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929237 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%80%20%E0%A4%85%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5 | विकल्पी अवायुजीव | विकल्पी अवायुजीव (facultative aerobe) ऐसा जीव होता है जो ऑक्सीजन की उपस्थिति में एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट बनाने के लिए उसका वायवीय श्वसन द्वारा प्रयोग कर लेता है लेकिन ऑक्सीजन न होने पर भी अवायवीय श्वसन या किण्वन द्वारा जीने व पनपने में सक्षम है। इसके विपरीत अविकल्पी वायुजीव बिना ऑक्सीजन के मर जाते हैं और अविकल्पी अवायुजीव ऑक्सीजन की उपस्थिति में हानिग्रस्त होते हैं या मर जाते हैं। स्टैफ़ीलोकोक्क्स नामक बैक्टीरिया विकल्पी अवायुजीवों का उदाहरण हैं।
इन्हें भी देखें
अवायुजीवी जीव
सन्दर्भ
अवायवीय पाचन
कोशिकीय श्वसन | 85 |
221035 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A4%BE%20%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8 | वसुंधरा दास | वसुंधरा दास (), () (जन्म 1977) एक भारतीय अभिनेत्री और गायिका हैं।
प्रारंभिक जीवन
वसुंधरा दास का जन्म बंगलौर के एक तमिल परिवार में हुआ था। उन्होंने बंगलौर के क्लूनी कॉन्वेंट हाई स्कूल में अध्ययन किया और माउंट कार्मेल कॉलेज से अर्थशास्त्र और गणित में स्नातक उतीर्ण किया।
उन्होंने छह साल की उम्र से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षण लेना शुरू किया। वे संगीत की शिक्षा लेने से बचने के लिए घर से भाग जाया करती थीं। अपने कॉलेज के दिनों में, वे एक ऑल-गर्ल बैंड का हिस्सा थीं और अपने गिटार पर कुछ बेसुरे फ्लेमेंको बजा लेती थीं।
वे कन्नड़, तमिल, हिंदी, अंग्रेजी, और थोड़ी तेलुगु बोल लेती हैं।
कैरियर
अभिनेत्री
वसुंधरा ने कमल हसन की फिल्म हे राम (1999) के साथ अभिनय की शुरुआत की और एक पार्श्व गायिका के रूप में उनका कैरियर तब शुरू हुआ जब उन्होंने एक तमिल-भाषी फिल्म मुधाल्वन के लिए ए. आर. रहमान के साथ काम किया। उन्हें मणिरत्नम द्वारा 'अलाईपायुथेय' में आर माधवन के साथ नायिका की मुख्य भूमिका के लिए चुना गया था। उन्होंने अनुभवी अभिनेता मोहनलाल के साथ मलयालम फिल्म रवनाप्रभु मुख्य भूमिका निभाई और उन्होंने तमिल फिल्म सिटिजन में अभिनेता अजित के साथ मुख्य भूमिका निभाई है।
उन्होंने रब ने बना दी जोड़ी में अपना योगदान दिया।
गायिका
उन्होंने अपने गैर फ़िल्मी गीतों का एल्बम रिकॉर्ड किया और उन्होंने फ्रेंच, अंग्रेजी, कन्नड़, तमिल, हिन्दी और तेलुगू भाषा में गाने गाये.
वे बंगलौर से मुंबई स्थानांतरित हो गयीं और रॉबर्टो नारायण के साथ मिलकर उन्होंने आर्य नामक एक संगीत बैंड की स्थापना की। इस बैंड में शामिल सदस्य संगीत की दुनिया के विभिन्न पृष्ठभूमि से हैं, जहां एक ओर इसमें हिंदुस्तानी और कर्नाटक शास्त्रीय संगीत से जुड़े संगीतकार हैं, वहीं दूसरी ओर जैज़, लातिनी, रॉक और पॉप से संबद्ध संगीतकार भी शामिल हैं। आर्य के संगीत को मोटे तौर पर विश्व संगीत के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। आर्य ने अपना पहला प्रदर्शन 2003 में स्पेन में प्रतिष्ठित ला मर डे म्युज़िकास त्योहार में किया था। इस बैंड ने सितंबर 2004 में अमेरिका का एक दौरा किया। रॉबर्टो नारायण ड्रम बजाते हैं और दास पश्चिमी और भारतीय गीत गाती हैं।
लेकिन उन्हें अपनी प्रमुख सफलता 2001 की फिल्म अक्स से मिली जिसके गीत रब्बा रब्बा के लिए उन्हें 2002 के सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्वगायिका के फिल्म फेयर पुरस्कार के लिए नामित किया गया।
उन्होंने संगीतज्ञ इलियाराजा के लिए धनुष नामक तमिल फिल्म में पट्टू विरल थोट्टू वित्ताधाल गीत गाया, यह फिल्म ए एम गुरुमणि द्वारा निर्देशित थी। उन्होंने लगान फिल्म में एक गीत गाया जो ब्रिटिश अभिनेत्री रेचल शेली पर फिल्माया गया था। उनका सबसे प्रसिद्ध हिंदी गीत था फिल्म कल हो ना हो में प्रीति जिंटा पर फिल्माया गया "इट्स द टाइम टु डिस्को". वे फिल्म कुशी के गीत "काटीपुड़ी, काटीपुड़ी दा" के लिए भी प्रसिद्ध हुई।
वह अक्सर दूसरों से ज्यादा अभिनेत्री प्रीति जिंटा के लिए गाती हैं।
फ़िल्मों की सूची
अगली और पगली [2008] हिन्दी.
एक दस्तक [2005] हिन्दी.
एगन तमिल
कुशी तमिल
बॉयज तमिल
कांडा नाल मुधाल तमिल
अनियन तमिल
मन्मदन तमिल
कुड़ियों का है ज़माना [2005] हिन्दी.
पत्थर बेज़ुबान [2004] हिन्दी.
फिल्म स्टार [2003] हिन्दी.
लंकेश पत्रिके (फिल्म) [2002] कन्नड़.
यादें [2001] हिन्दी
रावनाप्रभु [2001] मलयालम.
सिटिज़न [2001] तमिलनाडु.
मानसून वेडिंग [2000] हिन्दी.
हे राम [1999] तमिल और हिन्दी.
उनके संगीत पर प्रभाव
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय
कर्नाटक शास्त्रीय
ग़ज़ल
कोरल
अंग्रेज़ी
विलय
रॉक और फंक
स्पैनिश
सन्दर्भ
3. https://web.archive.org/web/20110717040820/http://www.hamaraphotos.com/photo_-34804.html
बाहरी कड़ियाँ
https://web.archive.org/web/20100726033822/http://www.littleindia.com/news/153/ARTICLE/1290/2006-09-14.html
https://web.archive.org/web/20110717040820/http://www.hamaraphotos.com/photo_-34804.html
जीवित लोग
भारतीय अभिनेता
भारतीय महिला गायिकाएँ
भारतीय फ़िल्म गायक
कन्नड़ पार्श्व गायक
कॉलीवुड के पार्श्वगायक
बंगलोर के लोग
तमिल अभिनेता
तेलुगु पार्श्वगायक
1977 में जन्मे लोग | 585 |
1439055 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B5 | इनुनाकी गांव | इनुनाकी गांव (जापानी: 犬鳴村 हेपबर्न: इनुनाकी-मुरा?, साँचा: लिट) एक जापानी शहरी किंवदंती है जो 1990 के दशक में फुकुओका प्रीफेक्चर में एक कथित गांव के बारे में है, जिसके आक्रामक निवासी जापानी संविधान के नियमों का पालन करने से इनकार करते हैं। . कहा जाता है कि यह गांव इनुनाकी पर्वत दर्रे [ja] के पास, माउंट इनुनाकी के आसपास स्थित है, हालांकि इसका सटीक स्थान अज्ञात है। एक वास्तविक इनुनाकी गांव, जो किंवदंती से जुड़ा नहीं है, 1691 से 1889 तक अस्तित्व में था।
दंतकथा
किंवदंती के अनुसार, इनुनाकी फुकुओका प्रान्त में स्थित एक जंगल में "छोटा और आसानी से छूटने वाला" गाँव है, जो इनुनाकी गावा की सबसे ऊपर की सहायक नदी और वाकामिया के पश्चिमी किनारे के बगल में इनुनाकी पर्वत के पूर्व में है। गांव के निवासियों ने जापान के संविधान को मानने से इनकार कर दिया। गाँव के प्रवेश द्वार के पास, एक हस्तलिखित संकेत है जिस पर लिखा है "जापानी संविधान यहाँ प्रभावी नहीं है।" गाँव को खोजने के लिए, पुरानी इनुनाकी सुरंग के पिछले हिस्से में एक छोटी सी सड़क लेनी चाहिए। मूल कहानी "1970 के दशक की शुरुआत में" होती है और एक युवा जोड़े का अनुसरण करती है, जो हिसायमा के रास्ते में थे जब अप्रत्याशित रूप से उनकी कार का इंजन टूट गया। वे अपनी कार छोड़कर मदद मांगने के लिए जंगल की ओर चले गए। वे अंततः एक गाँव में प्रवेश कर गए जो परित्यक्त लग रहा था। उन्हें एक "पागल बूढ़े आदमी" से संपर्क किया गया, जिन्होंने दरांती से उनकी हत्या करने से पहले इनुनाकी में उनका स्वागत किया।
गाँव से जुड़ी एक और कहानी है, जो इनुनकी पुल के पास एक टेलीफोन बूथ के बारे में बताती है, जिसे कथित तौर पर हर रात इनुनाकी गाँव से एक कॉल आती है। जो व्यक्ति उस कॉल का उत्तर देगा उसे श्राप दिया जाएगा और गाँव पहुँचाया जाएगा। शाप का शिकार अंततः मरने से पहले अपने शरीर और दिमाग पर से नियंत्रण खोना शुरू कर देगा।
असली इनुनाकी गांव
ईदो काल के दौरान लिखे गए ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, असली इनुनाकी गांव ( ), आधिकारिक तौर पर के रूप में संदर्भित, 1691 में फुकुओका डोमेन के एक प्रेषण समूह द्वारा स्थापित किया गया था। बुन्नई शिनोज़ाकी को ग्राम प्रधान के रूप में नियुक्त किया गया था। गाँव की आय के स्रोत सिरेमिक उत्पादों और इस्पात निर्माण का उत्पादन कर रहे थे। बाद में यहां एक कोयले की खान स्थापित की गई थी और काटो शिशो की सिफारिश के तहत 1865 में इनुनाकी गोबेककन नामक एक महल की स्थापना की गई थी।
अप्रैल 1889 में, की शुरुआत के कारण, इनुनाकिदानी को पास के योशिकावा गांव में एकीकृत किया गया था, जो वर्षों से अन्य क्षेत्रों के साथ विलय हो गया, अंततः मियावाका शहर का निर्माण हुआ। इनुनाकी बांध (1994 में पूर्ण) के निर्माण के कारण, 1986 में इनुनकिदानी की साइट जलमग्न हो गई थी। गांव के निवासियों को वाकिटा में स्थानांतरित कर दिया गया था।
उत्पत्ति और प्रसार
इस स्थान से जुड़े कई हत्या के मामलों के कारण पुरानी इनुनाकी सुरंग के क्षेत्र को प्रेतवाधित माना जाता है। सुरंग का निर्माण 1949 में पूरा हुआ था। 1975 में पास में एक नई सुरंग का निर्माण किया गया था। अनुपयोगी पुरानी सुरंग रख-रखाव के अभाव में खतरनाक हो गई है। 6 दिसंबर 1988 को, पांच युवकों ने एक कारखाने के कर्मचारी का अपहरण कर लिया और उसे प्रताड़ित किया, जिसकी कार वे चोरी करना चाहते थे, उसे पुरानी सुरंग के अंदर गैसोलीन से जलाकर मार डाला। अपराधियों को गिरफ्तार किया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। पुरानी सुरंग के प्रवेश द्वार को दोनों ओर से दुर्गम बना दिया गया है। 2000 में पास के बांध में एक लाश मिली थी।
इनुनाकी विलेज अर्बन लेजेंड का पहला ऑनलाइन उल्लेख 1999 का है, जब निप्पॉन टीवी को एक गुमनाम व्यक्ति से एक पत्र मिला, जिसमें गांव में हत्या किए गए दंपती की कहानी का वर्णन किया गया था और निप्पॉन टीवी क्रू से उस जगह का दौरा करने का आग्रह किया था। गुमनाम पत्र का शीर्षक था "द विलेज इन जापान दैट इज नॉट पार्ट ऑफ जापान"।
लोकप्रिय संस्कृति में
इनुनाकी गांव की कथा ने मीडिया के कई हिस्सों को प्रेरित किया। एक डरावनी फिल्म (犬鳴村) ताकाशी शिमिज़ु द्वारा निर्देशित, किंवदंती पर आधारित, फरवरी 2019 में रिलीज़ हुई थी। फिल्म की रिलीज़ ने पुरानी इनुनाकी सुरंग की लोकप्रियता में योगदान दिया, जिससे क्षेत्र में अतिक्रमण और बर्बरता में वृद्धि हुई। उसी वर्ष नवंबर में, नामक एक डरावनी गेम स्टीम पर जारी किया गया था . इस कहानी ने 2016 की एनीमे टेलीविजन शृंखला द लॉस्ट विलेज (迷家-マヨイガ-) और द स्टोरी ऑफ द मिस्टीरियस टनल (トンネルの奇譚) मंगा को जूनजी इतो से भी प्रेरित किया।
जापानी भाषा पाठ वाले लेख | 776 |
28940 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%AD%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%20%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%20%28%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%29 | महान देशभक्तिपूर्ण युद्ध (द्वितीय विश्वयुद्ध) | सोवियत संघ का महान् देशभक्तिपूर्ण युद्ध (रूसी: Великая Отечественная Война - वेलीकया ओतेचेस्त्वेन्नया वोय्ना) - या द्वितीय विश्वयुद्ध, जो सोवियत जनता के लिए 1941-1945 वर्षों में विशेष रूप से अपने देश के अस्तितव की रक्षा को लेकर सब से बड़ी घटना के रूप में दुनिया के इतिहास में जाना जाता है। इस युद्ध में दो करोड़ अस्सी लाख से ज़्यादा सोवियत निवासी मारे गए।
आरंभ
सन् 1933 में जर्मनी में हिटलर के नेतृत्व में फ़ासिस्टों ने सत्ता हथिया ली, जर्मन जनता के जनवादी अधिकारों और आज़ादी को दफ़ना दिया और देश में अपना ख़ूनी तृतीय साम्राज्य (जर्मन: Drittes Reich "द्रीत्तेस रय्ख़्") क़ायम कर लिया। हज़ारों फ़ासिस्ट-विरोधियों को जेलों और नज़रबंद-कैंपों में ठूँस दिया गया। जर्मन सरकार ने बड़ी भारी हमलावर फ़ौज खड़ी की और नवीनतम जंगी साज़-सामान से उसे लैस किया। जर्मनी की सारी अर्थ-व्यवस्था युद्ध की तैयारी में जुट गयी।
फ़ासिस्ट आक्रमण का पहला शिकार हुआ स्पेन। बाद में क्रमशः ऑस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया और पोलैंड की बारी आयी। ब्रिटेन और फ़्राँस ने सितंबर, 1939 में जर्मनी पर युद्ध की घोषणा कर दी। मई-जून 1940 में फ़ासिस्ट जर्मनी ने फ़्रांस पर क़ब्ज़ा कर लिया। यूरोप के बहुत बडे़ इलाक़े में फ़ासिस्टों की नयी व्यवस्था (जर्मन: Die Neue Ordnung "दी नोइये ओर्दनुंग") लागू कर दी गयी, जिस के कार्यक्रम के अनुसार कुछ जातियों तथा राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से यहूदी, स्लाव, नीग्रो और जिप्सी लोगों का तथा समलिंगी और येहोवा के साक्षियों के विनाश को निश्चित किया जाता था।
सन् 1941 - सोवियत संघ पर चढा़ई
22 जून 1941 की सुबह को जर्मन फ़ासिस्टों ने सोवियत संघ के साथ हुई अनाक्रमण-संधि भंग कर के सोवियत देश पर चढा़ई कर दी। तब से सोवियत लोगों का महान् देशभक्तिपूर्ण युद्ध शुरू हुआ। युद्ध के पहले दौर में फ़ासिस्ट सेना के पास लाल सेना के मुक़ाबले में ज़्यादा सैनिक तथा अफ़सर और फ़ौजी साज़-सामान, ख़ास तौर से टैंक तथा विमान थे और इस कारण लाल सेना पीछे हटने के लिए विवश थी। सोवियत सरकार के आह्वान पर फ़ासिस्ट जर्मनी और उस के साथी-राष्ट्रों के ख़िलाफ़ मुक्ति-संग्राम लड़ने के लिए सारी सोवियत जनता उठ खडी़ हो गयी।
पहले फ़ासिस्ट जनरलों का ख़्याल था कि सोवियत संघ पर जल्दी और आसानी से वे विजय हासिल कर लेंगे। 1941 की शरद् में फ़ासिस्ट मास्को के नज़दीक पहुँच गये। मास्को के निकट उन्हों ने अपनी मुख्य फ़ौजें जमा तो कर लीं, मगर मास्को पर क़ब्ज़ा करना उन से न हो सका। दिसम्बर, 1941 में मास्को के पास हिटलरी फ़ौजों की कमर तोड़ दी गयी और उन्हें पीछे खदेड़ दिया गया। पहली बार फ़ासिस्ट सेनाओं को इतनी सख़्त पराजय का मुँह देखना पडा़। इतने में फ़ासिस्टों के क़ब्ज़े में आये हुए इलाक़ों के लोगों से छापेमार संघर्ष चलाने के लिए सोवियत सरकार की ओर से अपील की गयी और इन क्षेत्रों में बहुत से छापेमार दस्ते तथा गुप्त संगठन क़ायम हुए जिन्हों ने फ़ासिस्ट हमलावरों के ख़िलाफ़ संघर्ष छेड़ दिया और विशाल मोर्चे पर लड़ती सोवियत फ़ौजों को सहायता दी।
लेनिनग्राद की नाक़ेबंदी
लेनिनग्राद शहर (1991 से सेंट पीटर्सबर्ग) के नज़दीक फ़ासिस्ट फ़ौजें सितंबर के शुरू में पहुँच गईं और छापा मार कर उस पर क़ब्ज़ा करने की कई बार कोशिश की। पर उन की सभी कोशिशें असफल हो गयीं। तब हिटलरी कमान ने शहर की नाक़ेबंदी शुरू करने का हुक्म दिया। लेनिनग्राद के सभी थल-मार्ग काट दिये गये और शहर सब ओर से फ़ासिस्ट दस्तों द्वारा घेर लिया गया। जर्मनों ने शहर पर गोलाबारी और हवाई बमबारी आरंभ कर दी। नाक़ेबंदी 8 सितंबर 1941 को शुरू हुई और 900 दिन जारी रही। घेरे में रहते समय 9,42,803 लेनिनग्रादवासी भूखों मरे। पर लेनिनग्राद के कारख़ानों में टैंक, तोपें, मशीनगनें वग़ैरह हथियार बनाये जा रहे थे। टैंक कारख़ानों से सीधे ही मोर्चे पर चले जाते थे जो बहुत ही नज़दीक था। लेनिनग्राद की ज़रूरी मदद करने के, मुख्य रूप से खाने की चीज़ें वहाँ पहुँचाने के लिए लदोगा झील पर जमी बर्फ़ के ऊपर से 160 किलोमीटर लंबा रास्ता बनाया गया। लेनिनग्रादवालों के लिए खाने की चीज़ें ले कर लारियाँ इस रास्ते से जाती थीं। फ़ासिस्ट इस पर बम बरसाते थे, फिर भी ऐसी कठिन परिस्थितियों में भी लेनिनग्राद के रक्षकों को सहायता उत्तरोत्तर अधिक मात्रा में पहुँचती जाती थी।
18 जनवरी 1944 को लाल सेना ने नाक़ेबंदी तोड़ दी और जनवरी महीने के अंत में लेनिनग्राद के पास खडी़ फ़ासिस्ट फ़ौजों को चकनाचूर कर दिया। इस तरह शहर आज़ाद करा दिया गया।
सन् 1942 - स्तालिनग्राद की लडा़ई
फ़ासिस्ट जर्मनी से जूझने में सोवियत संघ के मित्र-राष्ट्रों ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका ने पश्चिमी यूरोप में दूसरा मोर्चा खोलने का अपना वादा पूरा नहीं किया जिस से फ़ायदा उठा कर फ़ासिस्टों ने सोवियत-जर्मन मोर्चे के दक्षिणी भाग पर 1942 की गर्मियों में भारी फ़ौजें जमा कीं। उन्हों ने दोनबास पर क़ब्ज़ा कर लिया और स्तालिनग्राद (1961 से वोल्गोग्राद) की ओर बढ़ आये। टैंकों, तोपों तथा हवाई जहाज़ों से लैस दस लाख से ज़्यादा सैनिकों और अफ़सरों को जर्मन कमान ने स्तालिनग्राद पर धावा बोलने के लिए भेजा। पचास हज़ार से ज़्यादा स्तालिनग्रादवालों ने मोर्चेबंदियाँ मज़बूत कीं। युद्धों के इतिहास में सब से सख़्त लडा़ई स्तालिनग्राद के पास लडी़ गई।
सितंबर, 1942 के मध्य में जर्मन स्तालिनग्राद के अंदर घुस पडे़। वोल्गा नदी तक पहुँचने में भी फ़ासिस्ट कामयाब हो गये। एक-एक सड़क, एक-एक घर, एक-एक मंज़िल, यहाँ तक कि एक-एक कमरे के लिए भी शहर में घमासान लडा़ई छिड़ गयी, जो एक सौ चालीस दिन जारी रही। आख़िर 19 नवम्बर 1942 की सुबह को लाल सेना के दस्तों ने हमले की कार्रवाइयाँ शुरू कीं और चार दिनों के अंदर स्तालिनग्राद के पास फ़ासिस्टों को घेर लिया। जर्मनों के तीन लाख तीस हज़ार सैनिक तथा अफ़सर बडी़ भारी मात्रा में युद्ध-साधनों समेत लाल सेना के घेरे में आ गये। 2 फ़रवरी 1943 को स्तालिनग्राद के पास की लडा़ई फ़ासिस्टों पर सोवियत सिपाहियों की विजय के साथ समाप्त हो गई। वोल्गा के किनारे और स्तालिनग्राद की दीवारों से फ़ासिस्ट हमलावरों से सोवियत भूमि को मुक्त करने का, फ़ासिस्ट ग़ुलामी से यूरोप की जनताओं को आज़ाद कराने का अभियान शुरू हुआ।
सन् 1943 - सोवियत सेना के मोर्चे पर हमले की कार्रवाइयाँ
स्तालिनग्राद के पास सोवियत सैनिकों की विजय ने द्वितीय विश्वयुद्ध का सारा रुख़ बदल दिया। इस विजय के बाद फ़ासी वाद के विरुद्ध यूरोप के लोगों और जापानी साम्राज्यवाद के विरुद्ध एशिया की जनताओं का संघर्ष ज़ोर पकड़ता गया। फ़ासिस्ट सेनाओं की स्तालिनग्राद के पास सख़्त पराजय हुई, पर उन्हों ने एक नयी योजना बनायी और उस का नाम रखा "सिटेडल"। इस योजना के अनुसार फ़ासिस्ट कमान का इरादा था कि कूर्स्क शहर के पास के इलाक़े में सोवियत दस्तों को घेर कर उन का विनाश कर दिया जाए और फिर मास्को पर क़ब्ज़ा कर के लडा़ई को जल्दी से समाप्त कर दिया जाए। फ़ासिस्टों का यह इरादा सोवियत कमान ने भाँप लिया और मोर्चे के कूर्स्कवाले हिस्से पर सोवियत दस्तों ने शक्तिशाली मोर्चेबंदियों का जाल बिछा दिया। 5 जुलाई 1943 की सुबह को फ़ासिस्ट फ़ौजों ने कूर्स्क शहर के पास लाल सेना के दस्तों के ख़िलाफ़ हमले की कार्रवाइयाँ शुरू कर दीं। इस लडा़ई में फ़ासिस्टों ने बेहद बडी़ संख्या में टैंक, विमान और तोपें झोंक दीं। लाल सेना के दस्तों ने फ़ासिस्टों का हमला रोक दिया और फिर ख़ुद उन पर टूट पडे़। कूर्स्क के संग्राम में जर्मन अपने पाँच लाख से ज़्यादा सैनिकों-अफ़सरों से हाथ धो बैठे। कूर्स्क के पास की विजय के बाद सोवियत दस्तों ने उत्तर से दक्षिण तक तमाम विशाल मोर्चे पर हमले की कार्रवाई एक साथ चालू कर दी। 23 अगस्त 1943 के दिन सोवियत दस्तों ने उक्राइना के औद्योगिक शहर ख़ारकोव (खार्कीव्ह) को आज़ाद किया जिस से द्नेपर नदी के बायें तटीय उक्राइना को पूर्ण रूप से मुक्त करने के लिए उचित परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गईं। अक्टूबर, 1943 के शुरू तक सारा उत्तरी कोकेशिया आज़ाद कर दिया गया। साथ ही लाल सेना के दस्ते कई नुक़्तों पर द्नेपर नदी पार कर गये और दायें तटीय उक्राइना से फ़ासिस्ट हमलावरों को खदेड़ना शुरू कर दिया। 9 नवम्बर 1943 को लाल सैनिकों ने उक्राइना की राजधानी कीव शहर को आज़ाद किया। 1943 की गर्मियों और पतझड़ में लाल सेना के दस्तों ने बेहद लंबे-चौडे़ इलाक़े को - जर्मनों के क़ब्ज़े में आयी सोवियत भूमि के दो-तिहाई भाग को - आज़ाद कर दिया।
सन् 1944 - पश्चिमी मोर्चा
1944 की गर्मियाँ होते-न-होते सोवियत उक्राइना का क्षेत्र हमलावरों से मुक्त हो गया। लाल सेना के दस्ते चेकोस्लोवाकिया और रोमानिया की राज्य-सीमा पार कर गये। मोर्चे पर की स्थिति बदल गयी। यह साफ़ हो गया कि सोवियत संघ अपनी ही ताक़त से फ़ासिस्ट जर्मनी को और उस के साथी-राष्ट्रों को हरा सकता है और फ़ासिस्ट ग़ुलामी से यूरोप की जनताओं को आज़ाद करा सकता है। इन परिस्थितियों के अनुकूल सोवियत संघ के जंगी मित्र-राष्ट्रों - ब्रिटेन और सं० रा० अमेरिका - ने 9 जून 1944 को नार्मंडी में अपना फ़ौजें उतारीं। इस तरह पश्चिमी यूरोप में दूसरा मोर्चा आख़िर खुला तो, मगर दो साल की देरी से। फ़ासिस्ट जर्मनी सोवियत संघ के जंगी मित्र-राष्ट्रों की फ़ौजों का डट कर मुक़ाबला न कर सकी, क्योंकि उस की सभी मुख्य सेनाएँ सोवियत-जर्मन मोर्चे पर उलझी हुई थीं।
1944 की गर्मियों में सोवियत सेना के दस्तों ने फ़ासिस्ट फ़ौजों पर मुँह-तोड़ वार किये और तेज़ी से पश्चिम की ओर बढ़ते चले। जून-अगस्त, 1944 में सोवियत दस्तों ने बेलारूस में फ़ासिस्ट सेना के सब से बडे़ टुकडे़ को घेर कर चकनाचूर कर दिया। जर्मन के पाँच लाख चालीस हज़ार सैनिक मारे गये और बंदी बनाये गये। इस तरह 1944 की पतझड़ तक सोवियत सेना ने फ़ासिस्टों के क़ब्ज़े में आयी सारी सोवियत धरती आज़ाद कर ली। लेकिन जर्मनों के पास अब भी लड़ने की बडी़ ताक़त बाक़ी थी। फ़ासिस्ट सेना की मुख्य शक्तियाँ - 200 से अधिक डिवीजनें - पहले ही की तरह सोवियत-जर्मन मोर्चे पर जमा थीं। अपने क्षेत्र को आज़ाद करने के बाद सोवियत सेना के दस्तों ने यूरोप के लोगों को फ़ासिस्ट ग़ुलामी से मुक्त होने में मदद दी। 1944 की गर्मियों में पोलिश सेना खडी़ करने, उसे हथियारों से लैस करने और पोलैंड से फ़ासिस्टों को खदेड़ने में सोवियत सैनिकों ने पोलिश जनता की सहायता की। पोलिश जनता ने जन-सरकार क़ायम की। सोवियत सेना के दस्तों के वारों से फ़ासिस्ट गुट गिर पडा़। फ़ासिस्ट जर्मनी के साथी-राष्ट्र एक के बाद एक उस से अलग हो गये। रोमानिया, बुल्गारिया और हंगरी के जनताओं ने अपने यहाँ की फ़ासिस्ट सरकारों को उलट दिया और जन-सरकारें क़ायम कीं जिन्हों ने फ़ासिस्ट जर्मनी पर युद्ध की घोषणा कर दी। फिर सोवियत सेना के दस्तों ने युगोस्लाव मुक्ति-सेना से मिल कर फ़ासिस्टों को युगोस्लाविया से भी मार भगाया।
सन् 1945 - सत्तावादी जर्मनी पर विजय
1945 के शुरू तक फ़ासिस्ट जर्मनी अपने तमाम साथियों को खो चुकी थी। फिर भी लडा़ई जारी रही। जर्मनों की प्रधान सेनाएँ सोवियत सेना के दस्तों से भिडी़ हुई थीं। पस्चिमी यूरोप के मोर्चे पर फ़ासिस्ट सेना यद्यपि कम संख्या में थी तथापि हिटलरी कमान ने दिसम्बर, 1944 के शुरू में आर्डेंस के पहाडी़ क्षेत्र में ब्रिटिश तथा अमेरिकी फ़ौजों के ख़िलाफ़ हमला आरंभ कर दिया। सत्तावादी प्रभाग मोर्चा तोड़ कर आगे बढ़ीं। ब्रिटिश तथा अमरीकी फ़ौजें ज़बरदस्त ख़तरे में पड़ गयीं। इसलिए ब्रिटिश सरकार ने सोवियत संघ की सरकार से अपील की कि वह सोवियत-जर्मन मोर्चे पर लाल सेना के दस्तों का हमला जल्दी शुरू करे। सोवियत सरकार ने लाल सेना के दस्तों को आदेश दिया कि वे 12 जनवरी 1945 को, निर्धारित समय से डेढ़ हफ़्ते पहले ही हमला शुरू कर दें। सोवियत दस्तों का अभियान बाल्टिक सागर से ले कर कार्पथियाई पहाड़ों तक के विशाल मोर्चे पर एक साथ शुरू हुआ। इस तरह सोवियत सैनिकों ने मित्र-राष्ट्रों की सेनाओं को पराजय से बचाया। सोवियत दस्तों के हमले ने सत्तावादी कमान को पश्चिम में जंगी कार्रवाइयाँ बंद कर अपनी डिवीजनें सोवियत-जर्मन मोर्चे पर वापस लाने के लिए विवश किया।
सोवियत दस्ते सत्तावादी जर्मनी की राजधानी बर्लिन के निकट पहुँच गये। अब सत्तावादी जर्मनी की सेना पूर्ण पराजय से कोई भी चीज़ बचा नहीं सकती थी। 25 अप्रैल 1945 को सोवियत दस्तों ने बर्लिन की रक्षा-सेना को घेर लिया। सोवियत सैनिकों का बर्लिन पर हमला 29 अप्रौल को शुरू हुआ और 27 अप्रैल तक इस विशाल नगर का बहुत बडा़ हिस्सा सोवियत दस्तों के क़ब्ज़े में आ चुका था। 30 अप्रैल को सोवियत सिपाहियों ने बर्लिन शहर के संसद-भवन (जर्मन: Reichstag "रय्ख़्स्ताग") पर छापा मार कर क़ब्ज़ा कर लिया और उस पर लाल झंडा फहरा दिया। 2 मई को सोवियत दस्तों ने सारे बर्लिन शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया और फ़ासिस्ट नगर-सेना के बचे सैनिकों ने अपने अफ़सरों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। बर्लिन पर क़ब्ज़ा करने के बाद सोवियत दस्तों ने चेकोस्लोवाकिया की राजधानी प्राग को आज़ाद कराया। प्रागवालों ने हथियारबंद विद्रोह किया था, इस कारण फ़ासिस्ट शहर का विनाश करना और सभी शहरियों को क़त्ल करना चाहते थे। सोवियत टैंकों ने बर्लिन से प्राग तक का फ़ासला एक ही दिन में तय कर के प्राग को बचा दिया।
8 मई 1945 को फ़ासिस्ट जर्मनी के बिला शर्त आत्मसमर्पण करने के संधिपत्र पर हस्ताक्षर हुए। महान देशभक्तिपूर्ण युद्ध फ़ासिस्ट राज्यों के हमलावर गुट की पूरी पराजय के साथ समाप्त हो गया। 9 मई 1945 को सोवियत संघ ने फ़ासिस्ट जर्मनी को चकनाचूर कर के उस पर विजय का दिवस मनाया।
द्वितीय विश्वयुद्ध
सोवियत संघ | 2,148 |
1259234 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%9F%E0%A5%87 | आदित्य सरवटे | आदित्य सरवटे (जन्म 10 दिसंबर 1989) एक भारतीय क्रिकेटर हैं जो विदर्भ के लिए खेलते हैं। उन्होंने अपना पहला प्रथम प्रदर्शन 22 अक्टूबर 2015 को 2015-16 रणजी ट्रॉफी में किया। वह 2018-19 के रणजी ट्रॉफी के ग्रुप-चरण में विदर्भ के लिए अग्रणी विकेट लेने वाले आठ मैचों में 38 आउट हुए। 2018-19 के रणजी ट्रॉफी के फाइनल में, सरवटे ने मैच में ग्यारह विकेट लिए, और उन्हें प्लेयर ऑफ द मैच चुना गया।
अगस्त 2019 में, उन्हें 2019-20 दलीप ट्रॉफी के लिए इंडिया रेड टीम के टीम में रखा गया था।
सन्दर्भ
खेल
खिलाड़ी | 94 |
725158 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80%20%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%97 | वियतनामी दोंग | दोंग (वियतनामी: đồng [ɗôŋm]; चिह्न: ₫; कोड: VND) 3 मई, 1978 से वियतनाम का मुद्रा है। इसे स्टेट बैंक ऑफ वियतनाम जारी करता है और इसका चिह्न "₫" है। पहले इसे 10 हाओ में विभाजित किया जाता था, और 1 हाओ 10 सू के बराबर था, लेकिन आज हाओ और सू का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
व्युत्पत्ति
दोंग (đồng) शब्द आया है दोंग तिएन (đồng tiền) (यानि "पैसा") शब्द से, जो चीनी तोंग चिआन (पारंपरिक चीनी: 銅錢; सरलीकृत चीनी: 铜钱) शब्द के जुड़ा है। ये शब्द आया है चीन और वियतनाम के राजवंशीय काल में इस्तेमाल होने वाले पीतल के सिक्कों से। हाओ (hào) शब्द चीनी शब्द हाओ (चीनी: 毫) से जुड़ा है, जिसका अर्थ है मुद्रा की इकाई का दसवाँ हिस्सा।
दोंग के चिह्न का एन्कोडिंग है U+20AB ₫ DONG SIGN (HTML ₫)।
इतिहास
उत्तरी वियतनाम
1946 में वियत मिन्ह सरकार (जो बाद में उत्तरी वियतनाम की सरकार बनी) ने दोंग के रूप में अपनी मुद्रा शुरू की, फ़्रेंच इंडोचीनी पिएस्त्र के बदले, जो उसके मूल्य के बराबर था। दोंग का दो बार पुनर्मूल्यांकन किया गया, पहले 100:१ के दर पर, और फिर 1000:1 के दर पर।
दक्षिण वियतनाम
पिएस्त्र और दोंग दोनों में मूल्यांकित नोटों को 1953 में वियतनाम के राज्य में जारी किया गया, जो 1954 में दक्षिण वियतनाम बन गया। 22 सितंबर, 1975 को साइगॉन के हार के बाद दक्षिण वियतनाम के मुद्रा जो "मुक्ति दोंग" में बदल गया जो 500 दक्षिणी दोंग के बराबर था।
संयुक्त वियतनाम
वियतनाम के एकीकरण के बाद, दोंग को भी 3 मई, 1978 को एक कर दिया गया। एक दोंग एक उत्तरी दोंग या 0.8 दक्षिणी दोंग के बराबर था।
14 सितंबर, 1985, दोंग का पुनर्मूल्यांकन किया गया, जहाँ एक नया दोंग 10 पुराने दोंग के बराबर था। इससे दीर्घकालीन मुद्रास्फीति का एक चक्र शुरू हो गया जो 1990 के दशक तक चलता रहा।
सिक्के
पहला दोंग
1978 में, एल्यूमीनियम के सिक्के (1976 दिनांकित) शुरू किए गए। इनमें 1, 2, 5 हाओ और 1 दोंग के सिक्के थे। ये सिक्के जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य में बर्लिन की टकसाल में ढाले गए थे औए इनके अग्रभाग में देश का शिखा और रिवर्स में मूल्य था। दीर्घकालीन मुद्रास्फीति के कारण इन सिक्के की कोई कीमत नहीं रह गई, इस शृंखला के बाद कई सालों तक नए सिक्के परिचालन में नहीं थे।
दूसरा दोंग
स्मारक सिक्के
तांबा, पीतल, ताम्र-निकल, चाँदी और सोने से बने स्मारक सिक्कों को 1986 के बाद से जारी किया गया है, पर उन में से कोई भी परिचालन में नहीं हैं।
2003 शृंखला
स्टेट बैंक ऑफ वियतनाम 17 दिसंबर, 2003 को नए सिक्के जारी किए। ये नए सिक्के फिनलैंड के टकसाल में ढाले गए थे, और 200, 500, 1,000, 2,000, और 5,000 दोंग के मूल्य में थे। इससे पहले, वियतनामियों को वेंडिंग मशीनों से खरीददारी करने के लिए टोकन का इस्तेमाल करना पड़ता था। इससे सरकार को छोटे मूल्यों के नए नोट कम बनाने पड़े जो जल्दी खराब हो जाते हैं। कई निवासियों ने सालों बाद सिक्कों को देखकर उत्साह व्यक्त की, और 200 दोंग के सिक्के पर चिंता जताई, क्योंकि मुद्रास्फीति के कारण ये मूल्यहीन होने के कगार पर थी।
बैंकनोट
पहली đồng
1978 में स्टेट बैंक ऑफ वियतनाम (Ngân hàng Nhà nước Việt Nam) ने 5 हाओ, और 1, 5, 10, 20 और 50 दोंग के नोट जारी किए। . 1980 में, 2 और 10 दोंग नोट जोड़े गए और 1981 में 30 और 100 दोंग के नोट आए। इन नोटों को 1985 में बंद कर दिया गया क्योंकि मुद्रास्फीति के कारण इनकी कोई कीमत नहीं रह गई थी।
दूसरी đồng
1985 में 5 हाओ, 1, 2, 5, 10, 20, 30, 50, 100, और 500 दोंग के नोट जारी किए गए। जब मुद्रास्फीति बढ़ गई, तब 1987 में 200, 1,000, 2,000, और 5,000 दोंग के नोट लाए गए, फिर 1990 में 10,000 और 50,000 दोंग के नोट, 1991 में 20,000 दोंग का नोट 1994 में 100,000 दोंग का नोट, 2003 में 500,000 दोंग का नोट और 2006 में 200,000 दोंग का नोट जारी किए गए।
बैंक नोटों की पाँच शृंखलाएँ आई हैं। 2003 के शृंखला के अलावा सभी के नोट उपयोगकर्ताओं के लिए मुश्किल थे क्योंकि उनमें एक जैसे चित्रांकन नहीं थे।
सन्दर्भ
मुद्रा
वियतनाम | 687 |
798718 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%AA%20%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B5 | कुलदीप यादव | कुलदीप यादव () (जन्म; १४ दिसम्बर १९९४) एक भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी है जो घरेलू क्रिकेट उत्तरप्रदेश के लिए खेलते हैं। इन्होंने अपने टेस्ट क्रिकेट के कैरियर की शुरुआत ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम के खिलाफ २६ मार्च २०१७ को की थी।
कुलदीप यादव इंडियन प्रीमियर लीग में २०१२ से २०१४ तक मुम्बई इंडियन्स के लिए खेलते थे और २०१४ से अब तक कोलकाता नाईट राइडर्स के लिए खेल रहे हैं। ये एक मुख्य रूप से गेंदबाज है।
प्रारंभिक जीवन
कुलदीप यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में १४ दिसंबर १९९४ को हुआ। कुलदीप यादव के पिता का नाम राम सिंह यादव तथा माता का नाम ऊषा यादव है। कुलदीप यादव के क्रिकेटर बनने के सपने को पूरा करने के लिए उनका परिवार कानपुर शहर में बस गया। इनके पिता ईंट भट्ठे के मालिक थे। कुलदीप का बचपन से ही क्रिकेट के प्रति लगाव था, वे क्रिकेट में ही अपना भविष्य बनाना चाहते थे। वह एक बडे खिलाडी है।
कैरियर
कुलदीप यादव ने अपने कैरियर की शुरुआत टेस्ट क्रिकेट के साथ २५ मार्च २०१७ को ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम के खिलाफ धर्मशाला के हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन स्टेडियम में की थी। इसके बाद पहला एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैच २३ जून २०१७ को विंडीज टीम के खिलाफ पोर्ट ऑफ स्पेन में की थी तो पहला ट्वेन्टी-२० अंतरराष्ट्रीय मैच ९ जुलाई २०१७ को वेस्टइंडीज के खिलाफ किंग्सटन में खेला।
टेस्ट में पदार्पण करने के बाद इन्हें फिर भारत के २०१८ में इंग्लैंड दौरे पर टेस्ट टीम मौका दिया गया।
कुलदीप यादव ने 2018 मे इंग्लैंड के खिलाफ वनडे में करियर की सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी की थी। कुलदीप ने अपने करियर में पहली बार पांच या इससे अधिक विकेट चटकाए. उन्होंने 25 रन देकर छह विकेट हासिल किए थे, इसके साथ ही कुलदीप ने वनडे इंटरनेशनल में बाएं हाथ के कलाई के स्पिनर के तौर पर सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी ( 6/25) का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है इससे पहले यह रिकॉर्ड ऑस्ट्रेलिया के ब्रैड हॉग के नाम था. उन्होंने 2005 में वेस्टइंडीज के खिलाफ मेलबर्न में 32 रन देकर 5 विकेट चटकाए थे।
कुलदीप यादव ने 2020 में वनडे इंटरनेशनल में अपने 100 विकेट पूरे किये थे | जिसके साथ ही वह भारत के लिए सबसे तेज 100 वनडे इंटरनेशनल विकेट लेने के मामले में तीसरे नंबर पर आ गए थे। उन्होंने 58 मैच खेलकर वनडे इंटरनेशनल में अपने 100 विकेट पूरे किए हैं।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
1994 में जन्मे लोग
जीवित लोग
कानपुर के लोग
भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी
भारतीय टेस्ट क्रिकेट खिलाड़ी
कोलकाता नाइट राइडर्स के क्रिकेट खिलाड़ी
बाएं हाथ के गेंदबाज | 415 |
705364 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%AE%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%A8%E0%A4%BE | कलम बांधना | कलम बांधना (ग्राफ्टिंग/Grafting या graftage) उद्यानिकी की एक तकनीक है जिसमें एक पौधे के ऊतक दूसरे पौधे पौधे के ऊतकों में प्रविष्ट कराये जाते हैं जिससे दोनों के वाहिका ऊतक आपस में मिल जाते हैं। इस प्रकार इस विधि से अलैंगिक प्रजनन द्वारा पौधे तैयार किये जाते हैं।
कलम के प्रकार
छांट कलम
यह कलम खरीब एवं रवी के मौसम मे किए जाते हैं|कलम हेतु अंजीर,अंगूर,सेवन्ती,अनेक वार्षिक वृक्ष,चमेली ,जुली इत्यादि मे छांट कलम किए जाते हैं | छांट कलम करने के लिए सबसे पहले मिट्टी एवं गोबर की खाद 3:1 के अनुपात मिलाए|उसे प्लास्टिक की थैली में भरें और उसमें पानी डालें|छाँट कलम हेतु आम पौधे के डाल को एक और तिरछा काटकर कलम को नीचे के तरफ संजीवक लगाओ | संजीवक लगाए हुये भाग को पानी डाली हुयी थैली में लगाओ|छाँट के ऊपर वाले हिस्से मे गोबर लगाकर प्लास्टिक से बांध दीजिये|थैली मे हमेशा नमी बना रहे उसी हिसाब से पानी डालें|नर्सरी अथवा आर्द्रता कक्ष मे रखें |20 से 25 दिनों मे जड़े निकलना शुरू हो जाता है|फिर काले ग्राफ्टिंग प्लास्टिक बेग में खाद एवं मिट्टी का मिश्रण भरकर तैयार पौधे को रखें|एक सप्ताह के बाद आप इसे लगा सकते हैं |
गुट्टी कलम
यह कलम बरसात के मौसम मे किए जाते हैं|गुट्टी कलम हेतु अनार के पौधे मे प्रयोग किया जा सकता है|गुट्टि कलम के लिए आम या अन्य पौधे की पतली शाखा लेकर एक से डेढ़ इंच गोलाकार छिलका निकालो|छाल निकालें हुये जगह पर संजीवक लगाओ |अब उसी जगह गीला किया हुआ स्पग्रामाँस (काई)लगाकर उस हिस्से को प्लास्टिक की पट्टी से बंद करो | स्पग्रामाँस (काई)को को गीला करके लगाते है क्योंकि कलम तैयार होते समय उसे पानी की आवश्यकता होती है|और वह स्पग्रामाँस (काई)से पानी का शोषण कर लेती है|स्पग्रामाँस का पानी जब समाप्त हो जाता है ,तब स्पग्रामाँस (काई) हवा से आद्र्त शोषित करता है और कलमों मे पानी की आवश्यकता पूरी हो जाती है|इसलिए गुट्टि कलम करते समय स्पग्रामाँस (काई)का उपयोग किया जाता है |
दाब कलम
दाब कलम बरसात के मौसम मे किए जाते हैं दाब कलम करने के लिए कागजी नीबू,अमरूद,बेल इत्यादि पौधे पर दाब कलम किया जाता है|सर्वप्रथम मिट्टी एवं गोबर की खाद 3:1 के अनुपात मे मिश्रण बनाकर गमलें में डालिए|अमरूत के पेड़ की जमीन छूती हुयी डाल को कलम के लिए चुने|डाली के चोटी से 2 फिट पहले डाली के निचले भाग को 1-2 इंच लंबाई मे तिरछा छिल लीजिये|तिरछे काटे हुये भाग पर नारियल का सूखा छिलका रखों और संजीवक लगाकर उस हिस्से को गमले मे रखकर उसे मिट्टी मे दबा दो दबाए गए भाग पर वजन रखकर कुंडी मे पानी डालो |
संदर्भ
https://web.archive.org/web/20180902071325/http://learningwhiledoing.in/InnerPages/LessonDetails.aspx?LessonId=39&Category=Books%20&SubCategory=Hindi%20Books&CategoryId=12&Title=IBT%20Agriculture%20Hindi%20Book%20PDF
https://web.archive.org/web/20200507001327/https://en.wikipedia.org/wiki/Grafting
इन्हें भी देखें
कलम (पौधा)
कलमकारी (कपड़ों पर कलम से छपाई)
उद्यानिकीkis mahine me karni chahiye | 444 |
65861 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82%20%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A5%80%20%E0%A4%9A%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%82%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%9A%E0%A5%80 | भारत में उर्दू टीवी चैनलों की सूची | यह उर्दु भाषा के टीवी चैनलों की सूची है:-
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टेलीविजन | 219 |
553621 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%A3%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0 | श्रवणकुमार | श्रवण कुमार हिन्दू धर्म ग्रंथ रामायण में उल्लेखित पात्र है, ये अपने माता पिता से अतुलनीय प्रेम के लिए जाने जाते हैं।
श्रवण कुमार का वध राजा दशरथ से भूलवश हो गया था, जिस कारण इनके माता पिता ने राजा दशरथ को पुत्र वियोग का श्राप दे दिया था इसी के फलस्वरूप राम को वनवास हुआ और राजा दशरथ ने पुत्र वियोग में राम को याद करते हुए प्राण त्यागे। श्रवण अथवा श्रवण कुमार संस्कृत काव्य रामायण के एक पात्र का नाम है। इसमें श्रवण की उल्लेखनीयता उसकी अपने माता-पिता की भक्ति के कारण है।
रामायण के पात्र | 98 |
1396621 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%28%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A4%BF%29 | दरबार (उपाधि) | दरबार या दरबार साहिब मुख्य रूप से गुजरात और राजस्थान के भारतीय राज्यों में उपयोग किए जाने वाली एक सम्मानजनक उपाधि है। स्वतंत्रता पूर्व युग में मौजूद छोटी छोटी रियासतों के सरदार या ठाकुरों को, 'दरबार साहब' पदवी से संबोधित किया जाता था।
परंपरागत रूप से, इसका उपयोग कुलीन-जमींदारों को संबोधित करने के लिए किया जाता था, जो काठी, कोली, मेर, चारण अथवा राजपूत समुदायों से भी हो सकते हैं।
इस प्रकार, पूर्ववर्ती रियासतों के वंशानुगत सरदार या प्रभावशाली जाति के प्रमुख को दरबार शब्द के सामान्य उपयोग में संदर्भित किया जा सकता है। यह उपाधि ज्यादातर वर्तमान गुजरात और राजस्थान के क्षेत्रों में उपयोग में थी हालांकि, दरबार नामक कोई अलग अधिसूचित जाति नहीं है। यह रियासती भारत के दौरान उपयोग में सम्मान की उपाधि थी, जिसका उपयोग सरदारों को संदर्भित करने के लिए किया जाता था और आज भी मुख्य रूप से ग्रामीण गुजरात में यह उपयोग में प्रचलित है।
यह भी देखें
संबंधित विषय
जागीरदारी
ठाकुर
भारत में सामंतवाद
संदर्भ
आदरसूचक
भारत का सांस्कृतिक इतिहास | 168 |
167709 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A4%A8 | यूनानी दर्शन | यूनान की भूमि दर्शन के लिये बहुत उर्वर रही है। बहुत से विद्वान मानते हैं कि यूनानी दर्शन ने सम्पूर्ण पाश्चात्य चिन्तन पर अमिट छाप छोड़ा है।
परिचय
यूनानी दर्शन को तीन भागों में विभक्त किया जाता है। पहला भाग उन लोगों के विचार हैं जो यूनानी थे, परंतु यूनान के बाहर यूनानी बस्तियों में रहते थे। सोफिस्ट संप्रदाय के विचारकों और सुकरात के साथ एथंस दर्शनशास्त्र की राजधानी बना। सुकरात, प्लेटो और अरस्तू ने यूनानी दर्शन को इसकी प्रौढ़ता प्रदान की और पश्चिमी विचारधारा पर न मिटनेवाली छाप लगा दी। अरस्तू के बाद, प्राचीन दर्शन नीचे की ओर लुढ़कने लगा। स्वतंत्र विचारों के स्थान में, प्लेटो और अरस्तू की व्यवस्था ही विवेचन का लक्ष्य बन गई। यूनानी दर्शन का जन्म आइओनिया में हुआ। थेल्स (624-550 ई.पू.) एनैक्सिमैंडर (611-547 ई.पू.) और ऐनेक्सिमिनिज़ (588-524 ई.पू.) ने सृष्टि के मूल तत्व के विषय में अपने विचार प्रकट किए। तीनों की धारणा एक ही थी कि मूल तत्व एक है और भौतिक है। थेल्स ने जल को, एनैक्सिमेंडर ने अव्यक्त प्रकृति को और एनेक्सिमिनिज़ ने वायु को मूल तत्व का पद दिया। प्रत्येक भौतिक पदार्थ में गुण और मात्रा प्रत्यक्ष दिखते हैं। आइओनिया के विचारकों ने गुण पर ध्यान दिया और मात्रा की उपेक्षा की। पाइथेगारस ने मात्रा को सत्ता का तत्व समझा। मात्रा की जाँच इकाई की नींव पर होती है और यह संख्या का आधार है। पाइथेगोरस के अनुसार संख्या सत्ता का तत्व है। इस तरह उसने अमूर्त को दार्शनिक विवेचन में प्रविष्ट कर दिया। पाइथेगोरस के विचारानुसार सृष्टि में अनुरूपता और सामंजस्य हर ओर दिखते हैं। यह अनुरूपता गायन में प्रसिद्ध होती है, संख्या की तुल्यता राग की जान है। नक्षत्र अपनी गति में मधुर ध्वनि उत्पन्न करते हैं, यद्यपि हम उसे सुन नहीं सकते, क्योंकि उसकी तीव्रता हमारी श्रवणशक्ति की सीमाओं में नहीं आती।
सुकरात से पर्व के दर्शन में एक महत्वपूर्ण विवाद पार्मेनाइडीस और हिरेक्लिटस ने प्रस्तुत कर दिया। पार्मेनाइडीस ने गुण की तरह मात्रा की भी उपेक्षा की और स्वयं सत्ता या "सत्" को मूल तत्व के रूप में देखा। यह "सत्" एकरस निरपेक्ष है, इसमें कोई पविर्तन नहीं होता, यह अनंत है, अविभाज्य है, देश और काल से असंबद्ध है। "असत्" में इन सब गुणों का अभाव है। उद्भव "सत्" और "असत्" का मेल है। हिरेक्लिट्स न कहा कि परिवर्तन सत्ता का तत्व है, सत्ता उद्भव के अतिरिक्त कुछ नहीं। इन दोनों विचारकों ने "सत्" और "प्रकाशन" के प्रत्ययों को दार्शनिक विवेचन में केंद्रीय प्रश्न बना दिया। हिरैक्लिटस के प्रवाहवाद के विरोध में, पार्मेनाइडीस के शिष्य जीनो ने यह बताना चाहा कि गति या परिवर्तन की तो संभावना ही नहीं, तीर प्रति क्षण किसी न किसी बिंदु पर स्थित है, दो बिंदुओं पर एक साथ तो हो नहीं सकता।
प्राचीन दशर्न के प्रथम युग में दो और नामों का महत्व है। डिमाक्राइटस (460-361 ई.पू.) ने कहा कि पदार्थों में गुणभेद उन परमाणुओं के परिमाण, आकार और स्थान पर निर्भर है, जिनके संयोग से पदार्थ बनते हैं। एक तरह से, डिमाक्राइटस का परमाणुवाद सद्वाद और प्रवाहवाद का समन्वय था : परमाणु सत् हैं, उनके संयोग से प्रवाह व्यक्त हाता है। एनैक्सेगोरस ने कहा कि अचेतन प्रकृति सृष्टि की व्यवस्था का समाधान नहीं कर सकती; इस समाधान के लिए चेतना की आवश्यकता है। सृष्टि विवेचन में चेतना का अनिष्ट होना एक महत्वपूर्ण परिवर्तन था। पीछे अरस्तू ने तो कहा कि मदिरा पिए हुए लोगों में एनेक्सेगोरस ही सावधान था।
यूनानी दर्शन के प्रथम भाग ने निम्नांकित प्रत्ययों को विचारकों के सम्मुख रख दिया-
1. सृष्टि का मूल तत्व,
2. सत् और उद्भव, सत्ता और प्रकाशन
3. रचना में चेतना का स्थान
स्पष्ट है कि उत्तरकालीन विवेचन इनमें से किसी प्रत्यय की उपेक्षा नहीं कर सका।
साफिस्ट समुदाय और सुकरात
साफिस्ट समुदाय और सुकरात के साथ यूनानी दर्शन एथेंस में आ पहुँचा। अभी तक दर्शन तत्वज्ञान के अर्थ में समझा जाता था, अब नीति और ज्ञानमीमांसा भी उसके साथ मिल गई। दोनों के संबंध में साफिस्ट विचारकों और सुकरात के दृष्टिकोण में मौलिक भेद था। प्रोटैगोरस ने कहा कि मनुष्य सभी वस्तुओं का मापक है। प्रत्येक मनुष्य के लिए वही सत्य है जो उसे इंद्रियों द्वारा ज्ञात होता है, प्रत्येक के लिए वही शुभ है जो उसे प्रिय लगता है। सुकरात ने कहा कि इस वर्णन के अनुसार तो सत्य और शुभ का अस्तित्व ही नहीं रहता। यदि हर एक मनुष्य केवल अपने बोध और अपनी पसंद के विषय में कहता है, तो सत्य और शुभ के संबंध में दो मनुष्यों में मतभेद हो ही नहीं सकता। सुकरात ने कहा किं सत्य और शुभ सब के लिए एक ही हैं। इस विवाद ने दार्शनिक विवेचन में सामान्य और विशेष के प्रत्ययों को प्रविष्ट कर दिया।
नीति के संबंधन में सुकरात ने कहा कि ज्ञान और सच्चरित्रता एक ही वस्तु हैं। इसका अर्थ यही नहीं कि कोई कर्म शुभकर्म नहीं होता, जब तक कि कर्ता को उसके शुभ होने का ज्ञान न हो, अपितु यह भी कि ऐसा ज्ञान होने पर व्यक्ति के लिए अनिवार्य हो जाता है कि वह उस कर्म को करे। बुरा कर्म प्रत्येक अवस्था में अज्ञानजनित कर्म होता है। सुकरात नैतिक प्रत्ययों का यथार्थ लक्षण करना चाहता था और इसके लिए उसने आगमन का प्रयोग किया। दर्शनशास्त्र के लिए सुकरात की सबसे बड़ी देन यह थी कि उसने प्लेटो और अरस्तू के काम को संभव बना दिया। दोनों सुकरात के बताए मार्ग पर चले और उनके द्वारा सारे उत्तरकालीन विवेचन पर सुकरात के विचारों की छाप लग गई।
प्लेटो
प्राचीन पश्चिमी दर्शन में प्लेटो का स्थान शिखर पर है। सुकरात के अतिरिक्त पार्थेनाइडिस और हिरैक्लिटस के विचारों में भी प्लेटो के दृष्टिकोण को निर्णीत करने में भाग लिया। सुकरात के प्रभाव में उसने प्रत्ययों का महत्व समझा और उन्हें पार्मेनाइडिस की सत्ता का पद दिया। दृष्ट जगत् को उसने हिरेक्लिटस के उद्भव के रूप में देखा। अंतिम सत्ता सामान्य या प्रत्ययों की है, विशेष पदार्थ किसी प्रत्यय की अपूर्ण नकल होते हैं। यह प्लेटो का विख्यात प्रत्यय सिद्धांत है। इन प्रत्ययों में मौलिक और प्रमुख प्रत्यय श्रेय या शुभ का प्रत्यय है।
नीति में सच्चरित्रता का स्वरूप निर्णीत करने में प्लेटो ने व्यक्ति को समाज का एक नन्हा नमूना समझा। व्यक्ति की शुभ भावनाएँ समाज की आवश्यकताओं के अनुकूल हैं। उसने विवेक, साहस, संयम और न्याय को मुख्य सद्भावनाओं का पद दिया। न्याय का अर्थ यही था कि अन्य तीन वृत्तियाँ अपने अपने क्षेत्र में रहे और जीवन में सामंजस्य बना रहे। ज्ञानमीमांसा में उसने ज्ञान को तीन स्तरों पर रखा। सबसे निचले स्तर पर विशेष वस्तुओं का ज्ञान है। ऐसे ज्ञान में वस्तुओं की दशा, माध्यम और ज्ञाता की सामयिक अवस्था का प्रभाव पड़ता है। यह नहीं कह सकते कि किसी विशेष पदार्थ को देखनेवाले उसे एक ही रूप में देखते हैं। प्लेटो ऐसे ज्ञान को सम्मति पद देता है। जो ज्ञान गणित से प्राप्त होता है वह विशेष पदार्थ के ज्ञान से ऊँचे स्तर पर है। हम किसी विशेष त्रिकोण को लेते हैं परंतु जो कुछ सिद्ध करते हैं वह सभ त्रिकोणों के विषय में मान्य होता है। वहाँ विशेष सामान्य क प्रतिनिधित्व करता है। सब से ऊँचे स्तर पर दार्शनिक विवेचन है, इसमें केल सामान्य विचार का विषय होता है। यथार्थ में यही बोध ज्ञान कहलाने का अधिकारी है।
प्लेटो ने अपने प्रत्यय सिद्धांत को अपने संवादों में सत्ता और जीवन के विविध पक्षों पर लागू किया। इन संवादों में "रिपब्लिक" प्रमुख है। कुछ आलोचकों के विचार में, अन्य संवादों में हम प्लेटो को किसी एक पक्ष में देखते हैं, "रिपब्लिक" में समस्त प्लेटो को देखते हैं।
अरस्तू
प्लेटो ने विश्व का व्यापक आलोकन प्रस्तुत करने का यत्न किया। ज्ञानेंद्रियाँ तो इस संबंध में कुछ बता नहीं सकतीं। जो कुछ ये बताती हैं, उसके प्रति प्लेटो का भाव अनादर का था। अरस्तू की प्रकृति इससे भिन्न थी, वह तत्वतः वैज्ञानिक था। वैज्ञानिक के लिए विशेष का महत्व होता है और वह उसे जानने के लिए इंद्रियदत्त बोध का आश्रय लेता है। अरस्तू ने "न्याय" से आरंभ किया; भौतिकी, नीति, राजनीति और कला पर लिखा और अंत में तत्वज्ञान पर एक अपूर्ण ग्रंथ लिखा। तत्वज्ञान में प्लेटों के प्रत्येक सिद्धांत की कड़ी आलोचना की। प्लेटो ने कहा था कि किसी श्रेणी के सभी विशेष पदार्थ एक ही सामान्य या प्रत्यय की अपूर्ण नकलें हैं। नकलें होंगी, परंतु ये दृष्ट जगत् में आ कैसे गई। प्रत्ययों में तो परिवर्तन होता नहीं, वे अपनी पूर्ण या अपूर्ण नकलें नहीं बना सकते। यदि नकलें किसी प्रकार बन भी गई, तो अचल जगत् ही विद्यमान होगा- गति या परिवर्तन रहस्य ही बने रहते हैं। प्लेटो ने कहा था कि सामान्य श्रेणी के विशेषों में अंतर होता है और इसीलिए एक श्रेणी के विशेष दूसरी श्रेणी के विशेषों से भिन्न होते हैं। अरस्तू ने व्यक्ति को विशेष महत्व दिया। व्यक्ति सामग्री और आकृति का मेल होता है। आरंभिक सामग्री अव्यक्त प्रकृति थी, इसमें किसी प्रकार की आकृति न थी। विकास में आकृति सामग्री को अपनी कृति से विशेष रूप देती है। पदार्थों में ऊँच नीच का भेद इसी बात पर निर्भर करता है कि आकृति सामग्री को किस सीमा तक प्रभावित कर सकी है। संसार में सब कुछ आगे बढ़ रहा है, पीछे से धकेला नहीं जाता, आगे से आकृष्ट हो रहा है। आकर्षक शक्ति विशुद्ध आकृति है, जिसे अरस्तू परमात्मा का नाम देता है।
नीति में, अरस्तू ने प्लेटो की तरह मौलिक सद्भावनाओं पर विचार नहीं किया, उसने सामान्य सद्भावना का स्वरूप निर्णीत करना चाहा। वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि शुभ या भद्र दो चरम सीमाओं में मध्यवर्ती स्थिति है। घृष्टता और कायरता दोनों अवगुण हैं; इनके मध्य में साहस है जो सदाचार है। शिष्टाचार उद्दंडता और दासभाव के बीच की अवस्था है। इस समाधान से शुभ और अशुभ का भेद मात्रा का भेद बन जाता है। दार्शनिकों में प्राय: इसे गुणात्मक भेद समझा जाता है। भलाई और बुराई भिन्न प्रकार की वस्तुएँ हैं।
सुकरात ने प्रत्ययों की परिभाषा पर बल दिया था। अरस्तू ने निगमन न्याय का निर्माण किया और तनिक भेद के साथ निगमन आज भी अरस्तू का निगमन न्याय ही है। अनुमान में प्रमुख बात प्रामाणिकता है। हमें देखना होता है कि उत्तरपक्षों को स्वीकार करने पर हम किस निष्कर्ष को स्वीकार करने पर बाधित हो जाते हैं। वाक्यों में कोई वाक्य जिसमें आंतरिक विरोध हो, अनिवार्य रूप में अमान्य हो जाता है।
दर्शन में अरस्तू की प्रमुख देन द्रव्य का प्रत्यय है। यों तो उसने सत्ता के 10 अंतिम पक्षों (कैटेगोरीज़) का वर्णन किया है, परतु वास्तव में वे द्रव्य और उसके गुण ही हैं। जैसा हम देखेंगे, द्रव्य का प्रत्यय दार्शनिक विवेचन में चिर काल तक विचार का केंद्रीय प्रत्यय बना रहा।
अरस्तू के बाद
अरस्तू के साथ प्राचीन दर्शन की प्रौढ़ता का काल समाप्त होता है। उसकी मृत्यु के कुछ ही वर्षों बाद, ज़ीनो और एपिक्युरस ने लगभग एक साथ दो नई विचारधाराओं की नींव रखी। दोनों विचारों में न्याय, भौतिकी और नीतिदर्शन के तीन भाग है। न्याय में दोनों अरस्तू के अनुयायी थे। प्राकृत जगत् में दोनों अप्रतिहत शासन स्वीकार करते थे। दोनों का ऐतिहासिक महत्व नीति के संबध में है। विवाद का मुख्य विषय भोग या तृप्ति की स्थिति है। ऐपिक्युरस के अनुसार यह तृप्ति ही जीवन में एकमात्र मूल्य है। मानसिक तृप्ति का पद शारीरिक तृप्ति के पद से ऊँचा है, क्षणिक तृप्ति से स्थायी तृप्ति अधिक मूल्यवान् है। सुखी जीवन के लिय सरलता, संयम, परिमितता बहुत सहायक होती हैं। यह एपिक्यूरस का मत और आचरण था, परंतु उसके अनुयायियों के लिए मौलिक सिद्धांत बहुत प्रबल सिद्ध हुआ। यदि जीवन में तृप्ति ही एकमात्र मूल्य की वस्तु है तो जितनी अधिक मात्रा में यह मिल सके, जितनी जल्दी मिल सके, इसे प्राप्त करना चाहिए। साधारण लोगों के लिए एपिक्यूरियन सिद्धांत यही हो गया- "खाओ, पियो और प्रसन्न रहो" अधम अवस्था में यही जीवनदर्शन होता है। यह यूनान की स्थिति के अनुकूल था, वहीं कुछ देर के लिए टिका रहा। ज़ीनो के विचार (स्टोइकबाद) के अनुसार जीवन का अकेला मूल्य सदाचार है। सदाचार का तत्व आवेगों पर विजयी होता है। इसके लिए दो बातों की आवश्यता है- सुख और दु:ख दोनों से मनुष्य ऊपर उठ सके। स्टोइक विचार के अनुसार जीवन में मौलिक सूत्र यह है- कष्ट सहन करो, भोगों में अलिप्त रहो। यह विचारधारा यूनान की तत्कालीन स्थिति के अनुकूल न थी, वहाँ से रोम में पहुँची, जहाँ इसे उचित वातावरण मिल गया। रोमन वीरता और स्टोइक मनोवृत्ति पर्यायवाची शब्द बन गए। रोम में स्टोइक विचारधारा को कई योग्य प्रसारक मिल गए। इनमें एपिकटिटस और सम्राट् मार्कस औरेलियस के नाम विख्यात है। स्टोइक विचार जीवन को मानव प्रकृति के अनूकूल बनाना चाहता था; इस प्रकृति में बुद्धि मुख्य अंश है और अच्छा जीवन वही है जिसमें बुद्धि का शासन हो।
इन्हें भी देखें
भारतीय दर्शन
पाश्चात्य दर्शन
चीनी दर्शन
बाहरी कड़ियाँ
ग्रीक दर्शन
The Impact of Greek Culture on Normative Judaism from the Hellenistic Period through the Middle Ages c. 330 BCE- 1250 CE
Greek Philosophy for Kids
दर्शन
यूनान | 2,082 |
481462 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%AA%20%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A5%E0%A4%AE | पोप ग्रीगरी प्रथम | पोप ग्रीगरी प्रथम (Pope Gregory I) (540-604)। पोप ग्रीगरी को ईसाई धर्म का सर्वोपरि नेता चुने जाने के पहले रोमन सिनेटर का सम्मान प्राप्त था। राजनीति के क्षेत्र में रहते हुए भी इन्होंने अवश्य ही यश और ख्याति अर्जित की होती लेकिन इन्होंने राजनीति को छोड़कर धर्म के क्षेत्र में आना श्रेयस्कर समझा। सन् 590 में ये पोप चुने गए। ईसाई धर्म के व्यापक प्रचार में पोप ग्रीगरी ने महत्वपूर्ण योग दिया। इंग्लैंड से रोमन जाति के हट जाने के बाद वहाँ ईसाई धर्म का लोप होने लगा था। नई अंग्रेज जाति (Angles) जर्मनी से आकर बसने लगी थी जो कई देवी देवताओं की पूजा करती थी। इसने आते ही इंग्लैंड के ईसाई धर्म को नष्ट कर दिया। कहते हैं, एक बार पोप ग्रीगरी ने कुछ अंग्रेज बालकों का रोम के बाजार में दास के रूप में बिकते देखा। इन बालकों की सुंदरता से ये अत्यधिक प्रभावित हुए और निश्चय किया कि ब्रिटिश द्वीप में जहाँ रोमन काल में ईसाई धर्म को लोगों ने स्वीकार कर लिया था, फिर से इस धर्म का प्रचार किया जाय। धर्मप्रचार के उद्देश्य से इन्होंने आगस्टाइन नाम के एक प्रसिद्ध पादरी को इंग्लैंड भेजा जिसने केंट के राजा एथलबर्ट के दरबार में जाकर ईसाई धर्म का प्रचार प्रारंभ कर दिया। एथलबर्ट ने फ्रांस की एक ईसाई राजकुमारी से शादी की थी, अत: उसने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया और आगस्टाइन का केंटरबरी में गिरजाघर बनाने की आज्ञा दे दी। इस प्रकार पोप ग्रीगरी के प्रयत्न के फलस्वरूप इंग्लैंड में ईसाई धर्म का फिर से प्रचार हुआ।
पोप ग्रीगरी ने ईसाई धर्म के सर्वाच्च नेता के रूप में बड़े ऊँचे दर्जे की प्रशसनिक प्रतिभा का परिचय दिया। चाहे धर्म संबंधी, इन्होंने सबका प्रबंध बातें हों या चर्च की संपत्ति की व्यवस्था संबंधी, इन्होंने सबका प्रबंध पटुता से किया। छोटी से छोटी बातों की ओर भी इन्होंने व्यक्तिगत ध्यान दिया और पूरे ईसाई जगत् की प्रशासनिक आवश्यकताओं से परिचित रहने की चेष्टा की। इनके पत्रों से इनकी व्यावहारिक बुद्धि और प्रशासनिक योग्यता का यथेष्ट आभास मिलता है।
पोप ग्रीगरी ने धार्मिक ग्रंथों की समीक्षा तथा धर्म संबंधी बातों की वार्तालाप (Dialogues) के रूप में विवेचना भी की। लैटिन भाषा की इन रचनाओं में इन्होंने गूढ़ विषयों के निरूपण के लिये अधिकांशत: रूपक शैली का प्रयोग किया है। शब्द दो अर्थ रखते हैं; एक तो ऊपरी जो स्पष्ट होता है और दूसरा लाक्षणिक जिससे धर्म संबंधी गूढ़ विचार भी सरलता से समझ में आ जाते हैं।
पोप ग्रीगरी ने ईसाई धर्म से पहले की कथाओं (Tales) की जगह ईसाई संतों की कहानियों का प्रचार करवाया। इन्होंने जो कुछ भी लिखा, धर्म के व्यापक प्रचार की भावना से लिखा। इनका ध्यान विचारों की स्पष्ट अभिव्यक्ति पर था, न कि शैली पर। लेकिन फिर भी इनकी भाषा में सौंदर्य और प्रभाव है।
बाहरी कड़ियाँ
पोप | 456 |
7853 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A7%E0%A5%AF%20%E0%A4%9C%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%88 | १९ जुलाई | १९ जुलाई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का २००वॉ (लीप वर्ष में २०१वॉ) दिन है। साल में अभी और १६५ दिन बाकी है।
प्रमुख घटनाएँ
1905 आज के दिन ब्रिटिश भारत सरकार ने बंगाल के विभाजन को लागू करने के निर्णय की घोषणा 19 जुलाई 1905 को की थी
1333- स्कॉटी स्वतंत्रता युद्ध के दौरान हैलिडन पहाड़ी का युद्ध हुआ जिसमें अंगरेजों ने स्कॉटों पर निर्णायक। जीत दर्ज की।
1848- पहला महिला अधिकार सम्मेलन न्यूयॉर्क के सिनिका फॉल्स में आयोजित किया गया।
1864- ताइपिंग विद्रोह में नानकिंग के तीसरे युद्ध में चीनी साम्राज्य ने अंततः ताइपींग को पराजित कर दिया।
1870- फ्रांसिसि-इरानी युद्ध। फ्रांस ने इरान के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
1916- प्रथम विश्व युद्ध फ्रोमेल्स के युद्ध में ब्रिटिश और आस्ट्रेलियाई सेना ने जर्मन सेना पर हमला किया।
1969- भारत सरकार ने देश के 14 प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया।
1969- अपोलो द्वितीय के अंतरिक्ष यात्री नील आर्म स्ट्राँग और एडविन एल्ड्रीन ने यान से बाहर निकलकर चंद्रमा की कक्षा में चहलकदमी की।
1974- क्रांतिकारी उधम सिंह की अस्थियाँ लंदन से दिल्ली लाई गई।
1976- नेपाल में सागरमाथा पार्क बनाया गया।
जन्म
८१० – मुहम्मद अल-बुख़ारी, फ़ारसी विद्वान। (निधन ८७०)
१८१४ – सैमुवल कोल्टो, अमेरिकी व्यवसायी। (निधन १८६२)
१८२७ – मंगल पांडे, भारतीय सैनिक। (निधन १८५७)
१८३४ – एद्गर देगास, फ़्रांसीसी चित्रकार एवं मुर्तिकार। (निधन )
१८४६ – एडवर्ड चार्ल्स पिकरिंग, अमेरिकी भौतिकविज्ञानी। (निधन १९१९)
१८९३ – व्लादिमीर मायाकोवस्की, रूसी अभिनेता और लेखक। (निधन १९३०)
१८९४ – ख़्वाजा नज़ीमुद्दीन, पाकिस्तान के दूसरे प्रधानमंत्री। (निधन १९६५)
१८९८ – हर्बर्ट मार्क्यूज़, जर्मन-अमेरिकी समाजशास्त्री और दार्शनिक। (निधन १९७९)
१८९९ – बलाई चंद मुखोपाध्याय, भारतीय लेखक एवं कवि। (निधन १९७९)
१९०९ – नालापत बालमणि अम्मा, भारतीय कवयित्री एवं लेखक। (निधन २००४)
१९२१ – रोजालीन सूसमैन यालो, अमेरिकी चिकित्सक, नोबेल पुरस्कार विजेता। (निधन २०११)
१९२९ – ऑर्विल टर्नक्वेस्ट, बहामाज़ के राजनेता।
१९३८ – जयन्त विष्णु नार्लीकर, खगोल भौतिकीविद और खगोलशास्त्री।
१९४६ – इली नासतासे, रोमानिया के टेनीस खिलाड़ी और राजनेता।
१९४७ – ब्रायन मेय, अंग्रेज़ गायक।
१९४९ – क्गालेमा पेट्रस मोटलांथे, दक्षिण अफ़्रीकी राजनेता, दक्षिण अफ्रीका के तीसरे राष्ट्रपति।
१९५५ – रोजर बिन्नी, भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी।
१९६१ – हर्षा भोगले, भारतीय पत्रकार एवं लेखक।
१९७० – निकोला स्टर्जन, स्कॉटलैंड के प्रथम मंत्री।
१९७६ – बेनेडिक्ट कम्बरबैच, अंग्रेज़ अभिनेता।
१९७९ – दिलहारा फर्नांडो, श्रीलंका के क्रिकेट खिलाड़ी।
१९८० – ज़ेवियर मलीस, बेल्जियम की टेनिस खिलाड़ी।
१९८४ – एडम मोर्रिसन, अमेरिकी बास्केटबॉल खिलाड़ी।
निधन
बहारी कडियाँ
बीबीसी पे यह दिन
जुलाई | 395 |
647832 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE%20%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%A8%20%E0%A4%A7%E0%A4%A8%20%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%8B | प्रेम रतन धन पायो | प्रेम रतन धन पायो बॉलीवुड में बनी हिन्दी भाषा की एक फिल्म है। इस फिल्म के मुख्य किरदार में सलमान खान और सोनम कपूर हैं। यह फिल्म 12 नवम्बर 2015 को सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई।
चलचित्र कथावस्तु
युवराज विजय सिंह (सलमान खान) प्रीतमपुर का राजकुमार होता है, जिसे जल्द ही ताज पहना कर वहाँ का राजा बनाया जाने वाला रहता है। उसकी मंगनी राजकुमारी मैथिली (सोनम कपूर) से हो जाती है। लेकिन उसके कठोर और जिद्दीपन के कारण उसे कई परेशानी का सामना करना पड़ता है। उसकी सौतेली बहने अलग स्थान पर रहते हैं। वहीं उसका सौतेला भाई युवराज अजय सिंह (नील नितिन मुकेश) उसे मारकर ताज खुद पहनना चाहता है। चिराग सिंह (अरमान कोहली) उसे गलत राह पर ले जाता है। वह दोनों मिल कर युवराज विजय को मारने की योजना बनाते हैं। लेकिन विजय उससे निकल जाता है।
वहीं प्रेम दिलवाले (सलमान खान) जो युवराज विजय के जैसे दिखता है, वह राजकुमारी मैथिली को देख कर उससे मिलने प्रीतमपुर आ जाता है। युवराज अजय और चिराग मिलकर युवराज विजय का अपहरण कर लेते हैं। चिराग यह तय करता है कि वह अजय को धोका देगा, इस लिए वह विजय को छोड़ देता है और उसे अजय और प्रेम के बारे में बता कर भड़का देता है। विजय और अजय में तलवार से लड़ाई होने लगती है और उस समय प्रेम और कन्हैया मिल कर इस पूरे घटना के बारे में जान जाते हैं। चिराग उन्हें गोली मारना चाहता है, लेकिन उसकी मौत हो जाती है।
अजय को कर्मों का पछतावा होता है, वहीं विजय अपने परिवार से मिल जाता है। मैथिली प्रेम और विजय के बारे में जान कर चौंक जाती है। प्रेम अपने घर चला जाता है। मैथिली को एहसास होता है कि वह प्रेम से प्यार करती है। पूरा परिवार प्रेम और मैथिली को एक करने के लिए प्रेम के घर चले जाता है और कहानी समाप्त हो जाती है।
रिकॉर्ड
एक भारतीय समाचार चैनल नवभारत टाइम्स के मुताबिक इस फ़िल्म ने थ्री ईडियट्स का रिकॉर्ड्स तोड़ दिया।
कलाकार
सलमान खान - प्रेम दिलवाला / युवराज विजय सिंह, प्रीतमपुर के राजकुमार
सोनम कपूर - राजकुमारी मैथिली देवी
नील नितिन मुकेश - युवराज अजय सिंह, विजय के सौतेले भाई
स्वरा भास्कर - राजकुमारी चन्द्रिका, विजय की सौतेली बहन
अरमान कोहली - चिराग सिंह, प्रीतमपुर राज्य के सी.ई.ओ।
संजय मिश्रा - चौबे जी (रामलीला टोली के प्रमुख)
दीपक डोबरियाल - कन्हैया / फोटोग्राफ़र
अनुपम खेर - दीवान साहब / बापू
समैरा राव - समीरा
संगीत
प्रेम रतन धन पायो का संगीत हिमेश रेशमिया ने दिया है और बोल इरशाद कामिल ने लिखे हैं। फिल्म में कुल १० गाने हैं। संजय चौधरी ने फिल्म का पाश्र्व संगीत बनाया है। फिल्म के संगीत अधिकारों का टी-सीरीज़ ने अधिग्रहण किया है। फिल्म का पहला गाना "प्रेम लीला" 7 अक्टूबर 2015 को रिलीज़ किया गया था। फिल्म की पूर्ण संगीत एलबम 10 अक्टूबर 2015 को रिलीज़ की गयी।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
2015 में बनी हिन्दी फ़िल्म
हिन्दी फ़िल्में
राजश्री प्रोडक्शन्स | 488 |
508731 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%28%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%20%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%9F%29 | याल्ला (संगीत गुट) | याल्ला (रूसी व उज़बेक: Ялла, Yalla), जिन्हें उज़बेक लहजे में यैल्लै कहते हैं, उज़बेकिस्तान का एक रॉक संगीत गुट है। यह १९७० में उभरा और १९७० व १९८० के दशकों में पूरे सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप के अन्य देशों में मशहूर हो गया। इनका एक गाना, 'उचकुदुक - त्रि कोलोदत्सा' जो उज़बेकिस्तान के उचकुदुक शहर के बारे में था, विशेष रूप से बहुत प्रसिद्ध हुआ और आज भी रूस व भूतपूर्व सोवियत संघ के अन्य हिस्सों में जाना जाता है।
याल्ला के मुख्य गायक फ़ार्रुख़ ज़ोकिरोव हैं। गुट के सभी सदस्य ताशकेंत के ओस्त्रोव्सकी अभिनय कला संसथान और अशरफ़ी सरकारी संगीतालय के उत्तीर्ण हैं। वे सभी उज़बेक समुदाय से हैं और अपने गानों में उज़्बेकिस्तान की लोक-धुनों और कविताओं का मिश्रण करते हैं। इनके अधिकतर गाने उज़बेक और रूसी भाषाओं में हैं हालांकि कभी-कभी वे जर्मन, तातार और अरबी में भी गाते हैं। इसके अलावा इन्होनें फ़ारसी, हिन्दी, नेपाली और फ़्रांसीसी में भी गया हुआ है।
इन्हें भी देखें
उचकुदुक
बाहरी कड़ियाँ
यू-ट्यूब पर 'याल्ला' संगीत गुट का 'उचकुदुक - त्रि कोलोदत्सा' नामक गाना
सन्दर्भ
उज़्बेकिस्तानी रॉक संगीत गुट
उज़्बेकिस्तानी संगीत | 182 |
1462505 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%83%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%20%E0%A5%A8%20%28%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AE%20%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29 | दृश्यम २ (मलयालम फिल्म) | दृश्यम 2 एक 2021 की भारतीय मलयालम-भाषा की अपराध थ्रिलर फिल्म है, जिसे जीतू जोसेफ द्वारा लिखा और निर्देशित किया गया है और आशीर्वाद सिनेमा कंपनी के माध्यम से एंटनी पेरुम्बवूर द्वारा निर्मित है। उनकी 2013 की फिल्म दृश्यम की अगली कड़ी और दूसरी श्रृंखला की किस्त, फिल्म में मोहनलाल, मीना, अंसिबा हसन, एस्थर अनिल हैं। कहानी दृश्यम की घटनाओं के छह साल बाद की है।
जीतू ने दृश्यम 2 की पटकथा तब लिखी थी जब उनकी एक और फिल्म राम का निर्माण कार्य कोविड-19 महामारी के कारण रोक दिया गया था। मोहनलाल के 60वें जन्मदिन, 21 मई 2020, पर की गई औपचारिक घोषणा के बाद, प्रमुख फोटोग्राफी 21 सितंबर को शुरू हुई और 6 नवंबर 2020 को संपन्न हुई, जबकि कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए निर्धारित सुरक्षा सावधानियों का पालन किया गया। फिल्म को बड़े पैमाने पर 46 दिनों के भीतर थोडुपुझा और उसके आसपास "दृश्यम" के स्थानों और कोच्चि में कुछ दृश्यों के लिए शूट किया गया था। अनिल जॉनसन ने गाने और स्कोर तैयार किए। सतीश कुरुप ने सिनेमैटोग्राफी को संभाला और वी.एस. विनायक ने फिल्म का संपादन किया।
मूल रूप से, निर्माताओं ने एक नाटकीय रिलीज की योजना बनाई, निर्माताओं ने बाद में स्ट्रीमिंग सेवा अमेज़ॅन प्राइम वीडियो के माध्यम से फिल्म को रिलीज करने का विकल्प चुना। फिल्म को 19 फरवरी 2021 को दुनिया भर में व्यापक आलोचनात्मक प्रशंसा के लिए रिलीज़ किया गया था, जिसमें वर्णन शैली और प्रदर्शन (विशेष रूप से मोहनलाल) की प्रशंसा की गई थी।
सन्दर्भ
2021 की फ़िल्में | 250 |
708878 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%9F%E0%A5%8B | पोटो | पोटो (Potto) अफ़्रीका के मुख्य महाद्वीप में मिलने वाला निशाचरी (रात्रि में सक्रीय) नरवानर प्राणी होते हैं। यह नरवानर गण के स्ट्रेपसिराइनी उपगण के लीमरिफ़ोर्मीस अधोगण (इन्फ़ाऑर्डर) के लोरिसिडाए कुल में पेरोडिकटिकस (Perodicticus) नामक वंश की इकलौती सदस्य जाति हैं।
शरीर
पोटो ३० से ३९ सेमी लम्बा होता है और इसकी एक ३ से १० सेमी की छोटी-सी पूँछ होती है। इसका वज़न ६०० से १,६०० ग्राम तक का होता है। शरीर पर भूरे-ख़ाकी रंग के बाल होते हैं। इसके हाथ की विशेषता है कि उसकी तर्जनी ऊँगली ना के बराबर लम्बी होती है लेकिन सम्मुख अँगूठे के प्रयोग से यह पेड़ की डालियाँ पकड़ने में सक्षम होता है। अन्य स्ट्रेपसिराइनियों की तरह इसकी नाक गीली होती है, मुँह के निचले आगे के दाँत कंघी की तरह प्रयोग किये जाते हैं और हाथ-पाँव की तीसरी और चौथी उंगलियाँ चर्म से जुड़ी होती हैं, जबकि पाँव की तीसरी, चौथी और पाँचवी उंगलियाँ अपने हाथ के समीपी भाग में खाल से जुड़ी होती हैं।
इनकी गर्दन में चार से छह हड्डीनुमा उभार होते हैं जिनके अन्त तीखे होते हैं और रक्षा के लिये प्रयोग किये जा सकते हैं। नर और मादा की पूँछो के नीचे गन्ध उत्पन्न करने वाले अंग होते हैं, जिनसे वह अपना क्षेत्र अंकित करते हैं और जो नर-मादा के जोड़े में आपसी आकर्षण के लिये प्रयोग किया जाता है।
इन्हें भी देखें
नरवानर गण
लोरिसिडाए
सन्दर्भ
लोरिस और गलेगो
अफ़्रीका के स्तनधारी | 234 |
248708 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%82%E0%A4%97%E0%A4%B2%20%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B9 | गूगल समूह | गूगल समूह, गूगल इंक की एक सेवा है जो सामान्य रूचि पर आधारित, कई यूज़नेट समाचार समूह सहित चर्चा समूह का समर्थन करती है। इस सेवा को 1995 में डेजा समाचार के रूप में शुरू किया गया था और फ़रवरी 2001 में की गई खरीद के बाद गूगल समूह में परिवर्तित किया गया। यथा 3 फ़रवरी 2011, गूगल समूह में करीब एक महीने तक एक गंभीर बग था। किसी भी वाक्यांश की खोज करने से परिणाम प्रथम पृष्ठ में वापस आ जाते थे।
गूगल समूह में सदस्यता नि:शुल्क है और कई समूह गुमनाम हैं। उपयोगकर्ता अपनी रूचि के अनुसार चर्चा समूह को खोज सकते हैं और वेब इंटरफेस के माध्यम से या ई-मेल के द्वारा क्रमवार बातचीत में भाग ले सकते हैं। वे एक नए समूह की भी शुरूआत कर सकते हैं। गूगल समूह में 1981 के यूज़नेट समाचारसमूह पोस्टिंग के संग्रह भी शामिल हैं और यूज़नेट समूह को पढ़ने और पोस्टिंग करने के लिए सपोर्ट करता है। उपयोगकर्ता ई-मेल के लिए मेलिंग सूची संग्रह को भी सेट कर सकते हैं जो कि कहीं और मेज़बानी करता हो।
इतिहास
डेजा न्यूज़
डेजा न्यूज़ रिसर्च सर्विसेस एक यूज़नेट चर्चा समूह के लिए पोस्टेड संदेशों का एक संग्रह था, जिसकी शुरूआत ऑस्टिन, टेक्सास में स्टीव मडेरे द्वारा मार्च 1995 में हुआ था। इसके शक्तिशाली खोज इंजन की क्षमताओं ने सेवा प्रशंसा हासिल की, विवाद उत्पन्न किया और ऑनलाइन चर्चा के कथित प्रकृति में काफी बदलाव को हासिल किया।
हालांकि यूज़नेट चर्चा के अभिलेखागार को तब तक रखा गया जब तक यह माध्यम अस्तित्व में रहा, डेजा समाचार ने एक उपन्यास संयोजन की पेशकश की सुविधा प्रदान की। यह सामान्य जनता के लिए उपलब्ध था और एक सामान्य वर्ल्ड वाइड वेब यूज़र इंटरफ़ेस प्रदान किया, जिसके तहत सभी संग्रहित समाचारसमूह, तत्काल वापसी परिणाम, अनिश्चित काल तक रहे संदेश के बीच खोज की अनुमति देता था। खोज सुविधाओं को एक शिथिल संगठित और अल्पकालिक संचार उपकरण से एक महत्वपूर्ण स्रोत जानकारी में यूज़नेट को परिवर्तित किया। इस संग्रह का सापेक्ष स्थायित्व और साथ में लेखक द्वारा संदेश की खोज करने की क्षमता ने गोपनीयता से संबंधित चिंताओं को उभारा और पूर्व में दोहराई गई चेतावनियों की पुष्टि की जिसे अपने या अन्यों की चर्चा में उन चेतावनियों को लेकर सावधान रहना चाहिए।
जबकि मडेरे शुरूआत में संग्रहित सामग्री को हटाने के लिए अनिच्छुक थे, लेकिन उपयोगकर्ता के विरोध और कानूनी दबाव के चलते "न्यूकिंग" की प्रस्तुतिकरण हुई, जो कि खोज परिणामों से पोस्टर्स के स्वयं के संदेशों को स्थायी रूप से हटाने की एक प्रक्रिया है। इसने पहले से ही "X-No-आर्काइव" संदेश प्रवेशिका के इस्तेमाल का समर्थन किया, जो अगर वर्तमान हो तो संग्रह से किसी लेख को हटाने का कारण बन सकता है। बाद के किसी संदेश में सामग्री को उद्धृत करने और संग्रहीत करने से यह दूसरों को रोकता नहीं है। कॉपीराइट धारकों को भी संग्रह से सामग्री को हटाने की अनुमति थी। डेजा समाचार के हम्फ्रे मर्र के अनुसार, चर्च ऑफ साइंटोलॉजी से सबसे अधिक कॉपीराइट कार्य हुए।
दिशा में परिवर्तन
अंततः सेवा का विस्तार, खोज से परे किया गया। माई डेजा न्यूज़ ने परंपरागत कालानुक्रमिक में यूज़नेट को पढ़ने की क्षमता, प्री-ग्रुप तरीका, नेटवर्क के लिए नए संदेशों को पोस्ट करने की क्षमता की पेशकश की। डेजा समुदाय निजी इंटरनेट फोरम थे जिसकी पेशकश मुख्य रूप से कारोबार के लिए किया गया था। 1999 में साइट (वर्तमान में Deja.com के रूप में जाना जाता है) ने तेजी से दिशा बदली और अपनी प्राथमिक सुविधा के रूप में एक शॉपिंग कम्पेरिजन सेवा निर्मित की। इस परिवर्तन के दौरान, जिसमें सर्वर का स्थानांतरण शामिल था, यूज़नेट संग्रह में कई पुराने संदेश अनुपलब्ध हो गए। 2000 के उत्तरार्ध तक कंपनी वित्तीय संकट में थी और ईबे के लिए शॉपिंग सेवा को बेच दिया जिसमें उनके half.com प्रौद्योगिकी शामिल थे।
गूगल समूह
2001 तक खोज सेवा बंद हो गई थी। फरवरी 2001 में, गूगल ने डेजा न्यूज़ का अधिग्रहण किया और इसकी संपत्ति को groups.google.com में परिवर्तित किया। उस समय प्रयोक्ता नए गूगल ग्रुप इंटरफ़ेस के माध्यम से इन यूज़नेट समाचारसमूह का उपयोग कर सकते थे।
2001 के अंत तक, संग्रह को 11 मई 1981 के अन्य संग्रहित संदेशों के साथ जोड़ा गया। 1981-1991 के प्रारम्भिक पोस्ट को टोरंटो विश्वविद्यालय के हेनरी स्पेन्सर द्वारा अभिलेखागार के आधार पर पश्चिमी ओंटारियो विश्वविद्यालय द्वारा गूगल को दान में दिया गया। फौरन बाद, गूगल ने एक नए संस्करण को जारी किया, जिसने उपयोगकर्ताओं को अपने स्वयं के (गैर यूज़नेट) समूह बनाने के लिए अनुमति दी।
फरवरी 2006 में, गूगल ने गूगल समूह के इंटरफ़ेस को संशोधित किया और प्रोफाइल और पोस्ट रेटिंग्स को जोड़ा.
अक्टूबर 2010 में, गूगल ने घोषणा की कि वह स्वागत संदेश, पृष्ठों और फाइलों के लिए सपोर्ट को वापस ले लेगा और इसे जनवरी 2011 में प्रभावी किया जाएगा.
दिसंबर 2010 में, गूगल ने जीमेल/रीडर-लाइक कार्यशीलता के साथ एक न्यू UI प्रिव्यू को निकाला.
गूगल द्वारा आयोजित समूहों के प्रकार
गूगल दो अलग प्रकार के समूह प्रदान करते हैं: पारंपरिक यूज़नेट समूह और गैर यूज़नेट समूह जो कि मेलिंग सूची से काफी समान है। इसका जो उत्तरार्द्ध प्रकार है उसका एक्सेस केवल वेब या ई-मेल द्वारा किया जा सकता है न कि NNTP द्वारा। गूगल समूह उपयोगकर्ता इंटरफेस और मदद के संदेश मेलिंग-सूची शैली समूह के लिए एक अलग नाम का उपयोग नहीं करते हैं, दोनों प्रकार के समूहों की शैलियों के लिए गूगल समूह के रूप संदर्भित किया जाता है।"
गूगल X-No-आर्काइव हैडर को मान्यता देता है और सात दिनों के संदेशों को प्रदर्शित करता है उसके बाद प्रयोक्ताओं के लिए लेख उपलब्ध नहीं होता। साथ ही गूगल "-" यूज़नेट हस्ताक्षर सीमांकक को भी मान्यता देता है और अंत में महत्वपूर्ण स्पेस को हटा देता है (इस प्रकार, उचित यूज़नेट हस्ताक्षर को गूगल समूह के माध्यम से पोस्ट किए गए लेख के लिए जोड़ा नहीं जा सकता है)।
उल्लेखनीय इंटरफ़ेस सुविधाएं
समूह खोज
गूगल खोज में इसके परिणामों में सार्वजनिक समूहों को शामिल किया गया है। खोज में पोस्ट को वापस लाया जाता है जिसमें से अधिकांश खोज के अनुसार होता है और यदि कोई समूह मैच करता है उसे गूगल समूह निर्देशिका के लिंक के साथ परिणाम के शीर्ष में प्रदर्शित किया जाता है।
प्रोफ़ाइल
उपयोगकर्ता सार्वजनिक प्रोफाइल बना सकते हैं जो उनके सभी पोस्ट से जुड़े होते हैं।
रेटिंग पोस्ट
एक उपयोगकर्ता 5 स्टार में से 1 से 5 के साथ पोस्ट का रेटिंग कर सकता है। एक पोस्ट की रेटिंग सभी उपयोगकर्ता रेटिंग्स के औसत पर आधारित होता है और एक थ्रेड रेटिंग थ्रेड में सभी पोस्टों की औसत रेटिंग पर आधारित होता है। उपयोगकर्ता अपने स्वयं के पोस्टों की रेटिंग्स नहीं कर सकते हैं।
स्टारिंग थ्रेड्स
उपयोगकर्ताओं उन्हें कंद्रीकृत ट्रैक करने के लिए स्टार्ड के रूप में 200 तक मार्क अप कर सकते हैं।
ई मेल मास्किंग
समूह से ई-मेल एड्रेस कटाई से स्कैमर्स या स्पैमर्स को रोकने के लिए कम से कम तीन डॉट्स के साथ उपयोगकर्ता के अंतिम तीन अक्षरों तक को स्थानांतरित करने के द्वारा गूगल ने इसके वेब इंटरफेस पर सभी ई-मेल एड्रेस को मास्क किया। पूरा ई-मेल एड्रेस देखने के लिए एक उपयोगकर्ता को सीएपीटीसीएचए चुनौती के जवाब देना जरूरी है। वेब इंटरफेस के माध्यम से एक गूगल समूह या यूज़रनेट समाचारसमूह को देखते समय ही ई-मेल एड्रेस मास्क होते हैं, लेकिन जब इसके सदस्य ई-मेल के द्वारा संदेश प्राप्त करते हैं या जब अन्य सर्वर के लिए यूज़नेट लेख का वितरण होता है तब ये मास्क नहीं हो सकते हैं। गूगल समूह अपने स्वयं की ई-मेल पते को अस्पषट करने की अनुमति नहीं देते हैं।
समूह वेब पेज
समूह पेज को 5 अक्टूबर 2006 में बीटा संस्करण के रूप में शुरू किया गया था (24 जनवरी 2007 को बीटा स्तर से बढ़ावा दिया गया)। उन्हें समूह के सदस्यों या समूह प्रबंधकों द्वारा संपादित किया जा सकता है और डाउनलोड के लिए फ़ाइलों को स्टोर कर सकते हैं। पृष्ठों के संस्करण को विकी के समान तरीके से ही रखा गया। 22 सितंबर 2010 को गूगल ने समूह पृष्ठ सुझावित उपयोगकर्ता को बंद करने और उनके सामग्री को गूगल डॉक्स या गूगल साइट पर स्थानांतरित करने की योजनाओं की घोषणा की। इसे नवम्बर 2010 में शुरू किया गया और समूह पन्ने केवल पढ़ने लायक बन गया (मौजूदा सामग्री को केवल देखने/डाउनलोड करने के अनुमति) जबकि फरवरी 2011 में उन्हें पूरी तरह से बंद कर दिया जाएगा।
आधिकारिक गूगल समूह
गूगल ने जीमेल जैसे अपने कुछ सेवाओं के लिए कई आधिकारिक मदद समूह का निर्माण किया। इन समूहों में, उपयोगकर्ता प्रासंगिक गूगल सेवा के बारे में सवाल-जवाब कर सकते थे। प्रत्येक आधिकारिक समूह में एक गूगल प्रतिनिधि होता है जो कभी-कभी प्रश्नों का जवाब देता है। गूगल प्रतिनिधियों के अपने उपनाम में हमेशा एक नीला जी प्रतीक होता है।
कुछ आधिकारिक समूहों में शामिल हैं:
गूगल ग्रुप्स हेल्प फ़ोरम : 2 अगस्त 2010 तक एक अधिकारिक गूगल ग्रुप्स मदद समूह था, जब इसे संग्रहित किया गया (केवल पढ़ने के लिए बनाया गया था)। प्रतिक्रिया भेजने के लिए नीचे गूगल ग्रुप्स उत्पाद विचार देंखे।
गूगल पृष्ठ निर्माता चर्चा समूह : एक अधिकारिक गूगल पृष्ठ निर्माता सहायता समूह।
समूह और फोरम के अलावा (नीचे देखें), गूगल के पास वर्तमान में उनके कुछ उत्पाद की प्रतिक्रिया देने के लिए उत्पाद विचार है जिसमें गूगल ग्रुप न्यू प्रिव्यू यूआई भी शामिल हैं:
Google Groups Product Ideas:: न्यू प्रिव्यू यूआई पर प्रतिक्रिया के लिए।
साथ ही गूगल उनके गूगल फ्रेंड्स और गूगल पेज क्रिएटर अपडेट्स मेलिंग लिस्ट के आयोजन के लिए गूगल ग्रुप्स का भी इस्तेमाल करती है, जो कि केवल-घोषित समूह है जहां केवल सभापति पोस्ट कर सकते हैं।
इससे संबंधित कई और हेल्प फोरम हैं जिनका कार्यक्षमता गूगल ग्रुप से अलग प्रतीत होती है:
जीमेल हेल्प फोरम : एक आधिकारिक जीमेल सहायता फ़ोरम।
गूगल टॉक हेल्प फ़ोरम : एक अधिकारिक गूगल टॉक हेल्प फोरम।
गूगल बेस हेल्प फ़ोरम : एक अधिकारिक गूगल बेस सहायता फ़ोरम।
गूगल वेब सर्च हेल्प फ़ोरम : एक अधिकारिक गूगल खोज सहायता फ़ोरम।
गूगल वेबमास्टर हेल्प फ़ोरम : वेबमास्टर्स के लिए एक आधिकारिक हेल्प फ़ोरम।
ऐडवर्ड्स हेल्प फ़ोरम : एक अधिकारिक गूगल ऐडवर्ड्स सहायता फ़ोरम।
गूगल मैप्स फोरम : एक अधिकारिक गूगल मैप्स सहायता फ़ोरम।
आलोचना
स्वर्गीय ली रिज़ोर, जिसे "ब्लिंकी द शार्क" के रूप में भी जाना जाता है, ने यूज़नेट इम्प्रुवमेंट प्रोजेक्ट की शूरूआत की थी, एक ऐसी परियोजना जो कि गूगल ग्रुप्स और इसके उपयोगकर्ताओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण था। इस परियोजना का उद्देश्य "यूज़नेट भागीदारी को एक बेहतर अनुभव बनाना था।" उन्होंने इसके सर्वर से एक स्पैम की बढ़ती संख्या के लिए गूगल ग्रुप्स के आंखे बंद करने और एक स्थापित ग्रुप एन मासे में लूजर्स और लेमर्स के इटर्नल सितम्बर के आगम को प्रोत्साहित करने के लिए अभियुक्त माना। यूज़नेट सुधार परियोजना ने कई न्यूज़रीडर्स में गूगल ग्रुप उपयोगकर्ता द्वारा पोस्ट किए गए संदेशों को ब्लॉक के लिए कई किलफाइल उदाहरण प्रदान किए।
16 अक्टूबर 2003 को जॉन विले एंड संस ने अपने द्वारा प्रकाशित कॉपीराइट पाठ को गूगल ग्रुप्स में डाउनलोड करने की सुविधा उपलब्ध होने को देखने के बाद गूगल को एक पत्र भेजा।
स्लैशडॉट और वायर्ड योगदानकर्ताओं ने गूगल ग्रुप के एक खोज इंजन के लिए उपेक्षा करने के लिए आलोचना की, जिसके तहत कई पुराने पोस्टिंग को अप्राप्य रूप में छोड़ दिया गया था।
अनुपयोगी काल
19 अगस्त 2009 से करीब एक सप्ताह तक गूगल ग्रुप्स ने comp.lang.c++.moderated जैसे मॉडरेटेड यूज़नेट ग्रुप्स के लिए कोई भी लेख परिनियमन के लिए नहीं भेजा जिसके चलते उन ग्रुपों में यातायात की भारी कमी हुई। एक दूसरी तरह की आउटेज 16-23 सितम्बर 2009 में हुई। एक गूगल प्रतिनिधि ने गूगल हेल्प फोरम के लिए एक पोस्टिंग में 22 सितम्बर 2009 को समस्या को स्वीकार किया।
ब्लॉक
तुर्की में तुर्की अदालत के आदेश के द्वारा 10 अप्रैल 2008 से गूगल समूह को ब्लॉक कर दिया गया। द गार्जियन के अनुसार, सेवा के खिलाफ अडनान ओक्टर की परिवाद शिकायत का पालन करते हुए अदालत ने गूगल समूह को प्रतिबंधित किया। कई वेबसाइटों में गूगल समूह ऐसा पहला वेबसाइट है जिसे कथित तौर पर अपने वेबसाइट में ऐसी सामग्री शामिल करने लिए तुर्की सरकार द्वारा ब्लॉक किया गया जो इस्लाम को अपमानित किया था।
इन्हें भी देंख
बिगटेंट समूह
याहू! समूह
MSN समूह (बंद)
नोट्स
सन्दर्भ
गूगल ग्रुप परीक्षण खोज.
एंडी लैंगर (14 जुलाई 1997). द पोस्ट मैन ऑलवेज सेव्स ट्वाइस. ऑस्टिन क्रॉनिकल .
कोर्टनी मेसाविंटा, जेनेट कोर्नब्लम (8 दिसम्बर 1997) देजा न्यूज़ जोइंस एंटीस्पैम वार. सी
|नेट news.com.
जानेले ब्राउन (24 मई 1999). व्हाट डज इट मेक ए बक ऑफ ऑफ यूज़नेट? सालोंन
हल्क स्नीड (27 नवम्बर 2000). ग्राकक्वेक, ओर, आई हियर अमेरिका व्हाइनिंग. सक.
रयान नारायने (12 दिसम्बर 2000). ईबे एक्वायर्स Deja.com टैक्लोलॉजी. internetnews.com (जूपिटर मीडिया).
बाहरी कड़ियाँ
गूगल समूह
मुफ्त मेलिंग सूची
गूगल सेवाएँ
यूजनैट फ्री पोस्टिंग | 2,059 |
554870 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%2C%20%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1 | यमकेश्वर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र, उत्तराखण्ड | यमकेश्वर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र उत्तराखण्ड के 70 निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित यह निर्वाचन क्षेत्र अनारक्षित है। 2012 में इस क्षेत्र में कुल 78,147 मतदाता थे।
विधायक
2012 के विधानसभा चुनाव में विजया बड़थ्वाल इस क्षेत्र से लगातार तीसरी बार विधायक चुनी गईं।
|-style="background:#E9E9E9;"
!वर्ष
!colspan="2" align="center"|पार्टी
!align="center" |विधायक
!पंजीकृत मतदाता
!मतदान %
!बढ़त से जीत
!स्रोत
|-
|2002
|bgcolor="#FF9933"|
|align="left"|भारतीय जनता पार्टी
|align="left"|विजया बड़थ्वाल
|60,616
|46.20%
|1447
|
|-
|2007
|bgcolor="#FF9933"|
|align="left"|भारतीय जनता पार्टी
|align="left"|विजया बड़थ्वाल
|55,907
|53.90%
|2841
|
|-
|2012
|bgcolor="#FF9933"|
|align="left"|भारतीय जनता पार्टी
|align="left"|विजया बड़थ्वाल
|78,147
|55.00%
|3541
|
|}
कालक्रम
इन्हें भी देखें
गढ़वाल लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र
बाहरी कड़ियाँ
उत्तराखण्ड मुख्य निर्वाचन अधिकारी की आधिकारिक वेबसाइट (हिन्दी में)
सन्दर्भ
टिपण्णी
तब राज्य का नाम उत्तरांचल था।
उत्तराखण्ड के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र | 133 |
1121977 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%A8%20%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B8%20%28%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A4%B0%29 | ग्लेन फिलिप्स (क्रिकेटर) | ग्लेन डॉमिनिक फिलिप्स (जन्म 6 दिसंबर 1996) न्यूजीलैंड के एक क्रिकेटर हैं, जिनका जन्म दक्षिण अफ्रीका में हुआ है, जो राष्ट्रीय टीम का प्रतिनिधित्व करते हैं और ऑकलैंड के लिए खेलते हैं। दिसंबर 2015 में उन्हें 2016 अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप के लिए न्यूजीलैंड के टीम में नामित किया गया था। दिसंबर 2017 में उनके छोटे भाई डेल को 2018 अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप के लिए न्यूजीलैंड के टीम में नामित किया गया था।
सन्दर्भ | 75 |
6522 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%B7%E0%A4%A3%20%28%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%29 | भूषण (हिन्दी कवि) | महाकवि भूषण (१६१३ - १७१५) रीतिकाल के तीन प्रमुख हिन्दी कवियों में से एक हैं, अन्य दो कवि हैं बिहारी तथा शृंगार रस में रचना कर रहे थे, वीर रस में प्रमुखता से रचना कर भूषण ने अपने को सबसे अलग साबित किया। 'भूषण' की उपाधि उन्हें चित्रकूट के राजा हृदयराम के पुत्र रुद्रशाह ने प्रदान की थी। ये मोरंग, कुमायूँ, श्रीनगर, जयपुर, जोधपुर, रीवाँ, छत्रपती शिवाजी महाराज और छत्रसाल आदि के आश्रय में रहे, परन्तु इनके पसंदीदा नरेश छत्रपति शिवाजी महाराज और महाराजा छत्रसाल थे।
जीवन परिचय
महाकवि भूषण का जन्म संवत 1670 तदनुसार ईस्वी 1613 में हुआ। वे मूलतः टिकवापुर गाँव के निवासी थे जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के घाटमपुर तहसील में पड़ता है। उनके दो भाई चिन्तामणि और मतिराम भी कवि थे। उनका मूल नाम क्या था, यह पता नहीं है। 'शिवराज भूषण' ग्रंथ के निम्न दोहे के अनुसार 'भूषण' उनकी उपाधि है जो उन्हें चित्रकूट के राज हृदयराम के पुत्र रुद्रशाह ने दी थी -
कुल सुलंकि चित्रकूट-पति साहस सील-समुद्र।कवि भूषण पदवी दई, हृदय राम सुत रुद्र॥
कहा जाता है कि भूषण कवि मतिराम और चिंतामणि के भाई थे। एक दिन भाभी के ताना देने पर उन्होंने घर छोड़ दिया और कई आश्रम में गए। यहाँ आश्रय प्राप्त करने के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज के आश्रम में चले गए और अन्त तक वहीं रहे।
पन्ना नरेश छत्रसाल से भी भूषण का संबंध रहा। वास्तव में भूषण केवल छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रसाल इन दो राजाओं के ही सच्चे प्रशंसक थे। उन्होंने स्वयं ही स्वीकार किया है-
और राव राजा एक मन में न ल्याऊं अब।साहू को सराहों कै सराहौं छत्रसाल को॥
संवत 1772 तदनुसार ईस्वी 1715 में भूषण परलोकवासी हो गए।
भूषण के जन्म, मृत्यु, परिवार आदि के विषय में कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता परन्तु सजेती क़स्बा में एक कवि भूषण जी का एक परिवार रहता है जो इस बात का दावा करता है कि वो ही कवि भूषण के वंशज हैं व उनके पूर्वज अग्रेजों के शासनकाल में टिकवापुर गाँव छोड़कर यहाँ बस गए। आज भी उनकी जमीने टिकवापुर गाव में पड़ती है। कवि भूषण की बाद की पीढ़ी का सति माता का एक मंदिर टिकवापुर में बना है जिसे यह परिवार अपनी कुलदेवी मानता है व् हर छोटे मोटे त्यौहार में उनकी पूजा अर्चना करता है।
रचनाएँ
विद्वानों ने इनके छह ग्रंथ माने हैं - शिवराजभूषण, शिवाबावनी, छत्रसालदशक, भूषण उल्लास, भूषण हजारा, दूषनोल्लासा। परन्तु इनमें शिवराज भूषण, छत्रसाल दशक व शिवा बावनी ही उपलब्ध हैं। शिवराजभूषण में अलंकार, छत्रसाल दशक में छत्रसाल बुंदेला के पराक्रम, दानशीलता व शिवाबवनी में छत्रपति शिवाजी महाराज के गुणों का वर्णन किया गया है।
शिवराज भूषण एक विशालकाय ग्रन्थ है जिसमें 385 पद्य हैं। शिवा बावनी में 52 कवितों में छत्रपति शिवाजी महाराज के शौर्य, पराक्रम आदि का ओजपूर्ण वर्णन है। छत्रशाल दशक में केवल दस कवितों के अन्दर बुन्देला वीर छत्रसाल के शौर्य का वर्णन किया गया है। इनकी सम्पूर्ण कविता वीर रस और ओज गुण से ओतप्रोत है जिसके नायक छत्रपति शिवाजी महाराज हैं और खलनायक औरंगजेब। औरंगजेब के प्रति उनका जातीय वैमनस्य न होकर शासक के रूप में उसकी अनीतियों के विरुद्ध है।
शिवराज भूषण से कुछ छन्द
इन्द्र जिमि जंभ पर , वाडव सुअंभ पर। रावन सदंभ पर , रघुकुल राज है ॥१॥
पौन बरिबाह पर , संभु रतिनाह पर। ज्यों सहसबाह पर , राम द्विजराज है ॥२॥
दावा द्रुमदंड पर , चीता मृगझुंड पर। भूषण वितुण्ड पर , जैसे मृगराज है ॥३॥
तेजतम अंस पर , कान्ह जिमि कंस पर। त्यों म्लेच्छ बंस पर , शेर सिवराज है ॥४॥
काव्यगत विशेषताएँ
भूषण रीति युग था पर इन्होंने ने वीर रस में कविता रची। उनके काव्य की मूल संवेदना वीर-प्रशस्ति, जातीय गौरव तथा शौर्य वर्णन है। निरीह हिन्दू जनता अत्याचारों से पीड़ित थी। भूषण ने इस अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाई तथा निराश हिन्दू जन समुदाय को आशा का संबल प्रदान कर उसे संघर्ष के लिए उत्साहित किया। इन्होंने अपने काव्य नायक शिवाजी व छत्रसाल को चुना। छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता के विषय में भूषण लिखते हैं :
भूषण भनत महावरि बलकन लाग्यो सारी पातसाही के उड़ाय गये जियरे।तमके के लाल मुख सिवा को निरखि भये स्याह मुख नौरंग सिपाह मुख पियरे॥
इन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज की युद्धवीरता, दानवीरता, दयावीरता व धर्मवीरता का वर्णन किया है। भूषण के काव्य में उत्साह व शक्ति भरी हुई है। इसमें हिंदू जनता की भावनाओं को ओजमयी भाषा में अंकन किया गया है। भूषण ने कहा कि यदि छत्रपति शिवाजी महाराज न होते तो सब कुछ सुन्नत हो गया होताः
देवल गिरावते फिरावते निसान अली ऐसे डूबे राव राने सबी गये लबकी,
गौरागनपति आप औरन को देत ताप आप के मकान सब मारि गये दबकी।
पीरा पयगम्बरा दिगम्बरा दिखाई देत सिद्ध की सिधाई गई रही बात रबकी,
कासिहू ते कला जाती मथुरा मसीद होती सिवाजी न होतो तौ सुनति होत सबकी॥
सांच को न मानै देवीदेवता न जानै अरु ऐसी उर आनै मैं कहत बात जबकी,
और पातसाहन के हुती चाह हिन्दुन की अकबर साहजहां कहै साखि तबकी।
बब्बर के तिब्बर हुमायूं हद्द बान्धि गये दो मैं एक करीना कुरान बेद ढबकी,
कासिहू की कला जाती मथुरा मसीद होती सिवाजी न होतो तौ सुनति होत सबकी॥
कुम्भकर्न असुर औतारी अवरंगज़ेब कीन्ही कत्ल मथुरा दोहाई फेरी रबकी,
खोदि डारे देवी देव सहर मोहल्ला बांके लाखन तुरुक कीन्हे छूट गई तबकी।
भूषण भनत भाग्यो कासीपति बिस्वनाथ और कौन गिनती मै भूली गति भव की,
चारौ वर्ण धर्म छोडि कलमा नेवाज पढि सिवाजी न होतो तौ सुनति होत सबकी॥
भूषण के काव्य में सर्वत्र उदारता का भाव मिलता है। वे सभी धर्मों को समान दृष्टिकोण से देखते हैं। इनके साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं का यथार्थवादी चित्रण मिलता है। इन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज को धर्मरक्षक के रूप प्रशंसा की है तो जसवंत सिंह, करण सिंह आदि की आलोचना भी की है। भूषण ने सारा काव्य ब्रजभाषा में रचा था। ओजगुण से परिपूर्ण ब्रजभषा का प्रयोग सर्वप्रथम इन्होंने ही किया था। इन्होंने प्रशस्तियाँ भी लिखी है।
आज गरीब निवाज मही पर तो सो तुही सिवराज विरजै
भूषण ने मुक्तक शैली में काव्य की रचना की। इन्होंने अलंकारों का सुन्दर प्रयोग किया है। कवित्त व सवैया, छंद का प्रमुखतया प्रयोग किया है। वस्तुतः भूषण बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे कवि व आचार्य थे।
भूषण वीर रस के श्रेष्ठ कवि हैं
भूषण का वीरकाव्य हिन्दी साहित्य की वीर काव्य परंपरा में लिखा गया है। इनकी कविता का अंगीरस वीर रस है। इनकी रचनाएँ शिवराज भूषण, शिवाबावजी और छत्रसाल दशक वीर रस से ओतप्रोत है। ये तीनों कृतियाँ भूषण की वीर भावना की सच्ची निर्देशक है। यह काव्य अपने युग के आदर्श नायकों के चरित्र को प्रस्तुत करने वाला है। इनमें छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रसाल के शौर्य-साहस, प्रभाव व पराक्रम, तेज व ओज का जीवंत वर्णन हुआ है। भूषण के वीरकाव्य की मुख्य विशेषता यह है कि उसमें कल्पना और पुराण की तुलना में इतिहास की सहायता अधिक ली गई है। काव्य का आधार ऐतिहासिक है। इसके अतिरिक्त, इस वीरकाव्य में देश की संस्कृति व गौरव का गान है। भूषण ने अपने वीरकाव्य में औरंगजेब के प्रति आक्रोश सर्वत्र व्यक्त किया है।
भूषण की वीरभावना का वर्णन बहुआयामी है। इसे हम युद्धमूलक, धर्ममूलक, दानमूलक, स्तुतिमूलक आदि रूपों में देख सकते हैं।
युद्धमूलक
वीर रस के स्थायी भाव उत्साह का उत्कृष्ट रूप युद्धभूमि में शत्रु को ललकारते हुए उजागर होता हैं छत्रपति शिवाजी महाराज स्वंय वीर थे और उनकी प्रेरणा से हिन्दू सैनिकों के मन में वीरता का भाव उत्पन्न हुआ था। भूषण ने उन सैनिकों की वीरता का वर्णन करते हुए कहा हैः
घूटत कमान अरू तीर गोली बानन के मुसकिल होति मुरचान हू की ओट में।
ताहि समै सिवराज हुकम के हल्ल कियो दावा बांधि पर हल्ला वीर भट जोट में॥
युद्धों का सजीव चित्रण
भूषण का युद्ध वर्णन बड़ा ही सजीव और स्वाभाविक है। युद्ध के उत्साह से युक्त सेनाओं का रण प्रस्थान युद्ध के बाजों का घोर गर्जन, रण भूमि में हथियारों का घात-प्रतिघात, शूर वीरों का पराक्रम और कायरों की भयपूर्ण स्थिति आदि दृश्यों का चित्रण अत्यंत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया है। छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना का रण के लिए प्रस्थान करते समय का एक चित्र देखिए -
साजि चतुरंग बीररंग में तुरंग चढ़ि।सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है॥
भूषन भनत नाद विहद नगारन के।नदी नद मद गैबरन के रलत हैं॥
ऐल फैल खैल भैल खलक में गैल गैल,गाजन की ठेल-पेल सैल उसलत हैं।
तारा सों तरनि घूरि धरा में लगत जिम,धारा पर पारा पारावार ज्यों हलत हैं॥ -- (शिवा बावनी)धर्ममूलक
कवि ने छत्रपति शिवाजी महाराज को धर्म व संस्कृति के उन्नायक के रूप में अंकित किया है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुसलमानों से टक्कर ली तथा हिंदुओं की रक्षा की। उन्होंने शिवराज और छत्रसाल की महिमा का वर्णन किया है।
कवि ने शिवाबावनी में कहा है :-
वेद राखे विदित पुराने राखे सारयुत, राम नाम राख्यों अति रसना सुधार मैं, हिंदुन की चोटी रोटी राखी है सिपहिन की, कांधे में जनेऊ राख्यो माला राखी गर मैं॥दानमूलक
वीर रस के कवियों ने अपने नायक को अत्यधिक दानवीर दिखलाया है। भूषण ने छत्रपति शिवाजी महाराज की दानवीरता का अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन किया है। याचक को अपनी इच्छा से ज्यादा दान मिलता है। शिवास्तुति में कवि ने छत्रपति शिवाजी महाराज की अपूर्व दानशीलता का वर्णन किया है।
जाहिर जहान सुनि दान के बखान आजु, महादानि साहितनै गरिब नेवाज के। भूषण जवाहिर जलूस जरबाक जोति, देखि-देखि सरजा की सुकवि समाज के॥दयामूलक
भूषण के अनुसार, छत्रपति शिवाजी महाराज दया के सागर हैं। वे शरणागत पर दया करते थे। उन्होंने अपने सैनिकों को स्त्रियों व बच्चों को तंग न करने का निर्देश दिया हुआ था। वस्तुतः भूषण ने छत्रपति शिवाजी महाराज के पराक्रम, शौर्य व आतंक का प्रभावशाली वर्णन किया है। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के धर्मरक्षक, दानवीर व दयावान, रूप को प्रकट किया है। इनके वीररस से संबंधित पद मुक्तक हैं। इनमें ओजगुण का निर्वाह है। हिन्दी के अन्य वीर रस के कवि शृंगार का वर्णन भी साथ में करते हैं। जबकि भूषण का काव्य शृंगार भावना से बचा हुआ है। अतः कहा जा सकता है कि भूषण वीररस के श्रेष्ठ कवि हैं।
भाषा
भूषण ने अपने काव्य की रचना ब्रज भाषा में की। वे सर्वप्रथम कवि हैं जिन्होंने ब्रज भाषा को वीर रस की कविता के लिए अपनाया। वीर रस के अनुकूल उनकी ब्रज भाषा में सर्वत्र ही आज के दर्शन होते हैं।
भूषण की ब्रज भाषा में उर्दू, अरबी, फ़ारसी आदि भाषाओं के शब्दों की भरमार है। जंग, आफ़ताब, फ़ौज आदि शब्दों का खुल कर प्रयोग हुआ है। शब्दों का चयन वीर रस के अनुकूल है। मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग सुन्दरता से हुआ है।
व्याकरण की अव्यवस्था, शब्दों को तोड़-मरोड़, वाक्य विन्यास की गड़बड़ी आदि के होते हुए भी भूषण की भाषा बड़ी सशक्त और प्रवाहमयी है। हां, प्राकृत और अपभ्रंश के शब्द प्रयुक्त होने से वह कुछ क्लिष्ट अवश्य हो गई है।
शैली
भूषण की शैली अपने विषय के अनुकूल है। वह ओजपूर्ण है और वीर रस की व्यंजना के लिए सर्वथा उपयुक्त है। अतः उनकी शैली को वीर रस की ओज पूर्णशैली कहा जा सकता है। प्रभावोत्पादकता, चित्रोपमता और सरसता भूषण की शैली की मुख्य विशेषताएं हैं।
रस
भूषण की कविता की वीर रस के वर्णन में भूषण हिंदी साहित्य में अद्वितीय कवि हैं। वीर के साथ रौद्र भयानक-वीभत्स आदि रसों को भी स्थान मिला है।
भूषण ने शृंगार रस की भी कुछ कविताएं लिखी हैं, किन्तु शृंगार रस के वर्णन ने भी उनकी वीर रस की एवं रुचि का स्पष्ट प्रभाव दीख पड़ता है -न करु निरादर पिया सौ मिल सादर ये
आए वीर बादर बहादुर मदन केभूषण 105 अलंकार कृत हैं छंद
भूषण की छंद योजना रस के अनुकूल है। दोहा, कवित्त, सवैया, छप्पय आदि उनके प्रमुख छंद हैं।
अलंकार
रीति कालीन कवियों की भांति भूषण ने अलंकारों को अत्यधिक महत्व दिया है। उनकी कविता में प्रायः सभी अलंकार पाए जाते हैं। अर्थालंकारों की अपेक्षा शब्दालंकारों को प्रधानता मिली है। यमक अलंकार का एक उदाहरण देखिए-ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहन वारी,
ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहाती हैं।कंद मूल भोग करें कंद मूल भोग करें
तीन बेर खातीं, ते वे तीन बेर खाती हैं।भूषन शिथिल अंग भूषन शिथिल अंग,
बिजन डुलातीं ते वे बिजन डुलाती हैं।‘भूषन’ भनत सिवराज बीर तेरे त्रास,
नगन जड़ातीं ते वे नगन जड़ाती हैं॥
अर्थ -
(१) ऊंचे घोर मंदर – ऊंचे विशाल घर-महल / ऊंचे विशाल पहाड़
(२) कंद मूल – राजघराने में खाने के प्रयोग में लाये जाने वाले जायकेदार कंद-मूल वगैरह / जंगल में कंद की मूल यानि जड़
(३) तीन बेर खातीं – तीन समय खाती थीं / [मात्र] तीन बेर [फल] खाती हैं
(४) भूषन शिथिल अंग – अंग भूषणों के बोझ से शिथिल हो जाते थे / भूख की वजह से उन के अंग शिथिल हो गए हैं
(५) बिजन डुलातीं – जिनके इर्द गिर्द पंखे डुलाये जाते थे / वे जंगल-जंगल भटक रही हैं
(६) नगन जड़ातीं – जो नगों से जड़ी हुई रहती थीं / नग्न दिखती हैं।
भूषण की राष्ट्रीय चेतना
महाकवि भूषण राष्ट्रीय भावों के गायक है। उनकी वाणी पीड़ित प्रजा के प्रति एक अपूर्व आश्वसान हैं। इनका समय औरंगजेब का शासन था। औरंगजेब के समय से मुगल वैभव व सत्ता की पकड़ कमजोर होती जा रही थी। औरंगजेब की कटुरता व हिन्दुओं के प्रति नफरत ने उसे जनता से दूर कर दिया था। संकट की इस घड़ी में भूषण ने दो राष्ट्रीय पुरूषों - छत्रपति शिवाजी महाराज व छत्रसाल के माध्यम से पूरे राष्ट्र में राष्ट्रीय भावना संचारित करने का प्रयास किया। भूषण ने तत्कालीन जनता की वाणी को अपनी कविताओं का आधार बनाया है। इन्होंने स्वदेशानुराग, संस्कृति अनुराग, साहित्य अनुराग, महापुरुषों के प्रति अनुराग, उत्साह आदि का वर्णन किया है।
स्वदेशानुराग
भूषण का अपने देश के प्रति गहरा लगाव था। उनकी दृष्टि पूरे देश पर थी। उन्होंने देखा कि औरंगजेब देवालयों को नष्ट कर रहा है तो उनका मन विद्रोह कर उठा। छत्रपति शिवाजी महाराज के माध्यम से उन्होंने अपनी वाणी प्रकट की -
देवल गिरावते फिरवाते निसान अली ऐसे समय राव-राने सबै गये लबकी।
गौरा गनपति आय, औरंग की देखि ताप अपने मुकाम सब मारि गये दबकी।
संस्कृति अनुराग
भूषण ने संस्कृति का उपयोग हिंदुओं को खोया हुआ बल दिलाने के लिए किया। इन्होंने अनेक देवी-देवताओं के कार्यों का उल्लेख किया तथा उन महान् कार्यों की कोटि में छत्रपति शिवाजी महाराज के कार्यों की गणना की है। शिवाजी काे धर्म व संस्कृति के उन्नायक रूप में अंकित किया गया है-
मीड़ि राखे मुगल मरोड़ि राखे पातसाह बैरी पीसि राखे बरदान राख्यौ कर मैं।
राजन की हद्द राखी तेग-बल सिवराज देव राखे देवल स्वधर्म राख्यो घर मैं ॥
साहित्य अनुराग
भूषण ने वेदशास्त्रों का गहन अध्ययन किया है। इन्होंने प्राचीन साहित्य के आधार पर ही अपने काव्य की रचना की उनका साहित्य प्रेम उनकी राष्ट्रीय भावना का परिचायक है।
महापुरुषों के प्रति श्रद्धा
भूषण ने अतीत व वर्तमान के महापुरुषों व जननायकों के प्रति श्रद्धा व्यक्त की है। इन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रसाल बुन्देला या अन्य कोई पात्र सभी का उल्लेख केवल उन्हीं प्रसंगों में किया है जो राष्ट्रीय भावना से संबंधित थे। जैसे :
रैयाराव चंपति को छत्रसाल महाराज भूषण सकत को बरवानि यों बलन के।उत्साह
राष्ट्रीय साहित्य में चेतना का भाव होता है। भूषण के साहित्य में सजीवता, स्फूर्ति व उमंग का भाव है। मुगलों के साथ छत्रपति शिवाजी महाराज के संघर्ष का कवि उत्साहपूर्ण शैली में वर्णन किया हैः-
दावा पातसाहन सों किन्हों सिवराज बीर,
जेर कीन्हीं देस हृदय बांध्यो दरबारे से।
हठी मरहठी तामैं राख्यौ न मवास कोऊ,
''छीने हथियार डोलैं बन बनजारे से॥
निस्संदेह, भूषण का काव्य राष्ट्रीय चेतना से ओत-प्रोत है। वे सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय भावना के कवि हैं।
साहित्य में स्थान
महाकवि भूषण का हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान हैं। वे वीर रस के अद्वितीय कवि थे। रीति कालीन कवियों में वे पहले कवि थे जिन्होंने हास-विलास की अपेक्षा राष्ट्रीय-भावना को प्रमुखता प्रदान की। उन्होंने अपने काव्य द्वारा तत्कालीन असहाय हिंदू समाज की वीरता का पाठ पढ़ाया और उसके समक्ष रक्षा के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया। वे निस्संदेह राष्ट्र की अमर धरोहर हैं।
सारांश
जन्म संवत तथा स्थान - 1670
मृत्यु - संवत 1772।
ग्रंथ - शिवराज भूषण, शिवा बावनी, छत्रसाल दशक।
वर्ण्य विषय - शिवाजी तथा छत्रसाल के वीरतापूर्ण कार्यों का वर्णन।
भाषा - ब्रज भाषा जिसमें अरबी, फ़ारसी, तुर्की बुंदेलखंडी और खड़ी बोली के शब्द मिले हुए हैं। व्याकरण की अशुद्धियाँ हैं और शब्द बिगड़ गए हैं।
शैली - वीर रस की ओजपूर्ण शैली।
छंद - कवित्त, सवैया।
रस - प्रधानता वीर, भयानक, वीभत्स, रौद्र और श्रृंगार भी है।
अलंकार - प्रायः सभी अलंकार हैं।
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
शिवा बावनी
शिवराज भूषण
चंद बरदाई
हिंदी साहित्य
रीति काल
बिहारी
केशव
बाहरी कड़ियाँ
भूषण ग्रन्थावली (गूगल पुस्तक)
भूषण को किन मायनों में राष्ट्रीय कहें? (सर्जना, हिन्दी चिट्ठा)
रीति काल के कवि
रीतिकाल के कवि
हिन्दी साहित्य | 2,730 |
1027043 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%80%20%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE | डेज़ी बोपन्ना | डेज़ी बोपन्ना (जन्म: 4 दिसम्बर 1982) एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से कन्नड़ भाषा में बनी फिल्मों में काम करती हैं। इसके अलावा ये कई अन्य भाषाओं के फिल्मों में भी काम कर चुकी हैं, जिसमें तेलुगू, तमिल, मलयालम और हिन्दी शामिल है।
निजी जीवन
डेज़ी का जन्म 4 दिसम्बर 1982 को कोडगू, कर्नाटक, भारत में हुआ था। इन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा औरोबिंदो स्कूल से ली और उसके बाद कुमारंस कॉलेज और उसके बाद बैंगलोर के चित्रकला परिशत से फ़ाइन आर्ट्स में बेचलर डिग्री प्राप्त की।
इन्होंने इर्नस्ट एंड यंग के साथी और प्रकाश जजु के बेटे, अमित जजु से शादी कर ली। इनके भाई, देवैयाह बोपन्ना मुंबई में विज्ञापन विशेषज्ञ के रूप में काम कर रहे हैं।
करियर
इन्होंने अपने करियर की शुरुआत थियेटर में काम करने से की थी। ये कुछ समय निकाल कर बी॰ जयश्री के स्पंदना थियेटर में काम करती थीं। इसके अलावा ये प्रीतम कोइपिल्लई के साथ अंग्रेजी थियेटर में भी काम करती थी और इन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
इनकी पहली फिल्म बिम्बा थी, जिसे बर्लिन एंड फ्रैंकफर्ट फिल्म उत्सव में भेजा गया था, जिस जगह इनके फिल्म ने कई पुरस्कार जीते थे। इस फिल्म का निर्देशन कविता लंकेश ने किया था। इनकी अगली फिल्म भगवान थी, जिसे इन्होंने दर्शन के साथ किया था। इस फिल्म में काम करने के बाद इन्हें स्पाइसी डेज़ी का टैग मिला।
इसके बाद डेज़ी को कई सारे फिल्मों में काम करने का मौका मिला, जिसमें रामा श्यामा भामा, थवारीना सिरी, ऐश्वर्या, सत्यवान सावित्री, गालिपटा, ओलवे जीवना लेक्कचरा, क्रेज़ी लोका और अन्य फिल्में शामिल है। इनके सभी फिल्मों में अच्छे अभिनय के बाद इन्हें गरम मसाला फिल्म में काम करने का मौका मिला, जिसमें ये अक्षय कुमार और जॉन अब्राहम के साथ काम कर रही थीं। लगभग ₹17 करोड़ में बनी इस फिल्म ने सिनेमाघरों से ही लगभग 54 करोड़ रुपये की कमाई की।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
Daisy Bopanna on Twitter
जीवित लोग
1982 में जन्मे लोग
भारतीय फ़िल्म अभिनेत्री
कन्नड़ अभिनेत्री
तमिल अभिनेत्री
तेलुगू अभिनेत्री
मलयालम अभिनेत्री
हिन्दी अभिनेत्री | 336 |
739783 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%AE%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1%20%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%87 | श्रीलंका क्रिकेट टीम के इंग्लैंड दौरे |
टेस्ट सीरीज
साल 1982 से अब तक 36 मैचों की 17 सीरीज हुई हैं। उसमें इंग्लैंड ने 9 सीरीज जीते हैं।
सीरीज परिणाम
सर्वाधिक रन
सर्वाधिक विकेट
वनडे सीरीज
साल 1982 से अब तक 78 मैचों की 39 (उसमें विश्व कप, ट्रॉफी, इतर) सीरीज हुई हैं। उसमें इंग्लैंड ने 6 सीरीज और 1 आईसीसी टूर्नामेंट जीती हैं।
वनडे सीरीज परिणाम
ऑदर वनडे सीरीज परिणाम
आईसीसी टूर्नामेंट
इतर सीरीज
वनडे सर्वाधिक रन
वनडे सर्वाधिक विकेट
टी20आई सीरीज
साल 2006 से अब तक 12 मैचों की 12 (उसमें विश्व कप) सीरीज हुई हैं। उसमें इंग्लैंड ने 3 सीरीज और 1 विश्व कप जीता हैं।
टी20आई सीरीज परिणाम
ऑदर टी20आई सीरीज परिणाम
आईसीसी टूर्नामेंट
टी20आई सर्वाधिक रन
टी20आई सर्वाधिक विकेट
इंग्लैंड क्रिकेट टीम का श्रीलंका दौरा
श्रीलंका क्रिकेट टीम का इंग्लैंड दौरे | 129 |
23590 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B2 | बादल | वायुमण्डल में मौज़ूद जलवाष्प के संघनन से बने जलकणों या हिमकणों की दृश्यमान राशि बादल कहलाती है। मौसम विज्ञान में बादल को उस जल अथवा अन्य रासायनिक तत्वों के मिश्रित द्रव्यमान के रूप में परिभाषित किया जाता है जो द्रव रूप में बूंदों अथवा ठोस रवों के रूप में किसी ब्रह्माण्डीय पिण्ड के वायुमण्डल में दृश्यमान हो।मौसम शब्दावली जून
बादल वर्षण (वर्षा और हिमपात इत्यादि) का प्रमुख स्रोत होते हैं।
बादलों का विधिवत वैज्ञानिक अध्ययन मौसम विज्ञान की बादल भौतिकी नामक शाखा में किया जाता है।
बादलों का वगीर्करण
उच्च बादल
16,500 फीट (5, 000 मीटर) से ऊँचे।
पक्षाभ बादल |
पक्षाभ स्तरी बादल |
पक्षाभ कपासी बादल |
मध्यम ऊँचाई के बादल
6,500 से 16,500 फीट (2,000 से 5,000 मीटर) से ऊँचे |
उच्च स्तरी बादल
उच्च कपासी बादल
निम्न बादल
6,500 फीट (2,000 मीटर) तक ऊँचे|
स्तरी कपासी बादल
स्तरी बादल
वर्षा स्तरी बादल
कपासी बादल
ऊर्ध्वाधर रचना वाले स्तम्भाकार बादल
ये वायुमण्डल में निचले स्तर से लेकर ट्रोपोपॉज़ तक आकार धारण करते हैं।
कपासी वर्षी बादल
मौसम
भौतिकी
बादल | 172 |
1475512 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%9C%20%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%B2%E0%A4%BE | मेरी मिसेज चंचला | मेरी श्रीमती. चंचला एक भारतीय सिचुएशन कॉमेडी है जो श्रीमती के चरित्र के इर्द-गिर्द घूमती है। चंचला, एक संपन्न और अक्सर ऊबने वाली गृहिणी। वह उन वस्तुओं या सनकों पर ध्यान केंद्रित करती है जो उसे पसंद आते हैं, और अपनी इच्छाओं को पूरा करती है। परिणामस्वरूप, वह अपने पति श्रीकांत के लिए निरंतर चिड़चिड़ापन और हताशा का स्रोत बनी रहती है। श्रीमती। चंचला एक नई रुचि चुनती है और उस रुचि में दक्षता के लिए प्रयास करती है, चाहे वह कितनी भी अवास्तविक क्यों न हो। हालाँकि, वह अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में विश्वसनीय रूप से विफल रहती है, भले ही वह अपने पति को परेशान करने से कभी नहीं चूकती।
कलाकार
कंवलजीत सिंह श्री श्रीकांत के रूप में
श्रीमती के रूप में सुष्मिता मुखर्जी चंचला
राम सेठी श्रीकांत के बड़े भाई के रूप में
भारतीय हास्य टेलीविजन कार्यक्रम
भारतीय टेलीविजन धारावाहिक
सन्दर्भ | 145 |
754338 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%9F%20%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE | घोड़ाघाट उपज़िला | घोड़ाघाट उपजिला, बांग्लादेश का एक उपज़िला है, जोकी बांग्लादेश में तृतीय स्तर का प्रशासनिक अंचल होता है (ज़िले की अधीन)। यह रंगपुर विभाग के दिनाजपुर ज़िले का एक उपजिला है, जिसमें, ज़िला सदर समेत, कुल १३ उपज़िले हैं, और मुख्यालय दिनाजपुर सदर उपज़िला है। यह बांग्लादेश की राजधानी ढाका से उत्तर की दिशा में अवस्थित है। यह मुख्यतः एक ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है।
जनसांख्यिकी
यहाँ की आधिकारिक स्तर की भाषाएँ बांग्ला और अंग्रेज़ी है। तथा बांग्लादेश के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह ही, यहाँ की भी प्रमुख मौखिक भाषा और मातृभाषा बांग्ला है। बंगाली के अलावा अंग्रेज़ी भाषा भी कई लोगों द्वारा जानी और समझी जाती है, जबकि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक निकटता तथा भाषाई समानता के कारण, कई लोग सीमित मात्रा में हिंदुस्तानी(हिंदी/उर्दू) भी समझने में सक्षम हैं। यहाँ का बहुसंख्यक धर्म, इस्लाम है, जबकि प्रमुख अल्पसंख्यक धर्म, हिन्दू धर्म है। राजशाही विभाग में, जनसांख्यिकीक रूप से, इस्लाम के अनुयाई, आबादी के औसतन करीब ८८% है, जबकि शेष जनसंख्या प्रमुखतः हिन्दू धर्म की अनुयाई है। यह मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है।
अवस्थिती
घोड़ाघाट उपजिला बांग्लादेश के उत्तरी सीमान्तों में स्थित, रंगपुर विभाग के दिनाजपुर जिले में स्थित है।
इन्हें भी देखें
बांग्लादेश के उपजिले
बांग्लादेश का प्रशासनिक भूगोल
रंगपुर विभाग
उपज़िला निर्वाहि अधिकारी
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
उपज़िलों की सूची (पीडीएफ) (अंग्रेज़ी)
जिलानुसार उपज़िलों की सूचि-लोकल गवर्नमेंट इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट, बांग्लादेश
http://hrcbmdfw.org/CS20/Web/files/489/download.aspx (पीडीएफ)
श्रेणी:रंगपुर विभाग के उपजिले
बांग्लादेश के उपजिले | 243 |
885111 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B8 | वंडरबार फिल्म्स | वंडरबार फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड (अंग्रेज़ी: Wunderbar Films), 20 मई 2010 को अभिनेता धनुष और उनकी पत्नी ऐश्वर्या द्वारा स्थापित एक भारतीय फिल्म उत्पादक और वितरण कंपनी है। चेन्नई में स्थित यह फिल्म स्टूडिओ, मुख्य रूप से तमिल फिल्मों और मलयालम फिल्मों का उत्पादन और वितरण करता है।
इतिहास
स्टूडियो का नाम Wunderbar एक जर्मन शब्द है, जिसका अर्थ होता है- 'अद्भुत (Wonderful)'। इससे पहले, अभिनेता धनुष द्वारा बनाई गई लघु फिल्में, जोकि जनता के लिए रिलीज़ नहीं की गई थी, का बैनर "वंडरबार" ही था, जिसे उन्होंने सन 2009 की फिल्म इनग्लोरिअस बस्टरड्स से लिया था।
फिल्में | 97 |
599519 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A6%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%A3 | मृदा संरक्षण | मृदा संरक्षण (Soil conservation)
जैविक खाद
जैविक खेती में बहुत सी खादों का प्रयोग किया जाता है, किन्तु जैविक खाद के प्रयोग से भूमि अवस्था में सुधार होता है, जिससे भूमि में वायु संचार में वृद्धि होती है, जीवांश पदार्थ का निर्माण होता है। वायुमंडल की नाइट्रोजन का पौधों में स्थितिकरण बढ़ जाता है और इसके फलस्वरूप उत्पाद में वृद्धि होती है।
वन संरक्षण
वनों के वृक्षों की अंधाधुंध कटाई मृदा अपरदन का प्रमुख कारण है। वृक्षों की जड़ें मृदा पदार्थों को बांधे रखती हैं। यही कारण है कि सरकारों ने वनों को ‘सुरक्षित’ घोषित कर दिया है तथा इन वनों में वृक्षों की कटाई पर रोक लगा दी हैं। मृदा संरक्षण की यह विधि सभी प्रकार के भू-भागों के लिए उपयुक्त है। वनों को वर्षा लाने वाले ‘दूत’ कहा जाता है। इनसे मृदा निर्माण की प्रक्रिया तेज हो जाती है।
वृक्षारोपण
नदी घाटियों, बंजर भूमियों तथा पहाड़ी ढालों पर वृक्ष लगाना मृदा संरक्षण की दूसरी विधि है। इससे इन प्रदेशों में मृदा का अपरदन कम हो जाता हैं। मरूस्थलीय सीमान्त क्षेत्रों में पवन-अपरदन को नियंत्रित करने के लिए वृक्षारोपण एक प्रभावी उपाय है। मरूस्थलीय क्षेत्रों के सीमावर्ती भागों में वृक्ष लगाकर रेगिस्तानी रेत को खेतों में जमने से रोका जा सकता है। इस तरह मरूस्थलीय क्षेत्रों की वृद्धि पर अंकुश लगता है। भारत में, थार मरूस्थल के विस्तार को रोकने के लिए राजस्थान, हरियाणा, गुजरात तथा पंजाब में बड़े पैमाने पर वृक्ष लगाए जा रहे हैं। .
Neeraj Yadav के अनुसार :-
बाढ़ नियंत्रण
वर्षा ऋतु में नदियों में जल की मात्रा बढ़ जाती है। इससे मृदा के अपरदन में वृद्धि होती है। बाढ़ नियंत्रण के लिए नदियों पर बांध बनाए गए हैं। इनसे मृदा का अपरदन रोकने में मदद मिलती है। नदियों के जल को नहरों द्वारा सूखाग्रस्त क्षेत्रों की ओर मोड़़कर तथा जल संरक्षण की अन्य सुनियोजित विधियों द्वारा भी बाढ़ों को रोका जा सकता है।
नियोजित चराई
अत्यधिक चराई से पहाड़ी ढालों की मृदा ढीली हो जाती है और जल इन ढीली मृदा को आसानी से बहा ले जाता है। इन क्षेत्रों में नियोजित चराई से वनस्पति के आवरण को बचाया जा सकता है। इस प्रकार इन क्षेत्रों के मृदा अपरदन को कम किया जा सकता है।
बंध बनाना
अवनालिका अपरदन से प्रभावित भूमि में बंध या अवरोध बनाकर मृदा अपरदन को रोका जा रहा हैं। यह विधि न केवल मृदा का अपरदन रोकती हे, अपितु इससे मृदा की उवर्रता बनाए रखने, जल संसाधनों के संरक्षण तथा भूमि को समतल करने में भी सहायता मिलती है।
सीढ़ीदार खेत बनाना
पर्वतीय ढालों पर मृदा के संरक्षण के लिए सीढ़ीदार खेत बनाना एक अन्य विधि है। सीढ़ीदार खेत बनाने से तात्पर्य पर्वतीय प्रदेशों में ढलान के आर-पार समतल चबूतरे बनाने से है। इस विधि से इन क्षेत्रों में मृदा का अपरदन रूक जाता है। साथ ही जल संसाधनों का समुचित उपयोग भी होता है। इस प्रकार इन खेतों में फसलें उगाई जा सकती है। यह खेती उत्तराखंड में की जाती हैं
समोच्चरेखीय जुताई (कण्टूर जुताई)
मृदा संरक्षण की यह विधि तरंगित भूमि वाले प्रदेशों के लिए सबसे अधिकघुजीउपयुक्त है। भूमि को समान ऊँचाइयों पर जोतने से हल के कूंड या नालियां ढाल के आर-पार बन जाती हैं। इससे मृदा के अपरदन की गति में कमी आ जाती है। यह विधि मृदा उर्वरता और आर्द्रता बनाए रखने के लिए भी प्रयोग में लाई जाती है।
कृषि की पट्टीदार विधि अपनाना
मृदा संरक्षण की यह विधि मरूस्थलीय और अर्द्धमरूस्थलीय प्रदेशों के तरंगित मैदानों के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है। इस विधि में खेतों को पट्टियों में बांट दिया जाता है। एक पट्टी में एक साल खेती की जाती है जबकि दूसरी पट्टी बिना जोते बोए खाली पड़ी रहती है। छोड़ी गई पट्टी की वनस्पति का आवरण मृदा अपरदन को रोकता है तथा उर्वरता को बनाए रखता है। अगले वर्ष इस प्रक्रिया को उलट दिया जाता है।
शस्यावर्तन
शस्यावर्तन से तात्पर्य मृदा की उर्वरता को बनाए रखने के लिए चुने हुए खेत में विभिन्न फसलों को बारी-बारी बोने से है। इस प्रकार शस्यावर्तन के द्वारा ऐसे खेतों की उर्वरता भी बनी रहती है, जिनमें लगातार कोई न कोई फसल खड़ी रहती है। यह विधि उन क्षेत्रों के लिए उपर्युक्त है, जहाँ जनसंख्या के दबाव के कारण खेती के लिए भूमि कम रह गई है। यह विधि संसार के अधिकतर देशों में अपनाई जाती है।
भूमि उद्धार
जल द्वारा बनी उत्खात भूमियों को समतल करके भी मृदा अपरदन को रोका जा सकता है। मृदा संरक्षण की यह विधि नदी घाटियों और पहाड़ी प्रदेशों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।
सन्दर्भ
मृदा संरक्षण से तात्पर्य मृदा को छरण से बचाना है ।
इन्हें भी देखे Bhoomi
मृदा अपरदन
मृदा
पर्यावरणीय मृदा विज्ञान | 758 |
512355 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A8%20%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%A1%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AE%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF | मटोच्किन जलडमरूमध्य | मटोच्किन जलडमरूमध्य या मटोच्किन शार (रूसी: Шар Маточкин), नोवाया ज़ेमल्या के सेवेर्नी और यूझनी द्वीपों के बीच स्थित एक जलडमरूमध्य या जलसंयोजी है जिसका क्षेत्रफल लगभग 323 वर्गकिमी है। यह बेरिंट सागर को कारा सागर से जोड़ता है। इसकी लंबाई लगभग 100 किलोमीटर (62 मील) है और इसके संकीर्णतम भाग में इसकी चौड़ाई लगभग 600 मीटर है। वर्ष के अधिकांश समय यह बर्फ से ढका रहता है। इसके किनारों पर मछली पकड़ने की बस्तियां हैं।
यही वो स्थल है, जहां पर 1963 से लेकर 1990 तक, रूस ने 39 भूमिगत परमाणु परीक्षण, सुरंगों और कूपकों की एक विशाल सरणी में किये गये थे। 2000 के बाद से, रूस ने इस परीक्षण स्थल को पुन: सक्रिय करने के लिए इन पुरानी सुरंगों के विस्तार के लिए निर्माण कार्य शुरू किया है और कई नये परीक्षण किये हैं।
सन्दर्भ | 137 |
30558 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%80%20%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%97%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%95 | ली म्युंग बाक | ली म्युंग-बाक(कोरियन: 이명박, हंजा: 李明博, जन्म 19 दिसंबर, 1941 ओसाका, जापान) सियोल के भूतपूर्व नगर-प्रमुख दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति चुने गए हैं। वे 25 फ़रवरी 2008 को कोरिया के वर्तमान राष्ट्रपति रोह मू-ह्यून के उत्तराधिरकारी होंगे। वे ग्रैंड नेशनल पार्टी के सदस्य हैं। सियोल के भूतपूर्व नगर-प्रमुख के रूप में वे अपनी विवादास्पद नीतियों के लिए जाने जाते रहे हैं।
बाहरी कडियां
ली म्युंग-बाक कोरिया गणराज्य के नए राष्ट्रपति बने (चाइना रेडियो इंटरनेशनल पर)
म्युंग ली होंगे दक्षिण कोरिया के नए राष्ट्रपति (डॉयचे वेले पर)
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति | 89 |
1435833 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%2C%20%E0%A4%93%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%BE | जलेश्वर, ओड़िशा | जलेश्वर (Jaleswar) भारत के ओड़िशा राज्य के बालेश्वर ज़िले में स्थित एक नगर है।
भूगोल
जलेश्वर राज्य के उत्तरतम भाग में स्थित है। यह सुबर्णरेखा नदी के तट पर बसा हुआ है और पश्चिम बंगाल की राज्य सीमा से 8 किमी दूर है। जलेश्वर से 27 किमी दूर चंदनेश्वर है, जहाँ का चंदनेश्वर शिव मन्दिर अपने भव्य महा विषुव संक्रांति त्यौहार के लिए प्रसिद्ध है। चंदनेश्वर से 5 किमी और जलेश्वर से 32 किमी दूर तालसारी बालूतट (बीच) का पर्यटक स्थल है।
इन्हें भी देखें
बालेश्वर ज़िला
सन्दर्भ
बालेश्वर ज़िला
ओड़िशा के शहर
बालेश्वर ज़िले के नगर | 97 |
220819 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE | नोवाया ज़ेमल्या | नोवाया ज़ेमल्या (रूसी: Новая Земля; अंग्रेजी: Novaya Zemlya; नॉर्वेजियन: Gåselandet (हंस भूमि)), रूस के उत्तर और यूरोप के पूर्वोत्तर में आर्कटिक महासागर में स्थित एक द्वीपसमूह है, जिस पर स्थित झेलानिया अंतरीप यूरोप का सुदूरतम बिन्दु है। द्वीपसमूह का प्रशासन अर्खांगेल्स्क ओब्लास्ट के द्वारा नोवाया ज़ेमल्या द्वीप क्षेत्र के नाम से चलाया जाता है। इसका कुल क्षेत्रफल 90,650 किमी² है। नोवाया ज़ेमल्या दो प्रमुख द्वीपों सेवेर्नी (उत्तरी) और यूझनी (दक्षिणी) से मिलकर बना है जिन्हें संकीर्ण मटोच्किन जलडमरूमध्य पृथक करता है। नोवाया ज़ेमल्या कारा सागर को बेरिंट सागर से अलग करता हैं।
द्वीपसमूह की जनसंख्या 2716 (2002 जनगणना) है, जिसमे से 2622 लोग, नोवाया ज़ेमल्या जिले के बेलुश्या गुबा नामक शहरी क्षेत्र में रहते हैं। यहाँ के मूल निवासी नेनेट लोग हैं जिनकी संख्या लगभग 100 है, जीवन निर्वाह के लिए मछली पकड़ने, जानवर पकड़ने, ध्रुवीय भालू और सील के शिकार जैसे व्यवसायों में लगे हैं।
शीत युद्ध के वर्षों के दौरान नोवाया ज़ेमल्या एक संवेदनशील सैन्य क्षेत्र था, सोवियत वायु सेना ने द्वीप के दक्षिणी हिस्से में स्थित रोगाशेवो में अपना सैन्य अड्डा स्थापित किया था। इस अड्डे को मुख्य रूप से ना सिर्फ इंटरसेप्टर विमान प्रचालन के लिए इस्तेमाल किया जाता था बल्कि यह पास ही स्थित परमाणु परीक्षण क्षेत्र को सैन्य सहायता भी प्रदान करता था। यह आज तक के सबसे शक्तिशाली परमाणु विस्फोट ज़ार बोम्बा का भी परीक्षण स्थल था जिसका विस्फोट 1961 में किया गया था।
सन्दर्भ
रूस के द्वीपसमूह
आर्कटिक महासागर के द्वीपसमूह | 239 |
5797 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%B0%E0%A4%A4%20%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BF | भरत मुनि | भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र नामक ग्रंथ लिखा । इनका समय विवादास्पद है। इन्हें 400 ई॰पू॰ 100 ई॰ सन् के बीच किसी समय का माना जाता है। भरत बड़े प्रतिभाशाली थे। इतना स्पष्ट है कि भरतमुनि नाट्यशास्त्र के गहन जानकार और विद्वान थे । इनके द्वारा रचित ग्रंथ 'नाट्यशास्त्र' भारतीय नाट्य और काव्यशास्त्र का आदिग्रन्थ है। इसमें सर्वप्रथम रस सिद्धांत की चर्चा तथा इसके प्रसिद्ध सूत्र -'विभावानुभाव संचारीभाव संयोगद्रस निष्पति:" की स्थापना की गयी है| इसमें नाट्यशास्त्र, संगीतशास्त्र, छंदशास्त्र, अलंकार, रस आदि सभी का सांगोपांग प्रतिपादन किया गया है। कहा गया है कि भरतमुनि रचित प्रथम नाटक का अभिनय, जिसका कथानक 'देवासुर संग्राम' था । देवों की विजय के बाद इन्द्र की सभा में हुआ था। आचार्य भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति ब्रह्मा से मानी है क्योंकि शंकर ने ब्रह्मा को तथा ब्रह्मा ने अन्य ऋषियों को काव्यशास्त्र का उपदेश दिया। विद्वानों का मत है कि भरतमुनि रचित पूरा नाट्यशास्त्र अब उपलब्ध नहीं है। जिस रूप में वह उपलब्ध है, उसमें लोग काफ़ी क्षेपक बताते हैं
भरतमुनि का नाट्यशास्त्र नाट्य कला से संबंधि प्राचीनतम् ग्रंथ है। इसके प्रसिद्ध सूत्र -'विभावानुभाव संचारीभाव संयोगद्रस निष्पति:" की स्थापना की गयी है। इसमें नाट्यशास्त्र, संगीत-शास्त्र, छन्दशास्त्र, अलंकार, रस आदि सभी का सांगोपांग प्रतिपादन किया गया है।
भरतमुनि का नाट्यशास्त्र अपने विषय का आधारभूत ग्रन्थ माना जाता है। कहा गया है कि भरतमुनि रचित प्रथम नाटक का अभिनय, जिसका कथानक 'देवासुर संग्राम' था, देवों की विजय के बाद इन्द्र की सभा में हुआ था। आचार्य भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति ब्रह्मा से मानी है क्योंकि शंकर ने ब्रह्मा को तथा ब्रह्मा ने अन्य ऋषियों को काव्यशास्त्र का उपदेश दिया।
विद्वानों का मत है कि भरतमुनि रचित पूरा नाट्यशास्त्र अब उपलब्ध नहीं है। जिस रूप में वह उपलब्ध है, उसमें लोग काफी क्षेपक बताते हैं।
इन्हें भी देखें
नाटक
काव्यशास्त्र
संस्कृत आचार्य | 297 |
7890 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81%20%E0%A4%B9%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%A8 | गुरु हर किशन | गुरू हर किशन जी सिखों के आठवें गुरू थे।
जीवन चर्या
गुरू हर किशन साहिब जी का जन्म सावन वदी १० (८वां सावन) बिक्रम सम्वत १७१३ (१७ जुलाई १६५६) को कीरतपुर साहिब में हुआ। वे गुरू हर राय साहिब जी एवं माता किशन कौर के दूसरे पुत्र थे। राम राय जी गुरू हरकिशन साहिब जी के बड़े भाई थे। रामराय जी को उनके गुरू घर विरोधी क्रियाकलापों एवं मुगल सलतनत के पक्ष में खड़े होने की वजह से सिख पंथ से निष्कासित कर दिया गया था।
गुरुपद प्राप्ति
५ वर्ष की अल्प आयु में गुरू हर किशन साहिब जी को गुरुपद प्रदान किया गया। गुरु हर राय जी ने १६६१ में गुरु हरकिशन जी को अष्ठम् गुरू के रूप में स्थापित किया। इस प्रकार से नाराज होकर राम राय जी ने औरंगजेब से इस बात की शिकायत की। इस बावत शाहजांह ने राम राय का पक्ष लेते हुए राजा जय सिंह को गुरू हर किशन जी को उनके समक्ष उपस्थित करने का आदेश दिया। राजा जय सिंह ने अपना संदेशवाहक कीरतपुर भेजकर गुरू को दिल्ली लाने का आदेश दिया। पहले तो गुरू साहिब ने अनिच्छा जाहिर की। परन्तु उनके गुरसिखों एवं राजा जय सिंह के बार-बार आग्रह करने पर वो दिल्ली जाने के लिए तैयार हो गये।
इसके बाद पंजाब के सभी सामाजिक समूहों ने आकर गुरू साहिब को विदायी दी। उन्होंने गुरू साहिब को अम्बाला के निकट पंजोखरा गांव तक छोड़ा। इस स्थान पर गुरू साहिब ने लोगों को अपने अपने घर वापिस जाने का आदेश दिया। गुरू साहिब अपने परिवारजनों व कुछ सिखों के साथ दिल्ली के लिए रवाना हुये। परन्तु इस स्थान को छोड़ने से पहले गुरू साहिब ने उस महान ईश्वर प्रदत्त शक्ति का परिचय दिया। लाल चन्द एक हिन्दू साहित्य का प्रखर विद्वान एव आध्यात्मिक पुरुष था जो इस बात से विचलित था कि एक बालक को गुरुपद कैसे दिया जा सकता है। उनके सामर्थ्य पर शंका करते हुए लालचंद ने गुरू साहिब को गीता के श्लोकों का अर्थ करने की चुनौती दी। गुरू साहिब जी ने चुनौती सवीकार की। लालचंद अपने साथ एक गूँगे बहरे निशक्त व अनपढ़ व्यक्ति छज्जु झीवर (पानी लाने का काम करने वाला) को लाया। गुरु जी ने छज्जु को सरोवर में सनान करवाकर बैठाया और उसके सिर पर अपनी छड़ी इंगित कर के उसके मुख से संपूर्ण गीता सार सुनाकर लाल चन्द को हतप्रभ कर दिया। इस स्थान पर आज के समय में एक भव्य गुरुद्वारा सुशोभित है जिसके बारे में लोकमान्यता है कि यहाँ स्नान करके शारीरिक व मानसिक व्याधियों से छुटकारा मिलता है। इसके पश्चात लाल चन्द ने सिख धर्म को अपनाया एवं गुरू साहिब को कुरूक्षेत्र तक छोड़ा। जब गुरू साहिब दिल्ली पहुंचे तो राजा जय सिंह एवं दिल्ली में रहने वाले सिखों ने उनका बड़े ही गर्मजोशी से स्वागत किया। गुरू साहिब को राजा जय सिंह के महल में ठहराया गया। सभी धर्म के लोगों का महल में गुरू साहिब के दर्शन के लिए तांता लग गया।
जीवन के प्रसंग
एक बार राजा जयसिंह ने बहुत सी औरतों को, जो कि एक समान सजी संवरी थी, गुरु साहिब के सामने उपस्थित किया और कहा कि वे असली रानी को पहचाने। गुरू साहिब एक महिला, जो कि नौकरानी की वेशभूषा में थी, की गोद में जाकर बैठ गये। यह महिला ही असली रानी थी। इसके अलावा भी सिख इतिहास में उनकी बौद्धिक क्षमता को लेकर बहुत सी साखियाँ प्रचलित है।
बहुत ही कम समय में गुरू हर किशन साहिब जी ने सामान्य जनता के साथ अपने मित्रतापूर्ण व्यवहार से राजधानी में लोगों से लोकप्रियता हासिल की। इसी दौरान दिल्ली में हैजा और छोटी माता जैसी बीमारियों का प्रकोप महामारी लेकर आया। मुगल राज जनता के प्रति असंवेदनशील थी। जात पात एवं ऊंच नीच को दरकिनार करते हुए गुरू साहिब ने सभी भारतीय जनों की सेवा का अभियान चलाया। खासकर दिल्ली में रहने वाले मुस्लिम उनकी इस मानवता की सेवा से बहुत प्रभावित हुए एवं वो उन्हें बाला पीर कहकर पुकारने लगे। जनभावना एवं परिस्थितियों को देखते हुए औरंगजेब भी उन्हें नहीं छेड़ सका। परन्तु साथ ही साथ औरंगजेब ने राम राय जी को शह भी देकर रखी, ताकि सामाजिक मतभेद उजागर हों।
दिन रात महामारी से ग्रस्त लोगों की सेवा करते करते गुरू साहिब अपने आप भी तेज ज्वर से पीड़ित हो गये। छोटी माता के अचानक प्रकोप ने उन्हें कई दिनों तक बिस्तर से बांध दिया। जब उनकी हालत कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गयी तो उन्होने अपनी माता को अपने पास बुलाया और कहा कि उनका अन्त अब निकट है। जब उन्हें अपने उत्तराधिकारी को नाम लेने के लिए कहा, तो उन्हें केवल बाबा बकाला' का नाम लिया। यह शब्द केवल भविष्य गुरू, गुरू तेगबहादुर साहिब, जो कि पंजाब में ब्यास नदी के किनारे स्थित बकाला गांव में रह रहे थे, के लिए प्रयोग हुआ था।
अपने अन्त समय में गुरू साहिब सभी लोगों को निर्देश दिया कि कोई भी उनकी मृत्यू पर रोयेगा नहीं। बल्कि गुरूबाणी में लिखे शबदों को गायेंगे। इस प्रकार बाला पीर चैत सूदी १४ (तीसरा वैसाख) बिक्रम सम्वत १७२१ (९ अप्रैल १६६४) को धीरे से वाहेगुरू शबद् का उच्चारण करते हुए ज्योतिजोत समा गये। गुरू गोविन्द साहिब जी ने अपनी श्रद्धाजंलि देते हुए अरदास में दर्ज किया कि
श्री हरकिशन धियाइये, जिस डिट्ठे सब दुख जाए।'
दिल्ली में जिस आवास में वो रहे, वहां एक ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री बंगला साहिब है।
बाहरी कड़ियाँ
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सिख धर्म
भारतीय धार्मिक नेता
सिख गुरु
सिख धर्म का इतिहास
आध्यात्मिक गुरु | 925 |
215813 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%89%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%B2%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%A8 | लॉवेल संस्थान | लॉवेल संस्थान (Lowell Institute) मासाचूसेट्स की राजधानी बोस्टन में स्थित शिक्षण संस्थान है। इसकी स्थापना जॉन लॉवेल (१७९९-१८३६ ई.) की वसीयत से प्राप्त ढाई लाख डालर की धनराशि से सन् १८४८ में हुई। वसीयत में लॉवेल ने अपनी जन्मभूमि के अभ्युदय के लिए देशवासियों के ज्ञान और बुद्धि की वृद्धि को अवश्यक बताते हुए इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बोस्टन नगर में सार्वजनिक व्यख्यानों के लिए धनराशि की व्यवस्था की।
इस वसीयत से दो प्रकार के व्याख्यानों का प्रबंध किया जाता है, एक सर्वसाधारण के लिए और दूसरा विद्वानों के लिए। विगत सौ वर्ष यूरोप के विशिष्ट विद्वान् संस्थान की ओर से सार्वजनिक व्याख्या देते रहे हैं। विद्वानों के लिए व्याख्यानों का प्रबंध कुछ समय बाद हुआ और वह आज भी किसी न किसी रूप में हो रहा है।
संस्थान
यूएसए | 132 |
1172898 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%20%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%80 | मेल्विल डेवी | मेल्विल डेवी (Melvil Dewey) एक लाइब्रेरियन थे, मेलविल डेवी का पूरा नाम मेलविले लुई कोसथ डेवी (Melville Louis Kossuth Dewey) था । मेलविल डेवी (Melvil Dewey) का जन्म 10 दिसंबर, 1851 को न्यूयॉर्क के एडम्स सेंटर में हुआ था। वे पुस्तकालय वर्गीकरण की डेवी दशमलव वर्गीकरण(प्रणाली) के आविष्कारक और लेक प्लिडिड क्लब के संस्थापक भी थे।
जीवन परिचय
जोएल और एलिजा ग्रीन डेवी की पांचवी तथा अंतिम संतान डेवी का जन्म एडम्स सेंटर, न्यूयॉर्क में हुआ था। उनकी शिक्षा ग्रामीण स्कूल में हुई थी। आमजन में शैक्षिक सुधार को ही उन्होंने अपना लक्ष्य बनाया। उन्होंने कुछ समय के लिए अल्फ्रेड यूनिवर्सिटी(विश्वविद्यालय)(१८७०) में भी सेवा की,
तत्पश्चात् एमहर्स्ट कॉलेज में, जहाँ वे डेल्टा कप्पा एप्सिलॉन से संबद्ध थे। वहीं से उन्होंने १८७४ में स्नातक तथा १८७७ में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की थी।
उन्होंने अपने छात्र जीवन में ही लाइब्रेरी ब्यूरो की स्थापना की थी, जिसने उच्च-गुणवत्ता वाले इंडेक्स-कार्ड और फाइलिंग-कैबिनेट बेचे तथा कैटलॉग कार्ड के लिए मानक आयाम स्थापित किए।
उन्होंने एक युवा वयस्क के रूप में वर्तनी सुधार की वकालत की; उन्होंने अपना नाम सामान्यतः "मेलविले" से "मेल्विल" में परिवर्तित कर लिया, और अपना उपनाम बदलकर "ड्यूई" कर लिया।
वे १८८३ से १८८८ तक कोलंबिया विश्वविद्यालय में मुख्य पुस्तकालयाध्यक्ष थे। अपने कार्यकाल के दौरान न्यूयॉर्क स्टेट लाइब्रेरी (१८८८-१९०६) के निदेशक के रूप में डेवी ने यात्रा पुस्तकालयों का एक कार्यक्रम स्थापित किया। १८८८ से १९०० तक डेवी ने न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के सचिव और कार्यकारी अधिकारी के रूप में कार्य किया।
डेवी ने १८९५ में अपनी पत्नी एनी के साथ लेक प्लैसिड क्लब की स्थापना की। वे और उनके बेटे गॉडफ्रे शीतकालीन ओलंपिक-जो लेक प्लेसिड में हुआ था-की व्यवस्था में सक्रिय थे। उन्होंने न्यूयॉर्क स्टेट विंटर ओलंपिक कमेटी(न्यूयॉर्क राज्य शीतकालीन ओलंपिक कमिति) की अध्यक्षता की थी।
डेवी ने दो शादियाँ की थीं, पहले एनी आर. गॉडफ्रे से तत्पश्चात् एमिली मैके बील से। डेवी १९५१ में अमेरिकन लाइब्रेरी एसोसिएशन(अमरीकी पुस्तकालय संस्थान) के हॉल ऑफ फेम के सदस्य बने।
फ्लोरिडा के लेक प्लासिड में आघात के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
कार्य
डेवी अमरीकी पुस्तकालययी(अमेरिकी लाइब्रेरियनशिप) के अन्वेषक थे। वे डेवी दशमलव वर्गीकरण के लिए जाने जाते हैं जिसका उपयोग कई पुस्तकालयों में किया जाता है। उन्होंने बोस्टन, मैसाचुसेट्स में लाइब्रेरी ब्यूरो की स्थापना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने १९०५ में अमेरिकन लाइब्रेरी इंस्टीट्यूट की भी स्थापना की।
डेवी दशमलव वर्गीकरण
अपनी स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के तुरंत बाद उन्हें एम्हर्स्ट के पुस्तकालय का प्रबंधन करने और इसके संग्रह को फिर से वर्गीकृत करने के लिए काम पर रखा गया था। डेवी ने एक नई योजना बनाई, जिसमें सर फ्रांसिस बेकन द्वारा पहले उल्लिखित ज्ञान की संरचना पर दशमलव संख्याओं की एक प्रणाली तैयार की गई।
इन्हें भी देखें
डेवी दशमलव वर्गीकरण
डेवी दशमलव वर्ग सूची
संदर्भ | 445 |
39451 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%9C | कब्ज | कब्ज पाचन तंत्र की उस स्थिति को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति (या जानवर) का मल बहुत कड़ा हो जाता है तथा मलत्याग में कठिनाई होती है। कब्ज अमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है, जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है, मल कड़ा हो जाता है, उसकी आवृति घट जाती है या मल निष्कासन के समय अत्यधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है।
सामान्य आवृति और अमाशय की गति व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है। (एक सप्ताह में 7 से 12 बार मल निष्कासन की प्रक्रिया सामान्य मानी जाती है। कब्ज होने से शौच करने में बाधा उत्पन्न होती है, पाचनतंत्र प्रभावित होता है,जिसके कारण शौच करने में बहुत पीड़ा होती होती है ,किसी को केवल गैस की समस्या होती है. किसी को खाने का पाचन ठीक से नहीं हो पाता है। और आजकल कब्ज की समस्याओ से बच्चे और युवा पीढ़ी दोनों परेशान हो चुके है। व्यक्ति दो या तीन दिन तक शौच नहीं हो पाता है।तो कब्ज की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
पेट में शुष्क मल का जमा होना ही कब्ज है। यदि कब्ज का शीघ्र ही उपचार नहीं किया जाये तो शरीर में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। कब्जियत का मतलब ही प्रतिदिन पेट साफ न होने से है। एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन में दो बार यानी सुबह और शाम को तो मल त्याग के लिये जाना ही चाहिये। दो बार नहीं तो कम से कम एक बार तो जाना आवश्यक है। नित्य कम से कम सुबह मल त्याग न कर पाना अस्वस्थता की निशानी है।
मानव मल के प्रकार
मानव मल 7 प्रकार का होता है।
प्रमुख कारण
कम रेशायुक्त भोजन का सेवन करना ; भोजन में फायबर (Fibers) का अभाव।
अल्पभोजन ग्रहण करना।
शरीर में पानी का कम होना
कम चलना या काम करना ; किसी तरह की शारीरिक मेहनत न करना; आलस्य करना; शारीरिक काम के बजाय दिमागी काम ज्यादा करना।
कुछ खास दवाओं का सेवन करना
बड़ी आंत में घाव या चोट के कारण
थायरॉयड हार्मोन का कम बनना
कैल्सियम और पोटैशियम की कम मात्रा
मधुमेह के रोगियों में पाचन संबंधी समस्या
कंपवाद (पार्किंसन बीमारी)
चाय, कॉफी बहुत ज्यादा पीना। धूम्रपान करना व शराब पीना।
गरिष्ठ पदार्थों का अर्थात् देर से पचने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन ज्यादा करना।
आँत, लिवर और तिल्ली की बीमारी।
दु:ख, चिन्ता, डर आदि का होना।
सही समय पर भोजन न करना।
बदहजमी और मंदाग्नि (पाचक अग्नि का धीमा पड़ना)।
भोजन खूब चबा-चबाकर न करना अर्थात् जबरदस्ती भोजन ठूँसना। जल्दबाजी में भोजन करना।
बगैर भूख के भोजन करना।
ज्यादा उपवास करना।
भोजन करते वक्त ध्यान भोजन को चबाने पर न होकर कहीं और होना।
खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना: खाना खाने के बाद तुरंत पानी पीने से खाना अच्छी तरह से डाइजेस्ट नहीं हो पाता है क्योंकि खाना पचाने के लिए हाइड्रोक्लोरिक अम्ल होता है और आप अगर तुरंत पानी पी लेंगे तो यह पतला हो जाता है, जिसकी वजह से यह अच्छे से खाने को पचा नहीं पाता है और आपको कब्ज की समस्या हो जाती है।
कब्ज होने का सबसे बड़ा कारण आपके भोजन में फाइबर की कमी, खराब जीवनशैली और शारीरिक श्रम या तनाव से दूर रहना है।
कुछ खास दवाओं का सेवन करना या थायराइड हार्मोन का कम बनना।
भोजन में फाइबर का अभाव अल्प भोजन ग्रहण करना भी इसका का एक कारण हो सकता है।
शरीर में पानी का कम होना कम चलना या काम करना भी इसका का कारण हो सकता है।
शारीरिक की बजाय दिमागी काम ज्यादा करना भी इसका एक परमुख कारण है।
कैल्शियम और पोटेशियम की कम मात्रा या मधुमेह के रोगियों को में पाचन संबंधी समस्या चाय कॉफी बहुत ज्यादा पीना धूम्रपान करना शराब पीना गरिष्ठ पदार्थों का अर्थात देर से पचने वाले पदार्थों का सेवन ज्यादा करना।
सही समय पर भोजन ना करना बदहजमी और भोजन खूब चबा चबाकर ना करना अर्थात जबरदस्ती भोजन ठूसना जल्दबाजी में भोजन करना बगैर भूख के भोजन करना।
लक्षण
सासों की बदबू
लेपित जीब
बहती नाक
भूख में कमी
सरदर्द
चक्कर आना
जी मिचलाना
चहरे पर दाने
मुँह में अल्सर
पेट में लगातार परिपूर्णता
कब्ज के लक्ष्ण क्या होते हैं
कब्ज पाचन तंत्र की स्थिति को कहते हैं जिसमें किसी व्यक्ति का मल बहुत खड़ा हो जाता है. तथा मल त्याग में कठिनाई होती है कब्ज अमाशय की स्वभाविक परिवर्तन की व्यवस्था है जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है. मल खड़ा हो जाता है उसकी आवृत्ति घट जाती है या मल निष्कासन के समय अत्यधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है।
सामान्य और आवूति और आमाशय व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है. एक सप्ताह में 3 से 12 वार माल निष्कासन की प्र्किर्या को सामान्य माना जाता है।
पेट में शुल्क मल का जमा होना ही कब्ज कहलाता है. यदि इसका शीघ्र ही उपचार नहीं किया जाए तो शरीर में अनेकों विकार उत्पन्न हो जाते हैं. कब्जियत का मतलब ही प्रतिदिन पेट साफ ना होने से है एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन में दो बार यानी सुबह और शाम को मल त्याग के लिए जाना ही चाहिए 2 बार नहीं तो कम से कम एक बार तो जाना आवश्यक है नित्य कम से कम सुबह मल त्याग ना कर पाना असवासथ्यता की निशानी है।
उपाय
रेशायुक्त भोजन का अत्यधित सेवन करना, जैसे साबूत अनाज
ताजा फल और सब्जियों का अत्यधिक सेवन करना
पर्याप्त मात्रा में पानी पीना
ज्यादा व्यायाम करना चाहिए जिससे शरीर में गतिविधिया बढ़ती है। कब्ज के समस्या नहीं होती है।
वसा युक्त भोजन का सेवेन कम करे
ज्यादा समस्या आने पर चिकित्सक से सलाह लेना चाहिए।
कब्ज का इलाज करने के लिए आप बाजरे की खिचड़ी खा सकते हैं।
कुछ विशिष्ट प्रयोग
खाने में ऐसी चीजें ले, जिनसे पेट स्वयं ही साफ हो जाय।
नमक – छोटी हरड और काला नमक समान मात्रा में मिलाकर पीस लें। नित्य रात को इसकी दो चाय की चम्मच गर्म पानी से लेने से दस्त साफ आता हैं।
ईसबगोल – दो चाय चम्मच ईसबगोल 6 घण्टे पानी में भिगोकर इतनी ही मिश्री मिलाकर जल से लेने से दस्त साफ आता हैं। केवल मिश्री और ईसबगोल मिला कर बिना भिगोये भी ले सकते हैं।
चना – कब्ज वालों के लिए चना उपकारी है। इसे भिगो के खाना श्रेष्ठ है। यदि भीगा हुआ चना न पचे तो चने उबालकर नमक अदरक मिलाकर खाना चाहिए। चेने के आटे की रोटी खाने से कब्ज दूर होती है। यह पौष्िटक भी है। केवल चने के आटे की रोटी अच्छी नहीं लगे तो गेहूं और चने मिलाकर रोटी बनाकर खाना भी लाभदायक हैं। एक या दो मुटठी चने रात को भिगो दें। प्रात: जीरा और सौंठ पीसकर चनों पर डालकर खायें। घण्टे भर बाद चने भिगोये गये पानी को भी पी लें। इससे कब्ज दूर होगी।
बेल – पका हुआ बेल का गूदा पानी में मसल कर मिलाकर शर्बत बनाकर पीना कब्ज के लिए बहुत लाभदायक हैं। यह आँतों का सारा मल बाहर निकाल देता है।
नीबू – नीम्बू का रस गर्म पानी के साथ रात्रि में लेने से दस्त खुलकर आता हैं। नीम्बू का रस और शक्कर प्रत्येक 12 ग्राम एक गिलास पानी में मिलाकर रात को पीने से कुछ ही दिनों में पुरानी से पुरानी कब्ज दूर हो जाती है।
नारंगी – सुबह नाश्ते में नारंगी का रस कई दिन तक पीते रहने से मल प्राकृतिक रूप से आने लगता है। यह पाचन शक्ति बढ़ाती हैं।
मेथी – के पत्तों की सब्जी खाने से कब्ज दूर हो जाती है।
गेहूँ के पौधों (गेहूँ के जवारे) का रस लेने से कब्ज नहीं रहती है।
धनिया – सोते समय आधा चम्मच पिसी हुई सौंफ की फंकी गर्म पानी से लेने से कब्ज दूर होती है।
दालचीनी – सोंठ, इलायची जरा सी मिला कर खाते रहने से लाभ होता है।
टमाटर कब्जी दूर करने के लिए अचूक दवा का काम करता है। अमाश्य आँतों में जमा मल पदार्थ निकालने में और अंगों को चेतनता प्रदान करने में बडी मदद करता है। शरीर के अन्दरूनी अवयवों को स्फूर्ति देता है|
गुड़ – दो चम्मच अजवाइन और दो चम्मच के लगभग गुण लेकर उसे पाउडर की तरह तैयार करले, आप इन दोनों को अच्छी तरह मिला लें और इनका गोली बना लें। जब भी आपको पेट में दर्द हो या आपको लगे कि पेट में भारीपन है तो आप एक गोली इसमें से खा ले यह आपका पेट तुरंत ठीक कर देगा। इसका सेवन करने से आप का कब्ज जड़ से खत्म हो जाएगा।
तुलसी –रोज सुबह खाली पेट 10 से 12 पत्ते तुलसी के चबा चबाकर खाएं और एक गिलास पानी पी लें ऐसा करने से आप का लीवर भी मजबूत होगा पेट में गैस बनने की समस्या और कब्ज भी खत्म हो जाएगा।
जीरा –एक बड़ा चम्मच जीरा और एक बड़ा चम्मच अजवायन ले इन दोनों को हल्का सा भून लें अब आप को सौंफ लेना है सौंफ को भूलना नहीं है इन तीनों को अच्छे से पीसकर इनका पाउडर तैयार कर लें और इसमें स्वाद अनुसार काला नमक मिला लें। खाना खाने के आधे घंटे बाद एक चम्मच इसका सेवन करें हल्के गर्म पानी के साथ आपको कब्ज में बहुत ज्यादा आराम मिलेगा।
पुदीना – पुदीने की पत्तियों की चाय बनाकर पीने से भी कब्ज ठीक हो जाता है।
पपीता – रोज सुबह कच्चे पपीते का सेवन करने से भयंकर से भयंकर पुराना से पुराना कब्ज भी ठीक हो जाता है।
सेब – रोज सुबह एक सेब का सेवन करते हैं तो इससे आप को बहुत ज्यादा फायदा मिलेगा पेट से जुड़ी हर समस्या ठीक हो जाएगी।
अन्य उपाय
१) इसबगोल की की भूसी कब्ज में परम हितकारी है। दूध या पानी के साथ २-३ चम्मच इसबगोल की भूसी रात को सोते वक्त लेना फ़ायदे मंद है। दस्त खुलासा होने लगता है।यह एक कुदरती रेशा है और आंतों की सक्रियता बढाता है।
२) नींबू कब्ज में गुण्कारी है। मामुली गरम जल में एक नींबू निचोडकर दिन में २-३बार पियें। जरूर लाभ होगा।
नीम्बू का रस गर्म पानी के साथ रात्रि में लेने से दस्त खुलकर आता हैं। नीम्बू का रस और शक्कर प्रत्येक 12 ग्राम एक गिलास पानी में मिलाकर रात को पीने से कुछ ही दिनों में पुरानी से पुरानी कब्ज दूर हो जाती है।
३) एक गिलास दूध में १-२ चाम्मच घी मिलाकर रात को सोते समय पीने से भी कब्ज रोग का समाधान होता है।
४) एक कप गरम जल में १ चम्म्च शहद मिलाकर पीने से कब्ज मिटती है। यह मिश्रण दिन में ३ बार पीना हितकर है।
५) जल्दी सुबह उठकर एक लिटर मामूली गरम पानी पीकर २-३ किलोमीटर घूमने जाएं। कब्ज का बेहतरीन उपचार है।
६) दो सेवफ़ल प्रतिदिन खाने से कब्ज में लाभ होता है।
७) अमरूद और पपीता ये दोनो फ़ल कब्ज रोगी के लिये अमॄत समान है। ये फ़ल दिन में किसी भी समय खाये जा सकते हैं। इन फ़लों में पर्याप्त रेशा होता है और आंतों को शक्ति देते हैं। मल आसानी से विसर्जीत होता है।
८) अंगूर में कब्ज निवारण के गुण हैं। सूखे अंगूर याने किश्मिश पानी में ३ घन्टे गलाकर खाने से आंतों को ताकत मिलती है और दस्त आसानी से आती है। जब तक बाजार में अंगूर मिलें नियमित रूप से उपयोग करते रहें।
९) अलसी के बीज का मिक्सर में पावडर बनालें। एक गिलास पानी में २० ग्राम के करीब यह पावडर डालें और ३-४ घन्टे तक गलने के बाद छानकर यह पानी पी जाएं। बेहद उपकारी ईलाज है। अलसी में प्रचुर ओमेगा फ़ेटी एसिड्स होते हैं जो कब्ज निवारण में महती भूमिका निभाते हैं।
१०) पालक का रस या पालक कच्चा खाने से कब्ज नाश होता है। एक गिलास पालक का रस रोज पीना उत्तम है। पुरानी से पुरानी कब्ज भी इस सरल उपचार से मिट जाती है।
११) अंजीर कब्ज हरण फ़ल है। ३-४ अंजीर फ़ल रात भर पानी में गलावें। सुबह खाएं। आंतों को गतिमान कर कब्ज का निवारण होता है।
१२) बड़ी मुनक्का पेट के लिए बहुत लाभप्रद होती है। मुनका में कब्ज नष्ट करने के तत्व हैं। ७ नग मुनक्का रोजाना रात को सोते वक्त लेने से कब्ज रोग का स्थाई समाधान हो जाता है। एक तरीका ये हैं कि मुनक्का को दूध में उबालें कि दूध आधा रह जाए | गुन गुना दूध सोने के आधे घंटे पाहिले सेवन करें। मुनक्का में पर्याप्त लोह तत्व होता है और दूध में आयरन नहीं होता है इसलिए दूध में मुनक्का डालकर पीया जाय तो आयरन की भी पूर्ती हो जाती है।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
Constipation Guideline - the World Gastroenterology Organisation (WGO)
आयुर्विज्ञान
पेट के रोग
पाचन रोग
चिकित्सा
जलवाहित रोग | 2,044 |
163194 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%9A%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%20%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A4%B2%E0%A4%A8%E0%A4%BE | त्वचा का रंग बदलना | त्वचा के हाइपोपिगमेंटेशन के तीन मुख्य प्रकार होते हैं: विटिलिगो, पोस्ट इनफ्लेमेटरी हाइपोपिगमेंटेशन तथा रंजकहीनता। विटिलिगो को अरंजक क्षेत्रों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। यह आमतौर पर सीमांकित एवं अक्सर सुडौल होते है जो मेलेनोसाइट्स (त्वचा के रंग के लिए जिम्मेदार कोशिकाएं) की कमी के कारण होते हैं। अरंजकता एक या दो स्थानों पर हो सकता है या ज्यादातर त्वचा की सतह को ढँक सकता है। विटिलिगो वाले क्षेत्रों में बाल सामान्यतः सफेद होते है। त्वचा के घाव वुड्स प्रकाश डालने पर उभरते हैं।
प्रज्वलन या प्रदाह बाद की हाइपो रंजकता कुछ किस्म के प्रदाह विकारों के भरने (उदाहरण डर्मिटाइटिस), जलने एवं त्वचा संक्रमण के बाद होता है। यह चोट के निशानों तथा एट्रोफिक त्वचा से संबंधित है। त्वचा की रंजकता कम होती है, लेकिन विटिलिगो समान दूधिया सफेद नहीं होती है। कभी स्वतःस्फूर्त पुन:रंजकता हो सकती है।
रंजकहीनता एक दुर्लभ ऑटोसोमल रिसेसिव इनहेरिटेड विकार है जिसमें मेलेनोसाइट्स उपस्थित होता हैं लेकिन मेलेनिन नहीं बनाते (पदार्थ जो त्वचा को रंगता है)। वे विभिन्न रूपों के होते हैं। टाइरोसिनेस-निगेटिव रंजकहीनता में बाल सफेद होते हैं, त्वचा पीली, एवं आंखें गुलाबी होती है; नायस्टेग्मस् एवं अपवर्तन की त्रुटियाँ एक सामान्य बात हैं। उन्हें सूर्य के प्रकाश से बचना चाहिए, धूप के चश्मे का उपयोग करना चाहिए, दिन के समय सनस्क्रीन एस.पी.एफ़ >= 15 का इस्तेमाल करना चाहिए।
इन तीन मुख्य प्रकार के हाइपोपिगमेंटेशन के अलावा त्वचा की एक सामान्य स्थिति जो सामान्यत: त्वचा में अरंजकता करती है, पिट्रियासिस के रूप में जानी जाती है।
चर्म रोग
त्वचा रोग | 248 |
39126 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%AC | रजब | रज्जब (अरबी: ) इस्लामी कैलेण्डर का सातवां मास है। रज्जब की शब्दकोषीय या शाब्दिक परिभाषा है "आदर करना", जिससे कि रज्जब शब्द निकला है।
रज्जब बतलाता है 'सम्मनित मास'। इस मास को अति आदर सूचक माना जाता था, पागान अरबों द्वारा, रमजाज्ञ की तरह ही इसमें भी युद्ध वर्जित था।
समय
इस्लामी कैलेण्डर में मास आरम्भ होता है, नए चाँद, यानि प्रतिपदा से, लेकिन गणना से नहीं, बल्कि दिखने पर। क्योंकि यह कैलेण्दर 11 से 12 दिवस छोटा होता है, सौर वर्ष से, रज्जब मास भी पूरे वर्ष भर के हर ऋतु में घूमता रहता है। रज्जब की अनुमानित तिथियाँ निम्न हैं:-
1426 AH – मासारम्भ: अगस्त 6, 2005; अन्तः सितंबर 4, 2005
1427 AH – मासारम्भ: जुलाई 27, 2006; अन्तः अगस्त 25, 2006
1428 AH – मासारम्भ: जुलाई 16, 2007; अन्तः अगस्त 14, 2007
1429 AH – मासारम्भ: जुलाई 5, 2008; अन्त: अगस्त 3, 2008
इस्लामी घटनाएं
01 रजब - पाँचवे इमाम मुहम्मद अल-बाक़िर का जन्म।
03 रजब - दसवें इमाम अली नक़ी की मृत्यु।
04 रजब - चिश्ती सिलसिले के ख्चाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का उर्स।
05 रजब - दसवें इमाम अली नक़ी का जन्म।च
07 रजब - शिया मुसलमान इमाम मूसा अल-काज़िम की ईद मनाते हैं।
09 रजब - हुसैन इब्न अली को एक पुत्र अली असग़र पैदा हुए।
10 रजब - नौवें इमाम मुहम्मद अल-तक़ी का जन्म।
13 रजब - शिया मुसलमान अपने पहले अली इब्न अबी तालिब का जन्म जोश से मनाते हैं।
18 रजब - इब्राहीम की शिया इस्लाम के अनुसार मृत्यु।
22 रजब - कुंडे शिया मुसलमानों और ग़ैर-सलफ़ी / ग़ैर अहले हदीस मुसलमानों मुसलमानों की ओर से मनाए जाते हैं क्योंकि कहा जाता है कि छटे इमाम जाफ़र अस-सादिक़ ने ऐसा करने को कहा। उसी दिन मुआविया प्रथम की भी मृत्यु हुई थी, इस कारण कुछ सुन्नी मुसलमान शंकास्पद है यह प्रथा असल में उनके देहान्त का जश्न है।
24 रजब -खैबर की युद्ध में मुसलमानों की विजय।
25 रजब - सातवें इमाम मूसा अल-काज़िम की मृत्यु।
27 रजब - ग़ैर अहले हदीस सुन्नी मेराज का जश्न मनाते हैं।
28 रजब - हुसैन इब्न अली करबला तक मदीने से रवाना हुए।
सन 5 हिजरी में बिलाल इब्न हारिस के बारे में कहा जाता है की उन्होंने बनू मुज़ीना के सौ लोगों को पैगम्बर मुहम्मद के सामने प्रस्तुत किया। उन सभी ने इस्लाम क़बूल किया।
सन 5 हिजरी में तबूक का युद्ध हुआ। यह अंतिम युद्ध था जिसमें पैगम्बर मुहम्मद शरीक थे।
अक़ाबा सन 12 हिजरी में ली गई।
सलाउद्दीन रजब के महीने में यरुशलम में प्रवेश किए थे।
28 रजब 1342 हिजरी (3 मार्च 1924) इस्लाम की खिलाफ़त को आधुनिक तुर्की के क्रान्तिकारी नेता अतातुर्क मुस्तफ़ा कमाल पाशा ने समाप्त करके अपने देश को पहला मुसलमान धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाया।
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इस्लामी मास | 466 |
377470 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%B0 | नेब्युलाइज़र | चिकित्सा उद्योग में, नेब्युलाइज़र (ब्रिटिश अंग्रेजी में इसकी वर्तनी nebuliser है ) एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग दवा को फेफड़ों में एक धूम के रूप में पहुंचाने के लिए किया जाता है।
नेब्युलाइज़र का उपयोग आमतौर पर सिस्टिक फाइब्रोसिस, अस्थमा, सीओपीडी और अन्य सांस के रोगों के उपचार के लिए किया जाता है। ज्वलनशील धूम्रपान उपकरण (Combustible smoking devices) (जैसे अस्थमा सिगरेट (asthma cigarettes) या केनाबीस जोइंट्स (cannabis joints)), एक वेपोराइज़र, शुष्क पाउडर इन्हेलर, या एक दबाव युक्त मापी गयी खुराक के इन्हेलर का उपयोग भी दवा को सांस के ज़रिये अन्दर लेने के लिए किया जा सकता है।
आजकल ज्वलनशील धूम्रपान उपकरणों और वेपोराइज़र का उपयोग दवा को सांस के ज़रिये अन्दर लेने (इन्हेल करने) के लिए नहीं किया जाता है, क्योंकि आधुनिक इन्हेलर और नेब्युलाइज़र अधिक प्रभावी हैं।
सभी नेब्युलाइज़र्स के लिए सामान्य तकनीकी सिद्धांत एक ही है, जिसके अनुसार ऑक्सीजन, संपीडित वायु या अल्ट्रासॉनिक शक्ति का उपयोग दवा के विलयन निलंबन को छोटे एरोसोल बूंदों में मिलाने के लिए किया जाता है ताकि उपकरण के मुख से सीधे इस विलयन को इन्हेल किया जा सके. एक एरोसोल की परिभाषा है "गैस और कण का एक मिश्रण" और प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले एक एरोसोल का सबसे अच्छा उदाहरण "धुंध" है (यह तब बनती है जब आस पास की गर्म वायु में मिश्रित पानी के छोटे वाष्पीकृत कण, ठन्डे हो जाते हैं और दृश्य पानी की बूंदों के एक बादल के रूप में दिखाई देते हैं). जब सीधे फेफड़ों तक दवा पहुंचाने के लिए इन्हेलेशन थेरेपी हेतु नेब्युलाइज़र का उपयोग किया जाता है, यह ध्यान रखना जरुरी है कि इन्हेल किये जाने वाली सूक्ष्म बूंदें नीचले वायुमार्गों की संकरी शाखाओं को भेद कर उनमें प्रवेश कर जायें, अगर उनका व्यास केवल 1 से 5 माइक्रोमीटर तक ही है।
अन्यथा इन्हें मुख गुहा के द्वारा ही अवशोषित कर लिया जाएगा, जिसका प्रभाव कम होता है।
दुर्भाग्य से वर्तमान में उपलब्ध सभी नेब्युलाइज़र छोटी बूंदों में एरोसोल को डिलीवर करने में सफल नहीं होते हैं, इस कारण वे दवा को फेफड़ों तक पहुंचाने के लिए पर्याप्त दक्षता नहीं रखते हैं।
सबसे अधिक इस्तेमाल किये जाने वाले नेब्युलाइज़र जेट नेब्युलाइज़र हैं, जिन्हें "ऑटोमाइज़र्स" भी कहा जाता है। जेट नेब्युलाइज़र को ट्यूब की सहायता से एक कम्प्रेसर से जोड़ दिया जाता है, जिसके कारण संपीडित वायु या ऑक्सीजन तेज गति से एक तरल दवा में से होकर प्रवाहित होती है और इसे एक एरोसोल में बदल देती है, जिसे अब रोगी के द्वारा सांस के साथ भीतर ले लिया (इन्हेल) जाता है।
आजकल चिकित्सक जेट नेब्युलाइज़र के बजाय अपने रोगियों के लिए एक दबावयुक्त मापी हुई खुराक के इन्हेलर (pressurized Metered Dose Inhaler (pMDI)) को प्राथमिकता देते हैं, जेट नेब्युलाइज़र अधिक ध्वनि पैदा (उपयोग के दौरान अक्सर 60 डेसिबल) करता है और अपने अधिक वजन के कारण कम पोर्टेबल है।
हालांकि जेट नेब्युलाइज़र का उपयोग आमतौर पर अस्पताल में उन रोगियों के लिए किया जाता है जो इन्हेलर का उपयोग नहीं कर पाते, जैसे सांस के रोगों के गंभीर मामलों में और अस्थमा (दमा) के गंभीर मामले में.
जेट नेब्युलाइज़र का मुख्य लाभ यह है कि इसके परिचालन की लागत कम आती है।
अगर किसी रोगी को एक pMDI के उपयोग करके प्रतिदिन दवा को इन्हेल करने की जरुरत है तो यह ज्यादा महंगा पड़ता है। आज कई निर्माता जेट नेब्युलाइज़र के वजन को तक कम करने में कामयाब हो गये हैं और इसी लिए इस पर एक पोर्टेबल उपकरण का लेबल लगाना शुरू कर दिया गया है।
सभी प्रतिस्पर्धी इन्हेलर्स और नेब्युलाइज़र्स की तुलना में, आज भी शोर और भारी वजन जेट नेब्युलाइज़र की सबसे बड़ी कमी है।
अल्ट्रासॉनिक तरंग नेब्युलाइज़र का आविष्कार 1964 में एक नए अधिक पोर्टेबल नेब्युलाइज़र के रूप में किया गया। एक अल्ट्रासॉनिक तरन नेब्युलाइज़र में तकनीक यह है कि इसमें एक इलेक्ट्रोनिक संदमित्र होता है जो उच्च आवृति की अल्ट्रासॉनिक तरंगें उत्पन्न करता है, जिसके कारण एक पीज़ोइलेक्ट्रिक एलिमेंट में यांत्रिक कम्पन होने लगता है।
यह कम्पित होने वाला एलिमेंट एक तरल के भण्डार के संपर्क में रहता है और इसका उच्च आवृति का कम्पन वाष्प की एक धुंध के निर्माण के लिए पर्याप्त होता है।
चंकी ये भारी वायु कम्प्रेसर के बजाय अल्ट्रासॉनिक कंपन से एरोसोल का निर्माण करते हैं, इनका वजन के आसपास होता है।
एक और लाभ यह है कि अल्ट्रासॉनिक कंपन में ना के बराबर ध्वनि उत्पन्न होती है। इन अधिक आधुनिक प्रकार के नेब्युलाइज़र्स के उदाहरण हैं: ओमरोन NE-U17 और न्युरर नेब्युलाइज़र IH30.
नेब्युलाइज़र के बाजार में एक और महत्वपूर्ण नवीनीकरण 2005 के आसपास हुआ, जब अल्ट्रासॉनिक कम्पन मेष तकनीक (ultrasonic Vibrating Mesh Technology (VMT)) का सृजन हुआ। इस तकनीक में एक 1000-7000 लेज़र ड्रिल छिद्रों से युक्त एक मेष/झिल्ली एक तरल भण्डार के शीर्ष पर कम्पित होती है और इससे बहुत छोटी बूंदें धुंध के रूप में छिद्रों से बाहर निकलती हैं।
एक तरल भण्डार के नीचे एक पीज़ोइलेक्ट्रिक एलिमेंट को कम्पित करने की तुलना में यह तकनीक अधिक प्रभावी है और इससे उपचार में समय भी कम लगता है।
अल्ट्रासॉनिक तरंग नेब्युलाइज़र में एक समस्या यह पायी गयी कि इसमें तरल बहुत अधिक व्यर्थ होता है और चिकित्सकीय तरल ना चाहते हुए भी गर्म हो जाता है, यह समस्या भी कम्पन मेष नेब्युलाइज़र के साथ हल हो गयी है। उपलब्ध VMT नेब्युलाइज़र्स की आंशिक सूची में शामिल हैं: पारी ईफ्लो (Pari eFlow), रेस्पिरोनिक्स आई-नेब (Respironics i-Neb), ओमरोन माइक्रोएयर (Omron MicroAir), ब्युरर नेब्युलाइज़र IH50 (Beurer Nebulizer IH50) और एरोगेन एरोनेब (Aerogen Aeroneb).
चूंकि पुराने मॉडल्स की तुलना में अल्ट्रासॉनिक VMT नेब्युलाइज़र्स का मूल्य अधिक है, अधिकांश निर्माता "पुराने जमाने" के जेट नेब्युलाइज़र भी बेचते हैं।
नेब्युलाइज़र तकनीक में सबसे हाल ही हुआ नवाचार है मानव द्वारा संचालित नेब्युलाइज़र जिसका विकास मार्केट विश्वविद्यालय के डॉक्टर लार्स ई. ओल्सन के द्वारा किया गया।
मेडिकल कंपनी बोहरिंगर इन्गेल्हेम ने भी 1997 में रेस्पिमेट सोफ्ट मिस्ट इन्हेलर नामक एक नए उपकरण का आविष्कार किया। यह नई तकनीक उपयोगकर्ता को एक मापी गयी खुराक उपलब्ध कराती है, क्योंकि इन्हेलर के तरल आधार को हाथ से 180 डिग्री पर दक्षिणावर्त दिशा (घडी की सुई की दिशा) में घुमाया जाता है, जिससे प्रत्यास्थ तरल पात्र के आसपास स्प्रिंग में एक तनाव उत्पन्न हो जाता है।
जब उपयोगकर्ता इन्हेलर के आधार को एक्टिवेट करता है, स्प्रिंग से ऊर्जा निकलती है और प्रत्यास्थ तरल के पात्र पर दबाव डालती है, जिससे तरल स्प्रे के रूप में 2 नोज़ल्स से बाहर निकलता है, इस प्रकार से एक सोफ्ट मिस्ट (धूम) का निर्माण होता है, जिसे इन्हेल किया जाता है।
इस उपकरण में कोई गैस प्रणोदक नहीं होता और इसे संचालित करने के लिए किसी बैटरी / पावर की जरुरत नहीं होती.
इस धूम में सूक्ष्म बूंद का आकार निराशाजनक रूप से 5.8 माइक्रोमीटर मापा गया, जो इन्हेल की गयी दवा के फेफड़ों तक पहुंचने की प्रभावी क्षमता में कुछ समस्या को इंगित करता है।
बाद के परीक्षणों में यह सिद्ध हो गया कि मामला यह नहीं था।
धूम के बहुत कम वेग के कारण, वास्तव में सोफ्ट मिस्ट इन्हेलर की प्रभाविता एक पारंपरिक pMDI की तुलना में अधिक होती है।
2000 में, नेब्युलाइज़र की परिभाषा को स्पष्ट/विस्तारित करने के लिए यूरोपीय श्वसन सोसाइटी (European Respiratory Society (ERS)) के लिए कुछ तर्क प्रस्तुत किये गए, क्योंकि नए
सोफ्ट मिस्ट इन्हेलर को तकनीकी शब्दों में "एक हाथ से चलाये जाने वाले नेब्युलाइज़र" और "एक हाथ से चलाये जाने वाले pMDI" दोनों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
इतिहास
पहले "संचालित" या दबावयुक्त इन्हेलर का आविष्कार फ़्रांस में 1858 में सेल्स-गिरोन्स के द्वारा किया गया।
यह उपकरण तरल दवा को छोटे कणों में बदलने के लिए दबाव का उपयोग करता था।
पम्प के हेन्डल को साइकिल के पम्प की तरह संचालित किया जाता है। जब पम्प को ऊपर खींचा जाता है, यह भण्डार से तरल को खींच लेता है और उपयोगकर्ता के हाथ से बल लगाये जाने पर तरल पर एक एटोमाइज़र के माध्यम से बल लगता है, जिससे उपयोगकर्ता के मुंह के पास इन्हेल करने के लिए स्प्रे किया जा सकता है।
1864 में जर्मनी में पहले भाप से संचालित नेब्युलाइज़र का आविष्कार किया गया।
इस इन्हेलर को "सीगल के स्टीम स्प्रे इन्हेलर" के रूप में जाना जाता है, जो तरल दवा को एटोमाइज़ करने के लिए वेंचुरी के सिद्धांत (Venturi principle) का उपयोग करता था और यह नेब्युलाइज़र चिकित्सा की बिल्कुल प्रारम्भिक शुरुआत थी। छोटी बूंद के आकार के महत्व को अभी तक नहीं समझा गया था, इसलिए इस पहले उपकरण की प्रभावकारिता कई चिकित्सा यौगिकों के लिए समझी नहीं गयी।
सीगल के स्टीम स्प्रे में स्पिरिट का एक बर्नर होता है, जो भण्डार में उपस्थित पानी को गर्म कर उसे भाप में बदल देता है, यह भाप शीर्ष पर बहती है और चिकित्सकीय विलयन में निलंबित ट्यूब में से होकर निकलती है।
इस मार्ग में बहती हुई भाप दवा को वाष्प में खींच लेती है और रोगी स्प्रे होने वाले इस वाष्प को कांच के बने एक मुख से इन्हेल कर लेता है।
पहले इलेक्ट्रॉनिक नेब्युलाइज़र का आविष्कार 1930 में किया गया और यह न्युमोस्टेट कहलाता है।
इस उपकरण में चिकित्सकीय तरल (प्रारूपिक रूप से एड्रीनलीन क्लोराइड, जिसका उपयोग श्वासनली की पेशी के संकुचन को शिथिलन में बदलने के लिए किया जाता है) को इलेक्ट्रिक कम्प्रेसर की सहायता से एरोसोल में बदल दिया जाता है। महंगे इलेक्ट्रॉनिक नेब्युलाइज़र के एक विकल्प के रूप में, हालांकि 1930 में कई लोगों ने अधिक साधारण और हाथ से चलाये जाने वाले नेब्युलाइज़र का उपयोग करना जारी रखा, जिसे पार्क-डेविस ग्लासेप्टिक के नाम से जाना जाता है।
1956 में नेब्युलैज़र्स के खिलाफ एक प्रतिस्पर्धी तकनीक की शुरुआत रिकर लेबोरेट्रीज (3M) के द्वारा की गयी, इसे एक दबावयुक्त मापी हुई खुराक के इन्हेलर के रूप में, शुरू किया गया, इसके पहले दो उत्पाद थे मेडीहेलर-आइसो (आइसोप्रेनलिन) और मेडीहेलर-एपी (एड्रीनलीन).
इन उपकरणों में दवा ठंडी भरी होती है और इसे कुछ विशेष मापने वाले वाल्व के माध्यम से निश्चित खुराक के रूप में डिलीवर किया जाता है, जिसे एक गैस प्रणोदक तकनीक के द्वारा खींचा जाता है (जैसे फ्रेओन या पर्यावरण को कम क्षति पहुंचाने वाला HFA).
1964 में एक नए प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक नेब्युलाइज़र को एक "अल्ट्रासॉनिक तरंग नेब्युलाइज़र" के रूप में शुरू किया गया। आज नेब्युलाइज़र तकनीक का उपयोग केवल चिकित्सा के उद्देश्य के लिए ही नहीं किया जाता है।
उदाहरण के लिए अल्ट्रासॉनिक तरंग नेब्युलाइज़र का उपयोग नमी उत्पन्न करने वाले उपकरण में भी किया जाता है, जिसका उद्देश्य होता है इमारतों में शुष्क वायु को नम बनाने के लिए जल एरोसोल का स्प्रे करना.
इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट में संबंध में, कुछ पहले डिजाइन किये गए मॉडल्स में एक अल्ट्रासॉनिक तरंग नेब्युलाइज़र है (जिसमें एक पीज़ोइलेक्ट्रिक एलिमेंट होता है जो उच्च आवृति की अल्ट्रासाउंड तरंगों पर कम्पित होता है, जिससे निकोटीन तरल में कम्पन और एटोमिकरण होता है) जिसके साथ एक वेपोराइज़र (जिसे एक इलेक्ट्रिक हीटिंग एलिमेंट के साथ एक स्प्रे नोज़ल के रूप में बनाया जाता है) भी संयोजन में होता है।
हालांकि वर्तमान में इलेक्ट्रोनिक सिगरेट का सबसे ज्यादा बेचा जाने वाला प्रकार, अल्ट्रासॉनिक तरंग नेब्युलाइज़र के चुनाव की संभावना को कम करता है, चूंकि इसे इस प्रकार के उपकरण के लिए पर्याप्त प्रभावी नहीं पाया गया। अब इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट के बजाय इलेक्ट्रिक वेपोराइज़र का उपयोग किया जाता है, इसे या तो "अन्दर उपस्थित एटोमाइज़र" में अवशोषक सामग्री के साथ सीधे संपर्क में प्रयुक्त किया जाता है, या "स्प्रेइंग जेट एटोमाइज़र" से सम्बंधित नेब्युलाइज़र तकनीक के साथ संयोजन में किया जाता है (जिसमें तरल बूंदों को तेज गति की वायु धारा के द्वारा स्प्रे किया जाता है, जो कुछ छोटे वेंचुरी इंजेक्शन चैनलों में से होकर गुजरता है और निकोटीन तरल के साथ अवशोषित सामग्री में ड्रिल हो जाता है).
उपयोग और संलग्नक
नेब्युलाइज़र अपनी दवा को तरल विलयन के रूप में लेते हैं, जिसे अक्सर उपयोग के समय उपकरण में डाला जाता है।
कोर्टिकोस्टेरोइड (Corticosteroids) और ब्रोंकोडायलेटर (Bronchodilators) जैसे सालब्युटामोल (salbutamol) (एल्ब्युट्रोल (albuterol) USAN) का उपयोग अक्सर किया जाता है और कभी कभी इप्राट्रोपियम (ipratropium) के साथ संयोजन में उपयोग किया जाता है।
इन दवाओं को खाने के बजाय इन्हेल किये जाने का कारण यह है कि इन्हेल करने पर ये सीधे श्वसन मार्ग पर अपना काम करती हैं, जिससे दवा अपना काम तेजी से करने लगती है और इसके पार्श्व प्रभाव भी काम हो जाते हैं, इसके बजाया खाने पर इनके पार्श्व प्रभाव ज्यादा होते हैं।
आमतौर पर एरोसोल के रूप में बदली गयी दवा को एक ट्यूब जैसे मुख से इन्हेल किया जाता है, जो एक इन्हेलर के समान होता है।
हालांकि, उपकरण के मुख की जगह कभी कभी मास्क का उपयोग किया जाता है, यह कुछ वैसा ही होता है जैसा निश्चेतक इन्हेल करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है, इससे छोटे बच्चों में और बड़ों में इन्हेलर का उपयोग करना अधिक आसान हो जाता है, हालांकि अगर रोगी सीधे उपकरण के मुख से दवा को इन्हेल कर सकता है तो मास्क के बजाय सीधे मुख से ही इन्हेल करना चाहिए, क्योंकि मास्क का उपयोग करने से फेफड़ों तक कम दवा पहुंच पाती है, चूंकि यह नाक में भी फ़ैल जाती है।
कोर्टिकोस्टेरोइड के उपयोग के बाद, सैद्धांतिक रूप से यह संभव है कि रोगी के मुंह में यीस्ट का संक्रमण (थ्रश) हो जाये या आवाज में खराश (डिस्फोनिया) पैदा हो जाये, हालांकि व्यवहार में ऐसी स्थितियां कभी कभी ही होती हैं।
इन प्रतिकूल प्रभावों से बचने के लिए, कुछ चिकित्सकों सुझाव देते हैं कि जो रोगी नेब्युलाइज़र का उपयोग करते हैं उन्हें अच्छी तरह से कुल्ला करना चाहिए. हालांकि, यह ब्रोंकोडायलेटर के लिए सच नहीं है, फिर भी रोगी कुल्ला करना चाहते हैं क्योंकि श्वसन मार्ग को फ़ैलाने वाली दवाओं का स्वाद अप्रिय होता है।
इन्हें भी देखें
एरोसोल की बूंदों के रूप में फेफड़ों में चिकित्सकीय तरल को पहुंचाने के लिए नेब्युलाइज़र के उपयोग के बजाय, इन्हेलर या वेपोराइज़र का उपयोग भी किया जा सकता है।
इन्हेलर
वेपोराइज़र
इन्हेल किये जा सकने वाले चिकित्सकीय पदार्थों की सूची
सन्दर्भ
श्वसन चिकित्सा
दवा की डिलीवरी करने वाले उपकरण
चिकित्सा उपकरण
खुराक के रूप | 2,258 |
1128789 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%89%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A1-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B5 | सॉलिड-स्टेट ड्राइव | एक सॉलिड-स्टेट ड्राइव (अंग्रेजी में: Solid-state drive (SSD)) एक सॉलिड-स्टेट स्टोरेज डिवाइस है, जो डेटा को दृढ़ (persistant) स्टोर करने के लिए इंटीग्रेटेड सर्किट असेंबलियों का उपयोग करता है। यह आमतौर पर फ्लैश मेमोरी का उपयोग करता है, और कंप्यूटर स्टोरेज के पदानुक्रम में सेकेंडरी स्टोरेज के रूप में कार्य करता है। इसे कभी-कभी सॉलिड-स्टेट डिवाइस या सॉलिड-स्टेट डिस्क भी कहा जाता है, हालांकि SSD में हार्ड ड्राइव ("HDD") या फ्लॉपी डिस्क में उपयोग किए जाने वाले भौतिक चक्रण (spinning) डिस्क और रीड-राइट हेड नहीं होते हैं।
सन्दर्भ | 88 |
165942 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%89%E0%A4%AE%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%9C%E0%A4%BC | टॉम क्रूज़ | थॉमस क्रूज़ मापोदर IV (जन्म: 3 जुलाई 1962), जो अपने फिल्मी नाम टॉम क्रूज़ से ज्यादा जाने जाते हैं, एक अमेरिकी अभिनेता और फ़िल्म निर्माता हैं। 2006 में फ़ोर्ब्स पत्रिका ने उन्हें दुनिया के अत्याधिक प्रभावशाली लोकप्रिय व्यक्तित्व का दर्जा दिया। टॉम तीन अकादमी पुरस्कारों के लिए नामित हुए और उन्होंने तीन गोल्डन ग्लोब पुरस्कार जीते हैं। उनकी पहली प्रमुख भूमिका 1983 की फ़िल्म रिस्की बिज़नेस में थी, जिसे"एक युवा पीढ़ी की क्लासिक और अभिनेता के लिए कैरियर-निर्माता" के रूप में वर्णित किया गया है। 1986 के लोकप्रिय और आर्थिक रूप से सफल फ़िल्म टॉप गन में एक बहादुर नौसेना पायलट की भूमिका निभाने के बाद, 1990 और 2000 दशक में बनी मिशन इम्पॉसिबल एक्शन फ़िल्म श्रृंखला में एक गुप्त एजेंट की भूमिका निभाते हुए, क्रूज़ ने इस शैली को जारी रखा.
इन वीरोचित किरदारों के अलावा, मैग्नोलिया (1999) में एक स्त्री-द्वेषी पुरुष गुरू और मैकल मान की क्राइम थ्रिलर फ़िल्म कोल्लाटरल (2000) में एक शांत और स्वार्थी मनोरोगी क़ातिल जैसी कई अन्य भूमिकाएं निभाईं.
2005 में, हॉलीवुड पत्रकार एडवर्ड जे एपस्टीन ने तर्क दिया कि क्रूज़ उन चंद निर्माताओं (अन्य में शामिल हैं -जॉर्ज लुकास,स्टीवन स्पीलबर्ग और जेर्री ब्रुक्कहेइमेर) में से हैं, जो अरब-डॉलर फ़िल्म के विक्रयाधिकार की सफलता की गारंटी दे सकते हैं। 2005 से क्रूज़ और पाउला वैग्नर यूनाइटेड आर्टिस्ट फ़िल्म स्टूडियो के प्रभारी रहे हैं, जहां क्रूज़ निर्माता और अभिनेता के रूप में और वैग्नर मुख्य कार्यपालक के रूप में शामिल हैं। क्रूज़, चर्च ऑफ़ साइनटॉलोजी के अपने विवादास्पद समर्थन और पालन के लिए भी जाने जाते हैं।
परिवार और प्रारंभिक जीवन
विशेष-शिक्षा की अध्यापिका मरियम ली (जन्मतः फ़ेयफ़्फ़र) और इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थॉमस क्रूज़ मापोदर III, के बेटे क्रूज़ का जन्म सायराक्यूस, न्यूयॉर्क में हुआ। हालांकि क्रूज़ का पैतृक कुलनाम (मापोदर) वेल्श है, यह बात सामने आई है कि उनके पैतृक परदादा थॉमस ओ'मारा, आयरिश वंशीय थे और अपने सौतेले पिता के कुलनाम को अपनाते हुए, वे पहले थॉमस क्रूज़ मापोदर बने. अपने परदादा-परदादी विलियम रेइबर्ट और शार्लट लुईस वोइल्कर से उन्होंने जर्मन और अंग्रेज़ी वंश और अपनी मां के माध्यम से जर्मन वंश पाया। टॉम क्रूज़ की सबसे बड़ी बहन ली ऐनी, लुईसविले में पैदा हुई थीं। उनकी बड़ी बहन मैरियन की तरह टॉम और उनकी छोटी बहन कास भी सायराक्यूस में पैदा हुए.
क्रूज़ ने ग्रेड तीन, चार और पांच की पढ़ाई, रॉबर्ट हॉपकिन्स पब्लिक स्कूल में की. क्रूज़ के पिता द्वारा कनाडाई सशस्त्र सेना में रक्षा सलाहाकार की हैसियत से काम संभालने के लिए, मापोदर परिवार को ओंटारियो, ओटावा के बीकन हिल उपनगर में स्थानांतरित होना पड़ा. वहां, क्रूज़ ने कार्लटन शिक्षा मंडल से जुड़े हेनरी मुनरो मिडिल स्कूल में ग्रेड छह की पढ़ाई पूरी की, जहां वे खेलकूद में सक्रिय थे और ख़ुद को एक ज़बरदस्त खिलाड़ी साबित करते हुए, लगभग हर रात फ़्लोर हॉकी खेलते थे, अंतत: उसकी वजह से उनके सामने के दांत टूट गए।
"ब्रिटिश बुल डॉग" खेल में उन्होंने अपना नया ढका हुआ दांत खो दिया और उनके घुटने में चोट लगी. हेनरी मुनरो में ही क्रूज़, जॉर्ज स्टेनबर्ग के संरक्षणाधीन नाटकों से जुड़े. जिस पहले नाटक में उन्होंने भाग लिया। उसका नाम था IT, जिसमें क्रूज़, माइकल डी वाल के साथ सह-नायक की भूमिका के लिए चुने गए, जहां एक ने "दुष्ट" और दूसरे ने "अच्छे" की भूमिका निभाई.इस नाटक को ख़ूब सराहा गया और पांच अन्य सहपाठियों के साथ ओटावा के आस-पास के विभिन्न स्कूलों का दौरा किया, यहां तक कि स्थानीय ओटावा टी.वी. स्टेशन पर भी फ़िल्माया गया। दोनों को जीसस क्राइस्ट सुपर स्टार के एक संस्करण और साथ ही एक मार्सेल मार्क्यु जैसी भूमिका के लिए चुना गया। यह वही समय था जब मेरी ली मापोदर ने अपने बेटे के अभिनय संबंधी अरमानों को बढ़ावा दिया: जब पूर्व वर्णित की धार्मिक रंगत, स्कूल के प्रिंसिपल जिम ब्राउन के लिए चिंता का कारण बनी, क्रूज़ की मां ने उन्हें मनाया कि नाटक को आगे बढ़ना चाहिए और उन्होंने एक नाटक-मंडली ग्लॉउसेस्टर प्लेयर्स की स्थापना की, जिसमें क्रूज़ और स्टीनबर्ग की कक्षा के कुछ छात्रों ने अभिनय किया।
जब क्रूज़ बारह साल के थे, उनकी मां ने अपने पति को छोड़ दिया और अपने साथ क्रूज़ और उनकी बहन ली ऐनी को ले गईं. लगभग-ग़रीबी के लंबे समय के बाद, जहां टॉम के अखबार-वितरण की कमाई की मदद से मेज पर खाना लगता था, उनकी मां ने जैक साउथ नामक एक प्लास्टिक विक्रेता से शादी कर ली.
ओटावा के अलावा, जिन शहरों में क्रूज़ रहे थे, उनमें शामिल हैं -लुईसविल्ले, केन्टकी; विन्नेट्का, इलिनॉइस और वैन, न्यू जर्सी. कुल मिला कर, क्रूज़ ने आठ प्राथमिक विद्यालयों और तीन उच्च विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण की.उन्होंने कुछ समय तक सिनसिनाटी में (एक चर्च छात्रवृत्ति पर) फ़्रैंसिस्कन गुरूकुल में अध्ययन किया और उनके मन में एक कैथोलिक पादरी बनने के आकांक्षा जगी. अपने वरिष्ठ वर्ष में उन्होंने बतौर लाइनबैकर, विश्वविद्यालय की टीम के लिए फुटबॉल खेला, लेकिन बाद में एक खेल से पहले बियर पीते हुए पकड़े जाने पर दल से निकाले गए। 1980 में क्रूज़ ने न्यू जर्सी के ग्लेन रिड्ज उच्च विद्यालय से स्नातक उपाधि ग्रहण की.
क्रूज़ ने कहा है कि उन्होंने एक बच्चे के रूप में शोषण का सामना किया। यह आंशिक रूप से उनके द्वारा पठन-अक्षमता से पीड़ित होने की वजह से हुआ था। उन्होंने कहा कि जब कुछ ग़लत हो जाता था, तो उनके पिता उनको कठोर रूप से दंडित करते थे। उन्होंने परेड पत्रिका को बताया कि उनके पिता "एक धौंसिया" और "दुर्व्यवस्था के व्यापारी" थे। क्रूज़ ने कहा कि वे पहले ही सीख गए कि उनके पिता - और, विस्तृत रूप से, कुछ लोगों पर भरोसा नहीं किया जा सकता:" अपने पिता के पास रहने से मुझे पता चला कि हर कोई मुझे अच्छा नहीं समझता." बारह साल में पंद्रह स्कूलों से गुज़रने की वजह से, क्रूज़, जिन्होंने बारह वर्ष की आयु में अपने पिता का नाम हटा दिया था, स्कूल में डराने-धमकाने के शिकार थे।
एक घुटने की चोट की वजह से उच्च विद्यालय की कुश्ती टीम से हटा दिए जाने के बाद क्रूज़ ने अभिनय शुरू किया। घायल अवस्था में उन्होंने अपने उच्च विद्यालय द्वारा निर्मित गाइस एंड डॉल्स में एक प्रमुख भूमिका के लिए सफलतापूर्वक ऑडिशन दिया और इस भूमिका में अपनी सफलता के बाद उन्होंने अभिनेता बनने का निर्णय लिया। उनका चचेरा भाई विलियम मापोदर भी एक अभिनेता हैं, जो लॉस्ट में इथान रोम की भूमिका के लिए जाने जाते हैं।
फ़िल्म-निर्माण
अभिनय कैरियर
1980 का दशक
1981 में क्रूज़ को फ़िल्म में पहली भूमिका मिली, जब ब्रूक शील्ड्स द्वारा अभिनीत एक नाटकीय/रोमांस फ़िल्म एंडलेस लव में उन्होंने एक छोटी-सी भूमिका निभाई. बाद में उसी वर्ष उन्हें जॉर्ज सी. स्कॉट, टिमोथी हटन और शॉन पेन के साथ फ़िल्म टैप्स में एक और महत्त्वपूर्ण भूमिका मिली. छात्र सैनिकों से संबंधित यह फ़िल्म सामान्य रूप से सफल रही. 1983 में, वे फ़्रांसिस फ़ोर्ड कोपोला की द आउटसाइडर्स में अभिनय करने वाले कई किशोर सितारों में से एक थे।
इस फ़िल्म के कलाकारों में रॉब लौव, मैट डिल्लॉन, पैट्रिक स्वेज़ और रैल्फ़ माचियो शामिल थे, जिनमें से दो ब्रैट पैक से जुड़े थे। उसी वर्ष क्रूज़ ने किशोर कॉमेडी लूसिंग इट में अभिनय किया।रिस्की बिज़नेस के प्रदर्शित होने के बाद क्रूज़ को सफलता प्राप्त हुई, जिसने क्रूज़ को सितारों की दुनिया में आगे बढ़ाया. फ़िल्म का एक दृश्य, जिसमें क्रूज़ जांघिया पहने हुए बॉब सेगर के "ओल्ड टाइम रॉक एंड रोल" से होंठ मिलाते हैं, 1980 की इस फ़िल्म का आराध्य क्षण बन गया। इस फ़िल्म को बतौर "युवा पीढ़ी क्लासिक और टॉम क्रूज़ का कैरियर-निर्माता" वर्णित किया गया है। 1983 में प्रदर्शन के लिए जारी चौथी फ़िल्म थी, उच्च-विद्यालयीन फुटबॉल ड्रामा, आल द राईट मूव्स . क्रूज़ की अगली फ़िल्म रिडले स्कॉट द्वारा निर्देशित 1985 की काल्पनिक फ़िल्म लेजेंड थी।
उसके बाद निर्माता जेर्री ब्रुक्कहेइमर और डॉन सिम्पसन द्वारा, आगामी अमेरिकी लड़ाकू पायलट फ़िल्म के लिए क्रूज़, पहली पसंद के रूप में चुने गए। पहले क्रूज़ ने स्पष्टतः इस परियोजना को ठुकरा दिया, लेकिन उनको दी गई पटकथा को बदलने में मदद की और फ़िल्म को विकसित किया। ब्लू एंजल्स के साथ एक उड़ान पर ले जाने के बाद, क्रूज़ ने अपना मन बदला और इस परियोजना को स्वीकार किया। इस परियोजना का नाम रखा गया टॉप गन और मई 1986 को प्रदर्शित होते हुए, विश्व भर के आंकडों में US$374 मिलियन दर्ज करते हुए, यह वर्ष की सबसे ज्यादा आय अर्जित करने वाली फ़िल्म साबित हुई. 1986 में ही उन्होंने अकादमी पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का सम्मान पाने वाले पॉल न्यूमैन के साथ मार्टिन स्कॉर्सेस की द कलर ऑफ़ मनी में अभिनय किया। 1988 में उन्होंने उल्लासमय कथानक वाले कॉकटेल में अभिनय किया, जिसके लिए मिली-जुली समीक्षाएं हासिल हुईं और 1989 में क्रूज़ ने रैज़ी पुरस्कार के लिए पहला नामांकन प्राप्त किया।
बाद में उस वर्ष बैरी लेविन्सन द्वारा निर्देशित रेन मैन प्रदर्शित हुई, जिसमें डस्टिन हॉफ़मैन ने भी अभिनय किया। आलोचकों ने इस फ़िल्म की प्रशंसा की और इसे आठ अकादमी पुरस्कारों के लिए नामित किया गया, जिनमें सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता(हॉफ़मैन के लिए) सहित चार पुरस्कार जीते.
1990 का दशक
अगले वर्ष क्रूज़ को दोबारा ऐसी ही सफलता मिली, जब उन्होंने ऑलिवर स्टोन के बॉर्न ऑन द फोर्थ ऑफ़ जुलाई के लिए अकादमी पुरस्कार नामांकन प्राप्त किया, जो अधरांगघात से पीड़ित सेवानिवृत्त सैनिक तथा युद्ध-विरोधी कार्यकर्ता रॉन कोविक की सर्वाधिक बिकने वाली आत्मकथा पर आधारित है। 1990 में, क्रूज़ ने टोनी स्कॉट के डेस ऑफ़ थंडर में एक सफल रेस-कार ड्राइवर कोली ट्रिकल की भूमिका निभाई. क्रूज़ की अगली फ़िल्म रॉन हॉवर्ड की फ़ार एंड अवे थी, जिसमें उन्होंने दुबारा निकोल किडमैन के साथ अभिनय किया। डेस ऑफ़ थंडर के बाद उन्होंने जैक निकोल्सन और डेमी मूर के साथ फ़ौजी थ्रिलर ए फ़्यू गुड मेन में अभिनय किया। इस फ़िल्म को ख़ूब पसंद किया गया और क़्रूज ने गोल्डन ग्लोब और MTV नामांकन अर्जित किए.अगले साल उन्होंने सिडनी पोल्लाक की द फ़र्म में जीनी हैकमैन और एड हैरिस के साथ अभिनय किया। यह जॉन ग्रिशम के सर्वाधिक बिकने वाले उपन्यास पर आधारित है और इसने पीपुल्स चाईस अवार्ड में पसंदीदा नाटकीय मोशन पिक्चर का पुरस्कार जीता.
1994 में, क्रूज़ ने ब्रैड पिट, एंटोनियो बांदरास और क्रिश्चियन स्लेटर के साथ नील जॉर्डन की इंटरव्यू विथ द वैम्पायर में अभिनय किया, जो ऐन राइस के ख़ूब बिकने वाले उपन्यास पर आधारित एक मध्ययुगीन नाटक/दहशत पैदा करने वाली फ़िल्म है।
इस फ़िल्म को काफ़ी पसंद किया गया, हालांकि राइस ने क्रूज़ को फ़िल्म में भूमिका देने की स्पष्ट आलोचना की, क्योंकि रिवर फ़ीनिक्स उनकी पहली पसंद थे। 1996 में, क्रूज़ ने ब्रायन डी पाल्मा के मिशन: इम्पॉसिबल में अभिनय (और साथ ही निर्माण भी) किया। यह फ़िल्म, जो 1960 दशक की टी.वी. श्रृंखला की पुनर्कृति है, विश्व भर में US$456 मिलियन की आय अर्जित करते हुए, उस वर्ष की तीसरी सर्वाधिक मुनाफ़ा कमाने वाली फ़िल्म बन गई। उसी वर्ष उन्होंने कॉमेडी-ड्रामा जेर्री मैगुअर में शीर्षक भूमिका निभाई. इस फ़िल्म के लिए उन्होंने बतौर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता अकादमी पुरस्कार नामांकन अर्जित किया और साथ ही, सह-अभिनेता क्यूबा गूडिंग जूनियर ने अकादमी पुरस्कार जीता; कुल मिला कर फ़िल्म को पांच अकादमी पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया।
इस फ़िल्म में "शो मी द मनी" जुमला भी शामिल है, जो लोकप्रिय संस्कृति का हिस्सा बन गया है। 1999 में उन्होंने एक श्रृंगारात्मक रोमांचक फ़िल्म आइस वाइड शट में अभिनय किया, जिसे पूरा होने में दो साल लगे और यह निर्देशक स्टैन्ली कुब्रिक की अंतिम फ़िल्म थी। यह उनकी तत्कालीन पत्नी निकोल किडमैन के साथ अंतिम फ़िल्म थी। लेकिन इस फ़िल्म ने, जिसमें सेक्स के स्पष्ट विवरण और दुर्बोध कथा-शैली थी, बड़े विवाद उठाए.
क्रूज़ ने मैग्नोलिया (1999) में एक स्त्री-द्वेषी पुरुष गुरू का पात्र निभाया, जिसके लिए उन्हें बतौर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। एक्शन हॉरर फ़िल्म एंड ऑफ़ डेस में ऑर्नाल्ड श्वार्ज़नेगर द्वारा प्रमुख भूमिका ग्रहण करने से पहले, मूलतः उन्हें जेरिको केन के किरदार के लिए चुना गया था।
2000 का दशक
2000 में, मिशन इम्पॉसिबल II को प्रदर्शन के लिए जारी करते हुए क्रूज़, मिशन इम्पॉसिबल फ़िल्मों की दूसरी किस्त में इथेन हंट के रूप में लौट आए. इस फ़िल्म को हांग कांग के निर्देशक जॉन वू ने निर्देशित किया तथा अपने गन फ़ू स्टाइल की छाप छोड़ी और इसने बॉक्स-ऑफिस पर श्रृंखला की भारी सफलता को जारी रखते हुए, विश्व भर के आंकडों को लगभग US$547 मिलियन तक पहुंचाते हुए, अपने पूर्ववर्ती की तरह ही, वर्ष की तीसरी सर्वाधिक मुनाफ़ा कमाने वाली फ़िल्म बन गई।
अगले वर्ष क्रूज़ ने कैमेरॉन डायज़ और पेनेलोप क्रूज़ के साथ अब्रे लॉस ओजोस के पुनर्निर्माण वैनिला स्काई (2001) में अभिनय किया। फ़िल्म को समीक्षकों ने ख़ूब सराहा और यह एक और बॉक्स-ऑफिस सफलता साबित हुई. 2002 में, क्रूज़ ने सफल दुःस्थानक कल्पित विज्ञान पर आधारित रोमांचक फ़िल्ममाइनॉरिटी रिपोर्ट में काम किया, जिसे स्टीवेन स्पीलबर्ग ने निर्देशित किया और जो फ़िलिप के. डिक की कल्पित वैज्ञानिक लघु-कथा पर आधारित थी। 2003 में उन्होंने एडवर्ड ज़्विक के सफल ऐतिहासिक ड्रामा द लास्ट समुराई में अभिनय किया।
2004 में माइकल मैन की क्राइम-थ्रिलर फ़िल्म कोल्लाटरल में क्रूज़ ने अपनी सामान्य अच्छे व्यक्ति की भूमिका से मुड़ते हुए, एक अलग शांत और स्वार्थी मनोरोगी क़ातिल की भूमिका निभाई. 2005 में, क्रूज़ ने दुबारा स्टीवेन स्पीलबर्ग के साथ वार ऑफ़ द वर्ल्ड्स में काम किया, जो विश्व भर में US$591.4 मिलियन कमाते हुए, चौथी सर्वाधिक मुनाफ़ा कमाने वाली फ़िल्म बनी.फ़िल्म की बॉक्स ऑफिस पर सफलता के बावजूद, क्रूज़ के लिए एक नामांकन सहित, तीन रैज़्ज़ी नामांकन प्राप्त किए.2006 में, उन्होंने मिशन इम्पॉसिबल फ़िल्म श्रृंखला की तीसरी किस्त मिशन इम्पॉसिबल III में एतान हंट के रूप में अपनी भूमिका दोहराई. उसके पूर्ववर्तियों की तुलना में आलोचकों ने इस फ़िल्म का अधिक सकारात्मक रूप से स्वागत किया और इसने बॉक्स-ऑफिस पर लगभग $400 मिलियन का मुनाफ़ा कमाया. उन्होंने 2007 के ड्रामा लायन्स फॉर लैमब्स में अभिनय किया, जो कि क्रूज़ के 21 वर्षों में दुनिया भर में प्रदर्शित अकेली ऐसी फ़िल्म है, जिसकी कमाई विश्व भर में $100 मिलियन को पार नहीं कर सकी.
2008 में, क्रूज़ ने बेन स्टीलर और जैक ब्लैक के साथ सफल कॉमेडी ट्रॉपिक थंडर में काम किया। इस अभिनय ने क्रूज़ को गोल्डन ग्लोब नामांकन दिलवाया.क्रूज़ की नवीनतम भूमिका 25 दिसम्बर 2008 को प्रदर्शन के लिए जारी ऐतिहासिक थ्रिलर वाल्कैरी में है, जिसके लिए मिश्रित समीक्षाएं मिलीं.
निर्माण कैरियर
1993 में क्रूज़/वाग्नेर प्रोडक्शंस की स्थापना करने के लिए क्रूज़ ने अपने पूर्व प्रतिभा एजेंट पाउला वाग्नेर के साथ साझेदारी की, और तब से कंपनी ने क्रूज़ की कई फिल्मों का सह-निर्माण किया, जिनमें पहली थी 1966 की मिशन इम्पॉसिबल, जो क्रूज़ की बतौर निर्माता पहली परियोजना थी। उन्होंने फ़िल्म मिशन इम्पॉसिबल के निर्माता के रूप में अपने कार्य के लिए 1997 के PGA गोल्डन लॉरल अवार्ड्स में बतौर थिएटरिकल मोशन पिक्चर्स के सर्वश्रेष्ठ उदीयमान निर्माता, नोवा अवार्ड्स (पॉल वाग्नेर के साथ साझा) जीता.
निर्माता के रूप में उनकी अगली परियोजना 1998 की फ़िल्म प्रसिद्ध अमेरिकी धावक स्टीव प्रेफॉन्टेन से जुड़ी विदाउट लिमिट्स थी। 2000 में मिशन इम्पॉसिबल की उत्तर-कथा पर काम जारी रखते हुए क्रूज़ निर्माता के रूप लौटे.उसके बाद उन्होंने निकोल किडमैन अभिनीत द अदर्स के लिए कार्यकारी निर्माता के रूप में काम किया, उसी वर्ष उन्होंने वेनिल्ला स्काई में दुबारा बतौर अभिनेता/निर्माता का काम किया।
उन्होंने बाद में नार्क, हिटिंग इट हार्ड, और शैटर्ड ग्लास पर काम किया (लेकिन उसमें अभिनय नहीं किया).उनकी अगली परियोजना द लास्ट समुराई थी, जिसमें उन्होंने अभिनय भी किया, 2004 के PGA गोल्डन लॉरेल अवार्ड्स में मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर ऑफ़ द इयर अवार्ड के लिए संयुक्त रूप से उनको नामांकित किया गया। उसके बाद उन्होंने सस्पेक्ट ज़ीरो, एलिज़बेथ टाऊन, और आस्क द डस्ट पर काम किया।
क्रूज़ हॉलीवुड के कई सर्वाधिक लाभप्रद सौदों के लिए जाने जाते हैं और 2005 में हॉलीवुड अर्थशास्त्री एड्वर्ड जे एपस्टेन ने उनको "हॉलीवुड के सबसे ज्यादा शक्तिशाली और अमीरों में एक" कहा. एपस्टेन का तर्क है कि क्रूज़ उन चंद निर्माताओं (अन्य हैं, जॉर्ज लुकास,स्टीवन स्पीलबर्ग और जेर्री ब्रुक्कहेइमर) में एक हैं, जो एक अरब-डॉलर फ़िल्म के विक्रयाधिकारों की सफलता की गारंटी दे सकते हैं। एपस्टेन यह भी तर्क देते हैं कि क्रूज़ के पत्रिका-विवादों से जनता का घोर लगाव, क्रूज़ के उत्कृष्ट व्यावसायिक निपुणता को धुंधला कर देता है। कहा जाता है कि क्रूज़ की फ़िल्म-निर्माण कंपनी, क्रूज़/वाग्नेर प्रोडक्शन्स, एरिक लार्सन के न्यूयॉर्क टाइम्स की सर्वाधिक बिकाऊ, द डेविल इन द व्हाइट सिटी पर आधारित एक पटकथा विकसित कर रही है, जो शिकागो के विश्व कोलंबियन प्रदर्शनी में एक वास्तविक क्रमिक हत्यारे एच.एच. होम्स की कहानी हैं।
कैथ्रीन बिगेलो इस परियोजना के निर्माण और संचालन से जुड़ी हैं। इस बीच, लियोनार्डो डीकैप्रियो की निर्माण कंपनी एप्पियन वे भी होम्स और विश्व मेले की एक फ़िल्म विकसित कर रही है जिसमें डी कैप्रियो अभिनय करेंगे.
==== पैरामाउंट से संबंध-विच्छेद
पैरामाउंट पिक्चर्स से संबंध विच्छेद
22 अगस्त 2006 में पैरामाउंट पिक्चर्स ने घोषणा की कि वह क्रूज़ के साथ अपने 14 साल के संबंध को समाप्त कर रही है। वाल स्ट्रीट जर्नल में वैयाकॉम (पैरामाउंट की मूल कंपनी) के अध्यक्ष सम्नर रेडस्टोन ने एक अभिनेता और निर्माता के रूप में क्रूज़ के मूल्य को उनके विवादास्पद सार्वजनिक आचरण और विचारों की वजह से पहुंचने वाले आर्थिक नुक्सान की चर्चा की. क्रूज़/वाग्नेर प्रोडक्शंस ने जवाब में कहा कि पैरामाउंट की घोषणा, सफलतापूर्वक निजी इक्विटी फर्मों से वैकल्पिक वित्तीय सहायता पाने के बाद, अपने निर्माण कंपनी की लाज बचाने का प्रयास है। एडवर्ड जे एपस्टीन जैसे उद्योग विश्लेषकों ने टिप्पणी की कि विभाजन का असली कारण संभवतः मिशन इम्पॉसिबल के DVD बिक्री का सर्वाधिक हिस्सा क्रूज़/वाग्नेर के पास होने के प्रति पैरामाउंट का असंतोष रहा हो.
युनाइटेड आर्टिस्ट्स का प्रबंधन
नवंबर 2006 में क्रूज़ और पाउला वाग्नेर ने घोषणा की कि उन्होंने यूनाइटेड आर्टिस्ट्स फ़िल्म स्टूडियो का प्रबंधत्व ग्रहण कर लिया है। क्रूज़ यूनाइटेड आर्टिस्ट्स के फ़िल्मों में निर्माता और अभिनेता के रूप में कार्य करते हैं, जबकि वाग्नेर UA के मुख्य कार्यपालक की हैसियत से काम करती हैं। वाल्कैरी का निर्माण 2007 में शुरू किया गया, जो 20 जुलाई 1944 को एडॉल्फ़ हिटलर पर हुए हत्या प्रयास पर आधारित थ्रिलर है।
मार्च 2007 को यूनाइटेड आर्टिस्ट्स द्वारा यह फ़िल्म अधिगृहीत हुई.21 मार्च 2007 को क्रूज़ ने नायक क्लॉस वॉन स्टॉफ़्फ़ेनबर्ग की भूमिका करने के लिए हस्ताक्षर किए. क्रूज़ और वाग्नेर द्वारा यूनाइटेड आर्टिस्ट्स का प्रबंधत्व ग्रहण करने बाद यह उनका द्वितीय-निर्माण है। पहली रॉबर्ट रेडफ़ोर्ड द्वारा निर्देशित प्रथम फ़िल्म लायन्स फॉर लैमब्स थी, जिसमें रेडफ़ोर्ड, मेरील स्ट्रीप और क्रूज़ ने अभिनय किया। 9 नवम्बर 2007 को लैमब्स प्रदर्शन के लिए जारी हुई, पर उसे अप्रभावी बॉक्स-ऑफिस आय और समीक्षात्मक स्वीकृति मिली. अगस्त 2008 में, वाग्नेर ने यूनाइटेड आर्टिस्ट्स से अपना पद त्याग दिया; पर उन्होंने UA का अपना शेयर क़ायम रखा, जो क्रूज़ के शेयर के साथ संयुक्त रूप से स्टूडियो का 30 प्रतिशत बनता है।
लोकप्रियता
1990, 1991 और 1997 में, पीपल पत्रिका ने उनकी गणना, दुनिया के 50 सबसे ख़ूबसूरत लोगों में की. 1995 में एम्पायर पत्रिका ने उनको फ़िल्मी-इतिहास में 100 आकर्षक अभिनेताओं में गिना.दो साल बाद, उसने उनकी गिनती सर्वोच्च 5 सदाबहार फ़िल्मी सितारों में की.2002 और 2003 में प्रीमियर द्वारा वार्षिक पावर 100 की सूची में उनकी गणना शीर्ष 20 में की गई।
2006 में प्रीमियर ने क्रूज़ को हॉलीवुड के सबसे प्रभावशाली अभिनेता का ओहदा दिया, क्योंकि पत्रिका के 2006 की प्रभावशालियों की सूची में क्रूज़ ने उच्चतम स्तर के अभिनेता के रूप में, 13वां स्थान पाया।
16 जून 2006 को फोर्ब्स पत्रिका ने सबसे प्रभावशाली हस्तियों की सूची 'द सेलिब्रिटी 100' का प्रकाशन किया, जिसमें क्रूज़ सबसे ऊपर रहे. इस सूची को आय (जून 2005 और जून 2006 के बीच), गूगल के वेब संदर्भ, लेक्सिसनेक्सिस द्वारा संकलित प्रेस-क्लिप, टेलीविज़न और रेडियो उल्लेख (फ़ैक्टिवा द्वारा) और 26 प्रमुख उपभोक्ता पत्रिकाओं के मुखपृष्ठ पर लोकप्रिय हस्तियों के छपने की संख्या के संयोजन से तैयार किया गया।
पैरामाउंट द्वारा क्रूज़ के साथ अपने निर्माण के ग़ैर-नवीकरण के लिए "अस्वीकार्य व्यवहार" के अलावा "USA टुडे/गैलप मतदान, जहां सर्वेक्षण में भाग लेने वाले आधे लोगों ने अभिनेता के बारे में "प्रतिकूल" राय दर्ज की" को एक कारण के रूप में उद्धृत किया गया। इसके अतिरिक्त, विपणन मूल्यांकन रिपोर्ट कहते हैं कि क्रूज़ का Q प्राप्तांक (जो हस्तियों की लोकप्रियता का एक मानदंड है), 40 प्रतिशत गिर गया। यह भी व्यक्त किया गया कि क्रूज़ ही वह लोकप्रिय हस्ती है, जिन्हें लोग अपने जिगरी दोस्त के रूप बहुत कम रखना चाहेंगे.जापान में 10 अक्टूबर 2006 को "टॉम क्रूज़ दिवस" के रूप में घोषित किया गया; जापान स्मारक दिवस संघ ने कहा कि उनको इसलिए एक ख़ास दिन से सम्मानित किया गया है, क्योंकि किसी अन्य हॉलीवुड स्टार से अधिक जापान की यात्रा करने वाली हस्ती वे ही हैं।
रिश्ते और व्यक्तिगत जीवन
मिमी रोजर्स
9 मई 1987 को क्रूज़ ने मिमी रोजर्स से विवाह किया; 4 फ़रवरी 1990 को उनके बीच तलाक़ हुआ। यह माना जाता है कि रोजर्स ने ही क्रूज़ का परिचय साइनटॉलोजी से कराया.
निकोल किडमैन
क्रूज़ की मुलाक़ात निकोल किडमैन से उनकी फ़िल्म डेज ऑफ़ थंडर के सेट पर हुई.
इस जो़ड़े ने 24 दिसम्बर 1990 को विवाह किया। क्रूज़ और किडमैन ने दो बच्चे, इसाबेल्ला जेन (जन्म 22 दिसम्बर 1992) और कॉन्नोर एंटोनी (जन्म 17 जनवरी 1995) को गोद लिया। फरवरी 2001 में जब किडमैन तीन माह की गर्भवती थीं, तो वे अलग हो गए, बाद में उसका गर्भपात हो गया।
पेनेलोप क्रूज़
उसके बाद क्रूज़ अपनी फ़िल्म वैनिला स्काई की प्रमुख अभिनेत्री पेनेलोप क्रूज़ के साथ रूमानी संबंध में बंधे. तीन साल के रिश्ते के बाद मार्च 2004 में क्रूज़ ने घोषणा की कि उनका रिश्ता जनवरी में खत्म हो गया था।
=== केटी होम्स
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अप्रैल 2005 में क्रूज़ ने अभिनेत्री केटी होम्स के साथ डेटिंग शुरू की. उनके बीच सर्वाधिक प्रचारित रिश्ता शुरू होने के कुछ ही समय बाद 17 जून 2005 को, क्रूज़ ने घोषणा की कि पेरिस के आइफ़ेल टवर की चोटी पर उन्होंने केटी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा.
18 अप्रैल 2006 को केटी ने कैलिफ़ोर्निया के सैंटा मोनिका के सेंट जॉन्स हेल्थ सेंटर में सूरी नाम की एक बच्ची को जन्म दिया. क्रूज़ ने कहा कि यह नाम "राजकुमारी" के लिए हिब्रू शब्द या लाल गुलाब के लिए प्रयुक्त फ़ारसी शब्द से प्राप्त हुआ है।(सारा भी देखें) वह होम्स और क्रूज़ की पहली जैविक संतान है। इस दंपति ने 18 नवम्बर 2006 को ब्रैकियानो, इटली में शादी की.
विवाद
साइन्टॉलोजी
क्रूज़ चर्च ऑफ़ साइन्टॉलोजी के मुखर प्रवक्ता है। 1990 में वे अपनी पहली पत्नी मिमी रोजर्स के द्वारा साइन्टॉलोजी से जुड़े. क्रूज़ ने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि साइन्टॉलोजी ने, विशेष रूप से एल. रॉन हब्बार्ड स्टडी टेक, उनको अपने पठन-अक्षमता से उभरने में मदद की. लोगों को साइन्टॉलोजी से परिचित करने वाले विभिन्न प्रचार कार्यक्रमों के अलावा, क्रूज़ ने यूरोप में साइन्टॉलोजी को धर्म के रूप में संपूर्ण मान्यता दिलवाने के लिए अभियान चलाया। उन्होंने फ्रांस और जर्मनी में, जहां क़ानून व्यवस्था साइन्टॉलोजी को क्रमशः एक धर्म और व्यवसाय के रूप में मानती है, राजनयिकों पर समर्थन के लिए प्रभाव डाला. 2005 में पेरिस नगर परिषद् ने ख़ुलासा किया कि क्रूज़ ने निकोलस सारकोज़ी और जीन-क्लॉड गॉडिन जैसे अधिकारियों पर समर्थन के लिए प्रभाव डाला, उन्हें साइनटॉलोजी के प्रवक्ता और उग्रवादी के रूप में वर्णित किया और उनके साथ आगे के व्यवहार को प्रतिबंधित किया। क्रूज़ ने न्यूयॉर्क के 9/11 बचाव-कर्मचारियों के लिए एल. रॉन हब्बार्ड के कार्यों के आधार पर विषहरण चिकित्सा उपलब्ध कराने के लिए डाउन टाऊन मेडिकल की सह-स्थापना की और उसके लिए चंदा एकत्रित किया। इसकी चिकित्सा पेशे से जुड़े लोगों और अग्निशामकों ने भी आलोचना की. ऐसी और अन्य गतिविधियों के लिए 2004 में डेविड मिस्काविज ने क्रूज़ को साइनटॉलोजी के शौर्य स्वतांत्र्य-पदक से सम्मानित किया।
2005 में उनके द्वारा अभिनेत्री ब्रूक शील्ड्स की अवसादरोधी दवा पैक्सिल के उपयोग के लिए, जिसे शील्ड्स 2003 में अपनी पहली बेटी के जन्म के बाद प्रसवोत्तर अवसाद से स्वास्थ्य-लाभ का श्रेय देती हैं, खुले आम आलोचना करने की वजह से एक विवाद उभरा.क्रूज़ ने कहा कि रासायनिक असंतुलन जैसी कोई चीज़ होती ही नहीं है और यह भी कि मनोरोग-चिकित्सा कूट विज्ञान का एक रूप है। 24 जून 2005 को यह द टुडे शो पर मैट लाअर के साथ एक गरम बहस का कारण बना.
चिकित्सा प्राधिकारियों ने कहा कि क्रूज़ की टिप्पणी ने मानसिक बीमारी पर और भी कलंक लगाया, और शील्ड्स ने खुद उनको "सर्वत्र माताओं का अपकार" कहा. अगस्त 2006 के अंत में, क्रूज़ ने अपनी टिप्पणी के लिए शील्ड्स से व्यक्तिगत तौर पर माफ़ी मांगी; शील्ड्स ने कहा कि "मैं इसकी [माफ़ी] हार्दिकता से प्रभावित हूं... मुझे किसी भी समय यह नहीं लगा कि मुझे खुद के पक्ष में कुछ कहना चाहिए और ना ही मैंने महसूस किया कि उन्होंने अपनी बात पर गहरा अफ़सोस जताने के अलावा और कुछ समझाने की कोशिश की हो. और मैंने इसे स्वीकार किया". क्रूज़ के प्रवक्ता ने पुष्टि की कि क्रूज़ और शील्ड्स के बीच समझौता हो गया है, पर यह भी जोड़ा कि अवसादरोधियों के प्रति क्रूज़ के विचार नहीं बदले हैं। क्रूज़ और होम्स की शादी में शील्ड्स अतिथियों में शामिल थीं।
क्रूज़ ने एंटरटेनमेंट वीकली के साक्षात्कार में भी कहा कि मनोरोग चिकित्सा "एक नाज़ी विज्ञान" है और यह कि वास्तव में मूलतः मेथाडोन को एडॉल्फ़ हिटलर के नाम पर एडाल्फ़िन कहा जाता था, एक ऐसा क़िस्सा जो एक नागरिक कहावत के रूप में प्रसिद्ध है। डेर स्पिगेल पत्रिका के एक साक्षात्कार में क्रूज़ ने कहा कि "साइनटॉलोजी में, हमारे पास दुनिया का एकमात्र सफल औषधि पुनर्वास कार्यक्रम है। इसे नारकोनॉन कहा जाता है।.. यह सांख्यिकीय रूप से सिद्ध किया गया है कि दुनिया में वही एकमात्र सफल औषधि पुनर्वास कार्यक्रम है।" जहां नारकोनॉन द्वारा 70 प्रतिशत से अधिक सफलता दर का दावा किया जाता है, इन आंकड़ों की सटीकता व्यापक रूप से विवादित है। साइनटॉलोजी, मुख्यधारा की मनोरोग-चिकित्सा के प्रति अपने विरोध के लिए मुख्य रूप से जाना जाता है।
जनवरी 2008 में डेली मेल (UK) ने एंड्रयू मॉर्टन द्वारा लिखित क्रूज़ की प्रकाशित होने वाली जीवनी घोषित की, टॉम क्रूज़: ऐन अनऑथोराइज़्ड बायोग्राफ़ी .क़िताब के दावों में यह भी कहा गया है कि क्रूज़ चर्च के "आधिपत्य में दूसरे स्थान पर हैं, बिना वास्तविक नियुक्ति के". यह पूर्व साइनटॉलोजी स्टॉफ़ सदस्य मार्क हेडले ने परिपुष्ट किया है।
क्रूज़ के वकील बर्ट फ़ील्ड्स ने कहा कि अनधिकृत जीवनी में पुराने "उबाऊ पुराने झूठ" या "बेकार चीज़ें" हैं।
IAS शौर्य स्वातंत्र्य-पदक समारोह का वीडियो
15 जनवरी 2008 को चर्च ऑफ़ साइनटॉलोजी द्वारा निर्मित क्रूज़ के साथ एक साक्षात्कार वीडियो इंटरनेट पर रहस्यमय तरीक़े से पहुंचा और उसे यू ट्यूब पर अपलोड किया गया। वीडियो में क्रूज़ के मिशन इम्पॉसिबल फिल्मों का संगीत पृष्ठभूमि में बजता रहता है और क्रूज़ को यह चर्चा करते हुए दिखाया गया है कि साइनटॉलोजिस्ट होना उनके लिए क्या मायने रखता है। द टाइम्स के अनुसार क्रूज़ को वीडियो में "साइनटॉलोजी के गुणों की ख़ूब प्रशंसा" करते हुए देखा जा सकता है। डेली टेलीग्राफ़ ने क्रूज़ को साक्षात्कार के दौरान "उन्मादी-जैसा" वर्णित किया है, जो "भावुकतापूर्वक साइनटॉलोजी के प्रति अपने प्यार की प्रशंसा करते हुए" देखे गए।
चर्च ऑफ़ साइनटॉलोजी ने ज़ोर देकर कहा कि यू ट्यूब और अन्य वेबसाइटों पर प्रकट होने वाली वीडियो सामग्री "पायरेटेड और संपादित" है तथा साइनटॉलोजी के सदस्यों के लिए निर्मित तीन-घंटे के वीडियो से लिया गया है। मुकदमेबाज़ी के ख़तरे की वजह से यू ट्यूब ने अपने साइट से क्रूज़ का वीडियो हटा दिया. यथा 4 फ़रवरी 2008, वेब साइट Gawker.com इस वीडियो की एक प्रति को प्रदर्शित कर रहा था और अन्य साइट पूरा वीडियो प्रदर्शित कर रहे हैं। चर्च ऑफ़ साइनटॉलोजी के वकीलों ने Gawker.com को एक पत्र भेज कर वीडियो को हटाने की मांग की, लेकिन Gawker.com के निक डेन्टॉन ने कहा कि "यह समाचार योग्य है और हम इसे नहीं हटाएंगे."
ओपरा विनफ़्रे शो की घटना
क्रूज़ ने मीडिया के समक्ष होम्स के लिए अपनी भावनाओं को कई तरह से अभिव्यक्त किया है, विशेष रूप से "सोफ़ा घटना", जो 23 मई 2005 के लोकप्रिय द ओपरा विनफ़्रे शो में घटित हुई. क्रूज़ "सेट के चारों ओर कूदते-फांदते रहे, एक सोफ़े पर उछल-कूद की, एक घुटने के बल गिरे और बारंबार अपनी नई प्रेमिका के प्रति अपने प्यार का इज़हार किया।" वाक्यांश "jumping the shark" की तर्ज़ पर रचित "jumping the couch" का उपयोग ऐसे व्यक्ति की व्याख्या करने के लिए किया जाता है जो सार्वजनिक तौर पर इस तरीक़े से "सीमा पार कर जाता है" कि जो उस पुरुष या महिला की प्रतिष्ठा को धूमिल करने की चरमसीमा पर है। यह 2005 में अमेरिकी ख़ास बोलियों का ऐतिहासिक शब्दकोश के संपादक द्वारा 'वर्ष की ख़ास बोली' के रूप में तथा लाभनिरपेक्ष समूह ग्लोबल लैंग्वेज मॉनिटर द्वारा वर्ष का लोकप्रिय वाक्यांश के रूप में चुने जाने के बाद थोड़े समय के लिए लोकप्रिय रहा.
E! काउंटडाउन में "सोफ़ा घटना" को 2005 का #1 "सर्वाधिक चौंकाने वाले टेलीविज़न क्षण" के रूप में बहुमत मिला और स्केरी मूवी 4 का उपसंहार और फ़ैमिली गई की एक कड़ी सहित, कई पैरोडियों का विषय बना. मई 2008 के प्रारंभ में, क्रूज़ अपने फ़िल्मी कारोबार के 25 साल को मनाने के लिए दुबारा द ओपरा विनफ़्रे शो में शामिल हुए.यह दो घंटे का विशेष फ़ीचर था, जिसमें पहला घंटा, ओपरा द्वारा क्रूज़ के साथ 2 मई को उनके टेल्युराइड कोलोराडो में स्थित घर पर दिन बिताने से संबंधित था।
समलैंगिक अफ़वाहों से संबंधित अभियोग
द डेली एक्सप्रेस न्यूज़पेपर : अभिनेत्री निकोल किडमैन के साथ वैवाहिक जीवन के दौरान, इस जोड़ी को उनके बीच श्रृंगारिक संबंधों को लेकर सार्वजनिक अटकलबाज़ियों तथा क्रूज़ के समलैंगिक होने की अफ़वाह सहनी पड़ी.1998 में उन्होंने एक ब्रिटिश अख़बार पर मुकदमा दायर किया, जिसने उन पर आरोप लगाया कि यह विवाह उनकी समलैंगिकता को छुपाने का स्वांग है।
डेविड एहरेनस्टीन : 1998 में टॉम क्रूज़ के वकीलों ने एहरेनस्टीन को उनके ओपन सीक्रेट: गे हॉलीवुड 1928-1998 (न्यूयॉर्क: विलियम मॉरो एंड कंपनी, 1998, ISBN 0-688-15317-8) शीर्षक पुस्तक के लिए मुकदमे की धमकी दी, जिसमें पुरुषों और महिलाओं, दोनों के प्रति क्रूज़ के आकर्षण पर विचार किया गया था।
चाड स्लेटर : मई 2001 में उन्होंने समलैंगिक अश्लील अभिनेता चाड स्लेटर (काइल ब्रैडफ़ोर्ड) के खिलाफ़ एक मुकदमा दायर किया। स्लेटर ने कथित रूप से सेलिब्रिटी पत्रिका एक्टूस्टार से कहा था कि वह क्रूज़ के साथ प्रेम-संबंध रखते थे। स्लेटर और क्रूज़, दोनों ने इस प्रेम-संबंध से इन्कार किया और अगस्त 2001 में स्लेटर द्वारा मुकदमे के खिलाफ़ ख़ुद का बचाव करने में असमर्थ होने और इसलिए चूकने की घोषणा के बाद, US$10 मिलियन क्रूज़ को हर्जाना अदा करने का आदेश दिया गया।
माइकल डेविस : क्रूज़ ने बोल्ड पत्रिका के प्रकाशक माइकल डेविस पर भी मुकदमा दायर किया, जिन्होंने कहा, पर पुष्टि नहीं की कि उनके पास क्रूज़ को समलैंगिक साबित करने वाला वीडियो है। डेविस द्वारा इस सार्वजनिक बयान के बदले में कि वीडियो क्रूज़ का नहीं था और क्रूज़ इतरलिंगी हैं, मुक़दमे को वापस लिया गया।
अन्य मुकदमे
द बीस्ट अख़बार : बीस्ट द्वारा 2004 के सबसे घृणित लोगों (जिसमें क्रूज़ का नाम भी शामिल था) के नाम प्रकाशित किए जाने के बाद क्रूज़ के वकील बेर्टरैम फ़ील्ड्स ने इस छोटे स्वतंत्र प्रकाशन पर मुक़दमे की धमकी दी.द बीस्ट ने राष्ट्रव्यापी पहचान के अवसर को देखते हुए (ख़ास तौर पर मनोरंजक कार्यक्रम सेलिब्रिटी जस्टिस में इस क़िस्से का ज़िक्र होने पर और प्रमुख अख़बारों में आने के बाद) इसे फ़ील्ड्स की धौंस क़रार देते हुए मुक़दमे को प्रोत्साहित किया।
कभी कोई मुकदमा दायर नहीं किया गया और क्रूज़ को मुख्य रूप से 2005 की सूची में शामिल किया गया।
TomCruise.com : 2006 में, डोमेन नाम TomCruise.com पर कब्ज़ा करने के लिए क्रूज़ ने साइबरस्क्वैटर जेफ़ बर्गर पर मुकदमा दायर कर दिया.जब तक यह बर्गर के स्वामित्व में था, यह डोमेन Celebrity1000.com पर क्रूज़ के बारे में जानकारी दिया करता था। 5 जुलाई 2006 को विश्व बौद्धिक सम्पत्ति संगठन (WIPO) द्वारा TomCruise.com क्रूज़ को सौंपने का निर्णय लिया गया।
प्रचारक
साइनटॉलोजी की ओर क्रूज़ के खुले आचरण का श्रेय, उनके 14 वर्षों की प्रचारिका पैट किंग्सले द्वारा मार्च 2004 में क्रूज़ को छोड़ने को दिया जाता है। क्रूज़ ने अपनी बहन, साथी साइनटॉलोजिस्ट ली ऐन डीवेट को उनकी जगह दी, जिसने यह भूमिका नवंबर 2005 तक निभाई. फिर उन्होंने अपनी बहन की पदावनति करते हुए, विज्ञापन संस्था रोजर्स एंड कोवन के वरिष्ठ प्रचारक पॉल ब्लोक को स्थानापन्न किया।
डीवेट ने स्पष्ट किया कि प्रचार की बजाय परोपकारी परियोजनाओं पर काम करने का उन्होंने स्वयं निर्णय लिया था। इस तरह का पुनर्गठन, साइनटॉलोजी पर उनके विचारों के प्रचार में कटौती के क़दम और साथ ही केटी होम्स के साथ उनके बहु प्रचारित रिश्ते का जनता के बीच विफलता के रूप में देखा गया है।
फ़िल्मोग्राफ़ी
इन्हें भी देखें
ब्रैड पिट
चर्च ऑफ़ साइनटॉलोजी
लुईसविलियंस की सूची
साइनटॉलोजिस्टों की सूची
ट्रैप्ड इन द क्लोसेट (साउथ पार्क)
सुपर कपल
टॉम क्रूज़: अनऑथोराइज़्ड (1998)
टॉम क्रूज़: ऑल द वर्ल्ड इज ए स्टेज (2006)
टॉम क्रूज़: ऐन अनऑथोराइज़्ड बायोग्राफ़ी 2008
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
मैट लायर साक्षात्कार की प्रतिलिपि
"रोलिंग स्टोन" साक्षात्कार: "द पैशन ऑफ़ द क्रूज़"; 08/11/04
टॉम क्रूज़ एट रॉटन टोमाटोस
, U.S.
}}
न्यू जर्सी के अभिनेता
न्यूयॉर्क से अभिनेता
कनाडा के अमेरिकी प्रवासी
अमेरिकी फ़िल्म अभिनेता
अमेरिकी फ़िल्म निर्माता
अमेरिकी साइनटॉलोजिस्ट
सर्वश्रेष्ठ ड्रामा अभिनेता गोल्डन ग्लोब (फ़िल्म) विजेता
सर्वश्रेष्ठ संगीत या हास्य अभिनेता गोल्डन ग्लोब (फ़िल्म) विजेता
सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता गोल्डन ग्लोब (फ़िल्म) विजेता
अंग्रेज़ी अमेरिकी
आयरिश अमेरिकी
पूर्व रोमन कैथोलिक
जर्मन-अमेरिकी अभिनेता
Mission: इम्पॉसिबल
लुइसविल्ले, केंटकी के लोग
ओटावा के लोग
सैराकस, न्यूयॉर्क के लोग
वेल्श अमेरिकी
अमेरिकी अभिनेता
1962 में जन्मे लोग | 5,407 |
59074 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9D%E0%A4%82%E0%A4%97%20%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE | झंग ज़िला | झंग (उर्दू: , अंग्रेज़ी: Jhang) पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक ज़िला है। झंग ज़िले की राजधानी झंग शहर है। इस ज़िले की चार तहसीलें हैं - झंग, अठारा हज़ारी, शोरकोट और अहमदपुर सियाल। यह ज़िला पाकिस्तानी पंजाब प्रान्त के मध्य में स्थित है। इसकी सीमाएँ उत्तर में सरगोधा ज़िले से, उत्तर-पूर्व में गुजराँवाला ज़िले से, पूर्व में फ़ैसलाबाद और टोबा टेक सिंह ज़िलों से, दक्षिण में ख़ानेवाल और मुज़फ़्फ़रगढ़ ज़िलों से, पश्चिम में लइया और भक्कर ज़िलों से और पश्चिमोत्तर में ख़ुशाब ज़िले से लगतीं हैं।
विवरण
झंग ज़िले में सन् २००६ में ३३,५३,००० लोगों की आबादी थी। इसका क्षेत्रफल क़रीब ८,८०९ वर्ग किमी है। झंग ज़िले का इलाक़ा पंजाब और पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे पुराने आबाद हुए क्षेत्रों में से एक समझा जाता है। यहाँ पंजाबी भाषा की एक अलग 'झंगोची' नामक उपभाषा बोली जाती है, जिसे कभी-कभी 'झांगवी' या 'रचनावी' भी कहते हैं। पंजाब के दो लोक-नृत्य - झुम्मर और सम्मी - झंग से ही उत्पन्न हुए हैं। पंजाब की प्रसिद्ध हीर-राँझा प्रेमकथा की हीर भी झंग ज़िले की ही रहने वाली थी। यहाँ सदियों से सियाल समुदाय का ज़ोर रहा है।
झेलम जिले के कुछ दृष्य
इन्हें भी देखें
झंग
सियाल
पाकिस्तानी पंजाब
हीर राँझा
बाहरी कड़ियाँ
त्रिमू हेड (बाँध) की सैर, झेलम और चनाब नदियों के संगम-स्थल के बाद बने बांध की यू-ट्यूब पर छोटी फ़िल्म
सन्दर्भ
पाकिस्तानी पंजाब के ज़िले
पाकिस्तान के ज़िले
भारतीय उपमहाद्वीप के ज़िले | 234 |
219783 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%89%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97%20%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A5%80 | ब्लॉगिंग शब्दावली | 350px|thumb|ब्लॉगिंग आज के ज़माने मे बहुत प्रसिद्ध है।
यह चिट्ठाकारी (ब्लॉगिंग) सम्बन्धी शब्दों की एक सूची है। किसी अन्य हॉबी की तरह ब्लॉगिंग ने भी एक खास तरह की शब्दावली विकसित की है। निम्नलिखित कुछ सर्वाधिक प्रचलित शब्द एवं वाक्यांश हैं जिनमें से कुछ की व्युत्पत्ति भी दी गयी है। इनमें से अधिकतर अंग्रेजी मूल के हैं जबकि कुछ हिन्दी चिट्ठाजगत से उपजे हैं।
अका अर्थ है अनार
आ=का अर्थ है आम
आ
आरऍसऍस
आइऍसऍस ऍग्रीगेटर
आरऍसऍस फीड
इ
ई
उ
ऊ
ऋ
ए
ऍ
ऍटम एक अन्य लोकप्रिय फीड फॉर्मेट जो कि आरऍसऍस के विकल्प के रूप में विकसित किया गया था।
ऐ
ओ
ऑ
ऑटोकास्टिंग
ऑडियोब्लॉग
औ
क
कॉलैबरेटिव ब्लॉग
कमेंट स्पैम
ख
ग
घ
च
चिट्ठा
चिट्ठाकार
चिट्ठाकारी (चिट्ठाकारिता)
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छ
ज
जे-ब्लॉग
झ
ट
टैम्पलेट
थीम
ट्रैकबैक
ठ
ड
डैस्कटॉप ब्लॉगिंग क्लाइंट
ढ
त
थ
द
ध
न
प
पर्मालिंक
Phlog
फोटोब्लॉग
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पॉडकास्टिंग
पोस्ट
पोस्ट स्लग
प्रविष्टि
फ
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फीड
ब
Blawg A law blog.
Bleg
ब्लॉग कार्निवाल
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ब्लॉगर
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भ
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ह
सन्दर्भ
See also BROG.
बाहरी कड़ियाँ
ई-पण्डित द्वारा संकलित हिन्दी चिट्ठाजगत की ब्लॉगिंग शब्दावली
चिट्ठा
इंटरनेट शब्दावली
ब्लॉगिंग शब्दावली
ब्लॉगिंग | 232 |
529222 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0 | व्याख्यान शास्त्र | व्याख्यान शास्त्र या वाग्मिता-शास्त्र
( Rhetoric ) उस कला को कहते हैं जिसमें लेखकों और वक्ताओं की जानकारी प्रदान करने, भावनाएँ व्यक्त करने और श्रोताओं को भिन्न उद्देश्यों के लिए प्रेरित करने की क्षमता और उसे सुधारने की विधियों का अध्ययन किया जाता है।
पश्चिमी संस्कृति में महत्व
इस शास्त्र का प्राचीन यूनान और प्राचीन रोम में बहुत महत्व रहा था और इसका पश्चिमी परम्परा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। प्राचीन यूनानी दार्शनिक अरस्तु ने व्याख्यान में श्रोताओं को प्रभावित करने के तीन तत्व बताएँ थे, जिन्हें यूनानी भाषा में 'लोगोस' (λόγος, logos, तर्क), 'पेथोस' (πάθος, pathos, भावनाएँ) और 'ईथोस' (ἦθος, ethos, मूल्य व विश्वास) कहा जाता है। प्राचीन यूनान से लेकर १९वीं शताब्दी के अंत तक पश्चिमी लेखकों और अन्य विद्वानों को विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षा संस्थानों में व्याख्यान शास्त्र की औपचारिक शिक्षा दी जाती थी।
इन्हें भी देखें
तर्क शास्त्र
सन्दर्भ
बाहरी कडियाँ
बोलने की कला (आप की सहायता)
व्याख्यान शास्त्र
भाषा-विज्ञान
संचार | 155 |
38968 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6 | डार्विनवाद | जैव-उद्विकास (organic-evolution) एवं प्राकृतिक चयन (natuaral selection) से सम्बन्धित चार्ल्स डार्विन के विचारों को डार्विनवाद कहते हैं।
बाहरी कड़ियाँ
4028073,00.html डार्विन के विकासवाद की प्रासंगिकता
आखिर सुलझी डार्विन के भ्रम की गुत्थी (कल्लोल चक्रवर्ती ; अमर उजाला)
डार्विन के चूल्हे पर जीवन की खिचड़ी
Universal Darwinism
Stanford Encyclopedia of Philosophy entry
What is Darwinism
डार्विन, विकासवाद और मज़हबी रोड़े - भूमिका
यदि विकासवाद जीतता है तो इसाइयत बाहर हो जायगी
विकासवाद उष्मागति के दूसरे नियम का उल्लंघन करता है!
सृष्टि व ब्रह्मांड: उत्पत्ति (भाग १) (वैज्ञानिक सिद्धान्त)
सृष्टि व ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति भाग -२ (वैदिक विचार)
विकसित होता विकासवाद (कल्कि आन हिन्दी)
दर्शन
जीव विज्ञान | 105 |
1117794 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%9F%20%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A1 | बेंट पिरामिड | बेंट पिरामिड मिस्र का एक प्राचीन पिरामिड है, जो काहिरा से लगभग 40 किलोमीटर दक्षिण में, दाहशूर के शाही नेक्रोपोलिस पर स्थित है, जिसे पुराने साम्राज्य फ़राओ स्नेफेरू (2600 ईसा पूर्व) के तहत बनाया गया था। मिस्र में प्रारंभिक पिरामिड विकास का यह एक अनूठा उदाहरण हैं, स्नेफेरू द्वारा निर्मित यह दूसरा पिरामिड था।
बेंट पिरामिड 54-डिग्री के झुकाव पर रेगिस्तान से उठा हुआ है, लेकिन इसका शीर्ष खंड (47 मीटर से ऊपर) 43 डिग्री के उथले कोण पर बनाया गया है, जो पिरामिड को उसके बहुत स्पष्ट झुकाव स्वरूप को उभार देता है।
अवलोकन
पुरातत्वविदों का मानना है कि बेंट पिरामिड स्टेप-साइडेड और स्मूथ साइडेड पिरामिडों के बीच एक मध्यमिक रूप का प्रतिनिधित्व करता है। यह सुझाव दिया गया होगा कि पिरामिड के तीव्र मूल कोण के कारण, संरचना निर्माण के दौरान अस्थिरता के आसार दिखाई देनी शुरू होने के कारण, बनाने वालों को संरचना के पतन को रोकने के लिए एक उथले कोण को अपनाने के लिए मजबूर किया होगा। यह सिद्धांत इस तथ्य से पैदा होता है कि निकटवर्ती लाल पिरामिड, जिसे उसी फ़राओ द्वारा ठीक उसके बाद बनाया गया था, का निर्माण इसके आधार से 43 डिग्री के कोण पर किया गया था। यह तथ्य इस सिद्धांत का भी खंडन करता है कि प्रारंभिक कोण पर निर्माण में बहुत लंबा समय लगेगा क्योंकि स्नेफेरू की मृत्यु निकट थी, इसलिए बनाने वालों ने निर्माण को समय पर पूरा करने के लिए कोण बदल दिया। 1974 में कर्ट मेंडेलसोहन के अनुसार मीदुम पिरामिड के विनाशकारी पतन की प्रतिक्रिया में एक एहतियात के तौर पर कोण को बदलने का सुझाव आया था, जबकि यह तब भी निर्माणाधीन था।
मिस्र में पाए जाने वाले लगभग नब्बे पिरामिडों में यह भी अनोखा है कि इसका मूल पॉलिश चूना पत्थर का बाहरी आवरण काफी हद तक बरकरार है। ब्रिटिश संरचनात्मक इंजीनियर पीटर जेम्स ने बाद के पिरामिडों में उपयोग किए जाने वाले आवरण के हिस्सों के बीच बड़ी निकासी को श्रेय दिया है; ये खामियां विस्तार जोड़ों के रूप में काम करेंगी और थर्मल विस्तार द्वारा बाहरी आवरण के क्रमिक विनाश को रोकेंगी।
बेंट पिरामिड का प्राचीन औपचारिक नाम आम तौर पर (द-साउथर्न-शाइनिंग-पिरामिड), या (स्नेफेरू-इस-शाइनिंग-इन-द-साउथ) के रूप में अनुवादित है। जुलाई 2019 में, मिस्र ने 1965 के बाद पहली बार पर्यटन के लिए बेंट पिरामिड को खोलने का फैसला किया। [] पिरामिड के उत्तरी प्रवेश द्वार से बनी 79 मीटर संकरी सुरंग के माध्यम से पर्यटक दो 4600 साल पुराने कक्षों तक पहुँच सकेंगे। 18 मीटर ऊंचा "साइड पिरामिड", जो यह माना जाता है कि स्नेफरू की पत्नी हेटेफेर्स के लिए बनाया गया है, भी सुलभ होगा। यह साथ का पिरामिड 1956 में खुदाई के बाद जनता के लिए पहली बार खोला गया है।
चित्र दीर्घा
इन्हें भी देखें
List of Egyptian pyramids
List of megalithic sites
Inside the Bent Pyramid
सन्दर्भ
प्राचीन मिस्री पिरामिड | 463 |
32881 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%B0 | सीकर | सीकर (Sikar) भारत के राजस्थान राज्य में संभाग मुख्यालय है। यह ऐतिहासिक शेखावाटी क्षेत्र में स्थित है और सीकर ज़िले का मुख्यालय तथा एक लोकसभा निर्वाचनक्षेत्र है।
विवरण
सीकर शहर शेखावाटी के प्रवेश द्वार या हृदय स्थल के नाम से जाना जाता है। सीकर एक एतिहासिक शहर है जहाँ पर कई हवेलियां (बड़े घर जो की अपने भिती चित्रों और वास्तुकला के लिए प्रख्यात हैं) है जो कि मुख्य पर्यटक आकर्षण हैं। सीकर ज़िले के उत्तर में झुन्झुनू, उत्तर-पश्चिम में चूरू, दक्षिण-पश्चिम में नागौर और दक्षिण-पूर्व में जयपुर जिले की सीमाएँ लगती हैं।
आवागमन
सीकर राष्ट्रीय राजमार्ग 52 पर आगरा और चुरू के बीच में स्थित है।
पर्यटन स्थल
राजकीय संग्रहालय
हर्षनाथ मंदिर
जीण माता मंदिर
लोहार्गल
खाटूश्यामजी
सकराय माता राजस्थान
सालासर बालाजी
गणेेेश्वर धाम
टपकेश्वर धाम (दरीबा)
बालेश्वर धाम (दरीबा)
तुरी का भेेरुजीव
श्री बालाजी मन्दिर , रामपुरा
श्री राम कुण्ड बाबा मन्दिर,बनाथला
देवगढ़ का किला
लक्ष्मणगढ़ का किला
गढ़ गुहला सीकर
बराल किला रानोली सीकर
खाटू श्याम जी मंदिर
भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक के बारे में सभी जानते हैं कि वह मात्र तीन बाण ही लेकर युद्ध क्षेत्र में लड़ने जा रहे थे। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण के भेष में उनसे दान में उनका शीश मांग लिया था। दान के पश्चात् श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में स्वयं के नाम से पूजित होने का वर दिया। बर्बरीक ने श्रीकृष्ण के समक्ष एक यह इच्छा भी व्यक्त की कि मैं यह युद्ध देखना चाहता हूं तब श्रीकृष्ण ने उसकी इच्छा से उस शीश को श्रीकृष्ण ने एक स्थान पर रखवा दिया लेकिन वह जिधर भी देखता उधर की सेना का सफाया हो जाता ऐसे में श्रीकृष्ण ने उसके शीश को दूर एक स्थान पर रखवा दिया। आज उस स्थान को खाटू श्याम का स्थान कहा जाता है। श्रीकृष्ण के वरदान स्वरूप ही उनकी पूजा श्याम रूप में की जाती है। राजस्थान के शेखावाटी के सीकर जिले में स्थित है परमधाम खाटू। खाटू का श्याम मंदिर बहुत ही प्राचीन है, लेकिन वर्तमान मंदिर की आधारशिला सन 1720 में रखी गई थी। इतिहासकार पंडित झाबरमल्ल शर्मा के अनुसार सन 1679 में औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया था। मंदिर की रक्षा के लिए उस समय अनेक राजपूतों ने अपना प्राणोत्सर्ग किया था।
इन्हें भी देखें
शेखावाटी
सीकर ज़िला
श्री माधोपुर
नीमकाथाना विधानसभा क्षेत्र (राजस्थान)
फतेहपुर, राजस्थान
सन्दर्भ
राजस्थान के शहर
सीकर ज़िला
सीकर ज़िले के नगर | 394 |
733345 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%80 | राजकाहिनी | राजकाहिनी (बंगाली: রাজকাহিনী मतलब राजकहानी, राजाओं की कहानी) सृजीत मुखर्जी द्वारा निर्देशित एक बंगाली चलचित्र है। इस चलचित्र में बंगाल का विभाजन के समय का निदर्शन करता है। इस चलचित्र में ग्यारह प्रमुख महिला पात्र है और चलचित्र की कहानी एक कोठा के बारे में है जो नयी भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित था, और कैसे नये भारतीय और पाकिस्तानी अधिकारियों ने कोठे और इसकी ग्यारह महिलाओं को नष्ट किये।
पात्र
रितुपर्णा सेनगुप्ता - बेगम जान
जिशु सेनगुप्ता - कबीर
शाश्वत चटर्जी - श्री प्रफुल्ल सेन
अबीर चटर्जी - मास्टर
कौशिक सेन - श्री मुहम्मद इलियास
सुदीप्त चक्रवर्ती - जुथिका
जोया अहसान - रुबीना
सायोनी घोष - कोली
सोहिनी सरकार - दुली
पार्नो मित्रा - गुलाप (गुलाब)
प्रियंका सरकार - लता
रिधिमा घोष - फ़ातिमा / शबनम
लिली चक्रवर्ती - कमला
एना साहा - बानू
दितिप्रिय रॉय - बंचकी
रुद्रनील घोष - सुजान
राजत्व दत्ता - रंगपुर के नवाब
विश्वजीत चक्रवर्ती - अख्तर, इंस्पेक्टर - प्रभारी देवीगंज की
कंचन मलिक - शशिकांता, इंस्पेक्टर - प्रभारी हल्दीबाड़ी की
निगेल अक्कर - सलीम मिर्ज़ा
अशोक धानुका - सरदार वल्लभभाई पटेल
संजय गुरुबक्ष्नी - जवाहरलाल नेहरू
घोड़ी बनर्जी - मुहम्मद अली जिन्ना
पैट्रिक आयर - लुईस माउंटबेटन
स्टीव बरोज - हेस्टिंग्स इस्मे
राजा बिस्वास - सिरिल रैडक्लिफ़
बांग्ला फ़िल्म | 205 |
700335 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%9F%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80 | इटुरी | इटुरी (Ituri) अफ़्रीका के मध्य में स्थित कांगो लोकतान्त्रिक गणराज्य के पूर्वी प्रान्त (ओरियेन्ताल, Orientale) का एक पूर्वोत्तरी क्षेत्र है जो ऐल्बर्ट झील से पश्चिम में स्थित है। यह सन् १९६२-१९६६ काल में 'किबाली-इटुरी' (Kibali-Ituri) के नाम से एक अलग प्रान्त था लेकिन सन् २००६ के कांगो संविधान ने इसे कांगो लोकतान्त्रिक गणराज्य के नवगठित प्रान्तों में से एक न बनाते हुए पूर्वी प्रान्त में विलय कर दिया। इस समय इटुरी को 'इटुरी अन्तरिम प्रशासन' (Ituri Interim Administration) का दर्जा मिला हुआ है और सम्भव है कि इसे एक अलग प्रान्त बना दिया जाये।
झड़पें
इटुरी में दो मुख्य समुदाय रहते हैं: लेन्डू (Lendu) और हेमा (Hema)। जब कांगो पर बेल्जियम का उपनिवेशी राज था, तब बेल्जियम ने बांटो और राज करो नीति के अंतर्गत हेमा समुदाय को बढ़ावा दिया और लेन्डू-हेमा तनाव सुलगाए रखने के भरसक प्रयास करे। १९६० में कांगो स्वतंत्र हुआ लेकिन यह तनाव जड़ें पकड़ चुका था। लेन्डूओं में यह भी शंका रही है कि पड़ोसी युगांडा देश भी हमेशा हेमाओं की तरफ़दारी करता है। समय-समय पर १९६६ काल से ही यहाँ युगांडा का हस्तक्षेप रहा है। १९९९ में एक स्थानीय सैनिक नेता ने स्वयं ही इटुरी को एक भिन्न प्रान्त घोषित कर दिया और केन्द्रीय सरकार की बात न मानते हुए प्रशासन चलाने लगा। कांगो के केन्द्रीय नेताओं का दावा है कि इसमें युगांडा की भी मिली-भगत थी। जब इटुरी में एक हेमा को राजपाल बना दिया गया तो लेन्डू-हेमा लड़ाईयाँ छिड़ गईं जिसमें १९९८-२००६ काल में लगभग ६०,००० लोगों की जानें गई।
इस अघोषित गृह युद्ध के दौरान सन् २००३ में संयुक्त राष्ट्र ने यहाँ शान्ति पुनर्स्थापित करवाने के लिये एक आयोग बनाया जिसने इस क्षेत्र में 'इटुरी अन्तरिम प्रशासन' की स्थापना करवाई। प्रयासों के बाद शान्ति लौटने लगी और २००६ से भयंकर युद्ध की स्थिति बंद है हालांकि अभी भी हल्की झड़पे होने के समाचार आते रहते हैं।
कुछ नज़ारे
इन्हें भी देखें
पूर्वी प्रान्त (कांगो)
ऐल्बर्ट झील (अफ़्रीका)
सन्दर्भ
कांगो लोकतान्त्रिक गणराज्य का इतिहास
पूर्वी प्रान्त (कांगो)
कांगो लोकतान्त्रिक गणराज्य | 328 |
1492854 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%B8%E0%A4%AB%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B8%3A%20%E0%A4%8F%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A5%89%E0%A4%A8 | ट्राँसफॉर्मर्स: एनरजॉन | ट्रांसफॉर्मर्स: एनर्जोन, जिसे जापान में ट्रांसफॉर्मर: सुपरलिंक (トランスフォーマー スーパーリンク टोरानसुफोमा सुपारिंकु) के नाम से जाना जाता है, एक जापानी एनीमे श्रृंखला है जो 9 जनवरी, 2004 को शुरू हुई। यह ट्रांसफॉर्मर्स: आर्मडा का सीधा सीक्वल है। यह पहला जापानी ट्रांसफॉर्मर शो भी है जहां ट्रांसफॉर्मर कंप्यूटर-जनरेटेड (सीजी) हैं, ज़ॉइड्स एनीमे के समान सेल-शेडेड तकनीक में, जो एक प्रवृत्ति थी जो अगली श्रृंखला, ट्रांसफॉर्मर्स: साइबरट्रॉन में जारी रहेगी। संयुक्त राज्य अमेरिका में, किड्सक्लिक ने 27 अगस्त, 2018 से 3 नवंबर, 2018 तक शो का पुन: प्रसारण शुरू किया। ट्रांसफॉर्मर्स के साथ: आर्मडा और ट्रांसफॉर्मर्स: साइबर्ट्रॉन, ट्रांसफॉर्मर्स: एनर्जोन ट्रांसफॉर्मर्स श्रृंखला में एक गाथा का एक हिस्सा है जिसे "यूनिक्रॉन ट्रिलॉजी" के रूप में जाना जाता है। इस श्रृंखला में, ट्रांसफॉर्मर्स की प्राथमिक नौटंकी ऑटोबोट्स की समान आकार के भागीदारों के साथ संयोजन करने की क्षमता, डिसेप्टिकॉन की पावर्ड अप फॉर्म का उपयोग करने की क्षमता, और एनर्जोन हथियारों और सितारों को जोड़ना है जिन्हें किसी भी ट्रांसफार्मर पर रखा जा सकता है। पिछली पंक्ति के मिनी-कॉन्स अभी भी मौजूद हैं, लेकिन सभी मिनी-कॉन पेग्स "डमी" पेग्स हैं क्योंकि वे खिलौने पर किसी फ़ंक्शन को सक्रिय नहीं करते हैं।
कहानी
मिनी-कंस के लिए युद्ध और यूनिक्रॉन के स्पष्ट विनाश के दस साल बाद, रहस्यमय अल्फा क्यू (जिसका अर्थ है "क्विंटेसन"), जो ग्रह-भक्षक के शरीर की भूसी से संचालित होता है, उस पर हमला करने के लिए ऊर्जा खाने वाले टेररकॉन्स को छोड़ता है। सौर मंडल में ऑटोबॉट्स के साइबरट्रॉन शहर, अल्फा क्यू की योजना के लिए एनर्जोन एकत्र कर रहे हैं। जैसे ही ऑटोबोट्स अपने मानव सहयोगियों (किशोर किकर सहित) के साथ नए खतरे के खिलाफ जुटते हैं, अल्फा क्यू टेररकॉन्स का नेतृत्व करने के लिए स्कॉर्पोनोक बनाता है और डिसेप्टिकॉन नेता मेगेट्रॉन (जिसकी लाश यूनिक्रॉन के भीतर होती है) की स्पार्क से एक तलवार बनाता है, जिसे बाद में जाना जाता है। गैल्वाट्रॉन, पृथ्वी पर अन्य धोखेबाज़ों को अपनी ओर मोड़ने के लिए। हालाँकि, मेगेट्रॉन ने अपने स्वयं के पुनरुत्थान की योजना बनाई, यूनिक्रॉन के शरीर पर नियंत्रण कर लिया और अल्फा क्यू को यूनिक्रॉन के सिर के अंदर भागने के लिए मजबूर कर दिया, फिर पृथ्वी पर महासागर शहर पर हमला किया। अल्फा क्यू ने ऑप्टिमस प्राइम की हत्या करने के लिए स्टार्सक्रीम को फिर से बनाया, लेकिन स्टार्सक्रीम को मेगेट्रॉन की सेवा में ब्रेनवॉश कर दिया गया, पूरे समय स्कॉर्पोनोक डीसेप्टिकॉन के भीतर अल्फा क्यू के गुप्तचर के रूप में कार्य करता रहा। इस बीच, जैसे ही ऑटोबॉट्स ने पृथ्वी की रक्षा के लिए एनर्जोन टावर्स का निर्माण शुरू किया, रोडीमस के नाम से जाना जाने वाला साइबर्ट्रॉन इतिहास का प्रसिद्ध व्यक्ति फिर से प्रकट हुआ।
पृथ्वी के नए एनर्जोन ग्रिड के सक्रिय होने के साथ, इसे डिसेप्टिकॉन के हमले से बचाते हुए, ऑटोबॉट्स अपना ध्यान यूनिक्रॉन पर केंद्रित करते हैं। जहाज मिरांडा II में पृथ्वी को छोड़कर, वे यूनिक्रॉन के शरीर का पता लगाते हैं। मेगेट्रॉन अराजकता लाने वाले को संगठित करता है, और साइबर्ट्रॉन के आसपास उभरते हुए अपने अंतरिक्ष पुल के माध्यम से ऑटोबॉट्स का पीछा करता है। ट्रांसफॉर्मर्स के होमवर्ल्ड में एनर्जोन टावरों से भरी हुई गोलीबारी की गई, जिससे यूनिक्रॉन बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। ऑटोबॉट्स अल्फ़ा क्यू के साथ गठबंधन बनाते हैं, जो पहले से ही रोडिमस और उसके दल के साथ काम कर रहा है, और उसकी उत्पत्ति और एनर्जोन को चुराने के उसके उद्देश्यों को सीखते हैं: वह इसका उपयोग उस चीज़ को फिर से बनाने के लिए करना चाहता है जिसे यूनिक्रॉन ने नष्ट कर दिया है। इस बीच, मेगेट्रॉन की सेना साइबरट्रॉन पर हमला करती है, और डिसेप्टिकॉन अपराधी शॉकब्लास्ट को उनके रैंक में शामिल कर लिया जाता है। शॉकब्लास्ट के जेल से भागने के दौरान, गार्ड विंग डैगर अपने साथी, पैडलॉक की मौत का बदला लेने की कसम खाता है, और जब एक एनर्जोन टॉवर उस पर और टाइडल वेव पर गिरता है, तो मेगेट्रॉन अपने मिनियन को मिराज के रूप में फिर से बनाता है, जबकि प्राइमस विंग डैगर को शक्तिशाली के रूप में फिर से बनाता है। विंग सेबर, जो यूनिक्रॉन के भीतर ऑप्टिमस प्राइम के साथ लड़ाई में शामिल होता है। जैसे ही लड़ाई बढ़ती है, किकर पृथ्वी के सभी ऊर्जा को यूनिक्रॉन के सिर में डालने की व्यवस्था करता है, जिसे अल्फा क्यू फिर यूनिक्रॉन के शरीर में घुसा देता है। शरीर के भीतर नकारात्मक रूप से चार्ज किए गए एनर्जोन के साथ परिणामी प्रतिक्रिया वास्तव में एक दरार का कारण बनती है, जिसके माध्यम से सभी लड़ाकों को चूसा जाता है।
दरार के दूसरी ओर अंतरिक्ष के नए क्षेत्र में, अल्फा क्यू ने यूनिक्रॉन द्वारा नष्ट की गई सभी दुनियाओं को सफलतापूर्वक फिर से बनाया है, उन्हें यूनिक्रॉन के सिर के भीतर से बनाए रखा है, जो अब एक एनर्जोन सूर्य बन गया है। ऑटोबॉट्स ने नए ग्रहों की सुरक्षा के लिए उन पर एनर्जोन टावर्स स्थापित करने की योजना बनाई है, जबकि मेगेट्रॉन नई दुनिया को यूनिक्रॉन को फिर से सक्रिय करने के लिए अधिक एनर्जोन के स्रोत के रूप में देखता है। स्कॉर्पोनोक को उसके प्रति पूरी तरह से वफादार बनने के लिए ब्रेनवॉश करने के बाद, मेगेट्रॉन इन्फर्नो के साथ भी ऐसा ही करने का प्रयास करता है, लेकिन वह इस प्रक्रिया से लड़ता है। क्लिफजंपर, डाउनशिफ्ट और बल्कहेड से युक्त एक बचाव दल को साइबर्ट्रॉन और पृथ्वी से भेजा जाता है और नई दुनिया की रक्षा के लिए ऑटोबोट्स के साथ टीम बनाई जाती है, लेकिन इन्फर्नो तब नष्ट हो जाता है जब वह मेगाट्रॉन के डिसेप्टिकॉन प्रभाव को हराकर एनर्जोन सूरज में गिर जाता है। शुक्र है, उसकी स्पार्क बच गई है और उसका रोडब्लॉक के रूप में पुनर्जन्म हुआ है, जैसे प्राचीन ऑटोबोट, ओमेगा सुप्रीम, साइबर्ट्रोन पर जागृत होता है और ऑटोबॉट्स में शामिल हो जाता है। मेगेट्रॉन यूनिक्रॉन को सक्रिय करने में सफल हो जाता है, जो अपने सिर को पुनः प्राप्त कर लेता है, इस प्रक्रिया में अल्फा क्यू को मार देता है, लेकिन फिर शॉकब्लास्ट यूनिक्रॉन का नियंत्रण जब्त करने का प्रयास करता है, लेकिन उसके अपने दिमाग को "डेमी-गॉड" ने अपने कब्जे में ले लिया, अंततः उसे नष्ट कर दिया। मेगेट्रॉन फिर नियंत्रण शुरू कर देता है, लेकिन यूनिक्रॉन के प्रभाव का भी शिकार हो जाता है, क्योंकि दो दिमाग नियंत्रण के लिए लड़ते हैं क्योंकि वे ऑप्टिमस सुप्रीम, ऑप्टिमस प्राइम और ओमेगा सुप्रीम के संयुक्त रूप के साथ संघर्ष करते हैं। ऑप्टिमस सुप्रीम को प्राइमस से पावर बूस्ट के साथ विशाल आकार में बढ़ाया गया है जो कई अन्य ऑटोबॉट्स को भी सक्रिय करता है। टाइटन्स की एक वास्तविक लड़ाई में, ऑप्टिमस सुप्रीम यूनिक्रॉन को नष्ट कर देता है, लेकिन उसका दिमाग मेगेट्रॉन के भीतर रहता है।
हालाँकि कई डिसेप्टिकॉन को पकड़ लिया गया है और साइबर्ट्रॉन पर कैद कर लिया गया है, मेगेट्रॉन और उसकी शेष सेनाएं जल्द ही ग्रह पर हमला करती हैं और उन्हें मुक्त कराती हैं। एक अन्य भगोड़ा शॉकब्लास्ट का छोटा भाई, सिक्सशॉट है, जो अपने भाई की मौत के लिए ऑप्टिमस प्राइम से बदला लेने के लिए मेगेट्रॉन की टीम में शामिल हो जाता है। यूनिक्रॉन की चेतना से प्रेरित होकर, मेगेट्रॉन को सुपर एनर्जोन के भूमिगत भंडार तक ले जाया जाता है, जो उसे गैल्वेट्रॉन में बदल देता है। सुपर एनर्जोन के दो संरक्षक, ब्रुटिकस मैक्सिमस और कंस्ट्रक्टिकॉन मैक्सिमस, ठहराव से जागते हैं और उसके साथ होते हैं, लेकिन तीसरा, सुपरियन मैक्सिमस, ऑटोबोट्स के साथ होता है। आगामी लड़ाई में, कई एनर्जोन टावरों के टूटने से एनर्जोन गैस कोट साइबर्ट्रॉन की सतह को नुकसान पहुंचाने का एक कंबल दिखाई देता है, जिससे ऑटोबॉट्स ग्रह से दूर फंस जाते हैं, जिससे उन्हें गैस के प्रवाह को रोकने के लिए किकर और ओमनिकॉन को भेजने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जबकि गैल्वेट्रॉन ने नियंत्रण हासिल कर लिया है। ग्रह और अपनी गति को वापस अल्फा क्यू के अंतरिक्ष क्षेत्र की ओर निर्देशित करता है। एक बहु-आयामी हमले में, ऑटोबॉट्स बाजी पलट देते हैं, लेकिन गैल्वेट्रॉन फिर से खुद को सुपर एनर्जोन में डुबो देता है, और एक विशाल आकार तक बढ़ जाता है, क्योंकि यूनिक्रॉन का दिमाग एक बार फिर से अपने दिमाग पर कब्जा कर लेता है और उसे अपने स्पार्क के साथ विलय करने के लिए अंतरिक्ष में निर्देशित करता है, अभी भी शून्य में अक्षुण्ण है। ऑप्टिमस प्राइम भी विशाल आकार में बढ़ता है और गैल्वाट्रॉन को एक युद्ध में मजबूर करता है, जिससे उसकी चेतना वापस सतह पर आ जाती है, जिस बिंदु पर प्राइम उसके शरीर से यूनिक्रॉन का सार निकाल देता है। इसके बाद गैल्वेट्रॉन यूनिक्रॉन की चिंगारी को नष्ट करना चाहता है, लेकिन उस पर उसका कब्ज़ा हो जाता है, जबकि सभी ऑटोबॉट्स अपने स्पार्क्स ऑफ़ कॉम्बिनेशन को ऑप्टिमस प्राइम के साथ जोड़ते हैं, उसे पुनर्जीवित करते हैं और यूनिक्रॉन के साथ अंतिम लड़ाई में प्रवेश करते हैं, जो तुरंत समाप्त हो जाता है जब गैल्वेट्रॉन उसके शरीर पर नियंत्रण कर लेता है। फिर से और सुपर एनर्जोन से प्राइमस द्वारा बनाए गए संस्थापक सूर्य में खुद को डुबो देता है, हेरफेर किए जाने की तुलना में मरना पसंद करता है। इस क्रिया के साथ, सूर्य प्रज्वलित होता है, अल्फ़ा क्यू की दुनिया में नई जान फूंकता है, और एक उज्जवल कल का मार्ग प्रशस्त करता है।
यह भी देखें
ट्राँसफॉर्मर्स
ट्राँसफॉर्मर्स: आरमडा
संदर्भ
ट्राँसफॉर्मर्स
ट्राँसफॉर्मर्स (ऐनिमेटेड शृंखला) | 1,498 |
1401773 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%82%20%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82 | परी हूं मैं | परी हूं मैं एक भारतीय टेलीविजन श्रृंखला है जिसका प्रीमियर 28 जनवरी 2008 को स्टार वन पर हुआ था जिसमें रश्मि देसाई, मोहित मलिक और करण वीर मेहरा मुख्य भूमिकाओं में थे। यह 11 सितंबर 2008 को बंद हुआ।
कथानक
कहानी निक्की नाम की एक साधारण लड़की के इर्द-गिर्द घूमती है जो अपने आक्रामक चाचा और चाची के साथ रहती है। निक्की एक प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री परी के घर से टकराती है, उसका डोपेलगैंगर जिसका परिवार इस घटना से अनजान है। निक्की फिल्म स्टार की जगह लेने के तुरंत बाद अराजक घटना से गुजरती है और बाद की छवि के नीचे रहती है। परी का प्रेमी राजवीर ( मोहित मलिक ) जो एक सुपरस्टार भी है, निक्की के प्यार में पड़ जाता है, इस बीच असली परी एक दुर्घटना के बाद बेहोश हो जाती है। निक्की जो राजवीर के प्यार में पड़ जाती है, अपनी जटिल जीवन शैली को तब तक जारी रखती है जब तक परी को होश नहीं आता और वह अपने परिवार से संपर्क करने की कोशिश करती है।
कलाकार
निक्की श्रीवास्तव और परी राय चौधरी के रूप में रश्मि देसाई (एक जैसे दिखने वाले)
राजवीर कपूर के रूप में मोहित मलिक
करण वीर मेहरा करण के रूप में
उपासना सिंह निक्की की ममी के रूप में
आदि ईरानी निक्की के मामा के रूप में
झुम्मा मित्रा सरिता के रूप में (निक्की की सबसे अच्छी दोस्त)
संदर्भ
स्टार वन के धारावाहिक
भारतीय टेलीविजन धारावाहिक | 237 |
473213 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AB%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BE | अल्ताफ राजा | अल्ताफ राजा एक जाने माने भारतीय कव्वाली गायक है| 1993 से अपने संगीत सफर की शुरुआत करने वाले अल्ताफ राजा ने 2010 में 'टूनपुर का सुपरहीरो' मूवी में गाने के बाद गायकी से विश्राम ले लिया था| फिर 2 साल के इन्तेजार के बाद इन्होंने 2013 में 'घनचक्कर' मूवी से वापसी की|
प्रारंभिक जीवन
अल्ताफ राजा 15 अक्टूबर 1967 में नागपुर में पैदा हुए और 15 साल की उम्र में संगीत प्रशिक्षण शुरू किया।
संगीत प्रशिक्षण के बाद वो विभिन्न प्रतियोगिताओं में पुरस्कार जीतते ही चले गए|
जीवन-यात्रा
1997 में अल्ताफ राजा ने अपनी पहली एल्बम 'तुम तो ठहरे परदेसी' से पहचान बनायी| तब से वो बहुत सारे एल्बम में काम कर चुके हैं, उन्हें उनकी नाक से गाना गाने की शैली के लिए भी जाना जाता है| एशियाई अकादमी ऑफ़ फिल्म & टेलीविज़न से भी उनके बेहतरीन संबंध रहे हैं। अल्ताफ राजा अपने गीतों के बोल और अपनी अनूठी आवाज दोनों के कारण बेहद लोकप्रिय हैं
अपने गायकी के अलावा ये कुछ बॉलीवुड फिल्मों जैसे की 'शपथ' (1997), 'यमराज' (1998), 'मदर' (1999), 'घनचक्कर' (2013) में भी अभिनय कर चुके हैं
एल्बम
1. तुम तो ठहरे परदेसी (1997)
2. मुझे अपना बना लो (1999)
3. आज की रात न जा परदेस (1999)
4. दो दिल हारे (2000)
5. दिल के टुकड़े हज़ार हुए (2000)
6. साईं का दिवाना (2001)
7. दिल का हाल सुने दिलवाला (2001)
8. अल्ताफ एंड अदनान एक साथ (2001)
9. ताज़ा हवा लेते हैं (2001)
10. खिलौना जान कर (2002)
11. एक दर्द सभी को होता है (2003)
12. मार्केट (2003)
13. दूकान (2004)
14. तेरे इश्क़ ने मालामाल किया (2006)
15. हरजाई (2006)
16. कोई पत्थर से ना मारे (2007)
17. चलो मैखाने चले (2009)
18. अश्कों की बरात
19. बम गोला (2015)
पार्श्व गायक के रूप में फिल्मे
झोलूराम - घनचक्कर (2013)
माधोलाल: कीप वॉकिंग (2010)
टूनपुर का सुपर हीरो (2010)
मार्केट (2003)
कंपनी (2002)
बेनाम (1999)
मदर (1999)
परदेसी बाबू (1998)
कीमत: वे वापस आ रहे (1998)
तिरछी टोपीवाले (1998)
हरजाई (2007)
करलो प्यार करलो - चांडाल (1998)
ईश्क और प्यार का मज़ा लीजिए - शपथ (1997)
पीलो ईश्क दी विस्की - मर्द (1998)
संगीतकार के रूप में सिनेमा
दूकान: पीला हाउस (2004)
मार्केट(2003)
गायक | 362 |
1463914 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%A8%20%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE | लातिन वर्णमाला | लातिन वर्णमाला, जिसे रोमन वर्णमाला के रूप में भी जाना जाता है, लैटिन भाषा लिखने के लिए मूल रूप से प्राचीन रोमनों द्वारा उपयोग किए जाने वाले अक्षरों का संग्रह है। एक्सटेंशन (जैसे विशेषक ) के अपवाद के साथ बड़े पैमाने पर अपरिवर्तित, यह लैटिन लिपि बनाता है जिसका उपयोग अंग्रेजी सहित कई आधुनिक यूरोपीय भाषाओं को लिखने के लिए किया जाता है। संशोधनों के साथ, इसका उपयोग अन्य वर्णों के लिए भी किया जाता है, जैसे कि वियतनामी वर्णमाला । इसकी आधुनिक प्रदर्शनों की सूची को आईएसओ मूल लैटिन वर्णमाला के रूप में मानकीकृत किया गया है। | 98 |
263937 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A5%80%20N.Z.A.%2C%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A2%E0%A5%82%E0%A4%97%E0%A5%80%20%E0%A4%A4%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%B2 | कटीमी N.Z.A., कालाढूगी तहसील | कटीमी N.Z.A., कालाढूगी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
कुमाऊँ मण्डल
गढ़वाल मण्डल
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
कुमाऊँ मण्डल
गढ़वाल मण्डल
बाहरी कड़ियाँ
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
N.Z.A., कटीमी, कालाढूगी तहसील
N.Z.A., कटीमी, कालाढूगी तहसील | 81 |
658766 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%BC%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80 | बाग़बानी | अगर आप इस से मिलते-जुलते नाम की फ़िल्म के बारे में जानकारी ढूंढ रहें हैं तो बाग़बान (2003 फ़िल्म) लेख देखिये
बाग़बानी (Gardening) पौधों को उगाने व उनकी देख रेख करने की क्रिया को कहते हैं। यह उद्यान विज्ञान (horticulture) का भाग है और इसमें फूलों और अन्य पौधों को सजावट के लिये; जड़ वाले, पत्तेदार व फलदार पौधें और जड़ी-बूटीयाँ खाने के लिये, और अन्य पौधे रंगों, औष्धियों और श्रृंगार-सामग्रियों के लिये उगाये जाते हैं।
इन्हें भी देखें
उद्यान विज्ञान
भूदृश्य
सन्दर्भ
उद्यान विज्ञान और बाग़बानी | 87 |
377459 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%83%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6%20%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B9%20%E0%A4%AC%E0%A5%80 | पितृवंश समूह बी | मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह बी या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप B एक अत्यंत प्राचीनतम पितृवंश समूह है। पितृवंश समूह ए (A) और यह विश्व के दो सब से प्राचीन पितृवंश माने जाते हैं। इस पितृवंश समूह के सदस्य पुरुष ज़्यादातर उप-सहारा अफ़्रीका के क्षेत्रों में और पश्चिम-मध्य अफ़्रीका के घने जंगलों में पाए जाते हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से ६०,००० वर्ष पहले पूर्वी अफ़्रीका के इलाक़े में रहता था।
अन्य भाषाओँ में
अंग्रेज़ी में "वंश समूह" को "हैपलोग्रुप" (haplogroup), "पितृवंश समूह" को "वाए क्रोमोज़ोम हैपलोग्रुप" (Y-chromosome haplogroup) और "मातृवंश समूह" को "एम॰टी॰डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप" (mtDNA haplogroup) कहते हैं।
इन्हें भी देखें
मनुष्य पितृवंश समूह
वंश समूह
वंश समूह
हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना | 122 |
800696 | https://hi.wikipedia.org/wiki/2017%20%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%8B%20%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BE | 2017 अलप्पो आत्मघाती कार हमला | यह हमला 16 अप्रैल 2017 को एक कार बम द्वारा बस पर किया गया था। इस बम धमाके में 126 लोग मारे गए थे जिसमें 68 बच्चे भी शामिल थे। हमला उस समय किया गया था जब इदलिब प्रांत के शिया बहुल अल-फोआ और किफ्राया गाँवो में फँसे लगभग पाँच हजार लोगों को बसों के द्वारा सरकार नियंत्रित अलप्पो क्षेत्र में लाया जा रहा था। इनमें सैकड़ों की संख्या में सरकार समर्थित लड़ाके भी थे। घटना स्थल पर बस के परखच्चे उड़ गए थे और उसमें सभी सवार लोग मारे गए थे। इस हमले की पोप ने निंदा की थी। लेकिन अभी तक किसी भी आंतकी संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी स्वीकार नहीं की है।
सन्दर्भ
सीरियाई गृहयुद्ध | 119 |
187946 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%89%E0%A4%9A%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%A8%20%28%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29 | वॉचमेन (फिल्म) | वॉचमेन जैक स्नाईडर द्वारा निर्देशित 2009 में प्रदर्शित हुई एक सुपरहीरो फिल्म है और इसमें मालिन एकरमेन, बिली क्रुडुप, मैथ्यू गुड, जैकी अर्ल हेली, जेफ्री डीन मोर्गन और पेट्रिक विल्सन ने अभिनय किया है। यह एलन मूर और डेव गिब्बन्स की इसी नाम की कॉमिक बुक का रूपांतरण है। 1985 के एक वैकल्पिक-इतिहास में, संयुक्त राज्य और सोवियत यूनियन के बीच तनाव बढ़ जाता है जब पूर्व शांति दूत सदस्यों (गैरकानूनी ढंग से अपराधियों के खिलाफ लड़ने वाले लोग) का एक समूह अपने खिलाफ एक प्रत्यक्ष षड्यंत्र की जांच करता है और कुछ उससे से भी अधिक बड़ी और भयावह चीज़ का खुलासा करता है।
वॉचमेन कॉमिक के प्रकाशन के बाद, लाइव-एक्शन फिल्म का रूपांतरण अधर में लटक गया। निर्माता लॉरेंस गोर्डन ने 20th सेंचुरी फ़ॉक्स तथा वार्नर ब्रदर्स (वॉचमेन की प्रकाशक DC कॉमिक्स की मूल कम्पनी) के साथ इस परियोजना को शुरू किया, जिसमे निर्माता जोएल सिल्वर और निर्देशक टेरी गिलियम थे, जिसमें दूसरे ने इस जटिल उपन्यास को "ना फिल्माने योग्य" माना. 2000 के दशक के दौरान, गोर्डन और लॉयड लेविन ने डेविड हेटर द्वारा एक पटकथा का निर्माण करने के लिए यूनिवर्सल स्टूडियोज़ और पैरामाउंट पिक्चर्स के साथ गठजोड़ किया; बजट विवादों के चलते इस परियोजना के रद्द होने से पहले डैरेन एरोनोफ्सकी और पॉल ग्रीनग्रास भी परियोजना से जुड़े हुए थे। परियोजना वार्नर ब्रदर्स के पास वापिस आ गयी, जहाँ स्नाईडर को निर्देशन के लिए रखा गया - पैरामाउंट अंतर्राष्ट्रीय वितरक बना रहा. 1991 में गोर्डन द्वारा अधिग्रहण राशी का भुगतान करने में विफल होने पर फॉक्स ने कॉपीराइट उल्लंघन के लिए वार्नर ब्रदर्स पर मुकदमा किया, जिसके कारण उसे अन्य स्टूडियो में फिल्म का निर्माण करना पड़ा. फॉक्स और वार्नर ब्रदर्स ने फिल्म रिलीज़़ होने से पहले इसका समाधान निकाल लिया जिसमें फॉक्स को कुल लाभ का एक हिस्सा दिया गया। सितम्बर, 2007 में मुख्य फोटोग्राफी की शुरुआत वेन्कूवर में हुई. अपनी पिछली फिल्म 300 की तरह, स्नाईडर ने अपनी कहानी को कॉमिक की तरह गढ़ा, लेकिन वॉचमेन का पूरा फिल्मांकन क्रोमा की का प्रयोग करके नहीं किया और ज्यादा सेट चुने।
फिल्म 6 मार्च 2009 को पारंपरिक और IMAX दोनों प्रकार के थियेटरों में रिलीज़ की गयी, इसने पहले सप्ताह के अंत में $55 मिलियन का व्यापार किया और पूरी दुनिया में बॉक्स ऑफिस पर कुल $185 मिलियन से अधिक का व्यापार किया। इसने फिल्म आलोचकों को विभाजित कर दिया; कुछ लोगों ने इसके सुपर हीरो की गहरी और अद्वितीय धारणा के लिए अत्याधिक सकारात्मक समीक्षाएं दीं, जबकि अन्य लोगों ने इसी कारण के साथ ही इसकी R -रेटिंग, इसके चलने का समय और ग्राफिक उपन्यास की सटीकता के अत्याधिक प्रचार के लिए इसका मज़ाक उड़ाया. वॉचमेन यूनिवर्स की सामग्री पर आधारित जेरार्ड बटलर द्वारा अभिनीत एक DVD को रिलीज़ किया गया, जिसकी कहानी में कॉमिक टेल्स ऑफ़ द ब्लैक फ़्राइटर का एनिमेटेड रूपांतरण और एक वृत्तचित्र अंडर द हुड, जो फिल्म की पिछली कहानी से सुपर हीरो की पुरानी पीढ़ी का वर्णन करता है, को शामिल किया गया। 24 मिनट के एक अतिरिक्त फुटेज के साथ, निर्देशक द्वारा काटे गये दृश्यों को जुलाई 2009 में रिलीज़ किया गया।
कथानक
कहानी एक वैकल्पिक समय सीमा में घटित होती है जिसमें नकाब पहने हुए, वर्दीधारी शांति दूत के सदस्य अमेरिका में अपराध के खिलाफ लड़ाई लड़ते हैं, जो मूल रूप से मास्क और वर्दीधारी गिरोहों और अपराधियों की बढ़ोत्तरी के खिलाफ है। 1930 और 40 के दशक में, शांति दूत के सदस्यों ने "उसे खत्म करने के लिए जिसे कानून ख़त्म नहीं कर सका" मिनटमेन नामक समूह का गठन किया। प्रारंभिक समूह को कार्यवाही के दौरान अक्सर जल्द और हिंसक मौतों का सामना करना पड़ा, या आत्महत्या करनी पड़ी, या कानून का उल्लंघन करने पर उन्हें गिरफ्तार किया गया, या एक केस में सुरक्षा मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा. दशकों बाद, "सुपरहीरो" की एक दूसरी पीढ़ी भी एक टीम बनाने का प्रयास करती है, जिसे वॉचमेन कहा गया। सुपरहीरो के अस्तित्व के कारण कई ऐतिहासिक घटनाओं को परिवर्तित करके दर्शाया गया है, जैसे जॉन एफ कैनेडी की हत्या और वियतनाम का युद्ध. ईश्वरतुल्य डॉक्टर मैनहैट्टन के हस्तक्षेप के कारण, वियतनाम में अमेरिका की विजय, संयुक्त राज्य में समय सीमा के निरस्त होने के बाद रिचर्ड निक्सन के राष्ट्रपति के रूप में तीसरे कार्यकाल का कारण बनती है। हालांकि, 1980 में देश में शांति दूत विरोधी संवेदना उत्पन्न होने के बाद, निक्सन ने वॉचमेन को गैर-कानूनी घोषित किया और संयुक्त राज्य और सोवियत यूनियन के बीच तनाव ने परमाणु हमले के खतरे के साथ शीत युद्ध को बढ़ावा दिया.
1985 तक, केवल तीन साहसी सक्रिय रहते हैं: कॉमेडियन और डॉक्टर मैनहैट्टन, ये दोनों सरकारी मंजूरी के साथ काम करते हैं और नकाबपोश शांति दूत सदस्य रोर्शाक, जो सेवानिवृत होने से इन्कार कर देता है और गैर क़ानूनी रूप से सक्रिय बना रहता है। सरकारी एजेंट एडवर्ड ब्लेक की हत्या की जांच करते हुए, रोर्शाक ब्लेक के कॉमेडियन होने का राज़ खोलते हुए यह निष्कर्ष निकालता है कि कोई असली वॉचमेन को समाप्त करने की कोशिश कर रहा है। वह अपने पूर्व साथियों- भावनात्मक रूप से अलग हो चुके डॉ॰ जॉन ओस्टरमैन (डाक्टर मैनहैट्टन) और उसकी प्रेमिका लॉरी ज्यूपिटर (सिल्क स्पेक्टर), डेनियल ड्रीबर्ग (नाईट आउल), एड्रियन वीट (ओज़ीमंडिआस) को चेतावनी देता है -लेकिन उसे कम सफलता मिलती है।
ब्लेक के अंतिम संस्कार के बाद, डॉ॰ मैनहैट्टन को अपनी पूर्व प्रेमिका और साथियों को कैंसर पीड़ित बनाने के लिए दोषी माना जाता है, उस दुर्घटना से पहले जिसने उसे वर्तमान स्थिति में पहुंचा दिया. मैनहैट्टन खुद को मंगल पर निर्वासित कर लेता है, जिससे उसकी अनुपस्थिति में सोवियत यूनियन को अफगानिस्तान पर आक्रमण करने का भरोसा मिलता है। बाद में, रोर्शाक का षड्यंत्र का सिद्धांत उचित प्रतीत होता है जब एड्रियन, जिसने सेवानिवृति से पहले लम्बे समय तक अपनी पहचान ओज़ीमंडिआस के रूप में बनायी हुई थी, एक हत्या के प्रयास से मुश्किल से बचता है और रोर्शाक खुद को हत्या के संदेह में फंसा पाता है।
इस बीच ज्यूपिटर, मैनहैट्टन से अलग होने के बाद, ड्रिबर्ग से प्यार करने लगती है और दोनों पूर्व सुपर हीरो एक दूसरे के करीब आते हुए सेवानिवृति से बाहर आ जाते हैं। रोर्शाक के साथ नाईट आउल को जेल से बाहर निकालने के बाद सिल्क स्पेक्टर का सामना मैनहैट्टन से होता है। वह उसे मंगल पर ले जाता है और जब वह उसे दुनिया को बचाने के लिए कहती है, तो वह स्पष्ट करता है कि उसे मानवता में कोई दिलचस्पी नहीं है। उससे कई सवाल पूछ कर वह यह जान लेता है कि कॉमेडियन उसके पिता थे। मानवता में उसकी दिलचस्पी लौट आती है, मैनहैट्टन सिल्क स्पेक्टर के साथ पृथ्वी पर लौट आता है।
षड्यंत्र की जांच करते हुए, रोर्शाक और नाईट आउल यह जान लेते हैं कि इन सब के पीछे एड्रियन हो सकता है। रोर्शाक अपने इस शक के बारे में अपनी एक पत्रिका में लिखता है, जिसे वह एक अखबार के कार्यालय में छोड़ आता है। रोर्शाक और नाईट आउल का सामना एड्रियन से होता है, जो अपने अंटार्कटिक निवास पर अपनी ओज़ीमंडिआस की पोशाक में है। ओज़ीमंडिआस बताता है कि वह कॉमेडियन की हत्या, मैनहैट्टन के निर्वासन और रोर्शाक को फंसाने का मुख्य कर्ताधर्ता है; संदेह से बचने के लिए वह अपनी हत्या का नाटक भी करता है। वह बताता है कि उसने संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ को एकजुट करने और उर्जा रिएक्टरों के विस्फोट के द्वारा मुख्य शहरों को नष्ट कर के परमाणु युद्ध को रोकने की योजना बनायी है, जो उसने डॉक्टर मैनहैट्टन से दुनिया को मुफ्त ऊर्जा उपलब्ध कराने का बहाना देकर तैयार करवाए है। रोर्शाक और नाईट आउल उसे रोकने के प्रयास में उस पर काबू पाने की कोशिश करते हैं, लेकिन ओज़ीमंडिआस उन दोनों को आसानी से हरा देता है। इसके बाद ओज़ीमंडिआस खुलासा करता है कि उसकी योजना को पहले से ही लागू किया जा चुका है। ऊर्जा के हस्ताक्षर को डॉक्टर मैनहैट्टन के हस्ताक्षर के रूप में पहचाना जाता है और शीत युद्ध के दोनों विरोधी पक्ष अपने "सांझे दुश्मन" का मुकाबला करने के लिए एकजुट हो जाते हैं।
ज्यूपिटर और मैनहैट्टन न्यूयॉर्क शहर के खंडहरों में पहुंचते हैं और ओज़ीमंडिआस की योजना को समझ जाते हैं। वे अंटार्कटिका में उसका सामना करते हैं और एड्रियन मैनहैट्टन को इंट्रिन्सिक फील्ड से मारने का प्रयास करता है जिसमे उसका पालतू बुबास्टिस कुर्बान हो जाता है। डॉ॰ मैनहैट्टन फिर से प्रकट होते हैं, लेकिन एक समाचार रिपोर्ट को देख कर, जिसमें राष्ट्रपति निक्सन कहते हैं कि अमेरिका और सोवियत एकजुट हो गए हैं, डॉ॰ मैनहैट्टन, अविश्वसनीय रूप से असहाय स्थिति में, महसूस करते हैं कि ओज़ीमंडिआस को मारने और इस षड्यंत्र का खुलासा करने से केवल यह शांति भंग होगी और फिर से युद्ध की स्थिति पैदा होगी. रोर्शाक अब चुप नहीं रहना चाहता और ओज़ीमंडिआस के घर से बाहर निकलने पर उसका सामना मैनहैट्टन से होता है। यह जान कर कि केवल वही उन लोगों में से एक है जो ओज़ीमंडिआस की कहानी का पर्दाफाश करना चाहता है, वह मैनहैट्टन को उसे मारने के लिए कहता है। काफी हिचक और रोर्शाक द्वारा स्वयं मनाने पर अंत में मैनहैट्टन उसे मार देता है। मैनहैट्टन, ज्यूपिटर से एक आखिरी चुंबन लेता है और दूसरी गैलेक्सी के लिए रवाना हो जाता है।
शीत युद्ध के अंत और मानवता के एकजुट होने के साथ, ज्यूपिटर और ड्रिबर्ग पुनर्निर्मित न्यूयॉर्क शहर में लौट आते हैं और साथ साथ एक नए जीवन की शुरुआत करते हैं। फिल्म की समाप्ति न्यूयॉर्क के एक समाचार पत्र संपादक द्वारा इस शिकायत से होती है कि विश्वव्यापी शांति के कारण कुछ भी छापने लायक नहीं है। वह एक युवा कर्मचारी को बताता है कि वह क्रेंक मेल के संग्रह में से जो चाहे छाप सकता है, जिसमें रोर्शाक की पत्रिका भी है, जो संकेत करती है कि वीट की कहानी दुनिया के सामने खोली जा सकती है।
पात्र और किरदार
लॉरी ज्यूपिटर / सिल्क स्पेक्टर II के रूप में मालिन एकरमेन : मूल रूप से इस भूमिका के लिए जेसिका अल्बा और मिला जोवोविच पर विचार किया गया, लेकिन स्नाईडर ने महसूस किया कि वे ऐसी गंभीर भूमिका निभाने के लिए अत्याधिक विख्यात थीं। एकरमेन अपनी भूमिका का फिल्म के मनोविज्ञान और भावना के रूप में वर्णन करती है, क्योंकि पुरुषों के बीच वही एकमात्र महिला थी। अभिनेत्री ने अभ्यास किया और अपने लड़ाके के चरित्र को निभाने के लिए लड़ने का प्रशिक्षण लिया।एकरमेन की लेटेक्स पोशाक और विग, जो अक्सर लेटेक्स में फंस जाती थी, स्टंट का प्रदर्शन करते समय अधिक सुरक्षा प्रदान नहीं करती थी और उसे फिल्मांकन के दौरान अक्सर चोटें लगती रहीं. फिल्म में जुस्पेक्जिक उपनाम परदे पर संक्षेप में प्रकट होता है, जब लॉरी नाईट आउल का वाइज़र पहनती है। चरित्र जुस्पेक्जिक नाम को प्राथमिकता देती है, चूंकि ज्यूपिटर केवल एक उपनाम है जो उसकी मां ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान दिया, ताकि लोगों को उसकी पोलिश पृष्ठभूमि के बारे में पता न चले.
वाल्टर कोवाक्स / रोर्शाक के रूप में जैकी अर्ल हेली : नकाब पहने हुए एक शांति दूत जो क़ानून की हदों से बाहर अपनी गतिविधियों को जारी रखता है।अन्य पांच प्रमुख अभिनेताओं के विपरीत, हेली कॉमिक को पढ़ चुके थे और जब उन्होने यह सुना कि इस भूमिका के लिए प्रशंसकों के बीच वह एक पसंदीदा उम्मीदवार है तो, वह इस भूमिका को पाने के लिए बहुत उत्सुक थे। उन्होनें अपने चौदह दोस्तों के साथ ऑडिशन दिया, जहां उन्होनें कॉमिक के दृश्यों का प्रदर्शन किया। हेली जो रोर्शाक के नैतिक सिद्धांतों के साथ जटिल मानवीय व्यवहार से तालमेल बैठने के प्रयास में "लगभग पागल से हो गए", ने कहा कि इस भूमिका से उन्होनें यह जाना, कि कैसे अपनी बुरी गतिविधियों के लिए लोग सामान्य रूप से बहाने बनाते हैं। रोर्शाक स्याही के दाग वाला एक नकाब पहनते हैं : हेली के खाली नकाब के घुमावों पर गति के अनुसार बदलने वाले चिन्ह लगाये गए, ताकि एनिमेटर उसकी हमेशा बदलती हुई अभिव्यक्तियों का निर्माण कर सकें. हेली ने नकाब को इसके नियंत्रित डिजाईन की वजह से "पात्र के लिए अविश्वसनीय रूप से प्रेरित करने वाला" पाया, जो तुरंत गरम हो जाता था। उसके देखने के लिए नकाब में छोटे छेद बनाये गए थे। हेली के पास केम्पो में ब्लैक बेल्ट है, लेकिन वह रोर्शाक के हमले के तरीके को बेढंगा और अधिक उग्र बताता है क्योंकि पात्र बॉक्सिंग पृष्ठभूमि से है।
डेनियल ड्रिबर्ग / नाईट आउल II के रूप में पेट्रिक विल्सन : एक सेवानिवृत सुपर हीरो जिसके पास तकनीकी अनुभव है। कॉमिक बुक के एक प्रंशसक, जॉन कुसाक ने इस भूमिका में रूचि दर्शायी.स्नाईडर ने 2006 की लिटल चिल्ड्रन, जिसमे हेली ने भी अभिनय किया था, देखने के बाद विल्सन को भूमिका के लिए चुना. विल्सन ने अत्याधिक वज़नी ड्रिबर्ग की भूमिका निभाने के लिए 25 पौंड वजन बढाया.उन्होंने ड्रिबर्ग की तुलना एक सैनिक से की जो युद्ध से लौटने के बाद समाज में फिट होने में असमर्थ है। विल्सन कहते हैं कि उन्हें जिस तरह की लड़ाई की शैली को नाईट आउल को देने का निर्देश दिया गया, वह "अत्याधिक अस्वाभाविक और शक्ति समन्वय" वाली थी।
डॉक्टर जोन ओस्टरमेन / डॉक्टर मैनहैट्टन के रूप में बिली क्रूडुप : एक सुपरहीरो जिसके पास वास्तविक शक्तियां हैं और वह अमेरिकी सरकार के लिए काम करता है। इस भूमिका के लिए किएनु रीव्ज ने कोशिश की, लेकिन जब बजट चिंताओं के चलते स्टूडियो का काम रुक गया तो अभिनेता ने अपनी कोशिश बंद कर दी. फ्लैशबैक में एक मानव के रूप में ओस्टरमेन की भूमिका निभाने के साथ, दुर्घटना के बाद अपनी डॉक्टर मैनहट्टन की भूमिका के लिए फिल्म में क्रूडुप को अपने मोशन कैप्चर CG संस्करण के साथ फिल्म में प्रतिस्थापित कर दिया गया। फिल्मांकन के दौरान क्रूडुप ने नीली LED से ढके सफ़ेद सूट को पहन कर अपने सहयोगी अभिनेताओं के विपरीत काम किया, ताकि वह वास्तविक जीवन में दूसरी दुनिया की झलक दिखा सके, ठीक वैसे ही जैसे फिल्म में कंप्यूटर-निर्मित मैनहैट्टन करता है। स्पेशल इफेक्ट के तकनीशियनों का मानना था कि डॉ॰ मैनहैट्टन इश्वर-तुल्य दिखाई देने चाहिए, जो अपनी दुर्घटना के बाद गठे हुए तथा मांसल शरीर के साथ पूर्ण मानव रूप बनाने की कोशिश करते हैं। इस प्रयोजन के लिए, उनके शरीर को फिटनेस मॉडल और अभिनेता ग्रेग प्लिट के अनुसार ढाला गया। इसके बाद क्रू ने क्रूडुप के सिर को 3D-डिजिटल बनाया और "इसे ग्रेग प्लिट के शरीर से जोड़ दिया गया".क्रूडुप को निरंतर कॉमिक के पात्र के बारे में सोचना पड़ा, क्योंकि वह LED सूट में हास्यास्पद महसूस करते थे। क्रूडुप ने इसे भाग्यशाली माना कि उन्हें अन्य अभिनेताओं की तरह प्रोस्थेटिक या रबड़ की पोशाक नहीं पहननी पड़ी और वे उन्हें इस बात की याद दिला देते थे जब कभी उनके रूप का मजाक उड़ाया जाता था। स्नाईडर ने पात्र के विषय में बताते हुए फैसला किया कि वे मैनहैट्टन के लिए क्रूडुप की आवाज को इलेक्ट्रोनिक रूप से परिवर्तित नहीं करेंगे, "जहाँ तक हो सकता है, वह प्रत्येक को सुविधा देने का प्रयास करेंगे, बजाए कि रोबोटिक आवाज़ के जो कि उनके विचार में नकारी जा सकती थी।".
एड्रियन वीट / ओज़ीमंडिआस के रूप में मैथ्यू गुड : एक सेवानिवृत सुपरहीरो जिसने अपनी पहचान को सार्वजनिक कर दिया है। ओज़ीमंडिआस की भूमिका के लिए मूल रूप से जुड लॉ, ली पेस और टॉम क्रूज पर विचार किया गया गया (जिनके बारे में स्नाईडर को लगा कि वे मैनहैट्टन के रूप में बेहतर लगेंगे), लेकिन स्टूडियो द्वारा बजट सँभालने में हुयी देरी के कारण उन्होंने परियोजना को छोड़ दिया. स्नाईडर कहते हैं कि गुड "बड़ा, लंबा और दुबला" था, जिसके कारण "इस सुन्दर आयुरहित, आर्यन सुपरमेन" चरित्र में जान पड़ गयी। गुड ने निजी रूप में जर्मन शैली का और सार्वजानिक रूप में अमेरिकन शैली का चित्रण करने के लिए वीट की पिछली कहानी की व्याख्या की; गुड बताते हैं कि वीट ने अपने परिवार की संपत्ति को त्याग दिया और एक स्व-निर्मित व्यक्ति बनने के लिए दुनिया की यात्रा की, क्योंकि वह अपने माता-पिता के नाज़ी अतीत के कारण शर्म महसूस करता था, जिसके कारण अमेरिकी सपने और पात्र का दोहरेपन में उभार आया।वीट के जर्मनी में जन्म के वर्णन के कारण, गुड उसके उपनाम का उच्चारण "वाईट" के रूप में करता था।गुड "मेरे द्वारा की गयी भूमिका निर्धारण के बारे में बहुत अधिक चिंतित था", उसे लगता था कि वह "[ओज़ीमंडिआस] के लिए शारीरिक रूप से सही नहीं है। फिर भी ज़ैक अटल और आश्वस्त रहे और मुझे कोई परेशानी नहीं होने दी". स्नाईडर कहते हैं गुड "बिल को फिट करो....हमे भूमिका निर्धारण के समय काफी मुश्किल हुयी, क्योंकि हमें किसी दर्शनीय, सुन्दर और विवेकी व्यक्ति की जरुरत थी और यह बहुत कठिन मिश्रण है".
एडवर्ड ब्लेक / कॉमेडियन के रूप में जेफ्री डीन मोर्गन : एक सुपरहीरो, जो अमेरिकी सरकार द्वारा कमीशन प्राप्त है। मोर्गन को इस भुमिका के लिए लेने से पहले, निर्माता लोरेन्स गोर्डोन और लॉयड लेविन कॉमेडियन के चित्रण के बारे में चर्चा करने के लिए रोन पर्लमेन से मिले. चरित्र के लिए कॉमिक को पढ़ते समय, मोर्गन रुक गये, जब उन्होनें देखा कि उनके पात्र की हत्या तीन पृष्ठों में ही कर दी जाती है। जब उन्होनें अपने एजेंट से कहा कि वह यह भूमिका नहीं निभाना चाहते हैं, तो उनसे कहा गया कि वह इसे पढ़ना जारी रखे और पता लगाये कि उनका पात्र कितना महत्वपूर्ण था।मोर्गन ने भूमिका को चुनौतीपूर्ण पाया, यह वर्णन करते हुए कि "उपन्यास पढ़ते समय, किसी कारण से, आपको इस व्यक्ति से नफरत नहीं होती, हालांकि वो ऐसी हरकतें करता है जो बताने लायक नहीं हैं। [...]मेरा काम उसका अनुवाद करना है, ताकि एक दर्शक के रूप में आप उसे पसंद करने के लिए बहाने ना बनाएं, लेकिन उसके कारनामों की वजह से आप उससे उतनी नफरत ना करें जितनी आपको करनी चाहिए."मॉर्गन ने स्नाईडर से पूछा कि क्या कॉमेडियन पटकथा में और अधिक अपशब्द कह सकता है।उसके चयन के बारे में स्नाईडर कहते हैं, "हॉलीवुड में एक इंसानों का इंसान ढूंढना मुश्किल काम है। यह बिलकुल ऐसा ही है। और जेफ्री अन्दर आया, वह बहुत गुस्से में था, फिर भी शांत था और मैंने कहा "ओके, जेफ्री ठीक रहेगा!".
सेली ज्यूपिटर /सिल्क स्पेक्टर के रूप में कार्ला गुगिनो : एक सेवानिवृत सुपरहीरो, लॉरी ज्यूपिटर की मां और पहली सिल्क स्पेक्टर. गुगिनो का किरदार, 1940 के दशक में 25 वर्ष की आयु से लेकर 1980 के दशक में 67 वर्ष की आयु तक रहता है और 37 वर्षीय अभिनेत्री ने अपनी उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को प्रतिबिंबित करने के लिए कृत्रिम वेश भूषा धारण की. गुगिनो अपने किरदार की सुपर हीरो की पोशाक का वर्णन बेट्टी पेज के अल्बर्टो वर्गेस से मिलन के प्रभाव को दर्शाने वाले रूप में करती हैं। अभिनेत्री ने इस पात्र के लिए ट्रेडमार्क हेयर स्टाइल पहना, हालांकि फिल्म के लिए इसे और अधिक उचित आकार दिया गया था। उन्होंने अपने पात्र के लिए एल्बर्टो वर्गेस के स्टाइल जैसे पिन-अप चित्र भी खिंचवाए और नॉर्मन रोकवेल के द्वारा बनायी गयी पेंटिंग को सराहा क्योंकि वह वर्गेस पर मंत्रमुग्ध थी।
एडगर जेकोबी/ मोलोच द मिस्टिक के रूप मेंमेट फ्रेवर : एक अधिक उम्र का पुनर्वासित अपराधी, जोकि जवानी के दिनों में अंडरवर्ल्ड किंगपिन और जादूगर के रूप में जाना जाता था।
होलिस मेसन /नाईट आउल के रूप में स्टीफन मेकहेट्टी : नाईट आउल की आड़ में पहला शांति दूत.
बिग फिगर के रूप में डैनी वुडबर्न : एक बौना माफिया बॉस जिसे रोर्शाक और नाईट आउल ने पंद्रह साल पहले जेल में डाल दिया था।
बायरन लुईस/ मोथमेन के रूप में निआल मेटर : वह कहानी का मुख्य केंद्र नहीं है, लेकिन फ्लैशबैक में दिखाई देता है, एक बिंदु पर अपने बाद के वर्षों में कमज़ोर मानसिकता का शिकार हो जाता है।
बिल ब्रैडी / डॉलर बिल के रूप में डैन पायने : पहली पीढ़ी का अपराध से लड़ने वाला योद्धा जिसका कपड़ा एक बैंक डकैती के दौरान घूमते हुए दरवाजे में फंस जाता है और गोली लगने से मारा जाता है। पायने कॉमिक का एक प्रशंसक है और उसने नाटक के छोटे चरित्र और परिकल्पित DVD वृतचित्र, दोनों के लिए अपने दृश्यों की शूटिंग चार दिनों में कर ली थी।
उरसुला जेंड / सिल्हूट के रूप में अपोलोनिया वनोवा : मिनटमेन की एक पूर्व सदस्य, जिसके समलैंगिक होने की जानकारी सार्वजनिक होने से उस पर सेवानिवृत हो जाने का दबाव डाला गया। बाद में एक पूर्व चालाक खलनायक द्वारा उसकी और उसकी साथी की हत्या कर दी जाती है।
रोल्फ़ मुलर/ हुडेड जस्टिस के रूप में ग्लेन एनिस : 1930 के दशक में प्रकट होने वाला पहला नकाबपोश शांति दूत. अपनी समलैंगिकता को छिपाने के लिए पहली सिल्क स्पेक्टर के साथ एक नक़ली रिश्ते का दिखावा करता है। माना जाता है कि बाद में कॉमेडियन द्वारा मारा गया था।
नेलसन गार्डनर/ कैप्टन मेट्रोपोलिस के रूप में डेरिल शीलर : एक पूर्व-नौसैनिक और मिनटमेन के संस्थापक सदस्यों में से एक.
रॉय चेस के रूप में डग चैपमेन : एक भाड़े का हत्यारा जो ओज़ीमंडिआस को मारने की कोशिश करता है। डग चैपमेन फिल्म का कैनेडियन स्टंट समन्वयक भी था और उसने एक स्टंट डबल और स्टंट प्रदर्शक के रूप में काम किया।
गिरोह के शीर्ष नेता के रूप में पेट्रिक सबोनगुई
रॉकफेलर सैन्य बेस तकनीशियन के रूप में अलेसांड्रो जुलिआनी
जुलाई 2007 में वॉचमेन के निर्माण के लिए फिल्म जैसे हूबहू पात्रों के चयन की शुरुआत युग के प्रसिद्ध नामों से हुई- जो कि स्नाईडर के अनुसार फिल्म को एक "मजाकिया गुण देने वाले" और "इस 80 के दशक का ध्यान आकर्षित करने वाले" थे - जिसमे रिचर्ड निक्सन, लियोनीड ब्रेझनेव, हेनरी किसिंजर, एच. आर. हाल्डमैन, टेड कोप्पेल, जॉन मैकलाफलिन, एनी लिबोविट्ज़, जॉन लेनन और योको ओनो, फिडेल कास्त्रो, एल्बर्ट आइंस्टीन, नॉर्मन रौकवेल, जॉन एफ. कैनेडी और जैकी कैनेडी, एंडी वारहोल, ट्रूमैन कैपोट, एल्विस प्रेस्ले, माओ जेडोंग, लैरी किंग, डेविड बॉवी, मिक जैगर और गांव के लोगशामिल थे। स्नाईडर बताते हैं कि कई फ्लैशबैक दृश्यों के कारण वह छोटी उम्र के कलाकार चाहते थे और एक ही भूमिका के लिए दो अभिनेताओं को लेने के बजाय उसी अभिनेता को मेक-अप से बड़ी उम्र का दर्शाना अधिक आसान था।स्नाईडर के बेटे ने युवा रोर्शाक का छोटा किरदार निभाया, जबकि निर्देशक वियतनाम में एक अमेरिकी सैनिक के रूप में खुद दिखाई दिया. अभिनेता थॉमस जेन को स्नाईडर द्वारा आमंत्रित किया गया था, लेकिन अत्याधिक व्यस्तता के कारण उन्होंने फिल्म में काम करने से इंकार कर दिया.
विकास
1986 में, निर्माता लॉरेंस गॉर्डन और जोएल सिल्वर ने 20th सेंचुरी फॉक्स के लिए वॉचमेन के फिल्म अधिकार प्राप्त किये.फॉक्स ने लेखक एलन मूर को अपनी कहानी के आधार पर एक पटकथा लिखने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने मना कर दिया, जिसके कारण स्टूडियो ने पटकथा लेखक सेम हैम को चुना. हैम ने वाचमेन के जटिल अंत के बजाए "अधिक व्यवस्थित" समाप्ति करने के लिए, जिसमे एक हत्या तथा सामयिक विरोधाभास को शामिल किया गया, पुनः लिखने की आज़ादी ली.1991 में फॉक्स ने इस परियोजना में परिवर्तन किया, और यह परियोजना वार्नर ब्रदर्स के पास चली गयी, जहाँ टेरी गिलिअम को निर्देशन सौंपा गया और चार्ल्स मेककिओन ने इसे पुनः लिखा. उन्होंने पात्र रोर्शाक की डायरी को एक वॉईस-ओवर के रूप में प्रयुक्त किया और कॉमिक किताब से उन दृश्यों को फिर से लिया जिन्हें हैम ने हटा दिया था।गिलिअम और सिल्वर फिल्म के लिए केवल 25 मिलियन डॉलर ही जुटा पाए, (आवश्यक बजट का एक चौथाई), क्योंकि उनकी पिछली फिल्में बजट से काफी ऊपर चली गयीं थीं।गिलिअम ने परियोजना को छोड़ दिया, क्योंकि उनका मानना था कि वॉचमेन को फिल्माया नहीं जा सकेगा. उन्होंने कहा, "लम्बाई को कम करके [कहानी की] दो या ढाई घंटे की फिल्म में बदलना [...] मुझे ऐसा लग रहा था कि इससे वॉचमेन के बारे में बताने वाला सार ख़त्म हो जाएगा" . वार्नर ब्रदर्स के परियोजना को छोड़ने के बाद, गोर्डन ने गिलिअम को फिर से फिल्म को स्वतंत्रतापूर्वक संचालित करने के लिए आमंत्रित किया। निर्देशक ने फिर से यह मानते हुए इन्कार कर दिया, कि कॉमिक बुक को एक पांच घंटे के छोटे धारावाहिक के रूप में बेहतर ढंग से निर्देशित किया जा सकता था।
अक्टूबर 2001 में, गोर्डन ने लॉयड लेविन और युनिवर्सल स्टूडियोज़ के साथ भागीदारी की और डेविड हेटर को लेखन और निर्देशन का काम दिया गया। हायटर और निर्माताओं ने रचनात्मक मतभेदों के चलते यूनिवर्सल को छोड़ दिया, और गोर्डन और लेविन ने वॉचमेन को बनाने के लिए रेवोल्यूशन स्टूडियोज़ में रूचि दिखाई. परियोजना रेवोल्यूशन स्टूडियोज़ के साथ नहीं हो पायी और बीच में ही छूट गयी। जुलाई 2004 में, यह घोषणा की गयी कि पैरामाउंट पिक्चर्स वॉचमेन का निर्माण करेगी और उन्होंने हायटर की पटकथा के निर्देशन के लिए डेरेन एरोनोफ्सकी को अपने साथ जोड़ा. निर्माता गोर्डन और लेविन एरोनोफ्सकी के साथी, एरिक वाटसन के साथ गठजोड़ करके परियोजना से जुड़े रहे. जब एरोनोफ्सकी द फाउन्टेन पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए चले गये तो उनका स्थान पॉल ग्रीनग्रास ने ले लिया। अंततः, पैरामाउंट ने वॉचमेन में बदलाव शुरू किया।
अक्टूबर 2005 में, गोर्डन और लेविस फिल्म को फिर से विकसित करने के लिए वार्नर ब्रदर्स से मिले.300 में ज़ैक स्नाईडर के काम से प्रभावित होकर वार्नर ब्रदर्स ने उनसे वॉचमेन के निर्देशन के लिए कहा. पटकथा लेखक एलेक्स से ने हायटर की पटकथा में से अपने पसंदीदा तत्वों को निकाल लिया, लेकिन इसे वॉचमेन कॉमिक की मूल शीत युद्ध की सैटिंग के लिए वापिस जोड़ दिया. 300 के प्रति अपने दृष्टिकोण की तरह, स्नाईडर ने कॉमिक किताब का प्रयोग एक कथा पटल के रूप में किया।उन्होंने लड़ाई के दृश्य का विस्तार किया, और फिल्म को अधिक सामयिक बनाने के लिए ऊर्जा संसाधनों के बारे में एक उपकथा जोड़ी. हालांकि वे कॉमिक के पात्रों के रूप के प्रति आश्वस्त थे, लेकिन स्नाईडर चाहते थे कि नाईट आउल अधिक डरावना दिखना चाहिए, और उन्होंने ओज़ीमंडिआस के कवच को 1997 की बेटमेन एंड रोबिन की नक़ल कर के रबड़ की पेशियों से बनाया था।यद्यपि 20th सेंचुरी फॉक्स ने फिल्म के रिलीज़ को रोकने के लिए मुकदमा दर्ज कराया, अंततः स्टूडियोज़ में समझौता हो गया और फॉक्स को एक अग्रिम भुगतान और दुनिया भर में फिल्म से प्राप्त आय और सभी सिक्वेल तथा पुर्नप्रसारण से प्राप्त आय में से एक निश्चित प्रतिशत देने का वादा किया गया।
डेव गिब्बन्स स्नाईडर की फिल्म का एक सलाहकार बन गया, लेकिन मूर ने अपने काम के रूपांतरण वाली किसी भी फिल्म के साथ अपना नाम जोड़ने से इन्कार कर दिया.मूर ने कहा कि स्नाईडर के काम को देखने में उनकी कोई रूचि नहीं है; उन्होंने 2008 में एंटरटेनमेंट वीकली से कहा, "ऐसी कई चीजें हैं जो हमने वॉचमेन के साथ कीं जो केवल एक कॉमिक में ही काम करती हैं और वास्तव में ऐसी चीज़ें दिखाने के लिए ही डिजाइन की गयी थीं जिसे दूसरा मीडिया नहीं कर सकता था।" यद्यपि मूर का मानना है कि डेविड हायटर की पटकथा "वॉचमेन के इतनी करीब थी जितनी कि मैं कल्पना कर सकता हूं," उन्होंने ज़ोर दे कर कहा कि यदि यह फिल्म बनायी जाती है तो इसे देखने का उनका कोई इरादा नहीं था।
रिलीज़
विपणन / मार्केटिंग
वार्नर ब्रदर्स इंटरएक्टिव एंटरटेनमेंट ने केवल संयुक्त राज्य अमेरिका में धारावाहिक का एक वीडियो गेम वॉचमेन नामक फिल्म के साथ रिलीज़ किया, यह गेम था: द एंड इज़ नाइ . वार्नर ब्रदर्स ने कम प्राथमिकता वाले इस दृष्टिकोण को इसलिए अपनाया ताकि कम समय में लोग गेम की तरफ न भागें, क्योंकि फिल्मों पर आधारित ज्यादातर गेमों की आलोचकों और खेलने वालों के द्वारा निंदा की जाती है। गेम 1970 के दशक पर आधारित है और इसे कॉमिक के संपादक लेन वेन द्वारा लिखा गया है; डेव गिब्बन्स भी एक सलाहकार हैं। 4 मार्च 2009 को, ग्लू मोबाइल ने वाचमेन: द मोबाइल गेम को रिलीज़ किया: यह एक उन्हें मारो मोबाइल गेम है जिसमें नाईट आउल और कॉमेडियन न्यूयार्क शहर और वियतनाम में अपने ठिकानों से लड़ाई करते हैं। 6 मार्च 2009 को, Apple Inc. iPhone और iPod Touch प्लेट्फ़ॉर्म के लिए एक गेम को रिलीज़ किया गया, जिसका शीर्षक था वॉचमेन: जस्टिस इज़ कमिंग . हालांकि इससे अत्याधिक आशाएं थीं, इस मोबाइल गेम ने कई गंभीर खेल और नेटवर्क मुद्दों का सामना किया, जिनका समाधान अभी भी किया जाना बाकी है।
फिल्म के प्रोमोशन के रूप में, वार्नर ब्रदर्स एंटरटेनमेंट ने वॉचमेन: मोशन कॉमिक्स को रिलीज़ किया, यह मूल कॉमिक बुक में वर्णित एनीमेशन की श्रृंखला थी। पहले भाग को 2008 की गर्मियों में खरीद के लिए डिजिटल वीडियो स्टोर्स में ज़ारी किया गया, जैसे iTunes स्टोर और अमेज़न वीडियो ओन डिमांड.DC डायरेक्ट ने जनवरी 2009 में फिल्म पर आधारित एक्शन फिगर्स को रिलीज़ किया। निर्देशक ज़ैक स्नाईडर ने एक यूट्यूब प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जिसमें वॉचमेन प्रशंसकों को फिक्शनल वीट एन्टरप्राइजेज द्वारा निर्मित उत्पादों के लिए बनावटी विज्ञापन बनाने के लिए कहा गया। निर्माताओं ने दो छोटे विडियो को ऑनलाइन रिलीज़ भी किया, जो फिक्शनल कहानियों के हिस्सों के वायरल वीडियो के रूप में डिजाइन किये गए थे, जिनमें से एक में 1970 न्यूकास्ट डॉ॰मैनहैट्टन की सार्वजनिक उपस्थिति की दसवीं सालगिरह को अंकित करता है। दूसरा एक छोटी प्रचार फिल्म थी जो 1977 के कीने अधिनियम का प्रचार कर रही थी, जिसके अनुसार बिना किसी सरकारी समर्थन के एक सुपरहीरो बनना ग़ैरकानूनी था। एक अधिकारिक वायरल मार्केटिंग वेब साइट, द न्यू फ्रंटियर्समैन, के नाम को ग्राफिक उपन्यास में पत्रिका के नाम पर रखा गया है और यह अवर्गीकृत दस्तावेजों की तरह तंग करने वाली शैली के रूप में है। जुलाई 2008 में फिल्म के ट्रेलर के प्रीमियर के बाद, DC कॉमिक्स के अध्यक्ष पॉल लेविट्ज़ ने कहा कि विज्ञापन अभियान के द्वारा उत्पन्न की गयी पुस्तकों की अतिरिक्त मांग को पूरा करने के लिए, कम्पनी को वॉचमेन के व्यापारिक संग्रह की 900,000 से अधिक प्रतियां छापनी पड़ेंगी, जिसके साथ कुल वार्षिक मुद्रण के 1 मिलियन से अधिक प्रतियाँ होने की उम्मीद की जा रही थी। DC कॉमिक्स ने 10 दिसम्बर 2008 को मूल कवर की कीमत $1.50 पर वॉचमेन #1 को पुनः प्रकाशित किया; कोई अन्य प्रकाशन छापा नहीं गया है।
DVD रिलीज़
वॉचमेन की सीमित श्रृंखला के भीतर, एक काल्पनिक कॉमिक टेल्स ऑफ़ द ब्लैक फ्राईटर, को वार्नर प्रीमियर और वार्नर ब्रदर्स एनीमेशन द्वारा एक डायरेक्ट-टू-वीडियो एनीमेशन के रूप में प्रस्तुत किया गया जिसे 24 मार्च 2009 को रिलीज़ किया गया। इसे मूल रूप से वॉचमेन की पटकथा में शामिल किया गया था,लेकिन इसे लाइव अभिनय फुटेज से एनिमेशन में बदला गया स्नाईडर की इच्छानुसार 300 -एस्क की शैली में फिल्म बनाने के लिए इसका खर्च 20 मिलियन डॉलर था; यह एनिमेटेड संस्करण मूल रूप से अंतिम कट में शामिल किया गया था, लेकिन फिल्म द्वारा पहले से ही तीन घंटे के समय को पूरा करने के कारण इसे काट दिया गया था।जेरार्ड बटलर, जो 300 में अभिनेता थे, ने एनिमेटेड फीचर में कैप्टन के पात्र को आवाज़ दी, जिसके लिए उन्हें एक लाइव एक्शन फिल्म में भूमिका का वचन दिया गया था, जो कभी नहीं बनी. जार्ड हैरिस अपने मृत दोस्त रिडले की आवाज़ बने, जिससे कैप्टन को भ्रम होता है कि वह उससे बात कर रहा है। स्नाईडर ने बटलर और हैरिस के काम को एक साथ रिकॉर्ड किया।ब्लैक फ्राईटर के अंतर्राष्ट्रीय अधिकार पैरामाउंट के पास हैं।
टेल्स ऑफ़ ब्लैक फ्राईटर DVD में अंडर द हुड वृत्तचित्र भी शामिल है, जो किरदार की पिछली कहानियों का विवरण देता है, इसका शीर्षक कॉमिक पुस्तक में होल्लिस मेसन के संस्मरण से लिया गया है। पात्रों की दोस्ताना सार्वजनिक इमेज के कारण अंडर द हुड को PG की रेटिंग दी गयी है। अभिनेताओं को पात्रों के रूप में साक्षात्कार फिल्माने के दौरान बदलने का अवसर दिया गया था।यहाँ तक कि मिनटमेन के फिल्म "आर्चीव" फुटेज के लिए बोलेक्स कैमरों का भी इस्तेमाल किया गया।टेल्स ऑफ़ ब्लैक फ्राईटर की रिलीज़ के चार महीने बाद DVD पर फिल्म को रिलीज़ किया जाना है और वार्नर ब्रदर्स 21 जुलाई 2009 को निर्देशक द्वारा काटे गये दृश्यों तथा दिसम्बर में मुख्य पिक्चर में सम्पादित एनिमेटेड फिल्म के साथ विस्तृत संस्करण को रिलीज़ करेंगे. स्नाईडर बताते हैं कि अगर यह फिल्म अच्छा प्रदर्शन करती है, तो निर्देशक द्वारा काटे गये दृश्यों को न्यूयॉर्क और लॉस एंजिल्स में थियेटरों में साथ साथ रिलीज़ कर दिया जाएगा.इसके अतिरिक्त 3 मार्च को, द वॉचमेन: मोशन कॉमिक्स को डिजिटल वीडियो स्टोर और DVD के रूप में रिलीज़ किया गया। इसमें फिल्म का विशिष्ट दृश्य शामिल था लेकिन प्रेस समय (डिस्क की रिलीज़ से पहले) के रूप में दृश्य को अभी जोड़ा जाना बाकी है।
फिल्म को 21 जुलाई 2009 को DVD और ब्लू-रे पर रिलीज़ किया गया। ब्लू-रे में अधिकतम फिल्म-मोड शामिल है, जो फिल्म को निर्देशक जैक स्नाईडर के वीडियो प्रदर्शन के साथ चलाता है और इसमें दृश्य के पीछे के फुटेज, कॉमिक से तुलना, ट्रिविया और बहुत कुछ शामिल हैं।दिसम्बर 2009 में, एक "शानदार कलेक्टर संस्करण" को रिलीज़ किया जाएगा. पांच डिस्क के सेट में टेल्स ऑफ़ ब्लैक फ्राईटर के साथ फिल्म के निर्देशक के कट, ज़ैक स्नाईडर और डेव गिबन्स की नई टिप्पणियां, पूरी वॉचमेन मोशन कॉमिक्स और अंडर द हुड के अलावा 2 घंटे से ज्यादा की बोनस सामग्री शामिल हैं, जिसे पहले टेल्स ऑफ़ ब्लैक फ्राईटर DVD पर रिलीज़ किया गया था।
प्रतिक्रिया
बॉक्स ऑफिस
वॉचमेन को 6 मार्च 2009 की मध्य रात्रि में रिलीज़ किया गया था और इसने प्रारंभिक शो से 4.6 मिलियन डॉलर की कमाई की, जो कि स्नाईडर की पिछली कॉमिक आधारित फिल्म 300 की कमाई से लगभग दोगुनी है। फिल्म ने पहले दिन 3,611 थियेटरों में $24,515,772 की कमाई की,और बाद में अपने पहले सप्ताह के अंत में कुल $55,214,334 की कमाई की.वॉचमेन के प्रारंभिक सप्ताह के अंत में कुल कमाई एलन मूर की किसी भी फिल्म से अधिकतम है और कमाई की दृष्टि से आमदनी फ्रॉम हेल द्वारा सारे बॉक्स ऑफिस पर की गयी कुल कमाई से ज्यादा थी, जिसकी थियेटर आमदनी $31,602,566 पर समाप्त हुई. हालांकि शुरुआत में फिल्म ने केवल $55 मिलियन पर समाप्ति की, जबकि स्नाईडर की पिछली 300 ने अपने शुरूआती सप्ताह के अंत में $70 की मिलियन की कमाई की थी, वार्नर ब्रदर्स के वितरण अध्यक्ष, डेन फेल्मेन, का मानना था कि दोनों फिल्मों के शुरूआती सप्ताह की सफलता की तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि वॉचमेन की समय अवधि अधिक है-फिल्म 2 घंटे और 45 मिनट की है जबकि 300 केवल 2 घंटे से कुछ कम की थी-जिसकी वजह से 300 की तुलना में 2009 की इस फिल्म के रात में कम शो दिखाए गये . सामान्य थिएटरों के अलावा, वॉचमेन ने 124 IMAX स्क्रीन पर $5.4 मिलियन की कमाई की, जो स्टार ट्रेक और द डार्क नाईट के बाद तीसरी सबसे बड़ी शुरुआत थी .
बॉक्स ऑफिस पर अपने पहले हफ्ते के बाद, वॉचमेन की उपस्थिति में उल्लेखनीय गिरावट देखी गयी। दूसरे सप्ताहांत तक, फिल्म ने $17,817,301 की कमाई कर के उस सप्ताहांत में बॉक्स ऑफिस पर दूसरा स्थान प्राप्त किया। एक प्रमुख कॉमिक बुक फिल्म के लिए 67.7% की गिरावट सबसे बड़ी गिरावटों में से एक है।पहले सप्ताहांत के बाद दर्शकों में दो तिहाई कमी आने से, 13-15 मार्च 2009 के सप्ताहांत में फिल्म दूसरे स्थान पर रही.इसके बाद के लगभग हर सप्ताहांत में फिल्म में 60% की गिरावट जारी रही, जिससे पांचवें सप्ताहांत में शीर्ष दस में से और सातवें प्ताहांत में शीर्ष बीस में से हट गयी।वॉचमेन ने बॉक्स ऑफिस पर अपने इक्कीसवें दिन 26 मार्च को $10 करोड़ के आंकड़े को पार कर लिया, और 28 मई तक 84 दिनों में कुल $107,509,799 की कमाई के साथ अपने घरेलू थियेटरों का सफ़र पूरा किया। फिल्म अपने पहले दिन में कुल खर्च का पांचवां हिस्सा कमा चुकी थी और पहले सप्ताह के अंत तक इसने आधे से ज्यादा कमाई को पूरा कर लिया।
वॉचमेन मार्च के महीने की शुरुआत में ज्यादा कमाई करने वाली अब तक की फिल्मों में चौथे स्थान पर आती है, साथ ही एक R-दर्जे की फिल्म के लिए उत्तरी अमेरिका के इतिहास में शुरुआत में ही कमाई करने वाली फिल्मों में छठे स्थान पर है।यह वर्तमान में द हैंगओवर, डिस्ट्रिक्ट 9 और इनग्लोरिअस बास्टर्ड्स के बाद 2009 की R-दर्जे की चौथी सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म है। उत्तर अमेरिकी बॉक्स ऑफिस पर DC कॉमिक्स कॉमिक बुक पर आधारित वॉचमेन वर्तमान में सबसे ज्यादा कमाने वाली तेरहवीं फिल्म है, और 2009 की उन्नीसवीं सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म है।
अपनी घरेलू शुरुआत के बाद, वॉचमेन ने लगभग 45 विदेशी क्षेत्रों में $26.6 मिलियन की कमाई की; जिनमें, ब्रिटेन और फ्रांस में क्रमशः $4.6 मिलियन और $2.5 मिलियन की कमाई के साथ बॉक्स ऑफिस पर उच्चतम स्थान पर रही. वॉचमेन ने रूस में लगभग $2.3 मिलियन, ऑस्ट्रेलिया में $2.3 मिलियन, इटली में $1.6 मिलियन और कोरिया में $1.4 मिलियन की कमाई की.21 जुलाई 2009 तक, फिल्म ने विदेशी बॉक्स ऑफिस पर $75,225,483 की कमाई की है जिससे पूरी दुनिया में इसकी कुल कमाई $182,735,282 की हो गयी है।
समीक्षाएं
फिल्म की पहली थियेटर रिलीज़ को मिश्रित समीक्षाएं प्राप्त हुईं. रोटेन टोमेटोज़ द्वारा एकत्रित 255 समीक्षाओं के आधार पर, वॉचमेन को वर्तमान में आलोचकों द्वारा 6.2/10 के औसत स्कोर के साथ 64% 'ताजा' रेटिंग दी गयी है।रोटेन टोमेटोज़ के सर्वोच्च आलोचकों, जिसमें शीर्ष समाचार पत्रों, वेबसाइटों, टेलीविजन और रेडियो कार्यक्रमों के उल्लेखनीय आलोचक शामिल हैं, के अनुसार 5.2/10 के औसत स्कोर के साथ इस फिल्म को कुल 42% की "रोटेन/खराब" अनुमोदन रेटिंग प्राप्त हुई है।तुलना द्वारा, मेटा समीक्षक, जो कि मुख्य धारा आलोचकों के विपरीत 100 में से सामान्य रेटिंग देते हैं, फिल्म ने 39 समीक्षाओं के आधार पर 56 का औसत स्कोर प्राप्त किया है। सिनेमा स्कोर पोल की रिपोर्ट के अनुसार औसत दर्जे के सिनेमा जाने वालों ने A+ F के पैमाने पर फिल्म को B दिया है और प्राथमिक दर्शक बूढ़े आदमी थे।
IGN ऑस्ट्रेलिया के पैट्रिक कोलन ने इसे 10/10 का स्कोर देते हुए इस फिल्म की बहुत अधिक प्रशंसा की और कहा "वॉचमेन ही वह फिल्म है जिसे आप हमेशा देखना चाहते थे पर कभी हासिल होने की आशा नहीं की थी।एक और पूर्ण स्कोर (4/4) के साथ इसकी तुलना स्टेनली कुब्रिक्क की कुछ फिल्मों के साथ करते हुए न्यूयॉर्क पोस्ट के काइल स्मिथ ने फिल्म की प्रशंसा की. "300 के बाद निर्देशक ज़ैक स्नाईडर के मस्तिष्क से निकले शानदार विचार आवाज़ और दृष्टि के रूप में एक फिल्म देखने वाले व्यक्ति की सुस्त आँखों के लिए अभी भी उतने ही ताजा और शानदार है जितने 2001 में थे".रोजर एबर्ट ने इसे चार में से चार स्टार दिए. "यह एक सम्मोहक सहज ज्ञानयुक्त फिल्म है - ध्वनि, छवियाँ और किरदार एक निश्चित अजीब दृश्य अनुभव में गुंथे हुए हैं जिनसे एक ग्राफिक उपन्यास की भावना पैदा होती है।" टाइम के रिचर्ड कोर्लीस ने यह निष्कर्ष निकाला कि "यह महत्वाकांक्षी फिल्म अंश और टुकड़ों से बनी है", फिर भी "अंश अच्छे हैं, टुकड़े शानदार हैं।"टोटल फिल्म ने इसे 4/5 स्टार देते हुए कहा : "यह कल्पना करना मुश्किल है कि वॉचमेन को उतनी ईमानदारी से देखेगा जितनी गहराई से ज़ैक स्नाईडर ने शैली को ढाला है। सीधी, अव्यवसायिक और अद्वितीय."[232] मूल स्रोत सामग्री से फिल्म की तुलना करने पर, एम्पायर के इयान नेथन ने महसूस किया कि जबकि "यह ग्राफिक उपन्यास नहीं है।..एक चुस्त, प्रचलित, सभ्य अनुकूलन बनाकर, ज़ैक स्नाईडर ने स्पष्ट रूप से इसे एक उछाल दिया है।टाइम आउट सिडनी के निक डेंट ने 25 फ़रवरी की अपनी समीक्षा में फिल्म की नवीनता की तारीफ करते हुए फिल्म को 4/6 दिया है, लेकिन निष्कर्ष निकला कि, "जबकि वॉचमेन अभी भी किसी भी एक्शन फिल्म के मुकाबले बहुमूल्य, साहसी और बुद्धिमान है, यह मूर को भी बिल्कुल सही साबित करती है [कि वॉचमेन सहज ढंग से फिल्माने योग्य नहीं है]. एक कॉमिक बुक के रूप में, वॉचमेन एक असाधारण चीज़ है। एक फिल्म के रूप में, ध्वनि और आवेश के साथ बहती हुई यह सिर्फ एक और फिल्म मात्र है।"
आमतौर पर नकारात्मक समीक्षाएँ अधिकतर रचनात्मक व्याख्या के बजाय फिल्म की स्रोत सामग्री के लिए किये गये अंधाधुन्ध विज्ञापनों का उल्लेख करती हैं जिन्हें बार बार दोहराया जाता है - एलन मूर का ग्राफिक उपन्यास."वॉचमेन एक उबाऊ है।..यह अपने मूल की प्रशंसा के भार तले डूबती है," द वॉशिंगटन पोस्ट के फिलिप केन्निकोट ने लिखा. डेविन गॉर्डन ने न्यूजवीक के लिए लिखा था, "निष्ठा के साथ यही परेशानी है। थोड़ी सी चूक और आप अपने मूल प्रशंसकों को खो दोगे. बहुत अधिक और आप हर एक को खो दोगे - और सब कुछ- इसके अलावा भी.ओवेन ग्लीबरमैन की एंटरटेनमेंट वीकली की समीक्षा में लिखा है, "स्नाईडर प्रत्येक चित्र के साथ उसी पूरी घुटनयुक्त हवाबंद डिब्बे जैसा व्यवहार करता है। वह कैमरे को नहीं घुमाता या दृश्यों को फलने फूलने नहीं देता. वह अपने कलाकारों को फँसा कर फिल्म में अंश और टुकड़े ठूंसता है, जैसे कीड़ों को फंसाया जाता है।"[स्नाईडर] अपना दृष्टिकोण विकसित करने के लिए कभी नहीं रुकता है। परिणाम अजीब तरह से खोखला और असंबद्ध है; अभिनेता एक स्थिर दृश्य से दूसरे पर अकड़ते हुए घूमते हैं," शिकागो रीडर के नोआह बर्लेट्सकी कहते हैं।न्यूयॉर्क के डेविड एडेलस्टिन मानते हैं: "उन्होंने एक ग्राफिक उपन्यास की सबसे श्रेष्ठ अनुकृति बनाई है। लेकिन इस प्रकार की श्रेष्ठता संरक्षण को ख़त्म कर देती है। फिल्म में जोड़तोड़ किया गया है।द वाल स्ट्रीट जर्नल के एक समीक्षक ने लिखा, "'वॉचमेन' को देखना 163 मिनट के लिए खोपड़ी में जोर से मारने के आध्यात्मिक अनुभव के बराबर है। निष्क्रिय आदर भाव के साथ, हानिकारक हिंसा, धुंधला मिथक, भव्य आवाज, चिपचिपी बनावट है।" द आयरिश टाइम्स के डोनाल्ड क्लार्क ने इसी तरह उपेक्षापूर्ण ढंग से कहा : "साधारण 300 के निर्देशक स्नाईडर ने स्रोत सामग्री को तिरछी नज़रों से देखा और उदासीन प्रदर्शनों और प्रकटतः मूर्खतापूर्ण संगीत सुरों द्वारा संवर्धित कर के उसे विशाल एनिमेटेड कहानी बोर्ड में बदल दिया." व्यापार पत्रिका वैराइटी और द हॉलीवुड रिपोर्टर भी फिल्म से कम प्रभावित हुए. वैराइटी के जस्टिन चांग ने टिप्पणी की के, "अपनी ही प्रशंसा ने फिल्म को अंततः नष्ट किया है; पात्रों और कहानियों के आपसी मेल के लिए कोई जगह नहीं और यहां तक कि सबसे ध्यान से दोहराए दृश्य भी फिसलनयुक्त और खंडित हैं," और द हॉलीवुड रिपोर्टर के किर्क हनीकट ने लिखा, "असली निराशा यह है कि फिल्म ने दर्शकों को दूसरी दुनिया में नहीं भेजा, जैसा 300 ने किया था। ना ही रोर्शाक द्वारा तीसरे दर्जे के शैंडलर जैसे वर्णन ने मदद किया।.. ऐसा लगता है कि हमे 2009 का पहली वास्तविक फ्लॉप मिली है।"
विभाजित प्रतिक्रिया का विश्लेषण करके, लॉस एंजेल्स टाइम्स के ज्योफ बाउचर को लगा कि, आइज़ वाइड शट, द पैशन ऑफ़ द क्राइस्ट या फाइट क्लब की तरह, वॉचमेन फिल्म को पसंद या ना पसंद करने वालों के बीच एक बात करने का विषय बनी रहेगी. बाउचर के अनुसार पूरी फिल्म के बारे में उसकी मिश्रित भावनाओं के बावजूद, उसे निर्देशक के विश्वसनीय रूपांतरण पर "विचित्र रूप से गर्व" था जिसके कारण यह "आज तक की निडर पॉपकॉर्न फिल्मों से कुछ कम नहीं थी। स्नाईडर ने किसी तरह एक प्रमुख स्टूडियो को बिना सितारों के, बिना 'नाम' के सुपरहीरो और एक सख्त R-दर्जे की फिल्म बनाने के लिए मना लिया, सभी टूटी हुई हड्डियों, अजीब तरह की उल्लू जैसे जहाज पर सेक्स दृश्य और बेशक, अविस्मरणीय चमक वाले नीले लिंग के लिए धन्यवाद."
संगीत
सन्दर्भ
अतिरिक्त पठन के लिए
बाहरी कड़ियाँ
इंटरनेट मूवी फायरआर्म डाटाबेस पर वॉचमेन
2009 की फ़िल्में
2000 के दशक की साइंस फिक्शन फिल्में
वैकल्पिक इतिहास की फिल्में
अमेरिकी फ़िल्में
अंग्रेज़ी फ़िल्में
IMAX फिल्में
एलन मूर की कॉमिक्सों पर आधारित फिल्में
DC कॉमिक्स पर आधारित फिल्में
ज़ैक स्नाईडर द्वारा निर्देशित फिल्में
अंटार्कटिका में फिल्मों के सेट
न्यूयॉर्क शहर में फिल्मों के सेट
1980 के दशक में फिल्मों के सेट
वेन्कूवर में फिल्माई गयी फिल्में
महान चित्र फिल्में
फिल्म में मंगल
पैरामाउंट फिल्में
सुपरहीरो फ़िल्म
वियतनाम युद्ध फिल्में
वार्नर ब्रदर्स फिल्में
वॉचमेन
मरे हुए व्यक्ति द्वारा वर्णित काल्पनिक कथा
फिल्म और टेलीविजन में रिचर्ड निक्सन | 7,067 |
1343672 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%A8%20%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%94%E0%A4%B0%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF | मॉर्गन लाइब्रेरी और संग्रहालय | मॉर्गन लाइब्रेरी एंड म्यूजियम, पहले पियरपोंट मॉर्गन लाइब्रेरी , न्यूयॉर्क शहर में मैनहट्टन के मरे हिल के पड़ोस में एक संग्रहालय और शोध पुस्तकालय है। यह 225 मैडिसन एवेन्यू पर स्थित है, 36 वीं स्ट्रीट के बीच दक्षिण में और 37 वीं स्ट्रीट उत्तर में है।
मॉर्गन लाइब्रेरी एंड म्यूजियम कई संरचनाओं से बना है। मुख्य इमारत को मैककिम, मीड एंड व्हाइट की कंपनी चार्ल्स मैककिम द्वारा डिजाइन किया गया था , जिसमें बेंजामिन विस्टार मॉरिस द्वारा डिजाइन किए गए अनुलग्नक थे। आइजैक न्यूटन फेल्प्स द्वारा निर्मित 231 मैडिसन एवेन्यू में 19वीं सदी का इटैलियन ब्राउनस्टोन हाउस भी मैदान का हिस्सा है। संग्रहालय और पुस्तकालय में रेन्ज़ो पियानो और बेयर ब्लाइंडर बेले द्वारा डिजाइन किया गया एक कांच का प्रवेश द्वार भी है। मुख्य भवन और इसका आंतरिक भाग न्यूयॉर्क शहर द्वारा निर्दिष्ट लैंडमार्क और राष्ट्रीय ऐतिहासिक स्थलचिह्न है, जबकि 231 मैडिसन एवेन्यू का घर न्यूयॉर्क शहर का स्थलचिह्न है।
इस स्थान पर पहले फेल्प्स परिवार के आवासों का कब्जा था, जिनमें से एक बैंकर जेपी मॉर्गन ने 1880 में खरीदा था। मॉर्गन लाइब्रेरी की स्थापना 1906 में मॉर्गन के निजी पुस्तकालय को रखने के लिए की गई थी, जिसमें पांडुलिपियां और मुद्रित पुस्तकें, साथ ही साथ उनके प्रिंट और चित्रों का संग्रह शामिल था। मुख्य भवन का निर्माण 1902 और 1906 के बीच $12 लाख में किया गया था। पुस्तकालय को 1924 में जेपी मॉर्गन के बेटे जॉन पियरपोंट मॉर्गन, जूनियर द्वारा अपने पिता की इच्छा के अनुसार एक सार्वजनिक संस्थान बनाया गया था, और अनुलग्नक का निर्माण 1928 में किया गया था। 2006 में मॉर्गन लाइब्रेरी एंड म्यूज़ियम का नवीनीकरण होने पर कांच के प्रवेश द्वार को जोड़ा गया था।
संग्रह
पांडुलिपियाँ
मॉर्गन पुस्तकालय और संग्रहालय के संग्रह का सबसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण हिस्सा इसका अपेक्षाकृत छोटा लेकिन प्रबुद्ध पांडुलिपियों का बहुत ही चुनिंदा संग्रह है। अधिक प्रसिद्ध पांडुलिपियों में मॉर्गन बाइबिल, मॉर्गन बीटस, ऑवर्स ऑफ कैथरीन ऑफ क्लेव्स, फ़ार्नीज़ ऑवर्स, मॉर्गन ब्लैक ऑवर्स और कोडेक्स ग्लेज़ियर हैं । मॉर्गन के पास 1516 में भारत से एंड्रिया कोर्साली द्वारा लिखे गए पत्र की एक प्रति है; अस्तित्व में पांच में से एक, इस पत्र में दक्षिणी क्रॉस का पहला विवरण है।
पांडुलिपि संग्रह में लेखकों की मूल पांडुलिपियां भी शामिल हैं, जिनमें कुछ सर वाल्टर स्कॉट और होनोरे डी बाल्ज़ाक की भी शामिल हैं । अन्य वस्तुओं में एक पर्सी बिशे शेली नोटबुक शामिल है; एमिल ज़ोला से लेखन; रॉबर्ट बर्न्स की कविताओं के मूल; ए क्रिसमस कैरल की एक अनूठी चार्ल्स डिकेंस पांडुलिपि, हस्तलिखित संपादन और लेखक के मार्कअप के साथ; और हेनरी डेविड थोरो की एक पत्रिका। जॉर्ज सैंड, विलियम मेकपीस ठाकरे, लॉर्ड बायरन और चार्लोट ब्रोंटे के लेखन के साथ-साथ इवानहो सहित सर वाल्टर स्कॉट के नौ उपन्यासों की पांडुलिपियां भी हैं।
मॉर्गन का संगीत पांडुलिपि संग्रह केवल कांग्रेस के पुस्तकालय के बाद आकार में दूसरे स्थान पर है। इनमें बीथोवेन, ब्राह्म्स, चोपिन, महलर और वर्डी के ऑटोग्राफ और एनोटेट लिब्रेटी और डी मेजर में मोजार्ट की हैफनर सिम्फनी शामिल हैं। संग्रह में कागज के स्क्रैप भी शामिल हैं, जिस पर बॉब डायलन ने " ब्लोइन इन द विंड " और " इट इज़ नॉट मी बेब" लिखा था। इसमें विक्टोरियाना का काफी संग्रह भी शामिल है, जिसमें गिल्बर्ट और सुलिवन पांडुलिपियों और संबंधित कलाकृतियों का सबसे महत्वपूर्ण संग्रह शामिल है।
किताबें और मुद्रण
मॉर्गन में यूरोपीय कलाकारों, जैसे लियोनार्डो, माइकल एंजेलो, राफेल, रेम्ब्रांट, रूबेन्स, गेन्सबोरो, ड्यूरर और पिकासो के इनकुनाबुला का मुद्रित और चित्रों का एक बड़ा संग्रह है। संग्रह में प्रारंभिक मुद्रित बाइबिल शामिल हैं, उनमें से तीन गुटेनबर्ग बाइबिल हैं । संग्रह में परिष्कृत जिल्दसाज़ी के भी कई उदाहरण हैं। फ़ेलिस स्टैम्पफ़ल को 1945 में मॉर्गन पुस्तकालय में चित्रों और मुद्रण का पहला क्यूरेटर नियुक्त किया गया था।
मॉर्गन में प्राचीन मिस्र और मध्ययुगीन पूजन पद्धति संबंधी वस्तुओं ( कॉप्टिक साहित्य के उदाहरणों सहित) की सामग्री भी शामिल है; बुक ऑफ जॉब के अपने संस्करण के लिए विलियम ब्लेक के मूल चित्र; और एंटोनी डी सेंट-एक्सुपरी द्वारा द लिटिल प्रिंस के लिए अवधारणा चित्र भी है। मॉर्गन के पास प्राचीन निकट पूर्वी सिलेंडर सील का दुनिया का सबसे बड़ा संग्रह है, छोटे पत्थर के सिलेंडरों को रोलिंग द्वारा मिट्टी में स्थानांतरित करने के लिए छवियों के साथ बारीक उकेरा गया है।
कलाकृतियाँ और अन्य संग्रह
संग्रह में अभी भी 1907 और 1911 के बीच मॉर्गन द्वारा एकत्र की गई कुछ पुरानी मास्टर पेंटिंग शामिल हैं (हंस मेमलिंग, पेरुगिनो और सीमा दा कोनेग्लियानो द्वारा जानी जाने वाली)। हालांकि, यह संग्रह का फोकस कभी नहीं रहा है, और घिरलैंडियो की उत्कृष्ट कृति पोर्ट्रेट ऑफ जियोवाना टोर्नाबुओनी को थिसेन को बेच दिया गया था जब ग्रेट डिप्रेशन ने मॉर्गन परिवार के वित्तीय स्थिति को खराब कर दिया था। मॉर्गन के पास मध्यकालीन कलाकृतियां भी हैं जैसे कि स्टेवलॉट ट्रिप्टिच और लिंडौ गॉस्पेल के मेटलवर्क कवर।
संदर्भ
टिप्पणियाँ
उद्धरण
स्रोत
बाहरी संबंध
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संग्रहालय
पुस्तकालय
न्यूयॉर्क | 802 |
962337 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%20%E0%A4%A6%E0%A4%88 | ममांग दई | ममांग दई (जन्मः 23 फरवरी 1957) एक भारतीय आदिवासी कवयित्री, उपन्यासकार और पत्रकार हैं। ये अंग्रेजी में लिखती हैं। 2011 में इन्हें पद्मश्री और 2017 में ‘द ब्लैक हिल’ उपन्यास के लिए इन्हें साहित्य अकादमी का सम्मान मिल चुका है।
जीवन परिचय
ममांग दई का जन्म 23 फरवरी 1957 को पासीघाट, पूर्वी सियांग जिले में मातीन दई और ओडी दाई के परिवार में हुआ। इनका परिवार ‘आदि’ जनजाति (आदिवासी) से संबंधित है। पाइन माउंट स्कूल, शिलांग, मेघालय से इन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की है और गौहाटी विश्वविद्यालय, असम से अंग्रेजी साहित्य में कला स्नातक हैं।
1979 में इनका चयन आईएएस के लिए हो गया था, लेकिन इन्होंने आईएएस छोड़कर पत्रकारिता को अपना करियर बनाया। आईएएस के लिए चुने जाने वाली अरुणाचल राज्य की पहली महिला हैं। एक पत्रकार के रूप में काम करते हुए, इन्होंने द टेलीग्राफ, हिंदुस्तान टाइम्स और द सेंटिनल में योगदान दिया। इन्होंने रेडियो के साथ ही दूरदर्शन, इटानगर में भी काम किया है।
ये इटानगर प्रेस क्लब की सचिव, अरुणाचल प्रदेश लिटरेरी सोसाइटी की महासचिव, उत्तर पूर्व लेखकों के फोरम की सदस्य और साहित्य अकादमी व संगीत नाटक अकादमी के जनरल काउंसिल की मेम्बर रह चुकी हैं। 2011 में उन्हें अरुणाचल प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्य नियुक्त किया गया था। वर्तमान में ये अरुणाचल प्रदेश यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (एपीयूडब्ल्यू) की अध्यक्ष हैं।
साहित्य सृजन
अरुणाचल प्रदेश: द हिडन लैंड (2003)
माउंटेन हार्वेस्ट: द फूड ऑफ अरुणाचल (2004)
द स्काई क्वीन (2003)
वन्स अपॉन ए मूनटाइम (2003)
द लीजेंड ऑफ पेंसम (उपन्यास, 2006)
स्टूपिट क्यूपिड (उपन्यास, 2008)
द ब्लैक हिल (उपन्यास, 2014)
रिवर पोएम्स (कविता, 2004),
द बाल्म ऑफ टाइम (कविता, 2008)
हम्बेरेल्साईज लूम (कविता, 2014)
मिडसमर सरवाइवल लिरिक्स (कविता, 2014)
सम्मान
इन्हें 2011 में भारत सरकार से पद्मश्री मिली। अरुणाचल प्रदेश सरकार ने 2013 में इन्हें ‘अरुणाचल प्रदेश: द हिडन लैंड’ के लिए वार्षिक वेरियर एल्विन पुरस्कार से सम्मानित किया। 2017 में ‘द ब्लैक हिल’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
गूगल बुक्स पर ममांग दई
1957 में जन्मे लोग
आदिवासी (भारतीय)
भारतीय साहित्य
अंग्रेजी साहित्य
आदिवासी साहित्य
आदिवासी साहित्यकार
भारतीय महिला साहित्यकार
भारतीय आदिवासी महिला साहित्यकार
अरुणाचल प्रदेश के लोग
जीवित लोग | 354 |
1462285 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%80.%E0%A4%93.%20%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A4%82%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9F | वी.ओ. चिदंबरनार पोर्ट | वी.ओ. चिदंबरनार पोर्ट अथॉरिटी तमिलनाडु के थूथुकुडी में एक बंदरगाह है, और भारत के 13 प्रमुख बंदरगाहों में से एक है। इसे 11 जुलाई 1974 को एक प्रमुख बंदरगाह घोषित किया गया था। यह तमिलनाडु का दूसरा सबसे बड़ा बंदरगाह और भारत में तीसरा सबसे बड़ा कंटेनर टर्मिनल है। वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाह एक कृत्रिम बंदरगाह है। [6] यह तमिलनाडु में तीसरा अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह है और यह दूसरा बारहमासी बंदरगाह है। सभी वी.ओ. चिदंबरनार पोर्ट अथॉरिटी की ट्रैफिक हैंडलिंग 1 अप्रैल से 13 सितंबर 2008 तक 10 मिलियन टन को पार कर गई है, जिसमें 12.08 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई है, जो पिछले वर्ष के 8.96 मिलियन टन के हैंडलिंग को पार कर गई है। [7] इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, यूरोप, श्रीलंका और भूमध्यसागरीय देशों की सेवाएं हैं। स्टेशन कमांडर, तटरक्षक स्टेशन थूथुकुडी वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाह प्राधिकरण, तमिलनाडु कमांडर, तटरक्षक क्षेत्र (पूर्व), चेन्नई के परिचालन और प्रशासनिक नियंत्रण के तहत। तटरक्षक स्टेशन वी.ओ. चिदंबरनार पोर्ट अथॉरिटी को 25 अप्रैल 1991 को वाइस एडमिरल एसडब्ल्यू लखर, एनएम, वीएसएम तत्कालीन महानिदेशक तट रक्षक द्वारा कमीशन किया गया था। स्टेशन कमांडर मन्नार की खाड़ी में अधिकार क्षेत्र के इस क्षेत्र में तटरक्षक बल के संचालन के लिए जिम्मेदार है। [8] वी.ओ. चिदंबरनार पोर्ट अथॉरिटी थूथुकुडी एक आईएसओ 9001: 2008, आईएसओ 14001: 2004 और इंटरनेशनल शिप एंड पोर्ट फैसिलिटी सिक्योरिटी (ISPS) कोड कंप्लेंट पोर्ट है।
वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाह प्राधिकरण
तूतीकोरिन पोर्ट.जेपीजी का एक दृश्य
तमिलनाडु में दूसरा सबसे बड़ा बंदरगाह
जगह
देश
भारत
जगह
थूथुकुडी, तमिलनाडु
COORDINATES
8.4730 डिग्री एन 78.1215 डिग्री ई
संयुक्त राष्ट्र/LOCODE
इंटुट [1]
विवरण
खुल गया
1974; 49 साल पहले
द्वारा संचालित किया गया
वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाह प्राधिकरण
मालिक
वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाह प्राधिकरण, बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्रालय, भारत सरकार
बंदरगाह का प्रकार
मध्यम बंदरगाह (कृत्रिम)
बंदरगाह का आकार
960 एकड़ (388.8 हेक्टेयर)
भूमि क्षेत्र
2150 एकड़ (870.75 हेक्टेयर)
बर्थ की संख्या
13 [2]
घाटों की संख्या
7
पियर्स की संख्या
3
कर्मचारी
1,162 (2009-10)
मुख्य ट्रेड
औद्योगिक कोयला, कॉपर कंसन्ट्रेट, उर्वरक, लकड़ी के लॉग, लौह अयस्क
प्रमुख आयात: कोयला, सीमेंट, उर्वरक, कच्चे उर्वरक सामग्री, रॉक फॉस्फेट, पेट्रोलियम उत्पाद, पेट्रोलियम कोक और खाद्य तेल
प्रमुख निर्यात: सामान्य कार्गो, निर्माण सामग्री, तरल कार्गो, चीनी, ग्रेनाइट, लिमोनाइट अयस्क
संयुक्त राष्ट्र/LOCODE
इंटुत
आंकड़े
पोत आगमन
1,492 (2011-12)
वार्षिक कार्गो टन भार
28.642 मिलियन टन (2013-14 [3])
वार्षिक कंटेनर मात्रा
560,000 टीईयू (2014-2015)[4]
वार्षिक राजस्व
3878.0 मिलियन (2012-2013) आईएनआर [5]
वेबसाइट
https://www.vocport.gov.in/
इतिहास
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थूथुकुडी पोर्ट (सी. 1890 के दशक)
थूथुकुडी 2000 से अधिक वर्षों से समुद्री व्यापार और मोती मत्स्य पालन का केंद्र रहा है। एक समृद्ध भीतरी इलाके के साथ प्राकृतिक बंदरगाह, बंदरगाह के विकास को सक्रिय किया, शुरुआत में लकड़ी के खंभे और लोहे के स्क्रू पाइल घाट और रेलवे के कनेक्शन के साथ। थूथुकुडी को 1868 में एक छोटे लंगरगाह बंदरगाह के रूप में घोषित किया गया था। तब से वर्षों में कई विकास हुए हैं। छोटे बंदरगाहों का विकास मुख्य रूप से राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। भारत सरकार भी समझती है कि ट्रैफिक सर्वे हाल ही में शुरू किया गया था। एक गहरे समुद्री बंदरगाह के रूप में तूतीकोरिन का विकास 1920 से मद्रास सरकार के विचाराधीन है। तूतीकोरिन हार्बर के विकास के संबंध में सरकार को विभिन्न योजनाएं प्रस्तुत की गई हैं। बंदरगाह के विकास के लिए प्रस्तावित विभिन्न योजनाओं के नाम निम्नलिखित हैं:
वोल्फ बैरी एंड पार्टनर्स स्कीम
सर रॉबर्ट ब्रिस्टो की योजना,
पामर समिति की योजना,
श्री बी एन चटर्जी की योजना, और
सेतुसमुद्रम परियोजना समिति की योजना
8 मई 1958 को, तूतीकोरिन पोर्ट ट्रस्ट द्वारा बंदरगाह के लेआउट को निर्धारित करने के लिए की गई जांच अभी भी जारी है। [9]
जवाहरलाल नेहरू के प्रधान मंत्री होने के समय, कमलापति त्रिपाठी शिपिंग मंत्री थे, उन्होंने तूतीकोरिन में प्रमुख बंदरगाह का काम शुरू किया। जवाहरलाल नेहरू ने तब कहा था कि वह कमलापति त्रिपाठी और तत्कालीन वित्त मंत्री टी टी कृष्णामाचारी की उपस्थिति में तमिलनाडु के लोगों को यह बंदरगाह दे रहे थे। कैबिनेट की मंजूरी के बिना भी टी. टी. कृष्णामाचारी ने रु। 7 करोड़। 1 फरवरी 1980 को प्रमुख बंदरगाह पूरा हो गया है। यह इंदिरा गांधी के हस्तक्षेप पर पूरा हुआ जब वह प्रधान मंत्री थीं। [10]
थूथुकुडी के माध्यम से बढ़ते व्यापार से निपटने के लिए, भारत सरकार ने थूथुकुडी में एक बारहमासी बंदरगाह के निर्माण को मंजूरी दी, जो भारत में दूसरा सबसे बड़ा राजस्व लाता है। 11 जुलाई 1974 को नवनिर्मित तूतीकोरिन बंदरगाह को भारत का 10वां प्रमुख बंदरगाह घोषित किया गया। 1 अप्रैल 1979 को, तत्कालीन थूथुकुडी माइनर पोर्ट और नवनिर्मित थूथुकुडी प्रमुख पोर्ट को मिला दिया गया और वी.ओ. चिदंबरनार पोर्ट अथॉरिटी का गठन मेजर पोर्ट ट्रस्ट एक्ट, 1963 के तहत किया गया था। पोर्ट का नाम वी. ओ. चिदंबरम पिल्लई के नाम पर रखा गया है, [11] जो प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्हें कप्पलोट्टिया थमिज़ान के नाम से जाना जाता था, जिसका अर्थ है तमिलियन आदमी जो जहाज की सवारी करता था।
वर्षों में परिवर्तन
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27 जनवरी 2011: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तूतीकोरिन पोर्ट ट्रस्ट का नाम बदलकर वी.ओ. चिदंबरनार पोर्ट ट्रस्ट। [12]
5 मार्च 2022: भारत के राजपत्र दिनांक 31 जनवरी 2022 में प्रकाशित अधिसूचना के अनुसार वी.ओ. चिदंबरनार पोर्ट ट्रस्ट का नाम बदलकर वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाह प्राधिकरण। [13]
जगह
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वी.ओ. थूथुकुडी में चिदंबरनार बंदरगाह प्राधिकरण कोरोमंडल तट पर पूर्व-पश्चिम अंतर्राष्ट्रीय समुद्री मार्ग के रणनीतिक रूप से करीब स्थित है। मन्नार की खाड़ी में स्थित, दक्षिण पूर्व में श्रीलंका और पश्चिम में बड़े भारतीय भूभाग के साथ, बंदरगाह तूफानों और चक्रवाती हवाओं से अच्छी तरह से सुरक्षित है। बंदरगाह साल भर चौबीसों घंटे चालू रहता है। यह बंदरगाह तूतीकोरिन, तिरुनेलवेली, कन्याकुमारी, तेनकासी, विरुधुनगर, मदुरै, शिवगंगई, रामनाथपुरम, थेनी, डिंडीगुल, इरोड, तिरुपुर, सालेम, नमक्कल, करूर, नीलग्रिस और कोयंबटूर जिलों में कार्य करता है। तमिलनाडु के इन सभी जिलों को इस बंदरगाह से अच्छी सेवा मिलती है। अधिकांश लोग इस बंदरगाह का चयन इसके स्थान के कारण करते हैं जो दुनिया के सबसे व्यस्त पूर्व-पश्चिम अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग समुद्री मार्ग के पास स्थित है, और दूसरी बात यह है कि चेन्नई में स्थित बंदरगाहों की तुलना में इस बंदरगाह तक पहुंचना बहुत आसान है क्योंकि इसकी सड़क और रेल कनेक्टिविटी। यह राजमार्गों और एक्सप्रेसवे से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और इसमें टोल बूथों की संख्या कम होने के साथ-साथ वाहन यातायात की संख्या भी कम है, इसलिए माल समय पर भेजा जा सकता है।
भीतरी बंदरगाह लेआउट
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वी.ओ. चिदंबरनार पोर्ट अथॉरिटी एक कृत्रिम गहरे समुद्र का बंदरगाह है, जो मलबे के टीले के समान समानांतर ब्रेकवाटर से बना है जो 4 किमी तक समुद्र में जाता है। नॉर्थ ब्रेकवाटर की लंबाई 4,098.66 मीटर, साउथ ब्रेकवाटर की लंबाई 3,873.37 मीटर और ब्रेकवाटर के बीच की दूरी 1,275 मीटर है। बंदरगाह को पूरी तरह से स्वदेशी प्रयासों के माध्यम से डिजाइन और क्रियान्वित किया गया था। हार्बर बेसिन लगभग 400 हेक्टेयर संरक्षित जल क्षेत्र तक फैला हुआ है और 2,400 मीटर लंबाई और 183 मीटर चौड़ाई के एक दृष्टिकोण चैनल द्वारा परोसा जाता है।
संचालन
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आंतरिक बंदरगाह में 14 बर्थ हैं जिनमें दो कंटेनर जेटी और तीन कोयला और तेल जेटी शामिल हैं। बंदरगाह कंटेनरों और क्रूज जहाजों दोनों को संभालता है। कंटेनर टर्मिनल वर्तमान में PSA Sical द्वारा प्रबंधित किया जाता है। कंटेनर टर्मिनल में 44 मीटर पहुंच के साथ 3 क्वे क्रेन और कंटेनरों को ढेर करने के लिए चार आरटीजी क्रेन हैं। बंदरगाह में भंडारण सुविधाओं के लिए विशाल क्षेत्र भी है। इसके परिसर में 5,530,000 वर्ग मीटर का भंडारण क्षेत्र है। बंदरगाह में क्रूज जहाजों के लिए एक यात्री टर्मिनल भी है। दक्षिणी प्रायद्वीप में अपनी रणनीतिक स्थिति और चौबीसों घंटे संचालन सुनिश्चित करने के कारण, बंदरगाह दक्षिण तमिलनाडु में आर्थिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र रहा है। बंदरगाह वर्तमान में भारत में कुल कंटेनर यातायात का सात प्रतिशत संभालता है और तमिलनाडु के दक्षिणी जिलों में निवेश का एक महत्वपूर्ण कारण है। पोर्ट में दो कंटेनर बर्थ 370 मीटर लंबाई और 12.80 मीटर ड्राफ्ट के आयाम के हैं। यह बंदरगाह को कोलंबो बंदरगाह के खिलाफ प्रतिस्पर्धा में सीमित करता है, जिसकी गहराई 15 मीटर है। तूतीकोरिन पोर्ट ट्रस्ट विस्तार के लिए $1 बिलियन का निवेश कर रहा है। इसकी योजना दो चरणों में बनाई गई थी; पहले ने बंदरगाह को 10.9 मीटर की गहराई से 12.8 मीटर [14] की वर्तमान गहराई तक गहरा किया और दूसरा इसे 14.5 मीटर तक बढ़ा देगा। [15] बाहरी बंदरगाह के विस्तार के अलावा, प्रस्तावित उन्नयन में ब्रेकवाटर का निर्माण और पहुंच चैनल को लंबा करना शामिल है। बंदरगाह को 245 मीटर से अधिक लंबे जहाजों को संभालने के लिए उन्नत किया गया है। [16] बड़े जहाजों को तैनात करने के फायदे यह हैं कि बुकिंग पर मौजूदा प्रतिबंध को समाप्त किया जा सकता है और कोलंबो बंदरगाह पर ट्रांसशिपमेंट को कम किया जा सकता है। तूतीकोरिन बंदरगाह में इसकी अनूठी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए एक अंतरराष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट हब बनने की क्षमता है। [17] बंदरगाह पर गतिविधि पिछले पांच वर्षों में प्रति वर्ष 17% की दर से बढ़ी है। पीएसए सिकल द्वारा पहले कंटेनर टर्मिनल पर संचालन सहित, बंदरगाह में संचालन के एक बड़े हिस्से का निजीकरण कर दिया गया है। [18] इस बंदरगाह के लिए एक दूसरे कंटेनर टर्मिनल को मंजूरी दे दी गई है और यह संचालन में है। [19] तूतीकोरिन बंदरगाह दक्षिण भारत के लिए अमेरिका, यूरोप और भूमध्यसागर के लिए प्रवेश द्वार बन रहा है, इन क्षेत्रों के लिए सीधी समुद्री यात्रा के बाद। बंदरगाह से कुल निर्यात में से 25% यूरोप को, 20% अमेरिका को, 20% चीन सहित पूर्वी एशिया को, 15% कोलंबो को, 10% पश्चिम एशिया को और शेष भूमध्य सागर को था।
इस विस्तार के साथ, बंदरगाह की क्षमता मौजूदा 20.55 मिलियन टन से दोगुनी होकर 40.60 मिलियन टन कार्गो हो जाएगी। एक बार ड्रेजिंग पूरी हो जाने के बाद, बंदरगाह 5,000 ट्वेंटी-फुट समतुल्य इकाइयों (टीईयू) से 6,000 टीईयू तक की क्षमता वाले चौथी पीढ़ी के कंटेनर जहाजों को संभालने में सक्षम होगा। वर्तमान में, बंदरगाह 3,000 TEU क्षमता तक के कंटेनर जहाजों को संभाल सकता है। [20] क्षमता वृद्धि के लिए, तूतीकोरिन पोर्ट ने राष्ट्रीय समुद्री विकास कार्यक्रम (एनएमडीपी) के तहत विभिन्न ढांचागत विकास परियोजनाओं को हाथ में लिया है। पोर्ट ने 2012-2013 में शिपिंग मंत्रालय द्वारा निर्धारित लक्ष्य को पार करते हुए 5 लाख टीईयू को संभालने का रिकॉर्ड हासिल किया। 18 फरवरी 2016 को बंदरगाह ने पिछले वित्त वर्ष के 32.41 मिलियन टन के यातायात को पार कर लिया था और यह उपलब्धि वित्तीय वर्ष के अंत से 42 दिन पहले हासिल की गई थी। बंदरगाह ने 17.18 प्रतिशत की प्रभावशाली कार्गो वृद्धि को बनाए रखा था। [21]
मन्नार की खाड़ी में निगरानी को मजबूत करने और क्षेत्र में किसी भी संभावित आक्रमण की रक्षा के लिए पूर्वी नौसेना कमान के दायरे में एक नौसैनिक अड्डा स्थापित किया जाना है। वी.ओ. चिदंबरनार पोर्ट अथॉरिटी के अधिकारियों ने नौसेना बेस की स्थापना के लिए 'पोर्ट एस्टेट' क्षेत्र पर 24-एकड़ (97,000 वर्ग मीटर) प्लॉट आवंटित करने की इच्छा व्यक्त की। [22]
बंदरगाह क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ाने में भी मदद कर रहा है। थूथुकुडी और कोलंबो के बीच एक नया फेरी शुरू किया गया है।
बाहरी बंदरगाह
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वर्तमान में 33.34 मिलियन टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) की क्षमता के साथ 14 बर्थ हैं, जो सभी वी.ओ. में दो ब्रेकवाटर के भीतर स्थित हैं। चिदंबरनार बंदरगाह प्राधिकरण। थूथुकुडी थर्मल पावर स्टेशन के लिए कोयले की मोनो कमोडिटी के साथ शुरू हुआ पोर्ट विविध हो गया है और पोर्ट के कार्गो प्रोफाइल में आयात कार्गो शामिल हैं, जैसे। थर्मल कोल, टिम्बर लॉग्स, पेट्रोलियम उत्पाद, एलपीजी और विभिन्न अन्य बल्क, ब्रेक बल्क और कंटेनरीकृत कार्गो और निर्यात कार्गो जैसे। बैग में ग्रेनाइट, नमक, चीनी (कच्चा) सीमेंट, कंटेनरीकृत कार्गो और निर्माण सामग्री। पोर्ट के भीतरी इलाकों में तमिलनाडु राज्य के दक्षिणी भाग, केरल और कर्नाटक राज्य के कुछ क्षेत्र भी शामिल हैं।
बंदरगाह पर उपलब्ध सुविधा ने इस क्षेत्र में औद्योगिक विकास को गति दी है और यह दक्षिण भारत के पावर हब के रूप में भी उभर रहा है। एक्जिम व्यापार की बढ़ी हुई मांग को बढ़ाने के लिए, पीपीपी मोड के तहत नई 5 बर्थ चालू करके और मौजूदा सुविधाओं का उन्नयन करके पोर्ट 2015-16 तक क्षमता को बढ़ाकर 85 मिलियन टन प्रति वर्ष कर रहा है। फरवरी 2013 में बजट भाषण के दौरान, माननीय केंद्रीय वित्त मंत्री ने वी.ओ. में बाहरी हार्बर परियोजना के विकास की भी घोषणा की थी। चिदंबरनार पोर्ट अथॉरिटी - 7,500 करोड़ रुपये
चूंकि वर्तमान बंदरगाह में क्षमता वृद्धि संतृप्ति स्तर तक पहुंच गई है और भविष्य की मांगों को पूरा करने के लिए, बंदरगाह ने वर्तमान ब्रेकवाटर का विस्तार करके एक बाहरी बंदरगाह विकसित करने का प्रस्ताव दिया है। बंदरगाह ने डीपीआर (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) तैयार करने के लिए मैसर्स आई - मेरीटाइम कंसल्टेंसी प्राइवेट लिमिटेड, नवीमुंबई को नियुक्त किया है। सलाहकार ने दिसंबर 2013 में अंतिम डीपीआर प्रस्तुत किया। ब्रेकवाटर की कुल लंबाई 9,911 मीटर है, जिसमें उत्तरी ब्रेकवाटर को 4512 मीटर और दक्षिणी ब्रेकवाटर को 5399 मीटर तक बढ़ाया जाना है। मौजूदा चैनल को 300 मीटर तक चौड़ा किया जाना है और 680 मीटर व्यास का एक नया टर्निंग सर्किल बनाया जाना है। चरण 1, चरण 2, चरण 3 और चरण 4 के लिए कुल परियोजना लागत 23431.92 करोड़ रुपये आंकी गई है। परियोजनाओं के चार चरणों के लिए प्रस्तावित बर्थों की संख्या, प्रस्तावित कार्गो का प्रकार, और निष्पादन की अवधि आदि और डीपीआर में प्रस्तावित बाहरी हार्बर परियोजना के लिए ट्रैफिक फोर कास्ट निम्नानुसार है।
बाहरी हार्बर के विकास के साथ-साथ बंदरगाह के आसपास के क्षेत्र का विकास होगा जो बदले में पूरे क्षेत्र के सभी औद्योगिक विकास को बढ़ावा देगा। निर्माण के दौरान ब्याज सहित चरण 1 का व्यय पोर्ट द्वारा वहन किया जाना है जो 7,241.89 करोड़ रुपये है। बंदरगाह द्वारा वहन किए जाने वाले चरण 1 में निवेश 6,010 करोड़ रुपये की कुल लागत के साथ ब्रेकवाटर (2,464.93 करोड़), ड्रेजिंग लागत (3,221.33 करोड़), सड़कों की लागत (30.45 करोड़) और बंदरगाह शिल्प (293.10 करोड़) के निर्माण की ओर है। निर्माण के दौरान ब्याज को छोड़कर (आईडीसी)। पीपीपी ऑपरेटर द्वारा वहन किया जाने वाला चरण 1 व्यय आईडीसी सहित 4393.71 करोड़ रुपये है। बंदरगाह द्वारा मुख्य निवेश केवल चरण-I में किया जाना है, जिसमें ब्रेकवाटर, ड्रेजिंग और सड़क शामिल हैं। बंदरगाह को चरण 1 में ही ब्रेकवाटर, ड्रेजिंग और सड़क के लिए एक बार निवेश करना होगा। कुल निवेश का लगभग 98%बंदरगाह द्वारा केवल चरण 1 में किया जाना है और 2019 - 2024 से निर्धारित है। चरण 1 के लिए परियोजना आईआरआर -2,510 करोड़ की परियोजना एनपीवी के साथ 30 वर्षों के लिए 14.6% (अनुदान के बिना) है। सलाहकार ने यह भी सुझाव दिया कि, परियोजना की वित्तीय व्यवहार्यता के लिए, बंदरगाह को बजटीय सहायता के माध्यम से या बंदरगाह के निवेश के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के माध्यम से और बर्थ आदि के लिए परियोजना के वित्तपोषण की संभावना का पता लगाना होगा, यह निजी सार्वजनिक भागीदारी (पीपीपी) के माध्यम से होगा। .
वी.ओ. केंद्रीय बजट 2014-15 में आउटर हार्बर परियोजना के पहले चरण के लिए 11,635 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ थूथुकुडी में चिदंबरनार बंदरगाह प्राधिकरण और विकास के लिए तैयार है।
पोर्ट ट्रस्ट के अध्यक्ष एस. आनंद चंद्र बोस ने कहा कि घोषणा से क्षेत्र के विकास में मदद मिलेगी। विस्तृत परियोजना रिपोर्ट पहले ही प्रस्तुत की जा चुकी थी। यह परियोजना थूथुकुडी में बिजली स्टेशनों की स्थापना की सुविधा प्रदान करेगी और थूथुकुडी-मदुरै औद्योगिक गलियारे पर गतिविधियों को बढ़ावा देगी।
अंतर्राष्ट्रीय सेवा
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वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाह प्राधिकरण संयुक्त राज्य अमेरिका को सीधे साप्ताहिक कंटेनर सेवा प्रदान करने के लिए दक्षिण भारत का एकमात्र बंदरगाह है (पारगमन समय 22 दिन)।
यूरोप (पारगमन समय 17 दिन), चीन (पारगमन समय 10 दिन) और लाल सागर बंदरगाह (पारगमन समय 8 दिन) के लिए नियमित साप्ताहिक सीधी सेवाएं हैं। | 2,560 |
682254 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%9F%20%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B8%20%E0%A4%AA%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B8 | सेंट जेम्स पैलेस | सेंट जेम्स का महल () यूनाइटेड किंगडम की साम्राज्ञी का आधिकारिक निवास स्थान है। विभिन्न शाही निवास के महलों में यह बेहद प्रमुख और वरिष्ठ है। सिटी ऑफ़ वेस्टमिंस्टर में अवस्थित यह महल फिलहाल साम्राज्ञी का वास्तविक निवास स्थल तो नहीं है लेकिन ब्रिटिश शाही परिवार और उत्तराधिकार निर्धारण समिति के प्रमुख मिलन स्थलों में से एक है।
एक अस्पताल की भूमि पर इंग्लैंड के हेनरी अष्टम द्वारा बनवाया गया यह महल संत जेम्स द लेस को समर्पित था। ट्यूडर और स्टुअर्ट शासन के दौरान व्हाइटहाल का महल के बाद यह दूसरा सबसे प्रमुख महल और शाही निवास था। इस महल का महत्व हैनोवर सम्राटों के शासनकाल के काल में बढा लेकिन एक बार फिर बकिंघम पैलेस के हाथों अठ्ठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी में अपना प्रमुख स्थान गवाँ बैठा। दशकों तक मात्र आधिकारिक और औपचारिक अवसरों पर इस्तेमाल होने के बाद १८३७ ई. में महारानी विक्टोरिया ने इसे आधिकारिक रूप से इन्हीं कार्यों के लिये अधिकृत कर दिया। आज ये तमाम शाही कार्यालयों के लिये इस्तेमाल होता है।
इतिहास
ट्यूडर
एक अस्पताल की भूमि पर इंग्लैंड के हेनरी अष्टम द्वारा बनवाया गया यह महल संत जेम्स द लेस को समर्पित था। नया महल जो हेनरी के प्रिय व्हाइटहाल महल के बाद दूसरे क्रम पर आता था, का सन 1531 और 1536 के मध्य एक छोटे घर के रूप में निर्माण कराया गया था ताकि प्रतिदिन के दरबारी कार्यों से पृथक समय बिताया जा सके। यह पास ही के व्हाइटहाल महल से आकार में छोटा था। इसे तमाम दरबारों, सरकारी कार्यालयों, राजदूतों के आवासों व कार्यालयों के इर्द-गिर्द बनाया गया था। इसकी सबसे प्रमुख विशेषता इसका उत्तरी द्वार है; जो एक चार मंज़िला इमारत है और जिसके दोनों ओर अष्टभुजी मीनारें हैं। इसके उपरी तल पर एक बड़ी घड़ी लगी हुई है। इस विशालकाय दीवाल घड़ी को बाद के वर्षों में सन् 1731 में लगाया गया था। इस पर हेनरी और उसकी दूसरी पत्नी एन के नामों के प्रथमाक्षर H.A. मुद्रित हैं। हेनरी ने इस महल को लाल ईंटों से बनवाया था।
महल का रंगरूप सन् 1544 में दोबारा बदला गया। इसकी छतों को शाही चित्रकार हैन्स होल्बाईन द्वारा रंगा गया। इसे मनमोहक शाही भवन ("pleasant royal house") की संज्ञा दी गई। हेनरी अष्टम के दो बच्चों हेनरी फित्ज़रॉय, रिचमंड और सोमरसेट का पहला ड्यूक और मैरी प्रथम की सेंट जेम्स में मृत्यु हुई थी। एलिज़ाबेथ प्रथम अक्सर इस महल में रहा करती थीं और कहा जाता है कि स्पेनी अर्माडा के इंग्लिश चैनल पार करने से पहले की रात उन्होंने यहीं इंतजार में बितायी थीं।
स्टुअर्ट
1638 में चार्ल्स प्रथम ने यह महल अपनी सास मैरी डी मेडिसि को दे दिया। मैरी यहाँ तीन वर्षों तक रहीं लेकिन एक कैथोलिक पूर्व रानी का यहाँ रहना संसद को पसंद नहीं आया और उन्हें जल्द ही यह महल छोड़कर कोलोग्न चले जाने को कहा गया। चार्ल्स प्रथम ने अपनी घोषित मृत्यु से पहले की अपनी रात सेंट जेम्स में ही बितायी थी। ओलिवर क्रॉमवेल ने इसके बाद इसे अंग्रेजी राष्ट्रकुल के दौरान सैन्य छावनी में बदल दिया। चार्ल्स द्वितीय, जेम्स द्वितीय, मैरी द्वितीय और ऐन इन सभी का जन्म इसी महल में हुआ था।
राष्ट्रकुल की समाप्ति के बाद महल को चार्ल्स द्वितीय द्वारा पुन:स्थापित करवाया गया। उसी वक्त सेंट जेम्स उद्यान का निर्माण भी करवाया गया। 1698 में व्हाइटहाल महल के आग में नष्ट हो जाने के बाद विलियम और मैरी के शासनकाल में यह इंग्लैंड के महाराज का प्रमुख शाही निवास व प्रशासनिक भवन बन चुका था। शाही प्रशासनिक भवन की जिम्मेदारी यह महल अभी भी निभा रहा है।
बीसवीं शताब्दी
12 जून 1941 को यूनाईटेड किंगडम, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण अफ्रीकी यूनियन के प्रतिनिधियों और बेल्जियम, चेकोस्लोवाकिया, यूनान, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पोलैंड और युगोस्लाविया की निर्वासित सरकारों के प्रतिनिधियों व फ्रांस के जनरल डी गॉल ने यहाँ सेंट जेम्स में मुलाकात की और सेंट जेम्स का घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किया। यह संधि संयुक्त राष्ट्र व उसके अधिकारपत्र के निर्माण के लिये हस्ताक्षरित छ: संधियों में से पहली थी।
इन्हें भी देखें
बकिंघम पैलेस
होलीरूड पैलेस
वाइटहॉल का महल
टिप्पणी
सन्दर्भ
ब्रिटिश किले व महल
ब्रिटेन के ऐतिहासिक भवन
ब्रिटिश शाही निवास स्थान
यूरोप के स्थापत्य
ब्रिटेन का इतिहास
ट्यूडर राजघराना
हेनरी अष्टम
विकिपरियोजना ब्रिटिश राजशाही | 686 |
661597 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%80%20%28%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%95%29 | मोही (धारावाहिक) | मोही भारतीय हिन्दी धारावाहिक है, जिसका प्रसारण स्टार प्लस पर 10 अगस्त 2015 से शुरू हुआ। यह इससे पहले सोमवार से शनिवार तक देने वाले धारावाहिक एक वीर की अरदास...वीरा के स्थान पर दिखाया जा रहा है। इसमें मुख्य किरदार में विनीता जोशी ठक्कर और करन शर्मा हैं।
कलाकार
विनीता जोशी ठक्कर - मोही
करन शर्मा - आयुष
राकेश कुकरेती
गौरी टोंक
योगेश महाजन
शिजू कटारिया
सोनाक्षी मोरे
सृष्टि रोड़े
शुभांगी लटकर
निखिल पांडे
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ | 77 |
951725 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B2%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9 | चौधरी सुनील सिंह | चौधरी भारतीय राजनीतिज्ञ एवं लोकदल के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।
सियासत में हैसियत
सुनील सिंह एक राजनैतिक परिवार में जन्मे उन्हें विरासत में एक राजनैतिक दल का उत्तराधिकार भी मिला। सुनील सिंह लोकदल के अध्यक्ष के साथ दल के सबसे मजबूत नेताओं में से एक हैं। उन्होंने अब तक लोकदल के नाम और निशान को बचाके रखा है। हालांकि सुनील मात्र एक बार विधान परिषद के सदस्य बने हैं उसके बाद प्रत्येक चुनाव हार गये। वो मुलायम सिंह के करीबी नेता रहे हैं।सुनील सिंह ने 2018 से लोकदल को नई ऊर्जा देने का काम किया। सिंह ने घोषणा करी- लोकदल अपनी नीतियों के साथ प्रत्येक लोकसभा चुनाव में भाग लेगा।
सन्दर्भ | 111 |
1148262 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BF%E0%A4%A3%20%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%B0%E0%A4%B8%20%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80%2C%20%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A8%E0%A5%A6 | दक्षिण कोरिया में कोरोनावायरस महामारी, २०२० | आगे संदूषण की आशंकाओं के बीच, प्रभावित शहरों में सामूहिक समारोहों को रद्द कर दिया गया और डेगू में कुछ सौ सैनिक अलगाव में रक्खे गये हैं। दक्षिण कोरिया वर्तमान में दुनिया में चौथा सबसे बड़ा पुष्टिकृत संक्रमण है, जो चीन, इटली और ईरान से आगे है। 4 फरवरी तक, दक्षिण कोरिया ने हुबेई प्रांत से यात्रा करने वाले विदेशियों को कोविड -१९ के प्रसार को रोकने हेतु प्रवेश देने से इनकार कर दिया।
२० जनवरी - १७ फरवरी
२० जनवरी को, पहले पुष्टि किए गए मामले की पहचान एक 35 वर्षीय चीनी महिला के रूप में की गई थी। तीन दिनों के बाद संक्रमित होने वाला पहला दक्षिण कोरियाई नागरिक ५५ वर्षीय एक व्यक्ति था, जो वुहान में काम करता था और फ्लू के लक्षणों के साथ चेकअप के लिए वापस आया था। २४ जनवरी को दो संक्रमण रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से जारी की गईं।
२६ जनवरी को, एक ५४ वर्षीय दक्षिण कोरियाई व्यक्ति के रूप में तीसरा मामला सामने आया। उन्होंने एक किराये की कार का इस्तेमाल किया था और तीन रेस्तरां, एक होटल, एक सुविधा स्टोर का दौरा किया और खुद को अस्पताल में भर्ती करने से पहले अपने परिवार से मिले। इन सभी स्थानों को कीटाणुरहित कर दिया गया।
२७ जनवरी को, चौथा मामला ५५ वर्षीय दक्षिण कोरियाई व्यक्ति के रूप में दर्ज किया गया था, जो २० जनवरी को वुहान से लौटा था। उन्होंने २१ जनवरी को पहली बार फ्लू के लक्षणों का अनुभव किया और चार दिन बाद आगे की जटिलताओं का सामना किया। दोनों मामलों को २७ जनवरी को औपचारिक रिकॉर्ड में शामिल किया गया।
१ फरवरी को, पहले चार रोगियों पर एक अपडेट ने संकेत दिया कि पहले तीन रोगी कमजोर लक्षण दिखा रहे थे और ठीक हो रहे थे, जबकि चौथे रोगी को निमोनिया का इलाज किया जा रहा था। अफवाहों का प्रसार हुआ कि चौथे मरीज की मौत हो गई जिसका स्वास्थ्य अधिकारियों ने खंडन कर दिया।
३० जनवरी को दो और पुष्ट मामले दर्ज किए गए, पांचवें मरीज के साथ एक ३२ वर्षीय दक्षिण कोरियाई व्यक्ति था, जो २४ जनवरी को वुहान में अपने काम से लौटा था। छठा मरीज दक्षिण कोरिया का पहला मामला था जिसने कभी वुहान का दौरा नहीं किया था। ५६ वर्षीय व्यक्ति ने तीसरा मरीज एक रेस्तरां में जाने पर वायरस ग्रस्त हो गया।
३१ जनवरी को, सातवें रोगी को २३ जनवरी को वुहान से लौटने वाले २८ वर्षीय दक्षिण कोरियाई व्यक्ति के रूप में रिपोर्ट किया गया था। उन्होंने २६ जनवरी को लक्षण विकसित किए, और उन्हें २८ जनवरी को अस्पताल में भर्ती कराया गया। उसी दिन, वुहान से लौटी ६२ वर्षीय दक्षिण कोरियाई महिला के आठवें रोगी के रूप में चार और रोगियों को रिकॉर्ड में भर्ती कराया गया। नौवें मरीज ने पांचवें संपर्क के माध्यम से वायरस को पकड़ा, जबकि दसवें और ग्यारहवें रोगी पत्नी और बच्चे थे जो छठे रोगी का दौरा करते समय संक्रमित थे।
१ फरवरी को जापान में टूर गाइड के रूप में काम करने वाले एक ४९ वर्षीय चीनी नागरिक की बारहवें रोगी के रूप में पुष्टि की गई थी। उन्होंने जापान में एक जापानी मरीज का दौरा करते हुए वायरस को पकड़ा और १९ जनवरी को जिम्पो अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के माध्यम से दक्षिण कोरिया में प्रवेश किया। केसीडीसी ने २ फरवरी को एक अतिरिक्त तीन मामलों की पुष्टि की, जिसके बाद क्रोना के कुल पंद्रह रॊगी हो गये थे।
एक महिला, जो पांच दिन की छुट्टी के बाद थाईलैंड से लौटी थी, का सकारात्मक परीक्षण किया गया और 4 फरवरी को सोलहवें मामले के रूप में पुष्टि की गई। ५ फरवरी को तीन और मामलों की पुष्टि हुई, कुल केस संख्या १९ तक पहुंच गई। सत्रहवें और उन्नीसवें रोगियों ने सिंगापुर में एक सम्मेलन में भाग लिया था और वहां एक संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में थे। उसी दिन केसीडीसी ने घोषणा की कि लगातार परीक्षणों में नकारात्मक परीक्षण किए जाने के बाद दूसरे मरीज को अस्पताल से छोड़ दिया गया था, जो पूरी तरह से ठीक होने वाला देश का पहला कोरोनावायरस रोगी बन गया।
१८ फरवरी को, दक्षिण कोरिया ने शिनचोनजी धार्मिक संगठन के सदस्य डेगू में अपने ३१ वें मामले की पुष्टि की। रोगी लक्षण दिखाने के बाद भी शिनचोनजी की सभाओं में जाना जारी रखता है, जो आम तौर पर बहुत करीबी लोगों के साथ आयोजित किया जाता है और सदस्यों के शारीरिक संपर्क को शामिल करता है। SARS-CoV-2 संक्रमण के पुष्ट मामलों के दक्षिण कोरियाई प्रसार में भारी वृद्धि को ट्रिगर करते हुए, रोगी के कई करीबी संपर्क संक्रमित हो गये।
१९ फरवरी को, पुष्टि किए गए मामलों की संख्या में २० की वृद्धि हुई। केसीडीसी के अनुसार, २० फरवरी,को ७० नए मामलों की पुष्टि की गई, कुल १०४ पुष्टि मामले दिए गए। रायटर,के अनुसार KCDC द्वारा अचानक ७० रोगियों की सन्ख्या बढने की वजह "रोगी नं .31", था जो डेगू यीशु के Shincheonji चर्च साक्षी के तम्बू का मंदिर में एक सभा में भाग लिया था।
शिनचोनजी के प्रकोप की प्रतिक्रिया में २० फरवरी को डेगू की सड़कें खाली थीं। एक निवासी ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, "यह ऐसा है जैसे किसी ने शहर के बीच में एक बम गिरा दिया। यह एक ज़ोंबी सर्वनाश जैसा दिखता है। " पहली मौत की सूचना चेयोंगो काउंटी के चेयोंगडो देनम अस्पताल के एक मानसिक वार्ड में मिली थी। डेगू के मेयर के अनुसार, २१ फरवरी तक संदिग्ध मामलों की संख्या चर्च के ४४०० परीक्षार्थियों मे से ५४४ थी। उस दिन दक्षिण कोरिया का दूसरा घातक मामला बन जाने के बाद अस्पताल को वर्तमान प्रकोप के स्रोत के रूप में संदेह था। जांच करने पर, यह निर्धारित किया गया कि संक्रमण उस अस्पताल में चर्च के सदस्यों द्वारा आयोजित अंतिम संस्कार समारोह के माध्यम से फैल गया था।
सभी दक्षिण कोरियाई सैन्य ठिकानों में लॉकडाउन पर था क्योंकि परीक्षणों ने तीन सैनिकों के वायरस के लिए सकारात्मक होने की पुष्टि की थी। आगे फैलने की आशंका के चलते एयरलाइंस के कटे हुए कनेक्शन और सांस्कृतिक कार्यक्रम रद्द कर दिए गए। संयुक्त राज्य अमेरिका के बलों ने यूएसएफके डेगू से और गैर-आवश्यक यात्रा के लिए निम्न से मध्यम और कट-ऑफ से सतर्क स्तर उठाया। यूएसएफके डेगू के स्कूल सुविधाओं को बंद कर दिया गया था और गैर-आवश्यक कर्मियों को घर पर रहने का आदेश दिया गया था, जबकि वहां जाने वाले किसी भी आगंतुक को प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। यूएसएफके ने घोषणा की कि डेगू में रहने वाले एक सेवानिवृत्त सैनिक की विधवा को 24 फरवरी को वायरस के लिए सकारात्मक होने का पता चला था। कैंप हम्फ्रीज़ ने तापमान जांच सहित वायरस डिटेक्शन प्रोटोकॉल लागू किए और अलर्ट स्तर को ऊंचा किया। 26 फरवरी को, कैंप कैरोल पर आधारित एक अमेरिकी सैनिक को सकारात्मक होने का पता चला था और उसे दूर-दूर की आवास इकाई माध्यम से ठिकानों से दूर कर दिया गया था, जिसके संपर्क में कैंप वॉकर के अपने कदम थे। | 1,125 |
709310 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B2%20%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3 | सुनील नारायण | सुनील नारायण वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम के एक क्रिकेट खिलाड़ी है। सुनील नरेन साल 2012 में पहली बार कोलकाता नाइट राइडर्स के साथ जुड़े थे, तब से वह लगातार इस टीम के साथ है . आईपीएल 2022 की मेगा नीलामी से पहले सुनील नरेन को केकेआर ने 6 करोड़ रुपए में रिटेन किया था |
2017 में सुनील नरेन ने आईपीएल में सबसे तेज अर्धशतक मारने का रिकॉर्ड बनाया था |
सुनील नरेन ने आईपीएल में कुल 145 मैच खेले है, जिसमें उन्होंने 151 विकेट झटके हैं. साथ ही उन्होंने कुल 1003 रन भी बनाए हैं | वह आईपीएल इतिहास में एक हजार रन बनाने के साथ 150 या उससे ज्यादा विकेट लेने वाले दूसरे खिलाड़ी हैं |
सन्दर्भ
क्रिकेट खिलाड़ी
जीवित लोग
वेस्ट इंडीज़ के क्रिकेट खिलाड़ी
1988 में जन्मे लोग | 131 |
1369507 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B8%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8B%20%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A5%80%20%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%87 | जोस फ़्रांसिस्को कैली त्ज़े | residenceJosé Francisco Calí Tzay
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जोस फ़्रांसिस्को कैली त्ज़े (जन्म 27 सितंबर 1961) ग्वाटेमाला के वकील और राजनयिक हैं।
स्वदेशी लोगों के अधिकारों पर वर्तमान विशेष प्रतिवेदक विक्टोरिया टौली-कॉर्पज़ के कार्यकाल के बाद जाे कि 2020 में समाप्त हो रहा है, वह 2021 से स्वदेशी लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के विशेष प्रतिवेदक का पद ग्रहण करेंगे। संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत के रूप में, उन्हें स्वदेशी लोगों के अधिकारों के कथित उल्लंघन की जांच करने और स्वदेशी लोगों के अधिकारों से संबंधित अंतरराष्ट्रीय मानकों के कार्यान्वयन को बढ़ावा देने का काम सौंपा गया है। इस क्षमता में, उन्होंने और डेविड आर बॉयड ने 2022 की शुरुआत में स्वीडन से आग्रह किया कि वह ब्रिटिश कंपनी बियोवुल्फ़ माइनिंग को गैलोक क्षेत्र में लौह-अयस्क कल्लाक खदान के लिए लाइसेंस न दें, जो स्वदेशी सामी लोगों का घर है, यह कहते हुए कि ओपन-पिट माइन संरक्षित पारिस्थितिकी तंत्र और हिरन के प्रवास को खतरे में डालेगा।
संदर्भ
जीवित लोग
20वीं सदी में जन्मे लोग
1961 में जन्मे लोग | 171 |
994932 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BC%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%B2%20%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%88 | क़तील शिफ़ाई | मुहम्मद औरंगज़ेब या क़तील शिफ़ाई (उर्दू : قتلیل شِفائ ) (24 दिसंबर 1919 - 11 जुलाई 2001) एक पाकिस्तानी उर्दू भाषा के कवि थे।
प्रारंभिक जीवन और कैरियर
क़तील शिफ़ाई का जन्म 1919 में ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान) में मुहम्मद औरंगजेब के रूप में हुआ था।
उन्होंने 1938 में 'क़तील शिफ़ाई' को अपने कलम नाम के रूप में अपनाया, जिसके तहत उन्हें उर्दू शायरी की दुनिया में जाना जाता था। "क़तील" उनका "तख़ल्लुस" था और "शिफ़ाई" उनके उस्ताद (शिक्षक) हकीम मोहम्मद याहया शिफ़ा ख़ानपुरी के सम्मान में था, जिसे वे अपना गुरु मानते थे।
1935 में अपने पिता की मृत्यु के कारण, कतेल को अपनी उच्च शिक्षा छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने अपने खेल के सामान की दुकान शुरू की। अपने व्यवसाय में असफल होने के कारण, उन्होंने अपने छोटे शहर से रावलपिंडी जाने का फैसला किया, जहाँ उन्होंने एक ट्रांसपोर्ट कंपनी के लिए काम करना शुरू किया और बाद में 1947 में फिल्म गीतकार के रूप में पाकिस्तानी फिल्म उद्योग में शामिल हो गए। "उनके पिता एक व्यापारी थे और उनके परिवार में शायर-ओ-शायरी की कोई परंपरा नहीं थी। शुरू में, उन्होंने सुधार और सलाह के लिए हकीम याह्या शिफा खानपुरी को अपनी कविता दिखाई। कतेल ने उनसे उनका काव्य उपनाम 'शिफाई' निकाला। बाद में, वह अहमद नदीम कासमी के शिष्य बन गए जो उनके दोस्त और पड़ोसी थे। "
"1946 में, उन्हें 1936 के बाद से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका 'आदाब-ए-लतीफ' के सहायक संपादक के रूप में काम करने के लिए नजीर अहमद द्वारा लाहौर बुलाया गया था। उनकी पहली गज़ल लाहौर के साप्ताहिक स्टार" एडिट "में प्रकाशित हुई थी। क़मर अजनाली द्वारा। "
जनवरी 1947 में, क़तील को लाहौर के एक फिल्म निर्माता, दीवान सरदारी लाल द्वारा फिल्म के गीत लिखने के लिए कहा गया। पहली फिल्म के लिए उन्होंने पाकिस्तान में तेरी याद (1948) के बोल लिखे। बाद में, कुछ प्रसिद्ध कवियों / समय (1948 से 1955 के समय के गीतकारों) के सहायक गीतकार के रूप में कुछ समय तक काम करने के बाद, वे अंततः पाकिस्तान के एक अत्यंत सफल फिल्म गीतकार बन गए और कई पुरस्कार जीते उनकी फिल्मी गीत के बोल।
मृत्यु और विरासत
11 जुलाई 2001 को पाकिस्तान के लाहौर में कतेल शिफाई की मृत्यु हो गई।
कविता के 20 से अधिक संग्रह और पाकिस्तानी और भारतीय फिल्मों के लिए 2,500 से अधिक फिल्मी गीत प्रकाशित हुए। उन्होंने 201 पाकिस्तानी और भारतीय फिल्मों के लिए गीत लिखे। उनकी प्रतिभा सीमाओं को पार कर गई। उनकी कविता का हिंदी, गुजराती, अंग्रेजी, रूसी और चीनी सहित कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है। 2012 में कतेल शिफाई की 11 वीं पुण्यतिथि पर, एक प्रमुख समाचार पत्र को दिए एक साक्षात्कार में, एक प्रमुख साहित्यकार डॉ सलाउद्दीन दरवेश ने कहा, "शिफाई 20 वीं सदी के उन महान कवियों में से एक थे जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय पहचान हासिल की थी।"
क़तील शिफ़ाई को 1994 में पाकिस्तान सरकार द्वारा साहित्य में उनके योगदान के लिए 'प्राइड ऑफ़ परफॉरमेंस अवार्ड', 'अदमजी अवार्ड', 'नक़ोश अवार्ड', 'अब्बासिन आर्ट्स काउंसिल अवार्ड' सभी पाकिस्तान में दिए गए। भारत में बहुत प्रतिष्ठित 'अमीर खुसरो पुरस्कार' दिया गया। १९९९ में, उन्हें पाकिस्तान फिल्म उद्योग में उनके जीवन भर के योगदान के लिए 'स्पेशल मिलेनियम निगार अवार्ड' मिला।
1970 में क़तील शिफ़ाई ने अपनी मातृ भाषा में एक फिल्म का निर्माण किया- हिंडको — 1970 में। यह पहली हिंदो फिल्म थी, जिसे "किसा ख्वानी" नाम दिया गया था। फिल्म 1980 में रिलीज़ हुई थी। 11 जुलाई 2001 को लाहौर में उनका निधन हो गया। जिस गली में वह लाहौर में रहता था, उसका नाम कतेल शिफाई स्ट्रीट रखा गया है। हरिपुर शहर का एक सेक्टर भी है जिसका नाम उनके नाम पर रखा गया है - मोहल्ला क़तील शिफ़ाई।
फिल्मोग्राफी
जिसमें पाकिस्तानी और भारतीय दोनों फिल्में शामिल हैं।
बड़े दिलवाला (1999) (गीतकार)
ये है मुंबई मेरी जान (1999) (गीतकार)
औज़ार (1997) (गीतकार)
तमन्ना (1996) (क़तील शिफ़ाई के रूप में)
नाजायज़ (1995) (गीतकार) (क़ैतेल शिफाई के रूप में)
नाराज़ (1994) (क़तील शिफ़ाई के रूप में)
हम हैं बेमिसाल (क़तील शिफ़ाई के रूप में)
सर (1993) (गीतकार) (क़तील शिफ़ाई के रूप में)
फिर तेरी कहानी याद आई (1993) (आपकी यादें लौट आईं) (गीतकार) (क़तील शिफ़ाई के रूप में)
तहकीकात (1993) (गीतकार) (क़तील शिफ़ाई के रूप में)
पेंटर बाबू (1983) (गीतकार)
शीरीं फ़रहाद (1975) (गीतकार)
नैला (1965) (गीतकार)
हवेली (1964) (गीतकार)
ज़हर-ए-इश्क (1958) (गीतकार)
इंतेज़ार (1956) (गीतकार)
कातिल (1955) (गीतकार)
गुमनाम (1954) (जूनियर गीतकार के रूप में हकीम अहमद शुजा की सहायता)
गुलनार (1953) (सहायक गीतकार)
तेरी याद (1948) (सहायक गीतकार) - (आपकी यादें - अंग्रेजी में समतुल्य फिल्म का शीर्षक) (पाकिस्तानी फिल्म उद्योग में पहली बार रिलीज हुई फिल्म)
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
Qateel Shifai Web Site
उर्दू शायर
1919 में जन्मे लोग
2001 में निधन
पाकिस्तानी शायर | 772 |
5130 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%20%E0%A4%AE%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%BE | अहुरा मज़्दा | अहुर मज़्दा या असुर महत अवस्ताई भाषा में प्राचीन ईरानी पंथ के एक देवता का नाम है जिन्हें पारसी पंथ के संस्थापक ज़रथुश्त्र ने अजन्मा और सर्वज्ञ परमेश्वर बताया था। इसके अलावा इनके लिए ओह्रमज़्द, होउरमज़्द, हुरमुज़, अरमज़्द और अज़्ज़न्दारा नाम भी प्रयोग किये जाते हैं। वे पारसी पंथ के सर्वोच्च देवता हैं और यस्न (पारसी पूजा विधि है) में इन्हें सर्वप्रथम और सर्वाधिक सम्बोधित किया जाता है। ऋग्वेद २: १: ६ में, उन्हें असुर महत के रूप में वर्णित किया गया है। अहुर मज़्दा को प्रकाश और अच्छाई उनके ख़िलाफ़ शैतानी दाएवों का अध्यक्ष है अंगिरा मैन्यु।
देव गणों की पूजा का उल्लेख १५वी शताब्दी ईसा पूर्व में ईरान से लेकर सीरिया और तुर्की में पाया जाता है। इन अभिलेखों में भारत से इन देवताओं के आने का उल्लेख है। इससे पता चलता है कि अगले हजार साल में दक्षिणी इरान में कुछ लोग देवो के बदले असुर को पूजने लगे। पारसी पंथ शुरुआत ५वी शताब्दी से मानता है।
आदिम हिन्द-ईरानी लोगों के पंथ में संसार और ब्रह्माण्ड में अच्छाई और सही व्यवस्था के महत्त्व पर ज़ोर था। जब भारतीय आर्य और ईरानी लोगों का विभाजन हुआ तो इस सही व्यवस्था के लिए संस्कृत में शब्द 'ऋत' बना और ईरानी भाषाओँ में इसका सजातीय 'अर्ता' () बना, जिसका एक अन्य रूप 'अशा' है। ध्यान दीजिये कि क्योंकि अंग्रेज़ी भी हिन्द-यूरोपीय भाषा परिवार की सदस्य है इसलिए उसमें भी सही के लिए इस से मिलता-जुलता शब्द है। इसके विपरीत जाने वाली क्रिया को संस्कृत में 'द्रुह' और फ़ारसी में 'द्रुज' कहा गया, यानि 'झूठा' या 'बुरा'। पारसी धर्म में अहुर मज़्दा अर्ता के लिए और द्रुज के खिलाफ़ हैं जबकि अंगिरा मैन्यु उस से विपरीत है।
परिचय
अहुरमज्द प्राचीन ईरान के पैगंबर ज़रथुस्त्र की ईश्वर (अहु=स्वामी, मज्द=परम ज्ञान) को प्रदत्त संज्ञा। सर्वद्रष्टा, सर्वशक्तिमान्, सृष्टि के एक कर्ता, पालक एवं सर्वोपरि तथा अद्वितीय, जिसे वंचना छू नहीं सकती और जो निष्कलंक है। पैगंबर की 'गाथाओं' अथवा स्तोत्रों में ईश्वर की प्राचीनतम, महत्तम एवं अत्यंत पवित्र भावना का समावेश मिलता है और उसमें प्राकृतिक शक्ति (स्थ्रोंपॉमर्फिक) पूजा का सर्वथा अभाव है जो प्राचीन आर्य और सामी देवताओं की विशेषता थी। धार्मिक नियमों में जिनका पालन करना प्रत्येक ज़रथुस्त्र मतावलंबी का कर्तव्य माना जाता है; उसे इस प्रकार कहना पड़ता है-मैं अहुरमज्द के दर्शन में आस्था रखता हूँ... मैं असत देवताओं की प्रभुता तथा उनमें विश्वास रखनेवालों की अवहेलना करता हूँ।
इस प्रकार प्रत्येक नवमतानुयायी प्रकाश का सैनिक होता है जिसका पुनीत कर्तव्य अंधकार और वासना की शक्तियों से धर्मसंस्थान के लिए लड़ना है।
ऐ मज्द! जब मैंने तुम्हारा प्रथम साक्षात पाया, इस प्रकार पैगंबर ने एक सुप्रसिद्ध पद में कहा है, मैंने तुम्हें केवल विश्व के आदि कर्ता के रूप में अभिव्यक्त पाया ओर तुमको ही विवेक का स्रष्टा (श्रेष्ठ, मिन्) एवं सद्धर्म का वास्तविक सर्जक तथा मानव जाति के समस्त कर्मों का नियामक समझा।
अहुरमज्द का साक्षात् केवल ध्यान का विषय है। पैगंबर ने इसी लिए ऐसी उपमाओं और रूपकों का आश्रय लेकर ईश्वर के विषय में समझाने का प्रयास किया है, जिनके द्वारा अनंत की कल्पना साधारण मनुष्य की समझ में आ पाए। वह ईश्वर से स्वयं वाणी में प्रकट होकर उपदेश करने के लिए अराधना करता है और इस बात का निर्देश करता है कि अपने चक्षुओं से सभी व्यक्त एवं अव्यक्त वस्तुओं को देखता है। इस प्रकार की अभिव्यंजनाएँ प्रतीकात्मक ही कही जाएँगी।
इन्हें भी देखें
पारसी धर्म
ज़रथुश्त्र
अवस्ताई भाषा
सन्दर्भ
मज़्दा, अहुरा
मज़्दा, अहुरा
ऋग्वैदिक देवी-देवता | 560 |
40486 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%281975%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29 | काला सोना (1975 फ़िल्म) | काला सोना 1975 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
संक्षेप
चरित्र
मुख्य कलाकार
फ़िरोज़ ख़ान - राकेश
परवीन बॉबी - दुर्गा
प्रेम चोपड़ा
फरीदा ज़लाल - बेला
इम्तियाज़ ख़ान
हेलन - चमेली
दुर्गा खोटे
केष्टो मुखर्जी
बिपिन गुप्ता - रंजीत सिंह
पॉलसन
अभिजीत
श्याम
मामा जी
आग़ा
दल
संगीत
फिल्म के गीत मज़रूह सुल्तानपुरी ने लिखे और संगीत आर डी बर्मन ने दिया।
गीत सूची
एक बार जाने-जाना : आशा भोंसले
कोई आया आने भी दे : आशा भोंसले
सुन सुन कसम से : आशा भोंसले, डैनी डेंग्जोंग्पा
ताक झूम नाचो नशे में तुम : आशा भोंसले, किशोर कुमार
रोचक तथ्य
परिणाम
बौक्स ऑफिस
समीक्षाएँ
नामांकन और पुरस्कार
बाहरी कड़ियाँ
1975 में बनी हिन्दी फ़िल्म | 116 |
981991 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%AE%20%E0%A4%95%E0%A4%BC%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A4%BC%E0%A5%81%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%AC%20%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B9%20%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A5%80 | इब्राहीम क़ुली क़ुतुब शाह वली | इब्राहीम क़ुली क़ुतुब शाह वली (1518 - 5 जून 1580), जिसे तेलुगू नाम "माल्की भाराम" भी पुकारा जाता है, दक्षिणी भारत में गोलकुंडा राज्य के चौथे शासक थे। वह " सुल्तान " शीर्षक का उपयोग करने वालों में कुतुब शाही राजवंश के पहले सुलतान थे। उन्होंने 1550 से 1580 तक शासन किया। विजयनगर के दरबार में वे एक सम्मानित अतिथि के रूप में निर्वासन में सात साल तक रहे थे, लेकिन अपने राज्य वापस जाने के पंद्रह साल बाद, उन्होंने अपने पूर्व मेज़बान और दोस्तों से ही लड़ बैठे, कुछ अन्य मुस्लिम शासकों के साथ विजयनगर पर हमला बोलै और कब्ज़ा कर लिया।
जीवनी
इब्राहिम का जन्म गोलकुंडा के कुतुब शाही राजवंश में हुआ, वे गोलकोंडा के संस्थापक कुली कुतुब मुल्क के पुत्र थे। उनके पिता, एक जातीय तुर्कमेनिस्तान, अपने परिवार के साथ एक युवा व्यक्ति के रूप में भारत आए थे और दक्कन में बहमानी सल्तनत की अदालत में रोजगार ले लिया था। वह सेना में तेजी से आगे बढ़ कर तरक्की पायी थी, और जब बहामनी सल्तनत अलग हो गया था और गिर गया तो उसने सेना के बल से खुद की एक बड़ी रियासत बनाई थी। इब्राहिम उनके पुत्रों में से कनिष्ठ पुत्र थे।
1543 में, इस तरह के असाधारण जीवन को इतने ज्यादा और जीवित रहने के बाद, कुली कुतुब मुल्क अपने छोटे बेटे जमशेद ने मारे गए, जबकि वह एक दिन अपनी प्रार्थनाएं दे रहे थे। इब्राहिम के भाई इसासिन ने अपने सभी भाइयों को पकड़ने या मारने या विचलित करने के हर संभव प्रयास किए। वह अपने सबसे बड़े भाई, ताज राजकुमार कुतुबुद्दीन को पकड़ने और अंधा करने में कामयाब रहे, लेकिन इब्राहिम किसी भी तरह से भागने में कामयाब रहे। वह गोलकोंडा से भाग गया और विजयनगर के शक्तिशाली हिंदू शासक की अदालत में शरण ली। यहां वह विजयनगर, अली्या राम राय के शक्तिशाली कुलपति के सम्मानित अतिथि के रूप में निर्वासन में रहते थे। वह विजयनगर अदालत में सात साल (1543-50) के लिए रहते थे।
विजयनगर में अपने प्रवास के दौरान, इब्राहिम ने शाही परिवार और कुलीनता के साथ बहुत करीबी और प्रेमपूर्ण संबंध विकसित किए, और हिंदू, तेलुगु संस्कृति से भी गहराई से प्रभावित हो गए। उन्होंने कपड़े, भोजन, शिष्टाचार, और सब से ऊपर, भाषण के हिंदू / तेलुगु तरीके अपनाया। उन्होंने तेलुगु भाषा के लिए एक मजबूत प्यार विकसित किया, जिसे उन्होंने अपने पूरे शासनकाल में संरक्षित और प्रोत्साहित किया। दरअसल, वह अब तक अपने लिए एक नया नाम अपनाने के लिए चला गया, "माल्की भाराम," जिसका नाम एक मजबूत, देहाती तेलुगु उच्चारण के साथ बोली जाती है। उन्होंने इस नाम का इस्तेमाल विभिन्न आधिकारिक पत्रों और दस्तावेजों में किया और इसलिए इसे आधिकारिक मान्यता मिली।
विजयनगर में, हिब्रू संस्कार और रीति-रिवाजों के अनुसार, इब्राहिम ने बागिरधी से शादी की (सही ढंग से: "भागीरथी"), एक हिंदू महिला। बागिरधी को "काव्य कन्याका" भी कहा जाता था और वह संगीत और नृत्य में एक समृद्ध विरासत वाले परिवार से आईं, जो फिर से हिंदू, दक्षिण भारतीय परंपराओं में निहित हैं। इब्राहिम और भागीरथी, अर्थात् मुहम्मद कुली कुतुब शाह के लिए पैदा हुआ पुत्र, अपने पिता को वंश के 5 वें शासक बनने में सफल रहेगा।
समय के साथ, जमशेद कुली की मृत्यु हो गई, और थोड़ी देर बाद, जमशेद के शिशु पुत्र सुबान भी मर गए। तब इब्राहिम गोलकोंडा लौट आया और 1550 में सिंहासन ले लिया। यहां फिर से, इब्राहिम ने अपने सल्तनत के भीतर प्रशासनिक, राजनयिक और सैन्य उद्देश्यों के लिए हिंदुओं को नियुक्त किया। कला और तेलुगू साहित्य के संरक्षक, इब्राहिम ने कई अदालतों के कवियों को प्रायोजित किया, जैसे सिंगानाचार्युडू, अदंकी गंगाधरुडू, और कंदुकुरु रुद्रकावी। परंपरा से एक ब्रेक में तेलुगू कवि थे। उन्होंने अपनी अदालत में अरबी और फारसी कवियों का भी संरक्षण किया। वह तेलुगू साहित्य में माल्की भरमा (उनके अपना हिंदू नाम) के रूप में भी जाना जाता है। इब्राहिम ने अपने लोगों के कल्याण में गहरी दिलचस्पी ली। उन्होंने गोलकोंडा किले की मरम्मत और मजबूत किया और हुसैन सागर झील और इब्राहिम बाग विकसित किया। किले में "मक्की दरवाजा" पर शिलालेखों में से एक में "महानतम संप्रदायों" के रूप में वर्णित किया गया है।
1565 में, इब्राहिम ने विजयनगर में आंतरिक संघर्षों का लाभ उठाया, जिसने उन्हें 1543-1550 के दौरान निर्वासन में आश्रय दिया था। वह छोटे राज्यों के मुस्लिम शासकों के एक कैबल का हिस्सा बन गए जो विजयनगर के शक्तिशाली हिंदू साम्राज्य को नष्ट करने के लिए एक साथ बंधे थे। इस प्रकार उन्होंने विजयनगर के अली्या राम राय को व्यक्तिगत रूप से धोखा दिया, जिन्होंने 1543 से 1550 में अपने निर्वासन के दौरान उन्हें आश्रय दिया था। तालिकोटा की लड़ाई में, अलीया राम राय की हत्या हुई थी और शहर जहां इब्राहिम ने सात खुश और सुरक्षित वर्षों बिताए थे जमीन पर; अपनी पूर्व महिमा के अवशेष आज हम्पी के दंगों में देखे जा सकते हैं। 1565 में तालिकोटा की लड़ाई के बाद, इब्राहिम अदोनी और उदयगिरी के महत्वपूर्ण पहाड़ी किलों को लेकर अपने राज्य का विस्तार करने में सक्षम था, जिसने एक व्यापक क्षेत्र का आदेश दिया था और जिसकी संपत्ति उसके पूर्व मेज़बान की संपत्ति थी।
एक छोटी बीमारी के बाद, इब्राहिम की मृत्यु 1580 में हुई थी। उनका उत्तराधिकारी उनका पुत्र मुहम्मद कुली कुतुब शाह बना, जो उनकी हिंदू पत्नी भागीरथी से पैदा हुए था।
संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
गोलकोंडा आई ओ सी टोक्यो जापान के वेबसाइट पर
|-
| width="30%" align="center" | Preceded by:सुब्हान क़ुली कुतब शाह
| width="40%" align="center" | क़ुतुब शाही वंश1550–1580
| width="30%" align="center" | Succeeded by:मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह
|-
1518 में जन्मे लोग
तेलुगु लोग
1580 में निधन
गोलकोंडा के राजा
क़ुतुब शाही वंश | 911 |
220875 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8B%E0%A4%9A%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%A6 | ऋचा पल्लोद | ऋचा पल्लोद एक भारतीय मॉडल और फिल्म अभिनेत्री है जिन्होंने हिंदी, कन्नड़, तमिल, तेलुगु और मलयालम भाषा की फिल्मों में काम किया है।
कैरियर
मॉडल से अभिनेत्री बनी ऋचा पल्लोद ने फिल्म 'परदेस' (1997) में एक छोटी सी भूमिका के साथ फिल्मों की चमकीली दुनिया में प्रवेश किया। उन्होंने 16 वर्ष की आयु में मॉडलिंग की शुरुआत की, कई विज्ञापन फिल्मों में काम किया और फाल्गुनी पाठक के संगीत वीडियो 'याद पिया की आने लगी' और 'पिया से मिल के आये नैन' में दिखाई दीं। अभिनेत्री ने तेलुगू फिल्म 'नुव्वे कवाली' (2000) के साथ कैरियर की शुरुआत की जिसने आलोचकों की प्रशंसा जीती और इसके लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर (Filmfare) पुरस्कार जीता। बाद में उसने तमिल, कन्नड़ और हिंदी की कई फिल्मो में काम किया, लेकिन एक नायिका के रूप में कैरियर की स्थापना करने में विफल रहीं और सहायक भूमिकाएं करने लगी। 2009 में उन्हें सुपर हिट फिल्म 'डैडी कूल' में मलयालम मेगास्टार ममूटी के साथ जोड़ी में आने का मौका मिला।
फ़िल्मों की सूची
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
1980 में जन्मे लोग
भारतीय अभिनेत्री
तमिल अभिनेत्री
जीवित लोग
भारतीय आवाज अभिनेत्रियों | 184 |
139061 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A6%20%E0%A4%96%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%85%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%80 | शाहिद ख़ाक़ान अब्बासी | शाहिद खाकान अब्बासी एक पाकिस्तानी राजनेता हैं, जिनका संबंध पाकिस्तान मुस्लिम लीग से है। उन्होंने 1 अगस्त 2017 से 18 अगस्त 2018 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का पद संभाला था। वे पाकिस्तान की राष्ट्रीय सभा में वह पाकिस्तानी पंजाब के NA-50 निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।पाकिस्तानी पंजाब के प्रतिनिधि - पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा उनका जन्म २८ दिसम्बर १९५८ को कराँची में हुआ था।
सन्दर्भ
पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा के सदस्य
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री
दिसंबर 1958 में जन्मे लोग | 80 |
228465 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%A1%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%B0 | लाउडस्पीकर | एक लाउडस्पीकर (या "स्पीकर") एक विद्युत-ध्वनिक ऊर्जा परिवर्तित्र है, जो वैद्युत संकेतों को ध्वनि में परिवर्तित करता है। स्पीकर वैद्युत संकेतों के परिवर्तनों के अनुसार चलता है तथा वायु या जल के माध्यम से ध्वनि तरंगों का संचार करवाता है।
श्रवण क्षेत्रों की ध्वनिकी के बाद, लाउडस्पीकर (तथा अन्य विद्युत-ध्वनि ऊर्जा परिवर्तित्र) आधुनिक श्रव्य प्रणालियों में सर्वाधिक परिवर्तनशील तत्व हैं तथा ध्वनि प्रणालियों की तुलना करते समय प्रायः यही सर्वाधिक विरूपणों और श्रव्य असमानताओं के लिए उत्तरदायी होते हैं।
पारिभाषिक शब्दावली
शब्द "लाउडस्पीकर" अकेले ऊर्जा परिवर्तित्र (जो “ड्राइवर” के नाम से जाने जाते हैं) को सन्दर्भित कर सकता है अथवा एक या अधिक ड्राइवरों से युक्त अंतःक्षेत्र वाले संपूर्ण स्पीकर सिस्टम को. आवृत्तियों की एक व्यापक श्रृंखला के पर्याप्त पुनरुत्पादन के लिए, विशेषकर उच्चतर ध्वनि दबाव स्तर तथा अधिकतम शुद्धता के लिए अधिकतर लाउडस्पीकर सिस्टमों में एक से अधिक ड्राइवरों का प्रयोग होता है। भिन्न आवृत्ति श्रृंखलाओं के पुनरुत्पादन के लिए अलग-अलग ड्राइवरों का प्रयोग किया जाता है। ड्राइवरों के नाम सबवूफर (बहुत कम आवृत्तियों के लिए), वूफर (कम आवृत्तियों के लिए), मध्यम-दूरी स्पीकर (मध्यम आवृत्तियां), ट्वीटर (उच्च आवृत्तियां) और कभी-कभी उच्चतम श्रव्य आवृत्तियों के लिए इष्टतम किए गए सुपरट्वीटर, रखे गए हैं। विभिन्न स्पीकर ड्राइवरों के लिए शब्दावली अनुप्रयोग के आधार पर परिवर्तित होती है। दोतरफा सिस्टम में मध्य-दूरी ड्राइवर नहीं होते, इसलिए मध्य-दूरी ध्वनियों के पुनरुत्पादन का काम वूफर और ट्वीटर के द्वारा किया जाता है। होम स्टीरियो में उच्च आवृत्ति ड्राइवर के लिए "ट्वीटर" नाम का इस्तेमाल होता है, जबकि पेशेवर संगीत सिस्टम में उनको एचएफ ("HF") या हाई ("highs") कहा जाता है। जब किसी सिस्टम में एक से अधिक ड्राइवरों का उपयोग होता है, तो एक क्रॉसओवर नामक “फिल्टर नेटवर्क” आवक संकेतों को विभिन्न आवृत्ति श्रृंखलाओं में अलग करके उपयुक्त ड्राइवर तक मार्ग प्रदान करता है। एन (n) पृथक आवृत्ति बैंड वाले लाउडस्पीकर सिस्टम को “एन -वे स्पीकर” कहा जाता हैः एक टू-वे (दोतरफा) सिस्टम में एक वूफर और एक ट्वीटर होता है तथा एक थ्री-वे (तीन तरफा) सिस्टम में एक वूफर, एक मध्य-श्रृंखला तथा एक ट्वीटर होता है।
इतिहास
जोहान फिलिप रीस ने 1861 में अपने टेलीफोन में विद्युत लाउडस्पीकर संस्थापित किया था जो शुद्ध धुनों के पुनरुत्पादन में सक्षम था किंतु साथ ही स्पीच को भी पुनरुत्पादित कर सकता था। एलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने 1876 में अपने टेलीफोन के भाग के रूप में पहले विद्युत लाउडस्पीकर को पेटेंट करवाया था (जो समझ में आने योग्य आवाज के पुनरुत्पादन में सक्षम था), जिसका 1877 में अनुसरण किया अर्न्स्ट सीमेन्स के संवर्द्धित संस्करण ने. निकोला टेसला ने 1881 में कथित तौर पर एक ऐसा ही उपकरण बनाया था, लेकिन उसके लिए पेटेंट जारी नहीं किया गया था। इसी समय के दौरान, थॉमस एडीसन को उनके प्रारंभिक सिलिंडर फोनोग्राफ के लिए सम्पीड़ित वायु को परिवर्द्धन तंत्र के रूप में प्रयोग करने वाले सिस्टम को ब्रिटिश पेटेंट जारी किया गया, लेकिन अंततः उन्होंने अपने परिचित, सूई के साथ संलग्न झिल्ली द्वारा चालित धातु के भौंपू को ही अपनाया. 1898 में, होरेस शॉर्ट ने एक सम्पीड़ित वायु द्वारा चालित लाउडस्पीकर का पेटेंट करवाया था, जिसके अधिकार उन्होंने चार्ल्स पार्सन्स को बेच दिए, जिनको 1910 से पहले कई अतिरिक्त ब्रिटिश पेटेंट जारी किए गए थे। विक्टर टॉकिंग मशीन तथा पाथे सहित कुछ कंपनियों ने सम्पीड़ित-वायु लाउडस्पीकरों का प्रयोग करते हुए रिकॉर्ड प्लेयर्स का उत्पादन किया। हालांकि, खराब ध्वनि गुणवत्ता तथा कम तीव्रता पर ध्वनि के पुनरुत्पादन में असमर्थता के कारण ये डिजाइन सीमित थे। इस सिस्टम के रूपांतरणों का उपयोग सार्वजनिक उद्घोषणा अनुप्रयोगों के लिए किया गया तथा अधिक हाल अन्य रूपांतरणों का प्रयोग रॉकेट प्रक्षेपण से उत्पन्न अति तीव्र ध्वनि तथा कंपन स्तर के प्रति अंतरिक्ष उपकरण प्रतिरोध का परीक्षण करने के लिए किया गया।
आधुनिक चल-कुंडली डिजाइन (जिसे डायनमिक भी कहा जाता है) वाले ड्राइवर को ऑलिवर लॉज द्वारा 1898 में स्थापित किया गया था। चल-कुंडली लाउडस्पीकर के पहले व्यावहारिक अनुप्रयोग को पीटर एल. जेंसेन तथा एडविन प्रिढम द्वारा नापा, कैलीफोर्निया में स्थापित किया गया था। जेन्सेन को पेटेंट देने से इनकार कर दिया गया था। अपने उत्पाद टेलीफोन कंपनियों को बेचने में असफल रहने के बाद, 1915 में उन्होंने अपनी रणनीति सार्वजनिक संबोधन की ओर परिवर्तित कर दी और अपने उत्पाद का नाम रखा मैग्नावॉक्स. लाउडस्पीकर के आविष्कार के वर्षों बाद तक जेन्सेन मैग्नावॉक्स कंपनी के एक हिस्से का मालिक रहा था।
आजकल आम तौर से प्रचलित सीधे रेडिएटरों में चल-कुंडली सिद्धांत को 1924 में चेस्टर डब्लू. राइस और एडवर्ड डब्लू. केलॉग ने पेटेंट करवाया था। पिछले प्रयासों और राइस तथा केलॉग के पेटेंट के बीच मुख्य अंतर यांत्रिक मापदंडों का समायोजन था ताकि जिस आवृत्ति पर शंकु की रेडिएशन प्रतिबाधा एक समान हो जाती थी, उससे कम आवृत्ति पर चल-प्रणाली का मौलिक अनुनाद घटित हुआ। विवरण के लिए मूल पेटेंट देखें.
लगभग इसी समय वॉल्टर एच. शॉटकी ने पहले रिबन लाउडस्पीकर का आविष्कार किया।
इन शुरुआती लाउडस्पीकरों में वैद्युतचुंबकों का प्रयोग किया गया था, क्योकि बड़े और स्थाई चुंबक उचित कीमत पर सामान्यतः उपलब्ध नहीं थे। एक विद्युतचुंबक की कुंडली, जिसे क्षेत्रीय कुंडली कहा जाता था, ड्राइवर के साथ संबंध जोड़ने वाले दूसरे युग्म में प्रवाहित विद्युत धारा से सक्रिय होते थे। यह कुंडली आम तौर से दोहरी भूमिका निभाती थी, एक कुंडल चोक के रूप में कार्य करते हुए लाउडस्पीकर से जुड़े परिवर्द्धक की विद्युत आपूर्ति को फिल्टर करती थी। एसी विद्युत धारा में ऊर्मिका कुंडल चोक में से प्रवाहित होते समय क्षीण हो जाती थी, हालांकि एसी लाइन आवृत्तियां ध्वनि कुंडली को प्रेषित किए गए श्रव्य संकेतों के सुर परिवर्तन का प्रयास करती थीं और सक्रिय पुनरुत्पादन उपकरण की श्रव्य गुनगुनाहट को बढ़ाती थी।
1930 के दशक में, लाउडस्पीकर निर्माताओं ने आवृत्ति प्रतिक्रियाओं तथा ध्वनि दबाव स्तर को बढ़ाने के लिए ड्राइवर के महत्त्व के दो और तीन बैंडपासों का संयोजन शुरू कर किया था। 1937 में, पहला फिल्म उद्योग का मानक लाउडस्पीकर सिस्टम, "थियेटर्स के लिए शिअरर हॉर्न सिस्टम" (एक दोतरफा सिस्टम), मेट्रो-गोल्डविन-मायर द्वारा शुरू किया गया था। इसमें 15" के कम-आवृत्ति के चार ड्राइवर, 375 हर्ट्ज के लिए निर्धारित एक क्रॉसओवर नेटवर्क और उच्च आवृत्तियां प्रदान करने के लिए दो सम्पीड़न ड्राइवरों सहित एक एकल मल्टी-सेलुलर हॉर्न होता है। जॉन केनेथ हीलियर्ड, जेम्स बुलो लेंसिंग और डगलस शिअरर सभी ने इस सिस्टम के निर्माण में भूमिका निभाई थी। 1939 के न्यू यॉर्क विश्व मेले में, फ्लशिंग मीडोज में एक टॉवर पर बहुत बड़ा दोतरफा सार्वजनिक उद्घोषणा सिस्टम लगाया गया था। सिनौडाग्राफ के लिए मुख्य अभियंता की भूमिका में रूडी बोजाक ने आठ 27” कम-आवृत्ति ड्राइवर डिजाइन किए थे। उच्च-आवृत्ति ड्राइवर संभवतः वेस्टर्न इलेक्ट्रिक द्वारा बनाए हए थे।
1943 में अल्टेक लेंसिंग ने '604' पेश किया जिसमें निकट-स्रोत-बिंदु प्रदर्शन हेतु एक उच्च-आवृत्ति हॉर्न द्वारा एक 15-इंच वूफर के मध्य से ध्वनि भेजी जाती थी, यह उनका सर्वाधिक प्रसिद्ध समाक्षीय द्विमार्गी ड्राइवर बन गया था। अल्टेक के "वॉयस ऑफ द थियेटर" लाउडस्पीकर सिस्टम 1945 में बाजार में आए, जिनमें फिल्म थिएटर के लिए आवश्यक उच्च आउटपुट स्तरों पर बेहतर संसजन और स्पष्टता की पेशकश की गई थी। अकादमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज ने तुरंत इसकी ध्वनिक विशेषताओं का परीक्षण शुरू कर दिया, उन्होंने इसे 1955 में फिल्म हाउस इंडस्ट्री का मानक बना दिया. इसके बाद, ढांचे की डिजाइन और सामग्री में निरंतर विकास से महत्वपूर्ण श्रव्य सुधार हुए. आधुनिक स्पीकरों में सर्वाधिक उल्लेखनीय सुधार शंकु सामग्री, उच्च-तापमान आसंजकों की शुरुआत, संवर्द्धित स्थायी चुंबक सामग्री, बेहतर माप तकनीक, कंप्यूटर सहायित डिजाइन और परिमित तत्व विश्लेषण के रूप में हुए हैं।
ड्राइवर डिजाइन
सर्वाधिक आम प्रकार के ड्राइवर में एक हल्का डायफ्राम या शंकु . एक कठोर टोकरी या फ्रेम से एक लचीले निलंबन जिसके कारण महीन तार की एक कुंडली एक बेलनाकार चुंबकीय क्षेत्र में अक्षीय गति करती है, द्वारा जुड़ा होता है। जब एक विद्युत संकेत वॉयस कुंडली में भेजा जाता है, तो वॉयस कुंडली में विद्युत धारा के कारण चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है, जो इसे एक चल विद्युत चुंबक बना देता है। कुंडली और ड्राइवर के चुंबकीय सिस्टम के परस्पर प्रभाव से एक यांत्रिक बल उत्पन्न होता है जिससे कुंडली (और उससे जुड़ा शंकु भी) आगे-पीछे गति करती है, परिणामस्वरूप परिवर्द्धक से आए विद्युत संकेतके नियंत्रण में ध्वनि का पुनरुत्पादन करती है। लाउडस्पीकर के इस प्रकार के व्यक्तिगत घटकों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार है।
डायाफ्राम आमतौर पर एक शंक्वाकार या गुंबदाकार विन्यास में निर्मित किया जाता है। विविध प्रकार की सामग्री का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन सबसे आम, कागज, प्लास्टिक और धातु हैं। इसके लिए आदर्श सामग्री वह है, जो 1) कठोर हो, शंकु की अनियंत्रित गति को रोकने के लिए; 2) वजन कम हो, ताकि कम से कम आरंभिक बल की आवश्यकता और ऊर्जा भंडारण संबंधी मुद्दे कम हों, 3) अच्छी तरह से अवमंदित हो, ताकि संकेत रुकने के बाद इसकी प्रयोग द्वारा निर्धारित अनुनाद आवृत्ति के कारण कंपन जारी न रहे और श्रव्य गूंज न हो. व्यवहार में, वर्तमान सामग्री के उपयोग से तीनों मापदंडों को एक साथ पूरा नहीं किया जा सकता; इसलिए ड्राइवर के डिजाइन में दुविधाएं हैं। उदाहरण के लिए, कागज प्रकाश और आमतौर पर अच्छी तरह अवमंदित है, लेकिन कठोर नहीं है, धातु कठोर और हल्की हो सकती है, लेकिन यह आमतौर पर अवमंदित नहीं होती है, प्लास्टिक हल्का हो सकता है लेकिन आमतौर पर, इसे जितना कठोर बनाया जाएगा उतना ही इसका अवमंदन कम होता जाएगा. नतीजतन, कई शंकु के कई प्रकार की मिली-जुली सामग्री के बने होते हैं। उदाहरण के लिए, एक शंकु सेलूलोज़ कागज का बनाया जा सकता है, जिसमें कुछ कार्बन फाइबर, केवलर, रेशे वाला कांच सन या बांस के रेशे जोड़ दिए जाते हैं, या इसमें छिद्रयुक्त परतोंवाले निर्माण का उपयोग किया जा सकता है, या इस में अतिरिक्त कड़ापन अथवा अवमंदन प्रदान करने के लिेए इस पर एक परत चढाई जा सकती है।
चुंबक अंतराल के साथ महत्त्वपूर्ण संगति में विकृति के कारण इसके चुंबक अंतराल में वॉयस कुंडल के दीवारों से टकराने को टालने के लिए चेसिस, फ्रेम या टोकरी को कड़ा डिजाइन किया जाता है। चेसिस आम तौर पर एल्यूमीनियम मिश्र धातु में ढले या पतली स्टील चद्दर में ठप्पे से बनाए जाते हैं, हालांकि विशेष रूप से सस्ते और हल्के ड्राइवरों के लिए, मोल्डेड प्लास्टिक या अवमंदित प्लास्टिक संयोजित टोकिरयां लोकप्रिय हैं। धातु के चेसिस वॉयस कुंडल से ऊष्मा को बाहर पहुंचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं; संचालन के दौरान गर्म होने से प्रतिरोध परिवर्तित हो जाता है, जिसके कारण भौतिक आकार परिवर्तित हो सकता है और यदि बहुत ज्यादा गर्म होने पर स्थाई चुंबक का चुंबकत्व नष्ट कर सकता है।
निलंबन प्रणाली कुंडल को अंतराल के बीच में स्थित रखती है और गति के उपरांत शंकु को सामान्य स्थिति में लाने के लिए आवश्यक पुनर्प्रचलन (केंद्रीकरण) बल प्रदान करती है। आम तौर पर एक निलंबन प्रणाली के दो हिस्से होते हैं: "मकड़ी", जो डायफ्राम या वॉयस कुंडल को फ्रेम से जोड़ती है तथा पुनर्प्रचलन बल एवं "घेरा" बनाती है जो कुंडल/शंकु संयोजन को केंद्रित करने में सहायता प्रदान करता है और चुंबक अंतराल के साथ अनुकूलित अधिकांश पिस्टन-गति प्रदान करता है। मकड़ी आमतौर पर एक कड़ा करने वाले रेसिन से भरी लहरदार कपड़े की डिस्क से बनी होती हैं। यह शब्द प्रारंभिक निलंबनों के आकार, जिसमें छः से आठ मुड़ी हुई "टांगों" से जुड़े बैकेलाइट सामग्री से बने दो संकेंद्रित छल्ले थे, से लिया गया है। इस संरचना के रूपांतरणों में कणों के अवरोध हेतु नमदे की एक चकती का जोड़ा जाना शामिल था ताकि उनके कारण वॉयस कुंडल रगड़ न खाए. जर्मन फर्म रुलिक अभी भी लकड़ी की बनी मकड़ियों के साथ असामान्य चालक प्रदान करती है।
शंकु के चारों ओर का घेरा रबड़ या पोलिस्टर फोम या रेसिन लेपित कपड़े की लहरदार छल्ला हो सकता है; यह दोनों बाहरी डायफ्राम परिधियों तथा फ्रेम से जुड़ा होता है। घेरों की ये विविध सामग्रियां, उनके आकार और उपचार ड्राइवर के ध्वनिक आउटपुट को नाटकीय ढंग से प्रभावित कर सकते हैं; प्रत्येक श्रेणी और क्रियान्वयन के लाभ और हानि हैं। उदाहरण के लिए, पॉलिएस्टर फोम हल्का और किफायती है, लेकिन ओजोन, पराबैंगनी प्रकाश, आर्द्रता तथा उच्च तापमान के संपर्क में इसका अपचयन होता है, जिससे इसका उपयोगा जीवन लगभग 15 वर्ष तक सामित हो जाता है।
वॉयस कुंडल में आम तौर से तांबे के तार का उपयोग होता है, हालांकि एल्यूमीनियम- और बहुत ही कम, चांदी-का भी प्रंयोग किया जाता है। चुंबकीय अंतराल श्रेत्र में तार की परिवर्तनशील मात्रा प्रदान करते हुए, वॉयस कुंडल के तार की अनुप्रस्थ काट, वृत्ताकार, आयताकार या षटकोणीय हो सकती है। कुंडल अंतराल के अंदर समाक्षीय रूप से उन्मुख होती है, यह चुंबकीय संरचना में एक छोटी गोलाकार जगह (एक छिद्र, खांचा या नाली) में आगे पीछे गति करती है। अंतराल एक स्थायी चुंबक के दो ध्रुवों, पहला अंतराल का बाहरी हिस्सा और दूसरा केंद्रीय पोस्ट (जिसे पोल पीस कहा जाता है) के बीच एक केंद्रित चुंबकीय क्षेत्र स्थापित करता है। पोल पीस और बैकप्लेट प्रायः एक ही टुकड़ा होता है जिसे पोलप्लेट या योक कहा जाता है।
आधुनिक ड्राइवर चुंबक लगभग हमेशा स्थायी होते हैं और चीनी मिट्टी, फेराइट, एल्किनो या अधिक हाल में, दुर्लभ मृदा जैसे नियोडाइमियम और सैमेरियम कोबाल्ट के बने होते हैं। परिवहन लागत में वृद्धि तथा छोटे, हल्के उपकरण की चाह के कारण डिजाइन में भारी फेराइट प्रकार की अपेक्षा अंतिम प्रकार के उपयोग की प्रवृत्ति है। बहुत कम निर्माता अभी भी विद्युत चालित क्षेत्रीय कुंडलियों का उपयोग करते हैं (ऐसी ही एक फ्रेंच है). जब उच्च क्षेत्र-तीव्रता वाले स्थाई चुंबक उपलब्ध हुए, तो क्षेत्र-कुंडल ड्राइवरों की विद्युत आपूर्ति संबंधी समस्याओं को खत्म करने के कारण एल्यूमीनियम, निकल तथा कोबाल्ट की एक मिश्रधातु, एल्निको लोकप्रिय हो गई। करीब 1980 तक एल्निको का लगभग विशिष्ट रूप से उपयोग होता रहा. खासकर जब उच्च शक्ति प्रवर्धकों के साथ उपयोग किए जाते हैं, तो ढीले संयोजनों के कारण होने वाले आकस्मिक 'पॉप' और 'क्लिक' से एल्निको चुंबक आंशिक रूप से विक्षेत्रित हो सकते हैं (चुंबकत्व नष्ट होना). चुंबक के पुनरावेशन के द्वारा इस नुकसान को उलटा जा सकता है।
1980 के बाद, अधिकतर (लेकिन सब नहीं) ड्राइवर निर्माता एल्निको के स्थान पर चीनी मिट्टी तथा बेरियम या स्ट्रॉन्शियम फेराइट के महीन कणों के मिश्रण से बने फेराइट चुंबक का उपयोग करने लगे. हालांकि इन चीनी मिट्टी के मैग्नेट की प्रति किलोग्राम ऊर्जा एल्निको से कम है, ये कम खर्चीले हैं तथा निर्माताओं के लिए दी हुई कार्यक्षमता हासिल करने के लिए बड़े किंतु किफायती चुंबक बनाना संभव हो जाता है।
डिजाइन लक्ष्यों के आधार पर चुंबक के आकार और प्रकार तथा चुंबकीय परिपथ के विवरण भिन्न-भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिए, ध्रुवीय खंड का आकार वाक कुंडली तथा चुंबकीय क्षेत्र के बीच चुंबकीय अन्योन्यक्रिया को प्रभावित करता है और कभी-कभी एक ड्राइवर के व्यवहार को संशोधित करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। ध्रुवाग्र पर सज्जित तांबे की टोपी या चंबकीय-ध्रुव गुहा के अंदर स्थित एक भारी अंगूठी के रूप में एक “लघुपथक अंगूठी” या फैराडे पाश शामिल किया जा सकता है। इस जटिलता के लाभ उच्च आवृत्तियों पर प्रतिबाधा कम होना, विस्तारित उच्च स्वर निर्गम, हार्मोनिक विरूपण कम होना और आमतौर पर बड़े वाक कुंडली भ्रमण से जुड़े प्रेरकत्व मॉडुलन में कमी होना शामिल हैं। दूसरी ओर, बढ़े हुए चुंबकीय प्रतिष्टंभ के साथ तांबे की टोपी के लिए एक चौड़े वाक अंतराल की जरूरत होती है, इससे उपलब्ध अभिवाह में कमी आती है तथा तुल्य प्रदर्शन के लिए एक बड़े चुंबक की आवश्यकता होता है।
जिस प्रकार एक स्पीकर सिस्टम बनाने के लिए दो या दो से अधिक ड्राइवर एक अंतःक्षेत्र में संयोजित होते हैं,
उसे शामिल करते हुए, ड्राइवर डिजाइन कला तथा विज्ञान दोनों है। प्रदर्शन सुधारने के लिए आम तौर पर अनुभवी श्रोताओं के प्रेक्षणों तथा उच्च परिशुद्धता माप के साथ चुंबकीय, ध्वनिक, यांत्रिक, विद्युत और सामग्री विज्ञान सिद्धांत के कुछ संयोजनों का उपयोग किया जाता है। विरूपण, पालिभवन, प्रावस्था प्रभाव, धुरी से अलग अनुक्रियाएं तथा संक्रमण जटिलताएं आदि कुछ मुद्दे हैं जिनका स्पीकर और ड्राइवर दिजाइनरों को सामना करना पड़ता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि स्पीकर को कमरे के प्रभावों से मुक्त मापा जा सके, डिजाइनर अप्रतिध्वनिक कक्ष का उपयोग कर सकते हैं, या ऐसे चैंबरों को एक सीमा तक प्रतिस्थापित कर सकने वाली अनेक इलेक्ट्रोनिक तकनीकों में से किसी का उपयोग कर सकते हैं। कुछ डेवलपर्स वास्तविक-जीवन की श्रवण स्थितियों के अनुकरण के उद्देश्य से स्थापित विशिष्ट मानकीकृत कमरे के पक्ष में अप्रतिध्वनिक कक्षों का त्याग कर देते हैं।
काफी हद तक मूल्यों, परिवहन लागतों तथा वजन सीमाओं पर निर्भर करते हुए, तैयार स्पीकर सिस्टमों का निर्माण विभाजित है। स्थानीय क्षेत्रों से बाहर किफायती परिवहन के अनुकूल आकार से आम तौर पर बड़े और भारी उच्च-अंत स्पीकर सिस्टम सामान्यतः उनके लक्षित बाजार क्षेत्रों में ही बनाए जाते हैं और उनकी लागत $140,000 या अधिक
प्रति जोड़ी हो सकती है। सबसे कम कीमत के स्पीकर सिस्टम तथा अधिकतर ड्राइवर चीन या अन्य कम-लागत उत्पादन स्थलों में उत्पादित किए जाते हैं।
ड्राइवरों के प्रकार
अलग-अलग विद्युतगतिकीय ड्राइवर एक सीमित पिच सीमा के अंदर इष्टतम प्रदर्शन करते हैं। एकाधिक चालक (जैसे, सबवूफर, वूफर, मध्य-दूरी ड्राइवर और ट्वीटर) आम तौर पर एक पूरे लाउडस्पीकर सिस्टम में संयोजित होकर उस सीमा से परे प्रदर्शन करते हैं।
पूर्ण-सीमा ड्राइवर
एक पूर्ण-सीमा ड्राइवर को यथासंभव व्यापक आवृत्ति अनुक्रिया के लिए डिजाइन किया जाता है। ये ड्राइवर छोटे होते हैं, आमतौर पर व्यास में, यथोचित उच्च आवृत्ति अनुक्रिया प्रदान करने वाले तथा निम्न आवृत्तियों पर निम्न-विरूपण निर्गम हेतु ध्यान से डिजाइन किये गए होते हैं, हालांकि इनका अधिकतम निर्गम स्तर कम हो जाता है। पूर्ण-सीमा (या अधिक सही-सही, व्यापक-सीमा) ड्राइवर सर्वाधिक आम रूप से जन उद्घोषणा सिस्टमों पर, टेलीविजन पर (हालांकि कुछ मॉडल हाई-फाई श्रवण के लिए उपयुक्त होते हैं), छोटे रेडियो, इंटरकॉम, कुछ कंप्यूटर स्पीकरों में सुने जाते हैं। हाई-फाई स्पीकर सिस्टमों में व्यापक सीमा ड्राइव इकाइयों के उपयोग से एकाधिक ड्राइवरों के बीच असंपाती ड्राइवर स्थितियों या संक्रमण नेटवर्क मुद्दों के कारण होने वाली अवांछनीय अन्योन्यक्रियाओं से बचा जा सकता है। व्यापक-सीमा ड्राइवर हाई-फाई सिस्टमों के प्रशंसकों के दावे के अनुसार ध्वनि की संसक्तता, एकल स्रोत तथा व्यतिकरण के अभाव के कारण है और संभवतः संक्रमण घटकों की अनुपस्थिति के कारण भी है। विरोधी आम तौर पर व्यापक-सीमा ड्राइवरों की सीमित आवृत्ति अनुक्रिया तथा मामूली निर्गम क्षमताओं (सबसे विशेष रूप से निम्न आवृत्तियों पर) के साथ-साथ उनकी इष्टतम कार्य प्रदर्शन तक पहुंचने के लिए बड़े, विस्तृत, महंगे अंतःक्षेत्रों की आवश्यकता-जैसे संचरण लाइनें या श्रृंग.
पूर्ण-सीमा ड्राइवरों में अक्सर व्हिजर नामक एक अतिरिक्त शंकु लगाया जाता है, जो एक छोटा, हल्का वाक कुंडली तथा प्राथमिक शंकु के बीच जोड़ से जुड़ा होता है। व्हिजर कोन चालक की उच्च आवृत्ति प्रतिक्रिया प्रदान करता है और इसकी उच्च आवृत्ति दिशिकता का विस्तार करता है, अन्यथा उच्च आवृत्तियों पर बाह्य व्यास शंकु सामग्री द्वारा केंद्रीय वाक कुंडली के साथ सामंजस्य न रख पाने के कारण, वह अत्यंत संकरा हो जाता है। मुख्य शंकु का व्हिजर डिजाइन में इस प्रकार निर्माण किया जाता है कि वह केंद्र की अपेक्षा बाहरी व्यास में अधिक मुड़ा हो. नतीजा यह होता है कि मुख्य शंकु कम आवृत्तियां वितरित करता है व्हिजर शंकु अधिकतर उच्च आवृत्तियों में योगदान देता है। चूंकि व्हिजर शंकु मुख्य डायफ्राम से छोटा होता है, इसलिए उच्च आवृत्तियों पर निर्गम विसर्जन, तुल्य एकल बड़े डायफ्राम के सापेक्ष बेहतर होता है।
सीमित-दूरी के ड्राइवरों का इस्तेमाल भी अकेले, आमतौर पर कंप्यूटर, खिलौने और घड़ी रेडियो में किया जाता है। व्यापक-सीमा ड्राइवरों की अपेक्षा ये ड्राइवर कम विस्तृत तथा कम खर्चीले होते हैं और बहुत ही छोटे स्थान में समाने के लिए उन्हें गंभीर रूप से कई समझौते करने पड़ते होंगे. इन अनुप्रयोगों में, ध्वनि की गुणवत्ता की प्राथमिकता निम्न होती है। मानव कान ध्वनि की खराब गुणवत्ता के प्रति उल्लेखनीय रूप से सहनशील होते हैं और सीमित-दूरी ड्राइवरों में अंतर्निहित विरूपण, बोली गई सब्द सामग्री की स्पष्टता को बढ़ाते हुए उच्च आवृत्तियों पर उनके निर्गम को बढ़ा सकता है।
सबवूफर
एक सबवूफर ऑडियो स्पेक्ट्रम के सबसे निचले भाग, आमतौर पर उपभोक्ता सिस्टमों के लिए 200 हर्ट्ज से नीचे, पेशेवर जीवंत ध्वनि के लिए 100 हर्ट्ज से नीचे और टीएचएक्स (THX) अनुमोदित सिस्टमों में 20 हर्ट्ज से नीचे उपयोग किया जाता है। चूंकि आवृत्तियों की लक्षित सीमा सीमित है, सबवूफर सिस्टम का डिजाइन आमतौर पर पारंपरिक लाउडस्पीकरों की तुलना में कई मायनों में सरल होता है, अक्सर एकल ड्राइवर एक उपयुक्त बॉक्स या अंतर्वेश में आरोहित.
अवांछित अनुनादों (आमतौर पर कैबिनेट पैनल से) के बिना अति निम्न मंद्र स्वरों को सही-सही पुनरुत्पादित करने के लिए, सबवूफर सिस्टम को ठोस बनाना चाहिए और उचित ढंग से कसा हुआ होना चाहिए; अच्छे स्पीकर आमतौर पर काफी भारी होते हैं। कई सबवूफर सिस्टमों में विद्युत प्रवर्धक और निम्न-आवृत्ति पुनरुत्पादन संबंधी अतिरिक्त नियंत्रणों के साथ इलेक्ट्रोनिक सब-फिल्टर शामिल होते हैं। इन रूपांतरों को "सक्रिय सबवूफर" के रूप में जाना जाता है। इसके विपरीत, "निष्क्रिय" सबवूफरों को बाहरी प्रवर्धन की आवश्यकता होती है।
वूफर
एक वूफर एक ड्राइवर है जो निम्न आवृत्तियों को पुनरुत्पादित करता है। ड्राइवर अंतःक्षेत्र के डिजाइन के साथ संयोजन करके उपयुक्त न्यून आवृत्तियां उत्पन्न करता है (उपलब्ध डिजाइन विकल्पों के लिए स्पीकर अंतःक्षेत्र देखें). कुछ लाउडस्पीकर सिस्टम सबसे कम आवृत्तियों के लिए वूफर का उपयोग करते हैं, कभी-कभी सबवूफर का उपयोग न करने के लिए पर्याप्त होता है। इसके अतिरिक्त, कुछ लाउडस्पीकर, मध्य-दूरी ड्राइवर की आवश्यकता खत्म करते हुए, वूफर का उपयोग मध्य आवृत्तियों के लिए करते हैं। इसे एक ऐसे ट्वीटर का चयन करके पूर्ण किया जा सकता है, जो काफी नीचे काम कर सकता है, काफी ऊंची आवृत्तियों पर प्रतिक्रिया देने वाले वूफर के साथ संयोजित होकर, मध्य आवृत्तियों में दोनों ड्राइवर संसक्त रूपसे जुड़ जाते हैं।
मध्य-दूरी ड्राइवर
एक मध्य-दूरी स्पीकर एक लाउडस्पीकर ड्राइवर है जो मध्य आवृत्तियां उत्पन्न करता है। मध्य दूरी ड्राइवर डायफ्राम कागज या मिश्रित सामग्री से बनाया जा सकता है और प्रत्यक्ष विकिरण ड्राइवर हो सकते हैं। (बल्कि छोटे वूफर्स की तरह) या वे सम्पीड़न ड्राइवर हो सकते हैं (बल्कि कुछ ट्वीटर का डिजाइन). अगर मध्य-दूरी ड्राइवर एक सीधा रेडिएटर है, तो इसे एक लाउडस्पीकर अंतःक्षेत्र के सामने वाले बाधक पर स्थापित किया जा सकता है, या यदि एक संपीड़न ड्राइवर है, तो अतिरिक्त निर्गम स्तर तथा विकिरण पैटर्न के नियंत्रण हेतु भौंपू की गरदन पर स्थापित किया जा सकता है।
ट्वीटर
एक ट्वीटर उच्च आवृत्ति ड्राइवर है जो एक स्पीकर सिस्टम में उच्चतम आवृत्तियों को पुनरुत्पादित करता है। ट्वीटर डिजाइन की कई किस्में मौजूद हैं, आवृत्ति अनुक्रिया, निर्गम निष्ठा, विद्युत चालन, अधिकतम निर्गम स्तर, आदि के संबंध में प्रत्येक की क्षमताएं भिन्न हैं। नर्म-गुंबद ट्वीटर घरेलू स्टीरियो सिस्टम में व्यापक रूप से पाए जाते हैं और भौंपू सज्जित संपीड़न ड्राइवर पेशेवर ध्वनि प्रबलन में लोकप्रिय हैं। हाल के वर्षों में रिबन ट्वीटर्स ने लोकप्रियता हालिल की है, क्योंकि उनकी निर्गम शक्ति पेशेवर ध्वनि प्रबलन के लिए उपयोगी स्तर तक बढ़ा दी गई है और उनका निर्गम पैटर्न क्षैतिज धरातल में चौड़ा है, एक पैटर्न जिसके संगीत समारोहों के लिए सुविधाजनक अनुप्रयोग हैं।
समाक्षीय ड्राइवर
एक समाक्षीय ड्राइवर दो या अधिक संयुक्त संकेंद्रीय ड्राइवरों के साथ एक लाउडस्पीकर ड्राइवर है। समाक्षीय ड्राइवर कई कंपनियों द्वारा बनाए गए हैं, जैसे एल्टेक, टैनोय, पायनियर, केईएफ (KEF), बीएमएस (BMS), कबासे और जेनिलेक.
लाउडस्पीकर सिस्टम डिजाइन
संक्रमण
मल्टी-ड्राइवर स्पीकर सिस्टम में प्रयुक्त, क्रॉसओवर एक सबसिस्टम है जो निवेश संकेत को विभिन्न ड्राइवरों के अनुकूल आवृत्ति सीमाओं में पृथक रखता है। ड्राइवर अपनी प्रयोज्य आवृत्ति सीमा में ही विद्युत शक्ति प्राप्त करते हैं और इस प्रकार ड्राइवरों में विरूपण तथा उनके बीच व्यतिकरण कम होता है।
क्रॉसओवर सक्रिय या निष्क्रिय हो सकते हैं। एक निष्क्रिय क्रॉसओवर एक इलेक्ट्रोनिक परिपथ है जिसमें एक या अधिक प्रतिरोध, प्रेरक या गैर-ध्रुवीय संधारित्र के संयोजन प्रयुक्त होते हैं। ये भाग ध्यानपूर्वक डिजाइन किए गए नेटवर्क में गठित किए गए हैं और प्रवर्धक के संकेतों को अलग-अलग ड्राइवरों को वितरित करने से पूर्व आवश्यक आवृत्ति बैंड में विभाजित करने के लिए इन्हें अधिकतर विद्युत प्रवर्धक तथा लाउडस्पीकर ड्राइवरों के बीच में रखा जाता है। निष्क्रिय क्रॉसओवर परिपथ को खुद श्रव्य संकेत से परे किसी बाह्य विद्युत शक्ति की जरूरत नहीं होती किंतु वाक कॉल तथा क्रॉसओवर के बीच अवमंदन गुणांक में उल्लेखनीय कमी होती है। एक सक्रिय क्रॉसओवर एक इलेक्ट्रॉनिक फिल्टर परिपथ है, जो शक्ति प्रवर्धन से पूर्व संकेत को अलग-अलग आवृत्ति बैंड में विभाजित करता है, इस प्रकार प्रत्येक बैंडपास के लिए कम से कम एक विद्युत प्रवर्धक की आवश्यकता होती है। निष्क्रिय फिल्टर भी शक्ति प्रवर्धन से पहले इस तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन सक्रिय फिल्टरिंग की तुलना में दृढ़ता के कारण यह एक असामान्य समाधान है। कोई भी तकनीक जो क्रॉसओवर फिल्टरिंग के बाद प्रवर्धन का उपयोग करती है, वह सामान्यतः न्यूनतम प्रवर्धक चैनलों की संख्या के आधार पर बाइ-एम्पिंग, ट्राइ-एम्पिंग, क्वैड-एम्पिंग और इसी प्रकार आगे, के नाम से जानी जाती है। कुछ लाउडस्पीकर डिजाइनों में निष्क्रिय और सक्रिय क्रॉसओवर फिल्टरिंग का संयोजन प्रयुक्त होता है, जैसे मध्य एवं उच्च आवृत्ति ड्राइवरों के बीच निष्क्रिय क्रॉसओवर तथा न्यून-आवृत्ति ड्राइवर संयुक्त मध्य और उच्च आवृत्तियों के वीच सक्रिय क्रॉसओवर.
निष्क्रिय क्रॉसओवर सामान्यतः स्पीकर बक्से के अंदर संस्थापित होते हैं और घर तथा कम शक्ति के उपयोग के लिए क्रॉसओवर का सबसे सामान्य प्रकार है। कार ऑडियो सिस्टम में, निष्क्रिय क्रॉसओवर एक अलग बॉक्स में, आवश्यक सकता है उपयोग घटकों के आकार को समायोजित. निष्क्रिय क्रॉसओवर निम्न-स्तरीय फिल्टरिंग के लिए सामान्य हो सकता है, या 18 से 24 डीबी प्रति सप्तक की खड़ी ढलान प्रदान करने के लिए जटिल. निष्क्रिय क्रॉसओवरों को ड्राइवर, भौंपू या अंतःक्षेत्र के अनुनाद की अवांछित विशेषताओं को समायोजित करने के लिए डिजाइन किया जा सकता है और घटकों की अन्योन्यक्रियाओं के कारण इसका क्रियान्वयन मुश्किल हो सकता है। निष्क्रिय क्रॉसओवर की, ड्राइवर इकाइयों जिन्हें वे फ़ीड करते हैं, की भांति विद्युत वहन सीमा होती है, निवेशन हानि होती हैं 10% अक्सर दावा किया है) और प्रवर्धक द्वारा देखा भार बदल जाते हैं। हाई-फाई दुनिया में परिवर्तन बहुतों के चिंता की बात है। जब उच्च उत्पादन स्तर की आवश्यकता होती है, सक्रिय क्रॉसओवर बेहतर हो सकता है। सक्रिय क्रॉसओवर सरल परिपथ हो सकता है जो एक निष्क्रिय नेटवर्क की प्रतिक्रिया की बराबरी करता है, या व्यापक श्रव्य समायोजन की अनुमति देते हुए अधिक जटिल हो सकता है। कुछ सक्रिय क्रॉसओवर, आमतौर पर डिजिटल लाउडस्पीकर प्रबंधन प्रणाली में, आवृत्ति बैंड्स के बीच फेज और समय में सटीक संरेखण, तुल्यकरण और गतिक (संपीड़न और सीमांत) नियंत्रण शामिल हो सकते हैं।
कुछ हाई-फाई और पेशेवर लाउडस्पीकर सिस्टमों में अब एक ऑनबोर्ड प्रवर्धक सिस्टम के एक भाग के रूप में के रूप में एक सक्रिय क्रॉसओवर परिपथ को शामिल किया जाता है। ये स्पीकर डिजाइन एक प्रवर्धक-पूर्व से एक संकेत केबल के अलावा अपनी एसी विद्युत की आवश्यकता से पहचाने जा सकते हैं। इस सक्रिय संरचना में ड्राइवर संरक्षण परिपथ और एक डिजिटल लाउडस्पीकर प्रबंधन प्रणाली की अन्य विशेषताएं शामिल हो सकती हैं। कंप्यूटर ध्वनि में संचालित स्पीकर सिस्टम आम हैं (एकल श्रोता के लिए) और आकार के स्पेक्ट्रम के दूसरे छोर पर, आधुनिक संगीत कार्यक्रम साउंड सिस्टम जहां उनकी उपस्थिति बढ़ रही है महत्वपूर्ण और तेजी से.<ref>SVConline.com, ब्रुस बोर्गार्सन. बायर्स गाइड: पॉवर्ड पीए (PA) लाउडस्पीकर , 1 जनवरी 2006' . "अ डज़न इयर्स अगो, पॉवर्ड पीए (PA) लाउडस्पीकर्स वर डी रेयर एक्सेपशंस. टूडे, दो नोट एक्जैक्टली द रुल, दे सर्टेनली कमांड अ सिग्नीफिकेंट एंड सटेडली इन्क्रिज़िंग शेयर ऑफ़ द प्रोफेशनल मार्केटप्लेस."</ref>
अंतःक्षेत्र
अधिकतर लाउडस्पीकर सिस्टमों में अंतःक्षेत्र या एक कैबिनेट में ड्राइवर आरोहित होते हैं, एक बाड़े मिलकर के ड्राइवरों में घुड़सवार. अंतःक्षेत्र की भूमिका ड्राइवरों को भौतिक रूप में आरोहित करने हेतु स्थान प्रदान करना तथा ड्राइवर के पृष्ठभाग से निकलने वाली ध्वनि तरंगों के अग्रभाग से निकली ध्वनि तरंगों के साथ ध्वंसकारी व्यतिकरण को रोकना है; आमतौर से इनके कारण निरसन (उदाहरण के लिए कंघा-फिल्टरिंग) और कम आवृत्तियों पर उल्लेखनीय रूप से स्तर और गुणवत्ता में बदलाव होता है।
सरलतम ड्राइवर आरोहण एक सपाट पैनल (यानी, व्यारोध) होता है, जिसके छिद्रों में ड्राइवर आरोहित होते हैं। हालांकि, इस पद्धति में, व्यारोध के आयाम की तुलना में लंबी तरंगदैर्घ्य वाली ध्वनि आवृत्तियां रद्द हो जाती हैं, क्योंकि शंकु के पृष्ठभाग से प्रत्यवस्था विकिरण का अग्रभाग से विकिरण के साथ व्यतिकरण होता है। एक असीम बड़े पैनल के साथ, इस व्यतिकरण को पूरी तरह रोका जा सकता है। एक पर्याप्त बड़े मोहरबंद बॉक्स से इस क्रिया को किया जा सकता है।रिकार्ड निर्माता. अनंत रोक
चूंकि अनंत आयाम के पैनल अव्यावहारिक हैं, अधिकतर अंतःक्षेत्र गतिशील डायाफ्राम से पृष्ठ विकिरण को सामित करके कार्य करते हैं। एक मोहरबंद अंतःक्षेत्र एक कठोर और वायुरोधक बॉक्स में ध्वनि को सीमित करके लाउडस्पीकर के पीछे से उत्सर्जित ध्वनि के संचरण को रोकता है। कैबिनेट की दीवारों में ध्वनि के प्रसारण को कम करने के उपायों में, कैबिनेट की मोटी दीवारें, क्षयकारी दीवार सामग्री, आंतरिक सुदृढ़ीकरण, मुड़ी हुई कैबिनेट की दीवारें- या बहुत ही कम, श्यानप्रत्यास्थ सामग्री (जैसे, खनिजयुक्त कोलतार) या अंतःक्षेत्र की अंदरूनी दीवारों पर सीसे की पतली चद्दर की परत चढ़ाना शामिल हैं।
हालांकि, एक कठोर अंतःक्षेत्र आंतरिक रूप से ध्वनि को प्रत्यावर्तित करता है, जो लाउडस्पीकर डायफ्राम के द्वारा वापस संचरित हो सकती है- पुनः जिसके परिणाम में ध्वनि की गुणवत्ता में गिरावट होती है। इसे अवशोषक सामग्री का उपयोग करके आंतरिक अवशोषण द्वारा कम किया जा सकता है (अक्सर जिसे “अवमंदन” कहा जाता है), जैसे अंतःक्षेत्र में कांच के रेशे, ऊन, या सिंथेटिक फाइबर बैटिंग का प्रयोग. अंतःक्षेत्र के आंतरिक आकार को भी इस प्रकार डिजाइन किया जा सकता है कि ध्वनि को लाउडस्पीकर डायाफ्राम से दूर प्रत्यावर्तित किया जा सके, जहां उसे अवशोषित कर लिया जाए.
अन्य प्रकार के अंतःक्षेत्र पृष्ठ ध्वनि विकिरण को परिवर्तित कर देते हैं जिससे यह रचनात्मक रूप से शंकु के सामने से उत्पादित निर्गम में जुड़ जाता है। ऐसा करने वाले डिजाइनों (बैस रिफ्लेक्स, पैसिव रेडिएटर, ट्रांसमिशन लाइन, आदि सहित) का उपयोग प्रायः प्रभावी न्यून-आवृत्ति अनुक्रिया का विस्तार करने और ड्राइवर का न्यून-आवृत्ति निर्गम बढ़ाने के लिए किया जाता है।
ड्राइवरों के बीच संक्रमण को जितना संभव हो सके उतना जोड़रहित बनाने के लिए, एक या अधिक ड्राइवर के आरोहण स्थल को आगे या पीछे सरकाकर ताकि प्रत्येक ड्राइवर का ध्वनिक केंद्र समान ऊर्ध्वाधर तल में रहे, सिस्टम डिजाइनरों ने ड्राइवरों को समय-संरेखित (या चरण समायोजन) करने के प्रयास किए हैं। इसमें स्पीकर का अग्रभाग पाछे की ओर झुकाना, प्रत्येक ड्राइवर के लिए अलग अंतःक्षेत्र आरोहण प्रदान करना, या (सामान्यतः कम) यही प्रभाव हासिल करने के लिए इलेक्ट्रोनिक तकनीक का उपयोग करना. इन प्रयासों का परिणाम कुछ असामान्य कैबिनेट डिजाइनों के रूप में हुआ है।
स्पीकर आरोहण योजना (कैबिनेट सहित) विवर्तन भी उत्पन्न कर सकती है जिसके परिणामस्वरूप आवृत्ति अनुक्रियाओं में श्रृंग और गिरावट हो सकती है। उच्चतर आवृत्तियों पर, जहां तरंगदैर्घ्य कैबिनेट के आयाम के समान या छोटे हैं, समस्या सामान्यतः सबसे बड़ी हो जाती है। इस प्रभाव को कैबिनेट के सामने के किनारों को गोलाई देकर, खुद कैबिनेट को घुमाव देकर, छोटे या संकरे अंतःक्षेत्र का उपयोग करके, एक रणनीतिक ड्राइवर व्यवस्था चुनकर, ड्राइवर के चारों तरफ अवशोषक सामग्री का उपयोग करके या इन या अन्य योजनाओं के किसी संयोजन का उपयोग करके कम किया जा सकता है।
तारों के संयोजन
अधिकतर लाउडस्पीकरों में संकेत स्रोत (उदाहरण के लिए, श्रव्य प्रवर्धक या रिसीवर से) के साथ संयोजन के लिए दो तारों के सिरों का उपयोग किया जाता है। ऐसा अंतःक्षेत्र के पृष्ठ भाग में स्तंभ पर बांधकर या स्प्रिंग क्लिप लगाकर किया जाता है। यदि बाएं और दाएं स्पीकरों के तार (एक स्टीरियो सेटअप में) एक-दूसरे से “फेज में” नहीं जुड़े हैं (स्पीकर और प्रवर्धक पर + और - संयोजन + से + तथा - से - जोड़े जाने चाहिएं), तो लाउडस्पीकर घ्रुवणता से बाहर हो जाएंगे. समान संकेत दिए जाने पर एक शंकु में, गति दूसरे की विपरीत दिशा में होगी. इस के कारण आमतौर पर एक स्टीरियो रिकॉर्डिंग में मोनोफोनिक सामग्री का निरसन होगा, स्तर में कमी होगी, स्थानीकरण अधिक कठिन बन जाएगा, यह सब ध्वनि तरंगों के विध्वंसक व्यतिकरण के कारण होगा. जहां स्पीकर एक चौथाई तरंग दैर्घ्य या कम से अलग होते है, वहां निरसन का प्रभाव सबसे अधिक अनुभव होता है; न्यून आवृत्तियां सर्वाधिक प्रभावित होती हैं। इस प्रकार के तारक्रम से स्पीकरों को नुकसान नहीं होता, किंतु यह इष्टतम नहीं है।
विनिर्देश
स्पीकर विनिर्देशों में आम तौर पर शामिल हैं:
स्पीकर या ड्राइवर प्रकार (केवल अलग-अलग इकाइया) - पूर्ण सीमा वूफर, ट्वीटर, या मध्य दूरी.
अकेले ड्राइवरों का आकार . शंकु ड्राइवरों के लिए उद्धृत आकार आमतौर पर टोकरी का बाहरी व्यास होता है। हालांकि, कम सामान्यतः यह शंकु के घेरे का शीर्ष से शीर्ष मापा गया व्यास भी हो सकता है, या एक आरोहण छिद्र के केंद्र से इसके विपरीत केंद्र तक की दूरी भी हो सकती है। वाक्-कुंडली का व्यास भी विनिर्दिष्ट किया जा सकता है। अगर लाउडस्पीकर में एक संपीड़न श्रृंग ड्राइवर है, श्रृंग के गले का व्यास दिया जा सकता है।
घोषित शक्ति - अंकित (या निरंतर भी) शक्ति और शिखर (या अधिकतम लघु-अवधि) शक्ति जो एक लाउडस्पीकर संभाल सकता है (अर्थात लाउडस्पीकर को नष्ट करने से पहले अधिकतम इनपुट शक्ति; यह लाउडस्पीकर द्वारा उत्पादित ध्वनि निर्गम नहीं होता). यदि किसी ड्राइवर को कम आवृत्तियों पर उसकी योंत्रिक सीमाओं से अधिक पर चलाया जाए तो यह अपनी घोषित शक्ति से काफी कम पर ही क्षतिग्रस्त हो सकता है। ट्वीटर्स भी प्रवर्धक क्लिपिंग द्वारा (इन मामलों में उच्च आवृत्तियों पर प्रवर्धक परिपथ बड़ी मात्रा में ऊर्जा का उत्पादन करते हैं) या संगीत से या उच्च आवृत्तियों पर साइन तरंग निवेश द्वारा क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। इन स्थितियों में से प्रत्येक में ट्वीटर को उससे अधिक ऊर्जा मिलती है जितनी पर वह बिना क्षतिग्रस्त हुए अपना अस्तित्व बचा सकता है। कुछ क्षेत्राधिकारों में, शक्ति संचालन का एक विधिक अर्थ है जो विचाराधीन लाउडस्पीकरों के बीच तुलना की अनुमति देता है। अन्यत्र, शक्ति संचालन क्षमता के विभिन्न अर्थ काफी भ्रमित हो सकते हैं।
प्रतिबाधा - आमतौर पर 4Ω (ओम), 8Ω, आदि.
अवरोधक या अंतःक्षेत्र प्रकार (केवल आवृत सिस्टम) - मुहरबंद, बैस रिफ्लेक्स, आदि.
ड्राइवरों की संख्या (केवल पूर्ण स्पीकर सिस्टम) - द्विमार्गी, त्रिमार्गी, आदि
और वैकल्पिक रूप से:
क्रॉसओवर आवृत्ति (यां) (केवल बहु-ड्राइवर सिस्टम) - ड्राइवरों के बीच विभाजन की अंकित आवृत्ति सीमाएं.
आवृत्ति अनुक्रिया - एक नियत निवेश स्तर पर आवृत्तियों की दी हुई सीमा में मापित, या निर्दिष्ट निर्गम उन आवृत्तियों पर भिन्न-भिन्न रहा. कभी कभी इस में एक विचरण सीमा "±2.5 डीबी" के अंदर शामिल होती है।
थील/लघु मानक (केवल एकल ड्राइवर) - इनमें शामिल हैं ड्राइवर की F s (अनुनाद आवृत्ति), Q ts (एक ड्राइवर की Q, न्यूनाधिक अनुनाद आवृत्ति पर इसका अवमंदन गुणांक), V as (ड्राइवर का तुल्य वायु अनुवृति आयतन) आदि.
संवेदनशीलता - एक अननुरणन वातावरण में एक लाउडस्पीकर द्वारा उत्पादित ध्वनि दबाव स्तर, प्रायः dB में निर्दिष्ट और 1 वॉट (8Ω में 2.83 आरएमएस (rms) वोल्ट) के निवेश के साथ 1 मीटर पर मापा गया, आमतौर पर एक या अधिक आवृत्तियां. यह रेटिंग अक्सर प्रभावशाली होने के लिए निर्माताओं द्वारा निर्दिष्ट की जाती है।
अधिकतम एसपीएल - उच्चतम निर्गम जो लाउडस्पीकर प्रबंध कर सकता है, एक विशेष विरूपण स्तर पार होने पर, क्षति से कम या नहीं. यह रेटिंग अक्सर प्रभावशाली होने के लिए निर्माताओं द्वारा निर्दिष्ट की जाती है और आमतौर पर आवृत्ति सीमा या विरूपण स्तर के सन्दर्भ के बिना की जाती है।
एक गतिशील लाउडस्पीकर की विद्युत विशेषताएं
एक ड्राईवर के द्वारा एक प्रवर्धक पर डाले गये भार में जटिल विद्युत प्रतिबाधा- प्रतिरोध और धारिता एवं प्रेरणिक दोनों प्रतिघातों का संयोजन शामिल है, जो एक ड्राइवर के गुणों, इसकी यांत्रिक गति, क्रॉसओवर घटकों के प्रभाव (यदि प्रवर्धक और ड्राइवर के बीच संकेत मार्ग में कोई है) और अंतःक्षेत्र तथा उसके वातावरण द्वारा संशोधित ड्राइवर पर वायु भारण के प्रभाव का संयोजन करता है। अधिकतर एम्पलीफायरों के निर्गम विनिर्देश एक आदर्श प्रतिरोधक भार में एक विशिष्ट शक्ति पर दिए गए हैं, दिया जाता है, हालांकि, एक लाउडस्पीकर का इसकी आवृत्ति सीमा में प्रतिरोध नियत नहीं रहता है। इसके बजाय, वाक कुंडली प्रेरणिक है, ड्राइवर में यांत्रिक अनुनाद है, अंतःक्षेत्र ड्राइवर की विद्युत और यांत्रिक विशेषताओं में परिवर्तन करता है और ड्राइवरों और प्रवर्धक के बीच एक निष्क्रिय क्रॉसओवर अपनी विविधताओं का योगदान देता है। परिणाम एक भार प्रतिरोध है जो आवृत्ति के साथ काफी व्यापक रूप से परिवर्तित होता है और आमतौर पर एक वोल्टेज और विद्युत घारा के बीच एक परिवर्तिनशील फेज संबंध भी होता है, जो आवृत्ति के साथ भी बदलता है। कुछ प्रवर्धक इन बदलावों का सामना दूसरों की तुलना में बेहतर कर सकते हैं।
ध्वनि उत्पन्न करने के लिए, एक लाउडस्पीकर को एक मॉडुलित विद्युत धारा (एक प्रवर्धक द्वारा उत्पादित) द्वारा चलाया जाता है, जो एक “स्पीकर कुंडली” (एक तांबे के तार की कुंडली) में से गुजरती है, जो तब (प्रतिरोधों एवं अन्य बलों में से) एक चुंबकीय क्षेत्र बनाते हुए कुंडली को चुंबकीकृत करती है। स्पीकर से गुजरने वाले विद्युत धारा विचरण इस प्रकार विविध चुंबकीय बलों में परिवर्तित होते हैं, जो स्पीकर डायफ्राम को गति देते हैं, जो इस तरह से ड्राइवर को, प्रवर्धक से मूल संकेत के समान वायु गति उत्पन्न करने के लिए बाध्य करते हैं।
विद्युतचुंबकीय मापन
पूरी तरह से एक लाउडस्पीकर या सिस्टम की ध्वनि निर्गम गुणवत्ता को शब्दों में निरूपित करना अनिवार्य रूप से असंभव है। उद्देश्यपरक माप प्रदर्शन के कई पहलुओं के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं, ताकि सूचित तुलना और सुधार किया जा सके, लेकिन माप का कोई संयोजन उपयोग में एक लाउडस्पीकर सिस्टम के प्रदर्शन को संक्षेप में प्रस्तुत नहीं करता है, क्योंकि परीक्षण में प्रयुक्त संकेत न तो संगीत होते हैं और न ही भाषण. आम माप के उदाहरण हैं: आयाम और चरण विशेषताएं बनाम आवृत्ति; एक या अधिक स्थितियों के अधीन अनुक्रिया (जैसे, वर्ग तरंग, साइन तरंग प्रस्फोट, आदि); दिशिकता बनाम आवृत्ति (जैसे, क्षैतिज, ऊर्ध्वाधर, गोलीय, आदि); संनादी अंतरामॉडुलन विरूपण बनाम अनेक परीक्षण संकेतों में से किसी का उपयोग करते हुए, एसपीएल (SPL) निर्गम; विभिन्न आवृत्तियों पर संग्रहित ऊर्जा (जैसे, वादन); प्रतिबाधा बनाम आवृत्ति; और लघु संकेत बनाम दीर्घ संकेत प्रदर्शन. इन मापों में से अधिकांश के लिए प्रदर्शन हेतु परिष्कृत और अक्सर महंगे उपकरण की तथा मापकर्ता के सही निर्णय की भी आवश्यकता होती है, लेकिन अपरिष्कृत ध्वनि दबाव स्तर रिपोर्ट करने के लिए आसान होता है, इसलिए यही एकमात्र निर्दिष्ट मान है- सटीक शब्दों में कभी-कभी गुमराह करते हुए. एक लाउडस्पीकर द्वारा उत्पन्न ध्वनि दबाव स्तर (SPL) को डेसीबेल (dBspl) में मापा जाता है।
दक्षता बनाम संवेदनशीलता
लाउडस्पीकर दक्षता को ध्वनि शक्ति निर्गम विभाजित वैद्युत शक्ति निवेश के रूप में परिभाषित किया जाता है। अधिकतर लाउडस्पीकर वास्तव में बहुत अक्षम ट्रान्सड्यूसर होते हैं; एक प्रवर्धक द्वारा लाउडस्पीकर के लिए भेजी गई विद्युत ऊर्जा का केवल 1% ध्वनिक ऊर्जा में बदला जाता है। शेष अधिकतर वाक कुंडली तथा चुंबक संयोजन में ऊष्मा के रूप में बदल जाती है। इसका मुख्य कारण ड्राइव इकाई की ध्वनिक प्रतिबाधा और हवा, जिसमें यह विकिरण करता है, की प्रतिबाधा के बीच उचित प्रतिबाधा मिलान प्राप्त करने में कठिनाई है (कम आवृत्तियों पर इस मिलान में सुधार करना, स्पीकर अंतःक्षेत्र डिजाइनों का मुख्य उद्देश्य है). लाउडस्पीकर ड्राइवरों की दक्षता आवृत्ति के साथ भी बदलती है। उदाहरण के लिए, हवा और ड्राइवर में बढ़ते घटिया मिलान के कारण निवेश आवृत्ति घटने पर एक वूफर ड्राइवर का निर्गम घटता है।
दिए हुए निवेश के लिए एसपीएल के आधार पर ड्राइवर अनुमतांक को संवेदनशीलता अनुमतांक कहा जाता है और सैद्धांतिक रूप से यह दक्षता के समान हैं। संवेदनशीलता को सामान्यतः 1 वॉट वैद्युत निवेश पर इतने डेसीबेल के रूप में परिभाषित किया जाता है, इसे प्रायः एकल आवृत्ति पर 1 मीटर पर मापा जाता है (हैडफोन को छोड़कर). प्रयुक्त वोल्टेज अक्सर 2.83 VRMS होता है, जो 8Ω (अंकित) स्पीकर प्रतिबाधा में 1 वॉट होता है (अनेक स्पीकर सिस्टमों के लिए लगभग सही है). इस सन्दर्भ के साथ लिया माप डीबी के रूप में 2.83 वी @ 1मी उद्धृत किया जाता है।
ध्वनि दबाव निर्गम लाउडस्पीकर से एक मीटर पर (या गणितीय रूप से लिये गए माप के बराबर) तथा अक्ष पर मापा जाता है (सीधे इसे के सामने), कि शर्त के तहत कि लाउडस्पीकर एक असीम बड़ी जगह में एक असीम अवरोधक पर आरोहित होकर विकिरित हो रहा है। स्पष्ट रूप से तब, संवेदनशीलता शुद्ध रूप से दक्षता के साथ सहसंबद्ध नहीं है, क्योंकि यह परीक्षण किये जा रहे ड्राइवर की दिशिकता और वास्तविक लाउडस्पीकर के सामने ध्वनिक वातावरण पर भी निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, एक प्रशंसक का श्रृंग उस दिशा में अधिक ध्वनि निर्गम उत्पन्न करता है जिस दिशा में इसका रुख किया जाता है, ध्वनि तरंगों को प्रशंसक से एक ही दिशा में संकेंद्रित करते हुए, इस प्रकार "केंद्रित" होता है। श्रृंग वाक एवं हवा के बीच प्रतिबाधा मिलान में भी सुधार करता है, जिससे एक दी हुई स्पीकर शक्ति से अधिक ध्वनिक शक्ति उत्पन्न होती है। कुछ मामलों में, बेहतर प्रतिबाधा मिलान (ध्यान से की गई अंतःक्षेत्र डिजाइन के माध्यम से) स्पीकर को अधिक ध्वनिक शक्ति का उत्पादन करने की अनुमति देगा.
विशिष्ट घरेलू लाउडस्पीकर की संवेदनशीलता 1 W @ 1 मी के लिए 85 से 95 dB तथा दक्षता 0.5-4% होती है।
ध्वनि सुदृढीकरण और सार्वजनिक उद्घोषणा लाउडस्पीकरों की संवेदनशीलता शायद 1 मीटर पर 1 वॉट के लिए 95 से 102 डीबी तथा दक्षता 4-10% है।
रॉक कंसर्ट, स्टेडियम पीए, समुद्री जयजयकार, आदि के स्पीकरों की संवेदनशीलता आमतौर पर ऊंची 103 से 110 डीबी 1 वॉट @ 1 मीटर तथा दक्षता 10-20% होती है।
यह जरूरी नहीं है कि उच्च अधिकतम शक्ति अनुमतांक के साथ एक ड्राइवर जरूरी नहीं वह एक कम अनुमतांक वाले स्पीकर से तीव्र स्तर पर संचालित किया जा सकता है, क्योंकि संवेदनशीलता और शक्ति प्रबंधन काफी हद तक स्वतंत्र गुण हैं। आगले उदाहरणों में, मानलें (सरलता के लिए) कि तुलना किये जा रहे दोनों ड्राइवरों की विद्युत प्रतिबाधा समान है; दोनों समान आवृत्ति पर अपने-अपने पास बैंड पर संचालित हैं; और शक्ति संपीड़न तथा विरूपण कम हैं। पहले उदाहरण के लिए, एक स्पीकर दूसरे से 3 डीबी अधिक संवेदनशील है, समान शक्ति निवेश के लिए दो गुनी ध्वनि शक्ति का उत्पादन करेगा (या 3 डीबी तीव्रतर), इस प्रकार, एक 100 वॉट ड्राइवर ("ए") अनुमतांक के लिए 92 डीबी 1वॉट @ 1 मी संवेदनशीलता एक 200 वॉट ("बी") अनुमतांक ड्राइवर 1 वॉट @ 1 मीटर के लिए 89 डीबी की तुलना में दोगुनी ध्वनिक शक्ति उत्पन्न करेगा, जबकि देनें को एक समान 100 वॉट निवेश पर चलाया जाता है। इस विशिष्ट उदाहरण में, जब 100 वॉट पर संचालित है, स्पीकर ए उतना ही SPL या तीव्रता का उत्पादन करेगा, जितना स्पीकर बी 200 वॉट निवेश के साथ उत्पादन करता है। इस प्रकार, एक स्पीकर की संवेदनशीलता में 3 डीबी की वृद्धि का मतलब है कि इसे दी हुई SPL प्राप्त करने के लिए आधी प्रवर्धक बिजली की जरूरत होगी. यह एक छोटे, कम जटिल शक्ति प्रवर्धक और अक्सर, कम समग्र प्रणाली लागत के रूप में अनुवादित होता है।
उच्च दक्षता (विशेष रूप से कम आवृत्तियों पर) का कॉम्पैक्ट अंतःक्षेत्र आकार और पर्याप्त कम आवृत्ति प्रतिक्रिया के साथ संयोजन संभव नहीं है। एक स्पीकर सिस्टम डिजाइन करते समय तीन में से दो मानक ही चुने जा सकते हैं। तो, उदाहरण के लिए, यदि विस्तारित कम आवृत्ति प्रदर्शन और छोटे से बॉक्स का आकार महत्वपूर्ण है, कम दक्षता को स्वीकार करना चाहिए. इस अंगूठे के नियम को कभी-कभी हॉफमैन का लौह नियम (जे. ए. हॉफमैन के नाम पर, केएलएच में "एच")
श्रवण वातावरण
अपने वातावरण के साथ एक लाउडस्पीकर सिस्टम की अन्योन्यक्रिया जटिल है और बड़े पैमाने पर लाउडस्पीकर डिजाइनर के नियंत्रण से बाहर है। अधिकांश श्रवण कक्ष आकार, रूप, खंड और साज-सामान के आधार पर एक न्यूनाधिक चिंतनशील वातावरण प्रस्तुत करते हैं। इसका मतलब यह है एक श्रोता के कान तक पहुँचने वाली ध्वनि में स्पीकर सिस्टम से सीधे आनेवाली ध्वनि ही नहीं, बल्कि वही ध्वनि एक या अधिक सतहों से सफर करके (संशोधित होकर) देरी से पहुंचती है। ये परिलक्षित ध्वनि तरंगें, जब प्रत्यक्ष ध्वनि से जुड़ती हैं तो चयनित आवृत्तियों पर निरसन तथा योजन होते हैं (जैसे गुंजयमान कक्ष मॉड से), इस प्रकार श्रोता के कान में ध्वनि के लय और चरित्र बदले हुए पहुंचते हैं। मानव मस्तिष्क इनमें से कुछ सहित, छोटे बदलावों के प्रति बहुत संवेदनशील होता है और यही आंशिक कारण है कि लाउडस्पीकर सिस्टम भिन्न श्रवण स्थितियों में या भिन्न कमरों में भिन्न ध्वनि देता है।
एक लाउडस्पीकर सिस्टम की आवाज में एक महत्वपूर्ण कारक वातावरण में मौजूद प्रसार और अवशोषण की राशि है। एक विशिष्ट खाली कमरे में ताली एक हाथ, पर्दों या कालीन के बिना, एक तेज गूंज उत्पन्न होती है, जो अवशोषण की कमी तथा सपाट दीवारों, फर्श और छत से अनुरणन (गूंज की पुनरावृत्ति) दोनों के कारण होती है। कठोर सतह वाले फर्नीचर, दीवार के पर्दे, आलमारियां, अति अलंकृत प्लास्टर से छत की सजावट प्रतिध्वनि को बदल देती है, मुख्यतः ध्वनि तरंगदैर्घ्य के आकार से मिलती कुछ हद तक परावर्ती वस्तुओं के द्वारा उत्पन्न विसरण के कारण ऐसा होता है। यह कुछ हद तक अन्यथा नग्न सपाट सतहों की वजह से हुए परावर्तन को तोड़ देता है और आपतित तरंग की परावर्तित ऊर्जा को एक बड़े परावर्तन कोण पर फैला देता है।
स्थानन
एक विशिष्ट आयताकार श्रवण कक्ष, दीवारों, फर्श और छत की कठोर समानांतर सतहों के कारण तीनों आयामों, बाएं-दाएं, ऊपर-नीचे तथा आगे-पीछे में प्राथमिक अनुनाद नोड होते हैं। इसके अलावा, तीन, चार, पांच यहां तक कि छः सीमा सतहों वाले जटिल अनुनाद अवस्थाएं भी हैं जिनमें सभी सतहें मिल कर अप्रगामी तरंगें बनाती हैं। इन अवस्थाओं को कम आवृत्तियां सर्वाधिक उत्तेजित करती हैं, क्योंकि लंबे तरंगदैर्घ्य फर्नीचर संयोजनों या स्थानन से अधिक प्रभावित नहीं होते. विशेषकर छोटे और मध्यमाकार कमरे जैसे रिकॉर्डिंग स्टूडियो, होम थिएटर और प्रसारण स्टूडियो में मोड अंतराल अत्यंत महत्वपूर्ण है। लाउडस्पीकरों की कमरों की सीमाओं से निकटता प्रभावित करती है कि कितनी मजबूती से अनुनाद उत्तेजित हैं, साथ ही साथ प्रत्येक आवृत्ति पर सापेक्ष शक्ति को प्रभावित करती है। श्रोता का स्थान भी महत्वपूर्ण है, जैसे कि एक सीमा के निकट एक स्थान पर आवृत्तियों के कथित संतुलन पर एक बड़ा प्रभाव हो सकता है। इसका कारण यह है अप्रगामी तरंग पैटर्न इन स्थानों में सबसे आसानी से और कम आवृत्तियों पर सुनी जाती है, श्रोएडर आवृत्ति से नीचे - आमतौर पर 200-300 हर्ट्ज के आसपास, कमरे के आकार पर निर्भर करता है।
दिशिकता
ध्वनि विशेषज्ञों ने, ध्वनि स्रोतों के विकिरण का अध्ययन करने में कुछ समझने के लिए महत्वपूर्ण अवधारणाओं का विकास किया है कि कैसे लाउडस्पीकरों को समझा जाता है। सबसे सरल संभव विकिरण स्रोत एक बिंदु स्रोत है, जिसे कभी कभी एक साधारण स्रोत कहा जाता है। एक आदर्श बिंदु स्रोत एक अति सूक्ष्म ध्वनि विकिरणकारी सूक्ष्म बिंदु है। एक छोटे से कंपायमान गोले की कल्पना करना आलान हो सकता है, जिसका व्यास समान रूप से घटता और बढ़ता है, सभी दिशाओं में समान रूप से ध्वनि तरंगें भेजते हुए, आवृत्ति से मुक्त.
एक लाउडस्पीकर सिस्टम सहित, किसी भी ध्वनि उत्पादक वस्तु, के ऐसे ही साधारण बिंदुओं के संयोजन से बने होने के बारे में सोचा जा सकता है। बिंदु स्रोतों के एक संयोजन का विकिरण पैटर्न एकल स्रोत के समान नहीं होगा, बल्कि स्रोतों के बीच दूरी और उन्मुखीकरण, वह सापेक्ष स्थिति जिस से श्रोता संयोजन सुनता है और सन्दर्भित ध्वनि की आवृत्ति पर निर्भर करेगा. ज्यामिति और कलन का उपयोग करके, स्रोतों में से कुछ सरल संयोजनों को आसानी से हल किया जा सकता है, दूसरों को नहीं.
एक साधारण संयोजन है, दो सरल स्रोत एक दूरी के द्वारा अलग है और प्रावस्था-बाह्य कंपन कर रहे हैं, एक सूक्ष्म गोले का विस्तार होता है, तो दूसरे का संकुचन. इस जोड़ी को एक द्विक या द्विध्रुव के रूप में जाना जाता है और इस संयोजन के विकिरण एक बहुत छोटे से एक बिना अवरोधक के गतिशील लाउडस्पीकर के संचालन के समान है। एक द्विध्रुव की दिशिकता 8 अंक के आकार की है और अधिकतम निर्गम दो स्रोतों को जोड़ने वाले एक वेक्टर के साथ और न्यनतम पार्श्व की ओर जब प्रेक्षण बिंदु दोनों स्रोतों से समदूरस्थ है, जहां धनात्मक और ऋणात्मक तरंगें एक दूलरे को निरस्त कर देती हैं। जबकि अधिकांश ड्राइवर द्विध्रुव हैं, जिस अंतःक्षेत्र से वे जुड़े हैं उसके आधार पर, वे एकलध्रुव या द्विध्रुव की तरह विकिरण कर सकते हैं। यदि एक परिमित अवरोधक पर आरोहित है और इन प्रावस्था-बाह्य तरंगों को अन्योन्यक्रिया करने दी जाती है, द्विध्रुव आवृत्ति अनुक्रिया परिणाम में शीर्ष और शून्य हो जाते हैं। जब पृष्ठ विकिरण को अवशोषित या एक बॉक्स में रोक लिया जाता है, डायाफ्राम एक एकध्रुवीय विकीरक हो जाता है। एकध्रुवों को एक बॉक्स के विपरीत पार्श्वों में प्रावस्था-में आरोहित करके (दोनों बाहर की ओर या अंदर की ओर स्वरैक्य में गति करते हैं) बनाए गए द्विध्रुव स्पीकर सर्वदिशिक विकिरण पैटर्न प्राप्त करने् की एक विधि है।
वास्तविक जीवन में, अलग-अलग ड्राइवर वास्तव में जटिल शंकु और गुंबदों के रूप में 3डी आकार हैं और इन्हें विभिन्न कारणों से बाधिका पर रखा जाता है। एक जटिल आकार की दिशिकता के लिए एक गणितीय अभिव्यक्ति, बिंदु के स्रोतों के मॉडलिंग संयोजन के आधार पर, आमतौर पर संभव नहीं लेकिन दूरस्थ एक गोलाकार डायाफ्राम के साथ एक लाउडस्पीकर की दिशिकता एक सपाट गोलाकार पिस्टन के समान होती है, इसलिए चर्चा के लिए इसे एक सरलीकृत उदाहरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। शामिल गणितीय भौतिकी के एक सरल उदाहरण, निम्नलिखित पर विचार कीजिए:
एक अनंत बाधिका पर एक गोलाकार पिस्टन की दूरक्षेत्र दिशिकता के लिए सूत्र है
जहां , अक्ष पर दबाव है, त्रिज्या है पिस्टन, अर्थात् तरंगदैर्घ्य है () अक्ष कोण है और प्रथम प्रकार का बेसल फलन है।
एक समतल स्रोत समान रूप से कम आवृत्तियों के लिए जिनका तरंगदैर्घ्य समतल स्रोत के आयामों से अधिक लंबा है, के लिए समान ध्वनि विकीर्ण होगा और जैसे-जैसे आवृत्ति बढ़ जाती है इस तरह के एक स्रोत से ध्वनि एक बढ़ते हुए संकरे कोण में केंद्रित होगी. जितना छोटा ड्राइवर, उतनी उच्च आवृत्ति, जहां दिशिकता का यह संकुचन होता है। यहां तक कि अगर डायाफ्राम बिल्कुल गोलाकार नहीं है, यह प्रभाव इस प्रकार होता है कि बड़े स्रोत अधिक दिशिक है। कई लाउडस्पीकर डिजाइन बनाये गये हैं जिनका लगभग यही व्यवहार है। अधिकतर स्थिरवैद्युत या चुंबकीय समतल डिजाइन हैं।
विभिन्न निर्माता उस स्थान में जिनके लिए उन्हें डिजाइन किया गया है, एक विशिष्ट प्रकार के ध्वनि क्षेत्र की रचना के लिए भिन्न ड्राइवर आरोहण व्यवस्था का उपयोग करते हैं लिए अंतरिक्ष में एक ध्वनि विशिष्ट प्रकार है जिसके लिए वे तैयार कर रहे हैं बनाने के लिए. परिणामस्वरूप विकिरण पैटर्न वास्तविक यंत्रों द्वारा उत्पन्न ध्वनि का बारीकी से अनुकरण करने के लिए अभिप्रेत हो सकता है, या सिर्फ निवेश संकेत से नियंत्रित ऊर्जा वितरण का सृजन करना (इस पद्धति का प्रयोग करने वाले कुछ मॉनीटर कहलाते हैं, क्योंकि वे स्टूडियों में अभी रिकॉर्ड किये गये संकेत के परीक्षण में किया जा सकता है). पहले का एक उदाहरण है, एक 1/8 गोले की की सतह पर बहुत से छोटे ड्राइवरों के साथ कमरे का कॉर्नर सिस्टम. इस प्रकार के एक सिस्टम का डिजाइन प्रोफेसर अमर बोस-2201 के द्वारा पेटेंट कराया गया था और वास्तव में वाणिज्यिक उत्पादन किया गया। बाद में बोस मॉडलों में जान-बूझकर वातावरण की परवाह किए बिना लाउडस्पीकर द्वारा स्वयं सीधे या परावर्तित ध्वनि के उत्पादन पर जोर दिया गया। ये डिजाइन उच्च निष्ठा हलकों में विवादास्पद रहे है, लेकिन वाणिज्यिक रूप से सफल साबित हुए हैं। कई अन्य निर्माताओं के डिजाइन समान सिद्धांतों का पालन करते हैं।
दिशिकता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि यह श्रोता द्वारा सुनी जाने वाली ध्वनि के आवृत्ति संतुलन को प्रभावित करता है, इसके साथ ही स्पीकर सिस्टम की कमरे और उसके सामान के साथ अन्योन्यक्रिया को भी प्रभावित करता है। एक स्पीकर जो बहुत ही दिशिक है (यानी स्पीकर आमुख के लंबवत अक्ष पर) का परिणाम उच्च आवृत्ति रहित एक अनुरणन क्षेत्र में हो सकता है, जो यह प्रभाव दे कि यद्यपि इसकी अक्ष पर माप सही है, (पूरी आवृत्ति सीमा में “सपाट”) किंतु इसमें ट्रेबल नहीं है। बहुत व्यापक या उच्च आवृत्तियों पर तेजी से बढ़ती दिशिकता यह प्रभाव दे सकती है कि ट्रेबल बहुत अधिक है (यदि श्रोता अक्ष पर है) है, या बहुत कम है (यदि श्रोता अक्ष से परे है). यह उस कारण की हिस्सा है, क्यों अक्ष पर अनुक्रिया मापन दिए हुए लाउडस्पीकर की ध्वनि की पूर्ण विशेषता वर्णन नहीं है।
दूसरे ड्राइवर डिजाइन
अन्य ड्राइवर जो सबसे अधिक इस्तेमाल किये जाने वाले सीधे विकिरणकारी, अंतःक्षेत्र में आरोहित विद्युत-गतिशील ड्राइवर से अलग हट कर हैं उन में शामिल हैं-
श्रृंग लाउडस्पीकर
श्रृंग लाउडस्पीकर लाउडस्पीकर सिस्टम का सबसे पुराना रूप है। वाक प्रवर्धक मेगाफोन में श्रृंग का उपयोग कम से कम 17वीं शताब्दी जितना पुराना है और यांत्रिक ग्रामोफोन में श्रृंग का उपयोग सबसे पहले 1857 में होता था। श्रृंग लाउडस्पीकर ड्राइवर के सामने या पीछे रूपित तरंग पथक का प्रयोग लाउडस्पीकर की दिशिकता बढ़ाने और छोटे व्यास के रूपांतरण के लिए, दीर्घ व्यास वाली ड्राइवर शंकु सतह पर उच्च दबाव स्थिति तथा श्रृंग के मुख पर कम दबाव की स्थिति के लिए किया जाता है। इस से लाउडस्पीकर की संवेदनशीलता बढ़ जाती है और ध्वनि एक परिमित क्षेत्र में केंद्रित हो जाती है। गले का आकार, मुख, श्रृंग की लंबाई, साथ ही क्षेत्र विस्तार दर के साथ यह ध्यान रहे कि आवृत्तियों की एक रेंज में रूपांतरण प्रकार्य प्रदान करने के लिए ड्राइव का मिलान ध्यान से चुना जाना चाहिए (हर श्रृंग अपनी ध्वनिक सीमा के बाहर खराब प्रदर्शन करता है, उच्च और निम्न दोनों आवृत्ति सीमाओं पर). एक बैस बनाने के लिए आवश्यक लंबाई और अनुप्रस्थ मुख क्षेत्र या सब-बैस श्रृंग के लिए कई फुट लंबा श्रृंग चाहिए. 'वलित श्रृंग' कुल आकार को कम कर सकते हैं लेकिन डिजाइनरों को समझौता करने और लागत तथा निर्माण जैसी वृद्धि की जटिलता को स्वीकार करने के लिए मजबूर कर देते हैं। कुछ श्रृंग डिजाइन न केवल कम आवृत्ति शृंग को वलित करता है लेकिन, कमरे के कोने में दीवार का उपयोग श्रृंग मुख के विस्तार के रूप में करते हैं। 1940 के दशक के अंत में, श्रृंग जिनके मुख कमरे की दीवार का काफी हिस्सा लेलेते थे, अब हाई-फाई प्रशंसकों के बीच अनजाने नहीं रहे. कमरे के आकार की संस्थापना को बहुत कम स्वीकार्य किया गया जब दो या अधिक की जरूरत होती थी।
एक श्रृंग युक्त स्पीकर की संवेदनशीलता 2.83 वोल्ट पर 110 डीबी (8 ओम पर 1 वॉट) 1मीटर पर जितना उच्च हो सकती है। 90 डीबी की घोषित संवेदनशीलता की तुलना में निर्गम में यह सौ गुना वृद्धि है, जहां उच्च ध्वनि स्तर की आवश्यकता होती है, या प्रवर्धन शक्ति सामित होती है, वहां यह अनमोल है।
पीजोविद्युत स्पीकर
पीजोविद्युत स्पीकर का उपयोग आमतौर पर घड़ियों में बीपर के रूप में, तथा अन्य इलेक्ट्रोनिक उपकरणों में और कभी-कभी कम महंगे स्पीकर सिस्टम में ट्वीटर के रूप में, जैसे कंप्यूटर स्पीकर और पोर्टेबल रेडियो में किया जाता है। पारंपरिक लाउडस्पीकरों की तुलना में पीजोविद्युत स्पीकर के कई फायदे हैं: वे अतिभार प्रतिरोधक हैं जो कि आम तौर पर अधिकतर उच्च आवृत्ति चालकों को नष्ट कर देता है और वे अपने वैद्युत गुणों के कारण एक क्रॉसओवर के बिना इस्तेमाल किये जा सकते हैं। वहीं नुकसान भी हैं: कुछ प्रवर्धक थरथराना सकते हैं जैसे अधिकांश पीजोविद्युत, जिसके परिणामस्वरूप विरूपण या प्रवर्धक को क्षति हो सकता है। इसके अतिरिक्त, उनकी आवृत्ति अनुक्रिया, ज्यादातर मामलों में, अन्य प्रौद्योगिकियों से हल्की है। यही कारण है कि इनका आम तौर पर एकल आवृत्ति (बीपर) या गैर-महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों में उपयोग किया जाता है।
पीजोविद्युत स्पीकर का विस्तारित उच्च आवृत्ति निर्गम हो सकता है, यह कुछ विशिष्ट परिस्थितियों के लिए उपयोगी हैः उदाहरण के लिए सोनार अनुप्रयोग जिनमें पीजोविद्युत रूपांतर निर्गम उपकरण (अंतर्जलीय ध्वनि उत्पन्न करने के लिए) और निवेश उपकरण के रूप में (अंतर्जलीय माइक्रोफोन के संवेदन घटक के रूप में कार्य करने के लिए). इन अनुप्रयोगों में उनके फायदे हैं, जिनका लेशमात्र भी सरल नहीं है, सोलिड स्टेट निर्माण जो समुद्री पानी के प्रभावों का प्रतिरोध रिबन आधारित उपकरणों से बेहतर कर सकता है।
चुंबकीय विरूपण स्पीकर
चुंबकीय विरूपण ट्कान्सड्यूसर, चुंबकीय विरूपण पर आधारित है, मुख्य रूप से इनका इस्तेमाल सोनार पराश्रव्य ध्वनि विकिरक के रूप में किया जाता है, लेकिन उनके उपयोग ऑडियो स्पीकर सिस्टम में भी होता है। चुंबकीय विरूपण स्पीकर ड्राइवरों के कुछ विशेष लाभ है: वे अन्य तकनीकों की तुलना में अधिक बल (छोटे घुमाव के साथ) प्रदान कर सकते हैं, कम भ्रमण अन्य डिजाइनों में बड़े भ्रमण से विकृतियों से बचाव कर सकते हैं; चुंबकीयकरण कुंडली स्थिर है और इसलिए अधिक आसानी से ठंडी की जा सकती है, क्योंकि वे मजबूत हैं, नाजुक निलंबन और वाक कुंडली की आवश्यकता नहीं है। चुंबकीय विरूपण स्पीकर मॉड्यूल फॉस्टेक्स (Fostex) और फिओनिक (FeONIC) द्वारा निर्मित किया गया है तथा सबवूफर ड्राइवरों का भी उत्पादन किया गया है।
स्थिरवैद्युत लाउडस्पीकर
स्थिरवैद्युत लाउडस्पीकर एक उच्च वोल्टता विद्युत क्षेत्र (चुंबकीय क्षेत्र की बजाय) का उपयोग स्थैतिकतः आवेशित झिल्ली को के प्रणोद परिचालन हेतु किया जाता है। चूंकि वे एक छोटी वाक कुंडली की बजाय पूरी झिल्ली की सतह पर से संचालित होते हैं, वे आमतौर पर गतिशील ड्राइवरों की तुलना में एक अधिक रैखिक और कम विरूपण गति प्रदान करते हैं। उनको नुकसान यह है कि डायाफ्राम भ्रमण गंभीर रूप से व्यावहारिक निर्माण सीमाओं के कारण सीमित है, आगे स्टेटर तैनात हैं, स्वीकार्य दक्षता प्राप्त करने के लिए उच्चतर वोल्टेज की आवश्यकता होती है, जो विद्युत आर्क की प्रवृत्ति को बढ़ाता है, साथ ही स्पीकर द्वारा धूल के कणों को आकर्षित करना बढ़ जाता है। कई वर्ष तक स्थिरवैद्युत लाउडस्पीकरों की प्रतिष्ठा एक आमतौर पर अविश्वसनीय और कभी-कभी खतरनाक उत्पाद के रूप में थी। वर्तमान प्रौद्योगिकियों के साथ आर्किंग एक संभावित समस्या बनी हुई है, खासकर जब पैनलों को धूल या गंदगी, एकत्र करने की अनुमति है या जब उच्च संकेत स्तर के साथ संचालित हो.
स्थिरवैद्युत पारंपरिक रूप से द्विध्रुवीय विकिरक होते हैं और पतली लचीली झिल्ली के कारण आम शंकु ड्राइवरों की भांति कम आवृत्तियों के निरसन हेतु अंतःक्षेत्रों में प्रयोग के लिए कम उपयुक्त है। इस कारण तथा कम भ्रमण क्षमता के कारण, पूर्ण सीमा स्थिरवैद्युत लाउडस्पीकर प्रकृति से बड़े हैं और बैस सबसे संकरे पैनल आयाम के एक चौथाई के बराबर तरंग दैर्घ्य वाली आवृत्ति पर रोल करेगा. वाणिज्यिक उत्पादों के आकार को कम करने के लिए, उन्हें कभी कभी एक पारंपरिक गतिशील ड्राइवर जो बैस आवृत्तियों को संभालते हैं, के साथ संयोजन में उच्च आवृत्ति ड्राइवर के रूप में उपयोग किया जाता है।
रिबन और समतल चुंबकीय लाउडस्पीकर
एक रिबन स्पीकर''' में एक पतला धातु-फिल्म रिबन एक चुंबकीय में निलंबित होता है। विद्युत संकेत रिबन को भेजे जाते हैं, जो इनके साथ चलता है, इस तरह ध्वनि पैदा होती है। रिबन ड्राइवर का एक लाभ यह है कि रिबन का द्रव्यमान बहुत कम होता है, इस प्रकार, यह प्रतिक्रिया बहुत तेज कर सकते हैं, बहुत अच्छी उच्च-आवृत्ति अनुक्रिया हासिल की जा सकती है। रिबन लाउडस्पीकर अक्सर बहुत नाजुक, कुछ हवा के एक मजबूत झोंके से फाड़े जा सकते हैं। अधिकतर रिबन ट्वीटर एक द्विध्रुवीय पैटर्न में ध्वनि उत्सर्जित करते हैं, बहुत कम में द्विध्रुवीय विकिरण पैटर्न को सीमित करने के लिए दृढ़स्तर होता है। न्यूनाधिक आयताकार रिबन के किनारों के ऊपर और नीचे प्रावस्था निरसन के कारण कम श्रवणीय निर्गम होता है, लेकिन दिशिकता की सही राशि रिबन की लंबाई पर निर्भर करती है। रिबन डिजाइन को आम तौर पर असाधारण शक्तिशाली चुंबक की आवश्यकता होती है जो उनके निर्माण को महंगा बनाते है। रिबन का प्रतिरोध बहुत कम होता है जिसे अधिकतर प्रवर्धक सीधे प्रणोद परिचालित नहीं कर सकते. नतीजतन, एक अपचायी ट्रांसफार्मर का उपयोग आम तौर पर रिबन में से विद्युत धारा बढ़ाने के लिए किया जाता है। प्रवर्धक एक भार देखता है, जो है रिबन का प्रतिरोध गुणा ट्रांसफार्मर फेरों के अनुपात का वर्ग. ट्रांसफार्मर को ध्यान से इस तरह डिजाइन करना चाहिए कि इसकी आवृत्ति प्रतिक्रिया और परजीवी नुकसान ध्वनि की गुणवत्ता को कम नहीं करें, आगे की लागत और पारंपरिक डिजाइनों के सापेक्ष बढ़ रही जटिलता को न बढ़ाए.
समतल चुंबकीय स्पीकरों (एक सपाट डायाफ्राम पर मुद्रित या एम्बेडेड कंडक्टर) कभी-कभी "रिबन" के रूप में वर्णित है, लेकिन वास्तव में रिबन स्पीकर नहीं हैं। शब्द समतल आम तौर पर स्पीकरों, जिनमें लगभग आयताकार आकार की सपाट सतहें होती हैं जो द्विध्रुवी (यानी, आगे और पीछे) ढंग से विकिरण करती हैं, के लिए आरक्षित है। समतल चुंबकीय स्पीकर एक वाक कुंडली मुद्रित या आरोहित एक लचीली झिल्ली से मिलकर बनता है। कुंडली में प्रवाहित विद्युत धारा, डायाफ्राम के दोनों तरफ ध्यान से रखे गए चुंबकों के चुंबकीय क्षेत्र के साथ अन्योन्यक्रिया करके झिल्ली को न्यूनाधिक समान रूप से कंपायमान करती है बिना झुके या शिकन पड़े. संचालन बल झिल्ली की सतह के एक बड़े प्रतिशत को कवर करता है और कुंडली चालित सपाट डायाफ्राम की पारंपरिक अनुनाद समस्याएं कम करता है।
बंकन-तरंग लाउडस्पीकर
बंकन तरंग ट्रान्सड्यूसर्स जानबूझकर लचीला रखे गए डायाफ्राम का उपयोग करते हैं। सामग्री की कठोरता केंद्र से बाहर की ओर बढ़ती है। लघु तरंग दैर्घ्य मुख्य रूप से भीतरी क्षेत्र से विकिरण करती हैं, जबकि लंबी तरंगें स्पीकर के किनारे तक पहुँचती हैं। बाहर से वापस केंद्र की ओर परावर्तन रोकने के लिए, दीर्घ तरंगों को आसपास के स्पंज द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। ऐसे ट्रान्सड्यूसर्स व्यापक आवृत्ति सीमा को (80 हर्ट्ज से 35,00 हर्ट्ज) कवर कर सकते हैं तथा एक आदर्श बिंदु ध्वनि स्रोत के रूप में प्रोत्साहित किया जाता है। इस असामान्य दृष्टिकोण को केवल कुछ निर्माताओं द्वारा बहुत अलग व्यवस्था में अपनाया जा रहा है। ओम वॉल्श स्पीकरों की लाइन में लिंकन वॉल्श द्वारा डिजाइन किए गए एक अद्वितीय ड्राइवर का उपयोग किया जाता है। लिंकन वॉल्श एक प्रतिभाशाली इंजीनियर थे, जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रडार विकसित करने वाली इंजीनियरिंग टीम का हिस्सा थे। बाद में उन्होंने ऑडियो एम्पलीफायर डिजाइन किए और उनकी अंतिम परियोजना एक अद्वितीय, एक ड्राइवर के साथ एक-मार्गी स्पीकर था। यह एक बड़ा शंकु था जिसका मुंह नीचे एक सीलबंद, वायुरोधक अंतःक्षेत्र में था। पारंपरिक स्पीकरों की तरह आगे-और-पीछे गति करने की बजाय शंकु लहराया और "संचरण लाइन” नामक सिद्धांत का उपयोग करके ध्वनि उत्पन्न की. नए स्पीकर ने एक एकल, पूर्णतासे प्रस्तुत की गई उल्लेखनीय स्पष्टता वाली ध्वनि तरंग का निर्माण किया। वॉल्श के नए स्पीकर डिजाइन का विकास और विपणन करने के लिए एक नई कंपनी ओम एकाउस्टिक्स बनाई गई। लिंकन वॉल्श का स्पीकर जनता के लिए जारी होने से पहले उसकी मृत्यु हो गई। प्रोटोटाइप ओम ए विकसित करने के बाद, 1973 में ओम ने ओम एफ स्पीकर जारी करके महक्वपूर्ण प्रशंसा प्राप्त की.
फ्लैट पैनल लाउडस्पीकर
स्पीकर सिस्टम का आकार कम करने के कई प्रयास हो चुके हैं, या वैकल्पिक रूप से उन्हें कम प्रत्यक्ष करने का प्रयास किया गया है। ऐसा ही एक प्रयास फ्लैट पैनल पर आरोहित वाक कुंडली का विकास था जो ध्वनि स्रोत का कार्य करती थी। ये तब एक तटस्थ रंग में बनाये जा सकते हैं और दीवारों पर लटकाए जा सकते हैं जहां उन पर अन्य स्पीकरों की बजाय कम ध्यान जाए, या जानबूझकर उस पर ऐसे पैटर्न पेंट किए जाएं कि वे अलंकृत रूप में कार्य कर सकें. फ्लैट पैनल तकनीक के साथ दो समस्याएं संबंधित हैं: पहली, एक फ्लैट पैनल जरूरी तौर पर उसी सामग्री में एक शंकु आकार से अधिक लचीला है और इसलिए एक एकल इकाई के रूप में गति करेगा और दूसरा है, पैनल में अनुनादों का नियंत्रण मुश्किल है, जिसकी वजह से काफी विकृतियों की संभावना है। ऐसी हल्की, दृढ़ सामग्री जैसे स्टायरोफोम का उपयोग करके कुछ प्रगति की गई है और कई फ्लैट पैनल सिस्टम हाल के सालों में वाणिज्यिक रूप से उत्पादित किए गए हैं।
वितरित मोड लाउडस्पीकर
फ्लैट पैनल स्पीकर सिस्टम का नये कार्यान्वयन में एक जानबूझकर रखा गया लचीला पैनल और एक "उत्तेजक" शामिल है, केंद्र से दूर आरोहित तथा इस प्रकार स्थित कि न्यूनतम अनुनादों के साथ पैनल को कंपन के लिए उत्तेजित कर सके. ऐसी तकनीक का उपयोग करने वाले स्पीकर व्यापक दिशिकता पैटर्न के साथ (विरोधाभासी ढंग से कुछ-कुछ बिंदु स्रोत की भांति) ध्वनि का पुनरुत्पादन कर सकते हैं और कुछ कंप्यूटर स्पीकर डिजाइनों में तथा बुकशेल्फ लाउडस्पीकरों में इनका उपयोग किया गया है।
हील वायु गति ट्रान्सड्यूसर्स
ऑस्कर हील ने 1960 के दशक में वायु गति ट्रान्सड्यूसर का आविष्कार किया था। इस पद्धति में, एक चुन्नटदार डायाफ्राम एक चुंबकीय क्षेत्र में आरोहित होता है और एक संगीत संकेत के नियंत्रण में बंद होने और खुलने के लिए मजबूर किया जाता है। आवेदित संकेत के अनुसार हवा चुन्नटों के बीच में से गुजर कर ध्वनि पैदा करती है। ड्राइवर रिबन से कम कमजोर और रिबन (और अधिक पूर्ण उच्च स्तरीय उत्पादन करने में सक्षम), स्थिरवैद्युत या चुंबकीय समतल ट्वीटर डिजाइन की तुलना में काफी अधिक दक्ष हैं।
कैलिफोर्निया के एक निर्माता, ईएसएस ने डिजाइन का लाइसेंस लिया और हील को नौकरी पर रख लिया तथा 1970 और 1980 के दशकों में उसके ट्वीटर्स का उपयोग करके स्पीकर सिस्टम की एक श्रृंखला का उत्पादन किया। एक बड़े अमेरिकी खुदरा स्टोर श्रृंखला, रेडियो शैक ने भी एक समय ऐसे ट्वीटर्स का उपयोग करने वाले स्पीकर सिस्टम बेचे थे। वर्तमान में, जर्मनी में इन दोनों ड्राइवरों के दो निर्माता हैं, जिनमें से एक ट्वीटर्स का उपयोग करते हुए उच्च-अंत पेशेवर स्पीकरों की श्रृंखला और प्रौद्योगिकी पर आधारित मध्य-दूरी ड्राइवरों का उत्पादन कर रहा है। अमेरिका में मार्टिन लोगन अनेक एएमटी स्पीकरों का उत्पादन करता है।
प्लाज्मा चाप स्पीकर
प्लाज्मा चाप लाउडस्पीकर विद्युत प्लाज्मा का उपयोग विकीरक तत्व के रूप में करते हैं। चूंकि प्लाज्मा में द्रव्यमान न्यूनतम होता है, लेकिन आवेशित होता है इसलिए विद्युत क्षेत्र द्वारा इसका प्रबंधन किया जा सकता है, परिणाम में श्रव्य सीमा से ऊंची आवृत्तियों का बहुत रैखिक उत्पादन होता है। इस पद्धति के रखरखाव और विश्वसनीयता की समस्याओं के कारण यह बड़े पैमाने पर बाजार के उपयोग के लिए अनुपयुक्त हो जाती है। 1978 में अल्बूकर्क, एनएम में एयर फोर्स वैपन्स लैबोरेट्री के एलन ई. हिल ने एक ट्वीटर, प्लाज्माट्रोनिक्स हिल टाइप। डिजाइन किया था जिसका प्लाज्मा हीलियम गैस से उत्पन्न किया गया था। इससे, अग्रणी ड्यूकेन कॉर्पोरेशन, जिसने 1950 के दशक के दौरान आयनोवैक (ब्रिटेन में आयनोफेन के नाम से विपणन किया गया) का उत्पादन किया था, द्वारा उत्पादित प्लाज्मा ट्वीटर्स की एक पिछली पीढ़ी में हवा के आरएफ (RF) अपघटन से उत्पादित ओजोन और नाइट्रस ऑक्साइड से बचा जा सका. वर्तमान में, जर्मनी में कुछ निर्माता बचे हैं जो इस डिजाइन का उपयोग करते हैं, उन्होंने एक इसे-स्वयं-करें डिजाइन प्रकाशित किया है और यह इंटरनेट पर उपलब्ध है।
इसके एक किफायती रूपांतर में ड्राइवर के लिए एक लौ का उपयोग किया गया है, क्योंकि लौ में आयनित (वैद्युत आवेशित) गैसें होती हैं।
डिजिटल स्पीकर
बहुत पीछे 1920 के दशक में डिजिटल स्पीकर बैल लैब्स द्वारा किए गए प्रयोगों का विषय रहा है। डिजाइन सरल है, प्रत्येक बिट ड्राइवर का नियंत्रण करती है, जो या तो पूरी तरह 'ऑन' है या 'ऑफ'.
इस डिजाइन के साथ समस्याएं हैं जिनकी वजह से अव्यावहारिक होने के कारण इसे वर्तमान के लिए त्याग दिया गया है। प्रथम, बिट्स की एक उचित संख्या के लिए (पर्याप्त ध्वनि पुनरुत्पादन गुणवत्ता के लिए आवश्यक), स्पीकर सिस्टम का भौतिक आकार बहुत बड़ा हो जाता है। दूसरे, एनालॉग डिजिटल रूपांतरण की अंतर्निहित समस्याओं के कारण उपघटन का प्रभाव अपरिहार्य है, इसलिए श्रव्य निर्गम आवृत्ति क्षेत्र में समान आयाम के साथ नमूना चयन आवृत्ति के दूसरी तरफ “परावर्तित” होता है, जिसके कारण वांछित निर्गम के साथ पराध्वनिक का अस्वीकार्य उच्च स्तर होता है। इस से पर्याप्त रूप से निपटने के लिए कोई व्यावहारिक योजना नहीं पाई गई है।
शब्द "डिजिटल" या "डिजिटल तैयार" अक्सर स्पीकर या हैडफोन पर विपणन उद्देश्यों के लिए प्रयोग किया जाता है, लेकिन ये प्रणालियां ऊपर वर्णित भावना में डिजिटल नहीं हैं। बल्कि, वे पारंपरिक स्पीकर हैं जिन्हें डिजिटल ध्वनि स्रोत के साथ प्रयोग किया जा सकता है, जैसा किसी भी पारंपरिक स्पीकर के साथ होता है (जैसे, ऑप्टिकल मीडिया, एमपी3 (MP3) प्लेयर्स, आदि).
इन्हें भी देखें
अल्मा (ALMA)
ऑडियोफ़ाइल
ऑडियो शक्ति
बैंडविड्थ विस्तार
कम्प्यूटर स्पीकर
डायाफ्राम (ध्वनिकी)
डिजिटल स्पीकर
दिशात्मक ध्वनि
धूल टोपी
इलेक्ट्रॉनिक्स
स्थिरविद्युत स्पीकर
फेरोफ्लुइड#हीट स्थानांतरण
टोकरी
आवृत्ति प्रतिक्रिया
गिटार स्पीकर
हेडफोन
उच्च-अंत ऑडियो
होम थिएटर
विद्युत प्रतिबाधा
आइसोबैरिक स्पीकर
लाउडस्पीकर निर्माताओं की सूची
लाउडस्पीकर ध्वनिकी
लाउडस्पीकर संलग्नक
लाउडस्पीकर माप
चुंबक
मध्य-श्रेणी के स्पीकर
मोविंग आइरन स्पीकर
संगीत केंद्र
पैराबोलिक लाउडस्पीकर
प्लेनफोन्स
रोटरी वूफर
संवेदनशीलता
अल्ट्रासाउंड से ध्वनि
ध्वनि प्रजनन
साउंडबार
कैबिनेट स्पीकर
स्पीकर स्टैंड्स
स्पीकर तार
स्टूडियो निगरानी
सुपर ट्वीटर
चारों ओर ध्वनि
थिएले/लघु मॉडल
ट्वीटर
वाक कुंडली
वूफ़र
वायरलेस स्पीकर
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
अल्मा (ALMA) - ग्लोबल लाउडस्पीकर उद्योग के लिए एक मंच
प्रतिशत में निष्क्रिय लाउडस्पीकरों के लिए ऊर्जा दक्षता के लिए संवेदनशीलता का रूपांतरण
लाउडस्पीकरों की संवेदनशीलता और दक्षता पर अनुच्छेद
लाउडस्पीकर डिजाइन और अभ्यास के लिए वक्ता प्रिंसिपल्स इलस्ट्रेटेड गाइड
लाउडस्पीकर्स
लाउडस्पीकर प्रौद्योगिकी
दूरसंचार के इतिहास | 11,059 |
1191935 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%9F%E0%A4%A8%20%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97 | वाशिंगटन अर्विंग | यह लेख वाशिंगटन अरविंग नामक एक लेखक के बारे में है। क्रिकेट खिलाड़ी के बारे में जानने के लिए अरविंग वाशिंगटन देखें।
वाशिंगटन अर्विंग (१७८३-१८५९), अमेरिका के निबन्धकार, कथाकार, जीवनीकार, इतिहासकार और राजनयिक थे। इनकी लेखनी आकर्षक थी और अमरीका के साहित्य में इनका ऊँचा स्थान है।
इनका जन्म न्यूयार्क में हुआ। बचपन से ही इन्होंने अपने पिता विलियम अर्विग (जो स्काटलैंड से अमरीका आए थे) के निजी पुस्तकालय में विद्योपार्जन किया। १७०० में इन्होंने वकालत का काम आरंभ किया, परन्तु क्षय रोग से ग्रस्त होने के कारण १८०४ में स्वास्थ्यलाभ के लिए यूरोप चले गए। १८०६ में स्वदेश लौटने पर अपने भाइयों के व्यवसाय में हाथ बटाया और साहित्य पर अपनी दृष्टि केंद्रित की।
१८०७ में इन्होंने 'सालमागुडी' नाम की एक मनोरंजन मिसलेनी और १८०९ में न्यूयार्क का इतिहास प्रकाशित किया। १८१५ में पुन: यूरोप भ्रमण के बाद १८१९ में इन्होंने 'दि स्केच बुक' प्रकाशित की, जिसे विदेशों में बहुत सफलता और ख्याति मिली। १८२२ में यह पेरिस गए और दो किताबें 'ब्रेसब्रिज हाल' और 'टेल्स ऑव ए ट्रैवेलर' लिखीं। १८२६ में ये स्पेन चले गए जिसके फलस्वरूप इन्होंने अनेक सुन्दर इतिहास लिखे : 'कोलम्बस की जीवनी और उनकी यात्राओं का इतिहास' (१८२८); 'ग्रेनाडा की विजय' (१८२९ ई); 'कोलंबस के साथियों की यात्राएँ', (१८३१ ई); 'अलहंब्रा' (१८३२ ई); 'स्पेन पर विजय की कथाएँ', (१८३५ ई) और 'मुहम्मद और उनके उत्तराधिकारी', (१८४९ ई)।
सन् १८३२ में वे अमरीका लौट चुके थे। १८४२ में वे स्पेन में अमरीका के राजदूत नियुक्त हुए, और १८४६ में स्वदेश लौट आए। इसी वर्ष इन्होंने 'गोल्डस्मिथ की जीवनी' प्रकाशित की और १८५५-५९ के बीच में 'वाशिंगटन की जीवनी' नामक अपनी महान कृति प्रकाशित की। १९५५ में ही इनकी कथाओं और निबंधों का एक संकलन 'वुल्फर्ट्स रूस्ट' के नाम से प्रकाशित हो चुका था। १८५९ की २८ नवंबर को एकाएक इनकी मृत्यु हो गई।
अमेरिकी साहित्यकार | 300 |
15890 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9F%2C%20%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE | एल्खार्ट, इंडियाना | एल्खार्ट इंडियाना के एल्खार्ट काउंटी का एक शहर है। यह एल्खार्ट काउंटी की काउंटी सीट नहीं है; गोशेन शहर एल्खार्ट काउटी की काउटी सीट है। जनसंख्या 2010 की जनगणना में 50,949 थी।
इतिहास
जब 1787 में नॉर्थवेस्ट टेरिटरी का आयोजन किया गया था, तो अब एल्खार्ट के रूप में जाना जाने वाला क्षेत्र मुख्य रूप से ओटावा, चिप्पे और पोटावाटोमी भारतीय जनजातियों द्वारा बसे हुए थे। 1829 में, पुलस्की का ग्राम स्थापित हुआ, जिसमें एक डाकघर, मिल और सेंट जोसेफ नदी के उत्तर की ओर कुछ घर शामिल थे। दो साल बाद, डॉ हाविला बेर्देली ओहियो से पश्चिम की तरफ चले गए और पियरे मोरन से एक वर्ग मील जमीन खरीदी। एल्खार्ट काउंटी विशेष रूप से नई इंग्लैंड से आप्रवासियों द्वारा स्थापित किया गया था ये पुराने स्टॉक "यानी" प्रवासियों थे, जिसका मतलब है कि वे इंग्लिश प्युरिटनों के वंशज थे जिन्होंने 1600 के दशक में न्यू इंग्लैंड में बसे।
सन्दर्भ
इंडियाना के शहर | 154 |
542495 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%AB%E0%A5%81%E0%A4%9F%E0%A4%AC%E0%A5%89%E0%A4%B2%20%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%AE | अर्जेंटीना राष्ट्रीय फुटबॉल टीम | अर्जेंटीना राष्ट्रीय फुटबॉल टीम () अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल मैचों में अर्जेंटीना का प्रतिनिधित्व करती है और एसोसिएशन देल फुत्बोल अर्जेंटीनो (ए.एफ.ए) द्वारा नियंत्रित की जाती है, जो अर्जेंटीना में फुटबॉल के शासी निकाय है। अर्जेंटीना का मुख्य गृह स्टेडियम एल मोनूमेनतल है। वर्तमान में 2013 में टीम दुनिया में तीसरे स्थान पर है।
टीम पांच बार फीफा विश्व कप के फाइनल में पहुँची है, जिनमें से 3 बार इसने विश्व कप फाइनल जीता है - 1978 में पहली बार और 1986 में दूसरी बार और तीसरी बार (2022)। अर्जेंटीना कोपा अमेरिका में बहुत सफल रही है, इसे चौदह बार जीत हासिल की है। अर्जेंटीना टीम ने एथेंस 2004 और बीजिंग 2008 में ओलंपिक फुटबॉल टूर्नामेंट भी जीता है। फीफा वर्ल्ड कप २०१८ में वे नाइजीरिया, आइसलैंड और क्रोएशिया जैसी टीमों के साथ ग्रुप डी में आइसलैंड के खिलाफ अपना 2018 विश्व कप शुरू कर रहे हैं। वे ग्रुप डी विजेता सबसे मजबूत टीम होंगे।
अर्जेंटीना की ब्राजील, उरुग्वे और इंग्लैंड के साथ ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्विता रही है। विशेष रूप से इंग्लैंड के खिलाफ उनके मैच (जिसे अर्जेंटीना के लोग कट्टर प्रतिद्वंद्वी मनते है, कड़वे फ़ॉकलैंड युद्ध की वजह से) प्रशंसकों के बीच हिंसा का कारण रहे है।.
2018 फीफा विश्व कप के लिए अर्जेंटीना का कार्यक्रम?
अर्जेंटीना दक्षिण अमेरिका संघ से दुनिया की सबसे सफल फुटबॉल टीम में से एक है। आज हम पिछले संस्करणों में अर्जेंटीना 2018 टीम टीम, फिक्स्चर, लाइव स्ट्रीमिंग जानकारी, किट, वॉलपेपर और उनके विश्व कप रिकॉर्ड पर चर्चा करने जा रहे हैं। वे दो बार विश्व कप चैंपियन हैं और इस साल रूस में खिताब जीतने के लिए पसंदीदा में से एक हैं। अर्जेंटीना राष्ट्रीय फुटबॉल टीम को अर्जेंटीना फुटबॉल एसोसिएशन द्वारा नियंत्रित किया जाता है जो देश में फुटबॉल का शासी निकाय है। उप चैंपियन होने के नाते, वे रूस में प्रतिस्पर्धा करेंगे। लियोनेल मेसी टीम के कप्तान हैं जो अर्जेंटीना के सर्वकालिक शीर्ष गोलरक्षक भी हैं। उन्होंने 16 मई 1 9 01 को उरुग्वे के खिलाफ पहला अंतर्राष्ट्रीय मैच खेला और तब से उन्होंने 17 विश्वकप संस्करणों के लिए क्वालीफाई किया है।
अर्जेंटीना फीफा विश्व कप 2018 टीम
2018 के फुटबॉल विश्व कप के लिए अर्जेंटीना टीम घोषित की गई है। तब तक, आप अर्जेंटीना की वर्तमान टीम देख सकते हैं, जिसमें से अंतिम 23 खिलाड़ी विश्व कप के लिए रूस जाएंगे।
गोलकीपर: सर्जियो रोमेरो (मैनचेस्टर यूनाइटेड), विलफ्रेडो Caballero (चेल्सी), Nahuel गुज़मान (UANL), अरमानी फ्रेंको (रिवर प्लेट)
रक्षकों: गेब्रियल Mercado (सेविला), क्रिस्टियन अनसाल्डी (टोरिनो), एडुवर्डो सैलवियओ (बेनफिका), जेविअर माशेरैनो (हेबै चीन फॉर्च्यून), निकोलस ओटामेंडी (मैनचेस्टर सिटी), जर्मन पेजज़ेला (फिओरेंटीना), फ़ेडेरिका फ़ेज़ियो (रोमा), मार्कोस रोजो ( मैनचेस्टर यूनाइटेड), निकोलास टैगलिफिको (अजाक्स), मार्क Acuna (स्पोर्टिंग सीपी), रामिओ फ्यन्स मोरी (एवर्टन)
मिडफील्डर: मैनुएल लनज़िनी (वेस्ट हैम), Leandro पेरेडेस (जेनिट), रिकार्डो सेंचुरियन (दौड़), मैक्सिमिलानो मेज़ा (इंडिपेंडिएंटे), लूकस बिग्लिया (मिलान), गुइडो Pizarro (सेविला), एंज़ो पेरेस (रिवर प्लेट), कभी बनेगा (सेविला ), जिओवानी लो सेल्सो (पेरिस सेंट-जर्मन), रोड्रिगो बटाग्लिया (स्पोर्टिंग सीपी), एंजेल डी मारिया (पेरिस सेंट-जर्मन), क्रिस्टियन पैवन (बोका जूनियर्स), पाब्लो पेरेस (बोका जूनियर्स)
फॉरवर्ड: पॉलो डिबाला (जुवेंटस), डिएगो पेरो्टी (रोमा), लियोनेल मेसी (बार्सिलोना), सर्जियो एग्वेरो (मैनचेस्टर सिटी), गोन्ज़ालो हिग्वेन (जुवेंटस), Lautaro मार्टिनेज (दौड़), मौरो इकार्डी (इंटर)
सन्दर्भ
राष्ट्रीय फुटबॉल टीम | 510 |
526903 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A5%E0%A5%8B%E0%A4%A8%20%28%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE%29 | मिथोन (चंद्रमा) | मिथोन (Methone) (यूनानी : Μεθώνη), शनि का एक छोटा सा प्राकृतिक उपग्रह है। यह माइमस और ऍनसॅलअडस की कक्षाओं के बीच स्थित है। मिथोन को सर्वप्रथम कैसिनी इमेजिंग टीम द्वारा देखा गया तथा अस्थायी पदनाम दिया गया। यह सेटर्न XXXII तौर पर भी नामित है। कैसिनी अंतरिक्ष यान ने मिथोन की दो यात्राएँ की है और उसकी इससे निकटतम पहुँच 20 मई 2012 को 1900 किमी (1,181 मील) बनी थी। मिथोन नाम 21 जनवरी 2005 को आईएयू के ग्रहीय प्रणाली नामकरण पर कार्यकारी समूह द्वारा अनुमोदित हुआ था। इसकी 2006 में आईएयू महासभा में पुष्टि हुई थी।
सन्दर्भ
खगोलशास्त्र
शनि के प्राकृतिक उपग्रह
प्राकृतिक उपग्रह | 105 |
9780 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%9A | पिशाच | पिशाच काल्पनिक प्राणी है जो जीवित प्राणियों के जीवन-सार खाकर जीवित रहते हैं आमतौर पर उनका खून पीकर. हालांकि विशिष्ट रूप से इनका वर्णन मरे हुए किन्तु अलौकिक रूप से अनुप्राणित जीवों के रूप में किया गया, कुछ अप्रचलित परम्पराएं विश्वास करती थीं कि पिशाच (रक्त चूषक) जीवित लोग थे।
लोककथाओं के अनुसार, पिशाच अक्सर अपने प्रियजनों से मिला करते थे और अपने जीवन-काल में जहां वे रहते थे वहां के पड़ोसियों के अनिष्ट अथवा उनकी मृत्यु के कारण बन जाते थे। वे कफ़न पहनते थे और उनके बारे में अक्सर यह कहा जाता था कि उनका चेहरा फूला हुआ और लाल या काला हुआ करता था। यह 19वीं सदी के शुरूआती दौर में आरंभ होने वाले आधुनिक काल्पनिक पिशाचों के मरियल, कांतिहीन चित्रण से स्पष्ट रूप से भिन्न था। हालांकि पिशाचीय सत्ता अनेक संस्कृतियों में मिलती है फिर भी पिशाच शब्द 18वीं सदी के आरंभ तक लोकप्रिय नहीं हुआ था। पश्चिमी यूरोप में पिशाच के अंधविश्वास का एक अन्तःप्रवाह चला जैसे कि बाल्कन प्रदेशों एवं पूर्वी यूरोप, में जनश्रुतियों में पिशाच की लोककथाएं बार-बार दुहराई जाती रहीं जबकि स्थानीय अंचलों में लोग पिशाच को अलग-अलग नामों से जानते थे, जैसे कि सर्बिया में वैम्पिर (вампир), ग्रीस में राइकोलाकस (vrykolakas) तथा रोमानिया में स्ट्रिगोई (strigoi). यूरोप में पिशाच अंध-विश्वास के बढ़े हुए स्तर से जन उन्माद उत्पन्न हुआ और कुछ मामलों में शवों को दांव पर लगा दिया गया तथा लोगों पर पैशाचिकी का आरोप लगाया जाने लगा।
आजकल पिशाच आमतौर पर कल्पित सत्ता के रूप में समझे जाते हैं, हालांकि कुछ संस्कृतियों में इससे संबंधित प्राणियों जैसे कि 'छुपाकाबरा ' (chupacabra) में लोगों का विश्वास अभी भी कायम है। प्राक् औद्योगिक समाज में मृत्यु के पश्चात् शव के विघटन की प्रक्रिया के संबंध में पिशाचों में आरंभिक लोककथाओं के विश्वास का कारण अज्ञानता को ठहराया गया है। आनुवांशिक असामान्यता को भी 20वीं सदी में लोककथाओं की पैशाचिकी से जोड़ा जाता था जिसे मीडिया ने भरपूर उजागर किया, लेकिन इस कड़ी को उस समय से व्यापक रूप से बदनाम किया गया।
सन् 1819 में जॉन पोलिडोरी कृत रचना द वैम्पायर के प्रकाशन के साथ ही आधुनिक कथा-जगत में करिश्माई और कृत्रिम पिशाच का आविर्भाव हुआ। यह कहानी काफी सफल रही और 19वीं सदी के आरंभ में निर्विवादित रूप से पिशाच पर सबसे सफल प्रभावशाली रचना मानी गई। हालांकि ब्रैम स्टोकर के सन् 1897 में प्रकाशित उपन्यास ड्रैकुला को सर्वोत्तम उपन्यास के रूप में याद किया जाता है जिसने पिशाच कथा-साहित्य की पृष्ठभूमि तैयार की। इस पुस्तक की सफलता ने पुस्तकों, फिल्मों, वीडियो गेम्स और टेलीविज़न शो के जरिए एक विशिष्ट पिशाच शैली को जन्म दिया जो 21वीं सदी में अब भी लोकप्रिय है। अपनी विशिष्ट संत्रास (भय) की शैली में पिशाच एक प्रभावशाली चरित्र है।
व्युत्पत्ति
ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी वैम्पायर शब्द का अंग्रेजी में सर्वप्रथम प्रयोग का समय सन् 1734 में निर्धारित करता है। इसका प्रयोग सन् 1745 में हर्लियन मिसेलनी में ट्रैवेल्स ऑफ़ थ्री इंग्लिश जेंटिलमैन शीर्षक से प्रकाशित एक यात्रावृत में मिलता है। पिशाच की चर्चा जर्मन साहित्य में पहले ही की जा चुकी थी। सन् 1718 में जब ऑस्ट्रिया ने उत्तरी सर्बिया और ओल्टेनिया पर कब्जा कर लिया तो अधिकारियों ने कब्र खोदकर शवों को बाहर निकालने और "पिशाचों को मारने" की स्थानीय प्रचलित प्रथा देखी. सन् 1725 से 1732 के बीच तैयार इन रिपोर्टों को व्यापक प्रचार मिला।
अंग्रेजी शब्द (संभवतः फ्रेंच के वैम्पायर से होकर) जर्मन शब्द वैम्पिर से लिया गया है। यह सर्बिया के вампир/वैम्पिर शब्द से 18वीं सदी के आरंभ में लिया गया। सर्बिया का यह रूप वस्तुतः सभी स्लाव भाषाओँ के समानांतर है: बुल्गारिया में вампир (वैम्पिर), चेक एवं स्लोवाक में upír, पोलिश में wąpierz और (शायद पूर्वी स्लाव-प्रभावित) upiór, रूस में упырь (upyr '), बेलारस में упыр (upyr), यूक्रेन में упирь (upir'), जो पुराने रूस के упирь (upir') से उद्भूत है। (गौरतलब है कि इनमें से अनेक भाषाओँ ने उसके बाद भी पश्चिम के "vampir/wampir" से यह शब्द लिया- ये इस प्राणी के लिए प्रयुक्त होने वाले स्थानीय शब्दों से भिन्न हैं। एकदम सही शब्द व्युत्पत्ति अस्पष्ट है। प्रस्तावित मूल आद्य-स्लाव रूप * और * है। एक प्राचीन और कम प्रचारित मान्यता है कि स्लाव भाषाओँ ने तुर्की के "विच" शब्द से इसे लिया है जिसका अर्थ है 'चुड़ैल' (e.g., ततार ubyr).
यह आम धारणा है कि पुराने रूसी Упирь (Upir') प्रारूप का प्रथम लिखित प्रमाण 6555 तिथि (1047 ईसवी) के एक दस्तावेज में मिलता है। यह एक पादरी द्वारा लिखी गई भक्ति-गीतों की पुस्तक की पाण्डुलिपि में पाया जाने वाला एक प्रतीक कॉलोफ़न (पुष्पिका) है जिसने नोवगोर्दियन राजकुमार व्लादिमीर येरोस्लैवोविच के लिए इस पुस्तक को ग्लैगोलिटिक से साइरिलिक में लिप्यन्तरित किया। पादरी ने अपना नाम "Upir ' Likhyi " (Упирь Лихый) लिखा है जिसका अर्थ "दुष्ट पिशाच" या "नकली पिशाच" जैसा ही कुछ. स्पष्ट रूप से अनोखे इस नाम का उदहारण वर्त्तमान मूर्तिपूजा और उपनामों का व्यक्तिगत नामों के रूप में प्रयोग करने के रूप में उद्धृत किया गया।
पुराने रूसी शब्द का प्रयोग बुत-परस्ती के विरोध में लिखे गए लेख पुस्तक "वर्ल्ड ऑफ़ सेंट ग्रिगोरी" में मिलता है जिसका रचनाकाल 11वीं से 13वीं शताब्दियों के बीच माना जाता है जिसमें उपायरी की पूजा की बात कही गई है।
लोक विश्वास
पैशाचिकी की धारणा सदियों से अस्तित्व में रही है; जैसे कि मैसोपोटामिया, हिब्रू, प्राचीन यूनानी और रोमन संस्कृतियों की कहानियों में दानवों और प्रेतात्माओं को आधुनिक पिशाचों का अगुआ माना जाता.हालांकि पिशाच जैसे प्राणियों के उद्भव की घटना इन प्राचीन सभ्यताओं में होने के बावजूद लोककथाओं के आधार पर इनकी सत्ता के बारे में आज हम जानते हैं कि पिशाचों की उत्पत्ति विशेष रूप से 18वीं सदी में दक्षिण-पूर्व यूरोप में हुई, जब उस क्षेत्र के जातीय समूहों के मौखिक परंपराओं को लिपिबद्ध और प्रकाशित किया गया। अधिकतर मामलों में पिशाचों को बुरे प्राणियों, आत्महत्या के शिकार या चुड़ैलों के भूत-प्रेत के रूप में माना गया लेकिन इतना सृजन अपकारी प्रेतात्माओं के द्वारा भी संभव है जिनके कब्जे में कोई लाश है या जिन्हें किसी पिशाच ने काट लिया है। ऐसी लोककथाओं में विश्वास इतना व्यापक हो गया कि कुछ क्षेत्रों में इसने सामूहिक उन्माद को जन्म दिया और पिशाच समझे जाने वाले लोगों को सार्वजनिक फांसी भी दी गई।
विवरण और सामान्य विशेषताएं
लोककथात्मक पिशाच का एक निश्चित विवरण देना कठिन है, हालांकि यूरोपीय लोककथाओं में ऐसे अनेक तत्व हैं जो सर्व सामान्य हैं। पिशाचों के बारे में ऐसी रिपोर्ट थी कि वे आमतौर पर देखने में फूले हुए रक्ताभ या पीले बैंगनी अथवा काले रंग जैसे उनकी इन चारित्रिक विशेषताओं को अक्सर आजकल के रक्त पीने की घटनाओं के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। वास्तव में, अक्सर कफ़न में लिपटे या ताबूत में लेटे शव के नाक और मुंह से खून रिसता हुआ देखा गया और बायीं आंख को अक्सर खुला हुआ पाया गया। यह झीने पारदर्शी कफ़न में लिपटा हुआ कब्र में दफ़न, जिसके दांत, बाल और नाखून बड़े हो गए हो सकते थे, जबकि आमतौर पर ऐसे नुकीले दांत नहीं देखे जाते थे।
सर्जनात्मक पिशाच
मूल लोककथाओं में पैशाचिक पीढियों के पीछे अनेक एवं विविध कारण हैं। स्लाव एवं चीनी प्रथाओं में जिन मुर्दों को कोई पशु खासकर कुत्ते या बिल्ली लांघ ले तो लोगों को ऐसी शंका हो जाती थी कि वे मरे नहीं। यदि किसी घायल शरीर पर कोई घाव हो जिसका उपचार उबलते हुए पानी से नहीं किया गया है तो वह भी जोखिम भरा हो जाता था। रूसी लोककथाओं में, पिशाच कभी चुड़ैल या वैसे लोग हुआ करते थे जिन्होंने जीवित अवस्था में चर्च के विरुद्ध विद्रोह किया था।
हाल ही में मरे प्रियजनों को भूत-प्रेत बनने से रोकने के लिए कभी-कभी सांस्कृतिक प्रथाएं जन्म लेती थीं। शवों को उल्टा गाड़ने की भी प्रथा काफी प्रचलित थी। साथ ही साथ, शरीर में प्रवेश करने वाली दुष्ट आत्मा को संतुष्ट करने तथा मृतक के ताबूत से बाहर निकलने की इच्छा को रोकने के लिए उसे संतुष्ट करने हेतु कब्र के पास भौतिक वस्तुएं, कटारी अथवा हंसिया रख दिया जाता था। यह पद्धति प्राचीन यूनानी प्रथा से मिलती जुलती है जिसमें पाताल में बहने वाली स्टिक्स नदी को पार करने के लिए राहदारी (पथ कर) अदा करने के लिए मुर्दे के मुंह में सिक्का (ओबोलस) रख दिया जाता था। यह तर्क दिया गया है कि बजाय इसके, दुष्ट आत्मा को शरीर में प्रवेश करने से रोकने के लिए ही सिक्के रख दिए जाते थे। शायद इसी प्रथा ने बाद में चलकर पिशाच की लोक कथाओं को प्रभावित किया होगा। वृकोलाकास के संबंध में यह परंपरा आधुनिक यूनानी लोककथाओं में जारी रही, जिसमें शरीर को पिशाच बनने से रोकने के लिए मोम के क्रूस और "जीसस क्राइस्ट कॉन्कर्स" खुदे हुए मिट्टी के बर्तन मुर्दे के शरीर पर रख दिए जाते थे ताकि वह पिशाच न बन जाय. यूरोप में आम तौर पर व्यवहार में लायी जाने वाली अन्य पद्धतियों में शामिल थे:घुटने के नसों को काट दिया जाना अथवा खसखस के दाने, बाजरा या बालू को संभावित पिशाच के कब्र स्थल में रख देना इत्यादि.इस प्रथा का उद्देश्य पिशाच को सारी रात बिखरे दानों को गिनने में व्यस्त किये रखना था। इसी प्रकार के चीनी विवरणों से यह ज्ञात होता है कि पिशाच जैसे प्राणी को चावल की बोरी से अगर गुजारा जाता तो उसे प्रवेश करने से पहले हर दाने को गिनना पड़ता. यह मिथकीय विषय-वस्तु भारतीय उपमहाद्वीप की काल्पनिक कहानियों साथ ही साथ दक्षिण अमेरिका के चुड़ैलों और इसी प्रकार की अन्य दुष्ट प्रेतात्माओं अथवा प्राणियों की कहानियों में पाई जाती है।
पिशाच की पहचान करना
पिशाच की पहचान के लिए अनेक व्यापक धर्मानुष्ठान आयोजित किये जाते थे। इसमें पिशाच के कब्र की पहचान करने का एक तरीका यह भी था कि एक कुंवारे लड़के को एक कुंवारी घोड़ी पर बिठाकर किसी कब्रगाह या गिरजा की जमीन से होकर गुजारा जाता था -- घोड़ा अगर कब्र के पास प्रश्नात्मक भंगिमा में अड़ गया तो समझ लिया जाता था कि कब्र में पिशाच है। आम तौर पर एक काले घोड़े को उपयोग में लाया जाता था, हालांकि अल्बानिया में इसका सफ़ेद होना जरूरी था। किसी कब्र के ऊपर मिट्टी में अगर कोई सुराख़ दिखाई देती थी तो उसे पैशाचिकी होने का चिन्ह मान लिया जाता था।
जिन शवों को पिशाच समझ लिया जाता था वे आमतौर पर अपेक्षा से अधिक स्वस्थ और गोल मटोल दिखते थे और उनमें सड़न का कोई नामो-निशान भी नहीं दिखाई देता था। कुछ मामलों में जब संदेहास्पद कब्र खोले जाते थे, ग्रामीणों के विवरण के अनुसार शवों के पूरे चेहरे पर किसी शिकार के ताज़ा खून पाए जाते थे। मवेशियों, भेड़ों, रिश्तेदारों या पड़ोसियों की मौत यह प्रमाणित करती है कि पिशाच किसी नियत निश्चित इलाके में ही सक्रिय रहते थे। लोककथाओं के पिशाच छोटे-मोटे भुतहा कार्यों के जरिए अपनी मौजूदगी का अहसास दिला सकते थे, जैसे कि छतों पर पत्थर फेंकना, घर के सामानों को अस्त-व्यस्त कर देना और सोते हुए लोगों पर दबाव डालना इत्यादि.
सुरक्षा
भूत-प्रेतों को दूर रखने में सक्षम टोने-टोटके—सांसारिक अथवा पवित्र वस्तुएं जैसे कि लहसुन अथवा पवित्र जल पिशाच लोककथाओं में आमतौर पर प्रचलित है। ये वस्तुएं एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में अलग-अलग हैं। ऐसा माना जाता है कि जंगली गुलाब की एक टहनी और वन-संजली का पौधा पिशाचों को हानि पहुंचाते हैं। यूरोप में माना जाता था कि सरसों के दानों को घर के छत पर छिड़कने से पिशाचों को दूर रखा जा सकता है। टोने-टोटके की अन्य पवित्र वस्तुओं में शामिल हैं, उदाहरणार्थ क्रूसमूर्ति, जापमाला, या पवित्र जल. ऐसा मानना है कि पिशाच पवित्र भूमि पर चलने, जैसे कि गिरजा या मंदिर, अथवा एक दूसरे के प्रतिकूल बहती हुई जलधारा से होकर गुजरने में असमर्थ हैं। हालांकि परंपरागत तौर पर टोने-टोटके के रूप में नहीं माने जाने वाली वस्तुएं, जैसे आइनों का इस्तेमाल; पिशाचों से बचने के लिए आइनों के मुख बाहर की तरफ करते हुए दरवाजे पर रखकर इनके इस्तेमाल किये जा चुके हैं (कुछ संस्कृतियों में, पिशाचों के प्रतिविम्ब नहीं होते और कभी-कभी उनकी परछाई भी नहीं पड़ती. ऐसा शायद पिशाच में आत्मा के अभाव के प्रदर्शन के रूप में होता है). हालांकि यह लक्षण सार्वभौमिक नहीं है (यूनानी राइकोलाकस/टाइम्पैनियस प्रतिविम्ब और परछाई दोनों के लिए सक्षम थे) इसका प्रयोग ब्रैम स्टोकर ने ड्रैकुला में किया था और बाद में यह परवर्ती रचनाकारों तथा फिल्मनिर्माताओं के साथ भी लोकप्रिय बनी रही। कुछ प्रथाएं यह भी मानती हैं कि पिशाच किसी घर में प्रवेश नहीं कर सकते जब तक कि उन्हें गृह स्वामी आमंत्रित न करे. हालांकि प्रथम आमंत्रण के बाद वे मनमाने ढंग से आ और जा सकते हैं। यद्यपि लोककथाओं के पिशाचों के बारे में माना जाता था कि वे रात को अधिक सक्रिय थे, उन्हें आमतौर पर सूर्य की रोशनी में असुरक्षित समझा जाता था।
संदेहास्पद पिशाचों को नष्ट करने के तरीके भी अलग-अलग थे, विशेषकर दक्षिणी स्लाव संस्कृतियों में खूंटे से बांधना आमतौर पर सबसे अधिक उल्लेखनीय तरीका था। रूस और बाल्टिक राज्यों में अंगू (ऐश) वृक्ष की लकड़ी को अथवा सैलेशिया में ओक के पेड़ की लकड़ी के साथ सर्बिया में वन-संजली को तरजीह दी जाती थी। रूस और उत्तरी जर्मनी में शक्तिशाली पिशाचों के ह्रदय में अक्सर खूंटा गाड़ दिया जाता था हालांकि रूस और उत्तरी जर्मनी में मुंह को और उत्तर-पूर्वी सर्बिया में पेट को लक्ष्य बनाया जाता था। छाती की चमड़ी में छेद करना फूले हुए पिशाचों के शरीर से हवा निकालने का एक तरीका था; यह तरीका हंसिये जैसा तेज धार वाली वस्तुओं को शवों के साथ गाड़ने जैसा ही था ताकि भूत-प्रेत में तब्दील होने से पहले शरीर को बहुत अधिक फूलने पर वे चमड़ी में छेद कर सकें.जर्मन और स्लैविक क्षेत्रों में सिरच्छेदन की पद्धति को अधिक तरजीह दी जाती थी जिसमे सिर को पैरों के बीच नितंबों के पीछे अथवा शरीर से दूर गाड़ दिया जाता था। इस क्रिया को आत्मा की अविलम्ब विदाई के रूप में मानते थे, क्योंकि कुछ संस्कृतियों में शवों में आत्माओं का कुछ अधिक समय तक उपस्थित रहना माना जाता था। पिशाच के सिर, शरीर एवं कपड़ों को भी छेद कर जमीन के साथ खूंटी में बांध दिए जाते थे ताकि वे उठ न सके। खानाबदोश इस्पात अथवा लोहे की सूइयों को शवों के दिलों में गोंदते थे और शवों को गाड़ने के समय इस्पात के टुकड़ों को मुंह में, आंखों और कानों के ऊपर तथा अंगुलियों के बीच रख देते थे। वे वन-संजली को शव के मोजे में अथवा पैरों के बीच खूंटी की तरह गोद देते थे। पुरातत्वविदों ने सन् 2006 में वेनिस के निकट 16वीं सदी की एक कब्र की खुदाई से एक महिला के शव के मुंह में ईंट ठूंसा हुआ पाया और इसका अर्थ निकाला गया कि यह एक प्रकार से पिशाच को मारने के लिए किया गया एक कर्मकांड था। बाद के तरीकों में खौलते हुए पानी को कब्र के ऊपर डालना अथवा शव को पूरी तरह जलाकर भस्म कर देना भी शामिल किया गया। बाल्कन में पिशाच को गोली मार कर या पानी में डूबोकर, मृतक का अंत्येष्टि संस्कार बार-बार दुहराकर, मृतक के शरीर पर पवित्र जल छिड़ककर या जादू-टोने के द्वारा मार दिया जाता था। रोमानिया में लहसुन को मुंह में रखा जा सकता था और 19वीं सदी में हाल तक ताबूत में गोली मारने में सावधानी बरती जाती थी। प्रतिरोधात्मक मामलों में शवों के अंगच्छेद कर टुकडों को जलाकर राख को पानी में मिलाकर परिवार के सदस्यों में औषधि-उपचार के रूप में वितरित कर दिया जाता था। जर्मनी के सैक्सन प्रदेशों में संदेहास्पद पिशाचों के मुंह में नींबू रख दिया जाता था।
प्राचीन मान्यताएं
जीवित प्राणियों के रक्त अथवा मांस का भक्षण करने वाले अलौकिक प्राणियों की कथाएं संसार की लगभग सभी संस्कृतियों में अनेक कई सदियों से पाई गई है। आज हम इन अस्तित्वों को पिशाचों से संबद्ध कर देते हैं लेकिन प्राचीन समय में वैम्पायर शब्द का रक्तपान एवं इसी तरह के क्रियाकलापों के लिए उन दुष्ट आत्माओं या प्रेतात्माओं को उत्तरदायी ठहराया जाता था जो मांस भक्षण और रक्तपान कर सकते थे, यहां तक कि शैतान को भी पिशाच का पर्याय समझा जाता था। लगभग सभी राष्ट्र ने भूत-प्रेत अथवा दुष्ट आत्माओं को और कुछ मामलों में देवताओं को रक्त पान से जोड़ा है। उदाहरणार्थ भारत में वैताल, मुर्दों में निवास करने वाले पिशाच जैसे प्राणियों की कहानियों को बैताल पचीसी में संकलित किया गया है; कथासरित्सागर की एक प्रसिद्द कथा राजा विक्रमादित्य और एक दुर्गाह्य को पकड़ने के लिए उनके रात्रि की खोजों के बारे में बतलाती है।पिशाचा, बुरे कर्म करने वाले या पागल होकर मरने वालों की वापस लौटी आत्माओं में भी पिशाचीय लक्षण पाए जाते हैं। बड़े-बड़े दांतों वाली, मुर्दों या नर-मुंडों का हार पहनी हुई, प्राचीन भारतीय देवी काली को भी घनिष्ठ रूप से रक्त पान से जोड़ा जाता था।मिस्र में देवी सेख्मेत भी रक्तपान करती थीं।
ईरानी सभ्यता उन सभ्यताओं में से एक है, जिसमें रक्तपान करने वाली दुष्ट आत्माओ की कथाएं मिलती हैं:मनुष्य के रक्त पान की कोशिश करने वाले प्राणियों के दृश्यों को मिट्टी के बर्तन के ठीकरों पर खुदाई कर चित्रित किया गया है। प्राचीन बेबिलोनिया में भी पौराणिक लिलितु की कथाओं ने अपने पर्याय लिलिथ (हिब्रू לילית) और हिब्रू पिशाच विद्या से उसकी बेटी लीलू को जन्म दिया। लिलितु को एक दुष्टात्मा समझा जाता था और प्रायः शिशुओं के रक्त पान पर ही जीवित रहने वाले चरित्र के रूप में चित्रित किया जाता था। हालांकि यहूदी प्रतिरूप पिशाचों के बारे में ऐसा कहा जाता था कि वे पुरुष और नारी दोनों के साथ ही नवजात शिशुओं को भी खाते थे।
यूनान और रोम की प्राचीन पौराणिक गाथाओं में एम्पुसे, लामिया, एवं स्ट्रिजेस के विवरण मिलते हैं। समय के अंतराल के साथ-साथ प्रथम दो शब्द क्रमशः डाइनों एवं दुष्ट आत्माओं का वर्णन करने वाले शब्द बन गए। एम्पुसा हिकेट देवी की कन्या थी और उसका वर्णन कांसे के पांवों वाली दुष्ट राक्षसी के रूप में किया गया था। वह स्वंय को युवती के रूप में बदल कर पुरूषों को उनका रक्तपान करने से पहले सुप्तावस्था में उन्हें यौन-संबंध बनाने के लिए फुसलाती थी। लामिया छोटे बच्चों को शिकार बनाती थी जब रात में वे सोये रहते थे। गेलौड या गेलो के समान वह उनका खून चूसती थी। लामिया की ही तरह स्ट्रिजेस भी बच्चों को खाती थीं लेकिन नवयुवकों को भी अपना शिकार बनाती थीं। आमतौर पर उनका वर्णन कौवों और पक्षियों के शरीर धारण करने वालों के रूप में किया गया था। जिन्हें बाद में मानव मांस और रक्त का भक्षण करके जीवित रहने वाले एक प्रकार के निशाचर पक्षी स्ट्रिक्स के रूप में रोमन पौराणिक गाथा में शामिल किया गया।
मध्यकालीन एवं परवर्ती यूरोपीय लोककथा
पिशाचों से भरी हुई अनेक मिथकों (काल्पनिक कथाओं) का उद्भव मध्यकाल में हुआ। 12वीं सदी में अंग्रेज इतिहासकार एवं वृत्तान्त लेखक वाल्टर मैप और विलियम ऑफ न्यूबर्ग ने भूत-प्रेतों के वृत्तांतों को रिकॉर्ड किया। हालांकि पिशाची प्राणियों के रिकॉर्ड्स अंग्रेजी आख्यानों में इस तिथि के बाद कम हो गए हैं। ये कथाएं जिनका सविस्तार रिपोर्ट 18वीं सदी में पूर्वी यूरोप की परवर्ती लोककथाओं से मिलती-जुलती हैं। ये पिशाची दंतकथाओं की मूल अवधारणा थी जो बाद में जर्मनी और इंग्लैंड में प्रवेश कर गयी, जहां वे बाद में परिष्कृत और लोकप्रिय हुईं.
18वीं सदी के दौरान पूर्वी यूरोप में पिशाच को देखने के लिए ल्प्गों में उन्माद छा गया था। संभावित भूत-प्रेतों की पहचान करने और उन्हें मारने के लिए अक्सर खूंटी गाड़ी जाती थी और कब्र की खुदाई की जाती थी। यहां तक कि सरकारी अफसर भी पिशाचों की तलाश कर उन्हें खूंटी से बांधने में व्यस्त हो गए।नवजागरण काल के दौरान अधिकाधिक लोककथाओं की श्रुतियों को दबा दिया गया, इसके बावजूद पिशाच में विश्वास नाटकीय ढंग से बढ़ता गया। परिणामस्वरूप पूरे यूरोप में सामूहिक उन्माद का दौर चल पड़ा. सन् 1721 में पूर्वी प्रशा में और सन् 1725 से लेकर 1734 तक हैब्सबर्ग राजतंत्र में पिशाच के तथाकथित आक्रमण से आतंक फ़ैल गया जो अन्य इलाकों में भी फैलता चला गया। पिशाची मामलों के दो प्रसिद्ध उदाहरण : अधिकारिक रूप से प्रथम बार रिकॉर्ड किये जाने वाले मामलों में शामिल थे सर्बिया में रहने वाले पीटर प्लोगोजोवित्ज़ और आर्नोल्ड पाओल के शवों से जुड़े हुए मामले. प्लोगोजोवित्ज़ के बारे में मानना है कि उसकी मृत्यु 62 वर्ष की उम्र में हुई थी, लेकिन तथाकथित रूप से अपनी मृत्यु के पश्चात् अपने बेटे से भोजन मांगने वापस आ गए। जब बेटे ने भोजन देने से इंकार कर दिया तो वह दूसरे ही दिन मृत अवस्था में पाया गया। प्लोगोजोवित्ज़ के बारे में मानना है कि वे वापस लौटे और अपने कुछ पड़ोसियों पर हमला कर दिया जिनकी मृत्यु खून बहने के कारण हुई। दूसरे मामले में, भूतपूर्व सैनिक से किसान बनने वाले पाओल पर कई साल पहले सूखी घास काटने के समय पिशाच ने तथाकथित रूप से हमला कर दिया जिससे उसकी मौत हो गई। उसकी मृत्यु के पश्चात् आसपास के लोग मरने लगे और व्यापक रूप से यह विश्वास कर लिया गया कि पाओल अपने पड़ोसियों का शिकार करने के लिए लौट आया था। पिशाचों के संबंध में सर्बिया की एक अन्य प्रसिद्ध काल्पनिक कथा (जनश्रुति) जलचक्की में निवास करने वाले और चक्की वालों को मारकर उनका रक्तपान करने वाले किसी सावा सावानोविक पर केन्द्रित है। लोककथा के चरित्र को बाद में सर्बियन लेखक मिलोवान गिलिसिक की कहानी में एवं इसी कहानी से प्रेरित 1973 में बनी सर्बियन आतंक फिल्म लेप्टिरिका में उपयोग किया गया।
दोनो घटनाओं के प्रमाण प्रस्तुत किये गए:सरकारी अधिकारियों ने शवों की जांच की, मामले की रिपोर्ट तैयार की और समूचे यूरोप में पुस्तकें प्रकाशित की। यह उन्माद, जिसे साधारणतया "18वीं-सदी के पिशाच-विवाद" के रूप में जाना जाता है, एक पीढ़ी के लिए प्रकोप बनकर तेजी से फैल गया। पैशाचिक हमला समझे जाने वाले गांव की महामारी ने इस समस्या को और भी अधिक उग्र कर दिया। निःसंदेह यह ग्रामीण समुदायों में फैले हुए घोर अंधविश्वास से उत्पन्न हुआ जिसमें स्थानीय निवासी शवों को खोदकर निकाल लेते थे और कुछ मामलों में उनके चारों कोनो पर खूंटियां गाड़कर घेराबंदी कर देते थे। हालांकि अनेक विद्वानों ने इस अवधि में पिशाच के अस्तित्व के नहीं होने की सूचना दी और समय से पहले दफनाए जाने अथवा जलांतक रोग (रेबीज) को अंधविश्वास के बढ़ने के लिए जिम्मेदार ठहराया है। सन् 1746 में सम्माननीय धर्मशास्त्री एवं फ्रांसीसी विद्वान डोम औगस्टाइन कॉलमेट ने एक व्यापक प्रबंध-लेख एक साथ रखा, जो पिशाच के अस्तित्व के सन्दर्भ में अस्पष्ट था। कॉलमेट ने पिशाचीय घटनाओं, असंख्य पाठकों के साथ ही आलोचक वॉल्टेयर एवं हिमायती पिशाच्विदों के मतों को एक साथ संग्रहीत किया और पिशाचों के अस्तित्व के होने का दावा करने वाले प्रबंध लेख की व्याख्या की। अपने दार्शनिक शब्द कोष में वॉल्टेयर ने लिखा:
इस विवाद का अंत तभी हुआ जब ऑस्ट्रिया की महारानी मारिया थेरेसा ने अपने निजी चिकित्सक जेरार्ड वैन स्विटन को पैशाचिक सत्ता के दावे की जांच के लिए भेजा. उसने यह निष्कर्ष निकाला कि पिशाचों का कोई अस्तित्व नहीं है। इस बिना पर महारानी ने कब्रों को दोबारा खोदकर खोलने तथा शवों के अपवित्रीकरण पर निषेधाज्ञा जारी करते हुए कानून लागू कर पैशाचिक महामारी जैसी बीमारी के अंत की घोषणा कर दी। इस आलोचना के बावजूद, पिशाच कलात्मक कार्यों और स्थानीय अंधविश्वासों में विद्यमान थे।
गैर यूरोपीय मान्यताएं
अफ्रीका
अफ्रीका के विभिन्न प्रदेशों में पैशाचिक क्षमताओं वाले प्राणियों की अनेक लोककथाएं हैं: पश्चिमी अफ्रीका में अशांति जाति के लोग लोहे के दांत वाले और पेड़ों पर वास करने वाले असान्बोसम तथा इयु (EWE) लोग जुगनू का आकार धारण कर बच्चों का शिकार करने वाले एड्ज़ (adze) की कहानियां कहते हैं। पूर्वी केप क्षेत्र में इमपंडुलू के बारे में जनश्रुति है कि वे बड़े नाखूनों और पंजों वाले पक्षी का आकार धारण कर गर्जन और बिजली को बुला सकते हैं। मडागास्कर के निवासी बेट्सिलियो लोगों का रमांगा के बारे में कहना है कि यह निर्वासित अथवा जीवित पिशाच है जो कुलीन रईसों के खून पीता है और उनके नाखून की कतरनें खाता है।
अमेरिका
फ्रांसीसी और अफ्रीकी वोडु या वूडू जादू के मिश्रण से विश्वासों का संयोजन फलीभूत किस तरह होता है, इसका एक उदाहरण लूगारू है। इसका एक उदाहरण लूगारू शब्द संभवतः फ्रेंच शब्द लौप-गरौ (जिसका अर्थ है "भेड़िया-मानव") से लिया गया है और यह मॉरीशस की संस्कृति में आम बात है। हालांकि लूगारू की कहानियां कैरेबियन द्वीप समूह और संयुक्त राज्य अमेरिका में लुसियाना में व्यापक स्तर पर फ़ैल गई हैं। इसी प्रकार की राक्षसियां त्रिनिदाद की सौकौयन्त और कोलंबिया की लोककथाओं में टुंडा और पटसोला हैं। जबकि दक्षिणी चिली के मापुचे जाति के लोग खून चूसने वाले सांप को पेयुचें के रूप में जानते हैं। दक्षिण अमेरिकी अंधविश्वास में पैशाचिक प्राणियों से रक्षा के लिए घृतकुमारी को दरवाजे के पीछे या बगल में लटका देने की मान्यता थी। एज़्टेक पौराणिक कथाओं में सिहुटेटियो का वर्णन किया गया जो उन स्त्रियों की कंकाल समान चेहरों वाली प्रेतात्माएं थीं जिनकी बच्चे को जन्म देने के समय ही मृत्यु हो गयी, वे बच्चों को चुरा लिया करती थीं और जीवित लोगों को पागल कर उनके साथ यौन संपर्क कायम करती थीं।
18वीं और 19वीं सदी के दौरान पिशाचों में विश्वास न्यू इंग्लैंड में विशेष रूप से रॉड द्वीप और पूर्वी कनेक्टिकट में व्यापक रूप से फ़ैल चुका था। ऐसे परिवारों के अनेक प्रमाण प्रस्तुत किये जा चुके हैं जो मृतकों के पिशाच होने की अपनी मान्यता और परिवार में बीमारी और मौत के लिए उन्हें जिम्मेदार मानने के कारण अपने प्रियजनों को कब्र से खोदकर बाहर निकाल कर उनके दिलों को शरीर से अलग कर देते थे जबकि "वैम्पायर" शब्द का व्यवहार वास्तव में मृत व्यक्ति के लिए कभी नहीं किया गया था। घातक रोग तपेदिक या "कन्ज़म्प्शन" जैसा कि इसी नाम से यह उस वक्त जाना जाता था, के बारे में ऐसा मानना था कि तपेदिक रोग से मरने वाले परिवार के सदस्य के रात्रिकालीन कोप से ही परिवार के अन्य सदस्य इस घातक बीमारी से ग्रसित हो जाते थे। सबसे अधिक प्रसिद्ध और हाल फिलहाल दर्ज संदिग्ध वैम्पायरिज़्म का मामला उन्नीस वर्षीया मर्सी ब्राउन का है जो सन् 1892 में एक्ज़ेटर, रॉड द्वीप में मर गई। उसके पिता ने परिवारिक चिकित्सक की सहायता से उसकी मौत के दो महीने बाद उसे उसके कब्र से बाहर निकाला, उसके दिल को काटकर बाहर निकाला और जलाकर राख कर दिया।
एशिया
मूलतः प्राचीन लोक कथाओं (दंतकथाओं) में निहित, पिशाचीय सत्ता की कहानियों के साथ पिशाचों के बारे में आधुनिक विश्वास महाद्वीप की मुख्य भूमि से होकर दक्षिणी-पूर्व एशिया के द्वीपों के पिशाची प्राणियों तक सम्पूर्ण एशिया में फ़ैल गया। भारत में भी अन्य पिशाचीय जनश्रुतियों का विकास हुआ। भूत या प्रेत उस व्यक्ति की आत्मा है जिसकी असामयिक मृत्यु हो गई है। शवों में प्राण-संचार कर यह उसके आसपास रात में भटकता है तथा जिन्दा लोगों पर पिशाच की तरह हमला करता रहता है। उत्तरी भारत में ब्रह्मराक्षस है। यह पिशाच जैसा ही एक प्राणी है जिसका सिर आंतों और एक खोपड़ी से घिरा हुआ है, जिससे इसने रक्त पान किया। हालांकि पिशाचों का आविर्भाव जापानी सिनेमा में 1950 के अंतिम दशक में हुआ, लेकिन इसके पीछे की लोककथा का मूल स्रोत पश्चिमी है। जो भी हो, नुकेकुबी एक ऐसा प्राणी है जिसका सिर और कंधा शरीर से अलग होकर मानव के शिकार के लिए रात में उड़ने लगता है।
महिला पिशाचों के सामान प्राणियों के संबंध में दंतकथाएं (जनश्रुतियां) हैं कि वे अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को अलग कर सकती हैं, ऐसी कहानियां फिलिपिंस, मलेशिया एवं इंडोनेशिया में भी मिलती हैं। फिलिपिंस में पिशाच जैसे मुख्यतः दो जीव हैं: टैगालोग मैंडुरुगो ("रक्त-शोषक") और विसायन मैनानंगल ("स्वंय को खंडित करने वाला"). मैंडुरुगो असवंग का ही एक प्रकार है जो दिन में एक आकर्षक लड़की का रूप धारण कर लेता है और रात में डैने तथा धागे जैसी लम्बी, खोखली जीभ विकसित कर लेता है। जीभ का व्यवहार सोये हुए शिकार का खून चूसने के लिए किया जाता है। मैनानंगल एक अधेड़ सुंदरी महिला के रूप में वर्णित है जो अपने ऊपरी धड़ को अलग करने में सक्षम है ताकि वह चमगादड़ के जैसे पंखों के साथ रात में असंदिग्ध सोई हुई गर्भवती औरतों का उनके ही घरों में शिकार करने के लिए उड़ सके। वे सूंड़ जैसी लम्बी जीभ का इस्तेमाल इन गर्भवती महिलाओं से भ्रूण चूसने के लिए करती हैं। वे अंतड़ियां (खासकर दिल और जिगर) तथा बीमारों के बलगम (कफ) खाना भी पसंद करती हैं।
मलेशियाई पेनान्गलन या तो खूबसूरत अधेड़ अथवा जवान औरत हो सकती हैं, जिसने काला जादू का सक्रिय इस्तेमाल कर अथवा अन्य अप्राकृतिक माध्यमों से खूबसूरती हासिल की। वे स्थानीय लोककथाओं में आमतौर पर काली राक्षसी प्रवृत्ति वाली पिशाचिनों के रूप में वर्णित हैं। वह अपने विषदंत वाले सिर को विच्छेद करने में सक्षम हैं जो रात भर आमतौर पर गर्भवती महिलाओं के खून की खोज में उड़ती रहती है। मलेशियाई अपने दरवाजों और खिड़कियों के आसपास इस उम्मीद से जेरुजू (गोखरू) लटका दिया करते थे जिससे कि पेनान्गलन अपनी अंतड़ियों में गोखरू के कांटे चुभ जाने के डर से अदंर प्रवेश नहीं करेंगे। बाली की लोककथाओं में लेयाक भी इसी तरह का प्राणी है। इंडोनेशिया में एक कुंतिलानक या मतियानक अथवा मलयेशिया में पोंतियानक या लैंग्सुइर एक ऐसी औरत है जिसकी प्रसव के दौरान ही मौत हो गई और वह गांवों को भयग्रस्त कर बदला लेने के उद्देश्य से मरी नहीं। एक आकर्षक महिला के रूप में प्रकट हुई जो लंबे काले बालों से अपनी गर्दन के पीछे ढंके हुए एक छेद के द्वारा बच्चों के खून चूसा करती थी। उसके बालों से यह छेद भर देने से वह भाग खड़ी होती थी। शवों के मुंह शीशे की माला से भरे, प्रत्येक कांखों के नीचे अंडे और पंजों में सूइयां होती थीं ताकि उन्हें लैंग्सुइर होने से रोका जा सके।
जियांग शि (; वस्तुतः "कड़ी लाश") को पश्चिम के निवासी कभी-कभी "चीनी पिशाच" कहा करते थे। वे वास्तव में पुनः अनुप्राणित शव थे जो जीवित प्राणियों को मारकर (qì) अपने शिकार के जीवन-सार को शोषित करने के लिए उड़ान भरा करते थे। ऐसा कहा जाता है कि वे तब प्रकट होते थे जब किसी मृतक के शरीर को छोड़ने में उसकी आत्मा (魄 pò) असफल हो जाती है। हालांकि कुछ लोगों ने पिशाच के साथ जियांग शि की तुलना पर विवाद खडा कर दिया है क्योंकि जियांग शि आमतौर पर बुद्धिहीन प्राणी हैं जिनके पास स्वतंत्र सोच नहीं हैं। इस राक्षस की एक असामान्य विशेषता इसकी हरी-सफ़ेद रोएंदार त्वचा है, जिसे शायद इसने शवों पर पड़ती फफूंदी या कवक से पाया है।
आधुनिक मान्यताएं
आधुनिक कथा साहित्य में, पिशाच को एक सौम्य, करिश्माई खलनायक के रूप में चित्रित किया जाता है। पैशाचिक सत्ता के बारे में साधारण अविश्वास के बावजूद पिशाचों के कभी कभार दिखाई देने की सूचना मिलती रहती है। दरअसल, पिशाच की तलाश करने वाले समाज अभी भी मौजूद हैं, हालांकि काफी हद तक सामाजिक कारणों से उनका गठन हुआ है। सन् 2002 के अंतिम दशक से 2003 के आरंभ के दौरान पिशाच के हमलों के आरोप पूरे अफ्रीकी देश मालावी में फ़ैल गए। यहां तक कि भीड़ ने पथराव कर एक को मौत के घाट उतार दिया और कम से कम अन्य चार लोगों पर हमले हुए जिसमे राज्यपाल एरिक चिवाया भी थे क्योंकि लोगों का यह मानना था कि सरकार की पिशाचों के साथ मिली भगत थी।
सन् 1970 के आरंभ में स्थानीय प्रेस ने यह अफवाह फैला दी कि एक पिशाच ने लंदन की हाईगेट सीमेट्री (कब्रिस्तान) को भुतहा बना दिया है या प्रेत बाधित कर दिया है। पिशाच की तलाश करने वाले पेशेवर लोग कब्रिस्तान में बड़ी संख्या में इकट्ठे हुए. इस घटना के बारे में कई किताबें लिखी गईं हैं; विशेषकर सिएन मैनचेस्टर नामक एक स्थानीय निवासी के द्वारा जो ऐसे प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने "हाईगेट वाम्पायर" के अस्तित्व के बारे में सुझाव दिया और यह दावा किया कि उस क्षेत्र के सभी पिशाचों के जाल को झाड़ फूँक कर नष्ट कर दिया है। जनवरी 2005 में, इंग्लैंड के बर्मिंघम शहर में यह अफवाह फ़ैल गई कि एक हमलावर ने कई लोगों को काट लिया है, इससे सड़कों पर पिशाच के घूमने के संबंध में लोगों की चिंता और बढ़ गई। हालांकि स्थानीय पुलिस ने कहा कि ऐसे किसी अपराध की सूचना उनके पास नहीं थी और यह मामला एक शहरी लोककथा जैसा लगता है।
आधुनिक युग में पिशाचीय सत्ता के सबसे उल्लेखनीय मामलों में पुएर्टो रिको और मेक्सिको का छुपाकाबरा ("बकरी को चूसनेवाला") का उल्लेख होता है जिसके बारे में कहा गया है कि यह एक ऐसा जीव है जो पालतू जानवरों के रक्त-मांस खा-पीकर जीता है। अतः कुछ लोग इसे भी पिशाच की श्रेणी में ही मानते हैं। "छुपाकाबरा के उन्माद" को बार-बार गहरे आर्थिक और राजनीतिक संकटों से जोड़ा जाता रहा विशेष रूप से 1990 के मध्य दशक के दौरान.
यूरोप में जहां पिशाच की अधिकतर लोककथाओं का जन्म होता है, वहां पिशाच को केवल एक काल्पनिक प्राणी ही माना जाता है। हालांकि अनेक समुदायों ने आर्थिक उद्देश्यों से भूत-प्रेत को अपना लिया है। कुछ मामलों में, खासकर छोटे इलाकों में पिशाच का अंधविश्वास अभी भी प्रचलित है और पिशाच दिखाई देना अथवा पिशाच के हमले लगातार होते ही रहते हैं। रोमानिया में फरवरी 2004 के दौरान टोमा पेत्रे के कई सगे संबंधियों ने यह डर जताया कि वह पिशाच बन चुका है। उन्होंने उसके शव को कब्र खोदकर बाहर निकाला, उसके दिल को चीर कर बाहर किया, इसे जला दिया और राख को जल में घोल दिया ताकि वे उसे पी सकें.
पैशाचिकी आधुनिक समय के तांत्रिक आंदोलनों की प्रासंगिकता का प्रतिनिधित्व भी करता है। पिशाच की पौराणिक कथाएं, उसकी जादुई क्षमताएं, सम्मोहन एवं परभक्षी आदिरूप एक सशक्त प्रतीक के रूप में अभिव्यक्त होता है जिसका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों, शक्ति के कार्य तथा जादुई करिश्मों और यहां तक कि आध्यात्मिक प्रणाली में भी हो सकता है। यूरोप में सदियों से पिशाच तांत्रिक समाज का एक अंग रहा और एक दशक से भी अधिक समय के लिए अमेरिकी उप-संस्कृति में भी नव-गॉथिक सौंदर्यशास्त्र से पूरी तरह प्रभावित और मिश्रित होकर फ़ैल गया।
पिशाच की मान्यताओं की उत्पत्ति
पिशाच की उत्पत्ति की मान्यताओं के अनेक मौलिक सिद्धांत अंधविश्वास की व्याख्या के रूप में और कभी-कभी पिशाच के कारण सामूहिक उन्माद के रूप में भी पेश किए गए हैं। असामयिक दफ़न से लेकर मृत्यु के बाद शव की सड़न चक्र के संबंध में आरंभिक अज्ञानता तक प्रत्येक को पिशाचों में विश्वास के कारण के रूप में उल्लेखित किया गया।
स्लाव अध्यात्मवाद
हालांकि अनेक संस्कृतियों में पूर्वी यूरोपीय पिशाच के ही सदृश भूत-प्रेत के बारे में एक ऐसा अंधविश्वास है जो स्लाविक पिशाच की प्रचलित व्याप्त सांस्कृतिक अवधारणा है। स्लाव संस्कृति में पिशाच में विश्वास की जड़ें काफी हद तक ईसाईकरण से पूर्व स्लाव लोगों की आध्यात्मिक मान्यताएं एवं रिवाज़ और मृत्यु के पश्चात् जीवन के बारे में उनकी समझ पर आधारित है। पुराने धर्म का वर्णन करने वाली प्राक्-ईसाई स्लाव रचनाओं के अभाव के बावजूद अनेक पगान के गैर-ईसाई मूर्तिपूजक मान्यताओं एवं धार्मिक अनुष्ठानों को स्लाव लोगों ने उनके देश का ईसाईकरण कर दिए जाने के बाद भी जारी रखा। ऐसी मान्यताओं और रिवाज़ों के उदाहरणों में पूर्वजों की पूजा, घर की आत्माओं एवं मृत्यु के बाद आत्मा के बारे में विश्वास शामिल हैं। स्लाव क्षेत्रों में पिशाच में विश्वास की जड़े स्लाव आध्यात्मिकता की जटिल संरचना में खोजी जा सकती हैं।
शैतान और प्रेतात्माओं ने प्राक्-औद्योगिक स्लाव समाज में महत्वपूर्ण कार्य किए और उन्हें मनुष्य के जीवन तथा उनके अधिकार-क्षेत्र में पारस्परिक रूप से प्रभावित करने वाला समझा जाता था। कुछ प्रेतात्माएं उदार और मानवीय कार्यों में मददगार थीं जबकि अन्य प्रेतात्माएं हानिकारक और अक्सर विनाशकारी हो सकती थीं। ऐसी प्रेतात्माओं के उदाहरण दोमोवोई, रुसल्का, विला, किकिमोरा, पोलुद्नित्सा और वोद्यानोय हैं। इन प्रेतात्माओं को भी पूर्वजों अथवा किसी मृत मानव से व्युत्पन्न माना जाता था। ऐसी प्रेतात्माएं इच्छानुसार विभिन्न आकारों में प्रकट हो सकती थीं, यहां तक कि भिन्न पशुओं और मानव आकारों में. इनमें से कुछ प्रेतात्माएं मानवों को हानि पहुंचाने के लिए अपकारी कार्य कलापों में शामिल हो सकती थीं, जैसा कि, मानवों को डूबोने में, फसल की पैदावार में बाधा पहुंचाने में या मवेशियों के खून चूसने में और कभी-कभी मानवों को सीधे हानि पहुंचाने में भी. अतः स्लाव लोग प्रेतात्माओं के सनकी और विनाशकारी व्यवहार की अपार क्षमता को रोकने के लिए इन्हें संतुष्ट और तृप्त रखने को बाध्य थे।
साधारण स्लाव विश्वास आत्मा और शरीर के बीच एक बुनियादी अंतर की ओर इंगित करता है। आत्मा को नश्वर नहीं माना जाता है। स्लाव मानते थे कि मृत्यु के बाद आत्मा शरीर से बाहर चली जाएगी और अनंत में परलोकगमन से पूर्व अपने आस-पड़ोस और कार्य-स्थल में 40 दिनों तक भ्रमण करती रहेगी. इस कारण, घर के दरवाजों और खिड़कियों को खुला छोड़ देना आवश्यक माना जाता था ताकि आत्मा अपने अवकाशानुसार आराम से आवागमन कर सके। लोगों को ऐसा विश्वास था कि इस वक्त आत्मा में मृतक के शव में पुनः प्रवेश करने की क्षमता है। पहले बताये प्रेतात्माओं के सामान, निकलती हुई आत्मा या तो आशीर्वाद देगी या फिर आने के इन 40 दिनों के दौरान अपने परिवार और पड़ोसियों पर कहर ढ़ा सकती है। किसी एक व्यक्ति की मृत्यु पर उसकी आत्मा की पवित्रता और शांति सुनिश्चित करने के लिए उचित अंत्येष्टि संस्कार पर अधिक जोर दिया जाता था क्योंकि यह आत्मा उसके शरीर से अलग हो चुकी थी। बिना बपतिस्मा बच्चे की मौत, हिंसक अथवा अकाल मृत्यु या किसी भयंकर पापी की मौत (जैसे कि ओझा अथवा हत्यारे की मृत्यु) मृत्यु के पश्चात् आत्मा के अशुद्ध बने रहने के ये सारे आधारभूत कारण हो सकते थे। अगर शरीर को उचित ढंग से दफनाया नहीं गया तो भी आत्मा अशुद्ध हो सकती है। वैकल्पिक रूप से अगर एक शरीर को समुचित तरीके से नहीं दफनाया जाय तो उसमें किसी अन्य अशुद्ध आत्माओं एवं प्रेतात्माओं के प्रवेश कर जाने की प्रबल संभावना हो सकती है। एक अशुद्ध आत्मा स्लाव लोगों में से इसीलिए इतनी भयभीत रहती थी क्योंकि उनमें प्रतिशोध लेने की क्षमता थी।
मृत्यु और आत्मा से संबंधित इन गहरी उलझी मान्यताओं ने पिशाच की स्लाव अवधारणा को आविष्कृत करने में योगदान दिया। पिशाच सड़ते हुए शरीर को धारण किए रहने वाली अशुद्ध प्रेतात्मा का प्रत्यक्षीकरण है। इस बिना मरे हुए प्राणी को तामसिक और जीवितों के प्रति प्रतिशोधी और ईर्ष्यालु समझा जाता है। इसे अपना शारीरिक अस्तित्व बनाए रखने के लिए जीवितों के रक्त की हमेशा जरूरत बनी रहती है। हालांकि पिशाच की यह अवधारणा थोड़ी सी अलग आकृति में स्लाव देशों और उनके गैर स्लाव पड़ोसियों में है - पिशाच विश्वास के विकास का पता स्लाव क्षेत्रों में प्राक्-ईसाई स्लाव अध्यात्मवाद में लगाना संभव है।
रोग निदान विज्ञान
सड़न
पॉल बार्बर ने अपनी पुस्तक वैम्पायर्स, बरिअल एंड डेथ में यह वर्णन किया है कि पिशाचों में विश्वास इस बात का परिणाम था कि प्राक्-औद्योगिक समाज के लोगों के लिए मृत्यु और सड़न की प्राकृतिक प्रक्रिया वर्णन से बाहर थी।
लोग कभी-कभी पैशाचिकी के बारे में संदेह करने लग जाते थे जब कोई शव बिना दफ़न के स्वाभाविक शव-सा नहीं दिखता था जैसा कि वे सोचते थे। हालांकि सड़न-प्रक्रिया की दर तापमान और मिट्टी की संरचना पर निर्भर करते हुए भिन्न- भिन्न होती है और इसमें से कई लक्षण अभी भी पूरी तरह ज्ञात नहीं हैं। इसने पिशाच की तलाश करने वाले लोगों को भूल से इस निष्कर्ष पर पहुंचा दिया है कि एक मृत शरीर एक दम ही नहीं गलते या विडम्बनापूर्ण तरीके से उन्होंने सड़न के लक्षणों को निरंतर जीवन के संकेत के रूप में समझ लिया। लाशें फूलती हैं क्योंकि सड़न से धड़ में गैसें भरती हैं और बढ़ता हुआ दबाव रक्त को मुंह और नाक से रिसने के लिए बाध्य कर देता है। इसी कारण शरीर "गोल मटोल", "अच्छा खाया पिया" और "रक्ताभ" दीखता है -- ये परिवर्तन और भी अधिक आश्चर्यजनक होते थे अगर वह व्यक्ति अपने जीवन-काल में पीला मुरझाया हुआ या पतला रहा। अर्नोल्ड पावोल के मामले में, कब्र से खोदकर निकाले गए एक बूढी महिला के शव को उसके पड़ोसियों ने अधिक गोल-मटोल और स्वस्थ ठहराया जबकि अपनी जीवितावस्था में वह ऐसी कभी नहीं दिखी. रिसते हुए रक्त से यह धारणा बनती थी कि वह लाश हाल फिलहाल पैशाचिक क्रिया कलापों में व्यस्त थी। त्वचा का काला पड़ना भी सड़न के कारण उत्पन्न हुआ था। फूले सड़ते हुए शरीर में खूंटी गाड़ने से शरीर से खून बहने लगेगा और शरीर में जमी गैसें बाहर निकलने के लिए मजबूर हो जायेगी. यह कराह जैसी आवाज़ पैदा कर सकता है जब गैसें स्वर-तंत्रियों से होकर गुजरती है या बची-खुची उदर वायु गुदा द्वार से होकर बाहर निकलती है। पीटर प्लोगोजोवित्ज़ के मामले की आधिकारिक रिपोर्ट "दूसरे प्रचंड लक्षण जिन्हें मैं पूरे सम्मान के साथ समर्थन देता हूं" के बारे में चर्चा करती है।
मृत्यु के पश्चात् त्वचा और मसूढ़ों से तरल पदार्थ कम होने लगते हैं और वे सिकुड़ने लगते है। इससे जबड़े के साथ जकड़ी हुई बालों, नाखूनों और दांतों की जड़ें दिखाई देने लगती हैं। इससे यह भ्रम पैदा हो सकता है कि बाल, नाखून और दांत पैदा हो गए हैं। एक निश्चित अवस्था में पहुंचकर नाखून गिर जाते हैं और त्वचा छिलके की तरह अलग हो जाती है, जैसा कि प्लोगोजोवित्ज़ के मामले में रिपोर्ट में कहा गया है -- चमड़ियां और नाखूनों की भीतरी परतें जो बाहर निकल आती हैं उन्हें "नयी त्वचा" और "नए नाखून" मान लिए जाते हैं।
समय से पहले दफन
यह भी अनुमान लगाया जा चुका है कि पिशाच की लोककथाएं ऐसे लोगों से प्रभावित थीं जिन्हें आदिम चिकित्साज्ञान के कारण जीवित ही दफना दिया जाता था। कुछ मामलों में जिसमें लोगों ने किसी ख़ास ताबूत से आवाज़ बाहर निकलने की सूचना दी, जिसे बाद में खोदकर बाहर निकालने पर अंगुलियों के नाखूनों के निशान अदंर की ओर पाए गए जिससे यह जाहिर हो रहा था कि शिकार बचकर भागने की कोशिश कर रहा था। दूसरे मामलों में लोग उनके सिरों, नाकों या चेहरों पर मारते थे और यह जाहिर होता था कि वे "भोजन करा" रहे हैं। इस सिद्धांत समस्या इस प्रश्न को लेकर है कि जिन लोगों को जीवित ही अनुमानतः दफना दिया जाता था भला वे इतने लंबे अरसे तक बिना अन्न, जल अथवा शुद्ध हवा के कैसे जीवित रह सकते थे। आवाज़ बाहर आने की एक वैकल्पिक व्याख्या शवों के प्राकृतिक रूप से सड़न के कारण गैसों के बाहर निकलने की व्याकुलता से बुदबुदाहट की आवाज़ है। अव्यवस्थित एवं विकृत मकबरे के पीछे ऐसा ही एक और कारण है, मकबरे को लूटना.
संक्रामक रोग
लोककथाओं की पैशाचिकी का संबंध अपहचान योग्य अथवा रहस्यमयी बीमारियों से होने वाली सिलसिलेवार मौतों से जोड़ा गया है जो अक्सर उसी परिवार में अथवा उसी के समान छोटे समुदाय में होती रही हैं।पीटर प्लोगोजोवित्ज़ और अर्नोल्ड पाओल के पारंपरिक मामलों में महामारी का संकेत स्पष्ट है और इससे भी अधिक मर्सी ब्राउन के मामले में और आमतौर पर न्यू इंग्लैंड के पिशाची विश्वासों में जहां किसी खास बीमारी, तपेदिक को पैशाचिकी के प्रकोप से जोड़ दिया जाता था। जैसा कि टाऊन प्लेग के फुफ्फुसीय रूप के सामान यह फेफड़ों के ऊत्तक के फटने के कारण होठों पर खून दिखाई देता था।
पॉरफिरिया
सन् 1985 में जीव रसायनज्ञ डेविड डॉल्फिन ने दुर्लभ रक्त विकार पॉरफिरिया और पिशाच की लोककथा के बीच एक कड़ी की पेशकश की। यह देखते हुए कि इस हालत में अंतःशिरा के रक्त से इलाज किया जाता है, उन्होंने सुझाया कि बड़ी मात्रा में रक्त के सेवन से रूधिर में वृद्धि होगी जो किसी तरह पेट की दीवारों के पार रूधिर प्रवाह में पहुंचा दिया जायेगा. इस प्रकार पिशाच केवल पॉरफिरिया बीमारी से पीड़ित थे जो रूधिर को बदलकर अपने रोग के लक्षण को कम करना चाहते थे। इस सिद्धांत को चिकित्सा शास्त्र की दृष्टि से नकार दिया गया। बतौर इस सुझाव के कि पॉरफिरिया रोग से पीड़ित रक्त के लिए लालायित रहते है अथवा रक्त के उपभोग से पॉरफिरिया के लक्षणों में आराम मिल सकता है, ये बीमारी के बारे में गलतफहमी पर आधारित थे। इससे अतिरिक्त, यह देखा गया कि डॉल्फिन काल्पनिक (खून चूसने वाले) पिशाचों को भूल से लोककथा के पिशाचों के रूप में समझ लिया था, जिनमें से अधिकतर को उन्होंने पाया कि वे खून नहीं पीते. इसी प्रकार पीड़ितों के द्वारा सूर्य की रोशनी और संवेदना के बीच समानता स्थापित किया गया जबकि यह संपर्क काल्पनिक न कि लोककथात्मक पिशाच से जुड़ा हुआ था। किसी भी हाल में डॉल्फिन अपने काम के व्यापक प्रचार-प्रसार की ओर अग्रसर नहीं हुए. विशेषज्ञों के द्वारा खारिज कर दिए जाने के बावजूद इस कड़ी ने मीडिया का ध्यान आकर्षित किया और लोकप्रिय आधुनिक लोककथा बन गया।
जलांतक (रेबीज)
जलांतक को पैशाचिक लोककथा से जोड़ा गया है। स्पेन में विगो के ज़ेरल हॉस्पिटल में एक तंत्रिका विज्ञानी, डॉ॰ जुआन गोमेज़-अलोंसो ने तंत्रिका विज्ञान की एक रिपोर्ट में इस संभावना की जांच की। लहसुन और रोशनी के प्रति ग्रहणशीलता अति संवेदनशीलता के कारण हो सकती थी, जो जलांतक रोग का ही एक लक्षण है। यह रोग दिमाग के हिस्सों को भी प्रभावित कर सकता है जिससे सामान्य निद्रा की प्रवृत्तियों में गड़बड़ी और (इस प्रकार निशाचर बनकर) अतिकामुकता पैदा हो सकती है। लोककथा के अनुसार अगर कोई अपना प्रतिविम्ब देख सकता है तो वह उन्मत्त या पागल नहीं है (लोककथा की ओर संकेत है कि पिशाचों के प्रतिविम्ब नहीं होते). भेड़िये और चमगादड़ जिन्हें अक्सर पिशाचों से जोड़ा जाता है, वे जलांतक के वाहक हो सकते हैं। यह रोग दूसरों को दांत से काटने के लिए अभिप्रेरित कर सकता है और मुंह पर खूनी झाग भी भर सकता है।
गतिशील अतींद्रिय ज्ञान
सन् 1931 में दुःस्वप्न पर अपने प्रबंध लेख ऑन द नाईटमेयर में वेल्श के मनोविश्लेषक एर्नेस्ट जोन्स ने यह उल्लेख किया कि पिशाच अनेक अवचेतन प्रबल प्रेरणाओं और रक्षात्मक प्रतिक्रियाओं के प्रतीक मात्र हैं। प्रेम, अपराध और घृणा उनकी भावनाएं हैं जो मृतक के अपने कब्र में लौट आने के विचार को बढ़ावा देती है। अपने प्रिय जनों से पुनर्मिलन की कामना से शोक संतप्त लोग यह विचार पोषण करते थे कि हाल में मृतक की भी ऐसी ही धारणा होनी चाहिए। इसी से यह धारणा पैदा हुई कि लोककथाओं के पिशाच और भूत-प्रेत अपने रिश्तेदारों से मुलाकात करने आते हैं, खासकर अपने जीवन साथी से. हालांकि कुछ मामलों में जहां रिश्ते के साथ अवचेतन अपराध जुड़ा होता था, पुनर्मिलन की आकांक्षा चिंता से विकृत हो जाती थी। इससे दमन का जन्म हो सकता है जिसे फ्रॉयड ने विकृत रोगजन्य के विकास के साथ जोड़ा था। जोन्स ने इस मामले में अनुमान लगाया कि इस मामले में पुनर्मिलन की मूल इच्छा (यौन इच्छा) में जबरदस्त रूप से परिवर्तन हो सकता है: इच्छा का स्थान भय ले लेती है, प्यार की जगह परपीड़न-रति और वस्तु अथवा प्रियजन का स्थान कोई अज्ञात सत्ता ले लेती है। यौन का पहलू बरकरार रह भी सकता है और नहीं भी.
खून चूसने की जन्मजात कामुकता का आतंरिक संबंध नरभक्षण एवं लोककथात्मक इन्कुबुस जैसी व्यवहार से जोड़ा जा सकता है। अनेक जनश्रुतियों के रिपोर्ट के अनुसार तरह-तरह के प्राणी शिकार के शरीर से अन्य तरल पदार्थ निकाल लेते हैं, स्पष्ट है कि अवचेतन में मिलन के कारण वीर्य-स्खलन हुआ हो। अंततः जोन्स ने गौर किया कि जब कामेच्छा का अधिक स्वाभाविक पहलू दमित होता है, तो दबे हुए रूप कि अभिव्यक्ति खासकर परपीड़न-रति में हो सकती है। उन्होंने महसूस किया कि मौखिक परपीड़न-रति पैशाचिक बर्ताव का अभिन्न अंग है।
राजनीतिक व्याख्या
आधुनिक युग में पिशाच मिथक की पुनः खोज राजनैतिक मकसद के बिना नहीं है। कुलीन काउंट ड्रैकुला कुछ पागल नौकर-चाकर से अलग अकेले अपने किले में, केवल रात में ही प्रकट होकर अपने किसानों को खाकर जीनेवाला प्राचीन परजीवी शासन का प्रतीक है। वर्नर हार्ज़ोग ने अपनी पुस्तक नोस्फेरातु द वैम्पायर में इस राजनीतिक व्याख्या को अतिरिक्त व्यंग्यात्मक मोड़ देते हैं जब उनका युवा एस्टेट एजेंट जो कहानी का नायक है, अगला पिशाच बन जाता है। इस प्रकार पूंजीवादी बुर्जुआ आगामी परजीवी वर्ग बन जाता है।
मनोविकृति विज्ञान
अनेक हत्यारों ने अपने शिकारों पर मिलते-जुलते पैशाचिक कर्म-काण्ड पूरे किए हैं। सीरियल हत्यारे पीटर कर्टेन और रिचर्ड ट्रेंटन चेज़ दोनों को पत्रिकाओं में "पिशाच" कहा गया जब यह देखा गया कि वे दोनों उस व्यक्ति का रक्त पान कर रहे थे जिसकी उन्होंने हत्या की थी। इसी प्रकार सन् 1932 में स्वीडन के स्टॉकहोम में अनसुलझे हत्या के मामले को पीड़ित की मौत की परिस्थितियों के कारण पिशाच हत्या का उपनाम दिया गया। 16वीं सदी के अंतिम चरण में हंगरी की काउंटेस और सामूहिक हत्यारिणी एलिजाबेथ बेथोनी अपने परवर्ती कारनामों के कारण बदनाम हो गई, जब उसे अपनी सुंदरता और जवानी बरक़रार रखने के लिए अपने शिकार के खून में नहाता हुआ चित्रित किया गया।
लोगों की समकालीन उपसंस्कृति के लिए पिशाच एक जीवन शैली का नाम है, अधिकतर गॉथ उपसंस्कृति में लोग दूसरों का रक्त पान मनोरंजन के लिए करते हैं। यह प्रतीक पंथ, हॉरर फ़िल्म्स, ऐनी राईस की कहानियां एवं विक्टोरियन इंग्लैंड की शैलियों से संबंधित लोकप्रिय संस्कृति के समृद्ध समकालीन इतिहास से अनुप्रेरित है। पिशाच उपसंस्कृति में सक्रिय पैशाचिकता में रक्त से संबंधित पैशाचिकता, जिसे आम तौर पर रक्तिम पैशाचिकता कहा जाता है तथा मानसिक पैशाचिकता अथवा अनुमानित ऊर्जा पर अपना भरण-पोषण करने के उल्लेख शामिल हैं।
पिशाच चमगादड़
हालांकि अनेक संस्कृतियों में इनके बारे में कहानियां हैं, हाल फ़िलहाल ही पिशाच चमगादड़ पारंपरिक पिशाच जनश्रुति के अभिन्न अंग बन गए हैं। वास्तव में, 16वीं सदी में दक्षिण अमेरिका की मुख्य भूमि पर उनका पता लगने तक पिशाच चमगादड़ केवल पिशाच की जनश्रुति (लोककथा) से ही अभिन्न रूप से जोड़े जाते थे। हालांकि यूरोप में पिशाच चमगादड़ नहीं है, चमगादड़ों और उल्लुओं को काफी अरसे से अलौकिक सत्ता एवं सगुण लक्षणों के साथ जोड़ा जाता रहा है, खासकर उनकी निशाचर आदतों के कारण. आधुनिक इंग्लिश अग्रदूती परंपरा में, चमगादड़ का अर्थ है "अन्धकार और अराजक की शक्तियों की जागरूकता".
वास्तविक पिशाच चमगादड़ों की तीन प्रजातियां हैं और सब के सब लैटिन अमेरिका के स्थानिक है। मानव-स्मृति में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो यह सुझाए कि प्राचीन विश्व में इनके कोई सगे पूर्वज थे। अतः यह असंभव है कि अनुश्रुतियों के पिशाच केवल विकृत प्रस्तुति हैं अथवा पिशाच चमगादड़ के केवल यादगार हैं। चमगादड़ों का नामकरण अन्य बातों के विपरीत लोककथाओं (जनश्रुतियों) के पिशाच के नाम पर किया गया था। द ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी के रिकॉर्ड के अनुसार जनश्रुतियों का उपयोग इंग्लिश में 1734 से और जीव विज्ञान में 1774 से पूर्व नहीं किया गया था। हालांकि पिशाच चमगादड़ के काटने से आमतौर पर व्यक्ति को कोई हानि नहीं पहुंचती है। चमगादड़ को जाना जाता है कि वह मानवों पर ही अपना पोषण करते हैं और बड़े शिकार कर जैसे कि मवेशी और कभी-कभी अपने शिकार के शरीर की त्वचा पर दो-नाखूनों के निशान छोड़ जाते हैं।
साहित्यिक ड्रैकुला अनेक बार उपन्यास में अपने आप को चमगादड़ में रूपांतरित कर लेता है और पिशाच चमगादड़ों का उल्लेख इसमें दो बार हुआ है। ड्रैकुला के 1927 के मंचीय निर्माण में उपन्यास का अनुकरण करते हुए ड्रैकुला को चमगादड़ में बदलते हुए दिखाया गया है जैसा कि फ़िल्म में भी है जिसमें बेला लुगोसी चमगादड़ में बदल जाती है। चमगादड़ में रूपांतरण के दृश्य का उपयोग फिर से लोन चानी जूनियर द्वारा 1943 में सन ऑफ़ ड्रैकुला में किया गया।
आधुनिक कथा साहित्य में
पिशाच अब लोकप्रिय उपन्यास का उपास्कर (आवश्यक अंग) है। ऐसे उपन्यासों की रचना अठारहवीं सदी की कविता से आरंभ हुई जो उन्नीसवीं सदी में लघु कथाओं के रूप में जारी रही जिसमें से सर्वप्रथम और सबसे अधिक प्रभावोत्पादक जॉन पोलिडोरी की द वैम्पायर (1819) थी जिसमें लोर्ड रुथ्वेन को पिशाच के चरित्र में दिखाया गया है। लोर्ड रुथ्वेन के शोषण के कारनामों को आगे चलकर पिशाच नाटकों की श्रृंखलाओं में दर्शाया गया जिसमें वे विरोधी नायक (खलनायक) की भूमिका में थे। पिशाच की विषय-वस्तु अत्यधिक भयानक धारावाहिक प्रकाशनों जैसे कि वारने द वैम्पायर (1847) में जारी रही में और जो ब्रैम स्टोकर रचित और 1897 में प्रकाशित प्रतिष्ठित सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ पिशाच उपन्यास ड्रैकुला में चरम उत्कर्ष पर पहुंच गयी। समयांतराल से, कुछ चारित्रिक विशेषताओं को अब अभिन्न अंग माना जाता है। पिशाच के पार्श्व चित्र में समाविष्ट कर लिए गए हैं। नुकीले विषदंत और सूर्य की रोशनी में असुरक्षा का अहसास 19वीं सदी के दौरान दिखाई दी; वारने द वैम्पायर और काउंट ड्रैकुला, दोनों में ही बाहर निकले हुए बड़े-बड़े दांत दिखाए गए हैं एवं मुर्नाऊ नोस्फेरातु (1922) में दिन के उजाले से भय दर्शाया गया है। 1920 के दशक की मंच प्रस्तुतियों में लबादा का पहनावा सामने आया, जिसमें नाटककार हैमिल्टन डिएन को मंच से गायब करने में आसानी के लिए ऊंचे कॉलर वाला लबादे का प्रयोग शुरू किया गया। लोर्ड रुथ्वेन और वारने चांदनी में अपने को चंगा पा रहे थे हालांकि पारंपरिक लोककथा में ऐसा कोई उल्लेखन नहीं मिलता है। यद्यपि लोककथाओं में सविस्तार प्रमाण उपलब्ध नहीं है फिर भी अमरता पिशाच फिल्म और साहित्य की सबसे सबल विशेषता है। अलौकिक जीवन पाने के लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है यथा, अपनी बराबरी के भूतपूर्व लोगों के रक्त की निरंतर लालसा.
साहित्य
पिशाच अथवा भूत-प्रेत सर्वप्रथम कविताओं में प्रकाशित हुए उदाहरणार्थ हेनरिच अगस्ट ओसेनफेल्डर के द वैम्पायर (1748), गोटफ्राइड अगस्ट बर्जर के लेनोर (1773), जोहान वोल्फगैंग वोन गोएथ के डाई बरौट वोन कोरिन्थ (द ब्राइड ऑफ़ कोरिन्थ) (1797), सैमुएल टेलर कोलेरिज की अधूरी कविता क्राइस्टाबेल तथा लोर्ड बायरन की द जियावर (1813) में.पिशाच से संबंधित द वैम्पायर (1819) नामक प्रथम गद्य उपन्यास कृति का श्रेय बायरन को दिया गया। हालांकि वास्तव में यह बायरन के निजी चिकित्सक जॉन पोलिडोरी द्वारा लिखी गई थी, जिन्होंने अपने यशस्वी रोगी की गुक्दों में विखरी, रहस्यपूर्ण खंडित कहानी को रूपांतरित कर दिया। बायरन के निजी हावी होने वाले व्यक्तित्व को उसकी प्रेयसी लेडी कैरोलिन लैम्ब ने अपने यथार्थवादी रोमन-अ-क्लेफ़ (टीका-टिप्पणियों सहित व्यंग्यात्मक रचना) लिखी गई रचना ग्लेनार्वोन (बायरन के उग्र भयंकर जीवन पर आधारित एक गॉथिक फंतासी) जिसको मॉडल चरित्र के रूप में कभी न मरने वाले नायक लोर्ड रुथ्वेन के लिए पोलिडोरी ने अपनी रचना में स्थान दिया। पिशाच पर आधारित द वैम्पायर 19वीं सदी के आरंभ की सर्वाधिक सफल और सबसे प्रभावशाली कृति थी।
जेम्स मालकॉम रायमर रचित लोकप्रिय मध्य विक्टोरियन युगीन गॉथिक संत्रास कथा वारने द वैम्पायर युगांतकारी घटना थी (वैकल्पिक रूप से थॉमस प्रेस्केट प्रेस्ट को आरोपित), यह सर्वप्रथम श्रृंखलाबद्ध पर्चों की शक्ल में 1845 से 1847 के बीच आमतौर पर पेन्नी ड्रेडफुल्स शीर्षक से प्रकाशित हुआ क्योंकि इसमें वीभत्स सामग्री थी और कीमत भी कम था। यह कहानी पुस्तक के रूप में 1847 में प्रकाशित हुई जिसमें दो स्तंभों वाले 868 पृष्ठ थे। इसमें सनसनीपूर्ण रोमांचक शैली का खास प्रयोग है जिसमें वारने के भयानक कारनामों को चटकीली कल्पना के सहारे व्यंजित किया गया है। इसके अतिरिक्त इस शैली पर आधारित दूसरी रचना शेरिडन ले फानु की समलैंगिक पिशाच कथा कार्मिला (1871) थी। उससे पूर्व वारने की ही तरह पिशाच कार्मिला का उसकी अवस्था की विवशता को उजागर करने के लिए करूणा और सहानुभूति की रोशनी में चरित्रांकन किया गया है।
ब्रैम स्टोकर के ड्रैकुला (1897) की तरह लोकप्रिय उपन्यास में पिशाच को चित्रित करने की प्रचेष्टा इतनी प्रभावशाली या इतनी पूर्ण विकसित किसी की भी नहीं थी। पैशाचिकी का चित्रण दानवी आधिपत्य की संक्रामक बीमारी के रूप में हुआ जिसमें यौन भावना, रक्त और मृत्यु, हलके रोग गौण तत्व के रूप में विक्टोरियन यूरोप में थे जहां तपेदिक और उपदंश की बीमारियां आम बात थीं। स्टोकर की कृति में पैशाचिक विशेषताओं के साथ ही लोककथा के परंपरा का प्रभुत्व समाहित हो गया जिसने आधुनिक काल्पनिक कथात्मक पिशाच की अवधारणा को विकसित किया। अपनी पुरानी रचनाओं, द वैम्पायर और "कार्मिला" के आधार पर स्टोकर ने 1800 के अंतिम दशक में अपनी नई पुस्तक के लिए अनुसंधान आरंभ कर दिया। इस संदर्भ में उन्होंने कुछ पुस्तकों का भी अध्ययन किया जैसे कि एमिली जेरार्ड द्वारा लिखित द लैंड बियोंड द फॉरेस्ट (1888) एवं ट्रांसिल्वानिया और पिशाचों के बारे में अन्य पुस्तकें. लंदन में एक सहकर्मी ने उन्हें "यथार्थ-जीवन ड्रैकुला" व्लाद टेपेस की कथा सुनाई. स्टोकर ने अविलम्ब इस कहानी को अपनी किताब में शामिल कर लिया। जब पहली बार 1897 में यह पुस्तक प्रकाशित हुई तो पहला अध्याय छोड़ दिया गया किन्तु बाद में 1914 में यह ड्रैकुला'स गेस्ट के रूप में प्रकाशित हुआ।
1954 में प्रकाशित रिचर्ड मैथेसन की आई ऐम लीजेंड वैज्ञानिक पिशाच उपन्यासों में सर्वप्रथम था जिसके आधार पर द लास्ट मैन ऑन अर्थ (1964), द ऑमेगा मैन (1971) और आई ऐम लीजेंड (फ़िल्म) (2007) फ़िल्में बनीं।
इक्कीसवीं सदी ने पिशाच कथा के अधिकाधिक उदाहरण लाए जैसे की जे.आर. वार्ड की ब्लैक डैगर ब्रदरहुड सीरीज़ और अन्य काफी लोकप्रिय पिशाच पुस्तकें जिसने किशोरों और युवा वयस्कों को काफी आकर्षित और प्रभावित किया। ऐसे पैशाचिक असाधारण रोमांटिक उपन्यास एवं सहबद्ध पैशाचिक चटपटे मनोरंजक उपन्यास तथा पैशाचिक गुप्त रहस्यमयी कहानियां उल्लेखनीय लोकप्रियता और हमेशा बढ़ने वाली समकालीन प्रकाशन की घटनाएं हैं।एल.ए. बैंक्स की द वैम्पायर हंट्रेस लीजेंड सीरीज़, लॉरेल के. हैमिल्टन की कामुक अनिता ब्लेक: वैम्पायर हंटर सीरीज़ और किम हैरिसन की द होलोज़ सीरीज़ पिशाच का चित्रण विविधता के साथ नए दृष्टिकोण से करते हैं, जिनमें से कुछ का मौलिक जनश्रुतियों के साथ कोई संबंध नहीं है।
बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध ने अनेक खंडों में पिशाच महाकाव्य के प्रकाशन का उत्थान देखा. इनमें से प्रथम गॉथिक रोमांस शैली के रचनाकार मैरिलिन रोस की कृति बमाबास कॉलिंस सीरीज़ (1966-71) थी जो हल्के-फुल्के ढंग से समकालीन अमेरिकन TV सीरीज़ डार्क शैडोज़ पर आधारित थी। इसने पिशाचों को काव्यात्मक त्रासद नायक के चरित्र के रूप में देखने की प्रवणता पैदा की न कि बुराई के परंपरागत अवतार के रूप में. इस फार्मूला का प्रयोग उपन्यासकार ऐनी राईस के सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रभावशाली कृति वैम्पायर क्रोनिकल्स (1976-2003) में किया गया।. स्टेफनी मेयेर द्वारा कृत "ट्विलाइट" सीरीज़ (2005-2008) में पिशाच लहसुन और क्रॉस के प्रभाव को नजरअदाज़ कर देते हैं और सूर्य की रोशनी का भी उन पर कोई असर नहीं पड़ता है (हालांकि यह उनके अलौकिक स्वरुप को उजागर करती है).
फिल्म और टेलीविज़न
पिशाच का चरित्र क्लासिक हॉरर फिल्म के पूर्व प्रतिष्ठित पात्रों में से एक माना जाता है, यह फिल्म और खेल (वीडियो गेम्स) उद्योगों का सबसे प्रचलित विषय साबित हुआ है। शर्लौक होम्स को छोड़ कर ड्रैकुला ज़्यादातर फिल्मों का प्रधान चरित्र है और अन्य अनेक आरंभिक फिल्में या तो ड्रैकुला नामक उपन्यास पर आधारित थीं या तो उससे काफी हद तक प्रभावित थीं। इनमें शामिल है एफ़. डब्ल्यु. मुर्नाऊ द्वारा निर्देशित 1922 की ऐतिहासिक जर्मन मूक फिल्म नोस्फेरातु जो ड्रैकुला के चरित्र को चित्रित करने वाली पहली फिल्म थी। हालांकि नाम और चरित्र ड्रैकुला की नक़ल करने के लिए ही थे पर स्टोकर की विधवा पत्नी ने मुर्नाऊ को ऐसा करने की अनुमति नहीं दी। इसलिए फिल्म के कई पहलुओं को बदलना पड़ा. इस फिल्म के अलावा थी युनिवर्सल की ड्रैकुला (1931) जिसमें बेला लुगोसी ने काउंट की भूमिका में अभिनय किया। यह ड्रैकुला को चित्रायित करने वाली पहली सवाक फिल्म थी। इस दशक में अनेक पिशाच फिल्में बनी जिसमें सबसे उल्लेखनीय 1936 में बनी ड्रैकुला'स डॉटर थी।
पिशाच की लोककथा को फिल्म उद्योग में और भी मजबूती तब मिली जब मशहूर हैमर हॉरर सीरिज़ की फिल्मों के साथ नयी पीढ़ी के लिए ड्रैकुला के चरित्र का पुनर्जन्म हुआ। इस सीरिज़ में क्रिस्टोफर ली ने काउंट का अभिनय किया। 1958 की सफल फिल्म ड्रैकुला की सात उत्तर्काथायें आयीं, जिनमें ली ने भूमिका निभाई. ली इनमें से दो फिल्मों को छोड़कर बाकी सब में ली ड्रैकुला के भूमिका में लौटे एवं उनका अभिनय यादगार बन गया। 1970 के दशक तक फिल्मों में पिशाच के चरित्र में विविधता आई जैसे कि काउंट योर्गा, वैम्पायर (1970), 1972 की ब्लाकुला में एक अफ्रीकी काउंट के रूप में, 1979 सलेम'स लॉट में एक नोस्फेरातु जैसा पिशाच और उसी साल नोस्फेरातु द वैम्पायर शीर्षक से नोस्फेरातु का पुनर्निमाण क्लॉस किंसकी के साथ किया। अक्सर समलैंगिक विशेषताओं के साथ नारी चरित्रों को कई फिल्मों में चित्रित किया गया जैसे की कार्मिला पर आधारित हैमर हॉरर की द वैम्पायर लवर्स (1970). हालांकि दुष्ट पिशाच के केंद्रीय चरित्र के इर्द-गिर्द शिष्टता अभी भी घूमती है।
1972 की डैन कर्टिस की टेलीविज़न श्रृंखला (सीरिज़) कोल्चाक: द नाईट स्टॉकर के आरंभिक एपिसोड संवाददाता कार्ल कोल्चाक के चरित्र के इर्दगिर्द घूमती है जो लास वेगास पट्टी पर एक पिशाच के शिकार की टोह में लगा हुआ है। बाद की फिल्मों की पटकथा में अनेक विविधताएं आयीं, इनमें से कुछ पिशाच की तलाश करने वाले व्यक्ति पर संकेंद्रिक थीं जैसे कि ब्लेड मार्वेल कॉमिक्स की "ब्लेड" फिल्मों में और बफ्फी द वैम्पायर स्लेयर में. बफ्फी, जिसे 1992 में रिलीज़ की गयी, ने TV पर पैशाचिक चरित्र का पूर्वाभास इसी नाम की एक लंबे अरसे तक चलने वाली हिट TV सीरीज़ के रूपांतर के वृहद् संस्करण एंजेल के साथ उजागर किया। फिर भी अन्य लोगों ने पिशाचों को नायक के रूप में ही पेश किया जैसे कि 1983 की द हंगर, 1994 की इंटरव्यू विद द वैम्पायर: द वैम्पायर क्रौनिकल्स और इसके अप्रत्यक्ष परिणाम के रूप में क्वीन ऑफ़ द डैम्ड . ब्रैम स्टोकर की ड्रेकुला 1992 की असाधारण रीमेक थी जो तब की सर्वोच्च आमदनी वाली पिशाच फिल्म थी। पैशाचिक पटकथाओं में अभिरुचि की इस वृद्धि के फलस्वरुप पिशाच के चरित्र को कई फिल्मों में पेश किया गया जैसे की अंडरवर्ल्ड और वैन हेल्सिंग, रूसी नाईट वॉच एवं TV लघु श्रृंखला (मिनिसीरिज) लघु रूपांतर सलेम'स लॉट, दोनों ही 2004 से. ब्लड टाइज़ की श्रृंखला (सीरिज) का प्रीमिअर लाइफटाइम टेलीविज़न पर 2007 में हुआ जिसमें हेनरी फित्जरॉय के चरित्र को इंग्लैंड के हेनरी VIII के पिशाच में बदल गए नाजायज़ बेटे के रूप में आधुनिक टोरंटो में भूतपूर्व टोरंटो की महिला जासूस के साथ पेश किया गया। 2008 की HBO की ट्रू ब्लड शीर्षक की श्रृंखला (सीरिज) ने पिशाच की विषय-वस्तु को दक्षिणी रूप में पेश किया। पिशाच की विषय-वस्तु की निरंतर लोकप्रियता का श्रेय दो प्रमुख कारकों के संयोजन को दिया जाता है: कामुकता का प्रतिनिधित्व और मृत्यु का चिरस्थायी भय.
फुटनोट्स
सन्दर्भ
(द वैम्पायर: हिज़ किथ एंड किन के रूप में मूलतः प्रकाशित)
द वैम्पायर इन लोर एंड लीजेंड के रूप में भी प्रकाशित, ISBN 0-486-41942-8)
(वैम्पायर एंड वैम्पायरिज़्म के रूप में मूलतः प्रकाशित; द हिस्ट्री ऑफ़ वैम्पायर्स के रूप में भी प्रकाशित)
बाहरी कड़ियाँ
"जर्नल ऑफ़ ड्रेकुला स्टडीज़"
कॉर्पोरियल अनडेड
वैम्पायरिज़्म
शेपशिफ्टिंग
स्लाविक लेजेंडरी क्रिएचर्स
पिशाच
गूगल परियोजना | 10,028 |
580829 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BE | की गोम्पा | की गोम्पा (की मठ, की मोनेस्ट्री अंग्रेजी:KYE) हिमाचल प्रदेश की लाहौल स्पीति जिले में काजा से 13 किलोमीटर की दूरी पर है। इस मठ की स्थापना 13वीं शताब्दी में हुई थी। यह स्पीती क्षेत्र का सबसे बड़ा मठ है। यह मठ दूर से लेह में स्थित थिकसे मठ जैसा लगता है। यह मठ समुद्र तल से 13504 फीट की ऊंचाई पर एक शंक्वाकार चट्टान पर निर्मित है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इसे रिंगछेन संगपो ने बनवाया था। यह मठ महायान बौद्ध के जेलूपा संप्रदाय से संबंधित है। इस मठ पर 19वीं शताब्दी में सिखों तथा डोगरा राजाओं ने आक्रमण भी किया था। इसके अलावा यह 1975 ई. में आए भूकम्प में भी सुरक्षित रहा। इस मठ में कुछ प्राचीन हस्तलिपियों तथा थंगकस का संग्रह है। इसके अलावा यहां कुछ हथियार भी रखे हुए हैं। यहां प्रत्येक वर्ष जून-जुलाई महीने में 'चाम उत्सव' मनाया जाता है।
सन् २००० के कालचक्र अभिषेक का आयोजन इस मठ में किया गया था जिसमें स्वयं दलाई लामा द्वारा पूजा अर्चना की गई।
यहां तक पहुंचने के लिए प्राइवेट गाड़ी या बाइक से जाना पड़ेगा क्योंकि यहां तक जाने के लिए फिलहाल कोई बस सुविधा उपलब्ध नहीं है।
सन्दर्भ
लाहौल और स्पीति ज़िला
बौद्ध स्थल | 201 |
753777 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AF%E0%A4%BC%E0%A4%B0%E0%A4%BE%20%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE | कय़रा उपज़िला | कय़रा उपजिला, बांग्लादेश का एक उपज़िला है, जोकी बांग्लादेश में तृतीय स्तर का प्रशासनिक अंचल होता है (ज़िले की अधीन)। यह खुलना विभाग के खुलना ज़िले का एक उपजिला है, जिसमें, कुल 15 उपज़िले हैं। यह बांग्लादेश की राजधानी ढाका से दक्षिण-पश्चिम की दिशा में अवस्थित है।
जनसांख्यिकी
यहाँ की आधिकारिक स्तर की भाषाएँ बांग्ला और अंग्रेज़ी है। तथा बांग्लादेश के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह ही, यहाँ की भी प्रमुख मौखिक भाषा और मातृभाषा बांग्ला है। बंगाली के अलावा अंग्रेज़ी भाषा भी कई लोगों द्वारा जानी और समझी जाती है, जबकि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक निकटता तथा भाषाई समानता के कारण, कई लोग सीमित मात्रा में हिंदुस्तानी(हिंदी/उर्दू) भी समझने में सक्षम हैं। यहाँ का बहुसंख्यक धर्म, इस्लाम है, जबकि प्रमुख अल्पसंख्यक धर्म, हिन्दू धर्म है। खुलना विभाग में, जनसांख्यिकीक रूप से, इस्लाम के अनुयाई, आबादी के औसतन ८३.६१% है, जबकि शेष जनसंख्या प्रमुखतः हिन्दू धर्म की अनुयाई है। बांग्लादेश के सारे विभागों में, खुलना विभाग में मुसलमान आबादी की तुलना में हिन्दू आबादी की का अनुपात सबसे अधिक है।
अवस्थिति
कय़रा उपजिला बांग्लादेश के दक्षिण-पश्चिमी भाग में, खुलना विभाग के खुलना जिले में, खुलना शहर के निकट स्थित है।
इन्हें भी देखें
बांग्लादेश के उपजिले
बांग्लादेश का प्रशासनिक भूगोल
खुलना विभाग
उपज़िला निर्वाहि अधिकारी
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
उपज़िलों की सूची (पीडीएफ) (अंग्रेज़ी)
जिलानुसार उपज़िलों की सूचि-लोकल गवर्नमेंट इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट, बांग्लादेश
http://hrcbmdfw.org/CS20/Web/files/489/download.aspx (पीडीएफ)
श्रेणी:खुलना विभाग के उपजिले
बांग्लादेश के उपजिले | 230 |
941020 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%8F%E0%A4%9A%E0%A4%86%E0%A4%88%E0%A4%B5%E0%A5%80%20%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A4%BE | लीबिया का एचआईवी मुकदमा | लीबिया का एचआईवी मुकदमा (या बुल्गारियाई नर्सों का मामला) उन मुकदमों, अपीलों और अंतत: छ: चिकित्साकर्मियों की रिहाई से सम्बंधित है जिन पर यह आरोप था कि उन्होंने एक षड्यंत्र के अंतर्गत १९९८ में ४०० बच्चों को एचआईवी से प्रभावित करने का प्रयास किया था, जिससे यह महामारी अल-फ़तह बाल अस्पताल में फैली जो बेनगाज़ी, लीबिया में स्थित है। प्रभावित होने वाले ५६ बच्चे अगस्त २००७ तक मर चुके थे।
अभियुक्तों को १९९९ में गिरफ़्तार किया गया था। उनमें एक फ़िलस्तीन चिकित्सा इंटर्न और पाँच बुल्गारियाई नर्स शामिल बताए गए थे, जिन्हें अधिकांश रूप से "मेडिक्स" कहा जा रहा था। उन्हें सर्व प्रथम मौत की सज़ा सुनाई गई, फिर उनके मुकदमे को लीबिया के सर्वोच्च न्यायालय के हवाले किया गया, जहाँ फिर से उनके मृत्युदंड की घोषणा हुई, जिसे इस न्यायालय द्वारा जुलाई २००७ के प्रारंभ में समर्थित किया गया था। इसके पश्चात इन छ: लोगों की सज़ा को लीबियाई सरकारी पैनल द्वारा आजीवन कारावास में बदल दिया गया। इन छ: लोगों को यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों के साथ हुए एक समझौते के अंतरगत मानवतावादी आधारों पर रिहा किया गया — यूरोपीय संघ ने दोषी घोषित किए जाने वाले न्यायिक निर्णय को कभी खारिज नहीं किया। २४ जुलाई २००७ को पाँच चिकित्साकर्मियों और डॉक्टर को प्रत्यर्पण के रूप में बुल्गारिया भेजा गया जहाँ वहाँ के राष्ट्रपति ग्योर्गी पर्वानोव ने उन्हें दंड-मुक्त किया और उन्हें छोड़ दिया गया। इसके अतिरिक्त रिहाई से जुड़ा एक विवाद छिड़ गया था जिसमें कथित रूप से शस्त्र की बिकरी और नागरिक परमाणु सहयोग समझौते पर फ़्राँस के राष्ट्रपति निकोलास सरकोज़ी ने जुलाई २००७ में हस्ताक्षर कर दिए थे। बुल्गारिया और फ़्राँस के राष्ट्रपतियों ने इस बात को खारिज कर दिया कि इन दो समझौतों का इन छ: व्यक्तियों की रिहाई से कुछ लेना-देना था। हालाँकि इस बात को कथित रूप से कई स्रोतों से कहा गया था, जिनमें सैफ़ अल-इस्लाम गद्दाफ़ी भी थे जो भूतपूर्व लीबियाई नेता मुअम्मर गद्दाफी के पुत्र थे।
अल-फ़तह की इस महामारी और इससे जुड़े मुकदमे को राजनीतिक रंग दिया गया और विवादास्पद रहा। चिकित्साकर्मियों ने कहा कि उन्होंने यातनाओं के चलते अपना गुनाह स्वीकार किया और वे निर्दोष थे। सैफ़ अल-इस्लाम गद्दाफ़ी ने बाद में पुष्टि की कि लीबियाई जाँचकर्ताओं ने चिकित्साकर्मियों को बिजली के झटकों के प्रयोग से यातनाएँ दी थी और यह भी धमकी दी थी कि कबूल करवाने के लिए वे लोग आरोपियों के परिवारजनों को भी निशाना बना सकते हैं। सैफ़ ने यह भी माना कि कुछ बच्चे इन चिकित्साकर्मियों के लीबिया आने से पूर्व भी एचआईवी से प्रभावित थे। उनके अनुसार लीबियाई न्यायालय का दोषी घोषित किए जाने वाला निर्णय "विवादित रिपोर्टों" पर आधारित है, और कहा: "वहाँ लापरवाही और त्रासदी सामने आई है, पर वह जानबूझकर नहीं थी।"
विश्व के कई प्रसिद्ध एचआईवी विशेषज्ञों ने न्यायालयों और लीबियाई सरकार को लिखकर अभियोग पक्ष की ओर से सूचित किया है कि महामारी का कारण अस्पताल की खराब स्वास्थ्य सेवा है। इस महामारी की विशेषता यह है कि किसी भी अस्पताल के इतिहास में सर्वाधिक एचआईवी फैलने वाला मामला है, और यह पहली बार है कि एचआईवी/ एड्स पर लीबिया में सार्वजनिक चर्चा हुई। विश्व के दो सर्वश्रेष्ठ एचआईवी विशेषज्ञ लुक मॉन्टैगनियर और विट्टोरियो कोलिज़्ज़ी ने चिकित्साकर्मियों के पक्ष का समर्थन किया। उनकी दोषसिद्धि पर प्रतिक्रिया तुरन्त थी, जिसके साथ कई वैज्ञानिक तथा मानवाधिकार संगठनों की याचिकाएँ, न्यायिक निर्णय के कई आधिकारिक खंडन और कूटनीतिक प्रयास प्रारंभ हुए थे।
बुल्गारियाई चिकित्साकर्मियों में से तीन ने मुकदमे से जुड़ी अपनी आत्मकथाओं को प्रकाशित किया है:
लीबिया की अल फ़तह महामारी और आरोप
इस महामारी की विशेषता यह है कि किसी भी अस्पताल के इतिहास में लापरवाही के कारण सर्वाधिक एचआईवी फैलने वाला मामला है, और यह पहली बार है कि एचआईवी/ एड्स पर लीबिया में सार्वजनिक चर्चा हुई। लीबियाई जनता उत्तेजित हो गई थी और कई विदेशी चिकित्साकर्मियों को गिरफ़्तार किया गया था; छ: पर अंतत: आरोप लगाए गए। लीबियाई नेता मुअम्मर अल-गद्दाफ़ी ने प्रारंभ में सी आइ ए या मोसाद पर लीबियाई बच्चों पर जान-लेवा तजरुबा करने का आरोप लगाया।
सन्दर्भ
लीबिया में न्याय व्यवस्था
एचआईवी मामले | 661 |
748157 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%91%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%88%20%E0%A4%98%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%82%20%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4%20%E0%A4%93%E0%A4%B5%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%9F%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%9F | ऑस्ट्रेलियाई घरेलू सीमित ओवर क्रिकेट टूर्नामेंट | एक सीमित ओवरों के क्रिकेट टूर्नामेंट 1969-70 के मौसम के बाद ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट की एक विशेषता, 2017-18 सत्र के लिए जेएलटी वन-डे कप के रूप में ब्रांडेड नाम दिया गया है। शुरू में एक नॉकआउट कप प्रतियोगिता अब एक राउंड रोबिन एक फाइनल श्रृंखला के बाद, पक्ष के अनुसार 50 ओवर तक सीमित मैचों के साथ सुविधाएँ। टूर्नामेंट में ऑस्ट्रेलिया के छह राज्यों ने भी प्रथम श्रेणी क्रिकेट शेफील्ड शील्ड में प्रतिस्पर्धा का प्रतिनिधित्व टीमों के बीच चुनाव लड़ा है। तीन अन्य टीमें भी समय का संक्षिप्त अवधि के लिए टूर्नामेंट में खेल चुके हैं: न्यूजीलैंड की राष्ट्रीय कई जल्दी टूर्नामेंट में हिस्सा टीम, एक टीम के ऑस्ट्रेलियाई राजधानी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले 1990 के दशक में एक संक्षिप्त अवधि के लिए भाग लिया, और क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया एकादश 2015-16 की शुरुआत के साथ तीन सत्रों के लिए सातवें टीम के रूप में भाग लिया।
इतिहास
इंग्लैंड पहला देश 1963 में अपनी जिलेट कप के साथ एक घरेलू एक दिवसीय सीमित ओवरों प्रतियोगिता शुरू करने की थी। ऑस्ट्रेलिया ऐसा करने के लिए जब इस प्रतियोगिता 1969-70 में स्थापित किया गया था अगले देश था। यह हर साल की गर्मियों के बाद से आयोजित किया गया है, नाम और प्रारूपों की एक विस्तृत विविधता के तहत। यह एक लिस्ट ए क्रिकेट प्रतियोगिता है। यह पहली लिस्ट ए जब वे 1995-96 सत्र के लिए शुरू किए गए थे खिलाड़ियों शर्ट पर नंबर की सुविधा के लिए प्रतियोगिता थी।
प्रतियोगिता का प्रारूप
1969/70 से 1978/79 – सीधे नॉकआउट
1979/80 से 1981/82 – 3, सेमीफाइनल, 3/4 प्लेऑफ और फाइनल के 2 पूल
1982/83 से 1991/92 – 3, सेमीफाइनल और फाइनल के 2 पूल
1992/93 से 1999/2000 – एकल राउंड रोबिन (अर्थात घर या दूर), प्रारंभिक और फाइनल
2000/01 से 2010/11 – डबल राउंड रोबिन घर और दूर प्लस फाइनल।
2011/12 से 2012/13 – आंशिक राउंड रोबिन, प्लस फाइनल (प्रति टीम 8 मैचों में 5 विरोधियों के 3 दोनों घर और दूर निभाई)।
2013/14 – कार्निवल प्रारूप, 6 दौर का खेल, प्रारंभिक और फाइनल।
2014/15 – कार्निवल प्रारूप, 7 दौर का खेल, प्रारंभिक और फाइनल।
2015/16 से 2017/18 - कार्निवल प्रारूप, 8 दौर का खेल, प्रारंभिक और फाइनल।
2018/19 – सिंगल राउंड रॉबिन, 2 योग्यता फाइनल, 2 सेमीफाइनल और फाइनल।
2019/20 से वर्तमान – कार्निवल प्रारूप, 7 राउंड गेम्स और फाइनल
प्रतियोगिता के नाम
वाहन और जनरल ऑस्ट्रेलेसियन नॉकआउट प्रतियोगिता, 1969–70 और 1970–71
कोका कोला ऑस्ट्रेलेसियन नॉकआउट प्रतियोगिता, 1971–72 और 1972–73
जिलेट कप, 1973–74 से 1978–79
मैकडॉनल्ड्स कप, 1979–80 से 1987–88
एफएआई कप, 1988–89 से 1991–92
मर्केंटाइल म्युचुअल कप, 1992–93 से 2000–01
आईएनजी कप 2001–02 से 2005–06
फोर्ड रेंजर कप, 2006–07 से 2009–10
रयोबी एक दिन कप, 2010–11 से 2013–14
मातादोर बीबीक्यू एक दिन कप, 2014–15 से 2016–17
जेएलटी वनडे कप, 2017–18 से 2018–19
मार्श वनडे कप, 2019–20 से
टीम्स
प्रत्येक टीम में कई स्थानों का इस्तेमाल किया गया मैचों की मेजबानी करने के लिए। एक पूरी सूची के लिए, ऑस्ट्रेलिया में क्रिकेट मैदान के सूची देखें।
न्यूजीलैंड इस श्रृंखला में घर के खेल खेलने नहीं दिया।
खिताब को सही तो 2014-15 के सीजन के अंत करने के लिए।
प्रतियोगिता प्लेकिंग्स
लघु स्कोरकार्ड और भीड़ के आंकड़ों के साथ फाइनल की एक पूरी सूची के लिए, देखें ऑस्ट्रेलियाई घरेलू एक दिवसीय क्रिकेट फाइनल।
1969–70 से 1974–75
1975–76 से 1991–92
1 1982-83 फाइनल मूल रूप से धोया गया था, और 1983-1984 के मौसम की शुरुआत में तो फिर से निर्धारित।
3 – जीता तीसरे स्थान प्लेऑफ
4 – खोया तीसरे स्थान प्लेऑफ
1992–93 से 1996–97
1997–98 से 1999–2000
2000–01 से 2014–15
2015–16 से वर्तमान
प्रत्येक राज्य के लिए रन-स्कोरर और विकेट लेने वाले
कैरियर के आँकड़े 2012-13 सीजन के अंत तक सभी मैचों में शामिल हैं।
टूर्नामेंट के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी
अंक प्रणाली
इस प्रकार के रूप में अंक से सम्मानित कर रहे हैं:
एक जीत के लिए 4 अंक
कोई परिणाम नहीं, या एक टाई के लिए 2 अंक
0 एक नुकसान के लिए अंक
1 बोनस अंक अगर एक टीम एक रन रेट 1.25 गुना विपक्ष की कि प्राप्त होता है
2 बोनस अंक के लिए एक टीम में दो बार रन रेट को प्राप्त होता है, तो विपक्ष की कि
पूल के अंत में शीर्ष दो टीमें फाइनल में प्ले ऑफ मैच। उच्च स्थान पर काबिज टीम घरेलू मैदान लाभ दिया है।
2010-11 सत्र में मैच प्वाइंट से एक बिंदु के लिए एक पहली पारी नेतृत्व, और एक जीत के लिए चार अंक शामिल; पांच अंक के साथ एक टीम पहली पारी में ले जाता है और बाद में जीतता है।
टीवी कवरेज
2006-07 में फोर्ड रेंजर वन डे कप पर फॉक्स स्पोर्ट्स टीवी पर किया गया था। 25 से 31 मैचों में से अंतिम सहित टीवी पर किया गया। Prior to Fox Sports' broadcasting of the domestic cricket competition, was the host broadcaster.फॉक्स स्पोर्ट्स घरेलू क्रिकेट प्रतियोगिता का प्रसारण करने से पहले, नाइन नेटवर्क मेजबान प्रसारक था। भारत में स्टार क्रिकेट पर फॉक्स स्पोर्ट्स की मदद से प्रसारण से पता चलता है। 2011-12 में फॉक्स स्पोर्ट्स लाइव रयोबी वन डे कप के सभी 25 खेल प्रसारण। नाइन नेटवर्क 2013-14 सत्र से एक बार फिर से अधिकार धारक बन गया है, मुख्य रूप से दिखा मैचों मणि पर रहते हैं और क्रिकेट आस्ट्रेलिया की वेबसाइट के माध्यम से प्रसारण किया जाता है। वहाँ के साथ जगह में वार्ता कर रहे हैं। आईटीवी (टीवी नेटवर्क) ब्रिटेन में प्रतियोगिता टेलिवाइज।
सन्दर्भ
ऑस्ट्रेलियाई घरेलू क्रिकेट | 878 |
20849 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80 | दिव्या भारती | दिव्या भारती (14 फ़रवरी 1974–5 अप्रैल 1993) हिन्दी फिल्मों की एक अभिनेत्री थीं, जिनकी अभिनय विविधता से उन्हें "अपनी पीढ़ी के सबसे चित्ताकर्षक युवा अभिनेत्री " होने का गौरव मिला। 90 के दशक से अपनी करियर की शुरुवात करने वाली दिव्या ने कई प्रकार के व्यावसायिक रूप से सफल गति चित्रों में अभिनय किया है। हिंदी फिल्मों के अलावा दक्षिण भारतीय सिनेमा में भी दर्शकों से उन्हें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। अधिक तत्परता से भारती ने अपनी करियर की शुरुआत तमिल एवं तेलुगु फिल्मों से ही की थी। अभिनय के अतिरिक्त भारती में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व की छवि नज़र आती थी।
भारती ने अपने अभिनय की शुरुवात तेलुगु फिल्म बोब्बिली राजा से सन् 1990 में की। शुरुआती समय में भारती को कम महत्व संबंधित भूमिकाएँ दी जाती थीं। फ़िल्मी सफर में उन्हें सफलता हिंदी फिल्म विश्वात्मा से मिली। इसी फिल्म के "सात समुन्दर पार गाने" से उन्हें एक अलग पहचान मिली। सन् 1992 तक भारती स्वयं को बॉलीवुड में एक सफल नायकत्व के रूप में स्थापित कर लिया था। अन्य फिल्में सरूप शोला और शबनम, एक नाटकीय फिल्म जिसमें भारती को निडर रास के भूमिका को दर्शाया। 1992 में बनी प्रेम प्रसंगयुक्त फिल्म दीवाना में भारती के निष्पादन ने उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेत्री के पुरस्कार से नवाजा गया। 1992-1993 के मध्य तक भारती ने मात्र 19 वर्ष की आयु में चौदह सात हिंदी और सात दक्षिण भारतीय फिल्में की। अपने कम समय के करियर के दौरान मुख्यधारा के सिनेमा के अलावा भारती ने एक शक्तिशाली अभिनय की उत्पत्ति की। उनकी अंतिम पूरी की हुई फिल्में रंग, सह अभिनीत कमल सदानाह और शतरंज, सह अभिनीत जैकी श्रॉफ थी, जिन्हें भारती के 5 अप्रैल 1993 में रहस्यमय मरण के बाद जारी किया गया।
यद्यपि भारती को अपने सम्पूर्ण करियर में कई अवनतियों का सामना करना पड़ा, उन्होंने खुद को ढूंढा और स्वयं को बॉलीवुड में एक सफल मुकाम बनाने में कामयाब भी रहीं। 1993 में हुई उनकी रहस्मयी मृत्यु से उनका करियर भी समाप्त हो गया।
शाजिद नाडियाडवाला से निकाह के बाद दिव्या का नाम और धर्म बदल कर शना नाडियाडवाला किया गया।
परिवार और प्रारंभिक जीवन
भारती का शैशवकाल मुंबई शहर में बीता। वह अपने पिता ओमप्रकाश भारती, जो एक बीमा अधिकारी थे, की सबसे बड़ी संतान थीं। उनकी माँ का नाम मीता भारती था। मीता ओमप्रकाश भारती की दूसरी पत्नी थीं। दिव्या की शुरुवाती शिक्षा मानेकजी कॉपर हाई स्कूल में हुई। दिव्या शुरू से ही पढ़ाई में एक माध्यम स्तर की विद्यार्थी थीं।
प्रमुख फिल्में
दिव्या भारती ने मोहरा मूवी के 60 परसेंटेज शूटिंग कर लि थी
बाहरी कड़ियाँ
दिव्या भारती की रहस्यमयी मौत से थर्रा गया था बॉलीवुड, देखें वीडियो दैनिकभास्कर.कॉम। ४ मई २०१२। अभिगमन तिथि: १९ जून २०१२
दिव्या भारती| फ़िल्म कहानी। ३० मार्च २०११। अभिगमन तिथि: १९ जून २०१२
1974 में जन्मे लोग
१९९३ में निधन
फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता
हिन्दी अभिनेत्री
आत्महत्या | 466 |
650739 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%8F%E0%A4%AF%E0%A4%B0%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B8 | अलास्का एयरलाइन्स | अलास्का एयरलाइन्स, अमेरिका की सातवीं सबसे बड़ा एयरलाइन्स हैं। यह सीएटल, वाशिंगटन में स्थित हैं। इस एयरलाइन की स्थापना मैकगी एयरवेज के तौर पर 1932 में की गयी थी। आज अलास्का एयरलाइन्स 100 से अधिक गंतव्यों में अपनी सेवाएँ प्रदान करती है जैसे अमेरिका व इसके समीपवर्ती क्षेत्र जैसे अलास्का, हवाई, कनाडा, एवं मेक्सिको इत्यादि। यह अलास्का एयर समूह की सबसे बड़ी एयरलाइन्स हैं एवं होराइजन एयर इसकी सहायक एयरलाइन हैं। पारम्परिक एयरलाइन्स की श्रेणी में इस एयरलाइन्स को जे डी पावर एंड एसोसिएट्स ने ग्राहक सन्तुष्टि के मामले में लगातार सात वर्षों तक सर्वोत्कृष्ट स्थान दिया हैं।
इस एयरलाइन्स को महत्वपूर्ण एयरलाइन की श्रेणी में वर्गीकृत किया गया हैं एवं ये अपने सबसे बड़े केन्द्र सीएटल–टकोमा अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन से ये परिचालन करती हैं।
यद्यपि, इसके अधिकतर राजस्व एवँ उडानें अलास्का के बाहर से आती हैं फिर भी ये एयरलाइन्स अलास्का के वायु परिवहन में महत्वपूर्ण स्थान रखता हैं।
अलास्का एयरलाइन्स तीन प्रमुख एयरलाइन्स गठजोड़ का हिस्सा नहीं हैं। फिर भी वनवर्ल्ड के कुछ सदस्यों के साथ इसका कोडशेयर समझौता हैं, जैसे अमेरिकन एयरलाइन्स, ब्रिटिश एयरवेज एवं एलऐन एयरलाइन्स एवं कुछ स्काई टीम मेंबर्स के साथ जिसमें डेल्टा एयर लाइन्स, एयर फ्रांस, एवं कोरियाई एयर सम्मिलित हैं।
इतिहास
इस एयरलाइन का उद्भव मैकगी एयरवेज में खोजी जा सकती हैं जिसकी शुरुआत लीनियस "मैक " मैकगी के द्वारा 1932 में की गयी थी। इस एयरलाइन ने अपनी प्रारंभिक उड्डाण एंकरेज एवं ब्रिस्टल बे के बीच स्टिन्सों इंजन वाली 3 सीटों वाली विमान के साथ भरकर की। उस समय फ्लाइट का कोई निश्चित समय नहीं होता था एवं यह विमान भरने चाहे वो यात्रियों से भरे या सामान से पर निर्भर करता था (जैसे यात्री या सामान आ गए जहाज उड़ान भर लेता था)।
जब आर्थिक मंदी अपने बीच के अवस्था में थी तब इस एयरलाइन्स को बहुत ही आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। उस दौर में एंकरेज में बहुत सारी एयरलाइन्स कंपनियां थी एवं इनकी मांग उतनी ज्यादा नहीं थी जो इनके अस्तित्व को बनाये रखती। लेकिन ये एयरलाइन्स बहुत सारे सफल विलयों एवं अधिग्राहण के द्वारा अलास्का के क्षेत्रों में विस्तार करने में सक्षम रहा।
कर्मचारी
नवंबर 2014 तक इस कंपनी में 12,998 कर्मचारी थे। अलास्का के पायलट ग्रुप में करीब 1550 पायलट हैं एवं ये एयरलाइन पायलट्स एसोसिएशन, इंटरनेशनल का प्रतिनिधित्व करते हैं एवं इसके 3400 फ्लाइट अटेंडेंट एसोसिएशन ऑफ़ फ्लाइट अटेंडेंट्स का प्रतिनिधित्व करते हैं।
लाउन्ज
बोर्ड रूम अलास्का एयर समूह का एयरपोर्ट लाउन्ज हैं एवं ये पश्चिम तट के 4 क्षेत्रों एंकरेज, लॉस एंजेल्स, पोर्टलैंड एवं सीएटल में हैं। इसकी एक दिन की पास की कीमत $45 हैं एवं 3 साल की सदस्यता शुल्क $875 है।
माइलेज प्लान
माइलेज प्लान अलास्का एयरलाइन्स एवं होराइजन एयर का फ्रीक्वेंट फ्लायर प्रोग्राम हैं। इस प्लान के सहयोगी सदस्यों में वन वर्ल्ड के सदस्य जैसे अमेरिकन एयरलाइन्स , ब्रिटिश एयरवेज , कैथे पसिफ़िक , लें , कांटस एवं स्काई टीम मेंबर एयरलाइन्स ऐरोमेक्सिको,[80] एयर फ्रांस, डेल्टा एयर लाइन्स, के एल एम (KLM) एवं कोरियाई एयर; इसके अतिरिक्त एयर पसिफ़िक, एमिरेट्स, एरा अलास्का, मोकुलेले एयरलाइन्स एवं पेन एयर भी हैं।यह माइलेज प्लान कार्यक्रम में कोई सदयता शुल्क नहीं लगता हैं एवं संचित की गयी माइल्स कभी अंत नहीं होता हैं।
घटनाएँ एवं दुर्घटनाएं
अलास्का एयरलाइन्स के इतिहास में कुल मिलकर 10 प्रमुख दुर्घटनाएँ हुई हैं जिसमें 8 दुर्घटनाओं में लोग हताहत हुए हैं जबकि 2 दुर्घटनाओं में केवल विमान को क्षति हुई है।
सन्दर्भ
विमान सेवा
संयुक्त राज्य अमेरिका की वायु-सेवाएँ | 562 |
975174 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A8%20%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80 | बरुन नदी | बरुन नदी अरुण नदी की एक सहायक है और वरुण नदी नेपाल में पाई जाती है नेपाल में कोसी नदी प्रणाली का हिस्सा है। नेपाल में ऐसी बहुत सी नदियां पाई जाती हैं जैसे कंकई नदी युबराज नदी , दुध कोशी, इम्मा खोला ,हांगू नदी,इंद्रवती नदी,बागमती नदी,कमला नदी,लखांदेई नदी
बिस्नुमती नदी,गंधकी नदी (नारायणी) (काली गंडकी), बिनाई नदी,पूर्वी राप्ती नदी,त्रिशूलि नदी,सेटी गंधकी नदी,मार्शिआंगडी,बुद्ध गंधकी नदी |
कोसी नदी प्रणाली
कोसी नदी प्रणाली को सप्त कोशी के रूप में जाना जाता है | क्योंकि सात नदियां जो इस नदी के निर्माण के लिए पूर्व-मध्य नेपाल में एक साथ जुड़ती हैं। कोसी प्रणाली बनाने वाली मुख्य नदियां हैं - सूर्य कोसी नदी, इंद्रवती नदी, भोट कोसी , दुध कोसी, अरुण नदी, बरुन नदी और तमूर नदी। पहाड़ी से निकलने के लिए संयुक्त नदी चतुरा गोर्ज के माध्यम से एक दक्षिणी दिशा में बहती है |
कोर्स
बरुन नदी आठ हजारों में से एक मकालू के आधार पर बरुन ग्लेशियर से निकलती है। आपको बता दें कि वरुण नदी जो सर्दियों के महीनों में जम जाती है | और गर्मियों के महीनों में कभी कबार वरुण नदी बाढ़ का कारण भी बनती है, वरुण नदी को स्थानीय लोग किरात भाषा में चुक्चुवा के रूप में भी जाना जाता है। अध्ययनों से पता चला है कि यह जगह शुरू में यक्ष और लिंबू द्वारा की गई थी|
पंछी देखना
नेपाल की वरुण काठी में सबसे ऊपरी सतह पर घाटी है | जहां पंछी अक्सर पानी पीने के लिए आ जाते हैं इस जगह पर इंसान का पहुंचना ना के बराबर है | बर्ड वाचर नाम के कुछ ऐसे भी पंछी हैं | जो जहां तक नहीं पहुंच सके हैं | क्योंकि यह काफी ऊपरी घाटी पर मौजूद है और जहां पर बर्डवाचर पंछियों के लिए पहुंचना काफी ज्यादा मुश्किल का काम भी है | जहां पर एक छोटा सा चाय गर्व भी है जहां पर चाय मिलती है यह लैंगमेले (बेस कैंप के नजदीक) में ऊपरी बरून घाटी के तीसरे पीढ़ी के देशी द्वारा संचालित है|
संदर्भ
नेपाल की नदियाँ | 335 |
545922 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B0%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%2C%20%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%BE | रादौर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र, हरियाणा | रादौर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र, हरियाणा हरियाणा के यमुनानगर जिले में स्थित एक विधान सभा क्षेत्र है। यह कुरुक्षेत्र लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र के अन्तर्गत आता है।
विधायक
इस क्षेत्र के वर्तमान विधायक बिशन लाल सैनी हैं।
|-2014 || श्याम सिंह राणा।
|-2009 || बिशन लाल सैनी
| 2005 || ईश्वर पलाका
|-
| 2000|| बंता राम बाल्मीकि
|-
| 1996|| बंता राम बाल्मीकि
|-
| 1991|| लहरी सिंह
|-
| 1987|| रत्न लाल कटारिया
|-
| 1982|| मास्टर राम सिंह
|-
| 1977|| लहरी सिंह
|-
| 1972|| चौधरी चांद राम
|-
| 1968|| चौधरी चांद राम
|-
| 1967|| चौधरी चांद राम
सन्दर्भ
ये भी देखें
कुरुक्षेत्र लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र
हरियाणा के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र | 117 |
157520 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%B5%2C%20%E0%A4%96%E0%A5%88%E0%A4%B0%20%28%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%97%E0%A4%A2%E0%A4%BC%29 | शिवाला गाँव, खैर (अलीगढ़) | शिवाला खुर्द खैर, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
भूगोल
शिवाला में स्थित एक प्राचीन श्री राधा कृष्ण मंदिर है जो कि सन 1836 का बना हुआ है यह मंदिर शिवाला खुर्द गाँव की आबादी से बाहर बना हुआ था यह मंदिर सबसे पहले का बना हुआ है यहां एक आदर्श स्थल बना हुआ था
गाँव शिवाला कलां में बहुत मंदिर बने हुए है उनमे से एक श्री सिद्ध बाबा के नाम से प्रसिद्द है इस मंदिर की मान्यता दूर-दूर तक है यहाँ पर साधू संत रहते है यह एक प्रचीन मंदिर है | यहाँ से लगभग 1.5 किमी की दुरी पर शनि देव का मंदिर है जोकि नदी के किनारे स्थित है यहाँ पर बहुत दूर दूर से लोग दर्शन के लिए आते है
यातायात
यहाँ पर यातायात की बहुत अच्छी सुबिधा है , हर 10 मिनट पर बस चलती रहतीं है
आदर्श स्थल
यहाँ एक प्राचीन राधाकिशन मंदिर है
शिवाला में एक सिध्द बाबा का भी आलीशान मन्दिर है/जिसकी मान्यता सारे क्षेत्र में है/
शिक्षा
सन्दर्भ
शिवाला गौमत से ५किमी पर बाजना मार्ग पर है। जो कि नहर के किनारे स्थित है।
बाहरी कड़ियाँ
अलीगढ़ जिला के गाँव | 191 |
1475288 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%82%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%97%E0%A5%89%E0%A4%97%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B8 | गोलू के गॉगल्स | गोलू के गॉगल्स एक हिंदी भाषा की भारतीय टेलीविजन श्रृंखला है जो 2006 से 2007 तक स्टार प्लस पर प्रसारित हुई गोलू के रूप में करण अत्री अभिनीत श्रृंखला का निर्माण बिक्रमजीत सिंह भुल्लर और ग्रुशा कपूर द्वारा किया गया था।
कथानक
यह सीरीज गोलू नामक हिल स्टेशन के एक साधारण और मासूम 12 वर्षीय लड़के के बारे में है। वह बहुत शर्मीले स्वभाव का भी है, जिसके कारण वह अपरिचित लोगों से मेलजोल नहीं रखता। गोलू का शर्मीलापन और सरलता उसे अन्य सभी व्यक्तियों से अलग करती है और यह उसे एक निश्चित "अच्छी ताकत" के साथ अपने जीवन में आगे बढ़ने में भी मदद करती है। एक बिंदु पर, उसके जीवन में भारी बदलाव आता है जब उसकी नज़र एक काले चश्मे पर पड़ती है। चश्मे की यह जोड़ी उसके हथियार के रूप में काम करती है जो धीरे-धीरे उसे एक समझदार, अधिक जिम्मेदार व्यक्ति बनाती है जो धीरे-धीरे सीखता है कि जीवन से कैसे निपटना है।
कलाकार
गोलू के रूप में करण अत्री
रेनी के रूप में वैष्णवी राव
आकाश के रूप में हर्ष परेश सोमैया
रोहन के रूप में अभिषेक शाह
योगी के रूप में कृष्णा मगरैया
अमित के रूप में कृष्ण सावजानी
खुशाली भंसाली इरा के रूप में
अतिथि भूमिका
आयुष शर्मा आयुष (गोलू के रक्षक) के रूप में
संदर्भ
भारतीय टेलीविजन धारावाहिक
स्टार प्लस के धारावाहिक | 222 |
890831 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%88%20%E0%A4%A1%E0%A5%89%E0%A4%B2%E0%A4%B0 | कैनिडियाई डॉलर | कैनिडियाई डॉलर (चिह्न: $; कूट: CAD; ) कनाडा की मुद्रा है। इसे सामान्यतः डॉलर चिह्न $ से अथवा कभी-कभी अन्य डॉलर मुद्राओं से विलग दिखाने के लिये Can$ या C$ से भी प्रदर्शित किया जाता है। यह १०० सेण्ट में विभाजित है।
एक डॉलर के सिक्के पर लून (जल पक्षी) का चित्र होने के कारण इसे कभी-कभी विदेशी मुद्रा व्यापारियों तथा समीक्षकों द्वारा लूनी भी कहा जाता है। कनाडा के लोग सामान्यतः इसे हुआर्ड कहते हैं।
वैश्विक भण्डार में लगभग २% हिस्सेदारी के साथ कैनिडियाई डॉलर अमेरिकी डॉलर, यूरो, येन तथा पाउण्ड स्टर्लिंग के बाद विश्व की पाँचवी सबसे अधिक भण्डारित मुद्रा है। कैनिडियाई डॉलर केन्द्रीय बैंकों में लोकप्रिय है।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
कनाडा के ऐतिहासिक और वर्तमान बैंकनोट्स
मैपल लीफ वेब: कैनेडियाई डॉलर: कैनेडियाई विनिमय दर की प्रकृति तथा प्रभाव
CAD TO INR
बैंक ऑफ़ कनाडा
विनिमय दर देखें
बैंक ऑफ़ कनाडा — नोट | 145 |
20199 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A5%80%20%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A5%87 | बेटी बेटे | बेटी बेटे 1964 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इसे एल॰ वी॰ प्रसाद ने निर्मित और निर्देशित किया था। इसकी मुख्य भूमिकाओं में सुनील दत्त, सरोजा देवी और जमुना हैं। संगीत शंकर-जयकिशन का है।
संक्षेप
तीन छोटे बच्चों के साथ एक विधुर खुद को कर्ज में पाता है। वह अंधा हो जाता है और अपनी नौकरी खो देता है और अस्पताल में भर्ती हो जाता है। घर लौटने पर, वह हृदयहीन जमींदार की आलोचना करता है कि वह "केवल" अंधा हुआ और इसकी बजाय उसे मर जाना चाहिये था।
क्योंकि यदि वह मर चुका होता, तो बच्चों को अनाथालय में छोड़ा जा सकता था। वह घर में प्रवेश नहीं करने का फैसला करता है और गायब हो जाता है। बच्चों को घर से निकाल दिया जाता है। वे एक दूसरे के साथ संपर्क खो देते हैं। साल बीत जाते हैं। बच्चे अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग घरों में बड़े होते हैं। लेकिन भाग्य ने फैसला किया है कि परिवार हमेशा के लिए अलग नहीं रहेगा।
मुख्य कलाकार
सुनील दत्त — रामू / कृष्णा
सरोजा देवी — सरोज
जमुना — लक्ष्मी
महमूद — मुन्ना / महेश
शुभा खोटे — सरला
जयन्त — रघु
आग़ा — परमानंद
राजेन्द्रनाथ — शंकर
निरंजन शर्मा — मधु के पिता
संगीत
बाहरी कड़ियाँ
1964 में बनी हिन्दी फ़िल्म
शंकर–जयकिशन द्वारा संगीतबद्ध फिल्में | 216 |
714348 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%89%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%B8 | लेस्ली क्लॉडियस | लेस्ली क्लॉडियस (25 मार्च 1927- 20 दिसंबर 2012) मैदानी हॉकी के प्रसिद्ध भारतीय खिलाड़ी थे। भारत सरकार ने इन्हें 1971 में पद्मश्री पुरूस्कार से सम्मानित किया।
व्यक्तिगत जीवन
लेस्ली क्लॉडियस का जन्म बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में 25 मार्च 1927 को हुआ। एंग्लोइंडियन समुदाय के क्लॉडियस की रूचि खेलों में बचपन से ही थी। क्लॉडियस का निधन 85 वर्ष की आयु में कोलकाता के एक निजी अस्पताल में 20 दिसंबर 2013 को हो गया।
करियर
क्लॉडियस पहले बंगाल नागपुर रेलवे टीम के लिए फुटबॉल खेलते थे। 1946 में उन्हें बेटन कप के लिए बंगाल नागपुर हॉकी टीम में जगह दी गयी। इसके बाद उन्होंने फुटबाल छोड़ के हॉकी पर ही ध्यान देना शुरू किया। 1948 के लंदन ओलंपिक, 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक और 1956 के मेलबर्न ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम के सदस्य रहे क्लॉडियस ने वर्ष 1960 के रोम ओलंपिक में भारतीय टीम की कप्तानी की, रोम ओलिंपिक में भारत ने रजत पदक प्राप्त किया।
क्लॉडियस और उधम सिंह का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में दर्ज है। इन दोनों ने हॉकी में ओलिंपिक के सर्वाधिक पदक प्राप्त किये हैं।
सम्मान
२०१२ के लंदन ओलम्पिक खेलों के समय तीन भारतियों खिलाडियों के नाम पर वहां की मेट्रो स्टेशन के नाम रखे गए जिनमे भारतीय हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद, रूप सिंह और क्लॉडियस के नाम थे।
"क्लॉडियस स्वयं अपना चयनकर्ता है। चयन समिति के लोगों को तो अन्य खिलाडियों का चयन करना पड़ता है।"
- मेजर ध्यानचंद
सन्दर्भ
1927 में जन्मे लोग
भारत के हॉकी खिलाड़ी
पद्मश्री प्राप्तकर्ता | 250 |
228373 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B2%20%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%95%20%E0%A4%91%E0%A4%AB%E0%A4%BC%20%E0%A4%87%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE | सेण्ट्रल बैंक ऑफ़ इण्डिया | सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया (अंग्रेजी: Central Bank of India) भारत में सार्वजनिक क्षेत्र का प्रमुख बैंक है जिसकी स्थापना स्वदेशी आन्दोलन से प्रभावित होकर एक पारसी बैंकर सर सोराबजी पोचखानवाला द्वारा 1911 में की गयी थी। इसे पहला भारतीय वाणिज्यिक बैंक होने का गौरव भी प्राप्त है जिसका पूर्ण स्वामित्व और प्रबन्धन स्थापना के समय भारतीयों के हाथ में था।
इतिहास
सेण्ट्रल बैंक ऑफ़ इण्डिया सही अर्थों में स्वदेशी बैंक है जिसके पहले अध्यक्ष फिरोजशाह मेहता थे। सोराबजी पोचखानवाला इस बैंक की स्थापना से इतने गौरवान्वित हुए कि उन्होंने सेण्ट्रल बैंक को राष्ट्र की सम्पत्ति घोषित कर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि सेण्ट्रल बैंक जनता के विश्वास पर टिका है और यह जनता का अपना बैंक है।
पिछले एक सौ से अधिक वर्षों के इतिहास में बैंक ने कई उतार चढाव देखे और अनगिनत चुनौतियों का सामना किया। बैंक ने प्रत्येक आशंका को सफलता पूर्वक व्यावसायिक अवसर में बदला और बैंकिंग उद्योग में अपने समकक्षों से उत्कृष्ट रहा।
विविध बैंकिंग कार्य
सेण्ट्रल बैंक ने कई अभिनव और अनुपम बैंकिंग गतिविधियों का शुभारम्भ किया। ऐसी ही कुछ सेवाओं का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:
1921-समाज के सभी वर्गों में बचत की आदत डालने के लिए घरेलू बचत सुरक्षित जमा योजना
1924-बैंक की महिला ग्राहकों को सेवा प्रदान करने लिए विशिष्ट महिला विभाग की स्थापना
1926-सुरक्षित जमा लॉकर सुविधा और रुपया यात्री चेक
1929-निष्पादक एवं न्यासी विभाग की स्थापना
1932-जमाराशि बीमा सुविधा योजना
1962-आवर्ती जमा योजना
राष्ट्रीयकरण के बाद की योजनाएँ
वर्ष 1969 में बैंक का राष्ट्रीयकरण होने के बाद भी सेण्ट्रल बैंक ने विभिन्न अभिनव बैंकिंग सेवाएँ आरम्भ कीं जिनमें प्रमुख हैं:
1976-मर्चेंट बैंकिंग कक्ष की स्थापना
1980-बैंक के क्रेडिट कार्ड सेण्ट्रल-कार्ड का शुभारम्भ
1986-प्लैटिनम जुबली मनी बैंक जमा योजना
1989-आवासीय सहायक कम्पनी सेण्ट बैंक होम फायनेंस लिमिटेड का शुभारम्भ
1994-बाहरी चेकों की शीघ्र वसूली के लिए त्वरित चेक वसूली सेवा (क्यू॰सी॰सी॰) तथा तत्काल सेवा आरम्भ की
अन्य क्षेत्रों में योगदान
इसके साथ ही, भारतीय रिजर्व बैंक और भारत सरकार के दिशानिर्देशों के अनुरूप कृषि तथा लघु उद्योग जैसे प्रमुख क्षेत्रों के साथ-साथ मध्यम एवं बड़े उद्योगों को प्रोत्साहित करने में सेण्ट्रल बैंक लगातार सक्रिय भूमिका निभाता रहा है। शिक्षित युवाओं में रोजगार को प्रोत्साहित करने के लिए बैंक ने कई स्वरोजगार योजनाएँ भी आरम्भ की हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सेण्ट्रल बैंक को वास्तविक अर्थों में अखिल भारतीय बैंक कहा जा सकता है क्योंकि 28 में से 27 राज्यों तथा 7 में से 4 केन्द्रशासित प्रदेशों में इसकी शाखाओं का विस्तृत नेटवर्क है। देश के एक छोर से दूसरे छोर तक स्थित अपनी 3563 शाखाओं व 195 विस्तार पटलों के विस्तृत नेटवर्क के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सेण्ट्रल बैंक का एक अपना विशिष्ट स्थान है।
सेण्ट्रल बैंक की विस्तृत सेवाओं के प्रति ग्राहकों के विश्वास का अनुमान आई॰सी॰आई॰सी॰आई॰, आई॰डी॰बी॰आई॰, यू॰टी॰आई॰, एफ॰आई॰सी॰, एच॰डी॰एफ॰सी॰ जैसे कार्पोरेट गाहकों की सूची और देश के प्रमुख कार्पोरेट घरानों से भी लगाया जा सकता है जो बैंक के प्रमुख ग्राहकों में हैं।
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
बैंकर्स बैंक
बाहरी कड़ियाँ
सेण्ट्रल बैंक ऑफ़ इण्डिया का आधिकारिक जालघर
भारतीय बैंक | 497 |
1273035 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%A8%20%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A8 | चंदन मदान | चंदन मदान एक भारतीय टीवी अभिनेता है। यह ज़ी टीवी के शो सपने सुहाने लड़कपन के में और फियर फाइल्स में अपने किरदार पर से जाने जाते है।
कैरियर
चंदन मदान पहली वार 2007 में ज़ी टीवी के शो अलादीन जांबाज एक जलवे अनेक में शहजादे कैफ का नकारात्मक किरदार निभाते हुए नजर आये थे इसके बाद 2009 में उन्होंने ईश्वर साक्षी फ़िल्म में भी काम किया 2010 में उन्होंने ज़ी टीवी के शो सपने सुहाने लड़कपन के में विक्की का नकारात्मक किरदार निभाया फिर 2011 में उन्होंने डीडी नेशनल के दो शो संकट मोचन हनुमान में श्री राम और शमा में अलतमर्ष की मुख्य भूमिका निभाई फिर 2013 में उन्होंने ज़ी टीवी के शो फियर फाइल्स के 142 वे एपिसोड में असीम का रोल निभाया फिर उन्होंने लाइफ ओके के शो सावधान इंडिया में भी दो बार किरादर निभाया और 2014 में उन्होंने सोनी टीवी के दो शो सी.आई.डी में 1085 से 1087 वे एपिसोड में तेज़ और 1200 वे एपिसोड में सम्राट और अदालत शो में कई बार उन्होंने नकारात्मक और हकारात्मक किरदार निभाए बाद में उन्होंने डीडी नेशनल के दो शो ख्वाबो के दरमियान में डॉ. आष्मान और दर्द का रिश्ता में चंदन का रोल निभाया और अब वे वर्तमान में सोनी टीवी के शो मेरे साई श्रद्धा और सबुरी में श्रीकांत का किरादर निभा रहे हैं।
फिल्मे और धारावाहिक
फिल्में
2009 ईश्वर साक्षी (माधव)
धारावाहिक
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
भारतीय टेलिविज़न अभिनेता | 235 |
692530 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%BE%20%E0%A4%96%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF | बाचा ख़ान विश्वविद्यालय | बाचा खान विश्वविद्यालय() चरसद्दा, ख़ैबर पख़्तूनख़्वा पाकिस्तान में स्थित एक जन विश्वविद्यालय है। विश्वविद्यालय का नाम महान स्वतंत्रता सेनानी, भारत रत्न से सम्मानित व शांति समर्थक पश्तून कार्यकर्ता बाचा खान के नाम पर रखा गया था। पाकिस्तान को विश्व पटल पर सम्मानित राष्ट्र का दर्ज़ा दिलाने के लिये बाचा ख़ान का वैश्विक भाईचारे व शांति का संदेश इस विश्वविद्यालय का ध्येय है।
20 जनवरी 2016 को इस विश्वविद्यालय पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के आतंकवादियों ने आतंकी हमला कर दिया। इसमें कम-से-कम २५ लोगों की मृत्यु हो गयी।
इन्हें भी देखें
अब्दुल वली खान विश्वविद्यालय
स्वात का विश्वविद्यालय
लाहौर विश्वविद्यालय
पाकिस्तान के विश्वविद्यालय
सन्दर्भ
पाकिस्तान के विश्वविद्यालय
ख़ैबर पख़्तूनख़्वा | 107 |
1422241 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%A8%20%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A4%A6 | कमालुद्दीन अहमद | कमालुद्दीन अहमद या कमल दासगुप्ता (अंग्रेज़ी:Kamal Dasgupta) (जन्म: 28 जुलाई, 1912 - मृत्यु: 20 जुलाई, 1974) भारतीय उपमहाद्वीप के प्रसिद्ध संगीतकारों, संगीतकारों और संगीत निर्देशकों में से एक थे।
1955 में, कमल दासगुप्ता ने फिरोजा बेगम (गायक) बेगम से शादी की, जो बांग्लादेश और भारतीय उपमहाद्वीप की नज़रूल संगीत हस्तियों में से एक थीं। तब वह 43 साल के थे। शादी के चार साल बाद उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया। उनके धर्मांतरण के बाद, उनका नाम काजी कमल उद्दीन रखा गया। उनके तीन बच्चे हैं - तहसीन, हमीन और शाफीन।
फ़िल्मी जीवन
कमल दासगुप्ता ने बंगाली फिल्म संगीतकार के रूप में भी काफी ख्याति प्राप्त की । तूफ़ान मेल , श्यामल का प्रेम , ऐ कि गो लाख दान - फिल्मों के गीतों ने एक बार जबर्दस्त प्रतिक्रिया दी थी। भगवान कृष्ण चैतन्य फिल्म में उनका संगीत संयोजन यादगार है। एक संगीत निर्देशक के रूप में उनकी आखिरी फिल्म बधुवरन थी । [5] वे लगभग अस्सी फिल्मों के संगीत निर्देशक थे।
हिंदी आधुनिक संगीत-'गीत' के प्रचार-प्रसार में उनका योगदान अतुलनीय है। वे भजन गायन में विशेष निपुण थे। कमल दासगुप्ता बंगाली-हिंदी-उर्दू-ग़ज़ल, भजन, उकंगा संगीत, नात , हमद , नज़रूल गीत सहित संगीत की सभी शाखाओं में समान रूप से कुशल थे।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मि. एलिस जॉनसन नाम के एक अमेरिकी सिनेमैटोग्राफर द्वारा अपनी युद्ध प्रचार फिल्म के लिए कमल दासगुप्ता के परिवेश संगीत को अपनाने का विशेष महत्व था ।
वह रेडियो बांग्लादेश ट्रांसक्रिप्शन सेवा के मुख्य संगीत निर्देशक थे।
इन्हें भी देखें
केसिया अली
लालेह बख्तियार
नादिया पंडोर
सन्दर्भ
1912 में जन्मे लोग
संगीतकार
इस्लाम में परिवर्तित लोगों की सूची | 265 |
826628 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%B2%20%E0%A4%95%E0%A5%89%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B8 | फिल कॉलिन्स | फिल कॉलिन्स एक अंग्रेजी गायक, गीत लेखक और संगीतकार हैं। कॉलिन्स 1990 से 1983 के बीच रॉकबैंड जेनेसिस के मुख्यगायक और एकल गायक के रूप में सक्रिय रहे। एकल गायक के रूप में कॉलिन्स ब्रिटेन में तीन बार और अमेरिका में सात बार नंबर वन रहे।
जीवन परिचय
फिलिप डेविड चार्ल्स कॉलिन्स का जन्म इंग्लैंड के पश्चिमी लंदन के चिस्विक में हुआ था। कॉलिन्सप्र ने संगीत की शुरुआती शिक्षा रेडियो और टीवी पर प्रस्तुत कार्यक्रमों की नकल करके प्राप्त की।
गीत संगीत और गायन
उपलब्धियां
सम्मान
सन्दर्भ
1951 में जन्मे लोग
ब्रिटिश लेखक
जीवित लोग | 95 |
616695 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%9A%E0%A5%80 | श्यांगची | श्यांगची ( 象棋, p Xiàngqí) चीन में खेले जाने वाले शतरंज के खेल को कहते हैं जो पश्चिमी और मूल भारतीय शतरंज से थोड़ा अलग है। इसका चलन पहली सदी से माना जाता है । भारतीय (और पश्चिमी शतरंज) के अलावे इसमें दो गोले अलग से होते हैं जिनकी चाल घोड़े से मिलती है। खेल में दो टीमों के बीच में एक नदी होती है जिसे सभी मोहरे लांघ नहीं सकते।
गोले का जोड़ इसमें आठवीं सदी में तांग शासन के प्रधानमंत्री ने किया।
सत्रहवीं सदी में जिंज़ें ज़ू की लिखी पुस्तक नारंगी के अंतः रहस्य इसके प्रचलित चालों और दावों को जानने के लिए एक प्रयुक्त पुस्तक है।
सन्दर्भ
चीनी खेल
शतरंज | 113 |
Subsets and Splits