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खोयान मीरो संस्था आधुनिक कला का एक अजायबघर है जो स्पेनी चित्रकार खोयान मीरो को समर्पित है। यह बार्सिलोना, कातालोनिया में मोंतखुइक पहाड़ी के ऊपर सथित है। इसमें १,०४,००० से अधिक क्लाक्रीतियाँ मौजूद है जैसे कि चित्र, मूर्तियाँ आदि।
१९६८ में खोयान मीरो ने इस संस्था के बारे में विचार करना शुरू किया। १९७५ में मीरो ने अपने दोस्त खोयान प्रात्स के साथ मिलकर इसकी स्थापना की। मीरो एक ऐसी संस्था बनाना चाहता था जिसमें नयें कलाकार समकालि कला के साथ नयें प्रयोग कर सकें। खोसेप यूईस सेरत ने इसकी इमारत का डिज़ाइन तयार किया तांकि यह कलाकृतियाँ आम लोगों के लिए प्रदर्शित की जा सकें।
रचनायों की सूची
खलिउस बिसिएर : ह. २०.८.६२ ई आस ३०.५.६२
फिलिप गुस्तों : पऑ ई
वासिली कानदिन्सकी : बॉट्स
अल्बर्ट राफोल्स-कासामादा : फ्लोर्नसिया
स्पेन के संग्रहालय |
बागड़ीयाँ (बाग्रियन) भारत के पंजाब राज्य के संगरूर ज़िले में स्थित एक गाँव है।
सन् १९८६ में प्रसिद्ध पंजाबी फिल्म "लौंग दा लिश्कारा" की शूटिंग यहाँ करी गई थी। उसके बाद कई अन्य फिल्में भी यहाँ बनाई गई हैं, जिनमें "तेरा मेरा की रिश्ता" (२००९), "एकम: सन ऑफ सोएल" (२०१०), यमला पगला दीवाना (२०११), सन ऑफ़ सरदार (२०१२) और एक वीर की अरदास...वीरा (२०१२) शामिल हैं।
इन्हें भी देखें
पंजाब के गाँव
संगरूर ज़िले के गाँव |
एडवर्ड सपीर (एडवर्ड सपीर ; १८८४-१९३९ ई.) अमेरिकी नृतात्विक भाषावैज्ञानिक थे।
एडवर्ड सपीर का जन्म सन् १८८४ ई. में लीओबार्क पोलैंड (लियोबर्क पोलैंड) स्थित पश्च्मि पोमेरेनिआ (वेस्टर्न पोमरानिया) के लाएन्बर्ग (लौएनबर्ग), में हुआ था। वे लिथुआनियन यहूदियों के वंशज थे जिन्होंने पहले इंग्लैड में प्रवास किया और फिर सन् १८८९ में संयुक्त राज्य अमेरिका में आकर रहे। अन्तिम के पाँच वर्षों में ये न्यूयार्क सीटी के निम्न पूर्वी क्षेत्र में आकर बस गए। उस समय सपीर की उम्र मात्र दस वर्ष की थी। वे प्रारंभ से ही अकादमिक रूप से एक मेहनती छात्र रहे जिसके फलस्वरूप उन्हें चौदह वर्ष की अल्पायु में ही पुलित्जर छात्रवृत्ति प्रदान की गई जो न्यूयार्क के हॉरेस मैन स्कूल में पढ़ने के लिए योग्य छात्रों को प्रदान की जाती है। वर्तमान में यह विद्यालय देश के सर्वाधिक लोकप्रिय और उच्चकोटि के विद्यालयों में गणनीय है। बावजूद इसके इन्होंने पब्लिक स्कूल में ही पठन-पाठन का निर्णय लिया। सन् १९०१ ई. में कोलम्बिया विश्वविद्यालय में नामांकित होने के उपरान्त इन्होंने पुरस्कृत छात्रवृत्ति का लाभ उठाया।
२० वर्ष की आयु में तीन वर्षीय स्नातक डिग्री लेने के उपरान्त इन्होंने भाषाई संबन्धी, जर्मनिक एवं भारतीय वांमीमांसा को अपने अध्ययन में केन्द्रीय रूप से स्थान दिया जो तत्कालीन समय में उपलब्ध भाषाई-अध्ययन का सैद्धांतिक क्षेत्र था। स्नाकोत्तर डिग्री कार्यक्रम के अन्तर्गत इस अध्ययनक्रम को बढ़ाते हुए इन्होंने नृतत्त्वविज्ञान के सिद्धांतों के आलोक में भाषाविज्ञान के सिद्धांतों का विश्लेषण किया और फ्रैन्ज बाओज के साथ कुछ पाठ्यक्रमों का निर्माण भी किया। बाओज ने सपीर में भाषावैज्ञानिक की उभरती प्रतिभा को पहचाना एवं उन्हें प्रोत्साहित किया।
सन् १९०५ ई. में हर्डर एस्साय ऑन थे ओरिजीन ऑफ लैंग्वेज शीर्षक पर शोध-प्रबन्ध के साथ सपीर ने अपनी स्नाकोत्तर डिग्री पूरी की। भाषाई क्षेत्र में उपस्थित तथ्यों और भाषिक विश्लेषण के अनेक अवसर से प्रभावित होकर इन्होंने बाओज के मार्गदर्शन में स्नाकोत्तर अध्ययन को प्रगतिशील रखा। इसी वर्ष बाओज ने इन्हें वास्को और विस्राम चिनुक पर प्रथम फिल्ड वर्क के लिए भेजा। सन् १९०६ के लगभग एक वर्ष के फिल्ड वर्क के दौरान ये ओरेगन (ओरीजेन) की दो भाषा ताकेल्मा (टेकलमा) और कास्ता कोस्ता (कस्ता कोस्टा) पर अपने शोध-प्रबन्ध के लिए सामग्री-संकलन कर वापस लौटे। शोध-प्रबन्ध लिखने के पूर्व ही ये बाओज के पूर्व छात्र एल्फ्रेड क्रोयबर (एल्फ्रेड क्रोबर) जो कैलिफोर्नियन भारतीयों की भाषा एवं संस्कृति के सर्वेक्षण के प्रभारी थे, के निर्देशन में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में शोध-सहायक के रूप में नियुक्त हुए।
सन् १९०८ ई. में इन्हें पेन्सिल्वेनिया विश्वविद्यालय में शिक्षण और शोध के क्षेत्र में फेलोशिप से पुरस्कृत हुए जहाँ ये काटाब्बा (कताब्बा) में कार्यरत थे। कोलम्बिया विश्वविद्यालय द्वारा इन्हें सन् १९०९ ई. में पी.एच.डी. की उपाधि प्रदान की गई परंतु उस समय भी ये अपने छात्रों के साथ भाषा संबन्धित कार्य में संलग्न रहे।
सपीर पेन्सिल्वेनिया विश्वविद्यालय में अमेरिकन भाषाओं के विश्लेषण से जुड़े रहे तथा इसी विश्वविद्यालय में अपने दूसरे वर्ष के कार्यकाल में दक्षिणी पेउत (पैउटे) एवं होपी व क्षेत्रीय विधियों में स्नातक छात्रों को प्रशिक्षित करते हुए निर्देशक के रूप कार्यरत रहे। सन् १९१० ई. में इन्होंने भूगर्भीय सर्वेक्षण, खनिज संकाय के नृतत्त्वविज्ञान विभाग में प्रथम मुख्य एंथ्रोपोलॉजिस्ट के रूप में पदभार संभाला। इसी वर्ष ओटावा में इनका विवाह हुआ और अपनी पत्नी के साथ वहीं रहने लगे। सोलह वर्षों तक इस पद पर कार्यरत रहते हुए इन्होंने उत्तरी, पश्चमी एवं पूर्वी कनाडा के बहुसंख्यक भाषाओं, यथा- नूटका, वैनुकरणीय भाषा, त्लाइंगित, उत्तरी पश्चमि प्रशांती भाषा, एलबेट्रा (अल्बेत्र) में सार्सी और उत्तरी कनाडा के कुचिक (कत्चिक) और इंग्लिक (इंगलिक) भाषा पर कार्य किया।
सपीर की पत्नी लंबे समय से शारीरिक एवं मानसिक रूप से अस्वस्थ रहने के कारण सन् १९१४ ई. में सपीर को उनके तीन बच्चों के साथ अकेला छोड़ कर चली बसी। उनकी मदद करने उनकी माँ आई। इस दौरान इन्होंने अपने कोलम्बिया एवं पेन्सिलवेनिया में बिताए पूर्व अध्ययनकाल की कमी बौद्धिक रूप से महसूस की। बावजूद इसके इन्होंने भाषावैज्ञानिक कार्य को जारी रखा। फिर भी ओटावा में बिताए वर्षों में ही इन्होंने अपने महत्तम कार्य संपन्न किये। इनका यह कार्य १९२१ के रूपरेखा से संबन्धित था जिसमें इन्होंने अमेरिकन भाषाओं को उनके छ: भाषा परिवार में वर्गीकृत किया जिसका वर्णन उनके प्रसिद्ध ग्रन्थ लैंग्वेज: अन इंट्रोडक्शन तो थे स्टडी ऑफ स्पीच में मिलता है। यह उनके जीवनकाल की एकमात्र पुस्तक थी जिसमें उन्होंने भाषाविज्ञान के सांस्कृतिक एवं समाजवैज्ञानिक सिद्धांतों को अत्यंत उच्च कोटि लेखन द्वारा प्रस्तुत किया। इस ग्रन्थ में इन्होंने स्वनिम तथा रूपस्वनिमिकी का समावेश किया और अपनी ओर से भाषाविश्लेषण कर एक प्रदर्श (मॉडल) प्रस्तुत किया। लेकिन इस ग्रन्थ की विशेषता इस बात में है कि इन्होंने भाषा और संस्कृति के संबन्ध पर बल दिया तथा भाषा के रूप पक्ष (फॉर्म) के वर्णन में सौंदर्य और सुघड़ता का समावेश किया। आगे चलकर ब्लूमफील्ड और सस्यूर ने इनके अध्ययन को नवीन रूप प्रदान किया। १९२० ई. के प्रारंभ में ये लिंग्विस्टिक सोसायटी ऑफ अमेरिका को बनाने में व्यस्त रहे। इस बीच उन्होंने लैंग्वेज नामक जर्नल निकाला एवं ओटावा में कुछ वर्षों तक कविता लेखन, आलोचना एवं संगीत कला का आस्वाद लिया। परंतु इनका अधिकांश समय छात्रों को विधि और सिद्धांत द्वारा प्रशिक्षित करने में व्यतीत होता था।
इस प्रकार १९२५ ई. में उन्नति की दिशा में अग्रसर होते हुए इन्हें शिकागो विश्वविद्यालय की ओर से अध्यक्ष पद के लिए नौकरी का प्रस्ताव आया जो समाजभाषाविज्ञान में सशक्त संकायों को उन्नत करने में प्रयत्नशील था। इन्होंने स्वयं को इक्लेक्टिक एवं अन्तरानुशासिक महत्त्वों में एक गंभीर विचारक के रूप में देखा तथा इसी बौद्धिक उत्साह के साथ इस क्षेत्र से जुड़ गए। दो वर्षों के अंदर ही ये नृतत्त्वविज्ञान एवं सामान्य भाषाविज्ञान के प्रोफेसर के रूप में पदासीन हुए। साथ ही विवरणात्मक भाषाविज्ञान जिसमें ह्यूपा और नवाजों पर आधारित क्षेत्रीय कार्य भी सम्मिलित थे, का निरंतर विकास करते रहे तथा सर्वाधिक महत्त्व का विषय जो मानव के संस्कृति और व्यक्तिगत मनोविज्ञान से संबन्धित था, का सैद्धांतिक विवरण प्रस्तुत किया। साथ ही स्वतंत्र अनुशासन भूगर्भशास्त्र और नृतत्त्वविज्ञान एवं समाजविज्ञान के विस्तृत संदर्भ में भाषाविज्ञान की भूमिका प्रस्तुत की। लिंग्विस्टिक सोसायटी ऑफ अमेरिका की स्थापना एवं उसकी पत्रिका के द्वारा इन्होंने संयुक्त राज्य में भाषावैज्ञानिक क्षेत्र में मजबूत आधार स्तंभ खड़ा किया।
सन् १९२७ ई. में पुनर्विवाह कर पत्नी एवं बच्चों के साथ एक सुखद एवं सामाजिक जीवन व्यतीत करने लगे जिसमें इन्हें अत्यंत गंभीरता से अपने संबन्धित विषय पर विचार करने का लंबा अवसर मिला। शिकागो में अध्यक्ष पद पर रहते हुए ज्यादा समय नहीं हुआ था कि इसी बीच १९३१ ई. में उन्हें येल (याले) में नृतत्त्वविज्ञान एवं भाषाविज्ञान के प्रामाणिक प्रोफेसर के पद से अलंकृत किया गया। यह एक सम्मानीय पद था जिसके साथ सुखद भविष्य को लेकर अनेक अपेक्षाएँ जुड़ी थीं। फलस्वरूप इन्होंने वचनबद्ध एवं दृढ़ संकल्प के साथ अध्ययन-अध्यापन कार्य प्रारंभ किया, जिसमें शिकागो के छात्र उनके साथ मिलकर वहीं एक संकाय की स्थापना की जो सपिरियन मेथोड़ एंड थ्योरी के लिए समर्पित था। सन् १९३७ ई. के मध्य वे लिंग्विस्टिक सोसायटी ऑफ अमेरिका के समर संस्था में अध्यापन करने लगे जिसके दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा। अस्वस्थ अवस्था में भी वे शिक्षण क्षेत्र से जुड़े रहे। दूसरी बार दिल का दौरा पड़ने के उपरान्त, उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया। परंतु फरवरी १९३९ ई. में ५५ वर्ष की आयु में ही दिल की बीमारी के चलते उनका देहांत हो गया।
सपीर बेन्जिमिन लीवोर्फ के गुरु थे, जिन्होंने (लीवोर्फ ने) येल (याले) में उनके संरक्षण में अध्ययन किया और उनके अस्वस्थ अवस्था में छात्रों को पढ़ाया। वोर्फ ने होपी भाषा पर भी महत्त्वपूर्ण कार्य किया एवं भाषा और विचार के संबन्धों पर प्रस्तुत सपीर के विचार को अपने विचारों द्वारा संशोधित कर नए आवरण में प्रस्तुत किया। परिणामस्वरूप यही विचार कालांतर में सपीर-व्हॉर्फ़ हाइपोथेसिस या वोर्फ के शब्दों में प्रिंसिपल ऑफ लिंगिस्टिक्स रिल्तिविटी नाम से प्रतिपादित हुआ। |
यह एक सब्जी है। जिसे ाप छिल्कर ख सकते है। यह बहुत हि गुन्वर्धखोत फ्ज |
धणिवो-घुड०५, चौबटाखाल तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
धणिवो-घुड०५, चौबटाखाल तहसील
धणिवो-घुड०५, चौबटाखाल तहसील |
१३५७ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है।
अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ |
फाल्गुन कृष्ण अष्टमी भारतीय पंचांग के अनुसार बारहवें माह की तेइसवी तिथि है, वर्षान्त में अभी ७ तिथियाँ अवशिष्ट हैं।
पर्व एवं उत्सव
इन्हें भी देखें
हिन्दू काल गणना
हिन्दू पंचांग १००० वर्षों के लिए (सन १५८३ से २५८२ तक)
विश्व के सभी नगरों के लिये मायपंचांग डोट कोम
विष्णु पुराण भाग एक, अध्याय तॄतीय का काल-गणना अनुभाग
सॄष्टिकर्ता ब्रह्मा का एक ब्रह्माण्डीय दिवस |
हाबीगंज सदर उपजिला, बांग्लादेश का एक उपज़िला है, जोकी बांग्लादेश में तृतीय स्तर का प्रशासनिक अंचल होता है (ज़िले की अधीन)। यह उपज़िला हाबीगंज जिले के ज़िला सदर, यानी प्रशासनिक मुख्यालय है। यह सिलेट विभाग के हाबीगंज ज़िले का एक उपजिला है, जिसमें, ज़िला सदर समेत, कुल ८ उपज़िले हैं, और मुख्यालय हाबीगंज सदर उपजिला है। यह बांग्लादेश की राजधानी ढाका से उत्तर-पूर्व की दिशा में अवस्थित है। यह मुख्यतः एक ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है।
यहाँ की आधिकारिक स्तर की भाषाएँ बांग्ला और अंग्रेज़ी है। तथा बांग्लादेश के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह ही, यहाँ की भी प्रमुख मौखिक भाषा और मातृभाषा बांग्ला है। बंगाली के अलावा अंग्रेज़ी भाषा भी कई लोगों द्वारा जानी और समझी जाती है, जबकि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक निकटता तथा भाषाई समानता के कारण, कई लोग सीमित मात्रा में हिंदुस्तानी(हिंदी/उर्दू) भी समझने में सक्षम हैं। यहाँ का बहुसंख्यक धर्म, इस्लाम है, जबकि प्रमुख अल्पसंख्यक धर्म, हिन्दू धर्म है। सिलेट विभाग में, जनसांख्यिकीक रूप से, इस्लाम के अनुयाई, आबादी के औसतन करीब ८८% है, जबकि शेष जनसंख्या प्रमुखतः हिन्दू धर्म की अनुयाई है। यह मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है।
हाबीगंज सदर उपजिला बांग्लादेश के पूर्वी सीमान्त में स्थित, सिलेट विभाग के हाबीगंज जिले में स्थित है।
इन्हें भी देखें
बांग्लादेश के उपजिले
बांग्लादेश का प्रशासनिक भूगोल
उपज़िला निर्वाहि अधिकारी
उपज़िलों की सूची (पीडीएफ) (अंग्रेज़ी)
जिलानुसार उपज़िलों की सूचि-लोकल गवर्नमेंट इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट, बांग्लादेश
श्रेणी:सिलेट विभाग के उपजिले
बांग्लादेश के उपजिले |
२००७ क्रिकेट विश्व कप का सुपर आठ चरण २७ मार्च २००७ और २१ अप्रैल २००७ के बीच निर्धारित किया गया था, और टूर्नामेंट के सेमीफाइनल के लिए चार क्वालीफायर निर्धारित किए। एंटीगुआ, बारबडोस में ब्रिजेट, गुयाना में जॉर्जेट और ग्रेनेडा में मैच आयोजित किए गए।
प्रत्येक टीम ने टूर्नामेंट के समूह चरण में अपने समूह से योग्यता प्राप्त करने वाली दूसरी टीम के परिणाम को आगे बढ़ाया, इसलिए सुपर आठ अनिवार्य रूप से आठ-टीम राउंड रॉबिन प्रतियोगिता थी। एक जीत के लिए दो अंक दिए गए और एक को टाई या कोई परिणाम नहीं मिला। यदि टीमों को अंकों पर बांधा गया था, तो सबसे अधिक जीत वाली टीम को आगे स्थान दिया गया था, और अगर यह बराबर नेट रन रेट भी रैंकिंग क्रम निर्धारित करता है। |
मित्रताका लागि फुटबल
मित्रताका लागि फुटबल प्ज्स्क गज़प्रोम द्वारा बालबालिकाहरूका लागि कार्यान्वयन गरिएको वार्षिक अन्तर्राष्ट्रिय सामाजिक कार्यक्रम हो। कार्यक्रमको लक्ष्य भनेको नव युवाहरूमा फुटबलमार्फत महत्त्वपूर्ण मूल्य र स्वस्थकर जीवनशैलीका रूचिहरू विकास गर्नु हो । कार्यक्रमको ढाँचामा, विभिन्न राष्ट्रका १२ वर्षका फुटबल खेलाडीहरू बालबालिकाहररूको वार्षिक अन्तर्राष्ट्रिय मञ्च, "मित्रताका लागि फुटबल" को विश्वकपमा फुटबल र मित्रताको अन्तर्राष्ट्रिय दिवसका दिन सहभागी हुन्छन्। कार्यक्रम फीफा, उएफा, ओलंपिक और पैरालंपिक समिति, फुटबॉल संघों, चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन, सैकड़ों प्रसिद्ध एथलीटों और दुनिया भर के हजारों पत्रकारों द्वारा समर्थित है।. कार्यक्रम का वैश्विक ऑपरेटर अट कम्युनिकेशन्स ग्रुप (रसिया) है।
मित्रताका लागि फुटबल २०१३
पहिलो अन्तर्राष्ट्िय बालबालिकाहरूको मञ्च मित्रताका लागि फुटबल मे २५, २०१३, मा लण्डनमा आयोजना भएको थियो। यसमा यी ८ राष्ट्रका ६७० बालबालिकाहरू सहभागी भएका थिए: बुल्गेरिया, ग्रेट ब्रिटेन, हङ्गेरी, जर्मनी, ग्रिस, रसिया, साइबेरिया र स्लोभेनिया । रसियाले रसियन सहरहरूको ११ वटा फुटबल टिमको प्रतिनिधित्व गरेको थियो जसले सन् 201८ मा फिफा विश्वकप खेल आयोजना गर्नेछ। जेनिट, चेल्सी, सेचाल्के ०४, क्रेभेना जेभेज्दा क्लब, गाजप्रोन स्पोर्ट डेका विजेताहरू र फाकेल फेस्टिबलका विजेताहरूले पनि मञ्चमा सहभागिता जनाएका थिए।
मञ्चको अवधिमा, बालबालिकाहरूले अन्य राष्ट्रका समकक्षी र प्रख्यात फुटबल खेलाडीहरूसँग कुराकानी गरे र साथै वेम्ब्ले स्टेडियममा २०१२/२०१३ को उएफा च्याम्पियन लिगको फाइनलमा पनि उपस्थित भए।
मञ्चको नतिजा खुलापत्रमा थियो जसमा बालबालिकाहरूले यी आठवटा मूल्य-मान्यताहरू निर्माण गरेका थिए: मित्रता, समानता, न्याय, स्वास्थ्य, शान्ति, इमान्दारी, विजय र परम्पराहरू। पछि उक्त पत्र उएफा, फीफा र आयोक का प्रमुखहरूलाई पठाइएको थियो । सेप्टेम्बर २०१३ मा, भ्लादिमिर पुटिन र भिटली मुट्कोसँगको बैठकमा सेप ब्लाटरले पत्र प्राप्त भएको पुष्टि गर्नुभयो र आफू मित्रताका लागि फुटबललाई समर्थन गर्न तयार भएको बताउनुभयो।
मित्रताका लागि फुटबल २०१४
मित्रताका लागि फुटबलको दोस्रो सिजनको कार्यक्रम लिब्सनमा मे २३-२५, २०१४ मा आयोजना भएको थियो त्यसमा र निम्न १६ राष्ट्रका ४५० जना भन्दा बढी बालबालिकाहरूको सहभागिता थियो: बेलारूस, बुल्गेरिया, ग्रेट ब्रिटेन, हङ्गेरी, जर्मनी, इटाली, नेदरल्यान्ड्स, पोल्याण्ड, पोर्चुगल, रसिया, सर्बिया, स्लोभेनिया, टर्की, युक्रेन, फ्रान्स र क्रोएसिया। युवा खेलाडीहरूले अन्तर्राष्ट्रिय फुटबलको मित्रताका लागि फुटबल मञ्चमा सहभागी भए जुन एक स्ट्रिट फुटबल हो र उनीहरू २०१३/२०१४ को उएफा च्याम्पियन लिगमा उपस्थित भए। अन्तर्राष्ट्रिय स्ट्रिट फुटबल टुर्नामेन्ट २०१४ को विजेता बेनफिका जुनियर टिम (पोर्चुगल) भएको थियो।
दोस्रो सिजनको कार्यक्रमको नतिजामा मित्रताका लागि फुटबलको मुभमेन्टका लागि नेतृत्वको चयन भएको थियो। उहाँ पोर्चुगलको फेलिप सुआरेज़ हुनुहुन्थ्यो । जुन २०१४ मा, मुभमेन्टका लिडरको रूपमा, उहाँ यूरी एंद्रेयविच मोरोजोव को स्मृतिमा आयोजित नवौं अन्तर्राष्ट्रिय युवा फुटवल टुर्नामेन्टमा जानुभएको थियो।
मित्रताका लागि फुटबल २०१५
अन्तर्राष्ट्रिय सामाजिक मित्रताका लागि फुटबलको तेस्रो सिजन जुन २०१५ मा बर्लिनमा भएको थियो। एसियाली महादेशका युवा सहभागीहरू - जापान, चीन र काजक्सतानका बाल फुटबल टिम - पहिलोपटक कार्यक्रममा सहभागी भएका थिए। तेस्रो सिजनमा २४ राष्ट्रका कूल २४ वटा फुटबल क्लबहरू सहभागी भएका थिए। युवा फुटबल खेलाडीहरू अन्य राष्ट्रका समकक्षी फुटबल खेलाडी र विश्वका स्टार खेलाडी लगायत कार्यक्रमका ग्लोबल एम्बेस्डर फ्रांज़ बेकन्बौर सँग कुराकानी गरेका थिए र जुनियर टिमका बीचमा अन्तर्राष्ट्रिय स्ट्रिट फुटबल टुर्नामेन्टमा पनि सहभागी भएका थिए।
अन्तर्राष्ट्रिय स्ट्रिट फुटबल टुर्नामेन्ट २०१५ को विजेता र्यापिड जुनियर टिम (अस्ट्रिया) भएको थियो। कार्यक्रमको तेस्रो सत्रमा मित्रताका लागि फुटबल युरोप र एसियाका बालबालिकाहरूको प्रेस सेन्टरका सदस्य रहेका २४ जना युवा पत्रकारहरू सहित विश्वका प्रमुख प्रकाशनहरूका लगभग २०० जना पत्रकारहरूद्वारा समेटिएको थियो।
२०१५ को समापनमा नौवटा मूल्य-मान्यताहरूको कपहरूले पुरस्कृत गर्ने रूपमा मनाइएको थियो, जुन बार्सीलोना फुटबल क्लब (स्पेन)ले जितेको थियो। मञ्चको साँझमा भएका र २४ वटा सहभागी राष्ट्रका बालबालिकाहरूद्वारा ग्लोबल भोटिङका आधारमा विजेताको छनोट गरिएको थियो। मञ्चको अन्त्यमा, सबै सहभागीहरूले बर्लिनको ओलम्पिक स्टेडियममा उएफा च्याम्पियनसिप फाइनल २०१४/२०१५ को परम्पराको पालना गरेका थिए।
मित्रताका लागि फुटबल २०१६
अन्तर्राष्ट्रिय बालबालिकाहरूको सामाजिक मित्रताका लागि फुटबल खेल २०१६ को सुरुवातलाई अनलाइन ह्याङआउट प्रेस कन्फेरेन्स का रूपमा, मार्च २४ मा म्युनिकमा फ्रांज़ बेकन्बौर को कार्यक्रमका विश्वव्यापी एम्बेस्डरको सहभागितामा आयोजना गरिएको थियो।
कार्यक्रमको चौथो सिजनमा, अजरबैजान, अल्जेरिया, अर्मेनिया, अर्जेन्टिना, ब्राजिल, भियतनाम, किर्जिस्तान र सिरियाबाट ८ वटा नयाँ जुनियर टिम यसमा सहभागी भए, त्यसकारण सहभागी राष्ट्रहरूको संख्या ३२ पुग्यो ।
अप्रैल ५, २०१६ मा अद्वितीय ट्रफी, नीन वेल्यूस कप का लागि भोटिङ सुरु भयो[२२]। विश्वभरका प्रशंसकहरू विजेता चयन गर्नका लागि सहभागी भए, तर अन्तिम निर्णय भोटिङमार्फत मित्रताका लागि फुटबलका सहभागीहरूद्वारा गरियो। कप बेयर्न फुटबल क्लब (म्यूनिक) ले जित्यो। मित्रताका लागि फुटबलका सहभागीहरूले विभिन्न राष्ट्रहरूका बालबालिकाहरू र आवश्यकतामा भएका बालबालिकाहरूलाई उपचार प्रदान गर्नका लागि विशिष्ट आवश्यकता भएका बालबालिकाहरूका साथै आरम्भकर्ताहरूलाई समर्थन गर्न क्लबका क्रियाकलापहरू अवलोकन गरे।
चौथो अन्तर्राष्ट्रिय बालबालिका मञ्च मित्रताका लागि फुटबल खेल र स्ट्रिट फुटबलका बालबालिकाको अन्तर्राष्ट्रिय प्रतियोगिताको फाइनल खेल मे २७२८, २०१६ मा मिलानमा भयो। प्रतियोगिताको विजेता स्लोभेनियाको मारिबोर टिम भएको थियो । मञ्चको अन्त्यमा, सबै सहभागीहरूले उएफा च्याम्पियनसिप फाइनलको परम्पराको पालना गरेका थिए। मञ्चका कार्यक्रमहरू विश्वका प्रमुख सञ्चारमाध्यमका २०० भन्दा बढी पत्रकारहरूका साथै बालबालिका अन्तर्राष्ट्रिय प्रेस सेन्टरद्वारा कभर गरिएको थियो, जसमा सहभागी राष्ट्रहरूका युवा पत्रकारहरू समावेश थिए।
सिरियाली क्लब अल-वहडा का साना फुटबल खेलाडीहरूले मित्रताका लागि फुटबलको चौथो सिजनमा भाग लिए, जुन आश्चर्यजनक थियो। कार्यक्रमका सहभागीहरूमा सिरियाली टिमको समावेश र मिलानका कार्यक्रमहरूमा सिरियाली बालबालिकाहरू आउनु भनेको उक्त राष्ट्रको मानवतावादी एक्लोपननलाई पार गर्नेतर्फको महत्त्वपूर्ण कदम थियो। अन्तर्राष्ट्रिय टेलिभिजन च्यानल रसिया टुडेको अरेबिक इडिटोरियल बोर्डले सिरियाली फुटबल फेडेरेसनको सहायतामा परियोजनामा सहभागी हुने बालबालिकाहरूका बारेमा एउटा डकुमेन्ट्री फिल्म "युद्ध बिनाको तीन दिन" छायाँकन गर्यो। सेप्टेम्बर १४, २०१६ मा, ७,००० भन्दा बढी मानिसहरू दमास्कसमा आयोजित फिल्मको प्रिमियरमा गए।.
मित्रताका लागि फुटबल २०१७
अन्तर्राष्ट्रिय बालबालिका सामाजिक परियोजना मित्रताका लागि फुटबल २०१७ कोआयोजना स्थल स्त. पीटरबर्ग (रूस) थियो र फाइनल कार्यक्रमहरू जुन २६ देखि जुलाई ३ सम्म भएका थिए।
२०१७ मा, सहभागी राष्ट्रहरूको संख्या ३२ बाट ६४ पुग्यो । पहिलो पटक, मित्रताका लागि फुटबल कार्यक्रममा मेक्सिको र संयुक्त राज्य अमेरिका[३२]का बालबालिकाहरू सहभागी भएका थिए। त्यसकारण, परियोजनाले चार महादेशका साना खेलाडीहरूलाई संगठित बनायो अफ्रिका, युरेसिया, उत्तर अमेरिका र दक्षिण अमेरिका।
पाचौं सिजनमा कार्यक्रमलाई नयाँ सोचका अनुसार कार्यान्वयन गरिएको थियो: प्रत्येक राष्ट्रको एउटा कम उमेरको फुटबल खेलाडीलाई उक्त राष्ट्रको प्रतिनिधित्व गर्न छनोट गरिएको थियो। असक्षमता भएका सहित १२ वर्ष उमेरका केटा र केटीहरूबाट आठ वटा अन्तर्राष्ट्रिय मैत्रीपूर्ण टोलीहरू गठन भए ।
खुला ड्रको कोर्समा, सहभागी राष्ट्रहरूका टिमहरूको राष्ट्र संयोजन र प्रतिनिधिहरूका खेल पोजिशनहरू निर्धारण गरियो। ड्र इन्टरनेट कन्फेरेन्स मोडमा आयोजना गरिएको थियो। आठ वटा मैत्रीपूर्ण टोलीहरूको प्रमुखमा युवा प्रशिक्षकहरू थिए: रीने लैम्पर्ट (स्लोभेनिया), स्टीफन मकसिमोविच (सर्बिया), ब्रेंडन शबानी (ग्रेट ब्रिटेन), चार्ली सुई (चाइना), अनातोली चेंतुलोएव (रसिया), बोगदन क्रॉलिवेत्स्की (रसिया), एंटों इवानोव (रसिया), एमा हेन्स्चेन (नेदरल्याण्डस्)। लिलिया माट्सुमुटो (जापान), अन्तर्राष्ट्रिय मित्रताका लागि फुटबल प्रेस सेन्टरको प्रतिनिधि पनि ड्र मा सहभागी भएका थिए।
मित्रताका लागि फुटबल विश्वकप २०१७ को विजेता "ओरेन्ज टिम" भएको थियो, जसमा नौ राष्ट्रका युवा कोच र युवा फुटबल खेलाडीहरू समावेश थिए: रेन लम्पर्ट (स्लोभेनिया), हङ जुन मार्भिन ट्यु (सिङ्गापुर), पल पुइग आइ मोन्टाना (स्पेन), गब्रिल मेन्डोजा (बोलिभिया), रभन काजोमोभ (अजरबैजान), ख्रिसिमिर स्टानिमिरोभ स्टानचेभ (बुल्गेरिया), इभान अगस्टिन कास्को (अर्जेन्टिना), रोमन होराक (चेक गणतन्त्र), हाम्जा युसुफ नुरी अलहावात (लिबिया)।
अन्तर्राष्ट्रिय बालबालिका मित्रताका लागि फुटबल मञ्चमा विक्तोर ज़ुब्कोव (प्ज्स्क गज़प्रोम को सञ्चालक समितिका अध्यक्ष), फात्मा समुरा (फीफा का महासचिव), फिलिपे ले फ़्लॉक (फीफा का वाणिज्य महानिर्देशक), गिउलिओ बैपतिस्ता (ब्रालिलका फुटबल खेलाडी), इवान ज़मोरनों (चिलीका स्ट्राइकर), एलेक्ज़ैंडर कर्ज़कोव (रसियाली फुटबल खेलाडी) र अन्य अतिथिहरू उपस्थित हुनुहुन्थ्यो, उहाँहरूलाई बाल पुस्ताका मूल मानव मान्यताहरूको प्रवर्द्धनका लागि बोलाइएको थियो।
२०१७ मा, परियोजनाले स्त. पिटर्सवर्गको फाइनल कार्यक्रममा ६४ राष्ट्रका ६००,००० भन्दा बढी मानिसहरू र १,००० जना भन्दा बढी बालबालिकाहरूलाई उपस्थित गराएको थियो।
मित्रताका लागि फुटबल २०१८
२०१८ में, फुटबॉल फॉर फ्रेंडशिप कार्यक्रम का छठा सीज़न १५ फरवरी से १५ जून तक चला। फीफा विश्व कप २०१८ की पूर्व संध्या पर मास्को में अंतिम कार्यक्रम हुए। इस कार्यक्रम में दुनिया के २११ देशों और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले युवा फुटबॉल खिलाड़ी और पत्रकार उपस्थित थे। २०१८ में कार्यक्रम की आधिकारिक शुरुआत फुटबॉल फॉर फ्रेंडशिप के लाइव ड्रॉ द्वारा दी गई, जिसके परिणामस्वरूप ३२ फुटबॉल टीमों का गठन हुआ - इंटरनेशनल फ्रेंडशिप टीम्स।
२०१८ में, पर्यावरण मिशन के ढांचे के भीतर, अंतर्राष्ट्रीय मैत्री टीमों को दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों के जानवरों के नाम दिए गए।
ह्वाइट फ्रन्टेड कापुचिन
अफ्रिकन हन्टिङ डग
इसके अलावा २०१८ के पारिस्थितिक मिशन के ढांचे के भीतर, ३० मई को, अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई हैप्पी बज़ डे की शुरुआत की गई थी, जिसमें विश्व समुदाय से जानवरों की दुर्लभ प्रजातियों के बचाव के लिए संगठनों का समर्थन करने का आह्वान किया गया था। राष्ट्रीय उद्यान और रूस, अमेरिका, नेपाल और ग्रेट ब्रिटेन के उद्यान कार्रवाई में शामिल हुए। इसके अलावा, मास्को में फुटबॉल फॉर फ्रेंडशिप कार्यक्रम की अंतिम घटनाओं के दौरान, प्रतिभागियों ने प्राकृतिक गैस पर चलने वाली पर्यावरण के अनुकूल बसों से स्थानांतरित किया।
२०१८ को मित्रताका लागि फुटबलमा सहभागी राष्ट्र र क्षेत्रहरू:
१. कमनवेल्थ अफ अस्ट्रेलिया
२. रिपब्लिक अफ अस्ट्रेलिया
३. रिपब्लिक अफ अजरबैजान
४. अल्जेरियन पिपुल्स् डेमोक्रेटिक रिपब्लिक
५. युनाइटेड स्टेट्स भरजिन आईल्याण्ड
६. अमेरिकन समोआ
८. एन्टिगुवा एन्ड बारबुडा
९. अरब रिपब्लिक अफ इजिप्ट
१०. अर्जेन्टाइन रिपब्लिक
१४. बर्मुडा आइल्यान्ड
१५. बोलिभारियन रिपब्लिक अफ भेनेजुएला
१६. बोस्निया हर्ज गोभिना
१७. ब्रिटिस भर्जिन आइल्यान्ड
१८. बुर्किना फासो
१९. ग्र्यान्ड डची अफ लकजम्बर्ग
२१. ओरिएन्टल रिपब्लिक अफ उरूग्वे
२२. गाबोन रिपब्लिक
२३. रिपब्लिक अफ गिनिया
२५. ब्रुनाइ दारेसलाम
२६. स्टेट अफ इजरायल
२७. स्टेट अफ कतार
२८. स्टेट अफ कुवेत
२९. स्टेट अफ लिबिया
३०. स्टेट अफ प्यालेस्टाइन
३२. हेल्लेनिक रिपब्लिक
३४. डेमोक्रेटिक रिपब्लिक अफ टिमोर-लेस्टे
३५. डेमोक्रेटिक रिपब्लिक अफ द कंगो
३६. डेमोक्रेटिक रिपब्लिक अफ साओ टोमे एन्ड प्रिन्सिपी
३७. डेमोक्रेटिक सोसलिस्ट रिपब्लिक अफ श्रीलङ्का
३८. डोमिनिकन रिपब्लिक
३९. हासेमाइट किङ्गडम अफ जोर्डन
४०. इस्लामिक रिपब्लिक अफ अफगानिस्तान
४१. इस्लामिक रिपब्लिक अफ इरान
४२. इस्लामिक रिपब्लिक अफ मौराटानिया
४३. इटालियन रिपब्लिक
४४. रिपब्लिक अफ यमन
४५. केमान आइल्यान्ड
४७. पिपल्स् रिपब्लिक अफ चीन
४८. चाइनिज ताइपेइ (ताइवान)
४९. प्रिन्सिपालिटी अफ एन्डोरा
५०. प्रिन्सिपालिटी अफ लिक्टेन्स्टेन्
५१. को-अपरेटिभ रिपब्लिक अफ गुयाना
५२. डेमोक्रेटिक पिपल्स् रिपब्लिक अफ कोरिया
५३. किङ्डम अफ बहराइन
५४. किङ्डम अफ बेल्जियम
५५. किङ्डम अफ भूटान
५६. किङ्डम अफ डेनमार्क
५७. किङ्डम अफ स्पेन
५८. किङ्डम अफ कम्बोडिया
५९. किङ्डम अफ लेसोथो
६०. किङ्डम अफ मोरोक्को
६१. किङ्डम अफ द नेदरल्यान्ड्स्
६२. किङ्डम अफ नर्वे
६३. किङ्डम अफ साउदी अरेबिया
६४. किङ्डम अफ स्वाजिल्यान्ड
६५. किङ्डम अफ थाइल्यान्ड
६६. किङ्डम अफ टोङ्गा
६७. किङ्डम अफ स्विडेन
६८. किर्गिज रिपब्लिक
७०. लाअो पिपल्स् डेमोक्रेटिक रिपब्लिक
७१. रिपब्लिक अफ लाट्भिया
७२. लेबानिज रिपब्लिक
७३. रिपब्लिक अफ लिथुवानिया
७५. रिपब्लिक अफ माल्दिभ्स्
७६. युनाईटेड मेक्सिकन स्टेट्स्
७७. प्लुरिनेशनल स्टेट अफ बोलिभिया
८०. पिपल्स् रिपब्लिक अफ बङ्गलादेश
८१. ईन्डिपेन्डेन्ट स्टेट अफ पपुवा न्यू गिनी
८२. इन्डिपेन्डेन्ट स्टेट अफ समोआ
८४. न्यू क्यालेडोनिया
८५. युनाईटेड रिपब्लिक अफ तान्जानिया
८६. युनाइटेड अरब इमिरेट्स
८७. कुक आइल्यान्ड्स
८८. तुर्क्स् एण्ड केकस् आइल्यान्ड्स
८९. रिपब्लिक अफ अल्बानिया
९०. रिपब्लिक अफ अङ्गोला
९१. रिपब्लिक अफ अर्मेनिया
९२. रिपब्लिक अफ बेलारुस
९३. रिपब्लिक अफ बेनिन
९४. रिपब्लिक अफ बुल्गेरिया
९५. रिपब्लिक अफ बोत्स्वाना
९६. रिपब्लिक अफ बुरुन्डी
९७. रिपब्लिक अफ भेनुवाटु
९८. रिपब्लिक अफ हाईटी
९९. रिपब्लिक अफ द गाम्बिया
१००. रिपब्लिक अफ घाना
१०१. रिपब्लिक अफ ग्वाटेमाला
१०२. रिपब्लिक अफ गिनी-बिस
१०३. रिपब्लिक अफ होन्डुरास्
१०४. रिपब्लिक अफ जिबुटी
१०५. रिपब्लिक अफ जाम्बिया
१०६. रिपब्लिक अफ जिम्बावे
१०७. रिपब्लिक अफ ईन्डिया
१०८. रिपब्लिक अफ ईन्डोनेसिया
१०९. रिपब्लिक अफ ईराक
११०. रिपब्लिक अफ आयरल्यान्ड
१११. रिपब्लिक अफ आइसल्यान्ड
११२. रिपब्लिक अफ काजकस्तान
११३. रिपब्लिक अफ केन्या
११४. रिपब्लिक अफ साइप्रस
११५. रिपब्लिक अफ कोलम्बिया
११६. रिपब्लिक अफ द कंगो
११७. रिपब्लिक अफ कोरिया
११८. रिपब्लिक अफ कोसोभो
११९. रिपब्लिक अफ कोस्टारिका
१२०. रिपब्लिक अफ आइभरि कोस्ट
१२१. रिपब्लिक अफ क्युबा
१२२. रिपब्लिक अफ लाईबेरिया
१२३. रिपब्लिक अफ मोरिशस्
१२४. रिपब्लिक अफ म्याडागास्कर
१२५. रिपब्लिक अफ म्यासिडोनिया
१२६. रिपब्लिक अफ मलावी
१२७. रिपब्लिक अफ माली
१२८. रिपब्लिक अफ माल्टा
१२९. रिपब्लिक अफ मोजाम्बिक्
१३०. रिपब्लिक अफ मोल्दोभा
१३१. रिपब्लिक अफ नामिबिया
१३२. रिपब्लिक अफ नाइजर
१३३. रिपब्लिक अफ निकारागुवा
१३४. रिपब्लिक अफ केप भर्ड
१३५. इस्लामिक रिपब्लिक अफ पाकिस्तान
१३६. रिपब्लिक अफ पनामा
१३७. रिपब्लिक अफ पाराग्वे
१३८. रिपब्लिक अफ पेरु
१३९. रिपब्लिक अफ पोल्याण्ड
१४०. पोर्चुगिज रिपब्लिक
१४१. रिपब्लिक अफ रुवान्डा
१४२. रिपब्लिक अफ सान् मारिनो
१४३. रिपब्लिक अफ सिसिली
१४४. रिपब्लिक अफ सेनेगल
१४५. रिपब्लिक अफ सर्बिया
१४६. रिपब्लिक अफ सिङ्गापोर
१४७. रिपब्लिक अफ स्लोभेनिया
१४८. रिपब्लिक अफ युनियन अफ म्यानमार
१४९. रिपब्लिक अफ द सुडान
१५०. रिपब्लिक अफ सुरिनाम
१५१. रिपब्लिक अफ सिरालियोन
१५२. रिपब्लिक अफ ताजिकिस्तान
१५३. रिपब्लिक अफ ट्रिनिडाड एण्ड टोबागो
१५४. रिपब्लिक अफ तुर्कमेनिस्तान
१५५. रिपब्लिक अफ युगान्डा
१५६. रिपब्लिक अफ उज्बेकिस्तान
१५७. रिपब्लिक अफ फिजी
१५८. रिपब्लिक अफ द फिलिपिन्स
१५९. रिपब्लिक अफ क्रोएशिया
१६०. रिपब्लिक अफ चाड
१६१. रिपब्लिक अफ मोन्टिनेग्रो
१६२. रिपब्लिक अफ चिली
१६३. रिपब्लिक अफ इक्वेडर
१६४. रिपब्लिक अफ इक्वेटरियल गिनी
१६५. रिपब्लिक अफ एल् साल्भाडोर
१६६. रिपब्लिक अफ साउथ सुडान
१६७. रिपब्लिक अफ क्यामरुन
१६८. रशियन फेडेरेशन
१७०. हङ्कङ्ग स्पेशल एड्मिनिस्ट्रेटिभ रिजन अफ द पिपुल्स् रिपब्लिक अफ चाइना
१७१. फ्रि एसोशिएटेड स्टेट अफ पोर्टो रिको
१७२. नर्दन् आयरल्याण्ड
१७३. सेन्ट भिन्सेन्ट एण्ड द ग्रेनाडाइन्स्
१७४. सेन्ट लुसिया
१७५. सिरियन अरब रिपब्लिक
१७६. स्लोभाक रिपब्लिक
१७७. कमनवेल्थ अफ द बाहामास्
१७८. कमनवेल्थ अफ डोमिनिका
१७९. युनाइटेड किङ्डम अफ ग्रेट ब्रिटेन एण्ड नर्दन् आयरल्याण्ड
१८०. युनाईटेड स्टेट्स् अफ अमेरिका
१८१. सोलोमन आईल्याण्डस्
१८२. सोशियलिस्ट रिपब्लिक अफ भियतनाम
१८३. युनियन अफ कोमोरोस
१८४. मकाउ स्पेशल एड्मिनिस्ट्रेटिभ रिजन अफ द पिपुलस् रिपब्लिक अफ चाइना
१८५. सल्टिनेट अफ अोमान
१८७. टेरिटरी अफ गुआम
१८८. तोगोलिज रिपब्लिक
१८९. रिपब्लिक अफ ट्युनिशिया
१९०. रिपब्लिक अफ टर्की
१९३. फारो आईल्यान्ड्स
१९४. फेडेरल डेमोक्रेटिक रिपब्लिक अफ नेपाल
१९५. फेडेरल डेमोक्रेटिक रिपब्लिक अफ ईथियोपिया
१९६. फेडेरेटिभ रिपब्लिक अफ ब्राजिल
१९७. फेडेरल रिपब्लिक अफ जर्मनी
१९८. फेडेरल रिपब्लिक अफ नाईजेरिया
१९९. फेडेरल रिपब्लिक अफ सोमालिया
२००. फेडेरेशन अफ सेन्ट किट्स एण्ड नेभिस
२०१. रिपब्लिक अफ फिनल्याण्ड
२०२. फ्रेन्च रिपब्लिक
२०३. सेन्ट्रल अफ्रिकन रिपब्लिक
२०४. चेक रिपब्लिक
२०५. स्वीस् कन्फेडेरेशन
२०८. रिपब्लिक अफ एस्टोनिया
२०९. रिपब्लिक अफ साउथ अफ्रिका
२०१८ के फ़ुटबॉल फ़ॉर फ्रेंडशिप वर्ल्ड चैम्पियनशिप कप में ३२ अंतर्राष्ट्रीय मैत्री टीमों ने भाग लिया। परियोजना के इतिहास में पहली बार, अंतिम गेम की कमेंट्री सीरिया के एक युवा कमेंटेटर जज़ान ताहा ने की। और मैच का रेफरी रूस के बोगदान बतालिन ने की.
फ़ुटबॉल फ़ॉर फ्रेंडशिप कप चिम्पांजी टीम ने जीता, जिसमें डोमिनिका, सेंट किट्स और नेविस, मलावी, कोलंबिया, बेनिन और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो के युवा फुटबॉल खिलाड़ी शामिल थे।.
कार्यक्रम के छठे सीज़न का अंतिम कार्यक्रम अंतर्राष्ट्रीय बाल मंच "फ्रेंडशिप के लिए फ़ुटबॉल" था, जो १३ जून को मॉस्कोविरियम सेंटर फ़ॉर ओशनोग्राफ़ी और मरीन बायोलॉजी में आयोजित किया गया था। विक्टर जुबकोव (पीजेएससी गज़प्रोम के निदेशक मंडल के अध्यक्ष), ओल्गा गोलोडेट्स (रूसी संघ के सरकार के उपाध्यक्ष), इकर कैसिलस (स्पेनिश फुटबॉल खिलाड़ी, राष्ट्रीय टीम के पूर्व कप्तान, अलेक्जेंडर केर्ज़कोव (रूसी फुटबॉल खिलाड़ी, रूसी युवा फुटबॉल टीम के कोच) का दौरा किया था। साथ ही दुनिया भर के ५४ दूतावासों के प्रतिनिधि और अन्य मेहमान मौजूद थे।.
छठे सीज़न के सर्वश्रेष्ठ युवा फुटबॉल खिलाड़ियों को फ़ोरम में सम्मानित किया गया: डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो (सबसे आगे) से डीओ कलेंगा म्वेंज़े, बेनिन से यामिरु आउर (बेस्ट मिडफील्डर), वेल्स से इवान वोल्किन (सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर) और ब्राज़ील से गुस्तावो सिंट्रा रोचा।.
२०१८ में फ़ुटबॉल फ़ॉर फ्रेंडशिप कार्यक्रम के लिए सबसे अच्छा युवा पत्रकार पुरस्कार अरूबा से शेखाली असेंशनको मिला। ओशिनिया पर्यावरण जागरूकता के लिए ब्लॉगिंग करती है।.
फोरम में अनन्य कम्बोज की पुस्तिका का प्रदर्शन और ऑटोग्राफ सेशन आयोजित किया गया था. २०१७ में फ़ुटबॉल फ़ॉर फ्रेंडशिप के पांचवें सीज़न को पूरा करने के बाद, अनन्या ने एक पुस्तक माय जर्नी फ्रॉम मोहाली तो सेंट पीटर्सबर्ग लिखी। एक युवा पत्रकार के रूप में भाग लेने के अपने अनुभव के बारे में। वहां उसने कार्यक्रम के नौ मूल्यों के बारे में बताया, जिससे दुनिया को बेहतर बनाने में मदद मिली।
१४ जून को अंतर्राष्ट्रीय बाल मंच "फुटबॉल फॉर फ्रेंडशिप" के पूरा होने के बाद, युवा फुटबॉल खिलाड़ियों और पत्रकारों ने रूस में २०१८ फीफा विश्व कप के उद्घाटन समारोह में भाग लिया। लुझानिकी स्टेडियम में, बच्चों ने इस वर्ष कार्यक्रम में भाग लेने वाले सभी २११ देशों और क्षेत्रों के झंडे बुलंद किए।. उसके बाद, फुटबॉल फॉर फ्रेंडशिप के युवा प्रतिभागियों ने रूस और सऊदी अरब की राष्ट्रीय टीमों के बीच उद्घाटन मैच देखा।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शुरुआती मैच देखने के लिए अपने बॉक्स में रूस से फ़ुटबॉल फ़ॉर फ्रेंडशिप के युवा राजदूत अल्बर्ट ज़िनातोव को आमंत्रित किया। वहां, युवक ने ब्राजील के विश्व कप चैंपियन रॉबर्टो कार्लोस के साथ-साथ स्पेनिश फुटबॉल खिलाड़ी इकर कैसिलस से बात की।.
मास्को में अंतिम कार्यक्रमों में २११ देशों और क्षेत्रों के १, १५०० से अधिक बच्चों और किशोरों ने भाग लिया। कुल मिलाकर, छठे सत्र के ढांचे के भीतर दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में १८० से अधिक कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिसमें २४० हजार से अधिक बच्चों ने भाग लिया.
२०१८ में, इस परियोजना को अधिकारियों द्वारा समर्थित किया गया था। ओल्गा गोलोडेट्स, रूसी संघ सरकार के उप प्रधान मंत्री, अंतर्राष्ट्रीय बाल मंच के प्रतिभागियों और मेहमानों को रूस व्लादिमीर पुतिन के राष्ट्रपति के स्वागत भाषण को पढ़ा।. रूस के पंत्रप्रधान दमित्री मेदवेदेव ने फुटबॉल फॉर फ्रेंडशिप की ६ सीजन के मेहमानोंको आमंत्रित करने के टेलीग्राम भेजा.
२३ मई को एक ब्रीफिंग के दौरान, रूसी विदेश मंत्रालय की आधिकारिक प्रतिनिधि, मारिया ज़खारोवा ने नोट किया कि आज फ़ुटबॉल फ़ॉर फ्रेंडशिप कार्यक्रम को विश्व समुदाय द्वारा रूस की अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक नीति के एक महत्वपूर्ण मानवीय घटक के रूप में माना जाता है।.
फीफा में पारंपरिक रूप से "फ़ुटबॉल फ़ॉर फ्रेंडशिप" कार्यक्रम का समर्थन किया। संगठन ने उल्लेख किया कि मास्को में अंतिम कार्यक्रमों के प्रतिभागियों और मेहमानों की कुल संख्या ५,००० लोगों तक पहुंची.
मित्रताका लागि फुटबल २०१९
अन्तरराष्ट्रिय बाल सामाजिक कार्यक्रम मित्रताको लागि फूटबल को सातौँ ऋतु (सीसों) को प्रक्षेपण १८ मार्च २०१९ मा भयो । कार्यक्रमका अन्तिम (फाइनल) कृयाकलापहरू २८ मे देखि २ जुनसम्म स्पेनको माद्रिद शहरमा सञ्चालन भए ।
२५ अप्रिलमा अन्तरराष्ट्रिय फूटबल तथा मैत्री दिवश युरोप, एशिया, आफ्रिका, उत्तर तथा दक्षीण आमेरिकाका ५० भन्दा बढी मुलुकहरूमा मनाइयो । यो दिवशसङ्ग रूसी फूटबल सङ्घ (रूफूस) पनि आवद्ध भएको थियो ।
३० मेमा माद्रिद शहरमा गाज्प्रोम् कंपनी, मित्रताको लागि फूटबल २०१९ को बाल सामाजिक कार्यक्रमको विश्व मञ्च (फोरम) सम्पन्न भएको थियो । मञ्चले संसारभरिका विज्ञहरू फूटबल प्रशिक्षकहरू, बाल टोली (टीम) का चिकित्सकहरू, सिताराहरू, नेतृत्वदायी आम सञ्चारका पत्रकारहरू, अन्तरराष्ट्रिय फूटबल प्रतिष्ठान तथा महासङ्घहरू लाई सङ्गठित गर्यो ।
३१ मेमा माद्रिद शहरमा विश्वमा नै सबभन्दा ठूलो बहुराष्ट्रिय फूटबल प्रशिक्षण सम्पन्न भयो । प्रशिक्षणको समाप्तिमा मित्रताको लागि फूटबलले गुइनएस वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स र बाट आधिकारिक प्रमाण-पत्र पायो ।
सातौँ ऋतु (सीसों) अन्तरगत युरोप, आफ्रिका, एशिया, उत्तर तथा दक्षीण आमेरिकाका ३२ जना युवा पत्रकारहरूले मित्रताको लागि फूटबल कार्यक्रमको अन्ततरराष्ट्रिय बाल प्रेश-केन्द्र (प्रेस सेंटर) समिति बनाएका थिए । यो समितिले कार्यक्रमका अन्तिम/फाइनल कृयाकलापहरू प्रकाश परेको थियो र राष्ट्रिय तथा अन्तरराष्ट्रिय आम सञ्चार माध्यमहरूसङ्ग मिलेर सामग्रीहरू तयार पार्न सहभागी बनेका थिए ।
सातौँ ऋतुका सहभागीहरूले नौ मूल्यवानता ( अन्तरराष्ट्रिय बाल सामाजिक कार्यक्रम मित्रताको लागि फूटबलको पदक) सबभन्दा ठूलो सामाजिक तथा जिम्मेदारपूर्ण टिमको रूपमा लिभरपुल फूटबल क्लबलाई हस्तान्तरण गरेका थिए ।
१ जुनमा माद्रिदको फूटबल मैदान उएफा पिच मा सातौँ ऋतुको उत्कर्ष मित्रताको लागि फूटबल विश्व प्रतिश्पर्द्धाको अन्तिम खेल सम्पन्न भयो । यसको परिणाममा आन्टिगुआन क्राउलेड (एंटिगुआयी क्र्वालेड) ले तास्मानी शैतान (टासमानियन देविल) सङ्ग मुख्य समयमा १:१ को बराबरीमा खेल्यो, यसपछि पेनाल्टी किक-आउट्को योगमा उसले जित्यो र मुख्य पुरस्कारमाथि विजय हाँसिल गर्यो ।
मित्रताको लागि फूटबल २०२०
सन् २०२० मा मित्रताको लागि फूटबल को आठौँ ऋतुका अन्तिम कृयाकलापहरू अन्लाइन स्वरूपमा डिजिटल प्लेटफर्ममा २७ नभेम्बरदेखि ९ डिसेम्बर २०२० मा सञ्चालन भए । विश्वका १०० भन्दा बढी देशका १०००० भन्दा भढी सहभागीहरूले प्रमुख कार्यक्रमहरू (की प्रोग्राम) मा भाग लिएका थिए ।
कार्यक्रमको आठौँ ऋतुको लागि बहु-प्रयोजक फूटबल अन्लाइन सिमुलेटर (सीमुलेटर) फुटबाल फॉर फ्रेंडशिप वर्ल्ड बनाइको थियो, जसको आधारमा मित्रताको लागि फूटबल २०२० को विश्वव्यापी अन्लाइन प्रतियोगिता (चैंपियनशिप) सम्पन्न भयो । विश्वभरि डाउनलोड गर्नको लागि खेल १० डिसेम्बर २०२० विश्व फूटबल दिवश देखि उपलब्ध छ । प्रयोगकर्ताहरूले मित्रताको लागि फूटबल का नियमअनुसार अन्तरराष्ट्रिय टिममा आबद्ध भएर खेलहरूमा सहभागी हुने मौका पाएका छन् । बहुप्रयोगकर्ताहरूको खेल खेलका त्यस्ता महत्त्वपूर्णतम् मूल्य-मान्यताहरू, जस्तैः मित्रता, शान्ति, समानतामा आधारित छ ।
२७ नभेम्बरमा मित्रताको लागि फूटबल २०२०को विश्व अन्लाइन् प्रतियोगिताको खुल्ला ड्र (ड्रा) सम्पन्न भयो ।
२८ नभेम्बरदेखि ४ डिसेम्बरसम्म बाल-बालिकाहरूको लागि मानवीय तथा खेलकूदसम्बन्धी शैक्षिक कार्यक्रमहरूसाथ मैत्री विश्व शिबिर सम्पन्न भयो ।
३० नभेम्बरदेखि ४ डिसेम्बरसम्म मित्रताको लागि फूटबल अन्तरराष्ट्रिय अन-लाइन-मञ्चका वैठकहरू (सेशनस) सम्पन्न भए जसमा बाल खेलकूद विकाशको क्षेत्रमा परियोजनाहरू प्रस्तुत भएका थिए । विज्ञ निर्णायकहरूले मित्रताको लागि फूटबल को विश्व पुरस्कार पाउने दावीसहितका परियोजनाहरूको मूल्याङ्कन गरे
७-८ डिसेम्बरमा मित्रताको लागि फूटबल को विश्व अन-लाईन प्रतियोगिता सम्पनन् भयो । यो साल चाहिँ प्रतियोगिता अन-लाइन स्वरूपमा डिजिटल प्लेटफार्ममा सम्पन्न भयो । यसको लागि विशेष गरेर बहुप्रयोगकर्ता फूटबल सिमुलेटर फुटबाल फॉर फ्रेंडशिप तयार गरिएको थियो ।
९ डिसेम्बरमा मित्रताको लागि फूटबल भव्य रूपले (ग्रैंड फाइनल) सम्पन्न भयो । [१४]
कार्यक्रमको आठौँ ऋतुको सञ्चालन अवधिमा बिभिन्न देशका बाल-बालिकाहरूको लागि संयुक्त राष्ट्र सङ्घको ७५ औँ वर्ष-गाँठको समर्थनमा वेबिनारहरू (सिरीज ऑफ वेबिनार) सम्पन्न भए ।
कार्यक्रमको ८ औँ ऋतुको बेलामा विश्वभरिका फूटबल फ्रिस्टाइलरहरूसङ्ग मिलेर साप्ताहिक प्रदर्शन (वीक्ली शो) त्यहाँ फूटबल हुन्छ, जहाँ म हुन्छु सम्पन्न भएका थिए । हरेक संस्करणमा फ्रिस्टाइलरहरूले कार्यक्रमका युवा दूतहरू दाउ-पेचहरू (ट्रिक्स) सम्पन्न गर्न सिकाए, हरेक प्रदर्शनकोअन्त्यमा चाहिँ कसले उत्तम दाउ-पेच गर्न सक्छ भन्ने प्रतियोगिताको सूचना गरिएको थियो । प्रदर्शनको अन्त्य विश्वव्यापी माष्टर कक्षा अन-लाइन (मास्टर क्लास ऑनलाइन) द्वरा भयो, जेसङ्ग कार्य-व्यस्त सहभागीहरूको सङ्ख्याअनुसार मित्रताको लागि फूटबल कार्यक्रमले दोश्रो पटक गिनेश बुक आफ ओर्ल्ड् रेकर्ड्समा विश्व रेकर्ड दर्ता गर्न सफल भयो । (६ डिसेम्बर २०२०)
राम्रा समाचारहरूको सम्पादन-स्थल मित्रताको लागि फूटबल का युवा पत्रकारहरूद्वारा सम्प्रेशित दैनिक प्रदर्शनी (शो) जसमा बाल-बालिकाहरूले विश्वभरिबाट आएका समाचारहरूद्वारा दर्शकहरूसङ्ग साझेदारी गरे ।
मित्रताका लागि फुटबल विश्व प्रतियोगिता
अन्तर्राष्ट्रिय बाल फुटबल प्रतियोगिता मित्रताको लागि फुटबल योजनाको संरचनामा संचालित गरिएको हो। प्रतियोगितामा भाग लिने टिमहरु - मैत्रिपुर्ण टिमहरु- एक खुला गोलाप्रथा (ओपन ड्रा) को माध्यमबाट गठित गरिएका हुन्। टिमहरुलाई मित्रताका लागि फुटबलको आदर्शमा संगठित गरिएको छ: विभिन्न राष्ट्रियता, लिङ्ग र शारीरिक क्षमता भएका खेलाडिहरुले एकै टिममा खेल्छन्।
बालबालिकाको अन्तराष्ट्रिय फोरम मित्रताको लागि फुटबल
बालबालिकाको अन्तराष्ट्रिय वार्षक फोरम मित्रताको लागि फुटबलमा, परियोजनाका बाल सहभागीहरुले वयष्कहरुसँग मिलेर संसारभर कार्यक्रमको मान्यताका लागि प्रोत्साहन र विकासका लागि छलफल गर्छन्। फोरममा, बालबालिकाहरुले अन्य देशका आफ्ना साथीहरु, चर्चित फुटबल खेलाडीहरु, पत्रकार र सार्वजनिक हस्तिसँग भेट्ने र कुरा गर्ने मौका पाउँछन्, र बाल एम्बेसेडर पनि बन्छन् जसले भविष्यमा स्वतन्त्र रुपमा आफ्नो साथीहरु माझ व्यापक मान्यताहरुको प्रोत्साहन गर्न जारी राख्नेछन्।
बालबालिकाको अन्तराष्ट्रिय प्रेस केन्द्र
मित्रताका लागि फुटबल परियोजनाको खास विशेषता यसको आफ्नै बालबालिकाको अन्तराष्ट्रिय प्रेस केन्द्र हो। मित्रताको लागि फुटबल परियोजना अन्तर्गत २०१४ मा पहिलोपल्ट यसको आयोजना गरिएको थियो। प्रेस केन्द्रमा रहेका बाल पत्रकारले आफ्नो देशको कार्यक्रमका घटनाहरु आवृत गर्दछन्: उनीहरुले राष्ट्रिय तथा अन्तर्राष्ट्रिय स्पोर्ट्स् मिडियाका लागि समाचार तयार पार्छन्, मित्रताका लागि फुटबल टि.भी. च्यानल, मित्रताका लागि फुटबल बाल खबरपत्रिकाका लागि र परियोजनाको आधिकारिक रेडियो स्टेशनका लागि सामग्री तयार गर्छन्। बालबालिकाको अन्तराष्ट्रिय प्रेेस केन्द्रले सर्वश्रेष्ठ बाल पत्रकार राष्ट्रिय प्रतियोगिताका विजेताहरु, बाल ब्लगर्स, फोटोग्राफरहरू र लेखकहरूलाई सम्मिलित गर्छ। प्रेस सेन्टरका बाल पत्रकारहरुले "बालबालिकाका लागि बालबालिका" प्रारुपलाई कार्यान्वयन गरी आफ्ना विचारहरु प्रस्तुत गर्दछन्।
अन्तराष्ट्रिय फुटबल र मित्रता दिवस
मित्रताका लागि फुटबल योजना अन्तर्गत, अन्तराष्ट्रिय फुटबल र मित्रता दिवस अप्रैल २५ मा मनाइन्छ। यो बिदा पहिलोपल्ट २०१४ मा १६ देशहरुमा मनाइएको थियो। त्यस दिन, मैत्रीपूर्ण खेलहरू, फ्ल्याश् मबहररु, रेडियो म्याराथनहरु, दक्ष कक्षाहरु, खुला अभ्यास सत्रहरु आदि आयोजना गरिएका थिए। ५०,००० भन्दा बढि मानिसहरुले यस उत्सवमा भाग लिएका थिए।
२०१५ मा फुटबल र मित्रता दिवस २४ देशहरुमा मनाइएको थियो। त्यस उत्सवमा मैत्रीपूर्ण फुटबल प्रतियोगिताहरु र अन्य कार्यक्रमहरु भएका थिए। जर्मनीमा, शाल्क ०४ फुटबल खेलाडीहरुले खुला अभ्यास सत्र राखेका थिए, सर्बियाले एउटा टि.भी. शो आयोजना गरेको थियो, र युक्रेनले परिवारहरु, बालबालिका र युवाका लागि भोलिन फ़्क र सामाजिक सेवाका लागि लश्क् सिटी सेन्टरमा दर्ता भएका बालबालिकाको बिचमा प्रतियोगिता राखेको थियो।
रशियामा, फुटबल र मित्रता दिवस अप्रैल २५ मा ११ शहरहरुमा मनाइएको थियो। योजनाका मुख्य मान्यताहरुलाई सम्झनका लागि, भ्लादिभोस्तोक, नोभोसिबिर्श्क्, येकातेरिन्बर्ग, क्राश्नोयार्श्क, बर्नौल, सेन्ट पिटर्सबर्ग र सारान्सक् मा मैत्रीपूर्ण फुटबल खेलहरू सञ्चालन गरिएका थिए। अोलम्पिक टर्च रिले २०१४ का टर्चबियररहरुको सहभागितामा, क्रास्नोयार्स्क, सोची र रोस्तोभ्-अन्-डन मा, मैत्रीपूर्ण रिले सञ्चालन गरिएको थियो। मस्कोमा, दृष्टिविहिनका लागि खेलकुद फेडेरेशनको सहायतामा, समान अवसर प्रतियोगिता आयोजना गरिएको थियो। निझ्नी नोभ्गोरोद र कजान् मा, मे ५ मा फुटबल र मित्रता दिवस मनाइएको थियो।
२०१६ मा, फुटबल र मित्रता दिवस ३२ देशहरुमा मनाइएको थियो। रशियामा, नौ शहरहरुमा यो दिवस मनाइएको थियो: मस्को, सेन्ट पिटर्सबर्ग, नोभोसिबिर्स्क, बर्नौल, बिरोबिद्झान्, ईर्कुश्क, क्रास्नोदार, निझ्नी नोभ्गोरोद र रोस्तोभ-अन-डन। निझ्नी नोभ्गोरोदले भोलगा फ़्क का बाल खेलाडीहरुका लागि मैत्रीपूर्ण प्रतियोगिता सञ्चालन गरेको थियो, र त्यस क्लबका जवान खेलाडीहरुले बालबालिकाका लागि वार्म-अप र तालिम सञ्चालन गरेका थिए। नोभोसिबिर्स्क मा भएको मैत्रिपूर्ण खेलमा, नोभोसिबिर्स्क क्षेत्रीय टिममा यर्माक-सिबिरका अपाङ्ग बालबालिकाले भाग लिएका थिए।
२०१७ मा फुटबल र मित्रता दिवस ६४ देशहरुमा मनाइएको थियो। सर्बियाका डिफेन्डर ब्रानिस्लाभ ईभानोभिच्, र डच् स्ट्राईकर डर्क कुयट् जस्ता चर्चित फुटबल खेलाडीहरुले विश्वभरका कार्यक्रमहरूमा भाग लिएका थिए। ग्रिसमा, युरोपियन फुटबल प्रतियोगिता २००४ का विजेता थियोडोरस जागोराकिस, आफ्नो देशको राष्ट्रिय टिमसँग कार्यक्रममा उपस्थित हुनुभएको थियो। रशियामा, जाखार बाद्युक् ( ), मित्रताका लागि फुटबल योजनाका बाल एम्बेसेडर, का लागि जेनित फ़्क ले विशेष तालिम सत्र आयोजित गरेको थियो। तालिममा, जेनित फ़्क का गोलकिपर युरी लोदिजिनले जाखारको सक्षमतालाई उच्च श्रेणी दिनुभयो र उहाँसँग गोलकिपिङ्ग का रहस्यहरु बाँड्नुभयो।
फुटबॉल फॉर फ्रेंडशिप के ९ मूल्य।
२५ मई २०१३ को आयोजित प्रथम अंतर्राष्ट्रीय बाल मंच के दौरान, ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी, स्लोवेनिया, हंगरी, सर्बिया, बुल्गारिया, ग्रीस और रूस के युवा राजदूतों ने कार्यक्रम के पहले आठ मूल्यों का गठन किया - दोस्ती, समानता, न्याय, स्वास्थ्य, शांति, समर्पण, जीत और परंपराएं - और उन्हें एक खुले पत्र में प्रस्तुत किया। अंतर्राष्ट्रीय खेल संगठनों के प्रमुखों को पत्र भेजा गया था: अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉल महासंघ (फीफा), यूरोपीय फुटबॉल संघों (यूईएफए) और अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति। सितंबर २०१३ में, व्लादिमीर पुतिन और विटाली मुतको के साथ एक बैठक के दौरान जोसेफ ब्लैटर ने पत्र की प्राप्ति की पुष्टि की और कहा कि वह फ़ुटबॉल फ़ॉर फ्रेंडशिप का समर्थन करते है। .
२०१५ में, चीन, जापान और कजाकिस्तान के प्रतिभागियों ने फुटबॉल फॉर फ्रेंडशिप कार्यक्रम में शामिल हुए और नौवें मूल्य को जोड़ने की पेशकश की आदर।.
नौ मान्यताहरुको कप
नौ मान्यताहरुको कप मित्रताका लागि फुटबल भन्ने बालबालिकाको अन्तराष्ट्रिय सामाजिक कार्यक्रमको अवार्ड हो। हरेक वर्ष यो कप योजनाका अधिकतम प्रतिबद्धता भएका मान्यताहरुलाई: मित्रता, समानता, न्याय, स्वास्थ्य, शान्ति, निष्ठा, विजय, संस्कार र गौरवलाई प्रदान गरिन्छ। विश्वभरिबाट नै विजेता चुन्नका लागि प्रशंसकहरु सहभागी हुने भए पनि, अन्तिम निर्णय भने मित्रताका लागि फुटबल योजनाका सहभागीको भोटहरुबाट गरिन्छ। नौ मान्यताहरुका कप विजेता क्लबहरु: बार्सिलोना (२०१५), बायेर्न म्युनिच (२०१६), अल वाहदा (विशेष पुरस्कार), रियल म्याड्रिड (२०१७)।
मित्रताका लागि फुटबल कार्यक्रमका सबै क्रियाकलापहरू मित्रताको ब्रासलेट साटासाट गरेर सुरु हुन्छ जुन समानता र स्वस्थकर जीवनशैलीको संकेत हो। ब्रासलेटमा दुईवटा निलो र हरियो रङका धागो समावेश छन् र कार्यक्रमको मूल्य साझा गर्ने जो कोहीले जो यसलाई लगाउन सक्छन्।
फ्रान्ज बेकेनबाउरका अनुसार
"मुभमेन्टको संकेत दुई रङको ब्रासलेट हो, यो मित्रताका लागि फुटबलको अन्तर्निहीत मूल्यहरूको रूपमा सरल र बुझ्न सकिने रूपमा छ।
युवा सहभागीहरूले निम्न सहितका प्रख्यात खेलाडी र सार्वजनिक व्यक्तित्वका मैत्रीपूर्ण ब्रासलेट आफ्नो पाखुरामा बाँधेका छन् : डिक एडभोकाट [६०], एनाटोली टिमोश्चुक र लुइस नेटु, फ्रान्ज बेकेनबाउर , लुइस फेर्नान्डेभ, डिडियर ड्रोग्बा, म्याक्स मेयर, फात्मा सामुरा, लियोन गोरेका, डोमेनिको क्रशिटो, माइकल सलगाडो, अलेक्जेन्डर कर्जाकोभ, डिमास पिसरोस, मायोड्र्याग बोजोभिक, एन्डेलिना सोत्निकोभा, युरी कामेन्नेट्स। |
सातसिलिंग, पिथौरागढ (सदर) तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
सातसिलिंग, पिथौरागढ (सदर) तहसील
सातसिलिंग, पिथौरागढ (सदर) तहसील |
पारहिमालय (ट्रान्शिमलय) तिब्बत में हिमालय से समांतर चलने वाली एक पर्वतमाला का नाम है। तिब्बत में हिमालय ब्रह्मपुत्र नदी (तिब्बती भाषा में यरलुंग त्संगपो नदी) से दक्षिण में चलते हैं जबकि पारहिमालय शृंखला उस नदी से उत्तर में हिमालय के साथ-साथ चलती है। हिन्दू धर्म का पवित्र कैलाश पर्वत पारहिमालय पर्वतमाला के पश्चिमी हिस्से में स्थित है इसलिये इस पर्वतमाला के पश्चिमी भाग को 'कैलाश पर्वतमाला' (कैलाश रंज) भी कहते हैं। पूर्वी हिस्से में न्येनचेन तंगल्हा शृंखला है। इसलिये पारहिमालय को कैलाश-न्येनचेन थंगल्हा शृंखला (कैलाश - न्येंचेन तंगल्हा रंज) भी कहते हैं। तिब्बती भाषा में कैलाश पर्वत को 'गंगरिनपोछे' () कहते हैं। इसलिए चीन की सरकार पारहिमालय को गंगदिसे-न्येनचेन थंगल्हा शृंखला (गंगडिसे - न्येंचेन तंगल्हा रंज) कहती है।
इन्हें भी देखें
न्येनचेन थंगल्हा पर्वतमाला
तिब्बत के पर्वत
चीन के पर्वत |
नोहा (फ़ारसी : , उर्दू : ), जब शिया विचारों के प्रकाश में व्याख्या की जाती है, कर्बला की लड़ाई में हुसैन इब्न अली की त्रासदी के बारे में एक विलाप है। उर्दू और फारसी में क़सीदे का वह नज़मी रूप जिस में शहीदों का ख़ास तौर पर कर्बला के शहीदों का ज़िक्र करते हुवे लिखा जाता है।
मार्सिया और नोहा में पूर्व-इस्लामिक अरबी और फारसी संस्कृति का ऐतिहासिक और सामाजिक परिवेश है। मार्सिया के उप-भागों को नोहा और सोज़ कहा जाता है जिसका अर्थ है विलाप। यह आमतौर पर शोक की कविता है। विलाप का अनुयायियों और शिया संप्रदाय और उसके वंश के भक्तों के साहित्य में एक केंद्रीय हिस्सा है। हुसैन और कर्बला त्रासदी को स्वीकार करने की परंपरा अरबी भाषी कवियों तक ही सीमित नहीं है, विभिन्न भाषाओं के कवियों ने भी अपनी भाषा में एक महत्वपूर्ण काव्य साहित्य का योगदान दिया है। उर्दू भाषा में, कई कवियों जैसे, मीर अनीस और मिर्ज़ा डाबीर ने मार्सिया और इसकी उप शाखा झा में एक खजाने का योगदान दिया है। अंग्रेजी बोलने वाले कवियों की तरह, मुस्लिम, ईसाई, ने भी इमाम हुसैन और कर्बला की दुखद घटनाओं के लिए एलिगेंस बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। विभिन्न कवियों द्वारा लिखित अंग्रेजी भाषा में नोहा (अरबी में लतामीत) को विभिन्न न्हा पाठकों की आवाज़ों में सुना जा सकता है, जैसे बसीम अल-करबलाई , नाज़िम अली, सैयदा फ़ातिमा ज़हीर रिज़वी, दाराखान और फरहीन फातिमा उर्दू भाषा में, हाशिम बहनों राहिल अब्बास रिज़वी आदि
यह भी देखें
मुहर्रम का शोक
नोट्स और संदर्भ
हुसैन इब्न अली |
निर्भया वाहिनी एक स्वयंसेवी इकाई है। जो महिला सम्मान के लिए एक राष्ट्रीय अभियान हें। इसकी स्थापना जनवरी २०१४ में हुई तथा यह जनमत जुटाने में मदद करने और आंदोलन के मांग के चार सूत्री घोषणापत्र के कार्यान्वयन के लिए एक निरंतर अभियान शुरू करने के लिए की गई थी।
ऑनर फॉर विमेन नेशनल कैंपेन (एचडब्ल्यूएनसी) ने सात अन्य राज्यों के साथ ओडिशा में एक निर्भया वाहिनी शुरू करने का फैसला किया है। एचडब्ल्यूएनसी की राष्ट्रीय संयोजक मानसी प्रधान ने दिल्ली में बताया कि निर्भया वाहिनी महिलाओं के खिलाफ हिंसा से लड़ने में अहम भूमिका निभाएगी। इसके कार्य में राज्य सरकारों पर अपनी मांगों के चार सूत्री घोषणापत्र को तुरंत लागू करने का दबाव डालना शामिल होगा।
इन आठ राज्यों के साथ, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बैंगलोर और हैदराबाद जैसे मेट्रो शहरों में भी आंदोलन शुरू किया जाएगा। निर्भया वाहिनी के आधिकारिक प्रतीक चिन्ह का पहली बार २४ दिसंबर को आई आई टी मुंबई में अनावरण किया गया, जो कि निर्भया पखवाड़े के हिस्से के रूप में १६ दिसंबर से २९ दिसंबर तक दिल्ली में निर्भया कांड की पहली वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आंदोलन द्वारा मनाया गया।
निर्भया वाहिनी भारत के सभी राज्यों से आए हजारों स्वयंसेवकों से बनी है। इन स्वयंसेवकों में कामकाजी महिलाओं, गृहिणियों से लेकर विभन्न स्तर के छात्र तक शामिल हैं।
मांग का चार सूत्री घोषणापत्र
१. शराब के धंधे पर पूरी तरह से लगाम
२. शैक्षिक पाठ्यक्रम के भाग के रूप में महिलाओं के लिए आत्मरक्षा प्रशिक्षण
३. हर जिले में महिला सुरक्षा के लिए विशेष सुरक्षा बल
४. हर जिले में फास्ट ट्रैक कोर्ट और विशेष जांच और अभियोजन शाखा
भारत में महिला अधिकार |
राधा स्वामी सत्संग ब्यास राधा स्वामी सम्प्रदाय में से एक विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक संगठन है। इसका नेतृत्व बाबा गुरिंदर सिंह जी ढिल्लों कर रहे हैं। राधा स्वामी सत्संग ब्यास का मुख्य केंद्र उत्तरी भारतीय राज्य पंजाब में ब्यास नदी के तट पर स्थित है।
ब्यास में डेरे की स्थापना
भारत में राधा स्वामी सत्संग ब्यास की स्थापना १८९१ में बाबा जयमल सिंह जी महाराज ने की थी। सेठ शिव दयाल सिंह जी महाराज ने १८५६ में बाबा जयमल सिंह जी महाराज को दीक्षा दी थी, जो ब्यास नदी के तट पर कई दिनों तक ध्यान करने लगे। १८८९ में अपनी नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने वहां लोगों को दीक्षा देना शुरू कर दिया।
संत सत्गुरु वंश
बाबा जयमल सिंह जी महाराज - १८७८-१९०३
महाराज सावन सिंह जी - १९०३-१९४८
सरदार बहादुर महाराज जगत सिंह जी - १९४८-१९५१
महाराज चरण सिंह जी - १९५१-१९९०
बाबा गुरिंदर सिंह जी - १९९० - वर्तमान |
न्यूइंगटन (अंग्रेज़ी: नेविंग्टन) एक उत्तरी लंदन में इस्लिंगटन बरो का नगर है। |
१८९६ ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक, जो आधिकारिक तौर पर पहले ओलम्पियाड खेल के रूप में जानी जाती है, एक बहु-खेल प्रतियोगिता थी जो यूनान की राजधानी एथेंस में ६ अप्रैल से १५ अप्रैल १८९६ के बीच आयोजित हुई थी। यह आधुनिक युग में आयोजित होने वाली पहली अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक खेल प्रतियोगिता थी। चूँकि प्राचीन यूनान ओलम्पिक खेलों का जन्मस्थान था, अतएव एथेंस आधुनिक खेलों के उद्घाटन के लिए उपयुक्त विकल्प माना गया था। यह सर्वसम्मति से जून २३, १८९४, को पियरे डे कोबेर्टिन, फ़्रान्सीसी शिक्षाशास्त्री और इतिहासकार, द्वारा पेरिस में आयोजित एक सम्मेलन (कांग्रेस) के दौरान मेज़बान शहर के रूप में चुना गया था। अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (आईओसी) भी इस सम्मेलन के दौरान स्थापित की गई थी। अनेक बाधाओं और असफलताओं के बावजूद, १८९६ ओलम्पिक का आयोजन एक बड़ी सफलता मानी गई थी। यह उस समय तक के किसी भी खेल आयोजन की सबसे बड़ी अन्तर्राष्ट्रीय भागीदारी थी। १९वीं सदी में प्रयोग किया एकमात्र ओलम्पिक स्टेडियम, पानाथिनाइको स्टेडियम, किसी भी खेल प्रतिस्पर्धा को देखने के लिए आई सबसे बड़ी भीड़ से उमड़ गया था। यूनानियों के लिए सबसे मुख्य उनके देशवासी स्पिरिडिन लुई की मैराथन विजय थी। सबसे सफल प्रतियोगी जर्मन पहलवान और जिमनास्ट कार्ल शुमेन थे, जिन्होंने चार स्पर्धाओं में जीत अर्जित की थी।
खेलों के पश्चात्, ग्रीस के राजा जॉर्ज और एथेंस में उपस्थित कुछ अमेरिकी प्रतिस्पर्धियों सहित कई प्रमुख व्यक्तित्वों द्वारा रिज़ कोबेर्टिन और आईओसी के समक्ष याचिका दायर की गई थी कि उत्तरगामी सभी खेल एथेंस में ही आयोजित किये जाएँ। परन्तु, १९०० ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक पेरिस के लिए पहले से ही योजनाबद्ध थे और १९०६ इन्टरकेलेटिड खेलों को छोड़कर, ओलम्पिक २००४ के ग्रीष्मकालीन खेलों तक ग्रीस में वापस नहीं लौटे, कुछ १०८ साल बाद।
इन खेलों की प्रतिस्पर्धाओं और शख्सियतों के प्रतिवेश की कहानियों को १९८४ एनबीसी लघु शृंखला (मिनीसीरीज़), द फ़र्स्ट ओलम्पिक: एथेंस, १८९६, में इतिवृत्त किया गया था। इस लघु शृंखला में अभिनीत थे विलियम मिलीगन स्लोन के रूप में डेविड ऑग्डेन स्टायर्स और पियरे डे कोबेर्टिन के रूप में लुई जोर्डान।
खेलों का पुनर्जन्म
१८वीं सदी के दौरान, छोटे पैमाने पर यूरोप भर में कई खेल उत्सव प्राचीन ओलम्पिक खेलों के अनुरूप आयोजित व "ओलम्पिक" शीर्षक के साथ नामित किए गये थे। १८70 में, तब नव-सुसज्जित पानाथिनाइको स्टेडियम में आयोजित हुए ज़ापस ओलम्पिक खेल, जो "ओलम्पिक" नाम से सम्पूर्ण यूरोप में प्रचलित हुए, ३०,००० दर्शकों द्वारा देखे गए। कोबेर्टिन ने डॉ॰ विलियम पॅनी ब्रुक के एक बहु-राष्ट्रीय और बहु-खेल प्रतियोगिता स्थापित करने के विचार को अपनायाप्राचीन खेल एक मायने में अन्तर्राष्ट्रीय थे, क्योंकि इनमें विभिन्न यूनानी नगर-राज्य और उपनिवेशों का प्रतिनिधित्व किया जाता था, लेकिन केवल यूनानी मूल के स्वतंत्र पुरुष एथलीटों को भाग लेने की अनुमति दी जाती थी। १८90 में, कोबेर्टिन ने मासिक पत्रिका ला रिव्यू अथ्लीटिक में लेख लिखा, जिसमें उन्होंने अंग्रेज़़ काउंटी श्रॉपशायर में स्थित एक ग्रामीण बाज़ार-नगर मच वेन्लोक के महत्त्व का वर्णन किया। यही वो जगह थी जहाँ स्थानीय चिकित्सक विलियम पॅनी ब्रुक ने वेन्लोक ओलम्पिक खेलों की स्थापना की थी, एक खेल उत्सव व मनोरंजन का साधन जिसमें एथलेटिक्स और क्रिकेट, फ़ुटबॉल और कोइट्स जैसे टीम खेल शामिल किए जाते थे। कोबेर्टिन ने ओलम्पिक के नाम के अन्तर्गत व्यापारी और लोकोपकारक इवानजेलिस ज़ापस द्वारा १८59, १८70 और १८75 में आयोजित पूर्व ग्रीक खेलों से भी प्रेरणा ली। १८96 एथेंस खेल इवानजेलिस ज़ापस और उनके चचेरे भाई कोन्सटान्टीनोस ज़ापस की विरासत द्वारा वित्त पोषित किए गए थे। यूनानी सरकार ने विशेष रूप से युवराज कॉन्स्टैन्टाइन के माध्यम से यूनानी व्यापारी और लोकोपकारक जॉर्ज एव्रौफ़ से अनुरोध किया कि वे पानाथिनाइको स्टेडियम के दूसरी बार के नवीनीकरण के लिए प्रायोजक बनें और आवश्यक धन राशि उपलब्ध कराएँ। यूनानी सरकार ने एव्रौफ़ से यह विशेष अनुरोध इस तथ्य के बावजूद भी किया कि स्टेडियम की संगमरमर से नवीकरण की पूर्ण आर्थिक सहायता इवानजेलिस ज़ापस ने चालीस साल पहले ही कर दी थी।
१८ जून १८94, को कोबेर्टिन ने सोरबोन, पेरिस में सम्मेलन आयोजित किया जिसमें उन्होंने अपनी खेलों से सम्बन्धित योजनाओं को ११ देशों के खेल समाजों के प्रतिनिधियों के समक्ष प्रस्तुत किया। सम्मेलन द्वारा उनके प्रस्ताव की स्वीकृति के पश्चात्, पहले आधुनिक ओलम्पिक खेलों के लिए एक तारीख सुनिश्चित करने की आवश्यकता थी। कोबेर्टिन ने सुझाव दिया था कि खेलों को पेरिस की १९०० यूनिवर्सल एक्सपोज़ीशन (सार्वभौमिक प्रदर्शनी) के साथ आयोजित किया जाए। इस चिन्ता में कि छह वर्ष की प्रतीक्षा अवधि में खेलों के प्रति सार्वजनिक दिलचस्पी कम हो सकती है, सम्मेलन के सदस्यों ने इसके बजाय अभिषेकात्मक खेलों को १८96 में आयोजित करने का विकल्प चुना। दिनांक सुनिश्चित करने के पश्चात्, सम्मेलन के सदस्यों ने अपना ध्यान मेज़बान शहर के चयन पर केन्द्रित किया। यह रहस्य ही बना रहा कि कैसे एथेंस अन्त में उद्घाटन खेलों की मेज़बानी के लिए चुना गया था। आने वाले वर्षों में दोनों कोबेर्टिन और देमित्रिस विकेलस ने चयन प्रक्रिया के अनुस्मरण पेश किये जो सम्मेलन के आधिकारिक निर्णयों के विपरीत थे। अधिकांश सूत्रों के अनुसार कई कांग्रेसियों ने पहले लंदन को मेज़बान बनाने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन कोबेर्टिन ने इससे अपनी असहमति ज़ाहिर की। ग्रीस का प्रतिनिधित्व कर रहे विकेलस के साथ संक्षिप्त चर्चा के बाद, कोबेर्टिन ने एथेंस का सुझाव दिया। विकेलस ने आधिकारिक तौर पर एथेंस का प्रस्ताव २३ जून को रखा, चूँकि ग्रीस ओलम्पिक का मूल घर था, सम्मेलन ने इस निर्णय को सर्वसम्मति के साथ मंज़ूरी दे दी। विकेलस तब नव स्थापित अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (आईओसी) के प्रथम अध्यक्ष चुने गए।
ओलम्पिक खेलों के यूनान वापस आने की ख़बर यूनानी जनता, मीडिया और शाही परिवार के द्वारा अनुग्रह पूर्वक ग्रहण की गई थी। कोबेर्टिन के अनुसार, "युवराज कॉन्स्टैन्टाइन ने इस बात पर बहुत खुशी ज़ाहिर की कि ओलम्पिक खेलों का उद्घाटन एथेंस में किया जाएगा"। कोबेर्टिन ने आगे पुष्टि की थी कि "महाराजा और युवराज इन खेलों को संरक्षण प्रदान करेंगे"। कॉन्स्टैन्टाइन ने बाद में इससे अधिक ही प्रदत्त किया, उन्होंने उत्सुकता के साथ १८९६ आयोजन समिति का अध्यक्ष पद ग्रहण किया।
परन्तु, देश में वित्तीय संकट था और राजनीतिक उथलपुथल थी। १९वीं सदी के अन्तिम वर्षों के दौरान प्रधानमन्त्री का कार्यभार अधिकतम समय चारिलाओस त्रिकोपिय्स और थियोडोरोस डेलिजियानिस के बीच बदला। 'इस वित्तीय और राजनीतिक अस्थिरता के कारण, दोनों, प्रधानमन्त्री और राष्ट्रीय ओलम्पियाडो की शृंखला के आयोजन करने का प्रयास कर चुकी ओलम्पिक समिति के अध्यक्ष स्टीफानोस द्रागुमि, का मानना था कि यूनान प्रतियोगिता का आयोजन नहीं कर सकता। १८९४ के अन्त में, स्टीफानोस स्कुलोदीस के अधीन आयोजन समिति ने एक रिपोर्ट पेश की थी जिसके अनुसार खेलों के आयोजन की लागत कोबेर्टिन द्वारा अनुमानित मूल लागत की तुलना में तीन गुना होगी। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि खेल आयोजित नहीं किए जा सकते, तथा समिति ने अपने त्यागपत्र की पेशकश की। खेलों की कुल लागत ३,७४०,००० सोने की दिरहकमी (यूनानी मुद्रा) थी।
जब लागत के कारण ओलम्पिक खेलों का आयोजन खतरे में पड़ा, तो कोबेर्टिन और विकेलस ने ओलम्पिक आंदोलन को जीवित रखने के लिए अभियान शुरू किया। उनके प्रयासों कि जनवरी ७, १८९५, को सफलता प्राप्त हुई जब विकेलस ने घोषणा की कि युवराज कॉन्स्टैन्टाइन आयोजन समिति का अध्यक्ष पद ग्रहण करेंगे। उनकी पहली ज़िम्मेदारी थी कि वे खेलों की मेजबानी के लिए आवश्यक धन जुटाने का कार्य करें। ग्रीक लोगों की देशभक्ति पर भरोसा करके उन्होंने उन्हें आवश्यक वित्त प्रदान के लिए प्रेरित किया। कॉन्स्टैन्टाइन के उत्साह के कारण यूनानी जनता से योगदान की एक लहर फूट पड़ी। इस जमीनी स्तर के प्रयास ने ३३०,००० दिरहकमी राशि एकत्र करने में सहायता करी। डाक टिकटों का एक विशेष सॅट निकाला किया गया, जिनकी बिकरी ने ४००,००० दिरहकमी इकट्ठा करीं। स्टेडियमों के टिकटों की बिक्री ने अतिरिक्त २००,००० दिरहकमी संकलित की। कॉन्स्टैन्टाइन के अनुरोध पर, व्यवसायी जॉर्ज एव्रौफ़ पानाथिनाइको स्टेडियम के नवीनीकरण का भुगतान करने के लिए सहमत हुए। एव्रौफ़ ने इस परियोजना के लिए कुल ९२०,००० दिरहकमी का दान दिया था। सम्मान के रूप में, एव्रौफ़ की एक मूर्ति का निर्माण किया गया और अप्रैल ५, १८९६, को उसका अनावरण स्टेडियम के बाहर किया गया। यह उस दिन से अब तक वहाँ खड़ी है।
कुछ एथलीट ने खेलों में इसलिए भाग लिया था क्योंकि वो खेलों के दौरान एथेंस में उपस्थित थे, या तो छुट्टी पर या फिर काम की वजह से (जैसे, कुछ ब्रिटिश प्रतिस्पर्धी ब्रिटिश दूतावास के लिए काम करते थे)। १९३२ ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक से पहले एक निर्दिष्ट एथलीट गाँव के निर्माण का चलन नहीं आया था। नतीजतन एथलीटों को अपने अस्थायी आवास का ख़याल स्वयं रखना था।
पहला विनियमन जिस पर नवनिर्मित आईओसी द्वारा १८९४ में मतदान किया था उसके अनुसार खेलों में केवल एमेच्योर (शौकिया) एथलीटों को ओलम्पिक खेलों में भाग लेने के लिए अनुमति दी गई थी। परिणामस्वरूप तलवारबाज़ी के मैचों के अपवाद के अलावा विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन एमेच्योर नियमों के तहत किया गया था। नियम और विनियम एकरूप नहीं थे, इसलिए आयोजन समिति को विभिन्न राष्ट्रीय एथलेटिक संघों के नियमसंग्रहो के बीच चुनना था। ज्यूरी, रेफ़रियों और खेल निदेशक के पद के वही नाम थे जो प्राचीन काल में थे, एफोर, हेलानोडिक और अलीटोर्क। राजकुमार जॉर्ज ने निर्णायक रेफ़री के रूप में काम किया, कोबेर्टिन के अनुसार, "उनकी उपस्थिति ने एफोरों के निर्णयों को विशिष्ट भार और प्राधिकार प्रदान करा।"
अप्रैल ६ (ग्रीस में तब उपयोग होने वाले जूलियन कैलेंडर के अनुसार मार्च २५) के दिन पहले ओलम्पियाड के खेलों का आधिकारिक तौर पर उद्घाटन हुआ था; यह दोनों पश्चिमी और पूर्वी ईसाई चर्चों के लिए ईस्टर सोमवार और ग्रीस की आज़ादी की वर्षगांठ का दिन था। पानाथिनाइको स्टेडियम ग्रीस के राजा जॉर्ज प्रथम, उनकी पत्नी ओल्गा और उनके बेटों सहित अनुमानित ८०,००० दर्शकों से भरा हुआ था। अधिकांश प्रतिस्पर्धी मैदान पर अपनी राष्ट्रीयता के अनुसार समूहीकृत करके संरेखित किए गए थे। आयोजन समिति के अध्यक्ष, युवराज कॉन्स्टैन्टाइन, के भाषण के बाद, उनके पिता ने आधिकारिक तौर पर खेलों का उद्घाटन किया:
"मैं एथेंस में पहले अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक खेलों के उद्घाटन की घोषणा करता हूँ। राष्ट्र की जय हो, यूनानी लोगों की जय हो।"
इसके पश्चात्, नौ बैंडो और १५० कोरस गायकों ने ओलम्पिक गीत पर कृत्य पेश की, जिसके रचयिता थे स्पिरिडिन सेमरस और बोल दिये थे कोसटिस पैलेमस ने। १९६० से पहले के ओलम्पिक खेलों में विभिन्न प्रकार की संगीतमय संरचनाओं ने उद्घाटन समारोह के लिए पृष्ठभूमि प्रदान की थी, परन्तु १९६० के खेलों से सेमरस/पैलेमस की रचना को, १९५८ में आईओसी सत्र द्वारा लिए गए निर्णय के पश्चात्, आधिकारिक ओलम्पिक गान बना दिया गया था। मौजूदा ओलम्पिक उद्घाटन समारोह के अन्य तत्वों को बाद में शुरू किया गया: ओलम्पिक ज्वाला सबसे पहले १९२८ में जलाई गई थी, १९२० के ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक में पहली बार एथलीटों को शपथ दिलाई गई थी और पहली अधिकारियों की शपथ १९७२ के ओलम्पिक खेलों में ली गई।
१८९४ सोरबोन सम्मेलन में एथेंस में आयोजित होने वाले कार्यक्रम के लिए कई क्रीड़ाओं को सम्मिलित करने के सुझाव दिए गए थे। आयोजित होने वाली खेल प्रतिस्पर्धाओं से सम्बन्धित शुरूआती आधिकारिक घोषणाओं में फ़ुटबॉल और क्रिकेट जैसी खेल प्रतिस्पर्धाओं को विशेष रूप से प्रदर्शित करने की बात कही गई थी, लेकिन इन योजनाओं को अन्तिम रूप कभी नहीं दिया गया और इन प्रतिस्पर्धाओं को खेलों की अन्तिम सूची में स्थान नहीं मिल पाया। रोइंग और नौकायन अनुसूचित थे, लेकिन प्रतियोगिता के योजनाबद्ध दिन खराब मौसम के कारण रद्द करने पड़े।
एथलेटिक्स प्रतिस्पर्धाओं में सबसे अधिक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के एथलीटों ने भाग लिया था। प्रमुख आकर्षण था मैराथन, जो इतिहास में पहली बार किसी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में आयोजित हुई थी। खेलों से पूर्व एक अपरिचित जल वाहक, स्पिरिडिन लुई, ने प्रतिस्पर्धा जीती और खेलों में एकमात्र ग्रीक एथलेटिक्स चैंपियन और राष्ट्रीय नायक बन गए। हालांकि चक्का और गोला फेंक में ग्रीक एथलीटों की जीत अपेक्षित की जा रहीं थी, परन्तु सर्वश्रेष्ठ ग्रीक एथलीट दोनों ही स्पर्धाओं में अमेरिका के रॉबर्ट गैरेट के पीछे, द्वितीय स्थान पर आए।
कोई नया विश्व रिकॉर्ड नहीं बन पाया, क्योंकि कुछ ही शीर्ष स्तर के अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धियों को भाग लेने के लिए निर्वाचित किया गया था। इसके अलावा, ट्रैक के वक्र बहुत तंग थे, जिसने दौड़नेवाली प्रतिस्पर्धाओं में अधिकतम तेज समय पाना लगभग असंभव ही कर दिया था। इसके बावजूद, संयुक्त राज्य अमेरिका के थॉमस बर्क ने १२.० सेकंड में 1०० मीटर दौड़ और ५४.२ सेकंड में 4०० मीटर दौड़ जीती। बर्क ही एकमात्र एथलीट थे जिन्होंने "क्राउच स्टार्ट" (धरती पर अपने घुटने लगाना, वर्तमान समय में यह दौड़नेवाली प्रतिस्पर्धाओं में सर्वाधिक प्रयोग में लाने वाली अवस्था होती है) का प्रयोग करा, जिसने ज्यूरी को भ्रमित कर दिया था। आखिरकार, इन्हें इस "असहज स्थिति" से शुरुआत करने की अनुमति दे दी गई थी।
अन्तर्राष्ट्रीय साइक्लिंग संघ के नियम साइक्लिंग प्रतियोगिताओं के लिए इस्तेमाल किए गए थे। ट्रैक साइक्लिंग की प्रतिस्पर्धाएँ नव निर्मित नियो फालिरोन वेलोड्रम में आयोजित हुई थीं। केवल एक ही सड़क स्पर्धा आयोजित की गई, जो एथेंस से मैराथन शहर और वापसी (कुल ८७किलोमीटर) की दौड़ थी।
ट्रैक स्पर्धाओं में सर्वोत्तम साइकल चालक फ़्रान्सीसी पॉल मेसन थे, जिन्होंने एक लैप टाइम ट्रायल, स्प्रिंट ईवेंट और १०,००० मीटर की स्पर्धाएँ जीती। १०0 किलोमीटर की स्पर्धा में, मेसन ने अपने हमवतन लीओन फ्लेम्न्ग के लिए पेसमेकर के रूप में प्रवेश किया। दौड़ के दौरान फ्लेम्न्ग की साइकल में कुछ यांत्रिक समस्या आ गई थी जिसे उन्होंने अपने यूनानी प्रतिद्वंद्वी जॉर्जियोस कोलेटिस से ठीक करवाया, फ्लेम्न्ग को इसके लिए कोई अतिरिक्त समय नहीं दिया गया था, इसके साथ-साथ वे दौड़ में साइकल चलाते हुए गिर भी गए थे। इन कठिनाइयों के बावजूद भी फ्लेम्न्ग ने यह स्पर्धा जीती। ऑस्ट्रियाई तलवारबाज़ और साइकल चालक एडॉल्फ श़माय ने १२ घंटे की दौड़ जीती, जो केवल दो साइकल चालकों द्वारा पूरी की जा सकी थी, जबकि सड़क दौड़ स्पर्धा अरिसटिडिस कॉन्स्टैनटिनिडिस द्वारा जीती गई।
तलवारबाज़ी की स्पर्धाएँ ज़ाप्पियोन में आयोजित हुई थी, जो प्राचीन ओलम्पिक खेलों को पुनर्जीवित करने के लिए इवानजेलिस ज़ापस के द्वारा दिए गए धन से बनाया था। इससे पहले इसमें किसी भी एथलेटिक प्रतियोगिता का आयोजन नहीं हुआ था। अन्य खेलों (जिनमें केवल एमेच्योर एथलीटों को ओलम्पिक में भाग लेने की अनुमति दी गई थी) के विपरीत, पेशेवर खिलाड़ियों को तलवारबाज़ी में भाग लेने पर कोई प्रतिबंध नहीं था, हालांकि उन्हें अलग-अलग स्पर्धाओं में भाग लेना था। इन पेशेवरों को भी एमेच्योर एथलीटों की तरह भद्रपुरुष माना गया था।
चार स्पर्धाएँ अनुसूचित की गई थीं, लेकिन अज्ञात कारणों से एपी स्पर्धा को रद्द कर दिया गया। फ़ॉइल स्पर्धा में फ़्रांसीसी यूजीन हेनरी ग्रेवलोट विजयी हुए जिन्होंने फाइनल में अपने देशवासी हेनरी कैलोट को हराया। दो अन्य स्पर्धाओं, सेबा और मास्टर्स फ़ॉइल, में ग्रीक तलवारबाज़ सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने में सफल रहे। लियोनिड़स पिर्गोस मास्टर्स फ़ॉइल में पहला स्थान अर्जित करके आधुनिक युग के पहले ग्रीक ओलम्पिक चैंपियन बन गये।
जिमनास्टिक्स प्रतियोगिता पानाथिनाइको स्टेडियम के मैदान पर आयोजित हुई थी। जर्मनी ने ११-पुरुषों की टीम भेजी थी, जिसने दोनों टीम स्पर्धाओं सहित आठ में से पाँच स्पर्धाओं में जीत दर्ज की। टीम स्पर्धा की हॉरिज़ौंटल बार में जर्मन टीम निर्विरोध थी। जर्मन टीम के तीन सदस्यों ने व्यक्तिगत ख़िताब जीते: हरमन वेनगार्टनर ने हॉरिज़ौंटल बार स्पर्धा जीती, अल्फ्रेड फ्लेटो ने पैरेलल बार्स और
कार्ल शुमेन, जिन्होंने सफलतापूर्वक कुश्ती प्रतिस्पर्धा में भी भाग लिया था, वॉल्ट में विजयी रहे। स्विस जिमनास्ट लुई ज़टर ने पॉमेल हॉर्स जीती, जबकि यूनानी इयोनिस मिट्रोपाउलस और निकोलाओस एन्डरिकोपाउलस क्रमशः रिंग्स और रस्सी चढ़ाई स्पर्धाओं में विजयी रहे थे।
कैलेथिया रेंज में आयोजित हुई निशानेबाज़ी की प्रतियोगिता में कुल पाँच स्पर्धाएँ सम्मिलित की गई थीदो में राइफ़ल व तीन में पिस्तौल का प्रयोग था। पहली स्पर्धा, सैन्य राइफ़ल, में पैंटेलिस करासैव्डस विजयी रहे, एकमात्र प्रतियोगी जिनके सभी निशाने लक्ष्य पे लगे थे। दूसरी स्पर्धा, सैन्य पिस्तौल, में दो अमेरिकी भाइयों का प्रभुत्व था: जॉन और सम्नर पैन, पहले सहोदर जो एक ही स्पर्धा में पहले व दूसरे स्थान पर रहे थे। अपने मेज़बानों को शर्मिन्दगी से बचाने के लिए पैन बन्धुओं ने निर्णय लिया कि उनमें से केवल एक ही अगली पिस्तौल स्पर्धाफ़्री पिस्तौलमें भाग लेगा। सम्नर ने यह स्पर्धा जीती, परिणामस्वरूप पूरी खेल प्रतियोगिता में यह पहली बार था कि ओलम्पिक चैंपियन का कोई रिश्तेदार स्वयं भी ओलम्पिक चैंपियन बन गया हो।
पैन भाइयों ने २५ मीटर पिस्तौल स्पर्धा में मुकाबला नहीं किया, क्योंकि स्पर्धा के न्यायाधीशों ने निर्धारित किया था कि उनके हथियार आवश्यक कैलिबर के नहीं थे। उनकी अनुपस्थिति में इयोनिस फ्रेनगाउडिस ने यह स्पर्धा जीती। अन्तिम स्पर्धा, फ़्री राइफ़ल, उसी दिन शुरू हुई थी। हालांकि, स्पर्धा अंधेरे के कारण पूरी नहीं हो सकती थी और अगली सुबह उसे अन्तिम रूप देने का निर्णय लिया गया और अगले दिन जॉर्जियोस ओरफेनिडिस को चैंपियन को ताज पहनाया गया।
खुले समुद्र में तैराकी प्रतियोगिता आयोजित की गई थी क्योंकि आयोजकों ने विशेष रूप से निर्मित स्टेडियम के लिए आवश्यक धन खर्च करने से इनकार कर दिया था। लगभग २०,००० दर्शक ज़िया की खाड़ी के पिरियस तट पर स्पर्धाओं को देखने के लिए इकट्ठा हुए थे। खाड़ी में पानी ठंडा था, जिसके परिणामस्वरूप प्रतियोगियों को अपनी-अपनी दौड़ के दौरान काफ़ी परेशानियाँ सहनी पड़ी थीं। कुल तीन खुले पानी की स्पर्धाएँ आयोजित की गई थी: पुरुषों की १००मीटर फ़्रीस्टाइल, पुरुषों की ५००मीटर फ़्रीस्टाइल और पुरुषों की 1२०0मीटर फ़्रीस्टाइल, इनके अलावा यूनानी नाविकों के लिए एक विशेष स्पर्धा का भी आयोजन किया गया था और ये सभी एक ही दिन (अप्रैल ११) में आयोजित हुई थीं।
हंगरी के अल्फ़्रेड हायूस के लिए इसका मतलब था कि वे केवल दो ही स्पर्धाओं में भाग ले सकते थे, चूँकि सभी स्पर्धाएँ इतनी आसपास आयोजित की गई थी कि उनके लिए दो स्पर्धाओं के बीच संभलना असंभव बन गया था। इसके बावजूद भी उन्होंने दोनों ही स्पर्धाओं१०० और १२०० मीटर फ़्रीस्टाइलजिनमें उन्होंने भाग लिया था वो जीतीं। हायूस बाद में, आने वाले ओलम्पिक खेलों में, केवल दो में से एक ओलम्पियन बने जिन्होंने एथलेटिक व आर्टिस्टिक दोनों में ही पदक जीते और यह उपलब्धि उन्हें आर्किटेक्चर स्पर्धा के लिए १९२४ में रजत पदक जीतने के बाद प्राप्त हुई। ५०० मीटर फ़्रीस्टाइल ऑस्ट्रियाई तैराक पॉल न्यूमन ने जीती, जिन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को डेढ़ मिनट से अधिक के अन्तराल से हराया।
हालांकि टेनिस पहले से ही १९वीं सदी के अन्त तक एक प्रमुख खेल था, परन्तु शीर्ष खिलाड़ियों में से कोई भी टूर्नामेंट के लिए एथेंस नहीं आया। प्रतियोगिता एथेंस लॉन टेनिस क्लब के कोर्ट व साइक्लिंग की स्पर्धाओं के लिए इस्तेमाल हुए वेलोड्रम के मैदान पर आयोजित हुई। जॉन पायस बोलंड, जिन्होंने एकल स्पर्धा जीती थी, ने टूर्नामेंट में ऑक्सफ़ोर्ड के ग्रीक साथी छात्र कोन्सटान्टीनोस मोनस की वजह से प्रवेश किया था। एथेंस लॉन टेनिस उप-समिति के एक सदस्य के रूप में मोनस बोलंड की सहायता से ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के खेल विभागों के प्रतियोगियों को एथेंस खेलों में भाग लेने के लिये मनाने का प्रयास कर रहे थे। पहले दौर में बोलंड ने हैम्बर्ग के होनहार टेनिस खिलाड़ी फ्रिडरिच ट्रोन को पराजित किया, जो १०० मीटर स्प्रिंट प्रतियोगिता से बहार हो चुकें थे। बोलंड और ट्रोन ने युगल स्पर्धा के लिए एक ही टीम बनाने का फैसला किया, जिसमें वे फाइनल तक पहुँचे और वहाँ ग्रीक और मिस्र की जोड़ी को पहला सॅट गँवाने के बावजूद हराया।
भारोत्तोलन का खेल १८९६ में नया ही था और नियम आज के उपयोग से भिन्न थे। प्रतियोगिताएँ बाहर, मुख्य स्टेडियम (पानाथिनाइको स्टेडियम) के मैदान में आयोजित की गई थीं और प्रतियोगिता में कोई वज़न सीमा नहीं थी। पहली स्पर्धा वर्तमान समय के "क्लीन एंड जर्क" की शैली में आयोजित की गई थी। दो प्रतिद्वंद्वी अन्य प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में उच्च स्थान पर रहें: स्कॉट्समैन (स्काटिश) लाउंसेस्टन इलियट और डेनमार्क के विगो जेन्सेन। उन दोनों ने एकसमान वज़न ही उठाया, लेकिन अध्यक्ष के रूप में प्रिंस जॉर्ज की उपस्थिति वाली ज्यूरी ने फैसला सुनाया कि जेन्सेन ने अधिक बेहतर शैली में वज़न उठाया था। ब्रिटिश प्रतिनिधिमंडल ने टाई तोड़ने के इस नियम के साथ अपरिचित होने के कारण अपना विरोध दर्ज कराया। भारोत्तोलकों को अंततः पुनः प्रयास करने की अनुमति दी गई, लेकिन कोई भी भारोत्तोलक सुधार नहीं कर पाया और जेन्सेन को चैंपियन घोषित कर दिया गया।
इलियट को उनका बदला उन्हें एक हाथ से वज़न उठाने वाली स्पर्धा में मिल गया, जो दोनों के बीच हुई पहली, दुहत्था प्रयोग वाली, प्रतियोगिता के तुरन्त बाद ही आयोजित की गई थी। जेन्सेन अपनी दुहत्था प्रयोग वाली प्रतियोगिता के अन्तिम प्रयास के दौरान थोड़ा घायल हो गए थे और इलियट, जो आसानी से प्रतियोगिता जीतने में सफल रहें, के समक्ष कोई मुकाबला नहीं पेश कर पाए। यूनानी दर्शक स्कॉटिश विजेता, जिसे वे बहुत आकर्षक मानते थे, से मन्त्रमुग्ध थे। भारोत्तोलन के कार्यक्रम के दौरान एक वर्णनीय घटना हुई थी: एक सेवक को वज़न हटाने के लिए आदेश दिया गया था, जो उसके लिए एक मुश्किल कार्य साबित हुआ। राजकुमार जॉर्ज उसकी सहायता के लिए आए, उन्होंने वज़न उठाया और सरलता से एक पर्याप्त दूरी पर फेंक दिया, जो भीड़ के लिए रमणीय था।
पानाथिनाइको स्टेडियम में आयोजित हुई कुश्ती प्रतियोगिता में वज़न वर्गों का अस्तित्व ही नहीं था, जिसका तात्पर्य यह था कि वहाँ सभी भार के प्रतिद्वंद्वियों के बीच केवल एक ही विजेता हो सकता था। इस्तेमाल किए गये नियम आधुनिक ग्रीको रोमन कुश्ती के समान थे, यद्यपि वहाँ कोई समय सीमा नहीं थी और मौजूदा नियमों के विपरीत सभी प्रकार की पैर पकड़ने की क्रिया निषिद्ध नहीं थीं।
दो ग्रीक प्रतियोगियों के अलावा, सभी प्रतियोगी पहले से ही अन्य खेलों में भी सक्रीय थे। उदाहरण के लिए भारोत्तोलन चैंपियन लाउंसेस्टन इलियट का सामना जिमनास्टिक्स चैंपियन कार्ल शुमेन से हुआ। शुमेन विजयी होकर फाइनल में पहुँचे, जहाँ उनका सामना जॉर्जियोस सिच्चस से हुआ, जो पहले स्टीफानोस क्रिस्टोपाउलस को परास्त कर चुके थे। अंधेरे ने अन्तिम मैच ४० मिनट निलंबित करने के लिए मजबूर कर दिया; मैच अगले दिन भी जारी रहा, जब शुमेन को बाउट ख़त्म करने के लिए केवल १५ मिनट की ज़रूरत पड़ी।
रविवार अप्रैल १२ की सुबह सम्राट जॉर्ज ने अधिकारियों और एथलीटों के लिए एक भोज का आयोजन किया (हालांकि कुछ प्रतियोगिताओं को अभी तक आयोजित नहीं किया गया था)। अपने भाषण के दौरान उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि जहाँ तक उनका संबंध है, ओलम्पिक स्थायी रूप से एथेंस में ही आयोजित किए जाने चाहियें। बारिश के कारण मंगलवार से स्थगित किए जाने के पश्चात्, आधिकारिक समापन समारोह का आयोजन अगले बुधवार को किया गया। शाही परिवार ने फिर से समारोह में शिरकत की, जो ग्रीस के राष्ट्रीय गान और एक ब्रिटिश एथलीट और छात्र जॉर्ज एस॰ रॉबर्टसन द्वारा प्राचीन ग्रीक में रचित ओड के साथ शुरु हुआ।
तत्पश्चात् सम्राट ने विजेताओं को पुरस्कार से सम्मानित किया। वर्तमान समय के विपरीत, पहले स्थान के विजेताओं को रजत पदक, एक जैतून शाखा और एक डिप्लोमा प्रदान किया गया। एथलीट जो दूसरे स्थान पर आए थे उन्हें तांबे के पदक, लॉरेल की एक शाखा और एक डिप्लोमा दिया गया। तीसरे स्थान के विजेताओं को पदक प्राप्त नहीं हुआ। कुछ विजेताओं को अतिरिक्त पुरस्कार भी प्रदान किये गए, जैसे स्पिरिडिन लुई को कोबेर्टिन के मित्र और आधुनिक ओलम्पिक में मैराथन स्पर्धा के जनक मिशेल बिर्याल के द्वारा एक विशेष कप से सम्मानित किया गया। लुई ने फिर सभी पदक विजेताओं का नेतृत्व करते हुए उनके साथ स्टेडियम के अदंर ट्रैक पर सम्मान का चक्कर लगाया, जबकि ओलम्पिक गीत फिर से बजाया गया था। राजा ने फिर औपचारिक रूप से घोषणा की कि पहले ओलम्पियाड का अब अन्त होने वाला है और स्टेडियम छोड़ दिया, जबकि बैंड ने ग्रीक राष्ट्रीय गान बजाया और भीड़ ने जय-जयकार करी।
ग्रीक राजा की तरह, कई अन्य लोगों ने एथेंस में अगले खेलों के आयोजन के विचार का समर्थन किया, अधिकांश अमेरिकी प्रतियोगियों ने यह इच्छा व्यक्त करते हुए राजकुमार के लिए एक पत्र पर हस्ताक्षर किए। कोबेर्टिन, तथापि, इस विचार के एकदम विरुद्ध थे, क्योंकि उन्होंने परिकल्पित किया था कि अन्तर्राष्ट्रीय नियमित आवर्तन आधुनिक ओलम्पिक की एक आधारशिला के रूप में होगा। उनकी इच्छा के अनुसार, अगले खेल पेरिस में आयोजित किए गए, हालांकि वे कुछ हद तक समवर्ती आयोजित यूनिवर्सल एक्सपोज़ीशन के द्वारा आच्छादित हो गए।
राष्ट्रीय टीमों की अवधारणा १० साल बाद आयोजित हुए इन्टरकेलेटिड खेलों तक ओलम्पिक आंदोलन का प्रमुख हिस्सा नहीं थी, हालांकि कई स्रोत १८९६ के प्रतियोगियों को उनकी राष्ट्रीयता अनुसार सूचीबद्ध करते हैं और उनके द्वारा जीते गए पदकों की गणना उनके राष्ट्रों के साथ ही करते हैं। किन राष्ट्रों ने खेलों में भाग लिया था उसके संबंध में उल्लेखनीय संघर्ष रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक समिति १४ का आँकड़ा देती है, लेकिन उन्हें सूचीबद्ध नहीं करती। निम्नलिखित १४ राष्ट्रों की सबसे अधिक संभावना है कि वे आईओसी द्वारा स्वीकृत हैं। कुछ सूत्र १२ राष्ट्र सूची में रखते हैं, चिली और बुल्गारिया को छोड़कर; दूसरें इटली को छोड़कर इन दोनों सहित १३ को सूचीबद्ध करते हैं। ड़ियोनिस्योस कासड़ाग्लिस के भाग लेने के कारण कभी-कभी मिस्र भी गिना जाता है। बेल्जियम और रूस ने अपने प्रतियोगियों के नाम खेलों में प्रवेश के लिए सूचित किए थे, लेकिन बाद में वापस ले लिए।
राष्ट्रीय ओलंपिक समितियों द्वारा एथलीटों की संख्या
१४ भाग लेने वाले देशों में से दस ने पदक जीतें, इसके अलावा तीन पदक मिश्रित टीमों द्वारा जीते गये, अर्थात् वो टीमें जो कई देशों के एथलीटों को मिला के बनी थीं। संयुक्त राज्य अमेरिका ने सबसे अधिक स्वर्ण पदक (११) जीते, जबकि मेज़बान देश ग्रीस ने समग्र तौर पर सबसे अधिक पदक (४६) के साथ-साथ सबसे अधिक रजत (१७) और कांस्य पदक (१९) भी जीते। संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में एक स्वर्ण पदक कम अर्जित करने के कारण ग्रीस पदक तालिका में दूसरे स्थान पर रहा। तीसरे स्थान पे रहा जर्मनी जिसने छह स्वर्ण पदकों सहित कुल १३ पदक जीते।
इस तालिका में रैंकिंग अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति द्वारा प्रकाशित पदक तालिकाओं की परंपरा के साथ संगत है। आईओसी ने पूर्वव्यापी प्रभाव से वर्तमान परंपरा के अनुसार प्रत्येक स्पर्धा के तीन सर्वश्रेष्ठ
एथलीटों को स्वर्ण, रजत व कांस्य पदक निर्दिष्ट कर दिये हैं। प्राथमिक रूप से तालिका किसी राष्ट्र के एथलीटों द्वारा जीते गये स्वर्ण पदकों की संख्या के अनुसार क्रमित है (इस सन्दर्भ में "राष्ट्र" वो है जिसका प्रतिनिधित्व किसी राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति द्वारा किया गया है)। इसके पश्चात् जीते गये रजत पदकों को तथा फिर कांस्य पदकों की संख्या को महत्त्व दिया गया है। अगर फिर भी राष्ट्रों ने एक ही स्थान अर्जित किया है, तो उन्हें एक ही रैंकिंग दी गई है और उन्हें उनके आई॰ओ॰सी॰ कोड के वर्णानुक्रम अनुसार सूचीबद्ध किया गया है। यह जानकारी आईओसी द्वारा प्रदान की गई है लेकिन आईओसी किसी भी प्रकार की रैंकिंग प्रणाली को मान्यता या समर्थन नहीं देता है।
महिलाओं को १८९६ ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक में भाग लेने की अनुमति नहीं थी। पुरुषों की आधिकारिक मैराथन दौड़ के ठीक एक दिन बाद, एक १७ महीने के उम्र के लड़के की माँ स्टामाठा रेविथि अप्रैल ११ को मैराथन में अकेली दौड़ीं। यद्यपि उन्हें दौड़ के अन्त में स्टेडियम में प्रवेश की अनुमति नहीं थी, रेविथि ने मैराथन पाँच घंटे और ३० मिनट में समाप्त की और दौड़ के समय को सत्यापित करवाने के लिए उन्हें गवाहों के हस्ताक्षर भी मिल गये। रेविथि का इरादा इस दस्तावेज़ीकरण को हैलेनिक ओलम्पिक समिति के समक्ष प्रस्तुत करना था, इस आशा में कि वे इनकी उपलब्धि को मान्यता देंगे। परन्तु न तो इनकी रिपोर्ट और न ही इनके दस्तावेज़ इन्हें सम्पुष्टि प्रदान करने के लिए हैलेनिक ओलम्पिक समिति से प्राप्त हो पाए हैं।
"एथेंस १८९६". ओलिंपिक.ऑर्ग.'' अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति.
१८९६ ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक |
डणाऊँ, भनोली तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
डणाऊँ, भनोली तहसील
डणाऊँ, भनोली तहसील |
बोहदा महाराष्ट्र का परिद्ध लोक नृत्य है।
महाराष्ट्र के लोक नृत्य |
वे एक पाकिस्तानी न्यायाधीश और पाकिस्तान के प्रांत, ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के पूर्व कार्यवाहक राज्यपाल थे।
ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के राज्यपाल
पाकिस्तान की राजनीति
खैबर पख्तूनख्वा सर्कार का आधिकारिक जालस्थल
ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के राज्यपाल
पाकिस्तान के लोग |
कार्फोडैक्टाएलिडाए (कार्फोडैक्टाइलिडे) छिपकलियों के गेक्को उपगण के अंतर्गत एक जीववैज्ञानिक कुल है, जिसमें ७ वंशों में ३२ जातियाँ सम्मिलित हैं। यह ऑस्ट्रेलिया में तत्रस्थ मिलती हैं।
इन्हें भी देखें
ऑस्ट्रेलिया की छिपकलियाँ |
नाज़िल रहमान (जन्म २१ जनवरी १९९३) एक मलेशियाई क्रिकेटर है। उन्होंने २०१४ आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन फाइव टूर्नामेंट में खेला।
जून २०१९ में, उन्हें मलेशिया के दस्ते में २०१९ मलेशिया ट्राई-नेशन सीरीज़ टूर्नामेंट के लिए नामित किया गया था। उन्होंने २४ जून २०१९ को थाईलैंड के खिलाफ, मलयेशिया के लिए अपना ट्वेंटी २० अंतर्राष्ट्रीय (टी२०ई) पदार्पण किया। सितंबर २०१९ में, उन्हें मलेशिया के दस्ते में २०१९ मलेशिया क्रिकेट विश्व कप चैलेंज लीग ए टूर्नामेंट के लिए नामित किया गया था। उन्होंने २० सितंबर २०१९ को क्रिकेट विश्व कप चैलेंज लीग ए टूर्नामेंट में कतर के खिलाफ मलेशिया के लिए अपनी लिस्ट ए की शुरुआत की।
१९९३ में जन्मे लोग |
ट्रांसफॉर्मर्स: रिवेंज ऑफ द फॉलन एक २००९ की अमेरिकी साइंस फिक्शन एक्शन फिल्म है जो हैस्ब्रो के ट्रांसफॉर्मर्स टॉय लाइन पर आधारित है। फिल्म ट्रांसफॉर्मर फिल्म श्रृंखला में दूसरी किस्त है और ट्रांसफॉर्मर (२००७) की अगली कड़ी है। फिल्म माइकल बे द्वारा निर्देशित है और एहरेन क्रूगर, रॉबर्टो ओरसी और एलेक्स कर्ट्ज़मैन द्वारा लिखित है। पिछली फिल्म के दो साल बाद, कहानी ऑप्टिमस प्राइम (पीटर कुलेन द्वारा आवाज दी गई), ऑटोबॉट्स के नेता और सैम विटविकि (शिया ला बियॉफ़) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक बार फिर ऑटोबॉट्स और डिसेप्टिकॉन के बीच युद्ध में फंस गए हैं। मेगेट्रोन (ह्यूगो वीविंग द्वारा आवाज दी गई) के नेतृत्व में। सैम को साइबर्ट्रोनियन प्रतीकों के अजीब दृश्य दिखाई देने लगते हैं, और फॉलन (टोनी टॉड द्वारा आवाज दी गई) नामक एक प्राचीन डिसेप्टिकॉन के आदेश के तहत डीसेप्टिकॉन द्वारा शिकार किया जा रहा है, जो एक मशीन को खोजने और सक्रिय करके पृथ्वी पर बदला लेना चाहता है। एक ऊर्जा स्रोत के साथ धोखेबाज, प्रक्रिया में सूर्य और पृथ्वी पर सभी जीवन को नष्ट कर रहे हैं।
डायरेक्टर्स गिल्ड ऑफ अमेरिका और स्क्रीन एक्टर्स गिल्ड द्वारा संभावित हमलों से समय सीमा को खतरे में डालने के साथ, बे प्रीविज़ुअलाइज़ेशन और एक स्क्रिप्ट की मदद से समय पर उत्पादन पूरा करने में कामयाब रहे। शूटिंग मई और सितंबर २००८ के बीच मिस्र, जॉर्डन, पेंसिल्वेनिया, न्यू जर्सी और कैलिफोर्निया के साथ-साथ न्यू मैक्सिको और एरिजोना में हवाई ठिकानों के साथ हुई। यह मेगन फॉक्स अभिनीत श्रृंखला की अंतिम फिल्म है।
ट्रांसफ़ॉर्मर्स: रिवेंज ऑफ़ द फॉलन का प्रीमियर ८ जून २००९ को टोक्यो में हुआ और २४ जून को संयुक्त राज्य अमेरिका में रिलीज़ किया गया। फिल्म को आलोचकों से आम तौर पर नकारात्मक समीक्षा मिली। फिल्म ने ३०वें गोल्डन रास्पबेरी पुरस्कार समारोह में तीन गोल्डन रास्पबेरी पुरस्कार जीते और वर्स्ट पिक्चर पुरस्कार जीतने वाली सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई। फिर भी, इस फिल्म ने दुनिया भर में $८३6.३ मिलियन के साथ अपने पूर्ववर्ती के बॉक्स ऑफिस सकल को पार कर लिया, जिससे यह २००९ की चौथी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई। संयुक्त राज्य अमेरिका। इसके बाद २०११ में ट्रांसफॉर्मर्स: डार्क ऑफ द मून आई।
१७,००० ईसा पूर्व में, प्राइम्स (मूल ऑटोबोट्स) अपनी ऊर्जा सन हार्वेस्टर से प्राप्त करते हैं, मशीनें जो अपनी ऊर्जा का दोहन करने के लिए तारों का उपभोग करती हैं। प्राइम्स ने जीवन को बनाए रखने वाले तारे को कभी भी नष्ट नहीं करने की कसम खाई। एक प्राइम ने पृथ्वी पर एक सन हारवेस्टर का निर्माण करके इस नियम का उल्लंघन करने का प्रयास किया, जिसके लिए उसे अन्य छह प्राइम्स द्वारा कैद कर लिया गया, जो मूल डेसेप्टिकॉन "द फॉलन" बन गया।
२००९ में, मिशन सिटी की लड़ाई के दो साल बाद, में दर्शाया गया है, ऑटोबॉट्स और मनुष्यों ने नेस्ट का गठन किया है (नॉन-बायोलॉजिकल एक्स्ट्राटेरेस्ट्रियल स्पीशीज़ ट्रीटी), शेष डेसेप्टिकॉन्स को खत्म करने के लिए एक वर्गीकृत अंतरराष्ट्रीय संयुक्त टास्क फोर्स। उनमें से दो, साइडवेज और डिमोलिशोर, शंघाई में पराजित हो जाते हैं, लेकिन बाद वाला घोषणा करता है कि "द फॉलेन फिर से उठेगा।" मारे जाने से पहले। इस बीच, डेसेप्टिकॉन साउंडवेव एक सैन्य उपग्रह को हैक कर लेता है। डेसेप्टिकों ने डिएगो गार्सिया में एक अमरीकी नेवी बेस से ऑलस्पार्क शार्क के अंतिम ज्ञात टुकड़े को चुरा लिया और मेगाट्रॉन को फिर से जीवित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया, जबकि अपने शरीर के हिस्से प्रदान करने के लिए अपने स्वयं के एक को मार डाला। द फॉलन मेगेट्रोन और उसके दूसरे-इन-कमांड, स्टार्सक्रीम को सैम विटविकि को जिंदा पकड़ने और ऑप्टिमस को मारने के लिए भेजता है।
सैम, जो अब एक कॉलेज छात्र है, छोटे ऑलस्पार्क शार्ड को धारण करने के बाद से साइबर्ट्रोनियन प्रतीकों को देख रहा है; मेगेट्रॉन का मानना है कि प्रतीक डीसेप्टिकॉन को एक नए एनर्जोन स्रोत तक ले जाएंगे। शार्ड रसोई के कई उपकरणों को जीवन में लाता है, जो सैम और उसके माता-पिता को मारने का प्रयास करते हैं लेकिन भौंरा उन्हें बचा लेता है। सैम शार्क को अपनी प्रेमिका मिकाएला बेंस को देता है, जो बाद में डेसेप्टिकॉन व्हीली को पकड़ लेती है क्योंकि वह इसे चुराने का प्रयास करता है। ऐलिस द्वारा हमला किए जाने के बाद, एक कॉलेज छात्र के रूप में प्रस्तुत एक डिसेप्टिकॉन प्रिटेंडर, ऑप्टिमस और बंबलबी द्वारा बचाने से पहले सैम, उसके रूममेट लियो और मिकाएला को डेसेप्टिकॉन ग्राइंडर द्वारा पकड़ लिया जाता है। मेगेट्रॉन तब ऑप्टिमस को मार देता है, और डिसेप्टिकॉन दुनिया भर में विनाशकारी, एक साथ हमले शुरू करते हैं, जबकि मेगाट्रॉन और साउंडवेव पृथ्वी की दूरसंचार प्रणालियों को हाईजैक कर लेते हैं, जो फॉलन को मनुष्यों को एक संदेश भेजने की अनुमति देता है, मांग करता है कि सैम को उसे सौंप दिया जाए।
सैम, मिकाएला और लियो फिर विदेशी विशेषज्ञ और पूर्व सेक्टर सेवन एजेंट, "रोबो-वॉरियर" सीमोर सीमन्स को ढूंढते हैं, जो बताते हैं कि ट्रांसफॉर्मर पृथ्वी पर कल्प पहले आए थे और सबसे प्राचीन, जिसे सीकर्स के रूप में जाना जाता है, पृथ्वी पर छिपा हुआ है। व्हीली की मदद से, वे स्मिथसोनियन एयर एंड स्पेस म्यूजियम में जेटफायर नाम के एक बुजुर्ग डिसेप्टिकॉन से ऑटोबोट सीकर का पता लगाते हैं। वे जेटफायर को पुनर्जीवित करने के लिए अपने टुकड़े का उपयोग करते हैं, जो समूह को मिस्र भेज देता है। जेटफायर के साथ, व्हीली ऑटोबॉट्स के साथ है, और जेटफायर उन्हें मैट्रिक्स ऑफ लीडरशिप का पता लगाने के लिए भेजता है, सूरज की कटाई की कुंजी, जिसका उपयोग ऑप्टिमस को पुनर्जीवित करने के लिए भी किया जा सकता है। समूह मैट्रिक्स को ढूंढता है, जिसे प्राइम्स ने अकाबा में छिपाने के लिए खुद को बलिदान कर दिया, लेकिन यह धूल में बिखर गया।
इस बीच, नेस्ट फ़ोर्स और ऑटोबोट्स गीज़ा पिरामिड कॉम्प्लेक्स के पास उतरते हैं और डीसेप्टिकॉन द्वारा हमला किया जाता है। कंस्ट्रिक्टन्स मिलकर डिवास्टेटर बनाते हैं, जो नष्ट होने से पहले एक पिरामिड के अंदर छिपे हुए सन हारवेस्टर को प्रकट करता है। नौसेना और यू.एस. वायु सेना के कई हवाई हमलों के साथ अधिकांश धोखेबाजों का सफाया हो गया है, लेकिन मेगाट्रॉन ने सैम को बुरी तरह से घायल कर दिया। मौत के करीब, प्राइम्स सैम से बात करते हैं, यह कहते हुए कि मैट्रिक्स अर्जित किया जाना चाहिए, पाया नहीं गया है, और उसे ऑप्टिमस के लिए लड़कर इसे सहन करने का अधिकार है। वे सैम को पुनर्जीवित करते हैं और उसे मैट्रिक्स प्रदान करते हैं, जिसका उपयोग वह ऑप्टिमस को पुनर्स्थापित करने के लिए करता है। द फॉलन कमजोर ऑप्टिमस से मैट्रिक्स चुराता है और इसका उपयोग सन हारवेस्टर को सक्रिय करने के लिए करता है। एक घायल जेटफ़ायर के बाद अपने हिस्से को अतिरिक्त शक्ति और उड़ान के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति देने के लिए खुद को बलिदान कर देता है, ऑप्टिमस हारवेस्टर को नष्ट कर देता है और फॉलन को मार देता है। अपने मालिक की मौत से बुरी तरह क्षतिग्रस्त और व्याकुल मेगेट्रॉन स्टार्सक्रीम के साथ पीछे हट जाता है। ऑटोबॉट्स और उनके सहयोगी फिर संयुक्त राज्य अमेरिका लौट जाते हैं, और सैम और लियो कॉलेज लौट जाते हैं। |
वन विहार राष्ट्रीय उद्यान भारत के मध्य प्रदेश राज्य की राजधानी भोपाल में एक राष्ट्रीय उद्यान है।
राष्ट्रीय उद्यान (नेशनल पार्क) का नाम सुनते ही आँखों के सामने दूर तक फैला घना जंगल और खुले घूमते जंगली जानवरों का दृश्य उभर आता है। लेकिन अगर आप कभी मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल जाएँ तो वहाँ शहर के बीचोंबीच बना 'वन विहार' राष्ट्रीय उद्यान इन सब बातों को गलत साबित करता प्रतीत होगा। यह 'थ्री इन वन' राष्ट्रीय उद्यान है।
यह अनोखा उद्यान नेशनल पार्क होने के साथ-साथ एक चिड़ियाघर (जू) तथा जंगली जानवरों का रेस्क्यू सेंटर (बचाव केन्द्र) भी है। ४४५ हैक्टेयर क्षेत्र में फैले इस राष्ट्रीय उद्यान में मिलने वाले जानवरों को जंगल से पकड़कर नहीं लाया गया है। यहाँ ज्यादातर वो जानवर हैं जो लावारिस, कमजोर, रोगी, घायल अथवा बूढ़े थे या फिर जंगलों से भटक-कर ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों में आ गए थे तथा बाद में उन्हें पकड़कर यहाँ लाया गया। कुछ जानवर दूसरे प्राणी संग्रहालयों से भी यहाँ लाए गए हैं जबकि कुछ सर्कसों से छुड़ाकर यहाँ रखे गए हैं।
वन विहार अद्भुत है। पाँच किलोमीटर लंबे इस राष्ट्रीय उद्यान के एक तरफ पूरा पहाड़ और हराभरा मैदानी क्षेत्र है जो जंगलों तथा हरियाली से आच्छादित है। दूसरी ओर भोपाल का मशहूर तथा खूबसूरत बड़ा तालाब (ताल) है। ये संगम अपने आप में बहुत सुंदर लगता है। वन विहार विस्तृत फैला हुआ चिड़ियाघर है। यह प्रदेश का एकमात्र 'लार्ज जू' यानी विशाल चिड़ियाघर है। इससे पहले यह मध्यम श्रेणी के चिड़ियाघर में आता था। यह प्रदेश का एकमात्र ऐसा चिड़ियाघर भी है जिसकी देखरेख वन विभाग करता है।
प्रदेश में दो अन्य चिड़ियाघर भी हैं। ये इंदौर और ग्वालियर में स्थित हैं। लेकिन ये दोनों ही चिड़ियाघर 'स्मॉल जू' यानी छोटे चिड़ियाघरों की श्रेणी में आते हैं और इनकी देखरेख स्थानीय नगर-निगम करता है। ये दोनों ही चिड़ियाघर किसी भी मामले में वन विहार के आस-पास नहीं ठहरते। वन विहार की शानदार खासियतों की वजह से ही इसे १८ जनवरी १९८३ को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया जो अपने आप में एक उपलब्धि है।
वन विहार के अंदर घुसने से पहले लगता ही नहीं है कि आप एक खूबसूरत जंगल में प्रवेश करने वाले हैं। इस राष्ट्रीय उद्यान का मुख्य द्वार बोट क्लब के पास से है। इसका नाम रामू गेट है। इस गेट से दूसरी ओर भदभदा क्षेत्र स्थित चीकू गेट तक की कुल दूरी ५ किलोमीटर है। इस रास्ते को पार करते हुए आपको कई खूबसूरत तथा कभी ना भूलने वाले दृश्य दिखाई देंगे। आप इस विहार में इच्छानुसार पैदल, साइकिल, मोटरसाइकिल, कार या फिर बस से भी घूम सकते हैं। आपको इसके लिए वन विभाग द्वारा निर्धारित किया गया शुल्क चुकाना होगा।
इसके बाद आपकी बाँई ओर जानवरों के खुले तथा विशाल बाड़े मिलते जाएँगे जहाँ उनको उनके प्राकृतिक आवास में देखा जा सकता है। शुरुआत सियार तथा हाइना (लगड़बग्घे) के बाड़ों से होती है। इसके बाद भालू, शेर, हिमालयी भालू, तेंदुए और बाघ के बाड़े आते हैं। इन सब बड़े जानवरों को देखने के लिए पार्क में सुबह या शाम का समय सबसे अधिक मुफीद रहता है। दोपहर के समय ये सब जानवर धूप से बचने के लिए कहीं छाँव तलाशकर आराम करते रहते हैं। पानी वाले क्षेत्र में आपको पहाड़ी कछुए, मगरमच्छ और घड़ियाल देखने को मिलेंगे। पार्क के बीचोंबीच स्नेक पार्क भी मिलेगा वहाँ विभिन्न प्रकार के साँप देखने को मिलते हैं।
हिरण के बाड़े बच्चों को बहुत आकर्षित करते हैं और मुझे तो वहाँ हिरण सड़क पर हमारे साथ-साथ चलते-घूमते दिखे। इतना ही नहीं वन विहार में बहुतायत में सांभर, चीतल, नीलगाय, कृष्णमृग, लंगूर, लाल मुंह वाले बंदर, जंगली सुअर, सेही और खरगोश हैं। विहार में पक्षियों की २५० से अधिक प्रजातियों को चिन्हित किया गया है। यहाँ कई प्रकार की वनस्पति है जो यहाँ के जंगल को समृद्ध बनाती है। भोपाल के बड़े तालाब का ५० हेक्टेयर हिस्सा वन विहार के साथ-साथ चलता है। यह पूरे भूदृश्य को बहुत मनोरम बना देता है। शाम को यहाँ पक्षियों की चहचहाहट देखने लायक होती है। पर्यटकों के लिए यहाँ ट्रेकिंग का भी इंतजाम है जिसे करके पूरे उद्यान की भौगोलिक स्थिति को पास से देखा तथा महसूस किया जा सकता है।
रुकिए, अगर इतना सब घूमकर आप थक गए हैं, थोड़ा विश्राम करना चाहते हैं और आपको भूख भी लगी है तो यहाँ आपके लिए शानदार 'वाइल्ड कैफे' मौजूद है। इस खूबसूरत कैफे में बैठकर आप प्रकृति के साथ लजीज भोजन या नाश्ते का लुत्फ ले सकते हैं। बारिश के समय तो लकड़ियों की ऊँची बल्लियों पर बने इस कैफे के नीचे से पानी भी बहता है जो एक मनोरम वातावरण पैदा कर देता है। नाश्ता कर चुकने के बाद आप कैफे के साथ ही बने 'विहार वीथिका' में जा सकते हैं। वहाँ आपको चित्रों तथा कुछ वास्तविक चीजों के माध्यम से जंगलों तथा जंगली जानवरों के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिलेंगी।
छुट्टियों के दिन :
- पार्क सभी शुक्रवार बंद रहता है।
- इसके अलावा होली तथा रंगपंचमी को भी पार्क बंद रहता है।
महत्वपूर्ण जानकारियाँ :
- कब जाएँ : उद्यान पूरे साल भर खुला रहता है।
- समय : १ अप्रैल से ३० सितंबर तक सुबह ७ से शाम ६:३० तक
१ अक्टूबर से 3१ मार्च तक सुबह ७ से शाम ६ बजे तक
छुट्टियों के दिन : - पार्क सभी शुक्रवार बंद रहता है। - इसके अलावा होली तथा रंगपंचमी को भी पार्क बंद रहता है।
महत्वपूर्ण जानकारियाँ : - कब जाएँ : उद्यान पूरे साल भर खुला रहता है। - समय : १ अप्रैल से ३० सितंबर तक सुबह ७ से शाम ६:३० तक १ अक्टूबर से 3१ मार्च तक सुबह ७ से शाम ६ बजे तक
राष्ट्रीय उद्यान, भारत
भारत के राष्ट्रीय उद्यान
भारत के वन्य अभयारण्य
मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय उद्यान
भोपाल के पर्यटन स्थल |
रामपुर शाहपुर गभाना, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
अलीगढ़ जिला के गाँव
भारत के गाँव आधार |
दुग्धोत्पाद से अभिप्राय उन खाद्य वस्तुओं से है जो दूध से बनती हैं। यह आम तौर पर उच्च ऊर्जा प्रदान करने वाले खाद्य पदार्थ होते हैं। इन उत्पादों का उत्पादन या प्रसंस्करण करने वाले संयंत्र को दुग्धशाला कहा जाता है। भारत में इनके प्रसंस्करण के लिए कच्चा दूध साधारणतः गाय या भैंसों से लिया जाता है, लेकिन यदा कदा अन्य स्तनधारियों जैसे बकरी, भेड़, ऊँट, जलीय भैंस, याक, या घोड़ों का दूध भी कई देशों में प्रयुक्त होता है। दुग्धोत्पाद सामान्यतः यूरोप, मध्य पूर्व और भारतीय भोजन का मुख्य भाग हैं, जबकि पूर्वी एशियाई भोजन में इनका प्रयोग न के समान होता है। |
पाण्डेगाँव न.ज़.आ., नैनीताल तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
न.ज़.आ., पाण्डेगाँव, नैनीताल तहसील
न.ज़.आ., पाण्डेगाँव, नैनीताल तहसील |
कैरेबियन प्रीमियर लीग २०१७ (सीपीएलटी२०) कैरेबियन प्रीमियर लीग का पांचवां सीजन (वेस्ट इंडीज में घरेलू ट्वेंटी-२० क्रिकेट लीग) होगा। संयुक्त राज्य अमेरिका में खेले जाने वाले पहले चार मैचों में त्रिनिदाद और टोबैगो, सेंट किट्स और नेविस, गुयाना, बारबाडोस, जमैका, सेंट लूसिया जैसे सात देशों में मैच खेले जाएंगे।
शीर्ष चार टीमें प्लेऑफ़ में आगे बढ़ेंगी
क्वालिफायर १ के लिए उन्नत
क्वालिफायर २ के लिए उन्नत
हर समय स्थानीय समय
अंतिम अद्यतन: ९ सितंबर २०१७।
टूर्नामेंट के अंत में सबसे अधिक विकेट वाले खिलाड़ी पर्पल कैप को प्राप्त करता है।
वेस्ट इंडीज़ की घरेलू क्रिकेट प्रतियोगितायें |
सलजूक़ साम्राज्य या सेल्जूक साम्राज्य(तुर्की: बैक सेलुकलू देवलेती; फ़ारसी: , दौलत-ए-सलजूक़ियान; अंग्रेज़ी: सेल्जुक एम्पायर) एक मध्यकालीन तुर्की साम्राज्य था जो सन् १०३७ से ११९४ ईसवी तक चला। यह एक बहुत बड़े क्षेत्र पर विस्तृत था जो पूर्व में हिन्दू कुश पर्वतों से पश्चिम में अनातोलिया तक और उत्तर में मध्य एशिया से दक्षिण में फ़ारस की खाड़ी तक फैला हुआ था। सलजूक़ लोग मध्य एशिया के स्तेपी क्षेत्र के तुर्की-भाषी लोगों की ओग़ुज़ शाखा की क़िनिक़ उपशाखा से उत्पन्न हुए थे। इनकी मूल मातृभूमि अरल सागर के पास थी जहाँ से इन्होनें पहले ख़ोरासान, फिर ईरान और फिर अनातोलिया पर क़ब्ज़ा किया। सलजूक़ साम्राज्य की वजह से ईरान, उत्तरी अफ़्ग़ानिस्तान, कॉकस और अन्य इलाक़ों में तुर्की संस्कृति का प्रभाव बना और एक मिश्रित ईरानी-तुर्की सांस्कृतिक परम्परा जन्मी।
नाम और उत्पत्ति
सलजूक़ बेग़ (सेल्जुक बेग़) अरल सागर और कैस्पियन सागर के बीच के क्षेत्र में स्थित ओग़ुज़ यबग़ू राज्य (ओघुज़ याब्गु) में ऊँचे अफ़सर थे और उन्ही के नाम पर आगे साम्राज्य का नाम 'सलजूक़' पड़ा। उन्होंने अपने क़बीले को अलग करके पहले सिर दरिया के किनारे डेरा डाला, जहाँ इस क़बीले ने इस्लाम भी अपनाया। इसके बाद उनके पोते तुग़रिल बेग़ (तुगरिल) और चग़री बेग़ (चागरी) ने ख़ोरासान में फैलना शुरू किया जहाँ वे लूटपाट करते थे। स्थानीय ग़ज़नवी साम्राज्य ने उन्हें रोकने की कोशिश करी तो २३ मई १०४० में दंदानक़ान के युद्ध (बैटल ऑफ डंदनकान) में ग़ज़नवीयों की हार हुई। सलजूक़ लोग ख़ोरासान के स्वामी हो गए और फिर उन्होंने आमू-पार क्षेत्र और ईरान पर भी क़ब्ज़ा कर लिया। १०५५ तक तुग़रिल बेग़ ने अपना इलाक़ा बग़दाद तक विस्तृत कर लिया था, जहाँ के अब्बासी ख़लीफ़ा ने उन्हनें सुलतान की उपाधि दी, जो आने वाले सभी सलजूक़ शासकों की उपाधि बन गई। हालांकि उस समय ईरान में इस्लाम की शिया शाखा पनप रही थी, सलजूक़ सुन्नी थे और आधुनिक मध्य पूर्व में शियाओं की तुलना में अधिक सुन्नियों के होने का एक बड़ा कारण सलजूक़ों की नीतियाँ थीं।
सलजूक़ साम्राज्य की राजधानी निशापुर और इस्फहान थी। इनकी राजभाषा फ़ारसी थी जबकी बुद्धिजिवियों द्वारा अधिकतर अरबी भाषा प्रयोग की जाती थी। इसका पहला शासक तुग़रिल प्रथम (१०३७ - १०६३), तथा अंतिम शासक तुग़रिल तृतीय (११७४ - ११९४) था। ११९४ में ख़्वारिज़मी साम्राज्य की स्थापना के साथ ही सलजूक़ साम्रराज्य का अंत हो गया।
इन्हें भी देखें
मध्य एशिया का इतिहास
ईरान का इतिहास
अफ़ग़ानिस्तान का इतिहास
विलुप्त मानव जातियाँ |
हैदराबाद डेकन रेलवे स्टेशन हैदराबाद शहर का दूसरा रेलवे स्टेशन है। यह हैदराबाद डेकन राज्य के नाम पर है।
तेलंगाना में रेलवे स्टेशन |
सुप्त हलियाकला ज्वालामुखी हवाई के मावी द्वीप पर है।
हवाइ भाशा में हलेयाकला "सुर्य क घर" कर्त हे। |
चितावरी देवी मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर जिले में रायपुर-बिलासपुर रोड पर रायपुर नगर से ५७ कि॰मी॰ दूर स्थित दामाखेड़ा नामक प्रसिद्ध स्थल (जहां पर कबीर पंथी गुरूओं की गद्दी स्थापित है) से २ किलोमीटर की दूरी पर धोबनी नामक गांव में तालाब के किनारे प्रस्तर और ईंट से निर्मित है। ऊंची जगती पर निर्मित यह मंदिर मूलत: शिव मंदिर था जिसके गर्भगृह का परवर्ती मध्यकाल में जीर्णोद्धार किया गया। मंदिर के गर्भगृह में रखी विरुपित प्रतिमा चितावरी देवी के रूप में पूजित है। ईंटनिर्मित ताराकृति वाले मंदिरों का यह सुन्दर उदाहरण है जो ८-९वीं शती ईस्वी में निर्मित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है। |
शिव मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के बालोद जिले में जगन्नाथपुर गांव में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है। |
उमयलपुरम काशीविश्वनाथ शिवरमण को सन २००३ में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये तमिलनाडु राज्य से हैं।
२००३ पद्म भूषण |
बीतकीन अफ्रीका के चाड देश में स्थित एक शहर है। यह उस देश के गेरा प्रदेश में स्थित है।
इन्हें भी देखें
चाड के प्रदेश
चाड के आबाद स्थान |
लेखाकार्य में, मूल्यह्रास (डिप्रशिएशन) एक ही अवधारणा के निम्नलिखित दो पक्षों को कहते हैं-
'''मूल्यह्रास क्या है? |
राजनीतिक वर्णक्रम () विभिन्न राजनीतिक स्थितियों को एक या अनेक ज्यामितिक निर्देशांक अक्षों पर वगीकृत करने की एक प्रणाली हैं, जिसे में वे अक्ष स्वतन्त्र राजनीतिक आयामों का प्रतीक होते हैं।
शब्दों का ऐतिहासिक उद्गम
बाद का अनुसन्धान
अन्य प्रस्तावित आयाम
अन्य बहु-अक्षीय मॉड़ल
नोलन - आर्थिक आज़ादी, व्यक्तिगत आज़ादी
ग्रीनबर्ग और जोनस : वाम-दक्षिण, वैचारिक कठोरता
पौरनेल : स्वतन्त्रता-नियन्त्रण, अतर्कवाद-तर्कवाद
इंगलहार्ट : परम्परावादी-धर्मनिरपेक्ष, और स्वाभिव्यक्तिवादी-अस्तित्ववादी
मिशेल : देश चलाने के आठ तरीके
राजनीतिक वर्णक्रम पर आधारित पूर्वानुमान
इन्हें भी देखें
नेशनस्टेट्स (जेनिफर सरकार)
राजनीतिक लेखों की अनुक्रमणिका
राजनीतिक विज्ञान पारिभाषिकी |
ताड़ेपल्लीगुड़म (तडेपलीगुडेम) भारत के आन्ध्र प्रदेश राज्य के पश्चिम गोदावरी ज़िले में स्थित एक शहर है।
यह नगर शिक्षा के क्षेत्र में काफी प्रसिद्द है। यहाँ पर भारत का अग्रणी प्रौद्योगिकी संस्थान राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी संस्थान स्थापित किया गया है।
यहाँ का रेलवे स्टेशन हावड़ा-चेन्नई मुख्य मार्ग पर स्थित होने के कारण सुगम्य है।
इन्हें भी देखें
पश्चिम गोदावरी ज़िला
आन्ध्र प्रदेश के नगर
पश्चिम गोदावरी ज़िला
पश्चिम गोदावरी ज़िले के नगर |
दुग्धपान या दुग्धस्रवन या लैक्टेशन, स्तन ग्रंथि से दूध निकलने, उस दूध को बच्चे को पिलाने की प्रक्रिया तथा एक माँ द्वारा अपने बच्चे को दूध पिलाने में लगने वाले समय को वर्णित करता है। यह प्रक्रिया सभी मादा स्तनपायी प्राणियों में होती है और मनुष्यों में इसे आम तौर पर स्तनपान या नर्सिंग कहा जाता है। अधिकांश प्रजातियों में माँ के निपल्स से दूध निकलता है; हालाँकि, प्लैटिपस (एक गैर-गर्भनालीय स्तनपायी प्राणी) के पेट की नलिकाओं से दूध निकलता है। स्तनपायी प्राणियों की केवल एक प्रजाति दयाक फ्रूट चमगादड़ में दूध उत्पन्न करना नर का एक सामान्य कार्य है। कुछ अन्य स्तनपायी प्राणियों में हार्मोन के असंतुलन की वजह से नर दूध उत्पन्न कर सकते हैं। इस घटना को नवजात शिशुओं में भी देखा जा सकता है (उदाहरण के लिए डायन का दूध (विचेज मिल्क))।
गैलक्टोपोइएसिस दूध उत्पादन को बनाये रखने को कहते हैं। इस चरण में प्रोलैक्टिन (पीआरएल) और ऑक्सीटोसिन की जरूरत पड़ती है।
लैक्टेशन का मुख्य कार्य जन्म के बाद बच्चों को पोषण और प्रतिरक्षा संरक्षण देना है। लगभग सभी स्तनधारियों में, लैक्टेशन बाँझपन की एक अवधि को जन्म देता है जो संतान के जीवित रहने के लिए इष्टतम जन्म अंतराल प्रदान करने का काम करता है।
हार्मोन संबंधी प्रभाव
गर्भावस्था के चौथे महीने (दूसरी और तीसरी तिमाही) से मादा या महिला का शारीर हार्मोन उत्पन्न करने लगता है जो स्तनों में दुग्ध नलिका तंत्र के विकास को उत्तेजित कर देता है:
प्रोजेस्टेरोन यह वायुद्वार और पालि के आकार में होने वाली वृद्धि को प्रभावित करता है। जन्म के बाद प्रोजेस्टेरोन का स्तर गिरने लगता है। यह प्रचुर परिमाण में दूध उत्पादन की शुरुआत में तेजी लाता है।
ओएस्ट्रोजेन यह दूध नलिका तंत्र को बढ़ने और विशिष्ट रूप धारण करने में मदद करती है। प्रसव के समय ओएस्ट्रोजेन का स्तर भी गिर जाता है और स्तनपान के पहले कई महीनों तक इसका स्तर नीचे ही रहता है। ऐसा सुझाव दिया जाता है कि स्तनपान कराने वाली माताओं को ओएस्ट्रोजेन आधारित जन्म नियंत्रण विधियों से बचना चाहिए क्योंकि एस्ट्रोजेन के स्तर में क्षणिक परिवर्तन से भी माता की दूध आपूर्ति में गिरावट आ सकती है।
फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हार्मोन अर्थात् कूप प्रेरक हार्मोन (एफएसएच)
ल्यूटीनाइजिंग हार्मोन (एलएच)
प्रोलैक्टिन यह गर्भावस्था के दौरान वायुद्वारों की वृद्धि में योगदान करता है।
ऑक्सीटोसिन यह जन्म के दौरान और उसके बाद और सम्भोग सुख के दौरान गर्भाशय की कोमल मांसपेशियों को सिकोड़ देता है। जन्म के बाद ऑक्सीटोसिन नलिका तंत्र में नवनिर्मित दूध को निचोड़ने के लिए वायुद्वार के चारों तरफ बैंड जैसी कोशिकाओं की कोमल मांसपेशियों की परत को सिकोड़ देता है। ऑक्सीटोसिन दूध निष्कासन प्रतिक्रिया या त्याग के लिए जरूरी है।
मानव गर्भनालीय लैक्टोजेन (एचपीएल) गर्भावस्था के दूसरे महीने से गर्भनाल से काफी मात्रा में एचपीएल निकलने लगता है। यह हार्मोन जन्म से पहले स्तन, निपल और एरिओला अर्थात् चूसनी या निपल के आसपास गोल घेरे के विकास में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
गर्भावस्था के पांचवें या छठवें महीने तक स्तन दूध उत्पन्न करने के लिए तैयार हो जाते हैं। गर्भावस्था के बिना भी लैक्टेशन को प्रेरित किया जा सकता है।
लैक्टोजेनेसिस प्रथम चरण
गर्भावस्था के उत्तरार्ध में महिला या मादा के स्तन लैक्टोजेनेसिस के प्रथम चरण में प्रवेश करते हैं। ऐसा तब होता है जब स्तन में कोलोस्ट्रम (नीचे देखें) बनता है जो कि एक गाढ़ा और कभी-कभी पीले रंग का तरल पदार्थ है। इस चरण में प्रोजेस्टेरोन की अत्यधिक मात्रा की वजह से दूध उत्पादन में काफी रूकावट आती है। यह किसी चिकित्सीय चिंता का विषय नहीं है अगर अपने बच्चे को जन्म देने से पहले ही किसी गर्भवती महिला के स्तन से कोलोस्ट्रम निकलने लगे और यह भावी दूध उत्पादन का कोई संकेत भी नहीं है।
लैक्टोजेनेसिस द्वितीय चरण
जन्म के समय प्रोलैक्टिन का स्तर ऊंचा रहता है जबकि गर्भनाल के प्रसव के परिणामस्वरूप प्रोजेस्टेरोन, एस्ट्रोजेन और एचपीएल के स्तरों में अचानक गिरावट आ जाती है। उच्च प्रोलैक्टिन स्तर की मौजूदगी में प्रोजेस्टेरोन में अचानक गिरावट आने से लैक्टोजेनेसिस के द्वितीय चरण में काफी प्रचुर परिमाण में दूध उत्पन्न होने लगता है।
स्तन के उत्तेजित होने पर रक्त में मौजूद प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ने लगता है और लगभग ४५ मिनट में काफी ऊपर चला जाता है और लगभग तीन घंटे बाद दूध पिलाने की अवस्था में आने से पहले इसका स्तर वापस नीचे गिर जाता है। प्रोलैक्टिन के निकलने से वायुद्वार की कोशिकाएं उत्तेजित हो जाती हैं जिससे दूध का निर्माण होने लगता है। प्रोलैक्टिन स्तन के दूध में भी चला जाता है। कुछ शोधों से पता चला है कि बहुत ज्यादा दूध उत्पादन के समय दूध में प्रोलैक्टिन का परिमाण बहुत अधिक होता है और जब स्तन दूध से भरा रहता है तब इसका परिमाण कम होता है और दो बजे से छः बजे सुबह तक इसके काफी ऊंचे स्तर में होने की सम्भावना रहती है।
मुख्य रूप से इंसुलिन, थायरोक्सिन और कोर्टिसोल जैसे अन्य हार्मोन शामिल होते हैं लेकिन अभी तक उनकी भूमिकाओं के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिली है। हालाँकि जैव रासायनिक मार्करों से यह संकेत मिलता है कि लैक्टोजेनेसिस के द्वितीय चरण की शुरुआत बच्चे को जन्म देने के लगभग ३० से ४० घंटे के बाद होती है लेकिन माताओं को आम तौर पर अपने बच्चे को जन्म देने के ५० से ७३ घंटे (२ से ३ दिन) तक स्तन के दूध से पूरी तरह भरे होने का एहसास ("स्तन में दूध आने की अनुभूति") नहीं होता है।
अपनी माँ के स्तन से दूध पीने वाले बच्चे को सबसे पहले दूध के रूप में कोलोस्ट्रम प्राप्त होता है। इसमें परिपक्व दूध की तुलना में काफी परिमाण में सफ़ेद रक्त कोशिकाएं और एंटीबॉडी होते हैं और विशेष रूप से इसमें इम्यूनोग्लोबुलिन ए (इगा) का स्तर ऊंचा रहता है जो बच्चे के अपरिपक्व आँतों की परत को ढंकने का काम करता है और बच्चे के तंत्र पर हमला करने से रोगाणुओं को रोकने में मदद करता है। स्रावी इगा से खाद्य एलर्जी को रोकने में भी मदद मिलती है। जन्म के बाद पहले दो सप्ताह तक कोलोस्ट्रम के उत्पादन से धीरे-धीरे स्तन के दूध को परिपक्व होने का अवसर मिलता है।
लैक्टोजेनेसिस तृतीय चरण
हार्मोनल एंडोक्राइन नियंत्रण तंत्र, गर्भावस्था और जन्म देने के बाद पहले कुछ दिनों के दौरान दूध उत्पादन को प्रेरित करती है। जब दूध की आपूर्ति अधिक मजबूत स्थिति में पहुँच जाती है तो ऑटोक्राइन (या स्थानीय) नियंत्रण तंत्र का कार्य शुरू होता है। इस चरण को लैक्टोजेनेसिस का तृतीय चरण कहते हैं।
इस चरण के दौरान स्तनों से जितना ज्यादा दूध निकलता है उन स्तनों में उतना ज्यादा दूध उत्पन्न होता है। शोध से यह भी पता चला है कि पूरी तरह से स्तनों से जितना ज्यादा दूध निकलता है, दूध उत्पन्न होने की दर उतनी ही अधिक हो जाती है। इस प्रकार दूध आपूर्ति पर इस बात का बहुत ज्यादा असर पड़ता है कि बच्चा कितनी बार दूध पीता है और स्तन से कितनी अच्छी तरह से दूध निकल पाता है। कम आपूर्ति की पहचान अक्सर निम्न बातों से की जा सकती है:
अगर पर्याप्त रूप से दूध पिलाया या निकाला नहीं गया हो
अगर शिशु प्रभावी ढंग से दूध नहीं पी सकता हो जिसके निम्न कारण हो सकते हैं:
जबड़े या मुँह के ढांचे में कोई कमी
दूध पिलाने का अनुचित तरीका
दुर्लभ मातृ एंडोक्राइन विकार
हाइपोप्लास्टिक स्तन ऊतक
शिशु में चयापचय या पाचन संबंधी अक्षमता जिससे वह पीए गए दूध को पचाने में असमर्थ हो
अपर्याप्त कैलोरी सेवन या मां का कुपोषण
दूध निष्कासन प्रतिक्रिया
ऑक्सीटोसिन हार्मोन के निकलने की वजह से दूध निष्कासन या त्याग प्रतिक्रिया का परिणाम देखने को मिलता है। ऑक्सीटोसिन स्तन के आसपास की मांसपेशियों को उत्तेजित कर देता है जिससे स्तन से दूध निकलने लगता है। दूध पिलाने वाली माताओं ने दूध पिलाते समय होने वाली अनुभूति का अलग-अलग वर्णन किया है। कुछ माताओं को मामूली झुनझुनी का एहसास होता है जबकि अन्य माताओं को खूब ज्यादा दबाव या हल्का दर्द/बेचैनी का एहसास होता है और ऐसी भी कुछ माताएं हैं जिन्हें कुछ अलग महसूस ही नहीं होता।
त्याग प्रतिक्रिया हमेशा खास तौर पर शुरू में संगत नहीं होती है। दूध पिलाने का विचार आने पर या किसी बच्चे की आवाज़ सुनाई देने पर यह रिफ्लेक्स अर्थात् प्रतिक्रिया उत्तेजित हो सकती है जिसकी वजह से न चाहते हुए भी दूध का रिसाव होने लगता है या उस वक्त भी दोनों स्तनों से दूध निकल सकता है जब शिशु किसी एक स्तन से दूध पी रहा होता है। हालाँकि, इस तरह की और अन्य प्रकार की समस्याएं अक्सर दूध पिलाना शुरू करने के दो सप्ताह के बाद दूर हो जाती हैं। तनाव या चिंता की वजह से दूध पिलाने में कठिनाई हो सकती है।
खराब दूध निष्कासन प्रतिक्रिया के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे - घाव या दरारयुक्त निपल्स, शिशु से जुदाई, स्तन शल्य चिकित्सा का इतिहास, या पूर्व स्तन आघात से ऊतक क्षति. अगर किसी माता को दूध पिलाने में परेशानी होती हो तो उन्हें दूध निष्कासन प्रतिक्रिया में सहायक साबित होने वाले कई विभिन्न तरीकों से मदद मिल सकती है। इन तरीकों में शामिल हैं: किसी परिचित या आरामदायक स्थान में दूध पिलाना, स्तन या पीठ की मालिश, या किसी कपड़े या स्नान आदि के माध्यम से स्तन को गर्म करना।
आफ्टरपेन्स (बाद का कष्ट)
ऑक्सीटोसिन की वृद्धि से संभावित रूप से दूध निष्कासन प्रतिक्रिया के उत्तेजित होने के अलावा इसकी वजह से गर्भाशय में संकुचन भी हो सकता है। दूध पिलाते समय माताओं को इस तरह के संकुचन का एहसास हो सकता है जिसे आफ्टरपेन्स कहते हैं। इसमें ऐंठन जैसी छोटी-मोटी तकलीफ से लेकर संकुचन जैसी बहुत ज्यादा तकलीफ का भी एहसास हो सकता है और दूसरे एवं परवर्ती बच्चों के साथ हालत और गंभीर हो सकती है। कुछ महिलाओं के स्तन सूख और चटक जाते हैं और उनमें खुली दरारें भी पड़ जाती हैं और दूध पिलाने के दौरान उनसे खून भी निकल सकता है। निपल्स (चूचुक) और एरिओला (चूचुक के इर्दगिर्द गोल घेरा) पर लानोलिन मलने से इन समस्याओं से राहत मिल सकती है।
गर्भावस्था के बिना दूध का निकलना, उत्तेजित करके दूध निकालना, फिर से दूध का निकलना
जो महिला गर्भवती नहीं है उस महिला में "कृत्रिम रूप से" और जानबूझकर दूध उत्पन्न किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी नहीं है कि महिला गर्भवती हो और वह रजोनिवृत्ति के बाद की अवधि में भी यह काम अच्छी तरह कर सकती है। जो महिला कभी गर्भवती नहीं हुई है वह भी कभी-कभी दूध पिलाने लायक काफी परिमाण में दूध उत्पन्न करने में सक्षम होती है। इसे "प्रेरित लैक्टेशन" अर्थात् "उत्तेजित होने पर दूध का निकलना" कहते हैं। जिन महिलाओं ने पहले भी स्तनपान कराया है उनमें फिर से दूध का निकलना शुरू हो सकता है। इसे "रिलैक्टेशन" अर्थात् "फिर से दूध का निकलना" कहते हैं। इसी तरह से आम तौर पर एक पूरक नर्सिंग सिस्टम या कुछ अन्य प्रकार की पूरकता से शुरू करने वाली कुछ दत्तकग्राही माताएं स्तनपान करा सकती हैं। ऐसा माना जाता है कि दूध की संरचना में बहुत कम या कोई अंतर नहीं होता है चाहे दूध का निकलना कृत्रिम रूप से प्रेरित होने पर या गर्भावस्था के परिणामस्वरूप होता हो।
शारीरिक उत्तेजना और दवाओं द्वारा भी दूध निकल सकता है। सिद्धांततः, काफी धैर्य और दृढ़ता के साथ केवल निपल्स को चूस कर भी दूध निकाला जा सकता है। इसके लिए निपल्स को लगातार उत्तेजित करना पड़ सकता है और इन्हें उत्तेजित करने के लिए स्तन को दबाना या वास्तव में चूसने (एक दिन में कई बार) की जरूरत पड़ती है और दूध के बहाव को बढ़ाने के लिए स्तनों की मालिश करनी पड़ती है और उन्हें निचोड़ना ("दूहना") पड़ता है। गैलेक्टागोग (दूध-प्रेरण) दवाओं का अस्थायी उपयोग भी प्रभावकारी होता है; गैलेक्टागोग जड़ी-बूटियाँ भी उपयोगी साबित हो सकती हैं। एक बार स्थापित हो जाने पर जरूरत के मुताबिक़ दूध निकलना शुरू हो जाता है।
इसके अलावा, कुछ जोड़े लैंगिक प्रयोजनों के लिए भी लैक्टेशन का इस्तेमाल कर सकते हैं।
चिकित्सीय साहित्य में नर लैक्टेशन (गैलेक्टोरिया से अलग) का शायद ही कोई विवरण मिलता है।
इन्हें भी देखें
दूध रेखा (मिल्क लाइन)
हाउ मैमल्स लॉस्ट देयर एग योक - स्तनधारियों द्वारा पोषणपूर्ण दुग्ध का विकास, जर्दीदार अंडे को छोड़ने से पहले हुआ था कि बाद में? (न्यू साइंटिस्ट, १८ मार्च २००८)
महिला प्रजनन प्रणाली
माध्यमिक लैंगिक विशेषतायें
स्तन का दूध |
क्षोभ सिद्धान्त (पर्टर्बेशन थ्योरी) के अन्तर्गत कुछ गणितीय विधियाँ आतीं हैं जिनकी सहायता से किसी समस्या का सन्निकट हल निकाला जा सकता है। इसके लिए एक ऐसी समस्या से शुरू किया जाता है जो मूल समस्या से मिलती-जुलती किन्तु सरल हो और जिसका ठीक-ठीक हल पता हो। |
टोयोटा सुप्रा एक स्पोर्ट्स कार है जिसे पहली बार १९७८ में टोयोटा द्वारा निर्मित किया गया था। इसका उत्पादन चार पीढ़ियों में किया गया है, सबसे हालिया पीढ़ी २०१९ में पेश की गई है। सुप्रा विभिन्न प्रकार के इंजनों द्वारा संचालित है, जिसमें इनलाइन-सिक्स और वी८ शामिल हैं। इंजन. यह मैनुअल और ऑटोमैटिक दोनों ट्रांसमिशन में उपलब्ध है।
२०२३ टोयोटा सुप्रा दो ट्रिम स्तरों में उपलब्ध है: ३.० और ३.० प्रीमियम। ३.० एक ३.०-लीटर टर्बोचार्ज्ड इनलाइन-छह इंजन द्वारा संचालित है जो ३82 हॉर्स पावर और ३67 पाउंड-फीट टॉर्क पैदा करता है। ३.० प्रीमियम समान इंजन से सुसज्जित है, लेकिन इसमें स्पोर्ट-ट्यून सस्पेंशन और ब्रेम्बो ब्रेक भी हैं।
टोयोटा सुप्रा की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं:
सुप्रा की शीर्ष गति १५५ मील प्रति घंटा है और यह ३.९ सेकंड में ० से 6० मील प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ सकती है।
इसे शहर में एफ-अनुमानित २१ म्प्ग और राजमार्ग पर २७ म्प्ग मिलता है।
सुप्रा अपने आकर्षक डिज़ाइन, शक्तिशाली इंजन और तेज़ हैंडलिंग के कारण कार प्रेमियों के बीच एक लोकप्रिय पसंद है।
यह एक अपेक्षाकृत किफायती स्पोर्ट्स कार भी है, जिसकी शुरुआती कीमत $४३,९९० है।
टोयोटा जीआर सुप्रा एक स्पोर्ट्स कार है जिसे टोयोटा और बीएमडब्ल्यू द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया था। यह सुप्रा नेमप्लेट की पांचवीं पीढ़ी है और इसे पहली बार २०१९ में जारी किया गया था। सुप्रा दो इंजन विकल्पों के साथ उपलब्ध है: एक टर्बोचार्ज्ड २.०-लीटर इनलाइन -४ या एक टर्बोचार्ज्ड ३.०-लीटर इनलाइन -६। दोनों इंजनों को ८-स्पीड ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन के साथ जोड़ा गया है। सुप्रा की शीर्ष गति १५५ मील प्रति घंटे है और यह ३.९ सेकंड में ० से ६० मील प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ सकती है।
सुप्रा एक रियर-व्हील ड्राइव कार है जिसमें स्पोर्ट-ट्यून सस्पेंशन है। इसमें लंबा व्हीलबेस और छोटे ओवरहैंग हैं, जो इसे हैंडलिंग और स्थिरता का अच्छा संतुलन प्रदान करते हैं। सुप्रा में ड्राइवर-केंद्रित कॉकपिट के साथ एक स्टाइलिश इंटीरियर भी है। |
डेकेटर संयुक्त राज्य अमेरिका में इंडियाना राज्य का एक शहर है । यह इंडियाना की ऐडम्स काउंटी के रूट और वॉशिंग्टन शहरों में स्थित है। यहां ऐडम्स मेमोरियल हॉस्पिटल है, जिसे अमेरिका के शीर्ष १०० गहन चिकित्सा के लिए नामित गया था। २०१० की जनगणना अनुसार डिकेटर / डेकादुर की जनसंख्या ९४०२ थी।
इंडियाना के शहर |
वे एक पाकिस्तानी राजनीतिज्ञ और पाकिस्तान के प्रांत, ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के पूर्व राज्यपाल थे।
ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के राज्यपाल
पाकिस्तान की राजनीति
खैबर पख्तूनख्वा सर्कार का आधिकारिक जालस्थल
ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के राज्यपाल
पाकिस्तान के लोग |
दिल्ली गेट के निकट ही दिल्ली गेट मेट्रो स्टेशन भी स्थित है। यह दिल्ली मेट्रो वायलेट लाइन का स्टेशन है एवं जामा मस्जिद से आईटीओ स्टेशनों के बीच पड़ता है।
दिल्ली के मेट्रो स्टेशन
दिल्ली मेट्रो वायलेट लाइन |
अरमान २००३ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
अमिताभ बच्चन - डॉक्टर सिद्धार्थ सिन्हा
अनिल कपूर - डॉक्टर आकाश सिन्हा
प्रीति ज़िंटा - सोनिया कपूर
ग्रेसी सिंह - डॉक्टर नेहा माथुर
नामांकन और पुरस्कार
२००३ में बनी हिन्दी फ़िल्म |
नारायनपुर बीहता, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है।
पटना जिला के गाँव |
हरिओम पाण्डेय भारत की सोलहवीं लोकसभा के सांसद हैं। २०१४ के चुनावों में वे उत्तर प्रदेश की अम्बेडकर नगर सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर निर्वाचित हुए।
भारत के राष्ट्रीय पोर्टल पर सांसदों के बारे में संक्षिप्त जानकारी
१६वीं लोक सभा के सदस्य
उत्तर प्रदेश के सांसद
भारतीय जनता पार्टी के सांसद
१९५६ में जन्मे लोग |
सिल, देवलथल तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
सिल, देवलथल तहसील
सिल, देवलथल तहसील |
अबू सय्यद बिन अबी अल-हसन यासर अल-बासरी, अक्सर हसन बसरी (अरबी: , आसन अल-बार; ६४२ - १५ अक्टोबर ७२८)। सूफ़ी इस्लाम में संक्षेप में इमाम हसन अल-बसरी, एक मुस्लिम धर्मगुरु, सूफ़ी।
प्राचीन मुस्लिम साधकों में हसन अल बसरी सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। उन्होंने भारतीय साधुओं की तरह अपने जीवन में संन्यास को ही अधिक महत्व दिया था और दूसरे सूफी संतों की तरह रहस्यवाद को कम।
उनका जन्म मदीने में सन् ६४३ ई. में हुआ था और स्वर्गवास ११ अक्टूबर सन् ७२८ ई. को। उनकी मां हजरत मुहम्मद की पत्नी आयशा की परिचारिका थीं। हसन वास्तव में धनी थे और हीरे-जवाहरात का व्यवसाय करने वाले जौहरी थे। लेकिन उसे छोड़कर उन्होंने अपने लिए एक कष्टमय जीवन की राह चुनी।
उन्होंने चौथे खलीफा हजरत अली से संन्यास की दीक्षा ली थी। वह अत्यंत त्यागी और भगवत्प्रेमी थे। लेकिन इसके साथ वह बहुत अच्छे कानून दां और कवि भी थे। उनकी वाणी का लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ता था।
अत्तार ने उनके बारे में लिखा है कि वह बिल्कुल एकांत में रहते थे और किसी से भी उनकी कोई चाह नहीं थी। किसी ने भी उन्हें कभी हंसते हुए नहीं देखा था। उनके शिष्यों में सूफी भी थे और कट्टर मुसलमान भी। वह परमात्मा को सर्वातीत मानते थे, फिर भी उनका कहना था कि आत्मशुद्धि के द्वारा उसे पाया जा सकता है।
उनका कहना था कि सांसारिक बंधनों के मायाजाल को काटने पर ही मनुष्य परमात्मा को पाने की आशा रख सकता है। जिसने सभी इच्छाओं को त्याग दिया है और इस क्षणभंगुर संसार से मुंह मोड़ लिया है, उसे परमात्मा स्वयं ग्रहण करेंगे। बसरी कहते थे कि पाप कर्म में रत रहने वाले को परमात्मा दंड देता है, इसलिए अपने गुनाहों के लिए पश्चाताप करो।
बचपन में उन्होंने कभी कोई एक गलती की थी। उसे वह भूल न जाएं और फिर उस कर्म को दोबारा न कर बैठें, इस बात को बराबर स्मरण रखने के लिए वह जब भी नया वस्त्र धारण करते थे, तो उस समय उसे उस वस्त्र पर लिखकर रखते और लिखने के समय ऐसा क्रन्दन करते कि बेहोश हो जाते।
हसन अल बसरी ने बहुत बार कहा है कि इस संसार के प्रलोभनों में फंसकर उस दूसरे संसार को न बिगाड़ो। उनके मत से बुद्धिमान वही है जो कोई भी ऐसा काम नहीं करता जिससे उस संसार को पाने में बाधा हो। उनका कहना था कि सच्चा वैराग्य वही है, जो परमात्मा के लिए हो। स्वर्ग पाने की आशा से जो वैराग्य किया जाता है, वह वैराग्य नहीं है। अपने साथ रहने वाले एक फकीर सैयद जुबैर से उन्होंने एक बार कहा था कि संसार में तीन चीजों से हमेशा बचना चाहिए - १. भूलकर भी सुल्तानों से संपर्क न रखें २. किसी भी स्त्री के साथ एकांत में न रहें ३. किसी की बातों पर कान न दें।
हसन ने बार-बार दुहराया है कि नश्वर जगत की वस्तुओं के मोह को त्यागो, क्योंकि बिना उनसे छुटकारा पाए दूसरे संसार को पाना संभव नहीं हो सकता। वास्तव में उनके बाद के सूफी साधनों में रहस्यवादी प्रवृत्ति की जैसी प्रधानता देखी जाती है, वैसी हसन में नहीं। लेकिन फरीदुद्दीन अत्तार ने हसन बसरी के एक प्रवचन का उद्धरण दिया है जिसमें कहा गया है- जब स्वर्ग में वास करने वाले पहली बार अपनी आंखें खोलते हैं तो सात लाख सालों तक भावाविष्टावस्था में रहते हैं, क्योंकि अपनी परम विभूति के साथ परमात्मा अपने को उनके सामने प्रकट करते हैं। इस प्रकार से परमात्मा तक पहुंचने, उससे साक्षात्कार होने की बात भी हसन के प्रवचनों में पाई जाती है।
हसन बसरी कहते थे कि अनासक्ति का एक बिंदु सहस्त्रों सालों की नमाज़ और रोजा से श्रेष्ठ है। जिसने ईश्वर को पहचाना है उसने उनके प्रति प्रेम की स्थापना की है और जिसने संसार को पहचाना है उसने ईश्वर से शत्रुता की है। मनुष्य की अपेक्षा बकरी जैसा जीव भी सावधान रहता है जो चरवाहे का शब्द सुनकर चरना छोड़कर मैदान से उसकी ओर दौड़ आती है। लेकिन मनुष्य ईश्वर का आह्वान सुनकर भी उनकी ओर नहीं जाता और अपने भोग सुख से विरत नहीं होता। |
नसरुल्ला राणा (जन्म ११ सितंबर २००२) एक हांगकांग के क्रिकेटर हैं। सितंबर २०१९ में, उन्हें हांगकांग के ट्वेंटी २० अंतर्राष्ट्रीय (टी२०ई) दस्तों में २०१९-२० ओमान पेंटांगुलर सीरीज और संयुक्त अरब अमीरात में २०१९ आईसीसी टी २० विश्व कप क्वालीफायर टूर्नामेंट के लिए नामित किया गया था। उन्होंने ५ अक्टूबर २०१९ को, ओमान के खिलाफ, हांगकांग के लिए अपना टी२०ई पदार्पण किया। नवंबर २०१९ में, उन्हें बांग्लादेश में २०१९ एसीसी इमर्जिंग टीमों एशिया कप के लिए हांगकांग के दस्ते में नामित किया गया था। उन्होंने १६ नवंबर २०१९ को इमर्जिंग टीम्स कप में, नेपाल के खिलाफ, हांगकांग के लिए अपनी लिस्ट ए की शुरुआत की। उसी महीने बाद में, उन्हें ओमान में क्रिकेट विश्व कप चैलेंज लीग बी टूर्नामेंट के लिए हांगकांग के टीम में नामित किया गया था।
२००२ में जन्मे लोग |
मिस्र के राष्ट्रपति मिस्र राष्ट्र के कार्यकारी प्रमुख होता हैं। १९५२ की मिस्र की क्रांति के बाद मिस्र के संविधान के विभिन्न पुनरावृत्तियों के तहत, राष्ट्रपति सशस्त्र बलों का सर्वोच्च कमांडर और मिस्र सरकार की कार्यकारी शाखा का प्रमुख भी होता हैं। वर्तमान राष्ट्रपति ८ जून २०१४ से कार्यालय में अब्देल फतेह अल-सिसी हैं।
मिस्र राज्य के प्रमुखों की सूची
मिस्र राज्य के प्रमुखों की सूची
मिस्र के राष्ट्रपति |
साथर हंडिया, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
इलाहाबाद जिला के गाँव |
तर्क की जिस प्रक्रिया में एक या अधिक ज्ञात सामान्य कथनों के आधार पर किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है, निगमनात्मक तर्क (देदुक्टिव रीसोनिंग या देदुक्टिव लॉजिक) कहते हैं। 'निगमनात्मक तर्क', 'आगमनात्मक तर्क' से बिलकुल भिन्न है।
नीचे एक निगमनात्मक तर्क दिया गया है-:
१. सभी मनुष्य नश्वर हैं।
२. मोहन मनुष्य है।
३. अतः मोहन नश्वर है।
लियोनार्डो द विंची इसी पद्धति को आधार बनाते थे
इन्हें भी देखें
तर्कशास्त्र एवं वैज्ञानिक पद्धति (गूगल पुस्तक ; लेखक - केदारनाथ तिवारी)
आगमन तर्कशास्त्र (गूगल पुस्तक ; लेखक - केदारनाथ तिवारी)
समस्या समाधान कौशल |
गुप्त-कलाओं से रक्षा (डेफेंस अगेंस्ट थे डार्क आर्ट्स) जे. के. रोलिंग द्वारा अंग्रेज़ी में रचित हैरी पॉटर (उपन्यास) शृंखला में ज़िक्र तन्त्र-मन्त्र और जादू-टोने के विद्यालय हॉग्वार्ट्स में पढ़ाया जाने वाला एक विषय है। इसमें अनैतिक काले जादू, ख़ूँख़ार जीवों और काले जादूगरों से अपनी अत्मरक्षा करना सिखाया जाता है। हैरी के पहले साल में गुप्त-कलाओं के अध्यापक थे- प्र क्वीरिल|
दूसरे साल में थे- गिलड्रोय लौक-हार्ट, तीसरे साल में थे- आर जे ल्यूपिन, चौथे साल में थे एलेस्टर 'मैड-आई' मूडी और पांचवें साल में थीं डोलेरस अमब्रिज|
इन्हें भी देखें
हैरी पॉटर (उपन्यास) |
संकेत प्रसंस्करण में, यदि दो अलग-अलग संकेतों का प्रसंस्करण करने के बाद वे अलग-अलग न रहकर एक-जैसा हो जाँय तो इस प्रभाव को एलियाजिंग (एलियासिंग) कहते हैं। किसी संकेत के नमूनों (सैम्पल्स) को पुनः जोड़कर जो संकेत निर्मित होता है, यदि वह संकेत मूल संकेत से भिन्न हो तो भी इस प्रभाव को एलियाजिंग कहते हैं। एलियाजिंग, समय-डोमेन में सैम्पल लेने पर होता है तथा स्पेस-डोमेन में सैम्पल लेने पर भी। |
त्रिशंकु इक्ष्वाकु वंश का एक राजा था जिसे ऋषि विश्वामित्र ने सशरीर स्वर्ग भेजा था। देवराज इन्द्र ने उसे स्वर्ग से वापस पृथ्वी की ओर धकेल दिया। नीचे गिरते हुये त्रिशंकु को ऋषि विश्वामित्र ने बीच में ही लटका कर उसके लिये स्वर्ग का निर्माण किया तथा वह अपने स्वर्ग के साथ आज भी वास्तविक स्वर्ग और पृथ्वी के बीच लटका हुआ है। इसी कारण से निराधार लटकने का भाव प्रदर्शित करने के लिये त्रिशंकु शब्द का प्रयोग होता है।
राजा त्रिशंकु की कहानी का वर्णन वाल्मीकि रामायण के बाल काण्ड में है।
सूर्य वंश के राजा पृथु के पुत्र सत्यव्रत के रूप में जन्मे राजा त्रिशंकु राम के पूर्वज हैं। राजा सत्यव्रत जब वृद्ध होने लगे तो उन्हे राज-पाट त्याग कर अपने पुत्र हरिश्चंद्र को अयोध्या का राजा घोषित कर दिया। राजा सत्यव्रत एक धार्मिक पुरुष थे इसलिए उनकी आत्मा स्वर्ग के योग्य थी परंतु उनकी इच्छा स-शरीर स्वर्ग जाने की थी। इस इच्छा की पूर्ति के लिए उन्होने अपने गुरु ऋषि वशिष्ठ को आवश्यक यज्ञ करने की प्रार्थना की। ऋषि वशिष्ठ ने यज्ञ करने से यह समझते हुये मना कर दिया कि स-शरीर स्वर्ग प्रवेश प्रकृति के नियम के विरुद्ध है। सत्यव्रत अपनी ज़िद पर अड़े रहे और इच्छा की पूर्ति के लिए ऋषि वशिष्ठ के ज्येष्ठ पुत्र शक्ति को अवाश्यक यज्ञ करने के लिए धन एवं प्रसिद्धि का लालच दिया। सत्यव्रत के इस दुस्साहस ने शक्ति को क्रोधित कर दिया और शक्ति ने सत्यव्रत को त्रिशंकु होने का श्राप दे दिया। त्रिशंकु को राज्य छोड़ कर वन भटकने के लिए मजबूर होना पड़ा।
वन में भटकते हुये त्रिशंकु की भेंट ऋषि विश्वामित्र से हुई जिनसे उसने अपनी परेशानी बताई। ऋषि विश्वामित्र, जो ऋषि वशिष्ठ से प्रतिद्वंद्ता रखते थे, त्रिशंकु की प्रार्थना स्वीकार कर ली एवं उसे स-शरीर स्वर्ग पहुंचाने के लिए आवश्यक यज्ञ शुरू कर दिया। यज्ञ के प्रभाव से त्रिशंकु स्वर्ग की ओर उठने लगे। इस अप्राकृतिक घटना से स्वर्ग में खलबली मच गयी। भगवान इन्द्र के नेतृत्व में देवताओं ने त्रिशंकु को स्वर्ग प्रवेश करने से रोक दिया एवं उसे वापस पृथ्वी की ओर फेंक दिया। इस बात से क्रोधित ऋषि विश्वामित्र ने अपनी शक्तियों का प्रयोग कर के त्रिशंकु का गिरना रोक दिया जिससे त्रिशंकु बीच में लटक गए।
लटके त्रिशंकु ने विश्वामित्र से सहायता की प्रार्थना की। विश्वामित्र ने अपनी शक्तियों का प्रयोग कर बीच में ही एक नया स्वर्ग बना दिया और त्रिशंकु को श्राप से मुक्त करते हुये इस नए स्वर्ग में भेज दिया। त्रिशंकु, जो वापस सत्यव्रत बन गया था, को नए स्वर्ग का इन्द्र बनाने के लिए विश्वामित्र ने तपस्या प्रारम्भ की। इस तपस्या से चिंतित देवताओं ने विश्वामित्र को समझाया कि उन्होने स-शरीर स्वर्ग प्रवेश की अप्राकृतिक घटना को रोकने के लिए त्रिशंकु के स्वर्ग प्रवेश से रोका था। विश्वामित्र देवताओं के तर्क से सहमत हुये परंतु अब उनके सामने अपने वचन को पूरा करने कि दुविधा थी। विश्वामित्र ने देवताओं से समझौता किया कि वो अपनी तपस्या रोक देंगे और देवता सत्यव्रत को नए स्वर्ग में रहने देंगे, एवं सत्यव्रत इन्द्र की आज्ञा की अवहेलना नहीं करेगा।
यह त्रिशंकु की कहानी है जो पृथ्वी एवं स्वर्ग के मध्य अपने लटके हुये स्वर्ग में है। भारत में त्रिशंकु शब्द का प्रयोग ऐसी ही परिस्थितियों के लिए किया जाता है।
अयोध्या के सूर्यवंशी राजा |
२०१४ आइसीसी विश्व ट्वेन्टी २० का फाइनल मैच ६ अप्रैल २०१४ को ढाका में शेर-ए-बांग्ला राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में भारत और श्रीलंका के बीच खेला गया था। यह ५वां आईसीसी विश्व ट्वेंटी २० का संस्करण था। श्रीलंका ने २००९ और २०१२ में दो बार उप विजेता बनने के बाद इस मैच को छह विकेट से जीतकर पहली बार खिताब जीता। श्रीलंका भारत, पाकिस्तान, इंग्लैंड, वेस्ट इंडीज के बाद इस खिताब को जीतने वाली ५वीं टीम थी। इस मैच में स्टेडियम में, २५,००० दर्शकों ने देखने का आनन्द लिया था।
आईसीसी विश्व ट्वेन्टी २० फाइनल
ट्वेन्टी - ट्वेन्टी विश्व कप |
बल्लारशाह जंक्शन रेलवे स्टेशन, भारतीय भारत के महाराष्ट्र में स्थित एक जंक्शन स्टेशन है। यह बल्लारपुर शहर और चंद्रपुर जिले के आसपास के क्षेत्रों में सेवा प्रदान करता है। बल्लारशाह जंक्शन दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे का हिस्सा है। यह दिल्ली-नागपुर-चेन्नई लाइन में सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण स्टेशन है। यह यात्री सेवाओं के मामले में भारतीय रेलवे का एक 'ए' ग्रेड स्टेशन है। |
मोजाहिदपुर पानदारक, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है।
पटना जिला के गाँव |
राज्य जहां कई जातियां रहती हैं, जो क्षेत्र में विशाल है और जहां सम्राट के पास समस्त अधिकार हैं, साम्राज्य कहलाता है। यह एक राजनैतिक क्षेत्र है जो किसी एक राजा अथवा कुछ मुख्य-पतियों (जैसे राजपूत साम्राज्य) द्वारा साझेदारी में संभाला जाता है। साम्राज्य छोटे समय के अंतराल में भी हो सकता है परन्तु अधिकाँश वह पीढ़ी दर पीढ़ी कई दशकों या सदियों तक चलता है।
भारत का सबसे बडा साम्राज्य सम्राट अशोक का मौर्य साम्राज्य था, जिसकी सिमा ५०,००,००० वर्ग किमी में श्रेत्र था।
इसे देखिए भारत में सबसे बडे साम्राज्यों की सूची
साम्राज्य शब्द दो शब्दों के मेल से बना है| सम (अर्थात एक समान) + राज्य (राजा का क्षेत्र)| इससे पर्याय है उन सभी क्षेत्रों को एक नक़्शे के नीचे लेना जो एक ही प्रशासन के द्वारा संभाले जाते हैं| यह एक व्यंजन संधि का रूप है|
एक से अधिक प्रशासकों द्वारा भी चलाया जाने वाला विशाल क्षेत्रफल का राज्य साम्राज्य कहलाता है बेशक उनके शशक एक न हों| वे मात्र मित्र भी हो सकते हैं जिनमें संधि हो| जैसे रोम के तीन शशक मिल कर एक साथ रोमन साम्राज्य संभालते थे (उदाहरण के तौर पर जुलिअस सीज़र के समय में उसकी संधि अपने मित्र मार्क एंटनी के साथ थी|
संवैधानिक राज्य प्रकार |
मदन मोहन लखेरा मिज़ोरम के पुर्व राज्यपाल।
१९३७ में जन्मे लोग
मिज़ोरम के राज्यपाल |
बड़ा बामोनिया (बारा बमोनिया) भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के उत्तर २४ परगना ज़िले में स्थित एक शहर है।
इन्हें भी देखें
उत्तर २४ परगना ज़िला
उत्तर २४ परगना ज़िला
पश्चिम बंगाल के शहर
उत्तर २४ परगना ज़िले के नगर |
ओडगी (ओदगी) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के सूरजपुर ज़िले में स्थित एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
छत्तीसगढ़ के गाँव
सूरजपुर ज़िले के गाँव |
पागलपन एक ऐसी स्थिति होती है जिसमे इंसान अपनी भावनाओं का नियंत्रण नहीं कर पाता है ।ये प्रायः जन्मजात या समाज द्वारा बनाई गई अवस्था होती है जिसमे इंसान खुद या दूसरों को हानि पहुंचाने का प्रयास करता है।
एक पागल व्यक्ति सोचने समझने और सामान्य जन मानस की तरह निर्णय लेने में असमर्थ होता है। उसे दूसरों पर निर्भर होना पड़ता है। यदि पागलपन अति गम्भीर हो तो ऐसे व्यक्ति से समाज को खतरा तो है, वह स्वयं को भी चोट और हानि पहुँचा सकता है। इसलिए कई बार ऐसे व्यक्ति को पागलखाने में रखा जाता है जहाँ उसकी देखरेख के अलावा उपचार भी किए जाने के प्रयास होते हैं और ग्रसित लोगों का ध्यान रख कर उनकी देख भाल की जाती है।
पागलपन का वर्गीकरण
चिकित्सीय तौर पर पागलपन चार तरह का होता है:
बनावटी पागलपन का मतलब झूठा पागलपन होता है।
पागलपन शब्द का उपयोग उन व्यक्तियों के लिए किया गया है जो अपना ध्यान खुद नहीं रख सकते। मानसिक तौर पर बीमार होने के कारण वो अपने कानूनी कर्तव्यों कों समझ नहीं पाते। जब क़ानून के समक्ष पागलपन का कोई मामला आता है तो एक चिकित्सा अधिकारी कों उसकी जांच के लिए बुलाया जाता है कि व्यक्ति सच में पागल है या बनावटी पागलपन दिखा रहा है।
बनावटी पागलपन का मतलब मानसिक बीमारी का अनुकरण करना होता है। जब कोई व्यक्ति अपने किये हुए अपराध कों छुपाने के लिए बनावटी पागलपन करता है। या फिर अपने काम से बचने के लिए भी कोई बनावटी पागलपन दिखता है। कानूनी तौर पर अपने कर्तव्यों से बचने के लिए भी कोई व्यक्ति बनावटी पागलपन दिखता है। |
तल्ली डूंगरी, जैंती तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
डूंगरी, तल्ली, जैंती तहसील
डूंगरी, तल्ली, जैंती तहसील |
वसंत पञ्चमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू त्यौहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।
प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का फूल मानो सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर मांजर (बौर) आ जाता और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। भर-भर भंवरे भंवराने लगते। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती हैं। यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था।
वसन्त पंचमी कथा
उपनिषदों की कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान शिव की आज्ञा से भगवान ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। लेकिन अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे, उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। हालाकि उपनिषद व पुराण ऋषियो को अपना अपना अनुभव है, अगर यह हमारे पवित्र सत ग्रंथों से मेल नही खाता तो यह मान्य नही है।
तब ब्रह्मा जी ने इस समस्या के निवारण के लिए अपने कमण्डल से जल अपने हथेली में लेकर संकल्प स्वरूप उस जल को छिड़कर भगवान श्री विष्णु की स्तुति करनी आरम्भ की। ब्रम्हा जी के किये स्तुति को सुन कर भगवान विष्णु तत्काल ही उनके सम्मुख प्रकट हो गए और उनकी समस्या जानकर भगवान विष्णु ने आदिशक्ति दुर्गा माता का आव्हान किया। विष्णु जी के द्वारा आव्हान होने के कारण भगवती दुर्गा वहां तुरंत ही प्रकट हो गयीं तब ब्रम्हा एवं विष्णु जी ने उन्हें इस संकट को दूर करने का निवेदन किया।
ब्रम्हा जी तथा विष्णु जी बातों को सुनने के बाद उसी क्षण आदिशक्ति दुर्गा माता के शरीर से स्वेत रंग का एक भारी तेज उत्पन्न हुआ जो एक दिव्य नारी के रूप में बदल गया। यह स्वरूप एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिनके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ में वर मुद्रा थे । अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। आदिशक्ति श्री दुर्गा के शरीर से उत्पन्न तेज से प्रकट होते ही उन देवी ने वीणा का मधुरनाद किया जिससे संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब सभी देवताओं ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उन देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी "सरस्वती" कहा।
फिर आदिशक्ति भगवती दुर्गा ने ब्रम्हा जी से कहा कि मेरे तेज से उत्पन्न हुई ये देवी सरस्वती आपकी पत्नी बनेंगी, जैसे लक्ष्मी श्री विष्णु की शक्ति हैं, पार्वती महादेव शिव की शक्ति हैं उसी प्रकार ये सरस्वती देवी ही आपकी शक्ति होंगी। ऐसा कह कर आदिशक्ति श्री दुर्गा सब देवताओं के देखते - देखते वहीं अंतर्धान हो गयीं। इसके बाद सभी देवता सृष्टि के संचालन में संलग्न हो गए।
सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके प्रकटोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और तभी से इस वरदान के फलस्वरूप भारत देश में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है। पतंगबाज़ी का वसंत से कोई सीधा संबंध नहीं है। लेकिन पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों साल पहले चीन में शुरू हुआ और फिर कोरिया और जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुँचा।
पर्व का महत्व
वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है।
यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल ) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं।
कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।
इसके साथ ही यह पर्व हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं की भी याद दिलाता है। सर्वप्रथम तो यह हमें त्रेता युग से जोड़ती है। रावण द्वारा सीता के हरण के बाद श्रीराम उनकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े। इसमें जिन स्थानों पर वे गये, उनमें दण्डकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। प्रेम में पगे जूठे बेरों वाली इस घटना को रामकथा के सभी गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया।
दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।
वसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद ग़ोरी को १६ बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद ग़ोरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं। इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही है। मोहम्मद ग़ोरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर ग़ोरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया।
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥
पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह मोहम्मद ग़ोरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। (११९२ ई) यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।
सिखों के लिए में बसंत पंचमी के दिन का बहुत महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह जी का विवाह हुआ था।
वसंत पंचमी का लाहौर निवासी वीर हकीकत से भी गहरा सम्बन्ध है। एक दिन जब मुल्ला जी किसी काम से विद्यालय छोड़कर चले गये, तो सब बच्चे खेलने लगे, पर वह पढ़ता रहा। जब अन्य बच्चों ने उसे छेड़ा, तो दुर्गा मां की सौगंध दी। मुस्लिम बालकों ने दुर्गा मां की हंसी उड़ाई। हकीकत ने कहा कि यदि में तुम्हारी बीबी फातिमा के बारे में कुछ कहूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा?बस फिर क्या था, मुल्ला जी के आते ही उन शरारती छात्रों ने शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। फिर तो बात बढ़ते हुए काजी तक जा पहुंची। मुस्लिम शासन में वही निर्णय हुआ, जिसकी अपेक्षा थी। आदेश हो गया कि या तो हकीकत मुसलमान बन जाये, अन्यथा उसे मृत्युदंड दिया जायेगा। हकीकत ने यह स्वीकार नहीं किया। परिणामत: उसे तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया।
कहते हैं उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ से तलवार गिर गयी। हकीकत ने तलवार उसके हाथ में दी और कहा कि जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं, तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो? इस पर जल्लाद ने दिल मजबूत कर तलवार चला दी, पर उस वीर का शीश धरती पर नहीं गिरा। वह आकाशमार्ग से सीधा स्वर्ग चला गया। यह घटना वसंत पंचमी (२३.२.१७३४) को ही हुई थी। पाकिस्तान यद्यपि मुस्लिम देश है, पर हकीकत के आकाशगामी शीश की याद में वहां वसन्त पंचमी पर पतंगें उड़ाई जाती है। हकीकत लाहौर का निवासी था। अतः पतंगबाजी का सर्वाधिक जोर लाहौर में रहता है।
वसंत पंचमी हमें गुरू रामसिंह कूका की भी याद दिलाती है। उनका जन्म १८१६ ई. में वसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था। कुछ समय वे महाराजा रणजीत सिंह की सेना में रहे, फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये, पर आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण इनके प्रवचन सुनने लोग आने लगे। धीरे-धीरे इनके शिष्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ कहलाया।
गुरू रामसिंह, गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उद्धार, अन्तरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने भी सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गांव में मेला लगता था। १८७२ में मेले में आते समय उनके एक शिष्य को मुसलमानों ने घेर लिया। उन्होंने उसे पीटा और गोवध कर उसके मुंह में गोमांस ठूंस दिया। यह सुनकर गुरू रामसिंह के शिष्य भड़क गये। उन्होंने उस गांव पर हमला बोल दिया, पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गयी। अतः युद्ध का पासा पलट गया।
इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए और ६८ पकड़ लिये गये। इनमें से ५० को सत्रह जनवरी १८७२ को मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया गया। शेष १८ को अगले दिन फांसी दी गयी। दो दिन बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। १४ साल तक वहां कठोर अत्याचार सहकर १८85 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।
राजा भोज का जन्मदिवस वसंत पंचमी को ही आता हैं। राजा भोज इस दिन एक बड़ा उत्सव करवाते थे जिसमें पूरी प्रजा के लिए एक बड़ा प्रीतिभोज रखा जाता था जो चालीस दिन तक चलता था।
वसन्त पंचमी हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्मदिवस (२८.०२.१८९९) भी है। निराला जी के मन में निर्धनों के प्रति अपार प्रेम और पीड़ा थी। वे अपने पैसे और वस्त्र खुले मन से निर्धनों को दे डालते थे। इस कारण लोग उन्हें 'महाप्राण' कहते थे। इस दिन जन्मे लोग कोशिश करे तो बहुत आगे जाते है।
बसंत पंचमी क्यो मनाया जाता है जाने पूरा इतिहास
भारत में त्यौहार |
पं. सुन्दरलाल शर्मा (मुक्त) विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में स्थित प्रान्तीय-विश्वविद्यालय है। यह एक मुक्त विश्वविद्यालय है जिसमें दूरस्थ शिक्षा की सुविधा प्रदान की गई है।
इन्हें भी देखें
छत्तीसगढ़ में विश्वविद्यालय और कॉलेज
भारत के मुक्त विश्वविद्यालय
भारत के विश्वविद्यालय |
संवातक या श्वसित्र (वेंटीलेटर) एक चिकित्सा सम्बन्धी युक्ति है जो उन रोगियों के काम आती है जो स्वयं सांस नहीं ले पाते या जिन्हें सांस लेने में कठिनाई होती है। मूल रूप से संवातक यांत्रिक कम्पन के द्वारा फेफड़ों से हवा अन्दर-बाहर करते थे। आधुनिक संवातक माइक्रोप्रोसेसर से नियंत्रित मशीनें होतीं हैं, किन्तु आवश्यकता होने पर बिल्कुल सरल हाथ से चलाई जाने वाली बैग-वाल्व मास्क की सहायता से भी रोगियों को श्वसन कराया जा सकता है। संवादकों का उपयोग प्रायः सघन चिकित्सा इकाइयों (इक्यू) में किया जाता है या घर पर चिकित्सा में या आकस्मिक चिकित्सा में किया जाता है।
ऋणात्मक दाब श्वासयंत्र या 'लौह फुफ्फुस' (आइरन लंग)
जानें वेंटिलेटर मशीन का पूरा इतिहास |
निगराली, भिकियासैण तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
निगराली, भिकियासैण तहसील
निगराली, भिकियासैण तहसील |
निर्वात अपशिष्ट संग्राहक वाहन या मलजल टैंकर एक निर्वात ट्रक है जिसका प्रयोग किसी नाबदान या मलजल टैंक को निर्वात द्वारा साफ करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार यह नाबदान से अपजल को निकाल कर उसका अन्यत्र निपटान करता है।
वाणिज्यिक विमानन और अन्य उद्योगों में, इस प्रकार के वाहन को हनी वैगन (अमेरिका में) कहा जाता है और इसका प्रयोग हवाई जहाज के शौचालय और सुवाह्य शौचालय जैसी सुविधाओं से अपशिष्ट को एकत्र करने में किया जाता है।
भारत में अपशिष्ट प्रबंधन |
नैनीताल में, नैनी झील के उत्त्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है। १८८० में भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया था। बाद में इसे दुबारा बनाया गया। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। नैनी झील के स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसीसे प्रेरित होकर इस मंदिर की स्थापना की गई है।
पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री सती का विवाह शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, परन्तु वह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया था। एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहाँ यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमन्त्रण तक नहीं दिया। उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुँची। जब उसने हरिद्वार स्थित कनखल में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपने पति और अपना निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु:खी हो गयी। यज्ञ के हवनकुण्ड में यह कहते हुए कूद पड़ी कि 'मैं अगले जन्म में भी शिव को ही अपना पति बनाऊँगी। आपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके प्रतिफल - स्वरुप यज्ञ के हवन - कुण्ड में स्वयं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूँ।' जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि उमा सती हो गयी, तो उनके क्रोध का पारावार न रहा। उन्होंने अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट - भ्रष्ट कर डाला। सभी देवी - देवता शिव के इस रौद्र - रूप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न कर ड़ालें। इसलिए देवी - देवताओं ने महादेव शिव से प्रार्थना की और उनके क्रोध के शान्त किया। दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा माँगी। शिव ने उनको भी आशीर्वाद दिया। परन्तु सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश - भ्रमण करना शुरु कर दिया। ऐसी स्थिति में जहाँ - जहाँ पर शरीर के अंग किरे, वहाँ - वहाँ पर शक्ति पीठ हो गए। जहाँ पर सती के नयन गिरे थे ; वहीं पर नैना देवी के रूप में उमा अर्थात् नन्दा देवी का भव्य स्थान हो गया। आज का नैनीताल वही स्थान है, जहाँ पर उस देवी के नैन गिरे थे। नयनों की अश्रुधार ने यहाँ पर ताल का रूप ले लिया। तबसे निरन्तर यहाँ पर शिवपत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैनादेवी के रूप में होती है।
इन्हें भी देखें
नैना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश
श्री नैना देवी जी की आरती
भारत के तीर्थ
उत्तराखण्ड में हिन्दू मन्दिर |
उस विद्युत स्विच को अन्तरण स्विच (ट्रान्सफर स्विच) कहते हैं जो आवश्यकतानुसार दो विद्युत स्रोतों में से किसी एक को लोड से जोड़ती है। उदाहरण के लिए, किसी मोटर को सामान्यतः मुख्य विद्युत लाइन से विद्युत दी जाती है, किन्तु यदि मुख्य लाइन किसी कारण उपलब्ध न हो तो इस मोटर को एक विद्युत जनित्र से शक्ति देनी हो तो इसके लिए अन्तरण स्विच का उपयोग किया जा सकता है। अन्तरण स्विच स्वतःचालित हो सकते हैं या मानवचालित (मैनुअल)।
यदि पूर्तिकर जनित्र (बैक-अप जनरेटर) उपलब्ध हो तो प्रायः कोई स्वचालित अन्तरण स्विच (अन आटोमेटिक ट्रांसएर स्विच /अट्स) लगाया जाता है ताकि मुख्य विद्युत-स्रोत के न होने की दशा में जनित्र से अस्थायी विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। |
गिल्ली डंडा पूरे भारत में काफी प्रसिद्ध खेल है। इसे सामान्यतः एक बेलनाकार लकड़ी से खेला जाता है जिसकी लंबाई बेसबॉल या क्रिकेट के बल्ले के बराबर होती है। इसी की तरह की छोटी बेलनाकार लकड़ी को गिल्ली कहते हैं जो किनारों से थोड़ी नुकीली या घिसी हुई होती है।
यह दो प्रकार से खेला जाता है (१) गड्डा खोदकर (२)गोला(गुण्डा) बनाकर! खेल का उद्देश्य डंडे से गिल्ली को मारना है। गिल्ली को ज़मीन पर रखकर डंडे से किनारों पर मारते हैं जिससे गिल्ली हवा में उछलती है। गिल्ली को हवा में ही ज़मीन पर गिरने से पहले फिर डंडे से मारते हैं। जो खिलाड़ी सबसे ज्यादा दूर तक गिल्ली को पहुँचाता है वह विजयी होता है।
इस खेल के लिये कम से कम दो खिलाड़ियो की आवश्यकता होती है। गड्डे वाला खेल प्रारम्भ करने के लिये पहले जमीन पर एक छोटा सा लम्बा गड्ढा करते है। जिसे घुच्ची कहते है! फिर उस पर गिल्ली रख कर डन्डे से उछालते है। यदि सामने खड़ा खिलाड़ी गिल्ली को हवा मे ही पकड़ लेता है तो खिलाड़ी आ उट हो जाता है. किन्तु यदि ऐसा नही होता तो सामने खड़ा खिलाड़ी गिल्ली को डन्डे पर मारता है जो कि जमीन के गड्ढे पर रखा होता है, यदि गिल्ली डंडे पर लग जाती है तो खिलाड़ी हार जाता है अन्यथा पहला खिलाड़ी फिर गिल्ली को डन्डे से उसके किनारे पर मारता है जिससे गिल्ली हवा मे उछलती है, इसे फिर डन्डे से मारते है और गिल्ली को दूर फेकने को प्रयास करते है। यदि गिल्ली को हवा मे लपक लिया जाये तो खिलाड़ी हार जाता है, अन्यथा दुसरा खिलाड़ी गिल्ली को वही से डन्डे पर मारता है, डन्डे पर लगने की स्थिति मे दूसरे की बारी आती है। यदि गिल्ली को मारते समय डंडा जमीन से छू जाता है तो खिलाड़ी को गिल्ली को इस प्रकार मारना होता है कि उसका डंडे वाला हाथ उसके एक पैर के नीचे रहे। इसे हुच्चको कहते है। गिल्ली को किनारे से मारने का प्रत्येक खिलाड़ी को तीन बार मौका मिलता है। इस खेल मे अधिकतम खिलाड़ियो कि सन्ख्या निर्धारित नही होती है। (२)इसे जमीन पर गोला बनाकर खेला जाता है पहले निर्धारित किया जाता है कि खेल कितने डन्डे का होगा फिर चम्पा उड़ाया जाता है जिससे पता चलता है कौन प्रथम और कौन द्वितीय स्थान पर खोलेगा ((जो सबसे दूर मारेगा वह पहले खेलेगा)) फिर गिल्ली को जमीन उछाल कर डन्डे से मारा जाता है डन्डे की लं.कम से कम १ हाथ होनी चाहिए और गिल्ली को ज्यादा से ज्यादा दूर मारने का प्रयास किया जाता है फिर डण्डा माँगा जाता है!जैसे १0 फीट मे १0 डन्डा डन्डे हमेशा १0-१५-२0-२५-३०-३५-४०-४५-५०-५५....ही माँगना है ६-९-४-१३-२7-ये सब नही माँगना है अगर दूसरे खिलाड़ी को सन्देह होता है तो वह नाप सकता है अगर नापने पर कम पड़ जाता है तो आपको कुछ नही मिलेगा जैसे आपने ८० माँगा और 7९ या साढ़े 7९ आता है या इससे भी कम! फिर जैसे आप १00 डन्डा पर खेल रहे तो जो पहले १00 डन्डा पूरा कर लेगा वह जीत जाएगा! फिर दूसरे खिलाड़ी को आप दौड़ा सकते है जिसे फिल्डिंग कहते है अब आप अपने १ पैर को ऊपर करके गिल्ली को पैर के नीचे से हाथ से दूर फेकना होता है यदि खिलाड़ी गिल्ली को कैच कर लेता है तो पारी का अंत हो जाता है यदि ऐसा नही होता है तो दूसरा खिलाड़ी गिल्ली को गोले पचाने का प्रयास करेगा और आप को डन्डे से रोकना है यदि गोले के अंदर रह गई यदि गोले की लकीर पर रह गई या आप गिल्ली को ३ से ज्यादा बार मार या छू देते है तो पारी समाप्त और बाहर निकल गई तो आपको गिल्ली को जमीन से उछाल कर डन्डे से दूर मारना है यदि मारते समय डन्डा जमीन से घिसटता है तो उसे घिसटा कहते है इस पर दूसरा खिलाड़ी ५ पैर गिल्ली के पास से गोले की तरफ आ सकता है चाहे तुरन्त या बाद में! दूसरे खिलाड़ी को पारी समाप्त करने के लिए गिल्ली को गोले मे डालना या कैच पकड़ना होगा! आप गिल्ली को चाहे जिस दिशा में मार सकते है! [[[हिमाँशु शुक्ला मिल्कीपुर फैजाबाद]]]
इस खेल में आँख में चोट लगने की संभावना रहती है। अत: यह खेल बहुत ही सावधानीपूर्वक और खुले स्थान पर खेलना चाहिए।
भारत में खेल
मौखिक प्रशस्ति पत्र परियोजना |
अस्तुरियाई विकिपीडिया विकिपीडिया का अस्तुरियाई भाषा का संकरण है। यह जुलाई २००४ में आरंभ किया गया था और इस पर लेखों की कुल संख्या २५ मई, २००९ तक १२,०००+ है। यह विकिपीडिया का अठहत्तरवां सबसे बड़ा संकरण है। |
निर्मल चंद्र जैन राजस्थान के पूर्व राज्यपाल हैं | वे मध्य प्रदेश से लोकसभा सांसद रह चुके हैं |
राजस्थान के राज्यपाल |
आरण्यक हिन्दू धर्म के पवित्रतम और सर्वोच्च ग्रन्थ वेदों का गद्य वाला खण्ड है। ये वैदिक वाङ्मय का तीसरा हिस्सा है और वैदिक संहिताओं पर दिये भाष्य का दूसरा स्तर है। इनमें दर्शन और ज्ञान की बातें लिखी हुई हैं, कर्मकाण्ड के बारे में ये चुप हैं। इनकी भाषा वैदिक संस्कृत है। वेद, मंत्र तथा ब्राह्मण का सम्मिलित अभिधान है। मंत्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम् (आपस्तंबसूत्र)। ब्राह्मण के तीन भागों में आरण्यक अन्यतम भाग है।
सायण के अनुसार इस नामकरण का कारण यह है कि इन ग्रंथों का अध्ययन अरण्य (जंगल) में किया जाता था। आरण्यक का मुख्य विषय यज्ञभागों का अनुष्ठान न होकर तदंतर्गत अनुष्ठानों की आध्यात्मिक मीमांसा है। वस्तुत: यज्ञ का अनुष्ठान एक नितांत रहस्यपूर्ण प्रतीकात्मक व्यापार है और इस प्रतीक का पूरा विवरण आरण्यक ग्रंथो में दिया गया है। प्राणविद्या की महिमा का भी प्रतिपादन इन ग्रंथों में विशेष रूप से किया गया है। संहिता के मंत्रों में इस विद्या का बीज अवश्य उपलब्ध होता है, परंतु आरण्यकों में इसी को पल्लवित किया गया है। तथ्य यह है कि उपनिषद् आरण्यक में संकेतित तथ्यों की विशद व्याख्या करती हैं। इस प्रकार संहिता से उपनिषदों के बीच की श्रृंखला इस साहित्य द्वारा पूर्ण की जाती है।
आरण्यक शब्द का अर्थ
आरण्यक ग्रन्थों का आध्यात्मिक महत्त्व ब्राह्मण ग्रन्थों की अपेक्षा अधिक है। ये अपने नाम के अनुसार ही अरण्य या वन से सम्बद्ध हैं। जो अरण्य में पढ़ा या पढ़ाया जाए उसे आरण्यक कहते हैं- अरण्ये भवम् आरण्यकम्। आरण्यक ग्रन्थों का प्रणयन प्रायः ब्राह्मणों के पश्चात् हुआ है क्योंकि इसमें दुर्बोध यज्ञ-प्रक्रियाओं को सूक्ष्म अध्यात्म से जोड़ा गया है। वानप्रस्थियों और संन्यासियों के लिए आत्मतत्त्व और ब्रह्मविद्या के ज्ञान के लिए मुख्य रूप से इन ग्रन्थों की रचना हुई है-ऐसा माना जाता है।
आरण्यक ग्रन्थों का विवेच्य विषय
आरण्यक ग्रन्थ वस्तुतः ब्राह्मणों के परिशिष्ट भाग हैं और उपनिषदों के पूर्वरूप। उपनिषदों में जिन आत्मविद्या, सृष्टि और तत्त्वज्ञान विषयक गम्भीर दार्शनिक विषयों का प्रतिपादन है, उसका प्रारम्भ आरण्यकों में ही दिखलायी देती है।
आरण्यकों में वैदिक यागों के आध्यात्मिक और दार्शनिक पक्षों का विवेचन है। इनमें प्राणविद्या का विशेष वर्णन हुआ है। कालचक्र का विशद वर्णन तैत्तिरीय आरण्यक में प्राप्त होता है। यज्ञोपवीत का वर्णन भी इस आरण्यक में सर्वप्रथम मिलता है।
आरण्यक ग्रन्थों का महत्त्व
वैदिक तत्त्वमीमांसा के इतिहास में आरण्यकों का विशेष महत्त्व स्वीकार किया जाता है। इनमें यज्ञ के गूढ़ रहस्यों का उद्घाटन किया गया है। इनमें मुख्य रूप से आत्मविद्या और रहस्यात्मक विषयों के विवरण हैं। वन में रहकर स्वाध्याय और धार्मिक कार्यों में लगे रहने वाले वानप्रस्थ-आश्रमवासियों के लिए इन ग्रन्थों का प्रणयन हुआ है, ऐसा प्रतीत होता है। आरण्यक ग्रन्थों में प्राणविद्या की महिमा का विशेष प्रतिपादन किया गया है। प्राणविद्या के अतिरिक्त प्रतीकोपासना, ब्रह्मविद्या, आध्यात्मिकता का वर्णन करने से आरण्यकों की विशेष महत्ता है। अनेक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तथ्यों की प्रस्तुति के कारण भी आरण्यक ग्रन्थ उपोदय हैं। वस्तुतः ये ग्रन्थ ब्राह्मण ग्रन्थों और उपनिषदों को जोड़ने वाली कड़ी जैसे हैं, क्योंकि इनसे उपनिषदों के प्रतिपाद्य विषय और भाषा शैली के विकास का अध्ययन करने में सहायता मिलती है।
आरण्यकों के मुख्य ग्रंथ निम्नलिखित है :
इसका संबंध ऋग्वेद से है। ऐतरेय के भीतर पांच मुख्य अध्याय (आरण्यक) हैं जिनमें प्रथम तीन के रचयिता ऐतरेय, चतुर्थ के आश्वलायन तथा पंचम के शौनक माने जाते हैं। डाक्टर कीथ इसे निरुक्त की अपेक्षा अर्वाचीन मानकर इसका रचनाकाल षष्ठ शताब्दी विक्रमपूर्व मानते हैं, परंतु वस्तुत: यह निरुक्त से प्राचीनतर है। ऐतरेय के प्रथम तीन आरण्यकों के कर्ता महिदास हैं इससे उन्हें ऐतरेय ब्राह्मण का समकालीन मानना न्याय्य है।
इसका भी संबंध ऋग्वेद से है। यह ऐतरेय आरण्यक के समान है तथा पंद्रह अध्यायों में विभक्त है जिसका एक अंश (तीसरे अ. से छठे अ. तक) कौषीतकि उपनिषद् के नाम से प्रसिद्ध है।
दस परिच्छेदों (प्रपाठकों) में विभक्त है, जिन्हें "अरण" कहते हैं। इनमें सप्तम, अष्टम तथा नवम प्रपाठक मिलकर "तैत्तिरीय उपनिषद" कहलाते हैं।
वस्तुत: शुक्ल युजर्वेद का एक आरण्यक ही है, परंतु आध्यात्मिक तथ्यों की प्रचुरता के कारण यह उपनिषदों में गिना जाता है।
सामवेद से संबद्ध एक ही आरण्यक है। जिसमें चार अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय में कई अनुवाक। चतुर्थ अध्याय के दशम अनुवाक में प्रख्यात तवलकार (या केन) उपनिषद् है।
आरण्यक ग्रन्थों का विभाजन
हर वेद का एक या अधिक आरण्यक होता है। अथर्ववेद का कोई आरण्यक उपलब्ध नहीं है। आरण्यकों का वेदानुसार परिचय इस प्रकार है-
कौषीतकि आरण्यक या शांखायन आरण्यक
तावलकर (या जैमिनीयोपनिषद्) आरण्यक
(कोई उपलब्ध नहीं)
यद्यपि अथर्ववेद का पृथक् से कोई आरण्यक प्राप्त नहीं होता है, तथापि उसके गोपथ ब्राह्मण में आरण्यकों के अनुरूप बहुत सी सामग्री मिलती है। |
पडिगॆपाडु (कर्नूलु) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कर्नूलु जिले का एक गाँव है।
आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट
आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग
निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल
आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट |
औरंगाबाद रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड: अब) सिकंदराबाद-मनमाड खंड पर स्थित एक रेलवे स्टेशन है जो मुख्य रूप से औरंगाबाद शहर को सेवा मुहैया कराता है। यह रेलवे स्टेशन दक्षिण मध्य रेलवे ज़ोन के नांदेड़ मंडल के अंतर्गत आता है। इसके द्वार शहर हैदराबाद, दिल्ली, निजामाबाद, नागपुर, नासिक, पुणे, नांदेड़ और लातूर रोड जैसे प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुडे हुए है।
औरंगाबाद रेलवे स्टेशन १९०० में खोला गया था। इसे हैदराबाद के ७ वें निजाम मीर उस्मान अली खान ने बनवाया था। उनकी महारानी निज़ाम ने निज़ाम के गारंटीड स्टेट रेलवे के तहत गोदावरी घाटी रेलवे कंपनी बनाई। 18७६ में ६वें निजाम मीर महबूब अली खान के शासन के दौरान काम शुरू हुआ। हैदराबाद और बेजवाड़ा के बीच पहले रेलमार्ग का निर्माण किया गया था।
सिकंदराबाद और वाडी के बीच पहली ब्रॉड गेज लाइन का निर्माण १८८५ में किया गया था। हैदराबाद-मनमाड लाइन का काम १९०० में पूरा हुआ। हैदराबाद-जयपुर मीटर लाइन का काम शुरू हुआ और १९०६ में पूरा हुआ।
१९५० में निज़ाम ग्रांटेड रेलवे का राष्ट्रीयकरण किया गया और उसे भारतीय रेलवे में मिला लिया गया। १९९२ में, सिकंदराबाद मनमाड रेलमार्ग का ९४ मीटर गेज का काम पूरा हो गया था। २००४ में, भारतीय रेलवे द्वारा निज़ाम रेलवे लाइन को ब्रॉड गेज में परिवर्तित किया गया।
औरंगाबाद रेलवे स्टेशन दक्षिण मध्य रेलवे के नांदेड़ उप-मंडल के अंतर्गत आता है। यह मनमाड जंक्शन (मध्य रेलवे) से हुजूर साहेब नांदेड़ स्टेशन (दक्षिण मध्य रेलवे) लाइन के बीच स्थित है। औरंगाबाद रेलवे स्टेशन नांदेड़ मंडल का एकमात्र स्टेशन है जिसे "ए-१" श्रेणी का दर्जा प्राप्त है। औरंगाबाद स्टेशन देश के मॉडल स्टेशनों में से एक है। इसमें ५ प्लेटफॉर्म हैं जिनमें से ४ का इस्तेमाल यात्री सेवाओं के लिए किया जाता है। औरंगाबाद स्टेशन में कई सुविधाएं हैं, शहर महाराष्ट्र की पर्यटन राजधानी भी है।
औरंगाबाद का मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद, चेन्नई सेंट्रल, निजामाबाद, लातूर रोड, नांदेड़, नागपुर, नासिक, पुणे, विशाखापत्तनम के साथ रेल माध्यम से जुड़ा हुआ है। औरंगाबाद जन शताब्दी एक्सप्रेस इसे मुंबई से जोड़ने वाली सबसे तेज़ ट्रेन है। औरंगाबाद से कुछ महत्वपूर्ण ट्रेनें सचखंड एक्सप्रेस, देवगिरी एक्सप्रेस, अजंता एक्सप्रेस, औरंगाबाद जन शताब्दी आदी चलती है।
औरंगाबाद शहर की सीमा के भीतर दो और स्टेशन हैं। एक चिकलथाना रेलवे स्टेशन है और दूसरा नवनिर्मित मुकुंदवाड़ी रेलवे स्टेशन है।
गूगल "औरंगाबाद रेलवे स्टेशन" (मानचित्र)। गूगल मैप्स । गूगल।
विकिडेटा पर उपलब्ध निर्देशांक
महाराष्ट्र में रेलवे स्टेशन
नांदेड़ रेलवे मंडल
औरंगाबाद ज़िला, महाराष्ट्र |
३६ अक्षांश दक्षिण (३६त परलेल साउथ) पृथ्वी की भूमध्यरेखा के दक्षिण में ३६ अक्षांश पर स्थित अक्षांश वृत्त है। यह काल्पनिक रेखा हिन्द महासागर, प्रशांत महासागर व अटलांटिक महासागर के दक्षिणी भाग और दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया व न्यूज़ीलैण्ड के भूमीय क्षेत्रों से निकलती है।
इन्हें भी देखें
३७ अक्षांश दक्षिण
३५ अक्षांश दक्षिण |
दौंबांस, पिथौरागढ (सदर) तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
दौंबांस, पिथौरागढ (सदर) तहसील
दौंबांस, पिथौरागढ (सदर) तहसील |
फतेहपुर चौरासी (फतेहपुर चौरसी) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के उन्नाव ज़िले में स्थित एक नगर है।
इन्हें भी देखें
उत्तर प्रदेश के नगर
उन्नाव ज़िले के नगर |
धनबाद के पास स्थित झरिया भारत के झारखंड प्रान्त का एक शहर है।
झारखंड के शहर |
केलहनपुर बीहता, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है।
गाँव, केलहनपुर, बीहता |
चेतन आनन्द भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक थे। वह प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता देव आनन्द के बड़े भाई थे। १९४९ में उन्होंने अपने भाई देव आनन्द के साथ नवकेतन फ़िल्मस् की स्थापना की जो कि फ़िल्मों का निर्माण करने वाली कम्पनी थी। उनकी छोटी बहन शान्ता कपूर प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक शेखर कपूर की माँ हैं।
इन्हें भी देखें
१९१५ में जन्मे लोग |
आंत्रशोथ आंत की सूजन, विशेष रूप से छोटी आंत
आंत्रशोथ के लक्षण आमतौर पर संक्रमण के २४-४८ घंटे बाद पतले, पानी जैसे दस्त का २४ घंटे के भीतर तीन या अधिक बार होना शामिल है।
अन्य लक्षणों में:
मतली और उल्टी
पेट में ऐंठन
बेहोशी और कमजोरी
भूख ना लगना
डिहाइड्रेशन होता है क्योंकि उल्टी और दस्त के कारण तरल पदार्थों की कमी हो जाती है.
यह रोग प्रमुखतया कुछ विशेष वायरस के संक्रमण से या कभी-कभी बैक्टीरिया, उनके विषाक्त पदार्थों, पेरासाइट्स या आहार या दवा में किसी चीज़ के के रियेक्शन से होता है।
रोग कैसे फैलता है?
यह एक संक्रामक बीमारी है। स्वछता में कमी के परिणाम से गैस्ट्रोएन्टेराइटिस हो सकता है। उदाहरण के लिए, शौचालय में जाने के बाद या एक बच्चे के लंगोट बदलने के बाद सही तरीके से हाथ ना धोने से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रामक कीटाणु फ़ैल सकते हैं। यह दूषित भोजन या पानी को लेने से भी फैल सकता है |
किकिकि हना दुनिया का सबसे छोटा उड़न कीड़ा है। इसकी लंबाई ०.१६ मिलीमिटर है। यह बहुकोशिकीय जीव एक कोशिकीय जीव से भी छोटा है। यह सर्वप्रथम त्रिनिदाद में पाया गया था। बाद में यह हवाई, आस्ट्रेलिया और अर्जेंटिना में भी मिला। २०१५ में यह भारत के तमिलनाडू में भी पाया गया है। टीनी बित फाउंड इन इंडिया तो - थे हिन्दू
इसका नाम हवाइन (हवाईयन) से व्युत्पन्न है जिसका अर्थ है बहुत छोटा। इसकी गतिविधियों के बारे में अभी अधिक जानकारी नहीं है। यह भी अपना अंडा दूसरे कीड़े के अंडे में देता है। इसके जीवन की सारी अवस्थाएं एक अंडे में ही बीतती है जिसमें यह एक व्यस्क कीड़ा बनता है। |
वाशी (वाशी) भारत के महाराष्ट्र राज्य के उस्मानाबाद ज़िले में स्थित एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
महाराष्ट्र के गाँव
उस्मानाबाद ज़िले के गाँव |
राजीव प्रताप रूडी (जन्म २३ मार्च १९६२) बिहार के सारण से लोकसभा सांसद हैं। रूडी केंद्र सरकार में कौशल विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रह चुके हैं। वे बिहार से राज्यसभा के सांसद भी चुने जा चुके हैं। वे भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। वे यूएस फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (फा) अनुमोदित मियामी, फ्लोरिडा के सिमसेंटर (सिमसेंटर) से ए-३२० विमान उड़ाने की विशेषज्ञता प्राप्त वाणिज्यिक पायलट लाइसेंसधारक हैं।
राजीव प्रताप रुडी का जन्म बिहार के पटना में ३० मार्च १९६२ को विश्वनाथ सिंह और प्रभा सिंह के यहाँ हुआ था। वह बिहारी राजपूत जमींदार परिवार से हैं। उनका पैतृक गांव अमनौर प्रखण्ड (सारन), बिहार है।
पाँच वर्ष की अल्प आयु में ही अपने पिता - जो बिहार सरकार में एक वरिष्ठ अधिकारी के रूप में सेवारत थे - को खोने के बाद उनका पालन-पोषण उनकी माँ द्वारा किया गया जिन्होंने बड़े गर्व और हिम्मत के साथ अपने दो बेटों और तीन बेटियों को बड़ा किया; उनके बेटे भारतीय पुलिस सेवा में एक वरिष्ठ अधिकारी तथा भारतीय वायु सेना में एक लड़ाकू पायलट के पद तक पहुंचे और तीन बड़ी बहनें शादी करके बस गयी हैं।
उनकी शादी हिमाचल प्रदेश की नीलम प्रताप से १९९१ में हुई, जो हाल तक इंडियन एयरलाइंस की एक सहायक कंपनी एलायंस एयर में इनफ्लाइट की प्रमुख के रूप में कार्यरत थीं। उनकी दो बेटियों हैं- अवश्रेया रूडी और अतिशा प्रताप सिंह - जो दिल्ली में अध्ययन पूरी की।
रूडी ने सेंट माइकल हाई स्कूल, पटना से अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की। बाद में, उन्होंने सेक्टर १० में चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज से पूर्व प्री-यूनिवर्सिटी और प्री-इंजीनियरिंग पूरा किया। रूडी ने सरकारी कॉलेज, चंडीगढ़, ११ में अर्थशास्त्र में बीए (ऑनर्स) में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। रुडी ने १९८५ में पंजाब विश्वविद्यालय से कानून में डिग्री और १९८७ में मगध विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर किया। चुनावी दंगल में उतरने से पहले पटना के ए. एन. कॉलेज में लेक्चरर थे।
रुडी १९८९ में चंडीगढ़ लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हरमोहन धवन के प्रभारी अभियान थे। वह सक्रिय रूप से पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से जुड़े थे। १९९० में महज छब्बीस साल की उम्र में वे बिहार राज्य विधानसभा के एक विधायक के रूप में चुने गए; उनकी गिनती सबसे कम उम्र के विधायकों में से एक के रूप में की जाती है।
उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्र संघ के एक नेता के रूप में हुई; सबसे पहले वे गवर्नमेंट कॉलेज, चंडीगढ़ के अध्यक्ष चुने गए और बाद में पंजाब विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव के रूप में निर्वाचित हुए. विश्वविद्यालय राजनीति के पश्चात वे बिहार वापस लौटे और दूरदराज के एक ग्रामीण क्षेत्र में एक दशक तक काम किया। उसके पश्चात वे भारतीय जनता पार्टी की युवा शाखा के सक्रिय सदस्य बने भारतीय जनता युवा मोर्चा (बीजेयाईएम) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद धारण किया।
१९९६ में वे बिहार के छपरा से भारतीय जनता पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में संसद के लिए निर्वाचित हुए। १९९९ में वे फिर से चुने गए और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार में वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री के रूप में शामिल हुए और बाद में उन्हें पदोन्नत करते हुए एक स्वतंत्र प्रभार के साथ नागरिक उड्डयन मंत्री बना दिया गया।
वाजपेयी सरकार (१९९८-२००४) में उन्होंने वाणिज्य मंत्री और बाद में नागरिक विमानन मंत्री के रूप में सेवा की। उस कार्यकाल के दौरान, रूडी ताज एक्सोटिका रिज़ॉर्ट एंड स्पा, गोवा में अपने बिलों के भुगतान के विवाद में थे, जिसे बाद में उन्हें भुगतान करना पड़ा।
२००४ में छपरा (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) में आम चुनावों में लालू प्रसाद यादव से रूडी हार गईं। वह २०१० में बिहार से राज्यसभा के लिए चुने गए थे। उन्होंने २०१४ लोकसभा चुनावों से सारण लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को हराया। उन्होंने ९ नवंबर २०१४ को राज्य मंत्री के रूप में शपथ ली और कौशल विकास और उद्यमिता के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्राप्त किए।
अक्टूबर २०१५ में, राजीव प्रताप रुडी ने ट्विटर पर बिहार विधान सभा चुनाव,२०१५ के दौरान नीतीश कुमार के वोट अपील के विज्ञापन को लेकर पाकिस्तान की दैनिक डॉन वेबसाइट का एक स्क्रीनशॉट साझा करने पर ट्विटर पर साझा करने पर एक विवाद में था, जिससे जेडी (यू) ने तेज हमला शुरू किया उसे और तत्काल बर्खास्तगी की तलाश है। उन्होंने २/९/२017 को आने वाले पुनर्वितरण से पहले ३१/८/२017 को कैबिनेट से अपना इस्तीफा सौंप दिया।
मई २०२१ में, राजीव प्रताप रूडी की आलोचना की गई, जब ३० अप्रयुक्त एम्बुलेंस को उनके अमनौर सामुदायिक केंद्र में पार्क किया गया था, तब भी जब बिहार कोविड-१९ महामारी की दूसरी लहर के तहत संघर्ष कर रहा था। ये एम्बुलेंस संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (म्प्लेड्स) के धन का उपयोग करके खरीदी गई थीं। जन अधिकार पार्टी के प्रमुख पप्पू यादव ने रूडी द्वारा चलाए जा रहे सामुदायिक केंद्र पर छापा मारा।
वे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य होने के साथ-साथ भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और गोवा के राज्य प्रभारी के रूप में भी कार्यरत हैं। वे भाजपा के लिए गोवा के प्रभारी के रूप में भी कार्य करते हैं। वे बिहार से राज्यसभा के सदस्य हैं और प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के प्रवक्ता भी हैं। वर्तमान में वे माननीय अध्यक्षा द्वारा नामित सचिव (प्रशासन) के रूप में संविधान क्लब की देखभाल करते हैं।
वे काफी बड़े पैमाने पर देश-दुनिया घूमे हुए हैं; संसदीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में, मंत्रिस्तरीय कार्य या इंटरेक्टिव अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और सेमिनार में भाग लेने के लिए दुनिया भर के कई देशों का दौरा किया है, जबकि अन्य स्थानों पर एक पर्यटक के रूप में जाते रहे हैं।
वे संसद में उत्तरी बिहार के सारण का प्रतिनिधित्व करते हैं जो एक काफी पिछड़ा और मुख्य रूप से एक ग्रामीण क्षेत्र है। उन्हें अपने क्षेत्र में कई अभिनव विकास योजनाओं और सामाजिक कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक चलाने का श्रेय दिया जाता है।
इन्हें भी देखें
सैयद शाहनवाज हुसैन
एम॰ जे॰ अकबर
रवि शंकर प्रसाद
सोनपुर के नयागाँव में गंगा तट पर मालवाहक यातायात का टर्मिनल
छपरा में डबल डेकर फ्लाईओवर के फाउंडेशन स्टोन को रखने के एक समारोह पर पता
भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिज्ञ
बिहार के लोग
१९६२ में जन्मे लोग |
इस्लामाबाद अंतर्राष्ट्रीय विमान क्षेत्र (आईएसबी , आईसीएओ : ओपीआईएस) पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद की सेवा करने वाला अंतरराष्ट्रीय विमान क्षेत्र है। यह शहर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है, और इस विमान क्षेत्र में श्रीनगर राजमार्ग के माध्यम से पहुँचा जा सकता है।
इस्लामाबाद अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की वेबसाइट |
राफेल बम्बेली (रफ़ेल बॉम्बली ; २० जनवरी १५२६ १५७२) इटली का गणितज्ञ था। उसका जन्म बोलग्ना में हुआ था। उसने बीजगणित के एक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की थी तथा काल्पनिक संख्याओं का यथार्थ सामने लाने में उसकी उल्लेखनीय भूमिका थी।
अपनी पुस्तक (अल्जेब्रा) में बम्बेल्ली ने पूर्व में ब्रह्मगुप्त द्वारा प्रतिपादित ऋणात्मक संख्याओं से सम्बन्धित नियम को बहुत ही सरल भाषा में लिखा। इस पुस्तक में उसने 'अल्जेब्रा' के बारे में लिखा है कि अल्जेब्रा भारत में खोजा गया 'उच्च गणित' है। (सन्दर्भ: ट्रैवलिंग मैथेमेटिक्स - थे फते ऑफ दायोफैंटोज़' अरीथ्मेटिक बाय अध मेस्केन्स, स्प्रिंजर, पाग १४३)
इन्हें भी देखें
राफेल (इटली का चित्रकार) |
मानक प्रतिमान या मानक मॉडल, भौतिकशास्त्र का एक सिद्धान्त है जिसका संबंध विद्युत्-चुम्बकीय, दुर्बल तथा प्रबल नाभिकीय अन्तःक्रियाओं से है। ये ऐसी अन्तःक्रियाएँ हैं, जो कि ज्ञात उपपारमाण्विक कणों की गतिकी की व्याख्या करती हैं। इसका विकास बीसवीं सदी के मध्य से लेकर देर-सदी तक हुआ। ये कई हाथों से बुना हुआ एक पट है, जो कि कभी तो नई प्रायोगिक खोजों से आगे बढ़ा तो कभी सैद्धान्तिक प्रगतियों से। इसका विकास सही अर्थों में सहकार के साथ हुआ है, जो महाद्वीपों और दशकों में विस्तृत है।
इसका आज का प्रारूप १९७० के दशक के मध्य में बना, जबकि क्वार्क का अस्तित्व सुनिश्चित किया गया। उसके बाद तो तल क्वार्क (१९७७), शीर्ष क्वार्क (१९९५) और टॉ क्वार्क (२०००) की खोज ने मानक प्रतिमान की साख और बढ़ा दी। अधिक हाल की घटना के रूप में २०११-२०१२ में हिग्स बोसॉन की खोज ने इसके सारे अनुमानित कणों का समुच्चय पूरा कर दिया है। प्रायोगिक परिणामों की दीर्घ शृंख्ला की सफलतापूर्वक व्याख्या कररने के कारण मानक प्रतिमान को कभी कभी "लगभग सबकुछ का सिद्धान्त" भी कहा जाता है।
मानक प्रतिमान मौलिक अन्तःक्रियाओं का सम्पूर्ण सिद्धान्त होते होते रह जाता है, क्योंकि इसमें से गुरुत्वाकर्षण का समूचा सिद्धान्त ही गायब है, साथ ही यह विश्व के त्वरित विस्तार की भविष्यवाणी भी नहीं करता है (जैसा कि अन्धकार-ऊर्जा द्वारा वर्णित है)।
टिप्पणियाँ एवं सन्दर्भ
"सर्न जॉन एलिस द्वारा मानक प्रतिमान की विस्तारित प्रतिपादन" पॉड्कस्ट.
"लैक ने हल्के हिग्स बोसॉन का संकेत देखा।" "नवोदित वैज्ञानिक पत्रिका".
फर्मीलैब में "टॉप क्वार्क का प्रेक्षण"।
विद्युत-चुम्बकीय-दुर्बल सममिति विघटन के पश्चात हिग्स बोसॉन रहित "मानक प्रतिमान लान्ग्राजियन"।
स्पष्ट हिग्स बोसॉन व्यंजकों सहित "मानक प्रतिमान लान्ग्राजियन"। पीडीएफ, पोस्टस्क्रिप्ट और लेटेक्स संस्करण।
"कण प्रोद्यम" का वेब अनुशिक्षण। |
हाथी गण या प्रोबोसीडिया (प्रवोस्किडिया), शुंडधारी जंतुओं का एक गण है। भारत तथा अफ्रीका में पाए जानेवाले हाथी 'स्तनपायी' वर्ग के 'शुंडी' गण के जंतुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये जंतु अपने शुंड एवं विशाल शरीर के कारण अन्य जीवित स्तनपायी जंतुओं से भिन्न होते हैं। परंतु इन्हीं जंतुओं के सदृश आकारवाले कई विलुप्त जंतुओं के जीवाश्म पूर्व काल से ज्ञात हैं। उन प्राचीन जंतुओं की तुलना अन्य स्तनपायी जंतुओं से की जा सकती है।
हाथी बहुत ही प्राचीन जंतु है। इसकी विशेषताएँ अधिकांशत: इसके दीर्घ आकार से संबंधित हैं। अफ्रीका महादेश के हाथियों की ऊँचाई ११ से १३ फुट तक होती है। अभिलिखित, अधिकतम भार साढ़े छह टन है। अत: अत्यधिक भार एवं संरचना की विशालता में ये सभी स्थलचर जीवित जंतुओं में उत्कृष्ट हैं।
विशाल शरीर का भार वहन करने के लिए इनकी खंभे सदृश भुजाएँ अधिक सुदृढ़ एवं स्थूल होती हैं, जिनके कंकाल की बनावट गठी हुई होती है। पैरों के तलवे का अधिकांश (अंगुलियों के नीचे और पीछे) गद्दीदार होता है, जो इनके शरीर का अधिकांश भार झेलता है।
इनकी ग्रीवा छोटी होती है, विशाल मस्तक के दोनों पार्श्व में दो बृहद् कर्ण पल्लव (पिन्ना) तथा नीचे की ओर एक लंबा शुंड होता है। शुंड नम्य तथा मांसल नली के सदृश एक परिग्राही (प्रहन्सीले) अंग है, जो किसी भी दिशा में घूम सकता है। इसके अग्र छोर पर अंगुलियों के समान एक या दो रचनाएँ होती हैं, जो पैसे जैसी क्षुद्र वस्तु को भी सुगमता से उठा सकती हैं। शुंड मुख (फेस) के संपूर्ण अग्रभाग, विशेषत: नासा एवं ओष्ठ का ही परिवर्तित रूप हैं। दोनों नासा छिद्र शुंड के अग्र छोर पर होते हैं, जिनका संबंध शुंड के आधार पर स्थित घ्राणकोष्ठ (ओल्फक्टरी चंबर) के दो लंबी नलियों के द्वारा होता है।
अस्थियों के स्थूल एवं छिद्रित होने के कारण हाथियों की करोटि (स्कुल) अपेक्षया बहुत छोटे आकार की तथा हल्की होती है। करोटि की संरचना एक उत्तोलक (लीवर) के समान होती है, फलस्वरूप मस्तक का भार वहन करने के लिए लंबी ग्रीवा की आवश्यकता नहीं होती।
हाथियों के चर्वण-दंत, डेन्टीन (डेंटीन) की पतली पट्टियों से बने होते हैं, जो दंतवल्कल (एनामेल) से घिरे तथा सीमेंट (सीमेंट) से जुड़े होते हैं। ये पट्टियाँ पीसनेवाले धरातल के ऊपर उभरी होती हैं। ये दंत तथा इनकी पट्टियाँ क्रमश: प्रयोग में आती हैं, फलस्वरूप पूर्ण दंतपट्टियाँ एक साथ नहीं घिस पातीं। दाँतों की अधिकतम संख्या २८ होती है, परंतु यह इस प्रकार काम में आते तथा घिसते हैं कि एक समय में केवल ८ चर्वण दंत ही प्रयोग में आ पाते हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर वृंतक दंत (उपर इन्सिसर तीत) या गज दंत (तुस्क) दो छोटे दुग्ध दंत (मिल्क टुस्क्स) के टूटने के बाद ही प्रगट होते हैं। दंतवल्कल के द्वारा बने अग्र छोर के अतिरिक्त गज दंत के शेष भाग डेंटीन के बने होते हैं। इनकी वृद्धि आजीवन होती रहती है। वैज्ञानिकों के अभिलेखों में अफ्रीका के हाथियों के गज दंत की अधिकतम लंबाई १० फुट ३/४ इंच तथा भार २३९ पाउंड तक मिलता हैं।
हाथियों के मेरुदंड (वर्टिब्राल कॉलम) के ग्रीवा भाग में छह छोटी छोटी कशेरुकाएँ (वर्टिब्रा) तथा पृष्ठ भाग में १९ से २१ कशेरुकाएँ तक होती हैं। पृष्ठ भाग की अग्र कशेरुकाओं के तंत्रिकीय कंटक (न्यूरल स्पाइनस) अधिक लंबे होते हैं। कटि क्षेत्र (लम्बर रेशन) में तीन या चार कशेरुकाएँ होती हैं, तथा सेक्रम (सक्रम) चार कशेरुकाओं के एक साथ जुड़ जाने से बना होता है। पुच्छीय (कौदल) कशेरुकाओं की संख्या तीस के निकट होती है। पसली की अस्थियाँ (रिब्स) अधिक लंबी होती हैं, जिनसे विशाल वक्ष (थोरक्स) घिरा रहता है। अंस मेखला (सोल्डर गिर्दले) एक त्रिकोणात्मक स्कंधास्थि का बना होता है, जो वक्ष के पार्श्व में उदग्र रूप से लगा रहता है। प्रगंडिका (हमेरूस), अग्र बाहु (फोर आर्म) से अधिक लंबी होती है, फलस्वरूप हाथियों की कुहनी (एल्बॉ) लंबाई में अश्वों की कलाई (रिस्ट) के कुछ ही ऊपर रहती है। बहिःप्रकोष्ठिका (रेडियस) तथा अंतःप्रकोष्ठिका (उलना) की रचना विचित्र होती है। उनकी वे सतहें जो मणिबंधिकाओं (कार्पिल्स) से जुड़ती हैं, लगभग बराबर होती है, परंतु बहिःप्रकोष्ठिका का अग्र भाग अपेक्षया छोटा एवं अंतःप्रकोष्ठिका के सम्मुख होता है। ये दोनों अस्थियाँ एक दूसरे को काटती हुई पीछे की ओर आती हैं। मणिबंधिका की रचना भी असमान होती है, क्योंकि मणि बंधिकास्थियाँ जिनकी दो पंक्तियाँ होती हैं, एक सीध में न होकर एक दूसरे के अंदर होती हैं। अंगुलियों तथा पादांगुलियों के अग्र छोर पर हाथी चलता है परंतु हथेली और तलवे के मांसल एव गद्देदार होने से विशाल शरीर का संपूर्ण भार अंगुलियों के छोर पर नहीं आ पाता। श्रोणि प्रदेश (पेइविस) असाधारण रूप से चौड़ा होता है। श्रोणि, (इलिया) चौड़ी होती है, जिसके पश्चभाग से मांस पेशियाँ पैरों के साथ जुड़ी होती है तथा पार्श्व भाग से देहभित्ति की मांसपेशियाँ जुड़ी रहती हैं। अग्रबाहु के सदृश पैरों के ऊपरी भाग की लंबाई अधिक होती है। गुल्फ (टारसूस) में अनुगुल्फिका (एस्त्रगलस) भार वहन करने के लिए चौड़ी होती है।
हाथियों के अन्य अंगों की आंतरिक रचना सामान्य होती है। नासा एवं ओष्ठ के द्वारा बने हुए शुंड के अतिरिक्त इनके अन्य अंगों में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता। फुप्फुसावरणी गुहा (प्लुरल केविटी) की अनुपस्थिति इन जंतुओं की मुख्य विशेषता है। इनके उदरीय वृषण (एबडोमिनल टेस्ट्स), द्विशृंगी गर्भाशय (बाइकोर्नुएट उतेरस) तथा प्रादेशिक एवं परानिकामय अपरा (जोनरी एंड देसिदुएट प्लेसेंटा) विशेष उल्लेखनीय हैं, क्योंकि साइरेनिया (साइरेनिया) गण के जंतुओं में भी ये विशेषताएँ मिलती हैं। अनुमानत: साइरेनिया गण की उत्पत्ति इन्हीं प्राचीन शुंडी जीवों से हुई हैं।
इनके मस्तिष्क की रचना प्राचीनकालीन है। अग्र मस्तिष्क, पश्च मस्तिष्क को पूर्ण रूपेण नहीं ढँक पाता है। आकार की विशालता तथा ऊपरी भाग के आवर्त इसकी मुख्य विशेषताएँ हैं। इनकी स्मरण शक्ति अद्भुत होती है। ये अपने शत्रु, मित्र, तथा अपने शरीर के क्षतों की शीघ्र नहीं भूलते। प्रिय फलों के परिपक्व होने का समय इन्हें ज्ञात रहता है। प्रशिक्षण के पश्चात् ये कठिन श्रम भी करते हैं। मुख्यत: नर अधिक लजीले स्वभाव के होते हैं। इनकी दृष्टि क्षीण परंतु घ्राण एवं श्रवण शक्ति तीव्र होती है।
अर्वाचीन हाथी शारीरिक रचना में प्राचीन हाथियों से सर्वथा भिन्न हैं परंतु इनका आकार क्रमश: कालांतर में विकसित हुआ है। इनके सबसे प्राचीन पूर्वज मोरीथीरियम (आद्य शुंडी प्रजाति, मोएरीथेरियम) नामक जंतु के अवशेष जीवाश्म के रूप में मिस्र देश में पाए गए हैं। ये उत्तर प्रादिनूतन (उपर एओसेने) के जीव आकार में छोटे तथा अनुमानत: शुंडरहित थे। इनके संमुख के सभी दंत वर्तमान थे, जिनमें ऊपर और नीचे के एक एक जोड़े अधिक लंबे थे। सभी चर्वण दंत अति साधारण आकार के थे। इस प्रकार बाह्य रूप से सर्वथा भिन्न होने पर भी कई दृष्टि से ये जीव वर्तमान काल के हाथियों के आदि पूर्वज माने गए हैं।
मोरीथीरियम के अधिक विकसित रूप मैस्टोडॉन्स (मस्तोडोंस) या शंकुदंत प्रजाति के जीवाश्म भी मिस्र देश में पाए गए हैं। इनका वृद्धिकाल अल्पनूतन युग (ओलिगोसेने) से अत्यंतनूतन युग (प्लैस्टोसीने) के बीच का समय माना गया है। सभी प्राचीन मैस्टोडॉन्स के दोनों जबड़ों में गजदंत वर्तमान थे। ये गजदंत सर्वप्रथम वक्र नहीं थे। जबड़े अधिक बड़े तथा अस्थिमय थे, तथा नासा नली लंबी थी, परंतु केवल अग्र भाग ही संभवत: नम्य था।
इस प्रकार धीरे धीरे जबड़े तथा नीचे के गजदंत छोटे आकार के तथा ऊपर के गजदंत अधिक वक्र तथा शुंड अधिक नम्य होते गए। 'मैस्टोडॉन्स' के अग्राकृति तथा अर्वाचीन हाथियों के मस्तक क्रमश: इसी प्रकार परिवर्तित एवं विकसित हुए। प्रारंभिक 'मेस्टोडॉन्स' के चर्वण दंत आकार में अति साधारण तथा निम्न शिखरवाले (लो क्राउनेड) थे। उनकी ऊपरी सतह अवधि उभरी हुई नहीं थी। परंतु आकार की वृद्धि एवं खाद्य पदार्थ में भिन्नता आने से दंतविन्यास में अधिक परिवर्तन आए।
यद्यपि मैस्टोडॉन्स का उद्भव अफ्रीका महादेश में हुआ, तथापि ये शीघ्र ही पृथ्वी के अन्य भागों में प्रसृत हो गए। इस प्रकार मध्य नूतन (मिओसीने) एवं अतिनूतन (प्लिओसिने) युग में ये संपूर्ण उत्तरी भूक्षेत्र में तथा अत्यंतनूतन युग में दक्षिण अमरीका तक फैल गए। अत्यंतनूतन युग के प्रारंभ में ही प्राचीन भू क्षेत्र से इनका विनाश हो गया, परंतु अमरीका में वर्तमान युग के दस बीस हजार वर्ष पहले तक ये वर्तमान रहे।
इन्हें भी देखें |
केलिफोर्निया इनसेफालाइटिस वाइरस एक विषाणु है।
वाइरस, केलिफोर्निया इनसेफालाइटिस |
देशबंधु डोगरा नूतन डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास क़ैदी के लिये उन्हें सन् १९८२ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत डोगरी भाषा के साहित्यकार |
फाराखोली, भनोली तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
फाराखोली, भनोली तहसील
फाराखोली, भनोली तहसील |
शिवगंगा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र भारत के तमिल नाडु राज्य का एक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र है।
तमिल नाडु के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र |
हिम्मतनगर (हिमातनागर) भारत के गुजरात राज्य के साबरकांठा ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है और हाथमती नदी के किनारे बसा हुआ है।
इन्हें भी देखें
गुजरात के शहर
साबरकांठा ज़िले के नगर |
नवलगढ़ (नवलगढ़) भारत के राजस्थान राज्य के शेखावाटी क्षेत्र के झुंझुनू ज़िले में स्थित एक नगर है।
यह १५ किमी मुकुंदगढ़ के दक्षिण में और १० डुण्डलोद से दूर पड़ता है। नवलगढ के सीमावर्ती गाँव उत्तर में मोहब्बतसर, चेलासी, चेलासी ढ़हर, नवलड़ी, पूर्व में सैनीनगर, बिरोल दक्षिण में झाझड़, बेरी और पश्चिम में बिडो़दी बड़ी हैं तथा कस्बा उत्तर में डुण्डलोद, है। नवलगढ़ यह एक रेलवे-स्टेशन भी है।
ठाकुर नवल सिंह जी बहादुर (शेखावत) ने १७३७ ई. में नवलगढ़ की स्थापना थी। मारवाड़ी समुदाय के कई महान व्यापारिक परिवार नवलगढ़ मूल के है। नवलगढ़ उच्च दीवारों (परकोटा) और अलग अलग दिशाओं में चार परास्नातक (फाटकों), अगूना दरवाजा, बावड़ी दरवाजा (उत्तर में), मंडी दरवाजा और नानसा दरवाजा से मिलकर सुसज्जित घेरे में सुरक्षित किया गया था।
नवलगढ़ शहर सीकर एवं झुंझनू (ज़िला मुख्यालय) से लगभग समान दूरी पर स्थित है। यह झुंझनू से क़रीब ३९ किलोमीटर दूर है, जबकि सीकर से मात्र ३० किलोमीटर। जयपुर, दिल्ली, अजमेर, कोटा और बीकानेर से यह सड़क मार्ग से सीधे जुड़ा हुआ है। जयपुर यहां से क़रीब १४० किलोमीटर है, जबकि राष्ट्रीय राजधानी, दिल्ली, क़रीब २७२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जयपुर-लोहारू मार्ग पर स्थित नवलगढ़ ब्रॉडगेज रेल लाइन से जुड़ा हुआ है। हेरिटेज ऑन व्हील्स, यह एक लक्ज़री टूरिस्ट ट्रेन है, जो नवलगढ़ और शेखावाटी को क़रीब से देखने का अवसर प्रदान करती है।
नवलगढ़ का किला, रूप निवास पैलेस, शीशमहल, पोद्दार कॉलेज टावर, लक्ष्मी नृसिंह मंदिर और गोपीनाथ जी मंदिर दर्शनीय आकर्षण हैं।
शेखावाटी के किलों एवं हवेलियों में बनी सुंदर फ्रेस्को पेंटिंग्स दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। इसी के चलते शेखावाटी अंचल को राजस्थान के ओपन आर्ट गैलरी की संज्ञा दी जाती है। १८३० से १९३० के दौरान व्यापारियों ने अपनी सफलता और समृद्धि को प्रमाणित करने के उद्देश्य से सुंदर एवं आकर्षक चित्रों से युक्त हवेलियों का निर्माण कराया। इनमें भगतों की हवेली, छोटी हवेली, परशुरामपुरिया हवेली, छाउछरिया हवेली, सेकसरिया, मोरारका की हवेली एवं पोद्दार हवेली आदि प्रमुख हैं। हवेलियों के रंग शानों-शौकत के प्रतीक बने। समय गुजरा तो परंपरा बन गए और अब तो विरासत का रूप धारण कर चुके हैं। कलाकारों की कल्पना जितना उड़ान भर सकती थी, वह सब इन हवेलियों की दीवारों पर आज देखने को मिल जाता है।
होटल एवं गेस्ट हाऊस
नवलगढ़ में ठहरने के लिए शानदार होटल एवं गेस्ट हाऊस उपलब्ध हैं। इनमें रूपनिवास पैलेस, होटल नवलगढ़ प्लाजा, आपणी होटल, होटल अपणी ढाणी, होटल सिटी पैलेस, नवल होटल, तीज होटल आदि प्रमुख हैं।
शेखावाटी शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी माना जाता है। पिलानी, लक्ष्मणगढ़ और नवलगढ़ ने शैक्षिक परिदृश्य को संवारने का काम किया है। राजस्थान के सबसे पहले महाविद्यालय सेठ ज्ञानीराम बंसीधर पोदार महाविद्यालय, नवलगढ़ की स्थापना यहां १९२१ में हुई थी। स्वयं महात्मा गांधी जी इस कॉलेज के ट्रस्टी थे। नवलगढ़ में सीबीएसई से मान्यता प्राप्त स्कूल के अलावा पॉलीटेक्निक एवं डुण्डलोद इंजीनियरिंग कॉलेज भी है। साथ ही यहां एक सरकारी कॉलेज भी है। नवलगढ़ में वेबविद्या डिजिटल मार्केटिंग इंस्टिट्यूट है, जो डिजिटल मार्केटिंग और स्किल डेवलपमेंट जैसे मॉडर्न कोर्स प्रदान करता है। इस इंस्टीट्यूट में वेबसाइट डिज़ाइन करना,ऑनलाइन एड करना जैसे ३२ मोड्यूल सिखाये जाते है।
धर्म और समारोह
सभी प्रमुख हिंदू और मुस्लिम त्योहारों को मनाते हैं। प्रमुख हिंदू त्यौहारों में से कुछ हैं : होली, दीपावली, रामनवमी, मकर संक्रांति, रक्षाबंधन, सावन, तीज और गौगा, सहकर्मी, गणगौर आदि।
इन्हें भी देखें
सेठ ज्ञानीराम बंसीधर पोदार महाविद्यालय, नवलगढ़
राजस्थान के शहर
झुंझुनू ज़िले के नगर |
राजस्थान के झुंझुनूं जिले के लूणा गांव में १८ जुलाई १९२७ को जन्में मेहदी हसन का परिवार संगीतकारों का परिवार रहा है। मेहदी हसन के अनुसार कलावंत घराने में वे उनसे पहले की १५ पीढ़ियां भी संगीत से ही जुड़ी हुई थीं। संगीत की आरंभिक शिक्षा उन्होंने अपने पिता उस्ताद अजीम खान और चाचा उस्ताद ईस्माइल खान से ली. दोनों ही ध्रुपद के अच्छे जानकार थे। भारत-पाक बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान चला गया। वहां उन्होंने कुछ दिनों तक एक साइकिल दुकान में काम की और बाद में मोटर मेकैनिक का भी काम उन्होंने किया। लेकिन संगीत को लेकर जो जुनून उनके मन में था, वह कम नहीं हुआ।
१९५० का दौर उस्ताद बरकत अली, बेगम अख्तर, मुख्तार बेगम जैसों का था, जिसमें मेहदी हसन के लिये अपनी जगह बना पाना सरल नहीं था। एक गायक के तौर पर उन्हें पहली बार १९५७ में रेडियो पाकिस्तान में बतौर ठुमरी गायक पहचान मिली. उसके बाद मेहदी हसन ने मुड़ कर नहीं देखा. फिर तो फिल्मी गीतों और गजलों की दुनिया में वो छा गये।
१९५७ से १९९९ तक सक्रिय रहे मेहदी हसन ने गले के कैंसर के बाद पिछले १२ सालों से गाना लगभग छोड़ दिया था। उनकी अंतिम रिकार्डिंग २०१० में सरहदें नाम से आयी, जिसमें फ़रहत शहज़ाद की लिखी "तेरा मिलना बहुत अच्छा लगे है" की रिकार्डिंग उन्होंने २००९ में पाकिस्तान में की और उस ट्रेक को सुनकर २०१० में लता मंगेशकर ने अपनी रिकार्डिंग मुंबई में की. इस तरह यह युगल अलबम तैयार हुआ।
सम्मान और पुरस्कार
मेहदी हसन को गायकी के लिये दुनिया भर में कई सम्मान मिले. हजारों ग़ज़लें उन्होंने गाईं, जिनके हजारों अलबम दुनिया के अलग-अलग देशों में जारी हुये. पिछले ४० साल से भी अधिक समय से गूंजती शहंशाह-ए-ग़ज़ल की आवाज की विरासत अब बची हुई है।
अलविदा मेहदी हसन
मेरे उस्ताद मेहदी हसन
मेहदी हसन का निधन |
आप आये बहार आई १९७१ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इसका निर्देशन, निर्माण और लेखन मोहन कुमार ने किया। इसमें राजेन्द्र कुमार, साधना, राजेन्द्रनाथ और प्रेम चोपड़ा हैं। फिल्म का संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने दिया है।
रोहित (राजेन्द्र कुमार), व्हिस्की (राजेन्द्रनाथ) और कुमार (प्रेम चोपड़ा) बचपन के दोस्त हैं। एक बार व्हिस्की के साथ कहीं जाते समय, रोहित सुंदर नीना (साधना) से मिलता है और उसके साथ प्यार में पड़ जाता है। इसके बाद, वह उसके पिता (राज मेहरा) के साथ मिलता है, जहाँ उनका ठीक से परिचय होता है और वह भी उससे प्यार करने लगती है। अनजाने में, कुमार भी नीना से शादी के लिए अपना प्रस्ताव भेजता है, लेकिन वह न केवल इसे अस्वीकार करता है, बल्कि इसका उपहास भी बनाती है। कुमार नाराज हो जाता है। वह बदला लेने की योजना बनाता है। नीना और रोहित की शादी से कुछ समय पहले, जब आधिकारिक रूप से शादी तय हो जाती है, नीना अनजाने में कुमार को रोहित समझकर उसके साथ हो जाती है। अब रोहित और कुमार दुश्मन बन जाते हैं। उनका झगड़ा होता है और कुमार अपनी बाईं आंख में दृष्टि खो देता है। यह महसूस करते हुए कि वह अब रोहित के लायक नहीं है, नीना उससे शादी करने से इंकार कर देती है।
नीना को पता चलता है कि वह कुमार के बच्चे के साथ गर्भवती है और आत्महत्या करने की कोशिश करती है। रोहित उसे ऐसा करने से रोकता है और पास के शिव मंदिर में उससे शादी करता है। रोहित बच्चे को अपने बेटे के रूप में पालता है। कुमार, जो अब एक ज्ञात अपराधी है, रोहित के पास पैसा मांगने आता है। जब वह और रोहित में बहस हो रही होती है, रोहित यह जानकारी बाहर निकाल देता है कि बच्चा उसका नहीं है। कुमार चुपके से इस जानकारी को रिकॉर्ड कर लेता है और उसे ब्लैकमेल करता है। एक दिन वह रोहित के बेटे का अपहरण कर लेता है। रोहित अपने बेटे को वापस पाने के लिए उसके ठिकाने पर जाता है। उनकी लड़ाई के दौरान, रोहित बुरी तरह से घायल हो जाता है, लेकिन तब नीना आती है और कुमार को उसके ही गुंडे की बंदूक से मार देती है। रोहित, नीना और उनका बेटा खुशी से रहते हैं।
राजेन्द्र कुमार रोहित कुमार वर्मा
साधना नीना बख्शी
प्रेम चोपड़ा कुमार
राज मेहरा बख्शी
मुमताज़ बेग़म रोहित की माँ
मीना टी रसीली
१९७१ में बनी हिन्दी फ़िल्म
लक्ष्मीकांतप्यारेलाल द्वारा संगीतबद्ध फिल्में |
Subsets and Splits