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झडकोट, भिकियासैण तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा झडकोट, भिकियासैण तहसील झडकोट, भिकियासैण तहसील
लूणी तहसील का एक गाँव है।इस गाँव की जनसंख्या लगभग १००० के निकट है।यह गाँव जोधपुर शहर से १४ किलोमीटर दूर है। इन्हें भी देखें जोधपुर के गाँव लूणी तहसील के गाँव
जॉर्ज टाउन चेन्नई का एक क्षेत्र है। इसे ब्रिटिश काल में ब्लैक टाउन भी कहा गया है। ब्रिटिश स्थापन के बाद इसे जॉर्ज टाउन कहा जाने लगा, क्योंकि उन्होंने यहां फोर्ट सेंट जॉर्ज बनवाया था। जॉर्ज टाउन और फ़ोर्ट सेंट जॉर्ज का इतिहास चेन्नई के क्षेत्र
जैवक्षेत्र या जीवोम (: बायोम) धरती या समुद्र के किसी ऐसे बड़े क्षेत्र को बोलते हैं जिसके सभी भागों में मौसम, भूगोल और निवासी जीवों (विशेषकर पौधों और प्राणी) की समानता हो। किसी बायोम में एक ही तरह का परितंत्र (ईकोसिस्टम) होता है, जिसके पौधे एक ही प्रकार की परिस्थितियों में पनपने के लिए एक जैसे तरीक़े अपनाते हैं।जैवक्षेत्र के अन्तर्गत प्रायः स्थलीय भाग की सभी वनस्पति और जन्तु समुदायों को ही सम्मिलित करते हैं क्योंकि सागरीय जैवक्षेत्र का निर्धारण कठिन होता है। हालांकि इस दिशा में शोधकर्ताओं द्वारा प्रयास किये गये हैं। यद्यपि जैवक्षेत्र में वनस्पति तथा जन्तु दोनों को सम्मिलित करते हैं, तथापि हरे पौधों का ही प्रभुत्व होता है क्योंकि इनका कुल जीवभार जन्तुओं की तुलना में बहुत अधिक होता है। बायोम के प्रकार किसी रेगिस्तानी बायोम में पौधों में अक्सर मोटे पत्ते होते हैं (ताकि उनका जल अन्दर ही बंद रहे) और उनके ऊपर कांटे होते हैं (ताकि जानवर उन्हें आसानी से खा न पाएँ)। उनकी जड़ें भी रेत में उगने और पानी बटोरने के लिए विस्तृत होती हैं। बहुत से रेगिस्तानी पौधे धरती में ऐसे रसायन छोड़ते हैं जिनसे नए पौधे उनके समीप जड़ नहीं पकड़ पाते। इस से उस पूरे क्षेत्र में पड़ने वाला हल्का पानी या पिघलती बर्फ़ उन्ही को मिलती है और यह एक वजह है कि रेगिस्तान में झाड़-पौधे एक-दूसरे से दूर-दूर उगते दिखाई देते हैं। यह सभी लक्षण रेगिस्तानी पौधे में एक-समान होने से जीव-वैज्ञानिक इस परितंत्र को एक 'बायोम' का ख़िताब देते हैं। "ये वे जीवोम होते हैं जहां का तापमान बहुत अधिक होता है और यह की परिस्थितियां जीवन के अनुकूल नहीं होती हैं | कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार वे क्षेत्र जहां औसत वर्षा २५म्म होती हैं और कुछ के अनुसार २५0म्म से कम होती हैं. मरुस्थल कहलाते है। उष्णकटिबंधीय सदाबहार वर्षावन बायोम सदाबहार वर्षावन बायोम जीवन की उत्पत्ति तथा विकास के लिए अनुकूलतम दशायें प्रदान करता है, क्योंकि इसमें वर्ष भर उच्च वर्षा तथा तापमान बना रहता है। इसी कारण इसे अनुकूलतम बायोम कहते हैं, जिसका जीवभार सर्वाधिक होता है। इस बायोम का विस्तार सामान्यतः १० उत्तर तथा १० दक्षिण अक्षांशों के मध्य पाया जाता है। इसका सर्वाधिक विकास तथा विस्तार अमेजन बेसिन, कांगो बेसिन, तथा इण्डोनेशियाई क्षेत्रों ख़ासकर बोर्नियो तथा सुमात्रा आदि में हुआ है। (घास का मैदान) सवाना बायोम से आशय उस वनस्पति समुदाय से है जिसमें धरातल पर आंशिक रूप से शु्ष्कानुकूलित शाकीय पौधों (पार्टियली जेरोमर्फीक हर्बसिबस प्लांट्स) का (मुख्यतः घासें) प्राधान्य होता है, साथ ही विरल से लेकर सघन वृक्षों का ऊपरी आवरण होता तथा मध्य स्तर में झाड़ियाँ होती हैं। इस बायोम का विस्तार भूमध्यरेखा के दोनों ओर १० से २० अक्षांशों के मध्य (कोलम्बिया तथा वेनेजुएला के लानोज, दक्षिण मध्य ब्राजील, गयाना, परागुवे, अफ्रीका में विषुवतरेखीय जलवायु प्रदेश के उत्तर तथा दक्षिण मुख्य रूप से मध्य तथा पूर्वी अफ्रीका- सर्वाधिक विस्तार सूडान में, मध्य अमेरिका के पहाड़ी क्षेत्रों, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया और भारत में) पाया जाता है। सवाना की उत्पति तथा विकास के संबंध में अधिकांश मतों के अनुसार इसका प्रादुर्भाव प्राकृतिक पर्यावरण में मानव द्वारा अत्यधिक हस्तक्षेप के फलस्वरूप हुआ है। भारत में पर्णपाती वनों के चतुर्दिक तथा उनके बीच में विस्तृत सवाना क्षेत्र का विकास हुआ है, परन्तु भारतीय सवाना में घासों की अपेक्षा झाड़ियों का प्राधान्य अधिक है। सागरीय बायोम अन्य बायोम से इस दृष्टि से विशिष्ट है कि इसकी परिस्थितियाँ (जो प्रायः स्थलीय बायोम में नहीं होती हैं) पादप और जन्तु दोनों समुदायों को समान रूप से प्रभावित करती हैं। महासागरीय जल का तापमान प्रायः ० से ३० सेण्टीग्रेट के बीच रहता है, जिसमें घुले लवण तत्वों की अधिकता होती है। इस बायोम में जीवन और आहार श्रृंखला का चक्र सूर्य का प्रकाश, जल, कार्बन डाई ऑक्साइड, ऑक्सीजन की सुलभता पर आधारित होता है। ये समस्त कारक मुख्य रूप से सागर की ऊपरी सतह में ही आदर्श अवस्था में सुलभ होते हैं, क्योंकि प्रकाश नीचे जाने पर कम होता जाता है तथा २०० मीटर से अधिक गहरायी तक जाने पर पूर्णतया समाप्त हो जाता है। ऊपरी प्रकाशित मण्डल सतह में ही प्राथमिक उत्पादक पौधे (हरे पौधे, पादप प्लवक (फाइटोप्लैंकटन) प्रकाश संश्लेषण द्वारा आहार उत्पन्न करते हैं) तथा प्राथमिक उपभोक्ता -जन्तुप्लवक (जूप्लैंकटन)- भी इसी मण्डल में रहते हैं तथा पादप प्लवक का सेवन करते हैं। टुण्ड्रा वे मैदान हैं, जो हिम तथा बर्फ़ से ढँके रहते हैं तथा जहाँ मिट्टी वर्ष भर हिमशीतित रहती है। अत्यधिक कम तापमान और प्रकाश, इस बायोम में जीवन को सीमित करने वाले कारक हैं। वनस्पतियाँ इतनी बिखरी हुईं होती हैं कि इसे आर्कटिक मरूस्थल भी कहते हैं। यह बायोम वास्तव में वृक्षविहीन है। इसमें मुख्यतः लाइकेन, काई, हीथ, घास तथा बौने विलो-वृक्ष शामिल हैं। हिमशीतित मृदा का मौसमी पिघलाव भूमि की कुछ सेंटीमीटर गहराई तक कारगर रहता है, जिससे यहाँ केवल उथली जड़ों वाले पौधे ही उग सकते हैं। इस क्षेत्र में कैरीबू, आर्कटिक खरगोश, आर्कटिक लोमड़ी, रेंडियर, हिमउल्लू तथा प्रवासी पक्षी सामान्य रूप से पाए जाते हैं। इन्हें भी देखें
राधिका वाज़ (जन्म १९७३) एक भारतीय हास्य कलाकार और लेखिका हैं। उनका जन्म मुंबई मे हुआ था। वाज़ ने चेन्नई में एक विज्ञापन अधिकारी के रूप में काम किया है। उन्होंने स्यराकुस विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क से विज्ञापन में मास्टर्स की। वह ग्राउंडलिंग स्कूल (लॉस एंजिल्स) और इम्प्रोविजन (न्यूयॉर्क) में प्रशिक्षित हुई। २०१४ में, उन्होंने न्यूयॉर्क में और मुंबई, बेंगलुरु, कोच्चि, गुड़गांव और दिल्ली के भारतीय शहरों में सितंबर में अपने कार्य को पुराना करने के लिए प्रदर्शन किया था। मुंबई के लोग १९७३ में जन्मे लोग
शिव पाल सिंह यादव,भारत के उत्तर प्रदेश की सोलहवीं विधानसभा सभा में विधायक रहे। २०१२ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश की जसवंतनगर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र (निर्वाचन संख्या-१९९)से चुनाव जीता। शिवपाल जी सपा के म्ला हैैं। उत्तर प्रदेश १६वीं विधान सभा के सदस्य जसवंतनगर के विधायक
जब किसी कारण से फुप्फुसावरण गुहा (प्लुरल केविटी) में वायु या गैस प्रविष्ट हो जाती है, अथवा की जाती है, तो उस अवस्था को वातिलवक्ष (न्युमोथोरक्स) कहते हैं। यह अवस्था प्रायः फुप्फुसावरण गुहा में टी. बी. के फोकस विद्रधि (अब्सेस), कोथ (गंग्रीन), अर्बुद, यकृत विद्रधि (लिवर अब्सेस) इत्यादि के फटने तथा पसली के अस्थिभंग के करण होती है। इसके अतिरिक्त वक्ष पर बाह्य आघात तथा अनेक फुप्फुस विकारों में उपचार के हेतु कृत्रिम रूप से वायु प्रविष्ट कराने से वातिलवक्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसे कृत्रिम वातलवक्ष (आर्टिफिशियल न्युमोथोरक्स) कहते हैं। वातलवक्ष के लक्षण कारणों के अनुसार या तो यकायक उत्पन्न होते हैं, अथवा अन्य फुप्फुसगत रोगों के उपद्रव के रूप में धीरे-धीरे प्रकट होते हैं। एकाएक उत्पन्न लक्षणों के अंदर रोगी की एकाएक तीव्र कास के साथ वक्ष में तीव्र शूल उत्पन्न होता है, जिसके फलस्वरूप रोगी को श्वाँस लेने तक में कष्ट होता है। इसकी उग्रता, फुप्फुसावरण गुहा में प्रविष्ट वायु एवं गैस की मात्रा पर निर्भर करती है और इसके फलस्वरूप हृदय तथा अन्य अवयवों का अपने स्थान से विस्थापन (दिसप्लेसिमेंट) भी हो जातो है। ऐसी अवस्था में परीक्षा करने पर रोगी तकिए के सहारे वक्ष को दबाए बैठा कराहता हुआ मिलता है तथा साँस की गति मंद एवं कष्टप्रद होती है। विकृत पार्श्व की गति देखने में मंद मालूम देती है तथा हृदय स्वस्थ पार्श्व की तरफ हटा हुआ मालूम देतो है। नाड़ी की गति बढ़कर १२० प्रति मिनट हो जाती है तथा साँस की गति भी बढ़कर २०-३० प्रति मिनट हो जाती है। एक्स रे परीक्षा से ही इसके निदान की पुष्टि हो सकती है। यदि वातिलवक्ष का समय से उचित उपचार न किया गया, तो उपद्रव स्वरूप वायु के दोनों पार्श्व में प्रसारित हो जाने, अथवा संक्षोभ (शॉक) के कारण मृत्यु की भी संभावना रहती है। टी. बी. की उग्रावस्था में वातिलवक्ष का होना घातक अवस्था का द्योतक है। इसके प्राथमिक उपचार के अंतर्गत रोगी को पूर्ण विश्राम कराते हैं तथा विकृत पार्श्व को, अर्थात् जिधर वातिलवक्ष है, इस रूप से स्थिर रखते हैं कि उनमें कम से कम हरकत हो। यंत्र की सहायता से वक्ष में से वायु निकालने की व्यवस्था करने से ही स्थायी लाभ की आशा होती है। वक्ष से वायु निकालनेवाले यंत्र का वातिलवक्ष यंत्र कहते हैं। रोग के अन्य कारणों का भी उपचार कर रोग का निर्मूलन करते हैं।
पाट्टपुर (पत्तापुर) भारत के ओड़िशा राज्य के गंजाम ज़िले में स्थित एक गाँव है। यहाँ से राष्ट्रीय राजमार्ग ३२६ गुज़रता है। इन्हें भी देखें ओड़िशा के गाँव गंजाम ज़िले के गाँव
कहारपुर बीहपुर, भागलपुर, बिहार स्थित एक गाँव है। गाँव, कहारपुर, बीहपुर
नाना फरारी महाराष्ट्र से एक क्रांतिकारी था जिसने १९४७ मे अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष किया था। नाना फरारी का जन्म महाराष्ट्र के एक कोली परिवार मे हुआ था एवं आज भी महाराष्ट्र के धर्मपुर, सुरगणा और पेठ मे नाना फरारी की कहानियां सुनीं जा सकती हैं। १९४७ मे देश आजाद होने के बाद भी नाना फरारी ने अपना संघर्ष जारी रखा। नाना फरारी ने जमाखोरी और मालसाजी के खिलाफ हथियार उठाए जिसके कारण १९४७ मे नाना फरारी ने वनिया, पारसी और तेली-वैश्य जाती के बोहत से लोगों की नाक और कान काट दिए थे जिसके चलते महाराष्ट्र सरकार ने नाना फरारी को क्रांतिकारी का दर्जा ने देते हुए डकैत घोषित कर दिया कई महीनो तक नाना फरारी को पकड़ने के लिए महाराष्ट्र पुलिस नाशिक और ट्रीम्बक मे नाना को ढूंडती रही और एक दिन तोरागांव की मुठभेड़ में नाना फरारी मारा गया।
संगीत भोजपुरी एक भोजपुरी टीवी चैनल है। यह एक मनोरंजन चैनल है। भोजपुरी टीवी चैनल
नयागाँव सम्मल, हल्द्वानी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा सम्मल, नयागाँव, हल्द्वानी तहसील सम्मल, नयागाँव, हल्द्वानी तहसील
प्रेस्टन क्लैबोर्ने, (जन्म २१ जनवरी १९८८) अमेरिका के प्रसिद्ध बेसबॉल खिलाड़ी है। दिसंबर २०१४ की स्थिति के अनुसार वह न्यूयॉर्क यांकीज़ की टीम के लिए खेल रहे है। प्रेस्टन क्लैबोर्ने कैरियर
बोलने तथा लिखने में सुविधा और समय तथा श्रम की बचत करने के उद्देश्य से कभी-कभी किसी बड़े अथवा क्लिष्ट शब्द के स्थान पर उस शब्द के किसी ऐसे सरल, सुबोध एवं संक्षिप्त रूप का प्रयोग किया जाता है जिससे श्रोताओं और पाठकों को पूरे शब्द (या मूल शब्द) का बोध सरलता से हो जाए। शब्दों के ऐसे संक्षिप्त रूप को सूचकाक्षर या संक्षेपाक्षर(याने ऐब्रिविएशन, अब्ब्रेविएशनिंग) कहते हैं। बड़े अथवा क्लिष्ट शब्दों को संक्षिप्त या सरल बनाने की इस क्रिया में प्राय: मूल शब्द के प्रथम दो, तीन या अधिक अक्षर और यदि मूल शब्द (नाम) कई शब्दों के मेल से बना हो तो उन शब्दों के प्रथम अक्षर लेकर उन्हें अलग-अलग अक्षरों या एक स्वतंत्र शब्द के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार बनाए गए सूचकाक्षरों का प्रयोग कभी-कभी इतना अधिक होने लगता है कि मूल शब्द का प्रयोग प्राय: बिल्कुल ही बंद हो जाता है और सूचकाक्षर लिखित भाषा का अंग बनकर उस मूल शब्द का रूप ले लेता है। इसका एक सरल उदाहरण "यूनेस्को" है जो वस्तुत: "यूनाइटेड नेशंस एज्युकेशनल, साइंटिफिक ऐंड कल्चरल आर्गेनिजेशन" इस लंबे नाम में प्रयुक्त पाँच मुख्य शब्दों के प्रथम अक्षरों के मेल से बना है। इसी प्रकार अंग्रेजी में एक बहुप्रचलित शब्द "मिस्टर" (मिस्टर) है, जिसे शायद ही कभी पूरे रूप में लिखा जाता हो। जब कभी किसी भी प्रसंग में उक्त शब्द लिखना होता है तो पूरा शब्द न लिखकर केवल उसके सूचकाक्षर म्र. से ही काम चला लिया जाता है। इसी शब्द का स्त्रीलिंग रूप "मिसेज़" या "मिस्ट्रेस" भी कभी अपने पूरे रूप में न लिखा जाकर केवल सूचकाक्षर मृ. के रूप में ही लिखा जाता है। प्राणि मात्र का स्वभाव है कि वह कठिन एवं अधिक समय वाले कार्य की अपेक्षा सरल और कम समय वाले कार्य को अधिक पसंद करता है। सूचकाक्षर भी मनुष्य की इसी सहज स्वाभाविक प्रकृति की देन कहे जा सकते हैं। विद्वानों तथा भाषा विशेषज्ञों का मत है कि सूचकाक्षरों की प्रथा आदि काल से चली आ रही है। सूरकाक्षरों के प्राचीन उदाहरण प्राचीन काल के सिक्कों और शिलालेखों में आसानी से देखे जा सकते हैं जबकि सिक्कों तथा शिलालेखों पर स्थान की कमी तथा शिलालेखों पर लिखने के श्रम को बचाने के लिए भी शब्दों के संक्षिप्त रूपों या सूचकाक्षरों का प्रयोग किया जाता था। आधुनिक काल में भी विविध देशों के सिक्कों पर सूचकाक्षर देखे जाते हैं। प्राचीन लेखशास्त्र (पलियोग्राफी) में भी सूचकाक्षरों के अनेक उदाहरण मिलते हैं। प्राचीन लेखशास्त्र में शब्दों को संक्षिप्त रूप में लिखने या मूल शब्दों के स्थान पर सूचकाक्षरों का प्रयोग करने के दो मुख्य कारण बतलाए जाते हैं - (१) एक ही प्रसंग (या लेख) में अनेक बार प्रयुक्त होने वाले बड़े या क्लिष्ट शब्द या शब्दों को पूरे रूप में बार-बार लिखने का श्रम बचाने की इच्छा। ऐसी स्थिति में मूल शब्द या शब्दों के स्थान पर सूचकाक्षरों का प्रयोग तभी किया जाता था जब उनका अर्थ उसी प्रकार आसानी से समझ में आ जाए जिस प्रकार मूल शब्द लिखे जाने पर, (२) लिखने का स्थान बचाने की इच्छा अर्थात् सीमित स्थान में अधिक से अधिक लिखने की इच्छा। यदि कोई लेखक किसी वैज्ञानिक या प्राविधिक विषय की पुस्तक या लेख में किसी क्लिष्ट या बड़े शब्द के लिए किसी सरल सूचकाक्षर का प्रयोग करता है तो प्राय: देखा जाता है कि उसके द्वारा प्रयुक्त सूचकाक्षर उसी विषयक्षेत्र से संबंधित अन्य लेखक तथा विद्वान् भी शीघ्र ही अपना लेते हैं। कानूनी दस्तावेजों, सार्वजनिक और निजी कागजों तथा दिन-प्रतिदिन के उपयोग में आने वाले अन्य अनेक प्रकार के कागजों में भी प्राय: देखा जाता है कि बार-बार प्रयोग में आने वाले बड़े तथा क्लिष्ट शब्दों के सूचकाक्षर प्रचलन में आ जाते हैं। ये सूचकाक्षर पहले तो किसी व्यक्ति विशेष द्वारा केवल अपने निजी उपयोग के लिए ही निर्मित किए जाते हैं, पर बाद में इन्हें सुविधाजनक जानकर धीरे-धीरे अन्य लोग भी इनका प्रयोग करने लगते हैं। सूचकाक्षरों का सरलतम रूप वह है जिसमें किसी शब्द के लिए एक (प्राय: प्रथम) अक्षर या अधिक से अधिक दो या तीन अक्षरों का प्रयोग होता है। प्राचीन यूनान के सिक्कों में शहरों के पूरे नाम के स्थान पर उनके नाम के केवल प्रथम दो या तीन अक्षर ही मिलते हैं। इसी प्रकार प्राचीन शिलालेखों में शहरों के नाम के साथ-साथ कुछ अन्य बड़े और क्लिष्ट शब्दों के सूचकाक्षर भी मिलते हैं। प्राचीन रोम में सरकारी ओहदे, पदवी या उपाधियों का आशय केवल उनके प्रथमाक्षर से ही समझ लिया जाता था। सूचकाक्षर जब कुछ समय तक निरंतर प्रयोग में आते रहते हैं तब कुछ काल के बाद वे लिखित भाषा के ही अंग बन जाते हैं। प्राचीन यूनानी साहित्य में ऐसे अनेक सूचकाक्षर मिलते हैं जो आधुनिक यूनानी भाषा में भी ठीक उसी रूप और अर्थ में प्रचलित हैं जिस रूप और अर्थ में वे आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व प्रचलित थे। वर्तमान काल में भी हम दैनिक जीवन की बोलचाल की तथा लिखित भाषा में ऐसे बहुत से सूचकाक्षरों का प्रयोग करते हैं तो अब भाषा के ही अंग बन चुके हैं और जिनका पूरा रूप बहुत ही कम लोगों को ज्ञात है। इस प्रकार के सूचकाक्षर शायद ही कभी मूल शब्द के रूप में लिखे या बोले जाते हैं। नाटो, सीटो, सेंटो, गेस्टापो, सी.आई.डी., वी.पी. (पी.) आदि कुछ ऐसे ही सूचकाक्षर हैं। प्राचीन मिस्र से संबंधित जो सामग्री प्राप्य है तथा जो काहिरा के म्यूजियम तथा ब्रिटिश म्यूजियम, (लंदन) में सुरक्षित हैं, उसे देखने से पता चलता है कि प्राचीन यूनानी और लैटिन भाषाओं में भी सूचकाक्षरों का प्रयोग होता था। प्राचीन यूनानी भाषा में सूचकाक्षर बनाने की विधि बहुत सरल थी। या तो मूल शब्द का प्रथम अक्षर लिखकर उसके आगे दो आड़ी लकीरें खींचकर सूचकाक्षर बनाए जाते थे या मूल शब्द के जितने अंश को छोड़ना होता था उसका प्रथम अक्षर मूल शब्द के प्रारंभिक अंश से कुछ ऊपर लिखकर सूचकाक्षर का बोध कराया जाता था। कभी-कभी इस प्रकार दो अक्षर भी प्रारंभिक अंश से कुछ ऊपर लिखे जाते थे। अरस्तू लिखित एथेंस के संविधान संबंधी जो हस्तलिखित ग्रंथ प्राप्य हैं तथा जो पहली शताब्दी (१०० ई.) के लिपिकों द्वारा लिखे माने जाते हैं, उनमें भी सूचकाक्षरों का प्रयोग मिलता है। इन ग्रंथों में कारकचिन्ह (प्रिपॉसिशन) तथा कुछ अन्य शब्दों के सूचकाक्षर निर्माण की एक नियमित विधि देखने को मिलती है। ब्रिटिश म्यूजियम (लंदन) में "इलियड" की छठी शताब्दी की जो प्रतियाँ सुरक्षित हैं, उनमें भी सूचकाक्षरों का प्रयोग मिलता है। इन प्रतियों में जिन शब्दों के लिए सूचकाक्षरों का प्रयोग किया गया है, उनके प्रथम अक्षर के आगे अंग्रेजी के च् के समान चिह्न बना हुआ है जिससे यह पता चलता है कि ये शब्द संक्षिप्त रूप में लिखे गए हैं। बाइबिल में भी संतों के नामों के लिए प्राय: सूचकाक्षरों का प्रयोग किया गया है। लैटिन भाषा में सूचकाक्षर के रूप में बड़े शब्दों के प्रथम अक्षर लिखने की प्रथा बहुतायत से मिलती है। इस विधि से प्राय: संज्ञा (व्यक्तिवाचक शब्द), नाम, पदवी, उपाधि, तथा उच्च प्रतिष्ठित लेखकों (क्लासिक राइटर्स) की कृतियों आने वाले सामान्य शब्दों को भी संक्षिप्त किया गया है। इस प्रथा के अनुसार मूल शब्द (या नाम) का प्रथम अक्षर लिखने के बाद उसके आगे एक बिंदु रखकर सूचकाक्षर का बोध कराया जाता था। लेकिन इस विथि का प्रयोग केवल एक निश्चित सीमा तक ही किया जा सकता है क्योंकि एक ही अक्षर से प्रारंभ होने वाले अनेक शब्द होते हैं। सूचकाक्षर ऐसा होना चाहिए कि उससे किसी निश्चित प्रसंग में किसी निश्चित शब्द के अतिरिक्त अन्य किसी शब्द का भ्रम न हो। शायद इस कारण लैटिन भाषा में सूचकाक्षरों के लिए मूल शब्द के प्रथम अक्षर के साथ-साथ उसके आगे कुछ विशेष संकेतचिह्न का प्रयोग भी मिलता है। मुद्रण कला का आविष्कार होने के पूर्व लेखन कार्य में सूचकाक्षरों का प्रयोग अधिक होने लगा था। यहाँ तक कि कभी-कभी एक ही वाक्य में ४-५ सूचकाक्षरों का प्रयोग भी एक ही साथ होता था जिससे अक्सर बड़ा भ्रम हो जाता था। आधुनिक युग में सूचकाक्षरों के प्रयोग में जिस गति से वृद्धि हुई है उसे देखते हुए यह युग अन्य बातों के साथ ही साथ सूचकाक्षरों का युग भी कहा जा सकता है। सूचकाक्षरों की संख्या इतनी अधिक हो गई है कि अंग्रेजी भाषा में इनके कई छोटे बड़े संग्रह तक प्रकाशित हो चुके हैं। जैसा पहले बतलाया जा चुका है, अधिकांश सूचकाक्षर किसी खास उद्देश्य या क्षेत्र के लिए ही निर्मित किए जाते हैं। जब यह खास उद्देश्य पूरा हो चुकता है या उस क्षेत्र का कार्य समाप्त हो जाता है तो वे सूचकाक्षर भी क्रमश: लुप्त होते जाते हैं। अंतत: एक समय ऐसा भी आता है जब उनका अस्तित्व भी नहीं रह जाता। गत महायुद्ध काल में यूरोप तथा अमरीका के अनेक सरकारी विभागों तथा सैनिक कार्यों के लिए विविध सूचकाक्षरों का प्रयोग किया जाने लगा था। युद्धकाल के बाद जब ये सरकारी कार्यालय और विभाग अनावश्यक हो जाने के कारण बंद कर दिए गए या उन विभागों का कार्य समाप्त हो गया तो उनके लिए प्रयुक्त किए जाने वाले सूचकाक्षरों की भी कोई उपयोगिता नहीं रह गई। फलत: उस समय के अधिकांश सूचकाक्षर आज अज्ञात हो गए हैं। अंग्रेजी भाषा में सूचकाक्षरों का प्रयोग १४वीं सदी से ही होने लगा था। १४वीं सदी में प्रचलित प्रसिद्ध सूचकाक्षर के उदाहरण के रूप में हम "कैम" (कजम) शब्द को ले सकते हैं जो कार्मेलाइट्स (कारमेलिट्स), आगस्टिनियन्स (ऑगस्टिन्न्स), जेकोबियन्स (जैकॉबिन्स) और माइनारिटीज़ (मिनोरिटीज) के लिए प्रयोग किया जाता था, तथा जो इन्हीं शब्दों के प्रथम अक्षरों को मिलाकर बना है। १७वीं सदी में इंग्लैंड के इतिहास में "केबाल" (केबल) नामक पार्लियामेंट प्रसिद्ध है। यह नाम उस समय की सरकार के पाँच मंत्रियों क्लिफोर्ड (क्लिफोर्ड), आर्लिंगटन (आर्लिंग्टन), बर्किंघम (बकिंघम), ऐशली (अश्ले) और लाडरडेल (लाउडेरदले) के प्रथम अक्षरों को मिलाकर बनाया गया था। १९३० के बाद अमरीका में इस प्रकार के नाम (सूचकाक्षर) बनाने की प्रथा तेजी से फैली। इसका परिणाम यह हुआ कि ज्ञान-विज्ञान के प्राय: सभी आधुनिक विषयों में तो सूचकाक्षर प्रचलित हो ही गए, अमरीकी सरकार के प्राय: प्रत्येक कार्यालय, विभाग, उपविभाग तक के लिए सूचकाक्षरों का प्रयोग किया जाने लगा। और तो और, अब तक यह प्रथा इतनी अधिक फैल चुकी है कि अमरीका की प्राय: प्रत्येक छोटी बड़ी कंपनी, विश्वविद्यालय, कालेज, संस्था, प्रतिष्ठान आदि पूरे नाम की अपेक्षा सूचकाक्षर के नाम से ही अधिक अच्छी तरह ज्ञात हैं। इस संबंध में यह भी एक मनोरंजक तथ्य ही कहा जाना चाहिए कि जिस देश को आधुनिक युग में सूचकाक्षरों की वृद्धि करने का अधिकांश श्रेय है, उसका नाम भी अंग्रेजी में पूरा न लिखा जाकर सूचकाक्षर (उ.स.आ.) के रूप में ही लिखा जाता है। इसी प्रकार उसकी राजधानी न्यूयार्क के लिए भी प्राय: नी लिखा जाता है। अमरीका में लोग 'कालेज ऑव दी सिटी ऑव न्यूयार्क' को सी.सी.एन.वाई. (च.च.न.य.) कहना अधिक सुविधाजनक समझते हैं। भारत में भी अब शिक्षित समुदाय में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय पूरे नाम की अपेक्षा बी.एच.यू. (ब.ह.उ.) के नाम से अधिक अच्छी तरह जाना जाता है। अमरीका और यूरोप के देशों में तो अब यह एक प्रथा सी बन गई है कि किसी भी कंपनी, संस्था, एजेंसी आदि प्रतिष्ठान या प्रकाशन आदि का नामकरण करते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि उसके नाम में प्रयुक्त शब्दों के अक्षरों से कोई सरल, सुविधाजनक सूचकाक्षर बनाया जा सके। "एस्कप" (आस्कप = अमरीकन सोसायटी ऑव कंपोजर्स, आथर्स एंड पब्लिशर्स / अमेरिकन सोसायटी ऑफ कंपोजर्स, आथोर्स एंड पबलिशर्स), "लूलोप" (लुलोप = लंदन यूनियन लिस्ट ऑव पीरियोडिकल्स / लंदन यूनियन लिस्ट ऑफ पीरियडिकल्स) आदि इसी प्रकार से सूचकाक्षरों के उदाहरण हैं। अलग-अलग विषयों के सूचकाक्षर भी अलग-अलग प्रकार के हैं। पाश्चात्य संगीत को जब लिपिबद्ध करना होता है तो उसके लिए कुछ विशिष्ट सूचकाक्षरों का प्रयोग किया जाता है। चिकित्साजगत् में प्रचलित "टी.बी." शब्द से तो अब सामान्य जनपरिचित हैं। यह वास्तव में सूचकाक्षर ही है। गणित शास्त्र में कुछ प्रतीक सूचकाक्षरों का कार्य करते हैं। -, +, , =, \, आदि प्रतीकों का परिचय पाठकों को देना आवश्यक नहीं जान पड़ता। ये भी एक प्रकार के सूचकाक्षर ही हैं। खगोल विज्ञान, ज्योतिष विज्ञान, गणितशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, रसायनशास्त्र और संगीतशास्त्र आदि विषयों का कार्य तो बिना सूचकाक्षरों के चल ही नहीं सकता। रसायनशास्त्र में विविध रासायनिक तत्वों के नाम के लिए सूचकाक्षरों का प्रयोग होता है। ये सूचकाक्षर प्राय: मूल अंग्रेजी शब्दों के प्रथम अक्षर ही होते हैं। जब दो तत्वों का नाम एक ही अक्षर से प्रारंभ होता है तो उनके सूचकाक्षरों में प्रथम दो अक्षरों का प्रयोग किया जाता है। कुछ तत्वों के लिए, विशेषकर जो तत्व अति प्राचीन काल से ज्ञात हैं, लैटिन नामों के प्रथम अक्षरों का भी प्रयोग होता है। उदाहरणत: लोहा का सूचकाक्षर फ़ें है जो वस्तुत: लैटिन के 'फेर्रम ' शब्द से बना है। ऐसा प्रयोग किस प्रकार होता है, इस संबंध में विस्तृत जानकारी के लिए किसी अंग्रेजी विश्वकोष में "केमिस्ट्री" शब्द के अंतर्गत अधिक सूचना मिल सकती है। वर्तमान काल में सूचकाक्षरों की जो वृद्धि हुई है, उसका बहुत कुछ श्रेय समाचारपत्रों को भी दिया जा सकता है। समाचारपत्रों का एक मुख्य सिद्धांत यह होता है कि कम से कम स्थान में अधिक से अधिक समाचार सारगर्भित रूप में दिए जाएँ। सूचकाक्षरों की सहायता से ही समाचार इस उद्देश्य में सफल हो पाते हैं। वर्तमान में बहुत सी राजनीतिक पार्टियों एवं संस्थाओं के नामों के लिए जो अनधिकारिक नाम प्रचलित हो गए हैं, वे वस्तुत: समाचारपत्रों की ही देन है। नाटो, सीटो और प्रसोपा जैसे नामों की कल्पना भी कभी इनके संस्थापकों ने न की होगी, पर समाचारपत्रों ने अपनी सुविधा के लिए "नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन" (उत्तर अतलांतक संधि संघटन) के लिए "नाटो" और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के लिए "प्रसोपा", भारतीय जनता पार्टी के लिये 'भाजपा' जैसे सरल और सहजग्राह्य सूचकाक्षरों का प्रयोग करना शुरू कर लिया। समाचारपत्र राजनीतिक नेताओं के नामों के भी सूचकाक्षर बना लेते हैं। रूस के प्रधानमंत्री श्री निकिता एस क्रुश्चेव के लिए केवल "के" (क) और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री श्री हेरोल्ड मैकमिलन के लिए केवल "मैक" (मैक) लिखकर ही काम चला लिया जाता था। अमरीका के राष्ट्रपति श्री आइसनहावर के लिए हिंदी के पत्र भी केवल आइक शब्द का प्रयोग करने लगे थे। आधुनिक युग में सूचकाक्षरों की जो अप्रत्याशित वृद्धि हुई है उसे देखते हुए हम उन्हें साधारण भाषा के अंतर्गत प्रयोग की जाने वाली प्राविधिक भाषा (टेक्निकल लैंग्वेज) कह सकते हैं। गणित शास्त्र तथा रसायनशास्त्र के विषय में, जिनमें प्रयुक्त किए जाने वाले सूचकाक्षर सभी देशों में समान रूप से ज्ञात हैं, यह बात विशेष रूप से कही जा सकती है। इन विषयों के सूचकाक्षर राष्ट्रीयता, धर्म, वर्ण आदि का बंधन तोड़कर हर जगह समान रूप से प्रयुक्त होते हैं। शैक्षणिक जगत् में डिग्री और पाठ्यक्रम प्राय: सूचकाक्षरों से ही जाने जाते हैं। बी.ए., एम. ए., पी-एच.डी. आदि शब्द अब इतने अधिक प्रचलित हो चुके हैं कि इनके मूल शब्द "बैचलर ऑव आर्ट्स", "मास्टर ऑव आर्ट्स", तथा "डाक्टर ऑव फिलासफी" आदि का प्रयोग प्रमाणपत्रों के अतिरिक्त शायद ही कहीं और होता हो। उद्योग, व्यवसाय आदि के क्षेत्र में भी सूचकाक्षरों की एक लंबी सूची प्रयोग में आती है। आधुनिक जीवन में सूचकाक्षरों ने इतना अधिक स्थान बना लिया है कि उनके अर्थ को जानना अब दैनिक जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक समझा जाने लगा है। सूचकाक्षर बनाने के नियम सूचकाक्षर बनाने के कोई निश्चित नियम नहीं हैं। किसी एक शब्द या नाम के लिए इतने अधिक सूचकाक्षर बनाए जा सकते हैं कि कभी-कभी एक ही शब्द के लिए कई सूचकाक्षर प्रचलित हो जाते हैं। जो हो, वर्तमान में विविध प्रकार के जो सूचकाक्षर प्रचलित हो गए हैं, उनका अध्ययन करने पर हमें सूचकाक्षर बनाने के कुछ नियमों का पता चलता है, जो इस प्रकार है- (१) सूचकाक्षरों का सरलतम रूप वह है जिसमें किसी नाम में प्रयुक्त किए जाने वाले शब्दों के केवल प्रथमाक्षरों का ही प्रयोग होता है, यथा-यू॰एस॰ए॰ (यूनाइटेड स्टेट्स ऑव अमरीका), उ. प्र. (उत्तर प्रदेश), अ.भा.कां.क. (अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी), आई.ए.एस. (इंडियन ऐडमिनिस्ट्रेशन सर्विस), प्रे.ट्र. (प्रेस ट्रस्ट), ए.पी.आई. (एसोशियेटेड प्रेस ऑव इंडिया), एच.आर.एच. (हिज या हर रायल हाइनेस) आदि। (३) मूल शब्द में प्रयुक्त कुछ अक्षरों को इस क्रम से लिखना कि वे सहज ही मूल शब्द का बोध करा दें। यथा लैड. (लिमिटेड) बलग. (बिल्डिंग) आदि। (४) मूल शब्द का इतना प्राथमिक अंश लिखना कि उससे पूरे शब्द का बोध सहज ही हो जाए। यथा अंग्रेजी में प्रो. (प्रोफेसर), वॉश. (वॉशिंगटन), तथा हिंदी में कं. (कंपनी), लि. (लिमिटेड), डॉ॰ (डॉक्टर), पं॰ (पंडित) आदि। (७) विविध-इस श्रेणी में हम ऐसे सूचकाक्षरों को रख सकते हैं जो यद्यपि किसी मूल शब्द के अंश हैं, तथापि जो अब स्वयं स्वतंत्र शब्द के रूप में प्रचलित हो चुके हैं। यथा - फ्लू (इन्फ्लुएंजा), फोटो (फोटोग्राफ), आटो (आटोमोबाइल), आदि। कुछ प्रसिद्ध व्यक्तियों के नामों के भी अब सूचकाक्षर प्रचलित हो गए हैं। अंग्रेजी साहित्य में जार्ज बर्नार्ड शा के लिए जी.बी.एस. और राबर्ट लुई स्टीवेन्सन के लिए आर.एल.एस. का प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार राजनीति में भूतपूर्व अमरीकी राष्ट्रपति श्री फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट के लिए एफ.डी.आर. और भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री आइसनहाइवर के लिए प्रयोग किए जाने वाले "आइक" सूचकाक्षर से जनसाधारण अच्छी तरह परिचित है। अंग्रेजी में फ्रेडरिक को फ्रेड, विलियन को बिल, पैट्रिशिया को पैट, हिंदी में विश्वनाथ को बिस्सु, परमेश्वरी को परमू, चमेली को चंपी आदि कहना भी वास्तव में सूचकाक्षर का ही प्रयोग करना है, तथापि नामों को इस संक्षिप्त रूप में केवल स्नेह या प्यार के कारण ही कहा जाता है। कभी-कभी यह भी देखा गया है कि एक ही सूचकाक्षर कई शब्दों (नामों) के लिए प्रयुक्त होता है। अत: प्रसंगानुकूल ही उसका अर्थ लगाना चाहिए, अन्यथा कभी-कभी अर्थ का अनर्थ हो सकता है। अंग्रेजी के एक प्रसिद्ध सूचकाक्षर पी.सी. का अर्थ पुलिस कांस्टेबल, प्रिवी कौंसिल, पीस कमीशन, पोस्टकार्ड, पोर्टलैंड सीमेंट, पनामा केनाल, प्राइस करेंट, आदि हो सकता है। समाचारपत्रों के प्रसंग में ए.बी.सी. का अर्थ आडिट ब्यूरो सर्कुलेशन होता है, पर जब किसी राजनीतिक प्रसंग में ए.बी.सी. कहा जाता है तो इसका अर्थ अर्जेंटाइना, ब्राजील और चिली होता है। किसी हिंदी शब्दकोश में सामान्यत: सं. का अर्थ संज्ञा होता है पर किसी समाचारपत्र डायरेक्टरी में इसका अर्थ संपादक होगा।
थापल्यूं लगा डांग-कई, पौडी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा डांग-कई, थापल्यूं लगा, पौडी तहसील डांग-कई, थापल्यूं लगा, पौडी तहसील
दाभा कोइल, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। अलीगढ़ जिला के गाँव
अखौरी सिन्हा मिन्नेसोता विश्वविद्यालय (यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा) के अनुवांशिकी, कोशिका जीवविज्ञान तथा विकास विभाग में कार्यरत एक प्रोफेसर हैं। उन्होंने पशु-पक्षियों पर काफी शोधकार्य किया है। अंटार्कटिका की एक पर्वत चोटी का नाम इनके नाम पर रखा गया है। सिन्हा जी बिहार के बक्सर के मूल निवासी हैं। उनके पूर्वज १७३९ में नादिरशाह के दिल्ली पर आक्रमण के समय बक्सर (बिहार) चले गए थे। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.एस.सी. (१९५४) और पटना विश्वविद्यालय से एम.एस.सी. (१९५६) की है। आज भी सर्दी से बचने के लिए फरवरी में अपने गाँव चूडामनपुर आते हैं। बिहार के लोग
किम जोंग यांग (कोरियाई: ; हंजा: ; जन्म: ३० अक्टूबर १९६१) एक दक्षिण कोरियाई पुलिस अधिकारी और इंटरपोल के अध्यक्ष हैं। १९६१ में जन्मे लोग
किसी व्यक्ति के मामा का पुत्र अथवा पुत्री उस वयक्ति के क्रमश: ममेरा भाई और ममेरी बहन होते हैं। ममेरा शब्द की उत्पत्ति मामा से हुई है जो कि माता के भाई को कहा जाता है।
एशियाई सिंह (वैज्ञानिक नाम : पंथेरा लियो फार्सिका), शेर की एक प्रजाति है जो केवल भारत के गुजरात राज्य में पायी जाती है। इसलिये इसे 'भारतीय शेर' भी कहते हैं। शेर की एक प्रजाति है। एशियाई सिंहों की संख्या बहुत कम बची है और यह लुप्तप्राय प्रजाति की श्रेणी में रखी गयी है। जंगल के राजा को मदद की दरकार भारत के फ़ेलिडाए
भटकुन्डा-सावली-५, थलीसैंण तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा भटकुन्डा-सावली-५, थलीसैंण तहसील भटकुन्डा-सावली-५, थलीसैंण तहसील
सीताकान्त महापात्र (जन्म : १७ सितम्बर १९३७) उड़िया साहित्यकार हैं। इन्हें १९९३ में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें सन २००३ में भारत सरकार द्वारा साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। सीताकान्त की कविता का काव्य संसार यथार्थ और अनुभूति के सोलेन सम्मिश्रम से निर्मित हुआ है। उनकी कविताओं का सांस्कृतिक धरातल उनके अनुभव की उपज है। अतीत के जिस झरोखे से वे गांव की पगडंडी, तालाब, नदी, घर मन्दिर, सूर्योदय, ढलती शाम व मानवीय संबंधों इत्यादि का अवलोकन करते हुए सहजता से अपनी कविता में अभिव्यक्ति करते हैं, वह अनायास ही पाठकों को अपने में बांध लेती हैं। २००३ पद्म भूषण भारतीय सिविल सेवक साहित्य अकादमी फ़ैलोशिप से सम्मानित साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत ओड़िया भाषा के साहित्यकार साहित्य और शिक्षा में पद्म विभूषण के प्राप्तकर्ता
नीदरलैंड युरोप महाद्वीप का एक प्रमुख देश है। यह उत्तरी-पूर्वी यूरोप में स्थित है। इसकी उत्तरी तथा पश्चिमी सीमा पर उत्तरी समुद्र स्थित है, दक्षिण में बेल्जियम एवं पूर्व में जर्मनी है। नीदरलैंड की राजधानी एम्सटर्डम है। "द हेग" को प्रशासनिक राजधानी का दर्जा दिया जाता है। नीदरलैंड को अक्सर हॉलैंड के नाम संबोधित किया जाता है एवं सामान्यतः नीदरलैंड के निवासियों तथा इसकी भाषा दोनों के लिए डच शब्द का उपयोग किया जाता है। नीदरलैंड्स यूरोप के उत्तर-पश्चिम में समुद्र के किनारे स्थित देश है। इसे हॉलैंड भी कहते हैं, किंतु इसका राष्ट्रीय नाम 'नीदरलैंड्स' है। इसका अधिकांश क्षेत्र समुद्रतल से भी नीचे हैं, जिसके कारण इसका नामकरण हुआ है। इसके पूर्व में पश्चिमी, जर्मनी, दक्षिण में बेल्जियम, पश्चिम और उत्तर में उत्तरी सागर हैं। इसका क्षेत्रफल ३३,५९१ वर्ग किलोमीटर है। इस देश की सर्वाधिक लंबाई ३०४ किलोमीटर (उत्तर-दक्षिण) तथा अधिकतम चौड़ाई २५६ किलोमीटर (दक्षिणपश्चिम से उत्तर-पूर्व) है। नीदरलैंड पहली संसदीय लोकतंत्र देशों में से एक है। यह यूरोपीय संघ (ई.यू.), नार्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (ना.टो.), आर्थिक एवं विकास संगठन (ओ.इ.सी.डी.) एवं विश्व व्यापार संगठन (डब्लू.टी.ओ.) का संस्थापक सदस्य है। बेल्जियम तथा लक्समबर्ग के साथ यह "बेनेलक्स" आर्थिक संघ का रूप लेता है। यह पांच अंतराष्ट्रीय अदालतों का मेज़बान है : स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (पी.सी.ए), अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, पूर्वी युगोस्लावाकिया के लिए अंतराष्ट्रीय अपराधिक ट्रिब्यूनल (आई.टी.सी.वाई), अंतर्राष्ट्रीय अपराधिक न्यायालय (आई.सी.सी) एवं ट्रिब्यूनल फॉर लेबनान। इनमे से प्रथम चार न्यायलय, यूरोपियन संघ की खुफिया एगेंसी (यूरोपोल) तथा न्यायिक सहयोगी एगेंसी (युरोजस्ट) नीदरलैंड के द हेग शहर में स्थित हैं। यही कारण है कि "द हेग" को विश्व की 'न्यायिक राजधानी' कहा जाता है। १५७ देशों की आर्थिक सवतंत्रता की सूची में नीदरलैंड का स्थान १५ है। नीदरलैंड भौगोलिक सन्दर्भ में एक निचला देश है। इसका लगभग २०% क्षेत्र समुद्री तल से नीचे है। लगभग २१% आबादी समुद्री तल से नीचे रहती है एवं लगभग ५०% आबादी समुद्री तल से बस एक मीटर की ऊँचाई पर है। इस देश के क्षेत्रफल में तटीय कटाव के कारण कमी तथा प्रवाह प्रणाली के घुमाव और बाँध द्वारा इसमें वृद्धि होती रहती है। यूरोपीय महाद्वीप के अन्य किसी भी देश के इतने निवासी अपने देश के क्षेत्र निर्माण में नहीं लगे हैं जितने कि नीदरलैंड्स में। इस देश की स्थलीय आकृतियाँ तथा समुद्री सीमाएँ मुख्यतया मास, राइन और स्खेल्डै नदियों के डेल्टा से प्रभावित होती हैं। डेल्टा का निर्माण प्रत्यक्ष रूप से इन नदियों के ज्वारीय क्षेत्र में गिरने से होता है। इससे ऊँचा उठा हुआ भाग समाप्त हो जाता है और पतले तथा लंबे गड्ढों का निर्माण होता है, जो नदियों की वेगवती धाराओं द्वारा लाए गए अवसादों से भर जाते हैं। इस तरह डेल्टा क्षेत्र का विस्तार हुआ है। इस देश की सर्वाधिक ऊँचाई सुदूर दक्षिण पूर्व कोने में नीदरलैंड्स जर्मनी तथा बेल्जियम के मिलनबिंदु पर (३२२ मीटर) है। यहाँ बहुत ही कम क्षेत्र की ऊँचाई समुद्रतल से ४६ मीटर अधिक है। ३५ प्रतिशत से भी अधिक भूमिभाग तो ऐम्सटरडैम के स्तर से भी एक मीटर कम ऊँचा है। इस देश की जलवायु लगभग सभी जगह एक समान है। जनवरी सबसे ठंडा महीना है। यूट्रेख्ट (उतरेचट) नगर का औसत वार्षिक ताप १.२ डिग्री है। इसके पूर्व का अधिकांश हिम से ढका रहता है। नीदरलैंड्स में दक्षिण-पश्चिमी हवाएँ वर्ष के नौ महीने चलती हैं, इनसे जाड़े का ताप थोड़ा सा बढ़ जाता है, लेकिन अप्रैल से जून तक पश्चिमी हवाएँ चलती हैं, जो ग्रीष्म ऋतु को थोड़ा सा नम कर देती हैं। वायु की दिशा के कारण देश का पश्चिमी भाग पूर्वी भाग की अपेक्षा नम है। देश के मध्य की औसत वार्षिक वर्षा २७ इंच है। वर्षा के दिनों की संख्या २०० से कुछ अधिक है लेकिन इस काल में सापेक्षिक आर्द्रता बहुत अधिक (८० प्रतिशत) रहती है। इससे धुंध तथा समुद्री तुषार प्राय: पड़ते हैं, जिनका हानिकारक प्रभाव फ्राइसलैंड और ज़ीलैंड पर पड़ता है तथा यहाँ फेफड़े संबंधी बीमारियाँ अधिक होती हैं। इस घने बसे देश में जंगल अल्प मात्रा में हैं। यहाँ की वनस्पति को चार भागों में बाँटा जा सकता है : १. झाड़ीवाली वनस्पति, ३. बालू के टीले की वनस्पति और ४. तटीय वनस्पति। झाड़ियाँ देश की पूर्वी बालुका प्रदेश में पाई जाती हैं। बालू के टीलों पर वनस्पतियाँ अपनी ही जाति की दूसरी जगह की वनस्पतियों से छोटी तथा पतली होती हैं। यहाँ का मुख्य पौधा डच ऐल्म (डच एल्म) या चिकना नरकट है, जो बालुकाकणों का आपस में बाँधे रखने के लिए प्रति वर्ष उगाया जाता है। इससे चटाइयाँ बनाई जाती हैं। इसके अतिरिक्त बलूत, देवदार, चीड़, लिंडन, सफेदा आदि वनस्पतियाँ एवं फूलों में डच ट्यूलिप अत्यंत प्रसिद्ध हैं। समुद्र तट पर कुछ पौधों का उपयोग कीचड़वाले भाग को सुखाने तथा निक्षेप को बढ़ाने के लिए किया जाता है। जंगलों की कमी के कारण जंगली जानवर कम पाए जाते हैं। पूर्वी शुष्क जंगली क्षेत्र में हरिण तथा लोमड़ी पर्याप्त संख्या में पाई जाती है। ऊदविलाव तथा रीछ भी कहीं कहीं मिलते हैं। एरेमिन नेवला तथा ध्रुवीय तथा बिल्लियाँ (पोल कैट्स) प्राय: सभी जगह पाई जाती हैं। यहाँ विभिन्न प्रकार की चिड़ियाँ भी मिलती हैं। जंगली मुर्गा, वाज, नीलकंठ, मैगपाई, कौवा, उल्लू, कबूतर, लावा, चील तथा बुलबुल यहाँ के मुख्य पक्षी हैं। पालतू जानवरों में गाय, बैल, सुअर, घोड़े, भेड़ें, मुर्गियाँ आदि मुख्य हैं। नीदरलैंड एक समृद्ध और खुली अर्थव्यवस्था वाला देश है एवं १९८० के दशक के पश्चात् सरकार की भूमिका अर्थव्यवस्थायी निर्णयों में कम हो गयी है। यहाँ की प्रमुख औद्योगिक गतिविधियाँ हैं : भोजन प्रसंस्करण (युनीलीवर, हेनेकेन), वित्तीय सेवा (आई.एन.जी.), रासायनिक (डी.एस.एम.), पेट्रोलियम (शेल) एवं विद्युत् मशीनरी (फिलिप्स और ए.एस.एम.एल.)। प्राकृतिक साधनों की कम के कारण नीदरलैंड बाहर से कच्चा माल मँगाकर उनसे विभिन्न प्रकार के समान तैयार करता है, और उनका निर्यात करता है। टेक्सटाइल, धातुकार्मिक (मेटाल्लुर्जिकल), काष्ठकला, तैल शोधन, आदि यहाँ के मुख्य उद्योग हैं। कृषिगत उत्पादन के एक तिहाई भाग का निर्यात होता है। सारी अर्थव्यवस्था प्राय: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर आधारित है। इसीलिए अन्य देशों की आर्थिक अवस्थाएँ नीदरलैंड को न्यूनाधिक प्रभावित करती हैं। यहीं की मुख्य फसलें गेहूँ, राई, जई, आलू, चुकंदर, जौ इत्यादि हैं। निर्यात के लिए डेफोडिल्स तथा ट्यूलिप (एक प्रकार के सुंदर फूल) अधिक उगाए जाते हैं। विद्युत्, गैस एवं खनिज कोयला, पेट्रोल तथा नमक यहाँ के मुख्य खनिज हैं। कोयले की खानें लिंबर्ग प्रदेश में है। यहाँ विद्युच्छक्ति काफी पैदा की जाती है। यहाँ के उद्योगों में धातु, वस्त्र और भोज्य सामग्री का निर्माण, खनन, रसायन और सिलाई उद्योग मुख्य हैं। इनके अतिरिक्त शीशा, चूना मिट्टी एवं पत्थर की वस्तुएँ बनाने, हीरा जैसे कीमती पत्थरों को काटने तथा पालिश करने, कार्क तथा लकड़ी की विभिन्न वस्तुएँ बनाने, चमड़े और रबर की वस्तुएँ तैयार करने तथा कागज बनाने की उद्योग होते हैं। व्यापार की वृद्धि के लिए नीदरलैंड्स, बेल्जियम और लक्सेमबर्ग ने बैनीलक्स संघ की स्थापना की है जिसके अनुसार एक दूसरे देश के आयात-निर्यात व्यापार पर कर नहीं देना पड़ता। नीदरलैंड्स से व्यापार करनेवाले देश मुख्यत: इंग्लैंड, संयुक्त राज्य अमरीका, पश्चिम जर्मनी, बेल्जियम, लक्सेमबर्ग, फ्रांस तथा स्वीडन हैं। व्यापार में ऐग्सटग्डैम प्रमुख तथा रोटरडैम एवं हेग द्वितीय स्थान रखते हैं। यहाँ यातायात का बहुत विस्तार हुआ है। नौगम्य नदियों एवं नहरों की कुल लंबाई ६,७६८ किलोमीटर है जिसमें से १,७१० किलोमीटर तक १०० या इससे अधिक मीट्रिक टन की क्षमतावाले जहाज जा सकते हैं। रेल मार्गों में भी काफी उन्नति हुई है। संपूर्ण रेलों की व्यवस्था 'दि नीदरलैंड्स रेलवेज' (एन. वी.) नामक एक संयुक्त कंपनी द्वारा होती है। रोटरडैम, ऐम्सटरडैम, हेग प्रसिद्ध हवाई अड्डे हैं। जनसंख्या एवं नगर एक लाख से अधिक जनसंख्यावाले नगर ऐम्सटरडैम, आर्नहेम, ब्रेडा, आईयोवेन, एन्सखेडे, ग्रोनिंगेन, हारलेम, हिलवरसम, निजमैगन, रोटरडैम, टिलवर्ग यूट्रेख्ट, दि हेग हैं। यहाँ धर्म संबंधी पूरी स्वतंत्रता है। शाही परिवार डच रिफॉर्म्ड चर्च से संबंध रखता है। इसके अतिरिक्त प्रोटेस्टैंट, ओल्ड कैथोलिक, रोमन कैथोलिक तथा यहूदी अन्य मुख्य धर्म हैं। जाति, भाषा और धर्म नीदरलैंड के मूल निवासी डच हैं। फ्रांकिश (फ्र्न्कीश), सेक्सन (सक्सोन) और फ्रीज़न (फ्रिसियन) जैसे अलग अलग वंशों के होते हुए भी वे परस्पर भिन्न नहीं दिखाई देते। हाल में इंडोनेशिया से आए लोग, जो प्राय: यूरेशियन हैं, अवश्य सबसे भिन्न मालूम पड़ते हैं। कुछ रक्त मिश्रण के कारण भी पहले जैसे एकरूपता अब डचों में नहीं रह गई है। डच भाषा यहाँ की प्रधान और राजकाज की भाषा है। फ्रीसलैंड (फ्रीलैंड) में फ्रीजन का प्रचलन है। यह एंगलो-सैक्सन भाषा के निकट पड़ती है, किंतु अनेक रूपों में यह डच से भी मिलती जुलती है। नीदरलैंड के निवासी फ्रांसीसी, अंग्रेजी और जर्मन भी जानते हैं। ये भाषाएँ वहाँ के स्कूलों में पढ़ाई जाती हैं। ४३ प्रतिशत निवासी प्रोटेस्टेंट और ३८ प्रतिशत रोमन कैथोलिक धर्मावलंबी हैं। १७ प्रतिशत असांप्रदायिक हैं और शेष २ प्रतिशत विभिन्न मतों के अनुयायी हैं। प्रोटेस्टेंटों में अधिकतर लोग कैल्विनिस्ट चर्च को मानते हैं। लूथरवादियों की संख्या १ प्रतिशत से अधिक कभी नहीं रही। यूरोप के देश डच-भाषी देश व क्षेत्र
गोरारी में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद जिले का एक गाँव है। बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ बिहार के गाँव
मकाउ विशेष प्रशासनिक क्षेत्र चीन का एक विशेष प्रशासनिक क्षेत्र है और यह चीन के दो विशेष प्रशासनिक क्षेत्र में से एक है, हांगकांग दूसरा क्षेत्र है। मकाउ पर्ल नदी डेल्टा की पश्चिमी ओर स्थित है, इसकी सीमायें गुआंग्डोंग प्रांत से उत्तर में मिलती हैं और दक्षिण और पूर्व में दक्षिण चीन सागर है। मकाओ के प्रमुख उद्योगों में वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण और खिलौने और पर्यटन शामिल है, यह सब मिलकर इसे विश्व के सबसे धनी शहरों मे से एक बनाते हैं। यहां व्यापक श्रेणी के होटल, रिसॉर्ट, स्टेडियम, रेस्तरां और जुआघर हैं। विशेष प्रशासनिक क्षेत्र के रूप में, मकाओ की खुद की कानून व्यवस्था, टेलीफोन कोड, पुलिस बल होने के साथ अपनी मुद्रा भी है। मकाओ चीन का पहला और अंतिम यूरोपीय उपनिवेश है। पुर्तगाली व्यापारियों सबसे पहले यहां १६ वीं शताब्दी में आकर बसे और तब से लेकर २० दिसम्बर १९९९ तक जब इसे चीन को हस्तांतरित किया गया मकाउ का प्रशासन पुर्तगालियों के अधीन रहा। एक चीनी- पुर्तगाली संयुक्त घोषणा के अनुसार हस्तांतरण के पचास साल बाद तक यानि कम से कम २०49 तक मकाउ को एक उच्च स्तर की स्वायत्तता प्राप्त रहेगी। एक देश दो प्रणाली व्यवस्था के अन्तर्गत मकाओ की रक्षा और विदेश संबंधों का उत्तरदायित्व चीन का होगा जबकि, मकाओ अपना विधि तंत्र, पुलिस बल, आर्थिक तंत्र, सीमाशुल्क नीति, आप्रवासन नीति पर नियंत्रण करने के साथ विभिन्न अन्तरराष्ट्रीय संगठनो और घटनाओं मे अपना प्रतिनिधि स्वतंत्र रूप से भेजेगा।
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव , तहसील ठाकुरद्वारा, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है। सम्बंधित जनगणना कोड: राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७१७ गाँव कोड: ११४७१९ इन्हें भी देखें उत्तर प्रदेश की तहसीलों का नक्शा ठाकुरद्वारा तहसील के गाँव
माधवराव सिंधिया का जन्म १० मार्च १९४५ को मुंबई में हुआ था। वे भारतीय राजनीतिज्ञ थे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में मंत्री थे। १९६१ में अपने पिता जीवाजी राव की मृत्यु के बाद ग्वालियर के अंतिम नाममात्र के महाराज बने। १९७१ में भारत के संविधान में २६ वें संशोधन के बाद भारत सरकार ने रियासतों के सभी आधिकारिक प्रतीकों को समाप्त कर दिया, जिसमें शीर्षक, विशेषाधिकार और पारिश्रमिक शामिल थे। उनका विवाह ८ मई १९६६ को माधवी राजे सिंधिया (किरण राज्य लक्ष्मी देवी) से हुआ जो कि नेपाल के प्रधान मंत्री एवं, कास्की और लमजुंग के महाराजा, और गोरखा के सरदार रामकृष्ण कुंवर के पैतृक वंशज जुद्ध शमशेर जंग बहादुर राणा की पोती हैं। उनके एक पुत्र व एक पुत्री है। उनके पुत्र का नाम ज्योतिरादित्य सिंधिया है जिसका जन्म १ जनवरी, १97१ को मुंबई के समुद्रमहल में हुआ था और पुत्री का नाम चित्रांगदा सिंधिया (जन्म १967) है। माधवराव सिंधिया ने अपनी शिक्षा सिंधिया स्कूल से की थी। सिंधिया स्कूल का निर्माण इनके परिवार द्वारा ग्वालियर में कराया गया था। उसके बाद माधवराव सिंधिया ने ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से अपनी शिक्षा प्राप्त की। राजशाही का अंत होने के बाद माधव राव सिंधिया ने गुना से चुनाव लड़ा। उन्होंने १९७१ में पहली बार चुनाव जीता तब वे महज २६ साल के थे। जिसके बाद वे एक भी चुनाव नहीं हारे। वे लगातार नौ बार लोकसभा के सांसद रहे। १९८४ में उन्होंने भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी को ग्वालियर से चुनाव हराया।१९९६ में, उन्होंने अर्जुन सिंह और अन्य कांग्रेस असंतुष्टों के साथ केंद्र में संयुक्त मोर्चा सरकार का हिस्सा बनने का अवसर दिया। यद्यपि उनका मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस, संयुक्त मोर्चे का हिस्सा था, लेकिन सिंधिया ने खुद को मंत्रिमंडल से बाहर रहने का विकल्प चुना। वे १९९० से १९९३ तक भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष रहे। माधव राव सिंधिया और उनकी माता विजयाराजे सिंधिया के बीच संबंध बेहद खराब थे। विजयाराजे अपने बेटे से इतनी नाराज थीं कि १९८५ में अपने हाथ से लिखी वसीयत में उन्होंने माधवराव सिंधिया को अंतिम संस्कार में शामिल होने से भी इनकार कर दिया था। हालाँकि २००१ में उनके निधन के बाद उनके बेटे माधवराव सिंधिया ने ही उनकी चिता को मुखाग्नी दी थी। विजयाराजे सिंधिया ने कहा था कि इमरजेंसी के दौरान उनके बेटे के सामने पुलिस ने उन्हें लाठियों से मारा था। उनका आरोप था कि माधवराव सिंधिया ने ही उन्हें गिरफ्तार करवाया था। राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के साथ-साथ मां-बेटे के बीच निजी रिश्ते भी इतने खराब हो गए थे कि विजयाराजे ने ग्वालियर के जयविलास पैलेस में रहने के लिए माधवराव सिंधिया से सालाना एक रूपये किराया भी माँग लिया था। उनकी मृत्यु ३० सितंबर २००१ को, एक रैली को संबोधित करने के लिए दिल्ली से कानपुर जाते वक्त, मैनपुरी(यूपी) में एक हवाई जहाज दुर्घटना में हुई थी। भैंसरोली गाँव के ऊपर विमान में आग लग गई थी। उस वक्त बारिश हो रही थी लेकिन फिर भी आग जलती रही। खेत में गिरे विमान पर ग्रामीणों ने कीचड़ डाल कर आग बुझाई थी। यह एक निजी विमान (बीचक्राफ्ट किंग एयर च९०) था। इस विमान में ब्लैक बॉक्स नहीं था। इसमें सवार सभी आठ व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी थी। इसमें उनके निजी सचिव रूपिंदर सिंह, पत्रकार संजीव सिन्हा (द इंडियन एक्सप्रेस), अंजू शर्मा (द हिंदुस्तान टाइम्स), गोपाल बिष्ट, रंजन झा (आज तक), पायलट रे गौतम और सह-पायलट रितु मलिक शामिल थे। एक लॉकेट की मदद से उनकी शिनाख्त की गई थी। प्रोफेसर टी॰डी॰ डोगरा द्वारा एम्स नई दिल्ली में शव परीक्षण किए गए और अन्य कानूनी औपचारिकताओं को पूरा किया गया। भारत के रेल मंत्री १९४५ में जन्मे लोग २००१ में निधन ग्वालियर के लोग
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले का एक गांव है। सोनभद्र ज़िले के गाँव
मटेला, अल्मोडा तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा मटेला, अल्मोडा तहसील मटेला, अल्मोडा तहसील
एक गर्म हवा का गुब्बारा एक हल्का-से-हवा वाला विमान होता है जिसमें एक बैग होता है, जिसे एक लिफाफा कहा जाता है, जिसमें गर्म हवा होती है। नीचे लटका हुआ एक गोंडोला या विकर टोकरी होती है (कुछ लंबी दूरी या उच्च ऊंचाई वाले गुब्बारों में), जो यात्रियों और गर्मी के स्रोत को ले जाता है, ज्यादातर मामलों में तरल प्रोपेन को जलाने के कारण एक खुली लौ होती है। लिफाफे के अंदर की गर्म हवा इसे प्रफुल्लित करती है, क्योंकि इसका घनत्व लिफाफे के बाहर की ठंडी हवा की तुलना में कम होता है। जैसा कि सभी वायुयानों में होता है, गर्म हवा के गुब्बारे वायुमंडल से बाहर नहीं उड़ सकते है। लिफाफे को नीचे से सील करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि लिफाफे के अंदर की हवा आसपास की हवा के समान ही दबाव में है। आधुनिक खेल के गुब्बारों में लिफाफा आम तौर पर नायलॉन के कपड़े से बनाया जाता है, और गुब्बारे का प्रवेश (बर्नर की लौ के सबसे करीब) आग प्रतिरोधी सामग्री जैसे नोमेक्स से बना होता है। आधुनिक गुब्बारों को कई आकारों में बनाया गया है, जैसे रॉकेट जहाजों और विभिन्न वाणिज्यिक उत्पादों के आकार, हालांकि पारंपरिक आकार का उपयोग अधिकांश गैर-वाणिज्यिक और कई व्यावसायिक अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है।
रमापति शास्त्री एक भारतीय राजनीतिज्ञ तथा वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री है| वे भारतीय जनता पार्टी के राजनेता है|
तेरूर (तेरूर) भारत के तमिल नाडु राज्य के कन्याकुमारी ज़िले में स्थित एक गाँव है। इन्हें भी देखें तमिल नाडु के गाँव कन्याकुमारी ज़िले के गाँव
मेला २००० में जारी हुई हिन्दी भाषा की एक्शन मसाला फ़िल्म है। इसका निर्देशन धर्मेश दर्शन द्वारा किया गया और मुख्य भूमिकाओं में आमिर ख़ान उनके भाई फैसल ख़ान और ट्विंकल खन्ना हैं। एक युवा महिला, रूपा (ट्विंकल खन्ना) का एकमात्र सैनिक भाई (अयूब ख़ान), विवाह की व्यवस्था करने के लिए चंदनपुर गांव लौटता है। रूपा की शादी की खुशी में त्योहार की व्यवस्था की जाती है, हालांकि चंदनपुर की खुशी अल्पकालिक रही, क्योंकि गांव पर डाकुओं के एक समूह ने हमला किया। डाकुओं के नेता, गुज्जर (टीनू वर्मा) ने एक राजनेता की हत्या की और उसकी नजर रूपा की सुंदरता पर पड़ी है। हालांकि, जैसे ही गुज्जर भयभीत रूपा को ले जाने का प्रयास करता है, उसका भाई उसके बचाव के लिए आता है। लेकिन वो मारा जाता है, ये गाँव और विशेष रूप से रूपा के लिए बहुत दहशत भरा होता है। इसके अलावा, उसके सबसे अच्छा दोस्त गोपाल (ओम कपूर) उसकी मां (तन्वी आज़मी) के सामने मारा जाता है। उन्होंने अपने बेटे को रूपा (उसकी छोटी उम्र के कारण) को बचाने से रोकने की कोशिश की थी जिस कारण गुजर ने उसे मार दिया। रूपा, इस तथ्य से गुस्से में कि उसके भाई और गोपाल अब नहीं रहे, वो प्रतिशोध की प्रतिज्ञा लेती है। गुज्जर ने रूपा को धमकी दी कि वह केवल उसकी रखैल होगी और कभी भी उसे ना भाई और ना ही प्रेमी मिलेगा। गुस्से में, रूपा ने झरने में कूदकर आत्महत्या करने का प्रयास किया क्योंकि उसे रखैल होने की बजाए खुद को मारना बेहतर लगा। रूपा जीवित रहती है और वह रंगमंच अभिनेता किशन (आमिर ख़ान) के कपड़े चुराती है। किशन अपने सबसे अच्छे दोस्त, ट्रक चालक, शंकर (फैसल ख़ान) के साथ काम करता है। जब किशन पहली बार रूपा से मिलता है, तो उसकी सुंदरता पर फिदा हो जाता है और उसके साथ प्यार में हो जाता है। किशन ने रूपा को अपने नृत्य शो की नायिका बनाने का फैसला किया, हालांकि, शंकर ने उसे चेतावनी दी कि रूपा उन्हें परेशानी में लाएगी। और कोई विकल्प ना होने के कारण, रूपा उनके साथ यात्रा करती है। वह भागने की कोशिश करती है, लेकिन कोई गिरोह द्वारा उसका पीछा किया जाता है और नशे में धुत एक उससे बलात्कार करने की कोशिश करता है। हालांकि, रूपा को शंकर और किशन द्वारा बचाया जाता है। रूपा किशन से प्यार का ढोंग करती है, जो उससे शादी करना चाहता है और दोनों पुरुष चंदनपुर लौटने में उसकी मदद करने के लिए सहमत होते हैं। जब किशन रूपा से शादी करने जा रहा होता है, वो अपने विश्वासघात पर दोषी महसूस करती है और वह उन्हें अपनी कहानी बताती है। शंकर उसका भाई बन जाता है, जबकि किशन, टूटे दिल से, घृणा में उन्हें छोड़ देता है। रूपा और शंकर चंदनपुर लौटते हैं, जहां शंकर गाँव को संगठित करता है। वह गुज्जर के लिए जाल स्थापित करने का प्रयास करते हैं, जिसे रूपा के जिंदा होने के बारे में पता चला है और गाँव वालों से उसके ठिकाने का पता लगाने के लिए आतंकित कर रहा है। जब तक किशन एक निलंबित पुलिस पक्कड़ सिंह (जॉनी लीवर) के साथ वापस नहीं आ जाता तब तक जाल उलटा पड़ जाता है। जाल को एक और मेले के साथ फिर से स्थापित किया जाता है और खलनायक योजना के मुताबिक हमला करते हैं। रूपा का अपहरण कर लिया जाता है और किशन और शंकर पीछा करते हैं। उन्हें पकड़ लिया जाता है और गुज्जर के छिपे हुए स्थान पर ले जाया जाता है जहां उन्हें उससे और उसके आदमियों से लड़ने के लिए मजबूर किया जाता है। आखिरकार चंदनपुर के ग्रामीणों के आगमन के साथ, अच्छाई प्रबल होती है और डाकू का खूनी अंत होता है। रूपा अपने भाई शंकर और प्रेमी किशन के साथ एकजुट होती है। अंत में किशन और रूपा शादी कर लेते हैं। ट्रक चलाते समय शंकर चंपाकली (ऐश्वर्या राय) से मिलता है और किशन और रूपा देख रहे होते हैं। आमिर ख़ान - किशन प्यारे फैसल ख़ान - शंकर शाणे ट्विंकल खन्ना - रूपा सिंह जॉनी लीवर - इंस्पेक्टर पकड़ सिंह अयूब ख़ान - राम सिंह, रूपा का भाई, विशेष भूमिका ऐश्वर्या राय - चंपाकली, विशेष भूमिका असरानी - बनवारी बनिया टीनू वर्मा - गुज्जर सिंह नवनीत निशान - बुलबुल, डाकिया टीकू तलसानिया - मुरारी, सरपंच अर्चना पूरन सिंह - विद्यावती, गाँव की लडकी तन्वी आज़मी - गोपाल की माँ परमीत सेठी - विशेष भूमिका में कुलभूषण खरबंदा - मंत्री, विशेष भूमिका विजू खोटे - पाटिल राव सिंह हरीश पटेल - सेठ चंदूलाल पोपटलाल मास्टर ओमकार - गोपाल कयामत से कयामत तक (१९८८) व जो जीता वही सिकन्दर (१९९२) के बाद खान बंधु, आमिर व फ़ैसल, सह-अभिनीत यह तीसरी फ़िल्म है। ऐश्वर्या राय को इस फ़िल्म के अंतिम भाग मे पर्दे पर दिखाया गया है। २००० में बनी हिन्दी फ़िल्म अनु मलिक द्वारा संगीतबद्ध फिल्में
दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में बहुत महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन अर्थात गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गङ्गा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। ऐसे गौ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की। जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा। कबीर साहेब जी अपनी वाणी में कहते है:कबीर, गोवर्धन कृष्ण जी उठाया, द्रोणागिरि हनुमंत। शेष नाग सब सृष्टी उठाई, इनमें को भगवंत।।गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में एक लोकगाथा प्रचलित है। कथा यह है कि देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था। इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्री कृष्ण जो स्वयं लीलाधारी श्री हरि विष्णु के अवतार हैं ने एक लीला रची। प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे। श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया " मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं" कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं। मैया के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? मैईया ने कहा वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की उपज होती है उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है। भगवान श्री कृष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं, इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं अत: ऐसे अहँकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए। लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के स्थान पर गोवर्घन पर्वत की पूजा की। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा आरम्भ कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि, सब इनका कहा मानने से हुआ है। तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया। इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए फलत: वर्षा और तेज हो गयी। इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियन्त्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें। इन्द्र निरन्तर सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे लगा कि उनका सामना करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता अत: वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृतान्त कह सुनाया। ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं और पूर्ण पुरूषोत्तम नारायण हैं। ब्रह्मा जी के मुख से यह सुनकर इन्द्र अत्यन्त लज्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहँकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया। इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा की जाने लगी। बृजवासी इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं। गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रङ्ग लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है। गोवर्धन पूजा की विधि इस दिन प्रात: काल शरीर पर तेल मलकर स्नान करने का प्राचीन परम्परा है. इस दिन आप सवेरे समय पर उठकर पूजन सामग्री के साथ में आप पूजा स्थल पर बैठ जाइए और अपने कुल देव का, कुल देवी का ध्यान करीये पूजा के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत पूरी श्रद्धा भाव से बनाएँ। इसे लेटे हुये पुरुष की आकृति में बनाया जाता है। प्रतीक रूप से गोवर्धन रूप में आप बनाकर फूल, पत्ती, टहनीयो एवँ गाय की आकृतियों से सजाया जाता है। गोवर्धन की आकृति बनाकर उनके मध्य में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है नाभि के स्थान पर एक कटोरी जितना गड्ढा बना लिया जाता है और वहां एक कटोरी व मिट्टी का दीपक रखा जाता है फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, मधु और बतासे इत्यादि डालकर पूजा की जाती है और फिर इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। गोवर्धन पूजा के दौरान एक मंत्र का जाप करना चाहिए। कुछ स्थानों पर गोवर्धन पूजा के साथ ही गायों को स्नान कराने की उन्हें सिंदूर इत्यादि पुष्प मालाओं से सजाए जाने की परम्परा भी है इस दिन गाय का पूजन भी किया जाता है तो यदि आप गाय को स्नान करा कर उसे सजा सकते हैं या उसका श्रृंगार कर सकते हैं तो कोशिश करिए कि गाय का श्रृंगार करें और उसके सिंह पर घी लगाए गुड खिलाएं. गाय की पूजा के बाद में एक मंत्र का उच्चारण किया जाता है जिससे लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और आपके घर में कभी धन की कमी नहीं रहती है. फल मिठाई इत्यादि आप पूजा के दौरान गोवर्धन में अर्पित करिए गन्ना चढ़ाई है और एक कटोरी दही नाभि स्थान में डाल कर झरनी में से छिड्कते हैं. गोवर्धन जो बनाया जाता है गोबर का उसमें दहि डालकर उसको झरनी से छानीये और फिर गोवर्धन के गीत गाते हुए गोवर्धन की सात बार परिक्रमा की जाती है परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व दुसारा व्यक्ति अन्न यानि कि जौ लेकर चलते हैं और जल वाला व्यक्ति जल की धारा को धरती पर गिराते हुआ चलता है और दुसरा अन्न यानि कि जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं.म
भजनलाल जाटव एक भारतीय राजनीतिज्ञ तथा वर्तमान राजस्थान सरकार में केबिनेट मंत्री हैं इनके पास सार्वजनिक निर्माण विभाग (पड़) की जिम्मेदारी है ये पूर्व में राजस्थान सरकार में गृह रक्षा एवं नागरिक सुरक्षा विभाग (स्वतंत्र प्रभार), मुद्रण एवं लेखन सामग्री विभाग (स्वतंत्र प्रभार), कृषि, पशुपालन और मत्स्य विभाग राज्य मंत्री रहे हैं। ये राजस्थान विधानसभा में वैर-भुसावर विधानसभा क्षेत्र से दूसरी बार विधायक व र्सर्ड निगम के अध्यक्ष हैं। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनेता हैं। १९६८ में जन्मे लोग
असुर भारत में रहने वाली एक प्राचीन आदिवासी समुदाय है। असुर जनसंख्या का घनत्व मुख्यतः झारखण्ड और आंशिक रूप से पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में है। झारखंड में असुर मुख्य रूप से गुमला, लोहरदगा, पलामू और लातेहार जिलों में निवास करते हैं। असुर जनजाति के तीन उपवर्ग हैं- बीर असुर, विरजिया असुर एवं अगरिया असुर। बीर उपजाति के विभिन्न नाम हैं, जैसे सोल्का, युथरा, कोल, इत्यादि। बिरजिया एक अलग आदिम जनजाति के रूप में अधिसूचित है। असुर हजारों सालों से झारखण्ड में रहते आए हैं। मुण्डा जनजाति समुदाय के लोकगाथा सोसोबोंगा में असुरों का उल्लेख मिलता है जब मुण्डा ६०० ई.पू. झारखण्ड आए थे। असुर जनजाति प्रोटो-आस्ट्रेलाइड समूह के अंतर्गत आती है। ऋग्वेद तथा ब्राह्मण, अरण्यक, उपनिषद्, महाभारत आदि ग्रन्थों में असुर शब्द का अनेकानेक स्थानों पर उल्लेख हुआ है। बनर्जी एवं शास्त्री (१९२६) ने असुरों की वीरता का वर्णन करते हुए लिखा है कि वे पूर्ववैदिक काल से वैदिक काल तक अत्यन्त शक्तिशाली समुदाय के रूप में प्रतिष्ठित थे। मजुमदार (१९२६) का मानना है कि असुर साम्राज्य का अन्त आर्यों के साथ संघर्ष में हो गया। प्रागैतिहासिक संदर्भ में असुरों की चर्चा करते हुए बनर्जी एवं शास्त्री ने इन्हें असिरिया नगर के वैसे निवासियों के रूप में वर्णन किया है, जिन्होंने मिस्र और बेबीलोन की संस्कृति अपना ली थी और बाद में उसे भारत और इरान तक ले आये। भारत में सिन्धु सभ्यता के प्रतिष्ठापक के रूप में असुर ही जाने जाते हैं। राय (१९१५, १९२०) ने भी मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा से असुरों को संबंधित बताया है। साथ ही साथ उन्हें ताम्र, कांस्य एवं लौह युग तक का यात्री माना है। पुराने राँची जिले में भी असुरों के निवास की चर्चा करते हुए सुप्रसिद्ध नृतत्वविज्ञानी एस सी राय (१९२०) ने उनके किले एवं कब्रों के अवशेषों से सम्बधित लगभग एक सौ स्थानों, जिसका फैलाव इस क्षेत्र में रहा है, पर प्रकाश डाला है। भारत में असुरों की जनसंख्या १९९१ की जनगणना के अनुसार केवल १०,७१२ ही रह गयी है वहीं झारखण्ड में असुरों की जनसंख्या ७,७83 है। झारखंड के नेतरहाट इलाके में बॉक्साइट खनन के लिए जमीन और उसके साथ अपनी जीविका गँवा देने के बाद असुरों के अस्तित्व पर संकट आ गया है। असुर दुनिया के लोहा गलाने का कार्य करने वाली दुर्लभ धातुविज्ञानी आदिवासी समुदायों में से एक है। इतिहासकारों और शोधकर्ताओं का यह मानना है यह प्राचीन कला भारत में असुरों के अलावा अब केवल अफ्रीका के कुछ आदिवासी समुदायों में ही बची है। असुर मूलतः कृषिजीवी नहीं थे लेकिन कालांतर में उन्होंने कृषि को भी अपनाया है। आदिकाल से ही असुर जनजाति के लोग लौहकर्मी के रूप में विख्यात रहे हैं। इनका मुख्य पेशा लौह अयस्कों के माध्यम से लोहा गलाने का रहा है। पारंपरिक रूप से असुर जनजाति की आर्थिक व्यवस्था पूर्णतः लोहा गलाने और स्थानान्तरित कृषि पर निर्भर थी, लोहा पिघलाने की विधि पर गुप्ता (१९७३) ने प्रकाश डालते हुए लिखा है कि नेतरहाट पठारी क्षेत्र में असुरों द्वारा तीन तरह के लौह अयस्कों की पहचान की गयी थी। पहला पीला, (मेग्नीटाइट), दूसरा बिच्छी (हिमेटाइट), तीसरा गोवा (लैटेराइट से प्राप्त हिमेटाइट). असुर अपने अनुभवों के आधार पर केवल देखकर इन अयस्कों की पहचान कर लिया करते थे तथा उन स्थानों को चिन्हित कर लेते थे। लौह गलाने की पूरी प्रक्रिया में असुर का सम्पूर्ण परिवार लगा रहता था। असुर समाज १२ गोत्रों में बँटा हुआ है। असुर के गोत्र विभिन्न प्रकार के जानवर, पक्षी एवं अनाज के नाम पर है। गोत्र के बाद परिवार सबसे प्रमुख होता है। पिता परिवार का मुखिया होता है। असुर समाज असुर पंचायत से शासित होता है। असुर पंचायत के अधिकारी महतो, बैगा, पुजार होते हैं। भाषा एवं साहित्य आदिम जनजाति असुर की भाषा मुण्डारी वर्ग की है जो आग्नेय (आस्ट्रो एशियाटिक) भाषा परिवार से सम्बद्ध है। परन्तु असुर जनजाति ने अपनी भाषा की असुरी भाषा की संज्ञा दिया है। अपनी भाषा के अलावे ये नागपुरी भाषा तथा हिन्दी का भी प्रयोग करते हैं। असुर जनजाति में पारम्परिक शिक्षा हेतु युवागृह की परम्परा थी जिसे गिति ओड़ा कहा जाता था। असुर बच्चे अपनी प्रथम शिक्षा परिवार से शुरू करते थे और ८ से १० वर्ष की अवस्था में गिति ओड़ा के सदस्य बन जाते थे। जहाँ वे अपनी मातृभाषा में जीवन की विभिन्न भूमिकाओं से सम्बन्धित शिक्षा, लोकगीतों और कहावतों के माध्यम से सीखा करते थे, विभिन्न उत्सव और त्यौहारों के अवसर पर इनकी भागीदारी भी शिक्षा का एक अंग था। इस तरह की शिक्षा उनके लिए कठिन नहीं थी फलतः वे खुशी-खुशी इसमे भाग लिया करते थे। गिति ओड़ा की यह परम्परा असुर समुदाय में साठ के दशक तक प्रचलित थी पर उसके बाद से इसमें निरन्तर ह्रास होता गया और वर्त्तमान समय में यह पूर्णतः समाप्त हो चुका है। असुर भाषा का व्याकरण एवं शब्दकोश अभी तक नहीं है। साहित्य की एकमात्र प्रकाशित एवं सुषमा असुर और वंदना टेटे द्वारा संपादित पुस्तक असुर सिरिंग (२०१०) है। इसमें असुर पारंपरिक लोकगीतों के साथ कुछ नये गीत शामिल हैं। असुर आदिवासी समुदाय पर के के ल्युबा की द असुर, वैरियर एल्विन की अगरिया और ट्राईबल रिसर्च इंस्टीच्युट, रांची से बिहार के असुर पुस्तक प्रकाशित है। धर्म और पर्व-त्यौहार असुर प्रकृति-पूजक होते हैं। सिंगबोंगा उनके प्रमुख देवता है। सड़सी कुटासी इनका प्रमुख पर्व है, जिसमें यह अपने औजारों और लोहे गलाने वाली भट्टियों की पूजा करते हैं। असुर महिषासुर को अपना पूर्वज मानते है। हिन्दू धर्म में महिषासुर को एक राक्षस (असुर) के रूप में दिखाया गया है जिसकी हत्या दुर्गा ने की थी। पश्चिम बंगाल और झारखण्ड में दुर्गा पूजा के दौरान असुर समुदाय के लोग शोक मनाते है। जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, दिल्ली में पिछले कुछ सालों से एक पिछड़े वर्ग के छात्र संगठन ने महिषासुर शहीद दिवस मनाने की शुरुआत की है। वर्तमान समय में झारखण्ड में रह रहे असुर समुदाय के लोग काफी परेशानियों का सामना कर रहे हैं। समुचित स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, परिवहन, पीने का पानी आदि जैसी मूलभूत सुविधाएँ भी इन्हें उपलब्ध नहीं है। लोहा गलाने और बनाने की परंपरागत आजीविका के खात्मे तथा खदानों के कारण तेजी से घटते कृषि आधारित अर्थव्यवस्था ने असुरों को गरीबी के कगार पर ला खड़ा किया है। नतीजतन पलायन, विस्थापन एक बड़ी समस्या बन गई है। गरीबी के कारण नाबालिग असुर लड़कियों की तस्करी अत्यंत चिंताजनक है। ईंट भट्ठों और असंगठित क्षेत्र में मिलनेवाली दिहाड़ी मजदूरी भी उनके आर्थिक-शारीरिक और सांस्कृतिक शोषण का बड़ा कारण है। नेतरहाट में बॉक्साइट खनन की वजह से असुरों की जीविका छीन गयी है और खनन से उत्पन्न प्रदूषण से इनकी कृषि भी बुरी तरह प्रभावित हुई है। पहले से ही कम जनसंख्या वाले असुर समुदाय की जनसंख्या में पिछले कुछ सालों में कमी आई है। इन दिनों असुर समुदाय से आने वाली एक युवा सुषमा असुर, जो नेतरहाट में रहती हैं, अपने समुदाय की कला-संस्कृति और अस्तित्व को बचाने के लिए प्रयासरत है। वैरियर एल्विन की अगरिया असुर झारखंडी अखड़ा यूट्यूब चैनल
प्राय इस बात पर मतैक्य है कि आधुनिक परियोजना प्रबन्धन १९५० के आसपास आरम्भ हुआ। इसके पहले की परियोजनाएँ समान्यत: रचनाधर्मी वास्तुविदों या इंजीनियरों द्वारा स्वयमेव की जाती थीं। आरम्भिक सभ्यताओं का काल १५वीं से १९वीं शती १९५० का दशक १९६० का दशक १९७० का दशक १९८० का दशक १९९० का दशक इन्हें भी देखें परियोजना प्रबन्धन के साफ्टवेयरों की सूची
नगरी परोल (नागरी पैरोल), जिसे केवल परोल (पैरोल) भी कहा जाता है, भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के कठुआ ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले में तहसील का दर्जा रखता है। यह रावी नदी के किनारे बसा हुआ है। इन्हें भी देखें जम्मू और कश्मीर के शहर कठुआ ज़िले के नगर
डांग-चौथान-२, थलीसैंण तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा डांग-चौथान-२, थलीसैंण तहसील डांग-चौथान-२, थलीसैंण तहसील
हुसैन जिलुर रहमान बांग्लादेश के नव निर्वाचित राष्ट्रपति हैं।
ई. नीलकांत सिंह मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कवितासंग्रह तीर्थ यात्रा के लिये उन्हें सन् १९८७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत मणिपुरी भाषा के साहित्यकार
यह ब्रिटेन के राजकीय निवासों की सूची है, इस पृष्ठ पर ब्रिटिश राजपरिवार के सदस्यों के विभिन्न राजकीय निवासों व महलों को सूचीबद्ध किया गया है, तथा पारंपरिक रूप से राजकितुंब के उस भवन में रहने का समय भी दिया गया है। ब्रिटेन में सारे राजकीय निवास, महल व किले, शासक की निजी संपत्ति नहीं होती है, सारे राजकीय निवास विधिक रूप से राजमुकुट की संपत्ति होते हैं, जिन्हें क्राउन एस्टेट कहा जाता है, इन्हें आधिकारिक तौर पर शासक के विश्वास में आवंटित किया जाता है। शासक स्वेच्छा से इन्हें बेच नहीं सकते हैं। इसके अलावा शासक व राजकुटुंब, निजी तौर पर महल को खरीद सकते है, या उत्तराधिकृत कर सकते हैं। एकादिदारुक का शाही निवास अधिराट् का लंदन में आधिकारिक निवास बकिंघम महल है, जो आधिकारिक निवास होने के अलावा अधिकतर राजकीय व शाही समारोहों का भी मुख्या स्थल है। इसके अतिरिक्त एक और शाही निवास है, विंडसर कासल, जो विश्व का वृहत्तम् अध्यसित महल है, जिसे मुख्यतः साप्ताहिक छुट्टियों, ईस्टर, इत्यादि जैसे मौकों पर उपयोग किया जाता है। स्कॉटलैंड में संप्रभु का आधिकारिक निवास हौलीरूड पैलस है, जो एडिनबर्ग में अवस्थित है। इसे संप्रभु द्वारा, अपनी स्कॉटलैंड यात्रा पर उपयोग किया जाता है। परंपरानुसार, संप्रभु वर्ष में कमसेकम एक सप्ताह के लिये हौलीरूडहाउस में निवास करते हैं। ऐतिहासिक तौर पर आंग्ल संप्रभु का मुख्य निवास वेस्टमिंस्टर का महल तथा टावर ऑफ़ लंडन हुआ करता था, जब तक हेनरी अष्टम् ने वाइटहॉल के महल को दख़ल कर लिया। १६९८ में भीषण आग के चलते वाइटहॉल महल तबाह हो गया, जिसके बाद राजपरिवार सेंट जेम्स पैलस में शिफ़्ट हो गया। हालाँकि १८३७ में संप्रभु के मुख्य निवास के रूप में बकिंघम पैलस ने सेंट जेम्स पैलस की जगह ले ली, परंतु आज भी सेंट जेम्स पैलस को वरिष्ठ महल होने का दर्ज प्राप्त है, और आज भी वह रीतिस्पद आवास है। यह महल आज भी उत्तराधिकार परिषद् का सभा-स्थल है तथा इसे राजपरिवार के अन्य सदस्यों द्वारा भी उपयोग किया जाता है। अन्य शाही निवासों में, क्लैरेंस हाउस और केन्सिंग्टन पैलस शामिल हैं। ये महल राजमुकुट के हैं, और इन्हें मुकुट द्वारा भावी शासकों के लिए रखा गया है। संप्रभु, स्वेच्छा से इन महलों का सौदा नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा नॉर्फ़ोक का सैंड्रिंघम पैलस और एबरडीनशायर का बॅल्मॉरल कासल, रानी की निजी संपत्तियाँ हैं। शासक का आधिकारिक ध्वज शाही मानक है, जिसमे शाही कुलांक को प्रदर्शित किया जाता है। इस मानक को संप्रभु की मेज़बानी कर रहे भवन, पोत, विमान या वाहन पर प्रदर्शित किया जाता है, लोगों को संप्रभु की उपस्तिथि से आगाह करने के लिए। शाही मानक को कभी भी अर्ध्दण्ड पर कभी नहीं फहराया जाता है, क्योंकि ऐसा कभी भी नहीं होता है की शासक अनुपस्थित हो, क्योंकि जैसे ही एक शासक की मृत्यु होती है, वैसे ही युवराज शासक बन जाते हैं। जब शासक अपने महल में उपस्थित नहीं होते है, तब बकिंघम पैलस, विंडसर कासल और सैंडरिंघम हाउस में ब्रिटिश ध्वज फहराया जाता है, और स्कॉटलैंड में स्थित महलों, हौलीरूड पैलेस और बैलमोरल पैलेस में स्कॉटलैंड के शाही मानक को फहराया जाता है। रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय और एडिनबर्ग के ड्यूक के राजकीय निवास राजपरिवार के अन्य सदस्यों के राजकीय निवास इन्हें भी देखें ब्रिटिन के शाही महल ब्रिटेन की वास्तुकला ब्रिटेन के भवन
नागडी-कण्डारस्यूं-४, थलीसैंण तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा नागडी-कण्डारस्यूं-४, थलीसैंण तहसील नागडी-कण्डारस्यूं-४, थलीसैंण तहसील
किसी जलनिकाय, जैसे कि एक नदी, नहर, या झील को नौगम्य (नौ=पानी+गमन=जाना) उस स्थिति में कहा जाता है, यदि इसकी गहराई, चौड़ाई और इसकी गति इतनी हो कि कोई जलयान इसे आसानी से पार कर जाये। राह में आने वाली बाधायें जैसे कि चट्टाने और पेड़ ऐसे हों कि उनसे आसानी से बचकर निकला जा सके, साथ ही पुलों की निकासी भी पर्याप्त होनी चाहिए (यह इतने ऊँचे हों कि पोत इनके नीचे से निकल जाये)। पानी की उच्च गति और आमतौर पर शीत ऋतु में जमने वाली बर्फ किसी जलमार्ग को अनौगम्य बना सकती है। नौगम्यता संदर्भ पर निर्भर करती है: एक छोटी नदी एक छोटी नाव के लिए नौगम्य हो सकती है पर एक क्रूज जहाज के लिए यह अनौगम्य होती है। उथली नदियों को जलपाश, जो पानी की गहराई बढ़ाने के साथ इसे विनियमित भी करता है, की संस्थापना के द्वारा नौगम्य बनाया जा सकता है। नदियों को नौगम्य बनाने की एक दूसरी विधि निकर्षण है।
अमेरिकी या अमरीकी, कोई भी व्यक्ति, समूह, कंपनी या अन्य जो अमेरिका में स्थित हो।
सांख्यिकी में, प्रेक्षणीय चर या प्रेक्षणीय मात्रा (जिसे प्रकट चर भी कहते है) एक चर है जिसे प्रेक्षित किया जा सकता है और प्रत्यक्ष रूप से मापा जा सकता है। इसी का विपरीत है अप्रकट चर। इन्हें भी देखें सांख्यिकीय डाटा प्रकार
स्वर्ग १९९० में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इसका निर्देशन डेविड धवन ने किया है और इसमें राजेश खन्ना, गोविन्दा, माधवी और जूही चावला प्रमुख भूमिकाओं में हैं। संगीत आनंद-मिलिंद द्वारा प्रदान किया गया है जबकि गीत समीर ने लिखें हैं। यह फ़िल्म कुछ हद तक मेहरबान (१९६७) पे आधारित है। स्वर्ग नाम की एक आलीशान हवेली में रहने वाले अमीर व्यापारी कुमार या साहबजी (राजेश खन्ना), अपनी पत्नी (माधवी), बहन ज्योति (जूही चावला), दो सौतेले भाई, विकी और रवि और एक भाभी के साथ रहते हैं। उनका एक वफादार सेवक कृष्णा (गोविन्दा) भी है। एक व्यावसायिक मामले को लेकर साहबजी का एक अनैतिक व्यापारी धनराज (परेश रावल) के साथ आदर्शों का टकराव होता है। प्रतिशोध में, धनराज साहबजी के धन और व्यवसायों को हड़पने के लिए साहबजी के दो भाइयों के साथ योजना बनाता है। वह साहबजी की फैक्ट्री में आग लगा देता है और आलीशान हवेली और विशाल व्यापारिक साम्राज्य पर कब्ज़ा कर लेता है। इससे साहबजी लगभग दरिद्र हो जाते हैं और उनकी पत्नी के निधन से वे तबाह हो जाते हैं। उनके भाइयों ने अब पैसे, हवेली और उनके व्यवसाय पर कब्ज़ा कर लिया है। जब कृष्णा अपने साहबजी के लिए उनके भाइयों का सामना करता है तो साहबजी उसे ही घर से निकाल देते हैं। बाद में, उसे पता चलता है कि साहबजी ने जानबूझकर उसे भगाया है ताकि वह जीवन में कुछ बेहतर कर सके और साहबजी के दुर्भाग्य का साथी न बने। कृष्णा बंबई चला जाता है और एयरपोर्ट (सतीश कौशिक) नामक एक व्यक्ति से मिलता है और वे दोस्त बन जाते हैं। शहर में उसकी कड़ी मेहनत उसे एक लोकप्रिय फिल्म स्टार बनाती है। अब वह अपने पूर्व मालिक के पैमाने पर एक अमीर आदमी बन जाता है। वह कई वर्षों के बाद वह एक रहस्यमय लेकिन अमीर व्यापारी के रूप में अपने शहर में लौटता है। कृष्णा पहले धनराज को बर्बाद कर देता है। फिर वह साहबजी के भाइयों के खिलाफ उनके लालच का इस्तेमाल करके उनको निशाना बनाता है। खुद को उजागर किए बिना, वह उनके साथ एक व्यापारिक सौदा करता है और बाद में उन्हें धोखा देता है। ठीक उसी तरह जैसे उन्होंने अपने बड़े भाई को धोखा दिया था। फिर कृष्णा एक मंदिर में जाता है और भगवान से प्रार्थना करता है ताकि वह जल्द ही साहबजी से मिल सके। संयोग से, वह साहबजी को उसी मंदिर में पाता है और उसे पता चलता है कि साहबजी और ज्योति दोनों दयनीय स्थिति में हैं। वह उन्हें हवेली वापस लाता है। इसके बाद साहबजी अपने भाइयों को हवेली के अंदर देखते हैं। कृष्णा और ज्योति साहबजी को उनके भाइयों को माफ करने के लिए कहते हैं। जिसे साहबजी स्पष्ट रूप से मना कर देते हैं। जिसके बाद, उनकी दिवंगत मां का चित्र ऊपर से गिर जाता है। साहबजी को अपने भाइयों की देखभाल करने के संबंध में उनसे किए गए वादे की याद आती है। इस बिंदु पर, वर्षों के वित्तीय, शारीरिक और भावनात्मक तनाव के कारण साहबजी को कार्डियक अरेस्ट होता है। वह अपने भाइयों को क्षमा कर देते हैं। वह ज्योति और कृष्णा के रिश्ते को भी मंजूरी दे देते हैं और शादी के लिए अपना आशीर्वाद देते हैं। इसके साथ ही, उनका निधन हो जाता है और वह अपनी सारी विरासत कृष्णा और ज्योति को सौंप जाते हैं। राजेश खन्ना कुमार माधवी जानकी कुमार जूही चावला ज्योति सतीश कौशिक एयरपोर्ट दिलीप धवन रवि परेश रावल धनराज रजा बुन्देला विकी नीना गुप्ता नैना महेश आनन्द गुरू विकास आनन्द चौधरी अरुण बख़्शी निर्देशक युनुस परवेज़ माली भरत कपूर नागपाल १९९० में बनी हिन्दी फ़िल्म आनंदमिलिंद द्वारा संगीतबद्ध फिल्में
द इन्कलाब भारत में प्रकाशित होने वाला उर्दू भाषा का एक समाचार पत्र (अखबार) है। इन्हें भी देखें भारत में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों की सूची भारत में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र उर्दू भाषा के समाचार पत्र
चौडांगा जिला () बांग्लादेश के दक्षिण अंचल के खुलना विभाग का एक प्रशासनिक अंचल है। खुलना उपक्षेत्र के जिले
ख़ान्दा दालकलच (जन्म १९७४, अन्कारा, तुर्की) एक तुर्क जनसभा प्यानो-वादक है। 'ख़ान्दा ने अपना प्यानो-प्रशिक्षण प्रो० गुहरदिल करमानोलू चाकरसोय से प्राप्त किया। १९८९ में वे बिल्क़ेन्द विश्वविद्यालय में संगीत और निष्पादन कलाओं की शिक्षा से जुड़ी और प्रो० एरसिन ओरिआए के मार्गदर्शन में पढ़ी। १९८९ में उसे इस क्षेत्र में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। १९९९ में उसने स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की और कला में निपुणता की शिक्षा उसने २००३ में पूरा किया। उसकी बहन यासमीन दालकलच विश्व-कीर्तिमान स्थापित करनेवाली स्वतंत्र तैराक है। १९७४ में जन्मे लोग
काष्ठीय वृक्षों के तना, शाखा, जड़ आदि के सबसे ऊपरी आवरण को छाल या वल्क (बर्क) कहते हैं। 'छाल' तकनीकी शब्द नहीं है। छाल को दो भागों में बंटा हुआ मान सकते हैं - आन्तरिक वल्क और बाह्य वल्क। आन्तरिक वल्क में जीवित ऊतक होते हैं जबकि बाह्य वल्क में मृत ऊतक होते हैं।
मुहम्मद राजा हयात हुर्राज एक राजनीतिज्ञ है पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा में | वह ना-१५६ निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है पाकिस्तानी पंजाब के लिएपाकिस्तानी पंजाब के प्रतिनिधियों - पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा | पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा के सदस्य
जोट कामाल (जोत कमल) भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के मुर्शिदाबाद ज़िले में स्थित एक नगर है। इन्हें भी देखें पश्चिम बंगाल के शहर मुर्शिदाबाद ज़िले के नगर
व्रजेश हीरजी भारतीय अभिनेता है जिन्हें फिल्मों और टीवी पर हास्य किरदारों के लिये जाना जाता है। वह गुजराती रंगमंच में भी सक्रिय है। व्रजेश लोकप्रिय वास्तविक कार्यक्रम बिग बॉस के छ्ठे संस्करण में भी भाग ले चुके हैं। उन्होंने २०१५ में रोहिनी बनर्जी से विवाह किया। बिहार के लोग
बंधन कच्चे धागों का १९८३ में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है। शशि कपूर - प्रेम कपूर राखी गुलज़ार - भावना पामुलापति कपूर प्रेम चोपड़ा - प्रकाश दत्त मास्टर रवि - सुनील पामुलापति कपूर चंद्रशेखर - पुजारी कल्पना अय्यर - नर्तकी / गायिका रज़ा मुराद - वकील राजेन्द्रनाथ - शादी के मेहमान नामांकन और पुरस्कार १९८३ में बनी हिन्दी फ़िल्म
सन्तोषपुर फ़र्रूख़ाबाद जिले के अन्तर्गत कायमगंज से फ़र्रूख़ाबाद मार्ग पर है। फर्रुखाबाद जिला के गाँव
४७ अक्षांश उत्तर (४७त परलेल नॉर्थ) पृथ्वी की भूमध्यरेखा के उत्तर में ४७ अक्षांश पर स्थित अक्षांश वृत्त है। यह काल्पनिक रेखा प्रशांत महासागर व अटलांटिक महासागर और उत्तर अमेरिका, यूरोप व एशिया के भूमीय क्षेत्रों से निकलती है। इन्हें भी देखें ४८ अक्षांश उत्तर ४६ अक्षांश उत्तर
कैपिटल हाईस्कूल, ओडिशाके राजधानी भुवनेश्वर में स्थित एक सरकारी उच्च विद्यालय है। यह बिद्यालय भुबनेश्वर के यूनिट ३ में अबस्थित है। पास में प्रसिद्द राम मंदिर है। इस विद्यालय में ६ से १० श्रेणी तक शिक्षादान किया जाता है। यह एक सह-शिक्षा बिद्यालय है और यहाँ अभी १००० से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं। बिद्यालय के हॉस्टल का नाम "ठक्कर बाप्पा आदिबासी छात्रालय" है। यहाँ स्कुल में पढ़नेवाले १००से ज्यादा बच्चे रहते हैं। स्कुल के खेल प्रांगण और ऑडिटोरियम में बहुत सारे राज्यस्तरीय कार्यक्रम का आयोयन होता है । कैपिटल हाईस्कूल की स्थापना १९५१ में हुई थी। श्री गणेश चंद्र मिश्रा इस स्कुल के प्रथम प्रधान शिक्षक थे। यह स्कुल पहले पहले यूनिट २ बालिका विद्यालय के साथ एक ही कैंपस में था। १९५८ अगस्त २४ताऱीख को यह अपने कैंपस में आ गया। श्री लक्ष्मण कर और श्री शरत चंद्र बासु जैसे छात्रबत्सल प्रधान शिक्षक इस स्कुल में काम कर चुके हैं। २०१२ में ये स्कूल अपना हीरक जयंती मना चूका है। हिन्दी दिवस लेख प्रतियोगिता २०१८ के अन्तर्गत बनाये गये लेख
२००४ आईसीसी इंटरकांटिनेंटल कप आईसीसी इंटरकांटिनेंटल कप प्रथम श्रेणी क्रिकेट टूर्नामेंट के उद्घाटन संस्करण, जातियों, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने टेस्ट दर्जा सम्मानित नहीं किया गया है के बीच एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट था। प्रतियोगिता १२ टीमों को तीन के चार समूहों, और एक अंतिम जो सभी शारजाह, संयुक्त अरब अमीरात में खेला गया सेमीफाइनल के द्वारा पीछा में भौगोलिक क्षेत्र के हिसाब से बांटा शामिल थे। आदेश में प्रतिस्पर्धी खेलने के लिए प्रोत्साहित और गतिरोध से बचने के लिए, बोनस अंक सहित एक बिंदु प्रणाली का इस्तेमाल किया गया था: जीत: १४ अंक टाई: ७ अंक ड्रा या हार: ० अंक बल्लेबाजी बोनस अंक: प्रत्येक २५ रन प्रति पारी ६ अंक की एक अधिकतम करने के लिए, के प्रत्येक पारी पहले ९० ओवरों में रन के लिए ०.५ अंक। बॉलिंग बोनस अंक: प्रति ०.५ अंक विकेट प्रत्येक पारी में ले लिया। अफ्रीकी समूह में प्रमुख आश्चर्य नामीबिया पर युगांडा की जीत थी। केन्या के खिलाफ युगांडा के बाद के नुकसान, एक खिलाड़ी की हड़ताल के बावजूद दिन नामीबिया के खिलाफ अपने मैच से पहले अगले दौर के लिए केन्या के लिए मार्ग प्रशस्त किया। सेमीफाइनल संयुक्त अरब अमीरात में खेला गया था, बल्कि इसलिए की मौत जायद बिन सुल्तान अल नाहयान में देरी हुई। मूल रूप से १६ नवंबर को शुरू करने के लिए निर्धारित किया गया और एक दिन के लिए स्थगित कर दिया गया। कनाडा और स्कॉटलैंड फाइनल में, दोनों में अंक से खींचता है। फाइनल २१ नवंबर में शुरू कर दिया। कनाडा ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी के लिए चुने गए। हालांकि कनाडा के एक गरीब शुरू किया था, मैच, जॉन ब्लैन ने बोल्ड के पहले ओवर की अंतिम गेंद को आशिफ मुल्ला खोने। एक ही दिन में, स्कॉटलैंड ८० रन का फायदा उठाया। दूसरे दिन में स्कॉटलैंड १७७ रन से आगे के साथ की घोषणा की। कनाडा केवल स्कॉटलैंड की आसान जीत के लिए ९३ रन बनाए।
नरगिस फाखरी (जन्म २० अक्टूबर १९७९) एक अमेरिकी-पाकिस्तानी फैशन मॉडल व अभिनेत्री है। इन्होने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत २०११ में बनी बॉलीवुड फ़िल्म रॉकस्टार से की। चुनिंदा फिल्मों की सूची इन्हें भी देखें हुमा क़ुरैशी (अभिनेत्री) १९७९ में जन्मे लोग
किसी न्यूनतम आवृत्ति के पूर्णांक गुणक आवृत्ति को उसका प्रसंवादी या गुणावृत्ति (गुणा+आवृत्ति / हारमोनिक) कहते हैं। उदाहरण के लिए, ३०० हर्टज, ५० हर्ट्ज की गुणावृत्ति है। प्रायः मूल आवृत्ति (फण्डामेण्टल फ्रेक्वेन्सी) के साथ गुणावृत्ति भी अवश्य होती है। कहीं ये गुणावृत्तियाँ लाभकारी होतीं हैं जबकि कहीं हानिकारक। किसी भी आवर्ती तरंग को मूल आवृत्ति की तरंग तथा गुणावृत्तियो वाली तरंगों के योग के रूप में निरूपित किया जा सकता है (फुर्ये श्रेणी)। विद्युत शक्ति प्रणाली में गुणावृत्तियाँ (वोल्टता की गुणावृत्ति या विद्युत धारा की गुणावृत्ति) अनेकों समस्याएँ उत्पन्न करतीं हैं। अरैखिक लोडों (नॉनलिन्यर लॉड्स) के कारण ये उत्पन्न होतीं हैं। गुणावृत्तियों के कारण केबल में गरमी पैदा होती है, ट्रान्सफॉर्मर और मोटर आदि में भी अतिरिक्त ऊष्मा पैदा होती है। इनके कारण शक्ति परिवर्तकों (पॉवर कन्वर्टर्स) में गलत फायरिंग हो सकती है जिससे आउटपुट खराब हो जाय (जैसे १०० वोल्ट के बजाय १२० वोल्ट पैदा हो जाय) या स्वयं कोई युक्ति (जैसे, एस सी आर) ही खराब हो सकती है। इन्हें भी देखें
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील चंदौसी, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है। सम्बंधित जनगणना कोड: राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७२२ चंदौसी तहसील के गाँव
सलकाण्डा, चम्पावत तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के चम्पावत जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा सलकाण्डा, चम्पावत तहसील सलकाण्डा, चम्पावत तहसील
किनसरिया राजस्थान के नागौर जिले में परबतसर पंचायत समिति का एक गांव है। यह ग्राम पंचायत मुख्यालय भी है। हिन्दी नाम - किनसरिया मारवाड़ी नाम - खीणसरियो पुराना नाम - सिणहाडिया किनसरिया मारवाड़ रियासत के केशवदासोत-रामसिंघोत मेड़तियो के दोवडी तज़िमी ठिकाने बडू (१३ गावों की जागीरी) का मुख्य ठिकाना रहा है किनसरिया जिसकी रेट प्रतिवर्ष चाकरी १०००/- थी। यह ठिकाना ठा. नार सिंह जी मेड़तिया और ठा. चैन सिंह जी मेड़तिया । जो की बडू ठाकर साहब राम सिंह जी मेड़तिया के पुत्र थे। यह ठिकाना इन्हे बडू जागीरी से भाईबंट मे मिला था । जनगणना-२०११ कीजानकारीके अनुसार :- कुल ५२५ परिवारों के निवास के साथ, किनसरिया गांव की जनसंख्या२६०५है (जिनमें से १३६६ पुरुष हैं जबकि १२३९ महिलाएं हैं)। नागौर ज़िले के गाँव परबतसर किनसरिया
पेट दर्द अथवा उदरीय दर्द, क्षणिक बीमारी अथवा गंभीर बीमारी का एक लक्षण हो शकता है। पेट दर्द के कारण से एक निश्चित निदान करना कठिन हो सकता है, क्योंकि कई बीमारियों में ये लक्षण देखा जा शकता है। पेट दर्द एक आम समस्या है। पेट दर्द में सबसे अक्सर कारण सौम्य और / या आत्म - सीमित है, लेकिन और अधिक गंभीर कारण के अन्दर तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता हो सकती है। ज्वालाग्राही: आंत्रशोथ, आंत्रपुच्छकोप, पेट में सुजन, ग्रासनलीशोथ, विपुटीशोथ,क्रोहन के रोग, सव्रण बृहदांत्रशोथ, सूक्ष्म बृहदांत्रशोथ रुकावट: हर्निया, आंत्रावरोध, वोल्वुलुस, शल्य चिकित्सा के बाद के जुडाव, रसौली, उपरवाली मेसेंत्रिक धमनी के विकार गंभीर कब्ज, बवासीर रक्त कोष्ठक संबंधी : अन्त: शल्यइ ता, घनास्त्रता, खून का बहना, दरांती सेल रोग, उदर के दर्द, रक्त धमनी दबाव जैसे की सेलिअक धमनी दबाव सिंड्रोम, स्थितिज ऑर्थोस्टैटिक तीव्र हृदय स्पंदन दर पाचन सम्बन्धी : उदर व्रण, लैक्टोज असहिष्णुता, सीलिएक रोग, खाद्य एलर्जी भड़काऊ: पित्ताशय की सुजन, पित्तवाहिनी शोथ रुकावट: पित्त पथरी और ट्यूमर भड़काऊ: हैपेटाइटिस, जिगर फोड़ा भड़काऊ: अग्नाशय पे सुजन गुर्दे और मूत्र संबंधी बीमारियों सूजन: पाइलोनेफ्रिटिस अथवा वृक्कगोणिकाशोध और मूत्राशय के संक्रमण रुकावट: गुर्दे की पथरी, उरोलिथिअसिस अथवा पेशाब की पथरी बनना, मूत्र प्रतिधारण अथवा मूत्र की रुकावर ट्यूमर रक्त कोष्ठक संबंधी : बाईं वृक्क नस फंसाने स्त्रीरोगों या प्रसूति भड़काऊ: श्रोणि सूजन की बीमारी यांत्रिक: डिम्बग्रंथि का मरोड़ीदार होना ट्यूमर : - अंतर्गर्भाशय-अस्थानता पे सुजन, गर्भाशय तंतुपेशी-अर्बुद डिम्बग्रंथि पुटी, डिम्बग्रंथि के कैंसर गर्भावस्था: अस्थानिक गर्भावस्था का टूट जाना अस्थिर गर्भपात उदर की दीवार मांसपेशी तनाव या आघात मांसपेशियों में संक्रमण चेता तंत्रिकाजन्य दर्द :वर्तुलाकार दाद, लाइम रोग मेंनाड़ी मूल में सूजन, ऊदर की ऊपरी तंत्रिका के विकार, त्वक् कील, मेरुरज्जु अपजनन संदर्भित किया जाता है दर्द छाती के ऊपरी भाग से: निमोनिया, फुफ्फुसीय अन्त: शल्यता, इस्चेमिक हृदय रोग (हृदय तक खून और ओक्सिजन का न पहोंचना, हृदयावरण पर सुजन रीढ़ से: नाड़ी मूल में सूजन गुप्तांग से: वृषण का मरोड़ीदार होना युरीमिया, मधुमेह कीटोअम्लमयता, पोरफ़ीरिया;, सी १ - एस्तारेज अवरोध करनेवाले की कमी, अधिवृक्क कमी, सीसा विषाक्तता, काली विधवा मकड़ी के काटने से, मादक ता से वापसी महाधमनी विच्छेदन, उदर सम्बन्धी महाधमनी धमनीविस्फार वाहिकाशोथ || किसी रक्तवाहिका का प्रदाह पारिवारिक भूमध्यसागरीय बुखार किसी अनजाने कारण से उत्पन्न दशा; चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम (करीब २० % जनसँख्या चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम से प्रभावित है, आवर्तक आंतरायिक उदर के दर्द में चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम सबसे सामान्य कारण है) तीव्र पेट दर्द तीव्र उदर की परिभाषा ये है की, किसी कारण से भयंकर, लगातार पेट दर्द रहे, अचानक पेट में दर्द हो तो ऐसे कारण के इलाज लिए सर्जिकल हस्तक्षेप किया जा सकता है। मतली और उल्टी, पेट का फैलाव, उदार का फुलाव, बुखार और, आघात ये सारे लक्षण पेट दर्द के संकेत के साथ जुड़े होते है। तीव्र पेट दर्द का सबसे सामान्य कारण है तीव्र उपान्त्र शोथ, जिसके अन्दर श्लेष्मा अथवा मल जमा होनेसे वो सख्त हो जाता है और उस के मुख को बंध कर देता है। तीव्र पेट के कारण चयनित दर्दनाक: पेट, आंत, तिल्ली, जिगर अथवा गुर्दे पर कुंठित अभिघात अथवा वेधन चोट लगती है तो. शोथयुक्त|| प्रदाहक|| सूजन पित्ताशय पे सुजन, अग्नाशयशोथ, वृक्कगोणिका का प्रदाह, श्रोणि सूजन बीमारी, हैपेटाइटिस, ग्रंथिशोथ, या मध्य पट के निचे फोड़ा होना, ये सारे संक्रमण के प्रकार है। पेप्टिक अल्सर, गुप्तमार्ग या सीकुम में छिद्रण हो तो बृहदांत्रशोथ, प्रदाहक आंत्र रोग और क्रोह्न रोग या बड़ी आंत की प्रदाहक एवं व्रणग्रस्त अवस्था की जटिलताए और उपद्रव यांत्रिक || भौतिक लघु आंत्र की रुकावट या सूजन, पिछले सर्जरी के कारण आसंजन से, आंत्रावरोध, अंत्रवृद्धि;, सांघातिकता अथवा सौम्य गुल्म सूजन आंत्र रोग, मल कस कर भरना, अंतडिया और गुदाध्वार के कैंसर, हेर्निया, या वॉलन्यूलस के कारण बड़े आंत्र की रूकावट आमतौर पर ऊपर वाली आंत्रयोजनी धमनी में थ्रोमबोइम्बोलिज़्म के कारण आंत्र में खून और ओक्सिजन कम पहोंचता है। उसको अवरोधी अथवा बंद करने से संबंधित आंत्र इस्चेमिया कहते है। बच्चों और किशोरों में आवर्तक पेट दर्द आवर्तक पेट दर्द करीब (रैप)५-१५ % बच्चों में होता है और वो भी ६-१९ साल की ऊम्र में . मध्यम और उच्च विद्यालय के छात्रों के एक समुदाय आधारित अध्ययन में, १३-१७% बच्चो को साप्ताहिक पेट में दर्द था। चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम मापदंड (इब्स) के हिसाब से, स्कूल के छात्रों के बीच १४%% और उच्च विद्यालय के छात्रों में ६ % इब्स के लिए वयस्क मापदंड फिट होता है। अन्य मुश्किल पुरानी चिकित्सा समस्या के हिसाब से रैप खाते के साथ अपने कार्यालय वास्तविक संख्या के अनुपात में और यात्राओं चिकित्सा संसाधनों का एक बहुत बड़ी संख्या में रोगियों के लिए तकलीफ बनती है। रैप अधिकांश रोगियों जो अक्सर एपिसोड के साथ जुड़े रहे हैं उनको आश्वासन और तकनीक से चिन्ता और तनाव, में फायदा हुआ है। जब एक चिकित्सक, चिकित्सा करने के लिए रोग के कारण , पेट दर्द की शिकायत पेश करने के बाद, कितने समय से तकलीफ है वो जानने के बाद और शारीरिक परीक्षा से रोगियों के उपचार के बाद लगभग ९०% से अधिक एक निदान प्राप्त कर लेता है। यह एक चिकित्सक के लिए भी महत्वपूर्ण है की वो स्मरण रखे कि पेट दर्द किसी बाहर की समस्याओं के कारण भी हो सकता है, विशेष रूप से दिल के दौरे और निमोनिया है जो कभी कभी पेट में दर्द कर सकते हैं। जांच कि निदान में सहायता करने वाले खून की जांच जैसे क्रिएटिनाइन, परीक्षणों सहित पूर्ण रक्त गणना, इलेक्ट्रोलाइट्स, यूरिया, यकृत समारोह परीक्षण, गर्भावस्था परीक्षण और लाइपेज़ . पेशाब का पूर्ण परिक्षण पेट इमेजिंग के अन्दर सीधा छाती का एक्स रे, सादी पेट सोनोग्राफी सामिल होता है एक इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ़ हार्ट की समस्या है की नहीं वो देखने के लिए, क्युकी वो कभी कभी पेट दर्द के रूप में दिखाई देता है यदि इतिहास के बाद निदान अस्पष्ट बनी हुई है, तो परीक्षा बुनियादी जांच. और अधिक उन्नत जांच से एक निदान प्रकट हो सकता है इन जैसे शामिल होंगे श्रोणि/पेट के लिए कम्प्यूटर टोमोग्राफी पेट या श्रोणि का अल्ट्रासाउंड पेट की आन्तरिक तपास और आंत्र की आंतरिक तपास (तीव्र दर्द के निदान लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता) इन्हें भी देखें पेट की परीक्षा अपले जम्मू, नैश एन: आवर्तक पेट दर्द: १,००० स्कूली बच्चों के एक क्षेत्र सर्वेक्षण. '''' आर्क डिस १958 बाल, ३३:१65 - १70. जीर्ण श्रोणि का दर्द और स्त्री किशोरों में आवर्तक पेट दर्द पेट में दर्द या पेट में दर्द का ग़लत रोग-निदान हो सकता है। अगर दर्द एक दिन से अधिक बनी हुई है तो चिकित्सक के बजाय एक पेट दर्द के स्पेसिअलिस्ट से परामर्श करे . पेट दर्द और शर्तें. जठरांत्र शोथ विज्ञान
धानाचूली (न.ज़.आ.), धारी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा
गजरौली न्ज़ा, कोश्याँकुटोली तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा न्ज़ा, गजरौली, कोश्याँकुटोली तहसील न्ज़ा, गजरौली, कोश्याँकुटोली तहसील
परफेक्ट ब्राइड एक भारतीय रियलिटी शो है जो स्टार प्लस पर प्रसारित होता है जो अमेरिकी शो मॉम्स बॉयज़ पर आधारित है। इसका प्रीमियर १२ सितंबर २००९ को हुआ और इसमें पांच दूल्हे ग्यारह संभावित उम्मीदवारों के पैनल में से अपनी दुल्हन चुनते हैं। जीतने वाली लड़की और उसकी पसंद का साथी एक मौद्रिक पुरस्कार जीतेंगे। हितेश चौहान और रुम्पा रॉय ने १२ दिसंबर २००९ को शो जीता रोमित राज - मेज़बान शेखर सुमन - जज (रिश्तों के पारखी) अमृता राव - जज (रिश्तों के पारखी) मलायका अरोड़ा - जज (रिश्तों के पारखी) राजबीर सिंह - प्रतियोगी (दूल्हा) स्टार प्लस के धारावाहिक भारतीय वास्तविकता टेलीविजन श्रृंखला
हिन्दूताश दर्रा (अंग्रेजी: हिन्दुताश पास) या हिन्दूताग़ दर्रा मध्य एशिया में चीन द्वारा नियंत्रित शिनजियांग क्षेत्र में स्थित कुनलुन पर्वतों का एक ऐतिहासिक पहाड़ी दर्रा है। यह काराकाश नदी की घाटी में स्थित कंगशेवार नामक एक उजड़ी हुई बस्ती को योरुंगकाश नदी की घाटी में स्थित पूषा नामक शहर से जोड़ता है और आगे चलकर यही सड़क महत्वपूर्ण ख़ोतान तक जाती है। नाम का अर्थ शिनजियांग की स्थानीय उईग़ुर भाषा में 'हिन्दू ताश' का मतलब 'भारतीय पर्वत' या 'भारतीय शिला' होता है। यह दर्रा भारतीय-प्रभावित ख़ोतान राज्य को लद्दाख़ के ज़रिये भारत की मुख्यभूमि से जोड़ता था, जिस से इसका नाम पड़ा है। हिन्दूताश दर्रा पूर्वी कुनलुन शृंखला में स्थित है जहाँ दो अन्य महत्वपूर्ण दर्रे भी मौजूद हैं - संजू दर्रा और इल्ची दर्रा। संजू दर्रा शाहीदुल्ला खेमे के पास है और हिन्दूताश दर्रे से पश्चिमोत्तर में है जबकि इल्ची दर्रा हिन्दूताश से दक्षिण-पूर्व में है। यह पूरा क्षेत्र भारत के अक्साई चीन इलाक़े से उत्तर और पूरोत्तर में पड़ता है, जो वर्तमान में चीन के क़ब्ज़े में है। १८५७ में जर्मन खोजयात्री रॉबर्ट श्लागिंटवाईट (रॉबर्ट स्क्लागिन्वेत) ने सुम्गल नामक एक खेमे से चलकर यह दर्रा पार किया था और इसका ब्यौरा देते हुए कहा था कि यह लगभग १७,३७९ फ़ुट (५,४५० मीटर) कि ऊँचाई पर है और इसके शिकार पर तीखी ढलान पर एक हिमानी (ग्लेशियर) स्थित है जिसमें कई बर्फ़ीली खाइयाँ हैं। इन्हें भी देखें चीन के पहाड़ी दर्रे
कॉल्नी हैच (अंग्रेज़ी: कोलने हच) एक उत्तर लंदन में बार्नेट बरो का जिला है।
चेन्नई गरीब रथ एक्स्प्रेस २६१२ (ट्रेन सं.: २६१२) भारतीय रेल द्वारा संचालित एक गरीब रथ रेल है। यह ह निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड: न्ज़्म) से ०४:००प्म बजे छूटती है व चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड: मास) पर ०८:१०प्म बजे पहुंचती है। यह गाड़ी सप्ताह में को चलती है। इसकी यात्रा की अवधि है २८ घंटे १० मिनट।
गेगांग अपांग लगभग २२ वर्षों तक अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। भारत में दूसरे सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले कांग्रेस नेता गेगांग अपांग ने फरवरी २०१४ में पार्टी से इस्तीफा दे दिया और बीजेपी में शामिल हो गए। १९४९ में जन्मे लोग अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री अरुणाचल प्रदेश के लोग भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री
वाइब्रियोनेसी (विब्रियोनेसे) ग्राम-ऋणात्मक बैक्टीरिया का एक जीववैज्ञानिक कुल है, जो प्रोटियोबैक्टीरिया संघ के गामाप्रोटियोबैक्टीरिया वर्ग के वाइब्रियोनेलीस (विब्रिनल्स) गण का एकमात्र सदस्य है। यह मीठे और खारे जल में रहते हैं और इस कुल की बहुत सी सदस्य जातियाँ रोगजनक हैं, जिनमें हैज़ा उत्पन्न करने वाली वाइब्रियो कोलेराए (विब्रियो कॉलेरी) शामिल हैं। अधिकांश जीवदीप्तिमान बैक्टीरिया इसी कुल के सदस्य हैं और अक्सर गहरे जल में रहने वाले प्राणियों के सहजीवी होते हैं। इन्हें भी देखें
५७ रेखांश पश्चिम (५७त मेरिडन वेस्ट) पृथ्वी की प्रधान मध्याह्न रेखा से पश्चिम में ५७ रेखांश पर स्थित उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक चलने वाली रेखांश है। यह काल्पनिक रेखा आर्कटिक महासागर, अटलांटिक महासागर, ग्रीनलैण्ड, उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, दक्षिणी महासागर और अंटार्कटिका से गुज़रती है। यह १२३ रेखांश पूर्व से मिलकर एक महावृत्त बनाती है। इन्हें भी देखें ५८ रेखांश पश्चिम ५६ रेखांश पश्चिम १२३ रेखांश पूर्व
मीरान हैदर एक भारतीय कार्यकर्ता नेता और मानवाधिकार रक्षक हैं, जिन्हें नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है। वह दिल्ली यूथ विंग यूनिट के राजद प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। गिरफ्तारी और जेल १९९१ में जन्मे लोग
खुताहन में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद जिले का एक गाँव है। बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ बिहार के गाँव
तिंगलूर (तिंगलूर) भारत के तमिल नाडु राज्य के तंजावूर ज़िले में स्थित एक बस्ती है। यह पापनासम के समीप स्थित है। इन्हें भी देखें तमिल नाडु के गाँव तंजावूर ज़िले के गाँव
मिजाजी लाल,भारत के उत्तर प्रदेश की प्रथम विधानसभा सभा में विधायक रहे। १९५२ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के ११९ - करहल (पूर्व- भोगांव (दक्षिण) विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया। उत्तर प्रदेश की प्रथम विधान सभा के सदस्य ११९ - करहल (पूर्व- भोगांव (दक्षिण) के विधायक मैनपुरी के विधायक कांग्रेस के विधायक
फिक के विसरण के नियम (फिक'स लॉस ऑफ डिफेशन) एडॉल्फ फिक द्वारा सन् १८५५ में प्रतिपादित हुए थे। फिक के विसरण से संबंधित दो नियम हैं जिनकी सहायता से विसरण गुणांक, ड की गणना की जा सकती है। फिक का विसरण का प्रथम नियम विसरण-धारा-घनत्व सांद्रणप्रवणता के अनुपात में और समांतर होता है। फिक का विसरण का द्वितीय नियम इसी समीकरण से विसरण प्रक्रिया का नियंत्रण होता है। यह फ़िक का दूसरा नियम है। यदि विलयन में विद्युत् से आवेशित कण नहीं है, तो ड का संबंध कणों की गतिशीलता (मोबाइलिटी) ब से है और तब ड=क त ब जहाँ क बोल्ट्समॉन का (बोल्ट्जमान'स) स्थिरांक, त परम ताप और ब कणों की गतिशीलता है। यदि कण र त्रिज्या के गोला (स्फेरस) है और विलायक के अणु से बड़े हैं, तो ब स्टोक (स्टोक्स) के नियम से प्राप्त होता है। इस नियम के अनुसार ब=१/(६ . पी . ह . र), जहाँ ह द्रव का श्यानता गुणांक है। यदि विलयन कण विद्युत् से आवेशित हैं, तब ड कणों के विभिन्न किस्मों पर निर्भर करता है। एकसंयोजक विद्युत् अपघट्य (इलेक्ट्रॉलीटे) विलयन, जिसमें दो आयन ही सोडियम और क्लोरीन हैं, जैसे नमक के विलयन में जहाँ ब१ और ब२ दो आयनों की गतिशीलता है। इनसे विसरण गुणांक का आकलन हो सकता है और धुले कणों के विस्तार का निर्धारण किया जा सकता है। एक निश्चित परिस्थिति में मापन कर विसरण गुणांक का आकलन किया जा सकता है। विसरण गुणांक का प्रयोगों से निर्धारण कठिन इसलिए होता है कि द्रवों का विसरण बड़ी मंदगति से होता है। मापने योग्य परिवर्तन हो सके, इसमें हफ्तों या महीनों लग सकते हैं। इस समय विलयन ज्यों का त्यों बिना किसी विक्षोभ के रहना चाहिए। ऐसा होना कठिन काम है। इन कठिनाइयों के कारण ऐसे उपकरण की, जिसमें सांद्रण का बड़ा सूक्ष्म अंतर मापा जा सके, आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए एक विशिष्ट प्रकार का कक्ष बना है, जिसमें सांद्रण का बड़ा सूक्ष्म अंतर मापा जा सकता है। इसमें सूक्ष्मदर्शी की सहायता ली जाती है। रंजक के विलयनों के विसरण मापने में ही उपयोगी सिद्ध हुआ है। रंजन की कार्यविधि और जैव तंतुओं के अभिरंजन के अध्ययन में भी यह कक्ष उपयोगी सिद्ध हुआ है। विसरण गुणांक, ड, का मान भिन्न भिन्न द्रवों के लिए बहुत भिन्न भिन्न होता है। यदि किस द्रव के विसरण गुणांक का मान बहुत ऊँचा है, तो ऐसे द्रव को हम क्रिस्टलाभ (क्रिस्टलॉइड) कहते हैं और जिसका विसरण गुणांक का मान कम रहता है, उसे कोलॉइड (कॉलोइड) कहते हैं क्रिस्टलाभ, में अम्ल, लवण और अन्य वस्तुएँ आ जाती हैं, जो क्रिस्टलाभ बनती हैं और कोलॉइड में गोंद, ऐल्ब्युमेन, स्टार्च तथा सरस आते हैं। क्रिस्टलाभ साधारणतया पानी में घुलते हैं, जबकि कोलायड पानी में जेली बन जाते हैं। कोलॉइड के अणु बड़े जटिल (कॉम्प्लेक्स) होते हैं। इस कारण उनका विसरण गुणांक कम होता है। वे अपेक्षया स्वादहीन होते हैं, क्योंकि विसरित होकर तंत्रिका टर्मिनल (नर्व टर्मिनल) तक नहीं पहुँच पाते। इसी कारण वे अपाच्य भी होते हैं। इन्हें भी देखें ग्राहम का विसरण का नियम
मिलिसेंट जेनेविव "मिली" नाइट (जन्म १५ जनवरी १९९९) एक पैरालंपिक एथलीट और छात्र है, जो स्लैलम में अल्पाइन स्कीइंग में पैरालिंपिक जीबी के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशाल स्लैलम सुपर-जी, सुपर संयुक्त और डाउनहिल इवेंट मे एक दृष्टि गाइड ब्रेट वाइल्ड के साथ, प्रतिस्पर्धा करती है। जब नाइट एक वर्ष की थी, तो उसे तीन साल की उम्र में एक बीमारी का पता चला, जिसके परिणामस्वरूप उसकी अधिकांश दृष्टि छह साल की उम्र तक चली गई। वह २०१२ में ग्रेट ब्रिटेन पैरालंपिक स्कीइंग टीम में शामिल हुईं, और अंतरराष्ट्रीय स्तर की घटनाओं में प्रतिस्पर्धा करने के लिए आगे बढ़ीं। नाइट २०१४ शीतकालीन पैरालिंपिक उद्घाटन समारोह में ध्वजवाहक थीं, सोची में उनका पहला पैरालिंपिक था, जहां १५ साल की उम्र में, वह शीतकालीन पैरालंपिक खेलों में पैरालिंपिक जीबी के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाली सबसे कम उम्र की व्यक्ति थीं। २०१७ में, नाइट एंड वाइल्ड स्नो स्पोर्ट में ग्रेट ब्रिटेन के पहले विश्व चैंपियन बने। उसी वर्ष नाइट केंट विश्वविद्यालय के मानद डॉक्टर भी बने। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा नाइट का जन्म १५ जनवरी १९९९ को कैंटरबरी, केंट में हुआ था। वह छह साल की थी जब उसने अपनी दृष्टि खो दी थी; उसकी बाईं आंख में उसकी ५-१०% परिधीय दृष्टि है, और उसकी दाहिनी आंख में उसकी ५% है २०१६ तक, नाइट ने अपने ए-लेवल के लिए अध्ययन करना जारी रखा, जिसमें उसने ३ अस प्राप्त किया, २०१९ में शुरू होने वाले मनोविज्ञान का अध्ययन करने के लिए उसे लॉफबोरो विश्वविद्यालय, स्टर्लिंग विश्वविद्यालय और केंट विश्वविद्यालय में एक स्थान हासिल किया, वह अब केंट विश्वविद्यालय में पढ़ रही है। २००६ में सात साल की उम्र में, नाइट की अधिकांश दृष्टि खोने से कुछ समय पहले, वह स्कीइंग की छुट्टी पर फ्रांस गई थीं और उनकी मां ने उन्हें इस खेल को आजमाने के लिए प्रोत्साहित किया था। २०१० के शीतकालीन पैरालिम्पिक्स में भाग लेने के कुछ ही समय बाद, नाइट स्कीयर सीन रोज़ से मिलने के बाद, नाइट को प्रतिस्पर्धात्मक रूप से खेल में शामिल होने के लिए प्रेरित किया गया था। उनकी मां वित्तीय कारणों से जनवरी २०१३ के अंत तक नाइट की पहली नजर वाली गाइड इस जोड़ी ने दृष्टिबाधित (वि) दौड़ में एक साथ प्रतिस्पर्धा की। नवंबर २०१२ में, १३ साल की उम्र में, नाइट ने ग्रेट ब्रिटेन के पैरालंपिक विकास दस्ते के साथ प्रशिक्षण शुरू किया। उसने यूरोपा कप में स्लैलम और जाइंट स्लैलम में दौड़ लगाई। वसंत २०१३ में। खेलों में उनका स्टैंड इन, अस्थायी रूप से देखा गया गाइड, राचेल फेरियर, 20१३ के अंत में कुछ समय के लिए नाइट में शामिल हो गया। नाइट अपनी पूर्ण दृष्टि की कमी के कारण कक्षा बी २,अंधे और दृष्टिहीन होने के बीच एक वर्गीकरण में प्रतिस्पर्धा करती है। नाइट की पहली पैरालंपिक २०१४ सोची में शीतकालीन पैरालिंपिक थी। १५ साल की उम्र में प्रतिस्पर्धा ने उन्हें किसी भी शीतकालीन पैरालिंपिक में सबसे कम उम्र के पैरालिंपिक जीबी प्रतियोगी बना दिया। वह पैरालिंपिक जीबी के उद्घाटन समारोह में ध्वजवाहक थीं, फिश्ट ओलंपिक स्टेडियम में ध्वज लेकर, एक सम्मान नाइट जिसे "एक आश्चर्य" के रूप में वर्णित किया गया था। उसने १४ मार्च को स्लैलम में पैरालंपिक जीबी के लिए प्रतिस्पर्धा की, अपने दोनों रन पूरे किए, और पांचवें स्थान पर रही, और १६ मार्च को विशाल स्लैलम में प्रतिस्पर्धा की, फिर से पांचवें स्थान पर रही। २०१४ पैरालिंपिक में नाइट पर कोई महत्वपूर्ण उम्मीद नहीं थी, क्योंकि उसका लक्ष्य प्योंगचांग में २०१८ शीतकालीन पैरालिंपिक है। सोची के बाद सोची खेलों के बाद यह अप्रैल २०१४ में घोषणा की गई कि ५ जून २०१४ को क्वींस बैटन रिले में बैटन को ले जाने नाइट में भाग लेंगे। २०१४ पैरालिंपिक के बाद नाइट ने तुरंत फेरियर के साथ कंपनी को अलग कर दिया: परिणामस्वरूप नाइट ने २०१४-१५ सीज़न में स्टैंड-इन गाइड की एक श्रृंखला के साथ प्रतिस्पर्धा की। उस सीज़न में उन्होंने ब्रिटिश कोलंबिया के पैनोरमा माउंटेन विलेज में 20१५ आईपीसी अल्पाइन स्कीइंग वर्ल्ड चैंपियनशिप में प्रतिस्पर्धा करने के लिए कनाडा की यात्रा की। चैंपियनशिप से पहले नाइट ने विश्व कप दौरे पर दो स्वर्ण पदक जीते थे और उम्मीदें अधिक थीं कि वह पदक जीत सकती हैं। पैनोरमा नाइट में दो तकनीकी घटनाओं, स्लैलम और विशाल स्लैलम में भाग लिया, क्योंकि वह गति की घटनाओं में प्रतिस्पर्धा करने के लिए अभी भी बहुत छोटी थी। अपने पहले इवेंट में, विशाल स्लैलम, नाइट ने १:१2.९० के समय के साथ पहले रन में बढ़त ले ली, लेकिन इस बार अपने दूसरे रन में १:११.४९ के साथ बेहतर होने के बावजूद, वह एक तिहाई से रजत पदक स्थान पर पहुंच गई। रूस की एलेक्जेंड्रा फ्रांतसेवा द्वारा एक सेकंड। दो दिन बाद नाइट ने स्लैलम में हिस्सा लिया, कांस्य जीतकर, ब्रिटेन ने खेलों के केवल दो पदक जीते। अगले सीज़न नाइट ने गाइड ब्रेट वाइल्ड के साथ मिलकर काम किया, जिन्होंने पहले स्कॉटिश स्की टीम में नाइट के कोच यूआन बेनेट के साथ दौड़ लगाई थी। दिसंबर २०१५ में एक प्रशिक्षण शिविर में शुरू में मिलने के बाद, जोड़ी ने एस्पेन, कोलोराडो में विश्व कप फाइनल में एक साथ प्रतिस्पर्धा की, जहां उन्होंने डाउनहिल और सुपर-जी में दो जीत हासिल की और विशाल स्लैलम में तीसरा स्थान हासिल किया: इस सफलता ने आश्वस्त किया गति विषयों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए जोड़ी, जो उन्हें लगा कि यह उनकी ताकत है। इटली के टारविज़ियो में २०१७ विश्व पैरा अल्पाइन स्कीइंग चैंपियनशिप के लिए, नाइट ने विश्व कप सर्किट पर बड़ी सफलता का आनंद लिया, चैंपियनशिप तक जाने वाले महीनों में सात स्वर्ण सहित ११ पदक प्राप्त किए। चैंपियनशिप में, नाइट और गाइड ब्रेट वाइल्ड ने १:१3.४२ के समय के साथ डाउनहिल में स्वर्ण पदक जीता, पांच बार के पैरालंपिक चैंपियन हेनरीटा फ़ार्कासोवा को १.२ सेकंड से हराया। टीम जीबी के अधिकारियों ने कहा कि ब्रिटिश पैरास्कियर के लिए यह पहला विश्व चैंपियनशिप खिताब था। नाइट एंड वाइल्ड ने बाद में सुपर कंबाइंड में फरकासोवा के पीछे एक रजत और जायंट स्लैलम में दूसरा रजत हासिल किया। फरवरी में विश्व चैंपियनशिप के बाद से, दक्षिण कोरिया में मार्च में विश्व कप फाइनल में एक दुर्घटना के बावजूद, नाइट लगातार चोटिल हुआ। दुर्घटना ने उसे कई महीनों तक कार्रवाई से बाहर कर दिया। हालांकि उन्हें अभी भी सीज़न के लिए विश्व कप डाउनहिल चैंपियन का ताज पहनाया गया था। जुलाई २०१७ में, नाइट केंट विश्वविद्यालय के मानद डॉक्टर बने। दक्षिण कोरिया के प्योंगचांग में २०१८ पैरालिंपिक में, नाइट ने डाउनहिल और सुपर-जी में खेलों के शुरुआती सप्ताहांत में दो रजत पदक जीते, पैरालिंपिक के अंतिम दिन स्लैलम में कांस्य लेने से पहले। १९९९ में जन्मे लोग
मकराना (मकराना) भारत के राजस्थान राज्य के कुचामन सिटी जिले में स्थित एक नगर है। यह एक तहसील भी है, जिसमें १३६ से अधिक गाँव शामिल हैं। यह कुचामन सिटी ज़िले की सबसे बड़ी तहसील है। मकराना यहाँ के श्वेत पत्थर और संगमरमर के लिए प्रसिद्ध है। मकराना के संगमरमर का उपयोग ताजमहल के निर्माण में किया गया था। मकराना बड़ा कस्बा है, जिसमें विभिन्न स्थानों पर संगमरमर का खनन किया जाता है। यहाँ के निवासियों का मुख्य व्यवसाय संगमरमर खनन है। इन्हें भी देखें राजस्थान के शहर नागौर ज़िले के नगर
दक्षिण दिल्ली ज़िला है। इसमें आने वाले उपमंडल हैं: दिल्ली के जिले
यदि आप इस से मिलते-जुलते नाम के यौन रोग के बारे में जानकारी ढूंढ रहे हैं तो क्लैमिडिया संक्रमण का लेख देखें क्लैमिडियाए (क्लेमाइडीए) ग्राम-ऋणात्मक बैक्टीरिया का एक प्रमुख जीववैज्ञानिक संघ और वर्ग है। इसकी सदस्य जातियाँ बहुत विविध हैं, लेकिन सभी सुकेन्द्रिक (युकैरियोट) कोशिकाओं में संक्रमण कर के उनके भीतर ही बढ़ती हैं। कुछ जातियाँ मानवों और अन्य प्राणियों में रोगजनक हैं, जबकि अन्य प्रोटोज़ोआ में सहजीवी हैं। इनका आकार बहुत छोटा होता है, कई वायरस जितना या उस से भी कम। क्लैमिडियाए विश्व में यौनरोगों के सबसे बड़े कारकों में से एक है, और अमेरिका में प्रतिवर्ष २८.६ लाख क्लैमिडिया संक्रमण का अनुमान है। इनमें से अधिकांश की चिकित्सा सरल होती है लेकिन उपचार न करने पर अन्धता जैसी गम्भीर स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। क्लैमिडियाए के जीव केवल कोशिकाओं में ही सक्रीय होते हैं और उनमें इन्हें रसधानी (वाकुओल) या अंतर्विष्ट पिण्डो (इनस्लेशन बॉडी) में देखा जाता है। कोशिकाओं से बाहर इन्हें उगाया नहीं जा सकता। इन्हें भी देखें अविकल्पी कोशिकान्तरिक परजीवी
अहमदाबाद एक्स्प्रेस ९१४ भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन मंगलौर रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:माक) से ०६:००प्म बजे छूटती है और अहमदाबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:आदि) पर ०६:४५प्म बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है २४ घंटे ४५ मिनट। ९१४, अहमदाबाद एक्स्प्रेस
इस सूची में भारत के राज्य २०१३ में आर्थिक मुक्ति के आधर पर क्रमबद्ध किए गए हैं। यह सूची यूऍस कैटो संस्थान, फ़्रॅडरिक नॉमन संस्थापन और इण्डिकस ऐनालेटिक्स (जो कि एक अग्रणी भारतीय आर्थिक अनुसन्धान फ़र्म है) द्वारा प्रकाशित होने वाली वार्षिक रिपोर्ट से ली गई है। २०१३ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में गुजरात में सर्वाधिक आर्थिक मुक्ति है जबकि सबसे निचले पायदान पर बिहार है। इन्हें भी देखें निर्धनता रेखा * ग्राम पंचायत* नगर पंचायत अर्थव्यवस्था के आकार के आधार पर भारत के राज्य भारत के राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से संबंधित सूचियाँ
चमोला, कर्णप्रयाग तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के चमोली जिले का एक गाँव है। उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) चमोला, कर्णप्रयाग तहसील चमोला, कर्णप्रयाग तहसील
खानपुर-२ तारापुर, मुंगेर, बिहार स्थित एक गाँव है। मुंगेर जिला के गाँव
मुहम्मद अलेक्जेंडर रसेल वेब () एक अमेरिकी लेखक और राजनयिक थे, जिन्होंने फिलीपींस में अपने देश के राजदूत के रूप में कार्य किया। वह १८८९ में इस्लाम में परिवर्तित हो गया, और इतिहासकारों द्वारा उसे जल्द से जल्द प्रमुख एंग्लो-अमेरिकन मुस्लिम धर्मान्तरित माना जाता है। १८९३ में, वह विश्व के धर्मों की पहली संसद में इस्लाम का प्रतिनिधित्व करने वाले एकमात्र व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई अपने देश में बिताई, फिर न्यूयॉर्क शहर चले गए, जहाँ उन्होंने स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। अपने साहित्यिक झुकाव के जवाब में, जो उनके व्यापक ज्ञान, उर्वर कल्पना और मुक्त राय से प्रबलित थे, उन्होंने पत्रकारिता में व्यावहारिक जीवन के क्षेत्र में प्रवेश के बाद से काम किया, और सार्थक और प्रभावशाली लेख लिखने के लिए प्रसिद्ध हुए। साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में उनकी सफलता ऐसी थी कि उन्होंने जल्द ही (सेंट जोसेफ जेरेट) और (मिसौरी रेप्लिकन) के प्रधान संपादक का पदभार ग्रहण कर लिया। अलेक्जेंडर रसेल वेब, पत्रकारिता में व्यस्त रहते हुए, धर्मों की उत्पत्ति और सिद्धांतों में रुचि रखते थे। इसलिए उन्होंने यहूदी आस्था और उन संप्रदायों का अध्ययन किया जो इससे उभरे और इससे निकले, साथ ही साथ ईसाई धर्म और इसके सिद्धांत, और इस्लाम, इसकी विरासत और इसकी कुरान, साथ ही अन्य पूर्वी धर्म; जैसे: पारसी धर्म, कन्फ्यूशीवाद, और बौद्ध धर्म, और बहुत कुछ पढ़ा जो पश्चिमी विद्वानों ने विश्वासों, धर्मों और सिद्धांतों के बारे में लिखा। इस्लाम में उनका रूपांतरण उन्होंने खुद को पूर्व की ओर मुड़ने की आकांक्षा की, जो धर्मों का स्रोत था, और उनके विशिष्ट गुणों और विशिष्ट व्यक्तित्व ने उन्हें १८८७ ईस्वी में फिलीपींस की राजधानी मनीला में अमेरिकी कौंसल का पद ग्रहण करने में सक्षम बनाया और उस देश में उन्हें अनुमति दी गई। अपने जीवन में पहली बार मुसलमानों के साथ संवाद किया और उन्हें एक नज़र से देखा और इन मुसलमानों से उन्होंने इस्लाम के बारे में जानकारी प्राप्त की, वह अपने अनुयायियों की आत्मा पर इस्लाम के गहरे प्रभाव से प्रभावित थे, इसलिए उन्होंने विश्वास किया इसे और वर्ष १८८८ ईस्वी में इस्लाम में परिवर्तित कर दिया गया, और उन्हें मूल नाम के साथ जोड़ा गया (मुहम्मद) नाम दिया गया, इसलिए उन्हें मुहम्मद अलेक्जेंडर रसेल वेब कहा जाने लगा। बाद का जीवन न्यूयॉर्क में बसने के बाद, उन्होंने ११२२ अपर ब्रॉडवे में ओरिएंटल पब्लिशिंग कंपनी की स्थापना की। इस कंपनी ने उनके लेखन को प्रकाशित किया, जिसमें अमेरिका में उनकी महान रचना इस्लाम भी शामिल है, जिसमें आठ अध्याय शामिल हैं: मैं मुसलमान क्यों बना इस्लामी आस्था की एक रूपरेखा अभ्यास के पांच स्तंभ इस्लाम अपने दार्शनिक पहलू में बहुविवाह और पर्दा लोकप्रिय त्रुटियाँ अस्वीकृत मुस्लिम रक्षात्मक युद्ध अमेरिकी इस्लामी प्रचार इन्हें भी देखें अब्दुल्ला क्विलियम । लेडी ज़ैनब कोब्बोल्ड सारा जोसेफ (संपादक) विक्टोरियन अमेरिका में एक मुस्लिम, अलेक्जेंडर रसेल वेब का जीवन अलेक्जेंडर रसेल वेब ( संग्रहीत २००९-१०-२५) इस्लाम में परिवर्तित लोगों की सूची
मैरी वालेस "वैली" फंक (जन्म १ फरवरी, १939) एक अमेरिकी एविएटर, वाणिज्यिक अंतरिक्ष यात्री और सद्भावना राजदूत हैं। वह राष्ट्रीय परिवहन सुरक्षा बोर्ड के लिए पहली महिला हवाई सुरक्षा अन्वेषक, फोर्ट सिल, ओक्लाहोमा में पहली महिला नागरिक उड़ान प्रशिक्षक, और पहली महिला संघीय उड्डयन एजेंसी निरीक्षक, साथ ही साथ बुध १3 में से एक थी। जॉन ग्लेन द्वारा रखे गए २३ साल के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए, फंक अंतरिक्ष में जाने वाले सबसे उम्रदराज व्यक्ति बन गए, जिसने २० जुलाई, २०21 की सबऑर्बिटल उड़ान के दौरान ब्लू ओरिजिन के न्यू शेपर्ड अंतरिक्ष यान पर यह रिकॉर्ड बनाया। २०21 तक, वह मरकरी १३ समूह की एकमात्र सदस्य हैं जिन्होंने अंतरिक्ष की यात्रा की है। इन्हें भी देखें
पुनासा (पुनासा) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के खंडवा ज़िले में स्थित एक गाँव है। यह इसी नाम की तहसील का मुख्यालय भी है। इन्हें भी देखें मध्य प्रदेश के गाँव खंडवा ज़िले के गाँव
भारत एक संघ है, जो २८ राज्यों एवं ८ केन्द्र शासित प्रदेशों से बना है। यहां की २००८ की अनुमानित जनसंख्या १ अरब १3 करोड़ के साथ भारत विश्व का दूसरा सर्वाधिक जनाकीर्ण देश बन गया है। इससे पहले इस सूची में बस [चीन] ही आता है। भारत में विश्व की कुल भूमि का २.४% भाग ही आता है। किंतु इस २.४% भूमि में विश्व की जनसंख्या का १६.९% भाग रहता है। भारत के गांगेय-जमुनी मैदानी क्षेत्रों में विश्व का सबसे बड़ा ऐल्यूवियम बहुल उपत्यका क्षेत्र आता है। यही क्षेत्र विश्व के सबसे घने आवासित क्षेत्रों में से एक है। यहां के दक्खिन पठार के पूर्वी और पश्चिमी तटीय क्षेत्र भी भारत के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में आते हैं। पश्चिमी राजस्थान में थार मरुस्थल विश्व का सबसे घनी आबादी वाला मरुस्थल है। हिमालय के साथ साथ उत्तरी और पूर्वोत्तरी राज्यों में शीत-शुष्क मरुस्थल हैं, जिनके साथ उपत्यका घाटियां हैं। इन राज्यों में अदम्य आवासीय स्थितियों के कारण अपेक्षाकृत कम घनत्व है। भारत की जनगणना ब्रिटिश भारत की प्रथम जनगणना १८७२ में हुई थी। भारतीय स्वतंत्रता उपरांत प्रत्येक दस वर्षों के अंतराल पर जनगणना होती है। यह १९५१ से आरंभ हुआ था। यह जनगणना महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त के कार्यालय द्वारा आयोजित होता है। यह कार्यालय भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन आता है और इस संघीय सरकार द्वारा आयोजित एक वृहत कार्य है। अंतिम जनसंख्या आंकड़े २००१ की भारतीय जनगणना के जनगणना आंकड़ों के अनुसार है। भारत के राज्य और संघ शासित प्रदेश जनसंख्या अनुसार भारत का कुल भूगोलीय क्षेत्रफ़ल है। जनसंख्या घनत्व निकटतम पूर्णांक तक राउंडेड ऑफ है। <प>२००१ के आंकड़ों के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या है: १,०२८,७३७,४३६. (इस संख्या में अतिरिक्त १२७,१०८ माओ मारम, पाओमाटा और पुरुल उपभाग, सेनापति जिला, मणिपुर के भी जोड़ें) इन्हें भी देखें भारत में सर्वाधिक जनसंख्या वाले महानगरों की सूची भारत की जनसांख्यिकी भारत के सर्वाधिक जनसंख्या वाले शहरों की सूची भारत से सम्बन्धित सूचियाँ म्र:भारतीय राज्ये व केंद्रशासित प्रदेश यांची सूची लोकसंख्ये प्रमाणे
कटरी धरमपुर फर्रुखाबाद, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। फर्रुखाबाद जिला के गाँव
बनूं मैं तेरी दुल्हन एक भारतीय सोप ओपेरा है जो १४ अगस्त २००६ से २८ मई २००९ तक ज़ी टीवी पर प्रसारित हुआ इसमें दिव्यांका त्रिपाठी और शरद मल्होत्रा ने विद्या और सागर की मुख्य भूमिका निभाई थी। यह श्रृंखला एक छोटे शहर की महिला विद्या के जीवन से संबंधित है, जो एक अमीर व्यवसायी सागर से शादी करने के बाद दिल्ली पहुंचती है। कहानी बनारस ( वाराणसी ) की एक सुंदर, सरल और वफादार विद्या के बारे में है। वह अपने घर का सारा काम करती है और उसके चाचा, चाची और चचेरा भाई शालू उस पर अत्याचार करते हैं। वे विद्या को शिक्षा प्राप्त नहीं करने देते और उसे अनपढ़ छोड़ देते हैं। जल्द ही, राजेंद्र प्रताप सिंह, जो बनारस में एक जमींदार थे, जो दिल्ली में रहते हैं और एक व्यापारी हैं, अपने बेटे सागर के लिए पत्नी ढूंढने के लिए बनारस आते हैं। जब सागर के पिता विद्या को देखते हैं, तो उन्होंने फैसला किया कि वह उनकी बहू बनेगी। २१ साल बाद सागर और विद्या का उनकी मृत्यु की रात अमर शिवधर उपाध्याय और दिव्या के रूप में पुनर्जन्म हुआ था। अमर का जन्म राजीव और महुआ के बेटे के रूप में हुआ है। राजीव सिन्दूरा के बारे में पुजारी की भविष्य की भविष्यवाणी को सुन लेता है और अमर को शिवधर उपाध्याय के जैविक पुत्र सम्राट के साथ बदल देता है। दिव्या लंदन की एक आधुनिक अमीर लड़की है और अमर बनारस का एक सहज टूर गाइड है। दिव्या सम्राट की दोस्त है और दिल्ली में उससे और उसके सिंह परिवार से मिलने आती है। वह गलती से आगरा की बजाय बनारस चली जाती है। अमर और दिव्या दोनों वहां मिलते हैं, दिव्या को अपने पिछले जन्म के समय के अजीब फ्लैशबैक आते हैं जो उसे तुरंत याद नहीं आते। अमर और दिव्या को एक दूसरे से प्यार हो जाता है लेकिन दिव्या अमर की बचपन की दोस्त बिंदिया के लिए अपने प्यार का बलिदान दे देती है और दिल्ली लौट आती है। अमर और बिंदिया की शादी के दिन बिंदिया अमर को दिव्या के बलिदान के बारे में बताती है और वे दोनों अपनी शादी तोड़ देते हैं। सम्राट दिव्या को शादी के लिए प्रपोज करता है और दिव्या इसके लिए राजी हो जाती है। दिव्या सोचती है कि अमर की शादी बिंदिया से हुई है। सम्राट सिर्फ पैसों के लिए दिव्या से शादी कर रहा है। अमर दिव्या को खोजने के लिए दिल्ली आता है और सिंह परिवार से मिलता है और उसे सम्राट और दिव्या की शादी के बारे में पता चलता है और उसका दिल टूट जाता है। राजीव को पता चलता है कि अमर उसका जैविक पुत्र है और सिन्दूरा भी। दिव्या को अमर का पत्र मिलता है और उसे पता चलता है कि अमर ने बिंदिया से शादी नहीं की है। अमर को पता चलता है कि चीनू और शालू की बेटी कामना सम्राट के बच्चे से गर्भवती है और वे सम्राट और दिव्या की शादी रोक देते हैं और परिवार को सम्राट की सच्चाई बता देते हैं। सिन्दूरा ने सभी को अमर के राजीव के जैविक पुत्र होने के बारे में बताया और राजीव ने भी सच्चाई का खुलासा किया और शो समाप्त हो गया। कलाकार और पात्र दिव्यांका त्रिपाठी दहिया विद्या सागर प्रताप सिंह / दिव्या अमर शुक्ला के रूप में - सागर / अमर की पत्नी, कौशल्या की बेटी। सागर प्रताप सिंह / अमर शिवधर उपाध्याय / अमर राजीव शुक्ला उर्फ छोटा ठाकुर के रूप में शरद मल्होत्रा - विद्या/दिव्या के पति, राजेंद्र प्रताप सिंह और उमा प्रताप सिंह के बेटे (सीजन १) / राजीव और महुआ के बेटे (सीजन २)। राजेंद्र गुप्ता - राजेंद्र प्रताप सिंह - सागर, सिन्दूरा, महुआ और चंद्रा के पिता। उमा के पति की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई। (एपिसोड १-१3) उमा प्रताप सिंह के रूप में सुरिंदर कौर - सागर की माँ। राजेंद्र प्रताप सिंह की दूसरी पत्नी। सिन्दूरा, महुआ और चंद्रा की सौतेली माँ (छोटी-माँ)। (एपिसोड १-७००) गायत्री के रूप में जया भट्टाचार्य - सागर की चाची, सिन्दूरा द्वारा रचित एक कार दुर्घटना के कारण, वह दिव्या (विद्या) की तरह कोमा में चली जाती है। (एपिसोड २६६-३५४) काम्या पंजाबी सिन्दूरा प्रताप सिंह के रूप में। राजेंद्र की सबसे बड़ी दुष्ट बेटी, भरत की पूर्व माँ, अनिकेत की पूर्व पत्नी, सागर और विद्या की हत्यारी। वह विद्या, दिव्या, सागर और अमर से नफरत करती है। (एपिसोड ७-55७, ६२२-७00) अनिकेत के रूप में राजेश बलवानी - सिन्दूरा के पूर्व पति और भरत के पिता। वह जानता है कि सिन्दूरा दुष्ट है और वह सागर और विद्या को एक साथ देखना चाहता है। (एपिसोड २८-४१९, ५१५-७००) युवा भरत के रूप में श्याम शर्मा - अनिकेत और सिन्दूरा का बेटा। वह घर से भाग गया और २१ साल बाद वापस लौटा। (एपिसोड २८-३९३) समीर के रूप में राज लाठिया (एपिसोड १००-३४३) वयस्क भरत सिंह उर्फ मिस्टर बीएस के रूप में मोहित मलिक (एपिसोड ५१५-७००) अदिति, भरत की पत्नी और करण की पूर्व पत्नी के रूप में शमीन मन्नान । (एपिसोड ५१६-७००) हिमांशी चौधरी / रितु वशिष्ठ महुआ सिंह के रूप में - राजीव की पत्नी और अमर की माँ। अंततः वह अपनी बहन चंद्रा के साथ गायब हो जाती है। यह चरित्र एपिसोड ७-४९४ और ४९५-5७8 में दिखाई दिया। राधा के रूप में आम्रपाली गुप्ता, बनारस से विद्या की दोस्त। (एपिसोड १-१2) महुआ के पति राजीव शुक्ला के रूप में हर्ष वशिष्ठ । बाद में उनकी शादी चंद्रा से हुई। यह चरित्र एपिसोड २७८-५१४, ५२७,५२९, ५५३,५७१ और ५७५ में दिखाई दिया। महुआ के पूर्व पति कार्तिक के रूप में फैसल रज़ा खान । सम्राट के रूप में विशाल वटवानी, राजीव और महुआ का झूठा बेटा, अमर के माता-पिता का जैविक पुत्र। वह वीरेन और दिव्या का अच्छा दोस्त है और दिव्या का पूर्व मंगेतर है। (एपिसोड ३९६ से ५०७ तक) ऑडिट शिरवाइकर / श्वेता दाधीच, चंद्रा, राजेंद्र की बेटी के रूप में। अंततः वह अपनी बहन महुआ के साथ गायब हो जाती है। यह किरदार आखिरी बार एपिसोड ७-३९३ और ३९६-6७3 में दिखाई दिया था। हर्ष के रूप में पुनीत वशिष्ठ, चंद्रा के पूर्व पति, अब जेल में हैं। यह चरित्र एपिसोड १-३७७ में दिखाई दिया। कामिनी कौशल दादी माँ, हर्ष की दादी के रूप में। कौशल्या के रूप में सुहिता थट्टे, विद्या की माँ (एपिसोड १-२०६), वह नहीं जानती कि उसकी बेटी विद्या और दामाद सागर को सिन्दूरा ने मार डाला था शालू की मां हेमा चाची के रूप में रेणुका बोंद्रे । बाद में वह पति हरीश के साथ गायब हो गई। यह किरदार आखिरी बार एपिसोड ५६२ में दिखाई दिया था। चीनू की पत्नी शालू के रूप में स्नेहल सहाय । हेमा की बेटी, कामना की मां और विद्या की चचेरी बहन। यह किरदार आखिरी बार एपिसोड ३९३,४५३, ५१७ और ५३७ में दिखाई दिया था। चीनू, शालू के पति, कामना के पिता और सागर के चचेरे भाई के रूप में मनीष नागदेव । यह किरदार आखिरी बार एपिसोड ३९३,४५३ और ५३७ में दिखाई दिया था। चीनू और शालू की बेटी कामना के रूप में अमरीन चक्कीवाला। वह सम्राट के बच्चे से गर्भवती है। उनकी सगाई हो गई थी, लेकिन टूट गई क्योंकि सम्राट ने उसे बंधक बनाकर अपहरण कर लिया था। (एपिसोड ४०३ से ५०८) सागर के बचपन के दोस्त तुषार के रूप में इंद्रनील सेनगुप्ता । (एपिसोड १२८ से २०६ तक) डॉ. शिवानी के रूप में नीता शेट्टी सागर की पूर्व प्रेमिका सुरीली के रूप में सोनी सिंह । डीजे, सागर और विद्या के सहायक के रूप में अतुल श्रीवास्तव चिंटू के रूप में अभिलीन पांडे, अमर का छोटा चचेरा भाई। वह वास्तव में सम्राट का भाई है। वह गायब हो जाता है. बिंदिया के रूप में अनोखी श्रीवास्तव, अमर की बचपन की दोस्त और पूर्व मंगेतर। वीरेन के रूप में आदेश चौधरी, दिव्या और सम्राट के पुराने दोस्त और दिव्या के नकली पति। (एपिसोड ५०९ से ५२०) डॉ. शशांक के रूप में सचिन श्रॉफ । (एपिसोड ६७७ से ६९६) गौरी के रूप में अनीशा कपूर, एक गाँव की लड़की जो सोचती है कि अमर उसका मंगेतर शिवम है। (एपिसोड ५६३ से ६५५) शिवम के रूप में उमर वाणी, गौरी का मंगेतर जिसमें अमर गलती से उसके ऊपर चढ़ जाता है और मर जाता है। (एपिसोड ५६२,५६३,५६६ एवं ५९३) करुणा के रूप में सोनाली वर्मा: भारत की छोटी माँ। घर से भागने के बाद वह भरत से प्यार करती थी और उसकी देखभाल करती थी क्योंकि सिन्दूरा ने विद्या और सागर को मार डाला था। बनूं मैं तेरी दुल्हन आधिकारिक साइट भारतीय टेलीविजन धारावाहिक ज़ी टीवी के कार्यक्रम
भारत में उच्च शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत सार्वजनिक और निजी दोनों प्रकार के विश्वविद्यालय सम्मिलित हैं। सार्वजनिक विश्वविद्यालयों को भारत के केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों से सहायता मिलती है जबकि निजी विश्वविद्यालय विभिन्न निजी संस्थाओं एवं सोसायटी के द्वारा संचालित होते हैं। भारत में विश्वविद्यालयों की मान्यता विश्वविद्यालय अनुदान आयोग देता है। राजस्थान में सर्वाधिक ४६ निजी विश्वविद्यालय हैं। इसके विपरीत आन्ध्र प्रदेश, गोवा, जम्मू और कश्मीर, केरल, तमिलनाडु, और तेलंगण में कोई भी निजी विश्वविद्यालय नहीं है। किसी भी संघशासित प्रदेश में भी कोई निजी विश्वविद्याल्य नहीं है। विश्वविद्यालयों की सूची इन्हें भी देखें भारत के विश्वविद्याल्यों की सूची
गोपीनाथ बोरदोलोई (असमिया : / गोपीनाथ बरदलै ; १८९०-१९५०) भारत के स्वतंत्रता सेनानी और असम के प्रथम मुख्यमंत्री थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद उन्होने सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ नजदीक से कार्य किया। उनके योगदानों के कारण असम चीन और पूर्वी पाकिस्तान से बच के भारत का हिस्सा बन पाया। वे १९ सितंबर, १९38 से १७ नवंबर, १९39 तक असम के मुख्यमंत्री रहे। उन्हें सन् १९99 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। गोपीनाथ बोरदोलोई का जन्म ६ जून १८९० को रहा नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम बुद्धेश्वर बोरदोलोई और माता का नाम प्रनेश्वरी बोरोदोलोई था। जब गोपीनाथ जी मात्र १२ वर्ष के थे इनकी माता का देहांत हो गया। १९०७ में मेट्रिक पास करने के बाद इनको कॉटन कॉलेज (इंग्लैंड के कॉटन में रोमन कैथोलिक बोर्डिंग स्कूल) में दाखिला मिल गया। उन्होने १९०९ में प्रथम श्रेणी में आई. ऐ. पास किया और जाने-माने स्कोत्तिश चर्च कॉलेज, कोलकाता में प्रवेश लिया और १९११ में स्नातक की डिग्री ली। १९१४ में कोलकाता विश्वविद्यालय से ए॰ ऐ. किया। इन्होने ३ साल कानून (ला) की पढ़ाई की और बिना परीक्षा में बेठे ही वापस गुवाहाटी आ गए और फिर तरुण राम फुकन के कहने पर सोनाराम हाई स्कूल में प्रिसिपल की अस्थाई नौकरी कर ली। उसी दौरान इन्होने क़ानून की परीक्षा दी और पास भी हुए, १९१७ में गुवाहाटी में प्रक्टिस शुरू कर दी। विभिन्न सामाजिक कार्य १९३० से १९३३ तक, उन्होंने खुद को सभी राजनीतिक गतिविधियों से दूर रखा और विभिन्न सामाजिक कार्यों में शामिल हो गए। १९३२ में गुवाहाटी के नगरपालिका बोर्ड के अध्यक्ष बने। १९३६ में क्षेत्रीय विधानसभा चुनाव में भाग लेकर उन्होंने ३८ सीटें जीतीं और विधानसभा में बहुमत सिद्ध किया। उन्होंने असम के लिए एक अलग विश्वविद्यालय और उच्च न्यायालय की मांग की। उनके प्रयत्नो से यह दोनों बातें सम्भव हुईं। १९३९ में प्रदेश विधानसभाओं के लिए चुनाव में भाग लिया और कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जीतकर असम के मुख्यमन्त्री बने। उसके बाद वे पूर्ण रूप से जनता के लिए समर्पित हो गए। इन्हें भी देखें लोकप्रिय गोपीनाथ बारदोलोई अन्तरराष्ट्रीय विमानक्षेत्र गोपीनाथ बोरदोलोई की दूरदर्शिता के कारण ही असम षड़यंत्र का शिकार होने से बच गया १८९० में जन्मे लोग १९५० में निधन भारत रत्न सम्मान प्राप्तकर्ता भारतीय स्वतंत्रता सेनानी असम के मुख्यमंत्री असम के लोग
रोबर्ट अगन्यू (जून ४, १८९९ नवम्बर ८, 19८3), जिन्हें बॉब्बी अगन्यू के नाम से भी जाना जाता है, डेटन, केंटकी में पैदा हुए, एक अमेरिकी फिल्म अभिनेता थे जिन्होने मूक फिल्म युग में ज्यादातर काम किया और दोनों मूक और ध्वनि युग में ६५ फिल्में की। अमेरिकी फ़िल्म अभिनेता
चश्मे बद्दूर १९९८ में ज़ी टीवी चैनल पर प्रसारित हिन्दी भाषा का धारावाहिक है। यह धारावाहिक भारत के लोकप्रिय टेलीविजन निर्माता मनिष गोस्वामी द्वारा निर्मित है। इसकी कहानी एक ऐसी महिला की है जिसका जीवन शानदार किशोरावस्था और मध्यम आयु की विषम में आ चुका है और वह नहीं जानती कि इसके साथ कैसे जिया जाये। जतिन कनकिया - चतुरदास चौरसिया चश्मे बद्दूर का आधिकारिक जालस्थल
रश्मि शर्मा टेलीफिल्म्स (रश्मि शर्मा टेलीफ़िल्म) एक भारतीय उत्पादन कंपनी है जो मुंबई में स्थित है। २००८ में पहला शो राजा की आएगी बारात शो निर्मित किया गया। यह शो २००८ से २०१० तक स्टार प्लस पर प्रसारित किया गया। डेस ऑफ़ तफरी भारत की दूरदर्शन उत्पादन कंपनियां भारत की मनोरंजन कंपनियां
दिल्ली के चाणक्यपुरी क्षेत्र का एक सड़क मार्ग है। दिल्ली में सड़कें
मार्वल्स एजेंट्स ऑफ़ शील्ड या सिर्फ एजेंट्स ऑफ़ शील्ड जोस विडन, जेड वेडन और मौरीसा टैंचोएन द्वारा एबीसी के लिए बनाई गई एक अमेरिकी टेलीविजन श्रृंखला है, जो कि मार्वल कॉमिक्स के एक काल्पनिक जासूसी संगठन शील्ड (एसएचआईईएलडी; स्ट्रेटेजिक होमलैंड इंटरवेंशन, एनफोर्समेंट एंड लोजिस्टिक्स डिपार्टमेंट) पर आधारित है। यह मार्वल सिनेमेटिक यूनिवर्स (एमसीयू) में स्थापित है, और यूनिवर्स की फिल्मों और अन्य टेलीविजन श्रृंखलाओं के साथ निरंतरता साझा करती है। श्रृंखला एबीसी स्टूडियोज, मार्वल टेलीविजन, और उत्परिवर्ती दुश्मन प्रोडक्शंस द्वारा निर्मित है, जिसमें जेड वेडन, टैंचोएन और जेफरी बेल शोरनर के रूप में कार्यरत हैं। यह श्रृंखला फिल कॉल्सन नामक किरदार और शील्ड के एजेंटों की उनकी टीम के इर्द-गिर्द घूमती है, जो विभिन्न असामान्य मामलों और दुश्मनों से निपटते हैं, जिनमें हाइड्रा, इंसान, और क्री जैसी एलियन प्रजातियां भी शामिल हैं। फिल्म मार्वल्स द अवेंजर्स की सफलता के बाद जोस विडन ने एजेंट्स ऑफ़ शील्ड का पायलट विकसित करना शुरू किया, और अक्टूबर २०१२ में कॉल्सन के भूमिका के लिए अभिनेता क्लार्क ग्रेग की पुष्टि की, जिन्होने ये भूमिका फिल्मों में भी निभाई थी। सीरीज़ को आधिकारिक तौर पर मई २०१३ में एबीसी द्वारा उठाया गया था, और मिंग-ना वेन, ब्रेट डाल्टन, क्लो बेनेट, इयान डी कैस्टेकर, एलिजाबेथ हेनस्ट्रिज, निक ब्लड, एड्रियन पाल्की, हेनरी सिमन्स, ल्यूक मिशेल, जॉन हन्ना, और नतालिया कॉर्डोवा-बकली को भी विभिन्न एजेंटों की भूमिका के लिए बाद के सत्रों में शामिल किया गया। श्रंखला के कई एपिसोड एमसीयू की फिल्मों या टेलीविजन श्रृंखला के अन्य एपिसोडों के साथ सीधे क्रॉसओवर हैं, जबकि एमसीयू फिल्मों और मार्वल वन-शॉट्स के अन्य पात्र भी पूरी श्रृंखला में दिखाई देते रहते हैं। श्रंखला का पहला सीजन मूल रूप से २४ सितंबर २०१३ से १३ मई २०१४ तक प्रसारित किया गया था, जबकि दूसरा सत्र २३ सितंबर २०१४ से १२ मई २०१५ तक प्रसारित हुआ था। एक तीसरा सीज़न २९ सितंबर २०१५ को शुरू होकर १७ मई २०१६ को समाप्त हुआ, और चौथा सीजन २० सितंबर २०१६ से १६ मई २०१७ तक चला। एजेंट्स ऑफ़ शील्ड का पांचवां सीजन १ दिसंबर २०१७ को प्रीमियर हुआ और १8 मई २०१8 को समाप्त हुआ। मई २०१8 में, श्रृंखला को छठे सीजन के लिए नवीनीकृत किया गया था, जिसका प्रसारण २०१9 के मध्य में प्रस्तावित है। उच्च रेटिंग और मिश्रित समीक्षाओं के साथ पहला सीज़न शुरू करने के बाद, निरंतर समीक्षाओं में सुधार होने पर भी शृंखला की रेटिंग घटती ही रही है। हालांकि इसने बाद के सीजनों में कम लेकिन अधिक सुसंगत रेटिंग के साथ-साथ लगातार लगातार सकारात्मक समीक्षा प्राप्त की है। अमेरिकन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी नेटवर्क कार्यक्रम