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हर्न हिल (अंग्रेज़ी: हर्न हिल) एक केन्द्रीय लंदन में सदक बरो का जिला है। |
टेघरा हवेली-खड़गपुर, मुंगेर, बिहार स्थित एक गाँव है।
मुंगेर जिला के गाँव |
चन्द्र देव (), जिसे सोम के रूप में भी जाना जाता है, एक हिन्दू देवता है जो चन्द्रमा का देवता माना जाता है। यह रात्रि के समय रोशन करने के लिए रात्रि, पौधों और वनस्पति से सम्बंधित माना जाता है। ब्रह्मा का चन्द्र रूप लेने का मूल उद्देश्य था कि रात्रि काल में पाप न हो। इन्हें नवग्रह (हिन्दू धर्म में नौ ग्रह) और दिक्पाल (दिशाओं के पालक) में से एक माना जाता है। पुराणों के अनुसार इनके पिता का नाम महर्षि अत्रि और माता का नाम देवी अनुसूया था। चंद्रदेव का विवाह दक्ष प्रजापति और वीरणी की साठ में से सत्ताईस कन्याओं के साथ हुआ था और इन्हीं कन्याओं को सत्ताईस नक्षत्र भी कहा गया है। इन कन्याओं में चंद्र रोहिणी से सर्वाधिक प्रेम करते थे।
चंद्रमा का जन्म
एक बार त्रिदेवियों को अपने सतीत्व पर अहम् हो गया। उन्हें लगा कि उनके समान पतिव्रता स्त्री इस विश्व में कोई नहीं हैे। एक बार भगवान विष्णु के भक्त देवऋषि नारद वहां आ पहुंचे और उन्होंने त्रिदेवियों को महर्षि अत्रि की पत्नी अनुसूया के सतीत्व के बारे में बताया जिससे उनके अहम को बहुत ठेस पहुंची। उन्होंने त्रिदेवों को अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने को कहा। तब त्रिदेव एक ही समय में महर्षि अत्रि के आश्रम में आए। तीनों देवों का एक ही उद्देश्य था अनुसूया का सतीत्व नष्ट करना। तीनों देवों ने साधु का वेश लिया और अनुसूया से भोजन करवाने की मांग की और ये शर्त रखी कि उन्हें नग्न अवस्था में भोजन करवाया जाए। अनुसूया ने महर्षि अत्रि का चरणोदक तीनों देवों पर छिड़क दिया जिससे त्रिदेव छोटे छोटे बालकों के रूप में परिवर्तित हो गए और अनुसूया की गोद में खेलने लगे और अनुसूया ने तत्पश्चात् उन्हें नग्न अवस्था में भोजन करवाया। जब काफी देर तक त्रिदेव अपने धाम नहीं लौटे तब त्रिदेवियाँ उन्हें खोजती हुई महर्षि अत्रि के आश्रम में आ गयीं और देवी अनुसुया के पास आईं। सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती ने उनसे आग्रह किया कि वे उन्हें उनके पति सौंप दें। अनुसुया और उनके पति ने तीनों देवियों की बात मान ली किन्तु अनुसूया ने कहा "कि त्रिदेवों ने मेरा स्तनपान किया है इसलिए किसी ना किसी रूप में इन्हें मेरे पास रहना होगा अनुसुया की बात मानकर त्रिदेवों ने उनके गर्भ में दत्तात्रेय , दुर्वासा और चंद्रमा रूपी अपने अवतारों को स्थापित कर दिया। समय आने पर अनुसूया के गर्भ से भगवान विष्णु ने दत्तात्रेय , भगवान ब्रह्मा ने चंद्र और भगवान शंकर ने दुर्वासा के रूप में जन्म लिया।
चंद्रदेव को श्राप
दक्ष प्रजापति द्वारा चंद्र को श्राप
चंद्रदेव का विवाह ब्रह्मा के पुत्र प्रजापति दक्ष और उनकी पत्नी वीरणी की सत्ताईस पुत्रियों से हुआ था। चंद्र इनमें से रोहिणी से अधिक प्रेम करते थे। कहते हैं चंद्रमा अपनी पत्नी रोहिणी से इतना प्रेम करने लगे कि अन्य २६ पत्नियां चंद्रमा के बर्ताव से दुखी हो गईं. जिसके बाद सभी २६ पत्नियों ने अपने पिता दक्ष प्रजापति से चंद्र की शिकायत की. बेटियों के दुख से क्रोधित दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दे डाला दक्ष के श्राप के बाद चंद्रमा क्षयरोग के शिकार हो गए। श्राप से ग्रसित होकर चंद्रमा का तेज क्षीण पड़ने लगा। इससे पृथ्वी की वनस्पतियों पर भी बुरा असर पड़ने लगा।
गणेश जी द्वारा चंद्र को श्राप
गणेशपुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती ने सभी देवताओं को भोजन पर आमंत्रित किया था।भोजन करने के पश्चात् चंद्रदेव आकाश में स्थित हो गए और गणेशजी मूषक पर बैठकर टहलने निकल पड़े। गणेश जी की शारीरिक रचना देखकर चंद्रदेव मन ही मन में हंसने लगे। जब मूषक का संतुलन बिगड़ गया तो उन्होंने गणेश जी से कहा कि "गणेश जी आपकी आकृति बड़ी विचित्र है आपके भार से मूषक भी चलने में असमर्थ हो रहे हैं। आपके हाथ पांव तो खम्भ जैसे हैं विशालकाय हाथी का सिर है और आपका पेट तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे अन्न का पूरा भण्डार हो।" आपको देखकर तो मेरी हंसी रूक ही नहीं रही।" चंद्र की ऐसी बातें सुनकर गणेश जी ने उन्हें अपनी चमक खोने का श्राप दिया।
श्राप से मुक्ति
दक्ष प्रजापति के श्राप से मुक्ति
चंद्रदेव ने भगवान विष्णु के कहने पर प्रभास तीर्थ में जाकर १०८ बार महामृत्युंजय मन्त्र का जप किया तथा भगवान शिव की कृपा से उस श्राप से मुक्ति पाई। आज ये स्थान भगवान शंकर का सोमनाथ ज्योत्रिलिंग कहलाता है।
गणेश जी द्वारा चंद्र को श्राप से मुक्ति
गणेश जी से श्राप मिलने के बाद चंद्रदेव एक सरोवर में जा छुपे थे। गणेश जी को कुछ समय बाद अपनी भूल का अहसास हुआ और वे चंद्रदेव को श्राप मुक्त करने के लिए खोजने लगे। बाद में चंद्रदेव से वे बोले "चंद्रदेव आपको मैंने एक छोटी सी भूल का बड़ा श्राप देकर बहुत बड़ा अपराध किया है। इसलिए मैं आपको श्राप मुक्त करता हूं। लेकिन भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को आपके दर्शन करने वाले व्यक्ति को कलंक लगेगा। इसलिए मेरे जन्मदिवस को कलंक चतुर्थी के नाम से भी जानेंगे।" इसी कारण चंद्रदेव के दर्शन गणेश चतुर्थी को नहीं करने चाहिए।
इन्द्र लोक के देवता |
सकरौली छेरिया-बरियारपुर, बेगूसराय, बिहार स्थित एक गाँव है।
बेगूसराय जिला के गाँव |
कितलसर राजस्थान के नागौर जिले में डेगाना पंचायत समिति का एक गांव है।
यह ग्राम पंचायत मुख्यालय भी है।
नागौर ज़िले के गाँव |
काक्की जलाशय (कक्की रिज़रवायर) भारत के केरल राज्य के पतनमतिट्टा ज़िले में स्थित एक कृत्रिम जलाशय है। यह सन् १९६६ में पम्पा नदी के ऊपर बाँध का निर्माण होने पर बन गया था।
इन्हें भी देखें
केरल में बाँध
केरल में जलाशय
पतनमतिट्टा ज़िले में स्थापत्य
केरल में स्थापत्य |
बुधया हंडिया, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
इलाहाबाद जिला के गाँव |
सेरिएगोमुएरतो का संता मारिया गिरजाघर () अस्तूरियास, स्पेन का एक गिरजाघर है।
इन्हें भी देखें
स्पेन के गिरजाघर
स्पेन के स्मारक |
अर्धनागरी एक भारतीय लिपि थी जो नागरी और सिद्धम लिपि का मिश्रित रूप थी। इसे 'भटाक्षरी' भी कहते हैं। यह मालवा में (विशेषतः, उज्जैन में) प्रयुक्त होती थी। |
खण्डार दुर्ग राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले की खण्डार तहसील में स्थित एक प्राचीन दुर्ग है। यह दुर्ग रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान की सीमा पर है। किले में तीन बड़े प्रवेश द्वार हैं, लेकिन वे क्षतिग्रस्त हैं।
यह . पर स्थित है।
दुर्ग मुख्य शहर से ४० किमी दूर है।
राजस्थान में दुर्ग |
अनुप्रस्थ द्रव्यमान कण भौतिकी में उपयोग की जाने वाली एक महत्त्वपूर्ण भौतिक राशी है जिस रूप में यह ज़ दिशा के अनुदिश लोरेन्ट्स अभिवर्धन में निश्चर रहती है। प्राकृत विमा में
जहाँ ज़-दिशा कीरण पूँज की दिशा में है।
और कीरण पूँज की दिशा के लम्बवत दिशा में संवेग हैं तथा
हैड्रोन संघट्ट भौतिक विज्ञानी अनुप्रस्थ द्रव्यमान की अलग परिभाषा का उपयोग करते हैं, किसी कण के द्वि-कण क्षय की स्थिति में:
जहाँ प्रत्येक पुत्री कण की अनुप्रस्थ ऊर्जा है, जो इनके सत्य निश्चर द्रव्यमान की परिभाषा का उपयोग करते हुए परिभाषित की गयी धनात्मक राशी निम्न होगी:
अतः इसी प्रकार,
द्रव्यमान रहित क्षय कणों के लिए, जहाँ , अनुप्रस्थ ऊर्जा साधारण रूप से प्राप्त होती है और अनुप्रस्थ द्रव्यमान निम्न होगा
जहाँ अनुप्रस्थ समतल में पुत्री कणों के मध्य कोण है:
का वितरण, मातृ कण के सत्य द्रव्यमान पर अन्तिम बिन्दु रखता है। इसे टेवाट्रॉन में का द्रव्यमान ज्ञात करने के लिए किया जाता था।
- अनुच्छेद ३८.५.२ () और ३८.६.१ () निश्चर द्रव्यमान के लिए देखें।
- अनुच्छेद ४३.५.२ () और ४३.६.१ () अनुप्रस्थ द्रव्यमान की परिभाषा के लिए देखें। |
कोना (औरंगाबाद) में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद जिले का एक गाँव है।
बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
बिहार के गाँव |
क्यूबेक का राज्यचिह्न ९ दिसम्बर, १९३९ को क्यूबेक सरकार के परिषदीय आदेश पर अपनाया गया था, जिसने महारानी विक्टोरिया द्वारा २६ मई, १८६८ को दिए गए रॉयल वॉरण्ट राज्यचिह्न को प्रतिस्थापित किया।
ढाल को तीन क्षैतिज पट्टियों में बाँटा गया है:
शीर्ष - नीली पृष्ठभूमि पर तीन सुनहरे कुमुदिनी के फूल शाही फ़्रान्स का प्रतीक हैं।
मध्य - लाल पृष्ठभूमि पर बना सुनहरा शेर, पारम्परिक रूप से अंग्रेजी राजशाही का प्रतीक है।
तला - सबसे नीचे सुनहरी पृष्ठभूमि पर बने तीन हरे मेपल के पत्ते कनाडा का प्रतीक हैं।
ढाल के शीर्ष पर टुडोर ताज बना हुआ है और सबसे नीचे चान्दी के चीरक पर फ़्रान्सीसी भाषा में प्रान्तीय ध्येय वाक्य लिखा हुआ है जे मे सोउवींस (मुझे स्मरण है)।
इन्हें भी देखें
क्यूबेक का ध्वज |
बरही (बार्ही) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के कटनी ज़िले में स्थित एक नगर है।
इन्हें भी देखें
मध्य प्रदेश के शहर
कटनी ज़िले के नगर |
लेखाकरण में 'दोहरी प्रविष्टि प्रणाली या दोहरी खतान प्रणाली (डबल-एंट्री सिस्टम) बहीखाता की एक पद्धति है। इसका नाम 'दोहरी प्रविष्टि' इसलिए है क्योंकि इसके अन्तर्गत किसी खाते की प्रत्येक प्रविष्टि के संगत किसी दूसरे खाते में एक विपरीत प्रविष्टि का होना जरूरी है।डबल-एंट्री प्रणाली बही-खाता पद्धति की एक प्रणाली है, जो प्राचीन 'इतालवी' पद्धति के पूर्व से विद्यमान है।प्राचीन ग्रीक और रोमन साम्राज्यों से पहले भारत में इसका अस्तित्व बताता है कि भारतीय व्यापारी इसे अपने साथ इटली ले गए, और वहाँ से डबल-एंट्री सिस्टम पूरे यूरोप में फैल गया।
इसे हिन्दी में 'द्वि-अंकन प्रणाली' भी कहते हैं।
द्वि-अंकन प्रणाली (दोहरी लेखा प्रणाली) आधुनिक युग में बही खाते की द्वि-अंकन प्रणाली को सर्वश्रेष्ठ, सर्व-सामान्य और सर्वव्यापी माना जाता है क्योंकि यह आधुनिक, वैज्ञानिक और पूर्ण है। यह व्यापारी के समस्त उद्देश्यो की पूर्ति करती है। इसका जन्म पश्चिमी देशों में हुआ है, अतः इसे पाश्चात्य लेखांकन विधि भी कहा जाता है। इसे व्यापारिक लेखा-विधि-प्रणाली भी कहा जाता है, क्योंकि इस विधि के अनुसार रोकड़ और उधार के सौदों को लिपिबद्ध किया जाता है।
द्वि-अंकन प्रणाली की भिन्न-भिन्न विद्वानों ने अलग-अलग परिभाषाएं दी हैं जिसमें से कुछ निम्नलिखित हैं- कार्टर के अनुसार, लेखांकन की आधुनिक पद्वति द्वि-अंकन प्रणाली के नाम से जानी जाती है। बहीखाते की द्वि-अंकन प्रणाली का आशाय बैयक्ति तथा अवैयक्तिक दोनों ही प्रकार के खातों से हैं।
कीलर द्वि-अंकन प्रणाली की निम्नलिखित परिभाषा देते हैं- एक उद्यम मे लेखांकन की सर्वसामान्य प्रणाली द्वि-अंकन प्रणाली है। जैसा कि नाम से ही विदित होता है- प्रत्येक सौदे के दो लेखे लिए जाते है- एक डेबिट में और दूसरा क्रेडिट में।
प्रत्येक व्यापारिक सौदा जो द्रव्य (मुद्रा) अथवा द्रव्य के मूल्य में परिणित होता है, (अ) लाभ को देना और (ब) उस लाभ को प्राप्त करना। दुसरे शब्दों में व्यापारिक सौदा मूल्य के बदले अथवा द्रव्य के मूल्य में लदल-बदल का नाम है अथवा प्रत्येक व्यापारिक सौदा दो क्रियाओं को जन्म देता है- किसी मूल्यवान वस्तु को प्राप्त करना और किसी मूल्यवान वस्तु को देना। द्वि-अंकन प्रणाली के अनुसार इन दानों ही, प्राप्य पक्ष और देय पक्ष, पक्षों का लेखांकन किया जाता है। अतः यदि एक भवन मुकेश से खरीदा गया है तो भवन खाता प्राप्त करता है मुकेश का खाता देता है। इसलिए प्रत्येक सौदे के पूर्ण लेखांकन के लिए द्वि-प्रविष्टि (डबल इन्ट्री) होना आवश्यक है।
द्वि-अंकल प्रणाली के नियमों की स्पष्ट जानकारी के लिए यह जान लेना आवश्यक है कि कुछ सौदे लगभग सब व्यापारों में समान होते हैं। ये समान सौदे निम्न है-
(१) व्यापारी बहुत-से व्यापारिक व्यौहार (लेन-देन) करता है;
(२) उसके पास कुछ सम्पत्तियां होनी चाहिए जिनमें या जिनकी सहायता से वह व्यापार करता है; और
(३) उसे व्यापार चलाने के लिए कुछ खर्चें जैसे कार्यालय का किराया, वेतन, विज्ञापन आदि करने पड़ते हैं और उसके पास कुछ ऐसे स्रोत भी होने चाहिए जिनके द्वारा व्यापार को आय प्राप्त होती है।
अतः यह निष्कर्ष निकलता है कि सम्पूर्ण व्यापारिक सौदों के पूर्ण लेखांकन के लिए निम्न खाते रखना आवश्यक हैं-
(१) प्रत्येक व्यक्ति एवं संस्थान (फर्म) का खाता जिनमें व्यापारी को व्यवहार करना पड़ता है;
(२) व्यापार की प्रत्येक सम्पत्ति और अधिकार का खाता; और
(३) प्रत्येक व्यय एवं आय के स्रोत का खाता
वे खाते जो प्रथम समूह में आते हैं व्यकितगत खाते कहलाते हैं, दूसरे समूह के अन्तर्गत आने वाले खातों को सम्पत्ति खाते कहा जाता है और तीसरे समूह में आने वाले खातों के नाममात्र (के) खाते कहा जाता है।
द्वि-अंकन प्रणाली पृष्ठ को दो समान अर्द्ध-भागों में बंटती है। पृष्ठ के वाम पक्ष को डेबिट पक्ष तथा दक्षिण पक्ष को क्रेडिट पक्ष कहा जाता है। विभिन्न सौदों का प्रतिनिधित्व करने वाले पक्षों के इस प्रकार चयन में कोई न्यासंगत कारण नहीं था और क्रेडिट पक्ष बहुत सरलता से वाम पक्ष या डेबिट पक्ष दक्षिण पक्ष हो सकता था। वेनेसियन व्यापारियों ने जो द्वि-अंकन प्रणाली के सर्वप्रथम ज्ञात व्यापारी थे वाम पक्ष या डेबिट पक्ष को सम्पत्तियों के लिए और दूसरी ओर को पूंजी एवं देयताओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुन रखा था। अतः यह सब से वैसा ही चला आ रहा है।
खाता एक ऐसा अभिलेख है जिसमें एक विशेष पक्षकार (जो एक मनुष्य या मनुष्यत्व आरोपित पदार्थ हो सकता है) द्वारा दिए गये या प्राप्त किए गये प्रत्येक लाभ के द्रव्य मूल्य (कभी-कभी या द्रव्य मूल्य और मात्रा साथ-साथ) और वाम (वायें) पक्षों के दो अलग-अलग स्तम्भों में व्यवस्थित किया जाता है। प्रत्येक खाते में डेबिट पक्ष एवं क्रेडिट पक्ष होता है। यह क्रमशः खाते के वाम पक्ष एवं दक्षिण पक्ष के हाशिये पर डेबिट और क्रेडिट लिखकर दर्शाया जाता है। डेबिट पक्ष की प्रत्येक प्रविष्टि के आगे ष्ज् वष्शब्द लिखा जाता है। इसका अर्थ यह है कि जिस खाते का अभिलेख तैयार किया जा रहा है वह उस खाते का जिसका कि नाम प्रविष्टि में लिखा गया है देनदार है। दूसरी तरफ क्रेडिट पक्ष की प्रविष्टि के आगे ष्ठलष् शब्द लिखा जाता है। इसका अर्थ यह है कि उस खाते को जिस खाते का अभिलेख तैयार किया जा रहा है इस खाते से जिसका कि नाम प्रविष्टि में लिखा गया है क्रेडिट किया गया है। खाते का नाम खाते के ऊपर मध्य में लिखा जाता है।
लाभ देने वाले पक्षकार के खाते को लेनदार कहा जाता है और जो पक्षकार इस (लाभ) को प्रप्त करता है उसके खाते को देनदार कहा जाता है। सामान्य रूप से खाते द्वारा प्राप्त लाभ की कीमत को खाते में वाम स्तम्भ में लिखा जाता है और यह कहा जाता है कि खाते की उतनी कीमत (रकम) से डेबिट किया गया। दूसरी ओर खाते द्वारा दिए गए लाभ की कमीत को खाते के दक्षिण स्तम्भ में लिखा जाता है और यह कहा जाता है कि खाते को उतनी कीमत (रकम) से क्रेडिट किया गया। इन्हें क्रमशः डेबिट और क्रेडिट प्रविष्टियां कहते हैं।
द्वि-अंकन प्रणाली के नियम
नियम या सिद्धांत से आशय उस सामान्य नियम से है जो व्यवहारों या सौदों की दिशानिर्देंश करने में सहायक होता है। वास्तव में ये सिद्धांत मुख्यतया तीन नियमों पर आधारित है इसे 'दोहरा लेखा प्रणाली के सिद्धान्त' भी कहा जाता है।
द्वि-अंकन प्रणाली के नियम खातों के अनुसार प्रयोग किये जाते हैं। दोहरा लेखा प्रणाली में खातों के तीन प्रकार होते हैं। एक विशेष खाते को डेबिट या क्रेडिट करने से पूर्व हमें यह देख लेना चाहिए कि व्यापारी द्वारा किये गए सौदे से कौन सी श्रेणी के खाते प्रभावित होते हैं यह जान लेने के पश्चात् निम्नलिखित नियमों का पालन किया जायगा।
व्यक्तिगत खातों के मामले में हम लाभ प्राप्त करने वाले व्यक्ति या संस्थान का खाता उसके द्वारा प्राप्त लाभ से डेबिट करते हैं और लाभ देने वाले व्यक्ति या संस्थान का खाता उसके द्वारा प्रदत्त लाभ से क्रेडिट करते हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं-
सम्पत्ति खाते प्राप्ति से डेबिट और जाने वालें (आउटगोइंग) से क्रेडिट किए जाते हैं। अथवा
नाम मात्र (के) खाते (नॉमिनल एकाउण्ट्स)
प्रत्येक व्यय अथवा हानि की धन-राशि को डेबिट किया जाता है और प्रत्येक आय अथवा लाभ की धनराशि को क्रेडिट किया जाता है।
दूसरे शब्दों में -
यह जान लेना आवश्यक है कि यह नियम कभी नहीं बदलते और हर सम्भव दशा में इनका दृढ़ता से प्रयोग किया जायेगा। यह भी नोट किया जाना चाहिए कि उपर्युक्त प्रपंचों जैसे कि देने वाला और पाने वाला, आने वाला और जाने वाला इत्यादि को मालिक के दृष्टिकोण से न जांचकर संस्थान के दृष्टिकोण से जांचा जाना चाहिए।
द्वि-अंकन प्रणाली के उपर्युक्त नियमों के अतिरिक्त लेखांकन की कुछ अवधारणएं तथा मान्यताएं हैं। वास्तविक बहीखाता तथा लेखांकन कार्य आरम्भ करने से पूर्व इनका पता होना आवश्यक है।
इन नियमों को कुछ अन्य प्रायोगिक तरीके से भी याद रख कर उपयोग में आसानी से लाया जा सकता है। इसके लिये सर्वप्रथम सौदा या लेनदेन कि प्रकृति को पहचान कर उनके दो रूपों को अलग करना आवश्यक है। सामान्यतः ९० प्रतिशत सौदे नगद लेनदेन से संबंधित होते है। अतः स्पष्ट है कि इनका एक रूप या पक्ष नगद होगा चूंकि नगद वास्तविक खाता है अतः नगद यदि प्राप्त हो रहा है तो
नगद खाता डेबिट और उसका दूसरा पक्ष चाहे वह व्यक्तिगत, वास्तविक या अवास्तविक हो बिना विचार किये ही क्रेडिट किया जा सकता है और यदि नगद जा रहा है तो नगद खाता क्रेडिट एवं दूसरा पक्ष जो भी हो वह डेबिट होगा।
इसी प्रकार खर्चों एवं आय को भी सरलता से पहचाना जा सकता है। अतः समस्त प्रकार से आगम खर्चों को डेबिट एवं दूसरे पक्ष को चाहे जो भी हो क्रेडिट होगा यदि एक पक्ष आय या लाभ से संबंधित है तो उसे क्रेडिट एवं विरूद्ध पक्ष डेविट होगा। साथ ही जो भी वस्तु या संपत्ति खरीदी जाती है तो उसे डेबिट करेगें एवं बेची जाती तो उसे क्रेडिट करेंगे एवं उसके विरूद्ध पक्ष को डेविट या क्रेडिट करेंगे।
उदाहरण एवं डेबिट/क्रेडिट के नियमों का विस्तृत विवरण निम्नानुसार हैः-
दोहरी प्रविष्टि प्रणाली के प्रमुख भाग
दोहरा लेखा प्रणाली के प्रमुख भाग निम्नलिखित है। इन्हें 'दोहरा लेखा प्रणाली की सीढ़ियां' या 'लेखाकर्म का ढांचा' भी कहा जाता है।
(१) प्रारंभिक लेखा या रोजनामचा (जर्नल)
(३) तलपट (ट्रायल बैलेंस) बनाना
(क) निर्माण खाता या व्यापार खाता
(ख) लाभ हानि खाता या आय व्यय खाता
(ग) स्थिति विवरण (चिट्ठा)
लाभ देने वाले पक्षकार के खाते को लेनदार कहा जाता है और जो पक्षकार इस (लाभ) को प्रप्त करता है उसके खाते को देनदार कहा जाता है। सामान्य रूप से खाते द्वारा प्राप्त लाभ की कीमत को खाते में वाम स्तम्भ में लिखा जाता है और यह कहा जाता है कि खाते की उतनी कीमत (रकम) से डेबिट किया गया। दूसरी ओर खाते द्वारा दिए गए लाभ की कमीत को खाते के दक्षिण स्तम्भ में लिखा जाता है और यह कहा जाता है कि खाते को उतनी कीमत (रकम) से क्रेडिट किया गया। इन्हें क्रमशः डेबिट और क्रेडिट प्रविष्टियां कहते हैं।र |
जगन्नाथपुर-१ गढपुरा, बेगूसराय, बिहार स्थित एक गाँव है।
बेगूसराय जिला के गाँव |
आईएनएस विशाल (इंश्य् विशाल) वर्तमान में अपने डिजाइन चरण से गुजर रहा विमान वाहक है), जो भारतीय नौसेना के लिए कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा बनाया जाएगा। यह भारत में निर्मित होने वाला पहला सुपर विमान वाहक होने वाला है। विक्रांत श्रेणी के विमान वाहक के दुसरे विमान वाहक अर्थात् आईएनएस विशाल का प्रस्तावित डिजाइन बिल्कुल नया डिजाइन होगा।
डिजाइन और विकास
अप्रैल २०११ में, एडमिरल निर्मल कुमार वर्मा ने कहा कि दूसरा वाहक का निर्माण कुछ साल दूर है क्योंकि यह नौसेना के लिए उच्चतर खर्चा वाला है। आईएनएस विशाल का डिजाइन चरण २०१२ में शुरू हुए, और नौसेना के नौसेना डिज़ाइन ब्यूरो द्वारा इसका संचालन किया गया। नौसेना ने डिजाइन की अवधारणा और कार्यान्वयन योजनाओं को तैयार करने में बाहरी मदद नहीं लेने का निर्णय लिया लेकिन आईएनएस विशाल में रूसी विमान को एकीकृत करने के लिए बाद में रूसी डिजाइन ब्यूरो से मदद ली जा सकती है। आईएनएस विशाल का ६५,००० टन के विस्थापन के साथ एक फ्लैट टॉप कैरियर होने का प्रस्ताव है और आईएनएस विक्रांत पर स्टोबार प्रणाली के विपरीत आईएनएस विशाल पर कैटोबार प्रणाली हो सकती है। १३ मई २०१५ को रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने आईएनएस विशाल की प्रारंभिक निर्माण योजना प्रक्रिया के लिए ३० करोड़ रुपये आवंटित किए।
भारतीय नौसेना के चेयरमैन एडमिरल धवन ने कहा: "दूसरे स्वदेशी विमानवाहक विमान के लिए सभी विकल्प खुले हैं। किसी भी चीज को खारिज नहीं किया गया है यह परमाणु संचलित भी हो सकता है।" भारत सरकार ने सहयोग के क्षेत्रों को बड़ा करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक कैरियर कार्य समूह बनाने को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और कैरियर कार्य समूह पहली बार अगस्त २०१५ में मिले।
आईएनएस विशाल के डिजाइन के सुझाव के लिए भारतीय नौसेना ने चार अंतरराष्ट्रीय रक्षा कंपनियों से बात तक की थी। अनुरोध पत्र (लेटर्स ऑफ रीक्वेस्ट) ब्रिटिश कंपनी बीएई सिस्टम्स, फ्रेंच कंपनी डीसीएनएस, अमेरिकी कंपनी लॉकहेड मार्टिन और रूसी कंपनी रोजोबोरोनएक्सपोर्ट को १५ जुलाई, 20१५ को भेजे गए थे। पत्र में आईएनएस विशाल कार्यक्रम के लिए कंपनियों से "तकनीकी और लागत प्रस्ताव प्रदान" करने के लिए कहा गया था।
कैरियर कार्य समूह
वाहक वायु-लड़ाई समूह के बारे में फैसला अभी भी अस्पष्ट है क्योकि इस विषय के बारे में आधिकारिक टिप्पणी की कमी है। लेकिन अधिकांश विशेषज्ञों का अनुमान है कि इसमें नौसैनिक संस्करण तेजस और भविष्य के ५वीं पीढ़ी के लड़ाकू जेट विमानों जैसे एचएएल उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान और स्वायत्त मानव रहित विमान अनुसंधान जैसे ड्रोन को चुना जा सकता हैं। भारतीय नौसेना ने इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम (एएमएएलएस) का मूल्यांकन किया है, जिसका उपयोग अमेरिकी नौसेना ने अपने नवीनतम जेराल्ड आर फोर्ड क्लास विमान वाहक में किया है। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम के विकासकर्ता जनरल एटॉमिक्स को भारतीय नौसेना के अधिकारियों को तकनीकी प्रदर्शन दिखाने के लिए अमेरिकी सरकार ने मंजूरी दे दी थी। भारतीय नौसेना के अधिकारी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम की नई क्षमताओं से प्रभावित हुए थे। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम ने मानव रहित युद्ध वायु वाहनों (यूसीएवी) सहित विभिन्न विमानों को लॉन्च करने में सक्षम बनाया है। १ अगस्त 20१3 को वाइस एडमिरल रॉबिन के धवन ने आईएनएस विशाल परियोजना के विस्तृत अध्ययन के बारे में बात करते हुए कहा कि इसमे परमाणु प्रणोदन का उपयोग भी हो सकता है। जिसे बाद में अंतिम रूप दे दिया गया है। शुरू में वाहक को २०२० के दशक तक सेना में शामिल करने की उम्मीद थी लेकिन नवीनतम रिपोर्ट (नवम्बर 20१6 तक) ने सुझाव दिया है कि इस भारतीय वाहक में पहली बार कई उन्नत तकनीकों को इकट्ठा करने और एकीकृत करने में शामिल तकनीकी चुनौतियों के कारण इसे केवल २०३० तक ही सेवा में शामिल किया जा सकेगा। भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच डीटीटीआई के नवीकरण के बाद, संभव है कि जनरल एटॉमिक्स से सहायता के साथ इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम को भारत में तैयार किए जा सकेंगा। मई 20१7 तक, भारतीय नौसेना पेंटागन (अमेरिकी रक्षा मन्त्रालय) से स्वीकृति पत्र का इंतजार कर रही थी, जो नौसेना ने फरवरी में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम के आयात के लिए आवेदन किया था।
दिसंबर २०१६ में, नौसेना ने घोषणा की कि एचएएल तेजस वाहक संचालन के लिए अधिक वज़न वाला लड़ाकू विमान है वाहक पर इसे बदलने के सभी विकल्पो पर विचार किया जा रहा है। जनवरी २०१७ में, एक नए विमान वाहक विमान में रुचि के लिए एक अंतरराष्ट्रीय प्रस्ताव बनाया गया था।
नौसेना योजनाकारों का मानना है कि आईएनएस विशाल का २०३० के दशक में सेवा में शामिल होने की संभावना है। उन्हे उस वाहक से ड्रोन संचालन के साथ-साथ मध्यम और हल्के लड़ाकू विमान पर भी योजना बनानी चाहिए। नौसैनिक योजनाकार के अनुसार, यह ड्रोन के साथ हमारे मिशन का विस्तार कर सकता है बिना पायलट वाले विमान का उपयोग उच्च जोखिम वाली जासुसी और सीड (दुश्मन हवा की सुरक्षा का दमन) में किया जा सकता है।
इन्हें भी देखें
एचएएल उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान
स्वायत्त मानव रहित विमान अनुसंधान
भारत के युद्ध पोत
भारतीय नौसेना के विमानवाहक पोत |
वर्चुअल मेमोरी एक प्रकार की कंप्यूटर प्रणाली तकनीक है जो एक कंप्यूटर (ऐप्लीकेशन) प्रोग्राम को यह धारणा प्रदान करता है कि इसके पास एक सन्निहित कार्य क्षमता वाली मेमोरी (एक ऐड्रेस स्पेस) है। जबकि वास्तव में इसे प्राकृतिक रूप से विभिन्न हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है और डिस्क स्टोरेज में बहुत अधिक मात्रा में हो सकता है। जो प्रणालियां इस तकनीक का प्रयोग करती हैं वे बड़े ऐप्लीकेशन वाले प्रोग्रामिंग को अधिक सरल बनाती हैं और बिना वर्चुअल मेमोरी वाले ऐप्लीकेशन की अपेक्षा वास्तविक भौतिक स्मृति (जैसे रैम) का अधिक कुशलतापूर्वक उपयोग करती है। वर्चुअल मेमोरी स्मृति के आभासीकरण से इस अर्थ में भिन्न है कि वर्चुअल मेमोरी संसाधनों को एक विशेष प्रणाली के लिए आभासीकृत करने देती है। इसके विपरीत मेमोरी का एक बड़ा पूल विभिन्न प्रणालियों के लिए छोटे पूलों में आभासीकृत होता है।
ध्यान दें कि "वर्चुअल मेमोरी" "डिस्क स्थान का उपयोग भौतिक स्मृति (मेमोरी) का आकार बढाने" से अधिक कुछ करता है - अर्थात हार्ड डिस्क ड्राइव को शामिल करने के लिए सिर्फ मेमोरी पदानुक्रम का विस्तार. डिस्क के मेमोरी का विस्तार वर्चुअल मेमोरी तकनीक के उपयोग करने का एक स्वाभाविक परिणाम है, लेकिन इसे अन्य साधनों जैसे कि उपरिशायी (ओवरलेज़) या गमागमन (स्वपिंग) प्रोग्रामों और उनके निष्क्रिय आंकड़ों (डाटा) को डिस्क से पूरी तरह से बाहर किया जा सकता है। "वर्चुअल मेमोरी" की परिभाषा प्रोग्राम को चिंतन में बदलने के लिए ऐड्रेस स्पेस के सन्निहित वर्चुअल मेमोरी ऐड्रेसों के रूप में पुनर्परिभाषित करने पर आधारित है कि वे सन्निहित ऐड्रेसों के बड़े ब्लॉकों का उपयोग कर रहे हैं।
आधुनिक सामान्य उद्देश्य वाले कंप्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम आम तौर पर वर्चुअल मेमोरी तकनीकों का प्रयोग सामान्य ऐप्लीकेशन्स जैसी कि वर्ड प्रोसेसर, स्प्रेडशीट, मल्टीमीडिया प्लेयर, लेखांकन, आदि के रूप में करते हैं सिवाय जहां आवश्यक हार्डवेयर सहायता (मेमोरी संरक्षण) अनुपलब्ध हो. पुराने ऑपरेटिंग सिस्टम जैसे कि १९८० के दशकों के डोस, १९६० के दशकों मेनफ्रेमों में आम तौर पर वर्चुअल मेमोरी संबंधी कोई व्यावहारिकता नहीं थी -इसके उल्लेखनीय अपवाद एटलस, ब५००० और एप्पल कंप्यूटर लिसा थे।
सन्निहित प्रणालियां और अन्य विशेष उद्देश्य वाली कंप्यूटर प्रणालियां जिनके लिए बहुत तेज और/या बहुत अनुकूल प्रतिक्रिया समय की आवश्यकता होती है वे घटे हुए निर्धारण के कारण वर्चुअल मेमोरी का उपयोग नहीं करना चाह सकती हैं।
सन् १९४० और १९५० के दशक में, एक वर्चुअल मेमोरी के विकास से पहले, सभी बड़े प्रोग्रामों में द्वि-स्तरीय स्टोरेज (प्राथमिक और द्वितीयक, आज कल की) के प्रबंधन के लिए तर्क शामिल होता था, जैसे कि उपरिशायी (अधिचित्र) तकनीकें. अधिचित्रों को द्वितीयक स्टोरेज से प्राथमिक स्टोरेज में आगे पीछे करने के लिए प्रोग्राम जिम्मेदार था।
इसलिए वर्चुअल मेमोरी शुरू करने का मुख्य कारण न केवल प्राथमिक मेमोरी (स्मृति) का विस्तार करना था, बल्कि ऐसे विस्तारण को प्रोग्रामरों के उपयोग हेतु यथासंभव सरल बनाना था।
कई प्रणालियों में पहले से ही मेमोरी को विविध प्रोग्रामों में विभाजित करने की क्षमता थी (बहु क्रमादेशन और बहु प्रक्रमण के लिए आवश्यक), जिसे वर्चुअल मेमोरी प्रदान किये बिना उदाहरण के लिए "बेस एंड बाउंड रजिस्टर" के द्वारा पप-१० के आरंभिक मॉडलों के लिए प्रदान किया जाता था। उसने प्रत्येक ऐप्लीकेशन को एक एक निजी ऐड्रेसस्थान प्रदान किया जो ० के एक पते पर प्रारंभ होता था। इसके साथ निजी ऐड्रेस स्थान में किसी ऐड्रेस की बाउंड रजिस्टर यह सुनिश्चित करने के लिए जांच की जाती थी कि यह ऐप्लीकेशन के लिए आबंटित मेमोरी खंड के भीतर है और, यदि ऐसा है, तो किसी ऐड्रेस को मुख्य मेमोरी में रखने के लिए संगत बेस रजिस्टर की अंतर्वस्तु इसमें जोड़ी गई है। यह बिना वर्चुअल मेमोरी वाली विभाजन का एक सरल रूप है।
वर्चुअल मेमोरी लगभग १९५९-१९६२ में एटलस कंप्यूटर के मैनचेस्टर विश्वविद्यालय में विकसित किया गया और इसे १९६२ में पूरा किया गया। हालांकि, जर्मनी के अग्रणी कंप्यूटर वैज्ञानिकों में से एक, फ्रिट्ज-रुडोल्फ गुन्त्स्च और बाद में टेलिफूंकेन त्र ४४० मेनफ्रेम के डेवलपर के बारे में यह दावा किया जाता है कि उन्होंने उनकी डॉक्टरेट शोध प्रबंध ''लोगीचर एन्टॉर्फ{ एन्स रेचेंजर्टस मिट मेहरेरें असिंक्रों लौफेंदें ट्रॉम्मलन उंड आटोमतिश्शम सैनेल्सपेइशर्बैट्रीब{/१} (एकाधिक अतुल्यकालिक ड्रम स्टोरेज और स्वचालित फास्ट मेमोरी विधि के साथ एक डिजिटल कम्प्यूटिंग उपकरण की तर्क संकल्पना) की अवधारणा का आविष्कार किया .
१९६१ में, बरोज़ (बुर्स) ने वर्चुअल मेमोरी युक्त प्रथम व्यावसायिक कंप्यूटर ब५००० का विमोचन किया। इसने पृष्ठन की बजाय विभाजन का प्रयोग किया।
कंप्यूटिंग के इतिहास में कई तकनीकों की तरह, वर्चुअल मेमोरी को बिना चुनौती के स्वीकार नहीं किया गया। मुख्यधारा के ऑपरेटिंग सिस्टम में लागू किये जा सकने के पहले, विभिन्न समस्याओं पर काबू पाने के लिए कई मॉडलों, प्रयोगों और सिद्धांतों का विकास किया जाना था। गतिक ऐड्रेस रूपांतरण के लिए एक विशेषीकृत, महंगी और निर्माण करने में कठिन हार्डवेयर की आवश्यकता थी। इसके अलावा शुरू में इसने मेमोरी के ऐक्सेस को थोड़ा धीमा कर दिया. इस बात की भी चिंताएं थी कि द्वितीयक स्टोरेज का उपयोग करने वाली नयी प्रणाली - व्यापक कलनविधि पहले उपयोग कि गयी ऐप्लीकेशन-विशेष विधि कि अपेक्षा बहुत कम प्रभावकारी होगी.
१९६९ तक व्यावसायिक कंप्यूटर के लिए वर्चुअल मेमोरी के संबंध में बहस समाप्त हो गयी थी। डेविड सायरे के नेतृत्व में इब्म के एक शोध दल ने यह दिखाया कि वर्चुअल मेमोरी उपरिशायी (अधिचित्र) प्रणाली ने सर्वश्रेष्ठ हस्त नियंत्रित प्रणालियों की तुलना में निरंतर बेहतर काम किया।
संभवतः वर्चुअल मेमोरी व्यवहार में लाने वाला पहला मिनी कंप्यूटर नार्वे का नोर्ड-१ था। १970 के दशक के दौरान, अन्य मिनी कम्प्यूटरों ने वर्चुअल मेमोरी, विशेष रूप से व्म्स पर चलने वाले वैक्स मॉडलों को लागू किया।
वर्चुअल मेमोरी को इंटेल ८०२८६ प्रोसेसर के सुरक्षित मोड के साथ क्स८६ संरचना के साथ व्यवहार में लाया गया। शुरू में इसे खंड गमागमन के साथ किया गया, जो अधिक बड़े खण्डों के साथ बेकार साबित हुआ। इंटेल 803८६ ने मौजूदा विभाजन परत के नीचे पृष्ठन के लिए सहारे की शुरुआत की. बिना दोहरे दोष उत्पन्न किये पृष्ठ दोष अपवाद को अन्य अपवाद के साथ श्रृंखलित जा सकता है।
पृष्ठांकित वर्चुअल मेमोरी
वर्चुअल मेमोरी के प्राय: सभी कार्यान्वयन किसी ऐप्लीकेशन प्रोग्राम के वर्चुअल ऐड्रेस स्पेस को पेजों में विभाजित करते हैं; पेज संलग्न वर्चुअल मेमोरी ऐड्रेसों का एक ब्लॉक होता है। पेजों के आकार आम तौर पर कम से कम ४क बाइट होते हैं और बड़े वर्चुअल मेमोरी ऐड्रेसों वाली प्रणालियां या वास्तविक मेमोरी के बहुत बड़े परिमाण (जैसे राम) आम तौर पर बड़े आकार के पेजों का उपयोग करते हैं।
लगभग सभी कार्यान्वयन ऐप्लीकेशन प्रोग्राम के द्वारा देखे गये वर्चुअल ऐड्रेसों को भौतिक ऐड्रेसों (जिन्हें "वास्तविक ऐड्रेस" भी कहा जाता है) में रूपान्तरित करने के लिए पृष्ठ सारणी का प्रयोग करते हैं जिनका उपयोग हार्डवेयर के द्वारा निर्देशों को संसाधित करने के लिए किया जाता है। पृष्ठ सारणी में प्रत्येक प्रविष्टि या तो वर्चुअल पेज के लिए वास्तविक मेमोरी ऐड्रेस, जहां पेज को संचित किया जाता है, या एक सूचक कि पेज को वर्तमान में एक डिस्क फ़ाइल में रखा गया है, में एक मानचित्रण शामिल होता हैं। (हालांकि अधिकांश प्रणालियां ऐसा कराती हैं, कुछ प्रणालियां वर्चुअल मेमोरी के लिए एक डिस्क फ़ाइल के उपयोग का साथ नहीं देती हैं।)
प्रणालियों (सिस्टमों) में पूरी प्रणाली (सिस्टम) के लिए एक पृष्ठ वाली सारणी या प्रत्येक ऐप्लीकेशन के लिए अलग-अलग पृष्ठ सारणी हो सकती है। यदि ऐसा केवल एक ही होता है, तो एक ही समय में चलने वाले विभिन्न ऐप्लीकेशन एक ही वर्चुअल ऐड्रेस स्पेस का साथ-साथ प्रयोग करती हैं, अर्थात वे एक ही अनुक्रम वाले वर्चुअल एड्रेसों के विभिन्न भागों का प्रयोग करते हैं। जो प्रणालियां (सिस्टम) एकाधिक पृष्ठ सारणियों का उपयोग करती हैं वे एकाधिक वर्चुअल ऐड्रेस स्पेस प्रदान करती हैं - समवर्ती ऐप्लीकेशन का सोचना है कि वे सामान अनुक्रम वाले वर्चुअल ऐड्रेसों का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन उनके अलग- अलग पृष्ठ सारणी विभिन्न वास्तविक ऐड्रेसों की तरफ अनुप्रेषित क्लाराते हैं।
गतिक ऐड्रेस रूपांतरण
यदि, किसी निर्देश को निष्पादित करने के समय, एक क्पू एक ख़ास वर्चुअल ऐड्रेस में स्थित एक निर्देश प्राप्त करता है, एक विशिष्ट वर्चुअल ऐड्रेस से आंकड़ा प्राप्त करता है या किसी ख़ास वर्चुअल ऐड्रेस में आंकड़ा (डाटा) संग्रह करता है, तो वर्चुअल ऐड्रेस को सांगत भौतिक ऐड्रेस में रूपांतरित किया जाना चाहिए. इसे एक हार्डवेयर अवयव के द्वारा किया जाता है, जिसे कभी-कभी एक मेमोरी प्रबंधन इकाई कहा जाता है। यह वर्चुअल ऐड्रेस के संगत वास्तविक ऐड्रेस (पृष्ठ सारणी से) की खोज करता है और और वास्तविक ऐड्रेस को क्पू के भागों में भेज देता है जो निर्देशों पर अमल करते हैं। यदि पृष्ठ सारणी यह सूचित करता है कि वर्चुअल मेमोरी पेज वर्तमान में वास्तविक मेमोरी में नहीं है, तो हार्डवेयर एक पृष्ठ दोष अपवाद (विशेष आंतरिक संकेत) उत्पन्न करता है जो ऑपरेटिंग सिस्टम के पृष्ठन पर्यवेक्षक घटक शुरू करता है (नीचे देखें).
ऑपरेटिंग सिस्टम का यह भाग पृष्ठ सारणी को तैयार करता है और उसका प्रबंधन करता है। यदि गतिशील ऐड्रेस रूपांतरण हार्डवेयर एक पृष्ठ दोष अपवाद उत्पन्न करता है, तो आवश्यक वर्चुअल ऐड्रेस वाले पेज के द्वितीयक स्टोरेज में पेज स्पेस कि खोज करता है, इसे वास्तविक भौतिक स्मृति में पढ़ता है, वर्चुअल ऐड्रेस के नए स्थान को दर्शाने के लिए पृष्ठ सारणी का नवीनीकरण करता है और अंत में गतिक ऐड्रेस रूपांतरण को पुन: खोज शुरू करने के लिए कहता है। आमतौर पर सभी वास्तविक भौतिक मेमोरी पहले से ही उपयोग में रहते हैं और पृष्ठन पर्यवेक्षक को सबसे पहले वास्तविक भौतिक मेमोरी के एक हिस्से को डिस्क में अवश्य ही सेव करें और पृष्ठ सारणी का नवीनीकरण करें ताकि यह बताया जा सके कि संबंधित वर्चुअल ऐड्रेस अब वास्तविक भौतिक मेमोरी में नहीं है बल्कि डिस्क में सेव किये गए हैं। पृष्ठन पर्यवेक्षक आम तौर पर वास्तविक भौतिक मेमोरी वाले उन हिस्सों को सेव करते हैं और उनका अधिलेखन करते हैं जिनका हाल ही में उपयोग किया जा चुका है, क्योंकि संभवतः ये वैसे क्षेत्र हैं जिनका अक्सर कम से कम उपयोग किया जाता है। इसलिए हर बार गतिक ऐड्रेस रूपांतरण हार्डवेयर का एक वास्तविक भौतिक मेमोरी वाले ऐड्रेस के साथ सुमेलन होने पर, इसे उस वर्चुअल ऐड्रेस के लिए पृष्ठ तालिका (सारणी) प्रविष्टि में समय का एक मुहर लगाना चाहिए.
स्थायी रूप से निवासी पृष्ठ
सभी वर्चुअल मेमोरी सिस्टमों में मेमोरी वाले क्षेत्र होते हैं जो "जकडे हुए" होते हैं, अर्थात् उन्हें द्वितीयक स्टोरेज में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है, उदाहरण के लिए:
विभिन्न प्रकार के अवरोध (ई/ओ पूर्णता, काल समंजक फल, प्रोग्राम त्रुटि, पृष्ठ दोष, आदि) के संचालन करने वालों के लिए आम तौर पर अवरोध (अंतरायन) तंत्र संकेतक (पॉइंटर) सारणी पर विश्वास करते हैं। यदि इन संकेतकों (पॉइंटरों) या कोडों वाले पृष्ठ जिन्हें वे शुरू करते हैं, पृष्ठांकन योग्य होते तो अवरोध-संचालन अधिक जटिल और बहुत अधिक समय लेने वाला होता; और पृष्ठ दोष अवरोधों की स्थिति में यह यह विशेष रूप से कठिन होता.
पृष्ठ सारणी आमतौर पर पृष्ठांकन योग्य नहीं होते हैं।
आंकड़ा प्रतिरोधक जिन्हें क्पू के बाहर ऐक्सेस किया जाता है, उदाहरण के लिए परिधीय उपकरणों द्वारा जो प्रत्यक्ष मेमोरी ऐक्सेस (द्मा) का उपयोग करते हैं या ई/ओ चैनलों के द्वारा. आम तौर पर ऐसे उपकरण और बसें (संपर्क मार्ग) जिनसे वे जुड़े हुए होते हैं वे वर्चुअल मेमोरी ऐड्रेसों की बजाय भौतिक मेमोरी ऐड्रेसों का उपयोग करते हैं। यहां तक कि एक आयोम्यू वाले बसों में, जो एक विशेष मेमोरी प्रबंधन इकाई होती है, वह एक ई/ओ बस में प्रयुक्त वर्चुअल ऐड्रेसों को भौतिक ऐड्रेसों में रूपांतरित कर सकती है। यदि एक पृष्ठ दोष उत्पन्न होता है तब भी स्थानांतरण नहीं रोका जा सकता है और पृष्ठ दोष को संसाधित करने के बाद पुन: शुरू किया जाता है। जिन स्थानों में या जहां से एक परिधीय उपकरण डेटा स्थानांतरित कर रहे हैं उन्हें या तो स्थायी रूप से जकड दिया जाता है या स्थानान्तरण का कार्य प्रगति में रहने पर जकड दिया जाता है।
समय पर निर्भर रहने वाले तत्व/अनुप्रयोग वाले क्षेत्र पृष्ठन की वजह से उत्पन्न अलग-अलग प्रतिक्रिया समय सहन नहीं कर सकते हैं।
वर्चुअल (आभासी) = वास्तविक ऑपरेशन (परिचालन)
म्व्स, ज़/ओस और इसी तरह के ओसेस में, सिस्टम मेमोरी के कुछ हिस्सों का प्रबंधन वर्चुअल = वास्तविक विधि में किया जाता है, जहां प्रत्येक वर्चुअल एड्रेस एक वास्तविक एड्रेस के संगत होता है। वे हैं:
पृष्ठन पर्यवेक्षक और पृष्ठ सारणियां
ई/ओ चैनलों के द्वारा ऐक्सेस किये गए सभी आंकड़ा प्रतिरोधक
ऐप्लीकेशन प्रोग्राम जो ई/ओ के प्रबंधन के लिए गैर मानक विधियों का उपयोग करते हैं और इसलिए वे अपने स्वयं के प्रतिरोधक (बाफर्स) उपलब्ध कराते हैं और बाह्य उपकरणों (जो प्रोग्राम अपने स्वयं के चैनल को समादेशित करने वाले शब्दों का निर्माण करते हैं) के साथ सीधे संवाद स्थापित करते हैं।
आईबीएम (इब्म) के आरंभिक वर्चुअल मेमोरी सिस्टम वर्चुअल = वास्तविक मोड पेजों को जकड़ने का एक मात्र तरिका था। ज़/ओस में ३ मोड होते हैं, व = व (वर्चुअल = वर्चुअल; पूर्ण रूप से पृष्ठांकन योग्य), व=र और व=फ (वर्चुअल = फिक्स्ड, अर्थात "जकड़ा हुआ" लेकिन दत ऑपरेटिंग के साथ).
खंडित (विभाजित) वर्चुअल मेमोरी
कुछ प्रणालियां (सिस्टम), जैसे की बर्रोज लार्ज सिस्टम, वर्चुअल मेमोरी के कार्यान्वयन के लिए पृष्ठन (पेजिंग) का प्रयोग नहीं करते हैं। इसके बजाय, वे विभाजन का उपयोग करते हैं, ताकि किसी ऐप्लीकेशन के वर्चुअल ऐड्रेस स्पेस को चर लंबाई के खंडों में विभाजित किया जा सके. एक वर्चुअल ऐड्रेस में एक खंड संख्या और खंड के भीतर एक ऑफसेट होता है।
मेमोरी को अब भी एक ही संख्या (जिसे पूर्ण या रैखिक ऐड्रेस कहा जाता है) के द्वारा भौतिक रूप से व्यक्त किया जाता है। इसे प्राप्त करने के लिए, एक खंड विवरणक की खोज करने के लिए प्रोसेसर खंड सारणी में खंड संख्या की खोज करता है। खंड विवरणक में एक चिन्हक होता है जो यह सूचित करता है कि क्या खंड मुख्य मेमोरी में उपस्थित है और, यदि ऐसा है, तो खंड के शुरू में मुख्य मेमोरी में ऐड्रेस (खंड का आधार ऐड्रेस) और खंड की लंबाई सूचित करता है। यह जांच करता है कि खंड के भीतर ऑफसेट कि लंबाई खंड कि लंबाई से कम है या नहीं और, यदि ऐसा नहीं है, तो क्या कोई अवरोध उत्पन्न होता है। यदि कोई खंड मुख्य मेमोरी में मौजूद नहीं रहता है, तो ऑपरेटिंग सिस्टम में हार्डवेयर संबंधी एक अवरोध उत्पन्न उत्पन्न किया जाता है, जो मुख्य मेमोरी में खंड को पढ़ने या कार्यान्वयन के दौरान पृष्ठांकित आंकड़ों के सेट को सहायक स्टोरेज से वास्तविक स्टोरेज में स्थानांतरित करने (स्वप् इन) की कोशिश कर सकता है। खंड को पढ़े जाने के लिए मुख्य मेमोरी में जगह बनाने हेतु ऑपरेटिंग सिस्टम को मुख्य मेमोरी में से अन्य खण्डों को हटाना (स्वप् आउट) पद सकता है।
विशेष रूप से, इंटेल ८०२८६ ने एक विकल्प के रूप में इसी प्रकार की एक विभाजन योजना का समर्थन किया, लेकिन अधिकांश ऑपरेटिंग सिस्टमों द्वारा इसका उपयोग नहीं किया गया।
विभाजन और पृष्ठन का सम्मिश्रण करना, आमतौर पर प्रत्येक खण्डों को पृष्ठों में विभाजित करना संभव है। जो सिस्टम उन्हें सम्मिश्रित करते हैं, जैसे कि मल्टिक्स और इब्म सिस्टम/३८ और इब्म सिस्टम ई मशीन में, वर्चुअल मेमोरी को आमतौर पर पृष्ठन के साथ लागू किया जाता है, जिसमें विभाजन का प्रयोग मेमोरी को सुरक्षा प्रदान करने के लिए किया जाता है। इंटेल 80३८6 और बाद में इया-३२ प्रोसेसरों के साथ, खंड एक ३२-बित वाले रैखिक पृष्ठन वाले ऐडरेस स्पेस में स्थित रहते हैं। इसलिए खण्डों को उस रैखिक पृष्ठन वाले ऐडरेस स्पेस के भीतर और बाहर किया जा सकता है। इससे वर्चुअल मेमोरी के दो स्टार मिलते हैं; हालांकि बहुत कम ही ऑपरेटिंग सिस्टम ऐसा करते हैं। इसके बजाय, वे केवल पृष्ठन का उपयोग करते हैं।
पृष्ठों और खण्डों का उपयोग कर वर्चुअल मेमोरी के कार्यान्वयन में अंतर न केवल क्रमश: निश्चित और चर आकारों के द्वारा मेमोरी के विभाजन से संबंधित है। कुछ प्रणालियों (सिस्टमों) में, जैसे कि मल्टिक्स (मल्टिक्स), या बाद में सिस्टम/३८ (सिस्टम/३८) और प्राईम मशीन्स में, एक मेमोरी मॉडल के अर्थ विज्ञान के रूप में, विभाजन वास्तव में उपयोगकर्ता प्रक्रियाओं में दिखाई देता था। दूसरे शब्दों में, उस एक प्रक्रिया के बदले में जिसमें एक मेमोरी होता था जो बाइट्स या शब्दों के एक बड़े वेक्टर के जैसा दिखाई देता था। यह अधिक संरचित था। यह पृष्ठों के प्रयोग करने से भिन्न है, जो प्रक्रिया में दिखाई देने वाले मॉडल को नहीं बदलता है। इसके महत्वपूर्ण परिणाम हुए.
खंड न केवल "चर लंबाई वाला एक पृष्ठ", या ऐडरेस स्पेस की लंबाई को बढ़ाने का एक एक सीधा तरिका नहीं था (जैसा कि इंटेल ८०२८६ में). मल्टिक्स में, विभाजन एक बहुत शक्तिशाली तंत्र था जिसका उपयोग एक एक-स्तरीय वर्चुअल मेमोरी मॉडल प्रदान करने के लिए किया जाता था, जिसमें "प्रोसेस मेमोरी" और "फाइल सिस्टम" के बिच कोई अंतर नहीं था - एक 'प्रप्रोसेस एक्टिव ऐड्रेस स्पेस में केवल खण्डों (फाइलों) कि एक सूचि होती थी जिन्हें इसके संभावित ऐड्रेस, कोड और डेटा (आंकड़े), दोनों में प्रतिचित्रित किया जाता था।
यह यूनिक्स (यूनिक्स) में बाद के म्मांप क्रियाविधि के समान नहीं था, क्योंकि अर्द्ध - स्वेच्छ स्थानों में फाइलों को प्रतिचित्रित करने के समय अंतर फ़ाइल पॉइंटर (सूचक) संकेत काम नहीं करते हैं। मल्टिक्स (मल्टिक्स) में अधिकाँश निर्देशों में निर्मित ऐसे पताभिगमन मोड थे। दूसरे शब्दों में, यह पुनर्स्थापित अंतर खंड संदर्भ क्रियान्वित कर पूरी तरह से एक लिंकर की जरूरत को समाप्त कर सकता था। यह उस समय भी काम करता था जब विभिन्न प्रक्रियाएं एक ही फाइल को विभिन्न स्थानों में उनके निजी ऐड्रेस स्पेसों में प्रतिचित्रित करता था।
सभी इम्प्लीमेंटन्स के लिए एक समस्या बुलाया "ताड़ना", जहां कंप्यूटर भी ज्यादा समय बिताता है असली स्मृति और डिस्क के बीच आभासी स्मृति के ब्लॉक फेरबदल और इसलिए धीरे काम लगता है बचने की जरूरत है। अनुप्रयोग प्रोग्राम कर सकते हैं मदद के बेहतर डिजाइन, लेकिन अंत में ही इलाज के लिए और अधिक वास्तविक स्मृति स्थापित है। अधिक जानकारी के लिए पृष्ठन देखते हैं।
इन्हें भी देखें
फिज़िकल मेमोरी और उसका फिज़िकल पता
विर्चुअल ऐड्रेस स्पेस
मेमोरी मैनेजमेंट यूनिट
पृष्ठ प्रतिस्थापन एल्गोरिथ्म
सुरक्षित मोड, क्स८६ के वर्चुअल मेमोरी का नाम संबोधित
जॉन एल. हेनेस्सी, डेविड ए. पैटरसन, कंप्यूटर आर्किटेक्चर, अ क्वानटीटेटिव अप्रोच'' (इसब्न १-५५८६०-७२४-२)
वर्चुअल मेमोरी सीक्रेट्स बाई मुरली
लिनक्स मेमोरी मैनेजमेंट
लिनक्स कर्नेल मेलिंग लिस्ट डिस्कशन
पोइंटर्स टू विर्चुअल मेमोरी विस्युअलाइजेशन
द वर्चुअल-मेमोरी मैनेजर इन विंडोज न्ट |
तालमुद यहूदियों की परम्पराओं का संग्रह है। इसका रचनाकाल ५वीं शताब्दी ई.पू. से ३वीं सदी ई. तक का माना जाता है। तालमुद दो तरह के शास्त्रों का सम्मिलित रूप है।
इसका प्रथम भाग के शास्त्र मिश्नाह कहलाते है।
मिश्नाह में यहूदी रीति रिवाजों का वर्णन किया गया है।
तथा इसके दूसरे भाग के शास्त्र को गेमारा कहते हैं।
गेमारा में यहूदी रब्बियों द्वारा सभी परम्पराओं पर लिखी गई टीकाएं शामिल हैं।
तालमुद दो प्रकार के है- |
ईद के पकवान : ( ) मुस्लिम त्योहारों में अक्सर पकाए जाने वाले व्यंजनों या पकवानों में जो प्रमुख रूप से व्यंजन पाए जाते हैं, उनका ब्योरा नीचे देखा जा सकता है।
ईद उल-फ़ित्र के पकवान
ईद उल-फ़ित्र को मीठी ईद भी कहा जाता है। इस ईद पर मीठे व्यंजन ज्यादा पकाए जाते हैं।
ईद अल-अज़हा के पकवान
ईद अल-अज़हा को कुर्बानी की ईद भी कहा जाता है। इस ईद पर नमकीन पकवान ज़्यादा बनते हैं।
यह भी देखिये |
आई ए एफ कैम्प (इआफ कैंप) भारत के अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह केन्द्रशासित प्रदेश के निकोबार ज़िले के कार निकोबार द्वीप पर स्थित एक बस्ती है। यहाँ भारतीय वायु सेना का कार निकोबार एयर फ़ोर्स बेस स्थित है।
इन्हें भी देखें
कार निकोबार एयर फ़ोर्स बेस
अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह के गाँव
निकोबार ज़िले के गाँव
कार निकोबार तहसील के गाँव |
पुनरावृत्त तनाव क्षति
पृष्ठ तनाव (सरफेस टेंशन)
तनाव (वेब सीरीज़) |
शैलोद्भिद (लिथोफाइट) या शैलोपरिक पादप (एपाइपेट्रिक) वे पादप हैं जो शिलाओं या कठोर चट्टानों के ऊपर उगते हैं। |
अंजू बॉबी जॉर्ज (जन्म १९ अप्रैल १९77) एक भारतीय एथलीट है। अंजू बॉबी जॉर्ज ने २००३ में पेरिस में आयोजित विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में लंबी कूद में कांस्य पदक जीत कर इतिहास रचा था। इस उपलब्धि के साथ वह पहली ऐसी भारतीय एथलीट बनीं, जिसने विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में ६.७० मीटर की छलांग लगाते हुए पदक जीता। २००५ में आईएएएफ (आइएएएफ) विश्व एथलेटिक्स फाइनल में उन्होंने रजत पदक जीता, इस प्रदर्शन को वह अपना सर्वश्रेष्ठ प्रर्दशन मानती हैं।
"भारतीय एथलीट अंजू बॉबी जार्ज ने वर्ल्ड एथलेटिक्स से वुमन ऑफ द ईयर अवार्ड २०२१ का पुरस्कार जीता" (एडिटेड बाय आदित्य हरगोविन्द सिर)
"वर्ष २०१६ में उन्होंने युवा लड़कियों के लिए एक खेल अकादमी भी बनाई थी जिसके माध्यम से उन्होंने भारत में लड़कियों को खेलों में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया था"(एडिटेड बाय आदित्य हरगोविन्द सिर)
२००२- अर्जुन पुरस्कार,२००३ ,
अंजू का जन्म केरल में चंगनाश्शेरी के कोचूपरम्बिल परिवार में के.टी.मारकोस के घर हुआ। शुरुआत में उनके पिता ने उन्हें एथलेटिक्स सिखाया, आगे चलकर कोरूथोड स्कूल में उनके प्रशिक्षक ने एथेलेटिक्स में उनकी रूचि विकसित की। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा सीकेएम कोरूथोड स्कूल से पूरी की और विमला कॉलेज से स्नातक किया। सन् १९९१-९२ में स्कूल एथलेटिक सम्मेलन में उन्होंने १०० मीटर बाधा व रिले दौड़ में जीत हासिल की और लंबी कूद व उंची कूद प्रतियोगिताओं में वह दूसरे स्थान पर रहीं, इस प्रकार वे महिलाओं की चैंपियन बनीं। अंजू की प्रतिभा को राष्ट्रीय स्कूल खेलों में सबने देखा जहां उन्होंने १०० मीटर बाधा दौड़ और ४क्स१०० मीटर रिले में तीसरा स्थान प्राप्त किया। वे कालीकट विश्वविद्यालय में थीं।
हालांकि उन्होंने अपनी शुरुआत हेप्टाथलान के साथ की थी, लेकिन बाद में उन्होंने कूद की प्रतियोगिताओं पर ध्यान देना शुरू किया और १९९६ दिल्ली जूनियर एशियन चैंपियनशिप में लंबी कूद का खिताब जीता। १९९९ में अंजू ने बंगलोर फेडरेशन कप में ट्रिपल जंप का राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया और नेपाल में हुए दक्षिण एशियाई फेडरेशन खेलों में रजत पदक प्राप्त किया। सन् २००१ में अंजू ने तिरुअनंतपुरम में आयोजित नेशनल सर्किट मीट में लंबी कूद के अपने रिकॉर्ड को और बेहतर बनाकर ६.७४ मीटर कर दिया। इसी वर्ष उन्होंने लुधियाना में हुए राष्ट्रीय खेलों में ट्रिपल जंप और लंबी कूद में स्वर्ण पदक जीता। अंजू ने हैदराबाद राष्ट्रीय खेलों में भी अपनी प्रतियोगिताओं में सर्वोच्च स्थान बनाए रखा। उन्होंने २००२ में मैनचेस्टर में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में ६.४९ मीटर की कूद लगाकर कांस्य पदक जीता। उन्होंने बुसान में हुए एशियाई खेलों में भी स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने पेरिस में २००३ में हुई विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में ६.७० मीटर लंबी कूद लगाते हुए कांस्य पदक जीतकर इतीहास रच दिया, इसके साथ ही विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली पहली भारतीय एथलीट बन गईं। उन्होंने २००३ एफ्रो एशियाई खेलों में एक स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने २००४ में एथेंस में हुए ओलंपिक खेलों में व्यक्तिगत रूप से अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए ६.८३ मीटर की छलांग लगाई और वे छठे स्थान पर रहीं। सितम्बर २००५ में, दक्षिण कोरिया के इनचान शहर में आयोजित 1६ वीं एशियन एथेलेटिक्स चैम्पियनशिप में उन्होंने महिलाओं की लंबी कूद में ६.६5 मीटर की छलांग लगाकर स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने २००५ में हुए आईएएएफ (आइएएएफ) विश्व एथलेटिक्स फाइनल में ६.७५ मीटर की छलांग लगाकर रजत पदक जीता, इस प्रदर्शन को वे अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन मानती हैं। उन्होंने 200६ में दोहा में आयोजित १५ वें एशियाई खेलों में महिला वर्ग की लंबी कूद में रजत पदक जीता। २००७ में अम्मान (जॉर्डन) में हुई १७ वीं एशियाई एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में अंजू ने ६.६5 मीटर की छलांग लगाकर रजत पदक जीता और अगस्त २००७ में ओसाका होने वाली विश्व चैंपियनशिप के लिए क्वालीफाई किया जहां वे नौवें स्थान पर रहीं। अंजू ने २००८ में अपने सत्र की शुरूआत, दोहा (कतर) में आयोजित तीसरी एशियाई इंडोर चैंपियनशिप में ६.३८ मीटर की छलांग लगाकर रजत पदक के साथ की और उसके बाद उन्होंने अपनी कूद में सुधार करते हुए कोच्चि (केरल, भारत) में आयोजित तीसरी दक्षिण एशियाई एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में ६.५० मीटर की छलांग लगाकर स्वर्ण पदक जीता।
२००२-२००३ में उन्हें भारत सरकार द्वारा खेल के प्रख्यात व्यक्तियों को दिए जाने वाले प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार से नवाज़ा गया तथा २००२-२००४ में विश्व एथलेटिक मीट में उनकी सफलता के बाद उन्हें खेल के सर्वोच्च पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न से नवाजा गया। २००४ में उन्हें भारत के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया। १२ फ़रवरी २००७ को, एथलेटिक्स फेडरेशन के अंतरराष्ट्रीय संघ (आइएएएफ) की रैंकिंग में अंजू को २८ वें स्थान पर रखा गया (वह रैंकिंग में एक बार विश्व में चौथे स्थान पर भी रह चुकी हैं)।
२००१ में ६१ वीं रैंक से वर्ष २००३ में छठे स्थान तक की महज दो वर्षों की उनकी यह सफल यात्रा, उनके कड़े परिश्रम और गहन योजनाबद्ध तरीके से काम करने का नतीजा है। इसकी सफलता का श्रेय उनके पति और कोच रॉबर्ट बॉबी जॉर्ज को जाता है, जो अंजू के अनुसार उनकी क्षमता को बाहर लाने और लक्ष्य प्राप्त करने में उनकी सबसे ज्यादा सहायता करते हैं। बॉबी जो स्वयं एक मैकेनिकल इंजीनियर और पूर्व राष्ट्रीय चैंपियन हैं, ने अंजू का पूर्णकालिक कोच बनने के लिए १९९८ में अपने करियर को समाप्त कर दिया। वह एक प्रतिष्ठित खेल परिवार से ताल्लुक रखते हैं और उनके छोटे भाई जिम्मी जॉर्ज एक प्रसिद्ध वॉलीबॉल खिलाड़ी हैं। विश्व एथेलेटिक्स मीट से पहले अंजू बॉबी को ये अहसास हुआ कि विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं में मुकाबले के लिए अंतरराष्ट्रीय एक्सपोजर होना बहुत आवश्यक है, इसलिए उन्होंने विश्व रिकॉर्ड धारक माइक पॉवेल के साथ प्रशिक्षण लेना शुरू किया, जिसने उन्हें तकनीक में मूल्यवान एक्सपोजर प्रदान किया।
उन्होंने २००४ के एथेंस ओलंपिक में भाग लिया लेकिन पदक जीतने में असफल रहीं। उन्होंने २००८ के बीजिंग ओलंपिक में भी भाग लिया लेकिन अपने तीनों प्रयासों में फाउल के चलते वह महिला लंबी कूद प्रतियोगिता के लिए क्वालीफाई करने में असफल रहीं।
अंजू का विवाह रॉबर्ट बॉबी जॉर्ज से हुआ जो ट्रिपल जंप में पूर्व राष्ट्रीय चैंपियन और उनके कोच भी रहे हैं। अंजू कस्टम विभाग में कार्यरत है। वह बेंगलौर में रहती हैं और वह प्रशिक्षण भी वही से प्राप्त करती हैं। उनकी खेल उपलब्धियों को देखते हुए चेन्नई कस्टम्स हाउस ने बिना बारी के उनको पदोन्नति दी। दो बार की ओलिम्पियन अंजू को सीमा शुल्क विभाग में अधीक्षक स्तर पर पदोन्नति दी गई।।
१९७७ में जन्मे लोग
२००४ ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में एथलेटिक्स
२००८ ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में एथलेटिक्स
राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय स्वर्ण पदक विजेता
२००२ राष्ट्रमंडल खेलों में एथलेटिक्स
राष्ट्रमंडल खेलों के लिए भारतीय प्रतियोगी
राजीव गांधी खेल रत्न के प्राप्तकर्ता
कोट्टयम के लोग
भारत के ओलंपिक एथलीट
केरल के खिलाड़ी
अर्जुन पुरस्कार के प्राप्तकर्ता
भारतीय लॉन्ग जम्पर्स
एशियाई खेलों में भारतीय स्वर्ण पदक के विजेताओं के नाम
भारतीय रोमन कैथलिक
भारतीय महिला खिलाड़ी |
एक भारतीय उपनाम है। राय का मतलब राजा होता है। जो पूर्वी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार बंगाल आदि के ज्यादातर जमींदार लोगो को दिया गया था। |
प्यार मोहब्बत १९८८ में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है।
नामांकन और पुरस्कार
१९८८ में बनी हिन्दी फ़िल्म |
जामसर, भारत में, राजस्थान राज्य के बीकानेर शहर के पास स्थित एक छोटा सा गाँव है। २०११ में भारत सरकार द्वारा की गई जनगणना के अनुसार यहाँ ४६७ परिवार रहते हैं। यह एक रेगिस्तानी इलाका है।
जामसर की भौगोलिक स्तिथि २८.२५ डिग्री उत्तरी अक्षांश ७३.३९ डिग्री पूर्व है।
भारत में २०११ में हुई जनगणना के अनुसार जामसर की कुल जनसंख्या २८६९ है, जिसमें की पुरुष ५३ प्रतिशत और महिलाएँ ४७ प्रतिशत हैं। जामसर की औसत साक्षरता दर ४३ प्रतिशत है जिसमें पुरुषों की ६७ प्रतिशत और महिलाओं की ३३ प्रतिशत है।
गंगाईनाथ जी की समाधि
बाबा श्री गंगाईनाथ एक आईपंथी नाथ योगी थे जिन्होंने एकादशी के दिन ३१ दिसम्बर १९८३ को सुबह ५ बजकर २२ मिनट पर जामसर में समाधि ली। अध्यात्म विज्ञान सत्संग केन्द्र, जोधपुर के संस्थापक एवं संरक्षक श्री रामलाल जी सियाग उनके परम शिष्य थे जिन्हें उन्होंने शक्तिपात दीक्षा की सामथ्र्य प्रदान कर गुरुपद सौंपा। प्रतिवर्ष हिन्दु कैलेण्डर के पौष कृष्ण एकादशी को बाबा गंगाईनाथ के जामसर आश्रम में उनके शिष्यों द्वारा एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। |
गर्भाशय-उच्छेदन या हिस्टरेक्टॉमी (अंग्रेजी: हिस्टेरेक्टोमी), शल्यक्रिया द्वारा गर्भाशय को निकालने या हटाने को कहते हैं। इस प्रक्रिया में गर्भाशय, अंडाशय, फैलोपियन नलिका और आसपास के अन्य अवयवों को हटाना भी शामिल हो सकता है। |
२०१८ विटालिटी ब्लास्ट इंग्लैंड और वेल्स में एक पेशेवर ट्वेंटी-२० क्रिकेट लीग टी-२० ब्लास्ट का २०१८ सीजन है। यह पहला सीजन है जिसमें ईसीबी द्वारा संचालित घरेलू टी-२० प्रतियोगिता को नए प्रायोजन सौदे के कारण विटालिटी ब्लास्ट के रूप में ब्रांडेड किया गया है। लीग में १८ प्रथम श्रेणी की काउंटी टीमों में शामिल हैं जिनमें नौ टीमों के दो डिवीजनों में विभाजित किया गया है जिसमें प्रत्येक जुलाई और सितंबर के बीच खेला जाता है। फाइनल दिवस १५ सितंबर २०१८ को बर्मिंघम में एडबस्टन क्रिकेट ग्राउंड में होगा। नॉटिंघमशायर आउटलाज टूर्नामेंट में शामिल चैंपियन हैं, जिन्होंने २०17 के फाइनल में बर्मिंघम भालू को २२ रन से हराया था। |
दलमोटा-अस०ई, पौडी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है।
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उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
दलमोटा-अस०ई, पौडी तहसील
दलमोटा-अस०ई, पौडी तहसील |
शकुंतला ये भारतीय प्रसिद्ध चित्रकार राजा रवि वर्मा द्वारा निर्मित कई चित्रोंका नाम है। इन चित्रों में राजा रवि वर्मा ने पुराणों में वर्णित शकुंतला को दर्शाया है जो ऋषि विश्वामित्र तथा स्वर्ग की अप्सरा, मेनका की पुत्री थी। कवी कालिदास के नाटक अभिज्ञानशाकुन्तलम् में शकुंतला एवं राजा दुष्यन्त की विलक्षण कथा है। चित्रकार राजा रवि वर्मा ने इसी कथापे आधारित कई चित्र बनाए है जो शकुंतला को दर्शाते है। |
भगवान वाल्मीकि तीर्थ स्थल उत्तर भारत स्थित भारतवर्ष के पंजाब प्रदेश के अमृतसर शहर में स्थित, अत्यन्त प्राचीन व ऐतिहासिक श्री वाल्मीकि आश्रम है। यह भारतीय इतिहास तथा वाल्मीकि समाज के चुनिन्दा और महत्वपूर्ण श्री वाल्मीकि आश्रम में से एक है। १ दिसंबर 20१6 को, इसके मुख्य भाग में भगवान वाल्मीकि की ८ फुट ऊंची ८00 किलोग्राम सोने की प्रतिमा लगायी गई।'''
इस ऐतिहासिक प्राचीन भगवान वाल्मीकि तीर्थ स्थल का प्रबंधन और देखरेख भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज रजि० भावाधस के द्वारा किया जाता हैं
प्राचीन समय में इस जगह माँ सीता ने वनवास काटा और लव-कुश को जन्म दिया | यहाँ पर ही लव-कुश ने राजा राम , लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और उनकी सेना को पराजय किया और लव-कुश की जीत हुई |
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हिन्दू धार्मिक व्यक्तित्व
हिन्दू तीर्थ स्थल |
बर्हुवा में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत पुर्णिया मण्डल के अररिया जिले का एक गाँव है।
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बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
बिहार के गाँव |
१९९० मियामी मास्टर्स
आंद्रे अगासी ने स्टीफन एडबर्ग को ६-१, ६-४, ०-६, ६-२ से हराया।
१९९० मियामी मास्टर्स |
विशु भटनागर अपने मंच के नाम से बेहतर कुमार विशु एक भारतीय भक्ति पार्श्व गायक है जिनके गीत मुख्य रूप से हिंदी भक्ति फिल्मों और टेलीविजन धारावाहिकों में दिखाए गए हैं। उन्होंने भारत के प्रमुख गायकों और टी-सीरीज़ , हम्व, वीनस, सोनोटेक और क्व्क संगीत सहित भारत के प्रमुख रिकॉर्ड लेबलों के साथ २०० से अधिक भक्ति एल्बम गाए हैं। सारेगामा और अन्य रिकॉर्ड लेबल
विशु को राष्ट्रपति पुरस्कार, सिनेमा सेंचुरी पुरस्कार और अन्य मिले हैं। उन्होंने पंजाबी, राजस्थानी और अन्य भारतीय भाषाओं सहित कई भाषाओं में गाया है और टी-सीरीज़ द्वारा सात वर्षों के लिए साइन किया गया था।
विशु को भजन, भक्ति संगीत, ग़ज़ल और सुंदरकांड के गायन की मधुर शैली के लिए जाना जाता है। टी-सीरीज़ के साथ उनका एल्बम रामायण की चौपाइयाँ और प्यासे को पानि पिलाया नहीं भक्ति एल्बम श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ विक्रेता रहा है। उनके कुछ प्रमुख गीतों में कभी प्यासे कोई पानी पिलाया नहीं, खज़ाना मइया का, घर घर में है रावण बैठा, उड़ जा हंस अकेला, कबीर अमृत वाणी, हनुमान गाथा, कर्मो की है माया और अन्य शामिल हैं।
उन्होंने भारत और विदेशों में कई स्टेज परफॉर्मेंस दिए हैं, एक लोकप्रिय भक्ति गायक के रूप में उभरे हैं। अपने गायन के अलावा, उन्होंने एक गायन और वाद्य प्रशिक्षण संस्थान की भी स्थापना की।
सिनेमा सेंचुरी अवार्ड
भक्त शिरोमणि सिनेमा सेंचुरी अवार्ड
बॉलीवुड पार्श्व गायक
भारतीय पुरुष गायक
जन्म का वर्ष लापता (जीवित लोग)
जन्म का स्थान लापता (जीवित लोग) |
हवलदार, भारतीय सेना एवं पाकिस्तानी सेना दोनों में एक पद (रैंक) है, जो सर्जेन्ट के पद के तुल्य है। यह पद नायब सूबेदार से छोटा और नायक से बडा होता है। |
फूटीकूडा, भिकियासैण तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
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उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
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उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
फूटीकूडा, भिकियासैण तहसील
फूटीकूडा, भिकियासैण तहसील |
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विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के परिमाण के क्रम समझने हेतु यहां १,००,००० वर्ग कि.मी से १०,००,००० वर्ग कि.मी के क्षेत्र दिये गए हैं।
१ लाख कि.मी २ से छोटे क्षेत्र
१००,०००कि.मी२ बराबर होता है:
१ ए+११ म२
३८,६०० वर्ग मील
एक वर्ग जिसकी भुजाएं ३१६ कि.मी हो
एक वृत्त जिसकी त्रिज्या १७८ कि.मी हो
१००,०३२कि.मी२ -- दक्षिण कोरिया (क्षेत्रफ़ल अनुसार १०८वें स्थान पर)
१००,२५०कि.मी२ -- आइसलैंड
१००,८००कि.मी२ -- रोस्तोव ओब्लास्ट, रूस
१००,८६०कि.मी२ -- क्यूबा (१०६वें स्थान पर)
१०१,८००कि.मी२ -- झेजियांग
१०२,६००कि.मी२ -- जिआंग्शु,
१०३,०००कि.मी२ -- आइसलैंड
१०४,६५९कि.मी२ -- केन्टकी
१०८,८९०कि.मी२ -- ग्वाटेमाला
१०९,१५१कि.मी२ -- टेनेसी
११०,७८५कि.मी२ -- वर्जिनिया
१११,००२कि.मी२ -- बल्गारिया
१११,३७०कि.मी२ -- लाईबेरिया
१११,३९०कि.मी२ -- न्यूफ़ाउण्डलैण्ड द्वीप
११२,४९२कि.मी२ -- हॉन्डुरास
११२,६२०कि.मी२ -- बेनिन
११४,०५०कि.मी२ -- उत्तरी द्वीप, न्यूज़ीलैण्ड
११६,०९६कि.मी२ -- ओहायो
११८,४८०कि.मी२ -- मालावी
११९,२८३कि.मी२ -- पेन्सिलवेनिया
१२०,५४०कि.मी२ -- उत्तरी कोरिया
१२१,३२०कि.मी२ -- ईरिट्रिया
१२१,४००कि.मी२ -- फ़ूज्यान
१२४,४५०कि.मी२ -- सारावाक, मलेशिया का सबसे बड़ा राज्य
१२५,४३४कि.मी२ -- मिसिसिपी
१३०,०५८कि.मी२ -- तमिल नाडु, भारत का राज्य
१२९,४९४कि.मी२ -- निकारागुआ
१३०,८००कि.मी२ -- यूनान (भूमि)
१३१,९४०कि.मी२ -- यूनान
१३४,२६४कि.मी२ -- लुईज़ियाना
१३५,१९४कि.मी२ -- छत्तीसगढ़, भारत का राज्य
१३५,७६५कि.मी२ -- अलबामा
१३७,७३२कि.मी२ -- आर्कन्सा
१३९,४००कि.मी२ -- अंहुई
१३९,५०९कि.मी२ -- नार्थ केरोलाइना
१४०,८००कि.मी२ -- नेपाल
१४१,२९९कि.मी२ -- न्यू यॉर्क
१४३,१००कि.मी२ -- ताजिकिस्तान
१४४,०००कि.मी२ -- बांग्लादेश
१४५,७००कि.मी२ -- वोलोग्दा ओब्लास्ट, रूस
१४५,७४३कि.मी२ -- आयोवा
१४५,९००कि.मी२ -- लियाओनिंग
१४६,३४८कि.मी२ -- सियारा
१४९,९८२कि.मी२ -- कोआविला, मेक्सिको का राज्य
१४९,९९८कि.मी२ -- इलिनॉय
१५१,२१५कि.मी२ -- दक्षिणी द्वीप, न्यूज़ीलैण्ड
१५३,९०९कि.मी२ -- जार्जिया
१५५,७०७कि.मी२ -- ओडिशा, भारत का राज्य
१५६,७००कि.मी२ -- शांगदोंग
१५६,८००कि.मी२ -- शन्श़ी
१६०,०००कि.मी२ -- एड्रियाटिक सागर
१६३,२७०कि.मी२ -- सूरीनाम
१६३,६१०कि.मी२ -- ट्यूनिशिया
१६६,९००कि.मी२ -- जिआंग्श़ी
१६७,०००कि.मी२ -- हेनान
१६९,६३९कि.मी२ -- विस्कान्सिन
१७०,३०४कि.मी२ -- फ्लोरिडा
१७६,१००कि.मी२ -- गुईझोउ
१७६,२२०कि.मी२ -- युरुग्वे
१७७,९००कि.मी२ -- ग्वांगडोंग
१८०,५३३कि.मी२ -- मिसौरी
१८१,०३५कि.मी२ -- ओक्लाहोमा
१८१,०४०कि.मी२ -- कंबोडिया
१८३,११२कि.मी२ -- नार्थ डेकोटा
१८४,६६५कि.मी२ -- वाशिंगटन
१८५,१८०कि.मी२ -- सीरिया
१८५,९००कि.मी२ -- हुबेई
१८६,४५९कि.मी२ -- न्यू इंग्लैंड
१८७,४००कि.मी२ -- जिलिन
१८७,७००कि.मी२ -- हेबेइ
१९२,०००कि.मी२ -- कर्नाटक, भारत का राज्य
१९६,०२४कि.मी२ -- गुजरात, भारत का राज्य
१९६,१९०कि.मी२ -- सेनेगल
१९८,५००कि.मी२ -- किर्घिस्तान
१९९,७३१कि.मी२ -- साउथ डेकोटा
२००,३४५कि.मी२ -- नेब्रास्का
२०५,८००कि.मी२ -- शान्श़ी
२०६,३७५कि.मी२ -- मिनेसोटा (भूमि)
२०७,६००कि.मी२ -- बेलारुस
२११,८००कि.मी२ -- हूनान
२१३,०९६कि.मी२ -- केन्सास
२१४,९७०कि.मी२ -- गुयाना
२१६,४४६कि.मी२ -- आयडाहो
२१९,८८७कि.मी२ -- यूटा
२२२,२३६कि.मी२ -- जम्मू एवं कश्मीर
२२५,१७१कि.मी२ -- मिनेसोटा
२२७,४१६कि.मी२ -- विक्टोरिया (ऑस्ट्रेलिया)
२२९,८५०कि.मी२ -- ग्रेट ब्रिटेन
२३०,३४०कि.मी२ -- रोमानिया (भूमि)
२३६,०४०कि.मी२ -- युगांडा
२३६,७००कि.मी२ -- गुआंग्श़ी
२३६,८००कि.मी२ -- लाओस
२३८,३९१कि.मी२ -- रोमानिया
२३८,५४०कि.मी२ -- घाना
२३८,५६६कि.मी२ -- उत्तर प्रदेश, भारत का राज्य
२४१,५९०कि.मी२ -- यूनाइटेड किंगडम (भूमि)
२४४,८२०कि.मी२ -- यूनाइटेड किंगडम
२४४,९३८कि.मी२ -- चिवावा (मैक्सिको का सबसे बड़ा राज्य)
२४५,८५७कि.मी२ -- गिनी
२४८,२०९कि.मी२ -- साओ पाउलो, ब्राज़ील
२५०,४९४कि.मी२ -- मिशिगन
२५३,३३६कि.मी२ -- वायोमिंग
२५४,८०५कि.मी२ -- ओरेगान
२५५,८०४कि.मी२ -- युगोस्लाविया (विखंडन से पूर्व)
२५६,३७०कि.मी२ -- ईक्वाडोर
२६७,६६७कि.मी२ -- गबॉन
२६८,६८०कि.मी२ -- न्यूज़ीलैंड
२६९,६०१कि.मी२ -- कालरेडो
२७०,५३४कि.मी२ -- न्यूज़ीलैंड (भूमि)
२७४,२००कि.मी२ -- बुर्किना फासो
२७५,०६८कि.मी२ -- आंध्र प्रदेश, भारत का राज्य
२८२,०६२कि.मी२ -- रियो ग्रांडो दो सुल, ब्राज़ील का राज्य
२८६,३५१कि.मी२ -- नेवाडा
२९४,०२०कि.मी२ -- इटली (भूमि)
२९४,३३०कि.मी२ -- लेब्राडोर
२९५,२५४कि.मी२ -- एरिज़ोना
२९७,३३०कि.मी२ -- बै-जेम्स (उत्तरी कीबैक, कनाडा की नगर पालिका), विश्व की सबसे बड़ी नगर पालिका।
३००,०७६कि.मी२ -- फ़िलीपीन्स
३०१,२३०कि.मी२ -- इटली
३०५,४७०कि.मी२ -- फिनलैंड (भूमि)
३०७,७१३कि.मी२ -- महाराष्ट्र, भारत का राज्य
३०७,८६०कि.मी२ -- नॉर्वे (भूमि)
३०८,१४४कि.मी२ -- मध्य प्रदेश, भारत का राज्य
३०९,५५०कि.मी२ -- ओमान
३१२,६८५कि.मी२ -- पोलैंड
३१४,९१५कि.मी२ -- न्यू मेक्सिको
३२२,४६०कि.मी२ -- कोत द'ईवोआर
३२४,२२०कि.मी२ -- नॉर्वे
३२९,५६०कि.मी२ -- वियतनाम
३२९,७५०कि.मी२ -- मलेशिया
३३८,१४५कि.मी२ -- फिनलैंड
३३८,३००कि.मी२ -- संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रीय उद्यानों का कुल क्षेत्र
३४२,०००कि.मी२ -- कांगो गणराज्य
३४२,२३९कि.मी२ -- राजस्थान, भारत का राज्य
३४९,२२३कि.मी२ -- जर्मनी (भूमि)
३५७,०२१कि.मी२ -- जर्मनी
३५७,१२४कि.मी२ -- मातो ग्रोसो दो सुल, ब्राज़ील का राज्य
३६८,८५२कि.मी२ -- लोरेटो क्षेत्र, पेरू
३७३,८७२कि.मी२ -- न्यूफ़ाउण्डलैण्ड और लैब्राडोर (भूमि)
३७७,८७३कि.मी२ -- जापान
३८०,८३८कि.मी२ -- मोन्टाना
३९०,५८०कि.मी२ -- ज़िंबाब्वे
३९४,१००कि.मी२ -- युन्नान
४०५,२१२कि.मी२ -- न्यूफ़ाउण्डलैण्ड और लैब्राडोर
४०६,७५०कि.मी२ -- पैराग्वे
४१०,९३४कि.मी२ -- स्वीडन (भूमि)
४२२,०००कि.मी२ -- ब्लैक सागर
४२३,९७०कि.मी२ -- कैलीफोर्निया
४३७,०७२कि.मी२ -- ईराक
४४६,५५०कि.मी२ -- मोरोक्को
४४७,४००कि.मी२ -- उज़्बेकिस्तान
४४९,९६४कि.मी२ -- स्वीडन
४५४,०००कि.मी२ -- गांसू
४६०,०००कि.मी२ -- हिलोंग्जियांग
४६२,८४०कि.मी२ -- पापुआ न्यू गिनी
४७४,३९१कि.मी२ -- यूकॉन (भूमि)
४७५,४४०कि.मी२ -- कैमेरून
४८०,०००कि.मी२ -- सिन्धु घाटी सभ्यता अपने चरम पर
४८२,४४३कि.मी२ -- यूकॉन
४८५,०००कि.मी२ -- सिचुआन
४८८,१००कि.मी२ -- तुर्कमेनिस्तान
४९९,५४२कि.मी२ -- स्पेन (भूमि)
५००,०००कि.मी२ -- कालाहारी मरुस्थल
५०४,७८२कि.मी२ -- स्पेन
५१४,०००कि.मी२ -- थाईलैण्ड
५२७,९७०कि.मी२ -- यमन
५५०,०००कि.मी२ -- बाल्कन
५५३,५५६कि.मी२ -- मानिटोबा (भूमि)
५८२,६५०कि.मी२ -- कीनिया
५८७,०४०कि.मी२ -- मेडागास्कर
५९१,६७०कि.मी२ -- सास्काचिवान (भूमि)
६००,३७०कि.मी२ -- बोत्सवाना
६०३,७००कि.मी२ -- युक्रेन
६२२,९८४कि.मी२ -- मध्य अफ़्रीकी गणराज्य
६३७,६५७कि.मी२ -- सोमालिया
६४२,३१७कि.मी२ -- अल्बर्टा (भूमि)
६४७,५००कि.मी२ -- अफ़्गानिस्तान
६४७,७९७कि.मी२ -- मानिटोबा
६५१,०३६कि.मी२ -- सास्काचिवान
६६१,८४८कि.मी२ -- अल्बर्टा
६७८,५००कि.मी२ -- बर्मा
६९५,६२१कि.मी२ -- टेक्सास
७२१,०००कि.मी२ -- चिंग हई
७५२,६१४कि.मी२ -- ज़ाम्बिया
७५६,९५०कि.मी२ -- चिली
७८०,५८०कि.मी२ -- तुर्की
८००,६४२कि.मी२ -- न्यू साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया का राज्य
८०१,५९०कि.मी२ -- मोज़ाम्बिक
८०३,९४०कि.मी२ -- पाकिस्तान
९०३,३५७कि.मी२ -- मातो ग्रोसो, ब्राज़ील का राज्य
८२५,४१८कि.मी२ -- नामीबिया
९१२,०५०कि.मी२ -- वेनेज़ुएला
९१७,७४१कि.मी२ -- ओण्टारियो (भूमि)
९२३,७६८कि.मी२ -- नाईजीरिया
९२५,१८६कि.मी२ -- ब्रिटिश कोलम्बिया (भूमि)
९४४,७५३कि.मी२ -- ब्रिटिश कोलम्बिया
९४८,०८७कि.मी२ -- तंज़ानिया (कुल क्षेत्रफल में ३०वां स्थान)
९८४,०००कि.मी२ -- साउथ ऑस्ट्रेलिया (ऑस्ट्रेलिया का राज्य)
१,०००,००० कि.मी२ से बड़े क्षेत्र |
डुगरीजोशी, पिथौरागढ (सदर) तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
डुगरीजोशी, पिथौरागढ (सदर) तहसील
डुगरीजोशी, पिथौरागढ (सदर) तहसील |
हुआन दे फ़ूका प्लेट एक भौगोलिक प्लेट है जिसके ऊपर उत्तरपूर्वी प्रशांत महासागर का छोटा सा हिस्सा और उत्तर अमेरिका के महाद्वीप के सुदूर पश्चिमी भाग का कुछ हिस्सा स्थित है। यह पृथ्वी के सारे भौगोलिक तख़्तों में सब से छोटा है। करोड़ों वर्ष पूर्व एक बहुत बड़ा फारालोन प्लेट हुआ करता था जो उत्तर अमेरिकी प्लेट से टकराया और धीरे-धीरे उसके नीचे धंस गया। अब उसके कुछ बचेकुचे हिस्से हैं जिसमें से एक हुआन दे फ़ूका प्लेट है और दूसरा कोकोस प्लेट है। हुआन दे फ़ूका प्लेट के ख़ुद तीन हिस्से बन रहें हैं - जिनके उत्तरी हिस्से को "ऍक्स्प्लोरर प्लेट" और दक्षिणी हिस्से को "गोर्दा प्लेट" कहा जाता है।
इन्हें भी देखें
हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना |
रोजर गालवांगो मुकासा (जन्म २२ अगस्त १९८९) एक युगांडा के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर हैं। उन्होंने २००६ का अंडर-१९ क्रिकेट विश्व कप श्रीलंका में खेला। उन्होंने प्रथम श्रेणी, लिस्ट ए और ट्वेंटी २० क्रिकेट में युगांडा का प्रतिनिधित्व किया है। उनकी शर्ट की संख्या ३७ है।
१९८९ में जन्मे लोग |
द्वि-हाइड्राक्सि ऐलकोहलों को ग्लाइकोल (ग्लायकॉल) के नाम से संबोधित किया जाता है। इनकी उत्पत्ति किसी हाइड्रोकार्बन के दो हाइड्रोजन परमाणुओं को दो हाइड्राक्सिल समूहों से प्रतिस्थापित करके हो सकती है, पर दोनों हाइड्राक्सिल समूह भिन्न भिन्न कार्बनों से संयुक्त होने चाहिए। हाइड्राक्सिल समूहों के पारस्परिक स्थानों के विचार से इन्हें ऐल्फा-, बीटा-, गामा-, अथवा डेल्टा-ग्लाइकोलों में श्रेणीबद्ध किया जाता है।
इस वर्ग का सबसे सरल यौगिक एथिलीन ग्लाइकोल है, जिसे केवल ग्लाइकोल भी कहते हैं। इसका रासायनिक सूत्र हो-च२-च२-ओह है।
इनके उच्च सजातीय, ऐल्फा प्रोपिलीन ग्लाइकोल च३. च. ओह. च२ ओह) तथा च३. च (ओह). च (ओह)च३) भी चाशनी सदृश द्रव हैं और इनकी प्राप्ति प्रोपिलीन तथा ब्यूटिलीन से होती है। कुछ संकीर्ण ग्लाइकोल भी कीटोनों के वैद्युत-विश्लेषी अपकरण पर प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार ऐसीटोन से एक ग्लाइकोल, जिसे पिनैकोल (टेट्रा मेथाइल एथिलीन ग्लाइकोल) कहते हैं, प्राप्त होता है। इसका गलनांक ३८ सें. है और ये सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ आसवन करने पर एक कीटोन, पिनैकोलीन देता है।
[[श्रेणी:कार्बनिक विसिनल ग्लाइकोल के ऑक्सीकारक विदलन समझाइए? |
अरवकुरिची (पंज्यपुगलूर) भारत के तमिल नाडु राज्य के करूर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह बृहत पुगलूर शहर का एक भाग है, और उसका दूसरा भाग "नंजईपुगलूर" कहलाता है जो पुंजईपुगलूर के पड़ोस में स्थित है।
इन्हें भी देखें
तमिल नाडु के शहर
करूर ज़िले के नगर |
गोकुल प्रसाद,भारत के उत्तर प्रदेश की दूसरी विधानसभा सभा में विधायक रहे। १९५७ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के १७१ - चायल विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया।
उत्तर प्रदेश की दूसरी विधान सभा के सदस्य
१७१ - चायल के विधायक
इलाहाबाद के विधायक
कांग्रेस के विधायक |
औरंगाबाद (म) - वार्ड नो.११ में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद जिले का एक गाँव है।
बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
बिहार के गाँव |
इसे बिएन दे इंतेरेस कल्चरल की श्रेणी में १९८२ में शामिल किया गया था। .
स्पेन के गिरजाघर
स्पेन के स्मारक |
डिजिटल वॉटरमार्किंग सूचना को डिजिटल सिग्नल में एक ऐसे तरीक़े से अंतःस्थापित करने की प्रक्रिया है, जिसे हटाना मुश्किल है। यह सिग्नल, उदाहरण के लिए, ऑडियो, चित्र या वीडियो हो सकता है। यदि सिग्नल की नक़ल उतारी जाती है, तो सूचना भी प्रतिलिपि में उतर जाती है। एक सिग्नल में एक ही समय में कई अलग-अलग वॉटरमार्क हो सकते हैं।
दृश्य वॉटरमार्किंग में सूचना, चित्र या वीडियो में दिखाई देती है। आम तौर पर सूचना, पाठ या लोगो होती है, जो मीडिया के मालिक की पहचान कराती है। दाईं ओर छवि पर एक दृश्य वॉटरमार्क है। जब एक टेलीविज़न प्रसारक संप्रेषित वीडियो के कोने में अपने लोगो को जोड़ता है, तो यह भी एक दृश्य वॉटरमार्क है।
अदृश्य वॉटरमार्किंग में, सूचना को ऑडियो, चित्र या वीडियो में डिजिटल डेटा के रूप में जोड़ा जाता है, लेकिन उसे प्रत्यक्ष देखा नहीं जा सकता (हालांकि यह पता लगाना संभव हो सकता है कि कुछ सूचना प्रच्छन्न है). वॉटरमार्क व्यापक उपयोग के उद्देश्य से हो सकता है और इस प्रकार आसानी से पुनः प्राप्त करने या स्टीगेनोग्राफ़ी के रूप में हो सकता है, जहां पक्ष डिजिटल सिग्नल में अंतर्स्थापित गुप्त संदेश को संप्रेषित करती है। दोनों ही मामलो में उद्देश्य, दृश्य वॉटरमार्किंग की तरह, स्वामित्व या अन्य कोई वर्णनात्मक सूचना सिग्नल में कुछ इस तरह जोड़ना है कि उसे हटाना मुश्किल है। यह भी संभव है कि व्यक्तियों के बीच गुप्त संचार के साधन के रूप में प्रच्छन्न अंतर्स्थापित सूचना का उपयोग किया जाए.
वॉटरमार्किंग का एक अनुप्रयोग कॉपीराइट संरक्षण प्रणाली है, जो डिजिटल मीडिया के अप्राधिकृत नक़ल को रोकने या निवारण के इरादे से प्रयुक्त होता है। इस प्रयोग में एक प्रतिलिपि साधन प्रतिलिपि बनाने से पहले सिग्नल से वॉटरमार्क को पुनःप्राप्त करता है; वह साधन वॉटरमार्क की अंतर्वस्तु के आधार पर प्रतिलिपि बनाने या ना बनाने का निर्णय लेता है। एक अन्य अनुप्रयोग स्रोत ट्रैकिंग में है। एक वॉटरमार्क प्रत्येक वितरण बिंदु पर डिजिटल सिग्नल में अंतःस्थापित किया जाता है। यदि कार्य की प्रतिलिपि बाद में पाई जाती है, तो वॉटरमार्क को प्रतिलिपि से पुनःप्राप्त किया जा सकता है और वितरण के स्रोत का पता लग सकता है। कथित तौर पर इस तकनीक का इस्तेमाल अवैध तरीके से फ़िल्मों की नक़ल तैयार करने वाले स्रोत का पता लगाने के लिए किया जाता है।
अदृश्य वॉटरमार्किंग का एक और अनुप्रयोग है वर्णनात्मक जानकारी के साथ डिजिटल तस्वीरों की व्याख्या.
जहां डिजिटल मीडिया के कुछ फ़ाइल प्रारूपों में मेटाडाटा नामक अतिरिक्त सूचना शामिल हो सकती है, डिजिटल वॉटरमार्किंग इस अर्थ में भिन्न है कि डेटा सिग्नल में ही शामिल होता है।
वॉटरमार्किंग शब्द का उपयोग काग़ज़ पर दृश्य वॉटरमार्क रखने के बहुत ही पुरानी धारणा से व्युत्पन्न है।
डिजिटल वॉटरमार्किंग का उपयोग अनुप्रयोगों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए किया जा सकता है:
स्रोत ट्रैकिंग (अलग प्राप्तकर्ताओं को अलग वॉटरमार्क की सामग्री मिलती है)
प्रसारण निगरानी (टेलीविजन समाचारों में अक्सर अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों से वॉटरमार्क वाले वीडियो शामिल होते हैं)
वॉटरमार्किंग जीवन-चक्र के चरण
जो सूचना अंतःस्थापित की जानी हो वह डिजिटल वॉटरमार्क कहलाती है, हालांकि कुछ संदर्भों में वाक्यांश डिजिटल वॉटरमार्क का अर्थ वाटरमार्क किए गए सिग्नल और कवर सिग्नल के बीच का अंतर है। सिग्नल जहां वॉटरमार्क को अंतर्स्थापित किया जाना हो, पोषक सिग्नल कहलाता है। आम तौर पर वॉटरमार्किंग प्रणाली तीन अलग चरणों में विभाजित होती है, अंतःस्थापना, हमला और पता लगाना. अंतःस्थापना में, एक एल्गोरिदम अंतःस्थापित किए जाने वाले पोषक और डेटा को स्वीकार करता है और एक वॉटरमार्क सिग्नल पैदा करता है।
इसके बाद वॉटरमार्क किया गया सिग्नल प्रसारित या संग्रहीत किया जाता है, आम तौर पर किसी अन्य व्यक्ति को संप्रेषित होता है। अगर वह व्यक्ति कोई संशोधन करता है, तो यह हमला कहलाता है। जबकि संशोधन दुर्भावनापूर्ण नहीं हो सकता है, शब्द हमला कॉपीराइट संरक्षण अनुप्रयोग से आया है, जहां पाइरेट संशोधन के माध्यम से डिजिटल वॉटरमार्क को हटाने के प्रयास करते हैं। कई संभावित संशोधन मौजूद हैं, उदाहरण के लिए, डेटा का हानिपूर्ण संपीड़न, एक छवि या वीडियो का दृश्यांकन, या जानबूझकर शोर जोड़ना.
संसूचन (अक्सर जिसे निष्कर्षण कहा जाता है) एक एल्गोरिदम है, जिसे आक्रमित सिग्नल पर लागू किया जाता है ताकि उससे वॉटरमार्क निकालने का प्रयास किया जाए. यदि प्रसारण के दौरान सिग्नल अपरिवर्तित था, तो वॉटरमार्क अभी भी मौजूद है और उसे निकाला जा सकता है। ठोस वाटरमार्किंग अनुप्रयोगों में, निष्कर्षण एल्गोरिदम सही ढंग से वॉटरमार्क उत्पादित करने में सक्षम होना चाहिए, भले ही संशोधन मज़बूत हों. नाज़ुक वॉटरमार्किंग में, निष्कर्षण एल्गोरिदम को असफल होना चाहिए यदि सिग्नल में कोई परिवर्तन किया जाए.
एक डिजिटल वॉटरमार्क को परिवर्तनों के संबंध में ठोस कहा जाता है यदि अंतःस्थापित सूचना को चिह्नित सिग्नलों से विश्वसनीय तरीक़े से पहचाना जा सके, भले ही वह कितने ही परिवर्तनों के साथ विकृत हो। विशिष्ट छवि विकृतियां हैं जपेग संपीड़न, आवर्तन, दृश्यांकन, शोर संयोजन और क्वांटमन. वीडियो सामग्री अस्थायी संशोधन और म्पेग संपीड़न अक्सर इस सूची में जुड़ जाते हैं। एक वॉटरमार्क को अगोचर कहा जाता है यदि कवर सिग्नल और चिह्नित सिग्नल उपयुक्त अवधारणात्मक मीट्रिक के मामले में अप्रभेद्य हैं. सामान्य तौर पर ठोस वॉटरमार्क या अगोचर वॉटरमार्क को तैयार करना आसान है, लेकिन ठोस और अगोचर वॉटरमार्क को तैयार करना काफ़ी चुनौतीपूर्ण साबित हुआ है। ठोस अगोचर वॉटरमार्क को डिजिटल सामग्री के संरक्षण के लिए साधन के रूप में प्रस्तावित किया गया है, उदाहरण के लिए, पेशेवर वीडियो सामग्री में एक अंतःस्थापित 'प्रतिलिपि अनुमत नहीं' ध्वज के रूप में.
डिजिटल वॉटरमार्किंग तकनीक को कई तरीक़ों से वर्गीकृत किया जा सकता है।
अगर थोड़े से परिवर्तन के बाद पहचानने में विफल रहता है तो वॉटरमार्क को नाज़ुक कहा जाता है। नाज़ुक वॉटरमार्क को सामान्यतः छेड़छाड़ का पता लगाने (अखंडता सबूत) के लिए इस्तेमाल किया जाता है। सामान्यतः मूल कार्य के साथ परिवर्तन जो स्पष्ट रूप से दिखाई दें उन्हें वॉटरमार्क के रूप में निर्दिष्ट नहीं किया जाता, बल्कि आम तौर पर बारकोड कहा जाता है।
एक वॉटरमार्क को अर्द्ध-नाज़ुक कहा जाता है यदि वह सुसाध्य रूपांतरण का प्रतिरोध करता है, लेकिन असाध्य रूपांतरणों के बाद उन्हें पहचानने में चूकता है। अर्द्ध नाज़ुक वॉटरमार्क का इस्तेमाल सामान्यतः असाध्य परिवर्तनों का पता लगाने के लिए किया जाता है।
अगर वॉटरमार्क रूपांतरणों के नामित वर्ग का प्रतिरोध करता है तो उसे मज़बूत कहा जाता है। मज़बूत वॉटरमार्क का उपयोग कॉपी और अभिगम नियंत्रण सूचना वहन करने के लिए, प्रतिलिपि संरक्षण अनुप्रयोगों में किया जा सकता है।
एक वॉटरमार्क को अगोचर कहा जाता है यदि मूल कवर सिग्नल और चिह्नित सिग्नल (लगभग) प्रत्यक्ष रूप से अप्रभेद्य हों.
एक वॉटरमार्क को प्रत्यक्ष कहा जाता है अगर चिह्नित सिग्नल में उसकी उपस्थिति सुस्पष्ट है, लेकिन अनुचित हस्तक्षेप संभव नहीं।
अंतर्स्थापित संदेश की लंबाई दो अलग मुख्य वॉटरमार्किंग योजनाओं के वर्गों को निर्धारित करता है:
संदेश संकल्पनात्मक रूप से शून्य-बिट लंबा है और सिस्टम को चिह्नित वस्तु में वॉटरमार्क की उपस्थिति या अनुपस्थिति का पता लगाने के लिए परिकल्पित किया गया है। इस प्रकार की वॉटरमार्किंग योजनाओं को आम तौर पर इटैलिक ज़ीरो-बिट या इटैलिक प्रेसेन्ज़ वॉटरमार्किंग स्कीम्स के रूप में निर्दिष्ट किया जाता है। कभी-कभी, इस प्रकार की वॉटरमार्किंग योजना को १-बिट वॉटरमार्क कहा जाता है, क्योंकि एक १ वॉटरमार्क की उपस्थिति (और ० उसकी अनुपस्थिति) को सूचित करता है।
संदेश एक न-बिट-लंबी धारा ( सहित ) या है और वॉटरमार्क में अनुकूलित होता है। इस प्रकार की योजनाओं को आम तौर पर मल्टिपल बिट वॉटरमार्किंग या नॉन ज़ीरो-बिट वॉटरमार्किंग योजनाओं के रूप में संदर्भित किया जाता है।
यदि चिह्नित सिग्नल को योगात्मक संशोधन द्वारा प्राप्त किया जाता है, तो ऐसी वॉटरमार्किंग पद्धति को स्प्रेड-स्पेक्ट्रम के रूप में संदर्भित किया जाता है। स्प्रेड-स्पेक्ट्रम वॉटरमार्क साधारणतः मज़बूत के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन पोषक हस्तक्षेप के कारण इनमें न्यून सूचना क्षमता भी होती है।
यदि परिमाणीकरण द्वारा चिह्नित सिग्नल प्राप्त हो, तो ऐसी वॉटरमार्किंग पद्धति को क्वान्टाइज़ेशन टाइप माना जाता है। क्वान्टाइज़ेशन वॉटरमार्क कम मज़बूत होते हैं, लेकिन पोषक हस्तक्षेप की अस्वीकृति के कारण इनमें उच्च सूचना क्षमता होती है।
वॉटरमार्किंग पद्धति को एम्प्लीट्यूड मॉड्यूलेशन के रूप में संदर्भित किया जाता है यदि चिह्नित सिग्नल को योगात्मक संशोधन द्वारा अंतःस्थापित किया जाए, जो स्प्रेड स्पेक्ट्रम पद्धति के समान ही है लेकिन यह विशेष रूप से स्थानिक डोमेन में अंतःस्थापित होता है।
डिजिटल वॉटरमार्किंग योजनाएं एक वॉटरमार्क डिज़ाइनर या अंतिम उपयोगकर्ताओं के लिए विस्तृत जानकारी प्रदान कर सकते हैं। इसलिए, विभिन्न मूल्यांकन रणनीतियां मौजूद हैं। अक्सर एक वॉटरमार्क डिज़ाइनर द्वारा प्रदर्शनार्थ एकल गुणों का मूल्यांकन प्रयुक्त होता है, उदाहरण के लिए, सुधार. अंतिम उपयोगकर्ता ज़्यादातर विस्तृत जानकारी में दिलचस्पी नहीं रखते हैं। वे जानना चाहते हैं कि क्या डिजिटल वॉटरमार्किंग एल्गोरिदम का उपयोग उनके अनुप्रयोग परिदृश्य में किया जा सकता है और यदि हां, तो कौन-से पैरामीटर सेट सबसे अच्छे लगते हैं।
सुरक्षित डिजिटल कैमरा
२००३ में मोहंती और अन्य द्वारा एक सुरक्षित डिजिटल कैमरा (सैक) प्रस्तावित किया गया, जो जनवरी २००४ में प्रकाशित किया गया।
ब्लिथ और फ़्रिडरिच ने एक ऐसे डिजिटल कैमरा के लिए २००४ में सैक पर भी काम किया जो क्रिप्टोग्राफ़िक हैश के साथ एक बॉयोमीट्रिक पहचानकर्ता को अंतःस्थापित करने के लिए हानिरहित वॉटरमार्किंग का इस्तेमाल करे.
एप्सन और कोडेक ने एप्सन फोटोप्क ३०००ज़ और कोडेक द्क-२९०२९० जैसी सुरक्षा सुविधाओं के साथ कैमरा बनाए हैं। दोनों कैमरों ने छवि में न हटाए जा सकने वाली सुविधाओं को जोड़ा है जो मूल छवि को विकृत करते हैं, जिसने उसे अदालत में न्यायिक साक्ष्य जैसे कुछ अनुप्रयोगों के लिए अस्वीकार्य बना दिया है। ब्लिथ और फ़्रिडरिच के अनुसार,"दोनों कैमरा मूल छवि या उसके निर्माता का अविवादित सबूत उपलब्ध [नहीं] करा सकते हैं".
प्रतिवर्ती डेटा छिपाना
प्रतिवर्ती डेटा छुपाना एक ऐसी तकनीक है जो छवियों को प्रमाणीकृत करने और फिर वॉटरमार्क हटाते हुए उसके मूल स्वरूप को बहाल करने तथा ऊपर-लिखित छवि डेटा को प्रतिस्थापित करने में सक्षम बनाता है। यह क़ानूनी प्रयोजनों के लिए छवियों को स्वीकार्य बनाता है। अमेरिकी सेना भी टोही छवियों के प्रमाणीकरण के लिए इस तकनीक में रुचि रखती है।
इन्हें भी देखें
ऑडियो वॉटरमार्क पहचान
नकल पर हमला
वॉटरमार्क (डेटा फ़ाइल)
पैटर्न पहचान (उपन्यास), प्रसिद्ध संतांत्रिकी कथा-साहित्य लेखक विलियम गिब्सन द्वारा लिखित डिजिटल वॉटरमार्किंग प्रसंग पर आधारित काल्पनिक वैज्ञानिक थ्रिलर
यूरियन समूह - बैंक के नोटों पर प्रयुक्त
कोडित पाइरसी-विरोधी - फ़िल्मों को ट्रैक करने के लिए प्रयुक्त
जीना डिट्टमैन, डेविड मेगियास, एंड्रीस लैंग, जोर्डी हेरेरा-जोआनकोमार्टी; थिएरेटिकल फ़्रेमवर्क फॉर ए प्रैक्टिकल इवाल्यूएशन एंड कंपारिज़न ऑफ़ ऑडियो वाटरमार्किंग स्कीम्स इन द ट्रयांगल ऑफ़ रोबस्टनेस, ट्रांस्परेंसी एंड कैपासिटी, इन: ट्रांसैक्शन ऑन डेटा हाइडिंग एंड मल्टीमीडिया सेक्यूरिटी ई; स्प्रिंगर लंक ४३००; संपादक युन क्यू. शी; पृ. १-४०; इसब्न ९७८-३-५४०-4907१-५,२००६ पफ
एमवी स्मरनोव. होलोग्राफिक अप्रोच टु एम्बेडिंग हिडन वाटरमार्क्स इन ए फोटोग्राफिक इमेज// जर्नल ऑफ़ ऑप्टिकल टेक्नॉलोजी, खंड ७२, अंक ६, पृ. 4६4-4६8. |
शशांक आर जोशी को चिकित्सा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए २०१४ में भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया। वे महाराष्ट्र राज्य से हैं। |
दर्गाहिगंज में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत पुर्णिया मण्डल के अररिया जिले का एक गाँव है।
बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
बिहार के गाँव |
२०१९२० रणजी ट्रॉफी, रणजी ट्रॉफी का ८६ वां सीज़न था, जो कि प्रथम श्रेणी क्रिकेट टूर्नामेंट था। यह भारत में दिसंबर २०१९ और मार्च २०२० के बीच हुआ। चंडीगढ़ ने पहली बार रणजी ट्रॉफी में प्रतिस्पर्धा की। विदर्भ गत विजेता थे।
जुड़नार के शुरुआती दौर में, विदर्भ के वसीम जाफर रणजी ट्रॉफी में १५० मैचों में खेलने वाले पहले क्रिकेटर बने। जनवरी २०२० में, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच सातवें दौर के मैच में, मध्य प्रदेश के रवि यादव एक प्रथम श्रेणी क्रिकेट मैच में अपने पहले ही ओवर में हैट्रिक लेने वाले पहले गेंदबाज बने। १२ फरवरी २०२० को, चंडीगढ़ और मणिपुर के बीच प्लेट ग्रुप स्थिरता ६०,००० वां प्रथम श्रेणी क्रिकेट मैच खेला जाना था।
ग्रुप चरण के मैचों के अंतिम दौर के पहले, गुजरात, सौराष्ट्र और आंध्र ने क्वार्टर फाइनल के लिए क्वालीफाई किया था, शेष पांच स्थानों के लिए चौदह टीमों के साथ विवाद हुआ था। दो दिनों के अंदर मिजोरम को हराकर गोवा ने प्लेट ग्रुप से क्वालीफाई किया। अंतिम ग्रुप स्टेज गेम्स के बाद ग्रुप ए से बंगाल, ग्रुप बी से कर्नाटक, ग्रुप सी से जम्मू और कश्मीर, और ग्रुप सी से ओडिशा ने भी क्वार्टर फाइनल के लिए क्वालीफाई किया था। बंगाल, गुजरात, कर्नाटक और सौराष्ट्र सभी क्वार्टर फाइनल से टूर्नामेंट के सेमीफाइनल तक पहुंचे।
कर्नाटक को १७४ रनों से हराने के बाद, २००६-०७ टूर्नामेंट के बाद पहली बार बंगाल फाइनल में पहुंचा। सौराष्ट्र ने पिछले आठ सत्रों में चौथी बार फाइनल में जाने के लिए गुजरात को ९२ रन से हराया। फाइनल ड्रॉ में समाप्त हुआ, जिसमें सौराष्ट्र ने मैच की पहली पारी में बढ़त के साथ अपना पहला खिताब जीता।
टूर्नामेंट प्रतियोगिता के पिछले संस्करण के समान प्रारूप को बरकरार रखता है। टूर्नामेंट में चार ग्रुप हैं, जिसमें ग्रुप ए, बी और ग्रुप सी और प्लेट ग्रुप में नौ-नौ टीमें हैं। ग्रुप सी की शीर्ष दो टीमें और प्लेट ग्रुप की शीर्ष टीम ग्रुप ए और बी की पांच टीमों के साथ टूर्नामेंट के क्वार्टर फाइनल में पहुंचेगी। प्रत्येक स्थिरता के लिए विकेट का चयन करने के लिए एक तटस्थ क्यूरेटर नियुक्त किया गया है।
जुलाई २०१९ में, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने टूर्नामेंट के नॉकआउट सेक्शन में मैचों के लिए डीआरएस के उपयोग पर विचार किया। बीसीसीआई एक "सीमित डीआरएस" प्रणाली का उपयोग करने के लिए सहमत हुआ, जो हॉक-आई और अल्ट्राएडेज का उपयोग नहीं करता है।
निम्नलिखित खिलाड़ी के स्थानांतरण को सीज़न से पहले अनुमोदित किया गया था। नई टीम, चंडीगढ़ ने पंजाब और हिमाचल प्रदेश के कुछ खिलाड़ियों को स्थानांतरित किया।
पिछले संस्करण के प्रदर्शन के आधार पर टीमों को निम्नलिखित समूहों में रखा गया था। टूर्नामेंट में पहली बार उतरेगी चंडीगढ़।
जम्मू और कश्मीर
२०२० में भारतीय क्रिकेट |
सर आइज़ैक न्यूटन इंग्लैंड के एक वैज्ञानिक थे। जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण का नियम और गति के सिद्धान्त की खोज की। वे एक महान गणितज्ञ, भौतिक वैज्ञानिक, ज्योतिष एवं दार्शनिक थे। इनका शोध प्रपत्र प्राकृतिक दर्शन के गणितीय सिद्धांतों सन् १६८७ में प्रकाशित हुआ, जिसमें सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण एवं गति के नियमों की व्याख्या की गई थी और इस प्रकार चिरसम्मत भौतिकी (क्लासिकल भौतिकी) की नींव रखी।
उनकी फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका, १६८७ में प्रकाशित हुई, यह विज्ञान के इतिहास में अपने आप में सबसे प्रभावशाली पुस्तक है, जो अधिकांश साहित्यिक यांत्रिकी के लिए आधारभूत कार्य की भूमिका निभाती है।
इस कार्य में, न्यूटन ने सार्वत्रिक गुरुत्व और गति के तीन नियमों का वर्णन किया जिसने अगली तीन शताब्दियों के लिए भौतिक ब्रह्मांड के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। न्यूटन ने दर्शाया कि पृथ्वी पर वस्तुओं की गति और आकाशीय पिंडों की गति का नियंत्रण प्राकृतिक नियमों के समान समुच्चय के द्वारा होता है, इसे दर्शाने के लिए उन्होंने ग्रहीय गति के केपलर के नियमों तथा अपने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के बीच निरंतरता स्थापित की, इस प्रकार से सूर्य केन्द्रीयता और वैज्ञानिक क्रांति के आधुनिकीकरण के बारे में पिछले संदेह को दूर किया।
यांत्रिकी में, न्यूटन ने संवेग तथा कोणीय संवेग दोनों के संरक्षण के सिद्धांतों को स्थापित किया। प्रकाशिकी में, उन्होंने पहला व्यावहारिक परावर्ती दूरदर्शी बनाया और इस आधार पर रंग का सिद्धांत विकसित किया कि एक प्रिज्म श्वेत प्रकाश को कई रंगों में अपघटित कर देता है जो दृश्य स्पेक्ट्रम बनाते हैं। उन्होंने शीतलन का नियम दिया और ध्वनि की गति का अध्ययन किया। गणित में, अवकलन और समाकलन कलन के विकास का श्रेय गोटफ्राइड लीबनीज के साथ न्यूटन को जाता है। उन्होंने सामान्यीकृत द्विपद प्रमेय का भी प्रदर्शन किया और एक फलन के शून्यों के सन्निकटन के लिए तथाकथित "न्यूटन की विधि" का विकास किया और घात श्रेणी के अध्ययन में योगदान दिया।
वैज्ञानिकों के बीच न्यूटन की स्थिति बहुत शीर्ष पद पर है, ऐसा ब्रिटेन की रोयल सोसाइटी में २००५ में हुए वैज्ञानिकों के एक सर्वेक्षण के द्वारा प्रदर्शित होता है, जिसमें पूछा गया कि विज्ञान के इतिहास पर किसका प्रभाव अधिक गहरा है, न्यूटन का या एल्बर्ट आइंस्टीन का। इस सर्वेक्षण में न्यूटन को अधिक प्रभावी पाया गया।. न्यूटन अत्यधिक धार्मिक भी थे, हालाँकि वे एक अपरंपरागत ईसाई थे, उन्होंने प्राकृतिक विज्ञान, जिसके लिए उन्हें आज याद किया जाता है, की तुलना में बाइबिल हेर्मेनेयुटिक्स पर अधिक लिखा।
आइजैक न्यूटन का जन्म ४ जनवरी 16४3 को नई शैली और पुरानी शैली की तिथि २५ दिसंबर 16४2</स्मॉल>लिनकोलनशायर के काउंटी में एक हेमलेट, वूल्स्थोर्पे-बाय-कोल्स्तेर्वोर्थ में वूलस्थ्रोप मेनर में हुआ। न्यूटन के जन्म के समय, इंग्लैंड ने ग्रिगोरियन केलेंडर को नहीं अपनाया था और इसलिए उनके जन्म की तिथि को क्रिसमस दिवस २५ दिसंबर 16४2 के रूप में दर्ज किया गया।
न्यूटन का जन्म उनके पिता की मृत्यु के तीन माह बाद हुआ, वे एक समृद्ध किसान थे उनका नाम भी आइजैक न्यूटन था। पूर्व परिपक्व अवस्था में पैदा होने वाला वह एक छोटा बालक था; उनकी माता हन्ना ऐस्क्फ़ का कहना था कि वह एक चौथाई गेलन जैसे छोटे से मग में समा सकता था।
जब न्यूटन तीन वर्ष के थे, उनकी माँ ने दुबारा शादी कर ली और अपने नए पति रेवरंड बर्नाबुस स्मिथ के साथ रहने चली गई और अपने पुत्र को उसकी नानी मर्गेरी ऐस्क्फ़ की देखभाल में छोड़ दिया। छोटा आइजैक अपने सौतेले पिता को पसंद नहीं करता था और उसके साथ शादी करने के कारण अपनी माँ के साथ दुश्मनी का भाव रखता था। जैसा कि १९ वर्ष तक की आयु में उनके द्वारा किये गए अपराधों की सूची में प्रदर्शित होता है: "मैंने माता और पिता स्मिथ के घर को जलाने की धमकी दी."
बारह वर्ष से सत्रह वर्ष की आयु तक उन्होंने द किंग्स स्कूल, ग्रान्थम में शिक्षा प्राप्त की (जहाँ पुस्तकालय की एक खिड़की पर उनके हस्ताक्षर आज भी देखे जा सकते हैं) उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया और अक्टूबर १६५९ वे वूल्स्थोर्पे-बाय-कोल्स्तेर्वोर्थ आ गए. जहाँ उनकी माँ, जो दूसरी बार विधवा हो चुकी थी, ने उन्हें किसान बनाने पर जोर दिया। वह खेती से नफरत करते थे। किंग्स स्कूल के मास्टर हेनरी स्टोक्स ने उनकी माँ से कहा कि वे उन्हें फिर से स्कूल भेज दें ताकि वे अपनी शिक्षा को पूरा कर सकें। स्कूल के एक लड़के के खिलाफ बदला लेने की इच्छा से प्रेरित होने की वजह से वे एक शीर्ष क्रम के छात्र बन गए।
जून १६६१ में, उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में एक सिजर-एक प्रकार की कार्य-अध्ययन भूमिका, के रूप में भर्ती किया गया। उस समय कॉलेज की शिक्षाएँ अरस्तु पर आधारित थीं। लेकिन न्यूटन अधिक आधुनिक दार्शनिकों जैसे डेसकार्टेस और खगोलविदों जैसे कोपरनिकस, गैलीलियो और केपलर के विचारों को पढना चाहता था।
१६६५ में उन्होंने सामान्यीकृत द्विपद प्रमेय की खोज की और एक गणितीय सिद्धांत विकसित करना शुरू किया जो बाद में अत्यल्प कलन के नाम से जाना गया। अगस्त १६६५ में जैसे ही न्यूटन ने अपनी डिग्री प्राप्त की, उसके ठीक बाद प्लेग की भीषण महामारी से बचने के लिए एहतियात के रूप में विश्वविद्यालय को बंद कर दिया। यद्यपि वे एक कैम्ब्रिज विद्यार्थी के रूप में प्रतिष्ठित नहीं थे, इसके बाद के दो वर्षों तक उन्होंने वूल्स्थोर्पे में अपने घर पर निजी अध्ययन किया और कलन, प्रकाशिकी और गुरुत्वाकर्षण के नियमों पर अपने सिद्धांतों का विकास किया।
१६६७ में वह ट्रिनिटी के एक फेलो के रूप में कैम्ब्रिज लौट आए।
बीच के वर्ष
अधिकांश आधुनिक इतिहासकारों का मानना है कि न्यूटन और लीबनीज ने अत्यल्प कलन का विकास अपने अपने अद्वितीय संकेतनों का उपयोग करते हुए स्वतंत्र रूप से किया।
न्यूटन के आंतरिक चक्र के अनुसार, न्यूटन ने अपनी इस विधि को लीबनीज से कई साल पहले ही विकसित कर दिया था, लेकिन उन्होंने लगभग १६९३ तक अपने किसी भी कार्य को प्रकाशित नहीं किया और १७०४ तक अपने कार्य का पूरा लेखा जोखा नहीं दिया. इस बीच, लीबनीज ने १६८४ में अपनी विधियों का पूरा लेखा जोखा प्रकाशित करना शुरू कर दिया. इसके अलावा, लीबनीज के संकेतनों तथा "अवकलन की विधियों" को महाद्वीप पर सार्वत्रिक रूप से अपनाया गया और १८२० के बाद में , ब्रिटिश साम्राज्य में भी इसे अपनाया गया। जबकि लीबनीज की पुस्तिकाएं प्रारंभिक अवस्थाओं से परिपक्वता तक विचारों के आधुनिकीकरण को दर्शाती हैं, न्यूटन के ज्ञात नोट्स में केवल अंतिम परिणाम ही है।
न्यूटन ने कहा कि वे अपने कलन को प्रकाशित नहीं करना चाहते थे क्योंकि उन्हें डर था वे उपहास का पात्र बन जायेंगे.
न्यूटन का स्विस गणितज्ञ निकोलस फतियो डे दुइलिअर के साथ बहुत करीबी रिश्ता था, जो प्रारम्भ से ही न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत से बहुत प्रभावित थे। १६९१ में दुइलिअर ने न्यूटन के फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका के एक नए संस्करण को तैयार करने की योजना बनायी, लेकिन इसे कभी पूरा नहीं कर पाए.बहरहाल, इन दोनों पुरुषों के बीच सम्बन्ध १६९३ में बदल गया। इस समय, दुइलिअर ने भी लीबनीज के साथ कई पत्रों का आदान प्रदान किया था।
१६९९ की शुरुआत में, रोयल सोसाइटी (जिसके न्यूटन भी एक सदस्य थे) के अन्य सदस्यों ने लीबनीज पर साहित्यिक चोरी के आरोप लगाये और यह विवाद १७११ में पूर्ण रूप से सामने आया।
न्यूटन की रॉयल सोसाइटी ने एक अध्ययन द्वारा घोषणा की कि न्यूटन ही सच्चे आविष्कारक थे और लीबनीज ने धोखाधड़ी की थी। यह अध्ययन संदेह के घेरे में आ गया, जब बाद पाया गया कि न्यूटन ने खुद लीबनीज पर अध्ययन के निष्कर्ष की टिप्पणी लिखी।
इस प्रकार कड़वा न्यूटन बनाम लीबनीज विवाद शुरू हो गया, जो बाद में न्यूटन और लीबनीज दोनों के जीवन में १७१६ में लीबनीज की मृत्यु तक जारी रहा।
न्यूटन को आम तौर पर सामान्यीकृत द्विपद प्रमेय का श्रेय दिया जाता है, जो किसी भी घात के लिए मान्य है। उन्होंने न्यूटन की सर्वसमिकाओं, न्यूटन की विधि, वर्गीकृत घन समतल वक्र (दो चरों में तीन के बहुआयामी पद) की खोज की, परिमित अंतरों के सिद्धांत में महत्वपूर्ण योगदान दिया, वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भिन्नात्मक सूचकांक का प्रयोग किया और डायोफेनताइन समीकरणों के हल को व्युत्पन्न करने के लिए निर्देशांक ज्यामिति का उपयोग किया।
उन्होंने लघुगणक के द्वारा हरात्मक श्रेढि के आंशिक योग का सन्निकटन किया, (यूलर के समेशन सूत्र का एक पूर्वगामी) और वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने आत्मविश्वास के साथ घात शृंखला का प्रयोग किया और घात शृंखला का विलोम किया।
उन्हें १६६९ में गणित का ल्युकेसियन प्रोफेसर चुना गया। उन दिनों, कैंब्रिज या ऑक्सफ़ोर्ड के किसी भी सदस्य को एक निर्दिष्ट अंग्रेजी पुजारी होना आवश्यक था। हालाँकि, ल्युकेसियन प्रोफेसर के लिए जरुरी था कि वह चर्च में सक्रिय न हो। (ताकि वह विज्ञान के लिए और अधिक समय दे सके)
न्यूटन ने तर्क दिया कि समन्वय की आवश्यकता से उन्हें मुक्त रखना चाहिए और चार्ल्स द्वितीय, जिसकी अनुमति अनिवार्य थी, ने इस तर्क को स्वीकार किया। इस प्रकार से न्यूटन के धार्मिक विचारों और अंग्रेजी रूढ़ीवादियों के बीच संघर्ष टल गया।
१६७० से १६७२ तक, न्यूटन का प्रकाशिकी पर व्याख्यान दिया. इस अवधि के दौरान उन्होंने प्रकाश के अपवर्तन की खोज की, उन्होंने प्रदर्शित किया कि एक प्रिज्म श्वेत प्रकाश को रंगों के एक स्पेक्ट्रम में वियोजित कर देता है और एक लेंस और एक दूसरा प्रिज्म बहुवर्णी स्पेक्ट्रम को संयोजित कर के श्वेत प्रकाश का निर्माण करता है।
उन्होंने यह भी दिखाया कि रंगीन प्रकाश को अलग करने और भिन्न वस्तुओं पर चमकाने से रगीन प्रकाश के गुणों में कोई परिवर्तन नहीं आता है। न्यूटन ने वर्णित किया कि चाहे यह परावर्तित हो, या विकिरित हो या संचरित हो, यह समान रंग का बना रहता है।
इस प्रकार से, उन्होंने देखा कि, रंग पहले से रंगीन प्रकाश के साथ वस्तु की अंतर्क्रिया का परिणाम होता है नाकि वस्तुएं खुद रंगों को उत्पन्न करती हैं।
यह न्यूटन के रंग सिद्धांत के रूप में जाना जाता है।
इस कार्य से उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि, किसी भी अपवर्ती दूरदर्शी का लेंस प्रकाश के रंगों में विसरण (रंगीन विपथन) का अनुभव करेगा और इस अवधारणा को सिद्ध करने के लिए उन्होंने अभिदृश्यक के रूप में एक दर्पण का उपयोग करते हुए, एक दूरदर्शी का निर्माण किया, ताकि इस समस्या को हल किया जा सके. दरअसल डिजाइन के निर्माण के अनुसार, पहला ज्ञात क्रियात्मक परावर्ती दूरदर्शी, आज एक न्यूटोनियन दूरबीन के रूप में जाना जाता है, इसमें तकनीक को आकार देना तथा एक उपयुक्त दर्पण पदार्थ की समस्या को हल करना शामिल है। न्यूटन ने अत्यधिक परावर्तक वीक्षक धातु के एक कस्टम संगठन से, अपने दर्पण को आधार दिया, इसके लिए उनके दूरदर्शी हेतु प्रकाशिकी कि गुणवत्ता की जाँच के लिए न्यूटन के छल्लों का प्रयोग किया गया।
फरवरी १६६९ तक वे रंगीन विपथन के बिना एक उपकरण का उत्पादन करने में सक्षम हो गए। १६७१ में रॉयल सोसाइटी ने उन्हें उनके परावर्ती दूरदर्शी को प्रर्दशित करने के लिए कहा। उन लोगों की रूचि ने उन्हें अपनी टिप्पणियों ओन कलर के प्रकाशन हेतु प्रोत्साहित किया, जिसे बाद में उन्होंने अपनी ऑप्टिक्स के रूप में विस्तृत कर दिया।
जब रॉबर्ट हुक ने न्युटन के कुछ विचारों की आलोचना की, न्यूटन इतना नाराज हुए कि वे सार्वजनिक बहस से बाहर हो गए। हुक की मृत्यु तक दोनों दुश्मन बने रहे। [२७]
न्यूटन ने तर्क दिया कि प्रकाश कणों या अतिसूक्षम कणों से बना है, जो सघन माध्यम की और जाते समय अपवर्तित हो जाते हैं, लेकिन प्रकाश के विवर्तन को स्पष्ट करने के लिए इसे तरंगों के साथ सम्बंधित करना जरुरी था। (ऑप्टिक्स बीके।ई, प्रोप्स. ज़ी-ल). बाद में भौतिकविदों ने प्रकाश के विवर्तन के लिए शुद्ध तरंग जैसे स्पष्टीकरण का समर्थन किया। आज की क्वाण्टम यांत्रिकी, फोटोन और तरंग-कण युग्मता के विचार, न्यूटन की प्रकाश के बारे में समझ के साथ बहुत कम समानता रखते हैं।
१६७५ की उनकी प्रकाश की परिकल्पना में न्यूटन ने कणों के बीच बल के स्थानान्तरण हेतु, ईथर की उपस्थिति को मंजूर किया।
ब्रह्म विद्यावादी हेनरी मोर के संपर्क में आने से रसायन विद्या में उनकी रुचि पुनर्जीवित हो गयी। उन्होंने ईथर को कणों के बीच आकर्षण और प्रतिकर्षण के वायुरुद्ध विचारों पर आधारित गुप्त बलों से प्रतिस्थापित कर दिया. जॉन मेनार्ड केनेज, जिन्होंने रसायन विद्या पर न्यूटन के कई लेखों को स्वीकार किया, कहते हैं कि "न्युटन कारण के युग के पहले व्यक्ति नहीं थे: वे जादूगरों में आखिरी नंबर पर थे।" रसायन विद्या में न्यूटन की रूचि उनके विज्ञान में योगदान से अलग नहीं की जा सकती है। (यह उस समय हुआ जब रसायन विद्या और विज्ञान के बीच कोई स्पष्ट भेद नहीं था।)
यदि उन्होंने एक निर्वात में से होकर एक दूरी पर क्रिया के गुप्त विचार पर भरोसा नहीं किया होता तो वे गुरुत्व का अपना सिद्धांत विकसित नहीं कर पाते।
(आइजैक न्यूटन के गुप्त अध्ययन भी देखें)
१७०४ में न्यूटन ने आप्टिक्स को प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने अपने प्रकाश के अतिसूक्ष्म कणों के सिद्धांत की विस्तार से व्याख्या की.उन्होंने प्रकाश को बहुत ही सूक्ष्म कणों से बना हुआ माना, जबकि साधारण द्रव्य बड़े कणों से बना होता है और उन्होंने कहा कि एक प्रकार के रासायनिक रूपांतरण के माध्यम से "सकल निकाय और प्रकाश एक दूसरे में रूपांतरित नहीं हो सकते हैं,....... और निकाय, प्रकाश के कणों से अपनी गतिविधि के अधिकांश भाग को प्राप्त नहीं कर सकते, जो उनके संगठन में प्रवेश करती है?" न्यूटन ने एक कांच के ग्लोब का प्रयोग करते हुए, (ऑप्टिक्स, ८ वां प्रश्न) एक घर्षण विद्युत स्थैतिक जनरेटर के एक आद्य रूप का निर्माण किया।
यांत्रिकी और गुरुत्वाकर्षण
१६७७ में, न्यूटन ने फिर से यांत्रिकी पर अपना कार्य शुरू किया, अर्थात्, गुरुत्वाकर्षण और ग्रहीय गति के केपलर के नियमों के सन्दर्भ के साथ, ग्रहों की कक्षा पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव और इस विषय पर हुक और फ्लेमस्टीड का परामर्श।
उन्होंने जिरम में डी मोटू कोर्पोरम में अपने परिणामों का प्रकाशन किया। (१६८४) इसमें गति के नियमों की शुरुआत थी जिसने प्रिन्सिपिया को सूचित किया।
फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका (जिसे अब प्रिन्सिपिया के रूप में जाना जाता है) का प्रकाशन एडमंड हेली की वित्तीय मदद और प्रोत्साहन से ५ जुलाई १६८७ को हुआ। इस कार्य में न्यूटन ने गति के तीन सार्वभौमिक नियम दिए जिनमें २०० से भी अधिक वर्षों तक कोई सुधार नहीं किया गया है। उन्होंने उस प्रभाव के लिए लैटिन शब्द ग्रेविटास (भार) का इस्तेमाल किया जिसे गुरुत्व के नाम से जाना जाता है और सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण के नियम को परिभाषित किया। इसी कार्य में उन्होंने वायु में ध्वनि की गति के, बॉयल के नियम पर आधारित पहले विश्लेषात्मक प्रमाण को प्रस्तुत किया। बहुत अधिक दूरी पर क्रिया कर सकने वाले एक अदृश्य बल की न्यूटन की अवधारणा की वजह से उनकी आलोचना हुई, क्योंकि उन्होंने विज्ञान में "गुप्त एजेंसियों" को मिला दिया था।
प्रिन्सिपिया के साथ, न्यूटन को अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली. उन्हें काफी प्रशंसाएं मिलीं, उनके एक प्रशंसक थे, स्विटजरलैण्ड में जन्मे निकोलस फतियो दे दयुलीयर, जिनके साथ उनका एक गहरा रिश्ता बन गया, जो १६९३ में तब समाप्त हुआ जब न्यूटन तंत्रिका अवरोध से पीड़ित हो गए।
बाद का जीवन
१६९० के दशक में, न्यूटन ने कई धार्मिक शोध लिखे जो बाइबल की साहित्यिक व्याख्या से सम्बंधित थे। हेनरी मोर के ब्रह्मांड में विश्वास और कार्तीय द्वैतवाद के लिए अस्वीकृति ने शायद न्यूटन के धार्मिक विचारों को प्रभावित किया। उन्होंने एक पांडुलिपि जॉन लोके को भेजी जिसमें उन्होंने ट्रिनिटी के अस्तित्व को विवादित माना था, जिसे कभी प्रकाशित नहीं किया गया। बाद के कार्य [३९]दी क्रोनोलोजी ऑफ़ एनशियेंट किंगडेम्स अमेनडेड (१७२८) और ओब्सरवेशन्स अपोन दी प्रोफिसिज ऑफ़ डेनियल एंड दी एपोकेलिप्स ऑफ़ सेंट जॉन (१७३३)[४०] का प्रकाशन उनकी मृत्यु के बाद हुआ। उन्होंने रसायन विद्या के लिए भी अपना बहुत अधिक समय दिया (ऊपर देखें)।
न्यूटन १६८९ से १६९० तक और १७०१ में इंग्लैंड की संसद के सदस्य भी रहे. लेकिन कुछ विवरणों के अनुसार उनकी टिप्पणियाँ हमेशा कोष्ठ में एक ठंडे सूखे को लेकर ही होती थीं और वे खिड़की को बंद करने का अनुरोध करते थे।
१६९६ में न्यूटन शाही टकसाल के वार्डन का पद संभालने के लिए लन्दन चले गए, यह पद उन्हें राजकोष के तत्कालीन कुलाधिपति, हैलिफ़ैक्स के पहले अर्ल, चार्ल्स मोंतागु के संरक्षण के माध्यम से प्राप्त हुआ।
उन्होंने इंग्लैंड का प्रमुख मुद्रा ढल्लाई का कार्य संभाल लिया, किसी तरह मास्टर लुकास के इशारों पर नाचने लगे (और एडमंड हेली के लिए अस्थाई टकसाल शाखा के उप नियंता का पद हासिल किया)
१६९९ में लुकास की मृत्यु न्यूटन शायद टकसाल के सबसे प्रसिद्ध मास्टर बने, इस पद पर न्यूटन अपनी मृत्यु तक बने रहे.ये नियुक्तियां दायित्वहीन पद के रूप में ली गयीं थीं, लेकिन न्यूटन ने उन्हें गंभीरता से लिया, १७०१ में अपने कैम्ब्रिज के कर्तव्यों से सेवानिवृत हो गए और मुद्रा में सुधार लाने का प्रयास किया तथा कतरनों तथा नकली मुद्रा बनाने वालों को अपनी शक्ति का प्रयोग करके सजा दी.
१७१७ में टकसाल के मास्टर के रूप में "ला ऑफ़ क्वीन एने" में न्यूटन ने अनजाने में सोने के पक्ष में चांदी के पैसे और सोने के सिक्के के बीच द्वि धात्विक सम्बन्ध स्थापित करते हुए, पौंड स्टर्लिंग को चांदी के मानक से सोने के मानक में बदल दिया।
इस कारण से चांदी स्टर्लिंग सिक्के को पिघला कर ब्रिटेन से बाहर भेज दिया गया। न्यूटन को १७०३ में रोयल सोसाइटी का अध्यक्ष और फ्रेंच एकेडमिक डेस साइंसेज का एक सहयोगी बना दिया गया। रॉयल सोसायटी में अपने पद पर रहते हुए, न्यूटन ने रोयल खगोलविद जॉन फ्लेमस्टीड को शत्रु बना लिया, उन्होंने फ्लेमस्टीड की हिस्टोरिका कोलेस्तिस ब्रिटेनिका को समय से पहले ही प्रकाशित करवा दिया, जिसे न्यूटन ने अपने अध्ययन में काम में लिया था।
अप्रैल १७०५ में क्वीन ऐनी ने न्यूटन को ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में एक शाही यात्रा के दौरान नाइट की उपाधि दी।
यह नाइट की पदवी न्यूटन को टकसाल के मास्टर के रूप में अपनी सेवाओ के लिए नहीं दी गयी थी और न ही उनके वैज्ञानिक कार्य के लिए दी गयी थी बल्कि उन्हें यह उपाधि मई १७०५ में संसदीय चुनाव के दौरान उनके राजनितिक योगदान के लिए दी गयी थी।
न्यूटन की मृत्यु लंदन में ३१ मार्च १७२७ को हुई, [पुरानी शैली २० मार्च १७२६] और उन्हें वेस्टमिंस्टर एब्बे में दफनाया गया था। उनकी आधी-भतीजी, कैथरीन बार्टन कोनदुइत, ने लन्दन में जर्मीन स्ट्रीट में उनके घर पर सामाजिक मामलों में उनकी परिचारिका का काम किया; वे उसके "बहुत प्यारे अंकल" थे, ऐसा जिक्र उनके उस पत्र में किया गया है जो न्यूटन के द्वारा उसे तब लिखा गया जब वह चेचक की बीमारी से उबर रही थी।
न्यूटन, जिनके कोई बच्चे नहीं थे, उनके अंतिम वर्षों में उनके रिश्तदारों ने उनकी अधिकांश संपत्ति पर अधिकार कर लिया और निर्वसीयत ही उनकी मृत्यु हो गई।
उनकी मृत्यु के बाद, न्यूटन के शरीर में भारी मात्रा में पारा पाया गया, जो शायद उनके रासायनिक व्यवसाय का परिणाम था। पारे की विषाक्तता न्यूटन के अंतिम जीवन में सनकीपन को स्पष्ट कर सकती है।
मृत्यु के बाद
फ्रेंच गणितज्ञ जोसेफ लुईस लाग्रेंज अक्सर कहते थे कि न्यूटन महानतम प्रतिभाशाली था और एक बार उन्होंने कहा कि वह "सबसे ज्यादा भाग्यशाली भी था क्योंकि हम दुनिया की प्रणाली को एक से ज्यादा बार स्थापित नहीं कर सकते." अंग्रेजी कवि अलेक्जेंडर पोप ने न्यूटन की उपलब्धियों के द्वारा प्रभावित होकर प्रसिद्ध स्मृति-लेख लिखा:
न्यूटन अपनी उपलब्धियों का बताने में खुद संकोच करते थे, फरवरी १६७६ में उन्होंने रॉबर्ट हुक को एक पत्र में लिखा:
हालांकि आमतौर पर इतिहासकारों का मानना है कि उपर्युक्त पंक्तियां, नम्रता के साथ कहे गए एक कथन के अलावा [५१] या बजाय [५२], हुक पर एक हमला थीं (जो कम ऊंचाई का और कुबडा था). उस समय प्रकाशिकीय खोजों को लेकर दोनों के बीच एक विवाद चल रहा था।
बाद की व्याख्या उसकी खोजों पर कई अन्य विवादों के साथ भी उपयुक्त है, जैसा कि यह प्रश्न कि कलन की खोज किसने की, जैसा कि ऊपर बताया गया है।
बाद में एक इतिहास में, न्यूटन ने लिखा:
मैं नहीं जानता कि मैं दुनिया को किस रूप में दिखाई दूंगा लेकिन अपने आप के लिए मैं एक ऐसा लड़का हूँ जो समुद्र के किनारे पर खेल रहा है और अपने ध्यान को अब और तब में लगा रहा है, एक अधिक चिकना पत्थर या एक अधिक सुन्दर खोल ढूँढने की कोशिश कर रहा है, सच्चाई का यह इतना बड़ा समुद्र मेरे सामने अब तक खोजा नहीं गया है।
न्यूटन का स्मारक (१७३१) वेस्टमिंस्टर एब्बे में देखा जा सकता है, यह गायक मंडल स्क्रीन के विपरीत गायक मंडल के प्रवेश स्थान के उत्तर में है।
इसे मूर्तिकार माइकल रिज्ब्रेक ने (१६९४-१७७०) सफ़ेद और धूसर संगमरमर में बनाया है, जिसका डिजाइन वास्तुकार विलियम कैंट (१६८५-१७४८) द्वारा बनाया गया है। इस स्मारक में न्यूटन की आकृति पत्थर की बनी हुई कब्र के ऊपर टिकी हुई है, उनकी दाहिनी कोहनी उनकी कई महान पुस्तकों पर रखी है और उनका बायां हाथ एक गणीतिय डिजाइन से युक्त एक सूची की और इशारा कर रहा है।
उनके ऊपर एक पिरामिड है और एक खगोलीय ग्लोब राशि चक्र के संकेतों तथा १६८० के धूमकेतु का रास्ता दिखा रहा है।
एक राहत पैनल दूरदर्शी और प्रिज्म जैसे उपकरणों का प्रयोग करते हुए, पुट्टी का वर्णन कर रहा है। आधार पर दिए गए लेटिन शिलालेख का अनुवाद है:
यहाँ नाइट, आइजैक न्यूटन, को दफनाया गया, जो दिमागी ताकत से लगभग दिव्य थे, उनके अपने विचित्र गणितीय सिद्धांत हैं, उन्होंने ग्रहों की आकृतियों और पथ का वर्णन किया, धूमकेतु के मार्ग बताये, समुद्र में आने वाले ज्वार का वर्णन किया, प्रकाश की किरणों में असमानताओं को बताया और वो सब कुछ बताया जो किसी अन्य विद्वान ने पहले कल्पना भी नहीं की थी, रंगों के गुणों का वर्णन किया।
वे मेहनती, मेधावी और विश्वासयोग्य थे, पुरातनता, पवित्र ग्रंथों और प्रकृति में विश्वास रखते थे, वे अपने दर्शन में अच्छाई और भगवान के पराक्रम की पुष्टि करते हैं और अपने व्यवहार में सुसमाचार की सादगी व्यक्त करते हैं।
मानव जाति में ऐसे महान आभूषण उपस्थित रह चुके हैं!
वह २५ दिसम्बर १६४२ को जन्मे और २० मार्च १७२६/ ७ को उनकी मृत्यु हो गई।--जी एल स्मिथ के द्वारा अनुवाद, दी मोंयुमेंट्स एंड जेनिल ऑफ़ सेंट पॉल्स केथेड्रल, एंड ऑफ़ वेस्टमिंस्टर एब्बे (१८२६), ई, ७034.
१९७८ से १९८८ तक, हेरी एकलेस्तन के द्वारा डिजाइन की गयी न्यूटन की एक छवि इंग्लेंड के बैंक के द्वारा जारी किये गए ड १ शृंखला के बैंक नोटों पर प्रदर्शित की गयी, (अंतिम १ नोट जो इंग्लेंड के बैंक के द्वारा जारी किये गए).
न्यूटन को नोट के पिछली ओर हाथ में एक पुस्तक पकडे हुए दर्शाया गया है, साथ ही एक दूरदर्शी, एक प्रिज्म और सौर तंत्र का एक मानचित्र भी है।
एक सेब पर खड़ी हुई आइजैक न्यूटन की एक मूर्ति, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय में देखी जा सकती है।
रेफ>[४३] ^ "न्यूटन के चुनाव के लिए रानी की 'बहुत बड़ी सहायता' थी उसे नाईट की उपाधि देना, यह सम्मान उन्हें न तो विज्ञान में योगदान के लिए दिया गया और न ही टकसाल के लिए उनके द्वारा दी गयी सेवओं के लिए दिया गया। बल्कि १७०५ में चुनाव में दलीय राजनीती में योगदान के लिए दिया गया।"
वेस्टफॉल १९९४ पी २४५
इतिहासकार स्टीफन डी. स्नोबेलेन का न्यूटन के बारे में कहना है कि "आइजैक न्यूटन एक विधर्मी थे। लेकिन ... उन्होंने अपने निजी विश्वास की सार्वजनिक घोषणा कभी नहीं की- जिससे इस रूढ़िवादी को बेहद कट्टरपंथी जो समझा गया। उन्होंने अपने विश्वास को इतनी अच्छी तरह से छुपाया कि आज भी विद्वान उनकी निजी मान्यताओं को जान नहीं पायें हैं।" स्नोबेलेन ने निष्कर्ष निकाला कि न्यूटन कम से कम एक सोशिनियन सहानुभूति रखते थे, (उनके पास कम से कम आठ सोशिनियन किताबें थीं ओर उन्होंने इन्हें पढ़ा), संभवतया एरियन ओर लगभग निश्चित रूप से एक ट्रिनिटी विरोधी थे। तीन पुर्वजी रूप जो आज यूनीटेरीयनवाद कहलाते हैं।
उनकी धार्मिक असहिष्णुता के लिए विख्यात एक युग में, न्यूटन के कट्टरपंथी विचारों के बारे में कुछ सार्वजनिक अभिव्यक्तियां हैं, सबसे खास है, पवित्र आदेशों का पालन करने के लिए उनके द्वारा इनकार किया जाना, ओर जब वे मरने वाले थे तब उन्हें पवित्र संस्कार लेने के लिए कहा गया ओर उन्होंने इनकार कर दिया।
स्नोबेलेन के द्वारा विवादित एक दृष्टिकोण में, टीसी फ़ाइजनमेयर ने तर्क दिया कि न्यूटन ट्रिनिटी के पूर्वी रुढिवादी दृष्टिकोण को रखते थे, रोमन कैथोलिक, अंग्रेजवाद और अधिकांश प्रोटेसटेंटों का पश्चिमी दृष्टिकोण नहीं रखते थे। उनके अपने दिन में उन पर एक रोसीक्रुसियन होने का आरोप लगाया गया। (जैसा कि रॉयल सोसाइटी और चार्ल्स द्वितीय की अदालत में बहुत से लोगों पर लगाया गया था।)
यद्यपि गति और गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम न्यूटन के सबसे प्रसिद्ध अविष्कार बन गए, उन्हें ब्रह्माण्ड को देखने के लिए एक मशीन के तौर पर इनका उपयोग करने के खिलाफ चेतावनी दी गयी, जैसे महान घडी के समान।
उन्होंने कहा, "गुरुत्व ग्रहों की गति का वर्णन करता है लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि किसने ग्रहों को इस गति में स्थापित किया।
भगवान सब चीजों का नियंत्रण करते हैं और जानते हैं कि क्या है और क्या किया जा सकता है।"
उनकी वैज्ञानिक प्रसिद्धि उल्लेखनीय है, साथ ही उनका प्रारंभिक चर्च के पादरियों व बाइबल का अध्ययन भी उल्लेखनीय है।
न्यूटन ने शाब्दिक आलोचना पर लिखा, सबसे विशेष है। एन हिस्टोरिकल अकाउंट ऑफ़ टू नोटेबल करप्शन ऑफ़ स्क्रिप्चर
उन्होंने ३ अप्रैल ई. ३३ को यीशु मसीह का क्रूसारोपण भी किया, जो एक पारंपरिक रूप से स्वीकृत तारीख़ के साथ सहमत है। उन्होंने बाइबल के अन्दर छुपे हुए संदेशों को खोजने का असफल प्रयास किया।
उनके अपने जीवनकाल में, न्यूटन ने प्राकृतिक विज्ञान से अधिक धर्म के बारे में लिखा.वह तर्कयुक्त विश्वव्यापी दुनिया में विश्वास करते थे, लेकिन उन्होंने लीबनीज और बरुच स्पिनोजा में निहित हाइलोजोइज्म को अस्वीकार कर दिया.इस प्रकार, आदेशित और गतिशील रूप से सूचित ब्रह्माण्ड को समझा जा सकता था और इसे एक सक्रिय कारण के द्वारा समझा जाना चाहिए.उनके पत्राचार में, न्यूटन ने दावा किया कि प्रिन्सिपिया में लिखते समय "मैंने एक नज़र ऐसे सिद्धांतों पर रखी, ताकि देवता में विश्वास रखते हुए मनुष्य पर विचार किया जा सके." उन्होंने दुनिया की प्रणाली में डिजाइन का प्रमाण देखा: ग्रहीय प्रणाली में ऐसी अद्भुत एकरूपता को पसंद के प्रभाव की अनुमति दी जानी चाहिए।"
लेकिन न्यूटन ने जोर दिया कि अस्थायित्व की धीमी वृद्धि के कारण दैवी हस्तक्षेप अंत में प्रणाली के सुधार के लिए आवश्यक होगा. इसके लिए लीबनीज
ने उन पर निंदा लेख किया: "सर्वशक्तिमान ईश्वर समय समय पर अपनी घड़ी को समाप्त करना चाहता है: अन्यथा यह स्थानांतरित करने के लिए बंद कर दिया जायेगा. ऐसा लगता है कि उसके पास इसे एक सतत गति बनाने के लिए पर्याप्त दूरदर्शिता नहीं थी।"
न्यूटन की स्थिति को उनके अनुयायी शमूएल क्लार्क द्वारा एक प्रसिद्ध पत्राचार के द्वारा सख्ती से बचाने का प्रयास किया गया।
धार्मिक विचार पर प्रभाव
न्यूटन और रॉबर्ट बोयल के यांत्रिक दर्शन को बुद्धिजीवी क़लमघसीट द्वारा रूढ़ीवादियों और उत्साहियों के लिए एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में पदोन्नत किया गया और इसे रूढ़िवादी प्रचारकों तथा असंतुष्ट प्रचारकों जैसे लेटीट्युडीनेरियन के द्वारा हिचकिचाकर स्वीकार किया गया। इस प्रकार, विज्ञान की स्पष्टता और सरलता को नास्तिकता के खतरे तथा अंधविश्वासी उत्साह दोनों की भावनात्मक और आध्यात्मिक अतिशयोक्ति का मुकाबला करने के लिए एक रास्ते के रूप में देखा गया, और उसी समय पर, अंग्रेजी देवत्व की एक दूसरी लहर ने न्यूटन की खोजों का उपयोग एक "प्राकृतिक धर्म" की संभावना को प्रर्दशित करने के लिए किया।
पूर्व-आत्मज्ञान के खिलाफ किये गए हमले "जादुई सोच," और ईसाईयत के रहस्यमयी तत्व, को ब्रह्माण्ड के बारे में बोयल की यांत्रिक अवधारणा से नींव मिली.
न्यूटन ने गणितीय प्रमाणों के माध्यम से बोयल के विचारों को पूर्ण बनाया और शायद अधिक महत्वपूर्ण रूप से वे उन्हें लोकप्रिय बनाने में बहुत अधिक सफल हुए. न्यूटन ने एक हस्तक्षेप भगवान द्वारा नियंत्रित दुनिया को एक ऐसी दुनिया में बदल डाला जो तर्कसंगत और सार्वभौमिक सिद्धांतों के साथ भगवान के द्वारा कलात्मक रूप से बनायीं गयी है। ये सिद्धांत सभी लोगों के लिए खोजने हेतु उपलब्ध हैं, ये लोगों को इसी जीवन में अपने उद्देश्यों को फलदायी रूप से पूरा करने की अनुमति देते हैं, अगले जीवन का इन्तजार नहीं करते हैं और उन्हें उनकी अपनी तर्कसंगत शक्तियों से पूर्ण बनाते हैं।
न्यूटन ने भगवान को मुख्य निर्माता के रूप में देखा, जिसके अस्तित्व को सभी निर्माणों की भव्यता के चेहरे में नकारा नहीं जा सकता है। उनके प्रवक्ता, क्लार्क, ने लीबनीज के धर्म विज्ञान को अस्वीकृत कर दिया, जिसने भगवान को "ल'ओरिजने दू माल " के उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया, इसके लिए भगवान को उसके निर्माण में योगदान से हटा दिया, चूँकि जैसा कि क्लार्क ने कहा था ऐसा देवता केवल नाम से ही राजा होगा, लेकिन नास्तिकता से एक कदम दूर होगा. लेकिन अगली सदी में न्यूटन की प्रणाली की सफलता का अनदेखा धर्म विज्ञानी परिणाम, लीबनीज के द्वारा बताई गयी आस्तिकता की स्थिति को मजबूत बनाएगा.
दुनिया के बारे में समझ अब साधारण मानव के कारण के स्तर तक आ गयी और मानव, जैसा कि ओडो मर्कवार्ड ने तर्क दिया, बुराई के सुधार और उन्मूलन के लिए उत्तरदायी बन गया।
दूसरी ओर, लेटीट्युडीनेरियन और न्यूटोनियन के विचारों के परिणाम बहुत दूरगामी थे, एक धार्मिक गुट यांत्रिक ब्रह्मांड की अवधारणा को समर्पित हो गया, लेकिन इसमें उतना ही उत्साह और रहस्य था कि प्रबुद्धता को नष्ट करने के लिए कठिन संघर्ष किया गया।
दुनिया के अंत के बारे में दृष्टिकोण
एक पांडुलिपि जो उन्होंने १७०४ में लिखी, जिसमें उन्होंने बाइबल से वैज्ञानिक जानकारी निकालने के अपने प्रयास का वर्णन किया है, उनका अनुमान था कि दुनिया २०६० से पहले समाप्त नहीं होगी।
इस भविष्यवाणी में उहोने कहा कि, "इसमें में यह नहीं कह रहा कि अंतिम समय कौन सा होगा, लेकिन मैं इससे उन काल्पनिक व्यक्तियों के अटकलों को बंद करना चाहता हूँ जो अक्सर अंत समय के बारे में भविष्यवाणी करते हैं और इस भविष्यवाणी के असफल हो जाने पर पवित्र भविष्यद्वाणी बदनाम होती है।"
आत्मज्ञानी दार्शनिकों ने पूर्ववर्ती वैज्ञानिकों के एक छोटे इतिहास को चुना-गैलिलियो, बोयल और मुख्य रूप से न्यूटन- यह चुनाव दिन के प्रत्येक भौतिक और सामाजिक क्षेत्र के लिए प्राकृतिक नियम और प्रकृति की एकल अवधारणा के उनके अनुप्रयोग के मार्गदर्शन और जमानत के रूप मैं किया गया।
इस संबंध में, इस पर निर्मित सामाजिक संरंचनाओं और इतिहास के अध्याय त्यागे जा सकते थे।
प्राकृतिक और आत्मज्ञानी रूप से समझने योग्य नियमों पर आधारित ब्रह्माण्ड के बारे में यह न्यूटन की ही संकल्पना थी जिसने आत्मज्ञान विचारधारा के लिए एक बीज का काम किया। लोके और वॉलटैर ने आंतरिक अधिकारों की वकालत करते हुए प्राकृतिक नियमों की अवधारणा को राजनितिक प्रणाली पर लागू किया; फिजियोक्रेट और एडम स्मिथ ने आत्म-रूचि और मनोविज्ञान की प्राकृतिक अवधारणा को आर्थिक प्रणाली पर लागू किया तथा समाजशास्त्रियों ने प्रगति के प्राकृतिक नमूनों में इतिहास को फिट करने की कोशिश के लिए तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था की आलोचना की.
मोनबोडो और सेमयूल क्लार्क ने न्यूटन के कार्य के तत्वों का विरोध किया, लेकिन अंततः प्रकृति के बारे में उनके प्रबल धार्मिक विचारों को सुनिश्चित करने के लिए इसे युक्तिसंगत बनाया।
न्यूटन और जालसाजी
शाही टकसाल के प्रबंधक के रूप में, न्यूटन ने अनुमान लगाया कि दुबारा ढलाई किये जाने वाले सिक्कों में २०% जाली थे। जालसाजी एक बहुत बड़ा राजद्रोह था, जिसके लिए फांसी की सजा थी। इस के बावजूद, सबसे ज्वलंत अपराधियों को पकड़ना बहुत मुश्किल था; यद्यपि, न्यूटन इस कार्य के लिए सही साबित हुए. भेष बदल कर शराबखाने और जेल में जाकर उन्होंने खुद बहुत से सबूत इकट्ठे किये। सरकार की शाखाओं को अलग करने और अभियोजन पक्ष के लिए स्थापित सभी बाधाओं हेतु, अंग्रेजी कानून में अभी भी सत्ता के प्राचीन और दुर्जेय रिवाज थे।
न्यूटन को शांति का न्यायाधीश बनाया गया और जून १६९८ और क्रिसमस १६९९ के बीच उन्होंने गवाह, मुखबिरों और संदिग्धों के २०० परिक्षण करवाए।
न्यूटन ने अपनी प्रतिबद्धता को जीता और फरवरी १६९९ में उनके पास दस कैदी रिहाई का इन्तजार कर रहे थे।[१०३]
राजा के वकील के रूप में न्यूटन का एक मामला विलियम चलोनेर के खिलाफ था। चलोनेर की योजना थी कैथोलिक के जाली षड्यंत्र को तय करना और फिर अभागे षड़यंत्रकारी में बदल देना जिसको वह बंधक बना लेता था।
चलोनेर ने अपने आप को पर्याप्त समृद्ध सज्जन बना लिया। संसद में अर्जी देते हुए चलोनर ने टकसाल में नकली सिक्के बनाने के लिए उपकरण भी उपलब्ध कराये. (ऐसा आरोप दूसरो ने उस पर लगाया) उसने प्रस्ताव दिया कि उसे टकसाल की प्रक्रियाओं का निरीक्षण करने की अनुमति दी जाए ताकि वह इसमें सुधार के लिए कुछ कर सके।
उसने संसद में अर्जी दी कि सिक्कों की ढलाई के लिए उसकी योजना को स्वीकार कर लिया जाये ताकि जालसाजी न की जा सके, जबकि उसी समय जाली सिक्के सामने आये। न्यूटन ने चलोनर पर जालसाजी का परीक्षण किया और सितम्बर १६९७ में उसे न्यू गेट जेल में भेज दिया। लेकिन चलोनर के उच्च स्थानों पर मित्र थे, जिन्होंने उसे उसकी रिहाई के लिए मदद की। न्यूटन ने दूसरी बार निर्णायक सबूत के साथ उस पर परिक्षण किया।
चलोनेर को उच्च राजद्रोह का दोषी पाया गया था और उसे २३ मार्च १६९९ को तिबुर्न गेलोज में फांसी दे कर दफना दिया गया।
न्यूटन के गति के नियम
गति के प्रसिद्द तीन नियम
न्यूटन के पहला नियम (जिसे जड़त्व के नियम भी कहा जाता है) के अनुसार एक वस्तु जो स्थिरवस्था में है वह स्थिर ही बनी रहेगी और एक वस्तु जो समान गति की अवस्था में है वह समान गति के साथ उसी दिशा में गति करती रहेगी जब तक उस पर कोई बाहरी बल कार्य नहीं करता है।
न्यूटन के दूसरे नियम के अनुसार एक वस्तु पर लगाया गया बल \वेक{, समय के साथ इसके संवेग \वेक{ में परिवर्तन की दर के बराबर होता है।
गणितीय रूप में इसे निम्नानुसार व्यक्त किया जा सकता है
चूंकि दूसरा नियम एक स्थिर द्रव्यमान की वस्तु पर लागू होता है, (द्म /त = ०), पहला पद लुप्त हो जाता है और त्वरण की परिभाषा का उपयोग करते हुए प्रतिस्थापन के द्वारा समीकरण को संकेतों के रूप में निम्नानुसार लिखा जा सकता है
पहला और दूसरा नियम अरस्तु की भौतिकी को तोड़ने का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें ऐसा माना जाता था कि गति को बनाये रखने के लिए एक बल जरुरी है।
वे राज्य में व्यवस्था की गति का एक उद्देश्य है राज्य बदलने के लिए हैं कि एक ही शक्ति की जरूरत है। न्यूटन के सम्मान में बल की सी इकाई का नाम न्यूटन रखा गया है।
न्यूटन के तीसरे नियम के अनुसार प्रत्येक क्रिया की बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है। इसका अर्थ यह है कि जब भी एक वस्तु किसी दूसरी वस्तु पर एक बल लगाती है तब दूसरी वस्तु विपरीत दिशा में पहली वस्तु पर उतना ही बल लगती है।
इसका एक सामान्य उदाहरण है दो आइस स्केट्स एक दूसरे के विपरीत खिसकते हैं तो विपरीत दिशाओं में खिसकने लगते हैं।
एक अन्य उदाहरण है बंदूक का पीछे की और धक्का महसूस करना, जिसमें बन्दूक के द्वारा गोली को दागने के लिए उस पर लगाया गया बल, एक बराबर और विपरीत बल बंदूक पर लगाता है जिसे गोली चलाने वाला महसूस करता है।
चूंकि प्रश्न में जो वस्तुएं हैं, ऐसा जरुरी नहीं कि उनका द्रव्यमान बराबर हो, इसलिए दोनों वस्तुओं का परिणामी त्वरण अलग हो सकता है (जैसे बन्दूक से गोली दागने के मामले में)।
अरस्तू के विपरीत, न्यूटन की भौतिकी सार्वत्रिक हो गयी है। उदाहरण के लिए, दूसरा नियम ग्रहों तथा एक गिरते हुए पत्थर पर भी लागू होता है। दूसरे नियम की सदिश प्रकृति बल की दिशा और वस्तु के संवेग में परिवर्तन के प्रकार के बीच एक ज्यामितीय सम्बन्ध स्थापित करती है। न्यूटन से पहले, आम तौर पर यह माना जाता था कि सूर्य के चारों और घूर्णन कर रहे एक ग्रह के लिए एक अग्रगामी बल आवश्यक होता है जिसकी वजह से यह गति करता रहता है। न्यूटन ने दर्शाया कि इस के बजाय सूर्य का अन्दर की और एक आकर्षण बल आवश्यक होता है। (अभिकेन्द्री आकर्षण) यहाँ तक कि प्रिन्सिपिया के प्रकाशन के कई दशकों के बाद भी, यह विचार सार्वत्रिक रूप से स्वीकृत नहीं किया गया। और कई वैज्ञानिकों ने डेसकार्टेस के वोर्टिकेस के सिद्धांत को वरीयता दी.
न्यूटन का सेब
न्यूटन अक्सर खुद एक कहानी कहते थे कि एक पेड़ से एक गिरते हुए सेब को देख कर वे गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत बनाने के लिए प्रेरित हो पाए।
बाद में व्यंग्य करने के लिए ऐसे कार्टून बनाये गए जिनमें सेब को न्यूटन के सर पर गिरते हुए बताया गया और यह दर्शाया गया कि इसी के प्रभाव ने किसी तरह से न्यूटन को गुरुत्व के बल से परिचित कराया. उनकी पुस्तिकाओं से ज्ञात हुआ कि १६६० के अंतिम समय में न्यूटन का यह विचार था कि स्थलीय गुरुत्व का विस्तार होता है, यह चंद्रमा के वर्ग व्युत्क्रमानुपाती होता है; हालाँकि पूर्ण सिद्धांत को विकसित करने में उन्हें दो दशक का समय लगा। जॉन कनदयुइत, जो रॉयल टकसाल में न्यूटन के सहयोगी थे और न्यूटन की भतीजी के पति भी थे, ने इस घटना का वर्णन किया जब उन्होंने न्यूटन के जीवन के बारे में लिखा:
१६६६ में वे कैम्ब्रिज से फिर से सेवानिवृत्त हो गए और अपनी मां के पास लिंकनशायर चले गए। जब वे एक बाग़ में घूम रहे थे तब उन्हें एक विचार आया कि गुरुत्व की शक्ति धरती से एक निश्चित दूरी तक सीमित नहीं है, (यह विचार उनके दिमाग में पेड़ से नीचे की और गिरते हुए एक सेब को देख कर आया) लेकिन यह शक्ति उससे कहीं ज्यादा आगे विस्तृत हो सकती है जितना कि पहले आम तौर पर सोचा जाता था।
उन्होंने अपने आप से कहा कि क्या ऐसा उतना ऊपर भी होगा जितना ऊपर चाँद है और यदि ऐसा है तो, यह उसकी गति को प्रभावित करेगा और संभवतया उसे उसकी कक्षा में बनाये रखेगा, वे जो गणना कर रहे थे, इस तर्क का क्या प्रभाव हुआ।
सवाल गुरुत्व के अस्तित्व का नहीं था बल्कि यह था कि क्या यह बल इतना विस्तृत है कि यह चाँद को अपनी कक्षा में बनाये रखने के लिए उत्तरदायी है। न्यूटन ने दर्शाया कि यदि बल दूरी के वर्ग व्युत्क्रम में कम होता है तो, चंद्रमा की कक्षीय अवधि की गणना की जा सकती है और अच्छा परिणाम प्राप्त हो सकता है। उन्होंने अनुमान लगाया कि यही बल अन्य कक्षीय गति के लिए जिम्मेदार है और इसीलिए इसे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नाम दे दिया।
एक समकालीन लेखक, विलियम स्तुकेले, सर आइजैक न्यूटन की ज़िंदगी को अपने स्मरण में रिकोर्ड करते हैं, वे १५ अप्रैल १७२६ को केनसिंगटन में न्यूटन के साथ हुई बातचीत को याद करते हैं, जब न्यूटन ने जिक्र किया कि "उनके दिमाग में गुरुत्व का विचार पहले कब आया।
जब वह ध्यान की मुद्रा में बैठे थे उसी समय एक सेब के गिरने के कारण ऐसा हुआ। क्यों यह सेब हमेशा भूमि के सापेक्ष लम्बवत में ही क्यों गिरता है? ऐसा उन्होंने अपने आप में सोचा। यह बगल में या ऊपर की ओर क्यों नहीं जाता है, बल्कि हमेशा पृथ्वी के केंद्र की ओर ही गिरता है।"
इसी प्रकार के शब्दों में, वोल्टेर महाकाव्य कविता पर निबंध (१७२७) में लिखा, "सर आइजैक न्यूटन का अपने बागानों में घूम रहे थे, पेड़ से गिरते हुए एक सेब को देख कर, उन्होंने गुरुत्वाकर्षण की प्रणाली के बारे में पहली बार सोचा।
विभिन्न पेड़ों को "वह" सेब के पेड़ होने का दावा किया जाता है जिसका न्यूटन ने वर्णन किया है। दी किंग्स स्कूल, ग्रान्थम दावा करता है कि यह पेड़ स्कूल के द्वारा खरीद लिया गया था, कुछ सालों बाद इसे जड़ सहित लाकर प्रधानाध्यापक के बगीचे में लगा दिया गया। नेशनल ट्रस्ट जो वूलस्थ्रोप मेनर का मालिक है, का वर्तमान स्टाफ इस पर विवाद करता है, ओर दावा करता है कि वह पेड़ उनके बगीचे में उपस्थित है जिस के बारे में न्यूटन ने बात की।
मूल वृक्ष का वंशज ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज के मुख्य द्वार के बाहर उगा हुआ देखा जा सकता है, यह उस कमरे के नीचे है जिसमें न्यूटन पढाई के समय रहता था।
ब्रोग्डेल में राष्ट्रीय फलों का संग्रह उन पेड़ों से ग्राफ्ट की आपूर्ति कर सकता है, जो फ्लॉवर ऑफ़ केंट के समान दिखाई देता है, जो एक मोटे गूदे की पकाने की किस्म है।
न्यूटन के लेखन
मेथड ऑफ़ फ़्लक्सियन्स (१६७१)
ऑफ़ नेचर ओब्वियस लॉस एंड प्रोसेसेज इन वेजिटेशन (अप्रकाशित सी.१६७१-७५)
डे मोटू कोर्पोरम इन जिरम (१६८४)
फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका (१६८७)
टकसाल में मास्टर के रूप में रिपोर्टें (१७०१-२५)
एरिथमेटिका युनीवरसेलिस (१७०७)
दी सिस्टम ऑफ़ दी वर्ल्ड, ऑप्टिकल लेक्चर्स, ''दी क्रोनोलोजी ऑफ़ एनशियेंट किंगडेम्स , (संशोधित) और डी मुंडी सिस्टमेट (१७२८ में मरणोपरांत प्रकाशित की गयी),
"डेनियल पर प्रेक्षण और डी एपोकलिप्स ऑफ़ सेंट जॉन" (१७३३)
धर्म-ग्रन्थ के दो उल्लेखनीय भ्रष्टाचारों का ऐतिहासिक लेखा जोखा (१७५४)
इन्हें भी देखें
न्यूटन की डिस्क
न्यूटन का झूला
न्यूटन की असमानताएं
न्यूटन के गति के नियम.
न्यूटन के संकेतन
न्यूटन का प्रतिक्षेपक
न्यूटन के धार्मिक विचार
न्यूटन की परिक्रामी कक्षाओं की प्रमेय
न्यूटन- यूलर समीकरण
स्पालडिंग जेंटलमेन्स सोसाइटी
पादटिप्पणी और सन्दर्भ
[१२४]यह अच्छी तरह से प्रलेखित काम, विशेष रूप से, पुर्वाचार्य सम्बन्धी न्यूटन के ज्ञान के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराता है।
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विज्ञान विश्व की जीवनी
वैज्ञानिक शब्दकोश की जीवनी
न्यूटन की प्रिन्सिपिया- पढो और खोजो
न्यूटन के ज्योतिष का खंडन
न्यूटन के धार्मिक विचारों पर पुनर् विचार
न्यूटन के शाही टकसाल की रिपोर्टें
न्यूटन के छुपे हुए रहस्य नोवा टी वी कार्यक्रम.
दर्शन के स्टैनफोर्ड विश्वकोश से
आइजैक न्यूटन, जॉर्ज स्मिथ द्वारा
न्यूटन की फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका, जॉर्ज स्मिथ द्वारा
न्यूटन के दर्शन, एंड्रयू जनिअक द्वारा
न्यूटन के अन्तरिक्ष, समय और गति के विचार रॉबर्ट राइनसिवीज के द्वारा
न्यूटन के कास्टल की शैक्षिक सामग्री
आइजैक न्यूटन के रासायनिक विज्ञान के लेखन पर शोध
फ्मा लाइव!बच्चों को न्यूटन के नियम सिखाने के लिए कार्यक्रम
न्यूटन की धार्मिक स्थिति
न्यूटन की प्रिन्सिपिया की दी "जनरल स्कोलियम"
कंडास्वामी, आनंद एम.न्यूटन / लाइबनिट्स के संघर्ष के सन्दर्भ में.
न्यूटन का पहला ओड़े- इस बात का अध्ययन कि अनंत श्रृंख्ला का उपयोग करते हुए न्यूटन ने कैसे पहले क्रम के ओड़े के समाधान का अंदाजा लगाया.
आइजैक न्यूटन की छवियाँ, ऑडियो, एनिमेशन और इंटरैक्टिव घटकों पर नियंत्रण
१६४३ में जन्मे लोग
१७२७ में निधन
१७ वीं शताब्दी के अंग्रेजी लोग
१७ वीं शताब्दी के लेटिन लेखक
१७ वीं शताब्दी की गणितज्ञ
१८ वीं सदी के अंग्रेजी लोग
१८ वीं सदी के लाटिन लेखकों
१८ वीं सदी के गणितज्ञ
ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज के पूर्व छात्र
वेस्टमिंस्टर एब्बे में दफनाना
अंग्रेजी रसायन विज्ञानी
रॉयल सोसायटी के अध्येताओं
ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज के अध्येताओं
गणित के ल्युकेसियन प्रोफेसर
टकसाल के मालिक
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के लिए संसद के सदस्य
१७०७ की प्रारंभ में अंग्रेजी संसद के सदस्य
लिंकनशायर के लोग
स्टर्लिंग बैंक नोटों पर दिए गए लोगों के चित्र.
विज्ञान के दार्शनिकों
रॉयल सोसायटी के अध्यक्ष
धर्म और विज्ञान
वैज्ञानिक उपकरण के निर्माता
सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी |
धारीजोशी, पिथौरागढ (सदर) तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
धारीजोशी, पिथौरागढ (सदर) तहसील
धारीजोशी, पिथौरागढ (सदर) तहसील |
नादानियाँ एक टीवी कार्यक्रम हैं। यह बिग मैजिक द्वारा प्रस्तुत और धीरज कुमार द्वारा निर्मित और बाद में सागर पिक्चर्स द्वारा निर्मित एक हिंदी सिटकॉम था। पाकिस्तानी सिटकॉम नादानियां का एक रूपांतरण, इसमें इकबाल आज़ाद, गुन कंसारा ,गौरव शर्मा, बलदेव त्रेहन, समीक्षा भट्ट, उपासना सिंह, आलोक नाथ, जय पाठक और नीलम सिविया हैं।
कहानी चार लोगों के एक परिवार की है जो नई दिल्ली में रहता है ।
इकबाल आज़ाद / जय पाठक नमन "नंदू" वर्मा के रूप में : नंदू एक टेलीविजन लेखक और एक पूर्णकालिक गृह पति है जो अपनी पत्नी चांदनी और अपने छोटे भाई पुष्कर से प्यार करता है। नंदू आलसी है और अक्सर उसकी पत्नी उसकी बेरोजगारी के बारे में उसका मजाक उड़ाती है।
गुन कंसारा / नीता शेट्टी /समीक्षा भट्ट चांदनी वर्मा "चंदू" के रूप में : चंदू वर्मा परिवार की कुलपति है और लिपिक का काम करता है। वह आमतौर पर नंदू और पप्पू को जीवन के प्रति उनके आलसी रवैये के कारण डांटती है।
गौरव शर्मा पुष्कर "पप्पू" वर्मा / छोटा डॉन के रूप में : वर्मा परिवार का सबसे छोटा सदस्य जो अपनी भाभी के धन को प्रदर्शित करने के लिए नकली डिजाइनर कपड़े पहने लड़कियों के साथ फ्लर्ट करना पसंद करता है।
बलदेव त्रेहान / नित्यानंदम रामचंद्र भगवान अंकल के रूप में: एक परेशान करने वाला पड़ोसी जो हमेशा नंदू के लॉन में घूमता देखा जाता है। उसकी दो पत्नियां हैं और ७ पिता होने का दावा करता है। उसके साथ चैट करना जानबूझकर खुद को मारने की इच्छा रखने जैसा है - जैसा कि पप्पू ने महसूस किया। वह पप्पू की तरह अपने से काफी छोटी लड़कियों से फ्लर्ट करना पसंद करता है।
उपासना सिंह - तारावंती वर्मा: नंदू और पप्पू की माँ।
आलोक नाथ "बाबूजी" के रूप में, नंदू और पप्पू के मृत पिता, आलोक नाथ, एक "संस्कारी बेबूजी" के रूप में चित्रित किए गए हैं, जिनकी तस्वीर ड्राइंग रूम की दीवारों में से एक पर प्रमुखता से प्रदर्शित है और उनके चित्र को अक्सर पप्पू द्वारा भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करने के लिए संदर्भित किया जाता है। भाई नंदू। इस हास्य पंच का उपयोग आलोक नाथ के चुटकुलों के मद्देनजर किया जाता है जिसमें नाथ को "संस्कारी बाबूजी" के रूप में दिखाया गया था। बाबूजी वर्तमान में एक हास्य भूमिका में उनके साथ हैं।
गरिमा तिवारी तानिया के रूप में: चंदू की दोस्त और पप्पू की प्रेमिका।
अभिषेक वर्मा जसवीर "जस्सी" सिंह, जस्सी के भाई के रूप में
शालिनी सहुता जसमीत "जस्सी" वर्मा, पप्पू की पत्नी के रूप में
राजा जंग बहादुर राजा जंग बहादुर, चौकीदार के रूप में
गजेंद्र चौहान श्री चड्ढा के रूप में, समाज के सचिव जहां वर्मा रहते हैं।
बिग मैजिक चैनल के कार्यक्रम |
आजकाल भारत में प्रकाशित होने वाला बांग्ला भाषा का एक समाचार पत्र (अखबार) है। आजकल एक साथ कोलकाता, सिलीगुड़ी से प्रकाशित होता है और इसका त्रिपुरा संस्करण अगरतला से प्रकाशित होता है। अख़बार की शुरुआत १९८१ में अभय कुमार घोष ने की थी।
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आर्जेंटीना दक्षिण अमेरिका में स्थित एक देश है। क्षेत्रफल एवं जनसंख्या की दृष्टि से दक्षिणी अमरीका का ब्राजील देश के बाद द्वितीय विशालतम देश है (क्षेत्रफल: २७,७६,६५६ वर्ग कि.मी.)। इसके उतत्र में ब्राजील पश्चिम में चिली तथा उत्तरपश्चिम में पराग्वे है। देश २२ द.अ. तथा ५५ द.अ. के मध्य ३७,७०० कि॰मी॰ की लंबाई में उत्तर दक्षिण फैला हुआ है। इसकी आकृति एक अधोमुखी त्रिभुज के समान है जो लगभग २,६०० कि॰मी॰ चौड़े आधार से दक्षिण की ओर संकरा होता चला गया है। उत्तर में यह बोलिविया एवं परागुए, उत्तर, पूर्व में युरुगए तथा ब्राजील और पश्चिम में चिली देश से घिरा है।
अर्जेन्टीना का नाम अर्जेन्टम से पड़ा जिसाक अर्थ चाँदी होता है। चांदी के लिए प्रयुक्त लैटिन तथा स्पैनिश पर्यायवाची शब्दों से ही, जो क्रमश: 'अर्जेटम' एवं 'प्लाटा' हैं, अर्जेटीना और 'रायो डी ला प्लाटा' (देश की महान एस्चुअरी) का नामकरण हुआ है।
आरंभ में यह उपनिवेश था जिसकी स्थापना स्पेन के चार्ल्स तृतीय ने पुर्तगाली दबाव को रोकने के लिए की थी। सन् १८१० ई. में देश की जनता ने स्पेन की सत्ता के विरुद्ध आंदोलन आरंभ किया जिसके परिणाम स्वरूप १८१६ ई. में यह स्वतंत्र हुआ। परंतु स्थायी सरकार की स्थापना १८५३ ई से ही संभव हुई।
आर्जेटीना गणतंत्र के अतंर्गत २२ राज्यों के अतिरिक्त एक फेडरल जिला तथा टेरा डेल फ्यूगो, अंटार्कटिका महाद्वीप के कुछ भाग और दक्षिणी अतलांतक सागर के कुछ द्वीप हैं।
पश्चिम के पर्वतीय क्षेत्रफल को छोड़कर देश का अन्य शेष भाग मुख्यत: निम्न भूमि है। देश सामान्यत: चार स्थलाकृतिक प्रदेशों में विभक्त हो जाता है: ऐंडीज़ पर्वतीय प्रदेश, उत्तर का मैदान, पंपाज़ और पैटागोनिया।
ऐंडीज़ पर्वतीय प्रदेश के अंतर्गत देश का लगभग ३० प्रतिशत भाग आता है। पश्चिम में उत्तर दक्षिण फैली इस पर्वतश्रेणी का उत्थान तृतीयक कल्प में आल्प्स गिरि-निर्माण-काल में हुआ था। यह चिली देश के साथ प्राकृतिक सीमा निर्धारित करती है। इस श्रेणी में ही, मध्य एशिया के पश्चात् सीमा निर्धारित करती है। इस श्रेणी में ही, मध्य एशिया के पश्चात्, विश्व के उच्चतम शिखर स्थित हैं, जैसे माउंट अकोंकागुआ (७,०२३ मीटर), मर्सीडरियो (६,६७२ मीटर) और टुपनगाटो (६,८०२ मीटर)। इस प्रदेश में अंगूर, शहतूत तथा अन्य फल बहुतायत से पैदा होते हैं।
उत्तर के मैदानी प्रदेश के अंतर्गत चैको मैसोपोटामिया तथा मिसिओनेज़ क्षेत्र हैं। इस प्रदेश में जलोढ के विस्तृत निक्षेप पाए जाते हैं। अधिकांश भाग वर्षा में बाढ़ग्रस्त हो जाते हैं। चैको क्षेत्र वनसंसाधन में धनी है तथा मिसिओनेज़ में यर्बा माते (एक प्रकार की चाय) की खेती होती है। पराना, परागुए आदि नदियों से घिरा मैसोपोटामिया पशुओं के लिए प्रसिद्ध है।
देश के मध्य में स्थित पम्पास अत्यधिक उपजाऊ और विस्तृत समतल घास की मैदान है। यह देश का सबसे समृद्धिशाली भाग है जिसमें ८० प्रतिशत जनसंख्या रहती है। कृषि एवं पशुपालन उद्योगों के कुल उत्पादन का लगभग दो तिहाई भाग यहीं से प्राप्त होता है।
पैटागोनिया प्रदेश रायो निग्रो से दक्षिण की ओर देश के दक्षिणी छोर तक फैला है (क्षेत्रफल: ७,७७,००० वर्ग कि.मी.)। यह अर्धशुष्क एवं अल्प जनसंख्यावाला पठारी प्रदेश है। यहाँ विशेष रूप से पशु पालन का कारोबार होता है।
नदियां ऐंडीज़ पर्वत अथवा उत्तर की उच्च भूमि से निकलकर पूर्व की ओर प्रवाहित होती है और अतलांतक सागर में गिरती हैं। पराना, परागुए तथा युरुगुए मुख्य नदियां हैं।
देश की जलवायु प्रधानत: शीतोष्ण है। परंतु, उत्तर में चैको की अत्यधिक उष्ण जलवायु, मध्य में पंपाज़ की सम ओर सुहावनी जलवायु, तथा उपअंटार्कटिक शीत से प्रभावित दक्षिणी पैटागोनिया का हिमानी क्षेत्र जलवायु की विविधता को प्रदर्शित करते हैं। देश का यथेष्ट अक्षांशीय विस्तार तथा उच्चावच का विशिष्ट अंतर ही इस विविधता के प्रधान कारण है। अधिकतम ताप (५५०सें.) उत्तरी छोर पर और निम्नतम (१८०सें.) दक्षिणी छोर पर मिलते हैं। वर्षा की मात्रा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है।
जलवायु, मिट्टी और उच्चावच में विशिष्ट क्षेत्रीय विभिन्नताओं के कारण ही देश में उष्णकटिबंधीय वर्षावाले वनों से लेकर मरुस्थलीय कांटेदार झाडियां तक पाई जाती हैं।
जनसंख्या एवं नगर
देश की जनंसख्या का अधिकांश, कुछ समय पूर्व से (१८८० ई.), आप्रवासित यूरोपवासी (मुख्यत: इटली एवं स्पेन निवासी) हैं। अन्य दक्षिणी अमरीका के देशों के विपरीत यहाँ नीग्रो अथवा इंडियन आदिवासियों की संख्या नगण्य है। इस प्रकार देशवासियों में प्रजातीय एवं सांस्कृतिक समानताएं मिलती हैं। स्पैनिश राष्ट्रभाषा है। ९५ प्रतिशत मनुष्य रोमन कैथॉलिक हैं।
नगरीय जनसंख्या के आधे लोग ग्रेटर ब्यूनस आयर्स में वास करते हैं। इस क्षेत्र की गणना विश्व के विशालतम महानगरीय क्षेत्रों में होती है। मुख्य नगर हैं- ब्यूनस आयर्स, रोज़ैरियो, कार्डोबा, ला प्लाटा, मार डेल प्लाटा, तुकुमन, सांता फे, पराना, बाहिया ब्लैंका, साल्टा, कोरियेंटीयज़, तथा मैंडोजा।
पराना, युरुगुए तथा परागुए नदियां अंतर्देशीय जल यातायात के लिए विश्वविख्यात हैं। ब्यूनस आयर्स एवं ला प्लाटा (दोनों प्लाटा एस्चुअरी पर स्थित) और बाहिया ब्लैका मुख्य पत्तन हैं। पराना नदी पर रोज़ेरियो सबसे बड़ा अंतर्देशीय पत्तन है ब्यूनस आयर्स पश्चिमी गोलार्ध का, न्यूयार्क के बाद, दूसरा विशालतम पत्तन है तथा इसके अंतर्गत देश का ८० प्रतिशत आयात निर्यात आता हैं।
अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था विश्व बैंक के अनुसार वित्तीय वर्ष २०१७ के लिए एक उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था है। [१] यह लैटिन अमेरिका की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, [२] और ब्राजील के बाद दक्षिण अमेरिका में दूसरी सबसे बड़ी है। [३]
इस देश के तुलनात्मक लाभों में समृद्ध प्राकृतिक संसाधन, एक अत्यधिक साक्षर आबादी, एक निर्यात प्रधान कृषि क्षेत्र और एक विविध औद्योगिक आधार शुमार हैं। अर्जेंटीना का आर्थिक प्रदर्शन ऐतिहासिक रूप से बहुत असमान रहा है, जिसमें उच्च आर्थिक विकास के साथ बारी-बारी से गंभीर मंदी देखने को मिलती है, विशेष रूप से बीसवीं शताब्दी के बाद से, जब आय बढ़ोतरी में असमानता और गरीबी दोनों बढ़ी। बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में अर्जेंटीना का दुनिया के दस सबसे ज़्यादा प्रति व्यक्ति जीडीपी स्तर वाले देशों में आता था, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के बराबर और फ्रांस और इटली दोनों से आगे। [४] अर्जेंटीना की मुद्रा २०१८ में लगभग ५०% घटकर ३८ से अधिक अर्जेंटीना पेसोस प्रति अमेरिकी डॉलर हो गई और आज वह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से एक स्टैंड-बाय प्रोग्राम के तहत है। [५]
अर्जेंटीना को एफटीएसई ग्लोबल इक्विटी इंडेक्स (२०१८), [६] द्वारा एक उभरता हुआ बाजार माना जाता है और यह जी -२० की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है ।
अर्जेटीना विश्व का एक महत्वपूर्ण खाद्य उत्पादक और खाद्य निर्यातक देश है। गेहूँ मुख्य व्यावसायिक फसल है जिसकी अधिकतम खेती पंपाज़ में होती है। इस प्रदेश की अन्य महत्वपूर्ण फसलें मक्का, जौ, जई, पटुआ और अल्फाल्फा हैं। यर्बा माते, सोयाबीन, सूरज मुखी के बीज, गन्ना कपास, अंगूर जैतून इत्यादि का उत्पादन देश के अन्य भागों में काफी मात्रा में होता है।
मांस, चमड़ा तथा ऊन के उत्पादन एवं निर्यात की दृष्टि से आर्जेटीना विश्व का एक महत्वपूर्ण देश है। पशुपालन उद्योग मुख्यत: पंपाज़ प्रदेश में विकसित किया गया है। देश में डेरी उद्योग का भी यथेष्ट विकास हुआ है। मत्स्यक्षेत्रों के विकास की संभावनाओं को लेकर यह देश आगे बढ़ रहा है।
इसमें देश निर्धन है। सीसा, जस्ता, टंगस्टन, मैंगनीज़, लोहा और बेरीलियम ही यहाँ के उल्लेखनीय खनिज हैं। मिट्टी का तेल भी आर्जेटीना का मुख्य खनिज है जो मुख्यतया पैटागोनिया प्रदेश में मिलता है। यांत्रिक ऊर्जा में भी देश निर्धन है यद्यपि पेट्रेलियम के उत्पादन में अब वृद्धि हो रही है।
मुख्यत: ब्यूनस आयर्स फ़ेडरल कैपिटल में (३२ प्रतिशत), ब्यूनस आयर्स राज्य (३२ प्रतिशत) तथा सांता फे (१० प्रतिशत) में केंद्रित है। वस्तुनिर्माण उद्योग की वृद्धि का कृषि एवं पशुपालन उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। मांस को डिब्बों में बंद करना, कांच, शृंगारसामग्री, रंग, हल्की मशीनों, यंत्र, वस्त्र, वस्तुनिर्माण की मशीनों और बिजली की मोटरों आदि का निर्माण महत्वपूर्ण उद्योग है।
यहाँ से मांस, धान्य फसलों, अलसी तथा अलसी का तेल, ऊन, चमड़ा, वन्य एवं दुग्ध पदार्थ और पशुओं का निर्यात होता है। मशीनों, ईधन एवं स्नेहक, लोहा तथा इस्पात से निर्मित वस्तुओं, लकड़ी, खाद्यपदार्थ, रसायन एवं ओषधि, अलौह धातु तथा उनसे निर्मित सामान का यहाँ आयात किया जाता है। यह व्यापार मुख्यत: संयुक्त राज्य अमरीका, ब्रिटेन, बाज़ीज, पश्चिमी जर्मनी, नीदरलैंड, इटली, वेनेज्युला तथा फ्रांस से होता है।
अर्जेन्टीना में २४ प्रान्त हैं -
यह भी देखिए
अर्जेंटीना का आर्थिक इतिहास
स्पेनी-भाषी देश व क्षेत्र |
बकुल कायस्थ (जन्म : १५वीं शताब्दी) भारत के एक गणितज्ञ थे। वे कामरूप के निवासी थे। उन्होने १४३४ ई में कामरूपी भाषा में 'किताबत मंजरी' नामक एक गणित ग्रन्थ की रचना की। |
डाबग्राम (डबग्राम) भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के जलपाईगुड़ी ज़िले में स्थित एक शहर है। यह सिलीगुड़ी नगरक्षेत्र के अधीन आता है।
इन्हें भी देखें
पश्चिम बंगाल के शहर
जलपाईगुड़ी ज़िले के नगर |
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (१९ अगस्त १९07 - १९ मई १९79) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। वे हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत और बाङ्ला भाषाओं के विद्वान थे। भक्तिकालीन साहित्य का उन्हें अच्छा ज्ञान था। सन १९५७ में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् १९६४ तदनुसार १९ अगस्त १९07 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के आरत दुबे का छपरा, ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।
द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने १९२० में बसरिकापुर के मिडिल स्कूल से प्रथम श्रेणी में मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होंने गाँव के निकट ही पराशर ब्रह्मचर्य आश्रम में संस्कृत का अध्ययन आरम्भ किया। सन् १९२३ में वे विद्याध्ययन के लिए काशी आये। वहाँ रणवीर संस्कृत पाठशाला, कमच्छा से प्रवेशिका परीक्षा प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण की। १९२७ में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसी वर्ष भगवती देवी से उनका विवाह सम्पन्न हुआ। १९२९ में उन्होंने इंटरमीडिएट और संस्कृत साहित्य में शास्त्री की परीक्षा उत्तीर्ण की। १९३० में ज्योतिष विषय में आचार्य की उपाधि प्राप्त की। शास्त्री तथा आचार्य दोनों ही परीक्षाओं में उन्हें प्रथम श्रेणी प्राप्त हुई।
द्विवेदी जी का व्यक्तित्व बड़ा प्रभावशाली और उनका स्वभाव बड़ा सरल और उदार था। ८ नवम्बर १९३० से द्विवेदीजी ने शांति निकेतन में हिन्दी का अध्यापन प्रारम्भ किया। वहाँ गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर तथा आचार्य क्षितिमोहन सेन के प्रभाव से साहित्य का गहन अध्ययन किया तथा अपना स्वतंत्र लेखन भी व्यवस्थित रूप से आरंभ किया। बीस वर्षों तक शांतिनिकेतन में अध्यापन के उपरान्त द्विवेदीजी ने जुलाई १९५० में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर और अध्यक्ष के रूप में कार्यभार ग्रहण किया। १९५७ में राष्ट्रपति द्वारा 'पद्मभूषण' की उपाधि से सम्मानित किये गये।
प्रतिद्वन्द्वियों के विरोध के चलते मई १९६० में द्विवेदीजी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिये गये। जुलाई १९६० से पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में हिंदी विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष रहे। अक्टूबर १९६७ में पुनः काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष होकर लौटे। मार्च १९६८ में विश्वविद्यालय के रेक्टर पद पर उनकी नियुक्ति हुई और २५ फरवरी १९७० को इस पद से मुक्त हुए। कुछ समय के लिए 'हिन्दी का ऐतिहासिक व्याकरण' योजना के निदेशक भी बने। कालान्तर में उत्तर प्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी के अध्यक्ष तथा १९७२ से आजीवन उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ के उपाध्यक्ष पद पर रहे। १९७३ में 'आलोक पर्व' निबन्ध संग्रह के लिए उन्हें 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
४ फरवरी १९७९ को पक्षाघात के शिकार हुए और १९ मई १९७९ को ब्रेन ट्यूमर से दिल्ली में उनका निधन हो गया।
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
सूर साहित्य (१९३६)
हिन्दी साहित्य की भूमिका (१९४०)
प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद (१९५२)
नाथ संप्रदाय (१९५०)
हिन्दी साहित्य का आदिकाल (१९५२)
आधुनिक हिन्दी साहित्य पर विचार (१९४९)
साहित्य का मर्म (१९४९)
मेघदूत: एक पुरानी कहानी (१९५७)
लालित्य तत्त्व (१९६२)
साहित्य सहचर (१९६५)
कालिदास की लालित्य योजना (१९६५)
मध्यकालीन बोध का स्वरूप (१९७०)
हिन्दी साहित्य का उद्भव और विकास (१९५२)
मृत्युंजय रवीन्द्र (१९७०)
सहज साधना (१९६३)
अशोक के फूल
अशोक के फूल (१९५०)
मध्यकालीन धर्मसाधना (१९५२)
विचार और वितर्क (१९५७)
आलोक पर्व (१९७२) साहित्य अकादमी पुरुस्कार
लाल मिर्च पाउडर
नाखून क्यों बढ़ते हैैं
अशोक के फूल
बसंत आ गया
वर्षा घनपति से घनश्याम तक
घर जोड़ने की माया
बाणभट्ट की आत्मकथा (१९४६)
अनामदास का पोथा(१९७६)
संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो (१९५७)
संदेश रासक (१९६०)
सिक्ख गुरुओं का पुण्य स्मरण (१९७९)
महापुरुषों का स्मरण (१९७७)
प्राचीन भारत की कला-विलास
ग्रन्थावली एवं ऐतिहासिक व्याकरण
अगस्त १९८१ ई० में आचार्य द्विवेदी की उपलब्ध सम्पूर्ण रचनाओं का संकलन ११ खंडों में हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली के नाम से प्रकाशित हुआ। यह प्रथम संस्करण २ वर्ष से भी कम समय में समाप्त हो गया। द्वितीय संशोधित परिवर्धित संस्करण १९९८ ई० में प्रकाशित हुआ।
आचार्य द्विवेदी ने हिन्दी भाषा के ऐतिहासिक व्याकरण के क्षेत्र में भी काम किया था। उन्होंने 'हिन्दी भाषा का वृहत् ऐतिहासिक व्याकरण' के नाम से चार खण्डों में विशाल व्याकरण ग्रन्थ की रचना की थी। इसकी पांडुलिपि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग को सौंपी गयी थी, परंतु लंबे समय तक वहाँ से इसका प्रकाशन नहीं हुआ और अंततः वहाँ से पांडुलिपियाँ ही गायब हो गयीं। द्विवेदी जी के पुत्र मुकुन्द द्विवेदी को उक्त वृहत् ग्रन्थ के प्रथम खण्ड की प्रतिकापी मिली और सन २०११ ई० में इस विशाल ग्रंथ का पहला खण्ड हिन्दी भाषा का वृहत् ऐतिहासिक व्याकरण के नाम से प्रकाशित हुआ। इसी ग्रंथ को यथावत् ग्रन्थावली के १२वें खंड के रूप में भी सम्मिलित करके अब १२ खण्डों में 'हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली' का प्रकाशन हो रहा है।
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी विषयक साहित्य
शांतिनिकेतन से शिवालिक - सं०-शिवप्रसाद सिंह (१९६७, द्वितीय संशोधित-परिवर्धित संस्करण-१९८८, नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नयी दिल्ली से; नवीन संस्करण भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली से)
दूसरी परम्परा की खोज - नामवर सिंह (१९८२, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से)
हजारीप्रसाद द्विवेदी (विनिबन्ध)- विश्वनाथ प्रसाद तिवारी (१९८९, साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली से)
साहित्यकार और चिन्तक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी - डॉ० राममूर्ति त्रिपाठी (१९९७, हिंदुस्तानी एकेडमी, इलाहाबाद से)
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व और कृतित्व - सं०- डॉ० व्यास मणि त्रिपाठी (२००८, हिंदी साहित्य कला परिषद, पोर्टब्लेयर, अंडमान से)
व्योमकेश दरवेश [आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का पुण्य स्मरण] (जीवनी एवं आलोचना)- विश्वनाथ त्रिपाठी (२०११, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से)
हजारीप्रसाद द्विवेदी : समग्र पुनरावलोकन - चौथीराम यादव (२०१२, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद से; हरियाणा साहित्य अकादमी से पूर्व प्रकाशित 'आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का साहित्य' का संशोधित-परिवर्धित संस्करण)
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की जय-यात्रा - नामवर सिंह (आचार्य द्विवेदी पर नामवर जी द्वारा लिखित समस्त सामग्री का एकत्र संकलन; राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से)
लोकोन्मुख शास्त्राध्येता आचार्य-गोलेन्द्र पटेल (२०२३)
द्विवेदी जी के निबंधों के विषय भारतीय संस्कृति, इतिहास, ज्योतिष, साहित्य विविध धर्मों और संप्रदायों का विवेचन आदि है। वर्गीकरण की दृष्टि से द्विवेदी जी के निबंध दो भागों में विभाजित किए जा सकते हैं - विचारात्मक और आलोचनात्मक।
विचारात्मक निबंधों की दो श्रेणियां हैं। प्रथम श्रेणी के निबंधों में दार्शनिक तत्वों की प्रधानता रहती है। द्वितीय श्रेणी के निबंध सामाजिक जीवन संबंधी होते हैं।
आलोचनात्मक निबंध भी दो श्रेणियों में बांटें जा सकते हैं। प्रथम श्रेणी में ऐसे निबंध हैं जिनमें साहित्य के विभिन्न अंगों का शास्त्रीय दृष्टि से विवेचन किया गया है और द्वितीय श्रेणी में वे निबंध आते हैं जिनमें साहित्यकारों की कृतियों पर आलोचनात्मक दृष्टि से विचार हुआ है। द्विवेदी जी के इन निबंधों में विचारों की गहनता, निरीक्षण की नवीनता और विश्लेषण की सूक्ष्मता रहती है।
द्विवेदी जी की भाषा परिमार्जित खड़ी बोली है। उन्होंने भाव और विषय के अनुसार भाषा का चयनित प्रयोग किया है। उनकी भाषा के दो रूप दिखलाई पड़ते हैं - (१) प्राँजल व्यावहारिक भाषा, (२) संस्कृतनिष्ठ शास्त्रीय भाषा। प्रथम रूप द्विवेदी जी के सामान्य निबंधों में मिलता है। इस प्रकार की भाषा में उर्दू और अंग्रेज़ी के शब्दों का भी समावेश हुआ है। द्वितीय शैली उपन्यासों और सैद्धांतिक आलोचना के क्रम में परिलक्षित होती है। द्विवेदी जी की विषय प्रतिपादन की शैली अध्यापकीय है। शास्त्रीय भाषा रचने के दौरान भी प्रवाह खण्डित नहीं होता।
द्विवेदी जी की रचनाओं में उनकी शैली के निम्नलिखित रूप मिलते हैं -
द्विवेदी जी के विचारात्मक तथा आलोचनात्मक निबंध इस शैली में लिखे गए हैं। यह शैली द्विवेदी जी की प्रतिनिधि शैली है। इस शैली की भाषा संस्कृत प्रधान और अधिक प्रांजल है। वाक्य कुछ बड़े-बड़े हैं। इस शैली का एक उदाहरण देखिए -
लोक और शास्त्र का समन्वय, ग्राहस्थ और वैराग्य का समन्वय, भक्ति और ज्ञान का समन्वय, भाषा और संस्कृति का समन्वय,निर्गुण और सगुण का समन्वय, कथा और तत्व ज्ञान का समन्वय, ब्राह्मण और चांडाल का समन्वय, पांडित्य और अपांडित्य का समन्वय, रामचरित मानस शुरू से आखिर तक समन्वय का काव्य है।
द्विवेदी जी की वर्णनात्मक शैली अत्यंत स्वाभाविक एवं रोचक है। इस शैली में हिंदी के शब्दों की प्रधानता है, साथ ही संस्कृत के तत्सम और उर्दू के प्रचलित शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। वाक्य अपेक्षाकृत बड़े हैं।
द्विवेदी जी के निबंधों में व्यंग्यात्मक शैली का बहुत ही सफल और सुंदर प्रयोग हुआ है। इस शैली में भाषा चलती हुई तथा उर्दू, फारसी आदि के शब्दों का प्रयोग मिलता है।
द्विवेदी जी ने जहां अपने विषय को विस्तारपूर्वक समझाया है, वहां उन्होंने व्यास शैली को अपनाया है। इस शैली के अंतर्गत वे विषय का प्रतिपादन व्याख्यात्मक ढंग से करते हैं और अंत में उसका सार दे देते हैं।
द्विवेदी जी का हिंदी निबंध और आलोचनात्मक क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान है। वे उच्च कोटि के निबंधकार और सफल आलोचक हैं। उन्होंने सूर, कबीर, तुलसी आदि पर जो विद्वत्तापूर्ण आलोचनाएं लिखी हैं, वे हिंदी में पहले नहीं लिखी गईं। उनका निबंध-साहित्य हिंदी की स्थाई निधि है। उनकी समस्त कृतियों पर उनके गहन विचारों और मौलिक चिंतन की छाप है। विश्व-भारती आदि के द्वारा द्विवेदी जी ने संपादन के क्षेत्र में पर्याप्त सफलता प्राप्त की है।
आचार्य द्विवेदी जी के साहित्य में मानवता का परिशीलन सर्वत्र दिखाई देता है। उनके निबंध तथा उपन्यासों में यह दृष्टि विशेष रूप से प्रतीत होती है।
हजारी प्रसाद द्विवेदी को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९५७ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। आलोक पर्व निबन्ध संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। लखनऊ विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट्. की उपाधि देकर उनका विशेष सम्मान किया था।
इन्हें भी देखें
आधुनिक हिंदी गद्य का इतिहास
'अभिव्यक्ति' में हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
१९५७ पद्म भूषण
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी भाषा के साहित्यकार
१९०७ में जन्मे लोग
१९७९ में निधन
उत्तर प्रदेश के लोग
बलिया के लोग
साहित्य और शिक्षा में पद्म भूषण के प्राप्तकर्ता |
अहुना अलौली, खगड़िया, बिहार स्थित एक गाँव है।
गाँव, अहुना, अलौली |
अली यूसुफ अली,भारत के उत्तर प्रदेश की सोलहवीं विधानसभा सभा में विधायक रहे। २०१२ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश की चमरव्वा विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र (निर्वाचन संख्या-३५)से चुनाव जीता।
उत्तर प्रदेश १६वीं विधान सभा के सदस्य
चमरव्वा के विधायक |
सान मारकोस दक्षिणी स्पेन में एक गोथिक गिरजाघर है। इसे १९३१ में बिएन दे इंतेरेस कल्चरल घोषित किया गया था।
गिरजाघर को १२६४ में शहर की विजय अभियान के बाद कास्तिले के राजा अलफ़ॉनसो दसवें द्वारा स्थापित छह जनपदों में से एक है।
वर्तमान भवन की संभावना शायद एक पहले से मौजूद मस्जिद के ऊपर की गई थी जिसकी वजह से बहुभुज से महराब की शैली में बने हैं। यह मुदेजार (मुदेजर) वास्तुकला में १४ वीं सदी में शुरू में बनाया गया था।
निर्माण गोथिक शैली में पर्याप्त नवीकरण सहित १५ वीं सदी के मध्य फिर से बनाया गया था।
गिरजाघर व्यव्हारिक शैली (१६ वीं सदी) के साथ एक मुख्य प्रवेश द्वार तीन बाहरी हिस्से बने हैं। अन्दर की बनावट में एक बरोक ऊँचाई बनी है जो १८ वीं सदी की बनी है।
बिएन दे इंतेरेस कल्चरल की सूची कादिज़ प्रान्त में
स्पेन के गिरजाघर
स्पेन के स्मारक |
सरदार मुहम्मद जफ़र खान लेगारी एक राजनीतिज्ञ है पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा में | वह ना-१७४ निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है पाकिस्तानी पंजाब के लिएपाकिस्तानी पंजाब के प्रतिनिधियों - पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा |
पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा के सदस्य |
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डॉ॰ रेड्डीज लेबोरेटरीज लिमिटेड (द्र. रेड्डी'स लेबोरेट्री लैड.), जिसे डॉ रेड्डीज के नाम से ट्रेड किया जाता है, आज भारत की औषधि कंपनी है। इसकी स्थापना १९८४ में डॉक्टर के. अंजी रेड्डी ने की थी। इसके पूर्व डॉ॰ अंजी रेड्डी भारत सरकार के उपक्रम इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड में कार्यरत थे। डॉ॰ रेड्डीज अनेकों प्रकार की दवायें बना कर देश-विदेश में विपणन करती है। कंपनी के पास आज १९० से अधिक दवाएं, दवाओं के निर्माण की करीब साठ सक्रिय सामग्रियां, नैदानिक उपकरण तथा सघन चिकित्सा और बायोटेक्नोलॉजी उत्पाद मौजूद हैं।
डॉ॰ रेड्डीज की शुरुआत अन्य भारतीय दवा निर्माताओं को दवाएं बनाकर मुहैया कराने से हुई, परन्तु शीघ्र ही यह कंपनी उन देशों को दवाएं निर्यात करने लगी जहां इस व्यापार से संबंधित कानून अनुकूल थे। उदाहरण के लिए अमेरिकी कंपनियों को जिन दवाओं के निर्माण के लिए फ़ूड एवं ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) से लंबी एवं जटिल लाइसेंस अनुमति प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था, वे उन दवाओं को डॉ॰ रेड्डीज से खरीदने लगीं. १९९० के आते-आते कंपनी का व्यापार और लाभ इतना बढ़ गया कि कंपनी ने और अनुकूल देशों के बाजारों में दवाओं की फैक्ट्रियां लगाने के लिए वहां की दवा विनियामक अभिकरणों से सीधा अनुमति लेना प्रारंभ कर दिया। वहां से ये दवाएं अमरीका तथा यूरोप जैसे कठिन बाजारों में भी भेजी जाने लगी।
२००७ आते-आते, डॉ॰ रेड्डीज के पास अमेरिकी अभिकरण एफडीए से अनुमोदित छह फैक्ट्रियां हो गईं जिनमें दवा निर्माण की सक्रिय सामग्रियां बनती थीं। साथ ही एफडीए की मान्यता प्राप्त ऐसी सात फैक्ट्रियां भी खोल ली गईं जहां मरीजों के लिए तैयार दवाएं निर्मित की जाती थी। इनमें से पांच भारत में व दो यूनाइटेड किंगडम (यूके) में स्थित है, तथा सातों ही आईएसओ (इसो) ९००१ (गुणवत्ता मानक) व आईएसओ (इसो) १४००१ पर्यावरण संरक्षण के लिए मानक) से मान्यता प्राप्त है।
२०१० में, परिवार द्वारा संचालित इस कंपनी ने इस बात का पुरजोर खंडन<रेफ>[हप://वॉ.रियूटर्स.कॉम/फ़ाइनेंस/स्टॉक्स/कैडेवलमेंट्स?सिमबोल=रेडिफ.न्स&प्न=२ 'डॉ॰ रेड्डीज लेबोरेटरीज लिमिटेड सेज़ नॉट टू सेल अणि बिजनेस- डीजे, रायटर्स न्यूज़ एजेंसी, २3 मार्च २०१०. ] .२ अक्टूबर २०१० को एक्सेस किया गया।</रेफ> किया कि वह अपना जेनरिक व्यापार अमेरिकी औषध कंपनी फाइजर को बेचने जा रही है, विवाद व चर्चा तब शुरू हुई जब डॉ॰ रेड्डी ने घोषणा की कि वे कोलेस्ट्रॉल के इलाज में काम आने वाली दवा ऑटोवस्टेटिन (एटर्वस्तेटीन) का जेनरिक रूप बाजार में उतारेगी. फाइज़र (फ़ायज़र) ने इसका यह कह कर कड़ा विरोध किया कि वे इस दवा को लिपिटोर (लिपिटर) के नाम से पहले से ही बेच रहे हैं तथा ऐसा करके डॉ॰ रेड्डी सीधे पेटेंट कानून का उल्लंघन कर रहा है।फाइजर सुएस डॉ॰ रेड्डीज ऑवर कोलेस्ट्रॉल ड्रग 'लिपिटर', स्टॉक वॉच, मुंबई, 1२ नवम्बर २009 .२ अक्टूबर २०१० को एक्सेस किया गया। इस विवाद से पूर्व डॉ॰ रेड्डीज़ का नाम यूके की मशहूर बहुराष्ट्रीय दवा कंपनी ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन (ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन) से जोड़ा जा चुका था।
डॉ॰ रेड्डीज और विनियमन
जेनरिक दवाओं में अकूत धन लाभ
अधिकतर ओईसीडी (ओक्ड) सदस्य राष्ट्रों में ब्रांडेड दवाएं अत्यधिक महँगी थीं, अतः इन देशों की सरकारी स्वास्थ्य प्रणालियों में ब्रांडेड दवाओं के जेनरिक रूपों का प्रयोग लोकप्रिय होने लगा। यूके में नेशनल हैल्थ सर्विस (नेशनल हेल्थ सर्विस) के डॉक्टरों को इस आशय की सलाह देश के स्वास्थ्य विभाग ने दी, तथा अमेरिका में १९८४ में इसके लिए एक विधेयक पास हुआ। इस विधेयक का नाम था 'हैच-वैक्समैन एक्ट' (हच-वऑमन एक्ट) अथवा ड्रग प्राइस कम्पटीशन एंड पेटेंट टर्म रेस्टोरेशन' एक्ट. १९९० के दशक के मध्य में आये आर्थिक उदारीकरण से भारत सहित तीसरी दुनिया के देशों को अमेरिका जैसे कठिन बाजार में अपने दवा उत्पाद बेचने का मौका मिला। १९९७ में अमेरिका अभिकरण एफडीए (फ़्ड़ा) ने 'पैरा ४ फाइलिंग लॉ' (परा ४ फिलिंग लॉ) नामक एक विधेयक प्रस्तुत किया जिससे जेनरिक दवा निर्माताओं को ब्रांडेड दवा बनाने वालों के विरुद्ध पेटेंट संबंधी केस लड़ने में असीम सहायता व प्रोत्साहन मिला। अब तक वे इन पेटेंटों की अवधि समाप्त होने का इन्तजार करने को बाध्य थे।
भारत: पेटेंट और लाभ
भारत की आजादी के पिछले ६० सालों से भी घरेलू औषध उद्योग मुख्यतः नियमाधारित रहा है। प्रारंभ में, औषध कंपनियों पर बहुद्देशीय कंपनियों का ही एकाधिकार था। वे ही सभी प्रकार की दवाओं का भारत में आयात करती थीं और उनका विपणन करती थीं; विशेष रूप से कम कीमत वाली जेनरिक तथा बहुत कीमती विशिष्ट दवाइयों का. जब भारतीय सरकार ने निर्यात वस्तुओं के आयत पर रोक लगाने की प्रक्रिया चलाई तो इन बहुद्देशीय कंपनियों ने निर्माता इकाइयां स्थापित कर लीं और बहुमात्रिक दवाइयों का आयात जारी रखा।
सन १९६० के दशक में भारत सरकार ने घरेलू औषध उद्योग की नींव रखी और बहुमात्रिक दवाइयों के बनाने के लिए सरकारी उपक्रम "हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड" और "भारतीय औषधि फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड" को प्रोन्नत किया। फिर भी, बहुद्देशीय कंपनियों का महत्त्व बना ही रहा, क्योंकि उनके पास टेक्नीकल कुशलता, वित्तीय शक्ति तथा एक बाजार से दूसरे बाजार तक जाने के लिए नवाचार का गुण था। मौलिक अनुसंधान हेतु आने वाला अतिव्यय, गहन वैज्ञानिक ज्ञान की जरुरत और वित्तीय क्षमता - कुछ ऐसी बाधाएं थीं जिनकी वजह से निजी उपक्रम की भारतीय कंपनियों को पूरी सफलता न मिली।
भारतीय पेटेंट अधिनियम १९७० के लागू होने से इस स्थिति में परिवर्तन आने लगा। इस अधिनियम की वजह से अब खाद्य पदार्थों और औषध में प्रयोग आने वाले पदार्थों का उत्पादन पेटेंट मिलना बंद हो गया। विधि का पेटेंट स्वीकृत किया जाता था - स्वीकृति की तिथि से पांच वर्ष के लिए या प्रार्थना पत्र देने की तिथि से सात वर्ष के लिए, जो भी कम हो। विधि में सुधार लाना अपेक्षाकृत सरल था और इसलिए घरेलू निर्माताओं की बहुतायत हो गई। इन निर्माता कंपनियों ने आम तौर पर बहुमात्रिक औषधियों से काम शुरू किया और बाद में सम्पूर्ण विशिष्ट औषध का निर्माण भी करने लगे। बहुद्देशीय कंपनियां अपनी-अपनी मूल कंपनियों की उत्पादन श्रृंखलाओं के कारण उलझन में पड़ रही थीं; भारतीय उत्पादक तो अब लगभग सब कुछ निर्माण करने में सक्षम थे। उत्पादन पेटेंट का स्वायत्तता खर्च ना देने के कारण भारतीय उत्पादकों की निर्माण-लागत कम हो गई और वे सकुशल पनपने लगे।
इसके कुछ समय बाद, 'औषध मूल्य नियंत्रण आदेश' के माध्यम से आम प्रयोग में आने वाली औषधविधाओं के मूल्य नियत कर दिए गए। कम कीमतें नियत किये जाने के कारण बहुद्देशीय कंपनियों के स्वदेशी बाजार में असंतोष की आशंका से उन्होंने नए उत्पादनों पर एकदम रोक लगा दी, जिससे भारतीय घरेलू उद्योग को और बल मिल गया।
१९७० के दशक के अंत के विदेशी मुद्रा विनियम अधिनियम के अंतर्गत बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारतीय उद्यमों में अपनी हिस्सेदारी को घटाकर ४०% तक सीमित करना पड़ा, या ५१% की अपनी इक्विटी हिस्सेदारी बनाए रखने के लिए कुछ निर्यात दायित्वों का पालन किया जाना आवश्यक हो गया। कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने ऐसे माहौल में व्यवसाय न करने का निर्णय किया, जो भारतीय औषध उद्योग के लिए एक अन्य रामबाण साबित हुआ।
सन १९८६ ई. में रेड्डीज ने ब्रांडेड औषध विधाओं को आरम्भ किया। एक ही वर्ष में रेड्डीज ने नॉरिलट को बाजार में उतारा, जो कि भारत में उनका पहला ब्रांड था। परन्तु, अपनी श्रेष्ठ विधि तकनीक की वजह से, रेड्डीज को ओमेज़ से उच्च सफलता मिली, जो ब्रांडेड ओमेजाप्रोल तथा अल्सर और रिफल्क्स ओजोफैजिटिस की औषधि है। यह औषध तत्कालीन भारतीय बाजार में उपलब्ध ब्रांड औषधियों से आधी कीमत पर उपलब्ध थी।
एक साल के भीतर रेड्डीज औषध के जरूरी तत्वों को यूरोप को निर्यात करने वाली पहली कंपनी बन गई। सन १९८७ में रेड्डीज में परिवर्तन आरम्भ हुआ। अब वह औषध के तत्वों को दूसरे निर्माताओं को प्रदान करने की अपेक्षा स्वयं औषध उत्पादनों की निर्माता कंपनी बन गई।
भारत के बाहर प्रसार
भारत से बाहर डॉ॰ रेड्डीज ने पहला कदम १९९२ में रूस में रखा जब वहां की सबसे बड़ी दवा कंपनी बायोमेड के साथ संयुक्त व्यापार समझौता किया। परन्तु १९९५ में कंपनी ने रूस में अपने व्यापार को पहले सिस्टेमा ग्रुप को बेचा तथा २००२ में इस पूरी कंपनी को खरीद लिया। कंपनी के मॉस्को ऑफिस पर १९९५ में भारी नुकसान के आरोप लगे थे, जिसमें बायोमेड के तत्कालीन मुखिया का नाम भी उछला था।
१९९३ में, डॉ रेड्डीज ने मध्य पूर्व एशिया में संयुक्त उद्यम का प्रारंभ किया, तथा रूस व मध्य-पूर्व में दो फोर्मुलेशन प्लांट शुरु किये। रेड्डीज इन्हें बड़ी मात्रा में दवा भेजते थे तथा ये यूनिट उन्हें अंतिम रूप देकर बाजार में उतारने का काम करती थीं। १९९४ में, रेड्डीज ने अमेरिकी जेनेरिक बाजार पर ध्यान केंद्रित किया तथा वहां एक आधुनिक दवा निर्माण प्लांट का शुभारंभ किया।
रेड्डीज ने नई दवाओं के अविष्कार में दक्षता प्राप्त करने के लिए पश्चिमी देशों में भारी मांग वाली जेनेरिक दवाओं पर अनुसंधान केंद्रित किया। उनमें भी उन दवाओं को चुना गया जो कुछ विशेष रोगों में काम आती थीं। इसका कारण यह था कि आम जेनेरिक दवा व खास रोगों की दवा के अविष्कार की प्रक्रिया एक सी थी, परन्तु विशेष रोगों की दवा में अधिक अनुभव व लाभ की प्राप्ति होती थी। प्रक्रिया के हिस्से जैसे प्रयोगशाला में नवाचार, मिश्रण बनाना, विपणन के प्रयास आदि दोनों में समान थे। अनुसंधान एवं विकास में रेड्डीज ने विशेष प्रयास किये, तथा यह भारत की पहली कंपनी थी जिसने अनुसंधान के लिए विदेशों में प्रयोगशालाएं स्थापित कीं. डॉ॰ रेड्डीज रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना १९९२ में दवाओं की खोज एवं शोध के लिए ही की गयी थी। पहले तो इस संस्थान का ध्यान बाजार से मिलने वाली दवाओं के भारतीय संस्करण पर ही केंद्रित रहा, परन्तु बाद में इन्होंने नई दवाओं के आविष्कार की ओर ध्यान देना शुरू किया। इसके लिए डॉक्टरेट व आगे की पढ़ाई के लिए विदेशों में बसे भारतीय विद्यार्थियों को चुना। सन २००० में संस्थान ने अटलांटा अमेरिका में एक प्रयोगशाला की स्थापना की जिसका कार्य केवल चिकित्सा की नई विधाओं पर अनुसंधान करना था। इस लैब (प्रयोगशाला) का नाम रुस्ती (रस्ती) अथवा 'रेड्डी यूएस थेराप्यूटिक्स इंक.' है। रुस्ती जीनोम व प्रोटियोम के सिद्धांतों को लेकर नई दवाओं के आविष्कार में लग्न है। पश्चिम में रेड्डीज ने कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग तथा संक्रमण जैसे रोगों के इलाज की दवाओं पर सराहनीय कार्य किया है।
अंतरराष्ट्रीय व भारतीय कंपनियां खरीदने से रेड्डीज की दवा निर्माण में संप्रभुता सी हो गई, जिससे उन्हें विदेशी बाजार में दवाएं बेचने में बहुत लाभ हुआ। 'चैमिनॉर ड्रग लिमिटेड' (सीडीएल) का कंपनी में विलय, उत्तरी अमेरि़क और यूरोप के कठिन तकनीकी बाजारों में दवा-सामग्री बेचने के उद्देश्य से ही किया गया था। इससे उन बाजारों में बाद में जेनरिक दवाएं बेचने में भी बहुत लाभ हुआ।
१९९७ तक दवा सामग्री और बल्क दवा बेचने वाली कंपनी (अमेरिका व यूके) को तथा अनुकूल बाजारों (जैसे भारत व रूस) में ब्रांडेड फोर्मुलेशन बेचने वाली कंपनी के रूप में रेड्डीज की अच्छी खासी साख बन गई थी। अब अगले कदम की बारी थी। अतः कंपनी में जेनरिक दवाओं के क्षेत्र में नई दवा हेतु अमेरिका में 'नई दवा आवेदन' फाइल किया। उसी साल रेड्डीज ने अपने एक अणु (मॉलिक्यूल) को पहली बार कंपनी से बाहर परीक्षण के लिए डेनमार्क की एक कंपनी नोवो नॉर्डिस्क को दिया।
१९९९ में अमेरिकी रेमेडीज लिमिटेड नामक कंपनी को अधिग्रहित करके और भी शक्तिशाली दवा निर्माता बन गई। इसके बाद भारत में उनसे आगे केवल रैनबैक्सी और ग्लैक्सो रह गए थे। कंपनी के पास अब थोक दवाएं, नैदानिक उपकरण, जैव-तकनीक तथा रसायन संबंधित सभी तरह उत्पाद उपलब्ध थे।
समयानुसार रेड्डीज ने बाजार में 'पैरा ४ क़ानून' का लाभ उठाना शुरू कर दिया। इस कड़ी में १९९९ में एक सफल दवाई ओमाप्रजोल पर पैरा ४ आवेदन प्रस्तुत किया गया। दिसंबर २००० में रेड्डीज ने अमेरिका में अपना पहला व्यवसायिक जेनरिक उत्पाद लॉन्च किया और अगस्त २००१ में बाजार विशेषाधिकार वाला अपना पहला उत्पाद पेश किया। उसी वर्ष यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र से न्यू यॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने वाली पहली गैर-जापानी औषध कंपनी भी बन गयी। ये सभी कदम भारतीय औषध उद्योग के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थे।
२००१ में रेड्डीज ने अमेरिका ने फ़्लूओज़ेटीन नामक जेनरिक दवा को (एली लिली व रेड्डीज की दवा प्रोजेक का जेनरिक रूप) बाजार में उतारा. ऐसा करने वाली वह पहली भारतीय कंपनी बनी। एक विशेषाधिकार के रूप में रेड्डीज को १८० दिन के लिए यह दवा पूर्णतया अकेले बाजार में बेचने को मिली। ९० के दशक के अंतिम भाग में प्रोजेक ने अमेरिका में एक बिलियन डॉलर से अधिक का व्यापार किया था। अनुमोदित खुराकों (१० मिलीग्राम, २० मिलीग्राम) के विशेषाधिकार अमेरिका की बार्र लैब्ज़ नामक कंपनी के पास थे, लेकिन मौका देखकर रेड्डीज ने (४० मिलीग्राम) के अधिकार खरीद लिए। रेड्डीज के पास इसके मिश्रण से संबंधित कई पेटेंट पहले से ही थे। यह विवाद दो बार फेडरल सर्किट कोर्ट पहुंचा तथा दोनों बार रेड्डीज की विजय हुई। १८० दिन के विपणन के एकाधिकार की वजह से ६ महीने में रेड्डीज ने इस दवा का ७० मिलियन डॉलर का व्यापार किया। इतने बड़े लाभ के बाद रेड्डीज लंबी कानूनी लड़ाई के लिए भी तैयार थे।
फ़्लूओजेटीन की सफलता के बाद जनवरी २००३ में कंपनी ने अपने नाम के तहत ४००, ६०० और ८०० मिलीग्राम वाली इबुप्रोफेन टैबलेट लॉन्च की। अपने ब्रांड नाम का अमेरिका में सीधा प्रयोग कंपनी के जेनरिक व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था। इसके बाद रेड्डीज का विपणन नेटवर्क अमेरिका में फैलता ही गया। काफी हद तक यह प्रमुख भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों के समान ही था जिनके पास अमेरिका में विपणन पेशेवर मौजूद रहते हैं।
२००१ में रेड्डीज ने अपना १३२.८ मिलियन डॉलर का अमेरिकी डिपोजिटरी रिसीट इश्यू पूरा किया और उसी साल न्यूयॉर्क शेयर बाज़ार में लिस्ट हुए. यूएस इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग से अर्जित धन का प्रयोग कंपनी ने अन्य देशों में निर्माण संयंत्र लगाने तथा कुछ तकनीक-आधारित कंपनियों को खरीदने के लिए किया।
२००२ में रेड्डीज का यूके में व्यापार शुरू हुआ तथा प्रारंभ में उन्होंने दो दवा कंपनियां खरीदीं. बीएमएस लैब्स व उसकी ग्रुप कंपनी मैरीडियन यूके खरीदने से यूरोप में रेड्डीज का काफी विस्तार हुआ। २००३ में ही रेड्डीज़ ने बायो साइंसेज लिमिटेड नामक कंपनी के शेयरों में ५.2५ मिलियन डॉलर का निवेश किया।
२००२ में रेड्डीज ने कॉन्ट्रेक्ट पर अनुसंधान करने वाली औरीजीन डिस्कवरी टेक्नोलॉजीज नामक कंपनी का गठन किया। इसका मकसद दूसरों के लिए अनुसंधान करके महत्वपूर्ण अनुभव प्राप्त करना था। रेड्डीज ने इसके लिए आईसीआईसीआई बैंक से वेंचर फंडिंग (धन) की व्यवस्था की। इसके अंतर्गत बैंक नई दवाओं के आवेदनों के विकास व कानूनी कार्यों पर आने वाले खर्चों के वहन को सहमत हुआ। बाजार में आने के पश्चात पहले ५ वर्ष तक रेड्डीज दवा की कुल बिक्री पर आईसीआईसीआई को रॉयल्टी प्रदान करने वाले थे। एक दशक के भीतर ही एक सफल व मान्य दवा कंपनी बनने के पीछे रेड्डीज के कई साहसिक कदम हैं। छोटी बड़ी कई कंपनियां क्रय करने के साथ-साथ अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) पर व्यय करना एक अत्यंत लाभकारी निर्णय साबित हुआ। 'बड़ा जोखिम बड़ा लाभ' का सिद्धांत अपनाते हुए रेड्डीज ने पेटेंटों के लिए बड़ी दवा कंपनियों से सीधी टक्कर ली। कंपनी के लिए व्यय के नुकसान से बचना एक कड़ी चुनौती रही और इसके लिए दवा सामग्री व्यापार में हो रहे अच्छे लाभ से काफी मदद मिली। वहां से मिला धन लाभ अनुसंधान जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में काम आया। एक अन्य तरीका अनुसंधान के लिए नई कंपनियां खरीदने का था जिसका भी रेड्डीज ने भरपूर प्रयोग किया। इसने वैश्विक मार्ग चुना और कंपनियों को खरीदने की एक झड़ी सी लगा दी।
मार्च २००२ में डॉ॰ रेड्डीज ने बेवरली (इंग्लैंड) स्थित एक छोटी कंपनी बीएमसी लैब्ज़ को खरीद लिया। साथ ही उसकी ग्रुप कंपनी मैरीडियन हैल्थकेयर भी रेड्डीज के हाथ आ गयी। इसके लिए रेड्डीज ने १४.८१ मिलियन यूरो खर्च किये। ये कंपनियां तरल व ठोस दवाओं तथा दवा पैकेजिंग के व्यापार में थीं। लंदन व बेवरली में इनके दो प्लांट थे। इसके तुरंत बाद रेड्डीज ने यूके की एक निजी दवा कंपनी आर्जेन्टा डिस्कवरी लिमिटेड के साथ अनुसंधान विकास तथा दवा बेचने के एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। यह कंपनी सीओपीडी (कॉपड) के लिए दवा खोज रही थी।
जेनरिक दवा के बाजार में सफल होने के बाद रेड्डीज को लगा कि अमेरिका में उनका अपना एक मजबूत क्रय एवं वितरण नेटवर्क होना चाहिए। रेड्डीज २००३ में उच्च-रक्तचाप उत्पादों के विपणन के लिए कई विकल्पों पर विचार कर रही थी। इसी संदर्भ में फ्यूओजेनेटीन ४० मिलीग्राम के विपणन के लिए कंपनी ने फार्मास्यूटिकल रिसोर्सेस इंक. के साथ समझौता किया। साथ ही 'ओवर दी काउंटर' मिलने वाली दवाओं के निर्माण व विपणन के लिए 'पार फार्मा' नाम की एक कंपनी के साथ भी हाथ मिला लिया। अमेरिका के अतिरिक्त रेड्डीज का जेनरिक दवा व्यापार यूके में भी मौजूद है जो इसे यूरोप के अन्य देशों में विस्तार करने में मददगार साबित होगा। कंपनी शीघ्र ही कनाडा व दक्षिण अफ्रीका में व्यापार प्रारंभ करने जा रही है। इनकी दवा सामग्री का व्यापार ६० देशों में फैल चुका है तथा सबसे अधिक राजस्व भारत व अमेरिका से आता है। फ़ार्मूलेशन व्यापार भी भारत व रूस जैसे लगभग ३० देशों में फल-फूल रहा था। निकट भविष्य में रेड्डीज चीन, ब्राजील तथा मैक्सिको में व्यापार आरंभ करने की योजना रखती है।
रेड्डीज का डेनमार्क की कंपनी रियोसाइंस ए/एस के साथ डायबटीज टाइप-२ के इलाज के व्यूहाणु बालाग्लिटाजोन (डीआरएस-२593) के विकास व विपणन का १० साल का समझौता है। समझौते के तहत इस दवा को यूरोप व चीन में रियोसाइंस बेचेगी तथा अमेरिका व विश्व में यह कार्य रेड्डीज स्वयं करेगी। २005 में रेड्डीज़ ने बेलफास्ट, आयरलैंड में आरयूएस (रूस) 3१०8 नामक हृयद रोग की दवा का परीक्षण किया। गुणवत्ता और सुरक्षा के लिए किये गए परीक्षणों का मकसद इसे विपणन के लिए तैयार करना था। यह दवा एथरोस्क्लीरोसिस नामक हृदय रोग के उपचार में काम आती है।
श्वसन संबंधी बीमारियों में काम आने वाली दवाओं के लिए रेड्डीज ने नीदरलैंड्स की कंपनी यूरोड्रग लैब्ज़ के साथ समझौता किया। उनके साथ मिलकर कंपनी ने क्रौनिक आबस्ट्रकटिव पल्मनरी डिजीज (सीओपीडी) व अस्थमा जैसी बीमारियों में कारगर नई दवा डाक्सोफायलीन पेश की (यह दवा एक उन्नत जैन्थिन ब्रौकोडिलेटर है).
२००४ में रेड्डीज ने त्वचा रोग विशेषज्ञ अमेरिकी कंपनी ट्राईजैनेसिन थेराप्यूटिक्स का अधिग्रहण किया। इससे रेड्डीज को त्वचा रोग की दवाओं के कुछ पेटेंट व तकनीक हासिल हुई। लेकिन इसी समय रेड्डीज को तब बड़ा झटका लगा जब वे फाईज़र की दवा नोर्वास्क (एम्लोडिपाइन मैलियेट) के विरुद्ध 'पैरा ४' का एक पेटेंट मुकदमा हार गए। ये लड़ाई एन्जाइना व हाइपरटेंशन की फाईज़र निर्मित दवा नॉरवैस्क' (एम्लोडिपीन मैलिएट) को लेकर थी। इससे रेड्डीज को काफी आर्थिक नुक्सान हुआ तथा विशेषज्ञ दवा-व्यापार में आने की योजनाओं को भी भारी झटका लगा।
मार्च २००६ में डॉ॰ रेड्डीज ने ३आई (३ई) से 'बीटाफ़ार्म आर्जनेमिट्टेल जीएमबीएच (बेटफार्म अरज़्नेमिटएल गम्भ)' नामक कंपनी ४८० मिलियन यूरो में अधिग्रहित की। किसी भी भारतीय दवा कंपनी का यह सबसे बड़ा विदेशी अधिग्रहण था। इस जर्मन कंपनी के पास १५० सक्रिय दवा सामग्रियां थीं, तथा जर्मनी में ३.५% व्यापार हिस्से के साथ यह वहां के जेनरिक व्यापार में चौथी सबसे बड़ी कंपनी थी।
रेड्डीज ने आईसीआईसीआई वेंचर कैपिटल फंड मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड तथा सिटीग्रुप वेंचर कैपिटल इंटरनेशनल ग्रोथ पार्टनरशिप मॉरिशस लिमिटेड के साथ मिलकर पर्लेकेन फार्मा प्राइवेट लिमिटेड नामक भारत की प्रथम एकीकृत औषध विकास कंपनी को आगे बढ़ाया है। यह संयुक्त इकाई इस नई रासायनिक कंपनी की नैदानिक विकास तथा संपत्तियों के लाइसेंस को बेचने का कार्य करेगी।
इसके दूसरी ओर रेड्डीज एक अन्य कंपनी मर्क एंड कंपनी की दवा सिमबस्टाटिन (जोकोर) का जेनरिक रूप अमेरिका में केवल विपणन करती है। इस दवा के लिए रेड्डीज के पास २३ जून २००६ के बाद एकमात्र क्रय का विशेषाधिकार नहीं है, यह अधिकार अब भारत की रैनबैक्सी, रेड्डीज तथा टेवा फार्मा तीनों के पास है।
२००६ के आकड़ों के अनुसार, डॉ॰ रेड्डीज का राजस्व ५०० मिलियन डॉलर के पार जा चुका है। इसमें सक्रिय सामग्री व्यापार (एपीआई), ब्रांडेड फ़ार्मूलेशन व्यापार, व जेनरिक दवा व्यापार तीनों का योगदान है। लगभग ७५% राजस्व सामग्री व फ़ार्मूलेशन व्यापार से आता है। डॉ॰ रेड्डीज अब दवा व्यापार के हर पहलू और उससे जुड़े हर प्रकार के विकास कार्य में अग्रणी है। सामग्री व्यापार से लेकर पेटेंट संबंधी कार्य, विपणन से लेकर जेनरिक दवा थोक निर्माण तक में रेड्डीज का कोई सानी नहीं। अमेरिका और यूरोप में सुदृढ़ साझेदारियां बनाने से अब यह भारतीय कंपनी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए कीर्तिमान स्थापित करने की ओर अग्रसर है।
दवा आविष्कार में बाधायें
सितम्बर २००५ में डॉ॰ रेड्डीज़ ने अपने आविष्कार एवं अनुसंधान विभाग को एक पृथक कंपनी का रूप दिया, जिसका नाम 'पर्लेकैन फार्मा प्राइवेट लिमिटेड' रखा गया। उस समय तो सभी ने इस कदम की प्रशंसा की, परन्तु २००८ में आर्थिक समस्याओं के कारण इस कंपनी को बंद करना पड़ा. अनुसंधान व आविष्कार के कार्य को दवा निर्माण के आर्थिक खतरों से अलग करने वाली डॉ॰ रेड्डीज पहली भारतीय दवा कंपनी थी। इस नई कंपनी में आईसीआईसीआई वेंचर कैपिटल तथा सिटीग्रुप वेंचर इंटरनेशनल का धन लगा था। दोनों वित्तीय संस्थानों का इसमें ४३% भाग था तथा कुल देय राशि लगभग २२.५ मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 11५ करोड़ रूपये) थी। वित्तीय समस्याओं की शुरुआत के बाद दोनों संस्थानों ने कंपनी के दवा अनुसंधान में अविश्वास जताया तथा अंत में कंपनी को दोनों से पर्लेकैन के शेयर वापस खरीदने पड़े. जुलाई २००८ में इस तरह पर्लेकैन डॉ॰ रेड्डीज की एक ग्रुप कंपनी बन गई, परन्तु २३ अक्टूबर को हुई मीटिंग में पुनः पर्लेकैन को डॉ॰ रेड्डीज का एक विभाग बना दिया गया।
२००९ में कंपनी ने फिर पासा पलटा तथा अनुसंधान व आविष्कार तथा बुद्धिजीवी अधिकार विभागों को अपनी बंगलूर स्थित ग्रुप कंपनी को दे दिया। कंपनी ने इसके लिए अब पार्टनर की तलाश से भी परहेज नहीं किया ताकि अनुसंधान के लिए धन की कमी न रहे।
मधुमेह की दवा का तीसरा परीक्षण
बालाग्लिटाज़ोन नामक मधुमेह की दवा का परीक्षण डॉ॰ रेड्डीज के लिए डेनमार्क की एक कंपनी रियोसाइंस कर रही थी। परन्तु उस कंपनी की वित्तीय समस्याओं के कारण इसमें बहुत देरी हुई। अब रियोसाइंस की मालिक कंपनी नॉर्डिक बायोसाइंस धन लाभ कर डॉ॰ रेड्डीज के साथ हुए करार को पूरा करने को राजी हो गई है तथा परीक्षण फिर आरंभ होने की आशा है।
जनवरी २०१० में डॉ॰ रेड्डीज ने बालाग्लोटाज़ोन के प्रथम परीक्षणों की सफलता की घोषणा की। इसमें खून में ग्लूकोज की मात्रा कम करने का पहला लक्ष्य सफलतापूर्वक प्राप्त कर लिया। इससे यह आशा बंधी की शीघ्र ही यह दवा विनियामक कानूनों से मान्य हो पायेगी।
३१ मार्च २००६ को बोर्ड के सदस्य और वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए.
श्री अमित पटेल - उपाध्यक्ष, कॉर्पोरेट विकास और सामरिक योजना
डॉ॰ के अंजी रेड्डी, चेयरमैन
श्री जीवी प्रसाद - उपाध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी
श्री सतीश रेड्डी -प्रबंध निदेशक और सीओओ
श्री बी. कोटेश्वर राव - स्वतंत्र निदेशक
श्री अनुपम पुरी - स्वतंत्र निदेशक
डॉ॰ कृष्ण जी पलेपू - स्वतंत्र निदेशक (सत्यम घोटाले के बाद मीडिया में ऐसी ख़बरें आई हैं कि प्रोफ़ेसर पलेपू से अनौपचारिक रूप से डॉ रेड्डीज लेबोरेटरीज के बोर्ड की सदस्यता छोड़ने के लिए कहा गया है।)
डॉ॰ ओम्कार गोस्वामी - स्वतंत्र निदेशक
श्री पीएन देवराजन - स्वतंत्र निदेशक
श्री रवि भूथालिंगम - स्वतंत्र निदेशक
डॉ॰ वी. मोहन - स्वतंत्र निदेशक
डॉ॰ राजिंदर कुमार - अध्यक्ष, अनुसंधान, विकास और व्यावसायीकरण (३० अप्रैल २००७ को शामिल हुए और २००९-१० को कंपनी छोड़ा तो इस कारण अब वे डॉ॰ रेड्डी से जुड़े हुए नहीं हैं)''
शीर्ष सक्रिय दवा सामग्रियां
रेनिटिदीन एचसीएल फॉर्म २
रेनिटिदीन हाइड्रोक्लोराइड फॉर्म १
क्लोपिडोग्रेल (२००७ पेटेंट मामले की वजह से यूएस में मौजूद नहीं है)
भारत में शीर्ष १० ब्रांड
मध्य पूर्व में शीर्ष ब्रांड
तेमड कं, एक्टिव फार्मास्युटिकल इन्ग्रीडीयेंट्स
डॉ॰ रेड्डीज का ऑफ पेटेंट साझा उपक्रम
भारत की दवा कंपनियां
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध कम्पनियां
हैदराबाद, भारत में उद्योग
१९८४ में स्थापित कंपनियां |
भारतीय कालीन प्रौद्योगिकी संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कार्पेट टेक्नोलॉजी / ईक्ट), समिति पंजीकरण अधिनियम, १८६० के अंतर्गत पंजीकृत समिति के रूप में वर्ष १९९८ में भारत सरकार, वस्त्र मंत्रालय द्वारा स्थापित किया गया। यह एशिया में एक अनूठे प्रकार के डिग्री कार्यक्रम, (कालीन एवं वस्त्र प्रौद्योगिकी) में बी.टेक कार्यक्रम को आरम्भ करते हुए वर्ष २००१ में वास्तविक रूप में क्रियाशील हो गया। यह उत्तर प्रदेश प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (उपतू) से सम्बद्ध है तथा आ.ई.च.त.ए. से मान्यताप्राप्त है। संस्थान भदोही रेलवे स्टेशन से लगभग ४ किमी दूरी पर है। राजकुमार पांडे
कालीन उद्योग को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने और इसकी सतत् वृद्धि के लिए तकनीकी विशेषज्ञों, अनुसंधान एवं विकास आदि के रूप में कालीन, वस्त्र एवं अन्य संबद्ध क्षेत्रों को हर सम्भव तकनीकी सहायता मुहैया कराने के प्रयोजन से भारत सरकार, वस्त्र मंत्रालय द्वारा आई आई सी टी स्थापित किया गया था।
इसकी सभी सीटें ए आई ई ई ई और सेन्ट्रल काउंसिलिंग बोर्ड (सीसीबी), नई दिल्ली के माध्यम से भरी जाती है। बी.टेक कार्यक्रम के अतिरिक्त संस्थान ए जी-रिसर्च, न्यूजीलैंड के सहयोग से आई डी एल पी (इंटरनेशनल डिस्टेंस लर्निंग प्रोग्राम) और उद्योगनुमुखी अल्पावधि कार्यक्रम भी चला रहा है। आई डी एल पी में ३० विषयों में से ०७ विभिन्न डिप्लोमा शामिल है तो दूसरी तरफ अल्पावधि में ०३ कार्यक्रम शामिल हैं। संस्थान आई. एस. टी. ई. और सी आई आई का भी सदस्य है।
इस संस्थान को २००५ में यूके की स्ग्स संस्था द्वारा इसो ९००१:२००० प्रदान किया गया था। इस संस्थान की प्रयोगशालाएँ नबल द्वारा प्रमाणित हैं।
१. मानव संसाधन विकास (एचआरडी)
कालीन एवं वस्त्र प्रौद्योगिकी में बी.टेक. कार्यक्रम
अल्पावधि प्रशिक्षण कार्यक्रम
कम्पयूटर एवं प्रबंधन
उद्योगोनुमुखी विशेष पाठ्यक्रम तथा आई डी एल पी पैकेज
उद्योग ए जी - रिसर्च, न्यूजीलैंड के सहयोग से आई आई सी टी द्वारा संचालित आई डी एल पी के माध्यम से ६ हजार रुपये प्रति विषय की दर से शुल्क अदा करते हुए निम्नलिखित अपेक्षित विषय / विषयों पर अपने प्रतिनिधि /प्रतिनिधियों को नामांकित कर लाभ उठा सकता है।
भारतीय कालीन प्रौद्योगिकी संस्थान, भदोही का जालघर
कालीन उद्योग को नर्ई दिशा (बिजनेस स्टैण्डर्ड)
भारत-न्यूजीलैंड समझौते के तहत कालीन प्रशिक्षण का कार्य शुरू (नवभारत टाइम्स)
उत्तर प्रदेश के शिक्षा संस्थान |
अज़रबाइजान राष्ट्रीय इतिहास संग्रहालय () अज़रबाइजान का सबसे बड़ा संग्रहालय है। यह बाकू में स्थित है। इसकी स्थापना सन १९२० में हुई थी और इसे सन १९२१ में दर्शकों के लिये खोला गया था। |
बरपाली रायगढ मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़ जिले का एक गाँव है।
छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ
रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़ |
हरसिंगपुर गहलबार अमृतपुर, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
फर्रुखाबाद जिला के गाँव |
अंग प्राचीन भारत के १६ महाजनपदों में से एक था। इसका सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है। बौद्ध ग्रंथो में अंग और वंग को प्रथम आर्यों की संज्ञा दी गई है। महाभारत के साक्ष्यों के अनुसार आधुनिक बलिया, उत्तर प्रदेश का क्षेत्र अंगप्रदेश का क्षेत्र है। अंग प्रदेश और अंग जनपद दोनों अलग-अलग स्थान है। जनपद वाले अंग की राजधानी चम्पापुरी हुआ करती थी। यह जनपद मगध के अंतर्गत था। प्रारंभ में इस जनपद के राजाओं ने ब्रह्मदत्त के सहयोग से मगध के कुछ राजाओं को पराजित भी किया था किंतु कालांतर में इनकी शक्ति क्षीण हो गई और इन्हें मगध से पराजित होना पड़ा।
इन्हें भी देखें
ऐतिहासिक भारतीय क्षेत्र |
अनिल कुमार अग्रवाल को सन २००० में भारत सरकार ने अन्य क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये दिल्ली राज्य से हैं।
२००० पद्म भूषण |
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील चंदौसी, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
सम्बंधित जनगणना कोड:
राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७२२
चंदौसी तहसील के गाँव |
मारहरा (मारहरा) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के एटा ज़िले में स्थित एक नगर है।
मारहरा नगर के साथ-साथ एक ब्लॉक भी है, जिसमें कुछ गाँव सम्मिलित हैं। जो नगला सिलौनी, जिसे गहराना के नाम से भी जाना जाता है। जिसके बाद सिलौनी और बाग का नगला भी एक गांव है। क्योंकि इस गांव के आस-पास आम व अमरूद के अधिकतर बाग यानि पेड़ हैं, इसलिए इसे बाग का नगला कहा जाता है।
मारहरा के बारे में
मारहरा या मारहरा शरीफ के रूप में जाना जाता है यह दुनिया भर से मुसलमानों के लिए प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहां मुसलमानों के पैगम्बर मोहम्मद साहब के वंशजों की समाधि स्थल हैं और यहां पर उन की बहुत की चीज भी है जो प्रत्येक उर्स पर प्रदर्शित की जाती है,और मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है के यहां सात कूतुब की मजार एक साथ है है जो विश्व में और कहीं नहीं है, यहां से श्रद्धा रखने वाले श्रद्धालु बरकाती केहलाते है, मारहरा भी अपने स्वादिष्ट आम के लिए मशहूर है। मोहल्लाह कम्बोह यहाँ का सबसे बड़ा मोहल्लाह है।
सन् २०११ की जनसांख्या के अनुसार मारहरा की कुल जनसांख्या ४७,७७२ है। जिसमें से ५३% पुरुष हैं और ४७% महिलायें हैं। मारहरा की एक औसत साक्षरता दर ६३% है।
इन्हें भी देखें
उत्तर प्रदेश के नगर
एटा ज़िले के नगर |
'आफबाऊ' (औफ्बौ) एक जर्मन शब्द है जिसका अर्थ है- 'एक-एक कर जोड़ना'। इस सिद्धान्त के अनुसार, किसी कक्षा (शेल) तथा उपकक्षा (ऑर्बिताल) में इलेक्ट्रॉनों का प्रवेश ऊर्जा स्तरों के बढ़ते ऊर्जा के क्रम में एक-एक कर होता है। अर्थात, परमाणु की कक्षाओं में घूमने वाले इलेक्ट्रॉन सर्वप्रथम निम्न उर्जा वाले उपकक्षाओं में जाते हैं या भरते हैं, तत्पश्चात ही उससे अधिक उर्जा वाले उपकक्षाओं में जाते हैं।
इस सिद्धान्त के अनुसार, ऊर्जा स्तरों का बढ़ता क्रम निम्नांकित है
ध्यान दें कि क्रोमियम (क्र), ताँबा (क्यू), चांदी (आग) तथा सोना (औ) का वास्तविक इलेक्ट्रॉनिक विन्यास आफबाऊ सिद्धान्त से थोड़ा सा अलग होता है।
पाउली का अपवर्जन का नियम
हुण्ड का नियम |
मानव तैराकी में आम तौर पर एक विशिष्ट प्रकार की शारीरिक गति या स्विमिंग स्ट्रोक को बार-बार दोहराया जाना शामिल होता है। स्ट्रोक कई प्रकार के होते हैं और प्रत्येक एक अलग तैराकी शैली या क्रॉल को परिभाषित करता है।
ज्यादातर स्ट्रोक्स में शरीर के सभी प्रमुख अंगों - धड़, बाजू, पैर, हाथ, पाँव और सिर की लयबद्ध और समन्वित हरकतें शामिल होती हैं। साँसों का तालमेल भी आम तौर पर स्ट्रोक्स के साथ ही होना चाहिए. हालांकि, हाथों के बगैर केवल पैरों की हरकतों से या पैरों के बगैर केवल हाथों की हरकतों से भी तैरना संभव है; इस तरह के स्ट्रोक्स का इस्तेमाल विशेष उद्देश्यों के लिए, प्रशिक्षण या व्यायाम के लिए, या एम्प्यूटीज (अपंगों) और पैरालाइटीज (लकवाग्रस्त लोगों) द्वारा किया जा सकता है।
विभिन्न तैराकी शैलियाँ
फ्रंट क्रॉल सबसे तेज तैराकी शैली है।
ट्रूजेन (जिसे ट्रूजियोन के नाम से भी जाना जाता है): ट्रूजेन फ्रंट क्रॉल की ही तरह है, सिवाय इसके कि यह तैराकी सिज़र किक (पैरों की कैंची) की मदद से होती है जैसा कि ब्रेस्टस्ट्रोक में इस्तेमाल किया जाता है।
ट्रूजेन क्रॉल: ट्रूजेन की ही तरह, लेकिन सिज़र किक्स के बीच एक फ्लटर किक (पैरों को ऊपर और नीचे मारकर) का इस्तेमाल कर.
डबल ट्रूजेन: ट्रूजेन की ही तरह, लेकिन सिज़र किक के किनारे वैकल्पिक रूप से.
डबल ट्रूजेन क्रॉल: डबल ट्रूजेन की तरह, लेकिन वैकल्पिक सिज़र किक के बीच एक फ्लटर किक के साथ.
डॉल्फिन क्रॉल: फ्रंट क्रॉल की तरह, लेकिन एक डॉल्फिन किक के साथ. प्रति आर्म एक किक या दो किक प्रति चक्र. यह शैली अक्सर प्रशिक्षण में इस्तेमाल की जाती है।
कैच अप स्ट्रोक: फ्रंट क्रॉल का एक प्रकार जिसमें एक हाथ हमेशा सामने की ओर आराम करता है जबकि दूसरा हाथ एक चक्र को पूरा करता है।
ब्रेस्टस्ट्रोक में चहरे को पानी में डुबाकर धड़ को घुमाए बगैर तैराकी की जाती है। हाथ पानी में रहता है और तालमेल के साथ हरकत करता है जबकि पैरों से एक फ्रॉग-किक मारा जाता है। पूरे स्ट्रोक के दौरान सिर को पानी से बाहर निकाल कर रखा जाना संभव है।
स्लो बटरफ्लाई (जिसे मोथ स्ट्रोक के नाम से भी जाना जाता है): बटर फ्लाई की तरह, लेकिन एक विस्तारित सरकने वाले चरण के साथ, पुल/पुश चरण के दौरान सांस लेते हुए, रिकवरी के दौरान सिर को वापस पानी के अंदर डालकर. इस शैली में प्रति चक्र दो किक का इस्तेमाल किया जाता है।
डॉग पैडल: चेहरा पानी के ऊपर और हाथों को अदल-बदलकर पैडल चलाते हुए, अक्सर नाक और मुँह को पानी के ऊपर रखकर. इस स्ट्रोक का इस्तेमाल शरीर को पैरों की दिशा में उल्टी तरफ धकेलने के लिए किया जा सकता है।
ह्यूमन स्ट्रोक: डॉग पैडल की तरह, लेकिन हाथ और अधिक बाहर जाता है और दूर तक नीचे खींचा जाता है।
सर्वाइवल ट्रैवल स्ट्रोक: पानी के नीचे अदल-बदलकर हाथ का स्ट्रोक, एक चक्र आगे बढ़ने के लिए, एक सतह पर रहने के क्रम में ऊपर उठने के लिए. यह शैली धीमी लेकिन स्थायी है।
ब्रेस्ट फीट फर्स्ट स्ट्रोक्स: पैरों को फैलाकर, हाथों का इस्तेमाल पुशिंग, फ्लैपिंग, क्लिपिंग या अपलिफ्टिंग की गति के साथ करते हुए.
स्नोर्कलिंग: एक स्नोर्कल का इस्तेमाल कर छाती के सहारे तैरना, आम तौर पर मास्क और फिन का साथ-साथ उपयोग करते हुए. छाती पर कोई भी स्ट्रोक का उपयोग किया जा सकता है और साँस लेने के लिए सिर को उठाने या घुमाने की कोई आवश्यकता नहीं है।
फिनस्विमिंग किसी तैराक द्वारा पानी की सतह पर या पानी के नीचे फिन्स का इस्तेमाल कर आगे बढ़ने की प्रक्रिया है। फिनस्विमिंग आम तौर पर छाती के सहारे किया जाता है।
एक हाथ और एक पैर (एन आर्म एंड ए लेग): यह किसी तैराक द्वारा एक पैर को इसके उलटे हाथ से पकड़कर आगे बढ़ने और दूसरे हाथ एवं पैर से ब्रेस्टस्ट्रोक मूवमेंट का प्रयोग करने की एक प्रक्रिया है।
बैकस्ट्रोक (जिसे बैकक्रॉल के रूप में भी जाना जाता है)
दोनों हाथ एक छोटी तालमेल वाली किक के साथ तालमेल करते हुए हरकत करते हैं। कभी-कभी इसे लाइफसेविंग किक के रूप में भी जाना जाता है।
प्राथमिक बैकस्ट्रोक के समान, लेकिन एक ब्रेस्टस्ट्रोक किक के साथ.
प्राथमिक बैकस्ट्रोक के समान, लेकिन एक ब्रेस्टस्ट्रोक किक के साथ. इसे अक्सर प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
बैक डबल ट्रूजेन
बैकस्ट्रोक के समान, लेकिन वैकल्पिक पक्षों में एक सिज़र किक के साथ.
फ्लटर बैक फिनिंग
फ्लाटर किक के साथ संतुलित रूप से अंडरवाटर आर्म रिकवरी
फीट फर्स्ट स्विमिंग
पीठ पर एक बहुत ही धीमा स्ट्रोक जहाँ हाथों से एक ब्रेस्टस्ट्रोक मूवमेंट पहले पैर और शरीर को आगे की ओर धकेलता है। इसके अलावा हाथों को पानी से बाहर उठा कर रखा जा सकता है और एक स्कूपिंग मूवमेंट के साथ-साथ इन्हें पीछे की ओर खींचा जा सकता है। वैकल्पिक रूप से हाथों को सिर के पीछे उठाया जा सकता है या वैकल्पिक रूप से अथवा एक साथ हाथों से धक्का देकर शरीर को आगे बढ़ाया जा सकता है। इसी तरह हाथों को ताली बजाने की शैली में एक साथ लाया जा सकता है। इन स्ट्रोक्स का इस्तेमाल अक्सर प्रशिक्षण के लिए किया जाता है।
फ्रंट क्रॉल और बैकस्ट्रोक के बीच प्रत्येक हाथ को अदल-बदल कर. इससे तैराक का एक निरंतर आवर्तन (रोटेशन) होता है। यह स्ट्रोक मुख्य रूप से प्रशिक्षण संबंधी प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है और कभी-कभी इसे न्यूफाई स्ट्रोक के रूप में भी जाना जाता है जिसका संदर्भ न्यूफ़ाउंडलैंड से है। प्रत्येक तीसरे स्ट्रोक के आवर्तन के समय इसे वाल्ट्ज क्रॉल कहा जाता है।
अंडरवाटर स्विमिंग (पानी के अंदर तैराकी)
अंडरवाटर रिकवरी की किसी भी शैली में निश्चित दूरियों के लिए पानी के नीचे तैरा जा सकता है जो हवा की जरूरत पर निर्भर करता है। पीठ के सहारे पानी के नीचे तैराकी में नाक में पानी प्रवेश करने की एक अतिरिक्त समस्या रहती है। इससे बचने के लिए तैराक नाक बाहर निकालकर साँस ले सकता है या एक नोज क्लिप लगा सकता है। कुछ तैराक अपने नाक के छिद्रों को ऊपरी होंठ से बंद कर सकते हैं।
तैराक अपने हाथों को सामने की ओर फैलाए होता है, सिर हाथों के बीच होता है और पैर पीछे की ओर होते हैं। यह सुव्यवस्थित आकार प्रतिरोध को कम करता है और तैराक को आगे सरकने में मदद करता है, उदाहरण के लिए, शुरुआत के बाद, एक दीवार से धक्का मारने के बाद, या स्ट्रोक्स के बीच आराम करने के लिए.
छाती के सहारे, बाएँ पैर से धक्का देने के बाद (जब विपरीत अंग ठीक हो रहे हैं) दाहिने हाथ को फैलाएं और उसके बाद खींचें, फिर विपरीत अंग से इस प्रक्रिया को दोहराएं, यानी जब दाहिना पैर धक्का देता है तो बाँया हाथ खींचता है। इसमें कमर की मांसपेशियों का उपयोग होता है। सिर को आसानी से ऊपर या पानी के नीचे जा सकता है: यह एक धीमी लेकिन बहुत ही स्थिर स्ट्रोक जो कछुओं और न्यूट्स (सरटिका) में आम है।
बगल की ओर, हाथों को बाहर निकालते और बीच में रोकते हुए पानी को इस तरह खींचें जैसे कि रस्सी से खींचा जाता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि अपेक्षित दिशा की ओर आगे बढ़ते समय स्ट्रोक्स बहुत ही हाइड्रोडायनामिक हैं और लोकेशन से दूर जाते समय अधिकाँश पानी को धकेल रहा है। इसके अलावा पैर एक सिज़र किक का काम करते हैं जो ब्रेस्टस्ट्रोक किक की तरह लेकिन बगल की ओर है।
इस स्ट्रोक को संयुक्त राज्य अमेरिका की नौसेना के जवानों (एसईएएल) द्वारा विकसित किया गया था और उनके द्वारा प्रयोग किया जाता है और इसे पानी में अधिक प्रभावी एवं कम प्रोफ़ाइल होने के लिए डिजाइन किया गया है।
शौकिया तौर पर और अनाधिकारिक रूप से विकसित ओरस्ट्रोक में बटरफ्लाई स्ट्रोक के विपरीत हरकतें होती हैं, इसीलिये इसका मॉथ स्ट्रोक उपनाम पड़ा है; बटरफ्लाई स्ट्रोक के विपरीत तैराक उल्टी दिशा में बढ़ता है। हाथों को एक बटरफ्लाई स्ट्रोक की तरह वृत्ताकार गति (सर्कुलर मोशन) में चलाया जाता है। हालांकि पैरों को ब्रेस्टस्ट्रोक स्थिति में बाहर की ओर मारा जाता है। मॉथ स्ट्रोक से "स्लो बटरफ्लाई स्ट्रोक" का भ्रम नहीं होना चाहिए जिसे "मॉथ स्ट्रोक" की तरह वैकल्पिक रूप से लेबल किया जा सकता है।
विशेष उद्देश्य की शैलियाँ
कई स्ट्रोक्स का इस्तेमाल केवल विशेष उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जैसे किसी वस्तु (मुश्किल में फंसा एक तैराक, एक गेंद) में हेरफेर के लिए, या सिर्फ तैरते रहने के लिए.
वस्तुओं की जोड़-तोड़
लाइफ सेविंग स्ट्रोक: साइड स्ट्रोक की तरह, लेकिन केवल नीचे वाला हाथ चलता है जबकि ऊपरी हाथ मुश्किल में फंसे एक तैराक को खींचता है।
लाइफसेविंग एप्रोच स्ट्रोक (जिसे हेड-अप फ्रंट क्रॉल के रूप में भी जाना जाता है): फ्रंट क्रॉल की तरह, लेकिन आँखें सामने की ओर पानी के स्तर से ऊपर, जिससे कि आसपास की चीजों को देखा जा सके जैसे कि मुश्किल में फंसा एक तैराक या एक बॉल.
वाटर पोलो स्ट्रोक: इस स्ट्रोक का इस्तेमाल वाटर पोलो के लिए किया जाता है और यह फ्रंट क्रॉल के समान है, लेकिन सिर पानी के ऊपर होता है और बॉल को हाथों के बीच और सिर के सामने रखने के लिए हाथ को थोड़ा अंदर की ओर झुकाकर रखा जाता है।
पुशिंग रेस्क्यू स्ट्रोक: यह स्ट्रोक एक थके हुए तैराक की सहायता करने में काम आता है। थका हुआ तैराक पीठ से सहारे लेट जाता है और बचानेवाला एक ब्रेस्टस्ट्रोक किक की शैली में तैरता है और थके हुए तैराक के तलवों के विरुद्ध धक्का देता है (ब्रिटेन की लाइफगार्डिंग के नियंत्रक आरएलएसएस निकाय द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है और उनके द्वारा नहीं सिखाया जाता है).
पुलिंग रेस्क्यू स्ट्रोक: यह स्ट्रोक मुश्किल में फंसे एक तैराक की सहायता करने के काम आता है। दोनों तैराक पीठ के सहारे लेट जाते हैं और बचावकर्ता मुश्किल में फंसे एक तैराक के बगलों को पकड़ लेता है और आगे बढ़ने (फॉरवर्ड मोशन) के लिए एक बैकस्ट्रोक किक (पीठ के सहारे) का इस्तेमाल करता है। किक को इतना अधिक उथला भी नहीं होना चाहिए कि अन्यथा पीड़ित व्यक्ति को चोट लग जाए.
एक्सटेंडेड आर्म टो (बेहोश व्यक्ति): अपनी पीठ के सहारे स्विमिंग साइडस्ट्रोक या ब्रेस्टस्ट्रोक, बचावकर्ता सर को सीधे हाथ से ठुड्डी के नीचे जकड़ते हुए पकड़ता है और यह सुनिश्चित करता है कि मुँह और नाक पानी से बाहर हैं।
आर्म टो, बचानेवाला साइड स्ट्रोक की शैली में तैरता है, पीड़ित व्यक्ति के पीछे जाकर उस व्यक्ति के ऊपरी बांह को अपने बायें हाथ से या इसके विपरीत पकड़ता है और पीड़ित व्यक्ति को पानी से बाहर निकाल लेता है।
वाइस ग्रिप टर्न एंड ट्राउल - रीढ़ की हड्डी में चोट की संभावना के साथ पीड़ित व्यक्ति पर इस्तेमाल किया जाता है। लाईफगार्ड धीरे-धीरे पीड़ित व्यक्ति (जो आम तौर पर पानी में चेहरा नीचे किये हुए होता है) के पास पहुँचता है, हाथ को पीड़ित की छाती के विरुद्ध मजबूती से दबाकर एक हाथ पीड़ित की ठुड्डी पर रखता है। दूसरे हाथ को पीड़ित व्यक्ति की पीठ के नीचे बाजू टिकाकर पीड़ित व्यक्ति के सिर के पीछे रखा जाता है। दोनों बाजुओं को एक साथ दबाया जाता है (एक वाइस की तारा) और लाईफगार्ड अपने पैरों को आगे बढ़ना शुरू करने के लिए इस्तेमाल करता है और उसके बाद पीड़ित व्यक्ति के नीचे घूमकर उसके बगल में आता है लेकिन अब पीड़ित व्यक्ति उसकी पीठ पर होता है। (यह सबसे अधिक कठिन जीवन रक्षक उपायों में से एक है क्योंकि इसमें पकड़ पहली ही कोशिश में बहुत सटीक होनी चाहिए अन्यथा पीड़ित व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी को और अधिक नुकसान पहुँच सकता है, जैसे कि पक्षाघात की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।)
क्लोथ्स स्विमिंग: तैराक इस तरह के कपड़े पहनता है जो गीला होने पर हरकत (मूवमेंट) को रोक देता है, यानी लगभग सभी तरह के कपड़े. ऐसा उन परिस्थितियों का अभ्यास करने के लिए किया जाता है जिसमें तैराक कपड़े पहने हुए पानी में गिरा था या बचावकर्ता के पास कपड़े उतारने का समय नहीं था। हरकत नहीं होने के कारण और पानी के बाहर गीले कपड़ों के वजन के कारण, एक ओवरआर्म रिकवरी संभव नहीं होता है। ज्यादातर तैराक ब्रेस्टस्ट्रोक शैली में तैरते हैं लेकिन अंडरवाटर रिकवरी के साथ कोई भी स्ट्रोक संभव है।
रेस्क्यू ट्यूब स्विमिंग: लाईफगार्ड एक फ्लोटेशन उपकरण को खींचता है जिसे पीड़ित व्यक्ति के पास पहुँचने के समय आगे की ओर धकेला जाता है।
फॉरवर्ड मोशन के बगैर
सरवाइवल फ्लोटिंग (जिसे डेड मैन फ्लोट के रूप में भी जाना जाता है): प्रोन (पानी के अंदर चेहरे को डुबाये) के सहारे लेटकर पैरों की कम से कम हरकत के साथ और स्वाभाविक प्लवनशीलता के साथ तैरते रहना. केवल साँस लेने के लिए ही सिर को उठाएं और उसके बाद वापस तैरना शुरू कर दें. यह शैली केवल तैरते रहने के लिए और आराम करने के लिए है।
बैक फ्लोटिंग: सरवाइवल फ्लोटिंग की तरह, पीठ के सहारे को छोड़कर.
ट्रेडिंग वाटर: तैराक सिर को ऊपर उठाये और पैरों को नीचे रखे पानी के अंदर होता है। तैरते रहने के लिए विभिन्न प्रकार के किक और हाथों की हरकतें. यह एक बेहतर दृश्य के लिए सिर को पानी से बाहर निकालकर रखने में या किसी वस्तु (ऑब्जेक्ट) को पकड़ने में उपयोगी होता है जैसा कि वाटर पोलो में किया जाता है।
स्कलिंग: यह आगे बढ़ने (फॉरवर्ड मोशन) या ऊपर की ओर उठने (अपवार्ड लिफ्ट) के लिए हाथों का एक फिगर ८ मूवमेंट है। इसका इस्तेमाल सर्फ़ लाइफसेविंग, वाटर पोलो, सिन्क्रोनाइज्ड स्विमिंग और ट्रेडिंग वाटर में होता है।
टर्टल फ्लोट (कछुए की तरह तैरना): घुटनों को छाती तक उठाया जाता है और इन्हें बाजुओं से घेरकर पकड़ लिया जाता है।
जेलिफ़िश फ्लोट: टखनों को हाथों से पकड़कर तैरना.
इन्हें भी देखें
कुल तन्मयता (तैराकी अनुदेश तकनीक)
ऑवरव्यू ऑफ १५० हिस्टोरिकल एंड लेस नोन स्वीमिंग स्टाइलस
तैराकी की शैलियां |
शताब्दी रॉय भारत की सोलहवीं लोकसभा में सांसद हैं। २०१४ के चुनावों में इन्होंने पश्चिम बंगाल की बीरभूम सीट से सर्वभारतीय तृणमूल कांग्रेस की ओर से भाग लिया।
भारत के राष्ट्रीय पोर्टल पर सांसदों के बारे में संक्षिप्त जानकारी
१६वीं लोक सभा के सदस्य
पश्चिम बंगाल के सांसद
सर्वभारतीय तृणमूल कांग्रेस के सांसद
१९६९ में जन्मे लोग |
नीती घाटी (नीति वाल्ली) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली ज़िले में स्थित एक घाटी है, जिसमें नीती नामक गाँव स्थित है। यहाँ धौलीगंगा नदी बहती है। यह नीती दर्रे से पहले भारत का अंतिम गाँव है और उस दर्रे के पार तिब्बत स्थित है। यहाँ एक पवित्र गुफ़ा है जिसका नाम तिम्मरसैण महादेव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के गाँव
चमोली ज़िले के गाँव
उत्तराखण्ड में पर्यटन आकर्षण |
मैन ऑफ़ स्टील से विकिपीडिया पर निम्न लेख हैं:
मैन ऑफ़ स्टील (फ़िल्म)
मैन ऑफ़ स्टील (साउंडट्रैक) |
सज्जन सिंह वर्मा १५वीं लोकसभा के एक सदस्य है । वह देवास निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधित्व (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) के नेता है ।
देवास निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित किया गया था अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए.
शिक्षा और पृष्ठभूमि
सज्जन सिंह वर्मा रखती है मास्टर ऑफ आर्ट्स ( समाजशास्त्र) की डिग्री से ग. आ. च. च., इंदौर, मध्यप्रदेश.
पदों का आयोजन किया
११ दिसंबर २०१८ से सोनकच्छ विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं
वर्तमान में मध्य प्रदेश सरकार के लोक निर्माण मंत्री है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
बेहद प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी हैं।
मोबाइल नंबर ९४२५०६६८७७
पुरस्कार और मान्यता
यह भी देखें
मध्यप्रदेश विधान सभा
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव, २०१३
मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव, २००८
सूची के सदस्यों की १५ वीं लोकसभा में भारत के
१५वीं लोकसभा के सदस्य
१९५२ में जन्मे लोग |
धारावी मुंबई का एक क्षेत्र है। यह एक झुग्गीबस्ती है। यह पश्चिम माहिम और पूर्व सायन के बीच में है और यह १७५ हेक्टेयर, या ०.६७ वर्ग मील (१.७ वर्ग किमी) के एक क्षेत्र में है। १986 में, जनसंख्या 53०,२२५ में अनुमान लगाया गया था, लेकिन आधुनिक धारावी 6००.००० से १ लाख से अधिक लोगोंके बीच की आबादी है। धारावी पहले दुनिया की सबसे बड़ी गंदी बस्ती थी, लेकिन २०११ के अनुमान से अब मुंबई में धारावी से बडी चार गंदी बस्तियाँ हैं।
धारावी की कुल वर्तमान आबादी अज्ञात है, और अनुमान व्यापक रूप से भिन्न हैं। कुछ स्रोतों का सुझाव के अनुसार यहां की आबादी ३००,००० से लेकर एक मिलियन तक हो सकती है। धारावी २०० हेक्टेयर (५०० एकड़) में फैली होने के कारण, प्रति वर्ग मील ८ अविश्वसनीय रूप से ८६९,५६५ लोगों की जनसंख्या घनत्व का अनुमान है। ६९% की साक्षरता दर के साथ, धारावी भारत में सबसे अधिक साक्षर झुग्गी है।
भारत में मुसलमानों की १३% औसत आबादी की तुलना में धारावी के आबादी का लगभग ३०% मुस्लिम है। ईसाई आबादी लगभग ६% होने का अनुमान है, जबकि बाकी मुख्य रूप से हिंदू (६3%) हैं, कुछ बौद्ध और अन्य अल्पसंख्यक धर्मों के साथ। हिंदुओं में लगभग २०% लोग जानवरों की त्वचा के उत्पादन, टेनरियों और चमड़े के सामान का काम करते हैं। अन्य हिंदू मिट्टी के बर्तनों के काम, कपड़ा वस्तुओं के विनिर्माण, खुदरा और व्यापार, भट्टियों और अन्य जाति व्यवसायों में विशेषज्ञ हैं - ये सभी छोटे पैमाने पर घरेलू संचालन के रूप में हैं। झुग्गी निवासी पूरे भारत के हैं, जो लोग कई अलग-अलग राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों से आए है। झुग्गी में इस्लाम, हिंदू और ईसाई धर्म के लोगों की सेवा करने के लिए कई मस्जिदें, मंदिर और चर्च हैं; बद्री मस्जिद, धारावी में सबसे पुरानी धार्मिक संरचना में से एक है।
अवस्थिति और विशेषताएं
धारावी एक बड़ा क्षेत्र है जो मुंबई की दो मुख्य उपनगरीय रेलवे लाइनों, पश्चिमी और मध्य रेलवे के बीच स्थित है। धारावी के पश्चिम में माहिम और बांद्रा हैं, और उत्तर में मीठी नदी स्थित है। मीठी नदी माहिम क्रीक के माध्यम से अरब सागर में मिलती है। एंटॉप हिल का क्षेत्र पूर्व में स्थित है, जबकि माटुंगा नामक इलाका दक्षिण में स्थित है। अपने स्थान और खराब सीवेज और जल निकासी प्रणालियों के कारण, धारावी विशेष रूप से बरसाती मौसम के दौरान बाढ़ की चपेट में आ जाता है।
धारावी को दुनिया की सबसे बड़ी मलिन बस्तियों में से एक माना जाता है। क्षेत्र की कम वृद्धि वाली इमारत शैली और संकीर्ण सड़क संरचना धारावी को बहुत तंग और सीमित बनाती है। अधिकांश मलिन बस्तियों की तरह, यह अतिच्छादित है। धारावी में मुंबई की शहरी मंजिल अंतरिक्ष सूचकांक (एफएसआई) की तुलना में ५ से 1५ तक है, यह लगभग १३.३ है। सरकारी अधिकारी धारावी के फ्लोर स्पेस इंडेक्स को ४ में बदलने पर विचार कर रहे हैं। मुंबई की महंगी जीवनशैली के बावजूद, धारावी एक सस्ता विकल्प प्रदान करता है, जहां किराया १००० रुपये प्रति माह तक है।
धारावी में पारंपरिक मिट्टी के बर्तनों और कपड़ा उद्योगों के अलावा, मुंबई के अन्य हिस्सों से रिसाइकिल योग्य कचरे का प्रसंस्करण करने वाला एक बड़ा पुनर्चक्रण उद्योग है। धारावी में पुनर्चक्रण उद्योग से लगभग २५०,००० लोग जुडे हुए है। चुकि पुनर्चक्रण यहां के एक प्रमुख उद्योग में से है, यह क्षेत्र में भारी प्रदूषण का एक स्रोत भी है। जिले में अनुमानित 5००० व्यवसाय और १५,००० एक कमरे वाले कारखाने हैं। दो प्रमुख उपनगरीय रेलवे धारावी में आते हैं, जिससे यह क्षेत्र के लोगों के लिए और काम से जाने के लिए एक महत्वपूर्ण स्टेशन बन जाता है।
धारावी दुनिया भर में माल निर्यात करती है। अक्सर इनमें विभिन्न चमड़े के उत्पाद, गहने, विभिन्न सामान और वस्त्र शामिल होते हैं। धारावी के सामानों के बाजारों में संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और मध्य पूर्व के स्टोर शामिल हैं। कुल (और बड़े पैमाने पर अनौपचारिक अर्थव्यवस्था) कारोबार ३५ अरब (५०० मिलियन) से ७० अरब (१ बिलियन) के बीच होने का अनुमान है। निवासियों की प्रति व्यक्ति आय, अनुमानित जनसंख्या सीमा ३००,००० से लेकर लगभग १ मिलियन तक के बीच ३० हजार (५०० डॉलर) से १.५ लाख (2००० डॉलर) तक है।
कुछ ट्रैवल ऑपरेटर धारावी के माध्यम से निर्देशित पर्यटन प्रदान करते हैं, जो धारावी के औद्योगिक और आवासीय भाग को दिखाते हैं और धारावी की समस्याओं और चुनौतियों के बारे में बताते हैं। ये पर्यटन विशेष रूप से सामान्य और धारावी में एक झुग्गी में एक गहरी अंतर्दृष्टि देते हैं।
धारावी को फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर (२००८) में पृष्ठभूमि के रूप में सबसे अधिक इस्तेमाल किया गया था। यह कई भारतीय फिल्मों में भी चित्रित किया गया है, जिनमें दीवार (१९७५), नायकन (१९८७), सलाम बॉम्बे(१९८८), परिंदा (१९८९), धारावी (१९९१), बॉम्बे (१९९५), राम गोपाल वर्मा की "भारतीय गैंगस्टर त्रयी" (१९९८-२००५), सरकार श्रृंखला (२००५-२००८), फुटपाथ (२००३), ब्लैक फ्राइडे (२००४), नो स्मोकिंग (२००७), ट्रैफिक सिग्नल (२००७), आमिर (२००८), मनकथा (२०११), थुप्पक्की (२०१२), थलाइवा (२०१३), भूतनाथ रिटर्न्स (२०१४), काला (२०१८) और गली बॉय (२०१९) ) आदि शामिल है।धारावी, स्लम फॉर सेल (२००९) लुट्ज़ कोनरमन और रॉब एप्पलबी द्वारा बनाई गई एक जर्मन वृत्तचित्र है। जनवरी २०१० में यूनाइटेड किंगडम में प्रसारित एक कार्यक्रम में, केविन मैकक्लाड और चैनल ४ ने स्लममिंग इट नामक एक दो-भाग श्रृंखला प्रसारित की, जो धारावी और इसके निवासियों के आसपास केंद्रित थी। इम्तियाज़ धरकर की कविता "आशीर्वाद" धारावी में पर्याप्त पानी नहीं होने के बारे में है। कोरी डॉक्टरेट द्वारा द विन के लिए, धारावी में आंशिक रूप से सेट लगाया गया था। २०१४ में, बेल्जियम के शोधकर्ता कैटरिन वानक्रंकेलसेन ने धारावी पर २२ मिनट की फिल्म बनाई, जिसका शीर्षक द वे ऑफ धारावी'' है।
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मुम्बई में मुहल्ले
कॉमन्स पर निर्वाचित चित्र युक्त लेख |
ऊर्जा प्रौद्योगिकी (एनर्जी टेक्नोलॉजी) एक अन्तरविषयक इंजीनियरी विज्ञान है जिसका सम्बन्ध दक्ष, सुरक्षित, पर्यावरणमित्र तथा किफायती ऊर्जा की प्राप्ति, परिवर्तन, प्रेषण, भण्डारण तथा उपयोग से है।
मानव के लिए ऊर्जा एक महती आवश्यकता है किन्तु दुर्लभ संसाधन है। बहुत से राजनैतिक संघर्ष और युद्ध ऊर्जा को लेकर ही हुए हैं। |
अरूण वर्मा,भारत के उत्तर प्रदेश की सोलहवीं विधानसभा सभा में विधायक रहे। २०१२ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश की सदर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र (निर्वाचन संख्या-१८९)से चुनाव जीता।
उत्तर प्रदेश १६वीं विधान सभा के सदस्य
सदर के विधायक |
डॉ विनोद बाला अरुण हिन्दी, संस्कृत तथा भारतीय दर्शन की विदुषी हैं। सन् २००२ से २०१० तक मॉरीसस विश्वविद्यालय के भारतीय दर्शन विभाग में उन्होने वरिष्ट प्रवक्ता के रूप में अध्यापन किया। इसके पश्चात वे विश्व हिन्दी सचिवालय की प्रथम महासचिव बनीं। सम्प्रति वे रामायण केन्द्र की उपाध्यक्षा हैं जिसकी स्थापना २००१ में मॉरीशस की सरकार द्वारा किया गया था। वे मॉरीशस की संस्कृत प्रचार समित की अध्यक्षा भी हैं।
डॉ॰ विनोद बाला अरुण ने वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस के नैतिक मूल्य और उनका मॉरीशस के हिंदू समाज पर प्रभाव पर पी-एच.डी. की है। वे महात्मा गांधी संस्थान में संस्कृत और भारतीय दर्शन की वरिष्ठ व्याख्याता रह चुकी हैं। वे भारत और मॉरीशस के संयुक्त सहयोग से स्थापित विश्व हिंदी सचिवालय की प्रथम महासचिव रहीं। सेवा-निवृत्ति के बाद संप्रति रामायण सेंटर की उपाध्यक्षा का दायित्व मानद रूप में सँभाल रही हैं। उनकी सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियाँ बहुआयामी हैं। वे सामाजिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक विषयों पर प्रवचन करती हैं। रेडियो पर नवनीत, चयनिका, प्रार्थना, जीवन ज्योति और आराधना कार्यक्रमों में क्रमशः भक्त कवियों के पदों की व्याख्या, हिंदी साहित्य की विवेचना, उपनिषदों की व्याख्या द्वारा भारतीय दर्शन का तत्त्व चिंतन व संस्कृत की सूक्तियों का आधुनिक संदर्भों में मूल्यांकन और भक्ति गीतों का भाव निरूपण करती हैं।
मारिसस की हिन्दी कथा यात्रा
रामकथा में नैतिक मूल्य
सम्मान एवं पुरस्कार
मानस संगम साहित्य सम्मान (कानपुर के मानस संगम द्वारा प्रदत्त)
धर्मभूषण पुरस्कार (मॉरीशस के विश्व हिन्दू परिषद द्वारा प्रदत्त)
साहित्य शिरोमणि ( अखिल विश्व हिन्दू समिति, न्यू यॉर्क द्वारा प्रदत्त)
प्रवासी भारतीय हिन्दी भूषण सम्मान ( उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा प्रदत्त) |
भीकू-कोलागाड-२, सतपुली तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है।
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उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
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उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
भीकू-कोलागाड-२, सतपुली तहसील
भीकू-कोलागाड-२, सतपुली तहसील |
१ नैनो टेस ला १0 की घात ९ के बराबर होता है। ये चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता मापने की इकाई है |
देलवाड़ा (देलवारा) भारत के राजस्थान राज्य के आबू तहसील सिरोही जिले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है जिसपर झाला वंशी शासकों का शासन रहा। किसी समय में यहाँ १५०० मन्दिर हुआ करते थे, जिनमें से ४०० जैन मन्दिर थे।
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राजसमन्द ज़िले के नगर |
केविन टाटेंडा कसुज़ा (जन्म २० जून १९९३) एक जिम्बाब्वे के क्रिकेटर हैं। वह मुख्य रूप से एक बल्लेबाज है और सुर्खियों में तब आया जब दो हफ्तों के भीतर उसके जुड़वां टन ने अपने फ्रेंचाइजी पर्वतारोहियों को संकट की स्थिति से बचाया, और महान स्वभाव दिखाया, इन दोनों टन ने अपनी टीम के लिए जीत हासिल की। उन्होंने जिम्बाब्वे को अंडर-१९ स्तर पर रिप्रेजेंट किया था। |
मूल परिवेश या राइजोस्फीयर (राइझोस्फीयर) मिट्टी के उस छोटे भाग को कहते हैं जो पौधों की जड़ से निकलने वाले द्रव्य (सेक्रेशन्स) तथा उससे सम्बन्धित सूक्ष्मजीवों (माइक्रूर्कनीस्म्स) से सीधे प्रभावित होती है। |
उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिला के मोदीनगर कस्बे में सीकरी खुर्द ग्राम में स्थित है। इस मंदिर की स्थानीय लोगों में बहुत मान्यता है। सीकरी गांव स्थित देवी माता का मंदिर काफी प्रसिद्ध है। यहां प्रत्येक वर्ष नवरात्रों में माता का भव्य दरबार लगता है। इस मंदिर में सभी देवी-देवताओं की मूर्तियां लगी हुई हैं। |
ब्रेंडल आस्ट्रेलिया एक शहर क्वींसलैंड के प्रान्त में स्थित है। डेटा करने के लिए वर्ष २००६ से मुताबिक, यह २७५८ निवासियों की जनसंख्या है। पूर्व फल और सब्जी व्यवसाय के मालिक के संपत्ति के नाम के नाम पर। |
सेराखार अमृतपुर, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
फर्रुखाबाद जिला के गाँव |
१९३६ शीतकालीन ओलंपिक, आधिकारिक तौर पर इव ओलंपिक शीतकालीन खेलों (फ्रेंच: लेस इव्स ज्यूक्स ओलंपीक ड'हिवर) (जर्मन: ओलिंपीचे विंटरस्पिल १९३६), के रूप में जाना जाता है, एक शीतकालीन बहु-खेल आयोजन था, जिसे १९३६ में गार्मिश शहर में मनाया गया था। जर्मनी ने बर्लिन में उस वर्ष के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक की भी मेजबानी की। १९३६, आखिरी साल में ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन खेल दोनों ही एक ही देश में आयोजित किए गए थे (१९४० के रद्द किए गए खेल जापान में आयोजित किए गए होते थे, वैसे ही शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन खेलों की मेजबानी कर रहे थे)।
१९३६ शीतकालीन ओलंपिक कार्ल रित्र वॉन हॉल्ट द्वारा शारीरिक व्यायाम (डीआरएल) के लिए जर्मन लीग ऑफ़ रीच की ओर से आयोजित किया गया था वॉन हॉल्ट को रिचस्पोर्टफुएरर हंस वॉन त्शैमर एंड ओस्टन द्वारा गर्मिश-पार्टेनकिर्चेन में चौथी शीतकालीन ओलंपिक के संगठन के लिए समिति के अध्यक्ष का नाम दिया गया था।
४ खेल (८ विषयों) में हुए १७ कार्यक्रमों में पदक प्रदान किए गए थे।
प्रदर्शन के खेल
आइस स्टॉक खेल
भाग लेने वाले देश
२८ देशों ने जर्मनी में प्रतिस्पर्धा करने के लिए एथलीट भेजे। ऑस्ट्रेलिया, बुल्गारिया, ग्रीस, लिकटेंस्टीन, स्पेन और तुर्की ने अपना शीतकालीन ओलंपिक शुरुआत गर्मिश-पाटेन्किचेन, और एस्टोनिया, लाटविया, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड और यूगोस्लाविया में सभी १९३२ के शीतकालीन ओलंपिक को याद करने के बाद किया। |
बोटाद ज़िला भारत के गुजरात राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय बोटाद है।
ज़िला सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित, राज्य के ३३ जिलों में से एक महत्वपूर्ण जिला है। जिसका मुख्यालय बोटाद है। २०१३ में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विवेकानंद विकास यात्रा के दौरान भावनगर जिला और अहमदाबाद जिले का विभाजन करके नये बोटाद जिले की घोषणा की थी। भावनगर और अहमदाबाद के दो-दो तहसील जोड़के ४ तहसीलों का नया जिला बनाया गया था। जिले में ३ नगरपालिका है।
भौगोलिक द्रष्टि से बोटाद जिले के उत्तर में सुरेन्द्रनगर जिला, पश्विम में राजकोट जिला, दक्षिण में भावनगर और अमरेली जिला एवम पूर्व में अहमदाबाद जिला स्थित है। बोटाद जिला गढ़डा के स्वामिनारायण मन्दिर ओर साळींगपुर हनुमान मन्दिर के लिए गुजरात में ख्यात है। जिले का क्षेत्रफल २४६४ है। २०११ की जनगणना अनुसार जिले की जनसंख्या ६,४२,००० है।
इन्हें भी देखें
गुजरात के जिले
गुजरात के जिले |
२०२१ आईसीसी पुरुष टी२० विश्व कप सातवां आईसीसी पुरुष टी२० विश्व कप टूर्नामेंट था, जो संयुक्त अरब अमीरात और ओमान में आयोजित किया गया था। प्रत्येक टीम ने १० अक्टूबर २०२१ से पहले पंद्रह खिलाड़ियों के एक दल का चयन किया। खिलाड़ी की उम्र टूर्नामेंट के शुरुआती दिन १७ अक्टूबर २०२१ को है, और जहां एक खिलाड़ी ट्वेंटी २० क्रिकेट में एक से अधिक टीमों के लिए खेलता है, केवल उनकी घरेलू टीम सूचीबद्ध होती है (उदाहरण के लिए: उस समय, जोस बटलर लंकाशायर लाइटनिंग के लिए खेले थे)।
२०२१ आईसीसी टी२० विश्व कप |
ख़्वांदकार मुशर्रफ़ हुसैन सरकारी कॉलेज (बंगाली: ; वर्तमान में के ऐम एच सरकारी कॉलेज बंगलादेश की खुलना विभाग के झेनईदह ज़िला में मौजूद एक शिक्षण संस्थान है। इस कॉलेज की निर्माण में एक स्थानीय सौदागर ख़्वांदकार मुशर्रफ़ हुसैन के विशेष योगदान थी। इसी लिए इस कॉलेज का नाम ख़्वांदकार मुशर्रफ़ हुसैन कॉलेज रखा गया है। वर्तमान में इस कॉलेज में हाइर सैकण्डरी, अंडर ग्रैजूएट, ऑनर्ज़ और पोस्ट ग्रैजूएट क्लासों में शिक्षा दी जाती हैं।
ये कॉलेज १६ जुलाई १९६९ को क़ायम किया गया था और उसे २ अगस्त १९६९ को जेस्सोर बोर्ड की मंज़ूरी मिली थी। पहले हाई स्कूल के पुराने अहाते यानी मौजूदा ख़वातीन डिग्री कॉलेज और फिर मौजूदा हाई स्कूल असैंबली हाल में मुनाक़िद किया गया। जनाब रफ़ी उद्दीन सरदार, हाजी मक़बूल हुसैन, नूर मुहम्मद सरदार और मसऊद उन्नबी चौधरी उर्फ़ पुणो मियां, शमसुर रहमान, असदुज्जमान काटो मियां और चंद दीगर पुरजोश कारकुनों ने कॉलेज के क़ियाम के लिए सख़्त मेहनत की और क़ुर्बानियां दी। एक मुक़ामी ताजिर जनाब ख़्वांदकार मुशर्रफ़ हुसैन ने कॉलेज के लिए बहुत तआवुन किया। यही वजह है कि कॉलेज का नाम उनके नाम पर ख़्वांदकार मुशर्रफ़ हुसैन कॉलेज रखा गया और मौजूदा जगह पर कॉलेज को रेलवे लाईन के पास कोटचांदपूर रेलवे स्टेशन के जुनूब मशरिक़ी कोने में मुंतक़िल कर दिया गया और कॉलेज को ७ एकड़ अराज़ी पर उस के अपने कॉलेज की इमारत पर चलाया जा रहा है। जनाब ऐस ऐम ताज-उल-इस्लाम इसके पहले प्रिंसिपल थे और १९७० से १९९४ तक जनाब अबदुल मुत्तलब प्रिंसिपल के ओहदे पर फ़ाइज़ रहे और कॉलेज की तरक़्क़ी पज़ीर तरक़्क़ी में जनाब अबदुल मुत्तलब का बहुत बड़ा तआवुन है। १९७५ मैं राजशाही यूनीवर्सिटी से अंडर ग्रैजूएट सतह पर कॉलेज की मंज़ूरी दी गई। १९८३ मैं उस वक़्त के म्यूनसिंपल चेयरमैन मिस्टर एम-ए वदूद होला मियां ने परेज़ाईडिंग सदर जनरल हुसैन मोहम्मद इर्शाद से इस कॉलेज को सरकारी बनाने की दरख्वस्त की और बाद में कॉलेज को सरकारी बना दिया गया। फ़िलहाल कॉलेज में ऑनर्ज़ कोर्स शुरू किया गया है।
इस वक़्त कॉलेज में उच्च माध्यमिक शिक्षा की तालीमी गतिविधियां और ऑनर्ज़ कोर्सज़ दस्तयाब हैं। कॉलेज में पास का तनासुब ६८.११ फ़ीसद है।
इस वक़्त कॉलेज में तलबा की तादाद तक़रीबन ३१६ है। कॉलेज का कल रकबा ०७ एकड़ है। कॉलेज की शुमाल की जानिब एक दोमंज़िला इमारत है जिसमें ऑफ़िस रुम, लाइब्रेरी, कॉमन रुम और हियूमीनिटीज़ और कॉमर्स ब्रांच है। और कॉलेज के मग़रिब की जानिब दोमंज़िला इमारत में साईंस लीबारटरी और कम्पयूटर लैब समेत तमाम साईंस की क्लासिज़ और इमतिहानात लिए जाते हैं। कॉलेज के मैदान के जुनूब मग़रिब में एक मंज़िला मस्जिद है। कॉलेज की दो इमारतों के सामने खेलने के लिए कुशादा मैदान हैं। कॉलेज के मशरिक़ में हॉस्टल की तामीर के लिए खुली जगह है और एक सीढ़ी वाला तालाब भी खोदा हुआ है।
मौजूदा असातिज़ा और मुलाज़मीन की तादाद
इस वक़्त कॉलेज में तक़रीबन ३६ असातिज़ा हैं। और दफ़्तरी अफ़िसरों की तादाद २६ है।
बी एन सी सी |
पुराना किला नई दिल्ली में यमुना नदी के किनारे स्थित प्राचीन दीना-पनाह नगर का आंतरिक किला है। इस किले का निर्माण शेर शाह सूरी ने अपने शासन काल में १५४० से १५४५ के बीच करवाया था। किले के तीन बड़े द्वार हैं तथा इसकी विशाल दीवारें हैं। इसके अंदर एक मस्जिद है जिसमें दो तलीय अष्टभुजी स्तंभ है। हिन्दू साहित्य के अनुसार यह किला इंद्रप्रस्थ के स्थल पर है जो पांडवों की विशाल राजधानी होती थी। जबकि इसका निर्माण अफ़गानी शासक शेर शाह सूरी ने १५४० से १५४५ के बीच कराया गया, जिसने मुगल बादशाह हुमायूँ से दिल्ली का सिंहासन छीन लिया था। ऐसा कहा जाता है कि मुगल बादशाह हुमायूँ की इस किले के एक से नीचे गिरने के कारण दुर्घटनावश मृत्यु हो गई।
कहा जाता है कि दिल्ली को सर्वप्रथम पांडवों ने अपनी राजधानी इन्द्रप्रस्थ के रूप में बसाया था वह भी ईसापूर्व से १४०० वर्ष पहले, परन्तु इसका कोई पक्का प्रमाण नहीं हैं। आज दिख रहे पुराने किले के दक्षिण पूर्वी भाग में सन १९५५ में परीक्षण के लिए कुछ खंदक खोदे गए थे और जो मिट्टी के पात्रों के टुकड़े आदि पाए गए वे महाभारत की कथा से जुड़े अन्य स्थलों से प्राप्त पुरा वस्तुओं से मेल खाते थे जिससे इस पुराने किले के भूभाग को इन्द्रप्रस्थ रहे होने की मान्यता को कुछ बल मिला है। भले ही महाभारत को एक धर्मग्रंथ के रूप में देखते हैं लेकिन बौद्ध साहित्य अंगुत्तर निकाय में वर्णित महाजनपदों यथा काशी, कोशल अंग, मगध, अस्मक, अवन्ति, गांधार, चेदी आदि में से बहुतों का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है जो इस बात का संकेत है कि यह ग्रन्थ मात्र पौराणिक ही नहीं तथापि कुछ ऐतिहासिकता को भी संजोये हुए हैं।
पुराने किले की पूर्वी दीवार के पास दुबारा खुदाई १९६९ से १९७३ के बीच भी की गई थी। वहां से महाभारत कालीन मानव बसासत के कोई प्रमाण तो नहीं मिले लेकिन मौर्य काल (३०० वर्ष ईसापूर्व) से लेकर प्रारंभिक मुग़ल काल तक अनवरत वह भूभाग मानव बसाहट से परिपूर्ण रहा। ऐसे प्रमाण मिलते गए हैं जिनमे काल विशेष के सिक्के, मनके, मिटटी के बर्तन, पकी मिटटी की (टेराकोटा) यक्ष यक्षियों की छोटी छोटी प्रतिमाएँ, लिपि युक्त मुद्राएँ (सील) आदि प्रमुख हैं जो किले के संग्रहालय में प्रर्दशित हैं।
कहते हैं कि मुग़ल सम्राट हुमायूँ ने यमुना नदी के किनारे उसी टीले पर जिसके नीचे इन्द्रप्रस्थ दबी पड़ी है, अपने स्वयं की नगरी दीनपनाह स्थापित की थी। तत्पश्चात शेरशाह सूर (सूरी)(१५३८-४५) ने जब हुमायूँ पर विजय प्राप्त की तो सभी भवनों को नष्ट कर वर्तमान दिल्ली, शेरशाही या शेरगढ़ का निर्माण प्रारम्भ करवाया। इस बीच हुमायूँ ने पुनः संघटित होकर आक्रमण किया और अपनी खोई हुई सल्तनत वापस पा ली। समझा जाता है कि किले का निर्माण कार्य हुमायूँ ने ही 15४५ में पूर्ण कराया था।
किले का वर्णन
पुराना किला मूलतः यमुना नदी के तट पर ही बना था परन्तु उत्तर और पश्चिम दिशाओं के ढलान से प्रतीत होता है कि नदी को जोड़ती हुई एक खाई सुरक्षा के दृष्टि से बनी थी। इस किले की चहर दीवारी लगभग २.४ किलोमीटर लम्बी है और इसके तीन मुख्य दरवाज़े उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में हैं। इनमे से पश्चिमी दरवाज़े का प्रयोग आजकल किले में प्रवेश के लिए किया जाता है। उत्तर की ओर का द्वार तलाकी दरवाजा कहलाता है। यह स्पष्ट नहीं है कि कब और क्यों इस दरवाज़े के उपयोग को प्रतिबंधित किया गया। यह किला मुग़ल, हिंदू तथा अफघानी वास्तुकला के समन्वय का एक सुंदर नमूना माना जाता है।
शेरशाह द्वारा बनवाया गया शेर मंडल जो अश्तकोनीय दो मंजिला भवन है। इसी भवन में हुमायूँ का पुस्तकालय हुआ करता था। यहीं पर एक बार पुस्तकों के बोझ को उठाये हुए जब हुमायूँ सीढियों से उतर रहा था, तभी अजान (इस्लामी प्रार्थना) की पुकार सुनाई पड़ती है, नमाज़ का समय हो चला था। हुमायूँ की आदत थी कि नमाज़ की पुकार सुनते ही, जहाँ कहीं भी होता झुक जाया करता। झुकते समय उसके पैर लंबे चोगे में कहीं फँस गये और वह संतुलन खो कर गिर पड़ा। इस दुर्घटना से हुई शारीरिक क्षति से ही १५५६ के पूर्वार्ध में वह चल बसा।
महाभारत का इंद्रप्रस्थ
महाभारत में उल्लेखित पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ सम्भवतः इसी स्थान पर थी। पुराने किले में विभिन्न स्थानों पर शिलापटों पर यह वाक्य लिखे हैं। पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ कहां थी? इस बात को लेकर लोगों में बहस होती रही है। लेकिन खुदाई में मिले अवशेषों के आधार पर पुरातत्वविदों का एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि पांडवों की राजधानी इसी स्थल पर रही होगी।
यद्यपि पुरातत्वविदों के पास इस बात के पुख्ता प्रमाण नहीं हैं, लेकिन खुदाई के दौरान यहां मिले बर्तनों के अवशेषों से किले के आसपास पांडवों की राजधानी होने की बात को बल मिलता है। यहां खुदाई में ऐसे बर्तनों के अवशेष मिले हैं, जो महाभारत से जुडे़ अन्य स्थानों पर भी मिले हैं। इसके अलावा महाभारत से जुडे़ प्रसंग और प्राचीन परंपराएं भी इस ओर संकेत करती हैं, कि यहां पांडवों की राजधानी रही होगी।
भारत में बहुत कम नगर ऐसे हैं, जो दिल्ली की समान पुराने हों। इतिहासकारों के अनुसार पूर्व ऐतिहासिक काल में जिस स्थल पर इंद्रप्रस्थ बसा हुआ था, उसके ऊंचे टीले पर १६ वीं शताब्दी में पुराना किला बनाया गया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस किले की कई स्तरों पर खुदाई की है। खुदाई में प्राचीन भूरे रंग से चित्रित मिट्टी के विशिष्ट बर्तनों के अवशेष मिले हैं, जो महाभारत काल के हैं। ऐसे ही बर्तन अन्य महाभारत कालीन स्थलों पर भी पाए गए हैं। इस बारे में एक तथ्य यह भी है कि इंद्रप्रस्थ के अपभ्रंश इंद्रपरत के नाम का एक गांव वर्तमान शताब्दी के प्रारंभ तक पुराना किला में स्थित था। राजधानी नई दिल्ली का निर्माण करने के दौरान अन्य गांवों के साथ उसे भी हटा दिया गया था। दिल्ली में स्थित सारवल गांव से १६28 ईस्वी का संस्कृत का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है। यह अभिलेख लाल किले के संग्रहालय में उपस्थित है। इस अभिलेख में इस गांव के इंद्रप्रस्थ जिले में स्थित होने का उल्लेख है।
वहीं महाभारत के अनुसार कुरु देश की राजधानी गंगा के किनारे हस्तिनापुर में स्थित थी। जब पांडवों और उनके चचेरे भाई कौरवों के बीच संबंध बिगड़ गए तो कौरवों के पिता धृतराष्ट्र ने पांडवों को यमुना के किनारे खांडवप्रस्थ का क्षेत्र दे दिया। वहां उन्होंने समुद्र जैसे गड्ढों द्वारा घिरे हुए एक नगर को बनाया और उसकी रक्षात्मक प्राचीरें बनाई। विद्वानों का मत है कि पुराना किला की रूपरेखा भी इसी प्रकार की थी। इससे भी स्पष्ट होता है कि इंद्रप्रस्थ एक नगर का नाम था, जो पुराना किला के स्थान पर बसा था और जिस क्षेत्र में यह स्थित था, उस क्षेत्र का नाम खांडवप्रस्थ था। कहा जाता है कि कौरवों पर अपनी विजय के बाद पांडवों ने राजधानी इंद्रप्रस्थ को भगवान कृष्ण से संबंधित किसी यादव वंशज को सौंप दिया।
एक और प्रसंग है, जिसके अनुसार पांडवों ने कौरवों से पांच गांव मांगे थे। ये वे गाँव थे जिनके नामों के अंत में पत आता है। जो संस्कृत के प्रस्थ का हिंदी साम्य है। ये पत वाले गांव हैं इंदरपत, बागपत, तिलपत, सोनीपत और पानीपत हैं। यह परम्परा महाभारत पर आधारित है। जिन स्थानों के नाम दिए गए हैं। उनमें ओखला नहर के पूर्वी किनारे पर दिल्ली के दक्षिण में लगभग २२ किलोमीटर दूरी पर तिलपत गांव स्थित है। इन सभी स्थलों से महाभारत कालीन भूरे रंग के बर्तन मिले हैं।
इन्हें भी देखें
पुराना किला (चित्र दीर्घा)
दिल्ली के दर्शनीय स्थल
दिल्ली में दुर्ग
पुराना किला पश्चिमी द्वारा प्रवेश द्वारा के दाई ओर ईस्थित कुंती माता मंदिर मौजूद है जो की नया है जिस पर इतिहासकार कभी बहेस नही करते ओर ना ही कभी बाबा भैरव मंदिर का ही उल्लेख करते है क्योंकि सबको पता है की ये काल्पनिक हैं। |
भरत चक्रवर्ती - ऋषभदेव के पुत्र
भरत (रामायण) - रामायण के अनुसार, राजा दशरथ के दूसरे पुत्र थे, उनकी माता कैकयी थी। वे राम के भाई थे, उनके अन्य भाई थे लक्ष्मण और शत्रुघ्न। परम्परा के अनुसार राम, जो की राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र थे।
भरत (महाभारत)- महाराज दुष्यन्त और शकुन्तला के पुत्र जिनका चरित्र महाभारत के आदिपर्व में है।
भरत मुनि - नाट्यशास्त्र के रचयिता |
एम्बर रोड (आम्बर रोड) पूर्वी यूरोप में एक प्राचीन व्यापार मार्ग था जिसका नामकरण उत्तर सागर और बाल्टिक सागर से भूमध्य सागर तक ले जाए जाने वाले एम्बर (कहरुवा) के व्यापार के कारण हुआ। इसे पूर्वी मार्ग (ईस्ट रूट) भी कहा जाता है।
यूरोप का इतिहास |
शिरपुर (शीरपुर) भारत के महाराष्ट्र राज्य के धुले ज़िले में स्थित एक नगर है।
शिरपुर फारुकी और अहिर राजाओं का एक प्रमुख शासन का क्षेत्र था।
इन्हें भी देखें
महाराष्ट्र के शहर
धुले ज़िले के नगर |
एक जापानी माँगा द्वारा लिखो कोयोहरु गोटोगे एनीमे टीवी श्रृंखला अनुकूलन द्वारा उफ़ोटेबल २०१९ में. कहानी का पालन करें तंजीरो कमादो जवान लडका कौन बनता है राक्षस बध करनेवाला के बाद अपने परिवार बलि है तथा उसकी छोटी बहन नेज़ुको एक दानव में बदल जाता है में प्रकाशित हुआ था साप्ताहिक शोनेन जंप फरवरी २०१६ से मई २०२० तक |
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