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द्यावा पृथ्वी कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार विनायक़ (वी. के. गोकाक) द्वारा रचित एक कवितासंग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् १९६० में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत कन्नड़ भाषा की पुस्तकें |
भट बीघा २ इमामगंज, गया, बिहार स्थित एक गाँव है।
गया जिला के गाँव |
बंगलौर एक्स्प्रेस २६९१ भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:मास) से ११:३०प्म बजे छूटती है और श्री सत्य साईं प्रशांति निलयम रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:सप्न) पर १०:२०आम बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है १० घंटे ५० मिनट।
मेल एक्स्प्रेस ट्रेन |
| नामी = पादप या उद्भिद
| फ़ॉसिल_रंज = प्रारम्भिक कैम्ब्रियन से अब तक, लेकिन टेक्स्ट देखें,
}}पादप वर्गिकी (प्लांट टक्सोनोमी) के अन्तर्गत पृथ्वी पर मिलने वाले पौधों की पहचान तथा पारस्परिक समानताओं व असमानताओं के आधार पर उनका वर्गीकरण किया जाता है। विश्व में अब तक विभिन्न प्रकार के पौधों की लगभग ४.० लाख जातियाँ ज्ञात है जिनमें से लगभग 7०% जातियाँ पुष्पीय पौधों की है।
प्राचीनकाल में मनुष्य द्वारा पौधों का वर्गीकरण उनकी उपयोगिता जैसे भोजन के रूप में, रेशे प्रदान करने वाले, औषधि प्रदान करने वाले आदि के आधार पर किया गया था लेकिन बाद में पौधों को उनके आकारिकीय लक्षणों (मॉर्फोलॉजिकल चरैक्टर) जैसे पादप स्वभाव, बीजपत्रों की संख्या, पुष्पीय भागों की संरचना आदि के आधार पर किया जाने लगा।
मनु ने पादपों की निम्नलिखित श्रेणियाँ बतायीं हैं-
सुश्रुत (८००-१००० ईसापूर्व) ने पुष्प-विन्यास के संरचना तथा उनके जीवनकाल के आधार पर पादपों को चार वर्गों में बाँटा है- (१) वनस्पति (२) वृक्ष (३) वीरुध (४) ओषधि
तासां स्थावराश्चतुर्विधाः वनस्पतयो, वृक्षाः, वीरुधः, ओषधयः इति।
तासु, अपुष्पाः फलवन्तो वनस्पतयः, पुष्पफलवन्तो वृक्षाः, प्रतानवत्यः स्तम्बिन्यश्च वीरुधः, फलपाकनिष्ठा ओषधय इति ॥ सुश्रुत सूत्र १/२॥
पुनः औषधीय पादपों को सुश्रुत ने ३७ गणों में विभक्त किया है।
वर्तमान में पौधों के आकारिकीय लक्षणों के साथ-साथ भौगोलिक वितरण, शारीरिक लक्षणों (अनटोमिकल चरैक्टर), रासायनिक संगठन, आण्विक लक्षणों (मोलेकुलर चरैक्टर) आदि को भी वर्गिकी में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार पादप वर्गिकी के उपयुक्त आधारों के अनुसार निम्न प्रकार के बिन्दु स्पष्ट हो जाते है -
(१) कोशिका वर्गिकी (साइटोटक्सोनोमी) : कोशिकीय संरचना व संगठन के आधार पर
(२) रसायन वर्गिकी (केमोटक्सोनोमी) : रासायनिक संगठन के आधार पर
वर्गिकी शब्द का प्रयोग सबसे पहले फ्रेन्च वनस्पति शास्त्री ए. पी. डी. केण्डोले (आ.प.दे. कैंडोले) ने १८३४ में अपनी पुस्तक थ्योरी एलमेंट्यर दे ला बोतनीक (थ्योरी ऑफ एलमंटरी बोतनी) में किया तथा इसमें वर्गीकरण के सामान्य सिद्धान्तों के अध्ययन के बारे में बताया तथा पादप वर्गिकी को इस प्रकार परिभाषित किया- :पादप वर्गिकी वनस्पति विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत पौधों की पहचान, नामकरण एवं वर्गीकरण के बारे में अध्ययन किया जाता है।
बाद में कैरोलस लिनीयस (कैरोलस लिन्नेअस) ने अपनी पुस्तक 'सिस्टेमा नेचुरी' (सिस्टमा नैतुराई) में वर्गीकरणीय विज्ञान (सिस्टमेटिक्स) शब्द का प्रयोग किया जो ग्रीक भाषा के शब्द सिस्टमा से लिया गया है जिसका अर्थ समूहबद्ध करना या साथ-साथ रखना है।
अत: स्पष्ट है कि वर्गिकी के अन्तर्गत निम्न कार्य प्रमुखतः सम्पन्न किये जाते है -
(१) जाति को पहचान कर उसका पूरा विवरण प्रस्तुत करना अर्थात् आधारभूत वर्गिकी इकाई (बेसिक टक्सोनोमिक यूनिट) को पहचानना।
(२) सजीवों की समानताओं एवं पारस्परिक सम्बन्धों के आधार पर इन आधारभूत इकाईयों का समूहबद्द करने के तरीकों का विकास करना।
वर्गिकी के सिद्धान्त
अमेरिकन वर्गिकीविज्ञ (टक्सोनोमिस्ट) एडवर्ड चार्ल्स बेसी (एडवर्ड चार्ल्स बेसी) ने आवृतबीजियों की जातिवृत्तीय (फिलोजेनेटिक) वर्गिकी (टक्सोनोमी) में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया। पौधों में कौन सी स्थिति प्रगत (एडवांस्ड) तथा कौन सी आद्य (प्रीमितिव) है, इसके निर्धारण के लिये विभिन्न वर्गिकीविज्ञों (बेसी हचिन्सन आदि) द्वारा कुछ महत्वपूर्ण सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है जिसके प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित है -
१. विकास का क्रम ऊपरी (उपवार्ड) तथा नीचे की ओर (डाउनवार्ड) दोनों दिशाओं में होता है।
२. एक ही समय में पौधे के सभी अंगों में विकास समान गति से नहीं होता है।
७. सरल व आशाखित तना (की प्रवृति) आद्य (प्रीमितिव) तथा शाखित तना प्रगत है।
१२. द्विलिंगी पुष्प आद्य तथा एकलिंगी प्रगत है।
१३. उभयलिंगाश्रयी (मोनोएशियस) पादप आद्य तथा एकलिगाश्रयी (डिओएशियस) पादप प्रगत है।
१४. एकल पुष्प (सोलिट्री फ्लावर्स) आद्य तथा पुष्पक्रम में (विन्यास) प्रगत है।
१७. दल विन्यास के विकास का क्रम इस प्रकार है :
१९. जायांगधर (हायपोगिनॉस) पुष्प आद्य तथा जायांगोपरिक (एपिगिनॉस) पुष्प सबसे प्रगत दशा है।
२३. अधिक पुंकेसरों युस्त पुष्प आद्य तथा कम पुंकेसरों वाले प्रगत है।
डेविस (डेविस, १९६७) ने इनमें कुछ और लक्षणों को सम्मिलित किया है, जो निम्नलिखित हैं :
२५. अननुपर्णी (एक्स्स्टीपुलते) पत्तियों की अपेक्षा अनुपर्णी (स्टीपुलते) अधिक आद्य है तथा स्वतंत्र अनुपर्ण (फ़्री स्टीपुलर) सलांग अनुपर्ण की अपेक्षा आद्य है।
२६. द्विबीजपत्री पौधों में फायलोडिक (फिलोडिक) पर्ण, पटलीय पर्ण की अपेक्षा प्रगत है।
२७. तने, शाखाओं, पत्तियों एवं सहपत्रों का कंटीलापन या व्युत्पन्न (डेरिवेद) अधिक आधु निक स्थिति है जो वातावरण के अनुकू लन के रूप में विकसित हुई है।
२८. प्रकीर्णन एवं वितरण की आद्य इकाई बीज है, लेकिन आगे चलकर चरम स्थिति में पुष्पक्रम अथवा टम्बल वीस (लुढकने वाले पौधों) में पूरा पौधा ही प्रकीर्णन की इकाई बन जाता है।
२९. पुष्प एवं पुष्पांगों की बहु रूपीयता, एकरूपीयता से विकसित है।
कई एन्जियोस्पर्म्स कुलों में प्रगत एवं आद्य लक्षण दोनों ही पाये जाते है। लेबियेटी कुल में पुष्य का जायांगधर लक्षण आद्य है जबकि अन्य सभी लक्षण प्रगत माने जाते है। इसके पुष्पों में पृथक परिदल (पेरीअंत) एक आद्य लक्षण है। एक ही कुल में ऐसे आद्य एवं प्रगत लक्षणों की उपस्थिति उनकी स्थिति के बारे में कठिनाई प्रदर्शित करती है।
वर्गीकरण की इकाइयाँपौधों की विस्तृत वर्गीकृत स्थिति का ज्ञान जिन इकाइयों द्वारा होता है, उन्हें वर्गीकरण की इकाई कहते है जैसे -
वैसे इन प्रमाणिक अनुलग्नों के अपवाद भी है जिन्हें मान्यता प्राप्त है चूंकि ऐसे नाम काफी लंबी अवधि तक प्रयुस्त किये जाते रहे तथा नामकरण नियमों से पहले काफी लोकप्रिय थे। उदाहरण के लिये सभी गणों (ऑर्डर) का अनुलग्न-एल्स है परन्तु कुछ गण जैसे (ग्लुमिफ्लोरी व तुबिफ्लोरी में यह- आए है ; इसी प्रकार सभी कुलों का अनुलग्न- एसीए है परन्तु कुछ कुल जैसे प्लामाई, क्रुसीफेरी, लेगुमीनोसे, उम्बलिफेरी, लेबियातए आदि में यह नहीं है, फिर भी नियमावली में इन नामों में छूट की व्यवस्था है। सभी वर्ग (टक्सोन) के नाम (कुल (फमिली) व इसकी नीचे की श्रेणी) को लेटिन भाषा में लिखना अनिवार्य है।
सामान्यत: सभी वर्गकों की आधारभूत इकाई वंश (जीनस) होती है तथा इसके अन्तर्गत आने वाली सभी कोटियों (रंक) को लिखते समय निम्न दो मुख्य सिद्धान्तों का पालन करना अनिवार्य है-
१. वंश, जाति तथा कोटियाँ हमेशा लेटिन भाषा में लिखी हों।
२. लेटिन भाषा में लिखे शब्दों को इटेलिक अक्षरों (इटालिक फॉण्ट) में दर्शाना आवश्यक है।
हाथ से लिखने पर या टाइप करते समय अधोरेखांकित (अंडरलाइन) किया जाना चाहिए।पादप जगत (प्लेंटए) में शैवाल (एल्गी), ब्रायोफाइट, टेरिडोफाइट, अनावृतबीजी तथा आवृतबीजी आते हैं।
शैवाल या एलजी
उत्पत्ति के विचार से शैवाल बहुत ही निम्न कोटि के पादप हैं, जिनमें जड़, तना तथा पत्ती का निर्माण नहीं होता। इनमें क्लोरोफिल के रहने के कारण ये अपना आहार स्वयं बनाते हैं। शैवाल पृथ्वी के हर भूभाग में पाए जाते हैं। नदी, तालाब, झील तथा समुद्र के मुख्य पादप भी शैवाल के अंतर्गत ही आते हैं। इनके रंग भी कई प्रकार के हरे, नीले हरे, लाल, कत्थई, नारंगी इत्यादि होते हैं। इनक रूपरेखा सरल पर कई प्रकार की होती है, कुछ एककोशिका सदृश, सूक्ष्म अथवा बहुकोशिका का निवह (कॉलोनी) या तंतुमय (फाइलामेंटूस) फोते से लेकर बहुत बड़े समुद्री पाम (सिया पाम) के आकार के होते हैं। शैवाल में जनन की गति बहुत तेज होती है और वर्षा ऋतु में थोड़े ही समय में सब तालाब इनकी अधिक संख्या से हरे रंग के हो जाते हैं। कुछ शैवाल जलीय जंतुओं के ऊपर या घोंघों के कवचों पर उग आते हैं।
शैवाल में जनन कई रीतियों से होता है। अलैंगिक रीतियों में मुख्यत: या तो कोशिकाओं के टूटने से दो या तीन या अधिक नए पौधे बनते हैं, या कोशिका के जीवद्रव्य इकट्ठा होकर विभाजित होते हैं और चलबीजाणु (ज़ूसपोर्) बनाते हैं। यह कोशिका के बाहर निकलकर जल में तैरते हैं और समय पाकर नए पौधों को जन्म देते हैं। लैंगिक जनन भी अनेक प्रकार से होता है, जिसमें नर और मादा युग्मक (गमिटेस) बनते हैं। इसके आपस में मिल जाने से युग्मनज (ज़िगोटे) बनता है, जो समय पाकर कोशिकाविभाजन द्वारा नए पौधे उत्पन्न करता है। युग्मक अगर एक ही आकार और नाप के होते हैं, तो इसे समयुग्मन (इसोगमी) कहते हैं। अगर आकार एक जैसा पर नाप अलग हो तो असमयुग्मन (अनिसोगमी) कहते हैं। अगर युग्मक बनने के अंग अलग अलग प्रकार के हों और युग्मक भी भिन्न हों, तो इन्हें विषम युग्मकता (उगेमी) कहते हैं। शैवाल के कुछ प्रमुख उपवर्ग इस प्रकार हैं :सायनोफाइटा (क्योनोफिटा) - ये नीले हरे अत्यंत निम्न कोटि के शैवाल होते हैं। इनकी लगभग १,५०० जातियाँ हैं, जो बहुत दूर दूर तक फैली हुई हैं। इनमें जनन हेतु एक प्रकार के बीजाणु (स्पोर) बनते हैं। आजकल सायनोफाइटा या मिक्सोफाइटा में दो मुख्य गण (ऑर्डर) हैं : (१) कोकोगोनिऐलीज़ (ककोगोनिएल्स) और हॉर्मोगोनिएलीज़ (हारमोगोनिएल्स)। प्रमुख पौधों के नाम इस प्रकार हैं, क्रूकॉकस (क्रूकोक्कस), ग्लीओकैप्सा (ग्लेऊकेपसा), ऑसीलैटोरिया (ओस्किलेटोरिया), लिंगबिया (लिंगया), साइटोनिमा (स्साइटोनेमा), नॉस्टोक (नोस्टोक), ऐनाबीना (अनाबएना) इत्यादि।क्लोरोफाइटा (क्लोरोफीटा) या हरे शैवाल - इसकी लगभग ७,००० जातियाँ हर प्रकार के माध्यम में उगती हैं। ये तंतुवत संघजीवी (कोलोनिअल), हेट्रॉट्रिकस (हेत्रोत्रिक्स) या फिर एककोशिक रचनावाले (यूनीसेल्युलर) हो सकते हैं। जनन की सभी मुख्य रीतियाँ लैंगिक जनन, समयुग्मन इत्यादि तथा युग्माणु (ज़्य्गोस्पोर), चलबीजाणु (ज़ूसपोर) पाए जाते हैं।यूग्लीनोफाइटा (यूग्लेनोफिटा) - इसमें छोटे तैरनेवाले यूग्लीना (यूगलेना) इत्यादि को रखा जाता है, जो अपने शरीर के अग्र भाग में स्थित दो पतले कशाभिकाओं (फ्लागला) की सहायता से जल में इधर उधर तैरते रहते हैं। इन्हें कुछ वैज्ञानिक जंतु मानते हैं पर ये वास्तव में पादप हैं, क्योंकि इनके शरीर में पर्णहरित होता है।कैरोफाइटा (चारोफिटा) - इसके अंतर्गत केरा (चारा) और नाइटेला (निटेला) जैसे पौधे हैं, जो काफी बड़े और शाखाओं से भरपूर होते हैं। इनमें जनन विषमयुग्मक (उगोम्यस) होता है और लैंगिक अंग प्यालिका (कुपुल) और न्यूकुला (नुकुला) होते हैं।फिओफाइटा (फाइयोफाईटा) या कत्थई शैवाल - इसका रंग कत्थई होता है और लगभग सभी नमूने समुद्र में पाए जाते हैं। मुख्य उदाहरण हैं : कटलेरिया (कटलेरिया), फ्यूकस (फुकस), लैमिनेरिया (लमीनारिया) इत्यादि।रोडोफाइटा (रोडोफिटा) या लाल शैवाल - यह शैवाल लाल रंग का होता है। इसके अंतर्गत लगभग ४०० वंश (जीनस) और २,५०० जातियाँ हैं, जो अधिकांश समुद्र में उगती हैं। इन्हें सात गणों में बाँटा जाता है। लाल शैवाल द्वारा एक वस्तु एगार एगार (अगर अगर) बनती है, जिसका उपयोग मिठाई और पुडिंग बनाने तथा अनुसंधान कार्यों में अधिकतम होता है। इससे कई प्रकार की औषधियाँ भी बनती हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि शैवाल द्वारा ही लाखों वर्ष पहले भूगर्भ में पेट्रोल का निर्माण हुआ होगा।
तीन वर्गों में बाँटा जाता है :
ऐसा सोचा जाता है कि ब्रायोफाइटा की उत्पत्ति हरे शैवाल से हुई होगी।
इसमें लगभग ८,५०० जातियाँ हैं, जो अधिकांश छाएदार नम स्थान पर उगती हैं। कुछ एक जातियाँ तो जल में ही रहती हैं, जैसे टिकासिया फ्लूइटंस और रियला विश्वनाथी। हिपैटिसी में ये तीन गण मान्य हैं :
स्पीरोकॉर्पेलीज़ में तीन वंश हैं - स्फीरोकर्पस (स्फएरोकारपूस), जीओथैलस (जियोतल्लूस) और रिएला (रिएला)। पहले दो में लैंगिक अंग एक प्रकार के छत्र से घिरे रहते हैं और रिएला में वह अंग घिरा नहीं रहता। रिएला की एक ही जाति रिएला विश्वनाथी भारत में काशी के पास चकिया नगर में पाई गई है। इसके अतिरिक्त रिएला इंडिका अविभाजित भारत के लाहौर नगर के पास पाया गया था।
यह सबसे प्रमुख गण है और इसमें ३२ वंश और ४०० जातियाँ पाई जाती हैं, जिन्हें छह कुलों में रखा जाता है। इनमें जनन लैंगिक और अलैंगिक दोनों होते हैं। रिकसियेसी कुल में तीन वंश हैं। दूसरा कुल है कारसीनिएसी। टारजीओनिएसी का टारजीओनिया पौधा सारे संसार में पाया जाता है। इस गण का सबसे मुख्य कुल है मारकेनटिएसी, जिसमें २३ वश हैं। इनमें मारकेनटिया मुख्य है।
इन्हें पत्तीदार लीवरवर्ट भी कहते हैं। ये जलवाले स्थानों पर अधिक उगते हैं। इनमें १९० वंश तथा लगभग ८,००० जातियाँ हैं। इनके प्रमुख वंश हैं रिकार्डिया (रिक्कार्डिया), फॉसॉम्ब्रोनिया (फ़ॉसम्ब्रोनिया), फ्रूलानिया (फ्रूल्लानिया) तथा पोरेला (पोरेला)। ब्रियेलिज़ गण में सिर्फ दो वंश कैलोब्रियम (कैलोबयूम) और हैप्लोमिट्रियम (हैप्लोमीट्रियम) रखे जाते हैं।
इस उपवर्ग में एक गण ऐंथोसिरोटेलीज़ है, जिसमें पाँच या छह वंश पाए जाते हैं। प्रमुख वंश ऐंथोसिरॉस (एन्थोसेरोस) और नोटोथिलस (नोटोतिलास) हैं। इनमें युग्मकजनक (गेमिटोसायटे), जो पौधे का मुख्य अंग होता है, पृथ्वी पर चपटा उगता है और इसमें बीजाणु-उद्भिद (स्पोरोफिटे) सीधा ऊपर निकलता है। इनमें पुंधानी और स्त्रीधानी थैलस (थाल्लूस) के अंदर ही बनते हैं। पुंधानी नीचे पतली और ऊपर गदा या गुब्बारे की तरह फूली होती हैं।
इस वर्ग में मॉस पादप आते हैं, जिन्हें तीन उपवर्गों में रखा जाता है। ये हैं:
(२) ऐंड्रोब्रिया तथा
पहले उपवर्ग के स्फ़ैग्नम (स्फगनम) ठंडे देशों की झीलों में उगते हैं तथा एक प्रकार का "दलदल" बनाते हैं। ये मरने पर भी सड़ते नहीं और सैकड़ों हजारों वर्षों तक झील में पड़े रहते हैं, जिससे झील दलदली बन जाती है। दूसरे उपवर्ग का ऐंड्रिया (एंड्रीया) एक छोटा वंश है, जो गहरे कत्थई रंग का होता है। यह काफी सर्द पहाड़ों की चोटी पर उगते हैं। यूब्रेयेलीज़ या वास्तविक मॉस (ट्रू मॉस), में लगभग ६५० वंश हैं जिनकी लगभग १४,००० जातियाँ संसार भर में मिलती हैं। इनके मध्यभाग में तने की तरह एक बीच का भाग होता है, जिसमें पत्तियों की तरह के आकार निकले रहते हैं। चूँकि यह युग्मोद्भिद (गेमिटोफिटिक) आकार है, इसलिये इसे पत्ती या तना कहना उचित नहीं हैं। हाँ, उससे मिलते जुलते भाग कहे जा सकते हैं। पौधों के ऊपरी हिस्से पर या तो पुंधानी और सहसूत्र (परफिसिस) या स्त्रीधानी और सहसूत्र, लगे होते हैं।
इनकी उत्पत्ति करीब ३५ करोड़ वर्ष पूर्व हुई होगी, ऐसा अधिकतर वैज्ञानिकों का कहना हैं। प्रथम टेरिडोफाइट पादप साइलोटेलिज़ (प्सिलोटेल्स) समूह के हैं। इनकी उत्पत्ति के तीन चार करोड़ वर्ष बाद तीन प्रकार के टेरिडोफाइटा इस पृथ्वी पर और उत्पन्न हुए - लाइकोपीडिएलीज़, हार्सटेलीज़ और फर्न। तीनों अलग अलग ढंग से पैदा हुए होंगे। टेरिडोफाइटा मुख्यत: चार भागों में विभाजित किए जाते हैं : साइलोफाइटा (प्सिलोफिटा), लेपिडोफाइटा (लेपिडोफिटा), कैलेमोफाइटा (कलामोफिटा) और टेरोफाइटा (प्टेरोफिटा)।
ये बहुत ही पुराने हैं तथा अन्य सभी संवहनी पादपों से जड़रहित होने के कारण भिन्न हैं। इनका संवहनी ऊतक सबसे सरल, ठोस रंभ (प्रोटॉस्टेली) होता है। इस भाग में दो गण हैं : (१) साइलोफाइटेलीज, जिसके मुख्य पौधे राइनिया (राइनिया) साइलोफाइटान (प्सिलोफाइटन), ज़ॉस्टेरोफिलम (जोस्टेरोफिलूम), ऐस्टेरोक्सिलॉन (एस्टेरॉक्सीलोन) इत्यादि हैं। ये सबके सब जीवाश्म हैं, अर्थात् इनमें से कोई भी आजकल नहीं पाए जाते है। करोड़ों वर्ष पूर्व ये इस पृथ्वी पर थे। अब केवल इनके अवशेष ही मिलते हैं।
इसके अंतर्गत आनेवाले पौधों को साधारणतया लाइकोपॉड''' कहते हैं। इनके शरीर में तने, पत्तियाँ और जड़ सभी बनती हैं। पत्तियाँ छोटी होती हैं, जिन्हें माइक्रोफिलस (माइक्रोफिल्स) कहते हैं। इस भाग में चार गण हैं :
(१) लाइकोपोडिएलीज़ की बीजाणुधानी समबीजाणु (होमोस्पोर्स) होती है, अर्थात् सभी बीजाणु एक ही प्रकार के होते हैं। इनमें कुछ पौधे तो जीवाश्म हैं और कुछ आजकल भी उगते हैं। इसका प्रमुख वंश प्रोटोलेपिडोडेंड्रॉन (प्रोतोलोपिडोडेंड्रों) है और जीवित पौधा लाइकोपोडिय (लायकोपोडियम)।
(२) सेलैजिनेलेलीज़ (सेलागिनेलेल्स) गण का वंश सैलाजिनेला है। इसमें गुरु बीजाणुधानी (मेगासपोरंगिया) और लघुबीजाणुधानी (माइक्रोसपोरंगिया) बनती हैं। इसकी एक जाति चकिया के पहाड़ों पर काफी उगती है और इन्हें बाजार में संजीवनी बूटी के नाम से बेचते हैं।
(३) लेपिडोडेंड्रेलीज़ गण जीवाश्म हैं। ये बड़े वृक्ष की तरह थे। लेपिडोडेंड्रॉन (लेपिडोडेंड्रों), बॉथ्रियोडेंड्रॉन (बोथरीओडेन्ड्रों) तथा सिजिलेरिया (सिगिल्लेरिया) इसके मुख्य पौधे थे।
(४) आइसोइटेलीज़ गण के वंश भी जीवाश्म हैं। केवल एक वंश आइसोइटीज़ (आइसोएट्स) ही आजकल उगता है और इसे जीवित जीवाश्म भी कहते हैं। यह पौधा ताल तलैया तथा धान के खेत में उगता है। प्लिउरोमिया (प्ल्युरोमिया) भी जीवाश्म पौधा था।
ये बहुत पुराने पौधे हैं जिनका एक वंश एक्वीसीटम (इक्विसेटम) अभी भी उगता है। इस वर्ग में पत्तियाँ अत्यंत छोटी होती थीं। इन्हें हार्सटेल (हॉर्सटेल्स), या घोड़े की दुम की आकारवाला, कहा जाता है। इसमें जनन के लिये बीजाणुधानियाँ (स्पोरंगिया) "फोर" पर लगी होती थीं तथा उनका एक समूह साथ होता था। ऐसा ही एक्वीसीटम में होता है, जिसे शंकु (स्ट्रोबिट्स) कहते हैं। यह अन्य टेरिडोफाइटों में नहीं होता। इसमें दो गण हैं : (१) हाइनिऐलीज़ (हायेनियेल्स), जिसके मुख्य पौधे हाइनिया (हियेनिया) तथा कैलेमोफाइटन (कलामोफाइटन) हैं। (२) स्फीनोफिलेलीज़ दूसरा वृहत् गण है। इसके मुख्य उदाहरण हैं स्फीनोफिलम (स्फेनोफिलूम), कैलेमाइटीज़ (कैलामाइटस) तथा एक्वीसीटम।
इसके सभी अंग काफी विकसित होते हैं, संवहनी सिलिंडर (वैस्कुलर सिलिन्दर) बहुत प्रकार के होते हैं। इनमें पर्ण अंतराल (लीफ गप) भी होता है। पत्तियाँ बड़ी बड़ी होती हैं तथा कुछ में इन्हीं पर बीजाणुधानियाँ लगी होती हैं। इन्हें तीन उपवर्गों में बाँटते हैं-
जिसमें बीजाणुधानियों के एक विशेष स्थान पर बीजाणुपर्ण (स्पोरोफिल) लगे होते हैं, या एक विशेष प्रकार के आकार में होते हैं, जिसे स्पाइक (स्पाइक) कहते हैं, उदाहरण ऑफिओग्लॉसम (ओफिओग्लोसम), बॉट्रिकियम (बॉत्रीचियम), मैरैटिया (मारत्तिया) इत्यादि हैं।
जो अन्य सभी फर्न से भिन्न हैं, क्योंकि इन बीजाणुधानियों के चारों ओर एक "जैकेट फर्नों स्तर" होता है और बीजाणु की संख्या निश्चित रहती है। इसका फिलिकेलीज़ गण बहुत ही बृहत् है। इस उपवर्ग को निम्नलिखित कुलों में विभाजित करते हैं-
(१) आस्मंडेसी, (२) राईज़िएसी, (३) ग्लाइकीनिएसी, (४) मेटोनिएसी, (५) डिप्टैरिडेसी,
(६) हाइमिनोफिलेसी, (७) सायथियेसी (८) डिक्सोनिएसी, (९) पालीपोडिएसी तथा (१०) पारकेरिएसी
इन सब कुलों में अनेक प्रकार के फ़र्न है। ग्लाइकीनिया में शाखाओं का विभाजन द्विभाजी (दियोटोम्स) होता है। हाइमिनोफिलम को फिल्मी फर्न कहते हैं, क्योंकि यह बहुत ही पतले और सुंदर होते हैं। सायेथिया तो ऐसा फर्न है, जो ताड़ के पेड़ की तरह बड़ा और सीधा उगता है। इस प्रकार के फर्न बहुत ही कम हैं। डिक्सोनिया भी इसी प्रकार बहुत बड़ा होता है। पालीपोडिएसी कुल में लगभग ५,००० जातियाँ हैं और साधारण फर्न इसी कुल के हैं। टेरिस (पाटेरिस), टेरीडियम (पाटेरिडियम), नेफ्रोलिपिस (नेफ्रोलेपिस) इत्यादि इसके कुछ उदाहरण हैं। दूसरा गण है मारसीलिएलीज़, जिसका चरपतिया (मारसिलिया) बहुत ही विस्तृत और हर जगह मिलनेवाला पौधा है। तीसरा गण सैलवीनिएलीज है, जिसके पौधे पानी में तैरते रहते हैं, जैसे सैलवीनिया (साल्विनिया) और ऐज़ोला (आज़ोला) हैं। ऐज़ोला के कारण ही तालाबों में ऊपर सतह पर लाल काई जैसा तैरता रहता है। इन पौधों के शरीर में हवा भरी रहती है, जिससे ये आसानी से जल के ऊपर ही रहते हैं। इनके अंदर एक प्रकार का नीलाहरा शैवाल ऐनाबीना (अनाबएना) रहता है।
संवहनी पौधों में फूलवाले पौधों को, जिनके बीज नंगे होते हैं, अनावृतबीजी कहते हैं। इसके पौधे मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं। एक तो साइकस की तरह मोटे तनेवाले होते हैं, जिनके सिरे पर एक झुंड में लंबी पत्तियाँ निकलती हैं और मध्य में विशेष प्रकार की पत्तियाँ होती हैं। इनमें से जिनमें परागकण बनते हैं उन्हें लघुबीजाणुपर्ण (माइक्रोसपोरोफिल) तथा जिनपर नंगे बीजाणु लगे होते हैं उन्हें गुरुबीजाणुपर्ण (मेगासपोरोफिल) कहते हैं। इस समूह को सिकाडोफिटा (साइकाडोफिटा) कहते हैं और इनमें तीन मुख्य गण हैं :
पहले दो गण जीवाश्म हैं। इनके सभी पौधे विलुप्त हो चुके हैं। इनके बहुत से अवशेष पत्थरों के रूप में राजमहल पहाड़ियों में मिलते हैं। मुख्य उदाहरण है लिजिनाप्टेरिस (लाइगिनॉप्टेरिस), मेडुलोज़ा (मेडूलोसा) तथा विलियम्सोनिया (विलियम्सोनिया)। तीसरे गण सिकाडेलीज़ के बहुत से पौधे विलुप्त हैं और नौ वंश अब भी जीवित हैं। प्रमुख पौधों के नाम हैं, साइकैस (साइकास), ज़ेमिया (ज़मिया), एनसेफैलोर्टस (एनसेफालार्टोस), स्टैनजीरिया (स्टैंजेरिया) इत्यादि।
अनावृतबीजी पौधों का दूसरा मुख्य प्रकार है कोनिफरोफाइटा (कॉनिफेरोफिटा), जिसमें पौधे बहुत ही बड़े और ऊँचे होते हैं। संसार का सबसे बड़ा और सबसे ऊँचा पौधा सिक्वॉय (सेक्वोइया) भी इसी में आता है। इसमें चार मुख्य गण हैं :
अब सभी कॉरडेआइटेलीज़ जीवाश्म हैं और इनके बड़े बड़े तनों के पत्थर अब भी मिलते हैं। ज़िगोएलीज़ के सभी सदस्य विलुप्त हो चुके हैं। सिर्फ एक ही जाति अभी जीवित है, जिसका नाम जिंगोबाइलोबा (जिनक्गोबिलोबा), या मेडेन हेयर ट्री, है। यह चीन में पाया जाता है तथा भारत में इसके इने गिने पौधे वनस्पति वाटिकाओं में लगाए जाते हैं। यह अत्यंत सुंदर पत्तीवाला पेड़ है, जो लगभग ३० से ४० फुट ऊँचाई तक जाता है।
कोनिफरेलीज़ गण में तो कई कुल हैं और सैकड़ों जातियाँ होती हैं। इनके पेड़, जैसे सिक्वॉय, चीड़, देवदार, भाऊ के पेड़ बहुत बड़े और ऊँचे होते हैं। चीड़ तथा देवदार के जंगल सारे हिमालय पर भरे पड़े हैं। चीड़ से चिलगोजा जैसा पौष्टिक फल निकलता है, देवदार तथा चीड़ की लकड़ी से लुगदी और कागज बनते हैं। इनमें बीज एक प्रकार के झुंड में होते हैं, जिन्हें स्ट्रबिलस या "कोन" कहते हैं। पत्तियाँ अधिकांश नुकीली तथा कड़ी होती हैं। ये पेड़ ठंडे देश तथा पहाड़ पर बहुतायत से उगते हैं। इनमें बहुधा तारपीन के तेल जैसा पदार्थ रहता है। उत्पत्ति और जटिलता के विचार से तो ये आवृतबीजी (एंजियोस्पर्म) पौधों से छोटे हैं, पर आकार तथा बनावट में ये सबसे बढ़ चढ़कर होते है।
चौथे गण निटेलीज़ में सिर्फ तीन ही वंश आजकल पाए जाते हैं -
पहले दो तो भारत में मिलते हैं और तीसरा वेलविचिया मिराबिलिस (वेलवित्स्चिया मिराबिलिस)। सिर्फ पश्चिमी अफ्रीका के समुद्रतट पर मिलता है। एफीड्रा सूखे स्थान का पौधा है, जिसमें पत्तियाँ अत्यंत सूक्ष्म होती हैं। इनसे एफीड्रीन नामक दवा बनती है। आजकल वैज्ञानिक इन तीनों वंशों को अलग अलग गणों में रखते हैं। इन सभी के अतिरिक्त कुछ जीवाश्मों के नए गण समूह भी बनाए गए हैं, जैसे राजमहल पहाड़ का पेंटोक्सिली (पेंटॉक्सीलाए) और रूस का वॉजनोस्कियेलीज़ (वोजनोजक्येल्स) इत्यादि।
आवृतबीजी पौधों में बीज बंद रहते हैं और इस प्रकार यह अनावृतबीजी से भिन्न हैं। इनमें जड़, तना, पत्ती तथा फूल भी होते हैं। आवृतबीजी पौधों में दो वर्ग हैं :
पहले के अंतर्गत आनेवाले पौधों में बीज के अंदर दो दाल रहती हैं और दूसरे में बीज के अंदर एक ही दाल होती है। द्विबीजपत्री के उदाहरण, चना, मटर, आम, सरसों इत्यादि हैं और एकबीजपत्री में गेहूँ, जौ, बाँस, ताड़, खजूर, प्याज हैं। बीजपत्र की संख्या के अतिरिक्त और भी कई तरह से ये दोनों भिन्न हैं जैसे जड़ और तने के अंदर तथा बाहर की बनावट, पत्ती और पुष्प की रचना, सभी भिन्न हैं। द्विबीजपत्री की लगभग २,००,००0 जातियों को २50 से अधिक कुलों में रखा जाता है।
आवृतबीजीय पादप में अलग अलग प्रकार के कार्य के लिये विभिन्न अंग हैं, जैसे जल तथा लवण सोखने के लिये पृथ्वी के नीचे जड़ें होती हैं। ये पौधों को ठीक से स्थिर रखने के लिये मिट्टी को जकड़े रहती हैं। हवा में सीधा खड़ा रहने के लिये तना मजबूत और शाखासहित रहता है। यह आहार बनाने के लिये पत्तियों को जन्म देता है और जनन हेतु पुष्प बनाता है। पुष्प में पराग तथा बीजाणु बनते हैं। |
असवा दौतपुर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के इलाहाबाद जिले के हंडिया प्रखण्ड में स्थित एक गाँव है।
गाँव, असवा दौतपुर, हंडिया |
आरंग (अरंग) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर ज़िले में स्थित एक नगर पालिका परिषद है। यहाँ से राष्ट्रीय राजमार्ग ५३ गुज़रता है।
यह रायपुर शहर की पूर्वी सीमा महानदी के तट के पास स्थित एक कस्बा है। आरंग एक प्राचीन शहर है, जिसे छत्तीसगढ़ का "मंदिरों का शहर" भी कहा जाता है, जिस पर हैहयस राजपूत वंश का शासन था। आरंग कई जैन और हिंदू मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है मंदिर जो ११वीं और १२वीं शताब्दी के हैं; यहाँ मांड देवल, जैन मंदिर, महामाया मंदिर, पंचमुखी मंदिर, बागेश्वर नाथ मंदिर, जोबा महदेवा, चंडी मंदिर और हनुमान मंदिर। गुप्त साम्राज्य को दिनांकित एक तांबे की प्लेट शिलालेख के पुरातात्विक खोजों के कारण, राजरसीतुल्य के कबीले के भीमसेन द्वितीय के आरंग प्लेट के रूप में जाना जाता है, ने शहर के प्राचीन इतिहास को एक हिंदू और जैन धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित किया है, जो उस समय शासन के अधीन था। हिंदू राजाओं की। मांड देवल जैन मंदिर ११वीं शताब्दी के इन मंदिरों में सबसे प्राचीन है जहां गर्भगृह में दिगंबर तीर्थंकरों की तीन विशाल प्रतिमाएं विराजमान हैं; ये काले पत्थर में उकेरे गए हैं और पॉलिश किए गए हैं। यहाँ आज भी पुरातात्विक मूर्ति मिलती है। आरंग अपने तलाबों के लिए भी जाना जाता है । आरंग एक शांत शहर है यहाँ त्योहारों में काफी अच्छा महौल रहता है खास कर गणेश चतुर्थी और नवरात्री का जुलूस फ़ेमस है।
महानदी के तट पर स्थित आरंग एक प्राचीन, पौराणिक तथा ऐतिहासिक नगरी है। प्राचीन काल में यहाँ पर कलचुरी नरेश मोरध्वज का राज्य था। मोरध्वज का एक ही पुत्र ताम्रध्वज था जिसे श्री कृष्ण ने मोरध्वज को आरा से चीरने का आदेश दिया था। इसीलिये इस नगरी का नाम आरंग पड़ा। रायपुर जिले में सिरपुर तथा राजिम के बीच महानदी के किनारे बसे इस छोटे से नगर को मंदिरों की नगरी कहते हैं। यहां के प्रमुख मंदिरों में ११वीं-१२वीं सदी में बना भांडदेवल मंदिर है। यह एक जैन मंदिर है। इसके गर्भगृह में तीन तीर्थकरों की काले ग्रेनाइट की प्रतिमाएं हैं। महामाया मंदिर में २४ तीर्थकरों की दर्शनीय प्रतिमाएं हैं। बाग देवल, पंचमुखी महादेव, पंचमुखी हनुमान तथा दंतेश्वरी देवी मंदिर यहां के अन्य मंदिर हैं जो दर्शनीय हैं।
इन्हें भी देखें
छत्तीसगढ़ के नगर
रायपुर ज़िले के नगर |
मथुरा प्रसाद त्रिपाठी,भारत के उत्तर प्रदेश की प्रथम विधानसभा सभा में विधायक रहे। १९५२ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जिले के २२८ - छिबरामऊ विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया।
उत्तर प्रदेश की प्रथम विधान सभा के सदस्य
२२८ - छिबरामऊ के विधायक
फर्रूखाबाद के विधायक
कांग्रेस के विधायक |
मकरदही बरौनी, बेगूसराय, बिहार स्थित एक गाँव है।
मकरदही का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। इस गाँव का नामकरण लगभग ३०० वर्ष पहले हुआ था। इसका प्राचीन नाम चाँदपुर था।
मकरदही मौजा के मध्य भाग और गाँव के दक्षिणी भाग से बरौनी रिफाइनरी टाउनशिप रोड गुजरती है। इसी रोड से सटे दक्षिण में गुप्ता लखमिनियाँ बाँध है। यहाँ आने के लिये न्ह ३१ से आते हैं। निकटतम रेलवे जंक्शन बेगूसराय है। बरौनी, हथिदह, मोकामा से भारत के किसी भी भाग में रेल मार्ग से जाया जा सकता है। केशावे में उलाव हवाई अड्डा से निकट भविष्य में हवाई जहाज चलने की सम्भावना है।
ठाकूड़बाड़ी , भगवती स्थान , सूर्य मंदिर , शिवाला , चामो बा स्थान , पार्वती मंदिर , हनुमान मंदिर , बजरंगबली मंदिर , शिव मंदिर , मध्य विद्यालय , स्वास्थ्य उपकेन्द्र , आशाराम बापू आश्रय
बेगूसराय जिला के गाँव |
आनंद मोहन शिवहर से पूर्व लोकसभा सांसद है, उनकी पत्नी लवली आनंद भी पूर्व सांसद है। आनंद मोहन एक महान स्वतंत्रता सेनानी रामबहादुर सिंह के परिवार से है। इनके परिवार के कई लोगो ने आजादी के लड़ाई में भाग लिया। उन्होंने आपातकाल के दौरान जे.पी. आन्दोलन में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। आपातकाल में उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ी। उन्हे दो वर्ष तक जेल में रहना पड़ा। मैथिली को अष्टम अनुसूचि में शामिल करने के पीछे उनकी कड़ी मेहनत रंग लाई।
भगत सिंह और नेल्सन मंडेला आनंद मोहन के आदर्श हैं। कोसी की मिट्टी पर पैदा लिए आनंद मोहन क्रांति के अग्रदूत और संघर्ष के पर्याय हैं। सत्ता के मुखर विरोध के कारण उन्होंने अपनी जवानी का अधिकांश हिस्सा जेल में बिताया है।
आनंद मोहन सिंह अपने प्रारम्भिक जीवन काल में चंद्रशेखर सिंह से बहुत अधिक प्रभावित रहे। स्वतंत्रता सेनानी और प्रखर समाज वादी नेता परमेश्वर कुंवर उनके राजनीतिक गुरु थे। आंनद मोहन सिंह ने १९८० में क्रांतिकारी समाजवादी सेना का गठन किया लेकिन लोकसभा चुनाव हार गये। आनंद मोहन १९९० में बिहार विधानसभा चुनाव में जनता दल से विजयी हुए। आनंद मोहन ने १९९३ में बिहार पीपुल्स पार्टी की स्थापना की। उनकी पत्नी लवली आनंद ने १९९४ में वैशाली लोकसभा सीट के उपचुनाव में जीती। १९९५ में युवा आनंद मोहन में भावी मुख्यमंत्री देख रहा था। १९९५ में उनकी बिहार पीपुल्स पार्टी ने नीतीश कुमार की समता पार्टी से बेहतर प्रदर्शन किया था। आनंद मोहन १९९६,१९९८ में दो बार शिवहर से सांसद रहे। आंनद मोहन बिहार पीपुल्स पार्टी के नेता थे अब यह पार्टी अस्तिव में नहीं है। अपने राजनीतिक कैरियर में भूल आनंद मोहन ने स्वयं की,१९९८ में लालू यादव से समझौता कर के। आनंद मोहन बिहार के गोपालगंज में डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं।.
कवि के रूप में आनंद मोहन
पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने आनंद मोहन के कविता संग्रह 'कैद में आजाद कलम' का दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशनल क्लब में लोकार्पण किया। यह कार्यक्रम फ्रेंड्स ऑफ आनंद मोहन की ओर से आयोजित किया गया था। कविता संग्रह राजकमल प्रकाशन में छपकर तैयार है। कविता संग्रह की कविताएं जेल में लिखी गई हैं। १९७४ के आंदोलन के समय वे क्रांतिदूत अखवार के संपादक थे। कोसी इलाके का यह चर्चित अखवार था। बिहार का तीसरा जलियावाला बाग कांड के नाम से उनकी एक स्टोरी काफी चर्चित हुई थी। सहरसा जेल में रहकर आनंद मोहन आज गांधी और बौद्ध दर्शन का व्यापक अध्ययन कर चार खंडों में अपनी जेल डायरी को सहेजने में भी लगे हुए हैं। वे अपनी आत्मकथा बचपन से पचपन तक भी लिख रहे हैं।
उनकी कुछ प्रकाशित रचनाएं हैं:
कैद में आजाद कलम
काल कोठरी से (प्रकाशनाधीन)
कहानी संग्रह तेरी मेरी कहानी (प्रकाशनाधीन)
अन्ना को फ्रेंड्स ऑफ आनंद मोहन का समर्थन
कोसी क्षेत्र के कद्दावर और बिहार की राजनीति में ख़ासा दखल और दमखम रखने वाले पूर्व सांसद आनंद मोहन के समर्थक ना केवल अन्ना के समर्थन में रोड पर उतरे बल्कि मशाल जुलूस निकालकर अन्ना को मंजिल तक पहुंचाने का संकल्प भी लिया। अन्ना की जय हो की नारों से सहरसा का परिद्रिषा बदल सा चूका है। फ्रेंड्स ऑफ आनंद मोहन के बैनर तले सहरसा के गंगजला स्थित आनंद मोहन के आवास से सैंकड़ों की तायदाद में निकला आनंद मोहन के समर्थकों का काफिला शहर के तमाम मुख्य मार्गों से होता हुआ कुंवर सिंह चौक पहुंचा जहां इनलोगों ने कुंवर सिंह की प्रतिमा के सामने केंडल जलाकर अन्ना को मंजिल तक पहुंचाने का संकल्प लिया। आनंद मोहन की पहल पर सहरसा जेल में भी अन्ना के समर्थन में जेल के सारे स्टाफ अनशन पर बैठे थे। इसमें जेलर से लेकर कैदी तक और चपरासी से लेकर सिपाही तक शामिल थे।
२.में लिखी किताब |
मॉनस्टर्स इंक॰ एक २००१ में बनी अमेरिकी एनिमेटेड फिल्म है। इसका निर्माण वॉल्ट डिज्नी एनिमेशन स्टूडियो द्वारा किया गया था।
२००१ की फ़िल्में |
भानपुर कन्नौज, कन्नौज, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
कन्नौज जिला के गाँव |
सुशील चंद्रा भारत के चुनाव आयुक्त हैं। इसके पूर्व वे सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (सीबीडीटी) के अध्यक्ष रह चुके हैं। वे आइआइटी स्नातक और भारतीय राजस्व सेवा (आयकर कैडर) के १९८० बैच के अधिकारी हैं। एक नवंबर, २०१६ में सीबीडीटी अध्यक्ष का पदभार ग्रहण करने के बाद यह उनका दूसरा सेवा विस्तार है। इससे पहले वे आयकर विभाग में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे हैं। वे रुड़की विश्वविद्यालय से बीटेक, देहरादून से एलएलबी किया था। वे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, गुजरात और मुंबई में सेवारत रहे। वे दिल्ली में आयकर (अपील) अंतरराष्ट्रीय कराधान के आयुक्त भी रह चुके हैं।
भारत के चुनाव आयुक्त
इनके पिता का नाम डॉक्टर विद्यासागर गुप्त जो कि उत्तर प्रदेश के संभल जनपद के चंदौसी नगर के प्रसिद्ध एसएम कॉलेज में भौतिक विज्ञान के प्रवक्ता थे |
डोढापुरा बाह, आगरा, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
आगरा जिले के गाँव |
जोस मारिया वास्कोनसेलोस ग्कोलीह (१० अक्टूबर १९५६ जन्म), लोकप्रिय उसके द्वारा जाना जाता नोम दे गुएर्रे टौर माटान रुएक ( तेतुम "दो तीव्र आंखें" के लिए) एक है पूर्व तिमोरस् राजनीतिज्ञ जो के रूप में सेवा की है पूर्वी तिमोर के प्रधानमंत्री २२ जून २०१८ के बाद से। वह २० मई २०12 से २० मई २०17 तक पूर्वी तिमोर के राष्ट्रपति भी रहे । राजनीति में प्रवेश करने से पहले, वह फाल्टिल- फोर्कास डे डेफेसा डी तिमोर-लेस्ते (एफ-एफडीटीएल) के कमांडर थे , जो २०02 से पूर्व तिमोर की सेना थी। ६ अक्टूबर २०11. एफ-एफडीटीएल में सेवा देने से पहले, वह पूर्वी तिमोर या फाल्टिल के राष्ट्रीय स्वतंत्रता के सशस्त्र बलों के अंतिम कमांडर थे (फोरकास आर्मादास पैरा ए लिबरैको नैशनल डी तिमोर लेस्ते ), जो विद्रोही सेना थी जिसने १९७५ से १९९९ तक क्षेत्र पर इंडोनेशियाई कब्जे का विरोध किया था।
१९५६ में जन्मे लोग |
टी एल वी प्रसाद हिन्दी फ़िल्मों के एक निर्देशक हैं।
नामांकन और पुरस्कार
१९५२ में जन्मे लोग
आंध्रप्रदेश के लोग |
कृपानिवास रसिक रामोपासना के एक प्रमुख आचार्य।
इनका जन्म १७५० ई. के आसपास दक्षिण भारत में हुआ था। इनके पिता का नाम सीतानिवास तथा माता का गुणशीला था। वे श्री रंग के उपासक थे। उन्होंने इन्हें बचपन ही में रामानुजीय वैष्णव संत आनंद विलास से दीक्षा दिलाई। पंद्रह वर्ष की अवस्था में इन्हें संसार से विरक्ति हुई और वे घर त्याग कर मिथिला चले आए और रसिक भावना का आश्रय लिया। चारों धाम की पैदल यात्रा करते हुए अग्रदास के आचार्य पीठ रेवासा (जयपुर) गए। वहाँ से अयोध्या आए और कुछ दिनों वहाँ रहे। वहाँ से वे उज्जैन गए और वहांम् कुछ काल तक रहे। तदनंतर वे चित्रकूट आए ओर शेष जीवन वहीं व्यतीत किया। चित्रकूट में ही स्फटिक शिला के पास उनका देहावसान हुआ।
युगलप्रिया के अनुसार उन्होंने लगभग एक लाख छंदों की रचना की थी किंतु इनके जो ग्रंथ उपलब्ध हैं उनमें पच्चीस हजार से अधिक छंद नहीं हैं। उनके लिखे समस्त ग्रंथ सांप्रदायिक सिद्धांत निरूपण की दृष्टि से लिखे गए है। कुछ रचनाएँ भावनात्मक भी हैं जो विभिन्न राग-रागिनियों में गेय हैं। |
इंग्लैंड क्रिकेट टीम फरवरी और अप्रैल २०१८ के बीच न्यूजीलैंड का दौरा करने के लिए दो टेस्ट और पांच एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) मैच खेलने के लिए निर्धारित है। न्यूजीलैंड के २०१६-१७ के दौर ७ में फिक्स्चर, एडन पार्क में होने वाले संभावित दिन/रात के टेस्ट मैचों की तैयारी में दिन/रात के मैच के रूप में खेले गए। अगस्त 20१७ में न्यूजीलैंड क्रिकेट ने पुष्टि की कि ईडन पार्क में टेस्ट एक दिन/रात के खेल के रूप में खेला जाएगा। सितंबर 20१७ में मैदान पर फिर से टर्फिंग करने के बाद, दूसरे एकदिवसीय मैच मैक्लीन पार्क, नेपियर से माउंट मौनगानू में बे ओवल में स्थानांतरित किया गया था।
दो दिवसीय मैच: न्यूजीलैंड इलेवन बनाम इंग्लैंड
दो दिवसीय मैच: न्यूजीलैंड इलेवन बनाम इंग्लैंड |
पग कुत्ते की एक नस्ल हैं। ये मूल रूप से चीन में विकसित किए गए थें। इस नस्ल के कुत्तों की पहचान होती है कि ये स्वभावतः शांत और आलसी होते हैं। इन्हें मिलनसार और एक सज्जन साथी के रूप में जाना जाता हैं और इसी कारण लोगों के द्वारा इन्हें घर पर अधिकाधिक पाला जाता हैं। इनकी औसत आयु १२ से १५ साल के बीच होती हैं। इस नस्ल के कुत्तों का सिर आमतौर पर गोल होता हैं और इनका चेहरा झुर्रीदार एवं पूँछ मुड़ी हुई होती है। इनका रंग हल्का पीला या फिर काले रंग का होता है। इनका शरीर छोटा होता हैं, जिन पर नर्म और मुलायम बाल होते हैं। इस नस्ल के कुत्ते चंचल और वफादार भी होते हैं। एक स्वस्थ पग का औसतन भार ६ से ८ किलोग्राम के बीच होता है। इन्हें रहने के लिए अनुकूल वातावरण की आवश्यकता होती है क्योंकि ऐसा देखा गया है कि सामान्यतः इन्हें सांस लेने की समस्या होती है। ये नस्ल घर के बाहरी वातावरण के अनुकूल नहीं होते हैं।
चीन के सोंग राजवंश के शाही दरबार में पग विशेष रूप से लोकप्रिय थें। प्राचीन चीन में पग को चीन के शासक परिवारों के द्वारा साथी के रूप में पाला जाता था। इन्हें शाही सुख सुविधा के साथ सैन्य सुरक्षा भी प्रदान की जाती थी। आगे चलकर पग एशिया के अन्य हिस्सों में फैल गए। तिब्बत के बौद्ध भिक्षु भी अपने मठों में पालतू जानवर के रूप में पग को रखते थें।
सोलहवीं शताब्दी में पगों को चीन से यूरोप लाया गया, जहाँ से फिर नीदरलैंड के ऑरेंज-नासाउ राजघराना और स्टुअर्ट राजघराना के द्वारा यह पश्चिमी यूरोप में एक लोकप्रिय पालतू पशु के रूप में प्रसिद्ध होने लगें। उन्नीसवीं शताब्दी में यूनाइटेड किंगडम की रानी विक्टोरिया के मन में पगों के लिए एक विशेष लगाव उत्पन्न हो गया था, जो उनके बाद भी उनके शाही परिवार में लम्बे समय तक कायम रहा था।
अमेरिकी केनेल क्लब ने इस नस्ल के कुत्तों को सौम्य स्वभाव वाला एक आकर्षक जीव बताया है। दूरसंचार कंपनी वोडाफोन के द्वारा विज्ञापन में दिखाए जाने के बाद से पग भारत में काफ़ी लोकप्रिय हो गए। अमेरिकी फिल्म शृंखला मेन इन ब्लैक में भी पग को विशेष भूमिका में दिखाया गया है, फिल्म में इसे फ्रैंक नाम दिया गया है।
इन्हें भी देखें
कॉकेशियन शेफर्ड (कुत्ता) |
जुगनी चली जलंधर एक सब टीवी पर प्रसारित होने वाला हास्य धारावाहिक था। यह २९ सितम्बर २००८ से प्रारम्भ हुआ और १३ मई २०१० को समाप्त हो गया।
यह कहानी जुगनी नाम की एक लड़की जुगनी भल्ला पर आधारित है जो अपने पढ़ाई की सच्चाई छुपाती है। इसका वास्तविक नाम डॉ॰ जसमीत लांबा रहता है पर वह सभी को अपना परिचय जुगनी भल्ला के नाम से देती है। परंतु अंत में सभी को सच्चाई का पता लग जाता है और इसके साथ कहानी समाप्त हो जाती है।
मुस्कान मेहनी (डॉ॰ जसमीत लांबा/जुगनी भल्ला)
करण गोदवानी (विक्रमजीत 'विककी' भल्ला) |
सांख्यिकी, गुणवत्ता आश्वासन, और सर्वेक्षण कार्यप्रणाली में, नमूनाकरण का सम्बन्ध किसी जनसंख्या के भीतर से व्यक्तियों के एक उपसमुच्चय के चयन से हैं, ताकि पूर्ण जनसंख्या की विशेषताओं का अनुमान लगाया जा सकें।आ
एस्ट्रोलॉजर / मिस्टी चौहान |
भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इन्सैट) इसरो द्वारा शुरू बहुउद्देशीय भू स्थिर उपग्रहों की एक श्रृंखला है जो दूरसंचार, प्रसारण, मौसम विज्ञान और खोज और बचाव कार्य के लिए उपयोग होता है। १९८३ में शुरु किया हुआ इनसैट, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे बड़ी देशीय संचार प्रणाली है। यह भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग, दूरसंचार विभाग, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, आकाशवाणी और दूरदर्शन चैनल के एक संयुक्त उद्यम है। सचिव-स्तर इनसैट समन्वय समिति के ऊपर इनसैट प्रणाली के समग्र समन्वय और प्रबंधन टिकी हुई है। इनसैट उपग्रहों भारत के टीवी और संचार आवश्यकताओं की सेवा करने के लिए विभिन्न बैंड में ट्रांसपोंडर (सी, एस, विस्तारित सी और यू) प्रदान करते हैं। इसरो अंतर्राष्ट्रीय कोसपस-सारसट (कोस्पास-सरसात) कार्यक्रम के एक सदस्य के रूप में दक्षिण एशियाई और हिंद महासागर क्षेत्र में खोज और बचाव अभियान के लिए संकट चेतावनी संकेतों को प्राप्त करने के लिए उपग्रहों के ट्रांसपोंडर (ओं) का इस्तेमाल करते है।
भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (इनसेट) प्रणाली अगस्त १९८३ में इनसैट -१ बी के प्रक्षेपण (इनसैट -१ ए, पहला उपग्रह अप्रैल १982 में छोड़ा गया था लेकिन मिशन को पूरा नहीं कर सका गया) के साथ साधिकार हुआ। इनसैट प्रणाली भारत के दूरदर्शन और रेडियो प्रसारण, दूरसंचार और मौसम संबंधी क्षेत्रों में एक क्रांति की शुरुआत की। दूरदराज के क्षेत्रों और बंद किनारे द्वीपों के लिए टीवी और आधुनिक दूरसंचार सुविधाओं का तेजी से विस्तार सक्षम होने में इसका हाथ है। साथ में, प्रणाली संचार सेवाओं के लिए सी, विस्तारित सी और यू में ट्रांसपोंडर (ओं) का प्रदान करते है। कल्पना-१ एक विशेष मौसम संबंधी उपग्रह है। उपग्रहों पर नजर रखने और नियंत्रण करने के लिए हसन और भोपाल में मास्टर नियंत्रण सुविधा मौजूद है।
इन्हें भी देखें |
कोंकणी लोग भारतीय उपमहाद्वीप के कोंकण क्षेत्र के मूल निवासी एक इंडो-आर्यन जातीय भाषाई समूह हैं जो कोंकणी भाषा की विभिन्न बोलियाँ बोलते हैं। कोंकणी गोवा की राज्य भाषा है और तटीय कर्नाटक, तटीय महाराष्ट्र और केरल में आबादी द्वारा बोली जाती है। अन्य कोंकणी भाषी गुजरात राज्य में पाए जाते हैं। कोंकणी लोगों का एक बड़ा प्रतिशत द्विभाषी है।
कोंकण शब्द और, बदले में कोंकणी, या से लिया गया है। अलग-अलग अधिकारी इस शब्द की व्युत्पत्ति को अलग-अलग तरीके से समझाते हैं। कुछ में शामिल हैं
कोन का अर्थ है पहाड़ की चोटी।
आदिवासी मां देवी का नाम, जिसे कभी-कभी देवी रेणुका के रूप में संस्कृत किया जाता है।
इस प्रकार कोंकण नाम, शब्द से आया है, जिसका अर्थ है कोंकण के लोग।
सामान्य तौर पर, कोंकणी में कोंकणी भाषी को संबोधित करने के लिए प्रयुक्त पुल्लिंग रूप है और स्त्रीलिंग रूप है। बहुवचन रूप कोंकणी या कोंकणी है। गोवा में कोंकणों को अब केवल हिंदुओं के लिए संदर्भित किया जाता है, और कोंकणी कैथोलिक खुद को कोंकणों के रूप में संबोधित नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें पुर्तगालियों द्वारा खुद को इस तरह संदर्भित करने से प्रतिबंधित कर दिया गया था। कनारा के सारस्वत ब्राह्मण कोंकणियों को / कहते हैं। इसका शाब्दिक अर्थ है हमारी जीभ या हमारी जीभ बोलने वाले लोग । हालांकि यह गोवा के लोगों में आम नहीं है, वे आम तौर पर कोंकणी को या हमारी भाषा के रूप में संदर्भित करते हैं। कभी-कभी उपयोग गोवा के संदर्भ में मेरे समुदाय के लोगों के लिए किया जा सकता है।
कई औपनिवेशिक दस्तावेज़ों में उन्हें कोंकनी, कैनेरियन, कॉनकेनीज़ के रूप में उल्लेख किया गया है।
तत्कालीन प्रागैतिहासिक क्षेत्र में आधुनिक गोवा और गोवा से सटे कोंकण के कुछ हिस्से ऊपरी पुरापाषाण और मेसोलिथिक चरण यानी ८०००-६००० ईसा पूर्व में होमो सेपियन्स द्वारा बसे हुए थे। तट के साथ-साथ अनेक स्थानों पर शिला उत्कीर्णन से आखेटक-समूहों के अस्तित्व की पुष्टि हुई है। इन शुरुआती बसने वालों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता है। देवी माँ की आकृतियाँ और कई अन्य रूपांकनों को बरामद किया गया है जो वास्तव में प्राचीन संस्कृति और भाषा पर प्रकाश नहीं डालते हैं। गोवा में शमनिक धर्म के निशान पाए गए हैं।
ऐसा माना जाता है कि कोल, मुंडारी, खरविस जैसे ऑस्ट्रिक मूल के जनजातियों ने नवपाषाण काल के दौरान गोवा और कोंकण को बसाया होगा, जो ३५०० ईसा पूर्व से शिकार, मछली पकड़ने और कृषि के एक आदिम रूप में रह रहे थे। गोवा के इतिहासकार अनंत रामकृष्ण धूमे के अनुसार, गौड़ और कुनबी और अन्य ऐसी जातियां प्राचीन मुंडारी जनजातियों के आधुनिक वंशज हैं। अपने काम में उन्होंने कोंकणी भाषा में मुंडारी मूल के कई शब्दों का उल्लेख किया है। वह प्राचीन जनजातियों द्वारा पूजे जाने वाले देवताओं, उनके रीति-रिवाजों, खेती के तरीकों और आधुनिक समय के कोंकणी समाज पर इसके समग्र प्रभाव के बारे में भी विस्तार से बताते हैं। वे आदिम संस्कृति के एक नवपाषाण चरण में थे, और बल्कि वे भोजन-संग्राहक थे। कोंकस के नाम से जानी जाने वाली जनजाति, जिनसे इस क्षेत्र का नाम कोंगवान या कोंकण लिया गया है, अन्य उल्लिखित जनजातियों के साथ इस क्षेत्र में सबसे पहले बसने वाले बताए गए हैं। इस अवस्था में कृषि पूरी तरह से विकसित नहीं हुई थी, और बस आकार ले रही थी। कोल और मुंडारी पत्थर और लकड़ी के औजारों का उपयोग कर रहे होंगे क्योंकि लोहे के औजारों का उपयोग मेगालिथिक जनजातियों द्वारा १२०० ईसा पूर्व के अंत तक किया जाता था। माना जाता है कि कोल जनजाति गुजरात से आई थी। इस अवधि के दौरान देवी मां की बांबी या संटर के रूप में पूजा शुरू की गई थी। एंथिल को रोएन (कोंकणी: रोयण) कहा जाता है, यह शब्द ऑस्ट्रिक शब्द रोनो से लिया गया है जिसका अर्थ है छेद वाला। बाद के इंडो-आर्यन और द्रविड़ियन बसने वालों ने भी एंथिल पूजा को अपनाया, जिसका उनके द्वारा प्राकृत में संतारा में अनुवाद किया गया था।
बाद का काल
वैदिक लोगों की पहली लहर उत्तरी भारत से तत्कालीन कोंकण क्षेत्र में आई और बस गई। उनमें से कुछ वैदिक धर्म के अनुयायी हो सकते हैं। वे प्राकृत या वैदिक संस्कृत के प्रारंभिक रूप को बोलने के लिए जाने जाते थे। उत्तरी भारत के इस प्रवासन का मुख्य कारण उत्तर भारत में सरस्वती नदी का सूखना है। कई इतिहासकार केवल गौड़ सारस्वत ब्राह्मणों और कुछ अन्य ब्राह्मणों को उनके वंशज होने का दावा करते हैं। यह परिकल्पना कुछ के अनुसार आधिकारिक नहीं है। बालकृष्ण दत्ताराम कामत सातोस्कर, गोवा के एक प्रसिद्ध इंडोलॉजिस्ट और इतिहासकार, अपनी कृति गोमांतक प्रकृति अनि संस्कृती, खंड ई में बताते हैं कि मूल सारस्वत जनजाति में सभी वर्ग के लोग शामिल थे, जो वैदिक चतुर्भुज प्रणाली का पालन करते थे, न कि केवल ब्राह्मण, क्योंकि जाति व्यवस्था थी तब पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ था, और कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाई थी। (देखें गोमांतक प्रकृति अनि संस्कृति, खंड प्रथम)।
इंडो-आर्यन की दूसरी लहर १७०० से १४५० ईसा पूर्व के बीच हुई । इस दूसरी लहर के प्रवास के साथ दक्कन के पठार से द्रविड़ लोग भी आए थे। कुशा या हड़प्पा के लोगों की एक लहर संभवतः १६०० ईसा पूर्व के आसपास उनकी सभ्यता के जलमग्न होने से बचने के लिए एक लोथल थी जो समुद्री-व्यापार पर पनपी थी। कई संस्कृतियों, रीति-रिवाजों, धर्मों, बोलियों और विश्वासों के सम्मिश्रण ने प्रारंभिक कोंकणी समाज के गठन में क्रांतिकारी परिवर्तन किया।
मौर्य युग को पूर्व से प्रवासन, बौद्ध धर्म के आगमन और विभिन्न प्राकृत भाषाओं के साथ चिह्नित किया गया है। बौद्ध ग्रेको-बैक्ट्रियन ने सातवाहन शासन के दौरान गोवा को बसाया, इसी तरह उत्तर से ब्राह्मणों का एक सामूहिक प्रवास हुआ, जिन्हें राजाओं ने वैदिक बलिदान करने के लिए आमंत्रित किया था।
पश्चिमी क्षत्रप शासकों के आगमन से कई सीथियन प्रवासन भी हुए, जिसने बाद में भोज राजाओं को रास्ता दिया। विट्ठल राघवेंद्र मित्रागोत्री के अनुसार, कई ब्राह्मण और वैश्य उत्तर से यादव भोज के साथ आए थे (भोज से विजयनगर तक गोवा का एक सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहास देखें)। यादव भोजों ने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया और ग्रीक और फारसी मूल के कई बौद्ध धर्मान्तरित लोगों को बसाया।
अभीर, चालुक्य, राष्ट्रकूट, शिलाहारों ने कई वर्षों तक तत्कालीन कोंकण-गोवा पर शासन किया जो समाज में कई परिवर्तनों के लिए जिम्मेदार था। बाद में गोवा के शक्तिशाली कदंब सत्ता में आए। उनके शासन काल में समाज में आमूल-चूल परिवर्तन हुआ। अरबों, तुर्कों के साथ घनिष्ठ संपर्क, जैन धर्म का परिचय, शैव धर्म का संरक्षण, संस्कृत और कन्नड़ का उपयोग, विदेशी व्यापार का लोगों पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा।
१३५० में गोवा को तुर्की मूल के बहमनी सल्तनत ने जीत लिया था। हालांकि, १३७० में विजयनगर साम्राज्य, आधुनिक दिन हम्पी में स्थित एक पुनरुत्थानवादी हिंदू साम्राज्य ने इस क्षेत्र को फिर से जीत लिया। विजयनगर के शासकों ने लगभग १०० वर्षों तक गोवा पर कब्जा किया, जिसके दौरान विजयनगर घुड़सवार सेना को मजबूत करने के लिए हम्पी के रास्ते में अरबी घोड़ों के लिए इसके बंदरगाह महत्वपूर्ण लैंडिंग स्थान थे। हालाँकि, १४६९ में बहमनी सुल्तानों द्वारा गोवा को फिर से जीत लिया गया था। १४९२ में जब यह वंश टूट गया, तो गोवा आदिल शाह की बीजापुर सल्तनत का हिस्सा बन गया, जिसने गोवा वेल्हा को अपनी दूसरी राजधानी बनाया। बहमनियों ने कई मंदिरों को तोड़ दिया और हिंदुओं को इस्लाम में परिवर्तित होने के लिए मजबूर किया। इस धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए, गोवा के कई परिवार सूंडा के पड़ोसी राज्य में भाग गए।
गोवा पर पुर्तगाली शासन
अफोंसो डी अल्बुकर्क के नेतृत्व में और तिमोजी के नेतृत्व में स्थानीय हिंदुओं की सहायता से १५१० में गोवा पर पुर्तगालियों की विजय हुई। गोवा का ईसाईकरण और इसके साथ-साथ ल्यूसिटनाइजेशन जल्द ही हुआ।
गोवा इंक्विजिशन १५६० में स्थापित किया गया था, १७७४ से १७७८ तक संक्षिप्त रूप से दबा दिया गया था, और अंत में १८१२ में समाप्त कर दिया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य विधर्म के लिए नए ईसाइयों की जांच करना और कैथोलिक विश्वास को संरक्षित करना था। क्रिप्टो-यहूदी जो स्पेनिश इंक्विजिशन और पुर्तगाली इंक्विजिशन से बचने के लिए इबेरियन प्रायद्वीप से गोवा चले गए, गोवा इंक्विजिशन के लॉन्च के पीछे मुख्य कारण थे। कुछ १६,२०२ व्यक्तियों को न्यायाधिकरण द्वारा परीक्षण के लिए लाया गया था। ५७ को मौत की सजा सुनाई गई और उन्हें व्यक्तिगत रूप से मार दिया गया, अन्य ६४ को पुतले में जलाया गया। इनमें से १०५ पुरुष और १६ महिलाएं हैं। दोषी ठहराए गए बाकी लोगों को कम सजा या प्रायश्चित के अधीन किया गया था। कुल ४,०४६ लोगों को विभिन्न दंडों की सजा सुनाई गई, जिनमें से ३,०३४ पुरुष और १,०१२ महिलाएं थीं।
इकहत्तर ऑटो दा फे दर्ज किए गए। केवल पहले कुछ वर्षों में ४००० से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया था। क्रोनिस्टा डे टिश्यूरी (तिसवाड़ी का इतिहास) के अनुसार, आखिरी ऑटो दा फे ७ फरवरी १७७३ को गोवा में आयोजित किया गया था।
इनक्विजिशन को एक ट्रिब्यूनल के रूप में सेट किया गया था, जिसकी अध्यक्षता एक इंक्वायरी ने की थी, जिसे पुर्तगाल से गोवा भेजा गया था और दो और न्यायाधीशों द्वारा सहायता प्रदान की गई थी। ये तीन न्यायाधीश केवल लिस्बन में पुर्तगाली न्यायिक जांच के प्रति जवाबदेह थे और पूछताछ कानूनों के अनुसार दंड दिए गए थे। कानूनों में २३० पृष्ठ भरे हुए थे और जिस महल में पूछताछ की गई थी, उसे बिग हाउस के रूप में जाना जाता था और आरोपी से पूछताछ के दौरान बाहरी हस्तक्षेप को रोकने के लिए पूछताछ की कार्यवाही हमेशा बंद शटर और बंद दरवाजों के पीछे की जाती थी।
१५६७ में बर्देज़ में मंदिरों को नष्ट करने का अभियान तब पूरा हुआ जब अधिकांश स्थानीय हिंदू ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए। इसके अंत में ३०० हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया। ४ दिसंबर १५६७ से विवाह, जनेऊ पहनने और दाह संस्कार जैसे हिंदू रीति-रिवाजों के सार्वजनिक प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए कानून बनाए गए थे। १५ वर्ष से अधिक आयु के सभी व्यक्तियों को ईसाई उपदेश सुनने के लिए मजबूर किया गया, ऐसा न करने पर उन्हें दंडित किया गया। १५८३ में अधिकांश स्थानीय लोगों के परिवर्तित होने के बाद, असोलना और कंकोलिम में हिंदू मंदिरों को भी पुर्तगालियों द्वारा नष्ट कर दिया गया था।
गोवा इंक्विजिशन द्वारा दोषी ठहराया गया एक व्यक्ति चार्ल्स डेलॉन नाम का एक फ्रांसीसी चिकित्सक-सह-जासूस था। उन्होंने १६८७ में अपने अनुभवों का वर्णन करते हुए एक पुस्तक प्रकाशित की, जिसका शीर्षक था रेलासों द लांक्विरी द गोवा (फ्रांसीसी: रिलेशन दे ल'इंक्वीरी दे गोआ)।
शेष कुछ हिंदू जो अपने हिंदू धर्म को बनाए रखना चाहते थे, उन्होंने बीजापुर द्वारा शासित पड़ोसी क्षेत्रों में प्रवास करके ऐसा किया, जहाँ इन हिंदुओं को फिर से जजिया कर देना पड़ता था।
विडंबना यह है कि कुछ पुर्तगाली अप्रवासी सैनिकों के उत्प्रवास के लिए जिज्ञासा एक सम्मोहक कारक था, हालांकि रोमन कैथोलिक को उठाया गया था, जो कई देशी हिंदू उपनिवेशों के साथ एक हिंदू-शैली के जीवन का नेतृत्व करना चाहते थे। ये लोग विभिन्न भारतीय राजाओं के दरबारों में भाड़े के सैनिकों के रूप में अपना भाग्य तलाशने के लिए चले गए, जहाँ उनकी सेवाएँ आमतौर पर बंदूकधारियों या घुड़सवारों के रूप में कार्यरत थीं।
संस्कृति और भाषा पर प्रभाव
कोंकणी भाषा का मूल रूप से अध्ययन किया गया था और गोवा में कैथोलिक मिशनरियों द्वारा रोमन कोंकणी को बढ़ावा दिया गया था (उदाहरण के लिए थॉमस स्टीफेंस) १६वीं शताब्दी के दौरान एक संचार माध्यम के रूप में। १७वीं शताब्दी में गोवा पर बार-बार किए गए हमलों के दौरान देशी कैथोलिकों पर उनके हमलों और स्थानीय चर्चों के विनाश से मराठों का खतरा बढ़ गया था। इसने पुर्तगाली सरकार को गोवा में कोंकणी के दमन के लिए एक सकारात्मक कार्यक्रम शुरू करने के लिए प्रेरित किया, ताकि मूल कैथोलिक गोवा को पुर्तगाली साम्राज्य के साथ पूरी तरह से पहचाना जा सके। परिणामस्वरूप, पुर्तगालियों के प्रवर्तन द्वारा कोंकणी को दबा दिया गया और गोवा में वंचित कर दिया गया। फ़्रैंचिसंस द्वारा आग्रह किए जाने पर, पुर्तगाली वायसराय ने २७ जून १६८४ को कोंकणी के उपयोग पर रोक लगा दी और आगे यह आदेश दिया कि तीन वर्षों के भीतर, सामान्य रूप से स्थानीय लोग पुर्तगाली भाषा बोलेंगे और पुर्तगाली क्षेत्रों में किए गए अपने सभी संपर्कों और अनुबंधों में इसका उपयोग करेंगे। उल्लंघन के लिए दंड कारावास होगा। १७ मार्च १६८७ को राजा द्वारा डिक्री की पुष्टि की गई हालाँकि, १७३१ में पुर्तगाली सम्राट जोआओ वी को जिज्ञासु एंटोनियो अमरल कॉटिन्हो के पत्र के अनुसार, ये कठोर उपाय असफल रहे।
१७३९ में "उत्तर के प्रांत" (जिसमें बेसिन, चौल और सालसेट शामिल थे) के पतन के कारण कोंकणी के दमन को नई ताकत मिली। २१ नवंबर १७४५ को, गोवा के आर्कबिशप, लौरेंको डी सांता मारिया ई मेलो (ओएफएम) ने फैसला सुनाया कि पुरोहिती के लिए गोवा के आवेदकों के लिए और उनके सभी करीबी रिश्तेदारों (पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं) के लिए भी पुर्तगाली में धाराप्रवाह होना अनिवार्य था। नियुक्त पुजारियों द्वारा कठोर परीक्षाओं के माध्यम से इस भाषा प्रवाह की पुष्टि की जाएगी। इसके अलावा, बामोन्स और चारदोस को छह महीने के भीतर पुर्तगाली सीखने की आवश्यकता थी, जिसमें विफल होने पर उन्हें शादी के अधिकार से वंचित कर दिया जाएगा। जेसुइट्स, जो ऐतिहासिक रूप से कोंकणी के सबसे बड़े समर्थक थे, को १७६१ में पोम्बल के मार्क्विस द्वारा गोवा से निष्कासित कर दिया गया था। १८१२ में आर्कबिशप ने फैसला किया कि बच्चों को स्कूलों में कोंकणी बोलने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। १८४७ में यह नियम मदरसों तक बढ़ा दिया गया था। १८६९ में कोंकणी को स्कूलों में पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया था, जब तक कि १९१० में पुर्तगाल एक गणराज्य नहीं बन गया।
इस भाषाई विस्थापन का परिणाम यह हुआ कि गोवा में कोंकणी लिंग्वा डे क्रिआडोस (नौकरों की भाषा) बन गई। हिंदू और कैथोलिक अभिजात वर्ग क्रमशः मराठी और पुर्तगाली हो गए। विडंबना यह है कि कोंकणी वर्तमान में 'सीमेंट' है जो सभी गोवावासियों को जाति, धर्म और वर्ग में बांधता है और प्यार से कोंकणी माई (मां कोंकणी) कहा जाता है। महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के नकारात्मक प्रचार के कारण, १९६१ में गोवा के विलय के बाद मराठी को गोवा की आधिकारिक भाषा बना दिया गया था। कोंकणी को फरवरी १९८७ में ही आधिकारिक मान्यता मिली, जब भारत सरकार ने कोंकणी को गोवा की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी।
ऑस्कर फर्नांडीस - भारतीय राजनीतिज्ञ
दयानंद पाइ - भारतीय अरबपति रियल एस्टेट डेवलपर, परोपकारी और शिक्षाविद
पद्मिनी कोहलापुरे - अभिनेत्री
अमृता राव - अभिनेत्री
इलियाना डिक्रूज - अभिनेत्री
जयश्री गडकर - अभिनेत्री
केवी कामथ - ब्रिक्स देशों के न्यू डेवलपमेंट बैंक के प्रमुख
रवींद्र केलेकर - स्वतंत्रता सेनानी, लेखक
प्रकाश पादुकोण - ऐस बैडमिंटन खिलाड़ी; १९८० में विश्व रैंक # १
ईशा कोप्पिकर - अभिनेत्री
टेरेंस लुईस - कोरियोग्राफर
सुदेश लोटलीकर - कवि और निर्माता/निर्देशक
नारायण पुरुषोत्तम मलय - लेखक
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अनंत पाइ - शिक्षाविद् और भारतीय कॉमिक्स के प्रणेता
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बालशास्त्री जम्भेकर - पत्रकार
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दीपिका पादुकोण - अभिनेत्री
किशोरी अमोनकर - भारतीय शास्त्रीय गायिका
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नोट्स और संदर्भ
रुई परेरा गोम्स द्वारा हिंदू मंदिर और देवता
पीपी शिरोडकर द्वारा भारतीय समाज विघातक जाति वर्ण व्यवस्था, कालिका प्रकाशन विश्वस्त मंडल द्वारा प्रकाशित
केंद्र शासित प्रदेश गोवा, दमन और दीव का गजेटियर: विट्ठल त्र्यंबक गुने, गोवा, दमन और दीव (भारत) द्वारा जिला गजेटियर । राजपत्र विभाग, राजपत्र विभाग, सरकार द्वारा प्रकाशित। केंद्र शासित प्रदेश गोवा, दमन और दीव, १९७९
ग्राम समुदाय। एक ऐतिहासिक और कानूनी परिप्रेक्ष्य- सूजा डे, कार्मो। इन: बोर्गेस, चार्ल्स जे. २०००: ११२ और वेलिंकर, जोसेफ। गोवा में ग्रामीण समुदाय और उनका विकास
गोविन्द सदाशिव घुर्ये द्वारा कास्ट एंड रेस इन इंडिया
अनंत रामकृष्ण सिनाई धूमे द्वारा १०००० ईसा पूर्व से १३५२ ईस्वी तक गोवा का सांस्कृतिक इतिहास
तटीय महाराष्ट्र के कोंकणी मुसलमानों का इतिहास
कनारा सारस्वत एसोसिएशन
कोंकणी भाषी सारस्वत ब्राह्मण समुदाय की जड़ों के बारे में
मंगलोरियन कोंकणी ईसाइयों का इतिहास
खाड़ी में कोंकणी मुस्लिम या कोकनी मुस्लिम का एक कल्याणकारी संगठन
दैवज्ञ समुदाय वेबसाइट
कोंकणी भाषा की उत्पत्ति
ऑनलाइन मैंग्लोरियन कोंकणी डिक्शनरी प्रोजेक्ट |
कार्ल हाउशोफर (२७ अगस्त १८६९ - १० मार्च १९४६) तथा उनका बेटा एलब्रेट हाउशोफर हिटलर का परामर्शदाता था। उन्होंने हिटलर के लिए मानचित्र तैयार किया था। "सन् १९०२ मे कार्ल हाउशोफर ने जापान की यात्रा की और वहाँ के फौजी ढंग का अच्छा अध्ययन किया। यहीं से उसने 'और जगह लो' का सिद्धान्त सीखा।" उसने हिटलर की हमेशा मदद की। हिटलर का आत्मचरित 'मेरा संघर्ष' लिखने में भी उन्होंने अत्यधिक सहायता दी। |
मंगोलिया की संस्कृति मंगोलों के घुमन्तू जीवनशैली से बहुत सीमा तक प्रभावित है। इसके अलावा मंगोलिया की संस्कृति पर तिब्बत एवं तिब्बती बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव है। २०वीं शताब्दी के पश्चात इस पर रूस एवं यूरोपीय संस्कृति का प्रभाव भी पड़ा है।
इन्हें भी देखें
मंगोलिया में बौद्ध धर्म |
गडस्यारी, चौखुटिया तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
गडस्यारी, चौखुटिया तहसील
गडस्यारी, चौखुटिया तहसील |
१५३९ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है।
७ जून- बक्सर के निकट चौसा की लड़ाई में अफगान शेरशाह सूरी ने मुगल बादशाह हुमायु को हराया।
अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ |
अंग्रेजी में जूलॉजी(जूलॉजी) (हिन्दी : जन्तुविज्ञान) के अन्तर्गत जन्तुओं का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।
किन्तु जूलॉजीनिम्नलिखित अर्थों में भी प्रयुक्त होता है-
जूलॉजी(पत्रिका), १८८६ में स्थापित एक वैज्ञानिक पत्रिका
जूलॉजी (फिल्म), इवान त्वेर्दोव्सकीद्वारा निर्देशित २०१६ कीरूसी फिल्म
जूलॉजी (एल्बम), फिलीपीन बैंड द ज़ू कीपहली फिल्म स्टूडियो एलबम
इन्हें भी देखें
जूलॉजी जर्नल (बहुविकल्पी)
जन्तुवैज्ञानिक पत्रिकाओंकी सूची
जूलॉजिकल साइंस, जापान की जूलॉजिकल सोसायटी द्वारा प्रकाशित एक वैज्ञानिक पत्रिका |
पुरी एक्स्प्रेस ८४०६ भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन अहमदाबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:आदि) से ०६:००प्म बजे छूटती है और पुरी रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:पूरी) पर ०९:१५आम बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है ३९ घंटे १५ मिनट।
मेल एक्स्प्रेस ट्रेन |
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव , तहसील ठाकुरद्वारा, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
सम्बंधित जनगणना कोड:
राज्य कोड :०९
जिला कोड :१३५
तहसील कोड : ००७१७
गाँव कोड: ११४५७०
इन्हें भी देखें
उत्तर प्रदेश की तहसीलों का नक्शा
ठाकुरद्वारा तहसील के गाँव |
बड़वानी विधानसभा क्षेत्र, मध्य भारत में मध्य प्रदेश राज्य के २३० विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। यह खरगोन (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) के आठ विधानसभा क्षेत्रों में से एक है, यह विधानसभा क्षेत्र २३० निर्वाचन क्षेत्रों में १९० नंबर पर है। यह अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है।
वर्तमान में इस क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार प्रेमसिंह पटेल विधायक है। जिन्होंने २०१८ के मध्य विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी।
विधानसभा के सदस्य
विधानसभा चुनाव २०१३
२०१८ विधानसभा चुनाव
इन्हें भी देखें
मध्य प्रदेश के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र |
पारस-रामपुर पालीगंज, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है।
पटना जिला के गाँव |
नेवी नगर दक्षिण मुम्बई का एक क्षेत्र है। जिसकी स्थापना १९७६ में हुई।
नेवी नगर मुम्बई नगर के दक्षिणी छोर पर स्थित है जो कुलाबा कॉसवे से जुड़ा हुआ है। इस क्षेत्र में प्रवेश वर्जित है। इसके मध्य में टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान है जहाँ पर मूलभूत विज्ञान पर शोध कार्य किया जाता है। ब्रितानी साम्राज्य के समय नेवी नगर क्षेत्र को डक्सबरी के रूप से जाना जाता था और यहाँ पर एक हवाई पट्टी थी। इसे एक असुरक्षित स्थान के रूप में भी जाना जाता था। अफ़ग़ान चर्च यहाँ का सबसे पुराना निर्माण कार्य है। यह एशिया का सबसे बड़ा नेवी क्षेत्र है।
इस क्षेत्र में चार विद्यालय हैं:
नवल पब्लिक स्कूल मुम्बई
केन्द्रिय विद्यालय क्र॰ १
केन्द्रिय विद्यालय क्र॰ २
गुरु नानक हाई स्कूल
यहाँ पर एक अन्य विद्यालय, केन्द्रिय विद्यालय क्र॰ ३ भी स्थित है जो आर सी चर्च के पास स्थित है।
मुंबई के क्षेत्र |
प्राचीनकाल से कर्नाटक का स्थापत्य () इसके दक्षिणी नियोलिथिक और शुरूआती लौह युग से से आरम्भ होता है जिसने धार्मिक-सांस्कृतिक रूप से वास्तुशिल्प वैचारिक और उपयोगितावादी परिवर्तन देखे।
कर्नाटक में पर्यटन आकर्षण |
बोरिस बेकर ने स्टीफन एडबर्ग को ६-४, ३-६, ६-३ से हराया।
१९८६ कनाडा मास्टर्स |
गोदीगिवाला, पोखरी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के चमोली जिले का एक गाँव है।
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
गोदीगिवाला, पोखरी तहसील
गोदीगिवाला, पोखरी तहसील |
वराहपुराण में भगवान् श्रीहरि के वराह अवतार की मुख्य कथा के साथ अनेक तीर्थ, व्रत, यज्ञ, दान आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसमें भगवान् नारायण का पूजन-विधान, शिव-पार्वती की कथाएँ, सोरों सूकर(वराह)क्षेत्रवर्ती आदित्यतीर्थ, चक्रतीर्थ, वैवस्वततीर्थ, शाखोटकतीर्थ, रूपतीर्थ, सोमतीर्थ, योगतीर्थ आदि तीर्थों की महिमा, मोक्षदायिनी नदियों की उत्पत्ति और माहात्म्य एवं त्रिदेवों की महिमा आदि पर भी विशेष प्रकाश डाला गया है।
यह पुराण दो भागों से युक्त है और सनातन भगवान् विष्णु के माहात्म्य का सूचक है।वराहपुराण की श्लोक संख्या चौबीस हजार है, इसे सर्वप्रथम प्राचीन काल में वेदव्यास जी ने लिपिबद्ध किया था। इसमें भगवान श्रीहरि के वराह अवतार की मुख्य कथा के साथ अनेक तीर्थों (मुख्यतः सोरों सूकरक्षेत्र), व्रत, यज्ञ-यजन, श्राद्ध-तर्पण, दान और अनुष्ठान आदि का शिक्षाप्रद और आत्मकल्याणकारी वर्णन है। भगवान श्रीहरि की महिमा, पूजन-विधान, हिमालय की पुत्री के रूप में गौरी की उत्पत्ति का वर्णन और भगवान शंकर के साथ उनके विवाह की रोचक कथा इसमें विस्तार से वर्णित है। इसके अतिरिक्त इसमें सोरों सूकर(वराह)क्षेत्रवर्ती आदित्यतीर्थ, चक्रतीर्थ, रूपतीर्थ, योगतीर्थ, सोमतीर्थ, शाखोटकतीर्थ, वैवस्वततीर्थ आदि तीर्थों का वर्णन, भगवान् श्रीकृष्ण और उनकी लीलाओं के प्रभाव से मथुरामण्डल और व्रज के समस्त तीर्थों की महिमा और उनके प्रभाव का विशद तथा रोचक वर्णन है।
वराहपुराण में सबसे पहले पृथ्वी और वराह भगवान् का शुभ संवाद है, जोकि सतयुगीन गृद्धवट के नीचे सोरों शूकरक्षेत्र में हुआ था। तदनन्तर आदि सत्ययुग के वृतांत में रैम्य का चरित्र है, फ़िर दुर्जेय के चरित्र और श्राद्धकल्प का वर्णन है, तत्पश्चात महातपा का आख्यान, गौरी की उत्पत्ति, विनायक, नागगण सेनानी (कार्तिकेय) आदित्यगण देवी धनद तथा वृष का आख्यान है। उसके बाद सत्यतपा के व्रत की कथा दी गयी है, तदनन्तर अगस्त्य गीता तथा रुद्रगीता कही गयी है, महिषासुर के विध्वंस में ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र तीनों की शक्तियों का माहात्म्य प्रकट किया गया है, तत्पश्चात पर्वाध्याय श्वेतोपाख्यान गोप्रदानिक इत्यादि सत्ययुग वृतान्त मैंने प्रथम भाग में दिखाया गया है, फ़िर भगवद्धर्म में व्रत और तीर्थों की कथायें हैं, बत्तीस अपराधों का शारीरिक प्रायश्चित बताया गया है, प्राय: सभी तीर्थों के पृथक्-पृथक् माहात्म्य का वर्णन है, मथुरा की महिमा विशेषरूप से दी गयी है, उसके बाद श्राद्ध आदि की विधि है, तदनन्तर ऋषि पुत्र के प्रसंग से यमलोक का वर्णन है, कर्मविपाक एवं विष्णुव्रत का निरूपण है, गोकर्ण के पापनाशक माहात्म्य का भी वर्णन किया गया है, इस प्रकार वराहपुराण का यह पूर्वभाग कहा गया है, उत्तर भाग में पुलस्त्य और पुरुराज के सम्वाद में विस्तार के साथ सब तीर्थों के माहात्म्य का पृथक्-पृथक् वर्णन है। फ़िर सम्पूर्ण धर्मों की व्याख्या और पुष्कर नामक पुण्य पर्व का भी वर्णन है।
वेद-पुराण - यहाँ चारों वेद एवं दस से अधिक पुराण हिन्दी अर्थ सहित उपलब्ध हैं। पुराणों को यहाँ सुना भी जा सकता है।
महर्षि प्रबंधन विश्वविद्यालय-यहाँ सम्पूर्ण वैदिक साहित्य संस्कृत में उपलब्ध है।
ज्ञानामृतम् - वेद, अरण्यक, उपनिषद् आदि पर सम्यक जानकारी
वेद एवं वेदांग - आर्य समाज, जामनगर के जालघर पर सभी वेद एवं उनके भाष्य दिये हुए हैं।
जिनका उदेश्य है - वेद प्रचार |
राजकुमार शुक्ल (१८७५ - ) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय बिहार के चंपारण मुरली भराहावा ग्राम के निवासी और स्वतंत्रता सेनानी थे। इनके पिता का नाम कोलाहल शुक्ल था। इनकी धर्मपत्नी का नाम केवला देवी था जिनका घर भट्टौलिया, मीनापुर, मुजफ्फरपुर में है। पंडित शुक्ल को सत्याग्रही बनाने में केवला देवी का महत्वपूर्ण योगदान है।
इस सीधे-सादे लेकिन जिद्दी शख्स ने उन्हें अपने इलाके के किसानों की पीड़ा और अंग्रेजों द्वारा उनके शोषण की दास्तान बताई और उनसे इसे दूर करने का आग्रह किया.
गांधी पहली मुलाकात में इस शख्स से प्रभावित नहीं हुए थे और यही वजह थी कि उन्होंने उसे टाल दिया. लेकिन इस कम-पढ़े लिखे और जिद्दी किसान ने उनसे बार-बार मिलकर उन्हें अपना आग्रह मानने को बाध्य कर दिया. परिणाम यह हुआ कि चार महीने बाद ही चंपारण के किसानों को जबरदस्ती नील की खेती करने से हमेशा के लिए मुक्ति मिल गई. गांधी को इतनी जल्दी सफलता का भरोसा न था. इस तरह गांधी का बिहार और चंपारण से नाता हमेशा-हमेशा के लिए जुड़ गया. उन्हें चंपारण लाने वाले इस शख्स का नाम था राजकुमार शुक्ल.
चंपारण का किसान आंदोलन अप्रैल १९१७ में हुआ था. गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह और अहिंसा के अपने आजमाए हुए अस्र का भारत में पहला प्रयोग चंपारण की धरती पर ही किया. यहीं उन्होंने यह भी तय किया कि वे आगे से केवल एक कपड़े पर ही गुजर-बसर करेंगे. इसी आंदोलन के बाद उन्हें महात्मा की उपाधि से विभूषित किया गया. देश को राजेंद्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी, मजहरूल हक, ब्रजकिशोर प्रसाद जैसी महान विभूतियां भी इसी आंदोलन से मिलीं. इन तथ्यों से समझा जा सकता है कि चंपारण आंदोलन देश के राजनीतिक इतिहास में कितना महत्वपूर्ण है. इस आंदोलन से ही देश को नया नेता और नई तरह की राजनीति मिलने का भरोसा पैदा हुआ.
लेकिन राजकुमार शुक्ल और उनकी जिद न होती तो चंपारण आंदोलन से गांधी का जुड़ाव शायद ही संभव हो पाता.
अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग के पांचवें भाग के बारहवें अध्याय नील का दाग में गांधी लिखते हैं, लखनऊ कांग्रेस में जाने से पहले तक मैं चंपारण का नाम तक न जानता था. नील की खेती होती है, इसका तो ख्याल भी न के बराबर था. इसके कारण हजारों किसानों को कष्ट भोगना पड़ता है, इसकी भी मुझे कोई जानकारी न थी. उन्होंने आगे लिखा है, राजकुमार शुक्ल नाम के चंपारण के एक किसान ने वहां मेरा पीछा पकड़ा. वकील बाबू (ब्रजकिशोर प्रसाद, बिहार के उस समय के नामी वकील और जयप्रकाश नारायण के ससुर) आपको सब हाल बताएंगे, कहकर वे मेरा पीछा करते जाते और मुझे अपने यहां आने का निमंत्रण देते जाते.
लेकिन महात्मा गांधी ने राजकुमार शुक्ल से कहा कि फिलहाल वे उनका पीछा करना छोड़ दें. इस अधिवेशन में ब्रजकिशोर प्रसाद ने चंपारण की दुर्दशा पर अपनी बात रखी जिसके बाद कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पारित कर दिया. इसके बाद भी राजकुमार शुक्ल संतुष्ट न हुए. वे गांधी जी को चंपारण लिवा जाने की जिद ठाने रहे. इस पर गांधी ने अनमने भाव से कह दिया, अपने भ्रमण में चंपारण को भी शामिल कर लूंगा और एक-दो दिन वहां ठहर कर अपनी नजरों से वहां का हाल देख भी लूंगा. बिना देखे इस विषय पर मैं कोई राय नहीं दे सकता.
दिसंबर १९१६ में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में बिहार के किसानों के प्रतिनिधि बनकर वह लखनऊ गए और चंपारण के किसानों की दुर्दशा को शीर्ष नेताओं के समक्ष रखा। नील की खेती करनेवाले रैयत राजकुमार शुक्ल के अनुरोध पर महात्मा गाँधी चंपारण आने को तैयार हुए। राजकुमार शुक्ल के साथ बापू १० अप्रैल १९१७ को कोलकाता से पटना और मुजफ्फरपुर होते हुए मोतिहारी गए। नील की फसल के लागू तीनकठिया खेती के विरोध में गाँधीजी ने चंपारण में सत्याग्रह का पहला सफल प्रयोग किया।
अंग्रेजों की तत्कालीन तीन कठिया व्यवस्था के तहत हर बीघे में ३ कट्ठे जमीन पर नील की खेती करने की किसानों के लिए विवशता उत्पन्न करने का विरोध करते हुए पंडित राजकुमार शुक्ल ने वहां किसान आंदोलन की शुरुआत की, जिसके एवज में दंड स्वरूप उन्हें कई बार अंग्रेजों के कोड़े और प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा। क्षेत्र के किसानों की बदहाल स्थिति को देखते हुए पंडित शुक्ल ने महात्मा गांधी को बार-बार वहां आने का आग्रह किया तो गांधीजी इनकार नहीं कर सके। वे चंपारण पहुंचे और फिर वहां के किसानों के आंदोलन को जो धार मिली, उन्होंने देश को आजादी के मुकाम तक पहुंचा दिया। दरअसल, चंपारण किसान आंदोलन ही देश की आजादी का असली संवाहक बने था। वहां के किसानों के त्याग, बलिदान और संघर्ष की वजह से आज हम आजाद भारत में सांसें लेने के लिए स्वतंत्र हैं
अंतत: गांधी जी माने और १० अप्रैल को दोनों जन कलकत्ता से पटना पहुंचे. वे लिखते हैं, रास्ते में ही मुझे समझ में आ गया था कि ये जनाब बड़े सरल इंसान हैं और आगे का रास्ता मुझे अपने तरीके से तय करना होगा. पटना के बाद अगले दिन वे दोनों मुजफ्फरपुर पहुंचे. वहां पर अहले सुबह उनका स्वागत मुजफ्फरपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और बाद में कांग्रेस के अध्यक्ष बने जेबी कृपलानी और उनके छात्रों ने किया. शुक्ल जी ने यहां गांधी जी को छोड़कर चंपारण का रुख किया, ताकि उनके वहां जाने से पहले सारी तैयारियां पूरी की जा सकें. मुजफ्फरपुर में ही गांधी से राजेंद्र प्रसाद की पहली मुलाकात हुई. यहीं पर उन्होंने राज्य के कई बड़े वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के सहयोग से आगे की रणनीति तय की.
इसके बाद कमिश्नर की अनुमति न मिलने पर भी महात्मा गांधी ने १५ अप्रैल को चंपारण की धरती पर अपना पहला कदम रखा.यहां उन्हें राजकुमार शुक्ल जैसे कई किसानों का भरपूर सहयोग मिला. पीड़ित किसानों के बयानों को कलमबद्ध किया गया. बिना कांग्रेसका प्रत्यक्ष साथ लिए हुए यह लड़ाई अहिंसक तरीके से लड़ी गई. इसकी वहां के अखबारों में भरपूर चर्चा हुई जिससे आंदोलन को जनता का खूब साथ मिला. इसका परिणाम यह हुआ कि अंग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा. इस तरह यहां पिछले १३५ सालों से चली आ रही नील की खेती धीरे-धीरे बंद हो गई. साथ ही नीलहे किसानों का शोषण भी हमेशा के लिए खत्म हो गया.
चंपारण किसान आंदोलन देश की आजादी के संघर्ष का मजबूत प्रतीक बन गया था. और इस पूरे आंदोलन के पीछे एक पतला-दुबला किसान था, जिसकी जिद ने गांधी जी को चंपारण आने के लिए मजबूर कर दिया था. हालांकि राजकुमार शुक्ल को भारत के राजनीतिक इतिहास में वह जगह नहीं मिल सकी जो मिलनी चाहिए थी.
राजकुमार शुक्ल पर भारत सरकार द्वारा दो स्मारक डाक टिकट भी प्रकाशित किया गया है।
प्रसिद्ध गाँधीवादी लेखिका डॉ. सुजाता चौधरी द्वारा लिखा गया और वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित उपन्यास सौ साल पहले : चम्पारण का गाँधी राजकुमार शुक्ल की पहली प्रमाणिक जीवनी है। चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में लिखी गई यह किताब चम्पारण सत्याग्रह के सन्दर्भ में उत्कृष्ट है।
इन्हें भी देखें
मुकुटधारी प्रसाद चौहान
बाबू लोमराज सिंह
गांधी को 'महात्मा' बनाने वाले राजकुमार (पाञ्चजन्य) |
तंजौर और तंजावूर नाम से सम्बन्धित एक से अधिक लेख हैं:
तंजावूर - तमिल नाडु का एक नागर
तंजावूर ज़िला - तमिल नाडु का एक ज़िला
तंजौर विमानक्षेत्र - तंजावूर में एक विमानक्षेत्र
तंजौर महल - तंजावूर में एक स्थापत्य |
सुशांत लोक हरियाणा के गुड़गाँव शहर का एक आवासीय क्षेत्र है।
यह दिल्ली मेट्रो रेल की दक्षिण विस्तार वाली येलो लाइन शाखा का एक प्रस्तावित स्टेशन भी है।
दिल्ली मेट्रो ब्लूलाइन |
बिकोल क्षेत्र (बाइकोल रेशन), जिसे क्षेत्र ५ (रेशन व) भी कहते हैं, दक्षिणपूर्वी एशिया के फ़िलिपीन्ज़ देश के लूज़ोन द्वीप दल पर स्थित एक प्रशासनिक क्षेत्र है। इसमें छह प्रान्त सम्मिलित हैं, जिनमें से दो बिकोल प्रायद्वीप पर हैं और अन्य दो द्वीप हैं।
इस क्षेत्र में छह प्रान्त हैं। कामारिनेस सूर प्रान्त क्षेत्रफल और आबादी दोनों के हिसाब से सबसे बड़ा है, जबकि कतंदुआनेस दोनों आधारों पर सबसे छोटा है।
इस क्षेत्र में एक स्वतंत्र संघटक शहर (नागा) और छह संघटक शहर हैं - इरिगा, लेगाज़पी, लिगाओ, मस्बाते नगर, सोरसोगोन नगर, ताबाको।
इन्हें भी देखें
फ़िलिपीन्ज़ के क्षेत्र
फ़िलिपीन्ज़ के क्षेत्र |
मांडोवी एक्स्प्रेस ०१०४ भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन मडगांव रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:माओ) से ०९:४०आम बजे छूटती है और मुंबई छ. शिवाजी टर्मिनस रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:कस्टम) पर ०९:४५प्म बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है १२ घंटे ५ मिनट।
मेल एक्स्प्रेस ट्रेन |
एकीकृत डिजिटल संवर्धित नेटवर्क (अंग्रेज़ी:इंटीग्रेटेड डिजिटल एन्हान्स्ड नेटवर्क, लघुरूप: आई.डी.ई.एन) मोटोरोला कंपनी द्वारा विकसित एक मोबाइल दूरसंचार प्रौद्योगिकी तकनीक है। इस तकनीक द्वारा प्रयोक्ताओं को ट्रंकेटेड रेडियो और सेल्युलर फोन के लाभ मिलते हैं। एक निश्चित स्पैक्ट्रल स्थान में एनालॉग सेल्युलर एवं द्वि-पथीय रेडियो प्रणालियों के अपेक्ष, आई.डी.ई.एन अधिक उपयोक्ताओं को स्थान देता है। ऐसा करने के लिए इसमें ध्वनि संपीड़न और टाइम डिवीज़न मल्टिपल एक्सेस का प्रयोग किया जाता है।
नेटवर्क, एकीकृत डिजिटल संवर्धित
नेटवर्क, एकीकृत डिजिटल संवर्धित
नेटवर्क, एकीकृत डिजिटल संवर्धित |
ट्विकनहम (अंग्रेज़ी: ट्विकन्हम) एक दक्षिणपश्चिम लंदन में रिचमंड अपॉन टेम्स बरो का जिला है। |
अर्राना खैर, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
गाँव, अर्राना, खैर |
ज्येष्ठ शुक्ल नवमी भारतीय पंचांग के अनुसार तृतीय माह की नौवी तिथि है, वर्षान्त में अभी २९१ तिथियाँ अवशिष्ट हैं।
पर्व एवं उत्सव
इन्हें भी देखें
हिन्दू काल गणना
हिन्दू पंचांग १००० वर्षों के लिए (सन १५८३ से २५८२ तक)
विश्व के सभी नगरों के लिये मायपंचांग डोट कोम
विष्णु पुराण भाग एक, अध्याय तॄतीय का काल-गणना अनुभाग
सॄष्टिकर्ता ब्रह्मा का एक ब्रह्माण्डीय दिवस |
मोठ (मोठ) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के झाँसी ज़िले में स्थित एक नगर है।
इन्हें भी देखें
उत्तर प्रदेश के नगर
झाँसी ज़िले के नगर |
१११ रेखांश पूर्व (१११त मेरिडन ईस्ट) पृथ्वी की प्रधान मध्याह्न रेखा से पूर्व में १११ रेखांश पर स्थित उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक चलने वाली रेखांश है। यह काल्पनिक रेखा आर्कटिक महासागर, एशिया, हिन्द महासागर, दक्षिणी महासागर और अंटार्कटिका से गुज़रती है। यह ६९ रेखांश पश्चिम से मिलकर एक महावृत्त बनाती है।
इन्हें भी देखें
११२ रेखांश पूर्व
६९ रेखांश पश्चिम
११० रेखांश पूर्व |
मितपुरा फर्रुखाबाद, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
फर्रुखाबाद जिला के गाँव |
चिरोड़ी (चिरोरी) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के ग़ाज़ियाबाद ज़िले में स्थित एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तर प्रदेश के गाँव
गाज़ियाबाद ज़िले के गाँव |
अरविन्द त्रिपाठी ( जन्म- ३१ दिसम्बर, १९५९) हिन्दी साहित्य में मुख्यतः आलोचना के क्षेत्र में सक्रिय प्रगतिशील विचारधारा सम्पन्न आलोचक हैं।
अरविन्द त्रिपाठी का जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के एक गाँव कोहड़ाभाँवर में ३१ दिसंबर, १९५९ ई० को हुआ। उनके पिता साहित्यिक संस्कार संपन्न व्यक्ति थे और स्वभावतः उन्हें आरंभिक शिक्षा और साहित्यिक संस्कार अपने पिता से विरासत में ही मिला। गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर से हिन्दी विषय में एम० ए० किया और वहीं से 'नयी कविता का विचार-दर्शन' विषय पर डॉक्टरेट की उपाधि पायी। उन्होंने गोरखपुर में ही लम्बे समय तक युवा रचनाकारों की संस्था 'गतिविधि' का संयोजन भी किया।
सन् १९८५ में वे श्रीकान्त वर्मा के आमंत्रण पर दिल्ली आये और उन्हीं के संपादन में पहले 'प्रेक्षा' (साप्ताहिक) और फिर 'वर्णिका' (मासिक) पत्र में सहायक संपादक रहे। सन् १९८७-८८ में पीडीएफ (पोस्ट डॉक्टरल फेलो) के रूप में भारतीय भाषा केंद्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में 'आजादी के बाद हिन्दी उपन्यास का समाजशास्त्र' विषय पर शोध कार्य किया। उसी दौरान 'प्रगतिशील लेखक संघ' जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय इकाई के अध्यक्ष चुने गये।
अनेक वर्षों से वे युवा रचनाकारों के बीच बहुचर्चित 'श्रीकान्त वर्मा स्मृति पुरस्कार' के मानद सचिव और संयोजक हैं। पिछले दो दशकों से देश के अनेक विश्वविद्यालयों एवं संस्थाओं द्वारा आयोजित संगोष्ठियों में वे काव्य-पाठ, व्याख्यान, आलेख-पाठ और बहसों में सक्रिय हिस्सेदारी निभाते रहे हैं। एक तेजस्वी वक्ता के रूप में उनकी पहचान है। सन् १९८८ में उन्होंने आकाशवाणी सेवा में प्रवेश किया। वहाँ रहते हुए रेडियो को साहित्य और विचार की मुख्यधारा से जोड़ने का अथक उद्यम किया।
लेखन एवं सम्पादन
अरविन्द त्रिपाठी के लेखन एवं संपादन का भी एक मुख्य हिस्सा श्रीकांत वर्मा से संबद्ध रहा है; हालांकि वे मार्क्सवादी विचारधारा संपन्न लेखक हैं एवं उनके आलोचनात्मक आलेखों में इसकी सहज अभिव्यक्ति भी हुई है। मार्क्सवाद से प्रेरित होने के बावजूद उनके लेखन में कट्टरता का अभाव है। 'कवियों की पृथ्वी' में संकलित आलेखों में उन्होंने साठोत्तरी कविता के अधिकांश प्रमुख प्रगतिशील कवियों के काव्य-संग्रहों की समीक्षा के माध्यम से संबद्ध कविताओं के मर्म-उद्घाटन के साथ-साथ उनमें निहित प्रगतिशीलता के तत्वों के कलात्मक अंकन को भी स्पष्ट करते गये हैं।
मौलिक लेखन के अतिरिक्त उन्होंने पुनर्प्रकाशित आलोचना (पत्रिका) के सहस्राब्दी अंक १ से ४ में भी सह संपादक के रूप में कार्य किया।
आलोचना के सौ बरस
अरविन्द त्रिपाठी के संपादन-क्षेत्र में मील का पत्थर है 'आलोचना के सौ बरस'। इसमें उनकी आलोचनात्मक अन्तर्दृष्टि एवं व्यवस्थापन क्षमता का उत्तम परिचय मिलता है। तीन खण्डों में प्रकाशित यह ग्रन्थ मूलतः अरविन्द त्रिपाठी द्वारा सम्पादित 'वर्तमान साहित्य' पत्रिका के 'शताब्दी आलोचना पर एकाग्र' तीन अंकों का पुस्तकीय रूप है। 'वर्तमान साहित्य' के इस शताब्दी आलोचना विशेषांक के तीनों अंक इस पत्रिका के वर्ष-१९, अंक-५,६ एवं ७ के रूप में क्रमशः मई, जून एवं जुलाई २००२ ई॰ में प्रकाशित हुए थे। इस विशेषांक के प्रथम खंड में संपादकीय के रूप में 'सदी की आलोचना को 'देखना'...' शीर्षक १२ पृष्ठों की विस्तृत भूमिका थी, जिसे पुस्तक-रूप में प्रकाशन के समय हटाकर एक पृष्ठ की संक्षिप्त भूमिका दे दी गयी है; किन्तु पृष्ठ-संख्या संपादकीय के बाद आरंभ होने के कारण उक्त विशेषांक एवं उनके पुस्तकीय रूप 'आलोचना के सौ बरस' के तीनों खंडों की विषय-सूची एवं पृष्ठ-संख्या बिल्कुल समान हैं। अंतर केवल एक आलेख का है। विशेषांक के द्वितीय खंड में 'संवाद' उपखंड के अंत में व्यंग्यात्मक शैली में लिखा एक कमजोर आलेख था - छोटे सुकुल जी लिखित 'आलोचक का भीतर-बाहर (समकालीन आलोचना का पोस्टमार्टम)'। यह आलेख पृष्ठ-संख्या-३९२ से था। पुस्तक रूप में प्रकाशित होते समय इसे हटा कर उसी पृष्ठ-संख्या से रुस्तम राय लिखित 'स्वाधीनता आंदोलन और प्रतिबन्धित पत्रिकाएँ' शीर्षक आलेख दे दिया गया है। पुनः अगले आलेख की पृष्ठ संख्या में कोई अंतर नहीं है।
इस वृहदाकार आयोजन के प्रथम खण्ड में 'हिन्दी आलोचना के नवरत्न' के रूप में नौ आलोचकों पर चुने हुए आलोचकों के नौ विवेचनात्मक आलेख एवं 'प्रमुख आलोचनात्मक और वैचारिक कृतियाँ' शीर्षक अनुभाग के अन्तर्गत शीर्ष स्थानीय कृतियों की समीक्षाएँ प्रस्तुत की गयी हैं।
इसके द्वितीय खण्ड में 'विवाद और वाद' तथा 'संवाद' शीर्षक अनुभागों में ब्रजभाषा बनाम खड़ी बोली के विवाद, 'कथा में गांव बनाम शहर की बहस' तथा आधुनिकता, मार्क्सवाद आदि से सम्बद्ध विषयों-मुद्दों से लेकर रचना, आलोचना के विभिन्न आयामों के साथ उत्तर आधुनिकता तक पर श्रेष्ठ आलोचकों-विचारकों के ४८ आलेख संकलित किये गये हैं। इसमें एक आलेख 'स्वाधीनता आंदोलन और प्रतिबन्धित पत्रिकाएँ' भी है, जिसमें वर्णित पत्रिकाओं के संदर्भ में रुस्तम राय की मान्यता है कि "कुल मिलाकर अंग्रेजी राज के दौरान राष्ट्रीय मुक्ति की चेतना के प्रसार में इन प्रतिबंधित पत्रिकाओं की युगान्तरकारी भूमिका रही है।" इसी के 'मूल्यांकन' अनुभाग में 'छायावाद के पुरस्कर्ता : मुकुटधर पांडेय', रामचंद्र शुक्ल, नलिन विलोचन शर्मा, नंददुलारे वाजपेयी, डॉ० नगेन्द्र, नेमिचंद्र जैन, नामवर सिंह, देवीशंकर अवस्थी, मलयज तथा निर्मल वर्मा के मूल्यांकन के साथ-साथ 'सदी की नाट्यालोचना' एवं स्त्री आलोचना पर भी आलेख संयोजित किये गये हैं।
इस ग्रन्थ के तृतीय खण्ड में 'साक्षात्कार और वार्तालाप' शीर्षक के अन्तर्गत १८ प्रमुख आलोचकों-विचारकों से प्रखर वैचारिक मुद्दों पर बातचीत समायोजित हैं। इसके अतिरिक्त इसमें शिवदान सिंह चौहान के छह पत्र एवं अंत में जगदीश गुप्त का एक पत्र भी संकलित हैं।
शताब्दी, मनुष्य और नियति (श्रीकांत वर्मा के साहित्य का मूल्यांकन) - १९८६
हमारे समय की कविता - १९९८
श्रीकान्त वर्मा (विनिबन्ध) - १९९८ (साहित्य अकादमी, नयी दिल्ली से)
आलोचना की साखी - २०००
कवियों की पृथ्वी - २००४ (आधार प्रकाशन, पंचकुला, हरियाणा से प्रकाशित)
श्रीकान्त वर्मा रचनावली (छह खंडों में) - १९९५ (राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से)
जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध कहानी 'पुरस्कार' का नवसाक्षरों के लिए रूपांतरण - १९९६
प्रतिनिधि कविताएँ : अशोक वाजपेयी - १९९९ (राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से)
आलोचना के सौ बरस (तीन खंडों में) - २००३ (मूलतः सन् २००२ में 'वर्तमान साहित्य' के 'शताब्दी आलोचना पर एकाग्र' तीन अंकों का पुस्तकीय रूप; शिल्पायन, शाहदरा, नयी दिल्ली से प्रकाशित)
हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा 'मेरा घर' शीर्षक कविता के लिए पुरस्कृत - १९८६
कृति सम्मान - १९९८ (हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा 'हमारे समय की कविता' पुस्तक के लिए)
इन्हें भी देखें
भारतीय हिंदी साहित्यकार |
भारत की नदियों का देश के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में प्राचीनकाल से ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सिंधु (सिन्धु) तथा गंगा (गङ्गा) नदी की घाटियों में ही विश्व की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यताओं - सिंधु (सिन्धु) घाटी तथा आर्य सभ्यता का आर्विभाव हुआ। आज भी देश की सर्वाधिक जनसंख्या एवं कृषि का संकेंद्रण (संकेन्द्रण) नदी घाटी क्षेत्रों में पाया जाता है। प्राचीन काल में व्यापारिक एवं यातायात की सुविधा के कारण देश के अधिकांश नगर नदियों के किनारे ही विकसित हुए थे तथा आज भी देश के लगभग सभी धार्मिक स्थल किसी न किसी नदी से संबद्ध (सम्बद्ध) है।
नदियों के देश कहे जाने वाले भारत में मुख्यतः चार नदी प्रणालियाँ है (अपवाह तंत्र) हैं। उत्तर-पश्चिमी भारत में सिंधु, उत्तर भारत में गंगा, उत्तर-पूर्व भारत में ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली है। प्रायद्वीपीय भारत में नर्मदा कावेरी महानदी आदी नदियाँ विस्तृत नदी प्रणाली का निर्माण करती हैं।
१. सिंधु नदी तंत्र विश्व में सबसे बड़ा नदी तंत्र हैं इसकी द्रोणी द्वारा घेरा गया क्षेत्रफल ११ लाख ६५ हजार वर्ग किलोमीटर है इसमें मुख्य तौर पर सिंधु नदी समेत ६ नदिया हैं जिनमें सबसे प्रमुख सिंधु नदी हैं जिसकी लंबाई २८८० किलोमीटर है बाकी अन्य इसकी सहायक नदियां हैं जिनमें झेलम, चिनाब, रावी, सतलज और व्यास प्रमुख हैं। इन सबको मिलाकर सिंधु घाटी के मैदान के निर्माण होता है
२. गंगा नदी तंत्र की प्रमुख नदी गंगा हैं जो कि भारत में बहने वाली सबसे लम्बी नदी हैं २५२५ किलोमीटर।
इसकी सहायक नदियां इस प्रकार हैं यमुना, सोन, कोसी, गंडक इसके द्वारा घेरा गया क्षेत्रफल लगभग ८,२१,००० वर्ग किलोमीटर है
३. प्रायद्वीपीय नदियां इसमें मुख्य तौर पर गोदावरी, नर्मदा, ताप्ती , कृष्णा और कावेरी प्रमुख हैं इनमें से अधिकतर नदियां अपना जल वर्षा से प्राप्त करती हैं और दक्षिण भारत में बहती है
भारत की नदियों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे :-
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ
दक्षिण से निकलने वाली नदियाँ
अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियाँ
भारत की प्रमुख नदियों की सूची
इन्हें भी देखें
नदी जोड़ो परियोजना
भारत की नदियाँ
भारत का भूगोल
भारत के स्थलरूप |
यशवंतपुर एक्स्प्रेस ५०१५ भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन गोरखपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:गप) से ०६:३०आम बजे छूटती है और यशवंतपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:यप्र) पर १०:००आम बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है ५१ घंटे ३० मिनट।
मेल एक्स्प्रेस ट्रेन |
अद्दहमाण (अब्दुल रहमान) ने संदेश रासक नामक प्रसिद्ध काव्य की रचना की है। इनकी जन्मतिथि का अभी तक अंतिम रूप से निर्णय नहीं हो सका है। किंतु संदेश रासक के अंतसाक्ष्य के आधार पर मुनि जिनविजय ने कवि अब्दुल रहमान को अमीर खुसरो से पूर्ववर्ती सिद्ध किया है और इनका जन्म १२वीं सताब्दी में माना है।
साहित्य के एक अन्य इतिहासकार केशवराम काशीराम शास्त्री (कविचरित, भाग १, पू. १६-१७) के अनुसार अब्दुल रहमान का जन्म १५वीं शताब्दी में हुआ। पर शास्त्री जी ने अपने मत की पुष्टि में कोई साक्ष्य नहीं दिया है। संदेश रासक के छंद संख्या तीन और चार के आधार पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि भारत के पश्चिम भाग में स्थित म्लेच्छ देश के अंतर्गत मीरहुसेन के पुत्र के रूप में अब्दुल रहमान का जन्म हुआ जो प्राकृत काव्य में निपुण था। केशवराम काशीराम शास्त्री का अनुमान है कि पश्चिम में भरुच के पास चैमूर नगर था जहाँ मुसलमानों का राज्य स्थापित होने पर अब्दुल रहमान के पूर्वज ने किसी हिंदू बालिका से विवाह कर लिया और उसी वंश में अब्दुल रहमान उत्पन्न हुआ जिसने प्राकृत एवं अपभ्रंश का अध्ययन किया और अपने ग्रंथ की रचना ग्राम्य अपभ्रंश में की।
अब्दुल रहमान की केवल एक ही कृति है - संदेश रासक और इसकी हस्तलिखित प्रति पाटण के जैन भांडार में मिली है। अतः समझा जाता है कि कवि, किन्हीं कारणों से, पाटण में आ बसा होगा और हिंदुओं तथा जैनों के संपर्क में रहने के कारण उसने संस्कृत-प्राकृत-अपभ्रंश सीख ली होगी। इससे अधिक अब्दुल रहमान के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। |
लसिथ एम्बुलेंसिया (जन्म २० अक्टूबर १९९६) एक श्रीलंकाई क्रिकेटर है।
श्रीलंकाई क्रिकेट खिलाड़ी
१९९६ में जन्मे लोग |
छोटे आदमी की बड़ी कहानी राही मासूम रज़ा द्वारा लिखित जीवनी है। यह १९६५ के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए वीर अब्दुल हमीद के जीवन पर आधारित है। |
जयरामपुर-उर्फ-लाठीपुर बीहपुर, भागलपुर, बिहार स्थित एक गाँव है।
भागलपुर जिला के गाँव |
कृति खरबंदा (जन्म: २९ अक्तूबर, १९९५) भारतीय फिल्म अभिनेत्री है जो मुख्य रूप से कन्नड़ और तेलुगू फिल्मों में काम करती है। एक मॉडल के रूप में कैरियर की शुरुआत के बाद उन्होंने तेलुगू फिल्म बोनी (२००९) के साथ अभिनय की शुरुआत की। इसके बाद वह कन्नड़ में शीर्ष अभिनेत्री में से एक बन गई। उन्होंने हाल ही में तमिल और हिंदी फिल्म उद्योग में अपनी शुरुआत की है। फिल्म शादी में ज़रूर आना में राजकुमार राव के साथ कृति खरबंदा नजर आई। फिर आगे वो फिल्म 'गेस्ट इन लंदन' में मुख्य भूमिका में कार्तिक आर्यन और उनकी पत्नी के किरदार में दिखीं।
कृति खरबंदा का जन्म नई दिल्ली में अश्वनी खरबंदा और रजनी खरबंदा के यहाँ हुआ था। उनकी एक छोटी बहन इशिता खरबंदा और एक छोटे भाई जयवर्धन खरबंदा हैं, जो पेपर प्लेन प्रोडक्शंस के सह-संस्थापक हैं। १९९० के प्रारंभ में वह अपने परिवार के साथ बेंगलुरु चले गए। बाल्डविन गर्ल्स हाई स्कूल में अपने उच्च विद्यालय को पूरा करने के बाद, वह श्री भगवान महावीर जैन कॉलेज से स्नातक होने से पहले बिशप कॉटन महिला क्रिश्चियन कॉलेज में भाग लेती थी। वह गहना डिजाइनिंग में एक डिप्लोमा रखती है।
स्वयं के अनुसार, वह स्कूल और कॉलेज के दौरान सांस्कृतिक गतिविधियों में बहुत सक्रिय थी। एक बच्चे के रूप में, वह कई विज्ञापनों में भी प्रदर्शित हुईं और उसने स्कूल / कॉलेज में मॉडलिंग जारी रखा, जिसमें कहा गया कि वह "हमेशा टीवी विज्ञापनों को पसंद करते थे"। उनके कॉलेज के दिनों के दौरान उनके प्रमुख मॉडलिंग अभियान भीमा ज्वेलर्स, स्पायर, और फेयर एंड लवली के लिए थे। स्पायर बिलबोर्ड पर उनकी तस्वीर ने एनआरआई निदेशक राज पिप्पला का ध्यान आकर्षित किया जो अपनी फिल्म के लिए एक नायिका की तलाश में थे और उन्होंने अनके अभिनय करियर के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
इन्हें भी देखें
१९९० में जन्मे लोग |
तुजिया चीन के एक अल्पसंख्यक समुदाय का नाम है। चीन में इनकी आबादी लगभग ८० लाख की है और यह चीन का छठा सब से बड़ा अल्पसंख्यक गुट है। यह वूलिंग पर्वतों के वासी हैं, जो हूनान, हुबेई और गुइझोऊ प्रान्तों और चोंगकिंग ज़िले की सीमाओं पर विस्तृत हैं। इनकी अपनी एक तिब्बती और बर्मी से सम्बंधित तुजिया भाषा है जिसमें यह अपने समुदाय को 'बिज़िका' बुलाते हैं, जिसका अर्थ 'मूल निवासी' है। चीनी लोग इन्हें 'तुजिया' (चीनी: ) बुलाते हैं जिसका मतलब 'स्थानीय लोग' (अंग्रेज़ी में 'लोकल') होता है।
समुदाय की जड़ें
इतिहासकारों का मानना है कि तुजिया लोग आज से लगभग १२०० वर्ष पहले चोंगकिंग क्षेत्र के इर्द-गिर्द बसने वाले 'बा लोगों' के वंशज हैं, जिनका इतिहास चीनी ऐतिहासिक वर्णनों में मिलता है। ६०० से ४०० ईसा पूर्व में इस इलाक़े में बा लोगों का अपना राज्य हुआ करता था लेकिन चीन के चिन राजवंश ने आक्रमण करके उनका राज तोड़ दिया और उन्हें अपने अधीन कर लिया।
इन्हें भी देखें
एशिया की मानव जातियाँ
चीन की जातियाँ |
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील मुरादाबाद, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
सम्बंधित जनगणना कोड:
राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७१९
उत्तर प्रदेश के जिले (नक्शा)
मुरादाबाद तहसील के गाँव |
लोकताक झील () भारत के पूर्वोत्तर भाग में स्थित मणिपुर राज्य की एक झील है। यह अपनी सतह पर तैरते हुए वनस्पति और मिट्टी से बने द्वीपों के लिये प्रसिद्ध है, जिन्हें "कुंदी" कहा जाता है। झील का कुल क्षेत्रफल लगभग २८० वर्ग किमी है। यह झील मणिपुर के चुडाचांदपुर जिले में स्थित है। यह मणिपुर का सबसे बड़ा जिला है। झील पर सबसे बड़ा तैरता द्वीप "केयबुल लामजाओ" कहलाता है और इसका क्षेत्रफल ४० वर्ग किमी है। यह संगइ हिरण का अंतिम घर है जो एक विलुप्तप्राय जाति है। इस फुमदी को केयबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान के नाम से भारत सरकार ने एक संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया है और यह विश्व का एकमात्र तैरता हुआ राष्ट्रीय उद्यान है। लोकताक झील मणिपुर के लिये बहुत आर्थिक व सांस्कृतिक महत्त्व रखती है। इसका जल विद्युत उत्पादन, पीने और सिंचाई के लिये प्रयोग होता है। इसमें मछलियाँ भी पकड़ी जाती हैं।
मणिपुरी भाषा में "लोक" का अर्थ "नदी या झरना" और "ताक" का अर्थ "अंत" होता है।
इन्हे भी देखें
केयबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान
मणिपुर की झीलें
भारत में रामसर स्थल |
एक बंदरगाह, एक तट या किनारे पर एक स्थान होता है, जिसमें एक या अधिक बंदरगाह समाविष्ट होते हैं, जहां जहाज़ लोगों या नौभार को ज़मीन से या तक डॉक और हस्तान्तरित कर सकते है। बंदरगाह स्थान, वाणिज्यिक मांग और हवा एंव लहरों से शरण के लिए, भूमि और नौगम्य पानी के अधिगम को उपयुक्त बनाने के लिए चयनित किये जाते हैं। गहरे पानी वाले बंदरगाह कम हैं, लेकिन बड़े, अधिक किफायती जहाज़ संभाल सकते हैं। चूँकि, पूरे इतिहास में बंदरगाहों ने प्रत्येक प्रकार का यातायात संभाला है, इसलिए समर्थन और भंडारण सुविधाएं व्यापक रूप से भिन्न हैं, यह मीलों के लिए विस्तृत किये हो सकते हैं और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर हावी होते हैं। कुछ बंदरगाहों की एक महत्वपूर्ण, संभवतः विशेष रूप से सामरिक भूमिका है।
बंदरगाहों में अक्सर नौभार-संभालने के उपकरण होते हैं, जैसे जहाजों के भारण में उपयुक्त होने वाले क्रेन (लॉन्गशोरमेन (लॉनेशेरमेन) द्वारा संचालित) और फोर्कलिफ्ट, जो निजी हितों या सार्वजनिक निकायों द्वारा उपलब्ध करवाए जा सकते हैं। अक्सर, वपनीभरणी या अन्य प्रसंस्करण सुविधाएं पास ही में स्थित होंगी. कुछ बंदरगाहों में नहर की सुविधा है, जो जहाज़ों को आगे अन्तर्देशीय चलन की अनुमति देती है।
गाड़ियों और ट्रकों जैसे इंटरमोडल (इंटरमोडल) परिवहन के लिए प्रवेश, एक बंदरगाह के लिए महत्वपूर्ण हैं, ताकि यात्री और नौभार बंदरगाह क्षेत्र के बाहर आगे अंतर्देशीय में भी बढ़ सकें. अंतर्राष्ट्रीय यातायात वाले बंदरगाहों पर सीमा शुल्क की सुविधा होती है। हार्बर पायलट और जहाजों को खीचने वाली नावें, डॉक के पास तंग कमरे में, बड़े जहाजों के साथ छल कर सकते हैं।
शब्द "बंदरगाह" और "समुद्रबंदरगाह" सागर-चलन जहाजों को संभालने वाली अलग अलग प्रकार की बंदरगाह सुविधाओं के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं और नदी बंदरगाह नौकाओं और अन्य कम गहरे-ड्राफ्ट जहाजों जैसे नदी यातायात के लिए इस्तेमाल किया जाता है। एक झील, नदी, या नहर पर कुछ बंदरगाहों की पहुँच एक समुद्र या सागर तक है और कभी कभी इन्हें "अंतर्देशीय बंदरगाह" कहा जाता है।
एक मछली पकड़ने का बंदरगाह (फिशिंग पोर्ट), मछली वितरण और अवतरण के लिए एक बंदरगाह या हार्बर की सुविधा है। यह एक मनोरंजक सुविधा हो सकती है, लेकिन आमतौर पर यह वाणिज्यिक है। एक मछली पकड़ने का बंदरगाह (फिशिंग पोर्ट) ही एक मात्र ऐसा बंदरगाह है जो एक सागर उत्पाद पर निर्भर करता है और मछलियों की कमी एक मछली पकड़ने वाले बंदरगाह (फिशिंग पोर्ट) के अमितव्ययी होने का कारण बन सकती है। हाल के दशकों में, मछली पकड़ने के भंडार की रक्षा करने के नियम मछली पकड़ने के बंदरगाह (फिशिंग पोर्ट) का उपयोग सीमित कर सकते हैं, संभवतः उन्हें प्रभावी ढंग से बंद करते हुए.
एक "शुष्क बंदरगाह" एक ऐसा शब्द है जो कभी कभी आधानों या पारंपरिक अधिकांश नौभार को स्थान देने के लिए उपयोग होने वाले यार्ड का वर्णन करने के लिए प्रयोग किया जाता है, यह अक्सर रेल या सड़क मार्ग द्वारा एक समुद्रबंदरगाह से जुडा होता है।
एक गर्म पानी बंदरगाह वह है जहां सर्दियों के समय में पानी जमता नहीं है। क्योंकि वे पूरे वर्ष उपलब्ध होते हैं, इसलिए गर्म पानी बंदरगाह महान भू-राजनीतिक या आर्थिक हित के हो सकते हैं।
एक समुद्रबंदरगाह इसके आगे एक "क्रूज़ बंदरगाह" या एक "कार्गो बंदरगाह" के रूप में वर्गीकृत है। इसके अतिरिक्त, "क्रूज बंदरगाहों" को एक "होम बंदरगाह" या "कॉल का बंदरगाह" भी कहा जाता है। "कार्गो बंदरगाह" इसके आगे एक "बल्क" या "ब्रेक बल्क बंदरगाह" या एक "कंटेनर बंदरगाह" के रूप में भी वर्गीकृत किया जाता है।
एक क्रूज होम बंदरगाह वह बंदरगाह है जहां क्रूज-जहाज़ यात्री अपनी समुद्री यात्रा को प्रारंभ करने के लिए सवार (या सम्मिलित) होते हैं और अपनी समुद्री यात्रा के ख़त्म होने पर क्रूज-जहाज़ से उतरते (या उतारने लगते) हैं। ये वह भी है जहां समुद्री यात्रा के लिए क्रूज जहाज़ की आपूर्ति भरी जाती है, जिसमें ताज़े पानी और ईंधन से ले कर फल, सब्जी, शैंपेन और समुद्री यात्रा के लिए आवश्यक सभी अन्य आपूर्तियां शामिल हैं। दिन के दौरान जब क्रूज जहाज बंदरगाह में होता है तब "क्रूज होम बंदरगाह" एक बहुत ही व्यस्त स्थान होता है, क्योंकि सभी आपूर्तियों को लादने के अलावा जाने-वाले यात्री अपना सामान उतारते हैं और आने-वाले यात्री जहाज़ पर सवार होते हैं। वर्तमान में, विश्व की क्रूज राजधानी फ्लोरिडा का मियामी का बंदरगाह है, जिसके तुरंत बाद पोर्ट इवरग्लेड्ज़, फ्लोरिडा और सेन जान का बंदरगाह, पुएर्टो रिको आते हैं।
कॉल का बंदरगाह, अपने जलयात्रा मार्ग पर एक जहाज़ के लिए एक मध्यवर्ती स्टाप है, जिसमें आधा दर्जन बंदरगाह शामिल हो सकते हैं। इन बंदरगाहों पर, एक मालवाहक जहाज ईंधन या आपूर्तियां ले सकता हैं और साथ ही नौभार को लादने और उतारने का काम भी कर सकता है। लेकिन एक क्रूज-जहाज़ के लिए, उनका प्रमुख स्टाप वह है जहां क्रूज लाइन यात्रियों को अपनी छुट्टी का आनंद लेने के लिए ले जाती हैं।
दूसरी ओर कार्गो बंदरगाह, क्रूज बंदरगाहों से काफी अलग हैं, क्योंकि प्रत्येक बहुत ही अलग नौभार संभालता है, जिसे काफी अलग यांत्रिक तरीकों द्वारा लादना और उतारना होता है। बंदरगाह एक विशेष प्रकार का नौभार संभाल सकता है या कई नौभार संभाल सकता है, जैसे अनाज, तरल ईंधन, तरल रसायन, लकड़ी, मोटर वाहन, आदि. ऐसे बंदरगाहों को "बल्क" या "ब्रेक बल्क बंदरगाह" के रूप में जाना जाता है। वह बंदरगाह जो कंटेनरीकृत नौभार संभालते हैं, वह कंटेनर बंदरगाहों के रूप में जाने जाते हैं। अधिकांश कार्गो बंदरगाह सभी तरह का नौभार संभालते हैं, लेकिन कौन सा नौभार संभालना है इस बात को लेकर कुछ बंदरगाह बहुत विशिष्ट होते हैं। इसके अतिरिक्त, निजी कार्गो बंदरगाह विभिन्न ऑपरेटिंग टर्मिनलों में विभाजित हैं, जो अलग अलग नौभार संभालते हैं और विभिन्न कंपनियों द्वारा संचालित है, यह टर्मिनल ऑपरेटर या स्टीवडोर्स के नाम से भी जाने जाते हैं।
कभी कभी बंदरगाह इस्तेमाल से बाहर हो जाते हैं। राई, ईस्ट ससेक्स मध्य युग में एक महत्वपूर्ण अंग्रेजी बंदरगाह था, लेकिन समुद्र तट बदल गया और यह अब समुद्र से है, जबकि रवेनसपर्ण और दंविच के बंदरगाह तटीय घिसाव से खो गए हैं। इसके अलावा, यूनाइटेड किंगडम, लंदन, में एक समय पर थेम्ज़ नदी एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह थी, लेकिन नौपरिवहन तरीकों में परिवर्तन, जैसे आधानों और बड़े जहाज़ों के उपयोग, ने इसे एक नुकसान में डाल दिया.
विश्व के बंदरगाह
दक्षिण अफ्रीका में बंदरगाह और हार्बर
पूर्व एशियाई बंदरगाहों पर विस्तृत जानकारी के लिए, पूर्व एशियाई बंदरगाहों की सूची देखें.
संयुक्त राज्य अमेरिका के बंदरगाह, सालाना २ अरब मेट्रिक टन से अधिक घरेलू और आयात/निर्यात नौभार संभालते हैं। अमेरिकी बंदरगाह, देश के ९९ प्रतिशत से अधिक समुद्रपार नौभार को चलाने के लिए जिम्मेदार हैं।
अमेरिकी बंदरगाहों पर विस्तृत जानकारी के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में बंदरगाहों की सूची देखें. सभी उत्तर अमेरिकी बंदरगाहों पर विस्तृत जानकारी के लिए, उत्तर अमेरिकी बंदरगाहों की सूची देखें.
इन्हें भी देखें
जल बंदरगाह विषय
बन्दर ("पोर्ट" या "हैवन" के लिए फारसी शब्द)
मरीना - मनोरंजनात्मक नौकायन के लिए बंदरगाह
अन्य प्रकार के बंदरगाह
समुद्रबंदरगाहों की सूची
विश्व का सबसे व्यस्त बंदरगाह
दुनिया के सबसे व्यस्त वाहनांतरण बंदरगाहों की सूची
दुनिया के सबसे व्यस्त बंदरगाह क्षेत्रों की सूची
सबसे व्यस्त आधान बंदरगाहों की सूची
उत्तर अमेरिकी बंदरगाहों की सूची
संयुक्त राज्य अमेरिका में बंदरगाहों की सूची
पूर्व एशियाई बंदरगाहों की सूची
समुद्र बचाव संगठन
बंदरगाह इंजीनियरिंग समाचार
बंदरगाह उद्योग सांख्यिकी, अमेरिकन असोसिएशन ऑफ़ पोर्ट अथॉरिटीज़
विश्व बंदरगाह रैंकिंग २००६, मेट्रिक टन द्वारा और त्यूस द्वारा, अमेरिकन असोसिएशन ऑफ़ पोर्ट अथॉरिटीज़ (एक्सेल फॉर्मेट, २६.५कब)
नून्साइट.कॉम से १९१ देशों में १,6१3 बंदरगाह पर नौकायन सुविधाओं पर जानकारी
"नोआ सामाजिकआर्थिक" वेबसाइट पहल से बंदरगाहों के सामाजिक और आर्थिक लाभ
विश्व समुद्री बंदरगाह खोज
[[श्रेणी:बंदरगाह और हार्बर]] |
राजेश्वर प्रसाद मंडल (२० फ़रवरी १९२० - १० अक्टूबर १९९२) न्यायविद, साहित्यकार एवं हिन्दीसेवी थे। पटना उच्च न्यायालय में हिन्दी में न्यायादेश लिखने वाले वे प्रथम न्यायधीश थे।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी और हिन्दी में न्यायादेश लिखने वाले पटना उच्च न्यायालय के प्रथम न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेश्वर प्रसाद मंडल मणिराज का जन्म मधेपुरा जिला के गढिया में २० फ़रवरी १९२० को हुआ था। आपके दादा रासबिहारी मंडल सुख्यात जमींदार एवं बिहार के अग्रणी कांग्रेसी थे। रासबिहारी मंडल के तीन पुत्र भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल, कमलेश्वरी प्रसाद मंडल तथा बिन्ध्येश्वरी प्रसाद मंडल राजनीति में सक्रिय थे। राजेश्वर पिता भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल और माता सुमित्रा देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे। टीएनबी कॉलेज भागलपुर से अर्थशास्त्र में स्नातक और पटना वि०वि० से एम०ए० करने के बाद इन्होने १९४१ में पटना विधि महाविद्यालय से वकालत की डिग्री हासिल की. १९४० में आपके विवाह पटना में भाग्यमणी देवी से हुआ।
राजेश्वर प्रसाद मंडल १९४२ में वकालत पेशे से जुड़े. १९४६ तक मधेपुरा में वकालत करने के बाद ये १९४७ में मुंसिफ के पद पर गया में नियुक्त हुए.१९६६ में ये पटना हाई कोर्ट के डिप्टी रजिस्ट्रार बनाये गए तथा १९६९ में दुमका में एडीजे बने. १९७३ में हजारीबाग के जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में पदस्थापित हुए और फिर १९७९ में पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जैसे उत्कर्ष पद पर. १९८२ में अवकाश ग्रहण करने के पूर्व वे समस्तीपुर जेल फायरिंग जांच समिति के चेयरमैन नियुक्त हुए. १९९० में ये राष्ट्रीय एकता परिषद के सदस्य तथा १९९० में ही पटना उच्च न्यायालय में सलाहकार परिषद के सदस्य जज मनोनीत हुए. १० अक्टूबर १९९२ को इनके जीवन यात्रा का समापन पटना में ही हो गया।
बहुत सी महत्वपूर्ण उपलब्धियों से सजा था उनका जीवन. बहुत अच्छे खिलाड़ी ही नही, बहुत अच्छे इंसान भी थे वे. हिन्दी में न्यायादेश लिखने वाले पटना उच्च न्यायलय के प्रथम न्यायाधीश थे वे. उन्होंने हजार पृष्ठ से भी अधिक विस्तार में साहित्य-सर्जना की जिनमे सभ्यता की कहानी, धर्म, देवता और परमात्मा, भारत वर्ष हिंदुओं का देश, ब्राह्मणों की धरती आदि ग्रंथों में वंचितों के प्रति अपनी पक्षधरता द्वारा यह प्रमाणित किया किया है। जहाँ सुख और शान्ति मिलती है जैसे रोचक उपन्यास में उन्होंने पाश्चात्य की तुलना में भारतीय संस्कृति का औचित्य प्रतिपादित किया है तो सतयुग और पॉकेटमारी कहानी संग्रह में अपनी व्यंग दक्षता का प्रमाण दिया है। अँधेरा और उजाला के द्वारा उनके नाटककार व्यक्तित्व का परिचय मिलता है तो चमचा विज्ञान से कवि प्रतिभा का.
सार रूप में कहें तो राजेश्वर प्रसाद मंडल मानवता के पुजारी, रूढियों के भंजक, प्रगतिकामी, सामाजिक परिवर्तन के शब्द-साधक मसीहा और सर्वोपरि एक नेक इंसान थे। |
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री (५ फरवरी १९१६ - ०७ अप्रैल, २०११) हिंदी व संस्कृत के कवि, लेखक एवं आलोचक थे। उन्होने २०१० में पद्मश्री सम्मान लेने से मना कर दिया था। इसके पूर्व १९९४ में भी उन्होने पद्मश्री नहीं स्वीकारी थी।
वे छायावादोत्तर काल के सुविख्यात कवि थे। उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें भारत भारती पुरस्कार से सम्मानित किया था। आचार्य का काव्य-संसार बहुत ही विविध और व्यापक है।वे थोड़े-से कवियों में रहे हैं, जिन्हें हिंदी कविता के पाठकों से बहुत मान-सम्मान मिला है। प्रारंभ में उन्होंने संस्कृत में कविताएँ लिखीं। फिर महाकवि निराला की प्रेरणा से हिंदी में आए।
शास्त्रीजी का जन्म बिहार के [इमामगंज के नजदीक मैगरा|गया जिले]] के मैगरा गाँव में हुआ था।
कविता के क्षेत्र में उन्होंने कुछ सीमित प्रयोग भी किए और सन् ४० के दशक में कई छंदबद्ध काव्य-कथाएँ लिखीं, जो 'गाथा` नामक उनके संग्रह में संकलित हैं। इसके अलावा उन्होंने कई काव्य-नाटकों की रचना की और 'राधा` जैसा सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य रचा। परंतु शास्त्री की सृजनात्मक प्रतिभा अपने सर्वोत्तम रूप में उनके गीतों और ग़ज़लों में प्रकट होती है।
इस क्षेत्र में उन्होंने नए-नए प्रयोग किए जिससे हिंदी गीत का दायरा काफी व्यापक हुआ। वैसे, वे न तो नवगीत जैसे किसी आंदोलन से जुड़े, न ही प्रयोग के नाम पर ताल, तुक आदि से खिलवाड़ किया। छंदों पर उनकी पकड़ इतनी जबरदस्त है और तुक इतने सहज ढंग से उनकी कविता में आती हैं कि इस दृष्टि से पूरी सदी में केवल वे ही निराला की ऊंचाई को छू पाते हैं।
२६ जनवरी २०१० को भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया किन्तु इसे शास्त्रीजी ने अस्वीकार कर दिया। सात अप्रैल २०११ को मुजफ्फरपुर के निराला निकेतन में जानकीवल्लभ शास्त्री ने अंतिम सांस ली।
छायावाद के अंतिम स्तम्भ माने जाने वाले आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री का गुरुवार रात मुजफ्फरपुर में निधन हो गया। वह ९८ वर्ष के थे। उनके निधन पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं कई साहित्यकारों ने शोक जताया है।
काव्य संग्रह - बाललता, अंकुर, उन्मेष, रूप-अरूप, तीर-तरंग, शिप्रा, अवन्तिका, मेघगीत, गाथा, प्यासी-पृथ्वी, संगम, उत्पलदल, चन्दन वन, शिशिर किरण, हंस किंकिणी, सुरसरी, गीत, वितान, धूपतरी, बंदी मंदिरम्
महाकाव्य - राधा
संगीतिका - पाषाणी, तमसा, इरावती
नाटक - देवी, ज़िन्दगी, आदमी, नील-झील
उपन्यास - एक किरण : सौ झांइयां, दो तिनकों का घोंसला, अश्वबुद्ध, कालिदास, चाणक्य शिखा (अधूरा)
कहानी संग्रह - कानन, अपर्णा, लीला कमल, सत्यकाम, बांसों का झुरमुट
ललित निबंध - मन की बात, जो न बिक सकीं
संस्मरण -अजन्ता की ओर, निराला के पत्र, स्मृति के वातायन, नाट्य सम्राट पृथ्वीराज कपूर, हंस-बलाका, कर्म क्षेत्रे मरु क्षेत्र, अनकहा निराला
समीक्षा - साहित्य दर्शन, त्रयी, प्राच्य साहित्य, स्थायी भाव और सामयिक साहित्य, चिन्ताधारा
संस्कृत काव्य - काकली
ग़ज़ल संग्रह - सुने कौन नग़मा
फ़ुरसत में . आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री
छंदप्रसंग के आदर्श: आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री (डॉ॰ भारतेन्दु मिश्र)
आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री
मानवीय मूल्यों व सांस्कृतिक चेतना के अग्रदूत कवि जानकीवल्लभ (प्रभात खबर)
जानकीवल्लभ शास्त्री (नया इण्डिया)
१९१६ में जन्मे लोग |
एक सेट-टॉप बॉक्स एक सूचना उपकरण उपकरण है जिसमें आमतौर पर एक टीवी-ट्यूनर इनपुट होता है और एक दूरदर्शन और संकेत के बाहरी स्रोत को आउटपुट प्रदर्शित करता है, सामग्री में स्रोत संकेत एक रूप में जो तब दूरदर्शन स्क्रीन या अन्य प्रदर्शन यंत्र पर प्रदर्शित किया जा सकता है। उनका उपयोग केबल दूरदर्शन, सैटेलाइट दूरदर्शन और स्थलीय दूरदर्शन सिस्टम के साथ-साथ अन्य उपयोगों में भी किया जाता है।
लॉस एंजिल्स टाइम्स के अनुसार संयुक्त राज्य में एक सेट-टॉप बॉक्स के केबलदाता का दाम एक साधारण बॉक्स के लिए $१५० से लेकर एक अच्छे गुणवत्ते वाले बॉक्स के लिए $२५० के बीच होता है। २०१६ में एक औसतन पे-टीवी ग्राहक को सेट-टॉप बॉक्स पट्टे पर लेने के लिए प्रतिवर्ष $२३१ देने पड़ते थे।
टीवी सिग्नल स्रोत
सिग्नल का स्रोत ईथरनेट केबल, सैटेलाइट डिश, समाक्षीय केबल (केबल दूरदर्शन देखें), टेलीफोन लाइन (जिसमें डीएसएल कनेक्शन भी शामिल है), बिजली लाइनों पर ब्रॉडबैंड, या साधारण वीएचएफ या यूएचएफ एंटीना भी हो सकते हैं। इस संदर्भ में सामग्री का अर्थ कोई भी या सभी वीडियो, ऑडियो, इंटरनेट वेब पेज, इंटरैक्टिव वीडियो गेम या अन्य संभावनाएं हो सकती हैं। सैटेलाइट और माइक्रोवेव-आधारित सेवाओं के लिए भी विशिष्ट बाहरी रिसीवर हार्डवेयर की आवश्यकता होती है, इसलिए विभिन्न स्वरूपों के सेट-टॉप बॉक्स का उपयोग कभी भी पूरी तरह से गायब नहीं हुआ। सेट-टॉप बॉक्स स्रोत सिग्नल की गुणवत्ता को भी बढ़ा सकते हैं।
१९६२ के ऑल-चैनल रिसीवर एक्ट ने अमेरिकी दूरदर्शन रिसीवरों को पूरे वीएचएफ और यूएचएफ रेंज को ट्यून करने में सक्षम होने की आवश्यकता दे दी (जो उत्तरी अमेरिका में एनटीएससी-एम चैनल २ से ८३ तक ५४ से ८९० मेगाहर्ट्ज पर था)। लेकिन उससे पहले एक सेट-टॉप बॉक्स जिसे यूएचएफ के नाम से जाना जाता था, दूरदर्शन स्पेक्ट्रम के एक हिस्से को देखने के लिए कम-वीएचएफ चैनलों पर स्थानांतरित करने के लिए रिसीवर पर एक यूएचएफ कनवर्टर स्थापित किया जाता था। चुकी १९६० के दशक के कुछ १२-चैनल दूरदर्शन कई वर्षों तक उपयोग करते रहे, और कनाडा और मैक्सिको अमेरिका की तुलना में धीमे थे, इसलिए यूएचएफ ट्यूनर को नए दूरदर्शन में फैक्ट्री-स्थापित करने की आवश्यकता थी, इन कन्वर्टर्स के लिए एक बाजार १९७० के दशक तक मौजूद रहा।
केबल दूरदर्शन ने यूएचएफ कन्वर्टर्स की तैनाती के संभावित विकल्प का प्रतिनिधित्व किया क्योंकि प्रसारण को अंतिम देखने के स्थान के बजाय केबल हेड-एंड पर वीएचएफ चैनलों पर आवृत्ति-स्थानांतरित किया जा सकता है। हालांकि अधिकांश केबल सिस्टम पूरे ५४-८९० मेगाहर्ट्ज वीएचएफ/यूएचएफ को समायोजित नहीं कर सके। फ़्रीक्वेंसी रेंज और वीएचएफ स्पेस के बारह चैनल अधिकांश सिस्टम पर जल्दी समाप्त हो गए थे। इसलिए किसी भी अतिरिक्त चैनल को जोड़ने के लिए गैर-मानक आवृत्तियों पर केबल सिस्टम में अतिरिक्त सिग्नल डालने की आवश्यकता होती है, आमतौर पर या तो वीएचएफ चैनल ७ (मिडबैंड) के नीचे या सीधे वीएचएफ चैनल १३ (सुपरबैंड) के ऊपर।
ये आवृत्तियाँ गैर- दूरदर्शन सेवाओं (जैसे दो-तरफ़ा रेडियो) के साथ ओवर-द-एयर के अनुरूप थीं और इसलिए मानक दूरदर्शन रिसीवर पर नहीं थीं। केबल-तैयार दूरदर्शन सेट आम होने से पहले १९८० के दशक के अंत में अतिरिक्त अनुरूप केबल दूरदर्शन चैनल प्राप्त करने और चयनित चैनल को अनुरूप रेडियो फ़्रीक्वेंसी में बदलने या बदलने के लिए केबल कनवर्टर बॉक्स नामक एक इलेक्ट्रॉनिक ट्यूनिंग डिवाइस की आवश्यकता थी, जो आमतौर पर वीएचएफ चैनल ३ या ४ थे। बॉक्स ने अनुरूप गैर-केबल-तैयार दूरदर्शन सेट को अनुरूप एन्क्रिप्टेड केबल चैनल प्राप्त करने की अनुमति दी और बाद की तारीख के अंकीय एन्क्रिप्शन उपकरणों के लिए एक प्रोटोटाइप टोपोलॉजी बन गया। नए दूरदर्शन को तब अनुरूप साइफर केबल-रेडी में परिवर्तित किया गया था, जिसमें खास और महँगे दूरदर्शन (उर्फ प्रति दृश्य भुगतान) बेचने के लिए मानक कनवर्टर बनाया गया था। कई वर्षों बाद और धीरे-धीरे विपणन किया गया अंकीय केबल का आगमन जारी रहा और इन उपकरणों के विभिन्न रूपों की आवश्यकता में वृद्धि हुई। यूएचएफ पर पूरे प्रभावित आवृत्ति बैंड के ब्लॉक रूपांतरण, जबकि कम आम, कुछ मॉडलों द्वारा पूर्ण वीसीआर संगतता और कई दूरदर्शन सेट चलाने की क्षमता प्रदान करने के लिए उपयोग किया गया था, हालांकि कुछ हद तक वह गैर-मानक चैनल नंबरिंग योजना के साथ रहा।
नए दूरदर्शन रिसीवरों ने बाहरी सेट-टॉप बॉक्स की आवश्यकता को बहुत कम कर दिया, हालांकि केबल कनवर्टर बॉक्स का उपयोग वाहक-नियंत्रित पहुँच प्रतिबंधों के अनुसार प्रीमियम केबल चैनलों को हटाने के लिए और अंकीय केबल चैनल प्राप्त करने के साथ-साथ दूरदर्शन के माध्यम से मांग, प्रति दृश्य भुगतान और घर की खरीदारी जैसी इंटरैक्टिव सेवाओं का उपयोग करने के लिए किया जाता है।
बंद कैप्शनिंग बॉक्स
सेट-टॉप बॉक्स नए दूरदर्शनों में अनिवार्य समावेशन बनने से पहले भी उत्तरी अमेरिका में पुराने दूरदर्शनों पर बंद उपशीर्षकों को सक्षम करने के लिए बनाए गए थे। कुछ को ध्वनि अभिलेखन एवं पुनरुत्पादन को म्यूट करने (या इसे शोर से बदलने) के लिए भी तैयार किया गया है, जब उपशीर्षकों में गालियों का पता चलता है जहाँ आपत्तिजनक शब्द भी अवरुद्ध है। कुछ में एक वी-चिप भी शामिल है जो केवल कुछ दूरदर्शन सामग्री रेटिंग के कार्यक्रमों की अनुमति देता है। एक सुविधा जो बच्चों के दूरदर्शन देखने या वीडियो गेम खेलने के समय को सीमित करता है, भी मिल सकती है, हालांकि इनमें से कुछ वीडियो सिग्नल के बजाय मुख्य बिजली पर काम करते हैं।
अंकीय दूरदर्शन एडाप्टर
सहस्राब्दी की बारी के बाद अंकीय भू दूरदर्शन में संक्रमण ने कई मौजूदा रिसीवरों को सीधे नए सिग्नल को ट्यून और प्रदर्शित करने में असमर्थ छोड़ दिया। संयुक्त राज्य अमेरिका में २००९ में पूर्ण-सेवा प्रसारकों के लिए अनुरूप शटडाउन पूरा किया गया था। वहाँ जानबूझकर सीमित क्षमता वाले कूपन-योग्य कनवर्टर बॉक्स के लिए एक संघीय सब्सिडी की पेशकश की गई जो अंकीय संक्रमण में खोए संकेतों को बहाल करेगा।
पेशेवर सेट-टॉप बॉक्स
पेशेवर सेट-टॉप बॉक्स को पेशेवर प्रसारण ध्वनि/चलचित्र उद्योग में एकीकृत रिसीवर/डिकोडर के रूप में संदर्भित किया जाता है। वे अधिक मजबूत क्षेत्र संभालन और रैक माउंटिंग वातावरण के लिए अभिकल्पित किए गए हैं। एकीकृत रिसीवर/डिकोडर उपभोक्ता सेट-टॉप बॉक्स के विपरीत असम्पीडित सीरियल अंकीय अंतराफलक को आउटपुट करने में सक्षम हैं जो आमतौर पर कॉपीराइट कारणों से नहीं होते हैं।
स्मार्ट दूरदर्शन प्रोग्रामिंग के लिए उपयोग किए जाने वाले के प्रकार के हाइब्रिड सेट-टॉप बॉक्स दर्शकों को कई दूरदर्शन वितरण विधियों (स्थल, केबल, इंटरनेट और उपग्रह सहित) तक पहुँचने में सक्षम बनाते हैं; आईपीटीवी बॉक्स की तरह, उनमें वीडियो ऑन डिमांड, टाइम-शिफ्टिंग टीवी, इंटरनेट एप्लिकेशन, वीडियोटेलीफोनी, सर्विलांस, गेमिंग, शॉपिंग, टीवी-केंद्रित इलेक्ट्रॉनिक प्रोग्राम गाइड और ई-गवर्नमेंट शामिल हैं। अलग-अलग वितरण धाराओं को एकीकृत करके, संकर (कभी-कभी "टीवी-केंद्रित" के रूप में जाना जाता) पे-टीवी ऑपरेटरों को अधिक लचीला अनुप्रयोग परिनियोजन सक्षम करता है, जो नई सेवाओं को लॉन्च करने की लागत को कम करता है, बाजार में गति बढ़ाता है, और उपभोक्ताओं के लिए व्यवधान को सीमित करता है।
उदाहरण के तौर पर हाइब्रिड ब्रॉडकास्ट ब्रॉडबैंड दूरदर्शन (एचबीबीटीवी) सेट-टॉप बॉक्स पारंपरिक दूरदर्शन प्रसारणों को अनुमति देते हैं, चाहे वे टेरेस्ट्रियल, सैटेलाइट या केबल प्रदाताओं से हों, इंटरनेट पर वितरित वीडियो और व्यक्तिगत मल्टीमीडिया सामग्री के साथ एक साथ लाए जाने की अनुमति देते हैं। एडवांस्ड अंकीय ब्रॉडकास्ट ने २००५ में अपना पहला हाइब्रिड डीटीटी/आईपीटीवी सेट-टॉप बॉक्स लॉन्च किया जिसने उस साल के अंत तक टेलीफोनिका को अपनी मूवीस्टार दूरदर्शन सेवा के लिए अंकीय दूरदर्शन प्लेटफॉर्म प्रदान किया। २००९ में एडीबी ने पोलिश अंकीय उपग्रह ऑपरेटर एन को यूरोप का पहला तीन-तरफ़ा हाइब्रिड अंकीय दूरदर्शन प्लेटफ़ॉर्म प्रदान किया, जो ग्राहकों को एकीकृत सामग्री देखने में सक्षम बनाता है चाहे वह सैटेलाइट, स्थलीय या इंटरनेट के माध्यम से वितरित किया गया हो।
संयुक्त साम्राज्य स्थित इनव्यू टेक्नोलॉजी में देश में टेलीटेक्स्ट के लिए ८० लाख से अधिक एसटीबी तैनात हैं और टॉप अप दूरदर्शन के लिए एक मूल पुश वीओडी सेवा है।
आईपीटीवी नेटवर्क में सेट-टॉप बॉक्स एक छोटा कंप्यूटर है जो अंतरजाल नियमावली नेटवर्क पर दो-तरफा संचार प्रदान करता है और वीडियो स्ट्रीमिंग मीडिया को डीकोड करता है। आईपी सेट-टॉप बॉक्स में एक अंतर्निहित होम नेटवर्क इंटरफ़ेस होता है जो ईथरनेट, वायरलेस (८०२.११ ग,न,एक), या मौजूदा वायर होम नेटवर्किंग तकनीकों में से एक हो सकता है जैसे होमपीएनए या आईटीयू-टी मानक जो मौजूदा घरेलू तारों (बिजली लाइन, फोन लाइन और समाक्षीय केबल) का उपयोग करके एक उच्च गति (१ गीगाबिट प्रति सेकंड तक) स्थानीय क्षेत्र नेटवर्क बनाने का एक तरीका प्रदान करता है।
संयुक्तराज्य और यूरोप में टेलीफोन कंपनियाँ पारंपरिक स्थानीय केबल दूरदर्शन एकाधिकार के साथ प्रतिस्पर्धा करने के साधन के रूप में अक्सर एडीएसएल या ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क पर आईपीटीवी का उपयोग करती हैं।
इस प्रकार की सेवा अंतरजाल दूरदर्शन से अलग है जिसमें सार्वजनिक इंटरनेट पर तृतीयपक्ष सामग्री शामिल है, जो स्थानीय सिस्टम चालक द्वारा नियंत्रित नहीं की जाती है।
इलेक्ट्रॉनिक प्रोग्राम गाइड
इलेक्ट्रॉनिक प्रोग्राम गाइड और इंटरेक्टिव प्रोग्राम गाइड दूरदर्शन, रेडियो और अन्य संचार माध्यमों के अनुप्रयोगों के उपयोगकर्ताओं को लगातार अद्यतन मेनू के साथ प्रसारण प्रोग्रामिंग या वर्तमान और आने वाली सामग्री के लिए अनुसूचित जानकारी प्रदर्शित करते हैं। आईटीवी जैसे कुछ गाइड अपनी पिछली सामग्री को बढ़ावा देने के लिए बैकवर्ड स्क्रॉलिंग की सुविधा भी देते हैं।
यह सुविधा उपयोगकर्ता को पसंदीदा चैनल चुनने की अनुमति देती है जिससे उन्हें हासिल करना आसान और तेज हो जाता है; यह प्रस्ताव पर अंकीय चैनलों की विस्तृत शृंखला के साथ आसान है। पसंदीदा चैनलों की अवधारणा सतही तौर पर कई वेब ब्राउज़रों की बुकमार्क सेवा के समान है।
उलटी घड़ी उपयोगकर्ता को तय करने और निश्चित समय पर चैनल बदलने के लिए बॉक्स को सक्षम करने की अनुमति देता है। उपयोगकर्ता के बाहर होने पर यह सुविधा एक से अधिक चैनलों को रिकॉर्ड करने में मदद करता है। उपयोगकर्ता को अभी भी वीसीआर या डीवीडी रिकॉर्डर प्रोग्राम करने की आवश्यकता है।
बॉक्स पर नियंत्रण
कुछ मॉडलों में बॉक्स के साथ-साथ दूरस्थ नियंत्रण पर भी नियंत्रण होते हैं। यह उपयोगी मालूम पड़ता है यदि उपयोगकर्ता रिमोट खो दे या बैटरी पुरानी या खत्म हो जाए।
अन्य दूरदर्शन के साथ काम करने वाले रिमोट कंट्रोल
कुछ दूरस्थ नियंत्रण दूरदर्शन के विभिन्न ब्रांडों के कुछ बुनियादी कार्यों को भी नियंत्रित कर सकते हैं। यह उपयोगकर्ता को दूरदर्शन चालू और बंद करने, ध्वनि स्तर समायोजित करने या अंकीय और अनुरूप दूरदर्शन चैनलों के बीच या स्थलीय और इंटरनेट चैनलों के बीच अदला-बदली करने के लिए केवल एक दूरस्थ की मदद से उपयोग करने देता है।
परेन्टल लॉक या सामग्री फ़िल्टर १८ वर्ष से अधिक उम्र के उपयोगकर्ताओं को व्यक्तिगत पहचान संख्या का उपयोग करके उन चैनलों तक पहुँच को अवरुद्ध करने की अनुमति देता है जो बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं हैं। कुछ सेट-टॉप बॉक्स सभी चैनलों को सीधा अवरोधित कर देते हैं जबकि अन्य उपयोगकर्ता को उन चुनिंदा चैनलों तक पहुँच प्रतिबंधित करने की अनुमति देते हैं जो किसी सिद्ध आयु से कम उम्र के बच्चों के देखने के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
सेट-टॉप बॉक्स की जटिलता और संभावित प्रोग्रामिंग दोषों में वृद्धि के रूप में सॉफ़्टवेयर जैसे मिथटीवी, सिलेक्ट-टीवी और माइक्रोसॉफ्ट के विंडोज़ मीडिया सेंटर ने सेट-टॉप बॉक्स की तुलना में सुविधाओं को विकसित किया है जिसमें मूल डीवीआर जैसी कार्यक्षमता से लेकर डीवीडी कॉपी करने, होम ऑटोमेशन और हाउसवाइड म्यूजिक या वीडियो प्लेबैक करना शामिल हैं।
फर्मवेयर अद्यतन सुविधाएँ
लगभग हर आधुनिक सेट-टॉप बॉक्स में स्वचालित फर्मवेयर अपडेट होता हैं। फर्मवेयर अपडेट को आमतौर पर सेवा प्रदाता द्वारा किया जाता है।
परिभाषा में अस्पष्टता
फ्लैट-पैनल दूरदर्शन के आगमन के साथ सेट-टॉप बॉक्स अब अधिकांश आधुनिक दूरदर्शनों की तुलना में प्रोफ़ाइल में अधिक गहरे हैं। इस वजह से सेट-टॉप बॉक्स को अक्सर दूरदर्शन के नीचे रखा जाता है, और सेट-टॉप बॉक्स शब्द एक मिथ्या नाम बन गया है, संभवतः डिजीबॉक्स शब्द को अपनाने में मदद कर रहा है। इसके अतिरिक्त आईपी-आधारित वितरण नेटवर्क के किनारे पर बैठने वाले नए सेट-टॉप बॉक्स को अक्सर आईपी और आरएफ इनपुट के बीच अंतर करने के लिए नेट-टॉप बॉक्स या एनटीबी कहा जाता है। रोकू एलटी ताश के पत्तों के एक पुलिंदे के आकार के आसपास है और पारंपरिक सेटों में स्मार्ट दूरदर्शन वितरित करता है।
बाहरी ट्यूनर या डेमोडुलेटर बॉक्स (जिसे आमतौर पर "सेट-टॉप बॉक्स" माना जाता है) और भंडारण युक्ति जैसे वीसीआर, डीवीडी, या डिस्क-आधारित पीवीआर इकाइयाँ के बीच का अंतर भी उपग्रह और केबल ट्यूनर बॉक्स की बढ़ती तैनाती और हार्ड डिस्क, नेटवर्क या यूएसबी बिल्ट-इन अंतराफलक से धुंधला हो गया है।
कंप्यूटर टर्मिनलों की क्षमता वाले यंत्र जैसे वेबटीवी थिन क्लाइंट भी ग्रे क्षेत्र में आते हैं जिनसे "एनटीबी" शब्द को आमंत्रित कर सकते हैं।
यूरोप में सेट-टॉप बॉक्स में आवश्यक रूप से स्वयं का ट्यूनर नहीं होता है। एक दूरदर्शन (या वीसीआर) के स्कार्ट कनेक्टर से जुड़ा एक डिब्बा सेट के ट्यूनर से बेसबैंड दूरदर्शन सिग्नल के साथ फीड किया जाता है और इसके बजाय दूरदर्शन में प्रोसेस्ड किए गए सिग्नल को प्रदर्शित किया जा सकता है।
इस स्कार्ट सेवा का उपयोग यूरोप में सशुल्क दूरदर्शन सेवा द्वारा अनुरूप डिकोडिंग उपकरण के कनेक्शन के लिए किया गया था, और अतीत में डिकोडर्स के अंतर्निर्मित होने से पहले टेलीटेक्स्ट उपकरण के कनेक्शन के लिए उपयोग किया जाता था। स्कार्ट की "फास्ट स्विचिंग" सुविधा के कारण, आउटगोइंग सिग्नल आने वाले सिग्नल, या आरजीबी घटक वीडियो, या यहाँ तक कि मूल सिग्नल पर इन्सर्ट के समान प्रकृति का हो सकता है।
अनुरूप पे-टीवी के मामले में, इस दृष्टिकोण ने दूसरे रिमोट कंट्रोल की आवश्यकता को टाल दिया। अधिक आधुनिक पे-टीवी योजनाओं में अंकीय दूरदर्शन संकेतों के उपयोग के लिए आवश्यक है कि डिकोडिंग डिजिटल से अनुरूप रूपांतरण चरण से पहले हो जिससे अनुरूप स्कार्ट कनेक्टर के वीडियो पैदावन को व्याख्यन यंत्र से जुडने के लिए उपयुक्त नहीं रह गया है। अंकीय वीडियो प्रसारण के समान इंटरफेस और एटीएससी के केबलकार्ड जैसे मानक इसलिए ट्यूनर से लैस सेट-टॉप बॉक्स के विकल्प के रूप में अंकीय सिग्नल पथ के हिस्से के रूप में डाले गए पर्सनल कंप्युटर मेमोरी कार्ड इंटरनेशनल एसोसिएशन जैसे कार्ड का उपयोग करते हैं।
ऊर्जा का उपयोग
जून २०११ में अमेरिकी राष्ट्रीय संसाधन रक्षा परिषद की एक रिपोर्ट ने सेट-टॉप बॉक्स की ऊर्जा दक्षता पर ध्यान दिया और अमेरिकी ऊर्जा विभाग ने सेट-टॉप बॉक्स के लिए ऊर्जा दक्षता मानकों को अपनाने पर विचार करने की योजना की घोषणा की। नवंबर २०११ में राष्ट्रीय केबल एवं प्रसारण संगठन ने एक नई ऊर्जा दक्षता पहल की घोषणा की जिसने उन सभी बड़े अमेरिकी केबल ऑपरेटरों को संकल्प दिलाया कि वे सेट-टॉप बॉक्स के एनर्जी स्टार मानकों को पूरा करेंगे और स्लीप मोड तैयार करेंगे, ताकि बिजली का उपयोग कम किया जा सके।
"सेट टॉप बॉक्स या एसटीबी वर्किंग एंड आर्किटेक्चर क्या है?" हेडेंडिन्फ़ो.कॉम पर |
प्रजीव (प्रोटिस्ट) ऐसा कोई भी एककोशिकीय जीव है जिसमें वास्तविक या सत्य केन्द्रक होता है तथा जो जन्तु, कवक या पादप नही है। प्रोटिस्ट कोई प्राकृतिक समूह या ' क्लेड' नहीं । कुछ जैव वैज्ञानिक वर्गीकरणों, जैसे कि रॉबर्ट विटाकर द्वारा सन १९६९ में प्रस्तावित प्रख्यात पांच जगत वर्गीकरण में सभी एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीवों, एककोशीय निवही या कोलोनियल जीवों व ऐसे जीवों को जो ऊतक नहीं बनाते ,को जगत 'प्रॉटिस्टा' में वर्गीकृत किया गया है।
उनके अपेक्षाकृत सरल संगठन स्तर के अतिरिक्त प्रोटिस्ट अनिवार्य रूप से और कुछ अधिक साझा नहीं करते। आज, प्रचलित शब्द ' प्रोटिस्ट' का प्रयोग विविध संवर्गों या टैक्सा (जीव समूहों) के साझे विकासीय इतिहास वाले, समानता प्रदर्शित करने वाले जीवों के लिए किया जाता है। अर्थात इस संवर्ग के जीवों का विकास एक विशिष्ट साझे पूर्वज से नहीं हुआ । यह सभी यूकैरियोटिक तो हैं लेकिन इनके जीवन चक्र,पोषण स्तर, गमन या चलन की विधियां व कोशिकीय सरंचना भिन्न भिन्न हैं। लिन मारगुलिस ( लिन मार्गोलिस ) के वर्गीकरण में शब्द प्रोटिस्ट सिर्फ सूक्ष्म जीवधारियों के लिए आरक्षित है जबकि एक अन्य व्यापक अर्थों वाले शब्द प्रोटोकटिस्टा ( प्रोटेक्टर्स)या प्रोटो कटिस्ट का प्रयोग एक जैव जगत के लिए किया गया है जिसमें केल्प, लाल शैवाल व स्लाइम मोल्ड जैसे बड़े बहुकोशिकीय जीव भी शामिल हैं। कुछ अन्य वैज्ञानिक, प्रोटिस्ट शब्द का प्रयोग व्यापक सन्दर्भों में ऐसे यूकैरियोटिक सूक्ष्मजीव व बड़े जीवों को शामिल करने के लिए करते हैं जिन्हें अन्य किसी पारम्परिक जगत में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।
साझी पूर्वजता पर आधारित वर्गीकरण अर्थात क्लेडिस्टिक वर्गीकरण तंत्र में प्रोटिस्टा या प्रोटॉकटिस्टा संवर्गों का कोई भी समवर्ती नहीं है, दोनो ही शब्द एक समान विकासीय इतिहास वाले ऐसे जीवों को इंगित करते हैं जिनका परास सम्पूर्ण यूकैरियोटिक जीवन वृक्ष पर है। क्लेडिस्टिक वर्गीकरण में प्रोटिस्टा के अंशों का वितरण विभिन्न सुपरग्रुप्स में है ।( सर जैसे कि प्रोटोजोआ व कुछ शैवाल , आर्किप्लास्टिडा ( अर्चप्लस्तिदा) जैसे कि स्थलीय पादप व कुछ शैवाल, एक्सकावटा ( एस्कैवता ) जो कि एक कोशिकीय जीव समूह है तथा ऑफिस्थोकोंटा ( ओफिष्ठोकोन्टा) जिनमें जन्तु व कवक शामिल हैं। 'प्रोटिस्टा', 'प्रोटो कटिस्टा' व 'प्रोटोजोआ' शब्द अब पुराने हो गए हैं। यद्धपि एककोशिकीय यूकैरियोटिक सूक्ष्म जीवों के लिए प्रोटिस्ट शब्द का प्रयोग आज भी किया जाता है। उदाहरण के लिए 'प्रोटिस्ट पैथोजन' शब्द का प्रयोग ऐसे रोगकारी प्रोटिस्ट के लिए किया जाता है जो कि बैक्टीरिया, वायरस, वाइरोइड , प्रियन या मेटाजोआ नहीं हैं।
प्रोटिस्ट् प्रमुखतः जलीय जीव हैं लेकिन यह स्थलीय पर्यवासों में भी पाए जाते हैं। प्रमुख फोटोसिंथेटिक प्रोटिस्ट् हैं डायटम, डिनोफ्लाजलेट, युगलिना आदि। समुद्र में रेड टाइड उत्पन्न करने वाले जीव यही प्रोटिस्ट् ही हैं। मुख्य प्रोटोजोन्स प्रोटिस्ट् हैं मलेरिया परजीवी या प्लासमोडियम,अमीबा, स्लीपिंग सिकनेस का कारक ट्रीपनोसोमा, कालाजार का कारक, लीशमानया आदि। यह सभी प्रोटोज़ोआन्स जीव परपोषी प्राणीसम पोषण प्रदर्शित करते हैं।
अन्य जीवों से प्रोटिस्ट के प्रथम श्रेणी जर्मन जीव विज्ञानी जॉर्ज ए गोल्ड ऐसे सिलिएटस और मूंगों के रूप में जीवों का उल्लेख करने के प्रोटोजोआ शब्द शुरू की है, जब १८२० में आया था। इस समूह में ऐसे फोरेमिनिफेरा और अमीबा के रूप में सभी "कोशिकीय जानवरों", शामिल करने के लिए १८४५ में विस्तार किया गया था। औपचारिक वर्गीकरण श्रेणी प्रोटॉक्टिस्ता पहले प्रोटिस्ट वह पौधों और पशुओं दोनों के आदिम कोशिकीय रूपों के रूप में देखा क्या शामिल करना चाहिए जो तर्क है कि जल्दी १८६० जॉन हॉग, में प्रस्तावित किया गया था। वह पौधों, जानवरों और खनिजों के तत्कालीन पारंपरिक राज्यों के अलावा, एक "प्रकृति का चौथा राज्य 'के रूप में प्रोटॉक्टिस्ता परिभाषित किया। खनिजों के राज्य के बाद एक "आदिम रूपों के राज्य 'के रूप में पौधों, जानवरों और प्रोटिस्ट छोड़ने, अर्नस्ट हएच्केल् द्वारा वर्गीकरण से हटा दिया गया था।
हर्बर्ट कोपलैंड "प्रोटॉक्टिस्ता" सचमुच "पहले स्थापित प्राणियों" मतलब उनका तर्क है कि लगभग एक सदी बाद में हॉग का लेबल पुनर्जीवित, कोपलैंड हएच्केल् की अवधि प्रॉटिस्टा बैक्टीरिया जैसे अनुक्लिएटेड रोगाणुओं शामिल है कि शिकायत की। अवधि प्रोटॉक्टिस्ता के कोपलैंड का उपयोग नहीं किया था। इसके विपरीत, कोपलैंड का कार्यकाल ऐसे डायटम, हरी शैवाल और कवक के रूप में केन्द्रक यूकेरियोट्स शामिल थे। इस वर्गीकरण जीवन के चार राज्यों के रूप में कवक, अनिमालिया, प्लांटी और प्रॉटिस्टा की व्हिटेकर की बाद में परिभाषा का आधार था। राज्य प्रॉटिस्टा बाद यूकेरियोटिक सूक्ष्म जीवाणुओं के एक समूह के रूप में प्रोटिस्ट छोड़ने, मोनेरा के अलग राज्य में अलग प्रोकीर्योट्स को संशोधित किया गया था। यह प्रोटिस्ट या मोनेरा न तो (वे संघीय समूह नहीं थे) से संबंधित जीवों का एक समूह थे स्पष्ट हो गया कि जब इन पांच राज्यों, देर से २० वीं सदी में आणविक फिलोजेनेटिक का विकास जब तक स्वीकृत वर्गीकरण बने रहे।
वर्तमान में, शब्द प्रोटिस्ट या तो स्वतंत्र कोशिकाओं के रूप में मौजूद है कि कोशिकीय यूकेरियोट्स का उल्लेख किया जाता है, या वे कालोनियों में होते हैं, ऊतकों में भेदभाव नहीं दिखाते. प्रोटोजोआ अवधि तंतु फार्म नहीं है कि प्रोटिस्ट की परपोषी प्रजातियों का उल्लेख किया जाता है। इन शर्तों के वर्तमान वर्गीकरण में इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं और इन जीवों के लिए उल्लेख करने के लिए सुविधाजनक तरीके के रूप में ही रखा जाता है।
प्रोटिस्ट का वर्गीकरण अभी भी बदल रहा है। नए वर्गीकरण फैटी, जैव रसायन और आनुवंशिकी के आधार पर संघीय समूहों को पेश करने का प्रयास.एक पूरे के रूप में प्रोटिस्ट पराफाइलेटिक्स होते हैं, क्योंकि इस तरह के सिस्टम अक्सर अलग हो जाते हैं या राज्य का परित्याग, बजाय यूकार्योटेस के अलग लाइनों के रूप में प्रोटिस्ट समूहों का इलाज. अडल द्वारा हाल ही में योजना. (२००५) औपचारिक रैंकों (जाति, वर्ग, आदि) के साथ संघर्ष और बदले पदानुक्रमित सूचियों में जीवों को सूची बद्ध नहीं है कि एक उदाहरण है। इस वर्गीकरण अधिक लंबी अवधि में स्थिर और अद्यतन करने के लिए आसान बनाने के लिए करना है।
संघ के रूप में इलाज किया जा सकता है जो प्रोटिस्ट, के मुख्य समूहों में से कुछ, सही पर टक्सो बॉक्स में सूचीबद्ध हैं। कई अनिश्चितता अभी भी वहाँ है, हालांकि मोनोफाईलेटिक माना जाता है। उदाहरण के लिए, एस्कावटेस शायद मोनोफाईलेटिक नहीं हैं और हैप्टोफिट्स और क्रिप्टोमोनड्स बाहर रखा गया है अगर क्रोमालवेलेटस शायद ही मोनोफाईलेटिक हैं।
प्रोटिस्ट के प्रकार
कवकसम प्रोटिस्ट या स्लाइम मोल्ड
इनमें प्रजनन लैंगिक तथा अलैंगिक दोनों प्रकार का होता है |
नापा (नाबा), या नवा शेरपा, नेपाल की एक तिब्बती भाषा (और चीन का एक गाँव) है जो भूटान के ज़ोंगखा से निकटता से संबंधित है। यह भाषा बाेलने वाले, लोमी वक्ताओं के बीच रहते हैं। |
भटगांव चकला में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत पुर्णिया मण्डल के अररिया जिले का एक गाँव है।
बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
बिहार के गाँव |
सिद्धवट मन्दिर (सिद्दवत टेम्पल) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के उज्जैन ज़िले के भैरवगढ़ ग्राम में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित एक हिन्दू मन्दिर है।
विमल जल-वाहिनी शिप्रा के मनोहर तट पर 'सिद्धवट' का स्थान है। सोरों 'शूकरक्षेत्र' में जिस प्रकार वाराहपुराण वर्णित 'गृद्धवट' है, प्रयाग' में 'अक्षयवट' हैं, नासिक में पंचवट हैं, 'वृंदावन' में वंशीवट हैं तथा गया में 'गयावट' हैं, उसी प्रकार उज्जैन में पवित्र 'सिद्धवट' हैं। वैशाख मास में यहाँ भी यात्रा होती हैं। कर्मकाण्ड, मोक्ष कर्म, पिण्डदान एवं अंत्येष्टि के लिए प्रमुख स्थान माना जाता हैं। नागबलि, नारायण बलि-विधान प्राय: यहाँ होता रहता है।हिंदू पुराणों में इस स्थान की महिमा का वर्णन किया गया है। यहाँ तीन तरह की सिद्धि होती है संतति, संपत्ति और सद्गति। तीनों की प्राप्ति के लिए यहाँ पूजन किया जाता है। सद्गति अर्थात पितरों के लिए अनुष्ठान किया जाता है। संपत्ति अर्थात लक्ष्मी कार्य के लिए वृक्ष पर रक्षा सूत्र बाँधा जाता है और संतति अर्थात पुत्र की प्राप्ति के लिए उल्टा सातिया (स्वस्विक) बनाया जाता है। यह वृक्ष तीनों प्रकार की सिद्धि देता है इसीलिए इसे सिद्धवट कहा जाता है। यहाँ पर कालसर्प शांति का विशेष महत्व है, इसीलिए कालसर्प दोष की भी पूजा होती है | सिद्धावत के पास भैरगढ़ गांव सदियों से अपनी टाई और डाई पेंटिंग के लिए प्रसिद्ध है |
वट वृक्ष के मूल पर, कहते हैं, मुगल बादशाहों ने धार्मिक महत्व जानकर कुठार चलाया था, वृक्ष नष्ट कर उस पर लोहे के बहुत मोटे पतरे-तवे जड़ा दिए थे। कहते हैं कि उस पर भी अंकुर फूट निकले, आज भी वृक्ष हरा-भरा है। मंदिर में फर्श लगी हुई है। भावुक समाज अभिषेक-पूजन, भेंट चढ़ाता रहता है। यहाँ शिप्राजी की विस्तृत धारा बहती है। दृश्य बड़ा सुंदर है। प्रतिभा भी सिद्धवट की तरह होती है। आप उसे सात तवों से ढँक दें तो भी वह उन्हें फाड़कर बाहर आती है। साधकों और लेखकों को यहाँ सदैव प्रेरणा मिलती रहती है।
इन्हें भी देखें
मध्य प्रदेश के हिन्दू मंदिर |
कनझरी लैंलूगा मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़ जिले का एक गाँव है।
छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ
रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़ |
राइट|१५०प्क्स|ठुमब|वर्तमान आपोल इनक. लोगो, १९९८ में पेश किया गया, २००० में बंद कर दिया गया, और २०१४ में फिर से स्थापित किया गया
एप्पल इंक॰, जिसका मूल नाम एप्पल कंप्यूटर, इंक॰ है, एक बहुराष्ट्रीय निगम है जो उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स और सहायक कंप्यूटर सॉफ्टवेयर का निर्माण और विपणन करता है, और मीडिया सामग्री का एक डिजिटल वितरक है। एप्पल की मुख्य उत्पाद शृंखलाएँ आईफोन स्मार्टफोन, आईपैड टैबलेट कंप्यूटर, और मैकिनटोश पर्सनल कंप्यूटर हैं। कंपनी अपने उत्पाद ऑनलाइन पेश करती है और इसकी खुदरा स्टोरों की एक श्रृंखला है जिसे एप्पल स्टोर्स के नाम से जाना जाता है। संस्थापकों स्टीव जॉब्स, स्टीव वोज्नियाक, और रोनाल्ड वेन ने वोज्नियाक के एप्पल ई डेस्कटॉप कंप्यूटर का विपणन करने के लिए १ अप्रैल १976 को ऐप्पल कंप्यूटर कंपनी बनाई, और जॉब्स और वोज्नियाक ने ३ जनवरी, १977 को क्यूपर्टिनो, कैलिफ़ोर्निया में कंपनी की स्थापना की, ।
२००१ में सफल आईपॉड म्यूजिक प्लेयर और २००३ में आईट्यून्स म्यूजिक स्टोर की शुरुआत के साथ, ऐप्पल ने खुद को उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स और मीडिया बिक्री उद्योगों में अग्रणी के रूप में स्थापित किया, जिससे उसे "कंप्यूटर" को छोड़ना पड़ा। "२००७ में कंपनी के नाम से। कंपनी अपने स्मार्ट फोन, मीडिया प्लेयर और टैबलेट कंप्यूटर उत्पादों की इयोस रेंज के लिए भी जानी जाती है, जो इफोन से शुरू हुई, उसके बाद इपोड़ टूच और फिर इपद आई। . ३० जून २०१५ तक, आपोल बाजार पूंजीकरण के आधार पर दुनिया में सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाला सबसे बड़ा निगम था, २ अगस्त, २0१8 तक अनुमानित मूल्य उस$१ ट्रिलियन है।< रेफरी></रेफ> और २0१२ में $१56 बिलियन। क |उर्ल=हप्स://वॉ.सेक.गोव/आर्कीव्/एडगर/डाटा/3२0१93/000११93१२5१२४४४068/ड४११355ड१0क.हत्म |एक्सेस-दते=४ नवंबर, २0१२}}</रेफ> |
पृथ्वी की ऊपरी परत को भूपर्पटी कहा जाता हैं।इसकी मोटाई ८ से ४० कि.मी.मानी जाती हैं।इस परत की निचली सीमा को मोहोरोविकिक असातत्य या मोहो असातत्य कहा जाता हैं जो इसे इस से निचली परत से अलग करती है।भूपर्पटी की निम्न सीमा पर चट्टानों के घनत्व मे परिवर्तन के आधार पर मोहो असातत्य को पहचान जाता है। |
कान्धार का द्विभाषी शिलालेख, सम्राट अशोक द्वारा २६० वर्ष ईसापूर्व शिला पर दो भाषाओं (ग्रीक तथा अरामी) में उत्कीर्ण कराया गया प्रसिद्ध शिलालेख है। यह अशोक द्वारा निर्मित पहला शिलालेख है जो उसके शासन के १०वें वर्ष में उत्कीर्ण कराया गया था (२६० ईसापूर्व), यह शिलालेख प्राचीन ग्रीक और अरामी भाषा में है। इसकी खोज सन १९५८ ई में हुई थी।
कान्धार से प्राप्त यह द्विभाषीय शिलालेख "धर्म" शब्द का अनुवाद यूनानी के "युसेबेइया" (, यूसेबेइया) शब्द में करता है, जिसका अर्थ "निष्ठा" भी निकलता है। यूनानी में लिखित सन्देश का अनुवाद यह है-
'' दस साल का राज पूर्ण होने पर, सम्राट पियोदासॅस (, पिओडासेस, 'प्रियदर्शी' का यूनानी रूपान्तरण) ने पुरुषों को युसेबेइया (, धर्म/निष्ठा) का ज्ञान दिया और इस क्षण से पुरुषों को अधिक धार्मिक बनाया और पूरे संसार में समृद्धि है। सम्राट जीवित प्राणियों को मारने से स्वयं को रोकता है और अन्य पुरुष जो सम्राट के शिकारी और मछुआरे हैं, वह भी शिकार नहीं करते। अगर कुछ पुरुष असंयमी हैं तो वह यथाशक्ति अपने असंयम को रोकते हैं और अपने माता-पिता और बड़ों की प्रति आज्ञाकारी हैं, जो भविष्य में भी होगा और जो भूतकाल से विपरीत है और जैसा हर समय करने से वे बेहतर और अधिक सुखी जीवन जियेंगे।
अशोक के अभिलेख |
सबदल में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद जिले का एक गाँव है।
बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
बिहार के गाँव |
झुंडपुरा (झुण्डपुरा) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के मुरैना ज़िले में स्थित एक नगर है।
इन्हें भी देखें
मध्य प्रदेश के शहर
मुरैना ज़िले के नगर |
एशियाई फुटबॉल संघ (एएफसी), एशिया और ऑस्ट्रेलिया में फुटबॉल एसोसिएशन का शासी निकाय है। इसके ४७ सदस्य देश है, जिनमें से ज्यादातर एशियाई और ऑस्ट्रेलियाई महाद्वीप पर स्थित है, हालांकि इसमें यूरोप और एशिया दोनो क्षेत्र के अंतरमहाद्वीपीय देश अज़रबाइजान, जॉर्जिया, कज़ाख़िस्तान, रूस, और तुर्की शामिल नहीं है, इसके बजाय ये यूईएफए के सदस्य है। तीन अन्य देश साइप्रस, आर्मीनिया और इज़राइल जो भौगोलिक स्थिती के अनुसार एशिया के पश्चिमी किनारे पर हैं, पर ये यूईएफए के सदस्य हैं। दूसरी ओर, पूर्व में ओएफसी से जुड़े ऑस्ट्रेलिया, २००६ में एशियाई फुटबॉल संघ से जुड़ गया, और औशेयनियन के पास स्थित गुआम द्वीप, संयुक्त राज्य का एक क्षेत्र, भी एएफसी का सदस्य बन गया, इसके साथ ही संयुक्त राज्य के दो राष्ट्रमंडल देशों मे से एक उत्तरी मारियाना द्वीप, भी इसका सदस्य है। हॉन्ग कॉन्ग और मकाउ जोकि, हालांकि स्वतंत्र देश (दोनों चीन के विशेष प्रशासनिक क्षेत्र कहलाते है।) नहीं है, फिर भी एएफसी के सदस्य हैं।
फीफा के छह महाद्वीपीय संघ मे से एक, एएफसी का गठन आधिकारिक तौर पर ८ मई १९५४ को मनीला, फ़िलीपीन्स में दूसरे एशियाई खेलों के मौके पर हुआ था। इसका मुख्यालय कुआलालम्पुर, मलेशिया में स्थित है। इसके वर्तमान अध्यक्ष बहरीन के शेख सलमान बिन इब्राहिम अल खलीफा है।
एशियाई फुटबॉल संघ की स्थापना ८ मई १९५४ को की गई थी। अफगानिस्तान, बर्मा (म्यांमार), चीन के गणराज्य (चीनी ताइपे), हांगकांग, ईरान, भारत, इजरायल, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस, सिंगापुर और दक्षिण वियतनाम इसके संस्थापक सदस्य थे।
एएफसी के ४७ सदस्य संघ है, जो ५ क्षेत्रों में विभाजित है। कई देशों ने एक दक्षिण पश्चिम एशियाई संघ प्रस्तावित किया है, हालांकि यह एएफसी के क्षेत्राधिकार में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
इसराइल फुटबॉल एसोसिएशन १९५४-१९७४। १९७४ एएफसी प्रतियोगिताओं से बाहर रखा गया था
न्यूजीलैंड फुटबॉल १९६४; १९६६ में ओएफसी के संस्थापक सदस्य बना।
कजाखस्तान फुटबॉल फेडरेशन १९९३-२००२; २००२ में यूईएफए में शामिल हो गया।
एएफसी की कार्यकारी समिति
सलमान बिन इब्राहिम अल खलीफा (यह फीफा के उपाध्यक्ष भी है)
प्रफुल्ल पटेल - वरिष्ठ उपाध्यक्ष
अब्दुलअजीज अल सऊद मोहानादि उपाध्यक्ष
विंस्टन ली वून ऑन उपाध्यक्ष
अली काफाशियेन उपाध्यक्ष
चुंग मोंग-ग्यु उपाध्यक्ष
एशियाई फुटबॉल संघ |
सृष्टि रोड़े भारतीय अभिनेत्री हैं। यह कई हिन्दी धारावाहिकों में अभिनय कर चुकीं हैं। इन्होंने पहली बार २०१० में "ये इश्क़ हाए" नामक धारावाहिक में कार्य कर अपनी अभिनय के क्षेत्र में सफर की शुरुआत की। इस धारावाहिक में यह मंजरी नामक एक मुख्य किरदार निभा रही थीं।
२०१०-११ "ये इश्क़ हाए" में मंजरी
२०११-१२ छोटी बहू (सत्र २) में राधा / माधवी
२०११-१२ "शोभा सोमनाथ की" में शोभा
२०१३ "पुनर विवाह - एक नयी उम्मीद" में सरिता
२०१४ सरस्वतीचन्द्र में अनुष्का
२०१५ हैलो प्रतिभा में नैना
२०१५ मोही - एक ख़्वाब के खिलने की कहानी
२०१५ चलती का नाम गाड़ी - पिया आहूजा
२०२२ द कपिल शर्मा शो - ग़ज़ल
भारतीय टेलीविज़न अभिनेत्री
मुंबई के लोग
१९९१ में जन्मे लोग |
मसूद जमील (; जन्म १९०२ मृत्यु अकतूबर ३१, १९६३) एक तुर्क संगीत तथा तानपूरा-नवाज़ थे। उनके पिता का नाम तानबुरी जमील बेग था।
मसूद ने १९३२ में अरब संगीत की काहिरा बैठक में भाग लिया था।
मसूद ने तशेलो (एक संगीत यंत्र) और वाइलिन में प्रशिक्षण प्राप्त किया और बर्लिन संगीत अकादमी में तशेलो के विध्यार्थी के रूप में शिक्षा प्राप्त की। १९२७ में उन्हें इस्तान्बुल रेडियो में काम का अवसर प्राप्त हुआ। मसूद को कई भूमिकाएँ दी गई थी जिनमें घोषणाकर्ता, निर्माता, संगीत सेवाओं के अध्यक्ष और तानपूरा नवाज़ शामिल हैं। मसूद को अंकारा के स्थानीय संगीत समूह बनाने के श्रेय प्राप्त है। हालांकि १९६० में वे सेवानिवृत हुए पर इस्तांबुल रेडियो पर सामूहिक संगीत उनके निर्देशानुसार में प्रस्तुत होती रही।
इन्हें भी देखें
तुर्क शास्त्रीय संगीत के संगीतकारों की सूची
१९०२ में जन्मे लोग
१९६३ में निधन |
आन्दोलन से उपजी आम आदमी पार्टी आम आदमी पार्टी जब आन्दोलन से पार्टी के रूप में रूपांतरित हो रही थी तो राजनीतिक दबावों के चलते मुख्यधारा का मीडिया पार्टी को पूरी तरह नज़रंदाज़ करने का प्रयास कर रहा था. उसी दौर में पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल ने 'आप की क्रांति' आप की क्रांति की नीव रखी.. |
अंजन टीवी भोजपुरी भाषा का मनोरंजन टीवी चैनल है। यह एएपी मीडिया प्राइवेट लि. का उपक्रम है।
अंजन टीवी पर योग, संगीत, फिल्म, धारावाहिक, ट्रेवल, भक्ति, रियलिटी शो, कोमेडी शो, लाइफ स्टाइल आ खाना खजाना से जुड़ेँ कार्यक्रम पेश किए जाते हैं। अंजन चैनल की टैग लाइन जियोहर पल के बारे में चैनल के हेड मंजीत हंस बताते हैं कि जीवन अनमोल है।
अंजन टीवी का आधिकारिक जालपृष्ठ
भोजपुरी टीवी चैनल |
कालीपुर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के इलाहाबाद जिले के हंडिया प्रखण्ड में स्थित एक गाँव है।
इलाहाबाद जिला के गाँव |
लोक लेखा समिति (पब्लिक एकाउंट कमित्ती (पैक)) भारतीय संसद के कुछ चुने हुए सदस्यों वाली समिति है जो भारत सरकार के खर्चों की लेखा परीक्षा (ऑडितिंग) करती है। यह समिति संसद द्वारा निर्मित है। लोक लेखा समिति, प्राक्कलन समिति (एस्टिमट्स कमित्ती) की 'जुड़वा बहन' के रूप में जानी जाती है। इस समिति में २२ सदस्य होते हैं, जिसमें १५ सदस्य लोकसभा द्वारा तथा ७ सदस्य राज्य सभा द्वारा एक वर्ष के लिये निर्वाचित किए जाते हैं। लोक लेखा समिति को वर्ष १९२१ में भारत सरकार अधिनियम, १९१९ के माध्यम से गठित किया गया था, जिसे मोंटफोर्ड सुधार भी कहा जाता है। यह समिति भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक द्वारा दिये गये लेखा परीक्षण सम्बन्धी प्रतिवेदनों की जाँच करती है। लोक सभा सचिवालय इस समिति के कार्यालय की भूमिका निभाता है। 196७ से स्थापित प्रथा के अनुसार इसके अध्यक्ष के रूप में विपक्ष के किसी सदस्य को नियुक्त किया जाता है।
इन्हें भी देखें |
बगडीधार-तलाई-१, चौबटाखाल तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
बगडीधार-तलाई-१, चौबटाखाल तहसील
बगडीधार-तलाई-१, चौबटाखाल तहसील |
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव , तहसील ठाकुरद्वारा, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
सम्बंधित जनगणना कोड:
राज्य कोड :०९
जिला कोड :१३५
तहसील कोड : ००७१७
गाँव कोड: ११४५६३
इन्हें भी देखें
उत्तर प्रदेश की तहसीलों का नक्शा
ठाकुरद्वारा तहसील के गाँव |
१९९४ यूईएफए चैंपियंस लीग फाइनल, इतालवी क्लब मिलान और स्पेन के क्लब बार्सिलोना के बीच एक फुटबॉल मैच था एथेंस, ग्रीस में एथेंस ओलंपिक स्टेडियम में १८ मई १९९४ पर खेला.
बार्सिलोना अपने लाल और नीले रंग की कमीज में खेला जबकि मिलान, ऐतिहासिक रूप से वे यूरोपीय कप और चैंपियंस लीग के फाइनल में उपयोग करें जो उनके सभी सफेद दूर कमीज, में खेला था। मिलान ४-० के स्कोर के साथ मैच जीता. विशेषज्ञों यूरोपीय कप / यूईएफए चैंपियंस लीग के इतिहास में एक टीम द्वारा सबसे बड़ा के रूप में कभी फाइनल में बार्सिलोना के खिलाफ मिलान के प्रदर्शन का वर्णन किया. |
लू रवि(चीनी:, चीनी:; पिंयीन: ल एन), झोउ शुरेन् (चीनी:; की कलम नाम था चीनी:; पिंयीन: झोउ श्र्न;) (२५ सितंबर १८८१ - १९ अक्टूबर १९36) एक २० वीं सदी के प्रमुख चीनी लेखकों में से एक है। कई द्वारा विचार आधुनिक चीनी साहित्य के संस्थापक, वह बैहुअ में () (बाद में स्थानीय भाषा) और साथ ही शास्त्रीय चीनी लिखा जाएगा. लु शिन् एक लघु कहानी लेखक, संपादक, अनुवादक, आलोचक, निबंधकार और कवि थे। वह चीनी लीग वाम के नाम का सिर-विंग राइटर्स शंघाई में बने १९३० के दशक में. |
कुरिंजिपाड़ी (कुरिंजिपड़ी) भारत के तमिल नाडु राज्य के कुड्डलोर ज़िले में स्थित एक शहर है।
इन्हें भी देखें
तमिल नाडु के शहर
कुड्डलोर ज़िले के नगर |
कोपिक (जापानी: कोपीक्कुं, अंग्रेजी: कॉपिक) एक ब्रांड की मार्कर पेन जापान में किए गए से: तोओ। संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में, यह द्वारा वितरित है: इमेजिनेशन इंटरनेशनल। मार्कर में उपलब्ध हैं ३५८ रंग और वे रीफिल किया जा सकता है। मार्करों फिर से भरना करने के लिए इस्तेमाल स्याही नए रंग बनाने के लिए मिलाया जा सकता है और खाली मार्करों इस उद्देश्य के लिए बेचा जाता है। उपलब्ध एक एयर ब्रश प्रणाली भी है। हिमालय फाइन आर्ट मार्कर सेट वितरित भारत में।
कोपिक मार्कर का उपयोग करता है कि एक विस्तृत रेंज को कवर करने के लिए दो सुझाव दिया है; एक छोर पर एक छेनी शैली टिप और अन्य पर एक ब्रश टिप. उपलब्ध एक दौर टिप भी है। मार्कर स्थायी, गैर विषैले, अल्कोहल आधारित स्याही का उपयोग. मार्करों भी आसानी से बड़े क्षेत्रों को कवर कर सकते हैं कि एक व्यापक शैली में उपलब्ध हैं।
छह विभिन्न प्रकार के कर रहे हैं कोपिक मार्कर, छह (मूल, स्केच, वाइड, सीयाओ, कॉमिक और २५ वीं वर्षगांठ) जो की इसी स्याही का उपयोग करें।
कोपिक मूल मार्करों २१४ विभिन्न रंगों में उपलब्ध हैं। वे एक वर्ग की तरह आकार और बदली महत्वपूर्ण व्यक्ति और स्याही हैं। ये एक अच्छी टिप के पक्ष और एक व्यापक छेनी टिप की ओर है। दोनों टोपियां गिने जा रहे हैं।
कोपिक स्केच मार्करों सभी ३५८ रंगों में उपलब्ध हैं। मार्कर बैरल एक अंडाकार जैसे आकार का है। ये एक ब्रश टिप और एक मध्यम छेनी टिप है। छेनी टिप मूल मार्कर पर छेनी टिप से छोटी है। ब्रश टिप एक 'सुपर' ब्रश और सीयाओ मार्करों पर ब्रश टिप से मजबूत है। वे बदली महत्वपूर्ण व्यक्ति और स्याही है।
कोपिक वाइड मार्करों मुख्य रूप से स्थिरता के साथ और रंग स्ट्रीकिंग बिना बड़े क्षेत्रों रंग करने के लिए उपयोग किया जाता है। वे अधिक गहरा और बड़ा कर रहे हैं कोपिक स्केच और कोपिक मूल। ये एक विस्तृत छेनी टिप है। कोपिक वाइड ३६ रंगों में उपलब्ध हैं। कोपिक वाइड रीफिल किया जा सकता है कि स्याही और बदली महत्वपूर्ण व्यक्ति है।
कोपिक सीयाओ मार्करों रीफिल किया जा सकता है कि बदली महत्वपूर्ण व्यक्ति और स्याही के साथ, पतले होते हैं। कोपिक सीयाओ मार्करों १८० रंगों में उपलब्ध हैं। सभी कोपिक मार्कर की तरह, वे दोनों सिरों, एक ब्रश टिप और एक मध्यम छेनी सुझाव दिया है। ब्रश टिप स्केच मार्करों पर 'सुपर ब्रश टिप' की तुलना में नरम है। उन्होंने यह भी कम स्याही पकड़।
कोपिक हास्य मार्करों ७२ रंगों में उपलब्ध हैं। बैरल अंडाकार है और कोपिक एयर ब्रश करने सिस्टम के साथ संगत है। कोपिक हास्य एक सुपर ब्रश निब और बजाय एक मध्यम व्यापक का एक माध्यम दौर निब है। इस मार्कर हालांकि, स्याही रंग मूल, स्केच, वाइड या सीयाओ पर रंग के रूप में ही नहीं सभी कर रहे हैं, प्रतिस्थापन स्याही और महत्वपूर्ण व्यक्ति है। कोपिक हास्य मार्कर वर्तमान में जापान में ही उपलब्ध हैं।
स्केच २५ वीं वर्षगांठ
कोपिक स्केच २५ वीं वर्षगांठ मार्कर स्केच की तरह एक ब्लैक ओवल बैरल के साथ, ३६ रंगों में उपलब्ध ह। वे एक ब्रश टिप और एक छोटे से उठाई गोली टिप है। २५ वीं वर्षगांठ मार्करों भी हालांकि एक छेनी निब के लिए एक निब की जगह बिना कोपिक एयर ब्रश प्रणाली के साथ काम नहीं कर सकता, रीफिल और विनिमेय महत्वपूर्ण व्यक्ति है किया जा सकता है। वे उत्पादन केवल ३,००० सेट के साथ संस्करण सीमित हैं।
मल्टी लाइनर श्रृंखला ग्राफिक डिजाइन के उद्देश्य से तकनीकी फाइन-लाइनर कलम भी शामिल है, लेकिन यह भी लिखने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। वे स्टैदटलर द्वारा पिग्मेंटलिनेर श्रृंखला के लिए तुलना कर रहे हैं। वे दो श्रृंखला, एक डिस्पोजेबल प्लास्टिक सामान्य संस्करण और एक उच्च गुणवत्ता सपा श्रृंखला में उपलब्ध हैं। एसपी श्रृंखला एक एल्यूमीनियम शरीर, बदली महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं और रीफिल किया जा सकता है।
एयरब्रश प्रणाली एक सतह पर कोपिक मार्कर से स्याही स्प्रे करने के लिए एक कंप्रेसर से संपीड़ित हवा, या हवा के डिस्पोजेबल डिब्बे का उपयोग करता है। यह कोपिक मूल और स्केच मार्कर के साथ काम करता है। एयरब्रश प्रणाली एक डिब्बे में एक मार्कर फिटिंग द्वारा प्रयोग किया जाता है। इस एयरब्रश प्रणाली रंग, पृष्ठभूमि और अन्य उपयोगों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
जापानी कोपिक साइट
अमेरिका कोपिक साइट शामिल एक डीलर लोकेटर पेज उत्तरी अमेरिका के लिए
ब्रिटेन कोपिक साइट
ब्राजील कोपिक साइट
ऑस्ट्रेलियाई कोपिक साइट
कोपिक ऑप्शन चार्ट |
ऊटकूरु, परिगि मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अनंतपुर जिले का एक गाँव है।
आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट
आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग
निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल
आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट |
मिस्री पाउंड या गिनीह अल-गिनीह अल-मिस्री) (हस्ताक्षर: पाउंड या .; कोड: एगप) मिस्र की मुद्रा है। यह १०० क्विर्ष (स्पष्ट आईर्ष में विभाजित है, अंग्रेजी में पियास्त्रे), या १००0 मालिम (मिलीइम्स)।
इस आईएसओ ४२१७ कोड एगप है। स्थानीय, संक्षिप्त नाम ले या ल.ए., जो लिवरे ईजेप्टाइन के लिए प्रयुक्त किया जाता है (मिस्र के पाउंड के लिए फ्रेंच शब्द) अक्सर प्रयोग किया जाता है।ए और ए का भी कई बार इस्तेमाल किया जाता है। स्थानीय भाषा अरबी में अल-गिनीह अल-मिस्री के संक्षिप्त कूटशब्द के रूप में . का प्रयोग किया जाता है। मिस्र अरबी नाम गिनीह अंग्रेजी नाम गिनी से संबंधित हो सकता है।
१८३४ में द्विधातु पर आधारित मिस्री मुद्रा जारी करने संसदीय विधेयक को आधिकारिक करने के उद्देश्य से रॉयल डिक्री जारी की गई। मिस्री पियास्त्रे के स्थान पर मिस्र पौंड, मुद्रा की प्रमुख इकाई के रूप में जारी की गई। बावजूद इसके पियास्त्रे पाउंड के रूप में प्रचलन में बनी रही, जिसे ४० पैरा में समविभाजित किया जा सकता था। १८८५ में पैरा को जारी करना रोक दिया गया और पियास्त्रे को टेंथ्स (ओसरो एल गिर्ष) में विभाजित किया गया। इस टेंथ्स को १९१६ में मालीम (मिलीम्स) के नाम से जाना गया।
कानूनी विनिमय दरों कानून के बल द्वारा महत्वपूर्ण विदेशी मुद्राओं के लिए जो आंतरिक लेनदेन के निपटान में स्वीकार्य हो गई तय की गई। अंततः इस मिस्र के १८८५ और १९१४ के बीच एक वास्तविक स्वर्ण मानक का उपयोग कर, १ मिस्री पाउण्ड = ७.43७5 ग्राम शुद्ध सोने के बराबर रखा गया। प्रथम विश्व युद्ध के शुरू होने के बाद मिस्री पाउण्ड को ब्रिटिश पाउंड के बराबर मूल्य में रखा गया था।
यह व्यवस्था १९६२ तक बनी रही, जब मिस्र ने मुद्रा का हल्का अवमूल्यन करते हुए १ मिस्री पाउण्ड = २.३ डॉलर की दर पर अमेरिकी डॉलर पर तब्दील कर ली। यह विनिमय दर १9७३ में डॉलर के अवमूल्यन के साथ १ मिस्री पाउण्ड = २,५५५५५ डॉलर की दर पर तब्दील हो गई। १9७8 में मिस्र पौंड का अवमूल्यन हुआ और विनिमय दर १ मिस्र पाउंड = १.4२85७ डॉलर (१ डॉलर = ०.७ मिस्री पाउण्ड) के बराबर हो गई। मिस्री पाउंड १989 में शुरू हुआ। नेशनल बैंक ऑफ मिस्र ने ३ अप्रैल १899 को पहली बार के लिए बैंकनोट जारी किया। १96१ में सेंट्रल बैंक ऑफ मिस्र में सेंट्रल बैंक ऑफ मिस्र और नेशनल बैंक ऑफ मिस्र को एकीकृत कर दिया गया। |
सूरजपुरा भगवानपुर, बेगूसराय, बिहार स्थित एक गाँव है।
बेगूसराय जिला के गाँव |
टोरी ब्लैक एक अमेरिकी पॉर्न फिल्म अभिनेत्री हैं।
टोरी ब्लैक इकलौती ऐसी एडल्ड स्टार हैं जिन्हें बैक टू बैक अवन फीमेल परफ़ॉर्मर ऑफ़ द इयर अवॉर्ड्स से नवाजा जा चुका है। टोरी दो बच्चों की माौ हैं जिनकी उम्र पाँच और दूसरे की तीन साल है।
टोरी ब्लैक ने अपने कैरियर की शुरुआत १८ वर्ष की उम्र में फ़्लोरिडा में की थी। ऐसा कहा जाता है कि उनके अभिभावकों ने उन पर नौकरी करने का दबाव बनाया तो उसने एक एडल्ट टैलेण्ट एजेंसी को अपनी तस्वीरें भेज दी। एजेंसी ने उसे सलेक्ट कर लिया और टोरी की पोर्न उद्योग में एण्ट्री हो गई। उनका जन्म २६ अगस्त १९८८ को हुआ था और करीब ५ फुट ९ इंच लम्बी टोरी अपनी खुद की वेबसाइट चलाती हैं और अभी इण्डस्ट्री में सक्रिय हैं।
इन्हें भी देखे
महिला व्यस्क फ़िल्म अभिनेता
१९८८ में जन्मे लोग |
संजीवनी टुडे एक भारतीय हिन्दी भाषा का समाचार पत्र है जो राजस्थान की राजधानी जयपुर से प्रकाशित होता है। यह अंतर्जाल पर ईपेपर तथा ऑनलाइन वेबसाइट के तौर पर भी उपलब्ध है। वर्तमान में इस समाचार पत्र के सम्पादक राजेश मीणा है।
हिन्दी समाचार पत्र
भारतीय समाचार पत्र |
बैक टू द फ़्यूचर () रॉबर्ट ज़ेमेकिस (रॉबर्ट ज़ेमेकिस) द्वारा निर्देशित १९८५ में बनी अमेरिकन विज्ञान फंतासी हास्य फ़िल्म है जिसकी पटकथा ज़ेमेकिस और बॉब गेल (बॉब गली) ने लिखी थी, स्टीवन स्पीलबर्ग ने इसका निर्माण किया था और इसमें भूमिका निभाई थी माइकल जे. फॉक्स (मिशेल ज. फॉक्स), क्रिस्टोफ़र लियॉड (क्रिस्टोफर लॉयड), ली थॉम्पसन (लिया थॉमसन) तथा क्रिस्पिन ग्लोवर (क्रिस्पिन ग्लवर) ने. इस फ़िल्म में एक किशोर लड़के मार्टी मैकफ्लाय की कहानी है जो किसी दुर्घटनावश साल १९८५ से १९५५ में पहुंच जाता है। वह हाई स्कूल में अपने माता-पिता से मिलता है और अनजाने में अपनी मां की रोमानी दिलचस्पी जगा देता है। वापस १९८५ में लौटने के क्रम में अपने माता-पिता को प्रेम के लिए प्रेरित कर मार्टी को इतिहास की क्षति की भरपाई करनी पड़ी.
गेल द्वारा यह विचार करने पर कि यदि वह और उसके पिता साथ-साथ स्कूल जाएं तो उसकी पिता से दोस्ती हो सकती है, ज़ेमेकिस और गेल द्वारा पटकथा लिखी गई। ज़ेमेकिस के रोमेंसिंग द स्टोन की बॉक्स ऑफ़िस पर मिली सफलता मिलने तक अनेक फ़िल्म स्टूडियो द्वारा पटकथा को अस्वीकार कर दिया गया, तथा यूनिवर्सल पिक्चर्स में स्पीलबर्ग के बतौर कार्यकारी निर्माता के रूप में यह परियोजना तैयार की गई। आरंभ में, मार्टी मैकफ़्लाय की भूमिका का प्रस्ताव गायक कोरी हर्ट (कोरे हार्ट) को दिया गया लेकिन उन्होंने मना कर दिया और तब माइकल जे. फॉक्स के फैमिली टाइज़ नामक टीवी धारावाहिक की शूटिंग में व्यस्त होने के कारण मूल रूप से एरिक स्टोल्ज़ (एरिक स्टोल्ट्ज) ने मार्टी मैकफ़्लाय के लिए कास्ट किया। हालांकि फ़िल्म निर्माण के दौरान स्टोल्ज़ और फ़िल्म के निर्माताओं ने यह फैसला किया कि स्टोल्ज़ की कास्टिंग ग़लत हुई थी इसलिए दुबारा फॉक्स से संपर्क किया गया और तब उन्होंने इस तरह की समय-योजना बनाई कि वह दोनों कामों के लिए समय निकाल सकें. इसके बाद की रिकास्टिंग का अर्थ था कि ३ जुलाई १९८५ के प्रदर्शन की तारीख तक फ़िल्म पूरी करने के लिए शूटिंग दल के लोगों को दुबारा होने वाले शूटिंग और पोस्ट प्रोडक्शन के लिए भागम-भाग करते रहना.
प्रदर्शित होने पर, बैक टू द फ़्यूचर वर्ष की सबसे सफ़ल फ़िल्म साबित हुई जिसने दुनिया भर में ३८ करोड़ डॉलर से अधिक का कारोबार किया। इसे सर्वश्रेष्ठ नाटकीय प्रस्तुतिकरण के लिए ह्यूगो अवॉर्ड, सर्वश्रेष्ठ विज्ञान फंतासी फ़िल्म का सैटर्न अवॉर्ड और साथ ही अकैडमी अवॉर्ड और अन्य फ़िल्मों के साथ गोल्डन ग्लोब नामांकन प्राप्त हुआ। १९८६ में स्टेट ऑफ द यूनियन एड्रेस के अपने संबोधन में रोनाल्ड रीगन ने इस फ़िल्म का उद्धरण प्रस्तुत किया। २००७ में, लाइब्रेरी ऑफ काँग्रेस ने नेशनल फ़िल्म रजिस्ट्री के लिए इसका चयन किया और जून २००८ में अमेरिकन फ़िल्म इंस्टीट्यूट के विशेष अफी'स १० टॉप १० ने इस फ़िल्म को विज्ञान फंतासी श्रेणी की १०वीं सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म माना. बैक टू द फ़्यूचर भाग ई तथा बैक टू द फ़्यूचर भाग ई के १९८९ और १९९० में आगे-पीछे प्रदर्शित होने तथा एक एनिमेटेड श्रृंखला और थीम पार्क राइड के साथ फ़िल्म ने फ़्रेंचाइज़ की शुरुआत की।
मार्टी मैकफ़्लाय एक किशोर है जो कैलिफोर्निया के हिल वैली में अपने खस्ताहाल परिवार के साथ रहता है। उसके पिता जॉर्ज को उसके सुपरवाइज़र बिफ टैनेन का दुर्व्यवहार सहना पड़ता है और उसकी मां लॉरेन को पीने की लत है। २५ अक्टूबर १९८५ की सुबह उसके मित्र और वैज्ञानिक डॉक्टर इमेट डॉक ब्राउन उसे फ़ोन करते हैं और रात के १ बज कर १5 मिनट पर ट्विन पाइंस मॉल में मिलने को कहते है। मार्टी और उसका बैंड स्कूल के नृत्य में भाग लेने के लिए ऑडिशन देते हैं लेकिन उन्हें छांट दिया जाता है। मार्टी की गर्लफ्रेंड जेनिफर पार्कर उसके रॉक संगीतकार के सपने को प्रोत्साहित करती है। देर रात को, खाने के दौरान लॉरेन अपने पुराने दिनों को याद कर बताती है कि किस प्रकार वह और जॉर्ज पहली बार प्रेम में पड़े थे जब उसके पिता की कार से जॉर्ज टकराए थे।
योजना के मुताबिक मार्टी डॉक से मिलता है। डॉक उसे डेलौरियन द्मां-१२ के बारे में बताते हैं जिसे उन्होंने समय यंत्र में बदल दिया है जिसे प्लूटोनियम द्वारा बिजली मिलती है जो १.2१ गीगा वाट की शक्ति फ्लक्स केपैसिटर कहे जाने वाले उपकरण में उत्पन्न करता है। डॉक उसे यह भी समझाते हैं कि वह कार ८८ मील प्रति घंटे की रफ़्तार हासिल करने के बाद योजनाबद्ध तिथि तक जाती है। हालांकि इससे पहले कि डॉक भविष्य में २५ साल आगे जा सकते लीविया के आतंकवादियों ने प्रदर्शनी से उनका प्लूटोनियम चुरा लिया और उन्हें गोली मार दी। मार्टी डीलोरियन (डेलोरेअ) में बचकर भागने की कोशिश करता है लेकिन इस दौरान कार ८८ मील प्रति घंटा की रफ़्तार पकड़ लेती है और वह ५ नवम्बर १9५५ के अतीत में पहुंच जाता है।
१९५५ में मार्टी की भेंट बिफ द्वारा प्रताड़ित अपने किशोरवय पिता जॉर्ज से हो जाती है। ज्योंही जॉर्ज लॉरेन के पिता की कार की चपेट में आने वाले होते हैं मार्टी उन्हें धक्का दे देता है और खुद कार की चपेट में आ जाता है। नतीज़ा यह होता है कि लॉरेन जॉर्ज की बजाए मार्टी की ओर आकर्षित हो जाती है। लॉरेन के इस मनोभाव से मार्टी परेशान होकर डॉक को ढूंढने चल पड़ता है। मार्टी डॉक को समझाता है कि वह भविष्य से आया है और वह उसे १९८५ के काल में लौटने में मदद करें। डॉक यह जानकर घबरा जाते हैं कि समय यंत्र को १.2१ गीगा वाट की शक्ति की आवश्यकता होती है। वे मार्टी से कहते हैं कि ऊर्जा की इतनी बड़ी मात्रा का एक ही स्रोत हो सकता है- आकाशीय बिज़ली. मार्टी को याद आता है कि अगले शनिवार को रात १0 बजकर ४ मिनट पर अदालत के घंटाघर के ऊपर बिज़ली गिरने वाली है। डॉक का यह भी मानना है कि मार्टी के कारण उसके माता-पिता के मिलने में बाधा पहुंची है। वह मार्टी से कहते हैं कि उसे उन दोनों को मिलाने का उपाय ढूंढना चाहिए अन्यथा वह पैदा नहीं हो पाएगा.
मार्टी एक योजना बनाता है जिसके अनुसार स्कूल के एन्चैन्टमेंट अंडर द सी नृत्य वाली रात उसके प्रत्यक्ष यौन निवेदन से लॉरेन को बचाने के लिए जॉर्ज को आना था। हालांकि नशे में चूर बिफ अचानक पहुंच जाता है और मार्टी को कार से खींचता है और स्वयं को लॉरेन पर जबरदस्ती थोपने की कोशिश करता है। योजना के मुताबिक जॉर्ज लॉरेन को मार्टी से बचाने पहुंचता है लेकिन उसे मार्टी की जगह पर बिफ मिलता है। बिफ जॉर्ज को परास्त करता है लेकिन जॉर्ज उसके चेहरे पर घूंसा मारकर उसे बाहर गिरा देता है। मुग्ध लॉरेन जॉर्ज के साथ डांस फ्लोर तक जाती है जहां वे पहली बार एक दूसरे को चूमते हैं जिससे अब मार्टी का अस्तित्व में आना निश्चित लगता है।
इस बीच मार्टी डॉक को एक पत्र लिखता है जिसमें १९८५ में होने वाली उसकी मृत्यु के बारे में उसे आगाह किया होता है, पर डॉक ने पत्र को बिना पढ़े ही फाड़ दिया, क्योंकि उसे डर था कि वह भविष्य को बदल देगा। रात १० बजकर ४ मिनट पर गिरने वाली बिजली मार्टी को सफलता पूर्वक वर्ष १९८५ में पहुंचा जाती है लेकिन उसे पहुंचने में थोड़ी देर हो जाती है और वह डॉक को गोली लगने से बचा नहीं पाता है। हालांकि, डॉक उसे बाताते हैं कि उन्होंने बुलेट प्रूफ बनियान पहन रखी थी और स्वीकार करते हैं कि उन्होंने चिट्ठी दबा रखी थी।
डॉक मार्टी को घर छोड़ते हैं और समय यंत्र में बैठकर भविष्य की ओर चल पड़ते हैं। अगले सुबह जब मार्टी की नींद खुलती है तो वह अपने घर और परिवार को काफी बदला हुआ और खुशहाल पाता है। लॉरेन शारीरिक रूप से तंदुरुस्त होती है और जॉर्ज आत्मविश्वास से भरपूर एक सफल विज्ञान गल्प लेखक होता है। मार्टी का भाई डेव अब एक व्यवसायी है। बिफ वाहन विक्रेता बन जाता है और उसका जॉर्ज के प्रति बर्ताव बदल जाता है। ठीक जिस वक्त जेनिफर से मार्टी की दुबारा भेंट हो रही होती है डॉक आते हैं और उनसे ज़िद करते हैं कि वे अपने बच्चों के चयन के लिए उनके साथ भविष्य की यात्रा पर चलें. वे लोग उन्नत समय यंत्र, जो अब एक हॉवरकार है और उसे कचरे के संलयन द्वारा ऊर्जा मिलती है, में प्रवेश कर भविष्य की ओर चल पड़ते हैं।
लेखक और निर्माता बॉब गेल के दिमाग में इस कहानी का विचार तब आया जब वह यूज्ड कार्स के प्रदर्शित होने के बाद अपने माता-पिता से मिलने मिसौरी गए थे। अपने मकान के तलघर की तलाशी के दौरान गेल को अपने पिता की हाई स्कूल ईयरबुक मिली जिससे उन्हें यह पता चला कि उनके पिता स्नातक कक्षा के अध्यक्ष थे। गेल ने अपनी स्नातक-कक्षा के अध्यक्ष के बारे में सोचा जो एक ऐसा व्यक्ति था जिसके साथ उनका कोई लेना-देना नहीं था। गेल को ख्याल आया कि यदि वह और उनके पिता साथ-साथ हाई स्कूल जाया करते तो वह अपने पिता के दोस्त होते. कैलिफोर्निया लौटकर उन्होंने अपना यह नया विचार रॉबर्ट ज़ेमेकिस को बताया। इसके बाद ज़ेमेकिस के दिमाग में एक ऐसी मां का खयाल आया जिसे यह शिकायत थी कि वह अपने स्कूली दिनों में किसी लड़के को चूम नहीं पाई, जबकि सच तो यह था कि वह अत्यंत असंयमी थी। वे दोनों इस परियोजना को कोलंबिया पिक्चर्स में ले गए और सितंबर १९८० में पटकथा के लिए आगे का समझौता किया।
ज़ेमेकिस और गेल ने कहानी का काल सन् १९५५ तय किया क्योंकि उन्होंने हिसाब लगाकर पाया कि यदि एक १७ साल का लड़का अपने माता-पिता से अपनी ही उम्र में मिलने के लिए अतीत की यात्रा करे तो उसे उसी दशक में जाना पड़ेगा. साथ ही यह वह समय था जब एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक तत्व के रूप में किशोरों का उदय हो रहा था। यह रॉक एन रॉल का जमाना था और इसी समय उपनगरीय विस्तार हो रहा था। कहानी पर इन सब बातों का प्रभाव है। मूल रूप से, मार्टी एक वीडियो जालसाज था, समय यंत्र एक रेफ्रिजरेटर था और उसे घर लौटने के लिए नेवाडा टेस्ट साइट के परमाणु विस्फोट से निकली ऊर्जा का इस्तेमाल करना था। ज़ेमेकिस को यह चिंता थी कि बच्चे दुर्घटनावश स्वयं को रेफ्रिजरेटरों में बन्द न करने लगें और साथ ही मूल कहानी का क्लाइमेक्स अत्यंत खर्चीला था। डीलॉरेन (डेलोरेअ) समय यंत्र का चयन इसलिए किया गया कि इसकी बनावट से किसानों के परिवारों द्वारा भूलवश इसे उड़न तश्तरी के रूप में लेने पर प्रतिबंध लगता था। विशाल गिटार आवर्धक के निर्माण से पहले लेखकों ने मार्टी तथा डॉक ब्राउन के बीच एक विश्वसनीय दोस्ती पैदा करना मुश्किल पाया और जब उन्होंने यह पंक्ति लिखी- इट्स लाइक आइ एम किसिंग माय ब्रदर, तब केवल उसकी मां के साथ उसके मातृरति (आइदीपल) संबंध पर विचार किया। यूनिवर्सल के कार्यकारी नेड टैनेन (नेड तनें) द्वारा आइ वाना होल्ड योर हैंड की एक पटकथा बैठक के दौरान ज़ेमेकिस तथा गेल के प्रति आक्रामक व्यवहार प्रदर्शित करने के बाद बिफ़ टैनन (बिफ टैन्नन) का नाम प्रस्तावित किया गया।
बैक टू द फ़्यूच र का पहला ड्राफ्ट फरवरी १९८१ में पूरा हुआ था। कोलम्बिया पिक्चर्स ने फ़िल्म करने से इनकार कर दिया। उनका मानना था कि यह सचमुच श्रेष्ठ, सुन्दर और गर्मजोशी से भरी फ़िल्म थी लेकिन इसमें पर्याप्त यौनिकता नहीं थी, गेल ने कहा. उन्होंने सुझाया कि हम इसे डिज़नी ले जाएं लेकिन हमने फैसला किया कि हम इसे लेकर किसी ऐसे बड़े स्टूडियो में जाएंगे जो इसे पसंद करेंगे। अगले चार वर्षों तक सभी प्रमुख फ़िल्म स्टूडियो द्वारा पटकथा अस्वीकार की जाती रही और इस दौरान बैक टू द फ़्यूचर के दो और ड्राफ्ट तैयार किए गए। १९८० के शुरुआती वर्षों में लोकप्रिय किशोर हास्य (जैसे कि फास्ट टाइम्स एट रिजमॉन्ट हाइ एंड पोर्कीज) थोड़ा भद्दा और वयस्क केन्द्रित होते थे, इस कारण पटकथा को बहुत हल्के स्तर का होने के कारण प्राय: अस्वीकार कर दिया जाता था। अंततः गेल तथा ज़ेमेकिस ने डिज़्नी की बैक टू द फ़्यूचर में पुनः शामिल हो जाने का निर्णय किया। उन्होंने हमसे कहा कि किसी बेटे का मां से प्यार हो जाना डिज़नी बैनर के तले एक पारिवारिक फ़िल्म के लिए अच्छी बात नहीं, गेल ने कहा.
दोनों ने स्टीवन स्पीलबर्ग के साथ दोस्ती गांठनी चाही जिन्होंने यूज़्ड कार्स तथा आइ वाना होल्ड योर हैंड का निर्माण किया था और दोनों फ़िल्में असफल रही थीं। स्पीलबर्ग शुरू में परियोजना से अलग रहे क्योंकि ज़ेमेकिस को ऐसा लगा कि यदि वह उनके साथ एक और असफल फ़िल्म बनाते हैं तो वे फिर भविष्य में कभी कोई फ़िल्म नहीं बना पाएंगे. गेल ने कहा हमें डर था कि हमारी छवि कहीं ऐसी न बन जाए कि लोग हमारे बारे में यह सोचने लगें कि हम दोनों के पास इसलिए काम है क्योंकि हम स्पीलबर्ग के मित्र हैं। एक निर्माता ने दिलचस्पी दिखाई मगर फिर अपना इरादा बदल लिया जब उसे यह पता चला कि इसमें स्पीलबर्ग शामिल नहीं हैं। ज़ेमेकिस ने रोमेंसिंग द स्टोन का निर्देशन किया और यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल रही. अब एक ऊंचे दर्जे के निर्देशक के रूप में ज़ेमेकिस ने अपने कॉन्सैप्ट के साथ स्पीलबर्ग से संपर्क किया और यूनिवर्सल पिक्चर्स में परियोजना तैयार की गई।
कार्यकारी सिडनी शीनबर्ग (सिडनी शेंबर्ग) ने पटकथा पर कुछ सुझाव दिए. उन्होंने मार्टी की मां का नाम मेग से बदल कर लॉरेन रखा (उनकी अभिनेत्री पत्नी का नाम लॉरेन गैरी था) और ब्राउन के पालतू जीव के रूप में चिम्पैंजी की जगह कुत्ते को तय किया। शीनबर्ग चाहते थे कि फ़िल्म का नाम बदल कर स्पेसमेन फ्रॉम प्लूटो रखा जाए क्योंकि उनका मानना था कि किसी सफल फ़िल्म के नाम में कभी भी फ़्यूचर शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया। उन्होंने सुझाया कि मार्टी खुद को प्लूटो ग्रह का डार्थ वेडर के रूप में प्रस्तुत करे जिसकी अन्य ग्रह के प्राणियों जैसी वेश-भूषा हो और वह अपने पिता से अपनी मां के बारे में पूछे (वल्केन ग्रह की बजाए) और किसानों की मज़ाकिया वस्तु स्पेसमेन फ्रॉम प्लूटो होनी चाहिए न कि स्पेसजॉम्बीज़ फ्रॉम प्लूटो . स्पिल्बर्ग ने शीनबर्ग को एक मेमो वापस भेजा जिसमें उन्होंने उन्हें यह समझाया था कि उन्हें लगता है कि उनका दिया हुआ नाम एक मज़ाक है और इसलिए वह इस विचार को छोड़ दें।
मार्टी मैकफ़्लाय के किरदार के लिए पहली पसंद माइकल जे. फ़ॉक्स थे लेकिन वह फैमिली टाइज़ शो के साथ व्यस्त थे। फैमिली टाइज़ के निर्माता गैरी डेविड गोल्ड्बर्ग (गरी डेविड गोल्डबर्ग) के लिए शो की सफलता हेतु फॉक्स का होना जरूरी था, खासकर उस स्थिति में जब कि मेरेडिथ बैक्स्टर (मेरेडिट बक्सटर) मातृत्व अवकाश पर थे और इसलिए गैरी ने फॉक्स द्वारा किसी फ़िल्म के लिए समय दिए जाने से मना कर दिया। बैक टू द फ़्यूचर के लिए मई १९८५ का समय तय किया गया था। अब १९८४ के आखिरी दिन थे और फॉक्स का फ़िल्म में भूमिका निभाना मुमकिन नहीं था। ज़ेमेकिस की अन्य दो पसंद थे सी. थॉमस हॉवेल (च. थॉमस हॉवेल) और एरिक स्टोल्ज़ (एरिक स्टॉल्ट)। एरिक स्टोल्ज़ ने मास्क फ़िल्म (जो अभी प्रदर्शित नहीं हुई थी) में रॉय एल. डेनिस के अपने किरदार से निर्माताओं को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने उसका चयन मार्टी मैकफ्लाय का किरदार निभाने के लिए कर लिया। मुश्किल कास्टिंग प्रक्रिया के कारण आरंभ तिथि को दो बार खिसकाया गया।
चार हफ्ते की शूटिंग के बाद ज़ेमेकिस को लगा कि स्टोल्ज़ अपने किरदार के लिए सही नहीं है। हालांकि उन्हें और स्पीलबर्ग को यह पता था कि दुबारा शूटिंग का अर्थ होगा १.४ करोड़ डॉलर के बजट में ३० लाख डॉलर की अतिरिक्त वृद्धि, लेकिन उन्होंने अभिनेता बदलकर शूटिंग करने का फैसला किया। स्पीलबर्ग ने समझाया कि ज़ेमेकिस को लगता था कि स्टोल्ज़ में हास्यबोध की कमी थी और उसका अभिनय बुरी तरह से नाटकीय था। आगे गेल ने बताया कि उन्हें लगा स्टोल्ज बहुत सामान्य तरह से भूमिका निभा रहे थे जबकि फॉक्स का व्यक्तित्व मार्टी मैकफ़्लाय जैसा था। उन्हें लगा स्केट बोर्ड पर सवारी करने में स्टोल्ज़ को असुविधा होती थी जबकि फॉक्स को नहीं। शूटिंग के शुरू हुए दो सप्ताह बीत जाने पर स्टोल्ज़ ने एक बार फ़ोन पर बात करने के दौरान निर्देशक पीटर बॉगदैनोविच (पीटर बोगदनोवीच) के समक्ष स्वीकार किया कि उन्हें ज़ेमेकिस और गेल का निर्देशन समझ में नहीं आता और वह इस भूमिका के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
फॉक्स की भूमिका जनवरी १९८५ में शुरू हुई जब मेरेडिथ बैक्सटर अपने प्रसव के बाद फैमिली टाइज़ में वापस लौटीं. बैक टू द फ़्यूचर निर्माण दल के लोग गोल्डबर्ग से दुबारा मिले जिन्होंने यह समझौता किया था कि फॉक्स की प्रमुख प्राथमिकता फैमिली टाइज़ होगी और यदि समय को लेकर कोई समस्या खड़ी होती है तो उनकी ही बात मानी जाएगी. फॉक्स को पटकथा पसंद आई और स्टोल्ज़ को जिस संवेदनशीलता के साथ हटाया गया उसे लेकर ज़ेमेकिस और गेल से वह बहुत प्रभावित हुए क्योंकि स्टोल्ज़ के बारे में वे दोनों आदर के साथ बातें करते थे। पर वेलिन्डर (पर वेलिन्दर) और टोनी हॉक ने स्केट बोर्ड की सवारी वाले दृश्य में सहयोग किया हालांकि हॉक को इस कारण फ़िल्म छोड़नी पड़ी क्योंकि वे फॉक्स से लंबे थे और बहुत से दृश्यों में उन्होंने स्टोल्ज़ के लिए भूमिका की थी। फॉक्स को मार्टी मैकफ्लाय की अपनी भूमिका बहुत ही निजी लगी। अपने हाइ स्कूल के दिनों में यही सब तो मैं करता था- स्केटबोर्ड की सवारी, लड़कियों का पीछा करना और संगीत मंडली में बजाना. मेरा तो सपना ही था रॉक स्टार बनने का.
पहली पसंद के रूप में जॉन लिथगो के हट जाने के बाद क्रिस्टोफर लियॉड ने डॉक ब्राउन की भूमिका निभाई थी। लियॉड के साथ द एडवेन्चर्स ऑफ बकारू बैंजाइ (१९८४) में काम करने के बाद निर्माता नील कैंटन ने उन्हें यह किरदार करने की सलाह दी थी। लियॉड ने शुरू में यह करने से मना कर दिया लेकिन पटकथा पढ़ने के बाद और अपनी पत्नी के जिद करने पर वह राजी हो गए। अल्बर्ट आइंस्टीन और परिचालक लियोपोल्ड स्टोकोव्स्की (लियोपोल्ड स्टोकौशकी) से प्रेरणा लेकर उन्होंने अपने कुछ दृश्यों में सुधार किया। गीगावाट का उच्चारण ब्राउन जिगोवाट की तरह करते थे जैसा कि एक भौतिकी वैज्ञानिक ने इस शब्द का उच्चारण किया था जब पटकथा पर शोध के दौरान उनकी ज़ेमेकिस और गेल से मुलाक़ात हुई थी।
ली थॉमसन ने लॉरेन मैकफ्लाय की भूमिका निभाई क्योंकि उन्होंने द वाइल्ड लाइफ में स्टोल्ज़ की विपरीत भूमिका की थी। १९८५ में शुरू की गई फ़िल्म के आरंभ में आरंभिक दृश्यों के लिए उनके कृत्रिम मेकअप में साढ़े ३ घंटे लगे थे।
क्रिस्पिन ग्लोवर ने जॉर्ज मैकफ्लाय का किरदार निभाया। ज़ेमेकिस ने बताया कि ग्लोवर ने जॉर्ज के बेवकूफ़ और दब्बू जैसी हरकतों में काफ़ी कुछ सुधार किया जैसे कि उसके हाथों का कांपना. निर्देशक ने मजाक किया, वह निरंतर रूप से क्रिस्पिन पर जाल फेंक रहा था क्योंकि अपने किरदार के प्रस्तुतीकरण के आधे समय में वह पूरी तरह से अलग था।
निर्देशक ने बिफ टैनेन की भूमिका में थॉमस एफ. विलसन थे, क्योंकि जे. जे. कोहेन, जिन्हें शुरू में यह भूमिका मिली थी, स्टोल्ज़ पर धौंस जमाने में उपयुक्त नहीं पाए गए। कोहेन को बिफ के साथी की भूमिका निभाने को मिली। यदि शुरू में ही अभिनेता के तौर पर फॉक्स को लिया गया होता तो शायद कोहेन को यह भूमिका मिल जाती क्योंकि वह फॉक्स से अधिक ऊंचे कद के थे।
स्टोल्ज़ के चले जाने के बाद, सप्ताह के कार्य दिवसों में फॉक्स का कार्यक्रम था दिन के समय फैमिली टाइज़ की शूटिंग और शाम के ६:३० से लेकर रात के २:३० तक बैक टू द फ्यूचर की शूटिंग करना। प्रत्येक रात उन्हें औसतन केवल ५ घंटे की नींद मिल पाती थी। शुक्रवार को वह रात १० बजे से सुबह के ६ ७ बजे तक शूटिंग करते थे और इसके बाद सप्ताहांत के दिन फ़िल्म के बाह्य दृश्यों के लिए होते थे क्योंकि केवल इसी दिन वह दिन में उपलब्ध हो सकते थे। फॉक्स के लिए यह बेहद थकानपूर्ण था, लेकिन उनके शब्दों में फ़िल्म और टेलीविज़न के व्यवसाय में होना मेरा सपना था, हालांकि मुझे यह कहां मालूम था कि कभी दोनों के लिए एक साथ काम करना होगा. मुझे मौका मिला और मैंने उसे स्वीकार कर लिया। बैक टू द फ़्यूचर की डबिंग करते हुए ज़ेमेकिस ने कहा यह फ़िल्म कभी बन्द नहीं होगी. वे याद करते हुए कहते हैं कि क्योंकि वे हर रात शूटिंग करते थे उनकी हालत हमेशा आधे सोए, आधे जगे जैसी होती थी और साथ ही उनका मोटापा बढ़ गया था और वह बीमार महसूस करते थे।
हिल वैली शहर के चौराहे का दृश्य कोर्टहॉउस स्क्वेर पर फ़िल्माया गया था जो यूनिवर्सल स्टूडियोज़ के पीछे स्थित था। बॉब गेल ने बताया कि लोकेशन पर शूंटिंग करना असंभव होता क्योंकि कोई भी शहर इस बात की इज़ाजत नहीं देता कि फ़िल्म वाले शहर की इस तरह पुनर्रचना कर दें कि उसका रूप १९५० के दशक वाला हो जाए. फ़िल्म निर्माताओं ने फैसला किया कि ५० के दशक वाले दृश्य को पहले फ़िल्माया जाए और शहर को वास्तव में सुन्दर और शानदार बनाया जाए. और फिर बाद में सब कुछ हटाकर शहर के दृश्य को फिर से ८० के दशक वाला अनाकर्षक और बदसूरत बनाया जाए. डॉक ब्राउन के घर के आंतरिक दृश्य रॉबर्ट आर. ब्लैकर हॉउस (रॉबर्ट र. ब्लैकर हाउस) में फ़िल्माया गया जबकि बाह्य दृश्य के लिए गैम्बल हाउस चुना गया। ट्विन पाइंस मॉल और बाद में लोन पाइन मॉल (१९८५ से) के बाह्य दृश्य कैलिफोर्निया के सिटी ऑफ इंडस्ट्री में प्युंटे हिल्स मॉल में फ़िल्माए गए। बाह्य दृश्य और साथ ही हिल वैली हाई स्कूल के एन्चैन्टमेंट अंडर द सी नृत्य वाले दो दृश्य कैलिफोर्निया के वीटियर (व्हिटियर) स्थित विटियर हाई स्कूल में फ़िल्माए गए। ५० के दशक वाले बेनीज़ के घर के बाहर के दृश्य कैलिफोर्निया के साउथ पासाडेना स्थित बस्नेल ऐवेन्यू पर फ़िल्माए गए।
१०० दिनों के बाद २० अप्रैल १९८५ को फ़िल्म की शूटिंग पूरी हुई और फ़िल्म की तिथि मई से बढ़कर अगस्त हो गई। लेकिन अत्यंत सकारात्मक जांच स्क्रीनिंग (फ्रैंक मार्शल ले कहा, ऐसा प्रिव्यू मैंने कभी नहीं देखा था, दर्शक की भीड़ छत तक पहुंच गई थी) के बाद शीनबर्ग ने फ़िल्म के प्रदर्शन की तारीख ३ जुलाई तय की फ़िल्म इस तारीख को प्रदर्शित हो जाए. इसके लिए दो सम्पादक आर्थर स्मिट (आर्थर स्चमिड) और हैरी केरैमिडास (हरी केरमिदास) को फ़िल्म पर लगाया गया जबकि कई ध्वनि सम्पादक फ़िल्म पर २४ घंटे की पालियों में काम करते रहे। ८ मिनट के वे दृश्य काटे गए जिनमें शामिल थे परीक्षा के दौरान मार्टी का अपनी मां को नकल करते देखना, लॉरेन को बचाने से पहले जॉर्ज का टेलीफ़ोन बूथ में देर कर देना और मार्टी का डार्थ वेडर का स्वांग करना। ज़ेमेकिस ने जॉनी बी. गूडी वाला दृश्य लगभग काट ही डाला था क्योंकि उसे लगा कि यह कहानी के अनुरूप नहीं है, लेकिन प्रिव्यू के दर्शकों ने इसे पसंद किया था इसलिए इसे रख लिया गया। औद्योगिक प्रकाश और जादू ने फ़िल्म के ३2 प्रभावकारी दृश्यों का निर्माण किया था जिनसे ज़ेमेकिस और गेल फ़िल्म पूरी होने की तिथि के १ सप्ताह पहले तक संतुष्ट नहीं हो पाए.
एलन सिल्वेस्ट्री ने ज़ेमेकिस के साथ रोमांसिंग द स्टोन में काम किया था लेकिन स्पीलबर्ग को उस फ़िल्म का ज्यादातर इलेक्ट्रॉनिक स्कोर पसंद नहीं आया। स्पीलबर्ग को खुश करने के लिए ज़ेमिकिस ने सिल्वेस्ट्री को सलाह दी कि फ़िल्म के छोटे पैमाने पर होने के बावजूद वह अपना संगीत भव्य और यादगार बनाएं. सिल्वेस्ट्री ने स्कोर की रिकॉर्डिंग प्रथम प्रिव्यू के दो सप्ताह पहले शुरू की। फ़िल्म का स्कोर का चयन उस समय तक के श्रेष्ठतम फ़िल्म स्कोरों में से एक के रूप में किया गया। ऑनलाइन संगीत डेटाबेस, ऑलम्यूज़िक, ने इस फ़िल्म के स्कोर को ५ में से ३ सितारों का रेटिंग प्रदान किया।
सिल्वेस्ट्री ने ह्यू लेविस (हुए लुइस) और न्यूज़ (न्यूज) को थीम संगीत निर्माण करने की सलाह दी। द पॉवर ऑफ लव रिकॉर्ड करने से पहले उनका पहला प्रयास यूनिवर्सल द्वारा खारिज़ कर दिया गया। स्टूडियो ने अंतिम गाने को पसंद किया लेकिन उन्हें इस बात से निराशा हुई कि यह फ़िल्म के शीर्षक को प्रस्तुत नहीं करता. इसलिए उन्हें रेडियो स्टेशनों को मेमो भेजकर यह अनुरोध करना पड़ा कि वे हमेशा इस बात का ज़िक्र करें कि यह गाना बैक टू द फ़्यूचर फ़िल्म से सबद्ध है। अंत में बैक इन टाइम ट्रैक को फ़िल्म में दर्शाया गया जो तब बजाया गया जब मार्टी १९८५ में वापस आता है और फिर इसे अंत में भी बजाया गया। ह्यू लेविस ने उस स्कूल शिक्षक के रूप में संक्षिप्त उपस्थिति दर्शायी जिन्होंने मार्टी के संगीत मंडली को इसलिए खारिज़ कर दिया कि द पॉवर ऑफ लव बजाने के लिए उनका संगीत जरूरत से ज्यादा तीव्र है।
यद्यपि, ऐसा लगता है कि माइकल जे. फॉक्स सचमुच गिटार बजा रहे हों, संगीत पर्यवेक्षक बोंस होव (बोनस हॉवे) ने हॉलीवुड के गिटार प्रशिक्षक और संगीतकार पॉल हेंसन को माइकल जे.फॉक्स को सभी किरदारों को निभाने का स्वांग रचने के लिए सिखाने हेतु नियुक्त किया, ताकि उसके सिर के पीछे से अभिनय करने सहित यह वास्तविक दिखाई पड़े. फॉक्स को गिटार बजाने की नकल करना सिखाने के लिए नियुक्त किया ताकि यह वास्तविक जैसा लगे, जिसमें उसका सिर के पीछे बजाना भी शामिल है। मार्क कैम्पबेल ने जॉनी बी. गुडी के लिए और हेंसन ने फ़िल्म की शुरुआत में हाई स्कूल नृत्य ऑडिशन के दृश्य के लिए वास्तविक गिटार बजाया था।
१९८५ का मूल साउंडट्रैक अलबम में फ़िल्म के लिए सिल्वेस्ट्री द्वारा तैयार किए गए संगीत के केवल दो ट्रैक चयनित हुए. ये दोनों ह्यू लेविस वाले ट्रैक थे जो फ़िल्म में मार्बिन बेरी और स्टारलाइटर्स (और मार्टी मैकफ्लाय) द्वारा गाए गए थे। यह फ़िल्म में १९५० के दशक का एक विंटेज़ गाना था और दो पॉप गाने थे जो फ़िल्म की पृष्ठभूमि में बहुत ही संक्षिप्त रूप से सुने जा सकते हैं। २४ नवम्बर २००९ को फ़िल्म के संपूर्ण स्कोर का एक अधिकृत सीमित संस्करण वाला दो सीडी का सेट इंट्राडा रिकॉर्ड्स द्वारा जारी किया गया।
फ़िल्म बैक टू द फ़्यूचर ३ जुलाई १९८५ को उत्तर अमेरिका के १,२०० सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई। ज़ेमेकिस को चिंता थी कि फ़िल्म पिट जाएगी क्योंकि फॉक्स को लंदन में फैमली टाइज़ पर आधारित एक फ़िल्म बनानी थी और वे फिल्म को बढ़ावा देने में असमर्थ थे। गेल युनिवर्सल पिक्चर्स के टैगलाइन, आर यू टेलिंग मी माय मदर्स गॉट द हॉट्स फॉर मी? को लेकर भी असंतुष्ट थे पर इसके बाद भी बैक टू द फ़्यूचर ११ हफ़्तों तक पहले स्थान पर रही। गेल याद करते हैं, हमारा दूसरा सप्ताहांत पहले सप्ताहांत से कमाल रहा, जो लोकप्रियता का सूचक रहा. नेशनल लैम्पून्स यूरोपियन वैकेशन अगस्त में आई और एक हफ़्ते के लिए हमें पहले स्थान पर से हटा दिया पर पुनः हम पहले स्थान पर आ गए। उत्तर अमेरिका में फ़िल्म ने कुल 2१0.6१ मिलियन डॉलर की तथा विदेशों में १70.५ मिलियन डॉलर की कमाई की, जहाँ पूरी दुनिया भर से इसे ३8१.११ मिलियन डॉलर की उगाही हुई। बैक टू द फ़्यूचर का वर्ष १९८५ में चौथा सबसे शानदार उद्घाटन सप्ताहांत रहा तथा उस साल की सर्वाधिक कमाई करने वाली फ़िल्म रही। मुद्रास्फीति के लिए समायोजित, यह फ़िल्म उत्तर अमेरिका की ५9वीं सर्वाधिक कमाई करने वाली तथा मुद्रास्फीति के प्रति असमायोजित रूप में, अबतक की १३8वीं सबसे अधिक कमाई करने वाली फ़िल्म रही।
इस फ़िल्म को अधिकतर आलोचकों द्वारा समीक्षात्मक सराहना मिली। रोजर एबर्ट (रोजर इबर्ट) को महसूस हुआ कि बैक टू द फ़्यूचर में फ्रैंक कैप्रा की फ़िल्मों से मिलते विषय थे, विशेषकर इट्स अ वंडरफुल लाइफ . एबर्ट ने टिप्पणी की, "[निर्माता] स्टीवन स्पीलबर्ग स्पिल्बर्ग क्लासिकल हॉलीवुड सिनेमा के महान अतीत का अनुकरण कर रहे हैं, जिन्हें सही निर्देशक (रॉबर्ट ज़ेमेकीस) के हाथों सही परियोजना सौंपनी की विशेषज्ञता हासिल है। द न्यूयॉर्क टाइम्स के जैनेट मस्लिन मानते थे कि फ़िल्म में एक संतुलित कथानक था। "यह आगे आने वाले एक लंबे समय के लिए हास्य तथा मनमौजी लंबी कहानियों का एक सिनेमाई आविष्कार है।" क्रिस्टोफर नल, जिन्होंने इस फ़िल्म को अपनी किशोरावस्था में देखी थी, का मानना था, "१९८० के दशक की एक सर्वोत्कृष्ट फ़िल्म, जिसमें विज्ञान फंतासी, मार-धाड़, हास्य तथा रोमांस सभी एक सही छोटे पैकेज़ में प्रस्तुत किया गया है, जो वयस्क तथा बच्चों दोनों को पसंद आएगी." शिकागो रीडर के डेव केर का मानना था कि गेल तथा ज़ेमेज़िस ने एक ऐसी पटकथा लिखी जिसमें विज्ञान गल्प, गंभीरता तथा हास्य का एक सही रूप से संतुलित प्रस्तुती है। वेराइटी (वैराइटी) ने अभिनय की यह कहते हुए तारीफ़ की कि फॉक्स तथा लियॉड ने मार्टी तथा डॉक ब्राउन की दोस्ती को दिल में गहरे रूप बिठा दिया, जो विशेष रूप से किंग आर्थर तथा मर्लिन की याद ताज़ा कर जाती है। बीबीसी (बैकबीबीसी) ने उत्कृष्ट रूप से संचालित पटकथा की जटिलता की तारीफ़ की और टिप्पणी की, कोई ऐसा कुछ नहीं कहता जो आगे चलकर कथा के लिए महत्वपूर्ण न हो. रोटेन टोमैटोज द्वारा संग्रहित ४४ समीक्षाओं के आधार पर ९६% समीक्षकों ने फ़िल्म को सकारात्मक समीक्षा दी।
बैक टू द फ़्यूचर को ध्वनि संपादन के लिए ऐकेडमी पुरस्कार से नवाज़ा गया, जबकि "द पॉवर ऑफ द लव", ध्वनि डिजायनर, तथा ज़ेमकिस एवं गेल (मूल पटकथा), को नामित किया गया। फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ नाट्य प्रस्तुतीकरण के लिए ह्यूगो अवार्ड (ह्यूगो अवार्ड) से सम्मानित किया गया तथा सर्वश्रेष्ठ विज्ञान गल्प फ़िल्म के लिए सैटर्न अवार्ड (सैटर्न अवार्ड) प्रदान किया गया। माइकल जे फॉक्स तथा दृश्य प्रभाव निर्माताओं को सैटर्न अवार्ड में अपने वर्गों में जीत हासिल की। ज़ेमेकिस, कम्पोज़र ऐलेन सिल्वेस्ट्री, वस्त्र सज्जा तथा सहायक अभिनेता क्रिस्टोफर लियॉड, लीथॉम्प्सन, क्रिस्पिन ग्लोवर तथा थॉमस एफ. विल्सन को भी नामित किया गया। फ़िल्म ३९वें ब्रिटिश अकादमी फ़िल्म अवार्ड में सफल रही, जहां इसे सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, मौलिक पटकथा, दृश्य प्रभाव, निर्माण सज्जा तथा संपादन के लिए नामित की गई। ४३वें गोल्डन ग्लोब अवार्ड समारोह में बैक टू द फ़्यूचर को सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म (म्युजिकल या हास्य), मौलिक गाने (द पॉवर ऑफ लव के लिए), मोशन पिक्चर म्युजिकल या हास्य (फॉक्स) में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता तथा सर्वश्रेष्ठ पटकथा के लिए ज़ेमेकिस तथा गेल को नामित किया गया।
राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने १९८६ के अपने स्टेट ऑफ द यूनियन एड्रेस संबोधन में इस फ़िल्म का उल्लेख किया, जहां उन्होंने कहा, जीवित रहने का कभी इससे अधिक रोमांचक समय नहीं रहा, हैरानी पैदा करने वाला और वीरतापूर्ण उपलब्धियों का एक समय. जैसा कि फ़िल्म बैक टू द फ़्यूचर में कहा गया है, हम जहां जा रहे हैं, वहां सड़क की आवश्यकता नहीं. जब उन्होंने पहली बार फ़िल्म देखी तो अपने राष्ट्रपति होने को लेकर मजाक किया, उन्होंने सिनेमाघर के प्रोजेक्शनिस्ट को कहकर फ़िल्म को रुकवाया और फिर पुनः आगे बढ़वाया. जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश ने भी अपने भाषण में फ़िल्म बैक टू द फ़्यूचर का ज़िक्र किया।
{०{१}}एंटरनेटमेंट वीकलीज़ की 5० सर्वश्रेष्ठ हाई स्कूल फिल्मों की अपनी सूची में इसे २८वां स्थान मिला.वर्ष 2००8 में एम्पायर के पाठकों द्वारा बैक टू द फ़्यूचर को २३वीं महान फिल्म के रूप में चुना गया .' इसे द न्यूयॉर्क टाइम्स की १००० फ़िल्मों की ऐसी ही एक सूची में स्थान दिया गया। जनवरी 2०१० में टोटल फ़िल्म (टोटल फिल्म) ने इसे १०० महानतम फ़िल्मों की सूची में शुमार किया .' २७ दिसम्बर 2००7 में बैक टू द फ़्यूचर को लाइब्रेरी ऑफ कॉन्ग्रेस द्वारा युनाइटेड स्टेट्स नैशनल फ़िल्म रजिस्ट्री में संरक्षण के लिए चुना गया, क्योंकि इसे "सांस्कृतिक, ऐतिहासिक रूप से या कलात्मक रूप से महत्वपूर्ण माना गया ." वर्ष 2००6 में बैक टू द फ़्यूचर की मूल पटकथा को राइटर गिल्ड ऑफ अमेरिका द्वारा अबतक की ५६वें सर्वश्रेष्ठ पटकथा के रूप में चयनित किया गया .
जून २००८ में अमेरिकन फ़िल्म इंस्ट्यूट ने अफी' के १० टॉप १० में इसे- दस सर्वश्रेष्ठ क्लासिक अमेरिकी शैली की दस सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में शुमार किया गया, जहां रचनात्मक समुदाय के १,५०० लोगों ने अपने मत दिए थे। बैक टू द फ़्यूचर को विज्ञान गल्प शैली की १०वीं सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के रूप में माना गया।
बैक टू द फ़्यूचर अफी के कई १०० की श्रेणी सूचियों में रही, जिनमें शामिल है १०० ईयर्स... १०० मूवीज़, १०० ईयर्स... १०० मूवीज़ (१०वीं सालगिरह संस्करण), १०० ईयर्स... १०० मूवीज़ कोट्स फॉर "रोड्स? डॉ॰ एमेट ब्राउन द्वारा कहा वाक्य- जहां हम जा रहे हैं,
वहां सड़क की जरूरत नहीं, १०० ईयर्स... १०० मूवी सॉन्ग में दो बार द पॉवर ऑफ लव तथा जॉनी बी. गूडी, १०० ईयर्स... १०० थ्रिल्स, तथा १०० ईयर्स... १०० लॉफ्स .
बैक टू द फ़्यूचर चैनल ४ के फ़िल्म टू सी बिफ़ोर यू डाई (फिल्म्स तो सी बेफोर यू दिए) की ५० फ़िल्मों में शुमार की गई, जहां इसे १०वां स्थान प्राप्त हुआ।
फ़िल्म जब व्ह में प्रदर्शित की गई, तो यूनिवर्सल ने इसके अंत में शब्द जारी... जोड़ा, ताकि बैक टू द फ़्यूचर भाग ई तथा भाग ई के निर्माण के बारे में पता चल सके। इस अनुशीर्षक को वर्ष २००२ में जारी द्व्ड से हटा दिया गया।
२४ फ़रवरी १९८१ पटकथा के मसौदा
फ्यूचरपीडिया: द बैक टू द फ्यूचर विकी ऑन विकिया
फिल्मों के स्थानों का नक्षा
फिल्मों के स्थानों का भ्रमण
१९८५ की फ़िल्में
विज्ञान कथा फ़िल्में
१९८० की विज्ञान कथा फ़िल्में |
साधारण शब्दों में कार्य विश्लेषण (जॉब अनालेसिस या वर्क अनालेसिस) किसी कार्य के विषय में सूचनाओं को एकत्र करने की एक प्रक्रिया है। दूसरे शब्दों में, कार्य विश्लेषण, कार्यों का एक औपचारिक एवं विस्तृत निरीक्षण है। यह किसी कार्य के विषय में सूचनाओं के संग्रहण की एक प्रक्रिया है। इस प्रकार कार्य विश्लेषण, कार्य की विषय-वस्तु, जिन भौतिक परिस्थितियों में कार्य सम्पादित किया जाता है तथा कार्य के उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए आवश्यक पात्रताओं का व्यवस्थित अनुसंधान है। कार्य विश्लेषण की कुछ महत्वपूर्ण
परिभाषायें निम्नलिखित प्रकार से हैः
ई.जे. मैकॉर्मिक के अनुसार,
कार्य विश्लेषण को कार्यों के विषय में सूचना प्राप्त करने के रूप में पारिभाषित किया जा सकता है।
एम.एल. ब्लम के अनुसार,
कार्य विश्लेषण की परिभाषा किसी कार्य से सम्बन्धित विभिन्न अंगभूतों, कर्तव्यों, कार्य-दशाओं तथा कर्मचारी की व्यक्तिगत पात्रताओं के समुचित अध्ययन के रूप में की जा सकती है।
एडविन बी. फिलिप्पो के अनुसार,
कार्य विश्लेषण किसी कार्य विशेष की क्रियायों एवं उत्तरदायित्वों के सम्बन्ध में सूचनाओं का अध्ययन करने एवं उन्हें एकत्रित करने की प्रक्रिया है।
कार्य विश्लेषण के उद्देश्य
कार्य विश्लेषण सम्पूर्ण मानव संसाधन प्रबन्धन गतिविधियों के लिए एक अत्यन्त आवश्यक आधार है। इसके विशेषीकृत उद्देश्यों को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता हैः
१. कर्मचारियों की अधिप्राप्ति के लिए उचित एवं तर्कसंगत आधार स्थापित करना।
२. प्रत्येक कार्य के विषय में अवलोकन एवं अध्ययन के माध्यम से मानव संसाधन नियोजन के लिए आवश्यक सूचनायें उपलब्ध कराना।
३. कार्य मूल्यांकन के लिए आवश्यक तथ्यों एवं सूचनाओं को उपलब्ध कराना।
४. प्रत्येक कार्य के लिए अपेक्षित न्यनतम स्वीकार्य पात्रताओं, निपुणताओं तथा योग्यताओं सम्बन्धी मानकों को निर्दिष्ट करके कर्मचारियों की भर्ती एवं चयन सम्बन्धी प्रक्रिया को सुगमता प्रदान करना।
५. कर्मचारियों के लिए प्रभावी प्रशिक्षण एवं विकास के कार्यक्रमों की योजना तथा विषय-वस्तु का निर्माण करने में सहायता प्रदान करना।
६. किसी कार्य विशेष को सम्पादित करने हेतु अपेक्षित योग्यता सम्बन्धी सूचना उपलब्ध कराकर मजदूरी एवं वेतन के निर्धारण में योगदान देना।
कार्य विश्लेषण से प्राप्त होने वाली सूचनायें
कार्य विश्लेषण किसी के विभिन्न पहलुओं की व्याख्यात्मक अध्ययन है, जिसके अन्तर्गत कार्य सम्बन्धी कर्तव्यों, उत्तरदायित्वों, कार्य की प्रकृति एवं कार्य-दशाओं तथा कार्य हेतु अपेक्षित क्षमताओं एवं योग्यताओं का समावेश होता है। कार्य विश्लेषण से प्राप्त होने वाली सूचनाओं अथवा इसके विषय क्षेत्र का विवरण निम्नलिखित हैः
( क ) कार्य शीर्षक
( ख ) कार्य संख्या
कार्य की प्रमुख विशेषतायें
( क ) कार्य स्थल
( ख ) कार्य का भौतिक पर्यावरण
( ग ) कार्य का संगठनात्मक पर्यावरण
( घ ) कार्य सम्बन्धी जोखिम
कार्य के अन्तर्गत क्रियाकलाप
( क ) कार्य की प्रक्रियायें
( ख ) कार्य के अंतर्गत निर्धारित कर्तव्य
( ग ) कर्तव्यों के निष्पादन की विधि
कार्य का अन्य कार्यों से सम्बन्ध
( क ) कार्यों के मध्य समन्वय
( ख ) सहयोगी कर्मचारी
( ग ) सहायक तथा अधीनस्थ
कार्य की प्रौद्योगिकी
(क ) कार्य में प्रयुक्त यन्त्र एवं उपकरण
( ख ) कार्य की तकनीक
(ग ) कार्य में प्रयुक्त साधन एवं सामग्री
कार्य निष्पादन मानक
( क ) गुणवत्ता एवं मात्रा की दृष्टि से अपेक्षित उत्पादन
( ख ) कार्य मानक
( ग ) कार्य में लगने वाला समय
कार्य के लिए अपेक्षायें
( क ) शिक्षा एवं प्रशिक्षण
( ख ) कार्य अनुभव
( ग ) निपुणताय
( घ ) शारीरिक एवं मानसिक योग्यतायें
कार्य विश्लेषण के अंग
कार्य विश्लेषण के तीन महत्वपूर्ण अंग हो सकते हैं-
(१) कार्य विवरण
(२) कार्य विशिष्टता
(३) कर्मचारी विशिष्टता
कार्य विवरण एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो मूल रूप से विवरणात्मक प्रकृति का होता है तथा जिसमें कार्य के निष्पादन हेतु अपेक्षित क्रियाकलापों, कर्तव्यों, उत्तरदायित्वों, कार्य की भौतिक दशाओं तथा उसमें प्रयुक्त यन्त्रा एवं उपकरणों आदि का उल्लेख किया जाता है। यह एक ऐसा लिखित प्रपत्र है, जिसमें दर्शाया जाता है कि कार्य-धारक से अपेक्षित वास्तविक क्रियायें क्या-क्या हैं? इनके निष्पादन में उसे किन साधनों की आवश्यकता होगी? तथा उसके कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व क्या होगें? संक्षेप में यह कह सकते है कि कार्य विवरण यह बताता है कि क्या करना है, कैसे करना है, तथा क्यों करना है? यह प्रत्येक कार्य के मानक निर्धारित करता है।
अच्छे कार्य विवरण की विशेषतायें : कार्य विवरण के अभिलेखन के दौरान निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिएः
१. कार्य विवरण में कार्य की प्रकृति तथा उसके विषय-क्षेत्र का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए।
२. कार्य विवरण संक्षिप्त, तथ्यपरक एवं सुस्पष्ट होना चाहिये। साथ ही, इसमें कार्य का एक स्पष्ट चित्रण प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
३. कार्य विवरण में कार्य के कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिये।
कार्य विशिष्टता कार्य को संतोषजनक रूप से सम्पादित करने के लिए अपेक्षित मानवीय विशेषताओं का एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करता है। यह कार्य को सफलता सम्पन्न करने हेतु किसी व्यक्ति में आवश्यक पात्रताओं का वर्णन करता है। कार्य विशिष्टता, एक कार्य विवरण की एक तार्किक अपवृद्धि होती है। प्रत्येक कार्य विवरण के लिए, कार्य विशिष्टता का होना वांछनीय होता है। यह संगठन को, एक कार्य विशेष का उत्तरदायित्व देने हेतु किस प्रकार के व्यक्ति की आवश्यकता है, इसका पता लगाने में सहायता प्रदान करता है।
कर्मचारी विशिष्टता, मानवीय योग्यताओं अथवा धरित विशेषताओं से सम्बन्धित होता है तथा यह उन पात्रताओं का उल्लेख नहीं करता है, जो कि मानवीय योग्यताओं को सूचित करते है। पात्रता, योग्यताओं का मापन करने का एक मानक है, जो कुछ निश्चित योग्यताओं, निपुणताओं तथा ज्ञान आदि के स्वामित्व का प्रमाणित करता है। अतः कर्मचारी विशिष्टता एक कार्य के लिए एक पद-धारक की न्यूनतम अपेक्षित पात्रताओं, जैसे-शारीरिक, शैक्षणिक, मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक आदि का एक विवरण है, जो भावी कर्मचारी से कार्य सम्पन्न करने के लिए न्यूनतम मानवीय योग्यताओं (जैसा कि कार्य विशिष्टता में उल्लिखित किया गया है) ये युक्त होने की अनिवार्यता का वर्णन करता है।
एक पद को भरने के लिए किस प्रकार के व्यक्ति की आवश्यकता है, यह ज्ञात करने की उद्देश्य से कार्य विशिष्टता की सूचनाओं को, कर्मचारी विशिष्टता की सूचनाओं में परिवर्तित करना आवश्यक है। कर्मचारी विशिष्टता एक लोकप्रिय 'उत्पादन नाम' के सामन होता है, जो यह परिणाम निकालता है कि एक विशेष कर्मचारी विशिष्टता से युक्त अभ्यर्थी, कार्य विशिष्टता के अन्तर्गत उल्लिखित मानवीय योग्यताओं से प्रायः युक्त है। उदाहरण के लिए एम.बी.ए. की शैक्षिक योग्यता से युक्त अभ्यर्थी सामान्यतः प्रबन्धन की अवधारणाओं को जानता है तथा प्रबन्धकीय निपुणताओं, जैसे- विश्लेषण करने की निपुणता, निर्णय-निर्माण की निपुणता, व्याख्या करने की निपुणता तथा अन्तर्वैयक्तिक निपुणताओं को धारण करता है। फिर भी इस मान्यता की प्रमाणिकता की जाँच चयन परीक्षा तथा अन्य प्रविधियों के माध्यम से की जा सकती है। कर्मचारी विशिष्टता, एक कार्य विशेष के लिए अभ्यर्थियों की विशेष श्रेणी के औचित्य का पता लगाने में उपयोगी होता है।
इन्हें भी देखें
कार्य अभिकल्पन (जॉब डिजाइन) |
बाडी, द्वाराहाट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
बाडी, द्वाराहाट तहसील
बाडी, द्वाराहाट तहसील |
कुछ समय पूर्व ऍच॰आइ॰वी॰/ एड्स के प्रति अपने राष्ट्र के युवकों तथा अन्य वर्गों में सतर्कता लाने के लिए ज़िम्बाब्वे की दो मुख्य पार्टियों के ६० से अधिक सांसदों ने अपना ऍच॰आइ॰वी॰ परीक्षण, जून २०१२ में करवाया।
ज़िम्बाब्वे में जन-सतर्कता के कारण ऍच॰आइ॰वी॰-प्रभावित आबादी का प्रतिशत १४ है, जो हालाँकि विश्व स्तर पर अधिक है, परन्तु राष्ट्रीय स्तर पर २००३ से काफ़ी कम हुआ है, तब वह २३ प्रतिशत था।
प्रधान मंत्री मोर्गन त्स्वन्गिर्रै की पार्टी से जुड़े सांसद ब्लेसिंग चेबुन्दो के मुताबिक़ जो ऍच॰आइ॰वी॰/ एड्स का यह अभियान अपने आप में बेमिसाल है और इसका उद्देश यह है कि ऍच॰आइ॰वी॰-पीड़ित व्यक्तियों के प्रति भेदभाव का मुक़ाबला किया जा सके। |
मुन्नलूरु (कृष्णा) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कृष्णा जिले का एक गाँव है।
आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट
आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग
निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल
आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट |
घोर्दौर में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद जिले का एक गाँव है।
बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
बिहार के गाँव |
एक पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी है जो पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के लिए खेलते हैं। पाकिस्तान टीम के लिए २०११ से खेलते आ रहे हैं। पाकिस्तान के लिए एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच खेलते हैं।
पाकिस्तान के एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी
पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी
पाकिस्तान के लोग
१९८६ में जन्मे लोग |
चेडियन नताशा नेशन (जन्म ३१ अक्टूबर १९८६) एक जमैका के क्रिकेटर हैं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वेस्टइंडीज का प्रतिनिधित्व किया है। वह जमैका के लिए घरेलू क्रिकेट खेलती हैं।
दाएं हाथ की मध्यम गति की गेंदबाज, नेशन ने जून २००८ में आयरलैंड के दौरे पर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया। उसने दौरे पर एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) और ट्वेंटी २० अंतर्राष्ट्रीय मैच दोनों खेले, और अगले महीने नीदरलैंड और इंग्लैंड के खिलाफ श्रृंखला भी खेली। नवंबर २०09 में इंग्लैंड के खिलाफ एक और श्रृंखला के पहले एकदिवसीय मैच में, नेशन ने पांच ओवरों में ३/२२ के आंकड़े लिए, जिससे उनकी टीम को ४० रनों से जीत मिली।
अक्टूबर २०१६ में, भारत के अगले महीने के दौरे के लिए नेशन को वेस्टइंडीज टीम में वापस बुलाया गया था।
अक्टूबर २०१८ में, क्रिकेट वेस्ट इंडीज (सीडब्ल्यूआई) ने उन्हें २०१८-१९ सीज़न के लिए एक महिला अनुबंध से सम्मानित किया। बाद में उसी महीने, उन्हें वेस्ट इंडीज में २०१८ आईसीसी महिला विश्व ट्वेंटी २० टूर्नामेंट के लिए वेस्टइंडीज की टीम में नामित किया गया था। जनवरी २०२० में, उन्हें ऑस्ट्रेलिया में २०२० आईसीसी महिला टी२० विश्व कप के लिए वेस्टइंडीज टीम में नामित किया गया था। मई २०21 में, क्रिकेट वेस्टइंडीज से नेशन को एक केंद्रीय अनुबंध से सम्मानित किया गया था।
२ जुलाई २0२1 को, एंटीगुआ के कूलिज क्रिकेट ग्राउंड में वेस्टइंडीज और पाकिस्तान के बीच दूसरे महिला टी२0आई मैच के दौरान, वह और उनकी साथी टीम के साथी चिनले हेनरी दस मिनट के अंतराल में मैदान पर गिर गए थे। उन दोनों को तुरंत अस्पताल ले जाया गया और वे कथित तौर पर होश में और स्थिर स्थिति में थे।
अक्टूबर २०२१ में, उन्हें जिम्बाब्वे में २०२१ महिला क्रिकेट विश्व कप क्वालीफायर टूर्नामेंट के लिए वेस्टइंडीज टीम में नामित किया गया था। |
Subsets and Splits