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जेम्सन मैबिलीनी दल्मिनी
राजकुमार जेमिसन म्बिलिनी द्लामिनी (5 अगस्त 1932 - 5 जून 2008) था प्रधानमंत्री की स्वाजीलैंड 8 नवंबर 1993 4 से मई 1996 जीवनी प्रधान मंत्री के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले, वह अक्टूबर 1991 से सार्वजनिक मामलों के मंत्री के रूप में मंत्रिमंडल के सदस्य थे। अपने 17-व्यक्ति मंत्रिमंडल के साथ अपने शासनकाल में, उन्होंने देश की आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं को हल करने का प्रयास किया। जो उसे पूरी तरह से विफल कर दिया। ट्रेडमेन, यूनियनों और प्रतिबंधित लेकिन सहनशील दलों के विरोध ने रैलियों और हड़तालों के साथ दल्लिनी सरकार के प्रतिरोध का विस्तार जारी रखा। इसके चलते राजा मस्वाती तृतीय बने। प्रधानमंत्री को गिरा दिया और उन्हें राजदूत पद पर बिठा दिया। 1932 में जन्मे लोग २००८ में निधन
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डॉ॰ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान
डॉ॰ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान (DrRMLIMS) उत्तर प्रदेश में एक आयुर्विज्ञान संस्थान/ मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल है। यह लखनऊ, उत्तर प्रदेश में स्थित है। इसकी स्थापना 2006 में हुई थी। विभाग एनेस्थेसियोलॉजी कार्डियोलॉजी गैस्ट्रोसर्जरी गैस्ट्रोमेडिसिन माइक्रोबायोलॉजी नेफ्रोलोजी न्यूरोलॉजी न्यूरोसर्जरी नाभिकीय औषधि विकृति विज्ञान रेडियोनैदानिकी (Radiodiagnosis) विकिरण कैंसर विज्ञान सर्जिकल ओन्कोलॉजी मूत्रविज्ञान मेडिकल ओन्कोलॉजी कार्डियोवैस्कुलर और थोरैसिक सर्जरी आपातकालीन चिकित्सा शारीरिक चिकित्सा और पुनर्वास शिशु शल्यचिकित्सा इन्हें भी देखें किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान चण्डीगढ़ (पी॰जी॰आई॰एम॰ई॰आर॰) बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक जालस्थल लखनऊ आयुर्विज्ञान संस्थान आयुर्विज्ञान चिकित्सा उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय
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भारतीय शिक्षा का इतिहास
भारतीय शिक्षा का इतिहास भारतीय सभ्यता का भी इतिहास है। भारतीय समाज के विकास और उसमें होने वाले परिवर्तनों की रूपरेखा में शिक्षा की जगह और उसकी भूमिका को भी निरंतर विकासशील पाते हैं। सूत्रकाल तथा लोकायत के बीच शिक्षा की सार्वजनिक प्रणाली के पश्चात हम बौद्धकालीन शिक्षा को निरंतर भौतिक तथा सामाजिक प्रतिबद्धता से परिपूर्ण होते देखते हैं। बौद्धकाल में स्त्रियों और शूद्रों को भी शिक्षा की मुख्य धारा में सम्मिलित किया गया। प्राचीन भारत में जिस शिक्षा व्यवस्था का निर्माण किया गया था वह समकालीन विश्व की शिक्षा व्यवस्था से समुन्नत व उत्कृष्ट थी लेकिन कालान्तर में भारतीय शिक्षा का व्यवस्था ह्रास हुआ। विदेशियों ने यहाँ की शिक्षा व्यवस्था को उस अनुपात में विकसित नहीं किया, जिस अनुपात में होना चाहिये था। अपने संक्रमण काल में भारतीय शिक्षा को कई चुनौतियों व समस्याओं का सामना करना पड़ा। आज भी ये चुनौतियाँ व समस्याएँ हमारे सामने हैं जिनसे दो-दो हाथ करना है। १८५० तक भारत में गुरुकुल की प्रथा चलती आ रही थी परन्तु मैकाले द्वारा अंग्रेजी शिक्षा के संक्रमण के कारण भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था का अन्त हुआ और भारत में कई गुरुकुल बंद हुए और उनके स्थान पर कान्वेंट और पब्लिक स्कूल खोले गए। प्राचीन काल भारत की प्राचीन शिक्षा आध्यात्मिमकता पर आधारित थी। शिक्षा, मुक्ति एवं आत्मबोध के साधन के रूप में थी। यह व्यक्ति के लिये नहीं बल्कि धर्म के लिये थी। भारत की शैक्षिक एवं सांस्कृतिक परम्परा विश्व इतिहास में प्राचीनतम है। डॉ॰ अल्टेकर के अनुसार, वैदिक युग से लेकर अब तक भारतवासियों के लिये शिक्षा का अभिप्राय यह रहा है कि शिक्षा प्रकाश का स्रोत है तथा जीवन के विभिन्न कार्यों में यह हमारा मार्ग आलोकित करती है। प्राचीन काल में शिक्षा को अत्यधिक महत्व दिया गया था। भारत 'विश्वगुरु' कहलाता था। विभिन्न विद्वानों ने शिक्षा को प्रकाशस्रोत, अन्तर्दृष्टि, अन्तर्ज्योति, ज्ञानचक्षु और तीसरा नेत्र आदि उपमाओं से विभूषित किया है। उस युग की यह मान्यता थी कि जिस प्रकार अन्धकार को दूर करने का साधन प्रकाश है, उसी परकार व्यक्ति के सब संशयों और भ्रमों को दूर करने का साधन शिक्षा है। प्राचीन काल में इस बात पर बल दिया गया कि शिक्षा व्यक्ति को जीवन का यथार्थ दर्शन कराती है। तथा इस योग्य बनाती है कि वह भवसागर की बाधाओं को पार करके अन्त में मोक्ष को प्राप्त कर सके जो कि मानव जीवन का चरम लक्ष्य है। प्राचीन भारत की शिक्षा का प्रारंभिक रूप हम ऋग्वेद में देखते हैं। ऋग्वेद युग की शिक्षा का उद्देश्य था तत्वसाक्षात्कार। ब्रह्मचर्य, तप और योगाभ्यास से तत्व का साक्षात्कार करनेवाले ऋषि, विप्र, वैघस, कवि, मुनि, मनीषी के नामों से प्रसिद्ध थे। साक्षात्कृत तत्वों का मंत्रों के आकार में संग्रह होता गया वैदिक संहिताओं में, जिनका स्वाध्याय, सांगोपांग अध्ययन, श्रवण, मनन औरनिदिध्यासन वैदिक शिक्षा रही। विद्यालय 'गुरुकुल', 'आचार्यकुल', 'गुरुगृह' इत्यादि नामों से विदित थे। आचार्य के कुल में निवास करता हुआ, गुरुसेवा और ब्रह्मचर्य व्रतधारी विद्यार्थी षडंग वेद का अध्ययन करता था। शिक्षक को 'आचार्य' और 'गुरु' कहा जाता था और विद्यार्थी को ब्रह्मचारी, व्रतधारी, अंतेवासी, आचार्यकुलवासी। मंत्रों के द्रष्टा अर्थात्‌ साक्षात्कार करनेवाले ऋषि अपनी अनुभूति और उसकी व्याख्या और प्रयोग को ब्रह्मचारी, अंतेवासी को देते थे। गुरु के उपदेश पर चलते हुए वेदग्रहण करनेवाले व्रतचारी श्रुतर्षि होते थे। वेदमंत्र कंठस्थ किए जाते थे। आचार्य स्वर से मंत्रों का परायण करते और ब्रह्मचारी उनको उसी प्रकार दोहराते चले जाते थे। इसके पश्चात्‌ अर्थबोध कराया जाता था। ब्रह्मचर्य चले जाते थे। इसके पश्चात्‌ अर्थबोध कराया जाता था। ब्रह्मचर्य का पालन सभी विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य था। स्त्रियों के लिए भी आवश्यक समझा जाता था। आजीवन ब्रह्मचर्य पालन करनेवाले विद्यार्थी को नैष्ठिक ब्रह्मचारी कहते थे। ऐसी विद्यार्थिनी ब्रह्मवादिनी कही जाती थी। यज्ञों का अनुष्ठान विधि से हो, इसलिए होता, उद्गाता, अध्वर्यु और ब्रह्मा को आवश्यक शिक्षा दी जाती थी। वेद, शिक्षा, कल्प, व्यकरण, छंद, ज्योतिष और निरुक्त उनके पाठ्य होते थे। पाँच वर्ष के बालक की प्राथमिक शिक्षा आरंभ कर दी जाती थी। गुरुगृह में रहकर गुरुकुल की शिक्षा प्राप्त करने की योग्यता उपनयन संस्कार से प्राप्त होती थी। 8 वें वर्ष में ब्राह्मण बालक के, 11 वें वर्ष में क्षत्रिय के और 12 वें वर्ष में वैश्य के उपनयन की विधि थी। अधिक से अधिक यह 16, 22 और 24 वर्षों की अवस्था में होता था। ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए विद्यार्थी गुरुगृह में 12 वर्ष वेदाध्ययन करते थे। तब वे स्नातक कहलाते थे। समावर्तन के अवसर पर गुरुदक्षिणा देन की प्रथा थी। समावर्तन के पश्चात्‌ भी स्नातक स्वाध्याय करते रहते थे। नैष्ठिक ब्रह्मचारी आजीवन अध्ययन करते थे। समावर्तन के सम ब्रह्मचारी दंड, कमंडलु, मेखला, आदि को त्याग देते थे। ब्रह्मचर्य व्रत में जिन जिन वस्तुओं का निषेध था अब से उनका उपयोग हो सकता था। प्राचीन भारत में किसी प्रकार की परीक्षा नहीं होती थी और न कोई उपाधि ही दी जाती थी। नित्य पाठ पढ़ाने के पूर्व ब्रह्मचारी ने पढ़ाए हुए षष्ठ को समझा है और उसका अभ्यास नियम से किया है या नहीं, इसका पता आचार्य लगा लेते थे। ब्रह्मचारी अध्ययन और अनुसंधान में सदा लगे रहते थे तथा बाद विवाद और शास्त्रार्थ में संम्मिलित होकर अपनी योग्यता का प्रमाण देते थे। भारतीय शिक्षा में आचार्य का स्थान बड़ा ही गौरव का था। उनका बड़ा आदर और सम्मान होता था। आचार्य पारंगत विद्वान्‌, सदाचारी, क्रियावान्‌, नि:स्पृह, निरभिमान होते थे और विद्यार्थियों के कल्याण के लिए सदा कटिबद्ध रहते थे। अध्यापक, छात्रों का चरित्रनिर्माण, उनके लिए भोजनवस्त्र का प्रबंध, रुग्ण छात्रों की चिकित्सा, शुश्रूषा करते थे। कुल में सम्मिलित ब्रह्मचारी मात्र को आचार्य अपने परिवार का अंग मानते थे और उनसे वैसा ही व्यवहार रखते थे। आचार्य धर्मबुद्धि से नि:शुल्क शिक्षा देते थे। विद्यार्थी गुरु का सम्मान और उनकी आज्ञा का पालन करते थे। आचार्य का चरणस्पर्श कर दिनचर्या के लिए प्रात:काल ही प्रस्तुत हो जाते थे। गुरु के आसन के नीचे आसन ग्रहण करा, सुसंयत वेश में रहना, गुरु के लिए दातौन इत्यादि की व्यवस्था करना, उनके आसन को उठाना और बिछाना, स्नान के लिए जल ला देना, समय पर वस्त्र और भोजन के पात्र को साफ करना, ईधंन संग्रह करना, पशुओं को चराना इत्यादि छात्रों के कर्तव्य माने जाते थे। विद्यार्थी ब्राह्ममुहूर्त में उठते थे और प्रात: कृत्यों से निवृत्त होकर, स्नान, संध्या, होम आदि कर लेते थे। फिर अध्ययन में लग जाते थे। इसके उपरांत भोजन करते थे और विश्राम के पश्चात्‌ आचार्य के पाठ ग्रहण करते थे। सांयकाल समिधा एकत्र कर ब्रह्मचारी संध्या ओर होम का अनुष्ठान करते थे। विद्यार्थी के लिए भिक्षाटन अनिवार्य कृत्य था। भिक्षा से प्राप्त अन्न गुरु को समर्पित कर विद्यार्थी मनन औरनिदिध्यासन में लग जाते थे। वेदों का अध्ययन श्रावण पूर्णिमा को उपाकर्म से प्रारंभ होकर पौष पूर्णिमा को उपसर्जन से समाप्त होता था। शेष महीनों में अधीत पाठों की आवृत्ति, पुनरावृत्ति होती रहती थी। विद्यार्थी पृथक्‌ पृथक्‌ पाठ ग्रहण करते थे, एक साथ नहीं। प्रतिपदा और अष्टमी को अनध्याय होता था। गाँव, नगर अथवा पड़ोस में आकस्मिक विपत्ति से और शिष्टजनों के आगमन से विशेष अनध्याय होते थे। अनध्याय में अधीत वेदमंत्रों की पुनरावृत्ति और विषयांतर का अध्ययन निषिद्ध न थे। विनय के नियमों का उल्लंघन करनेवाले विद्यार्थी को दंड देने की परिपाटी थी। पाठ्यक्रम के विस्तार के साथ वेदों ओर वेदांगों के अतिरिक्त साहित्य, दर्शन, ज्योतिष, व्याकरण और चिकित्साशास्त्र इत्यादि विषयों का अध्यापन होने लगा। टोल पाठशाला, मठ ओर विहारों में पढ़ाई होती थी। काशी, तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वलभी, ओदंतपुरी, जगद्दल, नदिया, मिथिला, प्रयाग, अयोध्या आदि शिक्षा के केंद्र थे। दक्षिण भारत के एन्नारियम, सलौत्गि, तिरुमुक्कुदल, मलकपुरम्‌ तिरुवोरियूर में प्रसिद्ध विद्यालय थे। अग्रहारों के द्वारा शिक्षा का प्रचार और प्रसार शताब्दियों होता रहा। कादिपुर और सर्वज्ञपुर के अग्रहार विशिष्ट शिक्षाकेंद्र थे। प्राचीन शिक्षा प्राय: वैयक्तिक ही थी। कथा, अभिनय इत्यादि शिक्षा के साधन थे। अध्यापन विद्यार्थी के योग्यतानुसार होता था अर्थात्‌ विषयों को स्मरण रखने के लिए सूत्र, कारिका और सारनों से काम लिया जाता था। पूर्वपक्ष और उत्तरपक्ष पद्धति किसी भी विषय की गहराई तक पहुँचने के लिए बड़ी उपयोगी थी। भिन्न भिन्न अवस्था के छात्रों को कोई एक विषय पढ़ाने के लिए समकेंद्रिय विधि का विशेष रूप से उपयोग होता था सूत्र, वृत्ति, भाष्य, वार्तिक इस विधि के अनुकूल थे। कोई एक ग्रंथ के बृहत्‌ और लघु संस्करण इस परिपाटी के लिए उपयोगी समझे जाते थे। बौद्धों और जैनों की शिक्षापद्धति भी इसी प्रकार की थी। मध्यकाल भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना होते ही इस्लामी शिक्षा का प्रसार होने लगा। फारसी जाननेवाले ही सरकारी कार्य के योग्य समझे जाने लगे। हिंदू अरबी और फारसी पढ़ने लगे। बादशाहों और अन्य शासकों की व्यक्तिगत रुचि के अनुसार इस्लामी आधार पर शिक्षा दी जाने लगी। इस्लाम के संरक्षण और प्रचार के लिए मस्जिदें बनती गई, साथ ही मकतबों, मदरसों और पुस्तकालयों की स्थापना होने लगी। मकतब प्रारंभिक शिक्षा के केंद्र होते थे और मदरसे उच्च शिक्षा के। मकतबों की शिक्षा धार्मिक होती थी। विद्यार्थी कुरान के कुछ अंशों का कंठस्थ करते थे। वे पढ़ना, लिखना, गणित, अर्जीनवीसी और चिट्ठीपत्री भी सीखते थे। इनमें हिंदू बालक भी पढ़ते थे। मकतबों में शिक्षा प्राप्त कर विद्यार्थी मदरसों में प्रविष्ट होते थे। यहाँ प्रधानता धार्मिक शिक्षा दी जाती थी। साथ साथ इतिहास, साहित्य, व्याकरण, तर्कशास्त्र, गणित, कानून इत्यादि की पढ़ाई होती थी। सरकार शिक्षकों को नियुक्त करती थी। कहीं कहीं प्रभावशाली व्यक्तियों के द्वारा भी उनकी नियुक्ति होती थी। अध्यापन फारसी के माध्यम से होता था। अरबी मुसलमानों के लिए अनिवार्य पाठ्य विषय था। छात्रावास का प्रबंध किसी किसी मदरसे में होता था। दरिद्र विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति मिलती थी। अनाथालयों का संचालन होता था। शिक्षा नि:शुल्क थी। हस्तलिखित पुस्तकें पढ़ी और पढ़ाई जाती थीं। राजकुमारों के लिए महलों के भीतर शिक्षा का प्रबंध था। राज्यव्यवस्था, सैनिक संगठन, युद्धसंचालन, साहित्य, इतिहास, व्याकरण, कानून आदि का ज्ञान गृहशिक्षक से प्राप्त होता था। राजकुमारियाँ भी शिक्षा पाती थीं। शिक्षकों का बड़ा सम्मान था। वे विद्वान्‌ और सच्चरित्र होते थे। छात्र और शिक्षकों को आपसी संबंध प्रेम और सम्मान का था। सादगी, सदाचार, विद्याप्रेम और धर्माचरण पर जोर दिया जाता था। कंठस्थ करने की परंपरा थी। प्रश्नोत्तर, व्याख्या और उदाहरणों द्वारा पाठ पढ़ाए जाते थे। कोई परीक्षा नहीं थी। अध्ययन अध्यापन में प्राप्त अवसरों में शिक्षक छात्रों की योग्यता और विद्वत्ता के विषय में तथ्य प्राप्त करते थे। दंड प्रयोग किया जाता था। जीविका उपार्जन के लिए भी शिक्षा दी जाती थी। दिल्ली, आगरा, बीदर, जौनपुर, मालवा मुस्लिम शिक्षा के केंद्र थे। मुसलमान शासकों के संरक्षण के अभाव में भी संस्कृत काव्य, नाटक, व्याकरण, दर्शन ग्रंथों की रचना और उनका पठन पाठन बराबर होता रहा। आधुनिक काल भारत में आधुनिक शिक्षा की नींव यूरोपीय ईसाई धर्मप्रचारक तथा व्यापारियों के हाथों से डाली गई। उन्होंने कई विद्यालय स्थापित किए। प्रारंभ में मद्रास ही उनका कार्यक्षेत्र रहा। धीरे धीरे कार्यक्षेत्र का विस्तार बंगाल में भी होने लगा। इन विद्यालयों में ईसाई धर्म की शिक्षा के साथ साथ इतिहास, भूगोल, व्याकरण, गणित, साहित्य आदि विषय भी पढ़ाए जाते थे। रविवार को विद्यालय बंद रहता था। अनेक शिक्षक छात्रों की पढ़ाई अनेक श्रेणियों में कराते थे। अध्यापन का समय नियत था। साल भर में छोटी बड़ी अनेक छुट्टियाँ हुआ करती थीं। प्राय: 150 वर्षों के बीतते बीतते व्यापारी ईस्ट इंडिया कंपनी राज्य करने लगी। विस्तार में बाधा पड़ने के डर से कंपनी शिक्षा के विषय में उदासीन रही। फिर भी विशेष कारण और उद्देश्य से 1781 में कलकत्ते में 'कलकत्ता मदरसा' कंपनी द्वारा और 1792 में बनारस में 'संस्कृत कालेज' जोनाथन डंकन द्वारा स्थापित किए गए। धर्मप्रचार के विषय में भी कंपनी की पूर्वनीति बदलने लगी। कंपनी अब अपने राज्य के भारतीयों को शिक्षा देने की आवश्यकता को समझने लगी। 1813 के आज्ञापत्र के अनुसार शिक्षा में धन व्यय करने का निश्चय किया गया। किस प्रकार की शिक्षा दी जाए, इसपर प्राच्य और पाश्चात्य शिक्षा के समर्थकों में मतभेद रहा। वाद विवाद चलता चला। अंत में लार्ड मेकाले के तर्क वितर्क और राजा राममोहन राय के समर्थन से प्रभावित हो 1835 ई. में लार्ड बेंटिक ने निश्चय किया कि अंग्रेजी भाषा और साहित्य और यूरोपीय इतिहास, विज्ञान, इत्यादि की पढ़ाई हो और इसी में 1813 के आज्ञापत्र में अनुमोदित धन का व्यय हो। प्राच्य शिक्षा चलती चले, परंतु अंग्रेजी और पश्चिमी विषयों के अध्ययन और अध्यापन पर जोर दिया जाए। पाश्चात्य रीति से शिक्षित भारतीयों की आर्थिक स्थिति सुधरते देख जनता इधर झुकने लगी। अंग्रेजी विद्यालयों में अधिक संख्या में विद्यार्थी प्रविष्ट होने लगे क्योंकि अंग्रेजी पढ़े भारतीयों को सरकारी पदों पर नियुक्त करने की नीति की सरकारी घोषणा हो गई थी। सरकारी प्रोत्साहन के साथ साथ अंग्रेजी शिक्षा को पर्याप्त मात्रा में व्यक्तिगत सहयोग भी मिलता गया। अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार के साथ साथ अधिक कर्मचारियों की और चिकित्सकों, इंजिनियरों और कानून जाननेवालों की आवश्यकता पड़ने लगी। उपयोगी शिक्षा की ओर सरकार की दृष्टि गई। मेडिकल, इजिनियरिंग और लॉ कालेजों की स्थापना होने लगी। स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा फुले ने 1848 में एक स्कूल खोला। यह इस काम के लिए देश में पहला विद्यालय था। लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले को इस योग्य बना दिया। उच्च वर्ग के लोगों ने आरंभ से ही उनके काम में बाधा डालने की चेष्टा की, किंतु जब फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका अवश्य, पर शीघ्र ही उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल खोल दिए। स्त्री शिक्षा पर ध्यान दिया जाने लगा। 1853 में शिक्षा की प्रगति की जाँच के लिए एक समिति बनी। 1854 में बुड के शिक्षासंदेश पत्र में समिति के निर्णय कंपनी के पास भेज दिए गए। संस्कृत, अरबी और फारसी का ज्ञान आवश्यक समझा गया। औद्योगिक विद्यालयों और विश्वविद्यालयों की स्थापना का प्रस्ताव रखा गया। प्रातों में शिक्षा विभाग अध्यापक प्रशिक्षण नारीशिक्षा इत्यादि की सिफारिश की गई। 1857 में स्वतंत्रता युद्ध छिड़ गया जिससे शिक्षा की प्रगति में बाधा पड़ी। प्राथमिक शिक्षा उपेक्षित ही रही। उच्च शिक्षा की उन्नति होती गई। 1857 में कलकत्ता, बंबई और मद्रास में विश्वविद्यालय स्थापित हुए। मुख्यतः प्राथमिक शिक्षा की दशा की जाँच करते हुए शिक्षा के प्रश्नों पर विचार करने के लिए 1882 में सर विलियम विल्सन हंटर की अध्यक्षता में भारतीय शिक्षा आयोग की नियुक्ति हुई। आयोग ने प्राथमिक शिक्षा के लिए उचित सुझाव दिए। सरकारी प्रयत्न को माध्यमिक शिक्षा से हटाकर प्राथमिक शिक्षा के संगठन में लगाने की सिफारिश की। सरकारी माध्यमिक स्कूल प्रत्येक जिले में एक से अधिक न हो; शिक्षा का माध्यम माध्यमिक स्तर में अंग्रेजी रहे। माध्यमिक स्कूलों के सुधार और व्यावसायिक शिक्षा के प्रसार के लिए आयोग ने सिफारिशें कीं। सहायता अनुदान प्रथा और सरकारी शिक्षाविभागों का सुधार, धार्मिक शिक्षा, स्त्री शिक्षा, मुसलमानों की शिक्षा इत्यादि पर भी आयोग ने प्रकाश डाला। आयोग की सिफारिशों से भारतीय शिक्षा में उन्नति हुई। विद्यालयों की संख्या बढ़ी। नगरों में नगरपालिका और गाँवों में जिला परिषद् का निर्माण हुआ और शिक्षा आयोग ने प्राथमिक शिक्षा को इनपर छोड़ दिया परंतु इससे विशेष लाभ न हो पाया। प्राथमिक शिक्षा की दशा सुधर न पाई। सरकारी शिक्षा विभाग माध्यमिक शिक्षा की सहायता करता रहा। शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी ही रही। मातृभाषा की उपेक्षा होती गई। शिक्षा संस्थाओं और शिक्षितों की संख्या बढ़ी, परंतु शिक्षा का स्तर गिरता गया। देश की उन्नति चाहनेवाले भारतीयों में व्यापक और स्वतंत्र राष्ट्रीय शिक्षा की आवश्यकता का बोध होने लगा। स्वतंत्रताप्रेमी भारतीयों और भारतप्रेमियों ने सुधार का काम उठा लिया। 1870 में बाल गंगाधर तिलक और उनके सहयोगियों द्वारा पूना में फर्ग्यूसन कालेज, 1886 में आर्यसमाज द्वारा लाहौर में दयानंद ऐंग्लो वैदिक कालेज और 1898 में काशी में श्रीमती एनी बेसेंट द्वारा सेंट्रल हिंदू कालेज स्थापित किए गए। 1894 में कोल्हापुर रियासत के राजा छत्रपति साहूजी महाराज ने दलित और पिछड़ी जाति के लोगों के लिए विद्यालय खोले और छात्रावास बनवाए। इससे उनमें शिक्षा का प्रचार हुआ और सामाजिक स्थिति बदलने लगी। 1894 से 1922 तक पिछड़ी जातियों समेत समाज के सभी वर्गों के लिए अलग-अलग सरकारी संस्थाएं खोलने की पहल की। यह अनूठी पहल थी उन जातियों को शिक्षित करने के लिए, जो सदियों से उपेक्षित थीं, इस पहल में दलित-पिछड़ी जातियों के बच्चों की शिक्षा के लिए ख़ास प्रयास किये गए थे। वंचित और गरीब घरों के बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। 1920 को नासिक में छात्रावास की नींव रखी। साहू महाराज के प्रयासों का परिणाम उनके शासन में ही दिखने लग गया था। साहू जी महाराज ने जब देखा कि अछूत-पिछड़ी जाति के छात्रों की राज्य के स्कूल-कॉलेजों में पर्याप्त संख्या हैं, तब उन्होंने वंचितों के लिए खुलवाये गए पृथक स्कूल और छात्रावासों को बंद करवा दिया और उन्हें सामान्य छात्रों के साथ ही पढ़ने की सुविधा प्रदान की। डा० भीमराव अम्बेडकर बड़ौदा नरेश की छात्रवृति पर पढ़ने के लिए विदेश गए लेकिन छात्रवृत्ति बीच में ही रोक दिए जाने के कारण उन्हे वापस भारत आना पड़ा। इसकी जानकारी जब साहू जी महाराज को हुई तो महाराज ने आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्हें सहयोग दिया। 1901 में लार्ड कर्ज़न ने शिमला में एक गुप्त शिक्षा सम्मेलन किया था जिसें 152 प्रस्ताव स्वीकृत हुए थे। इसमें कोई भारतीय नहीं बुलाया गया था और न सम्मेलन के निर्णयों का प्रकाशन ही हुआ। इसको भारतीयों ने अपने विरुद्ध रचा हुआ षड्यंत्र समझा। कर्ज़न को भारतीयों का सहयोग न मिल सका। प्राथमिक शिक्षा की उन्नति के लिए कर्ज़न ने उचित रकम की स्वीकृति दी, शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था की तथा शिक्षा अनुदान पद्धति और पाठ्यक्रम में सुधार किया। कर्ज़न का मत था कि प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से ही दी जानी चाहिए। माध्यमिक स्कूलों पर सरकारी शिक्षाविभाग और विश्वविद्यालय दोनों का नियंत्रण आवश्यक मान लिया गया। आर्थिक सहायता बढ़ा दी गई। पाठ्यक्रम में सुधार किया गया। कर्जन माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में सरकार का हटना उचित नहीं समझता था, प्रत्युत सरकारी प्रभाव का बढ़ाना आवश्यक मानता था। इसलिए वह सरकारी स्कूलों की संख्या बढ़ाना चाहता था। लार्ड कर्जन ने विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा की उन्नति के लिए 1902 में भारतीय विश्वविद्यालय आयोग नियुक्त किया। पाठ्यक्रम, परीक्षा, शिक्षण, कालेजों की शिक्षा, विश्वविद्यालयों का पुनर्गठन इत्यादि विषयों पर विचार करते हुए आयोग ने सुझाव उपस्थित किए। इस आयोग में भी कोई भारतीय न था। इसपर भारतीयों में क्षोभ बढ़ा। उन्होंने विरोध किया। 1904 में भारतीय विश्वविद्यालय कानून बना। पुरातत्व विभाग की स्थापना से प्राचीन भारत के इतिहास की सामग्रियों का संरक्षण होने लगा। 1905 के स्वदेशी आंदोलन के समय कलकत्ते में जातीय शिक्षा परिषद् की स्थापना हुई और नैशनल कालेज स्थापित हुआ जिसके प्रथम प्राचार्य अरविंद घोष थे। बंगाल टेकनिकल इन्स्टिट्यूट की स्थापना भी हुई। 1911 में गोपाल कृष्ण गोखले ने प्राथमिक शिक्षा को नि:शुल्क और अनिवार्य करने का प्रयास किया। अंग्रेज़ सरकार और उसके समर्थकों के विरोध के कारण वे सफल न हो सके। 1913 में भारत सरकार ने शिक्षानीति में अनेक परिवर्तनों की कल्पना की। परंतु प्रथम विश्वयुद्ध के कारण कुछ हो न पाया। प्रथम महायुद्ध के समाप्त होने पर कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग नियुक्त हुआ। आयोग ने शिक्षकों का प्रशिक्षण, इंटरमीडिएट कालेजों की स्थापना, हाई स्कूल और इंटरमीडिएट बोर्डों का संगठन, शिक्षा का माध्यम, ढाका में विश्वविद्यालय की स्थापना, कलकत्ते में कालेजों की व्यवस्था, वैतनिक उपकुलपति, परीक्षा, मुस्लिम शिक्षा, स्त्रीशिक्षा, व्यावसायिक और औद्योगिक शिक्षा आदि विषयों पर सिफारिशें की। बंबई, बंगाल, बिहार, आसाम आदि प्रांतों में प्राथमिक शिक्षा कानून बनाये जाने लगे। माध्यमिक क्षेत्र में भी उन्नति होती गई। छात्रों की संख्या बढ़ी। माध्यमिक पाठ्य में वाणिज्य और व्यवसाय रखे दिए गए। स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट परीक्षा चली। अंग्रेजी का महत्व बढ़ता गया। अधिक संख्या में शिक्षकों का प्रशिक्षण होने लगा। 1916 तक भारत में पाँच विश्वविद्यालय थे। अब सात नए विश्वविद्यालय स्थापित किए गए। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय तथा मैसूर विश्वविद्यालय 1916 में, पटना विश्वविद्यालय 1917 में, ओसमानिया विश्वविद्यालय 1918 में, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय 1920 में और लखनऊ और ढाका विश्वविद्यालय 1921 में स्थापित हुए। असहयोग आंदोलन से राष्ट्रीय शिक्षा की प्रगति में बल और वेग आए। बिहार विद्यापीठ, काशी विद्यापीठ, गौड़ीय सर्वविद्यायतन, तिलक विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ, जामिया मिल्लिया इस्लामिया आदि राष्ट्रीय संस्थाओं की स्थापना हुई। शिक्षा में व्यावहारिकता लाने की चेष्टा की गई। 1921 से नए शासनसुधार कानून के अनुसार सभी प्रांतों में शिक्षा भारतीय मंत्रियों के अधिकार में आ गई। परंतु सरकारी सहयोग के अभाव के कारण उपयोगी योजनाओं का कार्यान्वित करना संभव न हुआ। प्राय: सभी प्रांतों में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य करने की कोशिश व्यर्थ हुई। माध्यमिक शिक्षा में विस्तार होता गया परंतु उचित संगठन के अभाव से उसकी समस्याएँ हल न हो पाईं। शिक्षा समाप्त कर विद्यार्थी कुछ करने के योग्य न बन पाते। दिल्ली (1922), नागपुर (1923) आगरा (1927), आंध्र (1926) और अन्नामलाई (1926) में विश्वविद्यालय स्थापित हुए। बंबई, पटना, कलकत्ता, पंजाब, मद्रास और इलाहबाद विश्वविद्यालयों का पुनर्गठन हुआ। कालेजों की संख्या में वृद्धि होती गई। व्यावसायिक शिक्षा, स्त्रीशिक्षा, मुसलमानों की शिक्षा, हरिजनों की शिक्षा, तथा अपराधी जातियों की शिक्षा में उन्नति होती गई। अगले शासनसुधार के लिए साइमन आयोग की नियुक्ति हुई। हर्टाग समिति इस आयोग का एक आवश्यक अंग थी। इसका काम था भारतीय शिक्षा की समस्याओं की सागोपांग जाँच करना। समिति ने रिपोर्ट में 1918 से 1927 क प्रचलित शिक्षा के गुण और दोष का विवेचन किया और सुधार के लिए निर्देश दिया। 1930-1935 के बीच संयुक्त प्रदेश में बेकारी की समस्या के समाधान के लिए समिति बनी। व्यावहारिक शिक्षा पर जोर दिया गया। इंटरमीडिएट की पढ़ाई के दो वर्षों में से एक वर्ष स्कूल के साथ कर दिया जाए, जिससे पढ़ाई 11 वर्ष की हो। बाकी एक वर्ष बी.ए. के साथ जोड़कर बी.ए. पाठ्यक्रम तीन वर्ष का कर दिया जाए। माध्यमिक छह वर्ष के दो भाग हों - तीन वर्ष का निम्न माध्यमिक और तीन वर्ष का उच्च माध्यमिक। अंतिम तीन वर्षों में साधारण पढ़ाई के साथ साथ कृषि, शिल्प, व्यवसाय सिखाए जायँ। समिति की ये सिफारिशें कार्यान्वित नहीं हुई। 1937 में शिक्षा की एक योजना तैयार की गई जो 1938 में बुनियादी शिक्षा के नाम से प्रसिद्ध हुई। सात से 11 वर्ष के बालक बालिकाओं की शिक्षा अनिवार्य हो। शिक्षा मातृभाषा में हो। हिंदुस्तानी पढ़ाई जाए। चरखा, करघा, कृषि, लकड़ी का काम शिक्षा का केंद्र हो जिसकी बुनियाद पर साहित्य, भूगोल, इतिहास, गणित की पढ़ाई हो। 1945 में इसमें परिवर्तन किए गए और परिवर्तित योजना का नाम रखा गया 'नई तालीम'। इसके चार भाग थे - (1) पूर्व बुनियादी, (2) बुनियादी, (3) उच्च बुनियादी और (4) वयस्क शिक्षा। हिंदुस्तानी तालीमी संघ (भारतीय शैक्षिक संघ) पर इसका संचालनभार छोड़ दिया गया। 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होते होते सार्जेट योजना का निर्माण हुआ। छह से 14 वर्ष की अवस्था के बालकों तथा बालिकाओं के लिए अनिवार्य शिक्षा हो। जूनियर बेसिक स्कूल, सीनियर बेसिक स्कूल, साहित्यिक हाई स्कूल ओर व्यावसायिक हाई स्कूल की पढ़ाई 11 वर्ष की अवस्था से 17 वर्ष की अवस्था तक हो। इसके बाद विश्वविद्यालय में प्रवेश हो। डिग्री पाठ्यक्रम तीन वर्ष का हो। इंटरमीडिएट कक्षा समाप्त कर दी जाए। पाँच से कम अवस्थावालों के लिए नर्सरी स्कूल हो। माध्यम मातृभाषा हो। भारत के लिये अंग्रेजों की शिक्षा नीति ब्रिटिश काल में शिक्षा में मिशनरियों का प्रवेश हुआ, इस काल में महत्वपूर्ण शिक्षा दस्तावेज में मैकाले का घोषणा पत्र 1835, वुड का घोषणा पत्र 1854, हण्टर आयोग 1882 सम्मिलित हैं। इस काल में शिक्षा का उद्देश्य अंग्रेजों के राज्य के शासन सम्बन्धी हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया था। प्राय: लोग इसे मैकाले की शिक्षा प्रणाली के नाम से पुकारते हैं। लार्ड मैकाले ब्रिटिश पार्लियामेन्ट के ऊपरी सदन (हाउस ऑफ लार्ड्स) का सदस्य था। 1857 की क्रान्ति के बाद जब 1860 में भारत के शासन को ईस्ट इण्डिया कम्पनी से छीनकर रानी विक्टोरिया के अधीन किया गया तब मैकाले को भारत में अंग्रेजों के शासन को मजबूत बनाने के लिये आवश्यक नीतियां सुझाने का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया था। उसने सारे देश का भ्रमण किया। उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि यहां झाडू देने वाला, चमड़ा उतारने वाला, करघा चलाने वाला, कृषक, व्यापारी (वैश्य), मंत्र पढ़ने वाला आदि सभी वर्ण के लोग अपने-अपने कर्म को बड़ी श्रद्धा से हंसते-गाते कर रहे थे। सारा समाज संबंधों की डोर से बंधा हुआ था। शूद्र भी समाज में किसी का भाई, चाचा या दादा था तथा ब्राहमण भी ऐसे ही रिश्तों से बंधा था। बेटी गांव की हुआ करती थी तथा दामाद, मामा आदि रिश्ते गांव के हुआ करते थे। इस प्रकार भारतीय समाज भिन्नता के बीच भी एकता के सूत्र में बंधा हुआ था। इस समय धार्मिक सम्प्रदायों के बीच भी सौहार्दपूर्ण संबंध था। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि 1857 की क्रान्ति में हिन्दू-मुसलमान दोनों ने मिलकर अंग्रेजों का विरोध किया था। मैकाले को लगा कि जब तक हिन्दू-मुसलमानों के बीच वैमनस्यता नहीं होगी तथा वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत संचालित समाज की एकता नहीं टूटेगी तब तक भारत पर अंग्रेजों का शासन मजबूत नहीं होगा। भारतीय समाज की एकता को नष्ट करने तथा वर्णाश्रित कर्म के प्रति घृणा उत्पन्न करने के लिए मैकाले ने वर्तमान शिक्षा प्रणाली को बनाया। अंग्रेजों की इस शिक्षा नीति का लक्ष्य था - संस्कृत, फारसी तथा लोक भाषाओं के वर्चस्व को तोड़कर अंग्रेजी का वर्चस्व कायम करना। साथ ही सरकार चलाने के लिए देशी अंग्रेजों को तैयार करना। इस प्रणाली के जरिए वंशानुगत कर्म के प्रति घृणा पैदा करने और परस्पर विद्वेष फैलाने की भी कोशिश की गई थी। इसके अलावा पश्चिमी सभ्यता एवं जीवन पद्धति के प्रति आकर्षण पैदा करना भी मैकाले का लक्ष्य था। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में ईसाई मिशनरियों ने भी महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई। ईसाई मिशनरियों ने ही सर्वप्रथम मैकाले की शिक्षा-नीति को लागू किया। मार्च १८९० में गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा पहली बार अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी प्रस्ताव किया गया था। हर्टांग समिति 1929 ने प्राथमिक विद्यालयों की संख्यात्मक वृद्धि पर बल न देकर गुणात्मक उन्नति पर जोर दिया था। गाँधी जी द्वारा प्रतिपादित बुनियादी शिक्षा का महत्वपूर्ण लक्ष्य, शिल्प आधारित शिक्षा द्वारा बालक का सर्वांगीण विकास कर उसे आत्मनिर्भर आदर्श नागरिक बनाना था। मैकाले ने सुझाव दिया कि अंग्रेजी सीखने से ही विकाैस संभव है स्वतंत्रता के बाद आजादी के बाद राधाकृष्ण आयोग (1948-49), माध्यमिक शिक्षा आयोग (मुदालियर आयोग) 1953, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (1953), कोठारी शिक्षा आयोग (1964), राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1968) एवं नवीन शिक्षा नीति (1986) आदि के द्वारा भारतीय शिक्षा व्यवस्था को समय-समय पर सही दिशा देनें की गंभीर कोशिश की गयी। 1948-49 में विश्वविद्यालयों के सुधार के लिए भारतीय विश्वविद्यालय आयोग की नियुक्ति हुई। आयोग की सिफारिशों को बड़ी तत्परता के साथ कार्यान्वित किया गया। उच्च शिक्षा में पर्याप्त सफलता प्राप्त हुई। पंजाब, गौहाटी, पूना, रुड़की, कश्मीर, बड़ौदा, कर्णाटक, गुजरात, महिला विश्वविद्यालय, विश्वभारती, बिहार, श्रीवेकंटेश्वर, यादवपुर, वल्लभभाई, कुरुक्षेत्र, गोरखपुर, विक्रम, संस्कृत वि.वि. आदि अनेक नए विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई। स्वतंत्रताप्राप्ति के पश्चात्‌ शिक्षा में प्रगति होने लगी। विश्वभारती, गुरुकुल, अरविंद आश्रम, जामिया मिल्लिया इसलामिया, विद्याभवन, महिला विश्वक्षेत्र में प्रशंसनीय वनस्थली विद्यापीठ आधुनिक भारतीय शिक्षा के विद्यालय और प्रयोग हैं। 1952-53 में माध्यमिक शिक्षा आयोग ने माध्यमिक शिक्षा की उन्नति के लिए अनेक सुझाव दिए। माध्यमिक शिक्षा के पुनर्गठन से शिक्षा में पर्याप्त सफलता प्राप्त हुई। भारतीय शिक्षा के आधुनिक इतिहास की प्रमुख घटनाएँ १७८० : ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा 'कोलकाता मदरसा' स्थापित १७९१ : ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा बनारस में 'संस्कृत कालेज' की स्थापना १० जुलाई सन् १८०० : कोलकाता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड वेलेजली ने की। १८१३ : एक आज्ञापत्र के द्वारा शिक्षा में धन व्यय करने का निश्चय किया गया। १८३५ : मैकाले का घोषणापत्र १८४८ : महात्मा जोतिबा फुले ने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को पढ़ाने के बाद १८४८ में पुणे में लड़कियों के लिए भारत का पहला प्राथमिक विद्यालय खोला। १८५४ : वुड का घोषणापत्र १८५७ : कलकत्ता, बंबई और मद्रास में विश्वविद्यालय स्थापित हुए। १८७० : बाल गंगाधर तिलक और उनके सहयोगियों द्वारा पूना में फर्ग्यूसन कालेज की स्थापना। १८८२ : हण्टर आयोग १८८६ : आर्यसमाज द्वारा लाहौर में दयानन्द ऐंग्लो वैदिक कालेज की स्थापना। १८९३ : काशी नागरीप्रचारिणी सभा की स्थापना। १८९३ : बड़ोदा के महाराज सयाजी राव गायकवाड़ ने पहली बार राज्य को अनिवार्य शिक्षा से परिचित कराया। १८९४-१९२२ : छत्रपति साहू जी महाराज द्वारा वंचितों और गरीब बच्चों के लिए स्कूलों व छात्रावासों की स्थापना की तथा उच्च शिक्षा के लिए उन्हें आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। १८९८ : काशी में श्रीमती एनी बेसेंट द्वारा 'सेंट्रल हिंदू कालेज' स्थापित। १९०१ : लार्ड कर्ज़न ने शिमला में एक गुप्त शिक्षा सम्मेलन किया जिसमें 152 प्रस्ताव स्वीकृत हुए थे। १९०२ : भारतीय विश्वविद्यालय आयोग की नियुक्ति (लॉर्ड कर्जन द्वारा) स्वामी श्रद्धानन्द द्वारा हरिद्वार के पास कांगड़ी में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना। १९०४ : भारतीय विश्वविद्यालय कानून बना। १९०५ : स्वदेशी आंदोलन के समय कलकत्ते में जातीय शिक्षा परिषद की स्थापना हुई और नैशनल कालेज स्थापित हुआ जिसके प्रथम प्राचार्य अरविंद घोष थे। बंगाल टेकनिकल इन्स्टिट्यूट की स्थापना भी हुई। १९०६ : बड़ोदा के महाराज सयाजी राव गायकवाड़ भारत के प्रथम शासक थे जिन्होने १९०६ में अपने राज्य में निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा आरम्भ की। १९११ : गोपाल कृष्ण गोखले ने प्राथमिक शिक्षा को निःशुल्क और अनिवार्य करने का प्रयास किया। १९१६ : मदन मोहन मालवीय द्वारा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना १९१९ - १९२० : महर्षि अरविन्द ने 'अ सिस्टम ओफ़ नेशनल एजुकेशन' नाम से अनेक लेख प्रकाशित किये। १९३७-३८ : गांधीवादी विचारों पर आधारित बुनियादी शिक्षा योजना लागू। १९४५ : सार्जेण्ट योजना लागू। १९४८-४९ : विश्‍वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन १९५१ : खड़गपुर में प्रथम आईआईटी की स्थापना १९५२-५३ : माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन १९५६ : विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग की स्‍थापना १९५८ : दूसरा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुम्बई में स्थापित १९५९ : कानपुर एवं चेन्नई में क्रमशः तीसरा एवं चौथा आईआईटी स्थापित। १९६१ : एनसीईआरटी की स्‍थापना प्रथम दो भारतीय प्रबन्धन संस्थान अहमदाबाद एवं कोलकाता में स्थापित किए गए। १९६३ : पाँचवां आईआईटी दिल्ली में स्थापित किया गया। तीसरा I.I.M. बंगलौर में स्थापित। १९६४-६६ : कोठारी शिक्षा आयोग की स्‍थापना, रिपोर्ट प्रस्‍तुत की। १९६८ : कोठारी शिक्षा आयोग की सिफारिशों के अनुसरण में प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति अपनाई गई। १९७५ : छह वर्ष तक के बच्चों के उचित विकास के लिए समेकित बाल विकास सेवा योजना प्रारम्भ। १९७६ : शिक्षा को 'राज्य' विषय से "समवर्ती" विषय में परिवर्तन करने हेतु संविधान संशोधन। १९८४ : लखनऊ में चौथा IIM स्थापित। १९८५ : संसद के अधिनियम द्वारा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना। १९८६ : नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अपनाया| १९८७-८८ : संसद के अधिनियम द्वारा सांविधिक निकाय के रूप में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) स्थापित। राष्ट्रीय साक्षरता मिशन प्रारम्भ। १९९२ : आचार्य राममूर्ति समिति द्वारा समीक्षा के आधार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में संशोधन १९९३ : संसद के अधिनियम द्वारा सांविधिक निकाय के रूप में राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद स्थापित। १९९४ : उच्चतर शिक्षा की संस्थाओं का मूल्यांकन एवं प्रत्यायन करने के लिए विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद की स्‍थापना। (बंगलौर में मुख्यालय) गुवाहाटी में छठे IIT की स्‍थापना। १९९५ : प्राथमिक स्कूलों में केन्द्रीय सहायता प्राप्त मध्याह्न भोजन योजना आरम्‍भ की गई। १९९६ : पाँचवाँ IIM कोझीकोड में स्‍थापित १९९८ : छठा IIM इंदौर में स्‍थापित २००१ : जनगणना में साक्षरता दर 65.4 % (समग्र), 53.7 % (महिला) पूरे देश में गुणवत्‍तापरक प्रारंभिक शिक्षा के सर्वसुलभीकरण हेतु सर्व शिक्षा अभियान प्रारंभ। रूड़की विश्‍वविद्यालय सातवें IIT में परिवर्तित। २००२ : मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने के लिए संविधान संशोधन। २००३ : 17 क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कालेज, राष्‍ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्‍थानों में परिवर्तित। २००४ : शिक्षा को समर्पित उपग्रह "एडूसैट" (EduSat) छोड़ा गया। २००५ : संसद अधिनियम द्वारा राष्‍ट्रीय अल्‍पसंख्‍यक शैक्षणिक संस्‍था आयोग गठित। एनसीईआरटी द्वारा तैयार राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 स्वीकृत। २००६ : कोलकाता और पुणे में दो भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्‍थान स्‍थापित। २००७ : सातवां IIM शिलांग में स्‍थापित किया गया। मोहाली में एक भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्‍थान स्‍थापित किया गया। राष्ट्रीय संस्‍कृत परिषद गठित। केन्‍द्रीय शैक्षिक संस्‍था (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम अधिसूचित। २००९ : भारतीय संसद द्वारा निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) पारित। २० मार्च २०१८ : ६२ विश्वविद्यालयों और ८ महाविद्यालयों (जिनमें जेएनयू, बीएचयू और एचसीयू सहित पाँच केन्द्रीय विश्वविद्यालय शामिल हैं) को स्वायत्तता देने की घोषणा २९ जुलाई, २०२०''' : नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति-२०२० लागू । सन्दर्भ इन्हें भी देखें प्राचीन भारतीय शिक्षा गुरुकुल नालन्दा महाविहार महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन वर्धा शिक्षा योजना बुनियादी शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज भारत की शिक्षा व्यवस्था राष्ट्रीय शिक्षा आयोग सर्वशिक्षा अभियान शिक्षा का अधिकार अधिनियम विद्या और अविद्या शिक्षा (वेदांग) बाहरी कड़ियाँ भारतीय शिक्षा का स्वर्णिम अतीत कैसी थी पारंपरिक भारतीय शिक्षा पद्धति? (आन्नद सुब्रमण्यम शास्त्री) राष्ट्रीय शिक्षा आन्दोलन का स्वरूप (स्वतन्त्रता पूर्व) आधुनिक भारतीय शिक्षा का विकास भारत में नारी शिक्षा का इतिहास भारतीय परिवेश में भाषा, समाज, संस्कृति और शिक्षा का अन्त:संबंध History of Indian Education British Education In India हमें गर्व हैं भारतीय शिक्षा के स्वर्णिम अतीत पर मैकाले की प्रासंगिकता और भारत की वर्तमान शिक्षा एवं समाज व्यवस्था में मैकाले प्रभाव भारत की वर्तमान शिक्षा एवं समाज व्यवस्था में मैकाले प्रभाव 18वीं सदी में दुनिया में सबसे ज्यादा शिक्षा संस्थाएँ भारत में थीं (भारतीय शिक्षा) भारत में शिक्षा का विकास (vivacepanorama) Evolution of educational thought in India (लेखक - भँवर लाल द्विवेदी) Education in Karnataka through the ages by Jyotsna Kamat भारतीय शिक्षा का इतिहास और विकास (अच्युत कुमार) भारत का सामाजिक इतिहास भारतीय शिक्षा का इतिहास
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बस्टेड (बैंड )
बस्टेड साउथेंड-ऑन-सी , एसेक्स से एक अंग्रेजी पॉप पंक बैंड है, जिसमें जेम्स बॉर्न , मैट विलिस और चार्ली सिम्पसन शामिल हैं । 2000 में गठित, बैंड में चार यूके नंबर-एक एकल थे, दो ब्रिट पुरस्कार जीते और पांच मिलियन से अधिक रिकॉर्ड बेचकर चार स्टूडियो एल्बम जारी किए। बैंड जारी - पर्दाफाश (2002) और सभी के लिए एक वर्तमान (2003) - जनवरी 2005 में खत्म होने से पहले विभाजन के बाद, सभी तीन सदस्यों ने अलग-अलग संगीत करियर का अनुसरण किया: सिम्पसन ने पोस्ट-कट्टर बैंड फाइटस्टार के लिए फ्रंटमैन के रूप में, बॉर्न ने पॉप पंक बैंड के प्रमुख गायक के रूप में सोन ऑफ डॉर्क और विलिस ने एकल कलाकार के रूप में काम किया। नवंबर 2013 में, विलिस और बॉर्न ने मैकफली के साथ 2014 में " सुपरग्रुप " मैकबुस्टेड के रूप में एक साथ दौरे की योजना की घोषणा की और यह 2015 में जारी रहा। 10 नवंबर 2015 को, यह पता चला कि सिम्पसन ने सफल गुप्त लेखन सत्रों के बाद बस्टड को फिर से नियुक्त किया था। तब बैंड ने मई 2016 में पिग्स कैन फ्लाई एरेना टूर पर शुरू किया और 25 नवंबर 2016 को अपने तीसरे स्टूडियो एल्बम नाइट ड्राइवर को रिलीज़ किया। 26 अक्टूबर 2018 को, बस्टेड ने 1 फरवरी 2019 को जारी किए गए चौथे एल्बम हाफ वे , के साथ-साथ यूके के एरीना दौरे की घोषणा की। इतिहास 2000-2002: गठन, पर्दाफाश और प्रसिद्धि के लिए वृद्धि जेम्स बॉर्न और मैट विलिस ने मूल रूप से एक और बैंड के लिए ऑडिशन दिया, जिसमें से किसी ने भी इसे नहीं बनाया। वे कई वर्षों तक दोस्त बने रहे और एक साथ सामग्री लिखी। विलिस ने दावा किया कि वे ग्रीन डे , ब्लिंक -182 और बीबीएमक से प्रेरित थे। वॉर्न म्यूजिक ग्रुप द्वारा नए बैंड बनाने के लिए खुले ऑडिशन आयोजित किए जाने के बाद 2000 की शुरुआत में बस्ट का गठन किया गया था, और मूल रूप से बॉर्न, विलिस, की फिट्जगेराल्ड और ओवेन डॉयल शामिल थे, हालांकि उस साल बैंड का यह संस्करण टूट गया था। चार्ली सिम्पसन और टॉम फ्लेचर ने बैंड में शामिल होने के लिए ऑडिशन दिया और दोनों को लाइनअप पूरा करने के लिए जगह की पेशकश की गई। २४ घंटे बाद, हालांकि, Busted के प्रबंधक ने फोन कॉल के माध्यम से फ्लेचर को बताया कि बैंड को तिकड़ी के रूप में आगे बढ़ना था, जिसमें बॉर्न, विलिस और सिम्पसन शामिल थे। अगस्त 2002 में, स्मैश हिट्स के कवर पर अपनी पहली उपस्थिति बनाने के लिए बैंड को लॉन्च किया गया था: "मीट बस्टेड: वी आर गोइंग टू बी बिगर टू रिक वॉलर !", इसे प्रदर्शित करने के लिए किसी भी पॉप बैंड के लिए पहली बार बना। एकल जारी करने से पहले पत्रिका का आवरण। उनका पहला एकल, " व्हाट आई गो टू स्कूल फॉर ", एक शिक्षक से प्रेरित था, जिसे विलिस ने स्कूल में क्रश किया था, आखिरकार सितंबर 2002 में रिलीज़ किया गया। यह यूके सिंगल्स चार्ट में तीसरे नंबर पर पहुंच गया । उनका पहला एल्बम बस्टेड तब रिलीज़ किया गया था, शुरू में केवल यूके के शीर्ष 30 के चारों ओर चार्टिंग और आलोचकों से मिश्रित समीक्षा प्राप्त हुई थी। अनुवर्ती " वर्ष 3000 ", जो बॉर्न के फिल्म बैक टू द फ्यूचर के साथ जुनून के बारे में लिखा गया था, उसके बाद जनवरी 2003 में यूके चार्ट में दूसरे नंबर पर पहुंच गया। अप्रैल में, उनका तीसरा एकल, " यू सेड नो " अंत में नंबर एक पर पहुंच गया। ब्रिटिश हिट सिंगल्स एंड एल्बम ने उन्हें पहली एक्टिंग के रूप में प्रमाणित किया कि उनका पदार्पण तीन एकल एकल आरोही क्रम में शीर्ष तीन में प्रवेश करने का है। उनके दूसरे एल्बम के लिए रिकॉर्डिंग शुरू हुई, जबकि डेब्यू एल्बम को नए ट्रैक और एक बढ़ाया सीडी सेक्शन के साथ फिर से रिलीज़ किया गया। यह वर्ष के अंत तक 1.2 मिलियन प्रतियां बेचने के लिए चला जाएगा। पहली एल्बम का अंतिम एकल, " स्लीपिंग विथ द लाइट ऑन ", अगस्त 2003 में नंबर 3 पर पहुंच गया, जो ब्लू कैंटरेल के " ब्रीथ " द्वारा नंबर एक पर रहा। 2003-2005: ए प्रेजेंट फॉर एवरीवन और स्प्लिट बस्टेड ने 2003 की गर्मियों की शुरुआत नेशनल म्यूजिक अवार्ड्स में फेवरेट न्यूकमर की जीत के साथ-साथ उस साल के डिज़नी चैनल किड्स अवार्ड्स में बेस्ट बैंड से की। इसके बाद, बैंड ने अपने नए एल्बम, ए प्रेजेंट फॉर एवरीवन और इसके प्रमुख एकल " क्रश्ड द वेडिंग " के लिए प्रचार पथ का शुभारंभ किया, जो यूके चार्ट में नंबर एक पर पहुंच गया। अपने पिछले एल्बम की तुलना में एडगियर, सिम्पसन ने कहा कि इसमें कुछ "कठिन, गुड चार्लोट टाइप वाइब्स इस एल्बम के माध्यम से आ रहे हैं"। यह एल्बम 1 मिलियन से अधिक प्रतियों की बिक्री तक पहुंचने के लिए भी आगे बढ़ेगा। 2003 के दौरान, चार्ली ने एक पार्टी में साथी गीतकार-गिटारवादक एलेक्स वेस्टवे और ड्रमर उमर आबिदी से मुलाकात की। वह इस स्तर तक पहुंच गया था कि वह बस्टड में प्रदर्शन कर रहे संगीत से बहुत अधिक निराश हो गया था और उसने कहा कि "इस रचनात्मकता के सभी ने अंदर तक झांका और मुझे बस इसे कहीं बाहर करने की ज़रूरत थी, और मैं बहुत सारे गीत लिख रहा था लेकिन मैं नहीं कर सका उन्हें खेलें, क्योंकि मेरे पास उनके साथ खेलने के लिए कोई नहीं था ”। उपर्युक्त पार्टी के दौरान, एक बाधित जाम सत्र हुआ। लूप पर सिम्पसन, वेस्टअवे, और अबिदी ने द अगेंस्ट द मशीन के गीत " किलिंग इन द नेम " को बजाया और कुछ दिनों बाद एक टमटम में शामिल होने के लिए सहमत हुए। शो के बाद, वे सिम्पसन के फ्लैट में वापस चले गए और गिटार और एक वी-ड्रम किट पर प्रदर्शन करने लगे, जिसके कारण उनका पहला गीत लिखा गया, जिसका शीर्षक था "टू मच पंच"। वेस्टवे ने बाद में बैंड के साथ अभ्यास करने के लिए बेसिस्ट डान हाई को आमंत्रित किया और जल्द ही फाइटस्टार नाम से एक साथ नियमित रिहर्सल सत्रों की बुकिंग शुरू की। 2004 को बैंड के रूप में एक साथ अपने अंतिम वर्ष को साबित करना था। बैंड ने क्रमशः " हूज़ डेविड " और " एयर होस्टेस " के साथ नंबर एक और नंबर दो पर पहुंचने से पहले वर्ष शुरू करने के लिए एक सफल क्षेत्र का दौरा किया। बैंड ने उस वर्ष के BRIT अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ ब्रिटिश ब्रेकथ्रू अधिनियम और सर्वश्रेष्ठ पॉप अधिनियम को चुना। इसके बाद बैंड ने एक स्व-शीर्षक एल्बम जारी करने के लिए अमेरिका की ओर रुख किया जो उनके पहले और दूसरे एल्बम का मिश्रण था। संयुक्त राज्य अमेरिका में सफलता प्राप्त करने के बस्टड के प्रयासों के बारे में, टीवी श्रृंखला अमेरिका या बस्टेड के लिए उनके कारनामों पर कब्जा कर लिया गया था, जो अंततः विफल रहा। यह शो एमटीवी यूके पर उस वर्ष नवंबर में शुरू हुआ, श्रृंखला के दौरान, इसने देखा कि अमेरिका के इंटरव्यू के दौरान बस्टेड की कोशिशों में कमी आई है और साक्षात्कार दर्शकों के आकार और प्रेस ध्यान दोनों के संदर्भ में सीमित रह गए। जब तक अमेरिका में बैंड बाहर थे, तब उन्हें उस नई गर्मियों में आने वाली ब्रांड थंडरबर्ड्स फिल्म के लिए थीम ट्यून रिकॉर्ड करने के लिए आमंत्रित किया गया था। एल्बम ट्रैक, " 3 एएम " के साथ एक डबल ए-साइड के रूप में जारी, इसने उन्हें अगस्त 2004 में अपना चौथा और अंतिम नंबर दिया, दो हफ्तों के लिए शीर्ष पर रहकर, जो उन्होंने कभी सबसे ऊपर बिताया था। हालांकि, उनके दूसरे एल्बम, " शी वॉन्ट्स टू बी मी " से पांचवे सिंगल की रिलीज़, इसके लोन फॉर्मेट को डाउनलोड करने और सीमित संस्करण पॉकेट साइज़ सीडी होने के कारण चार्ट में विफल रही, दोनों ने उस समय चार्ट नियमों का उल्लंघन किया। नवंबर में उनका लाइव एल्बम, ए टिकट फॉर एवरीवन , ग्यारहवें नंबर पर रिलीज़ किया गया था। बैंड ने नवंबर में एक और बिक-आउट दौरे की शुरुआत की, और बस्टेड ने वेम्बली एरीना में ग्यारह रातों में सबसे अधिक बिकने वाली तारीखों को खेलने के लिए बैंड का रिकॉर्ड हासिल किया। 2004 के अंत में, बस्टेड ब्रिटेन के नंबर-एक क्रिसमस एकल में शामिल थे, बैंड एड 20 के " क्या वे जानते हैं कि यह क्रिसमस है? " पैसे के साथ अफ्रीका और एचआईवी से निपटने में मदद के लिए अफ्रीका, अकाल। सूडान के दारफुर क्षेत्र में राहत और इथियोपिया जैसे कई देशों में सहायता राहत। सिम्पसन का समय फाइटस्टार के साथ बिताने से कथित तौर पर बैंड के भीतर तनाव पैदा होने लगा, तब बढ़ गया जब फाइटस्टार ने 14 तारीख के यूके दौरे की घोषणा की। सिम्पसन ने 24 दिसंबर 2004 को फोन कॉल पर बस्टेड के प्रबंधक की घोषणा की कि वह फुलटाइम पर ध्यान केंद्रित करने के लिए बैंड छोड़ रहा है। 13 जनवरी 2005 को, बस्टड के रिकॉर्ड लेबल ने घोषणा की कि अगले दिन लंदन के सोहो होटल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की जानी थी। अगले दिन, 14 वें दिन, यह घोषणा की गई कि बस्टेड सिम्पसन के जाने के हफ्तों पहले से अलग हो रहे थे। केरांग के साथ एक साक्षात्कार में ! नवंबर 2009 में, सिम्पसन ने कहा, "यह एक वास्तविक मज़ेदार चीज़ थी, और मैं हर किसी के साथ अच्छी तरह से मिला, जो मैं इसे कर रहा था, लेकिन दूसरी तरफ, संगीत वास्तव में मुझे पूरा नहीं कर रहा था। मेरे पास उस समय की अच्छी यादें हैं क्योंकि हम दुनिया की यात्रा कर रहे थे और कुछ आश्चर्यजनक चीजें कर रहे थे, लेकिन तब तक जब तक आत्म-तृप्ति नहीं हो जाती, यह वास्तव में मेरे लिए बहुत कुछ नहीं कर रहा था, इसलिए जब मैं पीछे देखता हूं तो मेरे पास ये मिश्रित विचार होते हैं। । लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि यह एक आश्चर्यजनक बात थी " २००६-२०१२: सोलो प्रोजेक्ट और बैंड चार्ली ने फाइटस्टार में खेलने के बाद एक एकल कैरियर का पीछा करना शुरू कर दिया, एक पोस्ट-कट्टर बैंड जो बस्टेड की आवाज़ से बहुत अलग है। उन्होंने बस्टेड के विभाजन से पहले एक साल का गठन किया। तिथि करने के लिए उन्होंने एक ईपी और चार एल्बम जारी किए हैं: वे आपको तब बेहतर लगे जब आप मर चुके थे , ग्रैंड यूनिफिकेशन , वन डे बेटा, यह सब आपका होगा , बीइंग ह्यूमन और पीछे द डेविल्स बैक , सभी को यूके और यूएस दोनों में रिलीज़ किया जा रहा है। उन्होंने बी-साइड्स और रारिटीज़ का एक एल्बम " अल्टरनेटिव एंडिंग्स " भी जारी किया है। फाइटस्टार ने 2010 की शुरुआत में एक हेटस की घोषणा की, जिसमें कहा गया कि वे नए रिकॉर्ड बनाने के लिए काम शुरू करने से पहले अलग-अलग परियोजनाओं पर काम करने के लिए "कुछ समय निकाल रहे हैं"। उनके 2014 के पुनर्मिलन और 2015 के एल्बम के बाद, फाइटस्टार ने एक पूर्णकालिक बैंड के बजाय खुद को "जुनून परियोजना" के रूप में वर्णित करना शुरू कर दिया, क्योंकि सदस्य अन्य परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं। सिम्पसन ने यंग पिलग्रीम नामक एक एकल ध्वनिक एल्बम जारी किया, जो 2011 में यूके एल्बम चार्ट में 6 वें स्थान पर पहुंचा, इसके बाद 2014 एल्बम लॉन्ग रोड होम । जेम्स पॉप पंक बैंड सोन ऑफ डॉर्क , माध्यम से संगीत जारी करने के लिए आगे बढ़े, लेकिन अब फ्यूचर बॉय के नाम से एक एकल कैरियर का पीछा कर रहे हैं। बॉर्न ने कई कलाकारों के लिए गाने भी लिखे हैं, जिनमें मेलानी सी , मैकफली , जेसी चेज़ , पैट्रिक मोनाहन , और जोनास ब्रदर्स शामिल हैं । 2007– 2008 से, वह ITV संगीत नाटक, ब्रिटानिया हाई के मुख्य गीतकारों में से एक थे। बस्टेड विभाजन के बाद पुनर्वसन में एक संक्षिप्त समय के बाद, मैट ने एक एकल कैरियर की स्थापना की, २००६ और २०० sing में एकल रिलीज, " अप ऑल नाइट ", " हे किड ", " डोंट लेट इट गो टू अपशिष्ट , और मिस्टर बीन की छुट्टी , फिल्म के लिए " क्रैश ", जो बाद के सभी को छोड़कर उनके एल्बम डोन्ट लेट इट गो टू वेस्ट में शामिल थे । मैट पर भी दिखाई दिया, और 2006 की श्रृंखला का विजेता रहा , आई एम अ सेलिब्रिटी। । । मुझे यहां से बाहर निकालो! । अपने रिकॉर्ड लेबल से हटा दिए जाने के बाद, विलिस प्रस्तुत करने के लिए मुड़ गए। अब तक उन्होंने ब्रिट अवार्ड्स में प्रस्तुत किया है और हाल ही में ITV2 आई एम अ सेलिब्रिटी। । । मुझे यहां से बाहर निकालो! अभी व! अपनी पत्नी के साथ, एम्मा , जोड़ी ई के लिए फिर से एक साथ आने के कारण हैं ! BAFTAs प्रस्तुत कर रहा है। विलिस के माइस्पेस पर, उन्होंने कहा है कि वह अभी अपने नए बैंड के साथ लिख रहे हैं, अभी तक नाम नहीं है। फरवरी से नवंबर 2012 तक, मैट विलिस ने लंदन के वेस्ट एंड में संगीतमय दुष्ट में फिएरो के रूप में अभिनय किया जहां उन्हें मिश्रित समीक्षा मिली। 2013 में वह सीमित समय के लिए लंदन के वूडविले थिएटर में साथी संगीत स्टार ली मीड के साथ वेस्ट एंड मेन में भी दिखाई दिए। 2010 में, कुछ स्रोतों ने सुझाव दिया कि, £ 1 मिलियन की पेशकश के बाद, बस्टड एक दौरे और संभवतः एक नए एल्बम के लिए सुधार करेगा। चार्ली ने इस बात से इनकार किया कि वह बस्टेड के पास लौटेंगे, यह कहते हुए, "मैं मैट और जेम्स को उनके भविष्य की परियोजनाओं के साथ शुभकामनाएं देता हूं, लेकिन मैं इसे स्पष्ट रूप से स्पष्ट करना चाहता हूं कि मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है कि क्या-क्या-फिर से जुड़े हुए बस्टेड और मैं कभी नहीं होगा ", लेकिन जेम्स ने अपने ट्विटर पेज पर लिखा," मैं कमबख्त उठूंगा और इसे किसी भी समय, किसी भी दिन, कहीं भी करूंगा "। २०१३–२०१५: मैकबस्टेड 19 से 22 सितंबर 2013 तक, मैट और जेम्स ने बस्टेड के रूप में एक आश्चर्यजनक संक्षिप्त पुनर्मिलन किया जब वे रॉयल अल्बर्ट हॉल में बैंड की 10 वीं वर्षगांठ समारोहों के दौरान McFly के विशेष मेहमानों के रूप में शामिल हुए। उन्होंने "वर्ष 3000", "एयर होस्टेस" और मैकफली के " शाइन ए लाइट " को मैकफली के नाम के साथ ' मैकबस्टेड ' नाम से प्रदर्शित किया । मैकफली और बस्टेड ने एक साथ 2014 के दौरे की पुष्टि की। चार्ली ने ट्विटर के माध्यम से कहा कि हालांकि वह 2014 में जेम्स, मैट और मैकफली दौरे पर शामिल नहीं होंगे, वह उन्हें भविष्य में शुभकामनाएं देते हैं। McBusted ने अपना पहला एल्बम McBusted 1 दिसंबर 2014 को रिलीज़ किया। इसके बाद उन्होंने एक अन्य बिकने वाले यूके टूर, मैकबस्टेड के सबसे उत्कृष्ट एडवेंचर टूर की शुरुआत की । २०१५-२०१६: सिम्पसन की वापसी, वापसी का दौरा और नाइट ड्राइवर 5 अक्टूबर 2015 को, द सन ने अफवाह फैला दी कि सिम्पसन बस्टेड के साथ जुड़ने के लिए तैयार था। इसके बाद, एक तस्वीर ने इंटरनेट पर अपनी जगह बनाई जिसने बस्टेड के तीन सदस्यों को लाल पृष्ठभूमि के सामने सिल्हूट में दिखाया। छवि के निचले भाग में शब्द धुंधले दिखाई दिए, लेकिन इसके बाद के शब्द "10 नवंबर 2015 मंगलवार को एक विशेष घोषणा के लिए हमसे जुड़ें" थे। इससे यह अनुमान लगाया गया कि बैंड फिर से जुड़ रहा है, और इस अनुमान के साथ कि तीनों एक साथ पुनर्मिलन दौरे पर जाएंगे। 10 नवंबर 2015 को, बस्टेड ने यूके और आयरलैंड में तेरह तारीख के अखाड़े के दौरे की घोषणा की, जो मई 2016 में होगा। उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बस्टेड ने अपने तीसरे स्टूडियो एल्बम की घोषणा की। १००,००० टिकट बिक्री के पहले घंटे में बेचे गए। उच्च मांग के परिणामस्वरूप बाद के दौरे की तारीखें जोड़ दी गईं। बैंड को फिर से शामिल करने के अपने फैसले के बारे में, सिम्पसन ने न्यूज़बीट को बताया: "मुझे लगता है कि मैंने इसे [इतनी बार], निजी तौर पर और सार्वजनिक रूप से कहा था, और मेरा मतलब था कि यह हर बार होता है। लेकिन जैसा कि मैंने कहा कि मैंने अपना मन बदल दिया है और यह परिस्थितियों को बदलने के लिए नीचे है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि हम एक ऐसे मुकाम पर पहुंचेंगे जहां हम एक स्टूडियो संगीत लेखन में थे जो हम सभी रचनात्मक रूप से पीछे छूट गए थे और यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी। " 2016 की शुरुआत में, बस्टेड ने लॉस एंजिल्स में अपना तीसरा स्टूडियो एल्बम रिकॉर्ड किया। 17 मार्च 2016 को, बॉर्न ने ट्विटर पर एक प्रशंसक को बताया कि बस्टेड उस दिन अपने तीसरे एल्बम के रिलीज की तारीख तय करेगा। यह शरद ऋतु में रिलीज के लिए निर्धारित है। बैंड ने यह भी जोर देकर कहा है कि उनका पुनर्मिलन दीर्घकालिक के लिए है; जैसा कि बॉर्न ने डिजिटल स्पाई से कहा, "हम चाहते हैं कि यह कुछ ऐसा हो जो चल रहा है। अब हम जो कुछ भी लिखते हैं वह एल्बम चार की ओर जाता है। 4 अप्रैल 2016 को बस्टेड ने घोषणा की कि उनके दौरे को पिग्स कैन फ्लाई फ्लाई टूर 2016 कहा जाएगा और इसमें विशेष मेहमान के रूप में व्हीटस और एम्मा ब्लैकरी शामिल होंगे । शीर्षक के बारे में, विलिस ने न्यूज़बीट को बताया, "पूरे सूअर उड़ सकते हैं। हम इस बारे में कैसा महसूस करते हैं। कई बार ऐसा हुआ है कि हमने सोचा कि बस्टेड कभी नहीं हो सकता, कभी भी हो सकता है और हम यह सोचने में काफी सही थे। लेकिन यह संक्षेप में बताता है कि कुछ भी संभव है "। डिजिटल स्पाई के साथ एक साक्षात्कार में, बैंड ने खुलासा किया कि उनके प्रशंसकों को उनके पुनर्मिलन दौरे से पहले उनकी नई ध्वनि का स्वाद मिलेगा और उनका ग्यारहवां एकल गर्मियों में जारी किया जाएगा, और उनका एल्बम शरद ऋतु में अनुसरण करेगा। 25 अप्रैल 2016 को, यह आधिकारिक तौर पर घोषणा की गई कि YouTube पर लोकप्रिय दक्षिण अफ्रीकी ढोलकिया कोबस पोटीगियर, दौरे के दौरान बैंड के लिए सहायक ड्रमर होगा। 3 मई को, बस्टेड ने अपनी वेबसाइट से मुफ्त डाउनलोड के रूप में, 12 वर्षों के लिए अपना पहला नया गाना " कमिंग होम " जारी किया। 'पिग्स कैन फ्लाई' के दौरे के दौरान, बस्टेड ने आगामी 2016 एल्बम से "ईज़ी" और "वन ऑफ़ ए काइंड" नामक दो नई पटरियों का प्रीमियर किया। द सन के साथ एक साक्षात्कार में, बस्टड ने खुलासा किया कि उन्होंने ईस्ट वेस्ट रिकॉर्ड्स के साथ हस्ताक्षर किए थे। विलिस ने डान वूटन से कहा, "हमारे अखाड़े के दौरे पर एक अविश्वसनीय समय आया है, और अब हम पूर्व पश्चिम के साथ वैश्विक साझेदारी के माध्यम से नए संगीत को जारी करने के लिए उत्सुक हैं"। ईस्ट वेस्ट के अध्यक्ष चाल्मर्स ने कहा: "पिछले कुछ हफ्तों में बस्टेड नाटक को लाइव देखना और लोगों को उनके संगीत और ऊर्जा के प्रति प्रतिक्रिया देखना अद्भुत रहा है। बस्टेड के पास एक विशाल वैश्विक प्रशंसक है जो नए संगीत को सुनने के लिए वास्तव में उत्साहित होने जा रहे हैं जो लोग काम कर रहे हैं। वे एक आधुनिक मोड़ के साथ क्लासिक बस्टेड ध्वनि को संयोजित करने में कामयाब रहे हैं, यह लोगों को याद दिलाने के लिए निश्चित है कि वे उन्हें क्यों प्यार करते हैं। हम चार्ली, मैट और जेम्स के साथ काम करके बहुत खुश हैं। " 14 जुलाई 2016 को, बस्टेड ने खुलासा किया कि एल्बम के लिए "अंतिम स्पर्श" पूर्ण थे। 18 अगस्त 2016 को, बीबीसी समाचार द्वारा घोषणा की गई थी कि बॉर्न और इलियट डेविस द्वारा लिखे गए बैंड के इतिहास पर आधारित एक संगीत का मंचन किया जाना था, व्हाट आई गो टू स्कूल फॉर में प्रसिद्धि के लिए समूह के उत्थान को दर्शाया जाएगा। इसे अगस्त 2016 में थिएटर रॉयल ब्राइटन में प्रदर्शित किया जाएगा और इसमें एयर होस्टेस, क्रशेड द वेडिंग और ईयर 3000 जैसे गाने होंगे। यदि शो एक सफल बॉर्न है और डेविस ने कहा है कि वे इसे वेस्ट एंड में ले जाना चाहते हैं। 9 सितंबर 2016 को, बस्टेड ने खुलासा किया कि उनके तीसरे एल्बम को नाइट ड्राइवर कहा जाएगा। 3 मई 2016 को, " कमिंग होम " को एल्बम से एक प्रचारक के रूप में रिलीज़ किया गया था। 30 सितंबर 2016 को, " ऑन व्हाट यू आर ऑन " एल्बम के पहले आधिकारिक एकल के रूप में रिलीज़ किया गया था। "ईज़ी" शीर्षक से एक और गीत, 18 अक्टूबर 2016 को अनावरण किया गया था। दो दिन बाद, 20 अक्टूबर 2016 को, बस्टेड ने घोषणा की कि उत्पादन में देरी के कारण, एल्बम रिलीज़ को 25 नवंबर 2016 तक वापस धकेल दिया जाएगा। उसी दिन, बस्टेड ने पूल स्टूडियो में "ईज़ी" का लाइव वीडियो फिल्माया। 23 अक्टूबर 2016 को, बैंड ने प्रतियोगियों के साथ "वर्ष 3000" करने के लिए द एक्स फैक्टर पर 12 वर्षों में अपना पहला टीवी प्रदर्शन किया। २०१७-वर्तमान: आधा रास्ता जून 2017 में पर्दाफाश के लिए उड़ान भरी लॉस एंजिल्स में अपने पहले अमेरिकी फिर से गठन गिग प्रदर्शन करने के लिए Troubadour और लिखना जारी रखने की योजना बनाई है और उनके चौथे एल्बम के लिए रिकॉर्डिंग शुरू। अप्रैल 2018 में, यह पुष्टि की गई थी कि एल्बम Q1 2019 में रिलीज़ होगा, और बैंड अपनी मूल ध्वनि पर लौट आएगा। उस वर्ष मई में, कोबस पोटगीयर, जो पहले बस्टेड के 2016 के दौरे पर ड्रमर के रूप में खड़े थे, ने घोषणा की कि वह आगामी चौथे एल्बम के लिए स्टूडियो ड्रमर होंगे। 26 अक्टूबर 2018 को, बस्टेड ने घोषणा की कि उनका चौथा एल्बम हॉफ वे (गीत " वर्ष 3000 " में एक गीत का संदर्भ) 8 फरवरी 2019 को जारी किया जाएगा। एल्बम में जेम्स बॉर्न के गीत, " व्हाट हैपेंड टू योर बैंड " का एक कवर है, जो पहले उनके बैंड सन ऑफ डोर द्वारा किया गया था और मैकबुस्टेड द्वारा रिकॉर्ड किया गया था, और अपनी संगीत शैली की जड़ों की ओर लौटता है। एल्बम का पहला एकल, "नब्बे का दशक" नवंबर 2018 के पहले सप्ताह में जारी किया गया था। एल्बम के अतिरिक्त गाने, "रीयूनियन" और "ऑल माई फ्रेंड्स" क्रमशः 14 और 15 दिसंबर को जारी किए गए (बाद वाला उन लोगों के लिए एक विशेष रिलीज़ था, जिन्होंने बैंड के ऑनलाइन स्टोर से एल्बम को प्री-ऑर्डर किया था)। जनवरी 2019 में, बस्टेड ने एल्बम, " रेडियो " के लिए अपना दूसरा एकल रिलीज़ किया। इसके साथ एक म्यूजिक वीडियो भी था। प्रभाव बस्टेड को द वैम्प्स और 5 सेकंड ऑफ समर के प्रभावों के रूप में उद्धृत किया गया है। सदस्य Current James Bourne – vocals, guitars, keyboards, piano Matt Willis – vocals, bass guitar, synths Charlie Simpson – vocals, guitars, drums, keyboard, synths Current touring musicians Nick Tsang – guitars Eddy Thrower – drums David Temple – saxophone Former Owen Doyle – vocals, bass guitar Ki Fitzgerald – vocals, guitars Tom Fletcher – vocals, guitars Former touring musicians Damon Wilson – drums Chris Banks – keyboards Chris Leonard – guitars Cobus Potgieter – drums Ross Harris – drums समय डिस्कोग्राफी पर्दाफाश (2002) ए प्रेजेंट फॉर एवरीवन (2003) नाइट ड्राइवर (2016) आधा रास्ता वहाँ (2019) टूर्स बुस्टेड: टूर (2003) बस्टेड: ए टिकट फॉर एवरीवन (2004) वेटेड: ए टिकट फॉर एवरीवन एल्स (2004) पर्दाफाश: सूअर उड़ सकता है (2016) बस्टेड: नाइट ड्राइवर टूर (2017) पर्दाफाश: हाफ वेअर टूर (2019) Pages with unreviewed translations
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%9F%E0%A5%80%20%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A4
केवटी जलप्रपात
केवटी जलप्रपात (Kevti Falls) या क्योटी जलप्रपात (Keoti Falls) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रीवा ज़िले में स्थित एक जलप्रपात है। यह भारत का 24वाँ सबसे ऊँचा जलप्रपात है और महाना नदी पर स्थित है, जो तमसा नदी की एक उपनदी है। स्थान केवटी (क्योंटी) जलप्रपात रीवा से दूर स्थित है। यह क्षेत्र चित्रकूट पहाड़ियों के क्योंटी गांव में है, जो कैमूर पर्वतमाला का भाग है। इन्हें भी देखें तमसा नदी रीवा ज़िला सन्दर्भ मध्य प्रदेश के जलप्रपात रीवा ज़िले में पर्यटन आकर्षण
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%28%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A5%B0%E0%A4%8F%E0%A4%A8%E0%A5%B0%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A5%B0%29
भारतीय भाषा केन्द्र (जे॰एन॰यू॰)
https://web.archive.org/web/20080521181832/http://commons.wikimedia.org/wiki भारतीय भाषा केन्द्र जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भाषा, साहित्य और संस्कृति अध्ययन संस्थान में भारतीय भाषाओं के अध्ययन का एक विभाग है। वर्तमान में इसके अंतर्गत हिन्दी, उर्दू और हिन्दी अनुवाद से संबंधित अध्ययन-अध्यापन और शोध किया जाता है। संक्षिप्त इतिहास भारतीय भाषा केन्द्र की शुरूआत 29 अक्टूबर 1974 को हुई। इस केन्द्र में हिन्दी, उर्दू, तमिल, हिन्दी अनुवाद के अध्ययन की व्यवस्था है। निकट भविष्य में बांगला, मराठी, असमिया आदि भाषाओं का अध्ययन आरम्भ होने की उम्मीद है। केन्द्र की अकादमिक संस्कृति के आदर्श कथा सम्राट प्रेमचंद हैं। उनकी भाषा और साहित्य को आधार बनाने के कारण ही यह देश का संभवत: अकेला केन्द्र है जहां हिन्दी और उर्दू की पढाई साथ-साथ होती है। प्रेमचंद के इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए केन्द्र ने इस बार से हर साल प्रेमचंद के जन्म दिवस 31 जुलाई को ‘प्रेमचंद मेमोरियल लेक्चर’ आयोजित कर अपना अकादमिक सत्र शुरू करने का फ़ैसला लिया है। इस क्रम में पहला व्याख्यान उर्दू के प्रख्यात आलोचक प्रो॰ मुहम्मद हसन द्वारा 31 जुलाई 2008 को दिया गया। समारोह की अध्यक्षता हिन्दी के प्रख्यात आलोचक प्रो॰ नामवर सिंह ने की। उल्लेखनीय है कि प्रो॰ हसन और प्रो॰ नामवर सिंह भारतीय भाषा केन्द्र की आधारशिला रखने वालों में से हैं। प्रोफ़ेसर एमरिटस प्रो॰ नामवर सिंह प्रो॰ मुहम्मद हसन प्रो॰ केदारनाथ सिंह वर्तमान संकाय सदस्य और उनके अध्ययन क्षेत्र प्रो॰ एस॰ एम॰ अनवर आलम (अध्‍यक्ष) उर्दू कथा आलोचना और काव्यालोचना, सांस्कृतिक अध्ययन प्रो॰ मुइनुद्दीन ए॰ जिनाबाडे आधुनिक उर्दू कथा-साहित्य, पाठगत आलोचना, दक्खिनी साहित्य प्रो॰ रामबक्ष हिन्दी कथा साहित्य, हिन्दी आलोचना प्रो॰ मजहर हुसैन उर्दू कविता, सौन्दर्यशास्त्र, 19वीं और आरंभिक 20वीं सदी का साहित्य, सांस्कृतिक अध्ययन प्रो॰ गोबिन्द प्रसाद हिन्दी कविता, उर्दू अनुवाद, दलित साहित्य प्रो॰ देवेन्द्र कुमार चौबे हिन्दी साहित्य का इतिहास, साहित्य सिद्धांत, दलित साहित्य, कथा साहित्य प्रो. ख्वाजा मो॰ इकरामुद्दीन उर्दू कविता, उर्दू आलोचना डॉ॰ रमण प्रसाद सिन्हा हिन्दी अनुवाद अध्ययन, सांस्कृतिक अध्ययन, भारतीय व पाश्चात्य साहित्य सिद्धांत, हिन्दी नाटक और रंगमंच डॉ॰ राम चन्द्र हिन्दी कथा साहित्य, दलित विमर्श, साहित्य और विचारधारा, समकालीन हिन्दी आलोचना डॉ॰ गंगा सहाय मीणा आदिवासी-दलित साहित्‍य, हिंदी गद्य, भाषा प्रश्‍न डॉ॰ एन॰ चंद्र शेखरन् तमिल भाषा और साहित्य डॉ आसिफ ज़ाहिरी उर्दू साहित्य शोध विज्ञानी और उनके अध्ययन क्षेत्र डॉ॰ ओमप्रकाश सिंह हिन्दी उपन्यास, हिन्दी निबन्ध तथा हिन्दी गद्य की अन्य नई विधाएं, भारतीय उपन्यास, कहानी सन्दर्भ जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय
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ग़ज़नवी साम्राज्य
ग़ज़नवी राजवंश (फ़ारसी: ) एक तुर्क मुसलमान राजवंश था जिसने ९७५ ईसवी से ११८६ ईसवी काल में अधिकाँश ईरान, आमू पार क्षेत्रों और उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप पर राज किया। इसकी स्थापना सबुक तिगिन ने तब की थी जब उसे अपने ससुर अल्प तिगिन की मृत्यु पर ग़ज़ना (वर्तमान ग़ज़नी प्रांत) का राज मिला था। अल्प तिगिन स्वयं कभी ख़ुरासान के सामानी साम्राज्य का सिपहसालार हुआ करता था जिसने अपनी अलग रियासत क़ायम कर ली थी। इन्हें भारतीय सूत्रों में गर्जन तथा गर्जनक कहा गया है और इनके सुल्तान को गर्जनेश तथा गर्जनकाधिराज। महमूद ग़ज़नवी द्वारा साम्राज्य विस्तार सबुक तिगिन का पुत्र, महमूद ग़ज़नी ने ग़ज़नवी साम्राज्य की सीमाओं को बहुत बढ़ाया और अपने राजक्षेत्र को उत्तर में आमू दरिया से लेकर पूर्व में सिन्धु नदी तक और दक्षिण में अरब सागर तक विस्तृत कर दिया। तुर्क नस्ल के होने के बावजूद ग़ज़नवी वंश सामानी साम्राज्य की ईरानी-फ़ारसी सभ्यता से प्रभावित था। वह सैनिक अभियानों में तुर्की भाषाएँ प्रयोग करता था लेकिन राजदरबार और संस्कृति में फ़ारसी इस्तेमाल करता था। साम्राज्य का पतन मसूद प्रथम (१०३१-१०४१) के शासनकाल में ग़ज़नवी अपना पश्चिमी क्षेत्र सन् १०४० में लड़े गए दंदानाक़ान​ के युद्ध में सलजूक़ साम्राज्य को खो बैठे। इसके बाद उनका साम्राज्य सिकुड़ कर आधुनिक अफ़ग़ानिस्तान, बलोचिस्तान और पंजाब तक सीमित रह गया। ११५१ में सुलतान बहराम शाह के राजकाल में ग़ज़नवी साम्राज्य स्वयं ग़ज़नी को भी ग़ोर के अलाउद्दीन हुसैन को हार गया। इन्हें भी देखें महमूद ग़ज़नवी सामानी साम्राज्य सन्दर्भ ग़ज़नवी साम्राज्य भारत का इतिहास मध्य एशिया का इतिहास अफ़ग़ानिस्तान का इतिहास
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एर्डवार्क(खोज इंजन)
एर्डवार्क (Aardvark) एक सामाजिक खोज सेवा है जो उपयोगकर्ताओं को सीधे ही ऐसे दोस्तों और दोस्तों के दोस्तों के साथ जोड़ती है जो उनके सवालों के जवाब देने में सक्षम हों. उपयोगकर्ता एर्डवार्क वेबसाइट, ईमेल या त्वरित संदेशवाहक के जरिए प्रश्न प्रस्तुत करते हैं और एर्डवार्क पहचान करके प्रार्थी के विस्तृत सामाजिक नेटवर्क में विषय के विशेषज्ञों के साथ सीधी बात या ईमेल बातचीत को सुकर बनाता है। उपयोगकर्ता एर्डवार्क वेबसाइट पर प्रश्न-उत्तर के इतिहास और अन्य सेटिंग्स की समीक्षा भी कर सकते हैं। 11 फ़रवरी 2010 को $50 मिलियन के एवज में गूगल ने एर्डवार्क का अधिग्रहण कर लिया। इतिहास एर्डवार्क का विकास मूलतः 2007 में मैक्स वेन्टिला, डेमन होरोविट्ज़, रॉब स्पिरो और नाथन स्टॉल द्वारा फ्रांसिस्को में संस्थापित एक शुरुआती कंपनी द मकैनिकल द्वारा किया गया। एर्डवार्क का एक प्रतिमान संस्करण 2008 के प्रारंभ में शुरू किया गया था और अक्टूबर 2008 तक उसका अल्फा संस्करण भी जारी किया गया। एर्डवार्क मार्च 2009 में जनता के लिए जारी किया गया था हालांकि शुरू में मौजूदा उपयोगकर्ताओं को नए उपयोगकर्ताओं को आमंत्रित करना पड़ता था। कंपनी ने उपयोग के आँकड़े जारी नहीं किए हैं। उपयोग एर्डवार्क का इस्तेमाल व्यक्तिपरक सवाल जिसके लिए इंसानी विवेक या सिफारिश वांछित है, पूछने के लिए किया जा सकता है। तकनीकी समर्थन संबंधी प्रश्नों के लिए भी बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। अन्योन्यक्रिया मॉडल जब कोई उपयोगकर्ता एर्डवार्क में शामिल होता है तो एर्डवार्क उपयोगकर्ता के तुरंत संदेश वाले मित्रों की सूची में जुड़ जाता है। उपयोगकर्ता ईमेल या आईएम द्वारा सवाल भेजते हैं। एर्डवार्क प्रश्न के प्राप्त होने की पुष्टि करके और अपेक्षित कार्रवाई बताने वाले संदेश प्रदान करके उपयोगकर्ता का प्रश्न प्रक्रिया में मार्गदर्शन करता है। आईएम उपयोगकर्ता भी विविध "आईएम आदेशों" का प्रयोग कर पाते हैं--एक शब्द संदेश जिनका प्रयोग सवाल के मानदंड को सुधारने, नए उपयोगकर्ताओं को आमंत्रित करने या मदद प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है। एर्डवार्क में एक सवाल का जवाब देने के लिए दो मुख्य अन्योन्यक्रिया प्रवाह उपलब्ध हैं। प्राथमिक प्रवाह में एर्डवार्क उपयोगकर्ता को (आईएम, ईमेल, आदि पर) यह पूछने के लिए संदेश भेजता है कि क्या उपयोगकर्ता सवाल का जवाब देना चाहता है। समय समय पर, जब एर्डवार्क को यकीन होता है कि किसी अन्य उपयोगकर्ता के सवाल का जवाब देने के लिए वे उपयुक्त हैं तो वह ईमेल या आईएम के माध्यम से उपयोगकर्ताओं से संपर्क करता है। एर्डवार्क किसी के मित्रों और उनके भी मित्रों के माध्यम से खोजता है। हर किसी सुलभ मित्र को सवाल भेजने के बजाए यह व्यक्ति के विवरण को देखेगा कि सवाल से संबंधित जानकारी उन्हें है या नहीं। एर्डवार्क उपयोगकर्ता को सवाल भेजता है और अगर उपयोगकर्ता सकारात्मक जवाब दे दे तो एर्डवार्क प्रश्नकर्ता के नाम के साथ सवाल प्रसारित कर देता है। तब उपयोगकर्ता को बस सवाल का जवाब, जिसे संभवतः जवाब पता हो उसे भेजने के लिए किसी दोस्त का नाम या ईमेल पता टाइप करना होता है या अनुरोध को आगे भेजने के लिए बस "पास" टाइप करना होता है। एर्डवार्क उल्लिखित उपयोगकर्ता को जवाब के लिए दिन में एक से भी कम बार अनुरोध भेजता है (और उपयोगकर्ता आसानी से अपनी संपर्क सेटिंग्स बदल सकते हैं, अपनी पसंदीदा आवृत्ति और इस तरह के अनुरोधों के लिए दिन का समय निर्दिष्ट कर सकते हैं). एर्डवार्क वर्तमान में गूगल टॉक, विंडोज़ लाइव मैसेंजर, एओएल इन्स्टैंट मैसेन्जर और याहू मैसेंजर के अनुकूल है। प्रश्नों का उत्तर देने का एक गौण प्रवाह परंपरागत बुलेटिन बोर्ड शैली अन्योन्यक्रिया के समान है: एक उपयोगकर्ता एर्डवार्क को एक संदेश भेजता है या एर्डवार्क वेबसाइट पर "उत्तर" टैब पर जाता है, एर्डवार्क उपयोगकर्ता को उपयोगकर्ता के नेटवर्क से हाल ही का एक सवाल दिखाता है जिसका अभी तक उत्तर नहीं दिया गया हो और जो उपयोगकर्ता के प्रोफाइल विषयों से संबंधित होता है। इस विधा में जब उपयोगकर्ता प्रश्न का जवाब देने की कोशिश करने के मूड में होता है तो वह आदान-प्रदान की शुरुआत करता है; इस तरह यह उन उपयोगकर्ताओं से संपर्क करता है जो उत्सुक जवाबकर्ता के रूप में कार्य करते हैं। सभी इंटरफेस में विश्वास पैदा करने के लिए अन्य उपयोगकर्ता के संदेशों के साथ उपयोगकर्ता की जानकारी शामिल रहती है: उपयोगकर्ता का वास्तविक नाम, आयु, लिंग, दो उपयोगकर्ताओं के बीच सामाजिक संबंध, ऐसे विषयों का खंड जिसमें उपयोगकर्ता को विशेषज्ञता हासिल है और एर्डवार्क पर उपयोगकर्ता की गतिविधि के सारांश आँकड़े. वित्तपोषण निजी तौर पर धारित द मकैनिकल ज़ू ने निधीयन में कुल $6 मिलियन इक्टठा किए जिनमें अधिकांश ऑगस्ट कैपिटल (डेविड हॉरनिक) और बेसलाइन वेंचर्स के नेतृत्व में सीरीज़ ए वित्तपोषण दौर से प्राप्त हुए. सन्दर्भ गूगल के अधिग्रहण सामाजिक खोज ज्ञान बाजार सहयोग सामुदायिक वेबसाइटें संयुक्त राज्य अमेरिका की निजी कंपनियां
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नगर पालिक निगम रीवा
रीवा नगर निगम मध्य प्रदेश राज्य में रीवा शहर के नागरिक बुनियादी ढांचे और प्रशासन के लिए जिम्मेदार है। संगठन को "नगर पालिक निगम रीवा" के रूप में जाना जाता है। इसकी स्थापना 1950 में हुई थी। नगर निगम का नेतृत्व रीवा के मेयर करते हैं। नगर निगम की शासी संरचना में राजनीतिक और प्रशासनिक विंग होते हैं। राजनीतिक विंग एक महापौर की अध्यक्षता में पार्षदों का एक निर्वाचित निकाय है। आईएएस कैडर से नगर आयुक्त प्रशासनिक विंग का प्रमुख होता है और निगम की रणनीतिक और परिचालन योजना और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होता है। आयुक्त निगम के कर्तव्यों का पालन करने के लिए निर्वाचित पार्षदों से गठित बोर्ड या स्थायी समिति की ओर से निर्णय लेता है। नगर निगम रीवा का गठन वर्ष 1950 में नगर निगम के रूप में हुआ था, जनवरी 1981 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा नगर पालिक निगम का दर्जा दिया गया था। वर्तमान में रीवा में शहर में कुल 45 वार्ड हैं, जिसमें 6 वार्ड अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं, जिसमें वार्ड संख्या 1 और 43 अनुसूचित जनजाति और वार्ड संख्या 28, 38, 39, 40 आरक्षित हैं. अनुसूचित जाति के लिए। सेवाएं नगर निगम रीवा शहर को बुनियादी ढांचे के प्रशासन और प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है। सिटी बस सेवा - RCTSL जल शोधन और आपूर्ति सीवेज उपचार और निपटान कचरा निपटान और सड़क की सफाई ठोस अपशिष्ट प्रबंधन आपदा प्रबंधन सड़कों, सड़कों और फ्लाईओवर का निर्माण और रखरखाव। सड़क प्रकाश पार्कों, उद्यानों और खुले भूखंडों का रखरखाव (रिक्त स्थान) कब्रिस्तान और श्मशान जन्म और मृत्यु का पंजीकरण विरासत स्थलों का संरक्षण रोग नियंत्रण, टीकाकरण सहित (सार्वजनिक) नगरपालिका प्रबंधित स्कूलों का रखरखाव। महापौरों की सूची स्वागत समारोह पुरस्कार और मान्यता 13 जनवरी 2017 को, नगर निगम ने कूड़ेदान के उपयोग के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए स्वच्छता सर्वेक्षण 2017 के तहत "कूड़ेदान का सबसे बड़ा मानव चित्रण" बनाकर विश्व रिकॉर्ड बनाया। इस कार्यक्रम में विभिन्न विद्यालयों के लगभग 6574 विद्यार्थियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का उद्घाटन मध्यप्रदेश सरकार के वाणिज्य, उद्योग एवं रोजगार मंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ल ने मेयर श्रीमती के साथ किया। ममता गुप्ता, आयुक्त नगर निगम रीवा। श्री कर्मवीर शर्मा (आईएएस)। भारत सरकार के शहरी प्रशासन मंत्रालय के सर्वेक्षण 2017 में रीवा शहर ने देश में 38वां स्थान बनाया है, जबकि स्वच्छता की दिशा में प्रगति में यह तीसरे स्थान पर है। जिसके चलते केंद्रीय शहरी प्रशासन मंत्री वकैया नायडू ने गुरुवार को एक कार्यक्रम के दौरान रीवा को स्वच्छता पुरस्कार दिया है. संदर्भ बाहरी संबंध आधिकारिक वेबसाइट
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एस्पेरान्तो का प्राग इश्तिहार
एस्पेरान्तो की प्रगति चाहने वाले हम लोग यह इश्तिहार सब सरकारों अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं और सज्जनों के नाम दे रहे हैं; यहाँ दिये गए उद्देश्यों की ओर दृढ़ निश्चय से काम करने की घोषणा कर रहे हैं; और सब संस्थाओं और लोगों को हमारे प्रयास में जुटने का निमन्त्रण दे रहे हैं। एस्पेरान्तो जिसका आगाज़ १८८७ में अन्तर्राष्ट्रीय संप्रेषण के लिये एक सहायक भाषा के रूप में हुआ था और जो जल्दी ही अपने आप में एक जीती जागती ज़बान बन गई -- पिछले एक शताब्दी से लोगों को भाषा और संस्कृति की दीवारों को पार कराने का काम कर रही है। जिन उद्देश्यों से एस्पेरान्तो बोलने वाले प्रेरित होते आए हैं, वो उद्देश्य आज भी उतने ही महत्वपूर्ण और सार्थक हैं। ना दुनिया भर में कुछ ही राष्ट्रीय भाषाओं के इस्तेमाल होने से, ना संप्रेषण तकनीकों में प्रगति से, ना ही भाषा सिखाने के नए तौर-तरीक़ों से, यह निम्नलिखित मूल यथार्त हो पायेंगे जिन्हें हम सच्ची और साधक भाषा प्रणाली के लिए अनिवार्य मानते हैं। लोकतंत्र ऐसी संचार-प्रणाली जो किसी एक को ख़ास फ़ायदा प्रदान करते हुए औरों से यह चाहे कि वे सालों भर का प्रयास करें और वो भी एक मामूली योग्यता प्राप्त करने के लिए, ऐसी प्रणाली बुनियादी तौर पर अलौकतांत्रिक है। यद्यपि एस्पेरान्तो और ज़बानों की तरह ही, दोष-हीन नहीं है, पर विश्वव्यापक समान संप्रेषण के लिए, एस्पेरान्तो बाकी भाषाओं से कहीं बेहतर है। हम मानते हैं कि भाषा असमता संप्रेषण असमता को हर स्तर पर पैदा करती है, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी। हमारा आन्दोलन लोकतांत्रिक संप्रेषण का आन्दोलन है। विश्वव्यापी विद्या हर जातीय भाषा किसी ना किसी संस्कृति और देश से मिली जुड़ी हुई है। मिसाल के तौर पे, अंग्रेज़ी सीखता छात्र दुनिया के अंग्रेज़ी बोलने वाले देशों के बारे में सीखता है -- ख़ास कर, अमेरिका और इंग्लैंड के बारे में। एस्पेरान्तो सीखने वाला छात्र एक ऐसी दुनिया के बारे में सीखता है जिसमे सीमाएँ नहीं हैं, जहाँ हर देश घर है। हमारा मत है कि हर भाषा में दी गयी विद्या किसी ना किसी दृष्टिकोण से जुड़ी हुई है। हमारा आन्दोलन विश्वव्यापी विद्या का आन्दोलन है। प्रभावशील विद्या विदेशी भाषा सीखने वालों में कुछ प्रतिशत ही विदेशी भाषा में धाराप्रवाह हासिल कर पाते हैं। एस्पेरान्तो में धाराप्रवाह घर बैठ कर पढ़ाई से भी मुमकिन है। कई शोध-पत्रों में साबित किया गया है कि एस्पेरान्तो सीखने से अन्य भाषाओं का सीखना आसान हो जाता है। यह भी अनुशंसित किया गया है कि भाषा-चेतना के पाठ्यक्रमों की बुनियाद में ही एस्पेरान्तो सम्मिलित होना चाहिए। हमारा मत है कि जिन विद्यार्थियों को दूसरी भाषा सीखने से फ़ायदा हो सकता है, उन विद्यार्थियों केलिए विदेशी भाषाएँ सीखने की कठिनाइयाँ हमेशा एक दीवार बन कर खड़ी रहेंगी। हमारा आन्दोलन प्रभावशील भाषाग्रहण का आन्दोलन है। बहुभाष्यता एस्पेरान्तो समुदाय उन चुने-गिने विश्वव्यापी समुदायों में से है जिनका हर सदस्य दुभाषी या बहुभाषी है। इस समुदाय के हर सदस्य ने कम से कम एक विदेशी भाषा को बोलचाल-स्तर तक सीखने का प्रयास किया है। कई बार इस कारण अनेक भाषाओं का ग्यान और अनेक भाषाओं के प्रति प्रेम पैदा हुआ है -- निजि मानसिक-क्षितिजों में बढ़ौत्री हुई है। हम मानते हैं कि हर इनसान को, चाहे वो छोटी ज़बान बोलने वाला हो, या बड़ी, एक दूसरी ज़बान उच्च-स्तर तक सीखने का मौका मिलना चाहिए। हमारा आन्दोलन वह मौका हर एक को देता है। भाषा-अधिकार भाषाओं की ताकतों का असमान वितरण, दुनिया में ज़्यादातर लोगों में भाषा असुरक्षा पैदा करती है, या फिर यह असमानता खुले आम भाषा अत्याचार का रूप लेती है। एस्पेरान्तो समुदाय का हर सदस्य, चाहे वो ताकतवर ज़बान का बोलने वाला हो, या बलहीन, एक समान स्तर पर हर दूसरे सदस्य से मिलता है, समझौता करने के लिए तय्यार। भाषा अधिकारों और ज़िम्मेवारियों का यह समतुलन, अन्य भाषा असमानताओं और संघर्षणों की कसौटी है। भाषा जो भी हो, बरताव एक ही होगा -- हम मानते हैं कि कई अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों में व्यक्त किया गया यह सिद्धांत, भाषाओं की ताकत में असमानताओं के कारण नसार्थक बन रहा है। हमारा आन्दोलन भाषा-अधिकारों का आन्दोलन है। भाषा विभिन्नता सरकारें दुनिया की विशाल भाषा विभिन्नता को संप्रेषण और तरक्की के रास्ते में एक दीवार मानती हैं। मगर एस्पेरान्तो समुदाय भाषा विभिन्नता को एक अत्यावष्यक और निरन्तर धन के रूप में देखती है। इस कारण, हर भाषा, हर प्रकार के जीव-जन्तु की तरह, सहायता और सुरक्षा के लायक है। हमारा मत है कि संप्रेषण और विकास की नीतियाँ जो सब ज़बानों के सम्मान और सहायता पर आधारित नहीं है, वह नीतियाँ दुनिया के अधिकतर भाषाओं के लिए सज़ा-ए-मौत साबित होंगी। हमारा आन्दोलन भाषा विभिन्नता का आन्दोलन है। मानव बन्धनमुक्ति हम मानते हैं कि केवल जातीय भाषाओं पर आधारित रहना अभिव्यक्ति, संप्रेषण और संघठन की स्वतंत्रता में अवश्य ही बाधाएँ पैदा करती है। हमारा आन्दोलन मानव बन्धनमुक्ति का आन्दोलन है। प्राग, जुलाई १९९६ विकिपीडिया में एस्पेरान्तो: अकसर पूछे जाने वाले कुछ सवाल बाहरी कड़ियाँ विश्व एस्पेरान्तो संस्था | Universala Esperanto-Asocio बहुभाष्यपोर्टल | multlingva informcentro भारतीय एस्पेरान्तो संघ | Federacio Esperanto de Barato निर्मित भाषाएँ अन्तर्राष्ट्रीय सहायक भाषाएँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%96%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%A8
ख़ाचीतरख़ान
ख़ाचीतरख़ान (तातार: Хаҗитархан, अंग्रेज़ी: Xacitarxan) या हाजी तरख़ान (Haji Tarkhan) दक्षिण-पूर्वी यूरोप में वोल्गा नदी के किनारे बसा एक मध्यकालीन शहर था जो आधुनिक आस्त्राख़ान शहर से १२ किमी उत्तर में स्थित था। इस नगर का ज़िक्र ऐतिहासिक वर्णनों में सबसे पहले सन् १३३३ ईस्वी में मिलता है और १३वीं और १४वीं शताब्दियों में यह सुनहरे उर्दू ख़ानत का एक अहम व्यापारिक और राजनैतिक केंद्र था। १३९५ में तैमूर में इसे जलाकर नष्ट कर दिया लेकिन इसका पुनर्निर्माण हुआ और १४५९ में यह आस्त्राख़ान ख़ानत की राजधानी बना। १५४७ में इसपर क्राइमियाई ख़ानत के साहिब गिरेय (Sahib Giray) नामक ख़ान का क़ब्ज़ा हो गया। १५५६ में इसे रूस के त्सार इवान भयानक (Ivan the Terrible) ने हमला करके जला डाला। अब इस से कुछ दूर पर आधुनिक रूस का आस्त्राख़ान शहर है। नाम का उच्चारण 'ख़ाचीतरख़ान' में 'ख़' अक्षर के उच्चारण पर ध्यान दें क्योंकि यह बिना बिन्दु वाले 'ख' से ज़रा भिन्न है। इसका उच्चारण 'ख़राब' और 'ख़रीद' के 'ख़' से मिलता है। तातार भाषा और रूसी भाषा में कभी-कभी इसे 'ख़ाझ़ीतरख़ान' भी उच्चारित किया जाता है। इसमें बिंदु वाले 'झ़' के उच्चारण पर भी ध्यान दें, क्योंकि यह 'झ', 'ज' और 'ज़' से अलग है और अंग्रेज़ी के 'टेलिविझ़न' (television) और 'मेझ़र' (measure) शब्दों में आने वाली 'झ़' की ध्वनि है। इन्हें भी देखें आस्त्राख़ान तातार लोग वोल्गा नदी सन्दर्भ रूस का इतिहास आस्त्राख़ान ओब्लास्त प्राचीन शहर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%A8
टंडन
टंडन खत्री गोत्र/उपजाति है। इसका प्रयोग उपनाम के रूप में होता है। इस उपनाम वाले उल्लेखनीय लोगों की सूची जिनका इस जाति से सम्बद्ध हो भी सकता और नहीं भी, निम्नलिखित है:- बलराम दास टंडन, भारतीय राजनीतिज्ञ रवीना टंडन, हिन्दी फ़िल्मों की अभिनेत्री राखी टंडन, भारतीय अभिनेत्री नीरा टंडन, अमेरिकी राजनीतिज्ञ आशुतोष टंडन, भारतीय जनता पार्टी के नेता पुरुषोत्तम दास टंडन, भारत के स्वतन्त्रता सेनानी बदरीनाथ टंडन, चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित सौम्या टंडन, भारतीय फिल्म और टेलीविजन अभिनेत्री गुलशन लाल टंडन, प्रशासकीय सेवा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित लालजी टंडन, भारतीय जनता पार्टी के राजनेता प्रकाश नारायण टंडन, चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित गीता टंडन, खतरों के खिलाडी सीजन 5 में प्रतिभागी आयुष टंडन, भारतीय फिल्म अभिनेता लवीना टंडन, भारतीय अभिनेत्री है अमित टंडन, अमित टंडन भारतीय संगीतकार और टेलीविजन अभिनेता कुशाल टंडन, भारतीय अभिनेता सन्दर्भ भारतीय परिवार के नाम
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पाँच (२००३ फ़िल्म)
पांच 2003 की एक भारतीय क्राइम थ्रिलर फिल्म है, जिसे अनुराग कश्यप ने अपने निर्देशन में लिखा और निर्देशित किया है, जिसमें के के मेनन, आदित्य श्रीवास्तव, विजय मौर्य, जॉय फर्नांडीस और तेजस्विनी कोल्हापुरे ने अभिनय किया है। यह फिल्म 1976-77 में पुणे में जोशी-अभयंकर सीरियल मर्डर पर आधारित है। पंच एक रॉक बैंड के पांच सदस्यों की कहानी है। इनमें एक महिला और चार पुरुष हैं। वे ड्रग्स, सेक्स, धूम्रपान आदि के कारण खराब हैं। बैंड का नेता इतना पागल और नशे में है कि वह जो चाहता है उसे पाने के लिए जाता है, तीन-तरफ़ा। धीरे-धीरे बैंड के सदस्य डकैतियों और हत्याओं में शामिल हो जाते हैं और पुलिस द्वारा उनका पीछा किया जाता है। फिल्म का शेष भाग उनके परिणामों से संबंधित है। कहानी का सार चार दोस्त, ल्यूक मॉरिसन, मुर्गा, जॉय और पोंडी, शिउली नाम की पांचवीं महिला सदस्य के साथ एक बैंड में एक साथ खेलते हैं। वे आत्म-विनाशकारी युवा हैं। ल्यूक, पैक के प्रमुख गायक और स्व-लगाए गए नेता अपने बर्बाद और टूटे हुए दोस्तों के लिए आवास, ड्रग्स और भोजन प्रदान करके समूह में अपना प्रभुत्व सुनिश्चित करते हैं। पांडी शिउली पर मोहित हो जाता है जो पैसों के लिए अमीर लोगों के साथ सोती है। फिल्म एक अपहरण की साजिश के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसमें चार पुरुष बैंड के सदस्य एक और दोस्त निखिल का अपहरण करने की योजना बनाते हैं। निखिल साजिश का हिस्सा है, और अपने अमीर लेकिन कंजूस पिता से पैसे निकालने के लिए खुद का अपहरण करने के लिए सहमत हो जाता है। इस प्रक्रिया में, ड्रग्स की अधिकता और अनियंत्रित क्रोध ल्यूक द्वारा निखिल की हत्या की ओर ले जाता है। ल्यूक अन्य सभी को ब्लैकमेल करता है और यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी पुलिस को न छोड़े और न ही उनसे बात करे। इसी बीच शिउली भी साजिश में फंस जाती है। पैसे के भूखे नौजवान फिर निखिल के पिता और हत्या की जांच कर रहे एक पुलिस वाले की हत्या कर देते हैं। साजिश विश्वासघात और प्रति-विश्वासघात के एक सेट के साथ एक दिलचस्प अंत की ओर ले जाती है। पात्र ल्यूक मॉरिसन के रूप में के के मेनन मुर्गी के रूप में आदित्य श्रीवास्तव पोंडी के रूप में विजय मौर्य जॉय फर्नांडीस जॉय के रूप में तेजस्विनी कोल्हापुरे शिउली के रूप में इंस्पेक्टर देशपांडे के रूप में शरत सक्सेना पंकज सारस्वत निखिल रंजन के रूप में अनीश रंजन के रूप में विजय राज पुलिस सलाम के रूप में अभिनव कश्यप प्रदर्शन फिल्म को कभी भी थियेटर या होम-वीडियो रिलीज़ नहीं मिली। केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ( भारतीय सेंसर बोर्ड) ने फिल्म की हिंसा, नशीली दवाओं के दुरुपयोग और खराब भाषा पर आपत्ति जताई। कुछ कट्स के बाद, फिल्म को 2001 में मंजूरी दे दी गई थी। हालाँकि, इसे रिलीज़ नहीं किया जा सका क्योंकि निर्माता को समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसे बाद में टोरेंट वेबसाइटों के माध्यम से उपलब्ध कराया गया था। इसके बाद इस फिल्म को कई फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाया गया। इन्हें भी देखें जोशी-अभ्यंकर सीरियल हत्याकांड मराठी फ़िल्म : माफिचा साक्षीदार (१९८६ फ़िल्म) बाहरी कड़ियाँ सन्दर्भ सत्य घटना पर आधारित फिल्में हिन्दी फ़िल्में वर्णक्रमानुसार 2003 की फ़िल्में 2003 में बनी हिन्दी फ़िल्म
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AC%20%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C
गुलाब महाराज
महाराष्ट्र के खानदेश (धूलिया नंदुरबार जलगांव )जिले में संत श्री गुला महाराज या गुलाब भगवान नाम के एक बड़े संत जन्मे उनका जन्म वर्तमान कालीन नंदुरबार जिले के तलोदा के पास मारवाड़ रंजन पुर गांव के एक भील सरदार परिवार में हुआ ।उनके पिता श्री का नाम भादरिया और मां का नाम मीना बाई था ।बाल्यकाल से ही वे नित्य स्नान उपरांत दर्शन करते थे और तुलसी को पानी देते थे ।उन्होंने सूर्योपासना कि। सूर्य दर्शन किए बगैर अन्न - जल को ग्रहण नहीं करते थे तथा वर्षा ऋतु में लगातार दो से 3 दिन का निर्जल उपवास भी हो जाता था । गुलाब महाराज ने लकड़ी के तख्ते पर कुछ वाक्य उन्होंने लिखे थे इसे संत लीला कर सकते हैं । उस लिखी बात को वे अपने अंतःकरण में रहने वाले विचार देवता का प्रतीक मानते थे उनको अमोक वाणी का वरदान प्राप्त था । जन भाषा में इस तत्व चिंतन को उन्होंने आप देव इस नाम से कहा उनका तात्पर्य था जनता ही जनार्दन जनता जनार्दन जनता उसी भगवान की संताने ऐसा भाव इस शब्द में वे से प्रकट होता है । हम सभी आपके यानी जनता जनार्दन के गुलाम हैं व्यस्त होता को गुलाम भगवान कहलाते थे । वे समाज पुरुष के उत्थान के लिए भी कटिबंध हुए थे वैवाहिक संबंधों में पावित्र रखने का उनका आग्रह था , व्यसनमुक्ती पर जोर था यही सीख दी थी उन्होंने हम उसी एक भगवान के संतान हैं , अतः बंधुभाव क्षमता, क्षमता का भाव का उद्घोष हुआ अपने उपदेश से उन्होंने आपसी भेदों को जमीन में गाड़ दिया, परस्पर समानता सामंजस्य और सम्मान युक्त व्यवहार को निर्मित किया सामाजिक वातावरण उन्होंने अच्छा बनाया एक दूसरे से मिलते समय प्राय: आप की जय बोलते थे। जागरण के साथ ही अंग्रेजों के विरोध में असहकर आंदोलन का सूत्रपात किया । गुलाम महाराज ने अंग्रेजों कोकर ना देने के लिए आम जनता से आह्वान किया, उस समय भारत में उन्होंने महत्वपूर्ण बदलाव किए आम लोगों को जागरूक किया और अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया । स्रोत
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A3%20%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2%20%E0%A4%85%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%AE%E0%A5%80
श्रावण शुक्ल अष्टमी
श्रावण शुक्ल अष्टमी भारतीय पंचांग के अनुसार पांचवे माह की आठवी तिथि है, वर्षान्त में अभी २३२ तिथियाँ अवशिष्ट हैं। पर्व एवं उत्सव श्रावण शुक्ल अष्टमी को श्रावण दुर्गाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन हिमाचल प्रदेश के कई शक्ति-पीठों में मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेले मुख्यतः माँ ज्वाला जी, माता चिन्तपूर्णी, माँ नयना देवी व माँ चामुण्डा देवी के भवनों में आयोजित किये जाते हैं। वैसे तो श्रावण अष्टमी मेले का आयोजन प्रतिपदा से आरम्भ होकर नवमी तक चलता है, पर अष्टमी के दिवस पर विशेष पूजा अर्चना और दर्शन किये जाते हैं। प्रमुख घटनाएँ जन्म निधन इन्हें भी देखें हिन्दू काल गणना तिथियाँ हिन्दू पंचांग विक्रम संवत बाह्य कड़ीयाँ हिन्दू पंचांग १००० वर्षों के लिए (सन १५८३ से २५८२ तक) आनलाइन पंचाग विश्व के सभी नगरों के लिये मायपंचांग डोट कोम विष्णु पुराण भाग एक, अध्याय तॄतीय का काल-गणना अनुभाग सॄष्टिकर्ता ब्रह्मा का एक ब्रह्माण्डीय दिवस महायुग सन्दर्भ अष्टमी श्रावण
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अंगामी लोग
अंगामी (Angami) भारत के नागालैण्ड राज्य में बसने वाला एक समुदाय है। यह नागा समुदाय की एक शाखा है। अंगामी पारम्परिक रूप से अंगामी भाषा मातृभाषा के लिए प्रयोग करते हैं। वे नागालैण्ड के कोहिमा ज़िले और दीमापुर ज़िले में तथा पड़ोसी मणिपुर राज्य में निवास करते हैं, हालांकि आधुनिक काल में पूरे भारत के प्रमुख नगरों में भी इनका निवास है। इन्हें भी देखें अंगामी भाषा कोहिमा ज़िला दीमापुर ज़िला नागा सन्दर्भ भारत की मानव जातियाँ नागा लोग कोहिमा ज़िला दीमापुर ज़िला
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%AA%E0%A4%A4
पानीपत
पानीपत (अँग्रेज़ी: Panipat) भारत के हरियाणा राज्य के पानीपत ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। कोरवो और पांडुवो में मध्य महाभारत का युद्ध पानीपत के लिए हुआ था , पांडुवों ने चार अन्य गांवों के साथ पानीपत की मांग कौरवों से की थी पर कौरवों ने सुई की नोक के बराबर भी हिस्सा देने से मना कर दिया था l सन् 1526, 1556 और 1761 में तीन महत्वपूर्ण युद्ध लड़े गए थे। पानीपत की भाषा हरियाणवी हैं। पानीपत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का एक हिस्सा हैं। विवरण पानीपत एक प्राचीन और ऐतिहासिक शहर है। पानीपत का प्राचीन नाम 'पाण्डवप्रस्थ' था। यह दिल्ली-चंडीगढ राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-१ पर स्थित है। यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली के अन्तर्गत आता है और दिल्ली से ९० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पानीपत को पांडवों ने इंद्रप्रस्थ के साथ ही बसाया था, पानीपत का किला अर्जुन द्वारा बनवाया गया था (एच ए बरारी) तब पानीपत को पनप्रस्त या पांडवप्रस्त के नाम से जाना जाता था । पानीपत को दोबारा राजा दंडपाणी ने ईसा से 707 साल पहले फिर बसाया इसका नाम पानीपथ पड़ा (सर सैय्यद अहमद खान) । पांडवों का पानीपत में लिखा है कि पानीपत नगर पहले सिर्फ किले के अंदर बसा था । यह किला पांडवों द्वारा निर्मित था जो 1857 तक मौजूद था । जिसे 1857 की क्रांति के बाद ढाया गया जिसके अवशेष आज भी मौजूद है । किले पर एक तोप भी थी जिसे बाद में दिल्ली ले जाया गया । Asiatic society of india बंगाल के 1868 के रिसर्च पेपर में पानीपत हस्तीनापुर और अन्य कई महाभारतकालीन किलो की ईंटो की बनावट पर शोध करके लिखा है कि ईंटों के साइज माप और बनावट से यह किला भी महाभारत काल का बना हुआ है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार पानीपत के किले पर भगवान हरिहर का मंदिर था जिसे गुलाम वंश का शासन होने पर तोड़ा गया था, बाद में भगवान हरिहर की प्रतिमा देवी मंदिर के पास सरोवर से खुदाई में मिली । किले पर कई जैन मंदिर भी थे । जैन धर्म के संबंधित साहित्य के अनुसार उस समय पानीपत को पानीपथ दुर्ग भी कहा जाता था । पानीपत के लिए एक ही लड़ाई हुई जिसे महाभारत का युद्ध कहा जाता है । पानीपत के आखिरी हिंदू राजा जो तोमर (तंवर) वंश का था को परिवार सहित बलबन के समय धोखे से मार दिया गया । किले में काम करने वाले कुम्हारों ने जो परिवार सहित किले में थे राजा की गर्भवती पोत्रवधु को छिपा लिया इस कारण उसकी जान बच गई यह ज्वालापुर (हरिद्वार के पास) के राजा की बेटी थी जिसे कुछ समय बाद किसी तरह से कुम्हारों ने उसके मायके ज्वालापुर पहुंचा दिया । वहां उसने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम अमर सिंह था । जिसे किशोर अवस्था में पता चला कि वह तो पानीपत के राजा का पौत्र है तो वह पानीपत आया । जहां पर उसे उसकी अपनी जायदाद लौटने का लालच दिया या जान का हवाला, पानीपत के शेख सरफुद्दीन कलंदर ने अमर सिंह को कलमा पढ़वा कर धर्म परिवर्तन कर दिया और उसे नया नाम अमीरुल्ला खान दिया और बल्बन के नाम उसकी जमीन उसे देने का परवाना लिख दिया । पर बलबन तो पहले ही अमर सिंह के परिवार की जमीन पानीपत पर कब्जा करने में सहायता करने वाले तीन परिवारों के दे चुका था तो अमर सिंह के हाथ पूरा पानीपत न आकर सिर्फ चौथा भाग से भी कम ही आया । आज भी पानीपत में राजस्व विभाग के अनुसार जमीन की चार पट्टियाँ है । जो बलवन के समय से चली आ रही है । 1 अंसार पट्टी 2 अफगान पट्टी 3 पानीपत तरफ मखदूम ज़ादगान पट्टी 4 पानीपत तरफ राजपूतान पट्टी पानीपत में शेख शरफुद्दीन कलंदर जो पहले दिल्ली में काज़ी था बाद में पानीपत आया ने उस समय 300 राजपूतों को मुसलमान बनाया । The Memoirs of Sufis Written in India में लिखा है कि पानीपत में शेख शरफुद्दीन कलंदर जो पहले दिल्ली में काज़ी था बाद में पानीपत आया ने उस समय 300 राजपूतों को मुसलमान बनाया । 1526 में पानीपत में इब्राहिम लोधी के साथ विदेशी आक्रमणकारी बाबर के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए ग्वालियर का राजा विक्रमजित तोमर शहीद हो गया उसकी समाधी पानीपत में वर्तमान जीटी रोड पर आजकल सरकारी अस्पताल बना है के पास बनी हुई थी जिसे अंग्रेजो ने 1866 में खुर्दबुर्द कर दिया जीटी रोड बनाते समय उसका नामोनिशान मिटा दिया गया । यह क्षेत्र को गंज शहीदा कहलाता था । यही राजा विक्रमजीत कोहिनूर हीरे का मालिक था । राजा विक्रमजीत के पानीपत में शहीद होने के उपरांत हमायूं ने आगरा में राजा जी की विधवा रानी से कोहिनूर हीरा छीन लिया । गुरु नानक देव जी भी पहली उदासी में दिल्ली बनारस जाते हुए पानीपत आए थे और नगर के बाहर एक कुएं पर रुके थे । इस स्थान पर आज एक गुरुद्वारा साहब बना हुआ है । आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद जी भी लुधियाना से दिल्ली जाते हुए कुछ समय के लिए पानीपत में ठहरे थे । वे डाक गाड़ी ( जिसमे घोड़े जुते होते थे ) से पानीपत आए । डाक गाड़ी पानीपत के पालिका बाजार के पास लाल बत्ती की तरफ स्थान पर रुकती थी । जहाँ वर्तमान में एक छोटा डाक खाना बना हुआ है । डाक गाड़ी रुकने पर स्वामी दयानंद ने पानीपत नगर के कुछ लोगो से वार्तालाप किया और अपने कार्य को बताया । 1761 में जब मराठे पानीपत आए तो उन्होंने भगवान शंकर जी के मन्दिर में अपनी कुल देवी की स्थापना कर पूजा अर्चना की, यही शंकर जी का मंदिर आज देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है । बाद में 1765 के आसपास मराठों ने यहां पर बड़ी पहाड़ मोहल्ले में रामचन्द्र जी का मंदिर भी बनवाया, जिसके नाम एक 51 एकड़ जमीन (लगान फ्री) भी की । पानीपत के मथुरादास ने शंकर जी के मन्दिर के पास एक सरोवर का निर्माण करवाया । 1803 में इस इलाके में अंग्रेजो ने काबिज होने के बाद पानीपत जो जिला मुख्यालय बनाया जिसका हेडक्वार्टर पांडव कालीन किला ही बना और किले पर ही कार्यालय बनाए गए । स्किनर हॉर्स के कर्नल जेम्स स्किनर की जमींदारी पानीपत में थी उसने अपने नाम से एक बसाया स्किनर पुर जिसे आज सिकंदरपुर गढ़ी ने नाम से जाना जाता है । बाद में कर्नल स्किनर के परिवार से इन गांव की जमींदारी पानीपत के एक धनवान परिवार ने खरीद ली । भारत के मध्य-युगीन इतिहास को एक नया मोड़ देने वाली तीन प्रमुख लड़ाईयां यहां लड़ी गयी थी। प्राचीन काल में पांडवों एवं कौरवों के बीच महाभारत का युद्ध इसी के पास कुरुक्षेत्र में हुआ था, अत: इसका धार्मिक महत्व भी बढ़ गया है। महाभारत युद्ध के समय में युधिष्ठिर ने दुर्योधन से जो पाँच स्थान माँगे थे उनमें से यह भी एक था। आधुनिक युग में यहाँ पर तीन इतिहासप्रसिद्ध युद्ध भी हुए हैं। प्रथम युद्ध में, सन्‌ 1526 में बाबर ने भारत की तत्कालीन शाही सेना को हराया था। द्वितीय युद्ध में, सन्‌ 1556 में अकबर ने उसी स्थल पर अफगान आदिलशाह के जनरल हेमू को परास्त किया था। तीसरे युद्ध में, सन्‌ 1761 में, अहमदशाह दुर्रानी ने मराठों को हराया था। यहाँ अलाउद्दीन द्वारा बनवाया एक मकबरा भी है। इसे बुनकरों की नगरी भी कहा जाता है। नगर में पीतल के बरतन, छुरी, काँटे, चाकू बनाने तथा कपास ओटने का काम होता है। यहाँ शिक्षा एवं अस्पताल का भी उत्तम प्रबंध है। स्वतंत्रता आंदोलन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में पानीपत की ऐतिहासिक भूमिका रही है। यहां के लोगो ने सबसे पहले अंग्रेजो को लगा देना बंद किया था। सबसे पहले गांव मांडी , नौल्था सहित आसपास के 16 गावों के नंबरदारो ने भूमि लगान इकठ्ठा करने से मना कर दिया और अंग्रेजो के कर्मचारियों के गावों में घुसने पर स्मपूर्ण रोक लगा दी और इक्कठे होकर सभी संग्राम में भाग लेने पहले रोहतक गए और उसके बाद अंग्रेजो से लड़ने दिल्ली वहां से 22 दिन बाद वापिस आए। शिक्षा श्री सोम सन्तोश एजुकेशनल सोसाइटी, पानीपत - गरीब बच्चो के लिये नि:शुल्क सिलाई केम्प की वय्व्स्था। एलीमेंट्री एंड टेक्निकल स्किल कौंसिल ऑफ़ इंडिया - गरीब बच्चो के लिये नि:शुल्क कंप्यूटर शिक्षा, नि:शुल्क ब्यूटी एंड वैलनेस एवं नि:शुल्क सिलाई केम्प की वय्व्स्था। गर्ग सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, पानीपत दीक्षा एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसाइटी, पानीपत गरीब बच्चो के लिये नि:शुल्क कंप्यूटर शिक्षा एवं नि:शुल्क सिलाई केम्प की वय्व्स्था। युवा एकता पानीपत संस्था जो शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में दिन प्रतिदिन सामाजिक कार्य कर रही हैं । सामान्य महाविद्यालय एस डी कालेज, पानीपत आई बी कालेज, पानीपत आर्य कालेज, पानीपत राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,मांडी पानीपत अभियांत्रिकी संस्थान पानीपत इंस्टीट्यूट आफ़ टेक्सटाईल एंड इंजिनयरिंग, समालखा एशिया पैसिफ़िक इंस्टीट्यूट आफ़ इन्फ़ार्मेशन टेक्नालजी, पानीपत एन सी कालेज आफ़ इंजिनयरिंग, इसराना स्कूल राजकीय आदर्श संस्कृति विद्यालय जी टी रोड एमएएसडी पब्लिक स्कूल बाल विकास विद्यालय, माडल टाऊन केन्द्रीय विद्यालय, एनएफ़एल - अब बंद डाक्टर एम के के आर्ये माडल स्कूल एस डी विद्या मंदिर, हूड्डा डी ए वी स्कूल, थर्मल सेंट मेरी स्कूल एस डी सीनीयर सेकेंडरी स्कूल आर्य सीनियर सेकेंडरी स्कूल आर्य बाल भारती पब्लिक स्कूल एस डी माडर्न सीनियर सेकेंडरी स्कूल एस डी बालिका विद्यालय राणा पब्लिक स्कूल (शिव नगर) प्रयाग इंटरनेशनल स्कूल देवी मंदिर पानीपत के धार्मिक स्थान देवी मंदिर पानीपत शहर, हरियाणा में स्थित है। देवी मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर पानीपत शहर का मुख्य मंदिर है तथा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। मराठो के आगमन  से पहले यह शंकर जी का मंदिर था|  सन  1700  के आसपास पानीपत के मथुरा दास नमक बनिए ने यहाँ पर एक पक्के सरोवर का निर्माण करवाया   जिसे आजकल देवी तालाब कहते है यह देवी मंदिर के  किनारे  पर बना है | 1761  में मराठो ने इस प्रांगण में अपनी कुल देवी की स्थापना की  थी यह मंदिर एक तालाब के किनारे स्थित है जोकि अब सुख गया है और इस सुखे हुए तालाब में एक उपवन का निर्माण किया गया है जहां बच्चे व बुर्जग सुबह-शाम टहलने आते है। इस पार्क में नवरात्रों के दौरान रामलीला का आयोजन भी किया जाता है जोकि लगभग 100 वर्षों से किया जाता रहा है। देवी के मंदिर में सभी देवी-देवताओं कि मूर्तियां है तथा मंदिर में एक यज्ञशाला भी है। मंदिर का पुनः निर्माण किया गया है जो कि बहुत ही सुन्दर तरीके से किया गया है, जो भारतीय वास्तुकला की एक सुन्दर छवि को दर्शाता है। इस मंदिर में भक्त दर्शन के लिए लगभग पुरे भारत से आते है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास लगभग 250 वर्ष पुराना है इस मंदिर का निर्माण 18वीं शाताब्दी में किया गया था। 18वीं शताब्दी के दौरान, मराठा इस क्षेत्र में सत्तारूढ़ थे, मराठा योद्धा सदाशिवराव भाऊ अपनी सेना के साथ युद्ध के लिए यहां आये थे। सदाशिवराव भाऊ अफगान से आया अहमदशाह अब्दाली जोकि आक्रमणकारी था, उसके खिलाफ युद्ध के लिए यहां लगभग दो महीने रूके थे। ऐसा माना जाता है कि सदाशिवराव को देवी की मूर्ति तालाब के किनारे मिली थी, तब सदाशिवराय ने यहां मंदिर बनाने का फैसला किया। ऐसा माना जाता है कि जब मंदिर का निर्माण किया जा रहा था तो देवी की मूर्ति को रात को एक स्थान से दूसरे स्थान पर रखा गया था परन्तु सुबह मूर्ति उसी स्थान मिली थी जहां से उसे पाया गया था, तब यह निर्णय लिया गया कि मंदिर उसी स्थान पर बनाया जाये जहां देवी की मूर्ति मिली है। देवी मंदिर में सभी त्यौहार मनाये जाते है विशेष कर दुर्गा पूजा व नवरात्र के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन मंदिर को फूलो व रोशनी से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है। पानीपत के ही गाँव सींक पाथरी मे एक और मंदिर है जिसको पाथरी वाली माता के नाम से जाना जाता है। गावं सींक में महाभारत कालीन यक्ष का प्राचीन मंदिर है इसी स्थान पर वही तालाब भी है जहाँ यक्ष ने युधिष्टर से सवाल किये थे महाभारत के समय गावं पाथरी के स्थान पर गुरु द्रोणाचार्य की पत्नी का निवास था गावं चुलकाना में प्राचीन श्याम जी का मंदिर है गावं मांडी पानीपत में प्राचीन गुगा वीर का मंदिर है इस स्थान पर नौवीं को मेला लगता है और इनामी दंगल का आयोजन होता है पानीपत में भगवन हरिहर का मंदिर होता था जिसकी प्रतिमा देवी तालाब की खुदाई से प्राप्त हुई थी पहली उदासी के समय  गुरु नानक देव जी भी पानीपत आये थे। वही आज पहली पातशाही गुरुद्वारा बना हुआ है। इन्हें भी देखें पानीपत ज़िला मांडी पानीपत Notable Persons अर्जुन, पांडु प्रस्त के संस्थापक किले का निर्माण किया दण्डपाणी, पांडु प्रस्त से पानीपत नामकरण किया 707 बी.सी. पहले रामचन्द्र लाल ,एक भारतीय गणितज्ञ, जन्म 1821,पानीपत भगवान दास केला , पत्रकार ,संपादक , राजा महेंद्र प्रताप के समाचार पत्र "प्रेम" के संपादक, जन्म 21अक्टूबर 1890 गांव बबैल, पानीपत चौधरी रामकिशन घनगस - जन्म 10 अक्तूबर 1944, गांव मांडी के प्रसिद्ध समाजसेवी स्वर्गीय चौधरी रामकिशन घनगस भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे है, वे जाट महासभा हरियाणा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष भी रहे थे । देशबन्धु गुप्ता, राजनीतिक स्वतंत्रता सेनानी, संपादक दैनिक तेज, सलीम पानीपती- मौलाना सलीम पानीपती का जन्म पानीपत में हुआ। सलीम पानीपत उर्दू के प्रोफेसर, संपादक,शायर और प्रसिद्ध गद्यकार थे। सलीम साहब जीवन के बारे में मुंशी प्रेमचंद ने अपनी "किताब कलम,तलवार और त्याग" में लिखा है। पंडित समर सिंह मलिक -आजादी के बाद विधायक बने गांव सींक के निवासी थे। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए काशी गए इस लिए जाट होकर पंडित कहलाए आर्य समाजी थे। बाहरी कड़िया पानीपत का आधिकारिक जाल स्थल -अंग्रेजी में सन्दर्भ हरियाणा के शहर पानीपत ज़िला पानीपत ज़िले के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A4%A8%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B0
सुदर्शन फ़ाकिर
सुदर्शन फ़ाकिर (1934 – 19 फ़रवरी 2008), जिनका वास्तविक नाम सुदर्शन कामरा था, एक भारतीय शायर और गीतकार थे। उनकी कई ग़ज़लें, ठुमरियाँ और नज़्में बेग़म अख़्तर और जगजीत सिंह द्वारा स्वरबद्ध की गयीं। आरंभिक जीवन सुदर्शन फ़ाकिर का जन्म 1934 में जालंधर में हुआ। हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी कर वे जालंधर चले गए और डी॰ए॰वी॰ कॉलेज से बी॰ए॰ की पढ़ाई पूरी की। कॉलेज के दौरान वे नाटकों और शायरी में बहुत सक्रिय रहे। 'ग़ालिब छुटी शराब' और ट्रिब्यून को दिए एक साक्षात्कार के अनुसार, फ़िरोज़पुर में एक असफल प्रेम संबंध की वजह से उन्होंने अपना जन्मस्थान हमेशा के लिए छोड़ दिया और जालंधर में ठिकाना बना लिया जहाँ वे शुरुआत में एक गंदले कमरे में एकाकी जीवन जिए। यह कमरा उनके कवि-शायर दोस्तों के मिलने की जगह भी था। ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान, वे मजनू के भेष में रहे, फ़कीर की तरह फिरते रहे (शायद यहीं उनके फ़ाकिर तख़ल्लुस की वजह रही) और शराब की लत में पड़ गए। इस दौरान की लिखी उनकी ग़ज़लें और नज़्में अधिकर उनके असफल प्रेम संबंध की व्यथा को ही प्रतिबिंबित करती हैं। सन्दर्भ भारतीय शायर 1934 में जन्मे लोग जालंधर के लोग २००८ में निधन
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बोहाई सागर
बोहाई सागर या बोहाई खाड़ी (चीनी भाषा: 渤海, अंग्रेज़ी: Bohai Sea) उत्तरी और उत्तरपूर्वी चीन से लगा हुआ एक सागर है जो पीले सागर की सबसे अंदरूनी खाड़ी है। पीले सागर के साथ-साथ बोहाई सागर भी प्रशांत महासागर का एक हिस्सा है। बोहाई सागर का कुल क्षेत्रफल क़रीब ७८,००० वर्ग किमी है। चीन की राजधानी बीजिंग के बहुत पास होने की वजह से यह समुद्री यातायात के नज़रिए से दुनिया के सब से व्यस्त समुद्री क्षेत्रों में से एक है। ऐतिहासिक नाम बीसवी सदी से पहले बोहाई सागर को अक्सर 'चिहली की खाड़ी' (直隸海灣, Gulf of Chihli) या 'पेचिहली की खाड़ी' (北直隸海灣, Gulf of Pechihli) कहा जाता था। सुरंग बनाने की योजना फ़रवरी २०११ में चीन की सरकार ने ऐलान किया की लियाओदोंग प्रायद्वीप और शानदोंग प्रायद्वीप को जोड़ने के लिए वे समुद्र के फ़र्श के नीचे से एक १०६ किलोमीटर लम्बी सुरंग निकालेंगे जो इतनी चौड़ी होगी की उसमें रेल और सड़क दोनों प्रकार के यातायात चलेंगे। इन्हें भी देखें पीला सागर प्रशांत महासागर शानदोंग प्रायद्वीप सन्दर्भ सागर प्रशान्त महासागर
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जिब्राल्टर सिटी हॉल
जिब्राल्टर सिटी हॉल (), या जिब्राल्टर नगर ग्रह, ब्रिटिश प्रवासी शासित प्रदेश जिब्राल्टर का पुराना नगर ग्रह (सिटी हॉल) है। शहर के केंद्र में स्थित सिटी हॉल जॉन मैकिन्टौश स्क्वयर के पश्चिमी सिरे पर है। इसका निर्माण पुर्तगाली यहूदी मूल के समृद्ध व्यापारी एरन कार्डोज़ो ने वर्ष 1819 में करवाया था जब वह अपने परिवार के साथ जिब्राल्टर में आके बस गया था। कुछ वर्षों तक इस इमारत में क्लब हाउस होटल था। 1874 एक स्पेनी मूल के व्यापारी और बैंकर पाब्लो एंटोनियो लॅरियोस की सम्पत्ति बनने के पश्चात इस इमारत की पुनः बहाली हुई तथा 1922 में लॅरियोस के पुत्र ने यह इमारत जिब्राल्टर औपनिवेशिक अधिकारियों को डाक घर बनाने के लिए बेच दी। परन्तु अंततः यह नगर परिषद की गद्दी बन गई। यह अब जिब्राल्टर के महापौर का आधिकारिक निवास स्थान है। इतिहास वर्ष 1819 में बनी सिटी हॉल की इमारत पहले एक निजी मॅनसन थी। उस समय इसका स्वामित्व एरन कार्डोज़ो के पास था जो कि पुर्तगाली यहूदी मूल का समृद्ध व्यापारी था तथा अपने परिवार के साथ जिब्राल्टर में आके बस गया था। यह जिब्राल्टर में बना या देखा गया सबसे विशाल निजी मॅनसन था। यह तीन माले की इमारत जॉन मैकिन्टौश स्क्वयर की सभी इमारतों में सबसे भव्य थी। कार्डोज़ो के अपने मॅनसन बनाने से पहले यहाँ एक पुराना चिकित्सालय और ला सेंटा मिज़रीकोर्डीया (अंग्रेज़ी: द होली मर्सी; हिन्दी: पवित्र दया) रोमन कैथोलिक चैपल था तथा बाद में एक कारागृह। चूँकि कार्डोज़ो प्रोटेस्टैंट सम्प्रदाय का अनुयायी नहीं था इसलिए उसे जिब्राल्टर में कानूनी रूप से जमीन खरीदने की अनुमति नहीं थी। हालांकि वह ब्रिटेन की नौसेना के प्रसिद्ध सिपहसालार होरेशियो नेलसन का घनिष्ठ मित्र था तथा युद्ध के दौरान उसने अपना बेड़ा सेना को युद्ध में उपयोग करने के लिए उप्लब्ध कराया था इसलिए उसे आखिरकार जिब्राल्टर में एक जगह अपने घर के निर्माण के लिए दे दी गई। यह जगह अलामीडा (जॉनमैकिन्टौश स्क्वयर के पुराने कई नामों में से एक) में थी तथा उसके सामने शर्त रखी गई थी कि यह नया घर पूरे चौक पर एक आभूषण की तरह होना चाहिए। इस भवन के निर्माण में कुल चालीसा हजार पाउण्ड की धनराशि लगी थी। वर्ष 1834 में कार्डोज़ो की मृत्यु के पश्चात यह भवन जॉन एन्सालडो को होटल खोलने के लिए पट्टे पर (लीज़) दे दी गई। इस होटल का नाम था क्लब हाउस होटल। 1874 में इस भवन को धनी व्यापारी और बैंकर पाब्लो एंटोनियो लॅरियोस ने खरीद लिया। जिब्राल्टर में जन्मा लॅरियोस मूल रूप से स्पेनी थी। उसने इस इमारत की पूरी तरह से बहाली कराई। वर्ष 1922 में उसके बेटे पाब्लो लॅरियोस, मार्क्विस ऑफ़ मार्ज़ेलस (जो पैतालीस वर्ष तक रॉयल कैल्पा हंट का मास्टर रहा था), ने यह भवन जिब्राल्टर औपनिवेशिक अधिकारियों को डाक घर बनाने के लिए बेच दी। हालांकि यह अंततः नव निर्मित जिब्राल्टर सिटी काउंसिल (जिब्राल्टर नगर परिषद) की गद्दी बन गया। 1926 से यहाँ पर से नगर परिषद गिब्राल्टर की टेलीफोन सेवा को संचालित करती थी। बाद में इस प्रयोजन के लिए भवन की सबसे ऊपरी मंजिल में स्वत: संचालित विनिमय सेवा को भी लगाया गया था। इसके पश्चात इमारत का विस्तार किया गया जिसके अंतर्गत इसमें एक नई मंजिल जोड़ी गई तथा उत्तर में एक नई शाखा जोड़ी गई। इस पूरे कार्य में इमारत की समरूपता को संशोधित किया गया। निवर्तमान समय में यह जिब्राल्टर के महापौर का आधिकारिक निवास स्थान है। इन्हें भी देखें मेन गार्ड जिब्राल्टर हेरिटेज ट्रस्ट सन्दर्भ ग्रन्थसूची बाहरी कड़ियाँ El histórico edificio del City Hall जिब्राल्टर की इमारतें और संरचनाएँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B6
ज्ञान प्रकाश
ज्ञान प्रकाश आधुनिक भारत के एक इतिहासकार और प्रिंसटन विश्वविद्यालय में इतिहास के डेटन-स्टॉकटन प्राध्यापक है। प्रकाश सबाल्टर्न अध्ययन सामूहिक के एक सदस्य है। वर्ष १९७३ में दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में बी.ए. की डिग्री प्राप्त की, १९७५ में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. की उपाधि और १९८४ में पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय से इतिहास में डॉक्टर की उपाधि प्राप्त की। ज्ञान प्रकाश आधुनिक दक्षिण एशियाई इतिहास, तुलनात्मक उपनिवेशवाद और उत्तर औपनिवेशिक सिद्धांत, शहरी इतिहास, विश्व इतिहास, और विज्ञान के इतिहास पर लिखते है। काम अनॉथर रीज़न : साइंस एंड द इमेजिनेशन ऑफ़ मॉडर्न इंडिया (१९९९), ISBN 9780691004532 मुंबई फैबल्स (२०१०), ISBN 9789350291665 सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ "Imaging the Modern City, Darkly" Prakash's introduction to Noir Urbanisms: Dystopic Images of the Modern City 'Mumbai Revisited', review of Mumbai Fables in the Oxonian Review "ज्ञान प्रकाश के साथ वार्तालाप का अंश, यूट्यूब, tehelkatv
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सिलेसियन भाषा
सिलेसियन भाषा पोलैंड के ऊपरी सिलेसिया क्षेत्र में लोगों द्वारा बोली जाने वाली एक भाषा है। यह चेक गणराज्य और जर्मनी में भी बोली जाती है। पोलैंड में 2011 की राष्ट्रीय जनगणना के मुताबिक 509000 लोगों की यह मूल भाषा है। सिलेसियन का पोलिश भाषा से काफी निकट का संबंध है। इसमें एक भी सिलेसियन वर्णमाला नहीं है। सिलेसियन वक्ता अपनी भाषा लिखने के लिए पोलिश वर्ण का ही प्रयोग करते हैं। 2006 में सभी सिलेसियन लिपियों (जिन की संख्या दस है) के आधार पर एक नई सिलेसियन वर्णमाला का आविष्कार किया गया था। यह इंटरनेट पर व्यापक रूप में प्रयोग होती है और सिलेसियन विकिपीडिया में भी। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ सिलेसियन विकिपीडिया में भी। विश्व की भाषाएँ जर्मनी की भाषाएँ पोलैंड की भाषाएँ चेक गणराज्य की भाषाएँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%20%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A5%80%E0%A4%9C%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%AE%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6%20%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%202012-13
वेस्ट इंडीज क्रिकेट टीम का बांग्लादेश दौरा 2012-13
वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम ने नवंबर और दिसंबर 2012 में बांग्लादेश का दौरा किया। इस दौरे में एक ट्वेंटी 20 (टी20आई), दो टेस्ट मैच और पांच एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) शामिल थे। इस श्रृंखला ने पहला टेस्ट मैच शेख अबू नसर स्टेडियम, खुलना में आयोजित किया। ढाका में पहले टेस्ट में, वेस्टइंडीज के बल्लेबाज क्रिस गेल टेस्ट क्रिकेट मैच में पहली गेंद पर छक्का लगाने वाले पहले खिलाड़ी बने। टेस्ट सीरीज पहला टेस्ट दूसरा टेस्ट वनडे सीरीज पहला वनडे दूसरा वनडे तीसरा वनडे चौथा वनडे पांचवां वनडे ट्वेंटी 20 सीरीज केवल टी20आई सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A4%A8%20%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE
मदन उपज़िला
मदन उपजिला, बांग्लादेश का एक उपज़िला है, जोकी बांग्लादेश में तृतीय स्तर का प्रशासनिक अंचल होता है (ज़िले की अधीन)। यह मय़मनसिंह विभाग के नेत्रकोना ज़िले का एक उपजिला है। इसमें, ज़िला सदर समेत, कुल १० उपज़िले हैं। यह बांग्लादेश की राजधानी ढाका से उत्तर की दिशा में अवस्थित है। यह मुख्यतः एक ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है। जनसांख्यिकी यहाँ की आधिकारिक स्तर की भाषाएँ बांग्ला और अंग्रेज़ी है। तथा बांग्लादेश के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह ही, यहाँ की भी प्रमुख मौखिक भाषा और मातृभाषा बांग्ला है। बंगाली के अलावा अंग्रेज़ी भाषा भी कई लोगों द्वारा जानी और समझी जाती है, जबकि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक निकटता तथा भाषाई समानता के कारण, कई लोग सीमित मात्रा में हिंदुस्तानी(हिंदी/उर्दू) भी समझने में सक्षम हैं। यहाँ का बहुसंख्यक धर्म, इस्लाम है, जबकि प्रमुख अल्पसंख्यक धर्म, हिन्दू धर्म है। जनसांख्यिकीक रूप से, यहाँ, इस्लाम के अनुयाई, आबादी के औसतन ९१% के करीब है। शेष जनसंख्या प्रमुखतः हिन्दू धर्म की अनुयाई है। यह मयख्यातः एक ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है। अवस्थिति मदन उपजिला बांग्लादेश के उत्तरी सीमा से सटे, मयमनसिंह विभाग के नेत्रकोना जिले में स्थित है। इन्हें भी देखें बांग्लादेश के उपजिले बांग्लादेश का प्रशासनिक भूगोल मयमनसिंह विभाग सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ उपज़िलों की सूची (पीडीएफ) (अंग्रेज़ी) जिलानुसार उपज़िलों की सूचि-लोकल गवर्नमेंट इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट, बांग्लादेश http://hrcbmdfw.org/CS20/Web/files/489/download.aspx (पीडीएफ) श्रेणी:मयमनसिंह विभाग के उपजिले बांग्लादेश के उपजिले
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%20%E0%A4%8F%E0%A4%AB.%E0%A4%B8%E0%A5%80.
पार्मा एफ.सी.
पार्मा फुटबॉल क्लब आमतौर पर सिर्फ पर्मा के रूप में संदर्भित किया जाता है, पार्मा में आधारित एक इतालवी पेशेवर फुटबॉल क्लब है। यह दिसंबर 1913 में वेर्दि फुटबॉल क्लब के रूप में स्थापित हुआ था, 1923 के बाद से, क्लब स्टेडियो एन्नियो टारडीनी में अपने घरेलू मैच खेलता है। पर्मा घरेलू लीग खिताब कभी जीता नहीं पर यह घरेलू कोप्पा इटालिया जीता है और यह यूरोपीय मोर्चे पर एक शीर्ष क्लब है, यह क्लब यूरोपीय मोर्चे पर दो युइएफए कप, एक यूरोपीय सुपर कप और एक युइएफए कप विनर्स कप जीता है। यूरोप में उनके प्रदर्शन के कारण इतालवी लीग के स्थापित शक्तियों के प्रभुत्व को एक धमकी थी। हाल ही में, पर्मा के वित्तीय परेशानियों ने क्लब की महत्वाकांक्षाओं को सीमित कर दिया है। क्लब की हमेशा से अपने अकादमी से युवा खिलाड़ियों के विकास की नीति रही है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट इटली के फुटबॉल क्लब फुटबॉल क्लब
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A2%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A4%BE
ढूला
कालिब, साँचा, आड़ की दीवार, डाट लगाते समय उसको टेक तथा रूप देने के लिये बनाया गया लकड़ी, लोहे आदि का अस्थायी ढाँचा, जो डाट या छत पूरी तथा स्वावलंबी हो जानेपर हटा दिया जाता है, ढूला (Centring) कहलाता है। डाट के पत्थर या ईंटें एक दूसरे पर अपना भार डालती हुई अंत में सारा भार किनारे के आलंबों पर पहुँचाती हैं और उस भार के फलस्वरूप उत्पन्न दबाव के कारण यथास्थान टिकी रहती हैं। कितु यह क्रिया तभी संपन्न हा सकती है, जब डाट पूरी हो जाय। अत: पूरी होने तक उन ईटों या पत्थरों को यथास्थान स्थिर बनाए रखने के लिये ढूला आवश्यक होता है। अनिवार्यत: ढूले की ऊपरी सतह डाट के तले का जवाब होती है। छोटी डाटों की उठान यदि कम हो तो बहुघा एक ही लकड़ी के ऊपर उन्हें ढाल लेते हैं, अन्यथा दो तख्तों के ऊपर चपतियाँ लगाकर ढूला बना लेते हैं। ज्यादा ऊँची और बड़ी डाटों के ढूले कैंची के सिद्धांत पर बनाए जाते हैं। बहुधा एक निचली तान होती है और दुहरे तख्तों या धज्जियों को जोड़कर मजबूत कैंची का रूप दिया जाता है। इनके जोड़ साल-चूलवाले नहीं होते, बल्कि कीलां और काबलों से कसे रहते हैं, फिर भी वे इतने मजबूत बनाए जाते हैं कि अपने ऊपर पड़नेवाला सारा भार सह सकें। ऐसी दो, या आवश्यकतानुसार अधिक, कैंचियाँ उचित अंतर से रखकर ऊपर चपतियाँ लगा दी जाती हैं। गढ़ी ईंट की डाट के लिये ये चपतियाँ सटी हुई, अनगढ़ी ईट की डाट के लिये कुछ अंतर से और पत्थर की डाट के लिये और भी अधिक अंतर से लगाई जाती हैं। सारा ढूला किनारों पर, और यदि आवश्यकता हुई तो बीच में भी, मजबूत बल्लियों या थूनियों पर टिका रहता है, जिनके ऊपर बंद होनेवाली पच्चड़े लगी रहती हैं। ढूला खोलने में सुविधा के लिये तो ये पच्चड़े जरूरी हैं ही, एक और दृष्टि से भी ये महत्वपूर्ण है: डाट पूरी हो जाने पर पच्चड़ों द्वारा ढूला थोड़ा सा ढीला कर दिया जाता है ताकि डाट की ईंटें या पत्थर परस्पर सटकर बैठ जायँ। इसे डाट का बैठना कहते हैं। कहीं कहीं पच्च्चड़ो के स्थान पर थूनियों के नीचे बालू भरी बोरियाँ चिपटी करके रख दी जाती है। ढूला ढीला करने के लिये थोड़ी बालू निकालने भर की आवश्यकता होती है। इस प्रकार बिना चोट या धक्का पहुँचाए ही काम हो जाता है। छत की डाटों के ढूले छत की गर्डरों से ही लटका दिए जाते हैं। दीवारों पर कड़ियाँ या बल्लियाँ रखकर भी उनपर ढूला बनाया जाता है। आजकल प्रबलित कंक्रीट या प्रबलित चिनाई की छतें बहुत बनाई जाती हैं। इनके ढालने के लिये भी ढूला अनिवार्य है। बहुधा लकड़ी का ढूला बनाया जाता है, जिसकी ऊपरी सतह रंदा करके साफ कर दी जाती है। बहुत अच्छे काम में लाहे की चादरें लगाई जाती हैं। ये लकड़ी से ज्यादा टिकाऊ होती हैं, सरलता से लगाई और निकाली जा सकती हैं और यदि एक जेसी बहुत सी छतें ढालनी हों तो ये सस्ती भी पड़ती हैं। मामूली काम में जहाँ लकड़ी या लोहा लगाने की सुविधा नहीं होती, मिट्टी का (कच्चा) ढूला ही बना लिया जाता है। लकड़ी के, या ईंट की सूखी चिनाई के खंभों के ऊपर कड़ियाँ रखकर ऊपर बाँस, फूस आदि से पाटकर मिट्टी बिछा देते हैं। इसपर मामूली सीमेंट वाले मसाले का पलस्तर करके ठीक सतह बना ली जाती है। सतह पर चूना पोत देने से बाद में छत का तला साफ करने में सुविधा रहती है। प्रबलित चिनाई की छत के लिये बहुधा ऐसा ही ढूला, और वह भी प्राय: बिना पलस्तर का, बनाया जाता है। सपाट छतों के ढूले किनारों की अपेक्षा बीच में कुछ ऊँचे रखे जाते हैं, ताकि ढूले के, या छत के, बैठान लेने पर छत लटकी हुई न दिखाई दे। प्रति फुट पाट के लिये १/२ इंच की ऊँचाई प्रायः पर्याप्त मानी जाती है। धरनों के ढूलों में यह ऊँचाई इसकी आधी ही रखी जाती है। चित्रदीर्घा सन्दर्भ इन्हें भी देखें डाटदार पुल
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हरविलास शारदा
हरबिलास शारदा (1867-1955) एक शिक्षाविद, न्यायधीश, राजनेता एवं समाजसुधारक थे। वे आर्यसमाजी थे। इन्होने सामाजिक क्षेत्र में वैधानिक प्रक्रियाओं के क्रियान्यवन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इनके अप्रतिम प्रयासों से ही 'बाल विवाह निरोधक अधिनियम, १९३०' (शारदा ऐक्ट) अस्तित्व में आया। जीवन परिचय हर बिलास सारदा का जन्म 3 जून 1867 को अजमेर में एक माहेश्वरी परिवार में हुआ था। उनके पिता श्रीयुत हर नारायण सारदा (माहेश्वरी) एक वेदांती थे, जिन्होंने अजमेर के गवर्नमेंट कॉलेज में लाइब्रेरियन के रूप में काम किया। उनकी एक बहन थी, जिसकी मृत्यु सितंबर 1892 में हुई थी। सारदा ने 1883 में अपनी मैट्रिक परीक्षा पास की। इसके बाद, उन्होंने आगरा कॉलेज (तब कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध) में अध्ययन किया, और 1888 में बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने अंग्रेजी में ऑनर्स के साथ उत्तीर्ण किया, और दर्शन और फारसी भी किया। । उन्होंने 1889 में गवर्नमेंट कॉलेज, अजमेर में एक शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया। वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में आगे की पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन अपने पिता के खराब स्वास्थ्य के कारण अपनी योजनाओं को छोड़ दिया। उनके पिता की मृत्यु अप्रैल 1892 में हुई; कुछ महीने बाद, उसकी बहन और माँ की भी मृत्यु हो गई सरदा ने ब्रिटिश भारत में बड़े पैमाने पर यात्रा की, उत्तर में शिमला से दक्षिण में रामेश्वरम तक और पश्चिम में बन्नू से पूर्व में कलकत्ता तक। 1888 में, सरदा ने इलाहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र का दौरा किया। उन्होंने कांग्रेस की कई और बैठकों में भाग लिया, जिनमें नागपुर, बॉम्बे, बनारस, कलकत्ता और लाहौर शामिल थे न्यायिक सेवा 1892 में, सरदा ने अजमेर-मेरवाड़ा प्रांत के न्यायिक विभाग में काम करना शुरू किया। 1894 में, वह अजमेर के नगर आयुक्त बने, और अजमेर विनियमन पुस्तक, प्रांत के कानूनों और नियमों के संकलन को संशोधित करने पर काम किया। बाद में, उन्हें विदेश विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां उन्हें जैसलमेर राज्य के शासक के लिए संरक्षक नियुक्त किया गया। वह 1902 में अजमेर-मेरवाड़ा के न्यायिक विभाग में लौट आए। वहाँ पर, उन्होंने कुछ वर्षों तक अतिरिक्त अतिरिक्त सहायक आयुक्त, उप-न्यायाधीश प्रथम श्रेणी, और लघु कारण न्यायालय के न्यायाधीश सहित विभिन्न भूमिकाओं में काम किया। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अजमेर-मेरवाड़ा प्रचार बोर्ड के मानद सचिव के रूप में भी कार्य किया। 1923 में, उन्हें अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश बनाया गया। वह दिसंबर 1923 में सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुए। 1925 में, उन्हें मुख्य न्यायालय, जोधपुर का वरिष्ठ न्यायाधीश नियुक्त किया गया राजनीतिक कैरियर जनवरी 1924 में सरदा को केंद्रीय विधान सभा का सदस्य चुना गया, जब पहली बार अजमेर-मेरवाड़ा को विधानसभा में सीट दी गई। उन्हें 1926 और 1930 में फिर से विधानसभा के लिए निर्वाचित किया गया था। अब दलबदलू राष्ट्रवादी पार्टी का सदस्य, उन्हें 1932 में इसका उप नेता चुना गया। उसी वर्ष, उन्हें विधानसभा के अध्यक्षों में से एक चुना गया। उन्होंने कई समितियों में कार्य किया, जिनमें शामिल हैं: याचिका समिति प्राथमिक शिक्षा समिति निवृत्ति समिति सामान्य प्रयोजन उप-समिति स्थायी वित्त समिति हाउस कमेटी (अध्यक्ष) बी। बी। & सी। आई। रेलवे सलाहकार समिति एक विधायक के रूप में, उन्होंने विधानसभा में पारित कई बिल पेश किए: बाल विवाह निरोधक अधिनियम (सितंबर 1929 में पारित, 1930 में प्रभावी हुआ) अजमेर-मेरवाड़ा न्यायालय शुल्क संशोधन अधिनियम (पारित) अजमेर- मेरवाड़ा किशोर धूम्रपान विधेयक (राज्य परिषद द्वारा फेंका गया) हिंदू विधवाओं को पारिवारिक संपत्ति में अधिकार देने का विधेयक (सरकारी विरोध के कारण बाहर फेंक दिया गया) सारदा ने नगरपालिका प्रशासन में भी भूमिका निभाई। उन्हें 1933 में अजमेर म्युनिसिपल एडमिनिस्ट्रेशन इंक्वायरी कमेटी का सदस्य नियुक्त किया गया और 1934 में न्यू म्युनिसिपल कमेटी के सीनियर वाइस-चेयरमैन चुने गए। विधायी राजनीति के अलावा, उन्होंने कई सामाजिक संगठनों में भी भाग लिया। 1925 में, उन्हें बरेली में अखिल भारतीय वैश्य सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया। 1930 में, उन्हें लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय सामाजिक सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया आर्य समाज हर बिलास सारदा बचपन से ही हिंदू सुधारक दयानंद सरस्वती के अनुयायी थे, और आर्य समाज के सदस्य थे। 1888 में, उन्हें समाज के अजमेर अध्याय का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, और राजपूताना की प्रतिनिधि सभा (आर्य समाजियों की प्रतिनिधि समिति) के अध्यक्ष भी थे। 1890 में, उन्हें परोपकारिणी सभा का सदस्य नियुक्त किया गया, दयानंद सरस्वती द्वारा नियुक्त 23 सदस्यों के एक निकाय ने उनकी इच्छा के बाद उनके कार्यों को किया। 1894 में, उन्होंने मोहनलाल पंड्या की जगह परोपकारिणी सभा के संयुक्त सचिव के रूप में ले ली, जब संगठन का कार्यालय उदयपुर से अजमेर चला गया। पांड्या के संन्यास के बाद, सरदा संगठन के एकमात्र सचिव बन गए। सरदा ने अजमेर में एक डीएवी स्कूल की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और बाद में अजमेर के डीएवी समिति के अध्यक्ष बने। उन्होंने 1925 में मथुरा में दयानंद के जन्म शताब्दी समारोह के आयोजन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह उस समूह के महासचिव थे, जिन्होंने 1933 में अजमेर में दयानंद की अर्ध शताब्दी के लिए एक समारोह का आयोजन किया था। लेखक सरदा ने निम्नलिखित पुस्तकें और मोनोग्राफ लिखे: हिंदू श्रेष्ठता अजमेर: ऐतिहासिक और वर्णनात्मक महाराणा कुंभा महाराणा सांगा रणथंभौर के महाराजा हम्मीर उन्होंने द इंडियन एंटिकरी और रॉयल एशियाटिक सोसाइटी के जर्नल के लिए शोध पत्र लिखे पुरस्कार और सम्मान सरदा को ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा निम्नलिखित उपाधियों से सम्मानित किया गया था: प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार के समर्थन में अपनी सेवाओं के लिए राय साहब दीवान बहादुर (1931), विधान सभा में अपने काम के लिए सन्दर्भ समाज सुधारक इतिहासकार
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%2C%20%E0%A4%B9%E0%A5%85%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%B5%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE
सोफ़िया, हॅनोवर की निर्वाचिका
फ़ाल्ज़ की राजकुमारी, सोफ़िया(जर्मन:Sophie, Prinzessin von der Pfalz) जिन्हें अधिक प्रचलित रूप से सोफ़िया ऑफ़ हॅनोवर अर्थात् "हनोवर की सोफ़िया" के नाम से जाना जाता है, का जन्म १७ अक्टूबर १६३० को हेग, नीदरलैण्ड में हुआ था। वे फ़्रेडरिक पंचम, निर्वाचक फ़ाल्ज़ तथा स्कॉटलैंड और इंग्लैंड के राजा, जेम्स (षष्टम् और प्रथम) की पुत्री, एलिज़ाबेथ स्टुअर्ट, की सबसे छोटी पुत्री थी। उनकी पर्वरिश डच गणराज्य में हुई थी। १६५८ में उनका विवाह बर्नस्विक-लूनबर्ग के ड्यूक, अर्नेस्ट ऑगस्टस के साथ हुआ, जिन्हें बाद में पवित्र रोमन साम्राज्य में निर्वाचक का दर्ज प्राप्त हुआ, जिसके कारण सोफ़िया को हनोवर की निर्वाचिका की उपादि प्राप्त हुई। एक ऐसा ख़िताब, जिसके नाम से उन्हें बेहतर जाना जाता है। इंग्लैण्ड में गौरवशाली क्रांति के पश्चात पारित हुए ऍक्ट ऑफ़ सेटलमेंट, १७०१ के अंतर्गत उन्हें, जेम्स प्रथम की पोती होने के नाते, अंग्रेज़ी सिंघासन का एकमात्र वैध वारिस तथा उन्हें और उनके आगामी प्रोटोस्टेंट वंश को इंग्लैंड की राजगद्दी का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया था। हालाँकि उनके सिंघासन विराजने से दो महीने पूर्व ही मृत्यु हो गयी; अतः सिंघासन पर उनका अधिकार, विधि द्वारा उनके ज्येष्ठ पुत्र, जॉर्ज लुइस, हनोवर के निर्वाचक के पास चला गया, जिन्होंने १ अगस्त १७१४ को ग्रेट ब्रिटेन के राजा जॉर्ज प्रथम के रूप में सिंघासन पर विराजमान होकर, इंग्लैंड और स्कॉटलैंड में हनोवर वंश के राज को शुरू किया। ऐसा, तत्कालीन राजा विलियम तृतीय और रानी मैरी द्वितीय, और मैरी की बहन रानी ऐनी के कोई जीवित संतान उत्पन्न नहीं कर पाने, तथा स्टुअर्ट घराने के अन्य सभी सदस्यों के कैथोलिक धर्म होने के कारण किया गया था। जीवनी राजकुमारी सोफ़िया, का जन्म १६३० में राइन के निर्वाचक फ़ाल्ज़, फ़्रेडरिक पंचम, बोहेमिया के राजा(जिन्हें "शीतकाल के राजा" भी कहा जाता है, क्योंकि उनका राज केवल एक शीतकाल तक चला था) और एलिज़ाबेथ स्टुअर्ट, बोहेमिया की रानी की बारहवीं सन्तान के रूप में हुआ था। उनका जन्म फ़्रेडरिक के नीदरलैंड में निष्काशन के दौरान हुआ था। अपने दूर के ममेरे भाई, इंग्लैंड के चार्ल्स द्वी के साथ असफल विवाह के पश्चात् वो अपने भाई कार्ल लुडविग, निर्वाचक फ़ाल्ज़ के साथ हैडेलबर्ग में रहने लगी। जहाँ वो अपनी विवाह तक रही थी। विवाह से पहले उन्हें राइन की राजकुमारी फ़ाल्ज़ के नाम से जाना जाता था, क्योंकि उनके पिता राइनलैंड की जागीर के निर्वाचक फ़ाल्ज़ थे। ३० सितम्बर १६५८ को उनका विवाह बर्नस्विक-लूनबर्ग के ड्यूक, अर्नेस्ट ऑगस्टस के साथ हुआ, जिसके कारण उन्हें डचेस की उपदि प्राप्त हुई। १६९२ में, ऑगस्टस को हनोवर का निर्वाचक बना दिया गया, तथा सोफ़िया, हनोवर की निर्वाचिका बन गयी। सोफ़िया को एक बुद्धिमान, और वैज्ञानिक तथा दार्शनिक जिज्ञासा से भरपूर महिला के रूप में जाना जाता था। सोफ़िया और अर्नेस्ट का विवाह मृत्यु तक रहा, और अर्नेस्ट के गुस्सैलपन और अक्सर नामौजूदगी के बावजूद, उन दोनों के बीच काफी प्यार था। सोफ़िया ने अर्नेस्ट के अनेक संतानों को जन्म दिया था, जिनमे से: ग्रेट ब्रिटेन के जॉर्ज प्रथम (1660-1727) बर्नस्विक-ल्यूंबर्ग के फ्रेडरिक ऑगस्टस (1661-1690), इम्पीरियल जनरल बर्नस्विक-ल्यूंबर्ग के मैक्सीमिलियन विलियम (1666-1726), शाही सेना में फील्ड मार्शल सोफिया शेर्लोट (1668-1705), प्रशिया में रानी बर्नस्विक-ल्यूंबर्ग के चार्ल्स फिलिप (1669-1690), इम्पीरियल सेना में कर्नल बर्नस्विक-ल्यूंबर्ग के क्रिस्टियान हेनरी (1671-1703) बर्नस्विक-ल्यूंबर्ग, यॉर्क और अल्बानी (1674-1728) के ड्यूक, जो अर्नेस्ट ऑगस्टस अर्नेस्ट ऑगस्टस द्वितीय के रूप में बर्लिन के राजकुमार-बिशप बने मृत्यु और विरासत सोफ़िया ने अपने जीवन काल में, उस समय के मुकाबले काफी बेहतर स्वास्थ्य का अनुभव किया था। हालांकि वे रानी ऐनी से कहीं बूढ़ी थी, परंतु मृत्यु के समय उनकी सेहत उनसे काफी बेहतर थे। ५ जून १७१४ को रानी ऐनी से एक क्रोधमय चिट्ठी मिलने पर, वे भय से बीमार पड़ गयी थी। दो दिनों बाद, अस्वस्थता से उबरने के बाद, वे हेर्रेनहौसेन के बगीचे में टहल रहीं थी, जब अचानक मूसलाधार बारिश होने लगी। बकबर्ग की काउंटेस के अनुसार, सोफ़िया इस बारिश से बचने के लिए दौड़ने के बाद गिर पड़ी और उनहोंने डैम तोड़ दिया। इस प्रफर उनका देहांत ८३ की आयु में ८ जून १७१४ को हुई, जो उस काल के अनुसार बहुत अधिक और असामान्य था। जबकि रानी ऐनी एक महीने बाद ४९ की उम्र में देहत्याग किया। जिसके बाद, निर्वाचिता सोफ़िया की ज्येष्ठ पुत्र, जॉर्ज प्रथम ने इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के सिंघासन पर काबिज़ हुए। इन्हें भी देखें पवित्र रोमन साम्राज्य ऍक्ट ऑफ़ सेटलमेंट, १७०१ गौरवशाली क्रांति सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Israel, Johnathan I. Radical Enlightenment. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2001, 84. Duggan, J. N., Sophia of Hanover, From Winter Princess to Heiress of Great Britain; London, Peter Owen, 2010 Klopp, Onno (ed.), Correspondance de Leibniz avec l'électrice Sophie. Hanover, 1864–1875 Van der Cruysse, Dirk; Sophie de Hanovre, memoires et lettres de voyage; Paris, Fayard, 1990 ब्रिटिश राज परिवार ब्रिटेन के लोग जर्मनी के लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%96%20%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%B2%20%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%B5%2C%20%E0%A4%9B%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%8A%20%28%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%9C%29
सौरिख रूरल गाँव, छिबरामऊ (कन्नौज)
सौरिख रूरल छिबरामऊ, कन्नौज, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। सौरिख का पुराना नाम सौ-ऋषि है। आज कल सौरिख कन्नौज के महत्त्वपूर्ण नगरों में से एक है और शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति के लिए प्रसिद्ध है। भूगोल जनसांख्यिकी यातायात यहाँ बहुतायात मात्रा में लोग निजी वाहनों से ही यात्रा करते है। सार्वजानिक यातायात के साधनो में बस और अन्य छोटे वाहन प्रचलित हैं। आदर्श स्थल शिक्षा सौरिख शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान हैं। प्रदेश कई जिलों से विद्यार्थी यहाँ शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। यहाँ की साक्षरता लगभग 78% है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ कन्नौज जिला के गाँव
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6%20%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF%20%28%E0%A4%A6%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BF%E0%A4%A3%20%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%29
विदेश मंत्रालय (दक्षिण कोरिया)
दक्षिण कोरिया का विदेश मंत्रालय देश के विदेशी संबंधों के साथ-साथ विदेशी कोरियाई नागरिकों से संबंधित मामलों को संभालने का प्रभारी है। इसकी स्थापना 17 जुलाई 1948 को हुई थी। इसका मुख्य कार्यालय सियोल के जोंगनो जिले में एमओएफए बिल्डिंग में स्थित है। मंत्रालय का मुख्यालय पहले जोंगनो जिले के डोरियोम-डोंग में एक सुविधा में था। इतिहास कोरियाई विदेश मंत्रालय को 1948 में री सिनग-मैन प्रशासन के तहत सरकारी संगठन कानून के बाद बनाया गया था। इसने विदेश नीति, विदेशी कोरियाई नागरिकों की सुरक्षा, अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, संधियों, कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय और विदेशी जनसंपर्क के मूल्यांकन के मामलों को संभाला। मंत्रालय के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता शुरू में "कोरियाई प्रायद्वीप पर एकमात्र वैध के रूप में नई कोरियाई सरकार की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता" पर ध्यान केंद्रित करना था। मंत्रालय की स्थापना के तुरंत बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस में विदेशी मिशन स्थापित किए गए। 1963 में विदेशी सरकारी अधिकारियों को और अधिक शिक्षित करने और उनकी कार्य कुशलता में सुधार करने के लिए विदेश सेवा अधिकारियों के शैक्षिक संस्थान की स्थापना की गई थी। 1965 में शैक्षिक संस्थान विदेश मामलों का अनुसंधान संस्थान बन गया। दिसंबर 1976 में, अनुसंधान संस्थान को फिर से विदेशी मामलों और सुरक्षा संस्थान बनने के लिए पुनर्गठित किया गया। 2012 में, यह संस्थान कोरिया नेशनल डिप्लोमैटिक अकादमी के रूप में विकसित हुआ और दक्षिण कोरिया में अपनी तरह का सबसे बड़ा अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान है। 1998 में, मंत्रालय का नाम बदलकर विदेश मामलों और व्यापार मंत्रालय (외교통상부 ) कर दिया गया और इसे बाहरी व्यापार पर अधिकार क्षेत्र दिया गया। 2013 में, यह पार्क ग्यून-हे की पुनर्गठन योजना के बाद विदेश मंत्रालय के अपने पहले के नाम पर वापस आ गया, और व्यापार मामलों की जिम्मेदारी ज्ञान अर्थव्यवस्था मंत्रालय को सौंप दी गई, जिसका नाम बदलकर व्यापार, उद्योग और ऊर्जा मंत्रालय कर दिया गया। संगठन मंत्री को दो उप-मंत्रियों, कोरिया नेशनल डिप्लोमैटिक अकादमी के उप-मंत्रालय स्तर के चांसलर और कोरियाई प्रायद्वीप शांति और सुरक्षा मामलों के विशेष प्रतिनिधि द्वारा समर्थित किया जाता है। मंत्रियों की सूची कार्यवाहक मंत्री को दर्शाता है प्रमुख राजनयिक कार्य विदेश मंत्रालय कई राजनयिक कार्यों में संलग्न है जिसका मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय संबंध बनाना, शांति को बढ़ावा देना और कोरिया गणराज्य और कोरियाई नागरिकों की रक्षा करना है। मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार, इन कार्यों का उद्देश्य 'लोगों के राष्ट्र, कोरिया के एक न्यायपूर्ण गणराज्य' के राष्ट्रीय दृष्टिकोण को पूरा करना है। उन्हें नीचे संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है: उत्तर कोरियाई परमाणु मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान और कोरियाई प्रायद्वीप पर शांति व्यवस्था की स्थापना कूटनीतिक रूप से पूर्ण परमाणुकरण हासिल करें और 'कोरियाई प्रायद्वीप पर स्थायी और ठोस शांति व्यवस्था' का निर्माण करें। सार्वजनिक और सहभागी कूटनीति के माध्यम से राष्ट्रीय हित को बढ़ावा देना 'रणनीतिक सार्वजनिक कूटनीति' के माध्यम से कोरिया गणराज्य और उसकी विदेश नीति की समझ और समर्थन बढ़ाना और सार्वजनिक भागीदारी और संचार को प्रोत्साहित करना। पड़ोसी देशों के साथ मुखर सहयोगात्मक कूटनीति का अनुसरण करना चीन, जापान और रूस के साथ 'कोरिया गणराज्य और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच गठबंधन एक केंद्रीय भूमिका निभा रहे हैं' के साथ सहयोग को सक्रिय रूप से और दृढ़ता से मजबूत करें।  उत्तर कोरियाई परमाणु मुद्दे और यूरेशियाई राजनयिक संबंधों से निपटने के प्रवेश द्वार के रूप में, इन संबंधों को मजबूत करने का उद्देश्य कोरियाई प्रायद्वीप पर स्थायी शांति की नींव बनाना है। पूर्वोत्तर एशिया+ उत्तरदायित्व समुदाय की स्थापना पूर्वोत्तर एशिया शांति और सहयोग मंच की स्थापना करें और 'कोरिया गणराज्य की दीर्घकालिक समृद्धि और अस्तित्व के लिए अनुकूल शांतिपूर्ण और सहकारी वातावरण' के निर्माण के उद्देश्य से अपनी नई उत्तरी नीति और नई दक्षिणी नीति को आगे बढ़ाएं। राष्ट्रीय हित को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक कूटनीति और विकास सहयोग को मजबूत करना एक अंतरराष्ट्रीय आर्थिक वातावरण बनाएं, उभरते बाजार देशों के साथ जुड़ाव बढ़ाएं और जलवायु परिवर्तन पर सक्रिय रूप से प्रतिक्रिया दें।  अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में सहयोगात्मक रूप से योगदान बढ़ाने से राष्ट्रीय हित में वृद्धि होती है। विदेशों में यात्रा करने वाले कोरियाई नागरिकों की सुरक्षा को मजबूत करना और विदेशी कोरियाई लोगों के समर्थन का विस्तार करना विदेशों में रहने वाले कोरियाई नागरिकों के लाभों की व्यवस्थित रूप से रक्षा और वृद्धि करना और उनकी क्षमता को मजबूत करके 'कोरियाई वैश्विक नेटवर्क को सशक्त बनाना'। 2021 P4G सियोल शिखर सम्मेलन दक्षिण कोरियाई एमओएफए (विदेश मंत्रालय) पर्यावरण नीतियां बनाने और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने के लिए दुनिया भर के देशों के साथ काम करने में शामिल है।  इसलिए वे मई 2021 के अंत में P4G सियोल शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहे हैं। यह आयोजन COVID-19 संकट के कारण ऑनलाइन किया जाएगा, और वर्तमान जलवायु परिवर्तन की स्थिति में सुधार पर ध्यान देगा।  शिखर सम्मेलन वैश्विक सार्वजनिक-निजी सहयोग में सुधार पर ध्यान देगा। विदेश मंत्री चुंग यूई-योंग इस पहल में विशेष रूप से शामिल हैं क्योंकि इसका कोरिया गणराज्य और अमेरिका और डेनमार्क जैसे अन्य देशों के बीच संबंधों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जून 2015 में दक्षिण कोरिया ने अपने राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान (एनडीसी) को प्रकाशित किया, एक पहल जिसके द्वारा देश अपने पर्यावरणीय लक्ष्यों को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।  देश ने 2030 तक उत्सर्जन को 37% तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। साथ ही, दक्षिण कोरिया ने अपने कार्बन पदचिह्न को कम करने के लिए कई पहलों में भाग लिया है, जैसे कि पेरिस में COP21, दिसंबर 2015 में दस्तावेज़ की पुष्टि करना। कोरिया ने जलवायु परिवर्तन के लिए एक 'हरित विकास' दृष्टिकोण अपनाया है, लेकिन इन प्रयासों के बावजूद वास्तव में पिछले एक दशक में कोयले के उपयोग में वृद्धि हुई है। भविष्यवाणियों ने दिखाया है कि कोरिया के निर्धारित लक्ष्यों तक पहुंचने की संभावना नहीं है। एमओएफए, हालांकि, पी4जी सियोल शिखर सम्मेलन को सफल बनाने के प्रयास में अपने ग्रीन ग्रोथ अलायंस (2011) पर मिलकर काम करने के लिए डेनमार्क के साथ निकट संपर्क में रहा है। संदर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%20%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%96%E0%A4%B2%E0%A5%80
द ग्रेट खली
दलीप सिंह राणा एक भारतीय पेशेवर पहलवान, कुश्ती प्रमोटर और अभिनेता हैं। इनका जन्म 27 अगस्त 1972 को हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के धीरैना गाँव में एक राजपूत परिवार में हुआ था। इनके पिता ज्वाला राम और इनकी माता तांडी देवी हैं। इन्हें WWE में द ग्रेट खली के नाम से जाना जाता है। इन्होंने अपनी पेशेवर कुश्ती की शुरुआत 2000 ई. में की थी। खली पेशेवर कुश्ती करियर की शुरुआत करने से पहले, पंजाब पुलिस के सहायक उप-निरीक्षक थे। खली ने चार हॉलीवुड फिल्मों, दो बॉलीवुड फिल्मों और कई टेलीविजन शो में भी काम किया है। प्रारंभिक जीवन खली का जन्म एक बेहद ही गरीब परिवार में हुआ था। खली सात भाई-बहनों में से एक थे। खली को अपने परिवार की मदद करने के लिए पत्थर तोडने जैसे काम करना पड़ा था। वह एक्रोमेगाली से पीड़ित है। एक्रोमेगाली एक ऐसी बीमारी है जिसके कारण शरीर में वृद्धि हार्मोन की संख्या बहुत अधिक हो जाता है जिससे शरीर में हड्डियों का आकार भी बढ़ जाता है, इससे हाथों, पैरों और चेहरे की हड्डियों में सामान्य से भिन्न विकास होने लगता है। खली सुरक्षा गार्ड की नौकरी भी कर चुके हैं। जब खली हिमाचल प्रदेश के शिमला में एक सुरक्षा गार्ड के रूप में नौकरी कर रहे थे, तो उसी समय पंजाब के एक पुलिस अधिकारी की नज़र खली पर पडी।तब उन्होने खली को 1993 में पंजाब पुलिस में शामिल करवाया। टेलीविजन और फिल्म खली अक्टूबर 2010 से जनवरी 2011 तक टेलीविजन रियलिटी शो बिग बॉस में भी दिखाई दिए, बिग बॉस में वे पहले रनर-अप के रूप में चुने गए। बिग बॉस ने केवल खली के लिए विशेष व्यवस्था की, जिसमें उन्हें फिट करने के लिए एक कस्टम-मेड बिस्तर भी शामिल था। मार्च 2011 में, खली ने एनबीसी के आउटसोर्स के एपिसोड 18 में एक संक्षिप्त कैमियो किया था, और "फाइट स्कूल" एपिसोड में डिज्नी चैनल टीवी कार्यक्रम पेयर ऑफ किंग्स में एटोग, एक रॉक-स्मैशिंग दिग्गज के रूप में दिखाई दिए। व्यक्तिगत जीवन दलीप सिंह ने 27 फरवरी, 2002 को हरमिंदर कौर से शादी की। उनकी शादी के तुरंत बाद, दलीप सिंह के कुश्ती करियर को भी काफी बुस्ट मिला। हरमिंदर के साथ अपनी शादी के सिर्फ पांच साल बाद, उन्होंने द ग्रेट खली के नाम से डब्ल्यूडब्ल्यूई में अपनी शुरुआत की थी। फरवरी 2014 में, द ग्रेट खली और उनकी पत्नी, हरमिंदर कौर ने अपने जीवन में एक बच्ची का स्वागत किया था, और उसके आगमन ने उनके जीवन को पूरी तरह से बदल दिया था। उन्होने अपनी बेटी का नाम अवलीन राणा रखा। खली अत्यंत धार्मिक हैं। वे हर दिन ध्यान करते हैं और शराब और तंबाकू से दूर रहते हैं। वे भारतीय आध्यात्मिक गुरु आशुतोष महाराज के शिष्य हैं। खली को शाकाहारी भोजन पसंद है, लेकिन वे मांस भी खाते हैं। खली का 26 जुलाई 2012 को पिट्यूटरी ग्रंथि पर एक ट्यूमर के कारण मस्तिष्क की सर्जरी भी हो चुकी है। खली 20 फरवरी 2014 को एक अमेरिकी नागरिक बन गए। फरवरी 2015 में, खली ने पंजाब में अपना कुश्ती स्कूल, कॉन्टिनेंटल रेसलिंग एंटरटेनमेंट खोला, जिसने 12 दिसंबर 2015 को अपना पहला कार्यक्रम आयोजित किया। फरवरी 2016 में, उन्होंने CWE वर्ल्ड हैवीवेट चैम्पियनशिप जीती। वे 10 फरवरी 2022 को भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गये। फिल्में (2005) द लॉन्गेस्ट यार्ड (2008) गेट स्मार्ट (2010) मैकग्रबर (2010) कुश्ती (2010) रामा : द सेवियर (2012) हौबा! ऑन द ट्रेल ऑफ मार्सुपिलामी सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ डबल्यूडबल्यूई प्रोफ़ाइल जीवित लोग अभिनेता पहलवान 1972 में जन्मे लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0%20%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A5%81%E0%A4%A8
वीर अर्जुन
वीर अर्जुन हिन्दी का एक दैनिक समाचारपत्र है। इसका प्रकाशन १९५४ में दिल्ली से हुआ। के. नरेन्द्र इस पत्र के सम्पादक थे। अपने सम्पादकीय-लेख के कारण यह पत्र विशेष प्रसिद्ध रहा। वीर अर्जुन का अपना विशेष पाठक वर्ग था। कभी महाशय कृष्ण की लौह लेखनी उसमें आग उगलती थी। के. नरेन्द्र के सम्पादकीय के कारण ही उसकी लोकप्रियता रही है। आजकल प्रभात सस्करण बन्द हो गया और सांध्य 'वीर अर्जुन' प्रकाशित हो रहा है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी 'वीर अर्जुन' के संपादक हुआ करते थे। जब वे संपादक थे, उनके संपादकीय की बुद्धिजीवियों और राजनेताओं में खूब चर्चा होती थी। उन दिनों जब लोगों के हाथों में 'वीर अर्जुन' आता था, तब वे सबसे पहले संपादकीय पढ़ा करते थे। ऐसा था उनकी लेखनी का जादू। संदर्भ दैनिक समाचार पत्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/2016%20%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%A8%20%E0%A4%93%E0%A4%B2%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%9C%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
2016 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में जॉर्जिया
जॉर्जिया निर्धारित है में प्रतिस्पर्धा करने के लिए 2016 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में रियो डी जनेरियो, ब्राज़िल, 5 से 21 अगस्त, 2016. इस देश की लगातार छठे उपस्थिति में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में पोस्ट-सोवियत युग. पदक विजेता तीरंदाजी जॉर्जियाई तीरंदाजों योग्य प्रत्येक के लिए महिलाओं की घटनाओं के सुरक्षित होने के बाद, एक शीर्ष आठ में खत्म रिकर्व टीम में 2015 विश्व तीरंदाजी चैंपियनशिप में कोपेनहेगन, डेनमार्क. एथलेटिक्स जॉर्जियाई एथलीट अब तक हासिल की योग्यता के मानकों में निम्नलिखित एथलेटिक्स में घटनाक्रम (अप करने के लिए 3 के एक अधिकतम एथलीटों में प्रत्येक घटना के लिए): कुंजी नोट–रैंकों के लिए दिए गए घटनाओं को ट्रैक कर रहे हैं के भीतर एथलीट गर्मी केवल Q = योग्य अगले दौर के लिए q = योग्य अगले दौर के लिए के रूप में एक तेजी से हारे या, क्षेत्र में घटनाओं, द्वारा स्थिति को प्राप्त करने के बिना क्वालीफाइंग लक्ष्य NR = राष्ट्रीय रिकॉर्ड N/A = दौर के लिए लागू नहीं होता घटना अलविदा = एथलीट के लिए आवश्यक नहीं प्रतिस्पर्धा दौर में पुरुषों ट्रैक और सड़क की घटनाओं क्षेत्र की घटनाओं महिला क्षेत्र की घटनाओं कैनोइंग स्प्रिंट जॉर्जिया योग्य है एक ही नाव में पुरुषों के C-1 के लिए 200 मीटर के खेल के आधार पर एक शीर्ष दो राष्ट्रीय खत्म में 2016 यूरोपीय योग्यता रेगाटा में Duisburg, जर्मनी, वाचक देश की ओलंपिक में शुरुआत खेल. योग्यता किंवदंती: एफए = अर्हता प्राप्त करने के लिए अंतिम (पदक); अमेरिकन प्लान = अर्हता प्राप्त करने के लिए अंतिम बी (गैर-पदक) बाड़ लगाना जॉर्जिया में प्रवेश किया है एक तलवा में ओलंपिक प्रतियोगिता वाचक, देश के खेल के लिए वापसी के बाद से पहली बार 1996. सैंड्रो Bazadze दावा किया था, उसकी ओलंपिक में पुरुषों की सब्रे खत्म करके शीर्ष के बीच चार व्यक्तियों में यूरोपीय क्षेत्रीय क्वालीफायर में प्राग, चेक गणराज्य. जिमनास्टिक्स लयबद्ध जॉर्जिया योग्य है एक लयबद्ध जिमनास्ट के लिए अलग-अलग सब के आसपास परिष्करण में शीर्ष 15 में 2015 विश्व चैंपियनशिप में स्टटगार्ट, जर्मनी. Trampoline जॉर्जिया योग्य है एक जिमनास्ट में महिलाओं के trampoline के आधार पर एक शीर्ष आठ पर खत्म 2015 के विश्व चैंपियनशिप में ओडिन्सा, डेनमार्क. जूडो जॉर्जिया योग्य की कुल आठ judokas में से प्रत्येक के लिए निम्नलिखित वजन वर्गों में खेलों. सभी सात पुरुषों, द्वारा प्रकाश डाला लंदन 2012 चैंपियन लाशा Shavdatuashvili और दुनिया में कोई नहीं है। 1 बीज Avtandili Tchrikishviliथे, वें स्थान पर शीर्ष के बीच 22 पात्र judokas में IJF विश्व रैंकिंग की सूची 30 मई, 2016 है, जबकि डच में जन्मे एस्तेर Stam पर महिलाओं के मिडिलवेट (70 किग्रा) बन गया देश की पहली महिला खेल में, कमाई एक महाद्वीपीय कोटा स्थान से यूरोपीय क्षेत्र के रूप में उच्चतम स्थान पर रहीं जॉर्जियाई जुडोका के बाहर प्रत्यक्ष योग्यता की स्थिति है। जूडो टीम नामित किया गया था करने के लिए ओलंपिक रोस्टर पर 4 जून, 2016 है। पुरुषों महिला शूटिंग जॉर्जियाई निशानेबाजों के लिए योग्य है निम्न घटनाओं के आधार पर अपने सबसे अच्छा खत्म पर 2014 आईएसएसएफ वर्ल्ड शूटिंग चैंपियनशिप, 2015 आईएसएसएफ विश्व कप और यूरोपीय चैंपियनशिप या खेल, के रूप में लंबे समय के रूप में वे प्राप्त की न्यूनतम अर्हक अंक (MQS) के द्वारा 31 मार्च, 2016. उसे करने के लिए जा आठवें सीधे ओलंपिक, तीन बार के पदक विजेता पिस्टल शूटिंग नीनो Salukvadze में शामिल हो गए अपने बेटे Tsotne Machavariani किया जा करने के लिए आधिकारिक तौर पर नामित करने के लिए जॉर्जियाई टीम कर रही है, उन्हें पहले कभी माँ-बेटे मिलकर इतिहास में प्रतिस्पर्धा करने के लिए एक साथ एक ही संस्करण खेल की। योग्यता किंवदंती: Q = अर्हता प्राप्त करने के लिए अगले दौर; क्यू = अर्हता प्राप्त करने के लिए कांस्य पदक (बन्दूक) तैराकी जॉर्जिया प्राप्त हुआ है एक सार्वभौमिकता निमंत्रण से फिना भेजने के लिए दो तैराकों (एक पुरुष और एक महिला) ओलंपिक के लिए। टेनिस जॉर्जिया का दावा किया गया है में से एक छह आईटीएफ ओलंपिक में पुरुषों की एकल स्थानों के लिए भेजने Nikoloz Basilashvili (दुनिया में नहीं है। 101) में पुरुषों के एकल वर्ग में ओलंपिक टेनिस टूर्नामेंट है। भारोत्तोलन जॉर्जियाई भारोत्तोलक योग्य है, तीन पुरुषों के कोटा स्थानों के लिए रियो ओलंपिक के आधार पर संयुक्त टीम द्वारा खड़े अंक पर 2014 और 2015 में आईडब्ल्यूएफ विश्व चैंपियनशिपहै। टीम का आवंटन करना चाहिए, इन स्थानों के लिए अलग-अलग एथलीटों द्वारा 20 जून, 2016 है। इस बीच, एक अप्रयुक्त महिलाओं के ओलंपिक में स्थान के लिए सम्मानित किया गया जॉर्जियाई टीम द्वारा आईडब्ल्यूएफ, एक परिणाम के रूप में रूस के पूर्ण प्रतिबंध से खेल के कारण "कई सकारात्मक मामलों" के डोपिंग. कुश्ती जॉर्जिया योग्य की कुल ग्यारह पहलवानों में से प्रत्येक के लिए निम्नलिखित वजन वर्गों में ओलंपिक टूर्नामेंट है। उनमें से चार समाप्त हो गया के बीच में शीर्ष छह बुक करने के लिए ओलंपिक स्थलों में सभी पुरुषों की फ्रीस्टाइल घटनाओं को छोड़कर (65 और 74 किलो) पर 2015 विश्व चैंपियनशिपहै, जबकि चार और ओलंपिक बर्थ के लिए सम्मानित किया गया जॉर्जियाई पहलवानों, जो प्रगति करने के लिए शीर्ष दो के फाइनल में 2016 यूरोपीय योग्यता टूर्नामेंटहै। आगे के तीन पहलवानों ने दावा किया था शेष ओलंपिक स्लॉट बाहर दौर के लिए जॉर्जियाई रोस्टर में अलग-अलग दुनिया योग्यता टूर्नामेंट; उनमें से एक में पुरुषों की ग्रीको रोमन 98 किलो पर प्रारंभिक मिलने में उलानबातर, और दो अधिक पर अंतिम मिलने में इस्तांबुल. कुंजी: - जीत गिरावट के द्वारा. - निर्णय के द्वारा अंक - हारे हुए के साथ तकनीकी अंक हैं। - निर्णय के द्वारा अंक - हारे बिना तकनीकी अंक हैं। पुरुषों की फ्रीस्टाइल पुरुषों की ग्रीको-रोमन सन्दर्भ ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक
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पिरामिड आकार
पिरामिड जैसे ज्यामितीय आकार से मिलती जुलती संरचनाओं को पिरामिड कहते हैं। विश्व में बहुत सी संरचनाएँ पिरैमिड के आकार की हैं जिनमें मिस्र के पिरामिड बहुत प्रसिद्ध हैं। पिरामिड आकार की संरचनाओं की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके भार का अधिकांश भाग जमीन (आधार) के पास होता है। इस कारण प्राचीन सभ्यताओं में भी पिरामिड के रूप में अच्छे स्थायित्व वाले स्मारक बनाये जा सके। इन्हें भी देखें पिरैमिड (ज्यामिति) मिस्र के पिरामिड पिरामिड
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निकोलस पूरन
निकोलस पूरन (जन्म २ अक्टूबर १९९५) एक त्रिनिदादियन क्रिकेटर है जो वेस्टइंडियन घरेलू मैचों में त्रिनिदाद और टोबैगो और कैरीबियाई प्रीमियर लीग (सीपीएल) में रेड स्टील के लिए खेलते है। २०१४ सीजन में वह सीपीएल में खेलने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी रहे है। IPL 2022 में सनराइजर्स हैदराबाद (SRH) ने 10.75 करोड़ रुपए की बड़ी कीमत चुकाकर पूरन को खरीदा, पूरन का बेस प्राइस 1.5 करोड़ रुपए था। सन्दर्भ वेस्ट इंडीज़ के क्रिकेट खिलाड़ी 1995 में जन्मे लोग बाएं हाथ के बल्लेबाज विकेटकीपर जीवित लोग त्रिनिदाद और टोबैगो के लोग
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टेलनेट
टेलनेट (टेलिटाइप नेटवर्क) एक द्विदिशी संवादात्मक आवागमन सुगमता प्रदान करने के लिए इंटरनेट या स्थानीय क्षेत्र नेटवर्क पर इस्तेमाल किये जाने वाला नेटवर्क प्रोटोकॉल है। आमतौर पर, टेलनेट एक दूरस्थ होस्ट पर एक आभासी टर्मिनल कनेक्शन, जो ट्रान्समिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल (TCP) के ऊपर एक 8-बिट बाइट उन्मुख डेटा कनेक्शन को एकमत करता है, के माध्यम से एक कमांड-लाइन इंटरफेज़ का अधिगम प्रदान करता है। उपयोगकर्ता डेटा TELNET नियंत्रण जानकारी के साथ बैंड में फैले हुए हैं। टेलनेट, RFC 15 के साथ 1969 में विकसित हुआ, RFC 854 में विस्तारित हुआ और इंटरनेट इंजीनियरिंग टास्क फोर्स (IETF) इंटरनेट मानक STD 8 के रूप में पहले इंटरनेट मानकों में से एक मानकीकरण किया गया। शब्द टेलनेट उस सॉफ्टवेयर को भी संदर्भित कर सकता है जो प्रोटोकॉल का ग्राहक भाग लागू करते हैं। टेलनेट क्लाइंट अनुप्रयोग वस्तुतः सभी कंप्यूटर प्लेटफॉर्म के लिए उपलब्ध हैं। एक TCP/IP स्टैक के साथ अधिकांश नेटवर्क उपकरण और ऑपरेटिंग सिस्टम दूरदराज के विन्यास (विंडोज़ NT आधारित प्रणालियों सहित) के लिए एक टेलनेट सेवा का समर्थन करते हैं। टेलनेट के साथ सुरक्षा मुद्दों के कारण, दूरस्थ पहुँच के लिए इसका प्रयोग SSH के पक्ष में कम हो गया है। टेलनेट एक क्रिया के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। टेलनेट करना मतलब टेलनेट प्रोटोकॉल के साथ एक संबंध स्थापित करना, या आदेश पंक्ति ग्राहक या एक कार्यक्रम इंटरफ़ेस के साथ. उदाहरण के लिए, एक आम निर्देश हो सकता है: "अपना पासवर्ड बदलो, सर्वर से टेलनेट करो, लॉगिन और पासवर्ड कमांड चलाओ ." अत्यधिक प्रायः, एक उपयोगकर्ता एक यूनिक्स-जैसे सर्वर सिस्टम या नेटवर्क डिवाइस जैसे एक राउटर को टलनेटिंग कर रहे होंगे और उन्हें एक कमांड लाइन अंतरफलक या एक अक्षर आधारित पूर्ण स्क्रीन प्रबंधक प्राप्त होगा. कई सिस्टम पर, एक टेलनेट ग्राहक अनुप्रयोग संवादात्मक असंपूर्ण-TCP सत्र स्थापित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। आमतौर पर यह माना जाता है कि एक टेलनेट सत्र जो IAC (वर्ण 255) का प्रयोग नहीं करता कार्यात्मक रूप से समान है। लेकिन, मामला यह नहीं है, क्योंकि दूसरे नेटवर्क वर्चुअल टर्मिनल (NVT) नियम हैं जैसे, एक बेयर केरेज रिटर्न केरेक्टर (CR, ASCII 13), का NULL (ASCII 0) केरेक्टर द्वारा अनुसरण करना, जो टेलनेट प्रोटोकॉल को असंपूर्ण-TCP सत्र से अलग करता है। प्रोटोकॉल विवरण टेलनेट एक विश्वसनीय कनेक्शन-उन्मुख परिवहन पर आधारित एक ग्राहक-सर्वर प्रोटोकॉल है। आम तौर पर यह प्रोटोकॉल ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल (TCP) पोर्ट संख्या 23 के कन्नेक्शन की स्थापना के लिए प्रयोग किया जाता है, जहां एक टेलनेट सर्वर अनुप्रयोग (टेलनेटडी) सुन रहा होता है। टेलनेट, बहरहाल, TCP/IP से पूर्व-तिथि का है और मूल रूप से नेटवर्क कंट्रोल प्रोग्राम (NCP) प्रोटोकॉल पर चलाया गया था। 5 मार्च 1973 से पूर्व, टेलनेट सरकारी परिभाषा के बिना एक अनौपचारिक प्रोटोकॉल था। मूलतः, यह 7-बिट ASCII डेटा विनिमय करने के लिए एक 8 बिट चैनल का प्रयोग करता था। उच्च बिट सेट के साथ कोई भी बाइट एक विशेष टेलनेट अक्षर थी। 5 मार्च 1973 को, दो NIC दस्तावेजों: टेलनेट प्रोटोकॉल स्पेसिफिकेशन, NIC #15372 और टेलनेट ऑप्शन स्पेसिफिकेशनज़, NIC #15373 के प्रकाशन के साथ UCLA पर एक टेलनेट प्रोटोकॉल मानक परिभाषित किया गया। प्रोटोकॉल की कई एक्सटेंशन हैं, जिनमें से कुछ STD 32 के माध्यम से IETF दस्तावेजों STD 27, इंटरनेट मानकों के रूप में अपनाई गई हैं। कुछ एक्स्टेंशन व्यापक रूप से लागू की गयी हैं और अन्य IETF मानक ट्रैक पर प्रस्तावित मानक हैं। सुरक्षा जब टेलनेट शुरू में 1969 में विकसित किया गया था, तब नेटवर्कड कंप्यूटर के अधिकांश उपयोगकर्ता शैक्षणिक संस्थानों के कंप्यूटर विभागों, या बड़े निजी और सरकारी शोध सुविधाओं में थे। इस वातावरण में, सुरक्षा चिंता का इतना बड़ा विषय नहीं था, जितना की 1990 के दशक के बैंडविड्थ विस्फोट के बाद बन गई। इंटरनेट का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि और विस्तार से, अन्य लोगों के सर्वर को छिद्र करने की कोशिश करने वाले लोगों की संख्या ने एन्क्रिप्टेड विकल्पों को बहुत ज्यादा आवश्यक बना दिया. कंप्यूटर सुरक्षा में विशेषज्ञ, जैसे SANS इंस्टीटयूट, सुझाव देते हैं कि दूरदराज के लॉगिन के लिए टेलनेट का प्रयोग निम्नलिखित कारणों के लिए सभी सामान्य परिस्थितियों में बंद कर देना चाहिए: डिफ़ॉल्ट रूप से टेलनेट, कनेक्शन के ऊपर से भेजे गए किसी भी डाटा (पासवर्ड समेत) को एन्क्रिप्ट नहीं करता और तभी संचार पर छिप कर बातें सुनना और बाद में दुर्भावनापूर्ण प्रयोजनों के लिए पासवर्ड का उपयोग करना अक्सर अभ्यासिक होता है; कोई भी व्यक्ति जिसके पास टेलनेट इस्तेमाल किये जाने वाले दो होस्ट के बीच नेटवर्क पर स्थित गेटवे, राउटर, स्विच या हब का अधिगम है, वह गुज़रते हुए पैकेटों को राह में रोक सकता है और टीसीपीडंप और वायरशार्क जैसी अनेक आम उपयोगिताओं में से किसी के भी ज़रिये लॉगिन और पासवर्ड की जानकारी (या जो भी लिखा है) हासिल कर सकता हैं। टेलनेट के अधिकांश कार्यान्वयनों के पास कोई प्रमाणीकरण नहीं है जो सुनिश्चित करता हो कि दो वांछित होस्ट के बीच किया जा रहा संचार बीच में रोका ना जा सके. सामान्यतः उपयोग किये जाने वाले टेलनेट डेमॉन में कई वर्षों के पार खोजी गई कमजोरियां है। ये सुरक्षा संबंधी कमियों ने टेलनेट प्रोटोकॉल का उपयोग तेजी से गिरते हुए देखा है, विशेष रूप से सार्वजनिक इंटरनेट पर, सुरक्षित शैल (SSH) प्रोटोकॉल के पक्ष में, जो पहले 1995 में जारी किया गया। SSH टेलनेट की अधिकांश कार्यक्षमता प्रदान करता है, इसके इलावा मजबूत एन्क्रिप्शन, जो पासवर्ड जैसे संवेदनशील डेटा को राह में रोकने से बचाने के लिए और पब्लिक की प्रमाणीकरण, यह सुनिश्चित करने के लिए कि दूरदराज का कंप्यूटर वास्तव में वाही है जिसका वह दावा कर रहा है। जैसा अन्य प्रारंभिक इंटरनेट प्रोटोकॉल के साथ हुआ है, टेलनेट प्रोटोकॉल के विस्तार ट्रांसपोर्ट लेयर सिक्योरिटी (TLS) सुरक्षा और सिंपल औथेंन्टिकेष्ण एंड सिक्योरिटी लेयर (SASL) प्रमाणीकरण जो ऊपर लिखे मुद्दों का संबोधन करते हैं, उपलब्ध हैं। हालांकि, अधिकतर टेलनेट कार्यान्वयन इन विस्तारों का समर्थन नहीं करते और इनका कार्यान्वयन करने में अपेक्षाकृत कम रुचि रही है क्यूंकि SSH ज़्यादातर प्रयोजनों के लिए पर्याप्त है। TLS-टेलनेट का मुख्य लाभ होगा एक ग्राहक जिसके पास अभी तक सर्वर की संग्रहीत नहीं है उसको एक सर्वर होस्ट प्रमाणित करने के लिए प्रमाणपत्र-अधिकार द्वारा हस्ताक्षरित सर्वर प्रमाणपत्र का प्रयोग करने की क्षमता होना. SSH में, एक कमजोरी है कि जब तक सर्वर कुंजी हासिल नहीं हो जाती, उपयोगकर्ता को होस्ट के पहले सत्र पर विश्वास करना चाहिए. टेलनेट 5250 IBM 5250 या 3270 कार्यकेंद्र यंत्रानुकरण कस्टम टेलनेट ग्राहकों, TN5250/TN3270 और IBM सर्वरों के द्वारा समर्थित है। टेलनेट के ऊपर IBM 5250 डाटा धाराओं को पारित करवाने के किये बनाये गए ग्राहक और सर्वर आम तौर पर SSL एन्क्रिप्शन का समर्थन करते हैं क्यूंकि SSH 5250 यंत्रानुकरण शामिल नहीं करता है। OS/400, के अंतर्गत, पोर्ट 992 सुरक्षित टेलनेट के लिए डिफ़ॉल्ट पोर्ट है। वर्तमान स्थिति 2000 के दशक के मध्य से, जबकि टेलनेट प्रोटोकॉल स्वयं ही दूरदराज के लॉगिन के लिए ज़्यादातर अधिक्रमण किया गया है, अक्सर समस्याओं के निदान के समय, मैन्युअल रूप से अन्य बिना ग्राहक सॉफ्टवेयर सेवाओं से बात करने के लिए, टेलनेट ग्राहक अभी भी उपयोग किये जाते हैं। उदाहरण के लिए, यह कभी कभी नेटवर्क सेवाओं जैसे SMTP, IRC, HTTP, FTP, या POP3 सर्वर को डिबग करने के लिए सर्वर को आदेश जारी करने और प्रतिक्रियाओं की जांच करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस दृष्टिकोण में प्रतिबंध हैं, तथापि, क्योंकि टेलनेट ग्राहक एक असंपूर्ण अक्षर मोड का उपयोग नहीं करता (टर्मिनल नियंत्रण हेन्डशेकिंग तथा \377 एंव \15 के संबंध में विशेष नियमों के कारण). इस प्रकार, अन्य सॉफ्टवेयर जैसे nc (नेटकैट) या यूनिक्स पर सोकेट (यां विंडोज़ पर पुट्टी) सिस्टम प्रणाली प्रशासकों के बीच लोकप्रिय हैं, क्यूंकि वह तर्क के साथ कोई टर्मिनल नियंत्रण हेन्डशेकिंग डाटा नहीं भेजने के लिए बुलाए जा सकते हैं। टेलनेट विभिन्न आवेदन क्षेत्रों में लोकप्रिय है: होस्ट अनुप्रयोगों को अधिगम करने के लिए उद्यम नेटवर्क, जैसे, IBM अधिसंसाधित्र पर. नेटवर्क तत्वों का प्रशासन, जैसे, मोबाइल संचार नेटवर्क और कई औद्योगिक नियंत्रण प्रणालीयों में क्रोड़ नेटवर्क तत्वों के चालू करने, एकीकरण और रखरखाव में. इंटरनेट पर खेले गए MUD खेल साथ ही साथ टाल्क़र्ज़, MUSHes, MUCKs, MOOes और फिर उठ खड़े होने वाला BBS समुदाय. इंटरनेट क्लब खेल जैसे इंटरनेट शतरंज क्लब, नि: शुल्क इंटरनेट शतरंज सर्वर और इंटरनेट गो सर्वर. अंतःस्थापित प्रणाली मोबाइल डेटा संग्रह आवेदन जहां टेलनेट सुरक्षित नेटवर्क पर चलता हैं। एकाधिक उपयोगकर्ताओं का सहयोग जहां सत्र हस्तांतरण, गमागम, सहभाजन और असंगत सत्र की वसूली की क्षमता की आवश्यकता है। संबंधित RFCs RFC 854, TELNET प्रोटोकॉल विनिर्देश RFC 855, TELNET विकल्प निर्दिष्टीकरण RFC 856, TELNET द्विआधारी संचरण RFC 857, TELNET इको विकल्प RFC 858, TELNET सप्रेस गो अहेड विकल्प RFC 859, TELNET स्टेटस विकल्प RFC 860, TELNET टाइमिंग मार्क विकल्प RFC 861, TELNET एक्सटेंडिड विकल्प - लिस्ट विकल्प RFC 885, टेलनेट एंड ऑफ़ रिकॉर्ड विकल्प RFC 1041, टेलनेट 3270 रेजीम विकल्प RFC 1073, टेलनेट विंडोज़ साइज़ विकल्प RFC 1079, टेलनेट टर्मिनल स्पीड विकल्प RFC 1091, टेलनेट टर्मिनल-टाइपs विकल्प RFC 1096, टेलनेट X डिस्प्ले लोकेशन विकल्प RFC 1184, टेलनेट लाइन मोड विकल्प RFC 1205, 5250 टेलनेट इंटरफ़ेस RFC 1372, टेलनेट रिमोट फ्लो कंट्रोल विकल्प RFC 1572, टेलनेट एन्वायर्नमेंट विकल्प RFC 2217, टेलनेट कॉम पोर्ट कंट्रोल विकल्प RFC 2941, टेलनेट औथेंटिकेशन विकल्प RFC 2942, टेलनेट औथेंटिकेशन: केर्बेरोस संस्करण 5 RFC 2943, TELNET औथेंटिकेशन DSA के उपयोग से RFC 2944, टेलनेट औथेंटिकेशन: SRP RFC 2946, टेलनेट डाटा एनक्रिप्शन विकल्प RFC 4248, टेलनेट URI योजना RFC 4777, IBM की आई सिरीज़ टेलनेट वृद्धि टेलनेट ग्राहक पुट्टी विंडोज़, लाइनेक्स और यूनिक्स के लिए एक मुफ्त, खुला स्रोत SSH टेलनेट, आर-लॉगिन और असंपूर्ण TCP ग्राहक है। एब्सोल्यूटटेलनेट विन्डोज़ के लिए एक टेलनेट ग्राहक है। यह SSH और SFTP का भी समर्थन करते है, हमिंगबर्ड कन्नेकटीवीटी का होस्ट एक्स्प्लोरर भाग; यह टेलनेट, TN 3270, 5250, अन्साई और अन्य प्रोटोकॉल लागू करता है। IVT VT 220 NCSA टेलनेट टेराटर्म ज़ेफिर कोर्प से पासपोर्ट, दोनों नियमित निष्पादनयोग्य और एक वेब-आधारित SSH/टेलनेट आवेदन के रूप में उपलब्ध वैन डाइक सॉफ्टवेयर से सिक्योरCRT ZOC SSH ग्राहक इन्हें भी देखें आभासी टर्मिनल रिवर्स टेलनेट हाईटेलनेट केर्मिट SSH सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ टेलनेट विकल्प - निर्दिष्ट विकल्प संख्या की अधिकारी सूची iana.org पर टेलनेट अन्योन्यक्रियाएं एक अनुक्रम आरेख के रूप में वर्णित NVT संदर्भ के साथ, टेलनेट प्रोटोकॉल विवरण अनुप्रयोग स्तरीय प्रोटोकॉल स्पष्ट पाठ प्रोटोकॉल इंटरनेट का इतिहास इंटरनेट प्रोटोकॉल इंटरनेट मानक नेटवर्क-संबंधित सॉफ्टवेयर दूरदराज के प्रशासन सॉफ्टवेयर यूनिक्स नेटवर्क-संबंधित सॉफ़्टवेयर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%20%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0
मुक्त नवाचार
मुक्त नवाचार (Open innovation) से आशय वर्तमान सूचना युग में उस प्रकार की नवाचारी मानसिकता को बढ़ावा देने से है जो परम्परागत रूप से चली आ रही कॉरपोरेट अनुसन्धान मानसिकता (गुप्तता आदि) से उलटी है। यदि पीछे देखें तो १९६० के दशक में भी बढ़े हुए खुलेपन के लाभों और उनके कारणों पर चर्चा होना शुरू हो गयी थी। इन्हें भी देखें मुक्तस्रोत सॉफ्टवेयर बाहरी कड़ियाँ 20 INSPIRING OPEN SOURCE INNOVATION COMMUNITIES AND TOOLS FROM AROUND THE WORLD नवाचार
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राजपीपला राज्य
राजपीपला राज्य भारत का एक देशी राज्य था जिस पर गोहिल राजवंश ने ६०० से भी अधिक वर्षों तक (१३४० से १९४८ तक) शासन किया। भारत के अंग्रेजों से मुक्त होने के पश्चात १० जून १९४८ को इस राज्य का भारतीय संघ में विलय हो गया। राजपीपला के गोहिल राजवंश ने मध्यकाल में अहमदाबाद के सुल्तानों और मुगलों डटकर मुकाबला किया और अविजित रहे। इसी तरह आधुनिक काल में इन्होने वडोदरा के गायकवाड़ों तथा ब्रिटिश राज का भी मुकाबला किया। भारत के देशी राज्य
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मंठा
मंठा (Mantha) भारत के महाराष्ट्र राज्य के जालना ज़िले में स्थित एक गाँव है। यह इसी नाम की तालुका का मुख्यालय भी है। इन्हें भी देखें मंठा तहसील की देखरेख में 114 गांव हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार मंथा प्लस 114 गांवों की जनसंख्या 1,67,022 है। इनमें 51% पुरुष हैं जबकि 49% महिलाएं हैं। अनुसूचित जाति की जनसंख्या 16% है जबकि अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या लगभग 3% है। साक्षरता 61% है। [2] 2011 की जनगणना के अनुसार मंथा गांव की जनसंख्या 22,005 है, जिसमें 11,393 पुरुष और 10,612 महिलाएं हैं। साक्षरता 76.86%, पुरुष साक्षरता 84.26% और महिला साक्षरता 69.01% है। कुल घर 4210 हैं। हालांकि मंथा जालना जिले में है, यह लोकसभा या भारत के आम चुनावों के लिए परभणी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है। वर्तमान सांसद शिवसेना पार्टी के संजय (बंदू) जाधव हैं। मंथा महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव के लिए पर्तुर-मंथा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है। इस क्षेत्र से विधान सभा के वर्तमान सदस्य (विधायक) [भारतीय जनता पार्टी] के बबनराव लोनीकर हैं। मंथा की मिश्रित संस्कृति है, यहां विभिन्न संस्कृतियों के लोग एक साथ रहते हैं। विभिन्न समुदायों जैसे मुस्लिम, मराठा, बंजारों, बौद्ध आदि के लोग बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। रेणुका माता मंदिर शहर का मुख्य मंदिर है, यह आसपास के अन्य गांवों के लोगों को भी आकर्षित करता है। देवी रेणुका को "शहर की देवी" के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर शहर के उत्तर में एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है। शुक्रवार का दिन मंथा में साप्ताहिक हाट का होता है, इस दिन को मंथा में बड़ा दिन या महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। मंथा में आसपास के छोटे-छोटे गांवों से लोग साप्ताहिक खरीदारी के लिए आते हैं। साप्ताहिक बाजार का स्थान बस स्टैंड और सरकारी ग्रामीण अस्पताल (आरएच) के बीच है। सन्दर्भ जालना ज़िला महाराष्ट्र के गाँव जालना ज़िले के गाँव
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सिलहट इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम
सिलहट अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम () को सिलहट स्टेडियम के रूप में भी जाना जाता है और पहले सिलहट डिवीजनल स्टेडियम के रूप में जाना जाता है सिलहट, बांग्लादेश में एक क्रिकेट स्टेडियम है। 2014 आईसीसी विश्व ट्वेंटी 20 और 2014 आईसीसी महिला विश्व ट्वेंटी 20 के मैचों की मेजबानी करने के लिए स्टेडियम ने 2013 में पूरी तरह से विस्तार किया। स्टेडियम ने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मैच 17 मार्च 2014 को आयरलैंड के साथ जिम्बाब्वे पर आयोजित किया। सन्दर्भ
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सौभरि
सौभरि एक प्राचीन ऋषि जो बड़े तपस्वी थे । भागवत में इनका वृत्त वार्णित है । एक दिन यमुना में एक मत्स्य को मछलियों से भोग करते देखकर इनमें भी भोगलालसा उत्पन्न हुई । ये सम्राट मान्धाता के पास पहुँचे, जिनके पचास कन्याएँ थीं । ऋषि ने उनसे अपने लिये एक कन्या माँगी । मान्धाता ने उत्तर दिया कि यदि मेरी कन्याएँ स्वयंवर में आपको वरमाला पहना दें, तो आप उन्हें ग्रहण कर सकते हैं । सौभरि ने समझा कि मेरी बुढ़ौती देखकर सम्राट् ने टाल-मटोल की है । पर मैं अपने आपको ऐसा बनाऊँगा कि राजकन्याओं की तो बात ही क्या, देवांगनाएँ भी मुझे वरण करने को उत्सुक होंगी । तपोबल से ऋषि का वैसा ही रूप हो गया । जब वे सम्राट् मांधाता के अंतःपुर में पहुँचे, तब राजकन्याएँ उनका दिव्य रूप देख मोहित हो गई और सब ने उनके गले में वरमाल्य डाल दिया । ऋषि ने अपनी मंत्रशक्ति से उनके लिये अलग अलग पचास भवन बनवाए और उनमें बाग लगवाए । इस प्रकार ऋषि जी भोगविलास में रत हो गए और पचास पत्नियों से उन्होंने पाँच हजार पुत्र उत्पन्न किए । वह्वयाचार्य नामक एक ऋषि ने इनको इस प्रकार भोगरत देख एक दिन एकान्त में बैठकर समझाया कि यह आप क्या कर रहे हैं । इससे तो आपका तपोतेज नष्ट हो रहा है । ऋषि को आत्मग्लानि हुई । वे संसार त्याग भगवच्चिंतन के लिये वन में चले गए । उनकी पत्नियाँ उनके साथ ही गईं । कठोर तपस्या करने के उपरांत उन्होंने शरीर त्याग दिया और परब्रह्म में लीन हो गए । उनकी पत्नियों ने भी उनका सहगमन किया । ऋषि
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लाइब्रेरी (अभिकलन)
संगणक विज्ञान और सॉफ्टवेयर के सन्दर्भ में कम्प्यूटर प्रोग्रामों द्वारा उपयोग किये जाने वाले ऐसे संसाधनों को लाइब्रेरी (library) कहते हैं जो एक बार बनाकर बार-बार उपयोग में लाये जाते हैं। सॉफ्टवेयर विकास में लाइब्रेरियों का बहुत महत्व है। लाइब्रेरी के अन्तर्गत बहुत सी चीजें आतीं हैं जैसे आँकड़े, दस्तावेज, सहायता सम्बन्धी आंकड़े, सन्देश देने के टेम्पलेट, बने-बनाये कोड और सबरोटीन, क्लास, टाइप स्पेसिफिकेशन आदि। लाइब्रेरी का महत्व इस बात में है कि वे ऐसे मानकीकृत अवयव हैं जो दूसरे प्रोग्रामों में प्रयुक्त किये जाते हैं जिससे प्रोग्राम लिखने में समय की तो बचत होती ही है, त्रुटियाँ भी कम होतीं हैं। लाइब्रेरी मुख्यतः दो प्रकार की होती है, स्थैतिक लैब्रेरी और गतिक लाइब्रेरी। जो लाइब्रेरियाँ प्रोग्राम को 'बिल्ड' करते समय प्रोग्राम का अंग बना दी जातीं हैं, उन्हें स्थैतिक लाइब्रेरी (static library) कहते हैं। किन्तु कुछ लाइब्रेरियाँ तब काम में ली जातीं हैं जब उनको चाहने वाला प्रोग्राम चलाया जाता है अर्थात जब वह रैम में लोड किया जाता है। ऐसी लाइब्रेरियों को गतिक लाइब्रेरी (dynamic library) कहते हैं। ऐसा भी सम्भव है कि गतिक लाइब्रेरी तब लोड हो जब मुख्य प्रोग्राम का कुछ भाग चल चुका हो।
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मुंबई मेट्रो
मुम्बई मेट्रो भारत की आर्थिक राजधानी, मुम्बई में निर्माणाधीन एक रेल-आधारित परिवहन प्रणाली है। जून २००६ में भारत के प्रधानमंत्री, मनमोहन सिंह, ने इस प्रणाली के पहले भाग की नींव रखी। मेट्रो प्रणाली को बनाए रखने के लिए मुम्बई महानगर प्रदेश विकास प्राधिकरण है। महा मेट्रो मुंबई महानगर क्षेत्र को छोड़कर महाराष्ट्र में चल रही सभी मेट्रो रेल परियोजनाओं के लिए जिम्मेदार है। यह 15 साल की अवधि में तीन चरणों में बनाया जा रहा है, जिसके पूरा होने की उम्मीद अक्टूबर 2026 में है। मुंबई मेट्रो जनवरी 2023 तक की परिचालन लंबाई के साथ भारत में छठा सबसे लंबा परिचालन मेट्रो नेटवर्क है। पूरा होने पर, कोर सिस्टम में चौदह उच्च क्षमता वाली मेट्रो रेलवे लाइनें और एक मेट्रोलाइट लाइन शामिल होगी, जो कुल 356.972 किलोमीटर (221.812) तक फैली हुई है। mi) (24% भूमिगत, बाकी ऊंचा, ग्रेड में निर्मित मामूली हिस्से के साथ), और 286 स्टेशनों द्वारा सेवा प्रदान की जाती है। इतिहास बृहन्मुन्बई, भारत की वित्तीय राजधानी है। यह भारत की आर्थिक व व्यापारिक गतिविधिंयों का केन्द्रस्थान हैं। खासकर, यहाँ आस-पास ८८% लोक सार्वजनिक परिवहनका इस्तमाल करते हैं। अभीकी उपनगरीय रेल व्यवस्था मुंबईकरोंके जीवनमें बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। हररोज, ६० लाखसे अधिक लोक इस सेवेचा उपयोग करतात. 'बेस्ट' बस सेवा पण रेल्वे स्थानकांवर जाण्यास लोकं भरपूर वापरतात. परंतु भौगोलिक बाधांमुळे या सुविधा मागणीनुसार वाढू शकल्या नाही. योजना इन्हें भी देखें मुम्बई मोनोरेल दिल्ली मेट्रो रेल संदर्भ मुम्बई में परिवहन भारत में मेट्रो रेल मुंबई मेट्रो
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%80
त्यागी
त्यागी पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में पायी जाने वाली एक जमींदार ब्राह्मण जाति है। त्यागी परशुराम भगवान के वंशज हैं इन्होंने ही परशुराम भगवान के साथ मिलके अधर्मी क्षत्रिय राजाओं के खिलाफ युद्ध लड़ा था और जीता भी था त्यागी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी जमींदारी व् रियासतों से जाने जाते है। तलहैटा, निवाड़ी, असौड़ा रियासत, रतनगढ़, हसनपुर दरबार(दिल्ली), बेतिया रियासत, राजा का ताजपुर, बनारस राजपाठ, टेकारी रियासत, आदि बहुत सारे प्रमुख राजचिन्ह है। इसके अलावा सैकड़ो बावनी(बावन हजार बीघा जमीन वाले) गांव है। बनारस का राजघराना (विभूति साम्राज्य) काशी नरेश भी इसी परिवार से है। इसके अलावा ईरान, अफ़ग़ानिस्तान के प्राचीन राजा भी मोहयाल शाखा के यही थे। इनमे सबसे प्रमुख है अफ़ग़ानिस्तान का प्राचीन शाही साम्राज्य जो मोहयालो का महान साम्राज्य था जिन्होंने भारतवर्ष में सबसे पहले अरबो को युद्ध में धुल चटाई थी और ऐसी हार दी थी की अगले 300 साल तक कोई हमला नही कर पाए थे। त्यागी समाज की उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद, मेरठ, बागपत, हापुड़, गौतमबुद्धनगर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, शामली, मुरादाबाद और बिजनौर जिले के गाँव में अधिक संख्या है, इसके अलावा दिल्ली में छतरपुर, शाहदरा, शकरपुर, होलंबी कलां, मंडोली, बुराडी इत्यादि त्यागीयो के मुख्य गाँव है, हरियाणा के कुछ जिले जैसे कि सोनीपत, फरीदाबाद, गुडगाँव, पानीपत, रोहतक, पलवल और करनाल में भी त्यागीयो के गाँव मिलेंगे। मध्यप्रदेश के मुरैना मैं त्यागीयो के 45 गांव हैं जिसे पेतालिसी के नाम से जाना जाता है। इसमें प्रमुख तोर पै दीपेरा,निधान,चिन्नोनी करैरा, बदरपुरा(यही गालव पूर्व त्यागी ब्राह्मणों कि कुलदेवी माता सती का मंदिर है),खरिका,भटपुरा और चचिया जैसे गांव आते है।मध्यप्रदेश के भिंड मैं भी त्यागीयो के अच्छे खासे गांव है।नरसिंहपुर,सीहोर, आगर मालवा मैं भी त्यागीयो ठीक ठाक आबादी है। राजस्थान के धौलपुर मैं भी त्यागीयो के 40 गांव है जिसे चालीसी के नाम से जाना जाता है। यहां त्यागियो का अच्छा दबदबा है। दिल्ली के एक राजा ने भाइचारे की मिसाल देते हुए छतरपुर के पास तंवर(गुर्जरो) को दिल्ली के 8 गाँवो में बसाया था, जिनमें से एक प्रमुख गाँव (असोला फतेहपुर बेरी) आज भी छतरपुर के पास स्तिथ तंवर(गुर्जरों) का प्रमुख गाँव माना जाता है। गाजियाबाद के मुरादनगर में त्यागी समाज का इतिहास बहोत पुराना है यहां एक समय लगभग 40 गाँव का जमींदारा त्यागीयो पर था, उस समय के कुछ प्रमुख गाँव जो जमींदारी थी वो वर्तमान मे भी मौजूद है जिनमे प्रमुख तौर पर ग्राम [ बन्दीपुर ] और [ काकड़ा ] शामिल है जो उस समय अपनी जमींदारी के लिए जाने जाते थे। आजादी के समय मुरादनगर के ही 5 त्यागीयो के गाँव अंग्रेजो के खिलाफ बागी हो गए थे जिनमे ग्राम कुम्हैड़ा, खिंदौडा, भनेडा, ग्यास्पुर और सुहाना शामिल थे। सन्दर्भ राजस्थान के सामाजिक समुदाय Tyagi ke 40 gao rajsthan me nhi hai tyagi ke 40 gao up me hai jise chalishi kahte
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A8-%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
चीन-बेबीलोनवाद
चीन-बेबीलोनवाद एक प्रस्ताव है, जिसे अब अधिकांश विद्वानों ने खारिज कर दिया है, कि तीसरी सहस्राब्दी ई.पू. बेबीलोन क्षेत्र ने चीन को भौतिक सभ्यता और भाषा के आवश्यक तत्व प्रदान किए जिसकी वजह से वहां सभ्यता का प्रारम्भ हुआ। अल्बर्ट टेरियन डी लैकूपरी (1845-1894) ने पहली बार यह प्रस्तावित किया कि बड़े पैमाने पर बेबीलोनिया से चीन में स्थानान्तरण के ज़रिये प्रारंभिक सभ्यता के मूल तत्त्व चीन पहुंचे। लेकिन इस प्रस्ताव को मूल रूप से काफी हद तक अस्वीकृति मिली है। 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में, कभी-कभी हुआ-यी भेद पर आधारित तर्क चीनी बुद्धिजीवियों से यह अपील करते थे कि येलो सम्राट और अन्य महारथी ऐतिहासिक थे, मिथक नहीं। इसके विपरीत कुछ बुद्धिजीवी इस बात से इनकार करते थे कि प्रारंभिक चीन में विदेशी तत्व थे। 20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी की शुरुआत में, विद्वानों ने नए उत्खनित पुरातात्विक साक्ष्यों के उपयोग से यह साबित किया कि प्राचीन चीनी सभ्यता के कुछ विशेष तत्व पश्चिमी या मध्य एशिया से चीन में लाए गए थे और एशियाई महाद्वीप के दोनों तरफ के पक्षों के बीच भाषाई संबंध थे। समकालीन प्रस्ताव 2016 में, एक चीनी भू-रसायनज्ञ, सन वेइदॉन्ग ने तर्क दिया कि चीनी सभ्यता के संस्थापक मिस्र से आये थे और इसलिए वास्तव में चीनी नहीं थे। वे इस निष्कर्ष पर तब पहुंचे जब प्राचीन चीनी कांस्य वस्तुओं की रेडियोमेट्रिक डेटिंग में उन्होंने पाया कि उनकी रासायनिक संरचना चीन में पाए जाने वाले अयस्कों की तुलना में प्राचीन मिस्र के कांस्य अयस्कों के समान थी। सन ने तर्क दिया कि कांस्य युग की तकनीक को व्यापक रूप से मध्य एशिया और चीन में भूमि द्वारा 17 वीं और 16 वीं शताब्दी ई. में ह्य्क्सोस लोगों द्वारा लाया गया था। ये लोग मूल रूप से नील घाटी से आये थे और बाद में जब उनका राजवंश ध्वस्त हो गया तो वे लोग समुद्र के रास्ते भाग गए| सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%B8%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A5%8B%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%20%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%82%203
इस प्यार को क्या नाम दूं 3
इस प्यार को क्या नाम दूं? 3 एक भारतीय नाटक टेलीविजन श्रृंखला है जो 3 जुलाई 2017 से 6 अक्टूबर 2017 तक स्टार प्लस पर प्रसारित हुई। 4 लायंस फिल्म्स के तहत गुल खान द्वारा निर्मित, इसमें बरुन सोबती और शिवानी तोमर ने अभिनय किया। कहानी इलाहाबाद और मुंबई में सेट है। यह इस प्यार को क्या नाम दूं? का तीसरा सत्र है। कहानी यह शो इलाहाबाद में स्थापित दो बचपन के दोस्त देव और चांदनी की कहानी है। देव के पिता अपने छिपे हुए खजाने के लिए जाने जाने वाले मंदिर के मुख्य पुजारी हैं। देव के पिता को मूर्ति के गहने चोरी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है और देव की मां पर विदेशी होने का आरोप लगाया गया है। वे एक रहस्यमय व्यक्ति द्वारा मारे जाते हैं जिसके बाद चांदनी के पिता महंत बन जाते हैं। देव अपने छोटे भाई मीकू के साथ भागने पर मजबूर हो जाता है। ट्रेन से यात्रा करते समय, देव को अपने भाई को भीड़ से बचाने के लिए बाहर फेंकने के लिए मजबूर होना पड़ता है। देव अद्वाय सिंह रायजादा के वेश में इलाहाबाद लौट आए हैं। चांदनी और उसके परिवार को उसके परिवार के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए और उसके भाई से अलग होने के लिए, वह बदला लेने की योजना बना रहा है। वह उस घर को खरीद लेता है जिसमें वशिष्ठ रह रहे हैं, लेकिन उन्हें वहीं रहने देता है। चांदनी की शादी पीपी से तय हुई है, जो एक आलसी आदमी है जिसका परिवार उसकी सौतेली माँ का कर्ज चुकाने जा रहा है। अद्वै कई मौकों पर उसे उसके मंगेतर के व्यवहार से बचाता है लेकिन हर बार उसका अपमान भी करता है। चांदनी उलझन में है कि वह उससे इतनी नफरत क्यों करता है। वह उसकी शादी तोड़ देता है और उसे ब्लैकमेल करके जबरन उससे शादी कर लेता है कि वह उसके नाजायज बच्चे की सच्चाई का खुलासा करेगा जो वर्तमान में एक अनाथालय में रहता है। चांदनी अपने परिवार की इज्जत बचाने के लिए राजी हो जाती है लेकिन अद्वै को यह नहीं बताती कि बच्चा असल में उसकी बहन का है। वशिष्ठ परिवार की प्रतिष्ठा को खराब करने के लिए अद्वै वैसे भी इसका पर्दाफाश करता है। वह उन्हें घर से बाहर निकाल देता है लेकिन उसकी दादी चांदनी को पनाह देती है। वह चांदनी की बेगुनाही में विश्वास करती है और चांदनी से कहती है कि चाहे कुछ भी हो जाए, चाहे कुछ भी हो जाए, भले ही अद्वै भावनात्मक रूप से अपमानजनक और स्त्री विरोधी रहा हो। आखिरकार चांदनी और अडवाय के सामने सच सामने आ ही जाता है। चांदनी को पता चलता है कि अद्वाय उसका लंबे समय से खोया हुआ बचपन का दोस्त देव है और अद्वै को पता चलता है कि चांदनी हमेशा निर्दोष रही है। चांदनी की सौतेली माँ, असली अपराधी, को गिरफ्तार कर लिया जाता है और वह मिकू की तलाश करता है, उसे एडवाय के साथ फिर से मिलाता है। मीकू को चांदनी की बहन शिखा से प्यार हो जाता है और परिवार उनकी शादी करने की योजना बनाता है। कलाकार मुख्य बरुन सोबती – अद्वाय सिंह रायज़ादा / देव कश्यप शिवानी तोमर – चांदनी नारायण वशिष्ठ, देव की बचपन की दोस्त ऋतु शिवपुरी – इंद्राणी नारायण वशिष्ठ, मुख्य प्रतिपक्षी अन्य यश नारायण वशिष्ठ के रूप में तरुण आनंद, इंद्राणी के पति, डिप्टी महंत केतकी कदम, इंद्राणी की छोटी बेटी शिखा नारायण वशिष्ठ के रूप में मेघना नारायण वशिष्ठ के रूप में शगुन शर्मा, इंद्राणी की छोटी बड़ी बेटी समीर धर्माधिकारी महंत, अद्वाय और मीकू के पिता के रूप में, इलाहाबाद में एक काल्पनिक शिव मंदिर के मुख्य पुजारी अद्वाय की मां के रूप में मिताली नाग राजवीर सिंह रायज़ादा / मीकू के रूप में रणदीप मलिक, अद्वाय का छोटा भाई काजल के रूप में सीमा आज़मी, इंद्राणी की बहन जसवंत मेनारिया रजित के रूप में, काजल के पति इंद्राणी की बहन शकुन के रूप में सलीना प्रकाश जूही असलम शिल्पा के रूप में, अद्वाय की सहायक और जासूस, रायज़ादा घर की नौकर संजय चौधरी मुरली के रूप में, अद्वाय के सहायक और जासूस, रायज़ादा घर के नौकर पूजा रायज़ादा के रूप में ऋषिका मिहानी, अद्वाय की चचेरी बहन पूजा की मां लीला रायजादा के रूप में रितु चौधरी पूजा के बेटे आदित्य के रूप में कबीर अल्ताफ शाह स्मृति खन्ना साशा के रूप में, अद्वाय की प्रेमिका पर्ल वी पुरी सुशांत के रूप में, अद्वाय के दोस्त अतिथि इश्कबाज़ से शिवाय सिंह ओबेरॉय के रूप में नकुल मेहता, अद्वाय के करीबी दोस्त रेहाना मल्होत्रा साशा की दोस्त इश्कबाज़ से स्वेतलाना कपूर के रूप में बादशाह खुद के रूप में, आडवाणी और चांदिनी के विवाह समारोह के लिए एक विशेष उपस्थिति मीका सिंह खुद के रूप में उत्पादन रद्द करना श्रृंखला पर्याप्त रेटिंग तक नहीं पहुंच पाई और स्टारप्लस ने 70 एपिसोड पूरे करने के बाद शो को समाप्त कर दिया। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ हॉटस्टार पर इस प्यार को क्या नाम दूं 3 स्टार प्लस के धारावाहिक
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%98%E0%A4%A8
मेघन
मेघन मेघन, ससेक्स की डचेस ( / ˈmɛɡən / ; जन्म राचेल मेघन मार्कल ; 4 अगस्त, 1981) ब्रिटिश शाही परिवार की एक अमेरिकी सदस्य और पूर्व अभिनेत्री हैं । उन्होंने किंग चार्ल्स III के छोटे बेटे प्रिंस हैरी, ड्यूक ऑफ ससेक्स से शादी की है । मेघन का जन्म और पालन-पोषण लॉस एंजिल्स , कैलिफोर्निया में हुआ था । उनका अभिनय करियर नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में शुरू हुआ । उसने अमेरिकी टीवी कानूनी नाटक सूट में सात सीज़न (2011-2018) के लिए राहेल ज़ेन की भूमिका निभाई । उसने एक सोशल मीडिया उपस्थिति भी विकसित की, जिसमें द टाइग (2014-2017), एक जीवन शैली ब्लॉग शामिल था । टाइग अवधि के दौरान , मेघन मुख्य रूप से महिलाओं के मुद्दों और सामाजिक न्याय पर केंद्रित धर्मार्थ कार्यों में शामिल हो गईं । उन्होंने 2011 से 2014 में अपने तलाक तक अमेरिकी फिल्म निर्माता ट्रेवर एंगेल्सन से शादी की थी। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा मेघन का परिवार, ससेक्स की रानी राहेल मेघन मार्कल का जन्म 4 अगस्त, 1981 को कैनोगा पार्क, लॉस एंजिल्स , कैलिफोर्निया के वेस्ट पार्क अस्पताल में , डोरिया रैगलैंड (जन्म 1956), एक मेकअप कलाकार और थॉमस मार्कल सीनियर (जन्म 1944), एक एमी के घर हुआ था। पुरस्कार विजेता टेलीविजन प्रकाश निदेशक और फोटोग्राफी के निदेशक। [1] [2] वह मिश्रित जाति के रूप में पहचान करती है, अक्सर अपनी पृष्ठभूमि के बारे में सवालों का जवाब देती है "मेरे पिताजी कोकेशियान हैं और मेरी माँ अफ्रीकी अमेरिकी हैं। मैं आधा काला और आधा सफेद हूँ।" सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%8A
बाँगरमऊ
बाँगरमऊ (Bangarmau) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के उन्नाव ज़िले में स्थित एक नगर है। यह उन्नाव-हरदोई राजमार्ग पर स्थित है। प्रशासनिक प्रणाली में यह एक तहसील का दर्जा रखता है। ज़िला बनाने का अभियान वर्तमान में बाँगरमऊ को ज़िला बनाने की कवायद तेज गति से चल रही है। तीर्थस्थल और इतिहास बाँगरमऊ एक हिन्दू तीर्थ हि। यहाँ का राज राजेश्वरी मन्दिर उन्नीसवी शताब्दी के आरम्भ में स्थापित हुआ था। नगर के पश्चिम में बाबा बोधेश्वर का प्राचीन मन्दिर है। सन् 2009 में समीप ही स्थित संचन कोट में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को खुदाई में एक 2000 वर्ष पुराना शिव मन्दिर मिला। इन्हें भी देखें उन्नाव ज़िला उन्नाव सन्दर्भ उन्नाव ज़िला उत्तर प्रदेश के नगर उन्नाव ज़िले के नगर उन्नाव की तहसीलें
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%2C%20%E0%A4%AD%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%80
केदारपुर, भदोही
केदारपुर (Kedarpur) या केदारपुर उपरवार (Kedarpur Uparwar) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के भदोही ज़िले (संत रविदास नगर ज़िले) में स्थित एक गाँव है। यह गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है। विवरण केदारपुर गाँव वाराणसी और प्रयागराज के बीच स्थित भदोही ज़िले मे है। प्रयागराज वाराणसी मार्ग स्थित गोपीगंज बजार से 3 किमी पश्चिम केवलापुर से 5 किमी दक्षिण दूरी पर केदारपुर गाँव स्थित है। यह गाँव गंगा नदी के किनारे स्थित है। गाँव के पूरब मे गंगा नदी है, जो उत्तर की तरफ बहती है, इसलिए इस गाँव और इसके बगल के गाँवो को गुप्त काशी कहा जता है। गाँव के पूर्व मे ही गंगा जी के तट पर बाबा भोलेनाथ का मन्दिर है, और मंदिर के बगल उत्तर की तरफ गाव के बच्चो के लिये आंगनबाड़ी केंद्र है। गाँव के पश्चिम तरफ से एक रोड गया है जो गाँव को जीटी रोड से जोड़ता है। गाँव के दक्षिण-पश्चिम कोने पर शुक्लान गाँव है जो केदारपुर गाँव का ही हिस्सा है। केदारपुर के उत्तर मे बेरसपुर, दक्षिण मे गोपालपुर और पश्चिम मे इनारगाव गाँव स्थित है। इन्हें भी देखें भदोही ज़िला सन्दर्भ भदोही ज़िला उत्तर प्रदेश के गाँव भदोही ज़िले के गाँव
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%89%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A4%B0
जॉन कर
परममान्य सर जॉन रॉबर्ट कर () एक ब्रिटिश राजनीतिज्ञ थे। उन्हें 11 जुलाई 1974-8 दिसंबर 1977 के बीच, महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय द्वारा, ऑस्ट्रेलिया के गवर्नर-जनरल यानि महाराज्यपाल के पद पर नियुक्त किया गया था। इस काल के दौरान वे, महारानी के प्रतिनिधि के रूप में, उनकी अनुपस्थिति के दौरान शासक के कर्तव्यों का निर्वाह करते थे। इसके अलावा, अपने व्यवसायिक जीवन के दौरान, उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य की सेवा में, विश्व भर में विस्तृत विभिन्न ब्रिटिश उपनिवेशों में, अन्य अनेक महत्वपूर्ण व वर्चस्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवा दी थी। इन्हें भी देखें ऑस्ट्रेलिया ऑस्ट्रेलिया का राजतंत्र ऑस्ट्रेलिया के गवर्नर-जनरल ऑस्ट्रेलिया के महाराज्यपालगण की सूचि सन्दर्भ https://web.archive.org/web/20161104012900/http://australianpolitics.com/constitution/gg/governor-generals-since-1901 -महाराज्यपालगण की सूची बाहरी कड़ियाँ https://web.archive.org/web/20161116045332/http://www.gg.gov.au/ -आधिकारिक वेबसाइट ऑस्ट्रेलिया के गवर्नर-जनरल ऑस्ट्रेलिया के लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%20%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A4%A8
शिक्षा दर्शन
शिक्षा-दर्शन शिक्षाशास्त्र की वह शाखा है, जिसमें शिक्षा के सम्प्रत्ययों, उद्देश्यों, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों एवं शिक्षा सम्बन्धी अन्य समस्याओं के सन्दर्भ में विभिन्न दार्शनिकों एवं दार्शनिक सम्प्रदायों के विचारों का आलोचनात्मक अध्ययन किया जाता है। शिक्षा-दर्शन, दर्शन का ही एक क्रियात्मक पक्ष है, जिसका विवेचन अलग से न होकर दर्शन के अन्दर ही किया गया है। शिक्षा-दर्शन वास्तव में दर्शन होता है, क्योंकि उसमें भी अन्तिम सत्यों, मूल्यों, आदर्शों, आत्मा-परमात्मा, जीव, मनुष्य, संसार, प्रकृति आदि पर चिन्तन एवं उसके स्वरूप को जानने का प्रयास किया जाता है। शिक्षा एवं दर्शन के मध्य सम्बन्ध इस बात से भी स्पष्ट होता है कि जितने भी शिक्षाशास्त्री हुए हैं, वे सब महान दार्शनिक रहे हैं। शिक्षा ही वह माध्यम है, जिसके द्वारा दर्शन के सिद्धान्तों को अगली पीढ़ी तक पहुँचाया जा सकता है। अतः यह सत्य है कि शिक्षा द्वारा ही दर्शन का संरक्षण किया जा सकता है। विश्वविद्यालयों में, शिक्षा-दर्शन प्रायः पर शिक्षा विभागों या शिक्षा-कॉलेजों का हिस्सा होता है। शिक्षा का दर्शन प्लेटो प्लेटो का शैक्षिक दर्शन एक आदर्श गणराज्य की दृष्टि पर आधारित था, जिसमें व्यक्ति को अपने पूर्ववर्तियों से हटकर जोर देने के कारण एक न्यायपूर्ण समाज के अधीन होकर सबसे अच्छी सेवा दी जाती थी। मन और शरीर को अलग-अलग इकाई माना जाना था। अपने "मध्य काल" (360 ईसा पूर्व) में लिखे गए फादो के संवादों में प्लेटो ने ज्ञान, वास्तविकता और आत्मा की प्रकृति के बारे में अपने विशिष्ट विचार व्यक्त किए: जब आत्मा और शरीर एक हो जाते हैं, तब प्रकृति आत्मा को शासन करने और शासन करने और शरीर को आज्ञा मानने और सेवा करने का आदेश देती है। अब इन दोनों में से कौन सा कार्य परमात्मा के समान है? और कौन से नश्वर के लिए? क्या परमात्मा प्रकट नहीं होता ... वह होना जो स्वाभाविक रूप से आदेश और नियम करता है, और नश्वर वह है जो अधीन और दास है? इस आधार पर, प्लेटो ने बच्चों को उनकी माताओं की देखभाल से हटाने और उन्हें <b>राज्य के वार्ड के</b> रूप में पालने की वकालत की, विभिन्न जातियों के लिए उपयुक्त बच्चों को अलग करने के लिए बहुत सावधानी बरतते हुए, सबसे अधिक शिक्षा प्राप्त करने वाले, ताकि वे अभिभावक के रूप में कार्य कर सकें। शहर की और कम सक्षम लोगों की देखभाल। शिक्षा समग्र होगी, जिसमें तथ्य, कुशलता, शारीरिक अनुशासन और संगीत और कला शामिल है, जिसे उन्होंने प्रयास का उच्चतम रूप माना। सन्दर्भ इन्हें भी देखें शिक्षा दर्शन शिक्षा का दर्शन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B9
फ़िरोज़कोह
फ़िरोज़कोह या फ़िरूज़कूह (फ़ारसी: , अंग्रेज़ी: Fîrûzkûh या Turquoise Mountain) आधुनिक अफ़ग़ानिस्तान के ग़ोर प्रान्त में स्थित एक शहर था जो ग़ोरी राजवंश की प्रथम राजधानी थी। कहा जाता है कि अपने समय में यह विश्व के महान नगरों में से एक था लेकिन सन् १२२० के दशक में चंगेज़ ख़ान के पुत्र ओगताई ख़ान के नेतृत्व में मंगोल फ़ौजों ने इसपर धावा बोला और इसे तहस-नहस कर डाला। उसके बाद यह शहर इतिहास को खोया गया और इसका ठीक स्थान किसी को ज्ञात नहीं है। कुछ इतिहासकारों का मनना है कि ग़ोर प्रान्त के शहरक ज़िले में खड़ी जाम की मीनार इस शहर का अंतिम बाचा हुआ निशान है। इन्हें भी देखें ग़ोरी राजवंश मीनार-ए-जाम ग़ोर प्रान्त ओगताई ख़ान सन्दर्भ ग़ोरी साम्राज्य ग़ोर प्रान्त अफ़ग़ानिस्तान का इतिहास प्राचीन शहर अफ़्गानिस्तान के भूतपूर्व आबाद स्थान
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जादोपटिया चित्रकला
जादोपटिया चित्रकला, भारत में संताल जनजाति की एक परंपरिक लोक चित्रकला शैली है, जो इस समाज के इतिहास और दर्शन को पूर्णतः अभिव्यक्त करने की क्षमता रखती है। यह चित्रकला पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद, बीरभूम, बांकुड़ा, हुगली, बर्दमान और मिदनापुर जिलों के पटुआ समुदाय द्वारा बनायी जाने वाली पट-चित्रकला से भिन्न है। भ्रमवश जादोपटिया और पटुआ आर्ट को समान दृष्टि से देखा जाता है। वस्तुत: यह झारखंड के संताल परगना की लोकप्रिय है। इस चित्रकला के कलाकार खुद को चित्रकार कहते हैं, जबकि संताली में इन्हें जादो कहा जाता है। यह चित्रकला कभी समृद्ध अवस्था में थी, किंतु 1990 तक आते-आते यह लगभग लुप्त हो गयी थी। डाॅ. आर. के. नीरद ने इस चित्रकला को बचाने का अभियान 1990 में चलाया और इसे पहचान दिलायी। डाॅ. आर. के. नीरद झारखंड राज्य के दुमका जिले के निवासी हैं। झारखंड के सांस्कृतिक शोध के क्षेत्र में यह प्रतिष्ठित नाम है। डॉ. नीरद ने झारखंड के संताल परगना में संताल आदिवासी के बीच प्रचलित किसी रैखिक परंपरा और थाति पर सन् 1990 में खोज कार्य आरंभ किया। कई साल के प्रयास के बाद उन्होंने एक ऐसी चित्रकला परंपरा का पता लगाया, जो संताल जनजाति के मिथको, सांस्कृतिक व्यवहार, परंपरा और पर्व-त्योहार पर आधारित है, किंतु यह तब लगभग लुप्त हो चुकी थी, गैर आदिवासी समाज इस कला से अनभिज्ञ था, कला जगत में इसकी चर्चा नहीं थी और बिहार (तब झारखंड अलग राज्य नहीं बना था और झारखंड बिहार का ही हिस्सा था) सरकार के कला, संस्कृति, खेल-कूद एवं युवा विभाग को इस कला की जानकारी नहीं थी।डाॅ. आर. के. नीरद ने तब पहली बार इस चित्रकला के 10 वृद्ध कलाकारों को लेकर कार्यशाला की और समाचार-पत्रों में बड़े-बड़े आलेख लिख कर लोगों का ध्यान इस चित्रकला की ओर ओर खींचा। ऐसे मिली 'जादोपटिया पेंटिंग' को शैलीगत पहचान डाॅ. आर. के. नीरद ने सबसे पहले इस चित्रकला की शैलीगत विशेषता स्थापित की, फिर इसका नामकरण किया- 'जादोपटिया पेंटिंग'। दरअसल, तब इस चित्रकला शैली का कोई नाम नहीं था। दूसरी ओर इस चित्रकला से जुड़ी समुदाय की कोई जातीय पहचान नहीं थी। सरकार की सूची में इस समुदाय की जाति का कोई जिक्र नहीं है। इसके चित्रकार खुद को चित्रकर या चित्रकार कहते हैं, जैसा कि बंगाल और ओडिशा के लोगकलाकारों का एक समुदाय स्वयं को चित्रकर या चित्रकार (टाइटिल) बताता है। डाॅ. आर. के. नीरद ने इस जाति के टाइटिल को गौण माना और उनके द्वारा बनाये जाने वाले चित्रों के विषयों को प्रधानता दी। उन्होंने 11 ऐसे पट (स्क्रॉल) की खोज की, जो संताल परगना के इन कलाकारों द्वारा वंश परंपरा से बनाया जाता है। इसमें 'यमशासन' (मृत्यु के बाद मनुष्य के कर्म के आधार पर यमलोक में दी जानी वाली सजा की अवधारणा पर केंद्रित पेंटिग) नामक पट और उसके विषय को भी गौण माना, जबकि ये कलाकार तब (1990 के दशक में) सबसे ज्यादा बना रहे थे। कुछ साल बाद ही देशभर में पूर्ण साक्षरता अभियान शुरू हो चुका था और 'यमशासन' जैसे विषय कहीं-न-कहीं अंधविश्वास का पोषण करता था और उससे संताल जनजाति की सांस्कृतिक परंपरा प्रकट नहीं होती थी, अपितु संताली के साहित्यकार बाबूलाल मुर्मू 'आदिवासी' आदि ने 1970 के दशक के अपने साहित्य में इसे (यमशासन और इसे बनाने बनाने वाले कलाकारों को) ठग बता कर उसके बहिष्कार की अपील कर चुके थे। ऐसे स्थापित हुई 'जादोपटिया पेंटिंग' की सांस्कृतिक विशेषता तब डाॅ. आर. के. नीरद ने इसके जनजातिय सांस्कृतिक मूल्यों की पहचान स्थापित की और 'यमशासन' की जगह 'काराम विनती' को प्रधानता दी, जिसमें संताल के मिथकों के अनुसार, सृष्टि और मनव-जाति की उत्पत्ति की गाथा चित्रित की जाती है। डाॅ. आर. के. नीरद ने अन्य 10 विषयों के पटों (स्क्रॉल पेंटिंग) के विषयों को भी संताल जनजातीय समाज के सांस्कृति-मानवशास्त्रीय मूल्यों के आधार पर वर्गीकृत किया। उन्होंने इसकी शैलीगत विशेषताओं को स्थापित किया। इस प्रकार इस चित्रकला शैली को उन्होंने पहचान दिलायी। ऐसे हुआ 'जादोपटिया' नामकरण दरअसल,संताल परगपा में इस चित्रकला के कलाकार की कोई जातीय पहचान नहीं थी और इस चित्रकला शैली का भी कोई स्वतंत्र नाम नहीं था। डाॅ. आर. के. नीरद ने नामकरण के लिए दो विकल्प चुना- एक 'संताल पेंटिंग' और दूसरा 'जादोपटिया पेंटिंग'। यद्यपि की इस शैली में संताल जनजाति के मिथकों, सांस्कृतिक व्यवहार, परंपरा और धार्मिक-सांस्कृतिक अनुष्ठानों को चित्रित किया जाता है तथा इसके कलाकारों का जीवन व्यवहार संताल समाज के रिचुअल्स से जुड़ा है, तथापि संताल समाज के लोग इस चित्रकला को बनाते नहीं हैं, इसलिए इसे 'संताल पेंटिंग' कहना डॉ. नीरद को तर्कसंगज नहीं लगा। डॉ. नीरद इस पेंटिंग को बनानेवाले कलाकार समुदाय को भी पहचान देना चाहते हैं। अत: उन्होंने इस चित्रकला को 'जादोपटिया पेटिंग' नाम दिया और इसकी शैलीगत विशेषता एवं उसके लक्ष्ण निरूपित किये। डाॅ. आर. के. नीरद ने पाया कि इस कला को बनानेवाले लोग, जो खुद को चित्रकार या चित्रकर कहते हैं, संताल समाज में प्रेत-पुरोहित (मृत्यु संस्कार कराने वाला) के रूप में स्वीकृति और प्रतिष्ठित हैं। उन्हें संताली भाषा में 'जादो' (जादो बाबा) कहा जाता है, अत: इसी पहचान को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। इससे इन्हें 'चित्रकार' कहे जाने वाले कलाकारों के समूह से अलग पहचान मिल सकेगी और इसकी पेंटिंग भी अलग पहचान बना सकेगी। इस प्रकार डाॅ. आर. के. नीरद ने इसे 'जादोपटिया' पेंटिंग नाम दिया। इसमें 'जादो' का अर्थ के इस पेंटिंग को बनाने वाले कलाकार (जाति के अर्थ में) तथा 'पटिया' का अर्थ है पट यानी स्क्रॉल। ऐसे बनी 'अदिवासी चित्रकला अकादमी' डाॅ. आर. के. नीरद ने जादोपटिया पेंटिंग पर शोध तथा इसके प्रचार-प्रसार और विस्तार के लिए दुमका में 'आदिवासी चित्रकला अकादमी, शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना' की, जिसने इस कला को संरक्षण और संवर्धन दिया। डॉ. नीरद इसके अध्यक्ष बने। जादो द्वारा स्क्रॉल पर जादोपटिया चित्रकला चित्रित किये जाते हैं, जो गांव-गांव घूमते हुए स्क्रॉल दिखाते हैं और सृजन, मृत्यु और जीवन की पारंपरिक कहानियों गाते हुए अपना जीवनयापन करते हैं। स्क्रॉल में बीस या अधिक कहानी पैनल होते हैं जो लंबवत रूप से व्यवस्थित होते हैं, जो कहानी के गाए जाने पर अनियंत्रित किये जाते हैं। पुराने स्क्रॉल कपड़े पर चित्रित किए जाते थे। जादो द्वारा उपयोग किए जाने वाले ब्रश बकरी के बालों के गुच्छे होते थे, जो एक छोटी सी छड़ी या साही की कलम से बंधे होते थे। पहले चित्र वनस्पति पदार्थ या खनिजों से बने प्राकृतिक रंगों से बनाए जाते थे, जैसे काले रंग के लिए कालिख, लाल रंग के लिए सिंदूर और गहरे लाल भूरे रंग के लिए नदी के किनारे की लाल मिट्टी का इस्तेमाल करते थे। डॉ. आर. के. नीरद को इस कार्य हेतु सम्मान एवं पुरस्कार संताल जनजाति की लुप्तप्राय रैखिक थाती ‘जादोपटिया पेंटिंग’ और फिर ‘बैद्यनाथ पेंटिंग’, इन दो चित्रकला शैलियों के अनुसंधान, संरक्षण एवं संवर्धन के लिए केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय के पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता एवं झारखंड सरकार सांस्कृतिक कार्य निदेशालय द्वारा ‘यामिनी राय आदिवासी चित्रकला शोध सम्मान 2021’ सम्मान ली पोक्यू डी’ आर्ट गैलरी, नई दिल्ली द्वारा ‘नंदलाल बोस चित्रकला अनुसंधान सम्मान-2021 इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा भी सम्मान मिला। आर. टी. आई. पर लघु-शोध के लिए झारखंड सरकार से मीडिया फेलोशिप, ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल इंडिया से फेलोशिप तथा कई संगठनों से अवॉर्ड। संताल जनजातीय संस्कृति पर अध्ययन के लिए सांस्कृतिक कार्य निदेशालय, झारखंड सरकार से फेलोशिप। डाॅ. आर. के. नीरद की इन पुस्तकों में जादोपटिया का जिक्र ‘जनसरोकार के पत्रकार हरिवंश’, ‘संताली के अप्रतिम साहित्यकार बाबूलाल मुर्मू आदिवासी’, ‘झारखंड का चुनावी भूगोल’, ‘झारखंड की जनजातीय चित्रकला शैली : जादोपटिया’ ‘झारखंड की नयी चित्रकला शैली : बैद्यनाथ पेंटिंग’ ‘वाचिक परंपरा के उद्दात साहित्यकार-समालोचक : प्रो मनमोहन मिश्र’ सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ https://www.prabhatkhabar.com/vishesh-aalekh/1209743 https://www.prabhatkhabar.com/state/jharkhand/ranchi/neelam-nirad-and-3-other-jharkhand-women-grabs-senior-fellowship-of-ministry-of-culture-mtj https://www.drishtiias.com/hindi/printpdf/fellowship-to-4-women-from-jharkhand-including-neelam-nirad https://thenewspost.in/news/News-Update/jadopatiya-painter-neelam-neerad-received-the-senior-fellowship-award-from-the-ministry-of-culture-government-of-india-rOHq7qJ0p5 https://loktantra19.com/government-of-india-senior-fellowship-to-4-including-neelam-nirad/ https://beforeprintnews.com/fellowship-of-ministry-of-culture-government-of-india-to-4-women-of-jharkhand/ https://www.facebook.com/hashtag/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A4%… https://www.jagran.com/jharkhand/dumka-award-to-rk-nirad-21268425.html https://www.youtube.com/watch?v=CGfEmuaQ86o https://www.drishtiias.com/state-pcs-current-affairs/fellowship-to-4-women-from-jharkhand-including-neelam-nirad/print_manually https://www.prabhatkhabar.com/state/jharkhand/ranchi/neelam-nirad-and-3-other-jharkhand-women-grabs-senior-fellowship-of-ministry-of-culture-mtj https://www.jagran.com/jharkhand/dumka-award-to-rk-nirad-21268425.html भारतीय चित्रकला जनजातीय चित्रकला बिहार झारखंड लोक कला पश्चिम बंगाल
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE
कार्य शिक्षा
कार्य शिक्षा (Work Study या Cooperative education), शिक्षा की एक विधि है जिसमें कक्षा में शिक्षा देने के साथ-साथ विद्यार्थियों को समाजोपयोगी कार्यों की व्यावहारिक शिक्षा भी प्रदान की जाती है। कार्य शिक्षा को उद्देश्यपूर्ण और सार्थक शारीरिक श्रम माना गया हैं जो शिक्षण के अन्तरंग भाग के रूप में आयोजित किया जाता है। यह अर्थपूर्ण सामग्री के उत्पादन और समुदाय की सेवा के रूप में परिकल्पित होता है। बाहरी कड़ियाँ सर्वशिक्षा अभियान के तहत कार्य शिक्षा का प्रशिक्षण लेंगे विद्यार्थी ''Cooperative Education Cooperative Education and Internship Association (CEIA) National Commission for Cooperative Education (NCCE) Cooperative Education Division (CED) of the American Society for Engineering Education (ASEE) New England Association for Cooperative Education and Field Experience New York State Cooperative and Experiential Education Association (NYSCEEA) शिक्षाशास्त्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%9C%20%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%9F%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%BE%20%E0%A4%9F%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B8%20%28%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A6%E0%A5%A9%20%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A5%80%20%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%83%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A4%B2%E0%A4%BE%29
टीनेज म्यूटेंट निंजा टर्टल्स (२००३ टीवी श्रृंखला)
टीनेज म्यूटेंट निंजा टर्टल्स (अंग्रेजी: Teenage Mutant Ninja Turtles) जो TMNT 2003 के रूप में भी जाना जाता है, एक अमेरिकी एनिमेटेड टेलीविजन शृंखला है जो मुख्य रूप से न्यूयॉर्क शहर में कल्पित है। यह पहली बार अमेरिका में 8 फ़रवरी 2003 से प्रसारित होना शुरू हुआ और 28 फ़रवरी 2009 तक चला। यह शृंखला शनिवार की सुबह, कार्टून के रूप में मताधिकार के पुनरुद्धार के रूप में चिह्नित फॉक्स की फॉक्स बॉक्स प्रोग्रामिंग ब्लॉक (बाद में टीवी ४किड्स के रूप में जाना जाता है) के रूप में है। यह कार्टून नेटवर्क चैनल पर भारत में भी प्रसारित किया गया जिसमें इसे हिन्दी में डब करके दिखाया गया था। एपिसोड टीनेज म्यूटेंट निंजा टर्टल्स (२००३ टीवी शृंखला) एपिसोड की सूची वॉयस कास्ट हिंदी डबिंग क्रेडिट एयर की तारीख: ???? डबिंग स्टूडियो: साउंड एण्ड विजन इंडिया चैनल: कार्टून नेटवर्क डायरेक्टर: ???? अनुवादक: ???? सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक जालस्थल (अंग्रेजी) टीनेज म्यूटेंट निंजा टर्टल्स फ़ोक्स नेटवर्क कार्यक्रम अमेरिकी विज्ञान गल्प टेलिविज़न शृंखलाएँ अंग्रेज़ी भाषा के टीवी कार्यक्रम
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A3%E0%A5%80%20%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
रोहिणी नक्षत्र
रोहिणी नक्षत्र को वृष राशि का मस्तक कहा गया है। इस नक्षत्र में तारों की संख्या पाँच है। भूसे वाली गाड़ी जैसी आकृति का यह नक्षत्र फरवरी के मध्य भाग में मध्याकाश में पश्चिम दिशा की तरफ रात को 6 से 9 बजे के बीच दिखाई देता है। यह कृत्तिका नक्षत्र के पूर्व में दक्षिण भाग में दिखता है। यह नक्षत्र चन्द्रमा को विशेष प्रिय है। नक्षत्रों के क्रम में चौथे स्थान पर आने वाला नक्षत्र वृष राशि के 10 डिग्री-0'-1 से 23 डिग्री-20'-0 के बीच है। किसी भी वर्ष की 26 मई से 8 जून तक के 14 दिनों में इस नक्षत्र से सूर्य गुजरता है। इस प्रकार रोहिणी के प्रत्येक चरण में सूर्य लगभग साढ़े तीन दिन रहता है। इस नक्षत्र का स्वामी शुक्र है। योग- सौभाग्य, जाति- स्त्री, स्वभाव से शुभ, वर्ण- शूद्र है और उसका विंशोतरी दशा स्वामी ग्रह चंद्र है। रोहिणी नक्षत्र किसी भी स्थान के मध्यवर्ती प्रदेश को संकेत करता है। इस कारण किसी भी स्थल के मध्य भाग के प्रदेश में बनने वाली घटनाओं या कारणों के लिए रोहिणी में होने वाले ग्रहाचार को देखा जाना चाहिए। पुराण कथा के अनुसार रोहिणी चंद्र की सत्ताईस पत्नियों में सबसे सुंदर, तेजस्वी, सुंदर वस्त्र धारण करने वाली है। ज्यों-ज्यों चंद्र रोहिणी के पास जाता है, त्यों-त्यों उसका रूप अधिक खिल उठता है। चंद्र के साथ एकाकार होकर छुप भी जाती है। रोहिणी के देवता ब्रह्माजी हैं। रोहिणी जातक सुंदर, शुभ्र, पति प्रेम, संपादन करने वाले, तेजस्वी, संवेदनशील, संवेदनाओं से जीते जा सकने वाले, सम्मोहक तथा सदा ही प्रगतिशील होते हैं। मुँह, जीभ, तलवा, गर्दन और गर्दन की हड्डी और उसमें आने वाले अवयव इसके क्षेत्र हैं। इस नक्षत्र के जातक पतले, स्वार्थी, झूठे, सामाजिक, मित्राचार वाले, दृढ़ मनोबल वाले, बुद्धिशाली, पद-प्रतिष्ठा वाले, रसवृत्ति वाले, सुखी, संगीत कला इत्यादि ललित कलाओं में रस रखने वाले, देव-देवियों में आराध्य वाले मिलते हैं। जातक मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं। एजेंट्स, जज, फैंसी आइटमों के व्यापारी, जमीन, खेती, राजकीय प्रवृत्तियों द्वारा, साहित्य आदि से धन-वैभव और सत्ता प्राप्त करते हैं। जिस स्त्री का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ हो वह स्त्री सुंदर, सावधान, पवित्र, पति की आज्ञाकारिणी, माता-पिता की भक्त और सेवाभावी पुत्र-पुत्रियों से युक्त, ऐश्वर्यवान होती है। रोहिणी शुभ ग्रहों से युक्त या संबंधित होने के कारण नक्षत्र सूचित अंग, उपांग तथा मुँह, गले, जीभ, गर्दन, गर्दन के मणके के रोगों का प्रभाव होता है। रोहिणी की पहचान उसकी विशाल आँखें हैं। ( देखिये नक्षत्र सूची नक्षत्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%95%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%9A%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B7
अशोक का सिंहचतुर्मुख स्तम्भशीर्ष
सारनाथ में अशोक ने जो स्तम्भ बनवाया था उसके शीर्ष भाग को सिंहचतुर्मुख कहते हैं। इस मूर्ति में चार भारतीय सिंह पीठ-से-पीठ सटाये खड़े हैं। अशोक स्तम्भ अब भी अपने मूल स्थान पर स्थित है किन्तु उसका यह शीर्ष-भाग सारनाथ(वाराणसी) के संग्रहालय में रखा हुआ है। यह सिंहचतुर्मुख स्तम्भशीर्ष ही ईसमे प्रारूप समिति के अध्यक्ष भीमराव अंबेडकर ने इसमे अपनाने में एहम भूमिका निभाई थी भारत के राष्ट्रीय चिह्न के रूप में स्वीकार किया गया है। इसके आधार के मध्यभाग में अशोक चक्र को भारत के राष्ट्रीय ध्वज में बीच की सफेद पट्टी में रखा गया है।अधिकांश भारतीय मुद्राओं एवं सिक्कों पर अशोक का सिंहचतुर्मुख रहता है इन्हें भी देखें अशोक स्तम्भ सारनाथ संग्रहालय भारत के राष्ट्रीय प्रतीक भारतीय ध्वज अशोक चक्र (प्रतीक) सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ For Pictures of the famous original "Lion Capital of Ashoka" preserved at the Sarnath Museum which has been adopted as the "National Emblem of India" and the Ashoka Chakra (Wheel) from which has been placed in the center of the "National Flag of India" - See "lioncapital" from Columbia University Website, New York, USA National emblem of India National symbols of India The State Emblem of India or the National Emblem of India “National Insignia”, Embassy of India, Washington D.C., USA The National Emblem displayed on the Homepage of Ministry of Home Affairs, Government of India The National Emblem displayed on the Homepage of Ministry of Environment & Forests, Government of India स्तम्भशीर्ष, अशोक का सिंहचतुर्मुख
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%9F%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%B8%20%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B2%20%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
बैटलग्राउंड्स मोबाइल इंडिया
बैटलग्राउंड मोबाइल इंडिया (संक्षिप्त रूप में BGMI, जिसे पहले पबजी मोबाइल इंडिया के नाम से जाना जाता था ब्लूहोल (कंपनी)|) क्राफ्टन द्वारा विकसित और प्रकाशित एक ऑनलाइन मल्टीप्लेयर बैटल रॉयल गेम है। यह गेम विशेष रूप से भारतीय यूजर्स के लिए है। यह गेम 2 जुलाई 2021 को एंड्रॉइड (प्रचालन तंत्र)|एंड्रॉयड उपकरणों के लिए जारी किया गया था। इतिहास 2 सितंबर, 2020 को, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार ने चीनी अनुप्रयोगों के साथ-साथ पबजी मोबाइल पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसमें कहा गया था कि ऐप ऐसी गतिविधियों में लगे हुए थे जो भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए प्रतिकूल और खतरा थे। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69ए के तहत भारत की रक्षा, राज्य की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था नवंबर 2020 में, कुछ खबरें आईं कि पबजी मोबाइल भारत में वापस आ रहा है जिसका नाम PUBG Mobile India है। 24 नवंबर, 2020, पर प्रकाशित एक समाचार पर टाइम्स ऑफ इंडिया, कि सूचना PUBG निगम और दक्षिण कोरिया के वीडियो गेम कंपनी Krafton इंक पंजीकृत किया है PUBG इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के तहत कारपोरेट मामलों के मंत्रालय, भारत सरकार फिर से लॉन्च करने के लिए भारत में पबजी मोबाइल। मई 2021 में, यह पता चला कि पबजी मोबाइल भारतीय गेमिंग बाजार में प्रवेश करने के लिए खुद को बैटलग्राउंड मोबाइल इंडिया के रूप में रीब्रांड कर रहा था। उसके बाद 7 मई, 2021 को द इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर ने बताया कि, एक प्रेस बयान में क्राफ्टन ने पुष्टि की कि वे पबजी मोबाइल के समान गेम बैटलग्राउंड मोबाइल इंडिया लॉन्च करने जा रहे हैं। डेटा गोपनीयता संघर्ष एंड्रॉयड उपयोगकर्ताओं के लिए शुरुआती बीटा रिलीज़ के बाद, 21 जून, 2021 को, IGN India ने सबसे पहले बताया कि उपयोगकर्ताओं के एंड्रॉयड डिवाइस के बारे में डेटा Tencent के स्वामित्व वाले चीन सर्वरों को भेजा जा रहा था। द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, "इसके पीछे एक कारण पबजी मोबाइल अकाउंट ट्रांसफर फीचर के कारण हो सकता है कि क्राफ्टन BGMI खिलाड़ियों को अपने खाते और गेम डेटा को पबजी मोबाइल से BGMI में दिसंबर 2021 तक स्थानांतरित करने की अनुमति दे रहा है।" इस डेटा साझाकरण उल्लंघन के बाद , बैटलग्राउंड मोबाइल इंडिया के डेवलपर , क्राफ्टन को चीन स्थित सर्वरों के साथ डेटा साझा करने की समस्या को ठीक करने के लिए एक छोटा इन-गेम अपडेट जारी किया। हालाँकि, यह भी बताया गया था कि यदि कोई उपयोगकर्ता एप्लिकेशन डेटा को हटाता है तो गेम चीनी सर्वर पर पिंग कर सकता है। रिहाई खेल की घोषणा 6 मई 2021 को की गई थी। गेम का प्री-रजिस्ट्रेशन 18 मई 2021 को एंड्रॉइड यूजर्स के लिए शुरू किया गया था और गेम का अर्ली एक्सेस बीटा वर्जन 17 जून 2021 को केवल एंड्रॉइड यूजर्स के लिए जारी किया गया था। यह गेम 2 जुलाई 2021 को एंड्रॉयड उपकरणों के लिए जारी किया गया था। हालांकि बताया जा रहा है कि क्राफ्टन अपने आईओएस वर्जन को रिलीज करने पर काम कर रहा है। यह सभी देखें प्लेयरअननोन्स बैटलग्राउंड्स ब्लूहोल (कंपनी) संदर्भ बाहरी कड़ियाँ भारतीय खेल वीडियो गेम
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%AC%E0%A4%82%E0%A4%A7%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस - आईसीसीआर) भारत सरकार का स्वतंत्र संगठन है जिसकी स्थापना १९५० में हुई थी। इस संस्था का मुख्यालय आजाद भवन, नई दिल्ली में है। इस संगठन के क्षेत्रीय कार्यालय बंगलुरु, कोलकाता, चंडीगढ़, चेन्नई, जकार्ता, मॉस्को, बर्लिन, कैरो, लंदन, ताशकंद, अलमाटी, जोहान्सबर्ग, डरबन, पोर्ट ऑफ़ स्पेन और कोलंबो में हैं। यह संस्था भारत की संस्कृति और शिक्षा के विकास के अनेक कार्यों में संलग्न हैं। उद्देश्य् भारत तथा अन्य देशों के बीच सांस्कृतिक संबंध और पारस्परिक समझ स्थापित, पुनरूज्जीवित और उन्हें सुदृढ़ करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् की स्थापना की गई थी। संस्था की नियमावली के अनुसार इसके उद्देश्य निम्न हैंः अन्य देशों के साथ भारत के सांस्कृतिक संबंधों से संबंधित नीतियां और कार्यक्रम तैयार कर ना और उनके कार्यान्वयन में भागीदारी करना; भारत और अन्य देशों के बीच सांस्कृतिक संबंधों और पारस्परिक समझ को बढ़ाना और मजबूत करना; संस्कृति के क्षेत्रों में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से संबंध स्थापित करना और उन्हें विकसित करना। क्रियाकलाप परिषद् के प्रमुख क्रियाकलाप निम्नलिखित हैंः- भारत सरकार और अन्य अभिकरणों की ओर से विदेशी छात्रों के लिए छात्रवृत्ति योजनाओं का क्रियान्वयन तथा अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के कल्याण का पर्यवेक्षण करना; भारतीय नृत्य और संगीत सीखने के लिए विदेशी विद्यार्थियों को छात्रवृति प्रदान करना; प्रदशर्नियों का आदान-प्रदान; अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों और परिसंवादों का आयोजन एवं उनमें भाग लेना; विदेशों में प्रमुख सांस्कृतिक महोत्सवों में भाग लेना; विदेशों में 'भारत महोत्सवों' का आयोजन; मंचीय कलाकारों के दलों का आदान-प्रदान; अभिनय कलाकारों द्वारा विदेशों में व्याख्यान-प्रस्तुतियां आयोजित करना; विशिष्ट आंगुतक कार्यक्रमों का आयोजन करना जिनके अंतर्गत भारत में विदेशों के प्रमुख व्यक्तियों को गणमान्य व्यक्तियों से संवाद करने, व्याख्यान देने और गोलमेज चर्चा में उपस्थित होने और परस्पर हितों के मामले में राय बनाने वालों के साथ संवाद करने के लिए भारत आने के लिए आमंत्रित किया जाता है; विदेशों में स्थित विश्वविद्यालयों में भारतीय अध्ययन पीठों की स्थापना और प्रचालन; विदेशों में संस्थाओं को पुस्तकें, कलात्मक वस्तुएँ और संगीत वाद्ययंत्र भेंट स्वरूप देना; अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव के लिए दिए जाने वाले जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार के लिए सचिवालय उपलब्ध कराना, वार्षिक मौलाना आज़ाद स्मृति व्याख्यान और मौलाना आज़ाद के जन्म और निर्वाण वर्षगाठों का आयोजन; भारत और विदेशों में वितरण हेतु पत्रिकाओं का प्रकाशन; विदेशों में भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र तथा भारत में क्षेत्रीय कार्यालयों का संचालन; एक समृद्ध पुस्तकालय और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की पांडुलिपियों का रख-रखाव; दुर्लभ पांडुलिपियों का अंकीयकरण; पुस्तकालय अध्येतावृत्ति (फेलोशिप) प्रदान करना; हिंदी पत्रिका 'गगनांचल' के प्रकाशन सहित हिंदी संबंधित गतिविधियों को आश्रय प्रदान करना; विदेश मंत्रालय की ओर से परियोजनाओं को चलाना; और संबंधित क्षेत्र में अन्य सांस्कृतिक संस्थाओं/एजेंसियों के साथ समन्वय बैठाना। परिषद् के क्रियाकलाप इसकी शासी परिषद् द्वारा निर्धारित और अनुमोदित किए जाते हैं। परिषद् को इसके अध्यक्ष और सांविधिक निकायों अर्थात् शासी निकाय, साधारण सभा और वित्त समिति द्वारा मार्गदर्शन दिया जाता है। इन निकायों में सभी क्षेत्रों के विशेषज्ञ होते हैं, इनमें संसद के प्रतिनिधि, सांस्कृतिक पंडित, शिक्षाविद, सरकारी प्रतिनिधि, ललित एवं प्रतिमा कला के क्षेत्र के प्रतिष्ठित कलाकार, वैज्ञानिक, तकनीकी और अनुसंधान संस्थान सहित विश्वविद्यालय/संस्थाएं तथा परिषद् के उद्देश्यों में रूचि रखने वाले संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हैं। ये निकाय परिषद् के क्रियाकलापों को नीतिगत दिशा प्रदान करते हैं। महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार के लिए समय-समय पर इन निकायों की बैठक होती हैं। इनमें बजट, कार्रवाई योजना इत्यादि शामिल हैं। बाहरी कड़ियाँ भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद आधिकारिक जालघर भारतीय 'शक्ति' को विश्व में प्रसारित करना लक्ष्य : ICCR प्रमुख परिवार में बच्चों का विकास उचित प्रकार से होता है? सांस्कृतिक संस्थाएँ
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स्वेल्टर (फिल्म)
स्वेल्टर (अंग्रेजी Swelter) वर्ष 2014 की अंग्रेज़ी भाषा की अमेरिकी क्राईम-एक्शन प्रधान फिल्म है जिसे कैथ पार्मर ने सह रूप से निर्देशन और लेखन किया है। फिल्म की मुख्य भूमिकाओं में लैनी जेम्स, जीन क्लाउडे वेन डाम, ग्रांट बाॅअलर, जाॅश हेंडर्सन, डेनियल फेविले और एल्फर्ड माॅलिना शामिल है। जेम्स एक छोटे से कस्बे के शैरिफ है जिसे अपने स्याह अतीत के बारे में कोई याद नहीं है, पर जल्द ही उसका सामाना उसके पूर्व पार्टनरों से होता है जिनको विश्वास है कि उसने दस साल पहले की गई डकैती के पैसे अपने यहां छुपा रखे हैं। सारांश लास वेगास की कैसीनो में पांच नकाबपोश दस मिलियन डाॅलर की डकैती डालते है, लेकिन भागने के क्रम में उनका एक साथी सिक्युरिटी वालों की वजह से घायल होता है, वहीं सिर पर हुए आधात से बहोश होने उसे दल से अलग कर दिया जाता है, पर बाकियों को गिरफ्तार कर लिया जाता है। दस साल की बामशक्कत कैद से रिहा होकर स्टिलमैन (जीन क्लाउडे वेन डाम) और बाॅयड (जाॅश हेंडर्सन), केन (डेनियल फेविले) के साथ अपने दल के अगुवा और केन का सौतेला बड़ा भाई काॅले (ग्रांट बाॅअलर) को जेल पर हमला कर उसे आजाद कराते है। फिर एक बातूनी मैकेनिक के जरिए उनको मालूम होता है कि जिस शख्स को वे ढुंढ रहे वो बेकर नाम के कस्बे में हैं और अब वो वहां का शैरिफ है, जहाँ का डाॅक्टर से उसका मेलजोल है। दोनों की खोज में बेकर निकलने से पूर्व रास्ते में उनका खोजी पुलिस से सामना होता है, जिन्हें वे मार गिराते है। बेकर की स्थानीय क्लब बार में वे चारों अपने-अपने शौक व तरीकों से शैरिफ की जानकारी लेते हैं, और इत्तेफ़ाक से से काॅले को उस डाॅक्टर (एल्फ्रेड माॅलिना) से मालूम होता है कि शैरिफ बिशप खुद एक रहस्यमय शख्स है जिसे अपनी कोई बात याद नहीं। काॅले और केन बार में आवारा लोगों से झगड़े के हालात बनाते है, नतीजतन बार के कर्मचारी शैरिफ को मामला शांत करने के लिए फोन करता है। शैरिफ (लेनी जेम्स) की दखलांदजी से ही काॅले की तलाश पूरी होती है, शैरिफ बिशप ही उनका पुराना पार्टनर पाईक है, जिनका मानना है कि उसके यहां अब भी लूट के पैसे रखे हुए हैं। पर सिर में लगी गोली की चोट के बाद बिशप एकांत अमनेशिया और माईग्रेन जैसी तकलीफ स्थिति का सामना उसकी याददाश्त पर भी असर पड़ता है। काॅले बार में हुई झड़प से बिशप को बचाता है और बिशप भी उन आवारा बाईकर्स को गिरफ्त में ले लेता हैं। काॅले अपनी योजना बनाता है जिनमें लूट के पैसों की छानबीन में आने वाली संभावित रुकावटों से बचने के लिए वे बाॅयड को मोबाइल टावॅर तबाह करने का जिम्मा देता है। यहां स्टिलमैन के बदले रवैये को काॅले और केन महसूस करते हैं, कि अब शायद उसे पैसों में दिलचस्पी नहीं रही। वहीं काॅले भी बिशप की याददाश्त टटोलने के लिए एक शाॅप में मिलता है। काॅले उसे एक सिक्के का टाॅस दिखाकर याद दिलाने की कोशिश करता है, पर बिशप कोई प्रतिक्रिया नहीं करता और इसे बेमतलब ठहराता है, उसके मुताबिक जिसका उसे कोई नाता ही नहीं तो उससे सवाल करना भी फिजुल है। तब बिशप पर काॅले उसकी टेबल नीचे से अपनी रिवाॅल्वर तानता है, लेकिन बिशप तब किसी जरूरी काम के जल्द में निकल पड़ता है। काॅले उसके घर तक पहुंचता है, जहाँ उसकी बेटी लंदन (फ्रेया टिंजले) और उसकी मां कार्मेन (केटालीना सेन्डिनो) को पाता है, जो उसकी पूर्व प्रेमिका थी, लेकिन काॅले की कारावास के बाद वह बेकर में बस गई। काॅले दुबारा कार्मेन से अपनी चाहत का इजहार करता है, लेकिन कार्मेन उसे इंकार करती की बिशप ही अब उसका जीवनसाथी है। यहां बिशप टावॅर की टुट-फुट और एक मवेशी की गोली लगने की मौत का कारण ढुंढता है और संदेह की सुई उन्हीं चार अजनबियों पर टिकती है। बिशप अपने डाॅक्टर के यहां पहुंचता है लेकिन वह बुरी तरह घायल मिलता है, डाॅक्टर के मुताबिक यह सब काॅले ने उससे उन गुम हुए पैसों की पुछताछ करते हूए की है, वह मरते हूए बताता है कि बिशप उसे बुरी तरह से ज़ख्मी जानकर ही अपने पास ईलाज करने को लेकर आए थे, अब बिशप को उन बीती घटनाओं की झलक याद पड़ती है लेकिन बेहोशी के बाद पैसे कहां है यह याद नहीं पड़ती। उधर केन और बाॅयड भी शहर में अगली तबाही मचाने से पूर्व आराम फरमाते है। अपने ब्वायफ्रैंड से झगड़ा कर लंदन भावावेश में केन के साथ वक्त गुजारती है, लेकिन केन की सेक्स की पहल पर वह इंकार करती है और गुस्से में केन जबरन उसका बलात्कार कर देता है। वहीं बाॅयड भी शाॅप में एक वेटेर्स से छेड़छाड़ करता है, गुस्साया टाउन डिप्टी (जोकि एक ऑवार्ड विनिंग शार्पशूटर है) उसे रोकने पहुंचता है, लेकिन बाॅयड उसे भी चकमा देकर गोली मार देता है। वहीं लंदन की मां कार्मेन और उसके ब्वायफ्रैंड साथ लंदन साथ बार पहुंचती है, संयोग से गड़बड़ की आशंका से वहीं बैठे स्टिलमैन उनके साथ लंदन को ढुंढने निकलता है। लंदन का ब्वायफ्रैंड इस जुल्म से बिफरकर केन पर हमला करता है लेकिन केन के हाथों पिट जाता है, ऐसा ही वह लंदन की मां के साथ पिटाई करता है। स्टिलमैन के जोरदार हाथापाई बाद भी केन उसे धोखे से मार डालता है। इधर बिशप भी काॅले और बाॅयड को ढुंढता हुआ टाउन चर्च पहुँचता है और बाॅयड को डिप्टी को मारने के जुर्म में बिशप उसे भी खत्म करता है लेकिन काॅले की बुलाई बाईकर्स गैंग के जरिए फौरन पकड़ा जाता है। काॅले अब टाउनवासियों से बिशप के पूर्व में एक संगीन अपराधी होने का राज बताता है जिसके बदले में वह चर्च को आग लगाकर कल सवेरे तक लुट के पैसे मिलने की समयसीमा की धमकी देता है। बिशप अब निहत्था और लोगों की मदद पाने में असहाय पाकर हार मानता है, लेकिन कार्मेन के दिलासे भरी बात और कार्मेन द्वारा छुपाई अपनी पुरानी वाईल्ड वेस्ट रिवाॅल्वर पाकर बिशप निर्णायक फैसला लेता है। अगली सूबह स्थानीय डाईनर पर बिशप खुद को सरेंडर करने काॅले के यहां पहुंचता है, लेकिन केन अपनी उग्रता में लंदन को अपनी ढाल बनाकर उसे मारने की धमकी देता है, मामला बिगड़ते देख बाईकर्स गैंग वहां से खिसक लेते है। बीच बचाव की तेजी में अगले ही पल बिशप तब हैरान हो जाता है जब काॅले अपने ही सौतेले-भाई केन को शूट कर देता है। इन सबके बाद बिशप और काॅले आखिरकार अकेले एक दूसरे को मारने को डाईनर से बाहर आते है, और बिशप यहां अपनी फूर्तीले बचाव की वजह से काॅले को मार गिराता है। अब शहर चुंकि बिशप के आपराधिक जीवन को जानती है तो वह वहां से भागने को निकलने की कोशिश करता है, लेकिन अब तक उसकी निःस्वार्थ सेवाओं को देखकर टाउनवासी उसे दुबारा शैरिफ की नियुक्ति लौटाती है। बिशप उनकी मंजूरी मान लेता है और आखिर के एरियल शाॅट में हमें वह गुम हुआ पैसा भी दिख जाता है। भूमिकाएँ निर्माण प्रदर्शन बाॅक्स-ऑफिस प्रदर्शन बाहरी कड़ियाँ सन्दर्भ 2014 की फ़िल्में अंग्रेज़ी फ़िल्में अमेरिकी फ़िल्में हॉलीवुड
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गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री
गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री (सन 1904 ईस्वी -- ) साहित्य, न्याय-शास्त्र और वेदान्त दर्शन के अध्येता विद्वान, तंत्र-विद्या के ज्ञाता, संस्कृत गद्य और पद्य के लेखक और आशुकवि थे। गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री, तैलंग ब्राह्मणों के आत्रेय गोत्र में कृष्ण-यजुर्वेद के तैत्तरीय आपस्तम्ब में मूलपुरुष श्रीव्येंकटेश अणणम्मा और शिवानन्द गोस्वामी के वंशज थे। इनके पिता का नाम गोपीकृष्ण गोस्वामी और माता का नाम काशी देवी था। कवि शिरोमणि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री इनके बहनोई थे। इनका विवाह मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में ओरछा राजगुरुओं के परिवार में हुआ। साहित्यिक अवदान गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री ने ‘आदर्श्यौदार्यम्’ (नाटक), ‘वंशप्रशस्ति’ (अपने वंश का इतिहास) और 'ललित कथा कल्पलता' (संस्कृत-कहानी संग्रह) के अलावा करीब २५ अन्य पुस्तकों की रचना की है। 'दिव्यालोक' नामक मौलिक संस्कृत महाकाव्य की रचना इनका सबसे बड़ा साहित्यिक अवदान है। इन्होनें लगभग सभी विधाओं में साहित्य सर्जन किया है, यहाँ तक कि मौलिक रचनाओं के अलावा अन्य भाषाओँ की प्रसिद्ध कृतियों का संस्कृत में अनुवाद भी किया है । इनमें आचार्य चतुरसेन शास्त्री का उपन्यास ‘आम्रपाली’ तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर का उपन्यास ‘चोखेर बाली’ (जिसे ‘उद्वेजिनी’'' नाम से अनुवादित किया), ‘आँख की किरकिरी’ आदि उल्लेखनीय हैं। इनकी रचनाओं की विविधता से प्रभावित हो कर केन्द्रीय साहित्य अकादमी की प्रसिद्ध संस्कृत पत्रिका ‘संस्कृत प्रतिभा’ के तत्कालीन संपादक डॉ॰ वी.राघवन आग्रह करके इनसे पत्रिका के लिए लगभग सभी अंकों में गद्य अथवा पद्य रचना लिखवाते थे। सन 1945 से 1979 तक इनकी रचनाएँ देश की विभिन्न संस्कृत पत्रिकाओं में छपती रहीं। संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान देवर्षि कलानाथ शास्त्री के अनुसार इनकी एक अन्य विशेषता यह भी थी कि वे प्रत्येक वसंत ऋतु में वसंत के स्वागत में कविता, गद्य या नीति अवश्य लिखते थे। उनकी वसंत का स्वागत करती ऐसी ही एक रचना का अंश है – “किंशुककदम्बकुंज गुंजितमधुपपुंज लोचनललामलोकमनोहरवसन्त प्रियवर वसन्त”, जिसे पढ़ कर कवि निराला की याद आ जाती है। ये बहुत से ऐसे पद्य लिखते थे जिनके प्रथम अक्षरों से किसी का नाम या कोई वाक्य बन जाये। आशुकवि होने के कारण संस्कृत सम्मेलनों में वे ऐसी प्रशस्तियां मिनटों में पद्यबद्ध करके सुना दिया करते थे। इन्होंने अपने पूर्वज शिवानन्द गोस्वामी के ग्रन्थ 'सिंह-सिद्धांत-सिन्धु' पर भी शोधात्मक लेखन और सम्पादन भी किया।। अहमदाबाद में रह कर इन्होंने रामानंद दर्शन पर अनेक लेख एवं पुस्तकें लिखीं और अपनी उत्तरावस्था अपने पूर्वजों के जागीरी ग्राम महापुरा में व्यतीत करते हुए रवीन्द्रनाथ टैगोर की 'गीतांजलि' सहित कुछ अन्य रचनाओं का संस्कृत में अनुवाद किया। गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री ने चरित्र काव्य के रूप में उपन्यास विधा की विशिष्ट शैली में जगद्गुरु स्वामी रामानन्दाचार्य जी का ‘आचार्य विजय’ नाम से जीवन चरित्र लिखा, जिसमें न केवल उनके सिद्धान्त, बल्कि उनका पूरा जीवन-वृत्त, दर्शन, शास्त्रार्थों, उपदेश यात्राओं, शिष्यों, मान्यताओं तथा रामानन्द संप्रदाय के इतिहास का भी सम्पूर्णता के साथ समावेश है। रामानंद सम्प्रदाय के विद्वान मानते हैं कि संस्कृत जगत में ‘श्रीशिवराजविजय’ के बाद सुललित प्रबंध के रूप में यदि कोई अन्य ग्रन्थ है तो वह गोस्वामी जी द्वारा लिखित कालजयी ग्रन्थ ‘आचार्य विजय’ ही है, जो पहली बार अयोध्या से १९७७ में प्रकाशित हुआ था। इस विशाल गद्यकाव्य में ५९ परिच्छेद हैं, जहाँ बीच बीच में पद्य भी हैं। अतः इसे ‘चम्पूकाव्य’ भी कहा जा सकता है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी हरिकृष्ण शास्त्री का संस्कृत में लिखे इस ग्रन्थ के माध्यम से रामानंद संप्रदाय को योगदान इतना महत्वपूर्ण माना गया कि संप्रदाय के कुछ पीठाधीश्वरों ने इसके हिंदी अनुवाद के साथ पुनः प्रकाशन की योजना बनाई जिसके तहत रेवासा धाम, सीकर तथा हंसा प्रकाशन के द्वारा सन २०११ में ‘श्रीआचार्यविजय’ (हिंदी अनुवाद) के नाम से यह ग्रन्थ उपलब्ध हुआ। राजकीय सेवा तथा अन्य संप्रदायों को योगदान विवाह के बाद गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री टीकमगढ़ (मध्य प्रदेश) में शिक्षाविभाग में अध्यापक हो गए थे, किन्तु १९४५ में पिता की मृत्यु के बाद वे जयपुर लौट आये। अपने पैतृक गाँव महापुरा में इन्होंने सबसे पहले जो 'संस्कृत पाठशाला' स्थापित की थी, वही आज पल्लवित हो कर राजकीय स्नातकोत्तर संस्कृत कॉलेज बन गया है। इन्होंने राजस्थान सरकार के जागीर कमिश्नर कार्यालय, आयुर्वेद विभाग आदि में भी लिपिकीय सेवा की और बाद में वे राजस्थान संस्कृत शिक्षा निदेशालय बन जाने पर साहित्याध्यापक, प्रोफ़ेसर तथा उदयपुर, अजमेर, नाथद्वारा आदि कई राजकीय संस्कृत महाविद्यालयों के प्राचार्य रहे। वे राजस्थान राजकीय सेवा से सन १९६७ में सेवानिवृत्त होकर संस्कृत साहित्य की सेवा में लग गए। गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री के वैदुष्य से प्रभावित होकर अनेक संप्रदायों, महंतों व पीठाधीश्वरों ने उन्हें सम्मान देकर अपना “शास्त्री” बनाया। अमरेली, कामवन आदि पुष्टिमार्गीय (वल्लभाचार्य) पीठों में वे गोस्वामी सुरेश बावा जैसे अनेक आचार्यों एवं महंतों के गुरु रहे। उसके बाद उन्होंने अहमदाबाद के पास पालड़ी में स्थित रामानन्द सम्प्रदाय के कौशलेन्द्र मठ में वेदांत के विभागाध्यक्ष बन कर अपार ख्याति अर्जित की। यहीं उनसे अनुरोध किया गया था कि वे जगद्गुरु स्वामी रामानन्दाचार्य का संस्कृत में विशाल जीवन चरित्र लिखें। पुरस्कार गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री को १९७८ में राजस्थान संस्कृत अकादमी ने उनके काव्य ‘दिव्यालोक’ पर 'महाकवि माघ पुरस्कार' प्रदान दिया और 'गोस्वामी-सभा' द्वारा इन्हें 'गद्य-पद्य-सम्राट' की उपाधि प्रदान की गई।। राजस्थान सरकार की योजना के अंतर्गत संस्कृत दिवस के अवसर पर उन्हें विशिष्ट विद्वान के रूप में भी सम्मानित किया गया। गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर शोध-कार्य भी हुआ तथा डॉ॰ सरला शर्मा को उनके शास्त्रीजी पर लिखे शोध प्रबंध पर राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा पी.एचडी. की उपाधि प्रदान की गई है । निधन इनका देहावसान 1979 में महापुरा में हुआ।। बाहरी कड़ियाँ https://web.archive.org/web/20120501074308/http://www.sanskrit.nic.in/DigitalBook/I/Inventory%20of%20Sanskrit%20Scholars.pdf / page 86 सन्दर्भ संस्कृत साहित्यकार भारतीय साहित्यकार राजस्थान के लोग संस्कृत साहित्य संस्कृत आचार्य संस्कृत विद्वान साहित्य संस्कृत कवि आधुनिक संस्कृत साहित्यकार जयपुर के लोग संस्कृत संपादक 1909 में जन्मे लोग
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रेस 2
रेस २ टिप्स म्यूज़िक के बैनर तले बनी, अब्बास-मस्तान द्वारा निर्देशित एक्शन थ्रिलर फ़िल्म है। यह २००८ की फ़िल्म रेस की उत्तरकृत्ति है जिसमें अभिनय कलाकारों में अल्प बदलाव भी किया गया है जिसमें अनिल कपूर और सैफ़ अली ख़ान क्रमशः अपने रोबर्ट डीकोस्टा और रणवीर सिंह की अभिनय भूमिका में हैं जबकि दीपिका पादुकोण, जॉन अब्राहम, जैकलिन फर्नांडीस और अमीषा पटेल अतिरिक्त कलाकारों के रूप में जुड़े हैं। बिपाशा बसु ने अपना सोनिया मार्टिन का अभिनय अतिथि भूमिका के रूप में निभाया है। इसका कुल बजट था, रेस 2 25 जनवरी 2013 को जारी की गई और समालोचकों से मिली जुली समीक्षा प्राप्त की और टिकट खिड़की पर अच्छा प्रदर्शन करते हुए घरेलू सिनेमाघरों में कमाए। यह २०१३ में प्रदर्शित फ़िल्मों में प्रथम फ़िल्म है जो १०० करोड़ क्लब में शामील हुई। बॉक्स ऑफिस इंडिया के अनुसार फ़िल्म घरेलू सिनेमा में अर्ध-सफल रही और विश्वस्तर पर सफल फ़िल्म रही। पटकथा एक डकेती होती है जिसमें यूरोपीय प्रिटींग प्रेस की प्लेट चोरी हो जाती हैं। व्यवसाई रणवीर सिंह (सैफ़ अली ख़ान) इस समाचार को दूरदर्शन (टीवी) पर देखता है और पिछले नुकसान की भरपाई के लिए इसका लाभ उठाने का प्रयास करता है। रणवीर यूरो प्रिटींग प्लैटों को चोरी करने का नाटक करके विक्रम थापर (राजेश खट्टर) को ठगता है और अपनी योजना में सफल हो जाता है। वह विक्रम को इतनी बुरी तरह से लुटता है कि वह इस्तांबुल, तुर्की में स्थित अपने कैसीनो भी खो बैठता है। यह लूट रणवीर एक योजना के तहत करता है जो उसने एक सप्ताह पहले पूर्व सड़क सेनानी और वर्तमान माफिया नेता अरमान मलिक (जॉन अब्राहम) के साथ करता है। रणवीर का अरमान से परिचय उसका दोस्त रोबर्ट डीकोस्टा (अनिल कपूर) और उसकी मंद बुद्धि सहायिका चेरी (अमीषा पटेल) द्वारा करवाया जाता है। इस लूट के बाद केवल १०% धन में थापर के कैसीनों का मालिकाना हक अरमान को देता है। इस समझोते के साथ रणवीर और अरमान की दोस्ती हो जाती है। रणवीर अरमान की चोटी बहन एलिना (दीपिका पादुकोण) के साथ रोमांस भी करता है, जो उसके सभी उपक्रमों में ५०% की भागीदारी भी रखती है और साझेदारी आरम्भ करने के लिए उसके साथ एक रात भी बिताती है। अरमान और एलिना द्वारा रखी गई एक दावत में रणवीर अरमान की गर्लफ्रैण्ड ओमिशा (जैकलिन फर्नांडीस) से मिलता है और रणवीर अपनी बीवी सोनिया (बिपाशा बसु) की एक तस्वीर उसके बटुए में देखता है। वह वहाँ करतबबाजियों से उसे अपनी और आकर्षित करता है जहाँ वह उसकी जानकारी के बिना ही उसकी पोषाक को काट देता है और उसे देखे बिना ही वहाँ से चला जाता है। रणवीर अरमान के साथ एक और सौदे पर विचार-विमर्श करता है जिससे वो अपार धन प्राप्त कर सकें। अरमान पुनः तैयार हो जाता है। बाद में, रणवीर आरडी को बताता है कि वह अरमान को धनवान बनाने की योजना नहीं बना रहा बल्कि वास्तव में वह अरमान को इतनी बुरी तरह से लुटने की योजना बना रहा है कि वह अपनी पूरी सम्पति खो देगा और गलियों का भिखारी बनने को मजबूर हो जायेगा। सोनिया की अरमान के हाथों हत्या का बदला लेना रणवीर की योजना का एक हिस्सा है। वह प्रतिज्ञा करता है कि जब तक अरमान को बर्बाद नहीं कर देता, तब तक वह सोनिया के अन्तिम क्रियाक्रम पूरे नहीं करेगा। रणवीर इसके बाद ओमिशा के साथ सम्पर्क स्थापित करता है, जो उसे बताती है कि वह सोनिया की बहन तान्या है और वह भी बदला लेना चाहती है। ओमिशा रणवीर की इस योजना में सहायता करने के लिए सहमत हो जाती है। मगर, रणवीर के वहाँ से निकलते ही, रणवीर ओमिशा के घर का पता लगाता है, जहाँ यह पता चलता है कि वह वास्तव में सोनिया की बहन नहीं है, लेकिन अरमान के लिए काम करती है। तथापि, रणवीर यह नहीं जानता और अब भी विश्वास करता है कि वह सोनिया की बहन है। कलाकार दीपिका पादुकोण - एलिना मलिक सैफ़ अली ख़ान - रणवीर सिंह अनिल कपूर - रोबर्ट डि'कोस्टा (आरडी) जॉन अब्राहम - अरमान मलिक जैकलिन फर्नांडीस - ओमिशा अमीषा पटेल - चेरी बिपाशा बसु - सोनिया (नी मार्टिन) (केमियो) राजेश खट्टर - विकम थापर आदित्य पंचोली - गोडफादर आन्ज़ा आतिफ़ असलम - "बे इन्तेहाँ" गाने में केमियो उपस्थिति में स्वयं प्रदर्शन रेस 2 भारत में एक साथ 3200 पर्दों पर प्रदर्शित की गई; यह तब तक की तीसरा सबसे बड़ा प्रदर्शन था, इससे अधिक पर्दों पर प्रदर्शित होने वाली फ़िल्मों में एक था टाइगर (3300 पर्दे) और दबंग 2 (3700 पर्दे) थी। टिकट खिड़की भारत बॉक्स ऑफ़िस इण्डिया के अनुसार रेस 2 ने मल्टीप्लेक्स (बहुपर्दा) और एकल पर्दा सिनेमाघरों में "मजबूत शुरुआत" की अय्र लगभग 60%–70% सिनेमा घर दर्शकों से भरे रहे। इस फ़िल्म का पहला दिन बहुत अच्छा रहा और कुल की कमाई की। इसने अपने दूसरे दिन भी अच्छी बढ़त प्राप्त की और लगभग की कमाई की तथा शनिवार की कमाई के आधार पर तब तक की चौथी सबसे बड़ी फ़िल्म साबित हुई। रेस 2 की प्रथम सप्ताह की कमाई अच्छी रही और रविवार को अर्जित करते हुए कुल कमाई तक पहुँचा दी। रेस 2 सोमवार को गिर गई और मात्र ही अर्जित कर पायी। भारत से बाहर संगीत गीत सूची फ़िल्म रेस २ का संगीत प्रीतम मे तैयार किया है। इसमें पाँच और भी गाने हैं। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक जालस्थल भारतीय फ़िल्में हिन्दी फ़िल्में 2013 में बनी हिन्दी फ़िल्म
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प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद
प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद या 'पीएमईएसी' भारत में प्रधानमंत्री को आर्थिक मामलों पर सलाह देने वाली समिति है। इसमें एक अध्यक्ष तथा चार सदस्य होते हैं। इसके सदस्यों का कार्यकाल प्रधानमंत्री के कार्यकाल के बराबर होता है। आमतौर पर प्रधानमंत्री द्वारा शपथ ग्रहण के बाद सलाहकार समिति के सदस्यों की नियुक्ति होती है। प्रधानमंत्री द्वारा पदमुक्त होने के साथ ही सलाहकार समिति के सदस्य भी त्यागपत्र दे देते हैं। इतिहास १७ मई २०१४ को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पदमुक्त होने के समय इस समिति के प्रमुख चक्रवर्ती रंगराजन थे। इसके चार अन्य सदस्य थे- सौमित्र चौधरी, वी.एस. व्यास, पुलिन बी. नायक और दिलीप एम. नचाने। कार्य आर्थिक सलाहकार परिषद एक स्वतंत्र निकाय है, जिसका कार्य आर्थिक मुद्दो पर सरकार को ,विशेष कर प्रधानमंत्री को सलाह देना है। यह सलाह अपनी ओर से अथवा प्रधानमंत्री द्वारा सौपें गये किसी विषय पर हो सकती है। इसके अतरिक्त प्रधानमंत्री द्वारा सोपें गये किसी अन्य कार्य को अंजाम देना भी इसके कार्यो में शामिल है। सन्दर्भ भारत सरकार
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कोसला
कोसला यह भारतीय लेखक भालचंद्र नेमाडे द्वारा १९६३ में प्रकाशित एक मराठी भाषा का उपन्यास है। इसे नेमाडे की सर्वोत्तम रचना के रूप में माना जाता है, और मराठी साहित्य के एक आधुनिक क्लासिक साहित्य के रूप में स्वीकार किया जाता है। उपन्यास की कथा एक युवक, पांडुरंग संगविकर और उसके दोस्तों के महाविद्यालय के वर्षों से आगे की यात्रा को बयान करता है। इस उपन्यास में लेखक ने आत्मकथा के रूप का उपयोग किया है। कोसला को मराठी साहित्य में पहला अस्तित्ववादी उपन्यास माना जाता है। प्रकाशन के बाद से, इसके खुले अंत और विभिन्न विवेचनों के लिए इस उपन्यास को अनेक रूप में देखा गया है। यह उपन्यास १९६० के बाद के मराठी उपन्यासों का एक आधुनिक क्लासिक बन गया है, और इसका आठ दक्षिण एशियाई भाषाओं में और अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। इसके प्रकाशन के साथ नेमाडे तेजी से अपनी पीढ़ी के प्रतिनिधि लेखक माने जाने लगे। कोसला पर आधारित नाटक मी, पांडुरंग संगविकर , का निर्देशन मंदार देशपांडे ने किया हैं। प्रकाशन कोसला यह भालचंद्र नेमाडे का पहला उपन्यास है और इसकी कल्पना और लेखन उन्होंने अपने जीवन के मुम्बई के चरण के दौरान किया था। २१ साल की उम्र में, नेमाडे अपनी पत्रकारिता आकांक्षाओं में विफल हो गयें, और अपने गांव लौट आए। उन्हे अपने पिता द्वारा वहाँ पर झिड़क दिया गया था, क्योंकि वें निराश थे कि उनके बेटे ने एक महंगी शिक्षा को खत्म करने का जोखिम उठाया और डरपोक की तरह पिछे मुड़ गए। सन् १९६३ में, नेमाडे २५ वर्ष के थे और अपने गाँव में रह रहें थे। खुद को वे हिंदू राजा त्रिशंकु की तुलना में देखते थें, क्योंकि उन्हें भी न तो शहर और न ही उनके गांव के परिवार द्वारा स्वीकारा गया। उन्होंने घर के एक कमरे में खुद को बंद कर दिया और तीन सप्ताह की अवधि में अपना उपन्यास लिखा। कोसला को उसी साल सितम्बर में जे. जे. देशमुख द्वारा प्रकाशित किया गया, जो नेमाडे को मुम्बई से जानते थे और उन्हे लिखने के लिए प्रोत्साहित किया करते थे। कथा कोसला पांडुरंग संगविकर के जीवन के पहले पच्चीस वर्षों को दिखाने के लिए प्रथम-व्यक्ति कथा तकनीक का उपयोग करता है। यह एक ग्रामीण परवरिश का युवक है जो अपनी उच्च शिक्षा के लिए पुणे जाता है। वह अपनी नई सामाजिक स्थिती में अलग महसूस करता है, और निरंतरता की यह भावना उसे घर लौटने के लिए प्रेरित करती है। वहाँ, वह अपनी बहन की मृत्यु, उसके पिता के प्रभुत्व और अपनी स्वयं की वित्तीय निर्भरता के साथ आगे के मोहभंग का सामना करता है। उपन्यास का उद्देश्य पांडुरंग, एक युवा लड़के के दृष्टिकोण से समाज को चित्रित करने का है। पात्र उपन्यास के मुख्य पात्र है: पांडुरंग संगविकर - उपन्यास के नायक, और एक गाँव के अमीर किसान का इकलौता बेटा। उनके हॉस्टल के साथी छात्र उन्हें उनके उपनाम पांडु से बुलाते हैं। पांडुरंग के पिता - एक संयुक्त परिवार के मुखिया और उनके गाँव के एक अमीर और सम्मानित व्यक्ति। मणी - पांडुरंग की छोटी बहन। गिरिधर - पांडुरंग का ग्राम मित्र। सुरेश बापट - पुणे में पांडुरंग का कॉलेज मित्र। अनुवाद कोसला का आठ भारतीय भाषाओं में और अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। उपन्यास के उपलब्ध अनुवाद इस प्रकार हैं: संदर्भ उपन्यास मराठी साहित्य
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हौज़ खास परिसर
हौज़ ख़ास, दक्षिणी दिल्ली में हौज़ ख़ास परिसर में एक पानी की टंकी, एक मदरसा, एक मस्जिद, एक मकबरा और एक शहरीकृत गाँव के चारों ओर बने मंडप हैं, जिनका मध्यकालीन इतिहास दिल्ली सल्तनत के शासनकाल की १३वीं शताब्दी का है। यह अलाउद्दीन खिलजी राजवंश (१२९६-१३१६) के दिल्ली सल्तनत के भारत के दूसरे मध्यकालीन शहर सिरी का हिस्सा था। फारसी में हौज़ खास नाम की व्युत्पत्ति 'हौज़': "पानी की टंकी" (या झील) और 'खास': "शाही" - शब्दों से हुई है। सिरी के निवासियों को पानी की आपूर्ति करने के लिए अलाउद्दीन खिलजी (परिसर पर प्रदर्शित पट्टिका इस तथ्य को रिकॉर्ड करती है) द्वारा पहली बार बड़ी पानी की टंकी या जलाशय का निर्माण किया गया था। फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ (१३५१-८८) के शासनकाल के दौरान टंकी से मिट्टी हटाई गई। कई इमारतों (मस्जिद और मदरसा) और मकबरों को पानी की टंकी या झील के सामने बनाया गया था। फ़िरोज़ शाह का मकबरा एल – आकार के भवन परिसर में घूमता है जो टंकी को देखता है। १९८० के दशक में १४वीं से १६वीं शताब्दी तक मुस्लिम राजघराने के गुंबददार मकबरों से जड़ी हौज़ खास गाँव, भारत के दक्षिण दिल्ली के महानगर में एक उच्च वर्ग आवासीय सह वाणिज्यिक क्षेत्र के रूप में विकसित किया गया था। यह अब एक अपेक्षाकृत महंगा पर्यटक सह वाणिज्यिक क्षेत्र है जिसमें कई कला दीर्घाएँ, महंगे बुटीक और रेस्तरां हैं। इतिहास सिरी में नव निर्मित किले की पानी की आपूर्ति की जरूरतों को पूरा करने के लिए दिल्ली के दूसरे शहर में [अलाउद्दीन खिलजी] के शासनकाल (१२९६-१३१६) के दौरान बनाई गई पानी की टंकी को मूल रूप से खलजी के बाद हौज़-ए-अलाई के नाम से जाना जाता था। लेकिन तुग़लक़ वंश के फिरोज शाह तुग़लक़ (१३५१-८८) ने बालू से भरी टंकी की पुनर्खुदाई की और बंद नालियों को साफ किया। टंकी मूल रूप से लगभग १२३.६ एकड़ का था क्षेत्र ६०० मीटर के आयाम के साथ चौड़ाई और ७०० मीटर लंबाई ४ मीटर के साथ पानी की गहराई। जब बनाया गया था, प्रत्येक मानसून के मौसम के अंत में इसकी भंडारण क्षमता ०.८ एमसीयूएम होने की सूचना दी गई थी। अब अतिक्रमण और गाद के कारण टंकी का आकार काफी हद तक कम हो गया है, लेकिन इसकी वर्तमान स्थिति (चित्रित) में अच्छी तरह से बनाए रखा गया है। फ़िरोज़ शाह, जिन्होंने अपने नए शहर फ़िरोज़ाबाद (दिल्ली का पाँचवाँ शहर, जिसे अब फ़िरोज़ शाह कोटला के नाम से जाना जाता है) से शासन किया, एक प्रबुद्ध शासक थे। उन्हें "ऐतिहासिक मिसाल की गहरी समझ, वंशवादी वैधता के बयान और स्मारकीय वास्तुकला की शक्ति" के लिए जाना जाता था। उन्हें नवीन स्थापत्य शैली में नए स्मारकों (कई मस्जिदों और महलों) के निर्माण, सिंचाई कार्यों और कुतुब मीनार, सुल्तान गढ़ी और सूरज कुंड जैसे पुराने स्मारकों के जीर्णोद्धार/जीर्णोद्धार, और दो खुदे हुए अशोक स्तंभों, जिन्हें उन्होंने दिल्ली में अंबाला और मेरठ से लाया, के लिए श्रेय दिया जाता है। हौज़ खास में उन्होंने जलाशय के दक्षिणी और पूर्वी किनारों पर कई स्मारक बनवाए। हाल ही में झील बहाली के प्रयास हौज़ खास गाँव को विकसित करने के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा पूर्व में किए गए प्रयासों में जलाशय के प्रवेशों को अवरुद्ध कर दिया गया था और परिणामस्वरूप झील कई वर्षों तक सूखी रह गई। स्थिति को सुधारने के लिए २००४ में एक तटबंध के पीछे दिल्ली की दक्षिणी चोटी पर उत्पन्न तूफान के पानी को इकट्ठा करने और फिर इसे झील में मोड़ने के लिए एक योजना लागू की गई थी। संजय वन के उपचार संयंत्र से झील में पानी भरकर एक बाहरी स्रोत का भी दोहन किया गया है। दुर्भाग्य से योजनाओं के बावजूद आंशिक रूप से उपचारित और कच्चे मल का मिश्रण झील में बहकर समाप्त हो गया जिससे एक जल निकाय बन गया जो झील की तुलना में ऑक्सीकरण तालाब के समान था। शैवाल की मात्रा बढ़ने से पानी हरा हो गया और पार्क और आसपास के क्षेत्रों में दुर्गंध फैल गई। समस्याओं के समाधान के लिए कई प्रयास किए गए और समय-समय पर अस्थायी मामूली सुधार हुए, लेकिन कोई भी पूरी तरह से सफल नहीं हुआ और झील २०१८ तक इसी स्थिति में पड़ी रही। झील ने आखिरकार २०१९ में पानी की गुणवत्ता में एक स्थायी परिवर्तन देखा जब ईवाल्व इंजीनियरिंग द्वारा एक नागरिक पहल शुरू की गई और हौज़़ खास शहरी आर्द्रभूमि को सार्वजनिक दान और एक कॉर्पोरेट प्रायोजक की मदद से बनाया गया। दो निर्मित आर्द्रभूमि का निर्माण किया गया था, एक आने वाले जल प्रवाह को फ़िल्टर करने के लिए और एक मौजूदा जल निकाय को फ़िल्टर करने के लिए, साथ ही कई तैरते हुए आर्द्रभूमि द्वीपों को जनता के सदस्यों द्वारा अपनाया गया था। साथ में वे दिल्ली में सबसे बड़ी निर्मित आर्द्रभूमि प्रणाली बनाते हैं और इस मायने में अद्वितीय हैं कि वे पूरी तरह से व्यक्तिगत नागरिकों और एक निगम द्वारा वित्त पोषित और निर्मित हैं। भले ही निर्माण अभी भी चल रहा है, परियोजना ने पहले ही संचालन शुरू कर दिया है और इसकी स्थापना के बाद से पहली बार साफ पानी अब झील में बहता है। ईवाल्व इंजीनियरिंग दो पेशेवर इंजीनियरों से बना है जो स्थानीय अधिकारियों को झील के प्रबंधन में सुधार करने और यह सुनिश्चित करने में मदद कर रहे हैं कि झील के पानी की गुणवत्ता में सुधार जारी है। संरचनाओं जलाशय के पूर्वी और उत्तरी किनारे पर फ़िरोज़ शाह द्वारा निर्मित उल्लेखनीय संरचनाओं में मदरसा, छोटी मस्जिद, खुद के लिए मुख्य मकबरा और इसके परिसर में छह गुंबददार मंडप शामिल थे, जो सभी १३५२ और १३५४ ईस्वी के बीच निर्मित थे। मदरसे १३५२ में स्थापित मदरसा दिल्ली सल्तनत में इस्लामी शिक्षा के प्रमुख संस्थानों में से एक था। इसे दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे अच्छा सुसज्जित मदरसा भी माना जाता था। फ़िरोज़ शाह के समय में दिल्ली में तीन मुख्य मदरसे थे। उनमें से एक हौज़ खास में फिरोज शाही मदरसा था। बगदाद की बर्बादी के बाद दिल्ली इस्लामी शिक्षा के लिए दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण जगह बन गई। मदरसा के आसपास के गाँव को इसके समृद्ध और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध स्थिति के कारण ताराबाबाद (खुशी का शहर) भी कहा जाता था, जो मदरसे को आवश्यक सहायक आपूर्ति प्रणाली प्रदान करता था। मदरसा संरचना में एक अभिनव अभिकल्प है। यह एल-आकार (L) में जलाशय परिसर के दक्षिण और पूर्व किनारों पर एक सन्निहित संरचना के रूप में बनाया गया था। एल-आकार की संरचना की एक भुजा उत्तर से दक्षिण दिशा में ७६ मीटर माप की है और दूसरा हाथ पूर्व से पश्चिम दिशा में १३८ मीटर मापता है। फिरोज शाह के बड़े मकबरे पर दो भुजाएँ धुरी हैं। उत्तरी छोर पर एक छोटी मस्जिद है। मस्जिद और मकबरे के बीच दो मंजिला मंडप अब उत्तरी दिशा में मौजूद हैं और इसी तरह के मंडप पूर्वी हिस्से में हैं जो झील को देखते हैं, जिनका मदरसे के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। केंद्र में मकबरे से गुजरने वाले छोटे गुंबददार प्रवेश द्वार के माध्यम से दोनों भुजाएँ आपस में जुड़ी हुई हैं। जलाशय के सामने वाली बालकनी वाली उत्तर से दक्षिण भुजा एक दो मंजिला इमारत है जिसमें अलग-अलग आकार की तीन मीनारें हैं। सजावटी ब्रैकेट ऊपरी मंजिला बालकनियों को कवर करते हैं जबकि निचली मंजिलों में कोरबेल का समर्थन होता है। छज्जे अब केवल ऊपरी मंजिलों में देखे जाते हैं, हालांकि यह कहा जाता है कि वे दोनों मंजिलों पर मौजूद थे जब इसे बनाया गया था। मदरसे की प्रत्येक मंजिल से नीचे झील तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। अष्टकोणीय और चौकोर छतरियों के रूप में कई कब्रें भी देखी जाती हैं, जो संभवतः मदरसा के शिक्षकों की कब्रें हैं। यह दर्ज है कि मदरसा के पहले निदेशक थेचौदह विज्ञानों को जानने वाले एक जलाल अल-दीन रूमी पाठ के सात ज्ञात तरीकों के अनुसार कुरान का पाठ कर सकता था और पैगंबर की परंपराओं के पाँच मानक संग्रहों पर पूर्ण निपुणता रखते थे।शाही उदारदान के साथ मदरसा अच्छी तरह से चल रहा था। दिल्ली पर आक्रमण करने वाले तुर्की-मंगोल शासक तैमूरलंग ने १३९८ में मोहम्मद शाह तुग़लक़ को हराया और दिल्ली को लूटा, इस स्थान पर डेरा डाला था। उनके अपने शब्दों में हौज़ खास के आसपास टंकी और इमारतों के उनके छापों को स्पष्ट रूप से वर्णित किया गया था:जब मैं शहर के फाटकों पर पहुँचा तो मैंने सावधानी से उसकी मीनारों और दीवारों को दोबारा देखा, और फिर हौज़ खास की तरफ लौट आया। यह एक जलाशय है जिसे सुल्तान फिरोज़ शाह ने बनवाया था और इसके चारों ओर पत्थर और पोताई लगे हुए हैं। जलाशय का प्रत्येक किनारा एक तीर के पहुँचने की दूरी जितना अधिक लंबा है, और इसके चारों ओर इमारतें हैं। यह टंकी बरसात में बारिश के पानी से भर जाता है और यह शहर के लोगों को पूरे वर्ष पानी देता है। टंकी के तट पर सुल्तान फिरोज़ शाह का मकबरा है।हालांकि जगह का उनका वर्णन सही है लेकिन फ़िरोज़ शाह को तालाब के निर्माण के लिए श्रेय देना एक ग़लतफ़हमी थी। मंडप मदरसा उत्तरी मोर्चे में जलाशय और दूसरी मंजिल के स्तर पर इसके दक्षिणी हिस्से में एक बगीचे से घिरा हुआ है। बगीचे में प्रवेश पूर्वी द्वार से होता है जो हौज़ खास गाँव से होकर गुजरता है। बगीचे में छह प्रभावशाली मंडप हैं। गुंबदों वाले मंडप विभिन्न आकार और आकारों (आयताकार, अष्टकोणीय और षट्कोणीय) में हैं और शिलालेखों के आधार पर कब्र होने का अनुमान लगाया गया है। तीन गोलार्द्ध के गुंबदों का एक समूह, ५.५ मीटर में से एक बड़ा व्यास और ४.५ मीटर के दो छोटे व्यास, गुंबदों के शीर्ष पर कलासा रूपांकनों के साथ ड्रमों पर पत्तेदार रूपांकनों की उत्कृष्ट स्थापत्य विशेषताओं को चित्रित करते हैं। प्रत्येक मण्डप को लगभग ०.८ मीटर के स्तंभोपरिरचना पर खड़ा किया गया है और चौकोर आकार के चौड़े स्तंभों द्वारा समर्थित है, जिसमें सजावटी स्तंभ-शीर्ष हैं जो प्रोजेक्टिंग कैनोपियों के साथ बीम का समर्थन करती हैं। एक आयताकार योजना के साथ एक आंगन के खंडहर, तीन मंडपों के पश्चिम में देखे जाते हैं जो दोहरे स्तंभों से बने हैं। मंडप और आंगन को अतीत में मदरसा के हिस्से के रूप में इस्तेमाल करने का अनुमान लगाया गया है। बगीचे में एक और आकर्षक संरचना दक्षिणी ओर फिरोज शाह के मकबरे की उलटी दिशा में बगीचे में दिखाई देने वाली एक छोटी आठ खंभों वाली छत्री है जिसमें बड़े कैंटिलीवर बीम हैं जो छोटे गुंबद के चारों ओर सपाट बाजों का समर्थन करते हैं। मस्जिद मदरसे का उत्तरी छोर एक छोटी मस्जिद में सुरक्षित है। मस्जिद का किबलाह जलाशय की ओर लगभग ९.५ मीटर की ओर बढ़ता है। दक्षिण पूर्व से एक गुंबददार प्रवेश द्वार आकार ५.३ मीटर × २.४ मीटर के तीन कमरों में प्रवेश प्रदान करता है जिसकी उपयोगिता का पता नहीं लगाया गया है। एक उठे हुए पोडियम पर खंभों की एक दोहरी पंक्ति का सी-आकार (C) का अभिन्यास प्रार्थना कक्ष बनाता है जो आकाश की ओर खुला है। जलाशय की ओर से स्पष्ट दिखाई देने वाली किबला दीवार में पाँच मिहराब है। केंद्रीय मिहराब की हरावल एक गुंबददार छतरी के साथ खुले किनारों के साथ जलाशय में प्रक्षेपित मंडप के रूप में दिखाई देती है। अन्य मिहराब मुख्य मिहराब के दोनों ओर जाली की हुई खिड़कियों वाली दीवारों में स्थापित हैं। फ़िरोज़ शाह का मकबरा मकबरे की स्थापना करने वाले फिरोज शाह, जिन्होंने १३५१ में अपने चचेरे भाई मुहम्मद से विरासत में सिंहासन हासिल किया जब वे मध्यम आयु के थे, तुग़लक़ वंश के तीसरे शासक के रूप में और १३८८ तक शासन किया। उन्हें एक लोकप्रिय शासक माना जाता था – उनकी पत्नी एक हिंदू महिला थीं और उनके भरोसेमंद प्रधानमंत्री खान-ए-जहाँ जुनाना शाह एक हिंदू धर्मांतरित थे। अपने प्रधानमंत्री द्वारा सहायता प्राप्त फ़िरोज़ शाह ने अपने नए शहर फिरोजाबाद में एक नए गढ़ (महल) की स्थापना और निर्माण के अलावा अपने इलाके में कई अद्वितीय स्मारकों (मस्जिद, मकबरे, मंडप), शिकार के लिए इलाके और सिंचाई परियोजनाओं (जलाशयों) के निर्माण किए। १३८५ और १३८८ के बीच तीन साल की बीमारी के कारण होने वाली दुर्बलताओं के कारण नब्बे वर्ष की आयु में फेरुज की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु पर उनके पोते घिया सुद्दीन को सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में घोषित किया गया था। अपने प्रबुद्ध शासन के दौरान फ़िरोज़ ने कई कष्टप्रद करों को समाप्त कर दिया, मृत्युदंड पर कानूनों में बदलाव लाए, प्रशासन में नियमों की शुरुआत की और भव्य जीवन शैली को हतोत्साहित किया। लेकिन उन्हें सबसे महत्वपूर्ण श्रेय उनके शासनकाल के दौरान बड़ी संख्या में किए गए सार्वजनिक कार्यों के लिए दिया जाता है, जैसे नदियों के पार सिंचाई के लिए ५० बांध, ४० मस्जिद, ३० महाविद्यालय, १०० कारवां सराय, १०० अस्पताल, १०० सार्वजनिक स्नानागार, १५० पुल, और सौंदर्य और मनोरंजन के कई अन्य स्मारक। हौज़ खास परिसर के भीतर बनवाया गया गुंबददार मकबरा ऐतिहासिक महत्त्व की उल्लेखनीय इमारतों में से एक है। एल-आकार की इमारत की दो भुजाओं के चौराहे पर स्थित कठोर दिखने वाला मकबरा मदरसे का निर्माण करता है। दक्षिण में एक मार्ग से मकबरे में प्रवेश होता है जो दरवाज़े की ओर जाता है। मार्ग की दीवार को एक चबूतरे पर खड़ा किया गया है जो पत्थरों में बने चौदह मुख वाले बहुफलक के आकार को दर्शाता है। आठ पदों पर रखी गई तीन झुकी क्षैतिज इकाइयाँ हैं जो इमारत के बंद का निर्माण करती हैं। मकबरे की ठोस आंतरिक दीवारों में बगली डाट और मुकर्ना देखे जाते हैं और ये मकबरे के अष्टकोणीय गोलाकार गुंबद को बुनियादी सहारा प्रदान करते हैं। एक १४.८ मीटर की लंबाई वाले वर्ग योजना के साथ ८.८ मीटर व्यास का एक गुंबद है। मकबरे की अधिकतम ऊँचाई इसके मुख पर जलाशय के सामने है। उत्तर में गुंबददार प्रवेश द्वार में एक उद्घाटन है जिसकी ऊँचाई मकबरे की ऊँचाई के दो-तिहाई के बराबर है। द्वार की चौड़ाई मकबरों की चौड़ाई की एक तिहाई है। प्रवेश कक्ष में पंद्रह खंड हैं और एक अन्य द्वार में समाप्त होता है जो प्रवेश द्वार के प्रवेश द्वार के समान है। यह दूसरा द्वार मकबरे के कक्ष और स्मारक की ओर जाता है जो एल-आकार के गलियारे के माध्यम से प्रवेश द्वार से पहुँचा जाता है। इसी तरह की व्यवस्था मकबरे के पश्चिमी द्वार पर दोहराई जाती है जो पश्चिम में खुले मंडप की ओर जाता है। गुंबद की छत नक्श अक्षरों में कुरआन के शिलालेखों के साथ एक गोलाकार स्वर्ण पदक दर्शाती है। मकबरे के उत्तरी और दक्षिणी किनारों पर देखी जाने वाली दिलचस्प विशेषताएँ जिन्हें तुग़लक़ काल के विन्यास के विशिष्ट माना जाता है जमीनी स्तर पर प्रदान किए गए औपचारिक चरण हैं जो जलाशय में जाने वाले बड़े चरणों से जुड़ते हैं। चौकोर कक्ष का मकबरा सतह के प्लास्टर की पोताई के साथ स्थानीय बिल्लौरी मलबे से बना है जो पूरा होने पर सफेद रंग में चमकता है। दरवाज़े, खंभे और सदरल धूसर बिल्लौर से बने थे और लाल बलुआ पत्थर का इस्तेमाल जंग की नक्काशी के लिए किया गया था। दरवाज़े का रास्ता भारतीय और इस्लामी वास्तुकला के मिश्रण को दर्शाता है। दक्षिण से मकबरे के प्रवेश द्वार पर बनी पत्थर की रेलिंग दिल्ली के किसी अन्य स्मारक में एक और नई विशेषता नहीं देखी गई है। मकबरे के अंदर चार कब्रें हैं, जिनमें से एक फिरोज शाह की और दो अन्य की हैं। हौज़ ख़ास गाँव जिस हौज़ ख़ास गाँव को मध्ययुगीन काल में जलाशय के चारों ओर बनी अद्भुत इमारतों के लिए जाना जाता था, इस्लामी शिक्षा के लिए मदरसे में इस्लामी विद्वानों और छात्रों की एक बड़ी मंडली को आकर्षित करता था। ब्रिटिश कोलंबिया के विक्टोरिया विश्वविद्यालय में एंथनी वेल्च ने "भारत में सीखने का एक मध्यकालीन केंद्र: दिल्ली में हौज़ खास मदरसा" नामक एक बहुत अच्छी तरह से शोधित निबंध लिखा है। इस निबंध में हौज़ खास गाँव को "दिल्ली में दूर और सबसे बेहतरीन जगह न केवल अपने निर्माण व अकादमी उद्देश्यों के लिए बल्कि जगह के वास्तविक जादू के लिए भी" के रूप में संदर्भित करता है। गाँव की वर्तमान स्थिति भी न केवल जगह के पुराने आकर्षण को बरकरार रखती है बल्कि अच्छी तरह से सुव्यवस्थित हरे उद्यानों के माध्यम से इसकी सौंदर्य अपील को बढ़ाया है जो चलने के तरीकों के साथ चारों ओर सजावटी पेड़ों के साथ लगाए गए हैं और परिष्कृत सभ्य बाज़ार और आवासीय परिसरों ने पुरानेगाँव के चारों ओर उछला। टंकी को आकार में छोटा कर दिया गया है और पानी के फव्वारे के साथ अच्छी तरह से परिदृश्यित किया गया है। वेल्च ने जगह की वर्तमान स्थिति के बारे में विस्तार से कहा है, "१४वीं शताब्दी में संगीत संस्कृति के एक केंद्र हौज़ खास के गाँव ने अप्रत्याशित आड़ में इस पूर्ववर्ती भूमिका को फिर से हासिल कर लिया था।" मध्ययुगीन काल में शानदार ढंग से अस्तित्व में रहने वालीगाँव की संरचना को १९८० के दशक के मध्य में आधुनिक बनाया गया था जो दुनिया के सभी हिस्सों के पर्यटकों को आकर्षित करने वाला एक शानदार माहौल पेश करता है। गाँव का परिसर सफदरजंग एन्क्लेव, ग्रीन पार्क, साउथ एक्सटेंशन, और ग्रेटर कैलाश से घिरा हुआ है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली, भारतीय विदेश व्यापार संस्थान, राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, भारतीय सांख्यिकी संस्थान और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान सहित पड़ोस में स्थित भारत के कुछ सबसे प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान भी मौजूद हैं। विवाद हाल में हौज़ खास गाँव बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण के लिए पर्यावरणीय जाँच के दायरे में आया जो हाल के दिनों में सामने आया है और इस क्षेत्र के स्मारक और वन क्षेत्र के लिए खतरा पैदा कर रहा है। भारत के राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण में पर्यावरण और सामाजिक कार्यकर्ता पंकज शर्मा द्वारा दायर एक मामले के माध्यम से यह पाया गया कि इलाके में ५० से अधिक रेस्तरां वन भूमि में कचरा फैला रहे थे और क्षेत्र के वनस्पतियों और जीवों के लिए खतरा पैदा कर रहे थे। पर्यावरण संरक्षण मानदंडों का पालन करने के वादे पर रेस्तरां को ४ दिनों के लिए बंद करने और सशर्त खोलने की अनुमति दी गई थी। आगंतुक जानकारी हौज़ खास ग्रीन पार्क और सफदरजंग विकास क्षेत्र के करीब है और शहर के सभी केंद्रों से सड़क और मेट्रो रेल द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। परिसर आगंतुकों के लिए सप्ताह के सभी दिनों में सुबह १० बजे से शाम ६ बजे तक खुला रहता है। २०१९ में स्मारक को टिकट वाली परिसर घोषित किया गया था और आगंतुकों के लिए एक छोटा टिकट काउंटर स्थापित किया गया था। टंकी के प्रवेश द्वार पर डियर पार्क एक सुंदर हरे-भरे हरे-भरे पार्क में है जहाँ टंकी के चारों ओर चित्तीदार हिरण, मोर, खरगोश, गिनी सूअर और विभिन्न प्रकार के पक्षी देखे जा सकते हैं। परिसर की ऐतिहासिकता का वर्णन करने वाला एक लाइट एंड साउंड शो पर्यटन विभाग द्वारा शाम को आयोजित किया जाता है। भारत सरकार का पर्यटन मंत्रालय हौज़ खास में भारत का पहला रात्री बाज़ार स्थापित करने की प्रक्रिया में है, जिसे "इको नाइट बाज़ार" कहा जाएगा। इसका उद्देश्य जैविक रूप से उगाए गए खाद्यान्न, दुर्लभ पौधों के बीज, कागज निर्माण उत्पाद और सांस्कृतिक उत्सव देखने के लिए एक सुरक्षित स्थान प्रदान करना है। दिल्ली पर्यटन और परिवहन विकास निगम ने भी सांस्कृतिक उत्सवों, लोकनृत्यों और नाटकों को प्रस्तुत करने के लिए एक रंगमंच स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है। झील को पार करने के लिए बांस के पुल के साथ बाँस में बने पर्यावरण के अनुकूल खरीदारी के लिए खोके की भी योजना है। गेलरी संदर्भ 1 2 3 4 5 ↑ ↑ ↑ ↑ 1 2 3 4 5 6 7 8 9 1 2 3 4 5 6 7 8 9 1 2 3 4 5 6 7 8 1 2 3 4 5 6 7 8 1 2 3 4 5 6 1 2 3 4 5 6 ↑ ↑ ↑ ↑ ↑ ↑ ↑ ↑ ↑ ↑ ↑ ↑ ↑ ↑ ↑ ↑ ↑ ↑ ↑ ↑ ↑ ↑ दिल्ली के दर्शनीय स्थल दिल्ली में राष्ट्रीय महत्व के स्थापत्य दिल्ली का इतिहास विकिडेटा पर उपलब्ध निर्देशांक
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अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी
अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी (ऑफ़िसर्स ट्रेनिंग अकेडेमी) भारतीय सेना का एक प्रशिक्षण प्रतिष्ठान है जो लघु सेवा आयोग (एसएससी) हेतु अधिकारियों को प्रशिक्षित करता है। इसके अंतर्गत सेना की सभी शाखाओं के लिए सैन्य चिकित्सक दल को छोड़कर 49 सप्ताह का स्नातक पाठ्यक्रम निर्मित किया जाता है। 1963 में स्थापित पहली अकादमी अलंदुर, चेन्नई के दक्षिण में स्थित है। अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी(ओटीए) चेन्नई में 1 परम वीर चक्र, 8 अशोक चक्र, 10 महा वीर चक्र, 22 कीर्ति चक्र, 63 वीर चक्र, 119 शौर्य चक्र और 587 सेना पदक सहित वीरता पुरस्कारों की एक सूची है। वे पदक इस अकादमी के अधिकारियों द्वारा अर्जित किए गए है। ये सभी पूर्व छात्रों द्वारा प्रदर्शित वीरता और समर्पण को दर्शाता है। 2011 में एक नई अकादमी गया में स्थापित की गई थी। इतिहास अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी चेन्नई द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय और राष्ट्रमंडल सेनाओं में अधिकारियों की भारी माँग को पूरा करने के लिए 1942-45 के बीच भारत में सात अधिकारी प्रशिक्षण स्कूल स्थापित किए गए थे। हालाँकि, युद्ध के अंत में इन स्कूलों को बंद कर दिया गया था। 1962 में चीन-भारत युद्ध के बाद भारत ने प्रभावी संचालन के लिए अधिकारियों की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता महसूस की। सेना में आपातकालीन आयोग के लिए अधिकारियों को प्रशिक्षित करने हेतु पुणे तथा मद्रास(चेन्नई) में दो अधिकारी प्रशिक्षण स्कूल स्थापित किए गए थे। इन स्कूलों की स्थापना की प्रक्रिया सितंबर 1962 में शुरू हुई थी। संदर्भ प्रशिक्षण संस्थान चेन्नई
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%97%E0%A4%A3%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8B
संयुक्त राज्य जनगणना ब्यूरो
संयुक्त राज्य जनगणना ब्यूरो (अंग्रेज़ी: The United States Census Bureau (USCB); आधिकारिक रूप से जनगणना का ब्यूरो (अंग्रेज़ी: Bureau of the Census) जैसा टाइटल 13 यू.ऍस.सी. § 11 में परिभाषित है), संयुक्त राज्य संघीय सांख्यिकी प्रणाली की प्रमुख ऐजन्सी है जिसपर अमेरिकी लोगों और अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित आँकड़े जुटाने का दायित्व है। जनगणना ब्यूरो का मुख्य उद्देश्य है प्रति दस वर्ष में जनगणना करना जिसके आधार पर अमेरिका के राज्यों को उनकी जनसंख्या के आधार पर अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में सीटें आवण्टित होती हैं। दशकीय जनगणना के अतिरिक्त, जनगणना ब्यूरो निरन्तर अन्य बहुत प्रकार की जनगणनाएँ संचालित करता है जिनमें से कुछ हैं अमेरिकी समुदाय सर्वेक्षण, संयुक्त राज्य आर्थिक जनगणना, और वर्तमान जनसंख्या सर्वेक्षण। इसके अतिरिक्त संघीय सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले आर्थिक और विदेश-व्यापार सम्बन्धी आँकड़ो में आम तौर पर जनगणना ब्यूरो द्वारा उपलब्ध कराए गए भी सम्मिलित होते हैं। जनगणना ब्यूरो द्वारा संचालित किए जाने वाले विभिन्न जनगणनाओं और सर्वेक्षणों से उपल्ब्ध आँकड़ो के आधार पर प्रतिवर्ष 400 अरब डॉलर की संघीय निधि का वितरण किया जाता है और जिससे राज्यों, स्थानीय समुदायों, और व्यवसायों को सुविज्ञ निर्णय लेने में सहायता मिलती है। जनगणना ब्यूरो, संयुक्त राज्य वाणिज्य विभाग के अधीन है और इसके निदेशक का चयन अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। इस ऐजन्सी की स्थापना 1 जुलाई 1903 को की गई थी और इसका मुख्यालय सूटलैण्ड, मैरिलैण्ड में स्थित है। इसके कुल कर्मचारियों की संख्या 5,593 (2006 में) है और इसका वार्षिक बजट 2009 से 2011 के दौरान इस प्रकार था: 2009 में 3.1 अरब डॉलर, 2010 में 7.2 अरब डॉलर, और 2011 में 1.3 अरब डॉलर। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक संजालस्थल संयुक्त राज्य जनगणना ब्यूरो
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%87%20%E0%A4%AD%E0%A4%97%E0%A4%A4
बाजे भगत
बाजे भगत (16 जुलाई, 1898 – 26 फरवरी, 1939) एक भारतीय साहित्यकार, कवि, रागनी लेखक, सांग कलाकार और हरियाणवी सांस्कृतिक कलाकार थे। और कवि बाजे भगत जी सेन जाति के थे पूरे हरियाणा में कवि बाजे भगत के जैसा साहित्यकार कवि नहीं था हरियाणा में सबसे पहले पंडित लख्मीचंद और सेन बाजे भगत हुए दोनों ही कवि एक दूसरे का साथ देते थे यह दोनों बहुत ही सुंदर रागनी गाते थे जीवनी भगत का जन्म 16 जुलाई, 1898 तत्कालीन पंजाब प्रांत (अब हरियाणा) के सोनीपत जिले के सिसाना गांव में हुआ।इनके गुरू हरदेवा सांगी थे 1920 के दशक के पूर्वार्ध में उन्होंने लगभग 15 से 20 रचनाएँ की, जिनसे उन्हें हरियाणा में कम ही समय में असाधारण प्रसिद्धि मिली। लेखन या लगै भाणजी तेरी / बाजे भगत) लाड करण लगी मात, पूत की कौळी भरकै / बाजे भगत) साची बात कहण म्हं सखी होया करै तकरार / बाजे भगत) धन माया के बारे म्हं किसे बिरले तै दिल डाट्या जा सै / बाजे भगत) बिपता के म्हं फिरूं झाड़ती घर-घर के जाळे / बाजे भगत) मैं निर्धन कंगाल आदमी तूं राजा की जाइ / बाजे भगत) बेरा ना कद दर्शन होंगे पिया मिलन की लागरही आस / बाजे भगत) बाजे राम का राजबाला अजीत सिंह करके सगाई भूल गए हुई बड़े दिनां की बात राजबाला का ब्याह करदो बड़ी खुशी के साथ – टेक साथ मेरी धींगताणा बण रहया सै इसा के तू महाराणा बण रहया सै न्यू बोल्या घणा के स्याणा बण रहया सै राजबाला का ब्याह करदो बड़ी खुशी के साथ करके सगाई भूल गए हुई बड़े दिनां की बात राजबाला का ब्याह करदो बड़ी खुशी के साथ करी बाप मेरे नै बेईमानी हो अपनी खो बैठा ज़िंदगानी न्यू बोल्या समय होया करे आणी जाणी या माणस के ना हाथ राजबाला का ब्याह करदो बड़ी खुशी के साथ करके सगाई भूल गए हुई बड़े दिनां की बात राजबाला का ब्याह करदो बड़ी खुशी के साथ बाजे भगत के कटारी लगी एक रानी नल दमयंती के किस्से से ओर किसे का दोष नहीं या हुई करमा की हाणी। धोती न तीत्तर लेग्ये मैं खड़या उघाड़ा नंग राणी।।टेक।। बिपता म्हं बिपता पडग्यी इब गम की घूंट पिए तू। मैं बेवस्त्र खड्या ओट बिड़े की साची मान लिए तू। मेरे तै पीठ फेर दमयन्ती एक यो काम किए तू। पर्दा कर ल्यूंगा अपनी आधी साडी मन्ने दिए तू। सुख दुख की साथी सै तन्नै या पड़ैगी बात निभाणी।।1।। जैसे पिंजरे शेर घिरै पति तेरा बिपत फंद म्हं फहग्या। जूए के जल की बाढ़ बुरी मैं भूल बीच म्हं बहग्या। ओर किसे का दोष नहीं जो कर्म करा मन्ने दहग्या। हमने तीत्तर मतना समझै मेरे तै एक पक्षी न्यूं कहग्या। हम जुए आले पासे सा वो इसी बोल ग्या बाणी।।2।। मैं तीत्तर पकड़ण चाल पड़्या धर्म परण तै हटग्या। तेरी बात कोन्या मानी हिंसा हठ धर्मी पै डटग्या। राज छुट्या कंगाल बण्या मेरा भाव भरम सब घटग्या। या किसे देवता की माया सै राणी मन्ने बेरा पटग्या। कोए खोटा कर्म होया मेरे तै न्यु होई कर्म म्हं हाणी।।3।। कहै बाजे भगत भगवान बिना या बिपत हटण की कोन्या। देहां गैल्या बितैगी या सहज कटण की कोन्या। करूँ तेरा भी ख्याल या चिंता कति मिटण की कोन्या। झाड़-2 बेरी होग्या किते जगाह डटण की कोन्या। मेरे घात का हाल इसा जणु पिग्या भांग बिन छाणी।।4।। सन्दर्भ हरियाणवी भाषा के साहित्यकार सांग हरियाणा के गायक हरियाणा के लोग 1898 में जन्मे लोग १९३९ में निधन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A5%89%E0%A4%B2%E0%A5%8B-%E0%A4%91%E0%A4%A8
फॉलो-ऑन
क्रिकेट के खेल में, एक टीम जिसने दूसरी बल्लेबाजी की और पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम की तुलना में काफी कम रन बनाए, को फॉलो-ऑन करने के लिए मजबूर किया जा सकता है: अपनी पहली के तुरंत बाद अपनी दूसरी पारी लेने के लिए। फॉलो-ऑन को पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम द्वारा लागू किया जा सकता है, और इसका उद्देश्य ड्रॉ के परिणाम की संभावना को कम करना है, दूसरी टीम की दूसरी पारी को जल्द पूरा करने की अनुमति देकर। फॉलो-ऑन केवल क्रिकेट के रूपों में होता है, जहां दोनों टीमें दो-दो बार बल्लेबाजी करती हैं: घरेलू प्रथम श्रेणी क्रिकेट और अंतरराष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट। क्रिकेट के इन रूपों में, एक टीम एक मैच नहीं जीत सकती है जब तक कि कम से कम तीन पारियों को पूरा नहीं किया गया हो। यदि तीन से कम पारियां खेल के निर्धारित अंत तक पूरी हो जाती हैं, तो मैच का परिणाम केवल ड्रॉ हो सकता है। फॉलो-ऑन लागू करने का निर्णय पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम के कप्तान द्वारा किया जाता है, जो स्कोर, दोनों पक्षों की स्पष्ट ताकत, मौसम और पिच की स्थिति और शेष समय पर विचार करता है। जिन परिस्थितियों में फॉलो-ऑन लागू किया जा सकता है, उन्हें नियंत्रित करने वाले नियम क्रिकेट के नियमों के कानून 14 में पाए जाते हैं। सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BF%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%20%E0%A4%AD%E0%A4%9F%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%B0%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%8F%E0%A4%B5%E0%A4%82%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8C%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0
शांति स्वरूप भटनागर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पुरस्कार
शांति स्वरूप भटनागर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पुरस्कार वार्षिक रूप से वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सी.एस.आई.आर) द्वारा उल्लेखनीय एवं असाधारण अनुसंधान, अपलाइड या मूलभूत श्रेणी के जीववैज्ञानिक, रासायनिक, पार्थिव, पर्यावरणीय, सागरीय एवं ग्रहीय, अभियांत्रिक, गणितीय, चिकित्सा एवं भौतिक विज्ञान के क्षेत्रों में दिये जाते हैं। इस पुरस्कार का उद्देश्य विज्ञाण एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय एवं असाधारण भारतीय प्रतिभाके धनियों को उजागर करना है। यह पुरस्कार सी एस आई आर के प्रथम एवं संस्थापक निदेशक सर शांति स्वरूप भटनागर के सम्माण में दिया जाता है। नामांकन इस सम्मान के लिये प्रत्याशियों के नाम सीएसआईआर की प्रशासी बॉडी के सदस्य, राष्ट्रीय महत्त्व के विश्वविद्यालयों या संस्थानों के अध्यक्षों, विभिन्न संकायों के डीन या पूर्व भटनागर पुरस्कार धारकों द्वारा नामांकित किये जा सकते हैं। चयनिक क्षेत्र जीव विज्ञान पृथ्वी, पर्यावरण, सागर एवं ग्रह विज्ञान भौतिकी चिकित्सा रासायनिकी अभियांत्रिकी गणित विजेते सन्दर्भ सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार २००६ के विजेता शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार २००७ के विजेता शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार २००८ के विजेता शांति स्वरूप भटनागर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पुरस्कार, आधिकारिक जालस्थल पर धारकों की सूची भारतीय सम्मान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पुरस्कार शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद भारतीय पुरस्कार
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%20%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE
यारकन्द ज़िला
यारकन्द ज़िला (उइग़ुर: , चीनी: 莎车县, अंग्रेज़ी: Yarkand) चीन के शिंजियांग प्रांत के काश्गर विभाग में स्थित एक ज़िला है। इसका क्षेत्रफल ८,९६९ वर्ग किमी है और सन् २००३ की जनगणना में इसकी आबादी ३,७३,४९२ अनुमानित की गई थी। इसकी राजधानी यारकंद नाम का ही एक ऐतिहासिक शहर है जिसका भारतीय उपमहाद्वीप के साथ गहरा सांस्कृतिक और व्यापारिक सम्बन्ध रहा है। यारकन्द तारिम द्रोणी और टकलामकान रेगिस्तान के दक्षिणी छोर पर स्थित एक नख़लिस्तान (ओएसिस) क्षेत्र है जो अपना जल कुनलुन पर्वतों से उत्तर की ओर उतरने वाली यारकन्द नदी से प्राप्त करता है। इसके मरूद्यान (ओएसिस) का क्षेत्रफल लगभग ३,२१० वर्ग किमी है लेकिन कभी इस से ज़्यादा हुआ करता था। तीसरी सदी ईस्वी में यहाँ रेगिस्तान के फैलने से यह उपजाऊ इलाक़ा थोड़ा घट गया। यारकन्द में अधिकतर उइग़ुर लोग बसते हैं। यहाँ कपास, गेंहू, मक्की, अनार, ख़ुबानी, अख़रोट और नाशपाती उगाए जाते हैं। इस ज़िले के ऊँचे इलाक़ों में याक और भेड़ पाले जाते हैं। यहाँ की धरती के नीचे बहुत से मूल्यवान खनिज मौजूद हैं, जैसे की पेट्रोल, प्राकृतिक गैस, सोना, ताम्बा, सीसा और कोयला। भूगोल और मौसम यारकन्द शिंजियांग प्रांत के महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक काश्गर और ख़ोतान शहरों के बीच स्थित है। किसी ज़माने में कश्मीर से व्यापारी लद्दाख़ और काराकोरम दर्रे से होते हुए यहाँ माल लिए हुए आया करते थे। आधुनिक युग में चीन का शिंजियांग-तिब्बत राजमार्ग (चीन राजमार्ग २१९) यहाँ से शुरू होकर, अक्साई चिन के रास्ते से होकर तिब्बत के ल्हात्से शहर तक जाता है। यहाँ से एक और ऐतिहासिक रास्ता दक्षिण-पश्चिम की तरफ निकलता है जो ताशकुरगान शहर से होते हुए अफ़्ग़ानिस्तान के वाख़ान गलियारे में दाख़िल होता है और फिर ब्रोग़िल दर्रे से गुज़रते हुए अफ़्ग़ानिस्तान के बदख़्शान क्षेत्र पहुँचता है। यारकन्द का मौसम शुष्क है और कुल मिलाकर हर वर्ष सिर्फ ५३ मिलीमीटर की बर्फ़-बारिश पड़ती है। जनवरी में औसत तापमान −५.५ °सेंटीग्रेड और जुलाई में २५.४ °सेंटीग्रेड रहता है। इन्हें भी देखें काश्गर विभाग शिंजियांग अक्साई चिन तिब्बत-शिंजियांग राजमार्ग सन्दर्भ शिंजियांग अक्साई चिन शिंजियांग के ज़िले चीन के ज़िले मध्य एशिया के शहर
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महिला अंतरिक्ष यात्रिओं की सूची
निम्नलिखित सूची उन महिलाओं की है, जिन्हे उनकी पहली उड़ान की तारीख के आधार पर रखा गया है। हालांकि पहली महिला ने 1963 में अंतरिक्ष में उड़ान भरी थी, जो कि अंतरिक्ष यान की खोज में बहुत शुरआती थी, लेकिन दूसरी उड़ान भरने में लगभग बीस साल लग गए । 1980 के दशक में महिला अंतरिक्ष यात्री आम हो गईं। इस सूची में कॉस्मोनॉट और एस्ट्रोनोट दोनों यात्री शामिल हैं। इतिहास दिसंबर 2019 तक, 565 कुल अंतरिक्ष यात्रियों में से 65 महिलाएं हैं. फ्रांस, इटली, दक्षिण कोरिया और यूनाइटेड किंगडम से 1, कनाडा, चीन और जापान से 2, सोवियत संघ / रूस से 4 और संयुक्त राज्य अमेरिका से 50। पहले पुरुष और पहली महिला अंतरिक्ष यात्रियों के बीच के समय का अंतराल विभन्न देशों में व्यापक रूप से भिन्न होता है. ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया और ईरान की पहले अंतरिक्ष यात्री मूल रूप से महिलाएं थीं, जबकि रूस के वोस्तोक 1 में अंतरिक्ष में पहले आदमी से वोस्तोक 6 में पहली महिला का दो साल का अंतर था अंतरिक्ष में पहले अमेरिकी पुरुष और पहली अमेरिकी महिला के बीच का समय अंतराल क्रमशः फ्रीडम 7 और एसटीएस -7 के बीच 22 साल का था. चीन के लिए, यह अंतराल शेनझोउ 5 और शेनझोउ 9 अंतरिक्ष अभियानों के बीच लगभग साढ़े आठ साल का था, और इटली के लिए, एसटीएस-46 और अभियान 42 अंतरिक्ष उड़ान के बीच लगभग बारह साल का था। पहली और दूसरी महिला के उड़ान के बीच 19 साल का अंतराल था। जो की वोस्टोक 6 और सोयूज टी -7 मिशन पर वे कॉस्मोनॉट थे। हालाँकि सोवियत संघ ने पहले दो महिलाओं को अंतरिक्ष में भेजा था, लेकिन अंतरिक्ष में केवल चार महिलाएँ रूसी या सोवियत नागरिक रही हैं। हालांकि, ब्रिटिश, फ्रांसीसी, इतालवी, दोहरे नागरिक ईरानी-अमेरिकी और दक्षिण कोरियाई महिलाओं ने सोवियत और रूसी अंतरिक्ष कार्यक्रमों के हिस्से के रूप में सभी हिस्सा लिया हैं। इसी तरह, कनाडा, भारत, जापान और अमेरिका की महिलाएं अमेरिका के अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत उड़ान भर चुकी हैं। अंतरिक्ष में पहली और दूसरी अमेरिकी महिलाओं में एक वर्ष की अंतराल था। जबकि अंतरिक्ष में पहले अमेरिकी आदमी पहली अमेरिकी महिला से 20 साल पहले पहुंचे थे, जबकि एक वर्ष के अंतराल में पहली और दूसरी चीनी महिलाओं को अलग-अलग मिशन, शेनज़ो 9 और शेनज़ो 10 पर अंतरिक्ष भेजा गया था। महाकाशचारिणी और पूर्ण अंतरिक्ष यात्रा अन्य अंतरिक्ष यात्री और अंतरिक्ष यात्री उम्मीदवार यह सभी देखें अंतरिक्ष में चीनी महिलाएं बुध 13 - अंतरिक्ष कार्यक्रम में महिलाएं (WISP) अंतरिक्ष के यात्रियों की सूची नाम से - सभी लोग जो अंतरिक्ष में बह चुके हैं राष्ट्रीयता द्वारा अंतरिक्ष यात्रियों की सूची अंतरिक्ष यात्रियों की सूची नाम से लोगों को अंतरिक्ष यान चालक दल के रूप में सेवा करने के लिए प्रशिक्षित किया गया संदर्भ महिला अंतरिक्ष यात्री
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खींवासर
खींवासर ग्राम सीकर से उत्तर दिशा में, सीकर से 30 किमी दूरी व लक्ष्मणगढ़ से 18 किमी दूरी पर स्थित है। यह एक ग्राम पंचायत मुख्यालय है। नवलगढ़ से 10 किमी दूरी पर है। जनसंख्या आंकड़े कुल परिवारों की संख्या 370 है। गाँव में 0-6 आयु वर्ग के बच्चों की आबादी 328 है जो गाँव की कुल जनसंख्या का 15.36 % है। गाँव का औसत लिंग अनुपात 916 है जो राजस्थान राज्य के औसत 928 से कम है। जनगणना के अनुसार खींवासर के लिए बाल लिंग अनुपात 802 है, जो राजस्थान के औसत 888 से कम है। साक्षरता खींवासर की साक्षरता दर 73.40 है, जो राज्य के औसत 66.11% से अधिक है। पुरूष साक्षरता दर 88.10% व महिला साक्षरता दर 57.51% है। अवस्थिति सीकर से उत्तर दिशा में 27.830835,75.189314 निर्देशांक पर स्थित है। ग्राम का कुल क्षेत्रफल 759 हेक्टेयर है। इतिहास पंचायत में अन्य गांव- पोसाणी, पनलावा, रामचन्द्र का बास । प्रमुख शिक्षण संस्थान गाँव में कला संकाय से कक्षा 1-12 तक सरकारी स्कूल है। हिन्दी साहित्य, भूगोल व राजनीतिक विज्ञान विषय हैं। अर्थव्यवस्था इन्हे भी देखें खूड पलसाना श्रीमाधोपुर रींगस अजीतगढ़ खण्डेला दांता सीकर लक्ष्मणगढ़ फतेहपुर लोसल धोद नेछवा सन्दर्भ सीकर ज़िले के गाँव
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नंद सिंह
नंद सिंह वीसी एमवीसी (24 सितंबर 1 9 14 - 12 दिसंबर 1 9 47) विक्टोरिया क्रॉस के एक भारतीय प्राप्तकर्ता थे, ब्रिटिश और राष्ट्रमंडल सेनाओं को दिए जाने वाले दुश्मन के खिलाफ वीरता के लिए सर्वोच्च और सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार दिया गया। सैन्य कैरियर द्वितीय विश्व युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सेना में 1/11 वीं सिख रेजिमेंट में वह 29 वर्ष के थे जब निम्न कार्य किया गया जिसके लिए उन्हें विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया। 11/12 मार्च 1 9 44 को मोंग्डू-बथिदांग रोड, बर्मा (अब म्यांमार) पर, नाइक नंद सिंह ने, हमले के एक प्रमुख वर्ग के कमांडिंग के लिए, दुश्मन द्वारा प्राप्त की गई स्थिति को दोबारा करने का आदेश दिया गया। वह अपने अनुभाग को बहुत भारी मशीन-गन और राइफल फायर के नीचे एक बहुत खड़ी चाकू धार वाली रिज का नेतृत्व करता था और यद्यपि जांघ में घायल हो गया था, पहली खाई पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद वह केवल अकेले आगे बढ़कर, चेहरे और कंधे पर फिर से घायल हो गया, फिर भी दूसरी और तीसरी खाई पर कब्जा कर लिया। भारत-पाकिस्तान युद्ध बाद में उन्होंने आजादी के बाद भारतीय सेना में जेमदर का पद हासिल किया और 1 9 47 में जम्मू और कश्मीर संचालन या भारत-पाकिस्तान युद्ध में शामिल होने वाला पहला सिख 1 अक्टूबर 1 9 47 से शुरू हुआ क्योंकि भारतीय सैनिकों ने कार्रवाई की पाकिस्तान के हमलावरों द्वारा जम्मू और कश्मीर के एक आक्रमण पर हमला करने के लिए 12 दिसंबर 1 9 47 को नंद सिंह ने कश्मीर में ऊरी में पहाड़ियों के पहाड़ी एसई में घुसपैठ से अपनी बटालियन को निकालने के लिए एक डरावनी लेकिन सफल हमले में डी कॉय के अपने पलटन का नेतृत्व किया। वह एक गहन क्वार्टर मशीन-गन फट से मर्तुक रूप से घायल हो गया था, और महावीर महा वीर चक्र (एमवीसी), युद्धक्षेत्र वीरता के लिए दूसरी सबसे बड़ी भारतीय सजावट से सम्मानित किया गया। इससे वीसी विजेताओं के इतिहास में नंद सिंह अद्वितीय हैं पाकिस्तानियों ने वीसी रिबन की वजह से सिंह को मान्यता दी उनके शरीर को मुजफ्फराबाद में ले जाया गया जहां उसे एक ट्रक पर सड़कों पर बांधा गया था और शहर के माध्यम से एक लाउडस्पीकर घोषित किया गया था कि यह हर भारतीय कुलपति का भाग्य होगा। सैनिक के शरीर को बाद में एक कचरा डंप में फेंक दिया गया था, और कभी भी बरामद नहीं किया गया था विरासत नंद सिंह अब पंजाब के मनसा जिले में बहादुरपुर गांव के थे। अपने गांव के निकटतम शहर बैरता है, जहां एक स्थानीय बस स्टैंड का नाम शहीद नंद सिंह विक्टोरिया बस स्टैंड है। बठिंडा में एक प्रतिमा (स्थानीय तौर पर फौजी चौक के नाम से जाना जाता है) एक स्मारक के रूप में खड़ा है। सन्दर्भ 1914 में जन्मे लोग पंजाबी लोग महावीर चक्र सम्मानित लोग १९४७ में निधन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/2020-21%20%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%8F%E0%A4%B8%E0%A4%8F%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%8F%E0%A4%95%20%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%A4%E0%A5%80
2020-21 सीएसए प्रांतीय एक दिवसीय चुनौती
2020-21 सीएसए प्रांतीय वन-डे चैलेंज एक घरेलू एक दिवसीय क्रिकेट टूर्नामेंट था जो फरवरी और मार्च 2021 में दक्षिण अफ्रीका में खेला गया था। कोविड-19 महामारी के कारण शीर्षक साझा किए जाने के बाद, फ्री स्टेट और नॉर्दर्न केप डिफेंडिंग चैंपियन थे। पहले मैच 10 जनवरी 2021 को शुरू होने वाले थे, हालांकि महामारी के कारण सीजन की शुरुआत फरवरी तक के लिए टाल दी गई थी। शुरू में टूर्नामेंट पंद्रह दक्षिण अफ्रीकी प्रांतीय टीमों के बीच खेला जाना था, जो दो समूहों में विभाजित था। हालाँकि, फरवरी 2021 में टूर्नामेंट के फिर से शुरू होने के बाद, क्रिकेट दक्षिण अफ्रीका (सीएसए) ने पुष्टि की कि दक्षिण अफ्रीका की अंडर-19 क्रिकेट टीम को भी प्रतियोगिता में शामिल किया जाएगा। सीएसए ने टूर्नामेंट के लिए एक संशोधित कार्यक्रम जारी किया, जिसमें सभी मैच जैव-सुरक्षित वातावरण में आयोजित किए गए थे। लिम्पोपो, म्पुमलंगा या दक्षिण अफ्रीका अंडर-19 टीम से जुड़े मैचों में लिस्ट ए का दर्जा नहीं था। सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A5%80
ममता बनर्जी
ममता बन्द्योपाध्याय (, जन्म: पौष 15, 1876 / जनवरी 5, 1955) भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल की वर्तमान मुख्यमन्त्री एवं राजनैतिक दल तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख हैं। लोग उन्हें दीदी (बड़ी बहन) के नाम से सम्बोधित करते हैं। जीवन बनर्जी का जन्म कोलकाता में गायत्री एवं प्रोमलेश्वर के यहाँ हुआ। उनके पिता की मृत्यु उपचार के अभाव से हो गई थी, उस समय ममता बनर्जी मात्र 17 वर्ष की थी। ममता बनर्जी को दीदी के नाम से भी जाना जाता है। वह पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमन्त्री हैं। उन्होंने बसन्ती देवी कॉलेज से स्नातक पूरा किया एवं जोगेश चन्द्र चौधरी लॉ कॉलेज से उन्होंने कानून की डिग्री प्राप्त की। प्रारम्भिक जीवन और शिक्षा ममता बन्द्योपाध्याय का जन्म कोलकाता (पूर्व में कलकत्ता), पश्चिम बंगाल में एक बंगाली हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता प्रोमिलेश्वर बनर्जी और गायत्री देवी थे। बनर्जी के पिता, प्रोमिलेश्वर (जो एक स्वतंत्रता सेनानी थे) की चिकित्सा के अभाव में मृत्यु हो गई, जब वह 17 वर्ष के थे। 1970 में, ममता बन्द्योपाध्याय ने देशबन्धु शिशुपाल से उच्च माध्यमिक बोर्ड की परीक्षा पूरी की। उन्होंने जोगमाया देवी कॉलेज से इतिहास में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। बाद में, उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से इस्लामी इतिहास में अपनी मास्टर डिग्री हासिल की। इसके बाद श्री शिक्षाशयन कॉलेज से शिक्षा की डिग्री और जोगेश चन्द्र चौधरी लॉ कॉलेज, कोलकाता से कानून की डिग्री प्राप्त की। उन्हें कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डस्ट्रियल टेक्नोलॉजी, भुवनेश्वर से डॉक्टरेट की मानद उपाधि भी मिली। उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट ऑफ़ लिटरेचर (डी.लिट) की डिग्री से भी सम्मानित किया गया था। राजनीतिक जीवन ममता बन्द्योपाध्याय राजनीति में तब शामिल हो गए जब वह केवल 15 वर्ष के थे। योगमाया देवी कॉलेज में अध्ययन के दौरान, उन्होंने कांग्रेस (आई) पार्टी की छात्र शाखा, छत्र परिषद यूनियंस की स्थापना की, जिसने समाजवादी एकता केन्द्र से संबद्ध अखिल भारतीय लोकतान्त्रिक छात्र संगठन को हराया। भारत (कम्युनिस्ट)। वह पश्चिम बंगाल में कांग्रेस (आई) पार्टी में, पार्टी के भीतर और अन्य स्थानीय राजनीतिक संगठनों में विभिन्न पदों पर रही।। दिसंबर १९९२ में, ममता ने एक शारीरिक रूप से अक्षम लड़की फेलानी बसाक को (जिसका कथित तौर पर सीपीआई(एम) कार्यकर्ताओं द्वारा बलात्कार किया गया था) राइटर्स बिल्डिंग में तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु के पास ले गई, लेकिन पुलिस ने उन्हे उत्पीड़ित करने के बाद गिरफ्तार कर लिया और हिरासत में ले लिया। उन्होंने संकल्प लिया कि वह केवल मुख्यमंत्री के रूप में उस बिल्डिंग में फिर से प्रवेश करेंगे। ममता बनर्जी के नेतृत्व में राज्य युवा कांग्रेस ने २१ जुलाई १९९३ को राज्य की कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ कलकत्ता में राइटर्स बिल्डिंग तक एक विरोध मार्च का आयोजन किया। उनकी मांग थी कि सीपीएम की "वैज्ञानिक धांधली" को रोकने के लिए वोटर आईडी कार्ड को वोटिंग के लिए एकमात्र आवश्यक दस्तावेज बनाया जाए। विरोध के दौरान पुलिस ने १३ लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी और कई अन्य घायल हो गए। इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने कहा कि "पुलिस ने अच्छा काम किया है।" २०१४ की जांच के दौरान, उड़ीसा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सुशांत चटर्जी ने पुलिस की प्रतिक्रिया को "अकारण और असंवैधानिक" बताया। न्यायमूर्ति चटर्जी ने कहा, "आयोग इस नतीजे पर पहुंचा है कि यह मामला जलियांवाला बाग हत्याकांड से भी बदतर है।" १९९७ में, तत्कालीन पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सोमेंद्र नाथ मित्रा के साथ राजनीतिक विचारों में अंतर के कारण, बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और सर्वभारतीय तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की। यह जल्दी ही राज्य में लंबे समय से शासन कर रही कम्युनिस्ट सरकार का प्रधान विपक्षी दल बन गया। २० अक्टूबर २००६ को ममता ने पश्चिम बंगाल में बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार की औद्योगिक विकास नीति के नाम पर जबरन भूमि अधिग्रहण और स्थानीय किसानों के खिलाफ किए गए अत्याचारों का विरोध किया। जब इंडोनेशिया स्थित सलीम समूह के मालिक बेनी संतोसो ने पश्चिम बंगाल में एक बड़े निवेश का वादा किया था, तो सरकार ने उन्हें कारखाना स्थापित करने के लिए हावड़ा में एक खेती की जमीन दे दी थी। इसके बाद राज्य में विरोध प्रदर्शन तेज हो गया। भारी बारिश के बीच संतोसो के आगमन के विरोध में ममता और उनके समर्थक ताज होटल के सामने जमा हो गए, जहां संतोसो पहुंचे थे, जिसे पुलिस ने बंद कर दिया था। जब पुलिस ने उन्हें हटाया तो उन्होंने बाद में संतोसो के काफिले का पीछा किया। सरकार ने एक योजनाबद्ध "काला झंडा" प्रदर्शन कार्यक्रम से बचने के लिए संतोसो के कार्यक्रम को समय से तीन घंटे पहले कर दिया था। नवंबर २००६ में, ममता को सिंगूर में टाटा नैनो परियोजना के खिलाफ एक रैली में शामिल होने से पुलिस ने जबरन रोक दिया था। ममता पश्चिम बंगाल विधानसभा में उपस्थित हुईं और ईसका विरोध किया। उन्होंने विधानसभा में हि एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और १२ घंटे के बांग्ला बंद की घोषणा की। तृणमूल कांग्रेस के विधायकों ने विधानसभा में तोड़फोड़ की और सड़कों को जाम किया। फिर १४ दिसंबर २००६ को बड़े पैमाने पर हड़ताल का आह्वान किया गया। सरकार द्वारा कृषि भूमि के जबरन अधिग्रहण के विरोध में ममता ने ४ दिसंबर को कोलकाता में २६ दिनों की ऐतिहासिक भूख हड़ताल शुरू की। उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित तत्कालीन राष्ट्रपति ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से बात की। कलाम ने "जीवन अनमोल है" कहते हुए ममता से अपना अनशन खत्म करने की अपील की। मनमोहन सिंह का एक पत्र पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी को फैक्स किया गया और फिर इसे तुरंत ममता को दिया गया। पत्र मिलने के बाद ममता ने आखिरकार २९ दिसंबर की आधी रात को अपना अनशन तोड़ दिया। (मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके पहले कृत्यों में से एक था सिंगूर के किसानों को ४०० एकड़ जमीन लौटाना। २०१६ में सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की कि सिंगूर में टाटा मोटर्स प्लांट के लिए पश्चिम बंगाल की वाम मोर्चा सरकार द्वारा ९९७ एकड़ भूमि का अधिग्रहण अवैध था।) जब पश्चिम बंगाल सरकार पूर्वी मिदनापुर के नंदीग्राम में एक रासायनिक केंद्र स्थापित करना चाहती थी, तो तमलुक के सांसद लक्ष्मण सेठ की अध्यक्षता में हल्दिया विकास बोर्ड ने उस क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण के लिए एक नोटिस जारी किया। तृणमूल कांग्रेस इसका विरोध करती है। मुख्यमंत्री ने नोटिस को रद्द घोषित कर दिया। किसानों की छह महीने की नाकेबंदी को हटाने के लिए १४ मार्च २००७ को पुलिस द्वारा की गई गोलीबारी में चौदह लोग मारे गए थे। तृणमूल कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ स्थानीय किसान आंदोलन का नेतृत्व किया। इसके बाद कई लोग राजनीतिक संघर्ष में विस्थापित हुए थे। नंदीग्राम में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा की गई हिंसा का समर्थन करते हुए बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कहा था "उन्हें (विपक्षों को) एक ही सिक्के में वापस भुगतान किया गया है।" नंदीग्राम नरसंहार के विरोध में, कलकत्ता में बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग वाम मोर्चा सरकार के खिलाफ आंदोलन में शामिल हो गया। नंदीग्राम आक्रमण के दौरान सीपीआइ(एम) कार्यकर्ताओं पर ३०० महिलाओं और लड़कियों से छेड़छाड़ और बलात्कार करने का आरोप लगा था। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल को लिखे पत्र में ममता बनर्जी ने सीपीआइ(एम) पर नंदीग्राम में राष्ट्रीय आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। आंदोलन के मद्देनजर, सरकार को नंदीग्राम केमिकल हब परियोजना को स्थगित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। लेकिन ममता किसान आंदोलन का नेतृत्व करके अपार लोकप्रियता हासिल करने में सफल रहीं। उपजाऊ कृषि भूमि पर उद्योग के विरोध और पर्यावरण की सुरक्षा का जो संदेश नंदीग्राम आंदोलन ने दिया वह पूरे देश में फैल गया। यह भी देखें माँ माटि मानूश सन्दर्भ 1955 में जन्मे लोग जीवित लोग पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री १०वीं लोक सभा के सदस्य ११वीं लोक सभा के सदस्य १२वीं लोक सभा के सदस्य १३वीं लोक सभा के सदस्य १४वीं लोक सभा के सदस्य १५वीं लोकसभा के सदस्य भारत के रेल मंत्री सर्वभारतीय तृणमूल कांग्रेस के राजनीतिज्ञ भारतीय महिला राजनीतिज्ञ पश्चिम बंगाल के सांसद
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सुनील भारती मित्तल
सुनील मित्तल भारतीय मूल के एक प्रमुख व्यवसायी हैं। भारत के दूरसंचार उद्योग में श्री मित्तल का काफी दबदबा है। सुनील भारती मित्तल को सन २००७ में भारत सरकार द्वारा उद्योग एवं व्यापार के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली से हैं। 2016 में सुनील भारती मित्तल को दोबारा एयरटेल के चेयरमैन बनाया गया था, तब उन्होंने सालाना 30 करोड़ का सैलरी पैकेज लिया था | सन्दर्भ २००७ पद्म भूषण उद्योग व्यापार भारतीय व्यवसायी भारतीय उद्योगपति
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मन की आवाज-प्रतिज्ञा
प्रतिज्ञा धारावाहिक सामाजिक कुप्रथाओं एवं कुरीतियों के बारे में दर्शकों की सोच बदलने का एक प्रयास है। कथानक इसकी कहानी दो परिवारों (ठाकुर एवं सक्सेना परिवार) के आसपास घूमती रहती है। ठाकुर परिवार पूरे इलाहाबाद में अपनी शक्ति का लोहा मनवाता है। वे सदा औरतों को अपने पैरों नीचे दबाए रखना चाहते हैं। ठाकुर परिवार के कृष्णा (अरहान बहल) को प्रतिज्ञा सक्सेना (पूजा गौर) से प्यार हो जाता है। इच्छा ना होते हुए भी प्रतिज्ञा को उससे विवाह करना पड़ता है। बदले मेंआदर्श सक्सेना(प्रतिज्ञा का भाई)कोमल(कृष्णा की बहन) से शादी कर लेता है। शादी के कुछ समय बादप्रतिज्ञाकोकृष्णासे लगाव हो ही जाता है। बाद मेंएक के बाद एकरोमांचक घटनाएं होती है। पात्र स्टार प्लस के धारावाहिक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक भारतीय स्टार टीवी कार्यक्रम
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स्कॉटलैंड क्रिकेट टीम का नीदरलैंड दौरा 2021
स्कॉटलैंड क्रिकेट टीम ने मई 2021 में दो एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) मैच खेलने के लिए नीदरलैंड का दौरा किया था। कोविड-19 महामारी के प्रभाव के कारण, नीदरलैंड ने आखिरी बार एकदिवसीय मैच जून 2019 में, और स्कॉटलैंड ने आखिरी बार एकदिवसीय मैच दिसंबर 2019 में खेला था। मूल रूप से, दूसरा एकदिवसीय मैच 21 मई को खेला जाना था, लेकिन खराब मौसम की भविष्यवाणी के बाद मैच को 20 मई को खेला गया। नीदरलैंड ने पहला वनडे 14 रन से जीता। स्कॉटलैंड ने दूसरा वनडे 6 विकेट से जीतकर श्रृंखला 1-1 से ड्रा की। दस्ता एकदिवसीय श्रृंखला पहला वनडे दूसरा वनडे संदर्भ बाहरी कड़ियाँ ईएसपीएन क्रिकइन्फो पर सीरीज होम 2021 में स्कॉटलैंड क्रिकेट 2021 में नीदरलैंड क्रिकेट २०२१ में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट प्रतियोगिताएं स्कॉटलैंड क्रिकेट विदेश दौरे
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ऋचा शर्मा
ऋचा शर्मा () एक भारतीय फ़िल्म पार्श्वगायिका तथा भक्ति गायिका हैं। उन्होंने 2006 की फ़िल्म बाबुल में बॉलीवुड का सबसे लंबा ट्रैक बिदाई गाया था। करियर पंडित आसकरण शर्मा के संरक्षण में ऋचा ने भारतीय शास्त्रीय और सुगम संगीत में उचित प्रशिक्षण प्राप्त किया। ऋचा ने ग़ज़ल, फ़िल्मी गाने, पंजाबी और राजस्थानी लोक गीत अपने प्रदर्शन में शामिल किए। 1994 में ऋचा अपनी अकादमिक शिक्षा का छोड़कर बिना किसी सहारे के संगीत की दुनिया में कुछ बड़ा करने का सपना लेकर मुंबई आ गईं। शुरूआत में उन्होंने अपनी रोजी-रोटी सुनिश्चित करने के लिए कवर वर्जन और भजन गाए और साथ ही बॉलीवुड में अपना संघर्ष भी जारी रखा। उन्होंने 1996 में सावन कुमार की फ़िल्म सलमा पे दिल आ गया से बॉलीवुड में अपनी शुरुआत की और इसके बाद कई फिल्में कीं जब तक कि ताल के रूप में बड़ी हिट नहीं मिली जहां उन्होंने ए॰ आर॰ रहमान के लिए गाना गाया। उन्होंने जुबैदा, साथिया (ए.आर. रहमान); हेरा फेरी (अनु मलिक); खाकी (राम संपत); तरकीब (गीत "दुपट्टे का पलू"), बागबान (आदेश श्रीवास्तव के लिए शीर्षक गीत); सोच (जतिन-ललित के लिए गाना "निकल चली बे"); रुद्राक्ष, कल हो ना हो (शंकर-एहसान-लॉय); गंगाजल (संदेश शांडिल्य); पॉपकॉर्न खाओ मस्त हो जाओ (विशाल-शेखर), सांवरिया (मोंटी शर्मा), ओम शांति ओम (विशाल-शेखर) और कांटे के लिए सबसे लोकप्रिय गाना (आनंद राज आनंद के लिए "माही वे") इत्यादि फ़िल्मों में गाने गाए। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ 1974 में जन्मे लोग जीवित लोग बॉलीवुड पार्श्वगायक
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महेन्द्रगंज विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र
() भारतीय राज्य मेघालय का एक विधानसभा क्षेत्र है। यहाँ से वर्तमान विधायक दिककाञ्ची डी शिरा हैं। विधायकों की सूची इस निर्वाचन क्षेत्र से विधायकों की सूची निम्नवत है |-style="background:#E9E9E9;" !वर्ष !colspan="2" align="center"|पार्टी !align="center" |विधायक !प्राप्त मत |- |१९७२ |bgcolor="#DDDDDD"| |align="left"|निर्दलीय |align="left"|शम्स उल हक़ |२०१२ |- |१९७८ |bgcolor="#00FFFF"| |align="left"|भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |align="left"|माणिक च दास |५१५८ |- |१९८३ |bgcolor="#00FFFF"| |align="left"|भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |align="left"|लोकहिंदर हजोंग |३२६९ |- |१९८८ |bgcolor="#CEF2E0"| |align="left"|हिल पीपल्स यूनियन |align="left"|धबल च बर्मन |५५५८ |- |१९९३ |bgcolor="#CEF2E0"| |align="left"|मेघालय पीपल्स प्रोग्रेसिव पार्टी |align="left"|लोक किंडर हजोंग |२९३२ |- |१९९७ |bgcolor="#DDDDDD"| |align="left"|निर्दलीय |align="left"|अब्दुस सालेह |३९०१ |- |१९९८ |bgcolor="#00FFFF"| |align="left"|भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |align="left"|अब्दुस सालेह |४९३३ |- |२००३ |bgcolor="#00B2B2"| |align="left"|राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी |align="left"|निधु राम हजोंग |६४७९ |- |२००८ |bgcolor="#00FFFF"| |align="left"|भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |align="left"|अब्दुस सालेह |७०१७ |- |२०१३ |bgcolor="#00FFFF"| |align="left"|भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |align="left"|दिककाञ्ची डी शिरा |११५८० |- |२०१८ |bgcolor="#00FFFF"| |align="left"|भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |align="left"|दिककाञ्ची डी शिरा |१३९९४ |} इन्हें भी देखें तुरा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र मेघालय के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सूची सन्दर्भ मेघालय के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A5%80%E0%A4%AE
अफ़ीम
अफ़ीम (Opium ; वैज्ञानिक नाम : lachryma papaveris) अफ़ीम के पौधे पैपेवर सोमनिफेरम के 'दूध' (latex) को सुखा कर बनाया गया पदार्थ है, जिसके सेवन से मादकता आती है। इसका सेवन करने वाले को अन्य बातों के अलावा तेज नींद आती है। अफीम में १२% तक मार्फीन (morphine) पायी जाती है जिसको प्रसंस्कृत (प्रॉसेस) करके हैरोइन (heroin) नामक मादक द्रब्य (ड्रग) तैयार किया जाता है। अफीम का दूध निकालने के लिये उसके कच्चे, अपक्व 'फल' में एक चीरा लगाया जाता है; इसका दूध निकलने लगता है, जो निकल कर सूख जाता है। यही दूध सूख कर गाढ़ा होने पर अफ़ीम कहलाता है। यह लचिला (sticky) होता है। लेटेक्स में निकट से संबंधित ओपियेट्स कोडीन और थेबाइन, और गैर-एनाल्जेसिक अल्कलॉइड जैसे पैपावेरिन और नोस्कैपिन भी शामिल हैं। लेटेक्स प्राप्त करने की पारंपरिक, श्रम-गहन विधि हाथ से अपरिपक्व बीज की फली (फल) को खरोंच ("स्कोर") करना है; लेटेक्स बाहर निकल जाता है और एक चिपचिपे पीले रंग के अवशेष में सूख जाता है जिसे बाद में हटा दिया जाता है और निर्जलित कर दिया जाता है। मेकोनियम शब्द ("अफीम की तरह" के लिए ग्रीक से लिया गया है, लेकिन अब नवजात मल को संदर्भित करता है) ऐतिहासिक रूप से अफीम के अन्य भागों या पॉपपी की विभिन्न प्रजातियों से संबंधित, कमजोर तैयारियों को संदर्भित करता है। प्राचीन काल से उत्पादन के तरीकों में कोई खास बदलाव नहीं आया है। पैपर सोमनिफरम संयंत्र के चयनात्मक प्रजनन के माध्यम से, फेनेंथ्रीन एल्कलॉइड मॉर्फिन, कोडीन और कुछ हद तक थेबेन की सामग्री में काफी वृद्धि हुई है। आधुनिक समय में, अधिकांश थेबाइन, जो अक्सर ऑक्सीकोडोन, हाइड्रोकोडोन, हाइड्रोमोर्फ़ोन, और अन्य अर्ध-सिंथेटिक ओपियेट्स के संश्लेषण के लिए कच्चे माल के रूप में कार्य करता है, पापावर ओरिएंटेल या पापवर ब्रैक्टेटम निकालने से उत्पन्न होता है। अवैध नशीली दवाओं के व्यापार के लिए, अफीम लेटेक्स से मॉर्फिन निकाला जाता है, जिससे थोक वज़न 88% कम हो जाता है। फिर इसे हेरोइन में बदल दिया जाता है, जो लगभग दुगनी शक्तिशाली होती है, और एक समान कारक द्वारा मूल्य में वृद्धि करती है। कम वज़न और थोक में तस्करी करना आसान हो जाता है। इतिहास भूमध्यसागरीय क्षेत्र में मानव उपयोग के सबसे पुराने पुरातात्विक साक्ष्य हैं; सबसे पुराना ज्ञात बीज नवपाषाण युग में 5000 ईसा पूर्व से भी अधिक पुराना है, जिसका उद्देश्य भोजन, निश्चेतक और अनुष्ठान हैं। प्राचीन ग्रीस के साक्ष्य इंगित करते हैं कि अफीम का सेवन कई तरह से किया जाता था, जिसमें वाष्प, सपोसिटरी, चिकित्सा पोल्टिस, और आत्महत्या के लिए हेमलॉक के संयोजन के रूप में शामिल हैं। अफीम का उल्लेख प्राचीन दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण चिकित्सा ग्रंथों में किया गया है, जिसमें एबर्स पेपिरस और डायोस्कोराइड्स, गैलेन और एविसेना के लेखन शामिल हैं। असंसाधित अफीम का व्यापक चिकित्सा उपयोग मॉर्फिन और उसके उत्तराधिकारियों को रास्ता देने से पहले अमेरिकी गृहयुद्ध के दौरान जारी रहा, जिसे ठीक नियंत्रित खुराक पर इंजेक्ट किया जा सकता था। प्राचीन उपयोग (500 ईस्वी पूर्व) लगभग 3400 ईसा पूर्व से अफीम सक्रिय रूप से एकत्र की जाती रही है। अफगानिस्तान का ऊपरी एशियाई क्षेत्र, पाकिस्तान, उत्तरी भारत और म्यांमार अभी भी दुनिया में अफीम की सबसे बड़ी आपूर्ति के लिए जिम्मेदार हैं। स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी और स्पेन में नवपाषाणकालीन बस्तियों से पापवेर सोम्निफेरम के कम से कम 17 खोजों की सूचना मिली है, जिसमें स्पेन में एक दफन स्थल (क्यूवा डी लॉस मर्सिएलेगोस, या "बैट केव") पर बड़ी संख्या में अफीम के बीज के कैप्सूल भी शामिल हैं। ), जो कार्बन-14 दिनांकित 4200 ईसा पूर्व रहा है। कांस्य युग और लौह युग की बस्तियों से पी. सोम्निफेरम या पी. सेटिगेरम की कई खोजों की भी सूचना मिली है। अफीम पोपियों की पहली ज्ञात खेती मेसोपोटामिया में, लगभग 3400 ई.पू. में सुमेरियों द्वारा की गई थी, जो हुल गिल के पौधे को "जॉय प्लांट" कहते थे। बगदाद के दक्षिण में एक सुमेरियन आध्यात्मिक केंद्र निप्पुर में मिली गोलियों में सुबह में अफीम के रस के संग्रह और अफीम के उत्पादन में इसके उपयोग का वर्णन किया गया है। मध्य पूर्व में अश्शूरियों द्वारा खेती जारी रखी गई, जिन्होंने लोहे के स्कूप के साथ फली को पीसकर सुबह में खसखस ​​​​का रस भी एकत्र किया; वे रस को अरतपा-पाल कहते थे, संभवतः पापवेर की जड़। बेबीलोनियों और मिस्रवासियों के अधीन अफीम का उत्पादन जारी रहा। लोगों को जल्दी और दर्द रहित तरीके से मौत के घाट उतारने के लिए अफीम का जहर हेमलॉक के साथ इस्तेमाल किया गया था। इसका उपयोग दवा में भी किया जाता था। स्पोंजिया सोम्निफेरा, अफीम में भिगोए गए स्पंज, सर्जरी के दौरान इस्तेमाल किए गए थे। मिस्रवासियों ने लगभग 1300 ईसा पूर्व प्रसिद्ध अफीम के खेतों में अफीम थेबैकम की खेती की थी। अफीम का व्यापार मिस्र से फोनीशियन और मिनोअन्स द्वारा ग्रीस, कार्थेज और यूरोप सहित भूमध्य सागर के आसपास के गंतव्यों में किया जाता था। 1100 ईसा पूर्व तक, साइप्रस में अफीम की खेती की जाती थी, जहां अफीम की फली को काटने के लिए शल्य-गुणवत्ता वाले चाकू का इस्तेमाल किया जाता था, और अफीम की खेती, व्यापार और धूम्रपान किया जाता था। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में असीरिया और बेबीलोन की भूमि पर फारसी विजय के बाद भी अफीम का उल्लेख किया गया था। प्रारंभिक खोज से, अफीम का अनुष्ठान महत्त्व प्रतीत होता है, और मानवविज्ञानी ने अनुमान लगाया है कि प्राचीन पुजारियों ने उपचार शक्ति के प्रमाण के रूप में दवा का इस्तेमाल किया होगा। मिस्र में, अफीम का उपयोग आम तौर पर पुजारियों, जादूगरों और योद्धाओं तक ही सीमित था, इसके आविष्कार का श्रेय थॉथ को दिया जाता है, और कहा जाता है कि इसे आइसिस ने रा को सिरदर्द के इलाज के रूप में दिया था। मिनोअन "मादक पदार्थों की देवी" की एक आकृति, तीन अफीम पोपियों का मुकुट पहने हुए, c. 1300 ईसा पूर्व, एक साधारण धूम्रपान उपकरण के साथ, गाज़ी, क्रेते के अभयारण्य से बरामद किया गया था। ग्रीक देवताओं हिप्नोस (नींद), निक्स (रात), और थानाटोस (मृत्यु) को पोपियों में पुष्पांजलि या उन्हें पकड़े हुए चित्रित किया गया था। पोपियों को अक्सर अपोलो, एस्क्लेपियोस, प्लूटो, डेमेटर, एफ़्रोडाइट, काइबेले और आइसिस की मूर्तियों से सजाया जाता है, जो रात में विस्मृति का प्रतीक है। इस्लामी समाज (500-1500 ई.) जैसे ही रोमन साम्राज्य की शक्ति में गिरावट आई, भूमध्य सागर के दक्षिण और पूर्व की भूमि इस्लामी साम्राज्यों में शामिल हो गई। कुछ मुसलमानों का मानना ​​है कि हदीस, जैसे सही बुखारी में, हर नशीले पदार्थ को प्रतिबंधित करता है, हालांकि विद्वानों द्वारा दवा में नशीले पदार्थों के उपयोग की व्यापक रूप से अनुमति दी गई है। डायोस्कोराइड्स की पांच-खंड डी मटेरिया मेडिका, फार्माकोपियास के अग्रदूत, 1 से 16 वीं शताब्दी तक उपयोग में रहे (जिसे अरबी संस्करणों में संपादित और सुधार किया गया था) और अफीम और इसके व्यापक उपयोग का वर्णन किया गया था। प्राचीन दुनिया। 400 और 1200 ईस्वी के बीच, अरब व्यापारियों ने चीन में और 700 तक भारत में अफीम की शुरुआत की। फ़ारसी मूल के चिकित्सक मुहम्मद इब्न ज़कारिया अल-रज़ी ("रेज़ेज़", 845–930 ईस्वी) ने बगदाद में एक प्रयोगशाला और स्कूल बनाए रखा, और गैलेन के छात्र और आलोचक थे; उन्होंने एनेस्थीसिया में अफीम का उपयोग किया और फी मा-ला-यहदरा अल-ताबीब में उदासी के इलाज के लिए इसके उपयोग की सिफारिश की, "इन द एब्सेंस ऑफ ए फिजिशियन", एक घरेलू चिकित्सा मैनुअल जो आम नागरिकों के लिए स्व-उपचार के लिए निर्देशित है यदि ए डॉक्टर उपलब्ध नहीं थे। प्रसिद्ध अंडालूसी ऑप्थल्मोलॉजिक सर्जन अबू अल-कासिम अल-ज़हरवी ("अबुलकासिस", 936-1013 ईस्वी) ने सर्जिकल एनेस्थेटिक्स के रूप में अफीम और मैंड्रेक पर भरोसा किया और एक ग्रंथ, अल-तस्रीफ लिखा, जिसने 16 वीं शताब्दी में चिकित्सा विचार को अच्छी तरह से प्रभावित किया। फ़ारसी चिकित्सक अबू 'अली अल-हुसैन इब्न सिना ("एविसेना") ने द कैनन ऑफ मेडिसिन में अफीम को मंड्रेक और अन्य अत्यधिक प्रभावी जड़ी-बूटियों की तुलना में सबसे शक्तिशाली स्टुपेफिएंट्स के रूप में वर्णित किया। पाठ में अफीम के औषधीय प्रभावों को सूचीबद्ध किया गया है, जैसे कि एनाल्जेसिया, सम्मोहन, एंटीट्यूसिव प्रभाव, जठरांत्र संबंधी प्रभाव, संज्ञानात्मक प्रभाव, श्वसन अवसाद, न्यूरोमस्कुलर गड़बड़ी और यौन रोग। यह अफीम की क्षमता को जहर के रूप में भी संदर्भित करता है। एविसेना दवा की खुराक के लिए वितरण और सिफारिशों के कई तरीकों का वर्णन करता है। इस क्लासिक पाठ का 1175 में लैटिन में और बाद में कई अन्य भाषाओं में अनुवाद किया गया था और 19वीं शताब्दी तक आधिकारिक रहा। सेराफेद्दीन सबुनकुओग्लू ने 14वीं सदी के ओटोमन साम्राज्य में माइग्रेन के सिरदर्द, साइटिका और अन्य दर्दनाक बीमारियों के इलाज के लिए अफीम का इस्तेमाल किया। पश्चिमी चिकित्सा का पुन: परिचय 10वीं और 11वीं शताब्दी के स्यूडो-अपुलीयुस के 5वीं सदी के काम की पांडुलिपियों में नींद को प्रेरित करने और दर्द से राहत के लिए पी. सोम्निफेरम के बजाय जंगली खसखस ​​पापावर एग्रेस्टे या पैपवर रियोस (पी. सिल्वेटिकम के रूप में पहचाने जाने वाले) के उपयोग का उल्लेख है। पेरासेलसस के लॉडानम का उपयोग 1527 में पश्चिमी चिकित्सा के लिए पेश किया गया था, जब फिलिपस ऑरियोलस थियोफ्रेस्टस बॉम्बस्टस वॉन होहेनहेम, जिसे पैरासेल्सस के नाम से जाना जाता है, एक प्रसिद्ध तलवार के साथ अरब में अपने भटकने से लौटा, जिसके पोमेल के भीतर उसने "पत्थरों के पत्थर" रखे। अमरता" अफीम थेबैकम, साइट्रस जूस और "सोने की सर्वोत्कृष्टता" से मिश्रित है। "पैरासेलसस" नाम एक छद्म नाम था जो उन्हें औलस कॉर्नेलियस सेल्सस के बराबर या बेहतर दर्शाता था, जिसका पाठ, जिसमें अफीम के उपयोग या इसी तरह की तैयारी का वर्णन किया गया था, का हाल ही में अनुवाद किया गया था और मध्ययुगीन यूरोप में फिर से पेश किया गया था। बैसेल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नियुक्त होने के तीन सप्ताह बाद, मानक चिकित्सा पाठ्यपुस्तक पैरासेलसस को सार्वजनिक अलाव में जला दिया गया, जिसमें अफीम के उपयोग का भी वर्णन किया गया था, हालांकि कई लैटिन अनुवाद खराब गुणवत्ता के थे। लॉडानम ("प्रशंसा के योग्य") मूल रूप से एक विशेष चिकित्सक से जुड़ी दवा के लिए 16 वीं शताब्दी का शब्द था जिसे व्यापक रूप से माना जाता था, लेकिन "अफीम की टिंचर" के रूप में मानकीकृत किया गया, इथेनॉल में अफीम का एक समाधान, जिसे पेरासेलसस ने विकसित करने का श्रेय दिया गया है। अपने जीवनकाल के दौरान, Paracelsus को एक साहसी के रूप में देखा गया, जिसने खतरनाक रासायनिक उपचारों के साथ समकालीन चिकित्सा के सिद्धांतों और भाड़े के उद्देश्यों को चुनौती दी, लेकिन उनके उपचारों ने पश्चिमी चिकित्सा में एक महत्वपूर्ण मोड़ को चिह्नित किया। 1660 के दशक में, थॉमस सिडेनहैम, प्रसिद्ध "अंग्रेजी दवा के पिता" या "अंग्रेजी हिप्पोक्रेट्स" द्वारा दर्द, नींद न आना और दस्त के लिए लॉडेनम की सिफारिश की गई थी, जिसके लिए उद्धरण का श्रेय दिया जाता है, "उन उपचारों में से जो इसे प्रसन्न करते हैं मनुष्य को उसके कष्टों को दूर करने के लिए देने के लिए, कोई भी इतना सार्वभौमिक और इतना प्रभावशाली नहीं है जितना कि अफीम।" इलाज के रूप में अफीम का उपयोग-सब 1728 चैंबर्स साइक्लोपीडिया में वर्णित मिथ्रिडैटियम के निर्माण में परिलक्षित होता था, जिसमें सत्य शामिल था मिश्रण में अफीम। अंततः, 18वीं शताब्दी तक यूरोप, विशेष रूप से इंग्लैंड में लॉडेनम आसानी से उपलब्ध हो गया और व्यापक रूप से उपयोग किया जाने लगा। अठारहवीं शताब्दी के नियमित चिकित्सकों के लिए उपलब्ध अन्य रसायनों की तुलना में, अफीम आर्सेनिक, पारा या इमेटिक्स का एक सौम्य विकल्प था, और यह कई तरह की बीमारियों को कम करने में उल्लेखनीय रूप से सफल रहा। अक्सर अफीम के सेवन से उत्पन्न कब्ज के कारण, यह हैजा, पेचिश और दस्त के लिए सबसे प्रभावी उपचारों में से एक था। कफ सप्रेसेंट के रूप में, अफीम का उपयोग ब्रोंकाइटिस, तपेदिक और अन्य श्वसन संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता था। अफीम को गठिया और अनिद्रा के लिए भी निर्धारित किया गया था। चिकित्सा पाठ्य पुस्तकों ने अच्छे स्वास्थ्य वाले लोगों द्वारा "मानव शरीर के आंतरिक संतुलन को अनुकूलित करने" के लिए इसके उपयोग की भी सिफारिश की है। 18वीं शताब्दी के दौरान, अफीम तंत्रिका विकारों के लिए एक अच्छा उपाय पाया गया था। इसके शामक और शांत करने वाले गुणों के कारण, इसका उपयोग मनोविकृति वाले लोगों के दिमाग को शांत करने, पागल माने जाने वाले लोगों की मदद करने और अनिद्रा के रोगियों के इलाज में मदद करने के लिए भी किया जाता था। हालांकि, इन मामलों में इसके औषधीय मूल्यों के बावजूद, यह ध्यान दिया गया कि मनोविकृति के मामलों में, यह क्रोध या अवसाद का कारण बन सकता है, और दवा के उत्साहपूर्ण प्रभावों के कारण, यह अवसादग्रस्त रोगियों को और अधिक उदास होने का कारण बन सकता है क्योंकि वे प्रभाव समाप्त हो जाते हैं क्योंकि वे उच्च होने की आदत हो जाएगी। अफीम का मानक चिकित्सा उपयोग 19वीं शताब्दी में अच्छी तरह से कायम रहा। अमेरिकी राष्ट्रपति विलियम हेनरी हैरिसन को 1841 में अफीम के साथ इलाज किया गया था, और अमेरिकी गृहयुद्ध में, केंद्रीय सेना ने 175,000 पौंड (80,000 किलोग्राम) अफीम टिंचर और पाउडर और लगभग 500,000 अफीम की गोलियों का इस्तेमाल किया था। लोकप्रियता के इस समय के दौरान, उपयोगकर्ताओं ने अफीम को "गॉड्स ओन मेडिसिन" कहा। 19वीं शताब्दी के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका में अफीम की खपत में वृद्धि का एक कारण "महिला शिकायतों" वाली महिलाओं (ज्यादातर मासिक धर्म के दर्द और हिस्टीरिया को दूर करने के लिए) को चिकित्सकों और फार्मासिस्टों द्वारा कानूनी अफीम का निर्धारण और वितरण करना था। चूंकि ओपियेट्स को सजा या संयम से अधिक मानवीय माना जाता था, इसलिए उन्हें अक्सर मानसिक रूप से बीमार लोगों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता था। 19वीं शताब्दी के अंत में 150,000 और 200,000 के बीच अफीम के नशेड़ी संयुक्त राज्य अमेरिका में रहते थे और इनमें से दो-तिहाई से तीन-चौथाई महिलाएं थीं। इन्हें भी देखें गांजा अफीम युद्ध बाहरी कड़ियाँ मारवाड़ में अफ़ीम सेवन की प्रथा राष्ट्रीय समाज रक्षा संस्थान भारत केन्द्रीय मादक द्रव्य (नार्कोटिक्स) ब्यूरो National Institute on Drug Abuse: Heroin and related topics Iowa Substance Abuse Information Center: Heroin and other opiates DEA drug information: Opium, morphine, and heroin UNODC - United Nations Office on Drugs and Crime - Afghan Opium Survey 2009 Erowid: Opiates / Opioids Hall of Opium Virtual museum (Macromedia Flash presentation) Opium Museum: Opium paraphernalia and historical photos of opium smokers The New Yorker Magazine: photos of Opium production and eradication in Afghanistan Opium Made Easy by Michael Pollan (originally appeared in Harper's.) Confessions of a Poppy Tea addict Geopium: Opium politics, geography, and photos (site mostly in ) Opium in India BLTC Research: Speculations on the future of opioids Thailex photo: Traditional method of using opium in Thailand Aaron Huey, photographer: Photo Essay on Poppy Eradication in Afghanistan Tsur Shezaf, Witer, The Opium Growers of Sinai सन्दर्भ अफीम नशा मनोसक्रीय भेषज
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रेहान रॉय
रेहान रॉय भारतीय अभिनेता और मॉडल हैं, जो कई हिन्दी और बंगाली टीवी धारावाहिकों में काम कर चुके हैं। ये ओगो बोधु सुन्दोरी में ईशान का मुख्य किरदार निभाने के कारण जाने जाते हैं। इसके अलावा ये ऋषि की भूमिका सजदा तेरे प्यार में के धारावाहिक में निभा चुके हैं और नागार्जुन - एक योद्धा में अजगार, एक विवाह ऐसा भी में साहिल और इसी के साथ साथ ये विक्रम भट्ट के वेब सीरीज तंत्र में भी काम कर चुके हैं। ये एंड टीवी के अग्निफेरा में अभिमन्यु की भूमिका भी निभा चुके हैं। फिलहाल ज़ी टीवी के गुड्डन - तुमसे ना हो पायेगा में इंस्पेक्टर पर्व सिंह का और कर्ण संगिनी में दुशासन का किरदार निभा रहे हैं। अभिनय इन्होंने अपने अभिनय की शुरुआत स्टार जलशा के कार्यक्रम ओगो बोधु सुन्दोरी से शुरू की, जिसमें ये ईशान लहरी का मुख्य किरदार निभाए थे। इसके बाद ये स्टार प्लस के सजदा तेरे प्यार में धारावाहिक में ऋषि की भूमिका में नजर आए। धारावाहिक सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ जीवित लोग 1988 में जन्मे लोग कोलकाता के लोग भारतीय टेलिविज़न अभिनेता
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%9D%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%82%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%9A%E0%A5%80
भारत की झीलों की सूची
यहां भारत की प्रमुख झीलों की सूची दी जा रही है। भारत की झीलों की राज्यवार सूची आन्ध्र प्रदेश कोलेरू झील पुलिकट झील हैदराबाद शहर झील सरूरनगर झील ओसमान सागर हिमायत सागर हुसैन सागर कर्नाटक बेलान्दुर झील पंपा सरोवर ,उंक्कल झील उल्सुर झील ,कुक्करहल्ली झील , कावेरी भीमेश्वर ,अय्यांकेरी झील, केरल अष्टमुडी झील मानचीरा पारावुर कायल पुनामदा झील सास्तामकोटा झील वेम्बानद झील चण्डीगढ़ [सुखना झील] जम्मू और कश्मीर ] आंचार कृशनसर कौसरनाग गंगाबल झील गाडसर डल झील पांगोंग त्सो मानसबल झील मानसर सरोवर विशनसर वुलर झील सो मोरिरी उड़ीसा चिल्का झील उत्तराखण्ड रुपकुण्ड नैनीताल झील भीमताल झील सात ताल नोच्हिका ताल डोडीताल मालाताल झील उत्तर प्रदेश किथम झील बेलासागर झील बैरुआ सागर ताल आमाखेरा झील बडी ताल नाचन ताल चिका झील फुलहर झील गोमत ताल कठौता झील तमिलनाडु चिम्बारकाकम झील कालीवेली झील पुल्लीकट झील रेड हील्स झील सोल्लावरम झील वीरणम झील बेरीजम झील कोडेकनल झील मध्यप्रदेश भोज ताल, भोपाल लाखा बंजारा झील, सागर महाराष्ट्र मुम्बई शहर की झीलें विहार झील तुलसी झील पोवाईझील लोनार झील मणिपुर लोकटक झील पंजाब काञली आर्द्रभूमि हारीकी आर्द्रभूमि रूपड़ आर्द्रभूमि गोविन्द सागर झील राजस्थान खारे पानी की झीलें सांभर झील (जयपुर) पचपदरा झील (बाड़मेर) डीडवाना (नागौर) लुणकरणसर (बीकानेर) मीठे पानी की झीलें ढेबर झील फतेहसागर झील (उदयपुर) नक्की झील माउण्ट आबू (सिरोही) पुष्कर झील राजसमन्द झील आनासागर झील पिछोला झील स्वरुपसागर झील दुध तलाई झील बालसमन्द झील फाय सागर सिक्किम गुरुदोगमारझील खिच्हियोपालरी झील सोंगमा झील हरियाणा बड़खल झील ब्रह्म सरोवर कर्ण झील सन्निहित सरोवर सूरजकुण्ड तिलयार झील टिक्कड़ ताल हिमाचल प्रदेश भृगु झील दाशैर और धानकर झील घाधासारू और महाकाली झील केरारी और कुमारवाह झील खाज्जीर झील लामा डल एवं चांदर नौन मच्छियाल झील महाराणा प्रताप सागर मनिमहेश झील नाको झील पंडोस झील पराशर झील रेणुका झील रेवाल्सर झील सेरूवाल्सर एवं मनीमहेश झील सूरज ताल सूर्य ताल चंद्र ताल अवर्गीकृत डीपोर बील झील हरीकी झील ढेबर झील जलमहल झील और मानसरोवर झील कडीनीकुलम झील कावर (काबर) झील कोडेकनल झील कुतानन्द मीरीक झील नगीना झील मोकामा ताल नानगल झील ऊट्टी झील रबीन्द्र सरोवर हम्बु झील सी सागर (सुलीकेरे) झील स्कीली झील त्सोकार झील वेलायनी झील इन्हें भी देखें भारत की नदियों की सूची सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ झील क्या है एवं इसके प्रकार तथा विश्व के प्रमुख झीले भारत की झीलें भारत का भूगोल
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%A3%20%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%AF%E0%A4%9C%E0%A4%B2%20%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%BE
राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना
राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल समस्या को दूर करने हेतु शुरु की गई सरकारी योजना है। भारत सरकार द्वारा वर्ष १९८६ में शुरु किए गए राष्ट्रीय पेयजल मिशन (बाद में राजीव गाँधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन) को विस्तार पूर्वक अपनाया गया। इसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में ४० लीटर सुरक्षित पेयजल मुहैया कराना सरकार का लक्ष्य है। फरवरी 2006 में सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल गुणवत्ता परीक्षण एवं अनुरक्षण कार्यक्रम बनाया जिसके तहत स्थानीय पंचायतों एवं ग्राम स्वच्छता कमिटी की मदद से सामाजिक भागीदारी के तहत कार्यक्रम को लाने का प्रयास किया है। इसके तहत चिह्नित गाँवों से एकत्रित पेयजल नमूने को राज्य स्तरीय प्रयोगशालाओं में जाँच के पश्चात गडबरियों को दूर करने के लिए आवश्यक कदम उठाया जाता है। सन्दर्भ भारत में सरकारी योजनाएँ भारत में ग्रामीण विकास
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B5%E0%A4%B0%20%E0%A4%8F%E0%A4%B5%E0%A4%82%20%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0%20%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B9
अवर एवं वरिष्ठ ग्रह
वें ग्रह जिनकी कक्षाएं पृथ्वी की अपेक्षा सूर्य से नजदीक स्थित है अवर ग्रह (Inferior planet) कहलाते है। इसके विपरीत जिनकी कक्षाएं पृथ्वी की अपेक्षा सूर्य से दूर है वरिष्ठ ग्रह (superior planet) कहलाते है। इस प्रकार, बुध व शुक्र अवर ग्रह है और मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेप्च्यून वरिष्ठ ग्रह है। ध्यान रहे, यह वर्गीकरण आंतरिक व बाह्य ग्रह से अलग है जो उन ग्रहों के लिए नामित है जिनकी कक्षाएं क्रमशः क्षुद्रग्रह बेल्ट के भीतर और बाहर मौजूद है। "अवर ग्रह" लघु ग्रह या वामन ग्रह से भी बहुत अलग है। सन्दर्भ खगोलशास्त्र ग्रहों के प्रकार
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A8%20%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%A8
स्प्लाइन अन्तर्वेशन
संख्यात्मक विश्लेषण के क्षेत्र में, स्पलाइन अन्तर्वेशन (स्प्लाइन अन्तर्वेशन) इंटरपोलेशन का एक रूप है जहां अनतर्वेशन के लिये एक विशेष प्रकार का खण्डशः बहुपद का प्रयोग किया जाता है जिसे स्पलाइन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, सभी बिन्दुओं से होकर जाने वाला एक ही उच्च-घात का बहुपद फ़िट करने के बजाय, स्पलाइन इंटरपोलेशन क्रमशः आने वाले दो बिन्दुओं के बीच कम घात का बहुपद फिट करता है, और इसके आगे के खण्ड में एक दूसरा कम घात वाला बहुपद फिट करता है। उदाहरण के लिए, माना दस बिन्दु दिये हुए हैं। इन दस बिंदुओं से होकर जाने वाला एक ही नौ घात वाला बहुपद फिट करने के बजाय इनके प्रत्येक खण्ड के लिये अलग-अलग नौ घन बहुपद फ़िट करना। प्रायः बहुपद इंटरपोलेशन के स्थान पर स्पलाइन इंटरपोलेशन करने को वरीयता दी जाती है क्योंकि स्पलाइन के लिए कम घात के बहुपद का उपयोग करके भी इंटरपोलेशन त्रुटि को कम रखा जा सकता है। किसी बिन्दु पर कम घात के बहुपद का मान निकालना भी अपेक्षाकृत सरल होता है। स्प्लाइन अन्तर्वेशन रुंग परिघटना की समस्या से भी बचाता है, जिसमें उच्च-घात के बहुपदों का उपयोग करते हुए अन्तर्वेशन करते समय बिंदुओं के बीच दोलन हो सकता है। उदाहरण नीचे की तालिका में ७ बिन्दुओं के निर्देशांक दिये हुए हैं। पास में ही इन बिन्दुओं की स्थिति लाल रंग के बिन्दुओं द्वारा दर्शायी गयी है। इन सातों बिन्दुओं के बीच कुल छः खण्ड हैं। बाएँ से दाएँ, इन खण्डों के बीच तीन-घात वाले निम्नलिखित बहुपद फिट किये जा सकते हैं। इतना ही नहीं, हम इन छः खण्डों के लिये सरल रेखा भी फिट कर सकते है, जो सबसे सरल है। इसी प्रकार ४,५ ६ या अधिक घात के बहुपद भी फिट किये जा सकते हैं। उपरोक्त तीन घात वाले बहुपदों में कुछ और भी गुण हैं जिनके कारण उन्हें 'सहज घन स्प्लाइन' (natural cubic spline) कहते हैं। माना हमारे पास बिन्दुओं (knots) का एक अनुक्रम है जिसमें से लेकर बिन्दु हैं। दो क्रमागत बिन्दुओं और के बीच एक घन पद होगा (cubic polynomial) होगा जो उन दोनों बिन्दुओं को जोड़ता है (यहाँ )। अर्थात बहुपद होंगे जिसमें से पहला बहुपद से आरम्भ होगा और अन्तिम बहुपद पर समाप्त होगा। इन घन पदों के निम्नलिखित गुण भी होने चाहिये- यह तभी सम्भव है जब स्प्लाइन के लिये तीन घात वाले या उससे अधिक घात के बहुपदों का प्रयोग किया जाय। पहले से तीन घात वाले बहुपदों का उपयोग होता आया है। ऊपर वर्णित तीन शर्तों के अलावा, यदि तो उसे 'सहज घन स्प्लाइन' कहते हैं। ऊपर वर्णित तीन मुख्य शर्तों के अलावा यदि तथा जहाँ इन्टर्पोलेशन बहुपद का अवकलज है तो ऐसे घन स्प्लाइन को तो a clamped cubic spline कहते हैं। ऊपर वर्णित तीन मुख्य शर्तों के अलावा यदि तथा . तो ऐसे घन स्प्लाइन को 'not-a-knot spline' कहते हैं। अन्तर्वेशी घन स्प्लाइन प्राप्त करने की कलन विधि माना बहुपदों बिन्दु से लेकर तक दिये हुए हैम और हम सभी स्प्लाइन बहुपदों को पाना चाहते हैं। इसके लिये हम केवल अकेली वक्र को लेते हैं जो बिन्दु से बिन्दु तक अन्तर्निवेशन करेगा । इस वक्र के दोनों सिरों पर प्रवणता (स्लोप) तथा हैं। अर्थात् सम्पूर्ण समीकरण को सममित रूप में इस तरह लिखा जा सकता है- -- (1) जहाँ -- (2) -- (3) -- (4) किन्तु और के मान क्या होंगे? इनका मान निकालने के लिये हमे पता है कि इससे निम्नलिखित समीकरण प्राप्त होते हैं -- (5) -- (6) Setting and respectively in equations (5) and (6), one gets from (2) that indeed first derivatives and , and also second derivatives -- (7) -- (8) If now are points, and -- (9) where i = 1, 2, ..., n, and are n third-degree polynomials interpolating in the interval for i = 1, ..., n such that for i = 1, ..., n − 1, then the n polynomials together define a differentiable function in the interval , and -- (10) -- (11) for i = 1, ..., n, where -- (12) -- (13) -- (14) If the sequence is such that, in addition, holds for i = 1, ..., n − 1, then the resulting function will even have a continuous second derivative. From (7), (8), (10) and (11) follows that this is the case if and only if -- (15) for i = 1, ..., n'' − 1. The relations (15) are linear equations for the values . For the elastic rulers being the model for the spline interpolation, one has that to the left of the left-most "knot" and to the right of the right-most "knot" the ruler can move freely and will therefore take the form of a straight line with . As should be a continuous function of , "natural splines" in addition to the linear equations (15) should have i.e. that -- (16) -- (17) Eventually, (15) together with (16) and (17) constitute linear equations that uniquely define the parameters . There exist other end conditions, "clamped spline", which specifies the slope at the ends of the spline, and the popular "not-a-knot spline", which requires that the third derivative is also continuous at the and points. For the "not-a-knot" spline, the additional equations will read: जहाँ . इन्हें भी देखें स्प्लाइन सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A5%20%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A5%20%281982%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29
साथ साथ (1982 फ़िल्म)
साथ साथ 1982 में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है। संक्षेप चरित्र मुख्य कलाकार राकेश बेदी - राकेश सुधा चोपड़ा - प्रोफेसर अवतार गिल - अवतार नीना गुप्ता - नीना ए के हंगल - प्रोफेसर चौधरी हेलेना इफ़्तेख़ार जावेद ख़ान - जावेद दीप्ती नवल युनुस परवेज़ सतीश शाह फ़ारुख़ शेख़ - अविनाश वर्मा गीता सिद्धार्थ अंजान श्रीवास्तव किरन वैराले - किरन दल संगीत रोचक तथ्य परिणाम बौक्स ऑफिस समीक्षाएँ नामांकन और पुरस्कार बाहरी कड़ियाँ 1982 में बनी हिन्दी फ़िल्म
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A6%20%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A4%A6%20%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%80
उस्ताद अहमद लाहौरी
उस्ताद अहमद लाहौरी, ताजमहल के प्रधान वास्तुकार होने के अधिकारी हैं। शाहजहाँ के दरबार का इतिहास उसकी निर्माण में वैयक्तिक रुचि दर्शाती है। यह सत्य भी है, कि किसी अन्य मुगल बादशाह की तुलना में उसने सर्वाधिक उत्साह दिखाया निर्माण में। वह अपने वास्तुकारों से नियमित बैठक रखता था। उसके वृत्तांतकार लाहौरी लिखते हैं, कि उसने सदा ही प्रतिभावान वास्तुकारों द्वारा बनाई गईं इमारतों के रूपांकनों में कोई उचित परिवर्तन दिखाया, एवं बुद्धिमत के प्रश्न भी पूछे। " दो वास्तुकार जो कि नाम से उल्लेखित किये जाते हैं, वे हैं उस्ताद अहमद लाहौरी एवं मीर अब्दुल करीम लाहौरी के पुत्र लुत्फुल्लाह मुहन्दीस के लेखानुसार। उस्ताद अहमद लाहौरी ने ही दिल्ली के लाल किले की नींव रखी थी। मीर अब्दुल करीम पूर्व बादशाह जहाँगीर का प्रिय वास्तुकार रहा था, जिसे मक्रामत खाँ के साथ, पर्यवेक्षक नियुक्त किया हुआ था। ताजमहल के निर्माण हेतु। दृष्टांत सन्दर्भ <div class="references-small"> मुगल वास्तुकला
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https://hi.wikipedia.org/wiki/2015-17%20%E0%A4%86%E0%A4%88%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%B8%E0%A5%80%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%97
2015-17 आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग
2015-17 आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग 2015-17 आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग चैम्पियनशिप (मूल रूप से इंटरकांटिनेंटल कप वन-डे) आईसीसी इंटरकांटिनेंटल कप के एक सीमित ओवरों के संस्करण का दूसरा संस्करण है। आयरलैंड और अफगानिस्तान टूर्नामेंट में प्रतिस्पर्धा नहीं होगा क्योंकि उन दोनों वनडे रैंकिंग के माध्यम से सीधे 2019 विश्व कप के लिए क्वालीफाई करने के लिए प्रयास करने के लिए पात्र बना दिया है। इसके बजाय, केन्या और नेपाल टूर्नामेंट में शामिल किया गया है। इस टूर्नामेंट के विजेता अधिकारी 12 टीम रैंकिंग तालिका में सबसे कम रैंक एसोसिएट टीम के खिलाफ एक चुनौती शृंखला खेलने के लिए या तो रहने या अगले चक्र के लिए 12 टीम रैंकिंग तालिका में पदोन्नत किया जाना होगा। शीर्ष चार टीमों में भी शामिल हो जाएगा सबसे कम चार टीमें आईसीसी वनडे चैम्पियनशिप से (सितंबर 2017 तक) 2018 आईसीसी क्रिकेट विश्व कप क्वालीफायर में, रैंक नीचे चार टीमों डिवीजन दो के लिए चला जाएगा, जबकि और डिवीजन के फाइनल के साथ खेलते हैं 2018 सीडब्ल्यूसी क्वालीफायर में शेष दो स्थानों के लिए तीन। टूर्नामेंट राउंड रोबिन प्रारूप शामिल होंगे। मेल खाता है, जिसमें दोनों टीमों की वनडे का दर्जा दिया है एक वनडे मैच के रूप में दर्ज हो जाएगा, माचिस, जिसमें एक या दोनों टीमों की वनडे स्थिति alist के रूप में दर्ज हो जाएगा एक खेल नहीं है, जबकि। टीमें निम्न से आईसीसी क्रिकेट विश्व कप क्वालीफायर 2014 और आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन दो 2015 परिणामों के आधार पर प्रतियोगिता में भाग लेने वाले 8 टीमें हैं (1:-आईसीसी क्रिकेट विश्व कप क्वालीफायर 2014, न्यूजीलैंड) (2:-आईसीसी क्रिकेट विश्व कप क्वालीफायर 2014, न्यूजीलैंड) (3:-आईसीसी क्रिकेट विश्व कप क्वालीफायर 2014, न्यूजीलैंड) (4:-आईसीसी क्रिकेट विश्व कप क्वालीफायर 2014, न्यूजीलैंड) (1:-आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन दो 2015, नामीबिया) (2:-आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन दो 2015, नामीबिया) (3:-आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन दो 2015, नामीबिया) (4:-आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन दो 2015, नामीबिया) खेल तिथि निर्धारण प्रत्येक दौर के दौरान प्रत्येक टीम अपने प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ दो बार निभाता है: समय सारिणी के टूटने इस प्रकार है। अंक तालिका 8 दिसंबर 2017 को खेला (मैच) के लिए अपडेट किया गया। स्रोत: ईएसपीएनक्रिकइन्फो (Q) योग्य। (R) चला। मैच दौर 1 एक दौर के लिए जुड़नार 5 मई 2015 को घोषणा की थी। दौर 2 दो दौर के लिए जुड़नार अगस्त 2015 में घोषणा की थी। दौर 3 तीन दौर के लिए जुड़नार दिसंबर 2015 में घोषणा की थी। दौर 4 चौथे दौर के लिए जुड़नार अप्रैल 2016 में घोषणा की थी। दौर 5 हांगकांग और नीदरलैंड के बीच जुड़नार दिसंबर 2016 में कोनिनक्लीजके नेदेरलैंडसे क्रिकेट बॉन्ड द्वारा घोषणा की गई। दौर 6 केन्या और नीदरलैंड्स के बीच होने वाले मैच मूल रूप से नैरोबी में जिमखाना क्लब ग्राउंड में आयोजित होने का आयोजन किया गया था। हालांकि, केन्याई राष्ट्रपति चुनाव के पुन: चलने से पहले सुरक्षा चिंताओं के कारण उन्हें बफ़ेलो पार्क, ईस्ट लंदन, दक्षिण अफ्रीका में स्थानांतरित कर दिया गया था। दौर 7 दौर 6 में अंतिम गेम के समापन के बाद दौर 7 के लिए जुड़ने की घोषणा की गई थी। आईसीसी ने 5 दिसंबर, 2017 को मैच के लिए सभी टीमों और मैच अधिकारियों की पुष्टि की। सन्दर्भ क्रिकेट प्रतियोगितायें
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A5%8B%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%20%28%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B2%20%E0%A4%95%E0%A5%89%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8%29
घोस्ट (मार्वल कॉमिक्स)
घोस्ट मार्वल कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित अमेरिकी कॉमिक पुस्तकों में दिखाई देने वाला एक काल्पनिक चरित्र है। डेविड मिशेलिन और बॉब लेटन द्वारा निर्मित यह चरित्र सर्वप्रथम आयरन मैन #२१९ (जून १९८७) में आयरन मैन के विरुद्ध एक खलनायक के रूप में दिखाई दिया था। कुछ समय बाद घोस्ट थंडरबोल्ट टीम का सदस्य बन गया, और टीम का नाम डार्क अवेंजर्स हो जाने पर भी वह टीम में ही रहा। हन्ना जॉन-कमेन ने २०१८ की फिल्म ऐंट-मैन एंड द वास्प में ईवा स्टार / घोस्ट की भूमिका निभाई है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Ghost at Marvel.com कॉमिक्स के पात्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%AA%20%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%95
होप कुक
Articles with hCards होप कुक (जन्म 24 जून 1940) "ग्याल्मो" ( ) सिक्किम के 12वें चोग्याल (राजा) पाल्देन थोन्दुप नाम्ग्याल की पटरानी थीं। उनका विवाह मार्च 1963 में हुआ। वो पाल्देन थोन्दुप नामग्याल के वर्ष 1965 में राज्याभिषेक के साथ सिक्किम की महारानी बनी। पाल्देन थोंडुप नामग्याल सिक्किम के अन्तिम राजा थे और सिक्किम को बाद में भारत का अधीन एक राज्य घोषित कर दिया गया। वर्ष 1973 तक देश और उनका विवाह दोनों ढह रहे थे; शीघ्र ही सिक्किम का भारत में विलय हो गया। सिक्किम का अधिग्रहण शुरू होने के पांच महीने बाद, कुक अपने दो बच्चों और सौतेली बेटी को न्यूयॉर्क के विद्यालयों में दाखिला दिलाने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका लौट गईं। कुक और उनके पति का वर्ष 1980 में तलाक हो गया; नामग्याल की वर्ष 1982 में कैंसर से मृत्यु हो गई। कुक ने टाइम चेंज ( साइमन एंड शूस्टर 1981) शीर्षक से एक आत्मकथा लिखी और एक व्याख्याता के रूप में अपना जीवन आरम्भ किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने पुस्तक समीक्षक और पत्रिका योगदानकर्ता के रूप में भी काम आरम्भ किया। इसके बाद में एक नगरीय इतिहासकार भी बन गयीं। न्यूयॉर्क नगर की एक छात्रा के रूप में अपने नए जीवन में कुक ने सीइंग न्यूयॉर्क ( टेम्पल यूनिवर्सिटी प्रेस 1995) प्रकाशित की; एक अखबार के स्तंभकार (डेली न्यूज ) के रूप में भी काम किया और येल विश्वविद्यालय, सारा लॉरेंस कॉलेज और न्यूयॉर्क नगर के एक निजी स्कूल बिर्च वाथेन में पढ़ाया। प्रकाशन टाइम चेंज: एन अमेरिकन वीमन्स एक्स्ट्रॉडनरी स्टोरी (अनुवाद: समय परिवर्तन: एक अमेरिकी महिलाओं की असाधारण कहानी), न्यूयॉर्क: साइमन एंड शूस्टर (1981) टिचिंग द मैजिक ऑफ़ डांस (अनुवाद: नृत्य का जादू सिखाना) ( जैक्स डी'अम्बोइस के साथ), न्यूयॉर्क: साइमन एंड शूस्टर (1983) सीइंग न्यूयॉर्क: हिस्ट्री वॉक्स फॉर आर्मचेयर एंड फुटलूज़ ट्रेवलर्स, फिलाडेल्फिया: टेम्पल यूनिवर्सिटी प्रेस (1995) कुक ने नामग्याल इंस्टीट्यूट ऑफ तिब्बतोलॉजी द्वारा प्रकाशित बुलेटिन ऑफ तिब्बतोलॉजी के लिए कई लेख लिखे। सन्दर्भ ग्रन्थसूची होप कुक की ताजपोशी, सारा लॉरेंस '63' इन लाइफ, 23 अप्रैल, 1965। पृष्ठ। 37 क्वीन होप का साथ कैसा चल रहा है? जीवन, 20 मई 1966, पृष्ठ 51 "होप कुक: फ्रॉम अमेरिकन कोएड टू ओरिएंटल क्वीन"। सारासोटा हेराल्ड-ट्रिब्यून (2 अगस्त, 1964) बाहरी कड़ियाँ "जहाँ आशा है", टाइम, 29 मार्च, 1963 जीवन 23 अप्रैल 1965 "सिक्किम: ए क्वीन रिविज़िटेड", टाइम, 3 जनवरी, 1969 हवाई विश्वविद्यालय संग्रहालय । सिक्किम - महिलाओं का अनौपचारिक पहनावा । (फ़्लिकर पर 1960 के दशक में होप कुक द्वारा पहनी गई खो पोशाक)। जीवित लोग 1940 में जन्मे लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%A0%E0%A4%AC%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%A8%20%28%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A5%80%20%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%83%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A4%B2%E0%A4%BE%29
गठबंधन (टीवी श्रृंखला)
गठबंधन एक भारतीय टेलीविजन एक्शन ड्रामा रोमांस सीरीज़ है जिसे 15 जनवरी से 27 नवंबर 2019 तक कलर्स टीवी पर 224 एपिसोड प्रसारित करके प्रसारित किया गया था। जय प्रोडक्शन के तहत जय मेहता द्वारा निर्मित, इसमें श्रुति शर्मा, अबरार काज़ी और सोनाली नाइक ने अभिनय किया। यह डोंबीवाली मुंबई के डॉन और सुरेंद्रनगर के आईपीएस की प्रेम कहानी है इसे अरबी में العدو الحبیب शीर्षक के तहत डब किया गया था और एमबीसी बॉलीवुड पर प्रसारित किया गया था। कथानक सुरेंद्रनगर से धनक पारेख और मुंबई, महाराष्ट्र से रघु भारत जाधव। गुजरात दो परस्पर विरोधी व्यक्तित्व वाले लोग हैं जो अंततः शादी, दोस्ती और प्यार के बंधन में बंध जाते हैं। रघु एक छोटा अपराधी है, एक गुंडा जिसकी भयानक प्रतिष्ठा है। जल्द ही वह मुंबई के सबसे ताकतवर डॉन में से एक बन जाता है। सावित्री, उनकी माँ, उनके संगठन को नियंत्रित करती हैं, और उन्हें अपनी संपत्ति और प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए हिंसक कृत्यों का सहारा लेने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। धनक एक महत्वाकांक्षी आईपीएस अधिकारी है जो कानून के सही पक्ष में रहता है। रघु को पहली नजर में उससे प्यार हो जाता है और उसके परिवार को बंधक बनाकर शादी के लिए मजबूर करता है। धनक रघु और उसके अधर्म से पहले नफरत करता है, लेकिन जल्द ही उसके लिए गिर जाता है। इसके बाद वह उससे ज्यादा प्यार करने लगी, जितना वह उससे प्यार करता था। सावित्री और माया, रघु के दोस्तों में से एक, जोड़ी के बीच गलतफहमी पैदा करने की कोशिश करते हैं, लेकिन वे हमेशा चीजों को सुलझाने का प्रबंधन करते हैं। कलाकार मुख्य एसीपी धानक पारेख जाधव के रूप में श्रुति शर्मा - महेंद्र की सबसे बड़ी बेटी; पराग, सेजल और प्रीती की बहन; रघु की पत्नी; रौनक की माँ रघुनाथ "रघु" जाधव के रूप में अबरार काज़ी - सावित्री और भरत के पुत्र; धनक का पति; रौनक के पिता अन्य सावित्री "माई" जाधव के रूप में सोनाली नाइक - भरत की पत्नी; रघु की माँ; रौनक की दादी भरत जाधव के रूप में संजय बत्रा - सावित्री के पति; रघु के पिता; रौनक के दादा रौनक जाधव - धनक और रघु के बेटे के रूप में वीर भानुशाली किंशुक महाजन - अक्षय कपूर - धनक का दीवाना प्रेमी प्रगति चौरसिया माया जायसवाल के रूप में - रघु का दीवाना प्रेमी एसीपी रमेश तावड़े - भ्रष्ट अधिकारी के रूप में नितिन गोस्वामी शकुबाई के रूप में वर्षा धंदले - सावित्री की सहेली मनोरमा पारेख के रूप में स्मिता - महेंद्र की माँ; पराग, धनक, सेजल और प्रीति की दादी महेंद्र पारेख के रूप में राजीव कुमार - मनोरमा के बेटे; पराग, धनक, सेजल और प्रीति के पिता; रौनक के दादा सेजल पारेख के रूप में प्रियंका चाहर चौधरी - महेंद्र की दूसरी बेटी; पराग, धनक और प्रीति की बहन; विक्रम की पूर्व मंगेतर प्रीति पारेख के रूप में अलीशा परवीन - महेंद्र की सबसे छोटी बेटी; पराग, धनक और सेजल की बहन (मृत) पराग पारेख के रूप में अब्बास गजनवी - महेंद्र का बेटा; धनक, सेजल और प्रीति का भाई असलम शेख के रूप में तनय औल - रघु का हमनाम भाई सुनील कुमार सिंह के रूप में साहित्य पंसारे - रघु के हमनाम भाई शीतल श्रीवास्तव के रूप में निशा पारीक सपना ठाकुर लक्ष्मी गायतोंडे के रूप में देवेन के रूप में अमित पांडे संदर्भ कलर्स चैनल के कार्यक्रम भारतीय टेलीविजन धारावाहिक
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प्रिस्टीन केयर
प्रिस्टीन केयर (Pristyn Care) गुरुग्राम एक हाईटेक स्वास्थ्य सेवा स्वास्थ्य सेवा हेल्थकेयर कंपनी है, जो उन्नत तकनीक और एडवांस सर्जन की मदद से गैर-आपातकालीन सर्जरी करता है। प्रिस्टीन केयर गुदा रोग, मूत्र रोग, सौंदर्यशास्त्र, नेत्ररोग, हड्डी रोग, स्त्री रोग, नाक कान गला, वाहिकाएं संबंधित समस्याएं, का उपचार करने के लिए डे केयर शल्य क्रिया करता है। यह बांझपन का भी उपचार करता है। प्रिस्टीन केयर ने 2020 में कोविड-19 लॉकडाउन के समय ऑनलाइन चिकित्सा परामर्श प्रदान करने के लिए अर्बन कंपनी के साथ भागीदारी की। इसने महामारी नियंत्रण के लिए दिल्ली पुलिस को 10,000 मास्क भी दान किए। उपलब्धियां मेरिल एकेडमी (meril academy) द्वारा 'सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन प्रॉक्टोलॉजी' की प्रमाणिकता। श्री गिल शेपिरा (सीईओ, निओलेजर इजरायल) द्वारा भारत में लेजर खतना करने के लिए 'सेंटर ऑफ सेंटर ऑफ एक्सीलेंस' का अवार्ड। प्रिसिशन मेडिकल इंस्ट्रूमेंट्स कॉर्पोरेट लिमिटेड (precision medical instruments co. ltd) द्वारा सम्मानित। अमेरिकाज हर्निया सोसाइटी द्वारा सम्मानित। सन्दर्भ आधिकारिक वेबसाइट Pristyn Care
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लक्ष्मीनाथ मंदिर, जैसलमेर
जैसलमेर दुर्ग में स्थित यह महत्वपूर्ण हिन्दु मंदिर है, जिसका आधार मूल रूप में पंचयतन के रूप में था। इस मंदिर का निर्माण दुर्ग के समय ही राव जैसल द्वारा कराया गया। मंदिर का सभामंडप किले के अन्य इमारतों का समकालीन है। इसका निर्माण १२ वीं शताब्दी में हुआ था। अलाउद्धीन के आक्रमण के काल में इस मंदिर का बङा भाग ध्वस्त कर दिया गया। १५वीं शताब्दी में महारावल लक्ष्मण द्वारा इसका जीर्णोधार किया गया। मंदिर के सभा मंडप के खंभों पर घटपल्लव आकृतियाँ बनी है। इसका गर्भ गृह, गूढ़ मंडप तथा अन्य भागों का कई बार जीर्णोधार करवाया गया। मंदिर के दो किनारे दरवाजों पर जैन तीर्थकरों की प्रतिमाएँ भी उत्कीर्ण है। गणेश मंदिर की छत में सुंदर विष्णु की सर्पो पर विराजमान मूर्ति है। जैसलमेर के दर्शनीय स्थल
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उपभोक्ता जागरुकता
उपभोक्ता जागरूकता एक उपभोक्ता के रूप में अपने अधिकारों के किसी व्यक्ति, समझ उपलब्ध उत्पादों और सेवाओं के विपणन किया जा रहा है और बेचा के विषय में एक उपभोक्ता के रूप में अपने अधिकारों के किसी व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है। इस अवधारणा की चार श्रेणियों के सहित सुरक्षा, पसंद, जानकारी, और सुना जाने का अधिकार शामिल है। उपभोक्ता अधिकारों की घोषणा सबसे पहले अमेरिका में 1962 में स्थापित की गयी थी। उपभोक्ता जागरूकता के कार्यकर्ता राल्फ नादेर है। उन्हे उपभोक तथा आंदोलन के पिता के रूप में संदर्भित किया जाता है। पूंजीवाद और वैश्वीकरण के इस युग में, अपने लाभ को अधिकतम करना प्रत्येक निर्माता का मुख्य उद्देश्य है। हर संभव तरह से यह निर्माता अपने उत्पादों की बिक्री को बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। इसलिए, अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये वे उपभोक्ता के हित को भूल जाते हैं और अपने उदाहरण के लिए ज्यादा किराया, वजनी, मिलावटी और गरीब गुणवत्ता की वस्तुओं की बिक्री, झूठे विज्ञापन आदि देकर उपभोक्ताओं को गुमराह करने के तहत शोषण करते रेहते है। इस तरह के धोखे से खुद को बचाने के लिए, उपभोक्ता को चौकस रहने की आवश्यकता है। इस तरह से, उपभोक्ता जागरूकता का मतलब है कि उपभोक्ता अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता रखते हैं। Vakilsearch | Blog Menu Search for Switch skin Uncategorized भारत में उपभोक्ता अधिकार Staff Desk Mar 16, 2023 2,530 3 mins read कागज पर हर कंपनी के लिए, ग्राहक राजा है। फिर इतने सारे ग्राहकों को खराब सेवा (या माल) क्यों मिलती है? क्योंकि कभी-कभी (या कंपनी के आधार पर ज्यादातर), लाभ ग्राहकों की सेवा करने में प्राथमिकता (अन्य कारकों के बीच) लेता है। इसीलिए हमारे पास उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 वस्तुओं या सेवाओं में कमियों और दोषों के खिलाफ उपभोक्ताओं के हित को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करना चाहता है। इसका उद्देश्य अनुचित या प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथाओं के खिलाफ उपभोक्ता के अधिकारों को सुरक्षित करना है। निचे आप देख सकते हैं हमारे महत्वपूर्ण सर्विसेज जैसे कि फ़ूड लाइसेंस के लिए कैसे अप्लाई करें, ट्रेडमार्क रेजिस्ट्रशन के लिए कितना वक़्त लगता है और उद्योग आधार रेजिस्ट्रेशन का क्या प्रोसेस है . Register a Company PF Registration MSME Registration Income Tax Return FSSAI registration Trademark Registration ESI Registration ISO certification Patent Filing in india सुरक्षा का अधिकार सुरक्षा का अधिकार का अर्थ है माल और सेवाओं के विपणन के खिलाफ सुरक्षा का अधिकार, जो जीवन और संपत्ति के लिए खतरनाक हैं। यह अधिनियम स्वास्थ्य सेवा, फार्मास्यूटिकल्स और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों में लागू है, उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य या भलाई पर एक गंभीर प्रभाव डालने वाले डोमेन हैं। इस अधिकार को प्रत्येक उत्पाद की आवश्यकता है जो संभावित रूप से पर्याप्त और पूर्ण सत्यापन के साथ-साथ सत्यापन के बाद हमारे जीवन के लिए खतरा हो सकता है। शिकायत दर्ज करें। सूचना का अधिकार सूचना का अधिकार का अर्थ है, अनुचित व्यवहार प्रथाओं के खिलाफ उपभोक्ता की रक्षा के लिए माल की गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति, शुद्धता, मानक और कीमत के बारे में सूचित किया जाना। एक उपभोक्ता को खरीदारी करने से पहले उत्पाद या सेवा के बारे में सभी जानकारी प्राप्त करने पर जोर देना चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उपभोक्ता उच्च दबाव वाली बिक्री तकनीकों का शिकार न हो। चुनने का अधिकार चुनने का अधिकार का मतलब है कि किसी भी प्रतिस्पर्धी मूल्य पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंच का आश्वासन दिया जाना चाहिए। एकाधिकार के मामले में, इसका मतलब उचित मात्रा में संतोषजनक गुणवत्ता और सेवा की गारंटी का अधिकार है। दूसरे शब्दों में, कोई भी विक्रेता ग्राहक की पसंद को गलत तरीके से प्रभावित नहीं कर सकता है, और यदि कोई भी विक्रेता ऐसा करता है, तो उसे चुनने के अधिकार के साथ हस्तक्षेप माना जाएगा। सुने जाने का अधिकार सही सुने जाने का अर्थ है कि उपभोक्ता के हितों को उचित मंचों पर उचित विचार प्राप्त होगा। उपभोक्ताओं को उपभोक्ता के कल्याण पर विचार करने के लिए स्थापित विभिन्न मंचों में प्रतिनिधित्व करने का भी अधिकार है। उपभोक्ताओं को अपनी शिकायतों और चिंताओं को उत्पादों या यहां तक ​​कि कंपनियों के खिलाफ यह सुनिश्चित करने के लिए सक्षम करने का अधिकार प्रदान किया जाता है कि वे अपने हितों को ध्यान में रखते हुए और शीघ्रता से निपटें। निवारण का अधिकार निवारण अधिकार का अर्थ है अनुचित व्यापार प्रथाओं या उपभोक्ताओं के बेईमान शोषण के विरुद्ध निवारण का अधिकार। साथ ही उपभोक्ता की वैध शिकायतों के उचित निपटान का अधिकार सुनिश्चित करना। यह सही विक्रेता के अनैतिक व्यापार अभ्यास के खिलाफ उपभोक्ताओं को मुआवजा देता है। उदाहरण के लिए, यदि उत्पाद की मात्रा और गुणवत्ता विक्रेता द्वारा गारंटीकृत नहीं है, तो खरीदार को मुआवजे का दावा करने का अधिकार है। जिला स्तर पर जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम, राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग जैसे उपभोक्ता न्यायालयों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की मदद से शामिल किया गया है, ताकि उपभोक्ता निवारण देख सकें। उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार का अर्थ है जीवन भर एक सूचित उपभोक्ता बनने के लिए ज्ञान और कौशल प्राप्त करने का अधिकार। यह सुनिश्चित करना है कि उपभोक्ता सभी उपभोक्ता अधिकारों को समझें और उन्हें व्यायाम करना चाहिए। उपभोक्ता शिक्षा कॉलेज और स्कूल के पाठ्यक्रम के साथ-साथ गैर-सरकारी और सरकारी एजेंसियों दोनों द्वारा चलाए जा रहे उपभोक्ता जागरूकता अभियानों के माध्यम से औपचारिक शिक्षा का उल्लेख कर सकती है। जरूरत और महत्त्व यह अक्सर देखा जाता है कि एक उपभोक्ता सही माल और सेवाएँ प्राप्त नहीं करता है। वह एक बहुत ही उच्च मूल्य चार्ज किया जाता है या मिलावटी या कम गुणवत्ता पर सामान को खरीदता है। इसलिए यह धोखा उसके बारे में पता करने के लिए आवश्यक है। निम्नलिखित तथ्यों को वर्गीकृत उपभोक्ताओं को जागरूक बनाने की जरूरत है: अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने के लिए: हर व्यक्ति की आय सीमित है। वह अपनी आय के साथ अधिकतम वस्तुओं और सेवाओं को खरीदना चाहता है। वह केवल द्वारा यह सीमित समायोजन पूर्ण संतुष्टि हो जाता है। इसलिए यह माल जो मापा जाता है उचित रूप से मिलना चाहिए और उसमे किसी भी तरह का धोखा ना होना आवश्यक है। इस के लिए वह जागरूक बनाया जाना चाहिए। शोषण के खिलाफ संरक्षण: निर्माताओं और विक्रेताओं के कम वज़न , बाजार मूल्य से अधिक कीमत लेने, डुप्लीकेट माल आदि की बिक्री के रूप में कई मायनों में उपभोक्ताओं का दोहन किया जाता है। उनके विज्ञापन के माध्यम से बड़ी कंपनिया भी उपभोक्ताओं को गुमराह करती है। उपभोक् जागरूकता उन्हें निर्माताओं और विक्रेताओं द्वारा शोषण से बचाने का एक माध्यम है। सही सूचित किया जाने के लिए: जब हम किसी भी सामान को देखते हैं तो उसकी कुछ विशेष जानकारी पैकेट पर लिखी होती हैं। उसके साथ उस उत्पाद की खरीद भी लिखी होती है। इस तरह के रूप में - कमोडिटी, निर्माण दिनांक, समाप्ति दिनांक, अच्छा आदि का विनिर्माण कंपनी के पते की संख्या बैच सब होता है। जब हम कोई भी दवा खरीदते है, तब हम दुष्प्रभाव और दवाओं के खतरों के बारे में दिशा मिल करते हैं। जब हम कपड़े खरीदते है, तो हम धोने के निर्देश पर ध्यान देना चाहिए। यह जानकारी उपभोक्ताओं को दी जाती है जिस्से की वह सही चीजें और सेवाएँ जो वे खरीदने के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने के लिए आवश्यक है। सूचना का अधिकार: वर्ष 2005 में, भारत सरकार ने सूचना के अधिकार के रूप में जाना - जाता कानून बना दिया है। सूचना कानून के अधिकार सरकारी विभागों की सभी गतिविधियों के बारे में जानकारी प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है। उपभोक्ताओं को भी सही उपभोक्ताओं को पाने के लिए यह शिक्षा प्रदान करता है। सही निवारण करने के लिए: उपभोक्ताओं को व्यवहार्य बार्गेनिंग और शोषण विरुद्ध निपटान का अधिकार है। सही निवारण करने के लिए एक एकल उदाहरण के द्वारा समझा जा सकता है। आना नाम के एक आदमी को टोनसिल्स हटाने के लिए एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। सामान्य संज्ञाहरण के तहत टोनसिल्स् के हटाने के लिए एक ईएनटी सर्जन संचालित था। इस कारण अनुचित संज्ञाहरण, जिसके कारण वह पूरे जीवन के लिए बाधा बने आन में मानसिक असंतुलन का लक्षण विकसित कीया गया था। उपभोक्ता विवाद निवारण समिति अस्पताल उपचार में लापरवाही का दोषी पाया गया और मुआवजे का भुगतान करने के लिए उसे निर्देश दिया था। इस प्रकार, यह अगर किसी भी नुकसान सहन करने के लिए एक उपभोक्ता है, तब नुकसान, की मात्रा के आधार पर उपभोक्ता सही निवारण प्राप्त करने के लिए है कि स्पष्ट है। भारत में उपभोक्ता संरक्षण भारत में उपभोक्ता संरक्षण की अवधारणा नई नहीं है। उपभोक्ता की रुचि व्यापार और उद्योग, कम वज़न और माप, मिलावट और इन अपराधों के लिए दंड द्वारा शोषण के खिलाफ की रक्षा के सन्दर्भ कौटिल्य के ' अर्थशास्त्र ' में किए गए है। हालाँकि, उपभोक्ताओं, के हित की रक्षा करने के लिए एक संगठित और व्यवस्थित आंदोलन एक हाल की ही घटना है। उपभोक्ताओं को न सिर्फ बिक्री और खरीद वस्तुओं की है, लेकिन स्वास्थ्य और सुरक्षा पहलुओं की वाणिज्यिक पहलुओं का पता होना करना भी है। खाद्य सुरक्षा के इन दिनों उपभोक्ता जागरूकता का एक महत्वपूर्ण तत्त्व बन गया है। खाद्य उत्पादों के मामले में, इसकी गुणवत्ता न केवल अपनी पोषण मूल्य पर, लेकिन यह भी मानव उपभोग के लिए इसकी सुरक्षा पर निर्भर करता है। यह सुनिश्चित करें कि निर्माताओं और विक्रेताओं एकरूपता और कीमतें, स्टॉक्स और उनके माल की गुणवत्ता में पारदर्शिता का निरीक्षण करने के लिए मजबूत कानूनी उपायों के लिए बुलाया गया है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के एक अधिनियम भारत की संसद में 1986 अधिनियमित भारत में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने का है। यह उपभोक्ता परिषदों और अन्य अधिकारियों ने उपभोक्ताओं को विवादों के निपटान के लिए और शक मामलों के लिए की स्थापना के लिए प्रावधान बनाता है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें उपभोक्ता संरक्षण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (1986) बाहरी कडियाँ विकिपरियोजना क्राइस्ट विश्वविद्यालय २०१६ उपभोक्ता संरक्षण
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8C%E0%A4%9F%E0%A4%BE
बिलौटा
बिलौटा एक बिल्ली का बच्चा या किशोर बिल्ली होता है। जन्म लेने के बाद, बिल्ली के बच्चे जीवित रहने के लिए पूरी तरह से अपनी मां पर निर्भर होते हैं और वे आमतौर पर सात से दस दिनों के बाद तक अपनी आँखें नहीं खोलते हैं। लगभग दो हफ्तों के बाद, बिल्ली के बच्चे जल्दी से विकसित होते हैं और घोंसले के बाहर की दुनिया का पता लगाना शुरू करते हैं। उसके पश्चात के तीन से चार सप्ताह के बाद, वे ठोस भोजन खाना शुरू करते हैं और वयस्क दांत विकसित करते हैं। घरेलू बिल्ली के बच्चे अत्यधिक सामाजिक जानवर हैं और आमतौर पर मानव साहचर्य का आनंद लेते हैं। स्तनधारी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A5%B0%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%B0%20%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A4%B5%E0%A4%88
ए॰आर॰ किदवई
अख्लाक उर रहमान किदवई (1920 – 2016) एक भारतीय रसायनज्ञ और राजनीतिज्ञ थे, जो हरियाणा, बिहार, राजस्थान ऑर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रह चुके हैं। जीवन परिचय अख्लाक उर रहमान किदवई का जन्म 01 जुलाई 1921 को उत्तर प्रदेश के ज़िला बाराबंकी के बड़ागांव में हुआ था। उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में 1940 में बीए की पढ़ाई की, अमेरिका के इलिनोइस विश्वविद्यालय में एम.एससी, 1948 और अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय से 1950 में पीएचडी की। राजनैतिक कैरियर डॉ। किदवई ने अपने पेशेवर कैरियर की शुरुआत भारत के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान विभाग के प्रोफेसर के रूप में की। इसके बाद वह रोजगार, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार (1967-79) के लिए शैक्षिक और तकनीकी योग्यता के मूल्यांकन बोर्ड के अध्यक्ष बने। 1968 -75 तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर राष्ट्रीय समिति के सदस्य रहे। किदवई 1974 से 1977 तक संघ लोक सेवा आयोग-यूपीएससी, भारत सरकार के अध्यक्ष बने रहे। उन्होंने (20 सितंबर 1979 से 15 मार्च 1985) तक पहली बार बिहार के राज्यपाल के रूप में पदभार संभाला। वह अगस्त 1984 से जुलाई 1992 तक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, के कुलाधिपति रहे। आप फिर दूसरी बार (14 अगस्त 1993 से 26 अप्रैल 1998) तक बिहार के राज्यपाल नियुक्त किए गए। (27 अप्रैल 1998 से 4 दिसंबर 1999) तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे। वह (जनवरी 1999 से जुलाई 2004) तक राज्य सभा के सदस्य रहे। वे (7 जुलाई 2004 से 27 जुलाई 2009) तक हरियाणा के राज्यपाल नियुक्त किए गए। जून 2007 में प्रतिभा पाटिल के राजस्थान के राज्यपाल के पद से इस्तीफा देने के बाद, उन्होंने (21 जून 2007 से 6 सितंबर 2007) तक राजस्थान के राज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार संभाला। अपने राजनीतिक करियर के अलावा, वे अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने और शिक्षा और आत्मनिर्भरता द्वारा महिलाओं की स्थिति को बढ़ाने के लिए एक चैंपियन रहे हैं। उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ मार्केटिंग एंड मैनेजमेंट, नई दिल्ली के अध्यक्ष और व्यावसायिक शिक्षा सोसाइटी फॉर वूमेन के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। डॉ। किदवई ने निम्नलिखित राष्ट्रीय समितियों, संगठनों और संस्थानों के सदस्य के रूप में कार्य किया: [१] विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर राष्ट्रीय समिति, 1968-75। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग और योजना आयोग की परिप्रेक्ष्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी योजना समिति। काउंसिल एंड गवर्निंग बॉडी ऑफ इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (ICAR) 1970-73। बोर्ड ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) और सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट, लखनऊ और सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी, हैदराबाद की गवर्निंग बॉडीज। क्षेत्रीय असंतुलन जांच आयोग, जम्मू और कश्मीर राज्य, 1979। राज्य योजना बोर्ड और भारी उद्योग योजना समितियाँ, उत्तर प्रदेश सरकार। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और केंद्रीय विश्वविद्यालयों की समीक्षा समिति के अध्यक्ष, 1985-86। शिक्षा के केंद्रीय सलाहकार बोर्ड। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) की केंद्रीय परिषद। नई शिक्षा नीति, 1986 की समिति और शिक्षा के गैर-औपचारिक तरीकों पर इसकी उप-समिति के अध्यक्ष। सदस्य और संरक्षक दिल्ली पब्लिक स्कूल सोसाइटी (1968-जारी)। इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स, भारत के मानद फेलो। अध्यक्ष, यूनानी चिकित्सा पर समीक्षा समिति, स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार। अध्यक्ष, चयन बोर्ड ऑफ साइंटिस्ट्स पूल (1968-79)। रोजगार, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार (1967-79) के लिए शैक्षिक और तकनीकी योग्यता के मूल्यांकन बोर्ड के अध्यक्ष। अमेरिकी, ब्रिटिश और भारतीय रासायनिक सोसायटी। विज्ञान की प्रगति के लिए अमेरिकन एसोसिएशन। पुरस्कार और सम्मान 25 जनवरी, 2011 को, किदवई को भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार सार्वजनिक मामलों के लिए उनके योगदान के लिए था 24 अगस्त, 2016 को 95 वर्ष की आयु में लंबी बीमारी के बाद नई दिल्ली में उनका निधन हो गया। सन्दर्भ 1920 में जन्मे लोग पद्म विभूषण धारक हरियाणा के राज्यपाल बिहार के राज्यपाल राजस्थान के राज्यपाल पश्चिम बंगाल के राज्यपाल‎ भारतीय राजनीतिज्ञ २०१६ में निधन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A4%20%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%95
व्यक्ति-केन्द्रित कुतर्क
व्यक्ति-केन्द्रित कुतर्क (लातिनी और अंग्रेज़ी: argumentum ad hominem, आर्ग्युमॅन्टम ऐड हॉमिनॅम​) तर्कशास्त्र में ऐसे मिथ्या तर्क (ग़लत तर्क) को कहते हैं जिसमें किसी दावे की निहित सच्चाई को झुठलाने की कोशिश उस दावेदार के चरित्र, विचारधारा या किसी अन्य गुण की ओर ध्यान बंटाकर की जाए। उदाहरण के लिए यह कहना कि 'वर्मा साहब ने जो भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है उसपर ध्यान नहीं देना चाहिए क्योंकि वह को हमेशा अपनी पत्नी से झगड़ते रहते हैं' एक व्यक्ति-केन्द्रित कुतर्क है क्योंकि वर्माजी की व्यक्तिगत समस्याओं का भ्रष्टाचार का इल्ज़ाम सच या झूठ होने से कोई सम्बन्ध नहीं। ऐसे कुतर्क में कभी-कभी किसी दावे को सच्चा जतलाने का प्रयत्न भी उसके कहने वाले के गुणों के आधार पर किया जाता है। मसलन किसी साबुन के विज्ञापन में अगर कोई मशहूर फ़िल्म अभिनेता आये तो यह कुतर्क प्रस्तुत किया जा रहा होता है कि 'आपको अगर यह अभिनेता पसंद है तो आपको यह साबुन भी पसंद आएगा', हालांकि साबुन का अभिनेता से कोई विशेष सम्बन्ध नहीं होता। प्रकार व्यक्ति-केन्द्रित कुतर्क कई प्रकार के होते हैं जिनमें से कुछ का बखान नीचे है। गालियों वाला इनमें अपने विपक्षी का अपमान करके, उसमें बुराईयाँ निकालकर, या उसकी खिल्ली उड़ाकार उसे दावों को कमज़ोर करने का प्रयत्न किया जाता है। अक्सर विपक्षी के चरित्र में जो खोट बताया जा रहा है, वह सच होता है, लेकिन उसका विपक्षी द्वारा प्रस्तुत तर्क से कोई लेना-देना नहीं होता। ध्यान दें कि बिना किसी तर्क के केवल किसी को गाली देना व्यक्ति-केन्द्रित कुतर्क नहीं होता। कुछ उदाहरण: "मोहन कौन होता है आर्थिक स्थिति पर सरकार को मत देने वाला? उसके ख़ुद के पास तो नौकरी है नहीं!" "तुम भगवान के अस्तित्व या ग़ैर-अस्तित्व के बारे में क्या जानते हो? तुमने दसवी कक्षा तक तो पास करी नहीं है।" परिस्थितिक यह किसी की परिस्थितियों के आधार पर उसके तर्क तोड़ने की कोशिश होता है। इसमें कहा जाता है कि बोलने वाला अपने परिस्थितियों की वजह से कोई तर्क दे रहा है। यह एक मिथ्या तर्क है क्योंकि किसी का अपनी परिस्थितिवश कोई तर्क देना चाहना उस तर्क को ग़लत नहीं साबित करता: "तुम तो यह कहोगे ही कि महाराष्ट्र में स्त्रियों का आदर होता है। स्वयं मराठी जो ठहरे।" "तुम लखनऊ के हो न, इसीलिए तो अवधी खाने कि बढ़ाई करते नहीं थकते।" तुम भी 'तुम भी' (tu quoque या you also) प्रकार के कुतर्क में विपक्षी के तर्क को कमज़ोर करने के लिए कहा जाता है कि वह स्वयं अपने तर्क का पालन नहीं करता। इस से यह तो साबित हो सकता है कि विपक्षी पाखंडी है लेकिन इस से उसका तर्क ग़लत साबित नहीं होता: (बेटा पिता से) "आप मुझे क्यों कहते रहते हैं कि सिगरेट पीना मेरे लिए बुरा है। आप ख़ुद भी तो पीते हैं।" (नेता संसद में) "विपक्ष दल जो हमें भ्रष्ट कहता है वह ग़लत है। सच तो यह है कि जब वे सत्ता में थे तो उन्होंने बहुत पैसे खाए।" अवैध सम्बन्ध दोष इसमें विपक्षी के तर्क को इस बहाने कमज़ोर करने की अवैध कोशिश की जाती है कि बुरा समझे जाने वाला कोई अन्य व्यक्ति या समूह भी वही कहता है। उदाहरण: "तुम बसों का निजीकरण चाहते हो? अब समझे! ब्रिटिश राज में अंग्रेज़ी सरकार भी यही चाहती थी।" "अजी, यह गाँव के सभी बच्चों को साक्षर बनाने की बात रहने दो। डाकू मंगल सिंह भी बाग़ी बनने से पहले यही चाहता था।" इन्हें भी देखें मिथ्या तर्क तर्कशास्त्र छद्म ध्वज पहचान की राजनीति बांटो और राज करो मनोवैज्ञानिक युद्ध सन्दर्भ मिथ्या तर्क तर्कशास्त्र eo:Logika trompo#Atako kontraŭ homo (argumentum ad hominem)
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भास्कराचार्य
भास्कराचार्य या भास्कर द्वितीय (1114 – 1185) प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं ज्योतिषी थे। इनके द्वारा रचित मुख्य ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि है जिसमें लीलावती, बीजगणित, ग्रहगणित तथा गोलाध्याय नामक चार भाग हैं। ये चार भाग क्रमशः अंकगणित, बीजगणित, ग्रहों की गति से सम्बन्धित गणित तथा गोले से सम्बन्धित हैं। आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्य ने उजागर कर दिया था। भास्कराचार्य ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस कारण आकाशीय पिण्ड पृथ्वी पर गिरते हैं’। उन्होने करणकौतूहल नामक एक दूसरे ग्रन्थ की भी रचना की थी। ये अपने समय के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ थे। कथित रूप से यह उज्जैन की वेधशाला के अध्यक्ष भी थे। उन्हें मध्यकालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ माना जाता है। भास्कराचार्य के जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं मिलती है। कुछ–कुछ जानकारी उनके श्लोकों से मिलती हैं। निम्नलिखित श्लोक के अनुसार भास्कराचार्य का जन्म विज्जडविड नामक गाँव में हुआ था जो सहयाद्रि पहाड़ियों में स्थित है। आसीत सह्यकुलाचलाश्रितपुरे त्रैविद्यविद्वज्जने। नाना जज्जनधाम्नि विज्जडविडे शाण्डिल्यगोत्रोद्विजः॥ श्रौतस्मार्तविचारसारचतुरो निःशेषविद्यानिधि। साधुर्नामवधिर्महेश्‍वरकृती दैवज्ञचूडामणि॥ (गोलाध्याये प्रश्नाध्यायः, श्लोक ६१) इस श्लोक के अनुसार भास्कराचार्य शांडिल्य गोत्र के भट्ट ब्राह्मण थे और सह्याद्रि क्षेत्र के विज्जलविड नामक स्थान के निवासी थे। लेकिन विद्वान इस विज्जलविड ग्राम की भौगोलिक स्थिति का प्रामाणिक निर्धारण नहीं कर पाए हैं। डॉ. भाऊ दाजी (१८२२-१८७४ ई.) ने महाराष्ट्र के चालीसगाँव से लगभग १६ किलोमीटर दूर पाटण गाँव के एक मंदिर में एक शिलालेख की खोज की थी। इस शिलालेख के अनुसार भास्कराचार्य के पिता का नाम महेश्वर भट्ट था और उन्हीं से उन्होंने गणित, ज्योतिष, वेद, काव्य, व्याकरण आदि की शिक्षा प्राप्त की थी। गोलाध्याय के प्रश्नाध्याय, श्लोक ५८ में भास्कराचार्य लिखते हैं : रसगुणपूर्णमही समशकनृपसमयेऽभवन्मोत्पत्तिः। रसगुणवर्षेण मया सिद्धान्तशिरोमणि रचितः॥ (अर्थ : शक संवत १०३६ में मेरा जन्म हुआ और छत्तीस वर्ष की आयु में मैंने सिद्धान्तशिरोमणि की रचना की।) अतः उपरोक्त श्लोक से स्पष्ट है कि भास्कराचार्य का जन्म शक – संवत १०३६, अर्थात ईस्वी संख्या १११४ में हुआ था और उन्होंने ३६ वर्ष की आयु में शक संवत १०७२, अर्थात ईस्वी संख्या ११५० में लीलावती की रचना की थी। भास्कराचार्य के देहान्त के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती। उन्होंने अपने ग्रंथ करण-कुतूहल की रचना ६९ वर्ष की आयु में ११८३ ई. में की थी। इससे स्पष्ट है कि भास्कराचार्य को लम्बी आयु मिली थी। उन्होंने गोलाध्याय में ऋतुओं का सरस वर्णन किया है जिससे पता चलता है कि वे गणितज्ञ के साथ–साथ एक उच्च कोटि के कवि भी थे। अतः बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न ऐसे महान गणितज्ञ के संबंध में अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि गणित एवं खगोलशास्त्र पर उनका योगदान अतुलनीय है। प्राचीन वैज्ञानिक परंपरा को आगे बढ़ाने वाले गणितज्ञ भास्कराचार्य के नाम से भारत ने 7 जून 1979 को छोड़े उपग्रह का नाम भास्कर-1 तथा 20 नवम्बर 1981 को छोड़े प्रथम और द्वितीय उपग्रह का नाम भास्कर-2 रखा। कृतियाँ सन् 1150 ई० में इन्होंने सिद्धान्त शिरोमणि नामक पुस्तक, संस्कृत श्लोकों में, चार भागों में लिखी है, जो क्रम से इस प्रकार है: पाटीगणिताध्याय या लीलावती, बीजगणिताध्याय, ग्रहगणिताध्याय, तथा गोलाध्याय इनमें से प्रथम दो स्वतंत्र ग्रंथ हैं और अंतिम दो "सिद्धांत शिरोमणि" के नाम से प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा करणकुतूहल और वासनाभाष्य (सिद्धान्तशिरोमणि का भाष्य) तथा भास्कर व्यवहार और भास्कर विवाह पटल नामक दो छोटे ज्योतिष ग्रंथ इन्हीं के लिखे हुए हैं। इनके सिद्धान्तशिरोमणि से ही भारतीय ज्योतिष शास्त्र का सम्यक् तत्व जाना जा सकता है। ६९ वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी द्वितीय पुस्तक करणकुतूहल लिखी। इस पुस्तक में खगोल विज्ञान की गणना है। यद्यपि यह कृति प्रथम पुस्तक की तरह प्रसिद्ध नहीं है, फिर भी पंचांग आदि बनाने के समय अवश्य देखा जाता है। योगदान भास्कर एक मौलिक विचारक भी थे। वह प्रथम गणितज्ञ थे जिन्होनें पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा था कि कोई संख्या जब शून्य से विभक्त की जाती है तो अनंत हो जाती है। किसी संख्या और अनंत का जोड़ भी अनंत होता है। खगोलविद् के रूप में भास्कर अपनी तात्कालिक गति की अवधारणा के लिए प्रसिद्ध हैं। इससे खगोल वैज्ञानिकों को ग्रहों की गति का सही-सही पता लगाने में मदद मिलती है। बीजगणित में भास्कर ब्रह्मगुप्त को अपना गुरु मानते थे और उन्होंने ज्यादातर उनके काम को ही बढ़ाया। बीजगणित के समीकरण को हल करने में उन्होंने चक्रवाल का तरीका अपनाया। वह उनका एक महत्वपूर्ण योगदान है। छह शताब्दियों के पश्चात् यूरोपियन गणितज्ञों जैसे गेलोयस, यूलर और लगरांज ने इस तरीके की फिर से खोज की और `इनवर्स साइक्लिक' कह कर पुकारा। किसी गोलार्ध का क्षेत्र और आयतन निश्चित करने के लिए समाकलन गणित द्वारा निकालने का वर्णन भी पहली बार इस पुस्तक में मिलता है। इसमें त्रिकोणमिति के कुछ महत्वपूर्ण सूत्र, प्रमेय तथा क्रमचय और संचय का विवरण मिलता है। सर्वप्रथम इन्होंने ही अंकगणितीय क्रियाओं का अपरिमेय राशियों में प्रयोग किया। गणित को इनकी सर्वोत्तम देन चक्रीय विधि द्वारा आविष्कृत, अनिश्चित एकघातीय और वर्ग समीकरण के व्यापक हल हैं। भास्कराचार्य के ग्रंथ की अन्यान्य नवीनताओं में त्रिप्रश्नाधिकार की नई रीतियाँ, उदयांतर काल का स्पष्ट विवेचन आदि है। भास्करचार्य को अनंत तथा कलन के कुछ सूत्रों का भी ज्ञान था। इनके अतिरिक्त इन्होंने किसी फलन के अवकल को "तात्कालिक गति" का नाम दिया और सिद्ध किया कि d (ज्या q) = (कोटिज्या q) . dq (शब्दों में, बिम्बार्धस्य कोटिज्या गुणस्त्रिज्याहारः फलं दोर्ज्यायोरान्तरम् ) भास्कर को अवकल गणित का संस्थापक कह सकते हैं। उन्होंने इसकी अवधारणा आइज़ैक न्यूटन और गोटफ्राइड लैब्नीज से कई शताब्दियों पहले की थी। ये दोनों पश्चिम में इस विषय के संस्थापक माने जाते हैं। जिसे आज अवकल गुणांक और रोल्स का प्रमेय कहते हैं, उसके उदाहरण भी दिए हैं। न्यूटन के जन्म के आठ सौ वर्ष पूर्व ही इन्होंने अपने गोलाध्याय नामक ग्रंथ में 'माध्यकर्षणतत्व' के नाम से गुरुत्वाकर्षण के नियमों की विवेचना की है। ये प्रथम व्यक्ति हैं, जिन्होंने दशमलव प्रणाली की क्रमिक रूप से व्याख्या की है। इनके ग्रंथों की कई टीकाएँ हो चुकी हैं तथा देशी और विदेशी बहुत सी भाषाओं में इनके अनुवाद हो चुके हैं। गणित अंकगणित त्रिकोणमिति गोलाध्याय के ज्योत्पत्ति भाग में निम्नलिखित श्लोकों में Sin (a+b) = Sin a Cos b + Cos a sin b का वर्णन है- चापयोरिष्टयोर्दोर्ज्ये मिथःकोटिज्यकाहते। त्रिज्याभक्ते तयोरैक्यं स्याच्चापैक्यस्य दोर्ज्यका ॥ २१ ॥ ''चापान्तरस्य जीवा स्यात् तयोरन्तरसंमिता ॥२१ १/२॥ कलन न्यूटन और लैब्नीज से पाँच-छः सौ वर्ष पहले ही भास्कराचार्य ने कैलकुलस पर महत्वपूर्ण कार्य कर लिया थ। उनका चलन-कलन (differential calculus) से सम्बन्धित कार्य (आविष्कार) तथा इसका खगोलीय समास्यों और गणनाओं में इसका उपयोग विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यद्यपि न्यूटन और लैब्नीज को डिफरेंशियल और इन्टीग्रल कैल्कुलस का जन्मदता क दिया जाता है किन्तु इस बात के पक्के प्रमाण हैं कि भास्कर ही डिफरेंशियल कैलकुलस के कुछ सिद्धान्तों के आविष्कर्ता हैं। वे ही सम्भवतः प्रथम गणितज्ञ थे जिसने डिफरेंशियल गुणांक और डिफरेंशियल कैल्कुलस की संकल्पना को सबसे पहले समझा। खगोल ब्रह्मगुप्त (७वीं शताब्दी) के खगोल के मॉडल का अनुसरण करते हुए भास्कराचार्य ने अनेकों खगोलीय राशियों का परिशुद्ध मान बताया। उदाहरण के लिये, धरती द्वारा सूर्य की परिक्रमा करने में लगने वाला समय उन्होंने लगभग 365.2588 दिन बताये जो कि आधुनिक समय में 365.25636 दिन माना जाता है। इन दोनों का अन्तर केवल 3.5 मिनट है। भास्कराचार्य के सिद्धान्त शिरोमणि को दो भागों से बना मान सकते हैं- पहला भाग सैद्धान्तिक खगोलिकी पर है जबकि दूसरा भाग गोले पर है (गोलाध्याय देखें)। तत्कालीन विचारधारानुसार भास्कराचार्य भी भूकेन्द्रित सिद्धान्त में विश्वास रखते थे (भुवनकोश, श्लोक ३) लेकिन पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति की कल्पना में (भुवनकोश, श्लोक ६) वे अपने समय से आगे थे। भुवनकोश के १३-१४ वें श्लोक में उन्होंने "गोल पृथ्वी की परिधि का छोटा सा भाग समतल लगता है" इस महत्त्वपूर्ण नियम का प्रतिपादन किया था। उसी अध्याय के ५२ वें श्लोक में आचार्य ने पृथ्वी का व्यास १५८१ योजन लिखा है। पाँच मील के योजन से यह मान ठीक उतरता है। फिर आगे चलकर मध्यगति वासना के पहले तीन श्लोकों से पृथ्वी के चारों ओर फैले वायुमण्डल की विभिन्न सतहों की चर्चा है जो आधुनिक अंतरिक्ष ज्ञान से तुलना में सही न होने पर भी कल्पना स्वरूप विचारणीय है। ग्रहों का पीछे जाना, सूर्योदय एवं सूर्यास्त के स्थानानुसार बदलने वाले समय, सम्पात बिन्दुओं का सरकना, चन्द्रमा पर से पृथ्वी के रूप की कल्पना एवं ग्रहणों का वैज्ञानिक विश्लेषण इन सभी बातों से भास्कराचार्य द्वारा प्राप्त खगोल विज्ञान की परिपक्वता का हम अनुमान कर सकते हैं। इंजीनियरी अमरगति (perpetual motion) का सबसे पहला उल्लेख भास्कराचार्य ने ही किया है। उन्होने एक चक्र का वर्णन किया है और दावा किया है कि वह सदा घूमता रहेगा। भास्कर द्वितीय यस्तियंत्र नामक एक मापन यंत्र का उपयोग करते थे। इसकी सहायता से कोण का मापन करते थे। इन्हें भी देखें भास्कर प्रथम भारतीय गणित भारतीय गणितज्ञ सूची भास्कराचार्य द्वितीय के सूत्र की उपपत्ति आर्यभट सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ भस्कराचार्य (गूगल पुस्तक ; लेखक - गुणाकर मुले) गोलाध्याय (गूगल पुस्तक ; व्याख्याकार - केदारदत्त जोशी) करणकुतुहलम (डॉ॰ सत्येन्द्र मिश्र द्वारा हिन्दी टीका सहित) न्यूटन से पहले भास्कराचार्य ने बताया था गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त (सुरेश सोनी) प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक: भास्कराचार्य (डॉ॰ विजय कुमार उपाध्याय) भारत में गणित का इतिहास Bhāskara’s works Texts & Translations International Conference on the 900th Birth Anniversary of BHĀSKARĀCĀRYA (२०१४ ; हिन्दी और अंग्रेजी में अनेकों पुस्तकें/लेख) Bhāskara’s works Texts & Translations भास्कर-प्रभा (भास्कराचार्य के ९००वें जन्मवर्ष के अवसर पर हुए सम्मेलन में प्रस्तुत शोधपत्रों में से कुछ चुने हुए शोधपत्र, पुस्तक के रूप में] भारतीय गणितज्ञ
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