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टैक्स बचाने या चुराने के प्रयास यूएई सहित कई टैक्स हैवन देशों की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान कर रहे हैं। दरअसल, इन देशों में टैक्स खत्म करने की रणनीति भारत जैसे देशों की समानांतर अर्थव्यवस्था का लाभ उठाने की सोच से ही प्रेरित रही है।
यह बात भी सोचने की है कि हम जो कुछ खरीदते हैं, उस पर इनडायरेक्ट टैक्स तो देते ही हैं। इससे पहले आयकर भी कटवा बैठें, यह उचित नहीं। यह एकर तरह से दोहरी मार है।
कर सुधारों के तहत डायरेक्ट टैक्स कोड (डीटीसी) और जीएसटी (गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स) के रूप में फिलहाल जो नई व्यवस्थाएं आ रही हैं, वे भी इस समस्या का समाधान करती नजर नहीं अतीं।
इनकम टैक्स के विकल्पों पर विचार करने वाले कई जानकारों का यह भी मानना है कि आय के बजाय खर्च या उपभोग पर टैक्स लगाना ज्यादा उचित होगा। इसका स्वरूप डायरेक्ट टैक्स का भी हो सकता है, लेकिन व्यवस्था ऐसी हो जिसमें सबकी सकारात्मक भागीदारी हो।
भागने या बचने जैसी नकारात्मक बातों की कोई गुंजाइश ही न रहे।
एमएनएस प्रमुख राजठाकरे ने आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाले में फंसे मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण का जमकर बचाव किया है। उन्होंने इस मामले को मुख्यमंत्री चव्हाण को फंसाने की साजिश करार दिया।
राजठाकरे ने इस मामले में अपनी पहली प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ऐसा लगता है जैसे अशोक चव्हाण के खिलाफ साजिश रची गई है। उन्होंने कहा कि इस मामले की नजरों से नहीं देखा जाना चाहिए।
एमएनएस प्रमुख ने कहा कि पूरे मामले की अच्छीतरह जांच करवा ली जाए। जांच से सारी बाते साफ हो जाएंगी। उन्होंने कहा कि अगर जांच के बाद चव्हाण दोषी पाए जाते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई हो, लेकिन जांच से पहले ही उन्हें दोषी करार देने की कोई जरूरत नहीं है।
खुद भी बिल्डर के पेशे से जुड़े राज ने यह तय करने का अधिकार मीडिया को नहीं मिलना चाहिए कि कौन दोषी है और कौन निर्दोष।
इस दिवाली पर हमेशा की तरह मोबाइल पर कई शुभकामना संदेश आए। कुछ ने तो दो दिन पहले यानी धनतेरस को ही अपने संदेश भेज दिए थे।
शायद वे दिवाली के दिन के महंगे एसएमएस रेट से बचना चाहते थे। मैंने ज्यादातर मेसेज पढ़े ही नहीं, सिर्फ नाम देख लिए कि किसने भेजा।
पता था कि सभी में एक जैसी बात होगी – ‘दीपों का यह पर्व आपके जीवन में सुख और समृद्धि लाए’ या ‘आपकी ज़िंदगी हमेशा जगमगाती रहे’।
पहले मैं इन सबको जवाब में कोई अच्छा-सा संदेश बनाकर भेज देता था – जैसे ‘रोशनी के इस त्यौहार के बीच हम उनको न भूलें जो अंधेरों में जी रहे हैं’ या ‘आज के दिन हम प्रण करें कि हम अपने मन से नफरत और वैर का अंधकार मिटा देंगे’। लेकिन इसबार वह भी नहीं भेजा। इसबार मन में अलग तरह का संदेश आ रहा था... शोर और धुएं की इस रात के लिए मेरी समवेदनाएं।
इसबार हमने पटाखे नहीं छोड़े। बेटी 14साल की हो गई है, मैंने उसे समझा दिया पटाखे छोड़ो अनार, दोनों से हवा में जहरीली गैसें फैलती हैं जो हमें और दूसरों को बीमार करती है।
पटाखों में पैसे बर्बादकरने के बजाय मैं उन पैसों से तुम्हारे लिए किताबें खरीद दूंगा। वह मान गई लेकिन मेरे आसपास के लोग न तो खुद समझे न ही अपने बच्चों को समझाया।
नतीज़ा यह कि रात 9बजते-बजते पूरे अपार्टमेंट में धुआं ही धुआं। मैं बालकनी खोलकर बाहर गया नज़ारा लेने के लिए तो पाया कि सबकुछ धुंधला धुंधला सा है। मेरे मन में आया – कौन कहता है कि यह दीपों का त्यौहार है।
कभी रहा होगा। अब तो यह शोर और धुएं का त्यौहार रह गया है। दिखावे और प्रतिस्पर्धा का त्यौहार रह गया है। किसने कितने मिनट तक चलने वाली लड़ी छोड़ी।
किसने कितने स्काइशॉट्स छोड़े। कौन नए-नए किस्म के कितने पटाखे लाया। कितने के लाया – 5हज़ार, 10हजा़र, 25हज़ार, 50हज़ार।
पटाखों की आवाज़ थी कि रुकने का नाम नहीं ले रही थी – धूम-धड़ाम-पटाक-फटाक-बूम। 9बजे वाले परिवार के पटाखे खत्महो गए तो 10बजे वाली टोली निकली। वह अपने पैसे फूंकने के बाद घर लौटी तो 11बजे वाली टीम आई। वह पटाखे छोड़ते-छोड़ते थक गई तो आधीरात के दीवाने आए।
इन दीवानों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि रात के 12 बज गए हैं – सुप्रीमकोर्ट के मुताबिक शोर बंद होने की अंतिम समयसीमा। क्योंकि यह धर्म का मामला है।
दिवाली पर पटाखे छोड़ना धार्मिक काम है। इसे कोई नहीं रोक सकता, चाहे कोई बच्चा डर के मारे अपनी मां के आंचल में दुबका जा रहा हो, चाहे कोई बूढ़ा बुजुर्ग बिस्तर पर करवटें बदल रहा हो, चाहे इस धुएं के कारण किसी की आंखें जल रही हों या किसी का दम फूल रहा हो।
है किसी की हिम्मत जो रोके? धर्म के नाम पर, और फिर रामजी के नाम पर यहां सबकुछ जायज़ है – यहां तक कि किसी विधर्मी का कत्ल भी, फिर शोर और प्रदूषण क्या चीज़ है।
वैसे मैं यह भी सोचता हूं कि उन करोड़ों लोगों ने – जिनके पास फूंकने को हज़ारों-हज़ाररुपए हैं, लेकिन किसी गरीब की मदद के लिए सौदोसौरुपए भी नहीं – क्या दिवाली के दिन एक बार भी राम को याद किया होगा-उस राम को जो शबरी के जूठे बेर प्रेम से खाते हैं।
अगर वे अपने 5 या 10हज़ाररुपए किसी गरीब या अनाथ बच्चे की पढ़ाई के लिए दे देते तो क्या उनके राम ज़्यादा खुश नहीं होते? अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्जडब्ल्यू. बुश राष्ट्रपति बाराक ओबामा से सख्त नाराज हैं।
ओबामा की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के साथ रिश्तों को चौपटकर दिया गया है। बुश अफगानिस्तान के बारे में अमेरिकी नीति को लेकर भी चिंतित हैं।
न्यूयॉर्कडेलीन्यूज ने बुश के करीबी एक रिपब्लिकन अधिकारी के हवाले से कहा कि बुश ओबामा को एक नाकाम राष्ट्रपति मानते हैं। उन्होंने पाकिस्तान के साथ रिश्तों को चौपटकर दिया है। बुश को लगता है कि अमेरिकी नीतियों में भटकाव आ गया है।
मौजूदा अफगानिस्तान रणनीति के बारे में चिंतित बुश ने सैनिकों की संख्या बढ़ाने और आतंकवादी ठिकानों के खिलाफ अधिक प्रभावी ड्रोन हमले किए जाने का समर्थन किया।
ओबामा के बारे में पूछे जाने पर बुश ने कहा कि मैं चाहता हूं कि हमारे राष्ट्रपति सफल हों क्योंकि यदि हमारे राष्ट्रपति सफल होते हैं तो हमारा देश सफल होगा। मैं चाहता हूं कि मेरा देश सफल हो।
बुश इससे पहले रिपब्लिकन नेता सारापालिन को देश के अगले प्रमुख पद के लिए अयोग्य करार दे चुके हैं। गौरतलब है कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति मंगलवार को अपनी किताब 'डिसिजनप्वॉइंट्स' भी जारीकरने जा रहे हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा की भारत यात्रा के विरोध में अपने 24घंटे के भारत बंद के दौरान नक्सलियों ने सोमवार को बड़े पैमाने पर हिंसा की।
इस दौरान बिहार, बंगाल और उड़ीसा में आठ लोगों की जान गई। पश्चिमबंगाल में चार लोगों की गोली मारकर हत्याकर दी गई, तो बिहार और उड़ीसा में दो दो लोग मारे गए।
संदिग्ध माओवादियों ने पश्चिमबंगाल के झारग्राम में किशमतगनकटा से रासबिहारीमहतो, संध्यामहतो और शेखवाजिदअली को रविवार रात बंदूक की नोक पर अगवा कर लिया।
सोमवार सुबह गोलियों से छलनी उनका शव सड़क किनारे मिला। तीनों सीपीएम समर्थक बताए गए हैं। दूसरी ओर मोटरसाइकल सवार हमलावरों ने पश्चिममिदनापुर जिले के पाताशिमुल ग्रामपंचायत में सीपीएम के पूर्व पंचायत प्रधान कानाईराय की गोली मारकर हत्याकर दी।
बांकुरा जिले में पुलिस ने बताया कि रानीबंध में लिथला के जंगलों में माओवादियों से मुठभेड़ के बाद उनके कैंप का पता चला। वहां से भारी संख्या में हथियार और बारूदी सुरंगें बराम हुए।
बंद के दौरान नक्सलियों ने बिहार के औरंगाबाद, मुजफ्फरपुर और गयाजिले में खूब उत्पात मचाया। राज्य के डीजीपी नीलमणि ने कहा कि गयाजिले के बांकेबाजार में ब्लॉक ऑफिस में रखे गए ताकतवर बम को बेअसर करते वक्त बीएमपी के दो जवान विजयकुमार और जयचंद शहीद हो गए।
विशेष सशस्त्र पुलिस के दो जवान और दो मीडियाकर्मी घायल हो गए। नक्सलियों ने मुजफ्फरपुरजिले में हाजीपुर-मुजफ्फरपुर रेल खंड पर कुढ़नी स्टेशन के पास सोमवार तड़के रेल पटरी को धमाके से उड़ा दिया।
वहां मालगाड़ी के 10 डिब्बे पटरी से उतर गए। गयाजिले में अमासथाना इलाके में 100 से ज्यादा नक्सलियों ने रविवार रात चार ट्रकों में आगलगा दी।
उधर, माओवादियों ने उड़ीसा के नबरंगपुरजिले में दो लोगों की गोली मारकर हत्याकर दी और मल्कानगिरीजिले में विस्फोट करके एक स्कूल की इमारत को उड़ा दिया।
नबरंगपुर के तिमानपुर-बिनयपुर में दो लोगों के गोलियों से छलनी शव पाए गए, जहां माओवादियों ने अपना पोस्टर छोड़ रखा था।
झारखंड के पलामूजिले में सादबाहानीरेलवेस्टेशन पर करीब दर्जन भर माओवादियों ने हमलाकर उसे डायनामाइट से उड़ा दिया। पुलिस ने कहा कि माओवादी स्टेशन मास्टर सुमीतकुमार को अगवा करके ले गए।
लूट से पहले की रणनीति तो अक्सर लुटेरे अपनाते हैं, पर मुंबईक्राइमब्रांच ने एक ऐसे गैंग का भंडाफोड़ किया है, जो लूट के बाद की अनूठी प्रक्रिया अपनाता था।
यह गिरोह जिस जगह पर लूट की वारदात करता था, उसजगह के लोगों को लूट के बाद नंगाकर देता था। गैंग के लोग ऐसा इसलिए करते थे, क्योंकि नंगे होने की वजह से लुटे हुए लोग जबतक कपड़े पहनते थे, गैंग के लुटेरे घटनास्थल से बहुत आराम से भाग जाते थे।
पेट्रोलियम प्रॉडक्टों के दाम बढ़ाने के खिलाफ विपक्षी दल भले ही देश में विरोध प्रदर्शन कर रहे हों लेकिन सरकार इस मु्द्दे पर अपने कदम वापस खींचने के मूड में बिल्कुल नहीं है
सूत्रों का कहना है कि पेट्रोल को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के बाद अब जुलाई तक डीजल के दामों को भी अंतरराष्ट्रीय मूल्य के मुताबिक तय किया जा सकता है
इस मसले पर 12जुलाई के बाद बैठक हो सकती है
शनिवार को पेट्रोलियम सचिव सुंदरेशन ने कहा कि डीजल को डी-कंट्रोल करना हमारे अजेंडे में है
यह वक्त की मांग भी है
इससे पीछे हटने का सवाल ही नहीं उठता
सूत्रों के मुताबिक, शुक्रवार को मंत्री समूह की बैठक में पेट्रोलियम मंत्री मुरलीदेवड़ा ने पेट्रोल और डीजल दोनों को सरकारी कंट्रोल से मुक्त करने का प्रस्ताव रखा था
लेकिन सभी की राय यह थी कि दोनों को एक साथ नियंत्रण मुक्त करना ठीक नहीं होगा
तय हुआ कि जुलाई में इस पर फैसला लिया जाए
तब तक पेट्रोल को डीकंट्रोल करने के असर का भी पता चल जाएगा
दिलचस्प सचाई यह भी है कि देवड़ा ने पेट्रोल और डीजल को डीकंट्रोल करने का प्रस्ताव तो किया, मगर इनके दाम तय करने की प्रक्रिया क्या होगी, इसका कोई फॉर्म्युला तैयार नहीं किया
अब यह काम शुरू कर दिया गया है
सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाने के पीछे यह तर्क दिया गया कि इससे सरकार पर सब्सिडी का बोझ बढ़ रहा है जबकि सचाई यह है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने इन पर इतना सेल्स टैक्स लगा रखा है कि अगर उसमें कटौती कर दी जाए तो पेट्रोल डीजल काफी सस्ते हो सकते हैं
केंद सरकार प्रतिलीटर पेट्रोल पर 38पर्सेंट सेल्स टैक्स वसूलती है जबकि राज्य सरकारें करीब 17पर्सेंट टैक्स लगाती हैं
कुल मिलाकर 55पर्सेंट टैक्स बनता है
इसी तरह, डीजल पर केंद्र सरकार 23पर्सेंट और राज्य सरकारें करीब 11पर्सेंट टैक्स लेती हैं, जो कुल 44पर्सेंट होता है
पिछले दिनों देवड़ा ने राज्यों को खत लिखकर टैक्स घटाने की अपील की थी
तब राज्यों ने पलटवार करते हुए कहा था कि पहले केंद्र सरकार टैक्स कम करे
भारत की तुलना में अमेरिका में पेट्रोल पर मात्र 18.6पर्सेंट और डीजल पर 17.9पर्सेंट सेल्स टैक्स लगता है
कनाडा में यह 34.6पर्सेंट व25.3पर्सेंट और जापान में 44.9पर्सेंट व 32.7पर्सेंट है
इस तरह टैक्स वसूलने में भारत अव्वल है
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार प्रमुख डॉ. सी. रंगराजन ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि बेहतर होगा कि पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स की दरों पर पुनविर्चार किया जाए
देश में मेडिकल टूरिजम जोर पकड़ रहा है
बताया जा रहा है कि बड़ी संख्या में विदेशी हमारे देश के अस्पतालों में इलाज कराने आ रहे हैं
ऐसे में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि स्वास्थ्य क्षेत्र को भी देश में किसी बड़े उद्योग के मॉडल पर विकसित किया जाए
देश में कई बड़े अस्पतालों और उनकी चेन का निर्माण मुनाफा कमाने वाले उद्योग की शैली में ही किया गया है
यह उद्योग खासा चल निकला है, अच्छा मुनाफा दे भी रहा है
जहां तक दवा उद्योग का सवाल है, वह तो काफी पहले से ही मोटे मुनाफे पर आधारित उद्योग की तरह चल रहा है
लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारे नागरिकों में से ज्यादातर की माली हालत इन अस्पतालों में इलाज कराने की नहीं है
सरकार से सस्ती या लगभग मुफ्त जमीन हासिल करने के लिए ये अस्पताल गरीब मरीजों का निःशुल्क या सस्ते इलाज का वादा तो करते हैं, लेकिन इस पर अमल नहीं करते ऐसे में अगर स्वास्थ्य क्षेत्र का विकास मुनाफा कमाने वाले उद्योग की तर्ज पर किया जाएगा, तो इससे आम आदमी की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ेंगी
बहरहाल, समस्या सिर्फ इलाज महँगा होते जाने की नहीं है
जब कोई व्यक्ति बाजार में कोई भी चीज खरीदने जाता है तो वह उसे कई दुकानों पर देखता परखता है, महँगी सस्ती पूछता है
फिर तय करता है उसे खरीदे या न खरीदे
कम खरीदे या ज्यादा खरीदे, या कोई और विकल्प ढूँढे
लेकिन जब डॉक्टर एक पर्ची पर दवा लिख देता है, तो मरीज या उसके परिजन के पास इसके सिवा कोई और चारा नहीं होता कि वह ठीक वही दवा और उतनी ही खरीदे, जिसे डॉक्टर ने पर्ची पर लिखा है
डॉक्टर की पर्ची की इतनी विशिष्ट स्थिति और ताकत को देखते हुए दवा और स्वास्थ्य क्षेत्र को किसी भी दूसरे उद्योग की तरह मानना गलत होगा
अन्य मामलों में व्यक्ति अपना भला बुरा तय करने में समर्थ हो सकता है, लेकिन दवा व स्वास्थ्य सेवा के मामले में वह पूरी तरह डॉक्टर की सलाह पर निर्भर है
इसलिए दूसरे उद्योगों के मुकाबले स्वास्थ्य व दवा के क्षेत्र में जिम्मेदारी सुनिश्चित करना और भी ज्यादा जरूरी है
हमारे देश में ज्यादातर मरीजों को अपनी बीमारी और उसके इलाज या दवाओं से संबंधित विस्तृत जानकारी नहीं होती है
जब तक इलाज ठीक तरह से चलता है, तबतक तो इसमें कोई विशेष समस्या नहीं होती
लेकिन अगर कभी बहुत से गैरजरूरी टेस्ट लिख दिए जाते हैं या फालतू की महँगी दवाएं बता दी जाती हैं, तो दिक्कतें बढ़ जाती हैं
यह मामला सिर्फ अनावश्यक खर्च का नहीं है बल्कि गैरजरूरी दवाओं और टेस्टों से मरीजों को शारीरिक या मानसिक नुकसान भी हो सकता है
कई बार नए महँगे इलाज और तकनीक आजमाइश के दौर में होते हैं
इस स्थिति में दवा कंपनियों और अस्पतालों अथवा डॉक्टरों की साँठगाँठ से मरीजों पर अनावश्यक नया इलाज थोप दिए जाने की आशंका बढ़ जाती है
ऐसी हालत में मरीज को कोई नई बीमारी भी हो सकती है
उसके इलाज की अवधि और खर्च तो इससे बढ़ ही जाते हैं
आरबीआई के आदेश के मुताबिक 1जुलाई से सभी बैंकों को कर्ज बांटने की अपनी बुनियाद बदल देनी है
पिछले सातसालों से वे प्राइम लेंडिंग रेट को आधार बनाकर कर्ज बांटते आए हैं
पीएलआर वह ब्याज दर है, जिसके थोड़ा ऊपर या नीचे की दर पर कोई ग्राहक बैंक से कर्ज उठा सकता है
यह बुनियाद अब बदल जाएगी और सभी बैंक अपनी-अपनी बेस रेट को आधार बनाकर कर्ज बांटना शुरू करेंगे
बेस रेट, यानी वह ब्याज दर, जिससे कम पर कोई बैंक अपने किसी भी ग्राहक को कर्ज नहीं दे सकता
आम ग्राहकों को मिलने वाले कर्ज में इससे किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती, क्योंकि यह महज बैंकों की पारदर्शिता से जुड़ा एक तकनीकी मामला है
बैंकिंग के कारोबार में बेस रेट की तुलना में पीएलआर को कहीं ज्यादा पसंद किया जाता है, क्योंकि बैंकरों को इसमें ऊपर और नीचे, दोनों तरफ जाने की सुविधा है
अपने ज्यादा नियमित, भरोसेमंद और बड़े कस्टमरों को वे पीएलआर से कम रेट पर भी कर्ज देते हैं, जबकि ज्यादा जोखिम वाले ग्राहकों को कहीं ऊंची दरों पर
कारोबार की यह किताबी धारणा तीनसाल पहले अमेरिका में आई सब-प्राइम क्राइसिस के दौरान बिल्कुल ही बैठ गई, जब वहां सस्ती दरों पर कर्ज उठाए रीयल एस्टेट के धुरंधरों ने कर्ज लौटाने को लेकर अचानक अपने हाथ खड़े कर दिए और देखते-देखते ज्यादातर नामी-गिरामी अमेरिकी बैंकों का दिवाला निकल गया
भारत में पीएलआर से कम दरों पर कर्ज बांटने का सिलसिला उतना मजबूत नहीं है
रीयल एस्टेट जैसे जोखिम भरे सेक्टर को कर्ज देने में बैंक यहां बहुत ज्यादा एहतियात बरतते हैं
हाउसिंग में वे जरूर पीएलआर से कम रेट पर कर्ज बांटते आए हैं, लेकिन घर बंधक रखकर लिए गए इस कर्ज के डूबने की आशंका अभी अपने यहां बहुत ही कम है