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इलोकानो (इलोकेनो) दक्षिणपूर्वी एशिया के फ़िलिपीन्ज़ देश में बोली जाने वाली ऑस्ट्रोनीशियाई भाषा परिवार की मलय-पोलेनीशियाई शाखा की एक भाषा है। यह उत्तरी फ़िलिपीन्ज़ के लूज़ोन द्वीप के एक विस्तृत भाग में बोली जाती है। सन् २०१५ में इसे फ़िलिपीन्ज़ के ९१ लाख लोग मातृभाषा के रूप में बोलते थे, जिसके आधार पर यह फ़िलिपीन्ज़ की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। २०१२ में इलोकोस क्षेत्र के ला युनियोन प्रान्त ने इसे आधिकारिक प्रान्तीय भाषा देने का विधेयक पारित करा। यह उस देश की पहली स्थानीय भाषा है जिसे ऐसा दर्जा प्राप्त हुआ है। इसका तगालोग भाषा से गहरा सम्बन्ध है जो अंग्रेज़ी के साथ-साथ फ़िलिपीन्ज़ की राष्ट्रभाषा होने का दर्जा रखती है।
इन्हें भी देखें
ऑस्ट्रोनीशियाई भाषा परिवार
फ़िलिपीन्ज़ की भाषाएँ |
पवनार वर्धा के पास धाम नदी पर बसा हुआ है. पवनार दुनिया मे आचार्य विनोबा भावे का जन्मस्थान से जाना जाता हैं. |
गोरिचेन पर्वत चोटी, भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश में तवांग और पश्चिम कामेंग जिलों के बीच मौजूद एक पर्वत चोटी है। अरुणाचल प्रदेश पर्यटन विभाग के अनुसार कुल ऊँचाई के साथ यह पूर्वी भारत और अरुणाचल प्रदेश की सबसे ऊँची चोटी है। वर्तमान में यह गैर-प्रतिबंधित इलाके में है और पर्वतारोहण करने वालों के लिए खुली है तथा प्रमुख पर्यटक आकर्षण है। कुछ अन्य स्रोतों के मुताबिक़ गोरिचेन समूह में कुल छह चोटियाँ हैं।
ट्रेकिंग और पर्वतारोहण के लिए यहाँ सितंबर-अक्टूबर सबसे बेहतरीन होता है जब मानसून की बारिश बंद हो चुकी होती है और दृश्यता अच्छी होती है। अन्य स्रोतों में, जहाँ गोरिचेन को छह छोटियों के समूह के रूप में परिभाषित किया गया है, "कांग तो" चोटी, , जिसे स्थानीय रूप से "शेर काँगड़ी" कहते हैं, को सबसे ऊँचा बताया गया है और पूर्वी भारत की एकमात्र चोटी बताया जाता है जो सात हजार मीटर से अधिक ऊँचाई वाली है।
इन्हें भी देखें
हिमालय के पर्वत
अरुणाचल प्रदेश के पर्वत |
काट-छांट (पृनिंग) उद्यानिकी तथा वनवर्धन (सिल्वीकल्चरल) में प्रयुक्त कार्य है जिसमें पौधों/पेड़ों के कुछ भागों (शाखा, कलियाँ, जड़ आदि) को चुनकर काटकर हटा दिया जाता है।
इन्हें भी देखें
फलदार वृक्षों की काट-छांट |
४८७ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है।
अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ |
पिपेरोनॉल जिसे हेलियोट्रोपिन भी कहा जाता है, एक कार्बनिक यौगिक है जो आमतौर पर सुगंध और स्वाद में पाया जाता है। अणु संरचनात्मक रूप से अन्य सुगंधित एल्डिहाइड जैसे बेंजाल्डिहाइड और वैनिलिन से संबंधित है। |
चकती का क्षेत्रफल और सामान्यतः जिसे र त्रिज्या के वृत्त का क्षेत्रफल भी कहा जाता है, र२ होता है। यहाँ प्रतीक (यूनानी वर्ण पाई) वृत्त की परिधि और उसके व्यास अथवा वृत्त के क्षेत्रफल और उसकी त्रिज्या के वर्ग के अनुपात के बराबर होता है। |
ब्रिटिश भारत के वायसराॅय लॉर्ड लिटन की दमनकारी नीतियों में एक और प्रमुख कार्य, भारतीय शस्त्र अधिनियम,१८७८ था। सन् १८७८ में ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा पारित ग्यारहवें अधिनियम के अनुसार किसी भारतीय नागरिक के लिए बिना लाइसेंस शस्त्र/हथियार रखना अथवा उसका व्यापार करना, एक दंडनीय अपराध बन गया। इस अधिनियम को तोड़ने पर ३ वर्ष तक की ज़ेल, अथवा जुर्माना या फिर इनमें से दोनों, और यदि इसको छुपाने का प्रयत्न किया गया हो तो उस पर सात वर्ष तक की ज़ेल, अथवा जुर्माना या फिर इनमें से दोनों दण्ड दिए जा सकते थे। इसमें भी ब्रिटिश सरकार द्वारा भेदभाव किया जाता था अर्थात यूरोपीय, ऐंग्लो-इण्डियन अथवा सरकार के कुछ विशेष अधिकारी इस अधिनियम की परिधि से मुक्त थे। इस अधिनियम द्वारा स्पष्ट हो गया कि उस समय ब्रिटिश भारत में भारतीय लोग अविश्वसनीय समझे जाते थे।
यूनाइटेड किंगडम की संसद द्वारा पारित अधिनियम |
दिवंगत का अर्थ है वह व्यक्ति जो अभी दुनिया से गुज़र चुका है।
हज़ारों संख्या में लोग अपने दिवंगत नेता के पार्थिव शारीर को अंतिम बार देखने
अन्य भारतीय भाषाओं में निकटतम शब्द |
५ का वर्गमूल एक धनात्मक वास्तविक संख्या है, जिसे स्वयं से गुणा करने पर अभाज्य संख्या ५ प्राप्त होती है। इसे समान गुण वाली ऋणात्मक संख्या से भिन्न करने हेतु अधिक सटीक रूप से ५ का मुख्य वर्गमूल कहा जाता है। यह संख्या स्वर्णिमानुपात के भग्नांकात्मक व्यंजक में दर्शन देती है। इसे मूल रूप में निरूपित किया जा सकता है:
यह एक अपरिमेय बीजीय संख्या है। इसके दशमलव विस्तार के प्रथम षष्टि महत्त्वपूर्ण अंक हैं:
जिसे ९९.९९% परिशुद्धता के भीतर २.२36 तक घटाया जा सकता है। जनवरी २0२२ तक, दशमलव में इसके संख्यात्मक मान की गणना न्यूनतम २.२5 खरब अंकों तक की गई है। |
भगवानपुर फ़र्रूख़ाबाद जिले का एक गाँव।
फर्रुखाबाद जिला के गाँव |
नैनीताल जिला भारतीय राज्य उत्तराखण्ड का एक जिला है। जिले का मुख्यालय नैनीताल शहर है।
नैनीताल जिला, कुमाऊँ मण्डल में स्थित है और इसके उत्तर में अल्मोड़ा जिला और दक्षिण में उधमसिंहनगर जिला है। हल्द्वानी इस जिले में सबसे बड़ा नगर है।
नैनीताल जिले के महत्वपूर्ण नगर हैं:
जैसे ही हम नैनीताल से हल्द्वानी की ओर आते हैं, हमें चीड़ के घने वृक्षों के मध्य एक बस्ती सड़क के दाहिनी तरफ दिखाई देती है। यही पटुवा डाँगर है। यह नैनीताल से १४.९ कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। पटुवा डाँगर पहाड़ों के मध्य एक सुन्दर नगर है यहाँ प्रदेश का 'वैक्सीन' का सबसे बड़ा संस्थान है, यहाँ भी देश-विदेश के पर्यटक आते रहते हैं।
नैनीताल से ज्योलीकोट, रानीबाग और काठगोदाम होते हुए हम हल्द्वानी पहुँचते हैं। हल्द्वानी भाबर में बसाये जाने वाले नगरों में से पहला नगर है। नैनीताल जिले का ठंडियों का मुख्यालय भी हल्द्वानी है। यह नगर नैनीताल जिले का सबसे बड़ा नगर है जहाँ आधुनिक सभी प्रकार की सुविधायें उपलब्ध हैं। यह नगर उत्तर पूर्वी रेलवे से लखनऊ, आगरा और बरेली से जुड़ा हुआ है। पर्वतीय अंचल के प्राय: सभी छोटे-बड़े नगरों के लिए यहाँ से बस सेवा उपलब्ध है। काठगोदाम यहाँ से केवल ५ कि॰मी॰ दूर है। इसलिए सबी प्रकार की बस-सेवाएँ हल्द्वानी से ही प्रारम्भ होती है।
हल्द्वानी में पर्यटकों के लिए सभी प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। अधिकांश पर्यटक हल्द्वानी रहकर ही नैनीताल के अन्य क्षेत्रों का भ्रमण करते रहते हैं। हल्द्वानी में शिक्षा सम्बन्धी सभी प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त हैं। रहने, खाने व स्वास्थ्य की दृष्टि से बी यहाँ उत्तम प्रबन्ध है। यहाँ पर कई होटल व गेस्ट हाऊस उपलब्ध है।
पण्डित गोविन्द बल्लभ पंत के नाम पर इस नगर का नाम पड़ा। यहाँ पर पंत रेलवे स्टेशन तथा विश्व-प्रसिद्ध गोविन्द बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय स्थापित है। यह विश्वविद्यालय अपने ढ़ंग का विश्वविद्यालय है, जो सोलह हजार एकड़ भूमि में फैला हुआ है। यहाँ पर प्रत्येक वर्ष सैकड़ों छात्र - कृषक संगठन, कृषि अर्थशास्र, अभियांत्रिकी, ए. एच. (बी. बी. एस-सी.) गृह विज्ञान आदि की परिक्षाएँ उत्तीर्ण करते हैं। कृषि एवं पशु - चिकित्सा सम्बन्धी नये-नये विषयों का अध्ययन किया जाता है।
यहाँ पर एक हवाई अड्डा है जहाँ दिल्ली से विमान आते-जाते हैं। नैनीताल पहुँचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा यही है।
तराई-भाबर में नैनीताल जिल के उभरते हुए नगर रुद्रपुर, किच्छा, गदरपुर, रामनगर, बाजपुर और जसपुर हैं। ये सारे नगर कृषि की उन्नति पर उभरे हैं। तराई के क्षेत्र में अधिक उपज होने के कारण ये सारे नगर दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं।
बहुत से देशी व विदेशी पर्यटक तराई-भाबर के जन-जीवन को भी देखना चाहते हैं। ऐसे पर्यटक इन नगरों में रहकर तराई-भाबर का जन-जीवन देखकर आनंद लेते हैं।
२००१ की जनगणना के अनुसार, नैनीताल जिले की जनसंख्या ७,६२,९०९ है, जिनमें हिन्दू ६,५५,२९० (८५.९%), मुसलमान ८६,५३२ (११.३%) और सिख १६,१०७ (२.१%) हैं।
उत्तराखण्ड के जिले |
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव , तहसील ठाकुरद्वारा, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
सम्बंधित जनगणना कोड:
राज्य कोड :०९
जिला कोड :१३५
तहसील कोड : ००७१७
गाँव कोड: ११४७०५
इन्हें भी देखें
उत्तर प्रदेश की तहसीलों का नक्शा
ठाकुरद्वारा तहसील के गाँव |
यह लेख गणीतीय समीकरण के सम्बन्ध में है। रसायन शास्त्र में समीकरण के सन्दर्भ में रासायनिक समीकरण देखें।
समीकरण (इक्वेशन) प्रतीकों की सहायता से व्यक्त किया गया एक गणितीय कथन है जो दो वस्तुओं को समान अथवा तुल्य बताता है।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आधुनिक गणित में समीकरण सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय है। आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी में विभिन्न घटनाओं (फेनामेना) एवं प्रक्रियाओं का गणितीय मॉडल बनाने में समीकरण ही आधारका काम करने हैं।
समीकरण लिखने में समता चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। यथा-
समीकरण प्राय: दो या दो से अधिक व्यंजकों (एक्सप्रेशनस) की समानता को दर्शाने के लिये प्रयुक्त होते हैं। किसी समीकरण में एक या एक से अधिक चर राशि (यां) (वरिएबल्स) होती हैं।
चर राशि के जिस मान के लिये समीकरण के दोनो पक्ष बराबर हो जाते हैं, वह/वे मान समीकरण का हल या समीकरण का मूल (रूट्स ऑफ थे इक्वेशन) कहलाता/कहलाते है।
ऐसा समीकरण जो चर राशि के सभी मानों के लिये संतुष्ट होता है, उसे सर्वसमिका (इडेन्टाइटी) कहते हैं। जैसे -
एक सर्वसमिका है। जबकि
एक समीकरण है जिसके मूल हैं एवं .
समीकरणों के गुण
यदि कोई समीकरण सत्य है, तो
दोनों पक्षों में समान राशि जोडने से भी सत्य रहेगा
दोनो पक्षों में किसी भी राशि से गुणा करने पर प्राप्त समीकरण भी सत्य होगा
किसी अशून्य राशि से दोनो पक्षों को भाग करने पर प्राप्त समीकरण भी सत्य होगा
सामान्यतः दोनों पक्षों का कोई फलन निकालने पर भी समीकरण सत्य बना रहता है। किन्तु इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि कोई वाह्य हल (एक्स्ट्रानिस सॉल्यूशन) न आ जाय।
समीकरण के एक पक्ष में स्थित कोई चर, अचर, व्यंजक आदि को दूसरे पक्ष में ले जाने को पक्षान्तर कहा जाता है। समीकरण हल करने में पक्षान्तर का बहुत महत्व है। पक्षान्तर करने का सिद्धान्त उपर वर्णित समीकरण के गुणों पर ही आधारित है।
समीकरण के प्रकार
किसी समीकरण में निहित चर राशियों की प्रकृति के आधार पर समीकरण का वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है:
समीकरण का महत्व
विज्ञान और तकनीकी में डिजाइन या विश्लेषण करते समय प्रायः समीकरण प्राप्त होते हैं। इनका हल अनेक उपयोगी जानकारी देता है। इसके अलावा आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी में विभिन्न घटनाओं (फेनामेना) एवं प्रक्रियाओं का गणितीय मॉडल बनाने में समीकरण ही आधार का काम करने हैं।
इन्हें भी देखें
समीकरणों की सूची |
गजट 'संवादपत्र' (न्युज़पेपर) का पर्याय तथा समानार्थक एवं बहुप्रयुक्त प्राचीन शब्द। गजट सामयिक घटनाओं का सारसंग्रह होता है।
यह 'आदि समाचारपत्र' का एक भेद है जिसका नामकरण और प्रकाशन, वेनिस की सरकार द्वारा सन् १५६६ में गजट के रूप में हुआ। १६६५ में इंग्लैंड में आक्सफर्ड गज़ट प्रकाशित हुआ जो अगले वर्ष 'लंदन गज़ट' हो गया। वह ब्रिटिश सरकार का राजकीय मुखपत्र है। स्थानीय तथा प्रादेशिक समाचारों के ऐसे प्रकाशन समाचारपत्रों की ही श्रेणी में आते हैं, जैसे पालमाल गज़ट, सेंट जेम्स गज़ट, वेस्टमिंस्टा गज़ट आदि जो आज भी अस्तित्व में हैं।
भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में प्रारंभिक अखबारों के बीच यही नाम प्रचलित हुआ, जैसे बंगाल गज़ट (१७८०), हिकी गज़ट (१७८०), इंडियन गज़ट (१७८०), मद्रास गज़ट (१७९५) आदि। इस प्रकार गज़ट प्रांतीय अखबारों का सूचक पद रहा है। भारतीय समाचारपत्र के लिए गज़ट शब्द का प्रयोग २०वीं शताब्दी के आरंभ तक बहुतायत से मिलता है किंतु अब यह नाम अप्रचलित है। सिविल मिलिटरी गज़ट, मसूरी गज़ट आदि इने गिने अंग्रेजी पत्र इसके अपवाद हैं। इसके विपरीत गज़ट ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल से ही विधिप्रारूपों, विभागीय सूचनाओं और विज्ञप्तियों के शासकीय प्रकाशनों के लिए प्रयुक्त होता आया है, जैसे उत्तरप्रद्रेश गज़ट, बिहार गज़ट आदि। इस दृष्टि से किसी प्रकार की स्वतंत्र अथवा वैयक्तिक सूचनाओं और राजपत्रों के लिए यह नाम रूढ़ है और अपनी इन विशेषताओं के कारण गज़ट आधुनिक समचारपत्र से भिन्न हो जाता है। इसे हम सरकारी और प्रशासकीय सूचनाओं तथा कार्यों का विवरणपत्र कह सकते हैं। |
तरंग सिद्धान्त के प्रतिपादन के बाद के कुछ वर्षो में कुछ बातें ऐसी भी मालूम हुई जो प्रकाश के तरंगमय स्वरूप के सर्वथा प्रतिकूल हैं। इनकी व्याख्या तरंगसिद्धांत के द्वारा हो ही नहीं सकती। इनके लिये प्लांक (प्लेनक) के क्वांटम सिद्धांत का सहारा लेना पड़ता है।
क्वांटम सिद्धान्त का प्रतिपादन १९०० ई. में ऊष्मा विकिरण के संबंध में हुआ था। प्रकाश विद्युत (फोटो इलेक्ट्रिसिटी) की घटना का, जिसमें कुछ धातुओं पर प्रकाश के पड़ने से इलैक्ट्रॉन उत्सर्जित हो जाते हैं और तत्वों के रेखामय स्पेक्ट्रम (लाइन स्पेक्ट्रम) की घटना का, जिसमें परमाणु में से एकवर्ण प्रकाश निकलता है, स्पष्टतया संकेत किसी नवीन प्रकार के कणिकासिद्धांत की ओर है। आइन्स्टाइन ने इन कणिकाओं का नाम फ़ोटान (फोटों) रख दिया है। ये कणिकाएँ द्रव्य की नहीं हैं, पुंजित ऊर्जा की हैं। प्रत्येक फ़ोटोन में ऊर्जा प्रभाव (कॉम्पटन इफेक्ट) इनके बिना समझ में आ ही नहीं सकता है।
भौतिकी का इतिहास |
जीवन एक संघर्ष १९९० में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इसका निर्माण डी रामानायडू ने किया और निर्देशन राहुल रवैल ने किया। राखी, अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित मुख्य भूमिकाओं में है। फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल रही।
विधवा सुलक्षणा देवी (राखी) के तीन बच्चे होते हैं, जिसमें दो पुत्र, अर्जुन (कंवलजीत सिंह) और करन (अनिल कपूर), और पुत्री सुमन (शहनाज कूडिया) हैं। वे लोग किराये के मकान में रहते हैं। उनका मकान मालिक उनके साथ बहुत बुरा सलूक करता है और उनके सारे पैसे लूट लेता है। करन अपने मकान मालिक को लूटने की कोशिश करता है, लेकिन वो पकड़ा जाता है और पुलिस स्टेशन में भेज दिया जाता है। सुलक्षणा देवी मुम्बई में जाने से पहले करन से मिलने की कोशिश करती है, लेकिन उससे पहले ही वो वहाँ से भाग जाता है। करन भी मुम्बई के लिए निकल पड़ता है और वहाँ एक गैराज का मालिक उसे रख लेता है।
एक दिन सड़क के किनारे करन की कुछ लोगों से लड़ाई हो जाती है और करन पुलिस के हत्थे चढ़ जाता है। उसे देवराज कामत (अनुपम खेर) के लिए काम करने का मौका मिलता है, पर करन इंकार कर देता है। लेकिन कामत अपने दुश्मन रतन ढोलकिया (परेश रावल) को इस बारे में बता देता है। रतन उसे एक पुलिस अफसर के खून के इल्जाम में फंसा देता है। जब वो कामत के गिरोह में शामिल होने के लिए मान जाता है तो उसे रिहा कर दिया जाता है। करन अपने परिवार से मिलने की काफी कोशिश करता है, पर सुलक्षणा देवी उसे अपना बेटा मानने से इंकार कर देती है। उसकी मुलाकात मधु (माधुरी दीक्षित) से होती है और उससे प्यार होने के बाद वो अपराध की दुनिया को छोड़ने का फैसला कर लेता है। इसी बीच करन को पूरी तरह तबाह करने के लिए कामत और ढोलकिया एक हो जाते हैं।
राखी, सुलक्षणा देवी
अनिल कपूर - करन कुमार
माधुरी दीक्षित - मधु सेन
अनुपम खेर, देवराज
परेश रावल, रतन ढोलकिया
मुनमुन सेन - शिवानी
पंकज धीर - महेश ढोलकिया
कंवलजीत सिंह - अर्जुन
सी एस दुबे - रूप चंद
मंगल ढ़िल्लों - पुलिस इंस्पेक्टर गिल
१९९० में बनी हिन्दी फ़िल्म
लक्ष्मीकांतप्यारेलाल द्वारा संगीतबद्ध फिल्में |
ओका ऊरी कथा प्रेमचंद की कहानी कफ़न पर आधारित एक तेलुगू फ़िल्म थी। सर्वश्रेष्ठ तेलुगू फ़िल्म के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित इस फ़िल्म को १९७७ में मृणाल सेन ने बनाया था। |
नानौता का सिद्दीकी परिवार पहले रशीदुन खलीफा, अबू बक्र के वंशज हैं, जो मुख्य रूप से भारत के नानौता शहर में स्थित हैं। इस परिवार के उल्लेखनीय लोगों में ममलुक अली नानोत्वी, मुहम्मद क़ासिम नानोत्वी, मुहम्मद याकूब नानोत्वी, मुहम्मद तैयब कासमी और मुहम्मद सलीम कासमी शामिल हैं।
मुहम्मद क़ासिम नानोत्वी ने दारुल उलूम देवबन्द की सह-स्थापना की, मज़हर नानोत्वी ने मज़ाहिर उलूम की सह-स्थापना की, मुहम्मद तैयब कासमी ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की सह-स्थापना की और मुहम्मद सलीम कासमी ने दारुल उलूम वक्फ़, देवबंद की सह-स्थापना की।
मुगल सम्राट शाह जहाँ के जमाने में मुहम्मद हाशिम बल्ख से भारत आए और नानौता में बस गए। शाहजहाँ ने उन्हें एक "जागीर" प्रदान की थी, जो विद्वानों और संतों को दिया जाता था।
मुहम्मद हाशिम की वंशावली है, "मुहम्मद हाशिम इब्न शाह मुहम्मद इब्न काजी ताहा मुबारक इब्न अमानुल्लाह इब्न जमालुद्दीन इब्न काजी मीरान इब्न मज़हरुद्दीन इब्न नजमुद्दीन सानी इब्न नूरुद्दीन रबई इब्न कियामुद्दीन-इब्न ज़ियाउद्दीन-इब्न क़ियामुद्दीन-इब्न नूर उद्दीन सालिस इब्न नजमुद्दीन इब्न नूर उद्दीन सानी इब्न रुक्नुद्दीन इब्न रफी-उद-दीन इब्न बहाउद्दीन इब्न शिहाबुद्दीन इब्न ख्वाजा यूसुफ खलील इब्न सदरुद्दीन इब्न रुक्नुद्दीन समरकंदी इब्न सदरुद्दीन अल-हाज इब्न इस्माइल शहीद इब्न नूरुद्दीन किताल इब्न महमूद इब्न बहाउद्दीन इब्न अब्दुल्लाह इब्न जकरिया इब्न नूर इब्न सिराह इब्न सादी अस सिद्दीकी इब्न वहीदुद्दीन इब्न मसूद इब्न अब्दुर रज्जाक इब्न कासिम इब्न मुहम्मद इब्न अबू बक्र।
मामलूक अली नानोत्वी
मामलूक अली नानोत्वी (१७८९ - १८५१) उनका नसब (वंशावली) है: मामलूक अली इब्न अहमद अली इब्न गुलाम शराफ इब्न अब्दुल्लाह इब्न अब्दुल फतह इब्न मुहम्मद मु'इन इब्न अब्द अल-सामी इब्न मुहम्मद हाशिम। अपने कर्म जीवन के दौरान उन्होंने जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज में पढ़ाया। उन्हें फ़ज़लुर रहमान उस्मानी, मुहम्मद कासिम नानोत्वी, नज़ीर अहमद देहलवी, राशिद अहमद गंगोही, सैयद अहमद खान और जकाउल्लाह देहलवी सहित अपने युग के सभी प्रमुख भारतीय विद्वानों के शिक्षक होने का श्रेय दिया जाता है।
उनके पुत्र मुहम्मद याकूब नानोत्वी ने १८६६ से १८८३ तक दारुल उलूम देवबन्द के पहले प्रधानाचार्य के रूप में कार्य किया। खलील अहमद सहारनपुरी, देवबंदी पंथ पुस्तक अल-मुहन्नद अलल-मुफनाद के लेखक, मामलुक अली की बेटी के पुत्र थे।
मुहम्मद कासिम नानोत्वी
मुहम्मद कासिम नानोत्वी (१८३२ - १८८०) उनका नसब है: मुहम्मद कासिम इब्न असद अली इब्न गुलाम शाह इब्न मुहम्मद बख्श इब्न अलाउद्दीन इब्न मुहम्मद फतेह इब्न मुहम्मद मुफ्ती इब्न अब्द अल-सामी इब्न मुहम्मद हाशिम वह दारुल उलूम देवबंद के प्रमुख संस्थापकों में से एक थे, जहां देवबन्दी आंदोलन शुरू हुआ था। उनके बेटे हाफिज मुहम्मद अहमद हैदराबाद राज्य में एक प्रमुख मुफ्ती थे और उन्होंने दारुल उलूम देवबन्द में पैंतीस साल तक अध्यक्ष के रूप में सेवा दी। और अहमद के बेटे मुहम्मद तैयब कासमी आधे सदी के लिए इस पद पर फ़ाइज थे। तैयब के पास ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सह-संस्थापक होने का भी श्रेय है।
तैयब के बेटे मुहम्मद सलीम कासमी ने दारुल उलूम वक्फ, देवबन्द की सह-स्थापना की। सलीम के बेटे मुहम्मद सुफियान कासमी इस मदरसे के परिचालक हैं।
हाफिज लुत्फ अली
लुत्फ अली मामलुक अली नानोत्वी के चचेरे भाई थे। उनका नसब है: लुत्फ अली इब्न मुहम्मद हसन इब्न गुलाम शराफ इब्न अब्दुल्लाह इब्न अब्दुल फतह इब्न मुहम्मद मु'इन इब्न आबदुस सामी इब्न मुहम्मद हाशिम।
लुत्फ अली के पुत्र मजहर नानोत्वी, मुहम्मद अहसान नानोत्वी और मुहम्मद मुनीर नानोत्वी। अपने कर्म जीवन के दौरान, अहसन ने बरेली कॉलेज के फ़ारसी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। और मज़हर ने मज़ाहिर उलूम को विकसित किया और मुनीर ने दारुल उलूम देवबन्द के सातवें अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
देवबंद का उस्मानी परिवार |
बुचे नंगल एक गांव है जो पंजाब राज्य, भारत में कलानौर के पास स्थित है। यह नाम एक लड़ाई के दौरान पड़ा। क्योंकि उस लड़ाई में गांव के सरदार का एक कान कट गया था। इस आधार पर गांव का नाम बुचा नंगल पड़ गया ( पंजाबी में एक कान वाले व्यक्ति को बुचा कहा जाता है )। जो समय के साथ बदलते "बुचा नंगल" से "बुचे नंगल" हो गया।
गांव के मुखिया का नाम "राम सिंह" था वह महाराजा रणजीत सिंह की सुकरचकिया मिसल के जरनैल थे. पुरातनकाल में गांव के लोग चित्तौड़गढ़ (अब फतहगढ़ चुड़ीआं, पंजाब) के निवासी थे। पर गांव की आबादी में आगे बढ़ोतरी ना होने के कारण गांव के लोगों की विचारधारा अनुसार गांव बदलकर बुचे नंगल के भूमि पर गांव बसाया गया , जो कि पहले कब्रिस्तान की भूमि थी। गांव बसाने के समय गांव का नाम "राम नगर" जो कि गांव के सरदार "राम सिंह " के नाम पर रखा गया था। पर महाराजा रंजीत सिंह की मिसल की लड़ाई दौरान दुशमन का सामना करते हुऐ जरनैल राम सिंह का एक कान कट गया। जिसके बाद गांव का नाम बुचा नंगल पड गया। जो समय के साथ बदलते "बुचे नंगल" हो गया।
यहा की निवासी मुख्य रूप से पंजाबी है, स्थानीय अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। इस क्षेत्र में गेहूं, चावल और गन्ना दोनों बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं. जहा पर रेहने वाले अधिकतर और पुरातन लोग बंदेशा जट्ट है. बुचे नंगल में आयु वर्ग के बच्चों की जनसंख्या (०-६) ९६ है जो गांव की कुल आबादी का १३.४५% है। बुचे नंगल गांव का औसत लिंग अनुपात 1००० है जो पंजाब राज्य की औसत ८९५ से अधिक है। जनगणना के अनुसार बुचे नंगल के लिए बाल लिंग अनुपात ७१४ है, पंजाब औसत की तुलना में ८४६ है। पंजाब के मुकाबले बुचे नंगल गांव में साक्षरता दर कम है। 2०11 में, बुचे नंगल गांव की साक्षरता दर पंजाब के ७५.८४% की तुलना में ६7.६4% थी। बुचे नंगल में पुरुष साक्षरता ७३.० ९% है जबकि महिला साक्षरता दर ६2.4६%। भारत और पंचायत राज अधिनियम के संविधान के अनुसार, बुचे नंगल गांव को सरपंच (गांव के प्रमुख) द्वारा प्रशासित किया जाता है जो गांव के निर्वाचित प्रतिनिधि हैं।
बुचे नंगल पंजाब राज्य, भारत के गुरदासपुर जिले में स्थित एक ग्राम है। अक्षांश ३१.९८२६०३९ और रेखांश ७५.२२०१९३३ बचे नांगल का भौगोलिक स्थान है। चंडीगढ़ बुचे नंगल गांव के लिए राज्य की राजधानी है। यह बुचे नंगल से लगभग २०१.८ किलोमीटर दूर स्थित है। बुचे नंगल से दूसरे निकटतम राज्य की राजधानी चंडीगढ़ है और इसकी दूरी २०१.८ किलोमीटर है। अन्य राज्य की राजधानियां चंडीगढ़ २०१.८ किमी, शिमला २०७.९ किमी, श्रीनगर २३७.७ किमी हैं।
विकास और स्रोत
बिजली घर सब-स्टेशन (६६ किलोवाट)
गेहूं और चावल की मंडी
सरकारी कृषि सोसायटी (उर्वरक और बीज आपूर्तिकर्ता स्टॉक)
चावल की फैक्ट्री
स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मानव जा रहा है और पशु
पशु चिकित्सा अस्पताल
दवा की दुकान
सरकारी प्राथमिक स्कूल
पंजाब के गाँव |
मज़दूर १९८३ में बनी हिन्दी भाषा की एक फिल्म है। इसमें अन्य साथी कलाकारो के साथ हिंदी नायक दिलीप कुमार ने भुमिका निभायी थी। |
समाजशास्त्र में अनपेक्षित परिणाम (उनिन्टेंडेड कंसिक्वेंसेस) ऐसे परिणाम होते हैं जो किसी ध्येय-प्राप्ति के लिए उद्देश्यपूर्ण ढंग से करे गये किसी कार्य में चाहे गये परिणामों से अलग हों।
समाज व लोकनीति में इसके कई उदाहरण मिलते हैं, मसलन अमेरिकी नगर सैन फ़्रैन्सिस्को में निर्धन लोगों की सहायता के लिए मकान-किराये बढ़ाने पर लगाम दे दी गई। परिणाम-स्वरूप मकान मालिकों के लिए किराए के फ़्लैट बनाने की बजाय बिक्री के लिए घर बनाना अधिक लाभदायक हो गया और शहर में किराये के लिये उपलब्ध मकानों की संख्या घटने लगी। जो नीति ग़रीब-कल्याण के लिए बनी थी उसका अनपेक्षित परिणाम ग़रीबों के लिये आर्थिक कठिनाई बढ़ाना हो गया।
कभी-कभी अनपेक्षित परिणाम लाभदायक भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच में शत्रुता के कारण उनकी सीमा पर एक ४ किमी चौड़ी पट्टी छोड़ दी गई है। इसमें प्रवेश करने पर सख़्त रोकथाम की जाती है, जिस कारण से इसके अधिकांश भाग में प्रकृति अपने मूल रूप में चली गई है और वन्य जीवन फल-फूल रहा है।
इन्हें भी देखें
नीतिशास्त्र की अवधारणाएँ
सामाजिक विज्ञान पारिभाषिकी |
लाला लाजपत राय मेमोरियल मेडिकल कॉलेज या एलएलआरएमसी या एलएलआर मेडिकल कॉलेज, उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित मेडिकल कॉलेज है।
यह मेडिकल कॉलेज मेरठ विश्वविद्याल द्वारा मान्यता प्राप्त है और इसकी स्थापना १९६६ में हुई थी।
ल्र्म्क आधिकारिक जालस्थल
उत्तर प्रदेश के मेडिकल कॉलेज |
सऊद बिन अब्दुलअज़ीज़ अल सऊद (१५ जनवरी १९०२ - २३ फरवरी १९६९) १९५३ से १९६४ तक सऊदी अरब के राजा थे। सऊदी अरब में आंतरिक तनाव की अवधि के बाद, उन्हें सिंहासन से मजबूर कर दिया गया और उनके भाई फैसल द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।
१९०२ में जन्मे लोग
सउदी अरब के राजा |
कार्लावायरस, जिसे पहले "कार्नेशन लेटेंट वायरस ग्रुप" के रूप में जाना जाता था, परिवार के बीटाफ्लेक्सीविरिडे में टायमोविरालेस के क्रम में वायरस का एक जीनस है। पौधे प्राकृतिक मेजबान के रूप में कार्य करते हैं। इस जीनस में ५३ प्रजातियां हैं। इस जीनस से जुड़े रोगों में शामिल हैं: मोज़ेक और रिंगस्पॉट लक्षण।
कार्लावायरस का वर्णन आईसीटीवी (२००९) की ९वीं रिपोर्ट में किया गया है। जीनस की विशेषता एक टीजीबी (ट्रिपल जीन ब्लॉक) सहित छह ओआरएफ (ओपन रीडिंग फ्रेम्स) है। वायरस कीड़ों द्वारा प्रेषित होते हैं।
९वीं रिपोर्ट (200९) में बेटाफ्लेक्सिविरिडे परिवार की एक प्रजाति के रूप में वर्तमान स्थिति फ्लेक्सिविरिडे के बाद के उपखंड से प्राप्त होती है।
जीनस को पहली बार १९७१ में आईसीटीवी की पहली रिपोर्ट में 'कार्नेशन लेटेंट वायरस ग्रुप' के रूप में प्रस्तावित किया गया था, लेकिन १९७५ में इसका नाम बदलकर 'कार्लावायरस ग्रुप' कर दिया गया, और १९९५ में जीनस कार्लावायरस के रूप में (छठी रिपोर्ट)। २००५ (८वीं रिपोर्ट) में इसे फ्लेक्सीविरिडे परिवार में रखा गया था, जिसे पूर्व में असाइन नहीं किया गया था। बीटाफ्लेक्सीविरिडे परिवार के एक वंश के रूप में ९वीं रिपोर्ट (200९) में वर्तमान स्थिति फ्लेक्सीविरिडे के बाद के उपखंड से प्राप्त हुई है। |
कक्षीय अनुनाद (ऑर्बिताल रिसोनेंस) पाया जाता है जब दो या दो से अधिक पिंड किसी एक ही बड़े पिंड की परिक्रमा समान अवधि में पूरी करते है।
उदाहरण के लिए बृहस्पति के उपग्रहों गेनिमेड, युरोपा और आयो का १ : २ : ४ का अनुनाद, तथा प्लुटो और नेप्च्यून के बीच २ : ३ का अनुनाद। आयो, युरोपा और गेनिमेड बृहस्पति के ठीक क्रमशः चार, दो व एक चक्कर लगाने में समान समय लेते है। इसी तरह प्लूटो सूर्य के दो चक्कर (२४6 क्स २ = ४9२ वर्ष) और नेप्च्यून सूर्य के तीन चक्कर (१6४ क्स ३ = ४9२ वर्ष) समान समय में लगाते है। ध्यान रहे यह महज एक संयोग नहीं है बल्कि प्रणाली इन स्वरुपों को गुरुत्वाकर्षण के अधीन धारण करती है जिसके तहत वें एक दूसरे पर प्रभाव डालते है। |
पल्लव राजवंश प्राचीन दक्षिण भारत का राजवंश था ।चौथी शताब्दी में इसने कांचीपुरम में राज्य स्थापित किया और लगभग ६०० वर्ष तमिल और तेलुगु क्षेत्र में राज्य किया।
पल्लवों की उत्पत्ति
पल्लव राजवंश कुछ विद्वानों ने पल्लवों की उत्पत्ति दक्षिण से हुई है। किन्तु पल्लव और पह्लव नामों का ध्वनिसाम्य दोनों का तादात्म्य सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है। दक्षिणी भारत में पह्लवों को उत्तरापथ में और पल्लवों को दक्षिणापथ में रहनेवाला कहकर दोनों में स्पष्ट अंतर दिखलाया है। पल्लव शब्द मूलतः तमिल 'तोंडेयर' और 'तोंडमान' का संस्कृत रूप था।
पल्लवों की तमिल उत्पत्ति माननेवाले विद्वान् पल्लवों का तिरैयर से समीकरण बतलाते हैं| तमिल भाषा से निकला सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। मणिमेखलै के आधार पर प्रथम पल्लव नरेश को एक चोल और एक नाग राजकन्या की सतति मानने का भी सुझाव रखा गया है। पल्लव नामकरण नाग-राज-कन्या के जन्मदेश मणिपल्लवम् अथवा प्रथम पल्लव के तोंडै लता की शाखा की गेंडुरी से बँधा हुआ पाए जाने के कारण बतलाया जाता है।
पल्लवों का प्रारंभिक इतिहास क्रमबद्ध रूप से नहीं प्रस्तुत किया जा सकता। सुविधा के लिए भाषा के आधार पर उन्हें प्राकृत ताम्रपट्टों से ज्ञात और संस्कृत ताम्रपट्टों से ज्ञात पल्लवों में विभाजित किया जाता है। इनमें से सर्वप्रथम नाम सिंहवर्मन् का है जिसका गुंटुर अभिलेख तीसरी शताब्दी के अंतिम चरण का है। शिवस्कंदवर्मन्, जिसके अभिलेख मयिडवोलु और हीरहडगल्लि से प्राप्त हुए हैं, चौथी शताब्दी के आरंभ में हुआ था और प्रारंभिक पल्लवों में सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इस समय पल्लवों का अधिकार कृष्णा नदी से दक्षिणी पेन्नेर और बेल्लारी तक फैला हुआ था। शिवस्कंदवर्मन ने अश्वमेघ यज्ञ किया था। उसके बाद स्कंदवर्मन् का राज्य हुआ। स्कंदवर्मन् के गुंटुर से प्राप्त ताम्रपट्ट में, जो ब्रिटिश म्यूजियम में सुरक्षित है युवराज बुद्धवर्मन् और उसके पुत्र बुद्ध्यंकुर का उल्लेख है। किन्तु इसके बाद का इतिहास तिमिराच्छन्न है। समुद्रगुप्त के द्वारा पराजित कांची के नरेश का नाम विष्णुगोप था।
इसके बाद संस्कृत ताम्रपट्ट के पल्लवों का राज्यकाल आता है। इन अभिलेखों से हमें कई पल्लव राजाओं के नाम ज्ञात होते हैं किंतु उन सभी का परस्पर संबंध और क्रम निश्चित करना कठिन है। कांची के राजवंश की छिन्न-भिन्न शक्ति का लाभ उठाकर पल्लव साम्राज्य के उत्तरी भाग में नेल्लोर-गुंटुर क्षेत्र में एक सामंत पल्लव वंश ने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित किया। ताम्रपट्टों से ज्ञात इस वंश के शासकों को ३७५ से ५७५ ई. के बीच रखा जा सकता है।
कांची के मुख्य घराने के लिए सर्वप्रथम हम चेंडलूर ताम्रपट्ट से ज्ञात स्कंदवर्मन्, उसके पुत्र कुमारविष्णु प्रथम, पौत्र बुद्धवर्मन और प्रपौत्र कुमारविष्णु द्वितीय को रख सकते हैं। स्कंदवर्मन् संभवत: ब्रिटिश म्यूज़ियम के ताम्रपट्ट का स्कंदवर्मन् हो। इसके बाद उदयेदिरम् ताम्रपट्ट से स्कंदवर्मन् (द्वितीय), उसके पुत्र सिंहवर्मन्, पौत्र स्कंदवर्मन् तृतीय और प्रपौत्र नंदिवर्मन् (प्रथम) का ज्ञान होता है। पहले उल्लिखित पल्लवों के साथ इनका संबंध ज्ञात नहीं है। किंतु सिंहवर्मन् का राज्यकाल ४३६ से ४५८ ई. तक अवश्य रहा। सिंहवर्मन् और उसके पुत्र स्कंदवर्मन् (तृतीय) का उल्लेख उनके सामंत गंग लोगों के अभिलेखों में भी आता है। छठी शताब्दी के प्रारंभ में शांतिवर्मन् का नाम ज्ञात होता है। संभवत: यही चंडदंड के नाम से भी प्रसिद्ध था और कदंब रविवर्मन् के द्वारा मारा गया था।
सिंहवर्मन् द्वितीय से पल्लवों का राज्यक्रम सुनिश्चित हो जाता है। पल्लव राजवंश के गौरव का श्रीगणेश उसके पुत्र सिंहविष्णु (५७५-६०० ई.) के द्वारा हुआ। सिंहविष्णु ने कलभ्रों द्वारा तमिल प्रदेश में उत्पन्न राजनीतिक अव्यवस्था का अंत किया और चोल मंडलम् पर पल्लवों का अधिकार स्थापित किया। यह विष्णु का उपासक था। अवनिसिंह उसका विरोधी था। उसने संस्कृत के प्रसिद्ध कवि भारवि को प्रश्रय दिया था। महाबलिपुरम की वराह गुहा में उसकी और उसकी दो रानियों की मूर्तियाँ प्रस्तर पर उभारी गई है।
सिंहविष्णु के पुत्र महेन्द्रवर्मन प्रथम (६००-६३० ई.) की गणना इस राजवंश के सर्वोच्च सम्राटों में होती है। इस महान शासक की बहुमुखी प्रतिभा युद्ध और शांति दोनों ही क्षेत्रों में विकसित हुई। इसी समय पल्लवों और चालुक्यों के संघर्ष का प्रारंभ हुआ। चालुक्य नरेश पुलकेशिन् द्वितीय की सेना विजय करती हुई पल्लव राजधानी के बिल्कुल समीप पहुँच गई थी। पुल्ललूर के युद्ध में महेंद्रवर्मन् ने चालुक्यों को पराजित किया और साम्राज्य के कुछ उत्तरी भागों का छोड़कर शेष सभी की पुनर्विजय कर ली। महेंद्रवर्मन् ने कई विरुद धारण किए जो उसके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के अनेक गुणों की ओर संकेत करते हैं, यथा मत्तविलास, विचित्रचित्त, चेत्थकारि और चित्रकारपुलि। चट्टानों को काटकर बनवाए गए इसके मदिरों में से कुछ त्रिचिनापली, महेंद्रवाडि और डलवानूर में उदाहरण रूप में अवशिष्ट हैं। उसने महेंद्रवाडि में महेंद्र-तटाक नाम के जलाशय का निर्माण किया। उसे चित्रकला में भी रुचि थी एवं वह कुशल संगीतज्ञ के रूप में भी प्रसिद्ध था। उसने मत्तविलास प्रहसन की रचना की थी। प्रारंभ में वह जैन मतावलंबी था किंतु अप्पर के प्रभाव से उसने शैव धर्म स्वीकार कर लिया। फिर भी उसने विष्णु की पूजा को प्रोत्साहन दिया किंतु जैनियों के प्रति वह असहिष्णु बना रहा।
महेंद्रवर्मन् का पुत्र नरसिंहवर्मन् प्रथम (६३०-६६८) इस राजवंश का सर्वश्रेष्ठ सम्राट् था। इसके समय में पल्लव दक्षिणी भारत की प्रमुख शक्ति बन गए। उसने चालुक्य नरेश पुलकेशिन् द्वितीय के तीन आक्रमणों का विफल कर दिया। इन विजयों से उत्साहित हाकर उसने अपनी सेना चालुक्य साम्राज्य पर आक्रमण के लिए भेजी जिसने ६४२ ई. में चालुक्यों की राजधानी वातापी पर अधिकार कर लिया। इस विजय के उपलक्ष में उसने वातापिकोंड की उपाधि धारण की। युद्ध में पुलकेशिन् की मृत्यु के कारण चालुक्य साम्राज्य अव्यवस्थित रहा। फलस्वरूप चालुक्य साम्राज्य के दक्षिणी भाग पर पल्लवों का अधिकार बना रहा। पुलकेशिन् के पुत्र विक्रमादित्य ने ६५५ में पल्लवों को वातापी छोड़ने पर विवश किया। नरसिंहवर्मन् ने लंका के राजकुमार मानवर्मा की सहायता के लिए दो बार लंका पर आक्रमण किया और अंत में उसे लंका के सिंहासन पर फिर से अधिकार दिलाया। उसके लिए यह भी कहा जाता है कि उसने चोल, चेर, कलभ्र और पांडवों का भी पराजित किया था। उसका विरुद महामल्ल था। उसने महाबलिपुरम् का गौरव बढ़ाया। यहाँ उसने एक ही प्रस्तरखंड से बने कुछ मंदिरों या रथों का निर्माण कराया। ६४० में चीनी यात्री ह्वेनसांग पल्लव साम्राज्य में आया। उसने तोंडमंडलम् और कांची का वर्णन किया है।
नरसिंहवर्मन् के पुत्र महेंद्रवर्मन् द्वितीय का राज्यकाल दो वर्ष (६६८-६७०) का ही था जिसमें उसे चालुक्य विक्रमादित्य के हाथों पराजित होना पड़ा।
महेंद्रवर्मन् के पुत्र परमेश्वरवर्मन् प्रथम (६७०-६९५) का राजनीतिक महत्व चालुक्य नरेश विक्रमादित्य का सफल विरोध करने में है। विक्रमादित्य ने पल्लवों के शत्रु पांड्यों के साथ संधि की और अपने देश के अपमान का प्रतिकार करने के लिए पल्लव राज्य पर आक्रमण किया और कांची को विजय करता हुआ कावेरी के दक्षिणी तट पर उरगपुर तक पहुँचा। परमेश्वरवर्मन् अपनी प्रारभिक असफलताओं से हतोत्साह नहीं हुआ। विपक्षियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए उसने एक सेना चालुक्य साम्राज्य में भेजी जिसने विक्रमादित्य के पुत्र विनयादित्य और पौत्र विजयादित्य का पराजित किया। उसने स्वयं पेरुवलनल्लूर के युद्ध में आक्रमणकारियों को पराजित किया और उन्हें पल्लव साम्राज्य छोड़कर जान पर विवश किया। महाबलिपुरम् की कुछ कलाकृतियाँ उसी ने बनवाई थीं। वह शिव का उपासक था। उसने कांची के समीप कूरम् में एक शिवमंदिर का निर्माण कराया।
परमेश्वरवर्मन् के पुत्र नरसिंह द्वितीय राजसिंह (६९५-७२२) का शांत और समृद्ध राज्यकाल कला और साहित्य की प्रगति की दृष्टि से उल्लेखनीय है। उसके मंदिर अपने आकार और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। कांची का कैलासनाथ मंदिर और मामल्लपुरम् का मंदिर इनके उदाहरण हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार प्रसिद्ध काव्यशास्त्रज्ञ और गद्यलेखक दंडिन् इसी के दरबार में था और यहीं भास के नाटकों का रंगमंच पर प्रदर्शनार्थ परिवर्तन किया गया था। इस काल की समृद्धि का कारण विदेशो से व्यापार था। संभवत: व्यापारिक हित के लिए ही उसने एक राजदूतमंडल चीन भेजा था। उसे विरुदों स विशेष प्रेम था। उसने २५० के लगभग उपाधियाँ ग्रहण की थीं जिनमें राजसिंह, शंकरभक्त और आगमप्रिय प्रमुख है।
नरसिंहवर्मन् के पुत्र परमेश्वरवर्मन् द्वितीय (७२२-७३०) के राज्यकाल के अंतिम वर्षों में चालुक्य युवराज विक्रमादित्य ने गंगों की सहायता से कांची पर आक्रमण किया। परमेश्वरवर्मन् ने भेंट आदि देकर आक्रमणकारियों को लौटाया। प्रतिकार की भावना से प्रेरित होकर उसने गंग राज्य पर आक्रमण किया किंतु युद्ध में मारा गया। तिरुवडि का शिवमंदिर संभवत: उसी ने बनवाया था।
परमेश्वरवर्मन् की मृत्यु पर उसके वंशजों के अभाव में राज्य के अधिकारियों ने विद्वान् ब्राह्मणों की घटिका के परामर्श से बारहवर्षीय नंदिवर्मन् द्वितीय पल्लवमल्ल (७३०-८००) की सिंहासन पर बैठाया यह सिंहविष्णु के भाई भीमवर्मन् के वंशज हिरण्यवर्मन् का पुत्र था। पांड्य नरेश मारवर्मन राजसिंह ने पल्लवों के विरुद्ध कई राज्यों का एक गुट संगठित किया और चित्रमाय नाम के व्यक्ति की सहायता के लिए, जो अपने को परमेश्वरवर्मन् का पुत्र कहता था, नंदिवर्मन् पर आक्रमण किया और उसे नंदिग्राम में घेर लिया। किंतु पल्लवों के सेनापति उदयचंद्र ने नंदिग्राम का घेरा तोड़ा, चित्रमाय को मारकर और दूसरे विरोधियों को पराजित किया। किंतु पल्लवों के सेनापति उदयचंद्र ने नंदिग्राम का घेरा तोड़ा, चित्रमाय को मारकर और दूसरे विरोधियों को पराजित किया। किंतु नंदिवर्मन् की सबसे भयंकर विपत्ति चालुक्य नरेश विक्रमादित्य द्वित्तीय का आक्रमण था। गंगों की सहायता से उसने ७४० ई. के लगभग पल्लवों को पराजित कर कांची पर अधिकार कर लिया। किंतु नगर का विध्वंस न करके उसने उलटे जनता को दान और उपहार दिए और इस प्रकार पल्लवों के अधिकार को कुंठित किए बिना उनसे बदला लिया। उसके शासन के अंतिम वर्षों में उसके पुत्र कीर्तिवर्मन् ने फिर आक्रमण किया था। राष्ट्रकूट साम्राज्य के संस्थापक दंतिदुर्ग ने भी कांची पर आक्रमण किया था किंतु अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर उसने नंदिवर्मन् से संधिकर उसके साथ अपनी कन्या रेवा का विवाह कर दिया था। नंदिवर्मन् ने गंग नरेश श्रीपुरुष को पराजित किया और गंग राज्य की भूमि अपने बाण सामंत जयनदिवर्मन् को दी थी। नदिवर्मन् पांड्य नरेश वरगुण महाराज प्रथम के हाथों पराजित हुआ। उसने पांड्यों के विरुद्ध कोंगु, केरल और तगडूर के शासकों का संघ बनाया किंतु पांड्य नरेश अपने विपक्षियों को पराजित करके पल्लव राज्य में पेन्नर नदी के तट पर अरशूर पहुँचा था। पुराने मंदिरों के उद्धार के साथ ही नंदिवर्मन् ने मुक्तेश्वर, वैकुंठ पेरुमाल और दूसरे मंदिरों का निर्माण कराया। वह वैष्णव था। प्रसिद्ध वैष्णव संत तिरुमर्ग आल्वर उसी के राज्यकाल में हुए थे। नंदिवर्मन् स्वयं विद्वान् था।
दंतिवर्मन् (७९६-८४७) नंदिवर्मन और रेवा का पुत्र था। राष्ट्रकूटों से संबंधित होने पर भी उसे राष्ट्रकूट सिंहासन के लिए उत्तराधिकार के संघर्ष में भाग लेने के कारण ध्रुव और गोविंद तृतीय के हाथों पराजित होना पड़ा था। पांड्य नरेश वरगुण प्रथम ने कावेरी प्रदेश की विजय कर ली थी किंतु बाण फिर भी पल्लवों के सामंत बने रहे।
दंतिवर्मन् के पुत्र नंदिवर्मन् तृतीय (८४७-८७२) ने पल्लवों की लुप्तप्राय प्रतिष्ठा को पुनर्जीवित सा कर दिया। उसका विवाह राष्ट्रकूट नरेश अमोधवर्ष प्रथम की पुत्री शंखा से हुआ था। उसने पांड्यों के विरुद्ध कई शक्तियों का एक संघ बनाया था। पांड्य नरेश श्रीमार श्रीवल्लभ को तेल्लारु के युद्ध में बुरी तरह पराजित कर वहवैगै के तट तक पहुँच गया था। अपनी विजय के उपलक्ष्य में उसने तेल्लारेंरिद की उपाधि ग्रहण की थी। किंतु बाद में श्रीमार ने नंदिवर्मन् और उसके सहायकों को कुंभकोनम् के समीप पराजित किया। स्याम में तकुआ-पा स्थान से प्राप्त एक तमिल अभिलेख में उसकी उपाधि के आधार पर अवनिनारणन् नाम के जलाशय और विष्णु मंदिर का उल्लेख है। इससे पल्लवों की नौशक्ति और विदेशों के साथ उनके संबध का आभास होता है। उसे अन्य विरुद थे वरतुंगन् और उग्रकोपन्। वह शैव था। उसने तमिल साहित्यकार पेरुदेवनार को प्रश्रय दिया था।
नंदिवर्मन् की राष्ट्रकूट रानी से उत्पन्न नृपतुंगवर्मन् (८७२-९१३) ने सिंहासन पर बैठने के कुछ समय बाद ही कुंभकोनम् के समीप श्रीपुरंवियम् के युद्ध में पांड्य नरेश वरगुण द्वितीय को पराजित कर अपन पिता की पराजय का प्रतिकार किया। उसने पल्लव "साम्राज्य की सीमाओं को अक्षुण्ण रखा। उसने अभिलेखों से ज्ञात होता है कि शिक्षा और शासनप्रबंध के क्षेत्र में पल्लवों ने ही चोलों के लिए भूमिका बनाई थी।
नृपतुंगवर्मन् का पुत्र अपराजित इस वंश का अंतिम सम्राट् था। पल्लवों के सामंत आदित्य प्रथम ने अपनी शक्ति बढ़ाई और ८९३ के लगभग अपराजित को पराजित कर पल्लव साम्राज्य को चोल राज्य में मिला लिया।
इस प्रकार पल्लव साम्राज्य का अस्तित्व समाप्त हुआ। पल्लवों की कुछ शाखाओं (नोलंब-पल्लव) ने कुछ स्थानों पर बाद में भी शासन किया। १३वीं शताब्दी में कोपेरुंजिंग नाम के सामंत ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने का प्रयत्न किया। यद्यपि वह अपने को पल्लव कहता था, तथापि उसको पल्लव सम्राटों से संबधित करना कठिन है।
सिंहवर्मन १ २७५ - ३०० ई.
स्कन्दवर्मन ३०० - ३५० ई.
विष्णुगोप ३५० - ३५५ ई.
कुमारविष्णु १ ३५० - ३७० ई.
स्कन्दवर्मन २ ३७० - ३८५ ई.
वीरवर्मन् ३८५ - ४०० ई.
स्कन्दवर्मन ३ ४०० - ४३६ ई.
सिंहवर्मन २ ४३६ - ४६० ई.
स्कन्दवर्मन ४ ४६० - ४८० ई.
नन्दिवर्मन १ ४८० - ५१० ई.
कुमारविष्णु २ ५१० - ५३० ई.
बुद्धवर्मन् ५३० - ५४० ई.
कुमारविष्णु ३ ५४० - ५५० ई.
सिंहवर्मन ३ ५५० - ५६० ई.
सिंहविष्णु ५७५ - ५९० ई.
महेन्द्रवर्मन १ ५९० - ६३०इ..
नरसिंहवर्मन १ (ममल्ल) ६३० - ६६८ ई. महान राजा
महेन्द्रवर्मन २ ६६८ - ६७२ ई.
परमेश्वरमर्मन १ ६७२ - ७०० ई. महान राजा
नरसिंहवर्मन २ (राजसिंह) ७०० - ७२८ ई.
परमेश्वरवर्मन २ ७०५ - ७१० ई.
नन्दिवर्मन २ (पल्लवमल्ल) ७३२ - ७९६ ई.
तन्दिवर्मन् ७७५ - ८२५ ई.
नन्दिवर्मन ३ ८२५ - ८६९ ई.
नृपतुंगवर्मन ८६९-८८२ ई.
अपराजितवर्मन ८८२ - ८९७ ई.
इन्हें भी देखें
दक्षिण भारत का इतिहास
भारत के साम्राज्य
भारत का इतिहास
भारत के राजवंश |
खान सरदार बहादुर खान () (जन्म ८ जुलाई १९०८ - ३१ दिसंबर १९७५) एक पाकिस्तानी राजनीतिज्ञ थे। वे खैबर-पख्तूनख्वा (तब उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत कहा जाता था) के ९वें मुख्यमंत्री थे।
वह रिसालदार मेजर मीर दाद खान के पुत्र और पूर्व सैन्य तानाशाह और राष्ट्रपति मुहम्मद अयूब खान के भाई थे। उनका जन्म खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के हरिपुर जिले में रेहाना गाँव में हुआ था। वे हिंदको-भाषी पश्तूनों के तारिन जनजाति से थे।
उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से विधि स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
प्रांत में मुस्लिम लीग के एक सदस्य होते हुए वे १९३९ की सर्दियों में उपचुनाव में हरिपुर केंद्रीय निर्वाचन क्षेत्र से एनडब्ल्यूएफपी विधान सभा के लिए चुने गए थे। १९४२ में वे विधानसभा के अध्यक्ष बने।
१९४६ के चुनाव में उन्हें फिर से चुना गया। खान ने बाद में १७ फरवरी से १० सितंबर १९४९ तक प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की सरकार में जब उन्हें पूर्ण कैबिनेट मंत्री के रूप में पदोन्नत किया गया, तब उन्होंने विदेश मामलों, राष्ट्रमंडल संबंध और संचार राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया।
उन्होंने कई प्रधानमंत्रियों के मंत्रिमंडलों में संचार मंत्री के रूप में कार्य किया: १० सितंबर १९४९ से १९ अक्टूबर १९५१ तक लियाकत अली खान, २४ अक्टूबर १९५१ से १७ अप्रैल १९५३ तक ख्वाजा नजीमुद्दीन और १७ अप्रैल १९५३ से २४ अक्टूबर १९५४ तक मुहम्मद अली बोगरा । उन्होंने १० सितंबर १९४९ से २० सितंबर १९४९ तक स्वास्थ्य और कार्य का अतिरिक्त पोर्टफोलियो संभाला।
बहादुर खान ने ८ नवंबर १९५४ से १९ जुलाई १९५५ तक बलूचिस्तान के मुख्य आयुक्त के रूप में कार्य किया।
१९६२ के चुनावों के बाद वे राष्ट्रपति फील्ड मार्शल मुहम्मद अयूब खान की सरकार के दौरान पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में विपक्ष के नेता बने।
क्वेटा में उनके नाम पर सरदार बहादुर खान महिला विश्वविद्यालय का नाम रखा गया और यह बलूचिस्तान में एकमात्र महिला विश्वविद्यालय है।
१९७५ में निधन
१९०८ में जन्मे लोग
१९७१ के भारत-पाकिस्तान युद्ध के जनरल
बांग्लादेश का इतिहास |
ओलिवर एल्सवर्थ (२९ अप्रैल, १७४५ - २६ नवंबर, १८०७), संयुक्त राज्य अमेरिका के एक संस्थापक पिता, एक वकील, न्यायाधीश, राजनेता और राजनयिक थे। एल्सवर्थ संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान के निर्माता, कनेक्टिकट से संयुक्त राज्य अमेरिका के सीनेटर और संयुक्त राज्य के तीसरे मुख्य न्यायाधीश थे। इसके अतिरिक्त, उन्हें १७९६ के राष्ट्रपति चुनाव में ११ चुनावी वोट मिले।
कनेक्टिकट के विंडसर में जन्मे, एल्सवर्थ ने न्यू जर्सी के कॉलेज में भाग लिया, जहां उन्होंने अमेरिकन व्हिग-क्लियोसोफिक सोसाइटी की स्थापना में मदद की। १७७७ में, वह हार्टफोर्ड काउंटी, कनेक्टिकट के लिए राज्य के वकील बने और अमेरिकी क्रांतिकारी युद्ध के शेष के दौरान सेवा करते हुए, कॉन्टिनेंटल कांग्रेस के एक प्रतिनिधि के रूप में चुने गए। उन्होंने १७८० के दशक के दौरान एक राज्य न्यायाधीश के रूप में कार्य किया और १७८७ फ़िलाडेल्फ़िया सम्मेलन के एक प्रतिनिधि के रूप में चुने गए, जिसने संयुक्त राज्य के संविधान का निर्माण किया। अधिवेशन में रहते हुए, एल्सवर्थ ने अधिक आबादी वाले राज्यों और कम आबादी वाले राज्यों के बीच कनेक्टिकट समझौता बनाने में भूमिका निभाई। उन्होंने विस्तार समिति में भी काम किया, जिसने संविधान का पहला मसौदा तैयार किया, लेकिन दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने से पहले उन्होंने सम्मेलन छोड़ दिया।
उनके प्रभाव ने यह सुनिश्चित करने में मदद की कि कनेक्टिकट ने संविधान की पुष्टि की, और उन्हें १७८९ से १७९६ तक सेवा देने वाले सीनेटरों की कनेक्टिकट की उद्घाटन जोड़ी में से एक के रूप में चुना गया। वह १७८९ के न्यायपालिका अधिनियम के मुख्य लेखक थे, जिसने संयुक्त राज्य की संघीय न्यायपालिका को आकार दिया। और संयुक्त राज्य के संविधान के विपरीत राज्य के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों को उलटने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति की स्थापना की। एल्सवर्थ ने सिकंदर हैमिल्टन के लिए एक प्रमुख सीनेट सहयोगी के रूप में कार्य किया और संघीय पार्टी के साथ गठबंधन किया। उन्होंने १७९० के फंडिंग एक्ट और १७९१ के बैंक बिल जैसे हैमिल्टनियन प्रस्तावों के सीनेट पारित होने का नेतृत्व किया। उन्होंने यूनाइटेड स्टेट्स बिल ऑफ राइट्स और जे ट्रीटी के पक्ष में भी वकालत की।
१७९६ में, सीनेट द्वारा मुख्य न्यायाधीश के रूप में काम करने के लिए जॉन रटलेज के नामांकन को अस्वीकार करने के बाद, राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन ने एल्सवर्थ को इस पद के लिए नामित किया। एल्सवर्थ की सीनेट द्वारा सर्वसम्मति से पुष्टि की गई, और १८०० तक सेवा की, जब उन्होंने खराब स्वास्थ्य के कारण इस्तीफा दे दिया। एल्सवर्थ कोर्ट के सामने कुछ मामले आए, और उन्हें मुख्य रूप से सेरिअटिम राय लेखन के पिछले अभ्यास को हतोत्साहित करने के लिए याद किया जाता है। उन्होंने एक साथ १७९९ से १८०० तक फ्रांस में एक दूत के रूप में सेवा की, अर्ध-युद्ध की शत्रुता को निपटाने के लिए १८०० के सम्मेलन पर हस्ताक्षर किए। उन्हें जॉन मार्शल द्वारा मुख्य न्यायाधीश के रूप में सफल बनाया गया था। बाद में उन्होंने १८०७ में अपनी मृत्यु तक कनेक्टिकट गवर्नर्स काउंसिल में सेवा की।
प्रिंसटन विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र |
इम्तहान १९४९ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
नामांकन और पुरस्कार
१९४९ में बनी हिन्दी फ़िल्म |
मुनार, कपकोट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
मुनार, कपकोट तहसील
मुनार, कपकोट तहसील |
एडमिरल ऑफ़ द फ्लीट, फील्ड मार्शल के बराबर है, यह वायु सेना के मार्शल के बराबर है . कई देशों में एडमिरल ऑफ़ द फ्लीट समान रैंक प्रतीक चिन्ह धारण करते है।एडमिरल ऑफ़ द फ्लीट उच्चतम रैंक के एक नौसेना अधिकारी होते है। कई देशों में रैंक युद्ध समय या औपचारिक नियुक्तियों के लिए आरक्षित है। यह आमतौर पर एडमिरल (जो आमतौर पर सक्रिय सेवा में अधिकारी के लिए शांति समय में सर्वोच्च रैंक है) से ऊपर रैंक है, और अक्सर एक संपूर्ण नौसैनिक सेवा के सबसे वरिष्ठ एडमिरल द्वारा आयोजित किया जाता है। |
भाषाविज्ञान के सन्दर्भ में संरचनात्मक भाषाविज्ञान (स्ट्रक्चुरल लिंगिस्टिक्स) या संरचनात्मक विधान (स्ट्रक्चुरलीम), से आश्य उन सम्प्रदायों या सिद्धान्तों से है जिनमें भाषा को स्व-गठित (सेल्फ-कॉन्टेनेड), और स्वनियंत्रित तंत्र माना जाता है। इस विषय पर सिटजरलैण्ड के भाषाशास्त्री फर्डिनान्ड डी सौसुरे (फर्डीनांड दे सौस्झर) का कार्य महत्वपूर्ण है। उनका यह कार्य उनके मरणोपरान्त सन १९१६ में प्रकाशित हुआ |
बैरमपुर कायमगंज, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
फर्रुखाबाद जिला के गाँव |
कालामाल जी (कलमल जी) मीणा समाज के नारेड़ा गोत्र का प्रमुख पौराणिक आस्था स्थल है। सवाई माधोपुर जिले की चौथ का बरवाड़ा तहसील में स्थित झोंपड़ा गांव में कालभैरव अर्थात कालामाल जी भगवान का पौराणिक स्थल है। जो काल भैरव का ही स्वरूप है। यह स्थान झोंपड़ा गांव के गरीबनाथ योगी पीठ के बाद दूसरा सबसे पौराणिक स्थल माना जाता है। झोंपड़ा गांव के नारेड़ा गोत्र का धराड़ी प्रथा के अनुसार भगवान कालामाल जी को कुल देवता माना गया है। इनकी सवारी काला श्वान बताया गया है।
झोंपड़ा गांव के पास बनास नदी के किनारे प्राचीन समय में सघन वनक्षेत्र हुआ करता था। कहा जाता है कि झोंपड़ा गांव के गरीबनाथ योगी के दक्षिण-पूर्व में स्थित वन क्षेत्र को कालामाला के नाम से तब जाना जाता रहा है। इसी के चलते नारेड़ा गोत्र के मीणों ने गांव के आगमन के कई वर्षों बाद इस क्षेत्र में अपने कुल देवता काल भैरव की स्थापना की। जो कालामाल क्षेत्रीय नाम प्रचलन के कारण कालामाल जी के नाम से जाना जाने लगा।
जल जमीन की तलाश में वर्तमान बंधा गांव के खरण नामक भैरूजी स्थान से भगवतगढ़ की तरफ दोनों भाई (आशाराम एवं जगराम नारेड़ा) अपने परिवार सहित निकल गए। वर्तमान भगवतगढ़ से होते हुए गलवा नाला (वर्तमान गळोव नदी) के पास दोनों भाईयों ने पड़ाव डाला। कुछ दिनों तक गलवा नाला के पास रहने के बाद आशाराम एवं जगराम नारेड़ाओं ने बाबा गरीबनाथ की धरती पर रहना शुरू कर दिया। झोंपड़ा गांव में मीणा समाज के आने की पहली शुरूआत इन्हीं दो भाईयों से हुई। आशाराम एवं जगराम नारेड़ा नाथ सम्प्रदाय के लोगों के साथ मिलकर बाबा गरीबनाथ की सेवा करने लगे एवं यही पर जीवन व्यतीत करने लगे। नारेड़ाओ ने गरीबनाथ जी महाराज के आशिर्वाद से १२ वीं सदी के प्रारम्भ में कुल देवता काल भैरव के नाम का भोग गांव के दक्षिण नाके पर पूर्व दिशा (उगेणी) की देखते तरफ हुए लगवाया । कहां जाता है कि वर्षों बाद काल भैरव की स्थापना इसी जगह पर नानका पटेल के पूर्वजों ने की थी। बनास नदी के पानी से मंत्रित कालभैरव की यह सप्त गोल खुरदरे पत्थरों की मूर्तिया सात नारेड़ा सगे भाई बहन की आस्था का प्रतीक है। इस स्थान को वर्तमान में कालामाल जी के नाम से जाना जाता है। यह स्थान गांव का सबसे चमत्कारी एवं गांव का दूसरा (गरीबनाथ के बाद) सबसे प्राचीन धार्मिक स्थल है। तब से लेकर आज तक इस स्थान पर कालामाल जी को मदिरा चढ़ाई जाती है एवं पूवा- पापड़ी का भोग लगाया जाता है। कालामाल जी देव का विशेष दिन रविवार को माना जाता है। कहां जाता है कि नारेड़ा गोत्र के कुल 'देवता कालभैरव (कालामाल जी) कि सच्चे दिल से जो पूजा करता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। कालामाल जी की सवारी काले रंग के कुत्तें की मानी जाती है। पूर्वजों द्वारा बच्चों का मुंडन संस्कार कालामाल जी के स्थान पर किया जाता था। आज भी रविवार के दिन टापरीवालें योग ( मोहल्ला) में जन्मे बच्चे के जडुलें इसी जगह पर उतारे जाते है। जडूलें को हिन्दी भाषा में मुंडन संस्कार कहते है । कालामाल जी भाव रूप में किसी को भी नही आते है। वर्तमान में यह गांव के टापरीवाले योग में स्थित है। धराड़ी प्रथा के अनुसार गंधर्वराज नारेड़ा के सात बेटा बेटी की आस्था से जुड़ा झोंपड़ा गांव में मीणा समाज के नारेड़ाओं का यह पहला कुल स्थल है। गंधर्वराज नारेड़ा के छ: बेटे और एक बेटी थी जिनके नाम इस प्रकार थे शेषमल, सेडू, करमसी बाई, जन्सी, आशाराम, उदय और जगराम यह सातों भाई बहन काल भैरव के उपासक थे। इन्हीं सात- भाई बहनों की याद में यह नारेड़ाओं का कालामाल मंदिर या स्थल है। कहां जाता है कि कालभैरव की स्थापना रविवार के दिन की गई थी। धराड़ी प्रथा के अनुसार कालामाल के खेजड़ा वृक्ष और जाल को झोंपड़ा गांव के नारेड़ा गोत्र के मीणा कुल वृक्ष रूप में पूजते है।
भगवान काळ भैरव का विशेष दिन नारेड़ा गोत्र के मीणाओं में रविवार को माना जाता है। झोंपड़ा गांव में स्थित भगवान काळामाळ जी को झोंपड़ा गांव के नारेड़ा रविवार के दिन पूजते है। इस दिन कालामाल जी के शराब भी चढ़ाई जाती है। |
रावतसर (रावत्सर) भारत के राजस्थान राज्य के हनुमानगढ़ ज़िले में स्थित एक नगर है। इंदिरा गांधी नहर शहर के पास से निकलती है।
इन्हें भी देखें
राजस्थान के शहर
हनुमानगढ़ ज़िले के नगर |
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील कांठ, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
सम्बंधित जनगणना कोड:
राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७१८
कांठ तहसील के गाँव |
तुझे नहीं छोड़ूँगा १९८९ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
नामांकन और पुरस्कार
१९८९ में बनी हिन्दी फ़िल्म |
पट्टी पवारत भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के इलाहाबाद जिले के हंडिया प्रखण्ड में स्थित एक गाँव है।
इलाहाबाद जिला के गाँव |
मज़हबी सिख मज़हबी शब्द उर्दू शब्द मज़हब (मजहब का अर्थ धर्म या संप्रदाय) से लिया गया है, और इसका अनुवाद वफादार के रूप में किया जा सकता है। मजहबी दलित सिखों की व्यापक श्रेणी का हिस्सा हैं, जिनमें रामदासिया, रविदासिया, रंगरेतास, राय, सांसी भी शामिल हैं। ये मुख्य रूप से भारतीय पंजाब, राजस्थान और हरियाणा, हिमाचल, जम्मू में रहते हैं।
मज़हबी सिख की उत्पत्ति
गुरु तेग बहादुर, नौवें सिख गुरु को दिल्ली में मुगलों द्वारा मारे जाने के बाद तीन वाल्मीकि जाति के सदस्यों ने उनके शव और शीश को मुगल सेना से बरामद किया और उसे नौवें सिख गुरु के बेटे गुरु गोबिंद सिंह के पास सौंप दिया। उनके कृत्य की मान्यता में, गुरु गोबिंद सिंह ने उन्हें खालसा (सिख आस्था) में भर्ती कराया, उन्हें मजहबी और रंगरेटे ("वफादार") नाम दिया । |
खोज १९८९ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
ऋषि कपूर - रवि कपूर
नामांकन और पुरस्कार
१९८९ में बनी हिन्दी फ़िल्म |
विरचना (डिकंस्ट्रक्शन) के सिद्धान्त फ्रांसिसी दार्शनिक ज़ाक डेरिडा द्वारा प्रस्तुत सिद्धांत है।
जिनका जन्म अल्जीरिया मे हुआ था। डेरिडा (१९३० २००४) के विशाल कृतियों का सबसे ज़यादा प्रभाव साहित्यिक सिद्धान्त और महाद्वीपी दर्शनशास्र पर हुआ हे। उनके निर्मित कुछ कृतियों के नाम है: स्पीच एंड फिनामिना (बोली और घटना), ऑफ़ ग्रम्माटोलॉजी (व्याकरण का अध्ययन), राइटिंग एंड डिफरेंस (लेखन और अंतर) और डिससेमिनेशन (विकीर्णन)।
डेरिडा के विरचना के सिद्धान्त के पीछे अनेकों अन्य दार्शनिकों के कृतियों का प्रभाव है। उनके नीव इन अनेक कृतियों में पाए जा सकते है। एडमंड हुस्सेरल के लेखन से प्रेरित होकर डेरिडा ने घटनात्मक और संचारात्मक दृष्टिकोण का मिश्रण किया। फ्रीडरिच नीटशि, एक अस्तित्ववादी, के दार्शनिक दृष्टिकोण, डीकंस्ट्रक्शन के अग्रदूत बने। डीकंस्ट्रक्शन के सूत्रीकरण और डीफरैंस के विचार योजना में आंद्रे लेहुआ गुहँ का मअहत्वपूर्ण योगदान है। फरदिनंद दी सौसयौर के संरचनावादिक सिद्धांतों का डीकंस्ट्रक्शन और पोस्ट-स्ट्रकचरलिस्म (संरचनावाद के अनुसरण) के विकास में बड़ा योगदान हे।
डेरिडा के बारे मे
डेरिडा ने लिखना तब शुरू किया जब फ्रांसीसी बौद्धिक परिदृश्यों में प्रतिभास और संरचनावाद दृष्टिकोण मे बढता दरार साफ़ नज़र आने लगा था। घटनात्मक दृष्टिकोण उसे कहते हें जब एक अनुभव को उसके जन्मोत्पत्ति द्वारा समझा जाता हें। संरचनावादिक दृष्टिकोण कहता है की किसी भी वास्तु की जन्मोत्पत्ति के अध्ययन से सिर्फ तथ्य का पता लग सकता हें, मगर उसके संरचना के अध्ययन से उसके अनुभव के गहराईयों का आभास होता हें।
सन् १९५९ मे डेरिडा इस विचारधारा पर प्रश्न उठाते हुए पूछते हें की क्या हर एक संरचना की एक उत्पत्ति स्थल नहीं होती और क्या एक उत्पत्ति स्थल की मौजूदगी ही एक संरचना की होने ही सूचना नहीं देती? इस कथन द्वारा डेरिडा कहना चाहते हें की प्रतिभासिक और संरचनात्मक दृष्टिकोण दोनों ही किसी भी वास्तु या सिद्धान्त को पूरी तरह समझने के लिए आवश्यक हें। वह कहते हें की एक संरचना को तब तक नहीं समझा जा सकता जब तक हम उसकी उत्पत्ति के बारे मे न जान लें और यह ना समझ लें की वह उत्पत्ति स्थल अपने आप मे ही एक बहुत जटिल और संरचनात्मक हें। डेरिडा कहतें हें की यही डायक्रोनिस्म (वक़्त के साथ बदलता हुआ) हमें टेक्शुअलिटी (लेखन मे इस्तेमाल किये जाने वाली भाषा जो की बोली से अलग होती हें) के करीब ले जाती हें।
सौसयौर और संरचनावाद
डीकंस्ट्रक्शन के सिद्धान्तों को आज पोस्ट-स्ट्रकचरलिस्म का एक उपखंड मन जाता है। इस सिद्धान्त का डेरिडा ने सौसयौर के संरचनावादी सिद्धान्त से व्युत्पन्न किया है। सौसयौर के मुताबिक़ शब्दों का उनके अनुरूपित वस्तुओं से कोई प्राकृतिक सम्बन्ध नहीं हें। वह कहते हें की एक शब्द सिर्फ एक संकेत चिन्ह की तरह काम करता हें जो हमे एक वास्तु के तरफ इशारा करता है। एक चिन्ह दो भागों का बना होता हें सिग्नीफाईड (वह संकल्पना जिसकी तरफ इशारा किया गया है) और सिग्नीफाईयर (वचक - बोलचाल ध्वनी या तो लिखित अक्षर)।
चिन्ह = सिग्नीफाईड/ सिग्नीफाईयर (वचक)
सौसयौर के मुताबिक एक सिग्नीफाईड और एक सिग्नीफाईयर के बीच का रिश्ता प्राकृतिक नहीं मात्र मनमाना है। हर शब्द को पहले से एक मतलब दिया गया है और इस मतलब का उस वास्तु के वास्तविक रूप से कोई सम्बन्ध नहीं होता। हलाकि क्योंकि हर शब्द से एक अर्थ जोड़ा गया हें उन दोनों का रिश्ता स्थिर मन जाता हें।
पोस्ट-स्ट्रकचरलिस्म और विरचना
डेरिडा इस स्थिर रिश्ते को चुनौती देते हुए कहते हें की चूँकि एक शब्द का अर्थ कभी उस शब्द के अन्दर कैद नहीं किया जा सकता और उसका मतलब तभी समझा जा सकता हें जब उसे बाकी शब्दों के अंतर मे देखा जाए, इसीलिए एक शब्द का अर्थ सम्भंदित रूप मे ही समझा जा सकता हें। वह कहते हें की हम लाल रंग को सही ढंग से पहचान पातें हें क्यूंकि वह नीले या हरे रंग से अलग है। हम इस अंतर को पहचानतें है और इसीलिए उन्हें अलग अलग रंगों के रूप मे जानते हैं।
डेरिडा के मुताबिक हर वास्तु का एक द्विचर विपरीत होता हें, जैसे उजाला और अँधेरा, सफेद और काला, अच्छाई और बुरे इत्यादि। इसे और विस्तार मे समझाते हुए वह कहते हें की एक शब्द का पूरा अर्थ कभी उस शब्द मे समाया नहीं होता है। और चूँकि पूरा अर्थ नहीं समाया है हम यह कह सकते हें की अर्थ की अनुपस्थित है। ततः एक द्विचर विपरीत को डीकंस्ट्रक्ट करने के लिए आवश्यक है की हाशिए अवधि (मारजिनलाईजड् टर्म) के महत्व को पहचाना जाये, क्योंकि इसी शब्द के आधार पर विशेषाधिकृत अवधि को अर्थ मिलता है। एक द्विचर अर्थ उस बात कि भी निशानी हे जो अनुपस्थित है। हम एक कुर्सी को कुर्सी मानते हें क्योंकि वह एक मेज़ से अलग है। इस अनुपस्थिथि को डेरिडा डिफ्फेरांस (डिफ़रेंस) का नाम देते हें। उनके मुताबिक डिफ्फेरांस बनता है डिफरेंस (अंतर) और डेफेर्रल (अर्थ को टालना) के संघटन से। एक चिन्ह का अर्थ हमेशा उससे परे होता हें। अतः एक चिन्ह पूरी तरह अपने मे समाया नहीं होता, वह हमेशा एक दुसरे चिन्ह या वास्तु पे निर्भर रहता हें, अपने से परे की तरफ इशारा करता है। इसी वजह से डेरिडा कहतें हें की एक चिन्ह का पूरा मतलब उसके द्विचर विपरीत (डिफरेंस) और उसके अर्थ के टालने (डेफेर्रल) के आधार पर ही समझा जा सकता है और अर्थ मात्र एक हलके निशाने (ट्रेस) की तरह रह जाता है।
फलतः डेरिडा कहते हें की एक ट्रांससेंडेंटल (उत्तोतम) सिग्नीफाईड (हर शब्द के लिए एक ऐसी वास्तु या चिन्ह जो और किसी भी वास्तु या चिन्ह के तरफ इशारा न करे) ढूँढने की आवश्यकता हें, अर्थात एक ऐसा चिन्ह या सिग्नीफाईयर जिसको अपने अर्थ के लिए दुसरे सिग्नीफाईयर पर निर्भर न होना पड़े। हालांकि यह साफ़ ज़ाहिर है की यह मुमकिन नहीं हो सकता।
विरचना की परिभाषा
डेरिडा डीकंस्ट्रक्शन की परिभाषा कुछ इस तरह देतें हें (हालाँकि वह हमेशा डीकंस्ट्रक्शन के लिए कोई एकमात्र सही परिभाषा देने से हमेशा कतराएं है) डीकंस्ट्रक्शन एक गंभीर रूख या पढ़ने और विश्लेषण की रणनीति है जिसे साहित्य, भाषा वैज्ञानं, दर्शनशास्र, कानून और स्थापत्य मे लागू किया जा सकता है। यह भाषा का एक सिद्धान्त है, पढ़ने का एक तरीका है जो हरदम कोशिश करता है की एक कृति के सीमा, हाशिया, जुटना, नियत अर्थ, सच्चाई और पहचान को खंडित करता है, नष्ट करता है और किसी भी धारणा को पलट देता है। डीकंस्ट्रक्शन प्रश्न करता है उन हर तरह की कृतियों से और दिखाता है की वह सब ऐसे तरीके और प्रणालियों पे आधारित है जो की कृतिम रूप से बनाये गए है और उनमे कोई परम सत्य नहीं है। डीकंस्ट्रक्शन खारिज करता है उस जोड़ करने की प्रणाली (टोटलाईजेशन) को जो कोशिश करता है की हर अर्थ को उसी कृति मे समां लिया जाये।
व्याकरण का अध्ययन (ऑफ़ ग्राममटोलोजी
डीकंस्ट्रक्शन का ज़िक्र डेरिडा पहली बार अपने कृति ऑफ़ ग्राममटोलोजि (व्याकरण का अध्ययन) मे करते हैं, जो की उन्होंने सन् १९६७ मे लिखी थी। ग्राममटोलोजि का अर्थ, डेरिडा के मुताबिक है लिखित भाषा का विज्ञानं। इस कृति मे डेरिडा कहतें हें की जब भाषा को लेखन के रूप मे समझा जाता है तब उसके अर्थ का जो हाल होता है, इसे हम डीकंस्ट्रक्शन कहतें हें। कहने का मतलब यह हुआ की चाहे लिखित हमारा ही हो मगर उन शब्दों को अर्थ हमने नहीं दिए हें, वह पहले से ही दुनिया मे मौजूद थे। सालों से उन शब्दों का अर्थ वही रहा है, इसीलिए भाषा हमारे बस मे कभी नहीं होती। डीकंस्ट्रक्शन अस्तित्व मे है क्योंकि अर्थ मे अनिवार्य रूप से व्याख्या, समझौता वार्ता और अनुवाद कुछ कुछ मात्र मे उपलब्ध होतें है।
आगे डेरिडा यह भी कहतें हें की संरचना पर योजन करने वाले एक मध्यबिंदु का पूर्वानुमान लगते हें, लेकिन यह मध्यबिंदु विरोधाभास से संरचना के दोनों अंदर और बाहर रहता है। डेरिडा कहतें हें की यह मध्यबिंदु एक काल्पनिक सोच है। मध्यबिंदु संरचना को नियंत्रित करता है किन्तु अपने ही निर्मित क़ानून का पालन नहीं करता। उदाहरण के रूप मे भगवान इस श्रृष्टि के रचेता हें मगर वह इस दुनिया मे नहीं रहते, वह इस दुनिया के परे हें। वह यह भी कहतें हें की एक संरचना के मध्यम्बिंदु से मुक्त होना न मुमकिन है क्योंकि उसे हम हमेशा दुसरे मध्यबिंदु के लिए बदला जा सकता है, जेसे की भगवन जो की धर्मशास्त्र के मध्यस्थल मे है उन्हें हम पिता या आत्मा से बदल सकते हें। अतः डीकंस्ट्रक्शन हमे दिखता है की मालुम होने वाले स्थिर संस्थाएं हमेशा वेसी नहीं होतीं जेसे हमे दीखता हें। डीकंस्ट्रक्शन उपस्थिथि को अपना मुद्दा बना लेती है। उपस्थिथि एक इच्छा है स्थिर, निश्चित और एकात्मक अर्थ की मध्यबिंदु के लिए. इसे हम लोगोसेंट्रिस्म (लोगो मतलब यूनानी मे कारण , सोच या शब्द कहा जा सकता है। जब यह सब मध्यबिंदु मन जाए टो उसे लोगोसेंट्रिस्म कहते हें।
डीकंस्ट्रक्शन के मुताबिक़ कृति के बाहर का कुछ भी कोई माईने नहीं रखता. इसका यह मतलब नहीं के पाठकों को सिर्फ शब्दों पर ध्यान देना चाहिए, बल्कि उसका यह मतलब है की एक कृति के अनुभव के बहार कुछ भी नहीं. कहने का मतलब यह हुआ के एक कृति उसके सन्दर्भ से अलग नहीं है। इतिहास, राजनीती, जीवनी इत्यादि सभी सन्दर्भ का हिस्सा हें. एक कृति को पूरी तरह समझने के लिए उसके सन्दर्भ को समझना अनिवार्य है। |
पाटली, गरुङ तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
पाटली, गरुङ तहसील
पाटली, गरुङ तहसील |
सर्दार गुरबांगुलिसेविस बर्दीमुहामेदोव (जन्म २२ सितंबर १९८१) तुर्कमेनिस्तान के तीसरे और वर्तमान राष्ट्रपति हैं जो १९ मार्च २०२२ से सेवारत हैं।
बर्दीमुहामेदोव ने पहले अपने पिता, राष्ट्रपति गुरबांगुली बर्दीमुहामेदोव की सरकार के भीतर कई अन्य पदों पर कार्य किया था। २०२१ में वे तुर्कमेनिस्तान के मंत्रियों के मंत्रिमंडल में कई उप सभापतियों में से एक बने। २०२२ तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति चुनाव में ७३% वोट हासिल करने के बाद, जिसे न तो स्वतंत्र और न ही निष्पक्ष माना जाता है, वे राष्ट्रपति के रूप में अपने पिता के १५ वर्ष के लंबे सत्तावादी कार्यकाल में सफल रहे।
प्रारंभिक पेशा और शिक्षा
सर्दार बर्दीमुहामेदोव का जन्म २२ सितंबर १९८१ को अश्गाबात में हुआ था। उन्होंने १९८७ से १९९७ तक अश्गाबात में माध्यमिक विद्यालय संख्या ४३ में अध्ययन किया। १९९७ और २००१ के बीच उन्होंने तुर्कमेन कृषि विश्वविद्यालय में अध्ययन किया, एक इंजीनियर-प्रौद्योगिकीविद् के रूप में स्नातक किया।
जुलाई से नवंबर २००१ तक उन्होंने खाद्य प्रसंस्करण संघ के विदेशी आर्थिक संबंध निदेशालय में काम किया, इसके बाद दो साल की अनिवार्य सैन्य सेवा की। २००३ से २००८ तक उन्होंने फल और सब्जी विभाग में और गैर-मादक बियर और शराब विभाग में खाद्य प्रसंस्करण संघ में फिर से काम किया।
२००८ और २०११ के बीच बर्दीमुहामेदोव ने रूसी विदेश मंत्रालय के डिप्लोमैटिक अकादमी में अध्ययन किया, अंतरराष्ट्रीय संबंधों में डिप्लोमा अर्जित किया। इस अवधि के दौरान उन्हें दूतावास के परामर्शदाता के रूप में मास्को में तुर्कमेन दूतावास में भी नियुक्त किया गया था। २०११ से २०१३ तक उन्होंने जिनेवा सुरक्षा योजना स्थल में अध्ययन किया, यूरोपीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों में स्नातकोत्तर डिग्री अर्जित की। उन्हें समवर्ती रूप से दूतावास के परामर्शदाता के रूप में जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र में तुर्कमेन मिशन को सौंपा गया था।
अगस्त से दिसंबर २०१३ तक उन्होंने तुर्कमेनिस्तान के विदेश मंत्रालय के यूरोपीय विभाग के प्रमुख के रूप में कार्य किया। २०१३ से २०१६ तक वे हाइड्रोकार्बन संसाधनों के प्रबंधन और उपयोग के लिए राज्य एजेंसी के उप निदेशक थे। २०१६ से २०१७ तक वे तुर्कमेनिस्तान के विदेश मंत्रालय के अंतर्राष्ट्रीय सूचना विभाग के अध्यक्ष थे।
१८ अगस्त २०१४ को सर्दार बर्दीमुहामेदोव ने विज्ञान के उम्मीदवार की डिग्री अर्जित करने के लिए तुर्कमेन एकेडमी ऑफ साइंसेज में एक शोध प्रबंध का बचाव किया। जुलाई २०१५ में उन्हें तकनीकी विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया।
तुर्कमेनिस्तान की राष्ट्रीय मीडिया द्वारा उन्हें अक्सर "राष्ट्र का पुत्र" कहा जाता था।
बर्दीमुहामेदोव ने २००१ से २००३ तक दो वर्ष की अनिवार्य सैन्य सेवा की। २७ अक्टूबर २०१७ को बर्दीमुहामेदोव को मेजर के पद से लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर पदोन्नत किया गया था। उनका प्रचार समारोह राष्ट्रीय टेलीविजन पर प्रसारित किया गया था। उनकी सेवा की शाखा अज्ञात है, लेकिन ७ मार्च २०२१ को उन्हें तुर्कमेनिस्तान के सशस्त्र बलों के कंधे के पैच पहने वर्दी में राष्ट्रीय दूरदर्शन पर दिखाया गया था। उसी वीडियो में उन्हें कर्नल के पद का संकेत देने वाले कंधे के बोर्ड पहने हुए दिखाया गया था, और उन्हें "मातृभूमि तुर्कमेनिस्तान का रखवाला" की मानद उपाधि से सम्मानित करने वाले डिक्री ने उन्हें कर्नल के रूप में संदर्भित किया था।
नवंबर २०१६ में बर्दीमुहामेदोव ने मेज्लिस में एक सीट जीती, जो आखाल प्रांत के एक शहर दुशाक पर केंद्रित २५वें संसदीय जिले का प्रतिनिधित्व करती है। मार्च २०१८ में उन्हें अपने जिले में ९०% से अधिक वोटों के साथ तुर्कमेनिस्तान की विधानसभा के लिए फिर से चुना गया। उन्होंने मार्च २०१७ तक कानून और मानदंडों पर समिति की अध्यक्षता की।
मार्च २०१८ में विदेश मामलों के उप मंत्री के रूप में नियुक्ति के बाद बर्दीमुहामेदो राजनीतिक सुर्खियों में आ गए। जनवरी २०१९ में बर्दीमुहामेदोव को तुर्कमेन अभिजात वर्ग के मूल क्षेत्र अहल प्रांत के डिप्टी गवर्नर के पद पर स्थानांतरित कर दिया गया था। जून २०१९ में बर्दीमुहामेदोव को अहल प्रांत के गवर्नर (हकीम) के रूप में पदोन्नत किया गया था। फरवरी २०२० में बर्दीमुहामेदोव को तुर्कमेनिस्तान के उद्योग और निर्माण सामग्री मंत्री नियुक्त किया गया था।
११ फरवरी २०२१ को बर्दीमुहामेदोव को नवाचार और डिजिटलीकरण के लिए मंत्रियों के मंत्रिमंडल के उपाध्यक्ष के रूप में पदोन्नत किया गया, जो एक नया पद बना था। उन्हें एक साथ राज्य सुरक्षा परिषद और तुर्कमेनिस्तान के सर्वोच्च नियंत्रण संस्थान के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। ९ जुलाई २०२१ को बर्दीमुहामेदोव को राज्य सुरक्षा परिषद और सुप्रीम कंट्रोल चैंबर में अपने पदों से मुक्त कर दिया गया था, और डिप्टी चेयरमैन के रूप में "आर्थिक और बैंकिंग मुद्दों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संगठनों" के लिए विशिष्ट जिम्मेदारी के साथ अर्थशास्त्र और वित्त पोर्टफोलियो को सौंपा गया था।
वह तुर्कमेन अलबे कुत्ते समिति के अध्यक्ष हैं, और अंतर्राष्ट्रीय अहल तेके घोड़ा प्रजनन के अध्यक्ष हैं।
राष्ट्रपति पद (२०२२-वर्तमान)
फरवरी २०२२ में यह पुष्टि की गई कि बर्दीमुहामेदोव १२ मार्च को एक प्रारंभिक राष्ट्रपति चुनाव के लिए खड़े हो रहे थे, जिससे अटकलें तेज हो गईं कि वे तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में अपने पिता के उत्तराधिकारी होंगे। उन्होंने ७२.९७% वोट के साथ चुनाव जीता, और एक राजनीतिक वंश की स्थापना करते हुए राष्ट्रपति के रूप में अपने पिता के उत्तराधिकारी बने। कई अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने चुनाव को न तो स्वतंत्र और न ही निष्पक्ष के रूप में देखा।
१९ मार्च को रुह्यसेट किले में सर्दार का उद्घाटन किया गया था। उन्होंने तुर्कमेनिस्तान के संविधान और कुरान की लोगों को शपथ दिलाई। उसके बाद उन्हें तुर्कमेनिस्तान के बुजुर्गों द्वारा राष्ट्रपति पद का पदक प्रदान किया गया। महल से बर्दीमुहामेदोव एक घुड़सवार अनुरक्षक के साथ गल्किनिश चौक और फिर ओगुज़ान राष्ट्रपति महल परिसर में चले गए जहाँ तुर्कमेनिस्तान के सशस्त्र बलों ने एक सैन्य परेड का प्रदर्शन किया। उपप्रधानमंत्री और तुर्कमेनिस्तान के राज्य सुरक्षा परिषद के सचिव सरीमिरत अमानोव ने बर्दीमुहामेदोव को सूचना दी। उस दिन बाद में तुर्कमेनिस्तान के ऑडियंस सेंटर में आधिकारिक स्वागत किया गया। हजरत उमर मस्जिद में एक उत्सव सदकाह भी दिया गया था।
२५ मार्च को उन्होंने अपने मंत्रिमंडल की नई रचना की घोषणा की। उनके द्वारा नियुक्त किए गए एकमात्र नए सरकार के सदस्य मुहम्मतगुली मुहम्मदोव थे, जिन्होंने उन्हें अर्थशास्त्र और वित्त मंत्रियों के मंत्रिमंडल के उपाध्यक्ष के रूप में स्थान दिया। कुछ स्रोत के अनुसार वे विदेश मंत्री और तुर्कमेनिस्तान के वास्तविक उपराष्ट्रपति रासीत मेरेदोव को अंतर्राष्ट्रीय मानविकी और विकास विश्वविद्यालय के रेक्टर एसेन आयडोगडेव के साथ बदलने का इरादा रखते हैं।
अपने राष्ट्रपति पद के पहले दिन बर्दीमुहामेदोव ने फ़ज़ल मुहम्मद साबिर की साख को स्वीकार कर लिया जिससे तुर्कमेनिस्तान मध्य एशिया का पहला देश बन गया जिसने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के राजनयिकों को स्वीकार किया। भारतीय राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने १-४ अप्रैल को तुर्कमेनिस्तान की राजकीय यात्रा की, जो भारत के राष्ट्रपति की तुर्कमेनिस्तान में पहली यात्रा थी, और बर्दीमुहामेदोव से मिलने वाले पहले विदेशी राष्ट्राध्यक्ष थे। दोनों नेताओं के बीच व्यापार और ऊर्जा सहयोग के विस्तार पर चर्चा की गई।
राष्ट्रीय सुरक्षा नीति
अप्रैल की शुरुआत में एक राज्य सुरक्षा परिषद की बैठक के दौरान उन्होंने कर्नल जनरल सरीमिरत अमानोव को उनके "एक अन्य नौकरी में स्थानांतरण" के कारण तुर्कमेनिस्तान के राज्य सुरक्षा परिषद के सचिव के पद से हटा दिया, और उसके बदले रक्षा मंत्रालय के प्रमुख बेगेंच गुंदोगदेव को रख लिया। उन्होंने अमानोव के सुरक्षा, सैन्य और न्याय के लिए जिम्मेदार कैबिनेट के उपाध्यक्ष के समवर्ती कार्यालय को भी समाप्त कर दिया। उन्होंने "कमियों" और "सार्वजनिक व्यवस्था, यातायात सुरक्षा के साथ-साथ पुलिस के स्थानीय प्रतिनिधियों की गतिविधि पर अनुचित नियंत्रण" के कारण आंतरिक मामलों के मंत्री कर्नल ओवेज़र्दी होयनीयाज़ोव को हटाकर कर्नल मुहम्मत हिदिरोव को रख लिया।
गारसीज़ तुर्कमेनिस्तान बोलन बेसिक सोग्गुसी उसीन (स्वतंत्र तुर्कमेनिस्तान के महान प्रेम के लिए) आज्ञप्ति
मलिकगुली बर्दीमुहामेदोव पदक
जुबली मेडल "तुर्कमेनिस्तानी गारासिज़लीगिनी २५ ज़िलिग्ना" ("तुर्कमेनिस्तान की स्वतंत्रता के २५ वर्ष")
जयंती पदक "तुर्कमेनिस्तानी बिटाराप्लायनी, २५ ज़िलिग्ना" ("तुर्कमेनिस्तान की तटस्थता के २५ वर्ष")
"तुर्कमेनिस्तानी वतन गोरगसीसी" (२०२१) ("मातृभूमि तुर्कमेनिस्तान का रक्षक")
"तुर्कमेनिस्तानी अत गज़ानन इतिनासी" (२०२१) ("तुर्कमेनिस्तान के मेधावी कुत्ते का प्रजनन करने वाले")
बर्दीमुहामेदो शादीशुदा हैं और उनके चार बच्चे हैं। रूसी कूटनीतिक अकादमी के एक सहपाठी ने उन्हें सम-स्वभाव वाला और सरल बताया। कथित तौर पर प्रशिक्षकों और अन्य सहपाठियों ने उन्हें "विनम्र, उत्तरदायी, विनम्र और शांत" बताया।
बर्दीमुहामेदोव तुर्कमेन, रूसी और अंग्रेजी बोलते हैं।
१९८१ में जन्मे लोग
तुर्कमेनिस्तान की जातियाँ |
जॉर्ज पेरी फ्लॉयड जूनियर (१४ अक्टूबर, १९७३ - २५ मई, २०२०) मिनियापोलिस , मिनेसोटा में गिरफ्तारी के दौरान पुलिस द्वारा मारे गए एक अफ्रीकी अमेरिकी व्यक्ति थे । उनकी मौत के विरोध में विरोध प्रदर्शन , और काले लोगों के खिलाफ पुलिस हिंसा के लिए और अधिक व्यापक रूप से, संयुक्त राज्य अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेजी से फैल गया ।
फ्लॉयड , ह्यूस्टन , टेक्सास में बड़ा हुआ । उन्होंने हाई स्कूल और कॉलेज में फुटबॉल और बास्केटबॉल खेला । एक नीली कॉलर कार्यकर्ता , वह एक हिप हॉप कलाकार और अपने धार्मिक समुदाय में एक संरक्षक भी था । १९९७ और २००५ के बीच, उन्हें आठ अपराधों का दोषी ठहराया गया था; २००९ में, उन्होंने २००७ की डकैती के लिए एक दलील स्वीकार की , जिसमें चार साल जेल की सजा काटनी पड़ी।
२०१४ में, वह ट्रक चालक और एक बाउंसर के रूप में काम करते हुए मिनियापोलिस क्षेत्र में चले गए । २०२० में, उन्होंने कोविड-१९ महामारी के दौरान अपनी सुरक्षा नौकरी खो दी । सिगरेट खरीदने के लिए नकली धन का उपयोग करने के आरोप में गिरफ्तार होने के दौरान उनकी मृत्यु हो गई ; श्वेत पुलिस अधिकारी डेरेक चाउविन ने लगभग नौ मिनट तक अपनी गर्दन पर चाकू मारा ल
यह मृत्यु २० डॉलर के नकली नोट को लेकर आरंभ हुए उस विवाद के कारण हुई जिसे देकर फ्लॉयड ने कप फूड्स नामक स्टोर से सिगरेट का एक डब्बा ख़रीदा था। जब स्टोरवाले को उन्होंने २० डॉलर का भुगतान किया तो उन्हें लगा कि यह नकली है और इसकी सूचना उन्होंने तुरंत पुलिस को दी। मिनियापोलिस में यह एक प्रोटोकॉल भी है कि यदि कोई नकली रुपये पकड़ में आएं तो उनकी सूचना आपराधिक सेल अधिकारियों को दिया जाए।
जॉर्ज फ्लॉयड के साथ हुए इस अमानवीय व्यवहार की निंदा करते हुए नेशनल एसोसिएशन फॉर द एड्वांमेंट ऑफ़ कलर्ड पीपल ने कहा कि ये हरकतें हमारे समाज में काले लोगों के खिलाफ़ एक खतरनाक मिसाल बनाती हैं जो नस्लीय भेदभाव, ज़ेनोकोविया और पूर्वाग्रह से प्रेरित है। हम अब और मरना नहीं चाहते।
जॉर्ज फ्लॉयड के ये अंतिम शब्द आई कांट ब्रीद आज लोगों के लिए मंत्र-सा बन गया है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा (प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति) फ्लॉयड की मृत्यु पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए लिखते हैं मैंने वह वीडियो देखा और मैं रोया। इस घटना ने मुझे एक तरह से तोड़कर रख दिया। |
ग़ज़वा-ए-बनू क़ुरैज़ा (अंग्रेज़ी:इंवेशन ऑफ बनू कुरायज़ा)या बनू क़ुरैज़ा की लड़ाई, खंदक़ की लड़ाई से पहले मुसलमानों और यहूदियों के बीच एक जंगी अभियान था। फरवरी और मार्च ६२७ (५ हिजरी) के दौरान ज़ु अल-क़ादा के महीने में हुआ था। पैगंबर मुहम्मद ने 2५ दिनों तक बनू क़ुरैज़ा को घेर रखा था जब तक कि उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं कर दिया।
इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी क़ुरआन की सूरा
अल-हश्र की विवेचना मेँ लिखते हैं कि
जब सन् ७० ईस्वी में रूमियों ने फ़िलिस्तीन में यहूदियों का सार्वजनिक नरसंहार किया और फिर सन् १३२ ई॰ में उन्हें इस भू-भाग से बिलकुल निकाल बाहर किया। उस समय बहुत-से यहूदी क़बीलों ने भागकर हिजाज़ में शरण ली थी, क्योंकि ये क्षेत्र फ़िलिस्तीन के दक्षिण में बिलकुल मिला हुआ अवस्थित था। यहाँ आकर उन्होंने जहाँ-जहाँ जल-स्रोत और हरे-भरे स्थान देखे, कहाँ ठहर गए और फिर बस गए। ऐला, मक़ना,तबूक,तैम, वादिउल कुराअ, फ़दक और खैबर पर उनका आधिपत्य उसी समय में स्थापित हुआ और बनी कुरैश, बनू नज़ीर, बनी बहदल और बनी कैनुक़ा ने भी उसी ज़माने में आकर यसरिब (मदीना का पुराना नाम) पर क़ब्जा जमाया। यसरिब में आबाद होने वाले क़बीलों में से बनी नज़ीर और बनी कुरैज़ा अधिक उभरे हुए और प्रभुत्वशाली थे, क्योंकि उनका सम्बन्ध काहिनों के वर्ग से था। उन्हें यहुदियों में उच्च वंश का माना जाता था और उन्हें अपने सम्प्रदाय में धार्मिक नेतृत्व प्राप्त था। ये लोग जब मदीना में आकर आबाद हुए उस समय कुछ दूसरे अरब क़बीले यहाँ रहते थे, जिनको इनहोंने अपना बना लिया और व्यवहारतः हरे-भरे स्थान के मालिक बन बैठे। इसके लगभग तीन शताब्दी के पश्चात् औस और खज़रज यसरिब में जाकर आबाद हुए (और उन्होंने कुछ समय पश्चात् यहूदियों का ज़ोर तोड़कर यसरिब पर पूरा आधिपत्य प्राप्त कर लिया।) अल्लाह के रसूल (सल्ल.) के पदार्पण से पहले हिजरत के प्रारम्भ तक, हिजाज़ में सामान्यतः और यसरिब में विशेष रूप से यहूदियों की पोज़ीशन की स्पष्ट रूप-रेखा यह थी:
भाषा , वस्त्र , सभ्यता , नागरिकता , हर दृष्टि से उन्होंने पूर्ण रूप से अरब-संस्कृति का रंग ग्रहण कर लिया था। उनके और अरबों के मध्य विवाह तक के सम्बन्ध स्थापित हो चुके थे, किन्तु इन सारी बातों के बावजूद वे अरबों में समाहित बिलकुल न हुए थे और उनहोंने सतर्कता के साथ अपने यहूदी पन को जीवित रखा था। उनमें अत्यन्त इसराईली पन और वंशगत गर्व पाया जाता था। अरबवालों को वे उम्मी (जैंटाइल्स) कहते थे , जिसका अर्थ केवल अनपढ़ नहीं, बल्कि असभ्य और उजड्ड होता था। उनकी धारणा यह थी कि इन उम्मियों को वे मानवीय अधिकार प्राप्त नहीं हैं जो इसराईलियों के लिए हैं और उनका धन प्रत्येक वैध और अवैध रीति से इसराईलियों के लिए वैध और विशुद्ध है। आर्थिक दृष्टि से उनकी स्थिति अरब क़बीलों की अपेक्षा अधिक सुदृढ थी। वे बहुत-से ऐसे हुनर और कारीगरी जानते थे जो अरबों में प्रचलित न थी। और बाहर की दुनिया से उनके कारोबारी सम्बन्ध भी थे। वे अपने व्यापार में खूब लाभ बटोरते थे। लेकिन उनका सबसे बड़ा कारोबार ब्याज लेने का था जिसके जाल में उन्होंने अपने आसपास की अरब आबादियों को फांस रखा था, किन्तु इसका स्वाभाविक परिणाम यह भी था कि अरबों में साधारणतया उनके विरुद्ध एक गहरी घृणा पाई जाती थी। उनके व्यापारिक और आर्थिक हितों की अपेक्षा यह थी कि अरबों में किसी के मित्र बनकर किसी से बिगाड़ पैदा न करें और न उनकी पारस्परिक लड़ाई में भाग लें। इसके अतिरिक्त तदधिक अपनी सुरक्षा के लिए उनके हर क़बीले ने किसी - न - किसी शक्तिशाली अरब क़बीले से प्रतिज्ञाबद्ध मैत्री के सम्बन्ध भी स्थापित (कर रखे थे) यसरिब में बनी कुरेज़ा और बनी नज़ीर, औस के प्रतिज्ञाबद्ध मित्र थे और बनी कैनुक़ा ख़ज़ारज के। यह स्थिती थी जब मदीने में इस्लाम पहुँचा और अन्ततः अल्लाह के रसूल (सल्ल.)के पदार्पण के पश्चात् वहाँ एक इस्लामी राज्य अस्तित्व में आया। आपने इस राज्य को स्थापित करते ही जो सर्वप्रथम काम किए उनमें से एक यह था कि औस और ख़ज़रज और मुहाजिरों को मिलाकर एक बिरादरी बनाई और दूसरा यह था कि मुस्लिम समाज और यहूदियों के मध्य स्पष्ट शर्तों पर एक अनुबन्ध निर्णीत किया, जिसमें इस बात की ज़मानत दी गई थी कि कोई किसी के अधिकारों पर हाथ नहीं डालेगा और बाह्य शत्रुओं के मुक़ाबले में यह सब संयुक्त प्रतिरक्षा करेंगे।
इस अनुबन्ध के कुछ महत्त्वपूर्ण वाक्य ये हैं:
यह कि यहूदी अपना ख़र्च उठाएँगे और मुसलमान अपना ख़र्च; और यह कि इस अनुबन्ध में सम्मिलित लोग आक्रमणकारी के मुक़ाबले में एक-दूसरे की सहायता करने के पाबन्द होंगे। और यह कि वे शुद्ध - हृदयता के साथ एक - दूसरे के शुभ - चिन्तक होंगे। और उनके मध्य पारस्परिक सम्बन्ध यह होगा कि वे एक - दूसरे के साथ नेकी और न्याय करेंगे, गुनाह और अत्याचार नहीं करेंगे। और यह कि कोई उसके साथ ज़्यादती न करेगा जिसके साथ उसकी प्रतिज्ञाबद्ध मैत्री है, और यह कि उत्पीड़ित की सहायता की जाएगी, और यह कि जब तक युद्ध रहे, यहूदी मुसलमानों के साथ मिलकर उसका ख़र्च उठाएँगे। और यह कि इस अनुबन्ध में सम्मिलित होनेवालों के लिए यसरिब में किसी प्रकार का उपद्रव और बिगाड़ का कार्य वर्जित है और यह कि अनुबन्ध में सम्मिलित होनेवालों के मध्य यदि कोई विवाद या मतभेद पैदा हो, जिससे दंगा और बिगाड़ की आशंका हो तो उसका निर्णय अल्लाह के क़ानून के अनुसार अल्लाह के रसूल मुहम्मद (सल्ल.) करेंगे .... और यह कि कुरैश और उसके समर्थकों को शरण नहीं दी जाएगी और यह कि यसरिब पर जो आक्रमण करे, उसके मुक़ाबले में अनुबन्ध में सम्मिलित लोग एक - दूसरे की सहायता करेंगे ...। हर पक्ष अपनी तरफ़ के क्षेत्र की सुरक्षा का उत्तरदायी हो।" (इब्ने हिशाम, भाग दो, पृष्ठ १४७-१५०)
यह एक निश्चित और स्पष्ट अनुबन्ध था जिसकी शर्ते स्वयं यहूदियों ने स्वीकार की थी, किन्तु बहुत जल्द उन्होंने अल्लाह के रसूल (सल्ल.) , इस्लाम और मुसलमानों के विरुद्ध शत्रुतापूर्ण नीति का प्रदर्शन शुरू कर दिया और उनकी शत्रुता एवं उनका विद्वेष दिन - प्रतिदिन उग्र रूप धारण करता चला गया। उन्होंने नबी (सल्ल.) के विरोध को अपना-जातीय लक्ष बना लिया। आपको पराजित करने के लिए कोई चाल, कोई उपाय और कोई हथकंडा इस्तेमाल करने में उनको तनिक भी संकोच न था। अनुबन्ध के विरुद्ध खुली - खुली शत्रुतापूर्ण नीति तो बद्र के युद्ध से पहले ही वे अपना चुके थे। किन्तु जब बद्र में अल्लाह के रसूल (सल्ल.) और मुसलमानों को कुरैश पर स्पष्टतः विजय प्राप्त हुई तो वे तिलमिला उठे और उनके द्वेष की आग और अधिक भड़क उठी।
इस्लामिक प्राथमिक स्रोत
इस्लामी इतिहास के अनुसार बनी कुरैज़ा के लोगों ने मुआहदा तोड़ कर अलानिया जंगे खंदक़ की लड़ाई में विरोधियों के साथ मदीने पर हमला किया है। इसलिये पैग़म्बर मुहम्मद ने एलान कर दिया कि लोग अभी हथयार न उतारें और बनी कुरैज़ा की तरफ रवाना हो जाएं, वो खुद भी पहुंचे।
बनी कुरैज़ा भी जंग के लिये बिल्कुल तय्यार थे चुनान्चे जब हज़रते अली उन के किलों के पास पहुंचे तो अहद शिकन यहूदियों ने गालियां दीं , पैग़म्बर मुहम्मद ने उन के किलों का मुहासरा कर लिया और तक़रीबन एक महीने तक यह मुहासरा घेराबंदी जारी रहा यहूदियों ने तंग आकर येह दरख्वास्त पेश की, कि "हज़रते सा 'द बिन मुआज हमारे बारे में जो फ़ैसला कर दें वोह हमें मन्जूर है।"
हज़रते सा 'द बिन मुआज जंगे खंदक़ की लड़ाई में एक तीर खा कर शदीद तौर पर ज़ख़्मी थे मगर इसी हालत में वोह एक गधे पर सवार हो कर बनी कुरैज़ा गए और उन्हों ने यहूदियों के बारे में येह फ़ैसला फ़रमाया कि:
"लड़ने वाली फ़ौजों को क़त्ल कर दिया जाए, औरतें और बच्चे कैदी बना लिये जाएं और यहूदियों का माल व अस्बाब माले गनीमत बना कर मुजाहिदों में तक्सीम कर दिया जाए।"
पैग़म्बर मुहम्मद ने उन की ज़बान से येह फैसला सुन कर फ़रमाया कि यकीनन बिला शुबा तुम ने इन यहूदियों के बारे में अल्लाह के फैसले (या राजा के फैसले) के समान निर्णय दिया है।"[मुस्लिम, जिलद २,पृष्ट ९५]
इस फ़ैसले के मुताबिक़ बनी कुरैजा की लड़ाका फौजें कत्ल की गई और औरतों बच्चों को कैदी बना लिया गया और उन के माल व सामान को मुजाहिदीने इस्लाम ने माले गनीमत बना लिया।
सुन्नी हदीस संग्रह में अबू दाऊद :
अतिय्याह अल-कुराज़ी से वर्णित: मैं बानू कुरैज़ा के बंदियों में से था। उन्होंने (साथियों ने) हमारी जांच की, और जो बाल (पौज) उगाना शुरू कर चुके थे, वे मारे गए, और जो नहीं थे वे मारे नहीं गए। मैं उन लोगों में से था जिनके बाल नहीं बढ़े थे।[सुनन अबू दाऊद , ३८:४३९०]
इब्न कथिर के अनुसार , कुरआन की आयतें ३३:२६-२७ और ३३:९-१० बनू कुरैजा के खिलाफ हमले के बारे में हैं।
सराया और ग़ज़वात
अरबी शब्द ग़ज़वा इस्लाम के पैग़ंबर के उन अभियानों को कहते हैं जिन मुहिम या लड़ाईयों में उन्होंने शरीक होकर नेतृत्व किया,इसका बहुवचन है गज़वात, जिन मुहिम में किसी सहाबा को ज़िम्मेदार बनाकर भेजा और स्वयं नेतृत्व करते रहे उन अभियानों को सरियाह(सरिय्या) या सिरया कहते हैं, इसका बहुवचन सराया है।
इन्हें भी देखें
बद्र की लड़ाई
खंदक़ की लड़ाई
उहुद की लड़ाईप
मुहम्मद की सैन्य उपलब्धियाँ
मुहम्मद के अभियानों की सूची
गुलामी पर इस्लाम के विचार
इस्लाम का इतिहास
अर्रहीकुल मख़तूम (सीरत नबवी ), पैगंबर की जीवनी (प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित पुस्तक), हिंदी (पफ) |
याम्योतर वृत (ट्रांसित सर्कए, मेरिडन सर्कए), वेधशाला के अनिवार्य उपकरणों में से एक उपकरण हैं। इसकी सहायता से खगोलीय पिंड के खगोलीय याम्योतर को पार करने के ठीक समय का निर्धारण कर, पिंड का यथार्थ विषुवांश (राइट आसेंशन) ज्ञात किया जा सकताहैं। यह याम्योतर (ट्रांसित इंस्ट्रूमेंट) का उन्नत रूप है और किसी खगेालीय पिंड की क्रंाति (डिक्लिनेशन) निर्धारित करने में भी उपयोगी हैं।
इसमें प्रधानता: अपवर्तक दूरदर्शी होता है, जो क्षैतिज अक्ष के समकोण पर दृढ़ता से स्थिर होता हैं। अक्ष पूर्व और पश्चिम दिशा का ठीक संकेत करता हैं, जिसमें दूरदर्र्शी, अक्ष पर घुर्णन करते समय, सदा ही याम्योतर के समतल में रहता हैं। यथार्थ मापन के लिये अभिद्दश्यक काच (ऑब्जेक्ट ग्लास) के नाभीय समतल पर विषम संख्यक तारों की एक अंशांकित झॅझरी (ग्रिल) होती हैं, जिसका केंद्रीय तार याम्योतर में स्थिति होता हैं।
याम्योतर वृत और याम्योतर यंत्रों में यह हैं कि इस वृत में दूरदर्शी के दोनो ओर सुक्ष्म अंशांकित मंडलक, जिनके समतल अक्ष लंघकोण में होते हैं, क्षैतिज अक्ष से आबद्ध होते हैं। इन मंडलकों से खगोलीय विषुवत् रेखा के किसी कोण पर देखे गए बिंब की क्रांति निर्धारित की जा सकती हैं। |
रोहित बख्शी (जन्म १४ फरवरी, १९८२) एक भारतीय उद्यमी और दिल्ली के पूर्व ३क्स३ पेशेवर बास्केटबॉल खिलाड़ी हैं। वह वाईकेबीके एंटरप्राइज प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ और भारतीय उपमहाद्वीप में एफआईबीए से संबद्ध ३क्स३ प्रो बास्केटबॉल लीग के ३बीएल के आयुक्त हैं।
रोहित बख्शी का जन्म दिल्ली, भारत में हुआ था, और ये नागोया, जापान में बड़े हुए थे। उन्होंने २००६ से ३क्स३ लीग खेलना शुरू किया और जापानी ३क्स३ लीग में खेला। रोहित २००९ में भारत में एक पेशेवर बास्केटबॉल लीग स्थापित करने के लिए भारत लौटे।
२०१६ में, रोहित ने जापानी व्यवसायी योशिया काटो के साथ एक ३क्स३ बास्केटबॉल टीम अगलेमीना.एक्से की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य भारतीय खिलाड़ियों की ताकत दिखाने के साथ-साथ जापान में एक चैम्पियनशिप जीतना है। उन्होंने २०१६ में वर्ल्ड टूर फाइनल चैम्पियनशिप में हारने के बाद ३क्स३ जापान प्रीमियर लीग चैम्पियनशिप खिताब जीता और दुनिया की दूसरी सबसे अच्छी टीम बन गई। अगले वर्ष में, रोहित बक्शी और योशिया काटो ने मिलकर भारत में एक ३क्स३ प्रो बास्केटबॉल लीग की स्थापना की जिसका नाम ३बीएल रखा गया। जिसे इंटरनेशनल बास्केटबॉल फेडरेशन (फाईबा) द्वारा मान्यता प्राप्त है और इसमें अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों सहित अठारह टीमें शामिल हैं।
१९८२ में जन्मे लोग
दिल्ली के लोग |
उल्टा गढ़ा धाम (उल्टा गधा धाम), जिसे गढ़ा माफी (गरहा माफ़ी) भी कहा जाता है, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के अमेठी ज़िले में गौरीगंज से लगभग आठ किमी दूर स्थित एक हिन्दू तीर्थस्थल है। यहाँ श्री हनुमान जी का एक ५५ फुट ऊँची मूर्ती है। यह गढ़ा माफी नामक ग्राम में स्थित है, जहाँ एक दुर्ग किसी भूकम्प या अन्य घटना में उलट गया था।
इन्हें भी देखें
उत्तर प्रदेश में हिन्दू मंदिर |
मूत्रमार्ग (यूरेथा) शरीर में स्थित एक नलिका है जो मूत्राशय और मूत्रद्वार (यूरिनरी मीटस) को जोड़ती है और इसी से होकर शरीर से मूत्र बाहर (पुरुष और स्त्री दोनों में) निकलता है। स्त्रियों में तथा कुछ अन्य प्राइमेट्स में मूत्रमार्ग, योनि के ऊपर स्थित मूत्रद्वार में खुलती है। |
रासमनोहरि पुलेंद्रन (तमिल: ; ७ फरवरी १९४९ - ३० दिसंबर २०१४) एक श्रीलंकाई तमिल राजनीतिज्ञ, संसद सदस्य और राज्य मंत्री थीं।
रासमनोहरि पुलेंद्रन का जन्म ७ फरवरी १९४९ को हुआ था। वह टी एस थुरैराजा, जाफना के मेयर और नागेश्वरी की बेटी थीं। वह पवित्र परिवार कॉन्वेंट विद्यालय, जाफना से शिक्षित हुई। पुलेंद्रन ने के.वी. पुलेंद्रन से शादी की, जो संयुक्त राष्ट्रीय पार्टी (उनप) के आयोजक हैं, वेवुनिया जिले के और वेवुनिया शहरी परिषद के सदस्य हैं। उनकी दो बेटियां है(अबिरामी और दुर्गा)। उनके पति की १९ जनवरी १९83 को हत्या कर दी गई थी, कथित रूप से तमिल ईलम के आतंकवादी लिबरेशन टाइगर्स द्वारा।
पुलेंद्रन ने १९८९ के संसदीय चुनाव में वन्नी जिले में यूएनपी के उम्मीदवारों में से एक के रूप में चुनाव लड़ा। वह चुनी गई और संसद में प्रवेश किया। मार्च १९९० में उन्हें शिक्षा राज्य मंत्री नियुक्त किया गया। १९९४ के संसदीय चुनाव में वह फिर से शिक्षा राज्य मंत्री चुनी गईं। पुलेंद्रन यूएनपी की कार्यकारी समिति, महिला लीग और वेवुनिया जिला आयोजक के सदस्य थी। वह खनिज रेत निगम की निदेशक थीं ओर जो ऑल सीलोन हिंदू कांग्रेस की संरक्षक थीं और युवा हिंदू महिला संस्था की सदस्य थीं।
३० दिसंबर २०१४ को कोलंबो के एक निजी अस्पताल में पुलेंद्रन का निधन हो गया।
१९४९ में जन्मे लोग |
रमणिका गुप्ता ने विमर्श के रूप में हिंदी साहित्य में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।उन्होंने आदिवासी जीवन पर कई पुस्तकें लिखी हैं।वे प्रख्यात साहित्यकार,सामजिक कार्यकर्त्ता,समाजसेवा और राजनीति सहित कई क्षेत्रों से जुड़ी हुई थीं।उन्होंने स्त्री विमर्श पर बेहतरीन काम किया और वह सामाजिक सरोकारों की पत्रिका युद्धरत आम आदमी की संपादक भी थीं। उन्होंने झारखंड के हज़ारीबाग के कोयलांचल से मजदूर आंदोलनों को साहित्य के ज़रिये राष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाने का काम किया। बिहार विधानसभा और विधान परिषद् में विधायक भी रही।
उनका जन्म २२ अप्रैल १९३० को पंजाब के सुनाम नामक स्थान पर तथा निधन ८९ वर्ष की अवस्था में २६ मार्च २०१९ को नई दिल्ली में हुआ। मृत्यु से पूर्व वे झारखंड में मांडू के विधायक पद पर कार्यरत थीं।
रमणिका गुप्ता की आत्मकथा हादसे और आपहुदरी बेहद लोकप्रिय पुस्तक मानी जाती है। इसके अलावा, उनकी प्रमुख रचनाओं में भीड़ सतर में चलने लगी है, तुम कौन, तिल-तिल नूतन, मैं आजाद हुई हूं, अब मूरख नहीं बनेंगे हम, भला मैं कैसे मरती, आदम से आदमी तक, विज्ञापन बनते कवि, कैसे करोगे बँटवारा इतिहास का, दलित हस्तक्षेप, निज घरे परदेसी, सांप्रदायिकता के बदलते चेहरे, कलम और कुदाल के बहाने, दलित हस्तक्षेप, दलित चेतना- साहित्यिक और सामाजिक सरोकार, दक्षिण- वाम के कठघरे और दलित साहित्य, असम नरसंहार-एक रपट, राष्ट्रीय एकता, विघटन के बीज शामिल हैं।
आदिवासी अस्मिता का संकट
दलित-चेतना साहित्यिक और सामाजिक सरोकार
युद्धरत आम आदमी- रमणिका गुप्ता द्वारा संपादित यह त्रैमासिक पत्रिका है। |
किसी देश के राष्ट्रपति की पत्नि को प्रथम महिला भी कहा जाता है।
अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प की पत्नी मेलेनिया नॉस उस देश की वर्तमान प्रथम महिला हैं।
भारत के वर्तमान राष्टृपति श्री रामनाथ कोविंद की पत्नी सविता कोविंद भारत की प्रथम महिला हैं।
तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान की पत्नी एमइन एर्डोगान को तुर्की की प्रथम महिला कहा जाता है। |
जीवराज नारायण मेहता (२९ अगस्त १८८७ - ७ नवंबर 19७8) एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनीतिज्ञ थे। वे स्वतंत्र भारत की बड़ौदा रियासत के पहले "दीवान" (प्रधान मंत्री) बने। बॉम्बे राज्य के विभाजन के बाद, नवगठित गुजरात राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में (१९६० - ६३) तक कार्य किया। 19६३ से १९६६ तक यूनाइटेड किंगडम में भारतीय उच्चायुक्त के रूप में कार्य किया।
जीवराज नारायण मेहता का जन्म २९ अगस्त १८८७ को बॉम्बे राज्य, (वर्तमान में गुजरात) के अमरेली में हुआ था। वह मनुभाई मेहता के दामाद थे, जो उस समय बड़ौदा राज्य के दीवान थे।
अपनी कम उम्र में, अमरेली के एक सिविल सर्जन डॉ. एडुल्जी रुस्तमजी दादाचंदजी ने उन्हें दवा लेने के लिए प्रेरित किया। बाद में उन्होंने ब्रिटिश आईएमएस अधिकारियों द्वारा आयोजित एक कड़ी लिखित परीक्षा और पूरी तरह से मौखिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद, ग्रांट मेडिकल कॉलेज और सर जे जे अस्पताल, बॉम्बे (अब मुम्बई) में प्रवेश प्राप्त किया।
मेहता की चिकित्सा शिक्षा सेठ वीएम कपोल बोर्डिंग ट्रस्ट द्वारा प्रायोजित थी। उन्होंने मेडिसिन और सर्जरी (एमबीबीएस के समकक्ष) में अपनी पहली लाइसेंसधारी परीक्षा में कक्षा में शीर्ष स्थान हासिल किया।
बाद में, लंदन में स्नातकोत्तर अध्ययन के लिए उन्होंने एक छात्र ऋण के लिए टाटा एजुकेशन फाउंडेशन में आवेदन किया और उन्हें इस प्रतिष्ठित फेलोशिप के लिए केवल दो छात्रों में से एक के रूप में चुना गया, जिन्होंने इसके लिए आवेदन करने वाले कई उज्ज्वल छात्रों में से एक को चुना था।
जीवराज मेहता १९०९ से १९१५ तक लंदन में रहे। वह लंदन में इंडियन स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष थे, जहां उन्होंने चिकित्सा का अध्ययन किया और वहां अपना एफआरसीएस किया। उन्होंने १९१४ में अपनी एमडी परीक्षाओं में विश्वविद्यालय का स्वर्ण पदक जीता। बाद में, वे लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियन के सदस्य बने।
भारत लौटने के बाद वे कुछ समय के लिए महात्मा गांधी के निजी चिकित्सक थे और स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए। गांधी के सत्याग्रह आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा दो बार (१९३८ और १९४२) जेल में रखा गया था। १९४६ में उन्हें बॉम्बे राज्य से भारत की संविधान सभा के लिए मनोनीत किए गए।
१९४७ में स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने विभिन्न सार्वजनिक पदों पर कार्य किया। उन्होंने ४ सितंबर 19४8 को स्वतंत्र भारत में तत्कालीन बड़ौदा राज्य के पहले "दीवान" (प्रधान मंत्री) के रूप में कार्य किया।
१९६० में बॉम्बे राज्य के विभाजन कर महाराष्ट्र और गुजरात राज्य का गठन किया गया। उन्होंने (०१ मई १९६० से १८ सितंबर) १९६३ तक नवगठित गुजरात राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। बाद में उन्होंने १९६३ से १९६६ तक यूनाइटेड किंगडम में भारतीय उच्चायुक्त के रूप में भी कार्य किया।
१९७१ के संसदीय चुनावों में वह कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में गुजरात की अमरेली संसदीय सीट से लोकसभा के लिए चुने गए।
टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज, लोकमान्य तिलक नगर अस्पताल और मुंबई में डॉ. बालाभाई नानावती अस्पताल की स्थापना में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह तीन बार अखिल भारतीय चिकित्सा कांग्रेस के अध्यक्ष और भारतीय चिकित्सा संघ के अध्यक्ष चुने गए। मेहता का ७ नवंबर 19७8 को निधन हो गया। |
न्यूजीलैंड क्रिकेट टीम ने ५ से १७ अक्टूबर २०१० तक बांग्लादेश का दौरा किया। पांच एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) निर्धारित थे: बांग्लादेश ने चार जीते और दूसरे को बिना खेल के छोड़ दिया गया। यह एक पूर्ण-शक्ति टेस्ट खेलने वाले देश के खिलाफ बांग्लादेश की पहली श्रृंखला जीत थी (हड़ताल से त्रस्त वेस्टइंडीज श्रृंखला को छोड़कर)।
न्यूज़ीलैंड क्रिकेट टीम के बांग्लादेश दौरे |
मझेडा, भनोली तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
मझेडा, भनोली तहसील
मझेडा, भनोली तहसील |
क्लिफर्ड इसाक (जन्म १० जून १९६७) एक दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट अंपायर है। |
बौद्ध धर्म में निरोध एक मूल अवधारणा है। बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त करने के बाद अपने पहले शिक्षण में जिन चार महान सत्यों की व्याख्या की थी, उसमें से यह तीसरा है। यह दुख और उसके कारणों का अंत है। थूबटेन चॉड्रन (बौद्ध भिक्षुणी) के अनुसार, निरोध सभी बुरे अनुभवों और उनके कारणों का अंतिम रूप से इस तरह गायब होना है कि वे दोबारा उभरकर नहीं आ सकें।
सूत्रों का कहना है
बौद्ध दार्शनिक अवधारणाएँ |
अदन प्रान्त (अरबी: , अंग्रेज़ी: 'अधन) यमन का एक प्रान्त है। इस प्रान्त का अधिकतर भाग अदन का शहर है जो ऐतिहासिक महत्त्व रखता है। प्राचीनकाल में यह क्रेटर (, क्रेटर) कहलाया जाता था क्योंकि यह एक मृत ज्वालामुखी के मुख (क्रेटर) में स्थित है।
१८३९ से १९६७ के काल में अदन पर ब्रिटिश क़ब्ज़ा हो गया। सालों के संघर्ष के बाद अदन और यमन के अन्य दक्षिणी प्रान्तों को आजादी मिली और अदन 'दक्षिण यमन' की राजधानी बना। १९९० में दक्षिण और उत्तरी यमन के दो राष्ट्रों का विलय हुआ और अदन नए 'यमन गणतंत्र' का सबसे महत्त्वपूर्ण आर्थिक केंद्र बन गया। सुक़ूत्रा का द्वीप समूह भी अदन प्रान्त का हिस्सा हुआ करता था लेकिन २००४ में इसे हदरामौत प्रान्त में डाल दिया गया।
इन्हें भी देखें
यमन के प्रान्त
यमन के प्रान्त |
१९८८ ग्रीष्मकालीन ओलंपिक्स, आधिकारिक तौर पर ज़्क्सीव ओलंपियाड खेलों के नाम से जाना जाने वाला एक अंतरराष्ट्रीय मल्टी-स्पोर्ट कार्यक्रम था जो १७ सितंबर से २ अक्टूबर १९८८ को सियोल, दक्षिण कोरिया में मनाया गया। वे एशिया में आयोजित होने वाली दूसरी गर्मियों की ओलंपिक खेलों और १९६४ ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के बाद टोक्यो, जापान में आयोजित हुई थीं। सिओल ग्रीष्मकालीन ओलंपिक की मेजबानी करने वाला सबसे बड़ा शहर है, जिसे जल्द ही २0२0 में टोक्यो में बदल दिया जाएगा।
सियोल खेलों में, ८,३९१ एथलीटों द्वारा १५९ देशों का प्रतिनिधित्व किया गया: ६,१९७ पुरुषों और २,१९४ महिलाओं। २६3 घटनाएं आयोजित की गईं और २7,२२1 स्वयंसेवकों ने ओलंपिक तैयार करने में मदद की। ११,३३१ मीडिया (४,97८ लिखित प्रेस और ६,३५३ ब्रॉडकास्टर्स) ने पूरे विश्व में खेलों को दिखाया
ये दो विश्व के "हावी" खेल शक्तियों, सोवियत संघ और पूर्वी जर्मनी के लिए पिछले ओलंपिक खेलों थे, क्योंकि दोनों ने अगले ओलंपिक खेलों से पहले ही अस्तित्व समाप्त कर दिया था।
खेल का उत्तर कोरिया और उसके सहयोगी क्यूबा ने बहिष्कार किया था। इथियोपिया, अल्बानिया और सेशेल्स ने आईओसी द्वारा भेजे गए निमंत्रणों का जवाब नहीं दिया। निकारागुआ ने एथलेटिक और वित्तीय विचारों के कारण भाग नहीं लिया। मेडागास्कर की भागीदारी की उम्मीद थी, और उनकी टीम १६० देशों के उद्घाटन समारोह में होने की उम्मीद थी। हालांकि, वित्तीय कारणों के कारण देश वापस ले लिया गया। इसके बावजूद, पिछले तीन ग्रीष्मकालीन ओलंपिक (१९७६, १९८० और १९८४) में देखा जाने वाला बहुत बड़ा बहिष्कार को टाल दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप शीतयुद्ध काल के दौरान भाग लेने वाले देशों की सबसे बड़ी संख्या में परिणाम हुआ।
पदक से सम्मानित
१९८८ के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक कार्यक्रम में निम्नलिखित २३ खेलों में २३7 घटनाएं शामिल थीं:
शो जंपिंग (२)
ग्रीको रोमन (१०)
प्रदर्शन के खेल
ये खेल में प्रदर्शन के खेल थे:
सभी समय स्थानीय एईएसटी (यूटीसी+१०) हैं।
भाग लेने वाली राष्ट्रीय ओलम्पिक(ओलंपिक) समितियाँ
सियोल खेलों में १५९ देशों के एथलीट थे। अरुबा, अमेरिकी समोआ, ब्रुनेई, कुक आइलैंड्स, मालदीव, वानुआतु, सेंट विन्सेंट और ग्रेनेडाइंस और दक्षिण यमन ने इन खेलों में अपना पहला ओलंपिक प्रदर्शन किया। कैलगरी में १९८८ शीतकालीन ओलंपिक में भाग लेने वाले इन खेलों में गुआम ने अपना पहला ग्रीष्मकालीन ओलंपिक प्रदर्शन किया।
निम्नलिखित सूची में, कोष्ठक में संख्या प्रत्येक देश से एथलीटों की संख्या को इंगित करती है जो सियोल में प्रतिस्पर्धा करती है:
ने ओलम्पिक(ओलंपिक) खेलों में अपना पहला प्रदर्शन पेश करते हुए, उद्घाटन समारोह और समापन समारोहों में भाग लिया, लेकिन इसके प्रतिनिधिमण्डल (प्रतिनिधिमंडल) में केवल एक तैराकी अधिकारी शामिल था।
जब डोमिनिकन गणराज्य की टीम ने राष्ट्रों के परेड के दौरान चढ़ाई की, तो आरोपित मानचित्र ने गलती से क्यूबा का स्थान दिखाया।
ये शीर्ष दस राष्ट्र हैं, जो १९८८ के खेलों में पदक जीते थे।
मेज़बान देश (दक्षिण कोरिया) |
टाटा मार्कोपोलो (आधिकारिक तौर पर टाटा मार्कोपोलो मोटर्स लिमिटेड) एक बस और कोच निर्माण कंपनी है जिसका मुख्यालय कर्नाटक में है और यह टाटा मोटर्स और मार्कोपोलो एसए के बीच एक संयुक्त उद्यम है।
टाटा मोटर्स बस बनाने वाले संयुक्त उद्यम में अपने साझेदार मार्कोपोलो की ४९% हिस्सेदारी १ अरब में खरीदेगी, जिससे १४ साल पुरानी साझेदारी खत्म हो जाएगी और ब्राजीलियाई कंपनी के लिए आसानी से बाहर निकलने का रास्ता साफ हो जाएगा। यह सौदा फरवरी २०२१ तक पूरा होने की उम्मीद है। सहायक कंपनी कम से कम तीन वर्षों के लिए 'मार्कोपोलो' ट्रेडमार्क के साथ भारत में इसी अवधि के लिए गैर-प्रतिस्पर्धा प्रावधान के साथ जारी रहेगी।
प्राथमिक बस निर्माण और निर्माण इकाई लखनऊ, उत्तर प्रदेश में प्रतिदिन ८ बसों के उत्पादन के साथ शुरू हुई।दूसरी उत्पादन सुविधा कर्नाटक के धारवाड़ में है जिसका उत्पादन प्रति दिन ७० बसें है। वर्तमान में इसने अपना उत्पादन दोगुना कर लिया है और दुनिया की सबसे बड़ी इकाई बन गई है। टाटा मार्कोपोलो बसें बस वर्ल्ड प्रदर्शनी में भी देखी गईं। और यह ग्राहकों और दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने में सक्षम था। हाल ही में टाटा मार्कोपोलो वाई१ इलेक्ट्रिकल बसें लेकर आया है जो एक व्यावसायिक सफलता है। कंपनी को भारत की कुछ राज्य सरकारों से ३०० बस ऑर्डर मिले, प्रत्येक बस की कीमत लगभग १ करोड़ थी।
टाटा मार्कोपोलो उत्पादों का उपयोग नवी मुंबई, अहमदाबाद, दिल्ली, जयपुर, बेंगलुरु, कोयंबटूर, मैसूर, कोलकाता, चेन्नई, लखनऊ, कानपुर, चंडीगढ़, पुणे, नागपुर, कोच्चि, मदुरै, नया रायपुर, इंदौर, हैदराबाद, ठाणे, तिरुवनंतपुरम, विशाखापत्तनम, विजयवाड़ा, अमृतसर, अमरावती, आदि जैसे कई भारतीय शहरों में स्थानीय परिवहन बेड़े के हिस्से के रूप में किया जा रहा है या शामिल किया जा रहा है। यह एक लो-फ्लोर बस है जिसमें वातानुकूलित और गैर वातानुकूलित दोनों प्रकार उपलब्ध हैं।
गैर वातानुकूलित वेरिएंट का उपयोग केरल राज्य सड़क परिवहन निगम द्वारा किया जाता है। |
भारतीय किसान विरोध प्रदर्शन २०२०-२०२१ पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छतीसगढ़ और करीब पूरे देश के किसानों द्वारा मुख्य रूप से २०२० में भारतीय संसद द्वारा पारित तीन कृषि अधिनियमों के विरुद्ध चल रहा विरोध है। किसान यूनियनों, द्वारा अधिनियमों को 'किसान विरोधी' और 'कृषक विरोधी' के रूप में वर्णित किया गया है, जबकि विपक्षी राजनेताओं के आरोप से ये निगमों की दया पर किसानों को छोड़ देगा।
अधिनियमों के लागू होने के तुरंत (तुरन्त) बाद, यूनियनों ने स्थानीय विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया, ज्यादातर पंजाब और हरियाणा राज्यों में। दो महीने के विरोध के बाद, किसानों को दो उपर्युक्त राज्यों से-विशेष रूप से दिल्ली चलो नाम से एक आंदोलन (आन्दोलन) शुरू किया, जिसमें हजारों किसानों ने राष्ट्रीय राजधानी की ओर कूच किया। किसानों को दिल्ली में प्रवेश से रोकने के लिए पुलिस और कानून प्रवर्तन ने वाटर कैनन और आंसू गैस का इस्तेमाल किया। २६ नवंबर (नवम्बर) को, एक राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल जिसमें कथित तौर पर लगभग २५ करोड़ लोग शामिल थे, किसानों के समर्थन में हुए। ३० नवंबर को, इंडिया टुडे ने अनुमान लगाया कि २,००,००० से ३,००,००० किसान दिल्ली के रास्ते में विभिन्न सीमा बिंदुओं (बिन्दुओं) पर जुटे थे।
५०० से अधिक किसान संघ विरोध कर रहे हैं१.४ करोड़ से अधिक ट्रक ड्राइवरों, बस ड्राइवरों और टैक्सी ड्राइवरों का प्रतिनिधित्व करने वाली परिवहन यूनियनों किसानों के समर्थन में सामने आई हैं, जिससे कुछ राज्यों में आपूर्ति बंद (बन्द) होने का खतरा है४ दिसंबर (दिसम्बर) को वार्ता के दौरान किसानों की मांगों को संबोधित करने में सरकार के विफल रहने के बाद, किसानों ने ८ दिसंबर (दिसम्बर) २०२० को एक और भारत व्यापी हड़ताल को आगे बढ़ाने की योजना बनाई।
२०१७ में, केंद्र सरकार ने मॉडल खेती कृत्यों को जारी किया। हालांकि, एक निश्चित अवधि के बाद यह पाया गया कि राज्यों द्वारा लागू किए गए मॉडल अधिनियमों में सुझाए गए कई सुधारों को लागू नहीं किया गया था। कार्यान्वयन पर चर्चा करने के लिए जुलाई २०१९ में सात मुख्यमंत्रियों वाली एक समिति का गठन किया गया था। तदनुसार, भारत की केंद्र सरकार ने जून २०२० के पहले सप्ताह में तीन अध्यादेशों (या अस्थायी कानूनों) को प्रख्यापित किया, जो कृषि उपज, उनकी बिक्री, जमाखोरी, कृषि विपणन और अनुबंध कृषि सुधारों के साथ अन्य चीजों से संबंधित थे। इन अध्यादेशों को बिल के रूप में पेश किया गया और १५ और १८ सितंबर २०२० को लोकसभा द्वारा पारित किया गया। बाद में, २० सितंबर को, राज्यसभा ने भी २२ सितंबर तक तीन विधेयकों को पारित कर दिया। भारत के राष्ट्रपति ने २८ सितंबर को विधेयकों पर हस्ताक्षर करके अपनी सहमति दी, इस प्रकार उन्हें कृत्यों में परिवर्तित कर दिया।
ये कृत्य इस प्रकार हैं:
किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम : चुनिंदा क्षेत्रों से "उत्पादन, संग्रह और एकत्रीकरण के किसी भी स्थान पर किसानों के व्यापार क्षेत्रों का दायरा बढ़ाता है।" अनुसूचित किसानों की इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग और ई-कॉमर्स की अनुमति देता है। राज्य सरकारों को 'बाहरी व्यापार क्षेत्र' में आयोजित किसानों की उपज के व्यापार के लिए किसानों, व्यापारियों और इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफ़ॉर्म पर कोई बाज़ार शुल्क, उपकर या लेवी वसूलने से प्रतिबंधित करता है।
मूल्य आश्वासन और फार्म सेवा अधिनियम पर किसानों (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौते: किसी भी किसान के उत्पादन या पालन से पहले एक किसान और एक खरीदार के बीच एक समझौते के माध्यम से अनुबंध कृषि के लिए एक रूपरेखा तैयार करता है। यह तीन-स्तरीय विवाद निपटान तंत्र के लिए प्रदान करता है: सुलह बोर्ड, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट और अपीलीय प्राधिकरण।
आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम: केंद्र युद्ध या अकाल जैसी असाधारण स्थितियों के दौरान कुछ खाद्य पदार्थों को विनियमित करने की अनुमति देता है। आवश्यकता है कि कृषि उपज पर किसी भी स्टॉक सीमा को लागू करने की आवश्यकता मूल्य वृद्धि पर आधारित हो
किसानों की माँगें
किसान यूनियनों का मानना है कि कानून किसानों के लिए अधिसूचित कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) मंडियों (मण्डियों) के बाहर कृषि उत्पादों की बिक्री और विपणन को खोलेंगे। इसके अलावा, कानून अंतर-राज्य व्यापार की अनुमति देंगे और कृषि उत्पादों के स्वैच्छिक इलेक्ट्रॉनिक व्यापार को प्रोत्साहित करेंगे। नए कानून राज्य सरकारों को एपीएमसी बाजारों के बाहर व्यापार शुल्क, उपकर या लेवी एकत्र करने से रोकते हैं; इससे किसानों को यह विश्वास हो गया है कि कानून "मंडी (मण्डी) व्यवस्था को धीरे-धीरे समाप्त करेंगे" और "किसानों को निगमों की दया पर छोड़ देंगे"। इसके अलावा, किसानों का मानना है कि कानून अपने मौजूदा रिश्तों को खत्म कर देंगे (आयोग के एजेंट जो बिचौलिये के रूप में वित्तीय ऋण प्रदान करते हैं, समय पर खरीद सुनिश्चित करते हैं, और उनकी फसल के लिए पर्याप्त कीमतों का वादा करते हैं) और कॉर्पोरेट भी उस तरह के नहीं होंगे।
इसके अतिरिक्त, किसानों की राय है कि एपीएमसी मंडियों (मण्डियों) के विघटन से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उनकी फसल की खरीद को समाप्त करने को बढ़ावा मिलेगा। वे इस प्रकार सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने की मांग कर रहे हैं
१२ दिसंबर (दिसम्बर) २०२० तक, किसानों की मांगों में शामिल हैं
१. तीन नए कृषि कानूनों को निरस्त करें
२. कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए एक विशेष संसद सत्र आयोजित करना
३. न्यूनतम समर्थन मूल्य (म्स्प) और फसलों की राज्य खरीद को कानूनी अधिकार बनाएँ
४. आश्वासन दें कि पारंपरिक (पारम्परिक) खरीद प्रणाली जारी रहेगी।
५. स्वामीनाथन पैनल की रिपोर्ट लागू करें और उत्पादन की भारित औसत लागत की तुलना में कम से कम ५0% अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य (म्स्प) दें।
६. कृषि उपयोग के लिए डीजल की कीमतों में ५०% की कटौती करें
७. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र(न्क्र) में वायु गुणवत्ता प्रबंधन (प्रबन्धन) पर आयोग का निरसन और [[२०२०|'''२०२०]] तक का अध्यादेश जारी करना और डंठल (डण्ठल) जलाने पर सजा और जुर्माने को हटाना
८. पंजाब में धान की पराली जलाने पर गिरफ्तार किसानों की रिहाई
९. बिजली अध्यादेश २०२० का उन्मूलन
१०. केंद्र (केन्द्र) को राज्य के विषयों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, व्यवहार में विकेंद्रीकरण (विकेन्द्रीकरण)।
११. किसान नेताओं के विरुद्ध सभी मामलों को वापस लेना।
पंजाब में अगस्त २०२० में कृषि विधायकों को सार्वजनिक करने के बाद छोटे पैमाने पर विरोध प्रदर्शन आरंभ (आरम्भ) हो गए थे। यह अधिनियमों के पारित होने के बाद ही था कि भारत भर में अधिक किसान और किसान संघ 'कृषि सुधारों' के विरोध में शामिल हुए थे। पूरे भारत में फार्म यूनियनों ने २५ सितंबर (सितम्बर) २०२० को इन कृषि कानूनों के विरोध में भारत बंद (राष्ट्रव्यापी बंद) का आह्वान किया। सबसे अधिक व्यापक विरोध प्रदर्शन पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुए, लेकिन उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा, केरल और अन्य राज्यों के हिस्सों में भी प्रदर्शन हुए। अक्टूबर से शुरू होने वाले विरोध प्रदर्शनों के कारण पंजाब में दो महीने से अधिक समय तक रेलवे सेवाएं निलंबित रहीं। इसके बाद, विभिन्न राज्यों के किसानों ने कानूनों का विरोध करने के लिए दिल्ली तक मार्च किया। किसानों ने विरोध को गलत तरीके से पेश करने के लिए राष्ट्रीय मीडिया की भी आलोचना की।
सम्यक किसान मोर्चा और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति जैसे निकायों के समन्वय के तहत, विरोध करने वाले फार्म संघों में शामिल हैं
भारतीय किसान यूनियन (उगरालन, सिधुपुर, राजेवाल , चदुनी, दकाउंडा)
जय किसान आंदोलन (आन्दोलन)
आल इंडिया किसान सभा
कर्नाटक राज्य रैथा संघ
आल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन
किसान मजदूर संघर्ष कमिटी
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन
आल इंडिया किसान मजदूर सभा
क्रांतिकारी किसान यूनियन
नैशनल एलाईन्स फॉर पीपुल्स मूवमेंट
लोक संघर्ष मोर्चा
आल इंडिया किसान समासभा
पंजाब किसान यूनियन
स्वाभिमानी शेतकारी संघटना
संगठन किसान मजदूर संघर्ष
जमहूरी किसान सभा
किसान संघर्ष समिति
तेराई किसान सभा
लगभग ९५ लाख ट्रक ड्राइवरों और ५० लाख बस और टैक्सी ड्राइवरों का प्रतिनिधित्व करने वाले अखिल भारतीय मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (ऐम्त) जैसे परिवहन निकायों ने उत्तरी राज्यों में आपूर्ति की गति को रोकने की धमकी दी है, आगे जोड़ते हुए कहा कि "हम फिर इसे आगे बढ़ाएंगे। यदि किसान के मुद्दों को हल करने में सरकार विफल रहती है। सरकारी अधिकारियों और ३० संघ के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक के बाद," किसानों ने सरकार के प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया है। ८ दिसंबर (दिसम्बर), २०२० को क्रांति किसान यूनियन के अध्यक्ष दर्शन पाल ने प्रेस को बताया।
२४ सितंबर (सितम्बर) २०२० को, किसानों ने एक रेल रोको अभियान शुरू किया, जिसके बाद पंजाब से आने और जाने वाली ट्रेन सेवाएँ प्रभावित हुईं। किसानों ने अभियान को अक्टूबर में आगे बढ़ाया। २३ अक्टूबर को, कुछ किसान यूनियनों ने अभियान को बंद (बन्द) करने का निर्णय किया, क्योंकि राज्य में उर्वरक और अन्य सामानों की आपूर्ति कम होने लगी थी।
अपने संबंधित (सम्बन्धित) राज्य सरकारों का समर्थन पाने में विफल रहने के बाद, किसानों ने दिल्ली जाकर केंद्र (केन्द्र) सरकार पर दबाव बनाने का फैसला किया। २५ नवंबर (नवम्बर) २०२० को, दिली चलो के प्रदर्शनकारियों से शहर की सीमाओं पर पुलिस ने मुलाकात की। पुलिस ने आँसू गैस और पानी तोपों का इस्तेमाल किया, सड़कों को खोदा, और प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए बैरिकेड्स और रेत अवरोधों की परतों का इस्तेमाल किया, जिससे कम से कम तीन किसान हताहत हुए। झड़पों के बीच, २७ नवंबर (नवम्बर) को, मीडिया ने किसानों पर विरोध जताते हुए पुलिस वाटर कैनन पर निशाना साधने वाले एक युवक की हरकत को उजागर किया। बाद में उन पर हत्या के प्रयास का आरोप लगाया गया।
दिल्ली में मार्च २६ नवंबर (नवम्बर) २०२० को पूरे भारत में २५\२५ करोड़ लोगों की २४ घंटे (घण्टे) की हड़ताल के साथ था, दोनों में कृषि कानून सुधार और श्रम कानून में बदलाव का प्रस्ताव था।
२८ नवंबर (नवम्बर) से ३ दिसंबर (दिसम्बर) के बीच दिल्ली चलो में दिल्ली को अवरुद्ध करने वाले किसानों की संख्या १५० से ३00 हजार आँकी गई थी।
भारत सरकार की केंद्र सरकार ने घोषणा की कि ३ दिसंबर (दिसम्बर) २०२० को नए कृषि कानूनों के भविष्य पर चर्चा करने के लिए, प्रदर्शनकारियों की मांगों के बावजूद तुरंत (तुरन्त) बातचीत हुई। यह निर्णय लिया गया कि सरकार केवल किसान यूनियनों के चुनिंदा समूह से बात करेगी। इस बैठक में प्रधानमंत्री अनुपस्थित होंगे। कस्म्च, एक अग्रणी किसान जत्था किसान संगठन) इन कारणों से इस मीटिंग में शामिल होने से इनकार कर दिया। जबकि केंद्र चाहता था कि किसानों को दिल्ली से दूर बुराड़ी में एक विरोध स्थल पर ले जाया जाए, किसान सीमाओं पर रहना पसंद करते थे और इसके बजाय मध्य दिल्ली के जंतर मंतर पर विरोध का प्रस्ताव रखा।
किसान यूनियनों ने घोषणा की कि ४ दिसंबर (दिसम्बर) को वे पी एम मोदी और निगमों के नेताओं के पुतले जलाएंगे। किसानों ने ७ दिसंबर (दिसम्बर) को अपने पुरस्कार और पदक लौटाने और ८ दिसंबर (दिसम्बर) को भारत बंद (राष्ट्रीय हड़ताल) आयोजित करने की योजना बनाई। ५ दिसंबर को समाधान खोजने में केंद्र सरकार के साथ बातचीत विफल होने के बाद, किसानों ने ८ दिसंबर (दिसम्बर) को राष्ट्रीय हड़ताल की अपनी योजना की पुष्टि की। ९ दिसंबर (दिसम्बर) को आगे की वार्ता की योजना बनाई गई थी।
९ दिसंबर (दिसम्बर) २०२० को, किसानों की यूनियनों ने बदलाव के कानूनों के लिए सरकार के प्रस्तावों को खारिज कर दिया, यहाँ तक कि केंद्र ने एक लिखित प्रस्ताव में फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का आश्वासन दिया। किसानों ने यह भी कहा कि वे १२ दिसंबर (दिसम्बर) को दिल्ली-जयपुर राजमार्ग को अवरुद्ध करेंगे और १४ दिसंबर को देशव्यापी धरने बुलाए जाएँगे। १३ दिसंबर (दिसम्बर) को, रेवाड़ी पुलिस ने किसानों को दिल्ली जाने से रोकने के लिए राजस्थान-हरियाणा सीमा पर मोर्चाबंदी की और किसानों ने सड़क पर बैठकर जवाब दिया और विरोध में दिल्ली-जयपुर राजमार्ग पर जाम लगा दिया।
विरोध प्रदर्शनों के दौरान प्रदर्शनकारियों द्वारा धनसा सीमा, झरोदा कलाँ सीमा, टिकरी सीमा, सिंघू सीमा, कालिंदी कुंज सीमा, चिल्ला सीमा, बहादुरगढ़ सीमा और फरीदाबाद सीमा सहित कई सीमाओं को अवरुद्ध कर दिया गया था। २९ नवंबर (नवम्बर) को, प्रदर्शनकारियों ने घोषणा की कि वे दिल्ली में प्रवेश के पाँच और बिंदुओं (बिन्दुओं) को अवरुद्ध करेंगे, अर्थात् गाजियाबाद-हापुड़, रोहतक, सोनीपत, जयपुर और मथुरा
उत्तर और प्रतिक्रिया
१७ सितंबर (सितम्बर) को, शिरोमणि अकाली दल की खाद्य प्रसंस्करण उद्योग केंद्रीय मंत्री, हरसिमरत कौर बादल ने विधेयक के विरोध में अपने पद से इस्तीफा दे दिया। २६ सितंबर (सितम्बर) को, शिरोमणि अकाली दल ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन छोड़ दिया। ३० नवंबर (नवम्बर) को, प्रधान नरेंद्र मोदी ने गुमराह और कट्टरपंथी किसानों के मुद्दे पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि "किसानों को इन ऐतिहासिक कृषि सुधार कानूनों पर धोखा दिया जा रहा है, वही लोग हैं जिन्होंने उन्हें दशकों से गुमराह किया है।", कई बार विपक्षी सदस्यों को झूठ फैलाने का दोषी ठहराया गया। मोदी ने कहा कि पुरानी प्रणाली को प्रतिस्थापित नहीं किया जा रहा है, बल्कि इसके बजाय किसानों के लिए नए विकल्प सामने रखे जा रहे हैं। कई केंद्रीय मंत्रियों ने भी इस आशय के बयान दिए
१ दिसंबर को, निर्दलीय विधायक सोमवीर सांगवान ने हरियाणा विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। भाजपा के सहयोगी, जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने भी केंद्र सरकार से फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को जारी रखने का लिखित आश्वासन देने पर विचार करने के लिए कहा।
पूरा भारत बंद
४ दिसंबर (दिसम्बर) को दिल्ली के बाहरी इलाके में प्रदर्शन कर रहे किसानों ने केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ मंगलवार, ८ दिसंबर (दिसम्बर)को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान करते हुए कहा कि वे सरकार के साथ गतिरोध के बीच राजधानी की सभी सड़कों को अवरुद्ध कर देंगे। हड़ताल से एक दिन पहले, किसान संघ ने घोषणा की कि वह ११ पूर्वाह्न और ३ के बीच स्ट्राइक आयोजित करेगा ताकि जनता को असुविधा न हो
कई केंद्रीय राजनेताओं ने विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसक कार्रवाई के लिए ख़ालिस्तानी नारे लगाने का हवाला देते हुए सिक्ख अलगाववाद के विरोधियों पर चिंता जताई। भाजपा के महासचिव दुष्यंत कुमार गौतम ने कथित तौर पर विरोध प्रदर्शन के दौरान खालिस्तान ज़िंदाबाद और पाकिस्तान जिंदाबाद''' के नारे लगाए। २८ नवंबर को, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि कट्टरपंथी ख़ालिस्तान हमदर्दों जैसे "अवांछित तत्वों" को शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से किसानों के विरोध के बीच देखा गया है। ४ दिसंबर २०२० को, गैर-लाभकारी तथ्य-जांच वाली वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ ने बताया कि २०१३ में खालिस्तानी आंदोलन की छवियों का इस्तेमाल किसानों को अलगाववाद के आरोप लगाने के लिए किया जा रहा था, २०२० के विरोध के दौरान। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रीय मीडिया पर कानूनों के संबंध में सच्चाई नहीं बताने का भी आरोप लगाया है। एक प्रदर्शनकारी ने स्क्रॉल.इन को बताया कि "मोदी मीडिया हमें खालिस्तानियों के नाम से पुकार रहा है हम एक महीने से शांतिपूर्वक बैठे हैं, हालांकि हाल ही में हिंसक। यह हमें आतंकवादी बनाता है। टिप्पणीकारों ने कहा है कि खालिस्तान कोण आज भी है। विरोध प्रदर्शन को बदनाम करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने मीडिया को विरोध प्रदर्शन करने वाले किसानों को "खालिस्तानियों" या "राष्ट्र-विरोधी" के रूप में लेबल नहीं करने के लिए कहा, "यह जिम्मेदार और नैतिक पत्रकारिता के सिद्धांतों के खिलाफ जाता है। इस तरह की कार्रवाई मीडिया की विश्वसनीयता से समझौता करती है। महात्मा गांधी की प्रतिमा को वाशिंगटन डीसी में अलगाववादी सिखों के एक समूह द्वारा खंडित किया गया था, जो भारत विरोधी पोस्टर और बैनर के साथ खालिस्तानी झंडे (झण्डे) ले जा रहे थे, जिसमें कहा गया था कि वे खालिस्तान गणराज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं
केंद्रीय मंत्री रावसाहेब दानवे ने दावा किया कि किसानों द्वारा जारी विरोध प्रदर्शन के पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ है।
विक्टोरिया के संसद सदस्य रॉब मिशेल और रसेल वोर्टले सहित कई श्रमिक नेताओं ने किसानों के विरोध प्रदर्शन के समर्थन में बात की, मिशेल ने नागरिकों द्वारा ऑस्ट्रेलिया में कई विरोध प्रदर्शन किए जाने के बाद इस विषय पर विक्टोरियन संसद को संबोधित किया।
कृषि कानून निरस्त
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने १९ नवंबर २०२१ को घोषणा की कि केंद्र तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करेगा। कानूनों को वापस लेने की कार्यवाही इस महीने शुरू होने वाले संसद सत्र के दौरान शुरू होगी। केंद्र उन तीन विवादास्पद कानूनों को निरस्त करेगा जो पिछले साल सितंबर में संसद में पारित किए गए थे। पीएम मोदी ने माफी मांगी और कहा कि सरकार कृषि कानूनों पर "किसानों के एक वर्ग को समझाने में विफल रही"। उन्होंने कहा कि इस महीने के संसद सत्र के दौरान तीन विवादास्पद कानूनों को निरस्त कर दिया जाएगा। पीएम मोदी ने किसानों से "अपने परिवारों के पास घर लौटने और नए सिरे से शुरुआत करने" का भी आग्रह किया। संसद ने सितंबर २०२० में तीन कृषि कानूनों को पारित किया। वे पहली बार जून २०२० के महीने में तीन अध्यादेशों के रूप में आए थे, जिसे संसद द्वारा मानसून सत्र के दौरान ध्वनि मत से अनुमोदित किया गया था। ये कानून हैं - किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम का समझौता, और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम। |
बाबू एंटनी एक भारतीय-अमेरिकी अभिनेता और मार्शल कलाकार हैं, जो मुख्य रूप से मलयालम सिनेमा में काम करते हैं। उन्होंने कुछ तेलुगु, कन्नड़, सिंहली, हिंदी, बांग्ला और अंग्रेजी फिल्मों के साथ कई तमिल फिल्मों में भी अभिनय किया है, जिनमें ज्यादातर एक्शन और चरित्र भूमिकाएँ हैं।
उन्होंने भारतन के चिलमपु (१९८६) में अपनी शुरुआत की। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत प्रतिपक्षी भूमिकाओं से की, लेकिन उन्होंने अन्य फिल्मों में भी मुख्य भूमिकाएँ निभाईं।
पूविझी वसीली (१९८७) |
स्तुति चांगले (जन्म; ११ सितम्बर १९९२) एक भारतीय लेखिका है जिनका जन्म छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में हुआ था। इनके द्वारा लिखी गयी "यू ओनली लिव वन्स?" अमेजन इंडिया पर बेस्ट सेलिंग पुस्तक रह चुकी है।
स्तुति चांगले एक मध्यमवर्गीय हिंदू परिवार में पली बढ़ीं लेखिका है। उनके पिता भारतीय स्टेट बैंक में सहायक महाप्रबंधक के रूप में काम करते थे और उनकी माँ एक सरकारी शिक्षक के रूप में स्कूल में पढ़ाती हैं। वह अपने पिता की नौकरी के कारण पूरे भारत में कई शहरों में रह चुकी है। साथ ही वह ९०% + अकादमिक रिकॉर्ड के साथ एक उज्ज्वल छात्रा रही है।
उन्हें २०१० में स्कूल से स्नातक होने पर शीर्ष १० छात्रों के रूप में सम्मानित किया गया था। बाद में, स्तुति ने २०१४ में इंदौर के एसवीआईटीएस से कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग में बीई की डिग्री के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। स्तुति ने आईएमआई, नई दिल्ली से मार्केटिंग में २०१६ में एमबीए की डिग्री प्राप्त की।
स्तुति चांगले ने अपनी पहली किताब "ऑन द ओपन रोड़" २०१७ में लिखी और अच्छे परिणाम मिले। जबकि दूसरी किताब "यू ओनली लिव वन्स?" २०२० में लिखी और अमेजन पर बेस्ट सेलिंग रही।
उन्होंने २०१९ में टीवी सीरीज करके दिखाएँगे में पदार्पण किया।
"ऑन द ओपन रोड़" - २०१७ -
"यू ओनली लिव वन्स?" - २०२०
छत्तीसगढ़ के लोग
१९९२ में जन्मे लोग |
गरीब नवाज़ (१६९०-१७५१) मणिपुर का राजा था। उसके पिता का नाम राजा पीताम्बर था। सिलहट के वैष्णव शान्तिदास गोस्वामी के प्रभाव में आकर उसने १७१७ में वैष्णव सम्प्रदाय को अपनाया। वह भगवान राम का भक्त था।
दिसम्बर २२, १६९० में जन्म, उसका राजतिलक अगस्त २३ १७०८.
उसके निधन के पश्चात उसका पौत्र गौरीश्याम राजा हुआ। |
मनोज कुमार एक हिन्दी फिल्म अभिनेता हैं। उनका पूर्व नाम हरिकिशन गिरि गोस्वामी था। भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता, फिल्म निर्माता व निर्देशक हैं। अपनी फ़िल्मों के जरिए मनोज कुमार ने लोगों को देशभक्ति की भावना का गहराई से एहसास कराया। मनोज कुमार शहीद-ए-आजम भगत सिंह से बेहद प्रभावित हैं और उन्होने शहीद जैसी देशभक्ति फ़िल्म में अभिनय किया तो कई जनों की प्रेरणा बने। हिन्दी सिनेमा में मनोज कुमार ने बहुत देशभक्ति फिल्में बनाईं। उन्हें एक देशभक्त अभिनेता के रूप में भी जाना जाता है।
मनोज कुमार की पहली फिल्म फैशन (१९५७) थी। उसके बाद शहीद (१९६५) से उन्हें लोकप्रियता मिलनी प्रारम्भ हो गई। उन्होंने अधिकतर देशभक्ति फिल्मों में अभिनय किया। वो एक फिल्म निर्माता एवं निर्देशक भी थे। उन्होने कई देशभक्ति फिल्में भी बनाईं। कुमार ने भूतपूर्व भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर उपकार बनाईं जो शास्त्री जी के दिए हुए नारे जय जवान जय किसान पर आधारित थी। मनोज कुमार की फिल्मों में 'हरियाली और रास्ता' (१९६२), 'वो कौन थी' (१९६४), 'शहीद' (१९६५), 'हिमालय की गोद में' (१९६५), 'गुमनाम' (१९६५), 'पत्थर के सनम' (१९६७), 'उपकार' (१९६७), 'पूरब और पश्चिम' (१९६९), 'रोटी कपड़ा और मकान' (१९७४), 'क्रांति प्रमुख हैं। फिल्म 'उपकार' के लिए मनोज कुमार को नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया था।
भारतकोश पर मनोज कुमार
इमड्ब पर मनोज कुमार
१९३७ में जन्मे लोग
दादासाहेब फाल्के पुरस्कार विजेता
सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्म फेयर पुरस्कार
भारतीय फ़िल्म अभिनेता |
चितईपंत, अल्मोडा तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
चितईपंत, अल्मोडा तहसील
चितईपंत, अल्मोडा तहसील |
नंदमबाक्कम (नंदम्बक्कम) भारत के तमिल नाडु राज्य में चेन्नई नगर का एक मुहल्ला है। प्रशासनिक रूप से यह कांचीपुरम ज़िले में स्थित है। यह चेन्नई के पश्चिम भाग में है।
इन्हें भी देखें
कांचीपुरम ज़िले के नगर
चेन्नई में मुहल्ले |
करा में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद जिले का एक गाँव है।
बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
बिहार के गाँव |
उत्पादन से तात्पर्य किसी वस्तु का निर्माण करना या उत्पादित करना, लागत से आशय उस वस्तु को निर्मित करने में हुए व्यय की राशि को लागत कहते हैं। वस्तु को निर्मित करने में व्यय हुई राशि अर्थात् लागत तथा वस्तु को निर्मित करने में व्यक्तियों अथवा मशीनों से कराये गए श्रम की लागत को मिलाकर वस्तु का मूल्य निर्धारण किया जाता है। |
आगरा मेट्रो भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के चौथे सबसे बड़े नगर, आगरा में एक निर्माणाधीन रैपिड ट्रांजिट नेटवर्क है। आगरा मेट्रो की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) २०१४ में प्रस्तुत की गई थी और २०१५ में उत्तर प्रदेश सरकार की कैबिनेट ने इसे मंजूरी दी थी। हालांकि, एक नई सरकार के गठन और एक नई मेट्रो रेल नीति के कारण, सरकार के द्वारा एक संशोधित व्यवहार्यता रिपोर्ट बनाई गई थी, और अंततः २०१९ की शुरुआत में परियोजना को मंजूरी मिली। आगरा मेट्रो के अंतर्गत दो मेट्रो लाइनें हैं, जिनकी कुल लंबाई लगभग है।
जुलाई २०१६ तक, रेल इंडिया टेक्निकल एंड इकनोमिक सर्विसेज लिमिटेड (राइट्स लिमिटेड) द्वारा परियोजना की डीपीआर राज्य सरकार के समक्ष प्रस्तुत कर दी गयी थी।
२८ फरवरी २०१९ को, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आगरा में ८३७९.६२ करोड़ की मेट्रो परियोजना को मंजूरी दी।
दिसंबर २०२०: प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने आगरा मेट्रो परियोजना के सिविल निर्माण कार्य का उद्घाटन किया।
निर्माण की लागत लगभग ३५० करोड़ प्रति किमी है। लागत का मूल्यांकन जून २०१५ मूल्य सूचकांक के आधार पर किया गया है।
आगरा मेट्रो रेल परियोजना में २ लाइनें होंगी जो शहर के बीचों-बीच से होकर गुजरेंगी और ताजमहल, आगरा किला, सिकंदरा सहित प्रमुख पर्यटन स्थलों को आईएसबीटी, राजा की मंडी रेलवे स्टेशन, मेडिकल कॉलेज, आगरा छावनी रेलवे स्टेशन के साथ-साथ कलेक्ट्रेट, संजय प्लेस एवं आसपास के घनी आबादी वाले रिहायशी क्षेत्र से जोड़ेंगी।
इन लाइनों के मुख्य आकर्षण में शामिल हैं:
सिकंदरा से ताज ईस्ट गेट कॉरिडोर की लंबाई १४.०० किमी है, और यह आंशिक रूप से ऊंचा और आंशिक रूप से भूमिगत है। इसमें १३ स्टेशन (६-एलिवेटेड और ७-भूमिगत) शामिल हैं।
आगरा कैंट से कालिंदी विहार कॉरिडोर की लंबाई १५.४० किमी है। इसमें १४ स्टेशन शामिल हैं जो सभी एलिवेटेड हैं।
परियोजना की अनुमानित लागत ८,३७९.६२ करोड़ है और यह परियोजना पांच वर्षों में पूरी हो जाएगी।
वाणिज्यिक परिचालन शुरू होने के समय आगरा मेट्रो रेल परियोजना से नगर की लगभग २० लाख जनसंख्या के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होने की आशा है।
प्रस्तावित कॉरिडोर में रेलवे स्टेशनों और बीआरटीएस स्टेशनों के साथ मल्टीमॉडल इंटीग्रेशन होगा और इसमें बस, इंटरमीडिएट पब्लिक ट्रांसपोर्ट (आईपीटी), और नॉन-मोटराइज्ड ट्रांसपोर्ट (एनएमटी) का फीडर नेटवर्क होगा। परियोजना को ट्रांजिट-ओरिएंटेड डेवलपमेंट (टीओडी) और ट्रांसफर ऑफ डेवलपमेंट राइट्स (टीडीआर) के तंत्र के माध्यम से किराये और विज्ञापन के साथ-साथ वैल्यू कैप्चर फाइनेंसिंग (वीसीएफ) से राजस्व प्राप्त होगा।
आगरा मेट्रो का संचालन दिसंबर २०२२ से शुरू होना प्रस्तावित है।
प्रथम चरण में सिकंदरा से ताज ईस्ट गेट तक पहले कॉरिडोर (लाइन १) पर १४ मेट्रो स्टेशन और आगरा कैंट से कालिंदी विहार तक दूसरे कॉरिडोर (लाइन २) पर १५ मेट्रो स्टेशन बनाए जाएंगे।
लाइन १ (सिकंदरा - ताज ईस्ट गेट)
लंबाई: १४.२५ किमी
संरेखण: एलिवेटेड (६.५६९) किमी) और भूमिगत (७.६८१) किमी)
स्टेशनों की संख्या: १३
गुरु का ताल
आईएसबीटी बस स्टैंड
आरबीएस डिग्री कॉलेज
राजा की मंडी
सेंट जॉन्स कॉलेज (जंक्शन)
सरोजिनी नायडू मेडिकल कॉलेज
आगरा का किला
ताज ईस्ट गेट
लाइन २ (आगरा कैंट - कालिंदी विहार)
लंबाई: १५.४० किमी
स्टेशनों की संख्या: १५
आगरा जिला कलेक्ट्रेट
सेंट जॉन्स कॉलेज (जंक्शन)
रेल के डिब्बे और इंजन
बॉम्बार्डियर ट्रांसपोर्टेशन को रोलिंग स्टॉक और सिग्नलिंग सिस्टम की आपूर्ति का ठेका मिला है। आगरा मेट्रो परियोजना को सुप्रीम कोर्ट से सशर्त मंजूरी मिली। कोर्ट के स्टे के कारण अटका हुआ प्रोजेक्ट अब तेजी से आगे बढ़ेगा।
जुलाई २०१६: विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) राज्य सरकार को सौंपी गई।
सितंबर २०१७: केंद्र सरकार ने आगरा मेट्रो की डीपीआर को खारिज कर दिया क्योंकि यह उस महीने पेश की गई नई मेट्रो रेल नीति २०१७ के अनुरूप नहीं थी।
जनवरी २०१८: यूपी सरकार की कैबिनेट ने मेरठ, कानपुर और आगरा में मेट्रो बनाने का फैसला किया।
सितंबर २०१८: विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) यूपी सरकार द्वारा केंद्र सरकार को भेजी गई ।
७ फरवरी २०१९: यूपी सरकार ने बजट में प्रारंभिक कार्य शुरू करने के लिए १७५ करोड़ जारी किये।
२८ फरवरी २०१९: केंद्र सरकार ने आगरा में मेट्रो परियोजना को मंजूरी दी।
८ मार्च २०१९: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा परियोजना की आधारशिला रखी गई।
अगस्त २०१९: एलएमआरसी ने संबंधित अधिकारियों से मेट्रो निर्माण के लिए जमीन हस्तांतरित करने का अनुरोध किया है।
जनवरी २०२०: भारत के सर्वोच्च न्यायालय, ताज ट्रेपेज़ियम ज़ोन प्राधिकरण (त्झ), वन विभाग, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और अन्य अन्य विभागों से कुछ अनुमतियां मिल जाने के बाद निर्माण कार्य शुरू होना बाकी है। अनुमति मिलने के बाद भूमि अधिग्रहण में तीन महीने और लगेंगे।
१५ जून २०२०: टीप्सा- इतालफर जेवी को जनरल कंसल्टेंट का कॉन्ट्रैक्ट मिला।
जुलाई २०२०: बॉम्बार्डियर ट्रांसपोर्टेशन को आगरा मेट्रो और कानपुर मेट्रो के रोलिंग स्टॉक और सिग्नलिंग का अनुबंध मिला। आगरा मेट्रो परियोजना को सुप्रीम कोर्ट से सशर्त मंजूरी मिली। कोर्ट के स्टे के कारण अटका हुआ प्रोजेक्ट अब तेजी से आगे बढ़ेगा।
अक्टूबर २०२०: तीन मेट्रो स्टेशनों के निर्माण का ठेका दिया गया। सिविल इंजीनियरिंग का काम दिसंबर २०२० में शुरू होगा।
दिसंबर २०२०: प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ७ दिसंबर २०२० को आगरा मेट्रो परियोजना स्थल पर सिविल निर्माण कार्य का उद्घाटन किया।
अप्रैल २०२१: आगरा मेट्रो के प्राथमिकता खंड में फतेहाबाद रोड पर ३ किमी लम्बे हिस्से में कुल ६८८ पाइल्स डाली जानी हैं, जिनमें से ३४४ बनकर तैयार हैं, १० खंभे बने हैं, और ३ मेट्रो स्टेशनों के लिए खुदाई जारी है.
मई २०२१: आगरा मेट्रो परियोजना के प्राथमिकता खंड में यूपी मेट्रो ने कुल ६८६ में से ४०० पाइल्स बना दी हैं। इसके साथ ही ४५ पाइल-कैप और १६ पिलर भी बनकर तैयार हो गए हैं। आगरा मेट्रो डिपो में जीरो डिस्चार्ज सुविधा का काम भी तीव्र गति से चल रहा है। जीरो डिस्चार्ज सुविधा के लिए आगरा मेट्रो डिपो कॉम्प्लेक्स में विभिन्न क्षमता के कई अंडरग्राउंड टैंक बनाए जाएंगे। जीरो डिस्चार्ज सुविधा के लिए आगरा मेट्रो डिपो में १ लाख लीटर क्षमता का संयुक्त जल शोधन संयंत्र स्थापित किया जाएगा। इस वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में किचन, वॉशरूम, फर्श की सफाई से निकलने वाले पानी को रिसाइकिल किया जाएगा। इसके लिए ७०,००० लीटर की क्षमता वाला प्लांट लगाया जाएगा। इसी तरह कोच को धोकर निकलने वाले पानी को ट्रीट करने के लिए ३० हजार लीटर क्षमता का प्लांट लगाया जाएगा। दोनों प्लांट एक ही बिल्डिंग में बनाए जाएंगे ताकि इनका बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जा सके।
जून २०२१ : आगरा मेट्रो के लिए[ उद्धरण वांछित ] डिपो लाइन का निर्माण कार्य शुरू होने के साथ ही डिपो लाइन पर अब तक १३ पाइल का निर्माण कार्य शुरू हो गया है. डिपो लाइन मेन लाइन को मेट्रो डिपो से जोड़ेगी जो पीएसी ग्राउंड में निर्माणाधीन है जहां मेट्रो ट्रेनों को खड़ा और रखरखाव किया जाएगा। डिपो लाइन के लिए कुल ५०० पाइल, ३९ पाइल कैप और ३४ पियर का निर्माण किया जाएगा।
जून २०२१: आगरा मेट्रो के पहले मेट्रो स्टेशन, ताज ईस्ट गेट के कॉनकोर्स बीम की कास्टिंग भी शुरू हो गई है। ताज ईस्ट गेट मेट्रो स्टेशन के ६९ पाइल्स के निर्माण के साथ पाइलिंग का काम पहले ही पूरा हो चुका है। फिलहाल ताज ईस्ट गेट मेट्रो स्टेशन के साइड ग्रिड में खंभों का निर्माण किया जा रहा है। जल्द ही कॉनकोर्स लेवल का निर्माण भी शुरू हो जाएगा।[ उद्धरण वांछित ]
जून २०२१: आगरा मेट्रो के प्राथमिकता खण्ड (ताज ईस्ट गेट से जामा मस्जिद) के निर्माण के साथ ही यूपी मेट्रो ने डिपो लाइन का निर्माण भी शुरू कर दिया है। इसके लिए पाइलिंग शुरू करने के साथ ही १३ पाइल का निर्माण भी पूरा कर लिया गया है। आगरा मेट्रो डिपो में नई पीईबी (प्री इंजीनियरिंग बिल्डिंग) तकनीक से कवर्ड ट्रेन स्टेबलिंग यार्ड, इंटीग्रेटेड वर्कशॉप और पिट व्हील लेंथ का निर्माण किया जा रहा है।
जुल[ अतिरिक्त उद्धरण (ओं) की आवश्यकता है ]ाई २०२१: यूरोपीय निवेश बैंक (ईआईबी) आगरा मेट्रो रेल परियोजना के लिए ४८० मिलियन यूरो का वित्तपोषण करेगा।
अगस्त २०२१: आगरा मेट्रो रेल परियोजना में सभी मेट्रो स्टेशनों के यूनिक कोड ७ अगस्त तक भारतीय रेलवे द्वारा अनुमोदित हो गए।
अगस्त २०२१: यूरोपीय निवेश बैंक (ईआईबी) ने १० अगस्त को आगरा मेट्रो रेल परियोजना के लिए ४८० मिलियन यूरो की मंजूरी दी और इसके लिए तैयार है।
अगस्त २०२१: ताज ईस्ट गेट मेट्रो स्टेशन ने आकार लिया, और यह पूरी तरह बनकर तैयार होने वाला आगरा मेट्रो का पहला मेट्रो स्टेशन होगा।
सितंबर २०२१: आगरा मेट्रो के दूसरे मेट्रो स्टेशन, बसई मेट्रो स्टेशन का निर्माण शुरू।
भारत में मेट्रो रेल |
मुरवारा मध्य प्रदेश के रीवा जिला में एक तहसील है।
मध्य प्रदेश की तहसीलें |
तेतरिया खिज़िरसराय, गया, बिहार स्थित एक गाँव है।
गया जिला के गाँव |
केरमेरि, केरमेरि मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है।
आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट
आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग
निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल
आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
केरमेरि, केरमेरि मण्डल
केरमेरि, केरमेरि मण्डल |
मुक्त अधिगम (ओपेन लर्निंग) शिक्षा सम्बन्धी एक नवाचारी आन्दोलन एवं शिक्षा-सुधार है जो औपचारिक शिक्षा प्रणाली के अन्दर अधिगम (सीखने) के अवसरों में वृद्धि करता है या सीखने के अवसरों को औपचारिक शिक्षा पद्धति की सीमाओं के परे ले जाता है। यह आन्दोलन १९७० के दशक में सामने आया और आज शिक्षा व्यवस्था में इसने महत्वपूर्ण जगह बना ली है।
मुक्त अधिगम में आने वाली प्रमुख चीजें ये हैं-
कक्षा में शिक्षण
अन्तःक्रियात्मक (इंटरैक्टिव) अधिगम
कार्य से सम्बन्धित शिक्षा एवं प्रशिक्षण
मुक्त शैक्षिक संसाधनों का विकास एवं उपयोग
अधिगम का लचीलापन-
शिक्षा संस्थान में प्रवेश एवं छोड़ने में लचीलापन
अध्यन के स्थान, समय, गति में लचीलापन
अध्ययन की विधि में लचीलापन
पाठ्यक्रम के चयन एवं मिश्रण में लचीलापन
मूल्यांकन एवं पाठ्यक्रम समाप्ति का लचीलापन
जितना कम प्रतिबन्ध होते हैं, शिक्षा उतनी ही अधिक मुक्त कही जायेगी। मुक्त अधिगम का उद्देश्य सामाजिक और शैक्षिक असमताओं को मिटाना है तथा ऐसे अवसर प्रदान करना है जो पारम्परिक महाविद्यालयों/विश्वविद्यालयों द्वारा नहीं प्रदान किये जाते।
इन्हें भी देखें
मुक्त शिक्षा विद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय)
मुक्त आँकड़े (ओपेन डेटा) |
न्यायाधीश शेख रियाज अहमद , पाकिस्तान की सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश थे, जोकी पाकिस्तान का उच्चतम् न्यायिक पद है। उन्होंने न्यायमूर्ति मोहम्मद बशीर जहांगीरी की सेवानिवृत्ति के बाद यह पद संभाला था। सर्वोच्च न्यायालय में, बतौर न्यायाधीश नियुक्त होने से पूर्व, वे लक उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे।
इन्हें भी देखें
पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश
लाहौर उच्च न्यायालय
पाकिस्तान की न्यायपालिका
पाकिस्तान के लोग
पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश
लाहौर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश |
योग के सन्दर्भ में नाड़ी वह मार्ग है जिससे होकर शरीर की ऊर्जा प्रवाहित होती है। योग में यह माना जाता है कि नाडियाँ शरीर में स्थित नाड़ीचक्रों को जोड़तीं है।
कई योग ग्रंथ १० नाड़ियों को प्रमुख मानते हैं। इनमें भी तीन का उल्लेख बार-बार मिलता है - ईड़ा, पिंगला और सुषुम्ना। ये तीनों मेरुदण्ड से जुड़े हैं। इसके आलावे गांधारी - बाईं आँख से, हस्तिजिह्वा दाहिनी आँख से, पूषा दाहिने कान से, यशस्विनी बाँए कान से, अलंबुषा मुख से, कुहू जननांगों से तथा शंखिनी गुदा से जुड़ी होती है। अन्य उपनिषद १४-१९ मुख्य नाड़ियों का वर्णन करते हैं।
ईड़ा ऋणात्मक ऊर्जा का वाह करती है। शिव स्वरोदय, ईड़ा द्वारा उत्पादित ऊर्जा को चन्द्रमा के सदृश्य मानता है अतः इसे चन्द्रनाड़ी भी कहा जाता है। इसकी प्रकृति शीतल, विश्रामदायक और चित्त को अंतर्मुखी करनेवाली मानी जाती है। इसका उद्गम मूलाधार चक्र माना जाता है - जो मेरुदण्ड के सबसे नीचे स्थित है।
पिंगला धनात्मक ऊर्जा का संचार करती है। इसको सूर्यनाड़ी भी कहा जाता है। यह शरीर में जोश, श्रमशक्ति का वहन करती है और चेतना को बहिर्मुखी बनाती है।
पिंगला का उद्गम मूलाधार के दाहिने भाग से होता है जबकि ईडां का बाएँ भाग से।
सुषुम्ना नाड़ियों में इंगला, पिगला औरसुषुम्नातीन प्रधान हैं. इनमें भीसुषुम्नासबसे मुख्य है। सुषुम्नानाड़ी जिससे श्वास, प्राणायाम और ध्यान विधियों से ही प्रवाहित होती है। सुषुम्नानाड़ी से श्वास प्रवाहित होने की अवस्था को ही 'योग' कहा जाता है। योग के सन्दर्भ में नाड़ी वह रास्ता है जिसके द्वारा शरीर की ऊर्जा का परिवहन होता है।
सुषुम्नानाड़ी मूलाधार (बेसल प्लेटस) से आरंभ होकर यह सिर के सर्वोच्च स्थान पर अवस्थित सहस्रार तक आती है। सभी चक्रसुषुम्नामें ही विद्यमान हैं।
अधिकतर लोग इड़ा और पिंगला में जीते और मरते हैं और मध्य स्थानसुषुम्नानिष्क्रिय बना रहता है। परन्तुसुषुम्नामानव शरीर-विज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। जब ऊर्जासुषुम्नानाड़ी में प्रवेश करती है, असल में तभी से यौगिक जीवन शुरू होता है।
इन्हें भी देखें |
सेंदरी (सेन्दरी) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के निवाड़ी ज़िले में स्थित एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
मध्य प्रदेश के गाँव
निवाड़ी ज़िले के गाँव |
राज किशोर राव,भारत के उत्तर प्रदेश की प्रथम विधानसभा सभा में विधायक रहे। १९५२ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के २६६ - बहराइच (पूर्व) विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया।
उत्तर प्रदेश की प्रथम विधान सभा के सदस्य
२६६ - बहराइच (पूर्व) के विधायक
बहराइच के विधायक
कांग्रेस के विधायक |
मूर्ति भारतीय श्रेण्य पुस्तकालय (मूर्ति क्लासिकल लाइब्रेरी ऑफ इण्डिया) ने जनवरी २०१५ से क्लासिकी भारतीय साहित्य प्रकाशित करना आरम्भ किया है। ये पुस्तकें हार्वर्ड विश्वविद्यालय प्रेस द्वारा प्रकाशित की जायेंगी। पुस्तकें दो भाषाओं में होंगी- संस्कृत, हिन्दी, कन्नड आदि भारतीय भाषा तथा अंग्रेजी। यह पुस्तकालय इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति के पुत्र रोहन मूर्ति द्वारा दिये गये ५२ लाख डालर के दान से स्थापित हुआ है।
मूर्ति भारतीय श्रेण्य पुस्तकालय का जालघर |
विभिन्न मुद्दों पर ईरान और सउदी अरब के द्विपक्षीय सम्बन्ध बड़े तनावपूर्ण रहे हैं, जैसे इस्लाम की व्याख्या, इस्लामी जगत के नेतृत्व का प्रश्न, तेल निर्यात नीति, संयुक्त राज्य एवं अन्य पश्चिमी देशों से सम्बन्ध आदि। |
बन्नेरघट्टा जैव उद्यान (बेनेरघटटा बायोलॉजिकल पार्क) भारत के कर्नाटक राज्य में बंगलोर के समीप स्थित एक प्राकृतिक उद्यान और चिड़ियाघर है। यह पहले बन्नेरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान का भाग हुआ करता था, और २००२ में इस जैव उद्यान को ७३१.८८ हेक्टर क्षेत्रफल पृथक कर बनाया गया। यहाँ अब एक चिड़ियाघर, सफारी उद्यान, तितली उद्यान और संकट, चोट या अन्य व्यथा से प्रभावित प्राणियों के लिए आश्रय-केन्द्र है। यहाँ पर्यटकों के लिए पिकनिक मनाने के स्थान भी है।
इन्हें भी देखें
बन्नेरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान
भारत में चिड़ियाघर |
ईरानी समुदाय के प्रमुख व्यक्तित्व -
अनोश ईरानी, भारतीय कनाडियन उपन्यासकार
अर्देशिर ईरानी, बॉलीवुड की प्रथम ध्वनि चलचित्र आलम आरा के निर्देशक
मेहेर बाबा भारतीय दार्शनिक एवं चिंतक
बोमन ईरानी, बॉलीवुड अभिनेता
जेन्नी ईरानी क्रिकेटर
रौनी ईरानी, क्रिकेटर
हनी ईरानी, पटकथा लेखक |
गरवाडा गांव झालावाड़ जिले के रायपुर के पास स्थित एक बहुत ही सुन्दर गांव है। गांव जंगल के नजदीक होने के कारण इसका दृश्य अलग ही है। गांव के लोग हिंदू धर्म से है
गांव में एक पहाड़ी पर पीर महाराज का स्थल है।
गांव के बाहर उत्तर में खेड़ा वाली माता का मंदिर है। जहां कई श्रद्धालु आते हैं।
इसके अलावा गांव में बजरंग बली , श्री राम , दुधाखेड़ी माता , भगवान शिव तथा रामदेव जी का मंदिर है
गांव के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि और पशुपालन है।
गरवाडा के पुराने लोगों में सिर्फ २% ही पढ़ें लिखे हैं।
लेकिन २००० के बाद जन्म लेने वालो का शाक्षर दर ९५% है
गांव में एक बहुत ही सुन्दर विद्यालय है
कक्षा आठवीं तक के इस विधालय में ११ कमरे व एक रसोईघर है।
श्री मोहनलाल जी विद्यालय के प्रधानाध्यापक है।
गांव में कई जातियां मिलजुल कर रहती है।
यहां रहने वाली जातियां हैं
इस गांव में एतिहासिक समाज सैनी के लोग भी रहते हैं। |
धूम्रलोचन एक प्राचीन काल का प्रसिद्ध दैत्य था, जो प्रजापति कश्यप का दिति के गर्भ से उत्पन्न पुत्र था। वह वज्रांग , अरुण , हयग्रीव , हिरण्यकशिपु , हिरण्याक्ष और रक्तबीज का छोटा भाई था।
धूम्रलोचन का अर्थ होता है धुएं के नेत्र। धूम्रलोचन महर्षि कश्यप के वरदान के कारण दिति के गर्भ से उत्पन्न हुआ था।
धूम्रलोचन ने अपने सौतेले भाई रम्भ के पुत्र महिषासुर की ओर से देवी पार्वती के विरुद्ध युद्ध किया था। माता को उसने अपनी धुएं की शक्ति से बेहोश भी करना चाहा था लेकिन माता पार्वती ने उस धुएं को अपने पेट में समाहित कर लिया और धूम्रलोचन का वध कर दिया। |
लुशाई पहाड़ियाँ, जो मिज़ो पहाड़ियाँ भी कहलाती हैं, भारत के मिज़ोरम व त्रिपुरा राज्यों में स्थित एक पर्वतमाला है, जो पटकाई पहाड़ियों की एक उपशृंखला है। २,१५७ मीटर (७,०७७ फ़ुट) ऊँचा फौंगपुई पर्वत, जिसे नीला पर्वत भी कहते हैं, इस श्रेणी का सबसे ऊँचा पहाड़ है।
इन्हें भी देखें
भारत की पर्वतमालाएँ |
रजत पदक (सिल्वर मेडल), रजत (चाँदी) से बना या चाँदी का लेप किया हुआ पदक होता है जो किसी खेल या अन्य प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाले प्रतियोगी को पुरस्कार के रूप में प्रदान किया जाता है। |
के वी शशिकांत (जन्म १७ जुलाई १९९५) एक भारतीय क्रिकेटर हैं जो आंध्र प्रदेश के लिए खेलते हैं। उन्होंने २२ अक्टूबर २०१५ को २०१५-१६ रणजी ट्रॉफी में प्रथम श्रेणी में पदार्पण किया। उन्होंने अपनी लिस्ट ए में पदार्पण १० दिसंबर २०१५ को २०१५-१६ विजय हजारे ट्रॉफी में किया।
वह २०१८-१९ के रणजी ट्रॉफी में आंध्र के लिए संयुक्त रूप से प्रमुख विकेट लेने वाले चार मैचों में १७ आउट हुए।
१९९५ में जन्मे लोग
भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी |
प्रवीन दबस हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं।
१९७४ में जन्मे लोग
भारतीय फ़िल्म अभिनेता |
सवरन हंडिया, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
इलाहाबाद जिला के गाँव |
प्रोफेशनल (पेशेवर) किसी व्यवसाय का एक ऐसा सदस्य होता है जि
मेंसे विशिष्ट शैक्षणिक प्रशिक्षण के आधार पर चुना जाता है। जो कि अपनी बुद्धि का उपयोग कर आय कमाते है;जैसे-डॉक्टर,इंजीनियर,चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट, वकील आदि। ये व्यक्ति अपनी सेवा प्रदान कर आय कमाते है।
पारंपरिक रूप से प्रोफेशनल शब्द का मतलब है वह व्यक्ति जिसने किसी व्यावसायिक क्षेत्र में एक डिग्री प्राप्त की है। प्रोफेशनल शब्द का इस्तेमाल सामान्यतः सफेदपोश स्तर पर काम करने वाले व्यक्तियों के लिए किया जाता है, या उन व्यक्तियों के लिए जो सामान्यतः शौकिया तौर पर काम करने वालों के लिए आरक्षित क्षेत्रों में व्यावसायिक तौर पर काम करते हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों में यह शब्द सामान्यतः उच्च-स्तरीय शिक्षा-प्राप्त और वेतनभोगी कर्मियों को वर्णित करता है जो अपने काम में काफी स्वायत्तत तथा एक बेहतर वेतन का लाभ उठाते हैं और आम तौर पर रचनात्मक एवं बौद्धिक रूप से चुनौतीपूर्ण कार्य में संलग्न रहते हैं। कम तकनीकी दृष्टि से इसका संदर्भ किसी विशेष गतिविधि के लिए काफी उच्च क्षमतावान व्यक्ति से भी हो सकता है।
कई पेशेवर सेवाओं की निजी और गोपनीय प्रकृति और इस तरह उनमें अधिक से अधिक विश्वास पैदा करने की जरुरत के कारण ज्यादातर पेशेवर लोग सख्त नैतिक और न्यायसंगत नियमों का पालन करते हैं।
पेशेवर के लिए मुख्य मापदंडों में निम्नलिखित शामिल हैं:
एक पेशेवर वह व्यक्ति है जिसे उसके काम के लिए भुगतान किया जाता है। एक पेशेवर होने के लिए योग्यताएं ज्यादा मायने नहीं रखती हैं क्योंकि दुनिया का "सबसे पुराना पेशा" सही मायनों में एक पैसे कमाने वाला करियर है। एक शौकिया व्यक्ति एक पेशेवर की तुलना में अधिक योग्य हो सकता है लेकिन उसे पैसे नहीं दिए जाते, इसीलिये वह शौकिया ही रह जाता है।
किसी क्षेत्र में विशेषज्ञ और विशिष्ट ज्ञान जिसका व्यक्ति पेशेवराना तौर पर उपयोग करता है।
व्यवसाय के संदर्भ में बेहतरीन मैनुअल/व्यावहारिक और साहित्यिक योग्यताएं.
इन क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता का कार्य: रचना, उत्पाद, सेवाएं, प्रस्तुतियाँ, परामर्श, प्राथमिक/अन्य शोधकार्य, प्रशासनिक, मार्केटिंग या अन्य कायों से संबंधित प्रयास.
अपने पेशेवराना दायित्व (एक कर्मचारी, स्वरोजगार व्यक्ति, कैरियर, उद्यम, व्यापार, कंपनी, या साझेदारी/सहयोगी/सहकर्मी आदि के रूप में) का निर्वाह करते समय व्यावसायिक नैतिकता, व्यवहार और कार्य संबंधी गतिविधियों का एक उच्च-स्तरीय मानक कायम रखना. एक पेशेवर की जिम्मेदारी अपने ग्राहक के प्रति अधिक होती है जिसमें अक्सर गोपनीयता का एक विशेषाधिकार भी शामिल होता है और साथ ही उससे अपेक्षा की जाती है कि वह अपने ग्राहक को मात्र उसका भुगतान करने में असमर्थ होने की वजह से नहीं छोड़ेगा. पेशेवर को अक्सर ग्राहक के हितों को अपने स्वयं के हितों से आगे रखउपने की जरूरत होती है।
कार्य की यथोचित नैतिकता और प्रेरणा. व्यवसाय के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाते हुए किसी कार्य को अच्छी तरह पूरा करने की दिलचस्पी और इच्छा, उच्च-स्तरीय पेशेवराना अंदाज हासिल करने के महत्त्वपूर्ण तत्व हैं।
लाभ या आजीविका के लिए एक ऐसी गतिविधि या प्रयास के क्षेत्र में भाग लेना जिसमें अक्सर शौक़ीन लोग शामिल होते हैं; किसी विशेष पेशे को एक स्थायी कैरियर के रूप में अपनाना; वित्तीय लाभ प्राप्त करने वाले व्यक्तियों द्वारा नियोजित.
सहकर्मियों के साथ अनुचित व्यवहार और संबंध. विशेष लोगों और प्रशिक्षुओं के प्रति विशेष सम्मान का प्रदर्शन किया जाना चाहिए. अपने व्यवसाय की प्रवृत्ति को बनाए रखने के लिए इसे नुकसान पहुँचाये बगैर अनिवार्य रूप से एक उदाहरण प्रस्तुत किया जाना चाहिए.
पेशेवर पोशाक - ढ़ीली पतलून, लंबी-आस्तीन और नीचे बटन वाली शर्ट, टाई, ड्रेस के जूते आदि.
१०. पेशेवर एक विशेषज्ञ होता है जो किसी विशिष्ट क्षेत्र में निपुण होता है।
ब्रिटेन एवं अन्य स्थानों में प्रोफेशनलिज्म को अक्सर रॉयल चार्टर द्वारा नामित किया जाता है।
११.प्रोफ़ेसर डार्विन और प्रोफ़ेसर डेनस इसके उदाहरण हैं।
बारीकी दृष्टि से देखा जाये तो सभी तरह की विशेषज्ञता को पेशा नहीं माना जा सकता है। हालांकि कभी-कभी इन्हें प्रोफेशन के रूप में संदर्भित किया जाता है, योग्यतापूर्ण निर्माण कार्य जैसे पेशों को कहीं अधिक आम तौर पर व्यापार या शिल्प के रूप में माना जाता है। किसी एप्रेंटिसशिप के पूरा किये जाने को सामान्यतः कुशल श्रमिक या व्यवसाय जैसे कि बढ़ई, इलेक्ट्रीशियन, प्लंबर, ईंट बिछाने वाले और इसी तरह के अन्य पेशों से जोड़ा जाता है। एक संबंधित अंतर (हालांकि यह हमेशा वैध नहीं होता है) यह हो सकता है कि एक पेशेवर शारीरिक की बजाय मुख्यतः मानसिक या प्रशासनिक कार्य में संलग्न रहते हैं। कई कंपनियाँ अपनी कार्यकुशलता या सेवा की गुणवत्ता को दर्शाने के लिए अपने स्टोर नाम में प्रोफेशनल शब्द को शामिल करती हैं।
पेशेवर एक विशेषज्ञ होता है जो किसी विशिष्ट क्षेत्र में निपुण होता है।
खेल में एक पेशेवर वह व्यक्ति है जिसे इसमें भाग लेने के लिए धन का भुगतान किया जाता है। शौकिया व्यक्ति इसके विपरीत होता है मतलब यह कि एक ऐसा व्यक्ति जिसे आर्थिक भुगतान नहीं किया जाता है। खेलकूद के संदर्भ में "प्रोफेशनल" शब्द का आम तौर पर गलत इस्तेमाल नहीं होता है क्योंकि एक अंतर सीधे तौर पर यह बताता है कि एथलीट को किस प्रकार वित्त पोषित किया जाता है और ना कि प्रतियोगिताओं या उपलब्धियों को.
कभी-कभी किसी गतिविधि की पेशेवर स्थिति विवादास्पद होती है; उदाहरण के लिए, पेशेवरों को ओलंपिक खेलों में भाग लेने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं, इस सवाल पर बहस होती रहती है। धन की चाहत (पुरस्कारों, वेतनों या विज्ञापन की कमाई के रूप में) को कभी-कभी एक भ्रष्ट प्रभाव के रूप में देखा जाता है, जो किसी खेल को कलंकित करता है।
यह सुझाव दिया गया है कि केवल दो श्रेणियों - पेशेवर या शौकीन - की बजाय अन्य श्रेणियों को भी शामिल किया जाना चाहिए. शौकिया गतिविधियों को पेशेवर मानकों के स्तर तक ले जाने की चेष्टा करने वाले लोगों की एक नयी श्रेणी प्रो-ऐम्स के उभरने के साथ एक ऐतिहासिक बदलाव देखा जा रहा है।
इन्हें भी देखें
व्यवसायों की सूची
अभ्यास आधारित पेशेवर शिक्षण
पहली पेशेवर डिग्री
पेशेवराना शौकिया (प्रोफेशनल एमेच्योर)
अंग्रेजी कानून में पेशेवराना असावधानी |
गोगती, चौखुटिया तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
गोगती, चौखुटिया तहसील
गोगती, चौखुटिया तहसील |
मराठी विश्वकोश महाराष्ट्र सरकार की खास पहल द्वारा मराठी भाषा में निर्मित 'एन्सायक्लोपीडिया ब्रिटानिका' की तरह एक ज्ञानकोश है।
मुद्रित स्वरूप में इस विश्वकोश को प्रकाशित करने का कार्य 'महाराष्ट्र राज्य विश्वकोश निर्मिती मंडल' द्वारा सन १९६० में आरम्भ किया गया। अक्टूबर २०१२ तक मराठी विश्वकोश के १८ खंड प्रकाशित किये जा चुके है। योजना के अनुसार इस विश्वकोश के दो और काया खंड प्रकाशित किये जायेंगे। उसके बाद प्रतिशब्द संग्रह, सूची संग्रह और मानचित्र संग्रह भी प्रकाशित किये जायेंगे।
मराठी भाषा का पहला ज्ञानकोश श्रीधर व्यंकटेश केतकर जी द्वारा प्रकाशित'महाराष्ट्रीय ज्ञानकोश' था जिसका प्रथम खण्ड १९२१ में में प्रकाशित हुआ। जनवरी, १९१६ में ही वस्तुत: केतकर जी ने मराठी ज्ञानकोश के महान् साहित्यिक अनुष्ठान का औपचारिक रूप से आरंभ किया। उन्हें इसे पाँच वर्ष में प्रकाशित करने की आशा थी किंतु वास्तव में केवल पहला खंड ही सन् १९२१ में निकल सका और इक्कीसवाँ खंड (अनुक्रमणिका) १९२९ में प्रकाशित हुआ। १९१६ से १९२९ तक का १३-१४ वर्ष का समय केतकर के लिए असाधारण दौड़ धूपवाली सक्रियता का था, क्योंकि उन्हें एक साथ ही ज्ञानकोश के संपादक, व्यवस्थापक, मुद्रक, प्रकाशक, यहाँ तक कि स्थान स्थान पर जाकर उसके ग्राहक बनाने का भी कार्य करना पड़ता था।
मराठी विश्वकोश का आनलाइन संस्करण |
जगप्रवेश चंद्र को सन १९९९ में भारत सरकार ने सार्वजनिक उपक्रम के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये दिल्ली राज्य से हैं।
१९९९ पद्म भूषण |
शैवाल सरल सजीव हैं। अधिकांश शैवाल पौधों के समान सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वंय बनाते हैं अर्थात् स्वपोषी होते हैं। ये एक कोशिकीय से लेकर बहु-कोशिकीय अनेक रूपों में हो सकते हैं, परन्तु पौधों के समान इसमें जड़, पत्तियां इत्यादि रचनाएं नहीं पाई जाती हैं। ये नम भूमि, अलवणीय एवं लवणीय जल, वृक्षों की छाल, नम दीवारों पर हरी, भूरी या कुछ काली परतों के रूप में मिलते हैं। इस के अध्ययन शैवालिकी कहते है।
भूमंडल पर पाए जानेवाले पौधों का विभाजन दो बड़े विभागों में किया गया है। जो पौधे फूल तथा बीज नहीं उत्पन्न करते उनको क्रिप्टोगैम (क्रिप्टोगम्स) कहते हैं और जो फूल, फल एवं बीज उत्पन्न करते हैं वे फेनेरोगैम (फानेरोगम्स) कहलाते हैं। 'शैवालों का वर्गीकरण क्रिप्टोगैम के थैलोफाइटा (थल्लोफिटा) वर्ग में कि ये पौधे निम्न श्रेणी के होते हैं, जिनमें पर्णहरित (क्लोरोफिल) पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। पर्णहरित विद्यमान होने के कारण, ये बहुधा हरे रंग के होते हैं। कुछ शैवाल ऐसे भी होते हैं जिनका रंग लाल, भूरा अथवा नीला हरा होता है। अधिकांश शैवाल पानी में तालाबों, रुके हुए जलाशयों तथा समुद्रों में पाए जाते हैं। कुछ शैवाल पादपों के तनों पर, अथवा पत्थर की शिलाओं के ऊपर, हरी परत के रूप में उगा करते हैं। कुछ नीले हरे वर्ण के शैवाल स्नानागार, नदियों तथा तालाबों के सोपानों पर भी उगते हैं। ये एक प्रकार का चिकना पदार्थ छोड़ते हैं, जिसके कारण बहुधा लोग फिसलकर गिर जाया करते हैं। पानी में पैदा होनेवाले शैवालों का विभाजन दो भागों में किया जाता है। कुछ मीठे पानी के शैवाल होते हैं जो तालाबों, झीलों, नदियों आदि में उगते हैं, तथा कुछ खारे पानी के, जो समुद्रों में पाए जाते हैं। मीठे पानी के शैवाल को अलवण जलशैवाल (फ्रेश वाटर एल्गाई) कहते हैं तथा खारे पानीवालों को सामुद्रिक शैवाल (मरीन एल्गाई) की संज्ञा देते हैं। पानी में ये या तो स्वतंत्र रूप में तैरते रहते हैं, अथवा धरातल पर एक विशेष अंग द्वारा, जिसे स्थापनांग (होल्ड फास्ट) कहते हैं, स्थिर रहते हैं। पानी में तैरनेवाले शैवाल या तो एककोशीय या बहुकोशीय होते हैं।
रचना के विचार से शैवालों में बहुत विभिन्नता पाई जाती है। कुछ तो अति सूक्ष्म एककोशिक होते हैं, जो केवल सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही दृश्य हैं तथा कुछ ऐसे होते हैं जो कई सेंमी. लंबे होते हैं। क्लोरेला (क्लोरेला), क्लैमिडोमॉनैस (क्लेमिडोमोनस) आदि प्रथम कोटि में ही आते हैं। बड़े कोटिवाले शैवाल सूत्रवत् (फाइलामेंटूस) होते हैं, जो कई कोशिकाओं के बने होते हैं। सबसे बड़ा शैवाल मैक्रोसिस्टिस (मैकरोसिस्टीस) है, जो लाखों कोशिकाओ से बना तथा कई सौ फुट लंबा होता है। प्रत्येक कोशिका के अंदर एक केंद्रक (नूक्ल्यूस) होता है, जिसके चारों ओर कोशिकारस होता है। प्रत्येक कोशिका चारों ओर से कोशिकीय दीवारों से घिरी होती है। पर्णहरित तथा क्लोरोप्लास्ट (क्लोरोप्लास्त) कोशिकारस में बिखरे रहते हैं।
वर्धी संरचना (वेजतेटिव स्ट्रक्चर) के विचार से शैवाल कई विभागों में बाँटे जा सकते हैं। कुछ तो एककोशिक तथा भ्रमणशील होते हैं, जिनमें कशभिका (फ्लागलम) विद्यमान रहता है, जैसे यूग्लिना (यूगलेना) में। कुछ जातियों के अनेक एककोशिक मिलकर झुंड बनाते हैं और कशाभिका के सहारे एक जगह से दूसरी जगह भ्रमण करते हैं, जैसे प्ल्यूडोंराइना (प्लुडोरीना), वॉलवॉक्स (वॉल्वॉक्स) आदि। कुछ गोल (ककोइड) रूप धारण किए होते हैं, जैसे क्लोरोकॉक्कम (क्लोरोकोक्कम), कुछ सूत्रवत् (फाइलामेंटूस) होते हैं, जैसे स्पाइरोजाइरा (स्पिरोग्यरा) तथा यूलोअक्स (उलोट्रिक्स)। कुछ में दंडवत् रूप तथा सीधा रूप एक साथ होता है। इन्हें हेटरोट्राइकस श्रेणी में रखते हैं जैसे फ्रस्चियेल्ला (फ्रित्स्किएला)। इस शैवाल में दो विभाग होते हैं, एक तो जमीन में धरातल के समानांतर सूत्रवत् अंश होते है, जिसे भूशायी (प्रोस्टेट) भाग कहते हैं। इन्हीं भागों में से सीधे उगनेवाले सूत्रवत् भाग (फाइलामेंटूस फॉर्म) पैदा होते हैं, जिन्हें इरेक्ट सिस्टेम (इरेक्ट सिस्टम) कहते हैं। ऐसे ही शैवालों से पृथ्वी पर के बड़े बड़े पादपों के प्रादुर्भाव का होना समझा जाता है।
शैवालों में पोषण की समस्या स्वत: हल होती है। इनमें पर्णहरित विद्यमान रहता है, इसलिए प्रकाशसंश्लेषण की विधि से ये अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। अत: ऐसे पौधे स्वपोषी (आतोट्रोफ्स) कहे जाते हैं।
शैवालों में जनन कई प्रकार से होता है। कुछ तो स्वयं विभाजित होते रहते हैं और बढ़ते चले जाते हैं। यह क्रिया अधिकतर कोशिका विभाजन की रीति से होती है। एककोशिक शैवाल इसी रीति से जनन करते हैं। बड़े कोटि के शैवालों में अलैंगिक तथा लैंगिक दोनों प्रकार के जनन होते हैं। अलैंगिक जनन कई ढंग से हो सकता है। कुछ शैवालों में चलबीजाणुओं (ज़ूसपोर्) की उत्पत्ति होती है। चलबीजाणु नंगे जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज़्मा) का पिंड होता है, जो कशाभिका के सहारे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकता है। चलबीजाणु पानी के शैवालों में पैदा होते हैं। ये स्वत: अंकुरित होकर नया शैवाल बनाते हैं। जब पानी की मात्रा कम होने लगती है, अथवा विपरीत वातावरण आ पड़ता है, तो अचलबीजाणु (अपलानोस्पोर्) बनते हैं, जो मोटे आवरण से चारों ओर घिरे रहते हैं। इनमें कशाभिका नहीं होती। कुछ शैवालों में अलैंगिक जनन निश्चेष्ट बीजाणुओं (अकिनेट) द्वारा होता है। इनके बनने की रीति यह है कि शैवाल की कोई भी कोशिका गोलाकर होकर मोटी तह के आवरण रूप में चारों ओर से आच्छादित हो जाती है। ऐसी दशा तो केवल असंगत परिस्थिति में ही देखी जाती है, विशेषकर जब शुष्क और गर्म वातावरण हो जाता है। जब अनुकूल वातावरण प्राप्त हो जाता है तब इनका अंकुरण होने लगता है और ऊपरी, मोटी तह की दीवार धीरे से टूट जाती है और नवजात शैवाल का निर्माण होने लगता है। कुछ शैवाल पानी के किनारे पड़े रहते हैं। जब विपरीत वातावरण होता है, तब इनकी कोशिकाओं में विभाजन तो होता ही रहता है, परंतु ये विलग नहीं हो पातीं, अपितु कोशिका की दीवार मोटी होती जाती है और उसके अंदर कई कोशिकाएँ भरी पड़ी रहती हैं। जब अनुकूल वातावरण आता है, तब ये अंकुरित होकर नया शैवाल बनाती हैं। ऐसी दशा को पैलमेला अवस्था (पालमेला स्टेज) कहते हैं।
लैंगिक जनन (सेक्सुअल रेप्रोडक्शन) दो विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं के संयोग से होता है। इन कोशिकाओं को युग्मक (गमिटेस) कहते हैं। ये युग्मक युग्मकधानियों (गेमेटेंगिया) में पैदा होते हैं। दोनों प्रकार के युग्मकों के संयोजन (फेशन) से युग्मज (ज़िगोटे) बनता है। युग्मकों के जोड़े, जिसमें से एक पितृपक्ष का तथा दूसरा मातृपक्ष का होता है, तीन प्रकार के होते हैं :
(१) समयुग्मक (इसोगमिटेस) में दोनों प्रकार के युग्मकों की रचना तथा आकार समान होता है। इनके द्वारा होनेवाले जनन को समयुग्मकी (इसोगम्स) जनन की संज्ञा देते हैं।
(२) दो संयोजित युग्मक (फुज़िंग गमिटेस) देखने में एक ढंग के होते हैं तथा कशाभिका द्वारा भ्रमणशील होते हैं, परंतु एक छोटा तथा दूसरा बड़ा होता है। छोटे युग्मक को लघुयुग्मक (माइक्रोगमेटे) तथा बड़े का गुरुयुग्मक (मैकरोगमेटे) कहते हैं। ये युग्मक विषम होते हैं तथा ऐसे जनन को असययुग्मकी (अनिसोगम्स) जनन कहते हैं।
(३) दोनों प्रकार के युग्मक भिन्न आकार के होते हैं। एक छोटा और भ्रमणशील तथा दूसरा बड़ा और स्थिर होता है। प्रथम कोटिवाले को पुंयुग्मकश् (माले गमेटे) तथा दूसरे को स्त्री युग्मक (फेमले गमेटे) या अंडा कहते हैं। इस प्रकार के जनन को विषमयुग्मक (उगामूस) जनन कहते हैं। इस प्रकार का जनन बहुधा बड़े शैवालों में होता है और इसे विषमयुग्मकता (उगेमी) कहते हैं।
संयोजन (फेशन) की क्रिया के फलस्वरूप युग्मज और युग्माणु (ज़्य्गोस्पोर) बनते हैं। ये अंकुरित होते हैं। अंकुरण के समय इनमें चलबीजाणु बनते हैं जो बाहर आने पर अंकुरित होकर नए शैवाल को जन्म देते हैं। समयुग्मकी साधारण कोटि का तथा विषमयुग्मकी उच्च कोटि का जनन समझा गया है।
शैवालों का विभाजन
विभिन्न वैज्ञानिकों के मत से विभिन्न विभागों में किया गया है। एफ. ई. फ्रट्श (फ. ए. फ्रिस्टक) नामक एक महान् शैवालविज्ञानवेत्ता ने शैवालों को ग्यारह विभागों में विभाजित किया है, जो निम्न प्रकार हैं :
(१) मिक्सोफाइसिई - ये शैवाल साधारण कोटि के होते हैं, जिनकी कोशिका में निश्चित केंद्रक नहीं होता, परंतु केंद्रजनित वस्तुएँ कोशिका में विद्यमान रहती हैं। पर्णहरित के अतिरिक्त फाइकोसाइनिन (फिकोसायनीन) तथा फाइकोएरि्थ्रान (फिकोएरिथ्रीन) भी विद्यमान रहते हैं। जनन विखंडन (फिशन) द्वारा होता है लैंगिक जनन नहीं होता। सूत्रवत् पौधों (फाइलामेंटूस मेंबर्स) में हेटरोसिस्ट्स (हेतेरोसिस्ट) विद्यमान होते हैं। किसी किसी में समेरुका (हारमोगोनियम) बनता है, जो जनन में सहायक होता है। इस विभाग के पौधे जमीन, वृक्षों के तनों एवं डालियों तथा ईंटों पर और पानी में पैदा होते हैं। एककोशिक शैवाल कभी कभी चिपचिपा पदार्थ पैदा करते हैं और इसी में हजारों की संख्या में पड़े रहते हैं।
(२) यूग्लीनोफाइसिई - ये मीठे पानी या खारे पानी में पाए जाते हैं। बहुधा एकाकी और स्वतंत्र रूप में भ्रमणशील अथवा स्थिर रहते हैं। इनमें पौधों तथा जानवरों के गुण विद्यमान रहते हैं। कोशिका में केंद्रक तथा कशाभिका विद्यमान रहती है। जनन विभाजन द्वारा होता है।
(३) क्लोरोफाइसिई ,,,- इन शैवालों में निश्चित केंद्रक तथा पर्णहरित विद्यमान रहते हैं। बर्फीले स्थानों के शैवालों की बनावट में विभिन्नता पाई जाती है। एककोशिक से लेकर सूत्रवत् पौधे तक इनमें मिलते हैं। लैंगिक जनन समयुग्मक से असमयुग्मक तक मिलता है।
(४) ज़ैंथोफाइसिई - इन शैवालों में पर्णपीत (ज़ेंथोफिल) रंग विद्यमान रहता है। स्टार्च के अतिरिक्त तैल पदार्थ भोज्य पदार्थ के रूप में रहता है। कशाभिका दो होती हैं, जो लंबाई में समान नहीं होतीं। लैंगिक जनन बहुधा नहीं होता। यदि होता है, तो समयुग्मक ही होता है। कोशिका की दीवार में दो सम या असम विभाजन होते हैं।
(५) क्राइसोफाइसिई - इनमें भूरा या नारंगी रंग का वर्णकीलवक (क्रोमटोफोर) होता है। भ्रमणशील कोशिका में एक, दो या तीन कशाभिकाएँ होती हैं। लैंगिक जनन समयुग्मक ढंग का होता है।
(६) बैसिलेरियोफाइसिई - इनकी कोशिकाओं की दीवारों पर सिकता (बालू) विद्यमान रहती है। दीवार आभूषित रहती है। रंग पीला, या स्वर्ण रंग का, अथवा भूरा होता है। लैंगिक जनन समयुग्मक होता हैं। कभी कभी असमयुग्मक भी होता है।
(७) क्रिप्टोफाइसिई - इनकी प्रत्येक कोशिका में दो बड़े वर्णकीलवक होते हैं, जिनका रंग विभिन्न होता है। इनमें भूरे रंग का बाहुल्य होता है। भ्रमणशील कोशिका में दो असमानकशाभिकाएँ होती हैं। लैंगिक जनन केवल एक प्रजाति में असमयुग्मक होता है।
(८) कैरोफाइसिई - ये पौधों के तने तथा शाखाओं सदृश रूप के बने होते हैं। पर्णहरित रहता है। लैंगिक जनन असमयुग्मक होता है। शुक्राणु में दो कशाभिकाएँ होती हैं। स्टार्च प्रत्येक कोशिका में विद्यमान रहता है। कभी कभी लैंगिक जनन विषमयुग्मक प्रकार का भी होता है।
(९) डाइनोफाइसिई - इस कुल के शैवाल अधिकतर एक कोशिकीय होते हैं, परंतु सूत्रवत् होने की क्षमता धीरे धीरे बढ़ती जाती है, कोशिकीय दीवारें आभूषित रहती हैं। स्टार्च तथा वसा प्रकाश संश्लेषण के फलस्वरूप बनते हैं।
(१०) फीयोफाइसिई - ये अधिकतर समुद्र में पाए जाते हैं। इनका रंग भूरा होता है, क्योंकि इनमें फ्यूकोज़ैथिन (फुकॉक्सनतीन) विद्यमान रहता है। प्रकाशसंश्लेषण के फलस्वरूप वसा, पॉलिसैकैराइड (पोलिसच्छराइद्स) तथा चीनी बनती है। पौधे सूत्रवत् होते हैं। जनन अंगों में दो कशाभिकाएँ होती हैं। लैंगिक जनन विषमयुग्मक सा होता है। कभी कभी समयुग्मक जनन भी होता है।
(११) रोडोफाइसिई''' - इस कुटुंब के शैवाल भी समुद्र में पाए जाते हैं। इस कुटुंब में बहुत कम ऐसे शैवाल होते हैं जो मीठे पानी में उगते हैं। वह गुलाबी रंग का होता है, क्योंकि फाइकोएरिअन (फिकोएरिथ्रीन) नामक वर्णक विद्यमान रहता है। जनन अंग बिना कशाभिका के होते हैं। पौधे सूत्रवत् तथा अधिकतर असाधारण ढंग के होते हैं। लैगिक जनन विषमयुग्मक (उगाम्स) होता है। सिस्टोकार्प (सिस्टोकार्प) में फलबीजाणु (कोर्पोस्पोर्) कहते हैं।
शैवाल का आर्थिक महत्व
शैवाल का उपयोग तीन क्षेत्रों कृषि, उद्योग और चिकित्सा में बड़ा ही महत्वपूर्ण है। पिछले २० वर्षों से कृषि में शैवाल के उपयोग पर अनेक महत्वपूर्ण बातें स्थिर की गई है। प्रयोगशालाओं में अनुसंधान करने से पता चला है कि शैवाल वायु से नाइट्रोजन लेकर, मिट्टी में नाइट्रोजन के यौगिकों में परिणत कर, उसे स्थिर करते हैं। पौधों के लिए नाइट्रोजन अत्यधिक उपयोगी पोषक तत्व है। इस कारण शैवाल की महत्ता बढ़ गई है। यह नाइट्रोजन को स्थिर करके मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है और फसल में वृद्धि करता है। भारत में अनेक वैज्ञानिकों के अनुसंधान से यह ज्ञात हुआ है कि शैवाल द्वारा प्राय: २० से लेकर ३० पाउंड प्रति एकड़ तक नाइट्रोजन की वृद्धि मिट्टी में स्थिर नहीं करते। केवल मिक्सोफाइसिई (मैकोफिसीए) जाति के शैवाल ही इस कार्य में प्रवीण हैं। इनमें नॉस्टक (नोस्टुक), टौलिपोअक्स (टोलिपोथरिक्स), औलिसोरा फरटिलिसिमा (औलिसोरा फ़र्टिलिसीमा) तथा एनाबीना (अनाबएना) इत्यादि ही सबसे अधिक महत्व के स्थापक सिद्ध हुए हैं। कटक के धानअनुसंधान केंद्र के अनुसंधान से यह ज्ञात हुआ है कि टौलिपोअकस सबसे अधिक नाइट्रोजन स्थापित करता है। धान के पौधों के विश्लेषण से यह भी पता लगा है कि शैवाल की खादवाले खेतों के पौधे मिट्टी से अधिक मात्रा में नाइट्रोजन का अवशोषण करते हैं।
कटक अनुसंधान केंद्र ने परीक्षा करके देखा है कि खेतों में शैवाल को कृत्रिम रूप से उपजाने पर धान की फसल में ८०० पाउंड तक की वृद्धि हुई। नाइट्रोजन स्थिर करनेवाले शैवाल की बहुत न्यून मात्रा बालू में मिलाकर, खेतों में डाली गई तथा सिंचाई की गई। इससे शैवाल की वृद्धि हुई, नाइट्रोजन अधिक मात्रा में मिट्टी में प्राप्त हुआ तथा धान की फसल में भी वृद्धि हुई। लेखक के अनुसंधान से यह भी जानकारी प्राप्त हुई है कि शैवाल से मिट्टी की ऊपरी सतह पर लगभग २४ पाउंड फ़ॉस्फ़ेट की वृद्धि होती है। साथ साथ १,००० पाउंड जैव कार्बन भी बढ़ जाता है, जिससे मिट्टी की संरचना और उर्वरा शक्ति में उन्नति होती है।
शैवाल के औद्योगिक प्रयोग विभिन्न दिशाओं में किए गए हैं। शैवाल से ऐगार-ऐगार (अगर-अगर) नाक जटिल कार्बनिक पदार्थ, जो शर्करा वर्ग के अंतर्गत है, निकाला जाता है। इससे वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में जीवाणुपोष पदार्थ (मीडिया) बनाया जाता है। यह फल परिरक्षण में भी काम आता है। यह जेलीडियम (जेलेडियम) और ग्रासिलारिया (ग्रेसिलेरिया) नामक शैवाल में अधिक पाया जाता है।
शैवाल से आयोडीन\आयोडिन (आयोडीन) नामक तत्व निकाला जाता है, जो ओषधि में तथा अन्य क्षेत्रों में काम आता है। रोडिमीनिया (रॉडमेनिया) और फिलोफोरा (फिलोफोरा) नामक शैवालों में आयोडिन अधिक रहता है।
समुद्र में पाए जानेवाले शैवाल मवेशियों के लिए चारे के रूप में व्यवहृत होते हैं। इनका ऐसा उपयोग सफलतापूर्वक इज़रायल में हो चुका है।
शैवाल मनुष्य का भी खाद्य पदार्थ है। कहा जाता है, अन्नसंकट में शैवाल उपयोगी खाद्यपदार्थ सिद्ध हो सकता है। शैवाल में सभी विटामिन, प्रोटीन, वसा, शर्करा तथा लवण, जो खाद्यपदार्थ की मुख्य सामग्री है, वर्तमान है। निचिया (निट्सस्काय) डाइऐटॉम में विटामिन ए (आ) अधिक है। अल्वा (उलवा) तथा पॉरफिरा (पॉर्फ्यरा) में विटामिन की मात्रा अधिक होती है। अलेरिया वालिडा (अलेरिया वालिदा) में विटामिन सी (च) अधिक पाया जाता है। नीचे दिए हुए आँकड़ों से कुछ शैवालों के पोषक तत्वों का पता चलता है :
१०.६ २०.९ १.२ ५५.७ ४.१ ७.५
१८.७ १४.९ ०.०4 5०.६ ०.२ १५.६
जापान, चीन, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, मलाया इत्यादि पूर्वी देशों में शैवाल मुख्य खाद्य पदार्थ है।
शैवाल मछलियों का आहार है। जल में रहनेवाले अन्य जीव जंतुओं के लिए भी शैवाल पोषक पदार्थ है। पशुओं के चारे के रूप में भी इसका उपयोग हो सकता है। बढ़ती हुई आबादी के आतंक से छुटकारा पाने तथा खाद्य समस्या को हल करने के लिए, शैवाल पर त्व्रीा गति से प्रयोग जारी हैं। यह कहा जाता है कि अन्नसंकट को दूर करने में क्लोरेला (क्लोरेला) नामक शैवाल बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो सकता है। यह शैवाल पौष्टिक पदार्थों से परिपूर्ण है। यह फैलने के लिए अधिक स्थान भी नहीं लेता। जितनी जमीन आज हमें प्राप्त है, उसके १/५ हिस्से में ही क्लोरेला के उपजाने से २०५० ई. में अनुमानित ७० अरब जनसंख्या के लिए भोजन, विद्युत् और जलावन प्राप्त हो सकता है। कानेंगी इंस्टिट्यूट, (संयुक्त राज्य, अमरीका,) के वैज्ञानिकों ने एक प्रायोगिक कारखाना बहुत बड़े पैमाने पर क्लोरेला उत्पादन के हेतु खोला है। अब तक के उत्पादन से यह अनुमान किया गया है कि प्रति एकड़ जमीन से ४० टन क्लोरेला सुगमतापूर्वक उगाया जा सकता है। इन वैज्ञानिकों का विश्वास है कि यह मात्रा १५० टन तक पहुँच सकती है।
वेनिजुएला में कुष्ठरोग की चिकित्सा में शैवाल लाभप्रद सिद्ध हुआ है। शैवाल से "लेमेनरिन' नामक एक पदार्थ बनाया गया है, जिसका उपयोग ओषधियों में तथा शल्यचिकित्सा में हो सकता है। कुछ शैवालों में मलेरिया के मच्छरों के डिंबों का नाश करने की क्षमता भी पाई गई है। अत: इनका उपयोग मलेरिया उन्मूलन में भी हो सकता है।
क्लोरेला से हम पर्याप्त परिमाण में ऑक्सीजन प्राप्त कर सकते हैं। वैज्ञानिक यह खोज कर रहे हैं कि ऑक्सीजन को कैसे कृत्रिम उपायों द्वारा शैवाल से निकालकर औद्योगिक कार्यों में प्रयुक्त किया जाए।
विभिन्न क्षेत्रों में शैवाल के उपयोगों को देखते हुए यह बात होता है कि कुछ ही दिनों में इसके महत्वपूर्ण तथा चमत्कारी गुणों द्वारा हम मानव जाति की अनेक समस्याओं को आसानी से हल कर सकेंगे।
जहाँ शैवालों के अनेक लाभप्रद उपयोग हैं, वहाँ इनमें कुछ दोष भी पाए गए हैं। कुछ शैवाल जल को दूषित कर देते हैं। कुछ से ऐसी गैसें निकलती हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। कुछ शैवाल दूसरे पौधों पर रोग भी फैलाते हैं। चाय की पत्ती का लाल रोग, सेफेल्यूरस (सेफेलेंरो), शैवाल के कारण ही होता है।
शैवाल के रासायनिक अवयव
इसकी जानकारी १८८३ ई. से शुरु हुई जब स्टैनफर्ड (स्तान्फर्ड) ने शैवाल हुई जब स्टैनफर्ड (स्तान्फर्ड) ने शैवाल में ऐल्जिनिक (अल्जीनिक) अम्ल की उपस्थिति का पता लगाया। विल्सटाटर और स्टॉल (विलिस्टटर एंड स्टोल) ने शैवालों में पर्णहरित और अन्य रंगीन पदार्थों की उपस्थिति बतइलाई। १८९६ ई. में मोलिश (मोलिश) ने सिद्ध किया कि शैवालों की वृद्धि के लिए खनिज लवण आवश्यक हैं। फिर अनेक व्यक्तियों ने जीवाणुओं से पूर्णतया अलग करके संबर्ध विलयन में शैवाल को उगाने का प्रयत्न किया। इनमें सबसे अधिक सफलता प्रिंगशाइम (प्रिंग्शेइम) को मिली। शैवाल के उपापचय (मेटाबॉलिज्म) पर कार्य करने का श्रेय पियरसाल (पेअरसल) और लूज़ (लूस) को है, जिन्होंने सिद्ध किया कि शैवाल और पौधों में प्रमुख रासायनिक क्रियाएँ प्राय: एक सी ही होती हैं। इनमें विशेष अंतर नहीं है। शैवालों में प्रकाशसंश्लेषण पर एंजेलमान (एंजेलमन) तथा वारवुर्ग (वारबर्ग) का कार्य विशेष रूप से उल्लेखनीय है। शैवालों की रासायनिक क्रियाओं की सविस्तर समीक्षा मीयेर्स और ब्लिंक (मेयर्स एंड ब्लिक) ने १९५१ ई. में की। इससे शैवाल के संबंध की वैज्ञानिक और व्यावहारिक जानकारी पर्याप्त रूप से प्राप्त हुई है। शैवाल के श्वसन के संबंध में वातानाबे (वतनबे, १९३२-३७ ई.) कैल्विन (कैल्विन, १९५१ ई.), एनी (एनी, १९५० ई.), एंडरसन (अंडरसन, १९४५ ई.) और वेव्स्टर (वेबस्टर, १९५१ ई.) के अनुसंधान विशेष उल्लेखनीय हैं। इन वैज्ञानिकों के मतानुसार श्वसन ऑक्सीकरण क्रिया है, जिसमें शर्करा के ऑक्सीकरण से ऊर्जा उत्पन्न होती है और शैवाल के निर्माण और वृद्धि में काम आती है।
सभी शैवालों में वर्णक यौगिक, विशेषत: पर्णहरित और कैरोटीन, होते है। किसी किसी में फाइकोसायानिन (फिकोसायनीन) भी पाया जाता है। यह वर्णक यौगिक प्रकाश के अवशोषण द्वारा ऊर्जा उत्पन्न कर पर्णहरित बनाता है। पर्णहरित प्रकाश ऊर्जा द्वारा इलेक्ट्रॉन निकालता है, जिसके द्वारा यौगिकों के अपचयन में ऊर्जा प्राप्त होती है। अपचयित पदार्थ का पुन: ऑक्सीकरण होकर, प्रकाश द्वारा ऊर्जा का आदान प्रदान होता रहता है। ऐसी ही क्रियाओं से कार्बन डाइऑक्साइड का अपचयन होकर शर्करा, स्टार्च, सेलुलोस आदि और फिर उनसे प्रोटीन, वसा, तेल आदि संश्लेषित होते हैं।
शैवाल के उपाचय के उत्पाद
शैवाल में शर्कराएँ पाई जाती है। कुछ में ग्लूकोस, कुछ में ट्रेहलोस, कुछ में पेंटोस पाए जाते हैं। इनकी मात्राएँ विभिन्न शैवालों में विभिन्न रहती हैं। अनेक शैवालों में स्टार्च पाए जाते हैं। ऐसे सब स्टार्च एक से नहीं होते हैं, कुछ में ग्लाइकोजेन भी पाया गया है। कुछ में लैमिनैरिन नामक शर्करा पाई गई है। शैवाल की कोशिकाओं की भित्ति होती है।
समुद्री शैवाल में ऐगार-ऐगार नामक पॉलिसैकराइड मिलता है। अन्य कई पॉलिसैकराइड विभिन्न शैवालों में मिलते हैं। शैवालों में वसा भी मिलती है। ऐसी वसा में प्रधानतया पामिटिक अम्ल रहता है। स्टेरॉल भी कुछ शैवाल में मिलते हैं। कुछ शैवालों में निटोल भी, जो संभवत: फ्रक्टोग के अपचयन से बनता है, पाया गया है। शैवालों में जो प्रोटीन पाए गए है उनके विघटन उत्पाद, ऐमिनो अम्लों का विस्तार से अध्ययन हुआ है। लगभग १६ ऐमिनो अम्ल अब तक पृथक् किए जा चुके हैं। इनमें सबसे अधिक मात्रा में आर्जिनिन पाया गया।
ये भी देंखे
ऊर्जा का वैकल्पिक स्रोत है शैवाल |
बाबूलाल गौर (जन्म- २ जून, १९३०, उत्तर प्रदेश मृत्यू २1 अगस्त २0१९ भोपाल मध्यप्रदेश) 'भारतीय मज़दूर संघ' के संस्थापक सदस्य हैं। वे मध्य प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री हैं, जिनका प्रदेश की राजनीति में प्रमुख स्थान रहा है। बाबूलाल गौर सन १९४६ से ही 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' से जुड़ गए थे। उन्होंने दिल्ली तथा पंजाब आदि राज्यों में आयोजित सत्याग्रहों में भी भाग लिया था। श्री गौर आपात काल के दौरान १९ माह की जेल भी काट चुके हैं। १९74 में मध्य प्रदेश शासन द्वारा बाबूलाल गौर को 'गोवा मुक्ति आन्दोलन' में शामिल होने के कारण 'स्वतंत्रता संग्राम सेनानी' का सम्मान प्रदान किया गया था। उन्हें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में 'नगरीय प्रशासन एवं विकास', 'भोपाल गैस त्रासदी, राहत एवं पुनर्वास' विभाग का मंत्री बनाया गया है।
बाबूलाल गौर का जन्म २ जून, १९३० को नौगीर ग्राम, प्रतापगढ़ ज़िला (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। वे बचपन से ही भोपाल में रहे। इनके पिता का नाम श्री रामप्रसाद था। बाबूलाल गौर ने अपनी शैक्षणिक योग्यताओं में बी.ए. और एल.एल.बी. की डिग्रियाँ प्राप्त की हैं। श्री गौर पहली बार १९७४ में भोपाल दक्षिण विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में जनता समर्थित उम्मीदवार के रूप में निर्दलीय विधायक चुने गये थे। वे ७ मार्च, १९९० से १५ दिसम्बर, 199२ तक मध्य प्रदेश के स्थानीय शासन, विधि एवं विधायी कार्य, संसदीय कार्य, जनसम्पर्क, नगरीय कल्याण, शहरी आवास तथा पुनर्वास एवं 'भोपाल गैस त्रासदी' राहत मंत्री रहे। वे ४ सितम्बर, २00२ से ७ दिसम्बर, २003 तक मध्य प्रदेश विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे। सामाजिक तथा सार्वजनिक जीवन में किये गये विभिन्न महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिये श्री गौर को कई सम्मान तथा पुरस्कार प्राप्त होते रहे हैं। वर्ष १९९१ में दैनिक नई दुनिया भोपाल द्वारा लिये गये विचार मत में उन्हें 'वर्षश्री' की उपाधि प्रदान की गई थी। इस उपाधि हेतु बाबूलाल गौर के साथ अर्जुन सिंह एवं माधव राव सिंधिया सहित अन्य आठ लोगों के नाम भी शामिल थे।
आन्दोलनों में भूमिका- श्री गौर १९४६ से 'राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ' के स्वयंसेवक हैं। वे 'भारतीय मज़दूर संघ' के संस्थापक सदस्य हैं। वे १९५६ से 'भारतीय जनसंघ' के सचिव भी रहे हैं। इन्होंने राजनीति में सक्रिय होने के पूर्व भोपाल की कपड़ा मिल में नौकरी भी की और श्रमिकों के हित में अनेक आंदोलनों में भाग लिया। इसके अलावा श्री गौर ने राष्ट्रीय स्तर के अनेक राजनीतिक आंदोलनों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इनमें प्रमुख रूप से आपात काल के विरोध में आंदोलन, गोवा मुक्ति आंदोलन, दिल्ली में बेरूवाड़ी सहित पंजाब आदि राज्यों में आयोजित सत्याग्रहों में सक्रिय भागीदारी निभाई। श्री गौर ने आपात काल के दौरान १९ माह तक जेल की सजा भी भुगती।
१९७४ में भोपाल दक्षिण विधान सभा क्षेत्र से आप पहली बार चुने गए थे। सन १९७७ में वे गोविन्दपुरा विधान सभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और वर्ष २००३ तक वहाँ से लगातार सात बार विधान सभा चुनाव जीतते रहे। उन्होंने १९९३ के विधान सभा चुनाव में ५९ हजार ६६६ मतों के अंतर से विजय प्राप्त कर कीर्तिमान रचा था। श्री गौर ने २००३ के विधान सभा चुनाव में ६४ हजार २१२ मतों के अंतर से विजय प्राप्त कर अपने ही कीर्तिमान को तोड़ दिया। वे दसवीं विधान सभा १९९३-१९९८ में भाजपा विधायक दल के मुख्य सचेतक, सभापति, लोकलेखा समिति, सदस्य सरकारी उपक्रम समिति, विशेषाधिकार समिति आदि के सदस्य रहे तथा संगठन में नगरीय निकाय के प्रभारी तथा प्रदेश महामंत्री भी रहे।
ग्यारहवीं विधान सभा १९९९-२००३ में बाबूलाल गौर नेता प्रतिपक्ष बनने के पूर्व 'भारतीय जनता पार्टी' के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे। श्री गौर को ८ दिसम्बर, २००३ को नगरीय प्रशासन एवं विकास, विधि एवं विधायी कार्य, आवास एवं पर्यावरण, श्रम एवं भोपाल गैस त्रासदी राहत मंत्री बनाया गया। उन्हें २ जून, २00४ को गृह, विधि एवं विधायी कार्य तथा भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास मंत्री बनाया गया था। बाबूलाल गौर २3 अगस्त, २00४ से २9 नवंबर, २005 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उन्हें ४ दिसम्बर, २005 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में वाणिज्य, उद्योग, वाणिज्यिक कर रोज़गार, सार्वजनिक उपक्रम तथा भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के मंत्री के रूप में शामिल किया गया था और २0 दिसंबर, २00८ को उन्हें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में फिर से सम्मिलित किया गया।
मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्रियों की सूची
१९५० में जन्मे लोग
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री
भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री |
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मूल परियोजना पूर्णतया अंग्रेज़ी में आरंभ की गयी थी, जुलाई २००४ में एक अन्य संस्करण द्वारा अतिरिक्त भाषाओं को भी इसमें सम्मिलित करना आरंभ किया गया।
जुलाई २००४ में लगभग ७० उपडोमेन आरंभ की गयीं। २८ नवम्बर २०१० के आंकड़ों के अनुसार, २५ संस्करण हुए, प्रत्येक में १००० से अधिक लेख थे। सबसे बड़ा विकिसूक्ति २२,६०० लेखों सहित पोलिश विकिसूक्ति था, जिसके बाद अंग्रेज़ी, इतालवी, जर्मन, पुर्तगाली एवं रूसी परियोजनाएं थीं जिनमें ५००० से अधिक लेख थे। इसके बाद स्लोवाक, बल्गारियाई, बोस्नियाई, तुर्की, स्लोवेनियाई एवं फ़्रांसीसी (जो दिसंबर २००६ में पुनर्रारंभ हुआ था) रहे। ५३ भाषाई संस्करणों में १०० या अधिक लेख थे।
विकिसूक्ति परियोजनाओं की भाषावार सूची |
ननपुर आगरा प्रखंड, आगरा, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
आगरा जिले के गाँव |
कबीर फुकन असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कवितासंग्रह एई अनुरागी एई उदास के लिये उन्हें सन् २०११ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित(मरणोपरांत) किया गया।
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत असमिया भाषा के साहित्यकार |
लव टुडे एक २०२२ भारतीय तमिल-भाषा रोमांटिक कॉमेडी-ड्रामा फिल्म है जिसे प्रदीप रंगनाथन ने लिखा और निर्देशित किया है। कोमाली, और एजीएस एंटरटेनमेंट के बैनर तले कलापति एस. अघोरम द्वारा निर्मित है। अर्चना कल्पनाथी फिल्म की क्रिएटिव प्रोड्यूसर हैं। फिल्म में प्रदीप रंगनाथन खुद (अपने अभिनय की शुरुआत में), इवाना, रवीना रवि, योगी बाबू, सत्यराज और राधिका सरथकुमार हैं। प्रमुख भूमिकाओं में। फिल्म का संगीत और स्कोर युवन शंकर राजा द्वारा रचित है, छायांकन दिनेश पुरुषोत्तमन द्वारा संभाला गया है और संपादन प्रदीप ई. राघव द्वारा किया गया है।लव टुडे'' को ४ नवंबर २०२२ को नाटकीय रूप से रिलीज़ किया गया था, और आलोचकों और दर्शकों से दिशा, पटकथा, कहानी, संगीत, संपादन, छायांकन, हास्य, सामाजिक संदेश और कलाकारों के प्रदर्शन (विशेष रूप से रंगनाथन, इवाना, योगी बाबू) की व्यापक आलोचनात्मक प्रशंसा प्राप्त हुई थी। और रवीना रवि)। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ५ करोड़ के बजट के मुकाबले 1५0 करोड़ की कमाई के साथ एक महत्वपूर्ण और व्यावसायिक सफलता थी।
चेन्नई में कॉग्निजेंट में कार्यरत २४ वर्षीय सपोर्ट इंजीनियर उथमन प्रदीप का सलाहकार वेणु शास्त्री की बेटी निकिता के साथ रोमांटिक रिश्ता रहा है, जो उनके द्वारा छिपा हुआ है। संबंधित परिवार। उनका मानना है कि वे एक-दूसरे को पूरी तरह से जानते हैं और अभी तक अपने रिश्ते को अगले स्तर तक ले जाने के लिए तैयार हैं, यानी शादी लेकिन प्रदीप की बड़ी बहन दिव्या की शादी एक अनाकर्षक दंत चिकित्सक योगी के साथ प्रतीक्षा करें, जिसके सिद्धांतों की वह प्रशंसा करती है। फिर भी, वीनू को प्रदीप के साथ निकिता के अफेयर का पता चलता है और वह उसे चर्चा के लिए घर बुलाती है। प्रारंभ में, वह प्रदीप को चिढ़ाता है लेकिन एक अजीबोगरीब सौदा सामने रखता है; प्रदीप और निकिता को एक दिन के लिए अपने-अपने पासवर्ड बताए बिना अपना मोबाइल फोन स्विच करना चाहिए और अगर उसके बाद उन्हें कोई समस्या नहीं होती है, तो वेणु उनकी शादी के लिए राजी हो जाएंगे। नहीं तो उन्हें रास्ते अलग करने पड़ेंगे। प्रदीप और निकिता उसके प्रस्ताव को आधे-अधूरे मन से स्वीकार करते हैं लेकिन प्रदीप निकिता को फोन देने से पहले व्हाट्सएप के सभी संदेशों को हटा देता है।
प्रदीप घर लौटता है और दिव्या चार दिन बाद योगी से शादी करने वाली है। अपने दोस्तों के बहकावे में आकर, प्रदीप निकिता के व्हाट्सएप के माध्यम से जाता है और रेवी, उसके बॉय बेस्टी के साथ उसकी बातचीत को पढ़ता है और पता चलता है कि उसने उसे प्रपोज किया था लेकिन उसने इसे अस्वीकार कर दिया क्योंकि वह पहले से ही प्रदीप के साथ संबंध में थी। हालाँकि, बाद वाला इस बात से निराश है कि निकिता रेवी के करीब है और उसके लिए अपने एकतरफा प्यार के बारे में जानने के बावजूद उसके साथ सब कुछ साझा करती है। वह आगे मानता है कि निकिता कुछ दिनों पहले अपने पूर्व प्रेमी ममाकुट्टी के साथ प्रदीप से झूठ बोलने के बाद पुडुचेरी देर रात लंबी ड्राइव पर गई थी। क्रोधित होकर, वह निकिता को फोन करता है, उसका सामना करता है और उसकी वफादारी पर सवाल उठाता है, जिससे वह रो पड़ती है। अगले दिन, प्रदीप ने वेणु को प्रस्ताव दिया कि दिव्या की शादी खत्म होने तक फोन का आदान-प्रदान न किया जाए और वेणु इसका अनुपालन करे; चुपके से, वह निकिता को प्रदीप के मोबाइल फोन में सभी हटाए गए संदेशों को पुनर्स्थापित करने का सुझाव देता है। दिव्या का योगी पर भरोसा, जो अब तक मजबूत था, कमजोर पड़ने लगता है जब वह प्रदीप की स्थिति का पता लगाती है और महसूस करती है कि योगी हमेशा अपने मोबाइल फोन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील रहा है; उसे उस पर शक होने लगता है।
अपने दोस्तों और प्रदीप के साथ, दिव्या योगी के फोन की सामग्री की जांच करने के इरादे से प्राप्त करने की कोशिश करती है; उसकी हरकतें उसके और योगी के बीच बढ़ती खाई में योगदान देती हैं। निकिता और प्रदीप के रिश्ते तब और खराब हो जाते हैं जब उसे पोर्नोग्राफी की उसकी लत, अपनी पूर्व प्रेमिका के साथ बातचीत बनाने की उसकी कोशिशों और एक फिल्म निर्माता की आड़ में कई महिलाओं के साथ उसकी बातचीत के बारे में पता चलता है। प्रदीप को पता चलता है कि उसके मोबाइल फोन में, वह अभी भी एक अन्य इंस्टाग्राम खाते में लॉग इन है, जिसका उपयोग उसके साथ-साथ उसके कई कॉलेज साथी शरारती कृत्यों के लिए कर रहे हैं। उस खाते से लॉग आउट करने का इरादा रखते हुए, प्रदीप ने निकिता को एक रेस्तरां में आमंत्रित किया, लेकिन वह रेवी के साथ प्रदीप को निराश करती है। उसके दोस्त अकाउंट को डिलीट करने की कोशिश करते हैं और प्रदीप के मोबाइल फोन पर एक ओटप भेजते हैं; वह निकिता से अपना फोन छीनने की कोशिश करता है लेकिन रेवी उसे पकड़ने में मदद करता है और खाते को उजागर करता है। निकिता ने प्रदीप को यह दावा करते हुए थप्पड़ मारा कि उसे और उसकी बहन श्वेता को एक ही खाते से विकृत संदेश मिले; वह मानती है कि उसने उन्हें नकली खाते से पाठ किया और उसके औचित्य के बावजूद उसके साथ संबंध तोड़ लिया। वह आगे दखल देने के लिए रेवी पर हमला करता है जिससे उनके बीच एक बार फिर से दरार आ जाती है। प्रदीप घर लौटता है और संदेह करता है कि संदेशों के पीछे उसका सबसे अच्छा दोस्त मणि है और उसके साथ भी लड़ता है, हालांकि वह दावा करता है कि उसने ऐसा नहीं किया।
दिव्या की शादी के रिसेप्शन के दौरान, प्रदीप उसे अपने फोन की गोपनीयता पर उसके साथ बहस करते हुए देखता है और योगी का फोन छीनने में उसकी मदद करने की कोशिश करता है लेकिन सरस्वती, प्रदीप की मां ने उसे थप्पड़ मार दिया। वह उसकी हरकतों के लिए उसका सामना करती है और वह सभी घटनाओं का विवरण देते हुए टूट जाता है। उसे सांत्वना देते हुए, सरस्वती ने प्रदीप से निकिता पर भरोसा करने के लिए कहा, जबकि वह सिर्फ उससे उसके भरोसेमंद होने की उम्मीद कर रहा था। योगी प्रदीप से मिलता है और उसे बताता है कि उसके मोबाइल फोन में, उसके दोस्तों के समूह में उसकी उपस्थिति का मज़ाक उड़ाते हुए कई वार्तालाप हैं और दिव्या ही वह है जिसने उसे समझा और उसकी प्रशंसा की। वह नहीं चाहता था कि वह उसका फोन देखे क्योंकि उसे डर है कि अगर उसने सभी टिप्पणियों का सामना किया तो उसे उससे मिलने का पछतावा हो सकता है। दिव्या बातचीत सुनती है और योगी के डर के विपरीत, वह उसे समझती है और उसका और भी अधिक सम्मान करती है। वे दोनों मेल मिलाप करते हैं और योगी उसे अपना फोन देता है लेकिन वह देखने से मना कर देती है। प्रदीप मणि और उसके दोस्तों से भी सुलह कर लेता है। कहीं और, एक अश्लील क्लिप, जाहिरा तौर पर निकिता की वायरल हो जाती है और हर किसी द्वारा देखी जाती है।
वेणु ने निकिता पर भरोसा करने से इनकार कर दिया, उस पर शारीरिक हमला किया और उसकी इस दलील के बावजूद उसे अस्वीकार कर दिया कि क्लिप में दिखाई देने वाली महिला वह नहीं है; टूट गया, वह घर छोड़ देती है। श्वेता घटनाओं के बारे में बताते हुए प्रदीप को फोन करती है और वह निकिता की तलाश में निकल जाता है जबकि उसके दोस्त निकिता के दोस्तों को उसके बारे में पूछताछ करने के लिए फोन करते रहते हैं। रेवी, जिस पर निकिता ने हमेशा भरोसा किया है, उस पर भरोसा करने से इनकार करती है, जबकि प्रदीप के सहयोगी, एक एथिकल हैकर को पता चलता है कि क्लिप को निकिता के प्रचार प्रेमी सहयोगी कौशिक द्वारा संपादित किया गया है। प्रदीप को पता चलता है कि बचपन में लगाए गए एक फल से एक पेड़ उग आया है और उसे उगाने के लिए संघर्ष किया क्योंकि वह लगातार यह देखने के लिए खुदाई कर रहा है कि क्या यह बढ़ रहा है। खुदाई बंद करने और इसके विकास में विश्वास रखने के बाद यह विकसित हुआ है; इससे उसे एहसास होता है कि रिश्ता बनाने में विश्वास महत्वपूर्ण है। वह निकिता को एक समुद्र तट के पास पाता है और उसके साथ सुलह करता है जबकि कौशिक अपने कामों को ऑनलाइन कबूल करता है और पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता है। वेणु ने दंपति को बताया कि उनका फोन स्विच करने के लिए कहने के पीछे उनका इरादा उनके रिश्ते को तोड़ना नहीं था, बल्कि यह देखना था कि सभी बाधाओं के बावजूद वे एक-दूसरे पर भरोसा करते हैं या नहीं। वह उनकी शादी के लिए राजी हो जाता है और प्रदीप से शादी के बारे में चर्चा करने के लिए अपनी मां के साथ बैठक की व्यवस्था करने के लिए कहता है।
सरस्वती से मिलने के बाद, वेणु ने प्रस्ताव दिया कि वे एक और परीक्षण के लिए अपने मोबाइल फोन का आदान-प्रदान करें।
प्रदीप रंगनाथन उथमन प्रदीप के रूप में
मास्टर महंत युवा उथमन प्रदीप के रूप में
इवाना निकिता अयंगर के रूप में (सविता रेड्डी द्वारा डब की गई आवाज)
राधिका सरथकुमार सरस्वती, उथमन प्रदीप और दिव्या की माँ के रूप में
योगी बाबू डॉ. योगी, दिव्या के मंगेतर के रूप में
रवीना रवि दिव्या, उथमन प्रदीप की बहन और डॉ. योगी की मंगेतर के रूप में
सत्यराज वकील वेणु शास्त्री अयंगर, निकिता के पिता के रूप में
श्वेता, निकिता की बहन के रूप में अक्षय उदयकुमार
मणि के रूप में भरत, उथमन प्रदीप के परम मित्र
आदित्य कथिर "ओलू" भास्कर, प्रदीप के दोस्त के रूप में
आजिद खालिक रेवी के रूप में, निकिता की दोस्त
कौशिक, निकिता के सहकर्मी के रूप में विजय वरदराज
प्रार्थना नाथन नमिता के रूप में, दिव्या की दोस्त
निकिता की इंस्टाग्राम फॉलोअर के रूप में गुरुबाई
अजहर अतीफ कौशिक के ऑफिस फ्रेंड के रूप में
ममकुट्टी, निकिता के पूर्व प्रेमी के रूप में नवीन कृभकर
सैंडी मास्टर "साचिताले" गाने में विशेष उपस्थिति के रूप में |
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