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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%B7%20%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF
आयुष मंत्रालय
आयुष मंत्रालय, आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होमीओपैथी विभाग संक्षिप्त में आयुष (:en:Ayurveda, Yoga and Naturopathy, Unani, Siddha and Homoeopathy), भारत सरकार का एक सरकारी अंग है। इसका उद्देश्य उपर्युक्त की शिक्षा और अनुसन्धान को बढ़ावा देना है। आयुष मंत्रालय को 9 नवम्बर 2014 को आयुष विभाग को विस्तृत कर बनाया गया था। मंत्रालय को उन मदों के वित्तपोषण के लिए महत्वपूर्ण आलोचना का सामना करना पड़ा है जिनमें जैविक संभाव्यता की कमी है और या तो अप्रयुक्त हैं या निर्णायक रूप से अप्रभावी साबित हुए हैं। अनुसंधान की गुणवत्ता खराब रही है, और आयुर्वेद या अन्य वैकल्पिक स्वास्थ्य प्रणालियों पर किसी भी कठोर औषधीय अध्ययन और सार्थक नैदानिक परीक्षणों के बिना दवाओं को लॉन्च किया गया है। सन्दर्भ भारत सरकार के मंत्रालय
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ट्रेस सुराग
अपराधी स्थल पर कई बार ऐसे छोटे छोटे टुकड़े मिलते है भौतिक सुराग के जैसे की- बाल, कपड़ो के रेशे, पेंट, कांच आदि जो की वह हुई घटना की खानी बताने में सहायता करते है| यह सुराग ही ट्रेस सुराग कहलाते है क्यूंकि यह दिखने में भुत ही छोटे होते है|यह सुराग किसी भी २ चीजो के आपस में स्थानांतरित होने से या फिर संवितरित होने से उत्पन्न होते है|यह सुराग किसी भी घटना को फिर से बनाने में मदद करते है या फिर किसी भी इंसान के होने या न होने का संकेत भी देते है|ट्रेस सुराग दुर्घटना की जांच पड़ताल में सहायक होते है क्यूंकि इन अपराधों में एक गति से दुसरे गति तक बहुत से सुरागों की अदला-बदली होती है|सावधानी से इन सुरागों का संग्रह करने से किसी भी घटना स्थल से बहुत सी जानकारी प्राप्त हो सकती है जो की किसी भी अपराध की स्थिति ब्यान करने में सहयोगी होती है|ट्रेस सुराग में बहुत से पदार्थो का परिक्षण किया जाता है जैसे की: बालो का,कांच का,पेंट का,रेशो आदि का| कभी-कभी मिट्टी,प्रसाधन सामग्री और रेशो के अवशेष का परीक्षण भी किया जाता है और यह सभी भी ट्रेस सुराग कहलाते है| सन्दर्भ न्यायालयिक विज्ञान
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चंद्र नौण
चंद्र नौण झील को चंद्र नाहन झील के नाम से भी जाना जाता है चंद्र नाहन झील, पब्बर नदी का उद्गम स्थान, समुद्र स्तर से 4260 मीटर की ऊंचाई पर स्थित जुब्बल का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। चंसल पीक के पास के इलाके में स्थित, झील और उसके आसपास का दृश्य सांसों को रोक देने वाला होता है। एक मुश्किल ट्रैकिंग मार्ग है, जो झील की ओर जाता है, साहसिक उत्साही के लिए पर्याप्त चुनौती पेश करता है।
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किर्गिस्तान में स्वास्थ्य
सोवियत काल के बाद, किर्गिस्तान की स्वास्थ्य प्रणाली में स्वास्थ्य पेशेवरों और चिकित्सा की बढ़ती कमी का सामना करना पड़ा है। किर्गिस्तान को अपनी सभी फार्मास्यूटिकल्स आयात करनी चाहिए। निजी स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती भूमिका ने बिगड़ती राज्य समर्थित प्रणाली को पूरक बनाया है। 2000 के दशक के प्रारंभ में, स्वास्थ्य देखभाल पर सार्वजनिक व्यय कुल खर्चों के प्रतिशत के रूप में घट गया, और जनसंख्या की संख्या डॉक्टरों की संख्या में काफी हद तक बढ़ गई, 1996 में प्रति डॉक्टर 296 से 2001 में प्रति डॉक्टर 355 हो गई। एक राष्ट्रीय प्राथमिक देखभाल स्वास्थ्य प्रणाली, मानस कार्यक्रम को 1996 में किर्गिस्तान विरासत में मिली सोवियत प्रणाली के पुनर्गठन के लिए अपनाया गया था। इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले लोगों की संख्या में धीरे-धीरे विस्तार हुआ है, और प्रांत स्तर के परिवार चिकित्सा प्रशिक्षण केंद्र अब चिकित्सा कर्मियों को पुनः नियुक्त करते हैं। एक अनिवार्य चिकित्सा बीमा कोष 1997 में स्थापित किया गया था। बड़े पैमाने पर दवा की कमी के कारण, 1990 के दशक के अंत में और 2000 के दशक की शुरुआत में संक्रामक रोगों, विशेष रूप से तपेदिक की घटनाओं में वृद्धि हुई है। मृत्यु के प्रमुख कारण हृदय और श्वसन की स्थिति हैं। की घटना की आधिकारिक अनुमान मानव इम्यूनो वायरस (एचआईवी) बहुत कम किया गया है (830 मामलों आधिकारिक तौर पर फरवरी 2006 के रूप में सूचित किया गया है, लेकिन वास्तविक संख्या 10 गुना होने का अनुमान था कई हैं)। किर्गिस्तान के दशक में एचआईवी मामलों की एकाग्रता दवा इंजेक्शन लगाने और जेल आबादी एचआईवी घटना होने की संभावना में वृद्धि करता है। आधे से अधिक मामले ओश में हुए हैं, जो एक प्रमुख नशीले पदार्थों की तस्करी के मार्ग पर है। मातृ नैतिक दर 2008 से 2009 तक प्रति 1000,000 जन्मों पर 15% से 62% से अधिक हो गई। गैर-सरकारी अध्ययनों के अनुसार, चीजें आधिकारिक आंकड़ों से खराब होती हैं। सन्दर्भ एशियाई माह प्रतियोगिता में निर्मित मशीनी अनुवाद वाले लेख
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विलय के अधिनियम, १८००
विलय के अधिनियम, १८०० यानि ऍक्ट्स ऑफ़ यूनियन, १८००, आयरलैंड और ग्रेट ब्रिटेन की संसद द्वारा पारित दो अधिनियमों का संयुक्त नाम है, जिनके परिणामस्वरूप, १ जनवरी १८०१ से आयरलैंड राजशाही और ग्रेट ब्रिटेन राजशाही, जोकि पूर्वतः व्यक्तिगत विलय की स्थिति में थे, का पूर्णतः, एक राज्य के रूप में विलय हो गया। यह दोनों दोनों अधिनियम (संशोधनों के साथ) आज भी यूनाइटेड किंगडम में लागू है, परंतु आयरलैंड गणराज्य में इन्हें पूर्ववत कर दिया गया है। इस विलय के बाद दोनों राज्यों के विलय से ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड का यूनाइटेड किंगडम की स्थापना हुई, और साथ ही दोनों देशों के सांसदों का भी विलय हो गया, जिसकी राजधानी लंदन का वेस्टमिंस्टर शहर था। इन्हें भी देखें आयरलैंड राजशाही ग्रेट ब्रिटेन राजशाही ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड का यूनाइटेड किंगडम विलय के अधिनियम, १७०७ सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ इंग्लैंड का इतिहास स्कॉटलैंड का इतिहास आयरलैंड का इतिहास यूनाइटेड किंगडम का इतिहास अंग्रेज़ी संसद द्वारा पारित अधिनियम आयरिश संसद द्वारा पारित अधिनियम यूनाइटेड किंगडम की संसद द्वारा पारित अधिनियम ब्रिटिश विधि
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आइज़क न्यूटन
सर आइज़ैक न्यूटन इंग्लैंड के एक वैज्ञानिक थे। जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण का नियम और गति के सिद्धान्त की खोज की। वे एक महान गणितज्ञ, भौतिक वैज्ञानिक, ज्योतिष एवं दार्शनिक थे। इनका शोध प्रपत्र ‘प्राकृतिक दर्शन के गणितीय सिद्धांतों ’ सन् 1687 में प्रकाशित हुआ, जिसमें सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण एवं गति के नियमों की व्याख्या की गई थी और इस प्रकार चिरसम्मत भौतिकी (क्लासिकल भौतिकी) की नींव रखी। उनकी फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका, 1687 में प्रकाशित हुई, यह विज्ञान के इतिहास में अपने आप में सबसे प्रभावशाली पुस्तक है, जो अधिकांश साहित्यिक यांत्रिकी के लिए आधारभूत कार्य की भूमिका निभाती है। इस कार्य में, न्यूटन ने सार्वत्रिक गुरुत्व और गति के तीन नियमों का वर्णन किया जिसने अगली तीन शताब्दियों के लिए भौतिक ब्रह्मांड के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। न्यूटन ने दर्शाया कि पृथ्वी पर वस्तुओं की गति और आकाशीय पिंडों की गति का नियंत्रण प्राकृतिक नियमों के समान समुच्चय के द्वारा होता है, इसे दर्शाने के लिए उन्होंने ग्रहीय गति के केपलर के नियमों तथा अपने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के बीच निरंतरता स्थापित की, इस प्रकार से सूर्य केन्द्रीयता और वैज्ञानिक क्रांति के आधुनिकीकरण के बारे में पिछले संदेह को दूर किया। यांत्रिकी में, न्यूटन ने संवेग तथा कोणीय संवेग दोनों के संरक्षण के सिद्धांतों को स्थापित किया। प्रकाशिकी में, उन्होंने पहला व्यावहारिक परावर्ती दूरदर्शी बनाया और इस आधार पर रंग का सिद्धांत विकसित किया कि एक प्रिज्म श्वेत प्रकाश को कई रंगों में अपघटित कर देता है जो दृश्य स्पेक्ट्रम बनाते हैं। उन्होंने शीतलन का नियम दिया और ध्वनि की गति का अध्ययन किया। गणित में, अवकलन और समाकलन कलन के विकास का श्रेय गोटफ्राइड लीबनीज के साथ न्यूटन को जाता है। उन्होंने सामान्यीकृत द्विपद प्रमेय का भी प्रदर्शन किया और एक फलन के शून्यों के सन्निकटन के लिए तथाकथित "न्यूटन की विधि" का विकास किया और घात श्रेणी के अध्ययन में योगदान दिया। वैज्ञानिकों के बीच न्यूटन की स्थिति बहुत शीर्ष पद पर है, ऐसा ब्रिटेन की रोयल सोसाइटी में 2005 में हुए वैज्ञानिकों के एक सर्वेक्षण के द्वारा प्रदर्शित होता है, जिसमें पूछा गया कि विज्ञान के इतिहास पर किसका प्रभाव अधिक गहरा है, न्यूटन का या एल्बर्ट आइंस्टीन का। इस सर्वेक्षण में न्यूटन को अधिक प्रभावी पाया गया।. न्यूटन अत्यधिक धार्मिक भी थे, हालाँकि वे एक अपरंपरागत ईसाई थे, उन्होंने प्राकृतिक विज्ञान, जिसके लिए उन्हें आज याद किया जाता है, की तुलना में बाइबिल हेर्मेनेयुटिक्स पर अधिक लिखा। जीवन प्रारंभिक वर्ष आइजैक न्यूटन का जन्म 4 जनवरी 1643 को नई शैली और पुरानी शैली की तिथि 25 दिसंबर 1642</small>लिनकोलनशायर के काउंटी में एक हेमलेट, वूल्स्थोर्पे-बाय-कोल्स्तेर्वोर्थ में वूलस्थ्रोप मेनर में हुआ। न्यूटन के जन्म के समय, इंग्लैंड ने ग्रिगोरियन केलेंडर को नहीं अपनाया था और इसलिए उनके जन्म की तिथि को क्रिसमस दिवस 25 दिसंबर 1642 के रूप में दर्ज किया गया। न्यूटन का जन्म उनके पिता की मृत्यु के तीन माह बाद हुआ, वे एक समृद्ध किसान थे उनका नाम भी आइजैक न्यूटन था। पूर्व परिपक्व अवस्था में पैदा होने वाला वह एक छोटा बालक था; उनकी माता हन्ना ऐस्क्फ़ का कहना था कि वह एक चौथाई गेलन जैसे छोटे से मग में समा सकता था। जब न्यूटन तीन वर्ष के थे, उनकी माँ ने दुबारा शादी कर ली और अपने नए पति रेवरंड बर्नाबुस स्मिथ के साथ रहने चली गई और अपने पुत्र को उसकी नानी मर्गेरी ऐस्क्फ़ की देखभाल में छोड़ दिया। छोटा आइजैक अपने सौतेले पिता को पसंद नहीं करता था और उसके साथ शादी करने के कारण अपनी माँ के साथ दुश्मनी का भाव रखता था। जैसा कि 19 वर्ष तक की आयु में उनके द्वारा किये गए अपराधों की सूची में प्रदर्शित होता है: "मैंने माता और पिता स्मिथ के घर को जलाने की धमकी दी." बारह वर्ष से सत्रह वर्ष की आयु तक उन्होंने द किंग्स स्कूल, ग्रान्थम में शिक्षा प्राप्त की (जहाँ पुस्तकालय की एक खिड़की पर उनके हस्ताक्षर आज भी देखे जा सकते हैं) उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया और अक्टूबर 1659 वे वूल्स्थोर्पे-बाय-कोल्स्तेर्वोर्थ आ गए. जहाँ उनकी माँ, जो दूसरी बार विधवा हो चुकी थी, ने उन्हें किसान बनाने पर जोर दिया। वह खेती से नफरत करते थे। किंग्स स्कूल के मास्टर हेनरी स्टोक्स ने उनकी माँ से कहा कि वे उन्हें फिर से स्कूल भेज दें ताकि वे अपनी शिक्षा को पूरा कर सकें। स्कूल के एक लड़के के खिलाफ बदला लेने की इच्छा से प्रेरित होने की वजह से वे एक शीर्ष क्रम के छात्र बन गए। जून 1661 में, उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में एक सिजर-एक प्रकार की कार्य-अध्ययन भूमिका, के रूप में भर्ती किया गया। उस समय कॉलेज की शिक्षाएँ अरस्तु पर आधारित थीं। लेकिन न्यूटन अधिक आधुनिक दार्शनिकों जैसे डेसकार्टेस और खगोलविदों जैसे कोपरनिकस, गैलीलियो और केपलर के विचारों को पढना चाहता था। 1665 में उन्होंने सामान्यीकृत द्विपद प्रमेय की खोज की और एक गणितीय सिद्धांत विकसित करना शुरू किया जो बाद में अत्यल्प कलन के नाम से जाना गया। अगस्त 1665 में जैसे ही न्यूटन ने अपनी डिग्री प्राप्त की, उसके ठीक बाद प्लेग की भीषण महामारी से बचने के लिए एहतियात के रूप में विश्वविद्यालय को बंद कर दिया। यद्यपि वे एक कैम्ब्रिज विद्यार्थी ke रूप में प्रतिष्ठित नहीं थे, इसके बाद के दो वर्षों तक उन्होंने वूल्स्थोर्पे में अपने घर पर निजी अध्ययन किया और कलन, प्रकाशिकी और गुरुत्वाकर्षण के नियमों पर अपने सिद्धांतों का विकास किया। 1667 में वह ट्रिनिटी के एक फेलो के रूप में कैम्ब्रिज लौट आए। बीच के वर्ष अधिकांश आधुनिक इतिहासकारों का मानना है कि न्यूटन और लीबनीज ने अत्यल्प कलन का विकास अपने अपने अद्वितीय संकेतनों का उपयोग करते हुए स्वतंत्र रूप से किया। न्यूटन के आंतरिक चक्र के अनुसार, न्यूटन ने अपनी इस विधि को लीबनीज से कई साल पहले ही विकसित कर दिया था, लेकिन उन्होंने लगभग 1693 तक अपने किसी भी कार्य को प्रकाशित नहीं किया और 1704 तक अपने कार्य का पूरा लेखा जोखा नहीं दिया. इस बीच, लीबनीज ने 1684 में अपनी विधियों का पूरा लेखा जोखा प्रकाशित करना शुरू कर दिया. इसके अलावा, लीबनीज के संकेतनों तथा "अवकलन की विधियों" को महाद्वीप पर सार्वत्रिक रूप से अपनाया गया और 1820 के बाद में , ब्रिटिश साम्राज्य में भी इसे अपनाया गया। जबकि लीबनीज की पुस्तिकाएं प्रारंभिक अवस्थाओं से परिपक्वता तक विचारों के आधुनिकीकरण को दर्शाती हैं, न्यूटन के ज्ञात नोट्स में केवल अंतिम परिणाम ही है। न्यूटन ने कहा कि वे अपने कलन को प्रकाशित नहीं करना चाहते थे क्योंकि उन्हें डर था वे उपहास का पात्र बन जायेंगे. न्यूटन का स्विस गणितज्ञ निकोलस फतियो डे दुइलिअर के साथ बहुत करीबी रिश्ता था, जो प्रारम्भ से ही न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत से बहुत प्रभावित थे। 1691 में दुइलिअर ने न्यूटन के फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका के एक नए संस्करण को तैयार करने की योजना बनायी, लेकिन इसे कभी पूरा नहीं कर पाए.बहरहाल, इन दोनों पुरुषों के बीच सम्बन्ध 1693 में बदल गया। इस समय, दुइलिअर ने भी लीबनीज के साथ कई पत्रों का आदान प्रदान किया था। 1699 की शुरुआत में, रोयल सोसाइटी (जिसके न्यूटन भी एक सदस्य थे) के अन्य सदस्यों ने लीबनीज पर साहित्यिक चोरी के आरोप लगाये और यह विवाद 1711 में पूर्ण रूप से सामने आया। न्यूटन की रॉयल सोसाइटी ने एक अध्ययन द्वारा घोषणा की कि न्यूटन ही सच्चे आविष्कारक थे और लीबनीज ने धोखाधड़ी की थी। यह अध्ययन संदेह के घेरे में आ गया, जब बाद पाया गया कि न्यूटन ने खुद लीबनीज पर अध्ययन के निष्कर्ष की टिप्पणी लिखी। इस प्रकार कड़वा न्यूटन बनाम लीबनीज विवाद शुरू हो गया, जो बाद में न्यूटन और लीबनीज दोनों के जीवन में 1716 में लीबनीज की मृत्यु तक जारी रहा। न्यूटन को आम तौर पर सामान्यीकृत द्विपद प्रमेय का श्रेय दिया जाता है, जो किसी भी घात के लिए मान्य है। उन्होंने न्यूटन की सर्वसमिकाओं, न्यूटन की विधि, वर्गीकृत घन समतल वक्र (दो चरों में तीन के बहुआयामी पद) की खोज की, परिमित अंतरों के सिद्धांत में महत्वपूर्ण योगदान दिया, वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भिन्नात्मक सूचकांक का प्रयोग किया और डायोफेनताइन समीकरणों के हल को व्युत्पन्न करने के लिए निर्देशांक ज्यामिति का उपयोग किया। उन्होंने लघुगणक के द्वारा हरात्मक श्रेढि के आंशिक योग का सन्निकटन किया, (यूलर के समेशन सूत्र का एक पूर्वगामी) और वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने आत्मविश्वास के साथ घात शृंखला का प्रयोग किया और घात शृंखला का विलोम किया। उन्हें 1669 में गणित का ल्युकेसियन प्रोफेसर चुना गया। उन दिनों, कैंब्रिज या ऑक्सफ़ोर्ड के किसी भी सदस्य को एक निर्दिष्ट अंग्रेजी पुजारी होना आवश्यक था। हालाँकि, ल्युकेसियन प्रोफेसर के लिए जरुरी था कि वह चर्च में सक्रिय न हो। (ताकि वह विज्ञान के लिए और अधिक समय दे सके) न्यूटन ने तर्क दिया कि समन्वय की आवश्यकता से उन्हें मुक्त रखना चाहिए और चार्ल्स द्वितीय, जिसकी अनुमति अनिवार्य थी, ने इस तर्क को स्वीकार किया। इस प्रकार से न्यूटन के धार्मिक विचारों और अंग्रेजी रूढ़ीवादियों के बीच संघर्ष टल गया। प्रकाशिकी 1670 से 1672 तक, न्यूटन का प्रकाशिकी पर व्याख्यान दिया. इस अवधि के दौरान उन्होंने प्रकाश के अपवर्तन की खोज की, उन्होंने प्रदर्शित किया कि एक प्रिज्म श्वेत प्रकाश को रंगों के एक स्पेक्ट्रम में वियोजित कर देता है और एक लेंस और एक दूसरा प्रिज्म बहुवर्णी स्पेक्ट्रम को संयोजित कर के श्वेत प्रकाश का निर्माण करता है। उन्होंने यह भी दिखाया कि रंगीन प्रकाश को अलग करने और भिन्न वस्तुओं पर चमकाने से रगीन प्रकाश के गुणों में कोई परिवर्तन नहीं आता है। न्यूटन ने वर्णित किया कि चाहे यह परावर्तित हो, या विकिरित हो या संचरित हो, यह समान रंग का बना रहता है। इस प्रकार से, उन्होंने देखा कि, रंग पहले से रंगीन प्रकाश के साथ वस्तु की अंतर्क्रिया का परिणाम होता है नाकि वस्तुएं खुद रंगों को उत्पन्न करती हैं। यह न्यूटन के रंग सिद्धांत के रूप में जाना जाता है। इस कार्य से उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि, किसी भी अपवर्ती दूरदर्शी का लेंस प्रकाश के रंगों में विसरण (रंगीन विपथन) का अनुभव करेगा और इस अवधारणा को सिद्ध करने के लिए उन्होंने अभिदृश्यक के रूप में एक दर्पण का उपयोग करते हुए, एक दूरदर्शी का निर्माण किया, ताकि इस समस्या को हल किया जा सके. दरअसल डिजाइन के निर्माण के अनुसार, पहला ज्ञात क्रियात्मक परावर्ती दूरदर्शी, आज एक न्यूटोनियन दूरबीन के रूप में जाना जाता है, इसमें तकनीक को आकार देना तथा एक उपयुक्त दर्पण पदार्थ की समस्या को हल करना शामिल है। न्यूटन ने अत्यधिक परावर्तक वीक्षक धातु के एक कस्टम संगठन से, अपने दर्पण को आधार दिया, इसके लिए उनके दूरदर्शी हेतु प्रकाशिकी कि गुणवत्ता की जाँच के लिए न्यूटन के छल्लों का प्रयोग किया गया। फरवरी 1669 तक वे रंगीन विपथन के बिना एक उपकरण का उत्पादन करने में सक्षम हो गए। 1671 में रॉयल सोसाइटी ने उन्हें उनके परावर्ती दूरदर्शी को प्रर्दशित करने के लिए कहा। उन लोगों की रूचि ने उन्हें अपनी टिप्पणियों ओन कलर के प्रकाशन हेतु प्रोत्साहित किया, जिसे बाद में उन्होंने अपनी ऑप्टिक्स के रूप में विस्तृत कर दिया। जब रॉबर्ट हुक ने न्युटन के कुछ विचारों की आलोचना की, न्यूटन इतना नाराज हुए कि वे सार्वजनिक बहस से बाहर हो गए। हुक की मृत्यु तक दोनों दुश्मन बने रहे। [27] न्यूटन ने तर्क दिया कि प्रकाश कणों या अतिसूक्षम कणों से बना है, जो सघन माध्यम की और जाते समय अपवर्तित हो जाते हैं, लेकिन प्रकाश के विवर्तन को स्पष्ट करने के लिए इसे तरंगों के साथ सम्बंधित करना जरुरी था। (ऑप्टिक्स बीके।II, प्रोप्स. XII-L). बाद में भौतिकविदों ने प्रकाश के विवर्तन के लिए शुद्ध तरंग जैसे स्पष्टीकरण का समर्थन किया। आज की क्वाण्टम यांत्रिकी, फोटोन और तरंग-कण युग्मता के विचार, न्यूटन की प्रकाश के बारे में समझ के साथ बहुत कम समानता रखते हैं। 1675 की उनकी प्रकाश की परिकल्पना में न्यूटन ने कणों के बीच बल के स्थानान्तरण हेतु, ईथर की उपस्थिति को मंजूर किया। ब्रह्म विद्यावादी हेनरी मोर के संपर्क में आने से रसायन विद्या में उनकी रुचि पुनर्जीवित हो गयी। उन्होंने ईथर को कणों के बीच आकर्षण और प्रतिकर्षण के वायुरुद्ध विचारों पर आधारित गुप्त बलों से प्रतिस्थापित कर दिया. जॉन मेनार्ड केनेज, जिन्होंने रसायन विद्या पर न्यूटन के कई लेखों को स्वीकार किया, कहते हैं कि "न्युटन कारण के युग के पहले व्यक्ति नहीं थे: वे जादूगरों में आखिरी नंबर पर थे।" रसायन विद्या में न्यूटन की रूचि उनके विज्ञान में योगदान से अलग नहीं की जा सकती है। (यह उस समय हुआ जब रसायन विद्या और विज्ञान के बीच कोई स्पष्ट भेद नहीं था।) यदि उन्होंने एक निर्वात में से होकर एक दूरी पर क्रिया के गुप्त विचार पर भरोसा नहीं किया होता तो वे गुरुत्व का अपना सिद्धांत विकसित नहीं कर पाते। (आइजैक न्यूटन के गुप्त अध्ययन भी देखें) 1704 में न्यूटन ने आप्टिक्स को प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने अपने प्रकाश के अतिसूक्ष्म कणों के सिद्धांत की विस्तार से व्याख्या की.उन्होंने प्रकाश को बहुत ही सूक्ष्म कणों से बना हुआ माना, जबकि साधारण द्रव्य बड़े कणों से बना होता है और उन्होंने कहा कि एक प्रकार के रासायनिक रूपांतरण के माध्यम से "सकल निकाय और प्रकाश एक दूसरे में रूपांतरित नहीं हो सकते हैं,....... और निकाय, प्रकाश के कणों से अपनी गतिविधि के अधिकांश भाग को प्राप्त नहीं कर सकते, जो उनके संगठन में प्रवेश करती है?" न्यूटन ने एक कांच के ग्लोब का प्रयोग करते हुए, (ऑप्टिक्स, 8 वां प्रश्न) एक घर्षण विद्युत स्थैतिक जनरेटर के एक आद्य रूप का निर्माण किया। यांत्रिकी और गुरुत्वाकर्षण 1677 में, न्यूटन ने फिर से यांत्रिकी पर अपना कार्य शुरू किया, अर्थात्, गुरुत्वाकर्षण और ग्रहीय गति के केपलर के नियमों के सन्दर्भ के साथ, ग्रहों की कक्षा पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव और इस विषय पर हुक और फ्लेमस्टीड का परामर्श। उन्होंने जिरम में डी मोटू कोर्पोरम में अपने परिणामों का प्रकाशन किया। (१६८४) इसमें गति के नियमों की शुरुआत थी जिसने प्रिन्सिपिया को सूचित किया। फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका (जिसे अब प्रिन्सिपिया के रूप में जाना जाता है) का प्रकाशन एडमंड हेली की वित्तीय मदद और प्रोत्साहन से 5 जुलाई 1687 को हुआ। इस कार्य में न्यूटन ने गति के तीन सार्वभौमिक नियम दिए जिनमें 200 से भी अधिक वर्षों तक कोई सुधार नहीं किया गया है। उन्होंने उस प्रभाव के लिए लैटिन शब्द ग्रेविटास (भार) का इस्तेमाल किया जिसे गुरुत्व के नाम से जाना जाता है और सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण के नियम को परिभाषित किया। इसी कार्य में उन्होंने वायु में ध्वनि की गति के, बॉयल के नियम पर आधारित पहले विश्लेषात्मक प्रमाण को प्रस्तुत किया। बहुत अधिक दूरी पर क्रिया कर सकने वाले एक अदृश्य बल की न्यूटन की अवधारणा की वजह से उनकी आलोचना हुई, क्योंकि उन्होंने विज्ञान में "गुप्त एजेंसियों" को मिला दिया था। प्रिन्सिपिया के साथ, न्यूटन को अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली. उन्हें काफी प्रशंसाएं मिलीं, उनके एक प्रशंसक थे, स्विटजरलैण्ड में जन्मे निकोलस फतियो दे दयुलीयर, जिनके साथ उनका एक गहरा रिश्ता बन गया, जो 1693 में तब समाप्त हुआ जब न्यूटन तंत्रिका अवरोध से पीड़ित हो गए। बाद का जीवन 1690 के दशक में, न्यूटन ने कई धार्मिक शोध लिखे जो बाइबल की साहित्यिक व्याख्या से सम्बंधित थे। हेनरी मोर के ब्रह्मांड में विश्वास और कार्तीय द्वैतवाद के लिए अस्वीकृति ने शायद न्यूटन के धार्मिक विचारों को प्रभावित किया। उन्होंने एक पांडुलिपि जॉन लोके को भेजी जिसमें उन्होंने ट्रिनिटी के अस्तित्व को विवादित माना था, जिसे कभी प्रकाशित नहीं किया गया। बाद के कार्य [39]दी क्रोनोलोजी ऑफ़ एनशियेंट किंगडेम्स अमेनडेड (1728) और ओब्सरवेशन्स अपोन दी प्रोफिसिज ऑफ़ डेनियल एंड दी एपोकेलिप्स ऑफ़ सेंट जॉन (1733)[40] का प्रकाशन उनकी मृत्यु के बाद हुआ। उन्होंने रसायन विद्या के लिए भी अपना बहुत अधिक समय दिया (ऊपर देखें)। न्यूटन 1689 से 1690 तक और 1701 में इंग्लैंड की संसद के सदस्य भी रहे. लेकिन कुछ विवरणों के अनुसार उनकी टिप्पणियाँ हमेशा कोष्ठ में एक ठंडे सूखे को लेकर ही होती थीं और वे खिड़की को बंद करने का अनुरोध करते थे। 1696 में न्यूटन शाही टकसाल के वार्डन का पद संभालने के लिए लन्दन चले गए, यह पद उन्हें राजकोष के तत्कालीन कुलाधिपति, हैलिफ़ैक्स के पहले अर्ल, चार्ल्स मोंतागु के संरक्षण के माध्यम से प्राप्त हुआ। उन्होंने इंग्लैंड का प्रमुख मुद्रा ढल्लाई का कार्य संभाल लिया, किसी तरह मास्टर लुकास के इशारों पर नाचने लगे (और एडमंड हेली के लिए अस्थाई टकसाल शाखा के उप नियंता का पद हासिल किया) 1699 में लुकास की मृत्यु न्यूटन शायद टकसाल के सबसे प्रसिद्ध मास्टर बने, इस पद पर न्यूटन अपनी मृत्यु तक बने रहे.ये नियुक्तियां दायित्वहीन पद के रूप में ली गयीं थीं, लेकिन न्यूटन ने उन्हें गंभीरता से लिया, 1701 में अपने कैम्ब्रिज के कर्तव्यों से सेवानिवृत हो गए और मुद्रा में सुधार लाने का प्रयास किया तथा कतरनों तथा नकली मुद्रा बनाने वालों को अपनी शक्ति का प्रयोग करके सजा दी. 1717 में टकसाल के मास्टर के रूप में "ला ऑफ़ क्वीन एने" में न्यूटन ने अनजाने में सोने के पक्ष में चांदी के पैसे और सोने के सिक्के के बीच द्वि धात्विक सम्बन्ध स्थापित करते हुए, पौंड स्टर्लिंग को चांदी के मानक से सोने के मानक में बदल दिया। इस कारण से चांदी स्टर्लिंग सिक्के को पिघला कर ब्रिटेन से बाहर भेज दिया गया। न्यूटन को 1703 में रोयल सोसाइटी का अध्यक्ष और फ्रेंच एकेडमिक डेस साइंसेज का एक सहयोगी बना दिया गया। रॉयल सोसायटी में अपने पद पर रहते हुए, न्यूटन ने रोयल खगोलविद जॉन फ्लेमस्टीड को शत्रु बना लिया, उन्होंने फ्लेमस्टीड की हिस्टोरिका कोलेस्तिस ब्रिटेनिका को समय से पहले ही प्रकाशित करवा दिया, जिसे न्यूटन ने अपने अध्ययन में काम में लिया था। अप्रैल 1705 में क्वीन ऐनी ने न्यूटन को ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में एक शाही यात्रा के दौरान नाइट की उपाधि दी। यह नाइट की पदवी न्यूटन को टकसाल के मास्टर के रूप में अपनी सेवाओ के लिए नहीं दी गयी थी और न ही उनके वैज्ञानिक कार्य के लिए दी गयी थी बल्कि उन्हें यह उपाधि मई 1705 में संसदीय चुनाव के दौरान उनके राजनितिक योगदान के लिए दी गयी थी। न्यूटन की मृत्यु लंदन में 31 मार्च 1727 को हुई, [पुरानी शैली 20 मार्च 1726] और उन्हें वेस्टमिंस्टर एब्बे में दफनाया गया था। उनकी आधी-भतीजी, कैथरीन बार्टन कोनदुइत, ने लन्दन में जर्मीन स्ट्रीट में उनके घर पर सामाजिक मामलों में उनकी परिचारिका का काम किया; वे उसके "बहुत प्यारे अंकल" थे, ऐसा जिक्र उनके उस पत्र में किया गया है जो न्यूटन के द्वारा उसे तब लिखा गया जब वह चेचक की बीमारी से उबर रही थी। न्यूटन, जिनके कोई बच्चे नहीं थे, उनके अंतिम वर्षों में उनके रिश्तदारों ने उनकी अधिकांश संपत्ति पर अधिकार कर लिया और निर्वसीयत ही उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद, न्यूटन के शरीर में भारी मात्रा में पारा पाया गया, जो शायद उनके रासायनिक व्यवसाय का परिणाम था। पारे की विषाक्तता न्यूटन के अंतिम जीवन में सनकीपन को स्पष्ट कर सकती है। मृत्यु के बाद प्रसिद्धि फ्रेंच गणितज्ञ जोसेफ लुईस लाग्रेंज अक्सर कहते थे कि न्यूटन महानतम प्रतिभाशाली था और एक बार उन्होंने कहा कि वह "सबसे ज्यादा भाग्यशाली भी था क्योंकि हम दुनिया की प्रणाली को एक से ज्यादा बार स्थापित नहीं कर सकते." अंग्रेजी कवि अलेक्जेंडर पोप ने न्यूटन की उपलब्धियों के द्वारा प्रभावित होकर प्रसिद्ध स्मृति-लेख लिखा: Nature and nature's laws lay hid in night; God said "Let Newton be" and all was light. न्यूटन अपनी उपलब्धियों का बताने में खुद संकोच करते थे, फरवरी 1676 में उन्होंने रॉबर्ट हुक को एक पत्र में लिखा: If I have seen further it is by standing on ye shoulders of Giants[50] हालांकि आमतौर पर इतिहासकारों का मानना है कि उपर्युक्त पंक्तियां, नम्रता के साथ कहे गए एक कथन के अलावा [51] या बजाय [52], हुक पर एक हमला थीं (जो कम ऊंचाई का और कुबडा था). उस समय प्रकाशिकीय खोजों को लेकर दोनों के बीच एक विवाद चल रहा था। बाद की व्याख्या उसकी खोजों पर कई अन्य विवादों के साथ भी उपयुक्त है, जैसा कि यह प्रश्न कि कलन की खोज किसने की, जैसा कि ऊपर बताया गया है। बाद में एक इतिहास में, न्यूटन ने लिखा: मैं नहीं जानता कि मैं दुनिया को किस रूप में दिखाई दूंगा लेकिन अपने आप के लिए मैं एक ऐसा लड़का हूँ जो समुद्र के किनारे पर खेल रहा है और अपने ध्यान को अब और तब में लगा रहा है, एक अधिक चिकना पत्थर या एक अधिक सुन्दर खोल ढूँढने की कोशिश कर रहा है, सच्चाई का यह इतना बड़ा समुद्र मेरे सामने अब तक खोजा नहीं गया है। स्मारक न्यूटन का स्मारक (1731) वेस्टमिंस्टर एब्बे में देखा जा सकता है, यह गायक मंडल स्क्रीन के विपरीत गायक मंडल के प्रवेश स्थान के उत्तर में है। इसे मूर्तिकार माइकल रिज्ब्रेक ने (1694-1770) सफ़ेद और धूसर संगमरमर में बनाया है, जिसका डिजाइन वास्तुकार विलियम कैंट (1685-1748) द्वारा बनाया गया है। इस स्मारक में न्यूटन की आकृति पत्थर की बनी हुई कब्र के ऊपर टिकी हुई है, उनकी दाहिनी कोहनी उनकी कई महान पुस्तकों पर रखी है और उनका बायां हाथ एक गणीतिय डिजाइन से युक्त एक सूची की और इशारा कर रहा है। उनके ऊपर एक पिरामिड है और एक खगोलीय ग्लोब राशि चक्र के संकेतों तथा 1680 के धूमकेतु का रास्ता दिखा रहा है। एक राहत पैनल दूरदर्शी और प्रिज्म जैसे उपकरणों का प्रयोग करते हुए, पुट्टी का वर्णन कर रहा है। आधार पर दिए गए लेटिन शिलालेख का अनुवाद है: यहाँ नाइट, आइजैक न्यूटन, को दफनाया गया, जो दिमागी ताकत से लगभग दिव्य थे, उनके अपने विचित्र गणितीय सिद्धांत हैं, उन्होंने ग्रहों की आकृतियों और पथ का वर्णन किया, धूमकेतु के मार्ग बताये, समुद्र में आने वाले ज्वार का वर्णन किया, प्रकाश की किरणों में असमानताओं को बताया और वो सब कुछ बताया जो किसी अन्य विद्वान ने पहले कल्पना भी नहीं की थी, रंगों के गुणों का वर्णन किया। वे मेहनती, मेधावी और विश्वासयोग्य थे, पुरातनता, पवित्र ग्रंथों और प्रकृति में विश्वास रखते थे, वे अपने दर्शन में अच्छाई और भगवान के पराक्रम की पुष्टि करते हैं और अपने व्यवहार में सुसमाचार की सादगी व्यक्त करते हैं। मानव जाति में ऐसे महान आभूषण उपस्थित रह चुके हैं! वह 25 दिसम्बर 1642 को जन्मे और 20 मार्च 1726/ 7 को उनकी मृत्यु हो गई।--जी एल स्मिथ के द्वारा अनुवाद, दी मोंयुमेंट्स एंड जेनिल ऑफ़ सेंट पॉल्स केथेड्रल, एंड ऑफ़ वेस्टमिंस्टर एब्बे (1826), ii, 703–4. 1978 से 1988 तक, हेरी एकलेस्तन के द्वारा डिजाइन की गयी न्यूटन की एक छवि इंग्लेंड के बैंक के द्वारा जारी किये गए D £1 शृंखला के बैंक नोटों पर प्रदर्शित की गयी, (अंतिम £1 नोट जो इंग्लेंड के बैंक के द्वारा जारी किये गए). न्यूटन को नोट के पिछली ओर हाथ में एक पुस्तक पकडे हुए दर्शाया गया है, साथ ही एक दूरदर्शी, एक प्रिज्म और सौर तंत्र का एक मानचित्र भी है। एक सेब पर खड़ी हुई आइजैक न्यूटन की एक मूर्ति, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय में देखी जा सकती है। ref>[43] ^ "न्यूटन के चुनाव के लिए रानी की 'बहुत बड़ी सहायता' थी उसे नाईट की उपाधि देना, यह सम्मान उन्हें न तो विज्ञान में योगदान के लिए दिया गया और न ही टकसाल के लिए उनके द्वारा दी गयी सेवओं के लिए दिया गया। बल्कि 1705 में चुनाव में दलीय राजनीती में योगदान के लिए दिया गया।" वेस्टफॉल 1994 पी 245 धार्मिक विचार nyutn mhan इतिहासकार स्टीफन डी. स्नोबेलेन का न्यूटन के बारे में कहना है कि "आइजैक न्यूटन एक विधर्मी थे। लेकिन ... उन्होंने अपने निजी विश्वास की सार्वजनिक घोषणा कभी नहीं की- जिससे इस रूढ़िवादी को बेहद कट्टरपंथी जो समझा गया। उन्होंने अपने विश्वास को इतनी अच्छी तरह से छुपाया कि आज भी विद्वान उनकी निजी मान्यताओं को जान नहीं पायें हैं।" स्नोबेलेन ने निष्कर्ष निकाला कि न्यूटन कम से कम एक सोशिनियन सहानुभूति रखते थे, (उनके पास कम से कम आठ सोशिनियन किताबें थीं ओर उन्होंने इन्हें पढ़ा), संभवतया एरियन ओर लगभग निश्चित रूप से एक ट्रिनिटी विरोधी थे। —तीन पुर्वजी रूप जो आज यूनीटेरीयनवाद कहलाते हैं। उनकी धार्मिक असहिष्णुता के लिए विख्यात एक युग में, न्यूटन के कट्टरपंथी विचारों के बारे में कुछ सार्वजनिक अभिव्यक्तियां हैं, सबसे खास है, पवित्र आदेशों का पालन करने के लिए उनके द्वारा इनकार किया जाना, ओर जब वे मरने वाले थे तब उन्हें पवित्र संस्कार लेने के लिए कहा गया ओर उन्होंने इनकार कर दिया। स्नोबेलेन के द्वारा विवादित एक दृष्टिकोण में, टीसी फ़ाइजनमेयर ने तर्क दिया कि न्यूटन ट्रिनिटी के पूर्वी रुढिवादी दृष्टिकोण को रखते थे, रोमन कैथोलिक, अंग्रेजवाद और अधिकांश प्रोटेसटेंटों का पश्चिमी दृष्टिकोण नहीं रखते थे। उनके अपने दिन में उन पर एक रोसीक्रुसियन होने का आरोप लगाया गया। (जैसा कि रॉयल सोसाइटी और चार्ल्स द्वितीय की अदालत में बहुत से लोगों पर लगाया गया था।) यद्यपि गति और गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम न्यूटन के सबसे प्रसिद्ध अविष्कार बन गए, उन्हें ब्रह्माण्ड को देखने के लिए एक मशीन के तौर पर इनका उपयोग करने के खिलाफ चेतावनी दी गयी, जैसे महान घडी के समान। उन्होंने कहा, "गुरुत्व ग्रहों की गति का वर्णन करता है लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि किसने ग्रहों को इस गति में स्थापित किया। भगवान सब चीजों का नियंत्रण करते हैं और जानते हैं कि क्या है और क्या किया जा सकता है।" उनकी वैज्ञानिक प्रसिद्धि उल्लेखनीय है, साथ ही उनका प्रारंभिक चर्च के पादरियों व बाइबल का अध्ययन भी उल्लेखनीय है। न्यूटन ने शाब्दिक आलोचना पर लिखा, सबसे विशेष है। एन हिस्टोरिकल अकाउंट ऑफ़ टू नोटेबल करप्शन ऑफ़ स्क्रिप्चर उन्होंने 3 अप्रैल ई. 33 को यीशु मसीह का क्रूसारोपण भी किया, जो एक पारंपरिक रूप से स्वीकृत तारीख़ के साथ सहमत है। उन्होंने बाइबल के अन्दर छुपे हुए संदेशों को खोजने का असफल प्रयास किया। उनके अपने जीवनकाल में, न्यूटन ने प्राकृतिक विज्ञान से अधिक धर्म के बारे में लिखा.वह तर्कयुक्त विश्वव्यापी दुनिया में विश्वास करते थे, लेकिन उन्होंने लीबनीज और बरुच स्पिनोजा में निहित हाइलोजोइज्म को अस्वीकार कर दिया.इस प्रकार, आदेशित और गतिशील रूप से सूचित ब्रह्माण्ड को समझा जा सकता था और इसे एक सक्रिय कारण के द्वारा समझा जाना चाहिए.उनके पत्राचार में, न्यूटन ने दावा किया कि प्रिन्सिपिया में लिखते समय "मैंने एक नज़र ऐसे सिद्धांतों पर रखी, ताकि देवता में विश्वास रखते हुए मनुष्य पर विचार किया जा सके." उन्होंने दुनिया की प्रणाली में डिजाइन का प्रमाण देखा: ग्रहीय प्रणाली में ऐसी अद्भुत एकरूपता को पसंद के प्रभाव की अनुमति दी जानी चाहिए।" लेकिन न्यूटन ने जोर दिया कि अस्थायित्व की धीमी वृद्धि के कारण दैवी हस्तक्षेप अंत में प्रणाली के सुधार के लिए आवश्यक होगा. इसके लिए लीबनीज ने उन पर निंदा लेख किया: "सर्वशक्तिमान ईश्वर समय समय पर अपनी घड़ी को समाप्त करना चाहता है: अन्यथा यह स्थानांतरित करने के लिए बंद कर दिया जायेगा. ऐसा लगता है कि उसके पास इसे एक सतत गति बनाने के लिए पर्याप्त दूरदर्शिता नहीं थी।" न्यूटन की स्थिति को उनके अनुयायी शमूएल क्लार्क द्वारा एक प्रसिद्ध पत्राचार के द्वारा सख्ती से बचाने का प्रयास किया गया। धार्मिक विचार पर प्रभाव न्यूटन और रॉबर्ट बोयल के यांत्रिक दर्शन को बुद्धिजीवी क़लमघसीट द्वारा रूढ़ीवादियों और उत्साहियों के लिए एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में पदोन्नत किया गया और इसे रूढ़िवादी प्रचारकों तथा असंतुष्ट प्रचारकों जैसे लेटीट्युडीनेरियन के द्वारा हिचकिचाकर स्वीकार किया गया। इस प्रकार, विज्ञान की स्पष्टता और सरलता को नास्तिकता के खतरे तथा अंधविश्वासी उत्साह दोनों की भावनात्मक और आध्यात्मिक अतिशयोक्ति का मुकाबला करने के लिए एक रास्ते के रूप में देखा गया, और उसी समय पर, अंग्रेजी देवत्व की एक दूसरी लहर ने न्यूटन की खोजों का उपयोग एक "प्राकृतिक धर्म" की संभावना को प्रर्दशित करने के लिए किया। पूर्व-आत्मज्ञान के खिलाफ किये गए हमले "जादुई सोच," और ईसाईयत के रहस्यमयी तत्व, को ब्रह्माण्ड के बारे में बोयल की यांत्रिक अवधारणा से नींव मिली. न्यूटन ने गणितीय प्रमाणों के माध्यम से बोयल के विचारों को पूर्ण बनाया और शायद अधिक महत्वपूर्ण रूप से वे उन्हें लोकप्रिय बनाने में बहुत अधिक सफल हुए. न्यूटन ने एक हस्तक्षेप भगवान द्वारा नियंत्रित दुनिया को एक ऐसी दुनिया में बदल डाला जो तर्कसंगत और सार्वभौमिक सिद्धांतों के साथ भगवान के द्वारा कलात्मक रूप से बनायीं गयी है। ये सिद्धांत सभी लोगों के लिए खोजने हेतु उपलब्ध हैं, ये लोगों को इसी जीवन में अपने उद्देश्यों को फलदायी रूप से पूरा करने की अनुमति देते हैं, अगले जीवन का इन्तजार नहीं करते हैं और उन्हें उनकी अपनी तर्कसंगत शक्तियों से पूर्ण बनाते हैं। न्यूटन ने भगवान को मुख्य निर्माता के रूप में देखा, जिसके अस्तित्व को सभी निर्माणों की भव्यता के चेहरे में नकारा नहीं जा सकता है। उनके प्रवक्ता, क्लार्क, ने लीबनीज के धर्म विज्ञान को अस्वीकृत कर दिया, जिसने भगवान को "l'origine du mal " के उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया, इसके लिए भगवान को उसके निर्माण में योगदान से हटा दिया, चूँकि जैसा कि क्लार्क ने कहा था ऐसा देवता केवल नाम से ही राजा होगा, लेकिन नास्तिकता से एक कदम दूर होगा. लेकिन अगली सदी में न्यूटन की प्रणाली की सफलता का अनदेखा धर्म विज्ञानी परिणाम, लीबनीज के द्वारा बताई गयी आस्तिकता की स्थिति को मजबूत बनाएगा. दुनिया के बारे में समझ अब साधारण मानव के कारण के स्तर तक आ गयी और मानव, जैसा कि ओडो मर्कवार्ड ने तर्क दिया, बुराई के सुधार और उन्मूलन के लिए उत्तरदायी बन गया। दूसरी ओर, लेटीट्युडीनेरियन और न्यूटोनियन के विचारों के परिणाम बहुत दूरगामी थे, एक धार्मिक गुट यांत्रिक ब्रह्मांड की अवधारणा को समर्पित हो गया, लेकिन इसमें उतना ही उत्साह और रहस्य था कि प्रबुद्धता को नष्ट करने के लिए कठिन संघर्ष किया गया। दुनिया के अंत के बारे में दृष्टिकोण एक पांडुलिपि जो उन्होंने 1704 में लिखी, जिसमें उन्होंने बाइबल से वैज्ञानिक जानकारी निकालने के अपने प्रयास का वर्णन किया है, उनका अनुमान था कि दुनिया 2060 से पहले समाप्त नहीं होगी। इस भविष्यवाणी में उहोने कहा कि, "इसमें में यह नहीं कह रहा कि अंतिम समय कौन सा होगा, लेकिन मैं इससे उन काल्पनिक व्यक्तियों के अटकलों को बंद करना चाहता हूँ जो अक्सर अंत समय के बारे में भविष्यवाणी करते हैं और इस भविष्यवाणी के असफल हो जाने पर पवित्र भविष्यद्वाणी बदनाम होती है।" आत्मज्ञानी दार्शनिक आत्मज्ञानी दार्शनिकों ने पूर्ववर्ती वैज्ञानिकों के एक छोटे इतिहास को चुना-गैलिलियो, बोयल और मुख्य रूप से न्यूटन- यह चुनाव दिन के प्रत्येक भौतिक और सामाजिक क्षेत्र के लिए प्राकृतिक नियम और प्रकृति की एकल अवधारणा के उनके अनुप्रयोग के मार्गदर्शन और जमानत के रूप मैं किया गया। इस संबंध में, इस पर निर्मित सामाजिक संरंचनाओं और इतिहास के अध्याय त्यागे जा सकते थे। प्राकृतिक और आत्मज्ञानी रूप से समझने योग्य नियमों पर आधारित ब्रह्माण्ड के बारे में यह न्यूटन की ही संकल्पना थी जिसने आत्मज्ञान विचारधारा के लिए एक बीज का काम किया। लोके और वॉलटैर ने आंतरिक अधिकारों की वकालत करते हुए प्राकृतिक नियमों की अवधारणा को राजनितिक प्रणाली पर लागू किया; फिजियोक्रेट और एडम स्मिथ ने आत्म-रूचि और मनोविज्ञान की प्राकृतिक अवधारणा को आर्थिक प्रणाली पर लागू किया तथा समाजशास्त्रियों ने प्रगति के प्राकृतिक नमूनों में इतिहास को फिट करने की कोशिश के लिए तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था की आलोचना की. मोनबोडो और सेमयूल क्लार्क ने न्यूटन के कार्य के तत्वों का विरोध किया, लेकिन अंततः प्रकृति के बारे में उनके प्रबल धार्मिक विचारों को सुनिश्चित करने के लिए इसे युक्तिसंगत बनाया। न्यूटन और जालसाजी शाही टकसाल के प्रबंधक के रूप में, न्यूटन ने अनुमान लगाया कि दुबारा ढलाई किये जाने वाले सिक्कों में 20% जाली थे। जालसाजी एक बहुत बड़ा राजद्रोह था, जिसके लिए फांसी की सजा थी। इस के बावजूद, सबसे ज्वलंत अपराधियों को पकड़ना बहुत मुश्किल था; यद्यपि, न्यूटन इस कार्य के लिए सही साबित हुए. भेष बदल कर शराबखाने और जेल में जाकर उन्होंने खुद बहुत से सबूत इकट्ठे किये। सरकार की शाखाओं को अलग करने और अभियोजन पक्ष के लिए स्थापित सभी बाधाओं हेतु, अंग्रेजी कानून में अभी भी सत्ता के प्राचीन और दुर्जेय रिवाज थे। न्यूटन को शांति का न्यायाधीश बनाया गया और जून 1698 और क्रिसमस 1699 के बीच उन्होंने गवाह, मुखबिरों और संदिग्धों के 200 परिक्षण करवाए। न्यूटन ने अपनी प्रतिबद्धता को जीता और फरवरी 1699 में उनके पास दस कैदी रिहाई का इन्तजार कर रहे थे।[103] राजा के वकील के रूप में न्यूटन का एक मामला विलियम चलोनेर के खिलाफ था। चलोनेर की योजना थी कैथोलिक के जाली षड्यंत्र को तय करना और फिर अभागे षड़यंत्रकारी में बदल देना जिसको वह बंधक बना लेता था। चलोनेर ने अपने आप को पर्याप्त समृद्ध सज्जन बना लिया। संसद में अर्जी देते हुए चलोनर ने टकसाल में नकली सिक्के बनाने के लिए उपकरण भी उपलब्ध कराये. (ऐसा आरोप दूसरो ने उस पर लगाया) उसने प्रस्ताव दिया कि उसे टकसाल की प्रक्रियाओं का निरीक्षण करने की अनुमति दी जाए ताकि वह इसमें सुधार के लिए कुछ कर सके। उसने संसद में अर्जी दी कि सिक्कों की ढलाई के लिए उसकी योजना को स्वीकार कर लिया जाये ताकि जालसाजी न की जा सके, जबकि उसी समय जाली सिक्के सामने आये। न्यूटन ने चलोनर पर जालसाजी का परीक्षण किया और सितम्बर 1697 में उसे न्यू गेट जेल में भेज दिया। लेकिन चलोनर के उच्च स्थानों पर मित्र थे, जिन्होंने उसे उसकी रिहाई के लिए मदद की। न्यूटन ने दूसरी बार निर्णायक सबूत के साथ उस पर परिक्षण किया। चलोनेर को उच्च राजद्रोह का दोषी पाया गया था और उसे 23 मार्च 1699 को तिबुर्न गेलोज में फांसी दे कर दफना दिया गया। न्यूटन के गति के नियम गति के प्रसिद्द तीन नियम न्यूटन के पहला नियम (जिसे जड़त्व के नियम भी कहा जाता है) के अनुसार एक वस्तु जो स्थिरवस्था में है वह स्थिर ही बनी रहेगी और एक वस्तु जो समान गति की अवस्था में है वह समान गति के साथ उसी दिशा में गति करती रहेगी जब तक उस पर कोई बाहरी बल कार्य नहीं करता है। न्यूटन के दूसरे नियम के अनुसार एक वस्तु पर लगाया गया बल \vec{, समय के साथ इसके संवेग \vec{ में परिवर्तन की दर के बराबर होता है। गणितीय रूप में इसे निम्नानुसार व्यक्त किया जा सकता है चूंकि दूसरा नियम एक स्थिर द्रव्यमान की वस्तु पर लागू होता है, (dm /dt = 0), पहला पद लुप्त हो जाता है और त्वरण की परिभाषा का उपयोग करते हुए प्रतिस्थापन के द्वारा समीकरण को संकेतों के रूप में निम्नानुसार लिखा जा सकता है पहला और दूसरा नियम अरस्तु की भौतिकी को तोड़ने का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें ऐसा माना जाता था कि गति को बनाये रखने के लिए एक बल जरुरी है। वे राज्य में व्यवस्था की गति का एक उद्देश्य है राज्य बदलने के लिए हैं कि एक ही शक्ति की जरूरत है। न्यूटन के सम्मान में बल की SI इकाई का नाम न्यूटन रखा गया है। न्यूटन के तीसरे नियम के अनुसार प्रत्येक क्रिया की बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है। इसका अर्थ यह है कि जब भी एक वस्तु किसी दूसरी वस्तु पर एक बल लगाती है तब दूसरी वस्तु विपरीत दिशा में पहली वस्तु पर उतना ही बल लगती है। इसका एक सामान्य उदाहरण है दो आइस स्केट्स एक दूसरे के विपरीत खिसकते हैं तो विपरीत दिशाओं में खिसकने लगते हैं। एक अन्य उदाहरण है बंदूक का पीछे की और धक्का महसूस करना, जिसमें बन्दूक के द्वारा गोली को दागने के लिए उस पर लगाया गया बल, एक बराबर और विपरीत बल बंदूक पर लगाता है जिसे गोली चलाने वाला महसूस करता है। चूंकि प्रश्न में जो वस्तुएं हैं, ऐसा जरुरी नहीं कि उनका द्रव्यमान बराबर हो, इसलिए दोनों वस्तुओं का परिणामी त्वरण अलग हो सकता है (जैसे बन्दूक से गोली दागने के मामले में)। अरस्तू के विपरीत, न्यूटन की भौतिकी सार्वत्रिक हो गयी है। उदाहरण के लिए, दूसरा नियम ग्रहों तथा एक गिरते हुए पत्थर पर भी लागू होता है। दूसरे नियम की सदिश प्रकृति बल की दिशा और वस्तु के संवेग में परिवर्तन के प्रकार के बीच एक ज्यामितीय सम्बन्ध स्थापित करती है। न्यूटन से पहले, आम तौर पर यह माना जाता था कि सूर्य के चारों और घूर्णन कर रहे एक ग्रह के लिए एक अग्रगामी बल आवश्यक होता है जिसकी वजह से यह गति करता रहता है। न्यूटन ने दर्शाया कि इस के बजाय सूर्य का अन्दर की और एक आकर्षण बल आवश्यक होता है। (अभिकेन्द्री आकर्षण) यहाँ तक कि प्रिन्सिपिया के प्रकाशन के कई दशकों के बाद भी, यह विचार सार्वत्रिक रूप से स्वीकृत नहीं किया गया। और कई वैज्ञानिकों ने डेसकार्टेस के वोर्टिकेस के सिद्धांत को वरीयता दी. न्यूटन का सेब न्यूटन अक्सर खुद एक कहानी कहते थे कि एक पेड़ से एक गिरते हुए सेब को देख कर वे गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत बनाने के लिए प्रेरित हो पाए। बाद में व्यंग्य करने के लिए ऐसे कार्टून बनाये गए जिनमें सेब को न्यूटन के सर पर गिरते हुए बताया गया और यह दर्शाया गया कि इसी के प्रभाव ने किसी तरह से न्यूटन को गुरुत्व के बल से परिचित कराया. उनकी पुस्तिकाओं से ज्ञात हुआ कि 1660 के अंतिम समय में न्यूटन का यह विचार था कि स्थलीय गुरुत्व का विस्तार होता है, यह चंद्रमा के वर्ग व्युत्क्रमानुपाती होता है; हालाँकि पूर्ण सिद्धांत को विकसित करने में उन्हें दो दशक का समय लगा। जॉन कनदयुइत, जो रॉयल टकसाल में न्यूटन के सहयोगी थे और न्यूटन की भतीजी के पति भी थे, ने इस घटना का वर्णन किया जब उन्होंने न्यूटन के जीवन के बारे में लिखा: 1666 में वे कैम्ब्रिज से फिर से सेवानिवृत्त हो गए और अपनी मां के पास लिंकनशायर चले गए। जब वे एक बाग़ में घूम रहे थे तब उन्हें एक विचार आया कि गुरुत्व की शक्ति धरती से एक निश्चित दूरी तक सीमित नहीं है, (यह विचार उनके दिमाग में पेड़ से नीचे की और गिरते हुए एक सेब को देख कर आया) लेकिन यह शक्ति उससे कहीं ज्यादा आगे विस्तृत हो सकती है जितना कि पहले आम तौर पर सोचा जाता था। उन्होंने अपने आप से कहा कि क्या ऐसा उतना ऊपर भी होगा जितना ऊपर चाँद है और यदि ऐसा है तो, यह उसकी गति को प्रभावित करेगा और संभवतया उसे उसकी कक्षा में बनाये रखेगा, वे जो गणना कर रहे थे, इस तर्क का क्या प्रभाव हुआ। सवाल गुरुत्व के अस्तित्व का नहीं था बल्कि यह था कि क्या यह बल इतना विस्तृत है कि यह चाँद को अपनी कक्षा में बनाये रखने के लिए उत्तरदायी है। न्यूटन ने दर्शाया कि यदि बल दूरी के वर्ग व्युत्क्रम में कम होता है तो, चंद्रमा की कक्षीय अवधि की गणना की जा सकती है और अच्छा परिणाम प्राप्त हो सकता है। उन्होंने अनुमान लगाया कि यही बल अन्य कक्षीय गति के लिए जिम्मेदार है और इसीलिए इसे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नाम दे दिया। एक समकालीन लेखक, विलियम स्तुकेले, सर आइजैक न्यूटन की ज़िंदगी को अपने स्मरण में रिकोर्ड करते हैं, वे 15 अप्रैल 1726 को केनसिंगटन में न्यूटन के साथ हुई बातचीत को याद करते हैं, जब न्यूटन ने जिक्र किया कि "उनके दिमाग में गुरुत्व का विचार पहले कब आया। जब वह ध्यान की मुद्रा में बैठे थे उसी समय एक सेब के गिरने के कारण ऐसा हुआ। क्यों यह सेब हमेशा भूमि के सापेक्ष लम्बवत में ही क्यों गिरता है? ऐसा उन्होंने अपने आप में सोचा। यह बगल में या ऊपर की ओर क्यों नहीं जाता है, बल्कि हमेशा पृथ्वी के केंद्र की ओर ही गिरता है।" इसी प्रकार के शब्दों में, वोल्टेर महाकाव्य कविता पर निबंध (1727) में लिखा, "सर आइजैक न्यूटन का अपने बागानों में घूम रहे थे, पेड़ से गिरते हुए एक सेब को देख कर, उन्होंने गुरुत्वाकर्षण की प्रणाली के बारे में पहली बार सोचा। विभिन्न पेड़ों को "वह" सेब के पेड़ होने का दावा किया जाता है जिसका न्यूटन ने वर्णन किया है। दी किंग्स स्कूल, ग्रान्थम दावा करता है कि यह पेड़ स्कूल के द्वारा खरीद लिया गया था, कुछ सालों बाद इसे जड़ सहित लाकर प्रधानाध्यापक के बगीचे में लगा दिया गया। नेशनल ट्रस्ट जो वूलस्थ्रोप मेनर का मालिक है, का वर्तमान स्टाफ इस पर विवाद करता है, ओर दावा करता है कि वह पेड़ उनके बगीचे में उपस्थित है जिस के बारे में न्यूटन ने बात की। मूल वृक्ष का वंशज ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज के मुख्य द्वार के बाहर उगा हुआ देखा जा सकता है, यह उस कमरे के नीचे है जिसमें न्यूटन पढाई के समय रहता था। ब्रोग्डेल में राष्ट्रीय फलों का संग्रह उन पेड़ों से ग्राफ्ट की आपूर्ति कर सकता है, जो फ्लॉवर ऑफ़ केंट के समान दिखाई देता है, जो एक मोटे गूदे की पकाने की किस्म है। न्यूटन के लेखन मेथड ऑफ़ फ़्लक्सियन्स (1671) ऑफ़ नेचर ओब्वियस लॉस एंड प्रोसेसेज इन वेजिटेशन (अप्रकाशित सी.1671-75) डे मोटू कोर्पोरम इन जिरम (1684) फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका (1687) ऑप्टिक्स (1704) टकसाल में मास्टर के रूप में रिपोर्टें (1701-25) एरिथमेटिका युनीवरसेलिस (1707) दी सिस्टम ऑफ़ दी वर्ल्ड, ऑप्टिकल लेक्चर्स, ''दी क्रोनोलोजी ऑफ़ एनशियेंट किंगडेम्स , (संशोधित) और डी मुंडी सिस्टमेट (1728 में मरणोपरांत प्रकाशित की गयी), "डेनियल पर प्रेक्षण और डी एपोकलिप्स ऑफ़ सेंट जॉन" (1733) धर्म-ग्रन्थ के दो उल्लेखनीय भ्रष्टाचारों का ऐतिहासिक लेखा जोखा (1754) इन्हें भी देखें अल्बर्ट आइंस्टीन गैलीलियो गैलिली न्यूटन की डिस्क न्यूटन फ्राक्टाल न्यूटन का झूला न्यूटन की असमानताएं न्यूटन के गति के नियम. न्यूटन के संकेतन न्यूटन बहुभुज न्यूटन बहुपद न्यूटन का प्रतिक्षेपक न्यूटन के धार्मिक विचार न्यूटन श्रृंखला न्यूटन की परिक्रामी कक्षाओं की प्रमेय न्यूटन (इकाई) न्यूटन-कोट्स सूत्र न्यूटन- यूलर समीकरण न्युटोनियन वाद श्रोडिंगर-न्यूटन समीकरण वैज्ञानिक क्रांति स्पालडिंग जेंटलमेन्स सोसाइटी पादटिप्पणी और सन्दर्भ सन्दर्भ [124]यह अच्छी तरह से प्रलेखित काम, विशेष रूप से, पुर्वाचार्य सम्बन्धी न्यूटन के ज्ञान के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराता है। अतिरिक्त अध्ययन बर्डी, जेसन सुकरात. दी कैल्कुलस वार्स: न्यूटन, लीबनीज और ग्रेटेस्ट मेथेमेटिकल क्लेश ऑफ आल टाइम (2006). 277 पीपी. अंश और पाठ्य की खोज बेर्लिन्सकी, डेविड. न्यूटन'स गिफ्ट: हाओ सर आइजैक न्यूटन अनलोक्ड दी सिस्टम ऑफ दी वर्ल्ड (2000). 256 पीपी. अंश और पाठ्य की खोज आई एस बी एन 0-684-84392-7 बक्वाल्ड, जेड़ जेड़. और कोहेन, आई। बर्नार्ड, संस्करण.आइजैक न्यूटन की नेचुरल फिलोसोफी. एमआईटी प्रेस, 2001. 354 पीपी. अंश और पाठ्य की खोज अंश और पाठ्य की खोज के लिए यह साइट देखें. कोहेन, आई। बर्नार्ड और स्मिथ, जॉर्ज ई., संस्करण. दी कैम्ब्रिज कम्पेनियन टू न्यूटन (2002). 500 पीपी.केवल दार्शनिक मुद्दों पर केंद्रित; अंश और पाठ्य की खोज; पूर्ण संस्करण ऑनलाइन - प्रीफेस बाय अल्बर्ट आइंस्टीन. जोन्सन रिप्रिंट कारपोरेशन के द्वारा पुनः छपाई, न्यूयॉर्क (1972). {{cite book |author=Hart, Michael H. | title = The 100 | publisher = Carol Publishing Group | year = 1992 | isbn = 0-8065-1350-0}} - पेपरबैक हाकिंग, स्टीफन, संस्करण ओन दी शोल्डर्स ऑफ जाएंट्स आई एस बी एन 0-7624-1348-४ कोपरनिकस, केपलर, गेलिलियो और आइन्स्टीन के चयनित लेखनों के सन्दर्भ में न्यूटन की प्रिन्सिपिया से स्थानों का चयन. [148]केयेन्स ने न्यूटन में काफी रूचि ली और न्यूटन के कई निजी कागजात पर कब्जा कर लिया। न्यूटन, आइजैक आई बर्नार्ड कोहेन द्वारा संपादित नेचुरल फिलोसोफी, में पत्र और कागजात .हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1958,1978. आई एस बी एन 0-674-46853-8. न्यूटन, आइजैक (1642-1727) दी प्रिन्सिपिया: एक नया अनुवाद, आई बर्नार्ड कोहेन के द्वारा निर्देशित आई एस बी एन 0-520-08817-4 कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (1999). शाप्ले, हरलो, एस रेप्पोर्ट और एच राइटऐ ट्रेजरी ऑफ साइंस ; "न्युटोनिया" पीपी.147-9;"डिस्कवरीज" पी पी. 150-4.हार्पर एंड ब्रदर्स, न्यूयॉर्क, (1946). (ऐ एह व्हाइट द्वारा संपादित; मूलतः 1752 में प्रकाशित) न्यूटन और धर्म डोब्ब्स, बेट्टी जो टेटर दी जानूस फेसेस ऑफ जीनियस:न्यूटन के विचार में रसायन विद्या की भूमिका (1991), रसायन विद्या को एरियन वाद से सम्बंधित करता है। बल, जेम्स ई. और रिचर्ड एच. Popkin, eds. न्यूटन और धर्म: सन्दर्भ, प्रकृति और प्रभाव. (1999), 342 पी पी. पीपी. xvii +325. नयी खुली पांडुलिपियों का उपयोग करने वाले 13 कागजात रामाती, अय्वल. 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मध्य एशिया
मध्य एशिया एशिया महाद्वीप का मध्य या केन्द्रीय भाग है। यह पूर्व में चीन से पश्चिम में कैस्पियन सागर तक और उत्तर में रूस से दक्षिण में अफ़ग़ानिस्तान तक विस्तृत है। भूवैज्ञानिकों द्वारा मध्य एशिया की हर परिभाषा में भूतपूर्व सोवियत संघ के पाँच देश हमेशा गिने जाते हैं - काज़ाख़स्तान, किरगिज़स्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़बेकिस्तान। इसके अलावा मंगोलिया, अफ़ग़ानिस्तान, उत्तरी पाकिस्तान, भारत के लद्दाख़ प्रदेश, चीन के शिनजियांग और तिब्बत क्षेत्रों और रूस के साइबेरिया क्षेत्र के दक्षिणी भाग को भी अक्सर मध्य एशिया का हिस्सा समझा जाता है। मध्यकाल में इसे तुरकेस्तान, और तातारिस्ता्न भी कहते थे, क्योंकि यहाँ की भाषा तुर्क भाषा से संबंधित है । सांस्कृतिक रूप से इस क्षेत्र पर ईरान का प्रभाव रहा है, यद्यपि मुख्य आबादी सुन्नी है । सन १८८० से १९८८ के बीच यह रूस नीत सोवियत साम्राज्य का हिस्सा रहा है । इतिहास में मध्य एशिया रेशम मार्ग के व्यापारिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। चीन, भारतीय उपमहाद्वीप, ईरान, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच लोग, माल, सेनाएँ और विचार मध्य एशिया से गुज़रकर ही आते-जाते थे। इस इलाक़े का बड़ा भाग एक स्टेपीज वाला घास से ढका मैदान है हालाँकि तियान शान जैसी पर्वत शृंखलाएँ, काराकुम जैसे रेगिस्तान और अरल सागर जैसी बड़ी झीलें भी इस भूभाग में आती हैं। ऐतिहासिक रूप मध्य एशिया में ख़ानाबदोश जातियों का ज़ोर रहा है। पहले इसपर पूर्वी ईरानी भाषाएँ बोलने वाली स्किथी, बैक्ट्रियाई और सोग़दाई लोगों का बोलबाला था लेकिन समय के साथ-साथ काज़ाख़, उज़बेक, किरगिज़ और उईग़ुर जैसी तुर्की जातियाँ अधिक शक्तिशाली बन गई। इसलिए इसे कभी-कभी 'तुर्किस्तान' भी बुलाया जाता है। १९वीं सदी के बाद मध्य एशिया के बड़े हिस्से पर पहले रूसी साम्राज्य और फिर सोवियत संघ का राज रहा, जो दोनों स्लावी-बहुसंख्यक थे। इस से बहुत से रूसी और यूक्रेनी लोग भी यहाँ पर आ बसे। १९९० के दशक में सोवियत संघ के टूटने पर यहाँ के देश आज़ाद राष्ट्रों के रूप में उभरे। इन्हें भी देखें काज़ाख़स्तान किरगिज़स्तान ताजिकिस्तान तुर्कमेनिस्तान उज़बेकिस्तान सन्दर्भ मध्य एशिया सोवियत संघ एशिया एशिया के क्षेत्र
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लोलिम्बराज
लोलिम्बराज १६वीं शताब्दी के प्रतिष्ठित कवि एवं विद्वान् थे। आयुर्वेद, गांधर्ववेद, तथा काव्यकला में इन्हें विशेष नैपुण्य प्राप्त था। ये महाराष्ट्र के पुणे प्रांत में स्थित जुन्नर नगर के निवासी थे। लोलिम्बराज की पत्नि मुरासा जुन्नर के एक मुसलमान शासक की कन्या थी जिसका नाम विवाह के पश्चात रत्नकला रखा गया। इनके पिता का नाम दिवाकर जोशी था। लोलिम्बराज के अग्रज नि:संतान थे। उन्होंने इनका पुत्रवत् लालन पालन किया। फलत: यौवनागम तक ये निरक्षर ही रहे। आवारों की भाँति दिन भर इधर उधर घूमते रहते, केवल भोजनवेला में घर पर आते। एक बार जब बड़े भाई वृत्ति उपार्जन के लिए परदेश गए हुए थे, इन्होंने अपनी भाभी के हाथ से झपटकर भोजनपात्र छीन लिया। पतिवियोग से संतप्त भाभी ने लोलिम्ब की इस अविनयपूर्ण अशिष्टता से क्रुद्ध होकर इन्हें दुत्कारा, जिससे लोलिंब के हृदय पर गहरा धक्का लगा। तुरंत सभी विषयों से विमुख हो इन्होंने नाशिक के 'सप्तशृंग' नामक पर्वत पर विराजमान अष्टादश भुजाओंवाली भगवती महिषासुरमर्दिनी, की पूर्ण विश्वास के साथ सेवा की, और स्वल्प समय में ही जगदंबा की प्रसन्नता का वर प्राप्त कर लिया। फलत: एक घड़ी में सौ उत्तम श्लोकों की रचना की सामर्थ्य प्राप्त कर ली। इसका उल्लेख उन्होंने स्वयं इस प्रकार किया है : रत्नं वामदृशां दृशां सुखकरं श्रीसप्तशृङगास्पदं स्पष्टाष्टादशबाहु तद्भगवतो भर्गस्य भाग्यं भजे। यद्भक्तेन मया घटस्तनि घटीमध्ये समुत्पाद्यते पद्यानां शतमंगनाधरसुधा स्पर्धाविधानोद्धुरम्॥ (वैद्यजीवन) इनकी अनुपम काव्यप्रतिभा से पूर्ण दो वैद्यक ग्रंथ मिलते हैं, 'वैद्यजीवन' तथा 'वैद्यावतंस' और पाँच सर्गों का एक अतिशय मधुर काव्य 'हरिविलास', जिसमें श्रीकृष्णभगवान् की नंदगृह में स्थिति से कंसवध तक की लीला का वर्णन हुआ है। इस काव्य की रचना लोलिम्ब ने अपने आश्रयदाता श्री सूर्यपुत्र हरि (या हरिहर) नरेश के अनुरोध से की थी- नाना गुणैरवनिमंडल-मंडनस्य श्रीसूर्यसूनुहरि-भूमिभुजो नियोगात्। काव्यामृतं हरिविलास इति प्रसिद्धं लोलिंबराजकविना कविनायकेन॥ -- (हरिविलास २.३५) काव्यकला की दृष्टि से इस काव्य में कोई वैशिष्ट्य नहीं प्रतीत होता है। रीति वैदर्भी तथा कहीं-कहीं यमक एवं अनुप्रास की छटा अवश्य देखने को मिलती है। पूर्ववर्ती कवियों में कालिदास तथा भारवि का प्रभाव अत्यधिक प्रतीत होता है। उदाहरणार्थ, रघुवंश के प्रसिद्ध श्लोक 'कुसुमजन्म ततो नवपल्लवास्तदनु षट्पदकोकिलकूजितम्' की छाया इन पंक्तियों में स्पष्ट दिखाई पड़ती है-'पुष्पाणि प्रथमं तत: प्रकटिता, स्वान्तोत्सवा:पल्लवा:। पश्चादुन्मदकोकिलालिललना कोलाहला: कोमला' आदि। कहीं कहीं कुछ अपाणिनीय प्रयोग भी मिलते हैं, जैसे- 'प्रिय इति पतिनोक्ता सा सुखाब्धौ ममज्ज (ह. वि. ४.२७) में पतिशब्द का, 'पतिना' तृतीयान्त प्रयोग। लोलिम्बराज ने मराठी भाषा में रत्नकला चरित और वैद्यजीवन का पद्यानुवाद ऐसे अन्य ग्रंथ भी लिखे है। बाहरी कड़ियाँ LOLIMBARAJA AND HIS CONTRIBUTION TO MEDICINE LOLIMBARAJA AND HIS CONTRIBUTION TO MEDICINE Vaidyajivanam: Contributions of Lolimbaraja to Ayurvedic Materia Medica– A Review (K. Nishteswar) संस्कृत कवि
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%AE%20%E0%A4%9F%E0%A5%82%20%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A5%80
वैल्कम टू कराची
वैल्कम टू कराची (हिन्दी: कराची में स्वागत) एक भारतीय बॉलीवुड फ़िल्म है, जिसका निर्देशन आशीष आर मोहन ने किया है। इस फिल्म में मुख्य किरदार में अरशद वारसी और जैकी भगनानी हैं। यह फिल्म 29 मई 2015 को सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई। कहानी यह कहानी दो भारतीय की है, जो गलती से कराची चले जाते हैं और वहाँ पर फँस जाते हैं। उनका वहाँ आतंकियों द्वारा गोलियों से स्वागत होता है और वो वहाँ से भागने के लिए रास्ता खोजते रहते हैं। कलाकार अरशद वारसी जैकी भगनानी लॉरेन गोत्त्लिएब आयुब खासो अदनान शाह इमरान हसनी असीम अहमद फोजिया अहमद नौशीद अहमद निगेल बार्बर कमल भारती टॉम चेशीरे जसबीर चोपड़ा मार्क ट्रिस्टन एकक्लेस संजना जी संधु ब्रीड सिस्टर ताज गिल निर्माण इस फ़िल्म का निर्माण इंग्लैंड के वेल्स आदि जगहों पर हुआ है। इसका कुछ निर्माण कराची में भी हुआ, जहाँ वाशु भागनानी के फ़िल्म के निर्माण की सामग्री चोरी हो गई। संगीत यह गाना जीत गांगुली, रोचक कोहली, कोमाइल शयन और अमजद-नदीम द्वारा बनाया गया है। इस फिल्म के 4 गानों को 29 अप्रैल 2015 में यूट्यूब पर डाला गया था। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ 2015 में बनी हिन्दी फ़िल्म
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B2
ताल
संगीत में समय पर आधारित एक निश्चित ढांचे को ताल कहा जाता है। शास्त्रीय संगीत में ताल की बड़ी अहम भूमिका होती है। संगीत में ताल देने के लिये तबले, मृदंग, ढोल और मँजीरे आदि का व्यवहार किया जाता है। प्राचीन भारतीय संगीत में मृदंग, घटम् इत्यादि का प्रयोग होता है। आधुनिक हिन्दुस्तानी संगीत में तबला सर्वाधिक लोकप्रिय है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रयुक्त कुछ तालें इस प्रकार हैं : दादरा, झपताल, त्रिताल, एकताल। तंत्री वाद्यों की एक शैली ताल के विशेष चलन पर आधारित है। मिश्रबानी में डेढ़ और ढ़ाई अंतराल पर लिए गए मिज़राब के बोल झप-ताल, आड़ा चार ताल और झूमरा का प्रयोग करते हैं। संगीत के संस्कृत ग्रंथों में ताल दो प्रकार के माने गए हैं—मार्ग और देशी। भरत मुनि के मत से मार्ग ६० हैं— चंचत्पुट, चाचपुट, षट्पितापुत्रक, उदघट्टक, संनिपात, कंकण, कोकिलारव,राजमहल के , राजकोलाहल, रंगविद्याधर, शचीप्रिय, पार्वतीलोचन, राजचूड़ामणि, जयश्री, वादकाकुल, कदर्प, नलकूबर, दर्पण, रतिलीन, मोक्षपति, श्रीरंग, सिंहविक्रम, दीपक, मल्लिकामोद, गजलील, चर्चरी, कुहक्क, विजयानंद, वीरविक्रम, टैंगिक, रंगाभरण, श्रीकीर्ति, वनमाली, चतुर्मुख, सिंहनंदन, नंदीश, चंद्रबिंब, द्वितीयक, जयमंगल, गंधर्व, मकरंद, त्रिभंगी, रतिताल, बसंत, जगझंप, गारुड़ि, कविशेखर, घोष, हरवल्लभ, भैरव, गतप्रत्यागत, मल्लताली, भैरव- मस्तक, सरस्वतीकंठाभरण, क्रीड़ा, निःसारु, मुक्तावली, रंग- राज, भरतानंद, आदितालक, संपर्केष्टक। इसी प्रकार १२० देशी ताल गिनाए गए हैं। इन तालों के नामों में भिन्न भिन्न ग्रंथों में विभिन्नता देखी जाती हैं। ताल में परिवर्तन / ताल माला : - ताल में परिवर्तन / ताल माला एक राग में हर पंक्ति में ताल परिवर्तन / वृद्धि करते हुये राग को गाया जाता है विषम से है तो विषम से तथा सम से है तो सम से। जैसे 10 मात्रा से राग के विभिन्न भाषा अर्थात शुरू, अगली पंक्ति 12 मात्रा , अन्य पंक्तियां भी बढ़ते क्रम से गायी जाती है। ताल माला आरोही आदेश में बढ़ती हैं। दोहरीकरण / ताल माला में राग का तीन गुना आरोही आदेश में वृद्धि की जाती है। जब एक गायक ताल माला में गायी जाने वाली राग की दोगुन करता है तो आरोही आदेशों (उदाहरणार्थ 18,20,22,24 ....) बढ़ते क्रम से ताल माला को गाया जाता है, ताल का बदलाव और अजीब के लिए इसी तरह की संख्या में वृद्धि की जाती है। इसका उल्लेख गुरमत ज्ञान समूह, राग रतन , ताल अंक , संगीत शास्त्र में भी दर्शाया गया है। बाहरी कड़ियाँ ताल-वादकों पर आलेख A Visual Introduction to Rhythms (taal) in Hindustani Classical Music Colvin Russell: Tala Primer - A basic introduction to tabla and tala. KKSongs Talamala: Recordings of Tabla Bols, database for Hindustani Talas. Ancient Future: MIDI files of the common (major) Hindustani Talas. Basics of Hindustani Classical Music for Listeners: a downloadable PDF, and an online video talk सन्दर्भ भारतीय शास्त्रीय संगीत
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https://hi.wikipedia.org/wiki/2014%20%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%A8%20%E0%A4%93%E0%A4%B2%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A8
2014 शीतकालीन ओलंपिक में यूक्रेन
यूक्रेन ने 7 से 23 फरवरी 2014 तक, सोची, रूस में 2014 शीतकालीन ओलंपिक में भाग लिया। यूक्रेन की राष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने कुल 45 एथलीट भेजे। महिलाओं की रिले जीत ने यूक्रेन को अपनी दूसरी शीतकालीन खेलों में स्वर्ण पदक प्राप्त किया। पहली बार 1994 शीतकालीन ओलंपिक में ओक्साना बायोल द्वारा जीता गया था। 22 फरवरी को, त्रिमेटाज़ीडिन के लिए सकारात्मक परीक्षण करने के बाद क्रोन-कंट्री स्कीयर मरीना लिस्सोगर को ओलंपिक से बाहर रखा गया था। पदक विजेता सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE%20%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE
बागातिपाड़ा उपज़िला
बागातिपाड़ा उपजिला, बांग्लादेश का एक उपज़िला है, जोकी बांग्लादेश में तृतीय स्तर का प्रशासनिक अंचल होता है (ज़िले की अधीन)। यह राजशाही विभाग के नाटोर ज़िले का एक उपजिला है, जिसमें, ज़िला सदर समेत, कुल 7 उपज़िले हैं, और मुख्यालय नाटोर सदर उपज़िला है। यह बांग्लादेश की राजधानी ढाका से पूर्व की दिशा में अवस्थित है। यह मुख्यतः एक ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है। जनसांख्यिकी यहाँ की आधिकारिक स्तर की भाषाएँ बांग्ला और अंग्रेज़ी है। तथा बांग्लादेश के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह ही, यहाँ की भी प्रमुख मौखिक भाषा और मातृभाषा बांग्ला है। बंगाली के अलावा अंग्रेज़ी भाषा भी कई लोगों द्वारा जानी और समझी जाती है, जबकि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक निकटता तथा भाषाई समानता के कारण, कई लोग सीमित मात्रा में हिंदुस्तानी(हिंदी/उर्दू) भी समझने में सक्षम हैं। यहाँ का बहुसंख्यक धर्म, इस्लाम है, जबकि प्रमुख अल्पसंख्यक धर्म, हिन्दू धर्म है। राजशाही विभाग में, जनसांख्यिकीक रूप से, इस्लाम के अनुयाई, आबादी के औसतन ८८.४२% है, जबकि शेष जनसंख्या प्रमुखतः हिन्दू धर्म की अनुयाई है। यह मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है। अवस्थिती बागातिपाड़ा उपजिला बांग्लादेश के पूर्वी भाग में, राजशाही विभाग के नाटोर जिले में स्थित है। इन्हें भी देखें बांग्लादेश के उपजिले बांग्लादेश का प्रशासनिक भूगोल राजशाही विभाग उपज़िला निर्वाहि अधिकारी सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ उपज़िलों की सूची (पीडीएफ) (अंग्रेज़ी) जिलानुसार उपज़िलों की सूचि-लोकल गवर्नमेंट इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट, बांग्लादेश http://hrcbmdfw.org/CS20/Web/files/489/download.aspx (पीडीएफ) श्रेणी:राजशाही विभाग के उपजिले बांग्लादेश के उपजिले
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AC%20%281985%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29
जवाब (1985 फ़िल्म)
जवाब 1985 में बनी रवि टंडन द्वारा निर्देशित हिन्दी भाषा की फिल्म है। मुख्य भूमिकओं में राज बब्बर और स्मिता पाटिल हैं। सुरेश ओबेरॉय, अभि भट्टाचार्य और डैनी डेन्जोंगपा सहायक कलाकार हैं। संक्षेप एक पत्रकार, मेहता, जगमोहन के आदमियों से भागते हुए, गायक रामप्रसाद सिंह (राज बब्बर) को एक लिफाफा छोड़ देता है और उसे बांद्रा पुलिस स्टेशन में इंस्पेक्टर जे.एस शर्मा (सुरेश ओबेरॉय) को देने के लिए कहता है। इसके बाद, मेहता की मौत हो गई। रामप्रसाद इंस्पेक्टर शर्मा को लिफाफे दे देता है। इससे जगमोहन को गिरफ्तार कर लिया जाता है और जेल में दो साल की सजा सुनाई जाती है। तब रामप्रसाद को धमकियाँ मिलना और फोन कॉल से धमकाया जाता है। वह शर्मा से सुरक्षा के लिए कहता है। रामप्रसाद, उसकी पत्नी रजनी और पुत्र को गवाह संरक्षण कार्यक्रम में शामिल किया जाता है और उन्हें एक नई पहचान दी जाती है। कुछ समय बाद जगमोहन (डैनी डेन्जोंगपा) उनके ठिकाने को ढूंढ लेता है, और इस बार शर्मा उन्हें ईसाई नाम देता है। जब जगमोहन को फिर से उनका ठिकाना मिल जाता है, शर्मा परिवार को मुस्लिम नाम दे देता है। अपने जीवन के लिए दौड़ना, अपने धर्म और स्थान को बार-बार बदलना रामप्रसाद को अब नागवार गुजरता है। रामप्रसाद अब अपने मूल नाम लेने का फैसला करता है, और अपने घर लौटता है। एक बार वहाँ पहुँच कर, रामप्रसाद जगमोहन के खात्मे के लिये अपनी खुद की योजना तैयार करता है। शुरुआत में वो उसके आदमियों के बीच गलतफहमी पैदा करता है, और उन्हें एक-दूसरे को मारने देता है। मुख्य कलाकार राज बब्बर - राम प्रताप सिंह / अमृत गुप्ता / पीटर मारटिस / मोहम्मद हुसैन स्मिता पाटिल - रजनी / राधा गुप्ता / फ्रेडी मारटिस / सलमा हुसैन सुरेश ओबेरॉय - इंस्पेक्टर जे.एस शर्मा डैनी डेन्जोंगपा - सेठ जगमोहन अभि भट्टाचार्य - वरिष्ठ पुलिस अधिकारी सत्येन्द्र कपूर - मूर्ति मदन पुरी - लखनी परीक्षत साहनी - दिनेश माथुर अंजान श्रीवास्तव - मेहता किरण - कोमल संगीत बाहरी कड़ियाँ 1985 में बनी हिन्दी फ़िल्म लक्ष्मीकांत–प्यारेलाल द्वारा संगीतबद्ध फिल्में
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A5%81%E0%A4%A8%20%E0%A4%AB%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%8B%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8
खुन फावो राष्ट्रीय उद्यान
खुन फावो राष्ट्रीय उद्यान () थाईलैंड के ताक प्रान्त में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान है। उद्यान का क्षेत्रफल 380 वर्ग किलोमीटर है।औपचारिक रूप से, उद्यान को माई गसा राष्ट्रीय उद्यान कहा जाता था, लेकिन बाद में योद्धा फावो, करेन सैनिक को सम्मानित करने के लिए खुन फावो राष्ट्रीय उद्यान में बदल गया, जिसे ताकसिन की अवधि में कस्टमहाउस के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था। उसने आक्रमणकारियों से लड़ाई की और शहर को बचाने के लिए खुद को बलिदान कर दिया। मौसम अंडमान समुद्र से आने वाली हवा से जलवायु अत्यधिक प्रभावित होती है, जिससे बारिश के मौसम में आर्द्र मौसम और सर्दियों में ठंडे तापमान में वृद्धि होती है। उद्यान के औसत उच्चतम तापमान 20° C है। सबसे कम तापमान 8° C है। सन्दर्भ थाईलैंड के राष्ट्रीय उद्यान
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अहिरवाड़ा
अहिरवाड़ा मध्य भारत या आधुनिक मध्य प्रदेश में पार्वती और बेतवा नदियों के बीच स्थित एक ऐतिहासिक क्षेत्र है। अहिरवाड़ा राज्य भिलसा और झांसी शहरों के बीच स्थित था। इतिहास आभीर अक्सर सौराष्ट्र के क्षत्रप शिलालेख में उल्लेखित होते रहे हैं। पुराणों और बृहद्संहिता के अनुसार समुद्रगुप्त काल में आभीर दक्षिणी क्षेत्र में शासक थे। जो धीरे-धीरे भारत के विभिन्न भागों में फैल गए। बाद की तारीख में इन्होंने मध्य प्रदेश में अहिरवाड़ा पर कब्जा कर लिया। संवत 918 के जोधपुर शिलालेख से स्पष्ट है कि राजस्थान में भी उनका कब्जा था। शिलालेख के अनुसार आभीर अपने हिंसक आचरण की वजह से, अपने पड़ोसियों के लिए एक आतंक थे। औरंगज़ेब के शासनकाल में, अहिरवाड़ा खींची वंश के राजा धीरज सिंह के शासन के अधीन आ गया, जो ज्यादातर समय के लिए अहीर विद्रोह को दबाने और व्यवस्था बहाल करने में व्यस्त रहे। पूरनमल पूरनमल 1714-1716 (ई॰) के दौरान मालवा क्षेत्र के एक अहीर शासक थे। 1714 में, जयपुर के राजा जयसिंह, मालवा में विकार दबाने में सफल हो गए। अफगान दंगाइयों ने अहीर नेता पूरनमल की मदद से सिरोंज पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। अहीर देश (अहिरवाड़ा) अपने नेता पुरनमल के नेतृत्व में अंग्रेज़ सरकार से विद्रोह के लिए खड़ा हो गया, उन्होंने सिरोंज से कालाबाग के लिए सड़कों को बंद कर दिया और रानोड और इंदौर के अपने गढ़ों से सरकार को परेशान करना जारी रखा। राजा जय सिंह अप्रैल 1715 में फिर सिरोंज पहुँचे और अफगान सेना को पराजित किया। परंतु जय सिंह द्वारा स्थापित यह शांति ज्यादा दिन तक नहीं टिक पायी और नवंबर 1715 में पूरनमल अहीर ने मालपुर में नए सिरे से लूट-पाट शुरू कर दी। रोहिला, गिरासिया , भील, अहीर व अन्य हिंदू राजशाही मालवा में चारों ओर से विद्रोह हेतु खड़े हो गए व स्थिति को नियंत्रित करने की सरकार की हर कोशिश को नाकाम कर दिया। शासक चूरामन अहीर, मांडला पूरनमल इन्हें भी देखें असीरगढ़ किला संदर्भ सूत्र अहीर अहीर इतिहास अहीर (आभीर) राजवंश
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0
भाविक अलंकार
भाविक अलंकार अलंकार चन्द्रोदय के अनुसार काव्य में प्रयुक्त एक अलंकार है। साहित्य दर्पण के अनुसार बीत चुके अथवा भविष्य में होने वाले अदभुत पदार्थ का प्रत्यक्ष के समान वर्णन करने को भाविक अलंकार कहते हैं। ("अद्भुतस्य पदार्थस्य भूतस्याथ भविष्यतः। यत्प्रत्यक्षायमाणत्वं तद्भाविकमुदाहृतम्॥९३॥") उदाहरण और व्याख्या विश्वनाथ ने दो उदाहरण देकर इसकी व्याख्या की है :- "'मुनिर्जयति योगीन्द्रो महात्मा कुम्भसम्भवः। येनैकचुलुके दृ्ष्टौ दिव्यौ तौ मत्स्यकच्छपौ॥'" अर्थात मुनिरिति। योगीन्द्र महात्मा अगत्स्य मुनि उत्कर्ष के साथ रहते हैं। जिन्होंने एक अंजलि में दिव्य प्रसिद्ध मस्त्य (मत्स्यावतार) और कच्छप (कच्छपावतार) का साक्षात्कार कर लिया। यहाँ चुल्लू किए गए समुद्र में देखे गए दिव्य मत्स्य और कच्छप इन दो अदभुत पदार्थों के वर्णन विशेष से प्रत्यक्ष के समान प्रतीत होने से भाविक अलंकार है। "'आसीदञ्जनमत्रेति पश्यामि तव लोचने। भाविभूषणसम्भारां साक्षात्कुर्वे तवाकृतिम्॥'" अर्थात आसीदिति। हे कन्ये! तुम्हारे इन नयनों में काजल था ऐसा विचार कर तुम्हारे नयनों को देखता हूँ। पीछे होने वाले अलंकार से युक्त तुम्हारी आकृति को प्रत्यक्ष कर रहा हूँ। इस प्रसंग में पूर्वार्द्ध में लगाए गए काजल का 'पश्यामि' कहकर और उत्तरार्द्ध में पीछे होने वाले भूषण समूह का 'साक्षात्कुर्वे' प्रत्यक्ष कर रहा हूँ, कहकर वर्तमान काल के निर्देश से प्रत्यक्ष के समान आचरण करने से भाविक अलंकार हुआ है। भामह अन्य अलंकारों को वाक्योलंकार मानते हैं किन्तु भाविक को प्रबंध का गुण मानते हैं। सन्दर्भ हिन्दी साहित्य अलंकार काव्यशास्त्र
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जेफरी हॉप्किन्स
जेफरी हॉप्किन्स (Jeffrey Hopkins ; जन्म 1940) अमेरिकी तिब्बतविद् हैं। उन्होने वर्जीनिया विश्वविद्यालय के तिब्बती एवं बौद्ध अध्ययन विभाग में वर्ष १९७३ से आरम्भ करके तीन से अधिक दशक तक शिक्षण कार्य किया। उन्होने तिब्बती बौद्ध धर्म से सम्बन्धित २५ से भी अधिक पुस्तकों की रचना की है जिनमें से शून्यता पर ध्यान ( Meditation on Emptiness) अत्यन्त प्रसिद्ध है। वर्ष 1979 से 1989 तक वे अंग्रेजी के लिये दलाई लामा के मुख्य अनुवादक (इन्टरप्रीटर) थे। उन्होने तिब्बत मुक्ति आन्दोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ हॉपकिन्स द्वारा रचित तिब्बत-संस्कृत-अंग्रेजी शब्दकोश हॉपकिन्स द्वारा रचित तिब्बत-संस्कृत-अंग्रेजी शब्दकोश (२) तिब्बती बौद्ध तिब्बतविद्
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%20%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%A4%E0%A4%BF
ब्रेल पद्धति
ब्रेल पद्धति एक तरह की लिपि है, जिसको विश्व भर में नेत्रहीनों को पढ़ने और लिखने में छूकर व्यवहार में लाया जाता है। इस पद्धति का आविष्कार 1821 में एक नेत्रहीन फ्रांसीसी लेखक लुई ब्रेल ने किया था। यह अलग-अलग अक्षरों, संख्याओं और विराम चिन्हों को दर्शाते हैं। ब्रेल के नेत्रहीन होने पर उनके पिता ने उन्हें पेरिस के रॉयल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड चिल्डे्रन में भर्ती करवा दिया। उस स्कूल में "वेलन्टीन होउ" द्वारा बनाई गई लिपि से पढ़ाई होती थी, पर यह लिपि अधूरी थी। इस विद्यालय में एक बार फ्रांस की सेना के एक अधिकारी कैप्टन चार्ल्स बार्बियर एक प्रशिक्षण के लिये आए और उन्होंने सैनिकों द्वारा अँधेरे में पढ़ी जाने वाली "नाइट राइटिंग" या "सोनोग्राफी" लिपि के बारे में व्याख्यान दिया। यह लिपि कागज पर अक्षरों को उभारकर बनाई जाती थी और इसमें १२ बिंदुओं को ६-६ की दो पंक्तियों को रखा जाता था, पर इसमें विराम चिह्न, संख्‍या, गणितीय चिह्न आदि नहीं होते थे। ब्रेल को वहीम से यह विचार आया। लुई ने इसी लिपि पर आधारित किन्तु १२ के स्थाण पर ६ बिंदुओं के उपयोग से ६४ अक्षर और चिह्न वाली लिपि बनायी। उसमें न केवल विराम चिह्न बल्कि गणितीय चिह्न और संगीत के नोटेशन भी लिखे जा सकते थे। यही लिपि आज सर्वमान्य है। लुई ने जब यह लिपि बनाई तब वे मात्र १५ वर्ष के थे। सन् १८२४ में पूर्ण हुई यह लिपि दुनिया के लगभग सभी देशों में उपयोग में लाई जाती है। इसमें प्रत्येक आयताकार सेल में ६ बिन्दु यानि डॉट्स होते हैं, जो थोड़े-थोड़े उभरे होते हैं। यह दो पंक्तियों में बनी होती हैं। इस आकार में अलग-अलग ६४ अक्षरों को बनाया जा सकता है। सेल की बांई पंक्ति में उपर से नीचे १,२,३ बने होते हैं। इसी तरह दांईं ओर ४,५,६ बनी होती हैं। एक डॉट की औसतन ऊंचाई ०.०२ इंच होती है। इसको पढ़ने की विशेष तकनीक होती है। ब्रेल लिपि को पढ़ने के लिए अंधे बच्चों में इतना ज्ञान होना आवश्यक है कि वो अपनी उंगली को विभिन्न दिशाओं में सेल पर घुमा सकें। वैसे विश्व भर में इसको पढ़ने का कोई मानक तरीका निश्चित नहीं हैं। ब्रेल लिपि को स्लेट पर भी प्रयोग में लाया जा सकता है। इसके अलावा इसे ब्रेल टाइपराइटर पर भी प्रस्तुत किया जा सकता है। आधुनिक ब्रेल स्क्रिप्ट को ८ डॉट्स के सेल में विकसित कर दिया गया है, ताकि अंधे लोगों को अधिक से अधिक शब्दों को पढ़ने की सुविधा उपलब्ध हो सके। आठ डॉट्स वाले ब्रेल लिपि सेल में अब ६४ की बजाय २५६ अक्षर, संख्या और विराम चिह्नें के पढ़ सकने की सुविधा उपलब्ध है। ब्रेल पद्धति को वर्णमाला के वर्णों को कूट रूप में निरूपित करने वाली सबसे प्रथम प्रचलित प्रणाली कह सकते हैं, किन्तु ब्रेल लिपि नेत्रहीनों के पढ़ने और लिख सकने के उपाय का प्रथम प्रयास अध्याय नहीं है। इससे पहले भी १७वीं शताब्दी में इटली के जेसूट फ्रांसिस्को लाना ने नेत्रहीनों के लिखने-पढ़ने को लेकर काफी कोशिशें की थीं। ब्रेल लेखन ब्रेल लेखन को पन्ने पर कुछ नुकीले स्टायलस द्वारा पीछे से आगे को उभरे हुए निशान द्वारा डॉट्स को अंकित कर लिखा जा सकता है। ऐसी स्थिति में पन्ने के पीछे लिखने हेतु दर्पण में छवि देखकर लिखा जा सकता है, क्योंकि वैसे तो उलटा लिखना कठिन होता है। ऐसा करने हेति ब्रेल-टाइपराईटर या पर्किन्स ब्रेलर द्वारा लिखा जा सकता है। कंप्यूटर से जुड़े ब्रेल एम्बॉसर द्वाआ इसे प्रिंट भी किया जा सकता है। ब्रेल को ब्रेल एम्बॉसर पर लिखने हेतु ८-बिन्दु पद्धति में अद्यतित किया गया है। इसमें कुछ अतिरिक्त बिन्दु पुरानी शैली में नीचे बढ़ाये गए हैं। अब ये ४ बिन्दू ऊंचा और २ बिन्दु चौड़ा हो गया है। अतिरिक्त बिन्दुओं को संख्या – ७ (नीचे बायीं बिन्दु) एवं ८ (नीचे दायीं बिन्दु) निश्चित की गई हैं। ८-बिन्दु कोड का एक लाभ ये भी है कि एक अक्षर का केस सीधे अक्षर वाली सेल में दिया जाता है एवं सभी प्रिंट होने वाले आस्की कैरेक्टर्स एक ही सेल में लिखे जा सकते हैं। ८-बिन्दुओं द्वारा संभव सभी २५६ (२८) संयोजन यूनिकोड मानक में संभव हैं। ६-बिन्दु वाली ब्रेल लिपि को ब्रेल आस्की नां से सुरक्षित रखा गया है। अंग्रेज़ी वर्णमाला के प्रथम १० अक्षर एवं १-१० तक की संख्याएं मात्र ऊपरी चार बिन्दुओं (१,२,४ एवं ५) के प्रयोग से लिखी जाती है। बिन्दु ३ के प्रयोग से अगले दस अक्षर, बिन्दु ६ से अंतिम छः अक्षर (सिवाय डब्ल्यु के) एवं प्रायः प्रयोगनीय अंग्रेज़ी शब्द and, for, of, the, and with आदि लिखे जा सकते हैं। अक्षर यू से ज़ेड से बिन्दु-३ को एवं पांच शब्द चिह्नों को हटाने मात्र से नौ डाईग्राफ्स (ch, gh, sh, th, wh, ed, er, ou, एवं ow) अक्षर डब्ल्यु बनते हैं। अक्षर एवं संख्याएं yogesh kumar gupta अन्य चिह्न नोट: * प्रश्नसूचक चिह्न दिखाने के लिये बिन्दु २-३-६— प्रयोग किये जाते हैं, खुलते उद्धरण चिह्न के समाण ही। अतएव किसी शब्द के पूर्व या पश्चात बिन्दुओं— के लिखने से ही पता चलेगा कि ये क्या चिह्न है। * खुलते व बंद होते ब्रैकिट समाण चिह्न द्वाआ चिह्नित हैं। अतएव प्रयोग द्वारा ही इसका पता चलेगा कि ब्रैकिट खुल रहा है या बंद हो रहा है। श्रेणी-२ ब्रेल लिप्यांतरण ये ग्रेड-२ ब्रेल में प्रयोग होने वाले कॉन्ट्रैक्शंस का मात्र एक नमूना भर है। इस बारे में अधिक जानकारी हेतु ब्रेल ट्रांस्क्रिप्शन देखें। ब्रेल यूनिकोड यूनिकोड मानक में ब्रेल को १९९९ के सितम्बर में शामिल किया गया। ब्रेल पैटर्नों के यूनिकोड U+2800 से लेकर U+28FF तक हैं। भारती ब्रेल इसमें से प्रथम ६४ (U+2800 से लेकर U+283F) का ही उपयोग करती है। इन्हें भी देखें भारती ब्रेल द्विक कोडों की सूची (List of binary codes) सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ नेत्रहीन रतिदास बिखेर रहा शिक्षा की रोशनी :en:Hindi Braille संस्थाएँ ब्रेल लिपि ने दृष्टिहीनों के लिए ज्ञान का द्वार खोला। खबर एक्स्प्रेस। ४ जनवरी २००८ निःशुल्क ब्रेल वर्णमाला कार्ड इंटरनेट पर ब्रेल लिपि निःशुल्क सीखें ऑनलाईन ब्रेल जनरेटर ब्रेल लिपि वाली यूनिकोड फ़ॉण्ट्स लिपि
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A5%80%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE
अहीरवाटी भाषा
अहीरवाटी एक हिन्द-आर्य भाषा है, जिसे हरियाणा-राजस्थानी भाषा के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यह अहीरवाल, दिल्ली, राजस्थान, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, गुड़़गांव कोट बहरोड़ में बोली जाती है। प्रसिद्ध इतिहासकार रॉबर्ट वान रसेल अहिरवाटी के अनुसार अहीर समुदाय की भाषा है और हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली में बोली जाती है। रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़, गुरगांव, कोटकासिम, कोटपुटली, बंसूर, दक्षिण दिल्ली, बहरोड़, दक्षिण-पश्चिम दिल्ली, और मुण्डावर को अहीरवाटी बोलने वाले क्षेत्र का केंद्र माना जा सकता है। अहीरवाटी बोली राजस्थान में कोट बहरोड़ जिले की बहरोड़, नीमराणा, मांढ़ण, बानसूर व कोटपूतली के उत्तरी भाग व खैरथल जिले की मुण्डावर , किशनगढ़ के पश्चिमी भाग । मेवाती बोली की उपभाषा भी इसे कहा जाता हे [] । हरियाणावी और मेवाती की बीच की कड़ी है। चूँकि अहीरवाटी बोली के क्षेत्र को 'राठ' कहा जाता है, इसीलिए इसे 'राठी मेवाती बोली' भी कहते हैं। यह पश्चिम हरियाणा में बोली जाने वाली इसी नाम (राठी) बोली से अलग हैं । जोधराज द्वारा रचित हम्मीर रासो महाकाव्य अहीरवाटी बोली में ही लिखा गया है। जोधराज नीमराणा के राजकवि थे । भारत यूरोपीय भाषा परिवार संद्रभ []
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अन्तःशिरा चिकित्सा
अन्तःशिरा चिकित्सा (Intravenous therapy) का अर्थ है, द्रव पदार्थों को सीधे शिराओं में प्रविष्ट कराकर चिकित्सा करना। इन्ट्रावेनस (IV) का अर्थ है- शिरा के भीतर। इसे सामान्यतः 'ड्रिप' भी कहते हैं। इसका महत्त्व इसलिये हैं कि किसी तरल या औषधि को शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचाने के लिये उसे शिराओं में डाल देना सबसे तेज और कारगर रास्ता है। उदाहरण के लिये अन्तःशिरा चिकित्सा का उपयोग निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन) होने पर शरीर में शीघातिशीघ्र तरल भेजने के लिये , शरीर में विद्युत-अपघट्य की कमी को पूरा करने के लिये, दवाएँ देने के लिये और रक्ताधान के लिये किया जाता है। बाहरी कड़ियाँ IVTEAM.com IV-Therapy.net , Intravenous Therapy. चिकित्सा
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8
ग्रेगोरी पेरेल्मान
ग्रिगोरी पेरेल्मान (रूसी: Григо́рий Я́ковлевич Перельма́н, जन्म: १३ जून १९६६) एक रूसी गणितज्ञ हैं जिन्होंने २००२-२००३ में प्वाइनकरे अनुमान को सिद्ध किया था। इसके लिए उन्हें फील्ड्स पदक और सहस्राब्दी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था लेकिन उन्होंने इन पुरस्कारों को स्वीकार नहीं किया। जन्म पेरेल्मान का जन्म १३ जून १९६६ को लेनिनग्राद, सोवियत संघ में हुआ था। उनकी माँ लुडमीला एक गणितज्ञ थी और पिता याकौव एक इंजीनियर था। बचपन और शिक्षा जब पेरेल्मान दस साल का था उनकी गणितीय प्रतिभा स्पष्ट हो गया और उनकी माँ उन्हें स्कूल के बाद सर्गेई रुक्शिन का गणित प्रशिक्षण कार्यक्रम में नामांकित किया। फिर पेरेल्मान का गणित शिक्षा लेनिनग्राद सेकेंडरी स्कूल में चालू हुआ। इस स्कूल में पेरेल्मान व्यायाम शिक्षा के अलावा हर विषय में श्रेष्ट थे। १९८२ में उन्हें अंतरराष्ट्रीय गणितीय ओलंपियाड में पूर्ण गणना के साथ स्वर्ण पदक मिला। फिर वह लेनिनग्राद स्टेट विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और वही विश्वविद्यालय से १९९० में पीएचडी पूरी की। सोल अनुमान का प्रमाण १९९४ में पेरेल्मान सोल अनुमान साबित किया। प्वाइनकरे अनुमान का प्रमाण २००२-२००३ में पेरेल्मान अपना :en:Thurston's Geometrization Conjecture का प्रमाण arxiv.org वेबसाइट में प्रकाशित किया। प्वाइनकरे अनुमान Thurston's Geometrization Conjecture का एक परिणाम है। इसके लिए उन्हें २००६ में फील्ड्स पदक से सम्मानित किया गया लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया। प्वाइनकरे अनुमान एक सहस्राब्दी पुरस्कार समस्या था और इसे साबित करने के लिए पेरेल्मान को २०१० में सहस्राब्दी पुरस्कार (दस लाख अमेरिकी डॉलर) भी सम्मानित किया गया था लेकिन उन्होंने इसे भी स्वीकार नहीं किया। उसने कहा कि उसे पैसे और प्रसिद्धि में दिलचस्पी नहीं है। मीडिया पत्रकार माशा गेस्सेन २००९ में पेरेल्मान के बारे में एक पुस्तक प्रकाशित किया जिसका नाम है परफेक्ट रिगर : अ जीनियस ऐन्ड द मैथेमैटिकल ब्रेकथ्रू ऑफ द सेन्चूरी। सन्दर्भ 1966 में जन्मे लोग जीवित लोग रूस के लोग गणितज्ञ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%AF%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%89%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%9F
शेयरपॉइंट
माइक्रोसॉफ़्ट शेयरपॉइंट, जो माइक्रोसॉफ़्ट शेयरपॉइंट प्रॉडक्ट एंड टेक्नॉलजीस के रूप में भी जाना जाता है, उत्पादों और सॉफ़्टवेयर तत्त्वों का एक संग्रह है, जहां वृद्धिशील चुनिंदा घटकों में, वेब ब्राउज़र आधारित सहयोग प्रक्रियाएं, प्रक्रिया प्रबंधन मापदंड, खोज मॉड्यूल और दस्तावेज-प्रबंधन प्लैटफ़ॉर्म भी शामिल हैं। शेयरपॉइंट को साझा वर्क-स्पेस, सूचना भंडार और दस्तावेज और साथ ही विकी तथा चिट्ठों (ब्लॉग) जैसे परिभाषित अनुप्रयोगों को होस्ट करने के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। सभी प्रयोक्ता "वेब पार्ट्स" नामक स्वामित्व नियंत्रण में हेर-फेर कर सकते हैं, या सूचियों तथा दस्तावेज लाइब्रेरी जैसे लेख सामग्री के साथ अंतर्व्यवहार कर सकते हैं। सिंहावलोकन शब्द "शेयरपॉइंट" सामूहिक रूप से, आधार प्लैटफ़ॉर्म से लेकर विभिन्न सेवाओं तक असंख्य उत्पादों की ओर इंगित कर सकता है। प्लैटफ़ॉर्म है विंडोज़ शेयरपॉइंट सर्विसस (WSS), जो Windows सर्वर के साथ युक्त है और Windows सर्वर लाइसेंसधारकों को मुफ़्त डाउनलोड के रूप में उपलब्ध है। Microsoft Office शेयरपॉइंट सर्वर (MOSS) जैसी सेवाएं, अतिरिक्त कार्यक्षमता और सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं और तदनुसार लाइसेंस दिया जाता है। Microsoft निम्नलिखित की पहचान, मौजूदा शेयरपॉइंट उत्पादों और प्रौद्योगिकियों के परिवार के अंश के रूप में करता है: विंडोस शेयरपॉइंट सर्विसस 3.0 (WSS) सर्च सर्वर 2008 एक्सप्रेस सर्च सर्वर 2008 फ़ॉर्म्स सर्वर 2007 Microsoft Office शेयरपॉइंट सर्वर 2007 MOSS स्टैंडर्ड Microsoft Office शेयरपॉइंट सर्वर 2007 MOSS एंटरप्राइज़ Microsoft Office ग्रूव सर्वर 2007 Microsoft Office प्रॉजेक्ट सर्वर 2007 Microsoft Office शेयरपॉइंट डिज़ाइनर, शेयरपॉइंट परिवार में शामिल एक मुक्त संपादक है, जो शेयरपॉइंट सोल्युशन को विकसित करने और उनके अनुकूलन में प्रशासकों की मदद करता है। इस सॉफ़्टवेयर के पिछले संस्करणों ने "शेयरपॉइंट पोर्टल सर्वर 2003" और "शेयरपॉइंट टीम सेवाएं" जैसे अलग नामों को प्रयुक्त किया, पर ये शेयरपॉइंट या शेयरपॉइंट टेक्नॉलजीस के नाम से भी निर्दिष्ट किए जाते हैं। शुरूआत से ही, जब शेयरपॉइंट पहल को सामूहिक रूप से ताहो कहा जाता था, शेयरपॉइंट विकास विभिन्न उत्पादों और प्रौद्योगिकियों का मिश्रित झोला रहा है और इसमें अब अप्रचलित साइट सर्वर 3.0 भी शामिल था। प्रौद्योगिकियों के एक संग्रह के रूप में शेयरपॉइंट का इरादा, सिर्फ़ एक पूरे फ़ाइल सर्वर की जगह लेना या एकल उपयोग समाधान बनना नहीं है। इसके बजाय, यह व्यापार और उद्यम वातावरण में विभिन्न भूमिकाएं निभाने के लिए अनुकूल स्थिति में अवस्थित है। Microsoft इन वेक्टरों का विपणन, सहयोग, प्रक्रिया और लोगों के रूप में करते हैं। शेयरपॉइंट प्रयोक्ता इंटरफ़ेस ब्राउज़र के माध्यम से सुलभ एक वेब ब्राउज़र है। वैसे तो सभी ब्राउज़रों को समर्थन दिया गया है, पर Microsoft द्वारा "1 स्तर" ब्राउज़र के रूप में निर्दिष्ट केवल इंटरनेट एक्सप्लोरर पूरी तरह से संघटित है और शेयरपॉइंट समाधान की पूर्ण कार्यक्षमता का उपयोग करने में सक्षम है। शेयरपॉइंट साइटें कार्यात्मक रूप से ASP.NET 2.0 वेब अनुप्रयोग हैं, जो IIS का उपयोग करते हुए काम करते हैं और डाटा संग्रहण बैक-एंड के रूप में SQL सर्वर डाटाबेस का इस्तेमाल करते हैं। दस्तावेज लाइब्रेरी और सूचियों के मद जैसे सभी साइट सामग्री डाटा, व्यतिक्रम से "WSS_Content_ [ID]" के रूप में उल्लिखित SQL डाटाबेस में संग्रहित किए जाते हैं। Microsoft खोज सर्वर (MSS) Microsoft खोज सर्वर (MSS), Microsoft का एक उद्यम खोज प्लैटफ़ॉर्म, Microsoft Office शेयरपॉइंट सर्वर की खोज क्षमताओं को जोड़ कर बना है। MSS, पूछताछ इंजन और सूचकांक, दोनों के लिए Windows खोज प्लैटफ़ॉर्म के साथ अपना वास्तुशिल्पीय आधार साझा करता है। MOSS खोज, दस्तावेजों से जुड़े मेटा-डाटा को खोजने की क्षमता प्रदान करता है। Microsoft ने मार्च, 2008 में जारी खोज सर्वर 2007 के रूप में Microsoft खोज सर्वर उपलब्ध कराया है। एक मुक्त संस्करण, खोज सर्वर 2008 एक्सप्रेस भी उपलब्ध है। एक्सप्रेस संस्करण में, अनुक्रमित फ़ाइलों की संख्या पर बिना किसी सीमा सहित व्यावसायिक संस्करण में दी गई वही सुविधाएं प्रस्तुत की गई हैं। तथापि, यह स्टैंड-अलोन संस्थापन तक ही सीमित है और समूह में विस्तृत नहीं किया जा सकता है।अन्य पक्ष फ़ाइलों के अनुक्रमण के लिए विभिन्न प्लगिन, उदाहरणार्थ Adobe का Acrobat (pdf) फ़ाइल उपलब्ध हैं। Microsoft Office शेयरपॉइंट डिज़ाइनर WYSIWYG HTML संपादक Microsoft Office शेयरपॉइंट डिज़ाइनर मुख्यतः शेयरपॉइंट साइटों के डिज़ाइन और WSS साइटों के लिए अंतिम-प्रयोक्ता वर्क-फ़्लो पर ध्यान केंद्रित करता है। यह FrontPage 2003 का उत्तराधिकारी है। यह अपने सामान्य वेब डिज़ाइनिंग सहोदर Microsoft एक्सप्रेशन वेब तथा Microsoft के विज़ुअल स्टूडियो 2008 IDE के साथ अपना रेंडरिंग इंजन साझा करता है। शेयरपॉइंट डिज़ाइनर, Microsoft फ़्रंटपेज के लिए अगली पीढ़ी के Microsoft प्रतिस्थापन का प्रतिनिधित्व करता है। अगली पीढ़ी परिवार के डाटा नियंत्रण (जैसे DataView WebPart) और xPath के ज़रिए शेयरपॉइंट डिज़ाइनर, .NET Framework के प्रति सीधे कोडिंग के बिना शेयरपॉइंट या बाह्य स्रोत (जैसे Microsoft SQL सर्वर से डाटा को चलाने में डेवलपरों को सक्षम बनाता है। Microsoft शेयरपॉइंट पोर्टल सर्वर 2003 ने Microsoft फ़्रंटपेज का इस्तेमाल किया है। फ़्रंटपेज, शेयरपॉइंट 2007 या MOSS के अनुरूप नहीं है। उद्योग विश्लेषक आकलन उद्योग विश्लेषकों द्वारा शेयरपॉइंट के मूल्यांकन में विभिन्नता रही है। 2008 के अंत में, गार्टनर समूह ने अपने मैजिक क्वा़ड्रंट में से तीन (खोज, पोर्टल तथा उद्यम सामग्री प्रबंधन) में शेयरपॉइंट को "नेता" क्वा़ड्रंट में डाला। इसके विपरीत, स्वतंत्र मूल्यांकन फ़र्म CMS वाच ने यह संकेत देते हुए ग्राहक अनुसंधान जारी किया, "ग्राहकों ने आसानी से अपनी निराशाओं को व्यक्त किया: रेडमंड का कुछ हद तक देर से 2.0 वेब को अपनाना, तथा उसका बोझिल व संभावनाओं के साथ अपूर्ण संघटन सहित बहुविध अलग दलों में कार्यरत लोगों के लिए शेयरपॉइंट का अपर्याप्त समर्थन." डेवलपर उपकरणों के साथ संघटन डेवलपरों के लिए अच्छी तरह संघटित उपकरणों की कमी तथा अन्य ASP.NET-आधारित वेब अनुप्रयोगों से विशिष्टतः अलग, उसकी जटिल अनुकूलित सॉफ़्टवेयर संरचना के लिए अक्सर शेयरपॉइंट की आलोचना की जाती है। इसलिए, Microsoft ने डेवलपर अनुभव में सुधार हेतु Microsoft विज़ुअल स्टूडियो के आगामी संस्करण में विशेष तौर पर समर्थन में सुधार की घोषणा की है। समरूप उत्पाद अलफ़्रेस्को अटलेसियन कन्फ़्लूएन्स कोल्लाबोर वर्क 2.0 ड्रूपल eXo प्लैटफ़ॉर्म गूगल साइट IBM लोटस कनेक्शन्स IBM लोटस क्विकर इंस्टंट बिज़नेस नेटवर्क जूमला! नॉलेड्ज ट्री लेज़रफिच लाइफ़रे मीडिया-विकी माइंड-टच माइ सोर्स मैट्रिक्स उद्यम के लिए नेटवाइब्स न्यूक्सियो O3स्पेसस ऑन-बेस ओपन टेक्स्ट कॉर्पोरेशन का लाइवलिंक ECM - विस्तृत सहयोग ओपनगू डॉकसेफ़ Oracle बीहाइव कोलाबोरेशन प्लैटफ़ॉर्म प्लोन सिल्वरस्ट्राइप ट्रैक्शन टीमपेज TYPO3 ज़ेरॉक्स डॉक्युशेयर इन्हें भी देखें सहयोगी अनुप्रयोग मार्कअप भाषा उद्यम पोर्टल बुलडॉग (Microsoft) शेयरपॉइंट ऑफ़-लाइन तुल्यकालन तुलना सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ शेयरपॉइंट सामुदायिक पोर्टल Windows शेयरपॉइंट सेवाएं Microsoft Office 365 Email Login Microsoft Office शेयरपॉइंट सर्वर 2007 Windows सर्वर 2008 में शेयरपॉइंट सर्वर की भूमिका शेयरपॉइंट टीम ब्लॉग Microsoft मोमेंटम: मिडसाइज़ बिज़नेस सेंटर न्यूज़लेटर श्वेत पत्र वर्णित करते हैं कि Office के विभिन्न संस्करण किस तरह शेयरपॉइंट के साथ काम करते हैं Microsoft शेयरपॉइंट की लोकप्रियता मुद्दों के साथ आती है शेयरपॉइंट माइक्रोसॉफ़्ट सॉफ़्टवेयर Microsoft सर्वर प्रौद्योगिकी Microsoft सर्वर सॉफ़्टवेयर सामग्री प्रबंधन प्रणालियां दस्तावेज प्रबंधन प्रणाली
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जज़ाकल्लाह
जज़ाकल्लाह या जजाकल्लाहु खैरान (Arabic: جَزَاكَ ٱللَّٰهُ, jazāka -llāh) एक इस्लामी शब्द और वाक्यांश जो अहसान या भलाई के लिए कृतज्ञता की अभिव्यक्ति रूप में प्रयोग किया जाता है। मुख्य अर्थ यह है: अल्लाह तुम्हें अच्छा इनाम/बदला दे"। हालाँकि धन्यवाद के लिए परिचित शब्द 'शुक्रिया' है, लेकिन जजाकल्लाहु खैरान वाक्यांश का उपयोग मुसलमानों द्वारा इस विश्वास के साथ किया जाता है कि एक इंसान दूसरे को पर्याप्त रिटर्न नहीं दे सकता है, बल्कि अल्लाह सबसे अच्छा इनाम देने वाला है।. उसामा बिन ज़ैद ने रिवायत किया कि अल्लाह के रसूल ने कहा: "जिसने भी उसके साथ कुछ अच्छा किया, और वह कहता है: 'अल्लाह आपको अच्छाई में पुरस्कृत करे' तो उसने सबसे अधिक प्रशंसा किया है। ” इन्हें भी देखें इंशाअल्लाह माशाअल्लाह संदर्भ अरबी शब्द और वाक्यांश इस्लामी शब्द
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0
लोकोपकार
लोकोपकार धर्मार्थ सहायता या दान द्वारा मानवता के कल्याण में वृद्धि का प्रयास या उसके प्रति झुकाव है। व्युत्पत्ति और मूल अर्थ सामान्यतः इस बात पर सहमति है कि 2500 वर्ष पहले प्राचीन ग्रीस में नाटककार एस्कीलस द्वारा या जिस किसी ने प्रोमिथियस बाउंड (पंक्ति 11) को लिखा था, इसके अंग्रेज़ी समतुल्य शब्द फ़िलांथ्रोपी को गढ़ा गया था। उसमें लेखक एक मिथक के रूप में कहता है कि कैसे आदिम जीवों के पास, जो मानव बन कर पैदा हुए थे, पहले कोई ज्ञान, कौशल, या किसी भी तरह की संस्कृति नहीं थी-अतः वे अपने जीवन के प्रति सतत डर के कारण, अंधेरी गुफाओं में रहते थे। देवताओं के अत्याचारी राजा ज़ीअस ने उन्हें नष्ट करने का निर्णय लिया, लेकिन एक टाइटन प्रोमिथियस ने, जिसके नाम का मतलब था "दूरदर्शिता", अपने "फ़िलांथ्रोपोस ट्रोपोस " या "मानवता-प्रेमी स्वभाव" के कारण उन्हें सशक्त, जीवन-वर्धक बनाने वाले दो उपहार दिए: आग, जो समस्त ज्ञान, कौशल, प्रौद्योगिकी, कला और विज्ञान का प्रतीक था और "अज्ञात आशा" या आशावाद. दोनों एक साथ चले - आग के साथ मानव आशावादी हो सकता था; आशावाद के साथ, वह मानवों की हालत में सुधार करने के लिए आग का रचनात्मक इस्तेमाल कर सकता था। नए शब्द, φιλάνθρωπος philanthropos में दो शब्द संयुक्त थे: भलाई, परवाह, पोषण के अर्थ में φίλος philos, "स्नेह भावना"; और "मानवता", "मानवजाति" या "मानवीयता" के अर्थ में ἄνθρωπος anthropos, "मानव". प्रोमिथियस ने व्यक्तिगत रूप से आदि-मानवों से "प्रेम" नहीं किया, क्योंकि उस पौराणिक बिंदु पर किसी ऐसे व्यक्तित्व का अस्तित्व नहीं था-जिसके लिए संस्कृति की आवश्यकता होती. जाहिर है कि उसने जिसे "प्यार" किया, वह उनकी मानवीय क्षमता थी-जो उन्होंने हासिल किया था और जो "आग" और "अज्ञात आशा" के साथ हासिल कर सकते थे। प्रभावी तौर पर इन दो उपहारों ने मानव जाति का निर्माण एक स्पष्ट सभ्य जीव के रूप में पूरा किया। 'फ़िलांथ्रोपिया '-यानी मानव कहलाने के लिए मानवता से प्रेम-सभ्यता के लिए महत्वपूर्ण माना गया। यूनानियों ने एक शैक्षिक आदर्श के रूप में "मानवता के प्रति प्रेम" को अपनाया, जिसका लक्ष्य था उत्कृष्टता (areté)-तन, मन और आत्मा का संपूर्ण विकास, जो उदार शिक्षा का सार है। प्लेटो अकादमी के दार्शनिक शब्दकोश ने फ़िलांथ्रोपिया को इस तरह परिभाषित किया: "मानवता के प्रति प्रेम से उपजने वाली बढ़िया शिक्षित अभ्यासों की दशा. मानवों के हित में उपयोगी होने की अवस्था।" रोमवासियों ने फ़िलांथ्रोपिया को बाद में लैटिन में बस ह्यूमनिटास (humanitas) मानवता के रूप में अनूदित किया। और क्योंकि प्रोमिथियस के मानवों को सशक्त बनाने के उपहारों ने ज़ीअस के अत्याचार के खिलाफ़ विद्रोह किया, फ़िलांथ्रोपिया आज़ादी और लोकतंत्र के साथ भी जुड़ गया। दोनों, सुकरात और एथेंस के कानूनों को "लोकोपकारी और लोकतांत्रिक" के रूप में वर्णित किया गया-एक ऐसी आम अभिव्यक्ति, जिसका विचार था कि लोकोपकारी मनुष्य स्वशासन करने में विश्वस्त रूप से सक्षम हैं। आधुनिक संदर्भ में इन सबको एक साथ मिला कर, "फ़िलांथ्रोपी" (लोकोपकार) की चार अपेक्षाकृत आधिकारिक परिभाषाएं हैं जोकि शास्त्रीय अवधारणा से बहुत हद तक मेल खाती हैं: जॉन डब्ल्यू. गार्डनर की "सार्वजनिक भलाई के लिए निजी पहल"; रॉबर्ट पेटन की "सार्वजनिक भलाई के लिए स्वैच्छिक कार्रवाई"; लेस्टर सैलमोन की "सार्वजनिक प्रयोजनों से... निजी समय या क़ीमती वस्तुओं का दान" और रॉबर्ट ब्रेमनर की "लोकोपकार का लक्ष्य... मानव जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना". आधुनिक लोकोपकार को अपने संपूर्ण इतिहास के साथ जोड़ने के लिए इनके संयोजन से "लोकोपकार" की सर्वोत्तम परिभाषा होगी, "सार्वजनिक भलाई के लिए निजी पहल, जीवन की गुणवत्ता पर ध्यान संकेंद्रन." यह उसे सरकारी (सार्वजनिक भलाई के लिए सार्वजनिक पहल) और व्यावसायिक (निजी भलाई के लिए निजी पहल) से अलग करता है। "जीवन की गुणवत्ता" को शामिल करने से प्रोमिथियन मूलरूप आदर्श पर मजबूत मानवीय जोर सुनिश्चित होता है। लोकोपकार संबंधी प्राचीन दृष्टिकोण मध्य युग में गायब हो गया, जिसे नवजागरण के साथ पुनः आविष्कृत और पुनर्जीवित किया गया और यह 17वीं सदी की शुरूआत में अंग्रेजी भाषा में आया। सर फ्रांसिस बेकन ने 1592 में एक पत्र में लिखा कि उनके "विशाल मननशील ध्येय" उनके "फ़िलांथ्रोपिया" (लोकोपकार) को व्यक्त करते हैं और अपने 1608 के निबंध ऑन गुडनेस में उन्होंने विषय को यूं परिभाषित किया "the affecting of the weale of men... what the Grecians call philanthropia." हेनरी कॉकेराम अपने अंग्रेज़ी शब्दकोश (1623) में “humanitie” (लैटिन में, humanitas) के लिए पर्याय के रूप में “philanthropie” का हवाला दिया-और इस तरह प्राचीन प्रतिपादन की पुष्टि की। संयुक्त राज्य अमेरिका में लोकोपकार "स्वैच्छिक संघ" इस तरह एक सहयोग की संस्कृति उभरी. स्वयंसेवकों ने औपनिवेशिक समाज का निर्माण किया, या जिस तरह एलेक्सिस डी टॉक्वेविले ने बाद में "स्वैच्छिक संघ" के रूप में उनका हवाला दिया - यानी "सार्वजनिक भलाई के लिए निजी पहल, जीवन की गुणवत्ता पर ध्यान संकेंद्रन". उन्होंने कहा कि वे अमेरिकी जीवन में व्याप्त थे, वे अमेरिकी चरित्र और संस्कृति की एक ख़ास विशेषता और अमेरिकी लोकतंत्र के मूल सिद्धांत थे।[उद्धरण अपेक्षित] उन्होंने कहा कि अमेरिकी अपनी सार्वजनिक समस्याओं के लिए दूसरों-सरकार, अभिजात वर्ग, या चर्च-पर भरोसा नहीं करते थे; बल्कि उन्होंने स्वैच्छिक संघों के माध्यम से, यानी, लोकोपकार के ज़रिए ख़ुद यह कर दिखाया, जोकि लोकतांत्रिक विशेषता है। इनमें प्रथम अमेरिकी सरकार से भी पहला था: 1620 का मेफ़्लावर कॉम्पैक्ट. [उद्धरण वांछित] तीर्थयात्री, अभी भी समुद्र की ओर लेकिन तत्कालीन अमेरिकी पानी में, घोषणा करते कि वे "सत्यनिष्ठा और पारस्परिक रूप से, परमेश्वर और एक दूसरे की उपस्थिति में, एक साथ मिल कर अपनी बेहतर व्यवस्था और संरक्षण के लिए एक नागरिक निकाय में संयोजित होते हैं।" पहला निगम, हार्वर्ड कॉलेज (1636), मैसाचुसेट्स बे कॉलोनी में ही, युवा पुरुषों को पादरी के रूप में प्रशिक्षित करने के लिए एक लोकोपकारी स्वैच्छिक संघ बना था। जैसा कि उस समय सामान्य प्रचलन था, अमेरिकी परोपकारी संगठनों के वैचारिक आयाम थे। तीन प्रमुख अंग्रेज़ उपनिवेश-मैसाचुसेट्स, पेंसिल्वेनिया और वर्जीनिया- "राष्ट्रमंडल" शैली के थे, जिसका मतलब कथित तौर पर एक ऐसे आदर्श समाज से था जहां सार्वजनिक हित में सभी सदस्य "सार्वजनिक संपत्ति" में योगदान देते थे। इस प्राचीन और ईसाई आदर्श के एक प्रमुख उपदेशक थे कॉटन मेथर, जिन्होंने 1710 में व्यापक रूप से पठित अमेरिकी क्लासिक, बोनीफ़ेशियस, या एन एस्से टु डू गुड प्रकाशित किया था। मेथर इस बात से चिंतित नज़र आते हैं कि मूल आदर्शवाद का ह्रास हो गया है, अतः उन्होंने लोकोपकारी दान की जीवन के एक मार्ग के रूप में पैरवी की। हालांकि उनका संदर्भ ईसाईयत था और उनके विचार भी विशेष रूप से अमेरिकी और आत्मज्ञान की दहलीज पर स्पष्ट रूप से प्राचीन थे। "Let no man pretend to the Name of A Christian, who does not Approve the proposal of A Perpetual Endeavour to Do Good in the World.….The Christians who have no Ambition to be [useful], Shall be condemned by the Pagans; among whom it was a Term of the Highest Honour, to be termed, A Benefactor; to have Done Good, was accounted Honourable. The Philosopher [i.e., Aristotle ], being asked why Every one desired so much to look upon a Fair Object! He answered That it was a Question of a Blind man. If any man ask, as wanting the Sense of it, What is it worth the while to Do Good in the world! I must Say, It Sounds not like the Question of a Good man.” (पृ. 21) मेथर के परोपकार संबंधी कई व्यावहारिक सुझावों में नागरिक कार्यों पर ज़ोर था - स्कूल, पुस्तकालय, अस्पताल, उपयोगी प्रकाशन आदि की स्थापना. वे मुख्य रूप से अमीर लोगों द्वारा गरीब लोगों की मदद करने के बारे में नहीं थे, बल्कि जीवन की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करते हुए, सार्वजनिक हित में निजी पहल के बारे में थे। कथित तौर पर जिन दो अमेरिकी युवाओं के जीवन को मेथर की पुस्तक ने प्रभावित किया, वे थे बेंजामिन फ़्रैंकलिन और पॉल रेवेर. बेंजामिन फ़्रैंकलिन अपने समय में "प्रथम महान अमेरिकी" के रूप में माने गए बेंजामिन फ़्रैंकलिन ने 18वीं सदी के यूरोप और अमेरिका में अमेरिकी मूल्यों को बहुत महत्व दिया, ख़ास तौर पर अमेरिका के ज्ञानोदय को। उनके जीवन की कुंजी थी, उनकी प्रतिष्ठित अमेरिकी लोकोपकार भावना. उन्होंने आत्म-चेतना के साथ और जानबूझकर अपने जीवन को स्वयंसेवी सार्वजनिक सेवा की दिशा में उन्मुख किया। यहां तक कि फ़्रांस में उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी जॉन एडम्स ने घोषित किया कि "शायद ही कोई किसान या नागरिक हो, जिसने उन्हें मानव जाति का मित्र न माना हो". जर्मन आत्मज्ञान के अग्रणी दार्शनिक इमैनुअल कांट ने फ़्रैंकलिन को मानव जाति के लाभार्थ, विद्युत हेतु अपने वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए स्वर्ग से बिजली के रूप में आग चुराने पर "नया प्रोमिथियस" नाम दिया। फ्रेंकलिन का स्कॉटिश प्रबुद्धता के साथ सीधा संबंध था; उन्हें "डॉ॰ फ्रेंकलिन" कहा जाता था, क्योंकि तीन स्कॉटिश विश्वविद्यालय-सेंट एंड्र्यूज़, ग्लैस्गो और एडिनबर्ग ने-उन्हें मानद डिग्रियों से सम्मानित किया और वहां अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने व्यक्तिगत रूप से प्रमुख स्कॉटिश प्रबुद्ध विचारकों के साथ दोस्ती की थी। फ़िलाडेल्फिया में, फ्रेंकलिन ने संभवतः अमेरिका में नागरिक परोपकार की पहली व्यक्तिगत प्रणाली बनाई। 1727 में एक युवा शिल्पकार के रूप में उन्होंने "जून्टो" का गठन किया: एक 12 सदस्यीय क्लब, जो शुक्रवार की शाम को वर्तमान मुद्दों और घटनाओं पर चर्चा के लिए मिलते थे। सदस्यता के लिए चार योग्यताओं में से एक था "सामान्यतः मानवता के प्रति प्रेम". दो साल बाद (1729) उन्होंने फ़िलाडेल्फि़या गज़ट स्थापित किया और अगले तीस वर्षों तक जून्टो को लोकोपकारी विचारों को पैदा करने और उसके परीक्षण के लिए विचारक-मंडल के रूप में और गज़ट को जनता का समर्थन जुटाने, स्वयंसेवकों की भर्ती और निधि जुटाने और उनका परीक्षण करने के लिए इस्तेमाल किया। यह प्रणाली साहसिक तौर पर उत्पादक और लाभप्रद थी, जिसने अमेरिका के प्रथम सदस्यता वाले पुस्तकालय (1731), स्वयंसेवी अग्नि संघ, आग बीमा संघ, अमेरिकन फ़िलसॉफ़िकल सोसाइटी (1743-4), एक अकादमी (1750-जो पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय बना), एक अस्पताल (1752-चुनौतीपूर्ण अनुदान सहित निधि जुटाकर), सार्वजिनिक गलियों का निर्माण और गश्ती, नागरिक बैठक घर के लिए वित्त और निर्माण तथा कई अन्य निर्माण किए। 1747 के दौरान पश्चिम में इंडियन और निचले डेलावेयर नदी में फ़्रांसीसी और कनाडाई ग़ैर सरकारी युद्धपोतों के साथ हिंसक संघर्ष से पेनसिल्वेनिया कॉलोनी बाधित हुआ। फ़िलाडेल्फिया में सरकार क्वेकर थी, इसलिए शांतिवादी और उसने कुछ नहीं किया। इस निष्क्रियता से लगातार निराश फ्रेंकलिन ने जून्टो से परामर्श लिया और एक पैम्फ़लेट प्लेन ट्रूथ प्रकाशित किया, जिसमें घोषणा की कि जब तक कि लोग स्वयं अपने हाथ में मामले को नहीं लेते, पेंसिल्वेनिया निराश्रित है। उन्होंने एक धन और निजी नागरिक सेना जुटाने के लिए "सैन्य संघ" का प्रस्ताव रखा और कुछ ही हफ्तों में एक सौ से अधिक कंपनियों ने 10,000 से अधिक सशस्त्र पुरुषों को भर्ती किया और एक सार्वजनिक लॉटरी में £6500 से अधिक उगाही की। यह अमेरिकी क्रांति का एक नमूना था। अमेरिकी क्रांति लोकोपकार के प्राचीन दृष्टिकोण ने अमेरिकी क्रांति के लिए संकल्पनात्मक मॉडल और स्वैच्छिक संगठनों के लिए प्रक्रियात्मक मॉडल उपलब्ध कराया. क्रांति कॉनकॉर्ड, मैसाचुसेट्स में शुरू हुई-जो कथित तौर पर अमेरिकी लोकोपकार के अधिकेंद्रों में से एक रहा है। "यहां किसी वक़्त संघर्ष के लिए तत्पर किसान खड़े थे, / और उन्होंने गोली चलाई थी जो "दुनिया भर में" सुनी गई। - राल्फ वाल्डो एमरसन का "कॉनकॉर्ड हिम्न" इस पंक्ति में उल्लिखित 'किसान', "क्रांतिकारी" किसानों के स्वैच्छिक संघ थे, जो अपने खेतों को छोड़ कर ब्रिटिश के खिलाफ़ हथियार उठाने के लिए तैयार थे। उन्हें पालकों और सवारों ने, विख्यात रूप से कई नागरिक आंदोलनों के उत्सुक और अग्रणी स्वयंसेवक पॉल रेवरे ने, चेतावनी दी थी, जिन्होंने बॉस्टन के चारों ओर कस्बों को जुटाने के लिए अपने जैसे सेना पर्यवेक्षकों और घुड़सवारों के स्वैच्छिक संघों को संगठित किया था। महाद्वीपिय सेना स्वयंसेवकों द्वारा संचालित और निजी दान द्वारा वित्त पोषित थी; उसके कमान जनरल, जॉर्ज वॉशिंगटन, ने तीन साल तक स्वयंसेवक के रूप में अवैतनिक सेवा की, जब तक कि उनकी पत्नी ने उनके बेटे जॉर्ज को जन्म दिया, स्पष्ट रूप से pro bono publico -यानी निःस्वार्थ जनता की भलाई. वे अक्सर अपने पत्रों पर हस्ताक्षर, “तुम्हारा लोकोपकारी” (Philanthropically yours) के रूप में करते थे। समस्त उपनिवेशों में, स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्धता संस ऑफ़ लिबर्टी जैसे असंख्य स्वैच्छिक राजनीतिक संघों द्वारा पोषित थी। फ़िलाडेल्फिया के इंडिपेंडेन्स हॉल में संस्थापकों ने एक लोकोपकारी स्वैच्छिक संगठन के रूप में काम किया। आजादी की घोषणा (Declaration of Independence) इतिहास की पहली घटना थी जिसमें राष्ट्रीय सरकार का निर्माण औपचारिक रूप से एक आदर्शवादी लक्ष्य कथन द्वारा शुरू किया गया-समस्त मानव जाति को संबोधित, उनकी ओर से और उनके लाभार्थ-जो स्वैच्छिक संघों में नेमी तौर पर किया जाता है। घोषणा संस्थापकों द्वारा व्यक्तिगत रूप से “एक दूसरे के लिए” अपना निजी जीवन, संपत्ति और पवित्र सम्मान की स्वैच्छिक प्रतिज्ञा द्वारा समाप्त होती है। नए राष्ट्र के लिए प्रस्तावित सरकार के पहले स्वरूप को "संघ" कहा गया। अंतिम रूप, संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान, स्वैच्छिक संघ के रूप में अग्रसर हुआ, जिसकी शुरूआत भी लक्ष्य कथन (mission statement) के साथ हुई और-इतिहास में फिर "पहली बार"-उसके व्यक्तिगत सदस्यों, "The People", के मत द्वारा अनुसमर्थन किया गया। संविधान के "प्रस्तावना" की विशेषता थी निजी पहल, सार्वजनिक भलाई और जीवन की गुणवत्ता: “WE THE PEOPLE of the United States, in Order to form a more perfect Union, establish Justice, insure domestic Tranquility, provide for the common defence, promote the general Welfare, and secure the Blessings of Liberty to ourselves and our Posterity, do ordain and establish this Constitution for the United States of America.” अंततः, सबसे पहले संघीय दस्तावेज़ (Federalist Paper) पृष्ठ 1, अनुच्छेद 1 में, अलेक्ज़ैंडर हैमिल्टन ने यह नोट करते हुए संविधान के अनुसमर्थन के लिए संस्थापकों के तर्क को प्रवर्तित किया कि "सामान्य रूप से यह टिप्पणी की गई है" कि इस नए राष्ट्र के निर्माण द्वारा, अमेरिकी लोग समस्त मानव-जाति की ओर से और उनकी भलाई के लिए कार्य कर रहे हैं। उन्होंने लिखा कि "यह देशभक्ति के साथ लोकोपकार की प्रेरणा जोड़ती है।" और उस पर "सामान्यतः टिप्पणी" की थी-: 1776 में थॉमस पेइन ने अपने कॉमन सेन्स में आज़ादी का लोकप्रिय और प्रेरणादायक उद्धरण लिखा था: “The cause of America is in a great measure the cause of all mankind. Many circumstances have, and will arise, which are not local, but universal, and through which the principles of all Lovers of Mankind (emphasis here) are affected, and in the Event of which, their Affections are interested.” जैसा कि बेन फ्रेंकलिन ने अमेरिकी क्रांति के बारे में फ्रेंच में कहा था: "हम मानव स्वभाव की गरिमा और खुशी के लिए लड़ रहे हैं।" जिस "लोकोपकार" के बारे में हैमिल्टन चर्चा कर रहे थे वह "अमीरों द्वारा ग़रीबों की मदद" नहीं, बल्कि जीवन की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करते हुए सार्वजनिक भलाई के लिए निजी पहल की बात थी। शास्त्रीय लोकोपकार अब प्रतिष्ठित तौर पर अमेरिकी बन गया था। संयुक्त राज्य अमेरिका न केवल लोकोपकार से बना, बल्कि लोकोपकार के लिए - प्रोमिथियन परंपरा के अनुरूप एक लोकोपकारी राष्ट्र, मानवता के लिए एक उपहार साबित हुआ। 19वीं सदी: विघटन संस्थापकों द्वारा अमेरिकी देशभक्त स्वैच्छिक संगठनों के साथ लोकोपकार के प्रतिष्ठित दृष्टिकोण का संश्लेषण, अपनी सांस्कृतिक अगुआई बनाए नहीं रख सका। प्रबोधन पर, जिसकी यह सर्वोत्कृष्ट अमेरिकी अभिव्यक्ति थी, यूरोप में फ्रांसीसी क्रांति, नेपोलियन और स्वच्छंदतावाद ने गहरा प्रभाव डाला। अमेरिका में, गणराज्य के प्रारंभिक इतिहास ने जो कुछ हासिल किया था, उसकी तीव्र, उत्पाती, विकास और छंटाई को देखा. राजनीतिक व्यवहार में बदलाव और राजनीतिक नेतृत्व पर नए लोगों की भूमिका सहित औद्योगिक क्रांति, प्रवास की लहरें, शहरी विकास और पश्चिमोन्मुख विस्तार की शुरूआत ने मिल कर, लोकोपकारी संस्कृति और उसकी संस्थापना की भावना को विघटित किया। विघटन को देखा और खेद व्यक्त किया गया। 19वीं सदी में हॉथोर्न, एमर्सन, थोरो, मेलविले और अन्य के साथ अमेरिकी साहित्य का विकास, मुख्य रूप से प्रौद्योगिकी, शहरीकरण, औद्योगीकरण के विघटनकारी ताकतों और उनकी उपस्थिति में प्राचीन अमेरिकी मूल्यों के कथित नुकसान के प्रति विरोध था। दूसरी ओर, यह आंदोलन इस बात का सबूत था कि संस्थापकों के लिए लोकोपकारी, व्यावहारिक, आदर्शवाद की लौ बुझी नहीं थी। 1837 में, राल्फॉ वाल्डो एमर्सन ने ऊपर उद्धृत अपने "कॉनकॉर्ड हिम्न" में क्रांति की परोपकारी भावना का जश्न मनाया और अपने 1844 के निबंध "द यंग अमेरिकन" में उन्होंने लिखा, “It seems so easy for America to inspire and express the most expansive and humane spirit; new-born, free, healthful, strong, the land of the laborer, of the democrat, of the philanthropist, of the believer, of the saint, she should speak for the human race. It is the country of the future.” 1863 में ज्वाला अभी जीवित थी, जैसा कि गेरी विल्स ने दर्शाया, राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने गेटिसबर्ग भाषण में अपने देश के लक्ष्य की प्राचीन संकल्पना को संहिताबद्ध किया और "आज़ादी की कल्पना लिए और इस प्रस्ताव को लेकर समर्पित कि सभी लोगों की रचना एकसमान हुई है" के बारे में चर्चा करते हुए उसे प्रतिष्ठापित किया। अमेरिकी जीवन के प्रति लोकोपकार का योगदान लोकोपकारी भावना और स्वैच्छिक संगठनों की व्यावहारिक आवश्यकता और उनकी सहवर्ती सहयोगी संस्कृति ने 19वीं सदी भर पश्चिम को अपनी सीमा के साथ पूरी तरह प्रभावित किया और इस प्रकार "परोपकारी और लोकतांत्रिक" विकास के अमेरिकी स्वरूप को मज़बूत किया। अमेरिका में सभी निजी शिक्षा और धर्म अनिवार्यतः लोकोपकारी हैं, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका के इतिहास में उन सभी सुधार आंदोलनों के परे-उदा., ग़ुलामी-विरोधी, महिलाओं के मताधिकार, पर्यावरण संरक्षण, नागरिक अधिकार, नारीवाद और विभिन्न शांति आंदोलन-लोकोपकारी स्वैच्छिक संगठन के रूप में प्रवर्तित हुए. जब पहली बार उनका आविर्भाव हुआ, तब अनेक संस्कृति-विरोधी और अपमानजनक थे, या के रूप में माने गए, लेकिन सभी "जीवन की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करते हुए, सार्वजनिक भलाई के लिए निजी पहल" थे। अमेरिकी लोकोपकार ने उन चुनौतियों का सामना किया और अवसरों का लाभ उठाया, जो ना तो सरकार और ना ही व्यवसाय पूरा करते थे। अन्य क्षेत्र निश्चित रूप से अमेरिकी जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं, लेकिन लोकोपकार उसी पर केंद्रित है। लोकोपकार ललित कला और प्रदर्शन कला, धार्मिक और लोकोपकारी उद्देश्यों, साथ ही शैक्षणिक संस्थानों (देखें संरक्षण) की आय का प्रमुख स्रोत है। आधुनिक लोकोपकारक 1982 में, पॉल न्यूमैन ने न्यूमैन की अपनी आहार कंपनी की सह-स्थापना की और कर-पश्चात सभी लाभ विभिन्न परोपकारी संस्थाओं को दान कर दिया। 2008 में उनकी मृत्यु होने पर, कंपनी ने हज़ारों धर्मार्थ संस्थाओं को US$250 मिलियन से अधिक दान दिया। साथ ही, कोलम्बियाई गायिका शकीरा ने अपने न्यास पीस डेसकैल्सॉस के ज़रिए तीसरी दुनिया के कई देशों की मदद की। पिछले कुछ वर्षों के दौरान, कतिपय उच्च प्रोफ़ाइल लोकोपकारी उदाहरणों में शामिल हैं विकसित राष्ट्रों को तीसरी दुनिया के कर्ज़ को रद्द करने के लिए आयरिश रॉक गायक बोनो का अभियान; गेट्स फाउंडेशन के विशाल संसाधन और महत्वाकांक्षाएं, जैसे कि मलेरिया और तटवर्ती दृष्टिहीनता के उन्मूलन के लिए अभियान; अरबपति निवेशक और बर्कशायर हैथवे के अध्यक्ष वारेन बफ़ेट द्वारा 2006 में गेट्स फाउंडेशन को $31 बिलियन का दान; न्यूयॉर्क में रोनाल्ड ओ.पेरेलमैन हार्ट सेंटर, प्रेसबिटेरियन अस्पताल और वेइल कॉर्नेल मेडिकल सेंटर के वित्तपोषण हेतु $50 मिलियन सहित, केवल 2008 में ही रोनाल्ड पेरेलमैन द्वारा $70 मिलियन का धर्मार्थ दान. लोकोपकार, पेशेवर विकासकों और निधि उगाहने वालों द्वारा सुसाध्य हुआ है। पेशेवर दाता संबंध और प्रबंधन इस तरीक़े से दाताओं को मान्यता और धन्यवाद देते हुए विकास पेशे को समर्थन देते हैं कि वह भविष्य में लाभरहित संगठनों को दान देने को संवर्धित कर सके। एसोसिएशन ऑफ़ डोनर रिलेशन्स प्रोफ़ेशनल्स (ADRP) संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और कनाडा में प्रबंधन और दाता संबंध पेशेवरों का पहला समुदाय है। विचार दर्शन परोपकार के उद्देश्य पर भी बहस की जाती है। कुछ लोग लोकोपकार को ग़रीबों के लिए हितकारिता और दयालुता के समान मानते हैं। अन्य का मानना है कि लोकोपकार कोई भी परोपकारी कार्य हो सकता है जो ऐसी सामाजिक ज़रूरत को पूरा करता है जिसकी ओर ध्यान नहीं दिया गया है, कम ध्यान दिया गया है, या बाज़ार द्वारा ऐसा माना जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि लोकोपकार को समुदाय की निधि बढ़ा कर और वाहन देकर समुदाय निर्माण के साधन के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है। जब समुदाय ख़ुद को कम परिसंपत्ति के बजाय संसाधन से समृद्ध के रूप में पाते हैं, तब समुदाय, सामुदायिक समस्याओं को निपटाने की बेहतर स्थिति में होता है। तथापि, कुछ का विश्वास है कि लोकोपकार का उद्देश्य अक्सर अंशदान और आत्म-प्रशंसा है, जैसा कि विवादास्पद रूप से स्वनाम वाली संस्थाओं के प्रचलन, अनाम दानों की व्यापक दुर्लभता और दस्त (जोकि आसानी से इलाज के क़ाबिल होने के बावजूद विश्व भर में शिशु मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है) का उपचार जैसे अप्रिय कारणों के लिए समर्थन की कमी द्वारा देखा जा सकता है। लोकोपकार या तो वर्तमान या भावी ज़रूरतों के प्रति प्रतिक्रिया जताता है। एक आसन्न आपदा के लिए धर्मार्थ प्रतिक्रिया लोकोपकारक कार्रवाई है। यह लोकोपकारी के लिए तत्काल सम्मान प्रदान करता है, तथापि इसके लिए किसी दूरदर्शिता की आवश्यकता नहीं है। फिर भी, भावी ज़रूरतों के लिए प्रतिक्रिया, दाता की दूरदर्शिता और विवेक को आकर्षित करता है, लेकिन शायद ही कभी दाता को सम्मानित करता है। भावी ज़रूरतों का निवारण वास्तविकता के बाद प्रतिक्रिया जताने के बजाय, अक्सर और अधिक विपत्ति को टालता है। उदाहरण के लिए, अफ़्रीका में अत्यधिक जनसंख्या की वजह से भुखमरी के प्रति प्रतिक्रिया जताने वाले धर्मार्थ संस्थानों को तत्काल मान्यता दी जाती है। इस बीच, 1960 और 1970 के दशक के अमेरिकी जनसंख्या नियंत्रण आंदोलन के पीछे जो लोकोपकारक थे, उन्हें कभी सम्मानित नहीं किया गया और वे इतिहास की गर्त में खो गए। राजनीति अक्सर लोकोपकारक लोकप्रिय होते हैं और जनता में "अच्छे" या "महान" के रूप में विख्यात होते हैं। कुछ सरकारों को यह संदेह रहता है कि लोकोपकारी गतिविधियों के ज़रिए उपकार चाहते हैं, लेकिन फिर भी विशेष रुचि वाले समूहों को ग़ैर सरकारी संगठन बनाने की अनुमति दी जाती है। शब्द का उपयोग परंपरागत उपयोग लोकोपकार की पारंपरिक परिभाषा के अनुसार, दान सीमित परिभाषा वाले कारण को समर्पित हैं और दान का लक्ष्य है सामाजिक स्थितियों में एक सम्मान्य परिवर्तन लाना. इसके लिए अक्सर बड़े दान और वित्तीय सहायता की ज़रूरत होती है जो लंबे समय तक सहारा दें। बड़ी वित्तीय प्रतिबद्धता की जरूरत लोकोपकार और धर्मार्थ दान के बीच एक अंतर पैदा करती है, जो आम तौर पर किसी और के द्वारा प्रवर्तित धर्मार्थ संस्था में सहायक भूमिका निभाती है। इस प्रकार, लोकोपकार का पारंपरिक उपयोग मुख्यतः धनी लोगों पर और कभी-कभी किसी विशिष्ट कारण या उद्देश्य को लक्षित करते हुए धनी व्यक्ति द्वारा निर्मित न्यास पर लागू होता है। इस प्रकार कई ग़ैर-समृद्ध लोगों ने - अपना समय, प्रयास और धन धर्मार्थ कारणों के लिए - समर्पित किया है। इन लोगों को आम तौर पर लोकोपकारक के रूप में वर्णित नहीं किया जाता, क्योंकि अकेले व्यक्ति के प्रयास को यदा-कदा ही महत्वपूर्ण परिवर्तन प्रेरित करने के लिए मान्यता दी जाती है। इन लोगों को धर्मार्थ कार्यकर्ताओं के रूप में माना जाता है, लेकिन कुछ लोग उनके प्रयासों के सम्मान में उन्हें लोकोपकारक के रूप में मान्यता देने के पक्ष में हैं। लोकोपकार में एक बढ़ती प्रवृत्ति दाताओं के समुदायों का विकास है, जिसके द्वारा व्यक्तिगत दाता-अक्सर दोस्तों का समूह-अपने धर्मार्थ दानों को संग्रहित करते हैं और साथ मिल कर तय करते हैं कि उस धन का उपयोग ऐसे कारणों के लाभार्थ हो जिसे वे अत्यधिक चाहते हैं। हाल के वर्षों में लोकोपकार के पुनरुद्भव में, जिसका नेतृत्व बिल गेट्स और वारेन बफ़ेट कर रहे हैं, व्यावसायिक तकनीकों को लोकोपकार पर लागू करना समाविष्ट है, लोकोपकारी-पूंजीवाद कहा गया है। सर्वाधिक व्यक्तिगत उत्तरदान वॉरेन बफ़ेट द्वारा बिल एंड मेलिंडा गेट्स फ़ाउंडेशन को $31 बिलियन (उपहार का प्रारंभिक मूल्य) चक फ़ीने द्वारा अटलांटिक फ़िलांथ्रोपीज़ को £8 बिलियन 1901 में एंड्र्यू कार्नेगी से $350 मिलियन (आधुनिक संदर्भ में $7 बिलियन) जिन्होंने न्यूयॉर्क शहर में कार्नेगी हॉल के निर्माण के अलावा अपनी अधिकांश संपत्ति अच्छे कार्यों में लगा दी। रीडर्स डाइजेस्ट फ़ार्च्यून के प्रबंधकों द्वारा मेट्रोपॉलिटन म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट को $424 मिलियन 2003 में जोअन बी. क्रोक से नेशनल पब्लिक रेडियो को $200 मिलियन जॉन डी. रॉकफेलर से रॉकफेलर फाउंडेशन को $100 मिलियन, 1913-1914 हेनरी और बेट्टी रोवन से ग्लासबोरो स्टेट कॉलेज को $100 मिलियन इन्हें भी देंखे ज़कत परोपकारिता दाता संबंध पेशेवरों का संघ धर्मार्थ योगदान (कर पहलू) धर्मार्थ संगठन दान (अभ्यास) फाउंडेशन (लाभरहित संगठन) दाता मंडल तीक्ष्ण प्रभाव वाला परोपकार लघुदान मानव-द्वेष लाभरहित संगठन उद्यम परोपकार स्वयंसेवक स्वयंसेवा युवा परोपकार सूचियां लोकोपकारकों की सूची धनी संस्थानों की सूची सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ ULIB.IUPUI.edu, जोसेफ़ और मैथ्यू पेटन लोकोपकार अध्ययन लाइब्रेरी ULIB.IUPUI.edu, लोकोपकार अध्ययन सूचकांक NPtrust.org, लोकोपकार का इतिहास, 1601-वर्तमान नेशनल फ़िलांथ्रोपिक ट्रस्ट द्वारा संकलित और संपादित MCCORD-museum.qc.ca, "ए बुर्जुवाज़ ड्यूटी: फ़िलांथ्रोपी, 1896-1919 &mdash"; सचित्र ऐतिहासिक निबंध GPR.hudson.org, द इंडेक्स ऑफ़ ग्लोबल फ़िलांथ्रोपी 2006 में हडसन इंस्टीट्यूट से PDF पृष्ठ 83 EDRP.net, दाता संबंध पेशेवरों का संघ Donating2save.com, भारी कर छूट हासिल करते हुए समुदाय को लौटाना ULIB.IUPUI.edu, ऑनलाइन लोकोपकार संसाधन MyGivingPoint.org लोकोपकार गूगल परियोजना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A5%80%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A4%A1%E0%A5%80%E0%A4%93%20%E0%A4%A6%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7
डीआरडीओ दक्ष
दक्ष (Daksh) एक विद्युत चालित और दूर से नियंत्रित रोबोट है। इसका इस्तेमाल खतरनाक वस्तुओं को ढूंढने निपटने और सुरक्षित रूप से नष्ट करने के लिए किया जाता है। विवरण दक्ष एक बैटरी चालित पहियों पर रिमोट नियंत्रित रोबोट है। और इसका प्राथमिक भूमिका बम की वसूली करने के लिए हैं। कुल रोकथाम के जहाज पूरी तरह से स्वचालित एनबीसी हथियारों को बेअसर कर सकते हैं एक विस्फोट को ट्रिगर करने के लिए रेडियो आवृत्ति ढाल दूरदराज के संकेतों जाम करने के लिए हैं ऑपरेटर भारतीय सेना इन्हें भी देखें रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन सन्दर्भ
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इमानुएल शॉपोंतिये
इमानुएल मैरी शॉपोंतिये (अंग्रेजी:Emmanuelle Charpentier, जन्म 11 दिसंबर 1968) सूक्ष्मजैविकी, आनुवंशिकी और जीवरसायन में एक फ्रांसीसी प्रोफेसर और शोधकर्ता हैं। 2015 से, वह बर्लिन में मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर इंफेक्शन बायोलॉजी में निदेशक रही हैं। 2018 में, उन्होंने एक स्वतंत्र अनुसंधान संस्थान, रोगज़नक़ों के विज्ञान के लिए मैक्स प्लैंक यूनिट की स्थापना की। 2020 में, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के शॉपोंतिये और अमेरिकी जीवविज्ञानी जेनिफर डूडना को "जीनोम एडिटिंग" की एक पद्धति विकसित करने के रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यह दो महिलाओं द्वारा जीता गया पहला विज्ञान नोबेल पुरस्कार था। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा 1968 में फ्रांस के जुवीसी-सुर-ओरगे में जन्मी, शॉपोंतिये ने पेरिस में पियरे और मैरी क्यूरी विश्वविद्यालय में सूक्ष्मजैविकी, आनुवंशिकी और जीवरसायन का अध्ययन किया। वह 1992 से 1995 तक इंस्टीट्यूट पाश्चर में स्नातक की छात्रा रही और उन्हें शोध डॉक्टरेट से सम्मानित किया गया। शॉपोंतिये की पीएच॰डी॰ प्रोजेक्ट ने प्रतिजैविक प्रतिरोध में शामिल आणविक तंत्र की जांच की। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Extensive biography of Emmanuelle Charpentier at the Max Planck Unit for the Science of Pathogens Umeå University Staff Directory: Emmanuelle Charpentier Molecular Infection Medicine Sweden – Short Curriculum Vitae of Emmanuelle Charpentier Crispr Therapeutics: Scientific Founders Emmanuelle Charpentier to become a Director at the Max Planck Institute for Infection Biology in Berlin 1968 में जन्मे लोग जीवित लोग महिला नोबेल पुरस्कार विजेता रसायन विज्ञान में नोबेल विजेता
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ग्रेट बैरियर रीफ
ग्रेट बैरियर रीफ, क्वींसलैंड (आस्ट्रेलिया) के उत्तरी-पूर्वी तट के समांतर बनी हुई, विश्व की यह सबसे बड़ी मूँगे की दीवार है। इसे पानी का बगीचा भी कहते हैं ।इस दीवार की लंबाई लगभग १,२०० मील तथा चौड़ाई १० मील से ९० मील तक है। यह कई स्थानों पर खंडित है एवं इसका अधिकांश भाग जलमग्न है, परंतु कहीं-कहीं जल के बाहर भी स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। महाद्वीपीय तट से इसकी दूरी १० से १५० मील तक है। समुद्री तूफान के समय अनेक पोत इससे टक्कर खाकर ध्वस्त हो जाते हैं। फिर भी, यह पोतचालकों के लिये विशेष सहायक है, क्योंकि दीवार के भीतर की जलधारा इस बृहत शैलभित्ति (reef) द्वारा सुरक्षित रहकर तटगामी पोतों के लिये अति मूल्यवान् परिवहन मार्ग बनाती है तथा पोत इसमें से गुजरने पर खुले समुद्री तूफानों से बचे रहते हैं। महाद्वीपीय तट तथा अवशेषी शैल भित्ति (barrier reef) के बीच का क्षेत्र (८०,००० वर्ग मील) पर्यटकों के लिये अत्यंत आकर्षक स्थल है। जलवायु परिवर्तन के बुरे असर से ग्रेट बैरियर रीफ के बचने की संभावना बहुत कम है और ऐसी आशंका है कि २०५० तक रीफ पूरी तरह नष्ट हो जएगी। पारिस्थितिकी ग्रेट बैरियर रीफ जीवन की एक असाधारण विविधता का परिवाहक है, जिसमें कई असुरक्षित या विलुप्तप्राय प्रजातियां शामिल हैं, जिनमें से कुछ रीफ प्रणाली के लिए स्थानिक हो सकती हैं। पर्यावरणीय खतरे जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, क्राउन-ऑफ-थॉर्नस तारामछली और मछली पकड़ना इस चट्टान प्रणाली के स्वास्थ्य के लिए प्राथमिक खतरे हैं। अन्य खतरों में शिपिंग दुर्घटनाएं, तेल रिसाव और उष्णकटिबंधीय चक्रवात शामिल हैं। इन्हें भी देखें गैलापागोस द्वीपसमूह वालदेस प्रायद्वीप सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ How the Great Barrier Reef Works World heritage listing for Great Barrier Reef Great Barrier Reef Marine Park Authority CRC Reef Research Centre Biological monitoring of coral reefs of the GBR Great Barrier Reef (World Wildlife Fund) Dive into the Great Barrier Reef from National Geographic ऑस्ट्रेलिया समुद्री पारिक्षेत्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%B5%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B9%20%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE
विधवा पुनर्विवाह अधिनियम
विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 में ब्रिटिश भारत में हिन्दू समाज मुख्य रूप से विधवापन अभ्यास पर रोक लगाने हेतु पारित किया गया था| यह कानून बच्चे और विधवाओं के लिए एक राहत के रूप में तैयार किया गया था जिसके पति की समय से पहले मृत्यु हो गई हो| हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 हिंदू धर्म की बहुत सी जातियों में जो पूर्व की विवाह परंपरा थी उसमें विवाह अधिनियम 1856 के अधिनियम के द्वारा सभी अड़चने द्वेष आदि को इस अधिनियम के तहत समाप्त कर दिया गया और इसमें नवीन पद्धतियों को जन्म दिया गया उस समय भारत ब्रिटिश अधीन था इसलिए भारत को ब्रिटिश भारत कहा जाता था यह सुधार हिंदू विवाह के विधवाओं के लिए सबसे बड़ा सुधार था पुरातन समय में किसी औरत के पति की मृत्यु हो जाने पर उसे उसकी चिता के साथ जलना होता था या सर मुंडवाना होता था आदि ऐसी जटिल प्रक्रियाएं थी लेकिन इस अधिनियम के तहत कुछ प्रमुख सुधार लाए गए है कि जिन के मुख्य बिंदु निम्नलिखित है 1. यदि किसी स्त्री के पति की मृत्यु हो जाती है तो वह पुनर्विवाह कर सकती है 2. इस विवाह में उसके सगे संबंधी अर्थात माता पिता भाई दादा नाना नानी आदि संबंधियों के द्वारा बात करके दूसरे विवाह को मंजूरी दी जा सकती है यथा पुनर्विवाह करने वाली महिला अल्पवयस्क है 3. विवाह में सहमति का होना अत्यंत आवश्यक है 4. जिस घर कि वह पहले बहु थी अर्थात उसके मृत्यु वाले पति का घर उस पर उसका कोई संपत्ति के तौर पर अधिकार नहीं होगा जहां वह पुनर्विवाह के बाद जाएगी वहां उसका अधिकार माना जाएगा तथा निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि हिंदू जाति कि जो पुरातन समय के अनुसार जो विवाह की परंपरा थी वह कई रूप से आज की अपेक्षा बिखरी हुई थी जिससे कि उस में कई बंधित नियम थे जिसमें एक पति की मृत्यु होने के पश्चात उसकी पत्नी को उसकी चिता पर जिंदा जलना या बाल मुंडवा देना या दूसरी शादी ना करना आदि कई सारी परंपराएं सम्मिलित थी जिसके अनुसार 1856 ईसवी में ब्रिटिश इंडिया हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम बनाया गया जिसमें कई सुधार लाए गए अर्थात पूर्व की अपेक्षा वर्तमान विवाह सरल एवं सुखदाई है| इस समय भारत का गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी (1848-1856) था। विवाह
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%A6%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4
अश्विनी कुमार दत्त
अश्विनी कुमार दत्त (25 जनवरी 1856 - 7 नवम्बर 1923) बंगाल के एक शिक्षाविद्, परोपकारी, समाज सुधारक और देशभक्त थे जिन्होंने स्वदेशी आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उनकी कोई संतान नहीं थी और उन्होंने अपने क्षेत्र के स्कूल जाने वाले सभी बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी। इसके साथ ही शिक्षा के प्रसार के लिए कुछ विद्यालय भी स्थापित किए। प्रारंभिक जीवन अश्विनी कुमार दत्त का जन्म 25 जनवरी 1856 को बंगाल के बारिसल जिले के बटाजोर गांव में एक समृद्ध उच्च वर्गीय बंगाली हिंदू कायस्थ भारद्वाज वंश के दत्त परिवार में हुआ था। उनका गाँव अब बांग्लादेश में है। वे बल्ली के दत्त परिवार की एक शाखा हैं। उनके पिता ब्रजमोहन दत्ता एक मुंसिफ और डिप्टी कलेक्टर थे जो बाद में जिला न्यायाधीश बने। अश्विनी कुमार ने 1870 में रंगपुर से प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की और हिंदू कॉलेज से एफए की पढ़ाई पूरी की। कानून की पढ़ाई करने के लिए वे इलाहाबाद गये। उसके बाद, वह वापस बंगाल आ गए और कृष्णानगर गवर्नमेंट कॉलेज से एमए और बीएल की पढ़ाई पूरी की। सामाजिक एवं शैक्षिक कार्य अश्विनी कुमार दत्त ने 1878 में कृष्णनगर कॉलेजिएट स्कूल में एक शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया। अगले वर्ष, वह श्रीरामपुर के चातरा नंदलाल इंस्टीट्यूशन में शामिल हो गए और सात महीने तक स्कूल के हेडमास्टर के रूप में कार्य किया। 1880 में उन्हें बरिशाल में बार में बुलाया गया। उन्होंने एक आकर्षक व्यवसाय स्थापित किया और अपनी कमाई परोपकारी गतिविधियों में खर्च की। बरिशाल के तत्कालीन मजिस्ट्रेट रमेश चंद्र दत्त के सुझाव पर, उन्होंने 27 जून 1884 को अपने पिता की याद में ब्रजमोहन स्कूल की स्थापना की। अश्विनी कुमार दत्त को 1886 में कोलकाता में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दूसरे सत्र में एक प्रतिनिधि के रूप में चुना गया था। उन्होंने 1887 में बरिशाल में जिला बोर्ड की स्थापना की पहल की। उन्होंने उसी वर्ष बाकरगंज हितैषिणी सभा और एक बालिका विद्यालय की स्थापना की। उस वर्ष उन्होंने चेन्नई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीसरे सत्र में भाग लिया और विधान परिषद में सुधारों की आवश्यकता पर बल दिया। 1888 में उन्हें बरिशाल नगर पालिका का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। 1889 में, उन्होंने दूसरे स्तर के कॉलेज के रूप में ब्रोजोमोहन कॉलेज की स्थापना की। उन्होंने 25 वर्षों तक कॉलेज में अंग्रेजी के मानद व्याख्याता के रूप में कार्य किया। 1897 में उन्हें बरिशाल नगर पालिका का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 1898 में, उन्हें उस समिति में चुना गया जिसे कांग्रेस का संविधान बनाने का अधिकार दिया गया था। बंगाल के विभाजन से व्यथित होकर वे स्वदेशी आन्दोलन की ओर आकर्षित हुए। उन्होंने स्वदेशी उत्पादों की खपत को बढ़ावा देने और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए स्वदेश बान्धब समिति की स्थापना की। जब सूरत अधिवेशन में नरमपंथियों और उग्रवादियों के रास्ते अलग हो गए, तो उन्होंने दोनों समूहों के बीच सुलह का प्रयास किया। 1908 में नवगठित पूर्वी बंगाल और असम की सरकार ने स्वदेश बान्धब समिति पर प्रतिबंध लगा दिया और उन्हें संयुक्त प्रांत में निर्वासित कर दिया, जहां उन्हें लखनऊ जेल में रखा गया। 1910 में अपनी रिहाई के बाद, उन्होंने ब्रोजोमोहन स्कूल और ब्रोजोमोहन कॉलेज को बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित किया। उनके पास सरकारी सहायता स्वीकार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। 1912 में उन्हें स्कूल और कॉलेज का प्रबंधन दो अलग-अलग ट्रस्टी परिषदों को सौंपने के लिए मजबूर किया गया। 1918 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बम्बई अधिवेशन में भाग लिया। 1919 के बरिशाल चक्रवात के बाद उन्होंने सक्रिय रूप से राहत कार्य चलाया। 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में उन्होंने अहिंसक असहयोग आंदोलन को बढ़ावा दिया। महान नेता के प्रति सम्मान दिखाने के लिए मोहनदास गांधी उस वर्ष बरिशाल पहुंचे। 1922 में वह असम के चाय बागानों के श्रमिकों पर अत्याचार के विरोध में असम बंगाल रेलवे और स्टीमर कंपनी के हड़ताली श्रमिकों में शामिल हो गए। अन्य कार्य ब्रजमोहन कॉलेज की स्थापना अश्विनी कुमार दत्त ने की थी जिसका नाम उनके पिता के नाम पर था। उन्होंने धर्म, दर्शन और देशभक्ति पर बंगाली में कई पुस्तकों की रचना की जिनमें से कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें ये हैं- भक्तियोग कर्मयोग प्रेम दुर्गोत्सवतत्त्व आत्मप्रतिष्ठा भारतगीति इन्हें भी देखें स्वदेशी आन्दोलन संदर्भ भारत के शिक्षाविद भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता भारतीय परोपकारी १९२३ में निधन 1856 में जन्मे लोग
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उत्तर प्रदेश राज्य राजमार्ग ९ए
उत्तर प्रदेश राज्य राजमार्ग ९ए भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक राज्य राजमार्ग है। ४४.६५ किलोमीटर लम्बा यह राजमार्ग अकबरपुर से शुरू होकर कतका तक जाता है। इसे अकबरपुर-महरुआ-कतका मार्ग भी कहा जाता है। यह अंबेडकर नगर और सुल्तानपुर जिलों से होकर गुजरता है। इन्हें भी देखें राज्य राजमार्ग उत्तर प्रदेश के राज्य राजमार्गों की सूची बाहरी कड़ियाँ उत्तर प्रदेश राज्य राजमार्ग प्राधिकरण का मानचित्र सन्दर्भ उत्तर प्रदेश के राज्य राजमार्ग अम्बेडकर नगर ज़िला सुल्तानपुर
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मेकियावेलियनिस्म
ओक्सवोर्ड अंग्रेजी शब्दकोश के अनुसार मेकियावेलियनिस्म का अर्थ "शासन कला में या सामान्य आचरण में चालाक और कपट होना" है। यह इताल्वि रजनयिक निकोलो मेकियवेलि के प्रसिद्ध किताब "द प्रिंस" के मध्यम से प्राप्त हुआ है। इस शब्द का समान उपयोग आधुनिक मनोविज्ञान में भी किया जाता है, जहां यह अंधेरे त्रय हस्तियों का वर्णन करता है। जो विशेषता से निंदक विश्वासों और व्यावहारिक नैतिकता के साथ जुड़े एक duplicitous पारस्परिक शैली है। "मेकियावेलियनिस्म" एक शब्द के रूप में पहली बार १६२६ को ओक्स्वोर्ड अंग्रेजी शब्द्कोश में प्रकाशित हुआ था। निकोलो मेकियवेली निकोलो मेकियवेली(१४६९-१५२७) एक इतालवी राजनीतिज्ञ और दार्शनिक जो अप्ने वकालत "राजनीतिक नैतिकता जो प्रभावशील है वह नैतिक्ता से ज़्यादा महत्वपूर्ण है" के लिये प्रसिद्ध है। इस वाक्यांश का स्रोत उन्हें माना जाता है "माध्यम को अंत ही औचित्य बनाता है"। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए जोड़ तोड़ करने" के विचार को हम निकोलो मैकियावेली के साथ जोड़ने का कारण, उनका प्रसिद्ध किताब "द प्रिंस", अधिग्रहण और शक्ति प्राप्ति के लिए एक आदर्श का मार्गदर्शक। इस किताब में उन्होंने हेरफेर, नियंत्रण और व्यक्तिगत लाभ के बीच के सह सम्बन्ध को विस्तार से व्यक्त किया है। उनका यह मानना था की अगर व्यक्ति को प्यार किया जाना या आशंका जताई जाने के बीच में से एक विकल्प चुनना हो, थो उसे आशंका जताई जाना चुनना चाहिए। संघटनो मे मकियावेलियनिस्म: मकियावेलियनिस्म को अक्सर संक्षिप्त रूप मे मेक कहा जाता है। यह एक तरह का व्यक्तित्व लक्षण है जो विशेषता से अधिकार प्राप्ति के लिए जोड़-तोड़ का उपयोग करना होता है। मनोवैज्ञानिको मे अनेक उपकरणो की श्रंखलाओं को विकसित किया है, जो एक व्यक्ति के मेकिवेलियन अनुस्थापन को मापता है। इन उपकरणो को "मेक स्केल्स" कहा जाता है। हाई मेक्स- "हाई मेक्स" वो है जो अत्यधिक हेरफेर कर सकते है, दूसरो को आसानी से मना सकते है। वे अपने लक्ष्य तक पहुँचने मे सफल होते है और वे ज्यादातर मामलों में अपनी इच्छा अनुसार जीतते भी है। जिन लोगो मे “हाई मेक्स” का व्यक्तित्व है, वे शांत, स्वाधीन, परिगणित और लोगों में ढीला संरचना या भेद्यता का दोहन करने के तरीकों को ढूंढते रहते है। आमने सामने का वातावरण जहाँ सीमित नियम और संरचना रहती हो और जब भावनाओं और जहाँ लक्ष्य प्राप्ति में भावनाओं का मूल्य काम हो वहां है मेक लोग बहुत सफल होते है। जिन नौकरियों में लक्ष्य प्राप्ति को ज़्यादा महत्व है, जैसे बिक्री या परिणामो के लिए आयोग का प्रस्ताव हो, ऐसी नौकरियों में हाई मेक व्यतित्व के लोग उचित सिद्ध हुए हैं। लो मेक्स-"लो मेक" लोग, मेक स्पेक्ट्रम के विपरीत पक्ष में हैं और बेहद विनम्र होने के रूप में वर्णित किये जाते है। उन व्यक्तियों जिनमे "लो मेक" अभिविन्यास है, वे उन पर लगाए गए दिशा को स्वीकार करने के लिए तैयार होते हैं और उच्च संरचित स्थितियों में कामयाब होते है। लो मेक लोग शक्ति, स्थिति, पैसा और प्रतिस्पर्धा से कम प्रेरित हैं। जीतना ही लो मेक लोगों के लिए सबकुछ नहीं होता। वे अधिक नैतिक मानकों के साथ काम करते है। मेकियावेलियनिस्म अपने प्रयोग के निर्भर से संस्था में सकारात्मक और नकारात्मक भी हो सकता है। जब मेकियावेलियनिस्म प्रबंधकीय प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए या जहाँ संगठनात्मक लक्ष्यों को पूरी करने के लिए या अधीनस्थों को ज़रूरी दिशा देने के लिए उपयोग किया जाता है इसे एक सकारात्मक विशेषता के रूप में माना जाता है। जब मेकियावेलियनिस्म अधीनस्थों की कीमत पर निजी लाभ के लिए प्रयोग किया जाता है, उसे अत्यधिक नकारात्मक माना जाता है। मनोविज्ञान: "मेकियवेलियनिस्म" एक ऐसा शब्द भी है जिसे सामाजिक और व्यक्तित्व मनोवैज्ञानिक एक व्यक्ति के होना, जो उसे परम्परागत नैतिकता से खुद को अलग करना और दूसरो को धोखा देना और हेरफेर करने में उसे सक्षम बनाता है। १९६०', में रिचर्ड क्रिस्टी और फ्लोरेंस एल जिसने एक व्यक्ति के मेकियावेलियनिस्म स्तर को मापने के लिए एक परीक्षा को विकसित किया। रिचर्ड क्रिस्टी और फ्लोरेंस जिसने मेकियावेली के लेखन से बयानो को इकट्ठा किया और अन्य लोगों से पूछा की वे कितना एक दूसरे के साथ सहमत है। और अंत में इस नतीजे पे पहुंचे की “मेकियावेलियनिस्म” एक अलग व्यक्तित्व विशेषता के रूप में मौजूद है। उन्होने इसका प्रकाशण 1970 में किया और तब से यह एक लोकप्रिय व्यतित्व माध्यम बन चुका है। मेक IV: प्रस्तावना- इनका मेक चार, बीस बयान व्यक्तित्व सुर्वेक्षण में एक मानक आत्मा मूल्यांकन औज़ार बन गया है। इस पैमाने का उपयोग करते ही क्रिस्टी और जिसने विभिन्न प्रयोगात्मक परीक्षण किया जिससे पता चला कि परस्परिक कौशल और "हाई मेक" और "लो मेक" के व्यवहार अलग-अलग होते है। प्रक्रिया- इस परीक्षण में कुल बीस आइटम होते है। प्रत्येक आइटेम एक बयान होता है, जिसमे एक व्यक्ति को बतलाना है कि वह बयान उसके लिए कितना सही है। यह परीक्षण सिर्फ दो-पाँच मिनट में पूरा किया जा सकता है। उपयोग- इस परीक्षा केवल शैक्षिक ब्याज के लिए ही उपलब्द है। यह किसी भी प्रकार के मनोवैज्ञानिक मदद के लिए कोई स्थानापन्न नहीं है और किसी भी वास्तविक जीवन निर्णय लेने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। इस परीक्षण से एकत्र बेनामी डेटा को संग्रहित किया जाता है जो अनुसंधान के लिए उपयोग किया जा सकता है। प्रेरणा: 1992 में मेकियावेलियनिस्म पर किए गए समीक्षा ने मेकियावेलियन प्रेरणा को ठंड स्वार्थ और शुद्ध साधन से संबन्धित किया गया है। प्रेरणा के विषय पर हाल ही में किए गए शोध में यह बताया गया है कि "हाई मेक(जिनका अंक मेक परीक्षण मे ज़्यादा हो)" और "लो मेक(जिनका अंक मेक परीक्षण मे कम हो)" की तुलना मे, "हाई मेक"'' लोग पैसा, अधिकार, प्रतिस्पर्धा को उच्च प्राथमिक्ता और सामाजिक निर्माण, स्व-प्यार, पारिवारिक संबंधो को कम प्राथमिक्ता देते है। "हाई मेक" लोगो ने यह स्वीकार भी किया कि वे निरंतर सफलता के लिए और हर कीमत पर जीतने पर ही ध्यान केन्द्रित रखते है। क्षमता: परस्परिक कौशल में अपने हेरफेर के कारण अक्सर यह धारणा की जाती है कि "हाई मेक" लोग ज़्यादा बुद्धिमान और दूसरे लोगों के सामाजिक परिस्थितियों को बेहतर समझने की क्षमता रखते है। हालांकि, अनुसंधानो से यह स्थापित किया गया है कि मेकियावेलियाइस्म बुद्धि से असंबंधित है। इसके अलावा, भावनात्मक बुद्धिमत्ता पर अध्ययन ने यह भी स्थापित किया है कि मेकियावेलियनिस्म भावनात्मक खुफिया के साथ जुड़ा हुआ होता है। यह प्रदर्शन और प्रश्नावली दोनों के द्वारा मूल्यांकन किया गया है। सहानभूति और भावनात्मक पहचानो का संबंध मेकियावेलियानिस्म से नकारात्मक ही है। इसके साथ अनुसंदान ने यह भी ढिखाया है कि मेकियावेलीयनिस्म मन के उन्नत सिद्धांथ से असंबंधित है। इसका तात्पर्य यह है कि, लोग विभिन स्थितियों में क्या सोच रहे हैं यह जानने की क्षमता मकियावेलियनिस्म से असंबंधित है। अन्य व्यक्तित्व लक्षणों के साथ संबंध: मेकियावेलियनिस्म, अहंकार और मनोरोग व्यक्तित्व लक्षण के तीन अंधेरे त्रथ कहा जाता है। कुछ मनोवैज्ञानिक मकियावेलियनिस्म को मनोरोग के लक्षणहीन प्रपत्र मानते है, पर शोध यह बतलाता है कि मकियावेलियनिस्म और मनोरोग अधिव्यापन होते है पर वे दोनों अलग-अलग व्यक्तित्व निर्माण है। सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80
सुब्रह्मण्यम स्वामी
डॉ॰ सुब्रह्मण्यम् स्वामी (जन्म: 15 सितम्बर 1939 चेन्नई, तमिलनाडु, भारत) हिन्दू राष्ट्रवादी नेता एवं सनातन धर्म के प्रचारक हैं। वे जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। वे सांसद के अतिरिक्त 1990-91 में वाणिज्य, कानून एवं न्याय मंत्री और बाद में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार आयोग के अध्यक्ष भी रहे। 1994-96 के दौरान विश्व व्यापार संगठन के श्रमिक मानकों के निर्धारण में उन्होंने प्रभावी भूमिका निभायी। हार्वर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने साइमन कुजनैट्स और पॉल सैमुअल्सन के साथ कई प्रोजेक्ट्स पर शोध कार्य किया और फिर पॉल सैमुअल्सन के साथ संयुक्त लेखक के रूप में इण्डैक्स नम्बर थ्यौरी का एकदम नवीन और पथ प्रदर्शक अध्ययन प्रस्तुत किया। वे हार्वर्ड विश्वविद्यालय के विजिटिंग फैकल्टी मैम्बर भी रहे हैं। वे ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने आदर्शों के लिए निर्भीक होकर संघर्ष किया है। भारत में आपातकाल के दौरान संघर्ष, तिब्बत में कैलाश-मानसरोवर यात्री मार्ग खुलवाने में उनके प्रयास, भारत-चीन सम्बन्धों में सुधार, भारत द्वारा इजरायल की राजनैतिक स्वीकारोक्ति, आर्थिक सुधार और हिन्दू पुनरुस्थान आदि अनेक उल्लेखनीय कार्य उन्होंने किये हैं। स्वामी ने स्वेच्छा से राष्ट्रहित को सर्वोपरि समझते हुए अपनी पार्टी का विलय भारतीय जनता पार्टी में कर दिया। उन्होंने नरेन्द्र मोदी को भारत का प्रधानमन्त्री बनाने के लिये पूरे देश में प्रचार किया और भारी बहुमत से जीत हासिल की और भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी, फिर नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद पुनः Z+ श्रेणी की सुरक्षा दी गई। आजकल नेशनल हेराल्ड केस और अयोध्या राम मंदिर को लेकर चर्चा मे है। आरम्भिक जीवन सुब्रमण्यम स्वामी का जन्म १९३९ में म्य्लापोरे, चेन्नई, भारत में हुआ। उनके पिता का नाम सीताराम सुब्रमण्यम था और वो मदुरै, तमिलनाडु से थे। उनके पिता शुरू में भारतीय सांख्यिकी सेवा में अधिकारी थे और बाद में केंद्रीय सांख्यिकी संस्थान के निदेशक के रूप में सेवानिवृत्त हुए। डॉ॰ स्वामी ने हिन्दू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से गणित में अपनी स्नातक ऑनर्स डिग्री अर्जित किया। उन्होंने भारतीय सांख्यिकी संस्थान में सांख्यिकी में अपनी मास्टर्स डिग्री के लिए अध्ययन किया। इसके बाद वो पूर्ण रॉकफेलर छात्रवृत्ति पर हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययन करने के लिए चले गए। उन्हें १९६५ में अर्थशास्त्र में पी॰एच॰डी॰ प्राप्त हुई। उनके शोध सलाहकार नोबेल पुरस्कार विजेता साइमन कुज्नेट्स थे। शैक्षणिक जीवन 1964 में, स्वामी हार्वर्ड में अर्थशास्त्र के संकाय में शामिल हो गए और उसके बाद से वह अर्थशास्त्र विभाग में पढ़ाने लगे। जुलाई 1966 में वो एक सहायक प्रोफेसर बन गए और 1969 में एसोसिएट प्रोफेसर बन गए। वह जब एसोसिएट प्रोफेसर थे तो उन्हें अमर्त्य सेन द्वारा दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में चीनी अध्ययन पर एक प्राध्यापक के पद के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। जब वो दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स पहुँचे तो उनकी नियुक्ति को उनके भारत के लिए परमाणु क्षमता के समर्थन और उसके बाजार के अनुकूल दृष्टिकोण के कारण रद्द कर दिया गया। इसके बाद, वह भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में प्रोफेसर के रूप में जुड़े। वहा वो 1969 से 1991 तक गणितीय अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में रहे। 1970 के दशक में इंदिरा गाँधी के कारण उन्हें प्रोफेसर के पद से हटा दिया गया था, लेकिन सर्वोच्च न्यायलय द्वारा कानूनी तौर पर 1990 के दशक में उन्हें पुनः बहाल किया गया। १९९१ में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली से उन्होंने कैबिनेट मंत्री बनने के लिए इस्तीफा दे दिया। 1977 से 1980 तक वो आई॰आई॰टी॰, दिल्ली के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में रहे और १९८० से १९८२ तक वो आई॰आई॰टीयो के परिषद में रहे। 2011 तक उन्होंने हार्वर्ड में गर्मियों के सत्र में अर्थशास्त्र पाठ्यक्रम को पढ़ाया। दिसंबर 2011 में एक विवादास्पद लेख के कारण हार्वर्ड के कला और विज्ञान के संकाय के संकाय परिषद ने उनके पाठ्यक्रम को हटा दिया। जून २०१२ को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने स्वामी को मैकलीन, वर्जीनिया में एक रात्रिभोज के लिए आमंत्रित किया। ओबामा ने २०१२ में अपने पुनर्निर्वाचन के बाद स्वामी को अपने शपथ ग्रहण समारोह में भी आमंत्रित किया। राजनीतिक जीवन आरंभिक राजनीतिक जीवन डॉ॰ स्वामी का राजनीतिक जीवन अराजनैतिक आंदोलन के साथ शुरू हुआ। यह आन्दोलन एक गैरराजनीतिक आन्दोलन के रूप में शुरू हुआ जिसने आगे चलकर जनता पार्टी की नींव डाली। डॉ॰ स्वामी द्वारा रखे गए उदारवादी आर्थिक नीतियों की तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी बहुत बड़ी विरोधी थी और बाद में इंदिरा गाँधी के कारण डॉ॰ स्वामी को आई॰आई॰टी॰ से बर्खास्त कर दिया गया और इस घटना के बाद से डॉ॰ स्वामी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई। डॉ॰ स्वामी इंदिरा गांधी के विरोधी पार्टी जनसंघ के तरफ से राज्यसभा के सदस्य बने। 1974 और 1999 के बीच डॉ॰ स्वामी 5 बार संसद सदस्य के रूप में चुने गए। उन्होंन 1974 और 1999 के बीच उत्तर पूर्व मुंबई, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु का संसद में प्रतिनिधित्व किया। डॉ॰ स्वामी जयप्रकाश नारायण के साथ जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक है और 1990 के बाद से इसके अध्यक्ष हैं। आपातकाल डॉ॰ स्वामी के नौकरशाहों के बीच काफी संपर्क थे। इसलिए उन्हें पहले ही आपातकाल के विषय में पता चल गया था। २५ जून १९७५ के दिन डॉ॰ स्वामी जयप्रकाश नारायण के साथ रात्रिभोज कर रहे थे तो उन्होंने जी॰पी॰ को कहा की कुछ बड़ा आने वाला है तो जी॰पी॰ ने उनकी बात पर विश्वास नहीं किया, उन्होंने कहा की इंदिरा गाँधी ऐसी मूर्खता नहीं करेंगी। दूसरे दिन सुबह 4.30 बजे उन्हें एक गुमनाम कॉल आया जिसमे उन्हें पुलिस ने अप्रत्यक्ष रूप से बताया की वो डॉ॰ स्वामी को पकड़ने वाले है। इसके बाद डॉ॰ स्वामी ६ महीनो के लिए भूमिगत हो गए। उस समय जयप्रकाश नारायण ने डॉ॰ स्वामी को सूचना भेजी की तुम अमेरिका जाओ। क्योंकि उन्होंने डॉ॰ स्वामी को हार्वर्ड में देखा था। जी॰पी॰ ने कहा की अमेरिका में जाकर भारत के आपातकाल के बारे में लोगो को जागरूक करो। उसके बाद डॉ॰ स्वामी अमेरिका में जाकर हार्वर्ड में प्रोफेसर बन गए और हार्वर्ड के मंच का उपयोग करके आपातकाल अमेरिका के २३ राज्यों में भारतीयों को जागरूक करना शुरू किया। संसद मे घुसकर भाषण देना डॉ॰ स्वामी ने आपातकाल के समय सोचा की लोगों में आपातकाल के खिलाफ हिम्मत जगाने के लिए वो एक दिन के लिए संसद में घुसेंगे और २ मिनट का भाषण देकर पुनः भूमिगत हो जायेगे। इस कार्य को करके वे यह सिद्ध करना चाहते थे कि पूरा देश इंदिरा गाँधी के नियंत्रण में नहीं है। उस समय डॉ॰ स्वामी के नाम से वारंट जारी हो चुका था। लेकिन फिर भी वो १० अगस्त १९७६ के दिन संसद में गए और यह देश विदेश के पत्रकारों के सामने यह कहकर निकल गए की भारत में प्रजातंत्र मर चुका है। उसके बाद डॉ॰ स्वामी नेपाल के मार्ग से वापस अमेरिका चले गए। इस घटना से लोगों को एक नया बल मिला और वे आपातकाल के समय एक नायक बन गए। भारत के कानून और वाणिज्य मंत्री 1990 और 1991 के दौरान स्वामी योजना आयोग के सदस्य और भारत और वाणिज्य मंत्री रहे। इस अवधि के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के कार्यकाल के दौरान भारत में आर्थिक सुधारों के लिए खाका बनाया। जो बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के नेतृत्व में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह द्वारा 1991 लागू किया गया। डॉ॰ स्वामी ने अपनी पुस्तक में बताया है की मनमोहन सिंह ने इस बात को स्वीकार भी किया है। 1994 और 1996 के बीच, वह पी॰वी॰ नरसिम्हा राव सरकार के कार्यकाल के दौरान "श्रम मानकों और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर आयोग के अध्यक्ष" (एक कैबिनेट मंत्री के पद के समकक्ष) के पद पर रहे। २००४ का लोकसभा चुनाव २००४ के लोकसभा चुनावो में जनता पार्टी ने अपने कई उम्मीदवार उतारे। लेकिन एक भी उम्मीदवार की जीत नहीं हुई। बाद में स्वामी ने बताया की कई चुनाव बूथों में उनकी पार्टी को जीरो वोट मिले है। इस चुनाव के बाद उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में वोटिंग मशीन में गड़बड़ी के मामले को लेकर मुकदमा दायर किया। स्वामी ने दावा किया की वोटिंग मशीन में गड़बड़ी के कारण उनकी पार्टी को एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई। २००९ का लोकसभा चुनाव २००९ के लोकसभा चुनावो में स्वामी ने जनता पार्टी की तरफ से एक भी उम्मीदवार चुनावो में नहीं उतारा। स्वामी ने कहा की २००९ के चुनावो में कांग्रेस बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में गड़बड़ी करके चुनाव जीतने वाली है इसलिए चुनाव लड़ने का कोई फायदा नहीं है। २०१३ के अंत में उन्हें वोटिंग मशीन में गड़बड़ी के मामले में सर्वोच्च न्यायलय में जीत हासिल हुई। सर्वोच्च न्यायलय ने निर्णय दिया की वोटिंग मशीन में रसीद प्रिंट की जाएगी जिसे बैलेट बॉक्स में डाला जायेगा। अगर चुनाव में गड़बड़ी की आशंका होगी तो बैलेट बॉक्स में गिनती की जाएगी। जनता पार्टी का NDA से जुड़ना डॉ॰ स्वामी 2G घोटाले में कांग्रेस के खिलाफ अपने प्रदर्शन के लिए सुर्खियों में रहे। डॉ॰ स्वामी जनता पार्टी को NDA का हिस्सा बनाना चाहते थे। अन्ततः ११ मार्च २०१२ को जनता दल को NDA का घटक दल बना लिया गया। जनता दल के जुड़ने से NDA के घटक दलों की संख्या बढकर ६ हो गई। २०१२ का गुजरात विधानसभा चुनाव २०१२ के गुजरात के विधान सभा चुनावो के लिए सुब्रमण्यम स्वामी ने अक्टूबर २०१२ से ३ महीने के लिए नरेंद्र मोदी के समर्थन में चुनावी प्रचार किया। उन्होंने कहा की वर्त्तमान बीजेपी पार्टी में नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री पद के लिए सबसे ज्यादा योग्य है। स्वामी ने कहा की गुजरात में सबसे न्यूनतम भ्रष्टाचार है। चुनाव में नरेंद्र मोदी की जीत हुई लेकिन स्वामी का दावा है की मोदी और भी ज्यादा सीटे जीतते अगर कांग्रेस सरकार वोटिंग मशीन में गड़बड़ी नहीं करती। स्वामी ने दावा किया की अगर गुजरात में EVM का बिलकुल प्रयोग नहीं होता तो BJP 35 सीटें और जीतती। २०१४ का लोकसभा चुनाव सुब्रह्मण्यन स्वामी ने २०१४ के चुनावो के लिए बहुत पहले से ही प्रचार अभियान आरंभ कर दिया। चुनाव को दृष्टि में रखते हुए उन्होंने पूरे देश में आम सभाएं कीं। इस दौरान उन्होंने २ बार नरेंद्र मोदी से जाकर भेंट की। चुनावी सभाओ में उन्होंने NDA के मुद्दों से जनता को अवगत कराया। जून २०१३ में वो अमेरिका के दौरे पर गए एवं अमेरिका के कई राज्यों में सभाएं कीं। उन्होंने कहा कि कश्मीर-समस्या का हल सबसे महत्वपूर्ण तो है ही साथ में बांग्लादेशी घुसपैठ को रोकना भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा होगा। कार्य भारत से सोशलिज्म को हटाना LTTE को भारत से भागना कैलाश मानसरोवर के द्वार भारत के लिए खुलवाना काले धन के विरोध में अभियान अदालती सक्रियता 2जी घोटाला वोटिंग मशीन में गड़बड़ी ऐयरसेल मैकसिस घोटाला निर्भया दिल्ली गैंग रेप केस हेलीकाप्टर घोटाला नेशनल हेराल्ड घोटाला हाशिमपुरा नरसंहार राम सेतु को टूटने से बचाना अयोध्या राम मंदिर इतालियन नौसैनिक मुद्दा धर्मांतरण पर रोक ताजमहल शिवमंदिर है की जाँच भारतीय मीडिया के विदेशी मालिको पर प्रतिबंध मंदिरों पर सरकार के अतिक्रमण का विरोध सोनिया गाँधी के नकली जन्म स्थान, तिथि का मुद्दा सोनिया गाँधी के भारतीय नागरिक न होने का मुद्दा सोनिया गाँधी के गलत शैक्षिनिक जानकारी देने का मामला जयललिता के भ्रस्ताचार के विरुद्ध केस संत आसारामबापू केस विदेश नीति पाकिस्तान डॉ॰ स्वामी का कहना है की पाकिस्तान को भारत में कश्मीर के मामले में दखल नहीं देना चाहिए। वो पाकिस्तान द्वारा चलाये जा रहे आतंकवादी गतिविधियों को बंद करना चाहिए। सुदर्शन न्यूज़ के साथ मार्च २०१३ में एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा है की पाकिस्तान पर जल्द ही तालिबान कब्ज़ा करने वाला है और उसके बाद भारत और तालिबान शासित पाकिस्तान के बीच के युद्ध को रोक पाना बहुत ही मुश्किल होगा। डॉ॰ स्वामी का कहना है कि पाकिस्तान को पाकिस्तान शासित कश्मीर का भाग भारत को वापस करना चाहिए। अगर पाकिस्तान, पाकिस्तान शासित कश्मीर में चल रहे ५४ आतंकवादी कैंपो को बंद नहीं करता है तो भारत को इन कैम्पों को नष्ट करना चाहिए। चीन डॉ॰ स्वामी ने कहा की चीन और भारत पड़ोसी देश है और दोनों देश के सम्बन्ध कम से कम 3000 सालों से है। जब डॉ॰ सुब्रमण्यम स्वामी मोरारजी सरकार में थे तो उन्होंने चीन से कहा की कैलाश मानसरोवर का रास्ता खोले। उस समय भारत से कैलाश मानसरोवर जाने का रास्ता चीन ने बंद कर रखा था। 3 सालों तक चीन के साथ बात करने के बाद और अन्तत: चीन ने कहा की ठीक है रास्ता खोल देंगे अगर डॉ॰ स्वामी खुद कैलाश मानसरोवर जायें। उसके अप्रैल १९८१ में डॉ॰ स्वामी पहले कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले भारतीय बने और उसके बाद चीन ने कैलाश मानसरोवर भारत के लिए खोला। इजराइल अपने भाषणों और लेखों में डॉ॰ स्वामी ने इजराइल के लिए अपनी प्रशंसा व्यक्त की है और एक शत्रुतापूर्ण अरब वातावरण में जीवित रहने की क्षमता के लिए अपने प्रतिकार क्षमता श्रेय दिया है। उन्होंने कहा कि इजराइल के साथ राजनयिक संबंधों की स्थापना में अग्रणी प्रयास किए थे। 1982 में, डॉ॰ स्वामी इज़राइल जाने वाले पहले भारतीय राजनितज्ञ बने और वो वहाँ यित्ज्हक राबिन और मेनाचेम बिगिन जैसे कई महत्वपूर्ण इजराइली नेताओं से मिले। इज़राइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने में उनके प्रयासों का फल तब मिला जब भारत ने 1992 में इज़राइल में अपना दूतावास खोलने का निर्णय लिया। बांग्लादेश डॉ॰ स्वामी का कहना है की बांग्लादेश के कुल जनसंख्या का करीब एक तिहाई भाग भारत में अवैध रूप से घुस चुका है। इसलिए बांग्लादेश या तो इन सभी अवैध रूप से घुसे हुए अपने नागरिकों को वापस बुलाये या अपने देश का एक तिहाई भाग भारत को दे दे। ऐसा होने से भारत का अपने पश्चिमी भागो पर ज्यादा अच्छा नियंत्रण हो सकेगा। श्रीलंका डॉ॰ स्वामी का कहना है कि श्रीलंका के जो सिनला है वो भी भारत के बिहार, उड़ीसा जैसे राज्यों से श्रीलंका गए थे। उनका कहना है की भारत के राष्ट्रहित में आज भारत को श्रीलंका से अच्छे सम्बन्ध बनाने चाहिए। भारत को श्रीलंका में जो २५% तमिल है उनके स्वायत्ता के लिए प्रयास करने चाहिए। उनका कहना है की जो द्रविड़ा आन्दोलन के लोग है वो भारत से अलग होना चाहते है इसलिए उनकी बातो पर भारत को ध्यान नहीं देना चाहिए। विचार २००२ के गुजरात दंगे नक्सलवाद का हल द्राविड़ आन्दोलन आर्यन द्रविड़ियन सिद्धांत कश्मीर की समस्या का हल बांग्लादेशी घुसपैठियों के संशय का हल भ्रष्टाचार की समस्या का हल श्री लंका की समस्या का हल इंडियन प्रीमियर लीग आईपीएल श्रीनिवासन का मामला जाति व्यवस्था विराट हिंदुस्तानी मुस्लिम आरक्षण भीमराव अंबेडकर मोरारजी देसाई जयप्रकाश नारायण राजीव मल्होत्रा नरेंद्र मोदी संत आशारामजी बापू तपन घोष शाहरुख़ खान संजय दत्त जवाहरलाल नेहरु राहुल गाँधी सोनिया गाँधी इंदिरा गाँधी करूणानिधि परिवार और व्यक्तिगत जीवन सुब्रह्मण्यम् स्वामी ने रोक्सना नाम की एक पारसी महिला से जून 1966 में विवाह किया। रोक्सना से उनकी पहली भेंट हार्वर्ड में हुई थी। रोक्सना स्वामी भी गणित में पी॰एच॰डी॰ हैं तथा आजकल भारत के सर्वोच्च न्यायालय में वकील हैं। उनकी दो बेटियाँ है, एक गीतांजलि स्वामी जिसने एम॰आई॰टी॰ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संजय शर्मा से शादी की है और दूसरी सुहासिनी हैदर जो द हिन्दू में सम्पादक है और उन्होंने नदीम हैदर से विवाह किया है। किताबें, शोधपत्र और पत्रिकायें सुब्रह्मण्यम् स्वामी ने कई किताबें व शोधपत्र लिखे और पत्रिकाओं का सम्पादन किया। नीचे उनकी सूची दी हुई है। किताबें 1952-70 के बीच चीन और भारत में आर्थिक विकास (प्रकाशक: शिकागो विश्वविद्यालय प्रेस, ISBN 978-0-226-78315-4) भारत में भ्रष्टाचार और निगमित प्रशासन: सत्यम, स्पेक्ट्रम और सुंदरम बीएनपी पारिबा (प्रकाशक: हर आनंद प्रकाशन, ISBN 978-81-241-1486-5) भारत में आतंकवाद: भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा (प्रकाशक: हर आनंद प्रकाशन, ISBN 978-81-241-1344-8) के लिए शक्ति संतुलन की एक रणनीति 1952-70 चीन और भारत में भारतीय आर्थिक नियोजन;: एक वैकल्पिक दृष्टिकोण (प्रकाशक: बार्न्स एंड नोबल, ISBN 978-0-389-04202-0) राष्ट्रीय पुनर्जागरण के लिए एक एजेंडा (प्रकाशक: दक्षिण एशिया पुस्तक, ISBN 978-81-85674-21-6) एक नए भारत का निर्माण भारत के श्रम मानकों और विश्व व्यापार संगठन के फ्रेमवर्क (प्रकाशक: कोणार्क पब्लिशर्स, ISBN 978-81-220-0585-1) भारत के आर्थिक प्रदर्शन और सुधारों: नई सहस्राब्दी के लिए एक परिप्रेक्ष्य (प्रकाशक: कोणार्क पब्लिशर्स, ISBN 978-81-220-0594-3) राजीव गांधी की हत्या: अनुत्तरित प्रश्न और आशातीत प्रश्न (प्रकाशक: कोणार्क पब्लिशर्स, ISBN 978-81-220-0591-2) भारत की चीन परिप्रेक्ष्य (प्रकाशक: कोणार्क पब्लिशर्स, ISBN 978-81-220-0606-3) चीन और भारत में वित्तीय वास्तुकला और आर्थिक विकास (प्रकाशक: कोणार्क पब्लिशर्स, ISBN 978-81-220-0718-3) जापान में व्यापार और उद्योग: भारतीय उद्यमियों और व्यवसायियों (प्रकाशक: प्रेंटिस हॉल ऑफ इंडिया, ISBN 978-81-203-0785-8) के लिए एक गाइड संकट में श्रीलंका: भारत का विकल्प (प्रकाशक: हर आनंद प्रकाशन, ISBN 978-81-241-1260-1) शिव के डोमेन में 22 साल के बाद कैलाश और मानसरोवर (प्रकाशक: अलायड प्रकाशक) घेराबंदी के तहत हिन्दुओं (प्रकाशक: हर आनंद प्रकाशन, ISBN 978-81-241-1207-6) राम सेतु: राष्ट्रीय एकता की प्रतीक (प्रकाशक: हर आनंद प्रकाशन, ISBN 978-81-241-1418-6) 2जी स्पेक्ट्रम स्कैम (प्रकाशक: हर आनन्द पब्लिकेशंस, ISBN 978-81-241-1638-8) इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन:अनकांस्टीट्यूशनल एण्ड टेम्परेबुल (प्रकाशक: विजन बुक्स, ISBN 978-81-7094-798-1) सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक ट्विटर अकाउंट SUBRAMANIAN SWAMY : THE UNSUNG HERO IN INDIA’S FIGHT AGAINST CORRUPTION जनता पार्टी (अंग्रेजी में) पीएमओ को कड़ी फटकार (बिजनेस भास्कर) सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से पीएमओ को झटका (बीबीसी) Subramaniam Swamy in Janata Party's website An article by Dr. Subramanian Swamy on how to face defamation litigation Basic Islam for Hindu Dhimmis - सुब्रह्मण्यम् स्वामी ...इसलिए आसाराम का केस लड़ रहा हूं मैं: स्वामी (आईबीएन7) स्वामी ने ऐसे दिया आपातकाल में इंदिरा सरकार को गच्चा! श्रवण शुक्ल के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू (आईबीएन7) 1939 में जन्मे लोग जीवित लोग भारत के क़ानून एवं न्याय मंत्री
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%97%20%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE
ल्होरग ज़िला
ल्होरग ज़िला (तिब्बती: ལྷོ་བྲག་རྫོང་།, Lhorag County), जिसे चीन की सरकार ल्होझग ज़िला (Lhozhag, 洛扎县) बुलाती है, तिब्बत का एक ज़िला है जो उस देश के दक्षिणपूर्वी हिस्से में स्थित है। तिब्बत पर चीन का क़ब्ज़ा होने के बाद यह चीनी प्रशासनिक प्रणाली में तिब्बत स्वशासित प्रदेश के ल्होखा विभाग में पड़ता है, जिसे चीनी सरकार शाननान विभाग बुलाती है। ज़िले की दक्षिणी सीमा भूटान से लगती है। ज़िले के पूर्व में त्शोना ज़िला और पश्चिम में नगर्त्से ज़िला स्थित है। इन्हें भी देखें ल्होखा विभाग त्शोना ज़िला नगर्त्से ज़िला सन्दर्भ तिब्बत के ज़िले ल्होखा विभाग तिब्बत
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE
इरीडियम
इरीडियम (Iridium) एक रासायनिक तत्त्व है। परिचय इरीडियम (संकेत: Ir, परमाणु भार: १९१ ; परमाणु संख्या: ७७) धातुओं के प्लैटिनम समूह का एक सदस्य हैं। सबसे पहले तेंना ने १८०४ में ऑस्मीइरीडियम नामक मिश्रण से इसको प्राप्त किया। यह बहुत ही कठोर धातु है, लगभग २,४५० डिग्री सेंटीग्रेड पर पिघलती है और इसका आपेक्षिक घनत्व २२.४ है। इसका विशिष्ट विद्युतीय प्रतिरोध ४.९ है जो प्लैटिनम का लगभग आधा है। इससे तार, चादर इत्यादि बनाना बड़ा ही कठिन है। रासायनिक अभिक्रिया में यह धातुओं में सबसे अधिक अक्रियाशील है, यहाँ तक कि अम्लराज भी साधारण ताप पर इसपर क्रिया करने में असफल रहता है। इरीडियम फाउंटेन पेन की निबों की नोंक, आभूषण, चुंबकीय संपर्क स्थापित करनेवाले यंत्र, पोली सूई (इंजेक्शन लगाने की सुई) तथा बहुत ही बारीक फ्यूज़ तार बनाने में काम आता है। इरीडियम बहुत से यौगिक बनाता है, जिनमें १, २, ३, ४ तथा ६ तक संयोजकता होती है। इसमें जटिल यौगिक बनाने की भी प्रवृत्ति पाई जाती है। यह दूसरी धातुओं से मिलकर, विशेषकर प्लैटिनम के साथ, बड़ी सुगमता से मिश्रधातु बनाता है। ये मिश्रधातुएँ बड़ी कठोर होती हैं सन्दर्भ इरीडियम रासायनिक तत्व कीमती धातुएँ संक्रमण धातु
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भरत (महाभारत)
भरत प्राचीन भारत के एक चक्रवर्ती क्षत्रिय सम्राट थे जो कि राजा दुष्यन्त तथा रानी शकुंतला के पुत्र थे।भरत के नाम पर ही भारत का नाम है। अतः एक चन्द्रवंशी क्षत्रिय राजा थे। भरत के बल के बारे में ऐसा माना जाता है कि वह बाल्यकाल में वन में खेल ही खेल में अनेक जंगली जानवरों को पकड़कर या तो उन्हें पेड़ों से बाँध देते थे या फिर उनकी सवारी करने लगते थे। इसी कारण ऋषि कण्व के आश्रम के निवासियों ने उनका नाम सर्वदमन रख दिया। भरत की कथा राजा भरत दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र थे शकुंतला के पिता का नाम विश्वामित्र था, दुष्यंत गंधर्व राजकुमार से उन्होंने शकुंतला से विवाह किया था लेकिन बाद में वे उन्हें भूल गए थे लेकिन बाद में उन्हें शकुंतला को एक मुद्रिका दी थी एक समय वह मुद्रिका का शकुंतला से खो गई थी जिसे एक मछली निगल लिया था एक मछुआरे ने उस मछली को पकड़कर जब काटा तो उसे मुद्रिका प्राप्त हुई वह उसे बेचने गया लेकिन उसे इसका मूल्य कोई नहीं देख सका फिर वह राजदरबार में गया जब राजा दुष्यंत ने उस मुद्रिका को देखा तो उन्हें शकुंतला की याद वापस आ गई और सत्कार पूर्वक भी शकुंतला और अपने पुत्र भरत को लेकर आ गए आगे चलकर वही भरत चक्रवर्ती के नाम से हस्तिनापुर के राजा बने आज हमारे देश का नाम भारत उन्हीं के नाम की ऊपर रखा गया है सिंहों के साथ बचपन में खेला करते थे पर्वत महावीर शक्तिशाली और पराक्रमी राजा थे। सन्दर्भ पौरवकुल इतिहास प्राचीन भारत
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सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु
बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत को 14 जून 2020 को दोपहर में मुंबई के बांद्रा स्थित उनके आवास पर मृत पाये गये। मुंबई पुलिस के अनुसार उन्होंने पंखे से फंदा लगाकर आत्महत्या की। उनके अनुसार वे पिछले छह महीने से अवसाद में थे। उनकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्टों के अनुसार उनकी मृत्यु "दम घुटने" से हुई। मुंबई पुलिस ने इस केस की जांच शुरू की और कई लोगों से पूछताछ की। शुरुआत में कयास लगाए गए कि बॉलीवुड में व्याप्त भाई-भतीजावाद के कारण वे अवसाद में आए। इस कारण पुलिस ने जांच में कुछ फ़िल्म निर्माता कंपनियों तथा निर्देशकों से भी पूछताछ की। जनसाधारण में इस मामले को लेकर आक्रोश देखा गया और इसकी संदिग्धता को देखते हुए उन्होंने सीबीआई जांच की मांग शुरू की पर महाराष्ट्र सरकार ने इससे इंकार किया। मुंबई पुलिस की जांच के दौरान ही, 25 जुलाई को सुशांत के पिता ने पटना में प्राथमिकी दर्ज कर सुशांत की महिलामित्र अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार पर धोखाधड़ी तथा मानसिक तनाव देने के आरोप लगाए। इस पर बिहार पुलिस ने भी कुछ दिन इसकी जांच की। 5 अगस्त को केंद्र ने सीबीआई जांच की अनुमति दी। अंततः रिया द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई में उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की जांच सीबीआई से कराने का फैसला सुनाया। जाँच पड़ताल इंडियन एक्सप्रेस ने बताया कि मुंबई पुलिस ने कहा कि अभिनेता ने नैदानिक अवसाद के लक्षण दिखाए थे और मनोचिकित्सक से परामर्श कर रहे थे। लेकिन ये पूरी तरह गलत है सुशांत सिंह राजपूत की हत्या की गयी थी जिसमें बॉलीवुड और मुंबई की सरकार का हाथ है। उनके घर में मेडिकल पेपर और अवसाद रोधी गोलियां मिलीं। ऐसे कयास लगाए जाते रहे हैं कि सुशांत आर्थिक परेशानी से जूझ रहे थे। हालांकि, उनके एक दोस्त ने इससे इनकार किया। 28 जुलाई को, राजपूत के पिता केके सिंह ने पटना में बॉलीवुड अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार के सदस्यों सहित छह लोगों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने की प्राथमिकी दर्ज की थी। उसने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि उसने राजपूत को आर्थिक रूप से धोखा दिया और उसे मानसिक रूप से परेशान किया। , लगभग 40 लोगों का इंटरव्यू लिया गया पुलिस द्वारा इस केस में। जनता की प्रतिक्रियाएँ पूरे भारत में राजपूत की अप्रत्याशित मौत "चौंकाने वाली" खबर थी। कई प्रमुख नेताओं और अभिनेताओं ने सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया दी। ट्विटर पर, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने राजपूत को "एक उज्ज्वल युवा अभिनेता जल्द ही चला गया" कहा। भारतीय क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने भी अपने आघात व्यक्त किए। राजपूत की मौत के कुछ घंटों बाद, कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने ट्वीट किया, दावा किया कि उनकी 2019 की हिट फिल्म छीछोरे के बाद राजपूत ने सात फिल्में साइन की थीं और छह महीने के भीतर उन सभी को खो दिया था। बाद में, बॉलीवुड अभिनेता शेखर सुमन ने #justiceforSushantforum नामक एक मंच बनाया, जिसमें केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की मौत की जांच की मांग की गई। 17 जुलाई को, रिया चक्रवर्ती ने इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को टैग करते हुए सुशांत सिंह राजपूत की मौत की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जांच के लिए बुलाया। पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र लिखकर 25 जुलाई को पीएम कार्यालय द्वारा निधन की सीबीआई जांच का अनुरोध किया था। राजपूत के मामा ने आरोप लगाया कि उनके भतीजे की हत्या की गई थी, उन्होंने अभिनेता की मौत के दिन सीबीआई जांच की मांग की थी। 22 जुलाई को, ट्विटर हैशटैग # Candle4SSR दुनिया भर में एक मिलियन ट्वीट्स के साथ ट्रेंड किया, सीबीआई जांच की मांग की। भाई-भतीजावाद पर बहस राजपूत की मृत्यु ने भारत में बॉलीवुड फिल्म उद्योग में भाई-भतीजावाद और बुरी प्रथाओं के बारे में बहस छेड़ दी। करन जौहर, संजय लीला भंसाली, सलमान खान, एकता कपूर और चार अन्य के खिलाफ बिहार उच्च न्यायालय में एक वकील सुधीर कुमार ओझा के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि सुशांत को भाई-भतीजावाद के कारण मना किया गया था, जिससे उनकी आत्महत्या हुई। बाद में, कंगना रनौत और उनकी टीम ने बॉलीवुड में बड़े पैमाने पर भाई-भतीजावाद के खिलाफ एक अभियान शुरू किया। कंगना ने आरोप लगाया कि अभिनेता की मौत "हत्या" थी, जबकि इसके लिए "मूवी माफिया" को दोषी ठहराया गया था। अंतिम संस्कार सुशांत का अंतिम संस्कार 15 जून को मुंबई स्थित पवन हंस श्मशान में उनके पिता द्वारा किया गया। उनके अंतिम संस्कार में अभिनेत्री कृति सनोन, श्रद्धा कपूर, विवेक ओबेरॉय, रणवीर शौरी, उदित नारायण आदि उपस्थित थे। संदर्भ २०२० में निधन भारत में हत्याकांड
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पोर्शे
पोर्शे ऑटोमोबिल होल्डिंग एसई, आमतौर पर जिसका संक्षिप्त रूप पोर्शे एसई ( है,) यानि सोसाएटास यूरोपिया या यूरोपीय सार्वजनिक कम्पनी, वह विलासिता वाली उच्च प्रदर्शन मोटर वाहन की एक जर्मन मोटर वाहन निर्माता है, जिसका स्वामित्व पीच-पोर्शे परिवार के पास है। पोर्शे एसई का मुख्यालय स्टटगार्ट, बेडेन वुर्टेमबर्ग के शहरी जिले ज़ुफेंहौसेन में स्थित है। पोर्शे एसई की एक मुख्य सहायक है - डॉ॰ इंग. एच.सी. एफ. पोर्शे एजी (जिसका पूर्णार्थ है डॉक्टर इनजेनीयूर होनोरिस कौसा फेरडीनैंड पोर्शे एक्टिएन्गेसेलस्चाफ्ट जिसे संक्षिप्त रूप में अक्सर पोर्शे एजी कहते हैं और जो पोर्शे ऑटोमोबाइल श्रृंखला के वास्तविक उत्पादन और निर्माण के लिए जिम्मेदार है। कम्पनी का अधिकांश भाग वोक्सवैगन एजी द्वारा खरीदा हुआ है, जो वोक्सवैगन समूह की अभिभावक कम्पनी है और जो 50% शेयरों की स्वामी है। संक्षिप्त विवरण यह कम्पनी डॉ॰ इंग. एच. सी. एफ पोर्शे GmbH के नाम से 1931 में फरडीनैंड पोर्शे, एक ऑस्ट्रियाई इंजीनियर जिनका जन्म मैफर्सडोर्फ़ में ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य (अब व्राटिसलावाईस नाड निसोऊ, चेक गणराज्य) और पोर्शे के दामाद एंटोन पीच जो एक ऑस्ट्रियाई वकील थे, द्वारा स्थापित की गयी थी। फरडीनैंड पोर्शे पहले वोक्सवैगन को डिजाइन करने के लिए भी जाने जाते हैं, लेकिन बेला बरेंई को पांच साल पहले इसकी बुनियादी डिजाइन की कल्पना करने का श्रेय दिया जाता है। कम्पनी वर्तमान में 911 (997) बॉक्सटर और केमैन स्पोर्ट्स कारों और कैयेने स्पोर्ट्स उपयोगिता वाहनों का उत्पादन करती है। नवीनतम मॉडल श्रृंखला, चार-द्वार पैनामेरा सैलून (सेडान), सोमवार 20 अप्रैल 2009 को शुरू किया गया। अगस्त 2009 में, पोर्शे एसई और वोल्क्स वैगन एजी एक सहमति पर पहुंची की 2011 में दोनों कम्पनियों का विलय हो जायेगा ताकि एक "एकीकृत मोटर वाहन समूह" बनाया जा सके. प्रतिष्ठा मई 2006 के एक सर्वेक्षण में, लक्जरी इंस्टीटयूट न्यूयॉर्क, द्वारा पोर्शे को सबसे प्रतिष्ठित ऑटोमोबाइल ब्रांड के खिताब से सम्मानित किया गया; इसमें कम से कम 200,000 यूएस डॉलर सकल सालाना आय वाले और कम से कम 720000 यूएस डॉलर नेट सम्पत्ति वाले 500 से भी अधिक परिवारों से सवाल किए गए। वर्तमान पोर्शे मॉडल रेंज में शामिल है बॉक्सटर रोडस्टर स्पोर्ट्स कारों से लेकर उनके सबसे प्रसिद्ध उत्पाद, 911. केमैन थोड़ी अधिक कीमत में, बॉक्सटर के जैसी एक सख्त छत वाली कार है। कैयेने पोर्शे की मध्यम आकार वाली विलासिता खेल उपयोगिता वाहन (SUV) है। सीमित दौड़ वाली कारेरा जी.टी. ने मई 2006 में उत्पादन बंद कर दिया. एक उच्च प्रदर्शन लक्जरी सैलून/सेडान, पैनामेरा, की शुरुआत सोमवार 20 अप्रैल 2009 को हुई और इसे सितंबर और अक्टूबर में दुनिया भर में जारी किया जाना है। हाल ही में, बॉक्सटर के एक मकड़ी संस्करण की घोषणा की गयी और 2009 के लॉस एंजिल्स ऑटो शो में इसके अनावरण के बाद यह उपलब्ध होने लगी. पोर्शे को 2006, 2009 और 2010 के जे. डी. पावर और एसोसिएट्स पुरस्कार से सम्मानित किया गया जो उसे ऑटोमोबाइल ब्रांडों के अपने प्रारंभिक गुणवत्ता अध्ययन (IQS) में उच्चतम क्रम वाले नामपटल के लिए दिया गया। एक कम्पनी के रूप में, पोर्शे को बदलती बाज़ार स्थितियों को व्यापक वित्तीय स्थिरता के जरिए बदलने के लिए जाना जाता है, जब इसने जर्मनी में अपनी अधिकांश उत्पादन को उस समय जारी रखा जिस समय अधिकांश अन्य कार निर्माताओं में अपने उत्पाद के कम से कम कुछ हिस्से पूर्वी यूरोप या विदेशों में स्थानांतरित कर लिया था। मुख्यालय और मुख्य कारखाना अभी भी स्टटगार्ट के एक जिले ज़ुफेंहौसेन में है, लेकिन कैयेने (और पूर्व में करेरा जी.टी.), लिप्सिग, जर्मनी, में निर्मित किया जाता है SUV के पुर्जों को भी ब्रातिसलावा, स्लोवाकिया, में एकत्रित किया जाता है। अधिकांश बॉक्सटर और केमैन उत्पादन 2012 तक फिनलैंड में वॉलमेट ऑटोमोटिव को आउटसोर्स किया जाएगा. यह कम्पनी हाल के समय में बहुत सफल रही और यह वास्तव में दुनिया भर में किसी भी कार कम्पनी की तुलना में प्रति यूनिट की बिक्री पर उच्चतम लाभ अर्जित करने का दावा करती है। पोर्शे इंजीनियरिंग ग्रुप (PEG) ने कई वर्षों से विभिन्न अन्य कार निर्माताओं के लिए परामर्श सेवाओं की पेशकश की है। ऑडी, स्टडबेकर, सीट, देवू, सुबारू, युगो और अन्य ने अपने कारों या इंजनों के लिए पोर्शे इंजीनियरिंग ग्रुप की सलाह ली. लाडा समारा 1984 में आंशिक रूप से पोर्शे द्वारा विकसित किया गया था। पोर्शे इंजीनियरिंग ग्रुप ने रीवोल्युशन 60 डीग्री v-ट्विन जल प्रशीतित इंजन और गीयरबॉक्स के डिजाइन में हार्ले-डेविडसन की सहायता की जो उनके V-रॉड मोटरसाइकिल में प्रयोग किया जाता है। एसयूवी (SUV) का स्वागत सीएनबीसी के अनुसार, 2003 में उस समय कैयेने के साथ एसयूवी बाज़ार पर एक संदिग्ध धावा, पोर्शे की विश्वसनीयता को नुक्सान नहीं पहुंचा सका. द टाइम्स के पत्रकार एंड्रयू फ्रैनकेल ने कहा, एक स्तर पर, यह दुनिया की सबसे अच्छी 4x4 है, लेकिन दूसरे स्तर पर यह एक शानदार ब्रांड का निंदक शोषण है जो आसानी से पैसे कमाने की दौड़ में ब्रांड की अपनी पहचान को दीर्घकालीन क्षति पहुंचाने का जोखिम उठा रही है और जिसमें उनका फैसला था "यदि यह पोर्शे नहीं होती तो यह एक महान कार होती". आलोचकों के विवाद का सामना करने के बावजूद, कैयेने सफल रहा और इसने कम्पनी के लिए पर्याप्त लाभ पैदा किया जो कम्पनी के निवेश और मौजूदा मॉडल रेंज के उन्नयन के लिए, साथ ही साथ पैनामेरा परियोजना निधि को वित्त प्रदान करने के लिए पर्याप्त था अगस्त 2009 तक, 250,000 से भी अधिक कैयेने निर्मित की जा चुकी हैं। इतिहास प्रोफेसर फरडीनैंड पोर्शे ने स्थापित किया "यह कम्पनी डॉ॰ इंग. एच. सी. एफ पोर्शे GmbH", वर्ष 1931 में जिसका मुख्य कार्यालय स्टटगार्ट केंद्र में क्रोनेनस्ट्रासे 24 में था। प्रारंभ में, कम्पनी ने मोटर वाहन विकास कार्य और सलाह की पेशकश की, लेकिन अपने नाम के तहत किसी कार का निर्माण नहीं किया। नई कम्पनी को प्राप्त सर्वप्रथम कार्य जर्मन सरकार की ओर से लोगों के लिए एक कार डिजाइन करने का था, एक . इसके परिणामस्वरूप वोक्सवैगन बीटल का निर्माण हुआ जो आज तक की सबसे सफल कार डिजाइनों में से एक थी। पहली पोर्शे, पोर्शे 64 का विकास बीटल के कई पुर्जों का उपयोग करके 1939 में किया गया। द्वितीय विश्व युद्घ के दौरान, वोक्सवैगन का उत्पादन, वोक्सवैगन बीटल के सैन्य संस्करण की ओर पलट गया, 52000 कुबेलवैगन, का उत्पादन किया गया और स्विमवैगन, 14000 का उत्पादन किया गया। पोर्शे ने युद्ध के दौरान भारी टैंकों के कई डिजाइनों का निर्माण किया और वे दोनों ही अनुबंधों में हेन्शेल एंड सन से हार गए जिसके फलस्वरूप अंततः टाइगर I और टाइगर II का निर्माण हुआ। बहरहाल, यह सभी कार्य बर्बाद नहीं हुआ, क्योंकि टाइगर I के लिए डिजाइन किया गया चेसिस एलिफैंट टैंक विध्वंसक के बेस के रूप में इस्तेमाल किया गया। युद्ध में अंतिम चरण में पोर्शे ने माउस सुपर-भारी टैंक को भी विकसित किया, जिसका उसने दो प्रोटोटाइप निर्माण किया। 1945 में WW2 के अंत में, वोल्फस्बर्ग में वोक्सवैगन कारखाना ब्रिटिश के हाथों में चला गया। फर्डिनेंड ने वोक्सवैगन के बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट के अध्यक्ष के रूप में अपना पद खो दिया और एक ब्रिटिश सेना मेजर - इवान हिर्स्ट को कारखाने का प्रभार सौप दिया गया। (वोल्फस्बर्ग में, वोक्सवैगन कम्पनी पत्रिका ने उसे करार दिया "वह ब्रिटिश मेजर जिसने वोक्सवैगन को बचा लिया।") उसी वर्ष 15 दिसम्बर को, फर्डिनेंड को युद्ध अपराधों के लिए गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन उनपर कोई मुकद्दमा नहीं चलाया गया। अपने 20 महीने के कारावास के दौरान, फरडीनैंड पोर्शे का बेटा, फेरी पोर्शे, ने अपनी खुद की कार बनाने का निश्चय किया क्योंकि उसे वह कार नहीं मिल रही थी जो वह खरीदना चाहता था। उसे अगस्त 1947 में अपने पिता की रिहाई तक कम्पनी को सबसे कठिन दिनों के बीच से निकाल कर लाना पड़ा था। गमंड ऑस्ट्रिया के छोटे से सोमिल में, आगे चल कर 356 बनने वाले का पहला मॉडल बनाया गया। इस प्रोटोटाइप कार को जर्मन ऑटो डीलरों को दिखाया गया और जब पूर्व-ऑर्डर तय सीमा तक पहुंचा, उत्पादन शुरू हो गया। कई 356 को प्रथम पोर्शे केवल इसलिए कहते हैं, क्योंकि यह अनुभवहीन कम्पनी द्वारा बेची गयी पहली मॉडल थी। पोर्शे ने एक ज़ुफेंहौसेन आधारित कम्पनी को अधिकृत किया, Reutter Karosserie जिसने पहले, 356 के इस्पात बोडी का उत्पादन करने के लिए फर्म के साथ वोक्सवैगन बीटल प्रोटोटाइप पर सहयोग किया था। 1952 में, पोर्शे ने Reutter Karosserie के सड़क के उस पार एक संयोजन संयंत्र का निर्माण किया (वेर्क 2); वेर्क 1 की मुख्य सड़क के सामने की पोर्शे की सबसे प्राचीन बिल्डिंग को पोर्शेस्ट्रासे के नाम से जाना जाता है। 356 को 1948 में सड़क प्रमाणित कर दिया गया। पोर्शे की कम्पनी का लोगो पूर्व के वाइमर जर्मनी के फ्री पीपल्स स्टेट ऑफ़ वुर्टेमबर्ग के कुल-चिह्न पर आधारित है, जिसकी राजधानी स्टटगार्ट थी जो 1949 में पश्चिम जर्मनी के राजनीतिक समेकन के बाद बाडेन-वुर्टेमबर्ग का हिस्सा बन गयी। जल्द ही, 30 जनवरी 1951 को, फर्डिनेंड पोर्शे की दिल के दौरे के बाद उत्पन्न हुई जटिलताओं से मृत्यु हो गई। युद्ध पश्चात जर्मनी में, पुर्जों की आपूर्ति आमतौर पर कम थी, इसलिए 356 ऑटोमोबाइल ने वोक्सवैगन बीटल से घटकों का उपयोग किया जिसमें शामिल है उसका आंतरिक दहन इंजन, ट्रांसमिशन और निलंबन. हालांकि, उत्पादन के दौरान 356 कई विकासवादी चरणों, ए, बी और सी से गुज़रा और कई वोक्सवैगन पुर्जें पोर्शे द्वारा निर्मित पूर्जों से बदले गए। अंतिम के 356 पूरी तरह से पोर्शे द्वारा डिजाइन की गयी इंजनों द्वारा संचालित थी। चिकना बाहरी ढांचा इरविन कोमेंडा द्वारा डिज़ाइन किया गया था जिन्होनें बीटल के ढांचे को भी डिजाइन किया था। पोर्शे की सिगनेचर डिजाइन में, शुरू से ही, एयर-कूल्ड पश्च्य-इंजन विन्यास सुविधा (बीटल की तरह), जो अन्य कार निर्माताओं के लिए दुर्लभ था, लेकिन ऐसे ऑटोमोबाइल का निर्माण किया जो बहुत अच्छी तरह से संतुलित थे। 1964 में, मोटर रेसिंग में कथित रूप से 550 स्पाइडर के साथ कुछ सफलता के बाद, कम्पनी ने पोर्शे 911 को पेश किया जो इस बार एक छः सिलेंडर "बॉक्सर" इंजन के साथ, एक और एयर कूल्ड, रियर इंजन वाली स्पोर्ट्स कार थी, . फेरी पोर्शे के ज्येष्ठ पुत्र फर्डिनेंड अलेक्जेंडर पोर्शे (एफ. ए.) ने ऊपरी खोल को बनाने वाली टीम का नेतृत्व किया। 911 का लिए डिजाइन चरण इरविन कोमेंडा के साथ आंतरिक समस्याओं का कारण बना, जो तब तक बोडी डिजाइन विभाग का नेतृत्व कर रहे थे। एफ.ए. पोर्शे ने शिकायत की कि कोमेंडा ने डिजाइन में अनधिकृत परिवर्तन किए. कम्पनी के मालिक फेरी पोर्शे अपने पुत्र द्वारा बनाये गए चित्रों को पड़ोस के चेसिस निर्माता राउटर के पास ले गए। राउटर की कार्यशाला बाद में पोर्शे द्वारा अधिग्रहीत कर ली गयी (तथाकथित वेरक 2). इसके बाद राउटर एक सीट निर्माता बन गया, जो आज काइपर रेकारो के नाम से जाना जाता है। इस डिजाइन समूह ने प्रत्येक परियोजना को अनुक्रमिक संख्या (356, 550, आदि), लेकिन निर्दिष्ट 901 नामपद्धति ने पूजो के ट्रेडमार्क 'x0x' नामों का उल्लंघन कर रहा था, इसलिए इसे 911 पर समायोजित किया गया। रेसिंग मॉडल 'सही' अनुक्रम क्रमांकन का पालन करते हैं: 904, 906, 908. 911, पोर्शे की सबसे जानी मानी और प्रतिष्ठित मॉडल बन गयी है - रेस-ट्रैक, रैलियों में और रोड कार बिक्री के सन्दर्भ में सफल रही. किसी भी अन्य मॉडल की तुलना में, पोर्शे ब्रांड 911 से परिभाषित किया जाता है। इसका उत्पादन जारी है; लेकिन संशोधन की कई पीढ़ियों के बाद, वर्तमान मॉडल 911 केवल बुनियादी यांत्रिक अवधारणा में हिस्सेदारी करता है जो है एक रियर इंजन, छः सिलेंडर कूप और मूल कार के साथ बुनियादी स्टाइलिंग संकेत. समान ढांचा के साथ एक कम लागत मॉडल, लेकिन 356 व्युत्पन्न रनिंग गियर (जिसमें उसके चार-सिलेंडर इंजन शामिल थे), 912 के रूप में बेचा गया। 1972 में, कम्पनी के कानूनी रूप को Kommanditgesellschaft (KG), या लिमिटेड पार्टनरशिप से, Aktiengesellschaft (AG) या पब्लिक लिमिटेड कम्पनी में परिवर्तित किया गया, क्योंकि फेरी पोर्शे और उनकी बहन, लुईस पीच, ने यह महसूस किया कि उनकी पीढ़ी के सदस्यों के बीच आपसी ताल मेल अच्छे से नहीं बिठा पाते. इसने एक कार्यकारी बोर्ड, जिसके सदस्य पोर्शे परिवार के बाहर से थे और एक पर्यवेक्षी बोर्ड जिसमें अधिकांश परिवार के सदस्य शामिल थे, की स्थापना की अगुवाई की . इस बदलाव के साथ, परिवार का कोई भी सदस्य कम्पनी के संचालन प्रभार में नहीं था। एफ.ए. पोर्शे ने अपनी खुद की डिजाइन कम्पनी, पोर्शे डिजाइन की स्थापना की जो विशेष धूप के चश्मे, घड़ियां, फर्नीचर और कई अन्य विलासिता वस्तुओं के लिए विख्यात है। फर्डिनेंड पीच जो पोर्शे के सीरियल और रेसिंग कार के यांत्रिक विकास के लिए जिम्मेदार थे ने अपनी इंजीनियरिंग ब्यूरो का गठन किया और मर्सिडीज बेंज के लिए एक पांच सिलेंडर इनलाइन डीजल इंजन विकसित किया। थोड़े समय बाद वे ऑडी में चले गए और पूरी कम्पनी में अपना कैरियर बिताया जिसमें वोक्सवैगन समूह शामिल है। पोर्शे ए जी के पहले मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) थे डॉ॰ अर्नस्ट फरमन, जो कम्पनी के इंजन के विकास कार्य में काम करते थे। फरमन, कारेरा 356 मॉडलों और साथ ही साथ 550 स्पाइडर में तथा कथित फरमन इंजन के प्रयोग के लिए जिम्मेदार थे, जिसमें पुशरौडों के साथ एक ही केंद्रीय कैमशाफ्ट के बजाय चार ऊपरी कैमशाफ्ट होते है जैसा की वोक्सवैगन द्वारा चालित सीरियल इंजन में होता है। 1970 के दशक के दौरान उन्होंने 911 को बंद करने और इसे V8 -फ्रंट इंजन वाली भव्य स्पोर्ट्सवैगन 928 से बदलने की योजना बनाई. जैसा की हम जानते हैं की 928 के मुकाबले 911 बहुत अधिक लम्बा चला. 1980 के दशक के पूर्वार्ध में पीटर डब्ल्यू चेट्ज़ ने फरमन का स्थान ग्रहण किया, जो एक अमेरिकी प्रबंधक और स्वःघोषित 911 प्रशंसक थे। 1988 में उन्हें जर्मन कम्प्यूटर कम्पनी निक्सडोर्फ़ कम्प्यूटर एजी, के पूर्व प्रबंधक अरनो बोहन द्वारा प्रतिस्थापित किया गया, जिनके कुछ महंगे गलत अनुमानों के चलते उन्हें जल्द ही डेवेलपमेंट डायरेक्टर डॉ॰अलरीच बज के साथ बर्खास्त कर दिया गया, जो पूर्व में बीएमडब्ल्यू Z1 मॉडल के लिए ज़िम्मेदार थे और आज एस्टन मार्टिन के सीईओ हैं। 1990 में, पोर्शे ने टोयोटा के साथ एक सहमति ज्ञापन तैयार किया ताकि जापानी तरीकों को सीखा और उनका लाभ उठाया जा सके. वर्तमान में टोयोटा हाइब्रिड प्रौद्योगिकी में पोर्शे की मदद कर रही है, जिसके बारे में अफवाह है कि वह हाइब्रिड कैयेने एसयूवी बनाने की ओर अग्रसर है और उसने 2011 मॉडल के लिए चार दरवाजा कूप, पेनामेरा पोर्शे की घोषणा की. बोहन की बर्खास्तगी के बाद, एक अंतरिम मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया, लंबे समय तक पोर्शे के कर्मचारी रहे, हाइन्ज़ ब्रानीत्ज्की, ने इस पद को 1993 में डॉ॰ वेंडेलिन विएडकिंग के सीईओ बनने तक सम्भाला. विएडकिंग ने बोर्ड की अध्यक्षता उस वक्त संभाली जब पोर्शे एक बड़ी कम्पनी द्वारा अधिग्रहण की चपेट में आता दिखाई दे रहा था। अपने लंबे कार्यकाल के दौरान, विएडकिंग ने पोर्शे को एक बहुत ही कुशल और लाभदायक कम्पनी में तब्दील कर दिया. फरडीनैंड पोर्शे के पोते, फर्डिनेंड पीच, 1993 से 2002 तक वोक्सवैगन समूह के अध्यक्ष और सीईओ बने रहे. आज वे पर्यवेक्षी बोर्ड के अध्यक्ष हैं। पोर्शे के मतदान शेयरों में से 12.8 प्रतिशत के साथ, अपने चचेरे भाई, एफ.ए. पोर्शे के बाद (13.6 प्रतिशत), वे पोर्शे एजी के दूसरे सबसे बड़े व्यक्तिगत शेयरधारक हैं। 2002 में पोर्शे द्वारा कैयेने के परिचय ने सेक्सोनी लिपसिग में एक नए उत्पादन सुविधा का अनावरण भी देखा जो एक समय पोर्शे के वार्षिक उत्पादन के लगभग आधे के ज़िम्मेदार था। कैयेने टर्बो एस के पास पोर्शे के इतिहास में तीसरी सबसे शक्तिशाली उत्पादन इंजन है, जिसमें से सबसे शक्तिशाली इंजन कारेरा जी.टी. (605 एचपी) के पास है और दूसरा 997 GT2 (530 एचपी) के पास है। कैयेने टर्बो एस का 500 एचपी "997 द्वितीय" टर्बो के आउटपुट से मेल खाती है। 2004 में, कारेरा जी.टी. का उत्पादन लिपसिग में शुरू किया गया और EUR 450,000 में ($440,000 अमेरिका में) यह पोर्शे द्वारा कभी भी बनाया गया सबसे महंगी मॉडल था। 2005 तक, विस्तारित पोर्शे और पीच परिवारों ने पोर्शे एजी के सभी मतदान शेयरों को नियंत्रित किया। अक्टूबर 2005 के पूर्वार्ध में कम्पनी ने वोक्सवैगन एजी (VW AG) के 18.53% शेयरों के अधिग्रहण की घोषणा की और भविष्य में VW AG के और अधिक शेयरों को खरीदने के इरादे का खुलासा किया। जून 2006 को, VW AG में पोर्शे एजी का शेयर 25.1% तक बढ़ गया जिसने पोर्शे को एक अवरुद्ध अल्पसंख्यक प्रदान किया, जिसके तहत पोर्शे VW AG द्वारा किए गये बड़े कॉर्पोरेट निर्णयों को वीटो कर सकता है। 2006 के मध्य में, उत्तरी अमेरिका में बॉक्सटर (और बाद में कैयेने) के प्रमुख पोर्शे होने के वर्षों बाद, 911 ने पोर्शे की रीढ़ की हड्डी के रूप में क्षेत्र में अपनी स्थिति को पुनः स्थापित किया। तब से कैयेने और 911 को सर्वाधिक बिकने वाले मॉडल के रूप में पुनः निर्मित किया जाने लगा. जर्मनी में 911 स्पष्ट रूप से बॉक्सटर/केमैन और कैयेने से अधिक बिकती है। मुनाफा पोर्शे का 2006/2007 वत्तीय वर्ष का शुद्ध लाभ था € 4.2 बिलियन. इसमें से € 3.6 बिलियन स्टॉक विकल्प लेनदेन से था, संभाव्यतः रूप से अधिकांश वोक्सवैगन एजी और उसके लाभांश से था। मीलियन यूरो में मुनाफे की तालिका: यूरोपीय बिक्री उत्तरी अमेरिका की बिक्री अमेरिका की बिक्री वोक्सवैगन के साथ संबंध कम्पनी के पहले वोक्सवैगन (VW) मार्क और बाद में वोक्सवैगन समूह (जो ऑडी एजी का भी स्वामी है) के साथ हमेशा करीबी सम्बंध रहे हैं, क्योंकि पहला वोक्सवैगन बीटल फरडीनैंड पोर्शे द्वारा बनाया गया था। (प्रथम बीटल का प्रारंभिक उत्पादन एजी डेमलर-बेंज के सहयोग से बनाया गया था). दोनों कंपनियों के 1969 में VW-पोर्शे 914 और 914-6, बनाने में सहयोग किया, जिसमें पोर्शे 914-6 में एक पोर्शे इंजन था और 914 में एक वोक्सवैगन इंजन था, 1976 में पोर्शे 912 ई (USA केवल) और पोर्शे 924 के साथ, जिसमें कई ऑडी पुर्जों का प्रयोग किया गया था और जो ऑडी के नेकारस्लम कारखाने में निर्मित हुआ। अधिकांश पोर्शे 944 भी वहीं बनाए गए थे, हालांकि वे अब बहुत कम वोक्सवैगन पुर्जों का इस्तेमाल करते हैं। 2002 में शुरू किया गया कैयेने, अपनी पूरी चेसिस वोक्सवैगन टौआरेग और ऑडी Q7 के साथ सांझा है, जो ब्राटिसलावा में वोक्सवैगन समूह कारखाना में निर्मित होता है। 2005 के अतरार्ध में, पोर्शे ने वोक्सवैगन समूह में 18.65% हिस्सेदारी ले ली, जिससे सम्बंध और मजबूत हुए और वोक्सवैगन समूह उस अधिग्रहण से सुरक्षित रहा जिसकी उस समय अफवाह थी। अनुमानित खरीदारों में शामिल था डेमलर क्रिसलर एजी,बीएमडब्ल्यू, और रेनाउल्ट. 26 मार्च 2007 को, पोर्शे ने जर्मन कानून के तहत अधिग्रहण बोली को सक्रिय करके वोक्सवैगन एजी में अपनी हिस्सेदारी 30.9% तक बढ़ा लिया। पोर्शे ने तब औपचारिक रूप से एक प्रेस वक्तव्य में घोषणा की कि वोक्सवैगन समूह को अधिग्रहित करने का उसका कोई इरादा नहीं है (वह अपने प्रस्ताव मूल्य को निम्न सम्भव कानूनी मूल्य पर तय करेगा), लेकिन वह इस कदम को इसलिए उठाना चाहता था ताकि प्रतियोगियों को बड़ी हिस्सेदारी लेने से रोका जा सके, या बचाव कोषों को वोक्सवैगन समूह को समाप्त करने से बचाया जा सके, जो पोर्शे का सबसे महत्वपूर्ण साथी है। पोर्शे का यह कदम यूरोपीय संघ के वोक्सवैगन एजी को अधिग्रहणों से संरक्षित करने वाले जर्मन कानून के खिलाफ हो जाने के बाद आया। तथाकथित "वोक्सवैगन कानून", के तहत 20% से अधिक मतदान अधिकार वाले किसी भी शेयरधारक को वार्षिक आम बैठक में कम्पनी के किसी भी फैसले पर वीटो का अधिकार है - प्रभाव में, VW AG में कोई भी शेयरधारक फर्म के मतदान अधिकार का 20% से अधिक का प्रयोग नहीं कर सकते, उनके स्टॉक धारिता के स्तर की परवाह किए बिना. (लोअर सैक्सोनी स्थानीय राज्य सरकार 20.1% का शेयरधारक है।) हालांकि, यूरोपीय न्यायिक अदालत ने कानून की खिलाफत की और एक सम्भावित अधिग्रहण के लिए रास्ता साफ़ किया। 16 सितम्बर 2008 को पोर्शे ने अपनी हिस्सेदारी और 4.89% से बढ़ा ली जिसके प्रभाव में उसने 35% से भी अधिक का मतदान अधिकार लेकर कम्पनी का नियंत्रण ले लिया। उसने फिर से एक अधिग्रहण बोली की शुरुआत की, लेकिन इस बार ऑडी पर. पोर्शे ने इस बोली को महज एक औपचारिकता के रूप में खारिज कर दिया, क्योंकि वोक्सवैगन समूह की कार्पोरेट संरचना को बनाये रखना ही पोर्शे का इरादा है। वोक्सवैगन समूह के कार्यकर्ताओं के बीच कुछ तनाव और चिंता रही, जो इस बात से आशंकित थे की एक पोर्शे अधिग्रहण, एक सख्त उत्पादन क्षमता नियंत्रण, अधिक भुगतान की मांगों पर अस्वीकृति या कर्मियों की कटौती को परिणामित कर सकता है। फर्डिनेंड पीच और उनके चचेरे भाई, वोल्फगैंग पोर्शे भी एक टकराव की स्थिति में नज़र आए. 13 अगस्त 2009 को वोक्सवैगन एजी पर्यवेक्षी बोर्ड ने, वोक्सवैगन एजी के नेतृत्व में पोर्शे के साथ एक "एकीकृत ऑटोमोटिव समूह" समझौते पर हस्ताक्षर किया। शुरुआत में 2009 के अंत तक वोक्सवैगन, पोर्शे एजी में 49.9 प्रतिशत की हिस्सेदारी लेगा और यह परिवार के शेयरधारकों को ऑटोमोबाइल व्यापार व्यवसाय पोर्शे होल्डिंग साल्ज़बर्ग को वोक्सवैगन एजी को बेचते हुए भी देखेगा. कम्पनी का पुनर्गठन वोक्सवैगन एजी की हिस्सेदारी अधिग्रहण के माध्यम से, पोर्शे ने कम्पनी की संरचना में सुधार किया, जिसमें डॉ इंग. एच. सी. एफ. पोर्शे एजी एक होल्डिंग कम्पनी बना और "पोर्शे ऑटोमोबिल होल्डिंग एसई" के नाम से पुनर्नामकरण किया गया और एक नई डॉ॰ इंग. एच. सी. F. पोर्शे एजी परिचालित कम्पनी का गठन 2007 में हुआ। इस प्रकार कम्पनी की परिचालन गतिविधियों को होल्डिंग गतिविधियों से अलग कर दिया गया है। स्टटगार्ट, जर्मनी में पोर्शे एरीना में 26 जून 2007 को कम्पनी संरचना में बदलाव की चर्चा करने के लिए, पोर्शे एजी शेयरधारकों की एक असाधारण आम बैठक (EGM) हुई. 3 मार्च 2008 को, वोक्सवैगन एजी में एक बहुलता हिस्सेदारी प्राप्त करने के लिए पोर्शे ने मंच तैयार किया। एक दिन बाद पोर्शे ने आशंकाओं को शांत करने के लिए कहा कि वह वोक्सवैगन समूह के साथ विलय के प्रयास पर बल देगा. सितंबर तक, पोर्शे ने वोक्सवैगन एजी की 35.14% बहुलता हिस्सेदारी खरीद ली, जिससे उसे प्रभावी रूप से कम्पनी पर नियंत्रण हासिल हो गया। वोक्सवैगन समूह को इस कदम की उम्मीद थी और पोर्शे के निवेश का स्वागत किया। 26 अक्टूबर 2008 को, पोर्शे ने 2009 के दौरान वोक्सवैगन एजी में अपनी हिस्सेदारी 75% बढ़ाने के इरादे की घोषणा की. 7 जनवरी 2009 को, VW एजी में पोर्शे की हिस्सेदारी 50.76% तक बढ़ गयी। पोर्शे के इस कदम ने स्वतः ही स्कानिया ए बी की नीलामी की शुरूआत तय कर दी, क्योंकि VW एजी पहले से ही इस स्वीडिश ट्रक निर्माता में नियंत्रण की स्थिति में था। चूंकि पोर्शे को इस कम्पनी में कोई सामरिक दिलचस्पी नहीं थी, 19 जनवरी को उन्होंने उस अनिवार्य अधिग्रहण बोली में न्यूनतम कीमत की पेशकश की. 5 जनवरी 2009 तक पोर्शे एसई ने वोक्सवैगन समूह का 50.8 प्रतिशत स्वामित्व हासिल किया और कहा कि 2009 के अंत तक वह अपनी हिस्सेदारी को 75 प्रतिशत तक बढ़ाने की योजना बना रहा है, उस स्तर पर वे VW एजी के नकद को पोर्शे के खातों में ला सकते थे। मार्च 2009 तक, पोर्शे एसई, स्टैंडर्ड एंड पूअर्स और मूडीज़ रेटिंग एजेंसियों से अपनी पहली क्रेडिट रेटिंग पाने का प्रयास कर रहा था। वोक्सवैगन एजी में बहुमत हिस्सेदारी हासिल करने के प्रयास में, पोर्शे पर करों से बधा हुआ कर्जे का एक बड़ा बोझ था, जो वोक्सवैगन एजी विकल्पों से होने वाले बहुत बड़े कागज़ी मुनाफों पर देय था। जुलाई 2009 तक, पोर्शे को 10 बिलियन यूरो के कर्जे का सामना करना पड़ा. पोर्शे की पर्यवेक्षी बोर्ड अंततः कई समझौतों पर सहमत हो गयी जिसके तहत कतर इन्वेस्टमेंट अथोरिटी एक बहुत बड़ी राशि का निवेश करता और वोक्सवैगन समूह के साथ पोर्शे का विलय कर दिया जाता. 23 जुलाई 2009 को, माइकल माच्ट को सीईओ नियुक्त किया गया, उन्होंने वेंडलिन विएडकिंग की जगह ली, जिन्हें 50 मिलियन यूरो का मुआवजा पैकेज मिलने की उम्मीद है। सीएनबीसी के अनुसार, 14 अगस्त 2009 तक "वोक्सवैगन ने पोर्शे के लिए सौदे को मुहरबंद कर दिया है". 31 अगस्त में, ये रिपोर्ट परिसंचारी होने लगे कि वोक्सवैगन समूह की छत्र छाया में बनने वाली कैयेने और पैनामेरा सात वर्षों में अपने मॉडल चक्र को पूरा करते ही पोर्शे की श्रृंखला से अलग कर दी जाएगी, ताकि वोक्सवैगन की वर्तमान एसयूवी और सैलून पेशकश के साथ प्रतिस्पर्धा को कम किया जा सके. वोक्सवैगन समूह का यह मानना है कि यह एसयूवी और सैलून बनाकर थक चूका है और अब वह पोर्शे का पूर्ण रूप से एक स्पोर्ट्स कार उत्पादित मार्क के रूप में पुनर्गठन करना चाहता है। इसका मतलब यह होगा कि बॉक्सटर केमैन और 911 बच जाएगें और इसके साथ होगा कारेरा जी.टी. सुपरकार का एक उत्तराधिकारी जिसके शुरू किए जाने की अफवाह थी और जो वर्तमान बॉक्सटर के नीचे तैनात एक प्रवेश स्तर की गाड़ी और वर्तमान पैनामेरा पर आधारित एक द्वि-द्वार वाहन होगी. वोक्सवैगन एजी या पोर्शे द्वारा, इन आख्याओं की पुष्टि किया जाना अभी बाकि है। 2 सितंबर को, एक लेख प्रकाशित किया गया था जिसमें पोर्शे अधिकारीयों ने कैयेने और पैनामेरा के बंद किए जाने की अफवाहों को विभिन्न कारणों से खारिज कर दिया, जिनमें में से दो में यह बताया गया है: वोक्सवैगन समूह के सीईओ मार्टिन विंटरकोर्न ने हाल ही में यह प्रतिज्ञा ली है कि बाद के कुछ वर्षों में पोर्शे प्रति वर्ष 150,000 वाहनों का उत्पादन करेगा जो कैयेने के बिना लगभग असंभव हो जाएगा, क्योंकि यह कम्पनी की सबसे उच्च बिक्री वाहन है और यह रूस और चीन जैसे विदेशी बाजारों में घुसने को सम्भव बनाया. एक एक अरब यूरो निवेश कार्यक्रम को पैनामेरा के विकास के लिए समर्पित किया गया, एक उपलब्धि जो पोर्शे के लिपसिग उत्पादन सुविधा (जहां वर्तमान में कैयेने का निर्माण किया जा रहा है) के विस्तार को शामिल करता है ताकि पैनामेरा के उत्पादन को स्थान दिया जा सके. इसलिए, पोर्शे के इन दोनों सबसे महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को समाप्त करना विसंगत प्रतीत होता है। इन वाहनों को समाप्त किया जायेगा या नहीं इसकी पुष्टि वोक्सवैगन समूह या पोर्शे से अभी भी प्राप्त नहीं हुई है। जुलाई 2010 में, पोर्शे ने वोक्सवैगन कार्यकारी मत्थिअस म्यूएलर को अपने सीईओ के पद पर नियुक्त किया, जिसके तहत वे माइकल मेयर को वोक्सवैगन एजी के भीतर किसी अन्य कार्यकारी पद भेज दिया गया। म्यूएलर के मार्गदर्शन में, पोर्शे ने अगले पांच वर्षों में कई नई मॉडलों को पेश करने में रुचि व्यक्त की ताकि बिक्री के आंकड़े को बरकरार रखा जा सके और अपनी लक्जरी पेशकश को विविधता प्रदान की जा सके. इनमें शामिल है एक नई 'बेबी बॉक्सटर' या प्रतिष्ठित पोर्शे 356 का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी जिसे वोक्सवैगन ब्लूसपोर्ट अवधारणा पर आधारित किया जाना है और वर्तमान बॉक्सटर, के नीचे स्थित किया जाना है और साथ ही साथ एक छोटा SUV जिसे अंतरिम रूप से पोर्शे काजुन कहा जाता है और जो ऑडी के कॉम्पैक्ट Q5 पर आधारित है। 29 नवम्बर 2010 को, पोर्शे एजी के पर्यवेक्षी बोर्ड ने काजुन के उत्पादन को मंजूरी दे दी, जिसकी 2013 तक पांचवें मॉडल श्रृंखला के रूप में की उम्मीद की जा रही है। मोटरस्पोर्ट पोर्शे मोटरस्पोर्ट में सबसे सफल ब्रांड है, जिसने 28,000 से भी अधिक जीत दर्ज की. पोर्शे वर्तमान में दुनिया की सबसे बड़ी रेस कार निर्माता है। वर्ष 2006 में, पोर्शे ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मोटर स्पोर्ट्स स्पर्धाओं के लिए 195 रेस कारों का निर्माण किया। 2007 में, पोर्शे के कम से कम 275 समर्पित दौड़ कारों के निर्माण की उम्मीद है (7 RS स्पाइडर LMP2 प्रोटोटाइप, 37 GT2 स्पेक 911 GT3-RSR और 231 911 GT3 कप वाहने "पोर्शे" का उच्चारण अंग्रेजी उपयोग में, पोर्शे को एक एकल शब्दांश के रूप में उच्चारित किया जाता है ("पोर्श") अंतिम /ə/ के बिना. हालांकि, कम्पनी का जर्मन उच्चारण है ("पोर्श-एः"). जर्मन भाषा के शब्दों में अनुच्चारित "e" नहीं होता है और जर्मन भाषा में एक अंतिम "e" एक स्वराघातहीन श्वा रूप से उच्चारित (निम्न बल/अवधि). मॉडल उपभोक्ता मॉडल 356 911 4 सीट स्पोर्ट्स टार्गा, कूप और कैब्रिओलेट 912 914 924 928 930 944 959 968 बॉक्सटर 2 सीट गाड़ी कैयेने एसयूवी केमैन 2 सीट स्पोर्ट्स कूप 980 पोर्शे करेरा जीटी पैनामेरा 970 4 सीट स्पोर्ट्स सैलून ट्रैक्टर पोर्शे प्रकार 110 पोर्शे एपी श्रृंखला पोर्शे जूनियर (14 एचपी) पोर्शे मानक (25 एचपी) पोर्शे सुपर (38 एचपी) पोर्शे मास्टर (50 एचपी) पोर्शे 312 पोर्शे 108F पोर्शे R22 रेसिंग मॉडल 64 360 सीसीटेलिया 550 स्पाइडर 718 787 804 904 906 907 908 909 बर्गस्पाइडर 910 917 934 935 936 956 961 962 पोर्शे-मार्च 89P WSC-95 / LMP1-98 LMP2000 (कभी नहीं दौड़ा) आरएस स्पाइडर (9R6) नोट: बोल्ड में लिखित मॉडलें वर्तमान मॉडलें हैं प्रोटोटाइप और संकल्पना कारें पोर्शे 114 पोर्शे 356/1 पोर्शे 695 (911 प्रोटोटाइप) पोर्शे 901 (911 प्रोटोटाइप) पोर्शे 916 (फ्लैट-6 914) पोर्शे 959 प्रोटोटाइप पोर्शे 942 पोर्शे 969 पोर्शे पैनअमेरिकाना पोर्शे 989 पोर्शे वारेरा पोर्शे C88 पोर्शे E2 पोर्शे मार्टेल डिजाइन पोर्शे 911 टार्गा 4S पोर्शे 918 स्पाइडर पोर्शे काजुन विद्युत चालित वाहन पोर्शे अपने प्रसिद्ध मॉडल पोर्शे 911 की विद्युत चालित संस्करण को पेश करने की योजना बना रहा है। वायुयान के इंजन पोर्शे PFM 3200 देखें. इन्हें भी देखें फरडीनैंड पोर्शे (संस्थापक) फेरी पोर्शे (फरडीनैंड एंटोन अर्नस्ट पोर्शे, 2 पीढ़ी, 356 के निर्माता) एफए पोर्शे (फरडीनैंड अलेक्जेंडर पोर्शे, तीसरी पीढ़ी, 911 टर्बो एस के डिजाइनर) पोर्शे संग्रहालय, स्टटगार्ट पोर्शे डिजाइन समूह पोर्शे इंजनों की सूची CTS कार टॉप सिस्टम अमेरिका के पोर्शे क्लब Need for Speed: Porsche Unleashed जर्मन कारों की सूची पोर्शे पैनामेरा (पोर्शे पैनामेरा) पोर्शे VIN संख्या सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ पोर्शे ऑटोमोबिल होल्डिंग एसई - शीर्ष स्तरीय मूल कम्पनी डॉ॰ इंग. एच. सी. एफ पोर्शे एजी पोर्शे ऑटोमोबाइल अंतरराष्ट्रीय पोर्टल पोर्शे इंजीनियरिंग पोर्शे लिपसिग पोर्शे पेरू पोर्शे डिजाइन समूह डिजिटललुक.कॉम वित्तीय जानकारी - पोर्शे ऑटोमोबिल होल्डिंग एसई (PAH3) वीडियो क्लिप पोर्शे यू ट्यूब चैनल जर्मनी पोर्शे जर्मनी के कार निर्माता 1931 में स्थापित कम्पनियां परिवार के कारोबार फ्रैंकफर्ट स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनियां जर्मन के ब्रांड लक्जरी ब्रांड जर्मनी के मोटर वाहन निर्माता वोक्सवैगन समूह स्पोर्ट्स कार निर्माता स्टटगार्ट में आधारित कंपनियां मोटर वाहन उद्योग
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स्टॉर्मी डैनियल्स
स्टॉर्मी डैनियल्स (, जन्म १७ मार्च १९७९ को बैटन रोग, लौइसिआना में) या स्टॉर्मी वाटर्स या संक्षेप में केवल स्टॉर्मी एक अमरीकी पॉर्न फिल्म अभिनेत्री, कथानककार व निर्देशक है। २००९ में इन्होने २०१० सेनेट चुनावों में डेविड विटर की विपरीत लौइसिआना से चुनाव लड़ने की कोशिश की थी। शुरूआती जीवन जब डैनियल्स चार वर्ष की थी तब उनके माता-पिता का तलाक हो गया। उन्हें उनकी माँ ने पाला पोसा। उन्होंने गरीबी में जीवन व्यतीत किया। आगे चलके उन्होंने लौइसिआना के एक विद्यालय में शिक्षा ली व अपने हाई स्कुल के अखबार की संपादक और ४-एचक्लब की अध्यक्ष रही। करियर डैनियल्स ने नग्न नृत्य १७ की आयु में बैटन रोग क्लब से शुरू किया और सितंबर २००० में एक मुख्य नर्तकी बन गई। उन्होंने अपना मंच का नाम मोटले क्रू नाम के बैंड के बेस बजाने वाले निकी सिक्स की बेटी स्टॉर्म के नाम पर रखा क्योंकि उन्हें यह बैंड बेहद पसंद था। मुख्य नर्तकी के रूप में कार्य करते वक्त उनकी मुलाकात डेवॉन मिशेल्स से हुए जों कुछ आगामी फ़िल्मों में समलैंगिक (लेस्बियन) दृश्य कर रही थी और उन्होंने डैनियल्स को अपने साथ चलने का निमंत्रण दिया। डैनियल्स मिशेल्स के साथ उनकी शूट पर गई जहां उनकी मुलाकार ब्रैड आर्मस्ट्रॉन्ग से हुई और उन्होंने मिशेल्स के साथ उनकी फ़िल्म अमेरिकन गर्ल्स पार्ट २ में भाग लिया। इसके बाद आर्मस्ट्रॉन्ग ने उन्हें अपने साथ रहने का निमंत्रण दिया जहां उन्होंने केवल लेस्बियन दृश्य ही दिए। जुलाई २०२ में उन्हें विकेड पिक्चर्स की फ़िल्म हीट में मुख्य भूमिका दी गई जिसमें उन्होंने अपना पहला सीधा सेक्स दृश्य किया और उसी वर्ष सितंबर में विकेड के साथ एक कॉन्ट्रेक्ट पर हस्ताक्षर कर दिए। २००४ में उन्हें सर्वश्रेष्ठ नै स्टारलेट का पुरस्कार एडल्ट वीडियो न्यूज़ की ओर से प्रदान किया गया। उन्होंने विकेड के लिए २००४ से निर्देशन किया है और उनकी मुख्य अदाकारा भी रही है। वे कई पुरषों की मैग्ज़ीनो में आ चुकी है जिनमे प्लेबॉय, हस्लर, पेंटहाउस, हाई सोसाइटी, जीक्यू और एफएचएम प्रमुख है। २००७ के शिरुआत में वे एफएक्स नेटवर्क के डर्ट में दिखी जहां उन्होंने एक नग्न नर्तकी की भूमिका निभाई। २००७ में बादमें डैनियल्स मरून ५ के गीत "वेक अप कॉल" के संगीत वीडियो में दिखी। उन्होंने द ४०-इयर-ओल्ड वर्जिन फ़िल्म में भी स्वप्न दृश्य में छोटी भूमिका अदा की। स्टॉर्मी डैनियल्स का कहना है कि उनके डॉनल्ड ट्रम्प के साथ अफ़ेयर को लेकर ज़ुबान बंद करने के लिए उन्हें पैसे दिए गए थे। निजी जीवन उनकी शादी माइक रोज़ से हो चुकी है। २५ जुलाई २००९ को डैनियल्स को ताम्पा में अपने पति पर हमला करने के आरोप में गिरफ्तार किया गुआ था। कानूनी मामले ट्रम्प अफेयर के आरोप मुख्य लेख: डोनाल्ड ट्रम्प-स्टॉर्मी डेनियल्स कांड अक्टूबर 2016 में, राष्ट्रपति चुनाव से कुछ समय पहले, डोनाल्ड ट्रम्प के निजी वकील माइकल कोहेन ने एक दशक पहले 2006 में डेनियल्स को इस बात से इनकार करने के लिए $130,000 का भुगतान किया था कि उनका ट्रम्प के साथ संबंध था। ट्रम्प के प्रवक्ताओं ने अफेयर से इनकार किया है और डेनियल पर झूठ बोलने का आरोप लगाया है। जनवरी 2018 में वॉल स्ट्रीट जर्नल द्वारा मामले और अदायगी की सूचना दी गई थी। इसके बाद जनवरी में: अपने मुवक्किल की ओर से, कोहेन ने ट्रम्प और डेनियल के बीच किसी संबंध के अस्तित्व से इनकार किया। बाद में उन्होंने कहा: "2016 में एक निजी लेन-देन में, मैंने सुश्री स्टेफ़नी क्लिफोर्ड को $130,000 के भुगतान की सुविधा के लिए अपने स्वयं के व्यक्तिगत धन का उपयोग किया" डेनियल्स ने एक बयान जारी कर कहा कि प्रेम प्रसंग "कभी नहीं हुआ" इन टच वीकली पत्रिका ने एक साक्षात्कार का प्रतिलेख प्रकाशित किया जिसमें डेनियल्स ने ट्रम्प के साथ अपने साल भर के संबंधों का वर्णन किया, जिसमें एक यौन मुठभेड़ भी शामिल है। इन टच ने 2011 में डेनियल का साक्षात्कार लिया था लेकिन जनवरी 2018 तक साक्षात्कार प्रकाशित नहीं किया था 6 मार्च 2018 को डेनियल्स ने ट्रंप के खिलाफ मुकदमा दायर किया। उसने कहा कि कथित संबंध के संदर्भ में उसने जिस गैर-प्रकटीकरण समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, वह अमान्य था क्योंकि ट्रम्प ने कभी व्यक्तिगत रूप से इस पर हस्ताक्षर नहीं किए थे। सूट में यह भी आरोप लगाया गया है कि ट्रम्प के वकील डेनियल को डराने की कोशिश कर रहे थे और "उन्हें बात न करने से डरा रहे थे"। एक दिन बाद, कोहेन ने एक मध्यस्थता प्रक्रिया शुरू की जिसके परिणामस्वरूप डेनियल्स को गैर-प्रकटीकरण समझौते से संबंधित "गोपनीय जानकारी" का खुलासा करने से रोक दिया गया। आदेश को ही, जिसे डेनियल्स के वकीलों ने फर्जी बताया था, गोपनीय रखा जाना था 25 मार्च 2018 में, 60 मिनट के साथ साक्षात्कार में, डेनियल ने कहा कि उसने और ट्रम्प ने एक बार सेक्स किया था, और बाद में उसे अपनी नवजात बेटी के सामने धमकी दी गई थी और बाद में एक गैर-प्रकटीकरण समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव महसूस किया। 9 अप्रैल को, FBI एजेंटों ने कोहेन के कार्यालय पर छापा मारा और डेनियल को भुगतान सहित कई मामलों से संबंधित ईमेल, कर दस्तावेज़ और व्यावसायिक रिकॉर्ड जब्त किए। 30 अप्रैल 2018 को, डेनियल्स ने ट्रम्प के खिलाफ मानहानि के आरोप में मुकदमा दायर किया क्योंकि उन्होंने उनके बयानों को "धोखाधड़ी" कहा था। यह ट्विटर पर ट्रम्प के बयानों से संबंधित है जिसमें कहा गया है कि डेनियल्स ने उस आदमी की कहानी गढ़ी थी जिसने पत्रकारों को उनके अफेयर के बारे में बताने का फैसला करने के बाद उसे धमकी दी थी। अक्टूबर 2018 में, मुकदमे को पहले संशोधन के आधार पर खारिज कर दिया गया था, और डेनियल्स ने अगस्त 2020 में अपनी अपील खो दी। [65] अगस्त 2018 में, कोहेन अभियोजकों के साथ एक दलील पर पहुंचे, उन्होंने कहा कि उन्होंने डेनियल को "उम्मीदवार के निर्देश पर" और "चुनाव को प्रभावित करने के प्रमुख उद्देश्य के लिए" भुगतान किया। सितंबर 2018 में, कोहेन ने डेनियल्स के साथ गैर-प्रकटीकरण समझौते को अमान्य करने की पेशकश की, अगर वह कोहेन की कंपनी द्वारा भुगतान किए गए $130,000 को वापस कर देगी। ट्रम्प के वकीलों ने घोषणा की है कि ट्रम्प न तो गैर-प्रकटीकरण समझौते को लागू करेंगे और न ही डेनियल्स के इस दावे को चुनौती देंगे कि यह अमान्य है। इन्हें भी देखें डोनाल्ड ट्रम्प-स्टॉर्मी डेनियल्स कांड मोनिका लेविन्सकी केरन ली डैनी डेनियल्स जेन्ना जेम्सन सीरी बेले नॉक्स कर्ली रे सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ अधिकृत वेबसाईट जीवित लोग महिला व्यस्क फ़िल्म अभिनेता 1979 में जन्मे लोग
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बुल्ले शाह
बुल्ले शाह (ਬੁੱਲ੍ਹੇ ਸ਼ਾਹ, , जन्म नाम अब्दुल्ला शाह) (जन्म 1680), जिन्हें बुल्ला शाह भी कहा जाता है, एक पंजाबी सूफ़ी संत एवं कवि थे। उनकी मृत्यु 1757 से 1759 के बीच वर्तमान पाकिस्तान में स्थित शहर क़सूर में हुई थी उनकी कविताओं को काफ़ियाँ कहा जाता है। जन्म उनका जन्म सन् 1680 में हुआ था। उनके जन्मस्थान के बारे में इतिहासकारों की दो राय हैं। सभी का मानना है कि बुल्ले शाह के माता-पिता पुश्तैनी रूप से वर्तमान पाकिस्तान में स्थित बहावलपुर राज्य के "उच्च गिलानियाँ" नामक गाँव से थे, जहाँ से वे किसी कारण से मलकवाल गाँव (ज़िला मुलतान) गए। मालकवल में पाँडोके नामक गाँव के मालिक अपने गाँव की मस्जिद के लिये मौलवी ढूँढते आए। इस कार्य के लिये उन्होंने बुल्ले शाह के पिता शाह मुहम्मद दरवेश को चुना और बुल्ले शाह के माता-पिता पाँडोके (वर्तमान नाम पाँडोके भट्टीयाँ) चले गए। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बुल्ले शाह का जन्म पाँडोके में हुआ था और कुछ का मानना है कि उनका जन्म उच्च गिलानियाँ में हुआ था और उन्होंने अपने जीवन के पहले छः महीने वहीं बिताए थे। बुल्ले शाह के दादा सय्यद अब्दुर रज्ज़ाक़ थे और वे सय्यद जलाल-उद-दीन बुख़ारी के वंशज थे। सय्यद जलाल-उद-दीन बुख़ारी बुल्ले शाह के जन्म से तीन सौ साल पहले सुर्ख़ बुख़ारा नामक जगह से आकर मुलतान में बसे थे। बुल्ले शाह [[मुहम्मद] साहब की पुत्री फ़ातिमा के वंशजों में से थे। जीवन बुल्ले शाह का असली नाम अब्दुल्ला शाह था। उन्होंने शुरुआती शिक्षा अपने पिता से ग्रहण की थी और उच्च शिक्षा क़सूर में ख़्वाजा ग़ुलाम मुर्तज़ा से ली थी। पंजाबी कवि वारिस शाह ने भी ख़्वाजा ग़ुलाम मुर्तज़ा से ही शिक्षा ली थी। उनके सूफ़ी गुरु इनायत शाह थे। बुल्ले शाह की मृत्यु 1757 से 1759 के बीच क़सूर में हुई थी। बुल्ले शाह के बहुत से परिवार जनों ने उनका शाह इनायत का चेला बनने का विरोध किया था क्योंकि बुल्ले शाह का परिवार पैग़म्बर मुहम्मद का वंशज होने की वजह से ऊँची सैय्यद जात का था जबकि शाह इनायत जात से आराइन थे, जिन्हें निचली जात माना जाता था। लेकिन बुल्ले शाह इस विरोध के बावजूद शाह इनायत से जुड़े रहे और अपनी एक कविता में उन्होंने कहा: रचनात्मक कार्य बुल्ले शाह ने पंजाबी में कविताएँ लिखीं जिन्हें "काफ़ियाँ" कहा जाता है। काफ़ियों में उन्होंने "बुल्ले शाह" तख़ल्लुस का प्रयोग किया है। संस्कृति पर प्रभाव 2007 में इनके देहांत की 250वीं वर्षगाँठ मनाने के लिये क़सूर शहर में एक लाख से अधिक लोग एकत्रित हुए थे। सैकड़ों वर्ष बीतने के बाद भी बाबा बुल्ले शाह की रचनाएँ अमर बनी हुई हैं। आधुनिक समय के कई कलाकारों ने कई आधुनिक रूपों में भी उनकी रचनाओं को प्रस्तुत किया है, जिनमें से कुछ हैं: बुल्ले शाह की कविता "बुल्ला की जाना" को रब्बी शेरगिल ने एक रॉक गाने के तौर पर गाया। इनकी कविता का प्रयोग पाकिस्तानी फ़िल्म "ख़ुदा के लिये" के गाने "बन्दया हो" में किया गया था। इनकी कविता का प्रयोग बॉलीवुड फ़िल्म रॉकस्टार के गाने "कतया करूँ" में किया गया था। फ़िल्म दिल से के गाने "छइयाँ छइयाँ" के बोल इनकी काफ़ी "तेरे इश्क नचाया कर थैया थैया" पर आधारित थे। बाहरी कड़ियाँ यू-ट्यूब पर 'बुल्ले नूँ समझावन आँईयाँ' का गाना बाबा बुल्ले शाह का संपूर्ण काव्य विस्तृत पाठन सन्दर्भ पंजाबी कवि सूफ़ी कवि सूफ़ी संत
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मध्य शरद त्योहार
मध्य शरद त्योहार अथवा मून केक फेस्टिवल अथवा मध्य शरद उत्सव (; ) जिसे चीन में जूंचियो नाम से जाना जाता है, चीन और वियतनाम में फसल कटाई मनाया जाने वाला एक मूनकेक पर्व है। मूनकेक पर्व नाम इसलिए क्योंकि इस पर्व पर मूनकेक उपहार स्वरूप दिये जाते हैं। मध्य शरद ऋतु समारोह चीनी कैलेंडर, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर में सितंबर या अक्टूबर के शुरू में है, में आठवें महीने के 15 वें दिन पर आयोजित किया जाता है। यह एक तारीख है कि शरत्काल विषुव सौर कैलेंडर, की समानताएं है जब चांद अपनी पूरी और roundest पर है। इस त्योहार के पारंपरिक भोजन mooncake, जो वहाँ के कई अलग अलग किस्मों रहे हैं। मध्याह्न Autumn महोत्सव एक चीनी कैलेंडर में कुछ सबसे महत्वपूर्ण छुट्टियों से एक है, चीनी नव वर्ष और शीतकालीन अयनांत किया जा रहा दूसरों के लिए और, कई देशों में एक कानूनी छुट्टी है। किसानों को इस तिथि पर मौसम कटाई गिरावट के अंत का जश्न मनाने. इस दिन पर परंपरागत रूप से, चीनी परिवार के सदस्यों और दोस्तों के लिए फसल चाँद उज्ज्वल मध्य शरद ऋतु की प्रशंसा इकट्ठा करेंगे और चाँद चाँद के नीचे और pomelo के केक एक साथ खाना खाते हैं। उत्सव उनके साथ, वहाँ अतिरिक्त सांस्कृतिक या क्षेत्रीय सीमा शुल्क, जैसे हैं: के चमकते जलाया लालटेन उठाते, टावर पर लालटेन प्रकाश, आकाश लालटेन के चल () | * जलन Chang'e (पौराणिक कथाओं) Chang'e सहित देवताओं को श्रद्धा में धूप सीधा मध्य शरद ऋतु समारोह. (树 中秋, 竖 中秋 चीन 树 और 竖 में, होमोफोन्स) कर रहे हैं इसके बारे में पेड़ planting नहीं है, लेकिन बांस के खंभे पर लालटेन लटका और उन्हें एक उच्च बिंदु पर छतों, पेड़ों, जैसे डाल, छतों, आदि यह गुआंगज़ौ, हांगकांग, आदि में एक रिवाज है Dandelion पत्ते इकट्ठा और उनके परिवार के सदस्यों के बीच समान रूप से वितरित आग ड्रैगन नृत्य है ताइवान में, 1980 से, barbecuing मांस सड़क पर एक व्यापक को मध्य शरद ऋतु समारोह का जश्न मनाने रास्ता बन गया है। दुकानें बेच त्योहार से पहले mooncakes अक्सर के चित्र प्रदर्शित Chang'e चांद के लिए अस्थायी. मध्य शरद ऋतु समारोह की कहानियां Houyi और Chang'e Chang'e मध्य शरद ऋतु समारोह के समारोह दृढ़ता से Houyi और Chang'e, चांद देवी अमरता में से एक की कथा के साथ जुड़ा हुआ है। परंपरा 2200 के आसपास ई.पू. में चीनी पुराण से इन दोनों स्थानों के आंकड़े, पौराणिक सम्राट याओ के शासनकाल के दौरान हुआंग्डी की है कि कुछ ही समय बाद. कई के विपरीत चंद्र देवताओं अन्य संस्कृतियों जो चंद्रमा जिस्मानी में, बस Chang'e चंद्रमा पर रहता है, लेकिनप्रतिशत सेचांद नहीं है। वहाँ कई चर और Chang'e की कथा है कि अक्सर एक दूसरे के विरोध के रूपांतरों रहे हैं। हालांकि, कथा के सबसे संस्करणों निम्नलिखित तत्वों के कुछ बदलाव शामिल: Houyi, आर्चर, एक सम्राट, या तो उदार या कुबुद्धि है और एक [जीवन] के [अमृत]. किंवदंती राज्यों में से एक संस्करण है कि Houyi एक अमर किया गया था और Chang'e एक खूबसूरत जवान लड़की थी, जेड सम्राट का महल (, 玉 स्वर्ग के सम्राट में काम कर帝 पिनयिन के लिए एक परिचर के रूप में) Yudi पश्चिम की रानी माँ (जेड सम्राट पत्नी). Houyi अन्य अनहृ, जो फिर उसे जेड सम्राट से पहले बदनाम की ईर्ष्या जगाया. Houyi और उनकी पत्नी, Chang'e, बाद में स्वर्ग से भगा दिया गया। वे पृथ्वी पर रहने को मजबूर थे। Houyi जीवित करने के लिए शिकार करने के लिए किया था और एक कुशल और मशहूर तीरंदाज बन गया। उस समय, वहाँ दस सूर्य थे, तीन टांगों वाला पक्षी के रूप में, एक शहतूत ​​में पूर्वी समुद्र में रहने वाले पेड़., सूरज की 'माँ' | सूरज पक्षियों की प्रत्येक दिन एक करने के लिए चारों ओर एक गाड़ी, Xihe द्वारा संचालित पर दुनिया की यात्रा करना होगा. एक दिन, सूर्य के सभी दस एक साथ परिक्रमा की, को जलाने के लिए पृथ्वी के कारण. सम्राट याओ, चीन के सम्राट, आज्ञा Houyi अपने तीरंदाजी कौशल का उपयोग करने के लिए नीचे सब पर एक सूर्य की गोली मार. अपने कार्य के पूरा होने पर, सम्राट एक गोली है कि अनन्त जीवन प्रदान किया साथ Houyi पुरस्कृत किया गया। सम्राट याओ Houyi निगल करने के लिए नहीं बल्कि गोली तुरंत खुद को प्रार्थना और यह<ref. Name="ctownau"> लेने से पहले एक वर्ष के लिए उपवास द्वारा तैयार की सलाह दी / article.asp / eng masterid? = 155 & = 736 Chinatown.com.au </ ref> Houyi गोली घर ले गया और यह एक मांझी के नीचे छिपा दिया articleid. एक दिन, Houyi दूर बुलाया गया था फिर से सम्राट याओ द्वारा. उसके पति की अनुपस्थिति, Chang'e के दौरान, मांझी से प्रकाश इंगित की एक सफेद बीम देखा है और गोली की खोज की. Chang'e उसे निगल लिया और तुरंत चला कि वह उड़ सकता है। Houyi घर लौट आए, साकार क्या हुआ था वह अपनी पत्नी फटकार लगा. Chang'e बाहर आकाश में उड़ान खिड़की से भाग निकले. Houyi आकाश भर में उसके आधे रास्ते चलाया गया था, लेकिन करने के लिए तेज हवाओं की वजह से पृथ्वी पर लौटने पर मजबूर किया। Chang'e चंद्रमा, वह कहाँ तक गोली का हिस्सा फीस भरी पहुँच Chang'e खरगोश आज्ञा दी कि चांद पर रहने के लिए एक और गोली है।. Chang'e तो पृथ्वी और उसके पति को लौटने में सक्षम हो जाएगा . किंवदंती राज्यों खरगोश है कि अभी भी जड़ी बूटी तेज़ है, के लिए गोली बनाने की कोशिश कर. Houyi खुद धूप में एक महल बनाया, का प्रतिनिधित्व " यांग" (पुरुष सिद्धांत) जो चाँद " यिन" का प्रतिनिधित्व करता है पर Chang'e घर के लिए इसके विपरीत में, (महिला सिद्धांत). एक बार एक वर्ष, मध्याह्न Autumn महोत्सव की रात को, Houyi उनकी पत्नी का दौरा किया। यही कारण है कि चाँद बहुत भरा और कहा कि रात को खूबसूरत है। इस विवरण दो पश्चिमी हान राजवंश (206 ई.पू.-ई. 24) संग्रह में लिखित रूप में प्रकट होता है;शान हैं Jing, पहाड और सागरों औरHuainanzi के शास्त्रीय , एक दार्शनिक क्लासिक. कथा का दूसरा संस्करण, ऊपर एक के समान, कह रही है कि Chang'e अमरता की गोली निगल लिया क्योंकि Peng, एक Houyi कई प्रशिक्षु तीरंदाजों की, उसे करने के लिए मजबूर करने के लिए उसे गोली देने की कोशिश में अलग है। . जानते हुए भी कि वह बंद पेंग नहीं लड़ सकता है, Chang'e कोई चारा नहीं बल्कि खुद गोली निगल था अन्य संस्करणों का कहना है कि Houyi और Chang'e अभी भी समय पर स्वर्ग में रहते हैं कि Houyi नौ सूर्य के मारे अनहृ. सूरज पक्षियों जेड सम्राट, जो उन मनुष्यों के रूप में पृथ्वी पर रहने के लिए मजबूर द्वारा Houyi और Chang'e सजा के पुत्रा थे। देख रहा है कि Chang'e अत्यंत अमरता की उसे नुकसान पर दुखी महसूस किया, Houyi को गोली है कि इसे बहाल होगा खोजने का फैसला किया। उसकी तलाश का अंत में, वह पश्चिम, जो उसे गोली देने पर सहमत हुए की रानी माँ से मिले, लेकिन उसे चेतावनी दी है कि प्रत्येक व्यक्ति को केवल एक आधा करने के लिए अमरत्व हासिल की गोली की आवश्यकता होगी. Houyi गोली घर ले आया और उसे एक मामले में संग्रहीत. उन्होंने चेतावनी दी Chang'e मामला नहीं खुला और फिर थोड़ी देर के लिए घर छोड़ दिया. भानुमती ग्रीक पौराणिक कथाओं में की तरह, Chang'e जिज्ञासु बने. वह मामला खुला और गोली मिला, बस के रूप में Houyi घर लौट रहा था। नर्वस कि Houyi उसे पकड़ने के लिए, केस की सामग्री की खोज करेंगे, वह गलती से पूरे गोली निगल करने के लिए और अधिक मात्रा की वजह से आसमान में नाव शुरू कर दिया. कथा के कुछ संस्करणों पहले से अनहृ होने के रूप में Houyi या Chang'e का उल्लेख नहीं करते हैं और शुरू में मनुष्यों के रूप में उन्हें बजाय वर्तमान . वहाँ भी कहानी के संस्करण जिसमें Houyi नौ सूर्य की मौत हो गई और लोगों को बचाने के लिए एक इनाम के रूप में राजा बनाया गया था। हालांकि, राजा Houyi एक तानाशाह जो या तो पश्चिम के रानी माँ से अमरता की गोली चुराया या सीखा है कि वह हर रात एक अलग किशोर लड़के के शरीर पीस द्वारा एक सौ रातों के लिए इस तरह के एक गोली बना सकता है बन गया . Chang'e गोली चुरा लिया है और उसे निगल लिया खुद को, या तो बंद करने के लिए अधिक लड़कों को मार डाला जा रहा है या हमेशा के लिए स्थायी से अपने पति के अत्याचारी . हरे या जेड खरगोश परंपरा, महिला, देवताओं के लिए Chang'e हैं, साथ साथ जेड खरगोश पाउंड चिकित्सा, के अनुसार. दूसरों का कहना है कि जेड खरगोश आकृति, खुद Chang'e द्वारा माना जाता है। पूर्णिमा के शीर्ष करने के अंधेरे क्षेत्रों एक खरगोश की संख्या के रूप में construed हो सकता है। पशु के कान के ऊपरी दाएँ इंगित है, जबकि पर छोड़ दो बड़े परिपत्र क्षेत्रों, उसके सिर और शरीर का प्रतिनिधित्व कर रहे. वियतनामी संस्करण छुट्टी के संस्करण वियतनामीCuội, जिसकी पत्नी गलती से एक पवित्र बरगद पेड़ पर urinated की कथा याद है, इसके साथ उसे चंद्रमा के लिए ले रही है। हर साल, मध्य शरद ऋतु समारोह पर, बच्चों को रोशनी लालटेन और एक बारात में भाग लेने के Cuội रास्ता दिखाने के लिए पृथ्वी पर वियतनाम में, मुनकेक आमतौर दौर के बजाय वर्ग, हालांकि दौर वाले मौजूद नहीं है। बरगद के पेड़ के स्वदेशी कहानी के अलावा, अन्य दिग्गजों व्यापक रूप से चंद्रमा लेडी की कहानी है और कार्प जो एक अजगर बनना चाहता था की कहानी सहित कहा जाता है। एक से पहले और वियतनामी मध्य शरद ऋतु समारोह के दौरान महत्वपूर्ण घटना शेर नृत्य कर रहे हैं एस नृत्य दोनों गैर पेशेवर बच्चों के समूह और प्रशिक्षित पेशेवर समूहों द्वारा किया जाता है। शेर नृत्य समूहों सड़कों पर प्रदर्शन करने की अनुमति के लिए पूछ रहे हैं उनके लिए प्रदर्शन घरों के पास जाओ. अगर मेजबान द्वारा स्वीकार कर लिया, "शेर" में आते हैं और किस्मत और भाग्य  और मेजबान की एक इच्छा के रूप में नृत्य शुरू करेंगे वापस भाग्यशाली पैसा देता कृतज्ञता दिखाने के लिए. तिथियाँ 2010 में मध्य शरद ऋतु समारोह 22 सितंबर को गिर गया। यह इन दिनों पर आने वाले वर्षों में घटित होगा: 2011: 12 सितम्बर 2012: 30 सितंबर 2013 *: सितम्बर 19 2014 *: 8 सितंबर 2015 *: सितम्बर 27 2016 *: सितम्बर 15 2017 *: 4 अक्टूबर 2018 *: सितम्बर 24 2019 *: सितम्बर 13 2020: 1 अक्टूबर इन्हें भी देखें चीनी नव वर्ष चीनी छुट्टियों [हार्वेस्ट उत्सव की [सूची]] ज्वार Qiantang नदी के बोर वियतनामी छुट्टियों वियतनामी संस्कृति सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ लालटेन महोत्सव मध्य शरद ऋतु लालटेन कार्निवल योजना एवं उत्पादन सैन में चंद्रमा महोत्सव फ्रांसिस्को ऑस्ट्रेलिया में शरद ऋतु चंद्रमा महोत्सव chinatown.com.au चीनी चंद्रमा महोत्सव की कहानियां # मध्य शरद ऋतु समारोह का केक उत्पत्ति Tet Trung गुरु मध्य शरद ऋतु समारोह के और तस्वीरें मुफ्त चंद्रमा महोत्सव संसाधन - सीखना चीनी थाईलैंड में चीनी चंद्रमा महोत्सव शरद ऋतु की छुट्टियों फसल काटने वाले त्योहारों चीनी छुट्टियों सितम्बर पालन चीनी परंपरागत धर्म वियतनामी संस्कृति
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करावली
कन्नड़ क्षेत्र (टुलु:ಕರಾವಳಿ) या करावली क्षेत्र कर्नाटक राज्य के तीन तटीय जिलों, दक्षिण कन्नड़, उडुपी एवं उत्तर कन्नड़ को मिलाकर कहा जाता है। यह कोंकण तटरेखा का दक्षिणी भाग बनाता है। इस क्षेत्र की उत्तर से दक्षिण लंबाई ३०० कि.मी तक और चौड़ाई ३० से ११० कि.मी तक जाती है। क्षेत्र में बहती हवा के साथ झूलते हुए चीड़ के वृक्ष दृश्य होते हैं। नामकरण एक मिथक के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार परशुराम ने इस स्थान को सागर में अपना परशु फेंककर उससे खाली करवाया था। सागर उस क्षेत्र तक हट गया जहां उनका परशु गिरा था। इस कारण से इसे परशुराम क्षेत्र भि कहा जाता है। इन्हें भी देखें उत्तर कन्नड़ दक्षिण कन्नड़ सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ यक्षगण करावली उत्सव कर्नाटक के क्षेत्र
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महेंद्रगढ़
महेंद्रगढ़ (Mahendragarh) भारत के हरियाणा राज्य के महेंद्रगढ़ ज़िले में स्थित एक नगर है। ज़िले का मुख्यालय नारनौल में है। विवरण महेन्द्रगढ़ अपने खूबसूरत पर्यटक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। पहले यहां पर पृथ्वीराज चौहान के वंशज अंगपाल का साम्राज्य था। बाद में इस पर मराठों, झज्जार के नवाबों और ब्रिटिश शासकों ने भी शासन किया। आधुनिक महेन्द्रगढ़ की स्थापना १९४८ ई. में की गई थी। नारनौल और महेन्द्रगढ़ इसके प्रमुख शहर हैं। इसके उत्तर में भिवानी व रोहतक, पूर्व में रेवाड़ी व अल्वर, दक्षिण में सीकर व जयपुर और पश्चिम में सीकर व झंझनू स्थित है। यहां के निवासी बडे हंसमुख और मिलनसार हैं। वह अपने यहां आने वाले पर्यटकों का स्वागत बड़ी गर्मजोशी से करते हैं। पर्यटकों को यहां कहीं भी बोरियत या नीरसता का सामना नहीं करना पड़ता। वह यहां पर शानदार छुट्टियां व्यतीत कर सकते हैं। प्रमुख आकर्षण जल महल महेन्द्रगढ़ में स्थित जलमहल बहुत खूबसूरत है। महल की दीवारों पर लिखे शिलालेखों के अनुसार इसका निर्माण 1591 ई. में शाह कुली खान ने कराया था। यह महल एक तालाब के बींचोबीच बना हुआ है। लेकिन अब यह तालाब पूरी तरह से सूख चुका है। महल में पांच छोटी-छोटी दुकानों का निर्माण किया गया है। पर्यटक इन दुकानों से खूबसूरत स्मृतिकाएं खरीद सकते हैं। चोर गुम्बद चोर गुम्बद का निर्माण जमाल खान ने कराया था। इसे ''नारनौल का साईनबोर्ड' के नाम से भी जाना जाता है। गुम्बद के निर्माण काल का अभी तक पता नहीं चला है। लेकिन इसका वास्तु शास्त्र शाह विलायत के गुम्बद से मेल खाता है। इस गुम्बद की आर्को का निर्माण अंग्रेजी के S वर्ण के आकार में किया गया है। कहा जाता है प्राचीन समय में यह चोर-डाकुओं के छुपने की जगह थी। इसीलिए इसका नाम चोर गुम्बद पड़ गया। इसके अंदर जाना मना है बीरबल का छाता बीरबल का छाता पांच मंजिला इमारत है और यह बहुत खूबसूरत है। पहले इसका नाम छाता राय मुकुन्द दास था। इसका निर्माण नारनौल के दीवान राय-ए-रायन ने शाहजहां के शासन काल में कराया था। प्राचीन समय में अकबर और बीरबल यहां पर ठहरे थे। उसके बाद इसे बीरबल का छाता नाम से जाना जाने लगा। इसकी वास्तुकला बहुत खूबसूरत है। देखने में यह बहुत साधारण लगता है क्योंकि इसकी सजावट नहीं की गई है। इसमें कई सभागार, कमरों और मण्डपों का निर्माण किया गया है। कथाओं के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इसके नीचे चार सुरंगे भी बनी हुई हैं। यह सुरंगे इसको जयपुर, दिल्ली, दौसी और महेन्द्रगढ़ से जोड़ती हैं। शाह विलायत का मकबरा इब्राहिम खान के मकबर के पास ही शाह विलायत का मकबरा बना हुआ है। इसके वास्तु शास्‍त्र में पर्यटक तुगलक काल की छवि देख सकते हैं, जो बहुत खूबसूरत है। यह पर्यटकों को बहुत पसंद आता है। प्रसिद्ध लेखक गुलजार के अनुसार इसकी स्तंभावली और गुम्बद का निर्माण आलम खान मेवाड़ी ने किया था। इब्राहिम खान का मकबरा इस मकबरे का निर्माण शेर शाह सूरी ने 1538-46 ई. में अपने दादा इब्राहिम खान की याद में कराया था। शेख अहमद नियाजी ने इस मकबरे के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके पास ही इनकी कब्रें भी बनी हुई हैं। मकबरा चौकोर आकार का है। यह मकबरा, चौकोर मकबरा शैली व पथान निर्माण शैली का बेहतरीन नमूना है। नसीबपुर नारनौल से 3 कि॰मी॰ की दूरी पर नसीबपुर स्थित है। यहां पर ब्रिटिश शासकों ने स्वतंत्रता सेनानियों का कत्ल किया था। कहा जाता है कि जिस समय यह रक्तपात हुआ उस समय यहां की धरती खून से लाल हो गई थी। उन स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देने के लिए यहां पर पार्क का निर्माण किया गया है। यह पार्क बहुत खूबसूरत है। पर्यटक इस पार्क में पिकनिक भी मना सकते हैं। शाह कुली खान का मकबरा नारनौल में स्थित शाह कुली खान का मकबरा बहुत खूबसूरत है। इसके निर्माण में सलेटी और लाल रंग के पत्थरों का प्रयोग किया गया है। यह मकबरा आठ कोणों वाला है। इसके वास्तु शास्‍त्र में पथान शैली का प्रयोग किया गया है। मकबर में त्रिपोलिया द्वार का निर्माण भी किया गया है। इस द्वार का निर्माण 1589 ई. में किया गया था। मकबरे के पास खूबसूरत तालाब और बगीचे भी हैं। तालाब और बगीचे का निर्माण पहले और मकबरे का निर्माण बाद में किया गया था। यह बगीचा बहुत खूबसूरत है। इसका नाम अराम-ए-कौसर है। चामुण्डा देवी मन्दिर राजा नौण कर्ण मां चामुण्डा देवी का भक्त था। उन्होंने ही इस मन्दिर का निर्माण कराया था। यह मन्दिर पहाड़ी की तराई में बना हुआ है। राजा नौण कर्ण के बाद इस क्षेत्र पर मुगलों ने अधिकार कर लिया। मुगलों ने चामुण्डा देवी के मन्दिर के पास ही एक मस्जिद का निर्माण कराया था। यह मस्जिद बहुत खूबसूरत है। मन्दिर के साथ पर्यटकों को यह मस्जिद भी बहुत पसंद आती है। कैलाश आश्रम मंदिर गुलावला (नारनौल) नारनौल महेंद्रगढ़ सड़क पर स्थित गॉंव गुलावला में पहाड़ी की चोटी पर बना प्राचीन हनुमान जी का मंदिर लोगों की आस्था और विश्र्वास का केंद्र बना हुआ है। कहते हैं, इस पहाड़ी की चोटी पर पांडवों ने अपने अज्ञातवास के कुछ दिन बिताये थे और हनुमान जी की मूर्ति की स्थापना करके अपनी सफलता की कामना की थी। बाबा बजरंगी की कृपा से पांडवों का अज्ञातवास निर्विघ्न पूरा हुआ। तभी से लेकर आज तक लोग बड़ी श्रद्घा और विश्र्वास के साथ यहां पहाड़ की चोटी पर स्थापित बजरंग बली जी की प्रतिमा की पूजा-अर्चना कर, मन्नतें मांगते हैं। वर्तमान में इस प्राचीन हनुमान मंदिर को कैलाश आश्रम के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र के महान संत बाबा खेतानाथ जी ने इस आश्रम को चमकाया। लोगों की श्रद्घा और आस्था का आलम इतना था कि गांव गुलावला के हर घर के सदस्य ने अपने सिर पर पत्थर, बजरी, सीमेंट, पानी और अन्य सामान रखकर एक भव्य आश्रम का निर्माण किया। यह आश्रम पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। चढ़ाई चढ़ कर जब मंदिर में पहुँचते हैं तो थकान का नामोनिशान तक नहीं रहता है। हनुमान जी की प्राचीन मूर्ति के सम्मुख बैठकर आराधना करते हैं तो ऐसा लगता है कि मानो चिरंजीवी हनुमान जी वहीं विरामान हैं। जो भी यहां आकर सच्चे दिल से मन्नत मांगता है, उसकी मुराद अवश्य पूरी होती है। मंदिर में श्री श्री 1008 श्री बाबा खेतानाथ, बाबा शुक्रनाथ, बाबा सेवानाथ जी की विशाल मूर्तियॉं भी लोगों की श्रद्घा का केंद्र हैं। मंदिर की दीवारों पर भगवान शंकर, नृसिंहावतार, हनुमान जी, मां भगवती, राम-दरबार, शिव-परिवार और स्वर्ग-नरक के सुंदर चित्र बने हैं, जो मंदिर की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। दीवारों पर हनुमान चालीसा, गीता सार और चौपाइयां लिखी गई हैं, जो मंदिर के वातावरण को भक्तिमय बनाती हैं। वर्तमान में आश्रम के धूणे पर बाबा संतोषनाथ जी विराजमान हैं। उनके संचालन में प्रतिदिन मंदिर में ज्ञान की धारा बहती रहती है। यहां हर मंगलवार को कीर्तन एवं भंडारा होता है और गुरु पूर्णिमा को विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है। बैसाख की सप्तमी को बाबा शुक्रनाथ जी की जयंती बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। सावन की शिवरात्रि को विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि सावन की शिवरात्रि को ही यहां पांडवों ने हनुमान जी की मूर्ति की स्थापना की थी। इसलिए इस दिन हनुमान जी यहां अवश्य पधारते हैं। हर त्योहार पर मंदिर को सजाया जाता है और भजन-कीर्तन किये जाते हैं। हनुमान जी का मंदिर लोगों की श्रद्घा और आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां श्रद्घालुओं की भीड़ लगी रहती है। प्रतिदिन सुबह-शाम शंख बजाकर लोगों को आरती के लिए बुलाया जाता है। महेंद्रगढ़ का किला= महेंद्रगढ़ का किला अंबेडकर चौक के पास स्थित है यह अपनी शानदार नक्काशी के लिए देखा जा सकता है इसके समीप एक सुरंग ह जो बताते हैं कि नारनौल जाती थी लेकिन अभी सरकार ने उसे बंद कर दिया है इसके उपर दरगाह बनी हुई है जहां पर रोज बहुत सारे लोग मन्नत मांगने जाते हैं| पहले किले के चारों तरफ दुश्मन से बचने के लिए गहरी खाई होती थी जो धीरे धीरे करके भर दी गई अब उस जगह पर देवीलाल पार्क बनाया जा रहा है महेंद्रगढ़ की प्रसिद्ध हस्तियाँ= रायबहादुर गूजर मल मोदी गूजर मल मोदी (9 अगस्त 1902 - 22 जनवरी 1976) एक भारतीय उद्योगपति और परोपकारी थे, जिन्होंने अपने भाई केदार नाथ मोदी के साथ 1933 में मोदी ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ और औद्योगिक शहर मोदीनगर की सह-स्थापना की। मोदीनगर में एक चीनी मिल ने मोदी समूह समूह की शुरुआत की, जो बाद में विभिन्न क्षेत्रों में फैल गया। जीएम मोदी ने अपने जन्मस्थान महेंद्रगढ़, पटियाला और मोदीनगर में स्कूल और कॉलेज स्थापित किए। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जैसे स्थापित संस्थानों और मेरठ और अन्य स्थानों के विभिन्न कॉलेजों को अनुदान देकर उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी योगदान दिया। उन्हें 1968 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था । वह इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के संस्थापक ललित मोदी के दादा हैं । सतीश कौशिक सतीश कौशिक (13 अप्रैल 1956 – 9 मार्च 2023 हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता, निदेशक, निर्माता, हास्य अभिनेता, एवम पटकथा लेखक थे। रामदेव रामकृष्ण यादव (स्वामी रामदेव) भारतीय योग-गुरु हरियाणा राज्य के महेन्द्रगढ़ जनपद स्थित अली सैयदपुर नामक गाँव में वर्ष 1965 में गुलाबो देवी एवं रामनिवास यादव के घर जन्मे रामदेव का वास्तविक नाम रामकृष्ण यादव था। समीपवर्ती गाँव शहजादपुर के सरकारी स्कूल से आठवीं कक्षा तक पढाई पूरी करने के बाद रामकृष्ण ने खानपुर गाँव के एक गुरुकुल में आचार्य प्रद्युम्न व योगाचार्य बल्देव जी से वेद संस्कृत व योग की शिक्षा ली। रामकृष्ण ने युवावस्था में ही सन्यास लेने का संकल्प किया और बाबा रामदेव नाम से लोकप्रिय हो गए। आवागमन वायु मार्ग वायुमार्ग से भी पर्यटक आसानी से महेन्द्रगढ़ तक पहुंच सकते हैं। पर्यटकों की सुविधा में लिए चण्डीगढ़ औद दिल्ली में हवाई अड्डे बनाए गए हैं। इन हवाई अड्डों से पर्यटक टैक्सी व बसों द्वारा आसानी से महेन्द्रगढ़ तक पहुंच सकते हैं। रेल मार्ग पर्यटक महेन्द्रगढ़ जाने के लिए दिल्ली रेलवे स्टेशन से रेल पकड़ सकते हैं। महेन्द्रगढ़ के लिए दिल्ली से कई रेल चलती हैं। सड़क मार्ग महेन्द्रगढ़ जाने के लिए पर्यटक दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से बस ले सकते हैं। यहां से महेन्द्रगढ़ के लिए अनेक बसें चलती हैं। इन्हें भी देखें महेंद्रगढ़ ज़िला सन्दर्भ हरियाणा के शहर महेंद्रगढ़ ज़िला महेंद्रगढ़ ज़िले के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%BE
पालनहार योजना
पालनहार योजना एक सरकारी योजना है जो राजस्थान राज्य के विभिन्न ज़िलों में क्रियान्वित है अर्थात चल रही है। इस योजना के तहत अनाथ बच्चे जिनके माता - पिता की मृत्यु हो गई है या उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा हो गई है एवं निराश्रित पेंशन मात्र विधवा के एक बच्चे को ₹ ५०० प्रति माह तथा विद्यालय दाखिले के पश्चात ₹ ६७५ मासिक अनुदान दिया जाता है। इसके अतिरिक्त कपड़े , जूते आदि के लिये भी लगभग २०,०० ₹ दिए जाते हैं। सन्दर्भ राजस्थान सरकार
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बुरगो दे ओसमा गिरजाघर
बुरगो दे ओसमा गिरजाघर स्पेन के एल बुरगो दे ओसमा शहर में स्थित गोथिक वास्तुकला का एक गिरजाघर है। ये गिरजाघर रोम्नेस्किऊ गिरजाघर के जगह पर बना हुआ है। ये स्पेन की मध्काली इमारतों में से सभ से ज्यादा संभाल के रखी जाने वाली ईमारत है। इसे 13 वी सदी की गोथिक कला का सबसे खूबसूरत नमूना माना जाता है। इस इमारत का निर्माण 1232 में शुरू हुआ था और ये 1784 में बन कर तैयार हुई।. इसका मठ 1512 ईस्वी में बनाया गया। इसका घंटी बुर्ज 1739 में बना। इस गिरजाघर मैरी की धारणा के साथ जुड़ा हुआ है। . अजायबघर इस अजायबघर में धर्म से सम्बन्धित वस्तूएं रखी गयी हैं। सन्दर्भ स्पेन के गिरजाघर स्पेन के स्मारक
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काम्या पंजाबी
काम्या पंजाबी एक भारत की टेलीविज़न अभिनेत्री हैं, जों आमतौर पर हिंदी धारावाहिकों में नकारात्मक किरदार निभाने के लिए जानी जाती हैं और वह स्टैंड उप कॉमेडी के लिए भी प्रसिद्ध हैं। वह २०१० में बिगबॉस ७ की प्रतियोगी भी रही थी। करियर कम्य पंजाबी एक मॉडल हैं, जिन्होंने काफी फिल्मे जैसे "कहो न प्यार हैं", "ना तुम जानो ना हम", "कोई मिल गया" आदि फिल्मो में भी छोटी भूमिकाए निभाई थी। १९९७ में वह कई संगीत विडियो जैसे "मेहँदी मेहँदी", "कला शाकाला" में भी प्रदर्शित हुई हैं। उन्हें फिल्म "यादे", "फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी" में भी देखा गया हैं। जी टीवी के धारावाहिक "बनू मई तेरी दुल्हन" में "सर्वश्रेष्ठ अभिनत्री (नकारात्मक भूमिका में)" बहुत सरे पुरस्कार जीते। व्यावसायिक जीवन काम्या का विवाह बंटी नेगी से हुआ था, उन दोनों की एक बेटी भी है जिसका नाम "आरा" हैं। सन्दर्भ बिग बॉस प्रतिभागी भारतीय टेलीविज़न अभिनेत्री पंजाबी लोग
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तत्वों की विद्युत प्रतिरोधकता के आंकड़े
तत्वों की विद्युत चालकता यहाँ दी गयी है- सन्दर्भ WEL As quoted at https://web.archive.org/web/20140104110225/http://webelements.com/ from these sources: G.W.C. Kaye and T. H. Laby in Tables of physical and chemical constants, Longman, London, UK, 15th edition, 1993. A.M. James and M.P. Lord in Macmillan's Chemical and Physical Data, Macmillan, London, UK, 1992. D.R. Lide, (ed.) in Chemical Rubber Company handbook of chemistry and physics, CRC Press, Boca Raton, Florida, USA, 79th edition, 1998. J.A. Dean (ed) in Lange's Handbook of Chemistry, McGraw-Hill, New York, USA, 14th edition, 1992. CRC As quoted from various sources in an online version of: David R. Lide (ed), CRC Handbook of Chemistry and Physics, 84th Edition. CRC Press. Boca Raton, Florida, 2003; Section 12, Properties of Solids; Electrical Resistivity of Pure Metals CR2 As quoted in an online version of: David R. Lide (ed), CRC Handbook of Chemistry and Physics, 84th Edition. CRC Press. Boca Raton, Florida, 2003; Section 4, Properties of the Elements and Inorganic Compounds; Physical Properties of the Rare Earth Metals which further refers to: Beaudry, B. J. and Gschneidner, K.A., Jr., in Handbook on the Physics and Chemistry of Rare Earths, Vol. 1, Gschneidner, K.A., Jr. and Eyring, L., Eds., North-Holland Physics, Amsterdam, 1978, 173. McEwen, K.A., in Handbook on the Physics and Chemistry of Rare Earths, Vol. 1, Gschneidner, K.A., Jr. and Eyring, L., Eds., North-Holland Physics, Amsterdam, 1978, 411. LNG As quoted from: J.A. Dean (ed), Lange's Handbook of Chemistry (15th Edition), McGraw-Hill, 1999; Section 4, Table 4.1 Electronic Configuration and Properties of the Elements विद्युत
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डिजीमॉन
डिजीमॉन (अंग्रेजी: Digimon, जापानी: デジモン) जापानी मीडिया मताधिकार शामिल है, कि डिजिटल खिलौने, ऐनिमे, मंगा, वीडियो गेम और वीडियो के साथ के द्वारा बनाई गई: अकियोशी होंगो. मताधिकार एपोंय्मोउस क्रेअतुरेस एक "डिजिटल दुनिया", कि पृथ्वी के विभिन्न संचार नेटवर्क से उत्पन्न एक समानांतर ब्रह्मांड में रहने वाले विभिन्न रूपों में से एक राक्षस हैं। मताधिकार के आसपास १९९७ के बाद से किया गया है और मताधिकार बंदाई द्वारा नियंत्रित किया जाता है। एपोंय्मोउस क्रेअतुरेस आभासी पालतू खिलौना ऐनिमे मेटा श्रृंखला डिजीमॉन एडवेंचर (अंग्रेजी: Digimon Adventure, जापानी: デジモンアドベンチャー) डिजीमॉन एडवेंचर ०२ (अंग्रेजी: Digimon Adventure 02, जापानी: デジモンアドベンチャー02) डिजीमॉन टेमर्ज़ (अंग्रेजी: Digimon Tamers, जापानी: デジモンテイマーズ) डिजीमॉन फ्रंटियर (अंग्रेजी: Digimon Frontier, जापानी: デジモンフロンティア) डिजीमॉन सेवर्ज़ (अंग्रेजी: Digimon Savers, जापानी: デジモンセイバーズ) डिजीमॉन क्रॉस वॉर्ज़ (अंग्रेजी: Digimon Xros Wars, जापानी: デジモンクロスウォーズ) सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ बंदाई ऑफ़ जापान डिजीमॉन साइट मीडिया फ्रेंचाइजी डिजीमॉन वीडियो गेम
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गॅटीस्बर्ग सम्बोधन
गॅटीस्बर्ग सम्बोधन (अंग्रेज़ी: Gettysburg Address) अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन द्वारा दिया गया एक भाषण है जो अमेरिका के इतिहास के सबसे यादगार भाषणों में गिना जाता है। इसे लिंकन ने बृहस्पतिवार, 19 नवम्बर 1863 को पॅन्सिल्वेनिया राज्य के गॅटीज़्बर्ग शहर में राष्ट्रिय सैनिक क़ब्रिस्तान के समर्पण दिवस के मौक़े पर पढ़ा जब अमेरिकी गृहयुद्ध को ख़त्म हुए साढ़े-चार महीने हुए थे और अमेरिका दो हिस्सों में खण्डित होते-होते बचा था। पूरा भाषण केवल लगभग दो मिनट का था, लेकिन उसमें मानवों के सामान अधिकारों और अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा में उठाए गए असूलों को उन्होंने नए शब्दों में दोहराया। भाषण अंग्रेज़ी में लिंकन ने कहा - इसका हिन्दी अनुवाद यह है - टिप्पणी 1. "सतास्सी वर्ष पहले" से लिंकन का अर्थ था सन् 1776, जब अमेरिका स्वतंत्र हुआ और आधुनिक विश्व का पहला लोकतंत्र बना। 2. गॅटीस्बर्ग में अमेरिकी गृहयुद्ध के दौरान तीन दिन (जुलाई 1 से जुलाई 3, 1863 तक) भयंकर लड़ाई हुई थीं, जिसमें लगभग 8,000 लोग मारे गए और 42,000 ज़ख़्मी हुए। इस मुठभेड़ के बाद उत्तरी संघीय सेना की दक्षीणी परिसंघीय सेना के ऊपर जीत निश्चित हो ग​ई थी। 3. "वह सरकार जो जनता की हो, जनता से हो, जनता के लिए हो" अब लोकतान्त्रिक शासन की एक अनौपचारिक परिभाषा बन ग​ई है। "जनता की सरकार" का अर्थ हुआ के शासक साधारण जनता के ही सदस्य हैं, किसी विशेष शाही वर्ग के नहीं। "जनता से सरकार" यानि वह सरकार जो जनता से अपने लिए नियुक्त की गई हो (चुनावों के द्वारा) और किसी राजा-महाराजा ने जनता पर थोपी ना हो। "जनता के लिए सरकार" का मतलब है के शासक जनता के नौकर हैं, जनता शासकों की नौकर नहीं। अंग्रेज़ी में इसे "ऑफ़ द पीपल, बाए द पीपल, फ़ॉर द पीपल" कहते हैं। इन्हें भी देखें अब्राहम लिंकन अमेरिकी गृहयुद्ध प्रसिद्ध भाषण भाषण संयुक्त राज्य अमेरिका का इतिहास हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
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सकल निरीक्षण
चिकित्सा में सकल निरीक्षण (Gross examination) वह प्रक्रिया होती है जिसमें विकृतिवैज्ञानिक नमूनो की बिना सूक्ष्मदर्शी के प्रयोग के, केवल आँखों से देखकर रोगों के अनुमान के लिए जाँच की जाती है। उदाहरण के लिए शल्यचिकित्सा (सर्जरी) द्वारा शरीर से निकाले गए फुलाव (ट्यूमर) की जाँच से उसके कैंसर होने या न होने का अनुमान लगाया जा सकता है। अक्सर सकल निरीक्षण के उपरांत नमूनों को सूक्ष्मदर्शी द्वारा जाँचने के लिए उसकी ऊतक विकृतिवैज्ञानिक जाँच भी की जाती है। इन्हें भी देखें सकल विकृतिविज्ञान विकृतिविज्ञान ऊतक विकृतिविज्ञान सन्दर्भ विकृतिविज्ञान शरीररचनात्मक विकृतिविज्ञान
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जयमाला कार्यक्रम
जयमाला और हवामहल विविध भारती के शुरूआती कार्यक्रम रहे हैं। ये कार्यक्रम आज पचास सालों बाद भी उतनी ही लोकप्रियता के साथ चल रहे हैं। जयमाला जयमाला सोमवार से शुक्रवार तक फौजी भाईयों की पसंद के फिल्‍मी गीतों का कार्यक्रम है। जबकि शनिवार को कोई मशहूर फिल्‍मी-हस्‍ती इसे पेश करती है और विगत कुछ वर्षों से रविवार को जयमाला का नाम जयमाला संदेश होता है। जिसमें फौजी भाई अपने आत्‍मीय जनों को और फौजियों के आत्‍मीय जन देश की सेवा कर रहे इन फौजियों के नाम अपने संदेश विविध भारती के माध्‍यम से देते हैं। ये कार्यक्रम लगातार लोकप्रियता के शिखर पर है। यहां यह रेखांकित कर देना ज़रूरी है कि विविध भारती पहला ऐसा रेडियो चैनल या मीडिया चैनल था जिसने खासतौर पर फौजियों के लिए कोई कार्यक्रम आरंभ किया था। बाद में इस फॉरमेट की नकल कई चैनलों ने की। रेडियो विविध भारती
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%B8%E0%A4%AB%E0%A5%81%E0%A4%B2%20%282010%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29
हाउसफुल (2010 फ़िल्म)
हाउसफुल ३० अप्रैल २०१० को प्रदशित होने वाली एक बॉलीवुड फिल्म है जिसका निर्देशन साजिद खान ने किया है। फिल्म के प्रमुख सितारों में अक्षय कुमार, रितेश देशमुख, अर्जुन रामपाल, लारा दत्ता, दीपिका पादुकोण और जिया खान हैं। फिल्म के अन्य चरित्र बोमन ईरानी और रणबीर कपूर ने निभाए हैं। फिल्म के एक गाने में जैकलीन फर्नांडीज़ विशेष भूमिका में हैं। फिल्म में संगीत शंकर-अहसान-लॉय का है। फिल्म को अधिकतर लंदन में फिल्माया गया है। चलचित्र कथावस्तु कहानी आरुष ( अक्षय कुमार ), एक 'पानौटी' (एक अशुभ व्यक्ति) का अनुसरण करती है, जो बार में काम करता है और पैसा कमाता है क्योंकि लोग पोकर का खेल खो देते हैं। एक लड़की द्वारा शादी करने से इनकार किए जाने के बाद वह बहुत प्यार करता है ( मलाइका अरोड़ा खान ), वह फिर अपने बड़े भाई द्वारा उससे दूर रखने के लिए कहकर मुक्का मारा जाता है। आरुष अपने सबसे अच्छे दोस्त, बॉब ( रितेश देशमुख ) और उसकी पत्नी हेतल ( लारा दत्ता ) के साथ कुछ समय के लिए रहने के लिए लंदन जाते हैं, दोनों किशोर समतनी ( रणधीर कपूर ) के स्वामित्व वाले एक कैसीनो में काम करते हैं। हालाँकि, पहली बार हेतल आरुष की उपस्थिति से अप्रसन्न है, वह एक दयालु व्यक्ति साबित होता है जो एक परिवार की तलाश में है। बॉब और हेतल ने अपने बॉस की बेटी देविका समतनी ( जिया खान ) से उसकी शादी कराने का फैसला किया। शादी के बाद, इटली में अपने हनीमून पर, देविका उसे अपने लंबे समय के अमेरिकी प्रेमी बेनी के लिए छोड़ देती है। Aarush समुद्र में डूबने से आत्महत्या करने का फैसला करता है, लेकिन एक से सहेजा जाता है तेलुगू महिला, सैंडी ( दीपिका पादुकोण ), वह जो चुंबन जब वह उसे उसके मुंह देकर साँस लेने बनाने के लिए कोशिश करता है। सैंडी मूल रूप से सोचता है कि आरुष एक बिगाड़ है, लेकिन जब इटली के "सबसे बड़े" होटल का मालिक आखी पास्ता ( चंकी पांडे ), जहां आरुष देविका के साथ अपना हनीमून बिता रहा था, तो सैंडी बताता है कि आरुष एक मजाक के रूप में विधुर है और उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई। उनका हनीमून, वह उससे दोस्ती करती है और धीरे-धीरे उसके प्यार में पड़ जाती है। वह क्या नहीं जानती है कि आखरी पास्ता केवल मजाक कर रहा था। आरुष ने बॉब और हेतल को इटली बुलाकर पूरी स्थिति के बारे में बताया। सैंडी तब उन्हें बताता है कि उन्होंने अपनी "पत्नी" की मृत्यु के बाद आरुष की मदद की थी, दोनों ने उस स्थिति का गलत अर्थ लगाया कि आरुष ने सैंडी को मृत पत्नी के बारे में झूठ बोला था। बाद में वह देविका से मिलता है और तलाक के कागजात मांगता है। तब उसे पता चलता है कि उसकी पत्नी जीवित है और वह उसे छोड़ देता है। सैंडी आरुष को अपने कमरे में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देता है इसलिए वह अपनी बालकनी से चढ़ता है। पास्ता को लगता है कि आरुष आत्महत्या कर रहा है और लाइव टेलीकास्ट किया जाता है। सैंडी फिर अपने टीवी पर स्विच करती है और अपनी बालकनी में जाती है लेकिन बाद में जब आरुष भ्रम को दूर करने का प्रबंधन करता है, तो वह उसे स्वीकार कर लेती है। जिस तरह से आरुष और सैंडी की शादी हो सकती है, वह उसके बड़े भाई, मेजर कृष्णा राव ( अर्जुन रामपाल ), जो एक सख्त भारतीय सैन्य खुफिया अधिकारी है, जो अपनी बहन से प्यार करता है और उसकी रक्षा करता है। इस बीच, हेतल अपने पिता, बटुक पटेल ( बोमन ईरानी ) से झूठ बोलती है कि बॉब उसके पास एक हवेली है और उनका एक बच्चा है, इसलिए वह इतने सालों बाद उससे मिल सकती है। दूसरी तरफ, सैंडी अपने भाई से कहती है कि आरुष भी बहुत अच्छा करने वाला है। फिर चारों को हेटल के पिता को विश्वास दिलाने के लिए एक हवेली किराए पर लेने के लिए मजबूर किया जाता है कि बॉब उसका मालिक है। भ्रम की स्थिति बनी रहती है और किसी तरह बटुक गलती से मानता है कि आरुष की शादी हेतल से हुई है, और बॉब रसोइया है। भ्रम में वे एक अफ्रीकी बच्चे को लाते हैं और दिखाते हैं कि यह बच्चा है। फिर, कृष्ण पहले से ही उम्मीद से अधिक बदल जाता है, आरुष के आतंक से काफी हद तक कृष्ण वह था जिसने उसे पहले और अधिक झूठ के लिए मुक्का मारा और दो जोड़ों ने उसे विश्वास दिलाया कि आरुष हवेली का मालिक है। आधे पद के लिए, चारों को यह दिखावा करना चाहिए कि हवेली बॉब के स्वामित्व में है, और बाकी को यह दिखावा करना चाहिए कि आरुष का मालिक है। बटुक पटेल और मकान मालकिन आरुष के छद्म माता-पिता हैं जबकि हेतल उनकी बहन हैं और बॉब उनके बहनोई हैं। एक संदिग्ध रूप से कृष्ण कैसिनो में जाता है क्योंकि उसके बैग का आदान-प्रदान किशोर संपतनी के साथ हुआ था। कृष्णा तब बॉब और हेतल को कसीनो में काम करते देखता है और जैसे ही वे कृष्णा को देखते हैं, वे उससे छिप जाते हैं। सत्य को खोजने के लिए कृष्ण आरुष पर झूठ का प्रयोग करते हैं। सैंडी वस्तुओं के बाद, कृष्णा माफी माँगता है और आरुष और सैंडी की शादी के लिए सहमत होता है। पूरे परिवार को शाही महल में आमंत्रित किया जाता है ताकि कृष्ण को यूनाइटेड किंगडम की रानी द्वारा पुरस्कृत किया जा सके। जबकि यह हो रहा है, दो कार्यकर्ता, सांता ( सुरेश मेनन ) और बंता सिंह ( मनोज पाहवा ), का मतलब जगह के लिए एयर कंडीशनिंग गैस स्थापित करना है। हालांकि इसके बजाय वे गलती से हंसी गैस के साथ हॉल की आपूर्ति करते हैं, जिससे हर कोई हंसी के प्रकोप में टूट जाता है। इस हँसी के दौरान, सच्चाई को छोड़ दिया जाता है, लेकिन कोई भी मन की सही स्थिति में नहीं लगता है। इस बीच दो कार्यकर्ता गैस को फैलने से रोकते हैं - हर कोई अपने होश में वापस आ जाता है। आरुष कृष्णा को उसके दुर्भाग्य के बारे में सच्चाई बताने के लिए मंच पर जाता है और मानता है कि सैंडी के साथ उसकी सगाई अब टूट चुकी है। हालांकि कृष्ण का मानना ​​है कि आरुष अब एक हारे हुए व्यक्ति नहीं है और इसके बजाय वह और सैंडी को शादी करने का आदेश देता है। अंत में, हेटल और बॉब बटुक पटेल के साथ रहते हैं, और आरुष की किस्मत बेहतर के लिए बदल जाती है। पात्र सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ हाउसफुल फिल्म कहानी हिन्दी फ़िल्में
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF%20%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%9F
शब्द प्रति मिनट
शब्द प्रति मिनट कुंजीपटल पर टंकण करने की गति को मापने के लिए एक मापक है। इसका उपयोग लिखने और पढ़ने की गति के माप के लिए करते हैं। अंग्रेजी में 5 अक्षर (कुल कुंजी का उपयोग) को एक शब्द माना जाता है। जिसमें खाली स्थान और चिह्न को भी गिना जाता है। इतिहास ब्रांडोन रजियानों ने एक अध्ययन में यह पाया की सामान्य कम्प्यूटर प्रयोक्ता की गति 33 शब्द प्रति मिनट होती है। और यदि लय न हो तो वह 19 शब्द प्रति मिनट की गति से टंकण करते हैं। इसी अध्ययन के बाद समूह को तेज, माध्यम और धीमी गति के समूह में विभाजित किया गया। जिसमें औसत गति 40 श॰प्र॰मि॰, 35 श॰प्र॰मि॰ और 23 श॰प्र॰मि॰ क्रमशः है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ
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पोलियो वैक्सीन
दुनियाभर में पोलिओम्येलितिस (या पोलिओ) का मुकाबला करने के लिए दो पोलियो वैक्सीन का प्रयोग किया जाता है पहला जोनास सॉल्क द्वारा विकसित किया गया और 1952 में उसका पहला परीक्षण किया गया। 1955, अप्रैल 12 को सॉल्क द्वारा दुनिया को इसकी घोषणा की गयी की, यह निष्क्रिय (मरे हुए) पोलियोवायरस की इंजेक्शन की खुराक होते हैं . एक मौखिक टीका अल्बर्ट साबिन द्वारा तनु (कमजोर किये गए) पोलियो वायरस का उपयोग करके विकसित किया गया . साबिन के टिके का मानव परिक्षण १९५७ में शुरू किया गया और इसने १९६२ में लाइसेंस प्राप्त किया। चूँकि साधारणतः असंक्राम्य व्यक्तियों में पोलिओ वायरस की कोई दीर्घकालिक वाहक परिस्थिति नहीं है और, पोलियोवायरस का प्रकृति में कोई गैर रिहायशी भण्डारण नहीं है और पर्यावरण में इस वायरस का एक समय की विस्तारित अवधि के लिए अस्तित्व बनाये रखना मुश्किल है। इसलिए, टीकाकरण के द्वारा वायरस का व्यक्ति से व्यक्ति में संचरण की रोकधाम वैश्विक पोलियो उन्मूलन का एक महत्वपूर्ण कदम है। इन दो टीकों द्वारा दुनिया के सबसे अधिक देशों से पोलियो का उन्मूलन किया गया है और दुनियाभर में पोलियो के मामले, अनुमानित, १९८८ में ३५०,००० से घटकर २००७ में १,६५२ रह गए हैं। विकास सामान्य अर्थ में, टीकाकरण रोग प्रतिरोगी तंत्र को 'immunogen '(रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ने वाले तत्त्व) के द्वारा तैयार करता है। प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को, एक संक्रामक एजेंट के माध्यम से, उत्तेजित करने की प्रक्रिया को प्रतिरक्षण (immunization) के रूप में जाना जाता है। टीकाकरण द्वारा पोलियो के प्रति रोगक्षमता को विकसित करने से जंगली पोलियो वायरस का व्यक्ति से व्यक्ति संचरण कुशलतापूर्वक ब्लॉक हो जाता है, जिससे व्यक्तिगत टीका प्राप्तकर्ताओं और व्यापक समुदाय, दोनों की सुरक्षा होती है। 1936 में, मौरिस ब्रोदिए ने, जो की न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में एक अनुसंधान सहायक थे, एक मुलभुत बन्दर स्पिनल कार्ड से एक formaldehyde द्वारा मारे गए पोलियो टिके का निर्माण करने का प्रयास किया। उनके प्रारंभिक प्रयास पर्याप्त वायरस प्राप्त न कर पाने के कारण अवरुद्ध हुए. ब्रोदिए ने सबसे पहले उस टिके का परिक्षण अपने आप पर और अपने कई सहायकों पर किया। उसके बाद उन्होंने वह teeka तीन हज़ार बच्चो को दिया, जिनमे से कई बच्चो को प्रतिक्रियात्मक एलर्जी हुई, लेकिन किसी में भी पोलियो प्रतिरोधकता विकसित नहीं हुई. फिलाडेल्फिया के रोगविज्ञानी जॉन कोल्मेर ने भी उसी वर्ष एक teeka बनाने का दावा किया, लेकिन उससे भी प्रतिरोधकता उत्पन्न नहीं हुई और उन्हें कई मामले प्रवृत करने का दोषी ठहराया गया, जिनमे से कुछ जानलेवा थे। एक सफलता 1948 में मिली जब जॉन एंडर्स की अध्यक्षता में एक शोध समूह ने बोस्टन चिल्ड्रेन हॉस्पिटल में मानव उतकों पर पोलियो वायरस सफलतापूर्वक उगा दिया. इस बढ़त ने वैक्सीन अनुसंधान में बहुत मदद की और अंततः पोलियो के खिलाफ टीके का विकास करना मुमकिन बना दिया . एंडर्स और उनके सहयोगियों, थॉमस एच. सी. वेलर और फ्रेडरिक रॉबिंस, द्वारा की गयी मेहनत को मान्यता देने के लिए उन्हें वर्ष १९५४ में फिजियोलॉजी या चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार दिया गया . पोलियो वायरस के विकास के अन्य महत्वपूर्ण अग्रगणि थे:तीन पोलियो वायरस (serotype) की पहचान (पोलियो वायरस प्रकार १ - PV1, या Mahoney ; PV2, Lansing और PV3, Leon); यह निष्कर्ष कि पक्षाघात से पहले वायरस का रक्त में मौजूद होना ज़रूरी है और यह स्पष्टीकरण कि एंटीबॉडी की खुराक गामा - ग्लोबुलिन के रूप में लेने से पक्षघती पोलियो से बचा जा सकता है। जब 1952 और 1953 में, क्रमशः, 58,000 और 35,000 पोलियो के मामले सामने आये, अमेरिका में पोलियो का प्रकोप हुआ, जो की आम तौर पर कुछ 20000 प्रतिवर्ष की संख्या से काफी ज्यादा थे। अमेरिका की इस महामारी के बीच, वाणिज्यिक हितों के तहत पोलियो टीका खोजने और विपणन करने के लिए करोड़ों डॉलर खर्च किये गए, जिनमे एच.आर. काक्स के निर्देशन में न्यू योर्क की लेदेरले प्रयोगशाला भी शामिल थी। इसके साथ ही लेदेरले में काम करने वाले पोलिश मूल के विषाणुविज्ञानी और प्रतिरक्षा विज्ञानी हिलेरी कोप्रोव्सकी ने पहला सफल पोलियो वैक्सीन बनाने का दावा किया। हालांकि उनका टिका, जो की मौखिक रूप से लिया जाने वाला एक जीवित तनु (कमजोर किया गया) विषाणु था, अब भी अनुसंधान चरण में था और जोनास सॉल्क के पोलियो टीके (एक निर्जीव, इंजेक्शन से लिया जाने वाला वैक्सीन) के बाजार में आ जाने के पांच साल बाद इस्तेमाल के लिए तैयार हुआ था। कोप्रोव्सकी का तनु टीका सफ़ेद स्विस चूहों के मस्तिष्को के माध्यम में लगातार पारित कर के तैयार किया गया था। सातवें गमन तक, टिके द्वारा डाला गया असर इतना प्रभावशाली नहीं रह जाता की वो स्नायुतंत्र उतकों को संक्रमित कर सके या पक्षाघात का कारण बन सके. उसके बाद चूहों पर एक से तीन गमन और आगे करने के बाद इस वैक्सीन को मानव उपयोग के लिए सुरक्षित मान लिया गया। 27 फ़रवरी 1950, को कोप्रोव्सकी की जीवित, तनु वैक्सीन का पहली बार लेत्च्वोर्थ गाँव, न्यू योर्क के एक ८ साल के लड़के पर परिक्षण किया गया। लड़के पर कोई दुष्प्रभाव नहीं हुआ और कोप्रोव्सकी ने अपने प्रयोग का विस्तार करते हुए 19 अन्य बच्चों को शामिल कर लिया। दो पोलियो टीकों के विकास के मार्गदर्शन में पहले आधुनिक बहुसंख्यक टीकों तक पहुंचे . संयुक्त राज्य अमेरिका में जंगली वायरस के स्थानिक संचरण के कारण लकवाग्रस्त पोलिओम्येलितिस के प्रकोप के कुछ आखिरी मामले वर्ष 1979 में मिडवेस्ट के भिन्न राज्यों, जिनमे से अमिश भी एक था, में दर्ज किये गए . विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ और रोटरी फाउंडेशन के नेतृत्व में १९८८ में पोलियो के उन्मूलन के लिए एक वैश्विक प्रयास शुरू किया गया, जो की मुख्या रूप से अल्बर्ट साबिन की मौखिक वैक्सीन पर निर्भर था। यह रोग अमेरिका से १९४४ में पूरी तरह मिटा दिया गया। 2000 में ऑस्ट्रेलिया और चीन सहित, ३६ पश्चिमी प्रशांत के देशों से पोलियो आधिकारिक तौर पर मिटा दिया गया था। यूरोप 2002 में पोलियो मुक्त घोषित किया गया . २००८ तक, पोलियो केवल इन चार देशो में स्थानिक रह गया : नाइजीरिया, भारत, अफगानिस्तान और पाकिस्तान. हालांकि पोलियो वायरस संचरण दुनिया के बहुत बड़े हिस्से में बाधित कर दिया गया है, किन्तु जंगली पोलियो वायरस का संचरण जारी है और पहले से पोलियो मुक्त क्षेत्रों में जंगली पोलियो वायरस के आयातित होने का निरंतर ख़तरा बना हुआ है। अगर पोलियोवायरस आयातित होता है तो, पोलियो का प्रकोप फ़ैल सकता है, खासतौर पर उन क्षेत्रो में जहाँ कम टीकाकरण कवरेज है और पर्याप्त स्वच्छता नहीं है। अतः, टीकाकरण कवरेज के उच्च स्तरों को बनाए रखा जाना चाहिए. निष्क्रिय टीके पहला प्रभावी पोलियो वैक्सीन पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय में 1952 में जोनास सॉल्क द्वारा विकसित किया गया था। लेकिन इसको वर्षो के परिक्षण की आवश्यकता थी। धैर्य बंधाने के लिए सॉल्क ने 26 मार्च 1953 को रेडियो सीबीएस पर वयस्कों और बच्चों के एक छोटे से समूह पर सफल परिक्षण किये जाने की घोषणा की, दो दिन बाद उस परिक्षण के नतीजे JAMA में प्रकाशित किये गए। सॉल्क वैक्सीन, या निष्क्रिय पोलियोवायरस टीके (आइपीवी), तीन जंगली विषमय उपभेदों पर आधारित है, Mahoney (प्रकार 1 पोलियो वायरस), MEF-1 (प्रकार 2 पोलियो वायरस) और Saukett (प्रकार 3 पोलियो वायरस), जिन्हें बन्दर के गुर्दे के उतक समूह (वेरो सेल रेखा) के एक प्रकार में उगाया गया था और उसके बाद उन्हें फोर्मलिन से निष्क्रिय किया गया . इंजेक्शन सॉल्क वैक्सीन आईजीजी के माध्यम से रक्तप्रवाह में प्रतिरक्षा प्रदान करता है, जो की पोलियो के संक्रमण को बढ़कर विषाणुरक्तता में बदलने से रोकता है और मोटर नुरोंस की रक्षा करता है और इस प्रकार कंदाकार पोलियो एवं पोस्ट पोलियो सिंड्रोम के जोखिम को ख़त्म कर देता है। 1954 में इस वैक्सीन का Arsenal Elementary स्कूल और वाटसन होम फॉर चिल्ड्रेन पिट्सबर्ग, पेंसिल्वेनिया, में परीक्षण किया था। फिर सॉल्क के टीके का इस्तेमाल थोमस फ्रांसिस के नेतृत्व में Francis Field Trial नमक एक परिक्षण में किया गया जो की इतिहास का सबसे बड़ा चिकित्सा परिक्षण था। परीक्षण की शुरुआत कुछ ४००० बच्चों के साथ Franklin Sherman Elementary School, म्क्लेँ, वेर्जिनिया में की गयी जिसमे की आगे चलकर Maine से लेकर कैलिफोर्निया तक ४४ राज्यों के १८ लाख बच्चे शामिल होने थे। अध्ययन के ख़त्म होने तक, लगभग 440,000 बच्चों को एक या एक से अधिक टिके का इंजेक्शन दिया जा चुका था, २१०,००० बच्चो को प्लासेबो, जिसमे हानिरहित मीडिया समूह शामिल था, दिया जा चुका था, और 12 लाख बच्चे जिन्हें कोई भी टिका नहीं लगाया गया था, वे एक नियंत्रण समूह की भूमिका में थे, जिसका फिर निरिक्षण किया गया ये देखने के लिए की किसी को पोलियो हुआ है या नहीं. क्षेत्र परीक्षण के परिणामों की घोषणा 12 अप्रैल 1955 (फ्रेंकलिन डी. रूजवेल्ट की मौत के दसवें सालगिरह ; देखिये, फ्रेंकलिन डी. रूजवेल्ट की लकवे की बीमारी) को की गयी थी। सॉल्क वैक्सीन PV1 1 (प्रकार 1 पोलियो वायरस) के विरुद्ध 60 से ७०% कारगर है,PV2 और PV3 के विरुद्ध ९० प्रतिशत से ज्यादा कारगर है, और कंदाकार पोलियो के विकास के विरुद्ध ९४ प्रतिशत तक कारगर है। सॉल्क वैक्सीन को 1955 में लाइसेंस दिए जाने के बाद जल्द ही बच्चो का टीकाकरण अभियान शुरू कर दिया गया। अमेरिका में,March of Dimes के द्वारा प्रचारित सामूहिक प्रतिरक्षण टीकाकरण अभियान का अनुसरण करते हुए, पोलियो के सालाना मामले १९५७ में ५६०० तक गिर गए। १९६१ तक संयुक्त राज्य अमेरिका में केवल १६१ मामले दर्ज हुए . नवंबर 1987 में, संयुक्त राज्य अमेरिका में एक अधिक प्रबल आइपीवी को लाइसेंस दिया गया और वर्त्तमान में वह संयुक्त राज्य अमेरिका का चुनिन्दा विकल्प है। पोलियो टीके की पहली खुराक जन्म के बाद शीघ्र ही, आमतौर पर १ से २ महीने के उम्र के बीच और, एक दूसरी खुराक 4 महीने की उम्र में दी जाती है। तीसरी खुराक का समय टीका निरूपण पर निर्भर करता है, लेकिन यह ६ से १८ महीने की उम्र के बीच दे देना चाहिए. ४ से ६ साल की उम्र के बीच एक बूस्टर टीका दिया जाता है, जो की स्कूल जाने तक या उस से पहले दिए जाने वाले कुल ४ टीको में होता है। कुछ देशों में, किशोरावस्था के दौरान एक पांचवा टीकाकरण दिया जाता है। विकसित देशों में वयस्कों (18 साल और उससे बड़ी आयु) का नियमित टीकाकरण न तो ज़रूरी है और न ही इसकी सलाह दी जाती है क्योकि ज्यादातर व्यस्क या तो पहले से ही उन्मुक्त हैं या फिर जंगली पोलियो विषाणु के प्रति उनकी अरक्षितता का जोखिम बहुत कम है। 2002 में, (Pediarix नामक) एक आइपीवी युक्त pentavalent(5 घटक) संयोजन वैक्सीन को संयुक्त राज्य अमेरिका में उपयोग के लिए मंजूरी दे दी गयी . उस वैक्सीन में टिटनेस, डिप्थीरिया, काली खांसी (DTaP)(acellular pertussis) के साथ ही हैपेटाइटिस बी के टीके की एक बाल चिकित्सा खुराक भी शामिल थी। ब्रिटेन में, आइपीवी टीके के साथ टेटनस, डिप्थीरिया, काली खांसी और Haemophilus influenzae टाइप बी टीका, को सम्मिलित किया जाता है। मौजूदा आइपीवी के प्रयोग के दौरान, ९० प्रतिशत से अधिक व्यक्तियों में, निष्क्रिय पोलियो टीका की दो खुराकों के बाद, सभी तीन प्रकार के पोलियोविरुस serotype के विरुद्ध सुरक्षात्मक रोगप्रतिकारक विकसित हो गए, और कम से कम ९९ प्रतिशत अगले तीन खुराकों के बाद पोलियो उन्मुक्त हो गए। आइपीवी द्वारा प्रेरित रोगक्षमता की अवधि, निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है, हालांकि खुराको की एक पूरी श्रंखला कई वर्षों के लिए सुरक्षा प्रदान करती है। मौखिक टीका ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) एक जीवित-तनु वैक्सीन है, जिसे वायरस को, गैर मानवीय कोशिकाओं से एक उपशरिरिक तापमान पर पारित कर के बनाया जाता है, जिस से वायरल जीनोम में एक सहज परिवर्तन (mutation) उत्पन्न होता है। ओरल पोलियो टीके कई समूहों द्वारा विकसित किया गया है जिनमे से एक अल्बर्ट साबिन के नेतृत्व में था। हिलेरी कोप्रोव्सकी और एच.आर. काक्स द्वारा संचालित अन्य समूहों ने खुद का तनु टिका उपभेद विकसित किया। 1958 में, राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान ने जीवित पोलियो टीकों पर एक विशेष समिति बनायीं. विभिन्न टीकों का ध्यान से मूल्यांकन किया गया की वो पोलियो के प्रति प्रतिरक्षण प्रेरित करने में कितने सक्षम हैं, और साथ ही वे बंदरों में neuropathogenicity की आवृत्ति को कितना कम बनाये रख पाते हैं। इन परिणामों के आधार पर, साबिन उपभेदों को दुनिया भर में वितरण के लिए चुना गया . तनु साबिन 1 उपभेद को उसके विषमय मूल (Mahoney serotype) से अलग करने वाले 57 nucleotide substitutions हैं, जिनमें से दो साबिन २ उपभेद को तनु करते हैं, और 10 substitutions साबिन 3 उपभेद को तनु करने से सम्बद्ध हैं। सभी ३ साबिन टीकों का समान मूलभूत तनु कारक एक परिवर्तन (mutation) है जो की वायरस के आतंरिक ribosome प्रविष्टि स्थल (या IRES) में स्थित होता है और जो स्टेम परिपथ की संरचना बदल देता है, पोलियो वायरस की, उसके RNA सांचे (template) को मेजबान कोशिका के भीतर अनुदित होने की क्षमता, को कम कर देता है। साबिन वैक्सीन में मौजूद तनु पोलियो वायरस आंत में बहुत कुशलतापूर्वक प्रतिकृति (replicate) बनाता है, जो की संक्रमण और प्रतिकृति (replication) का मूल स्थल है, लेकिन यह तंत्रिका प्रणाली ऊतक के भीतर कुशलतापूर्वक प्रतिकृति बनाने में असमर्थ है। ओपीवी दवा लेने में भी बेहतर साबित हुई, क्योंकि इसमें जीवाणुहीन सिरिंजों की आवश्यकता नहीं होती है और इस प्रकार यह टीका अधिक व्यापक टीकाकरण अभियानों के लिए उपयुक्त है। ओपीवी टीका सॉल्क वैक्सीन से अधिक समय तक टिकाऊ उन्मुक्ति उपलब्ध करवाती है। 1961 में, प्रकार 1 और 2 monovalent (एकल घटक) मौखिक पोलियोवायरस टीके (MOPV), को लाइसेंस दिया गया था और 1962 में, प्रकार 3 MOPV को लाइसेंस दिया गया था। 1963 में, त्रिसंयोजक ओपीवी (TOPV), को लाइसेंस दिया गया था और संयुक्त राज्य अमेरिका और दुनियाभर की लगभग सभी देशों का, निष्क्रिय पोलियो टीके की जगह यह चुनिन्दा विकल्प बन गया था। बड़े पैमाने पर टीकाकरण की एक दूसरी लहर में पोलियो के मामलों की संख्या में नाटकीय गिरावट हुई. 1962 से 1965 के बीच लगभग 100 मिलियन अमेरिकी (उस समय जनसंख्या का लगभग 56%) नागरिकों को साबिन वैक्सीन दिया गया। परिणाम स्वरुप पोलियो के मामलों की संख्या में काफी हद तक कमी आ गयी, यहाँ तक की सालक टीके के इस्तेमाल से काफी कम हुए स्तर से भी कम. ओपीवी आमतौर पर शीशियों में उपलब्ध होती है, जिनमें टीके की 10-20 खुराक होती है। मौखिक पोलियो वैक्सीन की एकल खुराक (आमतौर पर दो बूँदें) में साबिन 1 (PV1 के खिलाफ प्रभावी) की 1000000 संक्रामक इकाइयां, साबिन 2 उपभेद की 100000 संक्रामक इकाइयां और साबिन 3 की 600, 000 संक्रामक इकाइयां होती हैं। इस टीके में प्रतिजीवाणु (एंटीबायोटिक) की बेहद छोटी मात्र होती है - neomycin और स्ट्रेप्टोमाइसिन - लेकिन परिरक्षक (prservatives) नहीं होते है। ओपीवी की एक खुराक से लगभग ५० प्रतिशत प्राप्तकर्ताओं को सभी तीन प्रकार के पोलियो वायरस serotype प्रकारों से प्रतिरक्षा मिल जाती है। 95% से अधिक प्राप्तकर्ताओं में जीवित तनु ओपीवी की तीन खुराक, सभी तीन प्रकार के पोलियोवायरस के प्रति, सुरक्षात्मक रोग-प्रतिकारक (antibody) उत्पन्न करती है। ओपीवी आँत में उत्कृष्ट उन्मुक्ति उत्पन्न करती है, जो की पोलियो वायरस के प्रवेश का मुख्या स्थल है, इससे उन क्षेत्रों में जंगली पोलियो वायरस का संक्रमण रोकने में मदद मिलती है जहाँ इसका संक्रमण स्थानिक होता है। टीके में उपयोग किया गया जीवित वायरस मल के रास्ते बहार निकल जाता है और इस प्रकार यह समुदाय में फ़ैल सकता है, परिणामस्वरूप जिन व्यक्तियों का सीधे टीकाकरण नहीं हुआ है उनकी भी पोलियो के विरुद्ध सुरक्षा हो जाती है। आइपीवी, ओपीवी से कम जठरांत्र उन्मुक्ति उत्पन्न करता है, और मुख्य रूप से वायरस को तंत्रिका तंत्र में प्रवेश करने से रोकते हुए काम करता है। जिन क्षेत्रों में जंगली पोलियो वायरस नहीं होता है वहाँ, निष्क्रीय पोलियो वैक्सीन के टीके विकल्प होते हैं। पोलियो के उच्च आपतन वाले क्षेत्रों में, जहां प्रभावोत्पादकता और टीके के विषमय स्वरुप में प्रत्यावर्तन के बीच एक अलग तरह का खतरा होता है, वहाँ जीवित टीके का इस्तेमाल किया जाता हैं। वीवित वायरस के परिवहन और भंडारण की बेहद सख्त ज़रूरतें होती हैं, जो की गरम और दूरदराज़ के इलाकों में एक समस्या रहे है। बाकी दुसरे जीवित वायरस टीकों के साथ, ओपीवी द्वारा दीक्षित उन्मुक्ति लगभग आजीवन रहती है। Iatrogenic (वैक्सीन प्रेरित) पोलियो मौखिक पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) के बारे में एक प्रमुख मुद्दा है, इसकी खुद को ऐसे स्वरुप में लौटा लेने की विदित क्षमता, जिससे की स्नायविक संक्रमण और पक्षाघात हो सकता है। टीका व्युत्पन्न पोलियो वायरस (VDPV) द्वारा प्रेरित, पक्षाघात सहित, अन्य नैदानिक रोग, जंगली पोलियो वायरस द्वारा प्रेरित रोगों से अविभेद्य हैं। हालाँकि इसे एक दुर्लभ घटना माना जाता है, वैक्सीन से जुड़े पक्षाघाती पोलियोमाइलिटिस (VAPP) के प्रकोप को दर्ज किया गया है, और यह निम्न ओपीवी कवरेज वाले क्षेत्रों में प्रवृत्त होता है, सम्भवतः क्योकि ओपीवी स्वयं सम्बंधित प्रकोप के प्रति सुरक्षात्मक है। जैसे जैसे जंगली पोलियो की घटनाएं कम हो रही हैं, अनेक देश मौखिक टीके के इस्तेमाल से इंजेक्शन टीके की तरफ लौट रहे हैं, क्योकि ओपीवी से उत्पन्न iatrogenic पोलियो (VAPP) का प्रत्यक्ष खतरा ओपीवी के प्रारंभिक संचरण के अप्रत्याशित लाभ से ज्यादा महत्वपूर्ण है। आई पी वी के इस्तेमाल से परावर्तन मुमकिन नहीं है लेकिन परावर्तित ओपीवी या जंगली पोलियो विषाणु से अरक्षितता होने पर नैदानिक संक्रमण का थोडा जोखिम बना रहता है। मध्य 1950 के दशक में पोलियो टीके के व्यापक उपयोग के बाद कई औद्योगिक देशों में पोलियो की घटनाओं में तेजी से गिरावट आई है। 2000 में संयुक्त राज्य अमेरिका में ओपीवी का इस्तेमाल बंद कर दिया गया और 2004 में ब्रिटेन में भी इसका इस्तेमाल बंद कर दिया गया है, लेकिन दुनिया भर में इसका इस्तेमाल जारी है। VAPP (टीका सम्बंधित पक्षघाती पोलियो) की दर क्षेत्र विशेष के साथ साथ बदलती रहती है, लेकिन आमतौर पर यह प्रति ७५०,००० टीका प्राप्तकर्ताओं में से एक की है। VAPP के बच्चों की तुलना में वयस्कों में होने की संभावना अधिक है। प्रतिरक्षाहीन (immunodeficient) बच्चों में VAPP होने का जोखिम लगभग 7,000 गुना ज्यादा होता है, विशेषकर बी lymphocyte विकारों (जैसे की agammaglobulinemia और hypogammaglobulinemia) वाले व्यक्तियों में, जिनसे की सुरक्षात्मक रोग्प्रतिकारकों का संस्लेषण कम हो जाता हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है की टीका व्युत्पन्न पोलियो के जोखिम की तुलना में टीकाकरण के फायदों का पलड़ा काफी भारी है। टीका व्युत्पन्न पोलियो के प्रकोप को उच्च गुणवत्ता वाले टीकाकरण के कईं दौर के द्वारा रोका गया है, ताकि पूरी जनसंख्या को प्रतिरक्षित किया जा सके. VAPP ka प्रकोप स्वतंत्र रूप से बेलारूस (1965-1966), कनाडा (1966-1968), मिस्र (1983-१९९३),Hispaniola(2000-2001), फिलीपींस (2001), मेडागास्कर (2001-2002), और हैती (2002) में हुआ, जहां राजनीतिक संघर्ष और गरीबी ने टीकाकरण के प्रयासों में दखल दिया. 2006 में चीन में वैक्सीन व्युत्पन्न पोलियो वायरस फैला. कंबोडिया (2005-2006), म्यांमार (2006 -2007), इरान (1995 -2007), सीरिया, कुवैत और मिस्र में भी मामले दर्ज किये गए। 2005 के बाद से, विश्व स्वास्थ्य संगठनउत्तरी नाइजीरिया में जीवित मौखिक पोलियो टीके में उत्परिवर्तन के कारण हुए टीका व्युत्पन्न पोलियो पर नज़र रख रहा है। संदूषण से जुड़े मुद्ददे 1960 में, यह पता चला की रेसस बंदर गुर्दे की कोशिकाएं, जिनका इस्तेमाल कर पोलियो टीके बनाये गए थे, SV40 वायरस (सिमीयन वायरस-४०) से संक्रमित हैं। SV40 की खोज भी 1960 में हुई थी और यह प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाला वायरस है जो की बंदरों को संक्रमित करता है। 1961 में पता चला की SV40 कृंतक प्राणियों में ट्यूमर उत्पन्न करता है। हाल ही में, यह वायरस मनुष्यों में पाए जाने वाले कैंसर के कुछ रूपों में पाया गया, उदाहरण के लिए मस्तिष्क और हड्डी के ट्यूमर,mesothelioma और non -Hodgkin lymphomake के कुछ प्रकार. हालांकि, यह निर्धारित नहीं हो पाया है की यह कैंसर SV40 द्वारा उत्पन्न किया गया है। १९५५ से १९६३ के बीच इस्तेमाल हुए injection वाले पोलियो के टीकों (आइपीवी) के स्टॉक में SV40 मौजूद था। यह ओपीवी स्वरुप में मौजूद नहीं था। 98 लाख से अधिक अमेरिकियों को 1955 से 1963 के बीच एक या उससे अधिक पोलियो की खुराक दी गयी, जब वह वैक्सीन एक अनुपात में SV40 से संदूषित था;अंदाज़ा लगाया जाता है की 10 - 30 मिलियन अमेरिकी नागरिकों ने SV40 से संदूषित वैक्सीन की खुराक की खुराक ली थी। बाद में विश्लेषण से जाहिर हुआ की, पूर्व सोवियत गुट द्वारा १९८० तक उत्पादन किये गए टीके, जिनका सोवियत संघ, चीन, जापान और अनेक अफ़्रीकी देशों में इस्तेमाल हुआ था, संदूषित हो सकते हैं, जिसका मतलब है की कईं सौ मिलियन और अधिक SV40 से अनावृत हुए. 1998 में, राष्ट्रीय कैंसर संस्थान ने एक व्यापक अध्ययन का बीड़ा उठाया, जिसमें संस्थानों के SEER डेटाबेस में मौजूद कैंसर की जानकारी का उपयोग किया गया। अध्ययन के प्रकाशित निष्कर्षों से पता चला कि SV40 सम्मिलित टीका लेने वाले लोगों में कैंसर की घटनाओं में कोई वृद्धि नहीं हुई थी। स्वीडन में किये गए एक अन्य व्यापक अध्ययन में 700,००० व्यक्तियों, जिन्होंने १९५७ तक भी संभवतः संदूषित पोलियो वैक्सीन ग्रहण की थी, में कैंसर दरों की पड़ताल की;इस अध्ययन से फिर पता चला की SV40 सम्मिलित पोलियो टीके वाले व्यक्तियों में उसे न लेने वाले व्यक्तियों की तुलना में कैंसर की आवृति में कोई वृद्धि नहीं हुई थी। SV40 मनुष्यों में कैंसर का कारण बनता है या नहीं, ये सवाल आज भी विवादास्पद है और इसे सुलझाने के लिए मानव उतकों में SV40 का पता लगाने की बेहतर परख की आवश्यकता है। मौखिक पोलियो वैक्सीन के विकास की प्रतिद्वंद्विता के दौरान व्यापक पैमाने पर मानवीय परिक्षण किये गए। 1958 तक, राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान ने निर्धारित किया कि साबिन उपभेदों का उपयोग कर बनाये गए ओपीवी सबसे सुरक्षित थे। हालांकि,1957 और 1960 के बीच, हिलेरी कोप्रोव्सकी ने दुनिया भर अपने टीके को प्रयोग में लेना जारी रखा. अफ्रीका में, बेल्जियम के प्रान्तों में लगभग १ मिलियन लोगों को यह टीके दिए, जो आज के कांगो के लोकतांत्रिक गणराज्य, रवांडा और बुरुंडी हैं। इन मानव परीक्षणों के परिणाम विवादास्पद है, और १९९० के आरोपों ने यह बात खड़ी कर दी की इस टीके ने चिम्पांजी से मानवों में SIV के संचरण के लिए आवश्यक परिस्थितियों का निर्माण किया है, जिसके कारण एचआईवी / एड्स हो जाता है। हालांकि इस अवधारणा का खंडन किया गया है। 2004 तक, अफ्रीका में पोलियो के मामले, अन्यत्र छिटपुट मामलों के साथ, महाद्वीप के पश्चिमी भाग के बहुत थोड़े से अलग थलग क्षेत्रों तक ही सीमित कर दिए गए . हालांकि, हाल ही में टीकाकरण अभियानों के प्रति विरोध विकसित हुआ है, अक्सर जिसका सम्बन्ध इस डर से होता है की इन टीको से बांझपन उत्पन्न होता है। उसके बाद से ही नाइजीरिया और कई अन्य अफ्रीकी देशों में यह रोग फिर से उठ खड़ा हुआ है, जो की महामारी-विज्ञानियों के अनुसार कुछ निश्चित स्थानीय आबादी द्वारा अपने बच्चों के टीकाकरण को अस्वीकार करने के कारण हुआ है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ CGDev.ओर्ग - "टीके के विकास के लिए" वैश्विक विकास केंद्र PBS.org - 'लोग और खोजें: सॉल्क ने पोलियो वैक्सीन का उत्पादन किया,१९५२' जोनास सॉल्क और सॉल्क पोलियो वैक्सीन के बारे में दस्तावेज़ , ड्वाइट डी. Eisenhower राष्ट्रपति लाइब्रेरी पोलियो पर विजय , स्मिथसोनियन पत्रिका, अप्रैल, 2005 पोलियोमाइलिटिस वेक्सीन जीवित टीके श्रेष्ठ लेख योग्य लेख गूगल परियोजना
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प्रेमा श्रीनिवासन्
प्रेमा श्रीनिवासन् एक भारतीय लेखिका हैं । उन्हें बच्चों के साहित्य के लिए अंग्रेजी में पीएच.डी. प्राप्त है । प्रेमा श्रीनिवासन का चिल्ड्रन फिक्शन, ट्रेंड्स एंड मोटिफ्स क्रेडिट टीआर पब्लिकेशन द्वारा 1998 में भारत में अंग्रेजी में प्रकाशित है। प्रेमा श्रीनिवासन् द हिंदू में बच्चों की किताबों की नियमित समीक्षक हैं, जो भारत में एक प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक है। उन्होंने 'यंग वर्ल्ड' में प्रकाशित " हिंदू के पूरक" बच्चों के लिए एक उपन्यास लिखा है। उनकी अन्य रचनाओं में, उन्होंने 2001 में पलानियप्पा ब्रदर्स द्वारा प्रकाशित ऑस्ट्रेलियाई लेखक लिब्बी हैथोर्न की 'थंडरविथ' का तमिल में अनुवाद किया। तमिल भाषा में उनका नवीनतम अनुवाद कार्य, मदरसिल मृदु , या अंग्रेजी में वसंत सूर्या द्वारा लिखित मद्रास में मृदु है । उनका यात्रा-वृत्तांत (2009) 'फुटलोज़ एंड फैन्सी-फ़्री "यात्रा कथाओं का संकलन है।'द हिंदू'[] में इसकी समीक्षा की गई है। इनमें से ग्यारह मूल रूप से द हिंदू सप्लीमेंट्स में प्रकाशित हुए और चार सीता.गीता डॉट कॉम में ब्लॉग के रूप में दिखाई दिए। उनका सबसे हालिया प्रकाशन, "ए विजनरीज़ रीच", डॉ। एपीजे अब्दुल कलाम (भारत के पूर्व राष्ट्रपति) द्वारा 7 जनवरी, 2014 को मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (अब अन्ना विश्वविद्यालय, चेन्नई का एक हिस्सा) में जारी किया गया था। पुस्तक मे चिन्नास्वामी राजम (डॉ। प्रेमा श्रीनिवासन के दादा) के जीवन की कहानी का पता लगाती है, जिन्होंने 1949 में अपनी राजमहल हवेली, इंडिया हाउस को बेचकर प्रौद्योगिकी के इस संस्थान की स्थापना की थी। पुस्तक में श्री अब्दुल कलाम सहित कई योगदानकर्ता हैं। प्रेमा श्रीनिवासन, ने अपने पिता सीआर रामास्वामी की स्मृति मे प्रस्तावना, उपसंहार और पहले अध्याय को लिखा है, उन्होंने अपने जीवनकाल में अपने पिता के काम को आगे बढ़ाया। संदर्भ https://web.archive.org/web/20161202175815/https://en.wikipedia.org/wiki/Prema_Srinivasan जीवित लोग Pages with unreviewed translations
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भारतीय कपास निगम लिमिटेड
भारतीय कपास निगम लिमिटेड (Cotton corporation of India ltd) भारत सरकार की संस्था है जो कपास के क्रय, व्यापार एवं निर्यात से सम्बन्धित कार्यों का निष्पादन करने के लिए हैं। इतिहास सीसीआई की स्थापना 31 जुलाई 1970 को कंपनीज़ अधिनियम 1956 के अधीन पंजीकृत एक सरकारी कंपनी के रूप में हुई। अपनी स्थापना की आरंभिक अवधि में निगम को सार्वजनिक क्षेत्र की एक एजेन्सी के रूप में वस्त्रोद्योग के विभिन घटकों के बीच कपास के समान संवितरण की जिम्मेदारी सौंपी गयी तथा कपास के आयात के सरणीकरण के लिए एक साधन के रूप में भी जिम्मेदारी सौंपी गयी। कपास परिदृश्य में परिवर्तन के साथ, निगम की भूमिका और कार्य-कलापों की समय-समय पर समीक्षा भी की गयी और उसमें संशोधन किया गया। वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वर्ष 1985 के नीति निदेशों के अनुसार जब कभी कपास के मूल्य (सीड कॉटन) समर्थन स्तर पर पहुँचने लगे, तब निगम को भारत सरकार की नोडल एजेन्सी के रूप में समर्थन मूल्य कार्य करने के लिए नामित किया गया है। उद्देश्य वर्ष 1985 की वस्त्र नीति के अनुसार निगम की विनिर्दिष्ट भूमिका संक्षेप में नीचे दिये अनुसार हैं: जब कभी कपास के मूल्य भारत सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य तक पहुँचते हैं, तब बिना किसी मात्रात्मक सीमा के समर्थन मूल्य कार्य संचालन करना; सीसीआई की अपनी जोखिम पर वाणिज्यिक खरीद कार्य करना निर्यात वचनबध्दता को पूरा करने के लिए कपास खरीदना और कपास प्रौद्योगिकी मिशन के मिनी मिशन III और IV के लिए कार्यान्वयन एजेन्सी के रूप में कार्य करना। भारत सरकार की नोडल एजेन्सी के रूप में, निगम अपने आप को समर्थन मूल्य कार्य संचालन की स्थितियों का सामना करने के लिए तैयार रखता है। जब कभी कपास के मूल्य, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के स्तर तक पहुँच जाते हैं, तब कपास की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य कार्य के अधीन बिना किसी मात्रात्मक सीमा के, कपास की खरीद की जाती है। इन न्यूनतम समर्थन मूल्य कार्यों के अंतर्गत कपास किसान अपनी कपास उपज सीसीआई को बेच सकते हैं और निगम इस तरह की कपास की खरीद तब तक जारी रखेगा, जब तक कपास मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बने रहते हैं। बाहरी कड़ियाँ भारतीय कपास निगम लिमिटेड का जालघर भारत सरकार की नोडल एजेंसियाँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF%20%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%80
प्रीति डिमरी
प्रीति डिमरी ( (जन्म ;१८ अक्टूबर १९८६ ,आगरा ,भारत) एक भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ी है जो भारतीय महिला टीम के लिए टेस्ट ,वनडे और ट्वेन्टी-ट्वेन्टी क्रिकेट में खेलती है। इन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत २००६ में आयरलैंड के खिलाफ की थी। इन्होंने भारतीय टीम के लिए २ टेस्ट ,१९ वनडे और एक ट्वेन्टी-ट्वेन्टी मैच खेला है। सन्दर्भ 1986 में जन्मे लोग भारतीय महिला टेस्ट क्रिकेट खिलाड़ी भारतीय महिला एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी भारतीय महिला ट्वेन्टी-ट्वेन्टी क्रिकेट खिलाड़ी जीवित लोग आगरा के लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AF
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों, को Permanent Five, Big Five, और P5 के नाम से भी जाना जाता है, जिनमें पांच निम्नलिखित सरकारें शामिल हैं: चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका। इन सदस्यों ने द्वितीय विश्वयुद्ध में पाँच महान विजेता शक्तियों का प्रतिनिधित्व किया था। इन सभी स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार है। वर्तमान सदस्य वीटो का अधिकार किसी व्यक्ति, पार्टी या राष्ट्र को मिला यह अधिकार कि वह किसी कानून को अकेले रोक सकता है। वीटो किसी फैसले को रोकने का असीमित अधिकार देता है, उसे लागू कराने का नहीं। वीटो, लातिनी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है, 'मैं मना करता हूँ'। हाल ही में भारत को भी वीटो पावर देने पर विचार किया जा रहा है! References
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भारतीय वन प्रबंधन संस्थान
भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (आईआईएफएम), 1982 में स्थापित, भोपाल, मध्य प्रदेश, भारत में स्थित वानिकी का एक स्वायत्त, प्राकृतिक संसाधन सेवा प्रशिक्षण संस्थान है, जिसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार, भारत सरकार द्वारा वित्तीय सहायता से स्थापित किया गया है। भारतीय वन सेवा संवर्ग और भारत में सभी राज्य वन सेवा संवर्ग के मध्य कैरियर प्रशिक्षण के लिए स्वीडिश अंतर्राष्ट्रीय विकास सहयोग एजेंसी (सीडा) से सहायता और भारतीय प्रबंधन संस्थान से पाठ्यक्रम सहायता से मिली है संस्थान का उद्देश्य वन, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन संसाधन और संबद्ध क्षेत्रों में प्रबंधकीय मानव संसाधन की बढ़ती आवश्यकता को पूरा करना है। संस्थान का नेतृत्व पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा चयनित और नियुक्त निदेशक द्वारा किया जाता है। आईआईएफएम वन, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और संबद्ध क्षेत्रों में शिक्षा, अनुसंधान, प्रशिक्षण और परामर्श में लगा हुआ है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा भारत रैंकिंग 2016 में राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क के तहत प्रबंधन संस्थानों की श्रेणी में संस्थान को देश में समग्र रूप से 8वां स्थान दिया गया था। एक परिसर के रूप में, आईआईएफएम परिसर के भीतर विभिन्न जंगली स्तनधारियों और पक्षियों के दर्शन के साथ अपने समृद्ध वनस्पतियों और जीवों के लिए प्रसिद्ध है। कैंपस संस्थान नेहरू नगर इलाके में भोपाल शहर के दक्षिणी पश्चिमी कोने में स्थित है। यह एक पहाड़ी पर है जहां से भदभदा बैराज दिखता है। बैराज ऊपरी झील या भोपाल के बड़ा तालाब के अतिप्रवाह को नियंत्रित करता है। भदभदा के लिए स्पिलवे आईआईएफएम पहाड़ी के चारों ओर है, जो इसे अच्छे मानसून के दौरान एक प्रायद्वीप की तरह तीन तरफ से पानी से घिरा एक सुंदर स्थान देता है। यह जगह टी.टी. नगर से 3.5 किमी दक्षिण में है और केरवा बांध के रास्ते से बिल्कुल दूर है। संस्थान की इमारतों को अनंत राजे द्वारा डिजाइन किया गया है। परिसर की वास्तुकला मांडू के ऐतिहासिक शहर से प्रेरित है। यह भी देखे भारत मे शिक्षा सन्दर्भ शिक्षण संस्थान
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%28%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%80%29
सावित्री (बहुविकल्पी)
सावित्री का उपयोग विभिन्न सन्दर्भों और अर्थों में होता है- हिन्दू धर्म में सावित्री -- महाभारत की एक प्रसिद्ध कथा का मुख्य पात्र जो सत्यवान को अल्पायु जनते हुए भी उसके अच्छे गुणों के कारण उसका वरण करती है। सवित्र -- ऋग्वैदिक सूर्य देव सावित्री -- गायत्री मंत्र का एक नाम सावित्री (देवी) -- ब्रह्मा की पत्नी, सरस्वती का एक रूप प्रकृति का एक रूप फिल्में सवित्री (ओपेरा) -- Gustav Holst द्वारा निर्मित सन १९१६ का एक ओपेरा सावित्री (Szávitri) - Sándor Szokolay द्वारा सन १९९८ में निर्मित एक ओपेरा सावित्री (१९३३ की फिल्म) -- १९३३ में निर्मित एक तेलुगु फिल्म सावित्री (१९३७ की फिल्म) -- एक हिन्दी फिल्म सावित्री (१९४१ की फिल्म) -- एक तमिल फिल्म सावित्री (२०१६ की फिल्म) -- एक तेलुगु फिल्म सावित्री - एक प्रेम कहानी -- २०१३ की एक टेलीविजन शृंखला स्त्रियों के नाम सावित्री (अभिनेत्री) (१९३५-१९८१) -- भारतीय अभिनेत्री सावित्री हंसमान (Savitri Hensman) -- लन्दन में कार्यरत एक ऐक्टिविट और लेखक सावित्री देवी -- एक गुप्तचर जिसने अक्षीय शक्तियों के लिये भारत में गुप्तकार्य किया। इनका मूल नाम Maximiani Julia Portas था। सावित्रीबाई फुले सावित्री बाई खानोलकर सावित्री देवी मुखर्जी अन्य सावित्री (पुस्तक) -- महर्षि अरविन्द द्वारा रचित अंग्रेजी महाकाव्य, १९५०-५१ में प्रकाशित सावित्री नदी -- भारत की एक नदी आई एन एस सावित्री (P53) -- भारत का एक युद्धपोत सावित्री ब्रत -- एक व्रत जिसे विवाहित ओड़िया स्त्रियाँ करतीं है। सावित्री उपनिषद् बाहरी कड़ियाँ सावित्री एक प्रतीक सावित्री और सविता क सम्बन्ध
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%91%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%87%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A8
क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया इलेवन
क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया इलेवन एक घरेलू क्रिकेट टीम है जो अंतर्राष्ट्रीय टीमों के खिलाफ ऑस्ट्रेलिया दौरे पर दौरे मैच खेलती है। टीम पहले ऑस्ट्रेलिया के जेएलटी कप सीमित ओवरों के टूर्नामेंट में खेलती थी। प्रत्येक टूर्नामेंट से पहले, राज्य के अनुबंधों वाले ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों या ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय प्रदर्शन स्क्वाड खिलाड़ियों में से एक 14-व्यक्ति टीम का चयन किया गया था, जिन्हें उस सीजन के टूर्नामेंट के लिए अपने-अपने राज्यों के 14-मैन लिस्ट ए दस्तों में नहीं चुना गया था। इसका उद्देश्य शीर्ष खिलाड़ियों के खिलाफ अपने कौशल का विकास करना था। जेएलटी वन-डे कप के लिए क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया इलेवन के अलावा सात टीमों के लिए प्रतियोगिता का विस्तार किया। टीम ने 5 अक्टूबर 2015 को न्यू साउथ वेल्स के खिलाफ लिस्ट ए में पदार्पण किया, जिसमें 279 रन से हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपनी पहली जीत पांच दिन बाद तस्मानिया के खिलाफ 3 रन से जीत दर्ज की। एक क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया इलेवन, अक्सर अधिक अनुभवी कर्मियों के साथ, टेस्ट टीमों के दौरे के खिलाफ मैच भी खेलता है। क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया इलेवन ने 29 अक्टूबर 2015 को एक दौरे के मैच में न्यूजीलैंड के खिलाफ प्रथम श्रेणी में पदार्पण किया। टीम ने 2016-17 सत्र में पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ प्रथम श्रेणी मैच खेले हैं। क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया इलेवन ने इंग्लैंड के खिलाफ दो चार दिवसीय मैच खेले और एक-दिवसीय मैच 2017-18 दौरे के भाग के रूप में खेला। क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के लिए एक सफलता के रूप में एक के बाद एक दिवसीय कप में खेलने के बजाय वे अब दौरे वाली टीमों के खिलाफ प्रथम श्रेणी और टी-20 मैच खेलते हैं। वे भविष्य में वापस जोड़ दिए जाएंगे, लेकिन 2018-19 सत्र के लिए हटा दिया गया क्योंकि इस तथ्य के कारण कि युवा खिलाड़ी राज्य के पक्षों का प्रतिनिधित्व करेंगे, राष्ट्रीय खिलाड़ियों ने टूर्नामेंट को याद नहीं किया। संदर्भ स्थानीय क्रिकेट
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
सभ्यता-संवाद
सभ्यता-संवाद, सभ्यता अध्ययन केन्द्र, दिल्ली की त्रैमासिक शोध-पत्रिका है। जनवरी, 2019 से इसे नियमित प्रकाशित किया जा रहा है। इसमें हिंदी-भाषा में लिखित उच्च कोटि के गवेषणात्मक, आलोचनात्मक तथा समीक्षात्मक शोध-निबन्ध प्रकाशित किए जाते हैं। भारतीय दृष्टि से भारतीय नीतियों, समस्याओं, इतिहास, राजनीति, समाजशास्त्र, आदि पर सन्दर्भयुक्त तर्कपूर्ण तथा तथ्यात्मक शोध-आलेख ही इसमें आमन्त्रित किए जाते हैं। जाने-माने इतिहासकार और पत्रकार रवि शंकर इसके सम्पादक तथा इतिहासकार गुंजन अग्रवाल इसके कार्यकारी सम्पादक हैं। सभ्यता-संवाद का फेसबुक-पेज
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%BC%E0%A5%81%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80
ख़ुबानी
ख़ुबानी एक गुठलीदार फल है। वनस्पति-विज्ञान के नज़रिए से ख़ुबानी, आलू बुख़ारा और आड़ू तीनों एक ही "प्रूनस" नाम के वनस्पति परिवार के फल हैं। उत्तर भारत और पाकिस्तान में यह बहुत ही महत्वपूर्ण फल समझा जाता है और कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यह भारत में पिछले ५,००० साल से उगाया जा रहा है। ख़ुबानियों में कई प्रकार के विटामिन और फाइबर होते हैं। अन्य भाषाओँ में अंग्रेजी में ख़ुबानी को "ऐप्रिकॉट" (apricot) कहते हैं। पश्तो में इसे "ख़ुबानी" () ही कहते हैं। फ़ारसी में इसको "ज़र्द आलू" () कहते हैं। फ़ारसी में "आलू" का मतलब "आलू बुख़ारा" और "ज़र्द" का मतलब "पीला (रंग)" होता है, यानि "ज़र्द आलू" का मतलब "पीला आलू बुख़ारा' होता है। ध्यान रहे के जिसे हिन्दी में आलू बोलते हैं उसे फ़ारसी में "आलू ज़मीनी" बोलते हैं (यानि ज़मीन के नीचे उगने वाला आलू बुख़ारा)। मराठी में इसके लिए फ़ारसी से मिलता-जुलता "जर्दाळू" शब्द है। विवरण ख़ुबानी के पेड़ का कद छोटा होता है - लगभग ८-१२ मीटर तक। उसके तने की मोटाई क़रीब ४० सेंटीमीटर होती है। ऊपर से पेड़ की टहनियां और पत्ते घने फैले हुए होते है। पत्ते का आकार ५-९ सेमी लम्बा, ४-८ सेमी चौड़ा और अण्डाकार होता है। फूल पाँच पंखुड़ियों वाले, सफ़ेद या हलके गुलाबी रंग के होते हैं और हाथ की ऊँगली से थोड़े छोटे होते हैं। यह फूल या तो अकेले या दो के जोड़ों में खिलते हैं। ख़ुबानी का फल एक छोटे आड़ू के बराबर होता है। इसका रंग आम तौर पर पीले से लेकर नारंगी होता है लेकिन जिस तरफ सूरज पड़ता हो उस तरफ ज़रा लाल रंग भी पकड़ लेता है। वैसे तो ख़ुबानी के बहरी छिलका काफी मुलायम होता है, लेकिन उस पर कभी-कभी बहुत महीन बाल भी हो सकते हैं। ख़ुबानी का बीज फल के बीच में एक ख़ाकी या काली रंग की सख़्त गुठली में बंद होता है। यह गुठली छूने में ख़ुरदुरी होती है। पैदावार विश्व में सबसे ज़्यादा ख़ुबानी तुर्की में उगाई जाती है जहाँ २००५ में ३९०,००० टन ख़ुबानी पैदा की गई। मध्य-पूर्व तुर्की में स्थित मलत्या क्षेत्र ख़ुबानियों के लिए मशहूर है और तुर्की की लगभग आधी पैदावार यहीं से आती है। तुर्की के बाद ईरान का स्थान है, जहाँ २००५ में २८५,००० टन ख़ुबानी उगाई गई। ख़ुबानी एक ठन्डे प्रदेश का पौधा है और अधिक गर्मी में या तो मर जाता है या फल पैदा नहीं करता। भारत में ख़ुबानियाँ उत्तर के पहाड़ी इलाकों में पैदा की जाती है, जैसे के कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, वग़ैराह। प्रयोग सूखी ख़ुबानी को भारत के पहाड़ी इलाक़ों में बादाम, अख़रोट और न्योज़े की तरह ख़ुबानी को एक ख़ुश्क मेवा समझा जाता है और काफ़ी मात्रा में खाया जाता है। कश्मीर और हिमाचल के कई इलाक़ों में सूखी ख़ुबानी को किश्त या किष्ट कहते हैं। माना जाता है के कश्मीर के किश्तवार क्षेत्र का नाम इसीलिए पड़ा क्योंकि प्राचीनकाल में यह जगह सूखी खुबनियों के लिए प्रसिद्ध थी। खुबानी की प्यूरी को वसा के विकल्प के तौर पर प्रयोग कर सकते हैं। इसकी प्यूरी आलूबुखारे की प्यूरी की तरह बहुत गहरे रंग की नहीं होती और न ही सेब की प्यूरी की तरह जल की अधिकता वाली ही होती है। खुबानी का उद्गम उत्तर पश्चिम के देशों विशेषकर अमेरिका का माना जाता है। कुछ समय बाद यह फल तुर्की पहुंचा। इस समय वहां खुबानी की पैदावार सबसे ज्यादा होती है। खुबानी का रंग जितना चमकीला होगा, उसमें विटामिन-सी और ई और पोटेशियम की मात्रा उतनी ही अधिक होगी। सूखी खुबानी में ताजी खुबानी की तुलना में १२ गुना लौह, सात गुना आहारीय रेशा और पांच गुना विटामिन ए होता है। सुनहरी खुबानी में कच्चे आम व चीनी मिला कर बहुत स्वादिष्ट चटनी बनती है। खुबानी का पेय भी बहुत स्वादिष्ट होता है, जिसे ‘एप्रीकॉट नेक्टर’ कहते हैं। ख़ुबानी के बीज ख़ुबानी की गुठली के अन्दर का बीज एक छोटे बादाम की तरह होता है और ख़ुबानी की बहुत सारी क़िस्मों में इसका स्वाद एक मीठे बादाम सा होता है। इसे खाया जा सकता है, लेकिन इसमें हलकी मात्रा में एक हैड्रोसायनिक ऐसिड नाम का ज़हरीला पदार्थ होता है। बच्चों को ख़ुबानी का बीज नहीं खिलाना चाहिए। बड़ों के लिए यह ठीक है लेकिन उन्हें भी एक बार में ५-१० बीजों से अधिक नहीं खाने चाहिए। किस्में खुबानी कई रंगों में आती है, जैसे सफेद, काले, गुलाबी और भूरे (ग्रे) रंग। रंग से खुबानी के स्वाद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन इसमें जो कैरोटीन होता है, उसमें जरूर अंतर आ जाता है। बाहरी कड़ियाँ सन्दर्भ प्रूनस फल गुठलीदार फल मेवा
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0
भार
भौतिकी में किसी वस्तु पर पृथ्वी द्वारा लगाऐ गऐ गुरूत्वाकर्षण बल के मान को ही भार कहते हैं, पृथ्वी की सतह पर गुरुत्वाकर्षण के कारण त्वरण लगभग समान होता है, इसलिए किसी वस्तु का भार उसके द्रव्यमान के अनुपाती होता है किसी लिफ्ट में बैठे हुए व्‍यक्ति को अपना भार कब अधिक मालूम पड़ता है – जब लिफ्ट त्‍वरित गति से ऊपर जा रही हो एक व्‍यक्ति पूर्णत: चि‍कने बर्फ के क्षैतिज समतल के मध्‍य में विराम स्थिति में है। न्‍यूटन के किस/नियम/नियमों का उपयोग करके वह अपने आपको तट तक ला सकता है – तीसरा गति नियम 20 किलोग्राम के वजन को जमीन के ऊपर 1 मीटर की ऊँचाई पर पकड़े रखने के लिए किया गया कार्य है – शून्‍य जूल एक व्‍यक्ति एक दीवार को धक्‍का देता है, पर उसे विस्‍थापित करने में असफल रहता है, तो वह करता है – कोई भी कार्य नहीं पहाड़ी पर चढ़ता एक व्‍यक्ति आगे की ओर झुक जाता है, क्‍योंकि – शक्ति संरक्षण हेतु पीसा की ऐतिहासिक मीनार तिरछी होते हुए भी नहीं गिर‍ती है, क्‍योंकि – इसके गुरूत्‍वकेन्‍द्र से जाने वाली ऊर्ध्‍वाधर रेखा आधार से होकर जाती है एक ऊँची इमारत से एक गेंद 9.8 मी/सेकण्‍ड2 के एकसमान त्‍वरण के साथ गिरायी जाती है। 3 सेकण्‍ड के बाद उसका वेग क्‍या होगा – 29.4 मी/से एक वस्‍तु का द्रव्‍यमान 100 किग्रा है (गुरूत्‍वजनित ge = 10ms-1) अगर चन्‍द्रमा पर गुरूत्‍वजनित त्‍वरण ge/6 है तो चन्‍द्रमा में वस्‍तु का द्रव्‍यमान होगा – 100 किग्रा पावर (शक्ति) का SI मात्रक ‘वाट’ (watt) किसके समतुल्‍य है – किग्रा मी -2 से -3 भारहीनता की अवस्‍था में एक मोमबत्‍ती की ज्‍वाला का आकार – वही रहेगा एक केशनली में जल की अपेक्षा एक तरल अधिक ऊँचाई तक चढ़ता है, इसका कारण है – तरल का पृष्‍ठ तनाव जल की अपेक्षा अधिक है गुरूत्‍वाकर्षण के सार्वभौमिक नियम का प्रतिपादन किसने किया – न्‍यूटन ऊर्जा संरक्षण का आशय है कि – ऊर्जा का न तो सृजन हो सकता है और न ही विनाश मापन vi:Tương tác hấp dẫn#Trọng lực
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B2%20%28%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A5%80%20%E0%A4%B6%E0%A5%83%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A4%B2%E0%A4%BE%29
मंगल (अमेरिकी टीवी शृंखला)
मार्स नेशनल ज्योग्राफिक द्वारा निर्मित एक कठिन विज्ञान-कथा टेलीविजन श्रृंखला है, जिसका प्रीमियर 14 नवंबर, 2016 को इसके चैनल और एफएक्स पर किया गया था। इसकी आधिकारिक प्रसारण तिथि से पहले, इसे 1 नवंबर, 2016 को स्ट्रीमिंग प्रारूप में लॉन्च किया गया था। यह मंगल ग्रह पर उतरने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के एक समूह की काल्पनिक कहानी के साथ वास्तविक साक्षात्कार के तत्वों को मिलाता है। श्रृंखला स्टीफन पेट्रानेक की पुस्तक हाउ वी विल लिव ऑन मार्स (2015) पर आधारित है। कहानी में सामने आने वाली घटनाओं की व्याख्या करने के लिए वर्तमान समय के गैर-काल्पनिक साक्षात्कारों का उपयोग करते हुए काल्पनिक कथा शुरू में 2016 और 2033 के बीच वैकल्पिक होती है। श्रृंखला बुडापेस्ट और मोरक्को में फिल्माई गई थी। श्रृंखला की एक साथी पुस्तक, मार्स: अवर फ्यूचर ऑन द रेड प्लैनेट (अक्टूबर 2016), शो के पीछे के विज्ञान का विवरण देती है। प्रीक्वल एपिसोड, जिसे बिफोर मार्स कहा जाता है, का निर्माण और श्रृंखला के साथ जारी किया गया था। यह अंतरिक्ष यात्रियों में से एक के जीवन के एक पल की काल्पनिक कहानी और विज्ञान में शामिल होने के लिए उसके द्वारा लिए गए निर्णयों को बताता है। 13 जनवरी, 2017 को, यह घोषणा की गई कि नेशनल ज्योग्राफिक ने दूसरे सीज़न के लिए श्रृंखला का नवीनीकरण किया है, जिसका प्रीमियर 12 नवंबर, 2018 को हुआ था। मुख्य अभिनेत्री, जिहा ने अपने आधिकारिक इंस्टाग्राम के माध्यम से पुष्टि की कि श्रृंखला को केवल दो सीज़न के बाद रद्द कर दिया गया था। आधार वर्ष 2033 में, छह अंतरिक्ष यात्रियों का एक दल फ्लोरिडा से मंगल ग्रह पर पैर रखने वाले पहले लोगों की यात्रा पर रवाना हुआ। मंगल ग्रह के वातावरण में उतरने के दौरान, उनके अंतरिक्ष यान डेडालस में खराबी आ गई। वे अपने नियोजित आवास से 75.3 किलोमीटर दूर उतरते हैं। पृथ्वी पर, उनकी प्रगति पर नजर रखी जा रही है। दूसरे सीज़न में, डेडलस अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा ओलिंप टाउन नामक एक पूर्ण कॉलोनी बनाने के बाद कहानी भविष्य में कई साल आगे बढ़ जाती है। मानव जाति को एक इंटरप्लेनेटरी प्रजाति के रूप में स्थापित करने के बाद, सीजन 2 लाल ग्रह पर मनुष्यों के प्रभाव और ग्रह के हम पर पड़ने वाले प्रभावों की जांच करता है। कहानी के साथ मिश्रित वर्तमान में वास्तविक जीवन के आंकड़ों के साथ-साथ काल्पनिक चालक दल और उनके मिशन नियंत्रण के साक्षात्कार फुटेज हैं। वास्तविक जीवन के वर्तमान साक्षात्कार विभिन्न वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और अन्य सार्वजनिक हस्तियों के साथ हैं, जैसे कि एलोन मस्क, सुसान वाइज बाउर, एंडी वियर, रॉबर्ट जुब्रिन और नील डेग्रसे टायसन, दूसरों के बीच, उन कठिनाइयों के बारे में जो चालक दल को हो सकती हैं। मंगल की यात्रा और उस पर रहने का चेहरा। संदर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%89%E0%A4%95
सामान्य स्टॉक
सामान्य स्टॉक कॉर्पोरेट इक्विटी स्वामित्व का एक रूप है, एक प्रकार की सुरक्षा। वोटिंग शेयर और साधारण शेयर शब्द का इस्तेमाल अक्सर संयुक्त राज्य के बाहर भी किया जाता है। उन्हें यूके और अन्य राष्ट्रमंडल क्षेत्रों में इक्विटी शेयर या साधारण शेयर के रूप में जाना जाता है। इस प्रकार का शेयर शेयरधारक को कंपनी के मुनाफे में हिस्सा लेने का अधिकार देता है, और कॉर्पोरेट नीति के मामलों और निदेशक मंडल के सदस्यों की संरचना पर मतदान करने का अधिकार देता है। सामान्य स्टॉक के मालिकों के पास कंपनी की कोई विशेष संपत्ति नहीं होती है, जो सभी शेयरधारकों की होती है। एक निगम साधारण और वरीयता दोनों शेयर जारी कर सकता है, इस मामले में वरीयता शेयरधारकों को लाभांश प्राप्त करने की प्राथमिकता होती है। परिसमापन की स्थिति में, सामान्य शेयरधारकों को बांडधारकों, लेनदारों (कर्मचारियों सहित) के बाद कोई भी शेष राशि प्राप्त होती है, और वरीयता शेयरधारकों को भुगतान किया जाता है। जब दिवालियापन के माध्यम से परिसमापन होता है, तो आम शेयरधारकों को आमतौर पर कुछ भी नहीं मिलता है। चूंकि सामान्य स्टॉक बांड या पसंदीदा स्टॉक की तुलना में व्यवसाय के जोखिमों के प्रति अधिक उजागर होता है, इसलिए यह पूंजी वृद्धि की अधिक संभावना प्रदान करता है। लंबी अवधि में, सामान्य स्टॉक अपनी अल्पकालिक अस्थिरता के बावजूद, अधिक सुरक्षित निवेश से बेहतर प्रदर्शन करते हैं। संदर्भ वित्त
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9D%E0%A4%B2%E0%A4%95%20%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%96%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%9C%E0%A4%BE%203
झलक दिखला जा 3
झलक दिखला जा 3 डांस रियलिटी शो झलक दिखला जा का तीसरा सीजन है। इसका प्रीमियर 27 फरवरी 2009 को सोनी टीवी पर हुआ। इस सीरीज को श्वेता तिवारी, शिव पंडित और रोहित रॉय ने होस्ट किया था। श्रृंखला 31 मई 2009 को बाइचुंग भूटिया और सोनिया ज़फ़र ने जीती थी। न्यायाधीश सरोज खान वैभवी मर्चेंट जूही चावला प्रतियोगी बाहरी कड़ियाँ झलक दिखला जा आधिकारिक वेबसाइट सोनी टीवी के कार्यक्रम झलक दिखला जा भारतीय वास्तविकता टेलीविजन श्रृंखला
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गूगल प्ले
गूगल प्ले() गूगल द्वारा संचालित एक मंच है। यह एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए आधिकारिक ऐप स्टोर के रूप में कार्य करता है, जो उपयोगकर्ताओं को एप्लीकेशन डाउनलोड करने की अनुमति देता है। गूगल प्ले संगीत, पत्रिकाओं, पुस्तकों, फिल्मों और टेलीविजन कार्यक्रमों की पेशकश के रूप में भी कार्य करता है। गूगल प्ले के द्वारा प्रदान की गई एप्लीकेशन नि:शुल्क या एक तय कीमत पर होती है। एंड्रॉयड मार्केट, गूगल संगीत, और गूगल ई-बुक्सस्टोर के विलय साथ 6 मार्च 2012 को गूगल प्ले शुरू किया गया था। गूगल प्ले स्टोर पर 1,430,000 से अधिक एप्प्स प्रकाशित और पचास अरब से अधिक डाउनलोड हो गए है। सन्दर्भ गूगल गूगल सेवाएँ
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गामा फलन
गणित में गामा फलन (gamma function) वास्तव में फैक्टोरियल फलन का ही व्यापक या विस्तारित रूप है। इसे ग्रीक वर्ण 'कैपिटल गामा' (Γ) द्वारा निरूपित करते हैं। यदि n धनात्मक पूर्णांक हो तो : गामा फलन शून्य तथा ऋणात्मक पूर्णांकों को छोड़कर शेष सभी समिश्र संख्याओं के लिये परिभाषित है। इसे निम्नलिखित इम्प्रॉपर समाकल (improper integral) के रूप में परिभाषित किया गया है- इस समाकल का मान केवल धनात्मक वास्तविक भाग वाले समिश्र संख्याओं के लिये ही अभिसरित (converge) होता है। गामा फलन अनेकों प्रायिकता-वितरण फलनों (probability-distribution functions) में आता है। यह प्रायिकता, सांख्यिकी और क्रमचय-संचय में उपयोग में आता है। इन्हें भी देखें बीटा फलन बेसल फलन बाहरी कड़ियाँ Pascal Sebah and Xavier Gourdon. Introduction to the Gamma Function. In PostScript and HTML formats. C++ reference for std::tgamma Examples of problems involving the gamma function can be found at Exampleproblems.com. Wolfram gamma function evaluator (arbitrary precision) Volume of n-Spheres and the Gamma Function at MathPages "Elementary Proofs and Derivations" "Selected Transformations, Identities, and Special Values for the Gamma Function" Gamma and related functions Special hypergeometric functions
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BF
प्राकृतिक विधि
प्राकृतिक विधि (Natural law, or the law of nature) विधि की वह प्रणाली है जो प्रकृति द्वारा निर्धारित होती है। प्रकृति द्वारा निर्धारित होने के कारण यह सार्वभौमिक है। परम्परागत रूप से प्राकृतिक कानून का अर्थ मानव की प्रकृति के विश्लेषण के किए तर्क का सहारा लेते हुए इससे नैतिक व्यवहार सम्बन्धी बाध्यकारी नियम उत्पन्न करना होता था। प्राकृतिक कानून की प्रायः प्रत्यक्षवादी कानून (positive law) से तुलना की जाती है। प्राकृतिक विधि प्रकृति के आदेश आत्मक नियमों का एक समूह है। या मानवी विधि का एक आदर्श है। मनुष्य द्वारा बने हुए कानून प्राकृतिक विधि के अनुसार होने चाहिए। प्राकृतिक विधि को अनेक नामों से पुकारा जाता है। यह ईश्वरीय विधि है क्योंकि यह मनुष्य द्वारा नहीं बल्कि ईश्वर द्वारा लागू की जाती है। या नैतिक विधि है क्योंकि इसके द्वारा न्याय और अन्याय का निर्णय होता है। यह एक ऐसा मापदंड है जिसके सहारे यह निश्चय किया जाता है कि मनुष्य द्वारा बना हुआ कौन सा कानून उचित है और कौन सा अनुचित। यह आलिखित विधि है क्योंकि यह विधि किसी सिला चट्टान संहिता आदि पर लिखी नहीं है या प्रकृति या ईश्वर की अंगुलियों द्वारा आदमी के दिल और दिमाग पर ही लिखी होती है। या सार्वभौमिक विधि है क्योंकि यह सभी जगहों पर सब समय में सभी व्यक्तियों या जीवो पर समान रूप से लागू होती है। या शाश्वत विधि है क्योंकि या सृष्टि के आदि से लेकर आज तक एक ही रूप में कायम है। थॉमस एक्विनास प्राकृतिक कानूनों का तात्पर्य स्पष्ट करते हुए लिखता है कि मनुष्य इन कानूनों की सहायता से भले और बुरे का ज्ञान प्राप्त करता है प्राकृतिक कानूनों की उत्पत्ति शाश्वत कानूनों से हुई है सांसद कानूनों को मनुष्य पूर्ण रूप से नहीं समझ पाता है परंतु प्राकृतिक कानून अधिक बोद्ध गम और स्पष्ट हैं प्राकृतिक कानून विश्व की सभी वस्तुओं में समान रूप से व्याप्त है मनुष्य के अतिरिक्त यह वनस्पतियों और पशुओं आदि में भी व्याप्त है किंतु मनुष्य में प्राकृतिक कानून का सुंदर ढंग से अभिव्यक्त करण हुआ है क्योंकि पौधे और पशु तो अचेतन रूप से कार्य करते हैं परंतु मनुष्य विवेक के साथ कार्य करता है शोभा इन प्राकृतिक कानून के संबंध में उदाहरण देते हैं कि मानव जीना चाहता है और जीने के लिए जीवन सुरक्षा की आवश्यकता है जीवन की सुरक्षा अर्थात आत्मरक्षा प्राकृतिक कानून है इतना ही नहीं जैसा कि अरस्तु ने भी कहा था मनुष्य ऐसे जीवन की इच्छा करता है जिसमें विवेक यह स्वभाव की सिद्धि हो प्राकृतिक कानून ईश्वरीय अभिव्यंजना है यह कानून अपरिवर्तनीय और इसके साथ साथ आवश्यक भी है प्राकृतिक कानून कोई अलग वस्तु नहीं वरन मनुष्य में निहित देवी प्रेरणा है मनुष्य सताए इन कानूनों के आधार पर कार्यों के भले बुरे रूप कोई जांच कर कदम बढ़ाता है और आदर्श व्यवस्था को प्राप्त करता है जीवन की रक्षा कानून पर निर्भर करती है और मनुष्य में परोपकार की भावना दीन दुखियों की सहायता करना आज प्रवृत्तियां प्राकृतिक कानून से ही संबंधित है इन्हें भी देखें प्राकृतिक न्याय विधि तत्वमीमांसा की अवधारणाएँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%9A%E0%A5%80
भारत के राष्ट्रीय महत्व के स्थापत्य की सूची
भारत में, राष्ट्रीय महत्व के स्मारक, भारत में स्थित वे ऐतिहासिक, प्राचीन अथवा पुरातात्विक संरचनाएँ, स्थल या स्थान हैं, जोकि, प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के अधीन, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के माध्यम से भारत की संघीय सरकार या राज्य सरकारों द्वारा संरक्षिक होते हैं। ऐसे स्मारकों को "राष्ट्रीय महत्व का स्मारक" होने के मापदंड, प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 द्वारा परिभाषित किये गए हैं। ऐसे स्मारकों को इस अधिनियम के मापदंडों पर खरा उतरने पर, एक वैधिक प्रक्रिया के तहत पहले "राष्ट्रीय महत्व" का घोषित किया जाता है, और फिर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के संसाक्षणाधीन कर दिया जाता है, ताकि उनकी ऐतिहासिक महत्वता के मद्देनज़र, उनकी उचित देखभाल की जा सके। वर्त्तमान समय में, राष्ट्रीय महत्व के कुल 3650 से अधिक प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष देश भर में विद्यमान हैं। ये स्मारक विभिन्न अवधियों से संबंधित है जो प्रागैतिहासिक अवधि से उपनिवेशी काल तक के हैं, जोकि विभिन्न भूगोलीय स्थितियों में स्थित हैं। इनमें मंदिर, मस्जिद, मकबरे, चर्च, कब्रिस्तान, किले, महल, सीढ़ीदार कुएं, शैलकृत गुफाएं, दीर्घकालिक वास्तुकला तथा साथ ही प्राचीन टीले तथा प्राचीन आवास के अवशेषों का प्रतिनिधित्व करने वाले स्थल शामिल हैं। इन स्मारकों तथा स्थलों का रखरखाव तथा परिरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के विभिन्न मंडलों द्वारा किया जाता है जो पूरे देश में फैले हुए हैं। स्मारक की आधिकारिक परिभाषा प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 ‘प्राचीन स्मारक’ को इस प्रकार परिभाषित करता है "प्राचीन स्‍मारक" से कोई संरचना, राचन या संस्‍मारक या कोई स्तूप या दफ़नगाह, या कोई गुफा, शैल-रूपकृति, उत्कीर्ण लेख या एकाश्मक जो ऐतिहासिक, पुरातत्वीय या कलात्मक रुचि का है और जो कम से कम एक सौ वर्षों से विद्यमान है, अभिप्रेत है, और इसके अंतर्गत है: किसी प्राचीन संस्मारक के अवशेष। किसी प्राचीन संस्मारक का स्थल। किसी प्राचीन संस्मारक के स्थल से लगी हुई भूमि का ऐसा प्रभाग जो ऐसे संस्मारक को बाड़ से घेरने या आच्छादित करने या अन्यथा परिरक्षित करने के लिए अपेक्षित हो। किसी प्राचीन संस्मारक तक पहुँचने और उसके सुविधापूर्ण निरीक्षण के साधन; धारा 2 (घ) पुरातत्वीय स्थल और अवशेष को इस प्रकार परिभाषित करती है: संरक्षणाधीन करने की प्रक्रिया भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के अधीन राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थलों तथा अवशेषों के संरक्षण के संबंध में आपत्तियाँ, यदि कोई हो, आमंत्रित करते हुए दो महीने का नोटिस देता है। दो माह की निर्दिष्ट अवधि के पश्चात् तथा इस संबंध में आपत्तियाँ यदि कोई प्राप्त होती है, की छानबीन करने के पश्चात् भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण किसी स्मारक को अपने संरक्षणाधीन लेने का निर्णय करता है। इन स्‍मारकों तथा स्थलों का रखरखाव तथा परिरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के विभिन्न मंडलों द्वारा किया जाता है जो पूरे देश में फैले हुए हैं। प्रमंडलीय कार्यालय इन स्मारकों के अनुसंधान तथा संरक्षण कार्यों को देखते हैं जबकि पुरातात्विक सर्वेक्षण की विज्ञान शाखा, जिसका मुख्यालय देहरादून में है, रासायनिक परिरक्षण करते हैं तथा सर्वेक्षण की उद्यान शाखा, जिसका मुख्यालय आगरा में है, को बगीचे लगाने तथा पर्यावरणीय विकास का कार्य सौंपा गया है। स्मारकों की राज्यानुसार-वर्गीकृत सूची राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों को भा॰पु॰स॰ घोषित करती है, परंतु रखरखाव-करता के आधार पर इन्हें दो श्रेणियों में रखा जाता सकता है:राष्ट्रिय स्मारक-जिन्हें केंद्र सरकार देखती है, और राज्य के स्मारक, जिन्हें संबंधित राज्य की सरकार देखती है। इन्हें भी देखें राष्ट्रीय स्मारक सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ PIB भारत के राष्ट्रीय महत्व के स्मारक भारत के राष्ट्रीय स्मारक
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महाथिर मोहमद
महाथिर बिन मोहमद, (अंग्रेजी: Mahathir bin Mohamad; जन्म 10 जुलाई 1925) एक मलेशियाई राजनेता है। वर्तमान में वे मलेशिया के सातवें प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत है। वे केदाह में लैंगकावी निर्वाचन क्षेत्र से मलेशिया के संसद के सदस्य हैं। उन्होंने 1981 से 2003 तक चौथे प्रधान मंत्री के रूप में कार्यभार सम्भाल चुके है, जोकि सबसे लम्बे कार्यकाल के लिये जाना जाता है। 1946 में नव निर्मित संयुक्त मलेशिया राष्ट्रीय संगठन (यूएमएनओ) में से अपनी राजनैतिक शुरूआत से लेकर 2016 में अपनी खुद की पार्टी पिब्रुमी बरसातु मलेशिया (मलेशियाई यूनाइटेड इंडिगेनस पार्टी) बनाने के बीच तक उनका राजनैतिक कार्यकाल ७० वर्षो तक पहुच गया है। 2018 में हुए चुनाव में उनकी पार्टी के निर्णायक जीत के बाद, महाथिर ने 10 मई 2018 को मलेशिया के सातवें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। 92 की आयु में, वे दुनिया का सबसे अधिक आयु के प्रधानमंत्री है। प्रारंभिक जीवन और चिकित्सक के रुप में महाथिर का जन्म 10 जुलाई 1925 को लोरोंग किलंग ऐस, सेबरांग पेराक, केदाह राज्य की राजधानी अलोर सितार, ब्रिटिश मलाया में हुआ था। वे अपने नौ भाई बहनों में से सबसे छोटे थे, और उन्हें केक डेट उपनाम से जाना जाता था। महाथिर के पिता मोहम्मद बिन इस्कंदर पेनांग से थे,, उनके पूर्वज दक्षिण भारतीय राज्य केरल से आकर बसे थे। वे अलोर सितार के एक अंग्रेजी स्कूल (अब मकतब सुल्तान अब्दुल हामिद) के पहले मलय हेडमास्टर थे और बाद में प्रधान अध्यापक बने। महाथिर एक मेहनती छात्र थे। अपने पिता के कड़े अनुशासन ने उन्हें अध्ययन की ओर प्रेरित किया, और उन्होंने खेल में कम रुचि दिखाई। उन्होंने 1930 में सेबरांग पेरक मलय बॉयज़ स्कूल से अपनी प्राथमिक शिक्षा शुरू की।. 1933 में अपनी माध्यमिक शिक्षा, अंग्रेजी माध्यमिक विद्यालय से की। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मलाया पर जापानी कब्जे के दौरान स्कूलों के बंद होने के बाद, वह कॉफी और अन्य खाद्य पदार्थ बेचने के व्यवसाय में चले गये। युद्ध के बाद, उन्होंने दिसंबर 1946 में सीनियर कैम्ब्रिज परीक्षाओं को पूरा कर माध्यमिक विद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और सिंगापुर के किंग एडवर्ड सप्तम कॉलेज ऑफ मेडिसिन (अब सिंगापुर राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का हिस्सा) में चिकित्सा का अध्ययन करने के लिए गये। जहां उनकी मुलाकात अपनी भावी पत्नी और साथी चिकित्सा छात्र सिती हस्मा मोहम्मद अली से हुई। स्नातक होने के बाद, महाथिर ने 1956 में शादी से पहले सरकारी सेवा में डॉक्टर के रूप में कार्य किया। वह अगले वर्ष अलोर सितार लौट आए और अपनी खुद की चिकित्सा अभ्यास स्थापित किया। शहर में एकमात्र मलाय डॉक्टर के रूप में वे काफी सफल रहें और उन्होनें बहुत धन कमाया। 1957 में, उनका पहला बच्चा मरीना हुई, बाद में तीन अन्य बच्चे हुए व तीन बच्चो को उन्होनें गोद लिया। प्रारंभिक राजनीतिक करियर मलाया से जापानी कब्जे के अंत के बाद से ही महाथिर राजनीति में सक्रिय थे, जब वे अल्पकालिक मलयान संघ शासन के दौरान गैर-मलेशियाई को नागरिकता प्रदान करने के विरोध में शामिल हो थे। 1964 के आम चुनावों में, वे कोटा सेटर सेलतान की अलोर सितार से सांसद के रूप में निर्वाचित हुए। हालांकि उनका तब के तात्कालिन प्रधानमंत्री अब्दुल रहमान के साथ कई मतभेद रहे। अब्दुल रहमान के 1970 में इस्तीफा के बाद अब्दुल रजाक हुसैन नये प्रधानमंत्री बने। रजाक ने महाथिर को पार्टी में वापस ले आये, और उन्हें 1973 में सीनेटर के रूप में नियुक्त किया। वह जल्दी ही रजाक सरकार में शक्तिशाली बन गये, और 1974 में वे मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री के रूप में शामिल हो गये। उन्होंने मंत्रालय में अपने कार्य के दौरान अधिकांश समय विदेशी दौरे के माध्यम से मलेशिया को बढ़ावा देते रहे। रजाक बाद बने प्रधानमंत्री हुसैन ऑनन के कार्यकाल में वे उप-प्रधानमंत्री बनाये गये। हालांकि, महाथिर एक अप्रभावशाली उप प्रधानमंत्री रहे। हुसैन एक सजग राजनेता थे, उन्होंने महाथिर के कई साहसिक नीति प्रस्तावों को खारिज कर दिया। हुसैन और महाथिर के बीच का रिश्ता खटास से भरा था, वही गजली और रजलेघ, हुसैन के सबसे करीबी सलाहकार बन रहे। फिर भी, जब हुसैन ने 1981 में बीमार स्वास्थ्य के कारण सत्ता छोड़ दी, तो उन्होनें महाथिर को ही अपना उत्तराधिकारी बनाया। प्रधानमंत्री के रूप में पहला कार्यकाल 16 जुलाई 1981 को 56 वर्ष की आयु में महाथिर ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। उनके पहले कार्यों में से एक आंतरिक सुरक्षा अधिनियम के तहत बंदी बनाये गये 21 को रिहा करना था, जिसमें पत्रकार समद इस्माइल और हुसैन की सरकार के पूर्व मंत्री अब्दुल्ला अहमद शामिल थे, जिन पर भूमिगत कम्युनिस्ट होने का संदेह था। उन्होंने अपने करीबी सहयोगी मुसा हितम को अपना उप-प्रधानमंत्री नियुक्त किया। आर्थिक मोर्चे पर, महाथिर को अपने पूर्ववर्तियों से नई आर्थिक नीति (एनईपी) विरासत में मिली, जिसे कॉर्पोरेट स्वामित्व और विश्वविद्यालय प्रवेश जैसे क्षेत्रों में लक्ष्य और सकारात्मक कार्रवाई के माध्यम से बूमिपुटेरा (मलेशिया के मलाया और मूलनिवासी लोगों) की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए रूप-रेखा बनाई गई थी। 1990 में मलेशियाई नई आर्थिक नीति (एनईपी) की समाप्ति से महाथिर को मलेशिया के लिए अपनी आर्थिक दृष्टि को रेखांकित करने का अवसर मिला। 1991 में, उन्होंने विजन 2020 की घोषणा की, जिसके तहत मलेशिया को 30 वर्षों के भीतर एक पूर्ण विकसित देश बनाने का लक्ष्य रखा गया। सरकार ने आर्थिक लहर पर सवार होकर 1995 के चुनाव में भी बहुमत हासिल किया।. 1997 में थाईलैंड से शुरू हुए एशियाई वित्तीय संकट, मलेशिया में भी अपनी दस्तक देने लगा। मुद्रा सट्टेबाज़ी के कारण रिंग्गित का मूल्य घट गया, विदेशी निवेशक भागने लगे, और मुख्य स्टॉक एक्सचेंज इंडेक्स 75% से अधिक टूट गया। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के आग्रह पर, सरकार ने सरकारी खर्च में कटौती की और ब्याज दरों में वृद्धि की, जिसने केवल आर्थिक स्थिति को और खराब करने का काम किया। 1998 में, महाथिर ने अपने डिप्टी अनवर के सुझाव पर, आईएमएफ की नीति को उलट दिया। उन्होंने सरकारी खर्च में वृद्धि की और रिंग्गित को अमेरिकी डॉलर कि तुलना में एक तय राशि में स्थिर कर दिया। परिणाम ने उनके अंतरराष्ट्रीय आलोचकों और आईएमएफ को चौका दिया। मलेशिया अपने दक्षिणपूर्व एशियाई पड़ोसियों की तुलना में संकट से तेजी से उभर गया। घरेलू क्षेत्र में, यह एक राजनीतिक जीत थी। 1998 की आर्थिक घटनाओं के दौरान, महाथिर ने अनवर को वित्त मंत्री और उप-प्रधानमंत्री के रूप में बर्खास्त कर दिया, और अब वे अनवर की नीतियों के द्वार अर्थव्यवस्था को बचाने का दावा खुद के लिये कर सकते थे। 2002 में यूएमएनओ की आम सभा में, महाथिर ने घोषणा की कि वह प्रधानमंत्री के से इस्तीफा दे देंगे, और उन्होंने अक्टूबर 2003 में अपनी सेवानिवृत्ति की तारिख तय की, जिससे उन्हें अपने उत्तराधिकारी अब्दुल्ला बदावी को व्यवस्थित करने का समय मिल सके। कार्यालय में 22 साल से अधिक समय व्यतीत करने के बाद, महाथिर सेवानिवृत्त होने के बाद दुनिया का सबसे लंबे समय तक निर्वाचित नेता थे। वह मलेशिया के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले प्रधानमंत्री हैं। सेवानिवृत्ति अपनी सेवानिवृत्ति पर, महाथिर को "ग्रैंड कमांडर ऑफ द डिफेंडर ऑफ़ द रियलिम" नाम दिया गया था, जिससे उन्हें "तुन" का खिताब अपनाने की इजाजत मिली। उन्होंने अब्दुल्ला के मंत्रिमंडल में एक प्रमुख पद को खारिज करते हुए, राजनीति को "पूरी तरह से" छोड़ने का वचन दिया। राजनीति में वापसी 2015 में "1 मलेशियाई विकास बेरहाद घोटाले" के चलते, महाथिर प्रधानमंत्री नजीब रज़ाक की सरकार के मुखर आलोचक बने। उन्होंने कई बार नजीब को इस्तीफा देने के लिए कहा। 30 अगस्त 2015 को, वह और अपनी पत्नी सिती हस्मा समैत "बर्सिह 4 रैली" में शामिल हुए, जिसमें हजारों लोगों ने नजीब के इस्तीफे के लिए प्रदर्शन किया था। 2016 में, महाथिर ने कई विरोध प्रदर्शनों को बढ़ावा दिया, जो नजीब को हटाने के लिए पाकतन हरपन और गैर सरकारी संगठनों की मदद से नजीब के विरोधी मलेशियाई नागरिक कर रहे थे। भ्रष्टाचार के आरोपों की प्रतिक्रिया में नजीब ने अपने उप प्रधानमंत्री को बदल दिया, दो अख़बारों को निलंबित करके संसद के माध्यम से एक विवादास्पद राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद विधेयक जोकि सत्ता पर उनकी पकड़ को मजबूत और प्रधानमंत्री को अभूतपूर्व शक्तियों के साथ प्रदान करता, को पारित कराने में जुट गये। जून 2016 में, महाथिर ने 2016 में सुंगई बेसार उप-चुनाव और 2016 कुआला कंगसर उप-चुनाव में पकातन हरपन के अमानाह उम्मीदवारों के लिए सक्रिय रूप से प्रचार किया। 2017 तक, महाथिर ने अपनी एक नई राजनीतिक पार्टी पंजीकृत करा ली और विपक्ष गठबंधन पाकतन हरपन में शामिल हो गये। उन्हें पाकतन हरपन के संभावित अध्यक्ष और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तावित किया गया। प्रधानमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल 9 मई 2018 को फिर से उभरते हुए प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार महाथिर की अगुवाई में विपक्षी गठबंधन पाकतन हरपन ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। 10 मई 2018 को महाथिर ने मलेशिया के सातवें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। उल्लेखनीय विचार, टिप्पणियां और विवाद यहूदी विरोधी टिप्पणियां इज़राइल के एक तीखे आलोचक, महाथिर पर कम से कम 1970 की एक किताब के रूप में यहूदी-विरोधी का आरोप लगाया गया है जिसमें उन्होंने लिखा था कि "यहूदी केवल हुक-नाक नहीं हैं, बल्कि सहज रूप से पैसे को समझते हैं"। 2003 में कुआलालंपुर में आयोजित इस्लामिक सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन के दौरान, उन्होंने यहूदियों पर "प्रॉक्सी द्वारा दुनिया पर शासन करने" और "दूसरों को उनके लिए लड़ने और मरने के लिए प्रेरित करने" का आरोप लगाया। 2012 में उन्होंने दावा किया कि उन्हें "सेमी-विरोधी करार दिए जाने पर खुशी हुई" और २०१८ बीबीसी के एक साक्षात्कार में उन्होंने इसी तरह के बयानों को दोहराया, साथ ही द होलोकॉस्ट में मारे गए यहूदियों की संख्या पर विवाद किया। महाथिर ने बोलने की आज़ादी के अभ्यास के रूप में यहूदियों के बारे में अपनी टिप्पणियों का बचाव किया है। 2020 नाइस छुरा घोंपने और सैमुअल पेटी की हत्या के संबंध में सोशल मीडिया टिप्पणियां 29 अक्टूबर 2020 को, 2020 के नाइस छुरा घोंपने के बाद, मोहम्मद ने अपने ब्लॉग पर विवादास्पद टिप्पणी पोस्ट की। सैमुअल पेटी की हत्या के बारे में, महाथिर ने कहा कि यह "इस्लाम की शिक्षाओं" के खिलाफ था, और "हत्या एक ऐसा कार्य नहीं है जिसे एक मुसलमान के रूप में मैं स्वीकार करूंगा"। उन्होंने यह भी कहा: "फ्रांसीसी ने अपने इतिहास के दौरान लाखों लोगों को मार डाला है। कई मुसलमान थे। मुसलमानों को गुस्सा होने और अतीत के नरसंहारों के लिए लाखों फ्रांसीसी लोगों को मारने का अधिकार है। लेकिन कुल मिलाकर मुसलमान 'आंख के बदले आंख' कानून लागू नहीं किया है। मुस्लिम नहीं। फ्रांसीसियों को नहीं करना चाहिए। इसके बजाय फ्रांसीसी को अपने लोगों को दूसरे लोगों की भावनाओं का सम्मान करना सिखाना चाहिए।" बाद में महाथिर की पोस्ट को उनके ट्विटर अकाउंट पर प्रसारित किया गया। उनके ट्वीट को बाद में ट्विटर ने "हिंसा का महिमामंडन" करने के लिए लेबल किया था। विरासत देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के अपने प्रयासों के लिए, महाथिर को बापा पेमोडेनान (आधुनिकीकरण के पिता) का खिताब दिया गया है। महाथिर का आधिकारिक निवास, सेरी परदाना, जहां वे 23 अगस्त 1983 से 18 अक्टूबर 1999 तक रहे थे, को संग्रहालय (गैलेरिया श्री पर्दाना) के रूप में बदल दिया गया है। विरासत संरक्षण के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए, श्री पर्दाना के मूल रचना और रूप-रेखा को संरक्षित किया गया है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ ट्विटर ट्विटर ट्विटर मलेशिया के प्रधानमंत्री मलेशिया के राजनेता 1925 में जन्मे लोग जीवित लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/2022%20%E0%A4%8F%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A4%AA
2022 एशिया कप
2022 एशिया कप, एशिया कप क्रिकेट टूर्नामेंट का 15वां संस्करण है, जिसके मैच यूएई में खेले जाएंगे। मूल रूप से यह टूर्नामेंट सितंबर 2020 में आयोजित होने वाला था, टूर्नामेंट को जुलाई 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण स्थगित कर दिया गया था। फिर इसे जून 2021 में श्रीलंका में होने के लिए पुनर्निर्धारित किया गया, फिर से स्थगित करने से पहले, 2022 संस्करण की मेजबानी के अधिकारों को बरकरार रखने के बाद पाकिस्तान को टूर्नामेंट की मेजबानी करने के लिए निर्धारित किया गया था। हालांकि, अक्टूबर 2021 में, एशियाई क्रिकेट परिषद (एसीसी) ने घोषणा की कि श्रीलंका 2022 में टूर्नामेंट की मेजबानी करेगा, जिसमें पाकिस्तान 2023 संस्करण की मेजबानी करेगा। 20 जुलाई 2022 को श्रीलंका ने एशियन क्रिकेट काउंसिल (एसीसी) से एशिया कप को मेजबानी करने में असमर्थता दिखाई। जिसके बाद श्रीलंका की आर्थिक, राजनीतिक स्थिति को देखते हुए एसीसी ने एशिया कप 2022 का आयोजन संयुक्त अरब अमीरात में कराने का निर्णय लिया गया। टूर्नामेंट के फाइनल में श्रीलंका ने पाकिस्तान को 23 रन से हराकर छठी बार एशिया कप का खिताब जीता। बैकग्राउंड दिसंबर 2018 में, पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) को एशियाई क्रिकेट परिषद (एसीसी) द्वारा टूर्नामेंट की मेजबानी करने का अधिकार दिया गया था। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं था कि मैच पाकिस्तान या संयुक्त अरब अमीरात में खेले जाएंगे या नहीं। घोषणा के बाद, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने अनुरोध किया कि पीसीबी मौजूदा सुरक्षा चिंताओं के कारण आयोजन स्थल को बदल दे। पाकिस्तान ने आखिरी बार 2008 में एशिया कप के साथ 2008 में एक बहु-टीम अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट आयोजित किया था। तब से, श्रीलंका की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम पर 2009 के हमले के बाद पाकिस्तान में केवल कुछ ही अंतरराष्ट्रीय मैच हुए हैं। मई 2019 में, एसीसी ने पुष्टि की कि पाकिस्तान टूर्नामेंट की मेजबानी करेगा। पाकिस्तान में टूर्नामेंट की मेजबानी करने के निर्णय ने दोनों देशों के बीच चल रहे राजनीतिक तनाव के साथ, भारत की भागीदारी पर संदेह पैदा किया। अक्टूबर 2019 में, पाकिस्तान में टूर्नामेंट की मेजबानी करने के निर्णय पर अभी भी संदेह के कारण एसीसी द्वारा सहमति व्यक्त की जानी थी। भारत की भागीदारी। जनवरी 2020 में, विभिन्न समाचार आउटलेट्स ने बताया कि भारत के साथ चल रहे राजनीतिक तनाव के कारण पाकिस्तान टूर्नामेंट की मेजबानी नहीं करेगा। 28 फरवरी 2020 को, बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली ने कहा कि "एशिया कप दुबई में आयोजित किया जाएगा और भारत और पाकिस्तान दोनों खेलेंगे।" अगले दिन, पीसीबी के अध्यक्ष एहसान मनी ने गांगुली के बयान का खंडन करते हुए कहा कि आयोजन स्थल है अंतिम रूप नहीं दिया गया। प्रारंभ में, एसीसी को टूर्नामेंट के स्थान पर चर्चा करने के लिए 3 मार्च 2020 को मिलने वाला था, लेकिन बैठक को मार्च के अंत तक COVID-19 महामारी के कारण वापस ले जाया गया था। 7 मार्च को, मणि ने कहा कि टूर्नामेंट होगा एक तटस्थ स्थान पर खेला गया। अगले महीने, उन्होंने स्वीकार किया कि महामारी के कारण टूर्नामेंट बिल्कुल नहीं हो सकता है। जून 2020 में, एसीसी के साथ एक बैठक के बाद, पीसीबी ने कहा कि वे श्रीलंका को टूर्नामेंट की मेजबानी करने के लिए तैयार हैं, भारत पाकिस्तान की यात्रा करने के लिए तैयार नहीं है। एसीसी ने बैठक के बाद एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसमें कहा गया कि "कोविड -19 महामारी के प्रभाव और परिणामों के आलोक में, एशिया कप 2020 के संभावित स्थल विकल्पों पर चर्चा की गई और अंतिम निर्णय उचित समय पर लेने का निर्णय लिया गया"। जुलाई 2021 में एसीसी द्वारा स्थगन की आधिकारिक घोषणा की गई। मार्च 2021 में, भारत द्वारा विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल के लिए क्वालीफाई करने के बाद टूर्नामेंट को और स्थगित करने का जोखिम था, जो जून में प्रस्तावित तारीखों से टकरा गया था। टीम और योग्यता घटनास्थल {| class="wikitable" style="text-align:center" टीमों के खिलाड़ी ग्रुप स्टेज मैच ग्रुप ए दूसरा मैच चौथा मैच छठा मैच ग्रुप बी पहला मैच तीसरा मैच पाँचवाँ मैच सुपर फोर फाइनल आंकड़ें सबसे अधिक रन सबसे अधिक विकेट संदर्भ एशिया कप २०२२ में क्रिकेट
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माध्यमिक एवं सुलभ अधिनियम, 1996
माध्यस्थ्म, एवं सुलह अधिनिय्म 1996 का मुख्य उद्देश्य ‘’ विदेशी माध्यश्थम पंचाटो और अन्तर्राशट्रीय वाणिज़िय्क माध्य्थम मे. देशी माध्य्श्थम से सम्बनिधत विधि को समेकित और संशोधित करना तथा सुलह और उससे सम्बनिध्त मामलो के लिए या उसके आनुशंगिक विषय से सम्बंधित विधि को परिभाषित करना है दुसरे शब्दौ मे हम कह सक्ते हे कि माध्यस्थम तथा सुलह अधिनियम, 1996 को भारतीय संसद दारा पारित करने के मुख्य- मुख्य उद्देश्य निम्न प्रकार हे ---  विदेशी माध्य्सथम विधी पंचाटो को भारत मे लागु करना तथा विदेशी माध्यस्थम पंचटो को भारत मे मान्य्ता देना,  देशी माध्य्सथम, विधी को अन्तर्रौषटीय माध्यस्थम विधी मे समिम्लित करना तथा उसके लिय यदि सशोधन की आव्श्य्क्यता हो तो देशी माध्यस्थम विधी मे उसके अनुरुप सशोध्न करना,  सुलह तथा उससे सम्बनिध्त विष्यो को परिभाषित करना|| समर्णीय है कि भारत ने भी अन्य कई देशो के साथ-साथ अन्तर्राष्टीय आदश्श्र विधि को अपनाया हे ज़ो अ अंनतर्राश्टीय व्यापार से सम्बनिध्त विवादो को माध्यसथम तथा सुलह के ज़रिये सुलझाने के लिय सयुक्त राश्ट्र्य सग्र के व्यापरिक विधी पर आयोग दारा तेयार की गई थी फ्ल्सरुप भारत मे माध्यस्थम तथा सुलह के क्षेत्र मे अन्तर्राशटीय भाईचारा शामिल हुआ|
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प्रौद्योगिकीय नियतत्ववाद
प्रौद्योगिक नियतत्ववाद (Technological determinism) एक प्रौद्योगिकी सम्बन्धी सिद्धान्त है जिसकी मान्यता यह है कि किसी समाज के पास मौजूद प्रौद्योगिकी, उस समाज के सामाजिक संरचना एवं सांस्कृतिक मूल्यों के विकास को निर्धारित करता है। प्रौद्योगिकीय नियतत्ववाद यह समझने की कोशिश करता है कि मानव के कार्यों एवं उसके विचारों को प्रौद्योगिकी ने किस प्रकार प्रभावित किया है। प्रौद्योगिकी में परिवर्तन, समाज में परिवर्तन का प्रमुख कारक है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें अंकीय प्रौद्योगिकी विज्ञान, प्रौद्योगिकी और समाज प्रौद्योगिकी के सिद्धान्त प्रौद्योगिकी नियतिवाद या नियतत्ववाद प्रौद्योगिकी
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अलीपुर जेल
अलीपुर जेल या अलीपुर केन्द्रीय जेल (बंगाली: আলিপুর কেন্দ্রীয় সংশোধনাগার) कोलकाता में स्थित एक ऐतिहासिक जेल है, जहाँ ब्रिटिश शासन के दौरान राजनैतिक बंदियों को रखा जाता था। प्रसिद्ध क़ैदियों में सुभाष चन्द्र बोस भी थे जिन्हें यहाँ गया था। जेल परिसर में अलीपुर जेल प्रेस भी स्थित है। जेल में बन्द रखे गए जाने मान और ऐतिहासिक व्यक्ति अरविन्द घोष या श्री अरविन्द (बंगली: শ্রী অরবিন্দ, जन्म: १८७२, मृत्यु: १९५०) को लगभग एक वर्ष के लिए (मई १९०८ से मई १९०९) तक अलीपुर बम कांड के तुरंत बाद यहाँ रखा गया था। यहाँ रहने के समय में अरविन्द ने बंगाली पत्रिका सुप्रभात में कई लेख लिखे थे जिन्हें आगे चलकर टेल्स ऑफ़ प्रिज़न लाइफ़ (Tales of Prison life) के रूप में प्रकाशित किया गया था। इसके पश्चात उन्होंने अपने जेल अनुभव के बारे में कहा: "मैंने एक साल जेल में बिताने के बारे में बताया है। शायद इससे अच्छा होता यदि मैं एक वर्ष आशरम में रहने के बारे में लिखता। अंग्रेज़ सरकार के क्रोध का एक परिणाम यह रहा कि मुझे भगवान होने का अनुभव मिल गया।" सुभाष चन्द्र बोस कामराज (१९३०) बिधान चंद्र राय (१९३०) चारू मुजुमदार प्रमोद रंजन चौधरी (१९२७) जैक प्रेगेर (Jack Preger) (१९८१) सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीर कोलकाता
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भारत में मानवाधिकार
देश के विशाल आकार और विविधता, विकासशील तथा सम्प्रभुता सम्पन्न पन्थनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणतन्त्र के रूप में इसकी प्रतिष्ठा, तथा एक भूतपूर्व औपनिवेशिक राष्ट्र के रूप में इसके इतिहास के परिणामस्वरूप भारत में मानवाधिकारों की परिस्थिति एक प्रकार से जटिल हो गई है। भारत का संविधान मौलिक अधिकार प्रदान करता है, जिसमें धर्म की स्वतन्त्रता भी अन्तर्भूक्त है। संविधान की धाराओं में बोलने की आजादी के साथ-साथ कार्यपालिका और न्यायपालिका का विभाजन तथा देश के अन्दर एवं बाहर आने-जाने की भी स्वतन्त्रता दी गई है। यह अक्सर मान लिया जाता है, विशेषकर मानवाधिकार दलों और कार्यकर्ताओं के द्वारा कि दलित अथवा अछूत जाति के सदस्य पीड़ित हुए हैं एवं लगातार पर्याप्त भेदभाव झेलते रहे हैं। हालाँकि मानवाधिकार की समस्याएँ भारत में मौजूद हैं, फिर भी इस देश को दक्षिण एशिया के दूसरे देशों की तरह आमतौर पर मानवाधिकारों को लेकर चिंता का विषय नहीं माना जाता है। इन विचारों के आधार पर, फ्रीडम हाउस द्वारा फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2006 को दिए गए रिपोर्ट में भारत को राजनीतिक अधिकारों के लिए दर्जा 2, एवं नागरिक अधिकारों के लिए दर्जा 3 दिया गया है, जिससे इसने स्वाधीन की सम्भवतः उच्चतम दर्जा (रेटिंग) अर्जित की है। भारत में मानवाधिकारों से सम्बन्धित घटनाओं के कालक्रम 1829 - पति की मृत्यु के बाद रुढ़िवादी हिन्दू दाह संस्कार के समय उसकी विधवा के आत्म-दाह की चली आ रही सती-प्रथा को राममोहन राय के ब्रह्मों समाज जैसे हिन्दू सुधारवादी आन्दोलनों के वर्षों प्रचार के पश्चाद गवर्नर जनरल विलियम बेंटिक ने औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया। 1929 - बाल-विवाह निषेध अधिनियम में 14 साल से कम उम्र के नाबालिकों के विवाह पर निषेद्याज्ञा पारित कर दी गई। 1947 - भारत ने ब्रिटिश राज से राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त की। 1950 - भारत के संविधान ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के साथ सम्प्रभुता सम्पन्न लोकतान्त्रिक गणराज्य की स्थापना की। संविधान के खण्ड 3 में उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय मौलिक अधिकारों का विधेयक अन्तर्भुक्त है। यह शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व से पूर्ववर्ती वंचित वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान भी करता है। 1952 - आपराधिक जनजाति अधिनियम को पूर्ववर्ती "आपराधिक जनजातियों को "अनधिसूचित" के रूप में सरकार द्वारा वर्गीकृत किया गया तथा आभ्यासिक अपराधियों का अधिनियम (1952) पारित हुआ। 1955 - हिन्दुओं से सम्बन्धित परिवार के कानून में सुधार ने हिन्दू महिलाओं को अधिक अधिकार प्रदान किए। 1958 - सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, 1958- 1973 - भारत का उच्चतम न्यायालय केशवानन्द भारती के मामले में यह कानून लागू करता है कि संविधान की मौलिक संरचना (कई मौलिक अधिकारों सहित संवैधानिक संशोधन के द्वारा अपरिवर्तनीय है। 1975-77- भारत में आपात काल की स्थिति-अधिकारों के व्यापक उल्लंघन की घटनाएँ घटीं. 1978 - मेनका गांधी बनाम भारत संघ के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह कानून लागू किया कि आपात-स्थिति में भी अनुच्छेद 21 के तहत जीवन (जीने) के अधिकार को निलम्बित नहीं किया जा सकता. 1978-जम्मू और कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम, 1978 [[1984 - ऑपरेशन ब्लू स्टार और उसके तत्काल बाद 1984 के सिख विरोधी दंगे 1985-6 - शाहबानो मामला जिसमें उच्चता न्यायालय ने तलाक-शुदा मुस्लिम महिला के अधिकार को मान्यता प्रदान की जिसने मौलानाओं में विरोध की चिंगारी भड़का दी। उच्चतम न्यायालय के फैसले को अमान्य करार करने के लिए राजीव गांधी की सरकार ने मुस्लिम महिमा (तलाक पर अधिकार का संरक्षण) अधिनियम 1986 पारित किया. 1989 - अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 पारित किया गया . 1989-वर्तमान- मुस्लिम अंतांकवादियो के द्वारा कश्मीरी बगावत ने कश्मीरी पंडितों का नस्ली तौर पर सफाया, हिन्दू मन्दिरों को नष्ट-भ्रष्ट कर देना, हिन्दुओं और सिखों की हत्या तथा विदेशी पर्यटकों और सरकारी कार्यकर्ताओं का अपहरण देखा. 1992 - संविधानिक संशोधन ने स्थानीय स्व-शासन (पंचायती राज) की स्थापना तीसरे तले (दर्जे) के शासन के ग्रामीण स्तर पर की गई जिसमें महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीट आरक्षित की गई। साथ ही साथ अनुसूचित जातियों के लिए प्रावधान किए गए। 1992 - हिन्दू-जनसमूह द्वारा बाबरी मस्जिद ध्वस्त कर दिया गया, परिणामस्वरूप देश भर में दंगे हुए. 1993 - मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना की गई। 2001 - उच्चतम न्यायालय ने भोजन का अधिकार लागू करने के लिए व्यापक आदेश जारी किए। 2002 - गुजरात में हिंसा, मुख्य रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक को लक्ष्य कर, कई लोगों की जाने गईं। 2005 - एक सशक्त सूचना का अधिकार अधिनियम पारित हुआ ताकि सार्वजनिक अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में संघटित सूचना तक नागरिक की पहुंच हो सके। 2005 - राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एनआरईजीए) रोजगार की सार्वभौमिक गारण्टी प्रदान करता है। 2006 - उच्चतम न्यायालय भारतीय पुलिस के अपयार्प्त मानवाधिकारों के प्रतिक्रिया स्वरूप पुलिस सुधार के आदेश जारी किए। 2009 - दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 377 की घोषणा की जिसने अनिर्दिष्ट "अप्राकृतिक" यौनाचरणों के सिलसिले को ही गैरकानूनी करार कर दिया, लेकिन जब यह व्यक्तिगत तौर पर दो लोगों के बीच सहमति के साथ समलैंगिक यौनाचरण के मामले में लागू किया गया तो अंसवैद्यानिक हो गया, तथा भारत में इसने समलैंगिक सम्पर्क को प्रभावी तरीके से अलग-अलग भेद-भाव कर देखना शुरू किया। भारत में समलैंगिकता भी देखें: हिरासत में मौतें पुलिस के द्वारा हिरासत में यातना और दुराचरण के खिलाफ राज्य की निषेधाज्ञाओं के बावजूद, पुलिस हिरासत में यातना व्यापक रूप से फैली हुई है, जो हिरासत में मौतों के पीछे एक मुख्य कारण है। पुलिस अक्सर निर्दोष लोगों को घोर यातना देती रहती है जबतक कि प्रभावशाली और अमीर अपराधियों को बचाने के लिए उससे अपराध "कबूल" न करवा लिया जाय. जी.पी. जोशी, राष्ट्रमंडल मानवाधिकारों की पहल की भारतीय शाखा के कार्यक्रम समन्वयक ने नई दिल्ली में टिप्पणी करते हुए कहा कि पुलिस हिंसा से जुड़ा मुख्य मुद्दा है पुलिस की जवाबदेही का अभी भी अभाव. वर्ष 2006 में, भारत के उच्चतम न्यायालय ने प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ के एक मामले में अपने एक फैसले में, केन्द्रीय और राज्य सरकारों को पुलिस विभाग में सुधार की प्रक्रिया प्रारम्भ करने के सात निर्देश दिए। निर्देशों के ये सेट दोहरे थे, पुलिस कर्मियों को कार्यकाल प्रदान करना तथा उनकी नियुक्ति/स्थानांतरण की प्रक्रिया को सरल और सुसंगत बनाना तथा पुलिस की जवाबदेही में इज़ाफा करना। भारतीय प्रशासित कश्मीर कई अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों और संयुक्त राष्ट्र ने भारतीय-प्रशासित कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन की रिपोर्ट दी है। हाल ही में एक प्रेस विज्ञप्ति में ओएचसीएचआर (OHCHR) के एक प्रवक्ता ने कहा, "मानवाधिकारों के उच्चायुक्त का कार्यालय भारतीय-प्रशासित कश्मीर में हाल-फिलहाल हुए हिंसक विरोधों के बारे अधिक चिंतित है सूचनानुसार जिसके कारण नागरिक तो मारे गए ही साथ ही साथ सभा आयोजित करने (एक साथ समूह में जमा होने) अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया..वर्ष 1996 के मानवाधिकारों की चौकसी के रिपोर्ट ने भारतीय सेनावाहिनी एवं भारतीय सरकार द्वारा समर्थित अर्द्धसैनिक बलों की कश्मीर में गंभीर और व्यापक मानवाधिकारों के उल्लंघन करने के आरोप लगाए हैं। ऐसा ही एक कथित नरसंहार सोपोर शहर में 6 जनवरी 1993 को घटित हुआ। टाइम पत्रिका ने इस घटना का विवरण इस प्रकार दिया, "केवल एक सैनिक की ह्त्या के प्रतिशोध में, अर्द्धसैनिक बलों ने पूरे सोपोर बाज़ार को रौंद डाला और आसपास खड़े दर्शकों को गोली मार दी. भारत सरकार ने इस घटना की निन्दा करते हुए इसे "दुर्भाग्यपूर्ण" कहा तथा दावा किया कि अस्त्र-शस्त्र के एक जखीरे में बारूद के गोले से आग लग गई जिससे अधिकांश लोग मौत के शिकार हुए. इसके अतिरिक्त कई मानवाधिकार संगठनों ने पुलिस अथवा सेना द्वारा कश्मीर में लोगों के गायब कर दिए जाने के दावे भी पेश किए हैं। कई मानवाधिकार संगठनों, जैसे कि एमनेस्टी इंटरनैशनल एवं ह्युमन राइट्स वॉच (HRW) ने भारतीयों के द्वारा कश्मीर में किए जाने वाले मानवाधिकारों के हनन की निंदा की है जैसा कि "अतिरिक्त-न्यायायिक मृत्युदंड", "अचानक गायब हो जाना", एवं यातना; "सशस्त्र बलों के विशेष अधिकार अधिनियम", जो मानवाधिकारों के हनन और हिंसा के चक्र में ईंधन जुटाने में दण्ड से छुटकारा दिलाता है। सशस्त्र बलों के विशेषाधिकार अधिनियम (एएफएसपीए) सेनावाहिनी को गिरफ्तार करने, गोली मारकर जान से मार देने का अधिकार एवं जवाबी कार्रवाई के ऑपरेशनों में संपत्ति पर कब्ज़ा कर लेना या उसे नष्ट कर देने का व्यापक अधिकार प्रदान करता है। भारतीय अधिकारियों का दावा है कि सैनिकों को ऐसी क्षमता की ही आवश्यकता है क्योंकि जब कभी भी हथियारबंद लड़ाकुओं से राष्ट्रीय सुरक्षा को संगीन खतरा पैदा हो जाता है तो सेना को ही मुकाबला करने के लिए तैनात किया जाता है। उनका कहना है कि, ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए असाधारण उपायों की जरुरत पड़ती है।" मानवाधिकार संगठनों ने भी भारत सरकार से जन सुरक्षा अधिनियम को निरसित कर देने की सिफारिश की है, चूंकि "एक बंदी को प्रशासनिक नजरबंदी (कारावास) के अदालत के आदेश के बिना अधिकतम दो सालों के लिए बंदी बनाए रखा जा सकता है".. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (युनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्युज़िज़) के एक रिपोर्ट के मुताबिक यह तय किया गया कि भारतीय प्रशासित कश्मीर "आंशिक रूप से आजाद" है, (जबकि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के बारे में निर्धारित किया गया कि "आजाद नहीं" है। प्रेस की आजादी सीमा के बिना संवाददाताओं(रिपोर्टर्स विदाउट बोर्डर्स) के अनुमान के अनुसार, दुनिया भर में प्रेस की आजादी के सूचकांक में भारत का स्थान 105वां है (भारत के लिए प्रेस की आजादी का सूचकांक 2009 में 29.33 था). भारतीय संविधान में "प्रेस" शब्द का उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन "भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार" का प्रावधान किया गया है (अनुच्छेद 19(1) a). हालांकि उप-अनुच्छेद (2), के अंतर्गत यह अधिकार प्रतिबंध के अधीन है, जिसके द्वारा भारत की प्रभुसत्ता एवं अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध जनता में श्रृंखला, शालीनता का संरक्षण, नैतिकता का संरक्षण, किसी अपराध के मामले में अदालत की अवमानना, मानहानि, अथवा किसी अपराध के लिए उकसाना आदि कारणों से इस अधिकार को प्रतिबंधित किया गया है". जैसे कि सरकारी गोपनीयता अधिनियम एवं आतंकवाद निरोधक अधिनियम के कानून लाए गए हैं। प्रेस की आजादी पर अंकुश लगाने के लिए पोटा (पीओटीए) का इस्तेमाल किया गया है। पोटा (पीओटीए) का इस्तेमाल किया गया है। पोटा (पीओटीए) के अंतर्गत पुलिस को आतंकवाद से संबंधित आरोप लाने से पूर्व किसी व्यक्ति को छः महीने तक के लिए हिरासत में बंदी बनाकर रखा जा सकता था। वर्ष 2004 में पोटा को निरस्त कर दिया गया, लेकिन युएपीए (UAPA) के संशोधन के जरिए पुनःप्रतिस्थापित कर दिया गया। सरकारी गोपनीयता अधिनियम 1923 कारगर रूप से बरकरार रहा. स्वाधीनता की पहली आधी सदी के लिए, राज्य के द्वारा मीडिया पर नियंत्रण प्रेस की आजादी पर एक बहुत बड़ी बाधा थी। इंदिरा गांधी ने वर्ष 1975 में एक लोकप्रिय घोषणा की कि "ऑल इण्डिया रेडियो" एक सरकारी अंग (संस्थान) है और यह सरकारी अंग के रूप में बरकरार रहेगा. 1990 में आरम्भ हुए उदारीकरण में, मीडिया पर निजी नियंत्रण फलने-फूलने के साथ-साथ स्वतंत्रता बढ़ गई और सरकार की अधिक से अधिक तहकीकात करने की गुंजाइश हो गई। तहलकाऔर एनडीटीवीजैसे संगठन विशेष रूप से प्रभावशाली रहे हैं, जैसे कि, हरियाणा के शक्तिशाली मंत्री विनोद शर्मा को इस्तीफा दिलाने के बारे में. इसके अलावा, हाल के वर्षों में प्रसार भारती के अधिनियम जैसे पारित कानूनों ने सरकार द्वारा प्रेस पर नियंत्रण को कम करने में उल्लेखनीय योगदान किया है। एल जी बी टी (LGBT) अधिकार जब तक दिल्ली हाई कोर्ट ने 2 जून 2009 को सम-सहमत वयस्कों के बीच सहमति-जन्य निजी यौनकर्मों को गैरआपराधिक नहीं मान लिया तबतक 150 वर्ष पुरानी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की अस्पष्ट धारा 377, औपनिवेशिक ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा पारित कानून की व्याख्या के अनुसार समलैंगिकता को अपराधी माना जाता था। बहरहाल, यह कानून यदा-कदा ही लागू किया जाता रहा। समलैंगिकता को गैरापराधिक करार करार करने के अपने आदेश में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि मौजूदा कानून भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों के साथ प्रतिद्वन्द्व पैदा करती है और इस तरह के अपराधीकरण संविधान की धारा 21, 14 और 15 का उल्लंघन करते हैं। दिसंबर 11 , 2013 को समलैंगिकता को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आपराध माना गया। मानव तस्करी मानव तस्करी भारत में $ 8 मिलियन अमेरिकी डॉलर का एक अवैध व्यापार है। हर साल लगभग 10,000 नेपाली महिलाएं वाणिज्यिक यौन शोषण के लिए भारत लायी जाती हैं। हर साल 20,000-25,000 महिलाओं और बच्चों की बांग्लादेश से अवैध तस्करी हो रही है। बाबूभाई खिमाभाई कटारा एक सांसद थे जब एक बच्चे की कनाडा में तस्करी के लिए वे गिरफ्तार कर लिए गए। साम्प्रदायिक हिंसा भारत में (अधिकतर हिन्दुओं और मुसलमानों के धार्मिक गुटों के बीच) साम्प्रदायिक संघर्ष ब्रिटिश शासन से आज़ादी के आसपास के समय से ही प्रचलित हैं। भारत में साम्प्रदायिक हिंसा की सबसे पुरानी घटनाओं में केरल मोप्लाह (Moplah) विद्रोह था, जब कट्टरपन्थी इस्लामी जंगियों ने हिन्दुओं की हत्या कर दी। भारत विभाजन के दौरान हिन्दुओं / सिखों और मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिक दंगों में बड़े पैमाने पर हुई हिंसा में लोग बड़ी संख्या में मारे गए थे। 1984 के सिख विरोधी दंगों में चार दिन की अवधि के दौरान भारत की नरमदलवादी धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस पार्टी के सदस्यों द्वारा सिखों की हत्या होती रही, कुछ लोगों का अनुमान है कि 2,000 से अधिक मारे गए थे। अन्य घटनाओं में 1992 के मुम्बई दंगे तथा 2002 के गुजरात की हिंसा की घटनाएँ शामिल हैं- उत्तरार्द्ध वाली घटना में, इस्लामी आतंकवादियो ने हिन्दू यात्रियों से भरी गोधरा में खड़ी ट्रेन को एक हमले में जला डाला, जिसमे 58 हिन्दू मारे गए थे, इस घटना के परिणामस्वरूप 790 मुसलमान और 254 हिन्दू मारे गए थे (जिसका कोई उल्लेख नहीं है).. कई कस्बों और गाँवों को छिटपुट छोटी-मोटी घटनाएँ त्रस्त करती रही हैं; जिसमे से एक उदहारण स्वरुप उत्तर प्रदेश के मऊ में हिन्दू-मुस्लिम दंगे के दौरान पाँच लोगों की हत्या थी, जो एक प्रस्तावित हिन्दू त्योहार के समारोह के उपलक्ष में भड़का दिया गया था। ऐसी ही एक अन्य घटना में को सांप्रदायिक दंगों में 2002 मराद नरसंहार शामिल है, जिसे उग्रवादी इस्लामी गुट राष्ट्रीय विकास मोर्चा द्वारा अंजाम दिया गया था, साथ ही साथ तमिलनाडु में इस्लामवादी तमिलनाडु मुस्लिम मुनेत्र कज़घम द्वारा निष्पादित हिन्दुओं के खिलाफ साम्प्रदायिक दंगे हैं। जाति से सम्बन्धित मुद्दे ह्यूमन राइट्स वॉच के एक रिपोर्ट के अनुसार, दलितों और स्वदेशी लोगों (जो अनुसूचित जनजातियों या आदिवासियों के रूप में जाने जाते हैं) वे लगातार भेदभाव, बहिष्कार, एवं साम्प्रदायिक हिंसा के कृत्यों का सामना कर रहे हैं। भारतीय सरकार द्वारा अपनाए गए कानून और नीतियाँ सुरक्षा के मजबूत आधार प्रदान करती हैं, लेकिन स्थानीय अधिकारियों द्वारा ईमानदारी से कार्यान्वित नहीं हो रही है।" एमनेस्टी इण्टरनेशनल का कहना है, "यह भारतीय सरकार की जिम्मेदारी है कि जाति के आधार पर भेदभाव के खिलाफ कानूनी प्रावधानों को पूरी तरह से अधिनियमित और लागू करे। कई खानाबदोश जनजातियों के साथ भारत की अनधिसूचित (डिनोटिफाइड) जनजातियों की जनसंख्या जो सामूहिक रूप से 60 मिलियन है, लगातार आर्थिक कठिनाइयों और सामाजिक कलंक का सामना कर रहे हैं, इस तथ्य के बावजूद कि आपराधिक जनजातियों के अधिनियम 1871 को सरकार द्वारा 1952 में निरसित कर दिया गया था और आभ्यासिक अपराधियों के अधिनियम (एचओए) (1952) द्वारा इतने प्रभावी रूप से प्रतिस्थापित कर दिया गया कि, तथाकथित "अपराधिक जनजातियों" की पुरानी सूची से एक नई सूची बनाई गई। यहाँ तक कि आज भी ये जनजातियां असामाजिक गतिविधि निवारण अधिनियम'(PASA) के परिणामों को झेलती हैं, जो केवल उनके अस्तित्व में बने रहने के लिए उनके दैनन्दिन संघर्ष में इजाफा ही करते हैं क्योंकि उनमें से ज्यादातर लोग गरीबी रेखा के नीचे ही रहते हैं। नस्ली भेदभाव उन्मूलन (CERD) पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और संयुक्त राष्ट्र की भेदभाव विरोधी निकाय समिति ने सरकार से इस क़ानून को अच्छी तरह से निरसित कर देने को कहा है, क्योंकि ये पहले की आपराधिक जनजातियाँ बड़े पैमाने पर उत्पीड़न और सामाजिक बहिष्कार सहती रही हैं और कइयों को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़े वर्ग का दर्जा देने से इनकार कर दिया गया है ताकि उनके आरक्षण के अधिकार को नकार दिया जाय जो उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाता। अन्य हिंसा जैसे कि बिहारी-विरोधी मनोभाव के संघर्षों ने कभी-कभी हिंसा का रूप धारण कर लिया है। अपराध जाँच के लिए आक्रामक तरीके जैसेकि 'नार्कोअनालिसिस' (नियन्त्रित संज्ञाहरण) अर्थात अवचेतन में विश्लेषण की अब सामान्यतः भारतीय अदालतों ने अनुमति दी है। हालाँकि भारतीय संविधान के अनुसार "किसी को भी खुद उसी के विरुद्ध एक गवाह नहीं बनाया जा सकता है", अदालतों ने हाल ही में घोषणा की है कि यहाँ तक कि इस प्रयोग के संचालन के लिए अदालत से अनुमति आवश्यक नहीं है। अवचेतानावस्था में विश्लेषण (Narcoanalysis) का अब व्यापक रूप से प्रयोग प्रतिस्थापित/प्रवंचना के लिए किया जाता है अपराध जाँच के वैज्ञानिक तरीकों के संचालन के लिए कौशल और बुनियादी सुविधाओं की कमी है। अवचेतानावस्था में विश्लेषण (Narcoanalysis) पर भी चिकित्सा की नैतिकता के खिलाफ आरोप लगाया गया है। यह पाया गया है कि देश के आधे से अधिक कैदी पर्याप्त सबूत के बिना ही हिरासत में हैं। अन्य लोकतान्त्रिक देशों के विपरीत, आम तौर पर भारत में आरोपी की गिरफ्तारी के साथ ही जाँच की शुरूआत होती है। चूंकि न्यायिक प्रणाली में कर्मचारियों की कमी और सुस्ती है, अतः कई वर्षों से जेल में सड़ रहे निर्दोष नागरिकों का होना कोइ असामान्य बात नहीं है। उदाहरण के लिए, सितम्बर 2009 में मुम्बई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से एक 40-वर्षीय व्यक्ति को मुआवजे के रूप में 1 लाख रुपये का भुगतान करने के लिए कहा क्योंकि जिस अपराध के लिए वह 10 साल से जेल में सजा काट रहा था दरअसल उसने वह अपराध किया ही नहीं था। इन्हें भी देखें भारत में सामाजिक और आर्थिक मुद्दे भारत में सेंसरशिप भारतीय आपातकाल (1975-77) पोटा भारत में भ्रष्टाचार भारत में नस्लवाद भारत में कामुकता सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ मानवाधिकारों की रक्षा की आवश्यकता क्यों है भारत में मानव अधिकार गूगल परियोजना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%88%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%A8%20%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%AA
टैप्रोबेन द्वीप
टैप्रोबेन द्वीप एक एतिहासिक लग्ज़री होटल है जो एक पथरीले द्वीप पर श्रीलंका के वैलिंगमा के निकट स्थित है। यह एक विश्व विरासत स्थल किले से थोडी ही दूर टैप्रोबेन द्वीप पर स्थित है। तट से बस फर्लाग भर दूर यह छोटा सा द्वीप है (कुल ढाई एकड इलाके में फैला) लेकिन यह श्रीलंका का अकेला निजी स्वामित्व वाला द्वीप है। समूचा द्वीप एक होटल में परिवर्तित है। टैप्रोबेन का नाम इसलिए पडा क्योंकि यह सीलोन का प्राचीन यूनानी नाम है। इस द्वीप का आकार सीलोन (वर्तमान श्रीलंका) से मिलता-जुलता होने के कारण ही इसे यह नाम मिल गया। यह द्वीप फुर्सत के कुछ दिन बिताने के लिए दुनिया की सबसे सुंदर स्थानों में से एक माना जा सकता है। विवाह, पार्टियों व विशेष अवसरों के लिए भी यह एक उपयुक्त स्थान है। इतिहास इस द्वीप को सबसे पहले खोजा था स्वयं को नेपोलियन के जनरलों में से एक का वंशज बताने वाले काउंट दी माउनी-तलवंडे ने, जो चाय के सम्राट थॉमस लिप्टन के साथ पहली बार १९१२ में सीलोन आए थे। श्रीलंका की सुंदरता से वह इतना प्रभावित हुए कि पहले विश्व युद्ध के बाद फिर वहां आए अपने लिए एक सपनों की दुनिया खोजने। इसमें उन्हें दस वर्ष लगे। १९३० में उन्होंने इस द्वीप को पाया और यहां एक भवन बनवाया जिसकी बनावट, यूरोपीय शैली के दृष्टि से अनूठी थी और यह किसी क्रूज नौका के समान दिखता था। काउंट माउनी तीस वर्ष वहां रहे और उस दौरान उन्होंने दुनिया की कई जानी-माने व्यक्तियों की मेजबानी वहां की। मजेदार बात यह है कि उससे पहले इस द्वीप को स्थानीय कोबरा-डंप माना जाता था क्योंकि श्रीलंका में लोग सांपों को मारते नहीं हैं, इसलिए जितने भी कोबरा पकडे जाते थे उन्हें इस द्वीप पर छोड दिया जाता था। काउंट की मौत के बाद भी कई लोगों को यह अपनी ओर खींचता रहा। कुछ-कुछ समय के लिए कई लोगों ने इसे अपना घर बनाया। लेकिन धीरे-धीरे लोग इसे भूलने लगे। वर्ष १९९५ में इसके वर्तमान मालिक ने इसे अपने हाथ में लिया और आज इसे दुनिया के सबसे रोमांटिक बसेरों में से एक माना जाता है। द्वीप पर बने होटल का वास्तुशिल्प और बनावट द्वीप पर बने सफेद फर्श और लकडी की ऊंची छतों वाले अष्टभुजाकार होटल में पांच विशालकाय स्वीट हैं। हर स्वीट में समुद्र का सीधा दृश्य देने वाले बेडरूम के अलावा बैठक, बरामदा और बहुत खुला स्थान है। हर बेडरूम का अपना छज्जा है जहां से हिंद महासागर की विशालता का दृश्य दिखता है। भवन का मध्य कक्ष तीस फुट ऊंचा है जिसमें प्राकृतिक रोशनी और हवा के आने की पूरी व्यस्था है। भवन का फर्नीचर आपको सौ वर्ष पहले के दौर में लेकर चला जाएगा। इनफिनिटी स्वीमिंग पूल एकदम अंतहीन समुद्र में नहाने जैसा है। पूल और पूल के पार सागर। भवन के चारों ओर दो एकड में फैला जंगलनुमा बगीचा है, जिसमें एक निर्जन द्वीप पर (अपने में) खो जाने जैसा आनंद भी उठाया जा सकता है। कहां व कैसे टैप्रोबेन द्वीप श्रीलंका के दक्षिणी सिरे से केवल २०० गज दूर वेलिगामा खाडी के ठीक मध्य में है। कोलंबो के अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे से सड़क मार्ग से साढे चार घंटे कि यात्रा है। लेकिन यदि आप थोडा और रोमांच का मजा लेते हुए हेलीकॉप्टर या सी-प्लेन से जाना चाहें तो यह रास्ता मात्र घंटेभर का रह जाता है। तट से द्वीप तक पानी गहरा नहीं है, इसलिए द्वीप पहुंचने का भी अलग मजा है-हाथी पर बैठकर जाएं तो बडा अद्भुत अहसास होता है। श्रीलंका का यह दक्षिणी तट दुनियाभर के पर्यटकों के लिए नया आकर्षण है क्योंकि यहां लगभग वही दृश्य, अनुभव और हवा मिलती है जो मालदीव या थाईलैंड में मिलती है। आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि इस द्वीप और दक्षिणी ध्रुव के बीच अथाह समुद्र के अतिरिक्त कुछ नहीं है। नवंबर से अप्रैल का समय यहां जाने के लिए सबसे बढिया है क्योंकि इन दिनों यहां बारिश नहीं होती। लेकिन कई लोग यहां बारिश का मजा लेने भी जाते हैं। यहां के स्वीट का किराया अगस्त के महीने और २१ जनवरी से ३० अप्रैल के बीच १,७५० डॉलर (८७,५०० रु) प्रति रात्रि है। वहीं १ सितंबर से १४ दिसम्बर और फिर १ मई से ३१ जुलाई तक किराया कम होकर १,००० डॉलर (५०,००० रु) प्रति रात्रि रह जाता है। वर्ष के अंत में यह स्थान सबसे महंगा होता है जब १५ दिसम्बर से २० जनवरी के बीच यहां का किराया २,२०० डॉलर (११,००० रु) प्रति रात्रि होता है बाहरी कड़ियाँ टैप्रोबेन द्वीप। श्रीलंका के द्वीप श्रीलंका के होटल व्यक्तिगत स्वामित्व में द्वीप
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A7%E0%A5%AB%20%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%B0
१५ नवम्बर
१५ नवंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ३१९वॉ (लीप वर्ष में ३२० वॉ) दिन है। साल में अभी और ४६ दिन बाकी है। प्रमुख घटनाएँ 1922- यूनाइटेड किंगडम में गठबंधन सरकार से कंजरवेटिव पार्टी ने समर्थन वापस लेकर मध्यावधि चुनाव करवाने को बाध्य किया। इस चुनाव में उसे पूर्ण बहुमत हासिल हुआ। 1923- जर्मनी में मुद्रा स्फीर्ती की दर अत्यधिक उच्चतम स्तर पर जा पहुँची। एक अमेरिकी डॉलर का मूल्य 4,200,000,000,000,000 (4.2 क्वार्डलियन) पपियरमार्क हो गया। गुस्ताव स्ट्रेसीमैन ने वेमर गणराज्य में मुद्रास्फीति देखकर पुरानी मुद्रा समाप्त कर दी। 1947- फिलिस्तीन से ब्रिटिस सेना की वापसी आरंभ हुई। जन्म १८७५ - बिरसा मुण्डा - भारत प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एक आदिवासी नेता निधन 1982 - विनोबा भावे बाहरी कडियाँ बीबीसी पे यह दिन नवम्बर, १५
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%2C%20%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A5%80
भारत का दूतावास, पनामा सिटी
पनामा सिटी में भारतीय दूतावास भारत गणराज्य की ओर से स्थित है। दूतावास का नेतृत्व पनामा में भारतीय राजदूत करते हैं। दूतावास 10325, एवेनिडा फेडेरिको बॉयड, बेला विस्टा में स्थित है। बेला विस्टा पनामा सिटी के पास है। वर्तमान राजदूत उपेंदर सिंह रावत हैं। पनामा में भारतीय दूतावास 1973 से कार्य कर रहा है। पनामा पहला मध्य अमेरिकी देश है जहां भारत ने अपना दूतावास खोला है। दूतावास पनामा के साथ निकारागुआ और कोस्टा रिका को भी क्षेत्राधिकार के अंतर्गत सेवाएं देता है। संदर्भ यह भी देखें भारत के राजनयिक मिशन पनामा में राजनयिक मिशन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%2C%20%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%B2%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6
चुराह विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र, हिमाचल प्रदेश
चुराह विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र हिमाचल प्रदेश विधानसभा के 68 निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। चंबा जिले में स्थित यह निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। 2012 में इस क्षेत्र में कुल 61,120 मतदाता थे। यह क्षेत्र साल 2008 में, विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के अनुसरण में अस्तित्व में आया। विधायक चुनावी आंकड़े इन्हें भी देखें कांगड़ा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2012 हिमाचल प्रदेश के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सूची बाहरी कड़ियाँ हिमाचल प्रदेश मुख्य निर्वाचन अधिकारी की आधिकारिक वेबसाइट सन्दर्भ हिमाचल प्रदेश के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/2017%20%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%B0%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%AF%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%9F
2017 कतर राजनयिक संकट
जून 2017 में, कई देशों ने सऊदी अरब के नेतृत्व में कतर से अपने राजनैतिक संबंध समाप्त कर दिये हैं। इन देशों ने संकट को समाप्त करने के लिए कतर से राजनयिक संबंध समाप्त किए, क्योंकि कतर आतंकवादी संगठनों का समर्थन करने, आंतरिक मामलों में दखल देने, और ईरान का समर्थन करने के कारण किया गया है। अन्य देशों ने भी इसके साथ संबंधों में कटौती की है, जिसमें बहरीन, मिस्र, यमन (हादी के नेतृत्व वाली सरकार), संयुक्त अरब अमीरात, लीबिया (हाउस के प्रतिनिधियों और सरकार के राष्ट्रीय एकॉर्ड), और मालदीव शामिल हैं। खाड़ी सहयोग परिषद के दो सदस्यों, कुवैत और ओमान ने कतर के खिलाफ सऊदी अरब के नेतृत्व वाले सदस्यों का साथ नहीं दिया। कुवैत चाहता था कि कोई वार्ता कर के कोई मध्य का मार्ग निकल जाये और दोनों के मध्य तनाव कम हो जाये। ईरान ने भी तनाव कम करने हेतु वार्ता हो, इसका प्रयास किया था। पृष्ठभूमि ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी के साथ 27 मई 2017 फोन से कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल थानी ने कहा कि वह चाहते थे कि ईरान के साथ संबंध में "पहले से कहीं अधिक मजबूत हो।" इस बयान का पता तब चला जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प एक सरकारी यात्रा द्वारा सऊदी अरब में मई 2017 को आए थे। अन्य मुद्दों में कतर और अन्य अरब देशों के मध्य मतभेद था, जिसका प्रसारण अल जज़ीरा में हुआ। अतीत में मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन था। कतर ने अफगानी तालिबान को अपने देश के अंदर राजनैतिक कार्यालय बनाने की अनुमति दी थी। कतर भी एक संयुक्त राज्य अमेरिका सहयोगी देशों में से एक है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के सैन्य अड्डे का आयोजन मध्य पूर्व में करता है। मिस्र, लीबिया, और मालदीव को छोड़ कर खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) में शामिल सभी राष्ट्र इसमें शामिल थे। खाड़ी सहयोग परिषद एक क्षेत्रीय आर्थिक और राजनैतिक संघ है। सालों से खाड़ी सहयोग परिषद के देशों ने अरब दुनिया में प्रभाव डालने में भाग लिया है। कई देशों ने अपने राजनैतिक संबंध समाप्त कर दिये, इसका कारण कतर द्वारा आतंकवादी संगठनों का समर्थन करना, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना और ईरान के साथ अपने संबंध बनाए रखता है। कतर आरोपों से इनकार करता है कि "वह आतंकवाद का समर्थन करता है" और उसने इशारा किया कि वह अमेरिका के नेतृत्व में आईएसआईएस के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है। कतर ने ईरान के साथ अपने संबंधों का भी बचाव किया और कहा कि "तेहरान के प्रभाव को वहन किया जाता है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।" कतर में स्थित अल जज़ीरा ने दावा किया है कि यह विवाद मई 2017 में कतर समाचार एजेंसी के हैक होने की वजह से उपजी है। विवाद के मुद्दे कतर का कहना है कि वे ईरान के साथ अच्छे संबंध इस कारण रख रहा है, ताकि उसके संपर्क का उपयोग कर शांतिपूर्ण बातचीत से बंधकों या नागरिकों को सीरिया गृह युद्ध से प्रभावित क्षेत्रों से आसानी से निकाला जा सके। हालांकि कतर ईरान समर्थित लड़ाकों से लड़ने के लिए वर्तमान में यमनी नागरिक युद्ध में अपनी सेना भेजी थी और समर्थित विद्रोहियों से लड़ रहे ईरान के सहयोगी बशर अल-असद का सीरिया के गृह युद्ध में समर्थन किया। कतर ने अतीत में मुस्लिम ब्रदरहुड, जो एक इस्लामी संगठन है, का भी समर्थन किया था। कुछ सउदी लोगों ने कतर पर विश्वासघात का आरोप लगाया था। सऊदी अरब और अन्य खाड़ी राजतंत्र के देशों ने मुस्लिम ब्रदरहुड को वंशानुगत शासन के खतरे के रूप में देखा। मिस्र की सरकार लंबे समय से मुस्लिम ब्रदरहुड को अपने सबसे बड़े दुश्मन के रूप में देख रही है। 2011 में अरब वसंत के दौरान, कतर ने मिस्र के प्रदर्शनकारियों के बदलाव के विरोध में आंदोलन का और मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन किया था। इसके विपरीत, सऊदी अरब  होस्नी मुबारक का समर्थन कर रहा था और वर्तमान में अब्देल फतह अल-सिसि का समर्थन कर रहा है। कतर पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगा था। कुछ देशों ने विद्रोही समूहों को धन देने का दोषी पाया, जिसमें सीरिया का अल-कायदा से जुड़ा संगठन अल-नुसरा फ्रंट भी है, हालांकि सउदी ने भी ऐसा ही किया था। कतर सबसे बड़े अमेरिकी बेस की मध्य पूर्व में अल उदेद एयर बेस में मेजबानी करता है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा इराक, सीरिया और अफगानिस्तान में अपने अभियान हेतु उपयोग करता है। पिछली घटना 2014 में बहरीन, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने अपने राजदूतों को क़तर से वापस बुला लिया, जिसमें कारण दिया गया कि कतर आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है। लेकिन वापस पहले जैसे हो गई, जब कतर ने आठ महीने बाद ब्रदरहुड के सदस्यों को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। विकास सही कारणों के लिए राजनयिक तोड़-नापसंद स्पष्ट नहीं है, लेकिन समकालीन समाचार कवरेज मुख्य रूप से गुण यह करने के लिए दो घटनाओं में हो सकता है 2017. सबसे पहले, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का दौरा किया क्षेत्र के हिस्से के रूप में रियाद सम्मेलन में देर से मई 2017 के दौरान, वह दे दिया जो मजबूत समर्थन के लिए सऊदी अरब's प्रयासों के खिलाफ लड़ाई में इस्लामी उग्रवादी समूहों से ईरान और मुस्लिम ब्रदरहुड के प्रमुख के लिए एक हथियार सौदा देशों के बीच. तुरुप का समर्थन हो सकता है उनका हौसला बढ़ाया अन्य सुन्नी अमेरिका का पालन करने के लिए लाइन में सऊदी अरब के साथ लेने के लिए एक रुख कतर के खिलाफ है। एक दूसरी घटना से हुई कथित हैकिंग की कतर के राज्य मीडिया में मई 2017 बनाने, अमीर जांच पर अमेरिका के प्रति असंतोष ईरान और remarking पर हमास है। कतर सूचना दी कि बयान झूठे थे और पता नहीं था ... पर 3 जून, 2017 के ट्विटर अकाउंट से बहरीन के विदेश मंत्री खालिद बिन अहमद अल खलीफा काट दिया गया था में एक कतरी cyberattack है। मई में 2017, ईमेल पते संयुक्त अरब अमीरात के राजदूत अमेरिका के लिए, यूसुफ अल-Otaiba था, कथित तौर पर हैक कर लिया है। ईमेल के रूप में देखा गया था "शर्मनाक", क्योंकि वे कथित तौर पर पता चला लिंक के बीच संयुक्त अरब अमीरात और इजरायल समर्थक समूह, नींव की रक्षा के लिए लोकतंत्रहै। कहानी को कवर किया गया था द्वारा अल-जजीरा और HuffPost Arabi, दोनों जिनमें से कर रहे हैं द्वारा वित्त पोषित कतर. अरब देशों में देखा की मीडिया कवरेज कथित ईमेल हैक एक उत्तेजना के रूप में कतर द्वारा, और गहरा दरार को दोनों पक्षों के बीच है। संबंधों की समाप्ति के बीच 5 और 6 जून 2017, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, यमन, मिस्र, मालदीव, लीबिया (पूर्वी) सरकार और बहरीन के सभी अलग से घोषणा की है कि वे काटने के साथ राजनयिक संबंधों कतर. शामिल सभी देशों का आदेश दिया अपने नागरिकों से बाहर कतर. तीन खाड़ी देशों (सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन) ने कतर के आगंतुकों और निवासियों के लिए दो सप्ताह के लिए छोड़ दें। विदेश मंत्रालयों के बहरीन और मिस्र ने कतरी राजनयिकों को 48 घंटे में छोड़ने के लिए उनके देशों के. कतर से निष्कासित कर दिया था सऊदी अरब के नेतृत्व में हस्तक्षेप यमन. सऊदी अरब शट डाउन के स्थानीय कार्यालय के अल जज़ीरा मीडिया नेटवर्क है। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात अधिसूचित बंदरगाहों और शिपिंग एजेंट प्राप्त करने के लिए नहीं कतरी वाहिकाओं या जहाजों के स्वामित्व कतरी कंपनियों या व्यक्तियों. सऊदी अरब में बंद सीमा के साथ कतर. ईरान भेजा भोजन के लदान के लिए कतर. सऊदी अरब के केंद्रीय बैंक की सलाह दी बैंकों नहीं करने के लिए व्यापार के साथ क़तर में बैंकों कतरी रियाल. प्रतिक्रिया विदेश मंत्रालय के कतर की आलोचना की निर्णय खाड़ी के देशों के साथ संबंधों को तोड़ कतर और एक बयान में कहा, के उपायों को अनुचित हैं और कर रहे हैं के आधार पर झूठी और निराधार दावा है। उद्देश्य स्पष्ट है, और यह लागू करने के लिए संरक्षकता राज्य पर है। यह अपने आप का उल्लंघन है इसकी (कतर) संप्रभुता के रूप में एक राज्य है। अभियान की शह पर आधारित है निहित है कि तक पहुँच गया था, के स्तर को पूरा fabrications. हवाई यात्रा पर प्रभाव बड़ी एयरलाइंस के आधार इन देशों में, सहित अमीरात, निलंबित उड़ान सेवा करने के लिए कतर. गल्फ एयर, EgyptAir, FlyDubai, एयर अरेबिया, सऊदी अरब एयरलाइंस और एतिहाद एयरवेज को निलंबित कर दिया के लिए अपनी उड़ानों और कतर से. मिस्र, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात भी कर रहे हैं पर प्रतिबंध लगाने के overflights विमान द्वारा पंजीकृत कतर में. बहरीन गंभीर रूप से सीमित overflight का उपयोग करने के लिए किसी भी कतरी विमान है। कतर एयरवेज के जवाब में यह भी निलंबित उनकी उड़ान संचालन करने के लिए सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र, और बहरीन. पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस भेजा विशेष उड़ानों को वापस लाने के लिए से अधिक 200 पाकिस्तानी तीर्थयात्रियों पर अटक दोहा हवाई अड्डा है। 550 से अधिक पाकिस्तानी तीर्थयात्रियों पर दोहा हवाई अड्डे लाया गया मस्कट के लिए. सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%202019-20
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट 2019-20
2019-20 अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट सत्र सितंबर 2019 से अप्रैल 2020 तक था। इस अवधि के दौरान 29 टेस्ट मैच, 78 वनडे इंटरनेशनल (वनडे) और 145 ट्वेंटी 20 अंतर्राष्ट्रीय (टी20आई), साथ ही 23 महिला वन डे इंटरनेशनल (मवनडे) और 61 महिला ट्वेंटी 20 अंतर्राष्ट्रीय (मटी20ई) खेले जाने वाले थे। इसके अतिरिक्त, अन्य टी20आई/मटी20आई मैचों की एक संख्या सहयोगी राष्ट्रों को शामिल करने वाली छोटी श्रृंखला में खेले जाने वाले थे। इस सत्र की शुरुआत भारत ने टेस्ट क्रिकेट रैंकिंग में, इंग्लैंड ने एकदिवसीय रैंकिंग में और पाकिस्तान ने ट्वेंटी 20 रैंकिंग से की। महिलाओं की रैंकिंग में, ऑस्ट्रेलिया की महिलाएं महिला वनडे और महिला टी20आई दोनों टेबल का नेतृत्व करती हैं। ऑस्ट्रेलिया में 2020 आईसीसी महिला टी 20 विश्व कप इस दौरान हुआ, 21 फरवरी 2020 से शुरू हुआ, जिसमें मेज़बान ऑस्ट्रेलिया ने पांचवीं बार टूर्नामेंट जीता। जुलाई 2019 में, अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने ज़िम्बाब्वे क्रिकेट को निलंबित कर दिया, टीम ने आईसीसी आयोजनों में भाग लेने से रोक दिया। यह पहली बार था जब आईसीसी के एक पूर्ण सदस्य को निलंबित किया गया था। जिम्बाब्वे के निलंबन के परिणामस्वरूप, उन्हें नाइजीरिया के साथ 2019 आईसीसी पुरुष टी 20 विश्व कप क्वालीफायर टूर्नामेंट में बदल दिया गया था। अक्टूबर 2019 में, आईसीसी ने ज़िम्बाब्वे क्रिकेट पर अपना निलंबन हटा दिया, जिससे उन्हें भविष्य के आईसीसी आयोजनों में भाग लेने की अनुमति मिली। 2016 में निलंबित किए गए क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ नेपाल को भी आईसीसी सदस्य के रूप में पढ़ा गया था। अंतर्राष्ट्रीय पुरुष क्रिकेट की शुरुआत बांग्लादेश और अफगानिस्तान के बीच एकतरफा टेस्ट से हुई, जिसे अफगानिस्तान ने जीता। 2019 यूनाइटेड स्टेट्स ट्राई नेशन सीरीज़ के दौरान, संयुक्त राज्य अमेरिका ने वनडे में अपनी पहली जीत दर्ज की। 2020 नेपाल त्रिकोणीय राष्ट्र श्रृंखला के दौरान, नेपाल के खिलाफ अपने अंतिम मैच में संयुक्त राज्य अमेरिका 35 रन पर आउट हो गया, जो एक एकदिवसीय मैच में संयुक्त रूप से सबसे कम पारी थी। इस सीज़न में विश्व कप चैलेंज लीग के लीग ए और बी की शुरुआत हुई, जिसमें कनाडा ने लीग ए टूर्नामेंट का उद्घाटन संस्करण जीता। सितंबर 2019 में, ऑस्ट्रेलिया महिलाओं ने वेस्ट इंडीज महिला 3-0 के खिलाफ महिला वनडे श्रृंखला जीती, 2021 महिला क्रिकेट विश्व कप के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली टीम बन गई। अक्टूबर 2019 में, श्रीलंका महिलाओं के खिलाफ दूसरी महिला वनडे में अपनी जीत के बाद, ऑस्ट्रेलिया महिलाओं को 2017-20 आईसीसी महिला चैम्पियनशिप के चैंपियन के रूप में पुष्टि की गई। ऑस्ट्रेलिया ने तीसरा महिला वनडे नौ विकेट से जीता, श्रृंखला 3-0 से जीती और 18 के साथ महिला वनडे में लगातार सबसे अधिक जीत का नया रिकॉर्ड बनाया। अक्टूबर और नवंबर 2019 में, संयुक्त अरब अमीरात में 2019 आईसीसी पुरुष टी 20 विश्व कप क्वालीफायर टूर्नामेंट आयोजित किया गया था। पापुआ न्यू गिनी और आयरलैंड ऑस्ट्रेलिया में 2020 आईसीसी पुरुष टी 20 विश्व कप में सीधे क्वालीफाई करने वाली पहली दो टीमें बनीं, जब उन्होंने अपने-अपने ग्रुप जीते। नामीबिया, नीदरलैंड्स, ओमान और स्कॉटलैंड ने भी 2020 आईसीसी टी20 विश्व कप के लिए क्वालीफायर टूर्नामेंट जीता, जिसके साथ क्वालिफाई किया। टी 20 विश्व कप क्वालीफायर टूर्नामेंट के फाइनल के बाद, दिल्ली में भारत और बांग्लादेश के बीच 1,000 वां पुरुष टी 20 आई मैच खेला गया। दिसंबर 2019 में, श्रीलंकाई क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान में दो टेस्ट मैच खेलने का दौरा किया, जिसमें दस साल बाद पाकिस्तान में टेस्ट क्रिकेट की वापसी हुई। फरवरी 2020 में, बांग्लादेश ने 2020 अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप जीता, किसी भी स्तर पर आईसीसी इवेंट में उनकी पहली जीत। कोविड-19 महामारी कई अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट जुड़नार और टूर्नामेंटों पर असर डालती है। एक महिला चतुष्कोणीय श्रृंखला अप्रैल 2020 में थाईलैंड में होने वाली थी, लेकिन इसे शुरू होने के एक महीने पहले रद्द कर दिया गया था। मार्च 2020 में होने वाला 2020 मलेशिया क्रिकेट विश्व कप चैलेंज लीग ए, विश्व एकादश और एशिया इलेवन के बीच दो टी20आई मैचों के साथ स्थगित कर दिया गया था। मार्च 2020 में दक्षिण अफ्रीका में ऑस्ट्रेलिया महिला दौरा कोरोनोवायरस के कारण योजना के अनुसार आगे नहीं बढ़ने वाली पहली बड़ी अंतरराष्ट्रीय श्रृंखला बन गई। 13 मार्च 2020 को, आईसीसी ने पुष्टि की कि संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रकोप और यात्रा प्रतिबंधों के कारण 2020 यूनाइटेड स्टेट्स ट्राई नेशन सीरीज़ को स्थगित कर दिया गया था। उसी दिन, मार्च 2020 में होने वाली श्रीलंका और इंग्लैंड के बीच दो मैचों की टेस्ट सीरीज़ भी स्थगित कर दी गई थी। भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच पिछले दो वनडे को रद्द कर दिया गया था, साथ ही नीदरलैंड के नामीबिया दौरे भी रदद् किया। 14 मार्च 2020 को, ऑस्ट्रेलिया ने न्यूजीलैंड के खिलाफ अंतिम दो वनडे और अपनी टी 20 सीरीज़ को रद्द कर दिया। 16 मार्च 2020 को, पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने बांग्लादेश के खिलाफ श्रृंखला के तीसरे चरण को रद्द कर दिया, जिसमें एकदिवसीय और टेस्ट मैच होना था। बाद में उसी दिन, आयरलैंड का जिम्बाब्वे दौरा भी रद्द कर दिया गया था। 24 मार्च 2020 को, आईसीसी ने पुष्टि की कि 30 जून 2020 से पहले होने वाले सभी आईसीसी योग्यता कार्यक्रम स्थगित कर दिए गए थे। सीजन अवलोकन रैंकिंग सीजन की शुरुआत में रैंकिंग निम्नलिखित थी। ऑन-गोइंग टूर्नामेंट सीजन की शुरुआत में रैंकिंग निम्नलिखित थी। सितम्बर बांग्लादेश में अफगानिस्तान वेस्टइंडीज में ऑस्ट्रेलिया की महिलाएं 2019–20 बांग्लादेश त्रिकोणीय राष्ट्र श्रृंखला 2019 यूनाइटेड स्टेट्स त्रिकोणीय राष्ट्र श्रृंखला 2019–20 आयरलैंड त्रिकोणीय राष्ट्र श्रृंखला भारत में दक्षिण अफ्रीका कोविड-19 महामारी के कारण मार्च 2020 में आखिरी दो वनडे मैच रद्द कर दिए गए थे। 2019 मलेशिया क्रिकेट विश्व कप चैलेंज लीग ए भारत में दक्षिण अफ्रीका की महिलाएं 2019–20 सिंगापुर त्रिकोणीय राष्ट्र श्रृंखला पाकिस्तान में श्रीलंका ऑस्ट्रेलिया में श्रीलंका की महिलाएं अक्टूबर 2019–20 ओमान पेंटांगुलर सीरीज 2019 आईसीसी टी20ई विश्व कप क्वालीफायर अंतिम स्टैंडिंग 2020 आईसीसी पुरुष टी20आई विश्व कप के लिए क्वालीफाई किया और बाकी आईसीसी पुरुष टी20आई विश्व कप क्वालीफायर 2021 में चले गए। पाकिस्तान में बांग्लादेश की महिलाएं ऑस्ट्रेलिया में श्रीलंका नवम्बर न्यूजीलैंड में इंग्लैंड वेस्ट इंडीज में भारत की महिलाएं ऑस्ट्रेलिया में पाकिस्तान भारत में बांग्लादेश भारत में वेस्टइंडीज बनाम अफगानिस्तान दिसम्बर 2019 ओमान क्रिकेट विश्व कप चैलेंज लीग बी भारत में वेस्ट इंडीज 2019 संयुक्त अरब अमीरात त्रि-राष्ट्र श्रृंखला मलेशिया में पाकिस्तान की महिलाओं के खिलाफ इंग्लैंड ऑस्ट्रेलिया में न्यूजीलैंड कोविड-19 महामारी के कारण मार्च 2020 में आखिरी दो वनडे मैच रद्द कर दिए गए थे। दक्षिण अफ्रीका में इंग्लैंड जनवरी 2020 ओमान ट्राई-नेशन सीरीज भारत में श्रीलंका वेस्टइंडीज में आयरलैंड भारत में ऑस्ट्रेलिया 2020 अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप जिम्बाब्वे में श्रीलंका न्यूजीलैंड में भारत पाकिस्तान में बांग्लादेश कोविड-19 महामारी के कारण मार्च 2020 में एकदिवसीय और दूसरा टेस्ट रद्द कर दिया गया था। न्यूजीलैंड में दक्षिण अफ्रीका की महिलाएं 2020 ऑस्ट्रेलिया महिलाओं की त्रि-राष्ट्र श्रृंखला फ़रवरी 2020 नेपाल त्रिकोणीय राष्ट्र श्रृंखला 2020 आईसीसी महिला टी 20 विश्व कप दक्षिण अफ्रीका में ऑस्ट्रेलिया बांग्लादेश में जिम्बाब्वे श्रीलंका में वेस्ट इंडीज मार्च भारत में आयरलैंड बनाम अफगानिस्तान श्रीलंका में इंग्लैंड कोविड-19 महामारी के कारण मार्च 2020 में दो टेस्ट मैच स्थगित कर दिए गए थे। मुजीब 100 टी 20 कप बांग्लादेश 2020 कोविड-19 महामारी के कारण मार्च 2020 में दो टी20आई मैच स्थगित कर दिए गए थे। दक्षिण अफ्रीका में ऑस्ट्रेलिया की महिलाएं मार्च 2020 की शुरुआत में, कोविड-19 महामारी के कारण दौरे को स्थगित कर दिया गया था। न्यूजीलैंड में ऑस्ट्रेलिया कोविड-19 महामारी के कारण मार्च 2020 में श्रृंखला रद्द कर दी गई थी। नामीबिया में नीदरलैंड कोविड-19 महामारी के कारण मार्च 2020 में दौरा रद्द कर दिया गया था। अप्रैल 2020 संयुक्त राज्य अमेरिका त्रिकोणीय राष्ट्र श्रृंखला कोविड-19 महामारी के कारण मार्च 2020 में वनडे श्रृंखला स्थगित कर दी गई थी। जिम्बाब्वे में आयरलैंड कोविड-19 महामारी के कारण मार्च 2020 में दौरा रद्द कर दिया गया था। 2020 थाईलैंड महिलाओं की चतुष्कोणीय श्रृंखला आयरलैंड, नीदरलैंड्स, जिम्बाब्वे और मेज़बान थाईलैंड के बीच एक महिला चतुष्कोणीय श्रृंखला कोविड-19 महामारी के कारण मार्च 2020 की शुरुआत में रद्द कर दी गई थी। 2020 नामीबिया त्रि-राष्ट्र श्रृंखला कोविड-19 महामारी के कारण मार्च 2020 में वनडे श्रृंखला स्थगित कर दी गई थी। यह भी देखें एसोसिएट अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट 2019-20 क्रिकेट पर कोविड-19 महामारी का प्रभाव नोट्स संदर्भ २०१९ में क्रिकेट २०२० में क्रिकेट क्रिकेट वर्षानुसार
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%3A%20%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E2%80%93%20%E0%A4%9C%E0%A5%89%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%9F%20%E0%A4%87%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A5%89%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%8F%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
मनी हीस्ट: कोरिया – जॉइंट इकोनॉमिक एरिया
first_runMoney Heist: Korea – Joint Economic Area Pages using infobox television with unnecessary name parameter मनी हीस्ट: कोरिया - जॉइंट इकोनॉमिक एरिया () एक आगामी दक्षिण कोरियाई टेलीविजन श्रृंखला है जो इसी नाम की स्पेनिश डकैती अपराध नाटक श्रृंखला पर आधारित है। किम होंग-सन द्वारा निर्देशित और रयू योंग-जे द्वारा लिखित कोरियाई श्रृंखला, एक मूल नेटफ्लिक्स श्रृंखला है, जिसमें यू जी-ताए, पार्क हे-सू, जीन जोंग-सेओ, ली वोन-जोंग और पार्क मायुंग-हून ने अभिनय किया है। मूल श्रृंखला की तरह, यह भी एक ही काल्पनिक जगह पर दिखाई गई है, यह कोरियाई प्रायद्वीप में एक बंधक संकट की स्थिति को दर्शाता है, जिसमें एक प्रतिभाशाली रणनीतिकार और विभिन्न व्यक्तित्व और क्षमताओं वाले लोग शामिल हैं। यह 24 जून, 2022 को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई। Articles containing Korean-language text सार यह श्रृंखला, स्पेनिश टीवी नाटक की रीमेक मूल श्रृंखला की कहानी और पात्रों का अनुसरण करती है। "द प्रोफेसर" ( यू जी-ताए ), का कैरेक्टर ,एक रणनीतिकार आपराधिक मास्टरमाइंड, और स्पेन में उन लोगों से प्रेरित हैं, जो उसी तरह कोरियाई प्रायद्वीप में एक डकैती की योजना बना रहा है। ऑपरेशन में विभिन्न विशेषताओं और क्षमताओं वाले रणनीतिकार और निराश व्यक्ति शामिल हैं, जिन्हें कठिन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कास्ट द गैंग यू जी-ताए प्रोफेसर के रूप में टोक्यो के रूप में जियोन जोंग-सियो पार्क हा-सू बर्लिन के रूप में ली वोन-जोंग मास्को के रूप में डेनवर के रूप में किम जी-हून जंग यूं-जू नैरोबी के रूप में रियो के रूप में ली ह्यून-वू हेलसिंकी के रूप में किम जी-हुन ओस्लो के रूप में ली क्यू-हो टास्क फोर्स किम यून- जिन, राष्ट्रीय पुलिस एजेंसी से संबंधित एक संकट वार्ता नेगोशिएशन दल के नेता, सीन वू-जिन के रूप में कैप्टन चा मू-ह्युक के रूप में किम सुंग-ओह, एक पूर्व विशेष एजेंट को बंधक संकट से निपटने के लिए भेजा जाने वाला बंधक पार्क मायनस चो यंग-मिन, मिंट ब्यूरो के डायरेक्टर ली जू-बिनास, यूं मि-सियोन, टकसाल में लेखांकन के प्रभारी अन्य Lim Ji-yeon Lim Hyeong-guk Lee Si-woo ,Ann के रुप में उत्पादन विकास जून 2020 में, यह रिपोर्ट आयी की कि BH एंटरटेनमेंट मनी हीस्ट के रीमेक को , Zium कंटेंट के साथ सह-निर्माण कर जा रहा हैं । वे नेटफ्लिक्स के साथ बातचीत कर रहे थे। 1 दिसंबर को, यह बताया गया कि नेटफ्लिक्स द्वारा किम होंग-सन के साथ निर्देशक के रूप में और रयू योंग-जे के रूप में पटकथा लेखक के रूप में श्रृंखला के एक कोरियाई रीमेक की पुष्टि की गई है। बीएच एंटरटेनमेंट 12 एपिसोड वाली श्रृंखला को प्रोड्यूस करेगी । कास्टिंग 31 मार्च को, नेटफ्लिक्स द्वारा श्रृंखला की कास्टिंग लाइन-अप की पुष्टि की गई थी। कलाकारों को अंतिम रूप देने के बाद, कहानी लाइनअप और पात्रों को तैयार किया गया। पात्रों के मूल और भौतिक गुणों की कथा को जीवित रखने पर ध्यान केंद्रित किया गया था। लिम जी-योन अप्रैल 2021 में कलाकारों में शामिल हुए। ली ह्यून-वू ने पार्क जंग-वू की जगह ली, क्योंकि फ्लाई हाई बटरफ्लाई श्रृंखला के साथ तारीखों के टकराव के कारण। कोरियाई पात्रों और कलाकारों की तुलना ओरिजिनल और एडेप्टेशन मनी हीस्ट के बीच समानता और अंतर को दिखाते हुए की गई। फिल्माने COVID-19 के प्रसार को सीमित करने के उद्देश्य से दिशानिर्देशों को समायोजित करने के लिए 7 जुलाई, 2021 को फिल्मांकन निलंबित कर दिया गया था। 17 जनवरी, 2022 को, नेटफ्लिक्स ने श्रृंखला के अंग्रेजी टाइटल का की घोषणा की: Money Heist: Korea – Joint Economic Area। 29 अप्रैल, 2022 को, नेटफ्लिक्स ने घोषणा की कि Money Heist: Korea – Joint Economic Area ,24 जून, 2022 को जारी किया जाएगा। 20 मई, 2022 को नेटफ्लिक्स ने ऑफिशल टीज़र जारी किया। संदर्भ लेख जिनमें कोरियाई भाषा का पाठ है
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B5%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B9
अवग्रह
अवग्रह (ऽ) एक देवनागरी चिह्न है जिसका प्रयोग संधि-विशेष के कारण विलुप्त हुए 'अ' को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। जैसे प्रसिद्ध महावाक्य 'सोऽहम्' में। पाणिनीय व्याकरण (अष्टाध्यायी) में इसके संबंध में नियम है- एङः पदान्तादति। अर्थात्- पद के अन्त में ए/ओ के बाद यदि अकार आये तो अकार लुप्त हो जाता है तथा ए/ओ का पूर्वरूप (पहले जैसा) हो जाता है। यहाँ इसी लुप्त हुए 'अ' को अवग्रह चिह्न 'ऽ' से प्रदर्शित करते हैं। इसी प्रकार- बालकः+अयम्= बालको+अयम्=बालकोऽयम्। इसे पूर्वरूप स्वर सन्धि कहते हैं। यह अयादि सन्धि का अपवाद है। आधुनिक भारतीय भाषाओं में इस चिह्न का प्रयोग अतिदीर्घ स्वर (जैसे पुकारने में) के लिए भी किया जाने लगा है, जैसे -'माँ ऽऽऽ'। वहीं छन्दःशास्त्र में इस चिह्न को गुरुमात्रा (आ, ई, ऊ आदि) प्रदर्शित करने में भी प्रयुक्त करते हैं। व्याकरण संस्कृत
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE%20%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%95%2C%20%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BE
मिलेनियम पार्क, कोलकाता
मिलेनियम पार्क कोलकाता में हुगली नदी के पूर्वी तट पर स्थित एक मनोरंजन पार्क हैा यह फैरी घाट से 2.5 किमी में फैला प्रकृतिक सुन्दरता और मनोरंजन के लिए जाना जाता हैा इसे कोलकाता के प्रदुषित जलमार्ग को एक हरा भरा क्षेत्र प्रदान करने के लिए बनाया गया था। यहाँ बच्चें, युवा और वयस्य सभी शांत, सकुन भरी शाम बिताने आया करते हैा यह पार्क कोलकाता रिवरसाइड ब्यूटिफिकेशन के पहले चरण का हिस्सा हैा यह कोलकाता मेट्रोपॉलिटन डिवलपमेंट अथॉरिटी (KMDA) के सहस्त्राब्दी के उपलक्ष में बनाया गया था। इसका उद्घाटन 26 दिसंबर 1999 को किया गया। अवस्थिति मिलेनियम पार्क कोलकाता के हुगली नदी के किनारे स्ट्रेंड रोड, बीबीडी बाग के पास स्थित हैा इसके आस-पास फेरी घाट, बारा बाजार, जनरल पोस्ट ऑफिस और कोलकाता का उच्च न्यायालय स्थित हैा इसके आलावा यहाँ से हवाड़ा ब्रीज का मनोरम दृश्य भी देखा जा सकता हैा आमोद-प्रमोद के साधन पार्क को विभिन्न प्रकार के पेड़ों और रोशनी से सुशोभित किया गया हैा इसमें आमोद-प्रमोद के रूप में विभिन्न तरह कि गतिबिधिया शामिल है जैसे किड्स जोन, हरे- भरे बगीचे, मैनिक्योर घास, खेल का मैदान, ट्रॉय ट्रेन, समुद्री डाकु, उबड़ कारें, ब्रेक डांस, बोट राइड आदि। यहाँ बच्चे रविवार या छुटियों के दिन अपने परिवार के साथ पिकनिक करने, नोर्का विहार आदि गतिबिधियों का लाभ उठाने आते हैा इस पार्क में आठ स्टालों के साथ एक बड़ा सा फूट कोर्ट जो टेबल, कुर्सियों से लकड़ी के शाखाओं पर सुशोभित हैा वर्तमान में, पश्चिम बंगाल सरकार ने गंगा नदी की सुंदरता बढ़ाने के लिए कई परियोजनाएँ शुरु किये हैा कोलकाता के लोग विशेष तोर पर शांत औऱ सुकुन भरी शाम बिताने यहाँ आया करते हैा प्रवेश यह पार्क सप्ताह के सभी दिनों सुबह 10.00 बजे से शाम 6.30 बजे तक खुला रहता हैा जबकि बच्चों की सवारी दोपहर 2.00 बजे से शुरु कि जाती हैा इस पार्क में प्रवेश शुल्क प्रति व्यक्ति 10 रु0 है। सन्दर्भ कोलकाता कोलकाता के क्षेत्र कोलकाता के दर्शनीय स्थल पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय उद्यान पश्चिम बंगाल के शहर
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शकुंतला (टीवी श्रृंखला)
शकुंतला एक भारतीय टेलीविजन श्रृंखला है जिसका प्रीमियर 2 फरवरी 2009 को हुआ और 6 जुलाई 2009 तक स्टार वन पर प्रसारित हुआ। यह शो हिंदू धर्म के पात्रों पर आधारित था जहां शकुंतला ( संस्कृत : शकुंतला, शकुंतला ) दुष्यंत की पत्नी और सम्राट भरत की मां हैं। उनकी कहानी महाभारत में बताई गई है और कालिदास ने अपने नाटक अभिज्ञानशाकुंतला (शकुंतला की निशानी) में नाटक किया है। इसका कुल 104 एपिसोड है और 6 जुलाई 2009 को बंद हुआ।इसे सागर पिक्चर्स द्वारा बनाए गया है। कहानी कहानी एक बच्चे के बारे में एक परी कथा है जिसे ऋषि कण्व ने पाया था जो उसे अपने आश्रम में शरण देता है और उसे अपनी बेटी की तरह बड़ा करता है। शकुंतला राजा दुष्यंत से मिलती है जो पूरी तरह से पीटा जाता है। वह उसके पास जाता है, उसका दिल जीत लेता है, और उसे अपनी शाही मुहर, अपनी अंगूठी देता है। परिस्थितियाँ शकुंतला को राजा दुष्यंत से अलग करती हैं, और वह अपने प्यार के वापस लौटने के लिए तरसती है। कलाकार शकुंतला के रूप में नेहा मेहता राजकुमार दुष्यंत के रूप में गौतम शर्मा जावेद खान महाराजा पुरु के रूप में युवा शकुंतला के रूप में आइना मेहता युवा दुष्यंत के रूप में अभिलीन युवा करुणा के रूप में श्रेया लहरी करण के रूप में सनी निजार सेनापति वीर के रूप में गगन मलिक राजकुमारी गौरी के रूप में मधुरा नाइक / पायल सरकार राजकुमारी कल्कि के रूप में शबाना मुलानी राजकुमार मृत्युंजय के रूप में विक्की बत्रा राजकुमार अर्नवी के रूप में रोहित सिंह राणा सलीना प्रकाश रुंदी के रूप में नंदनी रागिनी के रूप में (गौरी की दोस्त) प्रियंवदा के रूप में सिमरन खन्ना अनुसूया के रूप में सोनाली के गौरी की दोस्त के रूप में दीपाली पनसारे युवा राजकुमारी गौरी के रूप में दिगांगना सूर्यवंशी वैशाली ठक्कर महारानी गांधारी के रूप में जेटी माँ बाई के रूप में जलिना ठाकुर राजकुमारी गौरी के रूप में पायल सरकार युवा शकुंतला के रूप में आइना मेहता दिगांगना सूर्यवंशी यंग गौरी के रूप में संदर्भ भारतीय टेलीविजन धारावाहिक स्टार वन के धारावाहिक
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गॉल्जीकाय
गोल्जीकाय या गोल्जी उपकरण अधिकांश सुकेन्द्रक कोशिकाओं में पाया जाने वाला एक कोशिकांग है। कोशिकाद्रव्य में अन्तर्झिल्ली तन्त्र का भाग, यह प्रोटीन को कोशिका के भीतर झिल्ली-बद्ध पुटिकाओं को उनके गन्तव्य पर भेजने से पूर्व संवेष्टन करता है। यह स्रावी, लयनकाय और अन्तःकोशिकीय मार्गों के प्रतिच्छेदन पर रहता है। स्राव हेतु प्रोटीन को संसाधित करने में इसका विशेष महत्त्व है, जिसमें ग्लाइकोसिलेशन प्रकिण्वों का एक समुच्चय होता है जो विभिन्न शर्करायुक्त एकलक को प्रोटीन से जोड़ता है जैसे कि यह प्रोटीन तन्त्र के माध्यम से आगे बढ़ता है। परिचय अण्डों में सूत्रकणिका और गॉल्जीकाय अण्ड पीतक निर्माण में योग देते हैं। स्परमाटिड के वीर्याणु में परिणत होते समय गॉल्जीकाय ऐक्रोसोम बनाता है, जिसके द्वारा संसेचन में वह अण्डे से जुट जाता है। सूत्रकणिका से स्परमाटिड का नेबेनकेर्न (Nebenkern) बनता है और जिन जंतुओं में मध्यखण्ड होता है उनमें मध्यखण्ड का एक बड़ा भाग। ग्रंथि की कोशिकाओं में स्रावी पदार्थ को उत्पन्न और परिपक्व करने में सूत्रकणिका और गॉल्जीकाय सम्मिलित हैं। इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी से फोटो लेने पर पता चलता है कि प्रत्येक सूत्रकणिका बाहर से एक दोहरी झिल्ली से घिरा होता है और उसके भीतर कई झिल्लियाँ होती हैं जो एक ओर से दूसरी ओर तक पहुँचती हैं या अधूरी ही रह जाती हैं। गॉल्जीकाय में कुछ धानियाँ होती हैं, जो झिल्लीमय पटलिकाओं से कुछ कुछ घिरी होती हैं। इनसे सम्बन्धित कुछ कणिकाएँ भी होती हैं जो लगभग 400 आं0 के माप की होती हैं। ये सब झिल्लियाँ इलेक्ट्रान सघन होती हैं। कोशिकाद्रव्य स्वयं ही झिल्लियों के तंत्र का बना होता है, परंतु इसमें संदेह नहीं कि इन झिल्लियों के माइटोकॉण्ड्रीय झिल्लियों और गॉल्जी झिल्लियों में कोई विशेष संबंध नहीं होता। ऐसी कोशिकाद्रव्यीय झिल्लियाँ ग्रंथि की कोशिकाओं में अधिक ध्यानाकर्षी अवस्था में पाई जाती हैं। ये अरगैस्टोप्लाज्म कही जाती हैं। ये झिल्लियाँ दोहरी होती हैं और इनपर जगह जगह छोटी छोटी कणिकाएँ सटी होती हैं। कुछ विद्वानों की यह भी धारणा है कि गॉल्जीकाय कोई विशेष कोशिकांग नहीं है। यह सूत्रकणिका का ही एक विशेष रूप है अथवा केवल धानी के रूपान्तरण से बनता है अथवा केवल एक कृत्रिम द्रव्य है, इस सम्बन्ध में विद्वानों में अब भी मतभेद है। संरचना कमिल्लो गॉल्जी ने प्रथम बार तन्त्रिका कोशिका में केन्द्रक के निकट घनी रंजित जालिकावत् संरचना देखी। जिन्हें बाद में उनके नाम पर गॉल्जीकाय कहा गया। यह बहुत सारी चप्टी चक्राकार थैलियों या कुण्डों से मिलकर बनी होती हैं जिनका व्यास 0.5 से 1 माइक्रोमीटर होता है। ये परस्पर के समानान्तर ढेर के रूप में मिलते हैं जिसे जालिकाय कहते हैं। गॉल्जीकाय में कुण्डों की संख्या विभिन्न होती है। कुण्ड केन्द्रक के पास सकेन्द्रित व्यवस्थित होते हैं, जिनमें निर्माणकारी (उत्तल) सतह व परिपक्व (अवतल) सतह होती हैं। सिस व ट्रांस सतह पूर्णतः भिन्न होते हैं; किन्तु अन्तःसम्बद्ध रहते हैं। प्रकार्य गॉल्जीकाय का मुख्य कार्य द्रव्य को संवेष्टित कर अन्तक लक्ष्य तक पहुँच या कोशिका के बाहर स्रवण करना है। संवेष्टित द्रव्य अन्तर्द्रव्यीय जालिका से पुटिका के रूप में गॉल्जीकाय के उत्तल सतह से संगठित होकर अवतल सतह की ओर गति करते हैं। इससे स्पष्ट है कि गॉल्जीकाय का अन्तर्द्रव्यीय जालिका से निकटतम सम्बन्ध है। अन्तर्द्रव्यीय जालिका पर उपस्थित राइबोसोम द्वारा प्रोटीन संश्लेषण होता है जो गॉल्जीकाय के अवतल सतह से निकलने के पूर्व इसके कुण्ड में रूपान्तरित हो जाते हैं। गॉल्जीकाय ग्लाइकोप्रोटीन व ग्लाइकोलिपिड निर्माण का प्रमुख स्थल है। सन्दर्भ कोशिका कोशिकांग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%80%E0%A4%A6%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A5%E0%A4%AE
बायज़ीद प्रथम
बायज़ीद प्रथम, (; ; उपनाम Yıldırım यिलदरम (उस्मानी तुर्कीयाई: یلدیرم), "बिजली, वज्र"; 1360 – 8 मार्च 1403) 1389 से 1402 तक उस्मानिया साम्राज्य के चौथे शासक रहे। उन्होंने अपने वालिद मुराद प्रथम के बाद राजकीय शक्ति संभाली जो प्रथम कोसोवो युद्ध में मारे गए थे। उनके साम्राज्य-विस्तार और सैन्य अभियानों की वजह से बायज़ीद को ख़िताब "सुल्तान-ए रूम" (रोम के सम्राट) हासिल था। जीवनपरिचय राजकीय शक्ति प्राप्त करने के तुरन्त बाद बायज़ीद ने अपने छोटे भाई याक़ूब का विद्रोह को ख़त्म किया। इसके बाद उन्होंने सर्बिया के शासक प्रिंस लाज़ार की बेटी ओलिविएरा देस्पिना से शादी की थी और स्टीफ़न लाज़ारेविच को सर्बिया का नया जागीरदार नियुक्त किया। उन्होंने सर्बिया को काफ़ी स्वायत्तता दी। इस विजय के बाद उस्मानिया साम्राज्य के विरुद्ध ईसाईयों ने युद्ध की घोषणा की थी। 1391 में बायज़ीद ने क़ुस्तुनतुनिया की घेराबन्दी की जो उस वक़्त बाज़न्त्तीनी साम्राज्य की राजधानी थी। 1394 में बाज़न्तीनी शासक मान्युएल द्वितीय पालियोलोगोस के अनुरोध पर उस्मानिया साम्राज्य को हराने के लिए पोप ने सलीबी युद्ध का ऐलान किया। हंगरी के राजा और पवित्र रूमी सम्राट सिगिस्मुण्ड के नेतृत्व में इस ईसाई एकता में फ़्रांस तथा वल्लचिया भी सम्मिलित थे। दोनों फौजों का टकराव 1396 में निकोपोलिस के स्थान पर हुआ जहाँ बायज़ीद ने जीत हासिल की। इस विजय की ख़ुशी में बायज़ीद ने राजधानी बुर्सा में उल्लु मस्जिद (Ulu Cami, आज बुर्सा की महान मस्जिद) का निर्माण करवाया। क़ुस्तुनतुनिया की घेराबन्दी 1401 तक जारी रही जिसके दौरान एक बार नौबत यहाँ तक आ पहुँची का बाज़न्तीनी शासक शहर छोड़कर फ़रार हो गया और क़रीब था कि शहर उस्मानियों के हाथ आ जाता लेकिन बायज़ीद को पूर्वी सरहदों पर तैमूरलंग के हमले की ख़बर मिली जिस पर उन्होंने घेराबन्दी को रोकना पड़ा। 1400 में मध्य एशिया का लड़ाकू शासक तैमूरलंग स्थानीय सरकारों को अपने अधीन करके एक व्यापक साम्राज्य स्थापित करने में सफल हो गया और तैमूरी और उसमानी रियास्तों की सरहदें मिलने की वजह से दोनों के दरमयान टकराव हो गया। 20 जुलाई 1402 को अंकरा के युद्ध में तैमूर ने उसमानी फ़ौज को हराकर बायज़ीद को गिरफ़्तार कर लिया सभी उसमानी शहज़ादों को निर्वासित करने में सफल हो गए। कहा जाता है कि तैमूर ने बायज़ीद को पिंजरे में बंद कर दिया था और उसे हर जगह लिए फिरता था लेकिन तैमूर के दरबार के इतिहासकारों के अनुसार वास्तविक इतिहास में इस क़िस्से का कोई सबूत नहीं है और तैमूर ने बायज़ीद के साथ अच्छा व्यवहार किया और इसके निधन पर शोक व्यक्त भी किया। बाएज़ीद को अंकरा के युद्ध में पराजित होने का इतना दुख था कि एक साल बाद ही 1403 में उसकी मौत हो हई। सन्दर्भ (उम्र 47–48) उस्मानी साम्रज्य के सुल्तान 1360 में जन्मे लोग 1403 में निधन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%80%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B9
संन्यासी विद्रोह
अट्ठारहवीँ सदी के अन्तिम वर्षों 1763-1800ई में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध तत्कालीन भारत के कुछ भागों में संन्यासियों (केना सरकार , दीजी नारायण) ने उग्र आन्दोलन किये थे जिसे इतिहास में संन्यासी विद्रोह कहा जाता है। यह आन्दोलन अधिकांशतः उस समय ब्रिटिश भारत के बंगाल और बिहार प्रान्त में हुआ था। 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी के पत्र व्यवहार में कई बार फकीरों और संन्यासियों के छापे का जिक्र हुआ है। यह छापा उत्तरी बंगाल में पड़ते थे। 1770 ईस्वी में पड़े बंगाल में भीषण अकाल के कारण हिंदू और मुस्लिम यहां वहां घूम कर अमीरों तथा सरकारी अधिकारियों के घरों एवं अन्न भंडार को लूट लिया करते थे। ये संन्यासी धार्मिक भिक्षुक थे पर मूलतः वह किसान थे, जिसकी जमीन छीन ली गई थी। किसानों की बढ़ती दिक्कतें, बढ़ती भू राजस्व, 1770 ईस्वी में पड़े अकाल के कारण छोटे-छोटे जमींदार, कर्मचारी, सेवानिवृत्त सैनिक और गांव के गरीब लोग इन संन्यासी दल में शामिल हो गए। यह बंगाल और बिहार में पांच से सात हजार लोगों का दल बनाकर घूमा करते थे और आक्रमण के लिए गोरिल्ला तकनीक अपनाते थे। आरंभ में यह लोग अमीर व्यक्तियों के अन्न भंडार को लूटा करते थे। बाद में सरकारी पदाधिकारियों को लूटने लगे और सरकारी खजाने को भी लूटा करते थे। कभी-कभी ये लुटे हुए पैसे को गरीबों में बांट देते थे। समकालीन सरकारी रिकॉर्ड में इस विद्रोह का उल्लेख इस प्रकार है:- "सन्यासी और फकीर के नाम से जाने जाने वाले डकैतो का एक दल है जो इन इलाकों में अव्यवस्था फैलाए हुए हैं और तीर्थ यात्रियों के रूप में बंगाल के कुछ हिस्सों में भिक्षा और लूटपाट मचाने का काम करते हैं क्योंकि यह उन लोगों के लिए आसान काम है। अकाल के बाद इनकी संख्या में अपार वृद्धि हुई। भूखें किसान इनके दल में शामिल हो गए, जिनके पास खेती करने के लिए न ही बीज था और न ही साधन। 1772 की ठंड में बंगाल के निचले भूमि की खेती पर इन लोगों ने काफी लूटपाट मचाई थी। 50 से लेकर 1000 तक का दल बनाकर इन लोगों ने लूटने, खसोटने और जलाने का काम किया।" यह बंगाल के गिरि सम्प्रदाय के संन्यासियों द्वारा शुरू किया गया था। जिसमें जमींदार, कृषक तथा शिल्पकारों ने भी भाग लिया। इन सबने मिलकर कम्पनी की कोठियों और कोषों पर आक्रमण किये। ये लोग कम्पनी के सैनिकों से बहुत वीरता से लड़े। इस संघर्ष की खासियत यह थी कि इसमें हिंदू और मुसलमान ने कंधे से कंधा मिलाकर भाग लिया। इन विद्रोह के प्रमुख नेताओं में केना सरकार, दिर्जिनारायण, मंजर शाह, देवी चौधरानी, मूसा शाह, भवानी पाठक उल्लेखनीय है। 1880 ईस्वी तक बंगाल और बिहार में अंग्रेजो के साथ संन्यासी और फकीरों का विद्रोह होता रहा। इन विद्रोह का दमन करने के लिए अंग्रेजों ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी। विद्रोह के समर्थक शंकराचार्य के अनुन्यायी थे। बांग्ला भाषा के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय का सन १८८२ में रचित उपन्यास आनन्द मठ इसी विद्रोह की घटना पर आधारित है। संन्यासी विद्रोहियों ने अपनी स्वतंत्र सरकार बोग्रा और मैमनसिंह में स्थापित किया । इनकी आक्रमण पद्धति गोरिल्ला युद्ध पर आधारित थी। सन्दर्भ इन्हें भी देखें बंगाल का भीषण अकाल (१७७०) संथाल विद्रोह कोल विद्रोह चुआड़ विद्रोह खेरवार आंदोलन बाहरी कड़ियाँ अंग्रेजों से जूझे थे संन्यासी संन्यासी विद्रोह और उसके सबक भारतीय स्वतन्त्रता के क्रान्तिकारी आन्दोलन बंगाल का इतिहास
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B2%20%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A5%82%20%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF%2C%20%E0%A4%85%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0
जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, अजमेर
जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, राजस्थान के अजमेर में स्थित एक शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय है। इसकी स्थापना १९६५ में हुई थी। यह पश्चिमी राजस्थान के छह सरकारी मेडिकल कॉलेजों में से एक है और राज्य में स्थापित होने वाला चौथा मेडिकल कॉलेज था । यह एमबीबीएस (१९७३ से एमसीआई द्वारा मान्यता-प्राप्त) और कुछ मेडिकल विषयों में डिप्लोमा और अन्य डिग्री के साथ एमएस और एमडी की चिकित्सा शिक्षा प्रदान करता है। यह राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (आरयूएचएस) से संबद्ध है। आरयूएचएस की स्थापना से पहले, यह राजस्थान विश्वविद्यालय से संबद्ध था।"अजमेर" संलग्न शिक्षण अस्पताल जवाहरलाल नेहरू अस्पताल : मूल रूप से ''विक्टोरिया अस्पताल'' नामक संलग्न शिक्षण अस्पताल ब्रिटिश काल के दौरान स्थापित किया गया था, जिसकी पुरानी इमारत में अब अजमेर नगर निगम स्थित है। १८५१ में कर्नल डिक्सन के आदेश पर एक डिस्पेंसरी का निर्माण किया गया था। १८९५ में बड़े जनरल हॉस्पिटल का निर्माण ४२,२५० रुपये की लागत से शुरू किया गया , जो आंशिक रूप से सब्सक्रिप्शन द्वारा उठाया गया था और आंशिक रूप से डिस्पेंसरी की पुरानी इमारत की बिक्री से । यह रानी विक्टोरिया की हीरक जयन्ती (१८९७ ई) के उपलक्ष्य मेें बनाया गया था। १९२८ में, इसे अपने वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया और इसका नाम बदलकर 'न्यू विक्टोरिया अस्पताल' रखा गया जिसे १९६५ में जेएलएन अस्पताल का नाम दिया गया। अब यह राजस्थान के अजमेर संभाग के रेफरल अस्पताल के रूप में कार्य करता है जिसमें अजमेर, भीलवाड़ा, नागौर, टोंक आते हैं। कमला नेहरू स्मारक टीबी अस्पताल: इस क्षेत्र में टीबी रोगियों के उच्च दबाव का इलाज करने के लिए विषेश अस्पताल हैं। राजकी महिला चिक्तिसलय: विभाग मातृ और प्रसवपूर्व विशेष देखभाल से संबंधित है और मुख्य परिसर से ७ किमी दूर स्थित है। १९६५ में इसे 'पन्ना धाय मातृत्व गृह' के रूप में शुरू किया गया था, लेकिन जगह की कमी के कारण १९६८ में लोंगिया अस्पताल (एक शहर के डिस्पेंसरी) में स्थानांतरित हो गया था और १९७४ तक वहां रहा। १९९९ -२००० इसे एक अलग अस्पताल के रूप में पुनर्गठित किया गया और इसे वर्तमान इमारत मे स्थानांतरित कर गया। सैटेलाइट अस्पताल पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी : यह समर्पित कार्डियोलॉजी डिवीजन शुरू करने वाला राजस्थान में पहला शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय था। वृत्तांत जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के पहले प्रिंसिपल और नियंत्रक डॉ एस पी वांचू थे (उस समय न्यू विक्टोरिया अस्पताल के अधीक्षक)। इसका नाम भारत के पहले प्रधान मंत्री, जवाहर लाल नेहरू के नाम पर रखा गया है। जिस अस्पताल से कॉलेज संबद्ध है, वह बहुत पहले १९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में स्थापित किया गया था। प्रारंभिक दिनों के दौरान कॉलेज पुराने टीबी अस्पताल की इमारत में शुरू हुआ था और १९६७ के आसपास एक नई इमारत का निर्माण किया गया जिसमें यह वर्तमान में स्थित है । यह १९६५ में प्रति वर्ष ५० यूजी छात्रों के साथ शुरू हुआ, जिसे बाद में १०० तक बढ़ा दिया गया और वर्तमान में १५० / वर्ष। हाल ही दिसंबर २०१५ में अपन गोल्डन जयंती वर्ष मनाया। महाविद्यालय परिसर शहर के मध्य में स्थित, मुख्य परिसर विरासत स्थलों से घिरा हुआ है जैसे कि अनसागर बारादारी, सर्किट हाउस (पहले अजमेर-मेरवाड़ा के मुख्य आयुक्त का कार्यालय), दौलत बाग, अकबरी संग्रहालय। इसके नजदीक पटेल स्टेडियम और मुलचंद चौहान इंडोर स्टेडियम और अकादमी हैं। यह भी देखें अजमेर सन्दर्भ राजस्थान में शिक्षा
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पीरपैंती प्रखण्ड (भागलपुर)
पीरपैंती भागलपुर, बिहार का एक प्रखण्ड है। भूगोल जनसांख्यिकी यातायात आदर्श स्थल दाता शाह कमाल की पीरपैती पहाड के ऊपर गंगा नदी के सटे दररगाह। शहंशाही मस्जिद। शिक्षा यहा की शिक्षा व्यवस्था इतनी अच्छी नहीं है यहां सरकारी स्कूल की स्थिति बहुत ही खराब है जिससे गरीब बच्चे गरीब माता-पिता अपने बच्चे को गांव में ही प्राइवेट कोचिंग संस्थान में पढ़ाते हैं प्राइवेट कोचिंग संस्थान भी सही समय पर सिलेबस पूरा नहीं कर पाते कुछ कोचिंग संस्थानों में तो सिलेबस पूरा हो भी नहीं पाता। यहां के पब्लिक मैं इंफॉर्मेशन गैप बहुत ज्यादा है जिससे वे जागरूक नहीं है। 2019 से बाखरपुर पूर्वी पश्चिमी पंचायत और मोहनपुर में एक organisation फ्यूचर क्रिएशन काम कर रही है जो लोगों में जागरूकता लाने, स्टूडेंट्स में उनकी स्पीड अप बढ़ाने,मनोबल बढ़ाने इत्यादि पर काम कर रही है जो रौशन कुमार हिंदू के द्वारा संचालित किया जाता है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ बिहार के प्रखण्ड
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निधि बुले
निधि अशोक बुले (, (जन्म १४ अगस्त १९८६ ,इंदौर ,मध्यप्रदेश ,भारत) एक भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ी है जो भारतीय टीम के लिए टेस्ट और वनडे क्रिकेट मैच खेला करती है। ये घरेलू क्रिकेट एयर इंडिया की ओर से खेलती है। साथ ही बुले अभी मध्यप्रदेश की महिला क्रिकेट टीम कप्तान भी है। सन्दर्भ 1986 में जन्मे लोग भारतीय महिला एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी भारतीय महिला टेस्ट क्रिकेट खिलाड़ी भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ी जीवित लोग
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भारत का दूतावास, काबुल
काबुल में भारत का दूतावास भारत गणराज्य से अफगानिस्तान का राजनयिक मिशन था। वर्तमान राजदूत रुद्रेंद्र टंडन हैं। अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास और वाणिज्य दूतावासों को आतंकवादियों द्वारा बार-बार निशाना बनाया गया था। अगस्त 2021 में 2021 तालिबान आक्रामक के बाद दूतावास और वाणिज्य दूतावास बंद कर दिए गए थे। तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में भारतीय राजनयिक मिशनों में तोड़फोड़ की। जून 2022 में, भारत ने अंततः अफ़ग़ानिस्तान में अपने दूतावास में मानवीय सहायता के साथ एक 'तकनीकी टीम' भेजकर अफ़ग़ानिस्तान में अपनी राजनयिक उपस्थिति फिर से स्थापित की। इतिहास दूतावास की स्थापना जनवरी 1950 में 'मित्रता की पंचवर्षीय संधि' के परिणामस्वरूप हुई थी। संधि एक दूसरे के क्षेत्रों में राजनयिक और कांसुलर पदों की स्थापना के लिए प्रदान की गई। अफगानिस्तान में भारतीय वाणिज्य दूतावास हेरात, कंधार, जलालाबाद और मज़ार-ए-शरीफ़ में भारत के वाणिज्य दूतावास थे, जो सभी काबुल में भारतीय दूतावास से जुड़े हुए हैं। आतंकवादी हमले 2008 बमबारी 2008 में काबुल में भारतीय दूतावास पर बमबारी स्थानीय समयानुसार 7 जुलाई 2008 को सुबह 8:30 बजे काबुल, अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास पर एक आत्मघाती बम आतंकी हमला था। बमबारी में 58 लोग मारे गए और 141 घायल हुए। आत्मघाती कार बमबारी दूतावास के गेट के पास सुबह के समय हुआ जब अधिकारी दूतावास में प्रवेश कर रहे थे। 2009 बमबारी 2008 में पिछले हमले के बाद अगले वर्ष, भारतीय दूतावास पर 8 अक्टूबर 2009 को स्थानीय समयानुसार सुबह 8:30 बजे एक और आत्मघाती बम हमला हुआ। बमबारी में 17 लोग मारे गए और 63 घायल हुए। महावाणिज्य दूतावासों पर हमले वर्ष 2013 में हेरात और 2014 मे जलालाबाद में स्थित भारतीय महावाणिज्य दूतावासों पर हमले भी किए गए थे। यह भी देखें भारत–अफ़ग़ानिस्तान संबंध भारत के विदेश संबंध भारत के राजनयिक मिशनों की सूची संदर्भ बाहरी कड़ियाँ भारतीय दूतावास, काबुल भारत के राजनयिक मिशन अफ़ग़ानिस्तान में राजनयिक मिशन
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दुःशासन
दुःशासन अथवा दुशासन प्रसिद्ध एवं प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत के अनुसार कुरुवंश में कौरव वंश के अंतर्गत हस्तिनापुर के कार्यकारी राजा धृतराष्ट्र का पुत्र था। इसी ने जुए के उपरांत दुर्योधन के कहने पर द्रौपदी का चीर हरण किया था। यह दुर्योधन के 100 भाइयों में से दुर्योधन से छोटा था। दुशासन वध दुशासन का वध भीम ने कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान किया था। भीम ने अपनी गदा से दु:शासन का मस्तक फोड़ा था। दुशासन ने हाथ उठाकर कहा कि देख ये हाथ इसी हाथ से मैंने भरी सभा में द्रौपदी के वस्त्र निकाले थे, तब भीम ने उसके उस हाथ को उखाड़ कर फेंक दिया तथा दुशासन की छाती चीरकर उसका रक्त पान करने लगा। सभी भयभीत हो गए। जापानी परंपरा में दु:शासन सन्दर्भ बाहरी सम्पर्क महाभारत के पात्र
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अभिलेख
अभिलेख पत्थर अथवा धातु जैसी अपेक्षाकृत कठोर सतहों पर उत्कीर्ण किये गये पाठन सामाग्री को कहते हैं। प्राचीन काल से इसका उपयोग हो रहा है। शासक इसके द्वारा अपने आदेशो को इस तरह उत्कीर्ण करवाते थे, ताकि लोग उन्हे देख सके एवं पढ़ सके और पालन कर सके। आधुनिक युग में भी इसका उपयोग हो रहा है। परिभाषा और सीमा किसी विशेष महत्त्व अथवा प्रयोजन के लेख को अभिलेख कहा जाता है। यह सामान्य व्यावहारिक लेखों से भिन्न होता है। प्रस्तर, धातु अथवा किसी अन्य कठोर और स्थायी पदार्थ पर विज्ञप्ति, प्रचार, स्मृति आदि के लिए उत्कीर्ण लेखों की गणना प्राय: अभिलेख के अंतर्गत होती है। कागज, कपड़े, पत्ते आदि कोमल पदार्थों पर मसि अथवा अन्य किसी रंग से अंकित लेख हस्तलेख के अंतर्गत आते हैं। कड़े पत्तों (ताडपत्रादि) पर लौहशलाका से खचित लेख अभिलेख तथा हस्तलेख के बीचे में रखे जा सकते हैं। मिट्टी की तख्तियों तथा बर्तनों और दीवारों पर उत्खचित लेख अभिलेख की सीमा में आते हैं। सामान्यत: किसी अभिलेख की मुख्य पहचान उसका महत्त्व और उसके माध्यम का स्थायित्व है। अभिलेखन सामग्री और यांत्रिक उपकरण अभिलेख के लिए कड़े माध्यम की आवश्यकता होती थी, इसलिए पत्थर, धातु, ईंट, मिट्टी की तख्ती, काष्ठ, ताड़पत्र का उपयोग किया जाता था, यद्यपि अंतिम दो की आयु अधिक नहीं होती थी। भारत, सुमेर, मिस्र, यूनान, इटली आदि सभी प्राचीन देशों में पत्थर का उपयोग किया गया। अशोक ने तो अपने स्तंभलेख (सं. 2, तोपरा) में स्पष्ट लिखा है कि वह अपने धर्मलेख के लिए प्रस्तर का प्रयोग इसलिए कर रहा था कि वे चिरस्थायी हो सकें। किंतु इसके बहुत पूर्व आदिम मनुष्य ने अपने गुहाजीवन में ही गुहा की दीवारों पर अपने चिह्नों को स्थायी बनाया था। भारत में प्रस्तर का उपयोग अभिलेखन के लिए कई प्रकार से हुआ है-गुहा की दीवारें, पत्थर की चट्टानें (चिकनी और कभी कभी खुरदरी), स्तंभ, शिलाखंड, मूर्तियों की पीठ अथवा चरणपीठ, प्रस्तरभांड अथवा प्रस्तरमंजूषा के किनारे या ढक्कन, पत्थर की तख्तियाँ, मुद्रा, कवच आदि, मंदिर की दीवारें, स्तंभ, फर्श आदि। मिस्रमें अभिलेख के लिए बहुत ही कठोर पत्थर का उपयोग किया जाता था। यूनान में प्राय: संगमरमर का उपयोग होता था। यद्यपि मौसम के प्रभाव से इसपर उत्कीर्ण लेख घिस जाते थे। विशेषकर, सुमेर, बाबुल, क्रीट आदि में मिट्टी की तख्तियों का अधिक उपयोग होता था। भारत में भी अभिलेख के लिए ईंट का प्रयोग यज्ञ तथा मंदिर के संबंध में हुआ है। धातुओं में सोना, चाँदी, ताँबा, पीतल, काँसा, लोहा, जस्ते का उपयोग भी किया जाता था। भारत में ताम्रपत्र अधिकता से पाए जाते हैं। काठ का उपयोग भी हुआ है, किंतु इसके उदाहरण मिस्र के अतिरिक्त अन्य कहीं अवशिष्ट नहीं है। ताड़पत्र के उदाहरण भी बहुत प्राचीन नहीं मिलते। अभिलेख में अक्षर अथवा चिह्नों की खुदाई के लिए रूंखानी, छेनी, हथौड़े, (नुकीले), लौहशलाका अथवा लौहवर्तिका आदि का उपयोग होता था। अभिलेख तैयार करने के लिए व्यावसायिक कारीगर होते थे। साधारण हस्तलेख तैयार करनेवालों को लेखक, लिपिकर, दिविर, कायस्थ, करण, कर्णिक, कर्रिणन्, आदि कहते थे; अभिलेख तैयार करनेवालों की संज्ञा शिल्पों, रूपकार, शिलाकूट आदि होती थी। प्रारंभिक अभिलेख बहुत सुंदर नहीं होते थे, परंतु धीरे धीरे स्थायित्व और आकर्षण की दृष्टि से बहुत सुंदर और अलंकृत अक्षर लिखे जाने लगे और अभिलेख की कई शैलियाँ विकसित हुई। अक्षरों की आकृति और शैलियों से अभिलेखों के तिथिक्रम को निश्चित करने में सहायता मिलती है। चित्र, प्रतिकृति प्रतीक तथा अक्षर तिथिक्रम में अभिलेखों में इनका उपयोग किया गया है। (इस संबंध में विस्तृत विवेचन के लिए द्रं.अक्षर) विभिन्न देशों में विभिन्न लिपियों और अक्षरों का प्रयोग किया गया है। इनमें चित्रात्मक, भावात्मक और ध्वन्यात्मक सभी प्रकार की लिपियाँ है। ध्वन्यात्मक लिपियों में भी अंकों के लिए जिन चिहों का प्रयोग किया जाता है वे ध्वन्यात्मक नहीं हैं। ब्राह्मी और देवनागरी दोनों के प्राचीन और अर्वाचीन अंक 1 से 9 तक ध्वन्यात्मक नहीं हैं। प्राचीन अक्षरात्मक तथा चित्रात्मक अंकों की भी यही अवस्था है। सामी, यूनानी और रोमन लिपियों के भी अंक घ्वन्यात्मक नहीं हैं। यूनानी में अंकों के प्रथम अक्षर ही अंकों के लिए प्रयुक्त होते थे, जैसा जैसा एम (M), डी (D), सी (C), वी (V और आइ (I) का प्रयोग अब तक 1000, 500, 100, 50, 10 (V को ही उलटा जोड़कर), 5 और 1 के लिए होता है। इसी प्रकार विराम और गणित के बहुत से चिह्न घ्वन्यात्मक नहीं होते। लेखनपद्धति लेखनपद्धति में सबसे पहले प्रश्न आता है व्यक्तिगत अक्षरों की दिशा का। अत्यंत प्राचीन काल से अब तक अक्षरों की बनावट और अंकन में प्राय: एकरूपता पाई जाती है। अक्षर ऊपर से नीचे लंबवत् खचित अथवा उत्कीर्ण होते हैं मानों किसी कल्पित रेखा से वे लटकते हों। आधुनिक कन्नड़ के आड़े अक्षर भी उसी कल्पित रेखा के नीचे सँजोए जाते हैं। अक्षरों का ग्रंथन प्राय: एक सीधी आधारवत् रेखा के ऊपर होता है। इस पद्धति के अपवाद चीनी और जापानी अभिलेख हैं, जिनमें पंक्तियाँ लंबवत् ऊपर से नीचे लिखी जाती हैं। लेखन पद्धति का दूसरा प्रश्न है लेखन की दिशा। भारोपीय लिपियाँ की लेखनदिशा बाएँ से दाएँ तथा सामी और हामी लिपियों की दाएँ से बाएँ मिलती है। कुछ प्राचीन यूनानी अभिलेखों और बहुत थोड़े भारतीय अभिलेखों में लेखनदिशा गोमूत्रिका सदृश (पहली पंक्ति में दाएँ से बाएँ, दूसरी पंक्ति में बाएँ से दाएँ और आगे क्रमश: इस प्रकार) पाई जाती है। चीनी और जापानी अभिलेखों में पंक्तियाँ ऊपर से नीचे और लेखनदिशा दाएँ से बाएँ होती है। प्रारंभिक काल में अक्षरों के ऊपर की रेखा काल्पनिक थी अथवा किसी अस्थायी पदार्थ से लिखकर मिटा दी जाती थी। आगे चलकर वह वास्तविक हो गई, यद्यपि यूनानी और रोमन अभिलेखों में वह अक्षरों के नीचे आ गई। भारतीय अक्षरों में क्रमश: शिरोरेखा बनाने की प्रथा चल गई जो कल्पित (पुन: वास्तविक) रेखा पर बनाई जाती थी। प्राचीन अभिलेखों में एक शब्द के अक्षरों का समूहीकरण और शब्दों के पृथक्करण पर ध्यान कम दिया जाता था, जहाँ तक कि वाक्यों को अलग करने के लिए भी किसी चिह्नृ का प्रयोग नहीं होता था जिन भाषाओं का व्याकरण नियमित था उनके अभिलेख पढ़ने और समझने में कठिनाई नहीं होती, शेष में कठिनाई उठानी पड़ती है। विरामचिह्नों का प्रयोग भी पीछे चलकर प्रचलित हुआ। भारतीय अभिलेखों में पूर्ण विराम के लिए दंडवत् रेखा (।), दो रेखा (।।) अथवा शिरोरेखा के लिए दंडवत् रेखा (च्र्) का प्रयोग होता था। किसी अभिलेख के अंत में तीन दंडवत् देखाओं (।।।) का भी प्रयोग होता था। सामी तथा यूरोपीय अभिलेखों में वाक्य के अंत में एक विंदु (.), दो बिंदु (:) अथवा शून्य (0) लगाने की प्रथा थी। इसी प्रकार अभिलेखों में पृष्ठीकरण, संशोधन, संक्षिप्तीकरण तथा छूट मांगालिक चिहों का विकास हुआ। प्राय: सभी देशों में मांगालिक चिह्नों, प्रतीकों और अलंकरणों का प्रयोग अभिलेखों में होता था। भारत में स्वस्तिक, सूर्य, चंद्र, त्रिरत्न, बुद्धमंगल, चैत्य, बोधिवृक्ष, धर्मचक्र, वृत्त, ओउम् का आलंकारिक रूप, शंख, पद्य, नंदी, मत्स्य, तारा, शस्त्र, कवच आदि इस प्रयोजन के लिए काम में आते थे। सामी देशों में चंद्र और तारा, ईसाई देशों में स्वस्तिक, क्रास आदि मांगलिक चिह्न प्रयुक्त होते थे। अभिलेख के ऊपर, नीचे या अन्य किसी उपयुक्त स्थान पर लांछन अथवा अंक प्रामाणिकता के लिए लगाए जाते थे। अभिलेख के प्रकार यदि अत्यंत प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक के अभिलेखों का वर्गीकरण किया जाए तो उनके प्रकार इस भाँति पाए जाते हैं: (1) व्यापारिक तथा व्यावहारिक, (2) आभिचारिक (जादू टोना से संबद्ध), (3) धार्मिक और कर्मकांडीय, (4) उपदेशात्मक अथवा नैतिक, (5) समर्पण तथा चढ़ावा संबंधी, (6) दान संबंधी, (7) प्रशासकीय, (8) प्रशस्तिपरक, (9) स्मारक तथा (10) साहित्यिक। व्यापारिक तथा व्यावहारिक भारत, पश्चिमी एशिया, मिस्र, क्रीट, यूनान आदि सभी प्राचीन देशों में व्यापारियों की मुद्राओं पर और उनके लेखे जोखे-से संबंध रखनेवाले अभिलेख पाए गए हैं। प्राचीन भारत के निगमों और श्रेणियों की मुद्राएँ अभिलेखांकित होती थीं और वे व्यापारिक एवं व्यावहारिक कार्यो के लिए भी स्थायी और कड़ी सामग्री का उपयोग करती थीं। कभी कभी तो अन्य प्रकार के अभिलेखों में भी व्यापारिक विज्ञापन पाया जाता है। कुमारगुप्त तथा बंधुवर्मन्कालीन मालव सं.529 के अभिलेख में वहाँ के तंतुवायों (जुलाहों) के कपड़ों का विज्ञापन इस प्रकार दिया हुआ है: ""तारुण्य और सौंदर्य से युक्त, सुवर्णहार, तांबूल, पुष्प आदि से सुशोभित स्त्री तब तक अपने प्रियतम से मिलने नहीं जाती, जब तक कि वह दशपुर के बने पट्टमय (रेशम) वस्त्रों के जोड़े को नहीं धारण करती। इस प्रकार स्पर्श करने में कोमल, विभिन्न रंगों से चित्रित, नयनाभिराम रेशमी वस्त्रों से संपूर्ण पृथ्वीतल अलंकृत है।"" आभिचारक सिंधुघाटी (हरप्पा और मोहेंजोदड़ो) में प्राप्त बहुत सी तख्तियों पर आभिचरिक यंत्र हैं। इनमें विभिन्न पशुओं द्वारा प्रतिनिहित संभवत: देवताओं की स्तुतियाँ हैं। प्राय: कवचों पर ये अभिलेख मिलते हैं। सुमेर, मित्र, यूनान आदि में भी आभिचारिक अभिलेख पाए जाते हैं। पंचमहायज्ञ १-ब्रह्मयज्ञ २-देवयज्ञ ३-अतिथियज्ञ ४-पितृयज्ञ ५-बलिवैश्वदेवयज्ञ उपदेशात्मक धार्मिक प्रयोजन की तरह अभिलेखों का नैतिक उपयोग भी होता था। अशोक के धर्मलेखों में उपदेशात्मक अंश बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है। बेसनगर (विदिशा) के छोटे गरूड़ध्वज अभिलेख में भी उपदेश है: ""तीन अमृत पद हैं। यदि इनका सुंदर अनुष्ठान हो तो ये स्वर्ग को प्राप्त कराते हैं। ये हैं--दम, त्याग और अप्रमाद।"" चीन और यूनान में भी उपदेशात्मक अभिलेख मिलते हैं ओर समर्पण अथवा चढ़ावा धार्मिक स्थापत्यों, विधियों और अन्य प्रकार की संपत्ति का किसी देवता अथवा धार्मिक संस्थान को स्थायी रूप से समर्पण अंकित करने के लिए इस प्रकार के अभिलेख प्रस्तुत किए जाते थे। जैसे वक्फ ,चर्च अथवा मंदिर को दिये गए दान दान संबंधी प्राचीन धार्मिक और नैतिक जीवन में दान का बहुत ऊँचा स्थान था। प्रत्येक देश और धर्म में दान को संस्था का रूप प्राप्त था। स्थायी दान को अंकित करने के लिए पहले पत्थर और फिर ताम्रपत्र का प्रयोग होता था। प्रशासकीय प्रशासकीय अभिलेखों में विधि (कानून), नियम, राजाज्ञा, जयपत्र, राजाओं और राजपुरुषों के पत्र, राजकीय लेखाजोखा, कोष के प्रकार और विवरण, सामंतों से प्राप्त कर एवं उपहार, राजकीय सम्मान और शिष्टाचार, ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख, सधाधिलेख आदि की गणना है। पत्थर के स्तंभ पर लिखी हुई बैबिलोनियन सम्राट् हम्मुराबी की विधिसंहिता प्रसिद्ध है। अशोक के धर्मलेखों में उसका राजकीय शासन (आज्ञा) भरा पड़ा है। प्रशस्ति राजाओं द्वारा विजयों और कीर्ति का वर्णन स्थायी रूप से शिलाखंडों और प्रस्तरस्तंभों पर लिखवाने की प्रथा बहुत प्रचलित रही है। भारत में राजाओं की दिग्विजय के वर्णन बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। मिस्री सम्राट् रामसेज़ तृतीय, ईरानी सम्राट् दारा, भारतीय राजाओं में खारवेल, गौतमीपुत्र शातकर्णी, रूद्रदामन, समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त (द्वितीय), स्कंदगुप्त, द्वितीय पुलकेशिन् आदि की प्रशस्तियाँ पाई जाती हैं। स्मारक चूँकि अभिलेखों का मुख्य कार्य अंकन को स्थायी बनाना था, अत: घटनाओं, व्यक्तियों तथा कृतियों के स्मारकरूप में अगणित अभिलेख पाए गए हैं। साहित्यिक अभिलेखों में सर्वमान्य धार्मिक ग्रंथों अथवा उनके अवतरण और कभी कभी समूचे नवीन, काव्य, नाटक आदि ग्रंथ अभिलिखित पाए जाते हैं। अभिलेख सिद्धांत अभिलेख तैयार करने के लिए सामान्य रूप के कुछ सिद्धांत और नियम प्रचलित थे। अभिलेख का प्रारंभ किसी धार्मिक अथवा मांगलिक चिह्न या शब्द से किया जाता था। इसके पश्चात् किसी इष्ट देवता की स्तुति अथवा आमंत्रण होता था। तत्पश्चात् आशीर्वादात्मक वाक्य आता था। पुन: दान अथवा कीर्तिविशेष की प्रशंसा होती थी। फिर दान अथवा कीर्ति भंग करनेवाले की निंदा की जाती थी। अंत में उपसंहार होता था। अभिलेख के अंत में लेखक और उत्कीर्ण करनेवाले का नाम और मांगलिक चिह्न होता था। भारत में यह नियम प्राय: सर्वप्रचलित था। अन्य देशों में इन सिद्धांतों के पालन में दृढ़ता नहीं थी। तिथिक्रम और संवत् का प्रयोग अभिलेखों में तिथि और संवत् लिखने की प्रथा धीरे-धीरे प्रचलित हुई। प्रारंभ में भारत में स्थायी एवं क्रमबद्ध संवतों के अभाव में राजाओं के शासनवर्ष से तिथि गिनी जाती थी। फिर कतिपय महत्वाकांक्षी राजाओं और शासकों ने अपनी कीर्ति स्थायी करने के लिए अपने पदासीन होने के समय से संवत् चलाया जो उनके बाद भी प्रचलित रहा। फिर महान घटनाओं और धर्मप्रवर्त्तकों एवं संत महात्माओं के जन्म अथवा निधनकाल से भी संवतों का प्रवर्तन हुआ। फलस्वरूप अभिलेखों में इनका प्रयोग होने लगा। तिथियों के अंकन में दिन, वार, पक्ष, मास और संवत् का उल्लेख पाया जाता है। ऐतिहासिक अभिलेख तिथिक्रम से प्राचीन अभिलेख मिस्र की चित्रलिपि के माने जाते हैं। फिर प्राचीन इराक के अभिलेखों का स्थान है, जो पहले अर्धचित्र और पुन: इराक के अभिलेखों का स्थान है, जो पहले अर्धचित्रलिपि और पुन: कीलाक्षरों में अंकित हैं। सिंधुघाटी के अभिलेख इराकी अभिलेखों के प्राय: समकालीन हैं। इनके पश्चात् क्रीट, यूनान और रोम के अभिलेखों की गणना की जा सकती है। ईरान के कीलाक्षर और आरामाई लिपि के लेख भी प्रसिद्ध हैं। चीन में चित्र एवं भावलिपि के लेख बहुत प्राचीन काल से पाए जाते हैं। भारत में सिंधुघाटी के परवर्ती अभिलेखों का मोटे तौर पर निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकरण किया जा सकता है: (1) मौर्यपूर्व, (2) मौर्य, (3) शुंग, (4) भारत-बाख्त्री, (5) शक, (6) कुषण, (7) आंध्र-शातवाहन, (8) गुप्त, (9) मध्यकालीन (इसमें विविध प्रादेशिक शैलियों का समावेश है) तथा (10) आधुनिक। भारतीय शैली के अभिलेख संपूर्ण दक्षिण-पूर्व एशिया में पाए जाते हैं। सन्दर्भ ग्रन्थ हिक्स ऐंड हिल: ग्रीक हिस्टॉरिकल इंस्क्रिप्शन्स (द्वि.सं.), 1901; ई.एस.राबर्टस: इंट्रोडक्शन टु ग्रीक एपिग्राफी, 1887; कार्पस इंस्क्रिप्शनम् लटिनेरम्, बर्लिन; कार्पस इंस्क्रिप्शनम् इंडिकेरम्, जिल्द 1, 2 और 3; एपिग्राफ़िया इंडिका की विविध जिल्दें। इन्हें भी देखें प्राचीन भारतीय शिलालेख अशोक के अभिलेख हाथीगुम्फा शिलालेख रुद्रदमन का गिरनार शिलालेख भारतीय इतिहास के स्रोत पाण्डुलिपि सिद्धम् (डेटाबेस) बाहरी कड़ियाँ भारतीय अभिलेखों में तिथि अंकन पद्धति Epigraphia Indica अभिलेख
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https://hi.wikipedia.org/wiki/X%20%E0%A4%95%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AA
X कॉर्प
एक्स कॉर्प एक अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनी है जिसकी स्थापना एलोन मस्क ने 2023 में ट्विटर, इंक. के उत्तराधिकारी के रूप में की थी। यह एक्स होल्डिंग्स कॉर्प की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है, जिसका स्वामित्व स्वयं मस्क के पास है। कंपनी सोशल नेटवर्किंग सेवा ट्विटर (वर्तमान में एक्स के लिए रीब्रांडिंग) की मालिक है और उसने इसे अन्य पेशकशों के लिए आधार के रूप में उपयोग करने की योजना की घोषणा की है। इतिहास संकल्पना और योजना (2022-2023) अप्रैल 2022 में, अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग को दी गई फाइलिंग से पता चला कि मस्क ने डेलावेयर में एक्स होल्डिंग्स के नाम से तीन कॉर्पोरेट इकाइयां बनाई थीं। फाइलिंग के अनुसार, एक इकाई को ट्विटर, इंक. के साथ विलय करना था, जबकि दूसरी को नई विलय वाली कंपनी की मूल कंपनी के रूप में काम करना था। इसके बाद एक तीसरी इकाई ट्विटर का अधिग्रहण करने के लिए विभिन्न बड़े बैंकों द्वारा प्रदान किए गए US$13 अरब ऋण लेने में मदद करेगी। "X" नाम एक्स.कॉम से लिया गया है, जो 1999 में मस्क द्वारा सह-स्थापित एक ऑनलाइन बैंक है। मार्च 2000 में, पेपाल बनाने के लिए X.com का प्रतिस्पर्धी कॉन्फ़िनिटी के साथ विलय हो गया। मस्क ने अगस्त 2012 में टेस्ला, इंक. और स्पेसएक्स के लिए "एक्स" नामक एक होल्डिंग कंपनी बनाने पर विचार किया जुलाई 2017 में, मस्क ने पेपाल से एक अज्ञात राशि के लिए डोमेन X.com को पुनः प्राप्त कर लिया। मस्क ने दिसंबर 2020 में एक ट्विटर उपयोगकर्ता को जवाब देते हुए "X" नाम के लिए अपने समर्थन की पुष्टि की, जिसने मस्क को उस नाम के तहत एक नई होल्डिंग कंपनी बनाने के लिए कॉल को नवीनीकृत किया, हालांकि उन्होंने एक्स के अपने व्यवसायों को प्राप्त करने के विचार को खारिज कर दिया। एक्स की अवधारणा अक्टूबर 2022 में मजबूत हुई, जब मस्क ने ट्वीट किया कि ट्विटर का अधिग्रहण "एक्स, सुपर-ऐप बनाने के लिए एक त्वरक है"। मस्क के अनुसार, ट्विटर एक्स के निर्माण में "3 से 5 साल" की तेजी लाएगा। मस्क ने मई 2022 में एक पॉडकास्ट पर वीचैट के समान एक ऐप बनाने में रुचि व्यक्त की - एक चीनी इंस्टेंट मैसेजिंग, सोशल मीडिया और मोबाइल भुगतान ऐप जून में, मस्क ने ट्विटर कर्मचारियों से कहा कि ट्विटर एक "डिजिटल टाउन स्क्वायर" है जिसे वीचैट की तरह सर्वव्यापी होना चाहिए। मार्च 2023 में मॉर्गन स्टेनली सम्मेलन में, मस्क ने एक्स को एक बार फिर संभावित रूप से "दुनिया का सबसे बड़ा वित्तीय संस्थान" बताया। 27 अक्टूबर, 2022 को मस्क ने $44 बिलियन में ट्विटर का अधिग्रहण किया और बाद में इसके सीईओ बन गए। गठन (2023-वर्तमान) मार्च 2023 में, मस्क ने नेवादा में एक्स कॉर्प पंजीकृत किया। उसी दिन, मस्क ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) कंपनी X.AI को पंजीकृत किया। उस महीने के अंत में, मस्क ने एक्स होल्डिंग्स I को एक्स होल्डिंग्स कॉर्प के साथ और ट्विटर इंक को एक्स कॉर्प के साथ विलय करने के लिए आवेदन किया फाइलिंग में, मस्क ने खुलासा किया कि एक्स होल्डिंग्स कॉर्प के पास 2 मिलियन डॉलर की पूंजी है; एक्स होल्डिंग्स कॉर्प, एक्स कॉर्प के लिए मूल कंपनी के रूप में भी काम करेगी उस महीने एक कंपनी-व्यापी ईमेल में, मस्क ने घोषणा की कि ट्विटर कर्मचारियों को एक्स कॉर्प में स्टॉक प्राप्त होगा ट्विटर और उसके पूर्व सीईओ जैक डोर्सी के खिलाफ राजनीतिक कार्यकर्ता लॉरा लूमर द्वारा दायर चल रहे मुकदमे के लिए अप्रैल 2023 में अदालत में दायर याचिका में, ट्विटर इंक ने अदालत को सूचित किया कि इसे कार्सन सिटी में स्थित नेवादा निगम, एक्स कॉर्प में समेकित किया गया है। इसी तरह की एक याचिका फ्लोरिडा के दक्षिणी जिले के लिए अमेरिकी जिला न्यायालय में दायर की गई थी। 11 मई, 2023 को मस्क ने ट्वीट किया कि उन्हें ट्विटर और एक्स कॉर्प के सीईओ के रूप में अपना प्रतिस्थापन मिल गया है। अगले दिन, 12 मई को, उन्होंने लिंडा याकारिनो को नए सीईओ के रूप में नामित किया, और कहा कि वह "मुख्य रूप से व्यवसाय संचालन पर ध्यान केंद्रित करेंगी, जबकि मैं उत्पाद डिजाइन और नई तकनीक पर ध्यान केंद्रित करूंगा"। मस्क ने कहा कि वह अपनी भूमिका कार्यकारी अध्यक्ष और मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी में बदल देंगे। 5 जून, 2023 को याकारिनो ने मस्क का स्थान लिया मई 2023 के अंत में, फिडेलिटी इन्वेस्टमेंट्स ने कंपनी का मूल्य 15 बिलियन डॉलर होने का अनुमान लगाया। बाद में इसे जुलाई तक $27 बिलियन के मूल्य तक बढ़ा दिया गया, और अगस्त के अंत तक लगभग $28.5 बिलियन तक। कंपनी ने आवश्यक परमिट प्राप्त किए बिना जुलाई 2023 में अपने सैन फ्रांसिस्को मुख्यालय की छत पर एक विशाल रोशनी वाला "X" खड़ा किया। तेज चमकती रोशनी और संरचनात्मक अखंडता के बारे में चिंतित पड़ोसियों द्वारा 24 शिकायतें दर्ज की गईं। निरीक्षकों को दो बार छत तक पहुंचने से मना कर दिया गया और शहर ने बिल्डिंग कोड के उल्लंघन के लिए कंपनी का हवाला दिया। कुछ दिनों के बाद एक्स ने साइन हटा दिया। अगस्त 2023 में, सीईओ लिंडा याकारिनो ने कहा कि व्यवसाय चलाने के लिए मालिक एलोन मस्क के तहत उनके पास "परिचालन स्वायत्तता" है, और वह कंपनी को चलाने वाली हर चीज में शामिल हैं। याकारिनो ने ट्विटर के "विवादास्पद" नाम को एक्स में बदलने के पीछे के तर्क के बारे में भी खुलकर बात की, जिसमें उन्होंने कहा कि रीब्रांडिंग अनिवार्य रूप से ट्विटर से "मुक्ति" थी। याकारिनो ने यह भी कहा कि यदि आप ट्विटर के साथ बने रहते, तो परिवर्तन केवल "वृद्धिशील" होते और एक्स के साथ, वे "क्या संभव है" के बारे में सोचते हैं। विवाद "ब्लॉक" सुविधा को हटाना 19 अगस्त, 2023 को, एलोन मस्क ने ट्विटर पर एक ट्वीट पोस्ट किया जिसमें कहा गया कि डायरेक्ट मैसेजिंग के अपवाद के साथ, प्लेटफ़ॉर्म पर "ब्लॉक" सुविधा हटा दी जाएगी। मस्क ने सुझाव दिया कि "म्यूट" का एक मजबूत संस्करण "ब्लॉक" फ़ंक्शन को प्रतिस्थापित कर देगा। इस सुविधा को हटाने के लिए धमकाने-विरोधी कार्यकर्ताओं से प्रतिक्रिया के जवाब में, मुख्य कार्यकारी लिंडा याकारिनो ने यह भी कहा कि "ब्लॉक" और "म्यूट" का एक नया रूप वर्तमान में एक्स कॉर्प द्वारा विकसित किया जा रहा है ब्लॉक को हटाने के संबंध में ट्विटर के प्रमुख योगदानकर्ताओं ने कहा कि यदि इस तरह की सुविधा को हटाया जाता है, तो ट्विटर ऐप स्टोर और Google Play Store नीतियों का उल्लंघन करेगा। इससे संभावित रूप से ट्विटर को इन प्लेटफार्मों से हटाया जा सकता है। एक्स और सेंटर फॉर काउंटरिंग डिजिटल हेट (सीसीडीएच) 1 जून, 2023 को, सेंटर फॉर काउंटरिंग डिजिटल हेट (सीसीडीएच) ने बताया कि एक्स, जिसे पहले ट्विटर नाम दिया गया था, ट्विटर ब्लू ग्राहकों द्वारा पोस्ट की गई 99% नफरत पर "कार्रवाई करने में विफल" रहा। इसके बाद सीसीडीएच ने कई ट्वीट्स का वर्णन किया जिनमें ऐसे घृणित संदेश थे जिनमें कथित तौर पर " नस्लवादी, समलैंगिकतापूर्ण, नव-फ़ासिज़्म, यहूदी विरोधी या साजिश संबंधी सामग्री" शामिल थी। जवाब में, एक्स कॉर्प ने उल्लेख किया कि मंच ने विविधता और मुक्त भाषण को प्रोत्साहित किया है, एक ब्लॉग पोस्ट में कहा गया है कि "99.99% से अधिक पोस्ट इंप्रेशन स्वस्थ हैं"। पोस्ट में आगे उल्लेख किया गया है कि सीसीडीएच "झूठे और भ्रामक दावे" फैला रहा था, जिससे वित्तीय गिरावट आएगी क्योंकि इसने विज्ञापनदाताओं को एक्स पर निवेश रोकने के लिए प्रोत्साहित किया था। ब्लॉग ने सीसीडीएच को एक "डराने वाला अभियान" भी बताया जो लगातार काम कर रहा है। "सार्वजनिक संवाद" को रोकें, यह आरोप लगाते हुए कि सीसीडीएच के अनुसंधान ने उन मैट्रिक्स का उपयोग किया जिन्हें जानबूझकर "एक्स के बारे में निराधार दावे करने के लिए संदर्भ से बाहर" रखा गया था। इसके बाद एक्स ने सीसीडीएच और यूरोपियन क्लाइमेट फाउंडेशन के खिलाफ कानूनी दावा दायर किया, जिस पर उसने आरोप लगाया कि वह सीसीडीएच के अनुसंधान में उपयोग की गई जानकारी प्रदान कर रहा था, और एक्स ने सीसीडीएच द्वारा बताए गए सभी दावों से इनकार किया। संदर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%A2%E0%A4%BC%E0%A5%80
सूक्ष्मपीढ़ी
सूक्ष्मपीढ़ी एक प्रकार का मापक है, जिसके द्वारा किसी एक व्यक्ति या छोटे व्यापार में लगने वाले विद्युत और ऊर्जा के खपत का पता लगाया जाता है। यह मुख्यतः लम्बी दूरी में विद्युत सेवा पहुंचाने हेतु किया जाता है। विद्युत जितनी अधिक दूरी से दिया जाता है, उतना अधिक विद्युत की खपत होती है। इसी के साथ लागत भी अधिक लगती है। यदि इस जगह पर किसी अन्य स्रोत द्वारा विद्युत सेवा दी जाती है। जिससे हर तरह से लाभ ही हो। लागत किसी दूर स्थान पर कोई विद्युत सेवा देने पर तार की अधिक आवश्यकता होती है। लम्बे तार में विद्युत प्रवाह होने पर उसमें कुछ विद्युत ऊर्जा ऊष्मीय ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। जिससे विद्युत की खपत होती है। यह खपत को कम करने के लिए विद्युत विभाग दूर वाले स्थानों में विद्युत को सीधे तार से नहीं जोड़ता है। इन्हें भी देखें ऊर्जा संरक्षण सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ ऊर्जा प्रौद्योगिकी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%20%28%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%A3%29
गामा (सूर्य ग्रहण)
सूर्यग्रहण का गामा (γ से निरूपित) यह दर्शाता है कि चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर कितने केंद्रीय रूप से पड़ती है। इसमें दरअसल वह दूरी दर्शायी जाती है जब चंद्रमा का छाया-शंकु पृथ्वी के केंद्र के सबसे निकट से गुजरता है और इस दूरी को पृथ्वी की विषुवतीय त्रिज्या के प्रभाज (अनुपात) के रूप में दिखाया जाता है। गामा का चिह्न यह दर्शाता है कि छाया का अक्ष पृथ्वी के केंद्र से उत्तर की ओर से गुजरता है कि दक्षिण से, धन चिह्न का उत्तर के लिए प्रयुक्त होता है। आसन्न चित्र में गामा दर्शाया गया है लाल रेखा पृथ्वी के केंद्र से न्यूनतम दूरी दर्शाती है, जो इस प्रकरण में पृथ्वी की त्रिज्या की 75% है। चूँकि प्रच्छाया (अंग्रेजी: अम्ब्रा) पृथ्वी के केंद्र के उत्तर से गुजरती है अतः इस उदाहरण में गामा का मान +0.75 है। गामा के निरपेक्ष मान की सहायता से विभिन्न प्रकार के सूर्यग्रहणों के बीच अंतर किया जा सकता है। सन्दर्भ खगोलशास्त्र ग्रहण
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
यूरिया
यूरिया (Urea या carbamide) एक कार्बनिक यौगिक है जिसका रासायनिक सूत्र (NH2)2CO होता है। कार्बनिक रसायन के क्षेत्र में इसे कार्बामाइड भी कहा जाता है। यह एक रंगहीन, गन्धहीन, सफेद, रवेदार जहरीला ठोस पदार्थ है। यह जल में अति विलेय है। यह स्तनपायी और सरीसृप प्राणियों के मूत्र में पाया जाता है। कृषि में नाइट्रोजनयुक्त रासायनिक खाद के रूप में इसका उपयोग होता है। यूरिया को सर्वप्रथम १७७३ में मूत्र में फ्रेंच वैज्ञानिक हिलेरी राउले ने खोजा था परन्तु कृत्रिम विधि से सबसे पहले यूरिया बनाने का श्रेय जर्मन वैज्ञानिक वोहलर को जाता है। इन्होंने सिल्वर आइसोसाइनेट से यूरिया का निर्माण किया तथा स्वीडेन के वैज्ञानिक बर्जेलियस के एक पत्र लिखा कि मैंने वृक्क (किडनी) की सहायता लिए बिना कृत्रिम विधि से यूरिया बना लिया है। उस समय पूरी दुनिया में बर्जेलियस का सिद्धान्त माना जाता था कि यूरिया जैसे कार्बनिक यौगिक सजीवों के शरीर के बाहर बन ही नहीं सकते तथा इनको बनाने के लिए प्राण शक्ति की आवश्यकता होती है। AgNCO (सिल्वर आइसोसाइनेट) + NH4Cl → (NH2)2CO (यूरिया) + AgCl बड़े पैमाने पर यूरिया का उत्पादन द्रव अमोनिया तथा द्रव कार्बन डाई-आक्साइड की प्रतिक्रिया से होता है। यूरिया का उपयोग मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में होता है। इसका प्रयोग वाहनों के प्रदूषण नियंत्रक के रूप में भी किया जाता है। यूरिया-फार्मल्डिहाइड, रेंजिन, प्लास्टिक एवं हाइड्राजिन बनाने में इसका उपयोग किया जाता है। इससे यूरिया-स्टीबामिन नामक काला-जार की दवा बनती है। वेरोनल नामक नींद की दवा बनाने में उसका उपयोग किया जाता है। सेडेटिव के रूप में उपयोग होने वाली दवाओं के बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है। उत्पादन साल २००८-२००९ में भारत में यूरिया का उत्पादन करीब दो करोड़ टन रहा था जबकि वास्तविक खपत करीब २.४ करोड़ टन थी। ४० लाख टन की अतिरिक्त जरूरत को यूरिया के आयात के जरिए पूरा किया गया था। लेकिन घरेलू उर्वरक कंपनियां अगले चार साल में अपनी यूरिया उत्पादन क्षमता को बढ़ाने पर पांच से छह अरब डॉलर का निवेश कर सकती हैं, जिससे देश की यूरिया उत्पादन क्षमता में ६० लाख टन की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। यूरिया उत्पादन क्षमता में विस्तार के बाद भारत यूरिया आयातक के बजाय निर्यात करने वाले देश में तब्दील हो जाएगा। सन्दर्भ कार्बनिक यौगिक नाइट्रोजन यौगिक हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना जिन्स रसायन
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नोड.जेएस
नोड डॉट जेएस (Node.js) एक सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म है जिसका उपयोग स्केलेबल नेटवर्क अनुप्रयोग बनाने में किया जाता है। विशेष रूप से यह सर्वर-साइड के अनुप्रयोगों के विकास के लिए प्रयोग किया जाता है। नोड डॉट् जेएस् स्क्रिप्टिंग भाषा के रूप में जावास्क्रिप्ट का उपयोग करता है। नोड् डॉट् जेएस् में एक अन्तःनिर्मित एचटीटीपी सर्वर लाइब्रेरी है जिसके कारण किसी बाहरी सॉफ्टवेयर का प्रयोग किए बिना भी वेब-सर्वर को चलाया जा सकता है। इस प्रकार इसके द्वारा वेब-सर्वर के कार्य पर अधिक नियंत्रण सम्भव है। कुछ उदाहरण नीचे नोड् जेएस् में 'हलो वर्ल्ड' (hello world) एचटीटीपी सर्वर का कार्यान्यवन (इम्प्लीमेन्टेशन) दिखाया गया है। var http = require('http'); http.createServer( function (request, response) { response.writeHead(200, {'Content-Type': 'text/plain'}); response.end('Hello World\n'); } ).listen(8000); console.log('Server running at http://localhost:8000/'); नीचे दिया गया कोड एक सरल ट्रांसमिशन कन्ट्रोल प्रोटोकोल (TCP) सर्वर है जो पोर्ट 8000 पर सुनता है और जुड़ने पर 'hello' कहता है। var net = require('net'); net.createServer( function (stream) { stream.write('hello\r\n'); stream.on('end', function () { stream.end('goodbye\r\n'); } ); stream.pipe(stream); } ).listen(8000); औजार एवं आईडीई (IDEs) Cloud9 IDE (cloud service) JetBrains WebStorm or IntelliJ IDEA (commercial products) Microsoft WebMatrix (free) or Visual Studio (commercial product) Nodeclipse (Eclipse-based) पठनीय Further reading बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक जालघर npm जावास्क्रिप्ट
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