम्मद सहाब ने अपने जीवनकाल के दौरान स्पष्ट रूप से कहा था कि इब्राहीम धार्मिक समूह को अपने धर्म का अभ्यास करने की अनुमति दी जानी चाहिए, बशर्ते वे जियाजा कर का भुगतान करें। रशीदुन खलीफा उमर इब्न अल खत्ताब ने भी मुसलमानों और गैर-मुस्लिम गरीबों की कल्याणकारी स्थिति को जारी रखा था, केवल मुस्लिमों के लिए जकात (धार्मिक कर्तव्य) कर लगाया गया था। मुआविया की पत्नी मयसुम (यजीदजीदमां) भी एक ईसाई थी। जिस कारण राज्य में मुसलमानों और ईसाइयों के बीच संबंध स्थिर थे। उमय्यद सीरिया में खुद को बचाने के लिए चिंतित किए. क्योंकि थे ईसाई बाइजान्टिन के साथ लगातार लड़ाई में शामिल थे, और प्रमुख पदो पर ईसाइयों द्वारा आयोजित किया गया था, जिनमें से कुछ उन परिवारों से सम्बन्ध रखते थे जिन्होंने बाइजांटाइन सरकारों में सेवा की थी ईसाइयों का रोजगार धार्मिक एकीकरण की व्यापक नीति का हिस्सा था जो सीरिया में, विजय प्राप्त प्रांतों में बड़ी ईसाई आबादी की उपस्थिति से जरूरी था। इस नीति ने मुआविया की लोकप्रियता को भी बढ़ाया और सीरिया को अपनी शक्ति आधार के रूप में मजबूत किया। जिससे अरब जनजातियों के बीच प्रतिद्वंद्वियों ने सीरिया के बाहर प्रांतों में अशांति पैदा की थी, अनेक मुस्लिम फितने (गृहयुद्ध) उत्पन्न हुए जिससे उमय्यदो की शक्ति क्षीण होती गई और अरब क्षेत्र से उमय्यदो के पतन का मुख्य कारण बना। 744-747 में तीसरे मुस्लिम गृहयुद्ध द्वारा कमजोर उमायदाओं को अंततः 750 ईस्वी या 132 हिजरी में अब्बासी क्रांति द्वारा गिरा दिया गया। जिसके बाद उमय्यद परिवार की एक शाखा उत्तरी अफ्रीका और अल- अन्डलस चली गई, जहां उन्होंने कर्दोबा के खलीफा की स्थापना की, जो कि 1031 तक जारी रही। उमय्यद खलीफाओं की सूची सन्दर्भ उमय्यद ख़िलाफ़त उमय्यद खलीफा ख़िलाफ़त
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AD%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3
भानुभक्तीय रामायण
भानुभक्तीय रामायण या सामान्य तौर पर रामायण वाल्मीकीय रामायण का आदिकवि भानुभक्त आचार्य द्वारा अनुदित संस्करण है। यह आचार्य की मृत्यु के बाद 1887 में अपने पूर्ण रूप में प्रकाशित हुआ था। इसे नेपाली में प्रकाशित पहला महाकाव्य माना जाता है और इसीलिए इसमें उपयुक्त लय को भानुभक्तीय लय का नाम दिया गया है। नेपाली भाषा के पहले महाकाव्य निर्माण करनेवाले व्यक्ति के तौर पर परिचित भानुभक्त को इसीलिए नेपाल के आदिकवि की उपाधि दी गई है। पृष्ठभूमि इस किताब के प्रकाशन को नेपाल में हिंदू धर्म के प्रजातंत्रीकरण में उठाया गया पहला क़दम माना जाता है क्योंकि इसके माध्यम से आम जनता को अपनी मातृभाषा में हिंदू इतिहास के दो स्तंभों में से एक की पहुँच प्राप्त हुई, जिसकी वजह से धर्म ग्रंथों की शिक्षा और व्याख्या में ब्राह्मण पंडितों के नायकत्व पर रोक लगा। दूसरी ओर, कई लोग नेपाल में अन्य भाषाओं के बजाय नेपाली भाषा और साहित्य के नायकत्व स्थापित करवाने में निर्वाहित भूमिका को कारण बताते हुए इस किताब की निंदा करते हैं। यह किताब और इसके रचयिता को नेपाल के बाहर भी नेपाली समुदायों में उच्च दर्जा दिया जाता है। विकास और प्रकाशन इतिहास भानुभक्तीय रामायण यहाँ-वहाँ थोड़े बदलाव के सिवा अधिकांश तौर पर वाल्मीकीय रामायण से अनुवाद किया गया है। आचार्य ने 1844 तक बालकांड का अनुवाद और 1853 तक युद्धकांड और उत्तरकांड का अनुवाद समाप्त कर लिया था। 1869 में आचार्य की मृत्यु हुई। 1887 में संपूर्ण भानुभक्तीय रामायण का प्रकाशन हुआ। रूपांतरण भानुभक्तीय रामायण अंग्रेज़ी सहित विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया है। 1990 के दशक में सुबह के धार्मिक प्रसारण के तौर पर रेडियो नेपाल में महाकाव्य का प्रसारण किया जाता था। उसी दशक में म्यूज़िक नेपाल ने भी इसका श्रव्य सार्वजनिक किया। महाकाव्य के विभिन्न अंशों को ख़ुद की कविताओं के तौर पर नेपाली भाषा और साहित्य से संबंधित किताबों में समावेश किया गया है। इन्हें भी देखें रामायण मुनामदन माधवी संदर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%20%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%B8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2
जिम्मी जायसवाल
जिम्मी जायसवाल (जन्म 27 फरवरी 2003) एक भारतीय संगीत कलाकार और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर है इनका जन्म बिहार राज्य के सीतामढ़ी जिले के बैरगनिया शहर में हुआ था इन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत 2021 में अपना पहला साउंडट्रैक ''फायरफॉल ब्लास्ट'' यूट्यूब पर पेश कर के की थी और कुछ दिनों बाद इन्होने Spotify, YouTube Music, Apple Music, Amazon Music, iTunes, जैसे विभिन्न संगीत प्लेटफार्मों पर अपना साउंडट्रैक जारी किया। सन्दर्भ १. ↑ २. ↑ ३. ↑ बाहरी कड़ियां फेसबुक पर जिम्मी जायसवाल इंस्टाग्राम पर जिम्मी जायसवाल यूट्यूब पर जिम्मी जायसवाल साउंडक्लाउड पर जिम्मी जायसवाल
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%9A%20%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%97
बलोच लोग
बलोच, बलौच या बलूच दक्षिणपश्चिमी पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रान्त और ईरान के सिस्तान व बलूचेस्तान प्रान्त में बसने वाली एक जाति है। यह लोग मुख्य रूप से वस्त्र सिलने का कार्य करते है और यह पठान नही होते है ।बलोच भाषा बोलते हैं, जो ईरानी भाषा परिवार की एक सदस्य है और जिसमें अति-प्राचीन अवस्ताई भाषा की झलक मिलती है (जो स्वयं वैदिक संस्कृत की बड़ी क़रीबी भाषा मानी जाती है। बलोच लोग क़बीलों में संगठित हैं। वे पहाड़ी और रेगिस्तानी क्षेत्रों में रहते हैं और आसपास के समुदायों से बिलकुल भिन्न पहचान बनाए हुए हैं। एक ब्राहुई नामक समुदाय भी बलोच माना जाता है, हालांकि यह एक द्रविड़ भाषा परिवार की ब्राहुई नाम की भाषा बोलते हैं। सन् २००९ में बलोच लोगों की कुल जनसंख्या ९० लाख पर अनुमानित की गई थी। इसमें से लगभग ६०% पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रान्त में और २५% ईरान के सिस्तान व बलूचेस्तान प्रान्त में रहते हैं। पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रान्त के दक्षिणी भाग में भी बहुत से बलोच रहते हैं। अफ़्ग़ानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ओमान, बहरीन, कुवैत और अफ़्रीका के कुछ भागों में भी बलोच मिलते हैं। बलोच लोग अधिकतर सुन्नी इस्लाम के अनुयायी होते हैं। ईरान में शियाओं की बहुतायत है, इसलिए वहाँ इनकी एक अलग धार्मिक पहचान है। मुख्य क़बीले बलोचों के कुछ मुख्य क़बीले इस प्रकार हैं: बुगटी (): यह बलोच-भाषी हैं और इन्हें बलोचिस्तान का सब से शक्तिशाली क़बीला माना जाता है। इनकी अनुमानित संख्या ३ लाख है। मर्री (): यह बलोच-भाषी लोग पाकिस्तान के बलोचिस्तान के कोहलू, सिबी, जाफ़राबाद और नसीराबाद ज़िलों के निवासी हैं। इनकी संख्या २ लाख अनुमानित की गई है। यह अलगाववादी विचारधारा से ख़ुंख़ार तरीके से लड़ने के लिए पहचाने गए हैं। मेंगल (): यह ब्राहुई-भाषी हैं और इनका क़बीला दूसरा सब से बड़ा क़बीला माना जाता है। यह बलोचिस्तान के चग़इ, ख़ुज़दार और ख़ारान ज़िलों में रहते हैं। बिज़ेंजो (): यह बलोचिस्तान के अवारान ज़िले में रहते हैं। इस क़बीले से एक ग़ौस बख़्श बिज़ेंजो नामक बलोच राष्ट्रवादी नेता प्रसिद्ध हुए थे जो १९७२-७३ में बलोचिस्तान के राज्यपाल भी रहे। लांगो (): यह बलोचिस्तान के मध्य में रहते हैं। लांगो क़बीले में प्राथमिक रूप से बलोची बोली जाती है लेकिन बहुत से लोग ब्राहुई भी द्वितीय भाषा के रूप में बोलतें हैं। बंगुलज़ई (): यह एक ब्राहुई-भाषी क़बीला है और बलोचिस्तान के बड़े क़बीलों में गिना जाता है। मज़ारी (): यह बलोचिस्तान का बहुत ही प्राचीन क़बीला माना जाता है। "मज़ारी" शब्द का अर्थ बलोची भाषा में "सिंह" होता है। इनका क्षेत्र पंजाब प्रान्त में राजनपुर ज़िला है जो बलोचिस्तान की सीमा पर पड़ता है। जट ():पंजाब (पश्चमी पंजाब), सिंध, बलूचिस्तान में बसा हुआ एक जट बलोच क़बीला। इनमें से बहुत अब सिन्धी, पंजाबी, बलूच और सिराइकी भाषाएँ बोलते हैं। नुत्कानी (): यह बलोच क़बीला सदियों पहले बलोचिस्तान से चलकर पंजाब से आ बसा। लग़ारी (): पंजाब और सिंध में बसा हुआ एक बलोच क़बीला। इनमें से बहुत अब सिन्धी, पंजाबी और सिराइकी भाषाएँ बोलते हैं, लेकिन फिर भी अपनी बलोच पहचान बनाए हुए है होतबलोच,,लशारी* यह कबीला पंजाब पाकिस्तान हिंदुस्तान के राजस्थान उत्तर प्रदेश वै गुजरात में बसा हुआ है सिराइकी ,पंजाबी गुजराती और सिंधी भाषा बोलते हैं रीति रिवाज बलोच पुरुष शलवार कमीज़ पहनते हैं और बलोच टोपी की भी विशेष पहचान है। बलोच स्त्रियाँ खुले चोग़े और लेहंगे पहनती हैं, जिसपर अक्सर शीशे के टुकड़े लगे होते हैं। औरतें अपना सर एक "सरिग" नाम के वस्त्र से ढकती हैं। इनमें ज़ेवर बहुत लोकप्रीय हैं, ख़ासकर कान में पहनने वाले "दोर" नाम के भारी झुमके जिनको सोने की पतली ज़ंजीरों से सर पर बाँधा जाता है ताकि भार से कानों को नुक़सान न पहुँचे। वे अपने चोग़ों को सामने से बंद करने के लिए एक "तसनी" नाम के सोने के ज़ेवर का भी प्रयोग करतीं हैं। बलोच लोगों में धार्मिक कट्टरवाद बहुत कम मिलता है और राष्ट्रीयता की भावना काफी प्रबल है। बलोचिस्तान के ईरानी और पाकिस्तानी दोनों हिस्सों में अलगाववादी विद्रोह समय-समय पर होते रहे हैं। ईरान में शिया-सुन्नी अलगाव को लेकर उनमें भिन्नता की भावना है। गाना-बजाना बलोचों की संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण है और इसमें ढोल का प्रयोग बहुत होता है (इसे बलोचिस्तान में दोहोल कहा जाता है)। **हिंदुस्तान के राजस्थान पंजाब गुजरात में बलोच लोगों का चादर कुर्ता सर पर पगड़ी चमड़े की जूती पहनते है, महीलाऐ लहंगा कुर्ता सलवार कमीज सर पर ओढ़नी कोटी और विशेष लोई पहनती हैं इन्हें भी देखें बलूचिस्तान (पाकिस्तान) बलोच भाषा और साहित्य बलोच राष्ट्रवाद बलूचिस्तान का इतिहास बाहरी कड़ियाँ यु-ट्यूब पर बलोची लोकसंगीत सन्दर्भ बलोच समुदाय बलोचिस्तान पाकिस्तान की जातियाँ ईरान की मानव जातियाँ मानव जातियाँ हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
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चार्ल्स मेसियर
Articles with hCards residenceCharles Messier चार्ल्स मेसियर ( ; 26 जून 1730 - 12 अप्रैल 1817) एक फ्रांसीसी खगोलशास्त्री थे। उन्होंने 110 नीहारिकाओं और फीके तारे के समूहों वाली एक खगोलीय सूची प्रकाशित की, जिन्हें मेसियर वस्तुओं के रूप में जाना जाने लगा। सूची के लिए मेसियर का उद्देश्य खगोलीय पर्यवेक्षकों को आकाश में स्थायी और क्षणिक, दृष्टि में फैलने वाली वस्तुओं के बीच अंतर करने में मदद करना था। जीवनी मेसियर का जन्म फ्रांस के लोरेन क्षेत्र में बैडोनविलर में हुआ था, जो फ्रांकोइस बी. ग्रैंडब्लाइज़ और निकोलस मेसियर, एक कोर्ट अशर के बारह बच्चों में से दसवें थे। उनके छह भाइयों और बहनों की युवावस्था में ही मृत्यु हो गई, और उनके पिता की 1741 में मृत्यु हो गई। 1744 में महान छह-पूंछ वाले धूमकेतु की उपस्थिति और 25 जुलाई 1748 को अपने गृहनगर से दिखाई देने वाले एक कुंडलाकार सूर्य ग्रहण ने खगोल विज्ञान में चार्ल्स की रुचि को प्रेरित किया था। 1751 में, मेसियर ने फ्रांसीसी नौसेना के खगोलशास्त्री जोसेफ निकोलस डेलिसले की नौकरी की, जिन्होंने उन्हें अपनी टिप्पणियों को सावधानीपूर्वक लिखने का निर्देश दिया। मेसियर का पहला प्रलेखित अवलोकन 6 मई 1753 के बुध पारगमन का था। उसके बाद क्लूनी होटल और फ्रांसीसी नौसेना वेधशालाओं में उनकी टिप्पणियों की पत्रिकाएँ छपीं। 1764 में, मेसियर को रॉयल सोसाइटी का एक छात्र बनाया गया था; 1769 में, उन्हें रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज का एक विदेशी सदस्य चुना गया; और 30 जून 1770 को वह फ्रेंच एकेडमी ऑफ साइंसेज के लिए चुने गए। मेसियर ने 13 धूमकेतुओं की खोज की: सी/1760 बी1 (मेसियर) C/1763 S1 (मेसियर) सी/1764 ए1 (मेसियर) सी/1766 ई1 (मेसियर) सी/1769 पी1 (मेसियर) डी/1770 एल1 ( लेक्सेल ) C/1771 G1 (मेसियर) C/1773 T1 (मेसियर) C/1780 U2 (मेसियर) C/1788 W1 (मेसियर) C/1793 S2 (मेसियर) C/1798 G1 (मेसियर) सी / 1785 ए 1 (मेसियर- मेकैन ) उन्होंने धूमकेतु C/1801 N1 की भी सह-खोज की, एक खोज जिसे पोंस, मेचेन और बौवार्ड सहित कई अन्य पर्यवेक्षकों के साथ साझा किया गया। ( धूमकेतु पोंस-मेसियर-मेचेन-बौवार्ड ) अपनी अंतिम वर्षों में मेसियार ने एक पुस्तक प्रकाशित की जिसमें उस समय के फ्रांसीसी सम्राट नेपोलियन बोनापार्ट के जन्म को १७६९ के महान धूमकेतु के आने की घटना से जोड़ दिया। माइक मेयर के अनुसार :मेसियर को पेरिस के पेरे लाचाइज़ कब्रिस्तान में सेक्शन ११ में दफनाया गया है। कब्र कमजोर रूप से खुदी हुई है, और फ्रेडरिक चोपिन की कब्र के पास है, थोड़ा पश्चिम और सीधे उत्तर में, और हॉरोलॉजिस्ट अब्राहम-लुई ब्रेगुएट के छोटे मकबरे के पीछे। मेसियर की सूची धूमकेतु खोजने के शौक ने मेसियर को रात के आकाश में लगातार स्थिर विसरित वस्तुओं के सामने आने के लिए प्रेरित किया, जिन्हें गलती से धूमकेतु समझा जा सकता है। उन्होंने अपने मित्र और सहायक पियरे मेकैन (जिन्होंने कम से कम 20 वस्तुओं को ढूंढा होगा ) के सहयोग से, उनकी एक सूची तैयार की, ताकि वे उन धूमकेतुओं में समय बर्बाद न कर सकें जिन्हें वे ढूंढ रहे थे। प्रविष्टियां अब 39 आकाशगंगा, 4 ग्रह नीहारिका, 7 अन्य प्रकार के नीहारिकाएं, और 55 तारा गुच्छों के रूप में जानी जाती हैं। मेसियर ने अपना अवलोकन 100 मिमी (चार इंच) के अपवर्तक दूरबीन के साथ पेरिस, फ्रांस के शहर केंद्र में स्थित होटल डी क्लूनी (अब मुसी नेशनल डू मोयेन एगे ) से किया। उनके द्वारा संकलित सूची में केवल आकाश के क्षेत्र में उत्तरी आकाशीय ध्रुव से लेकर लगभग -35.7 ° के झुकाव तक पाई जाने वाली वस्तुएं शामिल हैं जिन्हें मेसियर देख सकता थे। वे वैज्ञानिक रूप से वस्तु के प्रकार, या स्थान के आधार पर व्यवस्थित नहीं होते हैं। मेसियर के कैटलॉग के पहले संस्करण में 45 वस्तुएँ शामिल थीं और 1774 में पेरिस में फ्रेंच एकेडमी ऑफ साइंसेज की पत्रिका में प्रकाशित हुई थीं। अपनी स्वयं की खोजों के अलावा, इस संस्करण में अन्य खगोलविदों द्वारा पहले देखी गई वस्तुओं को शामिल किया गया था, जिसमें 45 में से केवल 17 वस्तुओं की खोज मेसियर ने स्वयं की थी। 1780 तक यह सूची बढ़कर 80 वस्तुओं की हो गई थी। सूची का अंतिम संस्करण 1781 में प्रकाशित किया गया था, कॉननेस्स डेस टेम्प्स के 1784 के अंक में। मेसियर वस्तुओं की अंतिम सूची बढ़कर 103 हो गई थी। 1921 और 1966 के बीच कई मौकों पर, खगोलविदों और इतिहासकारों ने अंतिम संस्करण प्रकाशित होने के तुरंत बाद, मेसियर या मेकैन द्वारा देखी गई सात अन्य वस्तुओं के होने के प्रमाण की खोज की। ये सात वस्तुएँ, एम104 से एम110 तक खगोलविदों द्वारा "आधिकारिक" मेसियर वस्तुओं के रूप में स्वीकार किए जाते हैं। वस्तुओं के मेसियर पदनाम, एम१ से एम110, आज भी पेशेवर और शौकिया खगोलविदों द्वारा उपयोग किए जाते हैं और उनकी सापेक्ष चमक उन्हें शौकिया खगोलीय समुदाय में लोकप्रिय वस्तु बनाती है। विरासत चंद्र क्रेटर मेसियर और क्षुद्रग्रह 7359 मेसियर को उनके सम्मान में नामित किया गया था। यह भी देखें गहरे आकाश की वस्तु मेसियर वस्तुओं की सूची मेसियर वस्तु मेसियर मैराथन काल्डवेल कैटलॉग टिप्पणियाँ संदर्भ बाहरी कडियाँ द्वारा एक आभासी प्रदर्शनी पेरिस ऑब्जर्वेटरी डिजिटल लाइब्रेरी पर चार्ल्स मेसियर की पांडुलिपियां खगोलशास्त्री विकिपरियोजना खगोलशास्त्र लेख फ्रांसीसी खगोलशास्त्री 1730 में जन्मे लोग १८१७ में निधन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A4%B2%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%20%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A6
सकल विश्व उत्पाद
सकल विश्व उत्पाद (Gross world product (GWP)) विश्व के सभी देशों का संयुक्त सकल राष्ट्रीय उत्पाद है। चूंकि पूरे विश्व के आयात और निर्यात एक दुसरे को संतुलित करते हैं, अत: यह कुल वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के बराबर भी होता है। विश्व बैंक के अनुसार, 2013 का सांकेतिक (नाममात्र) GWP लगभग $ 75.59 ट्रिलियन (लाख करोड़) था। 2017 में, CIA के वर्ल्ड फैक्टबुक के अनुसार, GWP सांकेतिक (नाममात्र) के संदर्भ में 80.27 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के आसपास था और क्रय-शक्ति समता (PPP) के मामले में लगभग 127.8 ट्रिलियन अंतर्राष्ट्रीय डॉलर था। 2017 में प्रति व्यक्ति PPP GWP वर्ल्ड फैक्टबुक के अनुसार लगभग $ 17,500 था। हाल ही में हुई वृद्धि ऐतिहासिक और प्रागैतिहासिक अनुमान इन्हें भी देखें List of countries by GDP growth List of countries by GDP (nominal) List of countries by GDP (PPP) World economy World population टिप्पणियाँ सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ CIA data on GWP in The World Factbook IMF database – contains continuously updated World Economic Outlook tables and reports Global economic indicators Gross domestic product
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE
यात्रा
यात्रा दो एक-दूसरे से दूरी रखने वाले भौगोलिक स्थानों के बीच लोगों के आने या जाने को कहते हैं। यात्रा पैदल, बाइसिकल, वाहन, विमान, नाव, बस, जलयान या अन्य साधन से, सामान के साथ या उसके बिना, करी जा सकती है। यात्रा के विभिन्न चरणों के बीच अलग-अलग स्थानों पर कुछ समय के लिए ठहरा भी जा सकता है। कुछ यात्राएँ एक ही दिशा में होती हैं जबकि अन्य में वापस प्रारम्भिक स्थान पर लौटा जाता है। यात्रा करने के कारणों में पर्यटन, मनोविनोद, अनुसंधान, व्यापार, तीर्थ-दर्शन, अभिगमन (कम्यूटिंग), एक स्थान छोड़कर किसी नये स्थान में बसने के लिए प्रवास, किसी स्थान पर आक्रमण करना या किसी युद्ध-स्थल से भागकर शरणार्थी होना, इत्यादि शामिल हैं। इन्हें भी देखें नियमित अभिगमन मानव प्रवास यात्रावृत्तांत बाहरी कड़ियाँ ट्रिप-इन्वाइट - यात्रा को आसान बनाएं सन्दर्भ पर्यटन पर्यटन क्रियाएँ यातायात
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सुचित्रा कृष्णमूर्ति
सुचित्रा कृष्णमूर्ति एक भारतीय अभिनेत्री, लेखिका, चित्रकार और गायक हैं। व्यक्तिगत जीवन उन्होंने शेखर कपूर से विवाह किया। उनके एक पुत्री है जिसका नाम कावेरी है। फरवरी 2007 में उनका तलाक हो गया। फ़िल्में रण (जनवरी 2010) ... नलिनी कश्यप मित्तल वर्सिस मित्तल" (2010) ... करुणा माहेश्वरी कर्मा कन्फ़्यूजन एंड होली (2009) ... सुजाता आग (2007) .... कविता माय वाइफ़'ज़ मर्डर (2005) ... सैला कभी हाँ कभी ना (1994) ... आना किलुक्कम्पेट्टी (1991) ... अनु चुनौती (1987) टीवी धारावाहीक विश्व'' (1999) शिवराजकुमार, अनन्तनाग, सुहासिनी के साथ कन्नड़ फ़िल्म सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Suchitra Krishnamoorthi Official Website The Hindu, Jan 2009 Hindustan Times Jan 09 Times of India जून 2005 https://web.archive.org/web/20090228213337/http://www.shekharkapur.com/blog/archives/2009/01/its_slumdog_mil.htm जीवित लोग भारतीय अभिनेत्री भारतीय फ़िल्म अभिनेत्री हिन्दी फ़िल्म अभिनेत्री 1970 में जन्मे लोग
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लंदन घोषणा
लंदन घोषणा, 1949 के राष्ट्रमंडल प्रधानमंत्रियों के सम्मेलन में, भारत के एक गणतंत्र संविधान परवर्तित करने के बाद राष्ट्रमंडल में सदस्यता के मुद्दे पर जारी की गयी एक घोषणा थी। 28 अप्रैल 1949 को प्रकाशित इस घोषणा ने आधुनिक राष्ट्रमंडल के रूप को जन्म दिया था। भारतीय राजनेता वी के कृष्ण मेनन द्वारा प्रारूपित इस घोषणा में दो मुख्य प्रावधान थे: इसने राष्ट्रमंडल को ऐसे सदस्यों, जो ब्रिटिश डोमिनियन नहीं थे, को भी शामिल करने का रास्ता खोल दिया अतः गणराज्य और स्वदेशी राजतंत्र भी अब राष्ट्रमंडल में शामिल हो सकते थे, तथा इसने "ब्रिटिश राष्ट्रमंडल" के नाम को बदल कर "राष्ट्रों का राष्ट्रमंडल" कर दिया। इस घोषणा ने राजा जॉर्ज षष्ठम् को राष्ट्रमंडल के प्रमुख के रूप में मान्यता दी। तत्पश्चात उनकी मृत्यु के बाद, राष्ट्रमंडल नेताओं ने उस क्षमता में रानी एलिजाबेथ द्वितीय को भी इस पद की पहचान प्रदान किया। पृष्टभूमि व प्रभाव पूर्वतः राष्ट्रमण्डल के सारे देश एक दूसरे से स्वतंत्र होने के बावजूद, ब्रिटिश संप्रभु के प्रजाभूमि हुआ करते थे, अर्थात सरे देश स्वतंत्र रूप से नामात्र रूप से ब्रिटिश संप्रभु को अपना शासक मानते थे। परंतु १९५० में भारत ने स्वतंत्रता के पश्चात स्वयं को गणराज्य घोषित किया, और ब्रिटिश राजसत्ता की राष्ट्रप्रमुख के रूप में संप्रभुता को भी खत्म कर दिया। परंतु भारत ने राष्ट्रमण्डल की सदस्यता बरक़रार राखी। इसने राष्ट्रमंडल के संसथान में ऐसे परिवर्तनों के लिए रास्ता बनाया जोकी विकासशील राजनीतिक स्वतंत्रता और राष्ट्रमंडल देशों के गणराज्य होने के अधिकार के साथ-साथ निष्ठा की समानता को दर्शाता था, जोकी 1926 के बालफोर घोषणा एवं वेस्टमिंस्टर की संविधि, १९३१ की आधारशिला थी। इस विषय पर प्रमुख चिंता, कनाडा के प्रधान मंत्री, लुईस सेंट लॉरेंट द्वारा प्रकट की गयी थी, जिन्होंने ही समझौता के रूप में "राष्ट्रमंडल के प्रमुख" के पद का प्रस्ताव रखा था। ब्रिटिश संप्रभु के लिए "राष्ट्रमंडल के प्रमुख" का पद बनने के वजह से, किसी भी राज्य को राष्ट्रमंडल का हिस्सा होने के लिए नाममात्र के लिए भी ब्रिटिश राजमुकुट के अधीन होने की आवश्यकता नहीं थी। इसके बाद से, राष्ट्रमण्डल देशों में, ब्रिटिश संप्रभु को (चाहे राष्ट्रप्रमुख हों या नहीं) "राष्ट्रमण्डल के प्रमुख" का पद भी दिया जाता है, जो राष्ट्रमण्डल के संगठन का नाममात्र प्रमुख का पद है। इस पद का कोई राजनैतिक अर्थ नहीं था। परिणाम भारत के सन्दर्भ में इस घोषणा में यह कहा गया है: इसी बात को भविष्य के सभी गणतांत्रिक व राजतांत्रिक देशों की सदस्यता के लिए काफी समझा जाता है। राष्ट्रमंडल में सम्मिलित होने के सन्दर्भ में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में यह बयान दिया था: भारत 1950 में एक गणराज्य बन गया एवं राष्ट्रमंडल में बना रहा। जबकि, आयरलैंड, जो उसी स्थिति में था, ने संसदीय अधिनियम के तहत 18 अप्रैल 1949 को खुद को एक गणतंत्र घोषित किया और राष्ट्रमंडल छोड़ दिया। इन्हें भी देखें बॅल्फ़ोर घोषणा, १९२६ वेस्टमिंस्टर की संविधि, १९३१ राष्ट्रमण्डल ब्रिटिश राजतंत्र राष्ट्रमण्डल प्रदेश राष्ट्रमंडल के प्रमुख वी के कृष्ण मेनन सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ राष्ट्रमण्डल ब्रिटिश राजतंत्र भारत की विदेश नीति
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सैंड्रा बुलक
सैंड्रा एनेट बुलक (, जन्म २६ जुलाई १९६४) एक अमरीकी अभिनेत्री व निर्माता है जो १९९० के दशक में डेमोलिशन मैन, स्पीड, द नेट, अ टाइम टू किल और व्हाइल यु वर स्लीपिंग जैसी सफल फ़िल्मों में भूमिकाओं के कारण प्रकाश्ज्योत में रही। नई सदी में वे मिस कांजिनियालिटी, द लेक हाउस और क्रैश जैसी फ़िल्मों में नज़र आई। २००७ में उन्हें १४वि सबसे रइस महिला सिलेब्रिटी का ख़िताब दिया गया (कुल संपत्ति $८५ मिलियन)। २००९ में बुलक ने दो व्यापारिक दृष्टी से सफल फ़िल्में, द प्रपोज़ल और द ब्लाइंड साइड में भूमिका निभाई। उन्हें द ब्लाइंड साइड में एनी टूओही की भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का गोल्डेन ग्लोब पुरस्कार, मुख्य भूमिका में महिला अभिनेत्री द्वारा अप्रतिम अभिनय का स्क्रीन एक्टर्स गिल्ड अवार्ड और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। वे २०१२ की गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स की पुस्तक में ($५६ मिलियन के साथ) उच्च आमदनी वाली अभिनेत्री के रूप में दर्ज है। बाहरी कड़ियाँ अमेरिकी अभिनेत्री जीवित लोग अमेरिकी फिल्म निर्माता 1964 में जन्मे लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%AA%20%E0%A4%B8%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9F
हीप सॉर्ट
हीप सॉर्ट (Heapsort) बाइनरी हीप डेटा संरचना पर आधारित एक तुलना आधारित सॉर्टिंग (sorting) तकनीक है। यह चयन प्रकार के समान है, जहां हम सबसे पहले अधिकतम तत्व ढूंढते हैं और अंत में अधिकतम तत्व रखते हैं। शेष तत्व के लिए हम उसी प्रक्रिया को दोहराते हैं। बाइनरी हीप क्या है? हमें पहले एक पूर्ण बाइनरी ट्री परिभाषित करते हैं। एक पूर्ण बाइनरी ट्री एक बाइनरी ट्री है जिसमें हर स्तर, संभवतः अंतिम को छोड़कर, पूरी तरह से भरा हुआ है, और सभी नोड्स जितना संभव हो उतना बचा है (स्रोत विकिपीडिया) एक बाइनरी हीप एक पूर्ण बाइनरी ट्री है जहां आइटम एक विशेष क्रम में संग्रहीत किए जाते हैं जैसे कि एक मूल नोड में मान अपने दो बच्चों के नोड्स में मूल्यों की तुलना में अधिक (या छोटा) होता है। पूर्व को अधिकतम ढेर कहा जाता है और उत्तरार्द्ध को न्यूनतम ढेर कहा जाता है। ढेर को बाइनरी ट्री या सरणी द्वारा दर्शाया जा सकता है। बाइनरी हीप के लिए सरणी आधारित प्रतिनिधित्व क्यों? चूंकि एक बाइनरी हीप एक पूर्ण बाइनरी ट्री है, इसे आसानी से सरणी के रूप में दर्शाया जा सकता है और सरणी आधारित प्रतिनिधित्व अंतरिक्ष कुशल है। यदि मूल नोड को इंडेक्स I पर संग्रहीत किया जाता है, तो बाएं बच्चे की गणना 2 * I + 1 और दाएं बच्चे द्वारा 2 * I + 2 द्वारा की जा सकती है (मानकर इंडेक्सिंग 0 से शुरू होती है)। हीप का निर्माण कैसे करें? हाइपिफाई प्रक्रिया को नोड पर तभी लागू किया जा सकता है जब उसके बच्चे नोड्स को हटा दें। तो नीचे के क्रम में ढेर का प्रदर्शन किया जाना चाहिए। एक उदाहरण की मदद से समझते हैं: इनपुट डेटा: 4, 10, 3, 5, 1 हीपबनाने की समय जटिलता इनपुट एरे के हीप के निर्माण के लिए निम्नलिखित एल्गोरिथ्म पर विचार करें। निर्माण (ए) हीप: = आकार (ए); मैं के लिए: = मंजिल (ढेर / 2) 1 तक जोर से करो (ए, आई); के लिए अंत समाप्त उपरोक्त एल्गोरिथ्म पर एक त्वरित नज़र बताती है कि रनिंग टाइम O (n lg (n)) है, क्योंकि प्रत्येक कॉल हाइपिफाई की लागत O (lg (n)) और बिल्ड-हीप O (n) ऐसी कॉल करता है। यह ऊपरी बाध्य, हालांकि सही है, स्पर्शोन्मुख रूप से तंग नहीं है। हम यह देखते हुए बाध्य कर सकते हैं कि हाइपिफाई का रनिंग टाइम पेड़ की ऊँचाई 'h' (जो lg (n) के बराबर है, जहाँ n नोड्स की संख्या है) और अधिकांश उप-पेड़ों की ऊँचाई पर निर्भर करता है। छोटे। जैसे ही हम पेड़ के साथ ऊपर की ओर बढ़ते हैं, ऊँचाई 'h' बढ़ जाती है। बिल्ड-हीप की लाइन -3, ऊंचाई = 1 के साथ अंतिम आंतरिक नोड (ढेर / 2) के सूचकांक से एक लूप चलाती है, जड़ के सूचकांक (1) के साथ ऊंचाई = lg (n)। इसलिए, हाइपिफाई प्रत्येक नोड के लिए अलग-अलग समय लेता है, जो O (h) है। एक ढेर के निर्माण की समय जटिलता को खोजने के लिए, हमें पता होना चाहिए कि ऊँचाई वाले नोड्स की संख्या कितनी है। बढ़ते क्रम में छँटाई के लिए हीप सॉर्ट एल्गोरिथ्म: इनपुट डेटा से अधिकतम ढेर बनाएँ। इस बिंदु पर, सबसे बड़ा आइटम ढेर की जड़ में संग्रहीत किया जाता है। 1 के ढेर के आकार को कम करने के बाद ढेर के अंतिम आइटम के साथ बदलें। अंत में, पेड़ की जड़ को ढेर करें। ढेर से ऊपर दोहराएं जबकि ढेर का आकार 1 से अधिक है। दक्षता हीप सॉर्ट एल्गोरिथ्म बहुत कुशल है। जबकि अन्य छँटाई एल्गोरिदम तेजी से वृद्धि कर सकते हैं जैसे कि वस्तुओं की संख्या में वृद्धि हो रही है, हीप छाँटने के लिए आवश्यक समय लघुगणक बढ़ता है। इससे पता चलता है कि ढेर की छँटाई विशेष रूप से वस्तुओं की एक विशाल सूची को छाँटने के लिए उपयुक्त है। इसके अलावा, हीप सॉर्ट का प्रदर्शन इष्टतम है। इसका तात्पर्य यह है कि कोई अन्य छँटाई एल्गोरिदम तुलना में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकता है। मेमोरी उपयोग हीप सॉर्ट एल्गोरिथ्म को इन-प्लेस सॉर्टिंग एल्गोरिदम के रूप में लागू किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि इसकी मेमोरी का उपयोग कम से कम है क्योंकि इसके अलावा जिन वस्तुओं की सूची को छांटना आवश्यक है, उन्हें काम करने के लिए अतिरिक्त मेमोरी स्पेस की आवश्यकता नहीं है। इसके विपरीत, मर्ज सॉर्ट एल्गोरिथ्म को अधिक मेमोरी स्पेस की आवश्यकता होती है। इसी तरह, क्विक सॉर्ट एल्गोरिथ्म को अपने पुनरावर्ती स्वभाव के कारण अधिक स्टैक स्थान की आवश्यकता होती है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें शाटन की कलनविधि (सोर्टिंग अल्गोरिद्म्स) अल्गोरिद्म अनुक्रमण सिद्धांत
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8D%E0%A4%A5%E0%A4%B2%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%88%E0%A4%A8%20%E0%A4%8F
ऍथलस्टैन ए
ऍथलस्टैन ए () एक अज्ञात लिपिक के लिए इतिहासकारों द्वारा दिया गया नाम है, जिसने 928 और 935 के बीच इंग्लैण्ड के राजा ऍथलस्टैन के लिए राजलेख (या डिप्लोमा) तैयार किए, जिनके द्वारा राजा ने ज़मीनों का अनुदान दिया था। वे इतिहासकारों के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं क्योंकि वे इस अवधि के अन्य राजलेखों के मुकाबले अधिक जानकारी प्रदान करते हैं, अनुदान की तारीख और स्थान दिखाते हुएँ, और इन पर गवाहों की एक असामान्य रूप से लंबी सूची होती थी, जिनमें वेल्श राजा और कभी-कभी स्कॉटलैण्ड और स्ट्रैथक्लाईड के राजा शामिल होते थे। इन्हें भी देखें सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ १०वीं शताब्दी में जन्म १०वीं शताब्दी में निधन १०वीं शताब्दी लातिन लेखक आंग्ल-सैक्सन लेखक लातिन व्याकरणविद मध्ययुगीन भाषाविद अज्ञात जन्म स्थान जन्म वर्ष अज्ञात अज्ञात निधन वर्ष १०वीं शताब्दी अंग्रेज़ी लेखक
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BF%E0%A4%B0%20%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B9%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%A3%20%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A3%203
भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3
भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 (: Geosynchronous Satellite Launch Vehicle mark 3, or GSLV Mk3, जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लाँच वहीकल मार्क 3, या जीएसएलवी मार्क 3), जिसे लॉन्च वाहन मार्क 3 (LVM 3) भी कहा जाता है, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित एक प्रक्षेपण वाहन (लॉन्च व्हीकल) है।और पढ़ें| 26 मार्च, 2023 को, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने LVM3-M3/OneWeb India-2 मिशन के सफल प्रक्षेपण के साथ भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की। इस मिशन ने LVM3 लॉन्च वाहन की लगातार छठी सफल उड़ान को चिन्हित किया और एक ब्रिटिश-अमेरिकी दूरसंचार कंपनी वनवेब ग्रुप कंपनी से संबंधित 36 उपग्रहों को तैनात किया, जो पृथ्वी की निम्न कक्षा उपग्रह समूह का निर्माण कर रहा था। और पढ़ें| इसे भू-स्थिर कक्षा (जियो-स्टेशनरी ऑर्बिट) में उपग्रहों और भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को प्रक्षेपित करने के लिये विकसित किया गया है। जीएसएलवी-III में एक भारतीय तुषारजनिक (क्रायोजेनिक) रॉकेट इंजन की तीसरे चरण की भी सुविधा के अलावा वर्तमान भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान की तुलना में अधिक पेलोड (भार) ले जाने क्षमता भी है। चंद्रयान-२ को भी जीएसएलवी एमके III द्वारा 22 जुलाई 2019 को चंद्रमा पर लॉन्च किया गया। इसमें एक चंद्र ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल हैं, जो सभी स्वदेशी रूप से विकसित किए गए हैं। इतिहास जीएसएलवी-III का विकास 2000 के दशक में शुरू हुआ। और 2009-2010 में प्रक्षेपण के लिए योजना बनाई गयी। लेकिन कई कारकों के कारण कार्यक्रम में देरी हुई जिसमे 2010 में हुए भारतीय क्रायोजेनिक इंजन विफलता भी शामिल हैं। जीएसएलवी-III की एक उपकक्षा परीक्षण उड़ान तीसरे निष्क्रिय क्रायोजेनिक चरण के साथ सफलतापूर्वक 18 दिसंबर 2014 को कि गयी। और इस उड़ान में क्रू मॉड्यूल का परीक्षण भी किया गया। जीएसएलवी-III की पहली कक्षीय उड़ान दिसंबर 2017 के लिए योजना बनाई है। और पहली कक्षीय मानवयुक्त जीएसएलवी उड़ान 2021 मे होने की योजना है। एस200 स्थैतिक परीक्षण एस-200 ठोस रॉकेट बूस्टर का सफलतापूर्वक 24 जनवरी 2010 को परीक्षण किया गया। बूस्टर को 130 सेकंड के लिए चलाया गया। बूस्टर ने लगभग 500 टन का थ्रस्ट उत्पन्न किया। बूस्टर के परीक्षण के दौरान 600 मानकों को जाँच गया। एस-200 का दूसरा स्थैतिक परीक्षण 4 सितंबर 2011 को किया गया। एल110 स्थैतिक परीक्षण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के द्रव नोदन प्रणाली केंद्र, महेंद्रगिरि में प्रथम एल110 स्थैतिक परीक्षण 5 मार्च 2010 को किया गया। परीक्षण को 200 सेकंड के लिए जारी रखना था। किन्तु रिसाव के कारण परीक्षण को 150 सेकंड पर ही रोक दिया गया। 8 सितंबर 2010 को इसरो ने सफलतापूर्वक पूर्ण 200 सेकंड के लिए दूसरे एल110 का स्थैतिक परीक्षण किया। उपकक्षा उड़ान परीक्षण जीएसएलवी-III ने सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लांच पैड से 18 दिसंबर 2014 को सुबह 9.30 को अपनी पहली उड़ान भरी। 630.5 टन प्रक्षेपण यान स्टैकिंग रूप में इस प्रकार था: एक कार्यात्मक एस200 ठोस प्रणोदन चरण, एक कार्यात्मक एल110 तरल प्रणोदन चरण, एक गैर कार्यात्मक आभासी चरण (क्रायोजेनिक इंजन-20 प्रणोदन के स्थान पर) और अंत में 3.7 टन वजनी क्रू मॉड्यूल वायुमंडलीय पुनः प्रवेश प्रयोग (CARE) पेलोड चरण। पांच मिनट से अधिक उड़ान के बाद रॉकेट 126 किलोमीटर की ऊंचाई पर क्रू मॉड्यूल वायुमंडलीय पुनः प्रवेश प्रयोग (CARE) से अलग हो जाता है। और फिर केअर (CARE) उच्च गति से पृथ्वी की ओर उतरा है। इसे राकेट मोटर्स द्वारा नियंत्रित किया जाता है। 80 किमी की ऊंचाई पर, राकेट मोटर्स को बंद कर दिया जाता है। और केअर (CARE) कैप्सूल वातावरण में अपना बैलिस्टिक पुनः प्रवेश शुरू करता है। केअर (CARE) कैप्सूल की हीट शील्ड 1600 डिग्री सेल्सियस के तापमान का अनुभव करती है। इसरो रेडियो ब्लैक आउट होने से पहले बैलिस्टिक चरण के दौरान डेटा हानि से बचने के लिए लांच टेलीमेटरी डाउनलोड करती है। लगभग 15 किमी की ऊंचाई पर, कैप्सूल का शीर्ष (Apex) कवर अलग हो जाता है। और पैराशूट खुल जाते है। कैप्सूल अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास बंगाल की खाड़ी में नीचे गिर जाता है। सी25 चरण परीक्षण 25 जनवरी 2017 को तमिलनाडु के महेंद्रगिरि में इसरो प्रपोल्शन कॉम्प्लेक्स (आईपीआरसी) की सुविधा में सी25 क्रायोजेनिक चरण का पहला उष्ण (hot) परीक्षण किया गया था। सभी चरण के कार्यों का प्रदर्शन देखने के लिए 50 सेकंड की अवधि तक चरण का उष्ण (hot) परीक्षण किया गया था। 18 फरवरी, 2017 को 640 सेकंड के लिए एक लंबी अवधि का परीक्षण पूरा किया गया। वाहन विवरण चरण 1 - ठोस बूस्टर जीएसएलवी-III दो एस200 (S200) ठोस बूस्टर का उपयोग करता है। प्रत्येक बूस्टर 3.2 मीटर के व्यास और 25 मीटर लंबाई के है। यह 207 टन ठोस ईंधन ले जाते है। ये बूस्टर 130 सेकंड के लिए जलते है। और 5150  किलोन्यूटन का थ्रस्ट उत्पादन करते है। एस200 बूस्टर बनाने के लिए एक अलग सुविधा सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र,श्रीहरिकोटा में स्थापना की गई है। एस200 बूस्टर की अन्य प्रमुख विशेषता यह है कि एस200 के बड़े नोजल (nozzle) को एक 'फ्लेक्स सील' से लैस किया गया है। इस कारण से नोजल को घुमाया जा सकता है। जब रॉकेट के दिशानिर्देश में सुधार की जरूरत हो। उड़ान में, एस200 बूस्टर थ्रस्ट के द्वारा रॉकेट उड़ना शुरू करता है। त्वरण में गिरावट रॉकेट पर लगे सेंसर द्वारा महसूस किया जाता है। और एल110 तरल प्रणोदक चरण में लगे दो विकास इंजन प्रज्वलित हो जाते है। इससे पहले एस200 रॉकेट से अलग होकर दूर गिर जाते है। ठोस बूस्टर और विकास इंजन समय की एक छोटी अवधि के लिए एक साथ काम करते हैं। चरण 2 - तरल मोटर एल110 कोर चरण एक 4 मीटर व्यास और 110 टन UDMH और N2O4 तरल ईंधन ले जाने वाला चरण है। यह पहला भारतीय समूहबद्ध डिजाइन तरल इंजन है। और दो उन्नत विकास (रॉकेट इंजन) का उपयोग करता है। प्रत्येक लगभग 700  किलोन्यूटन का उत्पादन करते है। उन्नत विकास इंजन पहले विकास इंजन की तुलना में बेहतर कूलिंग, बेहतर वजन और बेहतर विशिष्ट आवेग प्रदान करता है। एल110 कोर चरण राकेट की उड़ान के 113 सेकंड बाद प्रज्वलित होते है। और लगभग 200 सेकंड के लिए जलते रहते है।. चरण 3 - क्रायोजेनिक अपर स्टेज क्रायोजेनिक अपर स्टेज को सी25 नाम से नामित किया गया है। और इसे भारतीय विकसित क्रायोजेनिक इंजन-20 इंजन द्वारा संचालित किया जाएगा। यह इंजन तरल हाइड्रोजन और तरल ऑक्सीजन को जला कर 186  किलोन्यूटन का थ्रस्ट उत्पादन करेगा। सी-25 व्यास में 4 मीटर (13 फुट) और 13.5 मीटर (44 फुट) लंबा होगा। और 27 टन ईधन ले जायेगा।. इस इंजन को शुरू में 2015 तक परीक्षण के लिए पूरा होने उम्मीद की गई थी। इसरो ने 19 फरवरी 2016 को 640 सेकंड की अवधि के लिए क्रायोजेनिक इंजन-20 का सफल उष्ण (hot) परीक्षण किया। यह जीएसएलवी-III वाहन के क्रायोजेनिक इंजन-20 के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। परीक्षण में इंजन ने थ्रस्ट, गैस जनरेटर, टर्बो पंप और नियंत्रण घटकों आदि अपने सभी उप प्रणालियों के साथ अच्छा प्रदर्शन किया। इंजन के सभी मानक ने अपना अच्छा प्रदर्शन किया। पहला सी25 चरण का उपयोग जीएसएलवी-3 डी-1 मिशन पर जून 2017 के लॉन्च में किया जाएगा। यह मिशन जीसैट-19ई संचार उपग्रह को कक्षा में छोडेगा। जीएसएलवी-3 के ऊपरी चरण के लिए सी25 चरण और सीई-20 इंजन पर 2003 में काम शुरू किया गया था, इसरो के सीई-7.5 क्रायोजेनिक इंजन की समस्याओं के कारण इसमे देरी हुई। सीई-7.5 क्रायोजेनिक इंजन भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान का अपर स्टेज है। पेलोड फ़ेयरिंग पेलोड फ़ेयरिंग 5 मीटर (16 फुट) व्यास और 110 घन मीटर(3,900 घन फुट) आयतन वाली है। लॉन्च भविष्य में सुधार जीएसएलवी-III के एल110 कोर चरण को भविष्य में स्वदेशी सेमी क्रायोजेनिक इंजन-200 से बदलने की योजना है। जिससे इसकी भूस्थिर स्थानांतरण कक्षा की क्षमता 4 टन से 6 टन हो जाएगी। चित्र दीर्घा इन्हें भी देखें लांग मार्च (रॉकेट परिवार) टाइटन 3सी सैटर्न 5 फाल्कन हैवी भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान तुषारजनिक रॉकेट इंजन गगनयान चंद्रयान-1 चंद्रयान-२ चंद्रयान-3 सन्दर्भ भारत के अंतरिक्ष प्रक्षेपण रॉकेट
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अर्जुन रामपाल
अर्जुन रामपाल , (जन्म 26 नवम्बर 1972), एक भारतीय अभिनेता हैं, जो अधिकतर बॉलीवुड की फ़िल्मों में कार्य करते हैं, साथ ही वे एक मॉडल हैं। फ़िल्म कैरियर उनकी पहली फ़िल्म - मोक्ष 2001 में प्रदर्शित हुई, जिसे अशोक मेहता ने निर्देशित किया गया था। बहरहाल, यह फ़िल्म उनकी दूसरी फ़िल्म प्यार, इश्क़ और मोहब्बत के बाद जारी की गई थी, जिसमें उन्होंने सुनील शेट्टी और आफ़ताब शिवदासानी के साथ काम किया था। हालांकि दोनों फिल्मों ने बॉक्स ऑफ़िस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं दिखाया, पर आलोचकों ने दोनों ही फ़िल्मों में उनके अभिनय की सराहना की। 2002 में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फ़िल्म अकादमी से फ़ेस ऑफ़ द इयर पुरस्कार जीता। अपनी पहली फ़िल्म के बाद से ही, उन्होंने लगातार आंखें (2002), दिल है तुम्हारा (2002), यक़ीन (2005) तथा एक अजनबी (2005) जैसी फ़िल्मों में काम किया। अधिकांश फ़िल्मों में वे सहायक भूमिकाओं में नज़र आए और ये व्यावसायिक तौर पर सफल नहीं रहीं। उन्होंने शाहरुख़ ख़ान, रानी मुखर्जी, सैफ़ अली ख़ान, प्रीति ज़िंटा और प्रियंका चोपड़ा जैसे सितारों के साथ मिल कर टेम्पटेशन 2004 में भाग लिया। 2006 में उन्होंने बहु कलाकारों वाली फ़िल्म कभी अलविदा ना कहना में अतिथि भूमिका निभाई और अमिताभ बच्चन अभिनीत 1978 की फ़िल्म डॉन के रीमेक डॉन - द चेस बिगिन्स अगेन में एक सहायक भूमिका निभाई. यहां रामपाल, मूल संस्करण में प्राण द्वारा अभिनीत जसजीत की भूमिका में नज़र आए। इसके बाद उन्होंने फ़िल्म आई सी यू (2006) के निर्माण और उसमें अभिनय का निर्णय लिया, जो 29 दिसम्बर 2006 को प्रदर्शित हुई। अर्जुन ने अपने स्वयं की निर्माण कंपनी चेसिंग गणेशा फ़िल्म्स के ज़रिए इसका निर्माण किया। उनकी पत्नी मेहर जेसिया सह-निर्माता थीं। फ़िल्म में रामपाल, विपाशा अग्रवाल, सोनाली कुलकर्णी और बोमन ईरानी ने अभिनय किया। बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख़ ख़ान और रितिक रोशन ने इस फ़िल्म में छोटी भूमिकाएं निभाईं.आई सी यू को पूरी तरह लंदन में फ़िल्माया गया। फ़िल्म को अच्छी समीक्षाएं नहीं मिलीं और यह बॉक्स ऑफिस पर विफल रही। लेकिन उन्होंने फ़राह ख़ान के ओम शांति ओम (2007) फ़िल्म में खलनायक की भूमिका निभाने के लिए सकारात्मक समीक्षाएं प्राप्त कीं, जो बॉलीवुड के इतिहास में सबसे बड़ी हिट फ़िल्मों में से एक थी। 2007 में अर्जुन ने ऋतुपर्णो घोष की अंग्रेज़ी-भाषा की कलात्मक फ़िल्म में अमिताभ बच्चन और प्रीति ज़िंटा के साथ द लास्ट लियर में अभिनय किया। यह फ़िल्म, टोरंटो अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में पहली बार प्रदर्शित हुई और अन्य कई फ़िल्म समारोहों में भी इसका उपयुक्त स्वागत हुआ। भारत के थिएटरों में उसके रिलीज़ होने पर रामपाल ने अपने अभिनय के लिए अनुकूल समीक्षाएं प्राप्त कीं. 2008 में रामपाल ने रॉक ऑन!! में अभिनय किया, जिसमें उन्होंने बैंड के प्रधान गिटारिस्ट की भूमिका निभाई, जो व्यापक रूप से सराही गई और उन्होंने फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार सहित कई पुरस्कार जीते। बहरहाल, अर्जुन का प्रदर्शन सराहनीय रहा था। निजी जीवन अर्जुन रामपाल का जन्म 1972 में जबलपुर, मध्य प्रदेश में हुआ था। उन्होने पूर्व मिस इंडिया और सुपर मॉडल मेहर जेसिया से शादी की और उनकी दो बेटियां, माहिका, 17 जनवरी 2002 को और माइरा जून 2005 में पैदा हुईं. फ़िल्मोग्राफ़ी सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ पंजाबी लोग 1972 में जन्मे लोग भारतीय फ़िल्म अभिनेता जीवित लोग भारतीय पुरुष मॉडल अभिनेता फ़िल्म निर्माता फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता जबलपुर के लोग हिन्दी अभिनेता भारतीय अभिनेता
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हंसा मेहता
हंसा जीवराज मेहता (गुजराती- હંસા જીવરાજ મહેતા, 3 जुलाई सन् 1897 - 4 अप्रैल 1995) भारत की एक सुधारवादी, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी, नारीवादी और लेखिका थीं। उनके पिता मनुभाई मेहता बड़ौदा और बीकानेर रियासतों के दीवान थे। पत्रकारिता और समाजशास्त्र में उच्च शिक्षा के लिए वे १९१९ ई॰ में इंग्लैंड चली गईं। १९४१ ई॰ से १९५८ ई॰ तक बड़ौदा विश्वविद्यालय की वाइस चांसलर के रूप में हंसा मेहता ने शिक्षा जगत में अपनी छाप छोड़ी। १९५९ में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। प्रारंभिक जीवन हंसा मेहता का जन्म 3 जुलाई 1897 को बॉम्बे राज्य (वर्तमान में गुजरात) के एक नागर ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह मनुभाई मेहता की बेटी थी (जो तत्कालीन बड़ौदा राज्य के दीवान थे) और नंदशंकर मेहता की पोती, (जो गुजराती भाषा के पहले उपन्यास करण घेलो के लेखक थे)। उन्होंने 1918 में दर्शनशास्त्र में स्नातक किया, जिसके बाद उन्होंने इंग्लैंड में पत्रकारिता और समाजशास्त्र का अध्ययन किया। 1918 में वे सरोजिनी नायडू से और बाद में वह 1922 में महात्मा गांधी से मिलीं। उनकी शादी प्रख्यात चिकित्सक और प्रशासक जीवराज नारायण मेहता से हुई थी। जीवनी राजनीति, शिक्षा और सक्रियता हंसा मेहता ने विदेशी कपड़े और शराब बेचने वाली दुकानों के बहिष्कार का आयोजन किया, और महात्मा गांधी की सलाह पर अन्य स्वतंत्रता आंदोलन गतिविधियों में भाग लिया। यहां तक कि उन्हें 1932 में अपने पति के साथ अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर जेल तक भेज दिया था। बाद में वह बॉम्बे विधान परिषद से प्रतिनिधि चुनी गईं। स्वतंत्रता के बाद, वे उन 15 महिलाओं में शामिल थीं, जो भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने वाली घटक विधानसभा (Constituent Assembly) का हिस्सा थीं। वे सलाहकार समिति और मौलिक अधिकारों पर उप समिति की सदस्य थीं। उन्होंने भारत में महिलाओं के लिए समानता और न्याय की वकालत की। हंसा 1926 में बॉम्बे स्कूल कमेटी के लिए चुनी गईं और 1945-46 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष बनीं। हैदराबाद में आयोजित अखिल भारतीय महिला सम्मेलन सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय भाषण में, उन्होंने महिला अधिकारों का एक चार्टर प्रस्तावित किया। वे 1945 से 1960 तक भारत में विभिन्न पदों पर रहीं, जिनमे से उल्लेखनीय पद हैं - एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय की कुलपति, अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की सदस्य, इंटर यूनिवर्सिटी बोर्ड ऑफ़ इंडिया की अध्यक्ष और महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी ऑफ़ बड़ौदा की कुलपति। संयुक्त राष्ट्र में योगदान हंसा ने 1946 में महिलाओं की स्थिति पर एकल उप-समिति में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 1947-48 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में, उन्होंने " सभी पुरुषों को समान बनाया गया है" या "all men are created equal" (जो कि अमेरिका की तत्कालीन फ़र्स्ट लेडी एलिनोर रूज़वेल्ट का पसंदीदा वाक्यांश था) में "पुरुष" शब्द को बदलकर "मानव" शब्द उपयोग में लाने की क़वायद की, जिसके बाद यह "सभी मानवों को समान बनाया गया है" या ""all human beings are created equal" के रूप में पढ़ा जाने लगा। इससे वे ये साबित करना चाहती थीं कि अधिकार केवल पुरुषों के लिए नहीं बल्कि महिलाओं के लिए भी हैं, क्योंकि वे भी उतनी ही "मानव" हैं, जितने पुरुष। अंततः मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा की भाषा को बदलने में वे सफल रहीं और इससे लैंगिक समानता की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ा। हंसा बाद में 1950 में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग की उपाध्यक्ष बनीं। वे यूनेस्को के कार्यकारी बोर्ड की सदस्य भी थीं। साहित्य कैरियर उन्होंने गुजराती में बच्चों के लिए कई किताबें लिखीं, जिनमें अरुणू अदभुत स्वप्न (1934), बबलाना पराक्रमो (1929), बलवर्तावली भाग 1-2 (1926, 1929) शामिल हैं। वह कुछ किताबें अनुवाद वाल्मीकि रामायण: अरण्यकाण्ड, बालकाण्डऔर सुन्दरकाण्ड। उन्होंने कई अंग्रेजी कहानियों का अनुवाद भी किया, जिसमें गुलिवर्स ट्रेवल्स भी शामिल है। उन्होंने शेक्सपियर के कुछ नाटकों को भी रूपांतरित किया था। उनके निबंध एकत्र किए गए और केतलाक लेखो (1978) के रूप में प्रकाशित हुए। पुरस्कार हंसा मेहता को 1959 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।व राष्ट्रीय ध्वज को संविधान सभा में हंसा मेहता द्वारा ही प्रस्तुत किया गया। यह भी देखें गुजराती भाषा के लेखकों की सूची सन्दर्भ 1897 में जन्मे लोग १९९५ में निधन १९५९ पद्म भूषण भारतीय स्वतंत्रता सेनानी गुजराती भाषा गुजराती लेखक भारतीय नारीवादी लेखिका भारतीय नारीवादी सामाजिक कार्य में पद्म भूषण प्राप्तकर्ता
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होरेशियो नेलसन
होरेशियो नेलसन (अंग्रेज़ी: Horatio Nelson, जन्म: २९ सितम्बर १७५८, देहांत: २१ अक्टूबर १८०५) (अन्य उच्चारण: होराशियो नेल्सन या होरेटियो नेल्सन) ब्रिटेन की नौसेना के एक प्रसिद्ध सिपहसालार (ऐडमिरल) थे जिन्होनें फ्रांस के सम्राट नेपोलियन बोनापार्ट के ख़िलाफ़ हुए युद्धों में जीत पाने के लिए बहुत ख्याति प्राप्त करी। उन्हें एक प्रेरणात्मक फ़ौजी नेता के रूप में जाना जाता था और उनकी युद्ध-परिस्थितियों को जल्दी से भांपकर शत्रु को चौंकाने वाली चाल चलने के कौशल के लिए याद किया जाता है। वे बहुत दफ़ा लड़ियों में घायल हुए, जिसमें उन्हें एक बाज़ू और एक आँख भी खोनी पड़ी। नेलसन की बहुत-सी जीतों में से सन् १८०५ के ट्रफ़ैलगर के युद्ध में भारी जीत के लिए श्रेय मिलता है। इसमें उन्होने ब्रिटिश नौसेना के २७ जहाज़ों वाले दस्ते से फ़्रांसिसी-स्पेनी मिश्रित नौसेना के ३३ जहाज़ों वाले बेड़े से मुक़ाबला किया, जिसमें ब्रिटेन का एक भी जहाज़ नहीं डूबा जबकि दुश्मन के २२ जहाज़ ध्वस्त किये गए। इसी मुठभेड़ में उन्हें गहरी चोट लगी जिस से उनका देहांत हो गया। इस विजय की स्मृति में लन्दन के ट्रफ़ैलगर चौक (Trafalgar Square) में नेलसन काॅलम (Nelson's Column) नाम का एक स्तम्भ खड़ा किया गया साथ ही एडिनबर्ग के काॅल्टन पहाड़ी पर नेल्सन माॅन्युमेन्ट(Nelson Monument) नामक एक स्मारक भी खड़ा किया है। कर्तव्य पर कथन देश की प्रति अपना फ़र्ज़ पूरा करने के महत्व पर नेलसन के दो कथन मशहूर हैं: इंग्लॅण्ड उम्मीद कर्ती है की हर आदमी अपने कर्तव्य का पालन करेगा (England expects that every man will do his duty, इंग्लॅण्ड ऍक्स्पॅक्ट्स दैट ऍव्री मैन विल डू हिज़ ड्यूटी) - ट्रफ़ैलगर की समुद्री जंग के दौरान उन्होंने यह सन्देश झंडों के प्रयोग के ज़रिये अपने दस्ते की हर नौका तक पहुँचाया ताकि हर ब्रिटिश नौसेनिक उस युद्ध में देश के प्रति अपना फ़र्ज़ निभाने के लिए मरने-मारने को तैयार रहेा। ट्रफ़ैलगर की जीत के बाद से ब्रिटेन में इस वाक्य को नारे की तरह साहस और देशभक्ति बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। भगवान का शुक्र है मैंने अपना फ़र्ज़ निभा लिया (Thank God I have done my duty, थ़ैंक गॉड आए हैव डन माए ड्यूटी) - जब ट्रफ़ैलगर के युद्ध में वे बुरी तरह घायल होकर मरने की अवस्था में आ गए तो उन्होंने यह शब्द बोले जो ब्रिटेन की राष्ट्रीय मानसिकता में देशभक्ति का प्रतीक बनकर बैठ गए। प्रारंभिक वर्षों होरैटो नेल्सन गाँव के रेक्टर, एडमंड नेल्सन और उनकी पत्नी कैथरीन के 11 बच्चों में से छठे थे। नेल्सन सज्जन, विद्वान और गरीब थे। परिवार का सबसे महत्वपूर्ण संबंध जिसमें से नेल्सन को तरजीह दी जा सकती थी, वह यह था कि दूर के संबंध में, सर रॉबर्ट वालपोल के वंशज लॉर्ड वालपोल, जो पहले शताब्दी में प्रधानमंत्री रह चुके थे। नेल्सन के जीवन के लिए निर्णायक, हालांकि, उनकी मां का भाई, कैप्टन मौरिस सक्कलिंग था, जो ब्रिटिश नौसेना का नियंत्रक बन गया था। जब होरेशियो की माँ की मृत्यु हो गई, तो कप्तान सकलिंग ने लड़के को समुद्र में ले जाने के लिए सहमति व्यक्त की। नौसेना में नेल्सन के पहले साल दिनचर्या के अनुभव और उच्च रोमांच का मिश्रण थे। पूर्व में विशेष रूप से टेम्स मुहाना में प्राप्त किया गया था, बाद में व्यापारी जहाज द्वारा वेस्ट इंडीज की यात्रा के लिए और 1773 में आर्कटिक के लिए एक खतरनाक और असफल वैज्ञानिक अभियान। नेल्सन ने हिंद महासागर में अपनी पहली कार्रवाई की थी। इसके तुरंत बाद, बुखार से मारा गया - शायद मलेरिया - उसे घर पर आक्रमण किया गया था, और परिणामी अवसाद से उबरने के दौरान, नेल्सन ने आशावाद के एक नाटकीय उछाल का अनुभव किया। उस क्षण से, नेल्सन की महत्वाकांक्षा, जो उनके पिता द्वारा पैदा की गई ईसाई करुणा से प्रेरित देशभक्ति से प्रेरित थी, ने उनसे आग्रह किया कि वे कम से कम अपने प्रख्यात रिश्तेदारों के बराबर साबित हों। इन्हें भी देखें ट्रफ़ैलगर का युद्ध नेल्सन स्मारक, एडिनबर्ग सन्दर्भ ब्रिटेन का इतिहास यूरोप का इतिहास यूरोप के युद्ध नौसेनाध्यक्ष
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लक्ष्मी गोपालस्वामी
लक्ष्मी गोपालस्वामी कर्नाटक की एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री और शास्त्रीय नर्तकी हैं। उन्होंने कई कन्नड़, मलयालम और तमिल फिल्मों में अभिनय किया है। उन्होंने कुछ टीवी धारावाहिकों में भी काम किया। उन्होंने अपनी कन्नड़ फिल्म विदा में अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का कर्नाटक राज्य फिल्म पुरस्कार भी जीता हैं। ममूटी के साथ उनकी पहली मलयालम फिल्म अरयनांगलुडु विदु ने सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के रूप में केरल राज्य फिल्म पुरस्कार जीता है। वह एशियानेट के डांस शो वोडाफोन ठाकधिमी में जज रही थीं। प्रारंभिक जीवन लक्ष्मी गोपालस्वामी का जन्म बैंगलोर, कर्नाटक में एम.के गोपालस्वामी और डॉ0 उमा गोपालस्वामी कन्नड़ परिवार में हुआ था। उमा गोपालस्वामी उनका एक छोटा भाई, अर्जुन है। उनकी माँ संगीत की अध्येता हैं जिन्होंने लक्ष्मी को भरतनाट्यम में करियर सीखने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। फिल्मी सफर उन्होंने वर्ष 2000 में एक मलयालम फिल्म अरयनांगालुदे विडुइटेन और लोहितदास द्वारा मम्मूटी के साथ निर्देशन में अपनी शुरुआत की, जिसमें उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के रूप में केरल राज्य फिल्म पुरस्कार मिला। 2007 में, लक्ष्मी को फिर से थानिये में अपने अभिनय के लिए दूसरी सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए केरला स्टेट फिल्म अवार्ड मिला, जिसका निर्देशन पीटी कुंजु मोहम्मद द्वारा निर्देशित डेब्यू डायरेक्टर बाबू थिरुवल्ला और परदेशी ने किया। उन्हीं फिल्मों के लिए उन्हें "एटलस फिल्म क्रिटिक्स अवार्ड। सर्वश्रेष्ठ महिला अभिनेता के लिए मिला। अभिनय 2010 में, उन्होंने दक्षिण भारतीय स्टार विष्णुवर्धन के सामने पी वासु द्वारा अप्रकाशक में अप्रत्यक्ष भूमिका निभाई। इस कन्नड़ फिल्म में, एक दुष्ट आत्मा के रूप में एक नर्तकी के रूप में उसके प्रदर्शन की आलोचकों और फिल्म के साथ-साथ सार्वजनिक लोगों ने भी प्रशंसा की थी। . यह फिल्म मेगा हिट बन गई और सिनेमाघरों में लगातार 35 हफ्तों तक चली; और यह विष्णुवर्धन की आखिरी कन्नड़ फिल्म थी। उन्होंने विष्णुवर्धन की फिल्मों में भी काम किया, जैसे उन्हें विष्णुवर्धन फिल्म्स विष्णु सेना और नमाजमरु के नाम से भी जाना जाता है। फिल्म की सफलता के बारे में बात करते हुए, लक्ष्मी ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा "मैं अपने प्रदर्शन से मुझे मिल रहे दर्शकों के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही हूं। मुझे विष्णुजी के साथ फिर से अभिनय करने की इच्छा थी और यह पूरी हो गई है। उन्होंने लक्ष्मणद नामक एक तमिल धारावाहिक में अभिनय किया जिससे उन्हें कई प्रशंसा मिली। मलयालम सिनेमा में उन्हें सफलता उनके मूल कन्नड़ फिल्म उद्योग से भी मिली। उनकी पहली मलयालम फिल्म अरण्यंगलुडे विदु को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के लिए केरल राज्य पुरस्कार मिला। उनकी दूसरी फिल्म कोचू कोचुथ संथोसंगल भी उनके अभिनय के लिए बहुत प्रशंसित हुई। अभिनय ने उन्हें एक अलग तरह का एक्सपोजर दिया। "शुरू में मुझे पेशे से भयभीत किया गया था, मैं प्रसिद्ध होने के लिए बहुत शर्मिंदा थी," लेकिन उसने खूद को जल्द ही घर पर महसूस किया। नृत्य वह कहती है कि नृत्य हमेशा उसका पसंदीदा मौसम थी; वह फिल्मों में अच्छी भूमिकाएँ निभाना पसंद करती हैं, [उद्धरण वांछित] जैसे कि कोच्चू कोचु संथोसांगल की तरह अर्ध-शास्त्रीय नृत्य पटरियों को एकीकृत करती हैं, जिसमें दो शास्त्रीय नृत्य संख्याएं केरल में लोकप्रिय हो गई हैं। फ़िल्मी दुनिया में उनकी स्टार का दर्जा कुछ भी नहीं है,इसी कारण वह अब एक शीर्ष-डांसर में रूपांतरित हो रही हैं। पुरस्कार केरल राज्य फिल्म पुरस्कार २०००: दूसरी सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए केरल राज्य फिल्म पुरस्कार - अरण्यंगलुडु विदु 2007: सेकेंड बेस्ट एक्ट्रेस के लिए केरला स्टेट फिल्म अवार्ड - थैने कर्नाटक राज्य फिल्म पुरस्कार 2014: सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए कर्नाटक राज्य फिल्म पुरस्कार - "विदाया" फिल्मफेयर अवार्ड्स साउथ 2007: सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री - परदेशी एशियानेट फिल्म अवार्ड्स 2001 - बेस्ट फीमेल डेब्यू - अरण्यनगालुदे विदु केरल फिल्म क्रिटिक अवार्ड्स 2007: सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री - थैने 2016: स्पेशल जूरी अवार्ड - कंबोजी जयहिंद टीवी पुरस्कार 2007: सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री - परदेशी और थैने सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ भारतीय फ़िल्म अभिनेत्री तमिल अभिनेत्री
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चार्ल्स शेफर्ड
चार्ल्स शेफर्ड (fl. 1858-1878) एक अंग्रेजी छायाकार (फोटोग्राफर) और मुद्रक (प्रिंटर) थे जिन्होने 19 वें शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत में काम किया था। उनके द्वारा ली गयी तस्वीरों में अंग्रेजी और भारतीय दोनो के ही सैनिकों और नागरिकों के दृश्य शामिल हैं। शेफर्ड ने सन 1862 में आर्थर रॉबर्टसन के साथ मिलकर आगरा में शेफर्ड एंड रॉबर्टसन नामक एक फोटो स्टूडियो की स्थापना की थी। यह स्टूडियो सन 1864 में शिमला स्थानांतरित हो गया और इस समय सैमुअल बॉर्न भी शेफर्ड के व्यवसाय में प्रमुख फोटोग्राफर के रूप में शामिल हो गये और कंपनी का नाम बदलकर हावर्ड, शेफर्ड एंड बॉर्न कर दिया गया। सन 1868 के आसपास हावर्ड के जाने के बाद कंपनी का नाम सिर्फ शेफर्ड एंड बॉर्न कर दिया गया। शेफर्ड एंड बॉर्न की दूसरी शाखा कलकत्ता (अब कोलकाता) में खोली, जहां वो एक पोर्ट्रेट स्टूडियो चलाते थे, और यहां से उनके काम को व्यापक रूप से उपमहाद्वीप में अभिकर्ताओं और ब्रिटेन में थोक वितरकों के माध्यम से बेचा जाता था। 1870 में बॉर्न इंग्लैंड लौट गये, लेकिन फर्म का काम जारी रहा, और सन 1872 में बॉर्न की जगह कॉलिन मरे कंपनी के प्रमुख छायाकार बन गये। शेफर्ड जिन्होने मुख्य रूप से मुद्रक या चित्र छापने का काम किया था, 1885 में कंपनी से अलग हो गये, लेकिन कोलकाता में बॉर्न एंड शेफर्ड का काम बदस्तूर जारी रहा।[मृत लिंक] काम सन्दर्भ छायाकार
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मैडोना (मनोरंजनकर्ता)
मैडोना (मैडोना लुईस चिकोने जन्म, 16 अगस्त 1958) एक अमेरिकी रिकॉर्डिंग कलाकार, अभिनेत्री और उद्यमी है। बह सिटी, मिशिगन में जन्मी और रोचेस्टर हिल्स, मिशिगन में पली-बड़ी, वह सन् 1977 में न्यूयार्क शहर में आधुनिक नृत्य में करियर के लिए स्थानांतरित हो गई। पॉप संगीत समूहों के ब्रेकफास्ट क्लब तथा एम्मी के एक सदस्य के रूप में प्रदर्शन करने के बाद उसने अपने ही नाम मैडोना की टाइटल (शीर्षक) अपना पहला ऐल्बम सन् 1983 में सर रिकॉर्ड्स से रिलीज़ किया गया। लाइक अ वर्जिन (1984) और ट्रू ब्लू (1986) जैसे स्टूडियो ऐल्बमों से उसके हिट गानों की श्रृंखला ने गीतात्मक तत्व की सीमाओं को तोड़कर मुख्यधारा के लोकप्रिय संगीत और संगीत वीडियो की कल्पना में स्थापित कर उन्हें पॉप आइकॉन के रूप में वैश्विक मान्यता दिलाई, जो एमटीवी (MTV) पर एक नियमित कार्यक्रम बन गया। उसकी पहचान को डेस्परेटली सीकिंग सुज़ान (1985) फिल्म से बढ़ावा मिला, जिसमें मैडोना की मुख्य भूमिका नहीं होने के बावजूद भी उसे व्यापक रूप से मैडोना को प्रसिद्धि दिलाने का साधन माना गया। 'लाइक अ प्रेयर ' में धार्मिक कल्पना के व्यापक प्रयोग से, मैडोना को उसकी विविध संगीत प्रस्तुतियों के लिए उसे सकारात्मक समीक्षा प्राप्त हुई, जबकि उसी समय धार्मिक परंपरावादियों और वेटिकन से समालोचना का सामना करना पड़ा. 1992 में, मैडोना ने मवेरिक्क निगम, अपने और टाइम वार्नर के बीच एक संयुक्त उद्यम की स्थापना की. उसी वर्ष, उसने अपने काम में यौन सामग्री का खुल्लम-खुल्ला उपयोग किया। स्टूडियो ऐल्बम इरोटिका की रिलीज़ के साथ ही साथ, कॉफ़ी टेबल बुक सेक्स का प्रकाशन, और कामुक रोमांचक बॉडी ऑफ़ एविडेंस में अभिनय, जिन सबको परंपरावादियों और उदारवादियों से समान रूप से नकारात्मक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं. सन् 1996 में मैडोना ने नायिका की भूमिका में फिल्म एविटा में अभिनय किया, जिसके लिए संगीत अथवा हास्य में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए उसे गोल्डेन ग्लोब पुरस्कार मिला. मैडोना का सातवां स्टूडियो ऐल्बम रे ऑफ़ लाइट (1998) अपनी गीतात्मक गहराई के लिए समीक्षकों द्वारा सर्वाधिक प्रशंसित और स्वीकृत हुआ। 2000 के दशकों के दौरान, मैडोना ने चार स्टूडियो ऐल्बम रिलीज़ किए, जिसमें से सभी गानों ने बिलबोर्ड 200 पर नंबर एक स्थान पर प्रथम प्रवेश किया। वार्नर ब्रदर्स रिकॉर्ड्स से अलग होकर मैडोना ने सन् 2008 में लाइव नेशन के साथ 120 मिलीयन डॉलर के एक अभूतपूर्व अनुबंध पर हस्ताक्षर किया। मैडोना की 200 मिलीयन से भी अधिक ऐल्बमों की बिक्री विश्वभर में हुई है। रिकॉर्डिंग इंडस्ट्री एसोसिएशन ऑफ़ अमेरिका ने उसे 20वीं सदी की सर्वाधिक बिकने वाली महिला रॉक कलाकार तथा उसके अपने 64 मिलीयन प्रमाणित ऐल्बमों के साथ,U S की द्वितीय सर्वाधिक बिकने वाली महिला कलाकार की श्रेणी में रखा है। गिनीज वर्ल्ड रिकार्डस ने उसे संसार की सर्वकालीन सफलतम महिला रिकॉर्डिंग कलाकार के रूप में सूचीबद्ध किया है। सन् 2008 में, बिलबोर्ड पत्रिका ने "बिलबोर्ड हॉट 100 के चार्ट के इतिहास में सफलतम एकल कलाकार" मानते हुए मैडोना को दूसरे नंबर पर रखा है, केवल द बीटल्स से पीछे. उसी वर्ष उसे रॉक ऐंड रोल हॉल ऑफ़ फेम में शामिल कर लिया गया। समकालीन संगीत में सर्वाधिक प्रभावशाली महिला मानी जाने वाली मैडोना अपने संगीत और अपनी छवि को लगातार नया कुछ आयाम देने के लिए एवं रिकॉर्डिंग उद्योग में स्वायत्तता का स्तर बरकरार बनाए रखने के लिए जानी जाती है। असंख्य संगीत कलाकारों को प्रभावित करने वाली के रूप में उसे मान्यता प्राप्त है। जीवनवृत्त 1958-1981: प्रारंभिक जीवन और शुरुआत मैडोना का जन्म मिशिगन की बे सिटी में 16 अगस्त 1958 को सुबह 7 बजकर 5 मिनट पर मैडोना लुईस, जो फ्रेंच कनाडियन तथा जर्मन मूल की थी और सिल्वियो चिकोने, जो इतालवी अमेरिकी क्रिसलर/जेनरल मोटर्स के डिज़ाइन इंजीनियर थे, जो मूलतः पैसेंत्रो, आब्रुज्जो, इटाली के पहली पीढ़ी के थे, से हुआ। चिकोने के सगे-संबंधी भी रोमानिया में ही रहते थे जो रोमानियन मूल के ही थे। अपने छः भाई-बहनों में मैडोना तीसरी संतान थी, उसके सहोदारों के नाम मार्टिन, ऍन्थोनी, पाउला. क्रिस्टोफर और मेलेनी हैं। मां की और से वह ज़केरी क्लौटीएर और जीन गुयों दूज़ों की वंशोद्दभूत है। मैडोना का पालन-पोषण पोंटिअक और ऐवोन टाउनशिप (वर्तमान से रोचेस्टर हिल्स) के डेट्रायट उपनगरों में हुआ था। उसकी मां की मृत्यु 30 वर्ष की आयु में ही स्तन कैसर से 1 दिसम्बर 1963 को हो गई। तब उसके पिता ने परिवार की परिचारिका, जोन गुस्ताफ्सन के साथ शादी कर ली जिससे उनकी दो संताने जेनिफ़र और मारियो चिकोने हुई. अपने पिता की दूसरी शादी पर टिप्पणी करते हुए मैडोना ने कहा: "मै जब बड़ी हो रही थी, मैंने अपनी सौतेली मां को स्वीकार नहीं किया।.. पीछे मुड़कर देखती हूं तो सोचती हूं मैं सचमुच उसके लिए एक मुश्किल थी।" उसने सेंट फ्रेडरिक और सेंट एंड्रयूज़ एलीमेंट्री स्कूलों में (अब होली फैमिली रीजनल स्कूल के नाम से जाना जाता है) शिक्षा प्राप्त की. वहां वह अपने उच्च जीपीए (GPA) और अपने असामान्य व्यवहार के लिए जानी जाती रही, विशेषकर एक अंडरवियर कामोत्तेजक वस्तू के रूप में:मैडोना अपनी कक्षाओं के बीच खाली समय में बरामदे में कई प्रकार के व्यायाम जैसे कार्टव्हील्स और हैण्डस्टैंडस करती रही और मध्यावकाश में मंकी बार के सहारे घुटनों के बल झूलती रही, और कक्षाओं के दौरान एक झटके से अपने स्कर्ट को डेस्क के ऊपर तक बेपरवाह खींच लेने में हिचकती नहीं थी ताकि सभी लड़के उसके ब्रीफ्स (अन्तरीय) देख सकें. बाद में, वह स्ट्रेट ए छात्रा के रूप में और चीयरलीडिंग दस्ते के एक सदस्य के रूप में रौचेस्टर एडम्स हाई स्कूल चली गई। हाई स्कूल से स्नातक होने के बाद मैडोना ने यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन से नृत्य में छात्रवृत्ति प्राप्त की. वह बैले (नृत्य-नाटिका) की शिक्षा प्राप्त करना चाहती थी और उसने कक्षाओं में शामिल होने के लिए अपने पिता से अनुमति प्राप्त करने के लिए उन्हें मना भी लिया था। उसके बैले शिक्षक ने उसे नृत्य में अपना करियर बनाने के लिए उसे प्रोत्साहित किया, इसलिए उसने 1977 में कॉलेज छोड़ दिया और न्यूयॉर्क सिटी में स्थानांतरित हो गई। उस वक्त मैडोना के पास कम पैसे थे और इसीलिए डंकिन डोनट्स में परिवेशिका के रूप में तथा आधुनिक नृत्य मंडलियों के साथ काम करते हुए गंदगी में रहना पड़ा था। न्यूयॉर्क के लिए प्रस्थान करते समय मैडोना ने कहा "यह पहली बार है कि मैं हवाई जहाज़ में सफ़र करूंगी, पहली बार टैक्सी की सवारी करूंगी. मैं यहां अपनी जेब में 35 डॉलर लेकर आई थी। यह मेरे लिए पहली बार बहादुरी की बात होगी. फ्रेंच डिस्को कलाकार पैट्रिक हरनैनडेज़ के साथ नर्तकी के रूप में 1979 के विश्व भ्रमण पर अपना प्रदर्शन करने निकली, मैडोना संगीतकार डैन गिलरॉय के साथ रोमांस रचाने लगी, बाद में चलकर जिसके साथ उसने न्यूयॉर्क में अपने पहले रॉक बैंड द ब्रेकफास्ट क्लब का गठन किया। वह बैंड के लिए गाती तथा ड्रम एवं गिटार बजाती थी और क्वींस के कोरोना में एक रूपांतरित यहूदी आराधनालय में रहती थी। हालांकि, वह उनसे अलग हो गई और 1980 में उसने एम्मी नाम के दूसरे बैंड का गठन, ड्रम बजाने वाले अपने पूर्व बॉयफ्रेंड स्टेफेन ब्रे के साथ किया। उसने ब्रे के साथ गाने लिखे और निर्माण भी किया जिससे स्थानीय लोगों का ध्यान न्यूयॉर्क के डांस क्लबों में उसकी ओर गया। DJ और रिकॉर्ड निर्माता, मार्क केमिंस उसके प्रदर्शन रिकॉर्डिंग्स से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसके बारे में सर रिकार्ड्स के संस्थापक सेय्मॉर स्टीन का ध्यान आकृष्ट किया। 1982-85: मैडोना, लाइक ए वर्जिन और शॉन पेन के साथ विवाह मैडोना ने सर रिकॉर्ड्स, जो लेबल पहले वार्नर ब्रदर्स रेकॉर्ड्स का था, के साथ एकल गानों के समझौते पर हस्ताक्षर किए. 24 अप्रैल 1982 को उसकी पहली रिलीज़ "एवरीबॉडी" थी। उसका पहला ऐल्बम मैडोना, मुख्यतः रेग्गी लुकास द्वारा तैयार किया गया था। उसी समय, दिसम्बर 82 से जनवरी 83 के मध्य लॉस एंजेल्स के दौरे के दौरान जीन मिशेल बासकेंट के साथ उसकी अटति में रहती हुई वह उसके साथ प्रगाढ़ संपर्क में आ गई। बाद में उसने उस कलाकार को शीघ्र ही, उसके मादक द्रव्य के सेवन और देर रात के कारण उसे छोड़ दिया और संगीतकार जॉन "जेलीबीन" बेनिटेज़ के साथ जब ऐल्बम का विकास कर रही थी, उसका हाथ थाम लिया। धीरे-धीरे मैडोना का चेहरा और वेशभूषा, प्रदर्शन और संगीत वीडियोज़, युवतियों और औरतों के बीच प्रभावशाली हो गए। फैशन और आभूषण डिज़ाईनर मैरिपोल के द्वारा डिज़ाइन किए गए मैडोना के आभूषणों की स्टाइल लेस लगे टॉप्स, केप्री पैंट्स के ऊपर स्कर्ट, फिशनेट जैसे मोज़े, क्रिश्चियन के क्रॉस लगे गहने, एकाधिक किश्म के कंगने और रंगे बाल 1980 के दशक में महिलाओं में फैशन की प्रवृति बन गई। उसका अनुवर्ती ऐल्बम, लाइक ए वर्जिन (1984) बिलबोर्ड 200 पर नंबर वन ऐल्बम बन गया। अपने टाइटल ट्रैक पर इसके वाणिज्यिक प्रदर्शन की सफलता ने उत्साह से भर दिया, "लाइक अ वर्जिन" जो लगातार छः हफ़्तों तक बिलबोर्ड हॉट 100 के नंबर वन की उंचाई पर पहुंच कर अपनी जगह बनाए रखा. इस ऐल्बम को रिकॉर्डिंग इंडस्ट्री एसोसिएशन ऑफ़ अमेरिका ने डायमंड का प्रमाणपत्र दिया और इसकी विश्वभर में 21 मिलीयन से भी अधिक प्रतियां बिकीं. उसने अपना ट्रेडमार्क "बॉय-टॉय" बेल्ट पहनकर पहले एमटीवी (MTV) वीडियो म्यूजिक अवार्ड्स के अवसर पर इस गाने को प्रस्तुत किया। इस प्रदर्शन को एमटीवी (MTV) के इतिहास में महान प्रतीकी पलों में से एक माना गया है, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार 'लाइक अ वर्जिन ' ऐल्बम कोनैशनल एसोसिएशन ऑफ़ रिकॉर्डिंग मारचेंडाइसर्स तथा रॉक हॉल ऑफ़ फेम ने डेफिनेटिव 200 ऐल्बम के सर्वकालीन ऐल्बमों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया है। अगले ही साल, विजन क्वेस्ट नामक फिल्म में, क्लब गायिका की एक शुरूआती संक्षिप्त भूमिका से मैडोना ने फिल्मों की मुख्यधारा में प्रवेश किया। इसके साउंडट्रैक में उसका दूसरा नंबर वन एकल गायन "क्रेजी फॉर यू" शामिल था। वह कॉमेडी फिल्म डेस्परेटली सीकिंग सुज़ान में भी दिखाई पड़ी, यह एक ऐसी फिल्म थी जिसने यूनाइटेड किंगडम में उसके पहले नंबर वन एकल गायन "इनटू द ग्रूव" को पेश किया। हालांकि वह फिल्म की मुख्य अभिनेत्री नहीं थी, लेकिन उसका व्यक्तिव ही इतना आकर्षक था कि इस मूवी को व्यापक रूप से मैडोना की (और व्यावसायिक) सफलता की सीढ़ी के रूप में देखा गया। सीज़र अवार्ड में बेस्ट फॉरेन फिल्म के लिए इस फिल्म को नामांकन मिला और न्यूयॉर्क टाइम्स के फिल्म समीक्षक विन्सेंट कैनबी ने इस फिल्म को 1985 की दस सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक नामांकित किया, जिसकी मुख्य भूमिका में रोज़ाना आर्क़ुएट को उसकी भूमिका के लिए बीएएफटीए (BAFTA) की सहायक अभिनेत्री का पुरस्कार मिला. "मेटेरियल गर्ल" के लिए म्युज़िक वीडियो के फिल्मांकन के समय मैडोना ने शॉन पेन के साथ डेटिंग करती हुई अपने जन्मदिन की सत्ताइसवीं सालगिरह पर उसी साल उसके साथ शादी कर ली. मैडोना ने आरंभिक अभिनय के रूप में द वर्जिन टूर शीर्षक से बिस्टी बोयज़ के साथ अपना पहला संगीत का दौरा उत्तरी अमेरिका में शुरू किया। जुलाई 1985 में, पेंटहाउस और प्लेबॉय पत्रिकाओं ने न्यूयॉर्क में मैडोना के कई नग्न चित्र प्रकाशित किए. मैडोना ने इन फोटोग्राफों के लिए इसलिए पोज़ दिए क्योंकि उसे पैसों की जरुरत थी। लेकिन चूंकि उसने उचित जारी प्रपत्रों पर हस्ताक्षर कर दिये थे इसीलिए कोई कानूनी कार्यवाई भी नहीं कर सकीं. इसके प्रकाशन ने मीडिया में हंगामा खड़ा कर दिया. हालांकि, वह अड़ी रही और वह उन चित्रों के प्रकाशन में क्षमाप्रार्थिनी भी नहीं हुई जिसके लिए उसे 25 डॉलर प्रति सत्र भुगतान किया जा चुका था। अंततः ये चित्र 100000 डॉलर के मूल्य तक बिके. उसने इस घटना को आउटडोर लाइव एड चैरिटी (Live Aid charity) कंसर्ट में संदर्भित किया है। उसने कहा कि वह अब तो अपना जैकेट भी नहीं उतारेगी क्योंकि वे [मीडिया] इसे अब से अगले दस साल तक थामें रह जा सकते है। 1986-1991: ट्रू ब्लू, लाइक अ प्रेयर और द ब्लौंड एम्बिशन टूर मैडोना ने अपना तीसरा ऐल्बम, ट्रू ब्लू, 1986 में रिलीज़ किया जिसपर रोलिंग स्टोन को तत्काल प्रतिक्रिया व्यक्त करनी पड़ी कि "यह सुनने में ऐसा लगता है कि यह सीधे दिल से निकला है।" विश्वभर के 28 से अधिक देशों में यह चार्ट के शीर्ष पर रहा जो उस वक्त का अभूतपूर्व रिकॉर्ड था और जिसने गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी अपनी जगह बना ली. इस ऐल्बम ने बिलबोर्ड हॉट 100 के चार्ट पर तीन नंबर वन एकल गानों को जन्म दिया:"लिव टू टेल", "पापा डोंट प्रीच" और "ओपन यौर हार्ट", इसके साथ ही साथ अन्य शीर्ष पांच एकलों को "ट्रू ब्लू" और "ला इस्ला बोनिता". इसी साल, मैडोना ने संघाई सरप्राइज़ (जिसे समीक्षकों ने सराहा) फिल्म में भूमिका अदा की और डेविड रेब की प्रस्तुति गूज़ ऐंड टॉम-टॉम में शॉन पेन के साथ सह-भूमिका में नाटकीय शुरुआत की. सन् 1987 में, मैडोना ने हु'ज़ दैट गर्ल में प्रमुख भूमिका अदा की एवं यूनाइटेड स्टेट्स नंबर टू गाने "कौजिंग अ कमोशन" तथा टाइटल ट्रैक के साथ चार गानों का भी योगदान दिया. उसी वर्ष, वह हुज़ दैट गर्ल के दुनिया के दौरे पर निकल पड़ी. मैडोना के नवोन्मेषी पोशाकों के लिए दौरे में प्रशंसा मिली. बाद में उसी वर्ष, उसने पुराने हिट्स, यू कैन डांस का रिमिक्स ऐल्बम जारी किया। सन् 1988 में, पेसेंट्रों शहर के अधिकारियों ने मैडोना की आवाक्ष मूर्ति का निर्माण आरंभ कर दिया. मूर्ति इस तथ्य की स्मृति स्वरूप थी कि उसके पूर्वज कभी पेसेंट्रों में ही रहा करते थे। शॉन पेन के साथ मैडोना का वैवाहिक संबंध भी समाप्त हो गया। दिसम्बर 1987 में तलाकनामा के कागजातों की पेशी और फिर वापस लिए जाने के बाद, सन् 1988 के नववर्ष की पूर्व संध्या में वे जुदा हो गए और जनवरी 1989 में उनका तलाक हो गया। पेन से शादी के सवाल पर मैडोना ने कहा, "मैं सम्पूर्ण रूप से अपने पेशे के प्रति समर्पित हूं और किसी भी आकार अथवा प्रकार से उदार, होने को तैयार नहीं." 1989 के आरंभ में, मैडोना ने शीतल पेय पेप्सी के उत्पादकों के साथ विज्ञापन के एक समझौते पर हस्ताक्षर किया। उसने अपने नए गाने, "लाइक अ प्रेयर" का शुभआरंभ पेप्सी के विज्ञापन के साथ किया और इसके लिए एक म्यूजिक वीडियो भी बनाया. इस वीडियो में कई कैथोलिक प्रतीकों जैसे कि क्षतचिह्नं और ज्वलन्त क्रूस का प्रदर्शन किया गया। इस विषय वस्तु के कारण वैटिकन ने वीडियो की निंदा की. विज्ञापन प्रसारण और संगीत वीडियो लगभग एक समान थे, इसीलिए पेप्सी, लोगों को यह समझाने में असमर्थ था कि विज्ञापन किसी मायने में अनुचित नहीं था। उन्होंने मैडोना के साथ वाणिज्यिक विज्ञापन प्रसारण एवं प्रयोजना का अनुबंध रद्द कर दिया. हालांकि, अनुबंध के लिए उसे दी जाने वाली फीस बरकरार रखी गई। उसी वर्ष, मैडोना का चतुर्थ स्टूडियो ऐल्बम, लाइक अ प्रेयर रिलीज़ हुआ था। यह पैट्रिक लियोनार्डो और स्टीफेन ब्रे के साथ सह-लिखित तथा सह-निर्मित था। रॉलिंग स्टोन ने इसकी प्रशंसा करते हुए लिखा, "कला के उतने ही करीब जितना कि पॉप संगीत हो सकता है". बिलबोर्ड 200 के ऐल्बम चार्ट पर लाइक अ प्रेयर नंबर वन की उंचाई पर पहुंच गया और विश्वभर में सात मिलीयन प्रतियां बिक गई, जिसमें से चार मिलीयन प्रतियां अकेले यूनाइटेड स्टेस में बिक गई। इस ऐल्बम ने तीन शीर्ष पांच एकल गाने प्रस्तुत किये विशेषकर टाइटल ट्रैक पर (हॉट 100 में उसका सातवां नंबर एक एकल), "एक्सप्रेस यौरसेल्फ" और "चेरिश" विशेष रूप से उल्लेखनीय है। 1980 के दशक के अंत तक, अपने तीन नंबर वन ऐल्बमों और सात नंबर वन एकलों के साथ मैडोना उस दशक की सर्वाधिक सफल महिला कलाकार बन गई; अब वह केवल माइकल जैक्सन से ही पीछे रह गई। 1990 में, मैडोना ने "ब्रेथलेस" महोनी फिल्म में अभिनय किया, जो कॉमिक बुक सीरिज़ डिक ट्रेसी का अनुकरण थी। मूवी की मुख्य शीर्षक भूमिका में वॉरेन बेट्टी था। इस फिल्म के रिलीज़ के साथ ही साथ उसने अपना ऐल्बम आई' ऍम ब्रेथलेस जारी किया, जिसमें उन गानों को शामिल किया गया जो फिल्म की 1930 के दशक की सेटिंग से प्रेरित थे। इसमें उसका आठवां US नंबर वन एकल, "वोग" और "सूनर और लेटर", भी विशेष रूप से शामिल था, यह एक ऐसा गाना था जिसने स्टीफन सोंथेम को सर्वोत्तम मौलिक गाने के लिए अकादमी पुरस्कार दिलाया था। फिल्म के लिए शूटिंग के दौरान, बेट्टी के साथ मैडोना ने रिश्ता शुरू कर दिया. वह आई' ऍम ब्रेथलेस के ऐल्बम कवर पर और उसकी डॉक्युमेंट्री, ट्रुथ और डेयर में भी दिखाई दिया. 1990 की समाप्ति के साथ ही उनका संबंध भी समाप्त हो गया। मैडोना ने अपना ब्लौंड एम्बिशन वर्ल्ड टूर की शुरुआत 1990 में अप्रैल महीने में की. धार्मिक और यौन विषय-वस्तुओं के विशेष प्रदर्शन से, इस दौरे में उसकी पेशकश, "लाइक अ वर्जिन", ने विवाद खड़ी कर दी जिसमें दो पुरुष नर्तक हस्तमैथुन में लिप्त होने से पहले उसके अंगों को दुलार से सहलाते हैं। पोप ने पुनः कैथोलिकों को उसके कार्यक्रमों में शामिल होने से मना कर दिया. उत्तेजक कामुकता के प्रदर्शन के खिलाफ फैमिग्लिया डोमानी नाम के एक निजी संघ ने भी इस दौरे का बहिस्कार किया। प्रतिक्रिया स्वरूप प्रत्युत्तर में मैडोना ने कहा, "मै इतालवी अमेरिकी हूं और इस पर मुझे गर्व है" और चर्च जो "केवल प्रजनन को छोड़कर यौन पर पूरी तरह से अपने तेवर दिखाता है।" बाद में उसने दौरे की लेजर डिस्क रिलीज़ के लिए वर्ष 1992 में बेस्ट लौंग फॉर्म म्यूजिक वीडियो की श्रेणी में ग्रेम्मी पुरस्कार जीता. मैडोना का सर्वप्रथम सर्वश्रेष्ठ- हिट्स संग्रह ऐल्बम, द इम्मॉकुलेट कलेक्शन नवम्बर 1990 में रिलीज़ हुआ। इसमें "जस्टिफाई माई लव" और "रेसिक्यु मी" शीर्षक से दो नए गाने शामिल किए गए। जो उस दौर में बिलबोर्ड चार्ट के इतिहास में किसी महिला कलाकार का सर्वोच्च शुरुआती एकल था। जो पंद्रहवें नंबर पर प्रवेश कर नवें नंबर के शिखर पर पहुंच गया। "जस्टिफाई माई लव", मैडोना का नौवां US नंबर वन एकल था। इसके म्यूजिक वीडियो की विशेष प्रस्तुतियों में परपीड़ित- कामुकता, दासता, समलैंगिक चुंबन एवं संक्षिप्त नग्नता की प्रधानता थी। इसे एमटीवी (MTV) के लिए अत्यधिक यौनता का खुल्लम-खुल्ला प्रदर्शन माना गया और स्टेशन से प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया। आखिरकार, द इम्मॉकुलेट कलेक्शन किसी एकल कलाकार का सबसे अधिक बिकने वाला ऐतिहासिक संग्रह बन गया। RIAA ने इसे हीरक प्रमाणन दिया और यूनाइटेड किंगडम में किसी महिला कलाकार के सर्वाधिक बिकने वाले ऐल्बम में सूचीबद्ध किया। वर्ष के अंत में, मैडोना ने जेनिफर लिंच की विवादास्पद फिल्म बोक्सिंग हेलेन को छोड़ देने का फैसला किया। 1990 के अंत से 1991 के आरंभ तक, मैडोना मॉडल एवं अश्लील कामुक कलाकार टॉनी वॉर्ड के साथ प्रेस संबंध बनाने के लिए मेल जोल करती रही जिसने उसके म्यूजिक वीडियो "चेरिश" एवं "जस्टिफाई माई लव" में अभिनय किया था। उसने वेनिला आइस के साथ आठ महीने तक संबंध बनाए रखा. उसका पहला वृत्तचित्र, ट्रुथ और डेयर (जिसे उत्तरी अमेरिका से बाहर इन बेड विथ मैडोना नाम से जानते थे), 1991 के मध्य में रिलीज़ हुई. इस वृत्तचित्र ने उसके ब्लौंड एम्बिशन वर्ल्ड टूर का सिलसिलेवार ब्यौरा साथ ही साथ उसके निजी जीवन की झलकियां भी पेश की. अगले ही वर्ष, वह बेस बॉल फिल्म ए लीग ऑफ़ देयर ओन में एक इटालियन- अमेरिकन, मै मोर्दाबीटो की भूमिका में नजर आयी। उसने फिल्म की थीम पर आधारित गीत "दिस यूस्ड टू बी माइ प्ले ग्राउंड" को उसनें रिकॉर्ड किया जो बिलबोर्ड के हॉट 100 पर दसवां नंबर-वन हिट हो गया। 1992-1996: मवेरिक, यौन प्रदर्शन, कामुक साहित्य, शयन समय की कहानियां एवं इविटा 1992 में, मैडोना ने अपनी मनोरंजन कंपनी मवेरिक की स्थापना की जिसमें एक रिकॉर्ड कंपनी (मवेरिक रिकॉर्ड्स) एक फिल्म निर्माण कंपनी (मवेरिक फिल्म्स) और एक संगीत प्रकाशन, टेलीविज़न, विपणन एवं पुस्तक प्रकाशन विभाग भी अंतर्मुक्त हैं। यह व्यापारिक समझौता संयुक्त उपक्रम का समझौता टाइम वॉर्नर के साथ $60 मिलियन डॉलर की लागत रिकॉर्डिंग और कारोबार का साझा समझौता था। इस समझौते से उसे बीस प्रतिशत की रॉयल्टी मिली, जो उस वक्त माइकल जैक्सन की आय के बराबर थी। इस साझा व्यवसाय से मैडोना का पहला प्रकाशन 'सेक्स ' नाम की पुस्तक प्रकाशित हुई जिसमें कामोत्तेजक और खुल्लम-खुल्ला अंगों को उभार कर दिखाई गई तस्वीरें थी जिसे स्टीवन मिसेल ने कैमरे से खींची थी। इसने मीडिया और आम जनता में सशक्त प्रतिक्रिया पैदा की, इसके बावजूद 50 डॉलर प्रति पुस्तक की दर से कुछ ही दिनों में इसकी 1,500,000 प्रतियां बिक गई। ठीक उसी समय उसने अपना पांचवां स्टूडियो ऐल्बम इरोटिका रिलीज़ की. इस ऐल्बम ने बिलबोर्ड 200 पर नंबर दो से शुरुआत की. इसका टाइटल ट्रैक बिलबोर्ड हॉट 100 के तीसरे नंबर की ऊंचाई पर पहुंच गया। इरोटिका ने भी आगे चलकर पांच एकल गानों "डीपर ऐंड डीपर", "बैड गर्ल", "फीवर", "रेन" और "बाइ बाइ बेबी" नाम से निर्माण किया। उसकी उत्तेजक कल्पना यौन उत्तेजक थ्रिलर्स बॉडी ऑफ़ एविडेंस और डैंजरस गेम के साथ भी जारी रहा. पहली फिल्म में S&M तथा दासता के दृश्य थे अतः आलोचकों द्वारा प्रशंसनीय नहीं हुई. डैंजरस गेम्स उत्तरी अमेरिका में सीधे वीडियो से ही रिलीज़ हुई थी फिर भी मैडोना के प्रदर्शन के लिए अच्छी समीक्षाएं मिली. न्यूयॉर्क टाइम्स ने बताया कि "वह अपनी भावनाओं के प्रति, जो उसके चतुर्दिक उग्र रूप से पैदा होती हैं, प्रभावशाली ढंग से समर्पित हो जाती है।" 1953 के अंत में मैडोना द गर्ली शो वर्ल्ड टूर पर निकल पड़ी. इससे उसे विशेष रूप से कोड़ों की मार से शासन करने वाली पोशाक में टॉपलेस नर्तकियों से घिरी दिखाया गया है। इस शो पर्टोरीको में नकारात्मक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा जब उसने इसके झंडे को मंच पर अपने पैरों तले रौंद दिया. रूढ़िवादी यहूदियों ने इसराइल में हुए शो के खिलाफ विरोध किया। उसी वर्ष, वह डेविड लेटर मैन के साथ लेट शो में दिखाई दी. उसे लेटरमैन ने अपने शो में, "विश्व के बड़े सितारों में से एक के रूप में पेश किया जिसके पिछले 10 वर्षों में उसके 80 मिलियन से भी अधिक ऐल्बम बिक गए, एवं मनोरंजन उद्योग की कुछ मानी-गरामी हस्तियों के साथ सोई..,"मैडोना ने बाद में बार-बार चार अक्षरों वाले शब्द का इस्तेमाल किया और लेटरमैन को उसने अपना एक जोड़ा अंडरवियरदेते हुए उसे सूंघने को कहा. ट्रुथ और डेयर, यौन पुस्तक, इरोटिका, बॉडी ऑफ़ एविडेंस की रिलीज़ तथा लेटरमैन के साथ प्रदर्शन - इन सबने आलोचकों के लिए मैडोना पर यौनचारिणी स्वधर्मत्यागिनी के रूप में सवालिया निशान खड़े कर दिए. उसे अपने आलोचकों से काफी कड़ी नकारात्मक प्रचार का सामना करना पड़ा और प्रशंसकों ने उस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि "वह बहुत दूर चली गई थी" और इसी वजह से उसका करियर समाप्त होने को है। मैडोना ने अपनी इस उत्तेजक छवि के रंग को हल्का करने की कोशिश अपना एकल "आइ विल रिमेम्बर" रिलीज़ कर की, जिसे उसने आलेक केशीशीयन की फिल्म विथ हॉरर के लिए रिकॉर्ड किया था। वह एक पुरस्कार समारोह में लेटरमैन के साथ सहमी सहमी पेश हुई, साथ ही साथ, जे लीनो के शो में भी एकसाथ दिखी. हालांकि, आम जनता ने उसे अभी भी स्वीकार नहीं किया। तभी उसने यह महसूस किया कि लंबे समय तक अपने आपको बनाए रखने के लिए उसके संगीत करियर में कुछ नाटकीय परिवर्तन की आवश्यकता है। अपने छठे स्टूडियो ऐल्बम बेडटाइम स्टोरीज़ में उसने अपनी छवि को नम्र करने और आम जनता के साथ एक बार फिर जोड़ने की कोशिश की है। इस ऐल्बम ने बिलबोर्ड 200 पर तीसरे नंबर से आरंभ किया और चार एकल तैयार किए - "सीक्रेट", "टेक अ बो", जो बिलबोर्ड हॉट 100 में सात सप्ताहों तक नंबर वन पर रहा, "बेडटाइम स्टोरी" और "ह्युमन नेचर". उसी समय वह प्यार में फिटनेस ट्रेनर कार्लोस लियॉन के साथ उलझ गयी। अपनी छवि को सुधारने की दिशा में नम्र और नमनीय बनाना जारी रखते हुए, मैडोना ने मई 1985 में, गाथागीतों का एक संग्रह, समथिंग टू रिमेम्बर रिलीज़ किया। इसमें उसके मरविन गे सोंग के कवर "आइ वांट यू" तथा दस शीर्ष हिट गाने "यू विल सी" को विशेष रूप से पेश किया गया। अगले ही वर्ष मैडोना की सर्वाधिक समीक्षित सफल फिल्म, इविटा रिलीज़ हुई. उसने इवा पेरॉन के किरदार के मुख्य अंश को चरित्रायित किया, यह ऐसा किरदार था जिसे वेस्ट एंड में पहली बार एलेन पेइग ने निभाई थी। साउंडट्रैक ऐल्बम में उसके तीन एकलों के साथ "यू मस्ट लव मी", भी अंतर्मुक्त था, लेकिन जिस गाने ने ऐन्ड्रेयु लॉयड वेब्बर और टीम राइस को बेस्ट ऑरिजनल साँग के लिए 1997 में अकादमी पुरस्कार अर्जित किया वह "डोंट क्राई फॉर मी अर्जेंटीना" था। मैडोना ने किसी संगीत या हास्य की भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का गोल्डन ग्लोब पुरस्कार जीता. 14 अक्टूबर 1996 को मैडोना ने कार्लोस लियोन की बेटी लौर्डेस मारिया सिकोन लियोन को जन्म दिया. 1997-2002: रे ऑफ़ लाइट, संगीत, दूसरा विवाह और ड्राउन्ड वर्ल्ड टूर लौर्डेस को जन्म देने के बाद मैडोना पूर्वी रहस्यवाद और दासता से जुड़ गई। उसकी यह धारणा और छवि में परिवर्तन उसके सातवें ऐल्बम रे ऑफ़ लाइट में स्पष्ट परिलक्षित है। यह ऐल्बम संयुक्त राज्य अमेरिका में नंबर दो पर आरंभ हुआ। ऑलम्यूजिक ने इसे "सबसे अधिक साहसी रिकॉर्ड" कहा. इस ऐल्बम ने दो US शीर्ष पांच, एकल गाने बनाए: "फ्रोजेन", जो नंबर दो पर पहुंच गया और "रे ऑफ़ लाइट" जो पांचवे नंबर पहुंचा। उसी वर्ष मैडोना को तीन ग्रेमी अवार्ड्स से सम्मानित किया गया। द टाइटल ट्रैक "रे ऑफ़ लाइट" ने "सर्वोत्तम संक्षिप्त आकार के म्यूजिक वीडियो" और "बेस्ट डांसिंग रिकॉर्ड" के लिए दो ग्रेमी अवार्ड जीते और Windows XP को बाजार में परिचित-प्रचलित करने के लिए Microsoft ने इस गाने का उपयोग विज्ञापन अभियान में किया गया। पहले एकल "फ्रोजेन" पर बेल्जियन गीतकार सैल्वेटोर अक्वाविवा के 1993 के गीत "Ma Vie Fout L'camp" की साहित्यिक चोरी का इल्जाम लगा और अंत में, ऐल्बम पर बेल्जियम में प्रतिबंध लगा दिया गया। रे ऑफ़ लाइट को रोलिंग स्टोन 500 के सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ एल्बमों में 363 नंबर का दर्जा दिया गया। ऐल्बम के अलावा, मैडोना को म्यूजिक ऑफ़ द हार्ट में वायोलिन शिक्षिका की भूमिका में अभिनय के लिए अनुबंधित किया गया, लेकिन उसने निर्देशक वेस क्रेवेन के साथ "रचनात्मक मतभेद" का हवाला देते हुए इस परियोजना को त्याग दिया. 1999 में भी फिल्म Austin Powers: The Spy Who Shagged Me के लिए साउंडट्रैक पर रिकॉर्ड किए गए एकल "ब्यूटीफुल स्ट्रेंजर" के साथ मैडोना ने रे ऑफ़ लाइट की सफलता का अनुकरण किया। यह हॉट 100 में 19वें नंबर पर पहुंच गया और "मोशन पिक्चर, टेलीविज़न अथवा अन्य दृश्य मीडिया के लिए सर्वश्रेष्ठ लिखित गीत" की श्रेणी में ग्रेमी अवार्ड जीता. मैडोना ने द नेक्स्ट बेस्ट थिंग इन 2000 फिल्म में अभिनय किया। फिल्म में साउंडट्रैक पर उसने दो गानों का योगदान दिया, "टाइम स्टूड स्टिल" एवं अंतर्राष्ट्रीय हिट "अमेरिकन पाइ", जो डॉन मैकलीन के 1970 के एकल का कवर संस्करण था। मैडोना ने अपना आठवां स्टूडियो ऐल्बम, म्यूजिक को सितंबर 2000 में रिलीज़ किया। विश्वभर में 20 से अधिक देशों में यह ऐल्बम नंबर-वन के स्तर पर हिट हो गया और पहले 10 दिनों में ही इसकी 4 मिलियन प्रतियां बिक गई। संयुक्त राज्य अमेरिका में, यह उसका चौथा नंबर वन और बिलबोर्ड 200 में पहली बार प्रवेश करने वाला पहला नंबर वन ऐल्बम हो गया। इससे तीन एकल; "म्यूजिक" जो मैडोना का बारहवां US नंबर वन एकल बन गया, साथ ही साथ "डोंट टेल मी" और "व्हाट इट फिल्स लाइक फॉर ए गर्ल" निकले. बादवाले के म्यूजिक वीडियो में मैडोना को कार से दुर्घटना कराकर हत्या करते हुए दिखाया गया जिसपर एमटीवी (MTV) तथा वीएच1 (VH1) पर प्रसारण के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया। इसी वर्ष मैडोना गाइ रिची के साथ रिश्ता जोड़ बैठी जिससे वह अपने अंतरंग मित्रों स्टिंग और उसकी पत्नी ट्रेडी स्टाइलर के मार्फ़त 1999 में मिली थी। 11 अगस्त 2000 को, इन्होंने अपने बेटे रोक्को को जन्म दिया. बाद में उसी वर्ष, मैडोना और रिची ने स्कॉटलैंड में शादी कर ली. ड्रोउन्ड वर्ल्ड टूर शीर्षक से उसका संगीत के कार्यक्रम का पांचवां दौरा मई 2001 में आरंभ हुआ, यह 1993 के बाद उसका पहला दौरा था। इस दौरे में उसने उत्तरी और यूरोप के शहरों का परिभ्रमण किया। यह वर्ष का सर्वोच्च आय वाला संगीत के कार्यक्रमों का दौरा था जिसने 47 प्रदर्शनों की बिक्री से 75 मिलियन डॉलर की कुल आय की. GHV2 के शीर्षक से उसने अपना दूसरा हिट्स कलेक्शन रिलीज़ किया जो दौरे के होम वीडियो रिलीज़ के साथ एक ही समय में मेल रखा गया। बिलबोर्ड 200 पर इस ऐल्बम ने सातवें नंबर पर शुरुआत की. मैडोना ने अपने पति गाइ रिची द्वारा निर्देशित फिल्म स्वेप्ट अवे में भी अभिनय किया। यह 2002 में रिलीज़ हुई थी। यह फिल्म व्यावसायिक और आलोचनात्मक स्तर पर असफल रही और यूनाइटेड किंगडम में सीधे ही वीडियो से इसे प्रसारित कर दिया गया। उसी वर्ष बाद में, उसने बीसवीं जेम्स बॉण्ड की फिल्म "डाई अनदर डे" का शीर्षक गीत रिलीज़ किया, जिसमें वह एक कैमियो की भूमिका कर रही थी। बिलबोर्ड हॉट 100 पर यह गीत आठवें नंबर पर पहुंच गया और सर्वश्रेष्ठ मौलिक गीत के लिए गोल्डेन ग्लोब अवार्ड तथा वर्स्ट साँग के लिए गोल्डेन रास्पबेरी अवार्ड के लिए नामांकित किया गया। 2003-06: अमेरिकी जीवन, कंफेशंस ऑन अ डांस फ्लोर और गोद लेने का मामला मैडोना ने X-STaTIC Pro=CeSS नाम की एक प्रदर्शनी के आयोजन के लिए फैशन फोटोग्राफर स्टीवेन क्लेन के साथ सहयोग स्थापित किया। इसमें W मैगज़ीन और सात अन्य वीडियो अंशों के फोटोशूट की फोटोग्राफी शामिल थी। यह आयोजन न्यूयॉर्क की डीच प्रोजेक्ट्स गैलेरी में मार्च से मई तक चलता रहा. इसको तब संपादित रूप में विश्व के अनेक स्थानों में भेजा गया। अमेरिकन लाइफ नाम का अपना नौवां ऐल्बम मैडोना ने रिलीज़ किया। यह अमेरिकी सामाजिक जीवन की थीम पर आधारित था और इसकी मिली जुली समीक्षाएं हुईं. शीर्षक गीत बिलबोर्ड हॉट 100 की सैंतीस नंबर की ऊंचाई पर पहुंच गया। अमेरिकन लाइफ की केवल चार मिलियन प्रतियां बिककर, उसके करियर का सबसे कम बिकने वाला ऐल्बम हो गया। बाद में, उसी वर्ष, मैडोना ने 2003 एमटीवी (MTV) वीडियो म्यूजिक अवार्ड्स के समारोह में ब्रिटनी स्पीयर्स, क्रिस्टीना एग्विलेरा और मिस इलियट के साथ "हॉलीवुड" गीत का प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के ही दौरान मैडोना ने स्पीयर्स और एग्विलेरा का चुम्बन ले लिया, फलतः पत्रिकाओं में खलबली मच गई। उसी दौरान मैडोना ने स्पीयर्स के एकल गाने "मी अगेंस्ट द म्यूजिक" में अतिथि कलाकार के रूप में अपना कंठ-स्वर दिया. 2003 के क्रिसमस के मौसम के दौरान, मैडोना ने एक रिमिक्स EP रिमिक्स ऐंड रीविजिटेड रिलीज़ किया, जिसमें अमेरिकन लाइफ और "यौर ऑनेस्टी", जो पहले बेड टाइम स्टोरीज़ के रिकॉर्डिंग सत्र से पहले ट्रैक पर रिलीज़ नहीं हुए थे, उन गानों के रॉक संस्करण पुनः रिलीज़ किए गए। मैडोना ने कालावे आर्ट्स ऐंड इंटरटेनमेंट के साथ पांच पुस्तकों के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किया, और पहला द इंग्लिश रोज़ेज शीर्षक से प्रकाशित हुआ। इसकी कहानी चार इंग्लिश स्कूली छात्राओं को लेकर थी जिनमें आपस में इर्ष्या और जलन थी। इसके प्रकाशन-प्रसारण के पश्चात्, द इंग्लिश रोज़ेस न्यूयॉर्क टाइम्स की बेस्ट सेलर्स की सूची में शीर्ष पर पहुंच गया। अगले ही वर्ष मार्च में, मैडोना और मवेरिक ने वॉर्नर म्यूजिक ग्रुप और इसकी पूर्व मूल कंपनी, टाइम वॉर्नर पर संसाधनों के कुप्रबंधन और निम्न स्तर के लेखांकन के कारण कंपनी को लाखों डॉलर्स के नुकसान के भुगतान का हवाला देते हुए मुकदमा दायर कर दिया. बदले में वॉर्नर ने भी यह आरोप लगाते हुए प्रतिघाती मामला दायर किया कि मवेरिक ने करोड़ों डॉलर का नुकसान स्वतः कर दिया था। विवाद का समाधान तब हुआ जब मैडोना और रॉनी दशवे के स्वामित्व वाले मवेरिक के शेयर खरीद लिए गए। अब यह कंपनी वॉर्नर म्यूजिक की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी बन गई लेकिन मैडोना अब भी एक अलग रिकॉर्डिंग अनुबंध के अंतर्गत वॉर्नर के साथ ही हस्ताक्षरित थी। बाद में उसी वर्ष, मैडोना रीइन्वेंशन वर्ल्ड टूर पर यूनाइटेड स्टेट्स, कनाडा और यूरोप के लिए प्रस्थान कर गई। 125 मिलियन डॉलर की कुल आय कर, यह 2004 का सर्वोच्च आय वाला दौरा हो गया। इस दौरे पर उसने आइ एम् गोइंग टू टेल यू अ सीक्रेट नामक वृत्तचित्र बनाया. ठीक उसी वर्ष, "100 सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ कलाकारों" की सूची में रॉलिंग स्टोन ने छत्तीसवें नंबर पर अपना स्थान बना लिया। 2004 में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान, मैडोना ने वेस्ली क्लार्क के डेमोक्रेटिक नामांकन का समर्थन किया। उसने टीवी पर संगीत कार्यक्रम "सुनामी ऐड" में भी हिस्सा लिया और जॉन लेनन के गीत "इमैजिन" का कवर संस्करण प्रस्तुत किया। जनवरी 2005 में आयोजित इस कार्यक्रम से एशिया के सुनामी पीड़ितों के लिए धन इकठ्ठा किया गया। इसी वर्ष जुलाई में मैडोना ने लंदन में लाइव 8 सहायता कोष संग्रह कार्यक्रम पेश किया जिसका लक्ष्य ब्रिटेंस मेक पॉवर्टी हिस्ट्री अभियान और ग्लोबल कॉल फॉर एक्शन अगेंस्ट पॉवर्टी के उद्देश्यों को समर्थन देना था। उसका दसवां स्टूडियो ऐल्बम, कंफेशंस ऑन अ डांस फ्लोर नवंबर में रिलीज़ हुआ और प्रमुख संगीत बाजारों में नंबर वन पर अपनी बिक्री शुरू की. "बेस्ट इलेक्ट्रोनिक/डांस ऐल्बम" के लिए इस ऐल्बम ने ग्रेमी अवार्ड जीता. अपने पूर्व स्टूडियो ऐल्बम की मिली-जुली समीक्षाओं के बाद, कंफेशंस को आलोचकों से सकारात्मक समीक्षाएं प्राप्त हुईं, इसके बारे में कहते हुए कि यह उसकी व्यावसायिक विशिष्टता की वापसी थी। हालांकि यहूदी धर्मगुरुओं ने ऐल्बम के गीत "इस्सैक" की निंदा की और दवा किया कि यहूदी कानून में रब्बी के नाम के व्यवसायीकरण की सख्त मनाही है। मैडोना ने दावा किया कि उसने यह नाम एक यहूदी गायक के नाम पर लिया था और कहा कि, "ऐल्बम तो अभी बाहर प्रसारित हुआ ही नहीं, अतः यहूदी विद्वान किस प्रकार जान गए कि मेरा गीत किसके बारे में है?" ऐल्बम "हंग अप" का पहला एकल पैंतालिस देशों में रिकॉर्ड तोड़ते हुए नंबर वन पर पहुंच गया। दूसरा एकल "सॉरी" यूनाइटेड किंगडम में मैडोना का बारहवां नंबर वन हो गया। 2006 के मध्य तक, फैशन वस्त्रों के प्रस्तुत कारक H&M ने उनके विश्व्यायी मॉडल बनने के लिए मैडोना को अनुबंधित किया। अगले साल ही, मैडोना द्वारा बनाए एक विशेष प्रकार के पहनावा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लॉन्च किया। मैडोना का कंफेशंस टूर मई 2008 में आरंभ हुआ। वैश्विक स्तर पर इसे 1.2 मिलियन दर्शकों ने देखा, जिससे 260.1 मिलियन डॉलर की कुछ आय हुई. "लिवर टू टेल" के प्रदर्शन के समय धार्मिक प्रतीकों जैसे कि क्रुस्मुर्ती और कांटों का ताज के व्यवहार के कारण रुढ़िवादी रूसी चर्च और रसिया के यहूदी समुदाय के संघ ने अपने सदस्यों को संगीत कार्यक्रमों को बहिष्कार करने का निवेदन किया। कंसर्ट के खिलाफ वेटिकन के साथ ही साथ डसेलडोर्फ के बिशपों ने भी विरोध किया। प्रत्युत्तर में मैडोना ने कहा कि मेरा प्रदर्शन न तो इसाई विरोधी है न ही धर्म विरोधी अथवा ईश निन्दात्मक है। बल्कि, मेरा दर्शकों से मेरा यह नम्र निवेदन है कि वे मानवजाति को एक दूसरे की सहायता करने के लिए प्रोत्साहित करें और दुनिया एक सम्पूर्ण इकाई में आबद्ध दिखाई दे. दौरे के दौरान, मैडोना ने मलावी की यात्रा की ताकि वहां मलावी पहल को प्रोत्साहित करने के लिए एक अनाथालय की आर्थिक मदद की जा सके. 10 अक्टूबर 2006 को, उसने डेविड बांदा मवाले नाम के एक बच्चे को अनाथालय से गोद लेने के लिए दत्तक पत्र दायर किया। उसका नया नाम डेविड बांदा मवाले सिकोने रिची रखा गया। इस दत्तक ग्रहण से सशक्त सार्वजनिक प्रतिक्रिया पैदा हो गई क्योंकि मलावी कानून के अनुसार होने वाले माता-पिता का गोद लेने से पहले एक वर्ष तक मलावी में निवास करना आवश्यक है। इस प्रयास को खूब प्रचारित किया गया और कानूनी विवादों में उलझ कर इसका अंत हुआ। द ओप्राः विनफ्री शो में मैडोना ने उसपर लगाए गए आरोपों का खंडन किया। उसने कहा कि मलावी में कोई लिखित दत्तक-ग्रहण कानून नहीं है जो विदेशी दत्तक-ग्रहण को विधिवत नियंत्रित करता हो और चूंकि जब वह बांदा से मिली थी तब वह मलेरिया और तपेदिक से बचने के बाद न्यूमोनिया से पीड़ित था। गायक और मानववादी सक्रिय कार्यकर्ता, बोनो ने उसके बचाव-पक्ष में कहा, "कल्पना से भी परे दरिद्रता की दशा से उबरकर किसी बच्चे की मदद करने के लिए मैडोना की तो प्रशंसा की ही जानी चाहिए." कुछ लोगों ने कहा कि बांदा के जैविक पिता योहन ने दत्तक-ग्रहण का मतलब ही नहीं समझा और उसने यह अनुमान लगा लिया कि पूरी तैयारी केवल पालन-पोषण को बढ़ावा देने के लिए की जा रही है। उसने कहा कि "ये तथाकथिक मानवाधिकार के कार्यकर्ता हर रोज़ मुझे परेशान कर रहे हैं। मुझे धमकी दे रहें हैं कि मैं इस बारे में बिलकुल ही नहीं जानता कि मैं क्या करने जा रहा हूं." उन्होंने यह भी कहा, "वे अपने अदालती मामले में मेरा समर्थन चाहते हैं, जो मैं नहीं कर सकता क्योंकि मैं जानता हूं कि मैडोना और उसके पति के साथ मेरी क्या रजामंदी हुई है। 28 मई 2008 को दत्तक-ग्रहण को अंतिम रूप दे दिया गया। 2007-वर्तमान तक: लाइव नेशन, हार्ड कैंडी और स्टिकी एंड स्वीट टूर मई 2007 में, मैडोना ने एकमात्र डाउनलोड गीत "हे यू" लाइव अर्थ सीरीज़ के कंसर्ट की प्रत्याशा में रिलीज़ किया। पहले सप्ताह के लिए गीत को बिना मूल्य उपलब्ध कराया गया था। उसने जुलाई 2007 में लंदन लाइव अर्थ कंसर्ट में इसका प्रदर्शन भी किया। मैडोना ने वार्नर ब्रदर्स रेकॉर्ड्स से अपने अलगाव की घोषणा कर दी और अक्टूबर में उसने लाइव नेशन के साथ 120 मिलियन डॉलर के दस वर्षों के लिए नये अनुबंध कर लिए. वह लाइव नेशन आर्टिस्ट के नये संगीत विभाग की प्रतिष्ठता रिकॉर्डिंग कलाकार बन गई। उसी वर्ष, द रॉक ऐंड रोल हॉल ऑफ़ फेम ने यह घोषणा की कि मैडोना 2008 की पांच प्रतिष्ठितों में से एक हैं। 10 मार्च 2008 को यह समारोह आयोजित हुआ। मैडोना ने मलावियों के द्वारा झेली जा रही समस्याओं पर एक वृत्त चित्र, आइ एम बिकॉज़ वी आर, का लेखन और निर्माण किया। इस वृत्तचित्र का निर्देशन उसके भूतपूर्व माली नाथन रिसमैन के द्वारा किया गया। द गार्जियन ने आइ एम बिकॉज़ वी आर की प्रशंसा यह कह कर की कि वह "आई, देखी और संसार के सबसे बड़े फिल्म समारोह पर विजय प्राप्त कर ली." उसने फिल्थ ऐंड विस्डम नाम की अपनी पहली फिल्म का निर्देशन भी किया। ब्रिटिश प्रेस से इसे मिली-जुली समीक्षाएं मिली. द टाइम्स ने कहा कि यह "उसके लिए गर्व की बात है" जबकि द डेली टेलीग्राफ ने फिल्म के बारे में कहा कि,"पहला प्रयास पूरी तरह से निराशाजनक तो नहीं (लेकिन) मैडोना अगर दैनिक कार्य में जुटी रहती है तो और भी बेहतर कर सकती है।" मैडोना ने अप्रैल 2008 में अपना ग्यारहवां स्टूडियो ऐल्बम, हार्ड कैंडी रिलीज़ किया। रॉलिंग स्टोन ने इसकी तारीफ "उसके होने वाले दौरे का दिलचस्प स्वाद" के रूप में की. इस ऐल्बम ने विश्वभर के 37 देशों में नंबर वन से शुरुआत की, इसमें 2,80,000 प्रतियों की बिक्री के साथ बिलबोर्ड 200 भी शामिल है। विश्वभर में इस ऐल्बम को सकारत्मक समीक्षाएं ही प्राप्त हुईं हालांकि कुछ आलोचकों ने इसे "शहरी बाजार को तहस-नहस करने का प्रयास" कहकर इसकी निंदा भी कि. इसका प्रमुख एकल "4 मिनट्स" बिलबोर्ड हॉट 100 पर नंबर तीन पर पहुंच गया। यह मैडोना का बिलबोर्ड हॉट 100 के शीर्ष में पहुंचने वाला सैंतीसवां एकल था, इस प्रकार एल्विस प्रिस्ली जैसे सर्वाधिक टॉप टेन हिट्स वाले कलाकार से भी आगे निकल गई। अपने तेरहवें एकल के साथ उसने यूनाइटेड किंगडम में किसी महिला कलाकार के लिए सर्वाधिक नंबर-वन एकल के रिकॉर्ड को बनाए रखा. ऐल्बम को आगे प्रोत्साहन देने के लिए, मैडोना स्टिकी और स्वीट टूर पर रवाना हो गई, जो लाइव नेशन के साथ उसका प्रथम प्रमुख उपक्रम था। यह 280 मिलियन यू एस डॉलर की कुल आय के साथ किसी एकल कलाकार के लिए सर्वाधिक आय वाला दौरा हो गया जो पिछले कंफेशंस टूर के रिकॉर्ड को भी तोड़ कर आगे निकल गया। यह दौरा नई यूरोपीय तारीखों और उन स्थानों को जोड़कर अगले वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया जिन जगहों पर मैडोना पिछली बार नहीं जा सकी थी, अततः तेल अवीव में अंतिम दो तिथियों के साथ यह दौरा समाप्त हो गया। सम्पूर्ण दौरे अंत में कुल आय 408 मिलियन US डॉलर हो गया। मैडोना के भाई, क्रिस्टोफर सीकों द्वारा लिखी विवादास्पद पुस्तक, लाइफ विद माई सिस्टर मैडोना जुलाई में प्रकाशित हुई. द न्यूयॉर्क टाइम्स की बेस्ट सेलर की सूची में इस पुस्तक ने दूसरे नंबर पर प्रवेशारम्भ किया। यह मैडोना के द्वारा अनुमोदित नहीं थी और इसीलिए दोनों के रिश्तों के बीच दरार पड़ गई। मैडोना ने अपने पति गाइ रिची के साथ तलाक के लिए 2008 में मुकदमा दायर किया। तलाक के आरंभिक आदेश की अनुमति के बाद दिसंबर में अलगाव को अंतिम रूप दे दिया गया। अपने ऐल्बम हार्ड कैंडी के लिए रिकॉर्डिंग एसोसिएशन ऑफ़ जापान गोल्ड डिस्क अवार्ड्स समारोह में मैडोना को जापान गोल्ड इंटरनैशनल आर्टिस्ट ऑफ़ द इयर पुरस्कार से सम्मानित किया। मैडोना ने फिर मलावी से गोद लेने का निश्चय किया। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने शुरू-शुरू में शिफुन्ड़ो "मर्सी" जेम्स को गोद लेने की मंजूरी दे दी. हालांकि, बाद में इस गोद लेने के आदेश को कोर्ट के रेजिस्टरार, कें मांडा ने इस कारण खारिज कर दिया कि मैडोना मलावी निवासिनी नहीं थी। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने इस आदेश को उलट दिया. 12 जून 2009 को मलावी के सुप्रीम कोर्ट ने मैडोना को मर्सी जेम्स को गोद लेने के अधिकार की स्वीकृति दे दी. सितम्बर 2009 में, मैडोना ने अपना तीसरा सर्वाधिक हिट ऐल्बम सेलिब्रेशन रिलीज़ किया और वॉर्नर ब्रदर्स रिकॉर्ड्स के साथ रिलीज़ बंद कर दिया. इसमें नये गाने "सेलिब्रेशन" और "रिवॉल्वर" (लील वायने को प्रमुख रूप से पेश करते हुए) शामिल थे, साथ ही उसके करियर के पूरे काल-क्रम के 34 हिट्स भी इसमें शामिल थे। युनाइटेड किंगडम के ऐल्बम चार्ट में यह ऐल्बम मैडोना का ग्यारहवां नंबर-वन ऐल्बम बन गया, एकल अभिनय के साथ सर्वाधिक नबर-वन ऐल्बमों के कारण उसे एल्विस प्रिस्ली के साथ जोड़ा जाने लगा. जून में फोर्ब्स मैगजीन ने उसे तृतीय सर्वाधिक सशक्त प्रतिष्ठित व्यक्ति के रूप में नामांकित किया। 2009 एमटीवी (MTV) वीडियो संगीत पुरस्कार में 13 सितम्बर 2009 को एक अभिभाषण के साथ माइकेल जैक्सन को श्रद्धांजलि देती हुई दिखाई पड़ी. मैडोना ने अपने बारहवें स्टूडियो ऐल्बम के लिए अपना काम आरम्भ कर दिया है, जो 2008 के हार्ड कैंडी का अनुवर्ती है और रैप प्रोड्यूसर ए-ट्रैक तथा रॉक प्रोड्यूसर ब्रैनडन ओ' ब्रायन को भी सूची बद्ध किया है। उसके बारे में कहा जाता है कि वह रन-D.M.C के अभिनव 1980 के रैप/रॉक हिट वॉक दिस वे, की सफलता का अनुकरण करने की उम्मीद कर रही है और गिटार बजाने की कला में महारत हासिल कर गिटार की भरी भरकम आवाज से प्रयोग करने को उत्सुक है। संगीत शैली और प्रभाव एक कलाकार के रूप में मैडोना का संगीत समीक्षाओं के मध्य समीक्षा का विषय रहा है। लेखक रॉबर्ट एम. ग्रांट ने अपनी पुस्तक कनटेम्पोरेरी स्ट्रेटेजी एनालिसिस (2005) में टिप्पणी करते हुए लिखा है कि "सर्वोत्कृष्ट स्वाभाविक प्रतिभा के कारण निश्चय ही" उसने सफलता नहीं पाई है। एक गायक, संगीतकार, नर्तकी, गीतकार, या अभिनेत्री के रूप में, मैडोना की प्रतिभा सामान्य सी दिखती है।" दृढ़ता के साथ उनका यह मानना है कि मैडोना की सफलता दूसरों की प्रतिभा पर निर्भरशील है और उसके व्यक्तिगत संबंधों ने नई खोजों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर उसके करियर को दिर्घायित की है। इसके विपरीत रॉलिंग स्टोन पत्रिका ने भी पुस्तकों की प्रतिभा और अमिट गीतों के साथ एक अनुकरणीय गीतकार, तथा उसके लाइव दृश्यों वाली प्रस्तुतियों से बेहतर स्टूडियो गायिका के रूप में मैडोना के नाम का उल्लेख किया है। "भारी-भरकम प्रतिभा" नहीं होने के बावजूद भी उसे "हल्के-फुल्के गीतों के लिए परिपूर्ण गायिका" कहा गया है। 1985 में मैडोना ने टिप्पणी की कि, पहला गीत जिसने उसपर अपनी सशक्त छाप छोड़ी, वह नैन्सी सिनात्रा लिखित "दीज़ बूट्स आर मेड फॉर वाल्किंग" थी जिसने उसके "दृष्टिकोण को दिशा" देकर उसे प्रभावित किया है। एक युवती के रूप में, उसने साहित्य, कला और संगीत के प्रति अपनी अभिरुचि को व्यापक बनाने की कोशिश की और इस दौरान वह शास्त्रीय संगीत में दिस्चस्पी लेने लगी. उसने इसका भी उल्लेख किया कि उसकी पसंदीदा शैली बैरोक है और वह मोजार्ट और चौपिन को इसलिए पसंद करती है कि वह उनकी "नारी सुलभ गुणों" को पसंद करती है। 1999 में, मैडोना ने उन सांगीतिक प्रभावों को पहचाना जिसने उसपर अपना प्रभाव छोड़ा था जैसे कि करेन कारपेंटर, द सुप्रिम्स और लेड जेपेलिन तथा नर्तक-नर्तकियां जैसे कि मारता ग्राहम और रुडोल्फ न्युरेव. द ऑब्ज़र्वर को दिए गए 2006 के एक साक्षात्कार में, मैडोना ने अपनी मौजूदा संगीत रुचियों की चर्चा करते हुए जिन नामों का उल्लेख किया उनमें डेट्रायट नेटिव्स, द रिकाउनटर्स और व्हाईट स्ट्राइप्स के साथ ही साथ न्यूयॉर्क बैंड द जेट सेट शामिल था। मैडोना की कैथोलिक पृष्ठभूमि और उसके माता पिता के साथ संबंध उसके ऐल्बम लाइक अ प्रेयर में परिलक्षित हैं। यह आहवान भी धर्म का उसके करियर पर प्रभाव की ही याद दिलाता है। टाइटल ट्रैक के लिए उसके वीडियो में कैथोलिक प्रतीकों, जैसे कि क्षतचिह्न, का समावेश मिलता है। वर्जिन दौरे के दौरान उसने एक रोजरी पहनी और "ला इस्ला बोनिता" म्यूजिक वीडियो में इसे पहन कर प्रार्थना करते हुए प्रदर्शन भी किया। उसने अपने काम में अपनी इतालवी विरासत को भी संदर्भित किया। "लाइक अ वर्जिन" के लिए वीडियो में वेनिस व्यवस्था को फीचर किया गया है। द "ऑपेन योर हार्ट" वीडियो में उसके बॉस को इतालवी भाषा में उसे डांटते हुए दिखाया गया है। हू इज दैट गर्ल टूर के वीडियो रिलीज़ सिअओं, इटालिया!- लाइव फ्रॉम इटाली में, उसने "पापा डोंट प्रीच" को पोप ("पापा" पोप के लिए प्रयुक्त इतालवी शब्द है) को समर्पित किया है। अपने बचपन के दौरान, मैडोना जिन कलाकारों से प्रेरित हुई थी, उनके बारे में बाद में उसने कहा "मैं कैरोल लोम्बार्ड और जुडी हॉलिडे तथा मर्लिन मनोरे को पसंद करती थी। वे सब अविश्वसनीय रूप से मजेदार थे।.. और मैंने खुद को उनमें पाया।..मेरा बालिकापन, मेरा ज्ञान और मेरी मासूमियत". उसका म्यूजिक वीडियो "मेटेरियल गर्ल" मुनरों की फिल्म जेंटलमैन प्रेफर ब्लौन्ड्स से लिए गए गीत "डायमंड्स आर अ गर्ल्स बेस्ट फ्रेंड" की ही पुनः सृष्टि थी और बाद में उसने 1930 के उटपटांग हरकत वाले हास्य का अध्ययन किया, खासकर अपनी फिल्म हू इज दैट गर्ल की तैयारी में लोम्बार्ड के हास्य हरकतों का अध्ययन किया। "एक्सप्रेस योरसेल्फ" (1989) वीडियो, फ्रिट्ज लैंग की मूक फिल्म मेट्रोपौलिस (1927) से प्रेरित था। वोग के लिए बने वीडियो ने हॉलीवुड के ग्लैमर फोटोग्राफरों की स्टाइल, विशेषकर होर्स्ट पी. होर्स्ट, को पुनः सर्जित किया और मर्लिन डाएटरिच, कैरोल लोम्बार्ड तथा रीटा हेवर्थ की भंगिमाओं की भी नक़ल की, जबकि इसके गीतों में उन कलाकारों के नाम संदर्भित हैं जिनसे उसे प्रेरणा मिली है, जिसमें मैडोना के आइडल बेट्टे डेविस के साथ-साथ लुईस ब्रुक्स और दिता पार्लो के नाम शामिल हैं। कला जगत से भी वह प्रेरित हुई जिसमें फ्रीडा काहलो जैसे कलाकार की कला का माध्यम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उसका 1995 का म्यूजिक वीडियो "बेडटाइम स्टोरी" में काहलो और रेमेडियोस वारो के पेंटिंग्स से प्रेरित छवियों को विशेष रूप से व्यवहृत किया गया है। उसका 2003 में बना वीडियो "हॉलीवुड" फोटोग्राफर गाइ बोर्दिन की कृति के प्रति श्रद्धांजलि थी, हालांकि इसने कानूनी कार्रवाइयों को भड़का दिया क्योंकि बोर्दिन के बेटे ने अपने पिता के कार्य के अनधिकृत उपयोग का आरोप लगाया. नई पीढ़ी के अन्य कलाकारों, जैसे कि एंडी वारहोल, उसके संगीत वीडियोज "इरोटिका" और "डिपर ऐंड डीपर" के लिए प्रेरणा स्रोत थे। अपनी अंडरग्राउंड फिल्मों में S&M कल्पना चित्र के वारहोल के प्रयोग इन वीडियोज़ में स्पष्ट परिलिक्षित थे। मैडोना ने यहां तक कि वारहोल के एक बार के म्यूजिक एडिक सेड्ग्विक की "डीपर ऐंड डीपर" की भी नक़ल की है। मैडोना अपने ऐल्बम बेड टाइम स्टोरीज के रिलीज के बाद 1994 में एक यहूदी रहस्यवाद के स्कूल काब्बालाह की अनुयायी बन गयी। उसने अपने ऊपर धर्म के प्रभाव के बारे में बात की है और लाखों डॉलर का दान न्यूयॉर्क और लंदन के आसपास धर्म के आधार पर चलने वाले स्कूलों को दिया है। 2004 में, उसने अपना नाम बदल कर एस्तेर कर लिया है, जिसका हिब्रू में अर्थ 'स्टार' है। हालांकि, काब्बालाह (ग़ुलामी) का विसर्जन उत्तेजना का कारण बना और उसे यहूदी धर्म गुरुओं (रब्बियों) से विरोध का सामना करना पड़ा जिन्होंने मैडोना के धर्म धारण को पवित्र वस्तु दूषक और सेलिब्रिटी के कलाप्रेम के रूप में देखा. मैडोना ने काब्बालाह अध्ययन का बचाव यह कहते हुए किया कि, "अगर मैं नाजी पार्टी में शामिल हो जाती तो यह कम विवादास्पद हुआ होता" और रही काब्बालाह "किसी को चोट नहीं पहुंचाता". धर्म का मैडोना के संगीत पर प्रभाव- विस्तार होता ही गया, विशेष रूप से रे ऑफ लाइट और म्यूजिक जैसे ऐल्बमो पर यह प्रभाव स्पष्ट है। यह उसके री-इन्वेंसन वर्ल्ड टूर 2004 में प्रदर्शित किया गया जिसमे प्रदर्शन के दौरान मैडोना और उसकी नर्तकियां एक टी -शर्ट पहने थीं जिसपर लिखा था "Kabbalists Do It Better." (कब्बालियों इसे बेहतर ढंग से करते हैं). संगीत वीडियोज और सीधा (लाइव) प्रदर्शन द मैडोना कंपेनियन में, उसके जीवनी लेखक एंड्रयू मेट्स ने इस बात का उल्लेख किया है कि हाल ही के किसी भी अन्य पॉप कलाकार से मैडोना ने एमटीवी (MTV) एवं म्यूज़िक वीडियो पर अपनी लोकप्रियता की स्थापना और उसके रेकॉर्ड किये गए काम में वृद्धि के लिए ज्यादा इस्तेमाल किया है। उनके अनुसार, उसके गानों में संगीत वीडियो की कल्पना मजबूत संदर्भ में होती है, जब संगीत की चर्चा होती है। सबसे अधिक चर्चा में रहे गीतों के प्रति मीडिया और जनता की प्रबल प्रतिक्रिया मिली वे हैं, "पापा डोंट प्रीच", "लाइक अ प्रेयर" अथवा "जस्टिफाई माई लव", संगीत और उनके प्रभाव को बढ़ावा देने के लिए संगीत वीडियो बनाये गए न कि स्वयं गीत को ही. उसके शुरूआती संगीत वीडियोज में अमेरिकी और हिस्पैनिक मिश्रित सड़क शैली और एक तेजतर्रार ग्लैमर प्रतिबिंबित है। मूलतः एक नर्तकी के रूप में मैडोना ने, संगीत वीडियो के माध्यम से इस कल्पना को अभिव्यक्ति प्रदान की है। उसके पहले वास्तविक संगीत वीडियो के गाने "बर्निंग अप", "बौर्डरलाईन" और "लकी स्टार", के साथ मैडोना ने अपने नवीन तरकीबों के प्रयोग में अग्रणी न्यूयॉर्क फैशन की भावना को अमेरिकी दर्शकों को प्रेषित किया। उसने ट्रू ब्लू युग से चली आ रही संगीत वीडियो के साथ काल्पनिक चित्रों और हिस्पैनिक संस्कृति और कैथोलिक प्रतीकों को समावेश करना जारी रखा. लेखक डगलस केलनर ने इंगित किया कि, "ऐसे 'बहुसंस्कृतिवाद' और उसकी सांस्कृतिक उत्क्रामी गतियां काफी सफल रहीं जिसने उसे बड़े और विविध युवा दर्शकों के बीच प्रिय बना दिया." वीडियो में मैडोना की स्पेनी लुक (आकृति) लोकप्रिय हो गयी और स्त्रियों के छोटे जैकेट स्तरित स्कर्ट रोजरी माला क्रूश पहनकर प्रस्तुत हुई जो उस समय फैशन के प्रति रुझान में प्रकट हो गया जैसाकि वीडियो में दिखाया गया है। शिक्षाविदों ने कहा कि वह अपने वीडियो के द्वारा सूक्ष्म रूप से पुरुष की प्रभावी भूमिका में परिवर्तन लाना चाहती थी और "दृश्यरतिक पुरूष की वस्तु के प्रति दृष्टि"के बीच शक्तिशाली संबंधों को सामान्य बनाना चाहती थी। यह प्रतीकवाद और कल्पना शायद संगीत वीडियो में सबसे अधिक प्रचलित "लाइक अ प्रेयर" में पाया जाता है। इस वीडियो में एक अफ्रीकी अमेरिकी चर्च की गायन मंडली को शामिल किया गया है जिसमें मैडोना एक काले संत की मूर्ति की तरह कई जलते क्रूशों के सामने गायन करती है। पवित्र के साथ नापाक का यह मिश्रण वेटिकन को नाराज कर देता है और परिणामस्वरूप पेप्सी को अपना विज्ञापन वापस कर लेना पड़ा. आरंभिक वीडियोज में युवा लड़कों जैसी दिखने वाली लड़कियों की भूमिका की और यौन व्यक्तित्व को "जस्टिफाई माई लव" और "एक्सप्रेस योरसेल्फ" को उभारा, मैडोना ने खुद को जो संस्कृतियों से जरा भी विचलित नहीं हुई और संघर्ष सहन करती रही, के रूप में प्रतिनिधित्व किया। इस से रहित, वीडियो के अंत में वह अपने आप को ऑफ-स्क्रीन नाच में पेश करती है। उसकी पुनर खोज उसके सबसे ताजा वीडियो "रे ऑफ लाइट" में जारी है, जिसकी 1998 एमटीवी (MTV) वीडियो संगीत पुरस्कार में इस वर्ष के पुरस्कार के साथ वीडियो की सराहना की गयी। एमटीवी (MTV) के आगमन के दौरान मैडोना का उभर कर आना और 'इसके लगभग अनन्य रूप से लिप-सिंस्ड वीडियो के साथ, एक युग की शुरुआत की जब औसत संगीत प्रेमी बस गायकों के मुँह की ओर देखते हुए शब्दों में खुशी से हर दिन घंटों, बिता सकते हैं।" संगीत वीडियो और लिप सिंसिंग के बीच सहजीवी रिश्ते ने दृश्यों और संगीत वीडियो के मंच पर प्रदर्शन हेतु रूपांतरित किये जाने के प्रति एक इच्छा पैदा की. न्यूयॉर्क टाइम्स के क्रिस नेल्सन ने अपने रिपोर्ट में कहा है: "मैडोना और जेनेट जैक्सन जैसे कलाकार प्रदर्शन की विद्या के लिए नए मानक तय करते हैं, ऐसे संगीत समारोहों के जरिये जिनमें केवल शानदार अलंकृत परिधान और यथार्थ समय पर आतिशबाज़ी बनाने की विद्या ही नहीं बल्कि पुष्ट नृत्य भी शामिल हैं। मंच पर साक्षात गाने की कीमत पर ये प्रभाव पैदा हुए. डलास मोर्निंग न्यूज़ के थोर क्रिस्तेंसें ने टिप्पणी की है कि मैडोना ने अपने 1990 ब्लोंड एमबीसन टूर के दौरान जबसे लिप सिंसिंग से जो ख्याति अर्जित की, तबसे उसने अपने प्रदर्शन पर गौर करते हुए "अधिकतर सबसे मुश्किल गायन भागों में स्थिर खड़ी रहना और मंडली के नृत्य को गुनगुनाते हुए बैकअप देना न कि तूफानी नृत्य पेश करना. विरासत रॉलिंग स्टोन के अनुसार, मैडोना "सर्वकालीन महानतम पॉप गायकों में से एक है". वह पृथ्वी पर दुनिया की सबसे अधिक आय करने वाली महिला गायक भी है". 2008 में मैडोना का स्टिकी एंड स्वीट टूर एक एकल कलाकार द्वारा सर्वोच्च कुल आय वाला कॉन्सर्ट टूर बन गया. "बिलबोर्ड हॉट 100 में सर्वकालीन शीर्ष कलाकार" पर मैडोना को सबसे सफल एकल कलाकार (अन्य समग्र कलाकारों में द्वितीय, केवल बीटल्स के पीछे) के रूप में स्थान दिया गया है, जिसमे 2008 में वह बिलबोर्ड हॉट 100 के इतिहास में दस हिट कलाकार के रूप में एल्विस प्रेस्ली से भी आगे निकल गयी है। ब्रिटिश चार्ट के इतिहास में भी वह सबसे अधिक संख्या में नंबर वन ऐल्बम के रिकॉर्ड के साथ और एकल महिला कलाकार के नंबर वन एकल गानों के साथ यूनाइटेड किंगडम में सबसे सफल महिला है। सन् 2007 में, VH1 ने मैडोना को ग्रेटेस्ट वूमन ऑफ़ रॉक एंड रोल में आठवें स्थान पर सूचीबद्ध किया है। 10 मार्च 2008 को, उसे रॉक और रोल हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया। मैडोना के समय-समय पर चौंकाने वाले काल्पनिक यौन-चित्रों के प्रयोग से उसके कर्रियर को फायदा हुआ है और साथ ही साथ कामुकता और नारीवाद के सार्वजनिक बहस पर प्रभाव भी पड़ा है। द टाइम्स ने टिप्पणी की है कि, "आप माने या न माने, मैडोना ने संगीत में महिलाओं के बीच एक क्रांति शुरू कर दी है। महिला शरीर की प्रबल इच्छा को बजाय एक बार्बी गुड़िया की तरह लगने के एक मशीन की तरह दिखाया. सेक्स, नग्नता, शैली और कामुकता पर उसके व्यवहार और विचार ने आम लोगों को उस पर ध्यान देने को मजबूर कर दिया. रोजर स्ट्रेटमैटर ने अपनी पुस्तक सेक्स सेल्स में यह रिपोर्ट पेश की है। (2004) कि "जिस पल से मैडोना देश के राडार स्क्रीन पर 1980 के मध्य में अचानक से आई, उसने अपनी शक्ति और सत्ता का फरपूर इस्तेमाल आम जनता को एक झटका देने के लिए किया और उसके प्रयास रंग लाए." उन्होंने आगे टिप्पणी की, "[टी]he पॉप की रानी आलोचना पर फलती फूलती रही और पूरे दशक में, लगातार नारी की यौन शक्ति का लगातार गुणगान करते हुए महिलाओं के लिए उसके सबसे मौलिक मुद्दों को दोहराती रही. हेटिंग वीमेन के लेखक शैमुएल बोटेक ने अमेरिका के नारी सेक्स (2005) के प्रतिकूल अभियान में संगीत और अश्लील साहित्य के बीच की रेखा मिटा देने के लिए काफी हद तक मैडोना को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा: "मैडोना से पहले, महिलाओं को आवाज के लिए प्रसिद्ध होना संभव था नकि संगीत के सुपरस्टार के रूप में उभरने के लिए विदरण की. लेकिन उत्तर-मैडोना जगत में, यहां तक कि काफी ऊंचे कलाकार जैसे कि जेनेट जैक्सन को भी अब दबाव का अहसास होता है कि वे भी ऐल्बम बेचने के लिए राष्ट्रीय टेलीविजन पर अपने शरीर का प्रदर्शन करते हैं।" हाल ही में मैडोना अध्ययन के शैक्षणिक उपअनुशासन के हिस्सा के रूप में लघुसंख्यक समुदाय के समलैंगिक लोगों और समलैंगिक स्त्रियों जिसका वह वीडियो में प्रयोग करती है जैसेकि "वोग", "लाइक अ प्रेयर", "ला इस्ला बोनिता" एवं "बोर्डरलाइन" में. पुस्तक सेक्स में उसे पुरुषों और महिलाओं के साथ यौन स्थितियों में दिखाया गया है और उभय यौन के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए उसके अवदान को आकलित किया गया है। उस समय भी नाओमी कैंपबेल और सांद्रा बर्नहार्ड सहित अन्य महिलाओं के साथ उसके संबंधों के बारे में अटकलें थी। उसके बिंदास कामुकीकरण व्यक्तित्व ने कई युवा कलाकारों को प्रभावित किया है। रौट्लेज अंतर्राष्ट्रीय महिला विश्वकोश: ग्लोबल वीमेंस इस्सूज एंड नोलेज (2000) ने लिखा है, "मैडोना नियंत्रण पर उपदेश दे सकती है लेकिन उसने यौन उपलब्धता के बारे में एक भ्रम की सृष्टि की है जिसे कई महिला पॉप कलाकारों ने अनुकरण करने की मजबूरी महसूस की." लेखक-निर्माता सैंटियागो फौज-हरनान्देज़ ने, अपनी पुस्तक मैडोनाज ड्राउन्ड वर्ल्ड्स में टिप्पणी की है कि पॉप कलाकारों जैसे ब्रिटनी स्पीयर्स, क्रिस्टीना अगुइलेरा, जेनिफर लोपेज, कइली मिनोग और पिंक मैडोना की बेटियों की तरह हैं इस अर्थ में कि उसकी शैली का अनुकरण करने का फैसला लेने से पहले वे उसे सुनती और प्रशंसा करती रही हैं। उन सभी में, मैडोना का प्रभाव सबसे अधिक स्पियर्स में दिखाई देता है, जिसे उसका शागिर्द कहा जाता है। स्पियर्स ने अपनी समानता पर टिप्पणी करते हुए कहा: "मुझे लगता है कि हम एक ही दौड़ में शामिल हैं। जब हम कुछ चाहते हैं, हम उसे पाते हैं।" स्पाइस गर्ल्स पर मैडोना का प्रभाव उसके संगीत वीडियो में एक शक्ति के रूप में उसकी नारीवाद की पुनर्व्याख्या के साथ आया। उल्लेख किया है कि "लड़की की शक्ति" का स्पाइस गर्ल्स' का नारा लड़कियों को नारी स्वतंत्रता के चित्रण से प्राप्त हुआ है। डेस्टिनी'स चाइल्ड के बेयोंस नोल्स उसकी संगीत नियंत्रण की भावना से अधिक प्रभावित हुए. अमेरिकी पॉप संस्कृति की मुख्यधारा में यूरोपीय इलेक्ट्रॉनिक नृत्य संगीत की शुरुआत और स्टुअर्ट प्राइस एवं मिरवैज अह्मद्जई जैसे निर्माताओं को सुर्खियों में लाने का श्रेय उसे है। मैडोना ने अपने उद्योग में एक आदर्श महिला उद्योगपति के रोल मॉडल के रूप में ख्याति प्राप्त की है, वह "1.2 अरब डॉलर से अधिक की बिक्री में महिलाओं के वित्तीय नियंत्रण के लिए लंबे समय तक लड़ी थी". उसने अपने कैरियर के पहले दशक के भीतर ही 1.2 बिलियन डॉलर की बिक्री की कमाई की. वार्नर म्यूजिक की एक वैनिटी लेबल (इसी तरह के सौदे मारिया केरी और अन्य कलाकारों के साथ हो चुके थे) की पेशकश, कुछ ही सालों में मवेरिक्क रिकॉर्ड्स में असामान्य रूप से ऐसे लेबल के लिए - उसके प्रयासों के कारण एक बड़ी वाणिज्यिक सफलता मिल जाती है। 2009 में टाइम्स में लिखते हुए, संगीत पत्रकार रॉबर्ट संडल ने बताया कि मैडोना के साथ 1992 में लिए गए एक साक्षात्कार में यह स्पष्ट हो गया था कि 'एक सांस्कृतिक बड़ा हिट्टर' होने के कारण पॉप संगीत ज्यादा महत्वपूर्ण है: एक कैरियर जिसे उसने एक दुर्घटना करार दिया है". उसका कुछ भी सार्वजनिक यौन व्यक्तित्व बन जाना और एक गुप्त तथा अपने वित्तीय मामलोंके प्रति"पीड़नोन्मादी"हो जाना, (उदाहरण के लिए इंटीरियर डिजाइनर, अपने भाई पर गोली चला देना जब उसने उससे लाईट फिटिंग के लिए चार्ज किया, इस प्रक्रिया में उसके साथ परायाना बर्ताव करती है) के बीच विरोधाभास का भी उसने उल्लेख किया है।. लंदन बिजनेस स्कूल में मडोना के व्यावसायिक कौशल का शिक्षाविदों द्वारा विश्लेषण किए जाने पर उसे एक "गतिशील उद्यमी" के रूप में प्रस्तुत किया गया है, सफलता की दृष्टि से उसकी पहचान, संगीत उद्योग के बारे में उसकी समझ, अपने प्रदर्शन की सीमा को पहचानने की क्षमता (और इस प्रकार मदद लेना), उसका "निरा कठिन परिश्रम" और परिवर्तन करने की क्षमता की कुंजी ने उसे एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक सफलता प्रदान की है। हालांकि उसकी अपने संगीत की सीमा से उबरने की क्षमता की गीतकार जोनी मिशेल ने तीखी आलोचना की है, जिसकी व्यापक रूप से रिपोर्ट की गयी टिप्पणी के अनुसार "[मैडोना] ने मैदान के बाहर भी प्रतिभा के महत्व की कद्र की है। उसने अपार धन कमाया और संसार में सही लोगों को किराये पर रख कर विश्व की सबसे बड़ी स्टार बन गई है।" ये टिप्पणियां सम्पूर्ण समकालीन संगीत उद्योग पर एक निरंतर हमले का हिस्सा थीं, इसलिए मिशेल के साथ पूरी तरह रिकॉर्डिंग छोड़ने की धमकी दी. संवाददाता माइकल मैक विलियम्स कहते हैं: "मैडोना के बारे में शिकायत करना कि- वह उदासीन, लालची, प्रतिभाहीन है- इसमें कट्टरता और उसकी कला का सार दोनों ही छिपा है, जो जोशपूर्ण सबसे ज्यादा मानवीय सभी पॉप संस्कृति में सबसे अधिक गहराई तक संतोषजनक है।" अपने पूरे कैरियर के दौरान मैडोना ने डेविड बॉवी की तरह, अपने दृश्य और संगीत के व्यक्तित्व की श्रृंखला के जरिये बार-बार अपने आप को आविष्कृत किया है, साथ ही साथ एक फिल्म और रंगमंच अभिनेता बनने के लिए अपने कैरियर का विस्तार किया है। फौज हर्नान्दिस का तर्क है कि अपने आप को पुनः तलाशना उसकी प्रमुख सांस्कृतिक उपलब्धियों में से एक है। वे तर्क देते हैं कि वह लगातार आने वाले प्रतिभाशाली निर्माताओं और पिछले अज्ञात कलाकारों के साथ काम कर उसने यह उपलब्ध किया है, जबकि वह हमेशा मीडिया के ध्यान के केंद्र में रही है। ऐसा करते हुए उसने एक उदाहरण कायम कर दिया है कि मनोरंजन उद्योग में कोई कैसे अपना कैरियर बनाए रखने के लिए अपने आप को संभालता है। 2006 में जल भालू की एक नई प्रजाति (लैटिन: Tardigrada) का नाम Echiniscus madonnae, मैडोना के नाम पर रखा गया। ई. मैडोने के विवरण वाले पेपर को मार्च 2006 (खंड: 1154, पृष्ठ: 1-36) में ज़ूटैक्सा नामक अंतर्राष्ट्रीय पशु वर्गीकरण पत्रिका में प्रकाशित किया गया। नई प्रजाति के नाम के लिए लेखक का पक्ष समर्थन में कहना था: "हम अपने समय के सबसे महत्वपूर्ण कलाकारों में से एक, मैडोना लुईस वेरोनिका रिची को इस प्रजाति को समर्पित कर बहुत खुश हैं।" प्रजातियों के वर्गीकरण एकीकृत सूचना प्रणाली (इंटिग्रेटेड टैक्सोनोमिक इन्फोरमेंसन सिस्टम (ITIS) की संख्या 711,164 है। डिस्कोग्राफ़ी मैडोना (1983) लाइक अ वर्जिन (1984) ट्रु ब्लू (1986) लाइक अ प्रेयर (1989) इरोटिका (1992) बेडटाइम स्टोरीज़ (1994) रे ऑफ़ लाइट (1998) म्यूज़िक (2000) अमेरिकन लाइफ (2003) कंफेशंस ऑन अ डांस फ्लोर (2005) हार्ड कैंडी (2008) एमडीएनए (2012) रेबल हर्ट (2015) मैडम एक्स (2019) अन्य कार्य मैडोना फिल्मोग्राफी मैडोना कॉन्सर्ट के टूर की सूची मैडोना के पुस्तकों की सूची इन्हें भी देखें सर्वाधिक बिकने वाले संगीत कलाकारों की सूची संयुक्त राज्य अमेरिका में सर्वाधिक बिकने वाले संगीत कलाकारों की सूची पॉपुलर म्यूज़िक में होनोरिफिक टाइटल्स की सूची समलैंगिक आइकॉन के रूप में मैडोना मोनोन्य्मोअस व्यक्ति हस्तियां जिनके पास वाइनरी और द्राक्षाक्षेत्र की सूची नोट्स सन्दर्भ आगे पढ़ें बाहरी कड़ियाँ रॉलिंग स्टोन में मैडोना मैडोना के पूर्वज Genealogy.com 1958 में जन्मे लोग 20वीं सदी के अमेरिकी लोग 21वीं सदी के अमेरिकी लोग मिशिगन से अभिनेता अमेरिकी व्यवसायी लोग अमेरिकी नृत्य संगीतकार अमेरिकी नर्तक यूनाइटेड किंगडम में अमेरिकी अप्रवासी अमेरिकी महिला गायिक अमेरिकी फिल्म अभिनेता अमेरिकी फ़िल्म निर्माता अमेरिकी फिलनथ्रोपिस्ट्स अमेरिकी पॉप गायक अमेरिकी रिकार्ड निर्माता अमरीकी रोमन कैथोलिक अमेरिकी गायक-गीतकारगण अमेरिकी लेखक सर्वश्रेष्ठ संगीत या हास्य अभिनेत्री का गोल्डन ग्लोब (फिल्म) विजेता BRIT अवार्ड के विजेता इलेक्ट्रॉनिका के संगीतकार अंग्रेजी-भाषा के गायक महिला रॉक गायक नारीवादी कलाकार फ्रेंच-कनाडा अमेरिकी ग्रैमी अवार्ड विजेता इतालवी अमेरिकी इतालवी-अमेरिकी संगीतकार इवोर नोवेलो अवार्ड विजेता जूनो अवार्ड विजेता जीवित लोग मैडोना (मनोरंजन) मिशिगन डेमोक्रेट एमटीवी (MTV) यूरोप म्यूज़िक अवार्ड्स के विजेता एमटीवी (MTV) वीडियो वैनगॉर्ड के विजेता मिशिगन से संगीतकार मिशिगन, बे सिटी से लोग क्वींस, कोरोना से लोग रॉक एंड रोल हॉल ऑफ फेम में शामिल व्यक्ति मिशिगन विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र वार्नर Bros. रिकॉर्ड्स के कलाकार वर्ल्ड म्यूज़िक अवार्ड्स के विजेता विश्व रिकॉर्ड धारक वर्स्ट ऐक्ट्रेस गोल्डन रस्पबेरी अवार्ड विजेता वर्स्ट सपोर्टिंग ऐक्ट्रेस गोल्डन रस्पबेरी अवार्ड विजेता वर्स्ट स्क्रीन कपल गोल्डन रास्पबेरी अवार्ड विजेता गूगल परियोजना
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कोणार्क
कोणार्क (Konark) भारत के ओड़िशा राज्य के पुरी ज़िले में स्थित एक नगर है। यहाँ से राष्ट्रीय राजमार्ग ३१६ए गुज़रता है। यह जगन्नाथ मन्दिर से 21 मील उत्तर-पूर्व समुद्रतट पर चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित है। यहाँ का सूर्य मन्दिर बहुत प्रसिद्ध है। इस मंदिर की कल्पना सूर्य के रथ के रूप में की गई है। रथ में बारह जोड़े विशाल पहिए लगे हैं और इसे सात शक्तिशाली घोड़े तेजी से खींच रहे हैं। जितनी सुंदर कल्पना है, रचना भी उतनी ही भव्य है। मंदिर अपनी विशालता, निर्माणसौष्ठव तथा वास्तु और मूर्तिकला के समन्वय के लिये अद्वितीय है और उड़ीसा की वास्तु और मूर्तिकलाओं की चरम सीमा प्रदर्शित करता है। एक शब्द में यह भारतीय स्थापत्य की महत्तम विभूतियों में है। कोणार्क का सूर्य मंदिर यह विशाल मंदिर मूलत: चौकोर (865न्540 फुट) प्राकार से घिरा था जिसमें तीन ओर ऊँचे प्रवेशद्वार थे। मंदिर का मुख पूर्व में उदीयमान सूर्य की ओर है और इसके तीन प्रधान अंग - देउल (गर्भगृह), जगमोहन (मंडप) और नाटमंडप - एक ही अक्ष पर हैं। सबसे पहले दर्शक नाटमंडप में प्रवेश करता है। यह नाना अलंकरणों और मूर्तियों से विभूषित ऊँची जगती पर अधिष्ठित है जिसकी चारों दिशाओं में सोपान बने हैं। पूर्व दिशा में सोपानमार्ग के दोनों ओर गजशार्दूलों की भयावह और शक्तिशाली मूर्तियाँ बनी हैं। नाटमंडप का शिखर नष्ट हो गया है, पर वह नि:संदेह जगमोहन शिखर के आकार का रहा होगा। उड़ीसा के अन्य विकसित मंदिरों में नाटमंडप और भोगमंदिर भी एक ही अक्ष में बनते थे जिससे इमारत लंबी हो जाती थी। कोणार्क में नाटमंडप समानाक्ष होकर भी पृथक् है और भोगमंदिर अक्ष के दक्षिणपूर्व में है; इससे वास्तुविन्यास में अधिक संतुलन आ गया है। नाटमंडप से उतरकर दर्शक जगमोहन की ओर बढ़ता है। दोनों के बीच प्रांमण में ऊँचा एकाश्म अरूणस्तंभ था जो अब जगन्नाथपुरी के मंदिर के सामने लगा है। जगमोहन और देउल एक ही जगती पर खड़े हैं और परस्पर संबद्ध हैं। जगती के नीचे गजथर बना है जिसमें विभिन्न मुद्राओं में हाथियों के सजीव दृश्य अंकित हैं। गजथर के ऊपर जगती अनेक घाटों और नाना भाँति की मूर्तियों से अलंकृत है। इसके देवी देवता, किन्नर, गंधर्व, नाग, विद्याधरव्यालों और अप्सराओं के सिवा विभिन्न भावभंगियों में नर नारी तथा कामासक्त नायक नायिकाएँ भी प्रचुरता से अंकित हैं। संसारचक्र की कल्पना पुष्ट करने के लिये जगती की रचना रथ के सदृश की गई है और इसमें चौबीस बृहदाकार (9 फुट 8 इंच व्यास के) चक्के लगे हैं जिनका अंगप्रत्यंग सूक्ष्म अलंकरणों से लदा हुआ है। जगती के अग्र भाग में सोपान-पंक्ति है जिसके एक ओर तीन और दूसरी ओर चार दौड़ते घोड़े बने हैं। ये सप्ताश्व सूर्यदेव की गति और वेग के प्रतीक हैं जिनसे जगत् आलोकित और प्राणन्वित है। देउल का शिखर नष्ट हो गया है और जंघा भी भग्नावस्था में है, पर जगमोहन सुरक्षित है और बाहर से 100 फुट लंबा चौड़ा और इतना ही ऊँचा है। भग्नावशेष से अनुमान है कि देउल का शिखर 200 फुट से भी अधिक ऊँचा और उत्तर भारत का सबसे उत्तुंग शिखर रहा होगा। देउल और जगमोहन दोनों ही पंचरथ और पंचांग है पर प्रत्येक रथ के अनेक उपांग है और तलच्छंद की रेखाएँ शिखर तक चलती है। गर्भगृह (25 फुट वर्ग) के तीनों भद्रों में गहरे देवकोष्ठ बने हैं जिनमें सूर्यदेव की अलौकिक आभामय पुरूषाकृति मूर्तियाँ विराजमान हैं। जगमोहन का अलंकृत अवशाखा द्वार ही भीतर का प्रवेशद्वार है। जगमोहन भीतर से सादा पर बाहर से अलंकरणों से सुसज्जित है। इसका शिखर स्तूपकोणाकार (पीढ़ा देउल) है और तीन तलों में विभक्त है। निचले दोनों तलों में छह छह पीढ़ हैं जिनमें चतुरंग सेना, शोभायात्रा, रत्यगान, पूजापाठ, आखेट इत्यादि के विचित्र दृश्य उत्कीर्ण हैं। उपरले में पाँच सादे पीढ़े हैं। तलों के अंतराल आदमकद स्त्रीमूर्तियों से सुशोभित हैं। ये ललित भंगिमों में खड़ी बाँसुरी, शहनाई, ढोल, मृढंग, झाँझ और मजीरा बजा रही हैं। उपरले तल के ऊपर विशाल घंटा और चोटी पर आमलक रखा है। स्त्रीमूर्तियों के कारण इस शिखर में अद्भुत सौंदर्य के साथ प्राण का भी संचार हुआ है जो इस जगमोहन की विशेषता है। वास्तुतत्वज्ञों की राय में इससे सुघड़ और उपयुक्त शिखर कल्पनातीत है। (कृ. दे। ) इस मंदिर का निर्माण गंग वंश के प्रतापी नरेश नरर्सिह देव (प्रथम) (1238-64 ई.) ने अपने एक विजय के स्मारक स्वरूप कराया था। इसके निर्माण में 1200 स्थपति 12 वर्ष तक निरंतर लगे रहे। अबुल फजल ने अपने आइने-अकबरी में लिखा है कि इस मंदिर में उड़ीसा राज्य के बारह वर्ष की समुची आय लगी थी। उनका यह भी कहना है कि यह मंदिर नवीं शती ई. में बना था, उस समय उसे केसरी वंश के किसी नरेश ने निर्माण कराया था। बाद में नरसिंह देव ने उसको नवीन रूप दिया। इस मंदिर के आस पास बहुत दूर तक किसी पर्वत के चिन्ह नहीं हैं, ऐसी अवस्था में इस विशालकाय मंदिर के निर्माण के लिये पत्थर कहाँ से और कैसे लाए गए यह एक अनुत्तरित जिज्ञासा है। इस मंदिर के निर्माण के संबंध में एक दंतकथा प्रचलित है कि संपूर्ण प्रकार के निर्माण हो जाने पर शिखर के निर्माण की एक समस्या उठ खड़ी हुई। कोई भी स्थपति उसे पूरा कर न सका तब मुख्य स्थपति के धर्मपाद नामक 12 वर्षीय पुत्र ने यह साहसपूर्ण कार्य कर दिखाया। उसके बाद उसने यह सोचकर कि उसके इस कार्य से सारे स्थपतियों की अपकीर्ति होगी और राजा उनसे नाराज हो जाएगा, उसने उस शिखर से कूदकर आत्महत्या कर ली। एक अन्य स्थानीय अनुश्रुति है कि मंदिर के शिखर में कुंभर पाथर नामक चुंबकीय शक्ति से युक्त पत्थरलगा था। उसके प्रभाव से इसके निकट से समुद्र में जानेवाले जहाज और नौकाएँ खिंची चली आती थीं और टकराकर नष्ट हो जाती थीं। कहा जाता है कि काला पहाड़ नामक प्रसिद्ध आक्रमणकारी मुसलमान ने इस मंदिर को ध्वस्त किया किंतु कुछ अन्य लोग इसके ध्वंस का कारण भूकंप मानते हैं। इस स्थान के एक पवित्र तीर्थ होने का उल्लेख कपिलसंहिता, ब्रह्मपुराण, भविष्यपुराण, सांबपुराण, वराहपुराण आदि में मिलता है। उनमें इस प्रकार एक कथा दी हुई है। कृष्ण के जांबवती से जन्मे पुत्र सांब अत्यन्त सुंदर थे। कृष्ण की स्त्रियाँ जहाँ स्नान किया करती थीं, वहाँ से नारद जी निकले। उन्होंने देखा कि वहाँ स्त्रियाँ सांब के साथ प्रेमचेष्टा कर रही है। यह देखकर नारद श्रीकृष्ण को वहाँ लिवा लाए। कृष्ण ने जब यह देखा तब उन्होंन उसे कोढ़ी हो जाने का शाप दे दिया। जब सांब ने अपने को इस संबंध में निर्दोष बताया तब कृष्ण ने उन्हें मैत्रये बन (अर्थात् जहाँ कोणार्क है) जाकर सूर्य की आराधना करने को कहा। सांब की आराधना से प्रसन्न होकर सूर्य ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिया। दूसरे दिन जब वे चंद्रभागा नदी में स्नान करने गए तो उन्हें नदी में कमल पत्र पर सूर्य की एक मूर्ति दिखाई पड़ी। उस मूर्ति को लाकर सांब ने यथाविधि स्थापना की और उसकी पूजा के लिये अठारह शाकद्वीपी ब्राह्मणों को बुलाकर वहाँ बसाया। पुराणों में इस सूर्य मूर्ति का उल्लेख कोणार्क अथवा कोणादित्य के नाम से किया गया है। कहते है कि रथ सप्तमी को सांब ने चंद्रभागा नदी में स्नानकर उक्त मूर्ति प्राप्त की थी। आज भी उस तिथि को वहाँ लोग स्नान और सूर्य की पूजा करने आते हैं। निर्माण इस मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में उड़ीसा के राजा नरसिंहदेव-I ने करवाया था। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण के बारह वर्षों से लकवाग्रस्त पुत्र संबा को सूर्य देव ने ठीक किया था। इस कारण उन्होंने सूर्य देव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण किया था। आंतरिक मंदिर के भीतर एक नृत्यशाला और दर्शकों के लिए एक हॉल है। कई नक्काशियां, विशेषकर मुख्य प्रवेश-द्वार पर पत्थरों से निर्मित हाथियों को मारते दो बड़े सिंह आपको मंदिर निर्माण के उस काल में ले जाकर आश्चर्य और भावुकता से भर देंगे। निर्माण कार्य में बहुत विचार-विमर्श किया गया है। प्रत्येक मूर्ति बनाने में हाथ के कौशल और दिमाग की चतुराई का इस्तेमाल किया गया है। सूर्य देव की तीन सिरों वाली आकृति आपको इस बात का उदाहरण देगी। सूर्य देव के तीनों सिर विभिन्न दिशाओं में हैं, जो सूर्योदय, उसके चमकने और सूर्यास्त का आभास देते हैं। आपको इस मूर्ति के बदलते भावों को देखना चाहिए। सुबह के समय की स्फूर्ति और सायंकाल होत-होते दिखने वाली थकान के भाव देखने योग्य हैं। देवता मंदिर परिसर के दक्षिण-पूर्वी कोने में सूर्य देव की पत्नी माया देवी को समर्पित एक मंदिर है। यहां नव ग्रहों वाला अर्थात् : सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, जूपिटर, शुक्र, शनि, राहू और केतू को समर्पित मंदिर भी है। पर्यटक मंदिर के समीपवर्ती समुद्र-तट पर आराम कर सकते हैं। इन्हें भी देखें कोणार्क सूर्य मंदिर पुरी ज़िला बाहरी कड़ियाँ युनेस्को सूची में कोणार्क कोणार्क सूर्य मंदिर कोणार्क सूर्य मंदिर के चित्र सरकारी जालस्थल कोणार्क सूर्य मंदिर कोणार्क सूर्य मंदिर पर लेख कोणार्क यात्रा वृतांत सन्दर्भ पुरी ज़िला ओड़िशा के शहर पुरी ज़िले के नगर
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मोहना सिंह जीतरवाल
मोहना सिंह जीतरवाल भारत की पहली महिला लड़ाकू पायलटों में से एक हैं। उन्हें अपनी दो साथियों भावना कंठ और अवनि चतुर्वेदी के साथ पहली महिला लड़ाकू पायलट घोषित किया गया था। तीनों महिला पायलटों को जून 2016 में भारतीय वायु सेना के लड़ाकू स्क्वाड्रन में शामिल किया गया था। इन्हें औपचारिक रूप से रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर द्वारा कमीशन किया गया था। भारत सरकार द्वारा प्रायोगिक आधार पर महिलाओं के लिए भारतीय वायु सेना में फाइटर स्ट्रीम खोलने का निर्णय लेने के बाद, इन तीन महिलाओं को इस कार्यक्रम के लिए चुना गया था। संदर्भ
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थर्मोप्लास्टिक
थर्मोप्लास्टिक (thermoplastic) ऐसा प्लास्टिक पॉलिमर होता है जो तापमान बढ़ने पर अधिक कोमल और गिरने पर अधिक ठोस होता जाए। अधिकांश थर्मोप्लास्टिकों का अणु भार ऊँचा होता है और उनके पॉलिमर अणुओं में आपसी अंतराअणुक बल द्वारा जुड़ने वाली शृंख्लाओं से बनते हैं और तापमान बढ़ने से कमज़ोर होता जाता है जिस से प्लास्टिक की कोमलता बढ़ती है। इस कारणवश थर्मोप्लास्टिकों को गरम कर के उन्हें श्यान (गूढ़े या विस्कस) द्रवों में परिवर्तित करा जा सकता है, जिसे फिर कई आकारों में ढाला जा सकता है और उसके रेशे भी खींचे जा सकते हैं। नायलॉन एक बहुत ही महत्वपूर्ण थर्मोप्लास्टिक का उदाहरण है। इन्हें भी देखें पॉलिमर प्लास्टिक नायलॉन पॉलिथीन सन्दर्भ प्लास्टिक छत सामग्री
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नयाखेड़ा ग्राम
नयाखेड़ा ग्राम मध्य प्रदेश के दतिया जिले के बसई ब्रत्त के अन्तर्गत आता हैं। जिसकी आबादी ६००० के लगभग हैं। जिसके एक तरफ माताटीला बांध और दूसरी तरफ फारेस्ट एरिया हैं। ग्राम में सिचाई के लिए नहर और कुओ का प्रयोग किया जाता हैं। नयाखेड़ा में प्रसिद्ध गौरी माता मंदिर हैं। जहाँ पर हज़ारों श्रद्धालु प्रत्येक सोमबार और हर वर्ष नवरात्री में विशेष कार्यक्रम का आयोजन करते हैं। गॉव में एक हनुमान जी महाराज का बहुत प्राचीन मंदिर है गॉव मे अतिप्राचीन जैन मंदिर भी है जिसमे बर्षों पुरानी अतिशयकारी प्रतिमाए है। हाल ही में एक नया कृष्न मंदिर बना है जिसमे भी प्राचीन मूर्ति रखी गई है सन्दर्भ मध्य प्रदेश के गाँव
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अल अहसा मरूद्यान
अल अहसा मरूद्यान दुनिया में सबसे बड़ा मरूद्यान है जो सउदी अरब के पूर्वी हिस्से में स्ठित है। इसे २०१८ में युनेस्को के विश्व धरोहर स्थानों में शामिल किया गया। यह मरूद्यान फ़ारस की खाड़ी के तट से लगभग ६० किमी (३७ मील) की दूरी पर स्थित है। व्युत्पत्ति अल अहसा यह "अल-हिसा" का एक बहुवचन शब्द है। इस का अर्थ होता है किसी ठोस सतह के ऊपर संचित रेत। इस प्रकार, यदि बारिश होती है, तो यह रेत सूरज को पानी सूखने से रोक देगी, और ठोस सतह इस रेत को डूबने से रोक देगा। इसलिए यह स्थल एक ठंडी जगह बन जाती है। इतिहास अल-अहसा प्रागैतिहासिक काल से बसा हुआ है, क्योंकि एक अन्यथा शुष्क क्षेत्र में यहाँ पानी की विपुलता है। इस क्षेत्र में प्राकृतिक ताजे पानी के झरने उग आए हैं। प्रागैतिहासिक काल से मानव आवास और कृषि प्रयासों (विशेष रूप से खजूर की खेती) को सहस्राब्दियों से प्रोत्साहित किया गया है। १५५० में, अल-अहसा और पास का क़तीफ़ प्रदेश उस्मानी साम्राज्य के सुल्तान सुलेमान प्रथम के साम्राज्य में आए। १६७० में अल-अहसा से उस्मानी साम्राज्य को निष्कासित कर दिया गया और यह क्षेत्र बनी खालिद जनजाति के प्रमुखों के शासन में आ गया। अर्थव्यवस्था ऐतिहासिक रूप से, अल-हस्सा अरब प्रायद्वीप में चावल उगाने वाले कुछ क्षेत्रों में से एक था। सन् १९३८ में दम्माम के पास पेट्रोलियम भंडार की खोज की गई, जिसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र का तेजी से आधुनिकीकरण हुआ। १९६० के दशक की शुरुआत में, उत्पादन स्तर १ मिलियन बैरल (१६०,००० मी क्यू) प्रति दिन तक पहुंच गया। आज, अल-अहसा में दुनिया का सबसे बड़ा पारंपरिक तेल क्षेत्र, घावर फील्ड है। अल-अहसा अपने खजूर के पेड़ और खजूर के लिए जाना जाता है। अल-अहसा में २ मिलियन से अधिक ताड़ के पेड़ हैं जो हर साल १०० हजार टन से अधिक खजूर का उत्पादन करते हैं। अल-अहसा सिलाई में अपने उच्च कौशल के लिए ऐतिहासिक रूप से जाना जाता है, विशेष रूप से बिश्ट बनाने में। मौसम सन्दर्भ सउदी अरब में विश्व धरोहर स्थल‎ मरूद्यान
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अक्रम विज्ञान आन्दोलन
अक्रम विज्ञान आन्दोलन, जिसे अक्रम विज्ञान भी कहा जाता है, 1960 के दशक में गुजरात, भारत में उत्पन्न एक नया धार्मिक आंदोलन है। यह दादा भगवान द्वारा स्थापित किया गया था और बाद में दुनिया भर में महाराष्ट्र और गुजराती प्रवासी समुदायों में फैल गया। दादा भगवान की मृत्यु के बाद, आंदोलन दो गुटों में विभाजित हो गया: एक नीरूबेन अमीन के नेतृत्व में और दूसरा कन्हई पटेल के नेतृत्व में। अक्रम विज्ञान आंदोलन का प्रमुख सिद्धांत ज्ञान भक्ति है जिसका अर्थ है कि सिमरंधर स्वामी और उनके वार्ताकार दादा भगवान को भक्ति समर्पण (मुक्ति) समर्पण का ज्ञान प्राप्त करना। सन्दर्भ धर्म गुजरात
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अबू नुवास
अबु नुवास (756-814) इस्लाम के शुरुआती काल में अरबी का प्रसिद्ध कवि था। उसको इस्लाम के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ शराब, उत्सव और दैहिक प्रेम के ख़ुले आम प्रशंसा के लिए जाना जाता है। उसकी कविताओं में समलैंगिकता के स्वर भी पाए जाते हैं। इसकी माँ ईरानी थी और मध्य काल (तेरहवीं-चैदहवीं सदी) में हाफ़िज़ तथा कई अन्य सूफ़ी कवियों का प्रेरणास्रोत माना जाता है। प्रारंभिक जीवन; उनका काम अबु नुवास के पिता, हनी, जिन्हें कवि नहीं जानता था, एक अरबी था, जिज़ान प्रांत के जिज़ानी जनजाति बानु हाकम का वंशज, और [[मारवाण द्वितीय] की सेना में एक सैनिक। उनकी फ़ारसी मां, गोलान, एक करघेवाली के रूप में काम करती थी | आत्मकथाएँ अबू नुवस के जन्म की तिथि 747 से लेकर 762 तक में भिन्न हैं । सूत्रों का कहना है कि उनका जन्म बसरा में हुआ था, लेकिन विवादास्पद खातों की रिपोर्ट उन्होंने दमिश्क, बस्रा, या आहवाज़ में जन्मा बतलाती है । उनका दिया नाम अल-हसन इब्न हनी अल-हकामी है , और 'अबु नुवास' एक उपनाम है। निर्वासन और कारावास अबु नुवास को एक समय के लिए मिस्र में भागने के लिए मजबूर किया गया था, जब उन्होंने बर्माकिस के कुलीन फारसी राजनीतिक परिवार की प्रशंसा करने वाली एक शामक कविता लिखी, जो कि शक्तिशाली परिवार है जो खलीफा द्वारा हार और नरसंहार किया गया था, हारून अल रशीद हारून अल रशीद की मौत पर वह 809 में बगदाद लौट आया मुहम्मद अल-अमीन के उत्तरार्द्ध में, हारून अल-रशीद के बाईस वर्षीय विवाहित पुत्र (और अबू नुवस के पूर्व छात्र) अबू नुवस के लिए एक किस्मत का बड़ा झटका था। वास्तव में, अधिकांश विद्वानों का मानना ​​है कि अबू नुवाद ने अल-अमीन (809-813) के शासनकाल के दौरान अपनी अधिकांश कविताएं लिखी हैं उनका सबसे प्रसिद्ध शाही आयोग एक कविता (एक 'कसीदा') था, जिसमें उन्होंने अल-अमीन की प्रशंसा की थी। "उनके समय के आलोचकों के अनुसार, वह इस्लाम में सबसे महान कवि थे।" एफ.एफ. लिखा था अरबथनोट अरबी लेखक उनके समकालीन अबू हतिम अल मेक्की ने अक्सर कहा था कि जब तक अबु नुवादों ने उन्हें खोदा नहीं तो विचारों के गहन अर्थ भूमिगत छिपाए गए थे। फिर भी, अबू नुवास को कैद किया गया था जब उनके शराबी, लालकृष्ण शोषण ने अल-अमीन के धैर्य का परीक्षण भी किया था। अंततः अमीन को उनके प्युरिटनिक भाई, अल-ममुन, जो अबु नुवस के लिए कोई सहिष्णुता नहीं थी, ने उखाड़ फेंका था। कुछ बाद के खातों का दावा है कि जेल के डर से अबू नुवास ने अपने पुराने तरीकों से पश्चाताप किया और गहरा धार्मिक हो गया, जबकि दूसरों का मानना ​​था कि बाद में कविताएं खलीफा की क्षमा को जीतने की उम्मीद में लिखा गया था। यह कहा गया था कि अल-ममून के सचिव ज़ोंबर ने अबू नुवस को पैगंबर के चौथा खलीफा और दामाद के खिलाफ व्यंग्य लिखने के लिए गुमराह किया जबकि नुवाद नशे में था। ज़ोंबर ने तब जानबूझकर कविता को सार्वजनिक रूप से पढ़ा, और नुवास की निरंतर कारावास सुनिश्चित किया। किस जीवनी पर विचार-विमर्श किया जाता है, इस पर अबू नुवाह या तो जेल में मारे गए या इस्माइल बिन अबू सेहल द्वारा या दोनों को जहर दिया गया। विरासत अबु नुवास शास्त्रीय अरबी साहित्य के महानों में से एक माना जाता है। [उद्धरण वांछित] उन्होंने कई बाद के लेखकों को प्रभावित किया, केवल उमर खय्याम, और हाफ़िज का उल्लेख करने के लिए उन्हें फारसी कवियां। [उद्धरण वांछित] अबू नुवस का एक आनंदोत्सव कार्टून हजार और एक नाइट्स कहानियों में से कई। [उद्धरण वांछित] उनके सबसे प्रसिद्ध कविताओं में वे लोग हैं, जो "ओल्ड अरीबी" के बारे में बताते हैं कि वे अलगाव के जीवन के लिए पुरानी यादों का उदघाटन करते हैं, और बगदाद में एक आधुनिक जीवन के उत्साह से प्रशंसा करते हैं। इसके विपरीत। [उद्धरण वांछित] वह विभिन्न लोगों में से एक है, जो मुअम्मा (शब्दशः 'अंधा' या 'अस्पष्ट') के साहित्यिक रूप की खोज के श्रेय, एक पहेली जो शब्द या नाम के घटक अक्षरों के संयोजन से हल किया जाता है 'पाया जा सकता है; वह निश्चित रूप से प्रपत्र का प्रमुख प्रतिपादक था। उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विशेषकर इस्लामी मानदंडों द्वारा मना किए जाने वाले मामलों पर, सेंसर के शत्रुओं को उत्तेजित करना जारी रखता है। [उद्धरण वांछित] बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों तक, जब तक उनका कार्य स्वतंत्र रूप से प्रचलन में नहीं था, 1932 में उनके पहले आधुनिक सेंसर संस्करण काहिरा में काम करता है जनवरी 2001 में, मिस्र के संस्कृति मंत्रालय ने अबू नुवस द्वारा homoerotic कविता की पुस्तकों की कुछ 6,000 प्रतियां जलाने का आदेश दिया था। सैंडी ग्लोबल अरबी एनसाइक्लोपीडिया में अपनी प्रविष्टि में पेडर्स्थी का कोई भी उल्लेख नहीं किया गया था। 1976 में, बुध बुध पर एक गड्ढा अबु नुवाद के सम्मान में नामित किया गया था। एक बेहद काल्पनिक आदमू अबू नुवस एंड्रू क्लीन द्वारा फादर ऑफ लॉक्स (डीडलस बुक्स, 2009) और द खलीफा का मिरर (2012) उपन्यासों का नायक है, जिसमें उन्हें जफर अल-बरमाकी के लिए काम करने वाला जासूस माना जाता है। स्वाहिली संस्कृति पूर्वी अफ्रीका की स्वाहिली संस्कृति में "अबू नुवस" नाम अबुनाविसी के रूप में काफी लोकप्रिय है। [उद्धरण वांछित] यहां कई कहानियों से जुड़ा हुआ है, जो अन्यथा नासरदेन, गुहा या "मुल्ला" नामक लोककथाओं और इस्लामी साहित्य समाज। कहानियों में अब्नुवासी ट्रॉफी लालची, धनी लोग हैं और गरीब लोगों का त्याग करते हैं। [उद्धरण वांछित] तंजानिया के कलाकार गॉडफ्रे म्वाम्म्म्बेवा (गडो) ने एक स्वाहिली कॉमिक किताब को बनाया जिसे अबूुनुसासी कहा जाता है, जो अबूुनुवादियों की तीन कहानियों के अनुकूलन करता है।] 1996 में सासा सेमा प्रकाशन द्वारा पुस्तक प्रकाशित की गई थी संस्करण और अनुवाद दीन अबू नुआस, खमीरियात अबू नआस, एड। 'अली नजीब' आदी द्वारा (बेरूत 1986) ओ जनजाति जो लड़कों को प्यार करता है हाकिम बे (एंटिमॉस प्रेस / अबु नावास सोसाइटी, 1993) अबू नुवादों पर एक विद्वान जीवनी निबंध के साथ, इस्लाम के विश्वकोश में ईवाल्ड वैग्नर की जीवनी प्रविष्टि से बड़े पैमाने पर लिया गया। गैज़ेल के साथ काम करना, पुरानी बगदाद के होमोरेोटिक गाने जफर अबू ताराब द्वारा अनुवादित अबू नुवस द्वारा सत्तर कविताएं (iUniverse, Inc., 2005)। जिम कोल्विल्ले वाइन और कन्फ्यूज़ की कविताएं: अबू नुवस के खमीरियात (केगन पॉल, 2005)। अबू नवायां के खमीरियात: मध्यकालीन बास्किक कविता, ट्रांस फ्यूड मैथ्यू कैसवेल (किबवर्थ बेउचम्प: मैटोडोर, 2015) द्वारा ट्रांस। से 'आइवी 1986 सन्दर्भ अरबी कवि
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भारत का विदेश व्यापार
भारत के विदेश व्यापार के अन्तर्गत भारत से होने वाले सभी निर्यात एवं विदेशों से भारत में आयातित सभी सामानों से है। विदेश व्यापार, ये आंकड़े वस्तु एवं कमोडिटी में व्यापार के आंकद़े हैं, इनमें सेवाओं एवं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सम्मिलित नहीं है। वर्ष २०१४ में भारत ने 318.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मूल्य का सामान निर्यात किया तथा 462.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मूल्य का सामान आयात किया ◆ भारत का आयात २०१८-१९ के अनुसार: •आयात व्यापार की दिशा:514.034$ •प्रदेश के नुसार आयात(२०१८-१९) 1)आशिया व आशियन- 62.1% 2)युरोप - 15.3% 3)उत्तर व लॅटिन अमेरिका- 12.2% 4)आफ्रिका- 8% •वयक्तिक देश के नुसार आयात(२०१८-१९) 1)चीन- 13.7% 2)अमेरिका- 6.9% 3)युएई- 5.8% 4)सौदी अरेबिया- 5.6% भारत विश्व के १९० देशों को लगभग ७५०० वस्तुएँ निर्यात करता है तथा १४० देशों से लगभग ६००० वस्तुएँ आयात करता है।I इतिहास प्राचीन काल से भारत विश्व के सुदूर भागों से व्यापार करता रहा है। प्राचीन काल से मसालों और इस्पात का निर्यात होता रहा है। रोम के भारत से व्यापारिक सम्बन्ध थे। वास्को डि गामा १४९८ में कालीकट पहुँचा था। उसकी इस यात्रा से पुर्तगाल को इतना लाभ हुआ कि अन्य यूरोपीय भी यहाँ से व्यापार करने को आतुर हो गये। भारतीय व्यापारियों ने १७४५ के पहले अजरबैजान के बाकू के पास एक अग्नि मंदिर का निर्माण किया था। आयात-निर्यात भारत विश्व के १९० देशों को लगभग ७५०० वस्तुएँ निर्यात करता है तथा १४० देशों से लगभग ६००० वस्तुएँ आयात करता है।I वर्ष २०१४ में भारत ने 318.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मूल्य का सामान निर्यात किया तथा 462.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मूल्य का सामान आयात किया। भारत के हाल के विदेशी व्यापार का सारांश : २०१४ में निर्यात की गयी १० प्रमुख वस्तुएँ : वर्ष २०१४ में आयात कीं गयीं १० प्रमुख वस्तुएँ: इन्हें भी देखें भारत के बड़े व्यापार सहयोगी भारतीय अर्थव्यवस्था बाहरी कडियाँ History Of Indian Trade indiatradepromotion India - The Roaring Trade Partner of Yore (By Padma Mohan Kumar) सन्दर्भ भारत भारत की अर्थव्यवस्था
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%8B%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B8%20%E0%A4%85%E0%A4%9F%E0%A5%88%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%A1
नो स्ट्रिंग्स अटैच्ड
नो स्ट्रिंग्स अटैच्ड एक 2011 की अमेरिकी रोमांटिक कॉमेडी फिल्म है, जो इवान रीटमैन द्वारा निर्देशित और एलिजाबेथ मेरिवेदर द्वारा लिखित है। नताली पोर्टमैन और एश्टन कचर अभिनीत, यह फिल्म संयुक्त राज्य अमेरिका में 21 जनवरी, 2011 को रिलीज़ हुई थी। संक्षेप यह फिल्म दो दोस्तों के बारे में है जो एक-दूसरे के प्यार में पड़े बिना, "आकस्मिक संभोग" के लिए एक समझौता करने का फैसला करते हैं। उत्पादन नो स्ट्रिंग्स अटैच्ड का निर्देशन इवान रीटमैन द्वारा किया गया है, जो एलिजाबेथ मेरिवेदर की पटकथा पर आधारित है, जिसका शीर्षक फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स है । 22 जुलाई, 2011 को खोले गए समान आधार वाली एक अलग फिल्म के साथ भ्रम से बचने के लिए शीर्षक बदल दिया गया था। पैरामाउंट पिक्चर्स फिल्म की पहली बार मार्च 2010 में एक शीर्षक रहित परियोजना के रूप में घोषणा की गई थी। अभिनेता एश्टन कचर और नताली पोर्टमैन को मुख्य भूमिकाओं में लिया गया था, और पैरामाउंट ने , 2011 की रिलीज़ की तारीख का अनुमान लगाया था। रीटमैन ने आकस्मिक संभोग के बारे में कहा, "मैंने अपने बच्चों से देखा कि इस पीढ़ी के साथ, विशेष रूप से, युवा लोगों को भावनात्मक संबंध बनाने की तुलना में यौन संबंध बनाना आसान लगता है। इसी तरह आज लिंग एक दूसरे के साथ व्यवहार करते हैं।" मुख्य फोटोग्राफी मई 2010 में शुरू हुई। नवंबर 2010 तक, 2011 की एक नई रिलीज की तारीख के साथ फिल्म का शीर्षक नो स्ट्रिंग्स अटैच्ड था। हालांकि समय संयोग था, पोर्टमैन ने ब्लैक स्वान में अपनी भूमिका के लिए एक अलग चरित्र को चित्रित करने के अवसर का स्वागत किया। रिलीज़ नो स्ट्रिंग्स अटैच्ड का विश्व प्रीमियर , 2011 को लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया में फॉक्स विलेज थिएटर में हुआ था। यह फिल्म , 2011 को संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के में रिलीज हुई थी। इसका लक्षित जनसांख्यिकीय 17 से 24 वर्ष के बीच की महिलाएं थीं, और इसकी प्राथमिक प्रतियोगिता द डिलेमा थी। इंटरेस्ट ट्रैकिंग ने लक्ष्य जनसांख्यिकीय को फिल्म में रिलीज होने तक की दिलचस्पी दिखाई, और ट्रैकिंग ने हिस्पैनिक दर्शकों से "अच्छी प्रारंभिक जागरूकता" का भी खुलासा किया। स्टूडियो ने अपने शुरुआती सप्ताहांत में फिल्म के "मिड-टू-हाई टीनएज" में करोड़ों की कमाई करने की भविष्यवाणी की, मोशन पिक्चर एसोसिएशन द्वारा "आर" (17 साल और उससे अधिक उम्र तक सीमित) रेटिंग वाली पिछली रोमांटिक कॉमेडी के समान अमेरिका की । संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में एकमात्र वाइड ओपनर के रूप में नो स्ट्रिंग्स अटैच्ड के साथ, यह अनिश्चित था कि क्या यह द ग्रीन हॉर्नेट के ऊपर बॉक्स ऑफिस पर पहले स्थान पर होगा, जिसने पिछले सप्ताहांत में के साथ पहला स्थान खोला। यह भी देखें बफिक्रे क्रेज़ी, स्टुपिड, लव संदर्भ बाहरी संबंध अमेरिकी सेक्स कॉमेडी फ़िल्में अमेरिकी फ़िल्में 2011 की फ़िल्में अंग्रेज़ी फ़िल्में
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पार्वती बाउल
पार्वती बाउल (जन्म १९७६) बंगाल से एक बाउल लोक गायिका, संगीतज्ञ एवं मौखिक कथावाचक हैं। ये भारत की अग्रणी बाउल संगीतज्ञ भी हैं। बाउल गुरु, सनातन दास बाउल, शशांको घोष बाउल की देखरेख में, ये भारत एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बाउल कार्यक्रम १९९५ से करती आ रही हैं। इनका विवाह रवि गोपालन नायर, जो एक जाने माने पाव कथकली दस्ताने वाली कठपुतलीकार हैं, से हुआ। अब पार्वती १९९७ से तिरुवनंतपुरम, केरल में रहती हैं। यहां वे एकतारा बाउल संगीत कलारी नामक बाउल संगीत विद्यालय भी चलाती हैं। संगीत के अलावा पार्वती पेंटिंग, प्रिंट मेकिंग , नाटक, नृत्य और चित्रों की सहायता से किस्सागोई की विधा में भी महारत रखती हैं। पार्वती बाउल लोक गायिका और संगीतकार हैं। वहबंगाल और भारत के प्रमुख बाउल संगीतकारों में से एक हैं। वह 1995 से भारत और अन्य देशों में प्रदर्शन कर रही हैं। उन्होंने रवि गोपालन नायर से शादी की जो कि प्रसिद्ध पाव कथकली घराने वाले कठपुतली कलाकार हैं। वह 1997 से केरल के तिरुवनंतपुरम में रहती हैं, जहाँ वे "एकतरफा दुल्हन सुनीता कलारी" नामक स्कूल भी चलाती हैं। प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि पार्वती बाउल का जन्म एक पारंपरिक बंगाली ब्राह्मण परिवार के रूप में पश्चिम बंगाल में हुआ था। उनका परिवार मूल रूप से पूर्वी बंगाल से था, और भारत के विभाजन के बाद पश्चिम बंगाल में चला गया। उनके पिता, जो भारतीय रेलवे के इंजीनियर थे, भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए उत्सुक थे और अक्सर अपनी बेटी को संगीत कार्यक्रमों में ले जाते थे। उनकी माता, एक गृहिणी, रहस्यवादी संत रामकृष्ण की भक्त थीं। अपने पिता के क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर पोस्टिंग के कारण, वह पश्चिम बंगाल के असम, कूच बिहार और सीमावर्ती क्षेत्रों में पली बढ़ी। उन्होंने सुनीति अकादमी, कूच बिहार से उच्च माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण की। अपने शुरुआती वर्षों में, उन्होंने श्रीलेखा मुखर्जी से कथक शास्त्रीय नृत्य सीखा। उन्होंने कला भवन, विश्व-भारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन में एक दृश्य कलाकार के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त किया। हालांकि उसने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में अपना प्रारंभिक संगीत प्रशिक्षण प्राप्त किया, लेकिन यह शांतिनिकेतन परिसर में एक ट्रेन में था, कि उसने पहली बार एक अंधे बाउल गायक को सुना। बंगाल से रहस्यवादी टकसालों के पारंपरिक संगीत का प्रदर्शन हुआ करता था। इसके बाद फुलमाला दाशी, एक महिला बाल गायिका से मुलाकात की, जिसने परिसर में लगातार प्रदर्शन किया। जल्द ही, उसने फूलमाला से संगीत सीखना शुरू कर दिया और कई बौल आश्रम का दौरा किया, बाद में फूलमाला ने उसे एक और शिक्षक खोजने की सलाह दी। इस अवधि के दौरान, उन्होंने पश्चिम बंगाल के बांकुरा के एक 80 वर्षीय बाउल गायक सनातन दास बाउल के प्रदर्शन को देखा और उनसे सीखने का फैसला करते हुए, उन्होंने बांकुरा जिले में सोनमुखी के अपने आश्रम का दौरा किया। 15 दिनों के बाद, उसने उससे दीक्षा दीक्षा प्राप्त की, और वह उसकी पहली गुरु बन गई। अगले सात वर्षों के लिए, उसने अपने गुरु के साथ यात्रा की, प्रदर्शनों के दौरान मुखर सहायता प्रदान की, बाल गाने, बाल नृत्य, और इक्ता और डग्गी को बजाया, एक छोटी सी केतली-ड्रम को ढँक दिया। कमर तक। अंत में, उन्होंने उसे अपने दम पर गाने की अनुमति दी और जल्द ही वह अपने अगले गुरु शशांको गोशाई बुल के पास चली गई। गोशाई, जो उस समय 97 साल के थे और बांकुरा जिले के एक छोटे से गाँव खोरबोनी में रहते थे। वह शुरुआत में एक महिला शिष्य को लेने से हिचकिचा रही थीं, इस तरह कुछ दिनों तक उनके समर्पण का परीक्षण किया। अपने जीवन के शेष तीन वर्षों में, उन्होंने अपने कई गीतों, और बाल परंपरा की जटिलताओं को सिखाया। बाउल में पार्वती मंच पर पार्वती हाथ में इकतारा, कंधे पर डुग्गी एवं अन्य पारंपरिक वाद्य यंत्र टांगे बाउल नृत्य करती दिखायी देती हैं। गर्दन में पुष्पमाला एवं पैरों में खनकती पायल के साथ कुमकुम आलता लगाए गेरुई वेषभूषा में वे भक्ति गीत का प्रदर्शन करती हैं। ये बाउल नृत्य में प्रायः राधा या कृष्ण की रासलीला दिखाती हैं, जिनमें प्रायः राधा बनकर सूफी संगीत पर अपना नृत्य प्रस्तुत करती हैं। बाउल नृत्य शैली में गायन, नृत्य और संकीर्तन सभी एक सामंजस्य बनाये हुए एक ही समय में उपकरणों के प्रयोग की तरह किया जाता है। बाउल के के बारे में कहते हैं कि यह गति में ध्यान की साधना है। रचनात्मक, प्रेम, भक्ति और शांति की महिमा बताती बाउल को संगीत से अधिक उपयुक्त माध्यम बताते हैं। इस ऐतिहासिक लोक परंपरा में प्रायः विशेष प्रकारकी भूषा एवं संगीत के वाद्ययंत्र ही होते हैं। ये शैली बंगाली परिवेष से निकल ही रही है, तथा चैतन्य महाप्रभु से प्रेरित है। बाउल में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की कविता और संगीत का काफी प्रभाव देखा जाता है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ बाउल नर्तक बंगाल के लोग लोक नृत्य
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%9A
पेंच
पेंच (स्क्रू) या बोल्ट एक प्रकार की यांत्रिक युक्ति है जो दो भागों को परस्पर कसने (fastening) के काम आती है। यह किसी धातु के बेलनाकार दण्ड पर वर्तुलाकार (हेलिकल) चूड़ियाँ (थ्रेड्स) काटकर बनायी जाती है। आमतौर पर पेंचों का एक शीर्ष होता है, यह पेंच के एक सिरे पर विशेष रूप से गठित अनुभाग है। पेंच को शीर्ष से ही घुमाया या कसा जाता है। पेचों को कसने के लिए पेंचकस एवं पाना जैसे औजारों का प्रयोग किया जाता है। अधिकतर पेंच दक्षिणावर्त घूर्णन के द्वारा कसे जाते हैं। इन पेंचों को दक्षिणावर्त चूडियों वाला कहा जाता है। वामावर्त चूडियों वाले पेंचों को विशिष्ट स्थिति में प्रयोग किया जाता है। साइकिल के बाएं पाद में वामावर्त चूड़ी वाले पेंच का प्रयोग किया जाता है। विनिर्माण पेंच निर्माण के तीन चरण हैं- शीर्ष निर्माण, चूड़ी बेल्लन एवं विलेपन | साधारणतया, पेंचों का निर्माण तार से किया जाता है। तारों की आपूर्ति बड़ी कुंडली या बड़े पेंचों के लिए गोल बिलेट के रूप में की जाती है। तार या छड को बनाये जाने वाले पेंच के प्रकार के हिसाब से काटा जाता है। अतप्त कर्मण प्रक्रिया द्वारा पेंच के शीर्ष का निर्माण किया जाता है। यन्त्र में प्रयोग किये गए ठप्पे के आकारानुसार पेंच के शीर्ष के लक्षण तय होते हैं। अधिकतर पेंचों में चूडियों का निर्माण चूड़ी बेल्लन द्वारा किया जाता है। इसके बाद, पेंचों को संक्षारण से बचने हेतु उष्ण निमज्जन गैलवानीकरण(जस्तीकरण) एवं कृष्णकरण जैसी प्रकिया द्वारा विलेपन किया जाता है। बाहरी कड़ियाँ NASA-RP-1228 Fastener Design Manual Imperial/Metric fastening sizes comaparisons "Hold Everything", February 1946, ''Popular Science" article section on screws and screw fastener technology developed during World War Two धातुकारी पेंच यान्त्रिकी
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सत
सत सत्य का रूप है, इस शब्द का अर्थ अधिकतर सत्यता के लिये प्रयोग किया जाता है, तत्व के परिणाम को भी सत कहा जाता है,फ़ल के रस को भी सत के नाम से जाना जाता है। भारतीय दर्शन में जीवों के गुण तीन प्रकार होते हैं - सत रज और तम। सत वो है जो उचित-अनुचित, अच्छा-बुरा और सुख-दुख में भेद और परिमाण हर स्थिति में बता सके। सतोगुण के लोग इस ज्ञान से भरे होते हैं कि किस स्थिति में क्या करना चाहिए और इस तरह उन्हें घबराहट नहीं होती क्योंकि वे तत्वदर्शी होते हैं। रजोगुणी को ये ज्ञान थोड़ा कम और तमोगुणी को अत्यंत कम होता है। गीता में इसका उल्लेख सातवें अध्याय में हुआ है (अन्यत्र भी)। ये गुण है और किसी मनुष्य की प्रकृति अलग समयों पर अलग हो सकती है। इस गुण के प्रधान होने के समय सतोगुणी मनुष्य सुख में अहंकार से और दुःख में मोह और क्रोध जैसे भावों से बचता है। जिसको यह ज्ञान होता है वो ब्रह्म के निकट माना जाता है और ब्राह्मण कहलाता है। वंशानुगत ब्राह्मण बनने की परंपरा बाद में शुरु हुई।
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पाकिस्तान पुरुषों की राष्ट्रीय फील्ड हॉकी टीम
पाकिस्तान की राष्ट्रीय फील्ड हॉकी टीम द्वारा किया जाता है । वे 1948 से अंतर्राष्ट्रीय हॉकी महासंघ (FIH) के सदस्य हैं और 1958 में गठित एशियाई हॉकी महासंघ (ASHF) के संस्थापक सदस्य हैं। पाकिस्तान चार चैंपियनशिप: 1971, 1978, 1982 और 1994 के साथ हॉकी विश्व कप में सबसे सफल राष्ट्रीय क्षेत्र हॉकी टीम है। पाकिस्तान के लिए विश्व कप इतिहास में आनुपातिक और निरपेक्ष दोनों तरह से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हुए हैं, जिसमें खेले गए 84 मैचों में 53 जीत, सात बार ड्रॉ, फाइनल में छह प्रदर्शन और केवल 24 हार हैं। पाकिस्तान की राष्ट्रीय टीम ने 2014 में केवल एक अनुपस्थिति के साथ सभी एफआईएच विश्व कप संस्करणों में खेला है। हरे रंग की शर्ट भी आठ स्वर्ण पदक के साथ एशियाई खेलों में सबसे सफल राष्ट्रीय टीमों में से एक है: 1958, 1962, 1970, 1974, 1978, 1982, 1990 और 2010, एक देश में सबसे अधिक बार पहली बार, और केवल एशियाई टीम ने तीन चैंपियनशिप के साथ प्रतिष्ठित चैंपियंस ट्रॉफी जीती: 1978, 1980 और 1994 । पाकिस्तान ने रोम और 1960 में मेक्सिको सिटी 1968 और लॉस एंजिल्स 1984 में ओलंपिक खेलों के फील्ड हॉकी टूर्नामेंट में तीन स्वर्ण पदक के साथ, पेशेवर और जमीनी स्तर के चयन के लिए कुल 29 आधिकारिक अंतरराष्ट्रीय खिताब जीते हैं। हालांकि, पाकिस्तान 2012 के बाद से ओलंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर सका।फील्ड हॉकी देश का राष्ट्रीय खेल है, पाकिस्तान की राष्ट्रीय टीम को एफआईएच द्वारा २००० से २००१ तक दुनिया में # १ टीम के रूप में स्थान दिया गया है, और पूर्व कप्तान सोहेल अब्बास ने सबसे अधिक अंतर्राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया है। अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र हॉकी के इतिहास में एक खिलाड़ी द्वारा बनाए गए गोल , जिसमें 348 गोल होते हैं। 1996 और 2012 के बीच 410 बार खेल चुके वसीम अहमद ने पाकिस्तान के प्रदर्शन का रिकॉर्ड अपने नाम किया है। इतिहास मूल रूप से, खेल ब्रिटिश सैनिकों द्वारा ब्रिटिश दक्षिण एशियाई उपमहाद्वीप में लाया गया था, और क्रिकेट की तरह यह जल्द ही स्थानीय आबादी के साथ एक लोकप्रिय खेल बन गया। 1947 में पाकिस्तान के निर्माण के बाद, 1948 में पाकिस्तान हॉकी फेडरेशन के अस्तित्व में आने के तुरंत बाद। उपमहाद्वीप के विभाजन से पहले, पाकिस्तान के लिए खेलने वाले खिलाड़ियों ने ब्रिटिश भारतीय पक्ष के लिए प्रतिस्पर्धा की । महासंघ ने जल्द ही पश्चिम पंजाब, पूर्वी बंगाल, सिंध, बलूचिस्तान, खैबर-पख्तूनख्वा, बहावलपुर और सर्विसेज स्पोर्ट्स बोर्ड के प्रांतीय हॉकी / खेल संघों की स्थापना और आयोजन किया। 2 अगस्त 1948 को, अली इख्तियार शाह दारा की अगुवाई में पाकिस्तान की राष्ट्रीय टीम, आधिकारिक तौर पर अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय खेल खेलने के लिए गई और 1948 के लंदन ओलंपिक में बेल्जियम के खिलाफ 2-0 से गेम जीतकर टूर्नामेंट जीता । पाकिस्तान ग्रुप स्टेज के दौर में नीदरलैंड, डेनमार्क और फ्रांस को हराकर नाबाद रहा और चौथे स्थान पर रहा, जैसा कि 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में पाकिस्तान की टीम ने किया था। 1958 एशियाई खेल, पाकिस्तान के खिलाफ तैयार किये गए थे जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया भारत, उन्होंने अपने पहले मैच में जापान को 5-0 से हराया, फिर दक्षिण कोरिया (8-0) और मलेशिया (6-0) पर लगातार दो जीत हासिल की। पिछले मैच में पाकिस्तान ने भारत के साथ 0-0 की बराबरी की और एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में अपना पहला स्वर्ण पदक जीता। इस सफलता के बाद 1960 के रोम ओलंपिक में पाकिस्तान ने ऑस्ट्रेलिया, पोलैंड और जापान के साथ एक समूह के खिलाफ खेला, जिसमें सभी मैच जीते। पाकिस्तान ने जर्मनी के साथ क्वार्टर फाइनल राउंड खेला, जिसमें मैच 2-1 से जीता और सेमीफाइनल राउंड में आगे बढ़ा जहां उन्होंने स्पेन को हराया। पाकिस्तान ने अंतत: ओलंपिक वेलोड्रोम में आयोजित अंतिम दौर में नसीर बुन्दा के गोल से भारत को 1-0 से हराकर स्वर्ण पदक जीता और ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में भारत के लगातार छह स्वर्ण पदक समाप्त कर दिए। सन्दर्भ एशियाई माह प्रतियोगिता में निर्मित मशीनी अनुवाद वाले लेख
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%93%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%93%E0%A4%AC%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE
ओंके ओबव्वा
ओंके ओबव्वा, (18 वीं शताब्दी) (कन्नड़: ಓಬವ್ವ) एक महिला थी, जिसने हैदर अली की सेना से, अकेले मूसल (ओंके) के साथ भारत के कर्नाटक राज्य के चित्रदुर्ग में लड़ाई लड़ी थी। उनका पति चित्रदुर्ग के चट्टानी किले में एक प्रहरी था। कर्नाटक राज्य में, अब्बक्का रानी, केलदी चेन्नम्मा और कित्तूर चेन्नम्मा के साथ- साथ ओबव्वा भी महिला योद्धाओं और देशभक्तों के रूप में जानी जाती है। (18 ಶತಮಾನ ಹೈದರಾಲಿ ಕೊಟೆಯಲ್ಲಿ ಮುತ್ತಿಗೆ ಕೋಟೆ ಅವರು ಕೈ ವಶವಾಗಲೀಲ ) ओबव्वा का साहस मदकरी नायक के शासनकाल के दौरान, चित्रदुर्ग शहर को हैदर अली (1754-1779) के सैनिकों द्वारा घेर लिया गया था। किले को चारों ओर से हैदर अली की फौजों ने घेर रखा था और जीतने के कोई ख़ास विकल्प नहीं दिख रहे थे। लेकिन किला बंद कर के अन्दर बैठे सिपाहियों पर सीधा हमला करने का कोई उपाय भी नहीं था। तभी उन्हें चट्टानों में एक छेद के माध्यम से चित्रदुर्ग किले में प्रवेश करने वाला एक व्यक्ति दिखा, और हैदर अली ने उस छेद के माध्यम से अपने सैनिकों को अन्दर भेजने की योजना बनाई। उस वक्त वहाँ कहले मुड्डा हनुमा नाम का एक प्रहरी पहरा दे रहा था। वह अपने घर दोपहर का भोजन करने चला गया। उसके भोजन के दौरान, उसकी पत्नी ओबव्वा तालाब से पानी लेने चली गई, जो पहाड़ी के आधे हिस्से में चट्टानों में छेद के पास था। उसने देखा कि हमलावर सैनिक छेद के माध्यम से किले में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हैं। वह सैनिकों को मारने के लिए ओंके या मूसल (धान को कुटने के लिये एक लकड़ी का लंबा डंडा) लेकर छेद के पास खड़ी हो गई। चूकिं छेद काफी छोटा था, जिसमें से एक-एक करके ही आया जा सकता था। जैसे ही कोई सैनिक उस छेद से अन्दर आता, ओबव्वा उसके सिर पर जोर से प्रहार करती, साथ ही साथ वह सैनिकों के शव को एक ओर करती जाती ताकि बाकी सैनिकों को संदेह न हो। पानी लाने में देर होता देख, ओबाव्वा का पति मुड्डा हनुमा वहां पहुंचा, और ओबव्वा को खून से सने हुए मूसल और उसके आस-पास दुश्मन सैनिकों के कई शवों को देखकर हैरान रह गया। बाद में, उसी दिन, ओबव्वा या तो सदमे से या दुश्मन सैनिकों द्वारा मृत पाई गई थी। वह होलायस (चौलावादी) समुदाय से थी। हालांकि उसके इस बहादुर प्रयास ने उस समय किले को बचा लिया, लेकिन 1779 के दौरान मादकरी, हैदर अली द्वारा हमले का विरोध नहीं कर सके, और चित्रदुर्ग के किलें में हैदर अली का कब्ज़ा हो गया था। विरासत उन्हें कन्नड़ महिला गौरव का प्रतीक माना जाता है। वह छेद जिसके माध्यम से हैदर अली के सैनिक अन्दर आने का प्रयास किया था, उसे ओंके ओबव्वा किंडी (किंडी = छेद) या ओंके किंडी कहा जाता है। पुत्तन्ना कनागल द्वारा निर्देशित नागरहुव चित्र के एक प्रसिद्ध गीत-अनुक्रम में उनके प्रसिद्ध प्रयास को दर्शाया गया है। चित्रदुर्ग में खेल स्टेडियम का नाम उनके नाम पर - "वीर वनीथे ओंके स्टेडियम", रखा गया है, और चित्रदुर्ग में जिला आयुक्त कार्यालय के सामने अशोक गुडीगर द्वारा निर्मित उनकी प्रतिमा को स्थापित किया गया है। इन्हें भी देखें onakke obba a was a great freedom fighter सन्दर्भ युद्ध में भारतीय महिलाऐं कर्नाटक के लोग 18वीं सदी
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निकोल किडमैन
निकोल मेरी किडमैन, ए.सी. (जन्म 20 जून 1967) एक अमेरिकी पैदाइश वाली ऑस्ट्रेलियाई अभिनेत्री, फ़ैशन मॉडल, गायिका और लोकोपकारी हैं। 1994 से किडमैन UNICEF ऑस्ट्रेलिया के लिए सद्भावना राजदूत रही हैं। 2006 में, किडमैन को ऑस्ट्रेलिया के सर्वोच्च नागरिक सम्मान कम्पानियन ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया से नवाज़ा गया। 2006 में वे मोशन फ़िल्म उद्योग में सर्वाधिक पारिश्रमिक पाने वाली अभिनेत्री बनीं। किडमैन को 1989 की रोमांचक फ़िल्म डेड काम से सफलता हासिल हुई। उनको अपनी फ़िल्में डेज़ ऑफ़ थंडर (1990), टू डाइ फॉर (1995) और मॉलीन रूश! (2001) में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए आलोचकों की प्रशंसा मिली और द अवर्स (2002) में उनके अभिनय के लिए बतौर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए अकादमी पुरस्कार, BAFTA पुरस्कार और गोल्डन ग्लोब पुरस्कार सहित कई उल्लेखनीय फ़िल्म पुरस्कार मिले। 2003 में, किडमैन को हॉलीवुड, कैलिफ़ोर्निया में वॉक ऑफ़ फ़ेम पर अपना सितारा हासिल हुआ। वे टॉम क्रूज़ और लोक-संगीत के कलाकार कीथ अर्बन के साथ अपनी वर्तमान शादी के लिए जानी जाती हैं। हवाई में ऑस्ट्रेलियाई माता-पिता के यहां जन्म लेने की वजह से, किडमैन को ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की दोहरी नागरिकता हासिल है। प्रारंभिक जीवन किडमैन होनोलूलू, हवाई में पैदा हुई थीं। उनके पिता डॉ॰ एंटोनी डेविड किडमैन, एक बायोकेमिस्ट, नैदानिक मनोवैज्ञानिक और लेखक हैं, जिनका कार्यालय लेन कोव, सिडनी में है। उनकी मां, जेनेल एन (उर्फ़ ग्लेनी), एक नर्सिंग प्रशिक्षक हैं, जो अपने पति की पुस्तकों का संपादन करती हैं और महिला चुनावी लॉबी की सदस्या रह चुकी हैं। किडमैन के जन्म के समय, उनके पिता संयुक्त राज्य अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेन्टल हेल्थ में विज़िटिंग फ़ेलो (अतिथि शिक्षक) थे। जब किडमैन चार साल की थीं, उनका परिवार ऑस्ट्रेलिया लौट आया और अब उनके माता-पिता सिडनी के उत्तरी किनारे में निवास करते हैं। किडमैन की एक छोटी बहन हैं एन्टोनिया किडमैन, जो एक पत्रकार हैं। वे अभिनेत्री नाओमी वाट्स को अपनी किशोरावस्था से ही जानती हैं और आज वे दोनों अच्छी दोस्त हैं। किडमैन ने लेन कोव पब्लिक स्कूल और उत्तर सिडनी गर्ल्स हाई स्कूल में पढ़ाई की। उन्होंने मेलबोर्न में विक्टोरियन कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स तथा और सिडनी के फ़िलिप स्ट्रीट थियेटर में नाओमी वाट्स के साथ अध्ययन किया। इसके बाद वे ऑस्ट्रेलियन थिएटर फ़ॉर यंग पीपल में शामिल हुईं. कॅरियर ऑस्ट्रेलिया में प्रारंभिक कॅरियर (1983-89) 1983 में किडमैन पहली बार 15 साल की उम्र में फ़िल्म में नज़र आईं, जोकि पैट विल्सन के संगीत वीडियो में "बोप गर्ल" गीत के लिए था। वर्ष के अंत तक टेलीविजन श्रृंखला फ़ाइव माइल क्रीक में एक सहायक भूमिका और चार फ़िल्म भूमिकाएं हासिल कीं, जिनमें शामिल हैं BMX बैंडिट्स और बुश क्रिसमस . 1980 के दशक में, वे कई ऑस्ट्रेलियाई निर्माणों में दिखाई दीं, जिनमें शामिल हैं धारावाहिक ओपेरा अ कंट्री प्रैक्टिस, मिनी श्रृंखला वियतनाम (1986), एमराल्ड सिटी (1988) और बैंकॉक हिल्टन (1989)। सफल उद्भव (1989-95) 1989 में, किडमैन ने राय इनग्राम के डेड काम में, नौसेना अधिकारी जॉन इनग्राम (सैम नील) की पत्नी की भूमिका निभाई, जिसे मनोरोगी ह्यू वारिनर (बिली ज़ेन) द्वारा एक प्रशांत सागर की नौका यात्रा पर बंदी बनाया जाता है। फ़िल्म को ज़बरदस्त समीक्षाएं हासिल हुईं, वेरायटी ने टिप्पणी की, "पूरी फ़िल्म में किडमैन का प्रदर्शन उत्कृष्ट है। वह राय के किरदार को असली दृढ़ता और ऊर्जा प्रदान करती हैं। इस बीच, समीक्षक रोजर एबर्ट ने मुख्य कलाकारों के बीच उत्कृष्ट ताल-मेल पर ग़ौर करते हुए कहा, " ...किडमैन और ज़ेन एक साथ अपने दृश्यों में असली, स्पष्ट नफरत पैदा करते हैं। 1990 में, उन्होंने टॉम क्रूज़ के साथ डेज़ ऑफ़ थंडर में और फिर रॉन हावर्ड के फ़ार एंड अवे (1992) में काम किया। 1995 में, किडमैन बैटमैन फ़ॉरेवर के कलाकार वृंद में थीं। अंतर्राष्ट्रीय सफलता (1995-अब तक) किडमैन की 1995 में दूसरी फ़िल्म टू डाइ फ़ॉर, एक व्यंग्यात्मक हास्य फ़िल्म थी, जिसके लिए उन्हें आलोचनात्मक प्रशंसा मिली। ख़ूनी न्यूज़कास्टर सूज़न स्टोन मारेटो की भूमिका में प्रदर्शन के लिए, उन्होंने गोल्डन ग्लोब पुरस्कार और पांच अन्य सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार जीते। 1998 में, वे सैंड्रा बुलक के साथ फ़िल्म प्रैक्टिकल मैजिक में नज़र आईं और उन्होंने द ब्लू रूम नामक मंचीय नाटक में भी काम किया, जो लंदन में प्रदर्शित किया गया। 1999 में किडमैन और क्रूज़ ने आइज़ वाइड शट, स्टैनली कुबरिक की अंतिम फ़िल्म में एक शादीशुदा जोड़े की भूमिका निभाई. फ़िल्म की शुरूआत सामान्यतः सकारात्मक समीक्षा से हुई, लेकिन अपने सेक्स दृश्यों के स्पष्ट प्रकृति के कारण सेंसरशिप विवादों से घिर गई। 2002 में किडमैन ने 2001 संगीतमय फ़िल्म मॉलिन रूश! में अपने प्रदर्शन के लिए अकादमी पुरस्कार का नामांकन प्राप्त किया, जिसमें उन्होंने ईवान मॅकग्रेगर के समक्ष वेश्या सैटिन की भूमिका निभाई. नतीजतन, किडमैन ने मोशन पिक्चर संगीतमय या हास्य में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए अपना दूसरा गोल्डन ग्लोब पुरस्कार प्राप्त किया। उसी वर्ष उन्होंने हॉरर फ़िल्म द अदर्स में एक और प्रशंसित भूमिका निभाई. ऑस्ट्रेलिया में मॉलिन रूश! के फ़िल्मांकन के दौरान किडमैन की पसलियां घायल हो गईं, जिसके परिणामस्वरूप, जोडी फॉस्टर ने पैनिक रूम फ़िल्म में प्रमुख अभिनेत्री के रूप में उनकी जगह ली। उस फ़िल्म में, किडमैन की आवाज़ प्रमुख किरदार के पति की रखैल के रूप में फ़ोन पर सुनाई देती है। अगले वर्ष, किडमैन ने वर्जिनिया वुल्फ़ के रूप में अपने अभिनय के लिए आलोचनात्मक प्रशंसा अर्जित की। द अवर्स, उन पर लगाए गए कृत्रिम अंगों की वजह से उन्हें पहचानना लगभग मुश्किल था। इस भूमिका के लिए उन्होंने गोल्डन ग्लोब पुरस्कार, BAFTA और कई आलोचकों के पुरस्कार सहित सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए अकादमी पुरस्कार जीता। किडमैन अकादमी पुरस्कार जीतने वाली सबसे पहली ऑस्ट्रेलियाई अभिनेत्री बनी। अपने अकादमी पुरस्कार स्वीकृति भाषण के दौरान, किडमैन ने कला के महत्व के बारे में एक रुलाने वाला वक्तव्य दिया, यहां तक कि युद्ध के समय के दौरान: "आप क्यों अकादमी पुरस्कार के लिए आते हैं, जब दुनिया इतनी परेशानी में है? क्योंकि कला महत्वपूर्ण है। और चूंकि आप अपने काम में विश्वास करते हैं और आप उसका सम्मान करना चाहते हैं और यह एक ऐसी परंपरा है जिसे क़ायम रखने की जरूरत है।" उसी वर्ष किडमैन ने तीन बिल्कुल अलग फ़िल्मों में अभिनय किया। पहली फ़िल्म, डेनिश निर्देशक लार्स वॉन ट्रायर द्वारा निर्देशित डॉगविले, एक प्रयोगात्मक फ़िल्म थी, जो केवल साउंडस्टेज पर सेट की गई थी। दूसरी फ़िल्म में उन्होंने फिलिप रॉथ के उपन्यास द ह्यूमन स्टेन के फ़िल्मी रूपांतरण में एंथोनी हॉपकिंस के साथ अभिनय किया। नागरिक युद्ध में अलग हुए दो सदर्नरों की प्रेम कहानी पर आधारित तीसरी फिल्म, कोल्ड माउंटेन ने उन्हें गोल्डन ग्लोब पुरस्कार का नामांकन हासिल करवाया. किडमैन की 2004 की फ़िल्म बर्थ को वेनिस फ़िल्म समारोह में गोल्डन लायन पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया और किडमैन को एक और गोल्डन ग्लोब पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। किडमैन की 2005 की दो फ़िल्में थीं द इंटरप्रेटर और बीविच्ड . सिडनी पोलाक द्वारा निर्देशित द इंटरप्रेटर ने मिश्रित समीक्षाएं हासिल कीं, जबकि विल फ़ेरेल द्वारा सह-अभिनीत और इसी नाम की 1960 दशक के टीवी सिटकॉम पर आधारित बीविच्ड को आम तौर पर आलोचकों ने नापसंद किया। अमेरिका में दोनों फ़िल्मों का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा, उनकी बॉक्स ऑफिस बिक्री निर्माण लागत से भी नीचे रही, लेकिन दोनों फ़िल्मों का प्रदर्शन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर रहा। फ़िल्म उद्योग में अपनी सफलता के संयोजन के साथ, किडमैन चैनल नंबर 5 इत्र ब्रांड का चेहरा बन गईं। उन्होंने रोडरिगो सेंटोरो के साथ टेलीविज़न और प्रिंट विज्ञापनों के एक अभियान में काम किया, जिसका निर्देशन मॉलिन रूश! के निर्देशक बैज़ लहरमैन ने 2004, 2005, 2006 और 2008 में छुट्टियों के मौसम के दौरान सुगंध के प्रचार के लिए किया। चैनल नंबर 5 इत्र के लिए तैयार तीन मिनट के विज्ञापन ने किडमैन को, उनके द्वारा कथित रूप से 3 मिनट विज्ञापन के लिए US$12 मिलियन अर्जित करने के बाद, प्रति मिनट सर्वाधिक पारिश्रमिक पाने वाले के रूप में रिकॉर्ड धारक बना दिया। इस अवधि में, किडमैन को 2005 फ़ोर्ब्स सेलिब्रिटी 100 की सूची में 45वीं सबसे ताक़तवर सेलिब्रिटी के रूप में सूचीबद्ध किया गया। उन्होंने 2004-2005 में कथित रूप से US$14.5 कमाए. पीपल पत्रिका की 2005 में सर्वाधिक पारिश्रमिक पाने वाली अभिनेत्रियों की सूची में किडमैन, प्रति फ़िल्म US$16 मिलियन से US$17 मिलियन की क़ीमत के टैग के साथ, जूलिया रॉबर्ट्स के पीछे दूसरे स्थान पर थीं। उसके बाद सर्वाधिक पारिश्रमिक पाने वाली अभिनेत्री के रूप में उन्होंने रॉबर्ट्स को पार कर दिया है। किडमैन डायने अरबस की आत्मकथात्मक फ़िल्म फ़र में नज़र आईं. उन्होंने एनिमेटेड फ़िल्म हैप्पी फ़ीट के लिए भी स्वर दिया, जिसने शीघ्र ही आलोचनात्मक और व्यावसायिक सफलता हासिल की; फ़िल्म ने दुनिया भर में US$384 मिलियन कमाए. 2007 में, उन्होंने एक काल्पनिक विज्ञान फ़िल्म ऑलिवर हर्शबेइगल द्वारा निर्देशित द इन्वेशन में काम किया, जिसमें अभिनय के लिए कथित तौर पर उन्होंने $26 मिलियन प्राप्त किए; हालांकि यह आलोचनात्मक और व्यावसायिक रूप से असफल रही, किडमैन ने कहा कि उनकी फ़िल्मों की सफलता पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है। उन्होंने नोवा बॉमबैक के हास्य-ड्रामा मारगॉट एट द वेडिंग में जेनिफ़र जेसन ले और जैक ब्लैक के साथ भूमिका निभाई. उन्होंने खलनायिका मारिसा कल्टर की भूमिका निभाते हुए, आयोजित फ़िल्म त्रयी हिज़ डार्क मेटिरियल्स के पहले भाग के फ़िल्मी रूपांतरण में अभिनय किया। हालांकि, गोल्डन कम्पास की उत्तर अमेरिकी बॉक्स ऑफिस पर अपेक्षाओं को पूरा करने में विफलता से अगली कड़ी की संभावना कम हो गई है। 25 जून 2007 को, निनटेन्डो ने घोषणा की कि उसके यूरोपीय बाज़ार में किडमैन निनटेन्डो DS खेल मोर ब्रेन ट्रेनिंग के लिए निनटेन्डो विज्ञापन अभियान का नया चेहरा होंगी. 2008 में, उन्होंने बैज़ लहरमैन की ऑस्ट्रेलिया नामक ऑस्ट्रेलियाई ऐतिहासिक फ़िल्म में काम किया, जोकि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान डारविन पर जापानी हमले के समय सुदूर उत्तरी क्षेत्र में सेट है। किडमैन ने ह्यू जैकमैन के समक्ष महाद्वीप से अभिभूत एक अंग्रेजी महिला की भूमिका निभाई. फ़िल्म दुनिया भर में बॉक्स ऑफिस पर सफल रही। मूलतः किडमैन का युद्धोत्तर जर्मन ड्रामा द रीडर में काम करना तय हुआ था, लेकिन अपनी गर्भावस्था के कारण उन्हें फ़िल्म से अलग होना पड़ा. किडमैन के प्रस्थान की ख़बर के तुरंत बाद, घोषणा की गई कि केट विन्सलेट यह भूमिका निभाएंगी. इस भूमिका के लिए विन्सलेट ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का ऑस्कर जीता; किडमैन पिछले पांच विजेताओं में से एक थीं, जिन्होंने उन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया। किडमैन 2009 रॉब मार्शल की संगीतमय फ़िल्म नाइन में काम करेंगी। वे ऑरोन एकहार्ट के साथ पुलित्जर पुरस्कार प्राप्त नाटक के फ़िल्मी रूपांतरण रैबिट होल में काम करेंगी, जिसके लिए उन्होंने वुडी एलेन की आगामी फ़िल्म यू विल मीट ए टॉल डार्क स्ट्रेंजर में अपनी भूमिका छोड़ दी। आगामी परियोजनाएं टी.वी. गाइड ने रिपोर्ट किया कि किडमैन डेनिश गर्ल, इसी नाम के उपन्यास के फ़िल्मी रूपांतरण में, एइनार वेगेनर, दुनिया की पहली शल्यक्रियोपरांत लिंगपरिवर्तित, की भूमिका निभाएगी, जिसमें वे गइनेथ पैल्ट्रो के समक्ष परदे पर नज़र आएंगी. वे बीबीसी फ़िल्म्स के साथ मिल कर क्रिस क्लीव के उपन्यास, लिटिल बी के फ़िल्मी रूपांतरण का निर्माण और उसमें अभिनय करेंगी। फ़िल्मांकन 2010 के अंत या 2011 की शुरूआत में होना तय हुआ है। हाल ही में उन्होंने एक प्रोमोशनल वीडियो के लिए स्वर दिया है, जिसको ऑस्ट्रेलिया अपने 2018 विश्व कप की मेजबानी की बोली के समर्थन में इस्तेमाल करेगा। पांच मिनट का वीडियो 2010 दक्षिण अफ्रीका में विश्व कप के दौरान प्रसारित किया जाएगा. गायन मॉलिन रूश! से पहले गायिका ना रहने वाली किडमैन की फ़िल्म में स्वर प्रदर्शन को लोगों ने काफी पसंद किया। इवान मॅकग्रेगर के सहयोग वाला "कम व्हॉट मे" गीत ने ब्रिटेन एकल चार्ट में #27वें स्तर पर पहुंचा। इसके बाद उन्होंने रॉबी विलियम्स के साथ "समथिंग स्टुपिड", विलियम्स के स्विंग कवर्स एल्बम स्विंग व्हेन यू आर विनिंग के कवर पर सहयोग किया। यह ऑस्ट्रेलियन ARIAनेट एकल चार्ट में #8वें स्तर पर और ब्रिटेन में तीन सप्ताहों के लिए पहले नंबर पर. यह 2001 के लिए UK क्रिसमस #1 बना। 2006 में, उन्होंने एनिमेटेड फ़िल्म हैप्पी फ़ीट में स्वर दिया, नॉर्मा जीन के 'हार्ट सॉन्ग' के लिए स्वरों के साथ, जोकि प्रिंस के "किस" का थोड़ा-सा परिवर्तित रूपांतरण है। किडमैन ने रॉब मार्शल की संगीतमय फ़िल्म नाइन में भी, डैनियल डे-लुइस पेनेलोप क्रूज़, जूडी डेन्च, सोफ़िया लॉरेन और मेरियन कॉटिलार्ड के साथ गाया. निजी जीवन किडमैन ने दो बार शादी की। वे उनकी 1990 की फ़िल्म, डेज़ ऑफ़ थंडर के सेट पर अभिनेता टॉम क्रूज़ के साथ रूमानी बंधन में उलझीं. किडमैन और क्रूज़ ने 1990 में क्रिसमस की पूर्व संध्या पर टेलुराइड, कोलोराडो में शादी की। इस जोड़ी ने एक बेटी इसाबेला जेन (जन्म 1992) और एक बेटा, कॉनोर एंथोनी (जन्म 1995) को गोद लिया। वे बस अपनी शादी की 10वीं सालगिरह के बाद अलग हो गए। वे तीन महीने की गर्भवती थीं और गर्भपात हो गया था। क्रूज़ ने फरवरी 2001 में तलाक़ के लिए अर्जी दायर की। शादी 2001 में भंग कर दी गई, जहां क्रूज़ ने समाधान लायक़ मतभेद ना होने का हवाला दिया। संबंध-विच्छेद के कारणों को कभी सार्वजनिक तौर पर ज़ाहिर नहीं किया गया। मेरी क्लेयर में किडमैन ने कहा कि शादी के आरंभ में वे अस्थानिक गर्भावस्था से गुज़रीं. जून 2006 के लेडीज़ होम जर्नल में उन्होंने कहा कि वे अभी भी क्रूज़ को प्यार करती है: "वे विशाल हस्ती थे, अब भी हैं। मेरे लिए वे सिर्फ़ टॉम थे, पर बाक़ी सबके लिए, वे विशाल शख्यियत हैं। लेकिन वे मेरे साथ काफ़ी अच्छे थे। और मैं उनसे प्यार करती थी। मैं अब भी उनसे प्यार करती हूं." इसके अलावा, उन्होंने अपने तलाक को सदमा बताया. 2003 की फ़िल्म कोल्ड माउंटेन ने अफवाहें फैलाईं कि किडमैन और साथी कलाकार जूड लॉ के बीच प्रेम संबंध ही उनकी शादी के टूटने के लिए ज़िम्मेदार रहा है। दोनों ने आरोपों से इन्कार किया और किडमैन ने यह सनसनीख़ेज़ कहानी प्रकाशित करने वाले ब्रिटिश अख़बारों से एक अज्ञात रकम जीती। उन्होंने शहर के एक रोमानियन अनाथालय को पैसे दे दिए, जहां उस फ़िल्म को फ़िल्माया गया था। रॉबी विलियम्स ने पुष्टि की कि 2004 की गर्मियों में किडमैन की नाव पर उन दोनों के बीच संक्षिप्त रोमांस चला था। अपने ऑस्कर के तुरंत बाद, उनके और एडरियन ब्रॉडी के बीच प्रेम संबंध के बारे में अफवाहें फैली थीं। वे 2003 में संगीतकार लेनी क्रेविट्ज़ से मिलीं और उसे 2004 के दौरान उनसे डेटिंग की। किडमैन ने जनवरी 2005 में जी'डे LA, ऑस्ट्रेलियाइयों के एक सम्मान समारोह में अपने दूसरे पति, लोकगीतों के गायक कीथ अर्बन से मुलाक़ात की। 25 जून 2006 को, सिडनी में सेंट पैट्रिक एस्टेट के मैदान, मैनली में स्थित कार्डिनल सेरेट्टी मेमोरियल चैपल में उन्होंने शादी की। उनके घर सिडनी, सट्टन फ़ॉरेस्ट, लॉस एंजिल्स और नैशविले, टेनेसी में हैं। मार्च 2008 में, उन्होंने कुछ दिनों के अंतराल में लॉस एंजिल्स और नैशविले में भवन खरीदे. प्रेस द्वारा अटकलों के बाद, 8 जनवरी 2008 को पुष्टि की गई कि किडमैन तीन माह की गर्भवती थीं। दंपती की पहली संतान, संडे रोज़ किडमैन अर्बन, 7 जुलाई 2008 को नैशविले, टेनेसी में हुई। किडमैन के पिता ने कहा कि बेटी का बीच का नाम अर्बन की स्वर्गीय दादी, रोज़ के नाम पर रखा गया। किडमैन ने 2005 में एलेन डीजनरेस के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि उन्हें एक फ़िल्म की शूटिंग के दौरान अपने पसंदीदा शौक़ - स्काई डाइविंग से - मना कर दिया गया। जनवरी 2005 में, किडमैन ने सिडनी के दो फ़ोटो पत्रकारों के खिलाफ़, जो उनका पीछा कर रहे थे, अंतरिम रोक आदेश जीता। 2009 की शुरूआत में, ऑस्ट्रेलिया के महान अभिनेताओं को लेकर जारी डाक टिकटों के विशेष संस्करण की श्रृंखला में किडमैन भी शामिल थीं। वे, जेफ्री रश, रसेल क्रो और केट ब्लैनचेट प्रत्येक श्रृंखला में दो बार नज़र आए: एक बार स्वयं के रूप में और एक बार अपने अकादमी पुरस्कार विजेता किरदार में. धार्मिक और राजनीतिक दृष्टिकोण किडमैन रोमन कैथोलिक साधक हैं। उन्होंने उत्तर सिडनी में मेरी मैकिलॉप चैपल में भाग लिया। क्रूज़ के साथ अपनी शादी के दौरान, वे कभी-कभार साइन्टॉलोजी की साधक रही हैं। अपने तलाक़ के बाद से वे साइंटॉलोजी पर चर्चा करने की अनिच्छुक रही हैं। किडमैन का नाम लॉस एंजिल्स टाइम्स (17 अगस्त 2006) के एक विज्ञापन में दिया गया था जिसमें हमास और हिज़बुल्लाह की निंदा की गई और 2006 इज़राइल-लेबनान संघर्ष में इज़राइल का समर्थन किया गया। किडमैन ने अमेरिका के डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवारों को दान दिया और 2004 के राष्ट्रपति चुनाव में जॉन केरी का समर्थन किया। धर्मार्थ काम किडमैन 1994 से UNICEF ऑस्ट्रेलिया के लिए सद्भावना राजदूत रही हैं। उन्होंने दुनिया भर के वंचित बच्चों को लिए और उनकी ओर ध्यान आकर्षित करते हुए धन एकत्रित किया है। 2004 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा "विश्व का नागरिक" ख़िताब से सम्मानित किया गया। ऑस्ट्रेलिया दिवस 2006 पर, किडमैन को ऑस्ट्रेलिया का सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिला, जिस अवसर पर उन्हें कम्पानियन ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया बनाया गया। उन्हें UNIFEM के लिए सद्भावना राजदूत के रूप में भी मनोनीत किया गया। किडमैन स्तन कैंसर के लिए पैसे जुटाने हेतु टी-शर्ट या वास्कट डिज़ाइन करने वाले, स्तन कैंसर की देख-रेख के लिए आयोजित 'लिटल टी अभियान' में शामिल हुईं. 1984 में किडमैन की मां को स्तन कैंसर हुआ था। 8 जनवरी 2010 को किडमैन नैन्सी पेलोसी, जोआन चेन और जो टोरे के साथ, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा का विरोध करने के उद्देश्य से सैन फ्रांसिस्को की प्रधान परिषद के केंद्र में स्थित पारिवारिक हिंसा निवारण कोष को सफल बनाने में मदद करने के लिए आयोजित समारोह में भाग लिया। फ़िल्मोग्राफ़ी किडमैन के फ़िल्मों का सकल कुल US$२ बिलियन से अधिक है, जबकि 17 फ़िल्मों ने $100 से अधिक अर्जित किया है। पुरस्कार 2003 में, किडमैन ने हॉलीवुड वॉक ऑफ़ फ़ेम में सितारा हासिल किया। सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए 2003 अकादमी पुरस्कार के अलावा, किडमैन ने निम्नलिखित आलोचकों के समूह या पुरस्कार प्रदाता संगठनों से सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार प्राप्त किए: हॉलीवुड विदेशी प्रेस (गोल्डन ग्लोब्स), ऑस्ट्रेलियाई फ़िल्म संस्थान, ब्लॉकबस्टर एंटरटेनमेंट पुरस्कार, एम्पायर पुरस्कार, गोल्डन सैटेलाइट पुरस्कार, हॉलीवुड फ़िल्म समारोह, लंदन क्रिटिक्स सर्किल, रूसी फ़िल्म आलोचकों का गिल्ड और दक्षिणपूर्वी फ़िल्म आलोचक संघ. 2003 में, किडमैन को अमेरिकी सिनेमाथिक पुरस्कार दिया गया। उन्हें थिएटर मालिकों के राष्ट्रीय संघ से 1992 में शूवेस्ट सम्मेलन में भविष्य की उभरती अभिनेत्री के रूप में और 2002 में फ़िल्मों में उपलब्धि के विशिष्ट एक दशक के लिए मान्यता भी मिली। सरकारी सम्मान वर्ष 2006 में किडमैन को "एक बहुप्रशंसित फ़िल्म कलाकार के रूप में प्रदर्शन कला के क्षेत्र में सेवा, महिलाओं और बच्चों के लिए स्वास्थ्य उपचार को बेहतर बनाने हेतु स्वास्थ्य देख-रेख के प्रति योगदान और कैंसर अनुसंधान में समर्थन, युवाओं के लिए युवा कलाकारों के प्रमुख समर्थक के रूप में और ऑस्ट्रेलिया तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवीय उद्देश्यों से" सेवा के लिए, ऑस्ट्रेलिया के सर्वोच्च नागरिक सम्मान,कंपानियन ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया (एसी) से नवाज़ा गया। लेकिन, उनकी फ़िल्म प्रतिबद्धताओं और अरबन के साथ शादी की वजह से, 13 अप्रैल 2007 को उन्हें यह सम्मान प्रस्तुत किया गया। इसे गवर्नमेंट हाउस, कैनबेरा में आयोजित एक समारोह में ऑस्ट्रेलिया के गवर्नर-जनरल, मेजर जनरल माइकल जेफ़री ने पेश किया। डिस्कोग्राफ़ी "कम व्हाट मे" एकल (ईवान मॅकग्रेगर के साथ युगल गीत - अक्तूबर 2001) AUS #10, UK #27 "स्पार्कलिंग डायमंड्स" (कैरोलीन ओ'कॉनोर के साथ) - अक्तूबर 2001 (मॉलान रोश ! साउंडट्रैक) "हिन्दी सैड डाइमंड्स" - अक्तूबर 2001 (मॉलान रोश ! साउंडट्रैक) "समथिंग स्टुपिड" एकल (रॉबी विलियम्स के साथ युगल - दिसंबर 2001) AUS #8, UK #1l "किस" / "हार्टब्रेक होटल" - निकोल किडमैन / ह्यू जैकमैन - नवम्बर 2006 (हैप्पी फ़ीट साउंडट्रैक) सन्दर्भ अतिरिक्त पठन बाहरी कड़ियाँ Nicole's Magic {nkidman.com} Nicole Kidman's charity work , U.S. |DATE OF DEATH= |PLACE OF DEATH= }} हवाई से अभिनेता ऑस्ट्रेलियाई अमेरिकी ऑस्ट्रेलियाई बाल कलाकार ऑस्ट्रेलियाई गायिकाएं ऑस्ट्रेलियाई फ़िल्म अभिनेता ऑस्ट्रेलियाई रोमन कैथोलिक ऑस्ट्रेलियाई टी.वी. कलाकार BAFTA विजेता (लोग) सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री अकादमी पुरस्कार विजेता सर्वश्रेष्ठ ड्रामा अभिनेत्री गोल्डन ग्लोब (फ़िल्म) विजेता सर्वश्रेष्ठ संगीत या हास्य अभिनेत्री गोल्डन ग्लोब (फ़िल्म) विजेता कंपानियन्स ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया होनोलुलु, हवाई से लोग सिडनी के लोग 1967 में जन्मे लोग जीवित लोग पूर्व सैंटॉलोजिस्ट सबसे वाहियात स्क्रीन दम्पत्ति गोल्डन रास्पबेरी पुरस्कार विजेता
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टेम्परिंग
बालू पायन, बालू टेंपरण पायन या टेम्परण (टेम्परिंग), तापोपचार की एक विधि है जो लौह-आधारित मिश्रातुओं की सुदृढ़ता या चिमड़ता (टफ़नेस) बढ़ाने के के लिए प्रयुक्त होती है। प्रायः टेम्परण, कठोरण (हार्डेनिंग) के बाद किया जाता है ताकि कुछ अतिरिक्त कठोरता हो तो हट जाय। टेम्परण के लिए धातु को क्रान्तिक बिन्दु से नीचे किसी उपयुक्त ताप तक ले जाया जाता है और कुछ देर उसी ताप पर रखते हैं। इसके बाद धातु को शान्त वायु में ठण्डा होने के लिए छोड़ दिया जाता है। धातु को किस ताप तक ले जाया जाता है, इससे यह तय हो जाता है कि टेम्परण के उपरान्त धातु से कितनी कठोरता कम हो जाएगी। धातु को किस ताप तक ले जाना है, यह इस बात से निर्धारित किया जाता है कि धातु/मिश्रातु की संरचना क्या है और टेम्परण के माध्यम से अन्तिम उत्पाद में क्या-क्या गुण लाना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, बहुत कठोर औजारों को प्रायः कम ताप तक टेम्परित करते हैं जबकि स्प्रिंग के टेम्परण के लिए इसकी अपेक्षा बहुत अधिक ताप तक जाया जाता है। परिचय इस्पात (steel) में, धातु को अधिक "मजबूत" बनाने के लिए टेम्परिंग की जाती है, इसके लिए भंगुर मार्टेंसाईट या बाइनाईट को फेराईट और सीमेन्टाईट के संयोजन में और कभी कभी टेम्पर्ड मार्टेंसाईट में बदल दिया जाता है। अवक्षेपण के द्वारा सख्त किये जाने वाले मिश्रधातु जैसे, एल्युमिनियम और सुपर मिश्र धातुओं की कई श्रेणियों को, अंतरधात्विक कणों के अवक्षेपण के लिए टेम्पर किया जाता है, जिससे धातु अधिक मजबूत बन जाती है। टेम्परिंग के लिए पदार्थ को इसके निम्न जटिल तापमान (critical temperature) से कम ताप पर नियंत्रित रूप से पुनः गर्म किया जाता है। भंगुर मार्टेंसाईट टेम्पर किये जाने के बाद अधिक सख्त और लचीला (ductile अर्थात अब इसे खींच कर लम्बी तारों में बदला जा सकता है) हो जाता है। कार्बन परमाणुओं को जब तेजी से ठंडा किया जाता है, वे ऑसटेंटाइन में फंस जाते हैं, आमतौर पर तेल या पानी के साथ मार्टेंसाईट बनाते हैं। मार्टेंसाईट टेम्पर किये जाने के बाद मजबूत बन जाता है क्योंकि जब इसे पुनः गर्म किया जाता है, इसकी सूक्ष्म संरचना पुनर्व्यवस्थित हो जाती है और कार्बन परमाणु विकृत काय-केन्द्रित-टेट्रागोनल (BCT) सरंचना (distorted body-centred-tetragonal (BCT) structure) में से बाहर विसरित हो जाते हैं, कार्बन के विसरण के बाद, परिणामी संरचना लगभग शुद्ध फेराईट होती है, जो काय-केन्द्रित सरंचना से युक्त होती है। धातु विज्ञान (metallurgy) में, हमेशा मजबूती और लचीलेपन (प्रत्यास्थता) पर बल दिया जाता है। यह नाजुक संतुलन टेम्परिंग की प्रक्रिया में निहित कई बारीकियों पर प्रकाश डालता है। टेम्परिंग की प्रक्रिया के दौरान समय और तापमान पर सटीक नियंत्रण एक जटिल प्रक्रिया है, जिससे उचित संतुलित यांत्रिक गुणधर्मों से युक्त धातु प्राप्त होती है। प्रक्रिया की विशेषताएं इससे धातु की प्रत्यास्थता और मजबूती में सुधार आता है। उसमें दरार आने की सम्भावना कम हो जाती है। उसके यांत्रिक गुणों में सुधार आता है। उसके प्रतिरोध प्रभाव में वृद्धि होती है। इसकी प्रत्यास्थता इतनी बढ़ जाती है की इसे पीट कर पतली चादर जैसी परत में भी बदला जा सकता है। (malleability) इसकी कठोरता कम हो जाती है। इस्पात या स्टील में टेम्परिंग आमतौर पर इस्पात को कई-चरणों की प्रक्रिया में गर्म किया जाता है। सबसे पहले इसे लौह और कार्बन के एक ठोस विलयन बनाने के लिए गर्म किया जाता है, यह प्रक्रिया ऑसटेनिकरण (austenizing) कहलाती है। ऑसटेनिकरण के बाद क्वेंचिंग (quenching) की जाती है, जिससे एक मार्टेंसाईट सूक्ष्म सरंचना का निर्माण होता है। अब इस इस्पात को टेम्पर करने के लिए और के बीच की रेंज में गर्म किया जाता है। की रेंज में टेम्परिंग को कभी कभी नहीं किया जाता है, इससे टेम्परिंग के कारण उत्पन्न होने वाली भंगुरता कम करने में मदद मिलती है। इस्पात को इसी तापमान पर बनाये रखा जाता है जब तक कि मार्टेंसाईट में फंसा हुआ कार्बन विसरित होकर एक ऐसे रासायनिक संगठन का निर्माण नहीं कर लेता जब तक इसमें बाइनाईट या परलाईट (pearlite) (एक क्रिस्टलीय सरंचना जो फेराईट और सीमेन्टाईट के मिश्रण से बनती है) बनाने की क्षमता ना आ जाये. जब वास्तव में बाइनाईट या परलाईट वाला इस्पात बनाना होता है, तो इस्पात को एक बार फिर से ऑसटेनाईट (ऑसटिनिकरण के लिए) क्षेत्र में ले जाया जाता है और धीरे धीरे एक नियंत्रित तापमान तक ठंडा किया जाता है इससे पहले कि इसे कम तापमान तक पूरी तरह से क्वेंच (ठंडा) न कर दिया जाये. बाइनाईट वाले स्टील में, टेम्परिंग प्रक्रिया की अवधि और तापमान के आधार पर ऊपरी या नीचला बाइनाईट बन सकता है। उष्मागतिकी के अनुसार यह असंभव है कि मार्टेंसाईट को टेम्परिंग के दौरान पूरी तरह से बदल दिया जाये, इसलिए अक्सर मार्टेंसाईट, बाइनाईट, फेराईट और सीमेन्टाईट का मिश्रण बनता है। अवक्षेपण के द्वारा कठोर बनाये गए मिश्रधातुओं में टेम्परिंग इससे पहले कि अवक्षेपण के द्वारा कठोर बनाये गए मिश्रधातु में टेम्परिंग की जाये, इसे एक विलयन में रखा जाना चाहिए. इस प्रक्रिया के दौरान, मिश्र धातु को विलयन बनाने (घोलने) के लिए गर्म किया जाता है और मिश्रधातु के तत्व विलयन में समान रूप से वितरित हो जाते हैं। इसके बाद मिश्रधातु को पर्याप्त उंची दर पर ठंडा किया जाता है ताकि मिश्र धातु के तत्वों को विलयन से बाहर होने से रोका जा सके. इसके बाद इस मिश्र धातु को टेम्पर किया जाता है, इसके लिए इसे विलेय तापमान से कम तापमान पर गर्म किया जाता है। टेम्परिंग के दौरान, मिश्रधातु बनाने वाले तत्व मिश्र धातु में विसरित हो जायेंगे और एक अंतर धात्विक यौगिक बनाने के लिए एक दूसरे से प्रतिक्रिया करेंगे.अंतर धात्विक यौगिक मिश्र धातु में घुलनशील नहीं होते हैं और ये छोटे कण बनाते हुए अवक्षेपित हो जायेंगे. ये कण मिश्रधातु की क्रिस्टल सरंचना के माध्यम से विस्थानिकरण की गति के द्वारा धातु को मजबूत बनाते हैं। टेम्परिंग के समय और तापमान पर सावधानीपूर्वक नियंत्रण के द्वारा अवक्षेपण के आकार और मात्रा को नियंत्रित किया जाता है, इस प्रकार से मिश्रधातु के यांत्रिक गुणधर्म निर्धारित होते हैं। एल्यूमीनियम में टेम्परिंग को "एजिंग (aging)" भी कहा जाता है। कृत्रिम रूप से पुराने धातुओं को अधिक तापमान पर टेम्पर किया जाता है, जबकि प्राकृतिक रूप से पुराने धातुओं को कमरे के तापमान पर टेम्पर किया जाता है। जिन मिश्रधातु प्रणालियों में बड़ी संख्या में मिश्रधातु तत्व होते हैं, जैसे कुछ सुपर मिश्रधातु, उनमें टेम्परिंग की कई गतिविधियां की जाती हैं। प्रत्येक गतिविधि के दौरान एक भिन्न अवक्षेप निर्मित होता है, जिसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में भिन्न अवक्षेप बन जाते हैं, जिन्हें फिर से विलयन में लाना मुश्किल होता है। यह घटना अवक्षेपण के द्वारा कठोर बनाये गए मिश्रधातुओं की उच्च तापमान पर मजबूती में योगदान देती है लोहार के काम में टेम्परिंग का उपयोग अक्सर टेम्परिंग में प्रयुक्त तापमान इतना कम होता है कि इसे धातु के रंग के द्वारा नहीं आंका जा सकता. इस मामले में, लोहार एक निश्चित समय के लिए धातु को गर्म करता है। ऐसा करने से अलग अलग धातुओं की टेम्परिंग प्रक्रिया में एक निश्चित स्तर की स्थिरता आती है। समय और तापमान के संयुक्त प्रभाव को, एक अच्छी तरह से पॉलिश किये गए ब्लेड की टेम्परिंग से निर्मित ऑक्साइड फिल्म के रंग के नियंत्रण के द्वारा भी आंका जा सकता है। इन्हें भी देखें एनिलिंग (धातु निष्कर्षण विज्ञान) लोहे की ढलाई अवक्षेपण से मजबूती सन्दर्भ विनिर्माण प्रक्रिया रॉबर्ट एच. टोड, डेल के. एलन और लिओ आल्टिंग के द्वारा सन्दर्भ गाइड, पेज. 410 बाहरी कड़ियाँ टेम्परिंग की प्रक्रिया पर एक विस्तृत चर्चा गर्म करने पर चमक और टेम्परिंग के रंगों को दर्शाता हुआ वेबपेज कांच इंजीनियरिंग और विज्ञान कांच भौतिकी धातु का उष्मा उपचार
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यू मी और हम (2008 फ़िल्म)
यू मी और हम 2008 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। संक्षेप वर्तमान दौर में रोमांटिक कहानियाँ परदे पर से गायब हो चुकी हैं, लेकिन निर्देशक के रूप में अजय ने प्रेम कथा को चुना है। कहानी कहने की शैली अजय ने ‘नोट बुक’ से उठाई है और फ्लैश बैक का उम्दा प्रयोग किया है। क्रूज़ पर अजय और पिया की प्रेम कहानी शुरू होती है। अजय अपने दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करने आया है और पिया जहाज पर काम करती है। अजय पहली बार पिया को देखता है और उसका दीवाना हो जाता है। वह उसका दिल जीतने की सारी कोशिशें करता है। झूठ का सहारा भी लेता है, लेकिन पिया प्रभावित नहीं होती। जब यात्रा समाप्त होती है तो वह पिया के पास अपना पता छोड़कर चला जाता है। कुछ महीनों बाद पिया उसके पास आती है और दोनों शादी कर लेते हैं। कहानी में मोड़ उस समय आता है जब पिया को अल्ज़ीमर नामक भूलने की गंभीर बीमारी हो जाती है। उसकी याददाश्त आती-जाती रहती है। कभी वह अपने बच्चे और पति तक को भूल जाती है, तो कभी एकदम सामान्य रहती है। उसकी हालत बिगड़ते देख अपने और बच्चे की बेहतरी के लिए अजय उसे केयर सेंटर में भर्ती कर देता है। कहीं न कहीं उसके मन में अपने लिए स्वार्थ जाग जाता है, लेकिन पिया के बिना अजय जी नहीं पाता। वह उसे फिर से घर ले आता है, क्योंकि वह उससे सच्चा प्यार करता है। पहली नजर का प्यार, प्यार की पवित्रता, भावनाएँ, ताकत और गहराई को इस कहानी के जरिये दिखाया गया है। अजय और पिया की इस कथा के समांतर अजय के दो दोस्तों की उपकथाएँ भी चलती हैं, जिसमें एक विवाहित जोड़ा है और तलाक की दहलीज पर खड़ा है। दूसरे जोड़े के बीच प्यार चल रहा है। इन उपकथाओं के जरिये शादी के पहले के प्यार की तुलना शादी के बाद के प्यार से की गई है। चरित्र मुख्य कलाकार अजय देवगन - अजय काजोल देवगन - पिया दिव्या दत्ता आदित्य राजपूत - अजय का बेटा सारिका सुहास सावरकर रितुपर्णा सेनगुप्ता ईशा शरवानी अनीता वाही दल संगीत विशाल भारद्वाज का संगीत है और बैकग्राउंड संगीत मोंटी शर्मा का है। रोचक तथ्य परिणाम बौक्स ऑफिस समीक्षाएँ नामांकन और पुरस्कार बाहरी कड़ियाँ 2008 में बनी हिन्दी फ़िल्म
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झाड़ेवा
झाडेवा भारतीय राज्य राजस्थान के सीकर जिले की लक्ष्मणगढ़ तहसील का एक गाँव है। यह लक्ष्मणगढ़ से 22-किलोमीटर (14 मील) पूर्व में तथा नवलगढ़ से 2-किलोमीटर (1.2 मील) पश्चिम में स्थित है। इसके सीमाएं बिड़ोदी छोटी, बिड़ोदी बड़ी और भूधा का बास गाँवों से लगती है। ग्राम सरकार ग्राम बिड़ोदी बड़ी पंचायत में आता है जिसकी वर्तमान सरपंच राजेन्द्र प्रसाद है। जलवायु गाँव गर्मीयों में बहुत गर्म, अल्प बारिस, ठण्डा सर्दियों का मौसम और बारिस के दिनों को छोड़कर सामान्यतः शुष्क हवा रहती है। औसत उच्चतम व निम्नतम तापमान क्रमशः २८-३० और १५-१६ डिग्री सेल्सियस रहते हैं। परिवहन ग्राम लक्ष्मणगढ़ व नवलगढ से डामर सड़क से जुड़ा हुआ है। ग्राम स्थिति गाँव लक्ष्मणगढ़ से नवलगढ़ मार्ग पर स्थित है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ झाड़ेवा का गूगल मानचित्र सीकर जिले के सरपंचों का विवरण बिड़ोदी बड़ी पंचायत के मतदाताओं की सूची सीकर जिले का आधिकारिक जालस्थल List of all the land records List of all villages of Rajasthan with their panchayat samiti सीकर ज़िले के गाँव
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जय-विजय
जय और विजय दोनों भाई और भगवान विष्णु के द्वारपाल हैं। इनकी मूर्खता के कारण इनको शाप मिला। पुराणों के अनुसार जय विजय श्रीधर नाम के ब्राह्मण के लड़के थे यह हमेशा धर्म के नाम पर लोग और पैसा इकट्ठा करते थे एक समय सनकादिक मुनि स्नान कर रहे थे तभी जय विजय ने उनके कपड़े चुरा लिए फिर सनकादिकओने उन दोनों को भगवानविष्णु का द्वादशअक्षर मंत्र दिया उसके प्रभाव को पाकर जय विजय ने भगवानविष्णु की कठोर आराधना की और उनके धाम वैकुंड को प्राप्त कर लिया और वहां के द्वारपाल बन गए एक समय सनकादिक प्रभु के दर्शन के लिए वहां पर आए तो उनको उन्होंने प्रवेश करने से वर्जित किया फिर सनकादिकओने 3 जन्मों तक प्रभु के हाथों मरने का शाप दे दिया कथा एक बार सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार (ये चारों सनकादिक ऋषि कहलाते हैं और देवताओं के पूर्वज माने जाते हैं) सम्पूर्ण लोकों से विरक्त होकर चित्त की शान्ति के लिये भगवान विष्णु के दर्शन करने हेतु उनके बैकुण्ठ लोक में गये। बैकुण्ठ के द्वार पर जय और विजय नाम के दो द्वारपाल पहरा दिया करते थे। जय और विजय ने इन सनकादिक ऋषियों को द्वार पर ही रोक लिया और बैकुण्ठ लोक के भीतर जाने से मना करने लगे। उनके इस प्रकार मना करने पर सनकादिक ऋषियों ने कहा, "अरे मूर्खों! हम तो भगवान विष्णु के परम भक्त हैं। हमारी गति कहीं भी नहीं रुकती है। हम देवाधिदेव के दर्शन करना चाहते हैं। तुम हमें उनके दर्शनों से क्यों रोकते हो? तुम लोग तो भगवान की सेवा में रहते हो, तुम्हें तो उन्हीं के समान समदर्शी होना चाहिये। भगवान का स्वभाव परम शान्तिमय है, तुम्हारा स्वभाव भी वैसा ही होना चाहिये। हमें भगवान विष्णु के दर्शन के लिये जाने दो।" ऋषियों के इस प्रकार कहने पर भी जय और विजय उन्हें बैकुण्ठ के अन्दर जाने से रोकने लगे। जय और विजय के इस प्रकार रोकने पर सनकादिक ऋषियों ने क्रुद्ध होकर कहा, "भगवान विष्णु के समीप रहने के बाद भी तुम लोगों में अहंकार आ गया है और अहंकारी का वास बैकुण्ठ में नहीं हो सकता। इसलिये हम तुम्हें शाप देते हैं कि तुम लोग पापयोनि में जाओ और अपने पाप का फल भुगतो।" उनके इस प्रकार शाप देने पर जय और विजय भयभीत होकर उनके चरणों में गिर पड़े और क्षमा माँगने लगे। यह जान कर कि सनकादिक ऋषिगण भेंट करने आये हैं भगवान विष्णु स्वयं लक्ष्मी जी एवं अपने समस्त पार्षदों के साथ उनके स्वागत के लिय पधारे। भगवान विष्णु ने उनसे कहा, "हे मुनीश्वरों! ये जय और विजय नाम के मेरे पार्षद हैं। इन दोनों ने अहंकार बुद्धि को धारण कर आपका अपमान करके अपराध किया है। आप लोग मेरे प्रिय भक्त हैं और इन्होंने आपकी अवज्ञा करके मेरी भी अवज्ञा की है। इनको शाप देकर आपने उत्तम कार्य किया है। इन अनुचरों ने तपस्वियों का तिरस्कार किया है और उसे मैं अपना ही तिरस्कार मानता हूँ। मैं इन पार्षदों की ओर से क्षमा याचना करता हूँ। सेवकों का अपराध होने पर भी संसार स्वामी का ही अपराध मानता है। अतः मैं आप लोगों की प्रसन्नता की भिक्षा चाहता हूँ।" भगवान के इन मधुर वचनों से सनकादिक ऋषियों का क्रोध तत्काल शान्त हो गया। भगवान की इस उदारता से वे अति अनन्दित हुये और बोले, "आप धर्म की मर्यादा रखने के लिये ही अपने इतना आदर देते हैं। हे नाथ! हमने इन निरपराध पार्षदों को क्रोध के वश में होकर शाप दे दिया है इसके लिये हम क्षमा चाहते हैं। आप उचित समझें तो इन द्वारपालों को क्षमा करके हमारे शाप से मुक्त कर सकते हैं।" भगवान विष्णु ने कहा, "हे मुनिगण! मै सर्वशक्तिमान होने के बाद भी ब्राह्मणों के वचन को असत्य नहीं करना चाहता क्योंकि इससे धर्म का उल्लंघन होता है। आपने जो शाप दिया है वह मेरी ही प्रेरणा से हुआ है। ये अवश्य ही इस दण्ड के भागी हैं। ये तीन जन्म असुर योनि को प्राप्त करेंगे और तीनों बार मैं स्वयं इनका संहार करूंगा। ये मुझसे शत्रुभाव रखते हुये भी मेरे ही ध्यान में लीन रहेंगे। मेरे द्वारा इनका संहार होने के बाद ये पुनः इस धाम में वापस आ जावेंगे।" स्रोत श्रीमद्भागवत धर्म हिन्दू धर्म धर्म ग्रंथ पौराणिक कथाएँ
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लिखथाप
कुमाऊँ की देहरी और दीवार सजाने की कला 'लिख थाप' या थापा कहलाती हैं, इनको ऐपण, ज्यूँति या ज्यूँति मातृका पट्ट भी कहा जाता है। इसकी रचना में अलग अलग समुदायों में अनेक प्रकार के प्रतीक व लाक्षणिक अन्तर दृष्टिगोचर होते हैं। साहों व ब्राह्मणों के ऐपणों में सबसे बड़ा अन्तर यह है कि ब्राह्मणों में चावल की पिष्ठि निर्मित घोल द्वारा धरातलीय अल्पना अनेक आलेखन प्रतीकों, कलात्मक डिजाइनों, बेलबूटों में प्रकट होती है। साहों में धरातलीय आलेखन ब्राह्मणों के समान ही होते हैं परन्तु इनमें भिप्ति चित्रों की रचना की ठोस परम्परा है। थापा श्रेणी में चित्रांकन दीवलों या कागज में होता है। यह शैली ब्राह्मणों में नहीं के बराबर है। जिन आलेखनों या चित्रों की रचना कागज में की जाती है। उन्हें पट्टा कहते हैं। इसी प्रकार नवरात्रि पूजन के दिनों में दशहरे का पट्टा केवल साह लोग बनाते हैं। ऐपणों में एक स्पष्ट अन्तर यह है कि ब्राह्मण गेरु मिट्टी से धरातल का आलेपन कर चावल के आटे के घोल से सीधे ऐपणों का आलेखन करते हैं परन्तु साहों के यहाँ चावल की पिष्टि के घोल में हल्दी डालकर उसे हल्का पीला अवश्य किया जाता हैं तभी ऐपणों का आलेखन होता है। कुमाऊँ की ज्यूति मातृका पट्टों, थापों तथा वर बूदों में श्वेताम्बर जैन अपभ्रंश शैली का भी स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। श्वेताम्बर जैन पोथियों की श्रृंखला में बड़ौदा के निकट एक जैन पुस्तकागार में ११६१ ई. की एक ही पुस्तक में औधनियुक्ति आदि सात ग्रंथ मिले, जिनमें १६ विद्या देवियों, सरस्वती, लक्ष्मी, अम्बिका, चक्र देवी तथआ यक्षों के २१ चित्र बने हैं। इन ग्रंथ चित्रों में चौकोर स्थान बनाकर एक चौखट सी बनाई गई हैं और इनके मध्य में आकृतियाँ बिठाई गई हैं। ठीक इसी प्रकार का चित्र नियोजन कुमाऊँ के समस्त ज्यूति पट्टो, थापों व बखूदों में किया जाता है। कुमाऊँ में ज्यूति पट्टों में महालक्ष्मी, महासरस्वती व महाकाली ३ देवियाँ बनाई जाती है साथ में १६ षोडश मातृकाएं तथा गणेश, चन्द्र व सूर्य निर्मित किये जाते हैं। अपभ्रंश शैली में रंग व उनकी संख्या भी निश्चित है। जैसे लाल, हरा, पीला, काला, बैगनी, नीला व सफेद। इन्हीं सात रंगों का प्रयोग कुमाऊँ की भिप्ति चित्राकृतियों अथवा थापों व पट्टों में किया जाता है।, कुमाऊँ में किसी भी मांगलिक कार्य के अवसर पर अपने अपने घरों को ऐपण द्वारा सजाने की पुराणी परंपरा रही है। ऐपण शब्द का उद्गम संस्कृत शब्द अर्पण से माना जाता है। इसमें घरों के आंगन से लेकर मंदिर तक प्राकृतिक रंगों जैसे गेरू एवं पिसे हुए चावल के घोल (बिस्वार) से विभिन्न आकृतियां बनायी जाती है। दीपावली में बनाए जाने वाले ऐपण में मां लक्ष्मी के पैर घर के बाहर से अन्दर की ओर को गेरू के धरातल पर विस्वार (चावल का पिसा घोल) से बनाए जाते है। दो पैरों के बीच के खाली स्थान पर गोल आकृति बनायी जाती है जो धन का प्रतीक माना जाता है। पूजा कक्ष में भी लक्ष्मी की चौकी बनाई जाती है। इनके साथ लहरों, फूल मालाओं, सितारों, बेल-बूटों व स्वास्तिक चिन्ह की आकृतियां बनाई जाती है। पारंपरिक गेरू एवं बिस्वार से बनाए जाने वाले ऐपण की जगह अब सिंथेटिक रंगो से भी ऐपण बनाने लगे है। २०१५ में उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री, हरीश रावत ने राज्य के सभी सरकारी कार्यालयों में ऐपण के चित्र रखवाने के निर्देश दिये थे। सन्दर्भ रंगोली कुमाऊँ उत्तराखण्ड की संस्कृति
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स्टीफन हार्पर
स्टीफन हार्पर कनाडा के प्रधान मंत्री हैं। भारत से सम्बंध स्टीफन हार्पर ने जून 2010 में कई राष्ट्रध्यक्षों के बीच सिर्फ तत्कालीन भारत के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के लिए अलग से रात्रि भोजन का आयोजन किया था। भले ही उस समय मनमोहन सिंह राष्ट्राध्यक्षों के सम्मेलन में गए थे लेकिन कनाडा और भारत के बीच द्वीपक्षिय बात हुई और दोनों ने साझा बयान पर दस्तख़त भी किये थे। इस प्रयास को और आगे बल 2015 में भारतीय प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के कनाडा दौरे से मिला। बाहरी कड़ियाँ Prime Minister of Canada—Premier ministre du Canada, official website CBC—The Conservative Leader Canadian Broadcasting Corporation.Canada Votes 2004: Stephen Harper. Stephen Harper's article on hockey in the Toronto Star कनाडा के प्रधानमंत्री सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%93%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%8F%E0%A4%82%E0%A4%9F%20%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B8
ओरिएंट एक्सप्रेस
ओरिएंट एक्सप्रेस 1883 में बेल्जियम की कंपनी कॉम्पैनी इंटरनेशनेल डेस वैगन्स-लिट्स (CIWL) द्वारा बनाई गई एक लंबी दूरी की यात्री ट्रेन सेवा थी जो 2009 तक संचालित थी। ट्रेन ने महाद्वीपीय यूरोप से पश्चिमी एशिया तक की लंबाई की यात्रा की, उत्तर-पश्चिम में पेरिस और लंदन में टर्मिनल स्टेशनों और दक्षिण-पूर्व में एथेंस या इस्तांबुल के साथ। ओरिएंट एक्सप्रेस का मार्ग और रोलिंग स्टॉक कई बार बदला गया। अतीत में कई मार्गों ने समवर्ती रूप से ओरिएंट एक्सप्रेस नाम, या मामूली बदलाव का इस्तेमाल किया था। हालांकि मूल ओरिएंट एक्सप्रेस केवल एक सामान्य अंतरराष्ट्रीय रेलवे सेवा थी, यह नाम साज़िश और लक्जरी रेल यात्रा का पर्याय बन गया। ओरिएंट एक्सप्रेस के साथ सबसे प्रमुख रूप से परोसे जाने वाले और जुड़े दो शहर के नाम पेरिस और इस्तांबुल हैं, समय सारिणी सेवा के मूल समापन बिंदु। ओरिएंट एक्सप्रेस उस समय विलासिता और आराम का प्रदर्शन था जब यात्रा करना अभी भी कठिन और खतरनाक था।  1977 में, ओरिएंट एक्सप्रेस ने इस्तांबुल की सेवा बंद कर दी। इसके तत्काल उत्तराधिकारी, पेरिस से बुखारेस्ट के लिए रात भर की सेवा के माध्यम से, बाद में 1991 में बुडापेस्ट में वापस कर दिया गया था, और 2001 में फिर से वियना में छोटा कर दिया गया था, शुक्रवार 8 जून 2007 को पेरिस से आखिरी बार प्रस्थान करने से पहले। इसके बाद, मार्ग, जिसे अभी भी "ओरिएंट एक्सप्रेस" कहा जाता है, को स्ट्रासबर्ग से शुरू करने के लिए छोटा कर दिया गया था, एलजीवी स्था के उद्घाटन के कारण हुआ, जिसने पेरिस से स्ट्रासबर्ग तक यात्रा के समय को बहुत कम कर दिया। पेरिस से एक TGV के आने के तुरंत बाद, नई कटी हुई सेवा ने 22:20 दैनिक स्ट्रासबर्ग को छोड़ दिया, और एम्स्टर्डम से वियना के लिए रात भर स्लीपर सेवा के लिए कार्लज़ूए में संलग्न किया गया था। 14 दिसंबर 2009 को ओरिएंट एक्सप्रेस का संचालन बंद हो गया और मार्ग यूरोपीय रेलवे समय सारिणी से गायब हो गया, कथित तौर पर "हाई-स्पीड ट्रेनों और कट-रेट एयरलाइंस का शिकार" होने के कारण। 13 दिसंबर 2021 से, एक ओबीबी नाइटजेट पेरिस-वियना मार्ग पर प्रति सप्ताह तीन बार फिर से चलता है, हालांकि ओरिएंट एक्सप्रेस के रूप में ब्रांडेड नहीं है। वेनिस-सिम्पलोन ओरिएंट एक्सप्रेस ट्रेन, बेलमंड द्वारा एक निजी उद्यम है, जो 1920 और 1930 के दशक से मूल CIWL कैरिज का उपयोग कर रहा है, पेरिस से इस्तांबुल के मूल मार्ग सहित यूरोप के विभिन्न गंतव्यों के लिए और से चलना जारी है। ट्रेन एक्लेयर डी लक्स ("टेस्ट" ट्रेन) 1882 में, बेल्जियम के एक बैंकर के बेटे, जॉर्जेस नागेलमैकर्स ने मेहमानों को की रेलवे यात्रा पर आमंत्रित किया। अपनी "ट्रेन एक्लेयर डी लक्स" ("लाइटनिंग लक्ज़री ट्रेन") पर।   ट्रेन पेरिस गारे डे ल'एस्ट से मंगलवार, 10 अक्टूबर 1882 को 18:30 के ठीक बाद रवाना हुई और अगले दिन 23:20 पर विएना पहुंची। वापसी यात्रा शुक्रवार, 13 अक्टूबर को 16:40 बजे वियना से रवाना हुई और, योजना के अनुसार, शनिवार 14 अक्टूबर को 20:00 बजे गारे डे स्ट्रासबर्ग में फिर से प्रवेश किया। जॉर्जेस नागेलमैकर्स कॉम्पैनी इंटरनेशनेल डेस वैगन्स-लिट्स के संस्थापक थे, जिसने पूरे यूरोप, एशिया और उत्तरी अफ्रीका में अपनी लक्जरी ट्रेनों, ट्रैवल एजेंसियों और होटलों का विस्तार किया। इसकी सबसे प्रसिद्ध ट्रेन ओरिएंट एक्सप्रेस बनी हुई है। रेलगाड़ी में इन प्रकारों के डब्बे थे: सामान गाड़ी 16 बिस्तरों वाला स्लीपिंग कोच ( बोगियों के साथ) 14 बिस्तरों वाला स्लीपिंग कोच (3 एक्सल) रेस्टोरेंट कोच (एनआर 107) 13 बिस्तरों वाला स्लीपिंग कोच (3 एक्सल) 13 बिस्तरों वाला स्लीपिंग कोच (3 एक्सल) बैगेज कार (पूरा 101 टन) बोर्ड पर पहला मेनू (10 अक्टूबर 1882): कस्तूरी, इतालवी पास्ते के साथ सूप, हरी चटनी के साथ टर्बोट, चिकन 'ए ला शेसूर', 'शैटू' आलू के साथ गोमांस का पट्टिका, खेल जानवरों का 'चौड-फ्रायड', सलाद, चॉकलेट का हलवा, मिठाइयों का बुफे। बाहरी कड़ियाँ
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बदलापुर (तहसील), जौनपुर
यह तहसील जौनपुर जिला, उत्तर प्रदेश में स्थित है। 2011 में हुई भारत की जनगणना के अनुसार इस तहसील में 407 गांव हैं। सेवा में, ०१-माननीय मुख्यमंत्री जी, उत्तर प्रदेश सरकार, रूम नंबर- ३११, तीसरा महला, लोक भवन, लखनऊ, उत्तर प्रदेश । ०२- श्रीमान मुख्य सचिव मुख्यमंत्री, रूम नंबर-३११, तीसरा महला, लोक भवन, लखनऊ, उत्तर प्रदेश । 03-श्रीमान जिलाधिकारी महोदय, जनपद – जौनपुर महोदय, प्रार्थी लुटावन सिंह ग्राम शाहपुर नेवादा ,पोस्ट कोल्हुवा, तहसील बदलापुर, थाना महराजगंज, परगना गड़वारा, जनपद जौनपुर का स्थायी निवासी है । संदर्भ : आराजी संख्या 441/ 0.583 हेo बंजर ग्राम समाज भूमि । बिषय : आराजी संख्या 441/ 0.583 हे o सरकारी बंजर भूमि को खाली कराने के बाबत में । / शिकायत बाबत दिए गए आदेश को अमल में न लाने के विषय में:- श्रीमान जी, आप से अनुरोध है आप समस्त सलंग्न दस्तावेज पढ़े और तत्काल सरकारी भूमि से कब्जा हटाने के लिए आदेश जारी करे जुर्माना वसूली के साथ। आराजी संख्या 441/ 0.583 हे o सरकारी बंजर भूमि की सीमांकन किया जाय और अवैध कब्जेदारों से जमीन को मुक्त कराया जाय उपर्युक्त आराजी संख्या भूमि वर्तमान में अभिलेखनुसार बंजर भूमि है। परंतु बदलापुर तहसील के ढिलमुल रवैये के कारण भूमि खाली नही हो रहा है। दबंग कब्जेदार पूर्व DIG शिव सागर सिंह दरोगा विद्या सागर सिंह (वर्तमान में कानपुर में तैनात) के वजह से इनके परिवार वाले उस पर कब्जा है और एक्स DIG भी कब्जा है। तहसील में उपजिलाधिकारी - बदलापुर को तीन बार सूचना और प्रार्थना पत्र दिया परंतु कोई ठोस कदम नही उठाया गया। जिलाधिकारी - जौनपुर को भी सूचित किया और प्रार्थना पत्र दिया परंतु जिलाधिकारी कार्यालय से भी कोई कार्रवाई नही हुई। जब वर्तमान के अभिलेखनुसार सरकारी बंजर भूमि है तो प्रशासन क्यो आना कानी कर रहा है। समझ से परे है। कब्जा न खाली होने के मुख्य कारण यह भी है कि दबंग कब्जेदार मुकदमा करके रखा है और जब भी आदेश आता है कि यह भूमि बंजर है और आबादी नही है तो ये लोग अपील में चले जाते है। अपील पर अपील करते रहते है कोर्ट में ताकि मामले को जिला जज ,दीवानी कोर्ट में उलझाए रखे, ताकि भूमि पर कब्जा बना कर रखा रहे। और तहसील कोई कार्रवाई न करे। लेखपाल प्रभावित होकर आख्या लिख देता है कि मुकदमा विचाराधीन होने के कारण तहसील कुछ नही कर सकता है। बहुत बड़ी साजिश के तहत ये सब चल रहा है। जिसके वजह से दबंग लोग अपना कब्जा बनाकर रह रहे है। तहसील , थाना ,पूरी तरह से प्रभावित है। आबादी दिखा कर कब्जा किये है लेकिन कोर्ट को आबादी का कोई साक्ष्य प्रस्तुत नही करते है ये लोग। कोई भी अधिकारी आते है तो Ex DIG और दरोगा से बात करते है और अधिकारी लोग वापस चले जाते है। अधिकारी भ्रमित और प्रभावित हो जाते हैं । अतः श्रीमान जीआप से विनम्रतापूर्वक निवेदन है कि उपरोक्त जमीन पर हो रहे अवैध मकान बेदखली करने की कार्यवाही को पूरा करने हेतु आदेशित करने की कृपा करें, जो जनहित के लिए अत्यंत ही आवश्यक है। प्रार्थी लुटावन सिंह Mob No – 9867057112 /8928795348 दिनाक 20.12.2021
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तौधकपुर
तौधकपुर, जिसे मिर्जापुर उर्फ ​​तौधकपुर के नाम से भी जाना जाता है, भारत के उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में स्थित एक गाँव है।यह गांव रायबरेली से 31 किमी और लखनऊ से 87 किमी दूर है। 2011 तक, गांव की जनसंख्या 833 थी जिसमें 70.43% साक्षरता दर थी। 2018 में एक डिजीटल सूचना केंद्र और आधुनिक युग संचार सुविधाओं की शुरुआत के साथ, तौधकपुर भारत का पहला स्मार्ट गांव बन गया। जनसांख्यिकी 2011 की जनगणना के अनुसार, 163 घरों में तौधकपुर की जनसंख्या 833 है। पुरुषों की आबादी 50.4% है जबकि महिलाएं 50.6% हैं। गांव की औसत साक्षरता दर 70.43% है जो उत्तर प्रदेश की औसत साक्षरता दर 67.68% से अधिक है। 80% पुरुष आबादी साक्षर है जबकि महिलाओं की साक्षरता दर 60.78% है। तौधकपुर का बाल लिंगानुपात 1189 है जो तुलनात्मक रूप से राज्य के साथ-साथ राष्ट्रीय औसत से भी अधिक है। हिंदी इस गाँव की बहुसंख्यक बोली जाने वाली भाषा है और कृषि आय का मुख्य स्रोत है। भूगोल तौधकपुर उत्तर प्रदेश में रायबरेली जिले की लालगंज,तहसील (उप-जिला) में स्थित एक मध्यम आकार का गाँव है। यह गांव उत्तर प्रदेश विधान सभा के एक निर्वाचन क्षेत्र सरेनी के अंतर्गत आता है। तौधकपुर का कुल क्षेत्रफल लगभग 63 हेक्टेयर है जिसकी औसत ऊंचाई 118 मीटर (387 फीट) है। स्मार्ट गांव जुलाई 2018 में, तौधकपुर को भारत का पहला स्मार्ट गांव घोषित किया गया था। रजनीश बाजपेयी और योगेश साहू के नेतृत्व में स्मार्टगांव डेवलपमेंट फाउंडेशन, और ग्राम प्रधान कार्तिकेय शंकर बाजपेयी की पहल के साथ, तौधकपुर के बुनियादी ढांचे को पूरी तरह से डिजिटाइज़ करने के लिए अपनी पहली परियोजना को तैनात किया। स्मार्टगांव द्वारा परियोजना के पूरा होने के बाद, तौधकपुर गांव ने 2 दिनों में 242 शौचालयों का निर्माण किया, जो उत्तर प्रदेश में एक रिकॉर्ड था। कई आवश्यक तकनीकी उपकरणों के अलावा, क्लोज सर्किट कैमरा, पब्लिक एड्रेस सिस्टम, स्ट्रीट लाइट, नियमित स्वास्थ्य जांच कार्यक्रम, निरंतर बिजली आपूर्ति और वाईफाई जोन स्थापित किया गया था। स्मार्टगांव ऐप की मदद से तौधकपुर की आबादी के लिए स्मार्ट खेती की प्रथा शुरू की गई। गांव के विकास को भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्वीकार किया था। सन्दर्भ भारत के गाँव
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सन्दर्भ तल
खगोलीय यांत्रिकी में सन्दर्भ तल (plane of reference) कक्षीय राशियाँ परिभाषित करने के लिए प्रयोग करा गया समतल है। सन्दर्भ समतल के हिसाब से मापे जाने वाली दो कक्षीय राशियाँ (orbital elements) कक्षीय झुकाव (inclination) और आरोही पात का रेखांश (longitude of the ascending node) हैं। भिन्न प्रकार के सन्दर्भ समतल सौर मंडल के ग्रहों, क्षुद्रग्रहों, धूमकेतु, इत्यादि के लिये सूर्यपथ को सन्दर्भ तल समझा जाता है क्योंकि इन खगोलीय वस्तुओं की कक्षाएँ सूर्यपथ के समीप होती हैं छोटे अर्ध दीर्घ अक्ष वाले उपग्रहों के लिये उनके ग्रहों की भूमध्य रेखाएँ सन्दर्भ समतल समझी जाती हैं मध्यम या बड़े अर्ध दीर्घ अक्ष वाले उपग्रहों के लिये स्थानीय लाप्लास समतल को सन्दर्भ तल समझा जाता है ग़ैर-सौरीय वस्तुओं के लिए खगोलीय गोले से स्पर्शरेखीय किसी काल्पनिक समतल को सन्दर्भ तल समझा जाता है इन्हें भी देखें मौलिक समतल (गोलीय निर्देशांक) कक्षीय राशियाँ कक्षीय झुकाव आरोही पात का रेखांश सन्दर्भ गोलीय खगोलशास्त्र कक्षाएँ (भौतिकी)
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जर्मनी महिला क्रिकेट टीम का ऑस्ट्रिया दौरा 2020
जर्मनी की महिला क्रिकेट टीम ने अगस्त 2020 में पांच मैचों की द्विपक्षीय महिला ट्वेंटी 20 अंतर्राष्ट्रीय (डब्ल्यूटी20आई) श्रृंखला खेलने के लिए ऑस्ट्रिया का दौरा किया। मैच लोअर ऑस्ट्रिया के हरमनस्डोर्फ के सेबरन उपखंड में सेबरन क्रिकेट ग्राउंड में खेले गए थे। कोविड-19 महामारी के कारण व्यापक व्यवधान के बाद, श्रृंखला 8 मार्च 2020 को 2020 आईसीसी महिला टी 20 विश्व कप फाइनल के बाद से खेला जाने वाला पहला महिला अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट था। ऑस्ट्रिया ने आखिरी बार अगस्त 2019 में फ्रांस में एक चतुष्कोणीय श्रृंखला में एक मैच खेला था, और जर्मनी ने आखिरी बार फरवरी 2020 में ओमान की यात्रा के दौरान एक अंतर्राष्ट्रीय मैच खेला था। जर्मनी ने 5-0 से श्रृंखला जीती, रास्ते में कई रिकॉर्ड तोड़े। श्रृंखला के दो मैच में, क्रिस्टीना गफ और जेनेट रोनाल्ड्स के बीच 191 की नाबाद शुरुआती साझेदारी का मतलब था कि जर्मनी ने एक विकेट खोए बिना एक पारी में सबसे अधिक रन बनाने का डब्ल्यूटी20आई रिकॉर्ड बनाया। जर्मनी की कप्तान अनुराधा डोड्डाबल्लापुर डब्ल्यूटी20आई क्रिकेट में लगातार डिलीवरी में चार विकेट लेने वाले पहले खिलाड़ी बने, इससे पहले इसी जोड़ी ने मैच में फिर से यह रिकॉर्ड तोड़ा, जर्मनी की पारी 198/0 पर समाप्त हुई। दस्तों महिला टी20आई सीरीज पहला महिला टी20आई दूसरा महिला टी20आई तीसरा महिला टी20आई चौथा महिला टी20आई पांचवां महिला टी20आई सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ ईएसपीएन क्रिकइन्फो पर सीरीज होम ऑस्ट्रिया में क्रिकेट जर्मनी में क्रिकेट 2020 में एसोसिएट अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट प्रतियोगिताएं
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बर्नार्ड कॉलेज
कोलंबिया विश्वविद्यालय का बरनार्ड कॉलेज न्यूयॉर्क शहर में मैनहट्टन के बोरो में एक निजी महिला उदार कला महाविद्यालय है । इसकी स्थापना 1889 में युवा छात्र कार्यकर्ता एनी नाथन मेयर के नेतृत्व में महिलाओं के एक समूह द्वारा की गई थी , जिन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय के ट्रस्टियों को कोलंबिया के हाल ही में 10वें राष्ट्रपति,दिवंगत फ्रेडरिक एपी बरनार्ड के नाम पर एक संबद्ध कॉलेज बनाने के लिए याचिका दायर की थी । बरनार्ड कॉलेज 19वीं शताब्दी में स्थापित 120 से अधिक महिला कॉलेजों में से एक था, और आज अस्तित्व में 40 से कम में से एक है जो पूरी तरह से महिलाओं के शैक्षणिक सशक्तिकरण के लिए समर्पित है। 2025 की कक्षा की स्वीकृति दर 11.4%  थी और कॉलेज के 133 साल के इतिहास में सबसे चुनिंदा और विविध वर्ग को चिह्नित किया, जिसमें 66%  आने वाले अमेरिकी छात्रों ने खुद को रंग की महिलाओं के रूप में पहचाना। बरनार्ड कोलंबिया विश्वविद्यालय के चार स्नातक महाविद्यालयों में से एक है। 1983 तक कोलंबिया द्वारा अपनी संस्था में महिलाओं को प्रवेश देने से इनकार करने की प्रतिक्रिया के रूप में स्थापित, बरनार्ड कोलंबिया से संबद्ध लेकिन कानूनी और आर्थिक रूप से अलग है। कोलंबिया-बरनार्ड एथलेटिक कंसोर्टियम, के माध्यम से छात्र कक्षाओं, पुस्तकालयों, क्लबों, ग्रीक जीवन , एथलेटिक क्षेत्रों और डाइनिंग हॉल को कोलंबिया के साथ-साथ खेल  टीमों को साझा करते हैं ,  एक अनूठा समझौता जो बरनार्ड को एकमात्र महिला कॉलेज बनाता है। अपने छात्रों को एनसीएए डिवीजन I एथलेटिक्स में प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता प्रदान करने के लिए । छात्र कोलंबिया विश्वविद्यालय से अपना डिप्लोमा कोलंबिया और बरनार्ड के दोनों राष्ट्रपतियों द्वारा हस्ताक्षरित प्राप्त करते हैं। बरनार्ड अध्ययन के लगभग 50 क्षेत्रों में कला स्नातक डिग्री कार्यक्रम प्रदान करता है। छात्र कोलंबिया, जूलियार्ड स्कूल , मैनहट्टन स्कूल ऑफ म्यूजिक , और द ज्यूइश थियोलॉजिकल सेमिनरी में भी अपनी शिक्षा के तत्वों का अनुसरण कर सकते हैं , जो न्यूयॉर्क शहर में भी स्थित हैं। इसका 4-एकड़ (1.6 हेक्टेयर) का परिसर मॉर्निंगसाइड हाइट्स के ऊपरी मैनहट्टन पड़ोस में स्थित है , जो 116वीं और 120वीं सड़कों के बीच ब्रॉडवे के साथ फैला हुआ है। यह सीधे कोलंबिया के मुख्य परिसर और कई अन्य शैक्षणिक संस्थानों के पास है । कॉलेज मूल सात बहनों में से एक है, पूर्वोत्तर संयुक्त राज्य अमेरिका में सात अत्यधिक चयनात्मक उदार कला महाविद्यालय हैं जो ऐतिहासिक रूप से महिला कॉलेज थे । (पांच वर्तमान में महिला कॉलेजों के रूप में मौजूद हैं।) बरनार्ड कॉलेज के पूर्व छात्रों में विज्ञान, धर्म, राजनीति, शांति वाहिनी , चिकित्सा, कानून, शिक्षा, संचार, रंगमंच और व्यवसाय के कई प्रमुख नेता शामिल हैं। बरनार्ड स्नातक एमी , टोनी , ग्रैमी , अकादमी और पीबॉडी पुरस्कार, गुगेनहाइम फैलोशिप , मैकआर्थर फैलोशिप , प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम , नेशनल मेडल ऑफ साइंस और पुलित्जर पुरस्कार के प्राप्तकर्ता रहे हैं । सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B8%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%81
तितिवंगसा पहाड़ियाँ
तितिवंगसा पहाड़ियाँ (अंग्रेज़ी: Titiwangsa Mountains, मलय: Banjaran Titiwangsa, بنجرن تيتيوڠسا) एक पर्वतमाला है जो मलय प्रायद्वीप में रीढ़ के रूप में खड़ी है। इसका उत्तरी भाग थाईलैण्ड में और दक्षिणी भाग मलेशिया में आता है। थाईलैण्ड में इसे शंकालाखीरी पहाड़ियाँ (Sankalakhiri Range, थाई: ทิวเขาสันกาลาคีรี) नाम से जाना जाता है। यह दक्षिणतम थाईलैण्ड और प्रायद्वीपीय मलेशिया में एक प्राकृतिक दीवार के रूप में खड़ी है और इसे पूर्वी तटीय और पश्चिम तटीय भागों में बांटती है। उत्तर-से-दक्षिण यह लगभग ४८० किमी तक चलती है। इन्हें भी देखें मलय प्रायद्वीप सन्दर्भ {{टिप्पणीसूची} तितिवंगसा पहाड़ियाँ थाईलैण्ड की पर्वतमालाएँ मलेशिया की पर्वतमालाएँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%A4%20%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80
घात शिकारी
घात परभक्षी या सिट-एंड-वेट परभक्षी मांसाहारी जानवर हैं जो चुपके, लालच या आश्चर्य के तत्व का उपयोग करके (आमतौर पर सहज) रणनीतियों द्वारा शिकार को पकड़ते हैं या फंसाते हैं। पीछा करने वाले शिकारियों के विपरीत, जो तीव्र गति या धीरज का उपयोग करके शिकार को पकड़ने के लिए पीछा करते हैं, घात लगाने वाले शिकारियों को छिपाने में रहने से थकान से बचते हैं, शिकार के पास पहुंचने के लिए धैर्यपूर्वक इंतजार करते हैं, अचानक भारी हमले शुरू करने से पहले जो शिकार को जल्दी से अक्षम करके उनको पकड़ लेते है। रणनीति घात परभक्षी आमतौर पर गतिहीन (कभी-कभी छिपे हुए) रहते हैं और शिकार करने से पहले घात लगाकर हमला करने की प्रतीक्षा करते हैं। घात शिकारियों को अक्सर छलावरण किया जाता है, और वे अकेले हो सकते हैं। जब परभक्षी शिकार की तुलना में तेज़ होता है, तो घात लगाकर शिकार करना घात लगाने की तुलना में एक बेहतर रणनीति बन जाती है। घात परभक्षी कई मध्यवर्ती रणनीतियों का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, जब एक पीछा करने वाला शिकारी कम दूरी पर अपने शिकार से तेज होता है, लेकिन लंबे पीछा करने में नहीं, तो रणनीति के हिस्से के रूप में या तो पीछा करना या घात लगाना आवश्यक हो जाता है। संदर्भ बाहरी कड़ियाँ भविष्यवाणी व्याख्यान वाशिंगटन विश्वविद्यालय आचारविज्ञान शिकार वीडियो क्लिप वाले लेख
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%95%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B7%E0%A4%A3
संख्यात्मक विश्लेषण
गणितीय समस्याओं का कम्प्यूटर की सहायता से हल निकालने से सम्बन्धित सैद्धान्तिक एवं संगणनात्मक अध्ययन संख्यात्मक विश्लेषण या आंकिक विश्लेषण () कहलाता है। सैद्धान्तिक तथा संगणनात्मक पक्षों पर जोर वस्तुतः कलन विधियों (अल्गोरिद्म) की समीक्षा की ओर ले जाती है। इस बात की जाँच-परख की जाती है कि विचाराधीन कलन विधि द्वारा दी गयी गणितीय समस्या का हल निकालने में - कितना समय लगेगा; कितनी स्मृति (मेमोरी) की आवश्यकता होगी; हल में कितनी अशुद्धि (error) आयेगी; अल्गोरिद्म किस स्थिति मे कन्वर्ज (converge) करेगा एवं कन्वर्जेन्स की गति क्या होगी; उपयोग एवं लाभ कुछ ही गणितीय समस्याओं का हल विश्लेषणात्मक विधि से प्राप्त किया जा सकता है। किन्तु सभी समस्याओं को आंकिक विधि द्वारा हल किया जा सकता है। संगणकों की सर्वसुलभता एवं उनकी तेज गति के कारण आंकिक विधियों का अधिकाधिक प्रयोग व्यावहारिक रूप से सम्भव हुआ है। आंकिक विधि से प्राप्त हल में कुछ न कुछ अशुद्धि रहती है, किन्तु व्यावहारिक जगत कीं किसी समस्या के पूर्णतः शुद्ध (exact) हल की आवश्यकता ही नहीं होती। क्योंकि गणितीय समस्याएं ही स्वयं पूर्ण्तः शुद्ध रूप से परिभाषित न होकर एक approximate रूप में ही पारिभाषित होती हैं। आंकिक विश्लेषण के प्रमुख क्षेत्र कुछ प्रमुख समस्याएं, जो आंकिक विधि से हल की जाती हैं, नीचे दी गयी हैं: फलनों का मान निकालना इन्टरपोलेशन, इक्स्ट्रापोलेशन एवं रिग्रेशन करना एक समीकरण का हल अथवा युगपत समीकरणों को हल करना आइगेन वैल्यू या सिंगुलर वैल्यू समस्याओं का हल इष्टतमीकरण (optimization) अवकलज समीकरण का हल (solution of differential equations) समाकल का परिकलन (evaluation of integrals) इन्हें भी देखें परिमित अन्तर विधि साधारण अवकल समीकरण के हल की संख्यात्मक विधियाँ बाहरी कड़ियाँ Numerische Mathematik, volumes 1-66, Springer, 1959-1994 (searchable; pages are images). Scientific computing FAQ Numerical analysis DMOZ category Lists of free software for scientific computing and numerical analysis Numerical Computing Resources on the Internet - a list maintained by Indiana University Stat/Math Center Numerical Recipes Homepage - with free, complete downloadable books Java Number Cruncher features free, downloadable code samples that graphically illustrate common numerical algorithms Numerical Analysis Project by John H. Mathews Alternatives to Numerical Recipes विश्लेषण, आंकिक कंप्यूटर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%83%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6%20%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B9%20%E0%A4%8F
मातृवंश समूह ए
मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ए या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप A एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश मूल अमेरिकी आदिवासी समुदायों, पूर्वी साइबेरिया के लोगों और कुछ पूर्वोत्तर एशिया के लोगों में पाया जाता है। चुकची, एस्किमो और अमेरिका की ना-देने जनजातियों में यह सब से आम मातृवंश है। ७.५% जापानी और २% तुर्की लोगों में भी यह पाया जाता है। अनुमान लगाया जाता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से लगभग ५०,००० साल पहले पूर्वी एशिया या मध्य एशिया की निवासी थी। ध्यान दें के कभी-कभी मातृवंशों और पितृवंशों के नाम मिलते-जुलते होते हैं (जैसे की पितृवंश समूह ए और मातृवंश समूह ए), लेकिन यह केवल एक इत्तेफ़ाक ही है - इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। अन्य भाषाओँ में अंग्रेज़ी में "वंश समूह" को "हैपलोग्रुप" (haplogroup), "पितृवंश समूह" को "वाए क्रोमोज़ोम हैपलोग्रुप" (Y-chromosome haplogroup) और "मातृवंश समूह" को "एम॰टी॰डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप" (mtDNA haplogroup) कहते हैं। इन्हें भी देखें मनुष्य मातृवंश समूह वंश समूह सन्दर्भ वंश समूह हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%B6%20%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0
रामदरश मिश्र
जन्मः15 अगस्त, 1924 शिक्षाः एम.ए., पीएच.डी. सम्प्रति:    प्रोफेसर (सेवा निवृत्त) हिंदी विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय               विख्यात हिंदी लेखक डॉ॰ रामदरश मिश्र (जन्म: १५ अगस्त, १९२४) हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। ये जितने समर्थ कवि हैं उतने ही समर्थ उपन्यासकार और कहानीकार भी। इनकी लंबी साहित्य-यात्रा समय के कई मोड़ों से गुजरी है और नित्य नूतनता की छवि को प्राप्त होती गई है। ये किसी वाद के कृत्रिम दबाव में नहीं आये बल्कि उन्होंने अपनी वस्तु और शिल्प दोनों को सहज ही परिवर्तित होने दिया। अपने परिवेशगत अनुभवों एवं सोच को सृजन में उतारते हुए, उन्होंने गाँव की मिट्टी, सादगी और मूल्यधर्मिता को अपनी रचनाओं में व्याप्त होने दिया जो उनके व्यक्तित्व की पहचान भी है। गीत, नई कविता, छोटी कविता, लंबी कविता यानी कि कविता की कई शैलियों में उनकी सर्जनात्मक प्रतिभा ने अपनी प्रभावशाली अभिव्यक्ति के साथ-साथ गजल में भी उन्होंने अपनी सार्थक उपस्थिति रेखांकित की। इसके अतिरक्त उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रावृत्तांत, डायरी, निबंध आदि सभी विधाओं में उनका साहित्यिक योगदान बहुमूल्य है। प्रारंभिक जीवन डॉ॰ रामदरश मिश्र का जन्म हिन्दी तिथिनुसार श्रावण पूर्णिमा गुरुवार को गोरखपुर जिले के कछार अंचल के गाँव डुमरी में हुआ था। इनके पिता का नाम रामचन्द्र मिश्र और माता का नाम कमलापति मिश्र है। ये तीन भाई हैं स्व॰ राम अवध मिश्र, स्व॰रामनवल मिश्र तथा ये स्वयं, जिनमें ये सबसे छोटे हैं। उनसे छोटी एक बहन है कमला। मिश्र जी की प्रारंभिक शिक्षा मिडिल स्कूल तक गाँव के पास के एक स्कूल में हुई। फिर उन्होंने ढरसी गाँव स्थित ‘राष्ट्रभाषा विद्यालय’ से विशेष योग्यता बरहज से ‘विशारद’ और साहित्यरत्न की परीक्षाएँ पास कीं। १९४५ में ये वाराणसी चले गये और वहाँ एक प्राइवेट स्कूल में साल भर मैट्रिक की पढ़ाई की। मैट्रिक पास करने के पश्चात ये काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से जुड़ गये और वहीं से इंटरमीडिएट, हिन्दी में स्नातक एवं स्नातकोत्तर तथा डॉक्टरेट किया। सन् १९५६ में सयाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय, बड़ौदा में प्राध्यापक के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। सन् १९५८ में ये गुजरात विश्वविद्यालय से सम्बद्ध हो गये और आठ वर्ष तक गुजरात में रहने के पश्चात १९६४ में दिल्ली विश्वविद्यालय में आ गये। वहाँ से १९९० में प्रोफेसर के रूप में सेवामुक्त हुए। साहित्यसेवा रामदरश मिश्र हिन्दी साहित्य संसार के बहुआयामी रचनाकार हैं। उन्होंने गद्य एवं पद्य की लगभग सभी विधाओं में सृजनशीलता का परिचय दिया है और अनूठी रचनाएँ समाज को दी है। चार बड़े और ग्यारह लद्यु उपन्यासों में मिश्र जी ने गाँव और शहर की जिन्दगी के संश्लिष्ट और सघन यथार्थ की गहरी पहचान की है। मिश्र जी की साहित्यिक प्रतिभा बहुआयामी है। उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, आलोचना और निबंध जैसी प्रमुख विधाओं में तो लिखा ही है, आत्मकथा- सहचर है समय, यात्रा वृत्त तथा संस्मरण भी लिखे हैं। यात्राओं के अनुभव तना हुआ इन्द्रधनुष, भोर का सपना,घर से घर तक, देश-यात्रा तथा पड़ोस की खुशबू में अभिव्यक्त हुए हैं।मिश्र जी ने छहसंस्मरण पुस्तकें लिखी हैं - स्मृतियों के छन्द, अपने-अपने रास्ते, एक दुनिया अपनी, सहयात्राएँ, सर्जना ही बड़ा सत्य हैऔर सुरभित स्मृतियाँ ।उन्होंने अपनी संस्मरण पुस्तक स्मृतियों के छन्द में उन अनेक वरिष्ठ लेखकों, गुरुओं और मित्रों के संस्मरण दिये हैं जिनसे उन्हें अपनी जीवन-यात्रा तथा साहित्य-यात्रा में काफी कुछ प्राप्त हुआ है। हिंदी के प्रसिद्द रचनाकारों के संस्मरण 'सुरभित स्मृतियाँ'संकलित हैं जोकि कोरोना काल में लिखे गए । ये रचना-कर्म के साथ-साथ आलोचना कर्म से भी जुड़े रहे हैं। उन्होंने आलोचना, कविता और कथा के विकास और उनके महत्वपूर्ण पड़ावों की बहुत गहरी और साफ पहचान की है।‘हिन्दी उपन्यास : एक अंतयात्रा, ‘हिन्दी कहानी : अंतरंग पहचान’, ‘हिन्दी कविता : आधुनिक आयाम’, ‘छायावाद का रचनालोक’ उनकी महत्त्वपूर्ण समीक्षा-पुस्तकें हैं। काव्यः मिश्र जी ने अपनी सृजन-यात्रा कविता से प्रारंभ की थी और आज तक ये उसमें शिद्दत से जी रहे हैं। उनका पहला काव्य संग्रह ‘पथ के गीत’ १९५१ में प्रकाशित हुआ था। तब से आज तक उनके मुख्य पंद्रह कविता संग्रह आ चुके हैं। ये हैं - ‘‘बैरंग-बेनाम चिट्ठियाँ’, ‘पक गयी है धूप’, ‘कंधे पर सूरज’, ‘दिन एक नदी बन गया’, ‘जुलूस कहां जा रहा है’, ‘आग कुछ नहीं बोलती’, ‘बारिश में भीगते बच्चे और ‘हंसी ओठ पर आँखें नम हैं’, (गजल संग्रह)- ‘ऐसे में जब कभी’, आम के पत्ते, तू ही बता ऐ जिंदगी (ग़ज़ल संग्रह),हवाएँ साथ हैं (ग़ज़ल संग्रह),कभी-कभी इन दिनों, धूप के टुकड़े, आग की हँसी, लमहे बोलते हैं, और एक दिन, मैं तो यहाँ हूँ, अपना रास्ता, रात सपने में, सपना सदा पलता रहा(ग़ज़ल संग्रह), पचास कविताएँ, रामदरश मिश्र की लंबी कविताएँ, दूर घर नहीं हुआ (ग़ज़ल संग्रह), बनाया है मैंने ये घर धीरे धीरे (ग़ज़ल संग्रह) नवीनतम काव्य संग्रह है। रामदरश मिश्र ने समय-समय पर ललित निबंध भी लिखे हैं जोकि कितने बजे हैं, बबूल और कैक्टस, घर-परिवेश, छोटे-छोटे सुख, नया चौराहा में संग्रहीत हैं । इन निबंधों ने अपनी वस्तुगत मूल्यत्ता तथा भाषा शैलीगत सहजता से लेखकों और पाठकों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है। मिश्र जी ने देशी यात्राओं के अतिरिक्त नेपाल, चीन, उत्तरी दक्षिणी कोरिया, मास्को तथा इंग्लैंड की यात्राएँ की हैं। कृतियाँ-- काव्यः पथ के गीत, बैरंग-बेनाम चिट्ठियाँ, पक गई है धूप, कन्धे पर सूरज, दिन एक नदी बन गया, मेरे प्रिय गीत, बाजार को निकले हैं लोग, जुलूस कहाँ जा रहा है?, रामदरश मिश्र की प्रतिनिधि कविताएँ, आग कुछ नहीं बोलती, शब्द सेतु, बारिश में भीगते बच्चे, हँसी ओठ पर आँखें नम हैं (ग़ज़ल संग्रह), ऐसे में जब कभी, आम के पत्ते, तू ही बता ऐ जिंदगी (ग़ज़ल संग्रह),हवाएँ साथ हैं (ग़ज़ल संग्रह),कभी-कभी इन दिनों, धूप के टुकड़े, आग की हँसी, लमहे बोलते हैं, और एक दिन, मैं तो यहाँ हूँ, अपना रास्ता, रात सपने में, सपना सदा पलता रहा(ग़ज़ल संग्रह), पचास कविताएँ, रामदरश मिश्र की लंबी कविताएँ, दूर घर नहीं हुआ (ग़ज़ल संग्रह), बनाया है मैंने ये घर धीरे धीरे (ग़ज़ल संग्रह)। उपन्यासः पानी के प्राचीर, जल टूटता हुआ, सूखता हुआ तालाब, अपने लोग, रात का सफर, आकाश की छत, आदिम राग,बिना दरवाजे का मकान, दूसरा घर, थकी हुई सुबह, बीस बरस, परिवार, बचपन भास्कर का, एक बचपन यह भी, एक था कलाकार। कहानी संग्रहः खाली घर, एक वह, दिनचर्या, सर्पदंश, बसन्त का एक दिन, इकसठ कहानियाँ, मेरी प्रिय कहानियाँ, अपने लिए, अतीत का विष, चर्चित कहानियाँ, श्रेष्ठ आंचलिक कहानियाँ, आज का दिन भी, एक कहानी लगातार, फिर कब आएँगे?, अकेला मकान, विदूषक, दिन के साथ, मेरी कथा यात्रा, विरासत, इस बार होली में, चुनी हुई कहानियाँ, संकलित कहानियाँ, लोकप्रिय कहानियाँ, 21 कहानियाँ, नेता की चादर, स्वप्नभंग, आखिरी चिट्ठी, कुछ यादें बचपन की (बाल साहित्य), इस बार होली में। ललित निबन्धःकितने बजे हैं, बबूल और कैक्टस, घर-परिवेश, छोटे-छोटे सुख, नया चौराहा। आत्मकथाः सहचर है समय। यात्रावृतः घर से घर तक, देश-यात्रा। डायरीः आते-जाते दिन, आस-पास, बाहर-भीतर, विश्वास ज़िन्दा है। आलोचना: 1. हिंदी आलोचना का इतिहास (हिंदी समीक्षा: स्वरूप और संदर्भ, हिंदी आलोचना प्रवृत्तियां और आधार भूमि), 2. ऐतिहासिक उपन्यासकार वृन्दावन लाल वर्मा, 3. साहित्य: संदर्भ और मूल्य, 4. हिंदी उपन्यास एक अंतर्यात्रा, 5. आज का हिंदी साहित्य संवेदना और दृष्टि, 6. हिंदी कहानी: अंतरंग पहचान, 7. हिंदी कविता आधुनिक आयाम (छायावादोत्तर हिंदी कविता), 8. छायावाद का रचनालोक, 9. आधुनिक कविता: सर्जनात्मक संदर्भ, 10. हिंदी गद्यसाहित्य: उपलब्धि की दिशाएं, 11. आलोचना का आधुनिक बोध| रचनावलीः 14 खण्डों में, कविता संग्रह, कहानी-समग्र| संस्मरणः स्मृतियों के छन्द, अपने-अपने रास्ते, एक दुनिया अपनी, सहयात्राएँ, सर्जना ही बड़ा सत्य है,सुरभित स्मृतियाँ । साक्षात्कार: अंतरंग, मेरे साक्षात्कार, संवाद यात्रा| संचयनःबूँद बूँद नदी, नदी बहती है, दर्द की हँसी, सरकंडे की कलम। रामदरश मिश्र के साहित्य पर समीक्षा पुस्तकें 1. उपन्यासकार रामदरश मिश्र सं॰ डॉ॰ वेद प्रकाश अमिताभ तथा डॉ॰ प्रेम कुमार, वाणी प्रकाशन, दिल्ली (1982) 2. कथाकार रामदरश मिश्र ले॰ डॉ॰ सूर्यदीन यादव, इंद्रप्रस्थ प्रकाशन, दिल्ली (1987) 3. रचनाकार रामदरश मिश्र सं॰ डॉ॰ नित्यानंद तिवारी तथा डॉ॰ ज्ञानचंद गुप्त, राधा पब्लिकेशन, दिल्ली (1990) 4. रामदरश मिश्र की सृजन यात्रा ले॰ डॉ॰ महावीर सिंह चौहान, वाणी प्रकाशन, दिल्ली (1991) 5. कवि रामदरश मिश्र स॰ डॉ॰ महावीरसिंह चौहान तथा डॉ॰ नवनीत गोस्वामी, संस्कृति प्रकाशन अहमदाबाद (1991) 6. रामदरश मिश्र व्यक्तित्व एवं कृतित्व ले॰ डॉ फूलबदन यादव, राधा प्रकाशन, दिल्ली (1992) 7. मूल्य और मूल्य संक्रमण (रामदरश मिश्र के उपन्यासों के संदर्भ में ले॰ डॉ॰ विनीता राय, अनिल प्रकाशन इलाहाबाद (1999) 8. रामदरश मिश्र: व्यक्ति और अभिव्यक्ति स॰ डॉ॰ स्मिता मिश्र तथा डॉ जगन सिंह वाणी प्रकाशन, दिल्ली (1999) 9. रामदरश मिश्र: रचना समय ले॰ डॉ॰ वेद प्रकाश अमिताभ, भारत पुस्तक भंडार, दिल्ली (1999) 10. रामदरश मिश्र की उपन्यास यात्रा ले॰ डॉ॰ प्रभुलाल डी॰ वैश्य, डॉ॰ गुंजनशाह, शाह प्रकाशन अहमदाबाद (2001) 11.रामदरश मिश्र के उपन्यास: चेतना के स्वर डॉ॰ गुंजन शाह, साहित्य भारती, दिल्ली (2002) 12.रामदरश मिश्र के उपन्यासों में समाज-जीवन डॉ॰ प्रकाश चिर्कुडेकर, नमन प्रकाशन, दिल्ली (2002) 13. रामदरश मिश्र की कहानियों में यथार्थ चेतना और मूल्य बोध डॉ॰ राधेश्याम सारस्वत अम्बा जी, गुजरात (2002) 14. रामदरश मिश्र के उपन्यासों में ग्राम चेतना (जल टूटता हुआ’ के संदर्भ में) डॉ॰ ममता शर्मा राष्ट्रीय ग्रंथ प्रकाशन गांधी नगर (2002) 15. रामदरश मिश्र: एक अंतर्यात्रा डॉ॰ प्रकाश मनु, वाणी प्रकाशन दिल्ली (2004) 16. रामदरश मिश्र के उपन्यासों की वैचारिक पृष्ठभूमि डॉ॰ सीमा वैश्य, सत्यम पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली (2004) 17. रामदरश मिश्र की कविता: सृजन के रंग डॉ॰ सूर्यदीन यादव, शांति पुस्तक भंडार, दिल्ली (2005) 18. रामदरश मिश्र के उपन्यासों में गृह- परिवार डॉ॰ यशवंत गोस्वामी, नया साहित्य केंद्र, दिल्ली (2005) 19. रामदरश मिश्र के उपन्यासों में नारी डॉ॰ मनहर गोस्वामी, नया साहित्य केंद्र, दिल्ली (2005) 20.रामदरश मिश्र की कहानियों में पारिवारिक सम्बन्धों का स्वरूप डॉ॰ अमिता, स्वराज प्रकाशन दिल्ली (2006) 21. रामदरश मिश्र के उपन्यासों में आंचलिकता डॉ॰ श्रीधर प्रदीप, अमर प्रकाशन मथुरा, (2004) 22. रामदरश मिश्र के उपन्यासों में ग्रामीण परिवेश अनिल काले, चिंतन प्रकाशन कानपुर (2007) 23. रामदरश मिश्र के साहित्य में ग्राम्य जीवन डॉ॰ वीरचन्द्र जी चौहान, चिंतन प्रकाशन कानपुर (2006) योगदान प्राय: सभी भारतीय भाषाओं में मिश्र जी की कविताओं और कहानियों के अनुवाद हुए हैं। उनका एक उपन्यास ‘अपने लोग’ गुजराती में अनूदित है। उनकी रचनाओं विभिन्न स्तरों के पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जा रही हैं और देश के अनेक विश्वविद्यालयों में उनके साहित्य पर अनेक शोध् कार्य हो चुके हैं और लगातार हो रहे हैं। मिश्र जी देश की अनेक साहित्यिक और अकादमिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किये जा चुके हैं। २१ अप्रैल २००७ को पटना में प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका "नई धारा" द्वारा तृतीय उदयराज सिंह स्मारक व्याख्यान तथा साहित्यकार सम्मान समारोह में प्रसिद्ध साहित्यकार उदयराज सिंह की धर्मपत्नी श्रीमती शीला सिन्हा ने डॉ॰ रामदरश मिश्र को "उदयराज सिंह स्मृति सम्मान" से सम्मानित किया। उनकी अनेक कृतियाँ पुरस्कृत हुई हैं। ये अनेक साहित्यिक, अकादमिक और सामाजिक संस्थाओं के अध्यक्ष रह चुके हैं। कई लघु पत्रिकाओं के सलाहकार संपादक हैं।   प्रमुख पुरस्कार 1)    सरस्वती सम्मान (2021) -के. के. बिरला फाउंडेशन 2)    साहित्य अकादमी (2015) 3)    भारत भारती सम्मान (2005) - उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ 4)    शलाका सम्मान (2001) - हिंदी अकादमी, दिल्ली 5)    व्यास सम्मान (2011) - के. के. बिरला फाउंडेशन 6)    उदयराज सिंह स्मृति सम्मान (2007) - नई धारा, पटना 7)    विश्व हिंदी सम्मान (2015) –विश्व हिंदी सम्मलेन 8)    शान ए हिंदी खिताब (2017) - साहित्योत्सव, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र 9)    महापंडित राहुल सांकृत्यायन सम्मान (2004) - केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा 10) दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान (1998) 11) डॉ. रामविलास शर्मा सम्मान (2003) - आल इंडिया कान्फ्रेन्स ऑफ़ इंटलेक्चुएल्स, आगरा चैप्टर 12) साहित्य वाचस्पति (2008) - हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग 13) साहित्य भूषण सम्मान (1996) - उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ 14) साहित्यकार सम्मान (1984) - हिंदी अकादमी, दिल्ली 15) नागरी प्रचारिणी सभा सम्मान, आगरा (1996) 16) अक्षरम शिखर सम्मान (2008) - दिल्ली 17) राष्ट्रीय साहित्यिक पुरस्कार  (2012) - श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति, इंदौर 18) प्रभात शास्त्री सम्मान (2018) - हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग 19) साहित्य शिरोमणि सम्मान (2018) - अखिल भारतीय स्वतंत्र लेखक मंच 20) पूर्वांचल साहित्य सम्मान (2005) दिल्ली 21) सारस्वत सम्मान (2006) - समन्वय, सहारनपुर पुरस्कृत कृतियाँ आग की हँसी (साहित्य अकादमी), रोशनी की पगडंडियां (हिंदी अकादमी दिल्ली), ‘हिंदी आलोचना का इतिहास‘, ‘जल टूटता हुआ‘, ‘हिंदी उपन्यास एक अन्तर्यात्रा‘, ‘अपने लोग‘, ‘एक वह‘, ‘कंधे पर सूरज‘, ‘कितने बजे हैं‘, ‘जहां मैं खड़ा हूँ‘, ‘आज का हिन्दी साहित्यः संवेदना और दृष्टि‘ (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान) ‘अपने लोग‘ (आथर्स गिल्ड), ‘मैं तो यहाँ हूँ’,‘आम के पत्ते‘ (के.के. बिरला फाउंडेशन)   कृतियाँ काव्यः पथ के गीत, बैरंग-बेनाम चिट्ठियाँ, पक गई है धूप, कन्धे पर सूरज, दिन एक नदी बन गया, मेरे प्रिय गीत, बाजार को निकले हैं लोग, जुलूस कहाँ जा रहा है?, रामदरश मिश्र की प्रतिनिधि कविताएँ, आग कुछ नहीं बोलती, शब्द सेतु, बारिश में भीगते बच्चे, हँसी ओठ पर आँखें नम हैं (ग़ज़ल संग्रह), ऐसे में जब कभी, आम के पत्ते, तू ही बता ऐ जिंदगी (ग़ज़ल संग्रह),हवाएँ साथ हैं (ग़ज़ल संग्रह),कभी-कभी इन दिनों, धूप के टुकड़े, आग की हँसी, लमहे बोलते हैं, और एक दिन, मैं तो यहाँ हूँ, अपना रास्ता, रात सपने में, सपना सदा पलता रहा(ग़ज़ल संग्रह), पचास कविताएँ, रामदरश मिश्र की लंबी कविताएँ, दूर घर नहीं हुआ (ग़ज़ल संग्रह), बनाया है मैंने ये घर धीरे धीरे (ग़ज़ल संग्रह), समवेत। उपन्यासः पानी के प्राचीर, जल टूटता हुआ, सूखता हुआ तालाब, अपने लोग, रात का सफर, आकाश की छत, आदिम राग,बिना दरवाजे का मकान, दूसरा घर, थकी हुई सुबह, बीस बरस, परिवार, बचपन भास्कर का, एक बचपन यह भी, एक था कलाकार। कहानी संग्रहः खाली घर, एक वह, दिनचर्या, सर्पदंश, बसन्त का एक दिन, इकसठ कहानियाँ, मेरी प्रिय कहानियाँ, अपने लिए, अतीत का विष, चर्चित कहानियाँ, श्रेष्ठ आंचलिक कहानियाँ, आज का दिन भी, एक कहानी लगातार, फिर कब आएँगे?, अकेला मकान, विदूषक, दिन के साथ, मेरी कथा यात्रा, विरासत, इस बार होली में, चुनी हुई कहानियाँ, संकलित कहानियाँ, लोकप्रिय कहानियाँ, 21 कहानियाँ, नेता की चादर, स्वप्नभंग, आखिरी चिट्ठी, कुछ यादें बचपन की (बाल साहित्य), गावँ की आवाज़ ,अभिशप्त लोक ,अकेली वह । ललित निबन्धःकितने बजे हैं, बबूल और कैक्टस, घर-परिवेश, छोटे-छोटे सुख, नया चौराहा, फिर लौट आया हूँ मेरे देश । आत्मकथाः सहचर है समय। यात्रावृतः घर से घर तक, देश-यात्रा। डायरीः आते-जाते दिन, आस-पास, बाहर-भीतर, विश्वास ज़िन्दा है, मेरा कमरा । आलोचना: 1. हिंदी आलोचना का इतिहास (हिंदी समीक्षा: स्वरूप और संदर्भ, हिंदी आलोचना प्रवृत्तियां और आधार भूमि), 2. ऐतिहासिक उपन्यासकार वृन्दावन लाल वर्मा, 3. साहित्य: संदर्भ और मूल्य, 4. हिंदी उपन्यास एक अंतर्यात्रा, 5. आज का हिंदी साहित्य संवेदना और दृष्टि, 6. हिंदी कहानी: अंतरंग पहचान, 7. हिंदी कविता आधुनिक आयाम (छायावादोत्तर हिंदी कविता), 8. छायावाद का रचनालोक, 9. आधुनिक कविता: सर्जनात्मक संदर्भ, 10. हिंदी गद्य साहित्य: उपलब्धि की दिशाएँ 11. आलोचना का आधुनिक बोध| रचनावलीः 14 खण्डों में, कविता संग्रह, कहानी-समग्र | संस्मरणः स्मृतियों के छन्द, अपने-अपने रास्ते, एक दुनिया अपनी, सर्जना ही बड़ा सत्य है। साक्षात्कार: अंतरंग, मेरे साक्षात्कार, संवाद यात्रा| संचयनःबूँद बूँद नदी, नदी बहती है, दर्द की हँसी, सरकंडे की कलम। अनुवाद अंग्रेजी 1)    The Laughing Flames and other Poems (Poetry) Sahitya Academy (2021)                         (आग की हँसी)अनुवादक-उमेश कुमार   2)    Down of Red Flames (Novel), Kritika Books, Delhi (2000)       (रात का सफर) अनु.- अनिल राजिम वाला 3)    Modern Hindi Fiction (Criticism), Bansal& Co., Delhi (1983)     (हिन्दी उपन्यास एक अंतर्यात्रा तथा हिन्दी कहानी अन्तरंग पहचान) अनुवादक- डॉ. ए.एन. जौहरी 4)    The Sky Before Her and Other Short Stories, Radha Publication, Delhi (1998) (चुनी हुई कहानियाँ )अनु. -वाई.एन. निगम गुजराती 1.      आगनी हँसी  (2021),साहित्य अकादमी ,                                                                           (आग की हँसी)अनुवादक-आलोक गुप्ता 2.     आदिम राग(Novel) दर्पण प्रकाशन, नडियाद (2006) (आदिम राग)अनु.- डॉ. यशवंत गोस्वामी 3.     सगा बहालां (Novel)Rangdwar Prakashan, Ahmadabad (1989)            (अपने लोग)अनु.- मणिलाल पटेल 4.     रात नी सफर (Novel)दर्पण प्रकाशन, नडियाद (2006)             (रात का सफर) अनु.-डॉ. यशवंत गोस्वामी 5.     दरवाजा बगरनु मकान (Novel)दर्पण प्रकाशन, नडियाद (2006) (बिना दरवाजे का मकान)अनु.-डॉ. यशवंत गोस्वामी मराठी 1.     आगीचं हास्य (आग की हँसी ) साहित्य अकादमी 2022 अनुवाद दिलीप भाउ राव  पाटील  कन्नड़ 6.     रात्रिण पयाण (Novel)(रात का सफर)  अनु.-जी. चन्द्रशेखर मलयालम 7.     रात्रिदूल ओस यात्रा (Novel) (रात का सफर)  अनु.- डॉ. जयकृष्णन जे पंजाबी 1.     आग दी हसी(2021),साहित्य अकादमी ,                                                                           (आग की हँसी)अनुवादक-अमरजीत कौर  2.     चोनवींआं कहानी रामदरश मिसरीआं साहित्य अकादेमी पुरस्कृत (रामदरश मिश्र: संकलित कहानियाँ) अनु.- ज़िंदर अकादमिक एवं साहित्यिक पद 1.        अध्यक्ष, भारतीय लेखक संगठन 1984-1990 2.         प्रधान सचिव, साहित्यिक संघ, वाराणसी 1952-55 3.         अध्यक्ष, गुजरात हिन्दी प्राध्यापक परिषद 1960-64 4.         अध्यक्ष, मीमांसा, नई दिल्ली 5.         अनेक मंत्रालयों में हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य 6.         गुजरात विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी केन्द्र के प्रभारी प्रोफेसर (1959-64) 7.         प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय 8.         अनेक विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम समिति के सदस्य 9.         साहित्य अकादमी, हिन्दी अकादमी, दिल्ली तथा अनेक विश्वविद्यालयों तथा प्रतिष्ठित संस्थाओं की संगोष्ठियों की अध्यक्षता 10.       कई पत्रिकाओं के सलाहकार संपादक 11.       अध्यक्ष, प्रबंध समिति, राजधानी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय (1999-2000) साहित्यिक उपलब्धियाँ 1.         रचनाओं का देश की प्रायः सभी भाषाओं में अनुवाद। 2.         अनेक विश्वविद्यालयों तथा विद्यालयों के पाठ्यक्रम में रचनाएँ। 3.         देश के अनेक विश्वविद्यालयों में 250 के लगभग पीएच.डी. एवं एम.फिल.  शोधकार्य। 4.         रचनाओं पर कई समीक्षात्मक ग्रंथ प्रकाशित। 5         अनेक पत्रिकाओं के विशेषांक प्रकाशित सन्दर्भ सभी हिन्दी में: रामदरश मिश्र की पुस्तकें हिन्दी साहित्यकार रामदरश मिश्र शलाका सम्मान हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी भाषा के साहित्यकार 1924 में जन्मे लोग गोरखपुर के लोग सरस्वती सम्मान से सम्मानित
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पारसनाथ
पारसनाथ झारखंड के पारसनाथ पहाड़ी श्रृंखला में एक पर्वत शिखर है। यह भारतीय राज्य झारखंड के गिरिडीह जिले (ब्रिटिश भारत में हजारीबाग जिला) में छोटानागपुर पठार के पूर्वी छोर की ओर स्थित है। पहाड़ी का नाम 23वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ के नाम पर रखा गया है। इसी सिलसिले में पहाड़ी की चोटी पर जैन तीर्थ शिखरजी हैं। धार्मिक संदर्भ में संथाल और अन्य आदिवासी लोगों द्वारा पहाड़ी को मारांग बुरु (अर्थ: 'महान पर्वत', सर्वोच्च देवता) के रूप में भी जाना जाता है। झारखंड की सबसे ऊंची चोटी पारसनाथ झारखंड राज्य की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है जिसकी ऊंचाई 1365 मीटर है। यह माउंट एवरेस्ट के साथ 450 किमी से अधिक की दूरी पर सैद्धांतिक रूप से (पूरी तरह से साफ दिन पर दृष्टि की सख्त रेखा से) दिखाई देता है। यहां पारसनाथ रेलवे स्टेशन से आसानी से पहुँचा जा सकता है। मारांग बुरु पारसनाथ पर्वतीय क्षेत्रों में सदियों से संथाल और अन्य आदिवासी रहते हैं। यह पहाड़ संथाल आदिवासियों की आस्था से जुड़ा है जिसे वे सदियों से मारांग बुरु के नाम से पूजा करते हैं। मारांग बुरु का शाब्दिक अर्थ "महान पहाड़" या "बड़ा पहाड़" होता है। मारांग बुरु को आदिवासी सर्वोच्च देवता के रूप में मानते हैं। यहां संथाल आदिवासी धार्मिक स्थल धरम गढ़ भी है। झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम और मध्यप्रदेश के मुंडा, संथाल, भूमिज, हो और अन्य आदिवासी समुदायों मारांग बुरु को सर्वोच्च देवता मानते हैं। सम्मेद शिखरजी यह जैन समुदाय के लिए सबसे पवित्र और पूजनीय स्थलों में से एक है। वे इसे सम्मेद शिखर कहते हैं। जैनियों के 24 तीर्थंकरों में से 20 को पारसनाथ पहाड़ियों पर निर्वाण मिला। पारसनाथ पहाड़ पर, शिखरजी जैन मंदिर हैं, जो एक महत्वपूर्ण जैन तीर्थ स्थल है। प्रत्येक तीर्थंकर के लिए पहाड़ी पर एक मंदिर (गुमटी या टोंक) है। माना जाता है कि जैन मंदिर का निर्माण मगध राजा बिम्बिसार ने करवाया था। कनिंघम ने गांव में पत्थर की संरचनाओं का उल्लेख किया, जिसे उन्होंने दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के एक बौद्ध स्तूप के अवशेष के रूप में वर्णित किया। हालांकि साईट कनिंघम द्वारा चिन्हित किया गया था, आज तक वहां कोई उत्खनन नहीं हुआ है। सन्दर्भ
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शेतपाल
Articles with short description Short description matches Wikidata शेतपाल एक गाँव है जो भारत के महाराष्ट्र राज्य में सोलापुर जिले के मोहोल तालुका में स्थित है। 2011 की जनगणना के अनुसार शेटफल गाँव का स्थान कोड 562192 है। यह तहसीलदार कार्यालय से 24 किमी दूर और उप-जिला मुख्यालय मोहोल से 69 किमी दूर है। 2009 के आंकड़े बताते हैं कि शेटफल गाँव भी एक ग्राम पंचायत है। इस गाँव का कुल क्षेत्रफल 3089 हेक्टेयर है। शेटफल से लगभग 22 किमी दूर, कुर्दुवाडी सभी महत्वपूर्ण आर्थिक सेवाओं का निकटतम शहर है। यह स्पष्ट है कि सांप, उनकी प्राचीन उत्पत्ति और हिंदू देवता शिव के साथ उनके संबंध के कारण भारत में पूजनीय प्राणी हैं। भारतीय गांवों में हर साल नाग पंचमी पर हजारों लोग सांपों की पूजा करते हैं और उन्हें भोजन देते हैं, ताकि वे दैवीय कृपा पा सकें।   2,600 से अधिक लोगों में से कोई भी शेतपाल गांव में सांपों को किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाता और सांपों की आवाजाही पर कोई प्रतिबंध नहीं है। जनगणना साल 2011 जाति आँकड़े कम करने वाली जनसंख्या संदर्भ सोलापूर सोलापुर ज़िले के गाँव
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साटुरिय़ा उपज़िला
साटुरिय़ा उपजिला, बांग्लादेश का एक उपज़िला है, जोकी बांग्लादेश में तृतीय स्तर का प्रशासनिक अंचल होता है (ज़िले की अधीन)। यह ढाका विभाग के मानिकगंज ज़िले का एक उपजिला है। यह बांग्लादेश की राजधानी ढाका के निकट अवस्थित है। जनसांख्यिकी यहाँ की आधिकारिक स्तर की भाषाएँ बांग्ला और अंग्रेज़ी है। तथा बांग्लादेश के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह ही, यहाँ की भी प्रमुख मौखिक भाषा और मातृभाषा बांग्ला है। बंगाली के अलावा अंग्रेज़ी भाषा भी कई लोगों द्वारा जानी और समझी जाती है, जबकि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक निकटता तथा भाषाई समानता के कारण, कई लोग सीमित मात्रा में हिंदुस्तानी(हिंदी/उर्दू) भी समझने में सक्षम हैं। यहाँ का बहुसंख्यक धर्म, इस्लाम है, जबकि प्रमुख अल्पसंख्यक धर्म, हिन्दू धर्म है। चट्टग्राम विभाग में, जनसांख्यिकीक रूप से, इस्लाम के अनुयाई, आबादी के औसतन ९१.१९% है, जोकि बांग्लादेश के तमाम विभागों में अधिकतम् है। शेष जनसंख्या प्रमुखतः हिन्दू धर्म की अनुयाई है। अवस्थिति साटुरिय़ा उपजिला बांग्लादेश के मध्य में स्थित, ढाका विभाग के मानिकगंज जिले में स्थित है। इन्हें भी देखें बांग्लादेश के उपजिले बांग्लादेश का प्रशासनिक भूगोल ढाका विभाग सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ उपज़िलों की सूची (पीडीएफ) (अंग्रेज़ी) जिलानुसार उपज़िलों की सूचि-लोकल गवर्नमेंट इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट, बांग्लादेश http://hrcbmdfw.org/CS20/Web/files/489/download.aspx (पीडीएफ) श्रेणी:ढाका विभाग के उपजिले बांग्लादेश के उपजिले
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मारहरा
मारहरा (Marehra) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के एटा ज़िले में स्थित एक नगर है। मारहरा नगर के साथ-साथ एक ब्लॉक भी है, जिसमें कुछ गाँव सम्मिलित हैं। जो नगला सिलौनी, जिसे गहराना के नाम से भी जाना जाता है। जिसके बाद सिलौनी और बाग का नगला भी एक गांव है। क्योंकि इस गांव के आस-पास आम व अमरूद के अधिकतर बाग यानि पेड़ हैं, इसलिए इसे बाग का नगला कहा जाता है। मारहरा के बारे में मारहरा या मारहरा शरीफ के रूप में जाना जाता है यह दुनिया भर से मुसलमानों के लिए प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहां मुसलमानों के पैगम्बर मोहम्मद साहब के वंशजों की समाधि स्थल हैं और यहां पर उन की बहुत की चीज भी है जो प्रत्येक उर्स पर प्रदर्शित की जाती है,और मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है के यहां सात कूतुब की मजार एक साथ है है जो विश्व में और कहीं नहीं है, यहां से श्रद्धा रखने वाले श्रद्धालु बरकाती केहलाते है, मारहरा भी अपने स्वादिष्ट आम के लिए मशहूर है। मोहल्लाह कम्बोह यहाँ का सबसे बड़ा मोहल्लाह है। जनसांख्या सन् २०११ की जनसांख्या के अनुसार मारहरा की कुल जनसांख्या ४७,७७२ है। जिसमें से ५३% पुरुष हैं और ४७% महिलायें हैं। मारहरा की एक औसत साक्षरता दर ६३% है। इन्हें भी देखें एटा ज़िला सन्दर्भ उत्तर प्रदेश के नगर एटा ज़िला एटा ज़िले के नगर
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उत्तर प्रदेश राज्य राजमार्ग २१
उत्तर प्रदेश राज्य राजमार्ग २१ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक राज्य राजमार्ग है। ३८५.४६ किलोमीटर लम्बा यह राजमार्ग बिलराय से शुरू होकर पनवारी तक जाता है। इसे बिलराय-लखीमपुर-सीतापुर-पनवारी मार्ग भी कहा जाता है। यह लखीमपुर खेरी, सीतापुर, हरदोइ, कन्नौज, औरैया, जालौन, हमीरपुर और महोबा जिलों से होकर गुजरता है। इन्हें भी देखें राज्य राजमार्ग उत्तर प्रदेश के राज्य राजमार्गों की सूची बाहरी कड़ियाँ उत्तर प्रदेश राज्य राजमार्ग प्राधिकरण का मानचित्र सन्दर्भ उत्तर प्रदेश के राज्य राजमार्ग
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हॉकी
हॉकी एक ऐसा खेल है जिसमें दो टीमें लकड़ी या कठोर धातु या फाईबर से बनी विशेष लाठी (स्टिक) की सहायता से रबर या कठोर प्लास्टिक की गेंद को अपनी विरोधी टीम के नेट या गोल में डालने की कोशिश करती हैं। हॉकी का प्रारम्भ वर्ष 2010 से 4,000 वर्ष पूर्व मिस्र में हुआ था। इसके बाद बहुत से देशों में इसका आगमन हुआ पर उचित स्थान न मिल सका। भारत में इसका आरम्भ 150 वर्षों से पहले हुआ था। 11 खिलाड़ियों के दो विरोधी दलों के बीच मैदान में खेले जाने वाले इस खेल में प्रत्येक खिलाड़ी मारक बिंदु पर मुड़ी हुई एक छड़ी (स्टिक) का इस्तेमाल एक छोटी व कठोर गेंद को विरोधी दल के गोल में मारने के लिए करता है। बर्फ़ में खेले जाने वाले इसी तरह के एक खेल आईस हॉकी से भिन्नता दर्शाने के लिए इसे मैदानी हॉकी कहते हैं। चारदीवारी में खेली जाने वाली हॉकी, जिसमें एक दल में छह खिलाड़ी होते हैं और छह खिलाड़ी परिवर्तन के लिए रखे जाते हैं। हॉकी के विस्तार का श्रेय, विशेषकर भारत और सुदूर पूर्व में, ब्रिटेन की सेना को है। अनेक अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के आह्वान के फलस्वरूप 1971 में विश्व कप की शुरुआत हुई। हॉकी की अन्य मुख्य अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं हैं- ओलम्पिक, एशियन कप, एशियाई खेल, यूरोपियन कप और पैन-अमेरिकी खेल। दुनिया में हॉकी निम्न प्रकार से खेली जाती है। फील्ड हॉकी बर्फ हॉकी रोलर हॉकी इतिहास हॉकी खेल का उद्गम सदा से ही विवाद का विषय रहा है। एक मत के अनुसार ईसा से दो हजार वर्ष पूर्व हॉकी का खेल फारस में खेला जाता था। यह खेल आधुनिक हॉकी से भिन्न था। कुछ समय बाद यह खेल कुछ परिवर्तित होकर यूनान (वर्तमान ग्रीस) पहुंचा जहां यह इतना प्रचलित हुआ कि यह यूनान की ओलंपिक प्रतियोगिता में खेला जाने लगा। धीरे-धीरे रोमवासियों में भी इस खेल के प्रति रुझानर रोम भी यूनान के ओलंपिक में इसे खेलने लगा। हॉकी की शुरुआत आरंभिक सभ्यताओं के युग से मानी जाती है। हॉकी खेलने के अरबी, यहूदी, फ़ारसी और रोमन तरीक़े रहे और दक्षिण अमेरिका के एज़टेक इंडियनों द्वारा छड़ी से खेले जाने वाले एक खेल के प्रमाण भी मिलते हैं। आरंभिक खेलों हर्लिंग और शिंटी जैसे खेलों के रूप में भी हॉकी को पहचाना गया है। मध्य काल में छड़ी से खेला जाने वाला एक फ़्रांसीसी खेल हॉकी प्रचलित था और अंग्रेज़ी शब्द की उत्पत्ति शायद इसी से हुई है। 19वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में भारत में इस खेल के विस्तार का श्रेय मुख्य रूप से ब्रिटिश सेना को जाता है और एक स्वाभाविक परिणाम के रूप में यह खेल छावनी नगरों व उसके आसपास तथा युद्धप्रिय समझे जाने वाले लोगों और सैनिकों के बीच फला-फूला हैं। सैनिक छावनियों वाले सभी नगर, जैसे लाहौर, जालंधर, लखनऊ, झांसी, जबलपुर भारतीय हॉकी के गढ़ थे। मगर इस खेल को विभाजन-पूर्व भारत की कृषि प्रधान भूमि के मेहनती और बलिष्ठ पंजाबियों ने स्वाभाविक रूप से सीखा। अंग्रेज़ी विद्यालयों में हॉकी खेलना 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में शुरू हुआ और दक्षिण-पूर्वी लंदन के ब्लैकहीथ में पुरुषों के पहले हॉकी क्लब का विवरण 1861 की एक विवरण-पुस्तिका में मिलता है। पुरुषों की मैदानी हॉकी को 1908 और 1920 में ओलम्पिक खेलों में खेला गया और 1928 से इसे स्थायी तौर पर ओलम्पिक में शामिल कर लिया गया। आधुनिक युग में पहली बार ओलंपिक में हॉकी २९ अक्टूबर, १९०८ में लंदन में खेली गई। इसमें छह टीमें थीं। १९२४ में ओलपिंक में अंतर्राष्ट्रीय कारणों से यह खेल शामिल नहीं हो सका। ओलंपिक से हॉकी के बाहर हो जाने के बाद जनवरी, १८८४ में अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ (इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन) की स्थापना हुई। हॉकी का खेल एशिया में भारत में सबसे पहले खेला गया। पहले दो एशियाई खेलों में भारत को खेलने का अवसर नहीं मिल सका, किन्तु तीसरे एशियाई खेलों में भारत को पहली बार ये अवसर हाथ लगा। हॉकी में भारत का प्रदर्शन काफ़ी अच्छा रहा है। भारत ने हॉकी में अब तक ओलंपिक में आठ स्वर्ण, एक और दो कांस्य पदक जीते हैं। इसके बाद भारत ने हॉकी में अगला स्वर्ण पदक १९६४ और अंतिम स्वर्ण पदक १९८० में जीता। १९२८ में एम्सटर्डम में हुए ओलंपिक में भारत ने नीदरलैंड को ३-० से हराकर पहला स्वर्ण पदक जीता था। १९३६ के खेलों में जर्मनी को ८-१ से मात देकर विश्व में अपनी खेल क्षमता सिद्ध की। १९२८, १९३२ और १९३६ के तीनों मुकाबलों में भारतीय टीम का नेतृत्व हॉकी के जादूगर नाम से प्रसिद्ध मेजर ध्यानचंद ने किया। १९३२ के ओलपिंक में हुए ३७ मैचों में भारत द्वारा किए गए ३३० गोल में ध्यानचंद ने अकेले १३३ गोल किए थे। भारत का खेल दिवस मेजर ध्यानचंद के जन्मदिवस पर मनाया जाता है। महिला हॉकी विक्टोरियाई युग में खेलों में महिलाओं पर प्रतिबंध होने के बावजूद महिलाओं में हॉकी की लोकप्रियता बहुत बढ़ी। यद्यपि 1895 से ही महिला टीमें नियमित रूप से मैत्री प्रतियोगिताओं में भाग लेती रही थीं, लेकिन गंभीर अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की शुरुआत 1970 के दशक तक नहीं हुई थी। 1974 में हॉकी का पहला महिला विश्व कप आयोजित किया गया और 1980 में महिला हॉकी ओलम्पिक में शामिल की गई। 1927 में अंतर्राष्ट्रीय नियामक संस्था, इंटरनेशनल फ़ेडरेशन ऑफ़ विमॅन्स हॉकी एसोसिएशन का निर्माण हुआ था। 1901 में अमेरिका में कांसटेंस एम.के. एप्पेलबी द्वारा इस खेल की शुरुआत हुई और मैदानी हॉकी धीरे-धीरे यहाँ की महिलाओं में लोकप्रिय मैदानी टीम खेल बन गई व विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा क्लबों में खेली जाने लगी। नियम लंदन स्थित एक क्लब टेडिंगटन ने कई मुख्य परिवर्तनों की शुरुआत की, जिसमें हाथों का प्रयोग या छड़ी को कंधों से ऊपर उठाने पर प्रतिबंध, रबर की घनाकार गेंद के स्थान पर गोलाकार स्वरूप के प्रयोग शामिल थे। सबसे महत्त्वपूर्ण था मारक चक्र को अपनाना, जिसे 1886 में लंदन में स्थापित तत्कालीन हॉकी एसोसिएशन ने अपने नियमों में शामिल किया था। दल के सामान्य संयोजन में पांच खिलाड़ी फ़ॉरवर्ड, तीन हाफ़बैक, दो फुलबैक और एक गोलकीपर होते हैं। एक खेल में 35 मिनट के दो भाग होते हैं, जिनमें 5 से 10 मिनट का अंतराल होता है। केवल चोट लगने की दशा में खेल रोका जाता है। गोलकीपर मोटे मगर हल्के पैड पहनता है और उसे 30 गज़ के घेरे (डी) में गेंद को पैर से मारने अथवा उसे पैरों या शरीर की मदद से रोकने की इजाज़त होती है। अन्य सभी खिलाड़ी गेंद को केवल स्टिक से ही रोक सकते हैं। मैदान के केंद्र से पास-बैक द्वारा, जिसमें एक खिलाड़ी अपनी टीम के अन्य खिलाड़ीयों की ओर गेंद फेंकता है, गेंद पुनः उस तक पहुँचाई जाती है[2], खेल प्रारंभ होता है। किसी को चोट लगने पर या तकनीकी कारण से खेल रुकने पर, दोनों दलों द्वारा क्रमशः एक-एक पेनल्टी करने पर या खिलाड़ीयों के कपड़ों में गेंद के उलझने पर खेल को फिर से शुरू करने के लिए फ़ेस-ऑफ़ या बुली का प्रयोग किया जाता है। फ़ेस-ऑफ़ में दोनों टीमों के एक-एक खिलाड़ी आमने-सामने खड़े होते है और गेंद उनके बीच मैदान पर होती है। एक के बाद एक ज़मीन पर आघात करने के बाद दोनों खिलाड़ी एक-दूसरे की स्टिक को आपस में तीन बार टकराते हैं, प्रत्येक खिलाड़ी गेंद को मारने का प्रयास करता है और इस प्रकार खेल फिर से शुरू हो जाता है। गेंद के मैदान से बाहर जाने की दशा में खेल को फिर से शुरू करने के विभिन्न तरीक़े हैं। हॉकी में कई तरह की ग़लतियाँ (फ़ाउल) होती हैं। किसी खिलाड़ी को मैदान में गेंद से आगे रहकर और विरोधी दल के दो खिलाड़ीयों से कम खिलाड़ीयों के आगे रहकर लाभ उठाने से रोकने के लिए बनाए गए ऑफ़ साइड नियम को 1996 के ओलम्पिक खेलों के बाद समाप्त कर दिया गया। गेंद से खेलते वक़्त हॉकी को कंधों से ऊपर उठाना नियमों के विरुद्ध है। गेंद को हॉकी से रोकना उसी तरह की ग़लती है, जैसे गेंद को शरीर या पैरों से रोकना। अंडरकटिंग के साथ ही विरोधी की हॉकी में अपनी हॉकी फंसाकर (हुकिंग) गेंद को तेज़ी से ऊपर उछालते हुए खेल को ख़तरनाक बनाना भी ग़लत है। अंत में अवरोधन का नियम है: एक खिलाड़ी को अपनी स्टिक या शरीर के किसी भी भाग को अपने विरोधी और गेंद के बीच लाकर अवरोध खड़ा करने अथवा विरोधी व गंद के बीच दौड़कर बाधा डालने की अनुमति नहीं है। अधिकतर ग़लतियों की सज़ा विरोधी दल को, जिस स्थान पर नियम तोड़ा गया, वहाँ से एक फ़्री हिट के रूप में दी जाती है। खेल के प्रत्येक भाग के लिए एक निर्णायक (रेफ़री) होता है। गेंद:- हॉकी में इस्तेमाल होने वली यह गेंद मूलतः क्रिकेट की गेंद थी[3], लेकिन प्लास्टिक की गेंद भी अनुमोदित है। इसकी परिधि लगभग 30 सेमी होती है। हॉकी स्टिक:- हॉकी स्टिक लगभग एक मीटर लंबी और 340 से 790 ग्राम होती है। स्टिक का चपटा छोर ही गेंद को मारने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। मैदान यह खेल चौकोर मैदान पर 11 खिलाड़ियों वाले दो दलों के बीच खेला जाता है। यह मैदान 91.40 मीटर लंबा और 55 मीटर चौड़ा होता है, इसके केंद्र में एक केंद्रीय रेखा व 22.80 मीटर की दो अन्य रेखाएँ खिंची होती हैं। गोल की चौड़ाई 3.66 मीटर व ऊँचाई 2.14 मीटर होती है। भारत में हॉकी भारत में यह खेल सबसे पहले कलकत्ता में खेला गया। भारत टीम का सर्वप्रथम वहीं संगठन हुआ। 26 मई को सन 1928 में भारतीय हाकी टीम प्रथम बार ओलिम्पिक खेलों में सम्मिलित हुई और विजय प्राप्त की। 1932 में लॉस एंजेलिस ओलम्पिक में जब भारतीयों ने मेज़बान टीम को 24-1 से हराया। तब से अब तक की सर्वाधिक अंतर से जीत का कीर्तिमान भी स्थापित हो गया। 24 में से 9 गोल दी भाइयों ने किए, रूपसिंह ने 11 गोल दागे और ध्यानचंद ने शेष गोल किए। 1936 के बर्लिन ओलम्पिक में इन भाइयों के नेतृत्व में भारतीय दल ने पुनः स्वर्ण 'पदक जीता' जब उन्होंने जर्मनी को हराया। बर्लिन ओलम्पिक में ध्यानचंद असमय बाहर हो गये और द्वितीय विश्व युद्ध ने भी इस विश्व स्पर्द्धा को बाधित कर दिया। आठ वर्ष के बाद ओलम्पिक की पुनः वापसी पर भारत की विश्व हॉकी चैंपियन की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया। एक असाधारण कार्य, जो विश्व में कोई भी अब तक दुहरा नहीं पाया है। अन्य टीमों के उभरने के संकेत सर्वप्रथम मेलबोर्न में दिखाई दिए, जब भारत को पहली बार स्वर्ण पदक के लिए संघर्ष करना पड़ा। पहले की तरह, टीम ने अपनी ओर एक भी गोल नहीं होने दिया और 38 गोल दागे, मगर बलबीर सिंह के नेतृत्व में खिलाड़ीयों को सेमीफ़ाइनल में जर्मनी के ख़िलाफ़ और फ़ाइनल में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ संघर्ष करना पड़ा। सेमीफ़ाइनल में कप्तान के गोल ने निर्णय किया, जबकि वरिष्ठ रक्षक आर.एस. जेंटल के बनाए गोल ने भारत की अपराजेयता को बनाए रखा। 1956 के मेलबोर्न ओलम्पिक के फ़ाइनल में भारत और पाकिस्तान को 1960 में रोम ओलम्पिक में पाकिस्तान ने फ़ाइनल में 1-0 से स्वर्ण जीतकर भारत की बाज़ी पलट दी। भारत ने पाकिस्तान को 1964 के टोकियो ओलम्पिक में हराया। 1968 के मेक्सिको ओलम्पिक में पहली बार भारत फ़ाइनल में नहीं पहुँचा और केवल कांस्य पदक जीत पाया। मगर मेक्सिको के बाद, पाकिस्तान व भारत का आधिपत्य टूटने लगा। 1972 के म्यूनिख़ ओलम्पिक में दोनों में से कोई भी टीम स्वर्ण पदक जीतने में सफल नहीं रही और क्रमशः दूसरे व तीसरे स्थान तक ही पहुँच सकी। मुख्य रूप से भारत में, हॉकी के पारंपरिक केंद्रों के अलावा अन्य स्थानों पर लोगों की रुचि में तेज़ी से गिरावट आई और इस पतन को रोकने के प्रयास भी कम ही किए गए। इसके बाद भारत ने केवल एक बार 1980 के संक्षिप्त मॉस्को ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीता। टीम का अस्थिर प्रदर्शन जारी रहा। इसके बाद 1998 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक की प्राप्ति भारतीय हॉकी का एकमात्र बढ़िया प्रदर्शन था। ऐसे बहुत कम मौक़े रहे, जब कौशल ने शारीरिक सौष्ठव को हराया, अन्यथा यह बारंबार बहुत कम अंतर से हार और गोल चूक जाने का मामला रहा है। यद्यपि भारत अब विश्व हॉकी में एक शक्ति के रूप में नहीं गिना जाता, पर हाल के वर्षों में यहाँ ऐसे कई खिलाड़ी हुए हैं, जिनके कौशल की बराबरी विश्व में कुछ ही खिलाड़ी कर पाते हैं। अजितपाल सिंह, वी. भास्करन, गोविंदा, अशोक कुमार, मुहम्मस शाहिद, जफ़र इक़बाल, परगट सिंह, मुकेश कुमार और धनराज पिल्ले जैसे खिलाड़ीयों ने अपनी आक्रामक शैली की धाक जमाई है। भारत में हॉकी के गौरव को पुनर्जीवित करने के गंभीर प्रयास हुए हैं। भारत में तीन हॉकी अकादमियां कार्यरत हैं- नई दिल्ली में एयर इंडिया अकादमी, रांची (झारखंड) में विशेष क्षेत्र खेल अकादमी ऐर राउरकेला, (उड़ीसा) में स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (सेल) अकादमी। इन अकादमियों में प्रशिक्षार्थी हॉकी को प्रशिक्षण के अलावा औपचारिक शिक्षा भी जारी रखते हैं और मासिक वृत्ति भी पाते हैं। प्रत्येक अकादमी ने योग्य खिलाड़ी तैयार किए हैं, जिनसे आने वाले वर्षों में इस खेल में योगदान की आशा है। क्रिकेट के प्रति दीवानगी के बावजूद विद्यालयों और महाविद्यालयों में हॉकी के पुनरुत्थान से नई पीढ़ी में इस खेल के प्रति रुचि जाग्रत हुई है। प्रतिवर्ष राजधानी में होने वाली नेहरू कप हॉकी प्रतियोगिता जैसी प्रतिस्पर्द्धाओं में उड़ीसा, बिहार और पंजाब के विद्यालयों, जैसे सेंट इग्नेशियस विद्यालय, राउरकेला; बिरसा मुंडा विद्यालय, गुमला और लायलपुर खालसा विद्यालय, जालंधर द्वारा उच्च स्तरीय हॉकी का प्रदर्शन देखा गया है। २०१० राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने रजत पदक हासिल किया। ओलम्पिक में भारत हॉकी के खेल में भारत ने हमेशा विजय पाई है। इस स्‍वर्ण युग के दौरान भारत ने 24 ओलम्पिक मैच खेले और सभी 24 मैचों में जीत कर 178 गोल बनाए तथा केवल 7 गोल छोड़े। भारत के पास 8 ओलम्पिक स्‍वर्ण पदकों का उत्‍कृष्‍ट रिकॉर्ड है। भारतीय हॉकी का स्‍वर्णिम युग 1928-56 तक था जब भारतीय हॉकी दल ने लगातार 6 ओलम्पिक स्‍वर्ण पदक प्राप्‍त किए। 1928 तक हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल बन गई थी और इसी वर्ष एमस्टर्डम ओलम्पिक में भारतीय टीम पहली बार प्रतियोगिता में शामिल हुई। भारतीय टीम ने पांच मुक़ाबलों में एक भी गोल दिए बगैर स्वर्ण पदक जीता। जयपाल सिंह की कप्तानी में टीम ने, जिसमें महान खिलाड़ी ध्यानचंद भी शामिल थे, अंतिम मुक़ाबले में हॉलैंड को आसानी से हराकर स्वर्ण पदक जीता। भारतीय हॉकी संघ के इतिहास की शुरुआत ओलम्पिक में अपनी स्‍वर्ण गाथा शुरू करने के लिए की गई। इस गाथा की शुरुआत एमस्‍टर्डम में 1928 में हुई और भारत लगातार लॉस एंजेलस में 1932 के दौरान तथा बर्लिन में 1936 के दौरान जीतता गया और इस प्रकार उसने ओलम्पिक में स्‍वर्ण पदकों की हैटट्रिक प्राप्‍त की। किशनलाला के नेतृत्व में दल ने लंदन में स्वर्ण पदक जीता। भारतीय हॉकी दल ने 1975 में विश्‍व कप जीतने के अलावा दो अन्‍य पदक (रजत और कांस्‍य) भी जीते। भारतीय हॉकी संघ ने 1927 में वैश्विक संबद्धता अर्जित की और अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ (एफआईएच) की सदस्‍यता प्राप्‍त की। भारत को 1964 टोकियो ओलम्पिक और 1980 मॉस्‍को ओलम्पिक में दो अन्‍य स्‍वर्ण पदक प्राप्‍त हुए। 1962 में कांस्य पदक और 1980 में स्वर्ण पदक प्राप्त किया और देश का नाम ऊँचा कर दिया। सन्दर्भ इन्हें भी देखें [[ध्यानचंद सिंह ]] बलबीर सिंह बाहरी कड़ियाँ हॉकी जानिये (गूगल पुस्तक) खेल भारतीय खेल हॉकी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%B0%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80
ज़रफ़शान नदी
ज़रफ़शान नदी (ताजिकी: Дарёи Зарафшон, दरिया-ए-ज़रफ़शान; अंग्रेज़ी: Zeravshan River, ज़ेरवशान रिवर) मध्य एशिया की एक नदी है। यह ताजिकिस्तान में पामीर पर्वतमाला में शुरू होती है और ३०० किमी पश्चिम की और ताजिकिस्तान के अन्दर ही बहती है। ताजिकिस्तान के पंजाकॅन्त (Панҷакент) शहर से गुज़रती हुई फिर यह उज़बेकिस्तान में दाख़िल होती है और उत्तर-पश्चिम की तरफ़ बहती है। फिर यह समरक़न्द की प्रसिद्ध नगरी के पास से निकलती है, जो पूरी तरह इस नदी द्वारा बनाए गए नख़लिस्तान (ओएसिस) पर निर्भर है (बिना इस नदी के यह एक मरूभूमी होता)। समरक़न्द से आगे चलकर उज़बेकिस्तान के नवोइ (Навоий) और बुख़ारा के शहरों से गुज़रकर क़ाराकुल शहर पहुँचती है और फिर आगे के रेगिस्तान की रेतों में ओझल हो जाती है। किसी ज़माने में यह और भी आगे चलकर अपने पानी को आमू दरिया में मिला देती थी, लेकिन वर्तमान में उस तक पहुँचने से पहले ही रेगिस्तान इसे सोख लेता है। इस बदलाव का मुख्य कारण यह है कि ज़रफ़शान का बहुत सा पानी अब सिंचाई के लिए खींच लिया जाता है जिस से इसके आगे के हिस्से में पानी का बहाव बहुत ही कम हो चुका है। नाम की उत्पत्ति और रेत में सोने की मौजूदगी फ़ारसी में "ज़रफ़शान" () का मतलब "सोने की फुहार वाली" है। इसका नाम यह इसलिए पड़ा क्योंकि इसके ऊपरी हिस्से में रेत में कुछ सोने के कण मिलते हैं। इसके दोनों शब्दों ("ज़र" और "अफ़शान") का वर्णन इस प्रकार है - "ज़र" का अर्थ फ़ारसी में "सोना" है और यही शब्द संस्कृत में "हर" के रूप में आया। ध्यान दें कि क्योंकि फ़ारसी और संस्कृत दोनों हिंद-ईरानी भाषा परिवार की बहनें हैं इसलिए इनके शब्द अक्सर एक जैसे सजातीय शब्द हुआ करते हैं। "हर" और "ज़र" दोनों का अर्थ कभी "पीला या सोने के रंग जैसा" हुआ करता था। समय के साथ फ़ारसी में "ज़र" का अर्थ "सोना" और "ज़र्द" का अर्थ "पीला रंग" पड़ गया, जबकि संस्कृत में "हर"/"हरि" का अर्थ "पीला-हरा" और फिर केवल "हरा" पड़ गया। "अफ़शान" का अर्थ "बिखेरने वाला" या "फुहार देने वाला" होता है। जैसे किसी बहुत सुन्दर नज़ारे को "हुस्न अफ़शान" कहा जाता है। हिंदी-उर्दू में इसका अधिक प्रयोगित रूप "अफ़शाँ" है। उच्चारण सहायता ध्यान दीजिये की "बुख़ारा" जैसे शब्दों में 'ख़' की ध्वनि का उच्चारण 'ख' से थोड़ा भिन्न है। इन्हें भी देखें पामीर पर्वतमाला ताजिकिस्तान समरक़न्द बुख़ारा सन्दर्भ मध्य एशिया मध्य एशिया की नदियाँ अफ़्गानिस्तान की नदियाँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B9%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B
जेद्दाह मेट्रो
जेद्दाह मेट्रो जेद्दाह, सऊदी अरब शहर में एक योजनाबद्ध मेट्रो प्रणाली है। कई लाइनों का निर्माण पांच वर्षों के दौरान किया जाएगा जो अंततः सार्वजनिक परिवहन कम्यूटर शेयर को मौजूदा 1 से 2 प्रतिशत तक 30% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखेंगे। योजना मार्च 2013 में मेट्रो को मंजूरी दे दी गई थी। सिस्टा को 2014 में प्रोजेक्ट इंजीनियर के रूप में चुना गया था। इसे 2020 में पूरा किया जाना चाहिए। फोस्टर और पार्टनर्स स्टेशनों, ट्रेनों और ब्रांडिंग को डिजाइन करना है। सन्दर्भ सऊदी अरब
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लक्ष्मी घर आई
Pages using infobox television with unnecessary name parameter लक्ष्मी घर आई एक भारतीय टेलीविजन सामाजिक नाटक है जो 5 जुलाई 2021 से 17 सितंबर 2021 तक स्टार भारत पर प्रसारित हुआ। यह शो भारत में अभी भी प्रचलित दहेज प्रथा के मुद्दे पर आधारित है। शकुंतलम टेलीफिल्म्स द्वारा निर्मित, इसमें सिमरन परींजा, अक्षित सुखिजा और अनन्या खरे ने अभिनय किया। कथानक कहानी मैथिली तिवारी के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है जो दहेज का शिकार हो जाती है। कहानी राघव कुमार की माँ ज्वाला देवी कुमार की एक आदर्श बहू की तलाश से शुरू होती है जो उसके लालच को पूरा करने के लिए सारी समृद्धि लाएगी। मैथिली और राघव संयोग से मिलते हैं जब दोनों को एक ही शादी में आमंत्रित किया जाता है, जहां ज्वाला भी अपने बेटे राघव के लिए दुल्हन की तलाश में मौजूद होती है। मैथिली के पिता अरुण तिवारी के सम्मान और धन को देखकर मैथिली को भी ज्वाला ने अपने बेटे राघव की पत्नी बनने के लिए चुना। बाद में ज्वाला द्वारा बनाई गई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के एक मोड़ में, राघव मैथिली और उसकी दोस्त शिखा दोनों को बचाता है, जहाँ यह पता चलता है कि मैथिली और राघव दोनों भारत में अभी भी प्रचलित दहेज प्रथा के खिलाफ समान विचार साझा करते हैं। कहानी मैथिली और राघव की एक और मौका मुलाकात के साथ आगे बढ़ती है जहां वे एक दूसरे की पहचान के बारे में जानने के लिए अच्छे परिचितों में बदल जाते हैं। उनके रिश्ते में चीजें एक बेहतर मोड़ लेती हैं जब मैथिली राघव को एक अनावश्यक गलतफहमी से बचाती है और उसे समय पर साक्षात्कार के स्थान तक पहुंचने में मदद करती है। इस प्रकार, वे परिचित होने से दोस्त बन जाते हैं। दूसरी तरफ, राघव से अनजान ज्वाला मैथिली के लिए अपना गठबंधन तिवारी के घर ले जाती है, जहां अरुण तिवारी ने अपनी बेटी की शादी करने से इनकार कर दिया क्योंकि उसे लगता है कि वह अभी शादी के लिए तैयार नहीं है। उनका दृढ़ विश्वास है कि मैथिली को पहले अपने करियर पर ध्यान देने और समाज में एक स्वतंत्र महिला बनने की जरूरत है। हालाँकि, ज्वाला ने अरुण तिवारी की दौलत और प्रतिष्ठा पर अपनी नज़रें गड़ा दी हैं और चाहती हैं कि उनका बेटा उनकी बेटी की शादी किसी भी कीमत पर करे। जब मैथिली और राघव एक दंगे में फंस जाते हैं और उनके माता-पिता उन्हें एक अजीब स्थिति में पाते हैं तो चीजें उसके पक्ष में हो जाती हैं। जल्द ही, मैथिली और राघव का गठबंधन दोनों परिवारों द्वारा तय किया जाता है। शो का अंत सकारात्मक रहा जब ज्वाला ने मैथिली को अपनी बहू के रूप में स्वीकार किया और परिवार मैथिली और राघव के मिलन के साथ फिर से जुड़ गया। कलाकार मुख्य सिमरन परींजा मैथिली राघव कुमार (नी तिवारी) के रूप में: अरुण और साधना तिवारी की दूसरी बेटी (दत्तक), भावना और आरती की बहन, राघव की पत्नी, असाधारण बुद्धि वाली महिला अक्षित सुखिजा डीसी राघव कुमार के रूप में: ज्वाला और मांगिलाल के बड़े बेटे, रानी, चंचल और बुची के भाई, मैथिली के पति, एक मेहनती व्यक्ति और एक समर्पित पुत्र अनन्या खरे ज्वाला देवी कुमार के रूप में: मांगिलाल की पत्नी, राघव, रानी, चंचल और बुची की मां, बक्सा की बड़ी बहन और एक बेहद लालची और चालाक महिला जो अपने बेटे राघव का उपयोग करके अपने सभी लालच को संतुष्ट करना चाहती है। बक्सा मौसी के रूप में कविता कौशिक : ज्वाला की छोटी बहन और राघव, रानी, चंचल और बुची की मौसी अन्य मंगीलाल कुमार के रूप में अमित बहल : राघव, रानी, चंचल और बुची के पिता रानी के रूप में नीतू पचोरी: राघव, चंचल और बुची की बड़ी बहन, भानु की पत्नी चंचल कुमार के रूप में मयंक निश्चल: राघव, रानी और बुची का भाई स्मिता शरण बुची कुमार के रूप में: राघव, रानी और चंचल की छोटी बहन आशीष कौल अधिकारी के रूप में। अरुण तिवारी: साधना के पति मैथिली, भावना और आरती के पिता साधना तिवारी के रूप में अनिंदिता चटर्जी: मैथिली, भावना और आरती की माँ अनुष्का मर्चंडे आरती तिवारी के रूप में: अरुण और साधना तिवारी की सबसे छोटी बेटी, मैथिली और भावना की छोटी बहन भावना के रूप में दीक्षा धामी: अरुण और साधना तिवारी की सबसे बड़ी बेटी, मैथिली और आरती की बड़ी बहन जय विजय सचान रिपोर्टर के रूप में: भावना के पति राम मेहर जांगड़ा भानु के रूप में: रानी के पति मुनेंद्र सिंह कुशवाह शुक्ला के रूप में : राघव के पीए संदर्भ बाहरी संबंध भारतीय टेलीविजन धारावाहिक Pages with unreviewed translations
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क्रास्यू
क्रास्यू ( , ), अहप ( के नाम से जाना जाता है ) कंबोडिया में; कासु के रूप में ( , pronounced [ka.sɯ̌ː] ) लाओस में; कुयांग के रूप में ( ), रिसाव ( ), पेलासिक, पेलेसिट, या इंडोनेशिया में पेनांगगलन ; पेनांगल के रूप में ( ) मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रुनेई और सिंगापुर में ; मननंगल के रूप में ( Tagalog ) फिलीपींस में; मा लाइ के रूप में ( ) वियतनाम में; दक्षिण पूर्व एशियाई लोककथाओं की एक निशाचर महिला भावना है। यह खुद को एक महिला के रूप में प्रकट करता है, आमतौर पर युवा और सुंदर, उसके आंतरिक अंग गर्दन से नीचे लटकते हुए, सिर के नीचे पीछे की ओर। थाई नृवंश विज्ञानी फ्राया अनुमान राजधोन के अनुसार, क्रास्यू में एक तैरता हुआ सिर होता है, जिसके साथ विल-ओ-द-विस्प प्रकार की ल्यूमिनेसेंट चमक होती है। चमक की उत्पत्ति के बारे में किए गए स्पष्टीकरण में दलदली क्षेत्रों में मीथेन की उपस्थिति शामिल है। कहा जाता है कि क्रास्यू अक्सर उन्हीं इलाकों में रहते हैं जहां थाई लोककथाओं की एक पुरुष भावना क्राहांग रहती है । यह आत्मा जमीन के ऊपर हवा में मँडरा कर चलती है, क्योंकि इसका कोई निचला शरीर नहीं है। गले को अलग-अलग तरीकों से दर्शाया जा सकता है, या तो केवल श्वासनली के रूप में या पूरी गर्दन के साथ। सिर के नीचे के अंगों में आमतौर पर आंत की लंबाई के साथ हृदय और पेट शामिल होते हैं, आंतों का मार्ग भूत की पेटू प्रकृति पर जोर देता है। थाई फिल्म क्रास्यू वेलेंटाइन में, इस भूत को अधिक आंतरिक अंगों, जैसे कि फेफड़े और यकृत के साथ दर्शाया गया है, लेकिन आकार में बहुत कम और शारीरिक रूप से सिर के अनुपात से बाहर है। विसरा को कभी-कभी खून से लथपथ, और साथ ही चमकते हुए दिखाया जाता है। समकालीन अभ्यावेदन में उसके दांतों में अक्सर यक्खा ( में नुकीले नुकीले दांत शामिल होते हैं। ) या वैम्पायर फैशन। फिल्म घोस्ट्स ऑफ गट्स ईटर में उसके सिर के चारों ओर एक प्रभामंडल है। Krasue इस क्षेत्र में कई फिल्मों का विषय रहा है, जिसमें My Mother Is Arb ( शामिल हैं। ). क्रास्यू मॉम के रूप में भी जानी जाने वाली, इस कम्बोडियन हॉरर फिल्म को स्थानीय रूप से निर्मित फिल्मों की अनुपस्थिति और खमेर रूज युग के दौरान कंबोडिया में स्थानीय लोककथाओं के दमन के बाद पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कम्पूचिया में बनी पहली फिल्म होने का गौरव प्राप्त है। क्रास्यू मलेशिया की लोकप्रिय पौराणिक कथाओं में भी पाया जाता है, जहाँ इसे बालन-बालन, पेनांगगलन या हंटु पेनंगल कहा जाता है, और इंडोनेशिया में भी जहाँ इसके कई नाम हैं जैसे कि लेयाक, पलासिक, सेलाक मेटेम, कुयांग, पॉपपो / पोकपोक, और परकांग। यह भावना वियतनाम के सेंट्रल हाइलैंड्स के अल्पसंख्यक जातीय समूहों के माध्यम से मा लाइ के रूप में वियतनामी लोककथाओं का भी हिस्सा है। फिलीपींस में एक समान भूत है, मननंगल, एक स्थानीय आत्मा जो गर्भवती महिलाओं को परेशान करती है। भावना को कई सोशल मीडिया वीडियो में भी संदर्भित किया गया है जो इसे सोशल मीडिया पर "डरावना राक्षस" बनाता है।
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बुंदेलखंड के शासक
बुन्देलखण्ड के इतिहास के अनुसार यहां का एक भाग पर त्रेतायुग में चेदि साम्राज्य के चन्देल क्षत्रियों का शाशनकाल था जो की बाद में ३०० ई.पू से अन्य राजाओं के अधीन रहे। ३०० ई.पू मौर्य साम्राज्य इसके पश्‍चात वकाटक तथा गुप्त साम्राज्य, चन्देल साम्राज्य, बुंदेल और अंग्रेजों के शासनकाल का शाशनकाल रहा हैं। मुगल सम्राट अकबर के दौरान जो बचा हुआ चन्देलो का जेजाकभुक्ति राज्य युद्ध में मुगलों के पास गया और उसे बाद में बुंदेलो ने पुन: कब्जा किया वही राज्य दुबारा बसने के कारण बुंदेलखंड हो गया। मौर्य शासनकाल बुंदेलखंड के ज्ञात इतिहास में मौर्यकाल से पहले का ऐसा राजनीतिक इतिहास उपलब्ध नहीं है, जिसमें बुंदेलखंड के संबंध में जानकारी हो। वर्तमान खोजों तथा प्राचीन वास्तुकला, चित्रकला, मूर्तिकला, भित्तिचित्रों आदि के आधार पर कहा जा सकता है कि जनपद काल के बाद प्राचीन चेदि जनपद बाद में पुलिंद देश के साथ मिल गया था। सबसे प्राचीन साक्ष्य एरण की पुरातात्विक खोजों और उत्खननों से उपलब्ध हुए हैं। ये साक्ष्य ३०० ई.पू. के माने गए हैं। इस समय एरण का शासक धर्मपाल था, जिसके संबंध में मिले सिक्कों पर एरिकिण मुद्रित है। त्रिपुरी और उज्जयिनि के समान एरण भी एक गणतंत्र था। मत्स्य पुराण और विष्णु पुराण में मौर्य शासन के १३० वर्षों का साक्ष्य प्रस्तुत किया गया है। मौर्य वंश के तीसरे राजा अशोक ने गौडवाना के अनेक स्थानों पर विहारों, मठों आदि का निर्माण कराया था। वर्तमान गुर्गी (गोलकी मठ) अशोक के समय का सबसे बड़ा विहार था। गौडवाना के दक्षिणी भाग पर अशोक का शासन था जो उसके उज्जयिनी तथा विदिशा मे रहने से प्रमाणित होता है। विष्णु पुराण तथा मत्स्य पुराण में वर्णन मिलता है कि परवर्ती मौर्यशासक दुर्बल थे और कई अनेक कारण थे जिनकी वजह से अपने राज्य की रक्षा करने मे समर्थ न रहे। फलत: इस प्रदेश पर शुंग वंश का कब्जा हुआ। वृहद्थों को भास्कर पुण्यमित्र का राज्य कायम होना वाण के हर्षचरित से भी समर्थित है। शुंग वंश भार्गव च्वयन के वंशाधर शुनक के पुत्र शोनक से उद्भूल है। इन्होंने ३६ वर्षों तक इस क्षेत्र में राज्य किया। इसके बाद इस प्रदेश गर्दभिल्ला और नागों का अधिकार पर हुआ। जो गौडवाना के महान राजा थे शैव संप्रदाय से संबंध रखते थे भागवत पुराण और वायुपुराण में किलीकला क्षेत्र का वर्णन आया है। ये किलीकला क्षेत्र और राज्य विंध्‍य प्रदेश (नागौद) था। नागों द्वारा स्थापित शिवाल्यों के अवशेष भ्रमरा (नागौद) बैजनाथ (रीवा के पास) कुहरा (अजयगढ़) में अब भी मिलते हैं। नागों के प्रसिद्ध राजा छानाग, त्रयनाग, वहिनाग, चखनाग और भवनाग प्रमुख नाग शासक थे। भवनाग के उत्तराधिकारी वाकाटक माने गए हैं। पुराणकाल में गौडवाना का अपना एक महत्व था, मौर्य के समय में तथा उनके बाद भी यह प्रदेश अपनी गरिमा बनाए हुए था तथा इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य हुए। वाकाटक और गुप्त शासनकाल डॉ॰वी.पी.मिरांशी के अनुसार वाकाटक वंश का सर्वश्रेष्ठ राजा विंध्‍यशक्ति का पुत्र प्रवरसेन था। इसने अपने साम्राज्‍य का विस्तार उत्तर में नर्मदा से आगे तक किया था। पुराणों में आए वर्णन के अनुसार उसने परिक नामक नगरी पर अधिकार किया था जिसे विदिशा राज के नागराज दैहित्र शिशुक ने अपने अधीन कर रखा था। पुरिका प्रवरसेन के राज्य की राजधानी भी रही है। वाकाटक राज्य की परंपरा तीन रूपों में पाई जाती है- स्वतंत्र वाकाटक साम्राज्य गुप्तकालीन वाकाटक साम्राज्‍य गुप्तों के उपरान्त वाकाटक साम्राज्‍य कुंतीदेवी अग्निहोत्री का विचार है कि सन ३४५ ई. से वाकाटक गुप्तों के प्रभाव में आये और पाँचवीं शताब्दी के मध्य तक उनके आश्रित रहे हैं। कतिपय विद्वान विंध्‍यशक्ति के समय से सन् २५५ ई। तक वाकाटकों का काल मानते हैं। ये झाँसी के पास बागाट स्थान से उद्भूत है अत:गौडवाना से इनका विशेष संबंध रहा है। प्रमुख वाकाटक शासक: प्रवरसेन प्रथम सन २७५ ई. से ३३५ ई. रुद्रसेन प्रथम ३३५ ई. से ३६० ई. पृथ्वीसेन ३६० ई. से ३८५ ई. रुद्रसेन द्वितीय ३९० ई. से ४१० ई. प्रवरसेन द्वितीय ४१० ई. से ४४० ई. नरेन्द्रसेन ४४० ई. से ४६० ई. पृथ्वीसेन द्वितीय ४६० ई. से ४८० ई. हरिसेन इतिहासकारों के अनुसार हरिसेन ने पश्चिमी और पूर्वी समुद्र के बीच की सारी भूमि पर राज किया था। गुप्तवंश का उद्भव उत्तरी भारत में चतुर्थ शताब्दी में हुआ था। चीनी यात्री ह्वेनसांग जिस समय गौडवाना में आया था, उस समय भारतीय नेपोलियन समुद्रगुप्त का शासनकाल था। उसने वाकाटकों को अपने अधीन कर लिया था। कलचुरियों के उद्भव का समय भी इसी के आसपास माना गया है। समुद्रगुप्त की दिग्विजय और एरण पर उसका अधिकार शिलालेखों और ताम्रपटों के आधार पर सभी इतिहासकारों ने माना है, एरण की पुरातात्विक खोजों को डॉ॰ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के प्रो॰ कृष्णदत्त वाजपेयी ने अपनी पुस्तिका सागर थ्रू एजेज में प्रस्तुत किया है। एरण के दो नाम मिलते हैं, एरिकण और स्वभोनगर। स्वभोनगर से स्पष्ट है कि यह वैभव की नगरी रही है। हटा तहसील (वर्तमान दमोह जिला की तहसील) के सकौर ग्राम में २४ सोने के सिक्के मिले थे, जिनमें पुलिस्त वंशी राजा संग्राम साही राजाओं के नाम अंकित हैं। इससे स्पष्ट है गौडवाना एक वैभवशाली प्रदेश था। स्‍कंदगुप्त के उपरांत बुधगुप्त के अधीन था। इसकी देखरेख मांडलीक सुश्मिचंद्र करता था। सुश्मिचंद्र ने मैत्रायणीय शाखा के मातृविष्णु और धान्य विष्णु ब्राह्मणों को एरण का शासक बनाया था जिसकी पुष्टि एरण के स्तंभ से होती है। सुश्मिचंद्र गुप्त का शासन यमुना और नर्मदा के बीच के भाग पर माना गया है। गुप्तों की अधीनता स्वीकार करने वालों में उच्छकल्प और परिव्राजकों का नाम लिया जाता है। पाँचवी शताब्दी के आसपास उच्छकल्पों की राजसत्ता की स्थापना हुई थी। ओधदेव इस वंश का प्रतीक था। इस वंश के चौथे शासक व्याघ्रदेव के वाकाटकों की अधीनता स्वीकार कर ली थी। इसके शासकों में जयनाथ और शर्वनाथ के शासनकाल के अनेक दानपत्र उपलब्ध हुए हैं जिनसे पता चलता है कि उच्छकल्पों की राजधानी उच्छकल्प (वर्तमान उचेहरा) में थी। इनके शासन में आने वाले भूभाग के महाकांतर प्रदेश कहा जाता है। इसी के पास परिव्राजकों की राजधानी थी। विक्रम की चौथी सदी में परिव्राजकों ने अपने राज्य की स्थापना की थी। इनका राज्य वम्र्मराज्य भी कहा जाता है। वम्र्मराज्य पर बाद में नागौद के परिहारों ने अपना शासन जमा लिया था। इतिहासकारों ने पाँचवी शताब्दी के अंत तक पर हूण शासकों का शासन करना स्वीकार किया है। हूणों का प्रमुख तोरमाण था, जिसने गुप्तों को पराजित करके पूर्वी मालवा तक अपना साम्राज्य बढ़ाया था। एरण के वाराहमूर्ति शिलालेख में तोरमण के ऐश्वर्य की चर्चा है। इतिहासकारों के अनुसार भानुगुप्त और तोरमाण हर्षवर्धन के पूर्व का समय अंधकारमय है। चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरण में शासन गौडवंशी राजा के द्वारा चलाया जाना बताया गया है बाद सूरजपाल , तेजकर्ण, वज्रदामा, कीर्तिराज आदि शासक हुए पर इन्होनें कोई उल्लेखनीय योगदान नहीं दिया। चन्देलों का शासन काल आज का बुंदेलखंड चन्देल साम्राज्य का केंद्र था। चन्देल वंश मूल वशं हैहय वंश है जो चन्द्रवंशी क्षत्रियों की प्रमुख शाखा है। इन्हें अपने पुरात्वक शैव तथा वैष्णव तत्व के कारण इन्हें कई चमत्कार वरदान प्राप्त। जेजाकभुक्ति के चन्देल शासकों में प्रमुख इस प्रकार हैं - नन्नुक सन् ८३१ ई. वाक्पति सन् ८४५ ई. यशोवम्र्मन ९३० ई. धंग सन् ९५० ई. गंड सन् १००० ई. विद्याधर १०२५ ई. विजयपाल १०४० ई. देववर्मा १०५५ ई. कीर्तिवर्मा सन् १०६० ई. सल्लक्षण वर्मन ११०० ई. जयवर्मन १११० ई. पृथ्वीवर्मन ११२० ई. मदनवर्मन ११२९ ई. परमर्दि ११६५ ई. त्रैलोक्यवर्मन १२०३ ई. वीरवर्मन १२४५ ई. भोजवर्मन १२८२ ई. हम्मीरवर्मन वीरवर्मन द्वितीय १३०० ई. भल्लालदेव द्वितीय परमर्दिदेव द्वितीय कीर्तिवर्मन द्वितीय १५२० ई. रामचन्द्रवर्मन १५६९ ई. चन्देल काल में बुंदेलखंड में मूर्तिकला, वास्तुकला तथा अन्य कलाओं का विशेष विकास हुआ क्योंकि इसी जगह पर इनकी राजधानी थी। पृथ्वीराज से चन्देलों से संबंध भी आल्हा में दर्शाए गए हैं। सन् ११८२-८३ में चौहानों ने चन्देलों की एक टुकड़ी को सिरसागढ़ में पराजित किया था परंतु महोबा में आल्हा चन्देल को तथा किर्त्तीसागर में परमर्दिदेव से पराजित हुए। १२०२ में परमर्रिदेव की तुर्की से युद्ध के समय मृत्यु हो गई तथा चन्देल साम्राज्य के सामंत स्वतंत्र हो गए, हालांकि परमर्दिदेव के 11 वर्षीय पुत्र त्रैलोक्यवर्मन ने १२०६ की काकददहा में तुर्की तथा अन्य युद्ध में बंगाल, त्रिकलिंग, दहला, कन्नौज इत्यादि पुनः जीत लिए थे। खिलजी वंश का शासन संवत् १३७७ तक माना गया है। अलाउद्दीन खिलजी को उसके मंत्री मलिक काफूर ने मारा, मुबारक के बनने पर खुसरो ने उसे समाप्त किया। लेकिन विंध्य प्रदेश चन्देल शासकों के हाथ में ही रहे। इसी समय नरसिंहराय ने ग्वालियर पर अपना अधिकार किया। बाद में ये तोमरों के अधीन हो गया। मानसी तोमर ग्वालियर के प्रसिद्ध राजा माने गए हैं। बुंदेलखंड के अधिकांश राजाओं ने अपनी स्वतंत्र सत्ता बनानी प्रारंभ कर दी थी फिर वे किसी न किसी रूप में दिल्ली के तख्त से जुड़े रहते थे। बाबर के बाद हुमायूँ, अकबर, जहांगीर और शाहजहाँ के शासन स्मरणीय है। बुन्देलों का शासनकाल बुन्देल सूर्यवंशी गहरवारो की शाखा है। बुंदेल शुरवात में प्रमुखता चन्देल साम्राज्य के सामंत रहे शुरुवात से 1546 तक फिर जब चन्देलों का पतन हुआ तो बचा हुआ राज्य जो इनके पास आया जेजाकभुक्ति का वो इनके नाम पे बुंदेलखंड हो गया। इनमे पहला सामंत रहा था वीरभद्र। वीरभद्र के पाँच विवाह और पाँच पुत्र प्रसिद्ध हैं- इनमें रणधीर द्वितीय रानी से, कर्णपाल तृतीय रानी से, हीराशी, हंसराज और कल्याणसिंह पँचम रानी से थे। वीरभद्र के बाद कर्णपाल (१०८७ ई. से १११२ ई.) गद्दी पर बैठा। उसकी चार पत्नियाँ थीं। प्रथम के कन्नारशाह, उदयशाह और जामशाह पैदा हुए। द्वितीय पत्नी से शौनक देव तथा नन्नुकदेव तथा चतुर्थ पत्नी से वीरसिंहदेव का जन्म हुआ। कन्नारशाह (१११२ ई.-११३० ई.), शौनकदेव (११३० ई.-११५२ ई.), नन्नुकदेव (११५२ ई.-११६९ ई.) महोनी व वीरसिंह के पुत्र मोहनपति (११६९ ई.-११९७ ई.), अभयभूपति (११६९ ई.-१२१५ ई.) गद्दी पर आए। अर्जुनपाल अभयभूपति का पुत्र था। ये १२१५ ई. से १२३१ ई. तक गद्दी पर रहा। उसने तीन विवाह किए। दूसरी रानी से सोहनपाल का जन्म हुआ। यह ओरछा बसाने में विशेष सहायक माना जाता है। अंग्रेजी राज्य में विलयन बुंदेलखडं की सीमाएं छत्रसाल के समय तक अत्यंत व्यापक थीं, इस प्रदेश में उत्तर प्रदेश के झाँसी, हमीरपुर, जालौन, बाँदा, मध्यप्रदेश के सागर, जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, मंडला तथा मालवा संघ के शिवपुरी, कटेरा, पिछोर, कोलारस, भिंड, लहार और मांडेर के जिले और परगने शामिल थे। इस पूर भूभाग का क्षेत्रफल लगभग ३००० वर्गमील था। अंग्रेजी राज्य में आने से पूर्व बुंदेलखंड में अनेक जागीरें और छोटे-छोटे राज्य थे। बुंदेलखंड कमिश्नरी का निर्माण सन् १८२० में हुआ। सन् १८३५ में जालौन, हमीरपुर, बाँदा के जिलों को उत्तर प्रदेश और सागर जिला को मध्यप्रदेश में मिला दिया गया, जिसकी देख-रेख आगरा से होती थी। सन् १८३९ में सागर और दमोह जिला को मिलाकर एक कमिश्नरी बना दी गई, जिसकी देखरेख झाँसी से होती थी। कुछ दिनों बाद कमिश्नरी का कार्यालय झांसी से नौगांव आ गया। सन् १८४२ में सागर, दमोह जिलों में अंग्रेजों के खिलाफ बहुत बड़ा आंदोलन हुआ परंतु फूट डालने की नीति के द्वारा शांति स्थापित कर दी गई। इसके बाद बुंदेलखंड का इतिहास अंग्रेजी साम्राज्य की नीतियों की ही अभिव्यक्ति करता है। अनेक शहीदों ने समय समय पर स्वतंत्रता के आंदोलन छेड़े परंतु महात्‍मा गाँधी जैसे प्रमुख नेताओं के आने तक कुछ ठोस उपलब्धि प्राप्‍त नहीं हो सकी। सन्दर्भ टीका टिप्पणी    क.    उद्धरिष्यति कौटिल्य सभा द्वादशीम, सुतान्। मुक्त्वा महीं वर्ष शलो मौर्यान गमिष्यति।। इत्येते दंश मौर्यास्तु ये मोक्ष्यनिंत वसुन्धराम्। सप्त त्रींशच्छतं पूर्ण तेभ्य: शुभ्ङाग गमिष्यति।    ख.    तेषामन्ते पृथिवीं दस शुंगमोक्ष्यन्ति। पुण्यमित्रस्सेना पतिस्स्वामिनं हत्वा राज्यं करिष्यति।।विष्णुपुराण तुभ्य: शुंगमिश्यति। पुष्यमिन्नस्तु सेनानी रुद्रधृत्य स वृहदथाल कारयिष्यीत वै राज्यं षट् त्रिशंति समानृप:।।मत्स्य पुराण बुंदेलखंड
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%28%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%AA%E0%A4%A6%29
गांधार (जनपद)
गांधार प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। इस प्रदेश का मुख्य केन्द्र आधुनिक पेशावर और आसपास के इलाके थे। इस महाजनपद के प्रमुख नगर थे - पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) तथा तक्षशिला इसकी राजधानी थी। इसका अस्तित्व 600 ईसा पूर्व से 11वीं सदी तक रहा। कुषाण शासकों के दौरान यहां बौद्ध धर्म बहुत फला फूला पर बाद में मुस्लिम आक्रमण के कारण इसका पतन हो गया।<ref>{{cite book |last=नाहर |first= डॉ रतिभानु सिंह|title= प्राचीन भारत का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास |year= 1974 |publisher= किताबमहल|location= इलाहाबाद, भारत|id= |page= 112|editor: |access-date= 19 म इन्हें भी देखें महाजनपद सन्दर्भ भारत के पारंपरिक क्षेत्र महाजनपद अफ़्गानिस्तान का भौगोलिक इतिहास भारत के प्राचीन साम्राज्य और राज्य
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A4%BE
मध्य प्रदेश विधानसभा
मध्य प्रदेश विधान सभा भारत में मध्य प्रदेश राज्य का एकसदनीय राज्य विधानमंडल है। विधानसभा की गद्दी राज्य की राजधानी भोपाल में है। यह भोपाल शहर के अरेरा पहाड़ी इलाके में राजधानी परिसर के केंद्र में स्थित एक भव्य इमारत, विधान भवन में स्थित है। विधानसभा का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है यदि इसे उससे पहले भंग न किया जाए। वर्तमान में, इसमें 230 सदस्य शामिल हैं जो सीधे एकल-सीट निर्वाचन क्षेत्रों से चुने जाते हैं। 15वीं विधानसभा में महिला निर्वाचित महिलाओं की संख्या 21 है इतिहास मध्य प्रदेश विधायिका के इतिहास का पता 1913 से लगाया जा सकता है, क्योंकि इसी वर्ष 8 नवंबर को केंद्रीय प्रांत विधान परिषद का गठन किया गया था। बाद में, भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने निर्वाचित केंद्रीय प्रांत विधान सभा का प्रावधान किया। केंद्रीय प्रांत विधान सभा का पहला चुनाव 1937 में हुआ था। वर्तमान विधानसभा राजनीतिक दल 1951 से आज तक मध्य प्रदेश के लोकसभा और विधानसभा चुनाव परिणामों के लिए, मध्य प्रदेश के चुनाव देखें । मध्यप्रदेश की राजनीति में मुख्य रूप से निम्नलिखित दल प्रभावी रहे हैं- इन्हें भी देखें मध्य प्रदेश विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची बाहरी कड़ियाँ मध्य प्रदेश विधानसभा भारत के राज्यों की विधायिकायें
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%9F%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B7
कंटशीर्ष
कंटशीर्ष या कंटशुंडी (अकांथोसेफ़ाला, Acanthocephala), एक प्रकार की पराश्रयी अथवा परोपजीवी कृमियों की श्रेणी है जो पृष्ठवंशी प्राणियों (वर्टीब्रेट्स) की सभी श्रेणियों-स्तनपायियों, चिड़ियों, उरगमों, मेंढ़कों और मछलियों-में पाई जाती है। श्रेणी का यह नाम इसकी बेलनाकार आकृति तथा शिरोभाग में मुड़े हुए काँटों के कारण पड़ा है। काँटे कृमि को पोषक की आंत्र की दीवार में स्थापित करने का काम करते हैं। परिचय इस श्रेणी में कृमियों में मुख, गुदा तथा अंतत्र आदि पाचक अवयवों का सर्वथा अभाव रहता है। अतएव, पोषक से प्राप्त आत्मसात किया हुआ भोजन कृमि के शरीर की दीवार से व्याप्त होकर कृमि का पोषण करता है। भिन्न-भिन्न जातियों (स्पीशीज़) की कंटशुंडियों की लंबाई भिन्न होती है और दो मिलीमीटर से लेकर 650 मि.मि. तक पाई जाती है। किंतु प्रत्येक जाति के नर तथा नारी कृमि की लंबाई में बड़ा अंतर रहता है। सभी जातियों की कंटशुंडियों में नारी सर्वदा नर से अधिक बड़ी होती है। विभिन्न जातियों की आकृति में भी बड़ी भिन्नता पाई जाती है। किसी का शरीर लंबा, दुबला और बेलनाकार होता है तो किसी का पार्श्व से चिपटा, छोटा और स्थूल होता है। शरी की वतह चिकनी हो सकती है, किंतु प्राय: झुर्रीदार होती है। मांसपेशियों की कारण इनमें फैलने तथा सिकुड़ने की विशेष क्षमता होती है। शरीर का रंग पोषक के भोजन के रंग पर निर्भर रहता है। गंदे भूरे रंग से लेकर चमकीले रंग तक की कंटशुंडियाँ पाई जाती हैं। इस श्रेणी का कोई भी सदस्य स्वतंत्र जीवन व्यतीत नहीं करता। सभी सदस्य अंत:परोपजीवी (एंडोपैरासाइट, endoparasite) होते हैं। और प्रत्येक सदस्य अपने जीवन की प्रारंभिक अवस्था (डिंभावस्था अर्थात्‌ लार्वल स्टेज) संधिपाद समुदाय की कठिनी (Crustacea) श्रेणी के प्राणी में और उत्तरार्ध अवस्था (वयस्क अवस्था अर्थात्‌ adult state) किसी पृष्ठविंशी प्राणी में व्यतीत करता है। सभी श्रेणियों के पृष्ठवंशी इन कंटशुंडियों के पोषक हो सकते हैं; यद्यपि प्रत्येक जाति किसी विशेष पृष्ठवंशी में ही पाई जाती हैं। इस श्रेणी में परिगणित 300 जातियों का नामकरण हो चुका है और उनमें से अधिकांश मछलियों, चिड़ियों तथा स्तनपायियों में पाई जाती हैं। कंटशुंडी संसार के सभी भूभागों में पाई जाती है। इस श्रेणी की मुख्य जाति (genus) शल्यतुंड (Echinorhynchus), वा बृहत्तुंड (Gigantorhynchus) है, जो सुअरों में पाई जाती है। इसकी लंबाई एक गज से भी अधिक तक की होती है। यह अपने पोषक की आंत्र की दीवार से अपने काँटों द्वारा, लटकी रहती है। जब इसका भ्रूण तैयार हो जाता है तब यह पोषक के मल के साथ शरीर से बाहर चली आती है। सुअर के मल को जब एक विशेष प्रकार का गुबरैला खाता है तब उस गुबरैले के भीतर यह भ्रूण पहुँचकर डिंभ (लार्वा) में विकसित हो जाता है। इस प्रकार के संक्रमित गुबरैले को जब सूअर खाता है तो डिंभ पुन: सूअर के आँत्र में पहुँच जाता है, जहाँ वह वयस्क हो जाता है। नवशल्यतुड (Neoechinorhynchus) एक अन्य उदाहरण है। यह कंटशुंडी वयस्क अवस्था में मछलियों तथा डिंभावस्था में प्रजालपक्ष डिंभों (Sialis larvae) में परोपजीवीजीवन व्यतीत करती हैं। वर्गीकरण पहले कंटशुंडी सूत्रकृमि (Nemathelminthes) समुदाय की श्रेणी में गिनी जाती थी, किंतु अब इसकी एक अलग श्रेणी निर्धारित की जा चुकी है। इस श्रेणी की वंशावली अभी अनिर्णीत है। इस श्रेणी का वर्गीकरण विभिन्न वैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से किया है, किंतु सबसे आधुनिक वर्गीकरण हाइमन का है। इन्होंने संपूर्ण श्रेणी को तीन वर्गों में विभक्त किया है : (क) आदिकंटशुंडी (Archinacanthocephala), (ख) पुराकंटशुंडी (Palaeacanthocephala) तथा (ग) प्रादिकंटशुंडी (Coacanthocephala)। इसी वर्गीकरण के मुख्य आधार शुंड (Proboscis) में वर्तमान काँटों की संख्या तथा कुछ अन्य विशेषताएँ हैं। बाहरी कड़ियाँ Fishdisease.net Review Review Images Parasites World परजीवी जन्तु
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AF%E0%A5%8B%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%98%E0%A4%B0
उयो का गिरजाघर
उयो का गिरजाघर () अस्तूरियास, स्पेन का एक गिरजाघर है। इस गिरजाघर की स्थापना 12 वीं सदी में की गई थी। बाहरी कड़ियाँ Spain By Zoran Pavlovic, Reuel R. Hanks, Charles F. Gritzner Some Account of Gothic Architecture in SpainBy George Edmund Street Romanesque Churches of Spain: A Traveller's Guide Including the Earlier Churches of AD 600-1000 Giles de la Mare, 2010 - Architecture, Romanesque - 390 pages A Hand-Book for Travellers in Spain, and Readers at Home: Describing the ...By Richard Ford The Rough Guide to Spain स्पेन के गिरजाघर स्पेन के स्मारक
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%9B%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6
आर्या छन्द
आर्या छन्द संस्कृत पद्य का एक मात्रिक छन्द है। जिस छन्द के प्रथम और तृतीय चरण में बारह बारह मात्रायें, द्वितीय चरण में अठारह मात्रायें और चतुर्थ चरण में पन्द्रह मात्रायें हों, वह आर्या छन्द कहलाता है। उदाहरण नियतिकृतनियम सहिताः प्रादुः षन्त्येष यदा कदेतयः। नहि विजहति धीराः स्वं धैर्य कृतबुद्धयः सन्त। प्रस्तुत उदाहरण में प्रथम और तृतीय चरण में १२ बारह मात्रायें, द्वितीय चरण में १८ अठारह मात्रायें और चतुर्थ चरण में १५ मात्रायें होने से आर्या छन्द है। छंद
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4
इस्तमरारी बन्दोबस्त
स्थाई बन्दोबस्त को 1790 में जान शोर की व्यवस्था के नाम से शुरू किया गया था। जिसेे बाद में स्थाई बन्दोबस्त या इस्तमरारी बन्दोबस्त के नाम से जाना जाने लगा। इस्तमरारी बन्दोबस्त सन् 1793 ई० में बंगाल के गवर्नर-जनरल लार्ड कार्नवालिस ने बंगाल में लागू किया था। इस व्यवस्था के अनुसार जमींदार को एक निश्चित राजस्व की राशि ईस्ट इण्डिया कम्पनी को देनी होती थी। जो जमींदार अपनी निश्चित राशि नहीं चुका पाते थे , उनकी जमींदारियाँ नीलाम कर दी जाती थीं। यह तत्कालीन भारत के 19 प्रतिशत भाग पर लागू थी<वारेन हेस्टिंग्ज द्वारा बंगाल में स्थापित कर संग्रहण की ठेकेदारी व्यवस्था से किसानों की स्थिति सोचनीय हो गयी थी। इस स्थिति में सुधार के लिए कंपनी सरकार ने लार्ड कार्नवालिस को स्थायी सुधार के लिए नियुक्त किया।स्थायी बंदोबस्त अथवा इस्तमरारी बंदोबस्त ईस्ट इण्डिया कंपनी और बंगाल के जमींदारों के बीच कर वसूलने से सम्बंधित एक एक सथाई व्यवस्था हेतु सहमति समझौता था जिसे बंगाल में लार्ड कार्नवालिस[1] द्वारा 22 मार्च, 1793 को लागू किया गया। इसके द्वारा तत्कालीन बंगाल और बिहार में भूमि कर वसूलने की जमींदारी प्रथा को आधीकारिक तरीका चुना गया। बाद में यह कुछ विनियामकों द्वारा पूरे उत्तर भारत में लागू किया गया।[1] इस बंदोबस्त के अन्य दूरगामी परिणाम भी हुए और इन्ही के द्वारा भारत में पहली बार आधिकारिक सेवाओं को तीन स्पष्ट भागों में विभक्त किया गया और राजस्व, न्याय और वाणिज्यिक सेवाओं को अलग-अलग किया गया।></ref> सन्दर्भ बन्दोबस्त भारत में ब्रिटिश राज
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A5%81%20%E0%A4%A4%E0%A5%82%20%E0%A4%A4%E0%A5%82%20%281999%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29
हु तू तू (1999 फ़िल्म)
हु तू तू 1999 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। संक्षेप यह फिल्म राजनीति के सामाजिक तथा निजी जीवन पर बुरे प्रभाव, भ्रष्टाचार, निर्दयी आपराधिक प्रवृत्ति और सामाजिक कार्यकर्ताओं के संघर्ष को दिखाता है। फिल्म का दुखत है। चरित्र मुख्य कलाकार नाना पाटेकर - भाऊ सुनील शेट्टी - आदित्य तबु - पन्ना सुहासिनी मुले - पन्ना की मां शिवाजी साटम - पन्ना के पिता मोहन अगाशे - सामंतराव गदरे कुलभूषण खरबंदा - आदित्य के पिता राजेन्द्रनाथ ज़ुत्शी - अरुण अजीत वाच्छानी अनिल नागरथ ग्रेसी सिंह - शांति नेहा राम दल संगीत रोचक तथ्य परिणाम बौक्स ऑफिस समीक्षाएँ नामांकन और पुरस्कार बाहरी कड़ियाँ 1999 में बनी हिन्दी फ़िल्म
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द एक्सॉर्सिस्ट (१९७३ फिल्म)
द एक्सॉर्सिस्ट (अंग्रेज़ीः The Exorcist) विलियम फ्रेडकिन द्वारा निर्देशित 1973 की अमेरिकी अलौकिक हॉरर फिल्म है और ब्लैटी द्वारा इसी नाम के 1971 के उपन्यास पर आधारित विलियम पीटर ब्लैटी द्वारा निर्मित और स्क्रीन के लिए लिखी गई है। फिल्म में एलेन बर्स्टिन, मैक्स वॉन सिडो, ली जे। कॉब, किट्टी विन्न, जैक मैकगोवरन (उनकी अंतिम फिल्म भूमिका में), जेसन मिलर और लिंडा ब्लेयर हैं। यह ओझा फिल्म श्रृंखला में पहली किस्त है, और बारह वर्षीय रेगन के राक्षसी कब्जे और दो कैथोलिक पादरियों द्वारा आयोजित एक भूत भगाने के माध्यम से उसे बचाने के लिए उसकी मां के प्रयास का अनुसरण करता है। मूल रूप से, फिल्म को मिश्रित आलोचनात्मक प्रतिक्रिया मिली थी। कुछ दर्शकों को शारीरिक बीमारी, बेहोशी, उल्टी, दिल का दौरा पड़ा, बीमार दर्शकों के ठीक होने के लिए एम्बुलेंस को किसी भी सिनेमाघर के बाहर इंतजार करना पड़ा। करानी लैंकेस्टर मेरिन, एक अनुभवी कैथोलिक पादरी, इराक के प्राचीन शहर हटरा में एक पुरातात्विक खुदाई पर है। एक सहयोगी द्वारा सतर्क किया गया, उसे एक मूर्ति मिलती है जो प्राचीन मूल के एक दानव पज़ुजू से मिलती-जुलती है, जिसके इतिहास से मेरिन परिचित है। इसके तुरंत बाद, मेरिन का सामना पज़ुज़ू की छवि में उसके ऊपर एक विशाल मूर्ति से होता है; एक शगुन उसे एक आसन्न टकराव की चेतावनी देता है। इस बीच, जॉर्जटाउन में, अभिनेत्री क्रिस मैकनील अपनी 12 वर्षीय बेटी रेगन के साथ स्थान पर रह रही है; वह अपने दोस्त और सहयोगी बर्क डेन्निंग्स द्वारा निर्देशित फिल्म में अभिनय कर रही हैं। इस दौरान घर के आसपास छोटी-छोटी विषमताएं होने लगती हैं, जैसे बिना स्रोत के अटारी से खुजलाना। एक Ouija बोर्ड के साथ खेलने के बाद और एक काल्पनिक दोस्त से संपर्क करने के बाद, जिसे वह कैप्टन हाउडी कहती है, रेगन अजीब तरह से अभिनय करना शुरू कर देता है, अश्लील भाषा का उपयोग करता है, और असामान्य ताकत का प्रदर्शन करता है; साथ ही रात में घर में पोल्टरजिस्ट जैसी गतिविधि होती है। क्रिस एक पार्टी की मेजबानी करता है, जिसके दौरान रेगन अघोषित रूप से नीचे आता है, मेहमानों में से एक को बताता है - एक अंतरिक्ष यात्री - कि वह "वहां मर जाएगा" और फिर फर्श पर पेशाब करता है। उस रात बाद में, रेगन का बिस्तर हिलना शुरू हो जाता है और हिंसक रूप से उड़ जाता है। क्रिस कई चिकित्सकों से परामर्श करता है, रेगन को नैदानिक ​​परीक्षणों की एक बैटरी के माध्यम से डालता है, लेकिन डॉक्टरों को उसके साथ शारीरिक रूप से कुछ भी गलत नहीं लगता है। एक रात जब क्रिस बाहर होता है, बर्क डेन्निंग्स एक भारी बेहोश रेगन की देखभाल कर रहा होता है। क्रिस यह सुनने के लिए लौटता है कि खिड़की से गिरकर डेनिंग्स की मृत्यु हो गई है। हालांकि यह माना जाता है कि बर्क के भारी शराब पीने के इतिहास को देखते हुए यह एक दुर्घटना थी, उनकी मृत्यु की जांच लेफ्टिनेंट विलियम किंडरमैन द्वारा की जाती है। किंडरमैन ने क्रिस का साक्षात्कार लिया। वह मनोचिकित्सक पिता डेमियन कर्रास से भी सलाह लेता है, जो एक जेसुइट पुजारी है जो अपने विश्वास से जूझ रहा है। कर्रास की आस्था का संकट उसकी मां के निधन से तबाह हो गया है, जिसकी मृत्यु के लिए वह खुद को दोषी ठहराता है। डॉक्टरों का मानना ​​है कि रेगन के विचलन ज्यादातर मूल रूप से मनोवैज्ञानिक हैं, एक भूत भगाने की सलाह देते हैं। क्रिस कर्रास के साथ एक बैठक की व्यवस्था करता है, जो आध्यात्मिक रूप से संलग्न होने के लिए अनिच्छुक है, कम से कम रेगन के साथ बात करने के लिए सहमत है। जैसे ही दोनों आमने-सामने आते हैं, कर्रास और रेगन एक-दूसरे की बुद्धि की परीक्षा लेते हैं, हालांकि कर्रास इस विचार से संशय में हैं कि कुछ भी अलौकिक हो रहा है। क्रिस आंसू बहाते हुए खुद को एक मृत अंत में पाता है और कर्रास में विश्वास करता है कि रेगन वही था जिसने डेन्निंग्स की हत्या की थी, और उससे समाधान खोजने के लिए विनती करता है। अगले कुछ दिनों में, कर्रास ने रेगन को अलग-अलग भाषाओं में पीछे की ओर बोलते हुए देखा, जिसे वह नहीं जानती, और उसके पेट पर "हेल्प मी" की वर्तनी के निशान दिखाई देते हैं, जिससे उसे विश्वास हो जाता है कि वह वास्तव में एक दानव के पास है। वह चर्च से आग्रह करता है कि वह उसे भूत भगाने की अनुमति दे, लेकिन, यह महसूस करते हुए कि कर्रास बेजोड़ है, चर्च मेरिन को भूत भगाने के लिए कहता है जबकि कर्रास को सहायता करने की अनुमति देता है। अनुष्ठान की शुरुआत वसीयत की लड़ाई के रूप में होती है जिसमें रेगन कई भयानक और अश्लील हरकतें करता है। वे दानव को भगाने का प्रयास करते हैं, लेकिन आत्मा खुद को शैतान होने का दावा करते हुए खोदती है। आत्मा लगातार पुजारी के साथ खिलवाड़ करती है और अपनी मां के निधन से उसके अपराध बोध को भांपते हुए कर्रास पर ध्यान केंद्रित करती है। दानव द्वारा अपनी दिवंगत मां का रूप धारण करने के बाद कर्रास कमजोर हो जाता है, और मेरिन द्वारा क्षमा किया जाता है जो अकेले भूत भगाने को जारी रखता है। एक बार जब उसने अपनी ताकत इकट्ठी कर ली, तो कर्रास कमरे में फिर से प्रवेश करता है और मेरिन को दिल का दौरा पड़ने से मरा हुआ पाता है। मेरिन को पुनर्जीवित करने में विफल होने के बाद, क्रोधित कर्रास हंसते हुए रेगन को पकड़ लेता है और उसे जमीन पर पटक देता है। कर्रास के निमंत्रण पर, दानव रेगन के शरीर को छोड़ देता है और कर्रास को पकड़ लेता है। ताकत और आत्म-बलिदान के अंतिम क्षण में, कर्रास रेगन को नुकसान पहुंचाने से पहले खुद को खिड़की से बाहर फेंक देता है, पत्थर के कदमों के एक सेट से नीचे गिरकर और अंत में दानव को हराकर उसकी मौत हो जाती है। कर्रास के दोस्त फादर डायर घटनास्थल पर आते हैं और कर्रास को अंतिम संस्कार करते हैं। कुछ दिनों बाद, रेगन, अब अपने सामान्य स्व में वापस, अपनी माँ के साथ लॉस एंजिल्स के लिए रवाना होने की तैयारी करती है। हालांकि रेगन उसके कब्जे के कोई स्पष्ट याद है, वह गाल पर उसे चूमने के लिए डायर के लिपिक कॉलर की दृष्टि से ले जाया जाता है। जैसे ही कार दूर जाती है, क्रिस ड्राइवर को रुकने के लिए कहता है, और वह फादर डायर को एक पदक देती है जो कर्रास का था। उनके ड्राइव करने के बाद, डायर रेगन की खिड़की को एक आखिरी नज़र देने के लिए पत्थर की सीढ़ियों के शीर्ष पर रुक जाता है, और फिर चलने के लिए मुड़ जाता है। निर्देशक की कट एंडिंग 2000 में, फिल्म का एक संस्करण जारी किया गया था जिसे "वह संस्करण जिसे आपने देखा है" या "विस्तारित निर्देशक का कट" के रूप में जाना जाता है। इस संस्करण के अंत में, जब क्रिस डायर को कर्रास का पदक देता है, डायर उसे वापस अपने हाथ में रखता है और सुझाव देता है कि वह इसे रखे। उसके और रेगन के दूर जाने के बाद, डायर पत्थर की सीढ़ियों के शीर्ष पर रुक जाता है और दूर जाने से पहले किंडरमैन से मिलता है, जो क्रिस और रेगन के जाने से बाल-बाल बचे थे; किंडरमैन और डायर के बीच दोस्ती होने लगती है। अभिनेता और पात्र एलेन बर्स्टीन = क्रिस मकनीयल जेसन मिलर = Father/Dr. डैमियन करास, S.J. लिंडा ब्लैर = रेगन मकनीयल मैक्स वॉन सीडो = फादर लैंकेस्टर मेरिन ली जे. कॉब = लेफ्टिनेंट विलियम एफ़. किंडरमन किटी विन = शैरन स्पेंसर जैक मगाउरन = बर्क डेनिंग्स फादर विलियम ओ'मैली = फादर जोसेफ डयर फादर थॉमस बेर्मिंघम = टॉम (जॉर्ज टाउन विश्वविद्यालय के अध्यक्ष) पीटर मास्टरसन = Dr. बारिंगर रॉबर्ट सीमोंड्स = Dr. टैनी बार्टन हेमन = Dr. सैम्युल क्लाइन रुडोल्फ़ शुंडलर = कार्ल (गृह सेवक) आर्थर स्टोर्च = मनोचिकित्सक वासिलिकी मालियारो = कर्रास की माता टिटोस वैंडिस = कर्रास के चाचा मरसेडीज़ म्ककैम्ब्रिज = पज़ूज़ू आवाज़ ऐलीन डीत्ज़ = पज़ूज़ू चेहरा (असूचीबद्ध) उत्पादन संगीत सार्वजनिक रिलीज आलोचनात्मक स्वीकार्यता नाट्य प्रदर्शनी U.K. वीडियो प्रतिबंध दर्शकों की प्रतिक्रिया विरासत पुरस्कार अगली कड़ियों फिल्म के फॉलो-अप (1977 से वर्तमान तक) थे, जिन्हें प्रशंसकों, आलोचकों और दर्शकों द्वारा पहली फिल्म की तरह सराहा नहीं गया, लेकिन फिल्में कल्ट क्लासिक्स बनी हुई हैं। द एक्सॉर्सिस्ट अब एक मीडिया फ़्रैंचाइज़ी है और अब तक की सर्वश्रेष्ठ हॉरर फ़िल्मों में से एक है। संदर्भ THE EXORCIST (X). British Board of Film Classification. 28 January 1974. द एक्सॉर्सिस्ट (THE EXORCIST) (व/A) . Central Board of Film Certification. 27 August 1977. बाहरी कड़ियाँ द एक्सॉर्सिस्ट IMDb
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समीर सेन
समीर सेन (जन्म , 5 नवंबर 1970) एवरस्टोन ग्रुप के सह-संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं जिसका मुख्यालय सिंगापुर में है। एवरस्टोन के सह-संस्थापक होने के साथ साथ, वह फर्म के प्रबंधन की भी देखरेख करते हैं। एवरस्टोन अपने निजी इक्विटी, अचल संपत्ति, उद्यम पूंजी और हरित आधारिक संरचना जैसे कारोबारों में $5 बिलियन से अधिक की संपत्ति का प्रबंधन करता है। प्रारंभिक जीवन / शिक्षा समीर सेन का जन्म बांद्रामें हुआ और उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय के सिडेनहैम कॉलेज से बी.कॉम में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। तत्पचात, उन्होंने मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय से बीबीए की डिग्री भी प्राप्त की। समीर ने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के जॉनसन ग्रेजुएट स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से एमबीए की पढ़ाई पूरी की। व्यवसाय समीर सेन ने गोल्डमैन साक्स के साथ प्रबंध निदेशक, विशेष निवेश समूह (अंतर्राष्ट्रीय) के प्रमुख और संस्थागत धन प्रबंधन (ईएमईए) के रूप में काम किया। 2006 में, समीर सेन और अतुल कपूर ने दो व्यवसाय स्थापित किए - पहला परिसंपत्ति प्रबंधन व्यवसाय - जो पीई और रियल एस्टेट से संबंधित था एवं दूसरा एक वित्तीय सेवा व्यवसाय था। 2010 में, समीर सेन और अतुल कपूर ने परिसंपत्ति प्रबंधन व्यवसाय में शेयर खरीदे और वित्तीय सेवा व्यवसाय में अपनी हिस्सेदारी का विक्रय किया। इसके पश्चात, समीर और अतुल ने एक निजी इक्विटी और रियल एस्टेट निवेश कंपनी एवरस्टोन की स्थापना की। एवरस्टोन एवरस्टोन एफ एंड बी एशिया नामक एक मंच चलाता है, जिसके तहत यह भारत और इंडोनेशिया में फास्टफूड फ्रैंचाइज़ी बर्गर किंग और इंडोनेशिया में डोमिनोज़ को नियंत्रित करता है। समूह ने आईटी और आईटी सक्षम सेवा व्यवसाय, शिक्षा, स्वास्थ्य और फार्मास्यूटिकल जैसे उद्योगों में निवेश किया है। समीर सेन इंडोस्पेस लॉजिस्टिक पार्क के साथ भी जुड़े हुए हैं जो एवरस्टोन कैपिटल, यूएस-आधारित रियल्टर ग्रुप और जीएलपी के बीच एक संयुक्त उद्यम के तौर पर कार्य करता है।2018 तक, कंपनी ने दो औद्योगिक अचल संपत्ति फंडों में $ 584 मिलियन जुटाए। 2018 में, इंडोस्पेस ने अपना तीसरा और सबसे बड़ा लॉजिस्टिक्स रियल एस्टेट फंड 1.2 बिलियन डॉलर में बंद किया जिसके कारण भारत में इसकी कुल प्रतिबद्धता $ 3.2 बिलियन से अधिक हो गई। व्यक्तिगत जीवन समीर शौकिया तौर पर एक वाइन कलेक्टर हैं और समकालीन कला और वास्तुकला से ख़ासा लगाव रखते हैं। उन्हें घूमना पसंद है। साथ ही साथ, वह एक खाद्य पारखी होने की भी प्रतिष्ठा रखते हैं। समीर ईवाई एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर इंडिया 2018 पुरस्कार कार्यक्रम के लिए आठ सदस्यीय जूरी का भी हिस्सा रहे थे। लोकोपकार समीर सेन लड़कियों की शिक्षा के लिए संचालित माध्यमिक विद्यालय, अवसरा अकादमी के संस्थापक सदस्य और ट्रस्टी भी हैं। यहाँ छात्राएँ अकादमिक उत्कृष्टता के साथ साथ नेतृत्व, उद्यमशीलता, भारत के अध्ययन आदि पाठ्यक्रमों से भी जुडी हुई हैं।उनका समूह मुक्ति नामक संस्था का भी समर्थक है जो महिला सशक्तिकरण की ओर लक्षित है। बोर्ड सदस्यता और संबद्धता समीर सेन विभिन्न क्षमताओं में कई कंपनियों से जुड़े हैं। वह वर्तमान में इंडोस्टार कैपिटल फाइनेंस लिमिटेड के गैर-कार्यकारी निदेशक के रूप में सेवारत हैं; निदेशक, सेंट्रम इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड; नामांकित निदेशक, वीएलसीसी हेल्थ केयर लिमिटेड; निदेशक एंबिट निवेश सलाहकार कंपनी लिमिटेड; स्वतंत्र निदेशक, पेगासस एसेट रिकंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड; और निदेशक, फ्यूचर मीडिया इंडिया लिमिटेड। सन्दर्भ 1970 में जन्मे लोग
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