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1445816 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5%20%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%B3%E0%A5%80 | वैजनाथ ज्योतिर्लिंग परळी | परली वैजनाथ बारह ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है। यह ज्योतिर्लिंग भारत के महाराष्ट्र के बीड जिले में है और परळी वैजनाथ दक्षिण मध्य रेलवे का एक स्टेशन है। परळी वैजनाथ को परळी वैद्यनाथ के नाम से भी जाना जाता है। वैद्यनाथ जयंती महाशिवरात्रि के दिन है।यह परली वैजनाथ तालुक का मुख्य स्थान / मुख्यालय भी है।
परळी का वैद्यनाथ मंदिर प्रसिद्ध है और भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में परली के वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का स्थान मान्यता प्राप्त है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण देवगिरि के यादवों के समय में उनके सरदार श्री करणाधिप हेमाद्री ने करवाया था। पुण्यश्लोक रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। यह मंदिर चेरबंदी है और भव्य है। लंबी सीढ़ियां और भव्य प्रवेश द्वार ऐसे स्थान हैं जो मंदिर परिसर में ध्यान आकर्षित करते हैं। चूंकि मंदिर का गभरा और सभा भवन एक ही स्तर पर हैं, इसलिए सभा भवन से ज्योतिर्लिंग को देखा जा सकता है। और कहीं नहीं, केवल यहां वैद्यनाथ में ही कोई भगवान को छू सकता है और दर्शन कर सकता है। मंदिर क्षेत्र में तीन बड़े तालाब हैं। मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर ब्राह्मणदी के तट पर 300 फीट की ऊंचाई पर जीरेवाड़ी में सोमेश्वर मंदिर है।
परली वैजनाथ निकटतम अंबेजोगाई से 25 किमी दूर है। मैं। की दूरी पर है। तो परभणी से 60 किमी.मैं। की दूरी पर है। इन स्थानों से वैजनाथ के लिए निरंतर वाहन पहुंच है। परली में एक थर्मल पावर स्टेशन है। यहां इंडस्ट्रियल एस्टेट है | 248 |
800761 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BF%E0%A4%A3%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%20%E0%A4%8F%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B5%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8 | दक्षिणपूर्व एशिया पर भारतीय प्रभाव का इतिहास | २०० ईसापूर्व से ही दक्षिणपूर्व एशिया भारत द्वारा प्रभावित होता र्हा है। यह प्रभाव १५वीं शताब्दी तक अनवरत चलता रहा। उसके पश्चात स्थानीय राजनीति अधिक प्रभावी हो गयी।
भारत ने दक्षिणपूर्व के राज्यों, जैसे बर्मा (ब्रह्मदेश), थाईलैण्ड (स्याम), इण्डोनेशिया, मलय प्रायद्वीप, कम्बोडिया (कम्बोज) और कुछ सीमा तक वियतनाम के साथ व्यापारिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक सम्बन्ध स्थापित किये थे।
इन्हें भी देखें
दक्षिणपूर्व एशिया में भारतीयकरण
बृहत्तर भारत
हिन्दू धर्म
बौद्ध धर्म
भारतविद्या
प्रभावक्षेत्र
मृदु शक्ति
भारत का सांस्कृतिक इतिहास | 79 |
1325983 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B9%20%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%A6%20%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8 | शाह मुहम्मद सुलेमान | सर शाह मुहम्मद सुलेमान(Shah Muhammad Sulaiman)(3 फरवरी 1886-12 मार्च 1941) 16 मार्च 1932 से 30 सितंबर 1937 तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पहले भारतीय मुख्य न्यायाधीश थे ।
जीवनी
सर शाह मुहम्मद सुलेमान का जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले के वलीदपुर गाँव में वकीलों और वैज्ञानिकों के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनके एक पूर्वज मुल्ला महमूद जौनपुरी (डी.1652) शाहजहाँ के समय के सबसे प्रमुख दार्शनिक और भौतिक विज्ञानी थे । उनके पिता मुहम्मद उस्मान जौनपुर बार के प्रमुख सदस्य थे।
सुलेमान ने 1906 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शीर्ष स्थान प्राप्त करते हुए स्नातक की उपाधि प्राप्त की । उन्हें विदेश में अध्ययन करने के लिए प्रांतीय सरकार की छात्रवृत्ति से सम्मानित किया गया था। उन्होंने कैम्ब्रिज के क्राइस्ट कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की और 1909 में गणित ट्राइपोस(Tripos) और 1910 में लॉ ट्राइपोस प्राप्त किया। उन्हें 1910 में डबलिन विश्वविद्यालय(आयरलैंड) द्वारा एलएलडी से भी सम्मानित किया गया ।
1911 में सुलेमान भारत लौट आए और उन्होंने जौनपुर में अपने पिता के जूनियर के रूप में वकालत शुरू कर दी । 1912 से वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत करने लगे । शेरकोर्ट की रानी के केस, बमरौली केस, धरमपुर केस और भीलवाल केस में उन्हें शुरुआती सफलता प्राप्त हुई ।
उनकी योग्यता से प्रभावित होकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद को स्वीकार करने का प्रस्ताव दिया । तब वह केवल 34 वर्ष के थे । उन्हें 1929 में नाइट की उपाधि से सम्मानित किया गया । उन्हें 16 मार्च 1932 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय का स्थायी मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया । वह उक्त पद पर 30 सितंबर 1937 तक रहे । बाद में उन्हें संघीय न्यायालय(Federal Court) में पदोन्नत किया गया।
उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किया । वह 1938 से 1941 तक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति रहे।
उनकी मृत्यु के बाद उन्हें निज़ामुद्दीन दरगाह में अमीर खुसरो की कब्र के नज़दीक दफ़नाया गया ।
भारतीय मुस्लिम
१९४१ में निधन
1886 में जन्मे लोग | 331 |
482089 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9D%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4 | झ़ामबिल प्रांत | झ़ामबिल प्रांत (कज़ाख़: Жамбыл облысы, अंग्रेज़ी: Zhambyl या Jambyl Province) मध्य एशिया के क़ाज़ाख़स्तान देश का एक प्रांत है। इसकी राजधानी तलास नदी के किनारे स्थित ऐतिहासिक तराज़ शहर है, जो किरगिज़स्तान की सरहद के बहुत पास है। इस प्रांत का उत्तर पूर्वी कोना बलख़श झील के छोर पर तटस्थ है। राज्य से चुय नदी भी निकलती है जिसकी सिंचाई और कृषि में बहुत अहमियत है। काराताऊ शहर के पास फ़ॉसफ़ेट की खानें हैं।
प्रांत का नाम और उच्चारण
झ़ामबिल प्रांत का नाम प्रसिद्ध कज़ाख़ लोक-गायक झ़ामबिल झ़ाबायेव (Jambyl Jabayev, १८४६-१९४५) पर पड़ा है। ध्यान दें कि 'झ़ामबिल' में बिंदु-वाले 'झ़' का उच्चारण बिना बिन्दु वाले 'झ' से काफ़ी भिन्न है। इसका उच्चारण अंग्रेज़ी के 'टेलिविझ़न' शब्द के 'झ़' से मिलता है।
समुदाय
२००९ की जनगणना में झ़ामबिल प्रांत के लगभग ६५% लोग कज़ाख़ जाति के थे। राजधानी तराज़ में सोवियत संघ के ज़माने में बहुत से जर्मन, यहूदी, रूसी, यूक्रेनी और अन्य समुदाय भारी संख्या में बसते थे और १९८९ में इस शहर केवल २०% लोग कज़ाख़ थे। सोवियत संघ टूटने के बाद बहुत से जर्मन और रूसी लोग इस शहर और प्रांत को छोड़कर चले गए हैं और २००९ तक तराज़ के ६०% लोग कज़ाख़ थे।
झ़ामबिल प्रांत के कुछ नज़ारे
इन्हें भी देखें
बलख़श झील
क़ाज़ाख़स्तान के प्रांत
सन्दर्भ
झ़ामबिल प्रांत
क़ाज़ाक़्स्तान के प्रांत
क़ाज़ाक़्स्तान | 218 |
1040786 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%9C%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF | तेजस्वी सूर्य | लक्य सूर्यनारायण तेजस्वी सूर्य (जन्म :) एक भारतीय राजनीतिज्ञ तथा वर्तमान में बंगलौर दक्षिण से लोकसभा सांसद हैं। वे भारतीय जनता पार्टी के राजनेता हैं और साथ ही एक अधिवक्ता भी है। वर्तमान में वे भारतीय जनता पार्टी की युवा इकाई के युवा मोर्चा राष्ट्रीय अध्यक्ष है और इसके साथ ही वे युवा में काफी लोकप्रिय है। बीजेपी ने उन्हें 2020 में सौंपी थी युवा मोर्चा की कमान |
सन्दर्भ
१७वीं लोक सभा के सदस्य
भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिज्ञ
कर्नाटक के लोक सभा सदस्य
1990 में जन्मे लोग
जीवित लोग | 91 |
1174364 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%82%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%9A%E0%A5%80 | तुर्की के प्रधानमंत्रियों की सूची | तुर्की के स्वतंत्रता संग्राम दौरान 1920 में उस स्थान की स्थापना के बाद से तुर्की के प्रधानमंत्रियों की एक पूरीसूची है । प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल के साथ-साथ सरकार की कार्यकारी शाखा के प्रमुख थे। 2017 के संवैधानिक जनमत संग्रह के बाद , प्रधान मंत्री के कार्यालय को समाप्त कर दिया गया और राष्ट्रपति 2018 के आम चुनाव के बाद कार्यकारी शाखा के प्रमुख बन गए।
पूर्ववर्ती ओटोमन साम्राज्य के भव्य जादूगरों की सूची के लिए, ओटोमन ग्रैंड विज़ियर्स की सूची देखें। | 80 |
1493004 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%20%E0%A4%A8%E0%A4%A8%20%282018%20%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29 | द नन (2018 फिल्म) | द नन 2018 की अमेरिकी गॉथिक अलौकिक हॉरर फिल्म है, जो कोरिन हार्डी द्वारा निर्देशित और गैरी डॉबरमैन द्वारा लिखित है, जो डॉबरमैन और जेम्स वान की कहानी है। यह द कॉन्ज्यूरिंग 2 के आध्यात्मिक स्पिन-ऑफ के रूप में कार्य करता है और द कॉन्ज्यूरिंग साझा ब्रह्मांड में पांचवीं किस्त है। फिल्म में तैसा फ़ार्मिगा, डेमियन बिचिर और जोनास ब्लोक्वेट ने अभिनय किया है, जिसमें बोनी आरोन्स ने द कॉन्ज्यूरिंग 2 में वैलक के अवतार, डेमन नन की भूमिका को दोहराया है। कथानक एक रोमन कैथोलिक पादरी और एक नौसिखिया नन का अनुसरण करता है, क्योंकि वे एक रहस्य को उजागर करते हैं। 1952 रोमानिया में अपवित्र रहस्य। इसके बाद 2023 में रिलीज़ हुई अगली कड़ी द नन II है।
पात्र
डेमियन बिचिर फादर बर्क
तैसा फ़ार्मिगा - सिस्टर आइरीन
जोनास ब्लोकेट - फ्रेंची
बोनी आरोन्स - नन
इंग्रिड बिसु - सिस्टर ओना
चार्लोट होप - सिस्टर विक्टोरिया
सैंड्रा टेल्स - सिस्टर रूथ
मारिया ओब्रेटिन - सिस्टर अबीगैल
अगस्त माटुरो - डेनियल
जैक फ़ॉक - दुष्ट डेनियल
अनी सावा - सिस्टर जेसिका
माइकल स्माइली - बिशप पास्कल
गैब्रिएल डाउनी - मठाधीश
जेरेड मॉर्गन - मार्क्विस
मैनुएला सिउकुर - सिस्टर क्रिस्टीन
मार्क स्टीगर - ड्यूक
संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
2018 की फ़िल्में | 200 |
35732 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8 | पन्ना राष्ट्रीय उद्यान | पन्ना राष्ट्रीय उद्यान भारत में मध्य प्रदेश के पन्ना और छतरपुर जिलों में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान है। 1981 में एक वन्यजीव अभयारण्य के रूप में घोषित किया गया इस उद्यान का क्षेत्रफल 542.67 वर्ग किलोमीटर है। इसे 25 अगस्त 2011 को बायोस्फीयर रिजर्व के रूप में नामित किया गया था। पन्ना को 2007 में भारत के पर्यटन मंत्रालय द्वारा भारत के सर्वश्रेष्ठ रखरखाव वाले राष्ट्रीय उद्यान के रूप में उत्कृष्टता का पुरस्कार दिया गया था। केन नदी इस राष्ट्रीय उद्यान का मुख्य आकर्षण है। ऐसा माना जाता है कि पाण्डवों ने अपना अधिकांश समय पन्ना में बिताया था। इसका उल्लेख महाभारत में भी है।
उद्यान को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, जैसे कि ताडोबा उत्तर क्षेत्र, मोरहुली क्षेत्र और कोलसा दक्षिण रेंज। उद्यान में तीन जल स्रोत भी हैं, जैसे ताडोबा नदी, ताडोबा झील और कोलासा झील। तीनों क्षेत्रों में सफारी की अनुमति है।
मौसम
पन्ना की विशेषता उष्णकटिबंधीय जलवायु है। ग्रीष्मकाल असुविधाजनक रूप से अधिकतम तापमान के साथ गर्म होता है, जो 45 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।
वनस्पति और जीव
उद्यान में प्रमुख वनस्पतियों में सागौन, बाँस, बोसवेलिया आदि शामिल हैं। इस उद्यान में कई दुर्लभ प्रजातियों और लुप्तप्राय प्रजातियों को देखा जा सकता है। पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में वन्यजीवों का दृश्य विंध्य पर्वत शंखलाला का हिस्सा है। यहाँ पाए जाने वाले जानवरों में बाघ, तेंदुआ, चीतल, चिंकारा, नीलगाय, सांभर और भालू हैं। यह उद्यान 200 से अधिक प्रजातियों के पक्षियों का घर है, जिनमें लाल सिर वाला गिद्ध, बार-हेडेड हंस, हनी बुज़ार्ड और भारतीय गिद्ध शामिल हैं। इस उद्यान में गिद्ध की छह प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
टाइगर रिजर्व
पन्ना अभ्यारण्य भारत के मध्य राज्य में केन नदी के क्षेत्रों के अलावा, खजुराहो से 57 किलोमीटर की दूरी पर मध्य प्रदेश में स्थित है, जो विश्व धरोहर केंद्र है। पन्ना राष्ट्रीय उद्यान को 1994/95 में भारत के टाइगर रिजर्व में से एक घोषित किया गया और प्रोजेक्ट टाइगर के संरक्षण में रखा गया। पन्ना में बाघों की आबादी में कई बार गिरावट दर्ज की गई है।
इन्हें भी देखें
पन्ना ज़िला
छतरपुर ज़िला
सिद्धपुर (सीहोर)
सन्दर्भ
भारत के राष्ट्रीय उद्यान
भारत के वन्य अभयारण्य
मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय उद्यान
छतरपुर ज़िला
पन्ना ज़िला
पन्ना ज़िले में पर्यटन आकर्षण
भारत के बाघ अभयारण्य
| | 370 |
492760 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%B2%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%9F | ब्रिस्टल स्काउट | ब्रिस्टल स्काउट एक सादा, एकल सीट, रोटरी इंजन वाला बाईप्लेन था जो की मूलतः नागरिक दौड के लिए बनाया गया था व बाद मे जिसका की प्रयोग हलके लड़ाकू व टोही विमान के रूप में हुआ। इसे ब्रिटिश और कोलोनिअल एरोप्लेन कंपनी के चित्रणकरता फ्रंक बार्नवेल ने बनाया था। इस विमान ने पहली उड़ान २३ फ़रवरी १९१४ को भरी.
सन १९१४ से १९१६ तक ऐसे करीब ३७४ विमान शाही उड़न कोर्प्स, शाही नौसेना की वायु सेवा व ऑस्ट्रेलियाई उड़न कोर्प्स के लिए बनाए गए। इसका उपयोग इन सेन्य संगठनो द्वारा प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मन साम्राज्य के खिलाफ किया गया।
सन्दर्भ
प्रोपेल्लर विमान | 102 |
5008 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8 | भारत का इतिहास | भारत का इतिहास कई सहस्र वर्ष पुराना माना जाता है। 65,000 साल पहले, पहले आधुनिक मनुष्य, या होमो सेपियन्स, अफ्रीका से भारतीय उपमहाद्वीप में पहुँचे थे, जहाँ वे पहले विकसित हुए थे। सबसे पुराना ज्ञात आधुनिक मानव आज से लगभग 30,000 वर्ष पहले दक्षिण एशिया में रहता है। 6500 ईसा पूर्व के बाद, खाद्य फसलों और जानवरों के वर्चस्व के लिए सबूत, स्थायी संरचनाओं का निर्माण और कृषि अधिशेष का भण्डारण मेहरगढ़ और अब बलूचिस्तान के अन्य स्थलों में दिखाई दिया। ये धीरे-धीरे सिंधु घाटी सभ्यता में विकसित हुए, दक्षिण एशिया में पहली शहरी संस्कृति, जो अब पाकिस्तान और पश्चिमी भारत में 2500-1900 ई.पू. के दौरान पनपी। मेहरगढ़ पुरातत्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है जहां नवपाषाण युग (7000 ईसा-पूर्व से 2500 ईसा-पूर्व) के बहुत से अवशेष मिले हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसका आरम्भ काल लगभग 3300 ईसापूर्व से माना जाता है, प्राचीन मिस्र और सुमेर सभ्यता के साथ विश्व की प्राचीनतम सभ्यता में से एक हैं। इस सभ्यता की लिपि अब तक सफलता पूर्वक पढ़ी नहीं जा सकी है। सिन्धु घाटी सभ्यता वर्तमान पाकिस्तान और उससे सटे भारतीय प्रदेशों में फैली थी। पुरातत्त्व प्रमाणों के आधार पर 1900 ईसापूर्व के आसपास इस सभ्यता का अकस्मात पतन हो गया।
19वीं शताब्दी के पाश्चात्य विद्वानों के प्रचलित दृष्टिकोणों के अनुसार आर्यों का एक वर्ग भारतीय उप महाद्वीप की सीमाओं पर 2000 ईसा पूर्व के आसपास पहुंचा और पहले पंजाब में बस गया और यहीं ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना की गई। आर्यों द्वारा उत्तर तथा मध्य भारत में एक विकसित सभ्यता का निर्माण किया गया, जिसे वैदिक सभ्यता भी कहते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता सबसे प्रारम्भिक सभ्यता है जिसका सम्बन्ध आर्यों के आगमन से है। इसका नामकरण आर्यों के प्रारम्भिक साहित्य वेदों के नाम पर किया गया है। आर्यों की भाषा संस्कृत थी और धर्म "वैदिक धर्म" या "सनातन धर्म" के नाम से प्रसिद्ध था, बाद में विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा इस धर्म का नाम हिन्दू पड़ा।
वैदिक सभ्यता सरस्वती नदी के तटीय क्षेत्र जिसमें आधुनिक भारत के पंजाब (भारत) और हरियाणा राज्य आते हैं, में विकसित हुई। आम तौर पर अधिकतर विद्वान वैदिक सभ्यता का काल 2000 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व के बीच में मानते है, परन्तु नए पुरातत्त्व उत्खननों से मिले अवशेषों में वैदिक सभ्यता से संबंधित कई अवशेष मिले है जिससे कुछ आधुनिक विद्वान यह मानने लगे हैं कि वैदिक सभ्यता भारत में ही शुरु हुई थी, आर्य भारतीय मूल के ही थे और ऋग्वेद का रचना काल 3000 ईसा पूर्व रहा होगा, क्योंकि आर्यों के भारत में आने का न तो कोई पुरातत्त्व उत्खननों पर अधारित प्रमाण मिला है और न ही डी एन ए अनुसन्धानों से कोई प्रमाण मिला है। हाल ही में भारतीय पुरातत्व परिषद् द्वारा की गयी सरस्वती नदी की खोज से वैदिक सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बारे में एक नया दृष्टिकोण सामने आया है। हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता नाम दिया है, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता की 2600 बस्तियों में से वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र 265 बस्तियाँ थीं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियाँ सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं, सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है, यह आज से 4000 साल पूर्व भूगर्भी बदलाव की वजह से सूख गयी थी।
आर्य लोग खानाबदोश गड़ेरियों की भांति अपने जंगली परिवारों और पशुओं को लिए इधर से उधर भटकते रहते थे। इन लोगों ने पत्थर के नुकीले हथियारों से काम लेना सीखा। मनुष्यों की इस सभ्यता को वे 'यूलिथ- सभ्यता' कहते हैं। इस सभ्यता में कुछ सुधार हुआ तो फिर 'चिलियन' सभ्यता आई। इन हथियार औजारों की सभ्यता के समय का मनुष्य नर वानर के रूप में थे। उनमें वास्तविक मनुष्यत्व का बीजारोपण नहीं हुआ था।
" मुस्टेरियन " सभ्यता के पश्चात " रेनडियन " सभ्यता का प्रादुर्भाव हुआ। इस समय लोगों में मानवोचित बुद्धि का विकास होने लगा था। फिर इसके बाद वास्तविक सभ्यताएं आई जिसमें पहली सभ्यता नव पाषाण कालीन कही जाती है। इस सभ्यता के युग का मनुष्य अपने जैसा ही वास्तविक मनुष्य था। अतः यूथिल सम्यता से लेकर नव पाषाण सभ्यता तक का काल पाषाण- युग कहलाता है।
पाषाण युग के बाद मानव जाति में धातु युग का प्रादुर्भाव हुआ। धातु युग का प्रारम्भ ताम्रयुग से होता है। नव पाषाण युग के अंत तक मनुष्य की बुद्धि बहुत कुछ विकसित हो गई थी। इसी समय कृषि का आविष्कार हुआ। कृषि ही सम्यता की माता थी। आर्य ही संसार में सबसे प्रथम कृषक थे। कृषि के उपयोगी स्थानों की खोज में आर्य पंजाब की भूमि में आए और इसी का नाम सप्तसिन्धु प्रदेश रखा। आर्य लोग सम्पूर्ण सप्तसिन्धु प्रदेश में फैल गए, परन्तु उनकी सभ्यता का केन्द्र सरस्वती तट था। सरस्वती नदी तट पर ही आर्यों ने ताम्रयुग की स्थापना की। यहाँ उन्हें ताम्बा मिला और वे अपने पत्थर के हथियारों को छोड़कर ताम्बे के हथियारों को काम में लेने लगे। इस ताम्रयुग के चिन्ह अन्वेषकों को " चान्हू डेरों " तथा "विजनौत " नामक स्थानों में खुदाई में मिले हैं। ये स्थान सरस्वती नदी प्रवाह के सूखे हुए मार्ग पर ही है। मैसापोटामिया तथा इलाम में यही सभ्यता " प्रोटो इलामाइट " सभ्यता कहलाती है। सुमेरू जाति प्रोटाइलामाइट जाति के बाद मैसोपोटामिया में जाकर बसी है। सुमेरू सभ्यता के बाद मिस्र की सभ्यता का उदय हुआ। प्रसिद्ध अमेरिकन पुरातत्वविद् डा० डी० टेरा ने सिन्धु प्रदेश को पत्थर और धातुयुग में मिलानेवाला कहते हैं। ताम्र सभ्यता के बाद काँसे की सभ्यता आई। काँसे की सभ्यता संभवतः सुमेरियन लोगों की थी। मैसोपोटामिया के उर- फरा- किश तथा इलाम के सुसा और तपा- मुस्यान आदि जगहों में उन्हें खुदाई में काँसे की सभ्यता के नीचे ताम्र सभ्यता के अवशेष मिले हैं। मैसोपोटामिया में जहाँ जहां इस प्रोटो इलामाइट कही जाने वाली ताम्र सभ्यता के चिन्ह मिले हैं, उसके और सुमेरू जाति की कांसे की सभ्यता के स्तरो के बीच में किसी बहुत बड़ी बाढ़ के पानी द्वारा जमी हुई चिकनी मिट्टी का उसे चार फुट मोटा स्तर प्राप्त हुआ है। यूरोपिय पुरातत्ववेत्ताओं का यह मत है कि मिट्टी का यह स्तर उस बड़ी बाढ़ द्वारा बना था, जिसको प्राचीन ग्रन्थों में नूह का प्रलय कहते हैं। ताम्रयुग की प्रोटोइलामाइट सभ्यता के अवशेष इस प्रलय के स्तर के नीचे प्राप्त हुए हैं। इसका यह अर्थ लगाया गया कि इस प्रलय के प्रथम में ही प्रोटो इलामाइट सभ्यता का अस्तित्व था। इस सभ्यता के अवशेषों के नीचे कुछ स्थानों में निम्न श्रेणी की पाषाण सभ्यता के चिन्ह प्राप्त हुए हैं।
ईसा पूर्व 7वीं और शुरूआती 6वीं शताब्दि सदी में जैन और बौद्ध धर्म सम्प्रदाय लोकप्रिय हुए। अशोक (ईसापूर्व 265-241) इस काल का एक महत्वपूर्ण राजा था जिसका साम्राज्य अफगानिस्तान से मणिपुर तक और तक्षशिला से कर्नाटक तक फैल गया था। पर वो सम्पूर्ण दक्षिण तक नहीं जा सका। दक्षिण में चोल सबसे शक्तिशाली निकले। संगम साहित्य की शुरुआत भी दक्षिण में इसी समय हुई। भगवान गौतम बुद्ध के जीवनकाल में, ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती 6 वीं शताब्दी के दौरान सोलह बड़ी शक्तियाँ (महाजनपद) विद्यमान थे। अति महत्वपूर्ण गणराज्यों में कपिलवस्तु के शाक्य और वैशाली के लिच्छवी गणराज्य थे। गणराज्यों के अलावा राजतन्त्रीय राज्य भी थे, जिनमें से कौशाम्बी (वत्स), मगध, कोशल, कुरु, पान्चाल, चेदि और अवन्ति महत्वपूर्ण थे। इन राज्यों का शासन ऐसे शक्तिशाली व्यक्तियों के पास था, जिन्होंने राज्य विस्तार और पड़ोसी राज्यों को अपने में मिलाने की नीति अपना रखी थी। तथापि गणराज्यात्मक राज्यों के तब भी स्पष्ट संकेत थे जब राजाओं के अधीन राज्यों का विस्तार हो रहा था। इसके बाद भारत छोटे-छोटे साम्राज्यों में बंट गया।
आठवीं सदी में सिन्ध पर अरबों का अधिकार हो गया। यह इस्लाम का प्रवेश माना जाता है। बारहवीं सदी के अन्त तक दिल्ली की गद्दी पर तुर्क दासों का शासन आ गया जिन्होंने अगले कई सालों तक राज किया। दक्षिण में हिन्दू विजयनगर और गोलकुण्डा के राज्य थे। 1556 में विजय नगर का पतन हो गया। सन् 1526 में मध्य एशिया से निर्वासित राजकुमार बाबर ने काबुल में पनाह ली और भारत पर आक्रमण किया। उसने मुग़ल वंश की स्थापना की जो अगले 300 वर्षों तक चला। इसी समय दक्षिण-पूर्वी तट से पुर्तगाल का समुद्री व्यापार शुरु हो गया था। बाबर का पोता अकबर धार्मिक सहिष्णुता के लिए विख्यात हुआ। उसने हिन्दुओं पर से जज़िया कर हटा लिया। 1659 में औरंगज़ेब ने इसे फिर से लागू कर दिया। औरंगज़ेब ने कश्मीर में तथा अन्य स्थानों पर हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनवाया। उसी समय केन्द्रीय और दक्षिण भारत में शिवाजी के नेतृत्व में मराठे शक्तिशाली हो रहे थे। औरंगज़ेब ने दक्षिण की ओर ध्यान लगाया तो उत्तर में सिखों का उदय हो गया। औरंगज़ेब के मरते ही (1707) में मुगल साम्राज्य बिखर गया। अंग्रेज़ों ने डचों, पुर्तगालियों तथा फ्रांसिसियों को भगाकर भारत पर व्यापार का अधिकार सुनिश्चित किया और 1857 के एक विद्रोह को कुचलने के बाद सत्ता पर काबिज हो गए। भारत को आज़ादी 1947 में मिली जिसमें महात्मा गांधी के अहिंसा आधारित आन्दोलन का योगदान महत्वपूर्ण था। 1947 के बाद से भारत में गणतान्त्रिक शासन लागू है। आज़ादी के समय ही भारत का विभाजन हुआ जिससे पाकिस्तान का जन्म हुआ और दोनों देशों में कश्मीर सहित अन्य मुद्दों पर तनाव बना हुआ है।
स्रोत
प्राचीन भारत का इतिहास
समान्यत विद्वान भारतीय इतिहास को एक संपन्न पर अर्धलिखित इतिहास बताते हैं पर भारतीय इतिहास के कई स्रोत है। सिंधु घाटी की लिपि, अशोक के शिलालेख, हेरोडोटस, फ़ा हियान, ह्वेन सांग, संगम साहित्य, मार्कोपोलो, संस्कृत लेखकों आदि से प्राचीन भारत का इतिहास प्राप्त होता है। मध्यकाल में अल-बेरुनी और उसके बाद दिल्ली सल्तनत के राजाओं की जीवनी भी महत्वपूर्ण है। बाबरनामा, आईन-ए-अकबरी आदि जीवनियां हमें उत्तर मध्यकाल के बारे में बताती हैं।
प्रागैतिहासिक काल (३३०० ईसा पूर्व तक)
भारत में मानव जीवन का प्राचीनतम प्रमाण १००,००० से ८०,००० वर्ष पूर्व का है।। पाषाण युग (भीमबेटका, मध्य प्रदेश) के चट्टानों पर चित्रों का कालक्रम ४०,००० ई पू से ९००० ई पू माना जाता है। प्रथम स्थायी बस्तियां ने ९००० वर्ष पूर्व स्वरुप लिया। उत्तर पश्चिम में सिन्धु घाटी सभ्यता ७००० ई पू विकसित हुई, जो २६वीं शताब्दी ईसा पूर्व और २०वीं शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य अपने चरम पर थी। वैदिक सभ्यता का कालक्रम भी ज्योतिष के विश्लेषण से ४००० ई पू तक जाता है।
आर्य लोग खानाबदोश गड़ेरियों की भांति अपने जंगली परिवारों और पशुओं को लिए इधर से उधर भटकते रहते थे। इन लोगों ने पत्थर के नुकीले हथियारों से काम लेना सीखा। मनुष्यों की इस सभ्यता को वे 'यूलिथ- सभ्यता' कहते हैं। इस सभ्यता में कुछ सुधार हुआ तो फिर 'चिलियन' सभ्यता आई। इन हथियार औजारों की सभ्यता के समय का मनुष्य नर वानर के रूप में थे। उनमें वास्तविक मनुष्यत्व का बीजारोपण नहीं हुआ था।
" मुस्टेरियन " सभ्यता के पश्चात " रेनडियन " सभ्यता का प्रादुर्भाव हुआ। इस समय लोगों में मानवोचित बुद्धि का विकाश होने लगा था। फिर इसके बाद वास्तविक सभ्यताएं आई जिसमें पहली सभ्यता नव पाषाण कालीन कही जाती है। इस सभ्यता के युग का मनुष्य अपने ही जैसा ही वास्तविक मनुष्य था। अतः यूथिल सम्यता से लेकर नव पाषाण सभ्यता तक का काल पाषाण- युग कहलाता है।
पाषाण युग के बाद मानव जाति में धातु युग का प्रादुर्भाव हुआ। धातु युग का प्रारम्भ ताम्रयुग से होता है। नव पाषाण युग के अंत तक मनुष्य की बुद्धि बहुत कुछ विकसित हो गई थी। इसी समय कृषि का आविष्कार हुआ। कृषि ही सम्यता की माता थी। आर्य ही संसार में सबसे प्रथम कृषक थे। कृषि के उपयोगी स्थानों की खोज में आर्य पंजाब की भूमि में आए और इसी का नाम सप्तसिन्धु प्रदेश रखा। आर्य लोग सम्पूर्ण सप्तसिन्धु प्रदेश में फैल गए, परन्तु उनकी सभ्यता का केन्द्र सरस्वती तट था। सरस्वती नदी तट पर ही आर्यों ने ताम्रयुग की स्थापना की। यहाँ उन्हें ताम्बा मिला और वे अपने पत्थर के हथियारों को छोड़कर ताम्बे के हथियारों को काम में लेने लगे। इस ताम्रयुग के चिन्ह अन्वेषकों को " चान्हू डेरों " तथा "विजनौत " नामक स्थानों में खुदाई में मिले हैं। ये स्थान सरस्वती नदी प्रवाह के सूखे हुए मार्ग पर ही है। मैसोपोटामिया तथा इलाम में यही सभ्यता " प्रोटो इलामाइट " सभ्यता कहलाती है। सुमेरू जाति प्रोटाइलामाइट जाति के बाद मैसोपोटामिया में जाकर बसी है। सुमेरू सभ्यता के बाद मिस्र की सभ्यता का उदय हुआ। प्रसिद्ध अमेरिकन पुरातत्वविद् डा० डी० टेरा ने सिन्धु प्रदेश को पत्थर और धातुयुग में मिलानेवाला कहते हैं। ताम्र सभ्यता के बाद काँसे की सम्यता आई। काँसे की सभ्यता संभवतः सुमेरियन लोगों की थी। मैसोपोटामिया के उर- फरा- किश तथा इलाम के सुसा और तपा- मुस्यान आदि जगहों में उन्हें खुदाई में काँसे की सभ्यता के नीचे ताम्र सभ्यता के अवशेष मिले हैं। मैसोपोटामिया में जहाँ जहां इस प्रोटो इलामाइट कही जाने वाली ताम्र सभ्यता के चिन्ह मिले हैं, उसके और सुमेरू जाति की कांसे की सभ्यता के स्तरो के बीच में किसी बहुत बड़ी बाढ़ के पानी द्वारा जमी हुई चिकनी मिट्टी का उसे चार फुट मोटा स्तर प्राप्त हुआ है। योरोपिय पुरातत्ववेत्ताओं का यह मत है कि मिट्टी का यह स्तर उस बड़ी बाढ़ द्वारा बना था, जिसको प्राचीन ग्रन्थों में नूह का प्रलय कहते हैं। ताम्रयुग की प्रोटोइलामाइट सभ्यताके अवशेष इस प्रलय के स्तर के नीचे प्राप्त हुए हैं। इसका यह अर्थ लगाया गया कि इस प्रलय के प्रथम ही प्रोटो इलामाइट सभ्यता का अस्तित्व था। इस सभ्यता के अवशेषों के नीचे कुछ स्थानों में निम्न श्रेणी की पाषाण सभ्यता के चिन्ह प्राप्त हुए हैं।
पहला नगरीकरण (३३०० ईसापूर्व–१५०० ईसापूर्व)
सिन्धु घाटी सभ्यता
नव पाषाण युग के अंत तक मनुष्य की बुद्धि बहुत कुछ विकसित हो गई थी। इसी समय कृषि का आविष्कार हुआ। कृषि ही सम्यता की माता थी। आर्य ही संसार में सबसे प्रथम कृषक थे। कृषि के उपयोगी स्थानों की खोज में आर्य पंजाब की भूमि में आए और इसी का नाम सप्तसिन्धु प्रदेश रखा। आर्य लोग सम्पूर्ण सप्तसिन्धु प्रदेश में फैल गए, परन्तु उनकी सभ्यता का केन्द्र सरस्वती तट था। सरस्वती नदी तट पर ही आर्यों ने ताम्रयुग की स्थापना की। यहाँ उन्हें ताम्बा मिला और वे अपने पत्थर के हथियारों को छोड़कर ताम्बे के हथियारों को काम में लेने लगे। इस ताम्रयुग के चिन्ह अन्वेषकों को " चान्हू डेरों " तथा "विजनौत " नामक स्थानों में खुदाई में मिले हैं। ये स्थान सरस्वती नदी प्रवाह के सूखे हुए मार्ग पर ही है। मैसोपोटामिया तथा इलाम में यही सभ्यता " प्रोटो इलामाइट " सभ्यता कहाती है। सुमेरू जाति प्रोटाइलामाइट जाति के बाद मैसोपोटामिया में जाकर बसी है। सुमेरू सभ्यता के बाद मिस्र की सभ्यता का उदय हुआ। प्रसिद्ध अमेरिकन पुरातत्वविद् डा० डी० टेरा ने सिन्धु प्रदेश को पत्थर और धातुयुग में मिलानेवाला कहते हैं।
वैदिक सभ्यता (१५०० ईसापूर्व–६०० ईसापूर्व)
भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव सभ्यता का पहला राष्ट्र था। श्रीमद्भागवत के पंचम स्कन्ध में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है।
भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वयंभु मनु ने व्यवस्था सम्भाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे आग्नीध्र जिन्हें जम्बूद्वीप का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन भारत देश था। राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। पहले भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे।
ईसा से कोई चार सहस्र वर्ष पूर्व भारतवर्ष के मूल पुरुष स्वायंभुव मनु उत्पन्न हुए। इनकी तीन पुत्रियां तथा दो पुत्र हुए। पुत्रों के नाम प्रियव्रत और उतानपाद थे। प्रियव्रत के दस पुत्र हुए। इन्हें प्रियव्रत ने पृथ्वी बांट दी। ज्येष्ठ पुत्र अग्निन्ध्र को उसने जम्बुद्दीप( एशिया) दिया। इसे उसने अपने हाथों नौ पुत्रों में बाँट दिया। बड़े पुत्र नाभि को हिमवर्ष- हिमालय से अरब समुद्र तक देश मिला। नाभि के पुत्र महाज्ञानी- सर्वत्यागी ऋषभ देव हुए। ऋषभदेव के पुत्र महाप्रतापी भरत हुए, जिन्होने अष्ट द्वीप जय किए, और अपने राज्य को नौ भागों में बांटा। भरत के नाम पर हिमवर्ष का नाम भारत, भारतवर्ष या भरतखण्ड प्रसिद्ध हुआ।
इसके अनन्तर इस प्रियव्रत शाखा में पैंतीस प्रजापति और चार मनु हुए। चारों मनुओं के नाम स्वारोचिष, उतम, तामस और रैवत थे। इन मनुओं के राज्यकाल को मन्वन्तर माना गया। चाक्षुष रैवत मन्वन्तर की समाप्ति पर छतीसवां प्रजापति और छठा मनु, स्वायंभुव मनु के दूसरे पुत्र उतानपाद की शाखा में चाक्षुष नाम से हुआ। इस शाखा में ध्रुव, चाक्षुष मनु, वेन, पृथु, प्रचेतस आदि प्रसिद्ध प्रजापति हुए। इसी चाक्षुष मन्वन्तर में बड़ी बड़ी घटनाएं हुई। भरतवंश का विस्तार हुआ। राजा की मर्यादा स्थापित हुई। वेदोदय हुआ। इस वंश का वेन प्रथम राजा था। इस वंश का प्रथु- वैन्य प्रथम वेदर्षि था। उसने सबसे प्रथम वैदिक मंत्र रचे। अगम भूमि को समतल किया गया। उसमें बीज बोया गया। इसी के नाम पर भूमि का पृथ्वी नाम विख्यात हुआ। इसी वंश के राजा प्रचेतस ने बहुत से जंगलों को जला कर उन्हें खेती के येाग्य बनाया। जंगल साफ कर नई भूमि निकाली। कृषि का विकास किया। इन छहों मनुओं के काल का समय जो लगभग तेरह सौ वर्ष का काल है, सतयुग के नाम से प्रसिद्ध है। मन्वन्तर काल में वह प्रसिद्ध प्रलय हुआ, जिसमें काश्यप सागर तट की सारी पृथ्वी जल में डूब गई। केवल मन्यु अपने कुछ परिजनो के साथ जीवित बचा।
सतयुग को ऐतिहासिक दृष्टि से दो भागों में विभक्त किया जाता है। एक प्रियव्रत शाखा काल, जिसमें पैंतीस प्रजापति और पांच मनु हुए। दूसरा उतानपाद शाखा काल, जिसमें चाक्षुष मन्वन्तर में दस प्रजापति और राजा हुए।
सांस्कृतिक दृष्टि से भी इस काल के दो भाग किए जाते हैं। एक प्राकवेद काल, उनतालीसवें प्रजापति तक एवम दूसरा वेदोदय काल। भूमि का बंटवारा, महाजल प्रलय, भूसंस्कार, कृषि, राज्य स्थापना, वेदोदय तथा भारत और पर्शिया में भरतों की विजय इस काल की बड़ी सांस्कृतिक और राजनैतिक घटनाएं है। वेदोदय चाक्षुष मन्वन्तर की सबसे बड़ी सांस्कृतिक घटना है।
चाक्षुष मनु के पाँच पुत्र थे। अत्यराति जानन्तपति, अभिमन्यु, उर, पुर और तपोरत। उर के द्वितीय पुत्र अंगिरा थे। इन छहो वीरों ने पर्शिया में अपना साम्राज्य स्थापित किया था। उस काल में पर्शिया का साम्राज्य चार खण्डों में विभक्त था। जिनके नाम सुग्द, मरू, वरवधी और निशा थे। बाद में हरयू( हिरात) और वक्रित( काबुल) भी इसी राज्य में मिला लिए गए थे। यहाँ पर प्रियव्रत शाखा के स्वारोचिष मनु के वंशज राज्य कर रहे थे। जानन्तपति महाराज अत्यराति चक्रवर्ती कहे जाते थे। भारतवर्ष की सीमा के अंतिम प्रदेश और पर्शिया का पूर्वी प्रान्त सत्यगिदी के नाम से विख्यात था, उस समय इस स्थान को सत्यलोक भी कहते थे। उसी के सामने सुमेरू के निकट बैकुण्ठ धाम था, जो देमाबन्द- एलवुर्ज पर्वत पर ईरानियन पैराडाइस के नाम से अभी जाना जाता है। देमाबन्द तपोरिया प्रान्त में था। इसी प्रान्त के तपसी विकुण्ठा और उनके पुत्र का नाम बैकुण्ठ था। बैकुण्ठधाम उन्हीं की राजधानी थी।
चक्रवर्ती महाराज अत्यराति जानन्तपति के दूसरे भाई का नाम मन्यु या अभिमन्यु था। प्राचीन पर्शियन इतिहास में उन्हें मैन्यू और ग्रीक में मैमनन कहा गया है। अर्जनेम में अभिमन्यु(Aphumon) दुर्ग के निर्माता तथा ट्राय युद्ध के विजेता यही है। प्रसिद्ध पुराण काव्य 'ओडेसी' में इन्हीं अभिमन्यु महाराज की प्रशस्ति वर्णन की गई है। इन्होंने ही सुषा नाम की नगरी बसाई और उसे अपनी राजधानी बनाया। सुषा संसार भर में प्राचीनतम नगरी थी। इसी का नाम मन्युपुरी था। यह मन्युपूरी वरुण देव के समय में सुषा के नाम से विख्यात था बाद में इंद्रपुरी अमरावती के नाम से विख्यात हुआ। यह प्रसिद्ध नगरी बेरसा नदी के तट पर थी जो उस काल में सभ्यता का केंद्र थी।
चक्रवर्ती महाराज अत्यराति के तीसरे भाई का नाम उर था। इन्होंने अफ्रीका, सीरिया, बेबीलोनिया आदि देशों में विजय प्राप्त किया और ईसा से 2000 वर्ष पूर्व अब्राहम को पद से हटाकर पूर्वी मिस्र में अपना राज्य स्थापित किया था। इस बात का संकेत ईसाइयों के पुराने अहदनामें में मिलता है। उर बेबिलोनिया का ही एक प्रदेश था। प्रसिद्ध अप्सरा उर्वशी इसी उर प्रदेश की थी। ईरान के एक पर्वत का नाम भी उरल है। उरमिया प्रदेश भी हैं, जहाँ जोरास्टर का जन्म हुआ था। उर वंशियों के ईरान में उर, पुर और वन ये तीन राज्य स्थापित हुए थे। जल प्रलय से पूर्व बेबीलोनिया में मत्स्य जाति के लोगों का ही राज्य था। यह प्राचीन जाति चिरकाल से उस देश पर शासन करती थी। यह जाति प्रसिद्ध नाविक थी।
चाक्षुष मनु के चौथे पुत्र एवं जानन्तपति महाराजा अत्यराति के भाई का नाम पुर था। इनकी राजधानी एलबुर्ज पर्वत के निकट पुरसिया था। इन्हीं के नाम पर ईरान का नाम पर्शिया पड़़ा।
महाराज अत्यराति के पाँचवे भाई का नाम तपोरत था। इन्होंने तपोरत नाम से अपना राज्य स्थापित किया जो तपोरिया प्रांत कहलाता था। इसी तपोरत प्रदेश में बैकुंठ था जो देमाबंद पर्वत पर है। तपसी बैकुंठ महाराज तपोरत के ही वंशज थे। इन्हीं की राजधानी बैकुंठ धाम थी। तपोरत के राजा बाद में देमाबंद कहाने लगे, जीन्हे हम देवराज कहते हैं। इस तपोरिया भूमि को मजांदिरन भी कहते हैं।
जानन्तपति अत्यराति के वंशज अर्राट थे। आरमेनिया इनका प्रान्त था। अर्राटों ने आगे असुरों से भारी भारी युद्ध किये थे। अर्राट पर्वत भी अत्यराति के नाम पर ही है। सीरिया का नगर अत्यरात (Adhraot ) इन्हीं के नाम पर था।
उर के पुत्र अंगिरा ने अफ्रिका को जीतकर वहाँ राज्य स्थापित किया था। अंगिरा- पिक्यूना के निर्माता और विजेता यही थे। अंगिरा और मन्यु की विजयों और युद्ध अभियानों के वर्णन से ईरानी- हिब्रु धर्मग्रन्थ भरे पड़े हैं। इनके सर्वग्राही और भयानक आक्रमण से पददलित होकर ईरान के लोग उन्हें अहित देव- दुखदाई अहरिमन और शैतान कह कर पुकारने लगे। अवस्ता में अंगिरामन्यु- अहरिमन कहा है। बाइबिल में उन्हें शैतान कहा गया है। मिल्टन के " स्वर्गनाश " की कथा में इसी विजेता को शैतान कहा गया है। पाश्चात्य देशों के ग्रन्थ इतिहास इन्हीं छह विजेताओं की दिग्विजय के वर्णनों से भरे पड़े हैं। पाश्चात्य साहित्य में इन्हें विकराल देव और शैटानिक-होस्ट के अधिनायक कहा गया है। ये छहों ईरान के प्राचीन उपास्यदेव हो गए थे। उन्हींकी विजय गाथा मिल्टन ने चालीस वर्ष तक गाये हैं। पाश्चात्य इतिहासवेत्ताओं ने इस आक्रमण का काल ईसा से करीब तेइस सौ वर्ष पूर्व बताते हैं।
भारत के उत्तरापथ में आर्यावर्त था जिसमें दो राज्य थे सूर्य मंडल और चंद्र मंडल। ये दोनों आर्य राज्य समुह थे। सूर्य मंडल में मानव कुल और चंद्र मंडल में एल कुल का राज्य था। सूर्य कुल ने आर्य जाति का निर्माण किया उसी प्रकार वरुण ने सुमेर जाती को जन्म दिया। यह सुमेर जाती सुमेर सभ्यता की प्रस्तारक और इराक के सबसे प्राचीन शासक थी। संसार के पुरातत्वविद् डाक्टर फ्रेंक फोर्ट और लेग्डन आदि यह कहते हैं कि प्रोटो ईलामाइट सभ्यता का ही विकसित रूप सुमेरू सभ्यता है अर्थात प्रोटोइलामाइट सभ्यता से ही सुमेरू सभ्यता का जन्म हुआ है। जल प्रलय के पहले चाक्षुष मनु के वंशज का यहां राज्य था। मनु पुत्र चक्रवर्ती महाराज अत्यराति जानन्तपति यहां के राजा थे। चाक्षुष मनु का वंश ही प्रोटोइलामाइट सभ्यता का जनक था। जल प्रलय में मनु के संपूर्ण वंशज का विनाश हो गया था सिर्फ कुछ को छोड़कर।
दूसरा नगरीकरण (६०० ईसापूर्व–२०० ईसापूर्व)
१००० ईसा पूर्व के पश्चात १६ महाजनपद उत्तर भारत में मिलते हैं। ५०० ईसवी पूर्व के बाद, कई स्वतंत्र राज्य बन गए। उत्तर में मौर्य वंश, जिसमें चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक सम्मिलित थे, ने भारत के सांस्कृतिक पटल पर उल्लेखनीय छाप छोड़ी | १८० ईसवी के आरम्भ से, मध्य एशिया से कई आक्रमण हुए, जिनके परिणामस्वरूप उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप में इंडो-ग्रीक, इंडो-स्किथिअन, इंडो-पार्थियन और अंततः कुषाण राजवंश स्थापित हुए | तीसरी शताब्दी के आगे का समय जब भारत पर गुप्त वंश का शासन था, भारत का "स्वर्णिम काल" कहलाया। दक्षिण भारत में भिन्न-भिन्न समयकाल में कई राजवंश चालुक्य, चेर, चोल, कदम्ब, पल्लव तथा पांड्य चले | विज्ञान, कला, साहित्य, गणित, खगोल शास्त्र, प्राचीन प्रौद्योगिकी, धर्म, तथा दर्शन इन्हीं राजाओं के शासनकाल में फले-फूले |
प्रारंभिक मध्यकालीन भारत (२०० ईसापूर्व–१२०० ईसवी)
12वीं शताब्दी के प्रारंभ में, भारत पर इस्लामी आक्रमणों के पश्चात, उत्तरी व केन्द्रीय भारत का अधिकांश भाग दिल्ली सल्तनत के शासनाधीन हो गया; और बाद में, अधिकांश उपमहाद्वीप मुगल वंश के अधीन। दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य शक्तिशाली निकला। हालांकि, विशेषतः तुलनात्मक रूप से, संरक्षित दक्षिण में, अनेक राज्य शेष रहे अथवा अस्तित्व में आये।
गत मध्यकालीन भारत (१२०० – १५२६ ईसवी)
प्रारंभिक आधुनिक भारत (१५२६ – १८५८ ईसवी)
भारत में उपनिवेश और ब्रिटिश राज
17वीं शताब्दी के मध्यकाल में पुर्तगाल, डच, फ्रांस, ब्रिटेन सहित अनेकों युरोपीय देशों, जो कि भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे, उन्होनें देश में स्थापित शासित प्रदेश, जो कि आपस में युद्ध करने में व्यस्त थे, का लाभ प्राप्त किया। अंग्रेज दुसरे देशों से व्यापार के इच्छुक लोगों को रोकने में सफल रहे और १८४० ई तक लगभग संपूर्ण देश पर शासन करने में सफल हुए। १८५७ ई में ब्रिटिश इस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध असफल विद्रोह, जो कि भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम से जाना जाता है, के बाद भारत का अधिकांश भाग सीधे अंग्रेजी शासन के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया।
आधुनिक और स्वतन्त्र भारत (१८५० ईसवी के बाद)
बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये संघर्ष चला। इस संघर्ष के परिणामस्वरूप 15 अगस्त, 1947 ई को सफल हुआ जब भारत ने अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की, मगर देश को विभाजन कर दिया गया। तदुपरान्त 26 जनवरी, 1950 ई को भारत एक गणराज्य बना।
इन्हें भी देखें
भारत का संक्षिप्त इतिहास (स्वतंत्रता-पूर्व)
स्वतन्त्रता के बाद भारत का संक्षिप्त इतिहास
भारत का आर्थिक इतिहास
मगध के राजवंशों और शासकों की सूची
भारत के राजवंशों और सम्राटों की सूची
हिन्दू साम्राज्यों और राजवंशों की सूची
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
भयानक युद्ध जिन्होंने भारत का इतिहास बदल दिया (हिन्दीवार्ता.कॉम)
भारत का इतिहास (भास्कर)
हिन्दू और जैन इतिहास की रूपरेखा
सामाजिक क्रान्ति के दस्तावेज (गूगल पुस्तक)
History of India (अंग्रेजी में) - राजनैतिक, आर्थिक, संस्थात्मक, शैक्षिक एवं तकनीकी इतिहास
नन्द-मौर्य युगीन भारत (गूगल पुस्तक ; लेखक - नीलकान्त शास्त्री)
वाकटक-गुप्त युग : लगभग २२० से ५५० ई तक भारतीय जन का इतिहास (गूगल पुस्तक)
पूर्व-मध्यकालीन भारत (गूगल पुस्तक; लेखक - श्रीनेत्र पाण्डेय)
हम और हमारी आजादी (गूगल पुस्तक; अंग्रेजों के पूर्व से लेकर इक्कीसवीं सदी के आरम्भ तक भारत का इतिहास)
भारतीय इतिहास - प्रागैतिहासिक काल से स्वातंत्रोत्तर काल तक (गूगल पुस्तक; लेखक - विपुल सिंह)
Do your History textbooks tell you these Facts? (मानोज रखित)
भारतीय इतिहास : एक समग्र अध्ययन (गूगल पुस्तक ; लेखक - मनोज शर्मा)
मध्यकालीन भारत का इतिहास (गूगल पुस्तक ; लेखक - शैलेन्द्र सेंगर)
भारतीय इतिहास, एक दृष्टि (गूगल पुस्तक ल; लेखक - डॉ ज्योतिप्रसाद जैन)
देशानुसार इतिहास
भारत का इतिहास | 4,406 |
221408 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%B8%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE | गाउस का नियम | भौतिकी में गाउस का नियम (Gauss's law) वह नियम है जो विद्युत आवेश के वितरण एवं उनके कारण उत्पन्न विद्युत क्षेत्र में संबंध स्थापित करता है। इस नियम के अनुसार,यह बात सत्य है कि
किसी बंद तल से निकलने वाला विद्युत फ्लक्स उस तल द्वारा घिरे हुए कुल विद्युत आवेश की मात्रा का 1/ε0 गुना होता है।
जहाँ ε0 = वायु या निर्वात की वैद्युतशीलता ये सछम ने लिखा
इस नियम का प्रतिपादन सन् 1835 में कार्ल फ्रेडरिक गाउस (Carl Friedrich Gauss) ने किया था किन्तु इसका प्रकाशन सन् 1867 तक नहीं क
र सके। यह नियम मैक्सवेल के चार समीकरणों में से एक है। गाउस का नियम, कूलाम्ब के नियम से निष्पादित (derive) किया जा सकता है। (इसका उलटा भी सत्य है - कूलाम्ब का नियम, गाउस के नियम से निकाला जा सकता है।)
निर्वात में गाउस का नियम
इस नियम के अनुसार, किसी बन्द पृष्ठ == समाकलन
अवकलन रूप में
जहाँ:
– विद्युत क्षेत्र का डाइवर
्जेंस है;
– आवेश घनत्व है।
Aavesh ek sadish Rashi hai
E=kq/r(square)
इन्हें भी देखें
गाउस का नियम (चुंबकत्व)
बाहरी कड़ियाँ
MIT Video Lecture Series (30 x 50 minute lectures)- Electricity and Magnetism Taught by Professor Walter Lewin.
section on Gauss's law in an online textbook
MISN-0-132 Gauss's Law for Spherical Symmetry (PDF file) by Peter Signell for Project PHYSNET.
MISN-0-133 ''Gauss's Law Applied to Cylindrical and Planar Charge Distributions (PDF file) by Peter Signell for Project PHYSNET.
The inverse cube law The inverse cube law for dipoles (PDF file) by Eng. Xavier Borg
विद्युतस्थैतिकी
सदिश कैलकुलस
आरम्भिक भौतिकी | 257 |
145536 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%A5 | मैकबेथ | द ट्रेजडी ऑफ मैकबेथ (जिसे आम तौर पर मैकबेथ कहा जाता है) एक राज-हत्या और उसके बाद की घटनाओं पर विलियम शेक्सपियर द्वारा लिखा गया एक नाटक है, या संक्षेप में कहें तो मैकबेथ शेक्सपियर की एक कृति है। यह शेक्सपियर का सबसे छोटा शोकान्त नाटक है और माना जाता है कि इसे 1603 और 1603 के बीच किसी समय लिखा गया था। शेक्सपियर के नाटक पर किसी अभिनय का सबसे पहला संदर्भ संभवतः अप्रैल 1611 का है जब साइमन फोरमैन ने ऐसे ही एक नाटक को ग्लोब थियेटर में रिकॉर्ड किया था। यह पहली बार 1623 के फोलियो में प्रकाशित हुआ था जो संभवतः एक विशिष्ट अभिनय के लिए एक संवाद बताने वाली पुस्तक (प्रॉम्प्ट बुक) थी।
इस शोकान्त नाटक के लिए शेक्सपियर के स्रोत होलिंशेड्स क्रॉनिकल्स (1587) में स्कॉटलैंड, मैकडफ और डंकन के किंग मैकबेथ के संदर्भ हैं, यह रचना शेक्सपियर और उनके समकालीनों के लिए परिचित इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और आयरलैंड का इतिहास है। हालांकि, शेक्सपियर द्वारा बतायी गयी मैकबेथ की कहानी का स्कॉटिश इतिहास की वास्तविक घटनाओं से कोई संबंध नहीं है क्योंकि मैकबेथ एक प्रशंसित और सक्षम सम्राट थे।
रंगमंच के नेपथ्य की दुनिया में कुछ लोगों का मानना है कि यह नाटक अभिशप्त है और इसके शीर्षक का उल्लेख जोर देकर नहीं किया जाएगा, इसकी बजाय इसे "द स्कॉटिश प्ले" जैसे नामों से संदर्भित किया जाता है। सदियों से इस नाटक ने मैकबेथ और लेडी मैकबेथ की भूमिकाओं में कई महानतम अभिनेताओं को आकर्षित किया है। इसे फिल्म, टेलीविजन, ओपेरा, उपन्यास, हास्य पुस्तकें और अन्य मीडिया के लिए रूपांतरित किया गया है।
पात्र
डंकन - स्कॉटलैंड के सम्राट
मैल्कम - डंकन के ज्येष्ठ पुत्र
डोनलबैन - डंकन सबसे छोटा पुत्र
मैकबैथ - राजा डंकन की सेना का एक सेनापति, जो पहले ग्लैमिस का थेन उसके बाद कॉडोर का थेन और उसके बाद स्कॉटलैंड का राजा बना
लेडी मैकबैथ - मैकबैथ की पत्नी और बाद में स्कॉटलैंड की रानी
बैंको - मैकबैथ का दोस्त और राजा डंकन की सेना में एक सेनापति
फ्लींस - बैंको का पुत्र
मैकडफ - फाइफ का थेन
लेडी मैकडफ - मैकडफ की पत्नी
मैकडफ का पुत्र
रॉस, लेनोक्स, एंगस, मेंटीथ, कैथनेस - स्कॉटिश थेन
सिवार्ड - नॉर्थम्बरलैंड का अर्ल, अंग्रेजी सेना का सेनापति
युवा सिवार्ड - सिवार्ड का पुत्र
सेटन - मैकबैथ का नौकर और परिचर
हेकेटी - जादू टोने की देवी
तीन डायनें - मैकबेथ तथा बैंको के वंशजों के राजा होने की भविष्यवाणी करती हैं
तीन हत्यारे
पोर्टर (या मैसेंजर) - मैकबैथ के घर का द्वारपाल
स्कॉटिश डॉक्टर - लेडी मैकबेथ का चिकित्सक
कुलीन महिला - लेडी मैकबेथ की सेविका
कथासार
नाटक की पहली भूमिका गर्जन और बिजली के बीच शुरू होती है जहां तीन डायनें यह फैसला करती हैं कि उनकी अगली मुलाक़ात मैकबेथ के साथ होगी। अगले दृश्य में एक घायल सार्जेंट स्कॉटलैंड के राजा डंकन को यह सूचना देता है कि उनके सेनापति मैकबेथ (जो ग्लैमिस का थेन [एक सरदार] है) और बैंको ने अभी-अभी नॉर्वे और आयरलैंड की संयुक्त सेनाओं को हरा दिया है जिनका नेतृत्व गद्दार मैकडोनवाल्ड द्वारा किया जा रहा था। राजा के रिश्तेदार मैकबेथ की बहादुरी और युद्ध कौशल की प्रशंसा की जाती है।
दृश्य बदलता है। मौसम और अपनी जीत पर चर्चा करते हुए मैकबेथ और बैंको प्रवेश करते हैं ("इस कदर बुरा और साफ़ दिन मैंने नहीं देखा है"). जब वे एक झाड़ीदार मैदान में टहल रहे होते हैं, तीन डायनों का प्रवेश होता है जो उन्हें भविष्यवाणियों के साथ बधाई देने का इंतज़ार कर रही थीं। इसके बावजूद कि बैंको पहले उन्हें चुनौती देता है, वे मैकबेथ से मुखातिब होती हैं। पहली डायन मैकबेथ को "थेन ऑफ ग्लेमिस" बुलाती है, दूसरी उसे "थेन ऑफ कॉडोर" कहती है और तीसरी यह दावा करती है कि वह इसके बाद एक राजा बनेगा। मैकबेथ स्तब्ध हो कर मौन हो जाता है, इसलिए बैंको उन्हें फिर से चुनौती देता है। डायनें बैंको को बताती हैं कि वह कई राजाओं को जन्म देगा। (अर्थात उसकी संतानेें राजा बनेंगी ), हालांकि वह स्वयं राजा नहीं बनेगा. जबकि दोनों व्यक्ति इन घोषणाओं पर आश्चर्य डूबे होते हैं, डायनें गायब हो जाती हैं और एक अन्य थेन (सरदार), राजा का एक दूत रॉस वहां आता है और मैकबेथ को प्रदान की गयी नई उपाधि: थेन ऑफ कॉडोर के बारे में उसे सूचित करता है। इस प्रकार पहली भविष्यवाणी पूरी हो जाती है। इसके तत्काल बाद मैकबेथ अपने मन में राजा बनने की महत्वाकांक्षाएं विकसित करना शुरू कर देता है।
मैकबेथ डायनों की भविष्यवाणी के बारे में अपनी पत्नी को लिखता है। डंकन इन्वरनेस में मैकबेथ के महल में रात्रि भोज के लिए आता है और रात को वहीं ठहरता है। लेडी मैकबेथ उनकी हत्या करने के लिए अपने पति को उकसाती है और राजा की हत्या की एक योजना बनाती है। हालांकि मैकबेथ इस राज-हत्या पर अपनी चिंता जाहिर करता है, लेडी मैकबेथ उसकी मर्दानगी को चुनौती देकर अंततः उसे अपनी योजना का पालन करने के लिए मना लेती है।
राजा के आने की रात को मैकबेथ डंकन को मार देता है। यह कृत्य किसी की नजर में नहीं आता है, लेकिन यह मैकबेथ को इस कदर झकझोर देता है कि लेडी मैकबेथ को प्रभार लेने के लिए आगे आना पड़ता है। अपनी योजना के अनुसार वह खूनी खंजरों को डंकन के सोये हुए सेवकों के पास रखकर ह्त्या का आरोप उनके ऊपर मढ़ देती है। अगली सुबह सबेरे स्कॉटलैंड के एक रईस, लेनोक्स और फाइफ का वफादार सरदार मैकडफ वहां पहुंचते हैं। एक दरबान द्वार खोलता है और मैकबेथ उन्हें राजा के कक्ष की ओर ले जाता है जहां मैकडफ को डंकन की लाश का पता चलता है। इससे पहले कि रक्षक अपनी बेगुनाही के लिए प्रतिरोध कर सकें एक बनावटी गुस्से का भाव बनाकर मैकबेथ उनकी ह्त्या कर देता है। मैकडफ को तुरंत मैकबेथ पर संदेह हो जाता है लेकिन वह अपनी आशंका को सार्वजनिक रूप से प्रकट नहीं करता है। अपने जीवन के भय से डंकन के बेटों में से मैल्कम, इंग्लैंड और डोनलबैन आयरलैंड भाग जाते हैं। असली वारिस का पलायन उन्हें संदिग्ध बना देता है और मैकबेथ मृत राजा के एक संबंधी के रूप में स्कॉटलैंड का नया राजा बनकर राजगद्दी पर बैठ जाता है।
अपनी सफलता के बावजूद मैकबेथ बैंको की भविष्यवाणी को लेकर असहज बना रहता है। इसलिए मैकबेथ उन्हें एक शाही भोज के लिए आमंत्रित करता है और उसे पता चलता है कि बैंको और उनका जवान बेटा फ्लींस उसी रात को बाहर चले जाएंगे. वह दो व्यक्तियों को उन्हें मारने का काम देता है जबकि एक तीसरा कातिल भी हत्या से पहले पार्क में प्रकट होता है। जबकि हत्यारे बैंको को मार देते हैं, फ्लींस भाग जाता है। बैंको का भूत भोज में प्रवेश करता है और मैकबेथ की जगह बैठ जाता है। केवल मैकबेथ ही इस काली छाया को देख सकता है; एक खाली कुर्सी पर भड़कते हुए मैकबेथ की दृष्टि में आतंक छा जाता है जब हताश लेडी मैकबेथ उसे वहां से चले जाने का आदेश देती है।
परेशान मैकबेथ एक बार फिर तीनों डायनों से मिलता है। वे तीन अतिरिक्त चेतावनियों और भविष्यवाणियों के साथ अपने जादू से तीन आत्माओं को प्रकट करती हैं जो उसे "मैकडफ से सावधान" रहने के लिए कहती हैं लेकिन साथ ही यह भी कहती हैं कि "किसी भी महिला से पैदा हुआ व्यक्ति मैकबेथ को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा" और वह "कभी पराजित नहीं होगा जब तक कि ऊंची डनसिनेन हिल का ग्रेट बिर्नम वुड उसके खिलाफ नहीं आ जाएगा. चूंकि मैकडफ इंग्लैंड में निर्वासन में है, मैकबेथ मानता है कि वह सुरक्षित है; इसलिए वह मैकडफ की पत्नी और उनके छोटे बच्चों सहित मैकडफ के महल में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति को मार देता है।
लेडी मैकबेथ अपने और अपने पति द्वारा किये गए अपराधों के बोझ से विक्षिप्त सी हो जाती है। वह हर समय उन भयानक बातों को दोहराती रहती है, नींद में चलने लगती है और अपने हाथों से काल्पनिक खून के धब्बों को धोने की कोशिश करती है।
इंग्लैंड में मैकडफ को रॉस द्वारा सूचित किया जाता है कि "आपका महल आश्चर्यचकित है; आपकी पत्नी और बच्चों की क्रूरतापूर्वक ह्त्या कर दी गयी है।" मैकबेथ अब एक तानाशाह के रूप में देखा जाता है और उसके कई सरदार उसे छोड़कर चले जाते हैं। मैल्कम मैकडफ और अंग्रेज सिवार्ड (द एल्डर), नॉर्थम्बरलैंड के अर्ल के साथ डनसिनेन कैसल के खिलाफ एक सेना का नेतृत्व करता है। जबकि बर्नम वुड में डेरा डालकर बैठे सैनिकों को पेड़ों की टहनियों को काटकर और उन्हें साथ लेकर अपनी संख्या को छिपाने का आदेश दिया जाता है, इस प्रकार डायनों की तीसरी भविष्यवाणी पूरी होती है। इस बीच मैकबेथ लेडी मैकबेथ की मौत की अपनी सीख पर एक आत्मचिंतन ("कल, कल और कल") करता है (कारण नहीं बताया जाता है और कुछ लोगों को लगता है कि उन्होंने आत्महत्या कर ली थी, क्योंकि उनके बारे में माल्कॉम के आख़िरी संदर्भ से पता चलता है "यह विचार, अपने और हिंसक हाथों ने / उनकी जान ली थी").<ref>{{cite web |url=http://www.shakespeare-navigators.com/macbeth/T58.html#71 |title=Macbeth, Act 5, Scene 8, Lines 71-72 |publisher=shakespeare-navigators.com |access-date=8 मार्च 2011 |archive-url=https://web.archive.org/web/20101220042637/http://shakespeare-navigators.com/macbeth/T58.html#71 |archive-date=20 दिसंबर 2010 |url-status=dead }}</ref>
लड़ाई युवा सिवार्ड की ह्त्या और मैकबेथ के साथ मैकडफ के टकराव के रूप में खत्म होती है। मैकबेथ अहंकार के साथ दावा करता है कि उसे डरने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि वह किसी भी औरत से पैदा हुए व्यक्ति से मारा नहीं जा सकता है। मैकडफ यह घोषणा करता है कि वह "अपनी माँ की कोख से / समय से पहले चीरा लगाकर पैदा हुआ था" (यानी, सीजेरियन सेक्शन से पैदा हुआ) और इस तरह "किसी महिला से पैदा नहीं हुआ था" (यह साहित्यिक घमंड का एक उदाहरण है). बहुत देर बाद मैकबेथ को एहसास होता है कि उसने डायनों की बातों का गलत अर्थ निकाल लिया है। मैकडफ नेपथ्य से मैकबेथ का सिर काट देता है और इस तरह अंतिम भविष्यवाणी को पूरा करता है।
हालांकि फ्लींस नहीं बल्कि माल्कॉम सिंहासन पर बैठता है, बैंको के संदर्भ में डायनों की भविष्यवाणी, "तुम राजाओं को बनाने में मदद करोगे" के बारे में शेक्सपियर के समय के दर्शकों को सच मालूम होता है, क्योंकि स्कॉटलैंड के जेम्स VI (बाद में इंग्लैंड के जेम्स I भी) को भी बैंको का एक वंशज माना गया था।
स्रोत मैकबेथ की तुलना शेक्सपियर के एंटनी और क्लियोपेट्रा से की गयी है। पात्रों के रूप में एंटनी और मैकबेथ दोनों, यहां तक कि एक पुरानी दुनिया की कीमत पर भी एक नई दुनिया चाहते हैं। दोनों एक सिंहासन के लिए लड़ते हैं और उस सिंहासन को प्राप्त करने में एक 'अभिशाप' का सामना करते हैं। एंटनी के लिए अभिशाप है ओक्टावियस और मैकबेथ के लिए बैंको. एक स्थान पर मैकबेथ स्वयं अपनी तुलना एंटनी से करते हुए कहता है "बैंको के तहत / मेरी प्रतिभा की कोई कीमत है, जैसा कि कहा जाता है / मार्क एंटनी की सीजर से अधिक थी।" अंततः दोनों नाटकों में शक्तिशाली और चालाक महिला चरित्र शामिल हैं: क्लियोपेट्रा और लेडी मैकबेथ.
शेक्सपियर ने यह कहानी होलिंशेड्स क्रॉनिकल्स की कई कथाओं से प्राप्त की जो शेक्सपियर और उनके समकालीनों को ज्ञात ब्रिटिश द्वीपों का एक लोकप्रिय इतिहास है। क्रॉनिकल्स में डोनवाल्ड नामक एक व्यक्ति अपने राजा किंग डफ द्वारा डायनों के संपर्क में आकर मौत के घाट उतारे गए अपने परिवार के कई लोगों की खोज करता है। अपनी पत्नी द्वारा दबाव डाले जाने के बाद वह और उसके चार सेवक राजा को उसके घर में ही मार डालते हैं। क्रॉनिकल्स में मैकबेथ को राजा डंकन की अयोग्यता की स्थिति में साम्राज्य को सहयोग देने वाले एक संघर्षरत व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है। वह और बैंको तीन डायनों से मिलते हैं जो शेक्सपियर के संस्करण की ही तरह बिल्कुल वही भविष्यवाणियां करती हैं। उसके बाद लेडी मैकबेथ की बातों पर मैकबेथ और बैंको एक साथ डंकन की ह्त्या की योजना बनाते हैं।
मैकडफ और मॉल्कम द्वारा अंततः तख्तापलट किये जाने से पहले मैकबेथ का एक लंबा दस साल का शासन रहा है। दोनों संस्करणों के बीच समानताएं स्पष्ट हैं। हालांकि कुछ विद्वानों का मानना है कि जॉर्ज बुकानन की रेरम स्कॉटिकेरम हिस्टोरिया शेक्सपियर के संस्करण से और अधिक मेल खाती है। बुकानन के कार्य शेक्सपियर के दिनों में लैटिन भाषा में उपलब्ध थे।
कहानी के किसी भी अन्य संस्करण में मैकबेथ ने अपने स्वयं के महल में राजा की ह्त्या नहीं की है। विद्वानों ने शेक्सपियर के इस बदलाव को मैकबेथ के अपराध के अंधेरे पक्ष को आतिथ्य के सबसे बुरे अपराध के रूप में जोड़े जाते हुए देखा है। उस समय आम तौर पर मौजूद कहानी के संस्करणों में डंकन महल में नहीं बल्कि इन्वरनेस में घात लगाकर मारा जाता है। शेक्सपियर ने डोनवाल्ड और किंग डफ की कहानी को इस प्रकार गूंथ कर मिला दिया जो कहानी के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव साबित हुआ।
शेक्सपियर ने एक और खुलासा करने वाला बदलाव किया है। क्रॉनिकल्स में बैंको मैकबेथ द्वारा किंग डंकन की हत्या में उसका एक साथी है। वह इस तथ्य को सुनिश्चित करने में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि मॉल्कम नहीं बल्कि मैकबेथ बाद में हुए अप्रत्याशित तख्तापलट में सिंहासन को हासिल करता है। शेक्सपियर के समय में बैंको को स्टुअर्ट किंग जेम्स का प्रत्यक्ष पूर्वज माना जाता था।स्टुअर्ट के वंशज के रूप में बैंको की वंशावली को 19वीं सदी में गलत साबित कर दिया गया जब यह तथ्य सामने आया कि फिटजालन लोग वास्तव में ब्रेटोन परिवार के वंशज थे। ऐतिहासिक स्रोतों में चित्रित बैंको शेक्सपियर द्वारा रचित बैंको से काफी अलग है। आलोचकों ने इस बदलाव के लिए कई कारण बताये हैं। सबसे पहले राजा के पूर्वज को एक खूनी के रूप में चित्रित करना जोखिम भरा हो सकता था। बैंको के बारे में लिखने वाले उस समय के अन्य लेखकों जैसे कि जीन डे शेलांद्रे ने भी संभवतः इसी कारण से अपनी रचना स्टुअर्टाइड में बैंको को एक खूनी नहीं बल्कि एक कुलीन व्यक्ति के रूप में चित्रित कर इतिहास को बदला है। दूसरा यह कि शेक्सपियर ने सिफ इसलिए बैंको के पात्र में बदलाव किया हो सकता है कि ह्त्या के लिए अन्य साथी के रूप में किसी नाटकीय पात्र की कोई जरूरत नहीं थी; हालांकि मैकबेथ को एक नाटकीय बदलाव दिए जाने की जरूरत थी - एक ऐसी भूमिका जिसके बारे में कई विद्वानों का तर्क है कि बैंको द्वारा पूरी की गयी है।
तिथि और पाठ्य सामग्री मैकबेथ को बाद के संशोधनों के महत्वपूर्ण प्रमाण के कारण निश्चित रूप से दिनांकित नहीं किया जा सकता है। कई विद्वानों का अनुमान है कि इसकी रचना की संभावित तिथि 1603 और 1606 के बीच है।ए.आर. ब्रौन्मुलर, एड. मैकबैथ (कप, 1997), 5-8. जिस तरह यह नाटक 1603 में किंग जेम्स के पूर्वजों और स्टुअर्ट के सिंहासन पर बैठने का जश्न मानता हुआ प्रतीत होता है (जेम्स स्वयं मानते थे कि उन्हें बैंको का उत्तराधिकार प्राप्त हुआ था), वे यह तर्क देते हैं कि इस नाटक की रचना 1603 से पहले होने की संभावना नहीं है और यह सुझाव देते हैं कि आठ राजाओं की परेड -- जिसे डायनें मैकबेथ को भूमिका IV के एक दृश्य में दिखाती है -- यह किंग जेम्स को संपूरित है। अन्य संपादकों ने एक अधिक विशिष्ट तिथि 1605-6 का अनुमान लगाया है, जिसका प्रमुख कारण बारूद की कथावस्तु का संभावित संकेत और इसके फलस्वरूप बनी निशानियां है। विशेष रूप से दरबान की बातों में (भूमिका II, दृश्य III, लाइन 1-21) 1606 की बसंत में जेसुइट हेनरी गार्नेट की मुसीबतों के संकेत शामिल हो सकते हैं; "गोल-मोल कर कही गयी बात" (लाइन 8) का संदर्भ गार्नेट की "गोल-मोल बातों" [देखें: मानसिक अवरोध का सिद्धांत] और गार्नेट के उपनामों में से एक "फार्मर (किसान)" (4) के बचाव में हो सकता है। हालांकि "फार्मर (किसान)" एक आम शब्द है और "गोल-मोल बात" भी क्वीन एलिजाबेथ के मुख्य सलाहकार लॉर्ड बर्घले के द्वारा 1583 की एक पुस्तक और स्पेनिश प्रधान पादरी मार्टिन एज्पिलकुएटा द्वारा रचित 1584 की डॉक्टराइन ऑफ एक्विवोकेशन का विषय था जिसे 1590 के दशक में पूरे यूरोप और इंग्लैंड में प्रचारित किया गया था।
विद्वान 1605 की गर्मी में ऑक्सफोर्ड में किंग जेम्स द्वारा एक मनोरंजक दृश्य को भी उद्धृत करते हैं जिसमें जादूगरनी बहनों की तरह तीन "डायनों" को दिखाया गया था; करमोडे का अनुमान है कि शेक्सपियर ने इसके बारे में सुना होगा और जादूगरनी बहनों के साथ प्रसंगवश इसका उल्लेख किया होगा। हालांकि न्यू कैम्ब्रिज संस्करण में ए.आर. ब्राउनमुलर 1605-6 तर्क को अनिर्णायक पाते हैं और सिर्फ 1603 की एक सबसे प्रारंभिक तिथि की बात करते हैं। इस नाटक को 1607 के बाद लिखा गया नहीं माना जाता है क्योंकि जैसा कि करमोड उल्लेख करते हैं "1607 में इस नाटक के काफी स्पष्ट संकेत मौजूद हैं।" इस नाटक के प्रदर्शन का सबसे पहला संदर्भ अप्रैल 1611 का है जब साइमन फोरमैन ने इसे ग्लोब थियेटर में देखकर दर्ज किया था।मैकबेथ को सबसे पहले 1623 के फर्स्ट फोलियो में मुद्रित किया गया था और यह फोलियो इस पाठ्य सामग्री का एकमात्र स्रोत है। जो पाठ्य सामग्री अस्तित्व में है उसे बाद के लोगों द्वारा सीधे तौर पर बदल दिया गया था। सबसे उल्लेखनीय थॉमस मिडलटन के नाटक द विच (1615) में दो गानों को शामिल किया जाना है; अनुमान लगाया जाता है कि मिडलटन ने डायनों और हेकेटी को शामिल कर एक अतिरिक्त दृश्य जोड़ा था, क्योंकि ये दृश्य दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय हुए थे। इन संशोधनों को जिन्हें 1869 के क्लेयरडन के संस्करण के बाद से भूमिका III, दृश्य v की संपूर्ण हिस्से और भूमिका IV, दृश्य I के एक हिस्से को शामिल किया गया माना जाता है, इन्हें अक्सर आधुनिक पाठ्य सामग्रियों में दर्शाया जाता है। इस आधार पर कई विद्वान देवी हेकेटी के साथ सभी तीन तमाशों को अप्रामाणिक मानकर अस्वीकार करते हैं। यहाँ तक की हेकेटी की सामग्री के साथ भी नाटक सुस्पष्ट रूप से छोटा है और इसलिए फोलियो का पाठ एक संवाद पुस्तक से लिया गया है जिसमें अभिनय के लिए काफी काट-छांट की गयी है या यह पाठ स्वयं एक अनुकूलित कर काटा गया अंश है।
विषय-वस्तु और रूपांकन मैकबेथ शेक्सपियर के शोकान्त नाटकों में कुछ आलोचनात्मक रूप से एक विसंगति है। संक्षेप में: यह ओथेलो और किंग लीयर से एक हजार से अधिक लाइन कम और हेमलेट से केवल आधे से थोड़ा अधिक लंबा है। यह संक्षिप्तता कई आलोचकों को यह बताती है कि प्राप्त संस्करण एक भारी काट-छांट वाले संस्करण पर आधारित है जो संभवतः किसी विशेष प्रदर्शन के लिए एक संवाद-पुस्तक के रूप में होगा। इस संक्षिप्तता को अन्य असामान्य विशेषताओं से भी जोड़ा गया है: पहली भूमिका का पहला अंश, जो ऐसा लगता है कि "एक्शन के लिए उजागर किया गया" है; मैकबेथ के अलावा अन्य पात्रों की तुलनात्मक सरलता; शेक्सपियर के अन्य दुखांत नायकों की तुलना में स्वयं मैकबेथ की विचित्रता.
पात्र के एक शोकान्त रूप में
कम से कम अलेक्जेंडर पोप और शैमुअल जॉनसन के दिनों से इस नाटक का विश्लेषण मैकबेथ की महत्त्वाकांक्षा के सवाल पर केंद्रित रहा है जिसे आम तौर पर कहानी पर इस कदर हावी देखा जाता है कि यह पात्र को पारिभाषित कर देता है। जॉनसन ने कहा था कि हालांकि मैकबेथ को उसकी सैन्य बहादुरी के लिए सम्मानित किया जाता है लेकिन पूरी तरह से धिक्कारा जाता है। यह विचार आलोचनात्मक साहित्य में बार-बार आता है और कैरोलीन स्पर्जन के अनुसार यह स्वयं शेक्सपियर द्वारा समर्थित है जो जाहिर तौर पर अपने नायक को नीचा दिखाना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने उसके लिए अनुपयुक्त पहनावे में रखते हैं और उनके द्वारा प्रयोग किये गए कई निमिज्म में मैकबेथ को हास्यास्पद दिखाना चाहते हैं; उसके कपड़े या तो उसके लिए बहुत बड़े या बहुत छोटे हैं - जिस तरह राजा के रूप में उसकी नई और सही भूमिका के लिए उसकी महत्त्वाकांक्षा बहुत बड़ी है और उसका चरित्र बहुत छोटा है। जब डायनों की भविष्यवाणी के अनुसार कॉडोर के थेन की अपनी नई उपाधि के बाद वह अपने आप को "उधार के कपड़े पहने" महसूस करता है, जिसकी पुष्टि रॉस द्वारा की गयी है (I, 3, II. 108-109), बैंको कहता है: "संयोगवश उसे मिलने वाले नए सम्मान हमारे अजीब वस्त्रों की ही तरह, उसके नाप के नहीं हैं, इसलिए उन्हें कुछ चीजों की सहायता से पहना जाता है" (I, 3, II. 145-146). और अंत में, जब तानाशाह डनसिनेन में पलट कर मुकाबला करने को बाध्य होता है, कैथनेस उसे एक बड़े वस्त्र को एक बहुत ही छोटी बेल्ट से बांधने की व्यर्थ कोशिश करने वाले आदमी के समान देखता है: "वह अपने विकृत कारण को नियंत्रित (बकल) नहीं कर सकता है / शासन समान बेल्ट के द्वारा" (V, 2, II. 14-15), जबकि एंगस इसी तरह के एक उदाहरण में इस प्रकार का सार प्रस्तुत करते हैं जो मैकबेथ के सतारूढ़ होने के बाद हर होई सोचता है: क्या अब उसे अपनी उपाधि अपने लिए काफी बड़ी दिखाई दे रही है, ठीक उसी तरह जैसे एक विशालकाय व्यक्ति का लबादे एक ठिगने चोर के ऊपर" (V, 2, II. 18-20).
रिचर्ड III की तरह लेकिन उस चरित्र के विकृत रूप से आकर्षक आधिक्य के बिना मैकबेथ अपने अपरिहार्य पतन तक खून से लथपथ रहता है। जैसा कि केनेथ मुइर लिखते हैं, "मैकबेथ की प्रवृत्ति हत्या करने की नहीं होती है; उसकी सिर्फ एक अत्यधिक महत्त्वाकांक्षा है जो अपने आप में ऐसा लगता है कि ह्त्या को राजगद्दी पाने में विफलता की तुलना में एक छोटा पाप है। कुछ आलोचक जैसे कि ई.ई. स्टॉल इस चरित्र चित्रण को सेनेकन या मध्ययुगीन परंपरा के एक अवशेष के रूप में वर्णन करते हैं। शेक्सपियर के दर्शक इस नजरिये से खलनायकों से पूरी तरह दुष्ट होने की अपेक्षा रखते हैं और सेनेकन शैली एक खलनायक जैसे नायक से बचने से काफी दूर है, लेकिन सबने इसकी मांग की थी।
अभी तक अन्य आलोचकों के लिए मैकबेथ की प्रेरणा के सवाल को हल करना इतना आसान नहीं रहा है। उदाहरण के लिए रॉबर्ट ब्रिजेज ने एक विरोधाभास को महसूस किया था: डंकन की ह्त्या से पहले इस तरह के यथार्थपूर्ण आतंक को व्यक्त करने में सक्षम एक पात्र संभवतः इस तरह के अपराध को अंजाम देने में असमर्थ होगा. कई आलोचकों के लिए पहली भूमिका में मैकबेथ की प्रेरणाएं अस्पष्ट और अपर्याप्त दिखाई देती हैं। जॉन डोवर विल्सन की परिकल्पना यह थी कि शेक्सपियर के मूल पाठ में एक या अनेक अतिरिक्त दृश्य थे जहां पति और पत्नी ने अपनी योजनाओं पर बहस किया था। इस व्याख्या पूरी तरह से साध्य नहीं है; हालांकि मैकबेथ की महत्त्वाकांक्षा की भूमिका की प्रेरक भूमिका को सार्वभौमिक मान्यता प्राप्त है। उसकी महत्त्वाकांक्षा से प्रेरित दुष्टता के कार्य उसे एक बढ़ती दुष्टता के चक्र में उलझाते हुए प्रतीत होते हैं, जैसा कि मैकबेथ स्वयं अपनी पहचान करता है: "मैं खून में हूँ/इतनी दूर बढ़ गया कि मुझे और अधिक आगे नहीं बढ़ना चाहिए/वापस लौटना उतना ही कठिन था जितना कि आगे बढ़ना."
नैतिक व्यवस्था के एक दुखांत नाटक के रूप में
मैकबेथ की महत्त्वाकांक्षा के विनाशकारी परिणाम उसी तक सीमित नहीं हैं। नाटक में लगभग हत्या के समय से ही स्कॉटलैंड को स्वाभाविक व्यवस्था के विपरीत घटनाओं से विचलित देश के रूप में दर्शाया गया है। शेक्सपियर का इरादा जीवन की एक महान शृंखला का संदर्भ देने का रहा हो सकता है हालांकि नाटक की अव्यवस्था की छवियां ज्यादातर उतने विशिष्ट नहीं हैं कि ये विस्तृत बौद्धिक पाठ्य सामग्री का समर्थन कर सकें. उनका इरादा राजाओं के दिव्य अधिकारों में जेम्स के विश्वास का सविस्तार प्रशंसा करने का भी रहा होगा, हालांकि यह परिकल्पना जो हेनरी. एन पॉल द्वारा सबसे अधिक लंबाई में उल्लिखित है, सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य नहीं है। हालांकि जिस तरह जूलियस सीज़र में राजनीतिक क्षेत्र में अव्यवस्थाएं प्रतिध्वनित होती हैं और यहाँ तक कि भौतिक जगत की घटनाओं द्वारा परिलक्षित होती है। स्वाभाविक व्यवस्था के व्युत्क्रम का सबसे अधिक बार किया गया चित्रण है नींद. मैकबेथ की यह घोषणा कि उसने "नींद को मार दिया" है जिसका लाक्षणिक प्रतिबिंब लेडी मैकबेथ द्वारा नींद में चलने में नजर आता है।
मध्ययुगीन दुखांत नाटक के लिए मैकबेथ के आम तौर पर स्वीकार्य आभार को अक्सर नाटक में नैतिक व्यवस्था के वर्णन में महत्वपूर्ण रूप में देखा जाता है। ग्लेन विकहम इस नाटक को दरबान के माध्यम से नरक के खौफनाक कथानक पर एक रहस्मय नाटक से जोड़ते हैं। हावर्ड फेल्परीन का तर्क है कि नाटक की अक्सर स्वीकार्य स्थिति की तुलना में "रूढ़िवादी ईसाई दुखांत नाटक" की ओर एक कहीं अधिक जटिल प्रवृत्ति है; वे नाटक और मध्ययुगीन पूजन संबंधी ड्रामा के भीतर तानाशाह भूमिकाओं के बीच एक संबंध देखते हैं।
उभयलिंगी विषय-वस्तु को अक्सर विकार के विषय के एक विशेष पहलू के रूप में देखा जाता है। मानक लिंगी भूमिकाओं के उलट भूमिकाएं सबसे अधिक मशहूर रूप से डायनों और लेडी मैकबेथ साथ जुडी हुई हैं जिस तरह वह पहली भूमिका में दिखाई देती है। ऐसे व्युत्क्रमों के साथ शेक्सपियर की सहानुभूति चाहे जिस श्रेणी की रही हो, नाटक मानक लिंगी मूल्यों की ओर पूरी तरह से वापसी के साथ समाप्त होता है। कुछ नारीवादी मनोविश्लेषणात्मक आलोचक जैसे की जेनेट एडेलमन ने लिंगी भूमिकाओं के साथ नाटक के आचरण को विपरीत स्वाभाविक व्यवस्था की इसकी बड़ी विषय-वस्तु से जोड़ा है। इस आलोक में मैकबेथ को उसके द्वारा नैतिक व्यवस्था के अतिक्रमण के लिए प्रकृति के चक्र से हटाकर दण्डित किया जाता है (जिसे महिला के रूप में दर्शाया गया है); प्रकृति स्वयं (जैसा की बिर्नम वुड की गतिविधि में सन्निहित है) नैतिक व्यवस्था की बहाली का हिस्सा है।
एक काव्यात्मक दुखांत नाटक के रूप में
बीसवीं सदी के शुरू में आलोचकों ने स्थिति के खिलाफ प्रतिक्रिया व्यक्त की थी जिसे उन्होंने नाटक की आलोचना में चरित्र के अध्ययन पर एक अत्यधिक निर्भरता के रूप में देखा था। हालांकि यह निर्भरता सबसे अधिक करीबी तौर पर एंड्रयू सेसिल ब्रैडली से संबद्ध है जो कम से कम मैरी काउडन क्लार्क के समय तक स्पष्ट हो जाती है जिन्होंने शेक्सपियर की प्रमुख महिला भूमिकाओं के नाटक-पूर्व जीवन के संदर्भ में सटीक, अगर काल्पनिक विवरण प्रस्तुत किया। उदाहरण के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि बालिका लेडी मैकबेथ पहली भूमिका में एक मूर्खतापूर्ण सैन्य कार्यवाही के दौरान मृत्यु को संदर्भित करती है।
जादू-टोना और दुष्टता
नाटक में तीन डायनें अंधेरा, अराजकता और संघर्ष का प्रतिनिधित्व करती हैं जबकि उनकी भूमिका एजेंटों और गवाहों के रूप में है। उनकी उपस्थिति राजद्रोह और आसन्न कयामत सा संदेश देती है। शेक्सपियर के समय के दौरान डायनों को विद्रोहियों से भी बदतर रूप में देखा जाता था, "जो सबसे अधिक कुख्यात विश्वासघाती और राजद्रोही हो सकती हैं।" वे ना केवल राजनीतिक गद्दार थे बल्कि आध्यात्मिक रूप में भी धोखेबाज थीं। उनकी ओर से उत्पन्न होने वाली ज्यादातर भ्रम की स्थिति वास्तविकता और अलौकिक के बीच नाटक की सीमाओं के दोनों ओर पैर फैलाकर बैठने की उनकी क्षमता से आती है। वे दोनों दुनिया में इतनी गहराई से सुरक्षित हैं कि यह स्पष्ट नहीं होता है कि वे भाग्य को नियंत्रित करती हैं या क्या वे सिर्फ इसके एजेंट हैं। वे वास्तविक दुनिया के नियमों के अधीन नहीं होने के कारण तर्क की अवहेलना करती हैं।
पहली भूमिका में डायनों की पंक्तियां: "सचाई बेईमानी है और बेईमानी उचित है: कोहरे और दूषित हवा के आसपास से होकर जाओ" इसे अक्सर एक भ्रम की भावना के रूप में व्यवस्थित करते हुए नाटक के बाकी हिस्से के लिए एक निर्धारित टोन कहा जाता है। दरअसल नाटक ऐसी परिस्थितियों से भरपूर है जहां दुष्टता को अच्छाई के रूप में चित्रित किया गया है जबकि अच्छाई को दुष्टता का रूप दिया गया है। पंक्ति "दोहरा, दोहरा परिश्रम और मुसीबत," (इसे अक्सर इस कदर उत्तेजक बना दिया जाता है कि यह अपना अर्थ खो देता है) डायनों की मंशा का स्पष्ट रूप से संदेश देती है: वे अपने आसपास के मनुष्यों के लिए केवल मुसीबत चाहती हैं।
जबकि डायनें मैकबेथ को प्रत्यक्ष रूप से राजा डंकन को मारने के लिए नहीं कहती हैं, वे एक प्रलोभन के सूक्ष्म रूप का प्रयोग करती हैं जब वे मैकबेथ को यह कहती हैं कि उसकी किस्मत में राजा बनना लिखा है। उसके मन में इस विचार को स्थापित कर वे उसके अपने विनाश के मार्ग के पर प्रभावी रूप से निर्देशित करती हैं। यह एक ऐसे प्रलोभन की पद्धति का अनुसरण करता है जिसे कई लोग शेक्सपियर के समय में प्रयोग किए गए शैतान के रूप में मानते हैं। उन्होंने तर्क दिया कि सबसे पहले किसी व्यक्ति के मन में एक विचार भर दिया जाता है, फिर वह व्यक्ति या तो इस विचार में लिप्त हो जाता है या इसे अस्वीकार कर देता है। मैकबेथ इसमें लिप्त हो जाता है जबकि बैंको इसे खारिज कर देता है।
रूपक के रूप में
जे.ए. ब्रायंट जूनियर के अनुसार मैकबेथ को एक रूपक भी समझा जा सकता है विशेषकर बाइबिल के पुराने और नए विधान के अंशों के लिए रूपक के रूप में. सम क्रिश्चियन आस्पेक्ट्स ऑफ शेक्सपियर से:
ब्रायंट राजा डंकन की हत्या और ईसा मसीह की हत्या के बीच कुछ गहरी समानताओं की खोज में चले जाते हैं जबकि लेकिन एक आकस्मिक प्रेक्षक के लिए नाटक में बाइबिल संबंधी अन्य रूपकों का उल्लेख करना कही आसान होता है। मैकबेथ का पतन काफी हद तक जेनेसिस 3 में आदमी के पतन के समान है और सलाह के लिए डायनों के पास उसकी वापसी 1 शैमुअल 28 में राजा शाऊल की कहानी के प्रत्यक्ष रूप से समानांतर है। शेक्सपियर के दर्शकों ने इन्हें तुरंत उठा लिया होगा और नाटक एवं बाइबिल के बीच आगे के समानांतरों की जांच इस लेखन के लिए शेक्सपियर के इरादों में अतिरिक्त अंतर्दृष्टि प्रस्तुत करता है।
अंधविश्वास और "स्कॉटिश नाटक"
हालांकि बहुत से लोग आज सीधे तौर पर संयोग के एक निर्माण के आसपास किसी दुर्भाग्य की बात करेंगे, अभिनेता और रंगमंच के अन्य लोग अक्सर रंगमंच के भीतर मैकबेथ के नाम का उल्लेख करना एक बदकिस्मती मानते हैं और कभी-कभी इसे अप्रत्यक्ष रूप से संदर्भित करते हैं। उदाहरण के लिए "द स्कॉटिश प्ले", या "मैकबी", या जब पात्र का संदर्भ देना हो ना कि नाटक का, "मिस्टर एंड मिसेज एम" या "द स्कॉटिश किंग" का प्रयोग.
ऐसा इसलिए हैं क्योंकि कहा जाता है कि शेक्सपियर ने अपनी रचना में असली डायनों की उक्तियों का इस्तेमाल किया था जिसने कथित रूप से डायनों को नाराज कर दिया अथा और इसी कारण से यह नाटक अभिशप्त हो गया था। इस प्रकार किसी थिएटर के अंदर नाटक के नाम का प्रयोग निर्माण की विफलता की स्थिति तक विनाशकारी माना जाता है और संभवतः अभिनय वर्ग के सदस्यों को शारीरिक चोट लगाने या मृत्यु का कारण बन सकता है। मैकबेथ के संचालन के दौरान (या इस नाम का उच्चारण करने वाले अभिनेताओं) दुर्घटनाओं, दुर्भाग्यों और यहाँ तक कि मौत की घटनाओं की कहानियां मौजूद हैं।
स्वयं को इस अंधविश्वास से जोड़ने वाली एक विशेष घटना थी एस्टर प्लेस का दंगा. क्योंकि इन दंगों का कारण मैकबेथ के दो अभिनय प्रदर्शनों के एक संघर्ष पर आधारित था, इसे अक्सर अभिशाप के कारण हुआ माना जाता है।
अभिनेता के आधार पर इस अभिशाप को मिटाने के लिए कई तरीके मौजूद हैं। माइकल यॉर्क से संबंधित एक तरीका है, जिस व्यक्ति ने इस नाम का उच्चारण किया है उसके साथ उस भवन को तुरंत छोड़ देना जहां वह स्टेज बना है, तीन बार उसके चारों ओर घूमना, उसके बाएं कंधे पर थूकना, एक अश्लीलता की बात कहना और उसके बाद भवन में वापस आमंत्रित किये जाने के लिए प्रतीक्षा करना है। एक संबंधित अभ्यास जितनी तेजी से संभव हो उस स्थान पर तीन बार चारों ओर घूमना, जिसके साथ कभी-कभी उनके कंधों पर थूकना और एक अश्लील बात कहना है। एक अन्य लोकप्रिय "रिवाज" है कमरे को छोड़ देना, तीन बार दस्तक देना, आमंत्रित किया जाना और उसके बाद हेमलेट की एक पंक्ति बोलना. इसके अलावा एक और रिवाज है द मर्चेंट ऑफ वेनिस की पंक्तियों को सुनाना, जिसे एक सौभाग्यशाली नाटक माना जाता है।
प्रदर्शन का इतिहास
शेक्सपियर के दिन
फोरमैन के दस्तावेज़ में वर्णित के अलावा शेक्सपियर के युग के अभिनय प्रदर्शनों का कोई भी उदाहरण निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है। इसके स्कॉटिश विषय की वजह से इस नाटक को कभी-कभी किंग जेम्स के लिए लिखा गया और संभवतः उनके लिए शुरू किया गया कहा जाता है; हालांकि कोई भी बाहरी प्रमाण इस परिकल्पना का समर्थन नहीं करता है। नाटक की संक्षिप्तता और इसके मंचन के कुछ पहलुओं (उदाहरण के लिए, रात के समय का अधिकांश हिस्सा और असामान्य रूप से बड़ी संख्या में नेपथ्य की आवाजें) के बारे में बताया जाता है कि वर्तमान पाठ को संभवतः उस ब्लैकफ्रायर्स थियेटर में इनडोर निर्माण के लिए संशोधित किया गया था जिसे राजा के लोगों ने 1608 में प्राप्त किया था।
रेस्टोरेशन और 18वीं सदी
रेस्टोरेशन में सर विलियम डेवनेंट ने एक मैकबेथ के एक शानदार "ओपेरा संबंधी" रूपांतरण का निर्माण किया था जिसमें "सभी गानों और नृत्यों" और "डायनों के लिए उड़ने" जैसे स्पेशल इफेक्ट्स का प्रयोग किया गया था (जॉन डॉनेस, रोसियस एन्ग्लिकेनस, 1708). डेवनैंट ने संशोधन ने लेडी मैकडफ की भूमिका को भी बढ़ाया था जिसने उसे लेडी मैकबेथ के लिए विषयगत रुकावट बना दिया था। 19 अप्रैल 1667 को अपनी डायरी में एक प्रविष्टि में सैमुअल पेपीज ने डेवनैंट के मैकबेथ को "रंगमंच के लिए सर्वश्रेष्ठ नाटकों में से एक और नृत्य एवं संगीत की विविधता से भरपूर, जिसे मैंने कभी देखा है" कहा. डेवनैंट के संस्करण ने अगली सदी के मध्य तक मंच पर अपना वर्चस्व बनाए रखा। 18वीं सदी की शुरुआत के प्रसिद्ध मैकबैथ जैसे कि जेम्स क्वीन ने इस संस्करण का प्रयोग किया था।
चार्ल्स मैकलिन जिन्हें अन्यथा एक महान मैकबेथ के रूप में याद नहीं किया जाता है, उन्हें 1773 में कोवेंट गार्डन में अभिनय के लिए याद किया जाता है जो गैरिक और विलियम स्मिथ के साथ मैकलिन की प्रतिद्वंद्विता से संबंधित है। मैकलिन ने स्कॉटिश पोशाक में अभिनय किया था जो मैकबेथ को अंग्रेजी ब्रिगेडियर के रूप में वेशभूषा पहनाने के पहले के प्रचलन के विपरीत है; उन्होंने गैरिक के मौत के संवादों को भी हटा दिया था और आगे लेडी मैकडफ के भूमिका को काट दिया था। इस अभिनय को आम तौर पर सम्मानजनक समीक्षाएं प्राप्त हुईं, हालांकि जॉर्ज स्टीवेंस ने भूमिका के लिए मैकलिन (जो अपने अस्सी के दशक में थे) क़ी अनुपयुक्तता पर टिप्पणी की थी।
गैरिक के बाद 18वीं सदी का सबसे अधिक सराहनीय मैकबेथ थे जॉन फिलिप केम्बले; उन्होंने इस भूमिका को सबसे अधिक लोकप्रिय रूप से अपनी बहन, सारा सिडंस के साथ निभाया जिनकी लेडी मैकबेथ को सर्वोत्कृष्ट माना जाता है। केम्बले ने यथार्थवादी पोशाक और शेक्सपियर क़ी भाषा जिसने मैकलिन के निर्माण को चिह्नित किया था, उसकी ओर रुझान को निरंतर जारी रखा; वाल्टर स्कॉट बताते हैं कि उन्होंने नाटक क़ी स्कॉटिश वेशभूषा के साथ निरंतर प्रयोग किया था। केम्बले क़ी व्याख्या पर प्रतिक्रिया विभाजित थी; हालांकि सिडंस क़ी सर्वसम्मति से प्रशंसा की गयी थी। पांचवें अंश में "नींद में चलने" के दृश्य में उनकी भूमिका का विशेष रूप से उल्लेख किया गया था; लेह हंट ने इसे "उत्कृष्ट" कहा. केम्बले-सिडंस क़ी भूमिकाएं पहली व्यापक रूप से प्रभावशाली प्रस्तुतियां थीं जिसमें लेडी मैकबेथ की खलनायकी को मैकबेथ की तुलना में अधिक गहरी और शक्तिशाली बनाकर प्रस्तुत किया गया था। साथ ही ऐसा पहली बार हुआ था की बैंको का भूत मंच पर प्रकट नहीं हुआ।
केम्बले का मैकबेथ कुछ आलोचकों को शेक्सपियर के पाठ के लिए बहुत अधिक सभ्य और विनम्र लगा। लंदन के अग्रणी अभिनेता के रूप में उनके उत्तराधिकारी, एडमंड कीन की अत्यधिक भावुकता के लिए, विशेष रूप से पांचवीं भूमिका में अक्सर आलोचना की जाती है। कीन के मैकबेथ की सार्वभौमिक रूप से प्रशंसा नहीं की गयी थी, उदाहरण के लिए, विलियम हैजलिट ने यह शिकायत की थी कि कीन का मिकबेथ उनके रिचर्ड III के काफी समान था। जैसा की उनहोंने अन्य भूमिकाओं में किया था, कीन ने ने उसके हट्टे-कटते होने का फ़ायदा मैकबेथ के मानसिक पतन के मुख्य घटक के रूप में प्रयोग कर उठाया था। उन्होंने कैम्बले द्वारा मैकबेथ के एक सभ्य रूप पर जोर दिए जाने के विपरीत इसकी जगह उसे एक क्रूर राजनेता के रूप में प्रस्तुत किया जिसका अपराध और भय के भार से पतन हो जाता है। हालांकि कीन ने दृश्य और वेशभूषा में अपव्यय की ओर बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने के लिए कुछ नहीं किया।
उन्नीसवीं सदी
अगले प्रभावशाली लंदन के अभिनेता, विलियम चार्ल्स मैकरेडी के मैकबेथ ने कम से कम कीन द्वारा दी गयी मिश्रित प्रतिक्रियाओं को उकसाया. मैकरेडी ने 1820 में कोवेंट गार्डन में अपनी भूमिका की शुरुआत की थी। जैसा कि हैजलिट ने उल्लेख किया था, इस पात्र के बारे में मैकरेडी की पाठ्य सामग्री विशुद्ध रूप से मनोवैज्ञानिक थी; डायनों ने अपनी अपनी समस्त अलौकिक शक्तियां खो दी थीं और मैकबेथ के पतन की शुरुआत शुद्ध रूप से मैकबेथ के चरित्र में हो रहे संघर्ष से हुई थी। मैकरेडी की सबसे प्रसिद्ध लेडी मैकबेथ थी हेलेना फॉसिट जिन्होंने इस भूमिका में अपनी शुरुआत उस समय निराशाजनक ढंग से की थी जब वह अपने 20वें दशक में थी, लेकिन बाद में उन्होंने एक ऐसी व्याखाया के लिए प्रशंसा प्राप्त की जो सिडंस के विपरीत, महिला की मर्यादा के समकालीन भावों के अनुरूप थी। मैकरेडी के "सेवानिवृत" होकर अमेरिका चले जाने के बाद उन्होंने इस भूमिका में अभिनय करना जारी रखा; 1849 में वे अमेरिकी अभिनेता एडविन फॉरेस्ट के साथ एक प्रतिद्वंद्विता में शामिल हो गए, जिनके पक्षपातों ने मैकरेडी को एस्टर प्लेस में धकेल दिया जिसके कारण वह घटना घटित हुई जिसे सामान्यतः एस्टर प्लेस राईट कहा जाता है।
मध्य-सदी के दो सबसे महत्वपूर्ण मैकबेथ, सैमुअल फेल्प्स और चार्ल्स कीन, दोनों ने महत्वपूर्ण उभय भाविता और लोकप्रिय सफलता प्राप्त की थी। दोनों मंचन के कुछ पहलुओं की तुलना में इस पात्र की अपनी-अपनी व्याख्याओं के लिए प्रसिद्ध हैं। सैडलर्स वेल्स थियेटर में फेल्प्स शेक्सपियर के लगभग सभी पाठों को वापस लेकर आये। उन्होंने दरबान के दृश्य के प्रथमार्द्ध को वापस ला दिया जिसे डेवनैंट के बाद के निर्देशकों ने नजरअंदाज कर दिया था; दूसरे को उसके फूहड़ व्यवहार के कारण कटा हुआ छोड़ दिया गया था। उन्होंने जोड़े गए संगीत को छोड़ दिया और फोलियो में डायनों की भूमिकाओं को कम कर दिया था। ठीक इसी तरह महत्वपूर्ण रूप से वे मैकबेथ की मौत के फोलियो संबंधी प्रयोग में वापस आये थे। इनमें से सभी फैसलों को विक्टोरियाई संदर्भ में आगे नहीं बढाया गया और फेल्प्स ने 1844 और 1861 के बीच अपने एक दर्जन से अधिक निर्माणों में शेक्सपियर और डेवनैंट के विभिन्न संयोजनों के साथ प्रयोग किया। उनकी सबसे सफल लेडी मैकबेथ इसाबेला ग्लीन थीं जिनकी प्रभावशाली उपस्थिति ने कुछ आलोचकों को सिडंस की याद ताजा कर दी थी।
1850 के बाद प्रिन्सेसेज थियेटर में कीन की प्रस्तुतियों की शानदार विशेषता वेशभूषा की उनकी सटीकता थी। कीन ने अपनी सबसे बड़ी सफलता आधुनिक मेलोड्रामा में प्राप्त की और उन्हें महानतम एलिजाबेथ संबंधी भूमिकाओं को व्यापक रूप से बहुत अधिक पूर्वव्याप्त नहीं करने के रूप में देखा गया। हालांकि दर्शकों ने इसका बुरा नहीं माना; 1853 का एक निर्माण बीस सप्ताह तक चलता रहा। मुमकिन है कि आकर्षण का हिस्सा कीन द्वारा ऐतिहासिक सटीकता के लिए अपनी प्रस्तुतियों में ध्यान दिए जाने के लिए मशहूर होना था; जैसा कि एलार्डिस निकोल की टिप्पणी हैं "यहां तक कि वनस्पति भी ऐतिहासिक रूप से सही थी".
1875 में लंदन के लिसेयुम थियेटर में भूमिका पर हेनरी इरविंग का पहला प्रयास विफल रहा था। सिडनी फ्रांसिस बेटमैन के निर्माण के तहत और केट जोसेफिन बेटमैन के साथ अभिनय में इरविंग संभवतः अपने प्रबंधक हेजेकिया लिंथिकम बेटमैन की हाल ही में हुई मौत से प्रभावित थे। हालांकि यह निर्माण अस्सी प्रस्तुतियों तक चला, उनके मैकबेथ को उनके हेलमेट से निम्न कोटि का बताया गया। 1888 में लिसेयुम में एलेन टेरी के विपरीत उनका अगला निबंध कहीं अधिक बेहतर था जो 150 भूमिकाओं के लिए प्रस्तुत किया गया। हरमन क्लेन की बहस में इरविंग ने आर्थर सुलीवान को इस नाटक के लिए आकस्मिक संगीत का एक सूट लिखने के लिए शामिल किया था। ब्रैम स्टोकर जैसे मित्रों ने इस अनुमान के आधार पर उनकी "मनोवैज्ञानिक" पाठ्य सामग्री का बचाव किया कि मैकबेथ ने नाटक की शुरुआत से पहले ही डंकन को मारने का सपना देखा देखा था। उनमें से हेनरी जेम्स जैसे उनके विरोधियों ने उनके मनमाने शब्द परिवर्तन (लेडी मैकबेथ की मौत के संवाद में "होना चाहिए" के लिए "हुआ होता") और पात्र के प्रति "नौरास्थेनिक" और "तुनकमिजाज" नजरिये पर अफ़सोस प्रकट किया।
बीसवीं सदी से वर्तमान तक
बैरी विन्सेन्ट जैक्सन ने 1928 में बर्मिंघम रेपर्टरी के साथ एक प्रभावशाली आधुनिक-पोशाक प्रस्तुति का मंचन किया; यह प्रस्तुति रॉयल कोर्ट थियेटर में मंचन के रूप में लंदन पहुंची. इसे मिश्रित समीक्षाएं प्राप्त हुईं; एरिक मैचुरीन को एक अपर्याप्त मैकबेथ आंका गया, हालांकि लेडी खलनायिका मैरी मेर्राल को अनुकूल समीक्षा मिली। हालांकि द टाइम्स ने इसे एक "निंदनीय असफलता" बताया, निर्माण ने दृश्यात्मक और पुरातात्त्विक आधिक्य की प्रवृत्ति को उलटने के लिए काफी काम किया था जो चार्ल्स कीं के समय में चरम पर पहुंची थी।
20वीं सदी के सबसे अधिक प्रचारित निर्माणों में 14 अप्रैल से 20 जून 1936 तक हार्लेम में लाफायेट थियेटर में फेडरल थियेटर प्रोजेक्ट द्वारा रचित निर्माण शामिल था। ओर्सन वेलेस ने अपने पहले मंचीय निर्माण में सभी अफ्रीकी अमेरिकी निर्माणों में जैक कार्टर और एडना थॉमस को निर्देशित किया था जिसमें कनाडा ली ने बैंको की भूमिका निभाई थी। यह वूडू मैकबेथ के रूप में जाना गया, क्योंकि वेलेस ने इस नाटक को उपनिवेश-उपरांत हैती में सेट किया था। उनके निर्देशन ने तमाशा और रहस्य पर जोर दिया: उनके दर्जनों "अफ्रीकी" ड्रमों ने डेवनैंट के डायनों के कोरस की याद ताजा कर दी थी। वेलेस ने बाद में नाटक के 1948 के फिल्म रूपांतरण में कलाकार की भूमिका निभाई और निर्देशित की।
लॉरेंस ओलिवियर ने 1929 के निर्माण में मैल्कम की और 1937 में ओल्ड विक थियेटर में एक ऐसे निर्माण में मैकबेथ की भूमिका निभाई थी जिसमें इसकी शुरुआत से पूर्व की रात को विक के कलात्मक निर्देशक लिलियन बेलिस की मौत हो गयी थी। ओलिवियर का मेकअप उस प्रस्तुति के लिए इतना अधिक मोटा और स्टाइलिश था कि विवियन लेह ने इस प्रकार कहते हुए उद्धृत किया "आप मैकबेथ की पहली लाइन को सुनते हैं, उसके बाद लैरी का मेकअप सामने आता है और तब बैंको आता है, फिर लैरी आता है". ओलिवियर बाद में उस भूमिका में आये जो 20वीं सदी के निर्माणों में सबसे मशहूर है, जिसका मंचन 1955 में ग्लेन ब्याम शॉ द्वारा स्ट्रैटफ़ोर्ड-अपॉन-एवन में किया गया था। विवियन लेह ने लेडी मैकबेथ की भूमिका निभाई थी। सहायक कलाकार जिसकी हेरोल्ड हॉबसन ने निंदा की थी, इसमें कई अभिनेता शामिल थे जिनका शेक्सपियर से संबंधित सफल कैरियर रहा था: इयान होल्म ने डोनालबेन की भूमिका निभाई थी, कीथ मिशेल मैकडफ बने थे और पैट्रिक वाइमार्क पोर्टर की भूमिका में थे। ओलिवियर सफलता की कुंजी था। विशेष रूप से हत्यारों के साथ संवाद और बैंको के भूत से भिड़ने में उनके अभिनय की तीव्रता कई समीक्षकों को एडमंड कीन की याद ताजा करने वाली लगती है। ओलिवियर के रिचर्ड III की बॉक्स ऑफिस में विफलता के बाद एक फिल्म संस्करण की योजना कमजोर पड़ गयी। केनेथ टाइनन ने इस अभिनय के बारे में सीधे तौर पर कहा कि "मैकबैथ की तरह कोई भी कभी सफल नहीं हुआ है"—ओलिवियर तक.
ओलिवियर के 1937 के ओल्ड विक थियेटर के निर्माण में उनके साथी-कलाकार जूडिथ एंडरसन का नाटक के साथ एक बराबर का सफल जुड़ाव था। उन्होंने लेडी मैकबेथ की भूमिका ब्रॉडवे पर मॉरिस इवांस के विपरीत मार्गरेट वेबस्टर द्वारा निर्देशित एक निर्माण में निभाई थी जो 1941 में 131 प्रदर्शनों तक चली थी। एंडरसन और इवांस ने इस नाटक में दो बार 1962 और 1954 में टेलीविजन पर अभिनय किया, जिसमें मॉरिस इवांस ने 1962 के निर्माण के लिए एमी पुरस्कार जीता और एंडरसन ने दोनों प्रस्तुतियों के लिए पुरस्कार प्राप्त किया। 1971 में द ट्रेजडी ऑफ मैकबेथ शीर्षक एक रूपांतरण का निर्देशन रोमन पोलंस्की द्वारा निर्देशित किया गया था और कार्यकारी-निर्माता थे ह्यू हेफनर.
एक जापानी फिल्म अनुकूलन थ्रोन ऑफ ब्लड (कुमोनोसू जो, 1957) में तोशिरो मिफुने को मुख्य भूमिका में दिखाया गया है और इसका फिल्मांकन सामंती जापान में हुआ है। इसे अच्छी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई और नाटक की कोई भी पटकथा नहीं होने के बावजूद आलोचक हेरोल्ड ब्लूम ने इसे "मैकबेथ का सबसे सफल फिल्म रूपांतरण" कहा.
20वीं सदी के सबसे उल्लेखनीय प्रस्तुतियों में से एक 1976 में रॉयल शेक्सपीयर कंपनी के लिए ट्रेवर नन का संस्करण था। नन ने दो साल पहले इस नाटक में निकोल विलियमसन और हेलेन मिरेन को निर्देशित किया था लेकिन वह प्रस्तुति प्रभावित करने में काफी हद तक असफल रही थी। 1976 में नन ने इस नाटक को द अदर प्लेस में एक न्यूनतम सेट के साथ प्रस्तुत किया था, इस छोटे, लगभग गोल मंच पर पात्रों की मनोवैज्ञानिक गतिशीलता पर ध्यान केंद्रित किया गया था। शीर्षक भूमिका में इयान मैककेलन और लेडी मैकबेथ के रूप में जूडी डेंच दोनों ने असाधारण अनुकूल समीक्षाएं प्राप्त की थीं। डेंच ने 2004 में अपने अभिनय के लिए 1977 एसडब्ल्यूईटी सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीता, आरएससी के सदस्यों ने उनकी भूमिका को कंपनी के इतिहास में किसी अभिनेत्री द्वारा सबसे उत्कृष्ट अभिनय चुना।
नन के निर्माण को 1977 में लंदन में स्थानांतरित किया गया और बाद में इसे टेलीविजन के लिए फिल्माया गया। इसने मैकबेथ के रूप में अल्बर्ट फिन्नी और लेडी मैकबेथ के रूप में डोरोथी तूतिन के साथ पीटर हॉल के 1978 के निर्माण को पीछे छोड़ दिया। लेकिन सबसे कुख्यात हाल ही के मैकबेथ का मंचन 1980 में ओल्ड विक में किया गया था। पीटर ओ'टूल और फ्रांसिस टोमेल्टी ने एक ऐसे निर्माण (ब्रायन फ़ोर्ब्स द्वारा) में अग्रणी भूमिकाएं ली थीं जिसे थियेटर के कलात्मक निर्देशक टिमोथी वेस्ट द्वारा शुरुआत की रात से पहले ही सार्वजनिक रूप से परित्याग कर दिया गया था, बावजूद इसके कि अपनी कुख्याति के कारण यह पूरी तक बिक गया था। जैसी कि आलोचक जैक टिंकर ने डेली मेल में टिप्पणी की थी" "यह अभिनय उतना अधिक पूरी तरह से बुरा नहीं था जितना कि साहसपूर्वक हास्यास्पद था।
मंच पर लेडी मैकबेथ को शेक्सपियर की रचनाओं में अधिक "प्रभावशाली और चुनौतीपूर्ण" भूमिकाओं में से एक माना जाता है। इस भूमिका को निभाने वाली अन्य अभिनेत्रियों में वेन फ्रैंकॉन-डेविस, जेनेट सुजमन, ग्लेंडा जैक्सन और जेन लेपोटेयर शामिल हैं।
सन 2001 में फिल्म स्कॉटलैंड, पीए रिलीज हुई थी। गतिविधि 1970 के दशक के पेनसिल्वेनिया में स्थानांतरित किया गया है और यह जो मैकबेथ के चारों ओर घूमती है और उनकी पत्नी पैट नॉर्म डंकन से एक हैमबर्गर कैफे का नियंत्रण प्राप्त करती है। फिल्म का निर्देशन बिली मॉरीसेटे द्वारा किया गया था और सितारों में जेम्स लेग्रोस, मॉरा टायरनी और क्रिस्टोफर वालकेन शामिल थे।
एक प्रस्तुति का मंचन असली मैकबेथ के मोरे के घर में किया गया था जिसका निर्माण नेशनल थियेटर ऑफ स्कॉटलैंड द्वारा एल्गिन कैथेड्रल में मंचन के लिए किया गया था। पेशेवर कलाकारों, नर्तकियों, संगीतकारों, स्कूली बच्चों और मोरे के क्षेत्र के समुदाय के कलाकारों, सभी ने हाईलैंड ईयर ऑफ कल्चर (2007) के एक महत्वपूर्ण आयोजन में हिस्सा लिया था।
उसी वर्ष आलोचकों के बीच एक आम सहमति थी कि चिचेस्टर फेस्टिवल 2007 के लिए पैट्रिक स्टीवर्ट और केट फ्लीटवुड अभिनीत रूपर्ट गूल्ड के निर्माण ने ट्रेवर नन के बहुप्रशंसित 1976 के आरएससी प्रस्तुति के साथ प्रतिस्पर्धा की थी। और जब इसे लंदन में गिल्गड थिएटर में स्थानांतरित किया गया, डेली टेलीग्राफ के लिए समीक्षा करने वाले चार्ल्स स्पेन्सर ने इसे अपने द्वारा अभी तक देखा गया सर्वश्रेठ मैकबेथ बताया। ईवनिंग स्टैंडर्ड थिएटर अवार्ड्स 2007 में इस निर्माण ने स्टीवर्ट के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और गूल्ड के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक दोनों का पुरस्कार जीता। यही निर्माण एक पूरी तरह से बिक गए संचालन के बाद ब्रॉडवे (लाइसियम थियेटर) में स्थानांतरित होकर 2008 में अमेरिका में ब्रुकलीन एकेडमी ऑफ म्यूजिक में शुरू हुआ। 2009 में गूल्ड ने एक बार फिर से स्टीवर्ट और फ्लीटवुड को उनके निर्माण के एक एक प्रशंसित फिल्म संस्करण में निर्देशित किया जिसे पीबीएस की महान प्रस्तुतियों की शृंखला के एक हिस्से के रूप में 6 अक्टूबर 2010 को प्रसारित किया गया।
2003 में ब्रिटिश थिएटर कंपनी पंचड्रंक ने लंदन में ब्युफॉय भवन का इस्तेमाल किया जो एक पुराना विक्टोरियाई स्कूल है जहां "स्लीप नो मोर " का मंचन किया गया था, यह हिचकॉक थ्रिलर की शैली में मैकबेथ की कहानी है जिसमें उत्कृष्ट हिचकॉक की फिल्मों के साउंडट्रैक से पुनर्निर्मित संगीत का इस्तेमाल किया गया था। पंचड्रंक ने अमेरिकी रिपर्टरी थियेटर के सहयोग से इस निर्माण को अक्टूबर 2009 में ब्रूकलिन, मैसाचुसेट्स में एक परित्यक्त स्कूल में एक नए विस्तारित संस्करण में पुनर्व्यवस्थित किया।
2004 में भारतीय निर्देशक विशाल भारद्वाज ने मकबूल शीर्षक से मैकबेथ के अपने अवायाम के रूपांतरण को निर्देशित किया। समकालीन मुंबई के अंडरवर्ल्ड में फिल्मांकित इस फिल्म में इरफान खान, तब्बू, पंकज कपूर, ओम पुरी, नसीरुद्दीन शाह और पीयूष मिश्र की प्रमुख भूमिकाएं थीं। यह फिल्म अत्यधिक प्रशंसित थी और यह निर्देशक भारद्वाज और इरफान खान के लिए प्रसिद्धि लेकर आयी।
अन्य लेखकों द्वारा सीक्वल
2006 में हार्पर कोलिन्स ने ऑस्ट्रेलियाई लेखक जैकी फ्रेंच द्वारा रचित पुस्तक मैकबेथ एंड सन को प्रकाशित किया। 2008 में पिगैसस बुक्स ने द ट्रेजडी ऑफ मैकबेथ पार्ट II: द सीड ऑफ बैंको का प्रकाशन किया जो अमेरिकी लेखक एवं नाटककार नूह ल्यूकमैन द्वारा रचित एक नाटक है जिसे वहां से उठाने का प्रयास किया गया था जहां वास्तविक मैकबेथ को छोड़ दिया जाता है और इसके कई ढ़ीले अंशों का समाधान किया गया था।
डेविड ग्रेग के 2010 के नाटक डनसिनेन ने डनसिनेन में मैकबेथ के पतन को इसके प्रारंभिक बिंदु के रूप में लिया था जिसमें मैकबैथ के तत्काल समाप्त हुए साम्राज्य को मैल्कम के विपरीत लंबा और स्थिर रूप में चित्रित किया गया था।
सन्दर्भ
टिप्पणियां
बाहरी कड़ियाँ
प्रदर्शन
परफोर्मेंस एंड फोटोग्राफ्स फ्रॉम लंदन एंड स्ट्रैटफ़ोर्ड परफोर्मेंस ऑफ मैकबैथ 1960–2000 – डिजाइनिंग शेक्सपियर रिसोर्स से
दी शेक्सपियर वीडियो सोसायटी एडिशन (गूगल वीडियो – 2 आवर्स 12 मिनट्स)
मैकबैथ ऑन फिल्म
ऑल फीमेल प्रोडक्शन शेक्सपियर इन डेलावेयर पार्क द्वारा
ऑडियो रिकॉर्डिंग
मैकबैथ: फ्री फुल-लेन्थ रिकॉर्डिंग ejunto.com पर
नाटक का पाठ
मैकबैथ नेविगेटर – मैकबैथ का सर्चेबल, एनोटेट'' एचटीएमएल (HTML) वर्ज़न
दी कम्प्लीट वर्क्स ऑफ विलियम शेक्सपियर – बेसिक एचटीएमएल (HTML) में एन्तायर प्ले.
क्लासिक लिटरेचर लाइब्रेरी – मैकबैथ का एचटीएमएल (HTML) वर्ज़न.
प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग: मैकबैथ – प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग से एसीआईआई (ASCII) प्लेन टेक्स्ट
शेक्सपियरनेट – मैकबैथ के एक्ट समरी दारा एक्ट
नो फियर शेक्सपियर – स्पार्कनोट्स से - ऑरिजनल टेक्स्ट और ए मॉडर्न ट्रांसलेशन साइड-बाय-साइड
टीका-टिप्पणी
एनोटेट बिबलियोग्राफी ऑफ मैकबैथ क्रिटिज्म
शेक्सपियर एंड दी यूजेज ऑफ पावर स्टीवन ग्रीनब्लाट्ट द्वारा
नाटक
अंग्रेजी पुनर्जागरण के नाटक
विलियम शेक्सपीयर
1603 के नाटक
राज-हत्याएं | 8,180 |
824952 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A0%E0%A5%80 | श्वेता त्रिपाठी | श्वेता त्रिपाठी एक भारतीय अभिनेत्री है। उन्होंने कई दूरदर्शन श्रृंखला और फिल्मों मे काम किया है। वह डिज्नी चैनल पर 'क्या मस्त है लाइफ' सीरीज में ज़ीनिया खान की भूमिका के कारण सबसे जादा जानी जाती है। वह टाटा स्काई डाउनलोड और मैकडॉनल्ड्स और हाल ही में टाटा टी के लिए विज्ञापन में दिखाई दी हैं।
जीवनी
त्रिपाठी का जन्म ६ जुलाई, १९८५ को दिल्ली में हुआ था। मुंबई के स्थानांतरित होने से पहले वह कुछ समय के लिए अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह द्वीप समूह में रहते थे। उन्होंने डीपीएस आरके पुरम, नई दिल्ली में अपनी प्राथमिक शिक्षा हासिल की और निफ्ट, दिल्ली से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
करियर
श्वेता बाद में वेब श्रृंखला मिर्जापुर में दिखाई दीं, जिसमें उनकी हस्तमैथुन की महिलाओं की कामुकता के स्पष्ट चित्रण के लिए प्रशंसा की गई थी।
फिल्मोग्राफी
इन्हें भी देखें
ज़ोया अफ़रोज़
कायरा आडवाणी
कृति सैनॉन
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
भारतीय महिला
भारतीय अभिनेत्री
टेलिविज़न अभिनेत्री
अभिनेत्री
1985 में जन्मे लोग
जीवित लोग | 161 |
538245 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%95 | उत्थापक | उत्थापक, उच्चालित्र अथवा एलिवेटर (lift या elevator) एक युक्ति है वस्तुओं एवं व्यक्तिओं को उर्ध्व दिशा में चढ़ाने-उतारने के काम आती है। प्रायः किसी बहुमंजिला ऊँचे भवन, जलपोत एवं अन्य संरचनाओं में उत्थापक लगा होता है जो गोलों को या सामान आदि को एक मंजिल से दूसरी मंजिल या एक स्तर से दूसरे स्तर पर लाता और ले जाता है। उत्थापक प्रायः विद्युत मोटर द्वारा चलते हैं।
धान्य के उच्चालित्र
अनाज के उठाने और रखने की यांत्रिक रीतियों में से एक, जो अब भी सर्वाधिक प्रयोग में आती है, डोलवाले उच्चालित्र की है। इसमें मोटे गाढ़े या कैनवस के पट्टे पर १० से १८ इंच की दूरी पर धातु के छोटे-छोटे डोल बँधे रहते हैं। पट्टा ऊर्ध्वाधर अथवा प्राय: उर्ध्वाधर रहता है। ऊपरी तथा निचले सिरों पर एक-एक बड़ी घिरनी या पहिया रहता है, जिसपर पूर्वोक्त पट्टा चढ़ा रहता है। पट्टा और घिरनी के बीच पर्याप्त घर्षण के लिए पट्टे पर रबर चढ़ा रहता है। उच्चालित्र के नीचेवाले भाग में बने एक गढ़े में से चलते हुए पट्टे के डोल अनाज उठा लेते हैं और उसे ऊपरी सिरे पर जाकर गिरा देते हैं। जैसे ही अनाज उच्चालित्र के ऊपरी सिरे पर पहुँचता है, अपकेंद्र बदल उसे एक बृहत्काय कीप में फेंक देता है। यहाँ से पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण उसे बड़े व्यास के नलों तथा ढालू नदियों द्वारा संग्रह के उपयुक्त खत्तों या भांडों में पहुँचा देता है।
अनाज को किसी भी बेंड़ी अथवा खड़ी दिशा में ले जाने की नई रीति यह है कि वायुधारा का प्रयोग किया जाए। इसमें धातु की दृढ़ पंखियोंवाला पंखा रहता है। इसी पर अनाज डाला जाता है। पंखा वायु की धारा के साथ अनाज को भी आगे ढकेल देता है। पंखों का प्रयोग मुख्यत: कृषि के फार्मों पर अथवा ऐसे छोटे कामों के लिए होता है जहाँ धूल उठाऊ यंत्र की आवश्यकता रहती है। पंखे के प्रयोग में हानि यह है कि वह धूल उड़ाता है, उसमें भठ जाने की प्रवृत्ति रहती है तथा उसकी पंखियाँ अनाज के दानों को बहुधा तोड़ देती हैं।
छोटे या संकुचित स्थानों में अथवा थोड़ी दूरी के लिए पेंच के रूप वाले उच्चालित्र का व्यवहार किया जाता है। खोखले गोल बेलन के भीतर कुंतलाकार एक फल होता है। इस फल के घूमने के साथ-साथ अनाज भी आगे बढ़ता है। अनाज की क्षैतिज गति के लिए यह ठीक काम देता है, किंतु खड़ी अथवा प्राय: खड़ी दिशा में अनाज को चढ़ाने के लिए इसमें बहुत बल लगाने की आवश्यकता होती है और इसलिए यह अनुपयोगी सिद्ध हुआ है।
पिछले कई वर्षों से, नौकाओं तथा जहाजों और, इससे भी अभिनव काल में, रेलों से अनाज उतारने तथा ऊपर नीचे पहुँचाने के लिए हवा से काम लिया जाता है। लचीले नलों से काम लेकर इस विधि का प्रयोग विविध कार्यों में किया जा सकता है। यद्यपि इसके उपयोग में अधिक बल की आवश्यकता होती है और अनाज की गति सीमित होती है, तो भी अन्य उच्चालित्रों की अपेक्षा इसमें अनेक गुण हैं।
हवा से चलने वाली मशीनों का हृदय एक पंप होता है जो या तो पिस्टन के आगे पीछे चलने से अथवा केवल वेगपूर्वक घूमते रहने से काम करता है। यह यंत्र उन नलों से, जिनका मुख अनाज के भीतर डूबा रहता है, वायु निकाल लेता है। तब नलों के मुख से, जिनमें अनाज के साथ अतिरिक्त वायु के प्रवेश के लिए अलग मार्ग रहता है, हवा तथा अनाज साथ-साथ ऊपर चढ़ते हैं।
अनाज के उठाने रखने की मशीनों से काम लेते समय अनाज की धूलि से विस्फोट होने की आशंका पर ध्यान रखना आवश्यक है।
माल तथा यात्रियों के उच्चालित्र
इस वर्ग के यंत्रों में माल पहुँचाने का कार्य अविराम न होकर रुक रुककर होता रहता है। इस प्रकार का उच्चालित्र भार को समय-समय पर ऊपर नीचे करता रहता है। भार रखने के लिए एक चौकी तथा उसे ऊपर नीचे चलाने के लिए रस्सी या जलसंचालित (हाइड्रॉलिक) यंत्र होता है। चौकी एक चौकोर या गोल घर में ऊपर नीचे चलती है जिसे कूपक (शैफ्ट) कहते हैं।
रस्सी से चलनेवाले माल के उच्चालित्रों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जा सकता :
(१) लघुकार्यक्षम तथा
(२) गुरुकार्यक्षम।
लघु कार्यक्षम उच्चालित्र २० से ३० मन की सामर्थ्य के, २५ फुट प्रति मिनट की गतिवाले तथा ३५ फुट ऊँचाई तक कार्य करनेवाले होते हैं। इन उच्चालित्रों के सब भागों की रचना साधारण आवश्यकता से कहीं अधिक दृढ़ होती है और इनमें बटन दबाने पर कार्य करनेवाले स्थिर-दाब-नियंत्रक, भवन के प्रत्येक तल पर तथा चलनेवाली चौकी में भी, लगे रहते हैं। यदि नीचे उतरते समय गति अत्यधिक हो जाए तो यान में स्वत:चालित गतिनियंत्रक-सुरक्षा-यंत्र काम करने लगते हैं। चौकी के प्रारंभिक और अंतिम स्थानों पर सीमा स्थिर करनेवाले खटके तथा सुरक्षा के अन्य उपाय भी रहते हैं। ऐसे यंत्रों की एक विशेषता यह है कि चौकी को चलानेवाला यंत्र उच्चालित्र के पेंदे के पास रहता है। इसलिए ऊपर किसी अवलंब या छत की आवश्यकता नहीं होती।
रस्सीवाले गुरुकार्यक्षम उच्चालित्र विशेषकर मोटर ट्रकों पर काम करने के लिए बनाए जाते हैं। वे इतने पुष्ट बनाए जाते हैं कि भार से हानेवाले सब प्रकार के झटके आदि सह सकें। इनके सब नियंत्रक (कंट्रोल) पूर्ण रूप से स्वयंचालित होते हैं और इनका प्रयोग ट्रक का ड्राइवर अथवा अन्य कोई कर्मचारी कर सकता है। यातायात मार्ग के कुछ स्थानों पर, सिर से ऊपर लगे और बटन दबाने पर कार्य करनेवाले नियंत्रकों, से यह बात संभव हो जाती है। जहाँ आवश्यकता होती है वहाँ ऐसा प्रबंध भी रहता है जिसके द्वारा कोई अनुचर भी नियंत्रण कर सकता है। जहाँ भवन बहुत ऊँचा हो तथा माल शीघ्र चढ़ाने की आवश्यकता हो वहाँ के लिए रस्सी की सहायता से कार्य संपादित करनेवाले उच्चालित्र विशेष उपयोगी होते हैं।
जलचालित उच्चालित्र जलचालित उच्चालित्रों का उपयोग नीचे भवनों में होता है जहाँ बोझ बहुत भारी रहता है और तीव्र गति की आवश्यकता नहीं रहती। इन उच्चालित्रों के कार्य में दाब में पड़े द्रव से काम लिया जाता है। ऐसे उपकरणों के निर्माता दावा करते हैं कि जलचालित उच्चालित्र की चौकी पर भारी बोझ लादने पर चौकी नीचे की ओर नहीं भागती क्योंकि उसका आधार तेल का एक असंपीडनीय स्तंभ होता है। वे इस प्रकार के यंत्रों में निम्नांकित अन्य गुण भी बताते हैं : इनके लिए किसी छत की आवश्यकता नहीं पड़ती; इनका कूपकमार्ग खुला और इसलिए सुप्रकाशित रहता है; चौकी बिना झटके के चलना आरंभ करती और रुकती है; जहाँ रोकना चाहें ठीक वहीं रुकती है; और मशीन को अच्छी दशा में बनाए रखने में व्यय कम होता है।
यात्रियों के लिए बने उच्चालित्रों की रचना भी बोझ ढोनेवाले उच्चालित्रों की ही तरह होती है। केवल इनमें सुरक्षा की कुछ अधिक युक्तियाँ रहती हैं तथा इनके रूप और यात्रियों की सुख सुविधा पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ
डी.ओ. हेंज़ : मैटीरियल हैंडलिंग इक्विपमेंट, (चिट्टन कंपनी, फ्ऱलाडेल्फ़िया);
इम्मर : मैटीरियल हैंडलिंग (मैक्ग्रा हिल बुक कंपनी इंकारपोरेटेड)।
यातायात | 1,108 |
100668 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A1%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE%20%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95 | लॉर्ड विलियम बैन्टिक | लॉर्ड विलियम बैन्टिक भारत के गवर्नर जनरल रहे थे।
ये भारत के गवर्नर जनरल थे
लॉर्ड विलियम बेंटिक 1828-1835 तक भारत में शासन किया । इनकेे द्वारा सामाजिक सुधार ,शैक्षणिक सुधार ,वित्तीय सुधार ,सरकारी सेवा मैंंं सुधार , के अनेक प्रयास किए गए ।
सामाजिक सुधार- 1829 मे सती प्रथा पर राजा राममोहन राय की सहायता से पूर्णता प्रतिबंध कर दिया।
1830 में ठगी प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया
शैक्षणिक सुधार -लार्ड मैकाले की अध्यक्षता में एक मैकाले आयोग 1835 बनाया गया इस आयोग ने अपनी शिक्षा की सिफारिश में अंग्रेजी को बताया।
1835 में कोलकाता मेडिकल कॉलेज की स्थापना किया गया।
सरकारी सुधार- 1833 में चार्टर एक्ट पारित किया गया इस एक्ट के द्वारा बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बनाया गया।
इस एक्ट के द्वारा कंपनी में कर्मचारी की नियुक्ति करने के लिए सिविल सेवक के लिए योग्यता को आधार बनाया गया।
सन्दर्भ
भारत के गवर्नर जनरल | 152 |
222822 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%B8 | सिस्टायटिस | मूत्राशय सूजन को सिस्टायटिस कहते हैं। यह अलग संलक्षण या सिंड्रोम
के किसी एक का परिणाम है। यह ज्यादातर जीवाणु संक्रमण होता है और इससे एक मूत्र पथ के संक्रमण के रूप में जाना जाता है।
यह मूत्र पथ के संक्रमण है एक सबसे सामान्य कारण बैक्टीरिया द्वारा एक संक्रमण के रूप में संदर्भित किया जाता है जो मामले में यह है।
संकेत और लक्षण
कम श्रोणि में दबाव
दर्दनाक लघुशंक (दिशुरिया)
दर्दनाक पेशाब (पोलियुरिया) या तत्काल पेशाब करने की ज़रुरत (मूत्र अविलंबिता)
रात में पेशाब करने की आवश्यकता ((निशामेह, प्रोस्टेट कैंसर या BPH के समान)
असामान्य मूत्र (बादली) रंग, एक मूत्र पथ के संक्रमण के समान
बहुत ज़्यादा मूत्र गंध
विभेदक निदान
सिस्टायटिस के कई अलग चिकित्सकीय प्रकार होते हैं। प्रत्येक चिकित्सकीय के अलग-अलग, अद्वितीय एटियलजि (बीमारी की उत्पत्ति) और चिकित्सीय दृष्टिकोण होते हैं। सिस्ताई
अभिघातजन्य सिस्टायटिस महिलाओं में शायद, सिस्टायटिस का सबसे आम रूप है और असामान्य रूप से सशक्त संभोग के द्वारा आम तौर पर चोट पोहंचाता है। इस के बादबैक्टीरिया सिस्टायटिस, ज़्यादातर कॉलिफोर्म बैक्टीरिया, मूत्राशय मूत्रमार्ग में आंत्र के माध्यम से बैक्टीरिया होता है।
इन्तर्सिशियल सिस्टायटिस (आईसी, मूत्राशय की चोट के कारण निरंतर जलन होती है और शायद ही कभी संक्रमण की उपस्थिति होती है। आईसी रोगियों को अक्सर वर्षों के लिए कर रहे यूटीआई cystitis / के साथ misdiagnosed पहले वे कहा जाता है कि उनके मूत्र संस्कृतियों नकारात्मक हैं। एंटीबायोटिक दवाओं के आईसी के उपचार में इस्तेमाल नहीं कर रहे। आईसी के कारण अज्ञात है, हालांकि कुछ लगता है यह autoimmune जहां प्रतिरक्षा प्रणाली हमलों मूत्राशय हो सकता है। कई चिकित्सा अब उपलब्ध हैं।
इसिंनोफ्य्लिक सिस्टायटिस का बायोप्सी के माध्यम से निदान होता है। ऐसे मामलों में, मूत्राशय दीवार इसिनोफिल्स से उच्च संख्या में प्रवेश करते हैं। इसिंनोफ्य्लिक सिस्टायटिस का कारण भी अज्ञात है हालांकि बच्चों में यह कुछ दवाओं के द्वारा सक्रिय हो जाने की जानकारी है। कुछ इसका इंटरस्तैशियल सिस्टायटिस के रूप में विचार करते हैं।
रक्तस्रावी सिस्टायटिस, सैक्लोफोस्मैद, आइफोस्मैदे और रदिअशिन (विकिरण) के पक्ष प्रभाव के रूप में हो सकती हैं। रदिअशिन (विकिरण) सिस्टायटिस, रक्तस्रावी सिस्टायटिस का एक रूप, कैंसर के इलाज के लिए विकिरण चिकित्सा के दौर से गुजरते रोगियों का एक दुर्लभ परिणाम है
महिलाओं में यौन सक्रिय सबसे आम कारण ई. कोलाई और स्ताफिलोकोकुस सप्रोफय्तिकुस होते हैं।
नैदानिक दृष्टिकोण
मूत्र का विश्लेषण से सफेद रक्त कोशिकाओं सफेद रक्त कोशिकाओं का पता चलता है।
एक मूत्र संस्कृति (साफ पकड़) या मूत्र नमूना जो के केथराइज़शिन से लिया गया हो, मूत्र में जीवाणु के प्रकार और उपचार के लिए उपयुक्त एंटीबायोटिक का निर्धारण किया जा सकता है।
उपचार
उपचार के अंतर्निहित कारणों पर निर्भर करता है।
सन्दर्भ
सफेद रक्त कोशिकाओं
सूक्ष्म जीव-विज्ञान
मूत्र संबंधी बीमारियों की स्थिति | 437 |
1177629 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%87 | बबिता ताड़े | बबिता ताड़े जिसे तांडे़ भी लिखा जाता है, चुनाव आयोग के एसवीईईपी कार्यक्रम के लिए अमरावती जिला राजदूत है एवं कौन बनेगा करोड़पति प्रोग्राम में 1 करोड़ रुपये जीतने वाली महिला है। ताडे़ के १ करोड़ रुपए जीतने के पश्चात भारतीय अभिनेता अमिताभ बच्चन ने ताडे़ को एक मोबाइल फोन भी भेंट किया था।
ताड़े से भारतीय अभीनेता अमिताभ बच्चन ने ७ करोड़ रुपए के लिए आखरी सवाल पुछा था लेकिन श्रीमती ताड़े ने जोखिम ना उठाते हुए ७ करोड़ के सवाल का जवाब ना देते हुए कार्यक्रम को रोकने के लिए कहा। लेकिन बाद मे बच्चन ने ताड़े को वैसे ही अनुमान लगाने के लिए कहा तो ताड़े ने सही जवाब दिया।
जीवनी
बबिता ताड़े अमरावती जिले के अंजनगांव सुरजी गांव की रहने वाली साधारण महिला थी जो एक सरकारी स्कूल में दोपहर का खाना बनाने का काम करती थी जिसके बदले उन्हें सरकारी विभाग से १५०० रुपए प्रति माह मिलते थे।
संदर्भ
कोली
भारत के लोग
भारतीय लोग धर्म अनुसार
महाराष्ट्र के लोग | 165 |
1031786 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%A8 | चरित्रहीन | चरित्रहीन बांग्ला के महान उपन्यासकार शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित एक जनप्रिय बांग्ला उपन्यास है। यह उपन्यास १९१७ ई में प्रकाशित हुआ था। इसमें मेस जीवन के वर्णन के साथ मेस की नौकरानी (सावित्री) से प्रेम की कहानी है। नारी का शोषण, समर्पण और भाव-जगत तथा पुरुष समाज में उसका चारित्रिक मूल्यांकन - इससे उभरने वाला अन्तर्विरोध ही इस उपन्यास का केन्द्रबिन्दु है। ‘चरित्रहीन’ को जब उन्होंने लिखा था तब उन्हें काफी विरोध का सामना करना पड़ा था क्योंकि उसमें उस समय की मान्यताओं और परम्पराओं को चुनौती दी गयी थी। 'भारतवर्ष' के संपादक कविवर द्विजेन्द्रलाल राय ने इसे यह कहकर छापने से मना कर दिया किया कि यह सदाचार के विरुद्ध है।
शरतचन्द्र ने नारी मन के साथ-साथ इस उपन्यास में मानव मन की सूक्ष्म प्रवृत्तियों का भी मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है, साथ ही यह उपन्यास नारी की परम्परावादी छवि को तोड़ने का भी सफल प्रयास करता है। उपन्यास प्रश्न उठाता है कि देवी की तरह पूजनीय और दासी की तरह पितृसत्ता के अधीन घुट-घुटकर जीने वाली स्त्री के साथ यह अन्तर्विरोध और विडम्बना क्यों है? यह उपन्यास ‘चरित्र’ की अवधारणा को भी पुनःपरिभाषित करता है। उपन्यास में तत्कालीन हिन्दू समाज का अच्छा चित्रण है और पश्चिमी सोच के प्रभाव और रूढीवादी बंगाली समाज के द्वन्द पर भी अच्छा प्रकाश डाला है।
शरत बाबू के वर्मा के घर मे लगी आग मे उनकी कई पुस्तकों की पाण्डुलिपियाँ जलकर राख हो गयी थीं। उनमे 'चरित्रहीन' भी थी जिसके ५०० पृष्ठों के जलने का उन्हे बहुत दुख रहा। इसने उन्हे बहुत दुख हुआ लेकिन वे निराश नहीं हुए। दिन-रात असाधारण परिश्रम कर उसे पुनः लिखने मे समर्थ हुए। लिखने के बाद शरत् बाबू ने इसके सम्बन्ध में अपने काव्य-मर्मज्ञ मित्र प्रमथ बाबू को लिखा -
''केवल नाम और प्रारम्भ को देखकर ही चरित्रहीन मत समझ बैठना। मैं नीतिशास्त्र का सच्चा विद्यार्थी हूँ। नीतिशास्त्र समझता हूँ। कुछ भी हो, राय देना, लेकिन राय देते समय मेरे गम्भीर उद्देश्य को याद रखना। मैं जो उलटा-सीधा कलम की नोक पर आया, नहीं लिखता। आरम्भ में ही जो उद्देश्य लेकर चलता हूँ वह घटना चक्र में बदला नहीं जाता।
प्रमथ बाबू की हिम्मत उस पुस्तक के प्रकाशन की जिम्मेदारी लेने की नहीं हुई।
संक्षिप्तसार
चरित्रहीन प्रेम की तलाश में भटकाव की कहानी है। यह भटकाव है हारान की पत्नी किरणमयी का। इस उपन्यास का शीर्षक किरणमयी पर ही आधारित है, लेकिन यही इसकी एकमात्र कथा नहीं है। वस्तुतः इसमें दो कथाएँ समान्तर चलती हैं - सतीश-सावित्री की कथा और किरणमयी की कथा। उपेन्द्र दोनों कथाओं को जोड़ने वाली कड़ी है, वह सतीश और हारान बाबू का मित्र है। सतीश पढ़ाई के लिए कलकता आता है तो उपेन्द्र बीमार हारान बाबू की देखभाल के लिए। उपेन्द्र के इर्द-गिर्द दोनों कथाएँ चलती हैं। वह एक चरित्रवान पुरुष है। उपेन्द्र की मृत्यु और किरणमयी के पागल हो जाने के साथ इस उपन्यास का अन्त हो जाता है। सतीश-सरोजनी का विवाह निश्चित हो जाता है और दिवाकर को सावित्री के हाथ सौंप दिया जाता है। उपेन्द्र दिवाकर का विवाह अपनी पत्नी की बहन से करने की बात भी सावित्री को कह कर जाता है। सावित्री त्याग की मूर्ति की रूप में स्थापित होती है।
किरणमयी की कथा ४५ अंक के इस उपन्यास के ११वें अंक से आरम्भ होती है। किरणमयी, हारान की पत्नी है जो बीमार रहता है। किरणमयी अपने पति से संतुष्ट नहीं क्योंकि उसका कहना है कि पति से उसके सम्बन्ध महज गुरु-शिष्य के हैं, इसीलिए वह हारान का इलाज करने आने वाले डॉक्टर अनंगमोहन से सम्बन्ध बना लेती है, लेकिन बाद में उसे ठुकराकर उपेन्द्र की तरफ झुकती है। उपेन्द्र अपने एकनिष्ठ पत्नी प्रेम के कारण उसके प्रेम निवेदन को ठुकरा देता है, लेकिन वह अपने प्रिय दिवाकर को पढाई के लिए उसके पास इस उम्मीद से छोड़ जाता है कि वह उसका ध्यान रखेगी, लेकिन वह उसी पर डोरे डाल लेती है और उसे भगाकर आराकान ले जाती है, लेकिन उनके सम्बन्ध स्थायी नहीं रह पाते।
सतीश-सावित्री की कथा उपन्यास के शरू से ही चलती है। सावित्री एक विधवा है। वह एक मेस में नौकरी करती है जहाँ सतीश रहता है। सतीश उसे प्रेम करता है। वह भी सतीश से प्रेम करती है, लेकिन इस उद्देश्य से सतीश को दूर हटाती है कि विधवा का विवाह समाज में मान्य नहीं। सतीश उसे समझ नहीं पाता और वह उसे ऐसी चरित्रहीन औरत समझ लेता है जो किसी दूसरे के पास चली गई हो। सावित्री के कारण ही उपेन्द्र और सतीश में मनमुटाव होता है। उपेन्द्र सावित्री को उस दिन सतीश के घर पर देख लेता है जिस दिन वह सतीश से पैसे उधार लेने आती है। इससे आहत होकर सतीश एकान्तवास में चला जाता है। यहाँ उसका पता उपेन्द्र के दोस्त ज्योतिष की बहन सरोजिनी को चल जाता है। उपेन्द्र के माध्यम से ही वह सतीश को जानती है और उस पर मोहित भी है। सरोजिनी को शशांकमोहन नामक युवक भी चाहता है लेकिन सरोजिनी की माता सतीश को ही दामाद बनाना चाहती है। शशांकमोहन सतीश-सावित्री की कथा ज्योतिष को सुनाता है जिससे सरोजिनी के विवाह की बात अटक जाती है। सतीश पिता की मृत्यु के बाद अपने पैतृक गाँव चला जाता है और एक तांत्रिक के पीछे लगकर नशा करने लगता है और बीमार पड जाता है। सतीश का नौकर सावित्री को ढूंढ लाता है। सावित्री तांत्रिक को भगाकर सतीश को सम्भालती है। वह उपेन्द्र के नाम भी पत्र लिखती है। उपेन्द्र भी सावित्री के बारे में जान चुका होता है। वह सरोजनी को लेकर गाँव पहुंचता है। उपेन्द्र सावित्री को अपनी बहन बना लेता है और सतीश-सरोजनी का विवाह निश्चित कर दिया जाता है। सतीश आराकान जाकर दिवाकर और किरणमयी को लेकर आता है। किरणमयी उपेन्द्र के सामने नहीं आना चाहती, इसलिए वह सतीश के घर नहीं आती, लेकिन बाद में पागलावस्था में सतीश के घर पहुँच जाती है। उपेन्द्र दिवाकर का भार सावित्री को सौंप सतीश, सावित्री, दिवाकर और सरोजनी की उपस्थिति में प्राण त्याग देता है। जिस समय उपेन्द्र की मृत्यु होती है उस समय किरणमयी पास के कमरे में गहरी नींद में सो रही होती है।
इस उपन्यास में बांगला समाज और तत्कालीन परिस्थितियों का भी सुन्दर चित्रण है। बांगला समाज पाश्चात्य दृष्टिकोण को लेकर दो भागों में बंटा हुआ है। ज्योतिष के माता-पिता में इसी बात को लेकर अलगाव हो जाता है कि ज्योतिष का पिता बैरिस्टर बनने के लिए विदेश चला जाता है। ज्योतिष, शशांकमोहन और सरोजनी पाश्चात्य ख्यालों के हैं लेकिन ज्योतिष की माता पुराने ख्यालों की होने के कारण ही शशांक की बजाए सतीश को दामाद के रूप में चुनती है। बीमारियों का चिकित्सा नहीं हो पाती। सुरबाला और उपेन्द्र का निधन इसी कारण होता है। गाँव में बीमारियाँ महामारी के रूप में फैलती हैं, इसलिए जब सतीश गाँव जाने का फैसला लेता है तो उसका नौकर डर जाता है। सतीश के बीमार हो जाने पर यह डर सच साबित होता प्रतीत होता है।
इस उपन्यास में बीच-बीच में विद्वता भरा बोझिल वाद-विवाद भी है। सत्य क्या है, ईश्वर है या नहीं, वेद-पुराण सच हैं या झूठ, अर्जुन तीर से भीष्म को पानी पिलाता है या नहीं और प्रेम के विषय को लेकर लम्बे वाद-विवाद होते हैं। ये वाद-विवाद करती है किरणमयी। इस प्रकार किरणमयी एक तरफ विदुषी है तो दूसरी तरफ लम्पट औरत जो अनंगमोहन, उपेन्द्र और दिवाकर को वासना की दृष्टि से देखती है और अनंगमोहन और दिवाकर से सम्बन्ध भी स्थापित करती है।
चरित्रचित्रण
इस उपन्यास में चार नारी चरित्र हैं - साभित्रीया (सावित्री), किरणमयि, सुरबाला एवं सरोजिनी। इसमें से प्रथम दो प्रमुख चरित्र हैं जबकि बाद वाले दो चरित्र गौण हैं। सावित्री एक ब्राह्मण परिवार में जन्मी स्त्री है किन्तु अपने ही एक सम्बन्धी द्वारा छल किए जाने से वह पति द्वारा त्यक्त होकर एक नौकरानी का कार्य करके जीविका चलाती है। उसका चरित्र विशुद्ध है और वह सतीश के प्रति अनुरक्त है। सुबारला उपेन्द्रनाथ की पत्नी है। वह तरुण, शुद्धचरित्र, धार्मिक ग्रन्थों में अन्धश्रद्धायुक्त तथा चित्ताकर्षक है। सरोजिनी पाश्चात्य शैली में शिक्षित, प्रगतिशील चिन्तन वाली महिला है किन्तु पारिवारिक परिस्थितियों के चलते वह बलपूर्बक माँ बना दी गयी थी। किरणमयी, इस उपन्यास की सबसे आकर्षक चरित्र है। वह तरुण एवं अत्यन्त सुन्दर, अत्यन्त बुद्धिमान एबं युक्तियुक्त महिला है। सावित्री और किरणमयि पर चरित्रहीनता का आरोप लगता है। किन्तु इस उपन्यास की सबसे रोचक बात यह है कि चारों चरित्रों के बारे में जैसी धारणा बनती है उससे वे पूर्णतः भिन्न हैं। चार भिन्न प्रकार के स्त्री चरित्रों को लेकर बुने गए इस ताने-बाने में शरत के विचार बड़ी तेजी से एक छोर से दूसरे छोर तक जाते हैं लेकिन जो एक बात विशेष प्रभावित करती है वो ये कि शरत के लेखन ने सभी स्त्री पात्रो की गरिमा को हर हाल में बनाए रखा है।
उपेन्द्रनाथ जो कि पेशे से वकील हैं। सतीश उपेन्द्र का मित्र है जिसे उपेन्द्र अपने छोटे भाई के समान समझता है। दिवाकर, उपेन्द्र का ममेरा भाई है जो कि उपेन्द्र के घर में ही रहता है। किरणमयी, उपेन्द्र के मित्र हारान की पत्नी है।
सतीश और सावित्री के बीच एक विचित्र सम्बन्ध है जहाँ कोई भी एक-दूसरे के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का साहस नहीं करता। आगे चलकर लुका-छिपी का यह खेल एक विनाशकारी प्रति-प्रभाव पैदा करता है और उन दोनों को चरित्रहीन होने का दोषी ठहराया जाता है। सावित्री कोलकाता छोड़ने और वाराणसी की शरण लेने के लिए मजबूर हो जाती है। उसे खोने के बाद सतीश को असहनीय पीड़ा होती है। इस बिन्दु पर किरणमयी और सरोजिनी उसके जीवन में प्रवेश करती हैं। किरणमयी धीरे-धीरे उसके साथ गहरे प्यार में पड़ जाती है। सतीश और सरोजिनी के सम्बन्ध में स्पष्टता नहीं हैं।
उपेन्द्र शुरू में किरणमयी की मदद करता है, लेकिन दिवाकर के साथ किरणमयी के सम्बन्धों के बारे में सबसे बुरा सोचता है। दिबाकर अभी अपनी किशोरावस्था में है और किरणमयी की चालों को देखने में नाकाम रहता है। वह एक अनाथ बालक है जो इस बात से अत्यन्त प्रसन्न है कि किरणमयी उसे अपने भाई के समान मानती है। वह पढ़ाई छोड़ देता है । धीरे-धीरे किरणमयी की अलौकिक सुन्दरता से आकर्षित होता है और उनके बीच प्रेम की प्रगाढ़ मनोदशा विकसित होती है। अपनी अपरिपक्व और अनौपचारिक समझ के लिए उसे भारी कीमत चुकानी पड़ती है। वह किरणमयी के साथ अपने सम्बन्ध के बाद पूरी तरह से गैर जिम्मेदाराना कार्य करता है।
सावित्री
सावित्री, सतीश के डेरे में काम करने वाली एक परित्यक्त स्त्री जिसके प्रति सतीश के मन में स्नेह है। सावित्री ने एक ब्राहमण के घर में जन्म लिया और उसी के अनुरूप संस्कार और समझ पायी किन्तु उसको भाग्य के हाथों मजबूर होने पर नौकरानी के रूप में काम करना पड़ा। उसे ऐसे कार्य भी करने पड़ते हैं जो केवल निम्न कुल या जाति की महिलाएँ ही करती हैं लेकिन ये सब करते हुए बिषम परिस्थितियों में भी वो अपने चरित्र को बचाए रखती है। बहुत से लालची पुरुष रूपी भेडियों के बीच रहकर भी वह सतीश के प्रति आजीवन समर्पित रहती है। वह सतीश को प्यार करती है लेकिन खुलकर कभी इजहार नहीं कर पाती। सतीश के मन मे सावित्री के लिए आकर्षण है लेकिन जब सतीश मैस मे उसका हाथ पकड़ लेता है तो वह उसकी इस हरकत के लिए उसे झिड़कती है तो इसलिए नहीं कि उसे इसमे अपना अपमान लगा बल्कि इसलिए कि औरों के सामने ऐसा करने पर कुलीन सतीश की बदनामी होती। वह अन्त समय तक सतीश की खूब सेवा करती है, एकनिष्ठ प्यार भी करती है लेकिन अपने दासत्व की स्थिति को देखते हुए कभी उसे पाने का सपना नहीं पालती। सतीश का विवाह पाश्चात्य शिक्षा और संस्कारों में पली बढी, आधुनिक सोच रखने वाली सरोजिनी से होता है। वह सतीश के गायन और संगीत के कारण उसकी दीवानी हो जाती है। सतीश से उसकी शादी होने में पारिवारिक माहौल और धार्मिक सोच की माँ की बड़ी भूमिका रहती है।
किरणमयी
किरणमयी के रूप में शरत ने एक अत्यन्त रूपवती, चिन्तनशील और तार्किक पात्र को इस कहानी में खडा किया है। पति मृत्यु के द्वार के निकट पहुँच चुका है। घर मे तीन ही प्राणी हैं- पति और उसके अलावा एक सास है जिसके लिए अपने बेटे के कल्याण के सिवा और किसी बात की चिन्ता नहीं है। दिन-रात वो किरणमयी को जली-कटी सुनाती रहती है। पति की रूचि केवल इस बात में है कि किरणमयी पढ़े। पत्नी की पति से और भी कुछ अपेक्षा होती है, शायद इसका पति को अंदाजा ही नहीं है। अपने मुख्य गुणों (सौन्दर्य, बौद्धिकता और तर्कशक्ति) से किरणमयी तीनों पुरुष पात्रों (सतीश, उपेन्द्र और दिवाकर) को आकर्षित और प्रभावित करती है। मित्र की पत्नी होने के दायित्व के कारण उपेन्द्र शुरू में उसकी खूब सहायता करता है लेकिन सच तो ये है कि बाद के घटनाक्रमों में सबसे ज्यादा उपेन्द्र ही उसे अपनी संकुचित सोच से गलत समझता है और तिरस्कार करता है। उपेन्द्र के डर के कारण ही किरणमयी दिवाकर को भगा कर ले जाने का काम करती है। दिवाकर अनाथ है, परिपक्व नहीं है लेकिन इस तरह भगाकर ले जाने के बाद भी किरणमयी को अभिभावक के रूप मे अपनी जिम्मेदारी का पूरा अहसास है। लोगों की दृष्टि में प्रेमी-प्रेमिका या पति-पत्नी के रूप में रहते हुए भी और दो जवान शरीरों के एक विस्तर पर सोने पर भी वह दिवाकर को शारीरिक सुख के लिए प्रेरित नहीं करती। दिवाकर को गैरजिम्मेदार होते देख इसके लिए खुद को जिम्मेदार मानते हुए इस भूल का सुधार करती है। अन्त में लेखक ने किरणमयी के किये हुए का औचित्य समझाया है और उसे क्षमा मिलती है।
सुरबाला
सुरबाला, उपेन्द्र की पत्नी है। पतिनिष्ठ, धार्मिक, पवित्र और बहुत ही भोली जवान महिला है। धार्मिक मान्यताओं मे उसकी अन्धभक्ति है। सुरबाला की मृत्यु असमय लेकिन साधारण मौत है।
सरोजिनी
सरोजिनी पाश्चात्य शैली में शिक्षित, प्रगतिशील चिन्तन वाली महिला है किन्तु पारिवारिक परिस्थितियों के चलते वह बलपूर्बक माँ बना दी गयी थी। वह उपेन्द्र के मित्र ज्योतिष की बहन है। उपेन्द्र के माध्यम से ही वह सतीश को जानती है और उस पर मोहित भी है। सरोजिनी को शशांकमोहन नामक युवक भी चाहता है लेकिन सरोजिनी की माता सतीश को ही दामाद बनाना चाहती है।
इन्हें भी देखें
चरित्रहीन (1974 फ़िल्म)
बांग्ला साहित्य | 2,295 |
8433 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B | टोक्यो | तोक्यो (); आधिकारिक रूप से तोक्यो राजधानी (), जिसे पहले एदो के नाम से जाना जाता था; जापान की राजधानी और सबसे बड़ा नगर है। इसका महानगरीय क्षेत्र (13,452 km²) विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या है, 2018 तक अनुमानित 37.468 मिलियन निवासियों के साथ; नगर में 13.99 मिलियन लोगों की जनसंख्या है। तोक्यो खाड़ी के शीर्ष पर स्थित, यह प्रान्त जापान के सबसे बड़े द्वीप होंशू के मध्य तट पर कान्तो क्षेत्र का भाग है। तोक्यो जापान के आर्थिक केन्द्र के रूप में कार्य करता है और यह जापान की सरकार और जापान के सम्राट दोनों की अवस्थान स्थल है।
मूल रूप से एदो नाम का एक मत्स्य जीवी ग्राम, 1603 में यह नगर एक प्रमुख राजनीतिक केन्द्र बन गया, जब यह तोकुगावा शोगुनराज का स्थान बन गया। 18वीं शताब्दी के मध्य तक, एदो 10 लाख से अधिक लोगों की जनसंख्या वाले विश्व के सबसे अधिक जनसंख्या वाले नगरों में से एक था। 1868 की मेजी पुनर्स्थापन के बाद, क्योतो में शाही राजधानी को एदो में स्थानान्तरित कर दिया गया, जिसका नाम बदलकर "तोक्यो" () कर दिया गया। तोक्यो 1923 के महान कान्तो भूकम्प से और फिर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मित्र देशों की बमबारी से ध्वंस हो गया था। 1950 के दशक की आरम्भ में, नगर में द्रुत गति से पुनर्निर्माण और विस्तार के प्रयास हुए, जो जापानी युद्धोत्तर आर्थिक चमत्कार का नेतृत्व करने के लिए चल रहा था। 1943 के बाद से, तोक्यो महानगरीय सरकार ने प्रान्त के 23 विशेष वार्डों, इसके पश्चिमी क्षेत्र में विभिन्न कम्यूटर नगरों और उपनगरों और तोक्यो द्वीप समूह के रूप में जाने वाली दो बाहरी द्वीप शृंखलाओं को प्रशासित किया है।
नगर ने 1964 ग्रीष्मकालीन ओलिम्पिक और 1964 ग्रीष्मकालीन पैरालिम्पिक, 2020 ग्रीष्मकालीन ओलिम्पिक और 2020 ग्रीष्मकालीन पैरालिम्पिक (स्थगित; 2021 में आयोजित), और जी७ के तीन शिखर सम्मेलन (1979, 1986 और 1993 में) सहित कई अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों की आतिथ्य की है। तोक्यो जापान में अग्रणी अनुसंधान और विकास केंद्र है और इसी तरह कई प्रमुख विश्वविद्यालयों द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाता है, विशेष रूप से तोक्यो विश्वविद्यालय सहित। तोक्यो स्थानक जापान के द्रुतगामी रेलमार्ग अन्तर्जाल, शिंकान्सेन का केन्द्र है; तोक्यो का शिंजुकु स्थानक दुनिया का सबसे व्यस्त रेलमार्ग स्थानक भी है। तोक्यो के उल्लेखनीय विशेष वार्डों में शामिल हैं: चियोदा, राष्ट्रीय डायट भवन और तोक्यो इम्पीरियल पैलेस की साइट; शिंजुकु, नगर का प्रशासनिक केन्द्र; और शिबुया, एक वाणिज्यिक, सांस्कृतिक और व्यावसायिक केन्द्र।
नाम
तोक्यो को मूल रूप से एदो (江戸) के रूप में जाना जाता था, 江 "खाड़ी, उपसागर" और 戸 "प्रवेश, द्वार" का कांजी समास। नाम, जिसका अनुवाद "ज्वारनदीमुख" के रूप में किया जा सकता है, सुमिदा नदी और तोक्यो खाड़ी की मिलन में मूल समुदाय के स्थान को संदर्भित करता है। 1868 में मेजी पुनर्स्थापन के दौरान, नगर का नाम परिवर्तित कर तोक्यो (東京), 東 (तो) अर्थात् "पूर्व", और 京 (क्यो) अर्थात् "राजधानी", कर दिया गया, जब यह पूर्वी एशियाई परम्परा के अनुरूप नई शाही राजधानी बन गई।
इतिहास
टोक्यो मूलतः एक छोटा मछली पकड़ने गांव था जो ईदो नामित किया गया था।
इसे पहली बार ईदो वंशावली द्वारा, उत्तरोत्तर १२ वीं शताब्दी में किलाबद्ध किया गया था।
१४५७ में, ओटा दोकान ने ईदो कैसल बनाया। १५९० में, तोकुगावा ईयासु ने ईदो को अपना आधार बनाया और जब वह १६०३ में शोगुन बन गया, तो नगर देश में सैनिक शासन का केन्द्र बन गया। बाद में पश्चाद्गामी ईदो अवधि के दौरान, ईदो १८ वीं सदी में १० लाख की जनसंख्या के साथ दुनिया के सबसे बड़े नगरों में से एक बन गया।
२३ विशेष वार्ड
मुख्य लेख: टोक्यो के विशेष वार्ड
विशेष वार्ड या तोकूबेत्सू-कू, टोक्यो के वे क्षेत्र हैं जो पहले औपचारिक रूप से टोक्यो नगर था। १ जुलाई, १९४३ को, टोक्यो नगर को टोक्यो प्रीफ़ेक्चर के साथ मिला दिया गया जो वर्तमान "महानगर प्रीफ़ेक्चर" बना। परिणामस्वरूप, जापान में अन्य नगर वार्डों से अलग, ये वार्ड किसी विशाल महानगर का भाग नहीं हैं। प्रत्येक वार्ड एक नगरपालिका है जिसका स्वयं का चयनित महापौर और विधानसभा होती है। टोक्यो के विशेष वार्ड हैं - शिबुया , शिनागावा , शिंजुकु , एडोगवा आदि।
जलवायु और भूकम्प विज्ञान
निरंतर औद्योगिक विकास के चलते वर्ष 2014-15 के अंत तक जापान का टोक्यो नगर जोकि समुद्र के तटवर्ती इलाके में स्थित है, विश्व का शीर्षक सर्वाधिक प्रदूषित नगर रहा।
जनसांख्यिकी
अक्टूबर २००७ तक, आधिकारिक अंतरजनगणनीय अनुमानो के आधार पर टोक्यो में १.२७९ करोड़ लोग निवास करते हैं, जिन्में से ८६.५३ लाख टोक्यो के २३ वार्डों में निवास करते हैं। दोपहर के समय, जनसंख्या में लगभग २५ लाख की वृद्धि हो जाती है क्योंकि कर्मिक और विद्यार्थी आसपास के क्षेत्रों से टोक्यो में आते हैं। यह स्थिति तीन केन्द्रीय वार्डों चियोदा, चूओ और मिनातो में और अधिक स्पष्ट होती है, जिनकी २००५ की राष्ट्रीय जनगणना के अनुसार सामूहिक जनसंख्या रात्री के समय ३,२६,०० होती थी, पर दोपहर के समय २४ लाख तक पहुँच जाती थी।
समूचे प्रिफ़ेक्चर में २००७ में १,२७,९०,००० (२३ वार्डों में ८६,५३,०००) निवासी थे, जिसमें दोपहर के समय ३० लाख की वृद्धि होती थी। टोक्यो की अब तक की सर्वाधिक जनसंख्या १९६५ की जनगणना में थी, जब २३ वार्डों की आधिकारिक जनसंख्या ८८,९३,०९४ थी और १९९५ की जनगणना में यह संख्या ८० लाख से नीचे चली गई। लेकिन उसके बाद से लोग भूमि के दाम गिरने के कारण नगर के भीतरी भाग में बसते रहे।
२००५ तक, टोक्यो मे रहने वाले विदेशियों में सर्वाधिक जनसंख्या चीनीयों (१,२३,६६१) की है, फिर कोरियाई (१,०६,६९७), फ़िलिपीनो (३१,०७७), अमेरिकी (१८,८४८), ब्रिटिश (७,६९६), ब्राज़ीलियाई (५,३००) और फ़्रांसीसी (३,०००)।
१८८९ की जनगणना में [तथ्य वांछित], टोक्यो में १३,८९,६०० लोग दर्ज किए गए थे, जो उस समय जापान में सर्वाधिक थे।
अर्थव्यवस्था
टोक्यो, विश्व अर्थव्यवस्था का संचालन करने वाले तीन केन्द्रों में से एक है, अन्य दो हैं लंदन और न्यूयॉर्क। टोक्यो विश्व की सबसे बड़ी महानगरीय अर्थव्यवस्था भी है। प्राइसवॉटरहाउसकूपर्स द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार टोक्यो नगरीय क्षेत्र (३.५२ करोड़) का कुल सकल घरेलू उत्पाद वर्ष २००८ में क्रय शक्ति के आधार पर १,४७९ अरब अमेरिकी डॉलर था जो सूची में सर्वाधिक था। २००८ की स्थिति तक, ग्लोबल ५०० में सूचीबद्ध समवायों में से ४७ के मुख्यालय टोक्यो में स्थित हैं, जो दूसरे स्थान के नगर पैरिस से लगभग दोगुने हैं।
टोक्यो, विश्व का एक प्रमुख वित्तीय केन्द्र भी है, जहाँ पर विश्व के सबसे बड़े निवेश बैंको और बीमा समवायों के मुख्यालय स्थित हैं और यह नगर जापान के परिवहन, प्रकाशन और प्रसारण उद्योगों का एक प्रमुख केन्द्र भी है। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात जापान की केन्द्रीयकृत वृद्धि के दौरान, बहुत से व्यवसाय-संघ अपने मुख्यालय ओसाका से टोक्यो ले गए ताकी सरकार तक उत्तमतर पहुँच हो सके। लेकिन टोक्यो में बढ़ती जनसंख्या और महँगे जीवन स्तर के कारण अब इस चलन में कमी आने लगी है।
इकॉनमिस्ट इण्टेलिजेन्स यूनिट द्वारा टोक्यो को विश्व के सबसे महँगे नगर के रूप में मूल्यांकित किया जो लगातार १४ वर्षों तक जारी रहा और २००६ में जाकर समाप्त हुआ। यह विश्लेषण निगमीय कार्यकारी जीवन शैली के लिए था, जिसमें असंलग्न घर और बहुत से वाहनों जैसे मदों को सम्मिलित किया गया था।
टोक्यो शेयर बाज़ार, जापान का सबसे बड़ा शेयर बाज़ार है और बाज़ारी पूँजीकरण के आधार पर विश्व में दूसरा सबसे बड़ा और शेयर बिक्री के आधार पर चौथा सबसे बड़ा। १९९० के अन्त में जापानी परिसंपत्ति मूल्य गुबार के समय इसकी विश्व स्टॉक बाज़ार निधि में ६०% की भागीदारी थी।
परिवहन
टोक्यों, वृहदतर टोक्यों क्षेत्र का केन्द्र होने के कारण, जापान का सबसे बड़ा घरेलू और अन्तर्राष्ट्रीय रेल, वायु और भूतलीय परिवहन का केन्द्र- बिन्दू है। टोक्यो का सार्वजनिक परिवहन साफ-सुथरे और कुशल ट्रेनों और भूमिगत रेलों का विशाल तन्त्र है जो विभिन्न संचालकों द्वारा संचालित किया जाता है, जिसमें बसें, मोनोरेल और ट्रामें गौण और सहायक परिवहन की भूमिका में है।
ओटा के भीतर, जो २३ विशेष वार्डों में से एक है, स्थित टोक्यों अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा ("हानेदा") घरेलू विमान सेवा प्रदान करता है, जबकि चीबा प्रेइफेक्चर में स्थित नरिता अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, जापान आने वाले यात्रियों के लिए जापान का प्रवेशद्वार है।
रेलें, टोक्यो में परिवहन का प्रमुख साधन हैं और टोक्यो का रेल तन्त्र विश्व का सबसे विशाल महानगरीय रेल तन्त्र है और सतही मार्गों का भी इतना ही विशाल तन्त्र है। जेआर ईस्ट, टोक्यो के सबसे बड़े रेल तन्त्र का संचालन करता है, जिसमें यामानोते लूप लाइन भी सम्मिलित है जो डाउनटाउन टोक्यो के केन्द्र का चक्कर लगाती है। दो संगठन भूमिगत तन्त्र का संचालन करते हैं: निजी टोक्यो मेट्रो और सरकारी टोक्यों महानगर परिवहन ब्यूरो। महानगरीय सरकार और निजि वाहक बस मार्गों को संचालित करते है। स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय सेवाएं विशाल रेलमार्ग स्टेशनों पर स्थित प्रमुख टर्मिनलों पर से उपलब्ध हैं।
एक्स्पेस-मार्ग राजधानी को वृहद्तर टोक्यो क्षेत्र के अन्य बिन्दुओं से जोड़ते हैं, जैसे कान्तो क्षेत्र और क्युशु और शिकोकू द्वीप।
अन्य परिवहन के साधन है टेक्सियां जो विशेष वार्डों और नगरो और कस्बों में सेवाएं प्रदान करती हैं। लम्बी दूरी की नौकाएं टोक्यो के द्वीपों पर सेवाएं प्रदान करती है और यात्रियों और कार्गो (सामान) को घरेलू और विदेशी बन्दरगाहों तक लाती-ले जाती हैं।
शिक्षा
टोक्यो में बहुत से विश्वविद्यालय, जूनियर कॉलेज और वोकेश्नल स्कूल हैं। जापान के बहुत से नामी विश्वविद्यालयों में से कई टोक्यो में स्थित हैं, जिनमें टोक्यो विश्वविद्यालय, हितोत्सूबाशी विश्वविद्यालय, टोक्यो प्रौद्योगिकी संस्थान, वासीदा विश्वविद्यालय और कीओ विश्वविद्यालय सम्मिलित हैं। सर्वाधिक बडे़ राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में से टोक्यों में निम्नलिखित स्थित है:
ओचानोमिज़ू विश्वविद्यालय
वैद्युत-संचार विश्वविद्यालय
टोक्यो विश्वविद्यालय
टोक्यो आयुर्विज्ञान और दन्त विश्वविद्यालय
टोक्यो विदेशी शिक्षा विश्वविद्यालय
टोक्यो समुद्री विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय
टोक्यो गाकूजेई विश्वविद्यालय
टोक्यो कला विश्वविद्यालय
टोक्यो प्रौद्योगिकी संस्थान
टोक्यों कृषि एवँ प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय
हितोत्सूबाशी विश्वविद्यालय
खेलकूद
टोक्यो में विविध प्रकार के खेल खेले जाते हैं और यह दो पेशेवर बेसबॉल क्लबों का घर है, योमियूरी जायंट्स जो टोक्यो डोम में खेलते हैं और टोक्यो याकुल्ट स्वैलोज जो मेइजेई-जिंगू स्टेडियम में खेलते हैं। जापान सूमो संघ का मुख्यालय भी टोक्यो में र्योगोकू कोकूजिकन सूमो एरीना में स्थित है जहाँ पर तीन वार्षिक आधिकारिक सूमो प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं (जनवरी, मई और सितंबर)। टोक्यो के फुटबॉल क्लब हैं एफ. सी. टोक्यो और टोक्यो वेर्डी १९६९ और दोनों ही अजिनोमोतो स्टेडियम, चोफू में खेलते हैं।
टोक्यो ने १९६४ ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक की मेज़बानी की थी। नैश्नल स्टेडियम, जिसे ओलंपिक स्टेडियम, टोक्यो के नाम से भी जाना जाता है में बहुत सी अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। टोक्यो के बहुत से विश्व-स्तरीय खेल स्थलों में बहुत सी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है जैसे टेनिस, तैराकी, मैराथन, जूड़ो, कराटे, इत्यादि।
संस्कृति
पर्यटन स्थल
टोक्यो के पर्यटन स्थल निम्नलिखित हैं:
शाही महल
शाही महल जापान के राजा का आधिकारिक निवास है। इस महल में जापानी परंपराओं को देखा जा सकता है। महल में बहुत से सुरक्षा भवन और दरवाजें हैं। यहां की सबसे प्रसिद्ध जगहों में से कुछ हैं- ईस्ट गार्डन, प्लाजा और निजुबाशी पुल। यह महल सम्राट के जन्मदिन के दिन जनता के लिए खोला जाता है।
टोक्यो टावर
इस टावर का निर्माण १९५८ में हुआ था। ३३३ मीटर ऊंचा यह टावर एफिल टावर से भी १३ मीटर ऊंचा है। यहां पर दो वेधशालाएं हैं जहाँ से टोक्यो का दृश्य देखा जा सकता है। साफ़ मौसम में यहां से माउंट फ़्यूजी भी दिखता है। मुख्य वेधशाला १५० मीटर ऊंची है और विशेष वेधशाला २५० मीटर ऊंची है। इस टावर के अंदर टोक्यो टावर मोम संग्रहालय, रहस्मय पैदल क्षेत्र और हस्तलाघव कला गलियारा भी है।
असाकुसा श्राइन
दंतकथाओं के अनुसार सैकड़ों वर्ष पहले हिरोकुमा बंधुओं के मछली पकड़ने के जाल में कैनन की प्रतिमा फंस गई। तब गांव के मुखिया ने वहां प्रतिमा की स्थापना की। इन तीन लोगों को समर्पित असाकुसा श्राइन की स्थापना १६४९ में हुई थी। इसके बाद इस मंदिर का एक उपनाम संजा-समा पड़ा। यह टोक्यो का सबसे प्रमुख मंदिर है। मई के महीने में यहां संजा उत्सव भी मनाया जाता है।
मीजी जिंगू श्राइन
यह मंदिर शिंतो वास्तुकला का उत्तम नमूना है। इसका निर्माण १९२० में यहां के शासक मीजी (१९१२) की स्मृति में किया गया था। ७२ हैक्टेयर में फैले पेड़ों और मीजी जिंगू पार्क की जापानी वनस्पतियों से घिरा यह स्थान जापानी की सबसे सुन्दर और पवित्र जगहों में से एक है।
अमेयोको
अमेयोको में जूतों से लेकर कपड़ों तक, हर प्रकार की उपभोक्ता वस्तु खरीदी जा सकती हैं। बालों पर लगाने वाली क्रीम हो या छतरी यहां सब कुछ मिलता है। यह बाजार उएनो स्टेशन के पास है इसलिए यहां आने वाले लोग इस बाजार में आना पसंद करते हैं। यदि आप जापान के कामकाजी लोगों को निकट से देखना चाहते हैं और अद्भुत चीजें कम दाम पर खरीदना चाहते हैं तो यह जगह बिल्कुल उपयुक्त है।
इन्द्रधनुषी पुल
इस अनोखे नाम का कारण इस पुल पर रात को जलने वाली रंगबिरंगी रोशनी हैं। यह पुल मिनटोकु और ओडैबा को जोड़ता है। यहां पर आठ यातायात लेन और दो रेलमारग हैं। पैदल चलने वालों के लिए भी रास्ता है। यह पुल १९९३ में चालू किया गया था। इस पुल की सुन्दरता को देखने का एक अन्य उपाय है मोनोरल, जो शिम्बाशी से चलती है। इसके अतिरिक्त हिनोक पीयर से असाकुसा के बीच क्रूज से यात्रा करके इसकी सुन्दरता को निहारा जा सकता है।
समय: सुबह ९ बजे से रात ९ बजे तक, अप्रैल से अक्टूबर: सुबह १० बजे से शाम ६ बजे तक
महीने के तीसर सोमवार और राष्ट्रीय अवकाश के दिन बंद
तोशोगु मंदिर
इस मंदिर का मुख्य आकर्षण पत्थर की बनी ५० विशाल लालटेन हैं। इनमें से कई सामंती दासों द्वारा दान की गई थीं। यहां का मुख्य भवन जिसका निर्माण १६५१ में हुआ था, सोने से बनी थी। इसे बनाने का श्रेय तीसर शोगुम इमीत्सु तोकुगावा को जाता है। यह मंदिर जापान की राष्ट्रीय संपदा का भाग है।
सूमो संग्रहालय
सूमो रसलिंग जापान का सबसे प्रसिद्ध खेल है। इस संग्रहालय में समारोह के दौरान पहले जाने वाले कपड़ों, सूमो वस्त्रों, रैफरी के पैडलों को प्रदर्शित किया गया है और प्रसिद्ध रसलरों के बार में बताया गया है। यह संग्रहालय नेशनल सूमो स्टेडियम के साथ बना है।
गिंजा
गिंजा जापान का और कदाचित एशिया का सबसे अच्छा और भव्य शॉपिंग एरिया है। दुनिया भर के प्रसिद्ध ब्रैण्ड स्टोर यहां मिल जाएंगे। मित्सुकोशी, मत्सुया और मत्सुजकाया डिपार्टमेंटल स्टोर यहां हैं, साथ ही यामहा म्यूजिक शॉप और सबसे मशहूर कॉस्मेटिक्स शीसेडो भी यहां हैं। गिंजा कार्यालय में काम करने वालों से लेकर विद्यार्थियों तक को पसंद आता है। यहां पर मदिरा, पानी और खाना खाने की कई जगहें मिल जाएंगी। इनमें साधारण और महंगी दोनों तरह के स्थान सम्मिलित हैं।
नेशनल म्यूजियम ऑफ वेस्टर्न आर्ट
यह संग्रहालय पर्यटकों के बीच बहुत की प्रसिद्ध है क्योंकि यहां सुदूर पूर्व में पश्चिमी कला का आधुनिकतम संग्रह है। इस संग्रह के पीछे का इतिहास बहुत रोचक है। सैन फ़्रांसिस्को शांति समक्षौते में कहा गया कि कोजिरो मत्सुकाता संग्रह जो द्वितीय विश्वयुद्ध के समय फ़्रांस के पास चला गया था, अब फ्रांस की संपत्ति होगा। बाद में फ्रांस सरकार ने यह संग्रह जापान को वापस कर दिया। यह संग्रहालय १९५९ में खुला था।
कुल मिलाकर देखें तो यह शहर आधुनिकता और परंपराओ का एक अनुपम उदाहरण है। अत्याधुनिक महानगर होते हुए भी इसने अपनी परंपराओं को छोड़ा नहीं है। यहां आपको जापान की उन्नति दिखाई देगी, तो साथ ही इसकी संस्कृति भी।
नगर दृश्यावली
भगिनी नगर
टोक्यो के ग्यारह भगिनी नगर हैं:
इसके अतिरिक्त, टोक्यो का लंदन, यूनाइटेड किंगडम के साथ एक "भागीदारी" समझौता भी है।
इन्हें भी देखें
जापान की राजधानी
जापान के अद्भुत संस्कृति
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
आधिकारिक टोक्यो महानगर सरकार वेबसाइट
टोक्यो मानचित्र
टोक्यो जापान पर्यटन मार्गदर्शिका चित्र सहित
टोक्यो
कान्तो क्षेत्र
ग्रीष्मकालीन ओलंपिक मेज़बान नगर
जापान के नगर
एशिया में राजधानियाँ
एशिया के आबाद स्थान | 2,531 |
1263 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A5%B0%20%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A5%B0%20%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A4%BE%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5 | पी॰ वी॰ नरसिम्हा राव | पामुलापति वेंकट नरसिंह राव (जन्म- 28 जून 1921, मृत्यु- 23 दिसम्बर 2004) भारत के 09 वें प्रधानमंत्री के रूप में जाने जाते हैं। 'लाइसेंस राज' की समाप्ति और भारतीय अर्थनीति में खुलेपन उनके प्रधानमंत्रित्व काल में ही आरम्भ हुआ। ये आन्ध्रा प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे।
इनके प्रधानमंत्री बनने में भाग्य का बहुत बड़ा हाथ रहा है। 21 मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या हो गई थी। ऐसे में सहानुभूति की लहर के कारण कांग्रेस को निश्चय ही लाभ प्राप्त हुआ। 1991 के आम चुनाव दो चरणों में हुए थे। प्रथम चरण के चुनाव राजीव गांधी की हत्या से पूर्व हुए थे और द्वितीय चरण के चुनाव उनकी हत्या के बाद में। प्रथम चरण की तुलना में द्वितीय चरण के चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा। इसका प्रमुख कारण राजीव गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर थी। इस चुनाव में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं प्राप्त हुआ लेकिन वह सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। कांग्रेस ने 232 सीटों पर विजय प्राप्त की थी। फिर नरसिम्हा राव को कांग्रेस संसदीय दल का नेतृत्व प्रदान किया गया। ऐसे में उन्होंने सरकार बनाने का दावा पेश किया। सरकार अल्पमत में थी, लेकिन कांग्रेस ने बहुमत साबित करने के लायक़ सांसद जुटा लिए और कांग्रेस सरकार ने पाँच वर्ष का अपना कार्यकाल सफलतापूर्वक पूर्ण किया। पीवी नरसिंह राव ने देश की कमान काफी मुश्किल समय में संभाली थी। उस समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार चिंताजनक स्तर तक कम हो गया था और देश का सोना तक गिरवी रखना पड़ा था। उन्होंने रिजर्व बैंक के अनुभवी गवर्नर डॉ. मनमोहन सिंह को वित्तमंत्री बनाकर देश को आर्थिक भंवर से बाहर निकाला।'''
इन्हें भी देखें
भारत के प्रधानमंत्री
अटल बिहारी वाजपेयी
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
देश की आर्थिक आजादी के मसीहा थे नरसिंह राव
भारत के प्रधानमंत्रियो का आधिकारिक जालस्थल (अंग्रेजी मे)
1921 में जन्मे लोग
२००४ में निधन
भारत के प्रधानमंत्री
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनीतिज्ञ
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष | 321 |
779007 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%97%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%AE%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%87%20%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%202017 | अफ़ग़ानिस्तान क्रिकेट टीम का ज़िम्बाब्वे दौरा 2017 | अफगान क्रिकेट टीम वर्तमान में जनवरी और फरवरी 2017 के बीच जिम्बाब्वे दौरा कर रहे हैं। दौरे के पाँच एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय (वनडे) मैचों के होते हैं। वनडे सीरीज से पहले, अफगानिस्तान ए क्रिकेट टीम पांच "अनौपचारिक" वनडे जिम्बाब्वे ए क्रिकेट टीम के खिलाफ मैच खेलेंगे। इन मैचों के सभी लिस्ट ए का दर्जा प्राप्त है। अफगानिस्तान ने लिस्ट ए श्रृंखला 4-1 और वनडे सीरीज 3-2 से जीत ली।
वनडे की शुरुआत से पहले मैच, जिम्बाब्वे क्रिकेट अपने घरेलू लिस्ट ए पूरा, 2016-17 प्रो-50 चैम्पियनशिप में जुड़नार आगे लाया, दौरे के लिए तैयारी की गई।
लिस्ट ए सीरीज
1ला लिस्ट ए मैच
2रा लिस्ट ए मैच
3रा लिस्ट ए मैच
4था लिस्ट ए मैच
5वा लिस्ट ए मैच
वनडे सीरीज
1ला वनडे
2रा वनडे
3रा वनडे
4था वनडे
5वा वनडे
सन्दर्भ
क्रिकेट टीमों के दौरे
२०१७ में क्रिकेट | 138 |
794432 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%AE%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%A6%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BF%E0%A4%A3%20%E0%A4%85%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%201992-93 | भारतीय क्रिकेट टीम का दक्षिण अफ्रीका दौरा 1992-93 | भारतीय क्रिकेट टीम ने दक्षिण अफ़्रीका का दौरा 29 अक्टूबर 1992 से 6 जनवरी 1993 तक चार टेस्ट और सात एकदिवसीय मैच में किया।
दक्षिण अफ्रीका टेस्ट श्रृंखला 1-0 से जीता।
दक्षिण अफ्रीका ने एकदिवसीय श्रृंखला 5-2 से जीती।
टेस्ट मैचेस
पहला टेस्ट
दूसरा टेस्ट
तीसरा टेस्ट
चौथा टेस्ट
वनडे मैचेस
1ला वनडे = केप टाउन- दक्षिण अफ्रीका 6 विकटों से जीता, स्कोरकार्ड
2रा वनडे = पोर्ट एलिज़ाबेथ- दक्षिण अफ्रीका 6 विकटों से जीता, स्कोरकार्ड
3रा वनडे = सेंचूरियन- भारत 4 विकटों से जीता, स्कोरकार्ड
4था वनडे = जोहान्सबर्ग- दक्षिण अफ्रीका 6 विकटों से जीता, स्कोरकार्ड
5वा वनडे = ब्लूमफ़ोन्टीन- दक्षिण अफ्रीका 8 विकटों से जीता, स्कोरकार्ड
6ठा वनडे = डरबन- दक्षिण अफ्रीका 39 रनों से जीता, स्कोरकार्ड
7वा वनडे = ईस्ट लंदन- भारत 5 विकटों से जीता, स्कोरकार्ड
भारतीय क्रिकेट टीम का दक्षिण अफ्रीका दौरा | 136 |
500521 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A5%80 | वेदी | वैदिक एव स्मार्त कर्म के लिए वेदी या वेदि का निर्माण अत्यावश्यक है। कर्मकांडीय अनुष्ठान के लिए एक निश्चित परिमाणम की शास्त्रानुसार परिष्कृत भूमि वेदी कहलाता है। इस वेदी में यज्ञपात्रों का स्थापन, यज्ञपशु का बंधन एवं अन्यान्य याज्ञिक कर्म अनुष्ठित होते हैं।
श्रौत परंपरा में वेदी के विषय में अनेक विशिष्ट तथ्य मिलते हैं। यथा स्फ्य (खड्ग की आकृति वाला अस्त्र जो खदिर वृक्ष से बनाया जाता है, जिसका प्रमाण १ अरत्नि = २४ अंगुल है; १ अंगुल = इंच) से भूमि खोदने, तृण को हटाने और शुद्ध पांशु लाकर वेदी का निर्माण करने का निर्देश है।
वेदी अनेक आकृतियों की होती है। अग्निहोत्र दर्शपूर्णमास के लिए एक ही वेदी बनाई जाती है, जबकि चातुर्मांस यज्ञांतर्गत वरुणप्रधास में दो वेदियाँ होती हैं। यज्ञकर्मानुसार वेदी का स्थान निश्चित होता है, यथा - आह्वनीय अग्नि के पूर्व में, निरूढ पशुबंध यज्ञ की वेदी बनाई जाती है, जबकि दर्शपूर्णमास में अग्नि के पश्चिम में। वेदी का परिमाण भी यज्ञकर्म के भेद के अनुसार विभिन्न प्रकार का होता है। एक ही यज्ञ की वेदियाँ विभिन्न श्रौतसूत्रों के अनुसार कुछ विभिन्न रूपों से बनाई जाती हैं। आपस्तबानुसारी जहाँ वेदी को गार्हत्याग्नि से कुछ दूर बनाते हैं, वहाँ सत्याषाढानुसारी वेदी को अग्नि के पास ही बनाते हैं।
वैदिक कर्मकाण्ड | 204 |
651623 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%9D%E0%A5%80%E0%A4%B2 | सुखना झील | सुखना झील भारत के चण्डीगढ़ नगर में हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में स्थित एक सरोवर है। यह झील 1958 में 3 किमी² क्षेत्र में बरसाती झील सुखना खाड (चोअ) को बाँध कर बनाई गई थी। पहले इसमें सीधा बरसाती पानी गिरता था और इस कारण बहुत सी गार इसमें जमा हो जाती थी। इसको रोकने के लिए 25.42 किमी² ज़मीन ग्रहण करके उसमे जंगल लगाया गया। 1974 में इसमें चोअ के पानी को दूसरी तरफ मोड़ दिया गया और झील में साफ़ पानी भरने का प्रबंध कर लिया गया।
तस्वीरें
सन्दर्भ
झीलें
भारत की झीलें | 97 |
982672 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%80 | पाकिस्तान की जनसांख्यिकी | पाकिस्तान की नवीनतम अनुमानित आबादी 207,774,520 है (आज़ाद जम्मू-कश्मीर और गिलगिट-बाल्टिस्तान के स्वायत्त क्षेत्रों को छोड़कर)। इससे पाकिस्तान को दुनिया का पांचवी बड़ी आबादी वाला देश बना देता है, सिर्फ इंडोनेशिया के पीछे और ब्राजील से थोड़ा आगे। पाकिस्तान में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी है। 19 मई 2021 को, पाकिस्तान सांख्यिकी ब्यूरो ने अपनी वेबसाइट पर छठी जनसंख्या और आवास जनगणना 2017 के अंतिम परिणाम प्रकाशित किए, जिसके अनुसार पाकिस्तान की कुल जनसंख्या (आजाद कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान को छोड़कर) 20.768 करोड़ है। आजाद कश्मीर समेत, जनसंख्या 211.819 मिलियन होगी। गिलगिट बाल्टिस्तान क्षेत्र में अनुमानित आबादी 1.8 मिलियन है।
1950-2011 के दौरान, पाकिस्तान की शहरी आबादी सात गुना से अधिक हो गई, जबकि कुल जनसंख्या चार गुना बढ़ गई। अतीत में, देश की आबादी में अपेक्षाकृत उच्च वृद्धि दर थी जो मध्यम जन्म दर से बदल दी गई है। 1998-2017 के बीच, औसत जनसंख्या वृद्धि दर 2.40% थी।
नाटकीय सामाजिक परिवर्तनों ने तेजी से शहरीकरण और मेगासिटी के उद्भव को जन्म दिया है। 1990-2003 के दौरान, पाकिस्तान ने दक्षिण एशिया में दूसरे सबसे शहरीकृत देश के रूप में अपने ऐतिहासिक नेतृत्व को बनाए रखा, जिसमें शहर के लोग अपनी आबादी का 36% हिस्सा बनाते थे। इसके अलावा, 50% पाकिस्तानी अब 5000 लोगों या उससे अधिक शहरों में रहते हैं।
पाकिस्तान में एक बहुसांस्कृतिक और बहु-जातीय समाज है और दुनिया की सबसे बड़ी शरणार्थी आबादी के साथ-साथ युवा आबादी में से एक है।
प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आधुनिक युग तक पाकिस्तान के जनसांख्यिकीय इतिहास में मध्य एशिया, मध्य पूर्व और यूरोप से पाकिस्तान के आधुनिक क्षेत्र में कई संस्कृतियों और जातीय समूहों के आगमन और निपटारे शामिल हैं।
आबादी
दक्षिणी पाकिस्तान की अधिकांश जनसंख्या सिंधु नदी के साथ रहती है। कराची पाकिस्तान में सबसे अधिक आबादी वाला शहर है। उत्तरी आधे में, अधिकांश आबादी फैसलाबाद, लाहौर, रावलपिंडी, सरगोधा, इस्लामाबाद, मुल्तान, गुजरनवाला, सियालकोट, नौशेरा, स्वाबी, मार्डन और पेशावर के शहरों द्वारा बनाई गई चाप के बारे में रहती है।
चूंकि व्यभिचार पाकिस्तान में मौत से दंडनीय अपराध है, केवल मुख्य शहरों में 1,210 शिशु मारे गए थे या उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया था (2010), उनमें से 90% लड़कियां और एक सप्ताह से भी कम पुरानी ईधी फाउंडेशन के रूढ़िवादी अनुमानों के मुताबिक, इस बढ़ती प्रवृत्ति को दूर करने के लिए काम कर रहे है|
जातीय समूह
पाकिस्तान की विविधता सांस्कृतिक मतभेदों और भाषाई, धार्मिक या अनुवांशिक रेखाओं के साथ कम दिखाई देती है। लगभग सभी पाकिस्तानी भारत-यूरोपीय शाखा के भारत-ईरानी भाषाई समूह से संबंधित हैं। पाकिस्तान के मोटे अनुमान अलग-अलग हैं, लेकिन सर्वसम्मति यह है कि पंजाबियों का सबसे बड़ा जातीय समूह है। पश्तुन (पख्तुन) दूसरे सबसे बड़े समूह बनाते हैं और सिंधी तीसरे सबसे बड़े जातीय समूह हैं। साराकीस (पंजाबियों और सिंधियों के बीच एक संक्रमणकालीन समूह) कुल आबादी का 10.53% । शेष बड़े समूहों में मुहाजिर और बलूच लोग शामिल हैं, जो कुल आबादी का 7.57% और 3.57% बनाते हैं। हिंडकोवन और ब्राहुई, और गिलगिट-बाल्टिस्तान के विभिन्न लोग कुल जनसंख्या का लगभग 4.66% हिस्सा बनाते हैं। पख्तुन और बलूच दो प्रमुख आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो भाषाई ईरानी हैं, जबकि बहुमत पंजाबियों, हिंडकोवन, सिंधी और साराइकिस प्रमुख भाषाई भारत-आर्य समूह हैं।
प्रवासन
1947 में पाकिस्तान की आजादी के बाद, भारत के कई मुस्लिम पाकिस्तान चले गए और वे विदेशी पैदा हुए निवासियों का सबसे बड़ा समूह हैं। यह समूह अपनी उम्र के कारण घट रहा है। विदेशी पैदा हुए निवासियों के दूसरे सबसे बड़े समूह में अफगानिस्तान से मुस्लिम शरणार्थियों शामिल हैं, जिन्हें 2018 के अंत तक पाकिस्तान छोड़ने की उम्मीद है। बर्मा, बांग्लादेश, इराक, सोमालिया, ईरान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान जैसे देशों के मुस्लिम आप्रवासियों के छोटे समूह भी हैं|
संदर्भ | 599 |
490933 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF | तक्षशिला विश्वविद्यालय | तक्षशिला विश्वविद्यालय वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिडी से 18 मील उत्तर की ओर स्थित था। जिस नगर में यह विश्वविद्यालय था उसके बारे में कहा जाता है कि श्री राम के भाई भरत के पुत्र तक्ष ने उस नगर की स्थापना की थी। यह विश्व का प्रथम विश्विद्यालय था। जब की विश्व का दूसरा विश्विद्यालय नालंदा विश्वविद्यालय हैं। जो कि मगध में वर्तमान बिहार राज्य के नालंदा जिला में स्थित हैं।
तक्षशिला की स्थापना सातवीं ईसापूर्व में की गई थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय में,पूरे विश्व के 10,500 से अधिक छात्र अध्ययन करते थे। यहां 60 से भी अधिक विषयों को पढ़ाया जाता था। 326 ईस्वी पूर्व में विदेशी आक्रमणकारी सिकन्दर के आक्रमण के समय यह संसार का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय ही नहीं था, अपितु उस समय के चिकित्सा शास्त्र का एकमात्र सर्वोपरि केन्द्र था। तक्षशिला विश्वविद्यालय का विकास विभिन्न रूपों में हुआ था। इसका कोई एक केन्द्रीय स्थान नहीं था, अपितु यह विस्तृत भू भाग में फैला हुआ था। विविध विद्याओं के विद्वान आचार्यो ने यहां अपने विद्यालय तथा आश्रम बना रखे थे। छात्र रुचिनुसार अध्ययन हेतु विभिन्न आचार्यों के पास जाते थे। महत्वपूर्ण पाठयक्रमों में यहां वेद-वेदान्त, अष्टादश विद्याएं, दर्शन, व्याकरण, अर्थशास्त्र, राजनीति, युद्धविद्या, शस्त्र-संचालन, ज्योतिष, आयुर्वेद, ललित कला, हस्त विद्या, अश्व-विद्या, मन्त्र-विद्या, विविद्य भाषाएं, शिल्प आदि की शिक्षा विद्यार्थी प्राप्त करते थे। प्राचीन भारतीय साहित्य के अनुसार पाणिनी, कौटिल्य, चन्द्रगुप्त, जीवक, कौशलराज, प्रसेनजित आदि महापुरुषों ने इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। तक्षशिला विश्वविद्यालय में वेतनभोगी शिक्षक नहीं थे और न ही कोई निर्दिष्ट पाठयक्रम था। आज कल की तरह पाठयक्रम की अवधि भी निर्धारित नहीं थी और न कोई विशिष्ट प्रमाणपत्र या उपाधि दी जाती थी। शिष्य की योग्यता और रुचि देखकर आचार्य उनके लिए अध्ययन की अवधि स्वयं निश्चित करते थे। परंतु कहीं-कहीं कुछ पाठयक्रमों की समय सीमा निर्धारित थी। चिकित्सा के कुछ पाठयक्रम सात वर्ष के थे तथा पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद प्रत्येक छात्र को छरू माह का शोध कार्य करना पड़ता था। इस शोध कार्य में वह कोई औषधि की जड़ी-बूटी पता लगाता तब जाकर उसे डिग्री मिलती थी।
अनेक शोधों से यह अनुमान लगाया गया है कि यहां बारह वर्ष तक अध्ययन के पश्चात दीक्षा मिलती थी। 500 ई. पू. जब संसार में चिकित्सा शास्त्र की परंपरा भी नहीं थी तब तक्षशिला आयुर्वेद विज्ञान का सबसे बड़ा केन्द्र था। जातक कथाओं एवं विदेशी पर्यटकों के लेख से पता चलता है कि यहां के स्नातक मस्तिष्क के भीतर तथा अंतडिय़ों तक का आपरेशन बड़ी सुगमता से कर लेते थे। अनेक असाध्य रोगों के उपचार सरल एवं सुलभ जड़ी बूटियों से करते थे। इसके अतिरिक्त अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भी उन्हें ज्ञान था। शिष्य आचार्य के आश्रम में रहकर विद्याध्ययन करते थे। एक आचार्य के पास अनेक विद्यार्थी रहते थे। इनकी संख्या प्रायरू सौ से अधिक होती थी और अनेक बार 500 तक पहुंच जाती थी। अध्ययन में क्रियात्मक कार्य को बहुत महत्व दिया जाता था। छात्रों को देशाटन भी कराया जाता था। शिक्षा पूर्ण होने पर परीक्षा ली जाती थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय से स्नातक होना उस समय अत्यंत गौरवपूर्ण माना जाता था। यहां धनी तथा निर्धन दोनों तरह के छात्रों के अध्ययन की व्यवस्था थी। धनी छात्रा आचार्य को भोजन, निवास और अध्ययन का शुल्क देते थे तथा निर्धन छात्र अध्ययन करते हुए आश्रम के कार्य करते थे। शिक्षा पूरी होने पर वे शुल्क देने की प्रतिज्ञा करते थे। प्राचीन साहित्य से विदित होता है कि तक्षशिला विश्वविद्यालय में पढऩे वाले उच्च वर्ण के ही छात्र होते थे। सुप्रसिद्ध विद्वान, चिंतक, कूटनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री चाणक्य ने भी अपनी शिक्षा यहीं पूर्ण की थी। उसके बाद यहीं शिक्षण कार्य करने लगे। यहीं उन्होंने अपने अनेक ग्रंथों की रचना की। इस विश्वविद्यालय की स्थिति ऐसे स्थान पर थी, जहां पूर्व और पश्चिम से आने वाले मार्ग मिलते थे। चतुर्थ शताब्दी ई. पू. से ही इस मार्ग से भारत वर्ष पर विदेशी आक्रमण होने लगे। विदेशी आक्रांताओं (हुडों) ने इस विश्वविद्यालय को काफी क्षति पहुंचाई।
इन्हें भी देखें
नालन्दा विश्वविद्यालय
प्राचीन भारत में शिक्षा | 646 |
1414534 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%9F%20%E0%A4%95%E0%A5%89%E0%A4%A8%E0%A4%B0 | किट कॉनर | किट सेबस्टियन कॉनर (जन्म 8 मार्च 2004) एक अंग्रेजी अभिनेता हैं। टेलीविजन पर, सीबीबीसी श्रृंखला रॉकेट्स आइलैंड (2014-2015) में उनकी आवर्ती भूमिका थी। उन्होंने नेटफ्लिक्स किशोर श्रृंखला हार्टस्टॉपर (2022) में निक नेल्सन के रूप में अपनी अभिनीत भूमिका के लिए पहचान हासिल की, जिसके लिए उन्हें 2022 में उत्कृष्ट लीड में प्रदर्शन के लिए चिल्ड्रन एंड फैमिली एमी अवार्ड मिला।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
किट सेबस्टियन कॉनर का जन्म 8 मार्च 2004 को क्रॉयडन के दक्षिण लंदन के बरो नगर में हुआ था। उन्होंने केनले में हेस प्राइमरी स्कूल और फिर साउथ क्रॉयडन में व्हिटगिफ्ट स्कूल में पढ़ाई की, जहां उन्होंने नाटक, अंग्रेजी साहित्य और इतिहास में अपना ए लेवल पूरा किया।
व्यक्तिगत जीवन
अक्टूबर 2022 में, कॉनर एक ट्विटर पोस्ट के माध्यम से कॉनर उभयलिंगी के रूप में सामने आए।
फिल्मोग्राफी
फिल्म
टीवी
थिएटर
संदर्भ | 136 |
1406628 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BF%E0%A4%A3%20%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A2%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%BE | दक्षिण कोरिया में बुढ़ापा | दक्षिण कोरिया में , वृद्धावस्था का तात्पर्य कुल जनसंख्या में वरिष्ठ नागरिकों के अनुपात में वृद्धि से है। “वरिष्ठ नागरिक” शब्द में 65 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोग शामिल हैं। एजिंग सोसाइटी के कम जन्मदर पर फ्रेमवर्क एक्ट के अनुच्छेद 3 नंबर 1 के अनुसार, “ उम्र बढ़ने वाली आबादी “ शब्द का अर्थ पूरी आबादी में बुजुर्ग लोगों के बढ़ते अनुपात से है।
बुढ़ापा अक्सर विज्ञान और चिकित्सा के विकास से प्राप्त जीवन स्तर में नाटकीय सुधार के कारण होता है, जिससे औसत व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा बढ़ जाती है; हालांकि, जन्म दर में कमी से बुढ़ापा भी बहुत अधिक प्रभावित होता है। 2045 में, दक्षिण कोरिया दुनिया की सबसे वृद्ध आबादी बन जाएगा, जिसमें आबादी का एक बड़ा हिस्सा 65 या उससे अधिक उम्र का हो जाएगा। 2017 में एक वृद्ध समाज के रूप में अपने प्रवेश के साथ, दक्षिण कोरिया की उम्र बढ़ने वाली आबादी दुनिया में सबसे तेज गति तक पहुंच जाएगी, जिसमें 65 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों का अनुपात 2067 में अभूतपूर्व 46.5 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा। 2067 तक, कामकाजी उम्र की आबादी कम होने की उम्मीद है ताकि यह बुजुर्ग आबादी से कम हो।
दक्षिण कोरिया में प्रजनन दर में गिरावट देश के भीतर एक प्रमुख मुद्दा बन गया है, 1960 के बाद से दक्षिण कोरिया की जन्म दर में गिरावट आई है। 1980 के दशक तक, यह व्यापक रूप से माना जाता था कि यह जनसांख्यिकीय प्रवृत्ति समाप्त हो जाएगी और जनसंख्या अंततः समाप्त हो जाएगी। स्थिर। हालांकि, लगातार घटती जन्म दर के कारण कोरियाई समाज अपनी भावी जनसंख्या में गिरावट का सामना कर रहा है। 1950 के दशक में बेबी बूम के बाद, जनसंख्या में भारी वृद्धि हुई, और कोरियाई सरकार ने 1960 के दशक में एक जन्म-विरोधी नीति लागू की। इस सरकारी कार्यक्रम ने अनिवार्य किया कि कोरियाई स्वास्थ्य केंद्र परिवार नियोजन प्रदान करेंजनता के लिए अंतर्गर्भाशयी उपकरणों (आईयूडी), पुरुष नसबंदी और कंडोम सहित पारंपरिक गर्भनिरोधक विधियों को पेश करके परामर्श। इस नीति और आर्थिक विकास के साथ, प्रजनन दर में गिरावट आई क्योंकि अधिक विवाहित महिलाओं ने बच्चों की परवरिश के बजाय धन और उच्च जीवन स्तर का पीछा किया। 1997 में आर्थिक संकट के बाद, प्रजनन दर में तेजी से गिरावट आई। आर्थिक संकट के बाद, युवाओं के पास कम आर्थिक और पेशेवर सुरक्षा थी, जिसके कारण कई युवक और युवतियां शादी में देरी करने लगे। 2021 में, यह इतिहास में पहली बार दक्षिण कोरिया में प्राकृतिक जनसंख्या में गिरावट का अनुभव कर रहा था। विश्लेषकों का कहना है कि दक्षिण कोरिया की वर्तमान निम्न जन्म दर देश की उच्च आर्थिक असमानता के कारण है; इसमें रहने की उच्च लागत, ओईसीडी सदस्य देश के लिए कम मजदूरी, नौकरी के अवसरों की कमी, साथ ही बढ़ती आवास-क्षमता शामिल है।
दक्षिण कोरिया में बुढ़ापा एक बड़ी समस्या है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी विश्व और कोरिया जनसंख्या पूर्वानुमान के अनुसार , दक्षिण कोरिया की 65 वर्ष या उससे अधिक आयु की जनसंख्या 2045 में 37.0 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी, जो जापान की 36.7 प्रतिशत को पार कर जाएगी, और इस तरह दुनिया की सबसे अधिक उम्र की आबादी बन जाएगी (रिपोर्ट एक तुलनात्मक पर आधारित है) 201 देशों के लिए संयुक्त राष्ट्र के विश्व जनसंख्या आउटलुक का विश्लेषण और राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय का 1967 और 2017 के बीच भविष्य की आबादी का विशेष अनुमान।)
दक्षिण कोरिया की बुजुर्ग आबादी का हिस्सा दुनिया में सबसे तेज गति से 2019 में 14.9 प्रतिशत से बढ़कर 2067 में 46.5 प्रतिशत होने का अनुमान है। नतीजतन, इससे दक्षिण कोरिया की आबादी में अगले कुछ दशकों में तेजी से गिरावट आएगी। लगभग 25-30 मिलियन, जो 2022 के 51 मिलियन से कम है। 2020 में, दक्षिण कोरिया ने जन्म से अधिक मौतों को दर्ज करना शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप पहली बार जनसंख्या में गिरावट आई।
कारण
दक्षिण कोरिया की उम्र बढ़ने का मुख्य कारण कम प्रजनन क्षमता है। कम प्रजनन दर कम विवाह दर , अधिक विलंबित विवाह और बढ़ती उम्र बढ़ने का कारण बनती है। मौजूदा शोध से पता चलता है कि आर्थिक कारक जैसे आय, श्रम बाजार की स्थिति, साथ ही सामाजिक-सांस्कृतिक कारक जिसमें शिक्षा के मूल्यों और लिंग भूमिकाओं में परिवर्तन शामिल हैं, और परिवार और स्वास्थ्य नीति कम प्रजनन दर के मुख्य कारण हैं।
उपजाऊपन
यूरोप के देशों के विपरीत जहां औद्योगीकरण और सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों के कारण प्रजनन दर स्वाभाविक रूप से जनसंख्या प्रतिस्थापन के स्तर से नीचे गिर गई, कोरिया की जन्म दर जन्म नियंत्रण नीतियों के कारण तेजी से गिर गई। औद्योगीकरण के प्रारंभिक दौर में, प्रजनन क्षमता में गिरावट के परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई, तेजी से जनसंख्या वृद्धि को धीमा करके और तेजी से आर्थिक विकास प्राप्त करने से। नतीजतन, प्राकृतिक गिरावट की अवधि के दौरान जनसंख्या में गिरावट अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक होने की संभावना है। कोरिया की जन्म नियंत्रण नीति 1960 के दशक में शुरू हुई और 1990 के दशक के मध्य में समाप्त हुई जब जन्म दर जनसंख्या प्रतिस्थापन के स्तर से काफी नीचे गिर गई। परिणामस्वरूप, कोरिया की प्रजनन दर 1970 के दशक के अंत (2.90 जन्म/महिला) से लगभग आधी घटकर 1980 के दशक के अंत में 1.56 जन्म/महिला हो गई है। 2000 के दशक में, जब कम जन्म दर एक समस्या बनने लगी, तो सरकार ने इसे बढ़ाने के लिए नीति में बदलाव करने की कोशिश की, लेकिन जन्म दर में अभी भी किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक तेजी से गिरावट आई है।
दूसरी ओर, कोरियाई आबादी में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की संख्या अधिक है ( 1950 के दशक के दौरान कोरियाई युद्ध को छोड़कर , जब कई पुरुष सैनिक मारे गए थे), यह कोरिया में पुरुष शिशुओं के लिए पारंपरिक वरीयता के अनुसार है। अधिक संतुलित लिंगानुपात वाले अन्य विकसित देशों में जनसंख्या वृद्धि कम रही है। इससे पता चलता है कि यदि दक्षिण कोरिया में पुरुष शिशुओं की वरीयता कमजोर हो जाती है, तो लिंग अनुपात को संतुलित करके जन्म दर पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को दूर किया जा सकता है।
प्रति महिला 1.8 बच्चों की दक्षिण कोरियाई प्रजनन दर 1984 में प्रति महिला 2 बच्चों की ओईसीडी औसत प्रजनन दर से कम थी और तब से औसत से नीचे बनी हुई है। 2018 की प्रजनन दर (0.98) को प्रतिस्थापन स्तर (2.1) से मेल खाने की जरूरत है। 2018 में, क्रूड जन्म दर 6.4 के निचले स्तर पर पहुंच गई (उस वर्ष प्रति 1,000 लोगों पर जीवित जन्म)। ईसीडी में, कोरिया एकमात्र ऐसा देश था जिसकी प्रजनन दर 1 से नीचे गिर गई। 2017 से 2018 तक नवजात शिशुओं की संख्या में 8.6% की गिरावट आई है, जो दक्षिण कोरिया के लिए सबसे कम जन्म दर है। 2022 में, प्रजनन दर और गिरकर 0.81 हो गई।
प्रजनन क्षमता में गिरावट के कारण
सेक्स वरीयता
बीसवीं शताब्दी में, कन्या भ्रूणों के चयनात्मक गर्भपात का निम्न जन्म दर पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। कोरिया में, परिवार के नाम के संरक्षण पर ध्यान देने के कारण एक बेटे के लिए एक मजबूत लिंग वरीयता थी। इसके अलावा, क्योंकि दक्षिण कोरिया के लोग दूसरे या तीसरे बच्चे के बजाय पहले बच्चे के रूप में एक बेटे को पसंद करते हैं, कन्या भ्रूण के लिए गर्भपात की दर अधिक थी। इन प्राथमिकताओं ने पुरुषों और महिलाओं के उच्च अनुपात का कारण बना।
1981 से 1988 तक, जन्म के समय लिंग अनुपात 1990 के दशक की शुरुआत में लगभग 116.55 पुरुषों से बढ़कर 100 महिलाओं तक पहुंच गया। जन्म के समय प्राकृतिक लिंगानुपात 105 पुरुषों और 100 महिलाओं के बीच होता है, इसलिए इससे अधिक कुछ भी लिंग-चयनात्मक गर्भपात का संकेत देता है। लिंग-चयनात्मक गर्भपात के अवैध होने के बावजूद , संभावित माता-पिता की संख्या में लिंग की जाँच के बाद कन्या भ्रूण का गर्भपात हो गया। नतीजतन, 1988 में, सरकार ने डॉक्टरों को भ्रूण के लिंग को गर्भवती माता-पिता को प्रकट करने से प्रतिबंधित कर दिया।
शिक्षा लागत
कोरियाई अपने बच्चों की शिक्षा को प्राथमिकता देते हैं, जो उनके कन्फ्यूशियस मूल्यों के अनुरूप है , जो उच्च शिक्षा और सामाजिक आर्थिक स्थिति के बीच संबंधों पर जोर देता है। कुछ कोरियाई नागरिक अपने बच्चों को महंगे हैगवॉन , स्कूल के बाद के शैक्षणिक संस्थानों में लाभ के लिए भेजते हैं, इस उम्मीद में कि उनके बच्चे एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए आवश्यक उच्च परिणाम प्राप्त करते हैं। 2009 में, 75% से अधिक दक्षिण कोरियाई बच्चों ने निजी अकादमियों में भाग लिया।
देश के शीर्ष तीन विश्वविद्यालयों: सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी , कोरिया यूनिवर्सिटी और योन्सी यूनिवर्सिटी (सामूहिक रूप से स्काई के रूप में जाना जाता है) में प्रवेश करने की प्रतिस्पर्धात्मकता के कारण हैगवॉन पाठ्यक्रम अंग्रेजी, गणित और लेखन पर जोर देता है। कोरियाई समाज में, बच्चों को हगवॉन में भेजना इस हद तक एक सामाजिक आदर्श बन गया कि जो लोग अपने बच्चों को हगवॉन में भेजने का जोखिम नहीं उठा सकते, उन्हें अन्य लोग गैर-जिम्मेदार और अज्ञानी माता-पिता के रूप में मानते हैं।
2005 में, एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण से पता चला कि 20 से 29 वर्ष की आयु की 18.2% महिलाओं ने अतिरिक्त शिक्षा की लागत के कारण दूसरा बच्चा पैदा नहीं करना चुना। माता-पिता कम वित्तीय बोझ के साथ प्रत्येक बच्चे की सफलता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक या दो से अधिक बच्चों को पसंद नहीं करते हैं। 2012 में स्वास्थ्य मंत्रालय के एक सर्वेक्षण के अनुसार, सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 90% लोगों ने कहा कि वे निजी शिक्षा शुल्क सहित उच्च शिक्षा लागत के कारण बच्चे पैदा करने के लिए अनिच्छुक हैं।
अत्यधिक प्रतिस्पर्धी समाज
कोरिया, अन्य सुदूर पूर्व देशों की तरह और उससे भी अधिक, व्यक्तियों पर बहुत प्रतिस्पर्धा और मांगों वाला समाज है (स्कूल में कम उम्र से और बाद में कार्यस्थल में)। लंबे काम के घंटे, उत्कृष्टता के लिए निरंतर सामाजिक दबाव लोगों, विशेष रूप से युवा लोगों में तनाव और विफलता का डर पैदा करता है (यह भी समझा सकता है कि कोरिया में दुनिया में सबसे ज्यादा आत्महत्या दर क्यों है)। नतीजतन, कई कोरियाई बच्चे पैदा नहीं करना चुनते हैं और कभी-कभी अकेले भी रहना पसंद करते हैं। और अधिकांश विवाहित जोड़े चाहते हैं कि केवल एक ही बच्चा हो जो उस एक बच्चे की शैक्षिक और व्यावसायिक सफलता के लिए अधिक साधन और ऊर्जा समर्पित कर सके।
महिला श्रम शक्ति
जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था विकसित हुई है, अधिक दक्षिण कोरियाई महिलाओं ने विश्वविद्यालय में प्रवेश किया, जिसके परिणामस्वरूप महिला कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि हुई। अधिक महिलाओं ने विवाह स्थगित कर दिया है और बच्चे पैदा करने के बजाय अपने जीवन स्तर में सुधार किया है। 1985 से 2007 तक, एक दक्षिण कोरियाई महिला की पहली शादी की औसत आयु 24.1 वर्ष से बढ़कर 28.1 वर्ष हो गई। इसके अलावा, महिला कॉलेज नामांकन दर भी 1990 में 31.3% से बढ़कर 2008 में 83.8% हो गई। जैसा कि घर से बाहर काम करने वाली महिलाओं का प्रतिशत 1980 में 42.8% से बढ़कर 2005 में 50.2% हो गया, जन्म दर भी 1960 में प्रति महिला 6.0 बच्चों से घटकर 2006 में 1.13 प्रति महिला हो गई।
तलाक की दर में वृद्धि
1970 से 2000 तक दक्षिण कोरिया में तलाक की दर में 70% की वृद्धि हुई। तलाक सबसे महत्वपूर्ण घटना है जो पारिवारिक विघटन को प्रभावित करती है, जिसके परिणामस्वरूप प्रजनन दर कम होती है। भले ही 1970 से 2000 तक तलाक ने जन्म दर को थोड़ा प्रभावित किया, 1997 में आर्थिक संकट के बाद, तलाक की दर में तेजी से वृद्धि ने जन्म दर में कमी को प्रभावित किया।
आर्थिक संकट में, कई परिवार भंग हो गए क्योंकि वे अपने परिवार के सदस्यों का समर्थन नहीं कर सकते थे। 1997 में क्रूड तलाक की दर बढ़कर 2 (प्रति 1,000 जनसंख्या पर तलाक) हो गई और अगले वर्ष में तेजी से बढ़कर 2.5 हो गई। 2003 में, कच्चे तलाक की दर फिर से बढ़कर 3.5 हो गई।
लंबी उम्र
1950 के दशक की पहली छमाही में, जीवन प्रत्याशा औसतन 42 वर्ष से कम थी (पुरुषों के लिए 37, महिलाओं के लिए 47)। आज, संख्याएँ बहुत भिन्न हैं। दक्षिण कोरिया अब दुनिया में सबसे ज्यादा जीवन प्रत्याशाओं में से एक है - दुनिया में 15 वें स्थान पर है। दक्षिण कोरिया में पैदा होने वाला औसत बच्चा 82 वर्ष (पुरुषों के लिए 79 और महिलाओं के लिए 85) की आयु तक जीने की उम्मीद कर सकता है। इसके विपरीत, वैश्विक औसत 72 वर्ष (पुरुषों के लिए 70, महिलाओं के लिए 74) है।
संयुक्त राष्ट्र की जीवन प्रत्याशा में सुधार जारी रहेगा; 2100 तक, दक्षिण कोरिया में पैदा होने वाला औसत बच्चा 92 वर्ष (पुरुषों के लिए 89 और महिलाओं के लिए 95) तक जीवित रहेगा। लैंसेट में प्रकाशित एक अलग अध्ययन से पता चला है कि दक्षिण कोरिया में महिलाओं को दुनिया में पहली ऐसी महिला होने का अनुमान है जिनकी औसत जीवन प्रत्याशा 90 से ऊपर है - शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि यह 2030 तक 57% संभावना होगी।
प्रभाव
दक्षिण कोरिया की उम्र बढ़ने का सबसे बड़ा परिणाम यह है कि बुजुर्गों के लिए जीवन की गुणवत्ता कम हो जाती है। इसका मुख्य कारण यह है कि बुजुर्गों के पास सभ्य जीवन जीने के लिए आय का अभाव है। वरिष्ठ नागरिकों के लिए दक्षिण कोरिया की गरीबी दर उन्नत देशों में अधिक है, लेकिन देश उम्र बढ़ने की आबादी को ठीक से प्रदान करने में विफल रहा है। सरकार ने गरीबी में लोगों को अस्थायी और प्रत्यक्ष सहायता प्रदान करके वरिष्ठ नागरिकों का समर्थन करने की मांग की है। समाज के लिए योगदान देने वाले तरीके से बूढ़े लोग कैसे रह सकते हैं इसकी एक सीमा है। यह कहा जा सकता है कि श्रम बाजार से बुजुर्गों के बहिष्कार की वजह से गरीबी को हल करना मुश्किल है, और केवल बुजुर्गों के लिए सामाजिक सम्मान और समर्थन के माध्यम से हल किया जा सकता है।
भविष्य की आबादी
लैंगिक समानता और परिवार मंत्रालय ने दिखाया कि 1980 में कोरियाई युवा आबादी 14 मिलियन थी। हालांकि, 2012 में युवा आबादी में 10.2 मिलियन की कमी आई, जो देश की कुल आबादी का 20.4% है। युवा आबादी में यह गिरावट निम्न जन्म दर के कारण है और भविष्य की जनसंख्या गणना को प्रभावित करेगी। 2013 में, कोरियाई सरकार ने खुलासा किया कि अगर प्रजनन दर में कमी जारी रही, तो 9 से 24 साल की उम्र के लोगों की संख्या 2013 से 2060 में 50% घट जाएगी। कम वृद्धि परिदृश्य के तहत, कामकाजी उम्र की आबादी है 2017 में 33.48 मिलियन लोगों से घटकर 2067 में 14.84 मिलियन लोगों (कुल जनसंख्या का 44.1%) होने का अनुमान है।
यह प्रवृत्ति लंबी अवधि में दक्षिण कोरिया को सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रभावित करेगी। क्योंकि बच्चों की संख्या में कमी जारी है, स्कूल बंद होने की संख्या में वृद्धि जारी है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो स्कूलों को समेकित करने की आवश्यकता होगी और अनावश्यक कर्मियों और व्यय को कम करने के लिए ग्रामीण शहर प्रशासन को विलय करने की आवश्यकता होगी।
दक्षिण कोरिया में एक वृद्ध समाज भी है, जिसका अर्थ है कि वरिष्ठ नागरिकों की संख्या अधिक है और उन्हें समर्थन देने के लिए युवाओं की संख्या कम है। 2012 में स्वास्थ्य मंत्रालय के एक सर्वेक्षण में बताया गया कि 83% से अधिक उत्तरदाताओं का मानना है कि इस उम्र बढ़ने वाले समाज से अधिक कर और श्रम की कमी होगी।
उत्पादक आयु जनसंख्या
जबकि बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है, प्रत्येक 100 कामकाजी उम्र के लोगों द्वारा समर्थित बुजुर्गों की संख्या 2019 में 37.6 से बढ़कर 2067 में 120.2 हो जाने की उम्मीद है, जो दुनिया के उच्चतम स्तरों में से एक है।
आर्थिक
लोगों की अलग-अलग आर्थिक ज़रूरतें होती हैं और उनके जीवन के प्रत्येक चरण में अर्थव्यवस्था में योगदान के अलग-अलग अंश होते हैं। सामान्य तौर पर, लोग अपने बचपन में आय अर्जित नहीं करते हैं, लेकिन उनके पास अपने माता-पिता की देखरेख में सीखने की गतिविधियों तक पहुंच होती है। लोग सेवानिवृत्त होने तक आय उत्पन्न करते हैं; सेवानिवृत्ति में वे अपने काम के वर्षों में बचाए गए धन पर निर्भर करते हैं।
कम प्रजनन दर के परिणामस्वरूप जनसंख्या में गिरावट दक्षिण कोरिया की संभावित आर्थिक वृद्धि को 2% से कम कर सकती है क्योंकि श्रम शक्ति में गिरावट आती है। आर्थिक विकास की यह कमी 2030 के बाद दक्षिण कोरिया के संप्रभु ऋण और राजकोषीय ताकत को प्रभावित कर सकती है। इसके अलावा, बच्चों की घटती संख्या कोरियाई सेना के सैन्य बजट को भी प्रभावित कर सकती है। जैसे-जैसे योग्य युवकों की संख्या घट रही है, सरकार सशस्त्र बलों पर मौजूदा सैन्य ढांचे को बनाए रखने के लिए दबाव डाल सकती है, जबकि उनका बजट कम हो जाता है, क्योंकि राष्ट्रीय निधियों को उम्र बढ़ने और कम प्रजनन क्षमता की समस्याओं पर पुनर्निर्देशित किया जाता है।
सैन्य
दक्षिण कोरिया की गिरती जन्म दर राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौती बन गई है: कम युवा पुरुष सैन्य सेवा के लिए आसपास हैं। 2022 तक दक्षिण कोरिया की सक्रिय सेना की संख्या कम होकर पांच लाख हो जाएगी, जो वर्तमान में लगभग 600,000 है। सैन्य सेवा, जो 18 से 22 महीने तक चलती है, को दक्षिण कोरियाई पुरुषों के लिए एक संस्कार के रूप में देखा जाता है। लेकिन दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्रालय के अनुसार, अगले दो दशकों में सक्षम मसौदे के पूल के लगभग आधे घटने का अनुमान है।
सरकारी नीतियां
उम्र बढ़ने और इसके प्रभावों से निपटने के लिए दक्षिण कोरिया के उपायों में सेवानिवृत्त लोगों के लिए आय सुरक्षा को मजबूत करना, कामकाजी उम्र की आबादी में कमी की भरपाई के लिए उत्पादकता बढ़ाने के तरीके खोजना और उम्र बढ़ने के अनुकूल अर्थव्यवस्था में छलांग लगाना शामिल है।
जन्म-समर्थक नीतियों को बढ़ावा देना
कोरियाई सरकार ने 2006 में एक नई नीति लागू की जिसका उद्देश्य कम प्रजनन दर को हल करने के लिए प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करना है। हालांकि, प्रजनन दर को बढ़ाने के लिए इस नीति का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इसलिए, प्रजनन दर बढ़ाने और आने वाले उम्र बढ़ने वाले समाज की समस्या के लिए तैयार करने के लिए 2003 में एजिंग एंड फ्यूचर सोसाइटी (सीएएफएस) पर समिति की स्थापना की गई थी। एजिंग सोसाइटी और जनसंख्या नीति पर राष्ट्रपति समिति, जिसे सीएएफएस द्वारा प्रबलित किया गया है, ने 2006 में कम प्रजनन क्षमता और वृद्ध समाज के लिए पहली बुनियादी योजना की घोषणा की। इस योजना में डेकेयर और प्रीस्कूल के लिए समर्थन शामिल है।बहु-बाल परिवारों के लिए शिक्षा और आर्थिक लाभ, जैसे सामाजिक बीमा।
कोरियाई सरकार ने 2 दिसंबर, 2018 को दक्षिण कोरिया में प्रजनन दर बढ़ाने के लिए प्रसवपूर्व नीतियों की घोषणा की। इस नीति का उद्देश्य माता-पिता के लिए चिकित्सा और बच्चे को कम करके 2 से अधिक बच्चे पैदा करने के लिए एक सकारात्मक वातावरण बनाना है। - खर्चे उठाने और कामकाजी माताओं के लिए एक बेहतर सपोर्ट सिस्टम प्रदान करना।
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन , जो 2017 में चुने गए थे, ने घोषणा की कि सरकार छोटे बच्चों के माता-पिता के लिए सार्वजनिक रूप से संचालित केंद्रों द्वारा देखभाल किए जाने वाले शिशुओं और बच्चों के अनुपात को तिगुना करने के लिए सब्सिडी का विस्तार करेगी। सरकार को उम्मीद है कि 2022 से पहले, नवजात शिशुओं की संख्या प्रति वर्ष 300,000 से कम हो सकती है, इसलिए उनका लक्ष्य प्रजनन दर में लगातार कमी के कारण हर साल 300,000 से अधिक नवजात शिशुओं की दर को बनाए रखना है।
स्वास्थ्य और कल्याण मंत्रालय ने कहा कि इस सरकार की बेहतर योजना से पूरी पीढ़ी के जीवन स्तर में वृद्धि होगी और लंबी अवधि में कम प्रजनन दर की समस्या का समाधान होगा। 2019 से शुरू होकर, सरकार ने 1 वर्ष से कम उम्र के शिशुओं के लिए चिकित्सा खर्च के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने का वादा किया। इसके अतिरिक्त, सरकार 2025 तक पूर्वस्कूली बच्चों के लिए वित्तीय सहायता की पेशकश करने की योजना बना रही है।
सरकार ने उन विवाहित जोड़ों के लिए भी वित्तीय सहायता में वृद्धि की, जिन्हें बच्चा पैदा करने में कठिनाई होती है। उस विवाहित जोड़े को अधिकतम चार सत्रों के लिए कृत्रिम गर्भाधान के लिए चिकित्सा लागत के 70% से अधिक की सब्सिडी दी जा सकती है। स्वास्थ्य और कल्याण मंत्रालय के अनुसार, 2019 की दूसरी छमाही से, जिन माता-पिता के 8 साल से कम उम्र के बच्चे हैं, वे एक घंटे पहले काम छोड़ सकते हैं, और भुगतान किए गए पितृत्व अवकाश को बढ़ाकर 10 दिन कर दिया गया है।
आय सुरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ बनाना स्थिर सेवानिवृत्ति
जैसे-जैसे औसत जीवन प्रत्याशा बढ़ती है, गरीबी की समस्या तेज हो सकती है। तदनुसार, तीसरी मूल योजना सार्वजनिक और निजी सेवानिवृत्ति आय सुरक्षा प्रणाली को मजबूत करने का इरादा रखती है। सार्वजनिक पेंशन में अंधेपन को दूर करने के लिए, सरकार महिला पेंशन अधिकारों का विस्तार करेगी और राष्ट्रीय पेंशन जैसे एकमुश्त और अंशकालिक विशेष रोजगार में उनकी भागीदारी बढ़ाएगी।
योजना एक व्यक्ति राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली स्थापित करने की है। आवास पेंशन और कृषि भूमि पेंशन के लिए आवश्यकताओं को आसान बनाकर सदस्यता बढ़ाने की योजना है। हम बुजुर्गों की सुरक्षा संपत्तियों के कारण दीर्घकालिक जोखिमों की तैयारी में वित्तीय प्रणाली में सुधार करेंगे और सेवानिवृत्ति तैयारी सेवाओं का विस्तार करेंगे ताकि वे अपनी सेवानिवृत्ति की तैयारी कर सकें।
उन स्थितियों का विस्तार करना जो बुजुर्गों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं
बुजुर्गों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए, हम बुजुर्गों के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए शर्तों का विस्तार करेंगे। इसमें एक सुरक्षित रहने का वातावरण बनाने के प्रयास शामिल हैं। विशेष रूप से, इस प्रक्रिया में स्वास्थ्य लाभ प्रणाली को सशक्त बनाना, पुरानी बीमारी प्रबंधन को मजबूत करना, व्यापक नर्सिंग देखभाल और नर्सिंग सेवाओं का विस्तार करना, दीर्घकालिक देखभाल बीमा प्रणाली गुणवत्ता प्रबंधन को मजबूत करना और धर्मशाला उपशामक देखभाल सेवाओं को मजबूत करना शामिल है। हम बुजुर्गों का सहयोग कर उनके स्वास्थ्य का समर्थन करेंगे। कंपनी सामाजिक भागीदारी के अवसरों का विस्तार करके सक्रिय सेवानिवृत्ति का समर्थन करने की योजना बना रही है जैसे बुजुर्गों के अनुरूप अवकाश संस्कृति विकसित करना और स्वयंसेवी समर्थन में भागीदारी का विस्तार करना। हम बुजुर्गों के लिए किराये के आवास का विस्तार करके एक सुरक्षित रहने का माहौल बनाएंगे।
उत्पादक जनसंख्या में कमी की तुलना में जनशक्ति उपयोग योजना
चूंकि उत्पादन के लिए उपलब्ध लोगों की संख्या में कमी 2016 में शुरू हुई थी, हम महिलाओं, मध्यम आयु वर्ग और विदेशी श्रमिकों के उपयोग के लिए उपाय तैयार कर रहे हैं। अंशकालिक काम जैसे काम के रूप में विविधता लाने और करियर तोड़ने वाली महिलाओं के लिए पुनर्रोजगार सहायता प्रणाली को मजबूत करके महिलाओं के रोजगार को सक्रिय किया जाएगा। हम 60 साल पुरानी सेवानिवृत्ति आयु प्रणाली और अनिवार्य जीवन समर्थन सेवा स्थापित करने के लिए वेतन शिखर प्रणाली का प्रसार करके मध्यम आयु वर्ग और पुराने श्रमिकों के कामकाजी आधार को मजबूत करेंगे। विदेशी प्रतिभाशाली व्यक्तियों की भर्ती का विस्तार करने के लिए, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां घरेलू विशेषज्ञों की कमी है, हम लंबी अवधि के रोजगार और निपटान के अवसर प्रदान करेंगे, और विदेशी श्रमिकों का उपयोग करने के लिए मध्य से लंबी अवधि की आप्रवासन नीति स्थापित करेंगे।
उम्र के अनुकूल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ें
जैसे-जैसे बुजुर्ग आबादी बढ़ती है, वृद्ध-अनुकूल उद्योग के लिए सक्रिय प्रयासों की आवश्यकता होती है। इसलिए, तीसरी मूल योजना का उद्देश्य औद्योगिक क्षेत्रों जैसे चिकित्सा देखभाल, पर्यटन और बुजुर्गों से संबंधित भोजन को बढ़ावा देना और सार्वभौमिक डिजाइन और उपयोगकर्ता-उन्मुख बुजुर्ग-अनुकूल उत्पादों के विकास का समर्थन करना है। इस बीच, कम जन्म दर के कारण स्कूली उम्र की आबादी में कमी का सामना करने के लिए, हम विश्वविद्यालय संरचनात्मक सुधार, शिक्षक प्रशिक्षण, और पुनर्निर्धारित आपूर्ति और मांग योजना को बढ़ावा देंगे। चलो दौड़ लगाये। वृद्धावस्था और शहरीकरण के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में घटती जनसंख्या से निपटने के लिए, सरकार घर-घर गाँवों को पुनर्जीवित करने के उपायों का भी प्रस्ताव करती है। अंत में, यह सामाजिक बीमा के वित्तीय जोखिम के प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली में सुधार और स्वास्थ्य बीमा के आय आधार को स्थिर करने की योजना बना रहा है। सरकार विशेष व्यावसायिक पेंशन योजनाओं में सुधार की भी योजना बनाएगी। राष्ट्रीय वित्त के कुशल उपयोग के लिए, सरकार अर्ध-डुप्लिकेट वित्तीय परियोजनाओं को पुनर्गठित करने, राजस्व आधारों का विस्तार करने और मध्य से लंबी अवधि के वित्तीय जोखिमों का प्रबंधन करने के उपायों का प्रस्ताव करती है।
संदर्भ | 3,949 |
1096581 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A5%88%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%9F | भैयाजी सुपरहिट | भैयाजी सुपरहिट (; ) नीरज पाठक द्वारा निर्देशित और चिराग धारीवाल द्वारा निर्मित एक 2018 भारतीय एक्शन कॉमेडी फिल्म है। फिल्म में सनी देओल, प्रीति जिंटा, अमीषा पटेल, अरशद वारसी और श्रेयस तलपड़े हैं। इसका संगीत ज़ी म्यूजिक द्वारा प्रस्तुत किया गया है। इस फिल्म ने फिल्मों से 7 साल के अंतराल के बाद प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेत्री प्रीति जिंटा की वापसी की।
कहानी
वाराणसी स्थित डॉन लाल भाईसाहब दुबे (सनी देओल) खुद को बड़े पर्दे पर देखने का सपना देखता है। इस पागल संबंध को सुविधाजनक बनाने के लिए, वह गोल्डी कपूर (अरशद वारसी) और तरुण पोर्नो घोष (श्रेयस तलपड़े) की सेवाओं की तलाश करता है जो क्रमशः एक निर्देशक और एक लेखक की भूमिका निभा रहे हैं। प्रीति जिंटा ने सपना दुबे की भूमिका निभाई है, डॉन लाल भाईसाहब दुबे की पत्नी की। अमीषा पटेल एक अभिनेत्री की भूमिका निभाती हैं और सपना दुबे का अनुकरण करती हैं।
कलाकार
सनी देओल लाल भाईसाहब दुबे के रूप में
प्रीति जिंटा सपना दुबे के रूप में
अमीषा पटेल मल्लिका के रूप में
अरशद वारसी गोल्डी कपूर के रूप में
श्रेयस तलपड़े तरुण पोर्नो घोष के रूप में
संजय मिश्रा डॉ ज्ञान प्रकाश बुद्धिसागर के रूप में
पंकज त्रिपाठी बिल्डर गुप्ता के रूप में
जयदीप अहलावत हेलीकाप्टर मिश्रा के रूप में
एवलिन शर्मा
मुकुल देव
बृजेन्द्र काला
पंकज झा
उत्पादन
2011 में घोषित शुरुआती कलाकारों में सनी देओल, अमीषा पटेल, अरशद वारसी, तुषार कपूर और प्रकाश राज शामिल थे। 2012 के लिए रिलीज होने वाली थी। मई 2012 में, हिन्दी फिल्म वेबसाइट बॉलीवुड हंगामा ने बताया कि निर्देशक ने सुभाष घई से संपर्क किया था, जब निर्माता फौजिया ने फिल्म के बजट को बढ़ाने से इनकार कर दिया था। फिल्म को आश्रय दिए जाने के दावे को फिल्म के कलाकारों और निर्देशक ने खारिज कर दिया। घई ने इस बात से भी इनकार किया कि वह फिल्म का निर्माण कर रहे हैं। उसी वर्ष जुलाई में, कपूर ने शूटआऊट ऍट वडाला और क्या सुपर कूल हैं हम के शेड्यूल संघर्षों के कारण इस परियोजना को छोड़ दिया। प्रारंभ में ज़िंटा को उनकी तरफ से तारीखों की अनुपलब्धता के कारण कलाकारों से हटा दिया गया था। श्रेयस तलपड़े ने कपूर की जगह ली।
साउंडट्रैक
फिल्म के गीत जीत गांगुली, राघव सच्चर, अमजद नदीम, संजीव-दर्शन और नीरज पाठक द्वारा संगीतबद्ध किए गए हैं और संगीत आमिर खान, आदित्य देव, चंदन सक्सेना द्वारा निर्मित किया गया है जबकि गीत अमजद नदीम, शब्बीर अहमद, कुमार, नीरज पाठक और संजीव चतुर्वेदी ने लिखे हैं।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
भारतीय फ़िल्में
भारतीय एक्शन कॉमेडी फ़िल्में
2018 में बनी हिन्दी फ़िल्म
हिन्दी फ़िल्में वर्णक्रमानुसार | 424 |
1463801 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A4%A8 | नाज़िया हसन | नाज़िया हसन (3 अप्रैल 1965 - 13 अगस्त 2000) पाकिस्तानी गायिका-गीतकार, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। वह दक्षिण एशिया के पॉप संगीत में विशेष जगह रखती हैं। उन्हें पाकिस्तान में सबसे प्रभावशाली गायकों में से एक माना जाता है। 1980 के दशक में, नाज़िया और ज़ोहेब की जोड़ी के रूप में, उन्होंने और उनके भाई ज़ोहेब हसन ने दुनिया भर में 6.5 करोड़ से अधिक रिकॉर्ड बेचे।
नाज़िया ने अपने गायन की शुरुआत "आप जैसा कोई" गीत से की, जो 1980 में भारतीय फिल्म कुर्बानी में दिखाई दिया। उन्हें इसके लिए प्रशंसा मिली और उन्होंने 1981 में 15 साल की उम्र में सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। वह यह पुरस्कार जीतने वाली पहली पाकिस्तानी बनीं और वर्तमान में इस पुरस्कार की सबसे कम उम्र की प्राप्तकर्ता बनी हुई हैं। उनकी पहली एल्बम, डिस्को दीवाने 1981 में जारी हुई थी। यह दुनिया भर में मशहूर हुई और उस समय सबसे ज्यादा बिकने वाला एशियाई पॉप एल्बम थी।
नाज़िया ने 1982 में बूम बूम एल्बम में ज़ोहेब के साथ काम किया। इस एल्बम का एक हिस्सा फिल्म स्टार (1982) में भी था। उनकी 1984 में एल्बम यंग तरंग और 1987 में हॉटलाइन जारी हुई। उनकी आखिरी एल्बम, 1992 में कैमरा कैमरा थी। अपने भाई के साथ वह कई टेलीविज़न प्रोग्राम में भी नज़र आई। उनकी सफलता ने पाकिस्तानी पॉप संगीत दृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
15 वर्षों से अधिक के अपने गायन करियर के दौरान, नाज़िया पाकिस्तान की सबसे लोकप्रिय हस्तियों में से एक बन गई। वह पाकिस्तान के नागरिक पुरस्कार, प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस की प्राप्तकर्ता थीं। 13 अगस्त 2000 को, उनका 35 वर्ष की आयु में लंदन में फेफड़ों के कैंसर से निधन हो गया।
डिस्कोग्राफ़ी
स्टूडियो एल्बम
डिस्को दीवाने (1981)
स्टार/बूम बूम (1982)
यंग तरंग (1984)
हॉटलाइन (1987)
कैमरा कैमरा (1992)
फिल्म साउंडट्रैक
कुर्बानी (1980)
स्टार (1982)
दिलवाला (1986)
इल्ज़ाम (1986)
मैं बलवान (1986)
अधिकार (1986)
शीला (1987)
साया (1989)
स्टूडेंट ऑफ द ईयर (2012)
मिस लवली (2012)
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
1965 में जन्मे लोग
२००० में निधन
पाकिस्तानी गायक
कराची के लोग
पॉप गायक
बॉलीवुड पार्श्वगायक
फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता | 347 |
702941 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A8%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A4%A8 | केन विलियमसन | केन स्टुअर्ट विलियमसन (जन्म 8 अगस्त 1990) न्यूजीलैंड के एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर हैं जो वर्तमान में न्यूजीलैंड की राष्ट्रीय टीम के कप्तान हैं। [१]। [२] विलियमसन न्यूजीलैंड में घरेलू क्रिकेट में उत्तरी जिलों के लिए खेलते हैं और इंग्लिश काउंटी क्रिकेट में ग्लॉस्टरशायर और यॉर्कशायर दोनों के लिए खेले हैं।
2021 ICC टेस्ट टीम ऑफ़ ईयर में कप्तान केन विलियमसन को चुना गया था | इसका बड़ा कारन न्यूजीलैंड ने जो 2021 में टेस्ट चैम्पियनशिप के फाइनल में भारतीय टीम को मात दी थी क्योकि उस समय कीवी टीम की कमान केन विलियमसन के हाथों में ही थी |
इंग्लैंड में सबसे तेज 1000 रन बनाने का रिकॉर्ड भी केन विलियमसन के नाम है | उन्होंने महज 17 इनिंग्स में 1000 रन पूरे किये है | 2018 में विलियमसन ने वनडे में अपने 5000 रन पूरे किए थे ,वह वनडे में चौथा सबसे तेज पांच हजार रन पूरा करने वाले खिलाड़ी है |
IPL 2022 में सनराइजर्स हैदराबाद ने केन विलियमसन को रिटेन किया था, उन्हें सनराइजर्स हैदराबाद ने 14 करोड़ रुपए देकर रिटेन किया था |
सन्दर्भ
जीवित लोग
दाहिने हाथ के बल्लेबाज़
न्यूज़ीलैंड के एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी
न्यूज़ीलैंड के टेस्ट क्रिकेट खिलाड़ी
न्यूज़ीलैंड के ट्वेन्टी २० क्रिकेट खिलाड़ी
सनराइजर्स हैदराबाद के क्रिकेट खिलाड़ी
1990 में जन्मे लोग | 211 |
27333 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0 | आविष्कार | आविष्कार किसी नई जानकारी के पाये जाने या पता करने की क्रिया का नाम है। इस क्रिया में कुछ ऐसी जानकारी प्राप्त होती है जिसको रचनात्मक अन्तर्दृष्टि देकर उपयोगी बना दिया जाता है।
नये आविष्कार विभिन्न ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा प्राप्त किये जाते हैं। इनको पहले से विद्यमान ज्ञान में समाहित कर लिया जाता है। प्रश्न करना जितना मानवीय विचारणा एवं परस्पर वैचारिक आदान-प्रदान का सशक्त माध्यम है, आविष्कार के लिये भी इसकी उतनी ही भूमिका है। आविष्कार के मूल में प्रश्न ही है।
वैज्ञानिक अनुसंधान के तीन मुख्य उद्देश्य गिनाये जाते हैं - वर्णन (description), व्याख्या (explaination) एवं खोजबीन (exploration)।
आविष्कार - अर्थात् ऐसी चीजे जो पहले से यहां उपलब्ध नहीं है या थी पर उसका बाद में खोज की जाती है\गई जैसे - मोबाईल,संगणक, साईकिल ; ये इनका खोज नहीं किया गया इनका अविष्कार किया गया ये बनने से पूर्व धरती पर मौजूद नहीं थें।
आविष्कारों के कुछ उदाहरण:
१) धरती चपटी नहीं है।
२) धरती सूर्य के चारों तरफ चक्कर काटती है।
३) डी एन ए की संरचना
४) जे जे थामसन द्वारा एलेक्ट्रान माडल का प्रस्ताव
5) इंटरनेट के जनक विन्टन जी. सर्प
बाहरी कड़ियाँ
A Guide to Inventions and Discoveries: From Adrenaline to the Zipper
Roundup of Recent Science Discoveries
Stories of some notable discoveries in science
विज्ञान
आविष्कार | 213 |
1187076 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%93%E0%A4%82%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%9A%E0%A5%80 | बुरुंडी के राजाओं की सूची |
बुरुंडी के शासकों और राष्ट्राध्यक्षों की सूची
बुरुंडी के राजाओं की पारंपरिक सूची। 1900 से पहले की तारीखें अनुमान हैं।
Ntare I Rushatsi Cambarantama: c.1530-c.1550
मवेज़ी I बारिदमुन्का: c.1550 – c.1580
Mutaga I Mutabazi: c.1580-c.1600
मेवांबुतस I नकोमती: c.1600 – c.1620
Ntare II किबोगोरा: c.1620-c.1650
म्वेज़ी II न्याबुरंगा: c.1650 – c.1680
बुरुंडी का साम्राज्य
बुरुंडी के राजा, c.1680-1966
Ntare III रुश्टसी : c.1680-c.1709
म्वेज़ी III नादागुशिमीये : c.1709 – c.1739
मुतागा III सेन्यमविज़ा मुतामो : c.1739-c.1767
Mwambutsa III Serushambo Butama : c.1767 – c.1796 (इसे Mwambutsa III Mbariza के रूप में भी जाना जाता है)
Ntare IV रुतगंजवा रगम्बा : c.1796 – c.1850
मुवेज़ी IV गिसाबो : c.1850–21 अगस्त 1908
मुतागा IV एमबीकीज : 21 अगस्त 1908–30 नवंबर 1915
Mwambutsa IV Bangiriceng : 16 दिसंबर 1915–8 जुलाई 1966
Ntare V Ndizeye : 8 जुलाई -28 नवंबर 1966
यह भी देखें
बुरुंडी का इतिहास
बुरुंडी का साम्राज्य
बुरुंडी के राष्ट्रपति
बुरुंडी के राष्ट्रपतियों की सूची
बुरुंडी के प्रधान मंत्री | 158 |
551225 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%2C%20%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%B2%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6 | कांगड़ा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र, हिमाचल प्रदेश | कांगड़ा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र हिमाचल प्रदेश विधानसभा के 68 निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। काँगड़ा जिले में स्थित यह निर्वाचन क्षेत्र अनारक्षित है। 2012 में इस क्षेत्र में कुल 68,243 मतदाता थे।
विधायक
चुनावी आंकड़े
2012 के विधानसभा चुनाव में पवन काजल इस क्षेत्र के विधायक चुने गए।
कालक्रम
इन्हें भी देखें
कांगड़ा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र
हिमाचल प्रदेश के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सूची
बाहरी कड़ियाँ
हिमाचल प्रदेश मुख्य निर्वाचन अधिकारी की आधिकारिक वेबसाइट
सन्दर्भ
हिमाचल प्रदेश के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र | 83 |
1265711 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%A6%20%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE | मुहम्मद सादुल्ला | सर सैयद मुहम्मद सादुल्ला : (1885 -1955)
वह ब्रिटिशकालीन भारत में असम के प्रीमियर (प्रधानमंत्री) तथा राजनीतिज्ञ, कानूनी विद्वान, संविधान सभा के प्रमुख सदस्य तथा असम यूनाइटेड मु्स्लिम पार्टी के प्रमुख राजनेता थे।
जीवन परिचय
सादुल्लाह का जन्म 21 भी 1885 में गुवाहाटी में हुआ था। उन्होंने गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज, और कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की।
सैयद मुहम्मद सादुल्ला, एमए, बीएल, 24 वर्षीय एक युवा, गुवाहाटी में एक प्लीडर बन गया और 1910 में लखटकिया में अभ्यास स्थापित किया। उसी वर्ष, उसने कचहरीहाट के सैयद मुहम्मद सालेह की सबसे बड़ी बेटी से शादी की। । उन्होंने जल्द ही एक वकील के रूप में अपनी पहचान बना ली।
अप्रैल 1912 में असम एक मुख्य आयुक्त प्रांत बन गया और उन्हें शिलांग में विधानपरिषद के सदस्य के रूप में नामित किया गया। हालांकि एक मनोनीत सदस्य सादुल्ला ने परिषद के विचार-विमर्श में ऊर्जावान रूप से भाग लिया, और असम के लोगों के हितों के मामलों पर स्वतंत्र रूप से और बलपूर्वक खुद को व्यक्त किया। नागरिकता के गुण जो उन्हें सही और देशभक्त होने के प्रयासों के लिए निःस्वार्थ प्रयासों के लिए प्रेरित करते थे, उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत में स्पष्ट थे। कानूनी पेशे और नागरिक जिम्मेदारियों और एक विधान पार्षद के कर्तव्यों को पूरी ज़िम्मेदारी से पूरा किया और सादुल्ला को असम में सबसे विशिष्ट विचारक के रूप में मान्यता दी गई थी।
1920 में, अपने मध्य-तीसवें दशक में, सादुल्ला ने खुद को कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में नामांकित किया। उन्होंने ए.के. के पड़ोस में टर्नर स्ट्रीट में एक घर किराए पर लिया। सफलता धीरे-धीरे मिली, लेकिन जल्द ही वह काबिल कानूनी विद्वान बन गये।
1919 भारत सरकार अधिनियम के तहत असम एक राज्यपाल का प्रांत बन गया, एक बढ़े हुए विधान परिषद के साथ; और तदनुसार नवंबर 1920 में चुनाव हुए। सादुल्ला ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में अभ्यास पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया, और इसलिए असम की राजनीति में प्रवेश नहीं किया।
22 नवंबर 1992 को पिता सैयद तैयबुल्ला की मृत्यु हो जाने के एक साल बाद वे कलकत्ता से असम में लौट आए और फिर से विधान परिषद के चुनाव के लिए खड़े हुए और आरामदायक बहुमत के साथ लौटे।
फरवरी, 1924 के अंत में, सादुल्ला को सर जॉन हेनरी केर से एक पत्र मिला, असम के गवर्नर ने उन्हें मंत्री के रूप में अपनी कार्यकारी परिषद में एक सीट की पेशकश की। चूंकि नव निर्वाचित विधान परिषद 24 मार्च को शिलांग में मिलने वाली थी, उन्होंने राज्यपाल के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए काउंसिल सत्र की शुरुआत की तारीख से पहले शिलांग पहुंचने का आश्वासन दिया। उनके सहयोगियों और दोस्तों और रिश्तेदारों ने उनके निर्णय को गर्मजोशी से स्वीकार करने में एकमत थे।
सादुल्ला ने मंत्री के रूप में शपथ ली, और उन्होंने अपने परिवार के लिए "रूकवुड" नामक एक घर किराए पर लिया। 1924 उसके लिए एक बुरा साल था; उनकी प्यारी पत्नी का 9 दिसंबर की सुबह बच्चे के जन्म के समय निधन हो गया। वह वास्तव में क्रूर सदमे और गहरा दु: ख से उबर नहीं पाया। उन्होंने कभी पुनर्विवाह नहीं किया और खुद को काम में डुबो दिया और एक नवजात बेटी को पाला और तीन बेटों की देखभाल की।
तीसरी सुधार परिषद के चुनाव नवंबर, 1926 में हुए और सादुल्ला को अपने निर्वाचन क्षेत्र से बड़े बहुमत से लौटे। उन्हें मंत्री के रूप में फिर से नियुक्त किया गया। नाइटहुड का सम्मान उन्हें 1928 में दिया गया था। अगले वर्ष, असम के गवर्नर सर एगबर्ट लॉरी लुकास हैमंड ने उन्हें पांच साल के कार्यकाल के लिए अपनी कार्यकारी परिषद में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया।
शिलॉन्ग में ग्यारह साल बाद और असम की राजनीति से विमुख होने के बाद, उन्होंने महसूस किया कि यह उनके लिए एक कदम था। अवसर हाथ में था, बंगाल के गवर्नर सर जॉन एंडरसन ने व्यक्तिगत रूप से उन्हें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की पेशकश की थी। सर सैयद मुहम्मद सादुल्ला 1935 में कलकत्ता गए। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सर हेरोल्ड डर्बीशायर ने कहा कि उन्हें बार में निरंतर अभ्यास के दस वर्षों के अपेक्षित अनुभव के लिए न्यायाधीश के रूप में नियुक्त नहीं किया जा सकता है, लेकिन उन्होंने यह पद स्वीकार नहीं किया।
भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत एक आम चुनाव, फरवरी 1937 में आयोजित किया गया था। सादुल्ला असम लौट आये और विधान सभा के लिए निर्वाचित हुए। राज्यपाल ने उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। यह उनका सबसे अच्छा सौभाग्य था कि वह असम के प्रमुख थे। उन्होंने (असम यूनाइटेड मु्स्लिम पार्टी + भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) का गठबंधन बनाया और (1 अप्रैल 1937 से 10 सितंबर 1938) तक असम के प्रीमियर (प्रधानमंत्री) के रूप असम सरकार का नेतृत्व किया।
1938 में कांग्रेस से बात बिगड़ जाने पर उन्होंने (असम यूनाइटेड मु्स्लिम पार्टी + मुस्लिम लीग) का गठबंधन बनाया और 17 नवंबर 1939 से 25 दिसंबर 1941 तक और फिर 24 अगस्त 1942 से 11 फरवरी 1946 तक गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया। असम की राजनीति में अशांत वर्ष थे और मजबूत संविधान के साथ आशीर्वाद दिया, उन्होंने अनुकरणीय प्रदर्शन किया साहस और उत्साह और उदारता के साथ महत्वपूर्ण कार्य को साहस। प्रत्येक सार्वजनिक कर्तव्य में, उन्होंने असम के लोगों के हित को अपने दिल में रखा। 1 जनवरी 1946 को नाइट कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द इंडियन एंपायर (KCIE) का सम्मान उन्हें दिया गया।
असम के प्रमुख मुहम्मद सादुल्लाह ने भी पूर्वी बंगाल से प्रवासियों के साथ राज्य को आबाद करने के लिए भूमि बंदोबस्त नीति अपनाई। रेखा प्रणाली के रूप में जाना जाता है, इस नीति में भूमि को अधिक उत्पादक बनाकर (क्योंकि स्थानीय किसान अंग्रेजों के लिए काम करने के इच्छुक नहीं थे) असम से अधिक राजस्व निकालने की ब्रिटिश कोशिश में इसकी जड़ें थीं। बाद में इसने द्वितीय विश्व युद्ध के निर्माण में अपने "अधिक भोजन विकसित करें" कार्यक्रम के तहत प्रवास नीति को गति दी। सादुल्लाह के तहत असम में मुस्लिम लीग की सरकार ने नीति को और अधिक बढ़ावा दिया, इतना कि वायसराय लॉर्ड वेवेल ने बाद में अपने संस्मरणों में लिखा कि सादुल्लाह को "अधिक मुस्लिमों की बढ़ती" में अधिक रुचि थी।
असम विधानसभा ने 1946 में सादुल्ला को भारत की संविधान सभा के लिए चुना और बाद में उन्हें मसौदा समिति के लिए चुना गया। इस प्रकार उन्होंने भारतीय गणतंत्र के संविधान की तैयारी में मदद की। वह उत्तर पूर्वी भारत से एकमात्र मुस्लिम सदस्य थे जिसे मसौदा समिति के लिए चुना गया था।
वह 1951 में गंभीर रूप से बीमार थे। मृत्यु की संभावना थी, गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए राजनीति से सेवानिवृत्ति में साधारण जीवन को स्वीकार कर लिया। शिलॉन्ग में सर्दियों के ठंड के मौसम की कठोरता से बचने के लिए, वह मैदानी इलाकों में चले गए। 8 जनवरी 1955 को उनकी जन्मस्थली गुवाहाटी में उनका निधन हो गया।
1885 में जन्मे लोग
१९५५ में निधन | 1,116 |
163479 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0 | स्वीकारपत्र | स्वीकारपत्र आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा रचित एक लघु पुस्तिका है। यह मूलतः राजकीय मुद्रा पत्र पर लिखित एक वसीयतनामे की तरह है जिसमें उन्होंने अपने देह त्यागने के बाद अपना काम आगे बढ़ाने के लिए परोपकारिणी सभा का वर्णन किया है।
सामग्री व प्रारूप
इस पत्रक में 13 साक्षियों के आरंभ में ही हस्ताक्षर है। इसके बाद परोपकारिणी सभा के 23 प्रस्तावित पदाधिकारियों व सभासदों के नाम हैं। इनमें प्रमुख हैं महादेव गोविंद रानडे तथा लाहौर, दानापुर, बम्बई, पूना, फ़र्रूख़ाबाद व कानपुर के आर्यसमाजों के तत्कालीन पदाधिकारी। तत्कालीन उदयपुर नरेश सज्जनसिंह जी परोपकारिणी सभा के प्रधान नियुक्त किए गए।
यह पुस्तिका स्वामी दयानंद के देहावसान के कुछ समय पूर्व ही प्रकाशित हुई थी। इसमें उन्होने परोपकारिणी सभा के कार्यकलापों के अलावा यह भी लिखा है कि उनका अंतिम संस्कार वेदोक्त रीति से कैसे किया जाए।
उल्लेखनीय है कि परोपकारिणी सभा के नियमों में यह भी उल्लेख है कि यदि सभा में कोई झगड़ा हो तो आपस में सुलह करें किंतु कचहरी न जाएँ तो कचहरी न जाएँ, किंतु यदि न सुलझे तो तत्कालीन राजा से सलाह ली जाए। मुख्यतः अंग्रेज़ों की बनाई कचहरी द्वारा हस्तक्षेप से बचने के लिए ऐसा किया गया होगा। अंतिम नियम में यह भी लिखा है कि यदि आवश्यकता पड़े तो सभासद् इन नियमों में बाद में परिवर्तन भी ला सकते हैं।
सन्दर्भ
अन्यत्र पठनीय
इन्हें भी देखें
स्वामी दयानंद सरस्वती
आर्य समाज
महादेव गोविंद रानडे
बाहरी कड़ियाँ
विकिस्रोत पर स्वीकारपत्र
आर्य समाज
हिन्दू धर्म
पुस्तकें | 244 |
849760 | https://hi.wikipedia.org/wiki/1996%20%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%A8%20%E0%A4%93%E0%A4%B2%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%95 | 1996 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक | 1996 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक्स, आधिकारिक रूप से XXVI ओलंपियाड खेलों के खेलों के रूप में जाना जाता है और अनौपचारिक रूप से सौ साल का ओलंपिक खेलों के रूप में जाना जाता है, यह एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय बहु-खेल आयोजन था जो अटलांटा, जॉर्जिया, संयुक्त राज्य अमेरिका में 19 जुलाई से 4 अगस्त 1996 तक हुआ था। एक रिकार्ड 197 देशों, सभी मौजूदा आईओसी सदस्य देशों, ने खेलों में भाग लिया, जिसमें 10,318 एथलीट शामिल थे। अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने 1986 में ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन खेलों को अलग करने के लिए मतदान किया था, जो 1924 के बाद से उसी वर्ष में आयोजित किया गया था, और उन्हें 1994 में शुरू होने वाले क्रमशः वर्षों में भी बदल दिया गया था। शीतकालीन खेलों के एक अलग वर्ष में 1996 ग्रीष्मकालीन खेलों का आयोजन किया गया था। अटलांटा ओलंपिक खेलों की मेजबानी करने वाला पांचवां अमेरिकी शहर बन गया और तीसरी बार ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों का आयोजन किया।
कैलेंडर
हर समय पूर्वी डेलाइट समय (यूटीसी-4) में हैं; दूसरे, बर्मिंघम, अलबामा सेंट्रल डेलाइट टाइम (यूटीसी-5) का उपयोग करता है
स्पोर्ट्स
1996 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक कार्यक्रम में 26 खेलों में 271 घटनाएं शामिल थीं। सॉफ्टबॉल, बीच वॉलीबॉल और माउंटेन बाइकिंग ओलंपिक कार्यक्रम पर शुरू हुई, साथ ही साथ महिला एसोसिएशन फुटबॉल और हल्के रोइंग के साथ।
एक्वेटिक्स
स्प्रिंट (12)
स्लैलम (4)
रोड (4)
ट्रैक (8)
माउंटेन बाइकिंग (2)
ड्रेसेज (2)
ईवेंटीग (2)
शो जंपिंग (2)
कलात्मक (14)
तालबद्ध (2)
वॉलीबॉल (2)
बीच वॉलीबॉल (2)
फ्रीस्टाइल (10)
ग्रीको रोमन (10)
महिलाओं के जिमनास्टिक्स में, लिलिया पोडोपायेव ऑलम्पिक चैंपियन के चारों ओर हो गईं। पोद्कोपेयेवा ने मंजिल व्यायाम फाइनल में एक दूसरे स्वर्ण पदक और बीम पर एक रजत भी जीता - नदिया कोनेची के बाद से एकमात्र महिला जिमनास्ट ने ओलंपिक में ऑल-राउंड टूर्नामेंट जीता। संयुक्त राज्य की महिला जिमनास्टिक्स टीम के केरी स्ट्रग एक घायल टखने के साथ गुंबददार और एक पैर पर उतरा। अमेरिकी महिला जिमनास्टिक टीम ने अपना पहला स्वर्ण पदक जीता। संयुक्त राज्य के शैनन मिलर ने बैलेंस बीम इवेंट में स्वर्ण पदक जीता, पहली बार अमेरिकी जिमनास्ट ने गैर-बहिष्कार ओलंपिक खेलों में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीता था। स्पैनिश टीम ने महिलाओं के लयबद्ध समूह की नई प्रतियोगिता में सभी स्वर्ण पदक जीते हैं। टीम की स्थापना एस्टेला गिमेंज़, मार्टा बालडो, नूरिया कैबिनिलास, लोरेना गुर्देज, एस्टिबालिज मार्टिनेज और तानिया लामारका ने की थी।
एमी वान डायकेन ने ओलंपिक स्विमिंग पूल में चार स्वर्ण पदक जीते, एक एकल ओलंपियाड में चार खिताब जीतने वाली पहली अमेरिकी महिला। दक्षिण अफ्रीका के तैराक पेनी हेन्स ने 100 मीटर और 200 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक दोनों में स्वर्ण पदक जीता। आयरलैंड के मिशेल स्मिथ ने तीन स्वर्ण पदक और तैराकी में एक कांस्य पदक जीता। वह अपने देश की सबसे सजाया ओलंपियन बनी हुई है हालांकि, उनकी जीत को डोपिंग के आरोपों के कारण भारी पड़ गया था, हालांकि उन्होंने 1996 में सकारात्मक परीक्षा नहीं दी थी। 1998 में उन्हें मूत्र के नमूने के साथ छेड़छाड़ के लिए चार साल का निलंबन मिला, हालांकि उनके पदक और रिकॉर्ड को खड़े होने की अनुमति दी गई थी।
ट्रैक और फील्ड में, कनाडा के डोनोवन बेली ने उस समय पुरुषों के 100 मीटर जीते, 9.84 सेकेंड का नया विश्व रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने 4×100 मीटर रिले में अपनी टीम के स्वर्ण को भी लांच किया। माइकल जॉनसन ने 200 मीटर और 400 मीटर दोनों में स्वर्ण पदक जीता, 200 मीटर में 19.32 सेकंड का नया विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया। जॉनसन ने बाद में बेली के अनौपचारिक खिताब को "विश्व के सबसे तेज़ आदमी" के रूप में विवादित करना शुरू कर दिया, जो बाद में इस मुद्दे को सुलझाने के लिए दोनों के बीच 150 मीटर की दौड़ में खत्म हुआ। मैरी-जोस पेरेक ने जॉन्सन के प्रदर्शन की बराबरी की, हालांकि विश्व रिकॉर्ड के बिना, दुर्लभ 200 मीटर/400 मीटर डबल जीतकर। कार्ल लुईस ने 35 वर्ष की आयु में अपने चौथे लम्बे कूदने का स्वर्ण पदक जीता।
टेनिस में, आंद्रे आगासी ने स्वर्ण पदक जीता, जो आखिरकार उसे कैरियर गोल्डन स्लैम जीतने के लिए कुल मिलाकर पहले व्यक्ति और दूसरा सिंगल खिलाड़ी (उनकी आखिरी पत्नी, स्टेफी ग्राफ के बाद) कर सकेंगे, जिसमें ओलंपिक स्वर्ण पदक और जीत शामिल हैं पेशेवर टेनिस के चार प्रमुख आयोजनों (ऑस्ट्रेलियाई ओपन, फ्रेंच ओपन, विंबलडन और यूएस ओपन) में आयोजित एकल प्रतियोगिताएं।
खेलों के दौरान एहसास हुआ कि राष्ट्रीय प्रथम श्रेणी की एक शृंखला थी। डीमन हेमिंग्स जमैका के लिए एक ओलंपिक स्वर्ण पदक और अंग्रेजी बोलने वाले वेस्ट इंडीज जीतने वाली पहली महिला बनीं। ली लाइ शान ने नौकायन में एक स्वर्ण पदक जीता, एकमात्र ओलंपिक पदक जो हांगकांग ने कभी ब्रिटिश कॉलोनी (1842-1997) के रूप में जीता था। इसका मतलब था कि केवल समय के लिए, हांगकांग का औपनिवेशिक झंडे ब्रिटिश राष्ट्रगान "ईश्वर सेव द क्वीन" के साथ उठाया गया था, क्योंकि हांगकांग की संप्रभुता को बाद में 1997 में चीन में स्थानांतरित कर दिया गया था। अमेरिकी महिला फुटबॉल टीम ने पहली बार महिला फुटबॉल समारोह में स्वर्ण पदक जीता। पहली बार ओलंपिक पदक आर्मेनिया, अजरबैजान, बेलारूस, बुरुंडी, इक्वाडोर, जॉर्जिया, हांगकांग, कजाकिस्तान, मोल्दोवा, मोज़ाम्बिक, स्लोवाकिया, टोंगा, यूक्रेन और उज्बेकिस्तान के एथलीटों द्वारा जीता गया था। अटलांटा में एक और सबसे पहले यह था कि यह पहला ओलंपिक था जो एक एकल घटना में एक भी राष्ट्र ने तीनों पदक नहीं झोंके।
पदक गिनती
ये शीर्ष दस राष्ट्र हैं जिन्होंने 1996 खेलों में पदक जीते थे।
भाग लेने वाली राष्ट्रीय ओलंपिक समितियां
1996 के खेलों में कुल 197 राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व किया गया था, और कुल मिलाकर कुल एथलीट 10,318 थे। चौबीस देशों ने इस वर्ष अपना ओलंपिक पदार्पण किया, जिसमें पूर्व सोवियत देशों के ग्यारह शामिल हैं, जो 1992 में यूनिफाइड टीम के भाग के रूप में भाग लेते थे। 1912 के बाद से रूस पहली बार स्वतंत्रता से प्रतिस्पर्धा कर रहा था, जब यह रूसी साम्राज्य था। यूगोस्लाविया संघीय गणराज्य युगोस्लाविया के रूप में भाग लिया।
14 देशों ने अपनी ओलंपिक शुरुआत की: आज़रबैजान, बुरुंडी, केप वर्डे, कोमोरोस, डोमिनिका, गिनी-बिसाउ, मैसिडोनिया, नौरु, फिलीस्तीनी प्राधिकरण, सेंट किट्स एंड नेविस, सेंट लुसिया, साओ तोमे और प्रिंसेपी, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान। दस देशों ने ग्रीष्मकालीन ओलंपिक की शुरुआत की (लिलीहेमर में 1994 शीतकालीन ओलंपिक में भाग लेने के बाद): अर्मेनिया, बेलारूस, चेक गणराज्य, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, मोल्दोवा, स्लोवाकिया, यूक्रेन और उज्बेकिस्तान। चेक गणराज्य और स्लोवाकिया ने चेकोस्लोवाकिया के गोलमाल के बाद से पहली बार स्वतंत्र राष्ट्रों के रूप में खेलों में भाग लिया जबकि बाकी देशों ने अपने ग्रीष्मकालीन ओलंपिक की शुरुआत की थी, जो पूर्व में सोवियत संघ का हिस्सा था।
सन्दर्भ
ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक | 1,058 |
790196 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6 | उत्तर प्रदेश विधान परिषद | उत्तर प्रदेश विधान परिषद उत्तर भारत के एक राज्य, उत्तर प्रदेश के द्विसदनीय विधायिका का ऊपरी सदन है। उत्तर प्रदेश भारत के छह राज्यों में से एक है, जहां राज्य विधायिका द्विसदनीय है, जिसमें दो सदन, विधान सभा और विधान परिषद शामिल हैं। विधान परिषद एक स्थायी सदन है, जिसमें 100 सदस्य होते हैं।
इतिहास
उत्तर प्रदेश विधान परिषद 1935 के भारत सरकार अधिनियम द्वारा अस्तित्व में आई। प्रारंभ में विधान परिषद में 60 सदस्य शामिल थे। परिषद के एक सदस्य का कार्यकाल छह वर्ष का होता है और इसके एक तिहाई सदस्य हर दो साल बाद सेवानिवृत्त हो जाते हैं। सदन को अपने अध्यक्ष के रूप में ज्ञात पीठासीन अधिकारियों को चुनने का अधिकार प्राप्त है। विधान परिषद की पहली बैठक 29 जुलाई 1937 को हुई थी। श्री सीताराम और बेगम एजाज रसूल क्रमशः विधान परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुने गए थे। श्री सीताराम 9 मार्च 1949 तक पद पर थे। श्री चंद्र भाल 10 मार्च 1949 को अगले अध्यक्ष बने। स्वतंत्रता के बाद 26 जनवरी 1950 को संविधान को अपनाने के बाद, श्री चंद्र भाल फिर से विधान परिषद के अध्यक्ष चुने गए और 5 मई 1958 तक सेवा की।
सदस्य अवधि
सदस्य छह साल के लिए चुने जाते हैं या नामांकित होते हैं और उनमें से एक तिहाई हर दूसरे वर्ष की समाप्ति पर सेवानिवृत्त होते हैं, इसलिए एक सदस्य छह साल तक इस तरह बना रहता है। प्रत्येक तीसरे वर्ष की शुरुआत में रिक्त सीटों को नए चुनाव और नामांकन (माननीय राज्यपाल द्वारा) द्वारा भरा जाता है। सेवानिवृत्त होने वाले सदस्य कितनी भी बार फिर से चुनाव और पुनर्नामांकन के लिए पात्र हैं। विधान परिषद के पीठासीन अधिकारी अध्यक्ष और उपाध्यक्ष होते हैं। कुंवर मानवेंद्र सिंह उत्तर प्रदेश विधान परिषद के वर्तमान अध्यक्ष हैं।
यह भी देखें
उत्तर प्रदेश विधान सभा
सन्दर्भRudrasen
{{संसूची}अछा हूँ }
बाहरी कड़ियां
उत्तर प्रदेश सरकार | 305 |
753667 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%20%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE | अष्टग्राम उपज़िला | अष्टग्राम उपजिला, बांग्लादेश का एक उपज़िला है, जोकी बांग्लादेश में तृतीय स्तर का प्रशासनिक अंचल होता है (ज़िले की अधीन)। यह ढाका विभाग के किशोरगंज ज़िले का एक उपजिला है। यह बांग्लादेश की राजधानी ढाका के निकट अवस्थित है।
जनसांख्यिकी
यहाँ की आधिकारिक स्तर की भाषाएँ बांग्ला और अंग्रेज़ी है। तथा बांग्लादेश के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह ही, यहाँ की भी प्रमुख मौखिक भाषा और मातृभाषा बांग्ला है। बंगाली के अलावा अंग्रेज़ी भाषा भी कई लोगों द्वारा जानी और समझी जाती है, जबकि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक निकटता तथा भाषायी समानता के कारण, कई लोग सीमित मात्रा में हिंदुस्तानी(हिंदी/उर्दू) भी समझने में सक्षम हैं। यहाँ का बहुसंख्यक धर्म, इस्लाम है, जबकि प्रमुख अल्पसंख्यक धर्म, हिन्दू धर्म है। चट्टग्राम विभाग में, जनसांख्यिकीक रूप से, इस्लाम के अनुयाई, आबादी के औसतन ९१.१९% है, जोकि बांग्लादेश के तमाम विभागों में अधिकतम् है। शेष जनसंख्या प्रमुखतः हिन्दू धर्म की अनुयाई है।
अवस्थिति
अष्टग्राम उपजिला बांग्लादेश के मध्य में स्थित, ढाका विभाग के किशोरगंज जिले में स्थित है।
इन्हें भी देखें
बांग्लादेश के उपजिले
बांग्लादेश का प्रशासनिक भूगोल
ढाका विभाग
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
उपज़िलों की सूची (पीडीएफ) (अंग्रेज़ी)
जिलानुसार उपज़िलों की सूचि-लोकल गवर्नमेंट इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट, बांग्लादेश
http://hrcbmdfw.org/CS20/Web/files/489/download.aspx (पीडीएफ)
श्रेणी:ढाका विभाग के उपजिले
बांग्लादेश के उपजिले | 201 |
182389 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%81%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%88%20%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%20%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A4%BF | जुताई रहित कृषि | जुताई रहित कृषि या बिना जुताई के खेती (No-till farming) खेती करने का वह तरीका है जिसमें भूमि को बिना जोते ही बार-बार कई वर्षों तक फसलें उगायी जातीं हैं। यह कृषि की नयी विधि है जिसके कई लाभ हैं।
लाभ
जुताई न करने से समय और धन की बचत होती है।
जुताई न करने के कारण भूमि का अपरदन बहुत कम होता है।
इससे भूमि में नमी बनी रहती है।
भूमि के अन्दर और बाहर जैव-विविधता को क्षति नहीं होती है।
हानियाँ
अधिक खर-पतवार होते हैं, जिनकी रोकथाम के लिये अतिरिक्त उपाय करने पड़ सकते हैं।
इन्हें भी देखें
संरक्षण कृषि
प्राकृतिक खेती
जैविक खेती
बाहरी कड़ियाँ
बिना जुताई की खेती संभव है (भारतीय पक्ष)
बिना जुलाई की खेती (जीरो-टिलेज फार्मिंग)
बिना जुताई के लहलहाएंगी फसलें (जागरण)
खेत को बिना जोते ही हो जाएगी धान की रोपाई (दैनिक भास्कर)
बिना जुताई किये (जीरो टिल) मशीन द्वारा गेहूँ की बुआई
पुआल से खेती
Wright, Sylvia. "Paydirt." UC Davis Magazine Winter 2006, pp 24–27.
Dirt: The Erosion of Civilizations (Hardcover), by David R. Montgomery, 295 pages, University of California Press; 1 edition (May 14, 2007) ISBN 978-0-520-24870-0
कृषि
कृषि अर्थशास्त्र | 189 |
1114167 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%89%E0%A4%B8%E0%A4%BE | रेउसा | रेउसा भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर का एक छोटा सा कस्बा है। इसी कस्बे में स्थित रेउसा ब्लाॅक का हेडक्वॉर्टर और पुलिस थाना मौजूद हैं।
यह से चारों दिशाएं रोड गई हुुई हैं एक रोड महमुदाबाद और दूसरी रोड तम्बौर तीसरी रोड राज्य राजमार्ग ३०बी (उत्तर प्रदेश) जहांगीराबाद, बिसवां, खैराबाद होते हुए सीतापुर गई है और चौथी रोड मारू बेहड़ चहलारी घाट पुल भगवानपुर रमपुरवा चौकी बेड़नापुर होते हुए बहराइच को गई हुई है।
भूगोल
इतिहास
जनसांख्यिकी
रेउसा ब्लाॅक के प्रधानों की सूची
रेउसा ब्लाॅक में कुल 98 ग्राम पंचायतें आती हैं। जिनके नाम और उस पंचायत के मुखिया यानी प्रधान (सरपंच) के नाम की लिस्ट नीचे दी गई है।
ग्राम प्रधानों की सूची
सन्दर्भ
सीतापुर_जिले_के_क़स्बे
उत्तर प्रदेश के नगर | 123 |
1230605 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8 | सलेमपुर राजपुतान | सलेमपुर राजपुतान भारत के उत्तराखण्ड के हरिद्वार ज़िले में रुड़की नगर निगम में स्थित है। यह रुड़की, रामनगर में एक अलिशान क्षेत्र है। सलेमपुर राजपूतान अपने उन्नति करनेवाले, उत्पादक और प्रगतिशील औद्योगिक क्षेत्र के लिए प्रसिद्ध है। यह हिंदू बहुसंख्यक कस्बा है, यहां के अधिकांश लोग कुहाड़ा, डहरिया, राड़ा और गादड़िया (जंबुवाल) गोत्र के हैं और सैनी समुदाय का हिस्सा हैं। गाँव में अल्पसंख्यक मुस्लिम और कश्यप तथा अन्य अनुसूचित जातियाँ भी मौजूद हैं।
इतिहास
प्राचीन इतिहास
सलेमपुर राजपुताना एक शहर था जो मायापुरी (वर्तमान, हरिद्वार) का एक हिस्सा था जो दक्ष का राज्य था, जो भगवान ब्रह्मा का पुत्र था। सलेमपुर का प्राचीन नाम वरदनगरी था जिसका अर्थ है एक ऐसा शहर जो अपने नागरिकों और आगंतुकों को वरदान प्रदान करता है या उनकी इच्छाओं को पूरा करता है। वरद भगवान शिव और भगवान गणेश का भी एक नाम है। वरदनगरी का नाम धीरे-धीरे श्यामपुर बदल दिया गया। सती (पार्वती) दक्ष की पुत्री थीं, जिनका विवाह भगवान शिव से हुआ था, इस संदर्भ में वरदनगरी भगवान शिव का ससुराल में थी। वरदनगरी सती कुंड से कुछ दूरी पर देखा जा सकता है कि सती ने अपने प्राण त्यागे थे। देवी सती वरदनगरी के बगीचों में भ्रमण के लिए आई थीं।
मध्यकालीन इतिहास
हिंदु काल
हिंदू राजाओं ने श्यामपुर (अभी, सलेमपुर) का नाम बदल कर श्यामपुर राजपुतान रख दिया। इस क्षेत्र में विकास हुआ और यहाँ एक शिव मंदिर भी बनाया गया, जो आज के समय में प्राचीन शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। वर्ष २०२० से २०२१ तक मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया।
मुग़ल काल
श्यामपुर राजपुतान को नष्ट कर दिया गया, आग लगा दी गई और तबाह कर दिया गया और कई नागरिकों को मार दिया गया, यह शहर वीरान हो गया। इसका मुग़ल राजाओं ने नाम बदल कर सलेमपुर राजपुतान रख दिया गया।
आधुनिक इतिहास
आज़ादी से पहले
२८ दिसंबर १९८८ को हरिद्वार जिले के अस्तित्व में आने से पहले सलेमपुर सहारनपुर जिले का गाँव था। साल १८९१ में खुशी सैनी ने सलेमपुर को बसाया था। खुशी सैनी के बेटे फ़कीरा सैनी और अमर सिंह थे, जो किसान थे। फ़कीरा के दो बेटे जानकी सैनी और रुहेला सैनी थे, जिन्हें नीम वाला के नाम से भी जाना जाता है।
आज़ादी के बाद
संविधान में ७३ वें संशोधन के बाद वर्ष १९९२ में पहली बार चुनाव हुए। २०१६ तक सलेमपुर राजपुताना रुड़की शहर के पास एक गाँव था, लेकिन २०१६ में सलेमपुर एक शहर और रुड़की नगर निगम और झबरेड़ा नगर परिषद का हिस्सा बन गया।
सुविधाएं
मंदिर
प्राचीन शिव मंदिर
हिंदू शासकों द्वारा यहां भगवान शिव के एक मंदिर का निर्माण किया गया था। वर्तमान में इसे प्राचीन शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। वर्ष २०२० से २०२१ तक इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया। सलेमपुर राजपुताना के लोगों की सहायता से पुनर्निर्माण संभव हुआ। भगवान शिव, देवी पार्वती, भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय, शिव लिंग और नंदी की मूर्तियों का लोकार्पण और स्थापना १८ फरवरी २०२१ को हुई थी
भूमिया खेड़ा
भूमिया सलेमपुर राजपुताना का मुख्य देवता है। भूमिया खेड़ा भगवान भूमिया का मंदिर है। इस गाँव के लोगों के अलावा, प्रेमनगर, कृष्णानगर, और सलेमपुर के निकट के अन्य क्षेत्रों के लोग भी भगवान भुमिया को भगवान और उद्धारकर्ता के रूप में पूजते हैं।
जनसांख्यिकी
जनसंख्या
२०११ की जनगणना के अनुसार, सलेमपुर राजपुताना की कुल जनसंख्या १०३४० थी जिसमें से ४८२७ महिलाएं और ५५१३ पुरुष थे। ६ वर्ष से कम आयु के १३१० बच्चे थे जिनमें से ७०७ लड़के और ६०३ लड़कियाँ थीं।.
धर्म
कुल जनसंख्या में से, ९७.१४ हिंदू हैं, २.१% मुसलमान हैं, और ०.७७% अन्य धर्मों के हैं।
साक्षरता
सलेमपुर राजपुताना की कुल साक्षरता दर ९०.२९% है, यहाँ ८३.९३% महिलाएँ, और ९५.८८% पुरुष शिक्षित हैं।
सन्दर्भ
उत्तराखण्ड के नगर
हरिद्वार जिला
हरिद्वार ज़िले के नगर | 614 |
994495 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%20%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80 | रुपारेल नदी | रूपारेल या बारा नदी भारत के राजस्थान प्रान्त की एक महत्वपूर्ण नदी है। यह यमुना की एक सहायक नदी है। इस नदी का उद्गम अलवर जिले के थानागाजी तहसील के टोडी गाँव के पूर्वी ढाल पे स्थित उदयनाथ की पहाड़ी से होता है।
रूपारेल रिवर का विलय सीकरी बाध भरतपुर में होता है यह नदी राजस्थान के दो जिले अलवर और भरतपुर होते हुए उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है और आगरा और मथुरा के बीच यमुना नदी से जुड़ जाती है। रूपारेल नदी २०वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में भरतपुर और अलवर के राज्यों में विवाद की एक वजह रह चुकी है। नदी के जल बंटवारे के विवाद पर सन १९२८ में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने अपना फैसला सुनाया। इस फैसले के तहत नटनी बारा का निर्माण कर अलवर और भरतपुर में जल का बंटवारा किया गया। नटनी बारा से गुजरने की वजह से रूपारेल नदी को बारा नदी के नाम से भी जाना जाता है।
अत्यधिक जंगलों की कटान की वजह से इस नदी का सदानीरा चरित्र ७० का दशक आते आते बदल गया और यह नदी एक बरसाती नदी में बदल गयी। हलांकि तरुण भारत संघ नमक संस्था और जल बिरादरी के लोगों के एक लम्बे प्रयास के बाद जनसहभागिता द्वारा इस नदी को पुनर्जीवन मिला और यह फिर से वर्ष भर बहने वाली नदी बन चुकी है। 2023 जून यह नदी िफर स॓ सूख़ गई है।
भौगोलिक विस्तार
रूपारेल नदी का जलागम क्षेत्र ४४८८ वर्ग किलोमीटर है। कुल लम्बाई १०४ किलोमीटर है। इस नदी पर तरुण भारत संघ द्वारा जन सहभागिता से कुल ५९० जल संरचनाओं का निर्माण किया गया है। इन संरचनाओं की देखभाल के लिए गाँव विकास संगठन बनाये गए है।
इतिहास
रूपारेल नदी २०वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में भरतपुर और अलवर के राज्यों में विवाद की एक वजह रह चुकी है। नदी के जल बंटवारे के विवाद पर सन १९२८ में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने अपना फैसला सुनाया। इस फैसले के तहत नटनी बारा का निर्माण कर अलवर और भरतपुर में जल का बंटवारा किया गया। रूपारेल नदी का प्राकृतिक रास्ता भरतपुर राज्य को जल देते हुए यमुना तक जाता था। अलवर के तत्कालीन राजा इस जल को अपने राज्य अलवर में ही रोके रखना चाहते थे। इस मुद्दे को लेकर दोनों राज्यों में विवाद बढ़ता गया और फिर मामला ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार की लंदन की अदालत में पंहुचा। लंदन में लगने वाली अदालत में ये लड़ाई ४ वर्षो तक चलती रही जिसका निपटारा जनवरी १९२८ को हुआ।
इस फैसले के तहत नटनी का बारा में एक समतल जगह पर एक दीवार खडी की गई और नदी के जल का दो राज्यों में बंटवारा किया गया और फैसले में अलवर राज को नदी के ४५ प्रतिशत जल के उपयोग का अधिकार मिला जबकि भारतपुर राज को ५५ प्रतिशत जल पर अधिकार दिया गया। अलवर के महाराज चाहते थे की राज्य में बरसने वाला जल राज्य में रुका रहे और रूपारेल नदी में बहकर भरतपुर राज्य को न जाए। इस वजह से उन्होंने सरिस्का के वन को संरक्षित शिकारगाह घोषित कर दिया ताकि क्षेत्र में बरसने वाला जल पहाड़ियों को पोषित कर सके और उसके नीचे के कुंओं में खेती के लिए जल स्तर बना रहे। जनवरी १९२८ में जल विवाद के निपटारे के बाद दोनों राज्यों ने संयुक्त उत्सव मनाया जिसमे भरतपुर के महाराज श्री किशन सिंह और अलवर के महाराज श्री जय सिंह शामिल हुए। उत्स्स्व में दोनों राज्यों की जनता ने भी भी भाग लिया।
१९९६ की भयंकर बाढ़
रूपारेल नदी के जलागम क्षेत्र में २४ जून १९९६ को विकराल बाढ़ आई जो कि नवंबर १९९६ तक जारी रही। इस बाढ़ के कारण कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा भाग प्रभावित हुआ। बाढ़ की वजह से हजारों लोगों को इस क्षेत्र से पलायन करना पड़ा और लंबे समय तक दूसरे गावों में शरण लेकर रहना पड़ा। तरूण भारत संघ द्वारा किए गए सर्वे में पाया गया कि बाढ़ की वजह से अलवर जिले को ८०० करोड़ तथा भरतपुर जिले को १००० करोड़ का आर्थिक नुकसान सहना पड़ा।
नदी का पुनर्जीवन
सन 1987 में सरकार ने रुपारेल नदी के पूरे जलागम इलाके को अंधेरा क्षेत्र घोषित कर दिया था। मोेहन श्रोत्रिय और अविनाश द्वारा लिखित किताब के अनुसार उस समय हाल है ऐसा था कि पानी की कीमत पर लोग बिकने के लिए तैयार थे। उन्हीं दिनों तरुण भारत संघ नाम की संस्था पानी के पुनर्सिंचन को लेकर अलवर के गांव गांव में घूम रही थी। रूपारेल नदी को पुनर्जीवित करने को लेकर संस्था की आशा पर विश्वास की मोहर तब लगी जब लावा का बास की दो महिलाओं ने पानी के लिए कुछ भी कर दिखाने की हिम्मत संस्था के सामने रखी थी। लावा का बास रूपारेल नदी के ऊपरी हिस्से पर बसा हुआ एक गांव है। रूपारेल के जलागम क्षेत्र में सबसे पहला तालाब इसी गांव में बना। इस तलाब के निर्माण में गांव की दो महिलाओं ने अहम भूमिका अदा किया। 1993 में नदी के जलागम क्षेत्र के नांगलहेड़ी, तोलास, रईकामाला, दुहारमाला, सुकोल, डाबली, मेंजोड़, श्यामपुर,टोडी, जोधावास और उदयनाथ जैसे स्थानों पर छोटे-छोटे जोहड़ बनाए गए। रूपारेल की तीसरी धारा जो अधिरे से शुरू होती है उस पर भी 1986 -87 से जोहड़ तालाब, बांध, इत्यादी के निर्माण का काम शुरू हुआ। धीरे धीरे इस नदी के जलागम क्षेत्र का भूजल स्तर बढ़ता गया और २०१५ आते-आते रूपारेल नदी फिर एक बार बारहमासी नदी बन गई।
संदर्भ
राजस्थान की नदियाँ | 882 |
100673 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A1%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%AF%E0%A5%8B | लॉर्ड मेयो | लॉर्ड मेयो भारत के गवर्नर जनरल रहे थे।
मृत्यु 8 फरवरी 1872
शेर अली खान भारतीय होने के साथ साथ राष्ट्र प्रेमी भी थे उन्होंने गवर्नर जनरल लार्ड मेयो को मौत के घाट उतारा दिए थे
गर्वनर जनरल लॉर्ड मेयो ने अंडमान निकोबार के पोर्ट ब्लेयर में सेलुलर जेल के कैदियों के हालात जानने और सिक्योंरिटी इंतजामों की समीक्षा करने के लिए वहां का दौरा करने का मन बनाया । शायद मेयो का काम पूरा हो भी चुका था। शाम सात बजे का वक्त था, लॉर्ड मेयो अपनी बोट की तरफ वापस आ रहा था। उसकी बेटी "लेडी मेयो" उस वक्त बोट में ही उसका इंतजार कर रही थीं।
गवर्नर जनरल का कोर सिक्योरिटी दस्ता जिसमें 12 सिक्योरिटी ऑफिसर शामिल थे, वो भी साथ साथ चल रहे थे। इधर शेर अली अफरीदी खुद चूंकि इसी सिक्योरिटी दस्ते का सदस्य रह चुका थे , इसलिए बेहतर जानते थे कि वो कहां चूक करते हैं और कहां लापरवाह हो जाते हैं। हथियार उसके पास था ही, उसके नाई वाले काम का खतरनाक
गोली
औजार,उस्तरा उसके साथ था।
लार्ड मेयो जैसे ही बोट की तरफ बढ़े, उनका सिक्योरिटी दस्ता थोड़ा बेफिक्र हो गया कि चलो पूरा दिन ठीकठाक गुजर गया। वैसे भी गवर्नर जनरल तक पहुंचने की हिम्मत कौन कर सकता है,गवर्नर की सिक्योरिटी बेधने की कौन सोचेगा! लेकिन उनकी यही बेफिक्री उसके जिंदगी की सबसे बड़ी भूल हो गई। पोर्ट पर अंधेरा था, उस वक्त रोशनी के इंतजामात बहुत अच्छे नहीं होते थे।
फरवरी के महीने में वैसे भी जल्दी अंधेरा हो जाता है, बिजली की तरह एक साया छलावे की तरह वायसराय की तरफ झपटे, जब तक खुद लार्ड मेयो या सिक्योरिटी दस्ते के लोग कुछ समझते इतने खून में सराबोर हो चुका था लॉर्ड मेयो कि मौके पर ही मौत हो जाती है।
लॉर्ड मेयो की याद में उसी साल ढूंढे गए एक नए द्वीप का नाम रख दिया गया।
भारत के गवर्नर जनरल
मेयो के द्वारा 1872 मे प्रायोगिक जनगणना करवाई गई।
मेयो द्वारा 1872 में कृषि विभाग तथा अजमेर में मेयो कॉलेज की स्थापना की गई।
सन्दर्भ | 339 |
544986 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%20%28%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80%29 | महाभारत (राजगोपालाचारी) | महाभारत चक्रवर्ती राजगोपालाचारी द्वारा रचित पौराणिक कथा पुस्तक है। इसका प्रथम प्रकाशन १९५८ में भारतीय विद्या भवन में हुआ। यह पुस्तक वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत का संक्षिप्त अंग्रेजी पुनर्लेखन है। राज जी ने उनकी रामायण और इस पुस्तक को देशसेवा के रूप में बड़े कार्य के रूप में देखा।
पुस्तक की लेखन शैली प्रवाह युक्त है एवं शब्द वजनदार हैं।
२००१ के अनुसार पुस्तक की १० लाख प्रतियाँ विक्रय की जा चुकी हैं।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
पुस्तक की पीडीएफ़ प्रारुप में प्रति
महाभारत | 83 |
26817 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%88%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BE | ईरुला | ईरुला, भारत की एक जनजाति हैं। इरुला लोग भारत के कई भागों के निवासी हैं किन्तु तमिलनाडु के तिरुवलुर जनपद में उनकी अच्छी संख्या है। इस क्षेत्र में उनकी जनसंख्या १००० से २००० के बीच आंकी गयी है। इन्हें भारत के कुछ क्षेत्रों में कालबेलिया प्रजाति के नाम से भी जाना जाता है|
ईरुला यह शब्द तमिल भाषा के ईरुल (=श्याम) शब्द से निकला है। दक्षिण भारत में नीलगिरि की पहाड़ियों पर निवास करनेवाली एक अत्यधिक श्यामवर्ण आदिम जाति का नाम ईरुला है। इसके विपरीत 'बडागा' सबसे सुंदर वर्णवाली आदिम जाति है। ईरुला लोग अपनी बोलचाल में अपभ्रंश तमिल का प्रयोग करते हैं तथा एक प्रकार के विष्णुपूजक हैं। इस जाति में विवाह के समय एक भोज देने के अतिरिक्त अन्य कोई विशेष प्रथा नहीं है। इनके यहाँ मृतकों को गाड़ने की प्रथा है, गाड़ते समय शव को पद्मामसनावस्था में एवं मस्तक को उत्तर की ओर करके रखा जाता है। ये लोग आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं, किंतु भविष्यवक्ता के रूप में इनका बड़ा आदर होता है।
बाहरी कड़ियाँ
"Building a better Rat Trap: Technological Innovation, Human Capital and the Irula" - Economic Research Paper about the Irula
भारत की जनजातियाँ
केरल की जनजातियां
पुदुचेरी के सामाजिक समुदाय
तमिलनाडु के सामाजिक समुदाय
केरल के सामाजिक समुदाय | 207 |
1386113 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%A1%E0%A4%97%E0%A4%B0%20%E0%A4%AC%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%98%E0%A4%AE | एडगर बकिंघम | एडगर बकिंघम (8 जुलाई, 1867 - 29 अप्रैल, 1940) एक अमेरिकी भौतिक विज्ञानी थे।
उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से 1887 में भौतिकी में स्नातक की डिग्री के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने स्ट्रासबर्ग विश्वविद्यालय और लीपज़िग विश्वविद्यालय में अतिरिक्त स्नातक कार्य किया, जहाँ उन्होंने रसायनज्ञ विल्हेम ओस्टवाल्ड के अधीन अध्ययन किया। बकिंघम ने 1893 में लीपज़िग विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने यूएसडीए ब्यूरो ऑफ़ सॉयल में 1902 से 1906 तक मृदा भौतिक विज्ञानी के रूप में काम किया। उन्होंने (यूएस) राष्ट्रीय मानक ब्यूरो (अब राष्ट्रीय मानक और प्रौद्योगिकी संस्थान, या एनआईएसटी)में 1906-1937 तक काम किया। उनकी विशेषज्ञता के क्षेत्रों में मृदा भौतिकी, गैस गुण, ध्वनिकी, द्रव यांत्रिकी और ब्लैकबॉडी विकिरण शामिल थे। वे आयामी विश्लेषण के क्षेत्र में बकिंघम प्रमेय के प्रवर्तक भी हैं।
1923 में, बकिंघम ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें संदेह व्यक्त किया गया था कि जेट प्रणोदन कम ऊंचाई पर और उस अवधि की गति पर प्रोप संचालित विमान के साथ आर्थिक रूप से प्रतिस्पर्धी होगा।
मृदा भौतिकी पर बकिंघम का पहला काम मिट्टी के वातन पर है, विशेष रूप से मिट्टी से कार्बन डाइऑक्साइड की हानि और इसके बाद ऑक्सीजन द्वारा प्रतिस्थापन। अपने प्रयोगों से उन्होंने पाया कि मिट्टी में गैस के प्रसार की दर मिट्टी की संरचना, सघनता या मिट्टी की जल सामग्री पर महत्वपूर्ण रूप से निर्भर नहीं थी। अपने डेटा के आधार पर एक अनुभवजन्य सूत्र का उपयोग करते हुए, बकिंघम वायु सामग्री के कार्य के रूप में प्रसार गुणांक देने में सक्षम था। यह संबंध अभी भी आमतौर पर कई आधुनिक पाठ्यपुस्तकों में उद्धृत किया जाता है और आधुनिक शोध में उपयोग किया जाता है। गैस परिवहन पर उनके शोध के परिणाम यह निष्कर्ष निकालना था कि मिट्टी के वातन में गैसों का आदान-प्रदान प्रसार द्वारा होता है और यह बाहरी बैरोमीटर के दबाव की विविधताओं से समझदारी से स्वतंत्र होता है।
बकिंघम ने तब मिट्टी के पानी पर काम किया, जिसके लिए वह अब प्रसिद्ध है। मिट्टी के पानी पर बकिंघम का काम बुलेटिन 38 यूएसडीए ब्यूरो ऑफ सॉयल में प्रकाशित हुआ है: मिट्टी की नमी के आंदोलन पर अध्ययन, जिसे 1907 में जारी किया गया था। इस दस्तावेज़ में तीन खंड थे, जिनमें से पहला मिट्टी की एक परत के नीचे से पानी के वाष्पीकरण को देखता था। . उन्होंने पाया कि विभिन्न बनावट की मिट्टी वाष्पीकरण को दृढ़ता से रोक सकती है, खासकर जहां ऊपर की परतों के माध्यम से केशिका प्रवाह को रोका गया था। बुलेटिन 38 के दूसरे खंड में शुष्क और आर्द्र परिस्थितियों में मिट्टी के सूखने को देखा गया। बकिंघम ने पाया कि बाष्पीकरणीय नुकसान शुरू में शुष्क मिट्टी से अधिक थे, फिर तीन दिनों के बाद शुष्क परिस्थितियों में वाष्पीकरण आर्द्र परिस्थितियों की तुलना में कम हो गया, कुल नुकसान आर्द्र मिट्टी से अधिक हो गया। बकिंघम का मानना था कि यह स्व-मल्चिंग व्यवहार (उन्होंने इसे प्राकृतिक गीली घास बनाने वाली मिट्टी के रूप में संदर्भित किया) के कारण शुष्क परिस्थितियों में मिट्टी द्वारा प्रदर्शित किया गया था।
बुलेटिन 38 के तीसरे खंड में असंतृप्त प्रवाह और केशिका क्रिया पर काम है जिसके लिए बकिंघम प्रसिद्ध है। उन्होंने सबसे पहले मिट्टी और पानी के बीच परस्पर क्रिया से उत्पन्न होने वाली शक्तियों की क्षमता के महत्व को पहचाना। उन्होंने इसे केशिका क्षमता कहा, इसे अब नमी या पानी की क्षमता (मैट्रिक क्षमता) के रूप में जाना जाता है। उन्होंने मिट्टी भौतिकी सिद्धांत में केशिका सिद्धांत और ऊर्जा क्षमता को जोड़ा, और केशिका क्षमता पर मिट्टी हाइड्रोलिक चालकता की निर्भरता को उजागर करने वाले पहले व्यक्ति थे। इस निर्भरता को बाद में पेट्रोलियम इंजीनियरिंग में सापेक्ष पारगम्यता के रूप में जाना जाने लगा। उन्होंने असंतृप्त प्रवाह के लिए डार्सी के नियम के समकक्ष एक सूत्र भी लागू किया। | 608 |
190315 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8C%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%20%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A4%A8 | बौद्ध दर्शन | बौद्ध दर्शन (श्रावक - संस्कृत ) या सावक ( पाली ) का अर्थ है "सुनने वाला" या, अधिक सामान्यतः, "शिष्य"। इस शब्द का प्रयोग बौद्ध धर्म और जैन धर्म में किया जाता है ।' से अभिप्राय उस दर्शन से है जो महात्मा बुद्ध के निर्वाण के बाद बौद्ध धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों द्वारा विकसित किया गया और बाद में पूरे एशिया में उसका प्रसार हुआ। 'दुःख से मुक्ति' बौद्ध धर्म का सदा से मुख्य ध्येय रहा है। मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेख्खा ये चार ब्रह्म विहार बौद्ध धर्म के साधन हैं। आर्य आष्टांगिक मार्ग के द्वारा जीवन का ध्येय प्रस्फुटित होता है।
बुद्ध के उपदेश तीन पिटकों में संकलित हैं। ये सुत्त पिटक, विनय पिटक और अभिधम्म पिटक कहलाते हैं। ये पिटक बौद्ध धर्म के आगम हैं। क्रियाशील सत्य की धारणा बौद्ध मत की मौलिक विशेषता है। उपनिषदों का ब्रह्म अचल और अपरिवर्तनशील है। बुद्ध के अनुसार परिवर्तन ही सत्य है। पश्चिमी दर्शन में हैराक्लाइटस और बर्गसाँ ने भी परिवर्तन को सत्य माना। इस परिवर्तन का कोई अपरिवर्तनीय आधार भी नहीं है। बाह्य और आंतरिक जगत् में कोई ध्रुव सत्य नहीं है। बाह्य पदार्थ "स्वलक्षणों" के संघात हैं। आत्मा भी मनोभावों और विज्ञानों की धारा है। इस प्रकार बौद्धमत में उपनिषदों के आत्मवाद का खंडन करके "अनात्मवाद" की स्थापना की गई है। फिर भी बौद्धमत में कर्म और पुनर्जन्म मान्य हैं। आत्मा का न मानने पर भी बौद्धधर्म करुणा से ओतप्रोत हैं। दु:ख से द्रवित होकर ही बुद्ध ने सन्यास लिया और दु:ख के निरोध का उपाय खोजा। अविद्या, तृष्णा आदि में दु:ख का कारण खोजकर उन्होंने इनके उच्छेद को निर्वाण का मार्ग बताया।
सम्पूर्ण एशिया के देशों में बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ। भगवान बुद्ध के अनुयायियों में मतभेद के कारण कई संप्रदाय बन गए। जो स्थविरवाद और महायान के रूप में विकसित हुए।
सिद्धांतभेद के अनुसार बौद्ध परंपरा में चार दर्शन प्रसिद्ध हैं। इनमें वैभाषिक और सौत्रांतिक मत हीनयान परंपरा में हैं। यह दक्षिणी बौद्धमत हैं। इसका प्रचार भी लंका में है। योगाचार और माध्यमिक मत महायान परंपरा में हैं। यह उत्तरी बौद्धमत है। इन चारों दर्शनों का उदय ईसा की आरंभिक शब्ताब्दियों में हुआ। इसी समय वैदिक परंपरा में षड्दर्शनों का उदय हुआ। इस प्रकार भारतीय पंरपरा में दर्शन संप्रदायों का आविर्भाव लगभग एक ही साथ हुआ है तथा उनका विकास परस्पर विरोध के द्वारा हुआ है। पश्चिमी दर्शनों की भाँति ये दर्शन पूर्वापर क्रम में उदित नहीं हुए हैं।
वसुबंधु (400 ई.), कुमारलात (200 ई.) मैत्रेय (300 ई.) और नागार्जुन (200 ई.) इन दर्शनों के प्रमुख आचार्य थे। वैभाषिक मत बाह्य वस्तुओं की सत्ता तथा स्वलक्षणों के रूप में उनका प्रत्यक्ष मानता है। अत: उसे बाह्य प्रत्यक्षवाद अथवा "सर्वास्तित्ववाद" कहते हैं। सैत्रांतिक मत के अनुसार पदार्थों का प्रत्यक्ष नहीं, अनुमान होता है। अत: उसे बाह्यानुमेयवाद कहते हैं। योगाचार मत के अनुसार बाह्य पदार्थों की सत्ता नहीं। हमे जो कुछ दिखाई देता है वह विज्ञान मात्र है। योगाचार मत विज्ञानवाद कहलाता है। माध्यमिक मत के अनुसार विज्ञान भी सत्य नहीं है। सब कुछ शून्य है। शून्य का अर्थ निरस्वभाव, नि:स्वरूप अथवा अनिर्वचनीय है। शून्यवाद का यह शून्य वेदांत के ब्रह्म के बहुत निकट आ जाता है।
संक्षिप्त परिचय
बौद्ध दर्शन अपने प्रारम्भिक काल में जैन दर्शन की ही भाँति आचारशास्त्र के रूप में ही था। बाद में बुद्ध के उपदेशों के आधार पर विभिन्न विद्वानों ने इसे आध्यात्मिक रूप देकर एक सशक्त दार्शनिकशास्त्र बनाया। बुद्ध द्वारा सर्वप्रथम सारनाथ में दिये गये उपदेशों में से चार आर्यसत्य इस प्रकार हैं :- ‘दुःखसमुदायनिरोधमार्गाश्चत्वारआर्यबुद्धस्याभिमतानि तत्त्वानि।’ अर्थात् -
1. दुःख- संसार दुखमय है।
2. दुःखसमुदाय दर्शन- दुख उत्पन्न होने का कारण है (तृष्णा)
3. दुःखनिरोध- दुख का निवारण संभव है
4. दुःखनिरोधमार्ग- दुख निवारक मार्ग (आष्टांगिक मार्ग)
बुद्धाभिमत इन चारों तत्त्वों में से दुःखसमुदाय के अन्तर्गत द्वादशनिदान (जरामरण, जाति, भव, उपादान, तृष्णा, वेदना, स्पर्श, षडायतन, नामरूप, विज्ञान, संस्कार तथा अविद्या) तथा दुःखनिरोध के उपायों में अष्टांगमार्ग (सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वाणी, सम्यक् कर्म, सम्यक् आजीव, सम्यक् प्रयत्न, सम्यक् स्मृति तथा सम्यक् समाधि) का विशेष महत्व है। इसके अतिरिक्त पंचशील (अहिंसा, अस्तेय, सत्यभाषण, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह) तथा द्वादश आयतन (पंच ज्ञानेन्द्रियाँ, पंच कर्मेन्द्रियाँ, मन और बुद्धि), जिनसे सम्यक् कर्म करना चाहिए- भी आचार की दृष्टि से महनीय हैं। वस्तुतः चार आर्य सत्यों का विशद विवेचन ही बौद्ध दर्शन है।
बौद्ध दर्शन का प्रारम्भिक श्रेणी विभाग, सत्ता के महत्त्वपूर्ण प्रश्न को लेकर किया गया, जो कि चार प्रस्थान के रूप में इस प्रकार जाना जाता है-
मुख्यो माध्यमिको विवर्तमखिलं शून्यस्य मेने जगत्
योगाचारमते तु सन्ति मतयस्तासां विवर्तोऽखिलः।
अर्थोऽस्ति क्षणिकस्त्वसावनुमितो बुद्धयेति सौत्रान्तिकः
प्रत्यक्षं क्षणभंगुरं च सकलं वैभाषिको भाषते॥
वैभाषिक सम्प्रदाय (बाह्यार्थ प्रत्यक्षवाद)
ये अर्थ को ज्ञान से युक्त अर्थात् प्रत्यक्षगम्य मानते हैं।
सौत्रान्तिक सम्प्रदाय (बाह्यार्थानुमेयवाद)
ये बाह्यार्थ को अनुमेय मानते हैं। यद्यपि बाह्यजगत की सत्ता दोनों स्वीकार करते हैं, किन्तु दृष्टि के भेद से एक के लिए चित्त निरपेक्ष तथा दूसरे के लिए चित्त सापेक्ष अर्थात् अनुमेय सत्ता है। सौत्रान्तिक मत में सत्ता की स्थिति बाह्य से अन्तर्मुखी है।
योगाचार सम्प्रदाय (विज्ञानवाद)
इनके अनुसार बुद्धि ही आकार के साथ है अर्थात् बुद्धि में ही बाह्यार्थ चले आते हैं। चित्त अर्थात् आलयविज्ञान में अनन्त विज्ञानों का उदय होता रहता है। क्षणभंगिनी चित्त सन्तति की सत्ता से सभी वस्तुओं का ज्ञान होता है। वस्तुतः ये बाह्य सत्ता का सर्वथा निराकरण करते हैं। इनके यहाँ माध्यमिक मत के समान सत्ता दो प्रकार की मानी गई है-
अ) पारमार्थिक
ब) व्यावहारिक।
व्यावहारिक में पुनश्च परिकल्पित और परतन्त्र दो रूप ग्राह्य हैं। यहाँ चित्त की ही प्रवृत्ति तथा निवृत्ति (निरोध, मुक्ति) होती है। सभी वस्तुऐं चित्त का ही विकल्प है। इसे ही आलयविज्ञान कहते हैं। यह आलयविज्ञान क्षणिक विज्ञानों की सन्तति मात्र है।
माध्यमिक सम्प्रदाय (शून्यवाद)
यहाँ बाह्य एवम् अन्तः दोनों सत्ताओं का शून्य मेंं विलयन हुआ है, जो कि अनिर्वचनीय है। ये केवल ज्ञान को ही अपने में स्थित मानते हैं और दो प्रकार का सत्य स्वीकार करते हैं-
अ) सांवृत्तिक सत्य :- अविद्याजनित व्यावहारिक सत्ता।
ब) पारमार्थिक सत्य :- प्रज्ञाजनित सत्य
बौद्धों के इन चारों सम्प्रदायों में से प्रथम दो का सम्बन्ध हीनयान से तथा अन्तिम दोनों का सम्बन्ध महायान से है। हीनयानी सम्प्रदाय यथार्थवादी तथा सर्वास्तिवादी है, जबकि महायानी सम्प्रदायों में से योगाचारी विचार को ही परम तत्त्व तथा परम रूप में स्वीकार करते हैं। माध्यमिक दर्शन एक निषेधात्मक एवं विवेचनात्मक पद्धति है। यही कारण है कि माध्यमिक शून्यवाद को 'सर्ववैनाशिकवाद' के नाम से भी जाना जाता है।
हीनयान तथा महायान की अन्यान्य अनेक शाखाएँ हैं, जो कि प्रख्यात नहीं हैं-
क्षणिकवाद
बौद्धों के अनुसार वस्तु का निरन्तर परिवर्तन होता रहता है और कोई भी पदार्थ एक क्षण से अधिक स्थायी नहीं रहता है। कोई भी मनुष्य किसी भी दो क्षणों में एक सा नहीं रह सकता, इसिलिये आत्मा भी क्षणिक है और यह सिद्धान्त क्षणिकवाद कहलाता है । इसके लिए बौद्ध मतानुयायी प्रायः दीपशिखा की उपमा देते हैं। जब तक दीपक जलता है, तब तक उसकी लौ एक ही शिखा प्रतीत होती है, जबकि यह शिखा अनेकों शिखाओं की एक श्रृंखला है। एक बूँद से उत्पन्न शिखा दूसरी बूंद से उत्पन्न शिखा से भिन्न है; किन्तु शिखाओं के निरन्तर प्रवाह से एकता का भान होता है। इसी प्रकार सांसारिक पदार्थ क्षणिक है, किन्तु उनमें एकता की प्रतीति होती है। इस प्रकार यह सिद्धान्त ‘नित्यवाद’ और ‘अभाववाद’ के बीच का मध्यम मार्ग है।
प्रतीत्यसमुत्पाद
‘प्रतीत्यसमुत्पाद’ से तात्पर्य एक वस्तु के प्राप्त होने पर दूसरी वस्तु की उत्पत्ति अथवा एक कारण के आधार पर एक कार्य की उत्पत्ति से है। प्रतीत्यसमुत्पाद सापेक्ष भी है और निरपेक्ष भी। सापेक्ष दृष्टि से वह संसार है और निरपेक्ष दृष्टि से निर्वाण। यह क्षणिकवाद की भाँति शाश्वतवाद और उच्छेदवाद के मध्य का मार्ग है; इसीलिए इसे मध्यममार्ग कहा जाता है और इसको मानने वाले माध्यमिक।
इस चक्र के बारह क्रम हैं,जो एक दूसरे को उत्पन्न करने के कारण है; ये हैं-
1• अविद्या
2• संस्कार
3• विज्ञान
4• नाम-रूप
5• षडायतन
6• स्पर्श
7• वेदना
8• तृष्णा
9• उपादान
10• भव
11• जाति
12• जरा-मरण।
इन्हें भी देखें
भारतीय दर्शन
वैभाषिक
सौत्रांतिक
मध्यमक
योगाचार
शून्यता
प्रमुख बौद्ध दार्शनिक
बुद्धघोष
नागार्जुन
बसुबन्धु
दिग्नाग
असंग
चन्द्रकीर्ति
धर्मकीर्ति
शान्तरक्षित
बाहरी कड़ियाँ
बौद्ध दर्शन के मूल सिद्धांत (वेबदुनिया)
बौद्ध धर्म दर्शन (गूगल पुस्तक ; आचार्य नरेन्द्र देव)
सनातन दर्शन का बौद्ध धर्म पर प्रभाव (चौथी दुनिया)
Sarunya Prasopchingchana & Dana Sugu, 'Distinctiveness of the Unseen Buddhist Identity' ([1]International Journal of Humanistic Ideology, Cluj-Napoca, Romania, vol. 4, 2010)
Buddhism in a Nutshell
The story of Sengé Dradrok <small>From A Great Treasure of Blessings, page 30:
सन्दर्भ
भारतीय दर्शन
दर्शन | 1,364 |
897751 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%89%E0%A4%A1%E0%A5%80%20%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97 | बॉडी पियर्सिंग | पियरसिग मे गह्ने पह्नने के लिये त्व्चा को भेदा जाता है , शरीर के किसी भाग को छेदना, आजकल हमारे समाज में फैशन की मुख्य धारा में सम्मिलित हो गया है और संस्कृति का हिस्सा बन गया है। लोग कई कारणों से अपने शरीर के किसी भाग को छेदते हैं। कुछ लोग धार्मिक कारणों से और कुछ स्वयं की अभिव्यक्ति और व्यक्तिगत शैली के लिए शरीर के किसी भाग को छेदते हैं।
कारण चाहे कोई भी हो, शरीर के किसी भाग को छेड़ना एक बहुत बड़ा निर्णय है और इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। शरीर के किसी भी भाग को छेदने में स्वास्थ्य के प्रति कई खतरे हैं। इसलिए शरीर के किसी भाग को छेदने का निर्णय लेने से पहले इन खतरों के बारे में जानना और समझना महत्वपूर्ण है।
पियर्सिंग कराना या ना कराना सबकी अपनी निजी पसंद होती है। हालांकि कुछ लोगों के लिए ये एक परंपरा का हिस्सा होती है तो वहीं कुछ लोग इसे फैशन स्टेमेंट के रुप में देखते है
शरीर को छेदने से संबंधित स्वास्थ्य खतरे
1. संक्रमण: शरीर को छेदने पर होने वाला सबसे आम खतरा है संक्रमण। यदि तुरंत उपचार नहीं किया गया तो इससे दाग पड़ सकता है और खून में भी संक्रमण हो सकता है। ध्यान न दिए जाने पर यह आपके ऊपर एक भद्दा दाग छोड़कर आपको बदसूरत बना सकता है।
2. एलर्जिक रिएक्शन: कुछ लोगों को गहनों से एलर्जिक क्रिया हो सकती हैं। इन क्रिया की वजह से लोगो को सांस लेने में परेशानी हो सकती है, छेदे गए स्थान पर दाने और सूजन आ सकती है। गम्भीर स्तिथि मे अस्पताल मे भर्ती हो सकते है
3. तंत्रिकाओं में क्षति होना: गलत तरीके से छेदने पर कोई तंत्रिका क्षतिग्रस्त हो सकती है जिससे कि छेद किये जाने वाला और इसके आसपास का स्थान हमेशा के लिए मृत हो सकता है। तंत्रिकाओं में सबसे ज्यादा क्षति जीभ छेदने के दौरान होती है खासकर जब इसे किसी गैर अनुभवी व्यक्ति से कराया गया हो।
4. अत्यधिक रक्तस्त्राव: कभी कभी जब छेदन किसी गैर अनुभवी व्यक्ति से कराया जाता है या छेदने वाला स्थान गलत हो तो सुई किसी रक्त वाहिका(नस) को छेदकर उसे क्षतिग्रस्त कर सकती है जिससे रक्तस्राव हो सकता है तथा रक्त्स्राव होने से शरीर मे रक्त की कमी हो जाती है|
5. प्रतिकूल दूषण का खतरा: अस्वास्थ्यकर(गंदे) वातावरण में किसी गैर अनुभवी व्यक्ति से शरीर के किसी भाग में छेद कराने पर रक्त से संबंधित कई बीमारियाँ हो सकती है जैसे कि एचआईवी वायरस, हेपेटाईटिस और कई अन्य बीमारियाँ।
6. केलोइड्स: केलोइड्स छेदन किये गए स्थान पर सख्त गांठें या उतकों की अतिरिक्त वृद्धि होते हैं जो बाहर निकले हुए होते हैं और बहुत बदसूरत दिखाई देते हैं। जब भी केलोइड्स के उपचार की बात आती है तो इसकी रोकथाम बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि किसी भी प्रकार का उपचार इन्हें पूरी तरह से नहीं हटा सकता या उपचार पूर्ण रूप से सफल नहीं हो सकता।
7. दांतों से संबंधित खतरे: मुंह में छेदन कराने पर दांतों से संबंधित कई खतरे हैं जैसे कि छिले हुए दांत, जबड़ों और मसूड़ों का क्षतिग्रस्त होना, दांतों के इनेमल का निकल जाना और इसके अलावा गहनों की वजह से फेफड़ों की गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।
सन्दर्भ | 527 |
1459620 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE | काम्य कर्म | जो कर्म किसी भी कामना की पूर्ति हेतु किया जाए है उसे काम्य कर्म कहते है। वैसे तो सभी लोग किसी ना किसी कामना या इच्छा पूर्ति हेतु ही कर्म करते है।
संसार में धन, संपत्ति, वैभव, इन्द्रिय सुख हेतु किये गए कर्म काम्य कर्म होते है। इसके विपरीत निःस्वार्थ भाव से किये गए कर्म को निष्काम कर्म कहते है।
श्रीमद भगवत गीता में काम्य कर्म या सकाम कर्म से अधिक निष्काम कर्म पर अधिक बल दिया गया है। इसका अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति को कामनाहीन हो जाना है अपितु व्यक्ति को कामना के प्रति आसक्त नहीं होना चाहिए।
कर्म केवल फल की प्राप्ति की आशा में ही नहीं करना चाहिए। कर्म तो करते रहना चाहिए फल तो मेहनत के अनुसार स्वतः ही प्राप्त हो जायेगा । दूसरे शब्दों में फल को ध्येय रखकर किया गया कर्म काम्य कर्म है और केवल कर्म पर ध्येय रखकर किया गया कर्म निष्काम कर्म है। | 154 |
1325933 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%B5%E0%A5%81%E0%A4%A1%20%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B8 | ग्रिमवुड मिअर्स | ग्रिमवुड मिअर्स
सर एडवर्ड ग्रिमवुड मिअर्स (Sir Edward Grimwood Mears) KCIE(21 जनवरी 1869 - 20 मई 1963) को डार्डानेल्स आयोग के सचिव के रूप में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है, जिसके लिए उन्हें नाइटहुड की उपाधि से सम्मानित किया गया । वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे ।
जीवनी
एडवर्ड ग्रिमवुड मियर्स का जन्म 21 जनवरी 1869 को हुआ था । उन्होंने 1893 में एक्सेटर कॉलेज, ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की । उन्हें दो साल बाद इनर टेम्पल के बार में बुलाया गया।
ब्रिटिश सरकार के अनुरोध पर, मियर्स ने ब्रायस आयोग(कथित जर्मन आक्रोश से सम्बन्धित समिति) पर काम करने के लिए वकालत छोड़ दी । 1916 में उन्हें आयरलैंड में हुई ईस्टर राइजिंग के सम्बन्ध में गठित रॉयल कमीशन का सचिव नियुक्त किया गया ।
उन्हें डार्डानेल्स आयोग(Dardanelles Commission) का सचिव नियुक्त किया गया, जिसके लिए उन्हें नाइटहुड की उपाधि से सम्मानित किया गया ।
1919 में मियर्स को इलाहाबाद उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। वह इस पद पर 1932 तक रहे ।
कृति
A reply to the German white book on the conduct of the German troops in Belgium (1916)
१९६३ में निधन
1869 में जन्मे लोग | 199 |
1036807 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%82%E0%A4%A4%20%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5 | महंत मोहरनाथ | महंत मोहरनाथ नाथ पंथ संवत् 1922 से संवत् 1935 में तीसरे महंत बने थे। अस्थल बोहर स्थान पर बाबा मस्तनाथ ने घोर तपस्या की और इसका जीर्णोद्धार करके ‘अस्थल बोहर मठ’ की स्थापना की।
मठ के अभी तक के महंत
महंत तोतानाथ-संवत् 1864 से संवत् 1894
महंत मेघनाथ-संवत् 1894 से संवत् 1923
महंत मोहरनाथ-संवत् 1922 से संवत् 1935
महंत चेतनाथ-संवत् 1935 से संवत् 1963
महंत पूर्णनाथ-संवत् 1963 से सन् 1939
महंत श्रेयोनाथ-सन् 1939 से सन् 1985
महंत चांदनाथ-सन् 1985 से 2018
महंत बालकनाथ- सन् 2018 से अभी तक
संदर्भ
भारतीय हिन्दू
धार्मिक नेता | 93 |
187142 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%20%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A8 | चंडवर्मन् शालंकायन | शालंकायन वंश की राजधानी वेंगी थी जिसका समीकरण आधुनिक गोदावरी जिले में पेड्डवेगि नामक स्थान से किया जाता है। चंडवर्मन् का पिता नंदिवर्मन् प्रथम था। चंडवर्मन् का राज्यकाल चौथी शताब्दी के अंत और पाँचवीं शताब्दी के प्रारंभ में रखा जा सकता है। उसका स्वयं का कोई अभिलेख नहीं प्राप्त है किंतु उसके ज्येष्ठ पुत्र और उत्तराधिकारी नंदिवर्मन् द्वितीय के कोल्लैर और पेड्डवेगि के अभिलेखों में उसका अभिलेख है। उसे प्रतापोपनत सामंत कहा गया है जिससे सूचित होता है कि संभवत: कुछ समीपवर्ती शासक उसकी अधीनता स्वीकार करते थे।
उड़ीसा के गंजाम जिले के कोमर्ति नाम के स्थान से प्राप्त एक अभिलेख चंडवर्मन् नाम के महाराज का है जिसकी राजधानी सिंहपुर थी और जो अपने को कलिंगाधिपति बतलाता है। इसका राज्य भी पाँचवीं शताब्दी में रखा जा सकता है किंतु यह चंडवर्मन् शालंकायन से भिन्न था।
प्राचीन भारत
भारत के राजा | 140 |
509067 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%A5%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0 | पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्र | पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्र (Polar regions of the Earth) इस ग्रह के उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के आसपास के क्षेत्र हैं। इनमें धुर्वों पर केन्द्रित ध्रुवीय बर्फ़ टोपियाँ लगी हुई हैं। उत्तर में यह आर्कटिक महासागर पर और दक्षिण में यह अन्टार्कटिका के महाद्वीप पर टिकी हुई हैं। यहाँ हमेशा बर्फ़ और ठण्ड की चरम स्थिति रहती है हालांकि मौसानुसार बर्फ़ का विस्तार बढ़ता-घटता है।
इन्हें भी देखें
उत्तरी ध्रुव
दक्षिणी ध्रुव
सन्दर्भ
आर्कटिक महासागर
अंटार्कटिका
पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्र | 81 |
572383 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF | सिन्हा पुस्तकालय | सिन्हा पुस्तकालय पटना का एक सार्वजनिक पुस्तकालय है। इसकी स्थापना १९२४ में सच्चिदानन्द सिन्हा ने की थी। इसका मूल नाम 'श्रीमती राधिका सिन्हा संस्थान एवं सच्चिदानन्द सिन्हा पुस्तकालय' था। १९५५ में राज्य सरकार ने इसे अपने अधिकार में ले लिया।
पुस्तकालय की विशेषता
सिन्हा पुस्तकालय की लाइब्रेरियन एस़ फजल बताती हैं कि वर्तमान समय में यहां एक लाख 80 हजार पुस्तकें हैं। वह कहती हैं कि प्रत्येक वर्ष बिहार सरकार द्वारा इस लाइब्रेरी को 20 लाख रुपये के करीब मिलते हैं, जिसमें से 75 हजार रुपये किताबों पर और करीब 36 हजार रुपये पत्रिकाओं पर और शेष राशि वेतनादि पर खर्च किए जाते हैं। वह कहते हैं कि यहां प्रतिदिन 15 अखबार और प्रत्येक महीने 27 पत्रिकाएं आती हैं।
सन्दर्भ
बाहरी कडियाँ
क्या यह इस महान पुस्तकालय का अंत है? (बिहार खबर)
Sinha library a victim of neglect (टाइम्स ऑफ इण्डिया)
भारत के पुस्तकालय | 144 |
474726 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A6%20%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B6%E0%A5%80 | पूरनचंद जोशी | पूरनचंद जोशी (जन्म : १ मार्च १९२८) भारत के एक जाने-माने समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री और हिन्दी साहित्यकार हैं। उन्होंने भारतीय समाज की समस्याओं, उसके चरित्र एवं उसकी गतिविधियों का आर्थिक दृष्टिकोण से गहन अध्ययन किया है, भारतीय समाज एवं भारतीय अर्थ-व्यवस्था के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण कर प्रस्तुत किए गए उनके निष्कर्ष अत्यंत विचारपूर्ण हैं।
जोशी जी की गणना हम उन गिने-चुने समाज वैज्ञानिकों में कर सकते हैं जो समाज की समस्याओं पर विचार करते समय केवल सैद्धान्तिक
ज्ञान को ही आधार नहीं बनाते, वरन् व्यावहारिक अनुभव से सम्पृक्त करके अपने अध्ययनों के निष्कर्ष प्रस्तावित करते हैं।
जीवन वृत्त
जोशी जी का जन्म १ मार्च १९२८ को वर्तमान उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जनपद के ग्राम दिगोली में एक संभ्रांत परिवार में हुआ था। इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र एवं अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर किया। १९५४ में पी.एच.डी. करने के बाद ये प्राध्यापन कार्य से जुड़े। १९८८-८९ में वे 'भारतीय मजदूर आर्थिक समाज' (इंडियन लेबर इकनॉमिक्स सोसाईटी) के अध्यक्ष चुने गए। अगले ही वर्ष वे 'भारतीय समाजशास्त्रीय समाज' (इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसायटी) के भी अध्यक्ष बनाये गए। १९९०-९२ में वे दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में 'फैलो' के रूप में कार्यरत रहे। कालान्तर में वे 'राष्ट्रीय-नाट्य-विद्यालय' के अध्यक्ष भी बनाए गए। इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में विज्ञान शिक्षा केंद्र (सेंटर ऑफ साईंस एजुकेशन) में अध्यक्ष के रूप में भी अपनी सेवाएं दी। भारत-सरकार ने इन्हें योजना आयोग के एक पैनल के एक सदस्य के रूप में मनोनीत किया।
पुस्तकें
जोशी जी ने हिंदी तथा अंग्रेजी में अनेक उल्लेखनीय पुस्तकें लिखी हैं-
हिंदी पुस्तकें
भारतीय ग्राम
शताब्दि का अंत
सांस्कृतिक परिवर्तन और विकास के सांस्कृतिक आयाम
अवधारणाओं का संकट
नवउपनिवेशवाद या नव जागरण
स्वप्न और यथार्थ : आजादी की आधी सदी
पूजा की पोथी
अंग्रेजी पुस्तकें
लैंड रिफॉर्स् इन इंडिया
कल्चरल कम्युनिकेशन एंड स्पेशल चेंज
मार्क्सिस एंड सोशल रिवोल्यूशन इन इंडिया
दि कलचरल डाइमेंशन ऑफ इकोनामिक डेवलपमेंट
उत्तराखंड : ईशुज एंड चैलेंजेज़
दि इंडियन एक्सपेरिमेंट
महात्मा गांधी : द न्यू इकोनामिक ऐजेंडा
सेकुलेरिज़म एंड डेवेलेपमेंट
पुरस्कार / सम्मान
रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय, कोलकाता ने समाजशास्व के क्षेत्र में किए गए अभूतपूर्व कार्य के लिए इन्हें डी.लिट. की विशिष्ट उपाधि प्रदान की।
इन्हें भी देखें
पूरन चन्द जोशी (साम्यवादी नेता एवं कार्यकर्ता)
बाहरी कड़ियाँ
भारतीय समाजशास्त्री
भारत के अर्थशास्त्री
1927 में जन्मे लोग
जीवित लोग | 367 |
841717 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%96 | रुद्रदमन का गिरनार शिलालेख | रुद्रदमन का गिरनार शिलालेख पश्चिमी छत्रप नरेश रुद्रदमन द्वारा लिखवाया गया शिलालेख है। यह शिलालेख गिरनार पर्वतों पर है जो जूनागढ़ के निकट स्थित है। यह १३०-से १५० ई॰ के मध्य लिखा गया था। जूनागढ़ शिलाओं पर अशोक के १४ शिलालेख तथा स्कन्दगुप्त के शिलालेख भी है।
रुद्रदामन का गिरनार शिलालेख उच्च कोटि के संस्कृत गद्य का स्वरूप प्रकट करता है जिसमें सुबन्धु, दण्डी और बाण की गद्यशैली का पूर्वरूप देखा जा सकता है। इसकी भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है। इसमें दीर्घ समासों का भी प्रयोग देखते बनता है। अलंकृत शैली, नादात्मकता इसकी अन्य विशेषताएँ है।
इस शिलालेख में एक बहुत बड़े सुदर्शन तड़ाग सरोवर के निर्माण की बात कही है। इस क्षेत्र में पानी की कमी है। यह कार्य भी जनहित के लिए प्रशंसनीय प्रयास है।
बाहरी कड़ियाँ
जूनागढ़ शिलालेख
भारत स्थित संस्कृत शिलालेख | 135 |
1127687 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BF | जिला योजना समिति | जिला योजना समिति
पंचायतों तथा नगर पालिकाओं द्वारा तैयार की गई योजनाओं को समेकित करने और सम्पूर्ण जिला के लिए विकास योजना का प्रारूप तैयार करने हेतु सरकार प्रत्येक जिले में एक जिला योजना समिति का गठन करेगी।
जिला योजना समिति में निम्नलिखित होंगें:-
जिला परिषद के अध्यक्ष
जिला मुख्यालय पर अधिकारिता रखने वाली नगरपालिका के महापौर या अध्यक्ष
सरकार द्वारा यथा विनिर्दिष्ट समिति के सदस्यों की कुल संख्या के कम से कम 4/5 भाग सदस्य, जो जिला परिषदके निर्वाचित सदस्यों, जिले की नगर पंचायत और नगर निगम तथा नगरपालिका पर्षद के निर्वाचित पार्षदों के बीच से उनके द्वारा विहित रीति से ग्रामीण क्षेत्र और जिले के शहरी क्षेत्रों के बीच आबादी के अनुपात में राज्य निर्वाचन आयोग के निर्देषन, नियंत्रण एवं पर्यवेक्षण में निर्वाचित होंगे।
परन्तु यह कि निर्वाचित सदस्यों में से व्यवहारिक रूप से यथाषक्य पचास (50%) प्रतिशत महिलायें होंगी। परन्तु यह और कि यदि अनुसूचित जातियों या पिछड़े वर्ग की कोटियों में से कोई निर्वाचित सदस्य नहीं हो तो सरकार, जिला की पंचायतों तथा नगरपालिकाओं के सदस्यों में से अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन जातियों या पिछड़े वर्ग की कोटियों के सदस्यों को इतनी संख्या में मनोनीत कर सकती है, जितना वह उचित समझे।
3.लोक सभा के सभी सदस्यगण जो उस जिला का सम्पूर्ण या किसी हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हो, राज्य सभा के सभी सदस्यगण जो उस जिला में निर्वाचक के रूप में निबंधित हो, राज्य विधान सभा के सभी सदस्य जिनका क्षेत्र उस जिला के अन्तर्गत पड़ता हो, राज्य विधान परिषद के सदस्य गण जो उस जिला में निर्वाचक के रूप में निबंधित हो तथा जिला दंडाधिकारी और अध्यक्ष जिला सहकारी बैंक/भूमि विकास बैंक, समिति के स्थायी आमंत्रित सदस्य होगें।
4. मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी समिति का सचिव होगा।
5. जिला परिषद का अध्यक्ष जिला योजना समिति का सभापति होगा।
6. जिला योजना समिति जिला में पंचायतों तथा नगर पालिकाओं द्वारा तैयार की गई योजनाओं का समेकन करेगी और पूरे जिला के लिए विकास योजना प्रारूप बनाएगी।
7.प्रत्येक जिला योजना समिति विकास योजना प्रारूप तैयार करते समय:-
(क) निम्नलिखित बातों का ध्यान रखेगी
(i) जिले में जिला परिषद, पंचायत समितियों, ग्राम पंचायतों, नगर पंचायतों, नगर परिषदों तथा नगर निगमों के परस्पर सामान्य हित के मामलों के साथ-साथ स्थानीय योजना, जल एवं अन्य भौतिक और प्राकृतिक साधन स्त्रोत में हिस्सेदारी,आधारभूत सरंचना का समेकित विकास एवं पर्यावरण संरक्षण।
(ii)उपलब्ध संसाधनों का विस्तार एवं प्रकार चाहे वह वित्तीय हो या अन्यथा
(ख) सरकार द्वारा यथा निर्दिष्ट संस्थाओं एवं संगठनों से परामर्श।
8. प्रत्येक जिला योजना समिति का अध्यक्ष ऐसी समिति द्वारा अनुषंसित विकास योजना को सरकार के पास अग्रसारित करेगा।
पंचायतों के लिए वित्त आयोग
सरकार अधिनियम के प्रारम्भ होने पर यथासंभव शीघ्र और इसके बाद हरेक पॉच वर्ष की समाप्ति पर जिला परिषदों,पंचायत समितियों और ग्राम पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करने तथा सरकार को वित्तीय मामलों यथा (कर शुल्क तथा फीस अनुदान आदि) में अनुषंसा देने के लिए वित्ता आयोग का गठन करेगी।
वित्त आयोग में अध्यक्ष और दो अन्य सदस्य होंगें। इस आयोग का उद्देष्य पंचायतों की वित्ताीय स्थिति की समीक्षा पंचायतों के आर्थिक सुदृढ़ीकरण करना है और राज्य सरकार को निम्नलिखित मुद्दों के संबंध में जरूरी उपायों की सिफारिष करना है। -
राज्य सरकार और पंचायतों में राज्य राजस्व के वितरण को नियंत्रित करने वाला सिद्धांत।
पंचायतों को कर, शुल्क एवम् फीस का अवधारण ताकि वे अपनी वित्ताीय शक्तियों के प्रयोग से संसाधन जनित कर सकें।
पंचायतों को सहाय्य अनुदान देने का सिद्धांत ।
पंचायतों की वित्तीय स्थिति बेहतर बनाने के लिए आवश्यक अन्य उपाय। | 570 |
1053722 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2%20%E0%A4%B8%E0%A5%87%20%E0%A4%AC%E0%A5%8C%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%20%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%81%E0%A4%93%E0%A4%82%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%A8 | नेपाल से बौद्ध भिक्षुओं का निर्वासन | नेपाल से बौद्ध भिक्षुओं का निर्वासन राणा वंश की नीतियों में सेन एक था जो उन्होंने बीसवीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में नेपाल में बड़ते धेरवाद बौद्ध धर्म को रोकने के लिए लागू की थीं। काठमांडू से दो भिक्षु निर्वासन हुए - पहला 1926 में और दूसरा 1944 में हुआ।
निर्वासित भिक्षुओं का समूह वे पहला भिक्षुओं का समूह था जिसे चौदहवीं शताब्दी के उपरांत नेपाल में देखा गया था। उन्होंने थेरवाद बौद्ध धर्म को लौटाने हेतु जंग छेड़ रखी थी जो पाँच सौ वर्ष से भी पहले देश से लुप्त हो चुका था। नेवार बौद्ध धर्म पारंपरिक वज्रयान बौद्ध धर्म पर आधारित है। थेरवादी राणा वंश ने नेवार धर्म और भाषा को ठुकरा दिया। उन्होंने भिक्षुओं को खतरे के रूप में देखा। जब राजकीय दंड भिक्षुओं को रोकने में असफल हो गए, उन्हें निर्वासित कर दिया गया।
उनको दिए गए दंडों में कुछ थे - उनका धर्म परिवर्तन करवा के उन्हें हिंदू बना देना, स्त्रियों को गृह-त्याग के लिए प्रेरित कर के पारिवारिक एकता को खंडित करना, नेवारी भाषा के लेखन और उसको बोलने पर रोक लगाना।
स्रोत | 179 |
839751 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3%20%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0 | गोविन्दनारायण मिश्र | गोविन्दनारायण मिश्र () हिन्दी साहित्यकार थे। सन् १९११ में सम्पन्न दूसरे हिन्दी साहित्य सम्मलेन के वे सभापति रहे।
इन्होने 'विभक्ति विचार' नामक पुस्तक की रचना की जिसमें इन्होंने हिन्दी की विभक्तियों को शुद्ध बताते हुए उन्हें मिलाकर लिखने की सलाह दी है। ये 'सारसुधानिधि' पत्र में सामयिक और साहित्यिक लेख लिखा करते थे।
गोविन्द नारायण मिश्र ने ऐसे वंश में जन्म लिया था जहाँ संस्कृत का विशेष प्रचार था। वे स्वयं भी संस्कृत के विद्वान थे। अतएव यह स्वाभाविक था कि वे हिन्दी गद्य-रचना करते समय संस्कृतगर्भित वाक्य-विन्यास की ओर झुकें।
हिन्दी साहित्यकार
भारतीय हिंदी साहित्यकार | 96 |
717645 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%AD%E0%A5%82%20%E0%A4%95%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE | मध्य भू कक्षा | मध्य भू कक्षा (Medium Earth orbit) (MEO), जिसे कभी कभी अंतरमाध्यमिक वृताकार कक्षा () भी कहते हैं, पृथ्वी के वायुमंडल में निम्न भू कक्षा से उपर और भू-स्थिर कक्षा से नीचे का क्षेत्र है जो कि लगभग () की ऊंचाई पर स्थित है।
इस क्षेत्र में घूम रहे उपग्रहोंं का मुख्य कार्य भ्रमण (नैवीगेशन), संचार और अंतरिक्षीय वायुमंडल का अध्धयन करना होता है। इस कक्षा में सबसे आम ऊँचाई लगभग ) की है जिससे १२ घंटों की कक्षीय अवधि बनती है। इस अवधि को जीपीएस के उपग्रहों द्वारा उपयोग होता है।
मध्य भू कक्षा में मौजूद अन्य प्रमुख उपग्रहों में हैं ग्लोनास (जिसकी ऊँचाई है ) और गैलिलियो (ऊँचाई: ) उपग्रह नक्षत्र।
उत्तर और दक्षिण ध्रुव तक संचार सुविधाएँ पहुँचाने वाले उपग्रहों को भी मध्य भू कक्षा में ही रखा गया है।
मिओ उपग्रहों की कक्षीय अवधि २ से २४ घंटों तक की हो सकती है।
इस कक्षा में बहुत सारे उपग्रह पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं।
इन्हें भी देखें
वातावरणीय पुन:प्रवेश
पलायन वेग
भू-स्थिर पृथ्वी कक्षा (जिओ)
उच्च भू कक्षा (हिओ)
अत्यंत दीर्घवृतीय कक्षा (highly elliptical orbit) (हिओ)
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन
कक्षाओं की सूची
निम्न भू कक्षा (लिओ)
उपग्रह फोन
उपकक्षीय अंतरिक्षयात्रा
टिप्पणियाँ
सन्दर्भ
पृथ्वी की कक्षाएँ | 199 |
1122157 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A3 | भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण | भारत में नदियों, नहरों, बैकवाटर और खाड़ियों के रूप में अंतर्देशीय जलमार्गों का एक व्यापक क्षेत्र है। जिसकी कुल लंबाई करीब 14,500 किमी है, जिसमें से लगभग 5200 किमी नदी और 4000 किमी नहरों का उपयोग जहाजों द्वारा किया जा सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ जैसे अन्य बड़े देशों और भौगोलिक क्षेत्रों में इसका उपयोग की तुलना में भारत में जलमार्ग द्वारा माल परिवहन का उपयोग बहुत कम है। भारत में कुल अंतर्देशीय यातायात का सिर्फ 0.1% अंतर्देशीय जलमार्ग द्वारा स्थानांतरित किया जाता है, संयुक्त राज्य अमेरिका के 21% की तुलना में। एक संगठित तरीके से कार्गो परिवहन केवल गोवा, पश्चिम बंगाल, असम और केरल में कुछ जलमार्गों तक ही सीमित है। भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आई डब्लू ए आई) भारत में जलमार्ग का प्रभारी वैधानिक प्राधिकरण है। यह भारत की संसद द्वारा आई डब्लू ए आई अधिनियम -1985 के तहत गठित किया गया था इसका मुख्यालय कोलकाता में स्थित है। यह इन जलमार्गों में आवश्यक बुनियादी ढांचे के निर्माण का कार्य करता है, और नई परियोजनाओं की आर्थिक संभाव्यता और प्रशासन का भी सर्वेक्षण करता है। 31 अगस्त 2018 को, आई डब्लू ए आई ने राष्ट्रीय जलमार्ग - 1 में गंगा नदी की जटिल आकृति विज्ञान, जल विज्ञान, तीव्र मोड़, धाराएं आदि को ध्यान में रखते हुए मॉल और यात्रियों के परिवहन के लिए 13 मानकीकृत अत्याधुनिक डिजाइन सार्वजनिक किए है जिनमे सर्वप्रथम वाराणसी-हल्दिया के बीच कार्यान्वित् होगा विश्व बैंक की सहायता और निवेश के द्वारा।
इतिहास
भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण भारत सरकार द्वारा जहाजरानी और नौपरिवहन के लिए अंतर्देशीय जलमार्गों के विकास और विनियमन के लिए 27 अक्टूबर 1986 को बनाया गया था। यह प्राधिकरण मुख्य रूप से शिपिंग, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय से प्राप्त अनुदान के माध्यम से राष्ट्रीय जलमार्ग पर अंतर्देशीय जलमार्ग टर्मिनल के बुनियादी ढांचे के विकास और रखरखाव के लिए परियोजनाएं बनाता है। इसका मुख्य कार्यालय नोएडा में स्थित है। इस प्राधिकरण के पटना, कोलकाता, गुवाहाटी और कोच्चि में अपने क्षेत्रीय कार्यालय और प्रयागराज, वाराणसी, भागलपुर, फरक्का और कोल्लम में उप-कार्यालय भी हैं।
वर्गीकरण और मानक
बजट
2010 तक, की राशि भारत के अंतर्देशीय जलमार्ग पर खर्च की गई थी।
कार्यकारी अधिकारी
अमिता प्रसाद प्राधिकरण की वर्तमान अध्यक्ष हैं।
राष्ट्रीय जलमार्ग
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा संकलित नौगम्य जलमार्ग पर उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर, 2015-16 तक राष्ट्रीय जलमार्ग के रूप में घोषित कुल 106 जल निकाय है जिनकी न्यूनतम लंबाई कम से कम थी। । इन्हें वित्तीय सार्थकता और स्थान के साथ-साथ स्थानों के आधार पर 8 समूहों में वर्गीकृत किया गया है। पहले चरण में, श्रेणी -1 के 8 राष्ट्रीय जल (NW) जिन्हें सबसे व्यवहार्य माना जाता है, विकसित किए जाएंगे। तटीय क्षेत्रों में 60 श्रेणी II एनडब्ल्यूएस हैं, जिनमें से ज्वारीय खिंचाव और सार्थकता रिपोर्ट इनमें से 54 के लिए है (6 चरण -1 में हैं) मई 2016 से वितरित किए जाएंगे
राष्ट्रीय जलमार्ग 1
गंगा-भागीरथी-हुगली नदी प्रणाली का इलाहाबाद-हल्दिया खंड।
स्थापित = अक्टूबर 1986
लंबाई = 1,620 किमी (1,010 मील)
फिक्स्ड टर्मिनल = हल्दिया, कोलकाता, पाकुड़, फरक्का और पटना।
फ्लोटिंग टर्मिनल = हल्दिया, कोलकाता, डायमंड हार्बर, कटवा, त्रिवेणी, बहरामपुर, जंगीपुर, भागलपुर, मुंगेर, सेमरिया, दोरीगंज, बलिया, गाजीपुर, चुनार, वाराणसी और प्रयागराज
कार्गो शुरुआत = 4 मिलियन टन
राष्ट्रीय जलमार्ग 2
सादिया - ब्रह्मपुत्र नदी की धुबरी खिंचाव
स्थापित = सितंबर 1988
लंबाई = 891 किमी (554 मील)
नियत पद = पांडु
फ्लोटिंग टर्मिनल = धुबरी, जोगीगोपा, तेजपुर, सिलघाट, डिब्रूगढ़, जामगुरी, बोगीबिल, साखोवा और सादिया
कार्गो शुरुआत = 2 मिलियन टन
राष्ट्रीय जलमार्ग 3
वेस्ट कोस्ट नहर, चंपकारा नहर और उद्योगमंडल नहर के कोझिकोड-कोल्लम खंड।
स्थापित = फरवरी 1993
लंबाई = 205 किमी (127 मील)
नियत टर्मिनलों = अलुवा, वैकोम, कयाकमुलम, कोट्टप्पुरम, मारडु, चेरथला, थ्रिक्कुन्नपुझा, कोल्लम और अलाप्पुझा
कार्गो शुरुआत = 1 मिलियन टन
राष्ट्रीय जलमार्ग 4
काकीनाड़ा-पुदुचेरी नहरों का फैलाव और कालूवेली टैंक, भद्राचलम - गोदावरी नदी का राजमुंद्री खंड और वजीराबाद - कृष्णा नदी का विजयवाड़ा खंड
स्थापित = नवंबर 2008
लंबाई = 1,095 किमी (680 मील)
राष्ट्रीय जलमार्ग 5
तालचेर-ब्राह्मणी नदी का धामरा खिंचाव, गोनखली - पूर्वी तट नहर का चारबतिया खंड, मताई नदी का चारबतिया-धामरा और मंगलगाड़ी - महानदी नदी डेल्टा का पारादीप खिंचाव
स्थापित = नवंबर 2008
लंबाई = 623 किमी (387 मील)
राष्ट्रीय जलमार्ग 6
असम में लखीपुर से बराक नदी के भांगा तक
स्थापित = 2016
लंबाई = 121 किमी (75 मील)
यह सभी देखें
सन्दर्भ
भारत में जल यातायात | 711 |
49572 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AA | पम्प | पम्प एक यांत्रिक युक्ति है जो गैसों व द्रवों को धकेलकर विस्थापित करने के काम आती है। दूसरे शब्दों में, पम्प तरल को कम दाब के स्थान से अधिक दाब के स्थान पर धकेलने का काम करता है।
पंप बहुत प्राचीन काल से ही निम्न धरातल पर भरे हुए, अथवा बहते हुए, पानी का उदंचन (पम्पिंग) कर ऊँचे धरातल पर लाने के लिए अनेक प्रकार के उपकरणों और साधनों का व्यवहार किया जाता रहा है। आधुनिक युग के विविध कार्यक्षेत्रों में नाना प्रकार के तरल पदार्थों का उदंचन करके उन्हें स्थानांतरित करने के लिए एक विशेष साधन का अनिवार्यत: उपयोग करना पड़ता है, जिसे पंप कहते हैं।
पम्प से सम्बन्धित शब्दावली
पंपों की प्राविधि मापें और परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं :
स्थैतिक चूषणोत्थापन (Static Suction Lift) - कोई पंप किसी द्रव को उसे प्राथमिक तल से जितना ऊँचा उठा सकता है वह ऊँचाई उस पंप का चूषणोत्थापन कहलाती है। यह द्रव के संग्रहस्थान में द्रव के ऊपरी तल से पंप के सिलिंडर की मध्य रेखा तक मानी जाती है।
चूषण शीर्ष (Suction Head) - जब पंप को उसके स्थैतिक चूषणोत्थापन के तल से नीचे लगाया जाता है, तब ऊपर बचे हुए उत्थापनांश के अनुपात से चूषण नल में तरल पदार्थ की जो कुछ दाब होगी वह चूषण शीर्ष कहलाती है।
स्थैतिक निकास शीरष (Static Delivery Head) - पंप के सिलिंडर की मध्य रेखा से निकास नल के खुले मुँह की ऊर्ध्वाधर दूरी को स्थैतिक निकास शीर्ष कहते हैं।
घर्षण शीर्ष (Friction Head) - तरल पदार्थ के निष्कासन से संबंध रखनेवाले पंपीय नलों में जो प्रवाहजनित धर्षण होता है, उसके प्रतिरोध समतुल्यशीर्ष को घर्षण शीर्ष कहते हैं।
वेगात्मक शीर्ष (Velocity Head) - निष्कासन नलों में तरल पदार्थ का प्रवाह बनाए रखने के लिए दबाव के रूप में जितने शीर्ष की आवश्यकता होती है उसे वेगात्मक शीर्ष कहते हैं।
संपूर्ण स्थैतिक शीर्ष (Total Static Head) - द्रव संग्राहक में द्रव के ऊपरी तल के निकास नल के मुँह तक की संपूर्ण ऊर्ध्वाधर दूरी को संपूर्ण स्थैतिक शीर्ष कहते हैं।
समग्र शीर्ष (Total Head) - चूषण द्वार और निकास द्वार पर होनेवाली दाबों का अंतर समग्र शीर्ष कहलाता है।
जब किसी पंप को लगाने की योजना बनाई जाती है तब उपर्युक्त सभी शीर्षों की मात्रा पर विचार करना आवश्यक हो जाता है।
प्रकार
Positive displacement pumps
Rotary positive displacement pumps
Reciprocating positive displacement pumps
Various positive displacement pumps-
Gear pump
Screw pump
Progressing cavity pump
Roots-type pumps
Peristaltic pump
Plunger pumps
Triplex-style plunger pumps
Compressed-air-powered double-diaphragm pumps
Rope pumps
Impulse pumps
Hydraulic ram pumps
Velocity pumps
Radial-flow pumps
Axial-flow pumps
Mixed-flow pumps
Eductor-jet pump
Gravity pumps
Steam pumps
sentrifugal pump (includes impellers)
'Valveless pumps
धनात्मक विस्थापन पम्प धनात्मक विस्थापन पंप' - धनात्मक विस्थापन पंप द्रव की एक निश्चित राशि को ग्रहण करके निर्वहन पाइप में विस्थापित करता है। कुछ धनात्मक विस्थापन पंप चूषण पक्ष पर एक विस्तार गुहा और निर्वहन तरफ घटते गुहा का उपयोग करते हैं। चूषण पक्ष पर गुहा विस्तारीत होने के कारण पंप में तरल प्रवाह करता है (कम दाब पर) और तरल बाहर गुहा से निकलता है जहा का गुहा का आकार कम होता है तथा दाब अधिक होता है। आपरेशन के प्रत्येक चक्र मे तरल कि दी गई मात्रा स्थिर होती है।
पंपों का अपक्रामण (Priming)
कोई भी द्रव पंप में तब तक स्वत: बहकर नीचे से ऊपर की ओर नहीं आ सकता, जब तक चूषण प्रणाली से हवा अथवा उस द्रव की वाष्प (vapour) को बाहर नहीं निकाल दिया जाता, जिससे भीतर का दाब बाहर की दाब से कम हो जाय। चालू किए जाने पर प्रत्यागामी पम्प और घूर्णी पंप स्वत: ऐसी परिस्थिति उत्पन्न कर देते हैं, किंतु अपकेंद्री पम्प ऐसा नहीं कर सकते। उनके लिए आवश्यक है कि उदंधित (पम्प) किया जानेवाला द्रव उनकी पहली पंखुड़ी तक भरा हो, तभी ये अपकेंद्री जल के द्वारा उस द्रव को गति प्रदान कर उसमें बहाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसी कारण उन्हें धनात्मक उद्वाह पर लगाना आवश्यक हो जाता है, लेकिन ऐसा करना व्यवहार में सदैव साध्य नहीं होता। अत: उनके चूषण नल में से हवा आदि को निकालकर निर्वात करने के लिए जिन प्रयुक्तियों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें अपक्रामण प्रयुक्ति कहते हैं। कई पंपों में इस प्रकार की प्रयुक्तियाँ उसी के मुख्य अंग में बनी होती हैं। इस कारण उन्हें स्वापक्रामण पंप कहते हैं। कई पंपों में ये अलग से लगाई जाती अथवा की जाती हैं। कई पंपों में तो यह काम वाष्पचालित वायुनिर्वातक से होता है और कई में यंत्रचालित निर्वातक पंप से किया जाता है, जो उसी पंप की मोटर से पट्टे द्वारा चलाया जाता है। इस प्रकार के निर्वातक का प्रयोग करते समय पंप की धुरी में कुछ अंतराल (clearance) रखा जाता है, क्योंकि जब तक चूषण प्रणाली की सारी हवा नहीं निकल जाती तब तक पंप के पखे को व्यर्थ ही सूखा चलना पड़ता है। ये यंत्र भी तीन प्रकार के होते हैं, प्रथम तो पिस्टनयुक्त प्रत्यागामी, दूसरे नियत क्रियांगी घूर्णनी प्रकार के (positive action rotary type), जो अलग पंखें के रूप में होते हैं और तीसरे घूर्णनी द्रव कुंडलीयुक्त, जिन्हें चालू करने के पहले उनकी कुंडली में थोड़ा पानी भरना होता है।
इतिहास
सबसे प्राचीन पम्प लगभग 300 ईसा पूर्व बना था, यह था आर्किमिडीज द्वारा निर्मित स्क्रू पम्प । यह पम्प आज भी निर्माताओं द्वारा उत्पादित किया जाता है।
यूनान के टेसिबिअस (Ctesibius ; 285-222 BC) ने दाब पम्प का आविष्कार किया जो सबसे सरल पिस्टन पम्प है। इसका उपयोग मुख्यतः जल-स्तम्भ बनाने और कुँओं से पानी निकालने के लिए किया जाता था। यह अब भी प्राचीन रोमन खण्डहरों में सुरक्क्षित है।
सन 1475 में इटली के पुनर्जागरण काल के इंजीनियर फ्रान्सेस्को डी जिओर्जिओ मार्तिनि ने अपने शोधपत्र में सेन्ट्रिफ्यूगल पम्प क मूल मॉडल प्रस्तुत किया।
छवि दीर्घा
इन्हें भी देखें
संपीडक या संपीडित्र (कम्प्रेसर)
बाहरी कड़ियाँ
www.lightmypump.com - Pump and pump system information
Australian Pump Technical Handbook, 3rd edition, 1987, Australian Pump Manufacturers' Association Ltd''
Publications of Europump and the Hydraulic Institute
www.pumpschool.com - Pump education devoted primarily to rotary positive displacement pumps
Fluid Handling Resource Center
पम्प
यांत्रिक प्रौद्योगिकी
यान्त्रिकी | 982 |
493648 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AC%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE | जबड़ा | जबड़ा या हनु (अंग्रेजी: jaw, जॉ) किसी प्राणी के मुँह के प्रवेश-क्षेत्र पर स्थित उस ढाँचे को बोलते हैं जो मुंह को खोलता और बंद करता है और जिसके प्रयोग से खाने को मुख द्वारा पकड़ा जाता है तथा (कुछ जानवरों में) चबाया जाता है। मानव समेत बहुत से अन्य जानवरों में जबड़े के दो हिस्से होते हैं जो एक दूसरे से चूल (हिन्ज) के ज़रिये जुड़े होते हैं जिसके प्रयोग से जबड़ा ऊपर-नीचे होकर मुख खोलता है या बंद करता है। ऐसे प्राणियों में खाद्य सामग्री चबाने या चीरने के लिए जबड़ों में अक्सर दांत लगे होते हैं। इसके विपरीत बहुत से कीटों के जबड़े मुख के दाई-बाई तरफ़ लगे दो छोटे शाखनुमा अंग होते हैं जो चिमटे की तरह खाना पकड़कर उनके मुख तक ले जाते हैं।
हनु के दो अर्थ
ध्यान दें कि संस्कृत का 'हनु' शब्द 'जबड़े' के साथ-साथ कुछ सन्दर्भों में 'गाल' का अर्थ भी रखता है। इसी शब्द से हनुमान का नाम उत्पन्न हुआ है और इसका अर्थ है 'टूटे/घाव-लगे जबड़े वाले'। कथानुसार जब हनुमान ने सूरज पकड़ लिया था तो इन्द्र ने उनके गाल पर वज्र दे मारा था।
जबड़ों का क्रम-विकास
अतिप्राचीनकाल में जानवरों के जबड़े नहीं थे। लैमप्री जैसी कुछ रूढ़ीरूप मछलियों में अब भी जबड़े नहीं होते, लेकिन लैमप्रियों के मुंह के अन्दर उपास्थि (कार्टिलेज) के कुछ चाप (आर्च) होते हैं जो उनके क्लोम (गिल) को ढाँचीय सहारा देते हैं। माना जाता है कि आज से लगभग ४० करोड़ साल पूर्व यही ढाँचे क्रम विकसित (ईवॉल्व) होकर विश्व के पहले जबड़े बन गए।
कुछ जबड़ों की तस्वीरें
इन्हें भी देखें
दांत
मुख
सन्दर्भ
अंग
मानव शरीर
दंत विज्ञान | 268 |
42963 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%AF%E0%A4%9A%E0%A4%B0%E0%A4%A3%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%20%E0%A4%AD%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A6 | अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद | अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (1 सितम्बर 1896 – 14 नवम्बर 1977) जिन्हें स्वामी श्रील भक्तिवेदांत प्रभुपाद के नाम से भी जाना जाता है,सनातन हिन्दू धर्म के एक प्रसिद्ध गौडीय वैष्णव गुरु तथा धर्मप्रचारक थे। आज संपूर्ण विश्व की हिन्दू धर्म भगवान श्री कृष्ण और श्रीमदभगवतगीता में जो आस्था है आज समस्त विश्व के करोडों लोग जो सनातन धर्म के अनुयायी बने हैं उसका श्रेय जाता है अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद को, इन्होंने वेदान्त कृष्ण-भक्ति और इससे संबंधित क्षेत्रों पर शुद्ध कृष्ण भक्ति के प्रवर्तक श्री ब्रह्म-मध्व-गौड़ीय संप्रदाय के पूर्वाचार्यों की टीकाओं के प्रचार प्रसार और कृष्णभावना को पश्चिमी जगत में पहुँचाने का काम किया। ये भक्तिसिद्धांत ठाकुर सरस्वती के शिष्य थे जिन्होंने इनको अंग्रेज़ी भाषा के माध्यम से वैदिक ज्ञान के प्रसार के लिए प्रेरित और उत्साहित किया। इन्होंने इस्कॉन (ISKCON) की स्थापना की और कई वैष्णव धार्मिक ग्रंथों का प्रकाशन और संपादन स्वयं किया।
इनका नाम "अभयचरण डे" था और इनका जन्मकलकत्ता में बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था । सन् १९२२ में कलकत्ता में अपने गुरुदेव श्री भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर से मिलने के बाद उन्होंने श्रीमद्भग्वद्गीता पर एक टिप्पणी लिखी, गौड़ीय मठ के कार्य में सहयोग दिया तथा १९४४ में बिना किसी की सहायता के एक अंगरेजी आरंभ की जिसके संपादन, टंकण और परिशोधन (यानि प्रूफ रीडिंग) का काम स्वयं किया। निःशुल्क प्रतियाँ बेचकर भी इसके प्रकाशन क जारी रखा। सन् १९४७ में गौड़ीय वैष्णव समाज ने इन्हें भक्तिवेदान्त की उपाधि से सम्मानित किया, क्योंकि इन्होंने सहज भक्ति के द्वारा वेदान्त को सरलता से हृदयंगम करने का एक परंपरागत मार्ग पुनः प्रतिस्थापित किया, जो भुलाया जा चुका था।
सन् १९५९ में सन्यास ग्रहण के बाद उन्होंने वृंदावन में श्रीमदभागवतपुराण का अनेक खंडों में अंग्रेजी में अनुवाद किया। आरंभिक तीन खंड प्रकाशित करने के बाद सन् १९६५ में अपने गुरुदेव के अनुष्ठान को संपन्न करने वे ७० वर्ष की आयु में बिना धन या किसी सहायता के अमेरिका जाने के लिए निकले जहाँ सन् १९६६ में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ की स्थापना की। सन् १९६८ में प्रयोग के तौर पर वर्जीनिया (अमेरिका) की पहाड़ियों में नव-वृन्दावन की स्थापना की। दो हज़ार एकड़ के इस समृद्ध कृषि क्षेत्र से प्रभावित होकर उनके शिष्यों ने अन्य जगहों पर भी ऐसे समुदायों की स्थापना की। १९७२ में टेक्सस के डैलस में गुरुकुल की स्थापना कर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की वैदिक प्रणाली का सूत्रपात किया।
सन १९६६ से १९७७ तक उन्होंने विश्वभर का १४ बार भ्रमण किया तथा अनेक विद्वानों से कृष्णभक्ति के विषय में वार्तालाप करके उन्हें यह समझाया की कैसे कृष्णभावना ही जीव की वास्तविक भावना है। उन्होंने विश्व की सबसे बड़ी आध्यात्मिक पुस्तकों की प्रकाशन संस्था- भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट- की स्थापना भी की। कृष्णभावना के वैज्ञानिक आधार को स्थापित करने के लिए उन्होंने भक्तिवेदांत इंस्टिट्यूट की भी स्थापना की।
पुस्तकें और प्रकाशन
भक्तिवेदांत स्वामी का सबसे महत्वपूर्ण योगदान उनकी पुस्तकें हैं। भक्तिवेदांत स्वामी ने 60 से अधिक संस्करणों का अनुवाद किया। वैदिक शास्त्रों - भगवद गीता, चैतन्य चरितामृत और श्रीमद्भागवतम् - का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया । इन पुस्तकों का अनुवाद ८० से अधिक भाषाओँ में हो चूका है और दुनिया भर में इन पुस्तकों का वितरण हो रहा है । wsnl के अनुसार - अब तक 55 करोड़ से अधिक वैदिक साहित्यों का वितरण हो चुका है ।
भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट की स्थापना 1972 में उनके कार्यों को प्रकाशित करने के लिए की गई थी।
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
बाहरी कड़ियाँ
इस्कॉन की आधिकारिक वेबसाइट
प्रभुपाद जी की आधिकारिक वेबसाइट
भक्ति वेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद (वेबदुनिया)
व्यक्ति जिसने जीत ली दुनिया प्रेम से
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
हिन्दू धार्मिक व्यक्तित्व
इस्कॉन
हिन्दू गुरु
१९७७ में निधन
1896 में जन्मे लोग | 595 |
83736 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B2%20%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE | बाल पत्रकारिता | बाल पत्रकारिता की सुदीर्घ परम्परा को एक आलेख में समेटना निश्चय ही अंजलि में समुद्र भर लेने के समान है। बाल साहित्य की अनेक पत्रिकाएँ विगत पचास वर्षों में प्रकाशित हुई हैं। इन प्रकात्रिओं का सही-सही विवरण दे पाना एक दुरूह कार्य है। बाल साहित्य की पत्रिकाओं में कुछ पत्रिकाएँ तो लम्बे समय से प्रकाशित हो रही हें, परन्तु अधिकतर पत्रिकाएँ काल-कविलत हो गईं। उनके पुराने अंक खोजना कठिन ही नहीं, असम्भव-सा कार्य है। फिर भी जिन पत्रिकाओं का विवरण उपलब्ध हो सका है, उन्हें इस आलेख में समाहित किया जा रहा है।
बाल पत्रकारिता का इतिहास
बाल पत्रकारिता का औपचारिक प्रारम्भ भारतेन्दु काल से माना जा सकता है। 1882 में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की विशेष प्रेरणा से 'बाल दपर्ण' पत्रिका का इलाहाबाद से प्रकाशन हुआ। इसके बाद भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने 'बाला बोधिनी' पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इन पत्रिकाओं में नैतिक मूल्यों को केन्द्र में रखकार उपदेशात्मक बाल साहित्य प्रकाशित हुआ। इन आरम्भिक बाल पत्रिकाओं के बाद निरन्तर बाल साहित्य की पत्रिकाएँ प्रकाशित होती रहीं। 1891 में लखनऊ से 'बाल हितकर' पत्रिका प्रकाशित हुई। 1906 में अलीगढ़ से 'छात्र हितैषी' पत्रिका प्रकाशित हुई। इसी वर्ष 1906 में ही बनारस से 'बाल प्रभाकर' पत्रिका का प्रकाशन हुआ। 1910 में इलाहाबाद से 'विद्यार्थी' पत्रिका प्रकाशित हुई। 1912 में 'मानीटर' पत्रिका नरसिंहपुर से प्रकाशित हुई।
बाल पत्रिकारिता के क्षेत्र में नए युग का प्रारम्भ
बाल पत्रिकारिता के क्षेत्र में नए युग का प्रारम्भ 'शिशु' पत्रिका से हुआ। १९१४-१५ में 'शिशु' पत्रिका के प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। इसके संपादन पं.सुदर्शनाचार्य थे। 'शिशु' पत्रिका के प्रकाशन के कुछ समय उपरान्त एक ऑर उत्कृष्ट पत्रिका ने बाल साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण किया। इस पत्रिका ने बाल साहित्य के क्षेत्र में क्रांति ला दी। १९१७ में बंगालियों की प्राइवेट लिमिटेड संस्था 'इंडियन प्रेस' ने 'बालसखा' पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इसके संपादक पं.बदरीनाथ भट्ट थे। द्विवेदी युग की यह पत्रिका सर्वाधिक लोकप्रिय रही। 'बालसखा' सबसे अधिक समय अर्थात् ५३ वर्ष तक प्रकाशित होती रही। इस पत्रिका ने बाल पाठकों को बहुत प्रभावित किया तथा बाल साहित्यकारों की अच्छी-खासी संख्या तैयार की। इसी प्रकाशन प्रारम्भ किया श्रृंखला में १९२० में जबलपुर से 'छात्र सहोदर' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। १९२४ में दिल्ली से माधव जी के संपादन में 'वीर बालक' का प्रकाशन हुआ। पटना से १९२६ में आचार्य रामलोचन शरण के संपादन में 'बालक' पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। १९२७ में पं.रामजी लाल शर्मा के संपादन में इलाहाबाद से 'खिलौना' पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ।
इलाहबाद से ही 1913 में 'चमचम' का प्रकाशन हुआ। इसके संपादक थे 'विश्व प्रकाश' १९३१ में एक और पत्रिका इलाहाबाद से प्रकाशित हुई, जो आगे चलकर बाल साहित्य के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुई। यह पत्रिका थी पं.रामनरेश त्रिपाठी के संपादकत्व में प्रकाशित 'वानर' पत्रिका। पं.रामनरेश त्रिपाठी के श्रेष्ठ बालगीत इस पत्रिका के माध्यम से ही बाल पाठकों तक पहुँचकर लोकप्रिय बने। १९३२ में कालाकांकर से कुँवर सुरेश सिंह से संपादन में 'कुमार' पत्रिका का प्रकाशन हुआ। इलाहबाद से १९३४ में 'अक्षय भैया' का प्रकाशन हुआ। रमाशंकर जैतली के संपादन में मुरादाबाद से १९३६ में 'बाल विनोद' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। १९३८ में पं.राम दहिन मिश्र से संपादन में पटना से 'किशोर' पत्रिका का प्रकाशन हुआ। १९४४ में प्रेम नारायण टण्डन से संपादन में लखनऊ से 'होनहार' पत्रिका का प्रकाशन हुआ। १९४६ में व्यथित हृदय से संपादन में इलाहबाद से 'तितली' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। १९४६ में ही इलाहाबाद से ठाकुर श्रीनाथ सिंह के संपादन में 'बालबोध' पत्रिका का प्रकाशन हुआ।
स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले प्रकाशित इन पत्रिकाओं ने बाल पत्रकारिता में अपना स्थान बना लिया था। पत्रिकाओं ही संख्या निरन्तर बढ़ती गई। कुछ बन्द हुईं, तो कुछ नई पत्रिकाएँ भी प्रकाशित होती रहीं। इन पत्रिकाओं में कहानी, बालगीत, नैतिक कहानियाँ और हास्य की कहानियाँ प्रमुखता से प्रकाशित होती थीं। लोक जीवन में प्रचलित बाल गीत, बाल कथाएँ आदि भी इन पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित होती रहीं। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व तक बाल साहित्य के प्रकाशन की स्थिति संतोषजनक कही जा सकती है। इस समय तक बाल साहित्य की लगभग तीस मुद्रित पत्रिकाएँ प्रकाशित हो रही थी तथा सोलह हस्तलिखत पत्रिकाएँ प्रकाशित होती थीं।
१९४७ में देश स्वतंत्र हुआ। व्यवस्था परिवर्तित हुई। ऐसे में साहित्य के क्षेत्र में भी एक मोड़ आया। बाल साहित्य में देश प्रेम, खुशी ओर उल्लास से लबालब साहित्य पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगा भारत सरकार के प्रकाशन विभाग ने स्वतंत्रता प्राप्ति से 'बालभारत'का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। यह पत्रिका अद्यतन निरन्तर अत्यन्त लोकप्रिय बनी हुई है। १९४८ में पंजाब से 'प्रकाश' नामक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। १९४९ में दिल्ली से 'अमर कहानी' एवं इलाहाबाद से 'मनमोहन' पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ, परन्तु दुर्भाग्य से कुछ अंक निकल कर ये दोनों पत्रिकाएँ काल के गाल में समा गईं।
हिन्दी बाल पत्रकारिता के क्षेत्र में इसी समय एक महत्त्वपूर्ण घटना हुई, वह यह कि मद्रास से 'चन्दामामा' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। १९४८ में अहिन्दी भाषी क्षेत्र से अपना प्रकाशन प्रारम्भ करने वाली 'चन्दामामा' आज तक निरन्तर प्रकाशित होती चली आई है। यह पत्रिका समूचे देश में अत्यन्त लोकप्रिय है। पटना से 'चुन्नू मुन्नू' पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ और यह भी अपने समय में लोकप्रिय पत्रिका बनी रही। १९५१ में प्रो॰लेखराज उल्फत के संपादन में देहरादून से 'नन्हीं दुनिया' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। लखनऊ से एस.एम. शमीम अनहोनवी से संपादन में 'कलियाँ' पत्रिका निकलनी प्रारम्भ हुई। १९५५ में दिल्ली से लक्ष्मी चन्द्र टी. रूप चंदानी के संपादन में 'बाल मित्र' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। इसी कालावधि में 'वानर' पत्रिका का प्रकाशन जयपुर से प्रारम्भ हुआ।
१९५७ में तस्र्णभाई के संपादन में 'जीवन शिक्षा' पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। इसी वर्ष दिल्ली से 'स्वतंत्र बालक'का प्रकाशन यत्न प्रकाशशील के संपादन में प्रारम्भ हुआ। ये पत्रिकाएँ बाल पाठकों के बीच अपनी खास पहचान नहीं बना सकीं। १९५८ में दिल्ली से 'पराग' पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। इस पत्रिका ने अति शीघ्र बाल पाठकों एवं बाल साहित्य के पाठकों के बीच अपनी पहचान बना ली। लम्बे समय तक अच्छी प्रसार संख्या होने के बावजूद भी पराग का प्रकाशन बन्द हो गया।
लुधियाना से सन्तराम के संपादन में १९५८ में 'शोभा' पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। १९५८ में ही उमेश मल्होत्रा के संपादन में जालंधर सिटी से 'नन्हें-मुन्ने' पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। वाराणसी से राजकुमार वाही के संपादन में १९५८ में 'राजा बेटा' का प्रकाशन शुरू हुआ। इसी वर्ष मुरादाबाद से शांति प्रसाद दीक्षित के संपादन में 'बालबंधु' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। १९५९ में 'मीनू-टीनू' पत्रिका रमाकान्त पाण्डेय के संपादन में चक्रधर (बिहार) से निकली। दयाशंकर मिश्र 'दद्दा' ने दिल्ली से 'राजा भैया' पत्रिका निकाली। अमृतसर से गुस्र्चरण सिंह साखी से संपादन में 'बाल फुलवारी' का प्रकाशन हुआ।
१९६० में भगवानदास दत्ता से संपादन में करनाल से 'बाल जीवन' का प्रकाशन हुआ। श्रीमती सुमन एवं जे.एन. वर्मा से संपादन में 'हमारा शिशु' पत्रिका निकाली। इसी वर्ष भोलानाथ पुस्र्षोत्तम सरन के संपादन में आजमगढ़ से 'विश्व बाल कल्याण' पत्रिका का प्रकाशन हुआ। ये पत्रिकाएँ बाल साहित्य के पाठकों में अधिक लोकप्रिय नहीं हुइंर्। बाल पत्रिकाओं के प्रकाशन ही संख्या निरन्तर बढ़ती रही। साथ-ही-साथ अनेकानेक पत्रिकाएँ बन्द भी होती रहीं। कुछ पत्रिकाएँ तो अपने केवल प्रवेशांक ही प्रकाशित कर पायीं। अलीगढ़ से सन २००९ से प्रकाशित होने वाली त्रैमासिक पत्रिका ' अभिनव बालमन' बच्चों की रचनाओं को प्रमुखता से प्रकाशित करती है. अब तक लगभग शताधिक बाल रचनाकार इस पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं. K
प्रमुख बाल पत्रिकाएँ
प्रमुख बाल पत्रिकाएँ
१९६० के उपरान्त प्रकाशित हुई बाल पत्रिकाओं में प्रमुख इस प्रकार र्हैं:
फुलवारी (१९६१)
बाल लोक (१९६१)
बाल दुनिया (१९६१)
बेसिक बाल शिक्षा (१९६१)
बाल वाटिका (१९६२)
रानी बिटिया (१९६२)
शेरसखा (१९६३,
'नन्दन (१९६४)
मिलिन्द (१९६४)
जगंल (१९६५)
बाल प्रभात (१९६६)
चमकते (१९६६)
सितारे (१९६६)
शिशु बन्धु (१९६७)
बाल जगत (१९६७)
बच्चों का अख़बार (१९६७)
बालकुंज (१९६८)
चंपक (१९६८)
लइखँर्थ्ीद्ध (१९६७)
र्थ्ी्कुंझ्र् (१९६८)
ज्ंंत्त्क (१९६८)
् पोट (१९६९)
नटखट (१९६९)
चन्द्र खिलौना (१९६९)
बाल रंग भूमि (१९७०)
मुन्ना (१९७०)
गोल गप्पा (१९७०)
नगराम (१९७२)
बच्चे और हम (१९७२)
चमाचम (१९७२)
गुरु चेला (१९७३)
हँसती दुनिया (१९७३)
गुड़िया (१९७३)
किशोर (१९७३)
मिलन्द (१९७३)
बाल बन्धु (१९७३)
प्यारा बुलबुल (१९७४)
लल्लू पंजू (१९७५)
शावक (१९७५)
बालेश (१९७५)
बाल रुचि (१९७५)
देवछाया (१९७५)
बाल दर्शन (१९७५)
शिशुरंग (१९७७)
कलरव (१९७७)
आदर्श बाल सखा (१९७७)
ओ राजा (१९७७)
बाल साहित्य समीक्षा (१९७७)
बाल पताका (१९७८)
मुसकराते फूल (१९७८)
बालकल्पना (१९७९)
मेला (१९७९)
देव पुत्र (१९७९)
राकेट (१९८०)
बालमन (१९८०)
बाल रत्न (१९८०)
कुटकुट (१९८१)
नन्हें तारे (१९८१)
नन्हीं मुस्कान (१९८१)
नन्हें मुन्नों का अखबार (१९८१)
द चिल्ड्रन टाइम्स (१९८१)
आनन्द दीप (१९८२)
बाल नगर (१९८२)
चन्दन (१९८२)
लल्लू जगधर (१९८२)
सुमन सौरभ (१९८३)
किलकारी (१९८५)
उपवन (१९८५)
चकमक (१९८५)
बाल कविता (१९८५)
अच्छे भैया१९८६)
नये फूल धरती के (१९८६)
बालहंस (१९८६)
बालमंच (१९८७)
नन्हें सम्राट (१९८८)
किशोर लेखनी (१९८८)
बाल मेला (१९८९)
बाल विवेक (१९८९)
समझ झरोखा (१९८९)
यू.पी.नन्हा समाचार (१९८९)
हिमांक रतन (१९७७)
बाल मिलाप (१९९८)
बाल प्रतिबिम्ब (२००३)
अभिनव बालमन ( 2009)
बाल प्रभा (2012)
बाल युग (2014)
बाल विशेषांक
बाल-पत्रकारिता के क्षेत्र में अद्यतन प्रकाशित होते रहकर अपनी पहचान जिन पत्रिकाओं ने बनाई है, उनमें प्रमुख र्हैं बाल भारती, बालहंस, नदंन, चपंक, चन्द्रामामा, बाल युग,बाल वाणी, बाल वाटिका, देवपुत्र, स्नेह, बाल मीतान, बच्चों का देश, जन संप्लव, हँसती दुनिया, बालमित्र आदि। बाल पत्रकारिता के क्षेत्र में उन साहित्यिक पत्रिकाओं के अवदान को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता, जिन्होंने बाल साहित्य के विशेषांक प्रकाशित किए हैं। समय-समय पर प्रकाशित विभिन्न पत्रिकाओं के विशेषांकों ने बाल साहित्यकारों को दिशा निर्देश तो दिया ही, साथ ही उनके द्वारा गए विगत काल के बाल साहित्य का समीक्षात्मक मूल्यांकन भी किया।
इन पत्रिकाओं के बाल साहित्य विशेषांकों का यथा उपल्बध विवरण इस प्रकार र्है:
परिकल्पना(बिहार) ने वर्ष १९६३, १९७३ एवं १९७५ में बाल विशेषांक प्रकाशित किए।
मधुमती (उदयपुर, राजस्थान) १९६७
पुस्तक परिचय (१९७०)
आजकल (दिल्ली, १९७९); 'आजकल' का नवम्बर माह का अंक प्राय: बाल साहित्य पर केन्द्रित अंक रहता है।
भाषा (१९७९)
योजना (१९७९)
हिन्दी प्रकाशक (१९७९)
ताम्रपर्णी (१९७९)
उत्तर प्रदेश (१९७९)
स्वतंत्र भारत सुमन (१९७९)
संगीत (१९८१)
केशव प्रयास (१९८२)
दृष्टि कोण (१९८५)
रस सुलभ (१९८७)
अभ्यन्तर (१९९१)
भारतीय आधुनिक शिक्षा (१९९१)
यू.एस.एम. पत्रिका ((१९९१), ९२), ९३), ९४), ९५), ९६), ९७), ९८)
अवध पुष्पांजलि (१९९४)
जगमग दीप ज्योति (१९९४)
प्रज्ञा (१९९६)
आकार'' (१९९९)
साहित्यिक पत्रिकाओं तथा देनिक समाचार पत्रों के बाल विशेषांक
इन विशेषंकों के अतिरिक्त समय-समय पर साहित्यिक पत्रिकाएँ बाल साहित्य पर केन्द्रित लेखों को प्रकाशित करती रहती हैं। 'कादंबिनी', 'नवनीत', 'हरिगंधा', 'पंजाब सौरभ', 'समकालीन भारतीय साहित्य', 'मधुमती', 'उत्तर प्रदेश' आजकल आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों में बाल साहित्य पर विभिन्न कोणों से विचार किया गया है। 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' पत्रिका अपने समय में बाल साहित्य पर अच्छी सामग्री प्रकाशित करती रही है।
बाल पत्रकारिता के क्षेत्र में दैनिक समाचार पत्रों के साप्ताहिक परिशिष्टों में बाल-साहित्य प्रकाशित कर रहे हैं। बाल पाठक इन अंकों की प्रतीक्षा करते रहते हैं। ऐसे समाचार पत्रों र्में 'अमर उजाला', 'आज', 'दैनिक जागरण', 'राष्ट्रीय सहारा', 'जनसत्ता', 'डेली मिलाप', 'स्वंतत्र भारत', 'नवभारत टाइम्स', 'दैनिक नवज्योति', 'राजस्थान पत्रिका', 'हिन्दुस्तान', 'दक्षिण समाचार', 'नई दुनिया', आदि प्रमुख हैं।
बाल साहित्य की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन वर्ष एवं उनके नामोल्लेख करने के उपरान्त विगत वर्षों में प्रकाशित होते रहे बाल साहित्य के प्रमुख काव्यांशों को उद्धत करना प्र्रासंगिक प्रतीत हो रहा है, क्योंकि समय-समय पर प्रकाशित बाल साहित्य के इन अंशों से यह सहज अनुमान लगाना संभव हो सकेगा कि बाल साहित्यकारों ने बालमन की संवेदनाओं को कहाँ तक समझा है।
बाहरी कड़ियाँ
बाल पत्रिकाओं की भूमिका और दायित्व
पत्रकारिता
बचपन | 1,835 |
1366297 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%85%E0%A4%B2-%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B9 | लीना अल-तरावनेह | लीना नायल अल-तरावनेह (अरबी: لينا نايل الطراون) एक जॉर्डन-कतर जलवायु कार्यकर्ता है।
गतिविधि
लीना अल-तरावनेह की जॉर्डन की राष्ट्रीयता है लेकिन उनका जन्म कतर में हुआ था। वह दोहा में रहती थी और कतर विश्वविद्यालय में "चिकित्सा" का अध्ययन करती थी। 2015 में, उसने और उसके माता-पिता ने दोहा से लगभग 50 किलोमीटर उत्तर में अल खोर द्वीप (जिसे पर्पल द्वीप भी कहा जाता है) की यात्रा की। वहां उन्होंने पहली बार मैंग्रोव देखे। उसे सुंदर क्षेत्र से प्यार हो गया। उन्होंने पाया कि कतर में बहुत कम लोग इस क्षेत्र को जानते हैं। उन्होंने यह भी देखा कि आसपास काफी कूड़ा पड़ा हुआ था। इसलिए, उन्होंने इसके बारे में कुछ करने का फैसला किया। अक्टूबर 2016 में, अल-तरावनेह ने आवेदन किया और "हार्वर्ड सोशल इनोवेशन कोलैबोरेटिव ग्लोबल ट्रेलब्लेज़र" नामक एक प्रतियोगिता जीती। इस आयोजन ने दुनिया भर के पांच युवा उद्यमियों को हार्वर्ड विश्वविद्यालय में वार्षिक "इग्निटिंग इनोवेशन समिट ऑन सोशल एंटरप्रेन्योरशिप" में अपने विचार प्रस्तुत करने का अवसर दिया। अपनी बड़ी बहन दीना के साथ, उन्होंने 2017 में एनजीओ "ग्रीन मैंग्रोव्स" की स्थापना की। 2017 में फोर्ड मोटर कंपनी से 15,000 डॉलर का अनुदान प्राप्त करने के बाद, उन्होंने एनजीओ में निवेश किया। यह कश्ती की खरीद के माध्यम से था। संघ कूड़े को साफ करने के उद्देश्य से कश्ती यात्राओं का आयोजन करता है।
सन्दर्भ | 218 |
838 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%9F%E0%A5%81%E0%A4%A1%E0%A5%87 | इण्डिया टुडे | इंडिया टुडे एक भारतीय पत्रिका है। यह पत्रिका अंग्रेज़ी ओर हिंदी दोनों भाषाओं में प्रकाशित होती है।
इतिहास
इंडिया टुडे की स्थापना 1975 में विद्या विलास पुरी (थॉम्पसन प्रेस के मालिक) द्वारा की गई थी, जिसमें उनकी बेटी मधु त्रेहन संपादक और उनके बेटे अरुण पुरी इसके प्रकाशक थे। . वर्तमान में, इंडिया टुडे हिंदी , तमिल , मलयालम और तेलुगु में भी प्रकाशित होता है। इंडिया टुडे न्यूज चैनल 22 मई 2015 को लॉन्च किया गया था।
अक्टूबर 2017 में, अरुण पुरी ने इंडिया टुडे ग्रुप का नियंत्रण अपनी बेटी, कली पुरी को सौंप दिया।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
हिन्दी पत्रिकाएँ
अंग्रेजी पत्रिकाएँ
पत्रिकाएँ | 104 |
445739 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C | बद्री महराज | बद्री महराज (१८६८ -) भारत से फिजी ले जाये गये एक किसान, राजनेता तथा मानवतावादी व्यक्ति थे। वे फिजी की विधान समिति (लेजिस्लेटिव काउंसिल) के दो बार नामित सदस्य रहे (१९१६ से १९२३ तक ; १९२६ से १९२९ तक) किन्तु वे फिजी के भारतीयों के पहली पसन्द नहीं थे बल्कि मनिलाल डाक्टर नामक एक वकील को पसन्द करते थे। वे एक सिद्धान्तवादी व्यक्ति थे जिन्होने फिजी के भारतीयों पर 'पोल टैक्स' लगाये जाने को अनुचित मानते हुए इसके विरोधस्वरूप विधान समिति की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। वे कुछ मामलों में अपने समय से भी आगे थे। उन्होने भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था 'पंचायत' को लागू किये जाने का प्रस्ताव रखा, बाल विवाह का विरोध किया तथा शिक्षा के प्रसार पर बल दिया।
वे आर्यसमाजी थे।
जीवन परिचय
उनका जन्म 1868 में भारत के उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ के निकट बमोली गाँव में हुआ था। वे सन् 1889 में श्रमिक के रूप में फिजी लाये गये थे। अपने परिश्रम के बल पर वे एक सफल किसान बन गये।
सन्दर्भ
फिजी के प्रवास पर गये भारतीय
फीजी के विधान समिति के भारतीय सदस्य | 179 |
1228650 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A5 | सिल्विया प्लाथ | सिल्विया प्लाथ ( /p एल æ θ /, २७ अक्टूबर, १९३२ - ११ फरवरी, १९६३) एक अमेरिकी कवित्री, उपन्यासकार, और लघु-कथा लेखिका थी। उन्हें कबूल कविता की शैली को आगे बढ़ाने का श्रेय दिया जाता है और अपने दो प्रकाशित संग्रह, द कोलोसस एंड अदर पोयम्स और एरियल के साथ-साथ द बेल जार के लिए भी जाना जाता है, जो उनकी मृत्यु से कुछ समय पहले प्रकाशित एक अर्ध-आत्मकथात्मक उपन्यास है । १९८१ में द कलेक्टेड पोयम्स प्रकाशित हुए, जिनमें पहले अप्रकाशित कई रचनाएँ शामिल हैं। इस संग्रह के लिए प्लाथ को १९८२ में पोएट्री में मरणोपरांत पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिससे वह मरणोपरांत यह सम्मान पाने वाले पहले व्यक्ति बन गए।
बोस्टन, मैसाचुसेट्स में जन्मी प्लाथ ने मैसाचुसेट्स के स्मिथ कॉलेज और इंग्लैंड के कैम्ब्रिज में न्यून्हम कॉलेज में अध्ययन किया। उन्होंने 1956 में साथी कवि टेड ह्यूज से शादी की, और वे संयुक्त राज्य अमेरिका और फिर इंग्लैंड में एक साथ रहते थे। 1962 में अलग होने से पहले उनके दो बच्चे थे।
प्लाथ नैदानिक रूप से अपने अधिकांश वयस्क जीवन के लिए उदास थी और इलेक्ट्रोकोनवल्सी थेरेपी (ईसीटी) के साथ कई बार उनका इलाज किया गया। 1963 में आत्महत्या से उनकी मृत्यु हो गई।
जीवन और पेशा
प्रारंभिक जीवन
सिल्विया प्लाथ का जन्म 27 अक्टूबर, 1932 को बोस्टन, मैसाचुसेट्स में हुआ था। उनकी माँ, ऑरेलिया शोबर्ट प्लाथ (1906-1994), ऑस्ट्रियाई मूल की दूसरी पीढ़ी की अमेरिकी थी, और उनके पिता, ओटो प्लाथ (1885-1940), ग्रैबो, जर्मनी से थे। प्लाथ के पिता बॉस्टन विश्वविद्यालय में एक एंटोमोलॉजिस्ट और जीव विज्ञान के प्रोफेसर थे जिन्होंने भौंरा के बारे में एक पुस्तक लिखी थी।
27 अप्रैल, 1935 को प्लाथ के भाई वारेन का जन्म हुआ, और 1936 में परिवार 24 प्रिंस स्ट्रीट से जमैका प्लेन, मैसाचुसेट्स में 92 जॉनसन एवेन्यू, विन्थ्रोप, मैसाचुसेट्स चले गये। प्लाथ की माँ, ऑरेलिया, विन्थ्रोप में पली-बढ़ी थी, और उनके नाना-नानी,द स्कोबर्स, शहर के एक हिस्से में पॉइंट शिरले नामक स्थान पर रहते थे, जो कि प्लाथ की कविता में उल्लेखित स्थान है। विन्थ्रोप में रहते हुए, आठ वर्षीय प्लाथ ने बोस्टन हेराल्ड के बच्चों के खंड में अपनी पहली कविता प्रकाशित की। अगले कुछ वर्षों में, प्लाथ ने क्षेत्रीय पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में कई कविताएँ प्रकाशित कीं। 11 साल की उम्र में, प्लाथ ने एक पत्रिका रखना शुरू कर दिया। लेखन के अलावा, उन्होंने एक कला मे भी रूचि दिखाई और 1947 में स्कोलास्टिक आर्ट एंड राइटिंग अवार्ड्स से अपनी पेंटिंग के लिए एक पुरस्कार जीता । "अपनी युवावस्था में भी, प्लाथ को महत्वाकांक्षी रूप से सफल होने के लिए प्रेरित किया गया था"। प्लाथ में भी लगभग 160 का आईक्यू था। IQ
ओटो प्लाथ की मृत्यु ५ नवंबर, १९४० को, प्लाथ के आठवें जन्मदिन के एक हफ्ते बाद, अनुपचारित मधुमेह के कारण पैर के विच्छेदन के बाद जटिलताओं के कारण हुई थी। फेफड़ों के कैंसर से एक करीबी दोस्त की मृत्यु के तुरंत बाद वह बीमार हो गये थे। अपने दोस्त के लक्षणों और अपने स्वयं के बीच समानता की तुलना करते हुए, ओटो को यकीन हो गया कि उसे भी, फेफड़े का कैंसर है और उसने तब तक उपचार की तलाश नहीं की जब तक कि उसकी मधुमेह बहुत आगे नहीं बढ़ गई। एक यूनिटियन के रूप में उभरे, प्लाथ ने अपने पिता की मृत्यु के बाद विश्वास की हानि का अनुभव किया और जीवन भर धर्म के बारे में उभयभावी रही। उनके पिता को मैसाचुसेट्स में विन्थ्रोप सेमेट्री में दफनाया गया था। उनके पिता की कब्र की यात्रा ने बाद में प्लाथ को "अज़लिया पथ पर इलेक्ट्रा" कविता लिखने के लिए प्रेरित किया। ओटो की मृत्यु के बाद, ऑरेलिया १९४२ में अपने बच्चों और अपने माता-पिता को 26 एल्मवुड रोड, वेलेस्ले, मैसाचुसेट्स ले गई। अपने अंतिम गद्य के एक अंश में, प्लाथ ने टिप्पणी की कि उनके पहले नौ वर्षों में "एक बोतल में एक जहाज की तरह खुद को सील कर दिया - सुंदर, दुर्गम, अप्रचलित, एक ठीक, सफेद उड़ान मिथक"। प्लाथ ने ब्रैडफोर्ड सीनियर हाई स्कूल (अब वेलेस्ली हाई स्कूल ) में वेलेस्ली में भाग लिया, 1950 में स्नातक किया। हाई स्कूल से स्नातक होने के बाद, उन्होंने क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर में अपना पहला राष्ट्रीय प्रकाशन किया ।
कॉलेज के वर्षों और अवसाद
1950 में प्लाथ ने मैसाचुसेट्स के एक निजी महिला उदार कला महाविद्यालय स्मिथ कॉलेज में पढ़ाई की। उन्होंने अकादमिक रूप से उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, और अपनी माँ को लिखा। जबकि स्मिथ में वह लॉरेंस हाउस में रहती थी, और उनके पुराने कमरे के बाहर एक पट्टिका पाई जा सकती है। उन्होंने द स्मिथ रिव्यू का संपादन किया। कॉलेज के तीसरे वर्ष के बाद प्लाथ को मैडमॉस्सेल मैगजीन में अतिथि संपादक के रूप में एक प्रतिष्ठित पद से सम्मानित किया गया, जिसके दौरान उन्होंने एक महीना न्यूयॉर्क शहर में बिताया। यहाँ का अनुभव उनकी उम्मीद के विपरीत था, और उस गर्मी के दौरान होने वाली कई घटनाओं को बाद में उनके उपन्यास द बेल जार के लिए प्रेरणा के रूप में इस्तेमाल किया गया था ।
डायलन थॉमस के साथ होने वाली मुलाकात मे शामिल ना होने पर वह बहुत नाराज़ हुई क्योंकि वो उस्से "जीवन से अधिक" प्यार करती थी। वह थॉमस से मिलने की उम्मीद में व्हाइट हॉर्स टैवर्न और चेल्सी होटल के चारों ओर दो दिन तक लटका रहा, लेकिन वह पहले से ही घर पर था। कुछ हफ्तों बाद, उसने यह देखने के लिए अपने पैरों को काट दिया कि क्या उसके पास खुद को मारने के लिए पर्याप्त "साहस" है। इस दौरान उसे हार्वर्ड लेखन सेमिनार में प्रवेश से मना कर दिया गया। अवसाद के लिए इलेक्ट्रोकोनवल्सी थेरेपी के बाद, प्लाथ ने 24 अगस्त, 1953 को अपने घर के नीचे रेंगकर और अपनी माँ की नींद की गोलियों को ले कर अपना पहला चिकित्सकीय रूप से आत्महत्या का प्रयास किया।
वह इस पहले आत्महत्या के प्रयास से बच गई, बाद में उसने लिखा कि "वह भयंकर कालेपन के कारण आत्महत्या कर लेती है जिसे मैं ईमानदारी से अनन्त विस्मरण मानती थी।" उसने अगले छह महीने मनोचिकित्सक देखभाल में बिताए, डॉ. रूथ ब्यूशर की देखभाल के तहत अधिक बिजली और इंसुलिन शॉक उपचार प्राप्त किया। मैकलीन अस्पताल में उनका रहना और उनकी स्मिथ स्कॉलरशिप का भुगतान ऑलिव हिगिंस प्राउटी द्वारा किया गया था, जो खुद मानसिक रूप से टूटने से सफलतापूर्वक उबर चुके थे। प्लाथ ठीक होकर कॉलेज में लौट आई।
जनवरी 1955 में, उन्होने अपनी थीसिस, द मैजिक मिरर: ए स्टडी ऑफ द डबल इन टू दोस्टोएवस्की के उपन्यासों को प्रस्तुत किया, और जून में स्मिथ से सर्वोच्च सम्मान के साथ स्नातक किया।
इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के दो केवल-महिला कॉलेजों में से एक, न्यूनहैम कॉलेज में अध्ययन करने के लिए उन्होंने फुलब्राइट छात्रवृत्ति प्राप्त की, जहाँ उन्होंने सक्रिय रूप से कविता लिखना और छात्र अखबार वर्सिटी में अपना काम प्रकाशित करना जारी रखा। न्यून्हम में, उन्होंने डोरोथिया क्रोक के साथ अध्ययन किया, जिसे उन्होंने उच्च संबंध में रखा। उन्होने अपना पहला साल सर्दियों और वसंत की छुट्टियों में यूरोप में घूमने में बिताया।
कैरियर और शादी
25 फरवरी, 1956 को प्लाथ पहली बार टेड ह्यूजेस से मिली। 1961 में बीबीसी के साक्षात्कार (अब ब्रिटिश लाइब्रेरी साउंड आर्काइव द्वारा आयोजित) में, प्लाथ का वर्णन है कि वह टेड ह्यूजेस से कैसे मिले:मैंने इस पत्रिका में टेड की कुछ कविताएँ पढ़ीं और मैं बहुत प्रभावित हुई और मैं उनसे मिलना चाहती थी। मैं इस छोटे से उत्सव में गई थी और वास्तव में हम वहाँ मिले थे। । । फिर हम एक-दूसरे से काफी बार मिले। टेड कैंब्रिज वापस आ गए और अचानक कुछ महीनों बाद हमने खुद को शादीशुदा पाया। । । हम एक-दूसरे को कविताएँ लिखते रहे। फिर यह बस उससे बाहर हो गया, मुझे लगता है, एक एहसास है कि हम दोनों बहुत कुछ लिख रहे थे और ऐसा करने का इतना अच्छा समय था, हमने फैसला किया कि इसे जारी रखना चाहिए। प्लाथ ने ह्यूजेस को "एक गायक, कहानीकार, शेर और दुनिया-पथिक" के रूप में वर्णित किया, जिनके पास "भगवान की गड़गड़ाहट जैसी आवाज" थी।
इस युगल ने 16 जून, 1956 को सेंट जॉर्ज द शहीद, लंदन में होलबोर्न (अब बोरेन ऑफ कैमडेन ) में प्लेथ की मां उपस्थिति में शादी कर ली और पेरिस और बेनिडोर्म में अपना हनीमून बिताया। प्लाथ अपना दूसरा वर्ष शुरू करने के लिए अक्टूबर में न्यूहैम लौट आई। इस समय के दौरान, वे दोनों ज्योतिष और अलौकिक में रुचि रखने लगे।
जून 1957 में, प्लाथ और ह्यूजेस संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए, और सितंबर से, प्लाथ ने स्मिथ कॉलेज, अपने अल्मा मेटर में पढ़ाया। उन्हे वहाँ पढ़ाने और लिखने का पर्याप्त समय नहीं मिलता था जिसकी वजह से उन्हे पढ़ाने मैं दिक्कत होने लगी, और १९५८ के मध्य में, दंपति बोस्टन चले गए। प्लाथ ने मैसाचुसेट्स जनरल अस्पताल की मनोरोग इकाई में रिसेप्शनिस्ट के रूप में नौकरी की और शाम को कवि रॉबर्ट लोवेल द्वारा दिए गए रचनात्मक लेखन सेमिनारों में भाग लेने लगी।
लोवेल और सेक्सटन के प्रोत्साहन के बाद प्लाथ ने लिखना शुरू किया। उन्होंने लोवेल के साथ अपने अवसाद और सेक्स्टन के साथ आत्महत्या के प्रयासों के बारे में खुलकर चर्चा की, जिसने उन्हें अधिक महिला दृष्टिकोण से लिखने के लिए प्रेरित किया। प्लाथ खुद को अधिक गंभीर, केंद्रित कवि और लघुकथाकार के रूप में मानने लगी। इस समय प्लाथ और ह्यूजेस पहली बार कवि डब्ल्यू एस मेरविन से मिले, जिन्होंने उनके काम की प्रशंसा की और आजीवन दोस्त बने रहे। रूथ ब्यूशर के साथ काम करते हुए, प्लाथ ने दिसंबर में मनोविश्लेषणात्मक उपचार शुरू किया।
प्लाथ और ह्यूजेस ने कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा की और 1959 के अंत में साराटोगा स्प्रिंग्स, न्यूयॉर्क राज्य में येड्डो कलाकार कॉलोनी में रहे। प्लाथ कहती है कि यह यहाँ था कि उन्होने "अपनी खुद की विचित्रताओं के लिए सच होना" के बारे मे जाना, लेकिन वह गोपनीय ढंग से लिखने के बारे में चिंतित रही। दिसंबर 1959 में दंपति वापस इंग्लैंड चले गए और लंदन में रीजेंट पार्क के प्रिम्रोस हिल क्षेत्र के पास, 3 चालकोट स्क्वायर में रहने लगे। उनकी बेटी फ्रीडा का जन्म 1 अप्रैल 1960 को हुआ था, और अक्टूबर में, प्लाथ ने उनका पहला कविता संग्रह, द कोलोसस प्रकाशित किया।
फरवरी १९६१, प्लाथ के दूसरे सिशु का गर्ब्पात हो गया जिसका वर्णन उन्होने अपनी कई कवितायो मैं किया, जिसमे "पार्लियामेंट हिल फील्ड्स" प्रमुख हैं। अपने चिकित्सक को लिखा की ह्यूजेस ने गर्ब्पात के दो दिन पहले मारा था। अगस्त मे उन्होने उनका अर्ध-आत्मकथात्मक उपन्यास समाप्त किया और इसके तुरंत बाद वो परिवार के साथ देवोन के नॉर्थ तवटोन शहर के कोर्ट ग्रीन चले गए। निकोलस का जन्म जनवरी १९६२ मे हुआ। मध्य १९६२ मे ह्यूजेस मधुमख्कियान रखने लगे जिसका जिक्र प्लाथ की कवितायोन मे है।
१९६१ में, दंपति ने चैलकोट स्क्वायर में अपना फ्लैटअशिया ( नाइ ) गुटमैन और डेविड वीविल को किराए पर दिया । जून 1962 में, प्लाथ की एक कार दुर्घटना हुई, जिसे उन्होंने कई आत्महत्या के प्रयासों में से एक बताया। जुलाई 1962 में, प्लाथ को पता लगा कि ह्यूज का असिया वीविल के साथ संबंध है और सितंबर में यह जोड़ी अलग हो गई।
अक्टूबर 1962 में शुरू होने के बाद, प्लाथ ने रचनात्मकता का एक बड़ा प्रस्फोट अनुभव किया और अपनी अधिकांश कविताएं लिखीं, जिस पर उनकी प्रतिष्ठा अब टिकी हुई है। अपने जीवन के अंतिम महीनों के दौरान उनके मरणोपरांत संग्रह एरियल की कविताओं में से कम से कम 26 लेखन। दिसंबर 1962 में, वह अपने बच्चों के साथ अकेले लंदन लौटीं, और 23 फिट्ज़रॉय रोड पर एक फ्लैट जो की चालकोट स्क्वायर के फ्लैट से कुछ ही दूर, को पांच साल की लीज़ पर किराए पर ले लिया। विलियम बटलर यीट्स पहले इसी घर में रहते थे। इस तथ्य से प्लैथ प्रसन्न हुई और इसे एक अच्छा शगुन माना।
१९६२ - १९६३ की उत्तरी सर्दी 100 वर्षों में सबसे ठंडी थी; पाइप जम गए, बच्चे - अब दो साल के हैं और नौ महीने के - अक्सर बीमार रहने लगे। उसका अवसाद वापस आ गया लेकिन उन्होने अपने कविता संग्रह के बाकी हिस्सों को पूरा किया, जो उनकी मृत्यु (यूके में 1965, अमेरिका में 1966) के बाद प्रकाशित होगा। उनका एकमात्र उपन्यास, द बेल जार , जनवरी 1963 में, विक्टोरिया लुकास नाम के पेन के तहत प्रकाशित हुआ था।
अपनी मौत से पहले, प्लाथ ने कई बार अपनी जान लेने की कोशिश की। 24 अगस्त, १९५३ को, प्लाथ ने अपनी माँ के घर के तहखाने में गोलियों का ज़रूरत से ज्यादा सेवन कर लिया। जून १९६२ में, प्लाथ ने अपनी कार को सड़क के किनारे, एक नदी में फेंक दिया, जिसके बारे में उन्होने बाद में कहा कि वह अपनी जान लेने की कोशिश कर रही थी।
जनवरी १९६३, प्लाथ ने अपने सामान्य चिकित्सक जॉन होडर और एक करीबी दोस्त के साथ बात की, जो उनके पास रहता था। उन्होने छह या सात महीने से चल रही अवसादग्रस्तता प्रकरण का वर्णन किया। जबकि अधिकांश समय तक वह काम करना जारी रखने में सक्षम रही थी, उसका अवसाद बिगड़ गया था और गंभीर हो गया था, जिसके संकेत निरंतर आंदोलन, आत्मघाती विचारों और दैनिक जीवन के साथ सामना करने में असमर्थता थे। प्लाथ अनिद्रा से जूझ रही थी और वो नींद आने के को रात को दवा लेती थी, और अक्सर जल्दी उठ जाती थी। उनका वज़न २० किलोग्राम घट गया लेकिन वह अपनी शारीरिक दिखावट का ध्यान रखती रही और बाहरी रूप से दोषी या अयोग्य महसूस करने की बात नहीं करती थी।
हॉर्डर ने उसे आत्महत्या से कुछ दिन पहले एक एंटी-डिप्रेसेंट, एक मोनोमाइन ऑक्सीडेज इनहिबिटर, निर्धारित किया था। यह जानकर कि वह दो छोटे बच्चों के साथ अकेले जोखिम में थी, वह कहते है कि वह रोजाना उससे मिलने जाते थे और उन्हे अस्पताल में भर्ती करवाने की पूरी कोशिश करी; जब वह असफल हो गए, तो उन्होने एक नर्स की व्यवस्था की।
११ फरवरी, १९६३ की सुबह नौ बजे नर्स आने वाली थी, ताकि उनके बच्चों की देखभाल के लिए प्लाथ की मदद कर सके। आगमन पर, वह फ्लैट में नहीं जा सकी लेकिन। अंततः एक कामगार चार्ल्स लैंगरिज की मदद से अंदर गयी। उन्होंने पाया कि प्लाथ का सिर ओवेन मे था जिसके कारण कार्बन मोनोऑक्साइड विषाक्तता से उनकी मृत्यु हो गयी थी लगभग 4:30 बजे प्लाथ ने अपना सिर ओवन में रखा था, जिससे गैस चालू हो गई। वह 30 की थी।
कुछ ने सुझाव दिया है कि प्लाथ ने खुद को मारने का इरादा नहीं किया था। उस सुबह, उन्होने अपनी पड़ोसन से पूछा की मि थॉमस किस समय जाएंगे। उसने एक नोट "कॉल डॉ हॉर्डर, भी छोड़ा जिसमे “डॉक्टर के फोन नंबर भी लिखा था। इसलिए, यह तर्क दिया जाता है कि प्लाथ ने उस समय गैस चलायी जब थॉमस नोट को देखने में सक्षम हो सकें। हालांकि, उनकी जीवनी में गिविंग अप: द लास्ट डेज ऑफ सिल्विया प्लाथ, प्लाथ के सबसे अच्छे दोस्त, जिलियन बेकर ने लिखा, "श्री के अनुसार। गुडचाइल्ड, कोरोनर के कार्यालय से जुड़े एक पुलिस अधिकारी, [प्लाथ] ने अपना सिर गैस ओवन में फेंक दिया था और वास्तव में मरने का मतलब था। " हॉर्डर ने भी माना कि उसका इरादा स्पष्ट था। उन्होंने कहा कि "जिस व्यक्ति ने रसोई तैयार की थी उसकी देखभाल करने वाले किसी ने भी उसकी कार्रवाई को एक तर्कहीन मजबूरी के रूप में व्याख्यायित नहीं किया है।" प्लाथ ने अपनी निराशा की गुणवत्ता को "उल्लू के पट्ठे मेरे दिल को छूना" के रूप में वर्णित किया था। आत्महत्या पर अपने 1971 की पुस्तक में, मित्र और आलोचक अल अल्वारेज़ ने दावा किया कि प्लाथ की आत्महत्या मदद के लिए अनुत्तरित रो रही थी, और बोला, मार्च में बीबीसी के एक साक्षात्कार में 2000 में, प्लाथ के अवसाद को पहचानने में अपनी विफलता के बारे में, यह कहते हुए कि उसे भावनात्मक समर्थन देने में असमर्थता पर अफसोस हुआ: "मैंने उसे उस स्तर पर विफल कर दिया। मैं तीस का था वर्षों पुराना और बेवकूफ। मुझे क्रोनिक क्लिनिकल डिप्रेशन के बारे में क्या पता था? उसकी देखभाल के लिए उसे किसी तरह की जरूरत थी। और वह कुछ ऐसा नहीं था जो मैं कर सकता था। "
प्लाथ की मृत्यु के बाद
प्लाथ की मौत के अगले दिन एक पूछताछ ने आत्महत्या का फैसला सुनाया। ह्यूज तबाह हो गया था; वे छह महीने के लिए अलग हो गए थे। स्मिथ कॉलेज के प्लाथ के एक पुराने दोस्त को लिखे पत्र में, उन्होंने लिखा, "यह मेरे जीवन का अंत है। बाकी मरणोपरांत है। " प्लैथ का ग्रैवस्टोन, सेंट थॉमस अपोस्टल के हेपटनस्टॉल पैरिश चर्चयार्ड में, शिलालेख है कि ह्यूजेस ने उसके लिए चुना: "यहां तक कि भयंकर आग की लपटों के बीच स्वर्ण कमल भी लगाया जा सकता है।" जीवनी विभिन्न उद्धरणों के स्रोत को हिंदू पाठ, भगवद गीता या 16 वीं शताब्दी के बौद्ध उपन्यास जर्नी टू द वेस्ट ऑफ वू चेंग'एन द्वारा लिखा गया है।
प्लाथ और ह्यूजेस की बेटी, फ्रीडा ह्यूजेस, एक लेखक और कलाकार हैं। 16 मार्च, 2009 को, निकोलस ह्यूजेस, उनके बेटे, ने डिप्रेशन के इतिहास के बाद, फेयरबैंक्स, अलास्का में अपने घर पर फांसी लगा ली।
काम
प्लाथ ने आठ साल की उम्र से कविता लिखी, उनकी पहली कविता बोस्टन ट्रैवलर में दिखाई दी। जब तक वह स्मिथ कॉलेज पहुंचीं, उन्होंने 50 से अधिक लघु कथाएँ लिखी थीं और पत्रिकाओं के एक समूह में प्रकाशित हुई थीं। वास्तव में प्लाथ ने अपने जीवन को गद्य और कहानियों को लिखने के लिए बहुत चाहा, और उन्हें लगा कि कविता एक तरफ है। लेकिन, संक्षेप में, वह गद्य प्रकाशित करने में सफल नहीं रही। स्मिथ में उन्होंने अंग्रेजी में पढ़ाई की और लेखन और छात्रवृत्ति में सभी बड़े पुरस्कार जीते। साथ ही, वह युवा महिला पत्रिका में एक ग्रीष्मकालीन संपादक स्थिति जीता कुमारी, 1955 में और, उसे स्नातक स्तर की पढ़ाई पर, वह जीता Glascock पुरस्कार के लिए रियल सागर से दो प्रेमी और एक Beachcomber । बाद में, उन्होंने विश्वविद्यालय प्रकाशन, वर्सिटी के लिए लिखा।
डबल एक्सपोज़र
1963 में, बेल जार प्रकाशित होने के बाद, प्लाथ ने डबल एक्सपोज़र नामक एक और साहित्यिक काम पर काम करना शुरू किया । यह कभी प्रकाशित नहीं हुआ और पांडुलिपि 1970 के आसपास गायब हो गई। ह्यूजेस के अनुसार, प्लाथ ने एक अन्य उपन्यास के "130 [टाइप] पृष्ठों को पीछे छोड़ दिया, जिसे अस्थायी रूप से डबल एक्सपोजर शीर्षक दिया गया था। " अधूरी पांडुलिपि के बारे में जो बातें सामने आई हैं, उन्हें सिल्विया प्लाथ की फिक्शन: ए क्रिटिकल स्टडी इन ल्यूक फेरेट्टर नामक पुस्तक में बार-बार सामने लाया गया है। फेरेट्टर का यह भी दावा है कि मैसाचुसेट्स के स्मिथ कॉलेज में दुर्लभ पुस्तकों के विभाग में सील के तहत काम की एक गुप्त प्रति है। फेर्रेट का मानना है कि डबल एक्सपोज़र का मसौदा नष्ट हो गया, चोरी हो गया, या खो भी गया। वह अपनी पुस्तक में मानता है कि मसौदा विश्वविद्यालय के संग्रह में निराधार हो सकता है।
एरियल
यह 1965 में एरियल का प्लाथ का प्रकाशन था जिसने उन्हें प्रसिद्धि के लिए प्रेरित किया। एरियल की कविताएँ कविता के अधिक व्यक्तिगत क्षेत्र में उसके पहले के काम से प्रस्थान करती हैं। रॉबर्ट लोवेल की कविता ने इस पारी में एक भूमिका निभाई हो सकती है क्योंकि उन्होंने लोवेल की 1959 की पुस्तक लाइफ स्टडीज को उनकी मृत्यु से ठीक पहले एक साक्षात्कार में एक महत्वपूर्ण प्रभाव के रूप में उद्धृत किया था। मरणोपरांत 1966 में प्रकाशित, एरियल का प्रभाव नाटकीय था, जिसमें '' ट्यूलिप्स '', '' डैडी '' और '' लेडी लाजर '' जैसी कविताओं में मानसिक बीमारियों के काले और संभावित आत्मकथात्मक वर्णन थे। प्लैट का काम अक्सर अन्य समकालीनों, जैसे रॉबर्ट लोवेल और डब्लू डी स्नोडग्रास की तुलना में इकबालिया कविता की शैली और उनके काम की शैली के भीतर होता है। प्लाथ के करीबी दोस्त अल अल्वारेज़, जिन्होंने अपने बड़े काम के बारे में लिखा है, ने अपने बाद के काम के बारे में कहा: "प्लाथ का मामला इस तथ्य से जटिल है कि, अपने परिपक्व काम में, उसने जानबूझकर अपने रोजमर्रा के जीवन का विवरण अपनी कला के लिए कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल किया। एक आकस्मिक आगंतुक या अप्रत्याशित टेलीफोन कॉल, एक कट, एक खरोंच, एक रसोई का कटोरा, एक कैंडलस्टिक - सब कुछ प्रयोग करने योग्य हो गया, जिसका अर्थ है, आरोपित। उनकी कविताएँ उन संदर्भों और छवियों से भरी हैं जो इस दूरी पर अभेद्य लगती हैं, लेकिन जिसे ज्यादातर विद्वानों द्वारा उनके जीवन के विवरणों तक पूरी पहुंच के साथ समझाया जा सकता है। " प्लाथ की बाद की कई कविताएँ इस बात से निपटती हैं कि कौन-सा आलोचक "घरेलू अवास्तविक" कहता है जिसमें प्लाथ रोज़मर्रा के तत्वों को लेते हैं और छवियों को मोड़ते हैं, जिससे उन्हें लगभग बुरे सपने आते हैं। एरियल के प्लाथ की कविता "मॉर्निंग सॉन्ग" को एक कलाकार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उनकी सबसे बेहतरीन कविताओं में से एक माना जाता है
प्लाथ के साथी इकबालिया कवि और दोस्त ऐनी सेक्सटन ने टिप्पणी की: "सिल्विया और मैं अपनी पहली आत्महत्या के बारे में विस्तार से और गहराई से - मुफ्त आलू के चिप्स के बीच लंबाई पर बात करेंगे। आत्महत्या, सब के बाद, कविता के विपरीत है। सिल्विया और मैंने अक्सर विपरीत बातें कीं। हमने जली हुई तीव्रता के साथ मृत्यु की बात की, हम दोनों ने इसे पतंगों की तरह खींचा जैसे कि एक इलेक्ट्रिक लाइटबुल, इस पर चूसना। उसने अपनी पहली आत्महत्या की कहानी को मीठे और प्यार भरे विस्तार से बताया और द बेल जार में उसका वर्णन बस यही कहानी है। " प्लाथ के काम की गोपनीय व्याख्या के कारण उसके काम के कुछ पहलुओं को भावुकतावादी मेलोड्रामा के बहिष्कार के रूप में खारिज कर दिया गया है; 2010 में, उदाहरण के लिए, थियोडोर डेलरिम्पल ने कहा कि प्लाथ "आत्म-नाटकीयता के संरक्षक संत" और आत्म-दया के थे । ट्रेसी ब्रेन जैसे संशोधनवादी आलोचकों ने, हालांकि, प्लाथ की सामग्री की एक सख्त आत्मकथात्मक व्याख्या के खिलाफ तर्क दिया है।
अन्य काम
1971 में, विंटर विंटर ट्रीज़ और क्रॉसिंग द वॉटर ब्रिटेन में प्रकाशित हुए, जिसमें एरियल की मूल पांडुलिपि की नौ पूर्व अनदेखी कविताएँ भी शामिल हैं। न्यू स्टेट्समैन में लेखन , साथी कवि पीटर पोर्टर ने लिखा:पानी को पार करना पूरी तरह से महसूस किए गए कार्यों से भरा है। इसकी सबसे महत्वपूर्ण धारणा उसकी वास्तविक शक्ति की खोज की प्रक्रिया में एक फ्रंट-रैंक कलाकार है। ऐसा प्लाथ का नियंत्रण है कि इस पुस्तक में एक विलक्षणता और निश्चितता है जो इसे द कोलोसस या एरियल के रूप में मनाया जाना चाहिए। टेड ह्यूज द्वारा संपादित और परिचय 1981 में प्रकाशित द कलेक्टेड पोएम्स में 1956 से उनकी मृत्यु तक लिखी गई कविता थी। प्लाथ को मरणोपरांत कविता के लिए पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। २००६ में एना जर्नी, जो तब वर्जीनिया कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटी में स्नातक की छात्रा थी, ने प्लाथ द्वारा लिखित "एननुई" नामक एक पूर्व अप्रकाशित सॉनेट की खोज की। स्मिथ कॉलेज में प्लाथ के शुरुआती वर्षों के दौरान रचित कविता, ऑनलाइन जर्नल ब्लैकबर्ड में प्रकाशित हुई है।
पत्रिकाएँ और पत्र
प्लाथ के पत्र 1975 में प्रकाशित हुए, उनकी माँ औरेलिया प्लाथ द्वारा संपादित और चुने गए। संग्रह, पत्र होम: पत्राचार 1950-1963, अमेरिका में द बेल जार के प्रकाशन के लिए मजबूत सार्वजनिक प्रतिक्रिया के जवाब में आंशिक रूप से सामने आया। प्लाथ ने 11 साल की उम्र से एक डायरी रखना शुरू कर दिया और आत्महत्या तक ऐसा करना जारी रखा। 1950 में स्मिथ कॉलेज में अपने पहले वर्ष से शुरू होने वाली उनकी वयस्क डायरी, 1982 में फ्रांसेस मैकुलॉ द्वारा संपादित द जर्नल्स ऑफ सिल्विया प्लाथ, टेड ह्यूजेस के साथ परामर्श संपादक के रूप में प्रकाशित हुई। 1982 में, जब स्मिथ कॉलेज ने प्लाथ की शेष पत्रिकाओं का अधिग्रहण किया, तब ह्यूज ने 11 फरवरी, 2013 तक प्लाथ की मृत्यु की 50 वीं वर्षगांठ तक उनमें से दो को सील कर दिया।
अपने जीवन के अंतिम वर्षों के दौरान, ह्यूजेस ने प्लाथ की पत्रिकाओं के पूर्ण प्रकाशन पर काम करना शुरू किया। 1998 में, अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले, उन्होंने दो पत्रिकाओं को अनसुना कर दिया, और प्लाथ, फ्रीडा और निकोलस द्वारा अपने बच्चों पर इस परियोजना को पारित कर दिया, जिन्होंने इसे करेन वी। कुकिल को दे दिया। कुकिल ने दिसंबर 1999 में अपना संपादन पूरा किया और 2000 में एंकर बुक्स ने द अनब्रिडेड जर्नल्स ऑफ सिल्विया प्लाथ (प्लाथ 2000) प्रकाशित किया। नई मात्रा के आधे से अधिक में नई जारी की गई सामग्री शामिल थी; अमेरिकी लेखक जॉयस कैरोल ओट्स ने प्रकाशन को "वास्तविक साहित्यिक घटना" के रूप में देखा। ह्यूजेस को पत्रिकाओं को संभालने में उनकी भूमिका के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा: उन्होंने दावा किया कि प्लाथ की अंतिम पत्रिका को नष्ट कर दिया गया था, जिसमें 1962 की सर्दियों से लेकर उनकी मृत्यु तक की प्रविष्टियाँ थीं। 1982 के संस्करण के प्राक्कथन में, वे लिखते हैं, "मैंने [उनकी पत्रिकाओं में से आखिरी को नष्ट कर दिया] क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि उनके बच्चों को इसे पढ़ना पड़े (उन दिनों में मैं भूलने की बीमारी को जीवन रक्षा का एक अनिवार्य हिस्सा मानता था)।"
विवादों को हवा देता है
जब उनकी मृत्यु के समय ह्यूजेस और प्लाथ की कानूनी रूप से शादी हुई थी, तब ह्यूज को अपने सभी लिखित कामों सहित, प्लाथ एस्टेट विरासत में मिली। प्लाथ की अंतिम पत्रिका को जलाने के लिए उनकी बार-बार निंदा की गई, उन्होंने कहा कि "वह नहीं चाहते थे कि उनके बच्चों को इसे पढ़ना पड़े।" ह्यूजेस ने एक और पत्रिका और एक अधूरा उपन्यास खो दिया, और निर्देश दिया कि 2013 तक प्लाथ के पत्रों और पत्रिकाओं का संग्रह जारी न किया जाए। उन पर अपने स्वयं के सिरों के लिए संपत्ति को नियंत्रित करने के प्रयास का आरोप लगाया गया है, हालांकि प्लाथ की कविता से रॉयल्टी उनके दो बच्चों, फ्रीडा और निकोलस के लिए एक ट्रस्ट खाते में रखी गई थी।
प्लाथ के ग्रैवस्टोन को बार-बार उन दुखी लोगों द्वारा बर्बरता से हानी पहुंचाई गयी क्यूंकी पत्थर पर "ह्यूज" लिखा गया है; उन्होंने केवल "सिल्विया प्लाथ" नाम को छोड़कर इसे बंद करने का प्रयास किया। 1969 में जब ह्यूज की मिस्ट्रेस्स असीया वेविल ने अपनी और अपनी चार साल की बेटी शूरा की हत्या कर दी, तो यह प्रथा तीव्र हो गई। प्रत्येक अपक्षय के बाद, ह्यूजेस क्षतिग्रस्त पत्थर को हटवा देते, कभी-कभी मरम्मत के दौरान साइट को बिना नाम के छोड़ दिया जाता था। आक्रोशित शोकसभा में ह्यूज पर पत्थर हटा के उनका नाम खराब करने के आरोप लगाए जाते रहे। वेविल की मृत्यु ने इस दावे को हवा दी की ह्यूजेस प्लाथ और वीविल दोनों के लिए अपमानजनक थे।
कट्टरपंथी नारीवादी कवि रॉबिन मॉर्गन ने कविता "Arraignment" प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने ह्यूज पर बैटरी और प्लाथ की हत्या का आरोप लगाया। उनकी पुस्तक मॉन्स्टर (1972) "में एक हिस्सा शामिल था जिसमें प्लाथ एफिसियोनडोस के एक गिरोह की कल्पना की गई थी, जो ह्यूजेस को अपने लिंग को उसके मुंह में भरता है और फिर उसके दिमाग को उड़ा देता है। ह्यूज ने मॉर्गन पर मुकदमा करने की धमकी दी। पुस्तक को रैंडम हाउस द्वारा वापस ले लिया गया था, हालांकि यह नारीवादियों के बीच प्रचलन में रही। अन्य नारीवादियों ने प्लाथ के नाम पर ह्यूज को मारने और हत्या के लिए दोषी ठहराए जाने की धमकी दी। प्लाथ की कविता "द जेलर", जिसमें वक्ता अपने पति की क्रूरता की निंदा करती है, को मॉर्गन की 1970 की एंथोलॉजी सिस्टरहुड इज़ पावरफुल: एन एंथोलॉजी ऑफ़ राइटिंग ऑफ़ द वुमन लिबरेशन मूवमेंट में शामिल किया गया था ।
1989 में सार्वजनिक हमले के तहत ह्यूजेस के साथ, द गार्जियन और द इंडिपेंडेंट के पत्रों के पन्नों में एक लड़ाई छिड़ गई। 20 अप्रैल 1989 को द गार्जियन में, ह्यूजेस ने "द प्लेस दैट सिल्विया प्लाथ रेस्ट इन पीस इन पीस" लेख लिखा था: "प्लाथ की मृत्यु के तुरंत बाद के वर्षों में, जब विद्वानों ने मुझसे संपर्क किया, तो मैंने उनके लिए स्पष्ट रूप से चिंता करने की कोशिश की।" सिल्विया प्लाथ के बारे में सच्चाई को गंभीरता से लेने की कोशिश की। लेकिन मैंने अपना सबक जल्दी सीख लिया। [... ] अगर मैंने उन्हें यह बताने की कोशिश की कि वास्तव में सब कुछ कैसे हुआ, तो कुछ कल्पनयों को ठीक करने की उम्मीद में, मुझे फ्री स्पीच को दबाने की कोशिश करने का आरोप लगने की काफी संभावना थी। सामान्य तौर पर, प्लाथ की कल्पनयों के साथ कुछ भी करने से इनकार करने को फ्री स्पीच को दबाने की कोशिश माना गया है। ... ] सिल्विया प्लाथ के बारे में कल्पनयों की तथ्यों की तुलना में अधिक आवश्यकता है। यह अपने जीवन की सच्चाई (और मेरी), या अपनी स्मृति के लिए, या साहित्यिक परंपरा के लिए सम्मान कहाँ छोड़ती है, मुझे नहीं पता। "
1998 में अटकलों और अपमान के विषय में, ह्यूजेस ने बर्थडे लेटर्स प्रकाशित किया, जिसमें प्लाथ के साथ उनके संबंधों के बारे में 88 कविताओं का अपना संग्रह था। ह्यूजेस ने शादी के अपने अनुभव और प्लाथ की आत्महत्या के बारे में बहुत कम प्रकाशित किया था, और इस पुस्तक ने सनसनी पैदा कर दी, जिसे उनके पहले स्पष्ट प्रकटीकरण के रूप में लिया गया, और यह सर्वश्रेष्ठ विक्रेता चार्ट में सबसे ऊपर आ गया। वॉल्यूम के प्रकाशन पर यह ज्ञात नहीं था कि ह्यूजेस टर्मिनल कैंसर से पीड़ित थे और उसी साल उनकी मृत्यु हो जाएगी। पुस्तक फॉरवर्ड पोएट्री पुरस्कार, कविता के लिए टीएस एलियट पुरस्कार, और व्हिटब्रेड कविता पुरस्कार जीता गया । प्लाथ की मृत्यु के बाद लिखी गई कविताएँ, कुछ समय बाद, एक कारण खोजने की कोशिश करती हैं कि प्लाथ ने अपना जीवन क्यों खतम कर लिया। ह्यूज की मृत्यु 1998 में पुस्तक प्रकाशित होने के कुछ महीने बाद ही हुई।
अक्टूबर 2015 में, बीबीसी टू डॉक्यूमेंट्री टेड ह्यूज: स्ट्रोंगर देन डेथ ने ह्यूज के जीवन और कार्य की जांच की; इसमें प्लाथ की अपनी खुद की कविता सुनाने की ऑडियो रिकॉर्डिंग शामिल थी। उनकी बेटी फ्रीडा ने पहली बार अपनी माँ और पिता के बारे में बात की।
विषय-वस्तु और विरासत
सिल्विया प्लाथ की शुरुआती कविताएँ दर्शाती हैं कि व्यक्तिगत और प्रकृति पर आधारित चित्रण का उपयोग करते हुए उनकी विशिष्ट कल्पना बन गई, उदाहरण के लिए, चंद्रमा, रक्त, अस्पतालों, भ्रूण और खोपड़ी। वे ज्यादातर कवियों जैसे की डायलन थॉमस, डब्ल्यू बी येट्स और मैरिएन मूर, जिनहे वो सराहती थी, के नकली अभ्यास थे । 1959 के उत्तरार्ध में, जब वह और ह्यूज न्यूयॉर्क राज्य में येड्डो लेखकों की कॉलोनी में थे, उन्होंने थिओडोर रोथके के लॉस्ट सोन अनुक्रम की गूंज करते हुए सात-भाग " पोयम फॉर ए बर्थडे" लिखी थी, हालांकि उनका विषय उनका खुद का दर्दनाक टूटना और 20 में आत्महत्या का प्रयास है। 1960 के बाद उनके काम को एक और अधिक वास्तविक परिदृश्य में बदल दिया गया, जो कैद की भावना और उभरती मृत्यु से भरा था।दकोलोसस मे मोचन और पुनरुत्थान के विषयों का विवरण किया गया है। ह्युग्स के चले जाने के बाद, प्लाथ ने दो महीने से भी कम समय में, क्रोध, निराशा, प्रेम और प्रतिशोध की 40 कविताएँ प्रस्तुत कीं, जिन पर उनकी ख्याति अधिक है।
प्लाथ की परिदृश्य कविता, जिसे उन्होंने अपने पूरे जीवन में लिखा है, का विवरण ऐसे किया जाता है "उनके काम का एक समृद्ध और महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिसे अक्सर अनदेखा किया जाता है ... जिनमें से कुछ सर्वश्रेष्ठ यॉर्कशायर के बारे में लिखा गया था।" उनकी सितंबर 1961 की कविता "वुथरिंग हाइट्स" का शीर्षक एमिली ब्रोंटे के उपन्यास से लिया गया हे, लेकिन इसकी सामग्री और शैली पेनाइन परिदृश्य की अपनी विशेष दृष्टि है ।
1965 में एरियल के प्रकाशन उन्हें प्रसिद्धि दिलवाई । जैसे ही यह प्रकाशित हुआ, आलोचकों ने संग्रह को प्लाथ की बढ़ती हताशा या मृत्यु की इच्छा के रूप में देखना शुरू किया। उनकी नाटकीय मौत उनका सबसे प्रसिद्ध पहलू बन गई, और अब भी बनी हुई है। समय और जीवन दोनों ने उसकी मृत्यु के मद्देनजर एरियल की पतली मात्रा की समीक्षा की। टाइम पर आलोचक ने कहा: "उनकी मृत्यु के एक सप्ताह के भीतर, बौद्धिक लंदन को एक अजीब और भयानक कविता की प्रतियों पर टिका दिया गया था जो उन्होंने आत्महत्या ओर अपनी आखिरी बीमार स्लाइड के दौरान लिखी थी। 'डैडी' इसका शीर्षक था और इसका विषय उनके पिता के प्रति उनकी घृणास्पद प्रेम-घृणा थी; उनकी शैली एक चड्डी की तरह क्रूर थी। साहित्यिक परिदृश्य में। [...] उनकी सबसे क्रूर कविताओं में, 'डैडी' और 'लेडी लाजर,' भय, घृणा, प्रेम, मृत्यु और कवि की अपनी पहचान मे मिल जाते है, और उसके माध्यम से, जर्मन अपराधियों के अपराध और उनके यहूदी पीड़ितों की पीड़ा का वर्णन हे । जैसा कि रॉबर्ट लोवेल ने एरियल को अपनी प्रस्तावना में कहा है, वे कविताएँ हैं जो रूसी कारतूस के सिलिंडर की छह गोलियों से रूले खेलती है।लेंडर में छह कारतूस के साथ रूसी रूलेट खेलते हैं। "
नारीवादी आंदोलन में कुछ लोगों ने प्लाथ को एक "प्रतिभाशाली स्त्री की प्रतीक" के रूप में अपने अनुभव के लिए बोलते हुए देखा। लेखक ऑनर मूर ने एरियल को एक आंदोलन की शुरुआत के रूप में वर्णित किया है, प्लाथ अचानक "कागज पर एक महिला" के रूप में दिखाई देती है, कुछ निश्चित और दुस्साहसी। मूर कहते हैं: "जब सिल्विया प्लाथ का एरियल संयुक्त राज्य अमेरिका में 1966 में प्रकाशित हुई, तो अमेरिकी महिलाओं ने गौर किया। न केवल महिलाएं जो आमतौर पर कविताएं पढ़ती हैं, लेकिन गृहिणियां और माताएं जिनकी महत्वाकांक्षाएं जागृत हुई हैं [..... ] यहाँ एक महिला थी, जो अपनी कला में बहुत ही अच्छी तरह से प्रशिक्षित थी, जिसकी अंतिम कविताओं में एक महिला के गुस्से, दुस्साहस और दुःख का एक स्वर में वर्णन किया गया था, जिसके साथ कई महिलाओं ने पहचान की थी। " प्लाथ के नाम पर कुछ नारीवादियों ने ह्यूज को मारने की धमकी दी।
स्मिथ कॉलेज, प्लाथ के अल्मा मेटर, स्मिथ कॉलेज लाइब्रेरी में उनके साहित्यिक पेपर रखे गये है।
2018 में, द न्यूयॉर्क टाइम्स ने अनदेखी इतिहास परियोजना के हिस्से के रूप में, प्लाथ के लिए एक अभ्यारण्य प्रकाशित किया।
मीडिया में चित्रण
प्लाथ की आवाज़ बीबीसी डॉक्यूमेंट्री में उनके जीवन के बारे में सुनाई देती है।
ग्वेनेथ पाल्ट्रो ने प्लाथ को बायोपिक सिल्विया (2003) में चित्रित किया। प्लाथ और ह्यूज की दोस्त एलिजाबेथ सिगमंड की आलोचना के बावजूद, कि प्लाथ को "स्थायी अवसादग्रस्त और योग्य व्यक्ति" के रूप में चित्रित किया गया था, उन्होंने स्वीकार किया कि "फिल्म में उनके जीवन के अंत की ओर एक माहौल है जो इसकी सटीकता में हृदयविदारक है।" फ्राइडा ह्यूजेस, अब एक कवि और चित्रकार, जो दो साल का था जब उसकी मां की मृत्यु हो गई थी, उसके माता-पिता के जीवन की विशेषता मनोरंजन बनाने से नाराज थी। उन्होंने "मूंगफली क्रंचिंग" पर सार्वजनिक रूप से परिवार की त्रासदियों द्वारा शीर्षक दिया जाने का आरोप लगाया। 2003 में, फ्रीडा Tatler मे प्रकाशित कविता "मेरी माँ" में इस स्थिति के लिए प्रतिक्रिया व्यक्त की Now they want to make a film
For anyone lacking the ability
To imagine the body, head in oven,
Orphaning children
[...] they think
I should give them my mother's words
To fill the mouth of their monster,
Their Sylvia Suicide Doll
काम
कविता संग्रह
द कोलोसस एंड अदर पोएम्स (1960) विलियम हनीमैन
एरियल (1965) फेबर और फेबर
थ्री वुमन: ए मोनोलॉग फॉर थ्री वॉयस (1968) बुर्ज बुक्स
क्रॉसिंग द वॉटर (1971) फेबर एंड फेबर
विंटर ट्रीज़ (1971) फेबर एंड फेबर
द कलेक्टेड पोएम्स (1981) फेबर एंड फेबर
चयनित कविताएँ (1985) फेबर और फैबर
एरियल: द रिस्टोरेड एडिशन (2004) फेबर एंड फेबर
गद्य और उपन्यास एकत्र
बेल जार (उपन्यास, 1963), छद्म नाम "विक्टोरिया लुकास" ( हनीमैन ) के तहत
लेटर्स होम: पत्राचार 1950-1963 (1975, हार्पर एंड रो, यूएस, फेबर और फेबर, यूके)
जॉनी पैनिक एंड द बाइबल ऑफ ड्रीम्स: लघु कथाएँ, गद्य, और डायरी अंश (1977, फेबर और फेबर)
सिल्विया प्लाथ (1982, डायल प्रेस ) के जर्नल
द मैजिक मिरर (1989 में प्रकाशित), प्लाथ के स्मिथ कॉलेज के वरिष्ठ थेसिस
सिल्विन प्लाथ के अनब्रिबिज्ड जर्नल्स, करेन वी। कुकिल (2000, एंकर बुक्स ) द्वारा संपादित
द लेटर्स ऑफ़ सिल्विया प्लाथ, खंड 1, पीटर के। स्टाइनबर्ग और करेन वी। कुकिल (फेबर और फैबर, 2017) द्वारा संपादित
सिल्विया प्लाथ के अक्षर, खंड 2, पीटर के। स्टाइनबर्ग और करेन वी। कुकिल (फेबर और फेबर, 2018) द्वारा संपादित
बच्चो की किताब
बेड बुक (1976), क्वेंटिन ब्लेक, फेबर और फैबर द्वारा सचित्र
द इट-डोंट-मैटर सूट (1996) फेबर एंड फेबर
श्रीमती। चेरी की रसोई (2001) फेबर एंड फेबर
एकत्रित बच्चों की कहानियां (यूके, 2001) फेबर और फेबर
लोकप्रिय मान्यता
यूनाइटेड स्टेट्स पोस्टल सर्विस ने 2012 में प्लाथ की विशेषता वाला डाक टिकट पेश किया।
27 अक्टूबर, 2019 को, Google ने उत्तरी अमेरिका में Google Doodle के साथ, दक्षिण अमेरिका और यूरोप, रूस और जापान के कुछ हिस्सों में उनके जन्म की 87 वीं वर्षगांठ मनाई।
यह सभी देखें
सिल्विया प्लाथ प्रभाव
संदर्भ
वीडियो
Matthies, Gesa (2016). द लेडी इन द बुक - सिल्विया प्लाथ, चित्रित करती है । फ्रांस। 14 सितंबर, 2018 को मूल से संग्रहीत । 13 सितंबर 2018 को लिया गया ।
The lady in the book । एना फिल्म्स । 13 सितंबर 2018 को लिया गया ।
बीबीसी प्रोफ़ाइल और वीडियो। बीबीसी संग्रह । एरियल (साउंड फ़ाइल) से "लेडी लाजर" पढ़ते हुए प्लाथ
बाहरी कड़ियाँ
पीटर के। स्टाइनबर्ग का जश्न, यह है
प्लैथ प्रोफाइल अमेरिकन एकेडमी ऑफ़ पोएट्स से
मेयर गैलरी द डेली टेलीग्राफ में सिल्विया प्लाथ चित्र
Works by Sylvia Plath
ब्रिटिश लाइब्रेरी में सिल्विया प्लाथ
विक्टोरिया विश्वविद्यालय, विशेष संग्रह में टेड ह्यूजेस और सिल्विया प्लाथ संग्रह
स्टुअर्ट ए रोज़ पांडुलिपि, अभिलेखागार, और दुर्लभ पुस्तक पुस्तकालय, एमोरी विश्वविद्यालय: सिल्विया प्लाथ संग्रह, 1952-1989
स्टुअर्ट ए रोज़ पांडुलिपि, अभिलेखागार, और दुर्लभ पुस्तक पुस्तकालय, एमोरी विश्वविद्यालय: सिल्विया प्लाथ, 1910-2018 पर हेरिएट रोसेन्स्टीन शोध फाइलें
मोर्टिमर रेयर बुक कलेक्शन में सिल्विया प्लाथ कलेक्शन, स्मिथ कॉलेज स्पेशल कलेक्शन
१९६३ में निधन
1932 में जन्मे लोग | 6,111 |
273319 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%B2%20%28%E0%A4%AA%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%29 | बैल (पौराणिक मान्यता) | प्राचीन विश्व के दौरान पवित्र बैल की पूजा पश्चिमी विश्व की स्वर्ण बछड़े की प्रतिमा से सम्बंधित बाइबिल के प्रसंग में सर्वाधिक समानता रखती है, यह प्रतिमा पर्वत की चोटी के भ्रमण के दौरान यहूदी संत मोसेज़ द्वारा पीछे छोड़ दिए गए लोगों द्वारा बनायी गयी थी और सिनाइ (एक्सोडस) के निर्जन प्रदेश में यहूदियों द्वारा इसकी पूजा की जाती थी। मर्दुक "उटू का बैल" कहा जाता है। भगवान शिव की सवारी नंदी, भी एक बैल है। वृषभ राशि का प्रतीक भी पवित्र बैल है। बैल मेसोपोटामिया और मिस्र के समान चन्द्र संबंधी हो या भारत के समान सूर्य संबंधी हो, अन्य अनेकों धार्मिक और सांस्कृतिक अवतारों का आधार होता है और साथ ही साथ नवयुग की संस्कृति में आधुनिक लोगो की चर्चा में होता है।
पाषाण युग
कई में कई पुरापाषाणयुगीन यूरोपीय गुफा चित्रों में औरौक्स (एक प्रकार का जानवर) का चित्रण किया गया है, उदहारण के तौर पर वे गुफाएं जो फ़्रांस के लासकॉक्स और लिवरनॉन में पायी गयी थीं। ऐसा माना जाता है कि उनकी प्राणशक्ति में जादुई विशेषताएं थीं, क्योंकि औरौक्स के चित्र काफी प्राचीन नक्काशियों में भी पाए जाते हैं। प्रभावशील और खतरनाक औरौक्स एंतानोलिया और समीपस्थ पूर्व में लौह युग के उत्तरजीवी रहे और इस पूरे क्षेत्र में उनकी पूजा पवित्र पशु के रूप में की जाती थी; बैल की उपासना पद्धति के सर्वाधिक प्रारंभिक प्रमाण नवपाषाणयुग के कैटौलह्यूईक (तुर्क का एक पुरातात्त्विक स्थल) में मिलता है।
ताम्र युग के लोगों द्वारा बैल को वृषभ राशि के प्रतीक के रूप में मान्यता दी गयी और स्प्रिंगटाइड में कांस्य युग तक, 4000 से 1700 बीसीई (BCE) में ये नव वर्षे के भी प्रतीक माने जाने लगे.
कांस्य युग
मेसोपोटामिया
सुमरी भाषा का गिल्गामेश का महाकाव्य बुल ऑफ हैवेन, गुगालना, एरेश्किगल का पहला पति, के गिल्गामेश और एंकिडू द्वारा की गयी हत्याओं का चित्रण देवों की अवद्य के रूप में करता है। प्रारंभिक समय से ही, मेसोपोटामिया में बैल चन्द्रमा से सम्बंधित था (इसकी सींग चन्द्रमा के के अर्धचंद्र आकार को व्यक्त करतीं थीं).
मिस्र
मिस्र में, बैल की पूजा एपिस (मिस्र के देवता) के रूप में की जाती थी जोकि ताह के अवतार और ओसिरिस के उत्तरवर्ती थे। धार्मिक रूप से उत्तम बैलों की श्रृंखला की पहचान ईश्वर के पुजारियों द्वारा की जाती थी, जोकि अपना पूरा जीवन मंदिर में रहकर ही व्यतीत करते थे, मृत्यु के उपरांत इनके शव का संलेपन करके इन्हें विशाल प्रस्तर ताबूत में रख दिया जाता था। एकाश्म पत्थरों के प्रस्तरों ताबूतों की एक लम्बी श्रृंखला सेरापियम (एक धार्मिक स्थल) में स्थित थी, 1851 में सक्कारा में औगस्टे मैरियेट द्वारा इनका फिर से पता लगा. बैल की पूजा मेरवर (क्षेत्र के प्रधान देवता) के रूप में भी की जाती थी, जोकि हिलियोपोलिस में ऑटम-रा के अवतार थे। मिस्र की भाषा में का प्राणशक्ति/ऊर्जा की एक धार्मिक अवधारणा और बैल के लिए एक शब्द, दोनों के रूप में जाना जाता है।
पूर्वी एनाटोलिया
हम आठवीं सहस्राब्दी बीसीई में पूर्वी एनाटोलिया के कैटोलह्यूइक के पवित्र स्थल में संरक्षित किये गए सीन्ग्युक्त बैलों की खोपड़ी (बुकरानिया) के सम्बन्ध में कोई विशेष स्पष्टीकरण नहीं दे सकते. हैट्टीयन लोगों का पवित्र बैल, जिसकी विस्तृत प्रमाणिकता एलका ह्यूइक में पवित्र नर हिरण के साथ मिलती है, यह हुरियन और हिट्टी पौराणिक मान्यताओं में सेरी और हुर्री (दिन और रात) के रूप में अस्तित्व में रहा-अर्थात वे बैल जो ऋतुओं के देवता तेशुब के रथ को अपनी पीठ पर ले जाते थे और शहरों के खंडहरों में चरते थे।
मिनोआ
मिनोआ की सभ्यता में बैल एक प्रमुख विषय वस्तु माना जाता था और बैल का सर तथा उसके सींग नौसोस महल में प्रतीक के रूप में भी प्रयुक्त किये गए थे। मिनोआ सभ्यता के भित्तिचित्रों और मृत्तिका शिल्प में बैलों के कूदने की प्रथा का चित्रण करते हैं जिसमे दोनों ही लिंगों के प्रतिभागी बैलों की सींगों को पकड़ने के द्वारा उनके ऊपर छलांग लगाते थे। मिनोअन बैल के रूप में बाद के अवतारों के लिए देखें, "मिनोटूर एंड द बुल ऑफ क्रेट " (नीचे).
सिंधु घाटी
नंदी बैल का अस्तित्व सिन्धु घाटी सभ्यता के समय से पाया जाता है, जहां दुग्ध उत्पादन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्यवसाय था। नंदी बैल भगवान शिव की प्रमुख सवारी है और उनका प्रमुख गण (अनुगामी) भी है।
साइप्रस
साइप्रस में, धार्मिक संस्कारों के दौरान वास्तविक खोपड़ी से बना बैल का मुखौटा पहना जाता है। बैल के मुखौटे वाली टेराकोटा की बनी लघु मूर्ति और नवपाषाणयुगीन बैल की सींग वाले पत्थर की वेदी भी साइप्रस में पायी गयी है।
लेवांट
कैनन के (जो बाद में कार्थाजिनियन हो गया) देवता मोलोक को प्रायः बैल के रूप में चित्रित किया जाता था और अब्राहमिक प्रथाओं में वह बैल रूपी राक्षस बन गए।
यहूदी-ईसाई संस्कृति में बैल बाइबिल के उस प्रसंग के कारण प्रचलित है जहां आरौन द्वारा स्वर्ण बछड़े की एक प्रतिमा बनायी गयी थी और इसकी उपासना सिनाइ (निष्क्रमण) के निर्जन प्रदेश में यहूदियों द्वारा की जाती थी। हिब्रू भाषा की बाइबिल में इस प्रतिमा की ओर एक अलग ईश्वर की अभिव्यक्ति करने वाली, के रूप में संकेत किया गया है, या इसरायल के देवता को व्यक्त करने वाली प्रतिमा के रूप में, शायद ऐसा एक नए देवता को व्यक्त करने के स्थान पर मिस्र के या लेवांट के बैल देवताओं से सम्बन्ध या सामंजस्य स्थापित करने के माध्यम से हुआ था।
एक्सोडस 32:4 "उसने उनके हाथों से इसे ले लिया और इसे कब्र खोदने वाले एक उपकरण की सहायता से आकार देकर एक धातु के ढले बछड़े का रूप दे दिया; और उन्होंने कहा कि, 'यह तुम्हारा ईश्वर है, ओ इजरायल, जो तुम्हे मिस्र की धरती से लेकर आया'."
नेहेमियाह 9:18 "जब उन्होंने बछड़े के आकार कि एक प्रतिमा बनायी तब भी यह कहा कि, 'यह तुम्हारा ईश्वर है जो तुम्हे मिस्र से लेकर आया!' उन्होंने भयानक कुफ्र किये."
बाद में टनख में बछड़े की प्रतिमाओं की ओर होसिया की पुस्तक जैसे संकेत किये गए हैं, जोकि बिलकुल सटीक लगते हैं क्योंकि वे पूर्वी संस्कृति जैसी ही संस्कृति के जोड़ थे।
किंग सोलोमन का "ब्रोंज सी"-बेसिन 12 पीतल के बैलों पर खड़ा हुआ है, 1. Kings 7:25 के अनुसार.
युवा बैलों को टेल डान में सीमा चिन्हांकित करने वालों के रूप में रखा जाता था और बेथेल में इजरायल के साम्राज्य की सीमा के चिन्हांकन के रूप में.
क्रेट
यूनानियों के लिए, बैल का क्रेट के बैल से गहरा सम्बन्ध है: एथेंस के थीसस को बैल-आरूढ़ मिनोटूर ("बुल ऑफ मिनोज़ " के लिए यूनानी शब्द) का सामना करने से पहले मैराथन ("मैरथोनियन बुल ") के प्राचीन पवित्र बैल को पकड़ना पड़ा था, जिसकी कल्पना यूनानी लोग किसी भ्रमिका के केंद्र में स्थित बैल के सर वाले एक मनुष्य के रूप में करते हैं। मिनोटूर के सम्बन्ध में यह पौराणिक मान्यता है कि उसका जन्म एक महारानी और एक बैल से हुआ है, जिस कारणवश उस रजा ने अपने परिवार की के इस अपमान को छुपाने के लिए इस भ्रमिका का निर्माण किया था। एकांकी वातावरण में रहने के कारण यह बच्चा उग्र और जंगली हो गया, जिसे मारा या अपने वश में नहीं किया जा सकता था। प्राचीन कालीन मिनोआ के में भित्तिचित्र और मृत्तिका शिल्प बैलों के कूदने की एक प्रथा का चित्रण करते थे जिसमें दोनों ही लिंगों के प्रतिभागी बैलों की सींगों को पकड़ने के द्वारा उनके ऊपर छलांग लगते थे। फिर भी वाल्टर बर्कर्ट लगातार यह चेतावनी देते हैं कि, "यूनानियों की इस प्रथा का पालन कांस्य युग में सीधे करना खतरनाक हो सकता है", केवल एक ही बैल के सर वाले मिनोअन पुरुष का चित्र प्राप्त किया जा सका है, यह एक छोटी मोहर है जो चनिया के पुरातात्त्विक संग्रहालय में रखी गयी है।
हेलास
जब नव भारतीय-यूरोपीय संस्कृति के नायकों का आगमन एजियन बेसिन में हुआ, तो वे कई अवसरों पर प्राचीन पवित्र बैल का सामना किया और सदैव उसे पराजित भी किया, उन मिथकों के रूप में जो अस्तित्व में रह गए।
ओलंपियन उपासना पद्धति में, हेरा का विशेषण बो-ओपिस को आमतौर पर "बैल जैसी आँखों वाला" हेरा के रूप में अनुवादित किया जाता है लेकिन इस शब्द का प्रयोग उस अवस्था में भी इतना ही उचित होगा जब किसी देवी का सर एक गाय के समान हो, इस प्रकार यह विशेषण एक प्राचीन, हालांकि आवश्यक रूप से प्रारंभिक नहीं, प्रतिष्ठित दृष्टिकोण की उपस्थिति को प्रकट करता है. प्राचीन यूनानी इसके अतिरिक्त कभी भी हेरा कि ओर एक साधारण गाय के रूप में संकेत नहीं करते, हालांकि उनकी पुजारिन लो वस्तुतः बछिया से इतनी अधिक समानता रखती थी कि एक बार एक गो मच्छर ने उसे काट लिया था और एक बछिया के रूप में ही ज़ियास ने उसके साथ समागम किया। ज़ियास ने अपनी प्राचीन कर्त्तव्य धारण किया और समुद्र से आये हुए एक बैल के रूप में उच्च कुलीन फिनिसीयन यूरोपा को अपने साथ ले आया, जिसमे यह तथ्य अधिक उल्लेखनीय है कि वह उसे क्रेट, ले गया।
डियोनाइसस पुनर्जागरण के एक अन्य देवता थे जिनका बैल के साथ गहरा सम्बन्ध था। ओलंपिया के एक पंथ के स्तुति गीत में, हेरा के पर्व पर, डियोनाइसस को भी एक बैल के रूप में, "प्रबल बैल पाद के साथ " आने का निमंत्रण दिया गया है। "बहुधा इनका चित्रण बैल कि सींगों के साथ किया जाता है और कैज़िकोस में उनका चित्र एक बैल के आकार का है," वाल्टर बर्कर्ट एक प्राचीन मिथक कि ओर संकेत करते हैं और उसे इससे जोड़ते हैं जिसमें डियोनाइसस की हत्या एक बैल के बछड़े के रूप में कर दी जाती है और जिसे नास्तिकतापूर्वक टाइटन लोगों (असाधारण व्यक्तियों) द्वारा खा लिया जाता है।
यूनान के प्राचीन काल में, बैल और अन्य पशु जो देवताओं के रूप में अभिज्ञात थे उन्हें उनके अगाल्मा के रूप में पृथक किया जाता था, जोकि एक प्रकार की राजकीय प्रदर्शन-वस्तु है और वस्तुतः उनकी अलौकिक उपस्थिति की ओर संकेत करती है।
यूकैरिस्ट उपमाएं
वाल्टर बर्कर्ट ने देवताओं के एक अत्यधिक सुसाध्य और सुस्पष्ट पहचान के आधुनिक संशोधन को संक्षेपित किया है जोकि उनके बलि के पशु के समान था, जिसने ईसाई-यूकैरिस्ट के साथ पौराणिक वाचककारों की प्राचीन पीढ़ी के लिए सांकेतिक उपमा की शुरुआत कर दी:
जन्तुरूप देवता की अवधारणा और मुख्यतया बैल रूपी देवता की, हालांकि, जन्तुरूप में नामित, उल्लिखित, व्यक्त और उपासित देवता, देवता के रूप में उपासित एक वास्तविक जंतु, जंतु प्रतीक और उपासना पद्धति में प्रयुक्त जंतु मुखौटे और अंततः बलि के लिए निर्धारित प्रतिष्ठित जंतु के मुख्य विभेद को कुछ ज्यादा ही सुगमता से समाप्त कर देता है। मिस्र के एपिस पंथ में पायी जाने वाली जंतु उपासना यूनान में अज्ञात है। ("यूनानी धर्म," 1985).
लौह युग
रोमन साम्राज्य
बैल उन पशुओं में से एक है जो मिथरस के उत्तर हेलेनिस्ट और रोम के धार्मिक समागमकर्ता पंथ से सम्बद्ध है, जिसके अंतर्गत तारकीय बैल की ह्त्या, टॉरोकटोनी, का पंथ में स्थान उतना ही केन्द्रीय था जितना कि समकालीन ईसाइयों में सूली पर चढ़ाया जाना. टॉरोकौटनी प्रत्येक मिथ्रेइयम (अत्यधिक समान एंकिडू टॉरोकटोनी से तुलना करें) में की जाती थी। एक प्रायः विवादित सुझाव मिथारिक प्रथाओं के अवशेष को आइबेरिया और दक्षिणी फ़्रांस की बैलों की लड़ाई की प्रथा के अस्तित्व या उत्थान से जोड़ता है, जहां टूलाउज़ के संत सैटर्निनस (या सेर्निन) और कम से कम पैम्पलोना में उनके शिष्य, संत फर्मिन, अपृथक रूप से बैलों की बलि से उनके बलिदान के प्रबल ढंग से स्पष्टता के साथ जुड़े हैं, जोकि तीसरी शताब्दी सीई (CE) में ईसाई संचरित्र लेखन द्वारा स्थापित है यह वही शताब्दी है जिसमें मिथारिकवाद का व्यापक स्तर पर पालन किया जाता था।
कुछ ईसाई प्रथाओं में, क्रिसमस के दौरान यीशु के जन्म के दृश्य उकेरे जाते हैं। कई दृश्यों में नांद में लेटे बाल यीशु के पास बैल या सांड़ दिखायी पड़ते हैं। क्रिसमस के पारंपरिक गानों में प्रायः सांड़ और बन्दर द्वारा नवजात शिशु को अपनी श्वास से गर्म रखने के बारे में बताया जाता है।
फ्रांसीसी
पवित्र बैल एक प्रसिद्ध जन्तुरूपी देवता हैं। टार्वोस ट्रिगरानस (तीन क्रेन युक्त बैल) ट्रियर, जर्मनी और नौट्रे-डेम डे पेरिस के गिरिजाघर की नक्काशी पर चित्रित है। आयरिश साहित्य में महाकाव्य टेन बो कुइलग्ने ("द कैटल-रेड ऑफ कूली") में डॉन कुईल्न्गे ("ब्राउन बुल ऑफ कूली") ने केन्द्रीय भूमिका निभायी थी।
पहली शताब्दी एडी (ईसा पश्चात) में लिखने वाले प्लिनी द एल्डर फ्रांस के एक धार्मिक समारोह का वर्णन करते हैं जिसमें श्वेत वस्त्र धारण किये हुए पुरोहित एक पवित्र बलूत वृक्ष पर चढ़ जाते हैं, इस पर बढ़ती हुई अमर बेल को काट देते हैं, दो सफ़ेद सांड़ों की बलि देते हैं और अमर बेल का प्रयोग अनुर्वरता को दूर करने में करते हैं।
आयरिश पौराणिक मान्यताओं में महाकाव्य के नायक कुचुलानिन की कथाओं का वर्णन है, जो सातवीं शताब्दी सीई की "बुक ऑफ द डन काऊ" में संकलित की गयी थीं।
पुस्तक युग
उत्तरी अमेरिका
क्यूबेक की रोमांचक कहानियों में एक 8 फुट लम्बा लकड़हारा पॉल बौनजीन था, जो कनाडाई संलेखन उद्योग का शुभंकर था। वह और उसके महान नीले बैल ने ग्रेट लेक्स को जोतने में सहायता की जिससे कि उसका बैल पानी पी सके.
नोट्स
इन्हें भी देखें
कैमह्युटो
लाल बछिया
टॉरोबोलियम
धर्म में मवेशी
हिरण (पौराणिक कथा)
सन्दर्भ
बर्कर्ट, वॉल्टर, ग्रीक रेलिजियन, 1985.
कैम्पबेल, जोसेफ पश्चिमी पौराणिक कथा "2.द कन्सॉर्ट ऑफ़ द बुल", 1964.
हॉक्स, जैकुएटा; वूली, लियोनार्ड: प्री हिस्ट्री एंड द बिग्निंग्स ऑफ़ सिविलाइज़ेशन, खंड 1 (एनवाई, हार्पर एंड रो, 1963)
विएरा, मौरिस: हिटाइट, 2300-750 ई.पू. (लंदन, ए. टिरंटी, 1955)
जेरेमी बी. रूटर, द थ्री फेज़ेस ऑफ़ द टॉरोबोलियम, फ़ीनिक्स (1968).
बाहरी कड़ियाँ
कला के मेट्रोपोलिटन म्यूजियम में अलाका होयुक के कब्रों के प्रदर्शन पर बैल मानकों के उदाहरण भी शामिल है।
तुलनात्मक पौराणिक कथा
भारत और यूरोपीय पौराणिक कथा
पौराणिक गोजातीय
मध्य पूर्वी पौराणिक कथा
मीनों सभ्यता
पौराणिक कथाओं में पशु
पशु पूजा | 2,210 |
525928 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%A8%E0%A4%B2%20%E0%A4%A8%E0%A5%89%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%9C%20%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%95 | नेशनल नॉलेज नेटवर्क | नेशनल नॉलेज नेटवर्क (राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क अथवा एन॰के॰एन॰) ज्ञान से संबंधित संस्थानों के लिए एक एकीकृत उच्च गति नेटवर्क रीढ़ प्रदान कर देश के लिए एक बहु-गीगाबिट अखिल भारतीय नेटवर्क है। इसका उद्देश्य शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा इन्टरनेट उपलब्द्ध करवाना है।
परिचय
नेशनल नॉलेज नेटवर्क (राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क) ज्ञान से संबंधित संस्थानों के लिए एक एकीकृत उच्च गति नेटवर्क रीढ़ प्रदान कर देश के लिए एक बहु-गीगाबिट अखिल भारतीय नेटवर्क है।
बाहरी कड़ियाँ
सरकारी वेबसाइट | 76 |
105591 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B2%20%E0%A4%95%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%B0%20%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A8 | अब्दुल कदीर खान | डॉ॰ अब्दुल कदीर खान, (जन्मः 1 अप्रैल 1936 भोपाल, ब्रिटिश भारत) एक पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक और धातुकर्म इंजीनियर, जिन्हें पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के संस्थापक माना जाता है। इन्हें पाकिस्तान में प्यार से मोहसिन-ए-पाकिस्तान कहा जाता है।
जनवरी 2004 में खान ने पाकिस्तान के परमाणु हथियार प्रौद्योगिकी प्रसार के एक गुप्त अन्तरराष्ट्रीय नेटवर्क में लीबिया, ईरान और उत्तर कोरिया को शामिल करने की बात स्वीकार की थी। इस बात के सबूत होने के बावजूद कि परमाणु हथियार विकसित करने की दिशा में हैं कि खान और उनके नेटवर्क ने खतरनाक कुचक्र रचा था, पाकिस्तान राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने 5 फ़रवरी 2004 को कट्टरपन्थी गुटों के दबाव में क्षमादान देने की घोषणा की। तमाम आरोपों के बावजूद अब्दुल कदीर खान को पाकिस्तान में नायक के रूप में स्वीकार किया जाता है।
6 फरवरी 2009 को पाकिस्तान के इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सरदार मुहम्मद असलम ने डॉ॰ खान को एक स्वतन्त्र नागरिक घोषित करते हुए उन्हें पाकिस्तान में कहीं भी आने-जाने की स्वतन्त्रता प्रदान की।
खान, अब्दुल कदीर | 169 |
524691 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%AA%20%E0%A4%B2%E0%A4%BE | जेलेप ला | जेलेप ला हिमालय का एक पहाड़ी दर्रा है जो भारत के सिक्किम राज्य को दक्षिण तिब्बत में चुम्बी घाटी को जोड़ता है। अंतरराष्ट्रीय सीमा की भारतीय तरफ़ इस दर्रे के चरणों में प्रसिद्ध मेनमेचो झील स्थित है।
ला और दर्रा
ध्यान दें कि 'ला' शब्द तिब्बती भाषा में 'दर्रे' का अर्थ रखता है। क़ायदे से इस दर्रे को 'जेलेप दर्रा' या 'जेलेप ला' कहना चाहिये। इसे 'जेलेप ला दर्रा' कहना 'दर्रे' शब्द को दोहराने जैसा है, लेकिन यह प्रयोग फिर भी प्रचलित है।
इन्हें भी देखें
मेनमेचो झील
नाथू ला
चुम्बी घाटी
शिगात्से विभाग
सन्दर्भ
हिमालय के प्रमुख दर्रे
सिक्किम के पहाड़ी दर्रे
सिक्किम का भूगोल
भारत के पहाड़ी दर्रे
तिब्बत के पहाड़ी दर्रे | 114 |
598960 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%86%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B8%20%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%98%E0%A4%B0%20%28%E0%A4%8F%E0%A4%B2%20%E0%A4%90%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%97%E0%A5%8B%29 | सान आंद्रेस गिरजाघर (एल ऐन्तेरेगो) | सान आंद्रेस गिरजाघर (एल ऐन्तेरेगो) अस्तूरियास, स्पेन का एक गिरजाघर है।
बाहरी कड़ियाँ
Spain By Zoran Pavlovic, Reuel R. Hanks, Charles F. Gritzner
Some Account of Gothic Architecture in SpainBy George Edmund Street
Romanesque Churches of Spain: A Traveller's Guide Including the Earlier Churches of AD 600-1000 Giles de la Mare, 2010 - Architecture, Romanesque - 390 pages
A Hand-Book for Travellers in Spain, and Readers at Home: Describing the ...By Richard Ford
The Rough Guide to Spain
स्पेन के गिरजाघर
स्पेन के स्मारक | 84 |
7650 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF | पटना विश्वविद्यालय | पटना विश्वविद्यालय 1917 ई. में स्थापित बिहार का सर्वाधिक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है। यह भारतीय उपमहाद्वीप का सातवाँ सबसे पुराना स्वतंत्र विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित किया गया था। स्थापना के पूर्व इसके अंतर्गत आनेवाले महाविद्यालय कलकता विश्वविद्यालय के अंग थे। यह पटना में गंगा के किनारे अशोक राजपथ के दोनों ओर अवस्थित है। इसके प्रमुख महाविद्यालयों में सायंस कॉलेज(केवल विज्ञान की पढ़ाई), पटना कॉलेज (केवल कला विषयों की पढ़ाई), वाणिज्य महाविद्यालय, पटना (केवल वाणिज्य विषयों की पढ़ाई), बिहार नेशनल कॉलेज (बी एन कॉलेज), पटना चिकित्सा महाविद्यालय, पटना कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लॉ कालेज, पटना, मगध महिला कॉलेज तथा विमेंस कॉलेज पटनापटना ट्रेनिंग कॉलेज पटना वूमेंस ट्रेनिंग कॉलेज सहित १३ महाविद्यालय है। 1886 में स्कूल ऑफ सर्वे के रूप में स्थापित तथा 1924 में बिहार कॉलेज ऑफ़ इंज़ीनियरिंग बना अभियंत्रण शिक्षा का यह केंद्र इसी विश्वविद्यालय का एक अंग हुआ करता था जिसे जनवरी 2004 में एन आई टी का दर्जा देकर स्वतंत्र कर दिया गया।
छात्रसंघ अध्यक्ष- आनंद मोहन
छात्रसंघ कोषाध्यक्ष- रवि कांत
मिशन और दृष्टिकोण
मिशन: स्नातक, स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट अध्ययन में गुणवत्ता उच्च शिक्षा के लिए न्यायसंगत पहुंच। अनुसंधान और छात्रवृत्ति शिक्षा प्रक्रिया के अभिन्न अंग हैं। समाज और राष्ट्र की सेवा विश्वविद्यालय की ज़िम्मेदारी है और जनता के लिए अपने ज्ञान के लाभ साझा करना इसकी आधारभूत नैतिकता है।
दृष्टिकोण : सुलभ गुणवत्ता उच्च शिक्षा समावेशी विकास की आधारशिला है कि बारहवीं योजना को बढ़ावा देने की इच्छा है। बिहार को सामाजिक रूप से न्यायसंगत और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी तरीके से उच्च शिक्षा प्रदान करने के विशाल कार्य की वास्तविकता को जोड़ना है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए सुधारात्मक उपाय की आवश्यकता है। पटना विश्वविद्यालय ऐसे उपायों को लागू करने का प्रयास करेगा।
पटना विश्वविद्यालय के लिए दृष्टि विश्वविद्यालय को आधुनिक 21 वीं शताब्दी संस्थान और उत्कृष्टता का राष्ट्रीय केंद्र में बदलना है। यह भौतिक और आईसीटी बुनियादी ढांचे और मानव संसाधनों के विकास से हासिल किया जाएगा। विश्वविद्यालय सीखने का एक छात्र केंद्रित केंद्र होगा, और इसलिए, शिक्षण और अध्यापन (कौशल आधारित शिक्षा) का आधुनिकीकरण हमारा मुख्य उद्देश्य होगा। पटना विश्वविद्यालय एक अनुकूल माहौल भी प्रदान करेगा जहां उच्च गुणवत्ता वाले शोध का पीछा किया जाएगा। पटना विश्वविद्यालय समाज के कमजोर वर्गों को साक्षरता के स्वीकार्य स्तर प्राप्त करने और वंचित लोगों को कौशल प्रदान करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता के प्रति जागरूक है। विश्वविद्यालय सभी विषयों के बराबर महत्व देकर बारहवीं योजना अवधि के दौरान आगे बढ़ेगा। यह सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी), कृषि और कृषि सूचना विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी और जैव सूचना विज्ञान, प्रबंधन अध्ययन, ग्रामीण विकास, आपदा निवारण और प्रबंधन, पर्यावरण विज्ञान, पत्रकारिता और जन संचार आदि जैसे क्षेत्रों में नवीनीकृत जोर देने की उम्मीद करता है। विश्वविद्यालय नए संकाय, विभाग, केंद्र शुरू करेगा और नए स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम शुरू करेगा और इनमें से कुछ जोर क्षेत्रों में अनुसंधान शुरू करेगा। विश्वविद्यालय सामाजिक रूप से प्रासंगिक विषयों पर भी ध्यान केंद्रित करेगा और उद्देश्यपूर्ण सामाजिक परिवर्तनों को प्रभावित करने के लिए सामाजिक प्रतिबद्धता का पालन करेगा।
विश्वविद्यालय "बिहार का अध्ययन" कार्यक्रम शुरू करेगा जहां छात्र बिहार की संस्कृति, कला, साहित्य और धर्मों के बारे में अध्ययन करने में सक्षम होंगे। यह उम्मीद की जाती है कि ऐसे पाठ्यक्रम दुनिया भर के छात्रों को आकर्षित करेंगे, जो मानविकी और सामाजिक विज्ञान का अध्ययन करने के लिए हमारे विश्वविद्यालय आएंगे।
पटना विश्वविद्यालय अपने आप को उत्कृष्टता केंद्र में बदलने के लिए अपनी ताकत का फायदा उठाने का इरादा रखता है। विश्वविद्यालय विद्वानों, शिक्षकों और शोधकर्ताओं को अपने स्वयं के विषयों में उत्कृष्टता के अवसर प्रदान करेगा। यह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों, कार्यशालाओं और संगोष्ठियों का आयोजन करेगा और बिहार के स्थानीय संस्थानों के साथ-साथ अन्य भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी स्थापित करेगा। अनुसंधान, शिक्षण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के साथ बातचीत विकसित करेगा। विश्वविद्यालय एमओयू के माध्यम से इस तरह के इंटरैक्शन को औपचारिक रूप से कार्यान्वित करेगा और यह शिक्षा प्रदान करने के सेमेस्टर सिस्टम के तहत शैक्षिक सुधारों जैसे सक्रिय आधारित क्रेडिट सिस्टम को सक्रिय रूप से अपनाने का प्रयास करेगा। यह विश्वविद्यालयों के बीच छात्रों के क्रेडिट हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करेगा।
विश्वविद्यालय ई-संसाधन, वेब-आधारित दूरस्थ शिक्षा स्थापित करेगा और जनता को संसाधनों को बड़े पैमाने पर उपलब्ध कराएगा। ई-गवर्नेंस और पेपरलेस प्रशासन, जो पहले से ही विश्वविद्यालय में लागू किया गया है, को 12 वीं योजना में और मजबूत किया जाएगा। विश्वविद्यालय मानव संसाधनों को महत्व देता है। भर्ती प्रक्रिया अकादमिक उत्कृष्टता पर अधिक जोर देने के साथ जारी रहेगी क्योंकि यह कला और शिल्प संकाय में किया गया है। शिक्षकों के काम की समीक्षा करने के लिए उत्तरदायित्व, सहकर्मी और छात्र मूल्यांकन के साथ प्रदर्शन XIIth योजना के दौरान पेश किया जाएगा।
विश्वविद्यालय अलग-अलग और महिलाओं को अतिरिक्त देखभाल प्रदान करेगा। यौन उत्पीड़न को रोकने के उपाय किए जाएंगे। विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय समुदाय के इन कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने का प्रयास करेगा। विश्वविद्यालय परिसर समुदाय की सेवा के लिए विश्वविद्यालय का अपना एफएम रेडियो होगा।
विश्वविद्यालय XII वीं योजना अवधि के दौरान परीक्षा कक्ष, सभागार, और अधिक कक्षाओं, प्रयोगशालाओं और सम्मेलन कक्षों का निर्माण करेगा। यह अत्याधुनिक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग हॉल बनाएगा। विश्वविद्यालय केंद्रीय पुस्तकालय का आधुनिकीकरण करेगा और इसे पूरी तरह कंप्यूटरीकृत करेगा। विश्वविद्यालय सैयदपुर क्षेत्र में कक्षा III और IV कर्मचारियों के लिए लड़कों और लड़कियों और आवास के लिए अधिक छात्रावास प्रदान करना चाहता है। विश्वविद्यालय सैयदपुर परिसर विकसित करना चाहता है। योजना अवधि के दौरान दूरस्थ शिक्षा निदेशालय सहित नए संकाय के पार्क, खेल के मैदान और भवनों का निर्माण और विकास किया जाएगा।
विश्वविद्यालय के शिक्षकों को पटना के तेजी से उभरने वाले भारत के सबसे बड़े शहर के रूप में उचित आवास का पता लगाना मुश्किल लगता है। इसलिए विश्वविद्यालय नए संकाय के लिए नए निवास और पारगमन अपार्टमेंट बनाने का इरादा रखता है। इसी प्रकार, विश्वविद्यालय हमारे गैर-शिक्षण कर्मचारियों के लिए आवास क्वार्टर बनाने का इरादा रखता है। योग और खेल को प्रमुखता दी जाएगी और क्रेडिट सिस्टम के साथ इन गतिविधियों को विश्वविद्यालय के अकादमिक कार्यक्रम में भी एकीकृत किया जा सकता है। विश्वविद्यालय समुदाय के लिए अच्छी खानपान के फायदे को अधिकतम करने के लिए एक स्वच्छ और किफायती कैंटीन, विश्वविद्यालय छात्रावास और गेस्ट हाउस स्थापित किए जाएंगे।
मौजूदा सड़कों और इमारतों की मरम्मत की जाएगी और योजना की अवधि में नई सड़कों और इमारतों का निर्माण होगा। यूनिवर्सिटी की घरेलू जरूरतों के लिए गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के अलावा विश्वविद्यालय एक उपयुक्त अपशिष्ट प्रबंधन और जल संचयन प्रणाली विकसित करेगा। सभी नए निर्माण पर्यावरण के अनुकूल होंगे, जिसमें सौर प्रकाश व्यवस्था के प्रावधान शामिल हैं जो प्रकृति के अनुरूप रहने के लिए विश्वविद्यालय की दृष्टि की पुष्टि करेंगे।
इन्हें भी देखें
भारतीय प्रबंधन संस्थान बोध गया
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना
एम्स पटना
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
पटना विश्वविद्यालय का आधिकारिक जालस्थल
पटना
बिहार में विश्वविद्यालय और कॉलेज | 1,118 |
599397 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A5%8C%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8B%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%98%E0%A4%B0 | सान फ़ौस्तो का गिरजाघर | सान फ़ौस्तो का गिरजाघर (स्पेनी भाषा में: Capilla de San Fausto) एक गिरजाघर है जो मेजोरादा देल कम्पो (Mejorada del Campo), स्पेन में स्थित है।
इसे बिएन दे इंतेरेस कल्चरल की श्रेणी में 1997 में शामिल किया गया था।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
Spain By Zoran Pavlovic, Reuel R. Hanks, Charles F. Gritzner
Some Account of Gothic Architecture in SpainBy George Edmund Street
Romanesque Churches of Spain: A Traveller's Guide Including the Earlier Churches of AD 600-1000 Giles de la Mare, 2010 - Architecture, Romanesque - 390 pages
A Hand-Book for Travellers in Spain, and Readers at Home: Describing the ...By Richard Ford
The Rough Guide to Spain
Jenning's Landscape Annual
European architecture from earliest times to the present day Frank HoarEvans Bros., 1967 - Architecture - 293 pages
स्पेन के गिरजाघर
स्पेन के स्मारक | 134 |
1141540 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A1%202 | स्टार गोल्ड 2 | {{Infobox TV channel
| name = मूवीज़ ओके
| logo = Star Gold 2.jpg
| launch_date= 6 मई 2013 (मूवीज ओके) 1 फरवरी 2020 (स्टार गोल्ड 2)
| owner = स्टार टीवीफोक्स इंटरनेशनल समूह
| country = भारत
| language = हिन्दी
| sister_channels = स्टार इंडियालाइफ ओके
| website = आधिकारिक जालपृष्ठ
|logo_size=150px}}स्टार गोल्ड 2''' एक हिन्दी टी वी चैनल है। यह एक फिल्म चैनल है।इसे मूवीज़ ओके की जगह लॉन्च किया गया था।
इतिहास
स्टार गोल्ड 2 चैनल एक हिंदी फिल्मों का चैनल है जिसका स्वामित्व स्टार टीवी नेटवर्क के पास है।
ये चैनल पहले मूवीज ओके नाम से जाना जाता था और इसे 1 फरवरी 2012 को लॉन्च किया गया था।
मूवीज ओके 1 फरवरी 2020 के रात को स्टार गोल्ड 2 नाम से रिब्रैंड हुआ।
संदर्भ
भारत में हिन्दी टी वी चैनल | 136 |
1036970 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80 | तमसा नदी | उत्तराखण्ड में टोंस नामक नदी के लिए टोन्स नदी का लेख देखें
तमसा नदी (Tamsa River), जिसे टोंस नदी (Tons River) भी कहा जाता है, भारत के मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्यों में बहने वाली एक नदी है। यह गंगा नदी की एक उपनदी है। यह मध्य प्रदेश के मैहर जिले में कैमूर पर्वतमाला में स्थित तमसा कुण्ड नामक जलाशय से उत्पन्न होती है। उत्तर-पूर्वी दिशा में लगभग 64 किलोमीटर की पहाड़ी यात्रा के बाद यह मैदानी भाग में प्रवेश करके बेलन नदी से मिलती है। उत्तर प्रदेश में प्रयागराज से 32 किलोमीटर दूर ही सिरसा के निकट यह गंगा नदी में मिल जाती है। इसकी कुल लम्बाई लगभग 265 किलोमीटर है। इस के मार्ग में कई सुंदर जलप्रपात भी हैं।
विवरण
यह नदी मध्य प्रदेश के मैहर ज़िले के कैमोर श्रेणी में स्थित मैहर के समीप तमशाकुण्ड जलाशय से निकलकर उत्तर-पूर्व में प्रवाहित होती है तथा आगे सतना नदी इससे मिलती हैँ। पुरबा के निकट यह मैदान में उतरती हैँ। यह नदी अपने मार्ग में सुन्दर जलप्रपात बनाती हैँ। यह प्रयागराज के समीप मेजा तहसील में सिरसा नामक स्थान पर गंगा नदी में मिल जाती हैँ। वेलन इसकी सहायक नदी हैँ। इसकी लम्बाई 265 किलोमीटर हैँ। सिरसा टोंस नदी तट पर स्थित है। पहले सीतामढ़ी के निकट से बहती थी। जहा पर बाल्मिकी आश्रम है। वही पर सीता जी का समाहित स्थल भी है। जहा पर आज भी सीता जी का केश स्रपित जैसा बाल वाला घास है जो कोई भी पशु नही खाते है। वह आज भी सुरछित है। अभी यह नदी सिरसा बाजार के पास ही गंगा नदी में मिलती है।
इन्हें भी देखें
गंगा नदी
कैमूर पर्वतमाला
सन्दर्भ
मध्य प्रदेश की नदियाँ
उत्तर प्रदेश की नदियाँ
गंगा नदी की उपनदियाँ
प्राचीन भारत की नदियाँ | 289 |
736695 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%B0%20%E0%A4%9A%E0%A5%88%E0%A4%A8%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9 | कुंवर चैन सिंह | कुंवर चैन सिंह मध्य प्रदेश में भोपाल के निकट स्थित नरसिंहगढ़ रियासत के राजकुमार थे, जो 24 जुलाई 1824 को अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। 1857 के सशस्त्र स्वाधीनता संग्राम से भी लगभग 33 वर्ष पूर्व की यह घटना कुंवर चैन सिंह को इस अंचल के पहले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में प्रतिष्ठित करती है। मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 2015 से सीहोर स्थित कुंवर चैन सिंह की छतरी पर गार्ड ऑफ ऑनर प्रारम्भ किया है।
पृष्ठभूमि
सन 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भोपाल के तत्कालीन नवाब से समझौता करके सीहोर में एक हजार सैनिकों की छावनी स्थापित की। कंपनी द्वारा नियुक्त पॉलिटिकल एजेंट मैडॉक को इन फौजियों का प्रभारी बनाया गया। इस फौजी टुकड़ी का वेतन भोपाल रियासत के शाही खजाने से दिया जाता था। समझौते के तहत पॉलिटिकल एजेंट मैडॉक को भोपाल सहित नजदीकी नरसिंहगढ़, खिलचीपुर और राजगढ़ रियासत से संबंधित राजनीतिक अधिकार भी सौंप दिए गए। बाकी तो चुप रहे, लेकिन इस फैसले को नरसिंहगढ़ रियासत के युवराज कुंवर चैन सिंह ने गुलामी की निशानी मानते हुए स्वीकार नहीं किया।
अंग्रेजों से विरोध
रियासत के दीवान आनंदराम बख्शी और मंत्री रूपराम बोहरा अंग्रेजों से मिले हुए थे। यह पता चलने पर कुंवर चैन सिंह ने इन दोनों को मार दिया।
मंत्री रूपराम के भाई ने इसकी की शिकायत कलकत्ता स्थित गवर्नर जनरल से की, जिसके निर्देश पर पॉलिटिकल एजेंट मैडॉक ने कुंवर चैन सिंह को भोपाल के नजदीक बैरसिया में एक बैठक के लिए बुलाया। बैठक में मैडॉक ने कुंवर चैन सिंह को हत्या के अभियोग से बचाने के लिए दो शर्तें रखीं। पहली शर्त थी कि नरसिंहगढ़ रियासत, अंग्रेजों की अधीनता स्वीकारे। दूसरी शर्त थी कि क्षेत्र में पैदा होनेवाली अफीम की पूरी फसल सिर्फ अंग्रेजों को ही बेची जाए। कुंवर चैन सिंह द्वारा दोनों ही शर्तें ठुकरा देने पर मैडॉक ने उन्हें 24 जुलाई 1824 को सीहोर पहुंचने का आदेश दिया। अंग्रेजों की बदनीयती का अंदेशा होने के बाद भी कुंवर चैन सिंह नरसिंहगढ़ से अपने विश्वस्त साथी सारंगपुर निवासी हिम्मत खां और बहादुर खां सहित 43 सैनिकों के साथ सीहोर पहुंचे। जहां पॉलिटिकल एजेंट मैडॉक और अंग्रेज सैनिकों से उनकी जमकर मुठभेड़ हुई। कुंवर चैन सिंह और उनके मुट्ठी भर विश्वस्त साथियों ने शस्त्रों से सुसज्जित अंग्रेजों की फौज से डटकर मुकाबला किया। घंटों चली लड़ाई में अंग्रेजों के तोपखाने ओर बंदूकों के सामने कुंवर चैन सिंह और उनके जांबाज लड़ाके डटे रहे।
ऐसा कहा जाता है कि युद्ध के दौरान कुंवर चैन सिंह ने अंग्रेजों की अष्टधातु से बनी तोप पर अपनी तलवार से प्रहार किया जिससे तलवार तोप को काटकर उसमे फंस गई। मौके का फायदा उठाकर अंग्रेज तोपची ने उनकी गर्दन पर तलवार का प्रहार कर दिया जिससे कुंवर चैन सिंह की गर्दन रणभूमि में ही गिर गई और उनका स्वामीभक्त घोड़ा शेष धड़ को लेकर नरसिंहगढ़ आ गया। कुंवर चैन सिंह की धर्मपत्नी कुंवरानी राजावत जी ने उनकी याद में परशुराम सागर के पास एक मंदिर भी बनवाया जिसे हम कुंवरानी जी के मंदिर के नाम से जानते हैं।
सन्दर्भ
मध्य प्रदेश का इतिहास
मध्य प्रदेश के लोग
मालवा का इतिहास
निधन वर्ष अनुपलब्ध
भारत में ब्रिटिश राज
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी | 517 |
896010 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%B8%20%281996%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29 | माचिस (1996 फ़िल्म) | माचिस गुलज़ार द्वारा निर्देशित 1996 की एक हिन्दी फ़िल्म है, जिसके निर्माता आर.वी पंडित हैं। ओम पुरी, तब्बू, चन्द्रचूड़ सिंह और जिमी शेरगिल फ़िल्म में मुख्य भूमिकाओं में हैं। यह फ़िल्म 1980 के दशक के मध्य पंजाब में सिख विद्रोह के समय में एक सामान्य व्यक्ति के आतंकवादी बन जाने के सफर पर केंद्रित है। फ़िल्म का शीर्षक "माचिस" एक अलंकार की तरह है, जो दर्शाता है कि कोई भी युवा माचिस की तरह होता है, जो राजनीतिज्ञों या नीति-निर्माताओं की खामियों की वजह से कभी भी जल सकता है।
माचिस को समीक्षकों से सकारात्मक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई, तथा बॉक्स आफिस पर भी यह सफल रही। 2.5 करोड़ रुपये के बजट पर बनी इस फ़िल्म ने कुल 6.38 करोड़ रुपये का व्यापार किया, और इसे बॉक्स आफिस इंडिया द्वारा "एवरेज" घोषित किया गया। गुलज़ार के निर्देशन तथा विशाल भारद्वाज के संगीत फ़िल्म के प्रमुख बिंदु थे। रिलीस के कई वर्षों बाद तक भी फ़िल्म के कई गीत, प्रमुखतः "चप्पा चप्पा चरखा चले" तथा "छोड़ आये हम वो गालियां" एफएम रेडियो या टीवी पर सुने जाते थे। विशाल भारद्वाज ने भी इस फ़िल्म के बाद निर्देशन के क्षेत्र में हाथ आजमाना प्रारम्भ किया और मक़बूल, ओमकारा तथा हैदर जैसी प्रसिद्ध फिल्मों का निर्देशन किया।
कथानक
जसवंत सिंह रंधावा (राज जुत्शी) और उसकी बहन विरेन्द्र "वीरां" (तब्बू) पंजाब के एक छोटे से गांव में अपनी बुजुर्ग माता के साथ रहते हैं। कृपाल सिंह (चन्द्रचूड़ सिंह) जसवंत के बचपन का दोस्त और वीरां का मंगेतर हैं, और वह अपने दादाजी के साथ उनके घर के पास ही रहता है।
एक दिन सहायक पुलिस आयुक्त खुराना और इंस्पेक्टर वोहरा की अगुआई में पुलिस उनके गांव में जिमी (जिमी शेरगिल) की तलाश में आती है, जिसने कथित तौर पर भारतीय सांसद केदारनाथ की हत्या करने का प्रयास किया था। जसवंत मज़ाक करते हुए पुलिस को अपने कुत्ते, जिमी की तरफ ले जाता है, जिस कारण मारे अपमान के खुराना और वोहरा जसवंत को पूछताछ के लिए अपने साथ ले जाते हैं। जब जसवंत कई दिनों तक वापस नहीं आता, तो जसवंत के परिवार की देखभाल करते हुए कृपाल जसवंत को ढूंढने के लिए क्षेत्र के सभी पुलिस स्टेशनों के चक्कर काटता है। जब जसवंत अंततः 15 दिनों के बाद वापस आता है, तो पुलिस द्वारा किये गए अत्याचारों के कारण बुरी हालत में होता है, जिससे कृपाल क्रोधित हो जाता है।
पुलिस की क्रूरता से लड़ने के लिए जब कृपाल किसी भी कानूनी साधन की मदद प्राप्त करने में असमर्थ हो जाता है, तो वह अपने चचेरे भाई जीते को ढूंढने निकल जाता है, जो आतंकवादी समूहों के साथ संबंध रखता है। जीते को खोजते समय कृपाल की मुलाकात सनाथन (ओम पुरी) से होती है, जिसे वह एक बस में बम लगाते हुए देख लेता है। एक ढाबे में वह सनाथन से फिर मिलता है, जहां वह सनाथन से अपनी कहानी सुनने का आग्रह करता है। सनाथन उसे कमांडर (कुलभूषण खरबंदा) द्वारा संचालित अपने ट्रक पर यात्रा करने की सहमति दे देता है, जिसमें वह घरेलू निर्मित बमों और दो उग्रवादियों को ले जा रहा होता है। उनके ठिकाने पर पहुंचने पर, कृपाल उन्हें अपनी दुर्दशा बताता है, और तब उसे पता लगता है कि जीते को पुलिस का मुखबिर होने की वजह से कमांडर ने मार चुका होता है। कृपाल की पृष्ठभूमि, परिवार और उसकी दुर्दशा के बारे में जानने के बाद, कमांडर कृपाल को डांटते हुए कहता है कि वे लोग पेशेवर हत्यारे नहीं हैं। वह कृपाल से खुद ही खुराना को मार देने के लिए कहता है, और
साथ ही आश्वस्त करता है कि उसका समूह कृपाल की यथासंभव रक्षा करेगा।
कृपाल धीरे-धीरे बाकी समूह और सनाथन की नज़रों में सम्मान कमाता है, जो उसे बताते हैं कि वे लोग राष्ट्रवादी या धार्मिक कारणों के लिए नहीं, बल्कि अपने मूल नागरिक अधिकारों और आत्म सम्मान के लिए ये लड़ाई लड़ रहे हैं। सनाथन उसे कहता है कि वह ऐसी प्रणाली के खिलाफ लड़ रहा है, जो निर्दोष लोगों का शिकार करती है, और सामान्य लोगों के मूल्यों को कम कर देती है। बाद में कृपाल को पता चला है कि सनथान 1947 में भारत के विभाजन के साथ हुआ सांप्रदायिक हिंसा का एक उत्तरजीवी है, जिसने 1984 के सिख विरोधी दंगों में अपने अधिकांश परिवार को खो दिया था। सनाथन का दावा है कि यह केवल शासक वर्ग है, जो राजनीतिक लाभ के लिए समाज को विभाजित करने की कोशिश कर रहा है।
समूह के साथ ट्रेनिंग करते हुए कृपाल खुराणा की हत्या की योजना बनाता है। इसके एक वर्ष बाद वह एक व्यस्त बाजार में सबके सामने खुराना की हत्या कर देता है। गायब हो जाने से पहले वह जसवंत और वीरां से एक अंतिम बार मिलने जाता है। जब कृपाल समूह के ठिकाने पर वापस लौटकर आता है, तो उस जगह को खाली पाता है। कुछ दिनों तक छुपे रहने के बाद, समूह का एक सदस्य उससे संपर्क करता है, और बताता है कि कमांडर ने हिमाचल प्रदेश में समूह का नया ठिकाना बना लिया है। कमांडर कृपाल को बताता है कि पुलिस को उस पर शक हो चुका है, और वे लोग जसवंत को फिर से पूछताछ के लिए ले गए थे।
कृपाल को धीरे-धीरे पता चलता है कि सामान्य जीवन में वापसी के सभी रास्ते उसके लिए बंद हो चुके हैं, और वह उस समूह को ही अपना परिवार मानने लगता है, जो अब एक नए मिशन की तैयारी कर रहा है और एक मिसाइल फायरिंग विशेषज्ञ के आगमन का इंतजार कर रहा है। जब कृपाल स्थानीय क्षेत्र में एक नौकरी के लिए आवेदन करता है, तो सनाथन उसे चेतावनी देते हुए कहता है कि मीडिया की नजर में वह अब एक आतंकवादी है, और पुलिस अधिकारियों की नजरों में पदोन्नति का एक साधन। समूह के सदस्यों में से एक, कुलदीप का सामना पुलिस से होता है, जिसमे वह बुरी तरह से चोटिल हो जाता है। इस अनुभव से भयभीत होकर कुलदीप सनाथन से अपने घर जाने की अनुमति मांगता है, और वहां पहुंचकर कनाडा में प्रवास कर जाने का वादा करता है। सनाथन अनिच्छा से उसे सहमति दे देता है, और एक बम उसके बैग में डाल देता है, जिससे वह रास्ते में ही मर जाता है।
इस बीच, कृपाल को पता चलता है कि उसका एक साथी, जयमल सिंह ही वास्तव में जिमी है जिसकी तलाश में पुलिस उस दिन जसवंत के घर आई थी थी। इसके तुरंत बाद, मिसाइल शूटर वहां आता है और तब कृपाल को यह पता चलता है कि वह कोई और नहीं बल्कि उसकी मंगेतर वीरां है। अंततः जब उन दोनों को एक दिन अकेले समय मिलता है, तो वीरां कृपाल को बताती है कि खुराना की हत्या के बाद जसवंत को जब पूछताछ के लिए ले जाया गया था, तो वहां उसे बुरी तरह पीटा गया था, जिसके बाद उसने जेल में आत्महत्या कर ली थी। इस त्रासदी के बारे में सुनते ही उनकी मां की भी मृत्यु हो गई, और इंस्पेक्टर वोहरा रोज़ उनके घर आने लगा, जिससे परेशान होकर वीरां ने भी कृपाल के नक्शेकदम पर चलने का फैसला किया और उससे मिलने का प्रयास करने लगी। कृपाल और वीरां के बीच नज़दीकी फिर से बढ़ने लगती है।
मिशन का खुलासा सांसद केदारनाथ को मारने की साज़िश के रूप में होता है, जो अपनी पिछली स्थानीय सिख तीर्थ की यात्रा के समय जिमी के हाथों बच गया था। एक साथ रहने के दौरान, कृपाल और वीरां चुपचाप शादी करने का फैसला करते हैं, और वीरां कृपाल की साइनाइड की गोली चुपचाप चुरा लेती है, जो कि समूह के प्रत्येक सदस्य को पुलिस द्वारा पकड़े जाने की स्थिति में इस्तेमाल करने को दी गयी थी। गुप्त रूप से सिख तीर्थ का दौरा करते समय कृपाल कांस्टेल इंस्पेक्टर वोहरा को देखता है, जिसे केदारनाथ की यात्रा के लिए सुरक्षा का प्रभार दिया गया है। कृपाल उसके घर तक वोहरा का पीछा करता है, लेकिन उसे मारने का प्रयास करते हुए पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता है।
इस बीच, समूह का एक सदस्य कृपाल को वोहरा के निवास में प्रवेश करते देख लेता है। यह तर्क देते हुए कि कृपाल अगर वफादार होता, तो उसने खुद को मारने के लिए साइनाइड की गोली ले ली होती, सनाथन ने निष्कर्ष निकाला कि कृपाल एक पुलिस मुखबिर था। इसके बाद उसने वीरां पर कृपाल की मदद करने के आरोप लगाया और उस पर नज़र रखने का आदेश दिया। मिशन के दिन, सनाथन ने समूह को आगे बढ़ने का आदेश दिया और वजीरेन को वीरां को मारने के लिए कहा हालांकि, वीरां ने मुक्त टूटकर वाजिरेन को मार दिया। इस बीच, जयमल और सनाथन मिशन पर निकल पड़े। जयमल तो एक पुल पर केदार नाथ के मोटरकैड को रोकते हुए मार दिया गया, जबकि सनाथन ने केदार नाथ की कार उड़ा देने के लिए मिसाइल चला दी। कब सनाथन वहां से भाग निकलने का प्रयास करता है, तो वीरां उसका पीछा कर उसे मार देती है।
फिल्म वीरां के साथ समाप्त होती है, जो अब तक समूह के सदस्य के रूप में उजागर नहीं हुई है। वह कृपाल से मिलने जेल में जाती है, और वहां जाकर कृपाल को इसकी साइनाइड की गोली देकर अपनी वाली गोली खा लेती है।
पात्र
तब्बू - वीरेन्द्र कौर (वीरां)
चन्द्रचूड़ सिंह - कृपाल सिंह
ओम पुरी - सनाथन
कुलभूषण खरबंदा - कमांडर
कंवलजीत सिंह - इंस्पेक्टर वोहरा
एस एम ज़हीर - खुराना
राज जुत्शी - जसवंत सिंह रंधावा (जस्सी)
जिमी शेरगिल - जयमल सिंह (जिमी)
रवि गोसाईं - कुलदीप
सुनील सिंह - वज़ीर सिंह
अमरीक गिल - नानू
नवींद्र बहल - वीरां की माता
रिलीज़
फिल्म 25 अक्टूबर 1996 को रिलीज़ हुई। फिल्म को केन्द्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा बिना किसी कट के जारी कर दिया गया था, हालांकि कुछ राजनीतिज्ञों ने फिल्म की रिलीज़ पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि इसमें पंजाब में आतंकवाद का एक विकृत दृष्टिकोण दर्शाया गया है।
संगीत
परिणाम
बॉक्स ऑफिस
बॉक्स आफिस पर फ़िल्म को धीमी शुरुआत मिली। रिलीस के दिन फ़िल्म ने 5 लाख रुपये का व्यापार किया। इसके बाद दूसरे दिन और तीसरे दिन की कमाई जोड़कर फ़िल्म की पहले सप्ताहांत की कमाई 22 लाख रुपये रही। फ़िल्म ने अपने पहले सप्ताह में 43,75,000 रुपये की कमाई करी। अपने पूरे प्रदर्शन काल में फ़िल्म ने कुल 6,37,81,250 रुपये का व्यापार किया। कुल कमाई के आधार पर 2.5 करोड़ रुपये में बनी इस फ़िल्म को एवरेज घोषित किया गया।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
1996 में बनी हिन्दी फ़िल्म
प्रोजेक्ट टाइगर लेख प्रतियोगिता के अंतर्गत बनाए गए लेख | 1,708 |
769534 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%97%E0%A4%82%E0%A4%9C | सितारगंज | सितारगंज (Sitarganj) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ मण्डल के उधमसिंहनगर ज़िले में स्थित एक नगर है।
अर्थव्यवस्था
उत्तराखण्ड सरकार द्वारा वर्ष २००३ में सितारगंज के संपूर्णानंद शिविर (खुली जेल) क्षेत्र की १०९३ एकड़ भूमि पर एल्डिको सिडकुल की स्थापना की गयी थी। २००३ से २०१२ तक नौ साल में इस एल्डिको सिडकुल में करीब १४५ उद्योग स्थापित हुए। इसके वाद जुलाई २०१२ में सितारगंज में सिडकुल फेज-टू की घोषणा हुई, और २५ अक्तूबर २०१२ को संपूर्णानंद शिविर खुली जेल की १७०० एकड़ भूमि पर फेज-टू का शिलान्यास कर दिया गया। इस क्षेत्र में सिडकुल ने करीब ३२५ करोड़ रुपये की लागत से लगभग २२ किमी लंबी सड़कें, नाले, १२ एकड़ भूमि में ट्रांसपोर्ट हब, सीवर व पानी की लाइनों और तीन गेट का निर्माण किया। वर्ष २०१३ से फेज-टू में उद्योगपतियों का आना शुरू हो गया। २०१६ तक कुल सात उद्योग यहां स्थापित हो चुके हैं।
आवागमन
राष्ट्रीय राजमार्ग 9 यहाँ से निकलता है और इसे कई स्थानों से जोड़ता है।
इन्हें भी देखें
उधमसिंहनगर ज़िला
उत्तराखण्ड
सन्दर्भ
उत्तराखण्ड के नगर
उधमसिंहनगर जिला
उधमसिंहनगर ज़िले के नगर | 178 |
73308 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%B5%20%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%BE | पल्लव कला | पल्लव कला एक प्रसिद्ध प्राचीन भारतीय कला हैं। पल्लव की वास्तुकला से चार प्रमुख कला की शैलियां विकसित हुईं- (१) महेंद्रवर्मन शैली (२) मामल्ल शैली (३) राजसिंह शैली (४) अपराजित शैली|
महेंद्रवर्मन शैली- महेंद्रवर्मन शैली का विकास ६०० ई. से ६३५ ई. तक हुआ। इसके अंतर्गत महेंद्रवर्मन प्रथम के शासन में स्तम्भ युक्त मंडप बने। ये साधारण हॉल के समान है जिनकी पीछे की दिवार में एक कोठरियां बनाई गई हैं। हॉल के प्रवेश द्वार स्तंभ पंक्तियों से बनाए गए हैं। यह वस्तुएं पहाड़ियों को काट काट कर बनाई गई हैं। इसलिए इंहें गुहा मंदिरों की कोटि में रखा जाता हैं।
मामल्ल शैली- इस शैली का प्रमुख केंद्र मामल्लपुरम था। मामल्ल शैली के मंडप अपने स्थापत्य के लिए भी प्रसिद्ध हैं। पहाड़ी की चट्टानों पर गंगावतरण, शेषशायी विष्णु, महिषासुर वध,वराह अवतार और गोवर्धन धारण के दृश्य बड़ी सजीवता और सुंदरता के साथ उत्कीर्ण किए गए हैं। मामल्ल शैली के रथ 'सप्त पैगोड़ा'के नाम से प्रख्यात हैं। रथों में कुछ की छत पिरामिड के आकार की है और कुछ के ऊपर शिखर हैं।
राजसिंह शैली- इस शैली का सर्वप्रथम उदाहरण 'शोर मंदिर' हैं। पल्लव कला की प्रमुख विशेषताएँ- सिंह स्तंभ, मंडप के सुदृढ़ स्तंभ, शिखर, चार दिवारी और उसमें भीतर की ओर बने हुए छोटे-छोटे कक्ष, अलंकरण इत्यादि| यह शैली कैलाश मंदिर में पाई जाती हैं। इस शैली का और भी अधिक विकसित मंदिर बैकुंठ पेरुमाल का हैं। इसमें गर्भ ग्रह मंडप और प्रवेशद्वार सभी एक दूसरे से संबंध हैं।
अपराजित शैली- इस शैली का प्रमुख उदाहरण बाहूर का मंदिर है। पल्लव कला की इन शैलियों ने मंदिर कला के विकास में बढ़ा योगदान दिया। इनकी अनेक विशेषताएं दक्षिण पूर्वी एशिया में भी पहुंची| वृहत्तर भारत पर पल्लव कला का प्रभाव हैं। | 281 |
1443547 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%80%20%E0%A4%93%27%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B2 | किट्टी ओ'नील | Articles with hCards
किट्टी लिन ओ'नील (24 मार्च, 1946 - 2 नवंबर, 2018) एक अमेरिकी स्टंटवूमन और रेसर थीं, जिन्हें "दुनिया की सबसे तेज महिला" का खिताब दिया गया था। बचपन में एक बीमारी ने उसे बहरा बना दिया, और शुरुआती वयस्कता में अधिक बीमारियों ने प्रतिस्पर्धी डाइविंग में करियर को छोटा कर दिया। एक स्टंटवूमन और रेस ड्राइवर के रूप में ओ'नील के बाद के करियर ने एक टेलीविजन फिल्म में और एक एक्शन फिगर के रूप में उनका चित्रण किया। उनका महिलाओं का पूर्ण भूमि गति रिकॉर्ड 2019 तक बना रहा।
प्रारंभिक जीवन
किटी लिन ओ'नील का जन्म कॉर्पस क्रिस्टी, टेक्सास में 24 मार्च, 1946 को हुआ था जॉन ओ'नील, उनके पिता, यूनाइटेड स्टेट्स आर्मी एयर फ़ोर्स में एक अधिकारी थे, जो एक ऑयल वाइल्डकैटर थे। किट्टी के बचपन में एक हवाई जहाज दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। उसकी मां, पैट्सी कॉम्पटन ओ'नील, मूल निवासी चेरोकी थी। पांच महीने की उम्र में, ओ'नील को एक साथ बचपन की बीमारियाँ हो गईं, उसकी सुनने की क्षमता चली गई। दो साल की उम्र में उसकी बहरापन स्पष्ट हो जाने के बाद, उसकी माँ ने उसे लिप-रीडिंग और स्पीच सिखाई, अंततः एक स्पीच थेरेपिस्ट बन गई और विचिटा फॉल्स, टेक्सास में श्रवण हानि वाले छात्रों के लिए एक स्कूल की सह-स्थापना की।
एक किशोरी के रूप में, किट्टी एमेच्योर एथलेटिक यूनियन डाइविंग चैंपियनशिप जीतकर प्रतिस्पर्धी 10-मीटर प्लेटफॉर्म गोताखोर और 3-मीटर स्प्रिंगबोर्ड गोताखोर बन गई। उन्होंने 1962 में डाइविंग कोच सैमी ली के साथ प्रशिक्षण शुरू किया। 1964 के ओलंपिक के लिए परीक्षणों से पहले, उसने अपनी कलाई तोड़ दी और स्पाइनल मेनिन्जाइटिस का अनुबंध किया, जिससे उसकी चलने की क्षमता को खतरा पैदा हो गया और ओलंपिक डाइविंग टीम में एक स्थान के लिए उसका विवाद समाप्त हो गया। उन्होंने 1965 के ग्रीष्मकालीन डीफ्लैम्पिक्स में 100 मीटर बैकस्ट्रोक और 100 मीटर फ़्रीस्टाइल तैराकी में भाग लिया। मैनिंजाइटिस से उबरने के बाद, उसने डाइविंग में रुचि खो दी, और वाटर स्कीइंग, स्कूबा डाइविंग, स्काईडाइविंग और हैंग ग्लाइडिंग की ओर रुख किया, जिसमें कहा गया कि डाइविंग "मेरे लिए काफी डरावना नहीं था"। अपने 20 के दशक के अंत में, उन्होंने कैंसर के दो उपचार किए।
रेसिंग और स्टंट करियर
1970 तक, ओ'नील ने बाजा 500 और मिंट 400 में भाग लेते हुए पानी और जमीन पर दौड़ शुरू कर दी थी। मोटरसाइकिल दौड़ते समय वह स्टंटमैन हैल नीधम और रॉन हैम्बलटन से मिलीं, और हैम्बलटन के साथ रहीं, कुछ समय के लिए दौड़ना छोड़ दिया। 1970 के दशक के मध्य में, उसने स्टंट कार्य में प्रवेश किया, नीधम, हैम्बलटन और डार रॉबिन्सन के साथ प्रशिक्षण लिया। 1976 में, वह प्रमुख स्टंट एजेंसी स्टंट्स अनलिमिटेड के साथ प्रदर्शन करने वाली पहली महिला बनीं। एक स्टंटवुमन के रूप में, वह द बायोनिक वुमन, एयरपोर्ट '77, द ब्लूज़ ब्रदर्स, स्मोकी एंड द बैंडिट II और अन्य टेलीविज़न और मूवी प्रोडक्शन में दिखाई दीं। 1978 में, उनके स्टंट करियर ने मैटल द्वारा बनाई गई किट्टी ओ'नील एक्शन फिगर को प्रेरित किया।
वंडर वुमन के 1979 के एपिसोड के फिल्मांकन में, ओ'नील को लिंडा कार्टर के सामान्य स्टंट डबल जेनी एपेर के लिए उच्च कठिनाई का स्टंट करने के लिए काम पर रखा गया था। इस प्रक्रिया में, उन्होंने कैलिफोर्निया के शर्मन ओक्स में 12-मंजिला वैली हिल्टन में। उसने अपने छोटे आकार का श्रेय 5'-2" और , उसे प्रभाव बलों का सामना करने की अनुमति देने के लिए। बाद में उन्होंने एक हेलीकाप्टर से गिर जाते हैं। 1977 में, ओ'नील ने की गति से महिलाओं का रिकॉर्ड बनाया।, और उन्होंने 1970 में का महिला वाटर स्कीइंग रिकॉर्ड बनाया। ।
भूमि गति रिकॉर्ड
6 दिसंबर 1976 को, दक्षिणपूर्वी ओरेगन के अल्वर्ड डेजर्ट में, ओ'नील ने महिला चालकों के लिए भूमि-गति रिकॉर्ड बनाया। उसने बिल फ्रेड्रिक द्वारा निर्मित $350,000 ( 2021 में $ 1.7 मिलियन के बराबर) हाइड्रोजन पेरोक्साइड संचालित तीन-पहिए वाली रॉकेट कार का संचालन किया, जिसे "SMI प्रेरक" कहा जाता है। यह की औसत गति पर पहुंच गया, ।
ओ'नील के रनों ने कथित तौर पर उपलब्ध थ्रस्ट का 60% उपयोग किया, और ओ'नील ने अनुमान लगाया कि वह अधिक हो सकती थी। पूरी शक्ति के साथ।
प्रायोजकों द्वारा रोका गया प्रयास
अपने अनुबंध से प्रतिबंधित, ओ'नील उस समय प्रायोजकों के साथ संघर्ष कर रहा था। उन्हें केवल महिलाओं की भूमि गति रिकॉर्ड तोड़ने के लिए अनुबंधित किया गया था, और हैल नीधम को समग्र रिकॉर्ड स्थापित करने की अनुमति देने के लिए बाध्य किया गया था। उसके अनुबंध के अनुसार, उसे । नीधम के प्रायोजक, खिलौना कंपनी मार्विन ग्लास एंड एसोसिएट्स, हैल नीधम एक्शन फिगर तैयार कर रहे थे और ओ'नील द्वारा आगे रन रोकने के लिए निषेधाज्ञा प्राप्त की। एक प्रवक्ता को बताया गया था ( स्पोर्ट्स इलस्ट्रेटेड के अनुसार गलत तरीके से) यह कहना "एक महिला के लिए भूमि गति रिकॉर्ड स्थापित करने के लिए अशोभनीय और अपमानजनक है।" नीधम ने कोई रिकॉर्ड नहीं बनाया या कार भी नहीं चलाई, और ओ'नील और हैम्बलटन द्वारा ओ'नील को एक और प्रयास विफल करने का कानूनी प्रयास विफल रहा। ओ'नील को कार से हटाने के लिए प्रायोजकों को नकारात्मक प्रचार मिला, और नीधम कार्रवाई के आंकड़ों का विपणन नहीं किया गया।
बाद के वर्षों और मृत्यु
1977 में मोहावी मरुस्थल में, ओ'नील ने की औसत गति के साथ Ky Michaelson द्वारा निर्मित एक हाइड्रोजन पेरोक्साइड-संचालित रॉकेट ड्रैगस्टर का संचालन किया। । चूंकि एनएचआरए के नियमों के अनुसार रन दोहराया नहीं गया था, इसलिए इसे आधिकारिक ड्रैग रेसिंग रिकॉर्ड के रूप में मान्यता नहीं दी गई है।
1979 में, ओ'नील के अनुभवों ने स्टॉकर्ड चैनिंग अभिनीत एक जीवनी फिल्म साइलेंट विक्ट्री: द किट्टी ओ'नील स्टोरी के आधार के रूप में काम किया। ओ'नील ने टिप्पणी की कि लगभग आधी फिल्म एक सटीक चित्रण थी।
ओ'नील ने 1982 में स्टंट सहयोगियों के प्रदर्शन के दौरान मारे जाने के बाद स्टंट और स्पीड के काम से दूर हो गए। वह माइकेलसन के साथ मिनियापोलिस चली गई, और अंततः रेमंड वाल्ड के साथ यूरेका, साउथ डकोटा चली गई। जब वह सेवानिवृत्त हुईं, तो ओ'नील ने जमीन और पानी पर 22 स्पीड रिकॉर्ड बनाए थे।
2 नवंबर, 2018 को 72 साल की उम्र में यूरेका, साउथ डकोटा में निमोनिया से उनकी मृत्यु हो गई 2019 में, उन्हें ऑस्कर के इन मेमोरियम सेगमेंट में चित्रित किया गया था।
श्रद्धांजलि
24 मार्च, 2023 को, गूगल ने डूडल के साथ किटी ओ'नील का मरणोपरांत 77वां जन्मदिन मनाया।
अग्रिम पठन
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टिप्पणियाँ
संदर्भ
२०१८ में निधन
1946 में जन्मे लोग | 1,046 |
221039 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%20%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%A8%20%28%E0%A4%8F%E0%A4%82%E0%A4%9F%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%9C%E0%A4%BC%20%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%9F%20%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%9F%29 | उद्यम सामग्री प्रबंधन (एंटरप्राइज़ कंटेंट मैनेजमेंट) | उद्यम सामग्री प्रबंधन (एंटरप्राइज़ कंटेंट मैनेजमेंट - ईसीएम) किसी संगठन के दस्तावेजों और संगठन की प्रक्रियाओं से संबंधित अन्य सामग्रियों के व्यवस्थापन और भंडारण का एक औपचारिक माध्यम है। इसमें सामग्री के संपूर्ण जीवन चक्र के दौरान इस्तेमाल की गयी रणनीतियाँ, विधियाँ और उपकरण शामिल हैं।
परिभाषा
एसोसिएशन फॉर इन्फॉर्मेशन एंड इमेज मैनेजमेंट (एआईआईएम) इंटरनेशनल, उद्यम सामग्री प्रबंधन के लिए दुनिया भर में फैला एक एसोसिएशन है जिसने वर्ष 2000 में उद्यम सामग्री प्रबंधन को परिभाषित किया था। एआईआईएम ने ईसीएम के संक्षिप्त नाम को कई बार नए सिरे से परिभाषित किया है:
2005 के अंत में
उद्यम सामग्री प्रबंधन संगठनात्मक प्रक्रियाओं से संबंधित दस्तावेजों और सामग्रियों की प्राप्ति, प्रबंधन, भंडारण, संरक्षण और हस्तांतरण के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक है।
2006 की शुरुआत में
उद्यम सामग्री प्रबंधन संगठनात्मक प्रक्रियाओं से संबंधित दस्तावेजों और सामग्रियों की प्राप्ति, प्रबंधन, भंडारण, संरक्षण और हस्तांतरण के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक है।
ईसीएम उपकरण और रणनीतियाँ किसी संगठन की अव्यवस्थित जानकारियों के प्रबंधन की अनुमति देती है, जहाँ भी वह जानकारी मौजूद होती है।
2008 की शुरुआत में
उद्यम सामग्री प्रबंधन (ईसीएम) संगठनात्मक प्रक्रियाओं से संबंधित दस्तावेजों और सामग्रियों की प्राप्ति, प्रबंधन, भंडारण, संरक्षण और हस्तांतरण के लिए इस्तेमाल की जाने वाली रणनीतियाँ, विधियाँ और उपकरण है। ईसीएम उपकरण और रणनीतियाँ किसी संगठन की अव्यवस्थित जानकारियों के प्रबंधन की अनुमति देती है, जहाँ भी वह जानकारी मौजूद होती है।
इसकी नवीनतम परिभाषा में उन क्षेत्रों को शामिल किया गया है जिन्हें परंपरागत तौर पर रिकार्ड प्रबंधन और दस्तावेज़ प्रबंधन प्रणालियों द्वारा संबोधित किया जाता रहा है। इसमें कागज और माइक्रोफिल्म सहित विभिन्न डिजिटल और परंपरागत स्वरूपों के बीच आंकड़ों का रूपांतरण भी शामिल है।
इतिहास
सामग्री प्रबंधन का एक स्वरुप, उद्यम सामग्री प्रबंधन डिजिटल संग्रह, दस्तावेज़ प्रबंधन और कार्य की प्रगति के साथ दस्तावेजों की प्राप्ति, खोज और नेटवर्किंग का एक संयुक्त रूप है। इसमें विशेष रूप से किसी कंपनी के आंतरिक, अक्सर अव्यवस्थित जानकारियों को इसके सभी स्वरूपों में इस्तेमाल और संरक्षण में शामिल विशेष चुनौतियाँ सम्मिलित हैं। इसलिए ज्यादातर ईसीएम समाधान व्यवसाय-से-कर्मचारी (बी2ई) प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
जब से ईसीएम समाधान विकसित हुआ है, नए घटक उभरकर सामने आये हैं। उदाहरण के लिए, जिस तरह सामग्री अन्दर और बाहर आती-जाती है, इसका प्रत्येक बार इस्तेमाल सामग्री के बारे में एक नया मेटाडाटा तैयार कर देता है; कुछ हद तक स्वचालित रूप से; सामग्री को कब और कैसे इस्तेमाल किया गया इसके बारे में जानकारी प्रणाली को धीरे-धीरे नयी फ़िल्टर करने वाली, मार्ग निर्धारित करने वाली और खोज के मार्गों, कॉरपोरेट वर्गीकरणों और शब्दार्थ विज्ञान के नेटवर्कों और स्मरण संबंधी नियमों के फैसलों को ग्रहण करने की अनुमति देती है। जिस तरह निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में ईमेल और त्वरित संदेशों का उपयोग तेजी से बढ़ा है, इन आंकड़ों तक पहुँचने की क्षमता और व्यावसायिक फैसलों में इसके इस्तेमाल की सुविधा ईसीएम द्वारा प्रदान की जा रही है।
समाधान के जरिये कर्मचारियों को इंट्रानेट सेवाएं (बी2ई) प्रदान की जा सकती हैं और इसमें बिजनेस-से-बिजनेस (बी2बी), बिजनेस-से-सरकार (बी2जी), सरकार-से-बिजनेस (जी2बी) या अन्य व्यावसायिक संबंधों के लिए उद्यम के पोर्टल भी शामिल हो सकते हैं। इस श्रेणी में ज्यादातर ऐसे पूर्व दस्तावेज़-प्रबंधन ग्रुपवेयर और कार्य प्रगति संबंधी समाधान शामिल हैं जिन्होंने अभी तक अपनी व्यवस्था को ईसीएम के रूप में पूरी तरह रूपांतरित नहीं किया है लेकिन एक वेब इंटरफेस की सुविधा प्रदान करते हैं। डिजिटल संपत्ति प्रबंधन डिजिटल तकनीक के उपयोग से सामग्री के भंडारण से संबंधित ईसीएम का एक स्वरुप है।
ईसीएम में जो तकनीकें आज सम्मिलित की गयी हैं वे 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत की इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ प्रबंधन प्रणाली (ईडीएमएस) की अगली कड़ियाँ हैं। मूल ईडीएमएस उत्पाद स्वतंत्र उत्पाद थे जो इन चार क्षेत्रों में से एक की कार्यक्षमता प्रदान करते थे: इमेजिंग, कार्य की प्रगति, दस्तावेज़ प्रबंधन या सीओएलडी/ईआरएम (नीचे घटकों को देखें)।
विशेष प्रकार के शुरुआती ईडीएमएस एडॉप्टर ने कागज-आधारित प्रक्रिया को सुधारने और मिथक रूपी कागज़ रहित कार्यालय को अपनाने के क्रम में संभवतः सिर्फ एक एकल विभाग में लघु-स्तरीय इमेजिंग और कार्य प्रगति प्रणाली को लागू किया। पहली स्वतंत्र ईडीएमएस तकनीक समय बचाने और/या कागज़ के रख-रखाव एवं कागज़ के भंडारण को कम करते हुए जानकारियों तक पहुँच को सुधारने के लिए डिजाइन की गयी थी, जिससे कि दस्तावेजों को खोने से बचाया जा सके और तेज रफ़्तार से जानकारियाँ प्रदान की जा सके। ईडीएमएस केवल कागज, माइक्रोफिल्म या माइक्रोफीचे पर पूर्व में उपलब्ध जानकारियों तक ही ऑनलाइन पहुँच की सुविधा प्रदान कर सकती थी। ईडीएमएस ने दस्तावेजों और दस्तावेज़-उन्मुख प्रक्रियाओं पर नियंत्रण में सुधार करके समय लेने वाली व्यावसायिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित कर दिया। ईडीएमएस द्वारा तैयार ऑडिट ट्रेल ने दस्तावेज़ सुरक्षा को बढ़ाया और उपायों की उत्पादकता एवं दक्षता की पहचान में मदद के लिए मैट्रिक्स प्रदान किये।
1990 के दशक के अंत से लेकर ईडीएमएस उद्योग प्रगति के पथ पर दृढ़तापूर्वक निरंतर आगे बढ़ा जा रहा है। वैसी तकनीकें संगठनों की पसंद बनीं जिनमें स्पष्ट रूप से परिभाषित समस्याओं से निबटने के लिए लक्षित, रणनीतिक समाधान की जरूरत थी।
जैसे-जैसे समय गुजरता गया और ज्यादातर संगठनों ने इन तकनीकों के साथ उत्पादकता के "पॉकेटों" को हासिल किया, यह स्पष्ट हो गया कि विभिन्न ईडीएमएस उत्पाद की श्रेणियाँ संपूरक थीं। संगठन कई ईडीएमएस उत्पादों का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाना चाहते थे। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि एक ग्राहक सेवा विभाग - जहाँ इमेजिंग, दस्तावेज प्रबंधन और कार्य प्रगति की सुविधाओं को संयुक्त रूप से एजेंटों को ग्राहकों की जिज्ञासाओं का बेहतर तरीके से समाधान करने में इस्तेमाल किया जा सकता था। इसी तरह, कोई लेखा विभाग एक सीओएलडी /ईआरएम प्रणाली से आपूर्तिकर्ता के चालानों को प्राप्त करने, एक इमेजिंग सिस्टम से ऑर्डरों को खरीदने और कार्य प्रगति के अनुमोदन के एक हिस्से के रूप में एक दस्तावेज़ प्रबंधन प्रणाली से अनुबंधों को प्राप्त करने की सुविधा का उपयोग कर सकता है। जैसे-जैसे संगठनों ने एक इंटरनेट सेवा की मौजूदगी सुनिश्चित की, वे जानकारियों को वेब के माध्यम से प्रस्तुत करना चाहते थे जिसके लिए वेब सामग्री के प्रबंधन की आवश्यकता थी। जिन संगठनों के पास स्वचालित व्यक्तिगत विभाग मौजूद थे वे अब बड़े पैमाने पर इनका उपयोग कर व्यापक स्तर के लाभ की कल्पना करने लगे। कई दस्तावेज़ विभिन्न विभागों से होकर गुजरते हैं और अनेकों प्रक्रियाओं पर प्रभाव डालते हैं।
एकीकृत ईडीएमएस समाधान की ओर हलचल ने सॉफ्टवेयर उद्योग में केवल एक आम प्रवृत्ति को परिलक्षित किया: प्वाइंट समाधानों का अधिक व्यापक समाधानों में निरंतर एकीकरण. उदाहरण के लिए, 1990 के दशक की शुरुआत तक वर्ड प्रोसेसिंग, स्प्रेडशीट और प्रस्तुति संबंधी सॉफ्टवेयर उत्पाद स्वतंत्र उत्पादों के रूप में मौजूद थे। इसके बाद बाजार एकीकरण की ओर चले गए।
शुरुआती अग्रणियों ने पहले ही कई स्वतंत्र ईडीएमएस तकनीकों की पेशकश कर दी थी। पहला चरण थोड़े या किसी कार्यात्मक एकीकरण के बगैर एक सिंगल, पैकेज्ड "सूट" के रूप में कई प्रणालियों की पेशकश करना था। संपूर्ण 1990 के दशक के दौरान एकीकरण की वृद्धि हुई। लगभग 2001 में शुरुआत करते हुए इस उद्योग ने इन एकीकृत समाधानों को संदर्भित करने के लिए उद्यम सामग्री प्रबंधन नामक शब्दावली का प्रयोग करना शुरू कर दिया।
2006 में माइक्रोसॉफ्ट (अपने शेयरप्वाइंट प्रोडक्ट फैमिली के साथ) और ओरेकल कॉरपोरेशन (ओरेकल कंटेंट मैनेजमेंट के साथ) ने ईसीएम के "वैल्यू" मार्केट सेगमेंट में प्रवेश किया।
वेबजीयूआई, अलफ्रेस्को, सेन्सनेट, ईजेड पब्लिश, नॉलेज ट्री, जम्पर 2.0, नुक्सियो और प्लोन सहित ओपन सोर्स ईसीएम उत्पाद भी उपलब्ध हैं।
एचआईपीएए, एसएएस 70, बीएस 7799 और आईएसओ/आईईसी 27001 सहित सरकार के मानक ईसीएम के विकास और उपयोग में लाने के कारक हैं। मानकों का अनुपालन प्रमाणित सेवा प्रदाताओं के लिए आउटसोर्सिंग को आंतरिक ईसीएम के उपयोग के लिए एक व्यावहारिक विकल्प बना सकते हैं।
विशेषताएं
सामग्री प्रबंधन में ईसीएम, वेब सामग्री प्रबंधन (डब्ल्यूसीएम), सामग्री सिंडिकेशन और मीडिया संपत्ति प्रबंधन शामिल हैं। उद्यम सामग्री प्रबंधन एक क्लोज्ड-सिस्टम समाधान या एक विशिष्ट उत्पाद श्रेणी नहीं है। इसलिए दस्तावेज़ संबंधित प्रौद्योगिकियों या दस्तावेज़ जीवन चक्र प्रबंधन के साथ ईसीएम एक विस्तृत शृंखला के तकनीकों और विक्रेताओं के लिए सिर्फ एक संभव कैच-ऑल टर्म है।
आज की बाहर की ओर निर्देशित वेब पोर्टल की सामग्री और संरचना कल की आंतरिक सूचना प्रणाली के लिए एक मंच होगा। कम्प्यूटरवॉच में अपने आलेख में उलरिक कैम्फमेयर ने ईसीएम को तीन प्रमुख विचारों के रूप में संक्षेपित किया जो इस तरह के समाधानों को वेब सामग्री प्रबंधन से अलग करती हैं।
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उद्यम सामग्री प्रबंधन एकीकृत मध्यस्थ के रूप में
ईसीएम का इस्तेमाल पूर्व ऊर्ध्वाधर अनुप्रयोगों और द्वीप आर्किटेक्चर के प्रतिबंधों को दूर करने के लिए किया जाता है। उपयोगकर्ता मूलतः एक ईसीएम समाधान के उपयोग से अनजान होता है। ईसीएम वेब-आधारित आईटी की नई दुनिया के लिए अपेक्षित बुनियादी सुविधाएं प्रदान करता है, जो इसे पारंपरिक होस्ट और ग्राहक/सर्वर प्रणालियों के साथ-साथ एक तरह के तीसरे मंच के रूप में स्थापित करता है। इसलिए, ईएआई (उद्यम अनुप्रयोग एकीकरण) और एसओए (सेवा-उन्मुख आर्किटेक्चर) ईसीएम के कार्यान्वयन और उपयोग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी.
स्वतंत्र सेवाओं के रूप में उद्यम सामग्री प्रबंधन के घटक
ईसीएम का इस्तेमाल स्रोत या आवश्यक उपयोग के संबंध के बिना जानकारी का प्रबंधन करने के लिए किया जाता है। कार्यक्षमता एक सेवा के रूप में प्रदान की जाती है जिसे सभी तरह के एप्लीकेशनों के जरिये इस्तेमाल किया जा सकता है। एक सेवा की अवधारणा का लाभ यह है कि किसी भी दी गयी कार्यक्षमता के लिए केवल एक सामान्य सेवा उपलब्ध है, इस प्रकार निरर्थक, खर्चीले और रख-रखाव में मुश्किल समानांतर उपयोगिताओं से बचाव होता है। इसलिए विभिन्न सेवाओं को जोड़ने वाले इंटरफेस के मानक ईसीएम के कार्यान्वयन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.'
उद्यम सामग्री प्रबंधन सभी प्रकार की जानकारी के लिए एक सामान्य स्रोत के रूप में
ईसीएम को सामग्री के एक गोदाम के रूप में (आंकड़ों के गोदाम और दस्तावेजों के गोदाम, दोनों के रूप में) इस्तेमाल किया जाता है जो कंपनी की जानकारियों को एक समान संरचना के साथ एक संग्राहक में जोड़ती है। जानकारियों की निरंतरता के साथ महंगी निरर्थकताएं और इससे जुड़ी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। सभी एप्लीकेशन अपनी सामग्रियाँ एक एकल संग्राहक को सौंपते हैं, जिसके बदले सभी एप्लीकेशनों को आवश्यक जानकारियाँ प्रदान की जाती हैं। इसलिए सामग्री एकीकरण और आईएलएम (सूचना जीवनचक्र प्रबंधन) ईसीएम के कार्यान्वयन और उपयोग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.
</blockquote>
उद्यम सामग्री प्रबंधन तभी ठीक से काम करता है जब यह उपयोगकर्ताओं के सामने प्रभावी ढंग से "अदृश्य" रहता है। ईसीएम तकनीकें ऐसी बुनियादी सुविधाएं हैं जो अधीनस्थ सेवाओं के रूप में विशेष एप्लीकेशनों को मदद करती हैं।
इस प्रकार ईसीएम बुनियादी घटकों का एक संग्रह है जो बहु-स्तरीय मॉडल में फिट होती है और जिसमें उपयोग करने, सौंपने और व्यवस्थित आंकड़ों एवं अव्यवस्थित जानकारियों के संयुक्त रूप से प्रबंधन के लिए सभी दस्तावेज संबंधी तकनीकें (डीआरटी) शामिल होती हैं। जैसे कि उद्यम सामग्री प्रबंधन अतिरिक्त ई-व्यापार अनुप्रयोग क्षेत्र के लिए आवश्यक बुनियादी घटकों में से एक है। ईसीएम एक डब्ल्यूसीएम की सभी जानकारी के प्रबंधन की भी सुविधा देता है और एक सार्वभौमिक संग्राहक के रूप में संग्रहण की आवश्यकताओं को भी शामिल करता है।
घटक
ईसीएम उन घटकों को जोड़ता है जिन्हें एक उद्यम-आधारित प्रणाली में शामिल किये बगैर स्वतंत्र प्रणालियों के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
एआईआईएम द्वारा पहली बार पाँच ईसीएम घटकों एवं तकनीकों को कैप्चर, मैनेज, स्टोर, प्रेजर्व और डिलीवर के रूप में परिभाषित किया गया था।
कैप्चर कैप्चर में कुछ या सभी तरह का अंकीयकरण, प्रतिलिपि तैयार करना या जोड़ना, सफाई करना और दस्तावेजों का अनुक्रमण/वर्गीकरण शामिल होता है। इस्तेमाल की जा रही तकनीकों में साधारण जानकारी प्राप्त करने से लेकर स्वचालित वर्गीकरण तक शामिल होते हैं। कैप्चर के घटकों को अक्सर इनपुट घटक भी कहा जाता है।
पहले दस्तावेज़ स्वचालन प्रणालियां माइक्रोफिल्म या माइक्रोफीचे पर भंडारण के लिए दस्तावेजों की तस्वीरें खींचती थीं। ऑप्टिकल स्कैनर अब कागजी दस्तावेजों की डिजिटल प्रतियां तैयार करती हैं। डिजिटल रूप में पहले से मौजूद दस्तावेजों को कॉपी किया जा सकता है या अगर वे पहले से ऑनलाइन उपलब्ध हों तो लिंक जोड़ा जा सकता है।
ऑटोमैटिक या सेमी-ऑटोमैटिक कैप्चर, स्रोतों के रूप में ईडीआई या एक्सएमएल दस्तावेजों, बिजनेस और ईआरपी एप्लीकेशनों या मौजूदा विशेषज्ञ एप्लीकेशन प्रणालियों का इस्तेमाल कर सकती हैं।
मान्यता संबंधी तकनीकें
विभिन्न मान्यता संबंधी तकनीकों को स्कैन किए गए दस्तावेज़ों और डिजिटल फैक्सों से जानकारी निकालने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, जिनमें शामिल हैं:
ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉगनिशन (ओसीआर)
यह टाइपसेट टेक्स्ट की छवियों को अक्षरांकीय वर्णों में बदल देता है।
हस्तलिपि पहचान | हैण्डप्रिंट कैरेक्टर रिकॉगनिशन (एचसीआर)
हस्तलिखित पाठ की छवियों को अक्षरांकीय स्वरुप में बदल देता है। स्वतंत्र स्वरुप के पाठ की तुलना में निर्धारित स्थानों में छोटे पाठ के लिए बेहतर परिणाम देता है।
इंटेलिजेंट कैरेक्टर रिकॉगनिशन (आईसीआर)
मान्यता में सुधार करने के लिए सन्दर्भ सूचियों के विरुद्ध जाँच और मौजूदा मुख्य आंकड़ों की तुलना, तार्किक संबंध और मिलान में इस्तेमाल के लिए ओसीआर और एचसीआर को विस्तार देता है। उदाहरण के लिए, एक ऐसे फार्म में जहाँ संख्याओं का एक कॉलम जोड़ा गया है, पहचान की सटीकता की जाँच मान्यता प्राप्त संख्याओं को जोड़कर और उनकी तुलना मूल फार्म पर लिखे योग से करते हुए की जा सकती है।
ऑप्टिकल मार्क रिकॉगनिशन (ओएमआर)
पूर्वनिर्धारित क्षेत्रों में विशेष चिह्नों, जैसे कि चेकमार्क्स या डॉट्स को पढ़ता है।
बारकोड मान्यता
उत्पाद और अन्य वाणिज्यिक आंकड़ों के उद्योग संबंधी मानक कूट लेखनों को पढ़ता है।
इमेज क्लीनअप
इमेज क्लीनअप सुविधाओं में रोटेशन, सीधा करना, रंगों का समायोजन, प्रतिस्थापन, ज़ूम, संरेखन, पेज अलग करना, टिप्पणियाँ और डेस्पेकलिंग शामिल हैं।
फॉर्मों का प्रक्रमण
फॉर्म्स कैप्चर में तकनीकों के दो समूह मौजूद हैं, हालांकि सूचना सामग्री और दस्तावेजों का चरित्र एक समान हो सकता है। फॉर्म्स प्रोसेसिंग, स्कैनिंग के माध्यम से प्रिंटेड फॉर्मों को कैप्चर करना है; यहाँ अक्सर पहचान की तकनीकों का इस्तेमाल होता है, क्योंकि अच्छी तरह से डिजाइन किये गए फॉर्म्स काफी हद तक ऑटोमैटिक प्रोसेसिंग को सक्षम बनाते हैं। ऑटोमैटिक प्रोसेसिंग का इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मों को कैप्चर करने के लिए किया जा सकता है, जैसे कि वेब पेजों के जरिये जमा किये गए फॉर्म, जब तक कि लेआउट, संरचना, तर्क और सामग्रियों के बारे में कैप्चर प्रणाली को जानकारी होती है।
कोल्ड (सीओएलडी)
कंप्यूटर आउटपुट टू लेजर डिस्क (सीओएलडी) ईसीएम प्रणालियों द्वारा चल रहे प्रबंधन के लिए रिपोर्टों और अन्य दस्तावेजों को ऑप्टिकल डिस्कों पर या डिजिटल भंडारण के किसी भी स्वरुप में रिकॉर्ड करता है। इसके लिए एक और शब्द उद्यम रिपोर्ट प्रबंधन (ईआरएम) है। मूलतः यह तकनीक केवल लेजरडिस्कों के साथ काम करती थी; अन्य तकनीकों द्वारा लेजरडिस्क की जगह लेने के बाद भी इसका नाम नहीं बदला गया था।
समुच्चयन एकत्रीकरण दस्तावेजों को विभिन्न एप्लीकेशनों से जोड़ता है। इसका लक्ष्य विभिन्न स्रोतों से आंकड़ों को एकजुट करना और उन्हें एक समान संरचना एवं स्वरूप में भंडारण एवं प्रोसेसिंग प्रणालियों को अग्रसारित करना है।
अनुक्रमण के घटक
अनुक्रमण खोज में सुधार करता है और जानकारियों को व्यवस्थित करने के लिए वैकल्पिक तरीके से प्रदान करता है।
हस्तचालित अनुक्रमण सामग्री को हाथों से इंडेक्स डेटाबेस की विशेषताएं प्रदान करता है, विशेष रूप से प्रशासन और पहुँच के लिए एक "प्रबंध" घटक के डेटाबेस द्वारा इस्तेमाल की गयी सामग्री. हस्तचालित अनुक्रमण शामिल की जाने वाली जानकारियों को सीमित करने के लिए इनपुट डिजाइनों का इस्तेमाल कर सकती है; उदाहरण के लिए, इंट्री मास्क दस्तावेज के बारे में ज्ञात अन्य जानकारी के आधार पर प्रोग्राम लॉजिक का इस्तेमाल कर सकती है या इनपुट्स को रोक सकती है।
स्वचालित और हस्तचालित दोनों विशेषताओं के अनुक्रमण को पूर्वनिर्धारित इनपुट-डिजाइन प्रोफाइलों के साथ आसान और बेहतर बनाया जा सकता है; ये उन दस्तावेजों के वर्गों का वर्णन कर सकती हैं जो संभावित इंडेक्स मानों को सीमित करती हैं या कुछ ख़ास मानदंडों को स्वतः लागू करती हैं।
स्वचालित वर्गीकरण कार्यक्रम इंडेक्स, श्रेणी को निकाल सकते हैं और आंकड़ों को स्वतंत्र रूप से हस्तांतरित कर सकते हैं। इलेक्ट्रॉनिक सूचना संबंधी वस्तुओं में मौजूद जानकारियों के आधार पर स्वचालित वर्गीकरण या श्रेणीबद्ध करना, पूर्वनिर्धारित मानदंड या एक स्वयं-सीखने की प्रक्रिया के आधार पर जानकारियों का मूल्यांकन कर सकता है। इस तकनीक को ओसीआर-परिवर्तित फैक्सों, कार्यालय की फाइलों, या आउटपुट फाइलों के साथ प्रयोग किया जा सकता है।
प्रबंधन (मैनेज) प्रबंधन (मैनेज) श्रेणी में पाँच पारंपरिक एप्लीकेशन क्षेत्र शामिल हैं:
दस्तावेज़ प्रबंधन
सहयोग (या सहयोगात्मक सॉफ्टवेयर, उर्फ ग्रुपवेयर)
वेब सामग्री प्रबंधन (वेब पोर्टलों सहित)
रिकॉर्ड्स प्रबंधन
कार्य प्रगति और व्यवसाय प्रक्रिया प्रबंधन
प्रबंधन श्रेणी अन्य घटकों को जोड़ती है जिन्हें संयुक्त रूप से या अलग से इस्तेमाल किया जा सकता है। दस्तावेज़ प्रबंधन, वेब सामग्री प्रबंधन, सहयोग, कार्य प्रगति और व्यवसाय प्रक्रिया प्रबंधन, जानकारियों के जीवनचक्र के गतिशील हिस्से पर काम करता है। रिकॉर्ड्स प्रबंधन संगठन की दस्तावेज अवधारण नीति के अनुसार अंतिम रूप से तैयार दस्तावेजों के प्रबंधन पर ध्यान केन्द्रित करता है, जिसके बदले इसे सरकार के आदेशों और उद्योग की प्रथाओं का आवश्यक रूप से अनुपालन करना पड़ता है।
प्रबंधन के सभी घटक डेटाबेसों को शामिल करते हैं और प्रमाणन प्रणालियों तक पहुँच बनाते हैं।
प्रबंधन के घटकों की पेशकश व्यक्तिगत रूप से या सूट्स के रूप में एकीकृत कर की जाती है। कई मामलों में वे पहले से ही "स्टोर" घटकों को शामिल करते हैं।
दस्तावेज़ प्रबंधन
इस सन्दर्भ में दस्तावेज़ प्रबंधन का मतलब मोटे तौर पर निर्माण से लेकर संग्रह तक दस्तावेजों का नियंत्रण करना है। दस्तावेज़ प्रबंधन में इस तरह के कार्य शामिल हैं:
आगमन/निर्गमन
निरंतरता के लिए संचित जानकारियों के मिलान के लिए.
संस्करण प्रबंधन
एक जैसी जानकारियों के विभिन्न संस्करणों का संशोधनों और प्रस्तुतियों के साथ ध्यान रखने के लिए (एक ही जानकारी अलग-अलग स्वरुप में).
खोज और नेविगेशन
जानकारी और इससे संबंधित संदर्भों को ढूँढने के लिए.
दस्तावेजों का व्यवस्थापन
फाइल, फ़ोल्डर और ओवरव्यू जैसी संरचनाओं में.
हालाँकि, दस्तावेज़ प्रबंधन "प्रबंधन" के अन्य घटकों के साथ, ऑफिस एप्लिकेशनों जैसे कि माइक्रोसॉफ्ट आउटलुक और एक्सचेंज, या लोटस नोट्स और डोमिनो एवं सूचना भंडारण के नियंत्रण के लिए "लाइब्रेरी सेवाओं" अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जा रहा है।
सहयोग
एक ईसीएम प्रणाली में सहयोग के घटक उपयोगकर्ताओं को एक दूसरे के साथ सामग्री को विकसित करने और प्रक्रिया में लाने में मदद करते हैं। इन घटकों में से कई सहयोगात्मक सॉफ्टवेयर या ग्रुपवेयर, पैकेजों से विकसित किए गए थे; ईसीएम सहयोगी प्रणालियाँ इससे कहीं अधिक आगे बढ़ती हैं और इसमें जानकारी प्रबंधन के तत्त्व शामिल होते हैं।
ईसीएम प्रणालियाँ उन जानकारी के डेटाबेसों और प्रोसेसिंग के तरीकों का इस्तेमाल करते हुए सहयोग की सुविधा प्रदान करती हैं जो एक साथ एकाधिक उपयोगकर्ताओं द्वारा प्रयोग के लिए डिजाइन की गयी हैं, यहाँ तक कि जब वे सभी उपयोगकर्ता एक ही सामग्री आइटम पर काम कर रहे हैं। वे जानकारी आधारित योग्यताओं, संसाधनों और संयुक्त जानकारी की प्रोसेसिंग के लिए पृष्ठभूमि संबंधी आंकड़े का इस्तेमाल करते हैं। प्रशासन के घटकों जैसे कि बुद्धिशीलता के लिए वर्चुअल व्हाईटबोर्ड, अपॉइंटमेंट शेड्यूलिंग और प्रोजेक्ट प्रबंधन प्रणालियों, संचार संबंधी एप्लीकेशन जैसे कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग आदि को इसमें शामिल किया जा सकता है।
सहयोगात्मक ईसीएम अन्य एप्लिकेशनों से भी जानकारी को एकीकृत कर सकता है जिससे संयुक्त सूचना प्रोसेसिंग में मदद मिलती है।
वेब सामग्री प्रबंधन
उद्यम सामग्री प्रबंधन वेब सामग्री प्रबंधन प्रणालियों को एकीकृत कर सकता है। हालांकि, वेब के माध्यम से प्रस्तुत ईसीएम जानकारी - इंटरनेट, एक्स्ट्रानेट या एक पोर्टल पर - केवल वही डेटा होना चाहिए जो पहले से कंपनी में मौजूद है, जिसकी डिलीवरी पहुँच प्रमाणन और भंडारण द्वारा नियंत्रित होती है।
इस उद्योग में कई लोग वेब सामग्री प्रबंधन को ईसीएम के एक अभिन्न अंग के रूप में नहीं मानते हैं। सफल कार्यान्वयन के कुछ ही उदाहरण मौजूद हैं जिनसे दस्तावेजों के लिए एक साझा रिपोजिटरी (ईसीएम का मुख्य उद्देश्य) और वेब सामग्री का एक साथ प्रबंधन किया जाता है। सामग्री की संरचना तैयार करने और इसे व्यवस्थित करने के लिए बहुत अलग तरह की तकनीकों और सिद्धांतों का उपयोग आंतरिक उन्मुख दस्तावेज़ सामग्री की तुलना में बाहरी उन्मुख दस्तावेज़ सामग्री के लिए किया जाता है।
रिकॉर्ड्स प्रबंधन (फ़ाइल और संग्रह प्रबंधन)
पारंपरिक इलेक्ट्रॉनिक संग्रहण प्रणालियों के विपरीत रिकॉर्ड्स प्रबंधन का मतलब रिकॉर्डों, महत्वपूर्ण जानकारी और कंपनी के संग्रह के लिए आवश्यक डेटा का विशुद्ध नियंत्रण है। रिकॉर्ड्स प्रबंधन भंडारण मीडिया से स्वतंत्र है; प्रबंधित जानकारी को आवश्यक रूप से इलेक्ट्रॉनिक तरीके से संग्रहण की जरूरत नहीं होती है, लेकिन यह एक पारंपरिक फिजिकल मीडिया पर भी हो सकता है। रिकॉर्ड्स प्रबंधन के कार्यों में से कुछ हैं:
जानकारी के सुव्यवस्थित भंडारण के लिए फाइल संबंधी योजनाओं और अन्य संरचनात्मक इंडेक्सों का विजुअलाइजेशन
शब्दसंग्रह या नियंत्रित शब्द सूचियों द्वारा समर्थित जानकारी की सुस्पष्ट इंडेक्सिंग
रिकार्ड प्रतिधारण कार्यक्रमों और विलोपन कार्यक्रमों का प्रबंधन
अपनी विशेषताओं के अनुसार जानकारियों का संरक्षण, कभी-कभी निचले स्तर में दस्तावेज़ों में व्यक्तिगत सामग्री के घटकों तक.
सुस्पष्ट पहचान और संचित जानकारियों के विवरण के लिए अंतरराष्ट्रीय, उद्योग विशेष या कंपनी के आधार पर मानकीकृत मेटाडाटा का इस्तेमाल.
कार्य प्रगति/व्यवसाय प्रक्रिया प्रबंधन कार्य प्रगति (वर्कफ्लो) और व्यवसाय प्रक्रिया प्रबंधन काफी हद तक भिन्न होते हैं।
कार्यप्रवाह
विभिन्न प्रकार के वर्कफ़्लो हैं: प्रोडक्शन वर्कफ़्लो जो मार्गदर्शन और नियंत्रण प्रक्रियाओं के लिए पूर्वनिर्धारित अनुक्रमों का उपयोग करता है जबकि एक एड-हॉक वर्कफ्लो में उपयोगकर्ता स्वतंत्र रूप से प्रक्रिया के अनुक्रम को निर्धारित करता है।
वर्कफ्लो को वर्कफ्लो समाधानों या वर्कफ्लो इंजिनों के रूप में कार्यान्वित किया जा सकता है जो सूचना और डेटा के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए एक पृष्ठभूमि सेवा के रूप में कार्य करता है।
वर्कफ्लो प्रबंधन में निम्नलिखित कार्य शामिल हैं:
प्रक्रिया और संगठन की संरचनाओं का विजुअलाइजेशन
कैप्चर, नियंत्रण, विजुअलाइजेशन और इससे संबंधित दस्तावेजों या डेटा के साथ समूहीकृत जानकारी की डिलीवरी
डेटा प्रोसेसिंग टूल्स (जैसे कि विशिष्ट प्रकार के एप्लीकेशंस) और दस्तावेजों (जैसे कि ऑफिस प्रोडक्ट्स) को शामिल करना।
एक साथ सेविंग सहित प्रक्रियाओं की समानांतर और अनुक्रमिक प्रोसेसिंग
रिमाइंडर, डेडलाइन, प्रतिनिधित्व और अन्य प्रशासनिक कार्य
प्रक्रिया की स्थिति, मार्ग और परिणामों की निगरानी एवं प्रलेखन
प्रक्रिया की डिजाइनिंग और प्रदर्शनी के लिए टूल्स
इसका उद्देश्य है सभी आवश्यक संसाधनों को शामिल करके जितना अधिक संभव हो प्रक्रियाओं को स्वचालित बनाना.
व्यवसाय प्रक्रिया प्रबंधन
व्यवसाय प्रक्रिया प्रबंधन (बीपीएम) वर्कफ़्लो की तुलना में एक कदम आगे बढ़ जाता है। हालांकि शब्दों को अक्सर आपस में अदल-बदल कर इस्तेमाल किया जाता है, बीपीएम का लक्ष्य एक उद्यम के अंदर सभी प्रभावित एप्लीकेशनों को पूरी तरह से एकीकृत करना, प्रक्रियाओं की निगरानी और सभी आवश्यक जानकारियों की एसेम्बलिंग करना है। बीपीएम के कार्यों में शामिल हैं:
बीपीएम सर्वर के स्तर पर प्रक्रिया और डेटा की निगरानी की सुविधा देते हुए, वर्कफ़्लो की पूर्ण कार्यक्षमता प्रदान करता है। उद्यम अनुप्रयोग एकीकरण का उपयोग विभिन्न एप्लीकेशनों के साथ संबंध जोड़ने के लिए किया जाता है। नियम संरचनाओं के साथ व्यापार संबंधी कुशाग्रता, सूचना के गोदामों को एकीकृत करती है और उपयोगकर्ताओं को इनके कार्य में मदद करने वाली उपयोगिताएं प्रदान करती हैं।
स्टोर संग्रह के घटक उन जानकारियों को अस्थायी रूप से संचित करते हैं जो आवश्यक नहीं है या जिन्हें संचित करना वांछित है। यहाँ तक कि अगर संग्रह के घटक उन साधनों का उपयोग करते हैं जो दीर्घकालिक संग्रह के लिए उपयुक्त हैं, "संग्रह" अब भी "सुरक्षा" से अलग है।
संग्रह के घटकों को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है: रिपॉजिटरीज, संग्रह के स्थानों के रूप में, लाइब्रेरी सेवाएं, रिपॉजिटरीज के लिए प्रशासनिक घटकों के रूप में और संग्रह की तकनीकें . इन बुनियादी घटकों को कभी-कभी ऑपरेटिंग सिस्टम स्तर (फ़ाइल सिस्टम की तरह) पर रखा जाता है और इसमें उन सुरक्षा तकनीकों को शामिल किया जाता है जो "डिलीवर" घटकों के साथ मिलकर काम करते हैं। हालांकि पहुँच नियंत्रण सहित सुरक्षा तकनीकें एक ईसीएम समाधान के वरीयता प्राप्त घटक हैं।
रिपोजिटरीज
विभिन्न प्रकार की ईसीएम रिपोजिटरीज को संयुक्त रूप से उपयोग किया जा सकता है। संभावित प्रकारों में शामिल हैं:
फ़ाइल प्रणाली (लियाँ)
फाइल सिस्टम का इस्तेमाल मुख्य रूप से इनपुट और आउटपुट कैशों के रूप में अस्थायी भंडारण के लिए किया जाता है। ईसीएम का लक्ष्य फाइल सिस्टम पर डेटा के बोझ को कम करना और आम तौर पर प्रबंधन, संग्रह और सुरक्षा तकनीकों के जरिये जानकारियों को उपलब्ध कराना है।
सामग्री प्रबंधन प्रणाली (लियाँ)
यह सामग्री के लिए वास्तविक भंडारण और रिपोजिटरी प्रणाली है जो एक डेटाबेस या एक विशेष भंडारण प्रणाली हो सकती है।
डेटाबेस
डेटाबेस पहुँच संबंधी जानकारी को नियंत्रित करती है लेकिन इसे दस्तावेजों, सामग्री, या मीडिया परिसंपत्तियों के प्रत्यक्ष भंडारण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
डेटा वेयरहाउस
ये डेटाबेस पर आधारित जटिल भंडारण प्रणालियाँ हैं जो सभी तरह के स्रोतों से जानकारी प्रदान करती है या संदर्भित करती हैं। इन्हें ग्लोबल कार्यों जैसे कि दस्तावेज या सूचना के भंडारगृहों के रूप में भी डिजाइन किया जा सकता है।
लाइब्रेरी सेवाएं
लाइब्रेरी सेवाएं ईसीएम प्रणाली के प्रशासनिक घटक हैं जो जानकारी तक पहुँच का संचालन करते हैं। लाइब्रेरी सेवा प्राप्ति (कैप्चर) और प्रबंधन के घटकों से सूचनाओं को प्राप्त करने और संचय के लिए जिम्मेदार हैं। यह गतिशील भंडारण में भंडारण के स्थानों का प्रबंधन करता है, वास्तविक "संग्रह" और लंबे समय के संरक्षित संग्रह में. भंडारण का स्थान केवल सूचना की विशेषताओं और वर्गीकरणों द्वारा ही निर्धारित होता है। लाइब्रेरी सेवा खोज और पुनर्प्राप्ति के लिए आवश्यक कार्यों की सुविधा प्रदान करने के लिए प्रबंधन डेटाबेस के घटकों के साथ मिलकर काम करती है।
जबकि डेटाबेस को किसी संचित वस्तु के वास्तविक स्थान का पता "ज्ञात" नहीं होता है, लाइब्रेरी सेवा ऑनलाइन भंडारण (डेटा और दस्तावेजों तक प्रत्यक्ष पहुँच),
नजदीकी भंडारण (डेटा और दस्तावेजों को एक ऐसे माध्यम पर, जहाँ तेजी से पहुँचा जा सकता है लेकिन तुरंत नहीं, जैसे कि एक ऑप्टिकल डिस्क पर मौजूद डेटा जो एक भंडारण प्रणाली के रैक में मौजूद होता है लेकिन इसे वर्त्तमान में एक ऐसे ड्राइव में नहीं डाला जाता है जो इसे पढ़ सके) और ऑफलाइन भंडारण (एक ऐसे माध्यम पर मौजूद डेटा और दस्तावेज जो तुरंत उपलब्ध नहीं है, जैसे कि ऑफसाइट संचित डेटा) का प्रबंधन करती है।
अगर दस्तावेज़ प्रबंधन प्रणाली अपनी कार्यक्षमता प्रदान नहीं करती है तो नियंत्रित सूचना व्यवस्था के लिए सूचना स्थिति को नियंत्रित करने और आगमन/निर्गमन के क्रम में लाइब्रेरी सेवा के पास आवश्यक रूप से संस्करण प्रबंधन की सुविधा मौजूद होनी चाहिए।
लाइब्रेरी सेवा सूचना के उपयोग और संपादन के लॉग तैयार करती है जिसे एक "ऑडिट ट्रेल" कहा जाता है।
भंडारण की तकनीकें
एक व्यापक विविधता की तकनीकों को सूचना के संग्रह के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है जो एप्लीकेशन और प्रणाली के परिवेश पर निर्भर करता है:
मैग्नेटिक ऑनलाइन मीडिया
विशेषकर आरएआईडी प्रणालियों के रूप में निर्मित हार्ड ड्राइव स्थानीय रूप से जुड़े हो सकते हैं, स्टोरेज एरिया नेटवर्क (एसएएन) के एक हिस्से के रूप में या दूसरे सर्वर से जुड़े हुए (नेटवर्क-संलग्न भंडारण).
मैग्नेटिक टेप
मैग्नेटिक टेप डेटा भंडारण को स्वचालित भंडारण इकाइयों के रूप में टेप लाइब्रेरी कहा जाता है जो नजदीकी भंडारण की सुविधा प्रदान करने के लिए उपयोग रोबोटिक्स का इस्तेमाल करता है। स्टैंडअलोन टेप ड्राइव को बैकअप के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन ऑनलाइन पहुँच के लिए नहीं.
डिजिटल ऑप्टिकल मीडिया
एक-बार लिखने या दुबारा लिखे जाने के स्वरूपों में आम कॉम्पैक्ट डिस्क और डीवीडी के अलावा ऑप्टिकल मीडिया, संग्रहण प्रणालियाँ डेटा के भंडारण और वितरण के लिए मैग्नेटो-ऑप्टिकल ड्राइव की तरह अन्य विशिष्ट ऑप्टिकल स्वरूपों का उपयोग कर सकती हैं। ऑप्टिकल जूकबॉक्स का इस्तेमाल नीयरलाइन स्टोरेज के लिए किया जा सकता है। जूकबॉक्सों में ऑप्टिकल मीडिया को नीयरलाइन से ऑफलाइन स्टोरेज में बदल कर हटाया जा सकता है।
क्लाउड कंप्यूटिंग
डेटा को ऑफसाइट क्लाउड कंप्यूटिंग सर्वरों पर इंटरनेट के माध्यम से पहुँचकर संचित किया जा सकता है।
संरक्षण
अंततः सामग्री को बदलने से रोक दिया जाता है और यह स्थिर हो जाता है। ईसीएम के संरक्षण घटक दीर्घकालिक, सुरक्षित भंडारण और स्थिर सूचनाओं के बैकअप के साथ-साथ उन जानकारियों के अस्थायी भंडारण को संचालित करते हैं, जिन्हें संचित करने की जरूरत नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक संग्रहण एक संबंधित अवधारणा है जो ईसीएम संरक्षण घटकों की तुलना में व्यापक कार्यक्षमता रखती है। इलेक्ट्रॉनिक संग्रहण प्रणालियों में आम तौर पर प्रशासनिक सॉफ्टवेयरों का एक संयुक्त रूप शामिल होता है जैसे कि रिकॉर्ड्स प्रबंधन, इमेजिंग या दस्तावेज़ प्रबंधन, लाइब्रेरी सेवाएं या सूचना पुनर्प्राप्ति प्रणालियाँ और भंडारण संबंधी उप-प्रणालियाँ.
मीडिया के अन्य स्वरुप भी दीर्घकालिक संग्रहण के लिए उपयुक्त हैं। अगर इच्छा केवल जानकारी की भविष्य में उपलब्धता सुनिश्चित करने की है तो माइक्रोफिल्म अब भी व्यावहारिक है; कई डिजिटल रिकॉर्डों के विपरीत माइक्रोफिल्म किसी ऐसे विशेष सॉफ्टवेयर की पहुँच के बगैर पढ़ने योग्य है जिससे यह बना है। हाइब्रिड प्रणालियाँ माइक्रोफिल्म को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और डेटाबेस-समर्थित पहुँच से जोड़ती हैं।
लंबी अवधि की भंडारण प्रणालियों को निरंतर बदलते तकनीकी परिदृश्य में जानकारियों को उपलब्ध रखने के क्रम में डेटा माइग्रेशन के समयानुसार योजना निर्माण और नियमित कार्य प्रदर्शन की आवश्यकता होती है। जैसे-जैसे भंडारण तकनीकें इस्तेमाल से बाहर हो जाती हैं, जानकारियों को भंडारण के नए स्वरूपों में स्थानांतरित करना आवश्यक हो जाता है, जिससे कि समकालीन प्रणालियों का इस्तेमाल करते हुए संचित जानकारी तक पहुँच बनी रहे। उदाहरण के लिए, अगर फ्लॉपी डिस्क ड्राइव अब आसानी से उपलब्ध नहीं हैं तो फ्लॉपी डिस्क पर संचित डेटा अनिवार्य रूप से बेकार हो जाता है; फ्लॉपी डिस्क पर संचित डेटा को कम्पैक्ट डिस्क में स्थानांतरित करने से ना केवल डेटा का संरक्षण होता है बल्कि इसे प्राप्त करना भी संभव हो जाता है। इस सतत प्रक्रिया को कंटिन्युअस माइग्रेशन कहते हैं।
संरक्षण के घटकों में स्पेशल व्यूअर, रूपांतरण और माइग्रेशन टूल्स एवं दीर्घकालिक भंडारण मीडिया शामिल हैं।
दीर्घकालिक भंडारण मीडिया
वॉर्म (डब्ल्यूओआरएम) ऑप्टिकल डिस्क
राईट वन्स रीड मैनी (डब्ल्यूओआरएम) डिजिटल ऑप्टिकल भंडारण मीडिया को अनुक्रमित करती है, जिसमें एक सुरक्षात्मक स्लीव में 5.25 इंच या 3.5 इंच डब्ल्यूओआरएम डिस्क के साथ-साथ सीडी-आर और डीवीडी-आर शामिल है। इस तरह की मीडिया के लिए रिकॉर्डिंग के तरीके अलग-अलग होते हैं जो ऑनलाइन और ऑटोमेटेड नीयरलाइन एक्सेस के लिए जूकबॉक्सों में मौजूद रहते हैं।
वॉर्म (डब्ल्यूओआरएम) टेप
विशेष ड्राइवों में इस्तेमाल किये गए मैग्नेटिक टेप, जो उतनी ही सुरक्षित हो सकते हैं जितने कि ऑप्टिकल राईट वन्स, रीड मैनी मीडिया, अगर इनका इस्तेमाल विशेष रूप से सुरक्षित टेपों के साथ समुचित तरीके से किया जाए.
वॉर्म (डब्ल्यूओआरएम) हार्ड डिस्क ड्राइव
ओवरराइटिंग, विलोपन और संपादन के विरुद्ध विशेष सॉफ्टवेयर संरक्षण के साथ मैग्नेटिक डिस्क भंडारण; ऑप्टिकल राईट-वन्स, रीड-मैनी मीडिया की तरह सुरक्षा प्रदान करते हैं। इस श्रेणी में सामग्री तक पहुँच योग्य भंडारण शामिल है।
भंडारण नेटवर्क
भंडारण नेटवर्क जैसे कि नेटवर्क-संलग्न भंडारण और भंडारण क्षेत्र नेटवर्क का इस्तेमाल किया जा सकता है अगर ये अपरिवर्तनीय भंडारण और बदलाव एवं विलोपन के विरुद्ध सुरक्षा के साथ एडिट-प्रूफ ऑडिटिंग की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
माइक्रोफॉर्म
माइक्रोफॉर्म्स जैसे कि माइक्रोफिल्म माइक्रोफीचे और एपरचर कार्ड का इस्तेमाल उन सूचनाओं के बैक-अप के लिए किया जाता है जो अब उपयोग में नहीं हैं और जिनके लिए मशीन प्रोसेसिंग की आवश्यकता नहीं है। इसका इस्तेमाल विशेषकर केवल मूल रूप से मौजूद इलेक्ट्रॉनिक जानकारी की दोहरी-सुरक्षा के लिए किया जाता है।
कागज़
कागज़ को एक दीर्घ कालिक भंडारण माध्यम के रूप में अब भी इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि इसके लिए स्थानांतरण की आवश्यकता नहीं है और इसे किसी तकनीकी सहायता के बगैर पढ़ा जा सकता है। हालांकि ईसीएम प्रणालियों में इसे केवल मूल रूप से मौजूद इलेक्ट्रॉनिक जानकारी की दोहरी-सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
दीर्घकालिक संरक्षण संबंधी नीतियाँ
सूचना की दीर्घकालिक उपलब्धता सुरक्षित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक संग्रहण में विभिन्न रणनीतियों का इस्तेमाल किया जाता है।
एप्लीकेशन, इंडेक्स डेटा, मेटाडेटा और पुरानी प्रणालियों से वस्तुओं को नयी प्रणालियों में निरंतर स्थानांतरण बहुत से कार्य उत्पन्न करता है लेकिन सूचना की पहुँच और उपयोगिता सुरक्षित करता है। इस प्रक्रिया के दौरान वैसी सूचनाओं को जो अब प्रासंगिक नहीं है मिटा दिया जा सकता है। संचित जानकारियों के स्वरुप के अपडेट करने के लिए जहाँ आवश्यक हो, रूपांतरण तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है।
पुराने सॉफ्टवेयर का अनुकरण उपयोगकर्ताओं को मूल डेटा और वस्तुओं को संचालित करने और इन तक पहुँचाने की अनुमति देता है। स्पेशल व्यूअर सॉफ्टवेयर संरक्षित वस्तुओं के स्वरूप की पहचान कर सकता है और वस्तुओं को नए सॉफ्टवेयर परिवेश में प्रदर्शित कर सकता है।
जानकारी की उपलब्धता सुरक्षित करने के लिए इंटरफेस, मेटाडेटा, डेटा संरचनाओं और उद्देश्य प्रारूपों के मानक महत्वपूर्ण हैं।
डिलीवर (सौंपना)
ईसीएम के डिलीवर घटक प्रबंधन, संग्रहण, भंडारण और संरक्षण घटकों से जानकारी प्रस्तुत करते हैं। ईसीएम के लिए एआईआईएम घटक मॉडल कार्य-आधारित हैं और ये एक सख्त पदानुक्रम को लागू नहीं करते हैं; डिलीवर घटक में अन्य प्रणालियों में जानकारियों को डालने के लिए इस्तेमाल करने वाले कार्य शामिल हो सकते हैं (जैसे कि पोर्टेबल मीडिया में सूचना का स्थानांतरण या फॉरमेट की गयी आउटपुट फाइलों को तैयार करना) डिलीवर श्रेणी की कार्यक्षमता को "आउटपुट" के रूप में भी जाना जाता है; इस श्रेणी में तकनीकों को अक्सर आउटपुट प्रबंधन कहा जाता है।
डिलीवर घटक तीन समूहों में विभक्त होते हैं: रूपांतरण तकनीक, सुरक्षा तकनीक और वितरण' . सेवाओं के रूप में रूपांतरण और सुरक्षा मध्यस्थ का काम करते हैं और इन्हें सभी ईसीएम घटकों में सामान रूप से उपलब्ध होना चाहिए। आउटपुट के लिए दो कार्य मुख्य रूप से महत्वपूर्ण हैं: लेआउट और डिजाइन, रूपरेखा तैयार करने और फॉरमेटिंग आउटपुट के लिए टूल्स के साथ, वितरण और प्रकाशन'' के लिए सूचना प्रस्तुत करने वाले एप्लीकेशनों सहित.
रूपांतरण तकनीकें
रूपांतरण हमेशा नियंत्रित और पता लगाने योग्य होना चाहिए। यह कार्य पृष्ठभूमि सेवाओं के जरिये किया जाता है जिसे अंतिम उपयोगकर्ता आम तौर पर नहीं देख पाता है। रूपांतरण तकनीकों में शामिल हैं:
[[कम्प्यूटर आउटपुट से लेजर डिस्क (सीओएलडी)
कैप्चर (प्राप्ति) के चरण में इसके उपयोग के विपरीत जब डिलीवरी के लिए इसका उपयोग किया जाता है तो सीओएलडी वितरण और संग्रह में स्थानांतरण के लिए आउटपुट डेटा तैयार करता है। विशिष्ट एप्लीकेशन सूचियाँ और फॉरमेट किये गए आउटपुट हैं (उदाहरण के लिए, व्यक्तिगत ग्राहक पत्र). इन तकनीकों में ईसीएम के घटकों द्वारा तैयार जर्नल और लॉग भी शामिल होते हैं। ज्यादातर इमेजिंग मीडिया के विपरीत सीओएलडी रिकॉर्डों को एक डेटाबेस तालिका में नहीं बल्कि स्वयं दस्तावेज के अंदर विशुद्ध स्थितियों द्वारा सूचीबद्ध किया जाता है (यानी पृष्ठ 1, लाइन 82, स्थिति 12). नतीजतन सीओएलडी इंडेक्स फील्ड जमा करने के बाद संपादन के लिए उपलब्ध नहीं होते हैं जब तक कि इन्हें एक मानक डेटाबेस में परिवर्तित नहीं किया जाता है।
निजीकरण
कार्यों और उत्पादन को एक विशेष उपयोगकर्ता की जरूरतों के लिए अनुकूलित किया जा सकता है।
एक्सएमएल (एक्स्टेंसिबल मार्कअप लैंग्वेज)
कंप्यूटर की एक भाषा जो एक मानकीकृत, क्रॉस-प्लेटफॉर्म के रूप में इंटरफेस, संरचना, मेटाडेटा और दस्तावेजों के विवरण की अनुमति देता है।
पीडीएफ (पोर्टेबल दस्तावेज़ स्वरूप)
एक क्रॉस-प्लेटफॉर्म प्रिंट और वितरण का फॉरमेट इमेज फॉरमेट जैसे कि टिफ (टीआईएफएफ) के विपरीत पीडीएफ कंटेंट सर्च, मेटाडेटा के संयोजन और इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर की एम्बेडिंग की अनुमति देते हैं। इलेक्ट्रॉनिक डेटा से तैयार किये जाने पर पीडीएफ रिजॉल्यूशन के प्रति स्वतंत्र होते हैं जिसे किसी भी स्तर पर बेहतर तरीके से दुबारा तैयार किया जा सकता है।
एक्सपीएस (एक्सएमएल पेपर स्पेसिफ़िकेशन)
एक्सपीएस दस्तावेजों के वितरण, संग्रहण, रेंडरिंग और प्रोसेसिंग के लिए फौर्मेतों और नियमों की व्याख्या करने वाला, माइक्रोसॉफ्ट द्वारा विकसित एक एक्सएमएल स्पेसिफ़िकेशन.
कन्वर्टर और व्यूअर
एक सामान फॉर्मेट तैयार करने के लिए जानकारियों को पुनः फॉर्मेट करने और विभिन्न फॉर्मेटों से जानकारियों के प्रदर्शन एवं आउटपुट में मदद करता है।
संपीड़न
सचित्र जानकारी के लिए आवश्यक भंडारण स्थान को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
सिंडिकेशन
सामग्री प्रबंधन के सन्दर्भ में विभिन्न प्रारूपों, चयनों और स्वरूपों में सामग्री को पेश करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। सिंडिकेशन एक ही सामग्री को विभिन्न प्रयोजनों के लिए अलग-अलग स्वरूपों में कई बार इस्तेमाल किये जाने की अनुमति देता है।
सुरक्षा तकनीकें
सुरक्षा तकनीकें सभी ईसीएम घटकों के लिए उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए, इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर का इस्तेमाल न केवल दस्तावेजों को भेजे जाते समय किया जाता है बल्कि कैप्चर की पूर्णता को दर्ज करने के क्रम में स्कैनिंग के माध्यम से डेटा कैप्चर करने में भी होता है। पब्लिक की इन्फ्रास्ट्रक्चर इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर के लिए एक बुनियादी तकनीक है। यह कुंजियों और प्रमाणपत्रों का प्रबंधन करता है और हस्ताक्षर की प्रामाणिकता की जाँच करता है। अन्य इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रेषक की पहचान और भेजे गए डेटा की शुद्धता की पुष्टि करते हैं यानी कि यह पूर्ण और अपरिवर्तित है।
यूरोप में अलग-अलग गुणवत्ता और सुरक्षा वाले इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर के तीन स्वरुप होते हैं: सिंपल, एडवांस्ड और क्वालिफाइड. अधिकांश यूरोपीय राज्यों में क्वालिफाइड इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर कानूनी दस्तावेजों और अनुबंधों में कानूनी तौर पर मान्य हैं।
डिजिटल अधिकार प्रबंधन और वाटरमार्किंग का इस्तेमाल बौद्धिक संपदा अधिकारों और कॉपीराइट के प्रबंधन और सुरक्षा के लिए सामग्री सिंडिकेशन और मीडिया संपत्ति प्रबंधन में किया जाता है। डिजिटल अधिकार प्रबंधन इलेक्ट्रॉनिक वाटरमार्क्स जैसी तकनीकों के साथ काम करता है जिन्हें सीधे तौर पर फ़ाइल में एकीकृत किया गया होता है और जिनके लिए उपयोग के अधिकार की सुरक्षा और इंटरनेट पर प्रकाशित सामग्री की सुरक्षा की जरूरत होती है।
वितरण
उपर्युक्त सभी तकनीकें उपयोगकर्ताओं को एक ईसीएम की सामग्रियाँ विभिन्न मार्गों से एक नियंत्रित और उपयोगकर्ता-उन्मुख तरीके से प्रदान करने में मदद करती हैं। ये सक्रिय घटक हो सकते हैं जैसे कि ई-मेल, डेटा मीडिया, मेमो और वेबसाइटों एवं पोर्टल्स पर निष्क्रिय प्रकाशन, जहाँ उपयोगकर्ता जानकारियों को स्वयं प्राप्त कर सकते हैं। संभावित आउटपुट और वितरण मीडिया में शामिल हैं:
इंटरनेट
एक्स्ट्रानेट
इंट्रानेट
ई-बिजनेस पोर्टल्स
कर्मचारी के पोर्टल्स
ई-मेल
फैक्स
ईडीआई एक्सएमएल या अन्य प्रारूपों द्वारा डेटा स्थानांतरण
मोबाइल उपकरण जैसे कि मोबाइल फोन, पीडीए और अन्य
डेटा मीडिया जैसे कि सीडी और डीवीडी
डिजिटल टीवी और अन्य मल्टीमीडिया सेवाएं
कागज़
डिलीवर के विभिन्न घटक दिए गए एप्लीकेशन के लिए उपयोगकर्ताओं को जितना अधिक संभव हो इसके उपयोग को नियंत्रित करते हुए बेहतर तरीके से जानकारी प्रदान करते हैं।
ईसीएम मार्केट डेवलपमेंट
गार्टनर के अनुसार, ,
ईसीएम मार्केट में मुख्य प्रवृत्तियाँ जिन्हें आईटी आर्किटेक्टों, प्लानरों और बिजनेस लीडरों ध्यान में रखना चाहिए, निम्नलिखित हैं:
ईसीएम अब आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर का हिस्सा है
सामग्री रिपोजिटरी का एकीकरण और फेडरेशन अब महत्वपूर्ण है।
वेब चैनल तकनीकें जो बेहतर अनुभव, ग्राहक रूपांतरण और विश्वसनीयता प्रदान करते हैं, जिनपर अब कई उद्यमों द्वारा मुख्य रूप से ध्यान केंद्रित किया जाता है।
एप्लीकेशन की विशिष्टता, विकसित खरीद केन्द्रों पर आधारित
वैकल्पिक डिलीवरी मॉडल, सास (SaaS) और ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर सहित.
मेटाडेटा का प्रभाव स्पष्ट होता जा रहा है, चाहे इसे मौजूदा पेपर और डिजिटल दस्तावेज़ों से निकाला गया हो या लिखे जाते समय जोड़ा गया हो और चाहे इसे एक फॉर्मेट टेक्सोनोमी से जोड़ा गया हो या उपयोगकर्ताओं द्वारा अनौपचारिक रूप से संलग्न किया गया हो।
गैर-तकनीकी लक्ष्य के उपयोगकर्ताओं के लिए बेहतर उपयोगिता
एक खरीद केंद्र के रूप में मध्य-बाज़ार का निरंतर प्रभाव
हाइब्रिड कंटेंट आर्किटेक्चर शेयरप्वाइंट के साथ उभरकर सामने आये हैं।
2009 गार्टनर ईसीएम मैजिक क्वाड्रेंट द्वारा मान्यता प्राप्त विक्रेताओं में शामिल हैं अल्फ्रेस्को, ऑटोनोमी, डे सॉफ्टवेयर, ईएमसी, एवर टीम, फैबासोफ्ट, एचपी, हाइलैंड सॉफ्टवेयर, आईबीएम, लेजरफीचे, माइक्रोसॉफ्ट, न्यूजेन सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजीज, ऑब्जेक्टिव कॉरपोरेशन, ओपन टेक्स्ट, ओरेकल, परसेप्टिव सॉफ्टवेयर, एसएपी, सैपेरियोन, सियाव, स्प्रिंगसीएम, सनगार्ड, सिस्टमवेयर, जेरॉक्स और जायथॉस सॉफ्टवेयर.
2003 से पहले ईसीएम बाजार पर मध्यम आकार के कई स्वतंत्र विक्रेताओं का प्रभुत्व था जो दो श्रेणियों में आते थे: वैसे विक्रेता जो मूलतः दस्तावेज़ प्रबंधन कंपनियों के रूप में सामने आये थे (एडवांस्ड प्रोसेसिंग और इमेजिंग, डॉक्युमेंटम, लेजरफीचे, फ़ाइलनेट, ओपनटेक्स्ट, डीबी टेक्नोलॉजी) और अन्य एंटरप्राइज़ सामग्री के प्रबंधन को जोड़ना शुरू कर दिया था और वैसे विक्रेता जिन्होंने वेब सामग्री प्रबंधन प्रदाताओं के रूप में शुरुआत की थी (इंटरवुवन, विग्नेट, स्टेलेंट) और अन्य प्रकार की सामग्री जैसे कि व्यावसायिक दस्तावेज़ों और रिच मीडिया के प्रबंधन में अपनी शाखाएं फैलाने की कोशिशें शुरू कर दी थीं। आईबीएम और ओरेकल जैसे बड़े विक्रेताओं ने भी इस क्षेत्र में पेशकश की थी और मार्केट शेयर काफी हद तक बँटा हुआ रहा था।
2002 में डॉक्युमेंटम ने ई-रूम के अधिग्रहण के साथ सहयोग क्षमताएं जोड़ी थी जबकि इंटरवुवन और विग्नेट ने आईमैनेज और इंट्रास्पेक्ट के अपने-अपने अधिग्रहण के साथ उनका सामना किया था। इसी तरह डॉक्युमेंटम ने अपनी डिजिटल संपत्ति प्रबंधन (डीएएम) क्षमताओं के लिए बुलडॉग को खरीदा था जबकि क्षमताओं जबकि इंटरवुवन और ओपनटेक्स्ट ने मीडियाबिन और आर्टेसिया के अधिग्रहण के साथ उनका मुकाबला किया था। ओपनटेक्स्ट ने भी अपने सॉफ्टवेयर पोर्टफोलियो को किनारे करने के लिए यूरोपीय कंपनियों आईएक्सओएस और रेड डॉट का अधिग्रहण किया था। अक्टूबर 2003 में ईएमसी कॉरपोरेशन ने डॉक्युमेंटम का अधिग्रहण किया था। जल्दी ही डेटाबेस क्षेत्र में ईएमसी के प्रमुख प्रतियोगियों ने जवाब दिया जब 2006 में आईबीएम ने फ़ाइलनेट को और ओरेकल ने स्टेलेंट को खरीदा. ओपनटेक्स्ट ने भी 2006 में हमिंगबर्ड को खरीदा. ह्यूलेट-पैकर्ड (एचपी) ने 2008 में ऑस्ट्रेलियाई कंपनी टॉवर सॉफ्टवेयर के अपने अधिग्रहण के साथ ईसीएम के क्षेत्र में प्रवेश किया। मार्च 2009 में ऑटोनोमी ने इंटरवुवन को खरीदा और जुलाई 2009 में ओपन टेक्स्ट ने विग्नेट का अधिग्रहण किया।
अप्रैल 2007 में स्वतंत्र एनालिस्ट फर्म सीएमएस वॉच ने यह उल्लेख किया कि "इस बिजनेस में कुछ बड़े नाम आवश्यक रूपांतरण को अपना रहे हैं जो अगले कुछ वर्षों में रोड मैप और प्रोडक्ट सेट के हस्तांतरण का कारण बनेगा".
इसके अलावा 2007 में नुक्सियो और अल्फ्रेस्को द्वारा सप्लाई किये गए ईसीएम के लिए ओपन-सोर्स विकल्पों के उभरने का क्रम देखा गया, जिसके साथ स्प्रिंग सीएम की ओर से सॉफ्टवेयर-एज-ए-सर्विस की पेशकश की गयी। 2008 में सेन्स/नेट ने एकीकृत उद्यम सामग्री प्रबंधन (ईसीएम, ईसीएमएस) और इंटरप्राइज पोर्टल (ईपीएस) समाधान के लिए डॉट नेट (.NET) प्लेटफॉर्म पर चलने वाले दुनिया के पहले उद्यम ग्रेड, ओपन सोर्स एप्लीकेशन सूट सेन्स/नेट 6.0 को रिलीज़ किया।
कई सॉफ्टवेयर कंपनियाँ हैं जिन्होंने विशिष्ट उपयोगिताओं और सुविधाओं के साथ ईसीएम की मदद के लिए एप्लीकेशन विकसित करने की दिशा में तेजी से कदम बढाया है। कई ऐसी कंपनियां हैं जो थर्ड पार्टी डॉक्युमेंट और इमेज व्यूअर्स की सेवा प्रदान करती हैं जैसे कि लीड टेक्नोलॉजीज, एमएस टेक्नोलॉजी और एक्युसॉफ्ट. ऐसी कंपनियां भी हैं जो वर्कफ्लोज की सेवा प्रदान करती हैं जैसे कि ऑफिस जेमिनी, स्प्रिंग सीएम और डॉक एसिस्ट. कई कंपनियां ईसीएम के लिए प्लगइन्स की सुविधा भी प्रदान करती हैं।
वेब 2.0 वेव, वेब-आधारित डिलीवरी में पारंगत नए खिलाड़ियों को बाज़ार में लेकर आयी है। कोरल बॉक्स.नेट और ईकोसाइन, ये सभी एपएक्सचेंज प्लेटफॉर्म Salesforce.com पर उपलब्ध हैं जो इस प्रवृत्ति के प्रतिनिधि हैं।
गार्टनर का अनुमान है कि 2008 में ईसीएम बाजार लगभग 3.3 अरब डॉलर मूल्य का था; 2013 तक इसके 9.5 प्रतिशत की एक यौगिक वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ने की उम्मीद की गयी थी। उद्योग समेकन के एक बहुतायत के बाद, इस क्षेत्र में केवल तीन या चार प्रमुख कंपनियाँ शेष रह गयी थीं और यह उद्योग कुल मिलाकर एक सम्पूर्ण बदलाव के दौर से गुजर रही है जिस तरह माइक्रोसॉफ्ट ने सामग्री प्रबंधन के घटकों को उपभोक्ता वस्तुओं का रूप दे दिया है।
गार्टनर की 2009 की रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल 2000 कंपनियों में से 75 प्रतिशत के पास 2008 तक एक डेस्कटॉप-केन्द्रित, प्रक्रिया-केन्द्रित सामग्री प्रबंधन के कार्यान्वयन की और ईसीएम द्वारा अन्य तकनीकों जैसे कि डिजिटल संपत्ति प्रबंधन और ई-मेल प्रबंधन को ग्रहण करना जारी रखने बहुत अधिक संभावना थी। गार्टनर ने यह भी भविष्यवाणी की है कि आगे भी विक्रेताओं का प्लेटफॉर्म और समाधान प्रदाताओं में बाजार समेकन, अधिग्रहण और पृथक्करण होगा।
वर्तमान में उद्यम सूचना प्रबंधन (ईआईएम) के प्रति संगठनों की रूचि बढ़ती जा रही है और ये एक उद्यम के परिप्रेक्ष्य में सूचना प्रबंधन (चाहे व्यवस्थित हो या अव्यवस्थित) को प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं। ईआईएम, ईसीएम और व्यावसायिक बौद्धिकता को जोड़ती है।
क्लाउड सामग्री प्रबंधन, सोशल बिजनेस सॉफ्टवेयर के सहयोगी तत्वों के साथ ईसीएम के कंटेंट फोकस को जोड़ते हुए एक वेब-आधारित विकल्प के रूप में उभर रहा है।
इन्हें भी देखें
वाणिज्यिक संचालन प्रबंधन
सामग्री प्रबंधन अंतर्संक्रियात्मक सेवायें
सामग्री प्रबंधन प्रणाली
डिजिटल संपत्ति प्रबंधन
डिजिटल संरक्षण
दस्तावेज प्रबंधन प्रणाली
उद्यम सामग्री एकीकरण
सूचना विज्ञान
रिपोजिटरी ओपन सेवा इंटरफ़ेस परिभाषा
वेब सामग्री प्रबंधन प्रणाली
सामग्री प्रबंधन प्रणालियों की सूची
पादलेख
संदर्भग्रंथ
सन्दर्भ
सामग्री प्रबंधन प्रणालियां
सूचना प्रौद्योगिकी प्रबंधन
उद्यम वास्तुकला
उद्यम अनुप्रयोग एकीकरण | 7,061 |
929363 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A4%B9%20%E0%A4%85%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5 | वायुसह अवायुजीव | वायुसह अवायुजीव (Aerotolerant anaerobes) ऐसे सूक्ष्मजीव होते हैं जो किण्वन (फ़र्मेन्टेशन) द्वारा ऊर्जावान यौगिक एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट बनाने में सक्षम होते हैं। यह ऑक्सीजन का प्रयोग तो नहीं करते लेकिन स्वयं को ऑक्सीजन अणुओं की आक्रमक अभिक्रियाओं से बचाए रखने में भी सक्षम हैं। वायुसह अवायुजीव, अवायुजीवी जीवों की श्रेणी में आते हैं, लेकिन उस श्रेणी की अन्य दो उपश्रेणियों से भिन्न होते हैं, जिनमें ऑक्सीजन सहन न करने वाले अविकल्पी अवायुजीव और ऑक्सीजन के बिना जी सकने लेकिन उसकी उपस्थिति का लाभ उठा सकने वाले विकल्पी अवायुजीव शामिल हैं।
इन्हें भी देखें
अवायुजीवी जीव
सन्दर्भ
सूक्ष्मजैविकी | 96 |
1120016 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%B0%20%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BE | मोडस्टर मुपचिकवा | मोडस्टर मुपचिकवा (जन्म 19 जनवरी 1997) एक जिम्बाब्वे के क्रिकेटर हैं। उन्होंने फरवरी 2017 में महिला क्रिकेट विश्व कप क्वालीफायर 2017 में जिम्बाब्वे महिला राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के लिए खेला। नवंबर 2018 में, महिला बिग बैश लीग (डब्ल्यूबीबीएल) क्लबों के खिलाफ जुड़नार खेलने के लिए उन्हें महिला वैश्विक विकास दल में नामित किया गया था। उन्होंने 5 जनवरी 2019 को नामीबिया की महिलाओं के खिलाफ ज़िम्बाब्वे के लिए महिला ट्वेंटी-20 अंतर्राष्ट्रीय (मटी20ई) की शुरुआत की।
सन्दर्भ | 76 |
1461910 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%AD%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%A3 | स्वभक्षण | स्वभक्षण कोशिका का प्राकृतिक, संरक्षित क्षरण है जो एक लयनकाय-निर्भर विनियमित तन्त्र के माध्यम से अनावश्यक घटकों को हटा देता है। यह कोशिकीय घटकों के व्यवस्थित क्षरण और पुनर्चक्रण की अनुमति देता है। यद्यपि प्रारम्भ में अनाहार से बचाने के लिए प्रेरित एक प्रारम्भिक निम्नीकरण मार्ग के रूप में चित्रित किया गया था, यह तेजी से स्पष्ट हो गया है कि गैर-अनाहारी कोशिकाओं के समस्थापन में स्वभक्षण भी एक प्रमुख भूमिका निभाती है। स्वभक्षण में दोष विभिन्न मानव रोगों से जुड़े हुए हैं, जिनमें तंत्रिका अपविकास और कर्कट रोग शामिल हैं, और इन रोगों के सम्भावित उपचार के रूप में स्वभक्षण को संशोधित करने में रुचि तेजी से बढ़ी है।
"स्वभक्षण" शब्द अस्तित्व में था और प्रायः मध्य 19वीं शताब्दी से इसका प्रयोग किया जाता था। इसके वर्तमान प्रयोग में, लयनकाय के कार्यों की खोज के आधार पर 1963 में बेल्जियम के जीवरसायनविद् क्रिश्चियन द दुव द्वारा स्वभक्षण शब्द गढ़ा गया था।
सन्दर्भ | 153 |
598919 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%98%E0%A4%B0%20%28%E0%A4%8F%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8B%20%E0%A4%AE%E0%A4%A0%29 | सांता मारिया गिरजाघर (एरमानो मठ) | सांता मारिया गिरजाघर (एरमानो मठ) अस्तूरियास, स्पेन का एक गिरजाघर है।
बाहरी कड़ियाँ
Spain By Zoran Pavlovic, Reuel R. Hanks, Charles F. Gritzner
Some Account of Gothic Architecture in SpainBy George Edmund Street
Romanesque Churches of Spain: A Traveller's Guide Including the Earlier Churches of AD 600-1000 Giles de la Mare, 2010 - Architecture, Romanesque - 390 pages
A Hand-Book for Travellers in Spain, and Readers at Home: Describing the ...By Richard Ford
The Rough Guide to Spain
स्पेन के गिरजाघर
स्पेन के स्मारक | 84 |
1301916 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%20%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B8%20%28%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A5%80%20%E0%A4%B6%E0%A5%83%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A4%B2%E0%A4%BE%29 | मध्यरात्रि मास (टीवी शृंखला) | मिडनाइट मास एक आगामी अमेरिकी अलौकिक हॉरर स्ट्रीमिंग टेलीविजन श्रृंखला है जिसे नेटफ्लिक्स के लिए माइक फ्लैनगन द्वारा बनाया और निर्देशित किया गया है। कलाकारों में जैच गिलफोर्ड, केट सीगल और हामिश लिंकलेटर हैं। श्रृंखला एक अलग द्वीप समुदाय के आसपास केंद्रित है जो एक रहस्यमय पुजारी के आगमन के बाद अलौकिक घटनाओं का अनुभव करता है। यह सीरीज नेटफ्लिक्स द्वारा 24 सितंबर, 2021 को रिलीज होने वाली है।
सार
मिडनाइट मास एक छोटे, अलग-थलग द्वीप समुदाय की कहानी बताता है, जिसका मौजूदा विभाजन एक बदनाम युवक (ज़ैक गिलफोर्ड) की वापसी और एक करिश्माई पुजारी (हामिश लिंकलेटर) के आगमन से बढ़ा है। जब क्रॉकेट द्वीप पर फादर पॉल की उपस्थिति अस्पष्ट और प्रतीत होने वाली चमत्कारी घटनाओं के साथ मेल खाती है, तो एक नए धार्मिक उत्साह ने समुदाय को पकड़ लिया - लेकिन क्या ये चमत्कार कीमत पर आते हैं?
ढालना
मिडनाइट मास के लिए कलाकारों में शामिल हैं:
ज़ैक गिलफोर्ड रिले फ्लिन के रूप में
एरिन ग्रीन के रूप में केट सीगल
हामिश लिंकलेटर फादर पॉल के रूप में
एनाबेथ गिश के रूप में डॉ. सारा गुनिंग
माइकल ट्रूको चीफ बुलार्ड के रूप में
बेव कीन के रूप में सामंथा स्लोयन
एड फ्लिन के रूप में हेनरी थॉमस
अली हसन के रूप में राहुल अब्बूरी
क्रिस्टल Balint Debra . के रूप में
एम्मेट के रूप में मैट बीडेल
एलेक्स एसोए एमी के रूप में
शेरिफ हसन के रूप में राहुल कोहली
एनी फ्लिन के रूप में क्रिस्टिन लेहमैन
रॉबर्ट लॉन्गस्ट्रीट के रूप में जो कोली
इग्बी रिग्ने वॉरेन फ्लिन के रूप में
अन्नारा शेफर्ड
विकास
1 जुलाई, 2019 को, नेटफ्लिक्स ने 7-एपिसोड की हॉरर वेब टेलीविज़न श्रृंखला की घोषणा की, जिसमें माइक फ्लैनगन लेखक, निर्देशक और कार्यकारी निर्माता के रूप में कार्यरत थे। फरवरी 2020 में, जैच गिलफोर्ड, केट सीगल और हामिश लिंकलेटर को श्रृंखला के लिए प्रमुख भूमिकाओं के रूप में घोषित किया गया था।
उत्पादन मूल रूप से मार्च 2020 में शुरू होने वाला था, लेकिन COVID-19 महामारी के कारण इसमें देरी हुई। मिडनाइट मास ने 17 अगस्त, 2020 को वैंकूवर, कनाडा में उत्पादन में प्रवेश किया और 15 दिसंबर, 2020 को समाप्त हुआ।
रिहाई
मिडनाइट मास 24 सितंबर, 2021 को नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ होने वाली है।
संदर्भ
अंग्रेज़ी भाषा के टीवी कार्यक्रम | 367 |
773823 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6 | आंचलिक परिषद | आंचलिक परिषदों हैं सलाहकार समूहों जो भारत के राज्यों से बने हुए हैं। ये परिषदों राज्यों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए बनाया गया थे।
पंच परिषदों 1956 में स्थापित हुए थे। पूर्वोत्तर आंचलिक परिषदों 1972 में स्थापित हो गया था।
उत्तरी आंचलिक परिषद: चंडीगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, राजस्थान,दिल्ली
मध्य आंचलिक परिषद: बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड
पूर्वोत्तर आंचलिक परिषद: अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैण्ड, सिक्किम, त्रिपुरा
पूर्वी आंचलिक परिषद:झारखण्ड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल
पश्चिमी आंचलिक परिषद: दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र
दक्षिणी आंचलिक परिषद: आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, पुदुच्चेरी, तमिल नाडु, तेलंगाना
अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह और लक्षद्वीप दक्षिणी आंचलिक परिषद के विशेष आमंत्रितों हैं।
इन्हें भी देखें
प्रशासनिक प्रभाग भारत के
सन्दर्भ
भारत सरकार | 128 |
496485 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A8-%E0%A4%A8%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A5%82%E0%A4%A6%20%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8 | अन-नफ़ूद रेगिस्तान | अन-नफ़ूद (अरबी: , सहरा अन-नफ़ूद ; अंग्रेज़ी: An-Nafud) या अल-नफ़ूद या नफ़ूद अरबी प्रायद्वीप में स्थित एक बड़ा रेगिस्तान है। इसका क्षेत्रफल १,०३,००० वर्ग किमी है, यानि लगभग भारत के बिहार राज्य से ज़रा बड़ा। नफ़ूद एक अर्ग है, जिसमें ज़बरदस्त हवाएँ अचानक चल पड़ती हैं। इस वजह से यह क्षेत्र अर्धचन्द्र अकार के टीलों से भरा हुआ है। यहाँ की रेत का रंग थोड़ा लाल है।
विवरण
नफ़ूद में बारिश साल में एक या दो बार गिरती है। कुछ निचले क्षेत्रों में नख़लिस्तान (ओएसिस) हैं जहाँ खजूर, जौ, सब्ज़ियाँ और फल उगाए जाते हैं। ऐसे कुछ क्षेत्र हिजाज़ पहाड़ियों के पास स्थित हैं। नफ़ूद अद दहना के ज़रिये रुब अल-ख़ाली क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। दहना एक पतला (केवल २५-५० किमी चौड़ाई वाला) और १,२०० किमी लम्बा रेत के टीलों और कंकर-बजरी से भरा क्षेत्र है। नफ़ूद को कभी-कभी रेत का समुद्र (sand sea) भी कहते हैं।
इन्हें भी देखें
अरबी रेगिस्तान
रुब अल-ख़ाली
सउदी अरब
सन्दर्भ
सउदी अरब
सउदी अरब के मरुस्थल
सऊदी अरब का भूगोल | 168 |
476158 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A4%BC%E0%A5%80%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE | वाख़ी भाषा | वाख़ी (वाख़ी: ख़ीक ज़िक; फ़ारसी: ; अंग्रेज़ी: Wakhi) पूर्वी ईरानी भाषा-परिवार की पामीरी उपशाखा की एक भाषा है। इसे पूर्वोत्तरी अफ़्ग़ानिस्तान के वाख़ान क्षेत्र और उसे से लगे चीन, पाकिस्तान और ताजिकिस्तान के इलाकों में बोला जाता है। इसे बोलने वालों की संख्या लगभग ३०,००० है।
भाषा का नाम
हालांकि वाख़ी का नाम वाख़ान क्षेत्र में बसने वाले वाख़ी लोगों पर पड़ा है, लेकिन वे स्वयं अपनी भाषा को 'ख़ीक ज़िक' बुलाते हैं। वाख़ी लोग अपने समुदाय को 'ख़ीक' बुलाते हैं और 'ख़ीक ज़िक' का मतलब 'ख़ीक भाषा' है। 'वाख़ी' और 'ख़ीक' शब्दों में 'ख़' अक्षर के उच्चारण पर ध्यान दें क्योंकि यह बिना बिन्दु वाले 'ख' से ज़रा भिन्न है। इसका उच्चारण 'ख़राब' और 'ख़रीद' के 'ख़' से मिलता है।
इन्हें भी देखें
वाख़ान
पामीरी भाषाएँ
पामीर पर्वत
पूर्वी ईरानी भाषाएँ
सन्दर्भ
पामीरी भाषाएँ
पूर्वी ईरानी भाषाएँ
ईरानी भाषाएँ
मध्य एशिया की भाषाएँ
हिन्द-ईरानी भाषाएँ
वाख़ान | 147 |
550893 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%89%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9F%20%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B8 | रॉबर्ट बर्न्स | राबर्ट बर्न्स (Robert Burns ; 25 जनवरी 1759 – 21 जुलाई 1796) स्कॉटलैण्ड का कवि था। अधिकांश लोग उसे स्कॉटलैण्ड का राष्ट्रीय कवि मानते हैं। उसकी रचनाएँ 'स्कॉट्स भाषा' में हैं किन्तु उसने अंग्रेजी और स्कॉट भाषा की एक बोली में भी रचनाएँ की हैं।
परिचय
रॉबर्ट बर्न्स का जन्म २५ जनवरी सन् १७५९ को एल्लोवे नामक स्थान पर हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बिल्कुल अल्प एवं अनियमित थी, किंतु पुस्तकें पढ़ने में वह बहुत तन्मय रहते थे और १६ वर्ष की अवस्था में ही उस समय प्रचलित ललित शिक्षा के अनेक तत्वों को वह ग्रहण कर चुके थे। उनके ऊपर पड़े प्रारंभिक प्रभावों के अंतर्गत कहानियों, बिरहों और गीतों का नाम लिया जा सकता है। सन् १७८१ में बर्न्स ने अपने भाई के साथ एक छोटे फॉर्म की व्यवस्था की किंतु उसका परिणाम अत्यंत दु:खद सिद्ध हुआ और अपनी असफलता का कटु अनुभव कर अपनी मातृभूमि छोड़ वह जमैका जाने के लिए उद्यत हुए। किंतु यात्रा के लिए उनके पास धन नहीं था, एतदर्थ उन्होंने १७८६ ई. में अपनी कविताओं का प्रसिद्ध और अमूल्य किलमार्नाक संस्करण प्रकाशित कराया जिससे उनकी प्रशंसा बहुत बढ़ गई। दूसरे संस्करण के प्रकाशनार्थ वह एडिनबरा गए जहाँ साहित्यिक केंद्रों के प्रवर विद्वानों ने उनका अभूतपूर्व स्वागत किया। उनके इस दूसरे संस्करण से उन्हें धन की अच्छी प्राप्ति हुई, फलत: उन्होंने एलिसलैंड का फार्म हस्तगत कर लिया, जहाँ वे अपनी पत्नी जीन आर्मर के साथ सन् १७८८ से रहने लगे। सन् १७८९ में उनकी नियुक्ति आबकारी विभाग के कार्यकर्ता के पद पर हुई। किंतु दूसरी बार भी कृषि में असफलता मिलने पर वे हफ्रींज़ चले गए जहाँ उन्होंने अपने आबकारी वेतन पर ही जीवनयापन करने निश्चय किया। उनका वेतन ७० पौंड वार्षिक से अधिक न हो सका। युवावस्था के प्रारंभ में ही वह नारी सौंदर्य के प्रति जागरूक थे। स्वास्थ्य और सौभाग्य में पूर्णत: क्षीण रॉबर्ट बर्न्स का जीवन ३७ वर्ष तक बहुत अस्तव्यस्त रहा। गठिया ज्वर के कारण २१ जुलाई १७९६ को उनकी मृत्यु हो गई।
बर्न्स की काव्यकृतियों में 'टैम औ' शांटर शीर्षक एक कथा, 'दी काटर्स सैटर्डे नाइट' नामक एक वर्णनात्मक बृहद् कविता, दो सौ से अधिक ही अनेक प्रकार के गीत और विपुल संख्या में लिखे उनके छोटे काव्यपत्र, व्यंगात्मक कविताएँ, चुटकुले, शोकगीत तथा अन्य प्रकार के विविध पद्य सम्मिलित हैं। 'टैम औ' शांटर, जैसा बर्न्स ने स्वयं कहा है, उनकी सर्वोत्कृष्ट रचना है। कविता अलंकृत भाव में लिखी हुई अत्यंत सुंदर प्रेमकथा है। यह हास्य और मानवता के तत्वों से ओतप्रोत है। उनकी सबसे लोकप्रिय रचना 'दि काटर्स सैटर्डे नाइट' उनके पिता विलियम बर्न्स का वास्तविक चित्रण प्रस्तुत करती है। किस प्रकार एक सच्चरित्र व्यक्ति अपना गार्हस्थ्य जीवन परम आनंद और प्रतिष्ठा से व्यतीत करता है - यह इस कविता की विषयवस्तु है। इसमें स्कॉटलैंड के कृषकों और उनके जीवन का चित्रण प्रभावोत्पादक हुआ है। उनका सबसे महत्वपूर्ण पत्र 'ऐड्रेस टु दि डेविल' है, जिसमें सैटन का संबंध बंधुत्व तथा मानवता के अविच्छिन्न सौहार्द से है। बायरन के सदृश बर्न्स दो महान रोमांटिक व्यंग्य कवियों में एक है। उनकी सबसे श्रेष्ठ व्यंग्यात्मक कविताएँ 'दि होली फ़ेयर' तथा 'होली विलीज़ प्रेयर' हैं जिनमें प्रथम व्यक्तिगत और सामाजिक व्यंग्य पर आधारित श्रेष्ठ कृति है और दूसरी एक तीक्ष्ण एवं मर्मांतक व्यंग्य कलाकृति है जिसमें धार्मिक पाखंड पर प्रहार किया गया है। 'दि जॉली बेगर्स' उनकी अति नाटकीय एवं कल्पनाप्रधान रचना है जिसमें निरुद्देश्य घुमक्कड़ों का वर्णन है। आर्नल्ड के मतानुसार इस कविता में गंभीरता, सत्य तथा ओज का वह प्रदर्शन है जिसका उदाहरण केवल शेक्सपीयर और अरिस्तोफ़ानिज की कृतियों में ही उपलब्ध हो सकता है।
स्वाभाविक एवं प्रवाहयुक्त गीतकार के रूप में बर्न्स का स्थान स्कॉटलैंड, इंग्लैंड अथवा यूरोप में अद्वितीय है। उनका 'ए मैंस ए मैन फ़ार ए दैट' मानवता का गान है। इसमें स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुत्व की विप्लवात्मक पुकार है।
बर्न्स के अधिकांश पत्र कभी कभी समयानुसार भाषा की कृत्रिमता को प्रदर्शित करते हुए भी ओजपूर्ण एवं गठित हैं और प्रारंभ से लेकर अंत तक सौष्ठव तथा मानवीय तत्वों के अनूठे गुणों से परिपूर्ण हैं।
स्कॉटलैण्ड के कवि | 649 |
822363 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%AC%20%E0%A4%AD%E0%A5%8B%E0%A4%B8%E0%A4%B2%E0%A5%87 | बाबासाहेब भोसले | बाबासाहेब भोसले (१५ जनवरी १९२१ - ६ अक्टूबर २००७) एक भारतीय राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने २१ जनवरी १९८२ से १ फरवरी १९८३ तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे।
जीवन
भोसले का जन्म १५ जनवरी १९२१ को सातारा में हुआ था। वे अपने छात्र जीवन के दौरान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े थे और १९४१-४२ में डेढ़ साल के लिए कैद में थे। उन्होंने १९५१ में कानून की उपाधि प्राप्त की और सातारा में दस साल के लिए वकालत की।
मुख्यमंत्री पद की छोटी अवधि में उन्होंने विभिन्न सुधारों को लागू किया; जैसे स्वतंत्रता सेनानियों की पेंशन योजना और मैट्रिक तक लड़की छात्रों को मुफ्त शिक्षा लागू की। ६ अक्टूबर २००७ को ८६ वर्ष की आयु में संक्षिप्त बीमारी के बाद उनकी मृत्यु हो गई।
सन्दर्भ
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री
1921 में जन्मे लोग
२००७ में निधन
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनीतिज्ञ
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी | 156 |
160797 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A6%20%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%B5%2C%20%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%9C%20%28%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%9C%29 | जलालाबाद गाँव, कन्नौज (कन्नौज) | जलालाबाद कन्नौज, कन्नौज, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
भूगोल
यातायात
जलालाबाद गांव तक जाने के लिए यातायात के साधनों के रूप में सड़क तथा रेल उपलब्ध है।
1- सड़क यातायात के रूप में ऐतिहासिक शेरशाह सूरी मार्ग का प्रयोग किया जाता है जो जलालाबाद के दक्षिणी सीमा से होकर निकलता है।
2- रेल यातायात के रूप में खुदलापुर हॉल्ट रेलवे स्टेशन उपलब्ध है।
शिक्षण संस्थानों की सूची
जलालाबाद में शिक्षा प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित सरकारी व प्राइवेट संस्थान स्थित हैं-
सरकारी संस्थान=
1 श्री विशेश्वर दयाल तिवारी इंटर कॉलेज
2 प्राथमिक विद्यालय प्रथम
3 प्राथमिक विद्यालय द्वितीय
4 उच्च प्राथमिक विद्यालय प्रथम
5 पूर्व माध्यमिक विद्यालय मध्य
प्राइवेट संस्थान=
1 सरस्वती शिक्षा मंदिर
2 कल्याण शिक्षा मंदिर
3 मनीभूषण शिक्षा संस्थान
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
कन्नौज जिला के गाँव | 130 |
475772 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%9C%20%28%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A5%80%20%E0%A4%B6%E0%A5%83%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A4%B2%E0%A4%BE%29 | रिवेंज (टीवी शृंखला) | रिवेंज () एक अमेरिकी टेलिविज़न ड्रामा शृंखला है, जिसकी रचना माइक कॅली ने की है तथा जिसमें मुख्य भूमिका में हैं मैडेलिन स्टो व एमिली वैन-कैंप। शृंखला का प्रिमीयर सितम्बर 21, 2012 को एबीसी चॅनल पर हुआ था। मुख्य कथानक फ्रांसीसी लेखक अलेक्जेंडर ड्यूमा द्वारा रचित द काउंट ऑफ़ मॉन्टे क्रिस्टो उपन्यास से प्रेरित है।
शृंखला की कहानी न्यू यॉर्क के लॉन्ग आइलैंड के हॅम्पटन शहर में रहने वाले धनी व समृद्ध ग्रेसन परिवार के आसपास घूमती है। कई वर्ष पहले, कॉनरेड और विक्टोरिया ग्रेसन ने अपने मित्र डेविड क्लार्क को आतंकवादी होने व एक विमान दुर्घटना के लिए, जिसमें कई लोगों की जान गई थी, जिम्मेदार होने के लिए फसा दिया था। डेविड को इस अपराध के लिए सजा होती है और जेल में रहते हुए उसकी मृत्यु ही जाती है। वर्षों बाद डेविड की पुत्री अमेंडा क्लार्क अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए एमिली थॉर्न के नाम के साथ हॅम्पटन शहर वापस आती है।
शृंखला को आलोचकों ने सराहा था तथा इसे अच्छी टेलिविज़न रेटिंग प्राप्त हुई। अक्टूबर 13, 2011, तक कार्यक्रम के चार एपिसोड पूरें होने के पश्चात एबीसी ने शृंखला को पूरे 22 एपिसोड तक के लिए नवीकृत कर दिया था। मैडेलिन स्टो को कार्यक्रम में अपनी निभाई गई विक्टोरिया ग्रेसन की भूमिका के लिए गोल्डन ग्लोब की बेस्ट ऐक्ट्रेस ड्रामा सीरीज़ (सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री ड्रामा शृंखला) श्रेणी में नामित किया गया था।
कथानक
शृंखला की कहानी लॉन्ग आइलैंड, न्यू यॉर्क की स्फ़क काउंटी के एक समृद्ध नगर हॅम्पटन में चलती है। शहर में अरबपति एमिली थॉर्न (एमिली वैन-कैंप) रहने के लिए आती है जो असल में अमेंडा क्लार्क है। अमेंडा डेविड क्लार्क की पुत्री है, जिसे 1995 में हुई एक विमान दुर्घटना के कारण 197 यात्रियों की मौत का दोषी समझा जाता है। उसे एफबीआई एजेंटों ने गिरफ्तार कर लिया था और जल्द ही दोषी करार कर दिया। डेविड के दोस्तों व सहकर्मियों, कॉनरेड और विक्टोरिया ग्रेसन (मैडेलिन स्टो), व उसकी सेक्रेटरी लिडिया डेविस ने उसके खिलाफ गवाही दी थी। विक्टोरिया का डेविड के साथ प्रेम प्रसंग था, परन्तु उसे डेविड को धोखा देने पर कॉनरेड ने, यह धमकी दे कर कि वह दोनों के साझे बेटे डैनियल को खो सकती है, मजबूर कर दिया था। डेविड को देशद्रोह के किए दोषी ठहराया गया और कुछ वर्षों के बाद जेल में उसकी मृत्यु हो गई। डेविड की गिरफ्तारी के बाद अमेंडा को पहले एक अनाथालय भेजा गया तथा फिर एक किशोरों के लिए एक बनी विशेष सुधारक सुविधा (जुवेनाइल) में, जहाँ उसकी मुलाकात एमिली थॉर्न से होती है। अनाथालय में जाने से पहले, अमेंडा ने अपने दोस्त जैक पोर्टर को अपना कुत्ता सैमी दे दिया था। जब वह 18 वर्ष होने के पश्चात जुवेनाइल से बहार आती है तब उसे नोलन रॉस लेने आता है; नोलन ने डेविड की मदद से सफलता हासिल की थी और वर्तमान समय में एक करोड़पति है। वह उसे बताता है कि उसके पिता को गलत तरीके से दोषी ठहराया गया था और वह नोलन की कंपनी में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी की मालिक है।
वर्षों बाद, अमेंडा उन लोगों से, जिन्होंने उसके परिवार का जीवन नष्ट किया था, बदला लेने के लिए हॅम्पटन शहर एमिली थॉर्न के नाम से आती है। वह उसी घर को किराये पर लेती है जहाँ वर्षी पहले वह अपने पिटा के साथ रहती थी। वर्तमान समय में यह घर डेविड की रखैल लिडिया डेविस के पास है। लिडिया उसके पिता की दोषसिद्धि के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों की सूची में उसका पहला लक्ष्य है। इस बीच, वह विक्टोरिया ग्रेसन के बेटे डैनियल के साथ प्रेम सम्बंध बनाती है, जिसके कारण विक्टोरिया चिन्तित हों जाती है तथा अपनी नवागंतुक पड़ोसी के अतीत के बारे में अपने संसाधनों की मदद से तहकीकात करना शुरू कर देती है।
पात्र
मुख्य पात्र
मैडेलिन स्टो, विक्टोरिया ग्रेसन की भूमिका में — ग्रेसन परिवार की आकर्षक और शक्तिशाली कुलमाता जिसे कई बार "हॅम्पटन की रानी" भी कहा जाता है। विक्टोरिया डैनियल और शार्लेट की माँ व कॉनरेड की पत्नी है, परन्तु वह शादीशुदा होते हुए भी अमेंडा के पिता डेविड क्लार्क से प्रेम करती थी। शार्लेट असल में विक्टोरिया और डेविड की पुत्री है, परन्तु इस रहस्य को विक्टोरिया ने कई वर्षों तक गुप्त रखा था। विक्टोरिया को कॉनरेड ने डेविड को धोखा देने के लिए मजबूर कर दिया था ताकि वह उसकी मदद से डेविड को अपनी गलती द्वारा हुए अपराध के लिए फसा सके। परिणामस्वरूप विक्टोरिया अमेंडा की सबसे बड़ी दुश्मन है और विक्टोरिया अमेंडा पर कभी भी पूरी तरह से विश्वास नहीं करती, हालांकि वह अमेंडा की वास्तविकता से अवगत नहीं है। भावनात्मक रूप से दूसरों से दूर, विक्टोरिया को रूखे स्वभाव का व चतुर दर्शाया गया है, वह कुशलता से अपना काम निकलवाना जानती है। परन्तु निजी क्षणों में यह दिखाया गया है कि अपने परिवार की चिंता व डेविड को हुई सजा के लिए अपने को दोषी समझने के कारण विक्टोरिया का ऐसा कटु स्वभाव है।
एमिली वैन-कैंप, अमेंडा क्लार्क/एमिली थॉर्न की भूमिका में — अमेंडा डेविड क्लार्क की पुत्री है जो अपने पिता को हुई गलत सजा व उसके कारण हुई उसकी मृत्यु का बदला लेने के लिए हॅम्पटन शहर एमिली थॉर्न के नाम के साथ आती है, जिसे एक समृद्ध परोपकार काम करने के लिए समर्पित प्रभावयुक्त व्यक्ति दिखाया गया है। एमिली बहुत बुद्धिमान है और अपने पिता का नाम समाशोधन करने और हर उस व्यक्ति, जिसके कारण उसके पिता का पतन हुआ था, से बदला लेने के लिए अपना जीवन समर्पित कर चुकि है। समय के साथ एमिली को अपने पिता की सजा व ग्रेसन परिवार से सम्बंधित कई रहस्य पता चलते हैं, विशेष रूप से यह तथ्य कि शार्लेट ग्रेसन उसकी सौतेली बहन है, जिसका जन्म उसके पिता और विक्टोरिया के प्रेम-प्रसंग के कारण हुआ था। अपने मिशन की पूर्ती के लिए अमेंडा डैनियल ग्रेसन को अपने प्यार में फसा लेती है, परन्तु धीरे-धीरे डैनियल के लिए उसके मन में भावनाएँ जागने लगती हैं। एमिली नोलन रॉस की मित्र है, हालांकि वह कभी इस तथ्य को बहारी तौर पे स्वीकार नहीं करती। एमिली एलिन लिंड छोटी अमेंडा क्लार्क का किरदार निभाती है।
गेब्रियल मैन, नोलन रॉस की भूमिका में — प्रतिभाशाली सॉफ्टवेयर आविष्कारक और कंप्यूटर हैकर व एमिली। जब नोलन एक मामूली व्यक्ति था तब उसकी प्रतिभा को देखके डेविड क्लार्क ने उसे आगे बढ़ने के लिए वित्तीय सहायता दी थी जिसकी बदोलत नोलन आज हॅम्पटन शहर की एक सफल शख़्सियत है। डेविड की इस उदारता के कारण नोलन एमिली का सबसे विश्वसनीय सहयोगी है। जुवेनाइल से बहार आने के बाद एमिली की मदद नोलन ने ही की थी, तथा उसे अपनी कम्पनी में 49 प्रतिशत का भागीदार बना लिया।
हेनरी चरणी, कॉनरेड ग्रेसन की भूमिका में — विक्टोरिया का पति, डैनियल का पिता व शार्लेट का कानूनी पिता। कॉनरेड ग्रेसन ग्लोबल का सीईओ (मुख्य कार्यपालक अधिकारी) है; डेविड क्लार्क इसी कम्पनी में कॉनरेड के अंतर्गत काम करता था। कॉनरेड के अपनी पत्नी विक्टोरिया की भूतपूर्व परम मित्र लिडिया डेविस के साथ शारीरिक संबंध थे। विमान दुर्घटना, जिसके जिम्मेदार आतंकवादियों को वित्तपोषण करने के अपराध में डेविड क्लार्क को सजा हुई थी उसका असली उत्तरदायी कॉनरेड था। डेविड को फसाने की साजिश में कॉनरेड ने अपने सुरक्षा प्रमुख फ्रैंक स्टीवंस व अपनी पत्नी की मदद ली थी। कॉनरेड अपने बच्चों को प्यार करता है व शरुआत से ही इस बात से अवगत था कि उसकी पत्नी व उसके कर्मचारी डेविड के अवैध सम्बंध हैं।
जोशुआ बोमन, डैनियल ग्रेसन की भूमिका में — विक्टोरिया और कॉनरेड का पुत्र व शार्लेट का सौतेला भाई। डैनियल जल्द ही एमिली से प्रेमासक्त होकर उससे मंगनी कर लेता है। डैनियल अपनी माँ के ज्यादा नजदीक है। विक्टोरिया के बचाव के लिए वह कई बार अपने पिता के विरुद्ध भी खड़ा हों जाता है। वह अपने माता-पिता के काले अतीत व अपनी मंगेतर की साजिशों से अनभिज्ञ है।
निक वॅक्सलर, जैक पोर्टर की भूमिका में — डॅक्लन पोर्टर का भाई व अपने पिता की मृत्यु के बाद उसका कानूनी अभिभावक। जैक एमिली के बचपन का दोस्त है, वर्तमान समय में एमिली के मन में जैक के लिए भावनाएँ हैं, जिन्हें वो समझ नहीं पाती। वह असली एमिली थॉर्न का प्रेमी बन जाता है जब एमिली अमेंडा क्लार्क के नाम से हॅम्पटन रहने आ जाती है।
कॉनर पाउलो, डॅक्लन पोर्टर की भूमिका में — जैक पोर्टर का छोटा भाई व शार्लेट ग्रेसन का वर्तमान प्रेमी। डॅक्लन बड़े सपने देखने वाला है व अपने परिवार के आर्थिक रूप से कमजोर जीवन के लिए अपने पिता को उत्तरदायी मानता है, हालांकि पिता की मृत्यु के बाद उसकी सोच में कुछ बदलाव आता है। वह अपने भाई से बहुत प्रेम करता है व उसे कई बार समझाने का प्रयत्न करता है कि उसे दूसरों के भले से ज्यादा अपने बारे में सोचना चाहिए।
क्रिस्टा बी॰ एलन, शार्लेट ग्रेसन की भूमिका में — विक्टोरिया और कॉनरेड की बेटी, डैनियल और अमेंडा की सौतेली बहन और डॅक्लन की प्रेमिका। शार्लेट को अपनी माँ से भावनात्मक दूरी के वर्ष सहने पड़े थे, वह इस बात से अंजान थी कि उसकी माँ का उसके प्रति यह रुखा व्यवहार इसलिए था क्योंकि शार्लेट की उपस्थिति विक्टोरिया को डेविड की याद दिलाती थी। शार्लेट को एमिली के प्रति भगिनीवत महसूस करती है। जबा उसे पता चलता है कि एक देशद्रोही, डेविड क्लार्क, उसका जैविक पिता है तो वह बिल्कुल टूट जाती है और यह तथ्य पूरी तरह से उसकी माँ के साथ उसके रिश्ते को नष्ट कर देता है।
आवर्ती पात्र
शृंखला के पहले सत्र में एक या एक से अधिक विशेष रूप से प्रदर्शित आवर्ती पात्र भी शामिल हैं। यह वह पात्र हैं जो मुख्य कलाकारों की तरह सभी प्रकरणों में नहीं दिखाई दिए।
जेम्स टप्पर, डेविड क्लार्क की भूमिका में — अमेंडा व शार्लेट का मृत पिता, जिसका विक्टोरिया ग्रेसन का साथ गुप्त प्रेम-प्रसंग था। कॉनरेड की साजिश में फसने के कारण डेविड अब अमेरिका में सबसे ज्यादा नफरत के साथ याद किए जाने वाले पुरुषों में गिना जाता है। एमिली का परम उद्देश्य अपने पिता के प्रति इस दृष्टिकोण को बदलना है, जिसके लिए वह षड्यंत्र के बारे में सच को उजागर करना चाहती है जिसके कारण उसके पिता को जेल हुई थी।
मर्गारिटा लेवियेवा, अमेंडा क्लार्क/एमिली थॉर्न की भूमिका में — असली एमिली थॉर्न जो अमेंडा क्लार्क से जुवेनाइल में मिलती है और दोनों जल्द ही दोस्त बन जाती हैं। एमिली का कोई परिवार नहीं है और अमेंडा को वह अपनी बहन समझती है। एमिली के कहने पे वह उसके साथ अपनी पहचान बदलने के लिए तैयार हो जाती है और जुवेनाइल से बहार आने के कई वर्षों तक अमेंडा क्लार्क बनके रहने लगती है। वह एक स्ट्रिपर (कामुक नर्तकी) बन जाती है। जब कॉनरेड का सुरक्षा प्रमुख फ्रैंक स्टीवंस असली अमेंडा की खोज करता हुआ एमिली के पास पहुँचता है तब यह सोच के कि फ्रैंक को असली अमेंडा क्लार्क और उसके बीच का पहचान बदलने का रहस्य पता चल गया है तो अमेंडा को बचाने के लिए एमिली फ्रैंक की हत्या कर देती है और भाग के एमिली थॉर्न के नाम से हॅम्पटन में रह रही अमेंडा क्लार्क के पास चली जाती है।
हीरोयुकी सनाडा, सातोशी टाकेडा की भूमिका में — जापानी कारोबारी जो एक समय एमिली की प्रतिशोध लेने कि खोज में उसका गुरु था व समय-समय पर उसकी मदद करता है। टाकेडा ने ही असल में टाइलर की हत्या करी थी। वह जानबूझकर एमिली के करीबी डैनियल और जैक को इस अपराध में फसा देता है जिससे एमिली अपनी बदला लेने की योजना पर ध्यान केंद्रित कर सके।
प्रकरण
पुरस्कार और नामांकन
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
रिवेंज को इण्टरनेट मूवी डेटाबेस पर देखें
अंग्रेज़ी भाषा के टीवी कार्यक्रम
दशक 2010 की अमेरिकी टेलिविज़न शृंखलाएँ
अमेरिकी नाटक टेलीविजन शृंखला
अमेरिकन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी नेटवर्क कार्यक्रम | 1,903 |
156959 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B2%20%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%B5%2C%20%E0%A4%87%E0%A4%97%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B8%20%28%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%97%E0%A4%A2%E0%A4%BC%29 | रजावल गाँव, इगलास (अलीगढ़) | Rahawal, Razawal ,Jatland,
Rajawal,Razawal , रजावल इगलास, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। जनमानस के आधार पर ऐसा माना जाता है कि 1857 की क्रांति में इस गांव ने बाबा अमानी सिंह के नेतृत्व में अंग्रेजी शासन से कड़ा मुकाबला किया था इनमें पंडित दरबारी गौतम ने बाबा अमानी सिंह के साथ मिलकर एक तरफ मुकाबला अंग्रेजों के विरुद्ध खोल दिया था पंडित दरबारी गौतम रजावल के ही रहने वाले थे । यह रजाबल गांव जाटलैंड ( Jatland ) यानी लगसमा की प्रमुख धुरी माना जाता है यदि हम इस गांव को जाटलैंड या लगसमा की राजधानी कहे तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है ।
भूगोल
यह गांव गोंडा से गोरई मार्ग पर स्थित है, गोंडा से रजावल की दूरी 6 किलोमीटर है । गोंडा की तरफ से अगर इस गांव में प्रवेश करना है तो सर्वप्रथम रजावल के बंबा से होकर गुजरना होगा । बंबा से गांव की तरफ 100 मीटर करीब दाहिने हाथ पर महादेव का मंदिर है । इसी प्रकार गांव के अंतिम छोर पर एक मैदर (बंबी) है तथा एक विशाल शिव मंदिर है ।
जनसांख्यिकी
रजावल गांव बड़ा होने के साथ-साथ इसमें 4 गांव की पंचायत भी शामिल है भङीरा नंबर 1, गुर्ज नगरिया, भोला नगरा, कुङवाङा की मढी आदि शामिल हैं । पूरी पंचायत की आबादी 12000 के लगभग है
यातायात
इस से गांव से आप मथुरा, वृंदावन, राया ,नौझील ,बाजना, खैर, गोमत, गोंडा ,इगलास, अलीगढ़ आदि के लिए आवागमन कर सकते हैं परंतु इस गांव से गोंडा और गोरई तक आपको अपने निजी वाहन से या ई-रिक्शा अथवा टेंपो का सहारा लेना पड़ेगा
आदर्श स्थल
भगवान शनिदेव का मंदिर और हनुमान जी का मंदिर बंबा से थोड़ी दूरी पर एक नाले के किनारे स्थित है इस हनुमान मंदिर का निर्माण 16 अप्रैल 2022 को हनुमान जयंती पर श्री गिर्राज गौतम ने करवाया था तथा इससे पूर्व शनिदेव मंदिर का निर्माण 13 जून 2020 को पंडित राहुल कुमार गौतम एवं श्रीचंद गौतम और अन्य लोगों ने मिलकर करवाया था । इसके अतिरिक्त गांव में तीन शिव मंदिर दो हनुमान मंदिर और है दो हनुमान मंदिर कांकर पर स्थित हैं ।
शिक्षा
शिक्षा के क्षेत्र में यह गांव मध्यम श्रेणी में आता है यहां पर श्री कारे सिंह इंटर कॉलेज और के डी पब्लिक स्कूल 2 विद्यालय हैं इसके अलावा स्वामी स्वरूपानंद विद्या मंदिर नामक एक आठवीं तक स्कूल हुआ करता था परंतु वह स्कूल अब बंद है और सरकारी प्राइमरी स्कूल तथा जूनियर स्कूल है।
सन्दर्भ
पंडित राहुल कुमार गौतम "पुरोहित " रजावल (मास्टर जी )
बाहरी कड़ियाँ
अलीगढ़ जिला के गाँव
भारत के गाँव आधार | 423 |
509309 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%A8%20%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%AA | उड़न साँप | उड़न साँप क्रिसोपिली (Chrysopelea) जीनस के साँप हैं जो बहुत कम विषैले होते हैं और मनुष्यों के लिए हानिरहित है। ये दक्षिण-पूर्वी एशिया, दक्षिणी चीन, भारत और श्रीलंका में पाए जाते हैं। भारत में ये मध्य भारत, बिहार, उड़ीसा और बंगाल में अधिक पाए जाते हैं।
यह बहुत तीव्र गति से चलने की क्षमता रखता है जो इसकी विशिष्टता है। यह अपने शरीर को फुलाकर तथा शरीर को एक विशेष आकार देकर एक डाल से दूसरी डाल पर ग्लाइड कर जाता (कूद जाता) है। इसीलिए इसे 'उड़न साँप' का भ्रामक नाम दिया गया है। यह इस तरह कूदता चलता है मानो उड़ रहा हो।
इनका रंग ऊपर से हल्का पीलापन लिए हुए हरा होता है। नियमित दूरियों पर काले रंग की आड़ी पट्टियाँ रहती हैं जो काले सीमांतोंवाले शल्कों के कारण बनी होती हैं। अधरशल्क हरे होते हैं। सिर काला होता है जिसपर साथ साथ पीले या हल्के हरे रंग को आड़ी पट्टियाँ तथा कुछ धब्बे होते हैं।
यह साँप छिपकलियों, छोटे स्तनियों, पक्षियों, छोटे साँपों और कीटों को खाता है। यह घरों के आस पास भी कभी कभी दिखाई देता है। यह अंडप्रजक है। यह कभी कभी पेड़ की शाखाओं से लटका भी देखा गया है।
बाहरी कड़ियाँ
आश्चर्यचकित कर देते हैं उड़ने वाले साँप
Flying Snake Home Page
naturemalaysia.com's flying snake page
Flying Snake Video w/embellished info
Researchers reveal secrets of snake flight
भारतीय जन्तु
सर्प | 228 |
1124400 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A5%80%E0%A4%97%E0%A4%A2%E0%A4%BC%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%AE | चंडीगढ़ क्रिकेट टीम | चंडीगढ़ क्रिकेट टीम भारतीय घरेलू प्रतियोगिताओं में केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ का प्रतिनिधित्व करने वाली एक क्रिकेट टीम है। अगस्त 2019 में, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने टीम को उन नौ नए पक्षों में से एक के रूप में नामित किया, जो रणजी ट्रॉफी सहित 2019-20 सत्र के लिए घरेलू टूर्नामेंट में प्रतिस्पर्धा करेंगे। पूर्व भारतीय क्रिकेटर वी आर वी सिंह को टीम के पहले कोच के रूप में नामित किया गया था।
चंडीगढ़ ने दिसंबर 2019 में, प्लेट डिवीजन में रणजी ट्रॉफी में पदार्पण किया। सीज़न के अपने पहले मैच में, अरसलान खान ने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में चंडीगढ़ के लिए एक बल्लेबाज द्वारा पहला शतक बनाया।
सन्दर्भ
खेल
क्रिकेट | 112 |