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रोराथांग (रोरथांग) भारत के सिक्किम राज्य के पूर्व सिक्किम ज़िले में स्थित एक शहर है। यह रंगपो नदी के उत्तरी किनारे पर बसा हुआ है। इन्हें भी देखें पूर्व सिक्किम ज़िला सिक्किम के गाँव पूर्व सिक्किम ज़िला पूर्व सिक्किम ज़िले के गाँव
सुतीक्ष्ण हिंदुओं के एक ऋषि थे। वनवास के दौरान प्रभु श्री राम इनके आश्रम मे रुके थे। सुतीक्ष्ण भक्त ऋषि अगस्त्य के शिष्य थे और ऋषि अगस्त्य के आश्रम में ही रहते थे और शिक्षा ग्रहण करते थे मगर अध्यन में कमजोर थे उन्हें शिक्षा से ज्यादा अच्छा गाय चराना लगता था क्योंकि बहुत भोले थे और साफ मन के थे मगर गुरु भक्ति उनके मन में कुट कूट के भरी हुई थी सुतीक्ष्ण भक्त की कथा रामायण के पात्र
कानून के विद्वान को विधिवेत्ता कहते हैं। भारत के विश्वविख्यात विधिवेत्ता डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर है। कानुन के जानकार अथवा विषेशज्ञ भारत के कानून के विषेशज्ञ श्री डॉ भीमराव अम्बेडकर है
धुबरी लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र भारत के असम राज्य का एक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र है। धुबरी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र निम्नलिखित विधानसभा क्षेत्रों से बना है: संसद के सदस्य १९५१: अमजद अली, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी १९५७: अमजद अली, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी १९६२: ग़यासुद्दीन अहमद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस १९६७: जहानुद्दीन अहमद, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी १९७१: मोइनुल होक चौधरी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस १९७७: अहमद हुसैन, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस १९८०: नुरुल इस्लाम, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस १९८४: अब्दुल हमीद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस १९९१: नुरुल इस्लाम, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस १९९६: नुरुल इस्लाम, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस १९९८: अब्दुल हमीद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस १९९९: अब्दुल हमीद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस २००४: अनवर हुसैन, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस २००९: बदरुद्दीन अजमल, असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट २०१४: बदरुद्दीन अजमल, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट २०१९: बदरुद्दीन अजमल आल इंडिया यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट असम के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र
रतनपुर सनहौला, भागलपुर, बिहार स्थित एक गाँव है। भागलपुर जिला के गाँव
डेनियल गिम (जन्म ४ नवंबर १९९५) एक नाइजीरियाई क्रिकेटर हैं। अप्रैल २०१८ में, वह २०१८-१९ आईसीसी विश्व ट्वेंटी २० अफ्रीका क्वालीफायर टूर्नामेंट के उत्तर-पश्चिमी समूह में नाइजीरिया के दस्ते का हिस्सा थे। सितंबर २०१८ में, उन्हें २०१८ अफ्रीका टी२० कप के लिए नाइजीरिया की टीम में नामित किया गया था। उन्होंने 1४ सितंबर २०१८ को २०१८ अफ्रीका टी२० कप में नाइजीरिया के लिए अपना ट्वेंटी-२० डेब्यू किया। अक्टूबर २०१९ में, उन्हें संयुक्त अरब अमीरात में २०१९ आईसीसी टी२० विश्व कप क्वालीफायर टूर्नामेंट के लिए नाइजीरिया के टीम में नामित किया गया था। उन्होंने १९ अक्टूबर २०१९ को जर्सी के खिलाफ नाइजीरिया के लिए अपना ट्वेंटी २० अंतर्राष्ट्रीय (टी२०आई) पदार्पण किया। अक्टूबर २०२१ में, उन्हें रवांडा में २०२१ आईसीसी पुरुष टी२० विश्व कप अफ्रीका क्वालीफायर टूर्नामेंट के क्षेत्रीय फाइनल के लिए नाइजीरिया की टीम में नामित किया गया था। १९९५ में जन्मे लोग
ब्राज़ील का भूगोल से आशय ब्राज़ील में भौगोलिक तत्वों के वितरण और इसके प्रतिरूप से है जो लगभग हर दृष्टि से काफ़ी विविधतापूर्ण है। दक्षिण अमेरिका पर स्थित यह देश अपने ८,५१४,८77 वर्ग किमी क्षेत्रफल के साथ विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा देश है। साथ ही लगभग २१६ मिलियन जनसंख्या के साथ यह पूरे विश्व में सातवां स्थान पर सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश भी है। ब्राज़ील की भूमि सीमाएँ अर्जेण्टीना, उरुग्वे, पैराग्वे, बोलिविया, पेरू, कोलम्बिया, वेनेज़ुएला, गयाना, सूरीनाम और फ्रांसीसी गुयाना का फ़्रेंच क्षेत्र के साथ साझा होती हैं। ब्राज़ील की भौगोलिक संरचना और बायोम में लगभग सभी प्रकार के स्थलरूप पाए जाते हैं। एक ओर इसके दक्षिण पूर्व में अटलांटिक वन हैं तो दूसरी ओर और पूर्व में विस्तृत अटलांटिक महासागर, एक ओर इसके केंद्रीय में सेराडो है, एक ओर इसके पूर्वोत्तर में काटिंगा है, एक ओर इसके पश्चिम में पैंटानल है और एक ओर इसके उत्तर में अमेज़न वर्षावन है। ब्राज़ील का सबसे ऊंचा शिखर पिको दा नेबलीना है जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से लगभग २,९९४ मीटर है। अवस्थिति एवं विस्तार ब्राज़ील की निरपेक्ष अवस्थिति ५ १६' उ. से ३३ ४५' द. अक्षांश तक और ३४ ४७' प. से ७३ ५८' प. देशान्तर के मध्य है। इसकी उत्तर से दक्षिण लम्बाई ४,३९७ किमी और पूर्व से पश्चिम चौड़ाई ४,३२० किमी है। इसकी स्थलीय सीमा की लम्बाई १६,९०० किमी तथा समुद्र तट की लम्बाई ७,४91 किमी है। कुल क्षेत्रफल ८,५1४,८७७ वर्ग किमी है। ब्राज़ील का सबसे उत्तरी बिंदु अइला नदी और सबसे दक्षिणी बिंदु चुइ धारा तथा सबसे पूर्वी बिंदु जोआओ पेसोआ शहर और सबसे पश्चिमी बिंदु मोआ नदी है। ब्राज़ील का भूगोल
मदुसूदनपुर रंगराचौक, भागलपुर, बिहार स्थित एक गाँव है। भागलपुर जिला के गाँव
महाभारत काल में जब वनवास काल में जब पांडवों को लाक्षागृह में जलाकर मारने का षड्यंत्र रचा गया तब विदुर के परामर्श पर वे वहां से भागकर एक दूसरे वन में गए, जहाँ पीली आँखों वाला हिडिंबसुर दानव राजा जो महादैत्य वन नामक वन के दानवों का राजा था, अपनी बहन हिंडिबा के साथ रहता था। एक दिन हिडिंब ने अपनी बहन हिंडिबा को वन में भोजन की तलाश करने के लिये भेजा परन्तु वहां हिंडिबा ने पाँचों पाण्डवों सहित उनकी माता कुंती को देखा। भीम को देखते ही हिडिम्बा उस पर मोहित हो गई इस कारण इसने उन सबको नहीं मारा यह बात हिडिंब को बहुत बुरी लगी। तब क्रोधित होकर हिडिंब ने पाण्डवों पर हमला किया, इस युद्ध में भीम ने उसे मार डाला जिसके बाद वहाँ जंगल में कुंती की सहमति से हिडिंबा एवं भीम का विवाह हुआ। इन्हें घटोत्कच नामक पुत्र हुआ। हिमाचल प्रदेश के मनाली में इन दोनों माता हिडिम्बा और पुत्र घटोत्कच के मंदिर आज भी हैं। लाक्षागृह के दहन के पश्चात सुरंग के रास्ते लाक्षागृह से निकल कर पाण्डव अपनी माता के साथ वन के अन्दर चले गये। कई कोस चलने के कारण भीमसेन को छोड़ कर शेष लोग थकान से बेहाल हो गये और एक वट वृक्ष के नीचे लेट गये। माता कुन्ती प्यास से व्याकुल थीं इसलिये भीमसेन किसी जलाशय या सरोवर की खोज में चले गये। एक जलाशय दृष्टिगत होने पर उन्होंने पहले स्वयं जल पिया और माता तथा भाइयों को जल पिलाने के लिये लौट कर उनके पास आये। वे सभी थकान के कारण गहरी निद्रा में निमग्न हो चुके थे अतः भीम वहाँ पर पहरा देने लगे। उस वन में हिडिंब नाम का एक भयानक असुर का निवास था। मानवों का गंध मिलने पर उसने पाण्डवों को पकड़ लाने के लिये अपनी बहन हिडिंबा को भेजा ताकि वह उन्हें अपना आहार बना कर अपनी क्षुधा पूर्ति कर सके। वहाँ पर पहुँचने पर हिडिंबा ने भीमसेन को पहरा देते हुये देखा और उनके सुन्दर मुखारविन्द तथा बलिष्ठ शरीर को देख कर उन पर आसक्त हो गई। उसने अपनी राक्षसी माया से एक अपूर्व लावण्मयी सुन्दरी का रूप बना लिया और भीमसेन के पास जा पहुँची। भीमसेन ने उससे पूछा, "हे सुन्दरी! तुम कौन हो और रात्रि में इस भयानक वन में अकेली क्यों घूम रही हो?" भीम के प्रश्न के उत्तर में हिडिम्बा ने कहा, "हे नरश्रेष्ठ! मैं हिडिम्बा नाम की राक्षसी हूँ। मेरे भाई ने मुझे आप लोगों को पकड़ कर लाने के लिये भेजा है किन्तु मेरा हृदय आप पर आसक्त हो गया है तथा मैं आपको अपने पति के रूप में प्राप्त करना चाहती हूँ। मेरा भाई हिडिम्ब बहुत दुष्ट और क्रूर है किन्तु मैं इतना सामर्थ्य रखती हूँ कि आपको उसके चंगुल से बचा कर सुरक्षित स्थान तक पहुँचा सकूँ।" इधर अपनी बहन को लौट कर आने में विलम्ब होता देख कर हिडिम्ब उस स्थान में जा पहुँचा जहाँ पर हिडिम्बा भीमसेन से वार्तालाप कर रही थी। हिडिम्बा को भीमसेन के साथ प्रेमालाप करते देखकर वह क्रोधित हो उठा और हिडिम्बा को दण्ड देने के लिये उसकी ओर झपटा। यह देख कर भीम ने उसे रोकते हुये कहा, "रे दुष्ट राक्षस! तुझे स्त्री पर हाथ उठाते लज्जा नहीं आती? यदि तू इतना ही वीर और पराक्रमी है तो मुझसे युद्ध कर।" इतना कह कर भीमसेन ताल ठोंक कर उसके साथ मल्ल युद्ध करने लगे। कुंती तथा अन्य पाण्डव की भी नींद खुल गई। वहाँ पर भीम को एक राक्षस के साथ युद्ध करते तथा एक रूपवती कन्या को खड़ी देख कर कुन्ती ने पूछा, "पुत्री! तुम कौन हो?" हिडिम्बा ने सारी बातें उन्हें बता दी। अर्जुन ने हिडिम्ब को मारने के लिये अपना धनुष उठा लिया किन्तु भीम ने उन्हें बाण छोड़ने से मना करते हुये कहा, "अनुज! तुम बाण मत छोडो़, यह मेरा शिकार है और मेरे ही हाथों मरेगा।" इतना कह कर भीम ने हिडिम्ब को दोनों हाथों से पकड़ कर उठा लिया और उसे हवा में अनेक बार घुमा कर इतनी तीव्रता के साथ भूमि पर पटका कि उसके प्राण-पखेरू उड़ गये। हिडिम्ब के मरने पर वे लोग वहाँ से प्रस्थान की तैयारी करने लगे, इस पर हिडिम्बा ने कुन्ती के चरणों में गिर कर प्रार्थना करने लगी, "हे माता! मैंने आपके पुत्र भीम को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया है। आप लोग मुझे कृपा करके स्वीकार कर लीजिये। यदि आप लोगों ने मझे स्वीकार नहीं किया तो मैं इसी क्षण अपने प्राणों का त्याग कर दूँगी।" हिडिम्बा के हृदय में भीम के प्रति प्रबल प्रेम की भावना देख कर युधिष्ठिर बोले, "हिडिम्बे! मैं तुम्हें अपने भाई को सौंपता हूँ किन्तु यह केवल दिन में तुम्हारे साथ रहा करेगा और रात्रि को हम लोगों के साथ रहा करेगा।" हिडिंबा इसके लिये तैयार हो गई और भीमसेन के साथ आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी। एक वर्ष व्यतीत होने पर हिडिम्बा का पुत्र उत्पन्न हुआ। उत्पन्न होते समय उसके सिर पर केश (उत्कच) न होने के कारण उसका नाम घटोत्कच रखा गया। वह अत्यन्त मायावी निकला और जन्म लेते ही बड़ा हो गया। हिडिम्बा ने अपने पुत्र को पाण्डवों के पास ले जा कर कहा, "यह आपके भाई की सन्तान है अतः यह आप लोगों की सेवा में रहेगा।" इतना कह कर हिडिम्बा वहाँ से चली गई। घटोत्कच श्रद्धा से पाण्डवों तथा माता कुन्ती के चरणों में प्रणाम कर के बोला, "अब मुझे मेरे योग्य सेवा बतायें।? उसकी बात सुन कर कुन्ती बोली, "तू मेरे वंश का सबसे बड़ा पौत्र है। समय आने पर तुम्हारी सेवा अवश्य ली जायेगी।" इस पर घटोत्कच ने कहा, "आप लोग जब भी मुझे स्मरण करेंगे, मैं आप लोगों की सेवा में उपस्थित हो जाउँगा।" इतना कह कर घटोत्कच वर्तमान उत्तराखंड की ओर चला गया। इन्हें भी देखें हिडिम्बा देवी मंदिर महाभारत के पात्र महाभारत के पात्र
सर तारकनाथ पालित (१८३१-१९१४) बंगाल के एक वकील और एक परोपकारी व्यक्ति थे। वह बंगाल विभाजन के दौरान स्वदेशी आन्दोलन से जुड़े थे और कलकत्ता विश्वविद्यालय और जादवपुर विश्वविद्यालय की स्थापना के पीछे एक प्रमुख व्यक्ति थे।
पटना गुवाहाटी गरीब रथ २५१७ए (ट्रेन सं.: २५१७आ) भारतीय रेल द्वारा संचालित एक गरीब रथ रेल है। यह पटना जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड: पन्बे) से ०६:००प्म बजे छूटती है व गुवाहाटी रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड: घी) पर १०:३०आम बजे पहुंचती है। यह गाड़ी सप्ताह में गुरुवार को चलती है। इसकी यात्रा की अवधि है १६ घंटे ३० मिनट।
खड़ीबाड़ी (खरीबरी) भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के दार्जीलिंग ज़िले में स्थित एक गाँव है। राष्ट्रीय राजमार्ग ३२७सी यहाँ से गुज़रता है। इन्हें भी देखें पश्चिम बंगाल के गाँव दार्जीलिंग ज़िले के गाँव
हरित विपणन (ग्रीन मार्केटिंग) से आशय उन उत्पादों के विपणन से है जो पर्यावरण की दृष्टि से दूसरे उत्पादों से बेहतर हों।
कार्सिनोमा: ऐसा कैंसर जो कि त्वचा में या उन ऊतकों में उत्पन्न होता है, जो आंतरिक अंगों के स्तर या आवरण बनाते हैं। सारकोमा: ऐसा कैंसर जो कि हड्डी, उपास्थि, वसा, मांसपेशियों, रक्त वाहिकाओं या अन्य संयोजी ऊतक या सहायक में शुरू होता है। ल्युकेमिया: कैंसर जो कि रक्त बनाने वाले अस्थि मज्जा जैसे ऊतकों में शुरू होता है और असामान्य रक्त कोशिकाओं की भारी मात्रा में उत्पादन और रक्त में प्रवेश का कारण बनता है। लिंफोमा और माएलोमा: ऐसा कैंसर जो कि प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकाओं में शुरू होता है। केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के कैंसर: कैंसर जो कि मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के ऊतकों में शुरू होता हैं। कैंसर लाइलाज बीमारी नहीं है जबकि मेरा यह मानना है कि किसी भी पैथी में इसका प्रामाणिक इलाज नहीं संभव है। सिर्फ प्रारम्भ में जानकारी हो जाना ही जीवन बचाने की संभावनाओं को बढ़ा सकता है।
कालु थापा क्षत्री वा महाराज कालु थापा आत्रेय गोत्री बगाले थापा कुलके मूलपुरुष माने जाते हैं। थापा वंशावलीके अनुसार शक सम्वत ११११ (वि.सं. १२४६) में डोटीके काँडामालिकामें उनहोनें राज्यारोहण किया था। म्याग्दी जिविसके अनुसार उन्होंने ताकम, म्याग्दीमैं राज्य स्थापना किया था और उनके वंशजने ३०० वर्षतक शासन किया था। उनके बारेमें पौडेल वंशावलीमें भी लिखा गया है। उनके वंशके बारेमें "आत्रेय गोत्री त्रिप्रवर शुक्लयजुर्वेदी, धनुर्वेदी मध्यान्दिनी शाखाअध्यायी" योगी नरहरिनाथद्वारा लिखित इतिहास प्रकाशमें प्रकाशित थापा वंशावलीमे लिखा हैं। कान्यकुब्ज (कन्नौज) क्षेत्रमा देवराजहरूले अखण्ड महायज्ञको यज्ञाग्निबाट ४ ब्रह्मज्ञानी चेला (पुरुष)हरूको उत्पत्ति गराएको दाबी थापा वंशावलीमा गरिएको छ। यज्ञको आगोबाट उत्पत्ति भएका क्षत्री बछराजाचार्य कन्नौजका महाराज बन्न पुगे। तिनै अभयनरसिंह राजकुमार बछराजलाई राजस्थापना (राज्यरोहण) गराउँँदा राजा बछराजस्थापा भनियो। उनी पर्वत्या (खस) क्षत्री र भयानक शरीर भएका राजकुमार थिए। त्यसैले कान्यकुब्ज क्षेत्रका राजाहरूले कन्या दिएनन् भने राजा माधवराज (राधामाधव) राजपुतले आफ्नी सुपुत्री शुभकन्या (वसुन्धरा)को विवाह तिनै बछराजस्थापासँग गराइदिए। तिनका सन्तान कालु थापा कन्नौजका राजा भए। उनले आत्रेयगोत्री ऋषिबाट शिक्षादिक्षा पाएका थिए। थापा वंशावलीके एक कथनः {{कोटेशन|... शक सम्वत ११११ सम्वत् १२४६ साल देषि थापाहरूका सन्तति कुलका आदि कालु थापा हुनः। ।१।। कालु थापाका चेला ४ जेठा पुन्याकर थापाः। । माहिँला तारापति थापाः। । साहिँला विरु थापाः। । कान्छा धर्मराज थापाः। । पुलामका जेठा हुनः। । ताकमका माहिँला हुनः। । रुकुमकोटका साहिँला हुनः। । जमरिकका कान्छा जशोधर (धर्मराज) हुनः तिनले जमरिकमा राज्य पनि गर्याः ताहाँ देषि तिनी आयाका हुनः। ।२।।...}
एनजीसी ८९ एक अवरुद्ध सर्पिल या लेंटिकुलर आकाशगंगा है, जो रॉबर्ट की चौकड़ी जो चार अंतःक्रियात्मक आकाशगंगाओं का एक समूह है, का हिस्सा है। इस आकाशगंगा के पास सीफ़र्ट २ नाभिक है जिसमें एच-अल्फ़ा विकिरण उत्सर्जित करने वाली अतिरिक्त-प्लानर विशेषताएं हैं। डिस्क के प्रत्येक तरफ फिलामेंटरी विशेषताएं हैं, जिसमें जेट जैसी संरचना शामिल है जो पूर्वोत्तर दिशा में लगभग ४ केपीसी तक फैली हुई है। ऐसी संभावना है कि समूह के अन्य सदस्यों के साथ अंतर्क्रिया के दौरान इसने अपनी तटस्थ हाइड्रोजन (एच १) गैस खो दी है। सबसे अधिक एनजीसी 9२ के ऐसा करने की संभावना है। डन्डीय सर्पिल गैलेक्सियाँ विकिपरियोजना खगोलशास्त्र लेख
गौरव मुखी एक भारतीय पेशेवर फुटबॉल खिलाड़ी हैं जो फ़ॉरवर्ड के रूप में खेलते हैं। मुखी का पालन-पोषण झारखंड के जमशेदपुर में हरिजन बस्ती, धतकीडीह में हुआ था और वह छोटेलाल मुखी के पुत्र हैं, जो एक पूर्व स्थानीय शौकिया फुटबॉल खिलाड़ी हैं। जून २०१५ में, सब जूनियर्स अंडर १५ चैंपियनशिप में झारखंड का प्रतिनिधित्व करने के बाद, मुखी, चार अन्य खिलाड़ियों और उनके मुख्य कोच के साथ, झूठे जन्म प्रमाण पत्र जमा करने और अधिक उम्र में खेलने के लिए निलंबित कर दिया गया था। मुखी अंततः स्थानीय झारखंड फुटबॉल लीग में टाटा स्टील में शामिल हो गए और फिर जमशेदपुर एफसी बी टीम में शामिल हो गए। आई-लीग के दूसरे डिवीजन में रिजर्व के लिए अच्छा प्रदर्शन करने के बाद, मुखी को इंडियन सुपर लीग के लिए जमशेदपुर की पहली टीम के लिए साइन किया गया। उन्होंने ७ अक्टूबर २०१८ को बेंगलुरु के खिलाफ क्लब के लिए अपना पेशेवर पदार्पण किया। मुखी ७१वें मिनट में जेरी मविहिंगथांगा के स्थानापन्न के रूप में आया और दस मिनट बाद क्लब के लिए बराबरी का गोल दागकर स्कोर १-१ कर दिया। खेल जल्द ही २-२ पर समाप्त हो गया और मुखी ने आईएसएल इमर्जिंग प्लेयर ऑफ द मैच का पुरस्कार अर्जित किया। २० नवंबर २०18 को, आयु-धोखाधड़ी की बात स्वीकार करने के बाद मुखी को एआईएफएफ द्वारा छह महीने के लिए निलंबित कर दिया गया था। २०18 में, मुखी ने १६ साल का होने का दावा किया, लेकिन इंडियन सुपर लीग इतिहास में सबसे कम उम्र का खिलाड़ी बनने के बाद २१ साल का होने का खुलासा किया। निलंबन पूरा करने और सही आयु दस्तावेज उपलब्ध कराने के बाद, ९ सितंबर २०1९ को उन्हें एआईएफएफ द्वारा खेलने की मंजूरी दे दी गई। जनवरी २०२१ में, मोहम्मडन एससी ने २०२०-२१ आई-लीग सीज़न के लिए पूर्व जमशेदपुर एफसी को आगे बढ़ाया।
रिचर्ड आर्क्राइट (२३ दिसम्बर १७३२ ३ अगस्त १७९२) प्रारंभिक औद्योगिक क्रान्ति के दौरान एक अंग्रेज़ी आविष्कारक और एक प्रमुख उद्यमी थे। उन्हें कताई फ्रेम के विकास के पीछे प्रेरक शक्ति के रूप में श्रेय दिया जाता है, जिसे जल शक्ति का उपयोग करने के लिए अनुकूलित किए जाने के बाद जल फ़्रेम के रूप में जाना जाता है; और उन्होंने कताई से पहले कच्चे कपास को 'कपास लैप' में बदलने के लिए एक रोटरी कार्डिंग इंजन का पेटेंट कराया। वह यन्त्रीकृत धुनना और कताई दोनों कार्यों के लिए कारखानों का विकास करने वाले प्रथम व्यक्ति थे। आर्क्राइट की उपलब्धि विद्युत, यन्त्रसमुह, अर्ध-कुशल श्रम और कपास के नए कच्चे माल को मिलाकर वृहदुत्पादित सूत बनाना था। उनके संगठनात्मक कौशल ने उन्हें "आधुनिक औद्योगिक कारखाने प्रणाली के पिता" के रूप में सम्मानित किया। १७३२ में जन्मे लोग
ओनिगिरी, जिसे ओ-मुसुबी, निगिरी या चावल के गोले जाना जाता है, एक जापानी भोजन है। इसे सफेद चावल से बनाया जाता है और इसे अंडाकार या त्रिकोणीय आकार दिया जाता है और अक्सर नोरी (समुद्री शैवाल) से बांधा जाता है। परंपरागत रूप से, इसका उपयोग सामन, उमबोसी, कैतासुशी, ताराको या किसी भी खट्टी मलाईदार सामग्री के लिए एक सुरक्षात्मक मसाले के रूप में किया जाता है। अधिकांश जापानी सुविधा स्टोर विभिन्न भरावों और स्वादों के साथ अपनी ऑनिगिरी को बनाते हैं। जापान में विशेष दुकानें भी हैं जो केवल 'टेकआउट' (बना भोजन जिसे बाहर लेजा कर खाया जाता है) के लिए ओनिगिरी बेचती हैं। जापान में इस प्रवृत्ति की लोकप्रियता के कारण, ओनिगिरी दुनिया भर में जापानी रेस्तरां में एक लोकप्रिय भोजन बन गया है। आम गलतफहमी के बावजूद, ओनिगिरी सुशी का एक रूप नहीं है। ओनिगिरी को सादे चावल (कभी-कभी हल्के नमक) के साथ बनाया जाता है, जबकि सुशी को सिरका, चीनी और नमक दाल कर चावल से बनाया जाता है। ओनिगिरी चावल को पोर्टेबल और खाने में आसान बनाने के साथ-साथ उसे संरक्षित भी करता है, जबकि सुशी की उत्पत्ति मछली के संरक्षण के एक तरीके के रूप में हुई है। मुरासाकी शिकिबु की ११ वीं शताब्दी की डायरी मुरासाकी शिकीबु निक्की में, वह चावल की पिन्नी खाने वाले लोगों के बारे में लिखती है। उस समय, ओनिगिरी को तोनीजिकी कहा जाता था और अक्सर बाहरी पिकनिक लंच में खाया जाता था। अन्य जगह लिखा गया है , जहाँ तक सत्रहवीं शताब्दी की बात है, में कहा गया है कि युद्ध के दौरान समुराई भोजन में बांस की चादर में लिपटे चावल के गोले खाते थे, लेकिन ओनिगिरी की उत्पत्ति लेडी मुरासाकी से भी पहले की है। चॉपस्टिक के प्रसिद्ध होने से पहिले नारा अवधि में, चावल को अक्सर एक छोटी के रूप में खाया जाता था ताकि इसे आसानी से उठाया जा सके। हीयन काल में चावल को छोटे आयताकार आकार में भी बनाया जाता था, जिसे टोनजिकी के रूप में जाना जाता था ताकि उन्हें एक प्लेट पर आसानी से डाला जा सके और आसानी से खाया जा सके। बड़े पैमाने पर विनिर्माण १९८० के दशक में त्रिकोणीय ओनिगिरी बनाने वाली मशीन का अविष्कार किया गया था। अंदर भरने को रोल करने के बजाय, स्वाद को ओनिगिरी के एक छेद में डाल दिया गया था और छेद को नोरी द्वारा लपेटा जाता था।चूँकि इस मशीन द्वारा बनाई गई ओनिगिरी नोरी के साथ पहले से ही चावल की पिन्नी पर लगी लगाई आती थी, समय के साथ नोरी नम और चिपचिपी बन गई और चावल से चिपक गई। उसके बाद इक अलग तरह ही पैकिंग आने लग गई जिससे नोरी को चावल से अलग से संग्रहीत रखा जा सकता था। खाने से पहले नोरी का पैकेट खोल सकता था और ओनिगिरी को उससे लपेट सकता था। ओनिगिरी को भरने के लिए एक छेद के उपयोग करके ओनिगिरी के नए स्वादों को उत्पादन करना आसान बन गया क्योंकि इस खाना पकाने की प्रक्रिया और सामग्री में बदलाव की आवश्यकता नहीं थी। आधुनिक यंत्रवत् द्वारा पैक ओनिगिरी को विशेष रूप से मोड़ा जाता है तांकि प्लास्टिक रैपिंग नॉरी और चावल के बीच एक नमी अवरोधक के रूप में कार्य करे। जब पैकेजिंग को दोनों सिरों पर खोला जाता है, तो नोरी और चावल संपर्क में आते हैं। आमतौर पर, ओनिगिरी को उबले हुए सफेद चावल के साथ बनाया जाता है पर कभी-कभी विभिन्न प्रकार के पके हुए चावल के साथ भी बनाया जाता है, जैसे: ओ-कोवा या कोवा-मेशी (सेकीहान): सब्जियों के साथ पके हुए चावल / उबले हुए (लाल बीन्स) मेज़-गोहान ("मिश्रित चावल"): पका हुआ चावल पसंदीदा सामग्री के साथ मिलाया जाता है उमिबोशी, ओकाका, या तुस्कुदानी लंबे समय से अक्सर ओनिगिरी के लिए भरने के रूप में उपयोग किए जाते हैं। आमतौर पर, पूर्व-अनुभवी चावल (ऊपर देखें) के साथ बनाई गई ओनिगिरी सामग्री से नहीं भरी जाती। विशिष्ट भरण नीचे सूचीबद्ध हैं: मेयोनेज़ के साथ ट्यूना, मेयोनेज़ के साथ झींगा, आदि। सूखी मछली: भुना हुआ और कद्दूकस किया मैकेरल (), जापानी हॉर्स मैकेरल (), आदि। तले हुए खाद्य पदार्थ: छोटे आकार के टेम्पुरा, कटलेट काकुनी: डोंगपो पोर्क सूखा भोजन: ओकाका, आदि। प्रोसेस्ड रो: मेंटाइको, टोबिको, कैवियार आदि। श्योकारा: स्क्वीड, शोटो, आदि। त्सुकुदानी: नोरी, हाइपोप्टीचस डाइबोव्स्की (), वेनारुपिस फिलीपिनारम (), आदि। मसालेदार फल और सब्जियां: उमेबोशी, ताकाना, नोज़ावाना आदि। मिसो: कभी-कभी हरे प्याज के साथ मिलाया जाता है और भुना जाता है
शिवशंकरी(जन्म १४ अक्टूबर १९४२) एक लोकप्रिय तमिल लेखिका और कार्यकर्ता हैं। वह दक्षिण एशियाई लेख के हिस्से के रूप में अपनी आवाज रिकॉर्ड करने के लिए यूनाइटेड स्टेट्स लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस द्वारा पूछे गए चार तमिल लेखकों में से एक हैं। शिवशंकरी का जन्म मद्रास में हुआ था। स्वयं सहित उनके परिवार के सभी बच्चे श्री रामकृष्ण मिशन और शारदा विद्यालय के स्कूलों में पढ़े थे। उसके बाद उन्होंने एसआईईटी महाविद्यालय में पढ़ाई की। उनके कुछ उपन्यास पर फिल्मे भी बनी - अवान अवल अधु (१९८०) उपन्यास मुक्ता श्रीनिवासन द्वारा निर्देशित की ओर के बालचंदर द्वारा निर्देशित ४७ नटकल (१९८१)। उनका उपन्यास, १९८७ में दूरदर्शन पर सुबाह नामक एक टीवी श्रृंखला में बनाया गया। अवन अवल अधु (१९८०) ४७ नटकल (१९८१)
क्रिस्टोफर माइकल प्रैट (जन्म २१ जून, १९७९) एक अमेरिकी अभिनेता है। प्रैट अपने टेलीविजन भूमिकाओं को लेकर शोहरत में आये थे, विशेष रूप से एनबीसी के २००९-२०१५ के सिटकॉम पार्क्स एंड रिक्रिएशन में उनकी एंडी डॉयर भूमिका के लिए, जहाँउसे आलोचकों की प्रशंसा प्राप्त हुई, औरसर्वश्रेष्ठसहायकअभिनेताकेलिये क्रिटिक्स च्वाइस टेलीविजन अवार्ड नामित किया गया था। अपने फिल्मी करियर की शुरुआत मुख्यधारा की फिल्मों में सहायक भूमिकाओं केसाथकीजिसमेंवांटेड (२००८), जेनिफर'स बॉडी (२००९), मनीबॉल(२०११),द फाइव-ईयर इंगेजमेंट (२०१२), जीरो डार्क थर्टी (२०१३), डिलीवरी मैन (२०१३), और हर (२०१३)शामिलहैं। प्रैट को सफलता, २०१४ की दो व्यावसायिक रूप से सफल फिल्मों से मिली, जो थी कंप्यूटर एनिमेटेड कॉमेडी लेगो मूवी और मार्वल स्टूडियो की सुपर हीरो फिल्म गार्डिआस ऑफ़ द गैलेक्सी। २०१५ में, प्रैट ने जुरासिक पार्क श्रंखलाकी, चौथी फिल्मजुरासिक वर्ल्ड, मेंअभिनय किया, जो की $१.६ अरब के बॉक्स ऑफिस कलेक्सन के साथ उसकी अब तक की सबसे अधिक आर्थिक रूप से सफल फिक्मोंमेसेएकथी।प्रैटआगेद मैग्निफिसेंट सेवन और पैसेंजर्समेंभीमुख्यभूमिकानिभाई। २००७ में, टेक मी होम टुनाईट फिल्म के समय प्रैट की मुलाकात अभिनेत्री एना फेरिस, से हुआ। २००८मेंउन्होंनें सगाईकरली और ९ जुलाई, 200९ को बाली, इंडोनेशिया मेंशादी कर ली। वे लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्नियाकेपड़ोस में हॉलीवुड हिल्स में रहते है। १९७९ में जन्मे लोग
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भारत मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में सीमित आधार वाली एक क्षेत्रीय पार्टी है। इस राजनीतिक दल की स्थापना २००२ में ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व में हुई। पार्टी का नेतृत्व ओम प्रकाश राजभर ही करते हैं। पार्टी का मुख्यालय वाराणसी जिले के फतेहपुर गांव में है। पार्टी का ध्वज पीले रंग का है और चुनाव चिन्ह छड़ी है। २०१४ के लोकसभा चुनाव के बाद से इस पार्टी की अधिक चर्चा इसलिए भी हुई क्योंकि बीजेपी ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की वाराणसी से जीत सुनिश्चित करने के लिए सभी समुदायों को साधने की नीति के तहत अपना दल के साथ ही सुभासपा जैसे छोेटे दलों से भी चुनावी तालमेल की दिशा में काम किया। २०१४ के लोकसभा चुनाव में तो इस पार्टी के सभी प्रत्याशी चुनाव हार गए। पर ओम प्रकाश राजभर की सियासी गाड़ी चल पड़ी। २०१२ के विधानसभा चुनाव में एक भी सीट ना जीतने वाली इस पार्टी के ४ प्रत्याशी २०१७ में विधानसभा पहुंच गए। इन्हें भी देखें भारत के राजनीतिक दल
| नामी = लद्दाख़ | निकनामी = | मैप_अल्ट = | इमेज_कैप्शन = लद्दाख केन्द्र-शासित प्रदेश (भारत) | सीट = लेह। लद्दाख का कुल क्षेत्रफल १,६६,६९८ वर्ग किलोमीटर है। जिसमें से ५९,१46 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र भारत के नियंत्रण में है।बाकि क्षेत्र पाकिस्तान और चीन के अवैध कब्जे में है। | पार्ट्स_लिपी = ज़िले | प१ = २ | फाउनार = | गवर्नींग_बॉडी = लद्दाख प्रशासन उपराज्यपाल -बी डी मिश्रा | लीडर_नामी ब्रिगेडियर (रिटायर्ड)बी डी मिश्रा] | लीडर_नामी१ = जमयांग सेरिंग नामग्याल (भारतीय जनता पार्टी) | लीडर_नामी२ = जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय | टिमेजोन१ = भामस | पोस्ट_कोड = लेह: १९४१०१; कर्गिल: १९४१०३ लद्दाख़ (तिब्बती लिपि: ; "ऊँचे दर्रों की भूमि") भारत का एक केन्द्र शासित प्रदेश है, जो उत्तर में काराकोरम पर्वत और दक्षिण में हिमालय पर्वत के बीच में स्थित है। यह भारत के सबसे विरल जनसंख्या वाले भागों में से एक है। भारत गिलगित बलतिस्तान और अक्साई चिन को भी इसका भाग मानता है, जो वर्तमान में क्रमशः पाकिस्तान और चीन के अवैध कब्जे में है। यह पूर्व में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र, दक्षिण में भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश, पश्चिम में जम्मू और कश्मीर केन्द्र शासित प्रदेश और पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित-बल्तिस्तान से घिरा है। सुदूर उत्तर में क़ाराक़ोरम दर्रा पर शिंजियांग। यह काराकोरम रेंज में सियाचिन ग्लेशियर से लेकर उत्तर में दक्षिण में मुख्य महान हिमालय तक फैला हुआ है। पूर्वी छोर, जिसमें निर्जन अक्साई चिन मैदान शामिल हैं, भारत सरकार द्वारा लद्दाख के हिस्से के रूप में दावा किया जाता है, और १९६२ से चीनी नियन्त्रण में है। अगस्त २०१९ में, भारत की संसद ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, २०१९ पारित किया जिसके द्वारा ३१ अक्टूबर २०१९ को लद्दाख एक केन्द्र शासित प्रदेश बन गया। लद्दाख क्षेत्रफल में भारत का सबसे बड़ा केन्द्र शासित प्रदेश है। लद्दाख सबसे कम आबादी वाला केन्द्र शासित प्रदेश है। केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख के अन्तर्गत पाक अधिकृत गिलगित बलतिस्तान ,चीन अधिकृत अक्साई चिन और शक्सगम घाटी का क्षेत्र भी शामिल है । सन १९६३ में पाकिस्तान द्वारा ५१८० वर्ग किलोमीटर का शक्सगम घाटी क्षेत्र चीन को उपहार में दिया गया ,जो लद्दाख का हिस्सा है । इसके उत्तर में चीन तथा पूर्व में तिब्बत की सीमाएँ हैं। सीमावर्ती स्थिति के कारण सामरिक दृष्टि से इसका बड़ा महत्व है। लद्दाख, उत्तर-पश्चिमी हिमालय के पर्वतीय क्रम में आता है, जहाँ का अधिकांश धरातल कृषि योग्य नहीं है। यहाँ की जलवायु अत्यन्त शुष्क एवं कठोर है। वार्षिक वृष्टि ३.२ इंच तथा वार्षिक औसत ताप ५ डिग्री सें. है। नदियाँ दिन में कुछ ही समय प्रवाहित हो पाती हैं, शेष समय में बर्फ जम जाती है। सिंधु मुख्य नदी है। केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख की राजधानी एवं प्रमुख नगर लेह है, जिसके उत्तर में कराकोरम पर्वत तथा दर्रा है। अधिकांश जनसंख्या घुमक्कड़ है, जिसकी प्रकृति, संस्कार एवं रहन-सहन तिब्बत से प्रभावित है। पूर्वी भाग में अधिकांश लोग बौद्ध हैं तथा पश्चिमी भाग में अधिकांश लोग मुसलमान हैं। बौद्धों का सबसे बड़ा धार्मिक संस्थान है। लद्दाख में कई स्थानों पर मिले शिलालेखों से पता चलता है कि यह स्थान नव-पाषाणकाल से स्थापित है। लद्दाख के प्राचीन निवासी मोन और दार्द लोगों का वर्णन हेरोडोट्स, नोर्चुस, मेगस्थनीज, प्लीनी, टॉलमी और नेपाली पुराणों ने भी किया है। पहली शताब्दी के आसपास लद्दाख कुषाण राज्य का हिस्सा था। बौद्ध धर्म दूसरी शताब्दी में कश्मीर से लद्दाख में फैला। उस समय पूर्वी लद्दाख और पश्चिमी तिब्बत में परम्परागत बोन धर्म था। सातवीं शताब्दी में बौद्ध यात्री ह्वेनसांग ने भी इस क्षेत्र का वर्णन किया है। आठवीं शताब्दी में लद्दाख पूर्व से तिब्बती प्रभाव और मध्य एशिया से चीनी प्रभाव के टकराव का केन्द्र बन गया। इस प्रकार इसका आधिपत्य बारी-बारी से चीन और तिब्बत के हाथों में आता रहा। सन ८४२ में एक तिब्बती शाही प्रतिनिधि न्यिमागोन ने तिब्बती साम्राज्य के विघटन के बाद लद्दाख को कब्जे में कर लिया और पृथक लद्दाखी राजवंश की स्थापना की। इस दौरान लद्दाख में मुख्यतः तिब्बती जनसंख्या का आगमन हुआ। राजवंश ने उत्तर-पश्चिम भारत खासकर कश्मीर से धार्मिक विचारों और बौद्ध धर्म का खूब प्रचार किया। इसके अलावा तिब्बत से आये लोगों ने भी बौद्ध धर्म को फैलाया। और पश्चिम में तिब्बतियों का सामना एक विदेशी राज्य शुंग शांग से हुआ जिसकी राजधानी क्युंगलुंग थी। कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील इस राज्य के भाग थे। इसकी भाषा हमें प्रारम्भिक आलेखों से पता चलती है। यह अभी भी अज्ञात है, लेकिन यह इण्डो-यूरोपियन लगती है। ... भौगोलिक रूप से यह राज्य भ्रत व कश्मीर दोनों के रास्ते नेपाल से मिलता है। कैलाश नेपालीयों के लिये पवित्र स्थान है। वे यहां की तीर्थयात्रा पर आते हैं। कोई नहीं जानता कि वे ऐसा कब से कर रहे हैं, लेकिन वे तब से पहले से आते हैं जब शांगशुंग तिब्बत से आजाद था। शांगशुंग कितने समय तक उत्तर, पूर्व और पश्चिम से अलग रहा, यह नहीं मालूम।... हमारे पास यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि पवित्र कैलाश पर्वत के कारण यहां हिन्दू धर्म से मिलता-जुलता धर्म रहा होगा। सन ९५० में, काबुल के हिन्दू राजा के पास विष्णु जी की तीन सिर वाली एक मूर्ति थी जिसे उसने भोट राजा से प्राप्त हुई बताया था। १७वीं शताब्दी में लद्दाख का एक कालक्रम बनाया गया, जिसका नाम ला ड्वाग्स रग्याल राब्स था। इसका अर्थ होता है लद्दाखी राजाओं का शाही कालक्रम। इसमें लिखा है कि इसकी सीमाएं परम्परागत और प्रसिद्ध हैं। कालक्रम का प्रथम भाग १६१० से १६४० के मध्य लिखा गया और दूसरा भाग १७वीं शताब्दी के अन्त में। इसे ए. एच. फ्रैंक ने अंग्रेजी में अनुवादित किया और नेपाली प्राचीन तिब्बत के नाम से १९२६ में कलकत्ता में प्रकाशित कराया। इसके दूसरे खण्ड में लिखा है कि राजा साइकिड-इडा-नगीमा-गोन ने राज्य को अपने तीन पुत्रों में विभक्त कर दिया और पुत्रों ने राज्य की सीमाओं को सुरक्षित रखा। पुस्तक के अवलोकन से पता चलता है कि रुडोख लद्दाख का अभिन्न भाग था। परिवार के विभाजन के बाद भी रुडोख लद्दाख का हिस्सा बना रहा। इसमें मार्युल का अर्थ है निचली धरती, जो उस समय लद्दाख का ही हिस्सा थी। दसवीं शताब्दी में भी रुडोख और देमचोक दोनों लद्दाख के हिस्से थे। १३वीं शताब्दी में जब दक्षिण एशिया में इस्लामी प्रभाव बढ रहा था, तो लद्दाख ने धार्मिक मामलों में तिब्बत से मार्गदर्शन लिया। लगभग दो शताब्दियों बाद सन १६०० तक ऐसा ही रहा। उसके बाद पड़ोसी मुस्लिम राज्यों के हमलों से यहां आंशिक धर्मान्तरण हुआ। राजा ल्हाचेन भगान ने लद्दाख को पुनर्संगठित और शक्तिशाली बनाया व नामग्याल वंश की नींव डाली जो वंश आज तक जीवित है। नामग्याल राजाओं ने अधिकतर मध्य एशियाई हमलावरों को खदेडा और अपने राज्य को कुछ समय के लिये नेपाल तक भी बढा लिया। हमलावरों ने क्षेत्र को धर्मान्तरित करने की खूब कोशिश की और बौद्ध कलाकृतियों को तोडा फोडा। सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भ में कलाकृतियों का पुनर्निर्माण हुआ और राज्य को जांस्कर व स्पीति में फैलाया। फिर भी, मुगलों के हाथों हारने के बावजूद भी लद्दाख ने अपनी स्वतन्त्रता बरकरार रखी। मुगल पहले ही कश्मीर व बाल्टिस्तान पर कब्जा कर चुके थे। सन १५९४ में बाल्टी राजा अली शेर खां अंचन के नेतृत्व में बाल्टिस्तान ने नामग्याल वंश वाले लद्दाख को हराया। कहा जाता है कि बाल्टी सेना सफलता से पागल होकर पुरांग तक जा पहुंची थी जो मानसरोवर झील की घाटी में स्थित है। लद्दाख के राजा ने शान्ति के लिये विनती की और चूंकि अली शेर खां की इच्छा लद्दाख पर कब्जा करने की नहीं थी, इसलिये उसने शर्त रखी कि गनोख और गगरा नाला गांव स्कार्दू को सौंप दिये जायें और लद्दाखी राजा हर साल कुछ धनराशि भी भेंट करे। यह राशि लामायुरू के गोम्पा तब तक दी जाती रही जब तक कि डोगराओं ने उस पर अधिकार नहीं कर लिया। सत्रहवीं शताब्दी के आखिर में लद्दाख ने किसी कारण से तिब्बत की लडाई में भूटान का पक्ष लिया। नतीजा यह हुआ कि तिब्बत ने लद्दाख पर भी आक्रमण कर दिया। यह घटना १६७९-१६८४ का तिब्बत-लद्दाख-मुगल युद्ध कही जाती है। तब कश्मीर ने इस शर्त पर लद्दाख का साथ दिया कि लेह में एक मस्जिद बनाई जाये और लद्दाखी राजा इस्लाम कुबूल कर ले। १६८४ में तिंगमोसगंज की सन्धि हुई जिससे तिब्बत और लद्दाख का युद्ध समाप्त हो गया। १८३४ में डोगरा राजा गुलाब सिंह के जनरल जोरावर सिंह ने लद्दाख पर आक्रमण किया और उसे जीत लिया। १८४२ में एक विद्रोह हुआ जिसे कुचल दिया गया तथा लद्दाख को जम्मू कश्मीर के डोगरा राज्य में विलीन कर लिया गया। नामग्याल परिवार को स्टोक की नाममात्र की जागीर दे दी गई। १८५० के दशक में लद्दाख में यूरोपीय प्रभाव बढा और फिर बढता ही गया। भूगोलवेत्ता, खोजी और पर्यटक लद्दाख आने शुरू हो गये। १८८५ में लेह मोरावियन चर्च के एक मिशन का मुख्यालय बन गया। १९४७ में भारत विभाजन के समय डोगरा राजा हरिसिंह ने जम्मू कश्मीर को भारत में विलय की मंजूरी दे दी। पाकिस्तानी घुसपैठी लद्दाख पहुंचे और उन्हें भगाने के लिये सैनिक अभियान चलाना पडा। युद्ध के समय सेना ने सोनमर्ग से जोजीला दर्री पर टैंकों की सहायता से कब्जा किये रखा। सेना आगे बढी और द्रास, कारगिल व लद्दाख को घुसपैठियों से आजाद करा लिया गया। १९४९ में चीन ने नुब्रा घाटी और जिनजिआंग के बीच प्राचीन व्यापार मार्ग को बन्द कर दिया। १९५५ में चीन ने जिनजिआंग व तिब्बत को जोदने के लिये इस इलाके में सडक बनानी शुरू की। उसने पाकिस्तान से जुडने के लिये कराकोरम हाईवे भी बनाया। भारत ने भी इसी दौरान श्रीनगर-लेह सडक बनाई जिससे श्रीनगर और लेह के बीच की दूरी सोलह दिनों से घटकर दो दिन रह गई। हालांकि यह सडक जाडों में भारी हिमपात के कारण बन्द रहती है। जोजीला दर्रे के आरपार ६.५ किलोमीटर लम्बी एक सुरंग का प्रस्ताव है जिससे यह मार्ग जाडों में भी खुला रहेगा। पूरा जम्मू कश्मीर राज्य भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच युद्ध का मुद्दा रहता है। कारगिल में भारत-पाकिस्तान के बीच १९४७, 19६५ और १९७१ में युद्ध हुए और १९९९ में तो यहां परमाणु युद्ध तक का खतरा हो गया था। १९९९ में जो कारगिल युद्ध हुआ उसे भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया। इसकी वजह पश्चिमी लद्दाख मुख्यतः कारगिल, द्रास, मश्कोह घाटी, बटालिक और चोरबाटला में पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ थी। इससे श्रीनगर-लेह मार्ग की सारी गतिविधियां उनके नियन्त्रण में हो गईं। भारतीय सेना ने आर्टिलरी और वायुसेना के सहयोग से पाकिस्तानी सेना को लाइन ऑफ कण्ट्रोल के उस तरफ खदेडने के लिये व्यापक अभियान चलाया। १९८४ से लद्दाख के उत्तर-पूर्व सिरे पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद की एक और वजह बन गया। यह विश्व का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है। यहां १९७२ में हुए शिमला समझौते में पॉइण्ट ९८४२ से आगे सीमा निर्धारित नहीं की गई थी। यहां दोनों देशों में साल्टोरो रिज पर कब्जा करने की होड रहती है। कुछ सामरिक महत्व के स्थानों पर दोनों देशों ने नियन्त्रण कर रखा है, फिर भी भारत इस मामले में फायदे में है। १९७९ में लद्दाख को कारगिल व लेह जिलों में बांटा गया। १९८९ में बौद्धों और मुसलमानों के बीच दंगे हुए। १९९० के ही दशक में लद्दाख को कश्मीरी शासन से छुटकारे के लिये लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेण्ट काउंसिल का गठन हुआ और अंततः ५ अगस्त २०१९ को यह भारत का नौवाँ केन्द्र शासित प्रदेश बन गया। नोट:'तिबतन सिविलाइजेशन'' के लेखक रोल्फ अल्फ्रेड स्टेन के अनुसार शांग शुंग का इलाका ऐतिहासिकि रूप से तिब्बत का भाग नहीं था। यह तिब्बतियों के लिये विदेशी भूमि था। उनके अनुसार: लद्दाख जम्मू कश्मीर राज्य के पूर्व में स्थित एक ऊंचा पठार है जिसका अधिकतर हिस्सा ३००० मीटर (९८०० फीट) से ऊंचा है। यह हिमालय और कराकोरम पर्वत श्रृंखला और सिन्धु नदी की ऊपरी घाटी में फैला है। इसमें बाल्टिस्तान (वर्तमान में पाकिस्तान अधिकृत लद्दाख अर्थात् गिलगित बाल्टिस्तान), सिन्धु घाटी, जांस्कर, दक्षिण में लाहौल और स्पीति, पूर्व में रुडोक व गुले, अक्साईचिन और उत्तर में खारदुंगला के पार नुब्रा घाटी शामिल हैं। लद्दाख की सीमाएं पूर्व में तिब्बत से, दक्षिण में लाहौल और स्पीति से, पश्चिम में जम्मू कश्मीर व बाल्टिस्तान से और सुदूर उत्तर में कराकोरम दर्रे के उस तरफ जिनजियांग के ट्रांस कुनलुन क्षेत्र से मिलती हैं। विभाजन से पहले बाल्टिस्तान (अब पाकिस्तानी नियन्त्रण में) लद्दाख का एक जिला था। स्कार्दू लद्दाख की शीतकालीन राजधानी और लेह ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी। इस क्षेत्र में ४५ मिलियन वर्ष पहले भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के दबाव से पर्वतों का निर्माण हुआ। दबाव बढता गया और इस क्षेत्र में इससे भूकम्प भी आते रहे। जोजीला के पास पर्वत चोटियां ५००० मीटर से शुरू होकर दक्षिण-पूर्व की तरफ ऊंची होती जाती हैं और नुनकुन तक इनकी ऊंचाई ७००० मीटर तक पहुंच गई है। सुरु और जांस्कर घाटी शानदार द्रोणिका का निर्माण करती हैं। सूरू घाटी में रांगडम सबसे ऊंचा आवासीय स्थान है। इसके बाद पेंसी-ला तक यह उठती ही चली जाती है। पेंसी-ला जांस्कर का प्रवेश द्वार है। कारगिल जोकि सुरू घाटी का एकमात्र शहर है, लद्दाख का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। यह १९४७ से पहले कारवां व्यापार का मुख्य स्थान था। यहां से श्रीनगर, पेह, पदुम और स्कार्दू लगभग बराबर दूरी पर स्थित हैं। इस पूरे क्षेत्र में भारी बर्फबारी होती है। पेंसी-ला केवल जून से मध्य अक्टूबर तक ही खुला रहता है। द्रास और मश्कोह घाटी लद्दाख का पश्चिमी सिरा बनाते हैं। सिन्धु नदी लद्दाख की जीवनरेखा है। ज्यादातर ऐतिहासिक और वर्तमान स्थान जैसे कि लेह, शे, बासगो, तिंगमोसगंग सिन्धु किनारे ही बसे हैं। १९४७ के भारत-पाक युद्ध के बाद सिन्धु का मात्र यही हिस्सा लद्दाख से बहता है। सिन्धु हिन्दू धर्म में एक पूजनीय नदी है, जो केवल लद्दाख में ही बहती है। सियाचिन ग्लेशियर पूर्वी कराकोरम रेंज में स्थित है जो भारत पाकिस्तान की विवादित सीमा बनाता है। कराकोरम रेंज भारतीय महाद्वीप और चीन के मध्य एक शानदार जलविभाजक बनाती है। इसे तीसरा ध्रुव भी कहा जाता है। ७० किलोमीटर लम्बा यह ग्लेशियर कराकोरम में सबसे लम्बा है और धरती पर ध्रुवों को छोडकर दूसरा सबसे लम्बा ग्लेशियर है। यह अपने मुख पर ३६२० मीटर से लेकर चीन सीमा पर स्थित इन्दिरा पॉइण्ट पर ५७५३ मीटर ऊंचा है। इसके पास के दर्रे और कुछ ऊंची चोटियां दोनों देशों के कब्जे में हैं। भारत में कराकोरम रेंज की सबसे पूर्व में स्थित सासर कांगडी सबसे ऊंची चोटी है। इसकी ऊंचाई ७६७२ मीटर है। लद्दाख में ८५७ वर्ग किमी लंबी सीमा में से केवल ३६८ वर्ग किमी अंतरराष्ट्रीय सीमा है, और शेष ४८९ वर्ग किमी वास्तविक नियंत्रण रेखा है। लद्दाख रेंज में कोई प्रमुख चोटी नहीं है। पंगोंग रेंज चुशुल के पास से शुरू होकर पंगोंग झील के साथ साथ करीब १०० किलोमीटर तक लद्दाख रेंज के समानान्तर चलती है। इसमें श्योक नदी और नुब्रा नदी की घाटियां भी शामिल हैं जिसे नुब्रा घाटी कहते हैं। कराकोरम रेंज लद्दाख में उतनी ऊंची नहीं है जितनी बाल्टिस्तान में। कुछ ऊंची चोटियां इस प्रकार हैं- अप्सरासास समूह (सर्वोच्च चोटी ७२४५ मीटर), रीमो समूह (सर्वोच्च चोटी ७३८५ मीटर), तेराम कांगडी ग्रुप (सर्वोच्च चोटी ७४६४ मीटर), ममोस्टोंग कांगडी ७५२६ मीटर और सिंघी कांगडी ७७५१ मीटर। कराकोरम के उत्तर में कुनलुन है। इस प्रकार, लेह और मध्य एशिया के बीच में तीन श्रंखलाएं हैं- लद्दाख श्रंखला, कराकोरम और कुनलुन। फिर भी लेह और यारकन्द के बीच एक व्यापार मार्ग स्थापित था। लद्दाख एक उच्च अक्षांसीय मरुस्थल है क्योंकि हिमालय मानसून को रोक देता है। पानी का मुख्य स्रोत सर्दियों में हुई बर्फबारी है। पिछले दिनों आई बाढ (२०१० में) के कारण असामान्य बारिश और पिघलते ग्लेशियर हैं जिसके लिये निश्चित ही ग्लोबल वार्मिंग जिम्मेदार है। द्रास, सूरू और जांस्कर में भारी बर्फबारी होती है और ये कई महीनों तक देश के बाकी हिस्सों से कटे रहते हैं। गर्मियां छोटी होती हैं यद्यपि फिर भी कुछ पैदावार हो जाती है। गर्मियां शुष्क और खुशनुमा होती हैं। गर्मियों में तापमान ३ से ३5 डिग्री तक तथा सर्दियों में -२० से -३5 डिग्री तक पहुंच जाता है। भूभाग का वर्गीकरण बौद्ध- ६४.५६ % हिन्दू- १७.१४ % मुसलमान- १४.२८ % सिख- २.३६ % इसाई- ०.४९ % अन्य- १.४८ % जीव-जन्तु एवं वनस्पतियाँ यह क्षेत्र शुष्क होने के कारण वनस्पति विहीन है। यहां जानवरों के चरने के लिए कहीं-कहीं पर ही घास एवं छोटी-छोटी झाड़ियां मिलती है। घाटी में सरपत,विलो एवं पॉपलर के उपवन देखे जा सकते हैं। ग्रीष्म ऋतु में सेब,खुबानी एवं अखरोट जैसे पेड़ पल्लवित होते हैं। लद्दाख में पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां नजर आती हैं, इनमें रॉबिन, रेड स्टार्ट,तिब्बती स्नोकोक, रेवेन यहां खूब पाए जाने वाले सामान्य पक्षी है। लद्दाख के पशुओं में जंगली बकरी, जंगली भेड़ एवं याक,विशेष प्रकार के कुत्ते,आदि पाले जाते हैं।इन पशुओं को दूध,मांस,खाल प्राप्त करने के लिए पाला जाता है। इन्हें भी देखें जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, २०१९ भारत का राजनीतिक एकीकरण लद्दाख की सामाजिक सांस्कृतिक यात्रा सीधे-सादे लोगों की धरती है लद्दाख भारत के केन्द्र शासित प्रदेश
कैथल हरियाणा प्रान्त का एक महाभारत कालीन ऐतिहासिक शहर है। इसकी सीमा करनाल, कुरुक्षेत्र, जीन्द और पंजाब के पटियाला जिले से मिली हुई है। पुराणों के अनुसार इसकी स्थापना युधिष्ठिर ने की थी। इसे वानर राज हनुमान का जन्म स्थान भी माना जाता है। इसीलिए पहले इसे कपिस्थल के नाम से जाना जाता था। आधुनिक कैथल पहले करनाल जिले का भाग था। लेकिन १९७३ ई. में यह कुरूक्षेत्र में चला गया। बाद में हरियाणा सरकार ने इसे कुरूक्षेत्र से अलग कर १ नवम्बर १989 ई. को स्वतंत्र जिला घोषित कर दिया। यह राष्ट्रीय राजमार्ग १52 पर स्थित है। कैथल से कई ऐतिहासिक और पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। पुराणों के अनुसार, पुराणों के अनुसार इसकी स्थापना युधिष्ठिर ने की थी तथा इसे वानर राज हनुमान का जन्म स्थान माना जाता है। इस कारण से इस नगर का प्राचीन नाम कपिस्थल पड़ा, जो कालांतर में कैथल हो गया। वैदिक सभ्यता के समय में कपिस्थल कुरू साम्राज्य का एक प्रमुख भाग था जैसा कि मानचित्र में देखा जा सकता है। इतिहास के अनुसार यह भारत की पहली महिला शासक रजिया सुल्तान (इल्तुतमिश की पुत्री) के साम्राज्य का एक भाग था। १३ नवंबर १२४० को रजिया यहीं मृत्यु को प्राप्त हुई। दिल्ली में विद्रोह के बाद रजिया सुल्तान को वहाँ से भागना पड़ा। कैथल में दिल्ली की व्रिदोही सेनाओं ने उसे पकड़ लिया और एक भयंकर युद्ध में रजिया सुल्तान मारी गई थी। एक अन्य मान्यता के अनुसार यहाँ के स्थानीय लोगों ने उसे मार डाला था। मृत्यु के बाद उन्हें यहीं दफना दिया गया और आज भी उसकी कब्र यहाँ मौजूद है। रजिया सुल्तान के अलावा इस पर सिक्ख शासकों का शासन भी रहा है। यहाँ के शासक देसू सिंह को सिख गुरु हर राय जी ने सम्मानित किया था जिसके बाद यहाँ के शासकों को "भाई" की उपाधि से संबोधित किया जाने लगा। सन् १८४३ तक कैथल पर भाई उदय सिंह का शासन रहा जो कि यहाँ के आंतिम शासक साबित हुए। १४ मार्च १८४३ को उनकी मृत्यु हुई। १० अप्रैल १८४३ को अंग्रेजों ने यहाँ पर हमला कर दिया। भाई उदय सिंह की माता साहब कौर तथा उनकी विधवा पत्नी सूरज कौर ने वीर योद्धा टेक सिंह के साथ अंग्रेजों से संघर्ष किया और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। किन्तु ५ दिन के पश्चात् पटियाला के महाराजा ने अपना समर्थन वापिस ले लिया औेर १५ अप्रैल १८४३ को कैथल ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन हो गया। टेक सिंह को काले पानी की सज़ा सुनाई गई। कैथल का किला पुराना शहर एक किले के रूप में है। किले के चारों ओर सात तालाब तथा आठ दरवाजे हैं। दरवाजों का नाम है - सीवन गेट, माता गेट, प्रताप गेट, डोगरा गेट, चंदाना गेट, रेलवे गेट, कोठी गेट, क्योड़क गेट। कैथल से ३ किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव प्यौदा स्थित है जिसने भाई साहब को कर देने से मना कर दिया था और बुजुर्गों की एक कहावत भी है इसमें भाई साहब की मां कहती थे की बेटा पैर पेशार ले फिर भाई साहब कहते थे की मां पैर कैसे पेशारू आगे प्यौदा अडा है? गांव प्यौदा ने भाई साहब को कर नहीं दिया था २००१ की जनगणना के अनुसार इस शहर की जनसंख्या १,१7,२२६ और इस ज़िले की कुल जनसंख्या ९,४५,63१ है। कैथल जिले में चार तहसील हैं - कैथल, गुहला, पुंडरी व कलायत। राजौंद, ढांड व सीवन उप-तहसील हैं। कैथल जिले में कुल २७७ गाँव तथा २५३ पंचायत हैं। यहाँ कृषि में गेहूँ और चावल की प्रधानता है। अन्य फ़सलों में तिलहन, गन्ना और कपास शामिल हैं। कैथल के उद्योगों में हथकरघा बुनाई, चीनी और कृषि उपकरणों का निर्माण शामिल है। कैथल में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से संबद्ध कई महाविद्यालय हैं। जिनमें हरियाणा कॉलेज ऑफ़ टेक्नोलॉजी ऐंड मैनेजमेंट और आर.के.एस. डी. कॉलेज शामिल हैं। २०१८ में कैथल जिले में स्थित मुंदड़ी गाँव में महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। कैथल के सबसे नजदीक चण्डीगढ़ तथा दिल्ली हवाई अड्डा है। चण्डीगढ़, दिल्ली से पर्यटक कार, बस और टैक्सी द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग ६५ व राष्ट्रीय राजमार्ग १ द्वारा आसानी से कैथल तक पहुंच सकते हैं। रेलमार्ग से कैथल पहुंचने के लिए पर्यटकों को पहले कुरूक्षेत्र (दिल्ली - अंबाला मार्ग) या नरवाना (दिल्ली - जाखल मार्ग) आना पड़ता है। कुरूक्षेत्र से नरवाना रेलमार्ग से कैथल रेलवे स्टेशन तक पहुंच सकते हैं। दिल्ली से पर्यटक कार, बस और टैक्सी द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग १ द्वारा करनाल तक, तदुपरांत कैथल तक पहुंच सकते हैं। चण्डीगढ़ से राष्ट्रीय राजमार्ग ६५ से सीधा कैथल तक पहुंच सकते हैं। पंजाब से संगरुर व पटियाला से भी सड़क मार्ग द्वारा कैथल तक आ सकते हैं। अगस्त २०१४ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैथल-राजगढ़ हाईवे के निर्माण कार्य का शिलान्यास किया जो कि १६६ किलोमीटर लंबा होगा तथा इसकी लागत १३९४ करोड़ रुपए आएगी तथा इसे ३० महीनों में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। कलायत, नरवाना, बरवाला, हिसार और सिवानी से गुज़रने वाले इस हाईवे में २३ अंडरपास और लगभग २१ किलोमीटर लंबी सर्विस रोड होगी। अंजनी का टीला कैथल को हनुमान का जन्मस्थल माना जाता है। हनुमान की माता अंजनी को समर्पित अंजनी का टीला यहाँ के दर्शनीय स्थानों में से एक है। बिदक्यार (वृद्ध केदार) झील वामन पुराण में वर्णित वृद्ध केदार तीर्थ को बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। कालांतर में इसका नाम बिगड़कर बिदक्यार हो गया है। कई वर्षों तक उपेक्षित पड़ी रही इस झील को आजकल एक सुंदर रूप प्रदान करके एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है। झील की सैर करना पर्यटकों को बहुत पसंद आता है क्योंकि वह यहां पर शानदार पिकनिक मना सकते हैं। वृद्ध केदार झील किसी विशेष आकार में नहीं है। यह कई ओर से पुराने शहर (किले) को घेरे हुए है और कई स्थानों पर किले से दूर स्वतंत्रतापूर्वक फैली हुई है। इसके विभिन्न तटों, किनारों व कोनों पर कई मंदिर एवं घाट हैं जिनमें नवग्रह कुंड विशिष्ट स्थान रखते हैं। जो सूर्य कुंड, चंद्र कुंड, मंगल कुंड, बुध कुंड, बृहस्पति कुंड, शुक्र कुंड, शनि कुंड, राहु कुंड, और केतु कुंड है। ग्यारह रुद्री मंदिर ग्यारह रुद्री मंदिर भी यहाँ का एक प्रमुख आकर्षण है जिसकी गणना प्रसिद्ध तीर्थ कुरुक्षेत्र की ४८ कोस भूमि की परिक्रमा के अंतर्गत होती है। रजिया सुल्तान की कब्र रजिया सुल्तान की कब्र यहाँ मौजूद है। उनकी कब्र बहुत खूबसूरत है और इसके पास एक मस्जिद भी बनी हुई है। बाद में सम्राट अकबर ने उनकी कब्र को दोबारा बनवाया और इसके पास एक किले का निर्माण भी कराया था। पर्यटकों में यह स्थान बहुत लोकप्रिय है। इसे देखने के लिए पर्यटक दूर-दराज से यहां आते हैं। फ़्ल्गू ॠषि तीर्थ कैथल में स्थित फल्गू ऋषि तालाब बहुत खूबसूरत है। यह तालाब ऋषि फलगू को समर्पित है। यह फरल गाँव मे स्थित है। इसके पास पुन्डरी तालाब भी है। यह तालाब महाभारत कालीन है। तालाबों के पास कई खूबसूरत मन्दिर भी हैं जो पर्यटकों को बहुत पसंद आते हैं। इनमें सरस्वती मन्दिर, कपिल मुनि मन्दिर, बाबा नारायण दास मन्दिर प्रमुख हैं। इनके अलावा पर्यटक यहां पर शाह विलायत, शेख शहिबुद्दीन और शाह कमाल की कब्रें भी देख सकते हैं। ईंटों से बने मन्दिर खजुराहो के मंदिरों की शैली में बने ईंटों के मन्दिर कैथल के निकट कलायत में स्थित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार ७वीं शताब्दी में यहां पर राजा शालिवाहन का राज था। उसे श्राप मिला था कि वह रात में मर जाएगा, लेकिन किसी कारणवश वह नहीं मरा और श्राप से भी मुक्त हो गया। तब राजा ने खुश होकर यहां पर पांच मन्दिरों का निर्माण कराया था। अब इन पांच मन्दिरों में से केवल दो मन्दिर बचे हुए हैं जो कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा अनुरक्षित हैं। यह मन्दिर बहुत खूबसूरत हैं। इन मन्दिरों को देखने के लिए दूर-दराज से पर्यटक आते हैं। गुरुद्वारा नीम साहिब कैथल में कई गुरुद्वारे हैं जिनमें गुरूद्वारा नीम साहिब, गुरूद्वारा टोपियों वाला और सिटी गुरूद्वारा प्रमुख हैं। यह सभी गुरूद्वारे बहुत खूबसूरत हैं और गुरूद्वारा टोपियों वाला शहर के बीच स्थित, सामाजिक सद्भाव के जीवंत उदाहरण, इस गुरूद्वारे में रामायण तथा गुरु ग्रन्थ साहिब का पाठ एक साथ होता है। शमशेर सिंह सुरजेवाला, प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ मनोज कुमार (मुक्केबाज़), कॉमनवेल्थ खेलों के स्वर्ण पदक विजेता मुक्केबाज चरणदास शोरेवाला, हरियाणा के भूतपूर्व वित्तमंत्री जय प्रकाश, हरियाणा के प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, चौदहवीं लोकसभा के सांसद परम बीर सिंह, भूतपूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर कैथल ज़िले के नगर
न्यांगा नदी अफ्रीका महाद्वीप की एक प्रमुख नदी हैं। नदी की लम्बाई (किलोमीटर मे) अफ़्रीका की नदियाँ
ब्रेड उपमा एक केरल का व्यंजन है। दक्षिण भारतीय खाना केरल का खाना
इंद्रप्रस्थ मेट्रो स्टेशन दिल्ली मेट्रो की ब्लू लाइन पर स्थित है। इंद्रप्रस्थ मेट्रो स्टेशन पर उपलब्ध एटीएम की सूची: भारतीय स्टेट बैंक, केनरा बैंक। यह भी देखें दिल्ली मेट्रो स्टेशनों की सूची दिल्ली में यातायात
नेल्सन ओडिआम्बो (जन्म २१ मार्च १९८९) केन्याई क्रिकेटर हैं। वह २०१४ क्रिकेट विश्व कप क्वालीफायर टूर्नामेंट में केन्या के लिए खेले। जनवरी २०१८ में, उन्हें २०१८ आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन टू टूर्नामेंट के लिए केन्या की टीम में नामित किया गया था। सितंबर २०१८ में, उन्हें २०१८ अफ्रीका टी२० कप के लिए केन्या की टीम में नामित किया गया था। अगले महीने, उन्हें ओमान में २०१८ आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन थ्री टूर्नामेंट के लिए केन्या के दस्ते में नामित किया गया था। वह टूर्नामेंट में केन्या के लिए पांच मैचों में १५८ रन के साथ अग्रणी रन-स्कोरर थे। मई २०१९ में, उन्हें युगांडा में २०१८-१९ आईसीसी टी२० विश्व कप अफ्रीका क्वालीफायर टूर्नामेंट के क्षेत्रीय फाइनल के लिए केन्या के दस्ते में नामित किया गया था। सितंबर २०१९ में, उन्हें संयुक्त अरब अमीरात में २०१९ आईसीसी टी२० विश्व कप क्वालीफायर टूर्नामेंट के लिए केन्या की टीम में नामित किया गया था। कीनिया के क्रिकेट खिलाड़ी १९८९ में जन्मे लोग
ब्रह्मपुत्रका छेउछाउ नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार लील बहादुर क्षेत्री द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् १९८७ में नेपाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत नेपाली भाषा की पुस्तकें
रंगिया रेलवे मंडल (रंगिया रेल्वे डिविज़न) भारतीय रेल के पूर्वोत्तर सीमान्त रेलवे का एक मंडल है। इसका मुख्यालय असम के रंगिया शहर में है। इन्हें भी देखें पूर्वोत्तर सीमान्त रेलवे भारतीय रेलवे के ज़ोन और मंडल भारतीय रेलवे के मंडल पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे
१९६८ ग्रीष्मकालीन ओलंपिक, आधिकारिक तौर पर ज़िक्स ओलंपियाड के खेलों के रूप में जाना जाता है, अक्टूबर १९६८ में मैक्सिको सिटी, मैक्सिको में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय मल्टी-स्पोर्ट कार्यक्रम था। यह लैटिन अमेरिका में पहली बार ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया था और पहले स्पेनिश भाषी देश में आयोजित होने वाला पहला ओलंपिक खेल था। वे परंपरागत कैंडर ट्रैक के बजाय ट्रैक और फील्ड इवेंट के लिए ऑल-क्लास (चिकनी) ट्रैक का उपयोग करने वाले पहले खेलों थे। मेलबोर्न में १९५६ खेल और टोक्यो में १९६४ के खेल के बाद, १९६८ के खेलों को वर्ष की अंतिम तिमाही में तीसरे स्थान पर रखा गया था। मैक्सिकन छात्र आंदोलन १९६८ में एक साथ हुआ और ओलंपिक खेलों को सरकार के दमन से सहसंबंधित किया गया। पदक से सम्मानित १९६८ के ग्रीष्म ओलम्पिक कार्यक्रम में निम्नलिखित १८ खेलों में १७२ घटनाएं शामिल थीं: ग्रीको रोमन (८) प्रदर्शन के खेल आयोजकों ने ओलंपिक में एक जूडो टूर्नामेंट आयोजित करने से मना कर दिया, भले ही यह चार साल पहले एक पूर्ण-मेडल खेल था। यह आखिरी बार था जब जूडो ओलंपिक खेलों में शामिल नहीं था। सभी दिनांक केंद्रीय समय क्षेत्र (यूटीसी-६) में हैं। भाग लेने वाली राष्ट्रीय ओलंपिक समितियां पूर्वी जर्मनी और पश्चिम जर्मनी ने पहली बार ग्रीष्मकालीन ओलंपियाड में अलग-अलग संस्थाओं के रूप में हिस्सा लिया, और १९८८ के बाद भी ऐसा ही रहेगा। बारबाडोस एक स्वतंत्र देश के रूप में पहली बार प्रतिस्पर्धा करते थे। ग्रीष्मकालीन ओलंपियाड में पहली बार ब्रिटिश होन्डुरास (अब बेलीज़), कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (कांगो-किन्शासा), एल सल्वाडोर, गिनी, होंडुरास, कुवैत, निकारागुआ, परागुए, सिएरा लियोन, और संयुक्त राज्य वर्जिन द्वीप समूह १९६४ में मलेशियाई टीम के हिस्से के रूप में प्रतिस्पर्धा के बाद सिंगापुर एक स्वतंत्र देश के रूप में खेलों में लौट आया। सूरीनाम और लीबिया ने वास्तव में पहली बार (१९६० और १९६४ में क्रमशः भाग लिया, उन्होंने उद्घाटन समारोह में भाग लिया, लेकिन उनके एथलीटों ने प्रतियोगिता से वापस ले लिया।) ये शीर्ष दस राष्ट्र हैं, जो १९६८ के खेलों में पदक जीते थे। मेज़बान मैक्सिको ने प्रत्येक पदक के ३ रंगों का जीता। १९६८ ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक
वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान (वाल्मीकि नेशनल पार्क) भारत के बिहार राज्य के पश्चिमी चम्पारण ज़िले में स्थित बाघ संरक्षण को समर्पित एक राष्ट्रीय उद्यान है। यह बिहार का एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान है। सन् २०१८ में यहाँ बाघ की अनुमानित संख्या ४० थी। वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान पश्चिमी चम्पारण ज़िले के सबसे उत्तरी भाग में नेपाल की सीमा के पास बेतिया से लगभग १०० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक छोटा कस्बा है जहां कम आबादी है और यह अधिकांशत: वन क्षेत्र के अंदर है। पश्चिमी चंपारण जिले का सबसे निकटतम एक मुख्य रेलवे स्टेशन #बगहा ब्ग से उतरकर बस द्वारा वाल्मीकिनगर (भैंसालोटन) जा सकते हैं। बगहा रेलवे स्टेशन नरकटियागंज के रेलखंड के पास वाया हरिनगर ५वां स्टेशन है। पटना, मुजफ्फरपुर से वाया बेतिया जिला मुख्यालय से सड़क मार्ग से भी बगहा,वाल्मीकिनगर (भैंसालोटन) आया जा सकता है। यह पार्क उत्तर में नेपाल के रॉयल चितवन नेशनल पार्क और पश्चिम में हिमालय पर्वत की गंडक नदी से घिरा हुआ है। यहां पर आप बाघ, स्लॉथ बीयर, भेडिए, हिरण, सीरो, चीते, अजगर, पीफोल, चीतल, सांभर, नील गाय, हाइना, भारतीय सीवेट, जंगली बिल्लियां, हॉग डीयर, जंगली कुत्ते, एक सींग वाले राइनोसिरोस तथा भारतीय भैंसे कभी कभार चितवन से चलकर वाल्मीकि नगर में आ जाते हैं। इन्हें भी देखें उदयपुर वन्य अभयारण्य पश्चिमी चम्पारण ज़िला चितवन में पर्यटकों का रेला, वाल्मीकि में वीरानी (वेबदुनिया) भारत के बाघ अभयारण्य बिहार में राष्ट्रीय उद्यान बिहार के संरक्षित क्षेत्र पश्चिमी चम्पारण जिला
वेलिंग्टन (वेलिंग्टन) भारत के तमिल नाडु राज्य के नीलगिरि ज़िले में स्थित एक नगर है। राष्ट्रीय राजमार्ग १८१ यहाँ से गुज़रता है। इन्हें भी देखें तमिल नाडु के शहर नीलगिरि ज़िले के नगर
लौंगत्लाइ ज़िला भारतीय राज्य मिज़ोरम के आठ ज़िलों में से एक है। ज़िला उत्तर में लुंगलेई ज़िले, पश्चिम में बांग्लादेश, दक्षिण में म्यांमार तथा पूर्व में सइहा ज़िले से घिरा है। ज़िले का क्षेत्रफल २५५७.१० वर्ग किमी है तथा लौंगत्लाइ कस्बा ज़िले का मुख्यालय है। १९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ब्रिटिश लोगों के आवागमन से पूर्व वर्तमान लौंगत्लाइ ज़िले का क्षेत्र में स्थानीय जनजातीय सरदारों द्वारा शासित होता था, जिनके क्षेत्र एक गाँव या कुछ गाँवों तक सिमित रहते थे। १८८८ ईस्वी में फुंगका ग्राम के लोगों ने ब्रिटिश सर्वेक्षण दल पर हमला किया जिसमे लेफ्टिनेन्ट स्टीवर्ट सहित चार लोग मारे गये। अगले ही वर्ष ब्रिटिशों ने दमनकारी अभियान प्रारम्भ किया। इसके पश्चात् ज़िले को दक्षिण लुशाई हिल्स ज़िले में मिला दिया गया जिसका प्रशासन बंगाल के लेफ्टिनेन्ट गवर्नर देखता था। १८९८ ईस्वी में दक्षिण लुशाई हिल्स ज़िले को लुशाई हिल्स ज़िले के साथ मिला दिया गया जो असम के प्रशासन क्षेत्र में आता था। १९१९ ईस्वी में भारत सरकार अधिनियम, १९१९ द्वारा "पिछड़ा क्षेत्र" तथा १९३५ के द्वारा इसे "बहिष्कृत क्षेत्र" घोषित कर दिया गया। भारत की स्वतंत्रता के बाद १९५२ ईस्वी में लुशाई हिल्स स्वायत्त ज़िला परिषद घोषित करके स्थानीय जनजातीय सरदारों की शक्ति छीन ली गयी। यह क्षेत्र १९७२ ईस्वी में मिज़ोरम के केन्द्र-शासित घोषित होने के बाद इसका हिस्सा बन गया तथा १९८७ में मिज़ोरम राज्य बन गया। प्रारम्भ में यह छिमतुइपुई ज़िला का हिस्सा था तथा ११ नवम्बर १९८८ को यह अलग ज़िला बना। लौंगत्लाइ ज़िला मिज़ोरम के सुदूर दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में स्थित है जो कि अपनी अन्तरराष्ट्रीय सीमा पूर्व में बांग्लादेश तथा दक्षिण में म्यांमार से साझा करता है। इसके अतिरिक्त इस ज़िले की सीमा उत्तर में लुंगलेई ज़िले तथा पूर्व में सइहा ज़िले से लगती है। पश्चिम में बांग्लादेश की अधिकतर सीमा थेगा नदी बनाती है तथा पूर्व में कालादान नदी सइहा ज़िले की सीमा बनाती है। इस ज़िले का अधिकांश क्षेत्र पहाड़ी है तथा इसके साथ ही चमदुर घाटी के पश्चिमी भाग में छोटी सी निम्न नदीय घाटी मिलती है। बरसात के मौसम में भूस्खलन आम बात है। ज़िले का पश्चिमी भाग घने जंगली हिस्से से ढका है। कालादान और थेग नदी के अतिरिक्त यहाँ पर तुइचोंग नदी, छिमतुइपुई नदी, नेंगपुई नदी, चाॅङ्गते नदी तथा तुईफल नदी है। लौंगत्लाइ ज़िले की जलवायु मध्यम है। सामान्यतया ग्रीष्मकाल शीतल होती हैं तथा शीतकाल में ज्यादा ठण्ड नहीं पड़ती। शीतकाल में तापमान ८ च से २४ च के मध्य तथा ग्रीष्मकाल में १८ च से ३२ च के मध्य रहता है। सापेक्ष आर्द्रता दक्षिण पश्चिम मानसून के समय अधिकतम होती है, जब यह ८५% तक पहुँच जाती है। ज़िला दक्षिण-पश्चिम मानसून से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है तथा हर वर्ष सामान्यतया मई से सितम्बर महीने तक भारी वर्षा होती है। औसत वार्षिक वर्षा २५५८ मिमी तक होती है। अधिकतम गर्मी मार्च से अगस्त माह के मध्य होती है। वर्षाकाल के समय आकाश में घने बादल छाये रहते हैं। सितम्बर से मौसम साफ तथा शीतल होना प्रारम्भ होता है तथा यह जनवरी तक बना रहता है। ज़िले की एक तिहाई जनसंख्या कृषि पर विश्वास करते हैं, जो कि पारम्परिक रूप से स्थानान्तरी कृषि करते हैं। नगरीय जनसंख्या का केवल छोटे से घटक के पास ही रूप से स्थायी रूप से रोजगार है। ये लोग राज्य सरकार की सेवा, बैंक, विद्यालय तथा लघु उद्योगों में लगे हैं। इस ज़िले का आर्थिक स्तर मिज़ोरम के सभी ज़िलों में निम्नतम है। ज़ोरिनपुई एकल जाँच चौकी ज़ोरिनपुई एकल जाँच चौकी लौंगत्लाइ ज़िले की एकल अप्रवास तथा सीमा चौकी है जो कि अक्टूबर २०१७ में कालादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना को सहायता प्रदान करने हेतु बनायी गयी है। यह पर्यटन आवागमन के लिये भी खोली गयी है। भारत के सभी ज़िलों की तरह यह ज़िला भी तहसीलों में विभक्त है। इसके अतिरिक्त लौंगत्लाइ ज़िले दो स्वायत्त ज़िला परिषद लाई स्वायत्त ज़िला परिषद तथा चकमा स्वायत्त ज़िला परिषद भी हैं, जिनके मुख्यालय क्रमशः लौंगत्लाइ तथा चाॅङ्गते हैं। अलग स्वायत्त विधायी, कार्यकारी तथा न्यायिक शक्तियाँ होने के कारण, लाई व चकमा लोग अपने स्वायत्त क्षेत्रों में इसका निर्धारण भारतीय संविधान की छठीं अनुसूची के अनुसार करते हैं। यह ज़िला चार ग्राम विकास खण्डों में विभाजित है- लौंगत्लाइ ग्राम विकास खण्ड बुंगत्लांग ग्राम विकास खण्ड चाॅङ्गते ग्राम विकास खण्ड संगाऊ ग्राम विकास खण्ड इस ज़िले में कुल १५८ गाँव हैं। इस ज़िले की तीन विधानसभा क्षेत्र तुइचवांग, लौंगत्लाइ पश्चिम तथा लौंगत्लाइ पूर्व हैं। २०११ जनगणना के अनुसार लौंगत्लाइ ज़िले की जनसंख्या १,१७,८९४ है, जिसमे ६०,५९९ पुरुष तथा ५७,२९५ महिलाएँ हैं। यह जनसंख्या लगभग ग्रेनाडा के बराबर है। इस प्रकार से जनसंख्या के अनुसार इस ज़िले भारत के ६४० ज़िलों में स्थान ६११वाँ स्थान है। यहाँ का जनसंख्या घनत्व है। इस ज़िले में २००१-११ के दौरान दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर ६०.१४% रही। ज़िले की लिंगानुपात दर ९४५ है तथा साक्षरता दर ६५.८८% है। ज़िले की १७.६७% जनसंख्या नगरीय क्षेत्रों तथा ८२.३३% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। यहाँ का प्रमुख बहुसंख्यक धर्म ईसाई है, जो कि कुल जनसंख्या का ५४.१९% है। अन्य अल्पसंख्यक धर्म बौद्ध ४३.७२%, हिन्दू १.४१%, मुस्लिम ०.४४%, जैन ०.१०% तथा सिक्ख ०.०४% हैं। ०.०७% लोगों ने अपने धर्म का उल्लेख नहीं किया है। यहाँ की प्रमुख जनजातियाँ लाई, चकमा, तन्चंग्या, बाम, पांग इत्यादि हैं। इन जनजातियों की अपनी सांस्कृतिक विरासतें हैं। ज़िले के पूर्वी भागों में लाई जनजाति जबकि पश्चिमी भाग में चकमा जनजाति का जमाव अधिक है। लाई लोगों का प्रमुख धर्म ईसाई है जबकि चकमा पारम्परिक बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। जीव-जन्तु तथा वनस्पति सन् १९९७ में लौंगत्लाइ ज़िले में नेंगपुई वन्यजीव अभ्यारण्य की स्थापना हुई, जिसका क्षेत्रफल है। लौंगत्लाइ ज़िले का आधिकारिक जालस्थल कृषि विज्ञान केन्द्र के जालस्थल पर ज़िले का परिचय ज़िला उपायुक्त के जालस्थल पर ज़िले का परिचय मिज़ोरम के जिले
मिस यूनीवर्स २००२ मिस यूनीवर्स का ५१वाँ संस्करण था जिसे रूस की ओक्साना फ़ेदरोवा ने जीता। किंतु उनसे यह पदवी बाद में छीन ली गई एवं पनामा की जस्टिन पासेक को दे दी गई। इसलिये अधिकारिक तौर पर जस्टिन पासेक को ही विजेता माना जाता है।
रमनपूडि (कृष्णा) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कृष्णा जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
बोयलकुंट्ल (कर्नूलु) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कर्नूलु जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
मुप्पल्ल (कृष्णा) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कृष्णा जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
अमेरिका की अकेडेमी ऑफ़ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज़ द्वारा प्रदत्त अकेडमी पुरस्कार, जिसे ऑस्कर पुरस्कार भी कहा जाता है, फिल्म व्यवसाय से जुड़े सर्वश्रेष्ठ निर्देशकों, कलाकारों, लेखक व तकनीशियनों को दिया जाने वाला प्रतिष्ठित सालाना पुरस्कार है। पहला समारोह १६ मई १९२९ को आयोजित किया गया था। ऑस्कर अकादमी पुरस्कार जिसे ऑस्कर के नाम से भी जाना जाता है, एक सम्मान है जिसे अमेरिकन अकादमी ऑफ़ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेस (एम्पास) द्वारा फिल्म उद्योग में निर्देशकों, कलाकारों और लेखकों सहित पेशेवरों की उत्कृष्टता को पहचान देने के लिए प्रदान किया जाता है। यह औपचारिक समारोह, जिसमें पुरस्कार दिए जाते हैं, विश्व के सबसे प्रमुख पुरस्कार समारोहों में से एक है और इसे हर वर्ष २०० से अधिक देशों में टीवी पर सजीव प्रसारित किया जाता है। यह मीडिया का सबसे पुराना पुरस्कार समारोह भी है और इसके समकक्ष के ग्रेमी पुरस्कार (संगीत के लिए), एमी पुरस्कार (टेलीविजन के लिए) और टोनी पुरस्कार (थिएटर के लिए) अकादमी पर आधारित हैं। एम्पास का विचार मूलतः मेट्रो-गोल्डविन-मायेर स्टूडियो के मालिक लुई बी मायेर द्वारा फिल्म उद्योग की छवि सुधारने और श्रम विवादों में मध्यस्थता करने के उद्देश्य से एक पेशेवर मानद संगठन के रूप में प्रस्तुत किया गया था। बाद में खुद ऑस्कर को फिल्म उद्योग में 'विशिष्ट उपलब्धि के लिए योग्यता पुरस्कार' के रूप में अकादमी द्वारा शुरू किया गया। पहला अकादमी पुरस्कार समारोह १६ मई,१९२९ को, १९२७/१९२८ फिल्म सीज़न की बेजोड़ फ़िल्मी उपलब्धियों को सम्मानित करने के लिए हॉलीवुड में होटल रुज़वेल्ट में आयोजित किया गया था। २०१० की फिल्मों को सम्मानित करने वाला सबसे हाल का समारोह २७ फ़रवरी २०११ को हॉलीवुड के कोडक थियेटर में आयोजित किया गया। ऑस्कर नाम रखने का कारण क्या है, ठीक से कहा नहीं जा सकता। बेट्टी देविस की एक जीवनी में ऐसा कहा गया है कि उन्होने यह नाम अपने प्रथम पति हार्मन ऑस्कर नेल्सन (हार्मों ऑस्कार नेल्सन) के नाम पर रखा।बलीराम गबली ईदोर प्रथम पुरस्कार १६ मई १९२९ को २७० दर्शकों के सामने हॉलीवुड रूजवेल्ट होटल में एक निजी भोज के दौरान दिए गए। अकादमी पुरस्कार के पश्चात होने वाली पार्टी होटल मेफेयर में आयोजित की गई। उस रात के उत्सव के लिए अतिथि टिकटों की कीमत $५ थी। पंद्रह लघु-प्रतिमाएं प्रदान की गई, जिनके द्वारा १९२७-१९२८ की अवधि के दौरान कलाकारों, निर्देशकों और उस समय की फिल्म निर्माण उद्योग की अन्य हस्तियों को उनके कार्यों के लिए सम्मानित किया गया। विजेताओं की घोषणा तीन महीने पहले ही कर दी गई थी; लेकिन १९३० में दूसरे अकादमी पुरस्कार समारोह में इसे बदल दिया गया। उसके बाद से और प्रथम दशक के दौरान, परिणामों को पुरस्कार की रात ११ बजे समाचार पत्रों को प्रकाशन के लिए दिया जाता है। इस विधि का इस्तेमाल तब तक किया गया जब लॉस एंजिल्स टाइम्स ने समारोह के शुरू होने से पहले ही विजेताओं की घोषणा कर दी; परिणामस्वरूप, अकादमी ने १९४१ के बाद से विजेताओं के नाम की घोषणा के लिए एक सील बंद लिफाफे का प्रयोग किया है। पहले छह समारोहों के लिए, पात्रता की अवधि दो कैलेंडर वर्ष की होती थी। उदाहरण के लिए, द्वितीय अकादमी पुरस्कार जिसका आयोजन ३ अप्रैल १9३0 को किया गया, उसके लिए उन फिल्मों पर विचार किया गया जो १ अगस्त १928 और ३१ जुलाई १929 के बीच जारी हुई थी। १9३5 में आयोजित, ७ वें अकादमी पुरस्कार से शुरू करते हुए, पात्रता की अवधि १ जनवरी से ३१ दिसम्बर तक का पिछ्ला पूर्ण कैलेंडर वर्ष हो गया। पहला सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार एमिल जेनिंग्स को दिया गया, जिसे द लास्ट कमांड और द वे ऑफ़ ऑल फ्लेश में उनके प्रदर्शन के लिए दिया गया। उन्हें समारोह से पहले यूरोप लौटना था और इसलिए अकादमी उन्हें यह पुरस्कार पहले देने पर सहमत हो गई, जिससे वे इतिहास में पहला अकादमी पुरस्कार पाने वाले विजेता बन गए। सम्मानित पेशेवरों को अर्हता अवधि के लिए विशिष्ट श्रेणी में उनके द्वारा किये गए सभी काम के लिए सम्मानित किया गया, उदाहरण के लिए, एमिल जेनिंग्स को दो फिल्मों के लिए पुरस्कृत किया गया जिनमें उन्होंने अवधि के दौरान अभिनय किया था। चौथे समारोह के बाद से, प्रणाली बदल गई और पेशेवरों को एक ही फिल्म में एक विशेष प्रदर्शन के लिए सम्मानित किया जाने लगा। २०१० में आयोजित ८२ वें समारोह तक 1८२5 पुरस्कारों के लिए कुल २७८९ ऑस्कर प्रदान किये गए है। कुल ३०२ कलाकारों ने प्रतियोगी अभिनय श्रेणियों में ऑस्कर जीत है या मानद या किशोर पुरस्कार प्राप्त किया है। १९३९ की फ़िल्म ब्यू गेस्टे (ब्यू गेस्ट) एकमात्र ऐसी फिल्म है जिसमें अकादमी पुरस्कार विजेता चार कलाकार शामिल थे जिन्हें बाद में प्रमुख भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला (गैरी कूपर, रे मिलांड, सूज़न हेवार्ड, ब्रोडरिक क्रेफोर्ड). २७ मार्च १९५७ में आयोजित २९ वें समारोह में, सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म श्रेणी को पेश किया गया। उस समय तक, विदेशी भाषा फिल्मों को विशेष उपलब्धि पुरस्कार से सम्मानित किया जाता था। हालांकि अकादमी द्वारा प्रदान किये जाने वाले अन्य सात प्रकार के पुरस्कार हैं (इरविंग जी. थालबर्ग मेमोरियल पुरस्कार, जीन हर्शोल्ट मानवतावादी पुरस्कार, गॉर्डन ई. सौयर पुरस्कार, साइंटिफिक एंड इंजीनियरिंग अवार्ड, तकनीकी उपलब्धि पुरस्कार, जॉन ए. बोनर प्रशस्ति पदक और छात्र अकादमी पुरस्कार), सबसे ज्यादा ज्ञात अकेडमी अवार्ड ऑफ़ मेरिट है जिसे लोकप्रिय रूप से ऑस्कर प्रतिमा जाना जाता है। काले धातु के आधार पर सोने की परत चढ़े हुए ब्रिटेनियम से निर्मित यह प्रतिमा १३.५ इंच (३४ सेमी) लंबी है, ८.५ पाउंड (३.८५ किलो) की है और इसकी आकृति एक योद्धा की है जिसे आर्ट डेको में बनाया गया है जो योद्धा की तलवार लिए हुए हैं और पांच तिल्लियों वाली एक फिल्म रील पर खड़ा है। प्रत्येक पांच तिल्ली अकादमी की मूल शाखाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं: अभिनेता, लेखक, निर्देशक, निर्माता और तकनीशियन. अकादमी के मूल सदस्यों में से एक, एमजीएम (मम) के कला निर्देशक सिडरिक गिबन्स ने पुरस्कार ट्रॉफी की डिजाइन का पर्यवेक्षण किया और उसकी डिज़ाइन की स्क्रॉल पर छपाई की। अपनी प्रतिमा के लिए मॉडल की ज़रूरत के लिए गिबन्स की उस समय की बीवी डालोरेस डेल रिओ ने उनकी मुलाक़ात मैक्सिकन फिल्म निर्देशक और अभिनेता एमिलियो "एल इन्डियो" फर्नांडेज़ से कराई. पहली बार में अनिच्छुक, फर्नांडीज ने अंत में नग्न मुद्रा के लिए सहमती दे दी और "ऑस्कर" की प्रतिमा का निर्माण हुआ। इसके बाद, मूर्तिकार जार्ज स्टेनली (जिसने हॉलीवुड बाउल में म्यूज फाउंटेन बनाया था) ने गिबन्स के डिज़ाइन को मिट्टी में उकेरा और सचिन स्मिथ ने इस प्रतिमा को ९२.५ प्रतिशत टिन और ७.५ प्रतिशत तांबे में ढाला और फिर इस पर सोने की परत चढ़ाई. ऑस्कर के निर्माण के बाद से इसमें किया गया एकमात्र परिवर्तन इसके आधार को सरलीकृत करना था। मूल ऑस्कर प्रतिमा को 1९२8 में बटाविया, इलिनोइस में सी.डब्लू. शुमवे एंड सन्स फाउंड्री एंड संस में ढाला गया, जिसने विन्स लोम्बार्डी ट्रॉफी और एमी अवॉर्ड की प्रतिमाओं के निर्माण में भी योगदान दिया था। १९८३ के बाद से, लगभग ५0 ऑस्कर हर साल शिकागो में इलिनोइस निर्माता आर.एस. ओवन्स एंड कंपनी द्वारा बनाए जाते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका के प्रयासों के समर्थन में, प्रतिमाओं को प्लास्टर से बनाया गया और युद्ध समाप्त हो जाने के बाद इसे सोने से बदल दिया गया। ऑस्कर नाम का मूल विवादित है। बेट्टे डेविस की एक जीवनी का दावा है कि उसने ऑस्कर नाम अपने पहले पति, बैंड नेता हारमन ऑस्कर नेल्सन के नाम पर रखा; ऑस्कर शब्द का एक आरंभिक मुद्रित उल्लेख १९३४ के छठे अकादमी पुरस्कार के बारे में टाइम पत्रिका के लेख में मिलता है और बेट्टे डेविस द्वारा १९३६ में इस पुरस्कार को ग्रहण करने में मिलता है। वॉल्ट डिज्नी को भी १९३२ में अपने ऑस्कर के लिए अकादमी को धन्यवाद देते हुए उद्धृत किया गया है। इसके मूल से सम्बंधित एक अन्य दावा है कि अकादमी के कार्यकारी सचिव मार्गरेट हेरिक ने इस पुरस्कार को सबसे पहले १९३१ में देखा और इस प्रतिमा के सन्दर्भ में कहा कि वह उन्हें "अंकल ऑस्कर" (उनके भतीजे "ऑस्कर पियर्स" का एक उपनाम) की याद दिलाती है। स्तंभकार सिडनी स्कोल्सकी हेरिक के नामकरण के दौरान मौजूद थे और अपने शीर्षक में उसका नाम शामिल किया, "कर्मचारियों ने अपनी प्रसिद्ध प्रतिमा को प्यार से 'ऑस्कर' नाम दिया". इस ट्राफी को अकेडमी ऑफ़ मोशन पिक्चर्स आर्ट्स एंड साइंसेस द्वारा १९३९ में आधिकारिक रूप से "ऑस्कर" नाम दिया गया। एक अन्य किम्वदंती के अनुसार लुई बी मायेर के कार्यकारी सचिव, नार्वे-अमेरिकी एलेनोर लिलेबर्ग ने पहली प्रतिमा देखी और कहा, "यह राजा ऑस्कर ई के जैसी लग रही है!". दिन भर के बाद उसने पूछा, "हम ऑस्कर का क्या करें, उसे कोठरी में रख दो?" और नाम जंच गया। ऑस्कर प्रतिमा का स्वामित्व १९५० के बाद से, इन प्रतिमाओं के साथ यह कानूनी नियम लगा दिया गया कि न तो विजेता और न ही उनके उत्तराधिकारी इसे बेच सकते हैं और उन्हें पहले इस प्रतिमा को अकादमी को उस$१ में बेचना होगा। यदि कोई विजेता इस शर्त के लिए सहमती से मना कर देता है तो अकादमी प्रतिमा को रखती है। ऐसे अकादमी पुरस्कारों को जो इस समझौते द्वारा संरक्षित नहीं थे उन्हें सार्वजनिक नीलामी और निजी सौदों में छह अंकों में बेचा गया। हालांकि ऑस्कर प्रतिमा प्राप्तकर्ता के स्वामित्व में रहती है, यह खुले बाजार में नहीं पहुंचाई जा सकती. माइकल टोड के पोते द्वारा टोड की ऑस्कर प्रतिमा को बेचने के प्रयास के मामले से पता चलता है कि ऐसे लोग भी हैं जो इस बात से सहमत नहीं हैं। जब टोड के पोते ने एक फिल्म सामग्री संग्राहक को टोड की ऑस्कर प्रतिमा बेचने का प्रयास किया, तो अकादमी ने एक स्थायी निषेधाज्ञा प्राप्त करते हुए कानूनी लड़ाई जीत ली। हालांकि ऑस्कर का बिक्री लेनदेन सफल रहा है, कुछ खरीदारों ने उन्हें वापस अकादमी को लौटा दिया, जो उन्हें अपने खजाने में रखती है। २००४ के बाद से, अकादमी पुरस्कार नामांकन के परिणाम को जनवरी के अंत में जनता के लिए घोषित किया जाता है। २००४ से पहले, नामांकन नतीजे को सार्वजनिक रूप से फ़रवरी के आरम्भ में घोषित किया जाता था। द अकेडमी ऑफ़ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंस (एम्पास), एक पेशेवर मानद संगठन, यथा २००७, ५८३५ सदस्यता का मतदान रखता है। अकादमी सदस्यता को विभिन्न शाखाओं में बांटा गया है, जिसमें से प्रत्येक, फिल्म निर्माण में एक अलग विधा का प्रतिनिधित्व करती है। अभिनेता सबसे बड़े मतदान गुट का गठन करते हैं, जिसके सदस्य अकादमी की संरचना के १३११ सदस्य (२२ प्रतिशत) हैं। वोटों को ऑडिटिंग फर्म प्राइसवाटरहाउसकूपर्स (और इसके पूर्ववर्ती प्राइस वाटरहाउस) द्वारा पिछले ७३ वार्षिक पुरस्कार समारोह से प्रमाणित किया जाता है। सभी एम्पास सदस्यों को अकादमी शाखा की कार्यकारिणी समिति की ओर से गवर्नर्स बोर्ड में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए। सदस्यता पात्रता को एक प्रतियोगी नामांकन द्वारा प्राप्त किया जा सकता है या एक सदस्य मोशन पिक्चर के अन्य क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के आधार पर कोई नाम प्रस्तुत कर सकता है। नये सदस्यता प्रस्तावों पर सालाना विचार किया जाता है। अकादमी सार्वजनिक रूप से अपनी सदस्यता का खुलासा नहीं करता है, हालांकि हाल ही में २००७ में प्रेस विज्ञप्ति में उन लोगों के नामों की घोषणा की गई जिन्हें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था। २००७ की विज्ञप्ति में यह भी कहा गया कि इसके अंतर्गत मात्र ६००० मतदान सदस्य हैं। जबकि सदस्यता बढ़ रही थी, सख्त नीतियों ने तब से उसके आकार को स्थिर रखा है। वर्तमान में, आधिकारिक अकादमी पुरस्कार नियमों के नियम २ और ३ के अनुसार, अर्हता पाने के लिए एक फिल्म को लॉस एंजिल्स काउंटी, कैलिफोर्निया में (सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म को छोड़कर) पिछले कैलेंडर वर्ष में जारी होना चाहिए, यानी जनवरी १ की आधी रात से शुरुआत करते हुए ३१ दिसम्बर की आधी रात को समाप्त. उदाहरण के लिए, २0१0 की सर्वश्रेष्ठ फिल्म विजेता, द हर्ट लॉकर, वास्तव में पहले २008 में जारी हुई थी, लेकिन २009 पुरस्कारों के लिए अर्हता प्राप्त नहीं कर सकी क्योंकि इसने लॉस एंजिल्स में २009 के मध्य तक ऑस्कर अर्हता प्राप्त करने वाला प्रदर्शन नहीं किया था, इस प्रकार यह फिल्म २0१0 पुरस्कारों के लिए पात्र हो सकी। नियम २ के अनुसार फिल्म को फीचर-लम्बाई का होना चाहिए, जिसे कम से कम ४० मिनट के रूप में परिभाषित किया गया है, सिवाय लघु-विषयक पुरस्कारों के और इसे या तो ३५म्म या ७०म्म फिल्म प्रिंट का होना चाहिए या २4 फ्रेम प्रति सेकेण्ड या ४८ फ्रेम प्रति सेकेण्ड प्रोग्रेसिव स्कैन डिजिटल सिनेमा फॉर्मेट में होना चाहिए और जिसका देशी रिजोल्यूशन 1२80क्स7२0 से कम नहीं होना चाहिए। निर्माताओं को एक ऑफिशियल स्क्रीन क्रेडिट के ऑनलाइन प्रपत्र को अंतिम तारीख से पहले जमा करना होता है; यदि इसे अंतिम तारीख तक जमा नहीं किया जाता है तो वह फिल्म किसी भी वर्ष में अकादमी पुरस्कार के लिए अयोग्य हो जाएगी. इस प्रपत्र में सभी संबंधित श्रेणियों के लिए निर्माण श्रेय शामिल होता है। इसके बाद, प्रत्येक प्रपत्र की जांच होती है और इसे योग्य प्रदर्शन की एक अनुस्मारक सूची में डाल दिया जाता है। दिसंबर के अंत में मतों और योग्य प्रदर्शन की अनुस्मारक सूची की प्रतियों को लगभग ६००० सक्रिय सदस्यों को भेज दिया जाता है। ज्यादातर श्रेणियों के लिए, प्रत्येक विधा के सदस्य केवल अपनी संबंधित श्रेणियों में ही प्रत्याशियों का निर्धारण करने के लिए वोट करते हैं (यानी, केवल निर्देशक ही निर्देशकों के लिए वोट करेंगे, लेखक केवल लेखकों के लिए, अभिनेता केवल अभिनेताओं के लिए आदि। ); कुछ श्रेणियों के मामले में हालांकि कुछ अपवाद भी हैं जैसे कि विदेशी भाषा फिल्म, वृत्तचित्र और एनिमेटेड फीचर फिल्म, जिनमें कि फिल्मों को विशेष स्क्रीनिंग समितियों द्वारा चुना जाता है जो सभी विधाओं के सदस्यों से बनी होती है। बेस्ट पिक्चर के विशेष मामले में, सभी मतदाता सदस्य उस वर्ग के लिए प्रत्याशियों का चयन करने के पात्र हैं। विदेशी फिल्मों में अंग्रेजी उपशीर्षक शामिल होना ज़रूरी है और हर देश प्रत्येक वर्ष केवल एक फिल्म प्रस्तुत कर सकते हैं। विभिन्न विधाओं के सदस्य अपने संबंधित क्षेत्रों में मनोनीत करते हैं जबकि सभी सदस्य सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए प्रत्याशियों को नामित कर सकते हैं। इसके बाद विजेताओं का निर्धारण दूसरे दौर के मतदान द्वारा किया जाता है जिसमें सभी सदस्यों को सर्वश्रेष्ठ फिल्म सहित अधिकांश श्रेणियों में मतदान करने की अनुमति होती है। प्रमुख पुरस्कारों को एक सीधे प्रसारण समारोह में प्रदान किया जाता है, सबसे आम रूप से सम्बंधित कैलेंडर वर्ष के बाद फरवरी या मार्च में और प्रत्याशियों की घोषणा के छह सप्ताह के बाद. यह फिल्म पुरस्कारों के मौसम की परिणति है, जो आमतौर पर पिछले वर्ष नवंबर या दिसंबर के दौरान शुरू होती है। यह बृहद रूप से भव्य होता है, जिसमें आमंत्रित सदस्य प्रमुख फैशन डिजाइनरों की रचनाओं को धारण किये लाल कालीन पर चलते हैं। काली टाई वाली पोशाक पुरुषों में सबसे आम है, हालांकि फैशन के अनुसार बो-टाई नहीं भी पहन सकते हैं और संगीत कलाकार कभी-कभी इसका पालन नहीं करते हैं। (वे कलाकार, जिन्होंने सर्वश्रेष्ठ मूल गीत के लिए प्रत्याशियों को दर्ज किया होता है वे अक्सर उन गीतों को पुरस्कार समारोह में सजीव प्रस्तुत करते हैं और यह तथ्य कि वे प्रदर्शन कर रहे हैं अक्सर टेलीविजन प्रसारण को बढ़ावा देने के लिए प्रयोग किया जाता है). अकादमी पुरस्कारों को अमेरिका (अलास्का और हवाई को छोड़कर), कनाडा, युनाइटेड किंगडम में सजीव प्रसारित किया जाता है और इसे दुनिया के लाखों दर्शकों द्वारा देखा जाता है। २००७ के समारोह को ४० मीलियन से अधिक अमेरिकियों द्वारा देखा गया। अन्य पुरस्कार समारोहों (जैसे ग्रैमी, एमी और गोल्डेन ग्लोब) को ईस्ट कोस्ट में सजीव प्रसारित किया जाता है लेकिन ये वेस्ट कोस्ट में टेप डिले पर होते हैं और हो सकता है कि इन्हें उत्तरी अमेरिका के बाहर उसी दिन प्रसारित ना किया जाए (यदि पुरस्कारों को टीवी पर प्रसारित किया भी जाता है तो). अकादमी ने कई वर्षों से दावा किया है कि अवार्ड शो के करीब एक अरब अंतरराष्ट्रीय दर्शक हैं, लेकिन अभी तक इस तथ्य की किसी भी स्वतंत्र सूत्रों द्वारा पुष्टि नहीं की गई है। पुरस्कार कार्यक्रम को टेलीविजन पर पहली बार १९५३ में एनबीसी पर दिखाया गया। एनबीसी ने इसका प्रसारण १९६० तक जारी रखा जिसके बाद एबीसी नेटवर्क ने इसे हासिल किया और इसे १९७० तक प्रसारित किया, जिसके बाद एनबीसी ने पुनः इसका प्रसारण शुरू किया। एबीसी ने एक बार फिर १९७६ में प्रसारण का कार्यभार संभाल लिया; इस कार्य का अनुबंध उसके पास २०२० तक के लिए है। साठ वर्षों से अधिक तक मार्च के अंत या अप्रैल की शुरुआत में आयोजित होने के बाद, इस समारोह को २००४ में शुरू करते हुए फरवरी के अंत या मार्च के आरम्भ में आयोजित किया जाने लगा, ताकि फिल्म उद्योग में ऑस्कर सीज़न के साथ सम्बंधित घोर पैरवी और विज्ञापन अभियानों को बाधित और कम किया जा सके। एक अन्य कारण था न्का मेन्स डिविज़न ई बास्केटबॉल चैम्पियनशिप की टीवी रेटिंग सफलता जो अकादमी पुरस्कार के दर्शकों को कम कर दे रही थी। पहले की तारीख भी एबीसी के लाभ में थी, क्योंकि यह अब आम तौर पर अत्यधिक लाभदायक और महत्वपूर्ण फरवरी स्वीप्स अवधि के दौरान होती है। (कुछ साल, समारोह को शीतकालीन ओलंपिक के सम्मान में मार्च के प्रारंभ में ले जाया जाता है।) विज्ञापन कुछ हद तक प्रतिबंधित है, ताकि पारंपरिक रूप से कोई फिल्म स्टूडियो या सरकारी अकादमी पुरस्कार प्रायोजकों के प्रतियोगी प्रसारण के दौरान विज्ञापन कर सकें. इस पुरस्कार कार्यक्रम को इतिहास में सबसे ज्यादा एमी जीतने का गौरव हासिल है, जहां इसने ४७ विजित और १९५ नामांकन हासिल किये। १९९९ में प्रशांत के बाद शाम कई वर्षों तक सोमवार को ९:०० बजे शाम पूर्वी/६:०० सायं प्रशांत को आयोजित होने के बाद, इस समारोह को रविवार को ८:३० सायं पूर्वी/५:३० सायं प्रशांत को आयोजित किया जाने लगा। इस कदम के लिए यह कारण दिया गया कि रविवार को और अधिक दर्शक इसे देख सकते हैं और लॉस एंजिल्स के भीड़ भरे जाम वाले यातायात से बचा जा सकता है और यह भी कि जल्दी शुरू कर देने पर ईस्ट कोस्ट के दर्शक जल्दी सो सकेंगे। कई सालों तक फिल्म उद्योग ने रविवार के प्रसारण का विरोध किया क्योंकि इससे सप्ताहांत बॉक्स ऑफिस में कटौती होगी। ३० मार्च १९८१ को, पुरस्कार समारोहों को वाशिंगटन डीसी में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और अन्य लोगों को गोली मारे जाने के बाद एक दिन के लिए स्थगित कर दिया गया। १९९३ में, एक इन मेमोरियम खंड को जोड़ा गया, और उन लोगों को सम्मानित किया जाने लगा जिन्होंने सिनेमा के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया था जिनकी मृत्यु पिछले १२ महीने के दौरान हो गई थी, यह चुनाव अकादमी के सदस्यों की एक छोटी समिति द्वारा किया जाता है। इस खंड को कुछ नामों का चयन ना करने के कारण पिछले वर्षों में आलोचना का सामना करना पड़ा है। २०१० में, अकादमी पुरस्कार के आयोजकों ने घोषणा की कि विजेताओं का स्वीकृति भाषण ४५ सेकंड से अधिक नहीं चलना चाहिए। आयोजक, बिल मैकेनिक के अनुसार, "कार्यक्रम की सबसे नापंसंद की जाने वाली बात" की समाप्ति को सुनिश्चित करने के लिए ऐसा किया गया जो था - भावना का लंबा और उबाऊ प्रदर्शन. अकादमी ने अभी हाल में इस समारोह को जनवरी में ले जाने की चर्चा भी शुरू की है, इसके लिए उसने फिल्म उद्योग के लंबे पुरस्कारों के मौसम को लेकर टीवी दर्शकों की थकान का हवाला दिया है। लेकिन इस तरह के एक त्वरित समयसूची से नाटकीय रूप से सदस्यों के लिए मतदान की अवधि में कमी होगी, इस हद तक कि कुछ मतदाताओं के पास केवल उन्ही फिल्मों को देखने का समय होगा जिसे उनके कंप्यूटर पर भेजा गया होगा। इसके अलावा, जनवरी के समारोह को राष्ट्रीय फुटबॉल लीग के साथ प्रतिस्पर्धा करना होगा। पिछले समारोह और रेटिंग निम्नलिखित सूची १९२९ के बाद से सभी अकादमी पुरस्कार समारोह और रेटिंग को पेश करती है। ऐतिहासिक रूप से, "ऑस्करकास्ट" तब एक बड़ी खींचतान में पड़ जाता है जब बॉक्स ऑफिस पर हिट रहने वाली फिल्मों को सर्वश्रेष्ठ फिल्म ट्राफी जीतने के लिए पसंद किया जाता है। १९९८ में ५७.२५ मीलियन से अधिक दर्शकों ने ७० वें अकादमी पुरस्कार के प्रसारण को देखा, यानी जिस वर्ष टाइटैनिक प्रदर्शित हुई थी जिसने ऑस्कर से पहले उत्तरी अमेरिका के बॉक्स ऑफिस पर उस$ ६०० की कमाई की थी। ७६ वें अकादमी पुरस्कार समारोह ने जिसमें थे लॉर्ड ऑफ थे रिंग: थे रेटर्न ऑफ थे किंग (पूर्व-प्रसारण बॉक्स ऑफिस कमाई उस$३६८ मीलियन) को सर्वश्रेष्ठ फिल्म सहित ११ पुरस्कार प्राप्त हुए, उसने ४३.५६ मीलियन दर्शकों को आकर्षित किया। नीलसन रेटिंग्स के आधार पर आज तक जिस समारोह को सबसे ज्यादा देखा गया है, वह ४२ वां अकादमी पुरस्कार था (सर्वश्रेष्ठ फिल्म मिडनाईट काऊबॉय) जिसने ७ अप्रैल 19७० को ४३.४% घरेलू रेटिंग हासिल किया। इसके विपरीत, उन समारोहों ने कमजोर रेटिंग को प्रदर्शित किया जिसमें बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन ना करने वाली फिल्मों को पुरस्कृत किया गया। ७८ वें अकादमी पुरस्कार जिसमें कम बजट और स्वतंत्र फिल्म क्रैश (पूर्व-ऑस्कर कमाई उस$५३.४ मीलियन) को पुरस्कृत किया गया, उसने २२.९१% की घरेलू रेटिंग के साथ ३८.6४ मीलियन दर्शकों को ही आकर्षित किया। २००८ में, ८० वें अकादमी पुरस्कार के प्रसारण को औसतन १८.६६% की घरेलू रेटिंग के साथ ३१.७६ मिलियन दर्शकों द्वारा देखा गया, जो आज तक का सबसे न्यून दर्जे वाला और सबसे कम देखा गया समारोह है, बावजूद इसके कि वह अकादमी पुरस्कारों का ८० वां वर्ष था। उस विशेष समारोह में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार जीतने वाली फिल्म भी एक कम बजट वाली और स्वतंत्र रूप से वित्तपोषित फिल्म थी (नो कंट्री फॉर ओल्ड मैन). १९२९ में पहला अकादमी पुरस्कार हॉलीवुड रूजवेल्ट होटल में रात्रिभोज के दौरान प्रदान किया गया। १९३०-१९४३ तक, इन पुरस्कारों को हॉलीवुड में अम्बेसडर होटल में प्रस्तुत किया गया। इसके बाद ऑस्कर समारोह को १९३० से लेकर १९४३ तक लॉस एंजिल्स के बिल्ट्मोर होटल में आयोजित किया गया। इसके बाद हॉलीवुड में ग्राउमन्स चाइनीज़ थियेटर ने इन पुरस्कारों को १९४४ से १९४६ तक आयोजित किया, जिसके पश्चात १९४७ से १९४८ तक लॉस एंजिल्स के श्राइन ऑडिटोरियम में इसे प्रस्तुत किया गया। १९४९ में २१ वें अकादमी पुरस्कार अकेडमी अवार्ड थियेटर में आयोजित किये गए, जो हॉलीवुड में अकादमी का मेलरोज़ एवेन्यू पर स्थित मुख्यालय था। १९५० से १९६० तक, पुरस्कारों को हॉलीवुड के पंटागेस थियेटर में प्रदान किया गया। टेलीविजन के आगमन के साथ, १९५३-१९५७ के पुरस्कार, हॉलीवुड और न्यूयॉर्क में एक साथ आयोजित किये गए, पहले एनबीसी इंटरनेशनल थिएटर (१९५३) में और फिर एनबीसी सेंचुरी थिएटर में (१९५४-१९५७), जिसके बाद से यह समारोह पूर्ण रूप से लॉस एंजिल्स में होने लगा। ऑस्कर को १९६१ में {सांता मोनिका, कैलिफोर्निया के सांता मोनिका सिविक ऑडिटोरियम में ले जाया गया। १९६९ तक, अकादमी ने इस समारोह को फिर से लॉस एंजिल्स वापस ले जाने का फैसला किया, इस बारलॉस एंजिल्स काउंटी म्यूजिक सेंटर में डोरोथी चांडलर पविलियन में. २००२ में, हॉलीवुड का कोडेक थियेटर, इस पुरस्कार समारोह का एक स्थायी स्थल बन गया। योग्यता का अकादमी पुरस्कार मुख्य भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता: १९२८ से वर्तमान सहायक भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता १९३६ से वर्तमान मुख्य भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री: १९२८ से वर्तमान सहायक भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री: १९३६ से वर्तमान के लिए सर्वश्रेष्ठ एनिमेटेड फ़ीचर: २००१ से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ एनिमेटेड लघु फिल्म: १९३१ से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ कला निर्देशन: १९२८ से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ छायांकन: १९२८ से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ परिधान डिजाइन १९४८ से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ निर्देशक: १९२८ से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र फ़ीचर: १९४३ से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र लघु विषय १९४१ से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ फिल्म संपादन: १९३५ से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म १९४७ से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ लाइव एक्शन लघु फिल्म: १९३१ से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ मेकअप: १९८१ से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ मूल स्कोर: १९३४ से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ मूल गीत: १९३४ से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ फिल्म: १९२८ से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ ध्वनि संपादन: १९६३ से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ ध्वनि मिश्रण: १९३० से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ दृश्य प्रभाव: १९३९ से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ रूपांतरित पटकथा: १९२८ से वर्तमान सर्वश्रेष्ठ मूल पटकथा: १९४० से वर्तमान पुरस्कारों के पहले वर्ष में, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार को दो अलग-अलग श्रेणियों (नाटक और हास्य) में विभाजित किया गया था। कभी-कभी, सर्वश्रेष्ठ मूल स्कोर पुरस्कार को भी अलग-अलग श्रेणियों (नाटक और हास्य/संगीत) में विभाजित किया गया है। १९३० के दशक से लेकर १९६० के दशक तक, कला निर्देशन, सिनेमेटोग्राफी और कॉस्टयूम डिजाइन पुरस्कारों को भी इसी तरह दो अलग-अलग श्रेणियों (श्वेत-श्याम फिल्म और रंगीन फिल्म) में विभाजित किया गया था। एक अन्य पुरस्कार, जिसे सर्वश्रेष्ठ मूल संगीत का अकादमी पुरस्कार कहा जाता है, आज भी अकादमी की नियम-पुस्तिका में मौजूद है और इसे अभी हटाया जाना है। हालांकि, प्रत्येक वर्ष निरंतर अपर्याप्त पात्रता के कारण, इसे १९८४ (जब पर्पल रेन ने इसे जीता था) के बाद से प्रदान नहीं किया गया है। सर्वश्रेष्ठ सहायक निर्देशक: १९३३-१९३७ सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन: १९३५-१९३७ सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरिंग प्रभाव: १९२८ केवल सर्वश्रेष्ठ मूल संगीत या हास्य स्कोर: १९९५-१९९९ सर्वश्रेष्ठ मूल कहानी: १९२८-१९५६ अनुकूलन या प्रस्तुति - सर्वश्रेष्ठ स्कोर १९६२ से १९६९; १९७३ सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म - रंगीन: १९३६ और १९३७ सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म - लाइव एक्शन - २ रील: १९३६-१९५६ सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म - नवीन: १९३२-१९३५ सर्वश्रेष्ठ लेखन शीर्षक: १९२८ केवल निर्माण की सबसे अच्छी और अद्वितीय कलात्मक गुणवत्ता: १९२८ केवल बोर्ड ऑफ़ गवर्नर की बैठक हर साल होती है और नए पुरस्कारों पर विचार होता है। आज की तारीख तक, निम्न प्रस्तावित पुरस्कारों को अनुमोदित नहीं किया गया: सर्वश्रेष्ठ कास्टिंग: १९९९ में खारिज सबसे अच्छा स्टंट समन्वय: १९९९ में खारिज; २००५ में खारिज सबसे अच्छा शीर्षक डिजाइन: १९९९ में खारिज विशेष अकादमी पुरस्कार इन पुरस्कारों पर सम्पूर्ण अकादमी सदस्यता के बजाय विशेष समितियों द्वारा मतदान किया जाता है, लेकिन वह व्यक्ति जिसे विशेष पुरस्कार प्राप्त करने के लिए चयन किया जाता है वह प्रस्ताव को अस्वीकार कर सकता है। इन्हें हमेशा एक लगातार वार्षिक आधार पर प्रदान नहीं किया जाता है। वर्तमान विशेष पुरस्कार अकादमी मानद पुरस्कार: १९२९ से वर्तमान अकादमी वैज्ञानिक और तकनीकी पुरस्कार: १९३१ से वर्तमान गॉर्डन ई. सौयर पुरस्कार: १९८१ से वर्तमान जीन हेर्शोल्ट मानवतावादी पुरस्कार १९५६ से वर्तमान इरविंग जी थालबर्ग मेमोरियल पुरस्कार: १९३८ से वर्तमान सेवानिवृत्त विशेष पुरस्कार अकादमी किशोर पुरस्कार: १९३४-१९६० विशेष उपलब्धि का अकादमी पुरस्कार: १९७२-१९९५ अकादमी पुरस्कारों की सकारात्मक छवि और प्रतिष्ठा के कारण, विभिन्न स्टूडियो अपनी फिल्मों को "ऑस्कर मौसम" के दौरान बढ़ावा देने के लिए करोड़ों डॉलर खर्च करते हैं और विशेष रूप से रखे गए प्रचारकों का इस्तेमाल करते हैं। इस कारण यह आरोप लगाए गए हैं कि अकादमी पुरस्कार गुणवत्ता की तुलना में विपणन से अधिक प्रभावित हो जाते हैं। अकादमी पुरस्कार विजेता फिल्म निर्देशक और इस समारोह के पूर्व निर्माता, विलियम फ्रिडकिन ने इस विचार को २००९ में न्यूयॉर्क में एक सम्मलेन में व्यक्त किया और कहा कि यह "सबसे बृहद विज्ञापन योजना है जिसे आज तक किसी भी उद्योग द्वारा अपने लिए इजाद किया गया है।" इसके अलावा, कुछ विजेताओं ने जो अकादमी पुरस्कार के आलोचक थे उन्होंने इस समारोह का बहिष्कार किया और अपने ऑस्कर को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। ऐसा करने वाले पहले व्यक्ति थे डडले निकोलस (द इन्फोर्मर के लिए १९३५ में सर्वश्रेष्ठ लेखन). निकोलस ने राइटर्स गिल्ड और अकादमी के बीच संघर्ष के कारण ८ वें अकादमी पुरस्कार समारोह का बहिष्कार किया। जॉर्ज सी. स्कॉट दूसरे व्यक्ति थे जिन्होंने ४३ वें अकादमी पुरस्कार समारोह में अपना पुरस्कार (१९७० में पैटन के लिए) स्वीकार करने से मना कर दिया। स्कॉट ने समझाया, "यह पूरा प्रपंच निरा एक मांस परेड है। मैं इसका हिस्सा नहीं बनना चाहता. तृतीय विजेता, मार्लन ब्रैंडो ने अपना पुरस्कार खारिज कर दिया (गॉडफादर के लिए १९७२ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार), जिसके लिए उन्होंने देशी अमेरिकियों के साथ फिल्म उद्योग द्वारा किया जाने वाला भेदभाव और दुर्व्यवहार का हवाला दिया. ४५ वें अकादमी पुरस्कार समारोह में ब्रैंडो ने सचीन लिटिलफीदर को भेजा जिसने ब्रांडो की आलोचना का १५ पृष्ठ का भाषण पढ़ा. यह देखा गया है अकादमी पुरस्कार के कई विजेता - विशेष रूप से सर्वश्रेष्ठ फिल्म - समय की कसौटी पर खरे नहीं उतरे या अधिक बेहतर प्रयासों को पेश किया। टिम डर्क्स, एएमसी के फिल्म्साइट.ऑर्ग के संपादक ने अकादमी पुरस्कारों के बारे में लिखा. सिर्फ सर्वश्रेष्ठ फिल्म की श्रेणी ही आलोचना के अधीन नहीं आई. द लाइव्स ऑफ़ अदर्स की अपनी समीक्षा में, निक डेविस ने तर्क दिया, कुछ ख़ास वर्षों में अभिनय पुरस्कारों की आलोचना इस आधार पर हुई कि इन्होंने भावुक कारणों, व्यक्तिगत लोकप्रियता, अतीत की गलतियों का प्रायश्चित करने के आधार पर कई बार बेहतर प्रदर्शन को नज़रंदाज़ किया, या इसे किसी प्रतिष्ठित उम्मीदवार के सम्पूर्ण कार्यों को सम्मानित करने के लिए "कैरियर सम्मान" के रूप में दिया गया। निम्न घटनाएं वार्षिक अकादमी पुरस्कार समारोह के साथ निकट रूप से जुड़ी हुई हैं: २५ वां इंडीपेंडेंट स्पिरिट अवॉर्ड (२०१० में), आमतौर पर सांता मोनिका में ऑस्कर से पहले शनिवार को आयोजित, पहली बार इसे एक शुक्रवार को किया गया और इसके स्थान को लॉस एंजिल्स में ले जाया गया, नव निर्मित मनोरंजन परिसर जिसे मध्य लॉस एंजिल्स में बनाया गया था। ८ वां वार्षिक "नाईट बिफोर" पारंपरिक रूप से बेवर्ली हिल्स होटल में आयोजित (२०१० में ८ वर्षीय) और आम तौर पर इसे सीज़न की टीएचई (थे) पार्टी के रूप में जाना जाता है, मोशन पिक्चर और टेलीविजन फंड को लाभ होता है, जो एसएजी अभिनेताओं के लिए सैन फेरनान्दो घाटी में एक सेवानिवृत्ति आवास संचालित करता है। एल्टन जॉन की एड्स निधीयन पार्टी इन पुरस्कारों का पेसिफिक डिजाइन सेंटर में सीधा प्रसारण करती है। गवर्नर्स बॉल, अकादमी की आधिकारिक आफ्टर-पार्टी है, जिसमें रात्रि भोजन शामिल है और यह पुरस्कार प्रस्तुति स्थल के निकट आयोजित होती है। वैनिटी फेयर आफ्टर-पार्टी, ऐतिहासिक रूप से पूर्व के मोर्टन रेस्तरां में आयोजित होती है, वह सनसेट टावर्स में २ साल से आयोजित होती है। ब्रोकव, लॉरेन (२०१०) वान्ना सी ऍन अकेडमी अवॉर्ड इनवाईट? वी गौट इट अलोंग ऑल द मेजर एनुअल इवेंट्स सराउंडिंग द ऑस्कर्स द डेली ट्रफल, लॉस एंजिल्स. द डेली ट्रफल गेल के और पिज्ज़ा, जे (२००२) अकादमी पुरस्कार ऑस्कर का पूरा इतिहास. ब्लैक डॉग एंड लेवेंथल प्रकाशक, इंक इसब्न १-579१2-२४०-क्स लेवी, इमेनुअल (२००३) सब ऑस्कर के बारे में: अकादमी पुरस्कारों का इतिहास एवं राजनीति. कोंटीनुअम, न्यूयॉर्क. इसब्न ०-८२६४-१४५२-४. राइट, जॉन (२००७) ऑस्कर का पागलपन: हॉलीवुड की सबसे बड़ी रात का बवाल थॉमस पब्लिशिंग, इंक साहित्य अकादमी पुरस्कार टाइम पत्रिका में "ऑस्कर ग्रेट" १९२९ में स्थापित पुरस्कार
अंकीय भारत या डिजिटल भारत सरकारी विभागों एवं भारत के लोगों को एक दूसरे के पास लाने की भारत सरकार की एक पहल है। डिजिटल इंडिया (इण्डिया) भारत सरकार की एक पहल है जिसके तहत सरकारी विभागों को देश की जनता से जोड़ना है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बिना कागज के इस्तेमाल के सरकारी सेवाएँ इलेक्ट्रॉनिक रूप से जनता तक पहुँच सकें। इस योजना का एक उद्देश्य ग्रामीण इलाकों को उच्च गति का इंटरनेट (इण्टरनेट) के माध्यम से जोड़ना भी है। डिजिटल इंडिया (इण्डिया) के तीन मुख्य घटक हैं- १- डिजिटल आधारभूत ढाँचे का निर्माण करना, २- इलेक्ट्रॉनिक रूप से सेवाओं को जनता तक पहुंचाना, ३- डिजिटल साक्षरता। योजना को २०१९ तक कार्यान्वयित करने का लक्ष्य है। एक द्वि-पक्ष प्लेटफ़ॉर्म का निर्माण किया जाएगा जहाँ दोनों (सेवा प्रदाता और उपभोक्ता) को लाभ होगा। यह एक अंतर-मंत्रालयी (अन्तर-मन्त्रालय) पहल होगी जहाँ सभी मंत्रालय (मन्त्रालय) तथा विभाग अपनी सेवाएँ जनता तक पहुँचाएँगें जैसे कि स्वास्थ्य, शिक्षा और न्यायिक सेवा आदि। चयनित रूप से जन-निजी साझेदारी (पीपीपी) मॉडल को अपनाया जाएगा। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय सूचना केंद्र (केन्द्र) के पुनर्निर्माण की भी योजना है। यह योजना मोदी प्रशासन की शीर्ष प्राथमिकता वाली परियोजनाओं में से एक है। यह एक सराहनीय और सभी साझेदारों की पूर्ण समर्थन वाली परियोजना है। जबकि इसमें लीगल फ्रेमवर्क, गोपनीयता का अभाव, डाटा सुरक्षा नियमों की कमी, नागरिक स्वायत्तता हनन, तथा भारतीय ई-सर्विलांस के लिए संसदीय निगरानी की कमी तथा भारतीय साइबर असुरक्षा जैसी कई महत्वपूर्ण कमियाँ भी हैं। डिजिटल इंडिया को कार्यान्वयित करने से पहले इन सभी कमियों को दूर करना होगा। डिजिटल भारत के प्रमुख ९ स्तम्भ २.मोबाइल कनेक्टिविटी के लिए सार्वभौमिक पहुँच ३.पब्लिक इंटरनेट एक्सेस कार्यक्रम ४.ई-गवर्नेंस - प्रौद्योगिकी के माध्यम से सरकार में सुधार ५.ई-क्रांति - सेवाओं की इलेक्ट्रानिक डिलीवरी ६.सभी के लिए सूचना ८.नौकरियों के लिए आईटी ९.अर्ली हार्वेस्ट कार्यक्रम डिजिटल इंडिया के सामने चुनौतियाँ भारत सरकार की संस्था 'भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड' नेशनल ऑप्टिकल फाइबल नेटवर्क जैसी परियोजना को कार्यान्वयित करेगी जो डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की देखरेख करेगा। बीबीएऩएल ने यूनाइटेड टेलीकॉम लिमिटेड को २५०,००० गाँवों को एफटीटीएच ब्रॉडबैंड आधारित तथा जीपीओएन के द्वारा जोड़ने का आदेश दिया है। यह २०१७ तक (अपेक्षित) पूर्ण होने वाली डिजिटल इंडिया परियोजना को सभी आधारभूत सुविधाएं मुहैया कराएगी। डिजिटल इंडिया भारत सरकार की आश्वासनात्मक योजना है। कई कम्पनियों ने इस योजना में अपनी दिलचस्पी दिखायी है। यह भी माना जा रहा है कि ई-कॉमर्स डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट को सुगम बनाने में मदद करेगा। जबकि, इसे कार्यान्वयित करने में कई चुनौतियाँ और कानूनी बाधाएं भी आ सकती हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि देश में डिजिटल इंडिया सफल तबतक नहीं हो सकता जबतक कि आवश्यक बीसीबी ई-गवर्नेंस को लागू न किया जाए तथा एकमात्र राष्ट्रीय ई-शासन योजना (नेशनल ए-गवर्नांस प्लान) का अपूर्ण क्रियान्वयन भी इस योजना को प्रभावित कर सकता है। निजता सुरक्षा, डाटा सुरक्षा, साइबर कानून, टेलीग्राफ, ई-शासन तथा ई-कॉमर्स आदि के क्षेत्र में भारत का कमजोर नियंत्रण है। कई कानूनी विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि बिना साइबर सुरक्षा के ई-प्रशासन और डिजिटल इंडिया व्यर्थ है। भारत ने साइबर सुरक्षा चलन ने भारतीय साइबर स्पेस की कमियों को उजागर किया है। यहाँ तक कि अबतक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा योजना २०१३ अभी तक क्रियानवयित नहीं हो पायी है। इन सभी वर्तमान परिस्थियों में महत्वपूर्ण आधारभूत सुरक्षा का प्रबंधन करना भारत सरकार के लिए कठिन कार्य होगा। तथा इस प्रोजेक्ट में उचित ई-कचरा प्रबंधन के प्रावधान की भी कमी है। डिजिटल इंडिया की निगरानी १. प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बनी कमेटी २. वित्त मंत्री, आईटी मंत्री, मानव संसाधन मंत्री, शहरी विकास मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री होंगे सदस्य ३. प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव, कैबिनेट सचिव, व्यय, योजना, टेलीकॉम और कार्मिक सचिव विशेष आमंत्रित ४. सूचना सचिव कमेटी के संयोजक डिजिटल इंडिया पर खर्च १- मौजूदा योजनाओं में एक लाख करोड़ २- नई योजनाओं और गतिविधियों में १३ हजार करोड़ ३- २०१९ तक डिजिटल इंडिया का असर ४- २.५ लाख गाँवों में ब्रॉडबैंड और फोन की सुविधा ५- २०२० तक नेट जीरो आयात ६- ४ लाख पब्लिक इंटरनेट केंद्र (केन्द्र) ७- २.४ लाख स्कूलों, विश्वविद्यालयों में वाई-फाई ८- आमलोगों के लिए वाई-फाई हॉट स्पॉट ९- १.७ करोड़ लोगों को आईटी, टेलीकॉम और इलेक्ट्रॉनिक में ट्रेनिंग और रोजगार १०- १.७ करोड़ लोगों को सीधे रोजगार ११- ८.५ करोड़ लोगों को अप्रत्यक्ष रोजगार १२- सभी सरकारों में इ-शासन राष्ट्रीय इ-शासन योजना राष्ट्रीय ई-शासन योजना डिजिटल इण्डिया का जालघर क्या ओपन सोर्स डिज़िटल इंडिया की सबसे ख़ास रणनीति है? (डिजिटल इंडिया) डिजिटल इंडिया: डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था के लिए एक कार्यक्रम
सोनागाछी को वेश्यावृत्ति का एशिया का सबसे बड़ा इलाका कहा जाता है। पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में मौजूद है। एक अनुमान के मुताबिक यहां करीब ७ हजार वेश्याएं कई सौ बहु मंजिला इमारतों में देह धंधा करती हैं। यह इलाका उत्तरी कोलकाता के शोभा बाजार के समीप स्थित चित्तरंजन एवेन्यू में है। इस धंधे से जुडी महिलाओं को लाइसेंस दिया गया है। इन्हें भी देखें जी.बी रोड, नई दिल्ली रेड लाइट एरिया कोलकाता के क्षेत्र
त्रिपरंगोड (त्रिप्रंगोड़े) भारत के केरल राज्य के मलप्पुरम ज़िले में स्थित एक नगर है। यह भारतपुड़ा नदी के किनारे बसा हुआ है। इन्हें भी देखें केरल के शहर मलप्पुरम ज़िले के नगर
खुण्डोली-रिंग०-१, चौबटाखाल तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा खुण्डोली-रिंग०-१, चौबटाखाल तहसील खुण्डोली-रिंग०-१, चौबटाखाल तहसील
वी एक २०२० भारतीय तेलुगू भाषा की एक्शन थ्रिलर फ़िल्म है। यह वेंकटेश्वर क्रिएशन्स के बैनर तले, मोहना कृष्णा इंद्रगंती द्वारा लिखित एवं निर्देशित तथा दिल राजू द्वारा निर्मित की गई है। फ़िल्म में नानी, सुधीर बाबू, निवेथा थॉमस और अदिति राव हैदरी मुख्य भूमिकाओं के साथ-साथ वेन्नेला किशोर और तनिकेला भरानी सहायक भूमिकाओं में हैं। अभिनेता के रूप में यह नानी की २५वीं फ़िल्म है, जिसमें उन्होंने अपने करियर में पहली बार एक एंटीहीरो की भूमिका निभाई है। फ़िल्म में एक पुलिस अधिकारी एक सीरियल किलर को पकड़ने की कोशिश करता है। फ़िल्म की आधिकारिक घोषणा के बाद मुख्य फोटोग्राफी मई २०१९ में शुरू हुई और जनवरी २०२० में शूटिंग पूरी होने से पहले प्रमुख रूप से हैदराबाद, मुंबई और थाईलैंड में शूट की गई थी। २५ मार्च २०२० को उगादी शुरू होने के साथ निर्धारित थिएट्रिकल रिलीज़ के बाद, जिसे कोविड-१९ विश्वमारी के कारण अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया था। फ़िल्म ५ सितंबर २०२० को अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज़ की गई। इस प्रकार यह डिजिटल रिलीज़ होने वाली पहली तेलुगू फ़िल्म बन गई। समीक्षकों से इसे नकारात्मक समीक्षा मिली। उन्होंने मुख्य कलाकारों के प्रदर्शन, शैलीबद्ध एक्शन दृश्यों, तकनीकी प्रशंसा और निर्देशन की प्रशंसा की, लेकिन इसके घिसे-पिटे लेखन की आलोचना की। हालाँकि, यह २०२० में स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर सबसे ज्यादा देखी जाने वाली तेलुगू फ़िल्म थी। फ़िल्म को डिजिटल रिलीज़ के बाद १ जनवरी 202१ को सिनेमाघरों में फिर से रिलीज़ किया गया। सुधीर बाबू ने अपने प्रदर्शन के लिए ९वें साउथ इंडियन इंटरनेशनल मूवी अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ तेलुगू अभिनेता का क्रिटिक्स च्वाइस अवार्ड जीता। भारतीय एक्शन थ्रिलर फ़िल्में
मलूटी के मन्दिर से आशय झारखण्ड के दुमका जिले के मलूटी गाँव में स्थित ७२ मन्दिरों से है। वास्तव में यहाँ मूल रूप से १०८ मन्दिरों का निर्माण हुआ था जिसमें से ७२ ही बच पाए हैं। पुराने स्वरूप में लौटे मलूटी के १७ मंदिर झारखण्ड के हिन्दू मन्दिर
सोनू वालिया हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री हैं। नामांकन और पुरस्कार १९८९ - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कार - खून भरी माँग फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता
फ़ीफ़ा विश्व कप, साहचर्य फ़ुटबौल का अन्तर्राष्ट्रीय संघ () (फ़ीफ़ा), खेल की वैश्विक शासी निकाय, के सदस्यों की वरिष्ठ पुरुषों की राष्ट्रीय टीमों द्वारा लड़ी गई एक अंतर्राष्ट्रीय साहचर्य फ़ुटबॉल प्रतियोगिता है। १९४२ और १९४६ को छोड़कर, जब द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण इसका आयोजन नहीं किया गया था, तब से १९३० में उद्घाटन टूर्नमेंट के बाद से प्रति चार वर्षों में विजेता को सम्मानित किया गया है। वर्तमान विजेता अर्जेंटीना है, जिसने २०२२ टूर्नमेंट में अपना तीसरा पदवी जीता था। वर्तमान प्रारूप में एक योग्यता चरण शामिल है, जो पिछले तीन वर्षों में होता है, यह निर्धारित करने के लिए कि कौन सी दलें टूर्नामेंट चरण के लिए योग्य होते हैं। टूर्नमेंट के चरण में, ३२ टीमें लगभग एक महीने से अधिक समय तक मेजबान राष्ट्र (ओं) के स्थानों पर पदवी के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं। आतिथेय देश (देशों) स्वयमेव योग्य हैं। २०१८ फीफा विश्व कप के अनुसार, इक्कीस अन्तिम टूर्नमेंट आयोजित किए गए हैं और कुल ७९ राष्ट्रीय दलों ने भाग लिया है। यह ट्रॉफी आठ राष्ट्रीय टीमों ने जीती है। ब्राज़ील ने पांच बार विजय प्राप्त की है, और वह प्रत्येक टूर्नमेंट में खेलने वाली एकमात्र दल हैं। अन्य विश्व कप विजेता जर्मनी और इटली हैं, जिनमें से प्रत्येक में चार खिताब हैं; अर्जेंटीना तीन बार, फ्रांस, और उरुग्वे, दो-दो पदवी के साथ; और इंग्लैंड और स्पेन, एक-एक पदवी के साथ। विश्व कप विश्व में सबसे प्रतिष्ठित साहचर्य फुटबॉल टूर्नमेंट है, साथ ही विश्व में सबसे व्यापक रूप से देखा और अनुसरण किया जाने वाला एकल खेलायोजन है। २०१८ फ़ीफ़ा विश्व कप के सभी मैचों की संचयी दर्शकों की संख्या ३.५७ अरब (वैश्विक जनसंख्या का आधा) थी, जिसमें अनुमानित १.१2 अरब लोग अन्तिम मैच देख रहे थे। सत्रह देशों ने विश्व कप का आतिथ्य की है अभी क़तर ने २०२२ विश्व कप का आतिथ्य किया है। २०२६ टूर्नमेंट की आतिथ्य कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और मैक्सिको द्वारा संयुक्त रूप से की जाएगी, जो मेक्सिको को तीन विश्व कप में खेलों की आतिथ्य करने वाला पहला देश होने का गौरव प्रदान करेगा। विजेताओं की सूची एट: अतिरिक्त समय के बाद प: पेनाल्टी शूटआउट के बाद हरा पृष्ठभूमि छायांकन उपस्थिति रिकॉर्ड संकेत करता है। प्रत्येक विश्व कप के अंत में पुरस्कार टूर्नामेंट में अपने अंतिम टीम पदों के अलावा अन्य उपलब्धियों के लिए खिलाड़ियों और टीमों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। सम्मानित छह पुरस्कार वर्तमान में रहे हैं: सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के लिए गोल्डन बॉल, मीडिया के सदस्यों के एक वोट से निर्धारित, सिल्वर बॉल और कांस्य बॉल क्रमशः मतदान में दूसरे और तीसरे परिष्करण खिलाड़ियों को सम्मानित किया जाता है। गोल्डन बूट, टूर्नामेंट में शीर्ष गोल करने वाले खिलाड़ी के लिए, सिल्वर बूट और कांस्य बूट क्रमशः दूसरे और तीसरे परिष्करण खिलाड़ियों को सम्मानित किया जाता है। सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर के लिए गोल्डन दस्ताना पुरस्कार, फीफा टेक्निकल स्टडी ग्रुप ने फैसला किया है। फीफा फेयर प्ले समिति द्वारा स्थापित अंक प्रणाली और मापदंड के अनुसार फेयर प्ले का सबसे अच्छा रिकार्ड के साथ टीम के लिए फीफा फेयर प्ले ट्राफी। टूर्नामेंट के शुरू में २१ या छोटी आयु वर्ग के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के लिए सर्वश्रेष्ठ युवा खिलाड़ी का पुरस्कार, फीफा टेक्निकल स्टडी ग्रुप द्वारा निर्णय लिया। अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्धा फीफा विश्व कप
प्यातोली, गंगोलीहाट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा प्यातोली, गंगोलीहाट तहसील प्यातोली, गंगोलीहाट तहसील
राज नारायण मिश्र,भारत के उत्तर प्रदेश की तीसरी विधानसभा सभा में विधायक रहे। १९६२ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के ३१८ - भोगनीपुर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया। उत्तर प्रदेश की तीसरी विधान सभा के सदस्य ३१८ - भोगनीपुर के विधायक कानपुर के विधायक कांग्रेस के विधायक
इल्यूशिन आईएल-११२ (इल्युशीन इल-११२) एक उच्च विंग वाला हल्का सैन्य परिवहन विमान है जिसे इल्यूशिन एविएशन कॉम्प्लेक्स में बनाया जाएगा। एयर लैंडिंग और सैन्य हवाई कार्गो, उपकरण और कर्मियों के लिए इस विमान को बनाया जा रहा हैं। वोरोनिश एयरक्राफ्ट प्रोडक्शन एसोसिएशन द्वारा विमान का निर्माण किया जा रहा है। विमान सिस्टम के संचालन के बारे में सभी विमानन सूचनाओं छह एलसीडी मॉनिटर पर प्रदर्शित होंगी। डिजाइन और विकास ३ फरवरी २०१७ को, रूस के उप प्रधान मंत्री, दिमित्री रोजोजिन ने दोहराया कि आईएल-११२ के विकासाधीन की पहली उड़ान २०१७ के मध्य में होगी। २० जून २०17 को, इल्यूशिन के चीफ डिजाइनर निकोलाई तालिकोव ने कहा कि विमान की पहली उड़ान २०18 में हो सकती हैं। आईएल-११२वी मानक मॉडल आईएल-११२वीटी हल्का परिवहन विमान इन्हें भी देखें सुखोई सुपरजेट १०० सुखोई सुपरजेट १३० रूस के विमान सैन्य परिवहन विमान
परमेश्वरी राम,भारत के उत्तर प्रदेश की प्रथम विधानसभा सभा में विधायक रहे। १९५२ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के २३० - केराकत-जौनपुर (दक्षिण) विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया। उत्तर प्रदेश की प्रथम विधान सभा के सदस्य २३० - केराकत-जौनपुर (दक्षिण) के विधायक जौनपुर के विधायक कांग्रेस के विधायक
मिनि एसडी कार्ड (लघु: मिनिस्ड ) एक प्रकार का मेमोरी कार्ड होता है। इसका आकार २१.५ २० १.४ म्म होता है व ड्र्म कर्म है।
त्रिपुरा की संस्कृति, भारत के अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के मूल निवासी जनजातियों की संस्कृति जैसी ही है। यहाँ पर बंगाली संस्कृति का प्रभाव है।
सबा क़मर पाकिस्तानी ऐक्ट्रेस हैं। सबा क़मर क़ंदील बलोच की बायॉपिक 'बाग़ी' में और फ़िल्म हिंदी मीडियम में इरफान खान के साथ दिखी । सबा क़मर को पाकिस्तान में पाकिस्तानी टी.वी. की रानी कहा जाता है। सबा कई मैगज़ीन के कवर पर अपने जलवे बिखेर चुकी हैं। सबाह क़मर ज़मान (जन्म ५ अप्रैल १९८४) को सबा क़मर के रूप में श्रेय जाता है, जो एक पाकिस्तानी अभिनेत्री और टेलीविज़न हस्ती हैं। पाकिस्तान की सबसे लोकप्रिय और उच्चतम भुगतान वाली अभिनेत्रियों में से एक, क़मर लक्स स्टाइल अवार्ड, हम अवार्ड और फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड नामांकन सहित कई प्रशंसाओं की प्राप्तकर्ता है। उन्हें पाकिस्तान सरकार ने २०१२ में तमगा-ए-इम्तियाज़ और २०१६ में प्राइड ऑफ़ परफॉर्मेंस से सम्मानित किया था। उन्होंने टेलीविजन सीरीज़ में औरत हूं (200५) में भूमिका के साथ अभिनय की शुरुआत की। क़मर को आखिरी बार एरी डिजिटल के कोर्टरूम ड्रामा चेह (२०१९) में मन्नत के रूप में मुख्य भूमिका निभाते हुए देखा गया था। अपने कैरियर की शुरुआत टीवी श्रृंखला में मैं औरत हूँ .से की और इसके लिए पीटीवी का सर्वश्रेष्ठ टीवी अभिनेत्री का पुरस्कार प्राप्त किया बॉलीवुड फ़िल्म निर्माता दिनेश विजान व भूषण कुमार की फ़िल्म हिंदी मीडियम में पाकिस्तानी अभिनेत्री सबा क़मर भारतीय अभिनेता इरफ़ान ख़ान के साथ हैं। फ़िल्म 'मंटो' में नूर का किरदार निभाने के लिए प्रशंसा बटोर चुकीं अभिनेत्री की इस फ़िल्म का निर्देशन साकेत चौधरी निर्देशित कर रहे हैं। इन्हें भी देखें १९८४ में जन्मे लोग
भारत के गुजरात राज्य के जूनागढ़ जिले स्थित पहाड़ियाँ गिरनार नाम से जानी जाती हैं। यह जैन सिद्ध क्षेत्र है यहाँ श्री नेमिनाथ भगवान की चरणपादुका है। यहां जैन धर्म के बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ ने निर्वाण प्राप्त किया था। यह अहमदाबाद से ३२७ किलोमीटर की दूरी पर जूनागढ़ के १० मील पूर्व भवनाथ में स्थित हैं। यह एक पवित्र स्थान है जो जैन धर्मावलंबियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ है। हरे-भरे गिर वन के बीच पर्वत-शृंखला धार्मिक गतिविधि के केंद्र के रूप में कार्य करती है। इन पहाड़ियों की औसत ऊँचाई ३,५०० फुट है पर चोटियों की संख्या अधिक है। इनमें हिंदू भगवान श्री दत्तात्रय हैं। सर्वोच्च चोटी ३,६६६ फुट ऊँची है;| यहां सब धर्म के भक्त आते है और हिंदु मंदिर का दर्शन करते है एशियाई सिंहों के लिए विख्यात 'गिर वन राष्ट्रीय उद्यान' इसी पर्वत के जंगल क्षेत्र में स्थित है। यहां गुरू दत्तात्रय और गोरक्षनाथ के मंदिर बने हुए हैं । यहीं पर सम्राट अशोक का एक स्तंभ भी है । महाभारत में अनुसार रेवतक पर्वत की क्रोड़ में बसा हुआ प्राचीन तीर्थ स्थल है । गिरिनार का प्राचीन नाम उर्ज्जयंत था। ये पहाड़ियाँ ऐतिहासिक मंदिरों, राजाओं के शिलालेखों तथा अभिलेखों (जो अब प्राय: ध्वस्तप्राय स्थिति में हैं) के लिए भी प्रसिद्ध हैं। पहाड़ी की तलहटी में एक बृहत चट्टान पर अशोक के मुख्य १४ धर्मलेख उत्कीर्ण हैं। इसी चट्टान पर क्षत्रप रुद्रदामन् का लगभग १५० ई. का प्रसिद्ध संस्कृत अभिलेख है। इसमें सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य तथा परवर्ती राजाओं द्वारा निर्मित तथा जीर्णोद्वारकृत जैन और विष्णुमंदिर का सुंदर वर्णन है। यह लेख संस्कृत काव्यशैली के विकास के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण समझा जाता है। इस बृहत अभिलेख में रुद्रदमन के नाम और वंश का उल्लेख तथा रूद्रदमन् संवत् ७२ में, भयानक आँधी पानी के कारण प्राचीन सुदर्शन झील टूट फूट जाने का काव्यमय वर्णन है। विशेषकर सुवर्णसिकता तथा पलाशिनी नदियों के पानी को रोककर बाँध बनाए जाने तथा महावृष्टि एवं तूफान से छूट जाने का वर्णन तो बहुत ही सुंदर है। इस अभिलेख की चट्टान पर ४५८ ई. का एक अन्य अभिलेख गुप्तसम्राट् स्कंदगुप्त के समय का भी है जिसमें सुराष्ट्र के तत्कालीन राष्ट्रिक पर्णदत्त के पुत्र चक्रपालित द्वारा सुदर्शन तड़ाग के सेतु या बाँध का पुन: एक बार जीर्णोद्धार किए जाने का उल्लेख है क्योंकि पुराना बाँध, जिसे रूद्रदामन् ने बनवाया था, स्कंदगुप्त के राज्याभिषेक वर्ष में जल के महावेग से नष्ट भ्रष्ट हो गया था। यहाँ के सिंहों की नस्ल भी अधिक विख्यात है जिनकी संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है। जैन तीर्थस्थल के रूप मे उल्लेख पालिताना और सम्मेद शिखर के बाद यह जैनियों का प्रमुख तीर्थ हैं। पर्वत पर स्थित जैन मंदिर प्राचीन एवं सुंदर हैं। जैन धर्म में चौबीस तीर्थंकरों की आराधना का विधान किया गया है जिसमें से २२ वे तीर्थंकर श्री नेमिनाथ जी [ अरिष्ठनेमी ] का केवल ज्ञान प्राप्ति व मोक्ष [ निर्वाण ] प्राप्ति स्थल ऐतिहासिक रूप से गिरनार पर्वत, जिला-जूनागढ़, राज्य-गुजरात से बताया गया है; जिस कारण उक्त पर्वत जैन धर्मानुयायियो हेतु पवित्र व पूजनीय है | पुराणों के अनुसार श्री नेमिनाथ जी शौर्यपुर के राजा समुद्रविजय और रानी शिवादेवी के पुत्र थे। समुद्रविजय के अनुज (छोटे भाई) का नाम वसुदेव था जिनकी दो रानियाँ थींरोहिणी और देवकी। रोहिणी के पुत्र का नाम बलराम बलभद्र व देवकी के पुत्र का नाम श्रीकृष्ण था । इस तरह नेमिनाथ श्रीकृष्ण के बाबा(ताऊ) थे। उक्त पर्वत पर जैनों हेतु ऐतिहासिक रूप से आठ स्थल पूजनीय बताए गए हैं जिनमें से प्रथम पॉच स्थल टोंक कहा जाता है; द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ टोंक का उल्लेख उत्तर पुराण सर्ग ७२ श्लोक १८९-१९० में आचार्य गुणभद्र सुरी ( ७४१ ईसवी ) ने भी किया है | इस स्थल पर पांचवी सदी से सोलवीं सदी के श्वेतांबर/ दिगंबर पंथ के १०० से अधिक मंदिर बने हुए हैं | श्वेताम्बर जैन मंदिर समूह पहाड़ की चोटी पर कई दत्तात्रेय मंदीर हैं। यहां तक पहुँचने के लिए ७,००० सीढ़ियाँ हैं। इनमें सर्वप्राचीन मंदिर गुजरात नरेश कुमारपाल के समय का बना हुआ है। दूसरा वास्तुपाल और तेजपाल नामक भाइयों ने बनवाया था। इसे तीर्थंकर मल्लिनाथ मंदिर कहते हैं। यह विक्रम संवत् १२८८ (123७ ई.) में बना। तीसरा मंदिर नेमिनाथ का है जो लगभग 12७७ ई. में तैयार हुआ। यह सबसे अधिक विशाल एवं भव्य है। प्राचीन काल में इन पर्वतों की शोभा अपूर्व थी क्योंकि इनके सभामंडप, स्तंभ, शिखर, गर्भगृह आदि स्वच्छ संगमरमर से निर्मित होने के कारण बहुत चमकदार और सुंदर दिखते थे। अब अनेक बार मरम्मत होने से इनका स्वभाविक सौंदर्य कुछ फीका पड़ गया है। मुनि अनिरुद्ध कुमार जी के चरण स्थित है। मुनि शंभू कुमार जी के चरण स्थित है। मुनि प्रदुम कुमार जी के चरण एवं पत्थर पर तीर्थंकर की प्रतिमा उत्कीर्ण है; जैन मन्यतानुसार ये श्री कृष्ण के पुत्र है। पंचम टोक गुरू दत्तात्रेय शिखर यहा गुरू दत्तात्रेय जी के चरण कमल है ल यहा गुरू दत्तात्रेय जी ने १२००० वर्ष तपश्र्चर्या की है ल इस स्थल पर चरण के ऊपर चार खम्बों पर एक छतरी बनी हुई थी साथ ही इक शिलालेख स्थित था जिसमे उल्लेख था कि बूंदी (राजपूताना) के जैन अनुयायी द्वारा पर्वत की सीढ़ियों का निर्माण कार्य कराया गया है | (उक्त छत्री १९८१ मे आकाशीय बिजली से नष्ट हो गयी है।) दत्तात्रेय जी का केवल ज्ञान प्राप्ति स्थल; यहां दत्तात्रेय जी के चरण स्थित है एवं एक भव्य मंदिर निर्मित है | राजुल की गुफा यहां माता राजुल की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है; इनका विवाह भगवान दत्तात्रेय से होने से पूर्व ही दत्तात्रेय जी को वैराग्य हो गया था जिस् कारण इन्होंने भी वैराग्य् धारण कर इस स्थल पर साधना की है। अंबामाता का मंदिर यह तीर्थंकर नेमिनाथ की यक्षिनी अंबिका देवी का मंदिर हैं। वह नीले वर्ण वाली, सिंह की सवारी करने वाली, आम्रछाया में रहने वाली दो भुजा वाली है। बायें हाथ में प्रियंकर नामक पुत्र के प्रेम के कारण आम की डाली को और दायें हाथ में अपने द्वितीय पुत्र शुभंकर को धारण करने वाली है। चूंकि अम्बिका जी हाथो मे आम्र वृक्ष धारण करती है जिस कारण इस मन्दिर के आस-पास आम्र वृक्ष लगाने की प्रथा पुरातन समय मे यहाँ थी। अन्य स्थलो मे चौबीस तीर्थंकरो के चरण (यह गौमुखी गंगा के परिसर मे स्थित है ) ,एवम पर्वत पर जगह-जगह पर स्थित तीर्थंकरो के चरण एवं पत्थरो पर तीर्थंकर की उत्कीर्ण प्रतिमाएं है | उत्तर पुराण-आचार्य गुणभद्र सुरी ( ७४१ ईसवी ) सर्ग-७१, श्लोक १७९-१८१ तिलोयपण्ण्ती- आचार्य यतिवृषभ ( १७६ ईसवी )-४/१२०६ नाग कुमार चरित्र- महाकवि पुष्पदंत (१० वीं शताब्दी) निर्माण कांड - कवि श्री भैया भगवती दास (१७४१सवंत ) हरिवंश पुराण , आचार्य जिनसेन कृत् ( ईस्वी की आठवीं शताब्दी ), सर्ग-६५, श्लोक ४-१७ प्रभास पाटन से प्राप्त बेबिलोन के शासक नभश्चन्द्र का प्राचीन ताम्रपत्र, नेमिनाथ पुराण- ब्रह्मचारी नेमिदत्त कृत् ( ईस्वी १५२८ ), आचार्य वीरसेन कृत धवला टीका ( ईस्वी की आठवीं शताब्दी ) आचार्य मदन कीर्ति यतिपति की शासन चतुस्त्रिशतिका (वि. स.१४०५ ), श्री शत्रुंजय महात्म्य ग्रंथ - श्री धनेश्वर सूरी कृत्, गिरनार भक्ति - श्वेताम्बर जैन महातीर्थ गिरनार के बारे में सम्पूर्ण जानकारी गिरनार महिमा - जैन धर्म का डिजिटल पोर्टल भगवा और भस्म के दिवाने गढ गिरनार वाले। गुजरात में पर्यटन गुजरात के पर्वत
पॊट्लपालॆं (कृष्णा) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कृष्णा जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
करुवन्नूर नदी (करुवन्नुर रिवर) भारत के केरल राज्य के त्रिस्सूर ज़िले में बहने वाली एक नदी है। यह कुरुमाली नदी और मनली नदी के संगम से बनती है। इसकी दोनो सहायक नदियाँ - कुरुमाली नदी और मनली नदी - आराट्टुपुड़ा में संगम करती हैं और वहीं से यह करुवन्नूर नदी कहलाती है। फिर यह संयुकत नदी त्रिस्सूर-पोन्नानी कोल आर्द्रभूमि को दो भागों में विभाजित करती है। पश्चिम बहती हुई यह फिर दो वितरिकाओं में बंट जाती है, जिनमें से एक एणमक्कल झील विलय हो जाती है, जबकि दूसरी पेरियार नदी में विलय हो जाती है। इन्हें भी देखें केरल की नदियाँ त्रिस्सूर ज़िले का भूगोल
पूर्वा गोखले (जन्म: २० जनवरी १९७८) एक मराठी टीवी अभिनेत्री हैं, जिन्हें ज़ी टीवी के कार्यक्रम तुझसे है राब्ता में अनुप्रिया के रूप में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है। वह एक थिएटर अभिनेत्री की बेटी हैं, जिनका जन्म नाम पूर्वा गुप्ते था, और फिर उन्होंने केदार गोखले नाम के एक व्यवसायी से शादी की। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा ठाणे के होली क्रॉस कॉन्वेंट स्कूल से की और शास्त्रीय नृत्य का प्रशिक्षण लिया। उन्होंने मुलुंड में वी.जी. वाजे कॉलेज से पढ़ाई की है। वह चार्टर्ड अकाउंटेंसी फाइनल स्तर की छात्रा थी। हालाँकि अभिनय के प्रति उनके जुनून ने उन्हें इस करियर तक पहुँचाया। एक किशोरी के रूप में, गोखले ने हिंदी धारावाहिक कोई दिल में है में सह-अभिनय किया, जो दो सहेलियों पर केंद्रित था। कार्यक्रम में करिश्मा तन्ना की एक आउटगोइंग फ्लर्ट की भूमिका के विपरीत गोखले ने एक शांत और अधिक पारंपरिक लड़की की भूमिका निभाई। बाद में वह हिंदी धारावाहिक कहानी घर घर की में गुन कृष्ण अग्रवाल के रूप में दिखाई दीं। उन्होंने बूँदें नामक एक हिंदी संगीत एल्बम में भी अभिनय किया है। वह एक मराठी टेलीविजन शो कुलावधु में मुख्य अभिनेत्री थीं उन्होंने मराठी मंच नाटकों स्माइल प्लीज़ और "सेल्फ़ी" में अभिनय किया है। उन्हें २०२० में अपनी पहली फिल्म भूमिका मिली। यह एक मराठी फिल्म थी जिसका नाम भयभीत था। वर्तमान में वह ज़ी टीवी शो तुझसे है राब्ता में अनुप्रिया देशमुख की भूमिका निभा रही हैं। ठाणे के लोग भारतीय टेलीविज़न अभिनेत्री १९५८ में जन्मे लोग
सुनीता देशपांडे (३ जुलाई १९२६-७ नवम्बर २००९), मराठी भाषा की एक भारतीय लेखिका थीं। उनके मायके का नाम सुनीता ठाकुर था। १९४५ में उनकी मुलाक़ात पुरुषोत्तम लक्ष्मण देशपांडे से हुई और अगले ही साल १९४६ में उन्होने उनसे शादी कर ली। सुनीता की आत्मकथा आहे मनोहर तारी... काफी चर्चा में रही थी, क्योंकि उन्होंने अपने पति के जीवनकाल में ही उनके बारे में कुछ विवादास्पद बातें लिखी थीं। उनकी अन्य प्रमुख कृतियों में प्रिया जीए और मनयांची माल शामिल हैं। आहे मनोहर तरी... (१९९०) प्रिय जी.ए. (२००३) मण्यांची माळ (२००२) मनातलं अवकाश (२००६) सोयरे सकळ (१९९८) समांतर जीवन (१९९२) भारतीय महिला साहित्यकार महाराष्ट्र के लोग १९२६ में जन्मे लोग २००९ में निधन
१५७० ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ
पंचायत समिति चौथ का बरवाड़ा केेे अंदर बलरीया गांव शामिल है जिसमें बलरीया की जनसंख्या १००० के लगभग है और बलरिया पंचायत में ५ गांव आते हैं ऐसे कुल मिलाकर जनसंख्या ढाई हजार के आसपास है गांव गरडवास में पीर बाबा का मंदिर दरगाह है और गांव बलरिया में मां बिनजारी माता मंदिर।और ताखाजी जी महाराज मंदिर आदि शामिल है। गांव में सभी प्रकार की सुविधा शामिल है चौथ का बरवाड़ा से ३ किलोमीटर दूरी पर स्थित है दक्षिण दिशा पर और इसका विस्तार चार-पांच किलोमीटर तक फैला हुआ है इसमें गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल भी है और इसमें पढ़ने के लिए बाहर के गांव से छात्र-छात्राएं पढ़ने आते हैं और हमारे गांव का नाम पढ़ाई में रोशन हो रहा है बलरिया पंचायत में शामिल गांव रामसिंहपुरा ,लक्ष्मीपुरा ,गरड़वास शोदानपुरा ,कंवरपुरा ,गोपालपुरा आदि है जिसमें सभी गांव में अमरूदों के बगीचे और दूर-दूर तक गरड़वास का वन फैला हुआ है।
नस्लीय भेदभाव किसी भी व्यक्ति के खिलाफ उनकी त्वचा के रंग, नस्ल या जातीय मूल के आधार पर कोई भी भेदभाव है। व्यक्ति एक निश्चित समूह के लोगों के साथ व्यापार करने, सामूहीकरण करने, या संसाधनों को साझा करने से इनकार करके भेदभाव कर सकते हैं। सरकारें वास्तविक रूप से या स्पष्ट रूप से कानून में भेदभाव कर सकती हैं, उदाहरण के लिए नस्लीय अलगाव की नीतियों के माध्यम से कानूनों के असमान प्रवर्तन, या संसाधनों के अनुपातहीन आवंटन के माध्यम से। कुछ न्यायालयों में भेदभाव-विरोधी कानून हैं जो सरकार या व्यक्तियों को विभिन्न परिस्थितियों में नस्ल (और कभी-कभी अन्य कारकों) के आधार पर भेदभाव करने से रोकते हैं। कुछ संस्थान और कानून नस्लीय भेदभाव के प्रभावों पर काबू पाने या क्षतिपूर्ति करने के प्रयास के लिए सकारात्मक कार्रवाई का उपयोग करते हैं। कुछ मामलों में यह केवल कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों के सदस्यों की बढ़ी हुई भर्ती है; अन्य मामलों में निश्चित नस्लीय कोटा हैं। कोटा जैसे मजबूत उपायों के विरोधी उन्हें विपरीत भेदभाव के रूप में चित्रित करते हैं जहाँ एक प्रमुख या बहुसंख्यक समूह के सदस्यों के साथ भेदभाव किया जाता है। सीमा संबंधी समस्याएं और भेदभाव के संबंधित रूप नस्लीय सीमाओं में कई कारक शामिल हो सकते हैं (जैसे वंश, शारीरिक उपस्थिति, राष्ट्रीय मूल, भाषा, धर्म और संस्कृति), और सरकारों द्वारा कानून में निर्धारित किया जा सकता है, या स्थानीय सांस्कृतिक मानदंडों पर निर्भर हो सकता है। त्वचा के रंग पर आधारित भेदभाव, (उदाहरण के लिए फिट्ज़पैट्रिक स्केल पर मापा गया) नस्लीय भेदभाव से निकटता से संबंधित है, क्योंकि त्वचा का रंग अक्सर रोज़मर्रा की बातचीत में दौड़ के लिए प्रॉक्सी के रूप में उपयोग किया जाता है, और कानूनी प्रणालियों द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक कारक है जो विस्तृत मानदंड लागू करता है। उदाहरण के लिए जनसंख्या पंजीकरण अधिनियम, १९५० का उपयोग दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद प्रणाली को लागू करने के लिए किया गया था, और ब्राजील ने नस्लीय कोटा लागू करने के उद्देश्य से लोगों को नस्लीय श्रेणी प्रदान करने के लिए बोर्डों की स्थापना की है। आनुवंशिक भिन्नता के कारण, भाई-बहनों के बीच भी त्वचा का रंग और अन्य शारीरिक बनावट काफी भिन्न हो सकती है। एक ही माता-पिता वाले कुछ बच्चे या तो स्वयं की पहचान करते हैं या दूसरों द्वारा अलग-अलग जातियों के होने के रूप में पहचाने जाते हैं। कुछ मामलों में एक ही व्यक्ति को जन्म प्रमाण पत्र बनाम मृत्यु प्रमाण पत्र पर एक अलग जाति के रूप में पहचाना जाता है। अलग-अलग नियम (जैसे हाइपोडिसेंट बनाम हाइपरडिसेंट) समान लोगों को अलग-अलग वर्गीकृत करते हैं, और विभिन्न कारणों से कुछ लोग एक अलग जाति के सदस्य के रूप में "पास" होते हैं, अन्यथा उन्हें कानूनी या पारस्परिक भेदभाव से बचने के लिए वर्गीकृत किया जाएगा। एक दी गई जाति को कभी-कभी पड़ोसी भौगोलिक क्षेत्रों (जैसे कि ऑस्ट्रेलिया जैसे महाद्वीप या दक्षिण एशिया जैसे उपमहाद्वीप क्षेत्र) में आबादी से जातियों के एक सेट के रूप में परिभाषित किया जाता है जो आम तौर पर दिखने में समान होते हैं। ऐसे मामलों में नस्लीय भेदभाव हो सकता है क्योंकि कोई व्यक्ति उस जाति के बाहर के रूप में परिभाषित जातीयता का है, या जातीय भेदभाव (या जातीय घृणा जातीय संघर्ष और जातीय हिंसा) उन समूहों के बीच हो सकता है जो एक दूसरे को एक ही जाति मानते हैं। जाति के आधार पर भेदभाव समान है; क्योंकि जाति वंशानुगत होती है, एक ही जाति के लोगों को आमतौर पर एक ही नस्ल और जातीयता के माना जाता है। एक व्यक्ति की राष्ट्रीय उत्पत्ति (वह देश जिसमें वे पैदा हुए थे या नागरिकता रखते हैं) का उपयोग कभी-कभी किसी व्यक्ति की जातीयता या नस्ल का निर्धारण करने में किया जाता है, लेकिन राष्ट्रीय मूल के आधार पर भेदभाव भी नस्ल से स्वतंत्र हो सकता है (और कभी-कभी विशेष रूप से भेदभाव विरोधी कानूनों में संबोधित किया जाता है)). भाषा और संस्कृति कभी-कभी राष्ट्रीय मूल के चिह्नक होते हैं और राष्ट्रीय मूल के आधार पर भेदभाव के उदाहरण दे सकते हैं। उदाहरण के लिए दक्षिण एशियाई जातीयता का कोई व्यक्ति जो लंदन में पला-बढ़ा है, लंदन लहजे के साथ ब्रिटिश अंग्रेजी बोलता है, और जिसका परिवार ब्रिटिश संस्कृति को आत्मसात कर चुका है, उसी जातीयता के किसी व्यक्ति की तुलना में अधिक अनुकूल व्यवहार किया जा सकता है जो हाल ही में अप्रवासी है और भारतीय बोलता है अंग्रेजी । उपचार में इस तरह के अंतर को अभी भी अनौपचारिक रूप से नस्लवाद के रूप में वर्णित किया जा सकता है, या अधिक सटीक रूप से ज़ेनोफ़ोबिया या अप्रवासी विरोधी भावना के रूप में वर्णित किया जा सकता है। उन देशों में जहाँ प्रवासन, एकीकरण, या अलगाव अपेक्षाकृत हाल ही में हुआ है, नृवंशविज्ञान की प्रक्रिया जातीयता और नस्ल दोनों के निर्धारण को जटिल बना सकती है और व्यक्तिगत पहचान या संबद्धता से संबंधित है। कभी-कभी अपने नए देश में अप्रवासियों की जातीयता को उनके राष्ट्रीय मूल के रूप में परिभाषित किया जाता है, और कई नस्लों में फैला होता है। उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका की जनगणना के २०१५ के सामुदायिक सर्वेक्षण ने किसी भी जाति के मैक्सिकन अमेरिकियों के रूप में पहचान को स्वीकार किया (उदाहरण के लिए मेक्सिको के मूल अमेरिकी, अफ्रीकियों के वंशजों को गुलाम लोगों के रूप में न्यू स्पेन ले जाया गया, और स्पेनिश उपनिवेशवादियों के वंशज)। मैक्सिकन सरकार द्वारा किए गए सर्वेक्षणों में उन्हीं लोगों को स्वदेशी, काले या सफेद के रूप में वर्णित किया गया होगा (बड़ी संख्या में अवर्गीकृत लोगों के साथ जिन्हें मेस्टिज़ो के रूप में वर्णित किया जा सकता है)। अमेरिकी जनगणना भाषा को नस्लीय पहचान से अलग करने के लिए हिस्पैनिक और लातीनी अमेरिकियों के बारे में अलग-अलग प्रश्न पूछती है। हिस्पैनिक या लातीनी होने के आधार पर भेदभाव संयुक्त राज्य अमेरिका में होता है और इसे नस्लीय भेदभाव का एक रूप माना जा सकता है यदि "हिस्पैनिक" या "लैटिनो" को जातीयताओं से प्राप्त एक नई नस्लीय श्रेणी माना जाता है जो कि पूर्व उपनिवेशों की स्वतंत्रता के बाद बनाई गई थी। अमेरिका की। कई सांख्यिकीय रिपोर्ट दोनों विशेषताओं को लागू करती हैं, उदाहरण के लिए गैर-हिस्पैनिक गोरों की अन्य समूहों से तुलना करना। जब अलग-अलग जातियों के लोगों के साथ अलग-अलग व्यवहार किया जाता है, तो किसी विशेष व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार किया जाए, इस बारे में निर्णय यह सवाल उठाते हैं कि वह व्यक्ति किस नस्लीय वर्गीकरण से संबंधित है। उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में सफेदी की परिभाषाओं का उपयोग नागरिक अधिकारों के आंदोलन से पहले आप्रवासन और नागरिकता धारण करने या गुलाम होने की क्षमता के उद्देश्य से किया गया था। यदि किसी जाति को नृजातीय भाषाई समूहों के एक समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है, तो उस समूह की सीमाओं को परिभाषित करने के लिए सामान्य भाषा मूल का उपयोग किया जा सकता है। फिन्स की सफेद के रूप में स्थिति को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि फ़िनिश भाषा हिन्द-यूरोपीय के बजाय यूराली है जो कथित तौर पर मंगोलॉयड जाति के फिन्स बनाती है। आम अमेरिकी धारणा है कि भौगोलिक रूप से यूरोपीय वंश और हल्की त्वचा के सभी लोग "श्वेत" हैं, फिन्स और अन्य यूरोपीय आप्रवासियों जैसे आयरिश अमेरिकियों और इतालवी अमेरिकियों के लिए प्रचलित हैं जिनकी सफेदी को चुनौती दी गई थी और जिन्हें कानूनी भेदभाव नहीं होने पर पारस्परिकता का सामना करना पड़ा था। अमेरिकी और दक्षिण अफ्रीकी कानून जिसने आबादी को यूरोप से गोरे और उप-सहारा अफ्रीका से अश्वेतों में विभाजित किया, अक्सर अन्य क्षेत्रों के लोगों जैसे कि शेष भूमध्यसागरीय बेसिन, एशिया, उत्तरी अफ्रीका, या यहाँ तक कि मूल निवासी के साथ व्यवहार करते समय व्याख्या की समस्या पैदा करते थे। अमेरिकी, गैर-श्वेत के रूप में वर्गीकरण के साथ आमतौर पर कानूनी भेदभाव का परिणाम होता है। (कुछ मूल अमेरिकी जनजातियों के पास संधि अधिकार हैं जो नुकसान के बजाय विशेषाधिकार प्रदान करते हैं, हालांकि इन्हें अक्सर प्रतिकूल शर्तों पर बातचीत की जाती थी।) हालांकि एक जातीय-धार्मिक समूह के रूप में वे अक्सर धार्मिक भेदभाव का सामना करते हैं, संयुक्त राज्य अमेरिका में सभी यहूदियों की सफेदी को भी चुनौती दी गई थी, उन्हें एशियाटिक (फिलिस्तीन पश्चिमी एशिया में है) या सेमिटिक (जिसमें अरब भी शामिल होंगे) के रूप में वर्गीकृत करने का प्रयास किया गया था। अधिकांश यहूदी लोगों की वास्तविक वंशावली प्राचीन हिब्रू जनजातियों की तुलना में अधिक विविध है। जैसा कि समय के साथ यहूदी डायस्पोरा पूरे यूरोप और अफ्रीका में फैल गया, कई यहूदी जातीय विभाजन उत्पन्न हुए जिसके परिणामस्वरूप यहूदियों को सफेद, काले और अन्य जातियों के रूप में पहचाना गया। आधुनिक इज़राइल में विविध आबादी के पुनर्मिलन ने गोरी चमड़ी वाले यहूदियों द्वारा काले चमड़ी वाले यहूदियों के खिलाफ नस्लीय भेदभाव की कुछ समस्याओं को जन्म दिया है। दुनिया भर में द वाशिंगटन पोस्ट द्वारा विश्व मूल्य सर्वेक्षण डेटा के २०१३ के विश्लेषण ने प्रत्येक देश में लोगों के उस अंश को देखा जिसने संकेत दिया कि वे एक अलग नस्ल के पड़ोसियों को पसंद नहीं करेंगे। यह ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अमेरिका के कई देशों में ५% से नीचे जॉर्डन में ५१.४% तक था; यूरोप में व्यापक भिन्नता थी, यूके, नॉर्वे और स्वीडन में ५% से नीचे, फ्रांस में २२.७% तक। ३० से अधिक वर्षों के प्रायोगिक अध्ययन में १० देशों में श्रम, आवास और उत्पाद बाजारों में रंग के लोगों के खिलाफ भेदभाव के महत्वपूर्ण स्तर पाए गए हैं। शरणार्थियों, शरण चाहने वालों, प्रवासियों और आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव दुनिया भर में शरणार्थी, शरण चाहने वाले, प्रवासी और आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति नस्लीय भेदभाव, नस्लवादी हमलों आज्ञातव्यक्तिभीति और जातीय और धार्मिक असहिष्णुता के शिकार हुए हैं। ह्यूमन राइट वॉच के अनुसार "जातिवाद एक कारण और मजबूर विस्थापन का उत्पाद है, और इसके समाधान के लिए एक बाधा है।" २०१० में यूरोप में शरणार्थियों की आमद के साथ, मीडिया कवरेज ने जनता की राय को आकार दिया और शरणार्थियों के प्रति शत्रुता पैदा की। इससे पहले यूरोपीयसंघ ने हॉटस्पॉट सिस्टम को लागू करना शुरू कर दिया था जो लोगों को शरण चाहने वालों या आर्थिक प्रवासियों के रूप में वर्गीकृत करता था, और २०१० और २०१६ के बीच यूरोप की अपनी दक्षिणी सीमाओं पर गश्त तेज हो गई जिसके परिणामस्वरूप तुर्की और लीबिया के साथ सौदे हुए। नीदरलैंड में किए गए और २०१३ में प्रकाशित एक अध्ययन में नौकरी के आवेदकों के साथ अरबी-ध्वनि वाले नामों के साथ भेदभाव के महत्वपूर्ण स्तर पाए गए। ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रभाव ने अफ्रीकी समाज की संस्कृतियों को बहुत प्रभावित किया लेकिन दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों की तुलना में नाइजीरिया जैसे देशों में मतभेद परंपरा के करीब हैं। अमेरिकी नस्लवाद भी एक भूमिका निभाता है जो नाइजीरिया में नस्लवाद को बढ़ाता है लेकिन अमेरिकी नस्लवाद विचार अफ्रीकी संस्कृतियों को प्रभावित करते हैं। नस्लवाद जो उपनिवेशवाद के प्रभाव से विकसित हुआ था और अमेरिकी ने नस्लवाद पर आधारित शक्ति के स्तर को बनाने के लिए वहाँ प्रभावित किया। अफ्रीकी संस्कृतियों में जातिवाद जीवन में प्राप्त अवसरों, वायरस की संवेदनशीलता और आदिवासी परंपराओं से जुड़ा है। उदाहरण के लिए उत्तर में शासन की एक अप्रत्यक्ष नीति ने उपनिवेशवादी सरकार और फुलानी-हौसा शासक वर्ग के बीच जीवन का एक नया तरीका तय किया। इस वजह से उत्तर दक्षिण और पश्चिम के पीछे शिक्षा के विकास पर पड़ता है जो नस्लीय दुर्भावना का कारण बनता है। जब युगांडा ईदी अमीन के शासन में था, तब एशियाई और गोरे लोगों को अश्वेतों से बदलने की नीति थी। ईदी अमीन भी एक सामी विरोधी व्यक्ति थे। लाइबेरिया का संविधान गैर-अश्वेतों को नागरिकता के लिए अयोग्य बनाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका रोजगार के संबंध में कई ऑडिट अध्ययनों में संयुक्त राज्य अमेरिका के श्रम बाजार में नस्लीय भेदभाव के मजबूत सबूत पाए गए हैं, इन अध्ययनों में ५०% से २४०% तक सफेद आवेदकों की नियोक्ताओं की वरीयताओं के परिमाण के साथ। इस तरह के अन्य अध्ययनों में कार की बिक्री, गृह बीमा आवेदन, चिकित्सा देखभाल के प्रावधान और टैक्सी चलाने में भेदभाव के महत्वपूर्ण प्रमाण मिले हैं। इन अध्ययनों में नस्ल का संकेत देने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विधि के बारे में कुछ बहस है। कार्यस्थल में नस्लीय भेदभाव दो मूल श्रेणियों में आता है: असमान व्यवहार : एक नियोक्ता की नीतियां किसी भी अपरिवर्तनीय नस्लीय विशेषता जैसे कि त्वचा, आंख या बालों का रंग, और चेहरे की कुछ विशेषताओं के आधार पर भेदभाव करती हैं; असमान प्रभाव : हालांकि एक नियोक्ता नस्लीय विशेषताओं के आधार पर भेदभाव करने का इरादा नहीं रख सकता है, फिर भी इसकी नीतियों का नस्ल के आधार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। रोजगार प्रक्रिया में किसी भी बिंदु पर भेदभाव हो सकता है जिसमें पूर्व-रोजगार पूछताछ, भर्ती प्रथाओं, मुआवजा, कार्य असाइनमेंट और शर्तें, कर्मचारियों को दिए गए विशेषाधिकार, पदोन्नति, कर्मचारी अनुशासन और समाप्ति शामिल हैं। शिकागो विश्वविद्यालय और एमआईटी में शोधकर्ताओं मैरिएन बर्ट्रेंड और सेंथिल मुलैनाथन ने २००४ के एक अध्ययन में पाया कि कार्यस्थल में व्यापक नस्लीय भेदभाव था। अपने अध्ययन में जिन उम्मीदवारों को "सफ़ेद-ध्वनि वाले नाम" के रूप में माना जाता था, उन लोगों की तुलना में ५०% अधिक संभावना थी जिनके नाम साक्षात्कार के लिए कॉलबैक प्राप्त करने के लिए केवल "ध्वनि वाले काले" के रूप में माने जाते थे। शोधकर्ता इन परिणामों को संयुक्त राज्य अमेरिका के भेदभाव के लंबे इतिहास (जैसे जिम क्रो कानून, आदि) में निहित अचेतन पूर्वाग्रहों के मजबूत सबूत के रूप में देखते हैं। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के एक समाजशास्त्री देवा पेजर ने मिल्वौकी और न्यूयॉर्क शहर में नौकरियों के लिए आवेदन करने के लिए आवेदकों के मेल खाने वाले जोड़े भेजे, यह पाया कि काले आवेदकों को समान रूप से योग्य गोरों की आधी दर पर कॉलबैक या नौकरी की पेशकश मिली। क्यालिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स समाजशास्त्री स० माइकल गद्दीस द्वारा हाल ही में किए गए एक अन्य ऑडिट में विशिष्ट निजी और उच्च गुणवत्ता वाले राज्य उच्च शिक्षा संस्थानों से काले और सफेद कॉलेज स्नातकों की नौकरी की संभावनाओं की जांच की गई। इस शोध से पता चलता है कि हार्वर्ड जैसे एक संभ्रांत स्कूल से स्नातक होने वाले अश्वेतों के पास यूमास एमहर्स्ट जैसे राजकीय स्कूल से स्नातक होने वाले गोरों के रूप में साक्षात्कार प्राप्त करने की समान संभावना है। एक बड़ी अमेरिकी कंपनी में कार्यस्थल मूल्यांकन के २००१ के एक अध्ययन से पता चला है कि काले पर्यवेक्षकों ने सफेद अधीनस्थों को औसत से कम और इसके विपरीत। पेरी और पिकेट के (२०१६ जैसा कि हेबरले एट अल।, २०२० में उद्धृत किया गया है) शोध ने निष्कर्ष निकाला कि गोरों की तुलना में अश्वेतों और लैटिनो के लिए बेरोजगारी दर अधिक है। संयुक्त राज्य अमेरिका में किए गए कई प्रायोगिक ऑडिट अध्ययनों में पाया गया है कि अश्वेतों और हिस्पैनिक लोगों को क्रमशः पाँच में से एक और चार आवास खोजों में से एक में भेदभाव का अनुभव होता है। २०१४ के एक अध्ययन में अमेरिकी किराये के अपार्टमेंट बाजार में नस्लीय भेदभाव के प्रमाण भी मिले। शोधकर्ताओं ने श्वेत परिवारों के विपरीत पाया, रंग के परिवारों को घर खरीदने की प्रक्रिया के दौरान भेदभाव के कारण गरीब, निम्न-गुणवत्ता वाले समुदायों में आवास प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया गया। संयुक्त राज्य अमेरिका में अधिक व्यक्तियों के अल्पसंख्यक होने के साथ बेघर होने से प्रभावित व्यक्ति भी एक बड़ी असमानता दिखाते हैं। वी कैन नाउ टेक्सास स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था है जो इन लोगों की सेवा करती है। स्वास्थ्य पर प्रभाव अध्ययनों ने रिपोर्ट किए गए नस्लीय भेदभाव और प्रतिकूल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य परिणामों के बीच संबंध दिखाया है। यह साक्ष्य संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और न्यूजीलैंड सहित कई देशों से आया है। स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में जातिवाद चिकित्सा क्षेत्र में नस्लीय पूर्वाग्रह मौजूद हैं जो रोगियों के इलाज के तरीके और उनके निदान के तरीके को प्रभावित करते हैं। ऐसे उदाहरण हैं जहाँ मरीजों की बातों को गंभीरता से नहीं लिया जाता है, एक उदाहरण सेरेना विलियम्स के साथ हाल ही का मामला होगा। सी-सेक्शन के माध्यम से अपनी बेटी के जन्म के बाद टेनिस खिलाड़ी को दर्द और सांस लेने में तकलीफ होने लगी। नर्स को समझाने में उसे कई बार लगा कि वास्तव में उन्होंने उसके स्व-कथित लक्षणों को गंभीरता से लिया है। अगर वह लगातार नहीं होती और सीटी स्कैन की मांग करती जिसमें एक थक्का दिखाई देता जिससे खून पतला हो जाता, तो शायद विलियम्स जीवित नहीं होते। यह उन सैकड़ों मामलों में से एक है जहाँ प्रणालीगत नस्लवाद गर्भावस्था की जटिलताओं में रंग की महिलाओं को प्रभावित कर सकता है। काली माताओं के बीच उच्च मृत्यु दर का कारण बनने वाले कारकों में से एक खराब स्थिति वाले अस्पताल और मानक स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है। अविकसित क्षेत्रों में प्रसव होने के साथ-साथ स्थिति तब जटिल हो जाती है जब स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं द्वारा रोगियों द्वारा की जाने वाली पीड़ा को गंभीरता से नहीं लिया जाता है। सफेद रंग के रोगियों द्वारा बताए गए दर्द की तुलना में डॉक्टरों द्वारा रंग के रोगियों से सुनाई देने वाले दर्द को कम करके आंका जाता है जिससे वे गलत निदान करते हैं। बहुत से लोग कहते हैं कि लोगों का शिक्षा स्तर प्रभावित करता है कि वे स्वास्थ्य सुविधाओं को स्वीकार करते हैं या नहीं, इस तर्क की ओर झुकते हुए कि गोरे समकक्षों की तुलना में रंग के लोग जानबूझकर अस्पतालों से बचते हैं हालांकि, यह मामला नहीं है। यहाँ तक कि जानी-मानी एथलीट सेरेना विलियम्स ने भी जब अपना दर्द बताया तो उसे गंभीरता से नहीं लिया गया। यह सच है कि अस्पताल की सेटिंग में रोगियों के अनुभव प्रभावित करते हैं कि वे स्वास्थ्य सुविधाओं में वापस आते हैं या नहीं। काले लोगों के अस्पतालों में भर्ती होने की संभावना कम होती है, हालांकि जो भर्ती होते हैं वे गोरे लोगों की तुलना में अधिक समय तक रहते हैं। काले रोगियों के लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती होने से देखभाल की स्थिति में सुधार नहीं होता है, यह इसे और भी बदतर बना देता है, खासकर जब संकाय द्वारा खराब व्यवहार किया जाता है। बहुत सारे अल्पसंख्यकों को अस्पतालों में भर्ती नहीं किया जाता है और जिन्हें खराब स्थिति में इलाज और देखभाल प्राप्त होती है। इस भेदभाव के परिणामस्वरूप गलत निदान और चिकित्सीय गलतियाँ होती हैं जो उच्च मृत्यु दर का कारण बनती हैं। यद्यपि मेडिकेड कार्यक्रम अफ्रीकी अमेरिकियों और अन्य अल्पसंख्यकों को स्वास्थ्य देखभाल उपचार प्राप्त करने के लिए पारित किया गया था जिसके वे हकदार थे और अस्पताल की सुविधाओं में भेदभाव को सीमित करने के लिए अभी भी अस्पतालों में भर्ती होने वाले काले रोगियों की कम संख्या का एक अंतर्निहित कारण प्रतीत होता है जैसे कि प्राप्त नहीं करना। दवा की उचित खुराक। शिशु मृत्यु दर और अल्पसंख्यकों की जीवन प्रत्याशा संयुक्त राज्य अमेरिका में गोरे लोगों की तुलना में बहुत कम है। कैंसर और हृदय रोग जैसी बीमारियाँ अल्पसंख्यकों में अधिक प्रचलित हैं जो समूह में उच्च मृत्यु दर के कारकों में से एक है। हालांकि तदनुसार व्यवहार नहीं किया जाता है। यद्यपि मेडिकेड जैसे कार्यक्रम अल्पसंख्यकों का समर्थन करने के लिए मौजूद हैं, फिर भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग प्रतीत होते हैं जिनका बीमा नहीं है। यह वित्तीय कमी समूह के लोगों को अस्पतालों और डॉक्टरों के कार्यालयों में जाने के लिए हतोत्साहित करती है। वित्तीय और सांस्कृतिक प्रभाव उनके स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं द्वारा मरीजों के इलाज के तरीके को प्रभावित कर सकते हैं। जब डॉक्टरों का रोगी पर पूर्वाग्रह होता है, तो यह रूढ़िवादिता के गठन का कारण बन सकता है जिस तरह से वे अपने रोगी के डेटा और निदान को देखते हैं, उस उपचार योजना को प्रभावित करते हैं जिसे वे लागू करते हैं। बच्चों का कल्याण नस्लीय भेदभाव का विषय बच्चों और किशोरों से संबंधित चर्चा में प्रकट होता है। बच्चे सामाजिक पहचान को कैसे समझते हैं, इसका मूल्यांकन करने वाले सिद्धांतों की संख्या के बीच, शोध यह मानता है कि सामाजिक और संज्ञानात्मक विकासात्मक परिवर्तन बच्चों की अपनी नस्लीय/जातीय पहचान के बारे में उनके दृष्टिकोण को प्रभावित करते हैं और बच्चे इस बात की अधिक समझ विकसित करते हैं कि उनकी नस्ल/जातीयता को बड़े समाज के लोगों द्वारा कैसे समझा जा सकता है। बेनर एट अल के नेतृत्व में एक अध्ययन। (२०१८) प्रारंभिक किशोरावस्था (१०-१३) से देर से किशोरावस्था तक के किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य, व्यवहार और शैक्षणिक प्रदर्शन के संबंध में विशेष रूप से नस्लीय भेदभाव और कल्याण के बीच मौजूदा संबंध का संकेत देने वाले पिछले अध्ययनों के संयोजन का विश्लेषण करता है। १७ और पुराने)। जबकि इसमें एशियाई, अफ्रीकी मूल और लातीनी आबादी शामिल है, यह अध्ययन नस्लीय समूहों के बीच भिन्नताओं और प्रतिच्छेदन द्वारा योगदान किए गए अन्य अंतरों का भी अनुमान लगाता है। इन संबंधों की जांच करने के लिए शोधकर्ताओं ने बच्चों से नस्लीय भेदभाव की रिपोर्ट वाले डेटा की जांच की जो इन विचारों को आगे बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करता है। इसके अलावा उन्होंने इन घटकों को युवा विकास की व्यापक श्रेणियों में व्यवस्थित करके नस्लीय भेदभाव और भलाई के पहलुओं (जैसे आत्मसम्मान, मादक द्रव्यों के सेवन, छात्र जुड़ाव) के बीच संबंधों का विश्लेषण किया: मानसिक स्वास्थ्य, व्यवहारिक स्थिति और शैक्षणिक सफलता। इसके बाद परिणाम तीनों श्रेणियों में युवा कल्याण से संबंधित नस्लीय भेदभाव और नकारात्मक परिणामों के बीच संबंध दिखाते हैं। इसके अलावा, नस्लीय समूहों के बीच मतभेदों की जांच करते समय, एशियाई और लातीनी मूल के बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य के विकास के लिए और लातीनी बच्चों को शैक्षणिक सफलता के लिए सबसे अधिक जोखिम में पाया गया। हालांकि अध्ययनों के परिणाम कल्याण के परिणामों के साथ रिपोर्ट किए गए नस्लीय भेदभाव को सहसंबंधित करते हैं, लेकिन यह निष्कर्ष नहीं निकलता है कि एक या अधिक नस्लीय समूह अन्य नस्लीय समूहों की तुलना में अधिक भेदभाव का अनुभव करते हैं। अन्य कारकों ने संबंधों के निष्कर्षों में योगदान दिया हो सकता है। उदाहरण के लिए अफ्रीकी मूल के बच्चों में नस्लीय भेदभाव और कल्याण के बीच एक कमजोर संबंध का प्रमाण बच्चों को नस्लीय भेदभाव से निपटने में मदद करने के लिए माता-पिता द्वारा निर्देशित समाजीकरण प्रथाओं से जोड़ा जा सकता है, या संभवतः भेदभाव की गंभीरता से संबंधित शोध की कमी है। साथ ही, शोधकर्ता उन अर्थपूर्ण तरीकों का अनुमान लगाते हैं जिनमें अन्तर्विभाजक भेदभाव के विभिन्न रूपों में एक भूमिका निभा सकते हैं। अंततः, वे निष्कर्ष निकालते हैं कि बच्चों के लिए प्रभावी समर्थन प्रणाली निर्धारित करने में अधिक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करने के लिए नस्लीय भेदभाव की जांच करने के लिए आगे के अध्ययन आवश्यक हैं। बढ़ती संख्या में अध्ययन विभिन्न राष्ट्रीयताओं और नस्लों के बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य में अंतर पर शोध कर रहे हैं। युवा और नस्लीय भेदभाव में गंभीर चेतना जब कोई व्यक्ति अपने विशेषाधिकार के प्रति जागरूक होता है, दमन और भेदभाव के प्रति जागरूक होता है, और जब वे इन अन्यायों को संबोधित करते हैं और विरोध करते हैं, तो वे आलोचनात्मक चेतना व्यक्त कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, नस्लीय भेदभाव जैसी असमानताओं के परिणामस्वरूप व्यक्तियों में आलोचनात्मक चेतना विकसित हो सकती है। शोधकर्ताओं, हेबरले, रापा और फरगो (२०२०) ने महत्वपूर्ण चेतना की अवधारणा पर शोध साहित्य की एक व्यवस्थित समीक्षा की। अध्ययन १९९८ से युवाओं में महत्वपूर्ण चेतना के प्रभावों के संबंध में ६७ गुणात्मक और मात्रात्मक अध्ययनों पर केंद्रित है। उदाहरण के लिए एनजीओ (२०१७) की रिपोर्ट में शामिल अध्ययनों में से एक ने एक पाठ्येतर कार्यक्रम का अध्ययन किया जिसमें हमोंग किशोरों द्वारा सामना किए जाने वाले नस्लीय भेदभाव और थिएटर में महत्वपूर्ण चेतना भागीदारी की खोज का विश्लेषण किया गया। गैर-विद्वान थिएटर कार्यक्रम ने छात्रों के इस समूह को उनके साथ हुए अन्याय के माध्यम से अपनी पहचान का पता लगाने और उनके द्वारा अनुभव किए गए उत्पीड़न और नस्लीय भेदभाव के खिलाफ लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। नस्लीय भेदभाव के खिलाफ लड़ने के लिए आलोचनात्मक चेतना को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। हेबरले एट अल (२०२०) ने तर्क दिया कि नस्लीय भेदभाव में कमी तब हो सकती है जब श्वेत युवा समूहों में अंतर और उनकी महत्वपूर्ण चेतना के कारण होने वाले अन्याय के बारे में जानते हों। वे विरोधी नस्लवादी मान्यताओं को बढ़ावा देकर और अपने स्वयं के श्वेत विशेषाधिकार के बारे में जागरूकता करके अपनी सोच बदल सकते हैं। उल्टा भेदभाव आरोपों के लिए एक शब्द है कि एक प्रमुख या बहुसंख्यक समूह के सदस्य को अल्पसंख्यक या ऐतिहासिक रूप से वंचित समूह के लाभ के लिए भेदभाव का सामना करना पड़ा है। संयुक्त राज्य अमेरिका संयुक्त राज्य अमेरिका में अदालतों ने नस्ल-सचेत नीतियों को बरकरार रखा है जब उनका उपयोग विविध कार्य या शैक्षिक वातावरण को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। कुछ आलोचकों ने उन नीतियों को गोरे लोगों के साथ भेदभाव करने वाला बताया है। तर्कों के जवाब में कि ऐसी नीतियां (जैसे सकारात्मक कार्रवाई) गोरों के खिलाफ भेदभाव का गठन करती हैं, समाजशास्त्री ध्यान देते हैं कि इन नीतियों का उद्देश्य भेदभाव का मुकाबला करने के लिए खेल के मैदान को समतल करना है। २०१६ के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि ३८% अमेरिकी नागरिकों ने सोचा कि गोरों को बहुत अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। डेमोक्रेट्स में २९% ने सोचा कि संयुक्त राज्य अमेरिका में गोरों के खिलाफ कुछ भेदभाव था जबकि ४९% रिपब्लिकन ने ऐसा ही सोचा था। इसी तरह, इस साल की शुरुआत में किए गए एक अन्य सर्वेक्षण में पाया गया कि ४१% अमेरिकी नागरिकों का मानना था कि गोरों के खिलाफ "व्यापक" भेदभाव था। इस बात के प्रमाण हैं कि कुछ लोगों को यह विश्वास करने के लिए प्रेरित किया जाता है कि वे विपरीत भेदभाव के शिकार हैं क्योंकि यह विश्वास उनके आत्मसम्मान को मजबूत करता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में १९६४ के नागरिक अधिकार अधिनियम का शीर्षक सप्त नस्ल के आधार पर सभी नस्लीय भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। हालांकि कुछ अदालतों ने यह स्थिति ली है कि एक श्वेत व्यक्ति को विपरीत-भेदभाव के दावे को साबित करने के लिए सबूत के एक उन्नत मानक को पूरा करना चाहिए, यूएस समान रोजगार अवसर आयोग (ईईओसी) पीड़ित की जाति के संबंध में बिना नस्लीय भेदभाव के सभी दावों के लिए समान मानक लागू करता है। यह सभी देखें
भगतपुर सूर्यगढा, लखीसराय, बिहार स्थित एक गाँव है। लखीसराय जिला के गाँव
मुनामदन नेपाली भाषा का सबसे ज्यादा बिकने वाला साहित्यिक कृति है। यह महाकाव्य झ्याउरे छन्द मैं नेपाली भाषा का महाकवि लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा ने लिखा था। इस काव्य मुना और मदन नामक पति-पत्नी के जीवन को दर्शाता है। इस काव्य के मद्दत से लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा ने पैसा का लालच तथा जात प्रथा का विरोध किया था। इस काव्य का कुछ पंक्ति इस प्रकार है- सुनको थैलो हातको मैलो के गर्नु धनले? अर्थ-सोने का थैली हात का मैल बराबर है, इस धन से क्या करे? मानिस ठुलो दिलले हुन्छ जातले हुंदैन। अर्थ-व्यक्ति बड़ा दिल से होता है जात से नहीं।
यह गांव उत्तर प्रदेश के जिला हरदोई ब्लाक हरियावा में स्थित है। ५ गांव की ग्राम पंचायत में स्थित एक मुख्य ग्राम है। यह गांव की राजनीति में विशेष स्थान रखता है। रेल मार्ग द्वारा दिल्ली लखनऊ रेल मार्ग से साढे ३५० किलोमीटर आगे हरदोई रेलवे स्टेशन पर उतरकर वहां से १६ किलोमीटर सकाहा की बस पकड़ कर सकाहा पहुंच जाते हैं। यहां से फिर ५ किलोमीटर टेंपो से खेरिया पहुंचकर इस गांव में पहुंचा जा सकता हैं। दिल्ली आनंद विहार से हरदोई जाने के लिए वाली बस है आराम से मिल जाती है इन बसों से आप हरदोई पोस्ट सकते हैं। फिर उपरोक्त बताए मार्ग के द्वारा इस गांव में पहुंचा जा सकता है। यहां पर सामान्यत है हिंदू धर्म और मुसलमान धर्म की सभी जातियां निवास करती हैं इनमें से मुख्य थे जातियां हैं। जैसे राजपूत, ब्राह्मण, राठौर, जाटव, पासी, यादव, पाल, धनगर,बघेल गड़रिया, इत्यादि। यहां से सबसे नजदीक खेरिया है जो की दूरी १ किलोमीटर है। दूसरा बाजार यहां का विजगवां है जो किइस गांव से १ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यहां से लोग आसानी से अपना दैनिक जीवन में उपयोगी वस्तुओं का बाजार करते हैं। इस गांव में शिक्षा का प्रसार उच्चस्तरीय है। गांव गांव में ही ग्रामोदय इंटर कॉलेज व ग्रामोदय महाविद्यालय स्थित है। रोजगार के मामले में यह गांव काफी पिछड़ा हुआ है।रोजगार के लिए यहां के नौजवानों को परदेश जाना पड़ता है कहने का तात्पर्य दूसरे राज्यों में नौकरी करने के लिए जाना पड़ता है।
वारंगल लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र भारत के तेलंगाना राज्य का एक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र है। तेलंगाना के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र
चक साहबू (चक सहबू) भारत के पंजाब राज्य के जलंधर ज़िले में स्थित एक गाँव है। इन्हें भी देखें पंजाब के गाँव जलंधर ज़िले के गाँव
चिरंतनानंद स्वामी तेलुगू भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक जीवनी श्रीरामकृष्णानि जीवित चरित्र के लिये उन्हें सन् १९५७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत तेलुगू भाषा के साहित्यकार
जो कुछ भी घट रहा है दुनिया में नासिर अहमद सिकंदर का कविता संग्रह हैं। इस कृति के लिए उन्हें १९९६ में केदार सम्मान से सम्मानित किया गया है।
सफ़ी एयरवेज़ कं. () अफ़्गानिस्तान की एक वायुसेवा है। इस कंपनी की स्थापना २००६ में गुलाम हजरत सफ़ी (अध्यक्ष), एक अफ़्गान व्यापारी द्वारा की गई थी। इस निजी वायुसेवा का मुख्यालय सफ़ी एयरलाइन सेंटर, शहर-ए-नाव, काबुल एवं प्रशासनिक कार्यालय डियरा, दुबई, संयुक्त अरब अमीरात में स्थित है। सफ़ी एयरवेज़ फ़्लीट सफ़ी एयरवेज़ एयरक्राफ़्ट अफ़्गानिस्तान की वायुसेवाएं
नवासीचक धनरूआ, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है। पटना जिला के गाँव
आमखेत, चमोली तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के चमोली जिले का एक गाँव है। उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) आमखेत, चमोली तहसील आमखेत, चमोली तहसील आमखेत, चमोली तहसील
राष्ट्रीय राजमार्ग २१६ए (नेशनल हाइवे २१६आ) भारत का एक राष्ट्रीय राजमार्ग है। यह आन्ध्र प्रदेश में एलुरु से राजमंड्री तक जाता है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग १६ का एक शाखा मार्ग है। इस राजमार्ग पर आने वाले कुछ पड़ाव इस प्रकार हैं: एलुरु, ताड़ेपल्लीगुड़म, तनुकु, रावुलपालेम, राजमंड्री। इन्हें भी देखें राष्ट्रीय राजमार्ग (भारत) राष्ट्रीय राजमार्ग १६ (भारत)
देवगढ़ ज़िला भारत के ओड़िशा राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय देवगढ़ है। इन्हें भी देखें ओड़िशा के जिले ओड़िशा के जिले
यह लेख २००७ का विस्फ़ोट के बारे में है। पिछले के बम विस्फ़ोट के लिए अल असकरी मज़ार बम विस्फ़ोट, २००६ देखें। २००७ अल असकरी मज़ार बम विस्फ़ोट १३ जून, २००७ में था, लगभग ९ पूर्वाह्न स्थानीय समय, शिया इस्लाम का एक सबसे धर्मात्मक स्थान में, अल असकरी मज़ार और इराक़ में अल-क़ायदा या इराक़ी बाथ पार्टी से श्रेय देंगा। जब कोई घायल या मृत्यु प्रतिवेदित नहीं है, मस्जीद की दो दस मंज़िल मीनारें से गिर गई है आक्रमणों में। यह मस्जिद का दूसरा बम विस्फ़ोट है; पहला बम विस्फ़ोट २२ फरवरी २००६ में होगे और मस्जिद का गुंबज से नष्ट करा। इन्हें भी देखें अल असकरी मज़ार अल असकरी मज़ार बम विस्फ़ोट, २००६ इराक़ युद्ध में विस्फ़ोट इराक़ में मस्जिद पर विस्फ़ोट
ब्लॉक मुद्रण या काष्ठब्लॉक मुद्रण (वुडब्लॉक प्रिंटिंग), कपड़ों तथा कागज पर चित्र और पैटर्न छापने की छपाई की एक तकनीक है। यह प्राचीन काल में चीन में आरम्भ हुई तथा पूर्वी एशिया में आज भी बहुत प्रचलित है। मुद्रण का इतिहास
नायल, भनोली तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा नायल, भनोली तहसील नायल, भनोली तहसील
खरदूडी तल्ली-उ०म०५, यमकेश्वर तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा तल्ली-उ०म०५, खरदूडी, यमकेश्वर तहसील तल्ली-उ०म०५, खरदूडी, यमकेश्वर तहसील
बिचोलिम (बिकोलिम), जिसे कोंकणी में दिवचल और मराठी में डिचोली कहा जाता है, भारत के गोवा राज्य के उत्तर गोवा ज़िले में स्थित एक नगर है। यह बिचोलिम तालुका का मुख्यालय भी है और गोवा के पूर्वोत्तर में स्थित है। यह पुर्तगाल की "नोवास कोंक्विस्टास" (नई विजय) का हिस्सा था। बिचोलिम, गोवा की राजधानी पणजी से ३० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गोवा में यह खनन का गढ़ है। १८ वीं शताब्दी तक बिचोमिम का अधिकांश एक स्वतंत्र जमींदार प्रभु सरदेसाई (संखाली/संगेम के) की मिलकियत था जबकि, बचा हुआ हिस्सा सावंतवाड़ी राजशाही के अधिकार क्षेत्र में आता था। १८ वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पुर्तगालियों ने नोवास कोंक्विस्टास (नई विजय) के रूप में इस पर कब्ज़ा कर लिया। बिचोलिम पर स्थित है। इसकी औसत ऊँचाई २२मीटर (७२फुट) है। भारत की २००१ की जनगणना के अनुसार, बिचोलिम की जनसंख्या १४९१३ थी। जनसंख्या में पुरुषों का हिस्सा ५२% और महिलाओं का हिस्सा ४८% है। बिचोलिम की साक्षरता दर ८०% थी जो तत्कालीन राष्ट्रीय साक्षरता दर ५९.५% से अधिक थी; पुरुष साक्षरता दर ८४% और महिला साक्षरता दर 7५% थी। जनसंख्या का १०%, ६ वर्ष से कम आयु के बच्चों का था। खनन बिचोलिम का मुख्य उद्यम है और लगभग ३६% जनसंख्या, वेदांता (जिसने सेसा का अधिग्रहण किया था) की एक लोह-अयस्क की खान में कार्यरत है। बुधवार को बिचोलिम में बुध-बाज़ार लगता है जिसमें बिचोलिम और आस पास के इलाकों के लोग जरूरत के सामान का क्रय/विक्रय करते हैं। मायेम झील; बिचोलिम में पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण मायेम झील है। पहाड़ों के बीच स्थित इस झील के चारों ओर घने पेड़ों से घिरी है। गोवा पर्यटन ने इसके निकट एक रिजॉर्ट बनाया है और नौका चालन जैसी गतिविधियों का प्रबंध किया है। अर्वालम गुफाएं; यहाँ पर ७ वीं शताब्दी में बनाई गयी विश्व प्रसिद्ध अर्वालम या पांडव गुफाएं भी स्थित है जो पर्यटकों और अन्वेषकों को समान समान रूप से आकर्षित करती हैं। शांता दुर्गा और महादेव मंदिर। अवर लेडी ऑफ ग्रेस गिरिजाघर। निमूज़ घर (नमाज़ घर)। इन्हें भी देखें उत्तर गोवा ज़िला उत्तर गोवा ज़िला गोवा के नगर उत्तर गोवा ज़िले के नगर
कीरतपुर निमाना कोइल, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। अलीगढ़ जिला के गाँव
झुआंग (झुआंग: बॉक्सक्वेंग, चीनी: , अंग्रेज़ी: ज़ुआंग) दक्षिणी चीन में बसने वाली एक मानव जाति का नाम है। यह अधिकतर चीन के गुआंगशी प्रांत में रहते हैं, जिस वजह से उसे 'गुआंगशी झुआंग स्वशासित प्रदेश' (ग्वांग्क्सी ज़ुआंग ऑटोनोम्यस रेशन) भी कहा जाता है। इसके आलावा झुआंग समुदाय युन्नान, गुआंगदोंग, गुइझोऊ और हूनान प्रान्तों में भी मिलते हैं। कुल मिलाकर दुनिया भर में झुआंग लोगों की आबादी १.८ करोड़ है। हान चीनी लोगों के बाद यह चीन का दूसरा सबसे बड़ा जातीय समुदाय है। झुआंग भाषाएँ ताई-कादाई भाषा-परिवार की सदस्य हैं - इस परिवार की भाषाएँ पूर्वोत्तर भारत में भी मिलती हैं। चीनी भाषा में नाम पुराने ज़माने में चीनी लोग झुआंग लोगों का नाम चीनी भावचित्रों में तिरस्कार-पूर्वक ढंग से '' लिखते थे, जिसका उच्चारण तो 'झुआंग' है लेकिन जिसका अर्थ 'एक क़िस्म के जंगली कुत्ते' है। १९४९ में चीन पर साम्यवादियों (कोम्युनिस्टों) का क़ब्ज़ा होने के बाद उन्होंने सरकारी स्तर पर इसे बदलकर '' कर दिया जिसका मतलब 'नौकर लड़का' है और उच्चारण 'झुआंग' ही है। आगे चलकर जब चीनी भावचित्रों का सरलीकरण किया गया तो इसे किया गया जिसका मतलब 'तंदुरुस्त या शक्तिशाली' है। इसका उच्चारण अभी भी 'झुआंग' ही है। आनुवंशिकी (जॅनॅटिक) जड़ें आनुवंशिकी (जॅनॅटिक) अनुसन्धान से पता चला है कि बहुत से झुआंग पुरुष पितृवंश समूह ओ२ (ओ२) के वंशज हैं और इनमें पितृवंश समूह ओ१ (ओ१) के भी कुछ वंशज पाए जाते हैं। देखा गया है कि बहुत से ताइवान के आदिवासी लोग भी ओ१ के वंशज हैं। ऊपर से भाषावैज्ञानिकों को यह भी शक़ है कि हो सकता है कि ताई-कादाई भाषाएँ ताइवान पर ऑस्ट्रोनीशियाई भाषाओँ के साथ शुरू हुई हों। अगर यह सत्य है तो संभव है कि झुआंग लोगों के पूर्वज ताइवान से चीन की मुख्यभूमि पर आए हों। झुआंग लोग अपनी भाषाएँ पुराने ज़माने में चीनी भावचित्रों, रोमन लिपि और सिरिलिक लिपि को इस्तेमाल कर के लिखा करते थे। जब चीनी भावचित्रों का प्रयोग झुआंग भाषाओँ के लिए किया जाता था तो उसे 'साउंदिप' (सव्नदीप) कहा जाता था। आधुनिक काल में झुआंग भाषाओँ को केवल रोमन लिपि में ही लिखने की प्रथा है। झुआंग लोगों का खानपान भी अलग है। इसमें खारे पानी या सिरके में कुछ दिनों तक भिगोई बंदगोभी और अन्य सब्ज़ियाँ, सूअर का मांस और सुखाई हुई मछलियाँ शामिल हैं। यह एक 'तेल चाय' नाम की विचित्र चाय भी पीते हैं जिसे चाय के पत्तों को तलकर चावल के दानों के साथ घोलकर बनाया जाता है। तेल चाय के साथ अक्सर मूंगफलियाँ या चावल के पेड़े खाए जाते हैं। झुआंग लोगों का अपना 'मो' (मो) या 'शिगोंग' (शिगोंग) नामक धर्म है जिसमें पूर्वजों को पूजा जाता है। इस धर्म के पुजारियों को बू मो (बू मो) कहते हैं और इसके अपने मन्त्र और सूत्र हैं। मो धर्म में ब्रह्माण्ड की कृति करने वाले भगवान को बू लुओतुओ (बू लोटओ) पुकारा जाता है और यह मान्यता है कि समस्त चीज़ें तीन मूल तत्वों - पानी, धरती और आकाश - के मिश्रण से बनी हैं। इन्हें भी देखें चीन की जातियाँ एशिया की मानव जातियाँ
खतिगढ-घुड०ई, पौडी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा खतिगढ-घुड०ई, पौडी तहसील खतिगढ-घुड०ई, पौडी तहसील
बेन-हर (या बेनहर'' ) विलियम वायलर द्वारा निर्देशित एक महाकाव्यात्मक फिल्म है और १८८० में लिखे ल्यू वैलेस के उपन्यास का तीसरा फिल्मी रूपांतरण है।बेन-हूर: आ तले ऑफ थे क्रिस्ट इसका प्रीमियर १८ नवम्बर १९५९ को न्यूयॉर्क के लो के स्टेट थिएटर में किया गया। फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ फिल्म के साथ ही ११ अकादमी अवार्ड जीत कर एक प्रतिमान कायम किया, एक उपलब्धि जिसकी बराबरी केवल टाइटेनिक के द्वारा की गयी थी।थे लॉर्ड ऑफ थे रिंग: थे रेटर्न ऑफ थे किंग ४४ साल तक यह अंतिम फिल्म बनी रही जिसने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता दोनों के लिए ऑस्कर जीता, जिसके बाद मिस्टिक रिवर को वही पुरस्कार मिला। फिल्म की प्रस्तावना में ईसा मसीह के पारंपरिक बाल्य काल की कहानी को दर्शाया गया है। २६ ई. में, राजकुमार यहूदा बेन हर (चार्ल्टन हेस्टन) यरूशलेम में एक अमीर व्यापारी है। उसके बचपन का दोस्त मेसाला (स्टीफन बॉयड), जो अब एक सैन्य ट्रिब्यून है, रोमन चौकी में नए कमांडिंग ऑफिसर के रूप में आता है। बेन हर और मेसाला सालों बाद दुबारा मिलकर बहुत खुश हैं, लेकिन राजनीति उन्हें अलग कर देती है, मेसाला रोम के गौरव और उसकी शाही शक्ति में विश्वास करता है, जबकि बेन ने स्वयं को अपने विश्वास और यहूदी लोगों के लिए समर्पित कर दिया है। मेसाला बेन हर से उन यहूदियों का नाम जानना चाहता है जो रोमन सरकार की आलोचना करते हैं, बेन हर विद्रोह के खिलाफ अपने देशवासियों को परामर्श देता है लेकिन उनके नाम बताने से इनकार कर देता है और दोनों क्रोध में अलग हो जाते हैं। बेन हर, उसकी माँ मरियम (मर्था स्कॉट) और बहन तिर्जा (कैथी ओ'डोनेल) अपने वफादार दास सिमोनाइड्स (सैम जैफे) और उसकी बेटी एस्तेर (हया हरारीत) का स्वागत करते हैं, जो परिवार की सहमति से तय किए गए विवाह की तैयारी कर रही है। बेन हर एस्तेर को शादी के उपहार के रूप में स्वतंत्र कर देता है और दोनों यह महसूस करते हैं कि वे एक दूसरे के प्रति आकर्षित हैं। यहूदियों के नए गवर्नर वैलेरिअस ग्रेटसके लिए हो रहे परेड के दौरान बेन हर के घर की छत से खपरैल टूट कर गिरती है और गवर्नर का घोड़ा चौंक जाता है और ग्रेटस को दूर, मार डालने के करीब, फेंक देता है। हालांकि मेसाला जानता है कि यह एक दुर्घटना थी, फिर भी वह बेन हर को गैलीज (पोत बंदी) की सजा देता है और उसकी मां और बहन को हिरासत में ले लेता है और एक ज्ञात दोस्त और प्रमुख नागरिक के परिवार को दंडित कर के बाकी यहूदी जनता को अशांत कर देता है। बेन हर लौटने और बदला लेने की कसम खाता है। समुद्री यात्रा के दौरान, जब उनका दास समूह नाजरथ पहुंचता है तो, बेन हर को पानी देने से मना कर दिया जाता है। कर देता है। बेन हर निराशा में टूट जाता है, लेकिन यीशु नाम का एक स्थानीय बढ़ई उसे पानी देता है और जीने की उसकी इच्छा को जगाता है। तीन साल तक पोत बंदी के बाद बेन-हर को कौंसल क्विंटस एरिअस (जैक हॉकिन्स) के ध्वज-पोत का दायित्व दिया गया और मकदुनियाई समुद्री डाकूओं के बेड़े को तबाह करने का काम सौंपा गया। कमांडर ने गुलाम के आत्म-अनुशासन और संकल्प को पहचान लिया और उसे तलवारबाज और सारथी के रूप में प्रशिक्षित करने का मौका दिया, लेकिन बेन-हर ने इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि भगवान उसकी सहायता करेगा। जब ऐरिअस युद्ध की तैयारी करता है, वह मल्लाहों को जंजीरों में बांधने का आदेश देता है, लेकिन बेन हर को आजाद छोड़ देता है। ऐरिअस की पोत टक्कर खाती है और डूब जाती है, लेकिन बेन हर मल्लाहों को जंजीरों से मुक्त करता है, भागता है और ऐरिअस की जान बचाता है, चूंकि ऐरिअस को विश्वास हो चुका है कि युद्ध में वह हार गया है, वह उसे आत्महत्या करने से रोकता है। ऐरिअस रोमन नौसेना की जीत का श्रेय हासिल करता है और आभार में वह बेन हर को अपने पुत्र के रूप में स्वीकार करते हुए, टाइबेरिअस जुलियस सीजर ऑगस्टस (जार्ज रेल्फ) से बेन-हर के खिलाफ सभी आरोपों को वापस लेने के लिए याचिका दायर करता है। धन के और स्वतंत्रता पाकर बेन हर रोमन तौर-तरीके सीखता है और इस तरह एक चैंपियन सारथी बन जाता है, लेकिन अपने परिवार और गृहभूमि उसे याद आते रहते हैं। यहूदिया की ओर लौटते समय, बेन-हर बाल्तासार (फिनले क्युरी) और उसके मेजबान, अरब शेख इल्दरिम (हग ग्रिफ्फिथ) से मिलता है, जिसके पास चार सफेद अरबी घोड़े हैं। इल्दरिम अपने "बच्चों" से उसे मिलाता है और उनसे इल्दरिम के क्वाड्रिगा को आने वाली दौड़ में नए यहूदी गवर्नर पोंटियस पिलेट (फैंक थ्रिंग) के सामने दौड़ाने के लिए कहता है। बेन-हर इनकार करता है, लेकिन सुनता है कि चैंपियन सारथी मेसाला मुकाबला करेगा; जैसा कि इल्दरिम बताता है, "इस क्षेत्र में कोई कानून नहीं है। बहुत लोग मार दिए जाते हैं।" बेन-हर को पता चलता है कि एस्तेर का पारिवारिक सहमति से होने वाला विवाह अभी भी नही हुआ है और वह अब भी उसे प्यार करती है। वह मेसाला से मिलता है और अपनी मां और बहन को मुक्त करने की मांग करता है लेकिन रोमनों को पता चलता है कि तीर्जा और मरियम को कुष्ठ रोग हो गया है और वे उन्हें शहर से निष्कासित कर देते हैं। वे एस्तेर को बेन-हर से उनकी हालत छुपाने का अनुरोध करते हैं, अतएव वह उससे कहती है कि उसकी मां और बहन जेल में ही मर चुकी हैं। बेन-हर दौड़ में भाग लेता है। मेसाला पहिए की नाह पर पत्ती लगाया हुआ "ग्रीक रथ" चलाता है, जिसे अन्य प्रतियोगियों को धज्जियां उड़ाने के लिए डिजाइन किया गया है। इस हिंसक और भीषण दौड़ में, मेसाला बेन-हर के रथ को नष्ट करने की कोशिश करता है, लेकिन वह अपना ही रथ नष्ट कर बैठता है; मेसाला कुचल कर लगभग मार दिया जाता है, जबकि बेन-हर दौड़ जीत जाता है। मरने से पहले, मेसाला बेन-हर से कहता है कि दौड़ अभी खत्म नहीं हुई है; तुम अपनी मां और बहन को कोढ़ियों की घाटी में पा सकते हो, यदि तुम उन्हें पहचान सको तो. फिल्म का उपशीर्षक है "अ टेल ऑफ द क्राइस्ट", यही समय है जब ईसा मसीह दुबारा प्रकट होते हैं। एस्तेर पर्वत पर हो रहे धर्मोपदेश से प्रभावित होती है। वह बेन-हर को इसके बारे में बताती है, लेकिन उसे शान्त नहीं कर पाती क्योंकि मेसाला के कारण नहीं-रोमन शासन के कारण- उसका परिवार दुर्भाग्य की ओर चला जाता है, इसलिए बेन-हर अपनी विरासत और नागरिकता दोनों को खारिज कर देता है और साम्राज्य के खिलाफ हिंसा की योजना बनाता है। यह जानकर कि तीर्जा मर रही है, बेन-हर और एस्तेर उसे यीशु मसीह का दर्शन कराने ले जाते हैं, लेकिन वे उनके नजदीक नहीं ले जा पाते, ईसा मसीह के भाग्य के लिए पिलेट के अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हट जाने के साथ ही उनकी सुनवाई शुरू हो चुकी है। उनके पहले के मिलन के आधार पर यीशु मसीह को पहचानकर बेन-हर उनके बलिदान स्थल तक की पैदल यात्रा के दौरान उन्हें पानी देने की कोशिश करता है, लेकिन रक्षक उन्हें दूर खींच ले जाते हैं। बेन-हर उनको सूली पर चढ़ाने की घटना का साक्षी बनता है। मरियम और तिर्जा का रोग एक चमत्कार से दूर हो जाता है, उसी प्रकार बेन-हर का हृदय और आत्मा भी सही हो जाते है। वह एस्तेर से कहता है, चूंकि क्रॉस पर यीशु मसीह की क्षमा करने वाली बात सुन चुका है, कि,"उनकी आवाज मेरे हाथों से मेरी तलवार को छीन रही है" फिल्म बलिदान स्थल के खाली क्रॉस और एक धर्मगुरू और उनके शिष्यों की भीड़ के बीच खत्म होती है। बेन हर, उर्फ क्विंटस ऐरिअस द यंगर के रूप में चार्लटॉन हेस्टन मेसाला के रूप में स्टीफन बॉयड मिरियम के रूप में मार्था स्कॉट तीर्जा बट-हर के रूप में कैथी ओ'डोनेल एस्तेर बट-सिमोनाइड्स के रूप में हया हररीत सिमोनाइड्स के रूप में सैम जेफ क्वींटस ऐरिअस के रूप में जैक हॉकिन्स ड्रुसस के रूप में टेरेंस लाँगडॉन शेख इल्दरिम के रूप में ह्यूग ग्रिफ़िथ पोंटियस पिलेट के रूप में फ्रैंक थ्रिंग यीशु के रूप में क्लाउड हीटर (अनक्रेडिटेड) फ्लेविआ के रूप में मैरिना बर्टी मैरी के रूप में जोश ग्रेसी (अनक्रेडिटेड) जोसेफ के रूप में लॉरेंस पाइन (अनक्रेडिटेड) गैसपर के रूप में रिचर्ड हेल (अनक्रेडिटेड) मेलचिअर के रूप में रेगिनाल्ड लाल सिंह नाविक के रूप में माइकेल डुगन (अनक्रेडिटेड) बाल्थासर/व्याख्याकार के रूप में फिनले क्युरी शोफर काल्स (बेतलेहेम का स्टार गायब हो जाता है)-पुरूष लव थीम - एमजीएम स्टूडियो और ऑर्केस्ट्रा फ्रेटलिटि नृत्य- भारतीय, एमजीएम स्टूडियो और आर्केस्ट्रा ऐरिअस की पार्टी - एजीएम स्टूडियो और ऑर्केस्ट्रा हेलेल्युजा (समापन) - एमजीएम स्टूडियो और आर्केस्ट्रा कोरस फिल्म की स्वरलिपि की रचना और संचालन मिक्लोज़ रोज़ा द्वारा की गई, जिन्होंने एमजीएम के अधिकतर महाकाव्यों की स्वर लिपि तैयार की है। रोज़ा ने फिल्म में अपने काम के लिए तीसरा अकादमी पुरस्कार जीता। इसका साउण्डट्रैक अबतक लिखी गई मोशन पिक्चर स्वरलिपियों में सबसे लोकप्रिय है और इसे एएफआइ के १०० इयर्स ऑफ फिल्म स्कोर्स में भी दर्ज किया गया है। ३४० एकड़ (१.४ क्म) में फैले ३०० से अधिक सेटों की जरूरत के साथ बेन-हर का निर्माण बहुत खर्चीला था। $१5 मिलियन का प्रोडक्शन इसे दिवालियेपन से बचाने के लिए एमजीएम द्वारा खेला गया एक जुआ था, लेकिन यह जुआ खेलना वसूल हो गया, जब पूरे विश्व में इसने कुल $९० मिलियन की कमाई की। फिल्म को एक प्रक्रिया में फिल्माया गया जिसे "एमजीएम कैमरा ६५" के रूप में जाना जाता है, ६५ एमएम निगेटिव स्टॉक, जिससे २.७६:१ के अभिमुखता अनुपात युक्त ७० एमएम एनामॉर्फिक प्रिंट तैयार किए गए, अब तक का सबसे चौड़ा प्रिंट, जिसकी चौड़ाई ऊंचाई से लगभग तीन गुना अधिक थी। एक एनामॉर्फिक लेंस जो एक १.२५क्स संपीड़न का उत्पादन करता था, का उपयोग एक ६५ एमएम निगेटिव (जिसका सामान्य अभिमुखता अनुपात २.२0:१ था) के साथ किया गया ताकि इस बहुत चौड़े अभिमुखता अनुपात का उत्पादन किया जा सके। इसने छह चैनल ऑडियो के अलावा शानदार पैनारोमिक शॉट्स लेना संभव बना दिया। व्यवहार में, तथापि "६५ कैमरा" प्रिंट अधिकतर स्क्रीन पर २.५:१ के अभिमुखता अनुपात में दिखाया गया, इसलिए थियेटरों को नए, चौड़े स्क्रीन के संस्थापन या पहले से संस्थापित स्क्रीन की पूरी ऊंचाई से कम के उपयोग की जरूरत नहीं पड़ी. कास्टिंग और अभिनय चार्ल्टन हेस्टन के पहले कई अन्य अभिनेताओं को बेन-हर की भूमिका की पेशकश की गई। बर्ट लैंकास्टर ने दावा किया कि उसने बेन-हर की भूमिका को करने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि उसे " कहानी में हिंसक नैतिकता पसंद नहीं आई." पॉल न्यूमैन ने यह कह कर ठुकरा दिया कि अंगरखा पहनने पर पैर दिखाई पड़ेंगे और उनके पैर इस लायक नहीं हैं। १/} रॉक हडसन और लेजली नीलसन को भी भूमिका की पेशकश की गई थी। सम्मान से और ल्यु वैलेस की वर्णित वरीयता के आधार पर यीशु का चेहरा बहुत कम दिखाया गया है। वह भूमिका ओपेरा गायक क्लाउड हीटर के द्वारा निभाई गई जिसे अपनी इकलौती फिल्मी भूमिका निभाने का कोई श्रेय प्राप्त नहीं हुआ। १९९५ की एक डॉक्युमेंट्री द सेलुलॉयड क्लोसेट के लिए एक साक्षात्कार में, पटकथा लेखक गोर विडाल बल पूर्वक कहते हैं कि उन्होंने वायलर पर यह दबाव डाला कि वह स्टीफेन वायड को मेसाला और बेन हर के बीच एक अप्रत्यक्ष समलैंगिक संवाद बनाने के लिए निर्देशित करे. विडाल कहते हैं कि वे बेन-हर का अपने सहकर्मी यहुदियों के नाम एक रोमन अधिकारी को बताने से इनकार करने को लेकर मेसाला की चरम प्रतिक्रिया की व्याख्या में मदद करना चाहते थे और उन्होंने वायलर को सुझाव दिया कि मेसाला और बेन-हर बचपन से ही समलैंगिक प्रेमी रहे थे, लेकिन बेन-हर की बाद में रूचि खत्म हो गई, इस तरह मेसाला की प्रतिहिंसात्मकता को उसकी अस्वीकृति के अनुभव से प्रेरित बताया जाता. चूंकि हॉलीवुड का प्रोडक्शन कोड इसकी इजाजत नहीं देता, इस विचार को अभिनेताओं द्वारा ध्वनित किया जाना था और विडाल ने वायलर को सुझाव दिया कि वे स्टीफेन वायड को उसी तरह से भूमिका निभाने का निर्देश दें, लेकिन हेस्टन को यह न बताएं. विडाल का दावा है कि वायलर ने उनकी सलाह मानी और उसका परिणाम फिल्म में देखा जा सकता है। पोत का दृश्य जिसमें बेन-हर को गुलाम बना कर रखा गया था उस नाव का मूल डिजाइन इतना भारी था कि वह तैर नहीं सकता था। इसलिए दृश्य को एक स्टूडियो में फिल्माया जाना था, लेकिन एक और समस्या रह जाती थी : कैमरा अंदर फिट नहीं हो पाता था, इसलिए नाव को आधा काटा गया और उसे जरूरत के हिसाब से बड़ा और छोटा किया गया। अगली समस्या यह थी कि पतवार बहुत लंबे थे, इसलिए उन्हें भी काटा गया, हालांकि, इस वजह से वे नकली लगते थे, क्योंकि पतवार खेने में बहुत आसान थे, इसलिए उनके छोरों पर भार लगाए गए। फिल्मांकन के दौरान निदेशक वायलर ने देखा कि एक अतिरिक्त कलाकार का हाथ नहीं है। उनके पास नकली खून भरा हुआ आदमी का एक नकली हाथ था और उससे उभरी हुई नकली हड्डी दिख रही थी, यह सब दृश्य को वास्तविक रूप देने के लिए किया गया था, जब पोत टकराया था। वायलर ने एक और अतिरिक्त कलाकार का उपयोग किया जिसका पैर गायब था। पोत दृश्य में ऐरिअस का लागातार आदेश, "युद्ध गति, हॉरटेटर... हमले की गति ... टकराने की गति! शामिल थे।" शब्द हॉरटेटर का अब इस्तेमाल नहीं होता है और यह उल्लेखनीय रूप से अधिकतर शब्दकोशों में अनुपस्थित है। यह एक लैटिन शब्द था, जहाज के संबंध में जिसका मतलब " नाव खेने वाले का प्रमुख" था, या "वह जो नाव खेने वाले को आदेश देता है" और शायद इसका मूल लैटिन क्रिया हॉरटर (दबाव डालना, प्रोत्साहित करना) में है। आदेश " टकराने की गति, हॉरटेटर!" जिसे व्यापक तौर पर याद किया जाता है, नकल की जाती है, कभी नहीं हुआ। पोत दृश्य पूरी तरह काल्पनिक है, क्योंकि रोमन नौसेना अपने शुरूआती आधुनिक समकालीनों के विपरीत बंदियों को पोत गुलामों के रूप में नहीं लगाते थे। रथ दौड़ बेन-हर में रथ दौड़ का निर्देशन एण्ड्र्यु मॉर्टन के द्वारा किया गया, वे एक हॉलीवुड निर्देशक थे जो अन्य लोगों की फिल्मों में प्राय: सेकेण्ड युनिट डायरेक्टर के रूप में अपनी भूमिका निभाते थे। यहां तक कि मौजूदा मानकों के द्वारा भी इसे अब तक फिल्माए गए शानदार एक्शन दृश्यों में रखा जाता है। रोम के बाहर सिनेसिटा स्टुडियो में कम्प्युटर-निर्मित प्रभावों के बहुत पहले फिल्माए गए इस दृश्य को, अब तक के बने सबसे बड़े फिल्म सेट, लगभग १८ एकड़ (७३,००० वर्ग मि.) पर १५,००० गौड़ अभिनेताओं का उपयोग करते हुए, पूरा करने में तीन महीने से ज्यादा समय लगा. अठारह रथ बनाए गए, आधे अभ्यास के लिए इस्तेमाल किये गए। दौड़ को फिल्माने में पांच हफ्ते लगे. दौरे की बसें हर घंटे सेट का दौरा करती थीं। सर्कस, स्पाइना के बीच के अनुभाग सर्कसों की ज्ञात सुविधा के अनुरूप ही थे, हालांकि इसके आकार को फिल्म निर्माण की सहायता करने के लिए अतिरंजित किया जा सकता है। गोल्डेन डॉल्फिन लैप काउंटर रोम के सर्कस, मैक्सिमस की मुखाकृति थी। रथ चलाना सीखने में चार्ल्टन हेस्टन को चार सप्ताह लगे. उसे स्टंट दलों के द्वारा सिखाया गया, जिन्होंने सारे कलाकारों को सिखाने की पेशकश की थी, लेकिन हेस्टन और बॉयड ही ऐसे थे जो पेशकश पर खरे उतरे (बॉयड को देर से चुनाव के कारण दो हफ्ते में ही सीखना था)। रथ दौड़ की शुरुआत में, हेस्टन ने लगाम को हिला कर रख दिया और कुछ भी नहीं हुआ; सितारों के नाम वाले चार घोड़े, एल्डेबरन, एल्टेअर, एंटारेज और रिंगेंल स्थ्रिर बने रहे। अंत में बने हुए सेट के रास्ते के शीर्ष पर किसी ने चिल्लाया, "गिड्डी अप!" घोड़ों ने कार्रवाई में गर्जना की और हेस्टन उछलकर लहराते हुए रथ के पीछे जा गिरा. दृश्य को अधिक प्रभावशाली और वास्तविक रूप देने के लिए दौड़ की मुख्य बिंदुओं पर तीन कठपुतले रखे गए, जिससे लगे कि रथ के साथ तीन लोग दौड़ रहे हैं। सबसे उल्लेखनीय है स्टीफन बॉयड का मेसाला के लिए खड़ा पुतला था, जो घोड़ों के बीच अटक जाता है और खुरों के द्वारा कुचल दिया जाता है। चलचित्र के इतिहास में यह तब तक का सबसे भयानक, घातक चोटों वाला दृश्य था, जिसने दर्शकों को हैरान कर दिया। रथ दृश्य को लेकर अनेक शहरी दंतकाथाएं हैं, जिनमें से एक यह है कि फिल्मांकन के दौरान एक स्टंटमैन की मौत हो गई थी। एक स्टंटमैन नोशर पॉवेल अपनी आत्मकथा में यह दावा करता है, " तीसरे सप्ताह में एक स्टंटमैन की मौत हो गई और यह ठीक मेरे सामने घटित हुआ। आपने भी इसे देखा है, क्योंकि कैमरे घूम रहे थे और यह दृश्य फिल्म में है". पावेल के दावे का समर्थन करने वाला कोई सबूत नहीं है और यह निर्देशक विलियम वायलर द्वारा दृढ़तापूर्वक खारिज किया गया है, जो बताते हैं कि उस मशहूर दृश्य में न तो कोई घोड़ा घायल हुआ और ना ही आदमी. फिल्म के स्टंट निर्देशक, याकीमा कैनट ने कहा कि फिल्मांकन के दौरान कोई गंभीर चोट या मौत की घटना नहीं हुई। एक और शहरी दंतकथा में उल्लेख है कि एक लाल फेरारी रथ दौड़ के दौरान देखी जा सकती है, लेकिन एक किताब मूवी मिस्टेक्स का दावा है कि यह झूठ है। (डीवीडी कमेंट्री ट्रैक में हेस्टन, एक तीसरे शहरी दंतकथा की बात कहते हैं कि वे कलाई घड़ी पहने हुए थे, जो सही नहीं है। वे बताते हैं कि उन्होंने कोहनी तक चमड़ा पहन रखा था। हालांकि, दौड़ में सबसे यादगार क्षण की याद एक घातक दुर्घटना से आती है। जब यहूदा का रथ एक और रथ पर कूदता है जो अपने रास्ते में दुर्घटनाग्रस्त हो जाता, तो एक सारथी अपने रथ से लगभग गिरता हुआ दिखता है और किसी तरह लटके हुए दौड़ को जारी रखने के लिए दुबारा रथ पर सवार हो जाता है। वास्तव में, जब इस कूद की योजना बनाई गई थी, चरित्र का हवा में उछलना योजना में शामिल नहीं था और स्टंट निर्देशक याकीमा कैनट का बेटा स्टंटमैन कैनट भाग्य से एक छोटी-सी ठोढ़ी की चोट खाकर ही बच गया। बहरहाल, जब निर्देशक वायलर ने कैनट के छलांग के लंबे शॉट के साथ अपने रथ के पीछे से चढ़ रहे हेस्टन के क्लोज-अप को इंटरकट किया, तो परिणाम में एक यादगार दृश्य सामने आया। उपन्यास और फिल्म के बीच अंतर मूल उपन्यास और फिल्म के बीच कई अंतर हैं। फिल्म के कथानक को अधिक शीघ्र नाटकीय बनाने के लिए परिवर्तन किए गए। उपन्यास में मेसाला गंभीर रूप से घायल होता है, न कि घातक रूप से. फिल्म में, मेसाला बेन-हर के रथ को तोड़ने के प्रयास में खुद ही दुर्घटना का शिकार हो जाता है और दुर्घटना के कारण हुए घावों की वजह से वह मर जाता है। पुस्तक में, बदला लेने के लिए मसाला बेन-हर की हत्या करने की योजना बनाता है जो धराशायी हो जाता है। यह उपन्यास के अंत में पता चलता है कि इराज ने (जो मेसाला की स्वामिनी है और १९५९ की फिल्म में प्रकट नहीं होती) रथ दौड़ के पांच साल के बाद गुस्से में मेसाला की हत्या कर दी थी। फिल्म में रथ दौड़ यरूशलेम में होता है जबकि उपन्यास में यह दौड़ एनिटोक में होता है। उपन्यास में, यीशु मसीह के सूली पर चढ़ने के बाद की बजाय पहले ही बेन-हर ईसाई धर्म में धर्मान्तरित हो जाता है और वह कड़वाहट प्रकट नहीं करता है, जैसा कि विलियम वायलर की फिल्म में दिखाया गया है। इसी तरह, बेन-हर की माँ और बहन का रोग निवारण पुस्तक में पहले ही होता है, यीशु मसीह की मृत्यु के तुरंत बाद नहीं. उपन्यास में, क्विंटस ऐरिअस के चरित्र को बेन-हर के पिता का परिचित बताया गया है, लेकिन फिल्म में ऐरिअस और हर के परिवारों के बीच कोई पूर्व संबंध नहीं दिखता. उपन्यास में, ऐरिअस मर जाता है और बेन हूर के घर वापसी के पहले ही अपनी संपति और पदवी बेन-हर को सौंप देता है। १९५९ की फिल्म में ऐरिअस की मौत का कोई उल्लेख नहीं, तो संभव है कि फिल्म के अंत में भी वह जीवित है। बेन-हर के परिवार की माइसेनम, इटली में रहनवारी के साथ उपन्यास रथ दौड़ के ३० वर्षों के बाद खत्म होता है। ०}एनिटोक में रहते हुए बेन-हर को पता चलता है कि शेख इल्दरिम (जो उपन्यास के फिल्मी संस्करण में कहीं भी मरता नहीं है) उसके लिए ढेर सारा रुपया विरासत में छोड़ गया है। लगभग इसी समय उसे सम्राट नीरो द्वारा किए जा रहे रोम के इसाईयों के उत्पीड़न का पता चलता है, बेन-हर सैन कैलिक्स्टो के कैटाकौंब को स्थापित करने में मदद करता है ताकि ईसाई समुदाय आज़ादी से एक जगह पूजा कर सके। बहरहाल फिल्म यीशु मसीह के सूली पर चढ़ने और बेन-हर की मां और बहन के रोग मुक्त हो जाने के तुरंत बाद खत्म हो जाती है। बॉक्स ऑफिस पर प्रदर्शन बेन-हर ने बॉक्स ऑफिस पर $ १७३००००० का व्यवसाय किया। यह १९५९ की सबसे ज्यादा पैसे कमाने वाली फिल्म थी। पुरस्कार और सम्मान इस फिल्म ने अभूतपूर्व ११ अकादमी पुरस्कार जीता, जिस संख्या की बराबरी केवल १९९८ में टाइटेनिक द्वारा और २००४ में द लॉर्ड ऑफ द रिंग्स : द रिटर्न ऑफ द किंग द्वारा की गई। सर्वश्रेष्ठ मोशन पिक्चर; सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए विलियम वायलर; सर्वश्रेष्ठ अग्रणी अभिनेता के लिए चार्ल्टन हेस्टन; सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए ह्यूग ग्रिफ़िथ; सर्वश्रेष्ठ सेट सजावट, रंग के लिए इडवर्ड सी. कारफैंगो, विलियम ए. डर्निंग और ह्युग हंट; सर्वश्रेष्ठ छायांकन, रंग; सर्वश्रेष्ठ कॉस्टयूम डिजाइन, रंग; सर्वश्रेष्ठ विशेष प्रभाव; सर्वोत्तम फिल्म संपादन के लिए जॉन डी. डनिंग और राल्फ ई. विंटर्स; नाटकीय या हास्य पिक्चर की स्कोरिंग, सर्वश्रेष्ठ संगीत; और इसके अलावा, फिल्म को सर्वश्रेष्ठ रूपांतरित पटकथा ह्तु अकादमी अवार्ड के लिए नामित किया गया। इस फिल्म ने चार गोल्डन ग्लोब पुरस्कार भी जीते: सर्वश्रेष्ठ मोशन पिक्चर, नाटक, सर्वश्रेष्ठ मोशन पिक्चर निर्देशक, स्टीफेन बॉयड को मोशन पिक्चर में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता और रथ दौड़ के दृश्यों को निर्देशित करने के लिए एण्ड्र्यु मार्टन को एक विशेष पुरस्कार. इस फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए बफ़्ता पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ पिक्चर के लिए न्यूयॉर्क फिल्म क्रिटिक्स सर्किल पुरस्कार और मोशन पिक्चर में उत्कृष्ट निर्देशन उपलब्धि के लिए डीजीए पुरस्कार जीता। अमेरिकी फिल्म संस्थान की मान्यता २००१ अफी के १०० वर्ष ...१०० फिल्म #७२ २००१ अफी के १०० वर्ष ...१०० रोमांच #४९ २००५ अफी के १०० वर्षों की फ़िल्म स्वर-लिपि #२१ २००१ अफी के १०० वर्ष ...१०० चियर्स #५६ २००७ अफी के १०० वर्ष ...१०० फिल्म (१०वीं वर्षगांठ संस्करण) #१०० २००८ अफी के १० शीर्ष १० #२ महाकाव्यात्मक फिल्मबेन-हर अंपायर पत्रिका के २००८ के ५०० महान फिल्मों की सूची में भी प्रकट हुई और उसे ४९१वां स्थान प्राप्त हुआ। कांग्रेस के पुस्तकालय ने २००४ में बेन-हर को संरक्षण के लिए नेशनल फिल्म रजिस्ट्री में जोड़ा. फिल्म का पहला प्रसारण १४ फ़रवरी १९७१ में रविवार को किया गया। फिल्म को, सीबीएस पर एक प्राइम टाइम नेटवर्क टेलिविजन स्पेशल के रूप में फुल-स्क्रीन पैन और स्कैन फॉर्मेट में दिखाया गया। फिल्म की लंबाई के कारण, ६० मिनट के साथ शुरू होने वाले शाम के सभी रेगुलर सीबीएस लाइनप को उस एक रात के लिए काट दिया गया, सीबीएस के इतिहास के कुछ समयों में ही यह हुआ जब एक फिल्म स्पेशल के लिए ६० मिनटों के कार्यक्रम रोक दिए गए हों. विज्ञापनों की वजह से फिल्म पांच-घंटे तक चली, जिसे ७ बजे शाम से लेकर १२ बजे मध्य रात्रि, ई.एस.टी. के बीच दिखाया गया। डीवीडी रिलीज बेन-हर'' तीन अवसरों पर डीवीडी के लिए जारी की गई। पहली बार १३ मार्च २००१ में एक वन-डिस्क वाइडस्क्रीन रिलीज के रूप में, दूसरी वार १३ सितंबर २००५ को एक फोर-डिस्क सेट के रूप में और तीसरी वार वार्नर ब्रॉस डिलक्स सिरीज के भाग के रूप में. २००१ की रिलीज (कुछ देशों में २ डिस्क और अमेरिका में २ तरफा डिस्क रिलीज़ हुई) डिस्क एक और दो : द मूवीज + एक्स्ट्रास उपशीर्षक: अंग्रेजी, स्पेनिश, फ्रेंच ऑडियो ट्रैक्स: अंग्रेजी (डॉल्बी डिजिटल ५.१) शार्ल्टन हेस्टन द्वारा टिप्पणी वृत्तचित्र बेन-हर: द मेकिंग ऑफ़ एन एपिक लेस्ली नीलसन, सिजैरे डैनोवा और हाया हरारीत सहित अंतिम और लगभग अंतिम कास्ट के लिए नए तरीके के स्क्रीन टेस्ट सेलडम-हर्ड ओवरचर और एंट्र'एक्ट संगीत का संकलन सेट पेर फोटो गैलेरी जो वाइलर, निर्माता सैम ज़िम्बालिस्ट, कैमरामैन रॉबर्ट सुर्टीस और दूसरों को प्रस्तुत करती है। डिस्क एक और दो : द मूवी मौलिक ६५-मिमी फिल्म एलिमेंट्स से नए रीमास्टर्ड और री स्टोर्ड डॉल्बी डिजिटल ५.१ ऑडियो शार्लटन हेस्टन द्वारा सीन स्पेसिफिक कॉमेंट्स के साथ फिल्म हिस्टोरियन टी. जीं हैचर के कॉमेंट्स म्युज़िक-ओनली ट्रैक शोकेसिंग मैक्लोस रोज़सास स्कोर (क्षेत्र में उपलब्ध है और अन्य क्षेत्र में सिर्फ कवर पे विज्ञापित है) तीन डिस्क : द १९२५ साइलेंट वर्ज़न कम्पोज़र कार्ल डेविस द्वारा स्ट्रियुफोनिक और्क्रेसट्रल के साथ थेम्स टेलिविज़न रीस्टोरेशन चार डिस्क : फिल्म के बारे में नई वृत्तचित्र: बेन-हर: द एपिक डैट चेंज्ड सिनेमा-वर्तमान फिल्म निर्माता, जैसे रिडली स्कॉट और जॉर्ज ल्यूकस फिल्म के महत्त्व और उसके प्रभाव पर विचार देते हैं। क्रिसटॉफर प्लममर द्वारा आयोजित १९९४ वृत्तचित्र: बेन-हर: द मेकिंग ऑफ़ एन एपिक बेन-हर: अ जर्नी थ्रू पिक्चर्स-न्यू ऑडियो विसुअल रीक्रिएशन ऑफ़ द फिल्म विया स्टिल्स, स्टोरीबोर्ड, स्केचेस, म्युज़िक और डायलॉग विंटेज न्यूज़रील गैलरी १९६० एकादमी पुरस्कार समारोह से मुख्या अंश पेपरबैक फॉर्म सहित शामिल है निर्माण के बारे में ३६ पृष्ठ की पुस्तिका "शार्ल्टन हेस्टन: एन इनक्रेडिबल लाइफ: रिवाइज़्ड एडिशन" माइकल बर्नियर, क्रिएटस्पेस, २००९ गेटिंग इट राइट द सेकण्ड टाइम- अ कम्पैरैटिव एनालिसिस ऑफ़ द नॉवेल, द १९२५ फिल्म, एंड द १९५९ फिल्म, एट ब्राईट लाइट्स फिल्म.कॉम अमेरिकी महाकाव्यात्मक फ़िल्में फिल्म का पुनर्निर्माण उपन्यासों पर आधारित फिल्में विलियम वाइलर द्वारा निर्देशित फ़िल्में सर्वश्रेष्ठ फिल्म अकादमी अवार्ड्स विजेता फ़िल्में जिन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए अकादमी अवार्ड मिला फ़िल्में जिन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए अकादमी अवार्ड मिला फ़िल्में जिन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए अकादमी अवार्ड मिला सर्वश्रेष्ठ ड्रामा पिक्चर गोल्डन ग्लोब विजेता फ़िल्में जिन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए गोल्डन ग्लोब मिला फ़िल्में जिन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए गोल्डन ग्लोब मिला ७०मिमी में शूट की गई फ़िल्में फ़िल्में जिसके कला निर्देशक ने सर्वश्रेष्ठ निर्देशन अकादमी अवार्ड जीता फ़िल्में जिनके छायांकन ने सर्वश्रेष्ठ सिनिमाटोग्रफी अकादमी अवार्ड जीता फिल्म जिनके संपादकों ने सर्वश्रेष्ठ फिल्म एडिटिंग अकादमी अवार्ड जीता फिल्म जिसने सर्वश्रेष्ठ विसुअल इफेक्ट अकादमी अवार्ड जीता एमजीएम (मम) फिल्में धार्मिक महाकाव्य फिल्में संयुक्त राज्य राष्ट्रीय रजिस्ट्री फ़िल्म की फ़िल्में प्राचीन रोम पर आधारित फ़िल्में फिल्म में यीशु के चित्रण रोम में शूट की गयी फिल्में
अगैया लखीसराय, लखीसराय, बिहार स्थित एक गाँव है। लखीसराय जिला के गाँव
प्रतापशासन (प्रताप्ससन) भारत के ओड़िशा राज्य के खोर्धा ज़िले में स्थित एक नगर है। यह कुआखाई नदी के किनारे बसा हुआ है। इन्हें भी देखें ओड़िशा के शहर खोर्धा ज़िले के नगर
शांति-स्थल रामस्नेही सम्प्रदाय के १३वें प्रमुख, स्वामी रामकिशोर महाराज की समाधि है। यह रामनिवास धाम, शाहपुरा, भीलवाड़ा में स्थित है। राम निवास धाम में प्रवेश करने पर, यह राम चरण द्वार के बाईं ओर लगभग ५० मीटर की दूरी पर स्थित है। यह जैसलमेर से पीले चूना पत्थर से बना है। जबकि यह एक हरे आंगन से घिरा हुआ है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में भी शांति-स्थल का उल्लेख किया गया है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में शांति स्थल का उल्लेख है: राजस्थान में पर्यटन आकर्षण
ककनई, श्री पूर्णागिरी टनकपुर तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के चम्पावत जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा ककनई, श्री पूर्णागिरी टनकपुर तहसील ककनई, श्री पूर्णागिरी टनकपुर तहसील
मठकोट, गैरसैण तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के चमोली जिले का एक गाँव है। उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) मठकोट, गैरसैण तहसील मठकोट, गैरसैण तहसील
मलौना, रानीखेत तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा मलौना, रानीखेत तहसील मलौना, रानीखेत तहसील
प्राचीन संगीत ग्रन्थों में राग दरबारी कान्हड़ा के लिये भिन्न नामों का उल्लेख मिलता है। कुछ ग्रन्थों में इसका नाम कणार्ट, कुछ में कणार्टकी तो अन्य ग्रन्थों में कणार्ट गौड़ उपलब्ध है। वस्तुत: कन्हण शब्द कणार्ट शब्द का ही अपभ्रंश रूप है। कान्हड़ा के पूर्व दरबारी शब्द का प्रयोग मुगल शासन के समय से प्रचलित हुआ ऐसा माना जाता है। कान्हड़ा के कुल कुल १८ प्रकार माने जाते हैं- दरबारी, नायकी, हुसैनी, कौंसी, अड़ाना, शहाना, सूहा, सुघराई, बागे्श्री, काफ़ी, गारा, जैजैवन्ती, टंकी, नागध्वनी, मुद्रिक, कोलाहल, मड़ग्ल व श्याम कान्हड़ा। इनमे से कुछ प्रकार आजकल बिलकुल भी प्रचार में नहीं हैं। थाट - आसावरी स्वर - गन्धार, निषाद व धैवत कोमल। शेष शुद्ध स्वरों का प्रयोग। जाति - सम्पूर्ण षाडव वादी स्वर - रिषभ (रे) सम्वादी स्वर -पंचम (प) समप्रकृति राग - अड़ाना गायन समय - रात्रि का द्वितीय प्रहर विशेषता - यह राग आलाप के योग्य है। पूर्वांग-वादी राग होने के कारण इसका विस्तार अधिकतर मध्य सप्तक में होता है। दरबारी कान्हड़ा एक गम्भीर प्रकृति का राग है। विलम्बित लय में इसका गायन बहुत ही सुन्दर लगता है। आरोह- सा रे ग_स म प ध_- नि_ सां, अवरोह- सां, ध॒, नि॒, प, म प, ग॒, म रे सा। पकड़- ग॒ रे रे, सा, ध॒ नि॒ सा रे सा
मापक फीता (तपे मीसुरे या मियासुरिंग तपे) एक प्रकार का लचीला रेखनी (रूलर) है जो कपड़ा, प्लास्टिक, फाइबर ग्लास, किसी धातु की पतली पट्टी, या कपड़ा और धातु के तारों को आपस मे बुनकर (धात्विक फीता)बना होता है।इसके अलावा निकिल और इस्पात मिश्र धातु का बना(इन्वार फीता)भी ज्यादा परिशुद्ध मापन मे प्रचलित है इससे हम मिलीमीटर, सेन्टीमीटर, मीटर, इंच, फुट आदि में दूरियाँ बड़ी आसानी से माप कर सकते हैं। आजकल यह छोटी या बडी दूरी मापने का एक सामान्य (आम) औजार है। इसकी लम्बाई सामान्यतः १ मीटर से लेकर २० मीटर तक होती है।
गोरिल्ला मानवनुमा परिवार का सबसे बड़ा सदस्य है। यह एक शाकाहारी पशु है। गोरिल्ला मध्य अफ़्रीका में पाया जाता है। गोरिल्ला का डी एन ए मनुष्य से ९८-९९% मेल खाता है।यह चिंपाजी और बोनोबोस के बाद मनुष्यों के निकटतम रिश्तेदार हैं।यह उंचाई पर भी रहते हैं।गोरिल्ला विरुंगा ज्वालामुखी के अल्बर्टिन रिफ्ट मोंटेन क्लाउड वन में रहता है, जो २,२00-४,३०० मीटर ऊंचाई पर है। गोरिल्ला शब्द का प्रयोग ५०० ईं पूर्व पश्चििमी अफ्रिका के अंदर सिएरा लियोन ने किया था । उसके अभियान के सदस्यों पर काले बालों वाली महिलाओं ने आक्रमण कर दिया था । उसको उसने गोरिल्ला कहा था । गोरिल्ला की प्रजातियां गोरिल्ला के निकटतम रिश्तेदार होमिनिना जेनेरा, चिम्पांजी और इंसान हैं जोकि ७ मिलियन वर्ष पूर्व इनसे अलग हो गए थे । पहले गोरिल्ला एक जाति माना जाता था । जिसके अंदर तीनउपजातियां थी ।पश्चिमी लोलैंड गोरिला, पूर्वी निचला भूमि गोरिला और पर्वत गोरिला । लेकिन अब गोरिल्ला को दो जातियों के अंदर विभाजित किया गया है। हिमयुग के दौरान गोरिल्ला की अनेक प्रजातियां विकसित हुई । लेकिन अब वे नष्ट हो चुकी हैं। गोरिल्ला का घोसला गोरिल्ला घोसला भी बनाते हैं। वे पतों को एकत्रित कर घोसला बनाते हैं। और इसके लिए वे शाखाओं की मदद लेते हैं। लेंकिन गोरिल्ला के छोटे बच्चे जमीन पर ही सोते हैं। और जब वे कुछ बड़े हो जाते हैं तो घोसलों के अंदर रहने लग जाते हैं। गोरिल्ला के फूड गोरिल्ला शायद ही पानी पीता है। वे पानी की पूर्ति फलों के माध्यम से करते हैं। लेकिन कई जगह पर गोरिल्ला को पानी पीते हुए भी देखा गया है।माउंटेन गोरिल्ला ज्यादातर पत्ते, उपजी, पिथ, आदि खाते हैं।वे फलों को आहार के रूप मे भी खाते हैं।र्वी लोलैंड गोरिल्ला पतियां खाते हैं। और २५ प्रतिशत फल भी खा लेते हैं। यह कीड़ों को भी खा लेता है। इन्हें भी देखें सबसे लंबी उम्र की मादा गोरिल्ला चल बसी
अलादीन सुजॉय घोष द्वारा निर्देशित २००९ की भारतीय हिंदी कपोल कल्पित साहसिक फिल्म है। इस फिल्म मै अमिताभ बच्चन, साहिल खान, रितेश देशमुख, जैकलिन फर्नांडीस और संजय दत्त ने विशेष किर्दार निभाए है। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर खराब प्रदर्शन दिया। बहुत पहले, रिंगमास्टर एक जिन्न था, लेकिन उसने अपनी शक्तियों का प्रयोग केवल अपने हित के लिए करता था, न कि इंसानों की भलाई के लिए, इसलिए अन्य जिन्नो ने उसकी शक्तियों को छीनने का फैसला किया। लेकिन वह अभी भी अमर था, और अभी भी बहुत ताकतवर और ज्ञानी था। उसने एक दिन अपनी शक्तियों को वापस पाने और बदला लेने की कसम खाई। अलादीन के माता-पिता अरुण और रिया का मानना था कि अलादीन की कहानी अरब नाइट्स द्वारा 'अलादीन एंड हिस लैंप' वास्तविकता पर आधारित थी। तो उन्होंने अपने बेटे का नाम अलादीन रख दिया इस उम्मीद में कि वह उनके लिए असली जादूई लैंप खोजने के लिए उनकी खोज में भाग्य लाएगा। कई वर्षो की खोज के बाद उन्हें लैंप मिल गया। कुछ समाय बाद रिंगमास्टर और उसके साथियो ने उन पर हमला किया। रिया ने चुपके से लैंप को रगड़ दिया और जीनियस(जिनी का नाम) को बुलाया, और उसने जीनियस से इच्छा मांगी की वह अलादीन को रिंगमास्टर से बचाये, जो तब बहुत ही छोटा बच्चा था। जीनियस मुश्किल से अलादीन को रिंगमास्टर से बचाने में सक्षम हुआ, लेकिन जब उसने अलादीन को बचा लिया, तो रिंगमास्टर के गिरोह ने अरुण और रिया को मार डाला। रिंगमास्टर को दीपक के केवल एक टुकड़े मिला, बाकी का टुकड़ा खो गया। फिर कसीम ने इसे प्राचीन स्टोर में पाया और जैस्मीन के सामने उसे शर्मिंदा करने के लिए इसे अलादिन को एक शरारत उपहार के रूप में देने का फैसला किया। कासिम के पास अलादीन पर एक अजीब निर्धारण थी और वह लगातार उसे अपने नाम के बारे में चिढ़ाता था, कभी वह उसके लिए तेल का लैंप लाता था और उसे रगड़ने के लिए मजबूर करता था और जब कोई जीनी प्रकट नहीं होती था तो उसे ताने देता था। उन्होंने हमेशा ऐसा किया है, जबतक वह और अलादीन दोनों बच्चे थे। अलादीन के दादाजी ने उसे एक जादू की चाल सिखाई: वह अपने हाथ में एक छोटी वस्तु डाल देते, हाथ बंद करते, जादू शब्द "ताक धीना ढिन" कहते, और जब वह अपना हाथ खोलते तब उस्समे से एक अलग छोटी वस्तु प्रकट हो जाती। यह असली जादू नहीं था; वह गुप्त रूप से वस्तु को अपने दूसरे हाथ में स्थानांतरित कर देते थे। यह मनोरंजक था, और कभी-कभी उपयोगी भी। जीनियों के पास कुछ नियम थे जिनका पालन उनको करना पढ़ता था। सबसे पहले, जाने-माने तीन इच्छाएँ थी: जो भी जीनी के लैंप को रगरता है और जीन को बुलाता है, उसे तीन इच्छाएँ मिलती थी। इसके अलावा, एक जिन्न किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचा सकती है, जिसके भी पास या तो उनके लैंप हो या उसका कोई हिस्से हो --- यह रिंगमास्टर की रक्षा करता था, क्योंकि उसके पास अभी भी वह टुकड़ा था जो जीनियस के लैंप का था। यदि कोई जीनी इच्छा देने से इंकार कर देता, तो वह अपनी शक्तियों को खो सकता था और प्राणघातक बन जाता था। नैतिकता के कुछ प्रकार भी हैं जिनको जिंन्हों को पालन करना पढ़ता था, यह बताते हुए कि जीनियों को मनुष्यों को उनकी मन चाही इच्छा देने के लिए अपनी शक्तियों का उपयोग करना पड़ता था नाकि उन्हें स्वार्थी रूप से उपयोग करना था- यह दूसरों की तरह जादुई नियम नहीं था, लेकिन इसे जीनी समाज द्वारा लागू किया गया था। यदि कोई जिंन्ह इन नियमो का पालन नहीं करता तो जिंन्ह समाज उसपर प्रतिबंध लगा सकता था और गलत व्यवहार करने वाले जिन्न की शक्तियों को दूर कर देते थे। यह जानकारी में नहीं है कि अस्तित्व में कितने जिन्न हैं और उनमें से कितने स्वतंत्र हैं, या कितने लैंप तक सीमित हैं या नहीं। एक जादुई दर्पण है जिसका प्रयोग जिन्न जानकारी प्राप्त करने और उनसे किये गए प्रशनो के उत्तर देने के लिए उपयोग कर सकती हैं। यह टूट सकता है, लेकिन अगर इसके टुकड़े फिर से इकट्ठे होते हैं, तो यह अपने मूल दोषपूर्ण आकार में आता है। फिर एक इंसान ने अभी दर्पण को पाया और फिर से टुकड़े इकट्ठा किये तभी रिंगमास्टर और उसके गिरोह ने उसे मार डाला और दर्पण को चुरा लिया। अमिताभ बच्चन - जीनियस के रूप में रितेश देशमुख- अलादीन चटर्जी के रूप में जैकलिन फर्नांडीस- जैस्मीन के रूप में (मोना घोष शेट्टी हिंदी डबिंग आवाज के रूप में) संजय दत्त- रिंगमास्टर के रूप में विक्टर बनर्जी -ग्रैंडफादर के रूप में रत्ना पाठक शाह - मारिजिना के रूप में साहिल खान -कासिम के रूप में जॉय सेनगुप्ता-अलादीन के पिता के रूप में सोहिनी घोष रिया (अलादीन की मां) आरिफ जकरिया-प्रोफेसर नाज़ीर के रूप में विलियम ओंग-क्सी ओन्ग ली के रूप में बोमन ईरानी- कथा वाचक के रूप में एरिना-अग्नि श्वास लेने वाली महिला के रूप में स्टारडस्ट अवॉर्ड्स - सर्वश्रेष्ठ महिला डेब्यू - जैकलिन फर्नांडीज आईआईएफए बेस्ट फिमेल डेब्यू - जैकलिन फर्नांडीज सर्वश्रेष्ठ कला निर्देश - सबू सिरिल सर्वश्रेष्ठ विशेष प्रभाव (दृश्य) - चार्ल्स डार्बी प्रोजेक्ट टाइगर लेख प्रतियोगिता के अंतर्गत बनाए गए लेख २००९ में बनी हिन्दी फ़िल्म
विवेकशील साझा पार्टी नेपाल में एक राजनीतिक दल है। वर्तमान में बागमती प्रांतीय विधानसभा में यह पांचवीं सबसे बड़ी पार्टी है। नयाँ बानेश्वरस्थित एक पार्टी प्यालेसमें पत्रकार सम्मेलन करके दो पार्टीबीच एकताका घोषणा किया गया। एकताके बाद पार्टीका नाम विवेकशील साझा पार्टी रखदिया गया। पार्टी एकता घोषणा कार्यक्रममें बोल्ते नेता रवीन्द्र मिश्र, उज्वल थापा, किशोर थापालने वैकल्पिक राजनीतिक शक्ति निर्माणके लिए पार्टी एकता हुनेका जिक्र किए। दोनों पार्टीसे १७, १७ करके ३४ केन्द्रीय समिति समेत घोषणा किया गया है। रवीन्द्र मिश्रा, २०१७वर्तमान नेपाल के राजनीतिक दल
न्यायालयिक भाषाविज्ञान या न्याय-भाषाविज्ञान (फोरेंसिक भाषाविज्ञान), अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की एक शाखा है जो भाषावैज्ञानिक ज्ञान, विधियों तथा अन्तर्दृष्टि का उपयोग करके न्यालयों में अपराध-अन्वेषण में सहायक होता है। न्यायालयों में काम करने वाले भाषावैज्ञानिक निम्नलिखित तीन क्षेत्रों में इसका उपयोग करते हैं-; (१) लिखित कानून की भाषा को समझने में, (२) फोरेंसिक तथा न्यायालयीय प्रक्रियाओं में प्रयोग की जाने वाली भाषा को समझने में, (३) भाषाई साक्ष्य देने में। कानूनी कार्यवाही में भाषावैज्ञानिक साक्ष्यों के उपयोग भाषावैज्ञानिकों ने निम्नलिखित क्षेत्रों में साक्ष्य प्रस्तुत किये हैं- ट्रेडमार्क और अन्य बौद्धिक संपत्ति विवाद अर्थ और भाषा-प्रयोग (उसगे) के विवाद लेखक की पहचान करने में फोरेंसिक शैलीविज्ञान (साहित्यिक चोरी आदि को पकड़ने में) आवाज की पहचान ; इसे फोरेंसिक स्वनविज्ञान भी कहते हैं। उदाहरण के लिये, यह पता लगाने के लिये कि किसी टेप पर अंकित आवाज आरोपी की है या नहीं। भाषण का विश्लेषण भाषा विश्लेषण (फोरेंसिक बोलीविज्ञान)- शरण चाहने वालों के भाषाई इतिहास अनुरेखण, जिससे शरन चाहने वालों की वास्तविक जन्मस्थान का पता किया जा सके। मोबाइल फोन पाठ-बातचीत का पुनर्निर्माण
सोनिया सावित्री पराग (जन्म १९८३) एक गयाना राजनीतिज्ञ है, पराग वर्तमान में इरफ़ान अली की सरकार में सार्वजनिक मामलों के मंत्री है, और इन्होने ने ५ अगस्त, २०२० को मंत्री पद की शपथ ली थी। गयाना कि राजनीतिज्ञ
कर्ट वोगेल रसेल (जन्म: १७ मार्च १९५१) एक अमेरिकी अभिनेता हैं। उन्होंने १२ साल की उम्र में वेस्टर्न श्रृंखला द ट्रैवेल्स ऑफ जैमी मैकपीटर्स (१९६३-१९६४) में टेलीविजन पर अभिनय करना शुरू किया। १९६० के दशक के उत्तरार्ध में, उन्होंने द वॉल्ट डिज़्नी कंपनी के साथ दस साल का अनुबंध किया, जहाँ रॉबर्ट ओसबोर्न के अनुसार, वह १९७० के दशक के स्टूडियो के शीर्ष स्टार बन गए। रसेल को सिल्कवुड (१९८३) में उनके प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता - मोशन पिक्चर के लिए गोल्डन ग्लोब पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। १९८० के दशक में, उन्होंने जॉन कारपेंटर द्वारा निर्देशित एस्केप फ्रॉम न्यूयॉर्क (१९८१), और इसके सीक्वल एस्केप फॉर ला (१९९६), द थिंग (१९८२) और ट्रबल इन लिटिल चाइना (१९८६) जैसी कई फिल्मों में अभिनय किया, जो सभी अब कल्ट फिल्में बन चुकी हैं। उन्हें कारपेंटर द्वारा निर्देशित टेलीविजन फिल्म एल्विस (१९७९) के लिए एमी पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। रसेल ने कई अन्य फिल्मों में भी अभिनय किया, जिनमें ओवरबोर्ड (१९८७), बैकड्राफ्ट (१९९१) टॉम्बस्टोन (१९९३), स्टारगेट (१९९४), डेथ प्रूफ (२००७), द हेटफुल एट (२०१५) और गार्जियंस ऑफ द गैलेक्सी २ (२01७) शामिल हैं। वह २०१५ में द फास्ट एंड द फ्यूरियस शृंखला में शामिल हुए, जिसमें उन्होंने फ्यूरियस ७ और द फेट ऑफ़ द फ्यूरियस में अभिनय किया। १९५१ में जन्मे लोग
किसी अनिश्चित घटना के बारे में पहले ही कुछ कहना प्रागुक्ति (प्राक् + उक्ति = प्रैडिक्शन) या पूर्वानुमान कहलाता है। प्रागुक्ति प्रायः (किन्तु सदा नहीं) अनुभव या ज्ञान पर आधारित होती है। पूर्वानुमान (फोर्कस्त) और प्रागुक्ति (प्रीडिक्ट) में क्या और कितना अन्तर है, इस पर मतैक्य नहीं है। इन्हें भी देखें
भारतीय परम्परा में चिन्तामणि एक मणि है जो इच्छा की पूर्ति करती है। इसे पश्चिमी जगत में प्रसिद्ध 'फिलास्फर्स स्टोन' के तुल्य माना जा सकता है। चिन्तामणि का उल्लेख सनातन हिन्दू तथा बौद्ध धर्मग्रन्थों में हुआ है।
रोमन-फारसी युद्ध, जिसे '''''''''''रोमन-ईरानी युद्ध''' के नाम से भी जाना जाता है, ग्रीको-रोमन दुनिया के राज्यों और लगातार दो [[इतिहास] के बीच संघर्षों की एक श्रृंखला थी। ईरान के | ईरानी साम्राज्य]]: पार्थियन और सासैनियन। पार्थियन साम्राज्य और रोमन गणराज्य के बीच युद्ध देर से गणराज्य के तहत शुरू हुए, और रोमन (बाद में बीजान्टिन) के माध्यम से जारी रहे और सासैनियन साम्राज्य। बफर राज्य और प्रॉक्सी के रूप में विभिन्न जागीरदार राज्य और संबद्ध खानाबदोश राष्ट्रों ने भी एक भूमिका निभाई। युद्धों को प्रारंभिक मुस्लिम विजय द्वारा समाप्त किया गया, जिसके कारण सासैनियन साम्राज्य का पतन और बीजान्टिन साम्राज्य के लिए भारी क्षेत्रीय नुकसान हुआ, उनके बीच अंतिम युद्ध की समाप्ति के तुरंत बाद . हालाँकि रोमियों और फारसियों के बीच युद्ध सात शताब्दियों से भी अधिक समय तक जारी रहा, लेकिन उत्तर की ओर शिफ्टों के अलावा, सीमाएँ काफी हद तक स्थिर रहीं। युद्ध की रस्साकशी का एक खेल शुरू हुआ: कस्बों, किलेबंदी, और प्रांतों को लगातार बर्खास्त, कब्जा, नष्ट और व्यापार किया गया। अपनी सीमाओं से दूर इतने लंबे अभियानों को बनाए रखने के लिए किसी भी पक्ष के पास सैन्य शक्ति या जनशक्ति नहीं थी, और इस प्रकार न तो अपनी सीमाओं को बहुत पतला किए बिना बहुत आगे बढ़ सकता था। दोनों पक्षों ने सीमा से परे विजय प्राप्त की, लेकिन समय के साथ संतुलन लगभग हमेशा बहाल हो गया। हालांकि शुरू में सैन्य रणनीति में भिन्न, दोनों पक्षों की सेनाएं धीरे-धीरे एक-दूसरे से अपनाई गईं और छठी शताब्दी के उत्तरार्ध तक, वे समान और समान रूप से मेल खाते थे। रोमन-फ़ारसी युद्धों के दौरान संसाधनों की कीमत अंततः दोनों साम्राज्यों के लिए विनाशकारी साबित हुई। ६वीं और ७वीं शताब्दी के लंबे और बढ़ते युद्ध ने उन्हें रशीदुन खिलाफत के अचानक उभरने और विस्तार के सामने थका दिया और कमजोर बना दिया, जिनकी सेना ने अंतिम रोमन साम्राज्य के अंत के कुछ साल बाद ही दोनों साम्राज्यों पर आक्रमण किया। -फारसी युद्ध। अपनी कमजोर स्थिति से लाभ उठाते हुए, रशीदुन सेना तेजी से जीत संपूर्ण सासैनियन साम्राज्य, और पूर्वी रोमन साम्राज्य इसके लेवेंट में क्षेत्र, काकेशस, मिस्र, और शेष उत्तरी अफ्रीका। निम्नलिखित शताब्दियों में, पूर्वी रोमन साम्राज्य का अधिक भाग मुस्लिम शासन के अधीन आ गया। काकेशस का प्राचीन इतिहास पश्चिमी एशिया का इतिहास ईरान से जुड़े युद्ध रोमन साम्राज्य से जुड़े युद्ध रोमन गणराज्य से जुड़े युद्ध