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1164905 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%BC | ब्लिट्ज़ | ब्लिट्ज़ 2011 की एक ब्रिटिश एक्शन थ्रिलर फिल्म है, जो इलियट लेस्टर द्वारा निर्देशित और जेसन स्टैथम, पैडी कॉन्सिडाइन, एडन गिलन और डेविड मॉरिससे द्वारा अभिनीत है। यह फिल्म केन ब्रूने के उसी नाम के उपन्यास पर आधारित है, जिसमें उनके आवर्ती चरित्र डिटेक्टिव सार्जेंट टॉम ब्रैंट और मुख्य निरीक्षक जेम्स रॉबर्ट्स हैं। कथा एक हिंसक पुलिस अधिकारी का पीछा करती है जो एक सीरियल किलर को पकड़ने की कोशिश कर रहा है जो दक्षिण पूर्व लंदन में पुलिस अधिकारियों की हत्या कर रहा है।
यह फिल्म 20 मई 2011 को यूनाइटेड किंगडम में रिलीज़ हुई थी।
संक्षेप
एक कठोर पुलिस वाले को एक सीरियल किलर को गिराने के लिए भेजा जाता है, जो पुलिस अधिकारियों को निशाना बनाता रहा है।
कास्ट
जेसन स्टैथम को डिटेक्टिव सार्जेंट टॉम ब्रैंट के रूप में
एक्टिंग इंस्पेक्टर पोर्टर नैश के रूप में धान कंसीडीन
बैरी "ब्लिट्ज" वीज़ के रूप में एडन गिलन
डेविड मॉरिससे हेरोल्ड डनलप के रूप में
पुलिस कॉन्स्टेबल एलिजाबेथ फॉल्स के रूप में ज़ावे एश्टन
ल्यूक इवांस डिटेक्टिव इंस्पेक्टर क्रेग स्टोक्स के रूप में
चीफ इंस्पेक्टर ब्रूस रॉबर्ट्स के रूप में मार्क रैलेंस (उपन्यासों में जेम्स रॉबर्ट्स)
निकी हेंसन को अधीक्षक ब्राउन के रूप में
रेडनर के रूप में नेड डेन्हाई
रॉन डोनाची क्रॉस के रूप में
उत्पादन
फिल्म की पटकथा नाथन पार्कर ने लिखी थी। फिल्म की शूटिंग अगस्त 2010 में लंदन में हुई थी। ब्लिट्ज लायंसगेट यूके द्वारा निर्मित पहली फिल्म थी ।
रिसेप्शन
ब्लिट्ज़ को आलोचकों से मिश्रित समीक्षा मिली। रॉटेन टोमाटोज़ पर फिल्म को 25 आलोचकों की समीक्षाओं के आधार पर 48% की अनुमोदन रेटिंग मिली है।
एम्पायर के डेविड ह्यूजेस ने फिल्म को 5 में से 3 दिया और लिखा: "एक रफ-कट क्राइम थ्रिलर जो जेसन स्टैथम को परिचित टर्फ पर वापस देखता है और वह करता है जो वह सबसे अच्छा करता है।" द गार्जियन के कैथ क्लार्क ने फिल्म को सकारात्मक समीक्षा दी और लिखा: "कौन जानता है, हम दोषी-आनंद फिल्म के विकास को देख रहे होंगे - दर्शकों को अलग करने के लिए शीर्ष-दराज प्रतिभा के साथ गद्देदार।"
बॉक्स ऑफिस
ब्लिट्ज ने दुनिया भर में कुल $ 15,774,948 की कमाई की। घरेलू डीवीडी और ब्लू-रे बिक्री से फिल्म ने $ 3,065,744 की कमाई की।
संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
नंबर पर ब्लिट्ज़
आधिकारिक वेबसाइट पर ब्लिट्ज़
अंग्रेज़ी फ़िल्में
ब्रिटिश फ़िल्में
2011 की फ़िल्में | 379 |
551879 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B8 | अनुप्रास | अलंकार अक्षर का शाब्दिक अर्थ है आभूषण अर्थात् गहना ।जिस प्रकार नारी अलंकार से युक्त होने पर सुंदर दिखती है उसी प्रकार काव्य होता है। महाकवि केशव ने अलंकारों को काव्य का अपेक्षित गुण माना है। उनके अनुसार "भूषण बिनु न विराजहि कविता,वनिता,मित्त।"उनकी दृष्टि में कविता तथा नारी भूषण के बिना शोभित नहीं होते हैं।
अलंकार के प्रमुख भेद
(1)शब्दालंकार,(2)अर्थालंकार।
शब्दालंकार
(1)शब्दालंकार जब कुछ विशेष शब्दों के कारण काव्य में चमत्कार पैदा होता है,वहाँ शब्दालंकार होता है। शब्दालंकार के अंतर्गत अनुप्रास,श्लेष,यमक तथा उसके भेद।
अर्थालंकार
(2)अर्थालंकार जो काव्य में अर्थगत चमत्कार होता है,वहाँ अर्थालंकार होता है।अर्थालंकार के अंतर्गत उपमा,रूपक,उत्प्रेक्षा,भ्रांतिमान,सन्देह,अतिशयोक्ति, अनंवय,प्रतीप,दृष्टांत आदि।
जहां एक या अनेक वर्णों की क्रमानुसार आवृत्ति केवल एक बार हो अर्थात् एक या अनेक वर्णों का प्रयोग केवल दो बार हो, वहां छेकानुप्रास होता है। छेकानुप्रास का एक उदाहरण द्रष्टव्य है—
देखौ दुरौ वह कुंज कुटीर में बैठो पलोटत राधिका पायन।
मैन मनोहर बैन बजै सुसजै तन सोहत पीत पटा है।
उपर्युक्त पहली पंक्ति में 'द' और 'क' का तथा दूसरी पंक्ति में 'म' और 'ब' का प्रयोग दो बार हुआ है।
वर्णों की आवृत्ति को अनुप्रास कहते हैं। उदाहरण -
चारु चन्द्र की चंचल किरणें,
खेल रहीं थीं जल-थल में।
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई थी,
अवनि और अम्बरतल में॥
अनुप्रास के प्रकार
छेकानुप्रास जब वर्णों की आवृत्ति एक से अधिक बार होती है तो वह छेकानुप्रास कहलाता है। उदाहरण -
मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू॥वृत्यानुप्रासː जब एक ही वर्ण की आवृत्ति अनेक बार होती है तो वृत्यानुप्रास होता है। उदाहरण -
काम कोह कलिमल करिगन के।लाटानुप्रास जब एक शब्द या वाक्यखण्ड की आवृत्ति होती है तो लाटानुप्रास होता है। उदाहरण -
वही मनुष्य है, जो मनुष्य के लिये मरे।अन्त्यानुप्रास जब अन्त में तुक मिलता हो तो अन्त्यानुप्रास होता है। उदाहरण -
मांगी नाव न केवटु आना। कहहि तुम्हार मरमु मैं जाना॥श्रुत्यानुप्रास''' जब एक ही वर्ग के वर्णों की आवृत्ति होती है तो श्रुत्यानुप्रास होता है। उदाहरण -
दिनान्त था थे दिननाथ डूबते, सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।
(यहाँ पर त वर्ग के वर्णों अर्थात् त, थ, द, ध, न की आवृति हुई है।)
सन्दर्भ
अलंकार
काव्य
हिन्दी साहित्य | 346 |
979257 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%B8 | नैनोसेलुलोस | नैनोसेलुलोस (Nanocellulose) से आशय नैनो-संरचना वाले सेलुलोस से है। नैनोसेलुलोज या तो सेलुलोज का नैनोक्रिस्टल (CNC या NCC) हो सकता है या सेलुलोस नैनोफाइबर (CNF) ओ सकता है जिसे मैक्रोफिब्रिलेटेड सेलुलोस (MFC) या जीवाणुक नैनोसेलुलोज (bacterial nanocellulose) कहते हैं। जीवाणुक नैनोसेलुलोज, नैनो-संरचना वाले सेलुलोस हैं जो जीवाणु (बैक्टीरिया) द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं।
उपयोग
कागज और कागज के बोर्ड
कम्पोजिट
भोज्य पदार्थ
स्वास्थ्य एवं शोषक उत्पाद
इमल्सन और डिस्पर्शन
तेल की रिकवरी
स्वास्थ्य, सौन्दर्य और औषध
अन्य उपयोग
बाहरी कड़ियाँ
सेल्यूलोज नैनो फाइबर से कीटनाशकों पर नियंत्रण (इण्डिया वाटर पोर्टल)
सेलुलोस
जैवसामग्री
बहुलक | 93 |
881614 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%20%E0%A4%85%E0%A4%9A%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A4%B0 | रमाकांत अचरेकर | रमाकांत विठ्ठल अचरेकर (Ramakant Vithal Achrekar) (जन्म 1932 - 2 जनवरी 2019) मुंबई के एक भारतीय क्रिकेट कोच हैं। और इनकी मृत्यु 2 जनवरी 2019 को हो गई। वह दादर, मुंबई के शिवाजी पार्क में युवा क्रिकेटरों को प्रशिक्षित के लिए सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं खासकर सचिन तेंदुलकर को। वह मुंबई क्रिकेट टीम के लिए भी चयनकर्ता रहे हैं। 2010 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
पुरस्कार और मान्यता
1990 में, उन्हें क्रिकेट कोचिंग के लिए अपनी सेवाओं के लिए द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
2010 में उन्हें तत्कालीन भारतीय राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा 7 अप्रैल 2010 को नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में पदम श्री से सम्मानित किया गया।
2010 में, 12 फरवरी को उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम के तत्कालीन कोच गैरी कर्स्टन द्वारा 'जीवन भर के अचीवमेंट' से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार स्पोर्ट्स इलस्ट्रेटेड द्वारा खेल में विभिन्न श्रेणियों के लिए दिए गए पुरस्कारों का हिस्सा था।
बीमारी व मृत्यु
रमाकांत अचरेकर का निधन 2 जनवरी 2019 को वृद्धावस्था की बिमारियों के कारण हो गया। सचिन तेंदुलकर सहित कई क्रिकेट हस्तियाँ इनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुई।
और अधिक पढ़ें
इन्हें भी देखें
पद्मश्री पुरस्कार (२०१०–२०१९)
सन्दर्भ
पद्मश्री,2010
1932 में जन्मे लोग
मुम्बई के लोग
२०१९ में निधन | 210 |
1236802 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AF%E0%A4%BE | चन्ना मेरेया | चन्ना मेरेया () भारतीय फिल्म का एक गीत है ऐ दिल है मुश्किल. गीत अमिताभ भट्टाचार्य, प्रीतम द्वारा रचित और अरिजीत सिंह द्वारा गाया गया है। इसे सोनी म्यूजिक इंडिया द्वारा 29 सितंबर 2016 को जारी किया गया था।
सूफी स्पर्श के साथ गीत दिल की टूटी हुई आत्मा से भावनाओं को बाहर निकालता है और फिर विस्तारित काव्य कविता के साथ घायल आत्मा को चंगा करने की कोशिश करता है - "सचि मुहब्बत शायद वही है, जिस्म जूनून जी, बराबर करूं यारी मेरी भी तोह कितना सुकून है "जिसका अर्थ है" सच्चा प्यार वह है जो पागलपन से भर जाता है, लेकिन कम नहीं है दो दिलों की दोस्ती जिसमें शांति बसती है"और दोहे के साथ भी - "एक तरफा प्यार का तख्त हाय कुच और गर्म है। औरों की रिश्तों की तरह ये दो लोगो मैं नहीं होता ,सिर्फ मेरा हक़ है इसपे "जो बिना पढ़े प्यार और उसके प्रभाव के बारे में बात करता है.करण जौहर, फिल्म के निर्देशक ने "चन्ना मेरेया" को मंजूरी दे दी, जिस क्षण उन्होंने गीत सुना, भट्टाचार्य ने 'स्पॉटबॉय' के साथ एक साक्षात्कार में कहा। रणबीर कपूर, जिनके चरित्र पर आधारित गीत गाना आधारित है, उन्होंने बताया कि "चन्ना मेरेया" उनके पूरे करियर में अब तक का सबसे अच्छा गीत है।.
महत्वपूर्ण स्वागत
एक कोइमोई की समीक्षा में, सुरभि रेडकर ने एल्बम पर
चन्ना मेरेया को सर्वश्रेष्ठ गीत के रूप में वर्णित किया, जो गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य को तत्काल "दिल तोड़ने की भावना के लिए प्रेरित करने के लिए गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य को श्रेय देता है। "" द इंडियन एक्सप्रेस के सुंशु खुराना द्वारा जोड़ा गया "सिंह की टनक नियंत्रण के साथ गाया जाने वाला एक राग अलाप । जिसने उस क्षण में रणबीर के चरित्र को जीत लिया, और पश्चिमी वाद्ययंत्रों और भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों के बीच फ्यूजन के साथ , ट्रैक खत्म होने के बाद लंबे समय तक आपके साथ रहता है , द टाइम्स ऑफ इंडिया' के रिंकी कुमार कहते हैं।.
गीत की सुंदरता बेमिसाल है। अमिताभ भट्टाचार्य के गीत, प्रीतम का संगीत, और अरिजीत सिंह की आवाज़ एक पहेली के टुकड़ों की तरह फिट है।", 'NewsBeses' लेख में शालिनी ओझा लिखती हैं, और बताती हैं कि यह गीत एकदम सही था। अभिनय के लिए संगीत के बोल ", और यह भी एक उत्सव के माहौल में "ए पाथोस भरा गीत है, जैसा कि बॉलीवुड हंगामा के जोगिंदर टुटेजा ने कहा है। भट्टाचार्य महान, सरल पंक्तियों को लिखते हैं मिंट द्वारा जोड़ा गया, के संपादक संकेत घोष, जबकि india.com की श्वेता परांडे कहती हैं, यह दुखद है कि यह गाना 'ऐ दिल' में अयान (रणबीर कपूर) और अली ज़ेह (अनुष्का शर्मा) के ब्रेक-अप की ओर ले जाता है। है मुशकिल
एकाधिक प्रस्तुतियाँ
ऋषभ दत्ता स्वर्गीय निवास के लिए रवाना होने से पहले अप्लास्टिक एनीमिया, "चन्ना मेरेया" से पीड़ित थे।
गाने के विभिन्न कवर संस्करण बनाए गए हैं। उनमें से कुछ हैं -
मानसी भारद्वाज का अनप्लग्ड वर्जन।
कबीर सिंह का अनप्लग्ड वर्जन.
शोभित बनवित का तबला कवर।
राज बर्मन का अनप्लग्ड वर्जन.
सिद्धांत भोसले का दुखद संस्करण.
सिद्धार्थ स्लैथिया का अनप्लग्ड वर्जन।
मूल संस्करण -
पहला रिलीज संस्करण.
गीत का संस्करण.
रीमिक्स संस्करण डीजे चेतस द्वारा।
फिल्म संस्करण.
अनप्लग किए गए गीतिक संस्करण।
चार्ट
"चन्ना मेरेया "जीओसावन सर्वकालिक सूची के शीर्ष गीत हैं। यह ट्रैक रेडियो मिर्ची टॉप 20 काउंटडाउन चार्ट पर पहुंच गया, और 5 महीने तक चार्ट पर बना रहा, और साल के अंत में यह रेडियो मिर्ची टॉप 100 काउंटडाउन चार्ट पर 9 वें स्थान पर था।
साप्ताहिक चार्ट
साल के अंत चार्ट
पुरस्कार
मिर्ची म्यूजिक अवार्ड समारोह के 9 वें संस्करण में गीत के अनप्लग्ड संस्करण को क्रिटिक्स चॉइस ऑफ द ईयर श्रेणी में नामांकित किया गया था।.
गीत ने 11 पुरस्कार जीते, उनमें से 9 का उल्लेख नीचे विस्तार से किया गया है।
संदर्भ
२०१६ गीत
फिल्मों के लिए लिखे गीत
हिंदी गाने
हिंदी फिल्मी गाने
अमिताभ भट्टाचार्य द्वारा गाने के बोल
प्रीतम चक्रवर्ती द्वारा संगीत के साथ गाने
अरिजीत सिंह गाने | 648 |
963724 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%97 | मायंग | मायंग (Mayong) भारत के असम राज्य के मरिगाँव ज़िले में स्थित एक बस्ती है। यह ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बसा हुआ है।
विवरण
मायंग 'तंत्र क्रिया' के लिए प्रसिद्ध है। यह गाँव ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर बसा हुआ है और गुवाहाटी से लगभग ४० किमी की दूरी पर है। पूर्व काल में इसे 'काले जादू की धूरी' कहा जाता था जिसके कारण आज भी यह पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है।
नाम की व्युत्पत्ति
'मायंग' शब्द की उत्पत्ति कई तरह से की जाती है जिसमें सबसे प्रमुख है, संस्कृत शब्द माया से इसकी व्युत्पत्ति। इसके अलावा दिमासा भाषा में मियाङ शब्द का अर्थ है हाथी। इसी तरह मा (शक्ति माँ) और 'अंग' मिलाकर भी इसकी व्युत्पत्ति मानी जाती है। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि मणिपुर के मोइरंग के मूल निवासी इस क्षेत्र में बसे हुए थे जिसके कारण इसे मायंग कहा जाने लगा।
इन्हें भी देखें
मरिगाँव ज़िला
भारतीय जादू का इतिहास
बाहरी कड़ियाँ
काले जादू की धरती है असम का मायोंग गांव
सन्दर्भ
मरिगाँव ज़िला
असम के गाँव
मरिगाँव ज़िले के गाँव
असम में पर्यटन आकर्षण | 182 |
599376 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%98%E0%A4%B0 | एलविल्लर का गिरजाघर | एलविल्लर का गिरजाघर (स्पेनी भाषा में: Iglesia de Nuestra Señora de la Asunción) एक गिरजाघर है जो एलविल्लर (Elvillar), स्पेन में स्थित है।
इसे बिएन दे इंतेरेस कल्चरल की श्रेणी में 1984 में शामिल किया गया था। .
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
Spain By Zoran Pavlovic, Reuel R. Hanks, Charles F. Gritzner
Some Account of Gothic Architecture in SpainBy George Edmund Street
Romanesque Churches of Spain: A Traveller's Guide Including the Earlier Churches of AD 600-1000 Giles de la Mare, 2010 - Architecture, Romanesque - 390 pages
A Hand-Book for Travellers in Spain, and Readers at Home: Describing the ...By Richard Ford
The Rough Guide to Spain
Jenning's Landscape Annual
European architecture from earliest times to the present day Frank HoarEvans Bros., 1967 - Architecture - 293 pages
स्पेन के गिरजाघर
स्पेन के स्मारक | 133 |
1405855 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BE | लाडा | लाडा (सिरिलिक: Лада, रूसी उच्चारण: [ˈladə]), जिसे LADA के रूप में विपणन किया जाता है) AvtoVAZ (मूल रूप से VAZ), द्वारा निर्मित कारों का एक ब्रांड है। एक रूसी राज्य के स्वामित्व वाली कंपनी। जनवरी 2021 से मई 2022 तक, लाडा को रेनॉल्ट की लाडा-डेसिया व्यवसाय इकाई में तत्कालीन बहन ब्रांड डेसिया के साथ एकीकृत किया गया था।
ऑटोमेकर AvtoVAZ का गठन फिएट और सोवियत Vnehtorg (विदेश व्यापार विभाग) के बीच सहयोग से किया गया था, और यह वोल्गा नदी पर स्थित Tolyatti शहर में स्थित है। दोनों पक्षों ने मॉस्को में प्रस्ताव पर चर्चा की, जहां फिएट के संस्थापक के मालिक और भतीजे गियानी एग्नेली और कंपनी के अध्यक्ष विटोरियो वैलेटटा इटली से आए थे। पहले प्रारंभिक समझौते पर 1 जुलाई 1965 को हस्ताक्षर किए गए थे। 4 मई 1966 को, ऑटोमोटिव उद्योग के सोवियत मंत्री अलेक्जेंडर तारासोव और विटोरियो वालेटा ने फिएट और सोवियत मंत्रालय के बीच वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग पर एक प्रोटोकॉल पर अपने हस्ताक्षर किए। आखिरकार, दोनों पक्षों के बीच 15 अगस्त 1966 को मास्को में एक सामान्य समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
कंपनी ने 1970 में VAZ-2101 का उत्पादन शुरू किया, जो कि Fiat 124 सेडान का एक अधिक कठोर संस्करण था। कार को भारी स्टील बॉडी पैनल और मजबूत पुर्जे दिए गए, जिससे ऊबड़-खाबड़ सड़कों पर और सोवियत संघ की कठोर सर्दियों में विश्वसनीयता में सुधार हुआ
फिएट की तकनीकी सहायता से AvtoVAZ द्वारा निर्मित पहली कारों का विपणन ज़िगुली पदनाम के तहत किया गया था, जिसे कथित तौर पर डिजाइनर ए.एम. चेर्नी द्वारा सुझाए जाने के बाद चुना गया था।
लाडा ब्रांड 1973 में सामने आया, और तब से यह AvtoVAZ वाहनों के लिए मुख्य ब्रांड बन गया है।
कई प्रोटोटाइप और प्रायोगिक वाहन बनाने के बाद, AvtoVAZ डिजाइनरों ने 1977 में पूरी तरह से अपने डिजाइन की पहली कार VAZ-2121 Niva लॉन्च की।
110-श्रृंखला सेडान को 1993 में इसकी मूल समय सीमा के दो साल बाद, 1995 में पेश किया गया था। कार की विकास लागत $2 बिलियन आंकी गई थी। 2111 स्टेशन वैगन ने 1998 में पीछा किया और 2112 हैचबैक ने 2001 में रेंज को पूरा किया। निवा का पांच-दरवाजा संस्करण, वीएजेड-2131, 1995 में पेश किया गया था। वीएजेड-2120 नादेज़्दा, लाडा निवा पर आधारित एक मिनीवैन, 1998 में पेश की गई थी।
बाजार में नई कलिना बी-सेगमेंट लाइनअप की शुरुआत 2005 में हुई। AutoVAZ ने इस मॉडल के लिए एक नया, आधुनिक संयंत्र बनाया, जिसमें सालाना लगभग 200,000 कारों की बिक्री की उम्मीद थी। कलिना को मूल रूप से 1990 के दशक की शुरुआत में डिजाइन किया गया था, और इसके लॉन्च में बार-बार देरी हो रही थी, जो कि समय पर उत्पादों को बाजार में लाने में कंपनी की कठिनाई का उदाहरण है। मार्च 2007 में, लाडा ने प्रियोरा को लॉन्च किया, जो एक आरामदेह और आधुनिक 110-श्रृंखला वाला मॉडल था।
मार्च 2008 में, रेनॉल्ट ने 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सौदे में AvtoVAZ में अल्पमत 25% हिस्सेदारी खरीदी, जिसमें रोस्टेक ने शेष 75% को बरकरार रखा। रेनो के सहयोग से विकसित एक सबकॉम्पैक्ट कार ग्रांटा की बिक्री दिसंबर 2011 में शुरू हुई थी। रेनॉल्ट तकनीक के साथ एक और वाहन, लार्गस, जुलाई 2012 के मध्य तक रूसी बाजार में लॉन्च किया गया था। अगस्त 2012 में, मॉस्को इंटरनेशनल ऑटोमोबाइल सैलून में एक्सरे कॉन्सेप्ट कार लॉन्च की गई थी। XRAY को तत्कालीन मुख्य डिजाइनर स्टीव मैटिन द्वारा डिजाइन किया गया था, जो पूर्व में वोल्वो और मर्सिडीज-बेंज थे। रेनॉल्ट-निसान एलायंस के सहयोग से AvtoVAZ द्वारा विकसित एक नए B\C प्लेटफॉर्म पर आधारित वेस्टा का उत्पादन, 25 सितंबर 2015 को लाडा इज़ेव्स्क निर्माण साइट पर शुरू हुआ।
टिप्पणियाँ और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
लाडा
कार निर्माता
1973 में स्थापित की गई कंपनियां
मोटर वाहन की कंपनियां
रूस के मोटर वाहन कंपनियां | 611 |
546570 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B5%20%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%B0 | गुस्ताव फ्लोवेर | गुस्ताव फ्लोवेर (Gustave Flaubert ; फ्रांसीसी उच्चारण: [ɡystav flobɛʁ]; 12 दिसम्बर 1821 – 8 मई 1880)) फ्रेंच उपन्यासकार थे।
जीवन परिचय
लेखक गुस्ताव फ्लोवेर (१८२१-८०) का जन्म रूआँ में १२ दिसम्बर सन् १८२१ को हुआ था। उनके पिता शल्यचिकित्सक थे। ११ वर्ष की अवस्था में आप साहित्य की ओर प्रवृत्त हुए। आप पेरिस में कानून का अध्ययन करने लगे, किंतु सन् १८४५ में पिता की मृत्यु के पश्चात् रूआँ लौट आए और अपने पैतृक निवासस्थान पर रहने लगे जहाँ ८ मई सन् १८८० को आपका शरीरांत हुआ। दो या तीन प्रेमव्यापार; पिरेनीज़, कार्सिका, ब्रिटेन, यूनान, मिस्र तथा फिलिस्तीन की यात्राएँ और पैरिस के संक्षिप्त अनेक अवलोकन आपके जीवन की बाह्य घटनाएँ थीं। साहित्यसेवा के लिए ही उनका जीवन था। वे लज्जाशील, स्पर्शकातर, स्वाभिमानी साहित्यसेवी थे।
यथार्थवाद के ह्रासकाल में भी फ्रेंच यर्थाथवादी संप्रदाय के नेता के रूप में फ्लोबेर की प्रतिष्ठा थी। आप गोतिये के शिष्य और ह्यूगो के प्रशंसक थे। गांकर बंधु, ज़ोला, दादे और मोपासाँ आपके शिष्य थे। आप स्वछंदतावादी (रोमैंटिस्ट) तथा यथार्थवादी थे। कल्पना की अधिकता, प्राच्य, विदेशी, भयानक तथा अतीत के प्रति आकर्षण एवं मध्यवर्ग के प्रति घृणा के कारण आप स्वछंदतावादी और व्यक्तित्वशून्यता, स्वानुभूतिव्यंजना, प्रामाणिकतानुराग के आग्रह के कारण यथार्थवादी थे। आपकी कला संयत थी। आप स्वच्छंदतावादियों की अत्यधिक निजी पूर्वधारणा से मुक्त थे।
आपके उपन्यास शैली के आदर्श हैं। उनमें प्रतिपाद्य विषय एवं उसके स्वरूप में पूर्ण एकरूपता है जो शेक्सपीयर में भी सदैव नहीं रही। फ्लोबेर ने मूर्तिमत्ता, शब्दौचित्य और एकरूपता के लिए कठिन परिश्रम किया। आप 'कला के लिए कला' सिद्धांत के प्रवर्तक थे। आपके मतानुसार कला जीवन की सार्थकता है और कला से इतर वस्तुएँ मृगमरीचिका मात्र हैं।
आपकी सर्वोत्कृष्ट रचना 'मादाम बोवारी' (१८५७) है। 'सालामबो' (१८६२) में कार्थेज के सुंदर पुनर्निर्माण एवं उसकी सभ्यता का चित्रण है। यह एक व्यक्तित्वशून्य सिनेमा फिल्म है। 'लेदुकाशिआँ सानंतिमांताल' (१८७३) आपकी युवावस्था की स्मृतियों एवं राजनीतिक प्रश्न संबंधी चिंताओं पर आधारित है। 'ला तांताशिआंदसे आंत्वान' के तीन संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण क्रमश: सन् १८४९, १८५६ और १८७२ में प्रकाशित हुए। यह आपके कलात्मक विकास एवं चिंतनशीलता का परिचायक है। 'अ काँत सिंप्ल्' सरल हृदय की छोटी सी कहानी है, 'बुव्हार ए पेकुशे' आपके निधनोपरांत प्रकाशित अपूर्ण उपन्यास है।
फ्रेंच साहित्यकार | 356 |
188446 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B9%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%A8 | सहवादन | पहले गायक या वादक अपने गायन या वादन का प्रदर्शन राजाओं या रईसों के सम्मुख करता था अथवा किसी धार्मिक उत्सव के समय मंदिरों में करता था। कभी-कभी वह मेले इत्यादि में भी जाकर अपनी कला का प्रदर्शन करता था। किंतु उसके पास ऐसा कोई साधन नहीं था जिसके द्वारा वह संगीत के एक पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम को जनता के सामने प्रस्तुत कर सके।
यूरोप में इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, इत्यादि देशों में संगीतगोष्ठी का आयोजन प्रारंभ हुआ। इसे "कंसर्ट" (concert) कहते हैं। संगीत सभाएँ या संगीत विद्यालय अथवा कुछ व्यवसायी लोगों ने संगीतगोष्ठी का आयोजन प्रारंभ किया। किसी अच्छे कलाकार या कलाकारों के गायन वादन का कार्यक्रम किसी बड़े भवन में संपन्न होता था। इस संगीतगोष्ठी में जनता का प्रवेश टिकट या चंदे के द्वारा होने लगा। इस प्रकार की संगीतगोष्ठियाँ अमरीका और अन्य देशों में प्रारंभ हुई। बड़े बड़े नगरों में इस प्रकार की गोष्ठियों के लिए विशाल गोष्ठीभवन (concert hall) या सभाभवन (Auditorium) बन गए। भारत में इस प्रकार की संगीतगोष्ठी का आयोजन बंबई, पूना, कलकत्ता इत्यादि बड़े नगरों में प्रारंभ हो गया है। इन संगीतगोष्ठियों के अतिरिक्त भारत में कई स्थानों में संगीतोत्सव या संगीतपरिषदों का आयोजन भी होता है जिनमें बहुत से कलाकार एकत्र होते है और उनका कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। इनमें श्रोताओं का प्रवेश टिकट द्वारा होता है।
यूरोप के 18वीं शती में संगीतगोष्ठी के आयोजन और प्रबंध के लिए बहुत सी संस्थाएँ स्थापित हो गई। ये संस्थाएँ संगीतगोष्ठियों का आयोजन करने लगीं और संचित द्रव्य में से कलाकार तथा आयोजन और प्रबंध के लिए एक भाग लेने लगीं। सामंतों और रईसों का आश्रय समाप्त होने पर कलाकारों के कार्यक्रम के आयोजन के लिए स्थान स्थान पर संस्थाएँ स्थापित होने लगी और 19वीं शती तक इन संस्थाओं ने एक अंतरराष्ट्रीय व्यवसाय का रूप धारण कर लिया।
संगीतगोष्ठी के अर्थ के अतिरिक्त फ्रांस, जर्मनी और इटली में कंसर्ट एक विशिष्ट वाद्य-संगीत-प्रबंध के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है।
संगीत | 315 |
59842 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%20%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3 | ब्रह्माण्ड पुराण | ब्रह्माण्डपुराण, अट्ठारह महापुराणों में से एक है। मध्यकालीन भारतीय साहित्य में इस पुराण को 'वायवीय पुराण' या 'वायवीय ब्रह्माण्ड' कहा गया है। ब्रह्माण्ड का वर्णन करनेवाले वायु ने वेदव्यास जी को दिये हुए इस बारह हजार श्लोकों के पुराण में विश्व का पौराणिक भूगोल, विश्व खगोल, अध्यात्मरामायण आदि विषय हैं।
विस्तार
यह पुराण भविष्य कल्पों से युक्त और बारह हजार श्लोकों वाला है। इसके चार पद है, पहला प्रक्रियापाद दूसरा अनुषपाद तीसरा उपोदघात और चौथा उपसंहारपाद है। पहले के दो पादों को 'पूर्व भाग' कहा जाता है, तृतीय पाद ही 'मध्यम भाग' है, और चतुर्थ पाद को 'उत्तर भाग' कहा गया है। पुराणों के विविध पांचों लक्षण 'ब्रह्माण्ड पुराण' में उपलब्ध होते हैं। इस पुराण के प्रतिपाद्य विषय को प्राचीन भारतीय ऋषि जावा द्वीप (वर्तमान में इण्डोनेशिया) लेकर गए थे। इस पुराण का अनुवाद वहां के प्राचीन कवि-भाषा में किया गया था जो आज भी उपलब्ध है।
कथा
पूर्व भाग के प्रक्रिया पाद में पहले कर्तव्य का उपदेश नैमिषा आख्यान हिरण्यगर्भ की उत्पत्ति और लोकरचना इत्यादि विषय वर्णित है, द्वितीयभाग में कल्प तथा मन्वन्तर का वर्णन है, तत्पश्चात लोकज्ञान मानुषी-सृष्टि-कथन रुद्रसृष्टि-वर्णन महादेव विभूति ऋषि सर्ग अग्निविजय कालसदभाव-वर्णन प्रियवत वंश का वर्णन पृथ्वी का दैर्घ्य और विस्तार भारतवर्ष का वर्णन फिर अन्य वर्षों का वर्णन जम्बू आदि सात द्वीपों का परिचय नीचे के पातालों का वर्णन भूर्भुवः आदि ऊपर के लोकों का वर्णन ग्रहों की गति का विश्लेषण आदित्यव्यूह का कथन देवग्रहानुकीर्तन भगवान शिव के नीलकण्ठ नाम पडने का कथन महादेवजी का वैभव अमावस्या का वर्णन युगत्वनिरूपण यज्ञप्रवर्त्तन अन्तिम दो युगों का कार्य युग के अनुसार प्रजा का लक्षण ऋषिप्रवर वर्णन वेदव्यसन वर्णन स्वायम्भुव मनवन्तर का निरूपण शेषमनवन्तर का कथन पृथ्वीदोहन चाक्षुषु और वर्तमान मनवन्तर के सर्ग का वर्णन है।
मध्यभाग के सप्तऋषियों का वर्णन प्रजापति वंश का निरूपण उससे देवता आदि की उत्पत्ति इसके बाद विजय अभिलाषा और मरुद्गणों की उत्पत्ति का कथन है। कश्यप की संतानों का वर्णन ऋषिवंश निरूपण पितृकल्प का कथन श्राद्धकल्प का कथन वैवस्त मनु की उत्पत्ति उनकी सृष्टि मनुपुत्रों का वंश गान्धर्व निरूपण इक्ष्वाकु वंश का वर्णन परशुरामचरित वृष्णिवंश का वर्णन सगर की उत्पत्ति भार्गव का चरित्र , भार्गव और्व की कथा शुक्राचार्यकृत इन्द्र का पवित्र स्तोत्र देवासुर संग्राम की कथा विष्णुमाहात्म्य बलिवंश निरूपण कलियुग में होने वाले राजाओं का चरित्र आदि लिखे गये है।
इसके बाद उत्तरभाग के चौथे उपसंहारपाद में वैवस्त मनवन्तर की कथा ज्यों की त्यों लिखी गयी है, जो कथा पहले संक्षेप में कही गयी है उसका यहां विस्तार से निरूपण किया गया है। भविष्य में होने वाले मनुओं की कथा भी कही गयी है, विपरीत कर्मों से प्राप्त होने वाले नरकों का विवरण भी लिखा गया है। इसके बाद शिवधाम का वर्णन है और सत्व आदि गुणों के सम्बन्ध से जीवों की त्रिविधि गति का निरूपण किया गया है। इसके बाद अन्वय तथा व्यातिरेकद्रिष्टि से अनिर्देश्य एवं अतर्क्य परब्रह्म परमात्मा के स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है।
बाहरी कडियाँ
Brahmanda Purana, Purvabhaga text
Brahmanda Purana, MadhyaBhaga text
Brahmanda Purana, Uttarabhaga text
Brahmanda Purana, summary
श्रीमद्भागवत
संस्कृत साहित्य
पुराण
वैदिक धर्म | 490 |
565063 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BF%20%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5%20%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80 | देवर्षि रमानाथ शास्त्री | देवर्षि रमानाथ शास्त्री (1878 – 1943) संस्कृत भाषा के कवि तथा श्रीमद्वल्लभाचार्य द्वारा प्रणीत पुष्टिमार्ग एवं शुद्धाद्वैत दर्शन के विद्वान् थे। उन्होने हिन्दी, ब्रजभाषा तथा संस्कृत में प्रचुर लेखन किया है। वे बाल्यावस्था से ही संस्कृत में कविता करने लग गए थे और उसी दौरान प्रसिद्ध मासिक पत्र ‘संस्कृत रत्नाकर’ में उनकी प्रारंभिक कविता ‘दुःखिनीबाला’ छपी थी। उनका जन्म आन्ध्र से जयपुर आये कृष्णयजुर्वेद की तैत्तरीय शाखा अध्येता वेल्लनाडु ब्राह्मण विद्वानों के देवर्षि परिवार की विद्वत् परम्परा में सन् 1878 (विक्रम संवत् 1936, श्रावण शुक्ल पंचमी) को जयपुर में हुआ। उनके पिता का नाम श्री द्वारकानाथ तथा माता का नाम श्रीमती जानकी देवी था। इनके एकमात्र पुत्र पंडित ब्रजनाथ शास्त्री (1901-1954) थे, जो स्वयं शुद्धाद्वैत के मर्मज्ञ थे। वे संस्कृत के उद्भट विद्वान् व युगपुरुष कविशिरोमणि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के अग्रज थे।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
शास्त्रीजी की प्रारंभिक शिक्षा जयपुर के महाराजा संस्कृत कॉलेज में हुई और 1896 में 18 वर्ष की आयु में वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाराणसी चले गए। उन्होने 1903 में मुम्बई को अपना कार्यक्षेत्र चुना। कालबादेवी रोड पर उन दिनों नारायण मूलजी की पुस्तकों की दुकान हुआ करती थी जहाँ सायंकाल को विद्वान लोग शास्त्रीय चर्चा के लिए इकट्ठे होते थे। कई बार विद्वानों में शास्त्रार्थ भी हो जाता था। ऐसे ही एक शास्त्रार्थ के दौरान उनकी भेंट वहाँ के एक सम्माननीय व्यक्ति सेठ चत्तामुरारजी से हो गई जो उनकी विद्वत्ता और शास्त्रार्थ में उनकी पाण्डित्यपूर्ण वाग्मिता से अत्यंत प्रभावित हुए। उनके आग्रह पर शास्त्रीजी अनन्तवाड़ी में रहने लगे जहाँ वे श्रीमद्भागवत का अनुष्ठान करते। कुछ समय के बाद उन्हें श्रीगोकुलाधीश मन्दिर में व्यासगद्दी मिल गयी। मन्दिर के गोस्वामी गोवर्धनलालजी महाराज की अनुशंसा से वे हनुमान गली में स्थित तत्कालीन वसनजी मनजी संस्कृत विद्यालय में प्रधानाध्यापक हो गये।
पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय को योगदान
मुंबई प्रवास के दौरान उनका परिचय भूलेश्वर स्थित मोटा मन्दिर के गोस्वामी श्री गोकुलनाथ जी महाराज से हो गया जो शीघ्र ही मित्रवत् घनिष्ठता में बदल गया। उनके प्रयत्नों से पुष्टिमार्गीय वैष्णव सम्प्रदाय में एक आन्दोलन की तरह नई चेतना जागृत हुई। वे मोटा मन्दिर के श्रीबालकृष्ण पुस्तकालय के मैनेजर तथा पाठशाला के प्रधान पण्डित हो गये। गोस्वामीजी के अनुरोध पर उन्होने सम्प्रदाय में ‘शास्त्री’ पद भी स्वीकार किया। वे मुम्बई में सन् 1930 तक रहे। इस प्रवास के दौरान वे न केवल पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय के मर्मज्ञ व अद्वितीय विद्वान के रूप में प्रतिष्ठित हुए, वरन् उन्होने शुद्धाद्वैत दर्शन का विवेचन और पुष्टिमार्ग के अनुपम रहस्यों तथा सिद्धांत की व्याख्या करते हुए अनेक वैदुष्यपूर्ण ग्रन्थ भी लिखे। वे कई वर्षों तक मुंबई की तत्कालीन विद्वत्परिषद, ब्रह्मवाद परिषद तथा सनातन धर्म सभा के मानद मंत्री रहे। यहाँ उन्होने ‘स्वधर्म विवर्धिनी सभा’ की स्थापना की जिसके अंतर्गत प्रत्येक एकादशी को एक व्याख्यानमाला का आयोजन किया जाता था। उनके व्याख्यानों और प्रवचनों को इतना अधिक सराहा गया कि मुम्बई के माधवबाग में एक अन्य संस्था ‘आर्य स्वधर्मोदय सभा’ में भी उनके व्याख्यान और गीता पर प्रवचन होने लगे, जिन्हें सुनने विद्वज्जनों, धर्म-संस्कृति प्रेमियों व रसिक भक्तों के अतिरिक्त देवकरण नानजी, कृष्णदास नाथा, मथुरादास गोकुलदास, पं. हनुमान प्रसाद पोद्दार जैसे सम्मानित व्यक्ति भी आते थे। यहीं कई बार महात्मा गाँधी, चितरंजनदास, राजगोपालाचारी जैसे राष्ट्रीय नेताओं से उनका संपर्क एवं संवाद होता था। वे पटना की चतुःसम्प्रदाय वैष्णव महासभा, वर्णाश्रम स्वराज्यसंघ, तथा सनातन धर्मसभाओं में भी अपनी वैदुष्यपूर्ण वक्तृत्व से सभी विद्वानों के आदर पात्र थे, जिसके कारण काशी में होनेवाली अखिल भारतीय ब्राह्मण महासम्मलेन में उन्हें सभा का नियामक बनाया गया।
मुम्बई से देवर्षि रमानाथ शास्त्री सन् 1930 में महाराणा मेवाड़ तथा नाथद्वारा के तत्कालीन तिलकायित गोस्वामी गोवर्धनलाल जी के निमंत्रण पर नाथद्वारा आये, जहाँ वे मृत्युपर्यन्त 1943 तक सुप्रसिद्ध विद्याविभाग के अध्यक्ष रहे। उन्होंने सन् 1936 में अन्य सहयोगियों के साथ मिल कर नाथद्वारा में ‘साहित्य मण्डल’ नामक संस्था की स्थापना की और इस सम्बन्ध में वे काफ़ी समय तक पं. मदनमोहन मालवीय के सम्पर्क में भी रहे। अपने जीवन के सन्ध्याकाल में वे श्रीनाथजी के दर्शनों का लाभ लेते थे और उनके विभिन्न श्रृंगारों पर संस्कृत में अत्यंत हृदयस्पर्शी व भावपूर्ण साहित्यिक श्लोक लिखते थे। उनके निधन के पश्चात् उनके पुत्र देवर्षि ब्रजनाथ शास्त्री विद्याविभागाध्यक्ष (1943-1950) बने।
सम्मान
देवर्षि रमानाथ शास्त्री श्रीमद्भागवत के अद्भुत विद्वान् तथा कथावाचक थे जिन्हें लगभग 20 बार श्रीमद्भागवत के 108 पारायणों में मुख्यासन पर आसीन करके सम्मानित किया गया। प्रसिद्ध मासिकपत्र ‘कल्याण’ के संपादक स्व. हनुमान प्रसाद पोद्दार (गीताप्रेस गोरखपुर) ने श्रीमद्भागवत के प्रकाशन में उनकी विद्वत्ता को स्मरण करते हुए उनका सादर उल्लेख किया है। मुंबई में राजा बलदेवदास बिड़ला ने भी उन्हें मुख्य व्यास मान कर सम्मानित किया था। पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय के तलस्पर्शी विद्वानों में उनका नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है।
विविध विधाओं में निपुणता
प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले देवर्षि रमानाथ शास्त्री असाधारण प्रतिभा के धनी थे, जिन्होंने कई क्षेत्रों में महारत हासिल की। मुम्बई के जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स के सौजन्य से उन्होने तैल तथा जल रंगों से चित्रकला में अद्भुत निपुणता प्राप्त की तथा ‘लन्दन स्कूल ऑफ़ पेन्टिंग’ की शैली में अनेक तैलचित्रों की रचना की। उनके कई अविस्मरणीय तैलचित्र आज भी अनेक दीर्घाओं तथा बैठकों की शोभा बढ़ा रहे हैं। उनके द्वारा बनाये गए चित्रों – “शेरों का स्वराज्य”, शार्दूल विक्रम”, “राधा माधव” जैसे कई चित्रों ने बहुत प्रसिद्धि पायी, जिन्हें ‘नॉट फ़ॉर कम्पीटिशन’ का बोर्ड लगा कर प्रदर्शित किया जाता था। वे संगीत, फ़ोटोग्राफी तथा क्रिकेट का भी शौक रखते थे और शतरंज के माहिर खिलाड़ी थे। मुंबई के प्रसिद्ध हिन्दू जिमखाना क्लब के सदस्य की हैसियत से वे यूरोपियाई शतरंज खिलाड़ियों के साथ स्पर्धा भी करते थे और अक्सर विजयी रहते थे।
प्रमुख कृतियाँ
शुद्धाद्वैत दर्शन (द्वितीय भाग), प्रकाशक - बड़ा मन्दिर, भोईवाड़ा, मुंबई, 1917
रासलीला-विरोध परिहार, प्रकाशक - विद्याविभाग, नाथद्वारा, 1932
ब्रह्मसम्बन्ध अथवा पुष्टिमार्गीय दीक्षा, प्रकाशक - सनातन भक्तिमार्गीय साहित्य सेवा सदन, मथुरा, सन् 1932
श्रीकृष्णावतार किं वा परब्रह्म का आविर्भाव, प्रकाशक - शुद्धाद्वैत पुष्टिमार्गीय सिद्धान्त कार्यालय, नाथद्वारा, 1935
भक्ति और प्रपत्ति का स्वरूपगत भेद, प्रकाशक - शुद्धाद्वैत सिद्धान्त कार्यालय, नाथद्वारा, 1935
श्रीकृष्णाश्रय, प्रकाशक - पुष्टिसिद्धान्त भवन, परिक्रमा, नाथद्वारा, 1938
ईश्वर दर्शन, प्रकाशक - विद्याविभाग, नाथद्वारा, 1939
पुष्टिमार्गीय स्वरूपसेवा, प्रकाशक - विद्याविभाग, नाथद्वारा, 1943
श्रीकृष्णकी लीलाओं पर शास्त्रीय प्रकाश (प्रथम भाग), विद्याविभाग, नाथद्वारा, 1944
ब्रह्मवाद, प्रकाशक - पुष्टिमार्गीय कार्यालय, नाथद्वारा, 1945
पुष्टिमार्गीय नित्यसेवा स्मरण, प्रकाशक - श्रीवल्लभाचार्य जनकल्याण प्रन्यास, मथुरा, 1989
अनुग्रह मार्ग (सुबोधिनीजी के अनुसार), प्रकाशक - श्रीवल्लभाचार्य जनकल्याण प्रन्यास, मथुरा, 1994
शुद्धाद्वैत दर्शन (तीन भाग), प्रकाशक - विद्या विभाग, नाथद्वारा, नया संस्करण, 2000
उक्त ग्रंथों के अतिरिक्त उनके द्वारा लिखे अन्य प्रमुख ग्रंथों में निम्नलिखित ग्रन्थ भी हैं, जिनमें से कुछ अप्रकाशित अथवा पाण्डुलिपि रूप में हैं -
“सिद्धांतरहस्यविवृत्ति”
“शुद्धाद्वैत सिद्धान्तसार” (हिन्दी – गुजराती)
“त्रिसूत्री”
“गीता के सिद्धान्तों पर शांकर एवं वाल्लभ मत की तुलना”
“षोडशग्रन्थ टीका”
“स्तुतिपारिजातम्” (संस्कृत में)
“दर्शनादर्शः” (संस्कृत में)
“गीतातात्पर्य”
“श्रीमद्वल्लभाचार्य”
“भगवानक्षरब्रह्म”
“श्रीमद्भगवतगीता (हिन्दी अनुवाद)”
“राधाकृष्णतत्व”
“सुबोधिनीजी का हिन्दी विशद अनुवाद”
“छान्दोग्योपनिषद् भाष्यं" (संस्कृत में)
उन्होने सन् 1942 में “गीता की समालोचना” नामक ग्रन्थ लिखना प्रारम्भ किया जो उनके देहावसान के केवल एक सप्ताह पहले ही 1943 में पूरा हुआ।
निधन
देवर्षि रमानाथ शास्त्री का देहावसान नाथद्वारा में सन् 1943 में 65 वर्ष की आयु में हुआ।
सन्दर्भ-स्रोत
व्रजनाथ शास्त्री द्वारा देवर्षि रमानाथ शास्त्री का विस्तृत परिचय, ‘श्रीकृष्णलीलाओं पर शास्त्रीय प्रकाश’ में, प्रकाशक- विद्याविभाग, नाथद्वारा, 1944
डॉ॰ सुषमा शर्मा – “देवर्षि पं॰ रमानाथ जी शास्त्री”, साहित्यमण्डल नाथद्वारा हीरक जयन्ती ग्रन्थ (1937-1997), प्रधान संपादक भगवती प्रसाद देवपुरा, साहित्य मण्डल, नाथद्वारा, 1997
“शुद्धाद्वैत दर्शन (द्वितीय भाग)”, प्रकाशक - बड़ा मन्दिर, भोईवाड़ा, मुंबई, 1917
“ब्रह्मसम्बन्ध अथवा पुष्टिमार्गीय दीक्षा”, प्रकाशक - सनातन भक्तिमार्गीय साहित्य सेवा सदन, मथुरा, सन् 1932
हनुमान प्रसाद पोद्दार - ‘द्वितीय संस्करण का नम्र निवेदन’, श्रीमद्भागवत-महापुराण, प्रथम खण्ड, गीताप्रेस, गोरखपुर, ISBN 81-293-0003-6
साहित्यकार
राजस्थान के लोग
१९४३ में निधन
हिन्दू धर्म
संस्कृत साहित्यकार
संस्कृत कवि
पुष्टिमार्ग
जयपुर के लोग
संस्कृत साहित्य
आधुनिक संस्कृत साहित्यकार
1878 में जन्मे लोग | 1,245 |
1203049 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%28%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%9F%29%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BF | योजना (प्रोजेक्ट) विधि | प्रोजेक्ट विधि की मूल अवधारणा जॉन डीवी के द्वारा दी गई है तथा उनके शिष्य किलपैट्रिक ने इस विधि का प्रतिपादन किया।
इस विधि में बालक द्वारा ही किसी समस्या को प्रोजेक्ट द्वारा हल किया जाता है यह उद्देश्य पूर्ण होती हैं।
इसमें शिक्षक मार्गदर्शक के रूप में काम करता है।
इस विधि के द्वारा प्रत्यक्ष अनुभव होता है।
पता करके सीखने पर बल दिया जाता है इस विधि में प्राप्त होने वाला ज्ञान स्थाई एवं स्पष्ट होता है।
प्रयोजना विधि से बालकों में तारक चिंतन अन्वेषण शक्ति का विकास होता है।
आत्मनिर्भर,सामाजिक गुणों से पूर्ण होते हैं।
इस विधि में हाथ से कार्य करने पर बल दिया जाता है।
शारीरिक व मानसिक परिश्रम करवाया जाता है।
परियोजना विधि अधिक खर्चीली तथा अधिक समय लेने वाली होती है। | 128 |
505872 | https://hi.wikipedia.org/wiki/2009%20%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%A8%20%E0%A4%96%E0%A5%87%E0%A4%B2 | 2009 मैडिटेरियन खेल | 2009 मैडिटेरियन खेल एक बहु-खेल प्रतियोगिता थी जिसका आयोजन इटली के पैस्कारा शहर में 26 जून 5 जुलाई 2009 हुआ था। मैडिटेरियन खेलों में भूमध्य सागर के चारों ओर भोगोलिक रूप से स्थापित देश हिस्सा लेते है। 2009 पैस्कारा खेलों में 23 राष्ट्रो के 3,368 प्रतियोगीयो (2,183 पुरुष और 1,185 महिला) ने भाग लिया था। इस देशों में से 21 ने कम से कम एक पदक तथा 18 ने कम से कम एक स्वर्ण पदक जीता था। मेज़बान राष्ट्र इटली 64 स्वर्ण पदकों के साथ प्रथम स्थान पर रहा।
मैडिटेरियन खेल | 91 |
654321 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B8 | प्रभास | सूर्यनारायण वैंकट प्रभास राजु उप्पलपाटि (जन्म :२३ अक्टूबर १९७९) अथवा प्रभास एक भारतीय फ़िल्म अभिनेता हैं जो मुख्य रूप से तेलुगु सिनेमा में कार्य करते हैं। ये सुपरस्टार प्रभास के नाम से प्रसिद्ध हैं। हिंदुस्तान टाइम्स फ़िल्म परियोजना के अनुसार प्रभास की फ़िल्म बाहुबली 2 फ़िल्म भारतीय सिनेमा की इतिहास में सबसे महंगी फ़िल्मों में से एक है तथा भारतीय फिल्म इतिहास कि आज तक की सबसे अधिक कमाई करने वाली फ़िल्म है । प्रभास भारतीय सिनेमा के इतिहास के सबसे सफल अभिनेताओं में एक हैं , तथा सर्वाधिक फीस लेने वाले अभिनेता है। इनको अपनी पिछली फिल्मों , बाहुबली तथा बाहुबली 2 के लिए कुल 30 करोड़ , साहो के लिए 100 करोड़ , तथा राधे श्याम के लिए 150 करोड़ की फीस दी गई, तथा इनकी आने वाली फिल्म "आदिपुरुष (2023)" के लिए 151 करोड़ रुपयें , और फिल्म "सालार (2023)" के लिए 121 करोड़ की फीस दी गई है । प्रभास को पूरी दुनिया में अपने अद्भुत अभिनय तथा गज़ब कि ऐक्टिंग स्टाइल के लिए जाना जाता है । प्रभास अपने हर किरदार को मजबूती के साथ निभाते हैं तथा हर रोल में खुद को प्राकृतिक रूप से ढालकर अपने अभिनय से सबको हर बार आश्चर्य चकित कर देते हैं । प्रभास को दुनियाभर के इक्कीसवी सदी के सबसे महान तथा काबिल और प्रतिभावान एक्टर्स में से एक माना जाता है , जो हर किरदार में अपने मजबूत अभिनय से अपनी एक अलग पहचान छोड़ जाते हैं । सुपरस्टार प्रभास को सात फिल्मफेयर पुरस्कार (दक्षिण) का नामांकन (नॉमिनेशन) प्राप्त हुआ है और वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राज्य नंदी पुरस्कार तथा सि.मा. पुरस्कार (SIIMA) के प्राप्तकर्ता हैं ।
प्रारंभिक जीवन
प्रभास का जन्म फिल्म निर्माता यू. सूर्यनारायण राजू उप्पालापाटि और उनकी पत्नी शिवकुमारी के घर हुआ था। यह एक ठाकुर परिवार से हैं , वह तीनों बच्चों में सबसे छोटे है, उनके एक बड़े भाई प्रमोद उप्पालापाटि और बहन प्रगती है। उनके चाचा, तेलुगु अभिनेता कृष्णम राजू उप्पालापाटि हैं। उनका परिवार आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी जिले के भीमावरम के पास मोगलथुर का रहने वाला है । उन्होंने अपनी इंटर की शिक्षा नालंदा कॉलेज, हैदराबाद से पूरी की । वे सत्यानंद फिल्म संस्थान, विशाखापत्तनम के पूर्व छात्र हैं ।
प्रभास ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई श्री चैतन्य कॉलेज हैदराबाद से पूरी की ।
प्रभास एक बिज़नेसमैन बनना चाहते थे । वह खान-पान के काफी शौकीन और जानकार होने के कारण होटल और रेस्टोरेंट का बिजनेस करना चाहते थे । परंतु बाद में उनकी रूची फिल्मों में बढ़ गई और उन्होंने ऐक्टिंग करने का निर्णय लिया ।
फिल्मी सफर
सुपरस्टार प्रभास के करियर की ज्यादातर फिल्में व्यावसायिक रूप से बहुत सफल साबित हुई हैं , तथा प्रभास की ज्यादातर फिल्मों को विशेषज्ञों ने भी प्रशंसित किया है , विशेष तौर पर प्रभास के प्रदर्शन और अभिनय की दुनियाभर के विशेषज्ञों ने अत्यन्त प्रशंसा किया है ।
प्रभास ने २००२ में ईश्वर के साथ अपना फिल्म कैरियर शुरू किया था। २००३ में, वह राघवेन्द्र में अग्रणी भूमिका में थे। २००४ में, वे वर्धन में दिखाई दिए उन्होंने अपने कैरियर को एडवी रामुडू और चक्रम के साथ जारी रखा। २००५ में उन्होंने एस। एस। राजामौली द्वारा निर्देशित फिल्म छत्रपति में अभिनय किया, जिसमें उन्होंने गुंडों द्वारा शोषित एक शरणार्थी की भूमिका निभाई। ये ५४ सिनेमाघरों में १०० दिन तक चली थी। बाद में उन्होंने पौरनामी, योगी और मुन्ना में अभिनय किया, २००७ में एक्शन-ड्रामा फिल्म आ गई, इसके बाद २००८में एक्शन कॉमेडी बुजजीगाडू में अभिनय किया। २००९ में उनकी दो फिल्मों बिल्ला और एक निरंजन थे। इंडिआग्लिट्ज़ ने स्टाइलिश और नेत्रहीन अमीर बुला बुलाया। २०१० में वह रोमांटिक कॉमेडी डार्लिंग में और २०११ में, श्री परफेक्ट, एक और रोमांटिक कॉमेडी में दिखाई दिया। २०१२ में, प्रभास ने रिबेल में अभिनय किया, राघव लॉरेंस द्वारा निर्देशित एक्शन फिल्म उनकी अगली फिल्म मिरची थी उन्होंने फिल्म डेनिकाइना रेडी के लिए एक छोटे से कैमियो के लिए आवाज गाई। २०१५ में वह एस.एस. राजमौली के महाकाव्य बाहुबली: द बिगिनिंग में शिवुडु / महेन्द्र बाहुबली और अमरेन्द्र बाहुबली के रूप में दिखाई दिए। यह फिल्म दुनिया भर में तीसरी सबसे बड़ी कमाई करने वाली फिल्म बन गई है और दुनिया भर में आलोचकों और व्यावसायिक प्रशंसा की गई है। बाहुबली की अगली कड़ी: बाहुबली: द कन्क्लूजन २८ अप्रैल २०१७ को दुनिया भर में जारी की गई। बाहुबली २ की सफलता के बाद प्रभास के घर शादी के रिश्ते के लिए देश विदेश से कुल ६००० रिश्ते आए। बाहुबली २ इंडियन फिल्म इंडस्ट्री की सबसे श्रेष्ट फिल्म साबित हुई। बाहुबली के पात्र को न्याय देने के लिए प्रभास ने ५ साल तक एक भी फिल्म साईन नहीं की।
फ़िल्में
बैंकॉक मैडम तुसाद म्यूजियम
बैंकॉक स्थित प्रतिष्ठित मैडम तुसाद म्यूजियम में 'बाहुबली' प्रभास का मोम का पुतला लगाया गया है। प्रभास दक्षिण भारत के ऐसे पहले सुपरस्टार हैं, जिनका मोम का पुतला दुनिया के इस प्रसिद्ध म्यूजियम में लगा है।
सन्दर्भ
प्रभास के बारे मे अधिक जानने के लिए ( कॅरिअर, नेटवर्थ, परिवार और अन्य चीज़े)
तेलुगू अभिनेता
भारतीय अभिनेता
अभिनेता
जीवित लोग
तेलंगाना के लोग
1979 में जन्मे लोग
यह भी देखें
• प्रभास के बारे मे अधिक जानने के लिए ( कॅरिअर, नेटवर्थ, परिवार और अन्य चीज़े)
• सर्वाधिक कमाई करने वाली भारतीय फिल्मों की सूची | 851 |
541205 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%82%20%E0%A4%AC%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80 | बाबू बजरंगी | बाबू भाई पटेल, उर्फ़ बाबू बजरंगी, वीएचपी नेता और बजरंग दल के गुजरात-विंग के नेता हैं। 28 फ़रवरी 2002 को जब नरोदा पाटिया इलाके को घेर कर 97 लोगों की हत्या कर दी गई थी, आरोप है कि भीड़ का नेतृत्व कोडनानी ने किया था और बाबू बजरंगी भी उसमें शामिल थे। नरोदा पाटिया दंगों के मामले में एक विशेष अदालत ने माया कोडनानी को 28 वर्ष की कैद और बाबू बजरंगी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
सन्दर्भ
बजरंग दल
विश्व हिंदू परिषद
सजा प्राप्त भारतीय राजनीतिज्ञ
2002 की गुजरात हिंसा
एक इंटरव्यु मे उसने कहा की मुझे बोहत मजा आया
हिन्दू आतंकवाद | 106 |
785574 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%A4 | द्वैताद्वैत | द्वैताद्वैत दर्शन के प्रणेता निम्बार्क हैं। उनके दर्शन को भेदाभेदवाद (भेद+अभेद वाद) भी कहते हैं। ईश्वर, जीव व जगत् के मध्य भेदाभेद सिद्ध करते हुए द्वैत व अद्वैत दोनों की समान रूप से प्रतिष्ठा करना ही निम्बार्क दर्शन (द्वैताद्वैत) की प्रमुख विशेषता रही है।
श्रीनिम्बार्काचार्य चरण ने ब्रह्म ज्ञान का कारण एकमात्र शास्त्र को माना है। सम्पूर्ण धर्मों का मूल वेद है। वेद विपरीत स्मृतियाँ अमान्य हैं। जहाँ श्रुति में परस्पर द्वैध (भिन्न रूपत्व) भी आता हो वहाँ श्रुति रूप होने से दोनों ही धर्म हैं। किसी एक को उपादेय तथा अन्य को हेय नहीं कहा जा सकता। तुल्य बल होने से सभी श्रुतियाँ प्रधान हैं। किसी के प्रधान व किसी के गौण भाव की कल्पना करना उचित नहीं है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए भिन्न रूप श्रुतियों का भी समन्वय करके निम्बार्क दर्शन ने स्वाभाविक भेदाभेद सम्बन्ध को स्वीकृत किया है। इसमें समन्वयात्मक दृष्टि होने से भिन्न रूप श्रुति का भी परस्पर कोई विरोध नहीं होता। अतएव निम्बार्क दर्शन को ‘अविरोध मत’ के नाम से भी अभिहित करते हैं।
श्रुतियों में कुछ भेद का बोध कराती हैं तो कुछ अभेद का निर्देश देती हैं।
यथा- ‘पराऽय शक्तिर्विविधैव श्रूयते, स्वाभाविक ज्ञान
बल-क्रिया च’ (श्वे० ६/८)
‘सर्वांल्लोकानीशते ईशनीभिः’ (श्वे० ३/१)
‘यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते, येन जातानि जीवन्ति,
यत्प्रयन्त्यभि संविशन्ति’ (तै० ३/१/१) ।
‘नित्यो नित्यानां चेतश्नचेतनानामेको बहूनां यो विदधाति
कामान् (कठ० ५/१३) अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते।’
(गीता १०/८) इत्यादि श्रुतियाँ ब्रह्म और जगत के भेद का प्रतिपादन
करती हैं।
‘सदेव सौम्येदमग्र आसीदेकमेवाद्वितीयम्’ (छा० ६/२/
१) आत्मा वा इदमेकमासीत्’ (तै०२/१) तत्त्वमसि’ (छा./१४/
३) ‘अयमात्मा ब्रह्म’ (बृ० २/५/१६) सर्वं खल्विदं ब्रह्म’ (छा.
३/१४/१) मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणि गणा इव’ (गी, ७/७/)
इत्यादि अभेद का बोध कराती हैं।
इस प्रकार भेद और अभेद दोनों विरुद्ध पदार्थों का निर्देश करने वाली श्रुतियों में से किसी एक प्रकार की श्रुति को उपादेय अथवा प्रधान कहें तो दूसरी को हेय या गौण कहना पड़ेगा। इससे शास्त्र की हानि होती है। क्योंकि वेद सर्वांशतया प्रमाण है। श्रुति स्मृतियों का निर्णय है। अतः तुल्य होने से भेद और अभेद दोनों को ही प्रधान मानना होगा, व्यावहारिक दृष्टि से यह सम्भव नहीं। भेद अभेद नहीं हो सकता और अभेद को भेद नहीं कह सकते। ऐसी स्थिति में कोई ऐसा मार्ग निकालना होगा कि दोनों में विरोध न हो तथा समन्वय हो जावे।
श्रीनिम्बार्काचार्यपाद ने उक्त समस्या का समाधान करके ऐसे ही अविरोधी समन्वयात्मक मार्ग का उपदेश किया है।
आपश्री का कहना है–
‘ब्रह्म जगत् का उपादान कारण है। उपादान अपने कार्य से अभिन्न होता है। स्वयं मिट्टी ही घड़ा बन जाती है। उसके बिना घडे की कोई सत्ता नहीं। कार्य अपने कारण में अति सूक्ष्म रूप से रहते हैं। उस समय नाम रूप का विभाग न होने के कारण कार्य का पृथक् रूप से ग्रहण नहीं होता पर अपने कारण में उसकी सत्ता अवश्य रहती है। इस प्रकार कार्य व कारण की ऐक्यावस्था को ही अभेद कहते हैं।’
‘सदेव सौम्येदमग्र आसीत् ०’ इत्यादि श्रुतियों का यह ही अभिप्राय है। इसी से सत् ख्याति की उपपत्ति होती है। सद्रूप होने से यह अभेद सवाभाविक है।
दृश्यमान जगत् ब्रह्म का ही परिणाम है। वह दूध से दही जैसा नहीं है। दूध, दही बनकर अपने दुग्धत्व (दूधपने) को जिस प्रकार समाप्त कर देता है, वैसे ब्रह्म जगत् के रूप में परिणत होकर अपने स्वरूप को समाप्त नहीं करता, अपितु मकड़ी के जाले के समान अपनी शक्ति का विक्षेप करके जगत् की सृष्टि करता है। यह ही शक्ति-विक्षेप लक्षण परिणाम है।
यस्तन्तुनाभ इव तन्तुभिः प्रधानजैः।
स्वभावतो देव एकः । समावृणोति स नो दधातु ब्रह्माव्ययम्।।
(श्वे० ६/१०)
‘यदिदं किञ्च तत् सृष्ट्वा तदेवानु प्राविशत्
(तै. २/६)
इत्यादि श्रुतियाँ इसमें प्रमाण हैं।
ब्रह्म ही प्राणियों को अपने-अपने किये कर्मों का फल भुगताता है, अतः जगत् का निमित्त कारण होने से ब्रह्म और जगत् का भेद भी सिद्ध होता है, जो कि अभेद के समान स्वाभाविक ही है।
इसी समन्वयात्मक दार्शनिक प्रणाली को स्वाभाविक भेदाभेद अथवा स्वाभाविक द्वैताद्वैत शब्द से अभिहित करते हैं, जिसका उपदेश श्रीनिम्बार्काचार्य चरण ने किया है।
बाहरी कड़ियाँ
द्वैताद्वैतवाद
भारतीय दर्शन | 654 |
794115 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%BF%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%A8 | अंजलि मेनन | अंजलि मेनन एक भारतीय फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखक है जिन्होंने फिचर फिल्म मंजदिकुरु (मलयालम: മഞ്ചാടിക്കുരു, अंग्रेजी: Lucky Red Seeds) से अपने लेखन की शुरुआत की थी इसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ट मलयालम फिल्म और सर्वश्रेष्ठ भारतीय पर्दापण के लिए एफ०आई०पी०आर०ई०एस०सी०आई० (FIPRESCI) पुरस्कार मिला था। उनकी दूसरी फीचर फिल्म बैंगलोर डेज हैं और उन्होंने गंभीर और व्यावसायिक रूप से प्रशंसित उस्ताद होटल को भी लिखा है।
वह दुबई में बड़ी हुई तथा पुणे विश्वविद्यालय से उन्होंने संचार अध्ययन में स्नातक किया। अंजलि २००३ में लंदन फिल्म स्कूल से फिल्म के संपादन, निर्देशन और निर्देशन में भेद सम्मान के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उनकी स्नातक फिल्म ब्लैक नॉर व्हाइट, जिसमें रेज केम्टन और आर्की पंजाबी ने अभिनय किया तथा जिसमें आसीफ कापडिया कार्यकारी निर्माता थे को पाम स्प्रिंग्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में प्रीमियर किया गया था।
मेनन ने भारत, मध्य पूर्व और ब्रिटेन में लघु कथा और दस्तावेजी परियोजनाओं के साथ अपना करियर को शुरू किया। २००६ में उन्होने विनोद मेनन के साथ लिटिल फिल्म्स इंडिया की शुरुआत की। मेनन अपने पटकथाओं के साथ-साथ मॉनसून फिस्ट (लघु कहानीयों का एक संग्रह) के भी प्रकाशित लेखिका हैं। वह मुंबई में अपने पति और पुत्रों के साथ रहती है।
चित्रपट
पुरस्कार
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार
२०१२ - ६० वां राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार- सर्वश्रेष्ठ संवाद(उस्ताद होटल)
लोकप्रिय पुरस्कार
२०१३ - असिअनेट फिल्म पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ पटकथा (उस्ताद होटल)
२०१५ - फिल्मफेयर पुरस्कार दक्षिण-सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (बंगलोर दिवस)
२०१५ - एशियनैट फिल्म अवार्ड्स - सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (बंगलोर दिवस) और सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म (बंगलोर दिवस)
२०१५ - वनिता फिल्म पुरस्कार - सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (बैंगलोर दिवस) और सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म
२०१५ - एस०आई०आई०एम०ऐ० फिल्म पुरस्कार - सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (बैंगलोर दिवस) और सर्वश्रेष्ठ फिल्म
अंतराष्ट्रीय फिम महोत्सव पुरस्कार और चयन
२००८ - सर्वश्रेष्ठ दिग्गज निर्देशक (मंजूदिकुरू) के लिए हंसंकुटि अवार्ड
२००८ - सर्वश्रेष्ठ मलयालम फिल्म के लिए एफआईपीआरसीसीआई पुरस्कार (मंजूदिकुरु)
सन्दर्भ
भारतीय फ़िल्म निर्देशक
जीवित लोग | 306 |
752891 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%A8 | संयुक्त राष्ट्र शांतिस्थापन | इस लेख में संयुक्त राष्ट्र संघ ने अब तक जिन विवादों हल करने में सफलता पायी है, उनका वर्णन किया गया है।
ईरान विवाद
जनवरी 1946 ईसवी में सोवियत संघ ने ईरान के अजरबैजान क्षेत्र में रुसी सेनाएँ भेज दीं। जिस पर 19 जनवरी, 1946 ईस्वी में ईरान ने सुरक्षा परिषद् से सहायता की याचना की। परिषद् ने रूस तथा ईरान विवाद को सीधी वार्ता द्दारा समाप्त करने में सफलता प्राप्त की और 21 मई 1946 ईस्वी को रूसी सेनाओं ने ईरान को खाली कर दिया।
यूनान विवाद
यूनान ने 3 दिसम्बर 1946 ईस्वी को सुरक्षा परिषद् से शिकायत की साम्यवादी राज्य उसकी सीमाओं पर आक्रामक कार्यवाहियाँ कर रहे हैं। संघ की महासभा ने इस विवाद को हल करने के लिए एक आयोग नियुक्त कर दिया लेकिन अल्बानिया,बुल्गारिया तथा यूगोस्लाविया ने आयोग के सदस्यों को अपनी सीमाओं में घुसने नहीं दिया। संघ ने यूनान व अन्य राज्यों को पारस्पारिक वार्ता द्दारा इस विवाद को हल करने का परामर्श दिया और अन्त में संयुक्त राष्ट्र संघ यूनान के विवाद को हल करने में सफल रहा।
सीरिया-लेबनान विवाद
4 फरवरी 1946 ईसवी को सीरिया तथा लेबनान ने संघ से प्रार्थना की इनके देशों में पड़ी हुई फ्रांसीसी सेनाएँ हटाई जाएँ। संघ ने फ्रांस सरकार से बातचीत की और शीघ्र ही फ्रांसीसी सेनाओं ने सीरिया और लेबनान को खाली कर दिया।
हॉलैण्ड-इण्डोनेशिया विवाद
द्वितीय विश्वयुध्द के बाद 1947 ईसवी में हॉलैण्ड और इण्डोनेशिया में युद्ध छिड़ गया। 20 जुलाई 1947 ईसवी को इस मामले को सुरक्षा परिषद् में उठाया गया फलस्वरुप 17 जनवरी 1948 ईसवी को दोनो पक्षों में एक अस्थायी समझौता हो गया परन्तु कुछ समय बाद हॉलैण्ड ने पुन: आक्रमण कर दिया। 24 जनवरी 1948 ईसवी को संघ ने एक प्रस्ताव पारित करके हॉलैण्ड को आदेश दिया कि वह इण्डोनेशिया में युद्ध बन्द कर दे। शुरु में हॉलैण्ड ने आनाकानी की परन्तु 27 दिसम्बर 1949 ईसवी को इण्डोनेशिया की स्वतन्त्रता के साथ इस विवाद का अन्त हो गया और 28 दिसम्बर 1950 ईसवी को उसे संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता भी दे दी गयी।
बर्लिन की घेराबन्दी
पोट्सडम सम्मेलन के निर्णयानुसार अमेरिका, रूस, ब्रिटेन तथा फ्रांस के बीच बर्लिन का चार भागों में विभाजन हो गया था। बर्लिन के पूर्वी क्षेत्र पर रुस का अधिकार और शेष तीन भागों पर अमेरिका, ब्रिटेन तथा फ्रांस का प्रभुत्व स्वीकार किया गया था। सन् 1948 ईसवी में समान मुद्रा के प्रश्न पर विवाद हो जाने से रुस ने बर्लिन की नाकाबन्दी कर दी जिसके फलस्वरुप पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी का सम्पर्क भंग हो गया अन्त में संयुक्त राष्ट्र संघ ने हस्तपेक्ष करके 12 मई 1949 ईसवी में इस नाकाबन्दी को समाप्त करवा दिया।
फिलिस्तीन की समस्या
सन् 1948 ईसवी में फिलिस्तीन के विभाजन के प्रश्न पर अरबों तथा यहूदियों के बीच संघर्ष छिड़ गया। मई 1948 ईसवी में अरब राज्यों ने फिलिस्तीन पर आक्रमण कर दिया था। भंयकर युद्ध के बाद 11 जून 1948 ईसवी में यहूदियों ने अरब राज्यों की सेनाओं को पराजित करके देश से बाहर निकाल दिया। जिसके बाद सुरक्षा परिषद् ने 28 जुलाई 1948 ईसवी को दोनों पक्षों में युद्धविराम कराने में सफलता प्राप्त की लेकिन फिलिस्तीन की समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सका। 13 दिसम्बर 1993 ईसवी को संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयासों से फिलिस्तीन को सीमित स्वतन्त्रता प्रदान करने वाले एक समझौते पर यासिर अराफात और इजराइल के प्रधानमन्त्री राबिन ने हस्ताक्षर किये। दूसरी तरफ 25 जुलाई 1994 ईसवी को जार्डन के शाह हुसैन और राबिन ने एक समझौते पर हस्ताक्षर कर अपनी शत्रुता को समाप्त कर दिया। इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ के अथक प्रयासों से फिलिस्तीन की जटिल समस्या का निराकरण सम्भव हो सका।
स्पेन का संकट
1946 ईसवी में पोलैण्ड ने सुरक्षा परिषद् से शिकायत की कि स्पेन में जनरल फ्रांको का तानाशाही शासन विश्व शान्ति के लिए खतरा है। संघ की महासभा ने तत्काल ही स्पेन को संघ की सदस्यता से वचिंत कर दिया। बाद में 1955 ईसवी में स्पेन को संघ की सदस्यता पुन: दे दी गयी।
कोरिया संकट
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच युद्ध छिड़ गया और 1950 ईसवी में गम्भीर रूप धारण कर लिया। विश्वयुद्ध की सम्भावना हो गयी लेकिन सुरक्षा परिषद् ने वार्ता और सैनिक कार्यवाही द्वारा जुलाई 1951 ईसवी में कोरिया युद्ध को बन्द कराने में सफलता प्राप्त की। इसे संयुक्त राष्ट्र संघ की उल्लेखनीय सफलता माना जाता है।
कश्मीर समस्या
भारत - पाकिस्तान के बीच कश्मीर का प्रश्न आज भी गभ्भीर बना हुआ है। अक्टूबर 1947 ईसवी में कश्मीर पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए भारत व पाकिस्तान में युद्ध प्रारम्भ हो गया और 1 जनवरी 1949 ईसवी को सुरक्षा परिषद् ने दोनों पक्षों में युद्ध बन्द करा दिया। सन् 1965 ईसवी में कश्मीर समस्या के कारण दूसरा भारत व पाकिस्तान युद्ध और 1971 ईसवी में तीसरा भारत-पाक युद्ध हुआ। इन युद्धों को संघ ने समाप्त तो अवश्य करवा दिया परन्तु कश्मीर की समस्या का स्थायी हल करने में संयुक्त राष्ट्र संघ आज तक विफल रहा है। ये संघ की सबसे बड़ी विफलता है।
ईरान-इराक युध्द
सन् 22 सितम्बर 1980 ईसवी को ईरान और इराक के मध्य युद्ध आरम्भ हो गया जो संयुक्त राष्ट्र संघ के शान्ति प्रयासों के बाद भी कई वर्षों तक चलता रहा और हजारों की संख्या में लोगों की जान गयी। अन्त में सुरक्षा परिषद् के प्रयासों से 9 अगस्त 1988 ईसवी को दोनों पक्षों के मध्य युद्ध विराम हो गया।
इराक समझौता: खाड़ी संकट को सामाप्त करने के लिए फरवरी 1998 ईसवी को संघ के महासचिव कोफी अन्नान ने इराक की राजधानी बगदाद की यात्रा की और फरवरी 1998 ईसवी को इराक के तत्ताकालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन से समझौता करके जैविक तथा रासायनिक हथियारों की जाँच का मामला सुलझा लिया।
खाड़ी संकट: संघ की सुरक्ष परिषद् ने 2 अगस्त 1990 ईसवी को कुवैत पर इराकी आक्रमण से लेकर 29 नम्बर तक खाड़ी संकट पर 12 प्रस्ताव पास किये इसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ के आदेश पर मित्र राष्ट्रों की सेनाओं ने 1991 ईसवी को कुवैत को इराक के कब्जे से मुक्त कराने में सफलता प्राप्त की।
सोमालिया संकट
सन्दर्भ
संयुक्त राष्ट्र
नोबल शांति पुरस्कार के प्राप्तकर्ता
नोबेल पुरस्कार सम्मानित संगठन | 994 |
841083 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B2 | डाटामेल | डाटामेल विश्व की पहली भाषाई मेल सुविधा है। यह अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओ में इमेल सुविधा प्रदान करता है। इसकी विशेषता यह है कि यह आपको देवनागरी लिपि में भी ईमेल आय डी बनाने की सहुलियत देता है। इस मेल सुविधा का मुख्य उद्येश्य यही है की कंप्यूटर पर भारतीय भाषाओं में की पहचान बने और भारतीय भाषाओँ का मोबाइल और कंम्यूटर पर प्रयोग में वृद्धी हो। डाटामेल उपयोगकर्ताओं की पसंदीदा भाषा में ईमेल पता प्रदान करता है और उन्ही की चुनी हुई भाषा में ईमेल संचार भी नियत करता है। डाटामेल अंग्रेजी और अंग्रेजीतर लिखने/पढ़ने वाले लोगों के बीच के अंतर को दूर करने के लिए अग्रणी है। अगर आप सिर्फ हिंदी भाषा जानते हैं तो आज पूरे संसार में आपके लिए कोई ईमेल की सुविधा उपलब्ध नहीं है, लेकिन डाटामेल आपको यह सुविधा उपलब्ध कराता है और आप अब अपने लिए एक डिजिटल पहचान अपनी भाषा में प्राप्त कर सकते हैं। डाटामेल मेल सुविधा आपको आपकी ईमेल आय-डी की अंग्रेजी पहचान बनाने की भी सुविधा देता है, जिससे आप फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर देशी भाषा में पंजीकरण भी कर सकते है। यह सुविधा एन्डॉइड मोबाईल और कम्यूटर/लैपटॉप पर निशुल्क उपलब्ध है।
बाहरी कड़ियाँ
https://web.archive.org/web/20190202063002/http://www.xn--c2bd4bq1db8d.xn--h2brj9c/ | 201 |
503972 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%98 | अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ | अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ या इस्कॉन (; उच्चारण : इंटर्नैशनल् सोसाईटी फ़ॉर क्रिश्ना कॉनशियस्नेस् -इस्कॉन), को "हरे कृष्ण आन्दोलन" के नाम से भी जाना जाता है। इसे १९६६ में न्यूयॉर्क नगर में भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद ने प्रारम्भ किया था। देश-विदेश में इसके अनेक मंदिर और विद्यालय है।
स्थापना एवं प्रसार
कृष्ण भक्ति में लीन इस अंतरराष्ट्रीय सोसायटी की स्थापना श्रीकृष्णकृपा श्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपादजी ने सन् १९६६ में न्यू यॉर्क सिटी में की थी। गुरु भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ने प्रभुपाद महाराज से कहा तुम युवा हो, तेजस्वी हो, कृष्ण भक्ति का विदेश में प्रचार-प्रसार करों। आदेश का पालन करने के लिए उन्होंने ५९ वर्ष की आयु में संन्यास ले लिया और गुरु आज्ञा पूर्ण करने का प्रयास करने लगे। अथक प्रयासों के बाद सत्तर वर्ष की आयु में न्यूयॉर्क में कृष्णभवनामृत संघ की स्थापना की। न्यूयॉर्क से प्रारंभ हुई कृष्ण भक्ति की निर्मल धारा शीघ्र ही विश्व के कोने-कोने में बहने लगी। कई देश हरे रामा-हरे कृष्णा के पावन भजन से गुंजायमान होने लगे।
अपने साधारण नियम और सभी जाति-धर्म के प्रति समभाव के चलते इस मंदिर के अनुयायीयों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हर वह व्यक्ति जो कृष्ण में लीन होना चाहता है, उनका यह मंदिर स्वागत करता है। स्वामी प्रभुपादजी के अथक प्रयासों के कारण दस वर्ष के अल्प समय में ही समूचे विश्व में १०८ मंदिरों का निर्माण हो चुका था। इस समय इस्कॉन समूह के लगभग ४०० से अधिक मंदिरों की स्थापना हो चुकी है।
महामन्त्र
नियम एवं सिद्धान्त
पूरी दुनिया में इतने अधिक अनुयायी होने का कारण यहाँ मिलने वाली असीम शांति है। इसी शांति की तलाश में पूरब की गीता पश्चिम के लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगी। यहाँ के मतावलंबियों को चार सरल नियमों का पालन करना होता है-
धर्म के चार स्तम्भ - तप, शौच, दया तथा सत्य हैं।
इसी का व्यावहारिक पालन करने हेतु इस्कॉन के कुछ मूलभूत नियम हैं।
तप : किसी भी प्रकार का नशा नहीं। चाय, कॉफ़ी भी नहीं।
शौच : अवैध स्त्री/पुरुष गमन नहीं।
दया : माँसाहार/ अभक्ष्य भक्षण नहीं। (लहसुन, प्याज़ भी नहीं)
सत्य : जुआ नहीं। (शेयर बाज़ारी भी नहीं)
उन्हें तामसिक भोजन त्यागना होगा (तामसिक भोजन के तहत उन्हें प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा आदि से दूर रहना होगा)
अनैतिक आचरण से दूर रहना (इसके तहत जुआ, पब, वेश्यालय जैसे स्थानों पर जाना वर्जित है)
एक घंटा शास्त्राध्ययन (इसमें गीता और भारतीय धर्म-इतिहास से जुड़े शास्त्रों का अध्ययन करना होता है)
'हरे कृष्णा-हरे कृष्णा' नाम की १६ बार माला करना होती है।
योगदान
भारत से बाहर विदेशों में हजारों महिलाओं को साड़ी पहने चंदन की बिंदी लगाए व पुरुषों को धोती कुर्ता और गले में तुलसी की माला पहने देखा जा सकता है। लाखों ने मांसाहार तो क्या चाय, कॉफी, प्याज, लहसुन जैसे तामसी पदार्थों का सेवन छोड़कर शाकाहार शुरू कर दिया है। वे लगातार ‘हरे राम-हरे कृष्ण’ का कीर्तन भी करते रहते हैं। इस्कॉन ने पश्चिमी देशों में अनेक भव्य मन्दिर व विद्यालय बनवाये हैं। इस्कॉन के अनुयायी विश्व में गीता एवं हिन्दू धर्म एवं संस्कृति का प्रचार-प्रसार करते हैं।
चित्रावली
इन्हें भी देखें
इस्कॉन मंदिर, दिल्ली
कृष्ण बलराम मंदिर, वृन्दावन
श्रीकृष्ण
हिन्दू धर्म
बाहरी कड़ियाँ
ISKCON Worldwide
Krishna.com
धर्म | 520 |
1039332 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%98%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE | पटियाला घराना | पटियाला घराना, हिन्दुस्तानी संगीत के प्रसिद्ध घरानों में से एक है। यह घराना दिल्ली घराने की एक शाखा के रूप में माना जाता है। इस घराने का प्रतिनिधित्व बड़े गुलाम अली खां ने की ।
संस्थापना
पटियााला घराने के संस्थापक के रूप में विभिन्न मत हमें प्राप्त होते हैं। भगवत शर्ण शर्मा अनुसार, ‘‘इस घराने के संस्थापक के रूप में अली-बक्श तथा पफतेह अली का नाम अग्रगण्य है जो कि संगीत जगत में, ‘अलिया-पफतु’ की गायक जोड़ी के नाम से विख्यात हैं। पंजाब राज्य में ये दोनों कलाकार मूलपुरूष ‘जरनैल-करनैल’ के नाम से भी जाने जाते थे। देखा जाये तो ये नाम इनके कर्मों की सार्थकता सिद्ध करते हैं। जिस प्रकार सेना का नेतृत्व जनरल (जरनैल) और कर्नल (करनैल) करते हैं, इसी प्रकार इस घराने की गायकी को प्रगति के मार्ग की ओर अग्रसर करने के लिये इन दोनों महान कलाकारों ‘अलिया पफतु’ ने इस घराने का नेतृत्व किया। इनको तान कपतान मानने का भी मत है।’’
एक अन्य मतानुसार पटियाला घराने के जन्मदाता जयपुर घराने के वंशज आशिक अली खां हैं। कुछ तानरस खां को, कुछ मान्यतायें हमें दित्ते खां के पिता उस्ताद जस्से खां के जन्मदाता के रूप में प्राप्त होती है। कुछ लोग मियाँ दित्ते खां को इस घराने का आदि पुरूष मानते हैं। उनके अनुसर महाराजा पटियाला (नरेन्द्र सिंह) ने संगीत द्वारा अपने को मनोरंजन प्रदान करने के लिये दित्ते खां को दरबारी गायक नियुक्त किया। भले ही दित्ते खां शास्त्रीय गायन की अपेक्षा पंजाबी लोकधुनों के ही प्रतिष्ठित कलाकार थे। उनके अनुसार दत्ते खां ही इस घराने के अन्वेषक थे। तद्पश्चात् दित्ते खां के पुत्र मियाँ कालु खां तथा उनके पुत्रों ने इस घराने की वृद्धि में अपना योगदान दिया।
कुछ विद्वान दित्ते खां के पुत्र मियाँ कालु (सारंगी वादक) को पटियाला घराने का जन्मदाता स्वीकार करते हैं। इस मत के विद्वानों का विचार है कि इस घराने की नींव बीज रूप में मियाँ कालु खां ने महाराजा राजेन्द्र सिंह के राज्यकाल में ही डाल दी थी, भले ही मान्यता एवं ख्याति इसको ‘अलिया-पफत्तु’ द्वारा प्राप्त हुई। मियाँ कालु ने अपने समय के सर्वश्रेष्ठ विभिन्न घरानेदार संगीतज्ञों के ख़्याल गायन की शिक्षा ली तथा अपने पुत्र अली बख़्श तथा उसके परममित्र प़फतेह अली को ख़्याल गायन की शिक्षा दी तथा कालान्तर में मियाँ कालु ने ही इन दोनों को विभिन्न सुप्रसि( संगीतज्ञों से शिक्षा प्राप्त करवाने के लिये सुयोग्य तथा सफल प्रयत्न किये जिससे विभिन्न घरानों की गायकी ग्रहण करके नवीन शैली प्रसिद्ध करवाने का मियाँ कालु के मस्तिष्क का सुविचार प्रतीत होता है।
संगीत घराने | 411 |
247882 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0 | मंडलेश्वर | मंडलेश्वर (Mandleshwar) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के खरगोन ज़िले में स्थित एक नगर है।
मंडलेश्वर की स्थापना महान पंडित मण्डन मिश्र ने की थी। यह महेश्वर से ८ किलोमीटर की दूरी पर नर्मदा नदी के उत्तर तट पर स्थित है। शिवराजसिंह चौहान मुख्मंत्री म.प्र. शासन ने इसे हाल ही में पवित्र नगरी घोषित किया है। शैक्षणिक दृष्टी से यह नगर अत्यंत ही विकसित है। यहाँ के घाटो का सौंदर्य अप्रतिम है। कृषि के क्षेत्र में भी मंडलेश्वर अग्रणीय है। यहाँ जिला न्यायालय भी है।
शिक्षा
मंडलेश्वर निमाड़ का शैक्षणिक केंद्र बिंदु भी है यहाँ स्थित सरदार वल्लभ भाई पटेल महाविद्यालय क्षेत्र का प्रमुख डिग्री कॉलेज है, इसके अतिरिक्त सरदार पटेल इंजीनियरिंग कॉलेज,चरक फार्मेसी कॉलेज , आकांक्षा स्कॉलर अकादमी, सरदार पटेल इंटरनेशनल स्कूल,श्री कंवरतारा पब्लिक हायर सेकंडरी स्कूल मंडलेश्वर आदि भी प्रमुख शैक्षणिक संस्थाएं भी शैक्षणिक गतिविधियों को तीव्रता से बढ़ावा दे रही ।
पर्यटन
पर्यटन के लिए श्रेष्ठ मंडलेश्वर नर्मदा नदी के तट पर स्थित है और यह नगर सुंदर घाट और प्राचीन मंदिरों के कारण प्रसिद्ध है। यहाँ इंदौर , धामनोद और बडवाह से आसानी से पहुंचा जा सकता है, यहाँ ठहरने की पर्याप्त व्यवस्था है। यहा प्रथम बाजीराव पेशवा द्वारा निर्मित काशी विश्वनाथ मंदिर है इसमें शिव पंचायत है एवं साथ ही वासुदेवानंद सरस्वती स्वामी महाराज द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर में ही उनकी कुटी है जहाँ उनके चरण पादुका है यह मंदिर करीब 250 वर्ष पुराना है जो प्रथम बाजीराव पेशवा द्वारा मंदिर के संथापक अनिल जहागिरदार जी के पूर्वजो को दिया गया था तब से ही यह मंदिर की जिम्मेदारी जहागिरदार परिवार की है
इन्हें भी देखें
खरगोन ज़िला
सन्दर्भ
खरगोन ज़िला
मध्य प्रदेश के शहर
खरगोन ज़िले के नगर | 274 |
1175688 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%80%20%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%BF | पूर्वी तिमोर के राष्ट्रपति | पूर्वी तिमोर के राष्ट्रपति , आधिकारिक तौर पर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ तिमोर लेस्टे के अध्यक्ष ( पुर्तगाली :प्रेसीए दा रिपब्लिका डेमोक्रेटिका डी तिमोर-लेस्ते , टेटम :प्रीजिडे रेपब्लिका डेमोकोलिका तिमोर-लेस्ते ), पूर्वी तिमोरमें राज्य के प्रमुख हैं , जो लोकप्रिय द्वारा चुने गए हैं। पांच साल के कार्यकाल के लिए मतदान करें। उनकी कार्यकारी शक्तियां कुछ सीमित हैं, हालांकि वह कानून को वीटो करने में सक्षम हैं। चुनावों के बाद, राष्ट्रपति आमतौर पर प्रधान मंत्री, बहुमत दल या बहुमत गठबंधन के नेता के रूप में नियुक्त करता है। सरकार के प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री कैबिनेट की अध्यक्षता करते हैं।
पूर्व तिमोर के अध्यक्षों की सूची
भी देखें
पूर्वी तिमोर
पूर्वी तिमोर की राजनीति
पुर्तगाली तिमोर के औपनिवेशिक राज्यपालों की सूची
पूर्व तिमोर के प्रधान मंत्री
पूर्वी तिमोर की पहली महिला
कार्यालय-धारकों की सूची | 133 |
28203 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%80 | स्ट्राम्बोली | यह एक सक्रिय ज्वालामुखी हैं। यह इटली के सिसली के उत्तर में लिपरी द्वीप पर स्थित है। इसे भूमध्यसागर का प्रकाश स्तंभ कहते हैं।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
इसका नाम प्राचीन ग्रीक नाम स्ट्रॉन्ग्लू से लिया गया है, जो दूर से देखने पर ज्वालामुखी के गोल, शंक्वाकार दिखने के बाद (स्ट्राक्लोस, "राउंड") से लिया गया था। [४] द्वीप की आबादी 2016 के रूप में लगभग 500 है। [5] ज्वालामुखी कई बार फट चुका है और लगातार छोटे विस्फोटों से सक्रिय है, जो अक्सर द्वीप और आसपास के समुद्र के कई बिंदुओं से दिखाई देते हैं, जिससे द्वीप का उपनाम "भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ" होता है।
स्ट्रोम्बोली समुद्र तल से 926 मीटर (3,038 फीट) ऊपर, [2] और समुद्र तल से औसतन 2,700 मीटर (8,860 फीट) ऊपर है। [7] शिखर पर तीन सक्रिय क्रेटर हैं। ज्वालामुखी की एक महत्वपूर्ण भूगर्भीय विशेषता काइसा डेल फूको ("आग की धारा") है, जो पिछले 13,000 वर्षों में शंकु के उत्तर-पश्चिमी किनारे पर कई ढह गई है।माउंट स्ट्रोमबोली पिछले 2,000 वर्षों से लगभग निरंतर विस्फोट में है। [6] विस्फोट का एक पैटर्न बनाए रखा जाता है जिसमें शिखर craters में विस्फोट होते हैं, जिसमें गरमागरम ज्वालामुखीय बमों के हल्के से मध्यम विस्फोट होते हैं, मिनटों से लेकर घंटों तक के अंतराल पर। यह स्ट्रोमबोलियन विस्फोट, जैसा कि ज्ञात है, दुनिया भर में अन्य ज्वालामुखियों पर भी मनाया जाता है। शिखर craters से विस्फोट आमतौर पर कुछ ही सौम्य, हल्के, लेकिन ऊर्जावान फटने के कारण होता है, कुछ सौ मीटर की ऊंचाई तक, राख युक्त, गरमागरम लावा के टुकड़े और पत्थर के ब्लॉक होते हैं। स्ट्रोम्बोलि की गतिविधि लगभग विशेष रूप से विस्फोटक है, लेकिन लावा प्रवाह ऐसे समय में होता है जब ज्वालामुखी गतिविधि अधिक होती है: 2002 में एक विनाशकारी विस्फोट हुआ, 17 वर्षों में पहला, और फिर 2003, 2007 और 2013-14 में। इस ज्वालामुखी से ज्वालामुखी गैस उत्सर्जन को एक बहु-घटक गैस विश्लेषक प्रणाली द्वारा मापा जाता है, जो बढ़ती मैग्मा के पूर्व-विस्फोटकारी विस्फोट का पता लगाता है, ज्वालामुखी गतिविधि की भविष्यवाणी में सुधार करता है। 3 जुलाई 2019 को इटली के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ जियोफिजिक्स एंड ज्वालामुखी द्वारा पहचाने गए 20 अतिरिक्त मामूली विस्फोटक घटनाओं के साथ, स्थानीय समयानुसार शाम 4:46 बजे दो बड़ी विस्फोटक घटनाएं हुईं। ज्वालामुखी के शिखर के पास एक पैदल यात्री की मौत तब हुई जब मलबे के उड़ने से मलबे की चपेट में आने से मौत हो गई।
28 अगस्त 2019 को, स्थानीय समयानुसार सुबह 10:16 बजे, एक विस्फोटक विस्फोट ने ज्वालामुखी के उत्तरी फ्लैंक और समुद्र में, जहां यह ढहने से पहले कई सौ मीटर तक जारी था, में एक पायरोक्लास्टिक प्रवाह भेजा। परिणामस्वरूप राख स्तंभ 2 किमी की ऊंचाई तक पहुंच गया।
सक्रिय ज्वालामुखी | 437 |
1055187 | https://hi.wikipedia.org/wiki/2023%20%E0%A4%AB%E0%A5%80%E0%A4%AB%E0%A4%BE%20%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%20%E0%A4%95%E0%A4%AA | 2023 फीफा महिला विश्व कप | 2023 फीफा महिला विश्व कप फीफा महिला विश्व कप का नौवां संस्करण होगा, जो फीफा के सदस्य देशों की राष्ट्रीय टीमों द्वारा लड़ा जायेगा। यह संस्करण महिला विश्व कप के इतिहास का पहला संस्करण होगा जिसमे 32 राष्ट्रीय टीमें शामिल होंगी (फीफा में टीमों की संख्या २४ से बढ़ा कर ३२ कर दिया)। संयुक्त राज्य अमेरिका 2015 और 2019 में जीता था, इसलिये वह दो बार के डिफेंडिंग चैंपियन के रूप में प्रवेश करेगा।
परूप
२०१५ और २०१९ संकरणों के सफलता के बाद फीफा ने ये निर्णय लिया की आगामी २०२३ संस्करण को ३२ टीमों का कर दिया जाय। गौरतबल हैं की २०१५ और २०१९ में भी टीमों का इजाफा हुआ था(१६ से २४)। गत दोनों विश्व कप में दर्शकों का स्टेडियमों में भारी मात्रा में समर्थन देना, फीफा के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन बना।
३१ जुलाई २०१९ को फीफा परिषद ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया की टीमों की संख्या २४ से बढ़कर ३२ कर दी जायेगी। साथ ही महिला विश्व कप की कूल ईनामी धनराशि को भी २०१९ संस्करण के मुकाबले दोगुना करने का निर्णय लिया गया।
ग्रुप स्तर में ३२ टीमें ८ के समूह(१ समूह में ४ टीमें) में विभाजित की जायेंगी और अपने समूह में हर टीम से एक मैच खेलेंगी। हर समूह की उच्च स्थान की दो टीमें नॉकआउट चरण में प्रवेश करेंगी। नॉकआउट स्तर में अंतिम-१६, क्वार्टरफाइनल, सेमीफाइनल और फाइनल मुकाबले होंगे।
प्रतिभागी टीमें
फीफा महिला विश्व कप २०२३ का क्वालिफिकेशन सारांश।
निम्नलिख्त 32 टीमों ने २०२३ महिला विश्व कप के लिए क्वालीफाई किया:-
एएफसी (एशिया)
ऑस्ट्रेलिया
जापान
चीन
दक्षिण कोरिया
वेइतनाम
फिलीपींस
सीएएफ़ (अफ़्रीका)
मोरोक्को
जांबिया
नाइजीरिया
दक्षिण अफ़्रीका
सीओएनसीएसीएएफ़ (उत्तर अमेरिका)
कोस्टा रिका
कनाडा
हैती
जमैका
पनामा
संयुक्त राज्य अमेरिका
सीओएनएमईबीओएल (दक्षिण अमेरिका)
अर्जेनिटीना
ब्राज़ील
कोलंबिया
ओएफ़सी (प्रशांत-क्षेत्र)
न्यूज़ीलैण्ड
यूईएफ़ए (यूरोप)
डेनमार्क
इंग्लैण्ड
फ़्रांस
जर्मनी
आयरलैंड
इटली
नीदरलैण्ड
पुर्तगाल
नॉर्वे
स्वीडन
स्पेन
स्विट्ज़रलैण्ड
मैच के स्थान
31 मार्च 2021 को, फीफा ने अंतिम मेजबान शहर और स्थल चयन की घोषणा की। ऑस्ट्रेलिया में पांच शहरों और छह स्टेडियमों और न्यूजीलैंड में चार शहरों और स्टेडियमों का उपयोग किया जाएगा। इस विश्व कप का पहला मैच इडेन पार्क,ऑकलैंड में खेला जाएगा और फाइनल मैच सिडनी के स्टेडियम ऑस्ट्रेलिया में खेला जाएगा।
ग्रुप चरण
प्रतिस्पर्धी देशों को चार टीमों के आठ समूहों(समूह ए से एच) में विभाजित किया गया था। प्रत्येक समूह की टीमें एक राउंड-रॉबिन में एक दूसरे से खेलेंगी, जिसमें शीर्ष दो टीमें नॉकआउट चरण में आगे बढ़ेंगी।
समूह ए(A)
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समूह बी(B)
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समूह सी(C)
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समूह डी(D)
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समूह ई (E)
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समूह एफ(F)
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समूह जी(G)
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समूह एच(H)
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नॉकआउट चरण
अंतिम-16(१६ का दौर)
क्वार्टर फाइनल
सेमी फाइनल
तीसरे स्थान के लिए
फाइनल
विपणन
सन्दर्भ
फीफा महिला विश्व कप | 441 |
1394223 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%B2%E0%A5%80%20%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82 | तेरी लाडली मैं | Pages using infobox television with unnecessary name parameter
तेरी लाडली मैं एक भारतीय टेलीविजन नाटक श्रृंखला है जो 5 जनवरी 2021 से 22 अप्रैल 2021 तक स्टार भारत पर प्रसारित हुई। पैनोरमा एंटरटेनमेंट द्वारा निर्मित, इसमें हेमांगी कवि, मयूरी कपादान और गौरव वाधवा हैं। यह सीरीज स्टार मां की तेलुगु सीरीज मौन रागम की रीमेक है। बहुत कम टीआरपी रेटिंग और वैश्विक कोविड-19 महामारी की स्थिति के कारण 22 अप्रैल 2021 को बिना किसी निष्कर्ष के श्रृंखला अचानक बंद हो गई।
कहानी
उर्मिला और सुरेंद्र ऐसे जोड़े हैं जो सुरेंद्र की मां दुर्गा के साथ रहते हैं। उर्मिला एक दयालु महिला है जो सभी की परवाह करती है जबकि सुरेंद्र एक क्रूर आदमी है जो लड़कियों को बोझ समझता है। दंपति की एक बेटी गौरी थी। उर्मिला दूसरी बार एक लड़की के साथ गर्भवती हो जाती है, लेकिन इस बार सुरेंद्र ने बच्चे को मारने का फैसला किया क्योंकि वह दूसरे बच्चे का खर्च नहीं उठा सकता। उसने दुर्गा की मदद से उर्मिला को जहर दे दिया। सौभाग्य से, बच्चा बच जाता है लेकिन जहर के कारण मूक पैदा होता है। सुरेंद्र और उसकी मां डरे हुए हैं क्योंकि बच्चा एक लड़की है और मूक है। सुरेंद्र एक ज्योतिषी से सलाह लेता है जो भविष्यवाणी करता है कि बच्चा परिवार के लिए दुर्भाग्य लाएगा। हर कोई डर जाता है, नतीजतन, वे उर्मिला को छोड़कर बच्चे के साथ दुर्व्यवहार करते हैं, जिन्हें लगता है कि उन्हें उसकी देखभाल करनी चाहिए। वे लड़की का नाम बिट्टी रखते हैं। उर्मिला तीसरी बार गर्भवती होती है और यश नाम के लड़के को जन्म देती है। समय बीतने के साथ गौरी को नजरअंदाज किया जाता था और यश को सारा प्यार मिलता था। हालाँकि, बिट्टी को पूरी तरह से एक बोझ के रूप में माना जाता था।
बिट्टी एक युवा महिला के रूप में विकसित होती है। मूक होते हुए भी वह प्रतिभाशाली और बुद्धिमान है लेकिन फिर भी पिता के स्नेह के लिए तरसती है। बचपन में एक दिन बिट्टी ने अक्षत नाम के एक अमीर लड़के की जान बचाई थी। अक्षत को अब लगता है कि वह बिट्टी की वजह से रहता है और उससे प्यार करता है। आखिरकार, वह उसे अपनी निर्माण कंपनी में रसोइया के रूप में नियुक्त करने का फैसला करता है। अंत में, दोनों एक-दूसरे के प्यार में पड़ जाते हैं, जिससे अक्षत अपने दोस्त साक्षी को छोड़ देता है। दरअसल, अक्षत को पता नहीं है कि बिट्टी मूक है और उसे लगता है कि वह मौन व्रत है। बिट्टी उसे कड़वा सच बताने का फैसला करती है। अक्षत पहले तो चौंक जाता है लेकिन उसे एक साहसी युवती में बदलने का फैसला करता है। साक्षी का दिल टूट जाता है कि अक्षत ने उसे छोड़ दिया और बिट्टी से ईर्ष्या करने लगती है। वह उससे बदला लेने की कसम खाती है।
कलाकार
मुख्य
बिट्टी कुमार के रूप में मयूरी कपडाने: उर्मिला और सुरेंद्र की दूसरी बेटी; गौरी और यश की बहन (2021)
मैथाली पटवर्धन यंग बिट्टी के रूप में (2021)
अक्षत के रूप में गौरव वाधवा : बिट्टी और साक्षी का प्यार; वैशाली का पुत्र; ऋचा के बड़े भाई (2021)
आरव वाधवा यंग अक्षत के रूप में (2021)
हेमांगी कवि उर्मिला कुमार के रूप में: सुरेंद्र की पत्नी; बिट्टी, गौरी और यश की मां (2021)
पंकज सिंह सुरेंद्र कुमार के रूप में: बिट्टी, गौरी और यश के पिता (2021)
मुख्य
साक्षी के रूप में निशा नागपाल ; सुप्रिया की बेटी; अक्षत का दोस्त जो उससे प्यार करता है (2021)
युवा साक्षी के रूप में स्वाति कात्याल (2021)
वैशाली के रूप में नीलिमा सिंह: अक्षत और ऋचा की मां; एक महिला जो अपने दुखद अतीत के कारण विकलांगता से नफरत करती है (2021)
दुर्गा कुमार के रूप में नीना चीमा : सुरेंद्र की मां; बिट्टी, गौरी और यश की नानी (2021)
यश कुमार के रूप में विवान सिंह राजपूत: उर्मिला और सुरेंद्र का इकलौता बेटा; बिट्टी और गौरी का छोटा भाई (2021)
श्रुति आनंद गौरी कुमार के रूप में; उर्मिला और सुरेंद्र की सबसे बड़ी बेटी; बिट्टी और यश की बड़ी बहन (2021)
अशोक के रूप में मेहुल निसार: सुरेंद्र का दोस्त; उर्मिला और बिट्टी की शुभचिंतक (2021)
सिद्धि के रूप में पायल गुप्ता: अशोक की बेटी और बिट्टी की सबसे अच्छी दोस्त (2021)
रुद्र कौशिश; सुप्रिया के पति और साक्षी के पिता (2021)
अंशु वार्ष्णेय सुप्रिया के रूप में: साक्षी की माँ (2021)
पलक जैन ऋचा के रूप में (2021)
राजू के रूप में प्रिंस शर्मा (2021)
संदर्भ
बाहरी संबंध
भारतीय टेलीविजन धारावाहिक
Pages with unreviewed translations | 739 |
499856 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A4%A8%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4 | अदन प्रान्त | अदन प्रान्त (अरबी: , अंग्रेज़ी: 'Adan) यमन का एक प्रान्त है। इस प्रान्त का अधिकतर भाग अदन का शहर है जो ऐतिहासिक महत्त्व रखता है। प्राचीनकाल में यह क्रेटर (, Crater) कहलाया जाता था क्योंकि यह एक मृत ज्वालामुखी के मुख (क्रेटर) में स्थित है।
१८३९ से १९६७ के काल में अदन पर ब्रिटिश क़ब्ज़ा हो गया। सालों के संघर्ष के बाद अदन और यमन के अन्य दक्षिणी प्रान्तों को आजादी मिली और अदन 'दक्षिण यमन' की राजधानी बना। १९९० में दक्षिण और उत्तरी यमन के दो राष्ट्रों का विलय हुआ और अदन नए 'यमन गणतंत्र' का सबसे महत्त्वपूर्ण आर्थिक केंद्र बन गया। सुक़ूत्रा का द्वीप समूह भी अदन प्रान्त का हिस्सा हुआ करता था लेकिन २००४ में इसे हदरामौत प्रान्त में डाल दिया गया।
इन्हें भी देखें
अदन
यमन के प्रान्त
सन्दर्भ
अदन प्रान्त
यमन के प्रान्त
यमन | 139 |
523917 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%20%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80 | मुज़ार्त नदी | मुज़ार्त नदी (उईग़ुर: , मुज़ार्त दरियासी; अंग्रेज़ी: Muzart River; चीनी: 木扎尔特河), जिसे कभी-कभी मुज़ात नदी भी कहते हैं, जनवादी गणतंत्र चीन द्वारा नियंत्रित शिंजियांग प्रान्त के आक़्सू विभाग में बहने वाली एक नदी का नाम है। यह तारिम नदी की एक उपनदी है और उसमें बाई तरफ़ से विलय होती है। २०वीं सदी की शुरुआत के कुछ स्रोतों में इसका नाम शाह यार दरिया भी मिलता है।
स्रोत व मार्ग
मुज़ार्त नदी तियान शान की पर्वतीय शृंखला में ख़ान तेन्ग्री पहाड़ के पास स्थित मुज़ार्त हिमानी (ग्लेशियर) से शुरु होती है। फिर यह बाईचेंग ज़िले में तियान शान और चुएलेताग़ पर्वतों के बीच की वादी में पूर्व-दक्षिणपूर्व दिशा में निकलती है। बाईचेंग ज़िले के लोग ज़्यादातर इसी नदी की सिन्चाई पर निर्भर करते हैं। यह प्राचीन कूचा शहर के पास से निकलती है जहाँ यह चुएलेताग़ पर्वतों में एक तंग घाटी बनाती है। वादी की उत्तरी चट्टानों में २३० से अधिक गुफ़ाएँ कटी हुई हैं जो किज़िल गुफा परिसर है और प्राचीनकाल के तुषारी लोगों से सम्बन्धित पुरातत्व के नज़रिये से बहुत महत्व रखती हैं।
किज़िल गुफाओं से आगे इस नदी को बाँधकर एक ५०,००० वर्ग मीटर के सतही क्षेत्रफल का बड़ा सरोवर बना दिया गया है। कूचा, तोक्सू और शायार ज़िलों को यहाँ से सिन्चाई का पानी भेजा जाता है। हालांकि मुज़ार्त नदी पहले तारिम नदी में जाकर विलय हुआ करती थी अब यह उस बड़ी नदी तक केवल गर्मियों और बसंत में ही पहुँच पाती है।
इन्हें भी देखें
तारिम नदी
ख़ान तेन्ग्री
सन्दर्भ
शिंजियांग की नदियाँ
चीन की नदियाँ
मध्य एशिया की नदियाँ | 256 |
221898 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%93%E0%A4%82%20%E0%A4%B8%E0%A5%87%20%E0%A4%9B%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%9B%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC | महिलाओं से छेड़छाड़ | IPC 354 | 354A | 354B | 354C | 354D-- IPC 354जो कोई भी किसी महिला पर हमला करता है या आपराधिक बल का प्रयोग करता है, अपमान करने के इरादे से या यह जानते हुए कि वह उसकी लज्जा को भंग कर देगा, उसे किसी भी प्रकार के कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसकी अवधि एक वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जो हो सकता है पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माना 1 के लिए भी उत्तरदायी होगा ।
1 आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 और पढ़े
महिलाओं से छेड़छाड़ भारत में और कभी-कभी पाकिस्तान और बांग्लादेश में पुरुषों द्वारा महिलाओं के सार्वजनिक यौन उत्पीड़न, सड़कों पर परेशान करने या छेड़खानियों के लिए प्रयुक्त व्यंजना है, जिसके अंग्रेज़ी पर्याय ईव टीज़िंग में ईव शब्द बाइबिलीय संदर्भ में प्रयुक्त होता है।
यौन संबंधी इस छेड़छाड़ की गंभीरता, जिसे युवाओं में अपचार से संबंधित समस्या के रूप में देखा जाता है, वासनापरक सांकेतिक टिप्पणियां कसने, सार्वजनिक स्थानों में छूकर निकलने, सीटी बजाने से लेकर स्पष्ट रूप से जिस्म टटोलने तक विस्तृत है। कभी-कभी इसे निर्दोष मज़े के विनीत संकेत के रूप में संदर्भित किया जाता है, जिससे यह अहानिकर प्रतीत होता है जिसका अपराधी पर कोई परिणामी दायित्व नहीं बनता है। कई नारीवादियों और स्वैच्छिक संगठनों ने सुझाव दिया है कि इस अभिव्यंजना को और अधिक उपयुक्त शब्द द्वारा प्रतिस्थापित किया जाए. उनके अनुसार, भारतीय अंग्रेज़ी भाषा में शब्द ईव-टीज़िंग के अर्थगत मूल पर विचार करने से यह स्त्री की लुभाने वाली प्रकृति को इंगित करता है, जहां मोहने का दायित्व महिला पर ठहरता है, मानो पुरुषों की छेड़छाड़पूर्ण प्रतिक्रिया अपराधमूलक होने के बजाय स्वाभाविक है।
महिलाओं के साथ छेड़छाड़ ऐसा अपराध है जिसे प्रमाणित करना बेहद मुश्किल है, चूंकि अपराधी अक्सर महिलाओं पर हमले के सरल तरीक़े ढूंढ़ लेते हैं, हालांकि कई नारीवादी लेखकों ने इसे "छोटे बलात्कार" का नाम दिया है, और सामान्यतः यह सार्वजनिक स्थलों, सड़कों और सार्वजनिक वाहनों में घटित होता है।Eve teasing... (छेड़खानी) या छोटा बलात्कार!
ईव टीचिंग जिसे की हम साधारण भाषा में छेड़छाड़ के रूप में समझ सकते हैं! छोटे प्रकार का बलात्कार भी कहते हैं! समानता देखा जाए तो आजकल जो हो रहे अपराध के आंकड़ों के हिसाब से 35% असामाजिक तत्व 32% छात्र और 33% संख्या अधिक उम्र वाले की होती है यानी छेड़छाड़ करने वालों की निश्चित उम्र नहीं होती है!
यह बात हम हद तक सही कह सकते हैं कि पुरुषों में महिलाओं को देखकर जलन का नजरिया बन जाता है और वे अपनी सेक्सुअलिटी एक्सप्रेस नहीं कर पाते हैं और वे ही पुरुष ऐसे घटिया विचार मन में लाते हैं और ऐसे ही लोग महिलाओं को नीचे दबाने के नियत से उसे गलत तरीके से उनके बॉडी को टच करते हैं और उनका मजाक उड़ाते हैं या भद्दे कमेंट करते हैं! तो उन्हे सबके सामने कोर्ट में पेसाब से नहलाने महिलाओं का हक बनता हैं।
दुख की बात तो यह है कि हम भारतीय समाज में रहकर भी अपनी सभ्यता संस्कृति का मजाक बनाने में हम खुद ही दोषी होते हैं महिलाएं बदनामी से डरती है उसे लगता है कि समाज में उनका नाम खराब हो जाएगा किसी बड़े घराने या छोटे घर के हो वह कोर्ट कचहरी जाने से डरते हैं या इस चक्कर में नहीं पड़ना चाहते हैं और इसे आसानी से टाल देते हैं और कहीं ना कहीं यह बात बड़े हादसे को निमंत्रण देने का कारण बन जाता है! लेकिन इव टीजिंग नॉर्मल मामला नहीं है इससे समाज में बढ़ावा नहीं देना चाहिए क्योंकि आपका मौन बड़े हादसे को निमंत्रण दे सकता है इसीलिए हम सभी को मिलकर इसे दूर करने में सहभागिता दिखानी चाहिए, क्योंकि एक महिला अगर इसका जवाब देने के लिए आगे बढ़ती है तो उनका मनोबल गिराना नहीं चाहिए बल्कि इस eve teasing नामक गंदगी को दूर करने में योगदान देना चाहिए ताकि सामने वाला बंदा ऐसा सोचे कि उनके मन में डर बैठ जाए! कोई किसी को देखकर सीटी बजाता है या गंदे या भद्दे कमेंट करता है या ऑटो ड्राइवर की कोई सवारी ढोने वाला व्यक्ति ही क्यों ना हो अगर सही जगह ना ले जाकर कहीं दूर जगह छोड़ता है या रास्ते में बुलाने की कोशिश करता है तो यह भी गलत और दंडनीय अपराध के अंतर्गत आता है!
इससे जुड़े एक और शब्द है 'स्टॉकिंग' जिसमें चोरी छुपे नजर रखना आता है जैसे कोई आपको कुछ दिन से चोरी से आपके ऊपर नजर रखता है और आपका पीछा करता है तो संदेह होने पर सतर्क रहें और संदिग्ध की पहचान करने की कोशिश करें!
हम इव टीजिंग से कैसे बचे -
1. अपने आसपास के स्थिति एवं वहां के माहौल के बारे में जाने तथा नजर रखें और हमेशा अलर्ट रहने की कोशिश करें!
2. घर से बाहर निकलने पर चाहे सड़क हो या पब्लिक प्लेस आसपास ध्यान दें व सतर्क रहें ऐसा करने पर व्यक्ति की पहचान कर पाएंगे एवं बचाव भी होगा!
3. अपने मनोबल को मजबूत रखने की कोशिश करें डरे नहीं ना ही किसी को खुद का डरने का आभास होने दें!
4. अगर कहीं अकेले हो जाए और एहसास हो कि कोई पीछा कर रहा है या आपको परेशान करने की कोशिश कर रहा है या करने वाला है तो घबराएं नहीं और वहां से कोशिश करें कि जल्द से जल्द निकल जाए बिना घबराए हुए अपने वास्तविक चाल ढाल से ही आगे बढ़ जाय!
5. कभी-कभी पलट कर जवाब देना जरूरी होता है तो कभी आपके लिए नुकसानदेह भी हो सकता है इसीलिए अपने मनोबल को गिरने ना दे अगर भीड़-भाड़ वाले जगह या थोड़ी दूर पर आसपास आदमी दिखे तो उस वक्त कॉन्फिडेंट से उसे जवाब दें और उन्हें वार्निंग दे यह तभी करें जब आप कंफर्टेबल महसूस कर रहे हो या नहीं उसे बोल पा रहे हो तो इशारों में चिल्ला दें जैसे वह आदमी वहां खड़ा है उसने ऐसा पहनावा पहना हुआ है या व्यक्ति जो व्यक्ति टोपी पहना है या कुछ भी हो इशारों में ही हल्ला कर उनका पहचान कर शोर मचाने की कोशिश करें मदद कीजिए!
6. अपने पास फोन हो तो फोन में इमरजेंसी स्पीड डायल नंबर रखें इससे आपके फैमिली को आप troubles location और culprit के बारे में बता सकते हैं या फैमिली के अलावा एक सो नंबर पर डायल कर पुलिस को बुला सकती हैं या अपने स्टेट कि महिला हेल्पलाइन नंबर डायल करके भी आप सहायता ले सकते हैं! इसमे कुछ निम्नलिखित है - आप इसे इन्टरनेट के माध्यम से भी नंबर भी उपलब्ध कर सकते हैं -
All india women in Distress - 181
National commission for women - 011-26942369/26944754
National Human Right Commission-011-23385368/9810298900
1. उत्तरप्रदेश महिला हेल्प लाइन नंबर - 6306511708
1098/112
2. बिहार महिला हेल्प लाइन - 18003456247
0612-2320047, 221418
3. हरियाणा बाल एवं महिला हेल्प लाइन - 0124-2335100
4. मध्य प्रदेश महिला कमिशन - 0755-2661813/2661802
महिला थाना - 0731-2434999
इसके संबंध में कुछ मार्गदर्शक पुस्तिकाओं में महिला पर्यटकों को सुझाव दिया जाता है कि रूढ़िवादी कपड़े पहनने से छेड़खानियों से बचा जा सकता है, हालांकि भारतीय महिला और रूढ़िवादी पोशाक पहनने वाली विदेशी महिलाएं, दोनों ने छेड़छाड़ की रिपोर्टें दर्ज करवाई हैं।7. अपने स्मार्टफोन में जरूर सेफ्टी ऐप रखें जो कि प्ले स्टोर पर आसानी से उपलब्ध हैं जैसे कि-
1.Himmat
2.Raksha
3. Safety pin
4. Women safety
5. . Shake to safety
6. Be safe
7. Smart 24X7
8. Nirbhaya
9. Spot N save
10. Eye watch women
इन सभी ऐप में आई एम safe से बटन बनाया गया है इस पर प्रेस करने पर अपने पेरेंट्स को डेस्टिनेशन तक सही सलामत सूचना दे दी जा सकती है!
8. आज कल महिलाओं के लिए self defences से जुड़े करतब सिखाये जाते हैं हो सके तो प्रशिक्षण ले!
9. या कहीं जा रहे हो तो अपने पर्स मे हमेशा छोटा हथियार के रूप मे सिप्टी पिन, छोटा सा चाकू या कैची साथ रखे और कुछ available हो ना हो पेपर स्प्रे अनिवार्य रूप से रखे!
10. अगर कोई हाथ पकड़ता है या आपको गलत टच करने की कोशिश करता है तो कोशिश करें कि उस व्यक्ति की उंगली पकड़ मे आ जाए और जोर से घुमा दे इससे उस व्यक्ति को इतना दर्द होगा जितना कि गर्दन टूटने पर दर्द होता है!
11. अगर उस आरोपी के ऊपर प्रहार कर रहें हो तो उनके नाजुक अंगों पर वार करें जिससे वो तत्काल के लिए बेहोश हो जाए!
जयमाला सोनी
पूर्णिया (बिहार)
इतिहास
हालांकि 1960 के दशक में इस समस्या ने जनता और मीडिया का ध्यान आकर्षित किया, आगामी दशकों में, जब अधिक महिलाओं ने कॉलेज जाना और स्वतंत्र रूप से काम करना शुरू किया, यानी जब पारंपरिक समाज में पुरुषों ने उनके मार्गरक्षक के रूप में साथ जाना बंद किया, यह समस्या चिंताजनक स्तर तक बढ़ गई। जल्द ही भारत सरकार को इस जोख़िम पर अंकुश लगाने के लिए न्यायिक और क़ानून प्रवर्तन, दोनों दृष्टि से सुधारोपाय लागू करने पड़े और पुलिस को इस समस्या के प्रति संवेदनशील बनाने के प्रयास किए गए तथा पुलिस ने छेड़खानी करने वालों को घेरना शुरू किया। इस प्रयोजन के लिए सामान्य वेशभूषा में महिला पुलिस अधिकारियों की तैनाती विशेष रूप से प्रभावी रही है, विभिन्न राज्यों में किए गए अन्य उपायों में शामिल हैं विभिन्न शहरों में महिलाओं के लिए हेल्पलाइन की स्थापना, महिला पुलिस स्टेशन और पुलिस द्वारा महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करने वालों के खिलाफ़ विशेष कक्षों की स्थापना.
इसके अलावा, इस अवधि के दौरान महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करने वालों के प्रति जनता के बदलते रवैये की वजह से, यौन उत्पीड़न के मामले जैसी छेड़खानियों की घटनाओं को रिपोर्ट करने के लिए आगे आने वाली महिलाओं की संख्या में वृद्धि दृष्टिगोचर हुई. साथ ही, छेड़छाड़ की घटनाओं की गंभीरता में भी बढ़ोतरी हुई, कुछ मामलों में एसिड फेंकने जैसी घटनाएं सामने आईं, जिसके फलस्वरूप तमिलनाडु जैसे राज्यों ने महिलाओं के साथ छेड़छाड़ को ग़ैर जमानती अपराध घोषित किया। महिला संगठनों की संख्या और महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वालों की संख्या में भी वृद्धि हुई, विशेषकर इस अवधि में दुल्हन जलाने की रिपोर्टों में बढ़ोतरी देखी गई। महिलाओं के प्रति हिंसक घटनाओं में वृद्धि का मतलब क़ानून निर्माताओं द्वारा महिलाओं के अधिकारों के प्रति पहले के निरुत्साही नज़रिए को त्यागना है। आगामी वर्षों में ऐसे संगठनों ने, 'दिल्ली महिलाओं के साथ छेड़छाड़ निषेध विधेयक 1984' सहित महिलाओं को हिंसक छेड़खानियों से बचाने के लिए परिकल्पित क़ानून को पारित करने के लिए समर्थन जुटाने में प्रमुख भूमिका निभाई.
1998 में महिलाओं के साथ छेड़छाड़ के परिणामस्वरूप चेन्नई की एक छात्रा सारिका शाह की मृत्यु, दक्षिण भारत में समस्या का सामना करने के लिए कड़े क़ानूनों को सामने ले आई. इस मामले के बाद, लगभग आधा दर्जन आत्महत्या की रिपोर्टें दर्ज हुईं, जिसके लिए महिलाओं के साथ छेड़खानी की वजह से उत्पन्न दबाव को उत्तरदायी ठहराया गया। 2007 में, एक छेड़खानी के मामले की वजह से दिल्ली के कॉलेज की छात्रा पर्ल गुप्ता की मौत हुई. फरवरी 2009 में, एम.एस. विश्वविद्यालय (MSU) वडोदरा से छात्राओं ने चार युवा लोगों की परिवार और समुदाय विज्ञान विभाग के पास पिटाई की, जब उन्होंने एस.डी. हॉल छात्रावास में निवास करने वाली छात्राओं पर भद्दी टिप्पणियां कसीं.
प्रतिशोध और समाज में बदनामी के डर से कई मामलों की रिपोर्ट दर्ज नहीं होती हैं। कुछ मामलों में पुलिस, अपराधियों को सार्वजनिक अपमान के बाद मुर्ग़ा सज़ा देकर छोड़ देते हैं। 2008 में, दिल्ली की एक अदालत ने महिला के साथ छेड़खानी करते हुए पकड़े गए एक 19 वर्षीय युवा को अपने अभद्र आचरण के परिणामों का विवरण देते हुए स्कूल और कॉलेजों के बाहर युवाओं को 500 परचे बांटने का आदेश दिया.
लोकप्रिय संस्कृति में वर्णन
परंपरागत रूप से, भारतीय सिनेमा ने आम नाच-गाने के साथ, प्रेम प्रसंग की शुरूआत के तौर पर महिलाओं के साथ छेड़खानियों को दर्शाया, जो हमेशा गाने के अंत तक नायक के प्रति नायक के समर्पण से ख़त्म होता है। और युवक परदे पर प्रदर्शित इस अचूक नमूने का अनुकरण करते हुए देखे जाते हैं, जो सड़कछाप प्रेमियों को जन्म देता है जिसका फ़िल्मी संस्करण (सैफ़ अली ख़ान अभिनीत) रोडसाइड रोमियो (2007) में देख सकते हैं।
इसका एक और दर्शाया जाने वाला लोकप्रिय नज़ारा है कि जब महिलाओं के साथ छेड़खानी करने वाले युवक किसी लड़की को छेड़ते हैं, तो नायक वहां पहुंचता है और उनकी पिटाई करता है, जैसा कि तेलुगू फ़िल्में "मधुमासम" और "मगधीरा" और हिन्दी फ़िल्म "वान्टेड" में देख सकते हैं। आजकल यह समस्या भारतीय टेलीविज़न धारावाहिकों में भी दिखाई जाने लगी है।
कानूनी निवारण
हालांकि भारतीय क़ानून में 'ईव-टीज़िंग' (महिलाओं के साथ छेड़छाड़) शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है, पीड़ितों द्वारा आम तौर पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 294 (ए) और (बी) का आश्रय लिया जाता है, जो युवती या महिला के प्रति अश्लील इशारों, टिप्पणियों, गाने या कविता-पाठ करने के अपराध में दोषी पाए गए व्यक्ति को अधिकतम तीन महीनों की सज़ा देती है। भारतीय दंड संहिता की धारा 292 स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है कि महिला या युवती को अश्लील साहित्य या अश्लील तस्वीरें, क़िताबें या पर्चियां दिखाने वाले, पहली बार दोषी पाए गए व्यक्ति को दो वर्षों के लिए सश्रम कारावास की सज़ा देते हुए, 2000 रु. का जुर्माना वसूला जाए. अपराध दोहराने पर, जब प्रमाणित हो, तो अपराधी को पांच साल के लिए कारावास सहित 5000 रु. का जुर्माना लगाया जाएगा. भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा के अधीन महिला या युवती के प्रति अश्लील हरकत, अभद्र इशारे या तीखी टिप्पणियां करने वाले पर एक वर्ष के कठोर कारावास की सज़ा या जुर्माना या दोनों लगाए जा सकते हैं।
भारतीय दंड संहिता (IPC)की धारा 354-A , धारा 354-D में महिला के प्रति अश्लील इशारों , अश्लील टिप्पणियों , पिछा करने पर कठोर कारावास की सज़ा या जुर्माना या दोनों लगाए जा सकते हैं।
'राष्ट्रीय महिला आयोग' (NCW) ने संख्या 9 महिलाओं के साथ छेड़छाड़ (नया क़ानून) 1988 का भी प्रस्ताव रखा है।
सार्वजनिक प्रतिक्रिया
'निडर कर्नाटक' या 'निर्भय कर्नाटक', कई व्यक्तियों और 'वैकल्पिक क़ानूनी मंच', 'ब्लैंक नॉइज़' 'मरा', 'संवादा' और 'विमोचना' जैसे समूहों का गठबंधन है। 2000 के दशक में महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाओं में वृद्धि के बाद, उसने जनता के बीच कई जागरूकता अभियान चलाए, जिनमें शामिल है 'टेक बैक द नाइट' और 2003 में बेंगलूर में प्रवर्तित सार्वजनिक कला परियोजना जिसका शीर्षक है द ब्लैंक नॉइज़ प्रॉजेक्ट. महिलाओं से छेड़छाड़ करने वालों के खिलाफ़ एक ऐसा ही कार्यक्रम 2008 में मुंबई में आयोजित किया गया।
भारत में महिलाओं के लिए सबसे ख़तरनाक शहर दिल्ली में, महिला और बाल विकास विभाग ने 2010 में आयोजित होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के लिए शहर को तैयार करने हेतु एक संचालन समिति की स्थापना की.
मुंबई में महिलाओं के लिए विशेष रेलगाड़ियां शुरू की गईं ताकि कामकाजी महिलाएं और शहर में पढ़ाई करने वाली युवतियां बिना किसी छेड़खानी से डरे, कम से कम अपनी लंबी यात्रा सुरक्षित रूप से तय कर सकें. 1995 के बाद से, यात्रा करने वाली महिलाओं की दुगुनी संख्या के साथ, इस प्रकार की सेवाओं की भारी मांग रही है।. आज बड़े शहरों की सभी स्थानीय रेलगाड़ियों में "महिलाओं के लिए विशेष" डिब्बे मौजूद हैं। अन्य रेलगाड़ियों में, महिलाओं को ए.सी. कोच में यात्रा की सलाह दी जाती है, क्योंकि ये कोच महिलाओं के साथ छेड़खानी करने वाले आर्थिक रूप से ग़रीब और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों से मुक्त होते हैं।
इन्हें भी देखें
यौन उत्पीड़न
जापान में चिकन (यौन उत्पीड़न और जिस्म टटोलना)
खाली शोर परियोजना
भारत में कामुकता
जिंदा (2006) एक बॉलीवुड फ़िल्म, जो महिलाओं से छेड़छाड़ करने के अप्रिय परिणामों और छेड़ने वाले की सज़ा पर केंद्रित था।
अतिरिक्त पठन
शोभा सक्सेना द्वारा लिखित क्राइम्स अगेन्स्ट विमेन एंड प्रोटेक्टिव लॉज़ . दीप एंड दीप पब्लिकेशन्स द्वारा 1995 में प्रकाशित.
एलिसन एम. थॉमस, सीलिया किट्ज़िंगर द्वारा सेक्शुअल हरैसमेंट: कंटेम्पोररी फ़ेमिनिस्ट पर्सपेक्टिव्स . ओपन युनिवर्सिटी प्रेस द्वारा 1997 में प्रकाशित. ISBN 0-335-19580-6.
अध्याय 10: सेक्शुअल हरैसमेंट इन इंडिया: अ केस स्टडी ऑफ़ ईव-टीज़िंग इन हिस्टॉरिकल पर्सपेक्टिव. क्लेर ब्रैंट, यून ली टू द्वारा रीथिंकिंग सेक्शुअल हरैसमेंट . प्लूटो प्रेस द्वारा 1994 में प्रकाशित. ISBN 0-7453-0838-4. पृष्ठ 200 .
ईवटीज़िंग इन इंडिया एंड टॉर्शियस लाएबिलिटीज़- लेखक बी. ज्योति किरण-क़ानूनी दृष्टिकोण
विशाखा बनाम राजस्थान सरकार (जेटी 1997 (7) एससी 384) तमिलनाडु सरकार .
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
फ़ाइटिंग ईव-टीज़िंग: राइट्ज़ एंड रेमेडी
ईव-टीज़िंग एंड मेल डॉमिनन्स
इन इंडिया, विमेन फ़ाइट हरैसमेंट ऑफ़ "ईव टीज़िंग"
बांग्लादेश 'ईव टीज़िंग' क्रेज़ टेक्स अ टेरिबल टॉल
यौन शोषण
गंवारू बोली
भारतीय समाज
पाकिस्तानी समाज
भारत में महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा
महिलाओं के खिलाफ पाकिस्तान में हिंसा
एशिया में महिला अधिकार
महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा
व्यंजनाएं | 2,683 |
14352 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AE | शिया इस्लाम | शिया एक मुसलमान सम्प्रदाय है। सुन्नी सम्प्रदाय के बाद यह इस्लाम का दूसरा सबसे बड़ा सम्प्रदाय है जो पूरी मुस्लिम आबादी का केवल १०-१५% है। सन् ६३२ में हजरत मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात जिन लोगों ने ग़दीर की पैग़म्बर मुहम्मद की वसीयत के मुताबिक अपनी भावना से हज़रत अली को अपना इमाम (धर्मगुरु) और ख़लीफा (नेता) चुना वो लोग शियाने अली (अली की टोली वाले) कहलाए जो आज शिया कहलाते हैं। लेकिन बहोत से सुन्नी इन्हें "शिया" या "शियाने अली" नहीं बल्कि "राफज़ी" (अस्वीकृत लोग) नाम से बुलाते हैं ! वहीं शिया सम्प्रदाय के लोग भी प्रसिद्ध हदीस "अकमलतो लकुम दिनोकुम" की पूरी व्याख्या के आधार पर सुन्नी समुदाय के उन लोगों को पथभ्रष्ट और अल्लाह का नाफरमान मानते हैं , जो पैग़म्बर मुहम्मद के तुरंत पश्चात अली को इमाम यानी खलीफा या प्रमुख ना मानें !
इस धार्मिक विचारधारा के अनुसार हज़रत अली, जो मुहम्मद साहब के चचेरे भाई और दामाद दोनों थे, ही हजरत मुहम्मद साहब के असली उत्तराधिकारी थे और उन्हें ही पहला ख़लीफ़ा (राजनैतिक प्रमुख) बनना चाहिए था। यद्यपि ऐसा हुआ नहीं और उनको तीन और लोगों के बाद ख़लीफ़ा, यानि प्रधान नेता, बनाया गया। अली और उनके बाद उनके वंशजों को इस्लाम का प्रमुख बनना चाहिए था, ऐसा विशवास रखने वाले शिया हैं। सुन्नी मुसलमान मानते हैं कि हज़रत अली सहित पहले चार खलीफ़ा (हज़रत अबु बक़र, हज़रत उमर, हज़रत उस्मान तथा हज़रत अली) सतपथी (राशिदुन) थे जबकि शिया मुसलमानों का मानना है कि पहले तीन खलीफ़ा इस्लाम के अवैध तरीके से चुने हुए और ग़लत प्रधान थे और वे हज़रत अली से ही इमामों की गिनती आरंभ करते हैं और इस गिनती में ख़लीफ़ा शब्द का प्रयोग नहीं करते। सुन्नी मुस्लिम अली को (चौथा) ख़लीफ़ा भी मानते है और उनके पुत्र हुसैन को मरवाने वाले उम्मयद साम्राज्य के सम्राट यज़ीद के सैनिकों को कई जगहों पर पथभ्रष्ट मुस्लिम कहते हैं।
शिया मुसलमानों में साक्षरता प्रतिशत, उदारवादिता और अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता मुसलमानों के अन्य फिरकों की अपेक्षा अधिक है ! शिया मुसलमानों के धार्मिक स्थान जैसे इमामबाड़ा अथवा इमामबारगाह सभी धर्म के लोगों के लिए खुले हैं !
शिया सम्प्रदाय की उदारवादी विचारधारा को आतंकवाद का बड़ा दुश्मन समझा जाता है और यही कारण है कि मुस्लिम देशों में फैले हुए आतंकवाद का सबसे ज़्यादा निशाना इन्हें ही बनाया जाता है ! शिया सम्प्रदाय की मस्जिदें अक्सर पाकिस्तान, अफगानिस्तान और इराक जैसे देशों के आतंकी हमलों से पीड़ित रही हैं !
हालाकि यमन में होतही, फ़िलिस्तीन में हमास, सीरिया के क्रूर तानाशाह बशर असद को ईरान और शिया गुट समर्थन करते है ईरान और शिया गुट लगातार सुन्नी देशों के ख़िलाफ़ उन देशों मे अराजकता फैलाने के लिए छद्म युद्ध करते रहते है ताकि शिया विचारधारा वहाँ स्थापित की जा सके जिस वजह से अरब देशों और ईरान के संबंध ख़राब है ।
इस सम्प्रदाय के अनुयायियों का बहुमत मुख्य रूप से ईरान, इराक़, बहरीन और अज़रबैजान में रहते हैं। इसके अलावा सीरिया, कुवैत, तुर्की, जर्मनी, अफ़ग़ानिस्तान, कनाडा, पाकिस्तान, स्वीडेन, ओमान, यमन, अफ़्रीका तथा भारत में भी शिया आबादी एक प्रमुख अल्पसंख्यक के रूप में है। शिया इस्लाम के विश्वास के तीन उपखंड हैं - बारहवारी, इस्माइली और ज़ैदी। एक मशहूर हदीस मन्कुनतो मौला फ़ हा जा अली उन मौला, जो मुहम्मद साहब ने गदीर नामक जगह पर अपने आखरी हज पर खुत्बा दिया था,
शिया सुन्नी विवाद
सन् ६३२ में मुहम्म्द साहब ने अपने आखिरी हज में ग़दीर के ख़ुम नामक मैदान के निकट अपने साथियों को संबोधित किया था।
पैग़म्बर ने वहां आदेश दिया कि पीछे छूट गए सभी लोगों को आने दिया जाए और आगे निकल गए लोगों को वापस बुला लिया जाए , इस तरह शिया इतिहासकारों के अनुसार वहां 125,000 (सवा लाख) लोग एकत्रित हुए , इसके पश्चात पैग़म्बर ने ऊंट के कजावे से एक मिम्बर बनाने की आज्ञा दी और उसपर अली का हाथ अपने हाथ में लेकर ऊपर उठाते हुए कहा "मन कुंतो मौला हो फहाज़ा अलीयून मौला " अर्थात " जिस जिस का मैं मौला (स्वामी) हूँ उस उस के मौला (स्वामी) अली हैं"
इसके पश्चात पैग़म्बर मुहम्मद ने प्रसिद्ध हदीस "अकमलतो लकुम दिनोकुम" अर्थात "आज धर्म पूर्ण हो गया " (धर्म पूरी तरह से समझा दिया गया ) ऐसा कहा ! सुन्नी धार्मिक किताब और हदीसों के हवाले में ये है की 1,25,000 लोग हज से लौटाते समय गधीर नामक जगह नहीं बल्कि हज में थे और क़ुरान के ये आख़िरी शब्द "अकमलतो लकुम दिनोकुम" अर्थात "आज धर्म पूर्ण हो गया "(धर्म पूरी तरह से समझा दिया गया) उन्होंने गधीर में नहीं बल्कि आख़िरी हज में मक्काह में कहा था।
इसी समय एक व्यक्ति ने पैग़म्बर से सवाल किया कि ये आप अपनी तरफ से कह रहे हैं या अल्लाह का पैगाम पहुंचा रहें है ? जिसके जवाब में पैग़म्बर ने कहा "ये अल्लाह की आज्ञा है जो मुझसे कहते हैं कि अगर ये (अली के उत्तराधिकार की घोषणा) ना पहुंचाया (किया) तो जैसे मैने कोई पैग़म्बरी का कार्य ही नहीं किया "
शिया विश्वास के अनुसार इस ख़िताब में उन्होंने अपने दामाद अली को अपना वारिस बनाया था। सुन्नी इस घटना को अली (अल्०) की प्रशंसा मात्र मानते है और विश्वास रखते हैं कि उन्होंने हज़रत अली को ख़लीफ़ा नियुक्त नहीं किया। इसी बात को लेकर दोनो पक्षों में मतभेद शुरु होता है।
हालांकि उक्त घटना का लगभग सटीक वर्णन सुन्नी इस्लाम की बहुधा किताबों में मिलता है जो शिया सम्प्रदाय के दावे को बल देता है !
हज के बाद मुहम्मद साहब (स्०) बीमार रहने लगे। उन्होंने सभी बड़े सहाबियों को बुला कर कहा कि मुझे कलम दावात दे दो कि में तुमको एसा नविश्ता (दस्तावेज) लिख दूँ कि तुम भटको नहीं तो उमर ने कहा कि ये हिजयान (बीमारी की हालत में ) कह रहे हे और नहीं देने दिया (देखे बुखारी, मुस्लिम)।
शिया इतिहास के अनुसार जब पैग़म्बर साहब की मृत्यु का समाचार मिला तो जहां अली एवं अन्य कुटुम्बी बनी हाशिम उनकी अंत्येष्टि का प्रबंध करने लगे वहीं उमर , अबूबकर और उनके अन्य साथी भी वहां ना आकर सकिफा में सभा करने लगे कि अब क्या करना चाहिये। जिस समय हज़रत मुहम्मद (स्०) की मृत्यु हुई, अली और उनके कुछ और मित्र मुहम्मद साहब (स्०) को दफ़नाने में लगे थे, अबु बक़र मदीना में जाकर ख़िलाफ़त के लिए विमर्श कर रहे थे। मदीना के कई लोग (मुख्यत: बनी ओमैया, बनी असद इत्यादि कबीले) अबु बकर को खलीफा बनाने पर सहमत हो गये। शिया मान्यताओं के अनुसार मोहम्मद साहेब एवम अली के कबीले वाले यानि बनी हाशिम अली को ही खलीफा बनाना चाहते थे। पर इस्लाम के अब तक के सबसे बड़े साम्राज्य (उस समय तक संपूर्ण अरबी प्रायद्वीप में फैला) के वारिस के लिए मुसलमानों में एकजुटता नहीं रही। कई लोगों के अनुसार अली, जो मुहम्मद साहब के चचेरे भाई थे और दामाद भी (क्योंकि उन्होंने मुहम्मद साहब की संतान फ़ातिमा से शादी की थी) ही मुहम्मद साहब के असली वारिस थे। परन्तु अबु बक़र पहले खलीफा बनाये गये और उनके मरने के बाद उमर को ख़लीफ़ा बनाया गया। इससे अली (अल्०) के समर्थक लोगों में और भी रोष फैला परन्तु अली मुसलमानों की भलाई के लिये चुप रहे।
ये बात ध्यान देने योग्य है कि उमर का पुत्र अब्दुल्लाह बिन उमर ने अपने बाप के उलट अली को ही पैग़म्बर का वारिस माना और अबुबकर के बेटे मुहम्मद बिन अबुबकर ने भी अपने दादा यानी कहाफ़ा की तरह अली का ही साथ दिया! यहीं नहीं , पैग़म्बर साहब की मृत्यु उपरांत उनकी दो पत्नियों आएशा और हफसा के अतिरिक्त सभी का समर्थन हज़रत अली को ही रहा, हफसा बिन्ते उमर को हालांकि पैगम्बर साहब ने अपने जीवन मेंही तलाक दे दिया था !
उस्मान की ख़िलाफ़त
उमर के बाद तीसरे खलीफ़ा उस्मान बने। उस्मान ने पैग़म्बर के समय के बद्र की लड़ाई और कई अन्य कई मार्को पर जारी किए हुए वृत्तियाँ अर्थात वज़ीफ़े जो तत्कालीन इस्लामी योद्धाओं को युद्ध में अपंगता या शहीद हो जाने के एवज में दिए जाते थे, बन्द कर दिए और सरकारी खजाने से बहुत अधिक खर्च अपनी इच्छा से करना शुरू कर दिया ! अपने संबंधियों को उच्च पद और गवर्नर नियुक्त कर दिया ! ये सब देख कर लोगों ने उनके खिलाफ बग़ावत की और उन्हें "नासिल" अर्थात गया"गबन करने वाला" घोषित करके उनके खिलाफ जंग छेड़ दी ! उस्मान ने बचने का बहुत प्रयत्न किया परन्तु इनके समय में बाग़ियों लोगों ने मिस्र तथा इराक़ व अन्य स्थानो से आकर मदीना में आकर उस्मान के घर को घेर लिया ४० दिन तक उस्मान के घर को घेराव किया अन्त में उस्मान को मार डाला। उस्मान बिन अफ्फान को जब शहीद किया गया तब उनकी उम्र ७९(79) थी, उन्हें सर में बार बार वार कर के मारा गया उनकी पत्नी उनको बचाने बीच आयी इससे उनकी ऊँगली कट गयी, बागी उनके घर में पीछे की तरफ से अन्दर आये , जब उस्मान को विश्वास हो गया कि ये उन्हें मार कर छोड़ेंगे तो उन्होंने अली से रक्षा का अनुमोदन किया और अली की आज्ञानुसार "दारुल अमारा" यानी खलीफा के घर में उनके दोनों बेटों ने रसद पहुंचाई और सामने की तरफ़ से हज़रत अली के दोनों बेटे हुसैन इब्ने अली और हसन इब्ने अली ,रखवाली कर रहे थे ! उस्मान ने इनसे निवेदन किया कि किसी हालात में वो उनके घर के सामने के दरवाजे से ना हटें वरना बागी उन्हें मार डालेंगे , इसपर बागियों ने हुसैन और हसन से उलझना ठीक नहीं समझा और घर के पीछे से दाखिल होकर चुपचाप उस्मान को मार डाला !
खलीफा अली और परवर्ती विवाद
अब फिर से ख़लीफा का पद खाली था और इस्लामी साम्राज्य बड़ा हो रहा था। मुसलमानों को हज़रत अली के अलावा कोई न दिखा पर अली खलीफ़ा बनने को न माने। कइ दिन शुरा के लोग खलीफा के पद को न भर सके। अन्त में अली को विवश किया गया तो आप ने कहा कि मेरे खिलाफत में इलाही निजाम (ईश्वर शासन) चलेगा। उन्हें चौथा खलीफ़ा नियुक्त किया गया। अली अपने इन्साफ़ के लिये मशहूर थे ,अली के खलीफा बनने पर पूर्व खलीफा उस्मान के कातिलो का बदला लेने और उनको सजा देने की मांग उठने लगी लेकिन वख्त और मुसलमानों के हालात देख कर अली ने उस वख्त कोई कदम नहीं उठाया पर उस्मान के समर्थक लोगो को ये न रास आया तो उन्होंने खलीफा उस्मान के कातिलो को सजा दिलवाने के फौज़ इक्क्ठी की। असल में ये फौज शाम देश के शासक मुआविया के क्रांति पर एकत्र हुए थी क्योंकि उस्मान के पश्चात वो खलीफा का अपने अपने लिए चाहता था, परंतु कुछ मुसलमानों का बहुमत उसके विपक्ष और अली के पक्ष में था ! अली ने कहा उस्मान के कतिलो को सजा जरुर मिलेगी, पर जब अली को इस फौज के असली मकसद का पता चला, जो बिना अली की आज्ञा के अवैध रूप से और अली को पद से हटाने के लिए एकत्र हुए थी, तो अली ने इन्हें मदीने से पहले ही रोक दिया, यहीं पर जमल नामक जंग हुई, और अली जीत गए !
अनेक उलेमाओं एवं विद्वानों ने सुलह कराई और मुआविया शाम (शाम सीरिया का प्राचिन नाम है) वापस चला गया और पैग़म्बर की पत्नी आयेशा को अली से अपनी रक्षा में ले लिया, परन्तु कुछ समय बाद वो लापता हो गईं जब उन्होंने मुआविया द्वारा अपने भाई मुहम्मद इब्ने अबुबकर की हत्या का विरोध किया!
कुछ समय बाद सीरिया के सूबेदार मुआविया ने एक विशालकाय एवं शक्तिशाली फौज के साथ फिर अली का विरोध किया। मुआविया तीसरे खलीफ़ा उस्मान के रिश्तेदार थे, और उसी हजरत उस्मान के कतिलो के सजा की मांग से सिफ्फीन में जंग हुई जिसमें खलीफ़ा अली की भीषण जीत हुई और
मुआविया के लड़ाई हारने के बाद भीषण हार और विद्रोह की वजह से मुआविया को काफी दुःख हुआ !
हज़रत अली से जंग में मुआविया की सेना द्वारा अम्मार इब्ने यासिर नामक सहाबी की हत्या कर दी गई जो हज़रत अली की तरफ से जंग कर रहे थे, उनकी आयु तब 93 साल थी ! सही मुस्लिम की हदीस 2812 के मुताबिक पैगम्बर मुहम्मद (स०) की हदीस है "अम्मार को एक विद्रोही गिरोह कत्ल करेगा ! अम्मार तब लोगों को स्वर्ग की ओर बुला रहे होंगे और वो गिरोह नरक की अग्नि की ओर !"
इस हदीस के प्रकाश में मुआविया और उसकी सेना नरक की तरफ बुलाने वाली अर्थात पथभ्रष्ट बताई जाती है और इस हदीस ने आज भी मुस्लिम समाज में एक बहस को जारी रखा है , हालांकि किसी भी फिरके को इस हदीस की सत्यता पर कोई शंका नहीं है और इससे शिया सम्प्रदाय के माविया और उसके समर्थकों को दुराचारी कहने के दावे को बल मिलता है ! स्वयं माविया भी इस घटना के बाद इस संबंध में अपना बचाव नही कर सका और ना इस हदीस को दबा सका जिसका उसने भरसक प्रयास किया !
मुआविया बार बार अली से उलझता रहा और उनके शासित प्रदेशों में लूट मार करता रहा ! सन् ६६१ में कूफ़ा में एक मस्जिद में इमाम अली को धोके से शहीद कर दिया गया। इसके बाद मुआविया ने अपने को इस्लाम का ख़लीफ़ा घोषित कर दिया, जबकि मदीने के कुछ और लोगों ने अली के समर्थकों ने अली के ज्येष्ठ पुत्र हसनबिन अली के हाथ पर बैयत की और उन्हें खलीफा बनाया ! हसन पैग़म्बर के सीधे वंशज थे !
मुआविया पैगम्बर मुहम्मद का भी रिश्तेदार था,मुआविया की बहन पैगम्बर मुहम्मद की पत्नी थी| ये विवाहवस्तुतः उसके पिता अबूसुफ़यान ने मुसलमानों का भरोसा जीतने के लिए किया था परंतु माविया की ये बहन अपने पिता या भाई से कोई संबंध नहीं रखना चाहती थींऔर पैग़म्बर साहब की मृत्यु उपरान्त आएशा और हफसा के उनकी सभी पत्नियाँ हज़रत अली के ही समर्थन में रहीं !
इमाम हसन और इमाम हुसैन
हज़रत अली और सैद्धांतिक रूप से मुहम्मद सo साहब के रिश्तेदारों के समर्थकों ने उनके पुत्र हसन के प्रति निष्ठा दिखाई, लेकिन कुछ उनका साथ छोड़ गए। हसन इब्ने अली ने जंग न की बल्कि मुआविया के साथ सन्धि कर ली। असल में अली के समय में सिफ्फीन की लड़ाई के पश्चात माविया ने खुद को बिना किसी शूरा के खलीफा घोषित कर दिया था एवं दमिश्क को अपनी राजधानी घोषित कर रखी थी। वो सीरिया का गवर्नर पिछ्ले खलीफाओं के कारण बना था अब वो अपनी एक बहुत बड़ी और विशालकाय सेना तैयार कर रखे थे अब उसने वही सवाल इमाम हसन के सामने रखा: या तो युद्ध या फिर अधीनता। इमाम हसन ने अधीनता नहीं स्वीकार की परन्तु वो मुसलमानों का खून भी नहीं बहाना चाहते थे इस कारण वो युद्ध से दूर रहे। मुआविया भी किसी भी तरह सत्ता चाहता था तो इमाम हसन से सन्धि करने पर मजबूर हो गया।
हसन से सीधे उलझना या उनका खून बहाना कितना मंहगा साबित हो सकता है ये मुआविया भांप गया था, पर उसका पुत्र यज़ीद इतना भी समझदार ना निकला और वो हसन के पश्चात हुसैन से सीधे उलझ गया जिसके कारण उसका पतन हो गया !
असल में हसन इमाम का पद अपने पिता के पश्चात पहले ही पा चुके थे और इस पद के अंतर्गत वो धार्मिक कार्यों के सर्वोच्च अधिकारी थे, जिसे किसी तरह जंग से नहीं बदला नही जा सकता था बल्कि शास्त्रार्थ (हदीस, शरीयत , क़ुरआन एवं परमेश्वर के विधान की सम्पूर्ण व्याख्या ) के ज़रिए ही पाया जा सकता था ! मुआविया धर्म और विधि का बिल्कुल ज्ञानी नहीं था कि वो शास्त्रार्थ करके इमाम हसन को हरा सके ! वहीं इमाम हसन पैग़म्बर की एकमात्र पुत्री फातिमा के ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते "इब्ने रसूलल्लाह" (पैग़म्बर के पुत्र /वारिस) कहलाये जाते थे और इस विषय में मुआविया कुछ नहीं कर सकता था ! मुआविया का मकसद केवल अपने पिता अबूसूफियान की बद्र खंदक और अन्य कई जंगों की हार का बदला बनु हाशिम और अली के वंशजों से लेना मात्र था !
इमाम हसन ने अपनी शर्तो पर माविया को सिर्फ प्रत्यक्ष सत्ता सौंपी। इन शर्तो में से कुछ ये हैं: -
माविया सिर्फ सत्ता के कामों तक सीमित रहेगा यानि धर्म में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकेगा।
वो अपने जीवन तक सत्ता में रहेगा और किसी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने का अधिकार उसे नहीं होगा ! उसके पश्चात खिलाफत पुनः हसन इब्ने अली या उनके उत्तराधिकारियों के पास लौट आएगी
वो सिर्फ इस्लाम के कानूनों का पालन करेगा।
वो इमाम अली इब्ने अबुतालिब को झूठी बातें कहकर उनकी बुराई नही करवाएगा !
इस सुलहनामे को हुदैबिया नामक स्थान पर होने के कारण हुदैबिया की संधि के नाम से जाना जाता है !
इस प्रकार की शर्तो के द्वारा मुआविया सिर्फ शाक्ति, शासन एवं भोग विलास मात्र का शासक रह गया। वो सिर्फ इस्लामी मुल्कों से भारी मात्रा में टैक्स वसूलकर उसे मनमाने तरीके से खर्च करता था ! मुआविया एवं उसके उम्मयद साम्राज्य के शासकों ने भोग विलास, मजे और आराम के लिए अनेक महलों एवं किलों का निर्माण करवाया,
इस्लामी शिक्षा का केंद्र हसन और उनके बाद बनके भाई हुसैन और बाद के वंशजों के ही पास बना रहा ! प्रसिध्द सूफी विचारधारा पूर्णरूप से अहलेबैत अर्थात अल्लाह , मुहम्मद और इसके पश्चात अली और उनके वंशजो से प्रेरित है और उनकी विचारधारा में अन्य किसी विचारधारा का कोई स्थान नहीं है ! मुआविया के वंश का शासन ७५० इस्वी तक रहा और उन्हें उमय्यद कहा गया।
उसके पुत्र यज़ीद के बाद उसका पोता माविया द्वितीय गद्दी पर बैठा मगर उसने अपने पिता और दादा के कुकर्मों पर शोक प्रकट किया और सिंहासन को अपनाने से इनकार कर दिया, उसे ज़बरदस्ती गद्दी पर बैठाया गया पर वो लगभग एक माह में ही मर गया , और उसी के साथ माविया के वंश की समाप्ति हो गई !
शिया सम्प्रदाय के विभाग
शिया मुसलमानों की सभी तहरीक हजरत मुहम्मद साहब के बाद अली के छोटे पुत्र व उनकी ११ पुत्रों को सिलसिलेवार सन्तानों को इस्लाम का उत्तराधिकारी मानते हैं। इनमे सबसे पहले इमाम हसन अल्य्हिस्सलाम का नाम आता है, आप इमाम अली (इब्ने अबुतलिब) के ज्येष्ठ पुत्र थे और आप ने इमाम अली के बाद ४७ साल की आयु में खिलाफत सम्भाली। आप केवल ६ माह तक ही खलीफा रहे जिसके पाश्चात आपने मविया से सन्धि के पश्चात राजनैतिक शासन से त्याग पत्र दे दिया मगर आप अपने अनुनाइयओ का मार्ग दर्शन इमाम के सम्मानित पद के अन्तर्गत करते रहे जो आपके पास इमाम अली अo के पश्चात आया था। शिया इतिहास के अनुसार आपको मविया ने साजिश करके शहीद कर दिया। आपके वसीयत के अनुसार आपके पश्चात इमाम हुसैन ने आपके पश्चात इमाम के पद को सम्भला। आपसे ही कर्बला की महान कथा सम्बन्धित है। आपने जब मविया के दुराचारी पुत्र यज़ीद का समर्थन करने से जब स्पष्ट रूप से मना कर दिया तब आपको अपने परिवार एवम मित्रों सहित, जो कुल ७२ की सन्ख्या में थे, ३०,००० या अधिक की फौज द्वारा घेर कर शहीद कर दिया गया। आप पर और आपके परिवार पर पानी ३ दिन पहले से ही बन्द था। इसी की याद में हर साल आपके अनुयायी मुहर्रम का विश्व प्रसिद्ध एवं पवित्र त्योहार मनाते है। इस त्यहार में धर्म सभायें एवम शोक सभाओं इत्यदि का अयोजन होता है!
शिया सम्प्रदाय के इमामो के नाम क्रमवार् निम्न लिखित है।-
इमाम - हजरत अली इब्न अबी तालिब
इमाम - हजरत हसन इब्न अली
इमाम - हजरत हुसैन इब्न अली
इमाम - हजरत अली इब्ने हुसैन (अल जैनुल आबेदीन्, अल्- सज्जाद)
इमाम - हजरत मोहम्मद इब्ने अली (अल्- बाकिर्)
इमाम - हजरत जाफर इब्ने मोहम्मद (अल्-सादिक)
इमाम - हजरत मूसा इब्ने जाफर (अल्-काजिम)
इमाम - हजरत अली इब्ने मुसा (अल्-रजा, अल्-जामिन ओ सामिन्)
इमाम - हजरत् मोहम्मद इब्ने अली (अल्-तकी)
इमाम - हजरत अली इब्ने मोहम्मद (अल्-नकी)
इमाम - हजरत हसन इब्ने अली (अल्-अस्करी)
इमाम - हजरत मोहम्मद इब्ने हसन (अल्-महदी, अल्-कायम, इमाम ए वक्त्, अल्-हुज्जत्) (अन्तिम एवम जीवित इमाम)
बारहवारी-इस उपसम्प्रदाय के अनुयायी १२वे इमाम को जीवित एवम वर्तमान समय के इमाम मानते हैं ! इस विश्वास के अनुसार ये अल्लाह की आज्ञा से अन्तर्धयान है और एक निश्चित समय पर प्रकट् होगे, ऐसा विश्वास है!
ज़ैदी -
इस्माइली
शिया जनसंख्या का वितरण
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
सुन्नी
शिया-सुन्नी विवाद
बाहरी कड़ियाँ
दाऊदी बोहरा
इस्लाम | 3,278 |
488491 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80 | गैसधानी | गैसधानी या 'गैस होल्डर' उस विशाल पात्र (container) को कहते हैं जिसमें प्राकृतिक गैस या टाउन गैस को वायुमण्डलीय दाब और सामान्य ताप पर पर संग्रहित रखा जाता है।
परिचय
उपभोक्ताओं के बीच गैस वितरण के पहले गैस का संग्रह करने की आवश्यकता पड़ती है। गैससंग्रह की साधारणतया तीन रीतियाँ प्रचलित हैं :
1. जलसंमुद्रित टंकियाँ,
2. जलरहित टंकियाँ और
3. गैस के सिलिंडर
जल संमुद्रित टंकियाँ
जलसंमुद्रित टंकियों का उपयोग बहुत दिनों से होता आ रहा है। आज भी इनका उपयोग व्यापक रूप से होता है। इसमें एक बड़ी टंकी रहती है जिसमें जल भरा रहता है। जल पर इस्पात का एक ढाँचा तैरता रहता है। जल के ऊपर गैस इकट्ठी होती है। टंकी में एक नल रहता है जो पेंदे से शिखर तक, अर्थात् नीचे से ऊपर तक, जाता है। इसी नल द्वारा गैस प्रविष्ट करती अथवा बाहर निकलती है। जब गैस प्रविष्ट करती है तब ढाँचा धीरे धीरे ऊपर उठता है। जब गैस बाहर निकलती है तब ढाँचा धीरे धीरे नीचे गिरता है। ढाँचा दीवार पर स्थित झझंरी द्वारा ऊपर नीचे खिसकता है।
छोटी छोटी टंकियों के ढाँचे इस्पात के एक टुकड़े से बने होते हैं। बड़ी बड़ी टंकियों के ढाँचे दो से चार भागों में बनाकर जोड़े जाते हैं। जब टंकी में गैस नहीं रहती तब ढाँचा टंकी के पेंदे में स्थित रहता है। जैसे जैसे गैस प्रवेश करती है, ढाँचा ऊपर उठता जाता है। जब गैस से टंकी भर जाती है तब वह जलसंमुद्रित हो जाती है। संमुद्रण के जल के ठंढे देशों में बर्फ बनने से बचाने के लिये भाप से गरम रखते हैं। भारत ऐसे उष्ण देश में यह स्थिति साधारणतया नहीं आती। भारत की प्रयोगशालाओं में प्रयुक्त होनेवाली गैस ऐसी ही टंकियों में संगृहीत रहती है।
जलरहित टंकी
जलरहित टंकी जलवाली टंकी सी ही देख पड़ती है। इसमें एक पिस्टन होता है, जो गैस के आयतन के अनुसार ऊपर नीचे जाता आता रहता है। टंकी पर छप्पर होता है, जो पिस्टन को पानी से सुरक्षित रखता है। टंकी का आधार वृत्तकार या बहुभुजाकार हो सकती है। भुजाएँ 10 से 28 तक रह सकती हैं।
गैस सिलिण्डर
गैस सिलिंडर इस्पात के बने होते हैं। इनमें प्रति वर्ग इंच पर कई सौ पाउंड दबाव में गैस रखी जाती है। ऐसे मजबूत बने सिलिंडर का मूल्य अधिक होता है, पर इसका बार बार उपयोग किया जा सकता है। दबाव में गैस रखने के लिये ये सिलिंडर बड़े आवश्यक होते हैं। वस्तुत: गैस सिलिंडर उसी प्रकार के होते हैं जैसे सिलिंडरों में, क्लोरीन, आक्सीजन, कार्बन डाइ-आक्साइड, ऐसीटिलीन आदि औद्योगिक महत्व की गैसें रखी जाती हैं।
ऊर्जा भण्दारण
पेट्रोलियम उत्पादन
गैस प्रौद्योगिकी | 425 |
1297123 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%A1%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%BE | कडाणा | कडाणा (Kadana) भारत के गुजरात राज्य के पंचमहाल ज़िले में स्थित एक गाँव है। यह इसी नाम की तालुका का मुख्यालय भी है। कडाणा गाँव मही नदी के किनारे बसा हुआ है।
जनगणना
भारत की 2011 जनगणना के अनुसार कडाणा गाँव में 1,520 लोग बसे हुए थे और कडाणा तालुका के सभी गाँवों में मिलाकर 1,29,545 लोग बसे हुए थे।
इन्हें भी देखें
पंचमहाल ज़िला
सन्दर्भ
गुजरात के गाँव
पंचमहाल ज़िला
पंचमहाल ज़िले के गाँव | 75 |
662145 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AB%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BE | फोरामिनिफेरा | फोरामिनिफेरा (Foraminifera ; /fəˌræməˈnɪfərə/ लैटिन अर्थ- hole bearers, informally called "forams") ) अथवा पेट्रोलियम उद्योग का तेल मत्कुण (oil bug), प्रोटोज़ोआ संघ के वर्ग सार्कोडिन के उपवर्ग राइज़ोपोडा का एक गण है। इस गण के अधिकांश प्राणी प्राय: सभी महासागरों और समुद्र में सभी गहराइयों में पाए जाते हैं। इस गण की कुछ जातियाँ अलवण जल में और बहुत कम जातियाँ नम मिट्टी में पाई जाती हैं। अधिकांश फ़ोरैमिनाफ़ेरा के शरीर पर एक आवरण होता है, जिसे चोल या कवच (test or shell) कहते हैं। ये कवच कैल्सीभूत, सिलिकामय, जिलेटिनी अथवा काइटिनी (chitinous) होते हैं, या बालू के कणों, स्पंज कंटिकाओं (spongespicules), त्यक्त कवचों, या अन्य मलवों (debris) के बने होते हैं। कवच का व्यास .०१ मिमी. से लेकर १९० मिमी. तक होता है तथा वे गेंदाकार, अंडाकार, शंक्वाकार, नलीदार, सर्पिल (spiral), या अन्य आकार के होते हैं।
कवच के अंदर जीवद्रव्यी पिंड (protoplasmic mass) होता है, जिसमें एक या अनेक केंद्रक होते हैं। कवच एककोष्ठी (unilocular or monothalamus), अथवा श्रेणीबद्ध बहुकोष्ठी (multilocular or polythalmus) और किसी किसी में द्विरूपी (dimorphic) होते हैं। कवच में अनेक सक्षम रध्रों के अतिरिक्त बड़े रंध्र, जिन्हें फ़ोरैमिना (Foramina) कहते हैं, पाए जाते हैं। इन्हीं फोरैमिना के कारण इस गण का नाम फ़ोरैमिनीफ़ेरा (Foraminifera) पड़ा है। फ़ोरैमिनीफ़ेरा प्राणी की जीवित अवस्था में फ़ोरैमिना से होकर लंबे धागे के सदृश पतले और बहुत ही कोमल पादाभ (pseudopoda), जो कभी कभी शाखावत और प्राय: जाल या झिल्ली (web) के समान उलझे होते हैं, बाहर निकलते हैं।
वेलापवर्ती (pelagic) फ़ोरैमिनीफ़ेरा के कवच समुद्रतल में जाकर एकत्र हो जाते हैं और हरितकीचड़ की परत, जिसे सिंधुपंक (ooze) कहते हैं, बन जाती है। वर्तमान समुद्री तल का ४,८०,००,००० वर्ग मील क्षेत्र सिंधुपंक से आच्छादित है। बाली द्वीप के सानोर (Sanoer) नामक स्थान में बड़े किस्म के फ़ोरैमिनीफ़ेरा के कवच पगडंडियों और सड़कों पर बिछाने के काम आते हैं।
भूवैज्ञानिक महत्व
अधिकतर खड़िया, चूनापत्थर और संगमरमर फ़ोरैमिनीफ़ेरा के संपूर्ण कवच, अथवा उससे उत्पादित कैल्सियम कार्बोनेट से निर्मित होता है।
कैंब्रियन-पूर्व समुद्रों के तलछटों में फ़ोरैमिनीफ़ेरा का विद्यमान रहना पाया जाता है, किंतु कोयला युग (coal age), या पेंसिलवेनिअन युग (Pennsylvanian) के पूर्व इनका कोई महत्व नहीं था। आदिनूतन (Eocene) युग में फ़ोरैमिनीफ़ेरा गण आकार, रचना की जटिलता, निक्षेप की मोटाई तथा वितरण में अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया था। हिमालय में एवरेस्ट पर्वत की २२,००० फुट ऊँचाई पर २०० फुट मोटा फ़ोरैमिनीफ़ेरीय चूना पत्थर का शैलस्तर वर्तमान है।
संपूर्ण धरा के २/३ भाग में समुद्र तलछट स्थित है और उसमें फ़ोरैमिनीफ़ेरा के जीवाश्म पाए जाते हैं। कालपरिवत्रन के साथ साथ फोरैमिनीफ़ेरा की नई जातियों का आविर्भाव हुआ और कुछ पुरानी जातियाँ विलुप्त हो गईं। अतएव किसी अलग हुए क्षेत्र के अलग होने और उसके निर्माण काल में भूवैज्ञानिक समन्वय स्थापित करने में फ़ोरैमिनीफ़ेरा बहुत ही उपयोगी सिद्ध होते हैं।
पेट्रोलियम भूविज्ञान में फ़ोरैमिनीफ़ेरा का स्थान महत्वपूर्ण है। पेट्रोलियम के लिए क्षेत्र का वेधन (drilling) करते समय विभिन्न स्तरों से प्राप्त पदार्थों को एकत्र कर प्रयोगशाला में उनकी जाँच की जाती है। यदि जाँच में किसी विशेष प्रकार के फ़ोरैमिनीफ़ेरा के जीवाश्म मिलते हैं, तो उसे यह अनुमान हो जाता है कि वेधन क्षेत्र में पेट्रोलियम विद्यमान है अथवा नहीं।
कवच की आकारिकी
फ़ोरैमिनीफ़ैरा के कवच छोटे बिंदु के आकार से लेकर अनेक इंचों के व्यास का हो सकता है। कुछ सीमित समूह के अंतर्गत ऐसे स्पीशीज़ (species) हैं जो समुद्री अमीबों से बड़े होते हैं और काइटिनी झिल्ली या असंस्कृत (primitive) कवच से रक्षित रहते हैं। इस सरल रचना से प्रारंभ कर ऐसे स्पीशीज़ विकसित हुए हैं जिनमें असंस्कृत कवच के बालू अभ्रक, स्पंज कंटिका, अथवा अन्य तलछट पदार्थों से ढकने से, या कैल्सियम कार्बोनेट के घने जमाव के कारण गोलाकार (globular) आकृति बन गई।
ये गोलाकार कवच प्रारंभिक कोष्ठों (chambers), अथवा साधारण बहुखंडीय प्रोलॉकुलस (Proloculus) के सदृश हैं। ऐसे सरल कवच में एक विसर्पी (meandering), या घुमावदार कोष्ठ बाहर से जुड़ गया, या कुछ कोष्ठ इस प्रकार व्यवस्थित हो गए कि एक लपेटदर शुरूआत (coiled beginning) हो सके और अनेक वलयी (annular) कोष्ठ जुड़ सकें। कवच की ये ही आधारभूत रचनाएँ थीं और इन्हीं से अनेक स्पीशीज़ के चोलों (tests) का प्रादुर्भाव हुआ। किसी कवचन में कोष्ठों की संख्या एक या कई सौ हो सकती है। प्राय: अतंस्थ कोष्ठ (terminal chamber) में एक या अनेक रंध्र होते हैं और जब नया कोष्ठ जुड़ता है तब इन रध्रों से (foramina) कोष्ठ के बीच आवागमन का मार्ग बन जाता है। एक बृहद समूह के अधिकांश कोष्ठों की दीवारों में सूक्ष्म पादाभीय रंध्र पाए जाते हैं और कुछ ऐसे समूह हैं जिनमें कवच की दीवारों में विस्तृत नहर प्रणाली रहती है।
फ़ोरैमिनीफ़रा के कवचों के विविध रूप
१. सैकैमिना (Saccamina),
२. बैथीसाइफ़न (Bathysiphon),
३. रैब्डैमिना (Rahabdammina),
४. हाइपरैमिना (Hyperammina),
५. नोडोसेरिया (Nodosaria),
६. फ्रॉण्डिकुलेरिया (Frondicularia),
७. टेक्सटुलेरिया (Textularia),
८. वेरनिउलिना (Verneullina),
९. स्पाइरोलॉकुलिना (Spiroloculina),
१०. ट्यूरिस्पाइ रिलिना (Turrispirillina),
११. साइक्लैमिना (Cyclammina),
१२. सिउडैस्ट्रॉरिज़ा (Pseudastrorhiza),
१३. ऐस्ट्रोरिज़ा (Astrorhiza),
१४. पैवोनिना (Pavonina),
१५. डिस्कोस्पाइरुलिना (Discospirulina),
१६. कैल्केरिना (Calcarina),
१७. डेंडोफ्रया (Dendophrya),
१८. सैकोरिज़ा (Saccorhiza),
१९. रिज़ोनुवेकुला (Rhizonubecula), तथा
२०. नमुलाइट (Nummulite)।
बहुत सी स्पीशीज़ के कवच कूटकों (ridges), शूलों (spines), या वृत्तस्कंधों (bosses) से अलंकृत रहते है। इस सुंदरता और जटिलता के कारण फ़ोरैमिनीफ़ेरा का अध्ययन बहुत दिनों से हो रहा है। कवचों की, आकृति और संरचना के आधार पर, निम्नलिखित चार समुदायों में विभाजित किया जा सकता है:
(१) काइटिनी - ये केवल प्राणी सीमेंट (Animal cement) के होते हैं।
(२) ऐरैनेशस (Aranaceous) - ये अजैव मलबे (inorganic debris) और सीमेंट युक्त होते हैं।
(३) छिद्री या परफ़ोरेटा (Perforata) - ये कैल्सियम कार्बोनेट के बने होते हैं तथा रंध्र से युक्त होते हैं।
(४) अछिद्री या एपरफ़ोरेटा (Aperforata) - ये कैल्सियम कार्बोनेट के बने हाते हैं और इनमें रंध्र नहीं होते।
जीवित फोरैमिनीफेरा
अधिकतर जीवित फ़ोरैमिनीफेरा कीचड़, या बालुकामय तलों, या छोटे छोटे पौधों पर रहते हैं। कुछ थोड़े समूह वेलापवर्ती (pelagie) होते हैं और साधारण गहराई में खुले समुद्र में पाए जाते हैं। तलीय फ़ोरैमिनीफ़ेरा में इतनी और इस प्रकार की गति होती है कि अधिकांश फ़ोरमिनीफ़ेरा कुछ इंच के अंदर ही जन्म से मृत्युपर्यंत गति कर पाते हैं।
जिन स्पीशीज़ में बृहद छिद्र होता है उनके कवच के जीवद्रव्य (protoplasm) में जीवाणु, कशाभिक प्रोटोज़ोआ, शैवाल के बीजाणु (spores of algae), डायटम (diatoms) तथा जैविक अपरद (detritus) पाए जाते हैं। जब छिद्र इतना लघु होता है कि उनसे होकर बड़े बड़े खाद्यकरण प्रवेश न कर सकें, तब उनका पाचन पादाभों में विद्यमान किण्वों (ferments) द्वारा होता है।
पादाभ कवच के छिद्र के समीपस्थ जीवद्रव्य से, अथवा पादाभ रध्रों से निकलते हैं और क्षीण हो जाते हैं। जहाँ अनेकों पादाभ निकलते हैं वे एकाकार हो जाते हैं, अथवा शाखामिलन (anastomese) होता है। जीवद्रव्य से निर्मित इन तंतुओं (filaments) में निरंतर प्रवाह के कारण गति होती रहती है और इस प्रवाह द्वारा खाद्य को पकड़ने और उसके पाचन का कार्य होता है तथा ठोस या तरल उत्सर्ग का उत्सर्जन (excretion) होता है। यहीं नहीं, बल्कि कवच के बाहर आच्छादित, जीवद्रव्य के सहयोग से श्वसन का कार्य भी होता है। कवच के अंदर जीवद्रव्य के प्रवाह के कारण परिसंचरण (circulation) होता है और सभी कोष्ठों में भोजन इत्यादि पहुँचता रहता है।
फ़ोरैमिनीफ़ेरा का रंग उसके कवच के रंग, घनत्व और, कुछ अंश तक, कवच की रचना पर निर्भर करता है। जब कवच की दीवार पारभासी (translucent) होती है तब जीवद्रव्य का हरा, भूरा या लाल रंग उसके अंतर्वेश (inclusion) कवच के रंग का प्रमुख कारण होता है। काइटिन (chitin) भूरा होता है और प्राय: कवच को भूरापन प्रदान करता है, अन्यथा वह श्वेत होता है। प्रवालभित्ति (coral reefs) के ईद गिर्द विविध रंगों, जैसे चीनाश्वेत, नारंगी, लाल, भूरे और हरे रंग से लेकर लैवेंडर और नीले रंग, के चमकीले स्पीशीज़ पाए जाते हैं। लैवेंडर और नीले रंग अपवर्तन के कारण होते हैं। गहरे जल में जो स्पीशीज़ आंशिक रूप से पारभासी कवचों के साथ पाए जाते हैं, वे हरे होते हैं और ऐरेनेसस कवच खोल पदार्थ का रंग ग्रहण कर लेते हैं, अथवा कणों को जोड़नेवाले सीमेंट में विद्यमान लौह लवणों के कारण लाल या भूरे दिखाई पड़ते हैं, जब कि अनेक स्पीशीज़ के चूनेदार कवच श्वेत पोर्सिलेन सदृश होते हैं। उष्ण समुद्र के छिछले जलवासी फोरैमिनीफेरा के जीवद्रव्य के अंदर ज़ोओज़थेली (Zooxanthellae), जो सहजीवी शैवाल हैं, पाए जाते हैं, किंतु उनके स्वर्णिम रंग का प्रभाव फ़ोरैमिनीफ़ेरा के रंग पर बहुत ही कम पड़ता है।
जीवनचक्र
अधिकांश फ़ोरैमिनीफ़ेरा के जीवन में लैंगिक (sexual) और अलैंगिक (asexual) चक्रीय पीढ़ियाँ होती हैं, जिनसे दो प्रकार के प्राणी उत्पन्न होते हैं।
लैंगिक अवस्था में कशाभिक (flagellated) युग्मक (gametes) जोड़े आपस में मिलते हैं और समागम करते हैं और इसके फलस्वरूप युग्मनज (zygote), अथवा निषेचन अमीबा (fertilization amaeba) एक गोलाकार कवच में परिवर्तित हो जाता है। लैंगिक विधि से उत्पन्न प्राणी में कवच का प्रारंभिक काष्ठ बहुत ही सूक्ष्म होता है। अतएव वे 'सूक्ष्मगोलीय कवच' (microspheric tests) कहलाते हैं।
अलैंगिक अवस्था (Asexual phase) - उपर्युक्त सूक्ष्मगोलीय प्राणी अलैंगिक विधि से प्रजनन करता है। अलैंगिक विधि से केंद्रक का क्रमिक विभाजन होता है और उनकी संख्या पूर्वविद्यमान केंद्रक की चार गुनी हो जाती है। तत्पश्चात् प्रत्येक केंद्रक के चारों तरफ का जीवद्रव्य साधारण पिंड (common mass) से अलग हो जाता है और एककेंद्रक (mononucleate) अमीबा बनाता है। इस प्रकार उत्पन्न अमीबा के प्रारंभिक कोष्ठ बृहत् होते हैं। अतएव ये 'दीर्घगोलीय कवच' (megaspheric tests) कहलाते हैं।
जीवनचक्र के लैंगिक अथवा अलैंगिक दोनों ही अवस्थाओं में अधिकांश स्पीशीज़ में प्रजनन की गतिविधि के लिए दो-तीन दिनों की आवश्यकता होती है। नए कोष्ठ के जुड़ने के लिए एक दिन की आवश्यकता होती है और उसके अनेक दिनों बाद दूसरा कोष्ठ जुड़ता है। इन प्रोटोज़ोआ की आयु कुछ सप्ताह से लेकर एक साल या अधिक की होती है। यह स्पीशीज़ और ऋतु (season) पर निर्भर करती है और लैंगिक तथा अलैंगिक पीढ़ियों को मिलाकर जीवनचक्र के लिए अनेक सप्ताहों से लेकर दो या अधिक साल तक की आवश्यकता होती है।
पारिस्थितिक संबंध
एक विद्यमान फोरामिनिफेरा की बहुत सी वे जातियाँ जो एक विशेष गहराई में पाई जाती हैं, सर्वत्र उसी गहराई में मिलती हैं। पृथ्वी के इतिहास में अन्यकाल में भी इसी प्रकार की स्थितियाँ रही हैं। छिछले जल में रहनेवाली जातियों का वितरण जल के ताप के कारण प्राय: सीमित होता है। अन्य जातियाँ, ताप के अतिरिक्त अन्य बातों पर, जैसे जल की लवणता, अध:स्तर (substratum) की प्रकृति, भोजन की उपलब्धि इत्यादि, पर निर्भर करती हैं और ये बातें स्वयं जल की गहराई से प्रभावित होती हैं। इस समूह में वृद्धि और प्रजनन उपयुक्त भोज्य जीवाणुओं पर बहुत अधिक निर्भर करता है। फोरामिनिफेरा की बहुत सी जातियाँ तृण तथा घास से आच्छादित क्षेत्रों में ही सीमित होती हैं और जिस गहराई तक ये पौधे उगते हैं वह तल की प्रकृति और सूर्य विकिरण (solar radiation), जो जल के गँदलापन तथा अक्षांश (latitude) के अनुसार बदलता है, निर्भर करती है।
गहरे जल में जीवित फोरामिनिफेरा की संख्या प्रति इकाई क्षेत्र में कम होती है, किंतु छिछले जल में उनकी संख्या प्रत्येक वर्ग फुट में सैकड़ों से लेकर हजारों तक होती है।
वंश
फोरामिनिफेरा के कुछ वंश निम्नलिखित हैं :
पॉलिस्टोमेला (Polystomella)
यह समुद्र में पाए जानेवाले फोरामिनिफेरा का एक अच्छा उदाहरण है। यह समुद्र के किनारे तल में पाया जाता है। सूक्ष्मदर्शी से देखने पर यह एक छोटे घोंघे के छिलके जैसा दिखाई पड़ता है। इसका कवच कड़ा, अर्धपारदर्शी और कैल्सियमी होता है। इसमें आकृति के प्रकोष्ठ बने होते हैं। ये प्रकोष्ठ समीपवर्तीं, चिपटे और सर्पिल हाते हैं। अन्य प्रोटोज़ोआ और डायटम (diatoms) इसके भोजन हैं, जिन्हें यह कवच छिद्र से निकले बाह्य जीवद्रव्य स्तर से उत्पन्न, लंबे, पतले, शाखावत् और उलझे पादाभ द्वारा पकड़ कर लगभग कवच से बाहर ही पचा लेता है।
पॉलिस्टोमेला के जीवनचक्र में निरंतर पीढ़ी परिवर्तन होता है और उसमें केंद्रीय कोष्ठ के आकार में द्विरूपता (dimorphism) पाई जाती है।
ग्लोबिजराइना (Globigerina)
फोरामिनिफेरा का यह वंश बहुत ही व्यापक है। ग्लोबिजराइना बुलायड्स (G. bulloids) विश्वव्यापी समुद्र के छिछले जलवासी स्पीशीज हैं, जो समुद्र के तल की कीचड़ों में, ३,००० फ़ैदम की गहराई में पाए जाते हैं। मृत प्राणियों के कवच समुद्रतल में बहुत अधिक मात्रा में इकट्ठा होकर एक प्रकार के पंक, जिसे सिंधुपंक या गलोबिजराइना सिंधु पंक (Globigerina ooze) कहते हैं, बना देते हैं। विद्यमान महासागरों का एक तिहाई तल इसी ग्लोबिजराइना सिंधुपंक से आच्छादित है। इनका कवच प्राकृतिक खड़िया का एक प्रमुख संघटक होता है।
माइक्रोग्रोमिया (Microgromia)
सरल रचनावाले फोरामिनिफेरा में से माइक्रोग्रोमिया भी एक है। जीवद्रव्य पिंड के अंदर केवल एक केंद्रक (nucleus) और एक संकुचनशील रिक्तिका (vacuole) होती है, जो एक साधारण अंडाकार और काइटेनीय कवच (chitinoid shell) से घिरे हाते हैं। इस कवच (shell) के चौड़े मुख से जीवद्रव्य निकला होता है, जो लंबे, मृदुल सूक्ष्म और विकीर्णक रेटीकुलो पाडों (radiating reticulopods) का निर्माण करता है। इसमें दो कशाभिकाएँ (flagella) होती हैं, जिनकी सहायता से यह जल में तैरता है।
क्लैमिडोफ्रस (Chlamydophrys)
इसकी रचना माइक्रोग्रोमिया के सदृश होती है, किंतु यह हानिकारक परोपजीवी के रूप में मनुष्य, अथवा अन्यस्तनपोषी, की अँतड़ियों में पाया जाता है। इसका कवच नाशपाती की आकृति का और काइटिनायी होता है। कवच के एक छोर पर एक संकीर्ण छिद्र होता है, जिससे होकर जीवद्रव्य निकला होता है और शाखामिलनी रेटिकुलोपोडिया का निर्माण करता है। इसमें अलैंगिक प्रजनन द्विभाजन (binary fission) की विधि से और लैगिक प्रजनन बहुविभाजन की विधि से होता है।
ऐलोग्रोमिया (Allogromia)
इसमें छोरीय कवचछिद्र से निकला हुआ जीवद्रव्य कवच के चारों तरफ प्रवाहित होता रहता है, जिससे कवच जीवद्रव्य के अंदर आ जाता है। पादाभ (pseudopodia) विलक्षण रूप से लंबे, उलझे हुए और जालिकारूपी (reticulate) होते हैं और शिकार को पकड़ने और उनका पाचन करने का कार्य करते हैं।
अमोबॉयड | 2,184 |
560968 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A5%82%E0%A4%B0 | पत्थरचूर | पत्थरचूर या पाषाणभेद (वानस्पतिक नाम : Plectranthus barbatus तथा Coleus forskohlii) एक औषधीय पादप है।
कोलियस फोर्सकोली जिसे पाषाणभेद अथवा पत्थरचूर भी कहा जाता है, उन कुछ औषधीय पौधों में से है, वैज्ञानिक आधारों पर जिनकी औषधीय उपयोगिता हाल ही में स्थापित हुई है। भारतवर्ष के समस्त ऊष्ण कतिबन्धीय एवं उप-ऊष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों के साथ-साथ पाकिस्तान, श्रीलंका, पूर्वी अफ्रीका, ब्राजील, मिश्र, ईथोपिया तथा अरब देशों में पाए जाने वाले इस औषधीय पौधे को भविष्य के एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधे के रूप में देखा जा रहा है। वर्तमान में भारतवर्ष के विभिन्न भागों जैसे तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा राजस्थान में इसकी विधिवत खेती भी प्रारंभ हो चुकी है जो काफी सफल रही है।
विभिन्न भाषाओं में पाषाणभेद के नाम-
हिन्दी : पाषाण भेद, अथवा पत्थरचूर
संस्कृत : मयनी, माकन्दी, गन्धमूलिका
कन्नड़ : मक्काड़ी बेरू, मक्काण्डी बेरू अथवा मंगना बेरू
गुजराती : गरमालू
मराठी : मैमनुल
वानस्पतिक नाम : कोलियस फोर्सकोली अथवा कोलियस बार्बेट्स बैन्थ
वानस्पतिक कुल : लैबिएटी/लैमिएसी (Lamiaceae)
गुण: यह औषधि रूप मे बहुत ही गुणकारी है
किडनी के सारे रोग इसे दुर होते हैं। यह एक सर्वश्रेष्ठ रक्त अवरोधक भी है। यह औषधि सदियों से भारतवर्ष में ऋषि मुनियों द्वारा प्रयोग मे लिया जाता रहा है ।
इन्हें भी देखें
पथरचटा
औषधीय पादप | 206 |
513128 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%A1%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A1%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%A8 | एडवर्ड विटेन | एडवर्ड विटेन (जन्म 26 अगस्त 1951) अमेरिकी सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी होने के साथ-साथ गणितीय भौतिकी पर केन्द्रित हैं जो इंस्टिट्यूट फॉर एडवांस्ड स्टडी प्रिंसटन, न्यू जर्सी में गणितीय भौतिकी के प्रोफ़ेसर हैं।
२००४ के टाईम पत्रिका के एक लेख के अनुसार वृहत सोच वाले विश्व के महानतम जीवित सैद्धन्तिक भौतिक विज्ञानी हैं।
जन्म एवं शिक्षा
विटेन का जन्म बाल्टीमोर में हुआ। वे लोरेन (वोलाच) विटेन और लूईस विटेन के पुत्र हैं जो कि एक सामान्य आपेक्षिकता और गुरुत्वाकर्षण के विशेषज्ञ, सैद्धांतिक भौतिक शास्त्रि के रूप में जाने जाते हैं।
शोध
विटेन का सैद्धांतिक भौतिकी में बहुत ही सराहनीय योगदान है। उनके ३४० से भी अधिक प्राथमिक रूप से प्रमात्रा क्षेत्र सिद्धान्त और स्ट्रिंग सिद्धांत में और संस्थिति और ज्यामिति से सम्बंधित क्षेत्रो में हैं। सन् 2004 में, टाइम पत्रिका ने लिखा कि विटेन "सामान्यतः दुनिया के महानतम सैद्धांतिक भौतिक शास्त्रि माने जाते" थे।
व्यक्तिगत जीवन
विटेन की शादी काईरा नेप्पी से हुई, जो प्रिंसटन विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान की प्रोफेसर हैं।
पुरस्कार और सम्मान
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
Faculty webpage
Publications on ArXiv
Witten theme tree on arxiv.org
Futurama episode information
Institute of Physics profile
भौतिक विज्ञानी
1951 में जन्मे लोग
जीवित लोग | 192 |
382134 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2%20%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8B%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%82%E0%A4%B0 | केमिल बेंसो कावूर | केमिल बेंसो कावूर (इतालवी: Camillo Benso Conte di Cavour [kaˈmilːo ˈbɛnso ˈkonte dikaˈvuːr] ; अंग्रेजी : Camillo Paolo Filippo Giulio Benso, Count of Cavour, of Isolabella and of Leri ; १८१०-१८६१) इटली का राजमर्मज्ञ (स्टेट्समैन)ञ तथा इटली के एकीकरण आन्दोलन का प्रमुख नेता था। वह मूल लिबरल पार्टी का संस्थापक था। इटली के एकीकरण के बाद वह इटली का प्रधानमन्त्री बना किन्तु केवल तीन माह पश्चात उसकी मृत्यु हो गयी।
परिचय
कावूर का जन्म १ अगस्त १८१० ई. को पीदमांत सेवॉय राज्य के त्यूराँ नामक स्थान में हुआ। सांमत घराने में जन्म लेकर उसने अपना जीवन अपने राज्य की सेना इंजीनियर के रूप में आरंभ किया। परंतु १८३१ ई. में चार्ल्स एलबर्त के पीदमांत के सिंहासन पर आरूढ़ होने पर उसने सेना से त्यागपत्र दे दिया।
अपने जीवन के प्रारंभिक काल से ही वह उदारवादी विचारधारा से प्रभावित था और निरंकुशता तथा धार्मिक कट्टरता से घृणा करता था। अध्ययन तथा विदेशभ्रमण ने उसे नए युग के नवीन आदर्शो तथा तथ्यों से परिचित कराया। तात्कालिक औद्योगिक क्रांति तथा प्रजातंत्र के उदय से यूरोप के समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा था। काबूर अपने युग की घटनाओं के महत्व को भली भाँति समझता था।
जुलाई, १८३० ई. की फ्रांसीसी क्रांति के पश्चात् वह सांवैधानिक राजतंत्र (अथवा नियंत्रित राजतंत्र) का समर्थक हो गया। उसके अनुसार इस राज्यप्रणाली के आधार से प्राचीन राजतंत्र को नए युग के योग्य बनाया जा सकता था। अतएव वह रूढ़िवादियों तथा जनतंत्रवादियों का समान रूप से विरोध करता था।
यूरोप के इतिहास में उसका महत्व अपने देश इटली की स्वतंत्रता एवं एकता स्थापित करने में है। यद्यपि इस कार्य में मात्सीनी तथा गारीबाल्दी जैसे देशभक्तों ने उसे अपना सहयोग दिया, तथापि कावूर की कार्यकुशलता तथा कूटनीति ही इस जटिल समस्या को हल कर सकी। १८४८ की क्रांति के समय पीदमांत में राष्ट्रीय महासभा का संगठन हुआ। कावूर इसका सदस्य निर्वाचित हुआ। उसने १८४८ के शासनविधान के निर्माण में अपनी क्षमता का परिचय दिया। १८५० ई. में कावूर पीदमांत का व्यवसायमंत्री नियुक्त हुआ और दो वर्ष बाद वह प्रधान मंत्री बना और बनते ही कावूर ने अनुभव किया कि इटली का उद्धार केवल पीदमांत की शक्ति के बल पर नहीं किया जा सकता। इस कार्य के लिए संपूर्ण इतालवी राज्यों का सहयोग तथा विदेशी सहायता की भी परमावश्यकता होगी।
अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने कूटनीति का सहारा लिया। इंग्लैंड तथा फ्रांस के साथ क्रीमिया के युद्ध में भाग लेकर उसने इन प्रबल राज्यों को आस्ट्रिया के विरुद्ध करने का सफल प्रयत्न किया। क्रीमियाई युद्ध की समाप्ति पर पेरिस की संधिपरिषद् (१८५६ ई.) में कावूर सम्मिलित हुआ। इस अवसर का लाभ उठाकर इटली की समस्या को यूरोप की समस्या बना देने तथा आस्ट्रिया के विरुद्ध यूरोपीय राज्यों की सहानुभूति प्राप्त का कार्य कावूर की कूटनीति का ही फल था।
परंतु इस समय शांतिपूर्ण ढंग से इटली की समस्या का हल असंभव था। १८१५ की वियना की संधि को भंग किए बिना आस्ट्रिया को इटली से नहीं हटाया जा सकता था। परंतु १८४८ ई. की क्रांति से भयभीत यूरोप में १८१५ की वियना संधि का संशोधन करने का साहस नहीं था। ऐसा करने से उन्हें क्रांतिकारी आंदोलनों के पुनरुत्थान का भय था।
अतएव अब इटली को स्वतंत्र करने के लिए कावूर के प्रयत्नों का दूसरा अध्याय प्रारंभ हुआ। कावूर आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध को अनिवार्य समझता था। फ्रांस के सहयोग से उसने आस्ट्रिया को सैनिक शक्ति से पराजित करने की योजना बनाई। फ्रांस के सम्राट् नेपोलियन तृतीय तथा कावूर के बीच हुए समझौते के अनुसार फ्रांस ने इटली की सैनिक सहायता करने का वचन दिया। उत्तरी इटली से आस्ट्रिया के शासन का अंत होने पर नीस और सेवॉय प्रदेशों को, जो फ्रांस तथा इटली के मध्य स्थित थे, फ्रांस को दे देने का भी निश्चय हुआ। इटली के राज्यों में कावूर ने क्रांतिकारी दलों को प्रोत्साहन देना प्रारंभ किया। 'कारबोनारी' तथा 'युवक इटली' आदि समस्त क्रांतिकारी संगठनों से उसको सहयोग मिला।
कावूर का प्रोत्साहन पाकर लोंबार्दी तथा वीनीशिया के क्रांतिकारियों ने आस्ट्रियाई शासन का विरोध करना प्रारंभ कर दिया। इसके अतिरिक्त पीदमांत में निरंतर प्रशा का अनुकरण करके सैनिक शक्ति संगठन भी आरंभ कर दिया गया। आस्ट्रिया के शासक इन विरोधों से घबरा गए और कावूर को यह आदेश दिया कि नई भर्ती सेना को तोड़ दिया जाए। परंतु कावूर तो इसी अवसर की प्रतीक्षा में था। अतएव १८ अप्रैल १८५९ की आस्ट्रिया की ओर से युद्धघोषणा कर दी गई। कावूर को अपना ध्येय सफल होने की पूर्ण आशा थी। परंतु नेपोलियन तृतीय ने इस समय अपनी नीति बदल दी। अपने राज्य के निकट एक शक्तिशाली राष्ट्र का उदय उसे फ्रांस के लिए वांछनीय दृष्टिगोचर नहीं होता था। इसके अतिरिक्त फ्रांस का सम्राट् पोप के विरुद्ध भी कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहता था जिससे स्वदेश के कैथोलिक उसके विरुद्ध हो जाएँ। कावूर अकेला ही युद्ध चलाना चाहता था। परंतु पीदमांत के राजा विक्तर एमानुएल द्वितीय से इस विषय में मतभेद हो जाने से उसने अपना त्यागपत्र दे दिया। परंतु कावूर द्वारा संचालित इस युद्ध के परिणामस्वरूप १० नवम्बर १८५९ को ज्यूरिच में हुई संधि के अनुसार लोंबार्दी, परमा, मोदेना, तथा तुस्कानी प्रदेश पीदमांत के अधिकार में आ गए।
जनवरी, १८६० ई. में कावुर पुन: प्रधान मंत्री हुआ। अब एकता एवं स्वतंत्रता स्थापित करने के लिए कावूर ने नई कूटनीति का सहारा लिया। इंग्लैंड से मैत्री कर उसने फ्रांस के प्रभाव को हटाने का प्रयत्न किया। इंग्लैंड ने इटली के आंतरिक झगड़ों में दखल न देने की नीति की घोषणा की।
फ्रांस के भय को समाप्त करके कावूर ने आस्ट्रिया के शासन को पूर्ण रूप से इटली से समाप्त करने का प्रयत्न आरंभ कर दिया। विक्तर एमानुएल की ओर से लड़ने की घोषणा करते हुए गारीबाल्दी ने दक्षिण इटली के सिसिली एवं नेपुल्स नामक प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। यद्यपि कावूर गारीबाल्दी के क्रांतिकारी ढंग का समर्थन नहीं करता था और उसे गारीबाल्दी की सैनिक शक्ति से एकता भंग होने का भी भय था, तथापि गारीबाल्दी के महान् सहयोग के कारण वह सफल हुआ और ये प्रदेश पदीमांत के राजा की अधीनता में आ गए। रोम को छोड़कर पोप का सारा राज्य भी पीदमांत में मिला लिया गया।
इस प्रकार कावूर की कूटनीति के बल से वीनीशिया तथा रोम को छोड़ समस्त इटली राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बँध गया। १८ फ़रवरी १८६१ को इटली की राष्ट्रीय महासभा का अधिवेशन हुआ। अपने कार्य को पूर्ण करके १८६१ में ही कावूर की मृत्यु हो गई। यद्यपि इटली की स्वाधीनता तथा एकता स्थापित करने में अनेक महान् आत्माओं ने अपना सहयोग दिया तथापि यह निश्चित है कि कावूर की कूटनीति से ही इटली यूरोप की सहानुभूति प्राप्त कर सका। स्वाधीनता के पश्चात् एकता स्थापित करने का महान् रचनात्मक कार्य भी उसकी कुशल नीति का ही फल था। इसी से कावूर इटली के देशभक्त राजनीतिज्ञों में अग्रणी समझा जाता है।
इन्हें भी देखें
जुज़ॅप्पे गारिबाल्दि (Giuseppe Garibaldi)
इटली का एकीकरण
सन्दर्भ ग्रंथ
ए.जी. ह्वाट : अर्ली लाइफ़ ऐंड लेटर्स ऑव कावूर (१८१०-१८४८), ऑक्सफ़ोर्ड यूनीवर्सिटी प्रेस, हम्फ़्री, मिलफ़ोर्ड, १९२५;
ए.जी. ह्वाट : द पोलिटिकल लाइफ़ ऐंड लेटर्स ऑव कावूर (१८४८-१८६१), लंडन, एच.एम. १९३०;
द काउंटेस एविलिन मार्टिननगो सेसारेस्को : कावूर, मैकमिलन ऐंड कं. लिमिटेड, सेंट मार्टिन स्ट्रीट, लंदन, १९१४;
विलियम रॉस्को टेअर : द लाइफ़ ऐंड टाइम्स ऑव कावूर, बोस्टन ऐंड न्यूयॉर्क, हाउटन कंपनी, द रिवरसाइड प्रेस, कैंब्रिज, १९११
बाहरी कड़ियाँ
Online profile
कावूर, केमिल बेंसो
राजनयज्ञ | 1,183 |
1001284 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%80 | बालस्वरूप राही | बालस्वरूप राही भारत के हिंदी कवि और गीतकार हैं। उनका जन्म 4 मई 1936 को ग्राम तिमारपुर, नई दिल्ली में हुआ था। वे अपने गीत और ग़ज़ल के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं। उन्होंने हिन्दी फ़िल्मों के लिए कई गीत लिखे हैं। वे वर्तमान में नई दिल्ली के मॉडल टाउन में रहतें है। वह अभी 87 साल के हैं।
किताबें
मेरा रूप तुम्हारा दर्पण
जो नितान्त मेरी है
राग विराग (चित्रलेखा पर आधारित हिंदी ओपेरा)
सूरज का रथ
रहि को समझायें कौन
दादी अम्मा मुजे बताऔ
हम सब आगे निकलेंगे
गाल बने गुब्बारें
सन्दर्भ
हिन्दी कवि
1936 में जन्मे लोग
जीवित लोग
दिल्ली के लोग | 106 |
38573 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A5%80 | बरेलवी | बरेलवी आन्दोलन (उर्दू: بَریلوِی, पञ्जाबी: ਬਰੇਲਵੀ) दक्षिण जम्बुद्वीप में २० करोड़ से अधिक अनुयायियों के साथ न्यायशास्त्र के सुन्नी हनफ़ी विद्यालय के बाद एक आन्दोलन है। भारत और पाकिस्तान में बहुसङ्ख्यक मुसलमान बरेलवी हैं। यह नाम उत्तर भारतीय शहर बरेली से आया है, जो इसके संस्थापक और मुख्य नेता इमाम अहमद रज़ा ख़ान (१७७८ — १८४३) का गृहनगर है। हालाँकि बरेलवी आमतौर पर प्रयोग किया जाने वाला शब्द है, लेकिन आन्दोलन के अनुयायी अक्सर अहल–ए–सुन्नत व जमाअ'त, (उर्दू: اَہْلِ سُنَّت وَجَمَاعَت) के शीर्षक से या सुन्नियों के रूप में जाना जाता है, एक अन्तरराष्ट्रीय के रूप में उनकी धारणा का सन्दर्भ है।
इस आन्दोलन में ईश्वर और इस्लामी पैग़म्बर मुहम्मद (ﷺ) की निजी भक्ति और सन्तों की वन्दना जैसे सूफ़ी प्रथाओं के साथ शरीअ'त के संश्लेषण पर ज़ोर दिया गया है। इस वजह से, उन्हें अक्सर सूफ़ी कहा जाता है अहमद रज़ा ख़ान और उनके समर्थकों ने कभी भी 'बरेलवी' शब्द का प्रयोग स्वयम् या उनके आन्दोलन की पहचान करने के लिए नहीं किया, क्योंकि उन्होंने स्वयम् को सुन्नी मुसलमानों के रूप में देखा जो विचलन से पारम्परिक सुन्नी मान्यताओं का बचाव कर रहे थे। केवल बाद में 'बरेलवी' शब्द का प्रयोग किया गया था।
व्युत्पत्ति
बरेलवी आंदोलन का नाम भारत के बरेली शहर के नाम पर रखा गया है, जहाँ से इस आंदोलन की उत्पत्ति हुई थी।
अपने अनुयायियों के लिए, बरेलवी आंदोलन अहले सुन्नत वल जमात , या "परंपराओं के लोग मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समुदाय अपना मानते हैं," और वे खुद को सुन्नियों के रूप में संदर्भित करते हैं। इस शब्दावली का इस्तेमाल दक्षिण एशिया में सुन्नी इस्लाम के एकमात्र वैध रूप का दावा करने के लिए किया जाता है, देवबंदी, अहल-ए हदीस, सलाफिस और दारुल उलूम नदवतुल उलमा के अनुयायियों के विरोध में।
इतिहास
बरेलवी आंदोलन को उनके नेता अहमद रज़ा खान के कारण बरेलवी के रूप में जाना जाने लगा, जिन्होंने 1904 में मंज़र-ए-इस्लाम के साथ इस्लामी स्कूलों की स्थापना की। बरेलवी आंदोलन का गठन दक्षिण एशिया की पारंपरिक रहस्यवादी प्रथाओं के बचाव के रूप में हुआ, जिसे उसने साबित करने और समर्थन देने की मांग की।
हालांकि दारुल उलूम नदवातुल उलमा की स्थापना 1893 में दक्षिण एशिया के मुस्लिम सांप्रदायिक मतभेदों को समेटने के लिए की गई थी, लेकिन बरेलवीस ने अंततः परिषद से अपना समर्थन वापस ले लिया और इसके प्रयासों को आलोचनात्मक, कट्टरपंथी और इस्लामिक मूल्यों के विरुद्ध माना।
देवबंदी आंदोलन के विपरीत, बरेलवियों ने पाकिस्तान के आंदोलन के लिए अप्रतिम समर्थन दिखाया। 1948 के विभाजन के बाद, उन्होंने पाकिस्तान में आंदोलन का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक संघ का गठन किया, जिसे जामिय्यत-उ उलम-आई पाकिस्तान (JUP) कहा जाता है। देवबंदी और अहल-ए-हदीस आंदोलनों के उलेमा की तरह, बरेलवी उलेमा ने देश भर में शरिया कानून लागू करने की वकालत की है
इस्लाम विरोधी फिल्म इन्नोसेंस ऑफ़ मुस्लिम्स की प्रतिक्रिया के रूप में, चालीस बरेलवी दलों के एक समूह ने पश्चिमी सामानों के बहिष्कार का आह्वान किया, जबकि उसी समय हिंसा की निंदा की जो फिल्म के विरोध में हुई थी।
उपस्थिति
इंडिया टुडे ने अनुमान लगाया कि भारत में दो-तिहाई से अधिक मुसलमान बरेलवी आंदोलन का पालन करते हैं, और द हेरिटेज फाउंडेशन, टाइम और द वाशिंगटन पोस्ट ने पाकिस्तान में मुसलमानों के विशाल बहुमत के लिए समान मूल्यांकन दिया। राजनीतिक वैज्ञानिक रोहन बेदी ने अनुमान लगाया कि 60% पाकिस्तानी मुस्लिम बरेलवी हैं। पंजाब , सिंध और पाकिस्तान के आज़ाद कश्मीर क्षेत्रों में बरेलवियों का बहुमत है।
यूनाइटेड किंगडम ऑफ पाकिस्तानी और कश्मीर मूल के बहुसंख्यक लोग बरेलवी-बहुमत वाले क्षेत्रों के प्रवासियों के वंशज हैं। [१०] पाकिस्तान में बरेलवी आंदोलन को ब्रिटेन में बरेलविस से धन प्राप्त हुआ, पाकिस्तान में प्रतिद्वंद्वी आंदोलनों की प्रतिक्रिया के रूप में विदेशों से भी धन प्राप्त हुआ। अंग्रेजी भाषा के पाकिस्तानी अखबार द डेली टाइम्स के एक संपादकीय के अनुसार, इनमें से कई मस्जिदों को हालांकि सऊदी द्वारा वित्त पोषित कट्टरपंथी संगठनों द्वारा बेकार कर दिया गया है।
मान्यताएं
अन्य सुन्नी मुसलमानों की तरह, बरेलवी भी कुरान और सुन्नत पर अपने विश्वासों का आधार रखते हैं और एकेश्वरवाद और मुहम्मद स. अ. व. के भविष्यवक्ता पर विश्वास करते हैं। हालाँकि बरेलवी इस्लामी धर्मशास्त्र के किसी भी अशअरी या मातुरिदी स्कूल में से एक का अनुसरण कर सकते हैं और नक़्शबन्दी, क़ादरी,चिश्ती,सोहरवर्दी, रिफाई, शाज़ली इत्यादि सूफ़ी आदेशों में से किसी एक को चुनने के अलावा फ़िक़्ह के हनफ़ी, मालिकी, शाफ़ई और हंबली में से एक को भी चुन सकते हैं।
प्रथा
कई मान्यताओं और प्रथाएं हैं जो कुछ अन्य लोगों, विशेष रूप से देवबंदी, वहाबी और सलाफी से बरेलवी आंदोलन को अलग करती हैं। इनमें नूर मुहम्मदिया (मुहम्मद की रोशनी), हजीर-ओ-नाज़ीर (मुहम्मद के बहुतायत), मुहम्मद के ज्ञान और मुहम्मद के मध्यस्थता के बारे में विश्वास शामिल हैं।
नूर मुहम्मदिया
बरेलवी आंदोलन का एक केंद्रीय सिद्धांत यह है कि मुहम्मद (स अ व) मानव और प्रकाश दोनों हैं। सिद्धांत के मुताबिक, मुहम्मद (स अ व) का शारीरिक जन्म उनके अस्तित्व से पहले प्रकाश के रूप में था जो पूर्व-तिथियां निर्माण करता था। इस सिद्धांत के अनुसार मुहम्मद की प्राथमिक वास्तविकता सृजन से पहले अस्तित्व में थी और अल्लाह ने मुहम्मद (स अ व) के लिए सृजन बनाया। इस सिद्धांत के समर्थकों का मानना है कि कुरान 5:15 में नूर (प्रकाश) शब्द मुहम्मद का संदर्भ देता है। सहल अल-तस्तारी कुरान के प्रसिद्ध 9 वीं शताब्दी सुफी कमेंटेटर ने अपने तफसीर में मुहम्मद (स अ व) की आदिम प्रकाश के निर्माण का वर्णन किया। अल-टस्टारी के छात्र, मानसूर अल-हज्जाज, इस सिद्धांत को अपनी पुस्तक तासिन अल-सिराज में पुष्टि करता है।
स्टूडिया इस्लामिक के अनुसार, सभी सूफी आदेश मुहम्मद के प्रकाश के विश्वास में एकजुट हैं और इस अवधारणा के साथ प्रथाओं को एक मौलिक विश्वास के रूप में उत्पन्न करते हैं।
मुहम्मद (हाज़िर ओ नज़िर) का बहुभाषी
बरेलवी आंदोलन का एक अन्य केंद्रीय सिद्धांत यह है कि मुहम्मद एक ही समय (हाज़िर-ओ-नज़ीर) के रूप में कई स्थानों पर गवाही दे सकते है।यह सिद्धांत बरेलवी आंदोलन से पहले के विभिन्न सूफी कार्यों में मौजूद है, जैसे कि सैय्यद उथमान बुखारी (डी। 1687) जवाहिर अल-कुलिया (ईश्वर के मित्र के ज्वेल्स), जहां उन्होंने निर्देश दिया कि सूफ़ियों ने उनसे कैसे प्रकट किया होगा। मुहम्मद की उपस्थिति।इस सिद्धांत के समर्थकों का दावा है कि कुरान में शाहिद (गवाह) शब्द मुहम्मद की इस क्षमता को संदर्भित करता है और इस विश्वास का समर्थन करने के लिए विभिन्न हदीसों को स्रोत के रूप में प्रदान करता है।
मुहम्मद का ज्ञान अनदेखी (इल्म ए ग़ैब)
बरेलवी आंदोलन की एक बुनियादी मान्यता यह है कि मुहम्मद को अनदेखी का ज्ञान है, जो ईश्वर से प्राप्त होता है और ईश्वर के ज्ञान के बराबर नहीं है। यह कुरान में उल्लिखित उम्मी की अवधारणा से संबंधित है। बरेलविस इस शब्द को अलिखित या अनपढ़ के संदर्भ के रूप में नहीं देखते हैं, बल्कि इसे 'अप्रयुक्त' के रूप में देखते हैं जिसका अर्थ है कि मुहम्मद को मनुष्य द्वारा नहीं पढ़ाया जाता है। इस विश्वास का परिणाम यह है कि मुहम्मद भगवान से सीधे सीखते हैं और उनका ज्ञान प्रकृति में सार्वभौमिक है और देखा और अनदेखा स्थानों को शामिल करता है। यह विश्वास बरेलवी आंदोलन से पहले का है और सूफी पुस्तकों जैसे कि रूमी की फ़िदी मा फ़िही में पाया जा सकता है जिसमें वह कहते हैं
मुहम्मद का हस्तक्षेप
बरेलवी आंदोलन के भीतर लोगों की एक बुनियादी धारणा है कि मुहम्मद इस जीवन में और उसके बाद जीवन में मदद करता है। इस सिद्धांत के अनुसार, भगवान मुहम्मद (तवस्सुल) के माध्यम से मदद करता है। बरेलवी आंदोलन के सुन्नी मुसलमान आमतौर पर मुहम्मद को 'या रसूल अल्लाह' ’जैसे बयानों के साथ कहते हैं इस विश्वास के साथ कि मुहम्मद को दूसरों की मदद करने की क्षमता है| इसलिए मुहम्मद से प्राप्त सहायता को ईश्वर की सहायता माना जाता है। बरेलवी आंदोलन के सुन्नी मुसलमानों का मानना है कि कुरान 21:107 में वर्णित है कि सारी सृष्टि के लिए मुहम्मद एक रहम (दया) है। मुहम्मद एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा ईश्वर अपनी विशेषता, अर-रहमान को निर्माण के लिए व्यक्त करता है। इस धारणा के समर्थक कुरान 4:64 को एक प्रमाण के रूप में देखते हैं कि भगवान मुहम्मद के माध्यम से मदद करना पसंद करते हैं।
वे यह भी मानते हैं कि न्याय के दिन के बाद, मुहम्मद अपने अनुयायियों की ओर से हस्तक्षेप करेंगे और भगवान उनके पापों को माफ कर देंगे और उन्हें जन्नत (स्वर्ग) में प्रवेश करने की अनुमति देंगे।
मुहम्मद का समर्थन और सहायता प्रदान करने का विश्वास शास्त्रीय सूफी साहित्य के भीतर एक सामान्य विषय है। इसका एक उदाहरण फरीदुद्दीन अत्तार की पुस्तक द कॉन्फ्रेंस ऑफ द बर्ड्स में पाया जा सकता है जिसमें वह एक शेख की कहानी का वर्णन करता है, जिसका नाम समन है, जो रोम की यात्रा करता है जहां वह एक ईसाई महिला के साथ प्यार में पड़ जाता है। अपने राज्य को देखने के बाद महिला ने उसे खुद को साबित करने के लिए इस्लाम में निषिद्ध कार्य करने की आज्ञा दी और शेख इस्लाम से दूर जाने लगे। शेख के चिंतित शिष्यों और दोस्तों ने मक्का में जाकर शेख के लिए प्रार्थना करने का फैसला किया और उसके लिए कई प्रार्थनाएँ कीं। उनमें से एक में मुहम्मद का एक दृष्टिकोण है जो कहता है: मैंने उन जंजीरों को बंद कर दिया है जो आपके शेख को बाध्य करते हैं - आपकी प्रार्थना का जवाब है, जाओ। वे रोम में वापस लौटते हैं कि शेख समन [[इस्लाम{] लौट आए हैं और वह ईसाई महिला जिसे वह प्यार करते थे वह भी मुस्लिम बन गई थी।
मुहम्मद के हस्तक्षेप का विश्वास विभिन्न हदीस में भी पाया जाता है।
रेगिस्तान के एक बेडौइन ने पैगंबर की कब्र का दौरा किया और पैगंबर का अभिवादन किया, उन्हें सीधे संबोधित किया जैसे कि वह जीवित थे। "आप पर शांति, ईश्वर के दूत!" फिर उन्होंने कहा, "मैंने ईश्वर का वचन सुना है 'अगर, उन्होंने खुद पर अत्याचार किया।।,' मैं अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगने आया था, हमारे ईश्वर के साथ आपकी हिमायत के लिए तरस रहा था!" बेडूइन ने फिर पैगंबर की प्रशंसा में एक कविता का पाठ किया और प्रस्थान किया। कहानी देखने वाले व्यक्ति का कहना है कि वह सो गया था, और एक सपने में उसने पैगंबर को यह कहते हुए देखा, "हे 'उतबी, हमारे भाई को बेदौइन फिर से घोषित करें और घोषणा करें कि उसे ईश्वर ने उसे खुशखबरी दी है!"
आचरण
मुहम्मद (स अ व) के जन्मदिन का सार्वजनिक उत्सव।
मृत और जीवित संतों की वंदना। इसमें पवित्र व्यक्तियों के एक चढ़ते, जुड़े और अटूट श्रृंखला के हस्तक्षेप के अंत में मुहम्मद तक पहुंचने का दावा किया गया है, जो बरेलवीस का मानना है कि ईश्वर के साथ उनकी ओर से हस्तक्षेप है।
मुहम्मद, उनके साथियों और धर्मपरायण मुसलमानों की कब्रों का दर्शन करते हुए, बरेलवी का दावा कुरान, सुन्नत और साथियों के कृत्यों का समर्थन करता है, लेकिन जिसे कुछ विरोधी "तीर्थ-पूजा" ("गंभीर पूजा") कहते हैं और विचार करते हैं अन-इस्लामिक है।
समूह ज़िक्र जिसमें ईश्वर के नामों का जाप करते समय शरीर के सिंक्रनाइज़ आंदोलनों को शामिल किया जाता है। कुछ समूह, विशेष रूप से चिश्ती सूफी आदेश में कव्वाली में संलग्न हैं, जबकि अन्य संगीत वाद्ययंत्र का उपयोग नहीं करना पसंद करते हैं। (फ़ेइर 2007, पृष्ठ 339)
पुरुषों के लिए बढ़ने के लिए दाढ़ी छोड़ना; आंदोलन एक ऐसे व्यक्ति को देखता है जो अपनी दाढ़ी को एक पापी के रूप में मुट्ठी-लंबाई से कम करता है, और दाढ़ी को शेविंग करना घृणित माना जाता है।
बरेलवी और सूफी परंपरा
तसव्वुफ़ या सूफीवाद बरेलवी आंदोलन का एक बुनियादी पहलू है। अहमद रज़ा ख़ान बरेलवी खुद क़ादरी सूफ़ी तारिक़ा का हिस्सा थे और उन्होंने सैय्यद शाह अल उर-रसूल मारेहवी को बयान ( की निष्ठा) दी थीअहमद रज़ा खान बरेलवी ने सूफी मान्यताओं और प्रथाओं पर अपने अनुयायियों को निर्देश दिया और उनके समर्थन में मजबूत तर्क दिए। पारंपरिक सूफी अभ्यास जैसे मुहम्मद की भक्ति और अवलिया अल्लाह की वंदना आंदोलन का एक अभिन्न अंग है। यह आंदोलन दक्षिण एशिया में सूफ़ी की स्थिति के बचाव में मौलिक था। यह सूफी मतों का बचाव करने में सबसे आगे था, जैसे कि मुस्लिम पैगंबर मुहम्मद के जन्म का उत्सव, उर्स का उत्सव, अवलिया अल्लाह की कब्रों की तीर्थयात्रा और तवस्सुल में विश्वास। द कोलंबिया वर्ल्ड डिक्शनरी ऑफ इस्लामिज्म के अनुसार, बरेलवी को अक्सर उनकी रहस्यवादी प्रथाओं के कारण सूफी कहा जाता है, हालांकि वे शास्त्रीय इस्लामिक मनीषियों के सूफीवाद के साथ बहुत कम हैंअन्य स्रोतों का कहना है कि बरेलवी ने पारंपरिक सूफी मान्यताओं और प्रथाओं को बरकरार रखा है और बरेलवी की सूफी पहचान का समर्थन करते हैं।
सन्दर्भ | 2,037 |
561850 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6%20%28%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%29 | प्रत्यक्षवाद (राजनीतिक) | राजनीति विज्ञान में प्रत्यक्षवाद (positivism) वह सिद्धान्त है जो केवल वैज्ञानिक पद्धति से प्राप्त ज्ञान को ही अपर्युक्त, विश्वसनीय व प्रामाणिक मानता है। प्रत्यक्षवादियों का मानना है कि प्रत्यक्षवाद विज्ञान की मदद से उद्योग, उत्पादन एवं आर्थिक प्रगति के लिए आशा की किरण है। इस दृष्टि से मार्क्स का वैज्ञानिक भौतिकवाद भी प्रत्यक्षवाद के ही निकट है, क्योंकि मार्क्स ने उसे तर्क की कसौटी पर कसा है। कॉम्टे का कहना है कि ‘‘कोई भी वस्तु सकारात्मक तभी हो सकती है जब उसे इन्द्रिय ज्ञान के द्वारा सिद्ध किया जा सके, अर्थात् देखा, सुना, चखा या अनुभव किया जा सके।’’
व्यवहारवाद के आगमन से राजनीति विज्ञान में परम्परागत राजनीतिक सिद्धान्त का स्थान आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्त ने ले लिया। आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्त अपने जीवन के प्रारम्भिक बिन्दु पर राजनीति-विज्ञान को मूल्य-निरपेक्ष बनाने पर जोर दिया। इसलिए यह स्वाभाविक है कि ऐसा विज्ञान के अन्तर्गत ही संभव है। व्यवहारवादियों ने राजनीति-विज्ञान को प्राकृतिक विज्ञान की तरह बनाने के लिए वैज्ञानिक पद्धति को अध्ययन व विश्लेषण का आधार बनाया। इसी वैज्ञानिक पद्धति के कारण राजनीति-विज्ञान में प्रत्यक्षवाद की अवधारणा का आगमन हुआ।
यद्यपि प्रत्यक्षवाद का प्रयोग यूनानी दर्शन में भी मिलता है। अरस्तु ने वैज्ञानिक पद्धति के आधार के रूप में प्रत्यक्षवाद या सकारात्मकवाद के विचार का ही पोषण किया था। अरस्तु से लेकर ऑस्ट कॉम्टे तक मानव प्रकृति को वैज्ञानिक उपायों द्वारा पूर्णता एवं वैज्ञानिकता को मानव जीवन और व्यवहार का मार्गदर्शक बनाना, यह दोनों ही बातें बहुत से लोगों व विचारकों की मांग रही है। विज्ञान के विकास के साथ-साथ समाज के व्यवहार का हर पहलू भी प्रभावित होने से सामाजिक विज्ञान में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग होना आम बात है।
प्रत्यक्षवाद की अवधारणा की व्याख्या
प्रत्यक्षवाद की वैज्ञानिक व्याख्या सर्वप्रथम ऑगस्ट कॉम्टे ने की है। कॉम्टे ने अपनी रचनाओं ‘Course of Positive Philosophy’ (1842) में तथा ‘The system of Positive Polity’ (1851) में इस अवधारणा की व्याख्या की है। इसी कारण कॉम्टे को प्रत्यक्षवाद का प्रवर्तक माना जाता है। कॉम्टे ने मानव इतिहास का अध्ययन करके तथा उसमें औद्योगिक व वैज्ञानिक प्रगति का स्थान निश्चित करके यह दावा किया कि उसने मानव समाज के आधारभूत नियमों का ज्ञान प्राप्त कर लिया है और उसने विश्वास व्यक्त किया कि यदि इन नियमों को सही ढंग से कार्य रूप प्रदान कर दिया जाए तो मानव प्रगति एक वैज्ञानिक तरीके से विकसित होकर अपने पूर्णत्व को प्राप्त हो सकती है। कॉम्टे को यह विश्वास था कि मानव का विकास जब पूर्णता को प्राप्त हो जाएगा तब प्राचीन मान्यताएं, परम्पराएं एवं नवीन मूल्य समाप्त हो जाएंगे और उनका स्थान नवीन परम्पराएं, मान्यताएं व मूल्य ले लेंगे जिसमें राज्य का स्वरूप तथा समस्त राजनीतिक एवं सामाजिक रूप-रेखा में बदलाव आ जाएगा।
कॉम्टे ने मानवीय ज्ञान की प्रत्येक शाखा को अपनी प्रौढ़ावस्था तक पहुंचने के लिए तीन चरणों से होकर गुजरना स्वीकार किया है। कॉम्टे का कहना है कि समाज का विकास मानव बुद्धि के द्वारा ही होता है और इसकी तीन अवस्थाएं हैं-
(१) धर्मभीरू या मिथ्यापूर्ण अवस्था,
(२) अधिभौतिक अवस्था तथा
(३) वैज्ञानिक या प्रत्यक्षवादी अवस्था।
प्रथम अवस्था में मनुष्य इस बात में विश्वास करता है कि सृष्टि के निर्माण में प्राकृतिक शक्तियों या देवी-देवताओं का हाथ है अर्थात् वह समस्त घटनाओं की व्याख्या अलौकिक या आध्यात्मिक शक्तियों के सन्दर्भ में कहता है। दूसरी अवस्था में समस्त घटनाओं की व्याख्या अमूर्ततत्वों और अनुमान के आधार पर की जाती है। मनुष्य इस सृष्टि के निर्माण में आत्मा जैसे सुक्षम तत्वों पर विचार करने लगता है। यह अवस्था पुरानी अवस्था के स्थान पर नई अवस्था की भूमिका तैयार करने के कारण प्रत्यक्षवाद की जमीन तैयार करने का काम करती है। तीसरी अवस्था में मनुष्य यह विश्वास करने लगता है कि इस प्रकृति की सारी घटनाएं निर्विकार प्राकृतिक नियमों से बंधी पड़ी है। इस अवस्था (प्रत्यक्षवाद) में मानव मन सृष्टि व जगत के निर्माण की बजाय उसकी कार्य प्रणाली, नियम और तर्क बुद्धि की व्यवहारिक बातें सोचता है। इसी आधार पर कॉम्टै ने इतिहास की व्याख्या करके अपना सकारात्मकवाद या प्रत्यक्षवाद का सिद्धान्त प्रतिपादित किया है। कॉम्टे ने विश्वास व्यक्त किया है कि प्रत्यक्ष अवस्था ही मानव विकास की अन्तिम अवस्था होगी और यह अवस्था उतनी शीघ्रता से प्राप्त की जा सकेगी जितनी शीघ्रता से धार्मिक और अभिभौतिक अन्त विश्वासों का अन्त होगा और जनता वैज्ञानिक ढंग से सोचने की प्रक्रिया को अपना लेगी। इसी विश्वास के आधार पर ही कॉम्टे ने अपना सकारात्मक सरकार, सकारात्मक धर्म, सकारात्मक शिक्षा, सकारात्मक राज्य व कानून के सिद्धान्त प्रतिपादित किए हैं ताकि मानव समाज में धार्मिक अन्धविश्वासों के प्रति जागृति आए तथा लोग नए सिरे से सोचने लगें और जनता में वैज्ञानिक सोच का विकास हो।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि कॉम्टे ने वैज्ञानिक पद्धति के अन्तर्गत प्रत्यक्षवाद के विचार का पोषण किया है। कॉम्टे ने इसी बात पर जोर दिया है कि इन्द्रि ज्ञान से परे कुछ भी वास्तविक नहीं है। वास्तविक वही है जो हम देखते हैं व सुनते हैं तथा अपने जीवन में प्रयुक्त करते हैं। सभी मनुष्यों में निरीक्षण की एक जैसी क्षमता पाई जाती है। इसलिए हम अपने अनुभव को दूसरों के अनुभव से मिलाकर उसकी पुष्टि व सत्यापन कर सकते हैं। इसके बाद अनुभववात्मक कथन तार्किक कथन बन जाते हैं क्योंकि हम प्रत्येक कथन को तर्क की कसौटी पर रखते हैं। राजनीतिक विज्ञान के अन्तर्गत वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग करते समय अनुभववात्मक और तार्किक कथन का ही महतव है क्योंकि उसकी पुष्टि व सत्यापन सरलता से हो जाता है। इसलिए वैज्ञानिक पद्धति के समर्थक राजनीति विज्ञान में ऐसे किसी भी कथन का विरोध करते हैं जो मूल्य-सापेक्ष हो।
प्रत्यक्षवाद की आलोचना
प्रत्यक्षवाद के परवर्ती समर्थकों ने कॉम्टे द्वारा दी गई प्रत्यक्षवादी व्याख्या को अस्वीकार कर दिया। इन विद्वानों ने मैक्स वेबर, विएना सर्किल, टी0डी0 वैल्डन, मोरिट्ज श्लिक, लुड्विख़ विट्जेंस्टाइन तथा ए0जे0 एयर शामिल हैं। इन विद्वानों को नव-प्रत्यक्षवादी या तार्किक प्रत्यक्षवादी कहा जाता है। वेबर ने कहा कि विज्ञान हमें इस बात का उत्तर नहीं देता है कि हमें क्या करना चाहिए और किस प्रकार का जीवन जीना चाहिए। शैक्षिक ज्ञान हमें सृष्टि के अभिप्राय की व्याख्या करने में कोई मदद नहीं करता। इसलिए इसके बारे में परस्पर विरोधी बातों में सामंजस्य कायम नहीं किया जा सकता। राजनीतिक दर्शन की व्याख्या प्रत्यक्षवाद के सिद्धान्त के आधार पर कभी नहीं की जा सकती। क्योंकि राजनीति-दर्शन अपनी-अपनी अभिरुचि का विषय है और इसे अनुभवात्मक दृष्टि से परखना मूर्ख्रता है। इस तरह राजनीतिक-दर्शन के बारे में प्रत्यक्षवाद मददगार न होने के कारण आलोचना का पात्र बना है।
आगे चलकर उत्तरव्यवहारवादियों ने भी राजनीति-विज्ञान में प्रत्यक्षवाद की आलोचना की है क्योंकि यह मूल्य-निरपेक्ष दृष्टिकोण का समर्थक है। समकालीन चिन्तन में आलोचनात्मक सिद्धान्त के अन्तर्गत प्रत्यक्षवाद पर जो प्रहार हुआ है, वह ध्यान देने योग्य है। हरबर्ट मारक्यूजो का कहना है कि आज के युग में राजनीति विज्ञान की भाषा को प्राकृतिक विज्ञान की भाषा के अनुरूप ढालने की कोशिश हो रही है ताकि मनुष्य अपने सोचने के ढंग से यथास्थिति का समर्थक बन जाए।
कुछ आलोचकों का कहना है कि यदि कॉम्टे की प्रत्यक्षवाद की योजना सफल हो जाए तो वह नई तरह की पोपशाही को जन्म देगी जिसमें स्वर्ण, सुरा और सुन्दरी तीनों को जोड़कर लोगों को मौज मस्ती के लिए खुला छोड़ दिया जाएगा। इससे स्पष्ट है कि कॉम्टे का प्रत्यक्षवाद ‘Laissezfaire’ के सिद्धान्त का समर्थक है।
उपरोक्त विवेचन से हमें यह निष्कर्ष नहीं निकालना लेना चाहिए कि कॉम्टे का प्रत्यक्षवाद कोरी कल्पना या कोरा आदर्शवाद है। सत्य तो यह है कि आगे चलकर जे0 एस0 मिल जैसे विचारक भी कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद का प्रभाव पड़ा। रिचर्ड कान्ग्रीव तथा हरबर्ट स्पेन्सर जैसे विचारक भी कॉम्टे से प्रभावित हुए। कॉम्टे का प्रत्यक्षवाद राजनीति-विज्ञान की एक महत्वपूर्ण विचारधारा और सिद्धान्त है। इसी कारण कॉम्टे प्रत्यक्षवाद के जनक हैं और प्रत्यक्षवाद के सिद्धान्त व विचारधारा के रूप में उनकी देन शाश्वत् महत्व की है जो आज भी वैज्ञानिक अध्ययन का आधार है
राजनीतिक सिद्धान्त | 1,267 |
387166 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%80 | काउण्टी | काउंटी (अंग्रेज़ी: county) कई अंग्रेज़ी-भाषी देशों समेत विश्व का बहुत से देशों के एक प्रशासनिक विभाग को कहते हैं जो लगभग ज़िले के बराबर होते हैं। ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यू ज़ीलैंड, लाइबेरिया, नोर्वे, स्वीडन और कुछ अन्य देशों में काउंटियाँ एक अहम प्रशासनिक विभाग हैं। चीन जैसे भी कुछ देश हैं जिनमें स्थानीय भाषा में तो ज़िलों को कुछ और कहा जाता है लेकिन अंग्रेज़ी-अनुवाद में इन्हें काउंटी कहते हैं। चीन में ज़िलों का चीनी नाम 'शिअन' (县 या 縣, xiàn) है लेकिन इन्हें अंग्रेज़ी में 'काउंटी' कहते हैं।
शब्द की जड़ें
"काउंटी" शब्द पुरानी फ़्रांसिसी भाषा के "conté" शब्द से आया है, जिसका अर्थ है वह क्षेत्र जो किसी वाईकाउंट (viscount) के अधिकार में हो। वाईकाउंट यूरोप के कुछ भागों में एक प्रशासनिक और शाही उपाधि हुआ करती थी। जब ब्रिटेन पर फ़्रांस से आये विलियम विजयी ने सन् १०६६ ईसवी में क़ब्ज़ा कर लिया और नॉर्मन राज की स्थापना करी तो बहुत से नॉर्मन प्रशासनिक शब्द अंग्रेज़ी भाषा में प्रचलित हुए, जिनमें से एक यह था। ब्रिटेन में पहले से बस रहे ऐंग्लो-सैक्सन लोग ज़िलों को 'शायर' (shire) बुलाया करते थे और यह शब्द अब अंग्रेज़ी में कभी 'काउंटी' और कभी 'बस्ती' के पर्यायवाची की तरह बचा हुआ है। यही वजह है कि इंग्लैण्ड की बहुत-सी काउंटियों के नाम के आख़िर में 'शायर' आता है, मसलन ग्लूस्टरशायर, ग्लूसेस्टर और वोर्सेस्टर, वोर्सेस्टरशायर।
कनाडा
कनाडा के दस में से पांच प्रांत काउंटी का उपयोग क्षेत्रीय उपखंड के रूप में करते हैं। इनमें सभी चार मूल प्रांत, न्यू ब्राउनश्विक, नोवा स्कोटिया, ओंटारियो और क्यूबेक और सातवां प्रांत प्रिंस एडवर्ड शामिल हैं। काउंटियों के अलावा, ओंटारियो भी क्षेत्रीय जिलों, जिला नगर पालिकाओं, महानगरीय नगर पालिकाओं, नगर पालिकाओं और क्षेत्रीय में विभाजित है। अलबर्टा में, काउंटी नगर निगम का रुतबा रखता था; लेकिन जब मध्य-1990 में काउंटी अधिनियम रद्द किया गया था, तब मुनिसिपल गवर्मेंट एक्ट के अंतर्गत "नगर निगम जिला" में बदल दिया गया था, इसी समय उन्होंने अधिकारिक नामों में काउंटी के उपयोग को बनाए रखने की अनुमति भी दी थी। मैनिटोबा न्यूफ़ाउंडलैंड और लेब्राडार और सास्काचवैन, काउंटी के बजाय जनगणना विभाजन का उपयोग करते हैं और ब्रिटिश कोलंबिया क्षेत्रीय जिलों का उपयोग करता है। काउंटी को संक्षिप्त नाम co या cty से भी संबोधित किया जाता है।
चीन
शब्द "काउंटी" चीनी शब्द 'शिअन' (县 या 縣, xiàn) का अनुवाद है। लोगों के गणराज्य चीन, के तहत मुख्यभूमि चीन में, काउंटी स्थानीय सरकार का तीसरा स्तर होते हैं, जो कि प्रान्त स्तर और प्रशासक प्रान्त स्तर दोनों के अंतर्गत आता है।
मुख्यभूमि चीन में कुल 2,862 काउंटी स्तरीय प्रभागों में से 1,464 काउंटियां हैं। काउंटियों की संख्या हान राजवंश (206 ईसा पूर्व -. 220 ईसा पश्चात) से लगभग नियत बनी हुई है। काउंटी चीन में सरकार के प्राचीनतम स्तरों में से एक है और युआन राजवंश (1279-136) में प्रांतों की स्थापना से पहले बने थे। काउंटी सरकार विशेष रूप से शाही चीन में महत्वपूर्ण था क्योंकि यह शाही सरकार के कार्य का निम्नतम स्तर था। शाही समय के दौरान काउंटी के प्रमुख मजिस्ट्रेट हुआ करते थे।
प्राचीन संदर्भ में, चीन गणराज्य की स्थापना से पहले "प्रशासक प्रान्त" और "जिला" वैकल्पिक रूप से जियान का संदर्भ देने वाले दो शब्द थे। अंग्रेजी नामकरण "काउंटी" को आरओसीROC) की स्थापना के बाद अपनाया गया था।
डेनमार्क
डेनमार्क 1662 से 2006 तक काउंटियों (amter) में विभाजित था। 1 जनवरी 2007 को काउंटियों को पांच क्षेत्रों से प्रतिस्थापित किया गया। इसी समय, नगर पालिकाओं की संख्या को घटाकर 271 से 98 तक कर दिया गया था।
काउंटी सबसे पहले 1662 में अस्तित्व में आए थे, जब डेनमार्क-नॉर्वे में 49 फाइफ len) को इतने ही काउंटियों में बदल दिया गया था। इस संख्या में डची ऑफ स्केल्सविग के उप-विभाजन शामिल नहीं थे, केवल यही आंशिक डेनिश नियंत्रित के अधीन था। डेनमार्क में काउंटियों की संख्या (नॉर्वे को छोड़कर) 1793 तक घटकर 20 रह गई थी। 1920 में साउथ जुटलैंड के डेनमार्क के साथ पुन: एकीकरण के बाद, चार काउंटियों को रसियन क्रेइस से प्रतिस्थापित कर दिया गया। आबेनरा और सोंडेबोर्ग काउंटी को 1932 में विलय कर दिया गया और 1942 में स्कैंडरबोर्ग और आरहूस को अलग कर दिया गया था। 1942 से 1970 तक, यह संख्या 22 पर बनी रही। 1970 के डेनिश नगरपालिका दुरुस्ती के समय इस संख्या में गिरावट आई थी, जब 14 काउंटियों और दो शहरों: कोपेनहेगन और फ़्रेडरिक्सबर्ग को काउंटी से असंबद्ध कर दिया गया था।
2003 में, बोर्नहोल्म काउंटी का विलय चार नगरपालिकाओं के साथ कर दिया गया और बोर्नहोल्म क्षेत्रीय नगरपालिका का गठन किया गया। शेष 13 काउंटियों को 1 जनवरी 2007 को समाप्त कर दिया गया, जिन्हें पांच नए क्षेत्रों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था। उसी दुरुस्ती में, नगर पालिकाओं की संख्या270 से घटाकर 98 कर दिया गया और अब सभी नगरपालिकाएं किक्षी क्षेत्र के अधीन हैं।
जर्मनी
जर्मनी की स्थिति के लिए क्रेइस की तुलना करें।
प्रत्येक प्रशासनिक जिले में एक निर्वाचित परिषद और एक कार्यकारी होते हैं और जिनके कार्यों की तुलना संयुक्त राज्य अमेरिका के काउंटी कार्यकारियों से की जा सकती है, जो स्थानीय सरकार के प्रशासन की देखरेख करते हैं।
हंगरी
हंगरी के प्रशासनिक इकाई को मेग्ये (megye) कहा जाता है (ऐतिहासिक रूप से, इन्हें वामेग्ये (vármegye) या लैटिन में कोमिटेटस (Comitatus) भी कहा जाता था), जिसका अनुवाद शब्द काउंटी से किया जा सकता है। 19 काउंटियां राजधानी बुडापेस्ट के साथ देश के प्रशासनिक उप-विभाजन के सर्वोच्च स्तर का गठन करती हैं, हालांकि काउंटियों और राजधानी को सात सांख्यिकीय क्षेत्रों में समूहीकृत किया गया है।
काउंटी को नगर पालिकाओं में उपविभाजित किया जाता है, जिसके दो प्रकार नगर और गांव हैं, यहां इनके अपने स्वंय के निर्वाचित महापौर और परिषद होते हैं। 23 शहरों के पास काउंटी के अधिकार हैं हालांकि वे काउंटियों की तरह स्वतंत्र क्षेत्रीय इकाइयां नहीं हैं। नगर पालिकाओं को उपक्षेत्र (हंगरी में kistérség) के साथ समूहीकृत किया गया है, जिनमें केवल सांख्यिकीय और संगठनात्मक प्रकार्य होते हैं।
वमाग्ये हंगरी के शासन में ऐतिहासिक प्रशासन इकाई भी थी, जिसमें हंगरी के आज के पड़ोसी देशों के क्षेत्र शामिल थे। इसका लैटिन नाम (Comitatus) फ्रेंच कोम्टे के समकक्ष है। काउंटियों के वास्तविक राजनीतिक और प्रशासनिक भूमिकाएं इतिहास के साथ बदल गए हैं। मूलतः ये शाही प्रशासन के उप विभाजन थे, लेकिन 13 वीं शताब्दी ईसा पश्चात ये रईसों की अपनी - सरकारों में तब्दील हो गए और ऐसा 19 वीं सदी तक चलता रहा, जिसके फलस्वरूप आधुनिक स्थानीय सरकार में परिवर्तित हो गए।
ईरान
ईरान के प्रांतों को 'शहरेस्तान' () कहे जाने वाले काउंटियों में विभाजित किया गया है, जो कि ओस्तान के भीतर का एक क्षेत्र है और जहां एक नगर केन्द्र, कुछ बख़्श () हैं और इसके चारों ओर कई गांव होते हैं। आम तौर पर प्रत्येक काउंटी में कुछ शहर () और ग्रामीण संकुलन (, जो 'देहात स्थान' का ही एक रूप है) होते हैं। ग्रामीण संकुलन कुछ गांवों के समूह को कहते हैं। काउंटी के शहरों में से एक को काउंटी की राजधानी नियुक्त किया जाता है।
प्रत्येक शहरस्तन में एक सरकारी कार्यालय होता है, जिसे फरमानदारी कहते हैं, जो विभिन्न ईवेंटों और सरकारी कार्यालयों को समन्वित करते हैं। फरमानदार, या फरमानदारी प्रमुख, शहरस्तन का राज्यपाल होता है। फार्स प्रांत में सबसे अधिक 23 शहरस्तन हैं, जबकि सेमनान और दक्षिण खोरासन में केवल 4-4 शरस्तन हैं; कोम ही एकमात्र प्रांत है, जहां केवल एक शहरस्तन है, अपने केवल नाम के काउंटी के साथ सह-विस्तृत हो रहा है। 2005 में ईरान में 324 शहरस्तन थे।
आयरलैंड
आयरलैंड के द्वीप ऐतिहासिक रूप से 32 काउंटियों में विभाजित थे, जिसमें से 26 को मिलाकर बाद में आयरलैंड गणराज्य का निर्माण किया गया और 6 को मिलाकर उत्तरी आयरलैंड बनाया गया।
इन काउंटियों को पारंपरिक रूप से 4 प्रांतों में समूहीकृत किए गए हैं - लैंइंस्टर (12), मुंस्टर (6)) कोन्नाच (5 और अलस्टर (9). ऐतिहासिक रूप से, मीथ, वेस्टमीथ के काउंटियों और आसपास के काउंटियों के छोटे छोटे भागों से मिलकर माइड का प्रांत बना है, जो कि आयरलैंड के "पांच जागीरों" में से एक है (आयरिश भाषा में प्रांत के शब्द, कुइजे (Cuige), कुइज (Cuig) से व्युत्पन्न, पांच ल्का अर्थ है " पाचवां "); हालांकि, क्योंकि ये लैंइंस्टर प्रांत के तीन उत्तरी काउंटियों में आ जाने के कारण ये लंबे हैं। गणतंत्र में प्रत्येक काउंटी एक निर्वाचित "काउंटी परिषद" द्वारा प्रशासित होते हैं और पुराने प्रांतीय प्रभागों का नाम पारम्परिक हैं, जिनका कोई राजनीतिक महत्व नहीं है।
आयरलैंड गणराज्य में प्रशासनिक काउंटियों की सीमाओं की संख्या 1990 के दशक में बने थे। उदाहरण के लिए, काउंटी डबलिन तीन भागों में तोड़े गए थे: डन लओघयर-रथडाउन, फिंगल और साउथ डबलिन - सिटी ऑफ डबलिन सदियों से अस्तित्व में है। इसके अतिरिक्त, "काउंटी टिप्पेररी" वास्तव में दो प्रशासनिक काउंटियां हैं, जिन्हें उत्तरी टिप्पेररी और दक्षिण टिप्पेररी के नाम से जाना जाता है, जबकि मुख्य शहरी केंद्र कोर्क, गॉलवे, लिमेरिक और वॉटरफोर्ड हैं। अतः, आयरलैंड गणराज्य में चौंतीस "काउंटी-स्तरीय" अधिकारी हैं, यद्यपि मूल छब्बीस काउंटियों की सीमा अधिकारिक रूप से अभी भी उसी स्थान पर हैं।
उत्तरी आयरलैंड में, छह काउंटी परिषदों और छोटे शहर के परिषदों को 1973 में समाप्त कर दिया गया और उन्हें स्थानीय सरकार के एकल तायर से प्रतिस्थापित कर दिया गया। हालांकि, उत्तर में साथ ही दक्षिण में, पारम्परिक 32 काउंटियां और 4 प्रांत अभी भी कई खेल, सांस्कृतिक और अन्य उद्देश्यों के लिए सामान्य उपयोग हैं। काउंटी की पहचान हर्लिंग और गेलिक फुटबॉल की काउंटी टीमों की राज्यनिष्ठा की स्थानीय संस्कृति में अत्यधिक प्रबलित है। प्रत्येक GAA काउंटी का एक अपना ध्वज/रंग (और अक्सर एक उपनाम भी) होता है और काउंटी अपना एक होता / रंग और अक्सर (एक और काउंटी की राज्यनिष्ठा को काफी गंभीरता से लिया जाता है। आयरलैंड के काउंटी और गेलिक एथलेटिक एसोसिएशन देखें.
लाइबेरिया
लाइबेरिया में 15 काउंटी हैं, जहां लाइबेरियाई सीनेट के लिए दो सीनेटर निर्वाचित किए जाते हैं।
लिथुआनिया
अप्सक्रिटिस Apskritis (pl. apskritys) काउंटी के लिए लिथुआनियाई शब्द है। 1994 के बाद से लिथुआनिया में 10 काउंटी हैं; 1950 से पहले तह यह संख्या 20 थी। काउंटी बनाने का एकमात्र उद्देश्य राज्य के राज्यपाल का कार्यालय है, जो काउंटी में कानून और व्यवस्था का संचालन कर सके। लिथुआनिया के काउंटी देखें.
न्यूज़ीलैंड
1876 में न्यूजीलैंड के अपने प्रांतों को समाप्त करने के बाद, अन्य देशों के प्रणालियों के समान काउंटियों की प्रणाली स्थापित की गई थी, जो 1989 तक अस्तित्व में रही। वहां चेयरमेन थे, मेयर नहीं जैसे कि नगरों और शहरों में थे; कई वैधानिक प्रावधान (जैसे कि कब्र और भूमि उपविभाजन नियंत्रण) काउंटियों से भिन्न थे।
20 वीं सदी की दूसरी छमाही के दौरान, कई काउंटियों में पास के शहरों से लोग आकर बसने लगे। परिणामस्वरूप दो काउंटियों का विलय एक "जिले"(उदा. रोटोरुआ) में हो गया या उनका नाम बदलकर "जिला" (उदा. वाईमैरी) या "शहर" (उदा. मैनुकाउ सिटी) रख दिया गया।
स्थानीय सरकार अधिनियम 1974 ने एक ही प्रशासनिक ढ़ांचें में शहरी, मिश्रित और ग्रामीण परिषदों को लाने की प्रक्रिया शुरू की। 1989 शेक-अप के परिणामी अधिनियम के तहत पर्याप्त पुनर्संगठन, जो देश शहरों और जिलों और कैथम आइलैंड काउंटी के अलावा सभी काउंटियों (गैर-अतिव्यापी) में देश को कवर करता है, जो कि आगे 6 वर्षों के लिए नाम के अंतर्गत अस्तित्व में रहा लेकिन बाद में "कैथम आइलैंड परिषद" के अंतर्गत "क्षेत्र" बन गया।
नॉर्वे
1972 के बाद से नॉर्वे 19 काउंटियों (सिंग. फायल्के, प्लर,. फायल्के/ फायल्कर) में विभाजित है। उस वर्ष तक बर्जेन एक पृथक काउंटी था, लेकिन वह आज होर्डालैंड के काउंटी में नगर पालिका है। काउंटी नगरपालिका (सिंग, फायल्सकोमुने, प्लर, फायल्स्केमुनर/फायल्स्केमुनेर) के नाम से जाने जाने वाली सभी काउंटियां फार्म प्रशासनिक संस्थाएं, आगे चलकर नगरपालिकाओं में उपविभाजित (सिंग, कोमुने, प्लर, कोमुनार/कोमुनेर). एक काउंटी, ओस्लो, नगर पालिकाओं में विभाजित नहीं है, बल्कि यह ओस्लो नगर पालिका के बराबर है।
प्रत्येक काउंटी का एक अपना काउंटी परिषद (फायल्केस्टिंग) होता है, जिसके प्रतिनिधियों को चुनाव प्रत्येक चार साल में नगरपालिका परिषद के प्रतिनिधियों के साथ ही किया जाता है। काउंटी उच्च विद्यालय और स्थानीय सड़कों जैसे मामले संभालती है और 1 जनवरी 2002 तक अस्पताल भी इसके कार्य क्षेत्र में थे। इसकी जिम्मेदारी अब राज्य-नियंत्रित स्वास्थ्य अधिकारियों और स्वास्थ्य ट्रस्टों को सौंप दी गई है और प्रशासनिक इकाई के रूप में काउंटी नगरपालिका के भविष्य पर एक बहस जारी है। कुछ लोग और पार्टियों, जैसे कि रूढ़िवादी और प्रगति पार्टी, ने एक बार सभी काउंटी नगर पालिकाओं को हटाने की मांग की थी, जबकि अन्य, लेबर पार्टी सहित, केवल इतना चाहते थे कि कुछ का विलय करके बड़े क्षेत्रों में कर दिय जाए.
पोलैंड
पोलैंड में द्वी-स्तरीय प्रशासनिक प्रभाग को पोवियत (powiat) कहा जाता है। (यह वोइवोडेशिप, या प्रांत, का उप-विभाजन है और इसे आगे चलकर ग्मिनास में उपविभाजित किया जाता है) अक्सर इस शब्द को अंग्रेजी में काउंटी (या कभी कभी जिले) के रूप में अनुवादित किया जाता है।
रोमानिया
रोमानिया 41 क्षेत्राधिकारों में विभक्त है। एक क्षेत्राधिकार को जुडेट (judeţ) कहा जाता है। अब काउंटी के लिए रोमानियाई शब्द कोमिटेट (Comitat), का उपयोग रोमानियाई प्रशासनिक प्रभागों में नहीं किया जाता.
स्वीडन
काउंटियों का स्वीडिश विभाजन 1634 में किया गया था और जो प्रांतों के पहले के विभाजन पर आधारित था। स्वीडन आज 21 काउंटियों में विभक्त है और प्रत्येक काउंटी को नगर पालिकाओं में विभाजित किया गया है। काउंटी स्तर पर एक काउंटी प्रशासनिक बोर्ड है, जिसका नेतृत्व स्वीडन के केंद्रीय सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपाल, अन्य मुद्दों, विशेष रूप से अस्पताल और सार्वजनिक परिवहन, का संचालन करने वाले निर्वाचित काउंटी परिषद के साथ करता है।
उपयोग किया जाने वाला स्वीडिश शब्द "län, है, जिसका शाब्दिक अर्थ "जागीर" है।
चीन गणराज्य (ताइवान)
काउंटी मेंडारिन शब्द 县 का सामान्य अंग्रेजी अनुवाद है जो ताइवान के वर्तमान प्रथम स्तरीय राजनीतिक विभाजन की ओर इशारा करता है। काउंटी (चीन गणराज्य) देखें
यूनाइटेड किंगडम
यूनाइटेड किंगडम कई महानगरीय और गैर महानगरीय काउंटियों में विभाजित है। कई औपचारिक काउंटियां भी हैं, जो छोटे गैर महानगरीय क्षेत्रों को इंग्लैंड के ऐतिहासिक काउंटी पर आधारित भौगोलिक क्षेत्रों में समूहीकृत करता है। 1974 में महानगरीय और गैर महानगरीय काउंटी प्रशासनिक देशों और काउंटी नगरों की एक प्रणाली से प्रतिस्थापित कर दिए गए थे, जिन्हें 1889 में प्रस्तुत किया गया था।
इंग्लैंड के अधिकांश गैर महानगरीय काउंटी काउंटी परिषद द्वारा चलाए जाते हैं और गैर महानगरीय जिलों में विभाजित हैं, प्रत्येक का एक अपना स्वंय का परिषद है। ब्रिटेन के स्थानीय अधिकारियों पर आमतौर पर शिक्षा, आपातकालीन सेवाएं, योजना, परिवहन, सामाजिक सेवाएं चलाने और अन्य कई कार्य करने की जिम्मेदारी होती है।
इंग्लैंड में, एंग्लो सैक्सन अवधि में, शायर को ऐसे क्षेत्रों के रूप में स्थापित किया गया था जहां से कर उगाही की जा सके और आमतौर पर उनके केंद्र में एक आरक्षित शहर हुआ करता था। ये आगे चलकर शायर टाउन या बाद में काउंटी टाउन के रूप में जाना जाने लगा. अधिकांश मामलों में, शायर का नाम उनके शायर नगर के नाम पर रखा जाता था (उदाहरण के लिए बेडफोर्डशायर), हालांकि कुछ अपवाद भी मौजूद हैं, जैसे कि कुम्बरलैंड, नोर्फोल्क और सफोल्क. कई अन्य मामलों में, जैसे कि बकिंघमशायर, काउंटी टाउन के रूप में जो नाम शहरे क्जे लिए स्वीकृत है, वे शायर के नाम से भिन्न हैं। (यूनाइटेड किंगडम की काउंटियों की टोपोनिकल सूची देखें)
'काउंटी' नाम नोर्मंस द्वारा पेश किया गया था और यह काउंट (लॉर्ड) द्वारा प्रशासित क्षेत्र के लिए एक नोर्मन शब्द से व्युत्पित हुआ था। ये नोर्मन 'काउंटियों' सामान्यतः सक्सोन शायर थे और उनके सक्सोन नाम रखे गए थे। ससेक्स, एसेक्स और कैंट सहित, कई पारंपरिक काउंटी, ग्रेट अल्फ्रेड द्वारा किए गए इंग्लैंड के एकीकरण से पहले बन चुके थे और मूल रूप से स्वतंत्र राज्यों के रूप में अस्तित्व में थे।
उत्तरी आयरलैंड में, छह काउंटी परिषदों, यदि उनके काउंटी नहीं थे, को 1973 में समाप्त कर दिया गया और उन्हें 26 स्थानीय सरकारी जिलों से प्रतिस्थापित कर दिया गया। पारंपरिक छह काउंटी अब भी कई सांस्कृतिक और अन्य प्रयोजनों के लिए आम रोजमर्रा के उपयोग में हैं।
वेल्स के तेरह ऐतिहासिक काउंटियों को 1539 में संविधि द्वारा बनाया गया था (हालांकि पेम्ब्रोकेशायर जैसे काउंटी 1138 से स्थित थे) और स्कॉटलैंड के अधिकांश शायर कम से कम इतने पुराने हैं। गेलिक रूप में, स्कॉटिश पारंपरिक काउंटी नाम सामान्यतया "सिओर्रामैच्ड" - शाब्दिक अर्थ "शेरिफडम" उदा. सिओर्रामैच्ड ईएरा-घाइडहील (अर्गिल का काउंटी) के पद से भिन्न होते हैं। यह शब्द स्कॉटिश कानूनी प्रणाली के क्षेत्राधिकार के संगत है।
इंग्लैंड के काउंटी की सीमाएं समय के साथ थोड़े बदल गए हैं। मध्यकालीन अवधि में, कई महत्वपूर्ण शहरों को काउंटी का दर्जा दिया गया था, जैसे कि लंदन, ब्रिस्टल और कोवेंट्री और कई छोटे एक्सक्लेव जैसे आइलैंडशायर बनाए गए थे। अगला बड़ा परिवर्तन 1844 में हुआ, जब इनमें से कई एक्सलेव को उनके आसपास के काउंटी में पुनः विलय कर दिया गया (उदाहरण के लिए, कोवेंट्री का विलय वार्विक्शायर में कर दिया गया था।
1965 और 1974-1975 में, स्थानीय सरकार के मुख्य पुनर्संगठन ने इंग्लैंड और वेल्स में कई नए प्रशासनिक काउंटी बनाए जैसे कि हेरेफोर्ड और वोर्सेस्टर और साथ ही कई नए महानगरीय काउंटी भी बनाए गए जिसने एकल प्रशासनिक इकाई के रूप में बड़े शहरी क्षेत्रों में सेवाएं दी। स्कॉटलैंड में काउंटी के आकार के स्थानीय सरकार को बड़े क्षेत्रों से प्रतिस्थापित कर दिया गया, यह 1996 तक अस्तित्व में रहा। स्कॉटलैंड, वेल्स, उत्तरी आयरलैंड और इंग्लैंड के एक बड़े भाग में आधुनिक स्थानीय सरकार छोटे एकात्मक अधिकारी के अवधारणा पर आधारित थे (1960 के दशक में अधिकांश ब्रिटेन के लिए प्रस्तावित रेडक्लिफ-माउड रिपोर्ट से मिलती जुलती एक प्रणाली).
संयुक्त राज्य अमेरिका
एंग्लो सैक्सन इंग्लैंड के शायर की तरह, अमेरिका के काउंटी राज्य के प्रशासनिक प्रभाग होते हैं जिनकी सीमाएं तय होती हैं। जहां वे मौजूद हैं, वे राज्यव्यापी स्तर और तात्कालिक स्थानीय सरकार के बीच एकात्मक राज्य सरकार के मध्यवर्ती स्तर हैं। काउंटी 50 मे6 से 48 एकात्मक राज्यों में उपयोग में हैं; अन्य दो राज्य (कनेक्टिकट और रोड आइलैंड) ने अपने काउंटियों को समाप्त कर कार्यात्मक इकाएयां बनाई हैं, मैसाचुसेट्स ऐसा करने की प्रक्रिया में है। इन शेष 48 राज्यों में, 46 "काउंटी" शब्द का उपयोग करते हैं, जबकि अलास्का और लुइसियाना अनुरूप क्षेत्राधिकार के लिए क्रमशः "नगर" और "पैरिश" शब्दों का उपयोग करते हैं।
व्यक्तिगत राज्य पर निर्भर करते हुए, काउंटी या इसके भिन्न समकक्ष नाम प्रशासकीय रूप से अपने आप को सिविल टाउनशिप में विभाजित कर सकते हैं, उदा., मिशिगन, जहां सिविल टाउनशिप और चार्टर टाउनशिप हैं (या कुछ राज्यों में "टाउनशिप को "टाउन" भी कहा जाता है, जहां "टाउनशिप का अर्थ है कोई नगर या "गाँव", उदा. न्यूयॉर्क); या हो सकता है कि काउंटी में बड़े नगरपालिका न हो, उदा. वर्जीनिया, जहां सभी शहर स्वतंत्र शहर हैं,; या वहां शहर और अनिगमित क्षेत्र हो सकते हैं, उदा. कैलिफोर्निया, जहां ऐतिहासिक रूप से काउंटी को टाउनशिप में विभाजित किया गया लेकिन बाद में समाप्त कर दिया गया।
लुइसियाना में काउंटियों के समकक्ष इकाइयां हैं, जिन्हें पारिशों कहा जाता है। अलास्का नगरों में विभाजित है, जो विशेष रूप से अमेरिका के काउंटियों की तुलना में कम स्थानीय सेवाएं प्रदान करते हैं, क्योंकि अधिकांश सेवाओं पर राज्य सरकार सीधे नियंत्रण रखती हैं अलास्का के कुछ नगरों का विलय उनके मूल (और केवल कभी कभी) शहर के साथ भौगोलिक सीमाओं और प्रशासनिक कार्यों में कर दिया गया; इन्हें एकीकृत शहर-नगर के रूप में जाना जाता है और परिणामस्वरूप अलास्का के कुछ शहरों को भौगोलिक रूप से दुनिया के सबसे बड़े "शहरों" में जगह दी गई है। फिर भी, अलास्का में ऐसी इकाइयों को नगर कहा जाता है, न कि शहर. अलास्का इस बात से भी अद्वितीय है कि इसके राज्य का आधे से अधिक भौगोलिक क्षेत्र "असंगठित नगर" की श्रेणी में आता है, जो कि एक कानूनी इकाई है, जहां राज्य भी स्थानीय सरकार की तरह कार्य करते हैं।
न्यूयॉर्क में अद्वितीय प्रणाली है जहां 62 में से 57 काउंटी राज्य के प्रशासनिक प्रभाग के अधीन हैं और उनके पास सामान्य काउंटी अधिकार हैं; जबकि शेष पांच ग्रेटर न्यूयॉर्क के शहर के प्रशासनिक प्रभाग हैं। इन पांचों को शहर सरकार के संदर्भ में नगर कहा जाता है - मैनहट्टन, ब्रोंक्स, क्वींस, ब्रुकलीन और स्टाटेन आइलैंड (पूर्व नाम रिचमंड); लेकिन इन्हें अब भी "काउंटी " कहा जाता है जहां राज्य शामिल प्रकार्य शामिल है उदा. " न्यूयॉर्क काउंटी कोर्टहाउस", मैनहटन" नहीं। काउंटी के नाम नगरों के नाम क्रमशः न्यूयॉर्क काउंटी, ब्रोंक्स काउंटी, क्वींस काउंटी. किंग्स काउंटी और रिचमंड काउंटी से परस्पर संबंधित हैं।
दो राज्यों और तीअसरे के एक हिस्से में, काउंटी सरकार की तरह कुछ भी मौजूद नहीं है और काउंटी भौगोलिक क्षेत्र या जिले का संदर्भ देता है।
कनेक्टिकट,
रोड आइलैंड
और मैसाचुसेट्स के कुछ हिस्सों में
काउंटियां केवल ऐसे राज्य स्तर के कार्यों जैसे पार्क जिले (कनेक्टिकट) या न्यायिक कार्यालय (कनेक्टिकट और मैसाचुसेट्स) के लिए सीमाएं निर्धारित करने हेतु मौजूद हैं। ऐसे राज्यों में जहां काउंटी सरकार मौजूद नहीं है या कमजोर है (जैसे, न्यू हैम्पशायर, वरमोंट), शहर के सरकार कुछ या सभी स्थानीय सरकारी सेवाएं प्रदान कर सकते हैं।
अधिकांश काउंटियों में काउंटी सीट, आमतौर पर शहर होते हैं, जहां इसके प्रशासनिक कार्य केंद्रित होते हैं। अपवादों में राष्ट्र के छोटे काउंटी, अर्लिंगटन काउंटी, वर्जीनिया, शामिल है, जहां कोई नगरपालिका नहीं है; सैन फ्रांसिस्कों का शहर या काउंटी, एक महानगरीय नगरपालिका जहां शहर और काउंती सरकार का विलय करके एक क्षेत्राधिकार बनाया गया है, इसलिए काउंटी सीट संपूर्ण काउंटी के साथ समकालीन है; और, वास्तव में, न्यूयोर्क सिटी, जो कि पांच काउंटियों के साथ समकालीन है, जिस कारण इन सभी का काउंटी सीट एक ही है - जो कि प्रश्न निरर्थक बनाता है। इंग्लैंड के कुछ नए राज्यों में "काउंटी सीट" के स्थान पर शायर टाउन शब्द का उपयोग किया जाता है।
इन्हें भी देखें
नॉर्मन
ज़िला
सन्दर्भ
संयुक्त राज्य अमेरिका
प्रशासन
प्रशासनिक विभाग
काउंटी
देशीय उपविभागों के प्रकार | 3,494 |
1401511 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%81%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9%20%28%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BE%29 | अभिमन्यु सिंह (निर्माता) | Articles with hCards
अभिमन्यु राज सिंह एक भारतीय निर्माता हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी भाषा के टेलीविजन शो का निर्माण करते हैं। वह प्रोडक्शन कंपनी, कॉन्टिलो एंटरटेनमेंट के संस्थापक हैं, जिसकी स्थापना उन्होंने 1995 में अपने भाई आदित्य नारायण सिंह के साथ की थी।
प्रारंभिक जीवन
अभिमन्यु का जन्म नई दिल्ली में हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा दून स्कूल, देहरादून से की और स्नातक की पढ़ाई सेंट स्टीफंस कॉलेज से की । उनके दो भाई चंद्रचूर सिंह और आदित्य नारायण सिंह हैं।
संदर्भ | 85 |
932 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0 | संयुक्त राष्ट्र | संयुक्त राष्ट्र एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है, संक्षिप्त रूप से इसे कई समाचार पत्र संरा भी लिखते हैं। जिसके उद्देश्य में उल्लेख है कि यह अन्तर्राष्ट्रीय कानून को सुविधाजनक बनाने के सहयोग, अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, मानव अधिकार और विश्व शान्ति के लिए कार्यरत है। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना २४ अक्टूबर १९४५ को संयुक्त राष्ट्र अधिकारपत्र पर ५० देशों के हस्ताक्षर होने के साथ हुई।
द्वितीय विश्वयुद्ध के विजेता देशों ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र को अन्तरराष्ट्रीय संघर्ष में हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से स्थापित किया था। वे चाहते थे कि भविष्य में फिर कभी द्वितीय विश्वयुद्ध की तरह के युद्ध न उभर आए। संयुक्त राष्ट्र की संरचना में सुरक्षा परिषद वाले सबसे शक्तिशाली देश (संयुक्त राज्य अमेरिका, फ़्रांस, रूस और यूनाइटेड किंगडम) द्वितीय विश्वयुद्ध में बहुत बहुत राष्ट्र थे।
वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में १९५ राष्ट्र हैं, विश्व के लगभग सारे अन्तरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त राष्ट्र शामिल हैं। इस संस्था की संरचना में महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक व सामाजिक परिषद, सचिवालय, अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय और संयुक्त राष्ट्र न्यास परिषद सम्मिलित है।
इतिहास
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1929 में राष्ट्र संघ का गठन किया गया था। राष्ट्र संघ बहुत हद तक प्रभावहीन था और संयुक्त राष्ट्र का उसकी जगह होने का यह बहुत बड़ा लाभ है कि संयुक्त राष्ट्र अपने सदस्य देशों की सेनाओं को शान्ति संभालने के लिए तैनात कर सकता है।
संयुक्त राष्ट्र के बारे में विचार पहली बार द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उभरे थे। द्वितीय विश्व युद्ध में विजयी होने वाले देशों ने मिलकर प्रयास किया कि वे इस संस्था की संरचना, सदस्यता आदि के बारे में कुछ निर्णय कर पायें।
24 अप्रैल 1945 को, द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त होने के बाद, अमेरिका के सैन फ्रैंसिस्को में अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं की संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हुई और यहाँ सारे 40 उपस्थित देशों ने संयुक्त राष्ट्र संविधा पर हस्ताक्षर किया। पोलैण्ड इस सम्मेलन में उपस्थित तो नहीं था, पर उसके हस्ताक्षर के लिए विशेष स्थान रखा गया था और बाद में पोलैण्ड ने भी हस्ताक्षर कर दिया। सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी देशों के हस्ताक्षर के बाद संयुक्त राष्ट्र अस्तित्व में आया।
सदस्य वर्ग
2006 तक संयुक्त राष्ट्र में 192 सदस्य देश है। विश्व के लगभग सभी मान्यता प्राप्त देश सदस्य है। कुछ विषेश उपवाद तइवान (जिसका स्थान चीन को 1971 में दे दिया गया था), वैटिकन, फ़िलिस्तीन (जिसको पर्यवेक्षक का स्थान प्राप्त है) , तथा और कुछ देश। सबसे नए सदस्य देश है दक्षिणी सूडान, जिसको 11 जुलाई, 2011 को सदस्य बनाया गया।
मुख्यालय
संयुक्त राष्ट्र का मुख्यालय अमेरिका के न्यूयॉर्क नगर में पचासी लाख डॉलर में खरीदी गयी भूसंपत्ति पर स्थापित है। इस इमारत की स्थापना का प्रबन्ध एक अन्तरराष्ट्रीय शिल्पकारों के समूह द्वारा हुआ। इस मुख्यालय के अलावा और अहम संस्थाएँ जिनेवा, कोपनहेगन आदि में भी है।
यह संस्थाएँ संयुक्त राष्ट्र से स्वतन्त्र तो नहीं हैं, परन्तु उनको बहुत हद तक स्वतन्त्रताएँ दी गयी हैं।
भाषाएँ
संयुक्त राष्ट्र ने 6 भाषाओं को "राजभाषा" के तौर पर स्वीकृत किया है (अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ़्रांसीसी, रूसी और स्पेनी), परन्तु इन में से केवल दो भाषाओं को संचालन भाषा माना जाता है (अंग्रेजी और फ़्रांसीसी)।
स्थापना के समय, केवल चार राजभाषाएँ स्वीकृत की गई थी (चीनी, अंग्रेजी, फ़्रांसीसी, रूसी) और 1973 में अरबी और स्पेनी को भी सम्मिलित किया गया। इन भाषाओं के बारे में विवाद उठता रहता है। कुछ लोगों का मानना है कि राजभाषाओं की संख्या 6 से घटा कर 1 (अंग्रेजी) कर देनी चाहिए, परन्तु इसके विरोधी मानते है कि राजभाषाओं को बढ़ाना चाहिए। इन लोगों में से कई का मानना है कि हिन्दी को भी संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाया जाना चाहिये।
संयुक्त राष्ट्र अमेरिकी अंग्रेजी के स्थान पर ब्रिटिश अंग्रेजी का प्रयोग करता है। 1971 तक चीनी भाषा के परम्परागत अक्षर का प्रयोग चलता था क्योंकि तब तक संयुक्त राष्ट्र ताइवान के सरकार को चीन का अधिकारी सरकार माना जाता था। जब ताइवान की जगह आज के चीनी सरकार को स्वीकृत किया गया, संयुक्त राष्ट्र ने सरलीकृत अक्षर के प्रयोग का प्रारम्भ किया।
संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी
संयुक्त राष्ट्र में किसी भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिए जाने के लिए कोई विशिष्ट मापदण्ड नहीं है। किसी भाषा को संयुक्त राष्ट्र में आधिकारिक भाषा के रूप में शामिल किए जाने की प्रक्रिया में संयुक्त राष्ट्र महासभा में साधारण बहुमत द्वारा एक संकल्प को स्वीकार करना और संयुक्त राष्ट्र की कुल सदस्यता के दो तिहाई बहुमत द्वारा उसे अन्तिम रूप से पारित करना होता है।
भारत बहुत लम्बे समय से यह प्रयास कर रहा है कि हिन्दी भाषा को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाओं में शामिल किया जाए। भारत का यह दावा इस आधार पर है कि हिन्दी, विश्व में बोली जाने वाली दूसरी सबसे बड़ी भाषा है और विश्व भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी है। भारत का यह दावा आज इसलिए और अधिक मजबूत हो जाता है क्योंकि आज का भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र होने के साथ-साथ चुनिन्दा आर्थिक शक्तियों में भी शामिल हो चुका है।
2015 में भोपाल में हुए विश्व हिन्दी सम्मेलन के एक सत्र का शीर्षक ‘विदेशी नीतियों में हिन्दी’ पर समर्पित था, जिसमें हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा में से एक के तौर पर पहचान दिलाने की सिफारिश की गई थी। हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय भाषा के तौर पर प्रतिष्ठित करने के लिए फरवरी 2008 में मॉरिसस में भी विश्व हिन्दी सचिवालय खोला गया था।
संयुक्त राष्ट्र अपने कार्यक्रमों का संयुक्त राष्ट्र रेडियो वेबसाईट पर हिन्दी भाषा में भी प्रसारण करता है। कई अवसरों पर भारतीय नेताओं ने संरा में हिन्दी में वक्तव्य दिए हैं जिनमें 1977 में अटल बिहारी वाजपेयी का हिन्दी में भाषण, सितम्बर 2014 में 69वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का वक्तव्य, सितम्बर 2015 में संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास शिखर सम्मेलन में उनका सम्बोधन, अक्तूबर, 2015 में विदेश मन्त्री सुषमा स्वराज द्वारा 70वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा को सम्बोधन और सितम्बर, 2016 में 71वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा को विदेश मन्त्री द्वारा सम्बोधन शामिल है।
उद्देश्य
संयुक्त राष्ट्र के मुख्य उद्देश्य हैं: युद्ध रोकना, मानवाधिकारों की रक्षा करना, अन्तरराष्ट्रीय कानूनी प्रक्रिया , सामाजिक और आर्थिक विकास उभारना, जीवन स्तर सुधारना और बिमारियों की मुक्ति हेतु इलाज, सदस्य राष्ट्र को अन्तरराष्ट्रीय चिन्ताएँ स्मरण कराना और अन्तरराष्ट्रीय मामलों को संभालने का मौका देना है। इन उद्देश्य को निभाने के लिए 1948 में मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा प्रमाणित की गई।
मानव अधिकार
द्वितीय विश्वयुद्ध के जातिसंहार के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने मानव अधिकारों को बहुत आवश्यक समझा था। ऐसी घटनाओं को भविष्य में रोकना अहम समझकर, 1948 में सामान्य सभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को स्वीकृत किया। यह अबन्धनकारी घोषणा पूरे विश्व के लिए एक समान दर्जा स्थापित करती है, जो कि संयुक्त राष्ट्र संघ समर्थन करने का प्रयास करेगी।
15 मार्च 2006 को, समान्य सभा ने संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकारों के आयोग को त्यागकर संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद की स्थापना की।
आज मानव अधिकारों के सम्बन्ध में सात संघ निकाय स्थापित है। यह सात निकाय हैं:
मानव अधिकार संसद
आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों का संसद
जातीय भेदबाव निष्कासन संसद
नारी विरुद्ध भेदभाव निष्कासन संसद
यातना विरुद्ध संसद
बच्चों के अधिकारों का संसद
प्रवासी कर्मचारी संसद
संयुक्त राष्ट्र महिला (यूएन वूमेन)
विश्व में महिलाओं के समानता के मुद्दे को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से विश्व निकाय के भीतर एकल एजेंसी के रूप में संयुक्त राष्ट्र महिला के गठन को 4 जुलाई 2010 को स्वीकृति प्रदान कर दी गयी। वास्तविक तौर पर 1 जनवरी 2011 को इसकी स्थापना की गयी। इसका मुख्यालय अमेरिका के न्यूयार्क शहर में बनाया गया है। यूएन वूमेन की वर्तमान प्रमुख चिली की पूर्व प्रधानमन्त्री सुश्री मिशेल बैशलैट हैं। संस्था का प्रमुख कार्य महिलाओं के प्रति सभी तरह के भेदभाव को दूर करने तथा उनके सशक्तिकरण की दिशा में प्रयास करना होगा। उल्लेखनीय है कि 1953 में 8वें संयुक्त राष्ट्र महासभा की प्रथम महिला अध्यक्ष होने का गौरव भारत की विजयलक्ष्मी पण्डित को प्राप्त है। संयुक्त राष्ट्र के 4 संगठनों का विलय करके नई इकाई को संयुक्त राष्ट्र महिला नाम दिया गया है। ये संगठन निम्नवत हैं:
संयुक्त राष्ट्र महिला विकास कोष 1976
महिला संवर्धन प्रभाग 1946
लिंगाधारित मुद्दे पर विशेष सलाहकार कार्यालय 1997
महिला संवर्धन हेतु संयुक्त राष्ट्र अन्तरराष्ट्रीय शोध और प्रशिक्षण संस्थान 1976
शान्तिरक्षा
संयुक्त राष्ट्र के शांन्तिरक्षक वहाँ भेजे जाते हैं जहाँ हिंसा कुछ देर पहले से बन्द है ताकि वह शान्ति संघ की शर्तों को लगू रखें और हिंसा को रोककर रखें। यह दल सदस्य राष्ट्र द्वारा प्रदान होते हैं और शान्तिरक्षा कर्यों में भाग लेना वैकल्पिक होता है। विश्व में केवल दो राष्ट्र हैं जिनने हर शान्तिरक्षा कार्य में भाग लिया है: कनाडा और पुर्तगाल। संयुक्त राष्ट्र स्वतन्त्र सेना नहीं रखती है। शान्तिरक्षा का हर कार्य सुरक्षा परिषद द्वारा अनुमोदित होता है।
संयुक्त राष्ट्र के संस्थापकों को ऊँची उम्मीद थी की वह युद्ध को हमेशा के लिए रोक पाएँगे, पर शीत युद्ध (1945 - 1991) के समय विश्व का विरोधी भागों में विभाजित होने के कारण, शान्तिरक्षा संघ को बनाए रखना बहुत कठिन था।
संघ की स्वतन्त्र संस्थाएँ
संयुक्त राष्ट्र संघ के अपने कई कार्यक्रमों और एजेंसियों के अलावा 14 स्वतन्त्र संस्थाओं से इसकी व्यवस्था गठित होती है। स्वतन्त्र संस्थाओं में विश्व बैंक, अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व स्वास्थ्य संगठन शामिल हैं। इनका संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सहयोग समझौता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की अपनी कुछ प्रमुख संस्थाएँ और कार्यक्रम हैं। ये इस प्रकार हैं:
अन्तरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी – विएना में स्थित यह एजेंसी परमाणु निगरानी का काम करती है।
अन्तरराष्ट्रीय अपराध आयोग – हेग में स्थित यह आयोग पूर्व यूगोस्लाविया में युद्द अपराध के सदिंग्ध लोगों पर मुकदमा चलाने के लिए बनाया गया है।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ़) – यह बच्चों के स्वास्थय, शिक्षा और सुरक्षा की देखरेख करता है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) – यह गरीबी कम करने, आधारभूत ढाँचे के विकास और प्रजातान्त्रिक प्रशासन को प्रोत्साहित करने का काम करता है।
संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन-यह संस्था व्यापार, निवेश और विकास के मुद्दों से सम्बन्धित उद्देश्य को लेकर चलती है।
संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ईकोसॉक)- यह संस्था सामान्य सभा को अन्तरराष्ट्रीय आर्थिक एवं सामाजिक सहयोग एवं विकास कार्यक्रमों में सहायता एवं सामाजिक समस्याओं के माध्यम से अन्तरराष्ट्रीय शान्ति को प्रभावी बनाने में प्रयासरत है।
संयुक्त राष्ट्र शिक्षा, विज्ञान और सांस्कृतिक परिषद – पेरिस में स्थित इस संस्था का उद्देश्य शिक्षा, विज्ञान संस्कृति और संचार के माध्यम से शान्ति और विकास का प्रसार करना है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) – नैरोबी में स्थित इस संस्था का काम पर्यावरण की रक्षा को बढ़ावा देना है।
संयुक्त राष्ट्र राजदूत – इसका काम शरणार्थियों के अधिकारों और उनके कल्याण की देखरेख करना है। यह जीनिवा में स्थित है।
विश्व खाद्य कार्यक्रम – भूख के विरुद्द लड़ाई के लिए बनाई गई यह प्रमुख संस्था है। इसका मुख्यालय रोम में है।
अन्तरराष्ट्रीय श्रम संघ- अन्तरराष्ट्रीय आधारों पर मजदूरों तथा श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए नियम बनाता है।
संयुक्त राष्ट्र और भारत
भारत, संयुक्त राष्ट्र के उन प्रारम्भिक सदस्यों में शामिल था जिन्होंने 01 जनवरी, 1942 को वाशिंग्टन में संयुक्त राष्ट्र घोषणा पर हस्ताक्षर किए थे तथा 25 अप्रैल से 26 जून, 1945 तक सेन फ्रांसिस्को में ऐतिहासिक संयुक्त राष्ट्र अन्तरराष्ट्रीय संगठन सम्मेलन में भी भाग लिया था। संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्य के रूप में भारत, संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों और सिद्धान्तों का पुरजोर समर्थन करता है और चार्टर के उद्देश्यों को लागू करने तथा संयुक्त राष्ट्र के विशिष्ट कार्यक्रमों और एजेंसियों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
अंग्रेजों से स्वतन्त्र होने के पश्चात भारत ने संयुक्त राष्ट्र में अपनी सदस्यता को अन्तरराष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को बनाए रखने की एक महत्वपूर्ण गारण्टी के रूप में देखा। भारत, संयुक्त राष्ट्र के उपनिवेशवाद और रंगभेद के विरूद्ध संघर्ष के अशान्त दौर में सबसे आगे रहा। भारत औपनिवेशिक देशों को स्वतन्त्रता दिये जाने के सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र की ऐतिहासिक घोषणा 1960 का सह-प्रायोजक था जो उपनिवेशवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों को बिना शर्त समाप्त किए जाने की आवश्यकता की घोषणा करती है। भारत राजनीतिक स्वतन्त्रता समिति (24 की समिति) का पहला अध्यक्ष भी निर्वाचित हुआ था जहाँ उपनिवेशवाद की समाप्ति के लिए उसके अनवरत प्रयास रिकार्ड पर हैं
भारत, दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद और नस्लीय भेदभाव के सर्वाधिक मुखर आलोचकों में से था। वस्तुतः भारत संयुक्त राष्ट्र (1946 में) में इस मुद्दे को उठाने वाला पहला देश था और रंगभेद के विरूद्ध आम सभा द्वारा स्थापित उप समिति के गठन में अग्रणी भूमिका निभाई थी।
गुट निरपेक्ष आंदोलन और समूह-77 के संस्थापक सदस्य के रूप में संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था में भारत की हैसियत, विकासशील देशों के सरोकारों और आकांक्षाओं तथा अधिकाधिक न्यायसंगत अन्तरराष्ट्रीय आर्थिक एवं राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना के अग्रणी समर्थक के रूप में मजबूत हुई।
भारत सभी प्रकार के आतंकवाद के प्रति 'पूर्ण असहिष्णुता' के दृष्टिकोण का समर्थन करता रहा है। आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए एक व्यापक कानूनी रूपरेखा प्रदान करने के उद्देश्य से भारत ने 1996 में अन्तरराष्ट्रीय आतंकवाद के सम्बन्ध में व्यापक कन्वेंशन का मसौदा तैयार करने की पहल की थी और उसे शीघ्र अति शीघ्र पारित किए जाने के लिए कार्य कर रहा है।
भारत का संयुक्त राष्ट्र के शान्ति स्थापना अभियानों में भागीदारी का गौरवशाली इतिहास रहा है और यह 1950 के दशक से ही इन अभियानों में शामिल होता रहा है। अब तक भारत 43 शान्ति स्थापना अभियानों में भागीदारी कर चुका है।
भारत, परमाणु हथियारों से संपन्न एक मात्र ऐसा राष्ट्र है जो परमाणु हथियारों को प्रतिबन्धित करने और उन्हें समाप्त करने के लिए परमाणु अस्त्र कन्वेंशन की स्पष्ट रूप से माँग करता रहा है। भारत समयबद्ध, सार्वभौमिक, निष्पक्ष, चरणबद्ध और सत्यापन योग्य रूप में परमाणु हथियारों से मुक्त दुनिया का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है जैसा कि सन् 1998 में आम सभा के निरस्त्रीकरण से सम्बन्धित विशेष अधिवेशन में पेश की गई राजीव गांधी कार्य योजना में प्रतिबिम्बित होता है।
आज भारत स्थायी और अस्थायी दोनों वर्गों में सुरक्षा परिषद के विस्तार के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र सुधारों के प्रयासों में सबसे आगे है ताकि वह समकालीन वास्तविकताओं को प्रदर्शित कर सके।
जून 2020 में भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य चुना गया है। यह भारत का दो साल का कार्यकाल 1 जनवरी 2021 से प्रारम्भ होगा। संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में भारत आठवीं बार प्रतिष्ठित सुरक्षा परिषद के लिए निर्वाचित हुआ है। इससे पूर्व 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92 और 2011-12 में भारत सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य रहा है।
भारत में संयुक्त राष्ट्र
भारत में संयुक्त राष्ट्र के 26 संगठन सेवाएँ दे रहे हैं। स्थानीय समन्वयक (रेज़िडेंट कॉर्डिनेटर), भारत सरकार के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव के मनोनीत प्रतिनिधि हैं।
संयुक्त राष्ट्र भारत को रणनीतिक सहायता देता है ताकि वह गरीबी और असमानता मिटाने की अपनी आकाँक्षाएँ पूरी कर सके तथा वैश्विक स्तर पर स्वीकृत सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप सतत् विकास को बढ़ावा दे सके। संयुक्त राष्ट्र, विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को तेज़ी से बदलाव और विकास प्राथमिकताओं के प्रति महत्वाकाँक्षी संकल्पों को पूरा करने में भी समर्थन देता है।
भारत और सतत् विकास लक्ष्य
सतत् विकास लक्ष्य सहित 2030 के एजेंडा के प्रति भारत सरकार के दृढ़ संकल्प का प्रमाण राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय बैठकों में प्रधानमन्त्री और सरकार के वरिष्ठ मन्त्रियों के वक्तव्यों से मिलता है। भारत के राष्ट्रीय विकास लक्ष्य और समावेशी विकास के लिए “सबका साथ सबका विकास” नीतिगत पहल सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप है और भारत दुनियाभर में सतत् विकास लक्ष्यों की सफलता निर्धारित करने में अग्रणी भूमिका निभाएगा। स्वयं प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा है, ” इन लक्ष्यों से हमारे जीवन को निर्धारित करने वाले सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलुओं के बारे में हमारी विकसित होती समझ की झलक मिलती है।”
आलोचना
भूमिका
सद्दाम हुसैन शासन के अन्तर्गत इराकी उकसावे के प्रति संयुक्त राष्ट्र की अनिश्चितता का जिक्र करते हुए फरवरी 2003 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू. बुश ने कभी-कभी गलत उद्धृत बयान में कहा कि "स्वतन्त्र राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र को एक अप्रभावी, अप्रासंगिक बहस करने वाले समाज के रूप में इतिहास में मिटने नहीं देंगे।"
2020 में, राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने संस्मरण ए प्रॉमिस्ड लैण्ड में उल्लेख किया, "शीत युद्ध के बीच में, किसी भी आम सहमति तक पहुँचने की संभावना कम थी, यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र बेकार खड़ा था क्योंकि सोवियत टैंक हंगरी या अमेरिकी विमानों वियतनामी ग्रामीण इलाकों में नैपलम गिरा रहे थे। शीत युद्ध के बाद भी, सुरक्षा परिषद के भीतर विभाजन ने संयुक्त राष्ट्र की समस्याओं से निपटने की क्षमता को बाधित करना जारी रखा। इसके सदस्य राज्यों के पास सोमालिया जैसे असफल राज्यों के पुनर्निर्माण के लिए या श्रीलंका जैसी जगहों पर जातीय वध को रोकने के लिए या तो साधन या सामूहिक इच्छाशक्ति की कमी थी।"
इसकी स्थापना के बाद से, संयुक्त राष्ट्र में सुधार के लिए कई आह्वान किए गए हैं लेकिन इसे कैसे किया जाए, इस पर बहुत कम सहमति है। कुछ चाहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र विश्व मामलों में अधिक या अधिक प्रभावी भूमिका निभाए, जबकि अन्य चाहते हैं कि इसकी भूमिका मानवीय कार्यों में कम हो।
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद
भारत-संयुक्त राष्ट्र संघ सम्बन्ध
बाहरी कडियाँ
संयुक्त राष्ट्रसंघ (गूगल पुस्तक ; लेखक - राधेश्याम चौरसिया)
संयुक्त राष्ट्र संघ : सफलता के 66 साल (दैनिक जागरण)
संयुक्त राष्ट्र के 60 साल: कुछ उपलब्धियाँ, कई विफलताएँ (बीबीसी पर)
संयुक्त राष्ट्र संघ की नाकामी पश्चिम सहारा तनाव बढ़ा देती है
संयुक्त राष्ट्र
अंतर्राष्ट्रीय संगठन
नोबल शांति पुरस्कार के प्राप्तकर्ता
नोबेल पुरस्कार सम्मानित संगठन | 2,823 |
718666 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%A8%20%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE | कैप्टन अमेरिका | कैप्टन अमेरिका (अंग्रेजी: Captain America) मार्वेल कॉमिक्स का एक काल्पनिक किरदार है। इसका निर्माण जोए साइमन और जैक किर्बी ने टाइमली कॉमिक्स के लिए किया था। यह मार्च 1941 को पहली बार प्रकाशित हुआ था। इसे एक देशभक्त सैनिक के रूप में दिखाया गया है जो अपने शक्ति से द्वितीय विश्वयुद्ध में लड़ाई करता है। यह टाइमली कोमिक्स का उस समय का सबसे अधिक प्रसिद्ध किरदार था। इसके प्रसिद्धि का प्रभाव युद्ध पर भी पड़ रहा था और इस कारण इसे 1950 में बंद कर दिया गया और उसके कुछ ही वर्षों के बाद 1953 में यह फिर से प्रकाशित होने लगा। उसके बाद थोड़े ही समय तक यह प्रकाशित हुआ और 1964 में इसे मार्वेल कॉमिक्स ने प्रकाशित करना शुरू किया। तब से यह प्रकाशन में बना हुआ है।
कैप्टन अमेरिका का पुस्तक 2011 में 100 सबसे अच्छे कॉमिक्स में 6वें स्थान पर था।
इतिहास
वर्ष 1940 में जोए साइमन ने कैप्टन अमेरिका के बारे में सोचा और एक तस्वीर बनाया। साइमन ने अपने आत्मकथा में लिखा था कि उन्होंने तस्वीर बनाने के बाद उसमें "सुपर अमेरिका" नाम लिखा था। बाद में उन्होंने माना कि कॉमिक्स की दुनिया में बहुत सारे सुपर नाम वाले घूम रहे हैं। जबकि कैप्टन नाम में ऐसा नहीं है।
काल्पनिक चरित्र जीवनी
२०वीं शताब्दी
१९४० - १९५०
स्टीवन रोजर्स का जन्म १९२० मं न्यूयॉर्क के मैनहटन में गरीब आयरिश आप्रवासियों, सारा और जोसेफ रोजर्स के घर हुआ था। स्टीव के बाल्यकाल में ही जोसेफ की मृत्यु हो गई, और किशोरावस्था तक पहुँचने तक सारा भी निमोनिया से चल बसी। १९४० की शुरुआत में, द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका की प्रवेश से पहले, रोजर्स ललित कला का छात्र था। चित्रण में माहिर रोजर्स एक हास्य पुस्तक लेखक और कलाकार भी था।
नाज़ी जर्मनी के उत्थान से परेशान रोजर्स ने सेना में भर्ती होने का प्रयास किया, लेकिन उसके बुरे शरीर के कारण अस्वीकृत कर दिया गया। हालांकि उसका "भर्ती-प्रस्ताव" जनरल चेस्टर फिलिप्स को पसंद आ जाता है, और वह "प्रोजेक्ट: रीबर्थ" के लिए चुन लिया जाता है। रोजर्स का प्रयोग 'सुपर-सैनिक परियोजना' के लिए एक परीक्षण विषय के रूप में किया जाता है, जिसके अंतर्गत वह "डॉ. जोसेफ रीनस्टाइन" द्वारा निर्मित एक विशेष सीरम प्राप्त करता है। डॉ. जोसेफ रीनस्टाइन बाद में वैज्ञानिक "अब्राहम इर्स्किन" का कोड नाम निकलता है।
सीरम का परीक्षण सफल रहता है, और स्टीव रोजर्स इस परीक्षण के बाद अधिकतम शक्ति, चपलता, सहनशक्ति, और बुद्धि के साथ लगभग सिद्ध मानव में बदल जाता है। इस कार्यक्रम की सफलता के बाद इर्स्किन अन्य मनुष्यों पर भी प्रयोग की नकल करने के बारे में सोचता है, लेकिन फिर किन्ही कारणों से वह उपचार के सभी महत्वपूर्ण तत्वों को लिखने से इनकार कर देता है, जिस कारण पूरी प्रक्रिया का दोषपूर्ण, अपूर्ण ज्ञान ही लिखित रूप में उपलब्ध हो पाता है। इस कारण ही जब नाजी जासूस हेनज क्रुजर इर्स्किन की हत्या कर देता है, तो उसके साथ ही नए सुपर सैनिकों को बनाने की "इर्स्किन की पद्धति" का भी निधन हो जाता है। उसकी मृत्यु का बदला रोजर्स "कैप्टन अमेरिका" के रूप में लेता है।
नए सुपर सैनिकों को बनाने में असमर्थ और "प्रोजेक्ट: रीबर्थ" की असफलता को छिपाने के लिए अमेरिकी सरकार कैप्टन अमेरिका को एक देशभक्त सुपरहीरो के रूप में प्रस्तुत करती है, जो एक काउंटर-इंटेलिजेंस एजेंट के रूप में रेड स्कल के खतरे का मुकाबला करने में सक्षम है। रोजर्स को अपने स्वयं के डिजाइन की हुई एक देशभक्ति वर्दी, एक बुलेटप्रूफ ढाल, एक व्यक्तिगत बन्दूक, और कोडनाम कैप्टन अमेरिका की आपूर्ति की जाती है। वर्जीनिया के कैम्प लेह में एक अनाड़ी पैदल सैनिक के रूप में कार्य करते हुए रोजर्स शिविर में जेम्स बुकानन "बकी" बार्न्स से दोस्ती कर लेता है।
बार्न्स को रोजर्स की वास्तविक पहचान जल्दी ही पता चल जाती है, और उसे गुप्त रखने के बदले वह कैप्टन अमेरिका का साइडकिक बनने की मांग करता है। कैप्टन अमेरिका के कारनामों से प्रसन्न फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट रोजर्स को एक नई ढाल प्रस्तुत करता है, जिसे इस्पात और वायब्रेनियम के मिश्रण से तैयार धातु से बनाया जाता है, जो किसी अज्ञात उत्प्रेरक द्वारा जोड़े जाते हैं। यह ढाल इतनी प्रभावी होती है कि रोजर्स इसे अपनी बन्दूक की जगह अपना लेता है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, कैप्टन अमेरिका और बकी नाजी खतरे से सुपरहीरो टीम "द इनवेडर्स" के सदस्यों के रूप में अपने दम पर लड़ते हैं। कैप्टन अमेरिका द्वितीय विश्व युद्ध में कई लड़ाइयों में प्रथम बटालियन, २६वें इन्फैंट्री रेजिमेंट "ब्लू स्पाइडर" के सदस्य के रूप में भी लड़ता है। कैप्टन अमेरिका कई आपराधिक खतरों से लड़ाई करता है, जिनमें कई तरह के खलनायक: द वैक्स मैन, द हैंगमन, फेंग, ब्लैक टेलोन, और व्हाइट डेथ, इत्यादि शामिल हैं।
अप्रैल १९४५ के अंत में, द्वितीय विश्व युद्ध के समापन दिनों के दौरान, कैप्टन अमेरिका और बकी ने एक खूनी बैरोन जेमो को एक प्रयोगात्मक ड्रोन विमान को नष्ट करने से रोकने का प्रयास किया। जेमो ने विमान पर एक सशस्त्र विस्फोटक लगाकर रोजर्स और बार्न्स के साथ विमान को शुरू कर दिया। जब बकी ने बम को डिफ्यूज करने की कोशिश की, तो वह मध्य हवा में ही फट गया। रोजर्स उत्तरी अटलांटिक के ठंडे पानी में गिर जाता है, और दोनों को मृत मान लिया जाता है, हालांकि बाद में पता चलता है कि स्टीव का भी निधन नहीं हुआ है।
अगले कुछ वर्षों के लिए कैप्टन अमेरिका कॉमिक्स में द्वितीय विश्व युद्ध के युग के नायक से बदलकर अमेरिका के सबसे नए शत्रु, साम्यवाद का सामना करता दिखा। १९५० के दशक के मध्य की घटनाओं से ज्ञात होता है कि उस समय में कई लोगों ने इस कोड नाम का उपयोग करते हुए कार्यवाही की थी। इन उत्तराधिकारियों में विलियम नस्लुंड और जेफरी मासे प्रमुख थे। बाद के कार्यकलापों में विलियम बर्नसाइड का भी ज़िक्र है, जो बाद में नोमैड नाम से से प्रचलित हुआ।
१९६० - १९७०
कई सालों बाद, सुपरहीरो टीम एवेंजर्स ने उत्तरी अटलांटिक में स्टीव रोजर्स के शरीर का पता लगाया। उसके पुनर्जीवित होने के बाद यह तथ्य सामने आया कि रोजर्स १९४५ के बाद से ही बर्फ के एक टुकड़े में था, और "प्रोजेक्ट: रिबर्थ" से हुई वृद्धि के कारण ही जीवित है। रोजर्स एवेंजर्स की सदस्यता स्वीकार कर लेता है, और लड़ाई में अपने अनुभव के कारण शीघ्र ही दल का नेतृत्व करने लगता है।
कैप्टन अमेरिका बकी की मृत्यु को रोकने में असमर्थ रहने के कारण सदैव अपराधबोध से ग्रस्त रहता है। यद्यपि वह युवा रिक जोन्स को अपने संरक्षण के तहत ले लेता है, परन्तु वह कुछ समय के लिए जोन्स को बकी की पहचान अपनाने की इजाजत देने से मना कर देता है, क्योंकि वह किसी अन्य युवा की मौत का जिम्मेदार नहीं होना चाहता। बाद में जोन्स के बार बार जोर देने पर रोजर्स उसे बकी की पोशाक दे तो देता है, लेकिन यह साझेदारी अधिक समय तक नहीं चल पाती; कॉस्मिक क्यूब की मदद से रॉजर्स का रूप लेकर रेड स्कल जोन्स को कहीं दूर ले जाता है।
रोजर्स की मुलाकात अपने पुराने मित्र निक फ्यूरी से पुनः होती है, जो "इन्फिनिटी फॉर्मूला" के प्रयोग के कारण रोजर्स के समान ही अच्छी तरह से संरक्षित हैं। नतीजतन, रोजर्स नियमित रूप से सुरक्षा एजेंसी शील्ड के मिशनों में शामिल होने लगता है, जिसका सार्वजनिक निदेशक फ्यूरी है। फ्यूरी के माध्यम से ही रोजर्स की मुलाकात एक एसएच.आई.ई.एल.डी. एजेंट, शेरोन कार्टर से होती है, जिसके साथ वह अंततः रोमांटिक संबंधों की शुरुआत करता है।
रोजर्स बाद में सैम विल्सन को प्रशिक्षित करने लगता है, जो भविष्य में सुपरहीरो फाल्कन बन जाता है, मुख्यधारा कॉमिक किताबों का पहला अफ्रीकी-अमेरिकी सुपरहीरो। दोनों पात्रों की मित्रता और साझेदारी इस कदर स्थायी हो गयी थी कि उनकी कॉमिक श्रृंखला का शीर्षक कुछ समय के लिए "कैप्टन अमेरिका और फाल्कन" रख दिया गया था। बाद में दोनों विलियम बर्नसाइड से भी मिलते हैं, जो ५० के दशक में खुद कैप्टन अमेरिका रह चुका होता है। इस अवधि के दौरान, रोजर्स को अस्थायी तौर पर सुपर शक्ति भी प्राप्त होती है।
वाटरगेट घोटाले से परेशान होकर रोजर्स अनिश्चितता की स्थिति में अपनी कैप्टन अमेरिका की पहचान को त्याग देता है। अपनी अमरीकी पहचान को छोड़ वह "बिना किसी देश के मनुष्य" के तौर पर अपना नाम "नोमैड" रख लेता है। इस समय के दौरान, कई लोग कैप्टन अमेरिका पहचान को प्राप्त करने का असफल प्रयास करते हैं। रोजर्स अंततः पुनः कैप्टन अमेरिका की पहचान अपना लेता है, जब उसे समझ आता है कि उसकी यह पहचान अमेरिकी सरकार का नहीं वरन इसके आदर्शों का प्रतीक है। जैक मोनरो बाद में नोमैड नाम को अपना लेता है। डा. फ़ॉस्टस से लड़ाई में शेरोन कार्टर की भी मृत्यु हो जाती है।
१९८० - १९९०
८० के दशक के प्रारम्भ में रोजर्स अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में खड़ा होता है। इसके अतिरिक्त वह विधि की छात्रा, बर्नी रोसेंथल से भी प्यार करने लगता है। कुछ समय बाद रेड स्कल वापस आ जाता है, और उसे परास्त करने हेतु रोजर्स जैक मोनरो को अपना पार्टनर बनाता है। १९८४ की सीक्रेट वार्स के समय बेयोंडेर सभी सुपरहीरो को इकठ्ठा करता है, और वे सभी रोजर्स को अपना नेता चुनते हैं।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
मार्वेल काॅमिक्स के महानायक
कैप्टन अमेरिका | 1,492 |
902664 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%86%E0%A4%AE%20%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%2C%201998 | भारतीय आम चुनाव, 1998 | आम चुनाव में आयोजित की गई भारत 1998 में, सरकार के बाद निर्वाचित 1996 में ढह गई और 12 वीं लोक सभा बुलाई गई थी. नए चुनाव कहा जाता था जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) को छोड़ दिया संयुक्त मोर्चा सरकार से नेतृत्व I. K. Gujralके बाद, वे मना कर दिया ड्रॉप करने के लिए क्षेत्रीय द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) पार्टी से सरकार के बाद द्रमुक से जुड़ा हुआ था पर एक जांच पैनल के लिए श्रीलंका अलगाववादियों के लिए दोषी ठहराया हत्या के राजीव गांधी. के परिणाम में नए चुनाव भी सामने दुविधा की स्थिति, के साथ कोई पार्टी या गठबंधन बनाने में सक्षम एक मजबूत बहुमत है । हालांकि भारतीय जनता पार्टी's अटल बिहारी वाजपेयी तुरन्त अपने स्थान के प्रधानमंत्री से समर्थन मिलने के 286 सदस्यों में से 545, सरकार फिर से ढह देर से 1998 में जब ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, साथ 18 सीटें, वापस ले लिया और उनके समर्थन है । इस एक वोट के लिए नेतृत्व के विश्वास प्रस्ताव संसद में, जहां सरकार द्वारा खो 272-273 (1 वोट) और इस प्रकार के लिए अग्रणी, नई सामान्य चुनाव में 1999. यह भी पहली बार चिह्नित आजादी के बाद से है कि भारत की लंबे समय से संचालन पार्टी, कांग्रेस, जीतने में विफल बहुमत लगातार दो चुनाव.
यह भी देखें
राज्य विधानसभा चुनाव में भारत, 1998
भारत के निर्वाचन आयोग
भारतीय राष्ट्रपति चुनाव, 1997
संदर्भ | 230 |
929891 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%A4%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%80 | कुतैसी | कुतैसी () जॉर्जिया की विधायी राजधानी तथा तीसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला नगर है। यह तिब्लिसी से २२१ किमी दूर रिओनी नदी के तट पर स्थित है तथा पश्चिमी क्षेत्र इमेरेती की राजधानी है। यह ऐतेहासिक रूप से जॉर्जिया के प्रमुख नगरों में से एक है तथा मध्ययुग में पहले जॉर्जिया राजशाही तथा बाद में इमेरेती राजशाही की राजधानी रहा है। २६ मई २०१२ को जॉर्जियाई राष्ट्रपति मिखाइल साकाशविली ने यहाँ देश के नये संसद भवन का उद्घाटन किया, तबसे यह नगर देश की विधायी राजधानी के रूप में जाना जाने लगा।
सन्दर्भ
जॉर्जिया | 94 |
968155 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A4%AC%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B9 | अरब विद्रोह | अरब विद्रोह (1916-1918) ( अल-Thawra अल-`Arabiyya) () शरीफ हुसैन बिन अली द्वारा शुरू किया गया था. तुर्क से स्वतंत्रता, और सीरिया के अलेप्पो से यमन के अदन अप करने के लिए एक विस्तृत श्रृंखला के एक अरब राज्य के गठन, इस विद्रोह था उद्देश्य पर.
पृष्ठभूमि
में तुर्क साम्राज्य, राष्ट्रवाद का उदय है, 1821 में, की दिशा है । अरब राष्ट्रवाद के शिकार किया गया था संगीत (मिस्र के पूर्व की ओर के अरब देश), विशेष रूप से शाम कीहै । अरब राष्ट्रवाद के राजनीतिक हे प्रथम विश्व युद्ध से पहले, मध्यम था. अरब मांग रहे थे सुधारवादी प्रकार है । सामान्य में, अधिक से अधिक स्वायत्तता, शिक्षा में अरबी का उपयोग बढ़ाया और शांतिकाल में सैन्य बलों में शामिल होने के नियमों को बदलने के लिए यह आसानी से सीमित था.
1908 में, 3 जुलाई को युवा तुर्क क्रांति शुरू हुई, और बहुत जल्दी से अपने साम्राज्य का प्रसार करने के लिए. अनवरोधित सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय 1876, संविधान बहाल, और संसद को फिर से स्थापित किया । इस समय, दूसरा संवैधानिक युग कहा जाता है । 1908 चुनाव में युवा तुर्क के साथ उनकी समिति के संघ और प्रगति के माध्यम से , प्रतिद्वंद्वी राजकुमार sabaheddin टीम पर काबू पाने के लिए सक्षम कर रहे हैं. उनके पहलू की तरफ से उदार था. Abd वे था हर अनुकूल और सुल्तान गया था, जो. नई संसद में, 142 जॉन, तुर्क, 60 अरब, 25 लोगों सहित, अल्बानियाई, 23 जॉन ग्रीक, 12, जॉन अर्मेनियाई, 5 यहूदी, 4 थे बल्गेरियाई, 3 जॉन, सर्बों और 1 जॉन VLT होते हैं. तुर्क संसद के केंद्रीकरण और आधुनिकीकरण पर सही जोर दिया है ।
इस स्तर पर, अरब राष्ट्रवाद, बड़े पैमाने पर कोई आंदोलन नहीं था. सीरिया में, इस विचार को सबसे कठिन है, के बावजूद, वहाँ की स्थिति भी इसी तरह की थी. अधिकांश अरब, उनके धर्म, जाति या खुद को अपनी सरकार के प्रति वफादारी के लिए. Osmanism और अखिल इस्लामवाद, की अवधारणा के अरब राष्ट्रवाद, कठिन प्रतिद्वंद्वी था.
संसद की अरब के सदस्यों 1909 जवाबी तख्तापलट करने के लिए समर्थन करते हैं । इस तख्तापलट के उद्देश्य से किया गया था करने के लिए संविधान के उन्मूलन को पूरा और दूसरा, अब्द अल हामिद के फिर से सत्ता में वृद्धि है । अपदस्थ सुल्तान, युवा तुर्क, धर्मनिरपेक्ष नीति को रद्द करने के माध्यम से खिलाफत हासिल करने के लिए कोशिश कर रहा द्वारा. लेकिन 31 मार्च की स्थिति के बाद उसे Salonika निर्वासन के बारे में है के लिए जाने के लिए. अपने भाई, पांचवें, अहमद , अपने प्रतिस्थापन है ।
की ताकत
लगभग 5,000 लोगों, सैनिक, अरब विद्रोह में भाग लिया ने कहा कि अवधारणा है. यहाँ, तथापि, केवल सिनाई और फिलिस्तीन अभियान और एडमंड एल मिस्र के बलों के साथ जुड़े गणना की है. फैसल और लॉरेंस के साथ मुठभेड़ अनियमित बलों सैनिकों पर विचार करने के लिए में लाना नहीं था. कुछ मामलों में, विशेष रूप से, सीरिया में अंतिम छापे के समय के साथ, इस संख्या में वृद्धि करने के लिए मिलता है । कई अरब बिखरे हुए विद्रोह में भाग लेने के लिए. जब संचालन प्रगति देखा जा करने के लिए या खुद के निवास के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए जब वे जोड़ देता है. वह आभारी था के लिए अपने अभियानों के दौरान जल्दी में अरब सेनाओं में सिर्फ एक कुछ सौ सैनिकों था. बाद में, स्थानीय गोर से बाहर एक हजार से अधिक लोगों को अकबर अंतिम संचालन में शामिल होने के लिए. हुसैन के सैनिकों का अलग-अलग विवरण उपलब्ध हैं । लेकिन 1918 में, उनकी संख्या 30 से 000 था. हाशमी सेना दो भागों, के होते हैं का डर था अनियमित सैनिकों में तुर्क के खिलाफ गुरिल्ला हमला करने के लिए, और तुर्क अरब युद्ध के कैदियों के मध्य से, एकत्र की रचना की शरीफ बलों , जो नियमित तरीके से लड़ने के लिए है । युद्ध के शुरू में, दिन हुसैन की सेना काफी हद तक Bedouin और अन्य एक rom गोर देखभाल के होते किया गया था. वे के साथ अपने कमजोर सहयोगियों के लिए बाध्य किया गया था और पूरी स्थिति की तुलना में डर की वफादारी के लिए उन्हें और अधिक महत्वपूर्ण था. drachmas में अग्रिम वेतन नहीं मिला है, जब तक वे लड़ाई में भाग लेने के लिए करना चाहते हैं. में 1916 के अंत तक फ्रेंच 1.25 मिलीलीटर डबल गोल्ड आलू और 1918 में सितंबर में प्रति माह, 2,20,000 पाउंड, एक विद्रोह है कि लागत है । फैसल का विचार था कि तुर्क सेना में सेवारत, अरब विद्रोह, और खुद के लिए, की ओर से ला सकते हैं । लेकिन तुर्क सरकार, अधिकांश अरब लड़ने के लिए सेना की पहली पंक्ति में भेजता है. प्रतीकवादी और की एक मुट्ठी भगोड़ों, सैनिक, अरब शामिल होने देता है. हाशमी बलों, हालांकि खराब, सुसज्जित किया गया था. लेकिन बाद में, ब्रिटेन और फ्रांस से, राइफल और मशीनगन की तरह आवश्यक हथियारों की आपूर्ति हो जाता है.1917 में Hejaz में लगभग 20,000 तुर्क सैनिकों थे. 1916 जून विद्रोह के शुरू में चौथे तुर्क सेना, 7 वीं कोर के लेफ्टिनेंट कर्नल अली नया पासा के तहत 58 वें इन्फैंट्री डिवीजन, जनरल अहमद जमाल पाशा के तहत, 1 प्रांतीय बलों, के साथ जोड़ने के लिए हेजाज़ अमेरिका में है । इस बल पर काम कर रहा था हेजाज़ रेलवे और सामान्य Fakhruddin पाशा के तहत हेजाज़ बलों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए है । हेजाज़ रेलवे के लिए जारी रखा पर हमला, क्योंकि 1917 में 2, एक अन्य बलों के लिए है का गठन किया है । तुर्क बलों में कैलिफोर्निया और हर सैनिक में था. वे कर रहे हैं सहयोगियों के खिलाफ लड़ाई में. आधुनिक जर्मन हथियार आपूर्तिकर्ता के दशक में तुर्क Afasy फिलीस्तीनियों के खिलाफ लाभ प्राप्त की. इसके अलावा तुर्क खुद के लिए, वायु सेना, जर्मन विमान और तुर्क सैनिकों की मदद की थी. उस के साथ, वे कर रहे हैं के राज्य में राजा इब्न राशिद की मदद हासिल है. इब्न राशिद के कुलों, वर्तमान में, सऊदी अरब के उत्तरी क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए, और हाशमी और सऊदी अरब के इन दो समूहों के साथ संघर्ष में थे । की आपूर्ति लाइन के कगार पर करने के लिए हमें तुर्क की कमजोरी थी. स्थितीय जोखिम के कारण, उन्हें कभी कभी सुरक्षात्मक लड़ने के लिए. Afasy के खिलाफ युद्ध तुर्क कदम समय के सबसे अधिक एक दुश्मन की खोज की तुलना में आपूर्ति की कमी की वजह से बाधित है अवरुद्ध है । युद्ध, अरब विद्रोह, मूल योगदान था दस के हजारों तुर्क सैनिकों थे व्यस्त रखा. अच्छे समय में, वे कर रहे हैं के स्वेज नहर पर हमला करने के लिए जाना. यह विद्रोह करने के लिए शुरू करने के लिए एक विचार है । प्रत्येक असममित युद्ध माना जाता है । सैन्य नेताओं और इतिहासकारों ने इस विषय पर कई बार अध्ययन.
संघर्ष
तुर्क साम्राज्य तुर्क-जर्मन एलायंस द्वारा , के हिस्से के रूप में प्रथम विश्व युद्ध में मध्य पूर्व, लड़ाई में भाग लिया. दमिश्क और बेरूत , कई अरब राष्ट्रवादी आंकड़े को गिरफ्तार कर लिया और अत्याचार किया गया था. सर मार्क साइक्स को रोकने के लिए , ध्वज के डिजाइन का निर्माण. के विद्रोह को प्रोत्साहित के रूप में "कला" की स्थापना, के लिए इसे बनाया है.
भूमिका
1916 में 8 जून के पवित्र शहर मक्का, रक्षक हुसैन बिन अली, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस की ओर से शामिल हो गए. वास्तविक तिथि ज्ञात नहीं है. तुर्क सेना में सेवा के युवा अधिकारी अरब, मुहम्मद शरीफ अल-Farooqui की मदद की, क्योंकि वे आप को फायदा होगा । जो के तहत 50 000 सशस्त्र लोगों को किया गया था. लेकिन राइफल के अनुसार संख्या 10,000 से कम है । तुर्क सरकार युद्ध के बाद, उसे अपदस्थ करेंगे, इस खबर प्राप्त किया था, वह ब्रिटिश उच्चायुक्त हेनरी MacMahon पत्र के साथ विनिमय। सहयोगी दलों के साथ साइडिंग के लिए उसे मिस्र, से फारस का विस्तार करने के लिए अरब साम्राज्य के लिए दी जानी करने के लिए कहा आश्वासन दिया जाता है. कुवैत, अदन, और सीरिया के तट पर, कुछ क्षेत्रों में क्या पकड़ नहीं किया था । पैगंबर कागज पर तुर्क पक्षों हालांकि सहयोगी दलों के साथ संबंधों. Zeid परिवार के प्रमुख शरीफ, अली हैदर शेख शरीफ के लिए तुर्क सरकार के साथ कर रही है पर किया गया था, और जल्द ही अपदस्थ किया जा करने के लिए इस तरह की अफवाहों की वजह से यह, वह का फैसला किया है । दमिश्क में, अरब राष्ट्रवाद, शोधकर्ताओं कभी कभी अभ्यास सार्वजनिक निष्पादन, जनजाति महसूस की जा गिरा बड़े पैमाने पर बढ़ जाती है । 1916 5 जून, हुसैन के दो बेटों, अमीर अली बिन हुसैन और फैसल मुहम्मद तुर्क सैन्य ठिकानों पर हमला के माध्यम से विद्रोह शुरू कर दिया. लेकिन नि: शुल्क पाशा के नेतृत्व में तुर्की बलों के लिए वे हराया था । 1916 10 जून, हुसैन, उनके समर्थकों, मक्का, तुर्क बेस पर हमला आदेशों में जब विद्रोह वास्तव में शुरू होता है । युद्ध के बाद, अलंकृत तुर्क बलों में से कुछ के साथ प्रशंसकों में एक महीने की तरह, खूनी लड़ाई. ब्रिटिश भेजा मिस्र के सैनिकों शेख Afasy फिलीस्तीनियों के साथ जोड़ देता है और उपलब्ध हथियारों प्रदान करते हैं कि. इसके बाद, 9 जुलाई, अरब उन्हें हड़पने में आता है । यादृच्छिक बमबारी मक्का के नुकसान का कारण अगर इसकी "वे कर रहे हैं के पवित्र शहर मक्का का अपमान है" इस तरह के प्रचार के अवसरों. 10 जून की तारीख हुसैन, दूसरे के बेटे आमिर अब्दुल्ला प्रकार के हमले. 22 सितम्बर, मिस्र के बलों, ग्लोनास सहायता अब्दुल्ला प्रकार पर कब्जा कर लिया ।
संदर्भ
इस्लाम का इतिहास
सउदी अरब का इतिहास | 1,574 |
710627 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%A4-%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80 | गिलगित-बल्तिस्तान के मुख्यमंत्री | राज भितळे गिलगित-बल्तिस्तान के मुख्यमंत्री, पाकिस्तान के प्रांत गिलगित-बल्तिस्तान की प्रांतीय सरकार का प्रमुख होता है। उनका चयन गिलगित-बल्तिस्तान विधानसभा करती है। पाकिस्तान पाकिस्तान की प्रशासन व्यवस्था वेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित है अतः राज्य के राज्यपाल, जिन्हें कथास्वरूप राज्य का प्रमुख होने का सौभाग्य प्राप्त है, को केवल पारंपरिक एवं नाममात्र की संवैधानिक अधिकार है जबकि आसल कार्यप्रणाली मुख्यमंत्री के नियंत्रण में होती है।जीबी के मौजूदा मुख्यमंत्री सैयद मेहदी शाह हैं जिनका संबंध पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी से है। वह 12 दिसंबर 2009 को मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए थे।
पदाधिकारियों की सूची
इन्हें भी देखें
गिलगित-बल्तिस्तान के राज्यपाल
गिलगित-बल्तिस्तान सरकार
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
गिलगित-बल्तिस्तान के मुख्यमंत्री
गिलगित-बल्तिस्तान की राजनीति
गिलगित-बल्तिस्तान सरकार
पाकिस्तान के संवैधानिक पद
पाकिस्तान के सरकारी पद
पाकिस्तानी प्रांतों के मुख्यमंत्री | 123 |
1251383 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A5%89%E0%A4%9C%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A8 | डॉजक्वाइन | डॉजक्वाइन (/ˈdoʊdʒkɔɪn/ DOHJ-koyn)(कोड: DOGE) सॉफ्टवेयर इंजीनियर बिली मार्कस और जैक्सन पामर द्वारा आविष्कार की गई एक क्रिप्टोकरेंसी है, जिसने एक भुगतान प्रणाली बनाने का फैसला किया है जो पारंपरिक/पारम्परिक, बैंकिंग शुल्क से त्वरित, मजेदार और निःशुल्क है। ऐसा करने के लिए, डॉजक्वाइन ने अपने प्रतीक चिह्न के रूप में लोकप्रिय "डोगे" मेम से 'शीबा इनू' कुत्ते का चेहरा दिखाया। इसे 6 दिसंबर/दिसम्बर , 2013 को पेश किया गया था, और 28 जनवरी, 2021 को 5,38,28,75,000 अमेरिकी डॉलर के बाजार पूंजीकरण तक पहुँचने वाले अपने ऑनलाइन समुदाय को जल्दी से विकसित किया।
इतिहास
डॉजक्वाइन की स्थापना पोर्टलैंड, ओरेगन और एडोब सॉफ्टवेयर इंजीनियर जैक्सन पामर और आईबीएम सॉफ्टवेयर इंजीनियर बिली मार्कस द्वारा की गई थी, जो एक सहकर्मी से सहकर्मी (peer to peer) डिजिटल मुद्रा बनाने के लिए तैयार हुए थे जो बिटकॉइन की तुलना में व्यापक जनसांख्यिकीय तक पहुंच सके। इसके अलावा, वे इसे अन्य सिक्कों के विवादास्पद इतिहास से दूर करना चाहते थे। डॉगकोइन को आधिकारिक तौर पर 6 दिसंबर, 2013 को लॉन्च किया गया था और पहले 30 दिनों के भीतर डॉगकॉइन डॉट कॉम के एक मिलियन से अधिक आगंतुक थे
मुद्रा आपूर्ति
क्रिप्टोकरेंसी
क्रिप्टोमुद्रा
कृप्टोमुद्रा
हिन्दी
भारत | 189 |
515461 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B8 | रुचिका गिरहोत्रा केस | रुचिका गिरहोत्रा केस हरियाणा, भारत में पुलिस शंभू प्रताप सिंह राठौर (एसपीएस राठौड़) के महानिरीक्षक द्वारा 1990 में 14 वर्षीय रुचिका गिरहोत्रा से छेड़छाड़ शामिल है। वह एक शिकायत, शिकार, उसके परिवार और उसके दोस्त बना के बाद योजनाबद्ध तरीके से उसका अंतिम आत्महत्या के लिए अग्रणी पुलिस द्वारा परेशान कर रहे थे। 22 दिसम्बर 2009 को, 19 साल के बाद, 40 स्थगन और 400 से अधिक सुनवाई, अदालत अंत में धारा के तहत 354 आईपीसी (छेड़छाड़) राठौड़ दोषी करार और छह महीने की कैद और 1,000 रुपये का जुर्माना की सजा सुनाई. सीबीआई ने उसकी सजा के बाद दो साल की अधिकतम करने के लिए छह महीने से उसकी सजा की एक वृद्धि राठौर की याचिका का विरोध किया था और मांग की थी। जांच की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने अपनी सजा के खिलाफ उसकी अपील को खारिज विशेष अदालत ने चंडीगढ़ जिला न्यायालय के 25 मई को, एक और कठोर कारावास के एक आधे साल के लिए बदनाम पूर्व पुलिस अधिकारी ने सजा सुनाई अपने पहले छह महीने की सजा को बढ़ाने और तुरंत लिया हिरासत में और Burail जेल ले जाया गया। 11 नवम्बर 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह चंडीगढ़ नहीं छोड़ना चाहिए कि शर्त पर एसपीएस राठौर को जमानत दे दी.
पृष्ठभूमि
रुचिका गिरहोत्रा चंडीगढ़ में लड़कियों के लिए सेक्रेड हार्ट स्कूल में कक्षा XA (1991 बैच) में एक छात्र थी उसके पिता एस.सी. गिरहोत्रा, यूको बैंक के साथ एक प्रबंधक थे। वह दस साल का थी जब उनकी मां की मृत्यु हो गई। उसे एक भाई आशु था।
उसके दोस्त Aradhna प्रकाश के साथ साथ रुचिका, हरियाणा लॉन टेनिस एसोसिएशन (एचएलटीए) में एक प्रशिक्षु के रूप में नामांकित किया गया था।
रुचिका के पिता और भाई के उत्पीड़न के कारण पंचकूला छोड़ना पड़ा बाद Aradhna के माता पिता आनंद और मधु प्रकाश, 400 की सुनवाई से अधिक भाग लिया। सुप्रीम कोर्ट के वकीलों पंकज भारद्वाज और मिलो मल्होत्रा ने 1996 के बाद से मुक्त करने के लिए मुकदमा लड़ा.
1941 में जन्मे और हरियाणा काडर के 1966 बैच भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी राठौर ने भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड में प्रतिनियुक्ति पर था के रूप में निदेशक, सतर्कता और सुरक्षा, वह रुचिका छेड़छाड़ करते हैं। उन्होंने कहा कि हरियाणा लॉन टेनिस एसोसिएशन के संस्थापक अध्यक्ष थे और राठौर 469 सेक्टर 6 पंचकूला में अपने घर के गैरेज में प्रयोग किया जाता है अपने कार्यालय के रूप में. पर अतिक्रमण करके बनाया इसके पीछे एक मिट्टी टेनिस कोर्ट, प्रयोग किया जाता है घर सरकारी जमीन. इस अदालत में खेला कुछ युवा लड़कियों को. [5] बाद में एक बैडमिंटन कोर्ट को कम किया जा रहा टेनिस कोर्ट के नेतृत्व करने के लिए स्थानीय अधिकारियों द्वारा कार्रवाई.
राठौड़ की पत्नी आभा एक वकील है। वह शुरू से ही अपने मामले का बचाव किया। वह पंचकूला और चंडीगढ़ में कानून प्रथाओं. अजय जैन ने राठौड़ के लिए एक वकील है।
राठौड़ की बेटी, Priyanjali, रुचिका के सहपाठी था। वह अब एक अभ्यास वकील है। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में कानून का अभ्यास करने के लिए इस्तेमाल किया उनके बेटे, राहुल,. उन्होंने कहा कि मुंबई में कॉक्स एंड किंग्स के साथ एक वकील है।
उप निरीक्षक प्रेम दत्त और सहायक उप निरीक्षक सेवा सिंह और जय मनसा देवी में अपराध जांच एजेंसी (सीआईए) स्टाफ कार्यालय के नारायण राठौर के निर्देशों के तहत आशु अत्याचार किया।
सेवा सिंह वर्तमान में पिंजौर पुलिस स्टेशन के सहायक स्टेशन हाउस ऑफिसर है। राठौर की सजा राष्ट्रीय सुर्खियों में बनाया है के बाद से वह काम के लिए सूचित नहीं किया है। उन्होंने पिंजौर में Ratpur कॉलोनी में रहती है। अजय जैन ने भी अपने वकील के रूप में सेवा कर रही है।
छेड़छाड़=
रुचिका एक होनहार टेनिस खिलाड़ी था। 11 अगस्त 1990 को राठौर ने रुचिका के घर का दौरा किया और उसके पिता एससी गिरहोत्रा से मुलाकात की. हरियाणा लॉन टेनिस एसोसिएशन के प्रमुख के रूप में, राठौड़ ने रुचिका के लिए विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने का वादा किया। उन्होंने कहा कि रुचिका यह. के सिलसिले में अगले दिन उससे मिलने का अनुरोध किया
12 अगस्त (रविवार), रुचिका को, उसकी दोस्त आराधना (आराधना प्रकाश) के साथ साथ, लॉन टेनिस कोर्ट पर खेलने के लिए गया था और (अपने घर के गैरेज में) अपने कार्यालय में राठौर से मुलाकात की. उन दोनों को देखकर, राठौर अपने कमरे में टेनिस कोच (श्री थॉमस) कॉल करने के लिए आराधना पूछा. आराधना छोड़ दिया और राठौर अकेले रुचिका के साथ था। वह तुरंत उसके हाथ और कमर पकड़ लिया और उसकी के खिलाफ अपने शरीर दबाया. रुचिका उसे धक्का दूर करने की कोशिश की, लेकिन वह उसे छेड़छाड़ जारी रखा.
लेकिन आराधना लौटे और क्या चल रहा था देखा. उसे देखकर, राठौर रुचिका जारी की है और अपनी कुर्सी में वापस गिर गया। इसके बाद वे अपने कमरे से बाहर जाने के लिए और व्यक्तिगत रूप से उसके साथ कोच लाने की आराधना पूछा. उसने मना कर दिया, जब राठौर कोच लाने के लिए उसे पूछ, जोर से आराधना को डांटा. उन्होंने कहा कि रुचिका अपने कमरे में आने जोर दिया, लेकिन वह रन आउट करने में कामयाब रहे.
रुचिका हुआ कि आराधना सब कुछ बता दिया. दोनों लड़कियों को पहली बार में किसी को नहीं बताया. अगले दिन, वे टेनिस खेलने के लिए जाना नहीं था। अगले दिन, 14 अगस्त वे राठौर से बचने के लिए अभ्यास का समय बदल गया है और 6:30 बजे तक खेला। हालांकि, वे जा रहे थे, गेंद कुदाल, Patloo, राठौड़ ने अपने कार्यालय के लिए उन्हें फोन किया था उन्हें बताया. यह लड़कियों को इस घटना के बारे में अपने माता पिता बताने का फैसला किया है कि इस बात पर था।
इस के बाद, पंचकूला निवासियों, टेनिस खिलाड़ियों में से ज्यादातर के माता - पिता, आनंद प्रकाश, रुचिका की दोस्त आराधना के पिता के निवास पर एकत्र हुए और कुछ कड़ी कार्रवाई उच्च अधिकारियों के साथ इस मामले को लाने के रास्ते से लिया जाना चाहिए कि फैसला किया।
वे या तो मुख्यमंत्री Hukum सिंह या गृह मंत्री संपत सिंह से संपर्क करें, लेकिन 17 अगस्त 1990 पर, गृह मंत्री के साथ इस मामले पर चर्चा की और जांच करने के लिए पुलिस महानिदेशक राम रक्षपाल सिंह ने कहा जो, गृह सचिव जेके दुग्गल से मुलाकात नहीं कर सके.
राठौड़ ने कथित तौर पर पंचकूला में राजीव कालोनी के कुछ निवासियों (एक झुग्गी) का भुगतान किया है और यह भी नारायणगढ़, अंबाला जिले में अपने समुदाय के लोगों के समर्थन हुई हैं। वे आरआर सिंह के कार्यालय और घर के बाहर धरना का मंचन किया।
3 सितंबर 1990 को गृह सचिव जेके दुग्गल को आरआर सिंह द्वारा प्रस्तुत जांच रिपोर्ट में राठौर को दोषी ठहराया. यह एक प्राथमिकी राठौड़ के खिलाफ तुरंत दायर करने की सिफारिश की. दुग्गल ने आवश्यक कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री को अग्रेषित करने में विफल रहा है जो गृह मंत्री संपत सिंह को रिपोर्ट भेज दिया. दुग्गल की जगह जो गृह सचिव रिपोर्ट पर पीछा कभी नहीं.
रिपोर्ट में यह भी एक पूर्व विधायक, जगजीत सिंह टिक्का रुचिका के घर के सामने नारे और उसके परिवार को परेशान करने के लिए लोगों के एक बड़े समूह का आयोजन किया है। राठौर हुकम सिंह और ओम प्रकाश चौटाला सरकारों दोनों की सरपरस्ती भी हासिल.
इसके बजाय रिपोर्ट की सिफारिश के अनुसार एक एफआईआर दाखिल की, सरकार विभागीय कार्रवाई को प्राथमिकता दी है और 28 मई 1991 को, राठौर के खिलाफ एक आरोप पत्र जारी किए हैं। हालांकि, सरकार के विधि परामर्शी, आरके नेहरू, एक प्राथमिकी दर्ज की जा आग्रह है कि राज्य सरकार ने आरोप पत्र जारी करने के लिए सक्षम नहीं था कि 1992 में सुझाव दिया. फिर, मुख्यमंत्री भजन लाल के कार्यालय सलाह के लिए मुख्य सचिव को मामला भेजा. आखिरकार, कोई कार्रवाई नहीं लिया गया था।
राठौर ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से समर्थन का आनंद ले रहा था और संभव सजा से बचने के लिए प्रणाली में अपने प्रभाव और बचाव के रास्तों का उपयोग कर रहा था।
उत्पीड़न
20 सितंबर 1990 पर, जांच राठौर को दोषी ठहराया दो सप्ताह के बाद, रुचिका सेक्टर 26, चंडीगढ़ में, लड़कियों के लिए उसे स्कूल, सेक्रेड हार्ट स्कूल से निष्कासित कर दिया गया था। रुचिका कक्षा मैं वहाँ से अध्ययन किया था
स्कूल सक्रिय रूप से रुचिका के खिलाफ साजिश रची है। उसके निष्कासन के लिए आधिकारिक कारण फीस का भुगतान न था। स्कूल वास्तव में उसकी फीस को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। विद्यालय की सामान्य प्रक्रिया है के रूप में कोई नोटिस, फीस का भुगतान न होने के लिए रुचिका को दिया गया था। विद्यालय की विवरणिका फीस का भुगतान न ही परीक्षा लेने के लिए अनुमति नहीं किया जा रहा करने के लिए नेतृत्व कर सकते हैं, जो बताता है। यह निष्कासन के लिए आधार नहीं है।
एक मजिस्ट्रेटी जांच पवित्र दिल पर फीस का भुगतान न होने के 135 इसी तरह के मामलों थे, लेकिन रुचिका को कभी भी इन आधार पर निष्कासित कर ही छात्र था कि मिल गया है। 1990 में विलंब शुल्क के 17 मामलों में से कम से कम 8 छात्र बाद में रुचिका की तुलना में उनकी फीस का भुगतान किया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की उनके खिलाफ लिया गया था। विडंबना यह है कि बकाएदारों राठौर की बेटी Priyanjali शामिल थे।
स्कूल के प्राचार्य, अभी भी वह व्यक्तिगत रूप से स्कूल के रजिस्टर से रुचिका के नाम को हटाने के लिए निर्देश जारी किए हैं कि न्यायिक जांच के लिए स्वीकार कर कार्यालय पर है, जो बहन Sebastina,.
स्कूल से रुचिका के निष्कासन के बाद उसके चरित्र पर सवाल उठाने राठौड़ के वकीलों द्वारा इस्तेमाल किया गया था।
यह रुचिका उसके सहपाठी था जो राठौर की बेटी Priyanjali, शर्मनाक से बचने के लिए निष्कासित कर दिया गया था कि आरोप लगाया गया है।
स्कूल रुचिका की बर्खास्तगी में मजिस्ट्रेटी जांच स्टाल की कोशिश की. दीदी Sebastina केवल पांच दिन बाद पूछताछ के समक्ष पेश हुए. वे जांच स्टाल करना जारी रखा तो चंडीगढ़ के अधिकारियों को कानूनी कार्रवाई के साथ स्कूल की धमकी दी.
उसके निष्कासन के बाद, रुचिका खुद को घर के अंदर ही सीमित है। वह पीछा किया और राठौड़ के गुर्गे के साथ दुर्व्यवहार किया गया था। राठौर परिवार पर नजर रखने के लिए रुचिका के घर के सामने सादे कपड़ों में पुलिसकर्मी तैनात किए गए। से बाहर चला गया जब भी
चोरी, हत्या और सिविल मानहानि के झूठे मामलों में रुचिका के पिता और उसके 10 वर्षीय भाई आशु के खिलाफ दर्ज किए गए। आशु के खिलाफ पांच चोरी के मामलों केपी सिंह ने पुलिस, अंबाला अधीक्षक था जब मामले दर्ज किए गए थे उप निरीक्षक प्रेम दत्त द्वारा दर्ज किए गए थे। सिंह आशु द्वारा दायर एफआईआर में नामित किया गया है। सिंह ने बाद में राठौर के अधिवक्ताओं राठौर absolving एक बयान प्रदान की. सिंह अब हरियाणा के पुलिस महानिरीक्षक (प्रशिक्षण) है और चंडीगढ़ के प्रधान कार्यालय में काम करता है।
मामले आनंद प्रकाश, उनकी पत्नी मधु और उनकी नाबालिग बेटी आराधना के खिलाफ दर्ज किए गए।
आनंद प्रकाश हरियाणा राज्य कृषि विपणन बोर्ड के मुख्य अभियंता के रूप में काम किया और इस घटना को जब तक एक बेदाग रिकॉर्ड था। राठौर तो उसके खिलाफ 20 से अधिक शिकायतों उकसाया. उन्होंने कहा कि कुछ समय के लिए अपनी नौकरी से निलंबित कर दिया और अधीक्षक अभियंता को पदावनत किया गया था। उन्होंने कहा कि अंत में समय से पहले सेवानिवृत्ति दिया गया था। हालांकि उन्होंने कहा कि सरकार के आदेश को चुनौती देने के लिए किया था और अदालत ने राहत दी और सभी शिकायतों की मंजूरी दे दी थी।
छेड़छाड़ मामले में एकमात्र गवाह है जो आराधना, दस नागरिक मामलों राठौर द्वारा उसके खिलाफ दायर की थी। वह ऑस्ट्रेलिया के लिए शादी की और छोड़ दिया गया जब तक वह महीनों के लिए अपमानजनक और धमकी भरे फोन आए. पंकज भारद्वाज, रुचिका के मामले को संभालने वाले वकील, राठौड़ ने एक मानहानि का मामला है और मुआवजे के लिए एक मामले से दो मामलों में अदालत के साथ थप्पड़ मारा था।
राठौड़ ने हरियाणा राज्य बिजली बोर्ड (HSEB) में सतर्कता दल जा रहा था, जब वह अपने शिकायतकर्ताओं के कई के घरों पर धावा को भिवानी से विशेष टीमें भेजी. राठौर भी पर सूचना दी थी जो पत्रकारों से प्रत्येक के खिलाफ दो मामले दर्ज बात - एक आपराधिक और एक अन्य नागरिक - 1 करोड़. रुपये मुआवजा की मांग की .
23 सितंबर 1993 को रुचिका की तो 13 वर्षीय भाई, आशु, सादे कपड़ों में पुलिस ने उसके घर के पास बाजार में उठाया गया था। वे मनसा देवी में अपराध जांच एजेंसी (सीआईए) स्टाफ कार्यालय को एक जीप में उसे खदेड़ दिया. वहाँ, वह उप निरीक्षक प्रेम दत्त और सहायक उप निरीक्षकों जय नारायण द्वारा अत्याचार किया गया था।
उसके हाथ उसकी पीठ पर बंधे थे और वह मोड़ करने के लिए बनाया गया था। उसका पैर एक वजन के साथ बंधे थे। उन्होंने कहा कि समय की एक विस्तारित अवधि के लिए इस असहज स्थिति में रखा गया था।
कुछ समय बाद, राठौर भी वहां पहुंचे। आशु तो आगे अत्याचार किया गया था। चार कांस्टेबलों रोलर चढ़ा बाद '"Mussal के रूप में पुलिस द्वारा निर्दिष्ट एक रोलर, अपने पैरों और जांघों पर लुढ़का था।
अभी भी अवैध कारावास में रहते हुए, आशु उनके घर ले जाया गया और राठौर द्वारा रुचिका के सामने बेरहमी से पीटा गया था। राठौर तो वह शिकायत, उसके पिता और उसके बाद वापस नहीं लिया तो वह खुद, एक ही किस्मत का सामना करना होगा कह रही है कि उसे धमकी दी. आशु ने अपने पड़ोस में हथकड़ी में पेश किया गया था।
आशु 11 नवम्बर 1993 को फिर से उठाया गया था। वह फिर से अत्याचार और कारण मार करने के लिए चलने में असमर्थ था। वह एक खंड में दिन के लिए भोजन या पानी नहीं दिया गया और बेरहमी से पीटा गया था। वह बार बार उसे शिकायत वापस लेने के लिए उसकी बहन को समझाने के लिए कहा गया था। उन्होंने कथित तौर पर कहा कि वह 11 कारें चुरा लिया कि उसकी "बयान". दिखाने के लिए पुलिस द्वारा इस्तेमाल किया गया, जो खाली कागजात पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया था उन्होंने यह नहीं होगा अपनी बहन की आत्महत्या के बाद तक जारी किया।
कोई शुल्क कभी आशु के खिलाफ दायर इन मामलों में से किसी में तय किए गए थे।
पंचकूला मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट उन्होंने कहा कि "कुछ भी नहीं है इंगित करने के लिए कोई हिचकिचाहट आरोपी को दोषी ठहराने के प्रथम दृष्टया करने के रिकार्ड पर है" था और मुख्य आरोपी Gajinder सिंह द्वारा किए गए खुलासे के बयान, "सिर्फ अवशेष" था कह रही है कि 1997 में आशु बरी कर दिया.
Gajinder सिंह, बिहार के निवासी है, वह अपने साथी के रूप में आशु का नाम था दावा किया कि एक कार चोरी और पुलिस के लिए पंचकूला पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था। सिंह ने बाद में फरार और एक घोषित अपराधी नामित किया गया था। उन्होंने कहा कि वह एक ढाबे चल रहा था जहां Baner रोड क्षेत्र, से जनवरी 2010, 9 उनकी पुणे समकक्षों द्वारा सहायता हरियाणा पुलिस की एक टीम द्वारा गिरफ्तार किया गया है।
सेक्टर 6 पंचकूला में गिरहोत्रा के एक कनाल बंगला जबरन राठौड़ के लिए काम कर रहे एक वकील के लिए बेच दिया गया था। रुचिका के पिता राठौर से बलात्कार के बाद कथित तौर पर भ्रष्टाचार के आरोप में, बैंक प्रबंधक के रूप में अपनी नौकरी से निलंबित कर दिया गया। वे चले गए शिमला के बाहरी इलाके में और एक जीवित करने के लिए भरने पृथ्वी हाथ में ले लिया था।
आत्महत्या
28 दिसम्बर 1993 पर, आशु के बाद दिन अपने इलाके में हथकड़ी में पेश किया गया था, रुचिका जहर का सेवन किया। वह अगले दिन मर गया। राठौर रात जश्न मनाने के लिए एक पार्टी फेंक दिया.
राठौर ने कहा कि वह कागज के खाली शीट पर हस्ताक्षर किए जब तक उसके पिता सुभाष को रुचिका के शरीर को रिहा करने से इनकार कर दिया. खाली कागजात बाद में परिवार रुचिका के जाली पोस्टमार्टम रिपोर्ट को स्वीकार किया था कि स्थापित करने के लिए पुलिस द्वारा इस्तेमाल किया गया। राठौर भी अवैध रूप से पुलिस हिरासत में अभी भी था जो आशु, मारने की धमकी दी. इस समय, आशु ने कथित तौर पर बेहोश था सीआईए में लॉक अप. वह नग्न छीन लिया और नशे में पुलिसकर्मियों द्वारा पिछली रात पीटा गया था। रुचिका के अंतिम संस्कार पर थे के बाद वह अब भी बेहोश है, उसके घर में वापस लाया गया था।
जांच और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में नाम रुचिका उसके उपनाम रूबी के साथ बदल दिया गया था और उसके पिता का नाम चंदर खत्री सुभाष को बदल दिया गया था। इस रिपोर्ट को पढ़ने कि किसी को भी यह रुचिका से संबंधित है पता नहीं होगा सुनिश्चित करने के लिए किया गया था।
सरकार मामले को उसकी मौत के बाद एक सप्ताह से भी राठौर कम खिलाफ दायर बंद हुआ।
उत्पीड़न सहन करने में असमर्थ है, उसके परिवार चंडीगढ़ से बाहर चले गए।
बस कुछ ही महीने बाद, राठौर भजन लाल मुख्यमंत्री थे नवंबर, 1994 में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के लिए प्रोत्साहित किया गया था।
प्रकरण गिरा
नवंबर 1994 में, राठौर को पदोन्नत किया गया था। कोई कार्रवाई जांच रिपोर्ट पर लिया गया था। आनंद प्रकाश की रिपोर्ट की प्रति प्राप्त करने के लिए कोशिश कर रहा शुरू कर दिया. 3 साल के बाद, वह अंततः 1997 में इसे प्राप्त किया और नवंबर में, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 21 अगस्त 1998 पर, उच्च न्यायालय ने एक जांच का संचालन करने के लिए सीबीआई को निर्देश दिया.
अक्टूबर 1999 में, ओम प्रकाश चौटाला के नेतृत्व में इनेलो सरकार बना राठौड़ राज्य के पुलिस प्रमुख (डीजीपी). उनका नाम भी नवंबर 1999 में ही सरकार द्वारा विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति के पुलिस पदक के लिए सिफारिश की थी। [51 तत्कालीन गृह सचिव के रूप में, कोई आरोप पत्र नहीं थी, कह फैसले का बचाव किया जो] बीरबल दास Dhalia,.
फिर 2000 में भाजपा के उपाध्यक्ष था जो शांता कुमार, मामले में राठौड़ के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए उसे आग्रह, ओम प्रकाश चौटाला को एक पत्र लिखा था।
हालांकि, बजाय पत्र पर अभिनय की, चौटाला इसके बारे में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से शिकायत की. शांता कुमार उस समय राजग सरकार में उपभोक्ता मामलों के मंत्री थे। चौटाला की इंडियन नेशनल लोक दल एक गठबंधन साथी था।
आशु केस
कोर्ट निम्नलिखित स्वप्रेरणा से संज्ञान उसकी दुर्दशा पर प्रकाश डाला एक मीडिया रिपोर्ट में उठाए गए पहले आशु के मामले पर पहुंच गया था, 12 दिसम्बर 2000 पर न्याय मेहताब सिंह गिल द्वारा. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन सोढ़ी और न्याय एन.के. सूद की खंडपीठ से पहले मामले को भेजा था।
खंडपीठ ने पहले deposing जबकि, आशु वह राठौर और पंचकूला पुलिस के कहने पर अमानवीय व्यवहार किया था कि कहा गया है। परिवार पंचकुला छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था के बाद से यह उसका पहला बयान था। बयान करने के समय, परिवार, सेक्टर -2 में न्यू शिमला रह रहा था।
13 दिसम्बर 2000 पर, खंडपीठ ने पंचकूला पुलिस के हाथों में उसे करने के लिए कारण उत्पीड़न के लिए आशु को मुआवजे के लिए समर्थन आवाज उठाई.
राठौड़ ने इन आरोपों को नकार 2001 में एक हलफनामा दायर किया।
कोर्ट तो सत्र न्यायाधीश पटियाला को जांच के लिए भेजा. 3 सितंबर 2002 पर, आशु वह एक पटियाला सत्र न्यायालय के माध्यम से रखा गया था।
लेकिन राठौर ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और उच्च न्यायालय के आदेश को तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया गया।
सीबीआई जांच
21 अगस्त 1998 को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक जांच का संचालन करने के लिए सीबीआई को निर्देश दिया.
उच्च न्यायालय "छह महीने के भीतर अधिमानतः", शीघ्र आरोप पत्र के मामले और दाखिल की जांच के पूरा होने का आदेश दिया था। हालांकि, सीबीआई आरोपपत्र दायर करने से पहले पारित एक साल से भी अधिक है।
16 नवम्बर 2000 को सीबीआई ने राठौर के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया।
सीबीआई की चार्जशीट के बावजूद चौटाला सरकार के पुलिस प्रमुख के रूप में जारी रखने के लिए राठौर की अनुमति दी.
मामला 17 नवम्बर से अंबाला में सीबीआई की विशेष अदालत में सुनवाई के लिए रखा गया था। अंबाला में सुनवाई मई 2006 तक जारी रहेगी.
आरोप पत्र केवल धारा 354 (बलात्कार) के तहत दायर किया गया था। आत्महत्या के लिए उकसाने बेवजह शामिल नहीं किया गया।
8 अक्टूबर 2001 पर, आनंद प्रकाश के वकील ने राठौड़ के खिलाफ आत्महत्या के (भारतीय दंड संहिता की 306) के लिए उकसाने के अलावा की मांग एक आवेदन भेजा गया है। राठौर प्रकाश कोई अदालत ले जाने के लिए खड़ा था कि बहस की.
हालांकि, 23 अक्टूबर 2001 को एक कटु फैसले में, विशेष सीबीआई न्यायाधीश जगदेव सिंह Dhanjal अपराध जोड़ा जाए. अपने 21 पृष्ठ के फैसले में सीबीआई न्यायाधीश रुचिका के पिता हैं। Dhanjal मजबूर किया गया था लेने के लिए राठौर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (अपराध के लिए उकसाने) जोड़ने में आनंद प्रकाश, दोस्त आराधना और दूसरे लोगों सहित, गवाह के बयान को रेखांकित किया समयपूर्व सेवानिवृत्ति के दो साल बाद.
हालांकि, फरवरी 2002 में, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के.सी. कथूरिया उत्पीड़न के संबंध में शिकायत की कमी का दावा, आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए राठौर के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज करने के सीबीआई अदालत के फैसले को खारिज कर दिया. न्याय कथूरिया के एक पड़ोसी था Girhotras, जिनके साथ उन्होंने एक संपत्ति विवाद में लगी हुई थी।
ब्याज की एक स्पष्ट संघर्ष में उन्होंने भी राठौर के एक सहयोगी है जो ओपी कथूरिया के एक करीबी रिश्तेदार था राठौर द्वारा जारी किया गया जिसमें हरियाणा लॉन टेनिस एसोसिएशन के सचिव के रूप में काम किया था। [6]
न्यायमूर्ति कथूरिया अब हरियाणा राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के अध्यक्ष हैं।
अविश्वसनीय रूप से, 2000 में आरोप पत्र दाखिल करने के बाद सीबीआई ने 16 अभियोजन पक्ष के गवाहों से साक्ष्य दर्ज करने के लिए 7 साल लग गए। दूसरी ओर, बचाव पक्ष के वकील कुल 17 गवाहों में से 13 की परीक्षा के बाहर पूरा करने के लिए नौ महीने लग गए।
राठौर को सीबीआई के साथ अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने की कोशिश की. 1998 में सीबीआई के संयुक्त निदेशक थे और 2001 में सेवानिवृत्त हुए आर एम सिंह राठौड़ मामले ट्रैकिंग था। फ़ाइल सिंह की मेज पर आ गया है, वह राठौड़ से उनके कार्यालय को लगातार दौरों शुरू हो रही है। राठौर ने सभी आरोपों पर उसे खाली करने के लिए सीबीआई को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है, 1998 में कई बार दौरा किया। राठौर सिंह गुड़गांव में एक घर का निर्माण किया गया था कि सीखा था और निर्माण सामग्री और अन्य सहायता प्रदान करने की पेशकश की. सिंह ने भी राठौर भी मामले, राजेश रंजन, पुलिस ने सीबीआई के उप अधीक्षक के लिए जांच अधिकारी approaced था कि पता चला. उन्होंने अधिकारियों को प्रभावित करने में विफल रहा है, जब राठौड़ मामले का तबादला किया था। वह डीजीपी था के बाद से राठौर को सीबीआई के सभी स्तरों के लिए उपयोग का आनंद लिया।
अलग रूप में अच्छी तरह से उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में एक से - हरियाणा, पंजाब और चंडीगढ़: रुचिका के तीन अलग अलग राज्यों के तीन अधीनस्थ अदालतों में सुना कुछ मामलों में से एक था। लगभग 15 आवेदनों राठौर की ओर से पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में स्वीकार किया गया था, एक रणनीति के मामले में देरी के लिए होती है।
उदाहरण के लिए, 23 जनवरी 2006 को राठौर को किसी अन्य अदालत में अंबाला सीबीआई के विशेष मजिस्ट्रेट रितु गर्ग से परीक्षण के हस्तांतरण की मांग एक आवेदन भेजा गया है। केवल दो अभियोजन पक्ष के गवाहों के साक्ष्य शेष था जब आवेदन ले जाया गया था। दावा किया कि मैदान राठौर रितु के पिता और कहा कि राठौड़ के बेटे राहुल रितु के साथ एक दोस्ताना पता था कि था। हैरानी की बात है, सीबीआई वस्तु नहीं किया था। फरवरी 2006 में दायर अपने जवाब में एसएस लाकड़ा, पुलिस, नई दिल्ली के तत्कालीन अतिरिक्त अधीक्षक, कथित तौर पर तो मामला "शीघ्र निष्कर्ष" होगा, वह स्थानांतरण पर आपत्ति नहीं थी। मामला तब पटियाला में स्थानांतरित किया गया। फिर मामला अंतिम चरण में था, जब राठौर रक्षा गवाहों overawing और राठौर डांट से पटियाला के तत्कालीन विशेष सीबीआई न्यायाधीश, राकेश कुमार गुप्ता ने आरोप लगाया. इस बार भी सीबीआई ने चंडीगढ़ को मामला स्थानांतरित करने पर आपत्ति नहीं की थी।
राठौर भी परीक्षण अधिक देरी का कारण करने के लिए वीडियोग्राफी की मांग की तरह अन्य तकनीकी आधार का इस्तेमाल किया। विडंबना यह है कि वह बाद में लंबी देरी एक कम सजा के लिए आधार थे कि दावा किया।
5 नवम्बर 2009 पर, मामला सीबीआई चंडीगढ़ अंबाला की अदालत से स्थानांतरित किया गया था। दिसम्बर में, अदालत, सभी ने अंतिम दलीलें बंद अपने फैसले और 21 दिसम्बर को, विशेष न्यायाधीश जेएस दिया सिद्धू [61] एक छह महीने की जेल की सज़ा और राठौर को 1000 रुपये का जुर्माना सुनाया. वाक्य 20 जनवरी 2010 तक स्थगित कर दिया गया था।
उन्होंने प्रस्तुत 10000 रुपये, की एक जमानत बांड के बाद सजा के बाद जमानत मिनट प्रदान की गई थी।
प्रभाव
मामला संसद में बहस के लिए लाया गया था। "19 साल के बाद, आपराधिक दोषी पाया लेकिन सजा जेल में 6 महीने किया गया था के रूप में वह सब मिल गया है। सजा के 10 मिनट के भीतर, वह जमानत पर बाहर था। यह हम सभी के लिए शर्म की बात नहीं है?" सीपीआई (एम) नेता वृंदा करात ने कहा.
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला, मामले के बारे में पूछे जाने पर, एक "फालतू मुद्दे" के रूप में इसे खारिज कर दिया. यह राठौर हरियाणा के डीजीपी को पदोन्नत किया गया था कि अपने शासन के दौरान किया गया था। मामले पर सार्वजनिक चिल्लाहट के बाद, चौटाला मुकर गए और हरियाणा में अदालतों और सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाया कि "एक प्रकाश सजा के साथ राठौड़ दूर दे." [64] वह अपने परिवार को परेशान किया ही रुचिका के पिता ने सक्रिय रूप से राठौड़ का समर्थन करने के लिए चौटाला दोषी ठहराया गया है।
Aradhna प्रकाश मामले को फिर से खोलने के लिए एक हस्ताक्षर ड्राइव शुरू कर दिया है।
हालांकि, कानून की शक्ति उसकी पुलिस पदक छीन लिया जाएगा, जो पुलिस महानिदेशक एसपीएस राठौर की पकड़ हथियाने के लिए सीमित किया जा रहा है। अगस्त, 1985 में सराहनीय सेवा के लिए पुलिस अधिकारी को दिया राठौर का पुलिस पदक, वापस लेने का निर्णय एक समिति द्वारा लिया गया था।
शंभू प्रताप सिंह राठौड़ पर हमला
राठौर ने अदालत के बाहर चला गया के रूप में फरवरी 8, 2010, उत्सव शर्मा, वाराणसी, उत्तर प्रदेश के एक निवासी के रूप में पहचान एक आदमी, एक जेब चाकू से राठौर पर हमला किया। राठौर को पास के एक अस्पताल ले जाया गया और हमलावर को हिरासत में ले लिया गया था। टेलीविजन पुलिस द्वारा संचालित खत्म होने से पहले एक तीसरे वार लापता जबकि शो शर्मा को आगे आ रही है और चेहरे में 2 बार राठौड़ छुरा पकड़ लेता है। टेलीविजन सबूत के रूप में इसके उपयोग की पवित्रता के लिए उपेक्षा के साथ उसके हाथों से हमले का हथियार पकड़े हुए एक कांस्टेबल दिखा भी पकड़ लेता है।
सन्दर्भ
भारत में महिला उत्पीड़न
हरियाणा में अपराध
पंचकूला के लोग
चंडीगढ़ के लोग | 4,484 |
1447374 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%A4%20%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%AE | किराँत मुन्धुम | किराँत मुन्धुम या किराँत धर्म एक लोकधर्म है। नेपाल, दार्जिलिंग और सिक्किम के किराती जातीय समूह इसके अनुयायी हैं। इन क्षेत्रों के यक्खा, लिम्बु, सुनुवर, राय, थामी, जिरेल हायु तथा पूर्वोत्तर भारत के सुरेल लोग इस धर्म के अनुयायी हैं। इस धर्म को 'किराँत वेद', ''किरात को वेद' आदि नामों से भी जाना जाता है। टॉम वुडहैच जैसे कुछ विद्वानों के अनुसार, यह शमनवाद, जीववाद (जैसे, युमा सम्मंग / तगेरा निंगवाफुमंग और परुहांग / सुमनिमा की पूर्वज पूजा ), और शैववाद का मिश्रण है। सन् 2011 की नेपाल की जनगणना के अनुसार नेपाल के लगभग 3.1% लोग इस धर्म के अनुयायी हैं।
इन्हें भी देखें
किरात लोग
सन्दर्भ
नेपाल की संस्कृति
हिन्दू धर्म | 113 |
1460238 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%A8%E0%A4%BF%20%E0%A4%89%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%AE%20%28%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29 | इनि उथारम (फ़िल्म) | इनि उतरम सुधीश रामचंद्रन द्वारा निर्देशित और रंजीत उन्नी द्वारा लिखित 2022 की भारतीय मलयालम भाषा की क्राइम थ्रिलर फिल्म है। एवी एंड एंटरटेनमेंट्स द्वारा निर्मित इस फिल्म में अपर्णा बालमुरली, कलाभवन शाजोन, हरीश उथमन, सिद्दीकी, चंदुनाथ जी नायर, जाफर इडुक्की औरसिद्धार्थ मेनन ने अभिनय किया हैं। फिल्म का संगीत हेशम अब्दुल वहाब ने दिया है और सिनेमैटोग्राफी रवि चंद्रन ने संभाली हैं। फिल्म को सकारात्मक व मिश्रित समीक्षा के साथ रिलीज़ किया गया।
कथानक
गृह मंत्री वर्कला दिनान विदेश दौरे पर जा रहे होते हैं तभी वह समाचार में देखते है कि संथनपारा क्रेयॉन कारखाने की हड़ताल में शांतिपूर्ण विरोध कर रही भीड़ पर सीआई करुणान के नेतृत्व में पुलिस ने हमला कर दिया हैं। तभी एसपी इलावरासन वहाँ आते हैं और मंत्री उनसे संतनपारा मुद्दे के बारे में पूछते हैं, लेकिन उनका कहना है कि यह कोई बड़ी समस्या नहीं है, यह सब लोगों की गलतफहमी है, पुलिस ने केवल आत्मरक्षा के लिए हमला किया हैं।।
एक बस में यात्रा करते समय जानकी को अचानक पिछली घटनाओं की याद आती है। जानकी एक डॉक्टर है जो एक वाइल्ड फोटोग्राफर अश्विन से प्यार करती है। वह उसे उपहार के रूप में एक स्मार्ट फोन देती है। दोनों के परिवार उनकी मर्जी के खिलाफ नहीं हैं। फिर एक दिन कोई अश्विन की बाइक छीन लेता है, लेकिन पुलिस को बाइक मिल जाती है। इसके बाद अश्विन का दोस्त विवेक उससे फोन पर पूछता है कि उसने सीआई को धन्यवाद क्यों नहीं दिया, तब वह कहता है कि धन्यवाद देने के लिए कुछ भी नहीं है, यह उनका कर्तव्य है।
कलाकार
अपर्णा बालमुरली - जानकी गणेश
हरीश उथमन - एसपी इलावरासन
कलाभवन शाजोन - सीआई करुणान उर्फ कक्का करुणान
सिद्दीकी - गृह मंत्री वर्कला दिनेशन
चंदूनाथ जी नायर - एसआई प्रशांत वर्मा के रूप में
जाफ़र इडुक्की - पास्टर प्रकाशन
सिद्धार्थ मेनन - अश्विन
संगीत
फिल्म का संगीत हेशम अब्दुल वहाब द्वारा निर्देशित है और गीत विनायक शशिकुमार द्वारा लिखे गए हैं।
सन्दर्भ | 322 |
64293 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AC%20%E0%A4%97%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%80%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%A8%20%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%A6%E0%A4%B0 | नवाब ग़ाज़ीउद्दीन हैदर | ग़ाजी-उद्-दीन हैदन (१७६९- १९ अक्टूबर, १८२७) अवध का नवाब था। वह नवाब सआदत अली खान का तीसरा बेटा था और उसकी माँ का नाम मुशीरज़ादी था। वह ११ जुलाई १८१४ में अपने पिता की मृत्यु के बाद अवध का नवाब वज़ीर बना। १८१९ में अँग्रेज गवर्नर जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स से प्रभावित होकर उसने स्वयं को स्वतंत्र अवध का बादशाह घोषित कर दिया था। उसका देहांथ लखनऊ के फरहत बख्श महल में १८२७ में हुआ। उसे बाद उसका बेटा नासिरुद्दीन हैदर उसकी गद्दी पर बैठा।
नवाब गाजीउद्दीन हैदर के शासनकाल में बनवाई गई प्रसिद्ध इमारतों में छतर मंजिल आज भी अपने सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है।
लखनऊ के नवाब | 108 |
1008023 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A6 | जहांगीराबाद | जहांगीराबाद एक कस्बा है जोकि भारत देश के राज्य उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में हैै। यह कस्बा सीतापुर बहराइच स्टेट हाईवे ३०बी पर पड़ता है यहाँ से पश्चिम दिशा में बिसवां और यहां से पूर्व में रेउसा बाजार और करसा गाँव पड़ता है।
जहाँगीराबाद सीतापुर जिले का एक छोटा सा कस्बा (नगर) है। यह नगर लखनऊ-बहराइच रोड से निकली हुई रोड बहराइच-सीतापुर रोड पर स्थित है।
भूगोल
जनसांख्यिकी
इतिहास
शिक्षा
सन्दर्भ
सीतापुर_जिले_के_क़स्बे
सीतापुर ज़िले के गाँव
उत्तर प्रदेश के गाँव
भारत के गाँव
कस्बा | 85 |
1091842 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A5%80.%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BE | डी. राजा | डी. राजा (दोरीसामी राजा) (जन्म 3 जून, 1949) एक राजनेता और तमिलनाडु से राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं। पिछले तीन दशकों से भारतीय राजनीति के सक्रिय नेता के रूप में निभा रहे हैं वर्तमान में डी. राजा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव है . 1994 से 2019 के बीच वह भारतीय पार्टी के राष्ट्रीय सचिव के रूप में कार्य कर चुके हैं . वर्तमान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव के तौर पर राजनीतिक भूमिका निभा रहे हैं . जन्म डी. राजा का जन्म वेल्लोर डिस्टिक के तमिलनाडु राज्य में एक दलित परिवार में हुआ . उनके पिता और माता नेमगम के घर हुआ . शिक्षा में हुआ शिक्षा उन्होंने अपनी नियर सी जीटीएम कॉलेज प्रियतम श्री की और अपने गांव में पहले ग्रेजुएट
सन्दर्भ | 125 |
4828 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%A6%E0%A5%80%20%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE | यहूदी धर्म | यहूदी धर्म या यूदावाद (Judaism) विश्व के प्राचीनतम धर्मों में से है, तथा दुनिया का प्रथम एकेश्वरवादी धर्म माना जाता है। इस्राइल और हिब्रू भाषियों का राजधर्म है। इस धर्म में ईश्वर और उसके नबी यानि पैग़म्बर की मान्यता प्रधान है। इनके धार्मिक ग्रन्थों में तनख़, तालमुद तथा मिद्रश प्रमुख हैं। यहूदी मानते हैं कि यह सृष्टि की रचना से ही विद्यमान है। यहूदियों के धार्मिक स्थल को मन्दिर व प्रार्थना स्थल को सिनेगॉग कहते हैं। ईसाई धर्म व इस्लाम का आधार यही परम्परा और विचारधारा है। इसलिए इसे इब्राहिमी धर्म भी कहा जाता है।
परिचय
बाबिल (बेबीलोन) के निर्वासन से लौटकर इज़रायली जाति मुख्य रूप से येरूसलेम तथा उसके आसपास के 'यूदा' (Judah) नामक प्रदेश में बस गया था, इस कारण इज़रायलियों के इस समय के धार्मिक एवं सामाजिक संगठन को यूदावाद (यूदाइज़्म/Judaism) कहते हैं।
उस समय येरूसलेम का मंदिर यहूदी धर्म का केन्द्र बना और यहूदियों को मसीह के आगमन की आशा बनी रहती थी। निर्वासन के पूर्व से ही तथा निर्वासन के समय में भी यशयाह, जेरैमिया, यहेजकेल और दानिएल नामक नबी इस यूदावाद की नींव डाल रहे थे। वे यहूदियों को याहवे के विशुद्ध एकेश्वरवादी धर्म का उपदेश दिया करते थे और सिखलाते थे कि निर्वासन के बाद जो यहूदी फिलिस्तीन लौटेंगे वे नए जोश से ईश्वर के नियमों पर चलेंगे और मसीह का राज्य तैयार करेंगे।
निर्वासन के बाद एज्रा, नैहेमिया, आगे, जाकारिया और मलाकिया इस धार्मिक नवजागरण के नेता बने। 537 ई॰पू॰ में बाबिल से जा पहला काफ़िला येरूसलेम लौटा, उसमें यूदावंश के 40,000 लोग थे, उन्होंने मन्दिर तथा प्राचीर का जीर्णोंद्धार किया। बाद में और काफिले लौटै। यूदा के वे इजरायली अपने को ईश्वर की प्रजा समझने लगे। बहुत से यहूदी, जो बाबिल में धनी बन गए थे, वहीं रह गए किन्तु बाबिल तथा अन्य देशों के प्रवासी यहूदियों का वास्तविक केन्द्र येरूसलेम ही बना और यदा के यहूदी अपनी जाति के नेता माने जाने लगे।
किसी भी प्रकार की मूर्तिपूजा का तीव्र विरोध तथा अन्य धर्मों के साथ समन्वय से घृणा यूदावाद की मुख्य विशेषता है। उस समय यहूदियों का कोई राजा नहीं था और प्रधान याजक धार्मिक समुदाय पर शासन करते थे। वास्तव में याह्वे (ईश्वर) यहूदियों का राजा था और बाइबिल में संगृहीत मूसा संहिता समस्त जाति के धार्मिक एवं नागरिक जीवन का संविधान बन गई। गैर यहूदी इस शर्त पर इस समुदाय के सदस्य बन सकते थे। कि वे याह्वे का पन्थ तथा मूसा की संहिता स्वीकार करें। ऐसा माना जाता था कि मसीह के आने पर समस्त मानव जाति उनके राज्य में संमिलित हो जायगी, किन्तु यूदावाद स्वयं संकीर्ण ही रहा।
यूदावाद अंतियोकुस चतुर्थ (175-164 ई0पू0) तक शान्तिपूर्वक बना रहा किन्तु इस राजा ने उसपर यूनानी संस्कृति लादने का प्रयत्न किया जिसके फलस्वरूप मक्काबियों के नेतृत्व में यहूदियों ने उनका विरोध किया था।
ईश्वर
यहूदी मान्यताओं के अनुसार ईश्वर एक है और उसके अवतार या स्वरूप नहीं है, लेकिन वो दूत से अपने संदेश भेजता है। ईसाई और इस्लाम धर्म भी इन्हीं मान्यताओं पर आधारित है पर इस्लाम में ईश्वर के निराकार होने पर अधिक ज़ोर डाला गया है। यहूदियों के अनुसार मूसा को ईश्वर का संदेश दुनिया में फैलाने के लिए मिला था जो लिखित (तनाख) तथा मौखिक रूपों में था। यहोवा ने इसरायल के लोगों को एक ईश्वर की अर्चना करने का आदेश दिया।
धर्मग्रन्थ
यहूदी धर्मग्रन्थ अलग अलग लेखकों के द्वारा कई सदियों के अन्तराल में लिखे गए हैं। ये मुख्यतः इब्रानी व अरामी भाषा में लिखे गए हैं।
ये धार्मिक ग्रन्थ हैं तनख़, तालमुद तथा मिद्रश।
इनके अलावा सिद्दूर, हलाखा, कब्बालाह आदि।
सन्देशवाहक (नबी)
नूह
यहूदी धर्मग्रन्थ तोराह के अनुसार हजरत नूह ने ईश्वर के आदेश पर जलप्रलय के समय बहुत बड़ा जहाज बनाया, और उसमें सारी सृष्टि को बचाया था।
अब्राहम
अब्राहम, यहूदी, इस्लाम और ईसाई धर्म तीनों के पितामह माने जातें हैं।
तोराह के अनुसार अब्राहम लगभग 2000 ई॰पू॰ अकीदियन साम्राज्य के ऊर प्रदेश में अपने इब्रानी कबीले के साथ रहा करते थे।
जहाँ प्रचलित मूर्तिपूजा से व्यथित होकर इन्होंने ईश्वर की खोज में अपने कबीले के साथ एक लम्बी यात्रा को शुरू किया।
यर्दन नदी की तराई के प्रदेश में पहुँचने के बाद प्रथम इज़राएली प्रदेश की नींव पड़ी।
यहूदी मान्यता के अनुसार कालांतर में कनान प्रदेश में भीषण अकाल पड़ने के कारण इब्रानियों को सम्पन्न मिस्र देश में जाकर शरण लेनी पड़ी।
मिस्र में कई वर्षों बाद इज़राएलियों को गुलाम बना लिया गया।
मूसा
मूसा का जन्म मिस्र के गोशेन शहर में हुआ था।
यहूदी इतिहास के अनुसार इन्होंने इब्रानियों को मिस्र की 400 वर्ष की गुलामी से बाहर निकालकर उन्हें कनान देश तक पहुँचाने में उनका नेतृत्व किया।
मूसा को ही यहूदी धर्मग्रन्थ की प्रथम पाँच किताबों, तोराह का रचयिता माना जाता है।
इन्होंने ही ईश्वर के दस विधान व व्यवस्था इब्रानियों को प्रदान की थी।
तनख़ के अनुसार मूसा मिस्र में रामेसेस द्वितीय के शासन में थे, जो कि लगभग 1300 ई॰पू॰ था।
मत
यहूदी मृत्यु के बाद की दुनिया में यकीन नहीं रखते। उनके हिसाब से सभी मनुष्यों का यहूदी होना जरूरी नहीं है। यहूदी दर्शन में वर्तमान को ही महत्वपूर्ण माना जाता है, एवं हर क्षण को भरपूरी के साथ जीना ही आवश्यक है।
ईश्वर समय-समय पर सही राह दिखाने के लिए नबियों को भेजता है।
अपने हाथों से बनाई हुई मूर्ति को ईश्वर मानकर पूजना पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है।
अपने सारे कर्तव्यों को ईश्वर को समर्पित कर उनका पूरी ईमानदारी से निर्वाह ही असल धर्म है।
यहूदी धर्म किसी निर्धारित पाप को मान्यता नहीं देता जिसमें मनुष्य जन्म से ही पापी हो बल्कि, इसमें पाप व प्रायश्चित को निरन्तर प्रक्रिया के रूप में माना जाता है। प्रायश्चित ही मुक्ति है।
प्रमुख सिद्धान्त
बाइबल के पूर्वार्ध में जिस धर्म और दर्शन का प्रतिपादन किया गया है वह निम्नलिखित मौलिक सिद्धांतों पर आधारित है -
एक ही सर्वशक्तिमान् ईश्वर को छोड़कर और कोई देवता नहीं है। ईश्वर इजरायल तथा अन्य देशों पर शासन करता है और वह इतिहास तथा पृथ्वी की एंव घटनाओं का सूत्रधार है। वह पवित्र है और अपने भक्तों से यह माँग करता है कि पाप से बचकर पवित्र जीवन बिताएँ। ईश्वर एक न्यायी एवं निष्पक्ष न्यायकर्ता है जो कूकर्मियों को दंड और भले लोगों को इनाम देता है। वह दयालु भी हे और पश्चाताप करने पर पापियों को क्षमा प्रदान करता है, इस कारण उसे पिता की संज्ञा भी दी जा सकती है। ईश्वर उस जाति की रक्षा करता है जो उसकी सहायता माँगती है। यहूदियों ने उस एक ही ईश्वर के अनेक नाम रखे थे, अर्थात एलोहीम, याहवे और अदोनाई। बाइबिल के पूर्वार्ध से यह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि ईश्वर इस जीवन में ही अथवा परलोक में भी पापियों को दण्ड और अच्छे लोगों को इनाम देता है।
इतिहास में ईश्वर ने अपने को अब्राहम तथा उसके महान वंशजों पर प्रकट किया है। उसने उनको सिखलाया है कि वह स्वर्ग, पृथ्वी तथा सभी चीजों का सृष्टिकर्ता है। सृष्टि ईश्वर का कोई रूपान्तर नहीं है क्योंकि ईश्वर की सत्ता सृष्टि से सर्वथा भिन्न है, इस लोकोत्तर ईश्वर ने अपनी इच्छाशक्ति द्वारा सभी चीजों की सृष्टि की है। यहूदी लोग सृष्टिकर्ता और सृष्टि इन दोनों को सर्वथा भिन्न समझते थे।
समस्त मानव जाति की मुक्ति हेतु अपना विधान प्रकट करने के लिये ईश्वर ने यहूदी जाति को चुन लिया है। यह जाति अब्राहम से प्रारंभ हुई थी (दे0 अब्राहम) और मूसा के समय ईश्वर तथा यहूदी जाति के बीच का व्यवस्थान संपन्न हुआ था।
मसीह का भावी आगमन यहूदी जाति के ऐतिहासिक विकास की पराकाष्ठा होगी। मसीह समस्त पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य स्थापित करेंगे और मसीह के द्वारा ईश्वर यहूदी जाति के प्रति उपनी प्रतिज्ञाएं पूरी करेगा। किन्तु बाइबिल के पूर्वार्ध में इसका कहीं भी स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता कि मसीह कब और कहाँ प्रकट होने वाले हैं।
मूसा संहिता यहूदियों के आचरण तथा उनके कर्मकाण्ड का मापदण्ड था किन्तु उनके इतिहास में ऐसा समय भी आया जब वे मूसासंहिता के नियमों की उपेक्षा करने लगे। ईश्वर तथा उसके नियमों के प्रति यहूदियों के इस विश्वासघात के कारण उनको बाबिल के निर्वासन का दण्ड भोगना पड़ा। उस समय भी बहुत से यहूदी प्रार्थना, उपवास तथा परोपकार द्वारा अपनी सच्ची ईश्वरभक्ति प्रमाणित करते थे।
यहूदी धर्म की उपासना येरूसलेम के महामन्दिर में केन्द्रीभूत थी। उस मन्दिर की सेवा तथा प्रशासन के लिये याजकों का श्रेणीबद्ध संगठन किया गया था। येरूसलेम के मन्दिर में ईश्वर विशेष रूप से विद्यमान है, यह यहूदियों का द्दढ़ विश्वास था और वे सब के सब उस मंदिर की तीर्थयात्रा करना चाहते थे ताकि वे ईश्वर के सामने उपस्थित होकर उसके प्रति अपना हृदय प्रकट कर सकें। मन्दिर के धार्मिक अनुष्ठान तथा त्योहारों के अवसर पर उसमें आयोजित समारोह भक्त यहूदियों को आनन्दित किया करते थे। छठी शताब्दी ई0 पू0 के निर्वासन के बाद विभिन्न स्थानीय सभाघरों में भी ईश्वर की उपासना की जाने लगी।
प्रारम्भ से ही कुछ यहूदियों (और बाद में मुसलमानों ने) बाइबिल के पूर्वार्ध में प्रतिपादित धर्म तथा दर्शन की व्याख्या अपने ढंग से की है। ईसाइयों का विश्वास है कि ईसा ही बाइबिल में प्रतिज्ञात मसीह है किन्तु ईसा के समय में बहुत से यहूदियों ने ईसा को अस्वीकार कर दिया। आजकल भी यहूदी धर्मावलम्बी सच्चे मसीह की राह देख रहे हैं। संत पॉल के अनुसार यहूदी जाति किसी समय ईसा को मसीह के रूप में स्वीकार करेगी।
यहूदी त्यौहार
योम किपुर
शुक्कोह
हुनक्का
पूरीम
रौशन-शनाह
पासओवर
इन्हें भी देखें
इब्राहीमी धर्म
यहूदी
टेम्पल माउंट
जोरोएस्ट्रिनिइजम
भारत में यहूदियों का इतिहास
संदर्भ ग्रंथ
आई0 एपस्टाइन: जूदाइज्म, पेंग्विन, 1959। (कामिल बुल्के)
यहूदी धर्म
इज़राइली संस्कृति | 1,542 |
500527 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%88%20%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%97%20%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0 | शंघाई पुडोंग अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र | शंघाई पुडोंग अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र () चीन के बड़े शहर शंघाई को सेवा देने वाला प्रधान अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र एवं एशिया के लिये एक बड़ा विमानन केन्द्र है। नगर का दूसरा विमानक्षेत्र है, शंघाई हॉन्गकियाओ अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र, जो मुख्यतः अन्तर्देशीय उड़ानों को वहन करता है। पुडोंग विमानक्षेत्र नगर से लगभग पूर्व दिशा में स्थित है और क्षेत्र में विस्तृत है। यह पुडोंग क्षेत्र की तटरेखा के समीपस्थ है।
यह विमानक्षेत्र एयर चाइना के लिये प्रधान अन्तर्राष्ट्रीय हब एवं चाइना ईस्टर्न एयरलाइंस एवं शंघाई एयरलाइंस के लिये मुख्य हब है। इनके अलाव भी यह कुछ निजी वायुसेवाओं जैसे डीएचएल एविएशन, जुनेयाओ एयरलाइंस, स्प्रिंग एयरलाइंस एवं यूपीएस एयरलाइंस आदि के लिये हब का कार्य करता है। डीएचएल का हब जो जुलाई २०१२ में आरंभ हुआ था, एशिया का सबसे बड़ा एक्स्प्रेस हब है।
पुडोंग विमानक्षेत्र में दो प्रमुख यात्री टर्मिनल हैं, जो दोनों ओर से तीन समानांतर उड़ानपट्टियों से घिरे हुए हैं। वर्ष २०१५ तक एक तृतीय टर्मिनल भी नियोजित है। इनके अलावा एक उपग्रह टर्मिनल, २ अतिरिक्त उड़ानपट्टियाँ भी नियोजित हैं जो मिलकर यहां की यात्री क्षमता को ६ करोड़ से ८ करोड़ यात्री प्रतिवर्ष तक पहुंचा देंगे। इनके अलावा माल यातायात क्षमता ६० लाख टन की हो जायेगी।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
शंघाई विमानक्षेत्र, आधिकारिक जालस्थल
Airliners.Net पर शंघाई पुडोंग अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र के चित्र
श्रेणी चीन के विमानक्षेत्र
शंघाई
शंघाई पुडोंग अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र
शंघाई के विमानक्षेत्र | 223 |
744610 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%80%20%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A5%82%E0%A4%A8 | नकली नाखून | महिलाएँ सामान्यत: शादी-विवाह के अवसर पर बहुत बेचैन रहती हैं कि उनके नाखून भी उनके वस्त्र की तरह ही आकर्षक दिखें | इसके अलावा उस समय वह इस बात से परेशानी भी चितित थीं कि उनकी जिंदगी के सबसे ख़ास दिन उन्हें हर समय यह परेशानी सताए कि कहीं नाखूनों से पेंट उखड़-उखड़ के न गिरने लगे | ऐसे समय का एक उपाय ऐक्रेलिक नाखूनों या नकली नाखूनों का प्रयोग के होता है |
स्वास्थ्य प्रभाव
प्रशंसापत्र
रोग
सन्दर्भ
विज्ञान आधार
मानव शरीर
अंग | 84 |
753755 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%97%E0%A4%9E%E0%A5%8D%E0%A4%9C%20%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%28%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%BE%29 | कालीगञ्ज उपज़िला (सातक्षीरा) | कालीगंज उपजिला, बांग्लादेश का एक उपज़िला है, जोकी बांग्लादेश में तृतीय स्तर का प्रशासनिक अंचल होता है (ज़िले की अधीन)। यह खुलना विभाग के सातक्षीरा ज़िले का एक उपजिला है, जिसमें, ज़िला सदर समेत, कुल 5 उपज़िले हैं, और मुख्यालय सातक्षीरा सदर उपज़िला है। यह बांग्लादेश की राजधानी ढाका से दक्षिण-पश्चिम की दिशा में अवस्थित है। यह मुख्यतः एक ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है।
जनसांख्यिकी
यहाँ की आधिकारिक स्तर की भाषाएँ बांग्ला और अंग्रेज़ी है। तथा बांग्लादेश के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह ही, यहाँ की भी प्रमुख मौखिक भाषा और मातृभाषा बांग्ला है। बंगाली के अलावा अंग्रेज़ी भाषा भी कई लोगों द्वारा जानी और समझी जाती है, जबकि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक निकटता तथा भाषाई समानता के कारण, कई लोग सीमित मात्रा में हिंदुस्तानी(हिंदी/उर्दू) भी समझने में सक्षम हैं। यहाँ का बहुसंख्यक धर्म, इस्लाम है, जबकि प्रमुख अल्पसंख्यक धर्म, हिन्दू धर्म है। खुलना विभाग में, जनसांख्यिकीक रूप से, इस्लाम के अनुयाई, आबादी के औसतन ८३.६१% है, जबकि शेष जनसंख्या प्रमुखतः हिन्दू धर्म की अनुयाई है। बांग्लादेश के सारे विभागों में, खुलना विभाग में मुसलमान आबादी की तुलना में हिन्दू आबादी की का अनुपात सबसे अधिक है। यह मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है।
अवस्थिति
कालीगंज उपजिला बांग्लादेश के दक्षिण-पश्चिमी भाग में, खुलना विभाग के सातक्षीरा जिले में स्थित है।
इन्हें भी देखें
बांग्लादेश के उपजिले
बांग्लादेश का प्रशासनिक भूगोल
खुलना विभाग
उपज़िला निर्वाहि अधिकारी
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
उपज़िलों की सूची (पीडीएफ) (अंग्रेज़ी)
जिलानुसार उपज़िलों की सूचि-लोकल गवर्नमेंट इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट, बांग्लादेश
http://hrcbmdfw.org/CS20/Web/files/489/download.aspx (पीडीएफ)
श्रेणी:खुलना विभाग के उपजिले
बांग्लादेश के उपजिले | 262 |
166749 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%B2%20%E0%A4%AB%E0%A5%8B%E0%A4%A8%20%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%B0 | वैश्विक सेल फोन चार्जर | यह ऐसा चार्जर है जिससे सभी कंपनी के मोबाइल चार्ज किए जा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र दूरसंचार इकाई द्वारा वैश्विक स्तर पर एक ही प्रकार के मोबाइल चार्जर से संबद्ध प्रौद्योगिकी को मंजूरी दे दी गई है। नई प्रौद्योगिकी पर आधारित यह चार्जर कम बिजली खपत करेगा। इस चार्जर में माइक्रो यूएसबी प्लग का इस्तेमाल होगा, जो डिजिटल कैमरे में इस्तेमाल होने वाले प्लग के समान है। आईटीयू ने कहा है कि सभी मोबाइल फोन उपयोगकर्ता नए यूनिवर्सल चार्जिंग सोल्यूशन से लाभान्वित होंगे। भविष्य के सभी हैंडसेट में इस चार्जर का इस्तेमाल होगा।
संदर्भ एवं सहायक सामग्री
उपकरण | 98 |
504104 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%82%20%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A5%87 | चित्तू पाण्डे | चित्तू पाण्डे (10 मई 1865 - 1946) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी थे। उन्हें 'बलिया का शेर' के नाम से जाना जाता है। उन्होने १९४२ में बलिया में भारत छोड़ो आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। १९ अगस्त १९४२ को एक 'राष्ट्रीय सरकार' की घोषणा करके वे उसके अध्यक्ष बने जो कुछ दिन चलने के बाद अंग्रेजों द्वारा दबा दी गई। यह सरकार बलिया के कलेक्टर को सत्ता त्यागने एवं सभी गिरफ्तार कांग्रेसियों को रिहा कराने में सफल हुई थी। वे अपने आप को गांधीवादी मानते थे।
जीवन परिचय
चित्तू पाण्डे का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के रत्तूचक गाँव में हुआ था।
बाहरी कड़ियाँ
बलिया के शेर चित्तू पांडेय
Profile at indyarocks.com
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी
बलिया
बलिया के लोग | 122 |
382792 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A4%B2%20%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%81%20%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%95 | डिजिटल वस्तु अभिज्ञापक | डिजिटल वस्तु अभिज्ञापक या डिजिटल ऑब्जेक्ट आएडॅन्टीफ़ायर (डी॰ओ॰आई॰, digital object identifier) एक क्रमांक है जिसके ज़रिये किसी भी डिजिटल वस्तु (जैसे कोई चित्र, विडियो, गाना, दस्तावेज़, इत्यादि) को एक अनूठा नाम दिया जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय डी॰ओ॰आई॰ संसथान ("इंटरनैशनल डी॰ओ॰आई॰ फ़ाउन्डेशन") ने इस विधि का विकास किया और वही डी॰ओ॰आई॰ प्रणाली के साथ पंजीकृत की गयी वस्तुओं की सूची रखता है। डी॰ओ॰आई॰ के साथ दर्ज की गयी हर वस्तु के बारे में डी॰ओ॰आई॰ क्रमांक के साथ कुछ जानकारी रखी जाती है - जैसे उसका नाम, उसके सृष्टिकर्ता का नाम, सृष्टि का दिवस, इत्यादि। यह प्रणाली जनता के लिए खुली नहीं है। डी॰ओ॰आई॰ में वस्तुएँ दर्ज करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय डी॰ओ॰आई॰ संसथान के साथ नियमपत्र पर हस्ताक्षर करने होते हैं और उन्हें सालाना शुल्क देना होता है। २०१० तक अंतर्राष्ट्रीय डी॰ओ॰आई॰ संसथान के साथ लगभग ४,००० संस्थानें पंजीकृत थीं जिन्हें डी॰ओ॰आई॰ में वस्तुएँ दर्ज करने का अधिकार था और ४ करोड़ से कुछ ज़्यादा वस्तुएँ दर्ज की जा चुकी थीं।
डी॰ओ॰आई॰ का एक बहुत बड़ा फ़ायदा यह है के अगर किसी चीज़ का डी॰ओ॰आई॰ क्रमांक पता हो तो उसे जल्दी से वेब पर ढूँढा जा सकता है और उसके बारे में जानकारी पाई जा सकती है। क्योंकि हर पंजीकृत चीज़ का अलग और अनूठा क्रमांक होता है इसलिए अगर किसी चीज़ का कोई साधारण सा नाम हो, जैसे "पेड़ की तस्वीर", जिस नाम से लाखों वस्तुएँ मौजूद हों, तो भी उसी एक वस्तु को ढूँढने में दिक्कत नहीं होती जिसकी ज़रुरत हो।
बहरी कड़ियाँ
अंतर्राष्ट्रीय डी॰ओ॰आई॰ संसथान की वेबसाईट
अभिज्ञापक
हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना | 253 |
841930 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%A8 | अश्वमीन | अश्वमीन या समुद्री घोड़ा (Seahorse) समुद्र में पायी जाने वाली छोटी मछलियों की ५४ प्रजातियों का नाम है जो हिप्पोकैम्पस जीनस में आतीं हैं। समुद्री घोड़ा एक विचित्र प्रकार की मछली है। इसका सिर घो़ड़े के सिर से मिलता-जुलता है, इसलिए इसका नाम समुद्री घोड़ा पड़ गया। इसका शरीर कड़ा और चिकना होता है तथा पूँछ साँप जैसी होती है। यह अक्सर गर्म समुद्रों के पास समुद्री घास और छोटे-छोटे पौधों के साथ पूँछ की कुंडली बनाकर चिपका रहता है। इसकी अधिकतर आदतें मछलियों से अलग होती हैं।
समुद्र के पानी में बहती हुई किसी चीज को खाते समय भी ये अपनी पूँछ समुद्री घास से चिपकाए रहते हैं। ये सफेद पीले और लाल रंग के होते हैं। इनकी सौ से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनकी लंबाई २.५ सेमी से ३०.५ सेमी तक होती है। ये फिन का इस्तेमाल करते हुए सीधी स्थिति में तैरते हैं। इसकी दोनों आँखें एक-दूसरे से स्वतंत्र काम करती हैं, नर समुद्री घोड़े के पेट पर कंगारू की तरह थैली होती है। मादा इसी थैली में अंडे देती है। इस थैली में ही अंडों से बच्चे बनते। अंडों से बच्चे बनने में ४५ दिन का समय लगता है8। इसके बाद नर थैली खोलकर बच्चों को समुद्र में छोड़ देता है। नर समुद्री घोड़ा एक वर्ष में अंडों को तीन बार अपनी थैली में "से" सकता है। एक बार में वह इसमें पचास अंडों को रख सकता है। मादा से मिलने के बाद ५ सप्ताह में इसके पेट की थैली में अंडे तैयार हो जाते हैं। समुद्री घोड़ा केवल गर्मियों में ही दिखाई देता है। यह किसी को पता नहीं कि सर्दियों में यह कहाँ चला जाता है। यह मछली खाने के काम नहीं आती। समुद्री घोड़े को दूसरी मछलियाँ भी खाना पसंद नहीं करतीं। इसलिए इसे शत्रुओं का खतरा कम हो जाता है। अश्व्मीन का आकार 1.५ से 35.५ सेंटीमीटर तक होता है सामान्य रूप से मछलियों में से अश्वामिन के पास एक अच्छी लचीली गर्दन होती है. ये छोटे जिव तैरने में काफी कमजोर होते है इनकी पूंछ के ऊपरी हिस्से पर मोरपंख जैसे बेहद छोटे से पंख होते है लेकिन ये तेजीसे तैरने लायक मदद नहीं करते.
सन्दर्भ
मछली की प्रजातियाँ | 359 |
1023513 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%B8 | जेसिका लोन्डेस | जेसिका लोन्डेस (जन्म: 8 नवंबर, 1988) एक कनाडाई अभिनेत्री और गायिका-गीतकार हैं। वह सीडब्ल्यू किशोर ड्रामा सीरीज़ 90210 पर एड्रियाना टेट-डंकन के रूप में अपनी भूमिकाओं के लिए जानी जाती हैं और कई हॉलमार्क चैनल फिल्मों में दिखाई देती हैं।
प्रारंभिक जीवन
लोन्डेस का जन्म वैंकूवर , ब्रिटिश कोलंबिया में हुआ था और उन्होंने सरे में पैसिफिक अकादमी में भाग लिया था।
वैंकूवर में बढ़ते हुए, लॉन्डेस ने निजी स्कूल में भाग लिया, जो बाद में उसने सीखा कि वह उसके लिए नहीं थी। वह कम उम्र से जानती थी कि उसे गाने और अभिनय का शौक है। एक ऐसे घर में पली बढ़ी, जहाँ उसकी माँ एक पियानो शिक्षक थी और उसके पिता ने कनाडा भर में दौड़ने के लिए किशोर रिकॉर्ड रखा था, लॉन्डेस एक लक्ष्य को पूरा करना जानते थी और अपने सपनों को सच करना संभव था।
जबकि एक छोटे बच्चे के रूप में, लॉन्डेस, हर समय गायन और नृत्य के लिए कुख्यात थी, उन्होंने आखिरकार हाई स्कूल में अपना पहला प्रमुख अभिनय अवसर अर्जित किया। कम उम्र में भी अपने खुद के संगीत का बहुत कम उत्पादन किया। अपने वरिष्ठ वर्ष से पहले गर्मियों के दौरान, लॉन्डेस ने शोटाइम के लिए एक परियोजना पर काम किया, और तुरंत पता चला कि वह एक दिन परदे पर काम करना चाहती थी। इस परियोजना पर काम करते हुए, लॉन्डेस ने ला के लोगों से मुलाकात की और मनोरंजन उद्योग में प्रतिनिधित्व प्राप्त किया।
एक प्रोडक्शन के लिए वास्तविक भूमिका निभाने जैसा अनुभव करने के बाद, लॉन्डेस ने अपने माता-पिता से कहा कि वह हाई स्कूल में वापस नहीं जाना चाहती थी, और इसके बजाय वह लॉस एंजिल्स में अभिनय में अपना कैरियर बनाना चाहती थी। अपने माता-पिता से प्रोत्साहन के साथ, लॉन्डेस 16 साल की उम्र में एलए में चले गई और अपना करियर शुरू किया।
व्यवसाय
लॉन्डेस ने 16 साल की उम्र में 2005 की टेलीविजन फिल्म सेविंग मिल्ली के रूप में एंड्रिया कोंड्रैक के साथ अभिनय की शुरुआत की। इसके बाद मास्टर्स ऑफ हॉरर के एक एपिसोड में अतिथि भूमिका निभाई गई, बाद में उन्हें बेकी के रूप में कास्ट किया गया, जो सिटकॉम एलिस, आई थिंक में एक आवर्ती भूमिका थी। उन्होंने काइल एक्स वाई पर अतिथि भूमिका भी निभाई। उनकी अगली फिल्म भूमिका 2005 में लाइफटाइम फिल्म टू हैव और होल्ड में सहायक भूमिका थी, इसके बाद 2007 में प्रिटी / हैंडसम नामक एक पायलट ने काम किया, जिसे उठाया नहीं गया।
2008 में, लोवंडेस एक और आवर्ती भूमिका के साथ ऑटोप्सी और द हाउलिंग ऑफ मॉली हार्टले में दिखाई दिए, इस बार टेलीविजन नाटक श्रृंखला ग्रीक में मंडी के रूप में। उसने यह भी रूप में एक आवर्ती भूमिका उतरा एड्रियनना टेट-डंकन श्रृंखला में 90210 , '90 के दशक किशोर नाटक श्रृंखला के एक स्पिन-ऑफ बेवर्ली हिल्स, 90210 । नवंबर 2008 में, उनकी भूमिका नियमित रूप से श्रृंखला में अपग्रेड की गई।
बडीटीवी ने 2011 की सूची में अपने टीवी की 100 सबसे सेक्सी महिलाओं में 58 वें स्थान पर रहीं। अप्रैल 2012 में, उसने द डेविल्स कार्निवल में अभिनय किया, जो एक छोटी संगीतमय फिल्म थी जो दौरे पर प्रदर्शित हुई।
लोन्डेस ने लायंसगेट की 2014 की एक्शन फिल्म द प्रिंस में ब्रूस विलिस और जॉन क्यूसैक के साथ अभिनय किया।
2015 में, लॉन्ड्स ने लाइफटाइम की नाटकीय-थ्रिलर कॉमेडी फिल्म ए डेडली अडॉप्शन विल फेरेल और क्रिस्टन वाईग के साथ अभिनय किया।
2016 में, लोन्डेस ने डेनियल लिसिंग के साथ हॉलमार्क की ए दिसंबर ब्राइड में अभिनय किया।
गायन
वह तब से पियानो बजा रही है जब वह पाँच साल की थी और जब वह नौ साल की थी तब से संगीत लिख रही थी। ।
मार्च 2009 में, उसने माईस्पेस पर फ्लाई अवे गीत जारी किया। वह ट्रैक में लेखक, गायिका और प्रमुख गिटारवादक दोनों थीं।
19 सितंबर, 2009 को, लोन्डेस ने लॉस एंजिल्स , कैलिफोर्निया में डोजर स्टेडियम में डोजर्स खेल के लिए गॉड ब्लेस अमेरिका का प्रदर्शन किया।
वह ब्रिटिश रैपर आयरनिक के एकल " फॉलिंग इन लव " में चित्रित किया गया था - 24 अक्टूबर, 2010 को -और ओके पर पता चला ! टीवी कि वह यूनाइटेड किंगडम में अपनी पहली फिल्म ईपी को खत्म कर रही थी। उन्होंने एल्बम को "रिहाना और कैटी पेरी की तरह सेक्सी, पॉप डांस संगीत" के रूप में वर्णित किया।
लोअंड्स ने बाद में संगीत निर्माताओं जेम्स रेंडन और कायडेन बोचे के साथ मिलकर फ्रेंच अमेरिकन आइडल के फाइनलिस्ट जेरी एमीलीन के एकल "अनडोन" एक विशिष्ट संस्करण को रिकॉर्ड किया - जिसका प्रीमियर 6 मई, 2011 और इसे दुनिया भर में जारी किया गया 23 मई, 2011.
11 अक्टूबर, 2011 को, सीबीएस रिकॉर्ड्स ने आईट्यून्स पर अपना पहला एकल "फ़ूल" रिलीज़ किया।
कुछ ही समय बाद, लॉन्डेस ने 11 नवंबर, 2011 को फ्रैंक ई। फ्लावर्स द्वारा निर्देशित अपने आधिकारिक संगीत वीडियो के साथ, "आई विश आई वाज़ गे", किया।
25 जनवरी, 2012 को, लॉन्डेस ने अपनी पहली फिल्म ईपी- की विशेषता वाले सिंगल्स आई विश आई वाज़ गे और नथिंग लाइक को जारी किया , साथ ही दो नए गीत स्टांप ऑफ़ लव एंड गो बैक ।
डेविल्स कार्निवल साउंडट्रैक में लोएंड्स द्वारा प्रस्तुत ऑल माई ड्रीम्स आई ड्रोन शीर्षक से एक गाना भी है और 3 अप्रैल 2012 को रिलीज़ किया गया।
14 मई 2012 को, उनकी एकल द अदर गर्ल का प्रीमियर कॉम्प्लेक्स डॉट कॉम पर हुआ । एकल को 16 मई, 2012 को iTunes पर जारी किया गया था। 6 फरवरी, 2013 को, लॉन्डेस ने घोषणा की कि वह 14 मार्च, 2013 को टीबीटी (थ्रोबैक वीर) शीर्षक से अपना स्व-लिखित दूसरा ईपी जारी करेगी , इसके साथ ही प्रत्येक गुरुवार को चार सप्ताह के लिए इसे ट्रैक किया जाएगा। 7 फरवरी, 2013 को, एपर्चर एंटरटेनमेंट ने फ्लाई ईपी को अपने ईपी से प्रमुख एकल के रूप में रिलीज़ किया।
9 सितंबर, 2014 को, Lowndes ने स्टीरियो में अपना एकल सिलिकॉन जारी किया। आधिकारिक संगीत वीडियो का प्रीमियर 6 सितंबर, 2014 को हुआ था - दोनों यूट्यूब और वीवो पर । यह गाना बिलबोर्ड कनाडा के टॉप 50 में 35 वें और यूएस टॉप 100 में नंबर 65 पर पहुंच गया।
लोन्डेस को पीपुल्स मैगज़ीन की 2009 की दुनिया की सबसे खूबसूरत लोगों की सूची में शामिल किया गया था, साथ ही श्रृंखला 90210 से सह-कलाकार भी थी।
[ उद्धरण वांछित ]
पुरस्कार
2014 : ए मदर्स नाइटमेयर में उनके प्रदर्शन के लिए कैनेडियन स्क्रीन अवार्ड्स में नामांकित।
2009 : 90210 में उनके प्रदर्शन के लिए प्रिज्म अवार्ड्स में नामांकित।
जीवित लोग
1988 में जन्मे लोग | 1,058 |
926394 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9F | सैराट | सैराट एक मराठी भाषा की फिल्म है जो 2016 में सिनेमाघरों मेंं प्रदर्शित हुई थी। इसके बाद करण जोहर ने इसका हिन्दी भाषा में रूपांतरण धड़क नाम से बनाया है। सैराट फिल्म 4 करोड़ में बनी और उसने 110 करोड़ से भी अधिक रुपयों की कमाई की। इस फिल्म में रिंकू राजगुरू और आकाश ठोसर ने मुख्य किरदार निभाया और इस फिल्म के लेखक नागराज पोपटराव मंजुले रहे हैं।
66वें बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सैराट का प्रीमियर हुआ और इसको सराहना मिली। इसे 29 अप्रैल 2016 को महाराष्ट्र और भारत के कई अन्य क्षेत्रों में जारी किया गया था। फिल्म को आलोचकों से भारी सकारात्मक समीक्षा मिली; विशेष रूप से राजगुरू के प्रदर्शन को अत्यधिक प्रशंसा मिली। रिलीज होने पर, फिल्म ने कई रिकॉर्ड तोड़ दिए, जिसमें किसी मराठी फिल्म के लिए सबसे ज्यादा कमाई और 50 करोड़ का आकड़ा पार करने वाली पहली मराठी फिल्म होना शामिल था। आखिरकार, यह बॉक्स ऑफिस पर 110 करोड़ से अधिक कमाई कर गई और इस तरह 100 करोड़ को पार करने वाली पहली मराठी फिल्म बन गई। फिल्म की सफलता ने दोनों कलाकारों को महाराष्ट्र में रातों-रात सनसनी बना दिया।
राजगुरू को 63वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में विशेष उल्लेख का पुरस्कार मिला। फिल्म ने 2017 के फिल्मफेयर मराठी पुरस्कार में ग्यारह पुरस्कार जीते, जिनमें सर्वश्रेष्ठ फिल्म, मंजुले के लिये सर्वश्रेष्ठ निदेशक, राजगुरू के लिये सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री और सर्वश्रेष्ठ संगीत एल्बम शामिल हैं। राजगुरू और आकाश ने उसी समारोह में सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेता और अभिनेत्री श्रेणियों में भी पुरस्कार जीता। इसकी सफलता और लोकप्रियता के कारण, सैराट को कई भाषाओं में पुनर्निर्मित किया गया था।
इसे कन्नड़, ओड़िया, पंजाबी, बंगाली और हिन्दी में पुनर्निर्मित किया गया है।
साथ ही इसे तेलुगु, और तमिल में पुनर्निर्मित किया जाएगा।
कहानी
प्रशांत काले एक छोटे जाति में जन्म एक बच्चा है, जिसके पिता मछली पकड़ने का काम करते हैं। वो पढ़ाई में तो अच्छा रहता ही है, साथ ही स्थानीय क्रिकेट टीम का कप्तान भी रहता है। अर्चना पाटील एक अमीर और ऊंची जाति में जन्मी एक बच्ची है, जिसके पिता जमीनदार और राजनेता हैं। उसे ट्रैक्टर और मोटरसाइकिल चलाने में मजा आता है। वे दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ाई करते हैं और बाद में एक दूसरे से प्यार भी करने लगते हैं।
अर्चना के छोटे भाई के जन्मदिन के दिन वे दोनों घर के पीछे ही मिलते हैं और अर्चना के परिवार वाले उन दोनों को साथ में देख लेते हैं। अर्चना के पिता, तात्या उसकी और उसके दोस्त की खूब पिटाई करते हैं। तात्या उसके और उसके दोस्तों के खिलाफ पुलिस में झूठी शिकायत दर्ज कराने की कोशिश करता है, पर अर्चना उस शिकायत को नष्ट कर देती है। प्रशांत और अर्चना किसी तरह घर से भाग जाते हैं और हैदराबाद चले जाते हैं।
नए शहर में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। काफी कोशिशों के बाद भी वे दोनों बहुत कम कमाई कर पाते हैं। इसी बीच उन दोनों में बहस भी हो जाती है और अर्चना वापस जाने का फैसला कर लेती है। लेकिन वापस जाने से पहले ही उसका मन बदल जाता है और वो प्रशांत के पास वापस आ जाती है। दोनों रजिस्ट्रार ऑफिस में शादी कर लेते हैं और जल्द ही उनका एक बेटा भी होता है।
कुछ सालों के बाद उनकी आर्थिक स्थिति काफी अच्छी हो जाती है और वे तीनों अच्छी जगह पर हंसी-खुशी रहने लगते हैं। एक दिन अर्चना अपनी माँ को फोन कर अपने बेटे को फोन थमा देती है। फोन पर बात करने के बाद प्रिंस और उसके दोस्त कुछ उपहार के साथ आते हैं, जो अर्चना की माँ ने भेजे हैं। उनका बेटा, आकाश अपने पड़ोस में जाता है। अर्चना और प्रशांत मिल कर प्रिंस और उसके दोस्तों का अपने घर में स्वागत करते हैं और चाय भी पिलाते हैं। आकाश अपने घर वापस आते रहता है और देखता है कि उसके माता-पिता जमीन पर खून से लटपत होकर मरने की कगार में हैं।
कलाकार
रिंकू राजगुरू — अर्चना पाटील उर्फ 'आर्ची'
आकाश ठोसर — प्रशांत काळे उर्फ 'परश्या'
तानाजी गलगुंडे — प्रदीप बनसोडे उर्फ 'लंगड्या'
अरबाज शेख — सलीम शेख उर्फ 'सल्या'
अनुजा मुले — ॲनी
धनंजय ननावरे — मंगया
सुरेश विश्वकर्मा — तात्या
भक्ती चव्हाण
सूरज पवार — प्रिन्स
संभाजी तांगडे
वैभव परदेशी
नागराज मंजुले — सातपुते सर
छाया कदम
भूषण मंजुले
ज्योती सुभाष — संगुना आत्या
संगीत
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
2016 की फ़िल्में
मराठी फ़िल्में | 719 |
213820 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B8%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4 | गैलापागोस प्रांत | गैलापागोस ईक्वाडोर का एक प्रांत है जो देश के द्वीपीय क्षेत्र में मुख्य भूमि के पश्चिमी तट पर और लगभग 600 मील की दूरी पर स्थित है। इसकी राजधानी प्यूर्टो बैक्वेरीज़ो मोरेनो है।
गैलापागोस द्वीपसमूह का प्रशासन इस प्रांत के अधीन है। सदियों से भूमध्य रेखा पर स्थित इन ज्वालामुखीय द्वीपों ने लोगो को अपनी ओर आकर्षित किया है जो इसकी जैव विविधता के अध्ययन और दर्शन के लिए यहाँ आते हैं।
राजनीतिक विभाग
कैण्टन
प्रांत तीन कैण्टनों में विभाजित है जिनमें से हर कैण्टन में कई द्वीप स्थित हैं। इनका विवरण इस प्रकार है: -
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
गैलापागोस द्वीप | 101 |
23895 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE | पटकथा | पटकथा किसी फ़िल्म या दूरदर्शन कार्यक्रम के लिए पटकथा लेखक द्वारा लिखा गया कच्चा चिट्ठा होता है। यह मूल रूप से भी लिखा जा सकता है और किसी उपन्यास या कहानी के लिए भी तैयार किया जा सकता है। इसमें संवाद और संवादों के बीच होने वाली घटनाओं व दृश्यों का विस्तृत ब्योरा होता है। इसे अंग्रेजी में स्र्कीनप्ले कहा जाता है।
जबतक साहित्य कहानी के विधा में होती है तब तक पटकथा की जरूरत नहीं होती क्योंकि तब वह केवल पठनीय मात्र होती है ।
किंतु उसे जैसे ही पर्दे पर लाने की कोशिश की जाती है तब इस कहानी में दर्र्श्यात्मक तथ्यों को वास्तविक रूप में दिखाने के लिए पटकथा की जरूरत पडती है।
<
A screenplay or script is a blueprint, written by a screenwriter, for a film or television program. Screenplays can be original works or adaptations from existing works such as novels. A screenplay differs from a script in that it is more specifically targeted at the visual, narrative arts, such as film and television, whereas a script can involve a blueprint of "what happens" in a comic, an advertisement, a theatrical play and other "blueprinted" creations.
The major components of a screenplay are action and dialogue, with the "action" being "what we see happening" and "dialogue" being "what the characters say". The characters, when first introduced in the screenplay, may also be described visually. Screenplays differ from traditional literature conventions in ways described below; however, screenplays may not involve emotion-related descriptions and other aspects of the story that are, in fact, visual within the end-product.
For more details on the contents of screenplays, see Screenwriting.
In the United States, the Writers Guild of America (WGA) has final control on who may be awarded screenwriting credit for a screenplay in a union production. The WGA is one of several organizations in the U.S. and worldwide which recognize screenplays with awards.
A script for television is sometimes called a teleplay.-->
फ़िल्म
फ़िल्म निर्माण | 327 |
433689 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%B0 | जापान सागर | जापान सागर पश्चिमी प्रशांत महासागर का एक समुद्री अंश है। यह समुद्र जापान के द्वीपसमूह, रूस के साख़ालिन द्वीप और एशिया के महाद्वीप के मुख्य भूभाग के बीच स्थित है। इसके इर्द-गिर्द जापान, रूस, उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया आते हैं। क्योंकि कुछ स्थानों को छोड़कर यह क़रीब-क़रीब पूरी तरह ज़मीन से घिरा हुआ है, इसलिए इसमें भी भूमध्य सागर की तरह महासागर के ज्वार-भाटा की बड़ी लहरें नहीं आती। अन्य सागरों की तुलना में जापान सागर के पानी में मिश्रित ऑक्सिजन की तादाद अधिक है जिस से यहाँ मछलियों की भरमार है।
जापान सागर का क्षेत्रफल ९,७८,००० वर्ग किमी है और इसकी सब से अधिक गहराई सतह से ३,७४२ मीटर (१२,२७६ फ़ुट) नीचे तक पहुँचती है। इसके इर्द गिर्द ७,६०० किमी के तट हैं, जिसमें से लगभग आधा रूस की धरती पर पड़ता है। नीचे समुद्र के फ़र्श पर तीन बड़ी द्रोणियाँ हैं: उत्तर में "जापान द्रोणी", दक्षिण-पश्चिम में "त्सुशिमा द्रोणी" और दक्षिण-पूर्व में "यामातो द्रोणी"। जापान द्रोणी सबसे गहरा क्षेत्र है और यहाँ का फ़र्श प्राचीन ज्वालामुखीय पत्थर से बना हुआ है। माना जाता है कि पिछले हिमयुग की चरम स्थिति में जब समुद्र की सतह वर्तमान युग से नीचे थी तो जापान एशिया के मुख्य भाग से धरती द्वारा जुड़ा हुआ था। भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि उस समय जापान सागर आधुनिक कैस्पियन सागर की भाँती एक ज़मीन से घिरा हुआ बंद समुद्र था।
इन्हें भी देखें
प्रशांत महासागर
जापान
साख़ालिन
सन्दर्भ
प्रशान्त महासागर के सीमांत सागर
प्रशान्त महासागर
हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना | 246 |
1267210 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%96%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AB%20%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%AE%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%20%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A4%AC%20%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4%20%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%202014-15 | पाकिस्तान के खिलाफ न्यूज़ीलैंड क्रिकेट टीम का संयुक्त अरब अमीरात दौरा 2014-15 | न्यूजीलैंड क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान खेलने के लिए 11 नवंबर से 19 दिसंबर 2014 तक संयुक्त अरब अमीरात का दौरा किया। इस दौरे में तीन टेस्ट मैच, दो ट्वेंटी 20 अंतर्राष्ट्रीय और पांच एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैच शामिल थे। टेस्ट और टी20आई सीरीज़ दोनों 1-1 की बराबरी पर थी और न्यूज़ीलैंड ने वनडे सीरीज़ 3-2 से जीती।
टेस्ट सीरीज
पहला टेस्ट
दूसरा टेस्ट
तीसरा टेस्ट
टी20आई सीरीज
पहला टी20आई
दूसरा टी20आई
वनडे सीरीज
पहला वनडे
दूसरा वनडे
तीसरा वनडे
चौथा वनडे
पांचवां वनडे
सन्दर्भ
न्यूज़ीलैंड क्रिकेट टीम का पाकिस्तान दौरा | 90 |
462675 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%82%20%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%81 | वू चीनी भाषाएँ | वू चीनी (<small>चीनी: 吴语) चीन के झेजिआंग प्रान्त, दक्षिणी जिआंगसु प्रान्त और शन्घाई शहर में बोलीं जाने वाली चीनी भाषा की उपभाषाओं का एक गुट है। इन भाषाओँ में प्राचीन चीनी भाषा की कुछ ऐसी चीज़ें अभी भी प्रयोग की जाती हैं जो आधुनिक चीनी की अन्य भाषाओँ में लुप्त हो चुकी हैं। अन्य चीनी भाषाएँ बोलने वालों को वू भाषा मुलायम और बहती हुई प्रतीत होती है। चीनी में एक 'वूनोंगरुआनयु' (吴侬软语, wúnóngruǎnyǔ) शब्द इस्तेमाल किया जाता है, जिसका मतलब है 'वू की नाज़ुक बोली'। चीन में लगभग ८ करोड़ लोग वू भाषाएँ बोलते हैं।
इन्हें भी देखें
चीनी भाषा
सन्दर्भ
चीनी भाषा | 104 |
577101 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%A4%E0%A4%A8%20%E0%A4%A0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B0 | नूतन ठाकुर | डॉ॰ नूतन ठाकुर (जन्म: ११ जुलाई १९७३) एक सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, व लेखिका हैं। वे पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी अमिताभ ठाकुर की पत्नी हैं। वे एक अधिवक्ता के साथ सामाजिक एवं राजनैतिक एक्टिविस्ट हैं एवं वर्तमान में अपंजीकृत राजनैतिक दल आजाद अधिकार सेना के साथ सम्बद्ध हैं.
परिचय
नूतन ठाकुर इंस्टिट्यूट फॉर रिसर्च एंड डॉक्यूमेंटेशन इन सोशल साइंस (आई.आर.डी.एस.) नामक सामाजिक संस्था की सचिव व नेशनल आर.टी.आई. फोरम की संरक्षक रही हैं।
वे लखनऊ से आम आदमी पार्टी की सदस्य थी, लेकिन एक स्टिंग ऑपरेशन में कुछ सदस्यों की कथित संलिप्तता को लेकर अप्रसन्नता जताते हुए नवम्बर २०१३ में पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया था।
इन्होने अमिताभ ठाकुर लीव केस नामक पुस्तक लिखा हैं, जो इनके पति अमिताभ ठाकुर के विवादित अवकाश से सम्बंधित हैं।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
आई.आर.डी.एस. इंडिया अधिकारिक जालस्थल
नेशनल आर.टी.आई. फोरम अधिकारिक जालस्थल
1973 में जन्मे लोग
जीवित लोग
भारत के लोग
भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता | 148 |
1136902 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%82%20%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%85%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2 | खोपड़ियों वाला अकाल | खोपड़ियों वाला अकाल (तेलुगु- दोजी बर, अंग्रेज़ी- Skull famine, स्कल फ़ैमिन ) भारतीय उपमहाद्वीप में 1791-92 में आया था। इसकी एक प्रमुख वजह 1789 CE से 1795 CE तक चलने वाली एक प्रमुख एल नीनो घटना और उसके कारण पड़ने वाला दीर्घ-कालिक सूखा बताई जाती है।
इसे विलियम रॉक्सबर्ग (ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के एक सर्जन) द्वारा दर्ज किया गया था। उनकी अग्रणी मौसम संबंधी टिप्पणियों के अनुसार, एल नीनो घटना 1789 में शुरू हुई और लगातार चार वर्षों तक दक्षिण एशियाई मानसून की विफलता का कारण बनी। 1877 के भीषण अकाल के दौरान काम करते हुए कॉर्नेलियस वालफोर्ड ने अनुमान लगाया था कि लगभग एक करोड़ लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। उन्होंने गणना की कि ब्रिटिश शासन के 120 वर्षों में भारत में कुल 34 अकाल पड़े थे, जबकि उससे पहले के पूरे दो हज़ार सालों में केवल 17 अकाल। इस विचलन को स्पष्ट करने वाले कारकों में से एक यह था कि कंपनी ने मुग़लों की सार्वजनिक विनियमन और निवेश (public regulation and investment) प्रणाली का परित्याग कर दिया था। अंग्रेज़ों के उलट मुगल शासक कर-राजस्व का उपयोग जल संरक्षण के लिए धन देने के लिए करते थे, जिससे खाद्य उत्पादन को बढ़ावा मिलता था। जब कभी अकाल पड़ता भी था तो वे खाद्य निर्यात पर प्रतिबंध, जमाख़ोरी-विरोधी मूल्य विनियमन, कर राहत और मुफ्त भोजन के वितरण जैसे क़दम उठाते थे।
अकाल हैदराबाद, दक्षिणी मराठा साम्राज्य, दक्कन, गुजरात, और मारवाड़ में व्यापक मृत्यु दर का कारण बना (तब ये सभी भारतीय शासकों के अधीन थे, हालांकि, ये मुग़लों के अधीन नहीं थे, और इनमें से कुछ पर ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रभाव भी था)। मद्रास प्रेसीडेंसी (ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा शासित) जैसे क्षेत्रों में, जहाँ रिकॉर्ड रखे गए थे, उत्तरी सरकार जैसे कुछ जिलों की आधी आबादी मारी गई। बीजापुर जैसे अन्य क्षेत्रों में, हालांकि कोई रिकॉर्ड नहीं रखा गया था, किंतु यह अकाल इतना भीषण था कि इसने वहाँ की लोक-संस्कृति पर भी अपनी छाप छोड़ी। 1791 वर्ष और उससे सम्बंधित अकाल-दोनों को लोक-कथन में दोजी बर ( या दोई बर ) के नाम से जाना जाता है। इसका अर्थ होता है "खोपड़ी अकाल", या खोपड़ियों वाला अकाल। कहा जाता है कि पीड़ितों की संख्या इतनी अधिक थी कि सबको दफ़नाया या जलाया भी नहीं जा सका। उनकी "हड्डियाँ सड़कों और खेतों पर पड़ी रहीं, जिस कारण वे सफ़ेद नज़र आने लागे।" जैसा कि इससे एक दशक पहले के चालीसा अकाल में हुआ था, कई क्षेत्रों में इतनी ज़्यादा मौतें हुईं कि वे वीरान हो गए। एक अध्ययन के अनुसार, भुखमरी के साथ-साथ महामारी फैलने के कारण 1789–92 के दौरान कुल 1.1 करोड़ जानें गईं।
यह सभी देखें
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में प्रमुख अकालों की समय-सीमा (1765 से 1947)
ब्रिटिश राज में परिवार, महामारी और सार्वजनिक स्वास्थ्य
भारत में कंपनी का शासन
भारत में अकाल
भारत में सूखा
टिप्पणियाँ
संदर्भ
आगे की पढ़ाई
महाराष्ट्र का इतिहास
भारत में अकाल
ब्रिटिश भारत में अकाल | 481 |
263736 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%80%2C%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%9F%20%E0%A4%A4%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%B2 | ल्वारकी, बाराकोट तहसील | ल्वारकी, बाराकोट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के चम्पावत जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
कुमाऊँ मण्डल
गढ़वाल मण्डल
बाहरी कड़ियाँ
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
ल्वारकी, बाराकोट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
कुमाऊँ मण्डल
गढ़वाल मण्डल
बाहरी कड़ियाँ
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
ल्वारकी, बाराकोट तहसील
ल्वारकी, बाराकोट तहसील
ल्वारकी, बाराकोट तहसील | 127 |
1317490 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%93%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%A3%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%9C%20%28%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%82%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%82%E0%A4%A1%29%202021 | ओमान त्रिकोणी सीरीज (सातवां राउंड) 2021 | 2021 ओमान त्रिकोणी सीरीज़ 2019–2023 आईसीसी क्रिकेट विश्व कप लीग 2 क्रिकेट टूर्नामेंट का 7 वां दौर था जो सितंबर और अक्टूबर 2021 में ओमान में हुआ था। यह ओमान, पापुआ न्यू गिनी और स्कॉटलैंड क्रिकेट टीमों के बीच एक त्रिकोणीय राष्ट्र श्रृंखला थी, जिसमें एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) जुड़नार के रूप में खेले गए मैच थे। आईसीसी क्रिकेट विश्व कप लीग 2 ने 2023 क्रिकेट विश्व कप के लिए योग्यता मार्ग का हिस्सा बनाया। मूल रूप से, श्रृंखला नवंबर और दिसंबर 2022 में होने वाली थी, लेकिन ओमान क्रिकेट द्वारा इसे सितंबर 2021 तक आगे लाया गया। अगस्त 2021 में, अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने श्रृंखला के पूर्ण कार्यक्रम की घोषणा की।
स्कॉटलैंड ने अपने पहले तीन मैच जीते, ओमान ने अपने दो मैच जीते, और पापुआ न्यू गिनी क्रिकेट विश्व कप लीग 2 टूर्नामेंट में जीत नहीं पाई। ओमान और स्कॉटलैंड के बीच श्रृंखला का छठा और अंतिम मैच, चक्रवात शाहीन के कारण हुई भारी बारिश के कारण स्कॉटलैंड की पारी के बीच में ही रद्द कर दिया गया था।
दस्ते
समय सारणी
पहला एकदिवसीय
दूसरा एकदिवसीय
तीसरा एकदिवसीय
चौथा एकदिवसीय
पांचवां एकदिवसीय
छठा एकदिवसीय
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
ईएसपीएन क्रिकइन्फो पर सीरीज होम
2021 में ओमान क्रिकेट
2021 में पापुआ न्यू गिनी क्रिकेट
2021 में स्कॉटलैंड क्रिकेट
2021-22 में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट प्रतियोगिताएं
ओमान
ओमान त्रिकोणी सीरीज
ओमान त्रिकोणी सीरीज | 221 |
434138 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE | परिभाषा | परिभाषा (फ्रेंच, अंग्रेजी, जर्मन: Definition) किसी भी विषय या वस्तु या चीज का संक्षिप्त और तार्किक वर्णन है, जो वस्तुओं के मूलभूत विशिष्ट गुण या संकल्पनाओं के अर्थ, अंतर्वस्तु और सीमाएं बताता है। किसी शब्द या वाक्यांश या संकेत की व्याख्या करने वाले गद्यांश को भी परिभाषा कह सकते हैं। उदाहरण के लिए, भौतिकी में 'शक्ति' की परिभाषा निम्नलिखित प्रकार से की जाती है-
कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं।
परिभाषा के दोष
व्याप्ति दोषa
अव्याप्ति - यह किसी लक्षण या परिभाषा का दोष है जिसके रहने पर वह लक्षण या परिभाषा जितने पर लागु होनी चाहिए वह उनसे कम पर लागू होती है। अर्थात ऐसी परिभाषा जिसकी व्याप्ति में अल्पता हो। उदाहरण के लिए पुस्तक की यह परिभाषा कि सजिल्द गुटके के आकार की पढ़ी जाने वाली वस्तु पुस्तक है। क्योंकि पुस्तकें जिल्द रहित भी हो सकती हैं।
अतिव्याप्ति - यह किसी लक्षण या परिभाषा का दोष है जिसके रहने पर वह लक्षण या परिभाषा जितने पर लागु होनी चाहिए वह उनसे अधिक पर लागू होती है। अर्थात ऐसी परिभाषा जिसकी व्याप्ति में अति हो। उदाहरण के लिए पुस्तक की यह परिभाषा कि जिसे पढ़ा जाय वह पुस्तक है। क्योंकि पढ़ा तो किसी अख़बार को भी जाता है लेकिन अख़बार तो पुस्तक नही होता है।
निष्कर्ष यह है कि परिभाषा ऐसी होनी चाहिए जो अव्याप्ति और अतिव्याप्ति दोषों से मुक्त हो। अर्थात, संदर्भित विषय या वस्तु के वाच्यार्थ का ऐसा लक्षण बतला सके जो प्रत्येक प्रसंग के लिये तो उपयुक्त हो किन्तु, उस विषय या वस्तु के सिवाय किसी अन्य वस्तु के लिये उपयुक्त न हो।
सन्दर्भ
{{टिप्पणीसूची}
इन्हें भी देखें
पारिभाषिक शब्दावली
बाहरी कड़ियाँ
Definitions at Synonyms.Me
Definitions, Stanford Encyclopedia of Philosophy Gupta, Anil (2008)
Definitions, Dictionaries, and Meanings, Norman Swartz 1997
Guy Longworth (ca. 2008) "Definitions: Uses and Varieties of". = in: K. Brown (ed.): Elsevier Encyclopedia of Language and Linguistics, Elsevier.
Definition and Meaning, a very short introduction by Garth Kemerling (2001).
भाषा दर्शन
अवधारणाएँ
गणितीय शब्दावली | 323 |
753930 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE | गोदागारी उपज़िला | गोदागारी उपजिला, बांग्लादेश का एक उपज़िला है, जोकी बांग्लादेश में तृतीय स्तर का प्रशासनिक अंचल होता है (ज़िले की अधीन)। यह राजशाही विभाग के राजशाही ज़िले का एक उपजिला है, जिसमें, ज़िला सदर समेत, कुल 9 उपज़िले हैं। यह बांग्लादेश की राजधानी ढाका से पूर्व की दिशा में अवस्थित है।
जनसांख्यिकी
यहाँ की आधिकारिक स्तर की भाषाएँ बांग्ला और अंग्रेज़ी है। तथा बांग्लादेश के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह ही, यहाँ की भी प्रमुख मौखिक भाषा और मातृभाषा बांग्ला है। बंगाली के अलावा अंग्रेज़ी भाषा भी कई लोगों द्वारा जानी और समझी जाती है, जबकि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक निकटता तथा भाषाई समानता के कारण, कई लोग सीमित मात्रा में हिंदुस्तानी(हिंदी/उर्दू) भी समझने में सक्षम हैं। यहाँ का बहुसंख्यक धर्म, इस्लाम है, जबकि प्रमुख अल्पसंख्यक धर्म, हिन्दू धर्म है। राजशाही विभाग में, जनसांख्यिकीक रूप से, इस्लाम के अनुयाई, आबादी के औसतन ८८.४२% है, जबकि शेष जनसंख्या प्रमुखतः हिन्दू धर्म की अनुयाई है।
अवस्थिती
गोदागारी उपजिला बांग्लादेश के पूर्वी भाग में, राजशाही विभाग के राजशाही जिले में स्थित है।
इन्हें भी देखें
बांग्लादेश के उपजिले
बांग्लादेश का प्रशासनिक भूगोल
राजशाही विभाग
उपज़िला निर्वाहि अधिकारी
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
उपज़िलों की सूची (पीडीएफ) (अंग्रेज़ी)
जिलानुसार उपज़िलों की सूचि-लोकल गवर्नमेंट इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट, बांग्लादेश
http://hrcbmdfw.org/CS20/Web/files/489/download.aspx (पीडीएफ)
श्रेणी:राजशाही विभाग के उपजिले
बांग्लादेश के उपजिले | 208 |
108265 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%96%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9 | मिलखा सिंह | मिलखा सिंह (जन्म: २० नवंबर १९२९ - मृत्यु: १८ जून २०२१) एक भारतीय धावक थे, जिन्होंने रोम के १९६० ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के १९६४ ग्रीष्म ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। उन्हें "उड़न सिख" उपनाम दिया गया था। वे भारत के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ एथलीट्स में से एक थे। वे एक राजपूूूत सिख (राठौड़) परिवार से थे।
भारत सरकार ने १९५९ में उन्हें पद्म श्री की उपाधि से भी सम्मानित किया।
बचपन
मिलखा सिंह का जन्म २० नवंबर १९२९ को गोविन्दपुर (जो अब पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में पड़ता है) में एक सिख जाट परिवार में हुआ था। भारत के विभाजन के बाद की अफ़रा तफ़री में मिलखा सिंह ने अपने माँ-बाप को खो दिया। अंततः वे शरणार्थी बन के ट्रेन से पाकिस्तान से भारत आए। ऐसे भयानक बचपन के बाद उन्होंने अपने जीवन में कुछ कर गुज़रने की ठानी।
मिल्खा सिंह सेना में भर्ती होने की कोशिश करते रहे और अंततः वर्ष 1952 में वह सेना की विद्युत मैकेनिकल इंजीनियरिंग शाखा में शामिल होने में सफल हो गये। एक बार सशस्त्र बल के उनके कोच हवीलदार गुरुदेव सिंह ने उन्हें दौड़ (रेस) के लिए प्रेरित कर दिया, तब से वह अपना अभ्यास कड़ी मेहनत के साथ करने लगे। वह वर्ष 1956 में पटियाला में हुए राष्ट्रीय खेलों के समय से सुर्खियों में आये।
एक होनहार धावक के तौर पर ख्याति प्राप्त करने के बाद उन्होंने २०० मीटर और ४०० मीटर की दौड़े सफलतापूर्वक की और इस प्रकार भारत के अब तक के सफलतम धावक बने। कुछ समय के लिए वे ४०० मीटर के विश्व कीर्तिमान धारक भी रहे।
कार्डिफ़, वेल्स, संयुक्त साम्राज्य में १९५८ के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण जीतने के बाद सिख होने की वजह से लंबे बालों के साथ पदक स्वीकारने पर पूरा खेल विश्व उन्हें जानने लगा। इसी समय पर उन्हें पाकिस्तान में दौड़ने का न्यौता मिला, लेकिन बचपन की घटनाओं की वजह से वे वहाँ जाने से हिचक रहे थे। लेकिन न जाने पर राजनैतिक उथल पुथल के डर से उन्हें जाने को कहा गया। उन्होंने दौड़ने का न्यौता स्वीकार लिया। दौड़ में मिलखा सिंह ने सरलता से अपने प्रतिद्वन्द्वियों को ध्वस्त कर दिया और आसानी से जीत गए। अधिकांशतः मुस्लिम दर्शक इतने प्रभावित हुए कि पूरी तरह बुर्कानशीन औरतों ने भी इस महान धावक को गुज़रते देखने के लिए अपने नक़ाब उतार लिए थे, तभी से उन्हें फ़्लाइंग सिख की उपाधि मिली।
सेवानिवृत्ति के बाद मिलखा सिंह खेल निर्देशक, पंजाब के पद पर थे। मिलखा सिंह ने बाद में खेल से सन्यास ले लिया और भारत सरकार के साथ खेलकूद के प्रोत्साहन के लिए काम करना शुरू किया। वे चंडीगढ़ में रहते थे। जाने-माने फिल्म निर्माता, निर्देशक और लेखक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने वर्ष 2013 में इनपर भाग मिल्खा भाग नामक फिल्म बनायी। ये फिल्म बहुत चर्चित रही। 'उड़न सिख' के उपनाम से चर्चित मिलखा सिंह देश में होने वाले विविध तरह के खेल आयोजनों में शिरकत करते रहते थे। हैदराबाद में 30 नवंबर,2014 को हुए 10 किलोमीटर के जियो मैराथन-2014 को उन्होंने झंड़ा दिखाकर रवाना किया।
मृत्यु
मिलखा सिंह ने 18 जून, 2021 को चंडीगढ़ के पीजीआईएमईआर अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे कोविड-१९ से ग्रस्त थे। चार-पाँच दिन पूर्व उनकी पत्नी का देहान्त भी कोविड से ही हुआ था। उनके पुत्र जीव मिलखा सिंह गोल्फ़ के खिलाड़ी हैं।
खेल कूद रिकॉर्ड, पुरस्कार
इन्होंने 1958 के एशियाई खेलों में 200 मीटर व ४०० मी में स्वर्ण पदक जीते।
इन्होंने १९५८ के राष्ट्रमण्डल खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
वर्ष 1958 के एशियाई खेलों की 400 मीटर रेस में – प्रथम
वर्ष 1958 के एशियाई खेलों की 200 मीटर रेस में – प्रथम
वर्ष 1959 में – पद्मश्री पुरस्कार
वर्ष 1962 के एशियाई खेलों की 400 मीटर दौड़ में – प्रथम
वर्ष 1962 के एशियाई खेलों की 4*400 रिले रेस में – प्रथम
वर्ष 1964 के कलकत्ता राष्ट्रीय खेलों की 400 मीटर रेस में – द्वितीय
संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
मिल्खा का दर्द, ऐसे कैसे सुधरेगी खेलों की सूरत!-श्रवण शुक्ल के साथ खास बातचीत
मिलखा सिंह का निधन!
सिंह, मिलखा
1935 में जन्मे लोग
२०२१ में निधन
सिंह, मिलखा
सिंह, मिलखा
भारतीय सिख
पद्मश्री प्राप्तकर्ता
चंडीगढ़ के खिलाड़ी
भारत के विभाजन में विस्थापित लोग | 679 |
228241 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%A3%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6 | आरूणकोपनिषद | आरूणकोपनिषद सामवेदिय शाखा के अन्तर्गत एक उपनिषद है। यह उपनिषद संस्कृत भाषा में लिखित है। इसके रचयिता वैदिक काल के ऋषियों को माना जाता है परन्तु मुख्यत: वेदव्यास जी को कई उपनिषदों का लेखक माना जाता है।
रचनाकाल
उपनिषदों के रचनाकाल के सम्बन्ध में विद्वानों का एक मत नहीं है। कुछ उपनिषदों को वेदों की मूल संहिताओं का अंश माना गया है। ये सर्वाधिक प्राचीन हैं। कुछ उपनिषद ‘ब्राह्मण’ और ‘आरण्यक’ ग्रन्थों के अंश माने गये हैं। इनका रचनाकाल संहिताओं के बाद का है। उपनिषदों के काल के विषय में निश्चित मत नहीं है समान्यत उपनिषदो का काल रचनाकाल ३००० ईसा पूर्व से ५०० ईसा पूर्व माना गया है। उपनिषदों के काल-निर्णय के लिए निम्न मुख्य तथ्यों को आधार माना गया है—
पुरातत्व एवं भौगोलिक परिस्थितियां
पौराणिक अथवा वैदिक ॠषियों के नाम
सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजाओं के समयकाल
उपनिषदों में वर्णित खगोलीय विवरण
निम्न विद्वानों द्वारा विभिन्न उपनिषदों का रचना काल निम्न क्रम में माना गया है-
{|
|
{|class="wikitable"
|+ विभिन्न विद्वानों द्वारा वैदिक या उपनिषद काल के लिये विभिन्न निर्धारित समयावधि
! लेखक!! शुरुवात (BC)!!समापन (BC)||विधि
|-
|लोकमान्य तिलक (Winternitz भी इससे सहमत है)||<div style="text-align: center;">6000||<div style="text-align: center;">200||खगोलिय विधि
|-
|बी. वी. कामेश्वर||<div style="text-align: center;">2300||<div style="text-align: center;">2000||खगोलिय विधि
|-
|मैक्स मूलर||<div style="text-align: center;">1000||<div style="text-align: center;">800||भाषाई विश्लेषण
|-
|रनाडे||<div style="text-align: center;">1200||<div style="text-align: center;">600||भाषाई विश्लेषण, वैचारिक सिदान्त, etc
|-
|राधा कृष्णन||<div style="text-align: center;">800||600||वैचारिक सिदान्त
|}
||
|}
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
उपनिषदों ने आत्मनिरीक्षण का मार्ग बताया
मूल ग्रन्थ
Upanishads at Sanskrit Documents Site
पीडीईएफ् प्रारूप, देवनागरी में अनेक उपनिषद
GRETIL
TITUS
अनुवाद
Translations of major Upanishads
11 principal Upanishads with translations
Translations of principal Upanishads at sankaracharya.org
Upanishads and other Vedanta texts
डॉ मृदुल कीर्ति द्वारा उपनिषदों का हिन्दी काव्य रूपान्तरण
Complete translation on-line into English of all 108 Upaniṣad-s [not only the 11 (or so) major ones to which the foregoing links are meagerly restricted]-- lacking, however, diacritical marks
वैदिक धर्म
उपनिषद
वेद
दर्शन
धर्मग्रन्थ
हिन्दू धर्म | 316 |
763648 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%AF%E0%A4%B2%E0%A5%80%20%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%A3 | वयली लिप्यंतरण | वयली लिप्यंतरण (Wylie transliteration) तिब्बती लिपि के रोमनीकरण की एक विधि है जिसमें उन रोमन वर्णों का उपयोग किया जाता है जो अंग्रेजी भाषा के किसी साधारण टाइपराइटर पर भी उपलब्ध होते हैं। यह नाम, टरेल वी वयली (Turrell V. Wylie) के नाम पर पड़ा है जिन्होने १९५९ में इस योजना को प्रस्तुत किया था। समय के साथ यह लिप्यन्तरण योजना एक मानक बन गयी ( विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका में)।
तिब्बती भाषा के रोमनीकरण की सभी योजनाओं में सदा एक दुविधा की स्थिति पायी जाती है। यह दुविधा यह है कि रोमनीकरन करते समय बोली/कही गयी तिब्बती भाषा के उच्चारण को संरक्षित रखने की कोशिश की जाय या तिब्बती लिपि की वर्तनी का अनुकरण किया जाय। बात यह है कि तिब्बती में लिखी और बोली गयी भाषा में बहुत अन्तर होता है। वयली लिप्यन्तरण से पहले प्रचलित लिप्यन्तरण योजनाएँ न तो उच्चारण को पूर्णतः संरक्षित कर पातीं थीं न ही लिपि की वर्तनी को। वयली लिप्यन्तरण योजना, तिब्बती उच्चारण का अनुगमन नहीं करती बल्कि तिब्बती लिपि (वर्तनी) को रोमन लिपि में प्रस्तुत करने की योजना है।
व्यंजन
वयली लिप्यंतरण योजना में तिब्बती वर्णों को निम्नलिखित प्रकार से बदला जाता है-
तिब्बती में स्क्रिप्ट, व्यंजन समूहों के भीतर एक शब्दांश का प्रतिनिधित्व किया जा सकता है के उपयोग के माध्यम से उपसर्ग या suffixed पत्र या पत्र द्वारा superscripted या subscripted रूट करने के लिए पत्र (गठन एक "ढेर")। के Wylie प्रणाली नहीं करता है आम तौर पर ये भेद के रूप में व्यवहार में कोई अस्पष्टता नहीं है संभव के नियमों के तहत तिब्बती वर्तनी. अपवाद है अनुक्रम gy-हो सकता है, जो लिखित या तो के साथ एक उपसर्ग ग्राम या एक subfix वाई. में Wylie प्रणाली, इन प्रतिष्ठित हैं डालने के द्वारा एक अवधि के बीच एक उपसर्ग जी और प्रारंभिक वाई. ई. जी. གྱང "दीवार" है gyang, जबकि གཡང་ "खाई" है g.yang.
स्वर
चार स्वर के निशान (यहाँ लागू करने के लिए आधार पत्र ཨ) transliterated कर रहे हैं:
जब एक अक्षर का कोई स्पष्ट स्वर अंकन, पत्र एक प्रयोग किया जाता है का प्रतिनिधित्व करने के लिए डिफ़ॉल्ट स्वर "एक" (उदाहरण के लिए ཨ་ = एक)।
बड़े अक्षरों का प्रयोग
पिछले कई प्रणालियों के तिब्बती लिप्यंतरण शामिल आंतरिक कैपिटलीकरण योजनाओं—अनिवार्य रूप से, capitalising जड़ पत्र के बजाय एक शब्द के पहले अक्षर, जब पहला पत्र है एक उपसर्ग व्यंजन है। तिब्बती शब्दकोशों द्वारा आयोजित कर रहे हैं जड़ पत्र, और उपसर्गों अक्सर चुप हैं, तो जानते हुए भी जड़ पत्र का एक बेहतर विचार देता है के साथ उच्चारण है। हालांकि, इन योजनाओं अक्सर लागू किया असंगत है, और आमतौर पर केवल जब शब्द आम तौर पर होता पूंजीकृत के मानदंडों के अनुसार लैटिन पाठ (यानी की शुरुआत में एक वाक्य)। इस आधार पर है कि आंतरिक पूंजीकरण थी पीढ़ी बोझिल, की सीमित उपयोगिता का निर्धारण करने में उच्चारण, और शायद ज़रूरत से ज़्यादा के लिए एक रीडर का उपयोग करने में सक्षम एक तिब्बती शब्दकोश, Wylie निर्दिष्ट किया है कि अगर एक शब्द था होना करने के लिए पूंजीकृत, पहले अक्षर होना चाहिए, राजधानी के अनुरूप पश्चिमी पूंजीकरण प्रथाओं. इस प्रकार एक विशेष रूप से तिब्बती बौद्ध संप्रदाय (Kagyu) पूंजीकृत Bka' brgyud और नहीं bKa' brgyud.
विस्तार
वाइली की मूल योजना के लिए सक्षम नहीं है का लिप्यंतरण सभी तिब्बती-स्क्रिप्ट ग्रंथों. विशेष रूप से, यह कोई पत्राचार के लिए सबसे तिब्बती विराम चिह्न, और की क्षमता का अभाव का प्रतिनिधित्व करने के लिए गैर-तिब्बती शब्दों में लिखा तिब्बती लिपि (संस्कृत और ध्वन्यात्मक चीनी कर रहे हैं सबसे आम मामलों)। तदनुसार, विभिन्न विद्वानों को अपनाया है तदर्थ और अधूरा सम्मेलनों के रूप में की जरूरत है।
के तिब्बत और हिमालय पुस्तकालय पर विश्वविद्यालय के लिए विकसित की एक मानक, बढ़ाया Wylie तिब्बती प्रणाली या EWTS, कि इन पतों का अभाव है व्यवस्थित. यह का उपयोग करता है, अक्षरों और विराम चिह्न का प्रतिनिधित्व करने के लिए लापता अक्षर. कई सॉफ्टवेयर सिस्टम, सहित TISE, अब इस मानक का उपयोग करने के लिए अनुमति देने के लिए एक प्रकार अप्रतिबंधित तिब्बती लिपि (सहित पूर्ण यूनिकोड तिब्बती चरित्र सेट) पर एक लैटिन कीबोर्ड है।
के बाद से Wylie प्रणाली नहीं है, सहज ज्ञान युक्त उपयोग के लिए भाषाविदों के साथ अपरिचित तिब्बती, में एक नया लिप्यंतरण प्रणाली पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला का प्रस्ताव किया गया है को प्रतिस्थापित करने के लिए वाइली में लेख पर तिब्बती ऐतिहासिक स्वर विज्ञानहै।
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
तिब्बती लिपि
सम्भोट लिपि
मानक तिब्बती
उचन लिपि
बाहरी कड़ियाँ
THL’s Online Tibetan Phonetics Converter
THDL विस्तारित Wylie लिप्यंतरण योजना
Wylie या EWTS और यूनिकोड तिब्बती के बीच परिवर्तन
तिब्बत की भाषाएँ | 747 |
43446 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%97%20%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80 | राग भूपाली | राग परिचय--
थाट- कल्याण
वर्जित स्वर- म, नि
जाति- औडव-औडव
वादी- ग
संवादी-ध
गायन समय- रात्रि का प्रथम प्रहर
इस राग का चलन मुख्यत: मन्द्र और मध्य सप्तक के प्रतह्म हिस्से में होती है (पूर्वांग प्रधान राग)। इस राग में ठुमरी नहीं गायी जाती मगर, बड़ा खयाल, छोटा खयाल, तराना आदि गाया जाता है। कर्नाटक संगीत में इसे मोहन राग कहते हैं।
आरोह- सा, रे, ग, प, ध, सा।
अवरोह- सां, ध, प, ग, रे, सा।
पकड़- पडडग ध प ग, ग रे सा ध़, सा रे ग, प ग, ध प, ग रे सा
Filmi songs on This Raga;
Sehra; Pankh Hoti To Udd Aati Re, Love In Tokyo; Sayonara,Sayonara, Chori Chori; Rasik Blma, Ahh; Yeh Sham Ki Tanhaiyan,
राग | 121 |
377454 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%83%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6%20%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B9 | मनुष्य मातृवंश समूह | अगर आप मातृवंशीय सामाजिक व्यवस्था के बारे में जानकारी ढूंढ रहें हैं तो कृपया मातृवंश का लेख देखिये
मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह उस वंश समूह या हैपलोग्रुप को कहते हैं जिसका किसी भी व्यक्ति (स्त्री या महिला) के माइटोकांड्रिया के गुण सूत्र पर स्थित डी॰एन॰ए॰ की जांच से पता चलता है। अगर दो व्यक्तियों का मातृवंश समूह मिलता हो तो इसका अर्थ होता है के उनकी हजारों साल पूर्व एक ही महिला पूर्वज रही है, चाहे आधुनिक युग में यह दोनों व्यक्ति अलग-अलग जातियों से सम्बंधित ही क्यों न हों।
अन्य भाषाओँ में
अंग्रेज़ी में "वंश समूह" को "हैपलोग्रुप" (haplogroup), "पितृवंश समूह" को "वाए क्रोमोज़ोम हैपलोग्रुप" (Y-chromosome haplogroup) और "मातृवंश समूह" को "एम॰टी॰डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप" (mtDNA haplogroup) कहते हैं।
मुख्य मातृवंश समूह
मातृसमूह वृक्ष
समय से साथ-साथ कभी किसी व्यक्ति के डी॰एन॰ए॰ में ऐसा बदलाव आता है जो आने वाली पीढ़ियों के डी॰एन॰ए॰ में हमेशा के लिए आसानी से पहचाने जाने वाले चिन्ह छोड़ जाता है। जब ऐसा होता है तो उस वंश समूह के सदस्य से एक नया उपवंश समूह आरम्भ होता है। मनुष्य जाती अफ़्रीका से शुरू हुई और उस पहले वंश समूह से नए वंश समूहों की शाखाएँ बनती जा रही हैं। यह वृक्ष दिखता है के कौनसा मातृवंश समूह किस दुसरे मातृवंश समूह की संतान है।
इन्हें भी देखें
वंश समूह
मनुष्य पितृवंश समूह
माइटोकांड्रिया
गुण सूत्र
डी॰एन॰ए॰
वंश समूह
हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना | 231 |
1022055 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE | तात्याना वासिलीवा | तात्याना ग्रिगोरीवना वासिलीवा ( ; जन्म 28 फरवरी 1947) एक सोवियत और रूसी थिएटर और फिल्म अभिनेत्री, टीवी प्रस्तोता है। वह 1969 के बाद से सत्तर से अधिक फिल्मों में दिखाई दीं। </ref>
जीवनी
1969 में उन्होंने मॉस्को आर्ट थिएटर स्कूल (कोर्स लीडर - वासिली मार्कोव) से स्नातक किया।
1969-1983 के वर्षों में मास्को व्यंग्य रंगमंच की अभिनेत्री। थिएटर में पहली फिल्म - अलेक्जेंडर स्टीन के नाटक पर आधारित "कैद में समय," नाटक में आयुक्त की भूमिका।
1983-1992 के वर्षों में मास्को एकेडमिक मायाकोवस्की थिएटर की अभिनेत्री।
1996 के बाद से, अभिनेत्री "स्कूल ऑफ़ मॉडर्न प्ले"।
4 जून से 31 अगस्त, 2012 तक चैनल ओनेल पर "हमारे बीच, लड़कियों" परियोजना के लिए अग्रणी। 1 अप्रैल से 30 मई, 2014 तक चैनल वन पर "आपका मामला" परियोजना के लिए अग्रणी।
चयनित फिल्मोग्राफी
अभिनेत्री कुल 132 फिल्में।
1975 - नमस्कार, मैं आपकी चाची हूँ! एनी के रूप में
1985 - सुज़ाना के रूप में सबसे आकर्षक और आकर्षक
1992 - व्हाइट किंग, येकातेरिना के रूप में रेड क्वीन
1998 - द सर्कस बर्न डाउन, एंड द क्लॉउन्स हैव गॉन ए मार्गरिटा
2012 - स्वेटी विक्टोरिया विक्टोरोवना के रूप में
संदर्भ
जीवित लोग
1947 में जन्मे लोग | 194 |
844653 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BE | विजया निर्मला | विजया निर्मला एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री, निर्माता और निर्देशक है, जो मुख्यतः तेलुगू सिनेमा में काम करतीं है। उन्होंने तेलुगू में 44 फिल्मों का निर्देशन किया है, और 2002 में, गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में प्रवेश किया था क्योंकि महिला निर्देशक ने फिल्मों की सबसे बड़ी संख्या निर्देशित की थी। 2008 में, तेलुगू सिनेमा में उनके योगदान के लिए उन्हें रघुपति वेंकैया पुरस्कार मिला।
व्यक्तिगत ज़िंदगी
विजया निर्मला का जन्म तमिलनाडु में हुआ था। उनके पिता ने फिल्म निर्माण में काम किया है। उनके एक बेटे नरेश भी हैं, जो पहले अभिनेता भी हैं, अपने पहले पति से तलाक देने के बाद, वह पहले से ही विवाहित होने वाले अभिनेता कृष्णा के साथ जुड़ना शुरू कर दिया था।
व्यवसाय
विजया निर्मला ग्यारह वर्ष की आयु में पांडुरंगा महात्म्य (1957) के साथ एक बाल कलाकार के रूप में सिनेमा में प्रवेश कर चुकी थी। 1964 में, उसने प्रेम नजीर के सामने अभिनय किया और उन्होंने मलयालम हिट भार्गवी निलयम के साथ अभिवादन किया। और 1967 में, उन्होंने पी। वेणु द्वारा उदयोस्थस्थ में प्रेम नजीर के साथ फिर से अभिनय किया। वह फिल्म रंगला रत्नम के माध्यम से तेलुगू उद्योग में शुरू हुई।
तमिल में उनकी पहली फिल्म Engaveettu Penn था, जो पनामा Paasama, एन अन्नान, Gnanaoli, और Uyira Manama सहित फिल्में द्वारा पीछा किया गया था वह तेलुगू में उनकी दूसरी फिल्म, सक्षी (1967) के सेट पर अपने दूसरे पति कृष्ण से मिले, और उन्होंने 47 फिल्मों में एक साथ अभिनय किया। यह साक्षी थी जिसने दिशा में उसकी दिलचस्पी जला दी थी। तिथि करने के लिए, उसने 200 से अधिक फिल्मों में मलयालम और तमिल में 25, और शेष तेलुगू में अभिनय किया है।
बालाजी टेलिफिल्म्स के पलेई कानाकू के साथ उनकी छोटी सी स्क्रीन पर पहली फिल्म थी इसके तुरंत बाद, उसने अपना खुद का विजया कृष्ण सिनेमा शुरू किया और 15 फिल्मों का उत्पादन किया। उन्होंने 3 लाख के बजट पर एक मलयालम फिल्म के साथ निर्देशक की शुरुआत की। उसने तेलुगू में मीना में निर्देशक की शुरुआत की और तेलुगू में 40 फिल्मों और प्रत्येक फिल्म को मलयालम (निर्देशक की पहली फिल्म) और तमिल (कुंगुमाचिमिज़) में निर्देशित किया। वर्तमान में अभिनेत्री निर्देशक हैदराबाद में स्थित है और पद्मलाय स्टूडियोज और पद्माला टेलीफ़िल्म्स लिमिटेड का प्रबंधन कर रहा है।
चयनित फिल्मोग्राफी
तेलुगु
तमिल
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियां | 378 |
377460 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%97%20%28%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%AF%29 | टैंग (पेय) | टैंग अमेरिका का एक मीठा और तीखा, नारंगी के जायके वाला पेय है। इसके नाम को टैंगरीन (संतरे) के नाम पर रखा गया था; संतरे के जायके वाले मूल टैंग को 1957 में जनरल फूड्स कॉरपोरेशन के लिए विलियम ए. मिशेल द्वारा तैयार किया गया था और इसे 1959 में पहली बार पाउडर के स्वरूप में बाजार में उतारा गया था।
शुरुआत में इसे एक नाश्ते के पेय के रूप में व्यवहार का इरादा था लेकिन नासा (NASA) द्वारा 1965 में जेमिनी फ्लाइटों पर इसका इस्तेमाल किये जाने से पहले इसकी बिक्री कुछ खास नहीं थी (नैटिक सोल्जर सिस्टम्स सेंटर में इसपर शोध किया गया; टैंग का जॉन ग्लेन की मरकरी फ्लाईट पर इस्तेमाल किये जाने वाले प्रथम पेय के रूप में काफी जोर-शोर से प्रचार किया गया). तब से यह अमेरिका के मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम के साथ बहुत करीब से जुड़ा हुआ है जिससे यह गलतफहमी पैदा हो गयी है कि टैंग का आविष्कार अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए ही किया गया था।
समीक्षा
टैंग ब्रांड का स्वामित्व क्राफ्ट फूड्स के पास है। यह 38 जायकों में उपलब्ध है (कुछ क्षेत्र-विशेष के लिए हैं) और इसे पाउडर स्वरूप (सैशे तथा बड़े कनस्तरों में) के साथ-साथ एक तैयार पेय के रूप में भी बेचा जाता है। टैंग की एक बार की सर्विंग चीनी (शुगर), 40 कैलोरी (167 केजे); विटामिन सी का 100% आरडीए; विटामिन ए का 10% आरडीए; कैल्शियम, विटामिन ई, राइबोफ्लेविन, नायसिन और विटामिन बी6 प्रदान करती है; और इसमें कोइ कैफीन नहीं होता है। क्राफ्ट टैंग का शुगर-फ्री (चीनी-रहित) स्वरूप भी बनाता है जिसमें एस्पार्टेम मौजूद होता है जो व्यक्तिगत रूप से मापे गए पैकेटों में आता है, इसे मार्च 1985 में पेश किया गया था।
पहेला टैंग
हालांकि यह अमेरिका की प्रमुख किराना दुकानों में लगभग पूरी तरह से अनुपलब्ध है, हिस्पैनिक किराने की दुकानों में मूल टैंग से मिलती-जुलती चीजें मिल सकती हैं। टैंग का यह स्वरूप कैलिफोर्निया के सैन जोस में तैयार किया जाता है और इसमें कृत्रिम मिठास वाली कोई भी चीज शामिल नहीं होती है।
टैंग आम तौर पर एक प्लास्टिक कंटेनर में आता है जिसमें एक पेंचदार ढक्कन लगा होता है जो बनाता है। इसका बड़ा आकार () उपलब्ध है। टैंग बड़े संस्थागत आकार में भी उपलब्ध है।
इसे पानी में एक बड़े चम्मच की मात्रा डालकर इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। प्लास्टिक के कंटेनर का ढक्कन भी एक मापने के कप के रूप में काम करता है जिसे एक या दो चौथाई गैलन की मात्रा तैयार करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
नया टैंग
2007 में क्राफ्ट ने टैंग का एक नया संस्करण पेश किया जिसमें चीनी की आधी मात्रा की जगह पर कृत्रिम मिठास पैदा करने वाली चीज का इस्तेमाल किया गया था। नई पैकेजिंग में "100% रस में चीनी की 1/2 मात्रा" होने का विज्ञापन किया जाता है। नए पेय में इस्तेमाल किये गए कृत्रिम मिठास कारक हैं सुक्रालोज, एसेसुल्फेम पोटैशियम और नियोटेम. नया फार्मूला अधिक गाढ़ा होता है और इसका वितरण छोटे कंटेनरों में किया जाता है जिसमें () मात्रा से कंटेनर बनता है।
इसके लिए पानी की प्रत्येक मात्रा में ढाई चम्मच के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है। नए छोटे प्लास्टिक के कंटेनर पर मौजूद ढ़क्कन एक मापने वाले कप के रूप में काम करता है जिसका इस्तेमाल मूल टैंग की तरह एक या दो चौथाई गैलन मात्रा तैयार करने में किया जा सकता है।
दिसम्बर 2009 में कम कैलोरी वाले टैंग को बंद कर दिया गया था और अब यह क्राफ्ट की ओर से यह उपलब्ध नहीं है।
2009 में टैंक का एक और स्वरूप कंटेनरों में सामने आया जिससे सिर्फ बनता है। दो लेवल बड़े चम्मच से सर्व की जाने वाली एक मात्रा (, 90 कैलोरी) के साथ 0 ग्राम फैट, , कुल कार्बोहाइड्रेट (शर्करा) और 0 ग्राम प्रोटीन की बनती है। इसके संघटकों की सूची में शामिल है शर्करा, साइट्रिक एसिड (जो कड़वाहट देता है), 2% से कम प्राकृतिक और कृत्रिम जायका मौजूद होता है, एस्कॉर्बिक एसिड (विटामिन सी), माल्टोडेक्सट्रिन, कैल्सियम फॉस्फेट (केक बनने को रोकता है), गवार और जैन्थम गामस (संरचना प्रदान करता है), सोडियम एसिड पाइरोफॉस्फेट, कृत्रिम रंग, येलो 5, येलो 6, बीएचए (जायके को बनाए रखने में मदद करता है).
इतिहास
टैंग को नासा के कुछ शुरुआती मानवयुक्त अंतरिक्ष विमानों द्वारा इस्तेमाल किये जाने के कारण काफी प्रसिद्धि मिली। 1962 में जब मरकरी के अंतरिक्ष यात्री जॉन ग्लेन ने कक्षा में खाने संबंधी प्रयोग किया था, टैंग को इसके मीनू के लिए चुना गया था, इसका इस्तेमाल जेमिनी की कुछ उड़ानों के दौरान भी किया गया था। जेमिनी पर कार्य करने वाले नासा के एक इंजीनियर ने समझाया था कि इसका उपयोग कैसे और क्यों किया गया था (व्याख्या):
अपोलो 11 के अंतरिक्ष यात्री बज़ एल्ड्रिन ने कहा है कि उनके चंद्रमा पर उतरने के मिशन पर टैंग का उपयोग नहीं किया गया था: "हमने... इसकी बजाय अपने साइट्रस ड्रिंक (नींबू युक्त पेय के रूप में) के रूप में हमने अंगूर- संतरे के मिश्रण को चुना था। अगर टैंग हमारी फ्लाईट पर था तो मैं इससे अनजान था।" नील आर्मस्ट्रांग ने भी कहा था कि अपोलो की उड़ानों में टैंग का इस्तेमाल नहीं किया गया था। हालांकि टैंक के कई जायके हैं, इसलिए यह संभव है कि अंगूर-संतरे वाला पेय भी टैंग ही था। उदाहरण के रूप में, उन्होंने पेय सामग्रियों पर "ओरेंज टैंग" का लेबल नहीं लगाया था बल्कि ओरेंज ऐड या पेय का इस्तेमाल किया था। इसलिए यह संभव है कि अंतरिक्ष यात्रियों को फ्रूट ड्रिंक्स के टैंग होने का पता नहीं चल पाया था।
टैंग के आविष्कारक, विलियम ए. मिशेल ने पॉप रॉक्स का भी आविष्कार किया था।
अन्य उपयोग
एक घरेलू नुस्खे के अनुसार टैंग में बहुत अधिक साइट्रिक एसिड की मात्रा होने के कारण यह एक बेहतरीन बर्तन धोने वाला एजेंट है, हालांकि क्राफ्ट ने ऐसा करने या इस तरह के इस्तेमाल की तरफदारी करने का सुझाव नहीं दिया था। क्राफ्ट की वेब साइट के अनुसार:
"हमने सुना है कि कुछ उपभोक्ताओं ने टैंग ड्रिंक मिक्स का इस्तेमाल अपने बर्तनों को साफ़ करने के लिए किया था। टैंग में साइट्रिक एसिड मौजूद है जो सफाई एजेंट के रूप में कार्य कर सकता है। टैंक ड्रिंक के मिश्रण को एक खाद्य पदार्थ के तौर पर तैयार किया गया है और क्राफ्ट फूड्स इसके किसी भी अन्य उद्देश्य के लिए इस्तेमाल की सलाह नहीं देता है।"
एक समय फिलाडेल्फिया के अधिकारियों ने नशाखोरों को मेथाडोन की खुराक के दुरुपयोग से रोकने के लिए टैंग के साथ इसकी पैकेजिंग करने की कोशिश की थी; ऐसा इस तर्क के साथ किया गया था कि कोई भी इतना मूर्ख नहीं होगा कि इस मिश्रण को नसों के जरिये अपने शरीर में लेने की कोशिश करेगा। मामला यह नहीं था। कम से कम एक कथित मामला आकस्मिक रूप से मेथाडोन की अत्यधिक खुराक लेने का भी था जिसमें परिवार के सदस्यों ने टैंग के मिश्रण का एक जार रेफ्रिजरेटर में पाया था।
टैंग कथित रूप से 2006 में ट्रांसअटलांटिक विमान में विस्फोट करने की एक योजना में इस्तेमाल करने के इरादे से बनाये गए तरल विस्फोटक का एक घटक था (एचएमटीडी बनाने के लिए हाइड्रोजन पेरोक्साइड और हेक्सामाइन के साथ).
इन्हें भी देखें
टैंगो (ड्रिंक) - मिलते-जुलते नाम वाला ब्रिटेन का जायकेदार पेय.
सनी डी, एक मिलता-जुलता जायकेदार पेय.
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
न्यूट्रीशन फेक्ट्स एंड एनलायसेस ऑफ टैंग
टैंग
अमेरिकन शीतल पेय
क्राफ्ट ब्रांड
1957 में पेश किये गये
नासा प्रौद्योगिकी स्पिनऑफ्स | 1,205 |
1387051 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A8 | राजकुमार आर्यन | Pages using infobox television with unnecessary name parameter
भारतीय टेलीविजन धारावाहिक
एनडीटीवी इमैजिन के कार्यक्रम
राजकुमार आर्यन यामी गौतम अभिनीत एक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक है। स्फेयर ऑरिजिंस द्वारा निर्मित और जनवरी 2008 में इसका पहला प्रसारण, यह एनडीटीवी के नए इमेजिन चैनल के लॉन्च का समर्थन करने वाले शो के पैकेज का हिस्सा है। दर्शकों की संख्या के मामले में यह श्रृंखला इमेजिन के शीर्ष रैंकिंग कार्यक्रमों में से एक बन गई। ये धारावाहिक 23 जनवरी 2008 से 30 जुलाई 2008 तक चला।
कलाकार
राजकुमार आर्यन के रूप में अनिरुद्ध दवे
अविनाश मुखर्जी यंग राजकुमार आर्यन के रूप में
राजकुमारी भैरवी के रूप में यामी गौतम
अविका गोर युवा राजकुमारी भैरवी के रूप में
मनीष वाधवा भूतनाथ के रूप में
निर्मल पांडे सेनापति भुजंगी के रूप में
शाहबाज खान हुसैन बाबा के रूप में
मायाशीन के रूप में अदिति सजवान
संदर्भ
बाहरी संबंध
आधिकारिक साइट | 145 |
1166864 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%A3%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B0 | लवणासुर | लवनासुर, रामायण में एक राक्षस है जिसका वध भगवान राम के सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न ने किया था।
परिचय
राम के शासनकाल के दौरान, जबकि अधिकांश जगहों पर शांति कायम रही, लवणासुर ने निर्दोषों को पीड़ा देना जारी रखा और ऋषियों के कई बलिदानों को नष्ट कर दिया और उन्हें कई तरीकों से भयभीत किया। उसके द्वारा कई राजाओं को पराजित किया गया और वे सभी डर गए। इसलिए, एक दिन ऋषि च्यवन (ऋषि भृगु के वंशज) के नेतृत्व में ऋषि, मधुवन से भगवान राम के पास उनकी रक्षा करने के लिए एक प्रार्थना के साथ आए। लावण, मधु नामक राक्षस के राजा का पुत्र थे। मधु दयालु थे और ब्राह्मणों के प्रति दयालु थे, अतिउत्साही थे, उन्होंने देवों से व्यक्तिगत मित्रता की और इसलिए असुरों और सूरों में शांति थी। वह देवताओं से इतना प्रसन्न था कि एक अवसर पर, भगवान शिव ने उसे आत्म-सुरक्षा के लिए अपने स्वयं के त्रिशूल का विस्तार दिया। मधु ने एक महल बनाया और उस स्थान का नाम मधुपुरी (संभवतः मथुरा अब) रखा। मधु का लावण नाम का एक बेटा था, जिसमें उसके पिता के विपरीत गुण थे।
बचपन
लवणासुर इतनी दुष्ट थी कि एक बच्चे के रूप में भी वह खेल खेलने वालों को मारता था, उन्हें मारता था और उन्हें खाता था। मधु ने अपने त्रिशूल सहित अपने पुत्र को सब कुछ सौंप दिया और शर्म के कारण खुद को समुद्र में डुबो दिया। ऋषियों ने आगे लावण्या का वर्णन किया। मंधाता नाम का एक राजा था जो इक्ष्वाकु के वंश में एक वंशज था। मंधाता पूरे ग्रह पर हावी हो गया था और वह इतना अभिमानी हो गया था कि वह स्वर्ग पर भी राज करना चाहता था। इसलिए उसने इंद्र को चुनौती दी कि या तो वह राज्य को अपने अधीन कर ले या युद्ध में उसके साथ युद्ध करे। इंद्र ने कहा, "यदि आप पृथ्वी पर सभी व्यक्तित्वों को हराते हैं, तो मैं आपको अपना राज्य दूंगा।" लवणासुर ने मन्धाता की सेना को त्रिशूल से हराया। यह सब सुनकर, भगवान राम ने वादा किया कि वह ऋषियों और मधुपुरी राज्य की रक्षा करेंगे।
युद्ध
जैसा कि लवणासुर प्रत्येक दिन खाने के लिए जानवरों का शिकार करने के बाद घर लौटता है, शत्रुघ्न ने उसे लड़ने के लिए चुनौती दी। लवणासुर इस चुनौती को स्वीकार करने के लिए बहुत खुश था क्योंकि यह उनकी मिठाई का समय था। लवणासुर ने कई पेड़ों को उखाड़ दिया और उन्हें शत्रुघ्न पर फेंक दिया, और एक बड़ी लड़ाई शुरू हो गई। बाद में, शत्रुघ्न ने विशेष तीर (भगवान विष्णु द्वारा उपहार के रूप में मधु और कैथाभ को मारने के लिए इस्तेमाल किया) को हटा दिया, जो राम ने उन्हें दिया था। जैसे ही शत्रुघ्न ने अपना धनुष मारा, पूरा ब्रह्मांड कांपने लगा। उन्होंने अपनी जीवन-श्वास को निकालते हुए शत्रुघ्न को हृदय से लगा लिया। राम ने तब शत्रुघ्न को मधुपुर का राजा नियुक्त किया, जहाँ उन्होंने कई वर्षों तक शासन किया।
राक्षस
रामायण के पात्र | 484 |
793975 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%B6%E0%A4%BF%20%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE | शशि गुप्ता | शशि गुप्ता () (जन्म ;०३ अप्रैल १९६४, दिल्ली, भारत) एक पूर्व भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ी है। इन्होंने भारत की राष्ट्रीय महिला क्रिकेट टीम के लिए १९८० के दशक में कई टेस्ट मैच और कई वनडे मैच खेले थे। इन्होंने भारत के लिए कुल तेरह टेस्ट मैच और बीस वनडे मैच खेले थे।
सन्दर्भ
1964 में जन्मे लोग
दिल्ली के लोग
भारतीय महिला एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी
भारतीय महिला टेस्ट क्रिकेट खिलाड़ी
भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ी
जीवित लोग
१९९३ महिला क्रिकेट विश्व कप में खेलने वाली भारतीय खिलाड़ी | 88 |
163139 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%20%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%20%28%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%95%29 | घासीराम कोतवाल (नाटक) | घासीराम कोतवाल विजय तेंदुलकर द्वारा लिखित मराठी नाटक है। यह ब्राह्मणों के गढ़ पूना में रोजगार की तलाश में गए एक हिंदी भाषी ब्राह्मण घासीराम के त्रासदी की कहानी है। ब्राह्मणों से अपमानित घासीराम मराठा पेशवा नाना फड़नबीस से अपनी बेटी के विवाह का सौदा करता है और पूना की कोतवाली हासिल कर उन ब्राह्मणों से बदला लेता है। किंतु नाना उसकी बेटी की हत्या कर देता है। घासीराम चाहकर भी इसका बदला नहीं ले पाता। उल्टे नाना उसकी हत्या करवा देता है।
इस नाटक के मूल मराठी स्वरूप का पहली बार प्रदर्शन 16 दिसंबर, 1972 को पूना में ‘प्रोग्रेसिव ड्रामाटिक एसोसिएशन’ द्वारा भरत नाट्य मन्दिर में हुआ। निर्देशक थे डॉ॰ जब्बार पटेल।
लेखक का वक्तव्य
‘घासीराम कोतवाल’ ऐतिहासिक नाटक नहीं है। वह एक नाटक है, सिर्फ नाटक !
नाटक सिर्फ नाटक ही होता है। एक साहित्यिक कलाकृति के सन्दर्भ में यह कहना कि वह ऐतिहासिक है, या पौराणिक है, या सामाजिक है, बेमानी है। समय बहुत जल्दी सामाजिक को ऐतिहासिक और ऐतिहासिक को पौराणिक बना देता है।
फिर भी इस नाटक की सामग्री-कच्चा मसाला-इतिहास से बटोरी गई है। इतिहास का क्षीण-सा आधार अवश्य लिया गया है। पर, इसके आगे नाटक का इतिहास से कोई सम्बन्ध नहीं है। और यह कच्चा मसाला भी ठीक उसी तरह इतिहास से लिया गया है, जिस तरह समसामयिक जीवन-स्थितियों से भी लिया जाता है। महाराष्ट्र में पेशवाओं का राज था, नाना फड़नवीस पेशवा के प्रधान थे, कोई एक घासीराम था, ब्राह्मण थे, मराठा सरदार थे और वे सब ईकाइयाँ अपने-अपने दायरे में बँधी समय के प्रवाह में लकड़ी के लट्ठे की भाँति कभी सटकर तो कभी हटकर, कभी परस्पर को छूती तो कभी टकराती अप्रतिहत प्रवाहित हो रही थीं। उनका यह कार्य-करण उचित था या अनुचित या उनका मूलभूत अस्तित्व सार्थकतायुक्त था अथवा नहीं, इसकी खोजबीन करना इतिहास का शोध करनेवाले व्यक्ति का काम हो सकता है, नाटककार का नहीं। मैं इसी कारण ‘घासीराम कोतवाल’ को अनैतिहासिक नाटक मानता हूँ।
‘घासीराम कोतवाल’ एक किंवदन्ती, एक जनश्रुति एक दन्तकथा है। और दन्तकथा का एक अपना रचना-विधान होता है: झीने यथार्थ को जब हम अपनी नैतिकता से रंजित कर कल्पना की सहायता से पुनरुज्जीवित करते हैं तो एक दन्तकथा बन जाती है। दन्तकथा गप्प भी है और देखने की दृष्टि हो तो एक दाहक अनुभव भी। दाहक अनुभव ही रचनात्मक साहित्य बन पाता है, इसमें कोई सन्देह नहीं है। परन्तु दन्तकथा क्या होती है और कैसी होती है, इससे ज्यादा महत्त्व की बात यह है कि हम उसे किस तरह लेते हैं, क्योंकि तभी हम अपनी जाँच-पड़ताल करते हैं। जाहिर है कि यही काम सबसे मुश्किल होता है, एक गहरी चुनौती है वह। उसे स्वीकारना अपनी साहित्य-निष्ठा का परिचय देना है।
मेरी निगाह में ‘घासीराम कोतवाल’ एक विशिष्ट समाज-स्थिति की ओर संकेत करता है। वह समाज-स्थिति न पुरानी है और न नई। न वह किसी भौगोलिक सीमा-रेखा में बँधी है, न समय से ही। वह स्थल-कालातीत है, इसलिए ‘घासीराम’ और ‘नाना फड़नवीस’ भी स्थल-कालातीत हैं। समाज-स्थितियाँ उन्हें जन्म देती हैं, देती रहेंगी। किसी भी युग का नाटककार उनसे अछूता नहीं रह पाएगा। अपनी प्रकृति के अनुसार वह कभी भव्य-भीषण रूप देकर उन्हें मंच पर उतारेगा तो कभी नृत्य-संगीतमय बनाकर प्रस्तुत करेगा। मैंने जान-बूझकर दूसरी रीति अपनाई है। लोकनाट्य का लचीलापन विख्यात है और दन्तकथा के प्रस्तुतीकरण के लिए सबसे अधिक उपयोगी है। उसमें एक पात्र विशिष्ट मनोवृत्ति का प्रतिनिधि बनकर उभरता है और वह मनोवृत्ति एकदम प्रत्यक्ष तथा परिपूर्ण और अमिश्रित होती है। सतही संश्लिष्टता के रहते हुए भी वह आम दर्शक के सामने बराबर उजागर होकर रहती है। इसके अतिरिक्त उसका अपना एक भदेसपन भी होता है जो भाषा और तमाशा के स्तरों पर स्वयमेव अवतीर्ण होता है। लोकनाट्य की इस विशिष्टता को मैं क्यों छोड़ देता ?
लेकिन रचनाकार को अपनी रचना के विषय में ज्यादा नहीं बोलना चाहिए, रचना स्वयं बोलती है और वही सत्य है।
विजय तेन्दुलकर
निर्देशक का वक्तव्य
इस नाटक में घासीराम और नाना फड़नवीस का व्यक्ति-संघर्ष प्रमुख होते हुए भी तेन्दुलकर ने इस संघर्ष के साथ-साथ अपनी विशिष्ट शैली में तत्कालीन सामाजिक एवं राजनैतिक स्थिति का मार्मिक चित्रण किया है। परिणामत: सत्ताधारी वर्ग और जनसाधारण की सम्पूर्ण स्थिति पर काल-अवस्थापन के अन्तर से विशेष वास्तविक अन्तर नहीं पड़ता। घासीराम हर काल और समाज में होते हैं और हर उस काल और उस समाज में उसे वैसा बनानेवाले और बनाकर मौका ताक उसकी हत्या करनेवाले नाना फड़नवीस भी होते ही हैं-वह बात तेन्दुलकर ने अपने ढंग से प्रतिपादित की है।
नाना ने घासीराम का उपयोग बड़ी धूर्तता से किया है। पर जब उनका रचा ‘राक्षस’ पलटकर उन्हीं को चुनौती देने लगता है तो नाना ही उसे नष्ट भी कर देता है। इस दृष्टि से यह नाटक नाना फड़नवीस का ही है, इसमें शक नहीं।
घासीराम एक प्रकार से एक प्रसंग मात्र है जिसे तेन्दुलकर ने अपने वक्तव्य की अभिव्यक्ति का एक निमित्त, एक साधन बनाया है। ‘घासीराम कोतवाल’ नाटक में नाना फड़नवीस और तत्कालीन पतनोन्मुख समाज के चित्रण द्वारा (जो समय और स्थान की सीमा में नहीं बँधे-जैसा मैं पहले कह चुका हूँ) कुछ राजनीतिक और विशेष सामाजिक स्थितियों के विषय में तेन्दुलकर को कुछ सत्य उजागर करने हैं, जो सनातन हो गए हैं।
इतिहास के नाना फड़नवीस बौद्धिक प्रखरता से तड़पती हुई शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हैं। किन्तु इस नाटक में केवल घासीराम कोतवाल के प्रसंग की सीमा में घिरे होने के कारण उनका व्यक्तित्व इकहरा दिखाई पड़ता है, उसके दूसरे आयाम सामने नहीं आते। अप्रत्यक्ष रूप से तेन्दुलकर ने इसका भी उसी तरह उपयोग किया है जैसा लोक नाटकों में होता है जहाँ चरित्र आमतौर पर एक या दो आयामवाले ही होते हैं। इसीलिए एक प्रसिद्ध मराठी समीक्षक ने इस नाटक को बहुत कुछ पारम्परिक भारतीय नाट्य-रूप उपरूपक जैसा बताया है।
मैंने अपनी प्रस्तुति में इसी बात को केन्द्रीय सूत्र के रूप में माना है। नाटक देखते समय दर्शकों के मन में अनजाने ही यह बात उतरती जानी चाहिए कि सारे-का-सारा समाज ही ढह रहा है, चुक रहा है। यह बात अप्रत्यक्ष नहीं होनी चाहिए। इस नाटक की रचना मराठी रंगमंच के लिए एकदम नई होने के कारण उसके अभिप्रेत अर्थ को मनचाही अप्रत्यक्ष पद्धति से व्यक्त करने में मुझे बड़ी सुविधा हुई।
किसी प्रतिष्ठित नाटककार ने लोकनाट्य के स्वरूप में कोई नाटक पहले ढाला नहीं था, इसलिए मैं लोकनाटक के लचीले लोचपूर्ण शिल्पतन्त्र का उपयोग कई प्रकार से खुलकर कर सका।
आदमियों के झूलते परदे की कल्पना रंगमंच के लिए अद्भुत है। इस नाटक की सबसे बड़ी युक्ति भी यही है। बारह ब्राह्मण कोरस के रूप में कथा-प्रवाह सँभालते हैं। आवश्यकतानुसार तात्कालिक इकहरी भूमिकाएँ भी निभाते हैं। यह परदा दो खंडों में बँटता है और क्षण-भर में समाज के कई-कई घटकों, ईकाइयों के प्रतिरूप में ढल जाता है। घासीराम को कोतवाल के रूप में स्थापित करनेवाला यही परदा घासीराम के वध के समय रुष्ट ब्राह्मणों के रूप में रंगमंच पर दीखता है। श्री गजराज नर्तन करैं गानेवाला यही परदा गणपति-वन्दना द्वारा लोकनाट्य से अपना सम्बन्ध जोड़ता है। कलाकार और भूमिका के बीच एक सूक्ष्म और तर सम्बन्ध लोकनाट्य की विशेषता है। मैंने अपने प्रदर्शन को किसी विशेष लोकशैली में नहीं बाँधा वरन् दशावतार, भारुड़, खेला, तमाशा, पोवाड़ा, वाध्यामुरली, कीर्तन आदि शुद्ध मराठी लोककलाओं का मिश्रित उपयोग किया है। सरस्वती, लक्ष्मी, गणपति द्वारा दशावतारी आरम्भ होता है। इस समय की आरती के थाल को ही बाद में कीर्तन के समय काले टीके (बुक्का) के लिए उपयोग कर इन विभिन्न शैलियों में साम्य दिखाने का मैंने प्रयत्न किया है।
ब्राह्मण-वेशधारी कलाकार प्रेक्षागृह से होकर रंगमंच पर आते हैं। इस प्रकार आत्मीयता उत्पन्न होने के कारण प्रदर्शन का लोकनाट्य-रूप दर्शकों के मानसिक स्तर तक अधिकाधिक सम्प्रेषित हो जाता है।
नाटक के पहले अंक की गति दूसरे अंक की अपेक्षा धीमी है। लोक नाट्य के बाह्य स्वरूप में ऐतिहासिक व्यक्ति को स्थापित होने में समय लगना स्वाभाविक ही है क्योंकि वह सर्वथा नया अनुभव है। नाना फड़नवीस सरीखे इतिहास-पुरुष का रंगमंच पर नृत्य-तालबद्ध होकर आना मराठी दर्शक के लिए निश्चय ही धक्का पहुँचानेवाला अनुभव था। इसलिए दर्शक को इस बात का विश्वास दिलाना था कि इस नाटक का पात्र नाना फड़नवीस एक लोकनाटकीय चरित्र मात्र है-ऐतिहासिक नाटकों का प्रामाणिक, सम्पूर्ण व्यक्तित्व नहीं। कुछ समीक्षकों की दृष्टि में यह बात बहुत धीमे-धीमे स्थापित हुई। किन्तु मुझे लगा कि खोखले समाज को निर्देशित कर उसमें नाना के स्थान और कोतवाली हासिल करने के लिए घासीराम द्वारा नाना के उपयोग की प्रक्रिया आदि का दिग्दर्शन विस्तारपूर्ण होना ही चाहिए था।
दूसरे अंक की गति तेज थी। पूना के ब्राह्मणों पर अत्याचार करनेवाला घासीराम, उसका प्रतिशोध, उस प्रतिशोध के कारण घासीराम का राक्षस में रूपान्तरित होना, आदि अग्निपरीक्षा के दृश्य तक जाकर स्थापित होता है।
नाना के विवाह से लेकर गौरी की मृत्यु तक घासीराम बहुत बेचैन है लेकिन उसकी बेचैनी नराधम की है। वह ब्राह्मणों को कोठरी में घोंट कर मारना नहीं चाहता था लेकिन नराधम घासीराम की हत्या उसके अप्रत्यक्ष अपराध का ही फल है-नियति के इस विरोधाभास को तेन्दुलकर ने प्रभावशाली ढंग से निरूपित किया है। नियति का ऐसा प्रतिशोध अनेक ऐतिहासिक खलनायकों के प्रसंग में मिलता है।
घासीराम की हत्या के बाद नाना का चतुराई-भरा भाषण धूर्त्तता और कूटनीति से पूर्ण होने के कारण उनके प्रभुत्व का विलक्षण प्रभाव उत्पन्न करता है और नाना फड़नवीस पुन: नाटक के केन्द्र में आ जाते हैं।
इस नाटक का अंग्रेज पात्र एक दर्शक मात्र है। नाटक के अन्त में वह पिछली चौकी पर बाईं ओर प्रकाशवृत्त में खड़ा है। नीचे घासीराम की हत्या के बाद सामूहिक उत्सव हो रहा है। यह पूना के भावी इतिहास का महत्त्वपूर्ण पूर्वाभास है। यही अंग्रेज घासीराम के कोतवाली प्राप्त करने के समारोह के समय भी एक कोने में ख़ड़ा होकर उसका साक्षी बनता है।
मैंने पहली बार जब यह नाटक पढ़ा तो लगा यह नाटक संवाद-प्रधान नहीं, अपेक्षाकृत दृश्य-प्रधान है। मुझे ऐसे ही दृश्य-बिम्बों (विजुअल्स) द्वारा प्रभाव उत्पन्न करनेवाले नाटक की तलाश थी। दूसरी बात बहुत दिनों से मेरे मन में यह थी कि फिल्मों में दूरवर्ती (लौंग-शॉट) मध्यवर्ती (मिड शॉट) और समीपवर्ती (क्लोज-अप) चित्रों की तीन-चार दूरियों और उनके सम्मिश्रण के शिल्प और चातुर्य से जो विशेष प्रभाव उत्पन्न किया जाता है, वह रंगमंच पर भी क्यों न हो ? यह नाटक संवाद, नृत्य, संगीत, गति, पात्र, दृश्य आदि अनेक खंडों के योग से अग्रसर होता है। इन सबको जोड़नेवाला सूत्र भी जबरदस्त है। इन सब तत्त्वों के साथ ही यह नाटक ‘पूर्ण’ लगता है, अतएव काल्पनिक कैमरा हाथ में लेकर ही मैंने इसे साकार करने का प्रयत्न किया। प्रकाश-योजना द्वारा रंगमंच को विभाजित कर दूर और पास के अनेक वांछित प्रभाव रंगमंच पर उत्पन्न किए।
गति और समूहन आदि को मैंने कागजी तैयारी में ही निर्धारित कर लिया था। मेरी पद्धति में नाटक की प्रदर्शन-प्रति के हर पृष्ठ पर प्रसंग के रेखाचित्र पहले से तैयार रहते हैं। इस नाटक के साठ-पैंसठ पात्रों की गतियाँ स्वत:स्फूर्त न हों वरन् नियोजित रहें, इसके लिए मैं पूरी तरह तैयार था। इन पात्रों की गति-शैली कठपुतलियों की तरह अपेक्षित थी।
चरित्र की दृष्टि से मैंने जो घासीराम चुना, वह कद में छोटा था। आसपास के ‘प्रचंड’ व्यक्तियों में वह बौना ही लगना भी चाहिए था। नृत्य-गतियाँ सरल और सहज किन्तु लयबद्ध थीं। शास्त्रीय नृत्य का प्रयोग इस लोकनाट्य में जटिल और अतिपरिष्कृत लगा। नृत्य-गतियों में लोकनाट्य की अनगढ़ ऊर्जा का होना आवश्यक था। घासीराम की नृत्यमय मृत्यु-मात्र को ही स्वत: स्फूर्त (इम्प्रोविजेशन) ढंग से प्रस्तुत किया गया। ढोल और नगाड़े की प्रबल ताल को चन्दावरकरजी1 ने आगे जाकर विशेष ढंग से बढ़ाया, जिससे दृश्य की भीषणता बढ़ी। नाना की नृत्य-गतियों में संयम और प्रभुता का पुट बरकरार था। मुलगन्दजी2 ने लावणी को बैठकी लावणी के पदन्यास में ढाला था जो पूरे मराठी रंगवाली थी।----
1.संगीत-निर्देशक।
2.नृत्य-निर्देशक।
भास्कर चन्दावरकरजी ने संगीत के लिए सिर्फ चमड़े के साज ही लिए और वे भी प्रदर्शन के साथ-साथ बजवाकर, पहले से रिकार्ड करके नहीं। उसमें अपवाद मात्र सुन्दरी वाद्य ही था। नाना-गौरी के बाग के दृश्य में और नाना के विवाह के समय सुन्दरी अलग-अलग ढंग से बजाई गयी थी। चन्दावरकरजी ऑर्गन नहीं चाहते थे क्योंकि उससे प्रचलित संगीत नाटकों का सा असर लोक-संगीत में आ जाता। नमन, लावणी, पोवाड़ा, वाध्यामुरली, भारुड़ आदि अपने प्रकृत अनगढ़ ओज के साथ ही गाए गए। गुनगुनाने का उपयोग मराठी रंगमंच पर पहली बार चन्दावरकरजी ने किया। मनुष्यों के हिलते परदे की गुनगुनाहट द्वारा भिन्न-भिन्न भावावेग व्यक्त किए गए।
घासीराम की हत्या के बाद उत्सव होता है और फिर मनुष्यों का परदा सामने आता है। कथा समाप्त हो चुकी है, इसलिए नाना की भूमिका करनेवाला अभिनेता भी इस परदे में सम्मिलित हो जाता है। घासीराम मरा पड़ा है, पर उस अभिनेता के उठने से रसभंग न हो, इसलिए उसे अपवादरूप यथास्थान ही रहने दिया जाता है। तभी सूत्रधार आगे बढ़कर श्री गजराज नर्तन करैं ध्रुपद को भैरवी के करुण स्वर में गाकर उस ‘कलाकार’ को श्रृद्धांजलि अर्पित करता है। एक प्रकार से लोकनाटक का पूर्ण शिल्प यहाँ दीखता है और नाना जैसे सत्ताधारी व्यक्ति का पंक्ति में आना भी विशेष अर्थ का द्योतक हो जाता है, क्योंकि जैसे पहले बताया गया, अंग्रेज पीछे खड़ा यह सब देख रहा है। मगर लोकनाट्य शिल्प से भी अधिक नाटक का यह रूप अधिक गहरे सोचने को विवश करता है।
घासीराम दर्शकों से सीधे बात करता है, प्रभाव को गहन करने के लिए जो कि ब्रेख्त के विपरीत है, क्योंकि यहाँ घासीराम कथा-सूत्र में बाधा नहीं डालता, न ही वह प्रभाव को मिटाने का यत्न करता है। यहीं रूढ़ लोकनाट्य से भिन्न शिल्प का प्रयोग तेन्दुलकर ने किया है। वेशभूषा में ऐतिहासिक प्रामाणिकता का आग्रह नहीं बरता गया इससे भी लोक-शैली का प्रभाव जमा रहा। रंगों का चुनाव अवश्य सावधानी से किया गया जिससे समूहन आदि में रंग-मिश्रण की सम्भावना रहे।
अभ्यास तीन-साढ़े तीन महीनों तक हर दिन किया गया। नृत्य, गीत, संवाद सभी का तालमेल साथ-साथ ही चला। मंडली का कोई भी कलाकार व्यावसायिक नर्तक या गायक नहीं था। सभी शौक से आते थे-शौकिया थे। यही नहीं, साठ में से पच्चीस तो ऐसे थे जिन्होंने मंच पर इससे पहले कभी पाँव न रखे थे। किन्तु इनका श्रम, लगन और आत्मविश्वास प्रबल था। लगनशील, कलाकार, नृत्य-निर्देशक, संगीत-निर्देशक और निर्देशक के सहयोगी प्रयासकर्म से ही यह अलग ढंग की प्रस्तुति हो सकी। 1
-डॉ॰जब्बार पटेल
सन्दर्भ
मराठी नाटक और रंगमंच | 2,288 |
554614 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6%20%28%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A4%A8%29 | प्रकृतिवाद (दर्शन) | प्रकृतिवाद (Naturalism) दार्शनिक चिन्तन की वह विचारधारा है जो प्रकृति को मूल तत्त्व मानती है, इसी को इस बरह्माण्ड का कर्ता एवं उपादान (कारण) मानती है। यह वह 'विचार' या 'मान्यता' है कि विश्व में केवल प्राकृतिक नियम (या बल) ही कार्य करते हैं न कि कोई अतिप्राकृतिक या आध्यातिम नियम। अर्थात् प्राकृतिक संसार के परे कुछ भी नहीं है। प्रकृतिवादी आत्मा-परमात्मा, स्पष्ट प्रयोजन आदि की सत्ता में विश्वास नहीं करते।
यूनानी दार्शनिक थेल्स (६४० ईसापूर्व-५५० इसापूर्व) का नाम सबसे पहले प्रकृतिवादियों में आता है जिसने इस सृष्टि की रचना जल से सिद्ध करने का प्रयास किया था। किन्तु स्वतन्त्र दर्शन के रूप में इसका बीजारोपण डिमोक्रीटस (४६०-३७० ईसापूर्व) ने किया।
प्रकृतिवादी विचारक बुद्धि को विशेष महत्व देते हैं परन्तु उनका विचार है कि बुद्धि का कार्य केवल वाह्य परिस्थितियों तथा विचारों को काबू में लाना है जो उसकी शक्ति से बाहर जन्म लेते हैं। इस प्रकार प्रकृतिवादी आत्मा-परमात्मा, स्पष्ट प्रयोजन इत्यादि की सत्ता में विश्वास नहीं करते हैं। प्रो. सोर्ले का विचार है कि प्रकृतिवाद वह विचारधारा है जिसके अनुसार स्वाभाविक अथवा निर्माण की शक्ति मनुष्य के शरीर को नहीं दी जा सकती। प्रकृतिवाद सभ्यता की जटिलता की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप समाज के सम्मुख उपस्थित हुआ।
‘प्रकृति’ के अर्थ के संबंध में दार्शनिकों में मतभेद रहा है। एडम्स के अनुसार यह शब्द अत्यन्त जटिल है जिसकी अस्पष्टता के कारण ही अनेक भूलें होती हैं। ‘प्रकृति’ को तीन प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है। प्रथम अर्थ में प्रकृति का तात्पर्य उस विशेष गुण से है जो मानव जीवन को विकास एवं उन्नति की ओर ले जाने में सहायक होते हैं। सर्वप्रथम रूसो ने ही प्रकृति के इस अर्थ से अवगत कराया। जिसके आधार पर डॉ॰ हाल ने ‘बाल केन्द्रित शिक्षा’ का स्वरूप विकसित किया। अतः प्रथम अर्थ में प्रकृति का तात्पर्य मानव स्वभाव से लिया जाता है। ‘प्रकृति’ का द्वितीय अर्थ ‘बनावट के ठीक विपरीत’ बताया गया। अर्थात् जिस कार्य में मनुष्य ने सहयोग न दिया हो वही प्राकृतिक है। ‘प्रकृति’ के तीसरे अर्थ के अनुसार ‘समस्त विश्व’ ही प्रकृति है तथा शिक्षा के अनुसार इसका तात्पर्य विश्व की क्रिया का अध्ययन तथा उसे जीवन में उतारने से है। कुछ विद्वान ऐसा मानते हैं कि मनुष्य को प्रकृति की विकासवादी शृंखला में बाधक नहीं बनना चाहिए। अपितु उसे अलग ही रहना चाहिये। चूँकि विकास किसी व्यक्ति के बिना नहीं हो सकता है, व्यक्ति बिना प्रयोजन कार्य नहीं कर सकता, इसलिए कुछ विद्वान ऐसा मानते हैं कि इस विकास के नियम का अध्ययन करना चाहिये तथा प्रकृति का अनुयायी हो जाना चाहिये।
इस प्रकार स्पष्ट है कि ‘प्रकृति’ के अर्थ के संबंध में मतैक्य नहीं है। प्राचीन सिद्धान्त के अनुसार वह मार्ग जिसमें व्यक्ति जीवन में अधिक मूल्यों की प्राप्ति कर सकता है, वह है- अपने जीवन का प्रकृति के साथ यथा संभव निकट संबंध स्थापित करना। यह विचार डेमोक्रीट्स, एपीक्यूरस तथा ल्युक्रिटियस के विचारों से साम्य रखते हैं। ये सभी विद्वान सामान्यतः ऐसे जीवन की प्राप्ति की कामना रखते थे जो यथा संभव कष्ट एवं पीड़ा से मुक्त हो। अधिकांश प्रकृतिवादियों ने सर्वोच्च श्रेय का विवेचन करते हुए उसे श्रेष्ठ एवं शाश्वत सुख माना है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रकृतिवाद का नीतिशास्त्र सुखवादी है।
प्रकृतिवाद के रूप
'प्रकृति' के अर्थ के सम्बन्ध में दार्शनिकों में मतभेद रहा है। एडम्स का कहना है कि यह शब्द अत्यन्त जटिल है जिसकी अस्पष्टता के कारण अनेक भूलें होती हैं। प्रकृति को ३ प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
(१) पदार्थ विज्ञान का प्रकृतिवाद
(२) यन्त्रवादी प्रकृतिवाद
(३) जीववैज्ञानिक क्रमविकासवादी प्रकृतिवाद
पदार्थ विज्ञान का प्रकृतिवाद
यह विचारधारा पदार्थ विज्ञान पर आधारित है। इसके अनुसार समस्त प्रकृति में अणु विद्यमान है। जगत की रचना इन्हीं अणुतत्वों से हुई है। जीव और मन सभी का निर्माण भौतिक तत्वों के संयोग से हुआ है। पदार्थ विज्ञान केवल बाह्य प्रकृति के नियमों का अध्ययन करता है और इन्हीं नियमों के आधार पर अनुभव के प्रत्येक तथ्यों की व्याख्या करता है। अतः प्रकृति के नियम सर्वोपरि हैं। यह मनुष्य को भी पदार्थ विज्ञान के नियमों के अनुसार समझने का प्रयास करता है। इसका मनुष्य की आन्तरिक प्रकृति से कोई प्रयोजन नहीं है किन्तु शिक्षा एक मानवीय प्रक्रिया है जिसका संबंध मानव की आन्तरिक प्रकृति से है। अतः शिक्षा के क्षेत्र में पदार्थ विज्ञान के प्रकृतिवाद का कोई विशेष योगदान नहीं है।
यन्त्रवादी प्रकृतिवाद
इस सम्प्रदाय के अनुसार सृष्टि यन्त्रवत है जो पदार्थ और गति से निर्मित है। इस प्राणहीन यन्त्र में कोई ध्येय, प्रयोजन या आध्यात्मिक शक्ति नहीं है। मानव यद्यपि इस जगत का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है तथापि उसमें स्वचेतना नहीं होता, उसका व्यवहार वाह्य प्रभावोें के कारण नियंत्रित होता है। ज्यों-ज्यों मानव वाह्य वातावरण के सम्पर्क में आता है, मानव यन्त्र सुचारू रूप से क्रिया करता रहता है। मनुष्य की प्रयोजनशीलता, क्रियात्मकता उसके आत्मिक गुणों की विवेचना इस विचारधारा में संभव नहीं है। पशु की स्थिति, यन्त्र की स्थिति तथा मनुष्य की स्थिति तीनों में अन्तर है। अतः मनुष्य की शिक्षा भिन्न प्रकार से होनी चाहिए। इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में यन्त्रवादी प्रकृतिवाद का कोई विशेष योगदान नहीं है।
जीव विज्ञान का प्रकृतिवाद
यह विचारधारा ‘विकास के सिद्धान्त’ में विश्वास रखती है। इसलिए इस विचारधारा का उदगम डार्विन के क्रमविकास सिद्धान्त से हुआ है। इस मत के अनुसार जीवों के क्रम विकास में मनुष्य सबसे अन्तिम अवस्था में है। मस्तिष्क विकास के कारण ही मनुष्य ने भाषा का विकास किया जिसके फलस्वरूप वह ज्ञान को संचित रख सकता है। नये विचार उत्पन्न कर सकता है तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन का विकास कर पाया है। अन्य सभी दृष्टियों से मनुष्य अन्य प्राणियों से भिन्न नहीं है। उसकी नियति तथा विकास की संभावनायें वंशक्रम तथा परिवेश पर निर्भर करती हैं। उसमें किसी प्रकार की इच्छा शक्ति जैसी कोई चीज नहीं होती। वास्तव में इस प्रकृतिवाद से मनुष्य की पूर्व स्थिति का ज्ञान किया जा सकता है। किन्तु उसके भविष्य के आदर्शों की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। यह कमी होते हुए भी इस प्रकृतिवाद का शिक्षा में योगदान माना जा सकता है।
प्रकृतिवाद तथा शिक्षा
प्रकृतिवाद एक दार्शनिक विचारधारा है जो पदार्थ को आधार एवं यथार्थ मानती है तथा जगत, जीव और मनुष्य सभी उसी से निर्मित है। इस विचारधारा के प्रमुख प्रवर्तक के रूप में सामान्यतः रूसो का ही नाम लिया जाता है। रूसो ने यद्यपि प्रकृतिवाद के नारे को जोरदार ढंग से ऊँचा किया किन्तु वह भी प्लेटो जैसे विचारवादी दार्शनिक से प्रभावित था। उसके विचार प्लेटों से प्रभावित थे। इसलिए रूसो की प्रकृतिवाद का स्वरूप आदर्शवादी उद्देश्यों की पृष्ठभूमि पर निर्मित प्रतीत होता है। ब्रुबेकर का ऐसा विचार है कि रूसो एक रोमांटिक प्रकृतिवादी था। बालक की रूचि तथा योग्यता, बन्धन से दूर, प्राकृतिक स्थल पर शिक्षा की व्यवस्था इत्यादि बातों के आधार पर हम रूसों को प्रकृतिवादी नहीं कह सकते हैं। क्योंकि यदि मात्र बालक की स्वाभाविक रूचि पर बल देने तथा प्रकृति से प्रेम के बल पर यदि रूसो को प्रकृतिवादी कहा जा सकता है तो हमें प्लेटो को भी इसी श्रेणी में सम्मिलित करना होगा। रस्क, डोनेल्ड बटलर इत्यादि दार्शनिक मानते हैं कि हरबर्ट स्पेन्सर वास्तव में प्रकृतिवादी हैं। बेकन एवं कमेनियस भी प्रकृतिवादी विचारधारा से जुड़े प्रतीत होते हैं। किन्तु प्रकृतिवाद को अपनी चरम सीमा पर पहुँचाने का श्रेय स्पेन्सर एवं रूसों को ही दिया जा सकता है। रूसों के सम्बन्ध में आश्चर्य व्यक्त करते हुए राबर्ट हरबार्ट ने लिखा है कि रूसो जैसे पतित व्यक्ति का इतना प्रभाव आश्चर्य जनक है। चूँकि दूषित समाज का रूसों भी एक अंग था, इसलिए उसका नैतिक पतन होना स्वाभाविक था। अतः रूसो ने तत्कालीन समाज के विषय में सार्वभौमिक कथन कह डाला, - ‘मनुष्य की संस्थायें विरोधी तत्वों एवं भूलों का पिण्ड है। तथा समाज द्वारा स्थापित नियमों के विरूद्ध कार्य करने पर सही कार्य संभव हो सकेगा।’ रूसों ने ‘प्रकृति की ओर लौटो’ का जो नारा दिया उससे यही संकेत निकलता है कि वह छात्रों को दूषित समाज से दूर गाँव की प्राकृतिक छत्र छाया में ले जाना चाहता था। वास्तव में यह ‘वाद’ १८वीं शताब्दी की यूरोप की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं शैक्षिक क्षेत्र में होने वाली ‘क्रान्ति’ के परिणाम स्वरूप हुआ। यह क्रान्ति विशेष रूप से तत्कालीन रूढ़िवादिता एवं अंध विश्वासों से ग्रसित धार्मिक संस्थाओं के विरूद्ध हुई थी।
प्रकृतिवाद तथा शिक्षा के उद्देश्य
यन्त्रवादी प्रकृतिवाद ने व्यवहारवादी मनोविज्ञान को जन्म दिया जिसके अनुसार प्रत्येक मनुष्य कुछ सहज क्रियाएं लेकर पैदा होता है। जब ये सहज क्रियाएं बाह्य पर्यावरण के सम्पर्क में आती हैं तो सम्बद्ध सहज क्रियाओं का निर्माण होता है ये सम्बद्ध सहज क्रिया मनुष्य को विभिन्न कार्य में सहायता प्रदान करती हैं। इसलिए यन्त्रवादी प्रकृतिवादी मानव में उचित तथा उपयोगी सम्बद्ध सहज क्रियाएं उत्पन्न करना ही शिक्षा का उद्देश्य मानते हैं। जीव विज्ञान के सिद्धान्तों में विश्वास रखने वाले प्रकृतिवादियों के अनुसार शिक्षा का चरम लक्ष्य सुख एवं आनन्द की प्राप्ति कराना है किन्तु मैक्डूगल महोदय ने यह सिद्ध किया था कि हम मूल प्रवृत्तियों के कारण कार्य करते हैं, सुख दुःख तो प्रतिफल हैं। इसलिए शिक्षा का उद्देश्य मूल प्रवृत्तियों का रूपान्तर तथा शोधन करना है, ताकि छात्र की प्रवृत्तियों में पुननिर्देश तथा एकीकरण द्वारा नवीन सामंजस्य उत्पन्न हो जाए जिससे वह सामाजिक एवं नैतिक मूल्यो के अनुकूल आचरण कर सके।
जीवविज्ञानवादियों के अनुसार प्रत्येक प्राणी में जीने की इच्छा होती है। और अपने जीवन की रक्षा के लिए उसे अपने वातावरण से सदैव संघर्ष करना पड़ता है। डार्विन ने इस सम्बन्ध में दो सिद्धान्त दिये हैं - जीवन के संघर्ष तथा समर्थ का अस्तित्व। इसलिए डार्विन मनुष्य को सामर्थ्यवान तथा शक्तिशाली बनाना चाहते हैं, जिससे जीवन संग्राम में वे सफलता प्राप्त कर सकें। किन्तु लैमार्क के अनुसार वातावरण के अनुरूप परिवर्तन शीलता के गुणों कीशिक्षा देना ही उचित उद्देश्य है। बर्नार्ड शा जैसे लोग प्रकृति की विकासवादी गति को ही तीव्र करना चाहते हैं। इसलिए सामाजिक अथवा जातीय विरासत के रूप में प्राप्त संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाना तथा उनका संरक्षण करना शिक्षा का उद्देश्य निर्धारित किया है।
सुख एंव दुख के सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य सुख प्राप्ति वाले कार्य करता है और दुख देने वाले कार्योंं से बचने का प्रयास करता है। यह बात सही नहीं है क्योंकि मनुष्य कभी कभी कर्तव्य के लिए प्राण भी दे देता है। इस संबंध में टी.पी. नन महोदय का विचार ज्यादा समीचीन प्रतीत होता है। यद्यपि नन महोदय आदर्शवादी विचारधारा के अधिक समर्थक हैं किन्तु शिक्षा के उद्देश्य के सम्बन्ध में उन्होंने जीव वैज्ञानिक एवं प्रकृतिवादी दृष्टिकोण से विचार किया है। उनके अनुसार मानव के व्यक्तित्व का स्वतंत्र रूप से विकास करना ही शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है। नन के अनुसार वैयक्तिकता से तात्पर्य आत्मानुभूति और आत्म प्रकाशन है। इस प्रकार शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति में निहित जन्मजात शक्तियों के स्वतंत्र तथा अवरोधहीन विकास में सहायता प्रदान करना है।
प्रकृतिवाद तथा छात्र
इस संबंध में दो विचार व्यक्त किया जाता है। प्रथम विचार के समर्थक वुड्सवर्थ हैं जिनके अनुसार बालक स्वर्ग से प्रकाशमान रूप में आता है, परन्तु यहाँ आकर वह अपने वैभव को खो देता है,क्योंकि वह एक अबोध बालक ही होता है। इसलिए उसके वर्तमान सुखों से युक्त शिक्षा का प्रबन्ध होना चाहिए। दूसरा विचार जेरेमिया इत्यादि व्यक्तियों का है जो बालक को पाप के कारण उत्पन्न मानते हैं तथा उसे केवल कठोर अनुशासन में रखकर, उसकी स्वाभाविक प्रवृतियों को समाप्त करना ही शिक्षा की विधि तथा ईश्वरोन्मुख करना शिक्षा का उद्देश्य मानते हैं। किन्तु इस विचार को अधिक महत्व नहीं दिया जा सकता है क्योंकि यह विचार पाशविक प्रतीत होता है। इस विचारधारा के अनुसार बालक की शिक्षा उसके स्वभाव पर आश्रित होनी चाहिए जिसके मूल में आदिम संवेग, मौलिक इच्छायें तथा प्राकृतिक मनोवृत्तियां निहित हैं। वास्तविक शिक्षा तो वह है जो बालक की रूचि, योग्यता एवं झुकाव के अनुरूप हो। बालक के लिए अनुशासन तथा बन्धन नाम मात्र के होने चाहिए। प्रकृतिवादी बालक को वस्तुतः निर्माणोन्मुख मानव मानते हैं न कि उसे मानव का एक लघु रूप। उसकी प्रकृति सतत् विकसित होती रहती है। इसलिए सभी को इन उद्देश्यों की पूर्ति की ओर ही विशेष ध्यान देना चाहिये।
प्रकृतिवाद तथा पाठ्यक्रम
प्रकृतिवादी पाठ्यक्रम का आख्यान स्पेन्सर की पुस्तक से प्राप्त होता है। उनके पाठ्यक्रम की विशेषता यह है कि सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का आधार विज्ञान माना गया है। स्पेन्सर के अनुसार विज्ञान द्वारा ही समग्र जीवन जीना संभव है। समग्र जीवन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए स्पेन्सर ने निम्नलिखित पाठ्यक्रम प्रस्तुत किया है।
१. आत्म रक्षा के लिए स्पेन्सर शरीर विज्ञान का ज्ञान आवश्यक मानते हैं। उनके अनुसार शरीर विज्ञान के परिचय द्वारा व्यक्ति को स्वस्थ जीवन बिताने में सहायता मिलती है।
२. जीवन की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति किसी धन्धे, रोजगार में लगकर की जा सकती है और इसके लिए गणित, यांत्रिकी, भौतिकी, रसायनशास्त्र तथा जैविकी का अध्ययन आवश्यक है।
३. सामाजिक एवं राजनैतिक संबंधों का सुचारू रूप से निर्वहन की योग्यता प्राप्त करने के लिए सामाजिक विज्ञानों का अध्ययन आवश्यक है।
४. अवकाश के समय के सदुपयोग के लिए जो साहित्य, संगीत तथा ललित कलाओं की आवश्यकता है। उनकी उचित श्लाघा के लिए भी शरीर विज्ञान, मनोविज्ञान, भौतिकी इत्यादि विज्ञानों की आवश्यकता होती है। अतः अवकाश कालीन शिक्षा को सार्थक बनाने के लिए भी विज्ञान की पूर्वापेक्षा रहती है।
प्रकृतिवाद तथा शिक्षण-विधि
प्राचीन कालीन शिक्षण पद्धति में अध्यापक क्रियाशील रहते थे। बालकों का स्थान गौण था किन्तु बालक की क्रियाशीलता पर अधिक बल प्रकृतिवादियों ने दिया। ये रटने तथा निष्क्रिय अभ्यास की विधि का विरोध करते हैं तथा ‘करके सीखने’ एवं ‘अनुभव द्वारा सीखने’ के सिद्धान्तों पर आधारित विधियों के प्रयोग पर बल देते हैं। इसके अतिरिक्त प्रकृतिवादी विचारधारा ने प्रोजेक्ट मेथड, स्काउट, आन्दोलन, स्कूल यूनियन, बालक क्लब इत्यादि को जन्म दिया। प्रकृतिवादी शिक्षण विधि के निम्नलिखित सिद्धान्त पर विशेष महत्व देते हैं-
(१) बालक की शिक्षा उसके मानसिक एवं शारीरिक विकास के अनुकूल होनी चाहिए।
(२) शिक्षा सुखमय होनी चाहिए।
(३) शिक्षा में बालक को स्वयं क्रियाशील होने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
(४) शिक्षा प्राकृतिक विकास का अनुगमन करें। इसके पूर्व बालक का नैतिक अथवा मानसिक विकास अनावश्यक है।
(५) शिक्षा प्रणाली में आगमन प्रविधि का ही प्रयोग होना चाहिये।
(६) छात्रों को दिया जाने वाला दण्ड प्राकृतिक होना चाहिए।
(७) शब्द ज्ञान पर अधिक महत्व न देकर वस्तुओं अथवा अनुभवों पर विशेष बल देना चाहिये।
प्रकृतिवाद तथा शिक्षक
प्रकृतिवादी शिक्षा में शिक्षक को गौण स्थान प्राप्त है। प्रकृतिवादी विचारक प्रकृति को ही वास्तविक शिक्षिका मानते हैं। उनके विचार से बालक को समाज से दूर रखकर प्राकृतिक वातावरण में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर देना चाहिए। रूसों के अनुसार शिक्षक पर समाज के कुसंस्कारों का प्रभाव इतना पड़ गया होता है कि वह बालकों को सद्गुणी बनाने का प्रयास भले ही कर लें, वह उन्हें सदगुणी बना नहीं सकता क्योंकि वह स्वयं सद्गुणी नहीं है। इसलिए रूसों बालक की आरम्भिक शिक्षा में शिक्षक को कोई स्थान नहीं देना चाहते। अन्य प्रकृतिवादी रूसो के अतिरेक को स्वीकार नहीं करते। वे बालकों की शिक्षा में शिक्षक की भूमिका मात्र सहायक एवं पथ प्रदर्शक के रूप में मानते हैं। इसलिए शिक्षक को मनोविज्ञान का ज्ञाता होना चाहिये। बालक की मनोकामनाएं, आवश्यकताएं रूचियाँ तथा उनके मानसिक विकास का उसे परिज्ञान होना चाहिए। शिक्षक के लिए बालक की स्वतः आत्मस्फूर्त क्रियाओं का जानना आवश्यक है। क्योंकि छात्र इन स्वतः शक्तियों द्वारा अपनी शिक्षा स्वयं करता है, शिक्षक तो केवल उचित परिस्थितियों का संयोजन मात्र करता है। यदि सीखने का परिणाम सुखद होता है तो बालक सीखने में आनन्द लेता है। तथा उक्त शैक्षिक अनुभव की बार बार आवृत्ति करता है। शिक्षक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह बालक के लिए अनुकूलित वातावरण तैयार करे।
प्रकृतिवादी स्कूल तथा समाज
रूसो के अनुसार स्कूल स्वयं एक विशेष प्रकार का समाज है। इस समाज के द्वारा बालकों को भावी समाज के योग्य बनाया जाता है। इसी समाज द्वारा वह स्वानुशासन की भावना सीखता है। नेतृत्व करने तथा प्रकृतिवादी उद्देश्यों की पूर्ति करने हेतु अपने को तैयार करता है। इस प्रकार के स्कूली समाज का बन्धन कठोर नहीं होता। यद्यपि रूसो ने स्कूल में एक छात्र तथा एक अध्यापक की कल्पना किया है। सामान्यतः प्रकृतिवादी किसी प्रकार से औपचारिक शिक्षा का विरोध करते हैं, इसीलिए इसमें विद्यालय को कोई महत्वपूर्ण स्थान न देकर बालकों को दूषित वातावरण से दूर और प्राकृतिक वातावरण के बीच रहकर शिक्षा प्राप्त करने को कहा गया है। इन्हीं विचारों के कारण प्रकृतिवादी विचारक स्कूलों को कृत्रिम कठोर एवं दृढ़ बन्धनों वाली संस्था नहीं चाहते। प्रकृतिवादियों के अनुसार स्कूल में पाठ्यक्रम एवं सहगामी क्रियाओं इत्यादि से संबंधित विषयों की व्यवस्था में बालकों का भी प्रतिनिधित्व आवश्यक होता है। इसलिए उन्हें भ्रमण, देशाटन, खेल कूद, स्काउटिंग, समाज सेवा इत्यादि कार्यक्रमों की स्वयं ही व्यवस्था करने की स्वतंत्रता देनी चाहिये। शिक्षकों को केवल पथ प्रदर्शक की भूमिका का निर्वहन करना चाहिए।
प्रकृतिवाद तथा अनुशासन
प्रकृतिवादी विचारक शिक्षा में अनुशासन को महत्व नहीं देते है। वे ‘कारण एवं परिणाम’ के नियम में विश्वास करते हैं। उनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति जो कर्म करता है,उसका परिणाम वह अवश्य भोगता है। ये परिणाम सुखकर एवं दुखकर दोनों ही होते हैं। इस आधार पर अनुशासन स्थापित करने के दो उपनियम दिखाई देते हैं -
(१) रूसो द्वारा प्रतिपादित प्राकृतिक परिणामों का सिद्धान्त
(२) स्पेन्सर द्वारा प्रतिपादित सुख दुख का सिद्धान्त।
रूसो के सिद्धान्त के अनुसार बालक के बुरे कार्यों का दण्ड प्रकृति अवश्य देती है। इसलिए उसे किसी प्रकार का दण्ड न देकर प्राकृतिक दण्ड द्वारा अनुशासित होने दिया जाना चाहिये, जबकि स्पेन्सर के सिद्धान्त के अनुसार बालक सुखदायी कार्यों को बार बार दुहराना चाहता है। क्योंकि उससे उसे सुख की अनुभूति होती है जबकि वह दुखद कार्यों को छोड़ देता है, क्योंकि उससे उसे कष्ट होता है। इस प्रकार बालक अनुशासित ढंग से व्यवहार करने लगता है और उसमें स्वानुशासन की भावना विकसित होने लगती है।
कुछ प्रकृतिवादी विचारक शिक्षा व्यवस्था में अनुशासन की स्थापना हेतु किसी भी प्रकार के ‘दमनात्मक सिद्धान्त’ का विरोध करते हैं। उनका विचार है कि बालकों पर शिक्षकों का प्रभाव विशेष रूप से पड़ता है। इसलिए बालकों में अनुशासन की भावना विकसित करने हेतु ‘प्रभावात्मक सिद्धान्त का सहारा लेना चाहिए, जबकि अनेक प्रकृतिवादी विचारक यह मानते हैं कि अनुशासन की स्थापना प्राकृतिक नियमों के अनुसार हो तो ज्यादा अच्छा होता है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रकृतिवादी बालकों में स्वानुशासन की भावना के विकास के लिए ‘मुक्तात्मक सिद्धान्त’ पर विशेष बल देते हैं।
शिक्षा में प्रकृतिवाद की देन
यदि हम शिक्षा के सन्दर्भ में प्रकृतिवाद का मूल्यांकन करें तो हमें उसमें अनेक गुण नजर आते हैं -
(१) बालक का शिक्षा में प्रमुख स्थान प्रकृतिवाद की विशेषता है। एक समय था जब शिक्षा पूर्णतया आदर्शवादी थी और शिक्षक, पाठ्यक्रम, चरित्र इत्यादि का वर्चस्व था तथा बालक का स्थान गौण था किन्तु प्रकृतिवाद के कारण बालक एवं उसकी रूचियों प्रवृत्तियों एवं आवश्यकताओं को केन्द्रीय स्थान दिया जाता है जिसके कारण ‘बाल केन्द्रित शिक्षा’ अस्तित्व में आयी।
(२) ‘बाल मनोविज्ञान’ के अध्ययन की प्रेरणा भी इसी विचारधारा ने दी। आज शिक्षा के क्षेत्र में जो मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति का प्रचलन है। यह प्रकृतिवाद के प्रभाव का ही परिणाम है। मनोविज्ञान की एक विशेष शाखा ‘मस्तिष्क विश्लेषण’ को तो विशेष प्रोत्साहन मिला। लिंग भेद की ओर इस मनोविज्ञान की विशेष देन है। इसके प्रति इसने एक स्वस्थ विचारधारा को जन्म दिया।
(३) प्रकृतिवादी विचारधारा ने शिक्षण विधि में शब्दों की अपेक्षा अनुभवों पर अधिक बल दिया। उनका विचार है कि केवल शब्द शिक्षा के लिए आवश्यक गुण नहीं है। अपितु अनुभव भी आवश्यक है। इसलिए इसने शिक्षण के अनेक नवीन सिद्धान्तों एवं विधियों को जन्म दिया। ‘करके सीखना’, निरीक्षण एवं अनुभव द्वारा सीखना, खेल द्वारा सीखना, इत्यादि नवीन शिक्षण सिद्धान्त तथा ‘ह्यूरिस्टिक पद्धति’, ‘डाल्टन पद्धति’, मान्टेसरी पद्धति इत्यादि नवीन शिक्षण विधियाँ प्रकृतिवाद की ही देन है।
(४) प्रकृतिवाद का एक अन्य योगदान यह है कि इसने शिक्षा मनोविज्ञान एवं समाजशास्त्र का प्रकृतिवादी स्वरूप एवं आधार प्रदान किया जिसके परिणाम स्वरूप आधुनिक शिक्षा मनोविज्ञान तथा समाजशास्त्र का अस्तित्व आया।
(५) शिक्षा के सन्दर्भ में प्रकृतिवाद का सबसे उल्लेखनीय योगदान शिक्षा सम्बन्धी विभिन्न परम्परावादी धारणाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन होना है। प्रकृतिवादियों के ‘प्रकृति की ओर लौटो’ के नारे ने हमारी सभ्यता एवं संस्कृति की परम्परात्मक धारणा में क्रान्तिकारी परिवर्तन उत्पन्न कर दिया जिसके परिणामस्वरूप समाज एवं राज्य दर्शन के रूप में लोकतन्त्र का जन्म हुआ। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि प्रकृतिवाद, आदर्शवाद के बिल्कुल विपरीत विचारधारा है जो कि इन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष होने वाले भौतिक प्राकृतिक पदार्थ जगत को सत्य वास्तविकता मानती है।
इन्हें भी देखें
आदर्शवाद
शिक्षा दर्शन
दर्शन
शिक्षा
अधिदर्शन | 3,291 |
833238 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5%20%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B0 | पारसमणिनाथ मंदिर | पारसमणिनाथ मंदिर (हिन्दी:पारसमणिनाथ मंदिर) पारसमणिधाम रहुआ-संग्राम के रूप में भी जाना जाता है। यह एक प्रसिद्ध शिव के लिए समर्पित हिंदू मंदिर है जो रहुआ-संग्राम गांव के उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है। जो बिहार के मधुबनी जिला अंतर्गत मधेपुर प्रखण्ड कार्यालय से छह किलोमीटर की दूरी पर है।
शिव प्राथमिक देवता है। एक बड़ी शिव प्रतिमा को स्थापित किया गया है जो वहाँ में सबसे ऊंची है बिहार और झारखंड में है। एक प्रमुख त्योहारों के मंदिर में महा शिवरात्रि पर जो दिन लगभग 20,000 श्रद्धालुओं यहाँ जाएँ. इस मंदिर के अधीन है पारसमणि फाउंडेशन ट्रस्ट.
घटनाओं
साल 2017 मार्च के महीने में नवाह कीर्तन [3][3][./Parasmaninath_Temple#cite_note-3 [3]][3][3][3][2][1](भजन) 9 दिनों के लिए आयोजित किया गया था, जिसमें 251 कुमारि कन्या कलश यात्रा के लिए उपस्थित थी
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
Parasmanidham Rahua Sangram, बिहार
हिन्दू मन्दिर
भारत में मंदिर | 137 |
947956 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%95%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%AD%E0%A5%8B%E0%A4%97 | आकस्मिक संभोग | किशोरों और नौजवानों या किसी भी आयु के लोगों बीच आकस्मिक संभोग उस यौन सम्बंध को कहते हैं जिसमें किसी स्नेह भाव या लम्बे समय के रिश्ते की आस के बिना लोग इस प्रक्रिया का भाग बनते हैं। आधुनिक काल में बहुप्रचलित इंटरनेट से प्राप्त मानव सम्बंधों का अपार ज्ञान, विभिन्न डेटिंग ऐप, बाज़ार में उपलब्ध गर्भ निरोधक सामग्री, हर आयु के लोगों को, विशेष रूप से युवकों और युवतियों को इस दिशा में अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
प्रथा
एक डेटिंग
एक रात का साथ व्यक्तियों के बीच एक एकल यौन मुठभेड़ है, जहां कम से कम एक पक्ष का दीर्घकालिक यौन या रोमांटिक संबंध स्थापित करने का कोई तत्काल इरादा या अपेक्षा नहीं है। गुमनाम सेक्स उन लोगों के बीच वन-नाइट स्टैंड या कैज़ुअल सेक्स का एक रूप है, जिनका एक-दूसरे के साथ बहुत कम या कोई इतिहास नहीं है, अक्सर अपनी मुलाकात के एक ही दिन यौन क्रिया में संलग्न होते हैं और आमतौर पर एक-दूसरे को फिर कभी नहीं देखते हैं।
सामाजिक सेक्स
फ्रेंड्स विथ बेनिफिट्स एंड बूटी कॉल शब्द उन स्थितियों का वर्णन करते हैं जिनमें एक व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति के साथ यौन संबंध रखता है जिसे वे आम तौर पर एक दोस्त या किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में मानते हैं जिसके वे काफी करीब हैं। वे एक विशेष रोमांटिक रिश्ते में नहीं हैं । इसमें शामिल पार्टियों के पास भावनात्मक लगाव की एक डिग्री हो सकती है, लेकिन किसी भी कारण से, "स्ट्रिंग्स अटैच" नहीं करना चाहते हैं।
दुष्प्रभाव
इस से यौन संचारित रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
समाज में अवांछित गर्भावस्था के मामलों और नाजयज़ बच्चों के जन्म में वृद्धि हो सकती है।
सामाजिक अराजकता और मनोवैज्ञानिक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
खेद की भावना
अचानक बने यौन संबंध में कई ऐसी वजहें होती हैं जिनसे दोनों पक्षों के लिए खेद और पछतावे की स्थिति पैदा हो सकती है। नैतिकता के स्तर पर भी खेद की भावना घर करती है और यौन संक्रमण का भी डर लगा रहता है।
पश्चिमी देशों में शोध और वहाँ के लोगों के विचार
न्यूयॉर्क और कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में 371 विद्यार्थियों पर लगातार 9 महीने तक हुई शोधार्थियों के अध्ययन में ये नतीजा निकलकर आया कि युवकों के रवैये और मानव स्वभाव से यह स्पष्ट है कि यदि आकस्मिक संभोग से गैर-प्रतिबद्धता और आवश्यक प्रसन्नता की सामयिक प्राप्ति के कारण स्वीकार योग्य है।
इन्हें भी देखें
पूर्तिकर साथी
कुटीर सह-आवास
कुक्कुरीय संभोग
परगमन
सामुहिक संभोग
इल्लिसिट एन्काउंटर्स
स्वच्छंद यौन संबंध
लैंगिक रुझान
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
क्यों बुरा नहीं है आकस्मिक सेक्स?
मानव कामुकता | 418 |
570270 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A5%80%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A5%E0%A4%AE | सेती प्रथम | सेती प्रथम (१२९०-१२७९ ईसापूर्व) नविन साम्राज्य के उन्नीसवें वंश का दूसरा फैरो था और रामेसेस प्रथम का पुत्र था और रामेसेस महान का पिता था। उसके शासन काल पर कई इतिहासकारों की अलग अलग राय है। तोलेमैक काल के इतिहासकार मनेठो ने सेती को ५५ वर्ष का शासन काल दिया है जबकि आज के कई इतिहासकार ९ वर्ष और ११ वर्ष को सही मानते हैं। मध्यधरा के इतिहासकारों के अनुसार उसने मिस्र पे ११ वर्ष तक राज किया।
'सेती' का अर्थ है "देवता सेत का" जो यह संकेत करता है कि वह सेत का पूजक था।सेती का असली नाम था "सेती मेरेनपिताह" जिसका अर्थ था "देवता सेत का उपासक ,देवता पिताह का प्रिय"।
शासन
अठारहवें वंश के पतन के साथ ही मिस्र का पतन होना शुर हो गया था, तब अठारहवे वंश के अंतिम फैरो होरेम्हेब ने अपने अमात्य रामेसेस प्रथम को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। रामेसेस प्रथम ने केवल १७ महीने ही राज किया और फिर सेती ने राज किया। सेती ने कई युद्ध लड़े और मिस्र को दुबारा शक्तिशाली बनाया। उसने हित्तिते साम्राज्य से मिस्र के खोये हुए प्रान्त अपने अधीन किये और कादेश पर विजय भी पाई। सेती के अंतिम दिनों में कादेश के साथ अन्य कुछ प्रान्त दुबारा हित्तिते साम्राज्य के अधीन हो गए जिसे एक और बार फिर सेती के पुत्र रामेसेस द्वितीय ने मिस्र के अधीन किया। एक सफल और शक्तिशाली शासक होने के बावजूद सेती प्रथम गुमनामी में रहा क्युकी उसके पुत्र रामेसेस द्वितीय की प्रसिद्धी उससे कई ज्यादा थी।
सन्दर्भ
प्राचीन मिस्र
फैरो
मिस्र के शासक | 254 |
1028519 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%89%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE | पोउला भाषा | पोउला (Poula) या पोउमाइ (Poumai) भारत के नागालैण्ड व मणिपुर राज्यों के कुछ भागों में बोली जाने वाली एक भाषा है। यह एक अंगामी-पोचुरी भाषा है जिसे पोउमाइ समुदाय में बोला जाता है। इसे विशेषकर नागालैण्ड के फेक ज़िले और मणिपुर के सेनापति ज़िले में बोला जाता है।
इन्हें भी देखें
चखेसंग लोग
अंगामी-पोचुरी भाषाएँ
सन्दर्भ
अंगामी-पोचुरी भाषाएँ
भारत की भाषाएँ
नागालैण्ड की भाषाएँ
मणिपुर की भाषाएँ
भारत की संकटग्रस्त भाषाएँ
फेक ज़िला
सेनापति ज़िला | 75 |
1439007 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9%20%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2 | कृष्णकुमारसिंह भावसिंह गोहिल | भावनगर राज्य के अंतिम शाही कृष्णकुमार सिंह का जन्म 19 मई, 1912 को हुआ था। वह महाराजा भावसिंह गोहिल (द्वितीय) के उत्तराधिकारी के रूप में सिंहासन पर चढ़े। स्वतंत्र भारत को एक करने के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल को सबसे पहले अपना राज्य दिया गया था। उसके बाद उन्हें मद्रास के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया ।
प्रारंभिक जीवन
कृष्ण कुमार सिंह का जन्म 19 मई 1912 को भावनगर में हुआ था। वह थे महाराजा भव सिंह (द्वितीय) (1875-1919, शाह। 1896-1919) सबसे बड़े बेटे और उनके सिंहासन के उत्तराधिकारी थे। जब कृष्णकुमार सिंह अपने पिता की मृत्यु के बाद 1919 में भावनगर की गद्दी पर बैठे, तब वे केवल 7 वर्ष के थे।उन्होंने 1931 तक ब्रिटिश शासन के अधीन शासन किया।
सिंहासन
कृष्णकुमार सिंह ने अपने पिता और दादा द्वारा शुरू किए गए सुधार कार्यों को आगे बढ़ाया, जैसे राज्य में कर संग्रह की व्यवस्था में सुधार, ग्राम-पंचायतों का गठन और भावनगर राज्य "धारसभा"। प्रगतिशील शासन के कारण, वह एस। वर्ष 1938 में के. सी। एस। आँख। के इल्काब से सम्मानित किया गया फिर भी वह हमेशा "भारत की स्वतंत्रता" के लिए प्रतिबद्ध थे और भारत के स्वतंत्र होते ही भारत गणराज्य के काठियावाड़ राज्य के साथ अपने राज्य का विलय करने वाले पहले शाही थे। ।
व्यक्तिगत जीवन
बारह और तेरह वर्ष की उम्र में कृष्णकुमार सिंह की मुलाकात गांधी से हुई जो भावनगर आए थे, जिनसे वे बहुत प्रभावित हुए। प्रभाशंकर पटानी का साहचर्य और मार्गदर्शन उनकी रचनात्मक शक्ति बन गया। राजकोट के राजकुमार कॉलेज में पढ़ने के बाद कृष्णकुमार सिंह को इंग्लैंड के प्रसिद्ध पब्लिक स्कूल हैरो में रखा गया। तीन साल तक वहां अध्ययन किया और क्रिकेट, फुटबॉल, निशानेबाजी आदि के लिए जुनून विकसित किया। इ। एस। 1931 में, कृष्णकुमार सिंह वयस्क हो गए और उन्होंने राज्य प्रशासन की बागडोर संभाली। उसी वर्ष उनका विवाह गोंडल के युवराज भोजराज की पुत्री विजयबा से हुआ। इ। एस। 1931 में, महाराजा कृष्णकुमार सिंह का विवाह गोंडल के महाराजा भोजीराज सिंह की बेटी और महाराजा भगवत सिंहजी की पोती विजयबाकुंवरबा से हुआ था। इस शादी से उनके पांच बच्चे हुए, दो बेटे और तीन बेटियां।
जीवन के बाद के वर्षों में
इ। एस। 1948 में, कृष्णकुमार सिंह को मद्रास के पहले भारतीय गवर्नर बनने का गौरव प्राप्त हुआ। उसी वर्ष उन्हें रॉयल इंडियन नेवी का मानद कमांडर भी बनाया गया था। भावनगर में नंदकुवरबा क्षत्रिय कन्या विद्यालय के अध्यक्ष और यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के उप-संरक्षक के रूप में भी कार्य किया। 2 अप्रैल 1965 को 52 वर्ष की आयु में और 46 वर्ष के शासन के बाद भावनगर में उनका निधन हो गया।
भावनगर विश्वविद्यालय को अब महाराजा कृष्णकुमारसिंहजी भावनगर विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है, इस आशय का एक विधेयक मंगलवार को 2012 में गुजरात विधान सभा में सर्वसम्मति से पारित किया गया था। जिसके कारण भावनगर विश्वविद्यालय अधिनियम को अब महाराजा कृष्णकुमार सिंहजी अधिनियम के नाम से भी जाना जाता है। गौरतलब है कि महाराजा कृष्णकुमारसिंह ने अभूतपूर्व कार्य किया है यह नामांकन इस विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद द्वारा उनके धार्मिक-साहित्यिक-शैक्षणिक-सामाजिक योगदान के लिए उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए किया गया था। इसके तहत 2012 में विधानसभा में यह विधेयक पेश किया गया और सर्वसम्मति से पारित किया गया।
जनता की राय
महाराजा कृष्णकुमारसिंहजी के मन में प्रजा के प्रति असीम प्रेम था। उनके नाम के पहले न केवल महाराजा या राजवी बल्कि प्रथमसमृणिया की उपाधि मिलती है। गौरीशंकर झील यानी भावनगर की बोर्तलाव को महाराजा कृष्णकुमारसिंहजी और पूरे राजपरिवार की अनमोल देन और महाराजा कृष्णकुमारसिंहजी की दूरदर्शिता का एक नेक उदाहरण माना जाता है। भावनगर के राजपरिवार द्वारा किसी नदी या नहर पर आश्रित न होकर भीकड़ा नहर द्वारा मलनाथ पहाड़ी से वर्षा का जल लाकर बनाया गया यह गौरीशंकर सरोवर इस मामले में अद्वितीय है और भावनगर के लिए गौरव की बात भी है।
प्रैट: भावनगर के स्मरणीय महाराजा कृष्णकुमारसिंहजी ने सबसे पहले सरदार वल्लभभाई पटेल के हिंदुस्तान को एक राष्ट्र के रूप में देखने के सपने को साकार किया था। 15 जनवरी, 1948 को उन्होंने भावनगर राज्य में अपनी सारी संपत्ति के साथ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के चरणों में अपनी पहली धरनी अर्पित की।
तो आजादी के बाद एस। 1948 में, जब महाराजा कृष्णकुमार सिंहजी को नवगठित मद्रास राज्य के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया, तो उन्होंने प्रति माह एक रुपये का प्रतीकात्मक मानदेय स्वीकार किया और सार्वजनिक सेवा और बलिदान का एक उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया। बचपन में अपने माता-पिता को खो देने के बाद, महाराजा वैरागी और विचारशील बन गए। इसे एक कुशल राजनेता, विद्वान और दूरदर्शी प्रभाशंकर पटानी द्वारा डिजाइन किया गया था। व्यापक पठन, सादा जीवन, प्रकृति प्रेम और स्वतंत्र दृष्टि ने उन्हें भारत के बदलते इतिहास के नक्शेकदम पर चलने में सक्षम बनाया। कुछ रॉयल्स के पास ऐसी दूरदर्शिता और वास्तविकता का बोध था। इसलिए सौराष्ट्र के राजघरानों में उनका व्यक्तित्व कई मायनों में अलग था।
आजादी पर
सौराष्ट्र की 222 रियासतों में या यहां तक कि देश में कुछ ही राजघराने ऐसे थे जिन्होंने गांधीजी और देश को समझा और इतिहास में बदलाव को समझा। महाराजा कृष्णकुमार सिंहजी उसमें असाधारण थे। देश को आजादी मिली, पाकिस्तान अलग हुआ, लेकिन देशी रियासतों का मसला अब भी नहीं सुलझा। कई रॉयल्स स्वतंत्र होने और सत्ता बनाए रखने का सपना देख रहे थे। कायद आजम जिन्ना और उनके सहयोगी शाही लोगों को पाकिस्तान में शामिल होने का लालच दे रहे थे। कृष्णकुमार सिंहजी को राजघरानों के समूहों में शामिल होने का आग्रह किया गया। लेकिन वह लोगों को जिम्मेदार व्यवस्था देने की सोचने लगा। दिसंबर, 1947 में उन्होंने फैसला किया। दीवान अनंतराय पटानी उपस्थित नहीं थे। बलवंतराय मेहता भी दिल्ली गए। उन्होंने एक अन्य राजनीतिक नेता जगुभाई पारिख को बुलाया और कहा कि उन्होंने भावनगर के लोगों को जिम्मेदार सरकार देने का फैसला किया है। जगुभाई उनके निर्णय को स्वीकार कर खुश हुए और उन्होंने दिल्ली जाकर सरदार साहब से मिलने का सुझाव दिया। महाराजा ने उनकी बात सुनी।
इसके बाद उन्होंने स्वयं गांधीजी से मिलने दिल्ली जाने का निश्चय किया। उन्होंने गढ़दा से सेठ मोहनलाल मोतीचंद को बुलवाया। उसे दिल्ली जाकर गांधीजी से अपनी मुलाकात का विवरण तय करने का काम सौंपा। गांधीजी द्वारा दी गई तिथि के अनुसार महाराजा 17 दिसंबर, 1947 की रात 11 बजे उनसे मिलने गए। मनुबेहन गांधी ने 'दिल्ली में गांधीजी' लिखा था। 1 में महाराजा की गांधीजी से मुलाकात का विवरण दिया गया है। समय निकट देखकर गांधीजी ने मनुबेहन को गाड़ी के सामने बाहर जाकर महाराजा को आदरपूर्वक लाने को कहा। जब महाराजा ने अपने कमरे में प्रवेश किया, तो वे अपने हाथ में शहद और नींबू के साथ पानी का प्याला मनुबेहन के हाथों में थमाते हुए उठ खड़े हुए। और स्वागत में महाराजा को प्रणाम किया। दीवान अनंतराय पट्टानी के पास था, लेकिन महाराजा अकेले गांधीजी से मिले और उनसे बात की। महाराजा ने विनम्रतापूर्वक गांधीजी से कहा कि मैं अपना राज्य आपके चरणों में समर्पित करता हूं। आप मेरी वार्षिकी, निजी संपत्तियों आदि के बारे में जो कुछ भी तय करेंगे, मैं उसे स्वीकार करूंगा। मैं आपकी आज्ञा के अनुसार सब कुछ करूंगा। महाराजा की ऐसी उदार और नेक प्रस्तुति से गांधीजी बहुत प्रसन्न हुए। लेकिन पूछा, 'मैंने आपकी रानी साहब और भाइयों से पूछा है ?' महाराजा का जवाब था कि मेरे फैसले में उनकी राय भी आती है। गांधीजी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल से इस पर विस्तार से चर्चा करने को कहा।
महाराजा दिल्ली में रहे और सरदार साहब, जवाहरलाल नेहरू, लॉर्ड माउंटबेटन आदि सभी गणमान्य लोगों से मिले। फिर गांधी जी से मिलने जाते तो दूसरे राजघरानों से जो आते थे उनसे कहते थे कि आप पूछ रहे थे कि अब हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए। ? इसलिए मेरा सुझाव है कि आप भावनगर के इन महाराजा कृष्णकुमार सिंहजी का उदाहरण लें और उनके बताए रास्ते पर चलें। मनुबेहेन ने बाद में गांधीजी से पूछा : 'बापू, वाइसराय जैसे बड़े-बड़े लोग आपके पास आते हैं। लेकिन आप कभी खड़े होकर कार के सामने जाने को नहीं कहते। तो यह महाराजा अपवाद क्यों है? ?' गांधीजी ने कहा : 'मनु, क्या तुम नहीं जानते कि मैंने भावनगर के शामलदास कॉलेज में पढ़ाई की है। तो कहते हैं एक जमाने के लोग। वह महाराजा हैं। इसलिए मुझे उनका सम्मान करना चाहिए।' ऐसे महान थे भावनगर के महाराजा और सही मायनों में प्रजाहद्र्यसम्राट महाराजा कृष्णकुमार सिंहजी।
१९६५ में निधन
1912 में जन्मे लोग
भावनगर
गुजराती लोग | 1,364 |
601976 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A4%B2 | वाहितमल | जल द्वारा वाहित (carried) अपशिष्ट वाहितमल या जलमल (Sewage) कहा जाता है। इसमें मल विलयन या निलंबन रूप में हो सकता है। मल में जल मिलाने से उसे गुरुत्व द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में आसानी होती है। मलजल में प्रायः ९९% से अधिक जल होता है। 'मल' के अन्तर्गत मानव विष्टा, मूत्र, रसोईघर का गन्दा पानी, तथा स्नान और धुलाई का गन्दा जल आदि शामिल हैं।
संग्रहण
जलमल को गुरुत्व द्वारा उपचार-स्थल तक ले जाया जा सकता है। यदि खुदाई कठिन हो तो सीवेज को पम्प करके उपचार स्थल तक पहुँचाया जा सकता है। जिन बस्तियों का स्तर नीचा हो वहाँ से आम्शिक निर्वात पाइपों द्वारा सीवेज खींचा जा सकता है।
इन्हें भी देखें
वाहितमल उपचार
अपशिष्ट प्रबन्धन | 123 |
489846 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80 | पम्पा नदी | पम्पा नदी (Pampa River), जिसे पम्बा नदी (Pamba River) भी कहा जाता है, भारत के केरल राज्य में बहने वाली एक नदी है। पेरियार नदी और भारतपुड़ा नदी के बाद यह केरल की तीसरी सबसे लम्बी नदी है। इसे दक्षिण भागीरथी (Dakshina Bhageerathi) भी कहा जाता है। भगवान अय्यप्पा को समर्प्ति प्रसिद्ध सबरिमलय हिन्दू मन्दिर इसी के किनारे स्थित है।
इन्हें भी देखें
सबरिमलय
पेरियार नदी
भारतपुड़ा नदी
बाहरी कड़ियाँ
राष्ट्रीय जल विकास एजेन्सी द्वारा पम्पा को वैप्पार नदी से जोड़ने वाली परियोजना पर रिपोर्ट – पीडीएफ़
सन्दर्भ
इडुक्की ज़िले की नदियाँ
पतनमतिट्टा ज़िले की नदियाँ
आलाप्पुड़ा ज़िले की नदियाँ
केरल की नदियाँ | 103 |
508251 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%89%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%9F | वॉम्बैट | वॉम्बैट (Wombat) चार टांगों पर चलने वाले एक धानीप्राणी (मारसूपियल) है। यह ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं और इनकी टाँगें और दुम छोटी व बदन लगभग १ मीटर लम्बा होता है। यह विवध वातावरणों में पाए जाते हैं, जिनमें जंगल, पहाड़ और घास के मैदानी क्षेत्र शामिल हैं।
विवरण
वॉम्बैट अपने मज़बूत सामने के दांतों और पंजों से अपने रहने के लिए लम्बे बिल खोद लेते हैं। उनकी शिशुओं को शरण देने वाली धानियों के मुंह पीछे को होते हैं जिस से खोदते हुए उसमे मिटटी नहीं जाती। आदत से वे शाम व रात को सक्रीय होते हैं लेकिन ठन्डे और बादलों वाले दिनों में भी फिरते हुए मिल सकते हैं। उनका मल कुछ हद तक चकोर आकार का होता है।
वॉम्बैट शाकाहारी होते हैं और घास, पेड़-पौधों की छाल, छोटे पौधों और जड़ों से पेट भरते हैं। उनके काटने वाले दांत चूहों की तरह पैने और उभरे हुए होते हैं जिस से वे सख़्त लकड़ी और टहनियों को भी आसानी से काट लेते हैं।
इनका रंग भूरा या ख़ाकी होता है और वज़न २५ से ३५ किलो के बीच होता है। मादाएँ वसंत ऋतू में २०-२१ दिन की गर्भावस्ता के बाद एक अविकसित शिशु को जन्म देती हैं। यह शिशु उनकी धानी में जाकर स्तनपान करता है और ६-७ महीनों के बाद ही पूरी तरह विकसित होकर निकलता है। वॉम्बैटों के बच्चे १५ महीने की आयु तक दूध पीते हैं और १८ महीनों की आयु में ख़ुद बच्चे पैदा करने में सक्षम हो जाते हैं।
व्यवहार
वॉम्बैटों का चयापचय (मेटाबोलिज़म) बहुत धीमी-गति से चलता है और उन्हें खाना हज़म करने में ८ से १४ दिन लग जाते हैं। यह धीमापन उन्हें अपने अत्यंत शुष्क वातावरण में पनपने में सहायता करता है। आमतौर पर यह बहुत धीरे चलते हैं लेकिन ख़तरा महसूस करने पर ४० किमी प्रति घंटे तक की रफ़्तार से दौड़ने में सक्षम हैं। अपने बिलों के पास आने वाले अन्य जानवरों से वे बहुत ही आक्रामक तरीक़े का व्यवहार करते हैं। वे मनुष्यों पर भी हमला कर सकते हैं और अपने तीख़े नखों व दांतों से काफ़ी चोट पहुंचा सकते हैं। एक घटना में एक जीववैज्ञानिक को रबड़ के जूते में काटकर वॉम्बैट के दांत जूते और एक मोटे मोज़े को पार करके उसकी टांग में २ सेमी गहरा घाव बना गए।
इन्हें भी देखें
धानीप्राणी
सन्दर्भ
वोम्बाटीफ़ोर्म
ऑस्ट्रेलिया के धानीप्राणी
धानीप्राणी | 384 |
1476664 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%87%20%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%A8%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%20%28%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A5%80%20%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%83%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A4%B2%E0%A4%BE%29 | तारे ज़मीन पर (टीवी श्रृंखला) | तारे ज़मीन पर स्टारप्लस पर एक भारतीय बच्चों का गायन रियलिटी शो है। इसका प्रीमियर 2 नवंबर 2020 को हुआ और 30 जनवरी 2021 को समाप्त हुआ श्रृंखला की मेजबानी बाल अभिनेत्री आकृति शर्मा और गायिका सुगन्धा मिश्रा ने की, जिसमें शंकर महादेवन, जोनिथा गाँधी और टोनी कक्कड़ सलाहकार थे।
प्रारूप
गायन शो शुरू में 20 बच्चों के लिए डिज़ाइन किया गया था, जिन्हें समापन तक उन्मूलन प्रक्रिया के बिना उनकी प्रगति के दौरान मार्गदर्शन दिया जाता है। हालाँकि, कुछ हफ़्तों के बाद, शो के प्रारूप में बदलाव किया गया और एलिमिनेशन प्रक्रिया का पालन किया गया, जहाँ प्रत्येक दिन एक कम स्कोर करने वाले को चुना जाता है और हर शनिवार को सभी कम स्कोर करने वाले अपनी जगह बनाने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। उस दिन, सबसे कम स्कोर करने वाला खिलाड़ी बाहर हो जाता है।
श्रवण
ऑडिशन मार्च 2020 के महीने में डिजिटल रूप से आयोजित किए गए थे जहां पहले 500 प्रतिभागियों को मान्यता दी गई थी।
मेंटर्स
शो में संगीतकार और गायक शंकर महादेवन, पार्श्व गायिका जोनिता गांधी और संगीतकार, गीतकार, गायक और निर्माता टोनी कक्कड़ मार्गदर्शन के लिए मौजूद थे।
उत्पादन
श्रृंखला का शीर्षक आमिर खान की 2007 की फिल्म तारे ज़मीन पर से अधिकार प्राप्त करने के बाद लिया गया था।
सत्र 1
न्यायाधीश
टोनी कक्कड़
जोनिता गांधी
शंकर महादेवन
मेज़बान
सुगंधा मिश्रा
आकृति शर्मा
शीर्ष 20 प्रतियोगी
अतिथियाँ
उदित नारायण
अनुपमा के रूप में रूपाली गांगुली
मीका सिंह
गोपी मोदी के रूप में देवोलीना भट्टाचार्जी
कोकिला मोदी के रूप में रूपल पटेल
भूमि त्रिवेदी
गुरदीप सिंह
शान
सिद्धार्थ महादेवन
शिवम महादेवन
ज़ीनत अमान
ऋचा शर्मा
बादशाह
कनिका कपूर
टेरेंस लुईस
हेमन्त बृजवासी
-सोनाक्षी कर
एल.वी. रेवंत
नेहा कक्कड़
रोहनप्रीत सिंह
अफसाना खान
अंजना पद्मनाभन
सुखविंदर सिंह
संदर्भ
भारतीय वास्तविकता टेलीविजन श्रृंखला
स्टार प्लस के धारावाहिक | 293 |
774960 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4 | मोन्दूलकिरी प्रान्त | मोन्दूलकिरी प्रान्त दक्षिणपूर्वी एशिया के कम्बोडिया देश का एक प्रान्त है। यह देश के पूर्वी भाग में स्थित है और इसकी पूर्वी व दक्षिणी सीमाएँ पड़ोसी देश वियतनाम से लगती है।
नामार्थ
"मोन्दूलकिरी" संस्कृत के "मण्डल गिरि" (बौद्ध मंडल का पहाड़) का ख्मेर भाषा रूप है।
लोग
प्रान्त के ८०% लोग दस जनजाति समुदायों के सदस्य है। इनमें पनोंग नामक समुदाय बहुसंख्यक है। आबादी का बाकि २०% ख्मेर, चीनी और चाम समुदायों से आता है।
चित्रदीर्घा
चित्र शीर्षकों के लिए बिना क्लिक करे माउस चित्र पर लाएँ
इन्हें भी देखें
कम्बोडिया के प्रान्त
सन्दर्भ
कम्बोडिया के प्रान्त | 97 |
14592 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0 | शास्त्र | व्यापक अर्थों में किसी विशिष्ट विषय या पदार्थसमूह से सम्बन्धित वह समस्त ज्ञान जो ठीक क्रम से संग्रह करके रखा गया हो, शास्त्र कहलाता है। जैसे, भौतिकशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, प्राणिशास्त्र, अर्थशास्त्र, विद्युत्शास्त्र, वनस्पतिशास्त्र आदि। शास्त्र का अर्थ विज्ञान है 'शास्त्र' शब्द 'शासु अनुशिष्टौ' से निष्पन्न है जिसका अर्थ 'अनुशासन या उपदेश करना' है।
किसी भी विषय, विद्या अथवा कला के मौलिक सिद्धान्तों से लेकर विषय-वस्तु के सभी आयामों का सुनियोजित, सूत्रबद्ध निरूपण शास्त्र है। हमारे यहाँ शास्त्र की परिभाषा इस प्रकार की गई है-
''शास्ति च त्रायते च। शिष्यते अनेन।
अर्थात् जो शिक्षा अनुशासन प्रदान कर हमारी रक्षा करती है, मार्गदर्शन करती है, कभी-कभी हमारी उँगली पकड़कर हमें चलाती है, उसे ‘शास्त्र’ कहा गया है। इस प्रकार यदि हम शास्त्र व ग्रन्थ की ओर देखें तो शास्त्र बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। शास्त्र असंख्य है विद्वान शास्त्रों की रचना करते रहते है ।
किन्तु धर्म के सन्दर्भ में, 'शास्त्र' ऋषियों और मुनियों आदि के बनाए हुए वे प्राचीन ग्रंथों को कहते हैं जिनमें लोगों के हित के लिये अनेक प्रकार के कर्तव्य बतलाए गए हैं और अनुचित कृत्यों का निषेध किया गया है। दूसरे शब्दों में शास्त्र वे ग्रंथ हैं जो लोगों के हित और अनुशासन के लिये बनाए गए हैं। साधारणतः शास्त्र में बतलाए हुए काम विधेय माने जाते है और जो बातें शास्त्रों में वर्जित हैं, वे निषिद्ध और त्याज्य समझी जाती हैं।
शास्त्रों में शिक्षाशास्त्र , नीतिशास्त्र अथवा धर्मशास्त्र , वास्तुशास्त्र , खगोलशास्त्र , अर्थशास्त्र , आयुर्वेद , व्याकरणशास्त्र , दर्शनशास्त्र , कलाशास्त्र, धनुर्वेद ( सैन्यविज्ञान ) आदि का समावेश होता है।
बाहरी कड़ियाँ
प्राचीन भारत के शास्त्र (भारतीय पक्ष)
Science - in Sanskrit, with Sanskrit, is Sanskrit
Notes Towards Defining Śāstra (शास्त्र) in Sanskrit
हिन्दू इतिहास | 279 |
Subsets and Splits