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इलख़ानी साम्राज्य या इलख़ानी सिलसिला (फ़ारसी: , सिलसिला-ए-इलख़ानी; मंगोल: , हुलेगु-इन उल्स; अंग्रेज़ी: इलखनते) एक मंगोल ख़ानत थी जो १३वीं सदी में ईरान और अज़रबेजान में शुरू हुई थी और जिसे इतिहासकार मंगोल साम्राज्य का हिस्सा मानते हैं। इसकी स्थापना चंगेज़ ख़ान के पोते हलाकु ख़ान ने की थी और इसके चरम पर इसमें ईरान, ईराक़, अफ़्ग़ानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, आर्मीनिया, अज़रबेजान, तुर्की, जोर्जिया और पश्चिमी पाकिस्तान शामिल थे। इलख़ानी बहुत से धर्मों के प्रति सहानुभूति रखते थे लेकिन इनमें बौद्ध धर्म और ईसाई धर्म को विशेष स्वीकृति हासिल थी। इलख़ानी सिलसिले में महमूद ग़ाज़ान ने १२९५ में इस्लाम अपनाया और उसके बाद के शासकों ने शिया इस्लाम को बढ़ावा दिया। इलख़ानी साम्राज्य सन् १२५६ से १३३५ तक चला। नाम की उत्पत्ति और उच्चारण मंगोल भाषा में 'इल-ख़ान' का मतलब था 'सर्वोच्च ख़ान के अधीन वाला ख़ान' और इस साम्राज्य के शुरू में इसे महान मंगोल साम्राज्य के अधीन एक हिस्सा माना जाता था। 'इलख़ान' में 'ख़' अक्षर के उच्चारण पर ध्यान दें क्योंकि यह बिना बिन्दु वाले 'ख' से ज़रा भिन्न है। इसका उच्चारण 'ख़राब' और 'ख़रीद' के 'ख़' से मिलता है। इन्हें भी देखें ईरान का इतिहास मध्य एशिया का इतिहास
डभरा, भिकियासैण तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा डभरा, भिकियासैण तहसील डभरा, भिकियासैण तहसील
सराय चाँदी फूलपुर, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। इलाहाबाद जिला के गाँव
राष्ट्रीय महिला आयोग (अँग्रेजी: नेशनल कमिश्न फॉर वोमेन, नव) भारतीय संसद द्वारा १९९० में पारित अधिनियम के तहत ३१ जनवरी १९९२ में गठित एक सांविधिक निकाय है।यह एक ऐसी इकाई है जो शिकायत या स्वतः संज्ञान के आधार पर महिलाओं के संवैधानिक हितों और उनके लिए कानूनी सुरक्षा उपायों को लागू कराती है। आयोग की पहली प्रमुख सुश्री]] थीं। १७ सितंबर, २०१४ को ममता शर्मा का कार्यकाल पूरा होने के पश्चात ललिता कुमारमंगलम को आयोग का प्रमुख बनाया गया था,मगर पिछले साल सितंबर में पद छोड़ने के बाद रेखा शर्मा को कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर यह संभाल रही थी,और अब रेखा शर्मा को राष्ट्रीय महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है।रास्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम की धारा ७ के तहत आयोग का गठन किया जाता हैल राष्ट्रीय महिला आयोग का उद्देश्य भारत में महिलाओं के अधिकारों का प्रतिनिधित्व करने के लिए और उनके मुद्दों और चिंताओं के लिए एक आवाज प्रदान करना है। आयोग ने अपने अभियान में प्रमुखता के साथ दहेज, राजनीति, धर्म और नौकरियों में महिलाओं के लिए प्रतिनिधित्व तथा श्रम के लिए महिलाओं के शोषण को शामिल किया है, साथ ही महिलाओं के खिलाफ पुलिस दमन और गाली-गलौज को भी गंभीरता से लिया है। बलात्कार पीड़ित महिलाओं के राहत और पुनर्वास के लिए बनने वाले कानून में राष्ट्रीय महिला आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अप्रवासी भारतीय पतियों के जुल्मों और धोखे की शिकार या परित्यक्त महिलाओं को कानूनी सहारा देने के लिए आयोग की भूमिका भी अत्यंत सराहनीय रही है। कार्य एवं अधिकार १.आयोग के कार्यों में संविधान तथा अन्य कानूनों के अंतर्गत महिलाओं के लिए उपबंधित सुरक्षापायों की जांच और परीक्षा करना है। साथ ही उनके प्रभावकारी कार्यांवयन के उपायों पर सरकार को सिफारिश करना और संविधान तथा महिलाओं के प्रभावित करने वाले अन्य कानूनों के विद्यमान प्रावधानों की समीक्षा करना है। २.इसके अलावा संशोधनों की सिफारिश करना तथा ऐसे कानूनों में किसी प्रकार की कमी, अपर्याप्तता, अथवा कमी को दूर करने के लिए उपचारात्मक उपाय करना है। ३.शिकायतों पर विचार करने के साथ-साथ महिलाओं के अधिकारों के वंचन से संबंधित मामलों में अपनी ओर से ध्यान देना तथा उचित प्राधिकारियों के साथ मुद्दे उठाना शामिल है। ४.भेदभाव और महिलाओं के प्रति अत्याचार के कारण उठने वाली विशिष्ट समस्याओं अथवा परिस्थितियों की सिफारिश करने के लिए अवरोधों की पहचान करना, महिलाओं के सामाजिक आर्थिक विकास के लिए योजना बनाने की प्रक्रिया में भागीदारी और सलाह देना तथा उसमें की गई प्रगति का मूल्यांकन करना इनके प्रमुख कार्य हैं। ६.साथ ही कारागार, रिमांड गृहों जहां महिलाओं को अभिरक्षा में रखा जाता है, आदि का निरीक्षण करना और जहां कहीं आवश्यक हो उपचारात्मक कार्रवाई किए जाने की मांग करना इनके अधिकारों में शामिल है। आयोग को संविधान तथा अन्य कानूनों के तहत महिलाओं के रक्षोपायों से संबंधित मामलों की जांच करने के लिए सिविल न्यायालय की शक्तियां प्रदान की गई हैं। आयोग के प्रारंभ से अब तक के अध्यक्षों की सूची - राष्ट्रीय महिला आयोग की आधिकारिक वैबसाईट
सैज, जैंती तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा सैज, जैंती तहसील सैज, जैंती तहसील
इंग्लैंड और भारतीय टीम के बीच ३ जुलाई से ११ सितंबर तक तीन टी-२०, तीन एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय और पांच टेस्ट क्रिकेट मैचों की श्रृंखला आयोजित की गयी। पहला मैच टी-२० के रूप में ३ जुलाई को खेला गया और अंतिम मैच टेस्ट के रूप में ११ से १५ सितंबर तक खेला गया था। इस दौरान इंग्लैंड की कप्तानी वनडे और टी-२० में इयोन मोर्गन और भारतीय टीम की कमान विराट कोहली ने संभाली। तीन टी-२० मैचों की श्रृंखला में भारतीय टीम ने इंग्लैंड को २-१ से हरायी। जिसमें रोहित शर्मा को मैन ऑफ द सीरीज का खिताब दिया गया। इसके बाद तीन वनडे मैचों में इंग्लैंड ने भारत को २-१ से भारत को हराया। वहीं ५ टेस्ट मैचों की सीरीज में इंग्लैंड ने भारत को ४-१ से हराया। ५ मैचों की टेस्ट सीरीज़ के अंत में, कोहली ने ५93 रन बनाए, जो हारने वाली टेस्ट श्रृंखला में भारतीय बल्लेबाज द्वारा तीसरे सबसे ज्यादा रन बनाए। टीमों के खिलाड़ी तीन टी-२० मैच तीन वनडे मैच दौरे का मैच प्रथम श्रेणी मैच: एसेक्स बनाम भारत क्रिकेट के दौरे भारतीय क्रिकेट टीम का इंग्लैंड दौरा २०१८ में क्रिकेट
नेत्र या नेटवर्क यातायात विश्लेषण (नेत्र या नेटवर्क ट्रफिक अनालेसिस) भारत की रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) प्रयोगशाला द्वारा विकसित एक सॉफ्टवेयर नेटवर्क है। यह भारत की घरेलू खुफिया एजेंसी और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) द्वारा प्रयोग किया जाता है। यह पूर्वनिर्धारित फिल्टर का उपयोग कर इंटरनेट यातायात का विश्लेषण करता है। यह कार्यक्रम विभिन्न राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा छोटे पैमाने पर परीक्षण किया गया था। और जल्द ही राष्ट्रव्यापी तैनात किया जाना है। (जनवरी २०१४ के अनुसार) इन्हें भी देखें रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन
मंडयाली भाषा हिमाचल की मुख्य भाषाओं में से एक है। यह भारत के हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले और मंडी घाटी में बोली जाती है। यह भाषा खुद में अलग मानी जाती है । मंडयाली भाषा पंजाबी से मिलती जुलती भी है । इन्हें भी देखें भारत में संकटग्रस्त भाषाओं की सूची भारत की भाषाएँ भारत में स्थानीय वक्ताओं की संख्यानुसार भाषाओं की सूची भारत की संकटग्रस्त भाषाएँ
सीकरी अतरौली, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। अलीगढ़ जिला के गाँव
तापविद्युत् (थर्मिलेक्ट्रिसिटी) वह विद्युत है जो दो असमान धातुओं के तारों की संधि को गर्म करने पर इन तारों के परिपथ में प्रवाहित होने लगती है। इस तथ्य को सर्वप्रथम सीबेक (सीबेक) ने सन् १८२१ में ताँबे एवं बिस्मथ के तारों की संधि को गर्म कर आविष्कृत किया। उपर्युक्त परिपथ में उत्पन्न विद्युतवाहक बल (इलेक्ट्रोमोटिव फ़ोर्स) न्यून होता है और इसकी तीव्रता निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है- (१) परिपथ के तारों की धातु की प्रकृति पर, (२) असमान धातुओं के तारों की दोनों संधियों के तापांतर पर, तथा (३) इन संधियों के औसत ताप पर। विद्युद्वाहक बल को मापने के लिये असमान धातुओं के तारों के ठंढे सिरे विभवमापी (पॉटेंटिओमीटर) से जोड़ दिए जाते हैं। यदि परिपथ में किसी दूसरी धातु का तार श्रेणीबद्ध कर दिया जाए तो तापविद्युत् प्रभावों में परिवर्तन नहीं होता। यदि सीबेक विद्युद्वाहक बल का परिमाण (ए) एवं ठंढी संधि का तापांतर (त) और यदि एक संधि का ताप शून्य डिग्री सेल्सियस हो तो ए और त का संबंध निम्नलिखित सूत्र में ज्ञात किया जाता है: जहाँ आ और ब तापविद्युत् स्थिरांक हैं और इनका मान परिपथ के तारों की धातु पर निर्भर करता है। धातुओं के तापविद्युत् स्थिरांक निम्नलिखित सारणी में दिए गए है: धातुओं के तापविद्युत् स्थिरांक बिस्मथ और ताँबे की संधि के लिये ए = ४५ त + ०.२५त^२ माइक्रोवोल्ट है। न्यूनताप पर (ए), (त) का लगभग समानुपाती होता है, किंतु यदि (त) बहुत अधिक हो तो (त२) का मान बढ़ जाता है। लोहे और ताँबे की संधि का ए = १५८ त - ०.०२85त२ माइक्रोवोल्ट है। जब ताप त = २75 सेल्सिसय हो, तब अधिकतम ए = २,००० माइक्रोवोल्ट। उच्च ताप पर ए का मान घटने लगता है तथा 55०० सें डिग्री यह शून्य हो जाता है 55०० सें. से अधिक ताप बढ़ने पर (ए) की दिशा बदल जाती है और विद्युतधारा विपरीत दिशा में प्रवाहित दिशा में प्रवाहित होने लगती है। इस प्रकार ताप बढ़ने पर विद्युत धारा का विपरीत दिशा में प्रवाहित होना तापविद्युत्प्रवाह का उत्क्रमण (इन्वर्शन) कहलाता है और 55० डिग्री सेल्सियस उत्क्रमण ताप। ताँबे और बिस्मथ की संधि में यह प्रभाव नहीं होता। किन्हीं दो तारों की संधि का ताप १० सेल्सियस बढ़ने पर विद्युत् के विद्युद्वाहक बल में परिवर्तन होता है, जिसे तापविद्युत शक्ति (थर्मिलेक्ट्रिक पॉवर) कहते हैं। विभिन्न धातुओं के तापविद्युत् गुणों की तुलना करने के लिये सीस (लेड) का एक तार तथा दूसरा उस धातु का लेते हैं जिसका तापविद्युत् का गुण ज्ञात करना है। तापविद्युत् प्रभाव का अधिक उपयोग ताप मापने के लिये किया जाता है। ताप मापने के लिये गरम और ठंढी संधि की व्यवस्था तापांतर युग्म (थर्मोकउपल) कहलाती है। ताँबा और कांसटैटन (६० प्रतिशत ताँबा और ४० प्रतिशत निकल) युग्म ५०० सेल्सियस. तक ताप मापने के लिये तथा प्लैटिनम और रोडियम एवं प्लैटिनम की मिश्रधातु के युग्म 1५०० डिग्री सेल्सियस तक ताप मापने के अच्छे युग्म हैं। सन् १८३४ में पेल्ट्ये ने आविष्कृत किया कि दो असमान धातुओं के परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित होने पर एक संधि गरम और दूसरी संधि ठंडी हो जाती है। जब विद्युत धारा लोहे से ताँबे की और प्रवाहित होती है तो केशिका नली में तेल की एक बूँद बाईं ओर चलकर तापन प्रभाव दिखाती है और जब ताँबे से लोहे की ओर प्रभावित होती है तब शीतलन प्रभाव दिखाती है। पैल्ट्ये प्रभाव, सीबेक प्रभाव का उल्टा है। सन् १८५४ में विलियम टॉमसन ने आविष्कृत किया कि एक ही धातु के तारों के दोनों सिरों के मध्य में विभवांतर होता है, यदि दोनों सिरों के ताप भिन्न हों। पेल्ट्ये एवं थॉमसन प्रभाव केवल सैद्धातिक महत्व के हैं। इनका व्यावहारिक महत्व कम है। जब एक परिपथ में कई तापांतर युग्म होते हैं और उनकी क्रमिक संधियाँ एकांतरत: गर्म और ठंडी होती हैं तो कुल विद्युद्वाहक बल परिपथ में लगे हुए सब तापांतर युग्मों के विद्युद्वाहक बलों के योग के बराबर होता है। इस तथ्य का उपयोग तापीय पुंज (थर्मोपीले) नामक उपकरण में करते हैं, जिसमें बिसमथ और ऐटिमनी के छड़ श्रेणी में लगे रहते हैं। इस उपकरण विकिरण ऊष्मा का अनुमान एवं पता लगाने के लिये करते हैं। इस उपकरण में जो विद्युतधारा उत्पन्न होती है उसे गैलवानोमीटर से मापते हैं और यही विकिरण के परिमाण का सूचकांक (इंडेक्स) है। तापविद्युत संयोजन से विद्युत ऊर्जा उत्पादन तापविद्युत् संयोजनों द्वारा व्यापारिक उपयोगिता की दृष्टि से विद्युत् उत्पन्न करने के अनेक प्रयास किए गए हैं, किंतु जब ये प्रयास आंशिक रूप से सफल हुए तो ज्ञात हुआ कि इनका व्यापारिक महत्व नगण्य है। तापविद्युत् संयोजन द्वारा व्यापारिक दृष्टि से विद्युत् उत्पन्न करने में दो प्रकार की कठिनाइयाँ हैं: सैद्धांतिक एंव संरचनात्मक। पर्याप्त विद्युद्वाहक बल प्राप्त करने के लिये बहुत अधिक संयोजनों की आवश्यकता होती है और अनुभव से यह सिद्ध हो चुका है कि अधिक संश्लिष्ट तापपुंज टिकाऊ नहीं होता। यदि इस कठिनाई को दूर भी कर दिया जाय तो सैद्धांतिक कारण, जो ऊष्मागतिकी पर निर्भर करते हैं, यह बतलाते हैं कि ऊष्मा उर्जा को विद्युत उर्जा में परिवर्तित करनेवाले तापपुंज की दक्षता कभी भी उच्च नहीं होती। इन्हें भी देखें अन्य सम्बन्धित सामग्री
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील संभल, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है। सम्बंधित जनगणना कोड: राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७२१ उत्तर प्रदेश के जिले (नक्शा) संभल तहसील के गाँव
तुलसीचक पुनपुन, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है। पटना जिला के गाँव
इस्लाम में धर्मत्याग (अरबी : रिद्दा या इर्तिदाद) का अर्थ किसी मुस्लिम द्वारा सोच-समझकर इस्लाम का त्याग करने से है। इसके अन्तर्गत किसी दूसरे धर्म को अपनाना, भी सम्मिलित है। इस्लाम का त्याग की परिभाषा तथा उसके लिये निर्धारित दण्ड अत्यन्त विवादास्पद हैं तथा इस पर इस्लामी विद्वानों के अलग-अलग विचार हैं। १९वीं शताब्दी के अन्तिम चरण तक अधिकांश सुन्नी और शिया न्यायविद यही राय रखते थे कि वयस्क पुरुष द्वारा इस्लाम का त्याग एक अपराध के साथ-साथ एक पाप है और धर्मद्रोह है और इसके लिए उसे जान से मार दिया जाना चाहिए। सेक्युलर आलोचकों का तर्क है कि इस्लाम-त्यागने के लिए जान से मारना या अन्य दण्ड देना सार्वभौम मानवाधिकारों का उल्लंघन है। इस्लाम में मानवाधिकारों की काहिरा घोषणा इस्लाम की आलोचना
नीमच (नीमच) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के नीमच ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय है। नीमच को ३१ मई १९९८ में मध्य प्रदेश का स्वतंत्र जिला घोषित किया गया था। प्रारंभ में यह मंदसौर जिले का हिस्सा था। ब्रिटिश शासन के दौरान यहां एक छावनी स्थापित की गई थी। आजादी के बाद छावनी को भारत की पैरा मिल्रिटी सेना की छावनी में परिवर्तित कर दिया गया। वर्तमान में यह सीआरपीएफ अर्थात क्रेन्दीय रिजर्व पुलिस बल के नाम से जाना जाता है। नीमच को सीआरपीएफ की जन्मस्थली माना जाता है। ३८७९ वर्ग किलोमीटर में फैला यह जिला सुखानंद महादेव, ऑक्टरलोनी इमारत, नीलकंठ महादेव, आंत्री माता मंदिर, जीरन का किला और भादवा माता मंदिर आदि के लिए विख्यात है। मंदसौर के समान यहां भी बड़े पैमाने पर अफीम का उत्पादन होता है। नीमच के दर्शनीय स्थलों में भादवा माता का मंदिर है, जिसमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघटा, काली, स्कन्दमाता और कात्यायनी माता की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। इस मंदिर में काले पत्थर से निर्मित विष्णु की प्रतिमा भी है। नीमच जिला में मालवा क्षेत्र की सबसे बड़ी प्रतिमा महाराणा प्रताप जी की प्रतिमा मौजूद हैं जिसका अनावरण श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना द्वारा १९ नवंबर 20१९ को किया गया ।यहाँ की मंडी भी देश की बड़ी मंडियों में शामिल है. भादवा माता मंदिर नीमच जिले का एक प्रसिद्द धार्मिक स्थल है जो नीमच जिले से लगभग १९ किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। इस मंदिर में लकवा रोग से ग्रसित रोगी माँ भादवा के दर्शन के लिए आते हैं। हर साल नवरात्री पर यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। यहाँ सप्ताहांत और धार्मिक छुट्टियों में कई लोग दर्शन के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है की इस मंदिर के समीप स्थित बावड़ी के जल से स्नान करने और बावड़ी का जल पिने से लगवा रोग से ग्रस्त रोगीयों को रोग से मुक्ति मिलती है। इस प्राचीन इमारत को सर डेविड ऑक्टरलोनी ने १८१८ ई. में बनवाया था। वर्तमान में यह शानदार इमारत सीआरपीएफ अधिकारियों की मेस अर्थात् भोजनालय है। अजमेर-खंडवा लाइन पर स्थित इस इमारत को देखने के लिए सड़क और रेलमार्ग से पहुंचा जा सकता है। नीमच से १२० किलोमीटर दूर उदयपुर यहां का नजदीकी विमानतल है। नव तोरण मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर नीमच के खोर में स्थित है। ११वीं शताब्दी के इस मंदिर में भगवान विष्णु की आकर्षक और विशाल प्रतिमा स्थापित है। भगवान विष्णु की प्रतिमा यहां वराह रूप में देखी जा सकती है। यह मंदिर चित्तौडगढ़ से ३५ किलोमीटर की दूरी पर है। जिले का यह खूबसूरत नगर राजस्थान की सीमा से लगा हुआ है। नीमच यहां से २५ किलोमीटर दूर है। अठाना नंदन प्रिंट के लिए मशहुर हैँ। इस प्रिंट की खासियत है कि इसमें परंपरागत चटकीले रंगों का प्रयोग किया जाता है। सुखानंद महादेव यहां का नजदीकी दर्शनीय स्थल हैं। यहाँ कृष्णमहल हैँ। तथा जावद तहसील से २ किलोमीटर दूर राजस्थान की सीमा से लगा हुआ तारापुर तथा उमेदपुरा गांव भी हैंड प्रिंट के लिए बहुत मशहूर है यहां पर विदो से विदेशों से फॉरेनर्स अपना सर्वे करने पहुंचते हैं और यहां की डिजाइन को विदेशों में मशहूर करते हैं। तारापुर से १०० से २00 मीटर की दूरी पर सोपुरापीर बाबा साहेब की दरगाह भी अधिक मशहूर है। नयागांव नीमच जिले से १५ किलोमीटर उत्तर पश्चिम में है और इसकी सीमा राजस्थान से मिलती है। पवित्र चित्रकूट पहाड़ी पर बसा नयागांव, सीमेंट प्लांट के लिए लोकप्रिय है। राष्ट्रीय राजमार्ग ७९ यहीं से होकर गुजरता है। यहाँ से १० किमी दूर अठाना नगर हैँ। नीमच से ५२ किलोमीटर दूर स्थित रतनगढ नगर है। यह अरावलि पर्वत कि गोद मे बसा हुआ है। तिलस्मा महादेव मंदिर, गांधीसागर बाँध, राणा प्रताप सागर बाँध, किशोर सागर, कोटा का जग मंदिर, भीमताल टैंक और चित्तौडगढ़ किला रतनगढ के नजदीक लोकप्रिय दर्शनीय स्थलहैं। रतनगढ से १२० किलोमीटर दूर उदयपुर यहां का नजदीकी विमानतल है। रतनगढ के नजदीक मोडिया महादेव का पुराना मंदिर हे जो भव्य पहाडी के बीच बसा हुआ हे और नीमच रेलवे स्टेशन यहां का करीबी रेलवे स्थानक है। जीरन का किला (दुर्ग) नीमच से २१ किलोमीटर दूर स्थित ऐतिहासिक तथा सुन्दर नगर जीरन है। जीरन, नीमच जिले का एक तहसील केन्द्र है। जीरन के किला का एक विशेष महत्व है। इस किले ने इतिहास के कई उतार-चढाव देखे हैं। जीरन नगर मे एक सुन्दर सा तालाब है। किले मे भगवान शन्कर की प्राचीन मुर्ती है, जिसे किलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता हे। यहा पर फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। भगवान शिव का अभिषेक तथा इस दिन शिवभक्त, शिवलिंग पर बेल-पत्र आदि चढ़ाते, पूजन करते, उपवास करते तथा रात्रि को जागरण करते हैं। नीमच से ४० किलोमीटर दूर स्थित डीकेन एक छोटा-सा नगर है। भादवा माता मंदिर, जोगनिया माता मंदिर, डीकेन के नजदीकी और लोकप्रिय दर्शनीय स्थल हैं। डीकेन के पास गुदिया महादेव का प्राचिन स्थान हे डीकेन के पास करेन महादेव मे मेघवाल समाज कि सति माता का स्थान हैं। डीकैन के पास स्थित भगवानपुरा गांव में बहुत बड़ा सोलर पावर प्लांट बना हुआ हैं। पास ही रतनगढ़ की खूबसूरत पहाड़ी पर से गुजरता हुआ कोटा रोड़ की घुमावदार सड़क एक नयनाभिराम दृश्य उत्पन्न करती है , बड़ी संख्या में लोग इसे अपने कैमरे में कैद करने के लिए पहुचते है। इंदौर का देवी अहिल्याबाई होल्कर विमानतल नीमच का निकटतम विमानतल है, जो यहां से २७२ किलोमीटर दूर है। इंदौर विमानतल देश के अनेक बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। नीमच रेलवे स्थानक चित्तौडगढ़-रतलाम रेल मार्ग का एक महत्वपूर्ण रेलवे स्थानक है। यह रेलवे स्थानक नीमच को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ता है। राष्ट्रीय राजमार्ग ५६ और राष्ट्रीय राजमार्ग १५६ नीमच को अन्य पड़ोसी शहरों से जोड़ते है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली आदि कई शहरों से यहां के लिए नियमित बसों की व्यवस्था है। देश के मुख्य शहरों से दूरी चित्तौड़गढ - ६० कि॰मी॰; उदयपुर - १३५ कि॰मी॰; रतलाम - १३८ कि॰मी॰; कोटा - १८१ कि॰मी॰; उज्जैन - २४९ कि॰मी॰; अजमेर - २६२ कि॰मी॰; इंदौर - २७२ कि॰मी॰; जयपुर - ३७५ कि॰मी॰; भोपाल - ४६२ कि॰मी॰; ग्वालियर - ५४० कि॰मी॰; दिल्ली - ६०८ कि॰मी॰; मुंबई - ८७२ कि॰मी॰ रेलवे समय सारणी रतलाम की ओर चित्तौड़गढ की ओर उमाशंकर मूलजीभाई त्रिवेदी नीमच के प्रतिष्ठित व्यक्तित्व थे। वह पहली और तीसरी लोकसभा में सांसद रहे। वह भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक वरिष्ठ वकील भी थे। उनका निवास स्थान नीमच कैंट में बंगला नंबर ११ था। और पुस्तक बाजार में उनका कार्यालय रहा। वी. एस. वाकणकर एक भारतीय पुरातत्ववेत्ता थे। जिन्होंने १९५७ में भीमबेटका चट्टान गुफाओं की खोज की थी। जनवरी १९७५ में इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था। वीरेंद्र कुमार सखलेचा १८ जनवरी १९७८ से १९ जनवरी १९80 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। सुंदरलाल पटवा, २० जनवरी १९८० - १७ फरवरी १९८० और ५ मार्च १९९० - 1५ दिसंबर १९९२ तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उन्हें भारत सरकार द्वारा २०१७ में मरणोपरांत दूसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। चंदर प्रकाश गुरनानी या सी. पी. गुरनानी (जन्म १९ दिसंबर, १९58) टेक महिंद्रा के सीईओ और प्रबंध निदेशक हैं। आबिद अली नीमचवाला, भारतीय व्यवसायी शौर्य महनोत, एक अमूर्त कलाकार हैं, जिन्हें सबसे कम उम्र के सिग्नेचर स्टाइल एब्स्ट्रैक्ट आर्टिस्ट के रूप में जाना जाता है। ओम प्रकाश सखलेचा जेम्स ब्लेयर (भारतीय सेना अधिकारी) जेम्स एडवर्ड टियरनी एचिसन इन्हें भी देखें राष्ट्रीय चम्बल वन्य जीव अभयारण्य मध्य प्रदेश के शहर नीमच ज़िले के नगर नीमच के लोग
आमडा, चम्पावत तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के चम्पावत जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा आमडा, चम्पावत तहसील आमडा, चम्पावत तहसील आमडा, चम्पावत तहसील
डार्लिंग नदी लम्बाई के हिसाब से ऑस्ट्रेलिया की सबसे बड़ी नदी है। यह २७३९ किलोमीटर लंबी नदी उत्तरी न्यू साउथ वेल्स में निकलती है। ये मर्रे की सहायक नदी है। नदी की लम्बाई (किलोमीटर मे) विश्व की नदियाँ ऑस्ट्रेलिया की नदियाँ
अंग्रेज़ी मीडियम एक है २०२० आगामी भारतीय हिन्दी कॉमेडी-ड्रामा द्वारा निर्देशित फिल्म होमी अदजानिया और द्वारा उत्पादित दिनेश विजान ने अपने बैनर मैडॉक फिल्में तहत। यह एक फ्रेंचाइजी की दूसरी किस्त है, जो हिंदी मीडियम के साथ शुरू हुई थी, इसमें स्पिन-ऑफ रही और इसमें इरफान खान (जिन्होंने पहली फिल्म में भी अभिनय किया), करीना कपूर और राधिका मदान प्रमुख भूमिकाओं में हैं। परियोजना का फिल्मांकन ५ अप्रैल २०१९ को उदयपुर में शुरू हुआ। यह फिल्म २० मार्च २०२० को होली त्योहार के सप्ताहांत पर रिलीज़ होने के लिए तैयार है। इरफान खान ने चंपक गोस्वामी के रूप में तारिका (टारू) के रूप में राधिका मदान नैना के रूप में करीना कपूर धीरज गोस्वामी के रूप में दीपक डोबरियाल नरेश गोस्वामी के रूप में मनु ऋषि टोनी बंसल के रूप में पंकज त्रिपाठी ज़ाकिर हुसैन (अभिनेता) राशी मेहता / गोस्वामी के रूप में पूरवी जैन किरण मेहता के रूप में मायरा दांडेकर जेन थॉम्पसन एयरपोर्ट सिम कार्ड विक्रेता के रूप में विपणन और रिलीज़ मई २०१९ में, यह घोषणा की गई थी कि २४ अप्रैल २०२० को आंग्रेज़ी माध्यम को रिलीज़ करने के लिए स्लेट किया गया था, जिसमें शूजीत सिरकार की कॉमेडी-ड्रामा गुलाबो सीताबो में अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना की भूमिका थी, लेकिन १९ सितंबर को रिलीज़ की तारीख बदलकर २० मार्च २०२० कर दी गई थी। इरफ़ान खान के दमदार अभिनय के आगे कमज़ोर साबित होती है अंग्रेजी मीडियम की कहानीबॉलिवुड फिल्म रेवीयूज भारतीय सीक्वल फ़िल्में
डेलावेअर नदी संयुक्त राज्य अमेरिका के अंध महासागर की तरफ बहने वाली नदी है। इसकी डेलावेअर नदी न्यूयौर्क प्रान्त और पेन्सिलवेनिया प्रांत की सीमा भी बनाती है। नदी की लम्बाई (किलोमीटर मे) कुल लंबाई तकरीबन ४१० मील (६६० किलोमीटर) है। विश्व की नदियाँ संयुक्त राज्य अमेरिका की नदियाँ
दक्षिण तरावा (गिल्बर्टिस में तारवा तेनैनानो), किरिबाती गणराज्य की राजधानी और प्रशासनिक केंद्र है। यहाँ किरीबाती की आबादी का लगभग आधा हिस्सा निवास करती है। दक्षिण तरावा के आबादी का केंद्र पश्चिम में बेतिओ से पूर्व के बोनरीकी के सभी छोटे द्वीप तक हैं, जो दक्षिण तरावा के मुख्य सड़क से जुड़े हुए हैं, २०१० की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या ५०,१८२ थी। दक्षिण तारावा में, किरीबाती के अधिकांश सरकारी, वाणिज्यिक और शिक्षण संस्थान स्थित है, जिसमें बेटियो बन्दरगाह और उच्च न्यायालय, स्टेट हाउस, बैरिकी में सरकारी मंत्रालय और विदेशी उच्चायोग, टेयरेरेके में दक्षिण प्रशांत विश्वविद्यालय परिसर, एम्बो में असेंबली हाउस, किरिबाती टीचर कॉलेज और किंग जॉर्ज वी और ईलेन बर्नाची स्कूल, बीकेंबेबू का सरकारी हाई स्कूल और नवेरेवेरे में केंद्रीय अस्पताल आदि शामिल है। तरावा द्वीप, किरिबाती पौराणिक कथाओं और संस्कृति का केंद्र है, लेकिन दक्षिण तरावा पर जीवन अन्य द्वीपों से थोड़ा अलग है, इसे गिल्बर्ट और एलिस द्वीप समूह के संरक्षक के लिए औपनिवेशिक सरकार के केन्द्र के रूप में चुना गया था। बेतिवा तारावा की लड़ाई का स्थान था। दक्षिण तारवा, उत्तर में तारवा लैगून के बीच स्थित छोटे द्वीपों की एक श्रंखला है, जिसकी गहराई २५ मीटर (८२ फीट) तक है और दक्षिण में प्रशांत महासागर है, जोकि ४,००० मीटर (१३,००० फीट) गहरा है। यह छोटे द्वीप, लैगून के तलछट से बने है। मिट्टी के संचय की प्रक्रिया प्रमुख ईस्टर्नली व्यापार हवाओं द्वारा संचालित होती है और एल नीनो-दक्षिणी ऑसीलेशन के दौरान पश्चिमी हवाओं की विस्तारित अवधि के दौरान उलट भी जा सकती है। ये छोटे द्वीप अब सेतु-रोड से जुड़े हुए हैं, जो तरावा लैगून के दक्षिणी किनारे के साथ चट्टान पर एक लंबा छोट-द्वीप बनाते हैं। दक्षिण तरावा का अधिकांश हिस्सा समुद्र तल से ३ मीटर (९.८ फीट) से कम ऊंचा है, जिसकी ४५० मीटर (१,4८0 फीट) की औसतन चौड़ाई है। दक्षिण तरावा, मुख्य बंदरगाह और हवाई अड्डे और राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों और निजी व्यवसायों के स्थान किरिबाती का आर्थिक केंद्र है। आयात, निर्यात से ज्यादा होता है, और दक्षिण तरावा के अधिकांश घर, सरकारी रोजगार और विदेशों में काम करने वाले रिश्तेदारों से प्राप्त आर्थिक पर निर्भर रहते हैं। बेरोजगारी एक गंभीर समस्या है; २०१० में केवल ३४% शहरी वयस्कों (१५ वर्ष से अधिक) नकद काम में लगे थे; शेष दो तिहाई या तो श्रम बल, बेरोजगार या निर्वाह गतिविधियों में लगे हुए हैं। विशेष रूप से युवा के बेरोजगार होने की संभावना अधिक होती हैं। किरिबाती के शहर
रामराय-बाग कहलगाँव, भागलपुर, बिहार स्थित एक गाँव है। भागलपुर जिला के गाँव
विनोदनगर ईस्ट मेट्रो स्टेशन दिल्ली मेट्रो कीपिंक लाइन पर स्थित एक निर्माणाधीनमेट्रो स्टेशन है। विनोदनगर ईस्ट दिल्ली मेट्रो के तीसरे चरण के अंतर्गत बन रहीपिंक लाइन काहिस्साहोगा। यह भी देखें दिल्ली मेट्रो के स्टेशनों की सूची दिल्ली में यातायात दिल्ली मेट्रो रेल निगम दिल्ली मेट्रो रेल निगम लिमिटेड. (आधिकारिक साइट)* दिल्ली मेट्रो की वार्षिक रिपोर्ट पिंक लाइन के मेट्रो स्टेशन
तिमोर-लेस्ते ने सोचि में २०१४ शीतकालीन ओलंपिक में रूस से ७ से २३ फरवरी २०१४ तक हिस्सा लिया। देश ने शीतकालीन ओलंपिक में अपनी शुरुआत की। देश अनुसार शीतकालीन ओलंपिक २०१४
कैथे पैसिफ़िक () हांगकांग की अन्तर्राष्ट्रीय ध्वजधारक वायुसेवा है। इसका मुख्यालय एवं प्रमुख हब हांगकांग अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र में स्थित है, हालांकि कंपनी का पंजीकृत मुख्यालय ३३वें तल, वन पैसिफ़िक प्लेस में स्थित है। इस वायुसेवा में ३६ राष्ट्रों के ११४ गंतव्यों को अनुसूचित यात्री एवं माल (कार्गो) विश्वव्यापी सेवा मिलती है। कंपनी के बेड़े में चौड़ी बाडी वाले एयरबस ३३०, एयरबस ३४०, बोइंग ७४७ एवं बोइंग ७७७ विमान उपस्थित हैं। कंपनी की पूर्णस्वामित्त्व वाली सब्सिडियरी ड्रैगनएयर हांगकांग बेस से एशिया-प्रशांत क्षेत्र में ३६ गंतव्यों को सेवा प्रदान करती है। २०१० में कैथे-पैसिफ़िक एवं ड्रैगनएयर ने मिलकत लगभग २.७ करोड़ यात्रियों एवं १८ लाख टन माल-भाड़ा का परिवहन संपन्न किया था। कैथे पैसिफ़िक कार्गो कैथे पैसिफ़िक फ़ॉर बिज़्नेस हांगकांग की वायुसेवाएं
अण्टार्कटिका प्रवाह (प्रशान्त महासागर), प्रशान्त महासागर की एक प्रमुख सागरीय धारा हैं। प्रशान्त महासागर की धारायें
दलसिंहसराय , भारत के बिहार राज्य के समस्तीपुर जिले में एक शहर और नगर परिषद (नगर परिषद) है। यह बिहार के अनुमंडलों और प्रखंडों में से एक है। यह बलान नदी के तट पर स्थित है। दलसिंहसराय शहर ब्रिटिश काल के दौरान एक तम्बाकू और नील उत्पादन केंद्र था। दलसिंहसराय बालन नदी के तट पर स्थित है। यह शहर अंग्रेजों के समय एक तम्बाकू और इंडिगो उत्पादन केंद्र था। शहर के बारे में एक मिथक है कि दलसिंहसराय बिहार का पहला रेलवे स्टेशन था और भारत का दूसरा। दलसिंह सराय एक 'नगर परिषद' क्षेत्र है। यह बिहार के समस्तीपुर मंडल के चार अनुमंडल में से एक अनुमंडल भी है साथ ही अंचल और ब्लॉक में से एक 'उपखंड' भी है। २०१० से पहले दलसिंहसराय विधनसभा निर्वाचन क्षेत्र था, परंतु २०१० में भारत के परिसीमन आयोग ने इसे विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से हटा दिया। अब यह "उजियारपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र " और "उजियारपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र" के अंतर्गत आता है हालांकि आंशिक रूप से इसके पूर्वी भाग "बिभूतिपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र" के अंतर्गत आता है। श्री आलोक कुमार मेहता उजियारपुर विधानसभा सीट के विधायक हैं, जो वर्तमान बिहार के गठबंधन की सरकार में "सहकारिता मंत्री" हैं और श्री नित्यानंद राय उजियारपुर लोकसभा सीट के सांसद हैं जो इस समय केंद्र में राज्य के गृह मंत्री ह जबकि बिभूतिपुर विधानसभा सीट के विधायक श्री अजय कुमार हैंैं। दलसिंहसराय में आबादी बहुत है लेकिन हिंदू बहुसंख्यक हैं जबकि मुसलमान अल्पसंख्यक हैं। अतीसेेहीं ं दलसिंहसराय "मिथिला राज्य" के अंतर्गत आता है इसलिए यहाँ हम मिथिला की संस्कृति को बहुत आसानी से देख सकते हैं। मैथिली जो पूरी दुनिया में सबसे मधुर भाषा है, यहाँ मुख्य रूप से बोली जाती है और साथ ही यहाँ हिंदी भी बोली जाती है। विद्यापतिधाम जिसे "बिहार का देवघर" कहा जाता यहीं पर स्व.विद्यापति ठाकुर को निर्वान की प्राप्ति हुई थी। , दलसिंहसराय उपखंड के अंतर्गत आता है। दलसिंहसराय प्रखंड में गौसपुर इनायतकवटा, , अजनौलपगड़ाराबल्लोो च,बसढिया क आदि ४५ गाँव शामिल हैं। यह रेलवे या सड़क नेटवर्क के माध्यम से देश के बाकी हिस्सों से अच्छी तरह सजुड़ा़ा हुआ ह दलसिंहसराय रेलवे लाइन सोनपुर मंडल के अंतर्गत आता है, जबकि समस्तीपुर जं. की दूरी २३ क्म, हाजीपुर जं. १२९ क्म और सोनपुर जं. १३४ क्म, पटना जं. १३७ क्म (भाया बरौनी मोकामा जबकि भाया समस्तीपुर, हाजीपुर, दीघा घाट , पटलीपुत्र १६१ क्म) , दरभंगा जं. ६० क्म, बरौनी जं. २७ क्म, मुज़फरपुर जं. ७५ क्म की दूरी पर स्थित है। ै। इसका नाम अघोरी के ९ वें गुरु दलपत सिंह के नाम पर रखा गया है। इससे पहले इसे अघोरिया घाट कहा जाता था। यह शहर ब्रिटिश शासन के दौरान इंडिगो की खेती का केंद्र रहा है। 1९02 में पूसा में इस शहर के करीब एक इंडिगो रिसर्च इंस्टीट्यूट भी खोला गया। आस-पास के क्षेत्रों में तंबाकू की अधिक मात्रा होने के कारण ब्रिटिश शासन के अधीन एक सिगरेट कारखाना भी था। दलसिंगसराय सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यह शहर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या -२८ पर स्थित है, जो बरौनी (बिहार) को गोरखपुर होते हुए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से जोड़ता है। यह श ८८ से भी जुड़ा है जो इसे रोसरा और कई और जगहों से जोड़ता है। दलसिंहसराय के बारे में एक मिथक है कि यह भारत का दूसरा सबसे पुराना रेलवे स्टेशन और बिहार का पहला रेलवे स्टेशन है। दलसिंहसराय एक तम्बाकू उत्पादन केंद्र था, तैयार तम्बाकू उत्पादों को रेलवे के माध्यम से शेष भारत में पहुँचाया जाता था, ब्रिटिश सरकार ने तम्बाकू उत्पादों के परिवहन के लिए दलसिंहसराय में एक रेलवे स्टेशन का निर्माण किया। यह बरौनी जंक्शन और समस्तीपुर जंक्शन के बीच कई आधुनिक सुविधाओं वाला मुख्य रेलवे स्टेशन है। पूर्व मध्य रेलवे, हाजीपुर की कई प्रमुख ट्रेनें जैसे गरीब रथ सुपरफास्ट एक्सप्रेस, वैशाली सुपर फास्ट एक्सप्रेस, अवध आसम एक्सप्रेस आदि यहां रुकती हैं। यह रेलवे से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यह पूर्व मध्य रेलवे, हाजीपुर के सोनीपुर डिवीजन के अंतर्गत आता है। यह रेलवे नेटवर्क के साथ भारत के अन्य हिस्सों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। लगभग हैं। दलसिंगसराय रेलवे स्टेशन पर ४२ यात्री ट्रेनें और १७ मालगाड़ियाँ रुकती हैं। दलसिंहसराय में रुकने वाली सामान्य ट्रेनें निम्नलिखित हैं: - दलसिंह सराय आगमन डिपार्टमेंट्स स्टॉप टाइम के दौरान ट्रेन का नाम (सं।) ध्न स्मि स्पेशल (०३३२७) ०४:०३ ०४:०५ २ शनिवार मैप कोआ स्पेशल (०५२२६) १६:०७ १६:०९ २ मिनट शनिवार कोआ मैप विशेष (०५२२५) २०:५० २०:५२ २ मिनट रविवार अबाद असम एक्सप्रेस (१५६०९) १४:५४ १४:५५ १ मिनट रोज़ घी जीवछ लिन (२५६१०) ०८:१७ ०८:१८ १ मिनट रोज़ सीपीआर टाटा एक्सप्रेस (१८१८२) १७:४९ १७:५१ २ मिनट रोज़ वैशाली एक्सप्रेस (१२५५३) १०:०० १०:०१ १ मिनट रोज़ रविवार को छोड़कर इंटरसिटी एक्सप्रेस (१३२२५) १५:१६ १५:१७ १ मिनट मिथिला एक्सप्रेस (१३०२२) १५:५५ १५:५६ १ मिनट रोज़ गंगा सागर एक्सप्रेस (१३१८६) २०:०६ २०:०७ १ मिनट रोज़ रविवार को छोड़कर इंटरसिटी एक्सप्रेस (१३२२६) ११:१० ११:११ मिनट ( यह ट्रेन वर्तमान में जयनगर, समस्तीपुर, मुज़फरपुर, हाजीपुर पटलीपुत्र होते पटना जाती है, दलसिंहसराय से प्रस्थान नहीं करती है) बाग एक्सप्रेस (१३०१९) ०८:१० ०८:११ १ मिनट रोज़ ब्जू ल्जन एक्सप्रेस (१५२०३) २१:०६ २१:०७ १ मिनट रोज़ गंगासागर एक्सप्रेस (१३१८५) ०४:३० ०४:३१ १ मिनट रोज़ जनसेवा एक्सप्रेस (१३४१९) १८:४५ १८:४६ १ मिनट रोज़ जनसेवा एक्सप्रेस (१३४२०) ००:३१ ००:३२ १ मिनट रोज़ मौर्य एक्सप्रेस (१५०२७) ०६:१० ०६:११ १ मिनट रोज़ टाटा सीपीआर एक्सप्रेस (१८१८१) १०:०४ १०:०५ १ मिनट रोज़ मिथिलांचल एक्सप्रेस (१३१५५) ०७:२६ ०७:२७ १ मिनट गुरुवार / रविवार गरीब रथ एक्सप्रेस (१२२०३) १७:४५ १७:४६ १ मिनट मिथिलांचल एक्सप्रेस (१३१५६) १६:०७ १६:०८ १ मिनट सोमवार / शनिवार अवध असम एक्सप्रेस (१५९१०) ०८:०५ ०८:०७ २ मिनट रोज़ तिरहुत एक्सप्रेस (१३१५७) ०७:२६ ०७:२७ १ मिनट मंगलवार तिरहुत एक्सप्रेस (१३१५८) १६:०७ १६:०८ १ मिनट बुधवार रूल हह एक्सप्रेस (१३०४४) ०२:०६ ०२:०७ १ मिनट गुरुवार / शनिवार बाग एक्सप्रेस (१३०२०) २२:०० २२:०२ २ मिनट रोज़ कोया स्मि एक्सप्रेस (१३१६५) ०९:०४ ०९:०५ १ मिनट शनिवार मौर्य एक्सप्रेस (१५०२८) १६:३४ १६:३६ २ मिनट रोज़ श्क गरीब रथ (१२२०४) ०६:४५ ०६:४७ २ मिनट बुधवार / शनिवार / रविवार होव आरएक्सएल एक्सप्रेस (१३०४३) ०९:०४ ०९:०५ १ मिनट शुक्रवार / बुधवार वैशाली एक्सप्रेस (१२५५४) १६:२० १६:२२ २ मिनट रोज़ बरौनी ग्वालियर मेल (१११२३) १९:१५ १९:१६ १ मिनट रोज़ ग्वालियर बरौनी मेल (१११२४) १२:५० १२:५२ २ मिनट मिथिला एक्सप्रेस (१३०२१) ०२:४० ०२:४१ १ मिनट रोज़ धनबाद स्पेशल (०३३१८) १२:५८ १३:०० २ मिनट (रविवार, मंगलवार, शुक्रवार) कोलकाता एक्सप्रेस (१३१६६) ०२:०६ ०२:०७ १ मिनट रविवार अबध असम एक्सप्रेस (१५९०९) १४:५५ १४:५६ १ मिनट रोज़ इन्हें भी देखें बिहार के शहर समस्तीपुर ज़िले के नगर
गोली, चम्पावत तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के चम्पावत जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा गोली, चम्पावत तहसील गोली, चम्पावत तहसील
अर्नोल्ड ओटवानी (जन्म १९ सितंबर १९95) एक युगांडा के क्रिकेटर हैं। उन्होंने केन्या के अपने दौरे के दौरान युगांडा के लिए दिसंबर २०१० में एक लिस्ट ए मैच खेला। उन्होंने मई २०१७ में २०१७ आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन तीन टूर्नामेंट में युगांडा के लिए खेला। अक्टूबर २०१८ में, उन्हें ओमान में २०१८ आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन तीन टूर्नामेंट के लिए युगांडा के दस्ते में नामित किया गया था। वह टूर्नामेंट में युगांडा के लिए अग्रणी रन स्कोरर थे, जिसमें पांच मैचों में १५१ रन थे। मई २०१९ में, युगांडा में २०१८-१९ आईसीसी टी २० विश्व कप अफ्रीका क्वालीफायर टूर्नामेंट के क्षेत्रीय फाइनल के लिए उन्हें युगांडा के दस्ते में नामित किया गया था। उन्होंने २० मई २०१९ को बोत्सवाना के खिलाफ युगांडा के लिए अपना ट्वेंटी २० अंतर्राष्ट्रीय (टी२०ई) पदार्पण किया। जुलाई २०१९ में, वह हांगकांग में क्रिकेट विश्व कप चैलेंज लीग जुड़नार से आगे, युगांडा प्रशिक्षण दस्ते में नामित पच्चीस खिलाड़ियों में से एक था। नवंबर २०१९ में, उन्हें ओमान में क्रिकेट विश्व कप चैलेंज लीग बी टूर्नामेंट के लिए युगांडा के दस्ते में नामित किया गया था। १९९५ में जन्मे लोग
कोहवारा नेपालके मेची अंचलके झापा जिला का एक गाँव विकास समिति है।
इसिक कुल प्रांत (किरगिज़: - , अंग्रेज़ी: इसीक कुल प्रोविंस) मध्य एशिया के किर्गिज़स्तान देश का पूर्वतम प्रांत है। इस प्रांत राजधानी काराकोल शहर है। इसिक कुल प्रांत का नाम प्रसिद्ध इसिक कुल झील पर पड़ा है। इस प्रांत की सीमाएँ काज़ाख़स्तान से और चीन के शिनजियांग प्रांत से लगती हैं। इसिक कुल प्रांत के उत्तरी भाग में आँख के आकार की इसिक कुल झील है जो हर तरफ़ से तियान शान की ऊँची पहाड़ियों से घिरी है। प्रांत के अधिकतर लोग इसी झील के किनारे बसते हैं, विशेषकर के पूर्वी छोर पर प्रांतीय राजधानी काराकोल में और पश्चिमी छोर पर बलिकची (, बालिक्चय) शहर में। इसिक कुल प्रांत के दक्षिणी भाग में पहाड़ और 'जैलूस' (जैलूस) नाम के पहाड़ी मैदान हैं जिनपर गर्मियों में मवेशी चराए जाते हैं। तियान शान पर्वत शृंखला के सबसे ऊँचे पहाड़ प्रांत के पूर्वी हिस्से में हैं और इनमें प्रसिद्ध ख़ान तेन्ग्री पहाड़ शामिल है। तियान शान का सबसे ऊँचा पर्वत जेन्गिश चोकुसु भी इस प्रांत की चीन के साथ लगी सीमा पर स्थित है। इसिक कुल प्रांत में सर्दियों में बहुत ठण्ड होती है और तापमान शुन्य से -२५ सेनिग्रेड तक पहुँच जाता है। फिर भी यह इसिक कुल झील की ख़ासियत है कि यह कभी नहीं जमती और 'इसिक कुल' का मतलब भी किरगिज़ भाषा में 'गरम झील' है। यह इतनी आकर्षक है और इसके इर्द-गिर्द का हवा-पानी इतना लुभावना है कि इसे 'तियान शान का मोती' कहा जाता है। सोवियत संघ के ज़माने में ग़ैर-सोवियत लोगों को इस झील तक आना सख़्त मना था लेकिन सोवियत नागरिकों के लिए एक छुट्टी मानाने का स्थान था। अंतरिक्ष में उड़ान भरने वाला पहला मानव यूरी गगारिन १९६१ में अपनी उड़ान के बाद विश्राम करने यहीं आया था और लियोनिद ब्रेझ़नेव जैसे सोवियत नेताओं और राष्ट्रपतियों ने तो इसके किनारे अपने अवकाश-घर ही बना लिए थे। सन् २००९ की जनगणना में प्रांत के ८६.२% लोग किरगिज़ समुदाय के थे और ८.०% लोग रूसी समुदाय के थे। इसके अलावा यहाँ काज़ाख़, उइग़ुर, कालमूक, उज़बेक, तातार और अन्य जातियों के छोटे समुदाय भी रहते हैं। इसिक कुल प्रांत के कुछ नज़ारे इन्हें भी देखें किर्गिज़स्तान के प्रांत इसिक कुल प्रांत किर्गिज़स्तान के प्रांत
नरेला विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र दिल्ली में स्थित एक विधान सभा क्षेत्र है। यह उत्तर पश्चिम दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। इस क्षेत्र के वर्तमान विधायक नील दमन खत्री हैं। ये भी देखें उत्तर पश्चिम दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र दिल्ली के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र
भारत का संविधान १९५० में लागु हुआ। किशोरों के लिये अलग कानून की आवश्यक्ता अनुभव की गई संविधान द्वारा १९९२ मैं शामिल किया गया जो अमेरिका के संविधान से लिया गया जो मूल रूप से बालको के प्रति होने वाले यौन अपराधों के प्रतिषेध कानून है २००२ मे अधिनियमित हुआ वर्ष २०१२ मैं यह कानून का रूप ले चूका था लेकिन यह अपराध श्रेणी मै आता है कानून के प्रभाग इस अधिनियम के अंतर्गत यौन अपराध यौन छेड़छाड़ व अश्लील चित्र या वीडियो बनाने के अपराधों के प्रतिषेध कृत कानून है कुछ धाराओं के अंतर्गत उम्र कैद तक की सजा का प्रावधान है नये संशोधन के अंतर्गत बालक अपने ऊपर हुए अपराधों की ऍफ़ आई आर करने के उपरांत आरोपी को अपने को निर्दोष साबित करना होता है बच्चे को अपराध हुआ इसके लिए सिर्फ आरोप लगाना पर्याप्त है इस कानून के अंतर्गत बालक बालिका दोनों को समान रूप से सुरक्षा प्रदान की गई है विशेष न्यायलय बालक के प्रति अपराध की गम्भीरता व उसे हुए सामाजिक व मानसिक नुकसान का आकलन करता है। सामाजिक शिक्षा भावनात्मक व शारीरिक नुकसान के अनुसार दंडात्मक कार्यवाही करता है
'जौहर' शब्द के अर्थ के लिये कृपया जौहर का अलग से पृष्ठ देखें। जौहर (काव्य) हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित वीर रस का चर्चित खण्डकाव्य है।
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील संभल, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है। सम्बंधित जनगणना कोड: राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७२१ उत्तर प्रदेश के जिले (नक्शा) संभल तहसील के गाँव
पलतोडी, गंगोलीहाट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा पलतोडी, गंगोलीहाट तहसील पलतोडी, गंगोलीहाट तहसील
मंगल ग्रह के भूपृष्ठ को संयुक्त राज्य भूगर्भ सर्वेक्षण द्वारा ३० चतुष्कोणों में विभाजित किया गया है, ऐसा नाम इसलिए क्योंकि उनकी सीमाएं अक्षांश और देशांतर रेखाओं के साथ-साथ स्थित है, इसलिए नक्शे आयताकार दिखाई देते हैं। मंगल चतुष्कोणों के नाम स्थानीय भूआकृतियों पर रखे गए है, और "मार्स चार्ट" के लिए उपसर्ग "मै" के साथ क्रमांकित है। पश्चिम देशांतर का प्रयोग किया जाता है। चतुष्कोणों के मानचित्र मंगल ग्रह के निम्न छवि-नक्शे आपस मे सटे ३० चतुष्कोणों में विभाजित है। चतुष्कोण पर क्लिक करें और आप इसी लेख के पृष्ठों पर ले जाए जाएंगे। उत्तर दिशा शीर्ष पर है, भूमध्य रेखा के एकदम बांये है। नक्शों की तस्वीरें मार्स ग्लोबल सर्वेयर द्वारा ली गई थी। चतुष्कोणों की सूची
हज़ूर महाराज बाबा सावन सिंह जी ( अंग्रेजी : हज़ूर महाराज बाबा सावन सिंह जी ; १८५८-१९४८), जिन्हें "द ग्रेट मास्टर" या "वड़े महाराज जी" के नाम से भी जाना जाता है, एक महान भारतीय गुरु थे। १९०३ में बाबा जयमल सिंह जी महाराज के निधन से लेकर २ अप्रैल १९४८ को अपनी जीवन यात्रा पूरी करने तक वह राधा स्वामी सत्संग ब्यास (आर एस एस बी) के दूसरे सतगुरु रहे। अपनी जीवन यात्रा पूरी करने से पहले उन्होंने सरदार बहादुर महाराज जगत सिंह जी को अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उनके सेवक, जिन्होंने उनके ज्योति ज्योति समाने के बाद, अलग आध्यात्मिक मिशन बनाए हैं उनमें कृपाल सिंह, मस्ताना बलोचिस्तानी, बीबी सोमनाथ और प्रीतम दास शामिल हैं। बाबा सावन सिंह ग्रेवाल जी का जन्म ५ सावन 191५ विक्रम संमत और ग्रेवाल जाट सिख परिवार में २० जुलाई 18५8 को ग्राम जटाना (नानका गांव), जिला लुधियाना अविभाजित पंजाब में हुआ था। उनके पिता सूबेदार मेजर काबल सिंह ग्रेवाल जी और माता जीवनी कौर जी थीं। आपके दादा जी, सरदार शेर सिंह जी थे जो 11५ वर्ष तक जीवित रहे। आपका पैतृक गांव महिमा सिंह वाला था। आपका विवाह माता किशन कौर जी से हुआ था और आपके तीन बच्चे, सरदार बचिंत सिंह जी, सरदार बसंत सिंह जी और सरदार हरबंस सिंह ग्रेवाल जी थे। आप ने थर्मसन कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग, रूड़की से इंजीनियरिंग उत्तीर्ण की और बाद में सैन्य इंजीनियरिंग सेवा में शामिल हो गए। आप ने विभिन्न धर्मों के धर्मग्रंथों का अध्ययन किया लेकिन सिख धर्म की गुरबानी से गहरा जुड़ाव बनाए रखा। आप ने बाबा कहन नाम के एक पेशावर फकीर से संपर्क किया, जिनसे आप को उम्मीद थी कि वे उनसे दीक्षा लेंगे, लेकिन आप ने मना कर दिया: मैं उनके साथ कई महीनों तक जुड़ा रहा और उस दौरान उन्होंने कई मौकों पर अलौकिक शक्तियों का प्रदर्शन किया। जब मैंने उससे पूछा कि क्या वह मेरी पहल करके मेरा पक्ष लेगी, तो उसने उत्तर दिया: 'नहीं, वह कोई और है; मैं तुम्हारा नहीं हूं. 'फिर मैंने उससे पूछा कि मुझे बताओ कि वह व्यक्ति कौन है ताकि मैं उससे संपर्क कर सकूं. उसने उत्तर दिया: 'समय आने पर वह तुम्हें ढूंढ लेगा।' बाद में, जब बाबा सावन सिंह जी मरी में रह रहे थे, तो उनकी मुलाकात बाबा जयमल सिंह जी महाराज से हुई, जिन्होंने अपने साथी को बताया कि वह सावन सिंह को दीक्षा देने आए हैं। बाबा जयमल सिंह जी के साथ कई बहसों और चर्चाओं और कई सम्मेलनों के बाद, बाबा सावन सिंह जी पूरी तरह से आश्वस्त हो गए और १५ अक्टूबर १८९४ को बाबा जयमल सिंह जी महाराज से दीक्षा ले ली। बाबा सावन सिंह जी अप्रैल १९११ में सरकारी पैंशन पर सेवानिवृत्त हुए और डेरा बाबा जयमल सिंह (ब्यास) - "बाबा जयमल सिंह जी का डेरा" १८९१ में बसाया - का विकास किया और घर, बंगले और सत्संग हॉल बनाए। बाबा सावन सिंह जी ने भारत विभाजन के साम्प्रदायिक पूर्णता के पीड़ितों को आश्रय दिया।आप ने १,२५,३७५ आत्माओं को नामदान की बख़्शिश की। आप के अनुयायियों में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और पहली बार हजारों लोग शामिल थे - विदेश, अमेरिका, ब्रिटेन, स्विट्जरलैंड, जर्मनी से, जिनमें डॉक्टर - सर्जन डॉ. भी शामिल थे। जूलियन जॉनसन, डॉक्टर-होम्योपैथ डॉ. पियरे स्मिथ, और ऑस्टियोपैथ-काइरोप्रैक्टिक डॉ. रैंडोल्फ स्टोन था। आप जी ने ४५ वर्षों तक डेरा ब्यास के दूसरे सतगुरु के रूप में साध संगत की सेवा की। अंततः २ अप्रैल, १948 को ९० वर्ष की आयु भोगकर आप ईश्वर के चरणों में जा बिराजे। बाबा सावन सिंह जी महाराज ने निम्नलिखित पुस्तकें लिखीं: गुरमत सिद्धांत (दो भाग) प्रभात का प्रकाश परमार्थी पत्र भाग २ संतमत प्रकाश (पांच भाग) शब्द की महिमा के शब्द हालाँकि आप ने इनके साथ अपना उल्लेख नहीं किया, निम्नलिखित अपील और सम्मान हजूर महाराज बाबा सावन सिंह जी के लिए लागू होते हैं: द ग्रेट मास्टर
बोनी जे. डनबर अंतरिक्ष की यात्री है, उन्होंने १९७८ में अंतरिक्ष में अपनी पहली उड़ान भरी थी। सन २००५ में वह नासा से रिटायर्ड हुई थी। अप्रैल २०१० तक उन्होंने उड़ान के संग्रहालय के अध्यक्ष और सीईओ के रूप में कार्य किया। डनबर इंजन भूमि विमान में २०० घंटे से अधिक के साथ एक निजी पायलट भी है, जिसने बैक-सीटर के रूप में टी -३८ जेट विमानों में ७०० घंटों से अधिक समय की यात्रा की है और सेस्ना उद्धरण जेट में यह सह-पायलट के रूप में १०० घंटे से अधिक भी रह चुकी है। डनबर का जन्म ३ मार्च १९४९ को वाशिंगटन में हुआ था। उन्होंने १९६७ में अपने स्कूल की पढ़ाई पूरी की और १९७१ में वाशिंगटन विश्वविद्यालय से अपनी ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। डनबर ने सिस्टम विश्लेषक के रूप में बोइंग कंप्यूटर सर्विसेज में दो साल के लिए काम किया। १९७३ से १९७५ तक उन्होंने सोडियम बीटा-एल्यूमिना में ईओण फैलाव के तंत्र और कैनेटीक्स के क्षेत्र में अपने मास्टर की थीसिस के लिए शोध किया। और फिर वह कप्पा डेल्टा सोरेनिटी का सदस्य बन गई। १९७५ में, उन्हें एक विज़िटिंग वैज्ञानिक के रूप में, इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड के पास परमाणु ऊर्जा अनुसंधान संस्थान, हार्ववेल में शोध में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। उसके बाद उन्होंने डाउनी, कैलिफोर्निया में रॉकवेल इंटरनेशनल स्पेस डिविजन के साथ एक वरिष्ठ शोध इंजीनियर की स्थिति को स्वीकार किया। डॉ. डनबर ने ह्यूस्टन विश्वविद्यालय में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में सहायक प्रोफेसर के रूप में भी काम किया है। और इन्होने अपने अंतरिक्ष विमान साथी अंतरालवादी रोनाल्ड एम सेगा से शादी कर ली। १९७८ में लिंडन बी जॉनसन स्पेस सेंटर में डनबर ने पेलोड ऑफिसर व फ्लाइट कंट्रोलर के रूप में पद स्वीकार किया। उन्होंने १९७९ में स्काइलाब रिकेंट्री मिशन के लिए मार्गदर्शन और नेविगेशन अधिकारी/फ्लाइट कंट्रोलर के रूप में कार्य किया और बाद में कई स्पेस शटल पेलोड्स के एकीकरण के लिए प्रोजेक्ट ऑफिसर/पेलोड अधिकारी के रूप में नामित हुई। अगस्त १९८१ में डनबार नासा की अंतरिक्ष यात्री बन गए। उनके तकनीकी कार्यों में शटल एवियोनिक्स एकत्रीकरण प्रयोगशाला (सेल) में शटल फ्लाइट सॉफ़्टवेयर के सत्यापन में सहायता शामिल है, जो उड़ान क्रू उपकरण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य के रूप में सेवा कर रही थी। और अंतरिक्ष यात्री कार्यालय विज्ञान सहायता समूह के सदस्य के रूप में भाग लिया और संचालन के विकास का समर्थन किया और रिमोट मैनिपुलेटर सिस्टम (आरएमएस) का भी कार्य किया। उन्होंने "द्वितीयक" पेलोड के लिए अंतरिक्षयान कार्यालय इंटरफ़ेस के रूप में, और विज्ञान सहायता समूह के लिए नेतृत्व के रूप में, मिशन विकास शाखा के प्रमुख के रूप में सेवा की है। उन्होंने "द्वितीयक" पेलोड के लिए अंतरिक्षयान कार्यालय इंटरफ़ेस के रूप में और विज्ञान सहायता समूह के लिए नेतृत्व के रूप में, मिशन विकास शाखा के प्रमुख के रूप में भी कार्य किया है। फरवरी १९९४ में उन्होंने रूस के स्टार सिटी की यात्रा की, जहां उन्होंने रूसी अंतरिक्ष स्टेशन पर ३ महीने की उड़ान के लिए बैक-अप चालक दल के सदस्य के रूप में १३ महीने के प्रशिक्षण किया। मार्च १९९५ में, उन्हें रूसी गैगारिन अंतरिक्षविज्ञान प्रशिक्षण केंद्र द्वारा प्रमाणित किया गया की वह लंबी अवधि के मीर स्पेस स्टेशन की उड़ानों पर उड़ान भरने के लिए योग्य है। पांच अंतरिक्ष उड़ानों के एक अनुभवी, डंबर ने अंतरिक्ष में १२०८ घंटे (५० दिन) से अधिक लॉग इन किया है। १९८५ में एसटीएस -६१-ए में १ ९९ ० में एसटीएस -३२ और १९९५१ ९९ ५ में एसटीएस -7१ पर मिशन विशेषज्ञ के रूप में काम किया, और १९९२में एसटीएस -५० पर पेलोड कमांडर और १९९८ में एसटीएस -८ ८9 में काम किया। पुरस्कार और सम्मान २०१६ में हेरिटेज विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट नासा अंतरिक्ष उड़ान पदक(१९८५, १९९०, १९९२, १९९५ एंड १९९८) नासा सुपीरियर उपलब्धि पुरस्कार(१९९७) सदस्य, राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन (एनएसएफ़) इंजीनियरिंग सलाहकार बोर्ड, १ ९९ ३-वर्तमान डिजाइन न्यूज इंजीनियरिंग अचीवमेंट अवार्ड(१९९३) महिला अंतरिक्ष यात्री
कुलदेवी मंदिर, उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के डेरवा क़स्बे में स्थित प्रख्यात भदरी राजघराने की कुल देवी का मंदिर हैं। यह मंदिर कुंडा तहसील के डेरवा बाजार के पास भदरी राजघराने के जिल्ले में स्थित है, यह बिसेन ठाकुरों की कुलदेवी हैं, इसे उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री रघुराज प्रताप सिंह के पूर्वजों ने बनवाया है। मंदिर लगभग ८०० साल पुरानी बताई जाती हैं। मान्यता अनुसार राजघराने के लोग कोई भी कार्य करने से पहले कुल देवी का आशीर्वाद लेते हैं। शादी विवाह में प्रथम निमंत्रण भी कुलदेवी को दिया जाता है। परम्पराओं से जुड़े राजघराने के लोग अब भी वासंतिक नवरात्र में नवमी के दिन देवी को भेंट चढ़ाने पहुंचते हैं। वर्ष २०१५, में उत्तर प्रदेश पर्यटन विकास मंत्रालय ने मंदिर को पर्यटन स्थल के तौर पर सजाने संवारने और विकसित करने के लिए डेढ़ करोड़ रुपये का पैकेज स्वीकृत प्रदान किया है।
४७५ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ
सआदतगंज की मंडी लखनऊ का सआदतगंज इलाके किसी समय भारत की प्रसिद्ध अनाज मंडियों में गिना जाता था। इसी मंडी के पास एक पुरानी बावली थी जिसके नाम से यह मुहल्ला बावली कहा जाता था। नवाब सआदत अली खा आठरहवीं सदी में जब लखनऊ आया करते थे तो बावली कोठी में रुका करते थे। हालांकि आज इस बावली का कोई नामो-निशां नहीं है।
नावागाँव रायगढ मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़ जिले का एक गाँव है। छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़
रिवाल्सर हिंदू, सिख और बौद्धों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान है। रिवालसर में प्राकृतिक झील अपने तैरते ईख द्वीपों और मछलियों के लिए प्रसिद्ध है। झील के परिधि के साथ हिंदू, बौद्ध और सिख मंदिर मौजूद हैं। किंवदंती यह है कि महान शिक्षक और विद्वान पद्मसंभव ने तिब्बत को रिवाल्सर से उड़ान भरने के लिए अपनी विशाल शक्तियों का उपयोग किया। ऐसा माना जाता है कि रिवाल्सर झील में तैरने वाले ईख के छोटे द्वीपों में पद्मसंभव की भावना है। पद्मसंभव की एक मूर्ति प्रतिमा भी रिवाल्सर में बनाई गई है। माना जाता है कि ऋषि लोमास ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपनी तपस्या की है। गुरुद्वारा श्री रिवाल्सर साहिब दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी से जुड़े हुए हैं, जिन्होंने पहारी राजाओं को मुगलों के खिलाफ अपनी लड़ाई में एकजुट होने के लिए बुलाया था। सभी धर्म के लोग बेसाखी पर पवित्र स्नान के लिए रिवाल्सर आते हैं। रिवाल्सर में तीन बौद्ध मठ हैं। इसमें गुरुद्वारा है जिसे १ ९ ३० में मंडी के राजा जोगिंदर सेन ने बनाया था। हिंदू मंदिर हैं जो झील के साथ भगवान कृष्ण, भगवान शिव और ऋषि लोमा को समर्पित हैं। नैना देवी जी मंदिर: रिवाल्सर से १0 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, नैना माता का एक मंदिर पहाड़ी की चोटी पर मौजूद है। ऐसा माना जाता है कि सती की आंखें इस जगह पर गिर गईं और नैना देवी का एक मंदिर इस पवित्र स्थान पर बनाया गया था। राज्य के सभी कोनों से भक्त पूरे साल मंदिर जाते हैं। यह स्थान पाइन के पेड़ों से घिरा हुआ है और बल्ह और सरकाघाट घाटी के मनोरम दृश्य पेश करता है। लोग भी रिवाल्सर से इस जगह पर यात्रा करना पसंद करते हैं। नैना देवी मंदिर के रास्ते पर हम पांडवों की मां कुंती के नाम पर कुंट भायो नामक एक और झील में आती हैं। ऐसा कहा जाता है कि अर्जुन ने अपनी मां के प्यास को बुझाने के लिए झील बनाई। इस क्षेत्र में स्थानीय रूप से सर के नाम से जाना जाने वाला पौराणिक कथाओं के छह अन्य झील मौजूद हैं। इन झीलों में अधिकांश पानी बरसात के मौसम के दौरान एकत्र होता है।
अजीजपुर एटा जिले के पटियाली प्रखण्ड का एक गाँव है। एटा ज़िले के गाँव
नया गांव रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड न्यो), भारतीय राज्य बिहार के सारण जिले में स्थित एक रेलवे स्टेशन है। यह रेलवे के उत्तर पूर्वी संभाग में पड़ता है। सोनपुर शहर एवं पटना के आस पास रहने वाले लोग इस स्टेशन का ज्यादातर प्रयोग करते है। यह शहर घाघरा और गंगा नदी के पास स्थित है। नया गांव स्टेशन से रेल पहिया कारखाना, बेला, दरियापुर तक रेलवे लाइन बिछी है। नयागांव रेलवे स्टेशन, पूर्वमध्य रेलवे (ईसीआर) के सोनपुर रेल मंडल में सोनपुर-छपरा रेलखंड पर स्थित है। नया गांव रेलवे स्टेशन के सामने शहीद राजेंद्र सिंह का स्मारक है। ट्रेन की समय सारणी निम्नलिखित तालिका में नया गांव रेलवे स्टेशन से जाने वली सभी गाड़ियाँ दर्शायी गयी हैं (दिनाँक २८ जून २०१७). निकटतम रेलवे स्टेशन दूरी से आस-पास के स्टेशनों कर रहे हैं: बिहार में रेलवे स्टेशन
सियुलिबन (सिउलिबान) भारत के झारखंड राज्य के धनबाद ज़िले में स्थित एक शहर है। इन्हें भी देखें झारखंड के शहर धनबाद ज़िले के नगर
मुज़फ़्फ़रनगर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले में स्थित एक नगर है। मुज़फ़्फ़रनगर यह ज़िले का मुख्यालय भी है। मुज़फ़्फ़रनगर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का भाग है और राष्ट्रीय राजमार्ग ५८ द्वारा कई स्थानों से जुड़ा हुआ है। यह समुद्र तल से २३७-२४५ मीटर ऊपर, दिल्ली से लगभग ११६ किमी दूर, उत्तर प्रदेश के उत्तर में उत्तरी अक्षांश २९ ११' ३०" से २९ ४५' १५" तक और पूर्वी रेखांश ७७ ३' ४५" से ७८ ७' तक स्थित है। यह राष्ट्रीय राज मार्ग ५८ पर सहारनपुर मण्डल के अंतर्गत गंगा और यमुना के दोआब में, दक्षिण में मेरठ और उत्तर में सहारनपुर जिलों के बीच स्थित है। पश्चिम में शामली मुज़फ़्फ़र नगर को हरियाणा के पानीपत और करनाल से और पूर्व में गंगा नदी उत्तर प्रदेश के बिजनोर जिले से अलग करती है। मुज़फ़्फ़र नगर का क्षेत्रफल ४००८ वर्ग किलोमीटर (१९,६३,६६२ एकड़) है। मुजफ़्फ़र नगर में पहली जनसंख्या १८४७ में हुई और तब मुजफ़्फ़र नगर की जनसंख्या ५३७,५९४ थी। २००१ की जनसंख्या के अनुसार मुज़फ़्फ़र नगर जिले की आबादी ३५,४३,३६0 (१८,९३,8३० पुरूष और १६,४९,५३० महिला, २६,३९,४८० ग्रामीण और ९,0३,८८० शहरी, १७,८०,३८० साक्षर, ४,७८,३२० अनुसूचित जाति और लगभग ९0 अनुसूचित जनजाति) है और औसत ३१,६०० व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर में रहते हैं। मुज़फ़्फ़र नगर जिले में १ लोक सभा, ६ विधान सभा, ५ तहसिल, १४ खण्ड (ब्लोक), ५ नगर पालिकाएं, २० टाऊन एरिया, १02७ गांव (२०0३-0४ में केवल 88६ गाँवों में बिजली थी), २८ पुलिस स्टेशन, १५ रेलवे स्टेशन (उत्तरी रेलवे, १८६९ में रेलमार्ग आरम्भ हुआ) हैं। २००१ में ५५७ औघोगिक कम्पनियाँ और ३०,७९2 स्माल स्केल कम्पनियाँ थी। इतिहास और राजस्व प्रमाणों के अनुसार दिल्ली के बादशाह, शाहजहाँ, ने सरवट (सर्वत) नाम के परगना को अपने एक सरदार सैयद मुजफ़्फ़र खान को जागीर में दिया था जहाँ पर १६३३ में उसने और उसके बाद उसके बेटे मुनव्वर लश्कर खान ने मुजफ़्फ़र नगर नाम का यह शहर बसाया। परन्तु इस स्थान का इतिहास बहुत पुराना है। काली नदी के किनारे सदर तहसिल के मंडी नाम के गाँव में हड़प्पा कालीन सभ्यता के पुख्ता अवशेष मिले हैं। अधिक जानकारी के लिये भारतीय सर्वेक्षण विभाग वहां पर खुदाई कार्य करवा रहा है। सोने की अंगूठी जैसे आभूषण और बहुमूल्य रत्नों का मिलना यह दर्शाता है कि यह स्थान प्राचीन समय में व्यापार का केन्द्र था। तैमूर आक्रमण के समय के फारसी इतिहास में भी इस स्थान का वर्णन मिलता है। शहर से छह किलोमीटर दूर सहारनपुर रोड़ पर काली नदी के ऊपर बना बावन दरा पुल, करीब १५१२ ईस्वी में शेरशह सूरी ने बनवाया था। शेरशाह सूरी उस समय मुगल सम्राट हुमायूं को पराजित कर दिल्ली की गद्दी पर बैठा था। उसने सेना के लश्कर के आने जाने के लिये सड़क का निर्माण कराया था जो बाद में ग्रांट ट्रंक रोड़ के नाम विख्यात हुई। इसी मार्ग पर बावन दर्रा पुल है। माना जाता है कि इसे इसे उस समय इस प्रकार डिजाईन किया गया था कि यदि काली नदी में भीषण बाढ़ आ जाये तो भी पानी पुल के किनारे पार न कर सके। पुल में कुल मिला कर ५२ दर्रे बनाये गये हैं। जर्जर हो जाने के कारण अब इसका प्रयोग नहीं किया जा रहा है। वहलना गांव में शेरशाह सूरी की सेना के पड़ाव के लिये गढ़ी बनायी गई थी। इस गढ़ी का लखौरी ईटों का बना गेट अभी भी मौजूद है। ग्राम गढ़ी मुझेड़ा में स्थित सैयद महमूद अली खां की मजार मुगलकाल की कारीगरी की मिसाल है। ४०० साल पुरानी मजार और गांव स्थित बाय के कुआं की देखरेख पुरातत्व विभाग करता है। मुगल समा्रट औरगजेब की मौत के बाद दिल्ली की गद्दी पर जब मुगल साम्राज्य की देखरेख करने वाला कोई शासक नहंी बचा तो जानसठ के सैयद बन्धु उस समय नामचीन हस्ती माने जाते थे। उनकी मर्जी के बिना दिल्ली की गद्दी पर कोई शासक नहंी बैठ सकता था। जहांदार शाह तथा मौहम्मद शाह रंगीला को सैयद बंधुओं ने ही दिल्ली का शासक बनाया था। इन्ही सैयद बंधुओं में से एक का नाम सैयद महमूद खां था। उन्हीं की मजार गा्रम गढ़ीमुझेड़ासादात में स्थित हैं। जिसमें मुगल करीगरी की दिखाई पड़ती है। ४०० साल पुरानी उक्त सैयद महमूद अली खां की मजार तथा प्राचीन बाय के कुयेंं के सम्बन्ध में किदवदन्ती है कि दोनो का निर्माण कारीगरों द्वारा एक ही रात में किया गया था। लम्बे समय तक मुगल आधिपत्य में रहने के बाद ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने १८२६ में मुज़फ़्फ़र नगर को जिला बना दिया। १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में शामली के मोहर सिंह और थानाभवन के सैयद-पठानों ने अंगेजों को हरा कर शामली तहसिल पर कब्जा कर लिया था परन्तु अंग्रेजों ने क्रूरता से विद्रोह का दमन कर शामली को वापिस हासिल कर लिया। ६ अप्रैल १९१९ को डॉ॰ बाबू राम गर्ग, उगर सेन, केशव गुप्त आदि के नेतृत्व में इण्डियन नेशनल कांगेस का कार्यालय खोला गया और पण्डित मदन मोहन मालवीय, महात्मा गांधी, मोती लाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, सरोजनी नायडू, सुभाष चन्द्र बोस आदि नेताओं ने समय-समय पर मुज़फ़्फ़र नगर का भ्रमण किया। खतौली के पण्डित सुन्दर लाल, लाला हरदयाल, शान्ति नारायण आदि बुद्धिजीवियों ने स्वतंत्रता आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। १५ अगस्त १९४७ को आजादी मिलने पर केशव गुप्त के निवास पर तिरंगा फ़हराने का कार्यक्रम रखा गया।मुजफ्फरनगर से दो किमोमीटर दूर एक गाँव हैं मुस्तफाबाद और इसके साथ लगा गाँव हैं पचेंडा , कहते हैं यह पचेंडा गाव महाभारत काल में कौरव पांडव की सेना का पड़ाव स्थल था , मुस्तफाबाद के पश्चिम में पंडावली नामक टीला हैं जहां पांडव की सेना पडी हुई थी तथा पूर्व में कुरावली हैं जहां कौरव की सेना डेरा डाले पडी थी , पचेंडा में एक महाभारतकालीन भेरो का मंदिर और देवी का स्थल भी हैं जनसंख्या और कारोबार मुज़फ़्फ़र नगर का क्षेत्रफल ४०४९ वर्ग किलोमीटर (१९,६३,६६२ एकड़) है। मुजफ़्फ़र नगर में पहली जनगणना १८४७ में हुई और तब मुजफ़्फ़र नगर की जनसंख्या ५३७,५९४ थी। २००१ की जनगणना के अनुसार मुज़फ़्फ़र नगर जिले की आबादी ३५,४३,३६० (१८,९३,८३० पुरूष और १६,४९,५३० महिला, २६,३९,४८० ग्रामीण और ९,०३,८८० शहरी, १७,८०,3८० साक्षर, ४,७८,३२० अनुसूचित जाति और लगभग ९0 अनुसूचित जनजाति) है और औसत ३१,६०० व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर में रहते हैं। २०११ की जनगणना के अनुसार मुजफ्फरनगर की कुल जनसंख्या ४138६०5 (पुरूष 2१९४5४0, महिला १९४४065), लिंग अनुपात ८८६ तथा साक्षरता दर ७०.११ (पुरूष 7९.११, महिला ६०.००) है मुजफ्फरनगर एक महत्वपूर्ण औद्योगिक शहर है, चीनी, इस्पात, कागज और सिले सिलाये कपड़े और हाथ की कशीदाकारी से बने महिलाओं के सूट के लिए प्रसिद्ध है, गन्ना के साथ अनाज यहाँ के प्रमुख उत्पाद है। यहाँ की ज़्यादातर आबादी कृषि में लगी हुई है जो कि इस क्षेत्र की आबादी का ७०% से अधिक है। मुजफ्फरनगर का गुड़ बाजार एशिया में सबसे बड़ा गुड़ का बाजार है। मुजफ्फर नगर में खतौली की पुली सम्पूर्ण भारत में महत्वपूर्ण है सबसे ज्यादा पृशिद है गन्ना भारत में सबसे अधिक पैदा होता है गन्ने के मिल भी सबसे ज्यादा संख्या में है श्री गोलोकधाम मंदिर यह सिद्धपीठ नगर के गांधी कालोनी मोहल्ले में स्थित है, यहाँ श्री राधा माधव जी का एक भव्य मंदिर है मंदिर राधाकृष्ण के चमत्कारिक विग्रह के लिए प्रसिद्ध है। प्रतिदिन राधामाधव जी का श्रृंगार व वस्त्र धारण कराए जाते हैं, यहाँ श्री राधा कृष्ण जी के सिध्द स्वरूप श्री श्यामाश्याम जी भी विराजित हैं, जिनकी अष्टयाम सेवा की जाती है, यह एक उत्तराखंड बॉर्डर पर स्थित है जो चाट के लिए प्रसिद्ध है। पुरकाज़ी को एनएच-५८ दो भागों में बाँटता हैं। साथ ही यहाँ उत्तर प्रदेश परिवहन का मुख्य अड्डा भी है। इस के पास से गंगा नदी भी बहती है। यह स्थान हिन्दुओं का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल माना जाता है। गंगा नदी के तट पर स्थित शुक्रताल जिला मुख्यालय से ३० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि इस जगह पर अभिमन्यु के पुत्र और अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित को शराप मुक्त करने के लिए महर्षि सुखदेव जी ने भागवत गीता का वर्णन किया था। इसके समीप स्थित वट वृक्ष के नीचे एक मंदिर का निर्माण किया गया था। इस वृक्ष के नीचे बैठकर ही सुखदेव जी भागवत गीता के बारे में बताया करते थे। सुखदेव मंदिर के भीतर एक यज्ञशाला भी है। राजा परीक्षित महाराजा सुखदेव जी से भागवत गीता सुना करते थे। इसके अतिरिक्त यहां पर पर भगवान गणेश की ३५ फीट ऊंची प्रतिमा भी स्थापित है। इसके साथ ही इस जगह पर अक्षय वट और भगवान हनुमान जी की ७२ फीट ऊंची प्रतिमा बनी हुई है। यह गंगा की शाखा नदी गंगा के किनारे बसा है। जहाँ देश विदेश से कई लाख प्र्य्ट्क आते है। मुजफ्फरनगर स्थित खतौली एक शहर है। यह जगह मुजफ्फरनगर से २१ किलोमीटर की दूरी पर और राष्ट्रीय राजमार्ग ५८ द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है। यहां स्थित जैन मंदिर काफी खूबसूरत है। इसके अतिरिक्त एक विशाल सराय भी है। इनका निर्माण शाहजहां द्वारा करवाया गया था। खतौली का नाम पहले ख़ित्ता वली था जो बाद में खतौली हो गया यहाँ त्रिवेणी शुगर मिल एशिया का सबसे बड़ा मिल है खतौली तहसील का सबसे मुख्य विलेज खेड़ी कुरेश है इस गांव में अनुसूचित जाति की संख्या का बाहुल क्षेत्र है अनुसूचित जातियो में चेतना पैदा करने में अग्रणी है यहां का सबसे निकटतम हवाई अड्डा दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी अंर्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। दिल्ली से मुजफ्फनगर ११६ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मुजफ्फरनगर रेलमार्ग द्वारा भारत के प्रमुख शहरों से पहुंचा जा सकता है। राष्ट्रीय राजमार्ग ५८ द्वारा मुजफ्फनगर पहुंचा जा सकता है। भारत के कई प्रमुख शहरों जैसे नई दिल्ली, देहरादून, सहारनपुर और मसूरी आदि से यहां पहुंच सकते हैं। यहॉ इस शहर में बहुत से प्रतिष्ठत स्कूल व कालेज हैं। शहर में एक निजी वित्त पोषित इंजीनियरिंग कॉलेज और एक मेडिकल कॉलेज है। इन में शामिल हैं: गांधी पालीटेक्निक, आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज, आयुर्वेद अनुसंधान केन्द्र, कृषि कॉलेज, कृषि विज्ञान केन्द्र, अस्पतालों, नेत्र अस्पताल, डिग्री कालेजों, इंटर कालेज, वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों, नवोदय स्कूल, केन्द्रीय विधालय,, जूनियर हाई स्कूल, प्राथमिक स्कूलों, संस्कृत पाठशाला नयी राहे स्पेशल स्कूल(संचालित)भारतीय बाल एंव मानव कल्याण परिषद दिल्ली, ब्लाइंड स्कूल, योग प्रशिक्षण केन्द्र, अम्बेडकर छात्रावास, धर्मशाला, अनाथालय, वृद्वाआश्रम, बूढ़ी गाय के संरक्षण केन्द्र और कई अन्य आध्यात्मिक और धार्मिक केंद्र। मुज़फ़्फ़र नगर से जुड़ी कुछ खास बातें - पश्चिमी उत्तर प्रदेश का पहला फोटो स्टूडियो स्वर्गीय मोहम्मद गुफरान द्वारा वर्ष १९३५ में मुज़फ्फरनगर में ही शुरू किया गया था जिसे अब उनके पुत्र गुलरेज़ गुफरान द्वारा चलाया जा रहा है। पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री लियाकत अली ख़ान मुज़फ़्फ़र नगर के निवासी थे। मुजफ़्फ़र नगर जिले के भोपा के पास यूसूफ़पुर गांव के रमेश चन्द धीमान ने ३.१२ मिली मीटर की कैंची और ४.५० मिली मीटर का रेजर बना कर गिनीज बुक और लिमका बुक में अपना नाम लिखा मुजफ़्फ़र नगर या। मुगलकालीन किंग "मेकर" सैयद बन्धु जानसठ इलाके से ताल्लुक रखते थे। १९५२ में मुजफ़्फ़र नगर में पहली बार स्वतंत्र गणतंत्र के चुनाव हुए और उत्तरी मुजफ़्फ़र नगर से कांग्रेस के अजीत प्रसाद जैन और दक्षिणी मुजफ़्फ़र नगर से कांग्रेस के हीरा बल्लभ त्रीपाठी चुने गये। स्व० मुनव्वर हसन - संसद सदस्य कैराना (जन्म तिथि - १५ मई १९६४) अपने १४ वर्ष के राजनितिक कार्यकाल में (१९९१-2००5) ६ बार भारत के ४ सदनों विधानसभा, विधान परिषद, लोकसभा तथा राज्यसभा के सदस्य रहे। गाँव खेडी कुरैश के दलित व किसान नेता रमेश चन्द ने समाजिक चेताना में अहम भूमिका निभायी किसान नेता उघम सिहँ तिसंग बावना मंच ने किसानो में चेतना पैदा करने में अहम भूमिका रही ! मुजफ्फर नगरके निवासी मुरली सिंह (स्पीच थैरेपिसट) ने मूक-बधिर की शिक्षा में महत्वपूर्ण योग्यता हासिल की और जनपद के सैकड़ों युवा को जागरूक किया आज मुजफ्फर नगर के सैकड़ों युवा मूक बधिर की शिक्षा में प्रशिक्षण लेकर देश के सरमस्त राज्यों में कार्यरत है इन्हें भी देखें २०१३ मुज़फ़्फ़र नगर दंगे उत्तर प्रदेश के नगर मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के नगर
रुपारेल कॉलेज मुम्बई स्थित एक महाविद्यालय है, जिसकी स्थापना १९५२ में हुई थी। उल्लेखनीय पूर्व विद्यार्थी ऐश्वर्या राय बच्चन (अभिनेत्री) अजीत आगरकर (क्रिकेट खिलाड़ी) अनिल काकोडकर (वैज्ञानिक) अंतरा माली (अभिनेत्री) अरविंद एस॰ नाडकर्णी (कवि) दिशा वकानी (अभिनेत्री) मुग्धा चाफेकर (अभिनेत्री) रजनी पंडित (जासूस) राम कापसे (राजनेता) रमाकांत देसाई (क्रिकेट खिलाड़ी) रमेश पोवार (क्रिकेट खिलाड़ी) श्रीधर फड़के (संगीतज्ञ) सिद्धार्थ जाधव (अभिनेता) उर्मिला मातोंडकर (अभिनेत्री) सोनारिका भदौरिया (अभिनेत्री) मुंबई के कॉलेज
भागीचक जमालपुर, मुंगेर, बिहार स्थित एक गाँव है। मुंगेर जिला के गाँव
करालापाठक, बेरीनाग तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा करालापाठक, बेरीनाग तहसील करालापाठक, बेरीनाग तहसील
बृजकिशोर बिन्द(जन्म:- ०१/०१/१९६६) एक भारतीय राजनितिज्ञ और बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री है। वे कैमुर के चैनपुर विधानसभा क्षेत्र से तीन बार से विधायक रह रहे है । ये बिहार विधानसभा के उपचुनाव (२००९) में भाजपा से पहली बार विधायक निर्वाचित हुए थे। 2०१8 में जदयू और भाजपाके गठबंधन से बिहार में नीतीश कुमार की सरकार बनी । जिसमें ये भाजपा के तरफ कैबिनेट मंत्री के रूप में शफथ लिया।[] ब्रजकिशोर बिंद का जन्म १ जनवरी १966 को बिहार के भभुआ के चैनपुर में एक किसान परिवार मे हुआ था | इनके पिता का नाम अंटु बिन्द था | इन्होंने विद्यालयी शिक्षा पुरा करने के बाद, भागलपुर युनिवर्सिटी से स्नातक(बा) किया | [कैबिनेट मंत्री बृजकिशोर बिन्द का किया गया स्वागत] [के मंत्री बनने पर रामगढ़ (भभुआ) में निकला भव्य जुलूस] [नीतीश ने मंत्रियों का विभाग बाटा] इन्हें भी देखें सुशील कुमार मोदी
सबकी लाडली बेबो एक लोकप्रिय भारतीय टेलीविजन ड्रामा-सीरीज़ थी जो स्टार प्लस पर प्रसारित होती थी। श्रृंखला का प्रीमियर ११ मार्च २००९ को हुआ और इसका निर्माण एंडेमोल इंडिया और सचिदानंद प्रोडक्शंस द्वारा किया गया था। इसका समापन २५ मार्च 20११ को हुआ सबकी लाडली बेबो एक प्यारी, हंसमुख, मासूम लड़की बेबो के बारे में है, जिसे उसका परिवार बेहद प्यार करता है। तीन भाइयों और उनके माता-पिता का यह समृद्ध, सम्मानित, पारंपरिक पंजाबी परिवार हमेशा एक लड़की के लिए तरसता था। उनकी ख़ुशी का तब ठिकाना नहीं रहा जब सालों बाद भगवान ने उनकी प्रार्थनाएँ सुनीं और एक बेटी का जन्म हुआ। सबकी लाडली बेबो एक ऐसे परिवार की कहानी है जो तीन लड़कों के होने के बाद एक लड़की के लिए तरसता है। कुक्कू नारंग (कंवलजीत सिंह) और उसकी पत्नी अमरजीत की प्रार्थनाओं का आखिरकार उत्तर दिया गया और परिवार को बेबो का आशीर्वाद मिला, जो धीरे-धीरे हर किसी की लाडली (पसंदीदा) बन गई। बेबो (शिवशक्ति सचदेव) की मुलाकात अमृत (अनुज सचदेवा) से एक रेलवे स्टेशन पर होती है। वह मानती है कि वह श्रवण ही है, जिसे उसके परिवार ने उसके प्रेमी के रूप में पाया था, लेकिन बाद में पता चला कि वह श्रवण नहीं है। उसकी शादी के दिन, यह पता चला कि बेबो एक अनाथ है जिसे नारंग परिवार ने गोद ले लिया था, जिसके कारण शादी रद्द हो गई। अमृत बेबो को सांत्वना देता है और वे दोस्त बन जाते हैं। अमृत को बेबो से प्यार हो जाता है। सिमरन के भाई करण को भी बेबो से प्यार हो जाता है। सिमरन बेबो को ब्लैकमेल करती है और उससे करण से शादी करने के लिए कहती है। बेबो करण से शादी करने का फैसला करती है, जबकि पूरा परिवार इससे इनकार करता है। ब्लैकमेल का पता चल जाता है और उसके परिवार वाले उसकी शादी अमृत से कर देते हैं। एक रिपोर्ट में सीरीज खत्म होने का कारण बताया गया है कि, प्रोडक्शन हाउस ने शो को खत्म करने का फैसला किया क्योंकि शो की प्रमुख जोड़ी - शिवशक्ति सचदेव और अनुज सचदेवा की बेतुकी मांगों को पूरा करना मुश्किल होता जा रहा था। स्टार प्लस इंडिया पर सबकी लाडली बेबो आधिकारिक साइट स्टार प्लस के धारावाहिक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक
विलेख (दीद) एक लिखित कानूनी दस्तावेज है जो किसी अधिकार या सम्पत्ति के स्वामित्व आदि की घोषणा करता है। कानूनी शब्दावली विलेख को दस्तावेज (डॉक्यूमेंट) (या चमड़े के कागज या कागज पर अन्य पढ़े जा सकने योग्य आवेदन या शब्द) के रूप में परिभाषित करता है, जो कानूनी रूप में किसी कार्य के होने की व्यवस्था करते हैं। साधारण रूप से यह कहा जा सकता है कि विलेख दस्तावेज होते हैं, लेकिन सभी दस्तावेज विलेख नहीं होते। लेकिन भारत में विलेख और अनुबन्ध में कोई अन्तर नहीं माना जाता है। हाँ, अनुबन्ध मौखिक हो सकता है, लेकिन विलेख, जैसा कि इसके नाम से लगता है, हमेशा लिखित में ही होता है। साधारणतः इसके निम्न भाग हैं- किसी लेनदेन के कानूनी प्रभाव का निर्धारण करते समय जब अस्पष्ट शब्दों का प्रयोग किया गया है तो न्यायालय प्रायः उस निर्वचन को मानता है जो विलेख को सही मानता है, यदि पक्षों ने उसकी वैधता की कल्पना के अनुसार कार्य किया है। सम्पूर्ण विलेख को पढ़ना चाहिए और यथासम्भव उसके प्रत्येक भाग को पूरा करना चाहिए। विलेख विभिन्न पैराग्राफों में विभक्त होता है। प्रत्येक पैरा साधारण और समझने योग्य भाषा में आवश्यक और सम्बन्धित सूचना से व्यवहार करता है। यदि किसी विशेष मामले में कोई विशेष भाग लागू नहीं होता है तो उसे प्रपत्र में से हटा दिया जाता है। सामान्यतः महत्वपूर्ण भाग निम्न प्रकार हैं - प्रपत्र का शीर्षक, जैसे शपथपत्र, क्षतिपूर्ति बॉण्ड दस्तावेज के लागू होने की तिथि एवं स्थान पक्षकारों के नाम व वर्णन शर्तें और नियम पक्षों के हस्ताक्षर गवाहों के हस्ताक्षर। विलेख आवश्यक मूल्य के मुद्रांक पर लिखा जाना चाहिए। कुछ प्रमुख विलेख साझेदारी विलेख (पार्टनरशिप डीड) अधिकार पत्र (पॉवर ऑफ एटॉर्नी) विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा १३ के अनुसार या 'विनिमय-साध्य विलेख' या 'परक्राम्य लिखत' (नेगोटिएबल इंस्ट्रूमेंट) की परिभाषा निम्नलिखित है- एक विनिमय-साध्य विलेख से तात्पर्य ऐसे प्रतिज्ञा पत्र से है, जिसका भुगतान वाहक को अथवा आदेशानुसार हो सकता है। विनिमय-साध्य विलेख ऐसा विपत्र है, जिसमे निहित संम्पत्ति किसी व्यक्ति द्वारा सदभाव से और मूल्य के बदले अर्जित की गयी है, चाहे वह किसी ऐसे व्यक्ति से लिया गया है, जिसके स्वामित्व ( ओनरशिप ) मे कोई दोष ही क्यों न हो।'' उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि विनिमय-साध्य विलेख का स्वामित्व किसी अन्य व्यक्ति से हस्तानांतरण किया जा सकता है, प्राप्त करने वाले को शुद्ध स्वामित्व प्राप्त होगा, यदि वह निम्न तीन बाते पूरी कर दे- १. उसने उचित मूल्य दिया है। २. सद्विश्वास मे खरीदा है, विनिमय-साध्य विलेख के आवश्यक लक्षण २. लिखने वाले के हस्ताक्षर ६. वैधानिक स्वामित्व ७. शर्त रहित आदेश ८. मुद्रा मे भुगतान ९. देय होना विनिमय-साध्य विलेख के प्रकार १. धनादेश या चेक (चेकू):- चेक एक प्रकार का विनिमय-पत्र है, जो किसी विशिष्ट बैंकर पर लिखा जाता है तथा मांग पर ही देय होता है। २. विनिमय-विपत्र (बिल ऑफ एक्स्चंगे):- विनिमय बिल एक लिखित आदेश होता है, जिस पर लेखक के लिखित हस्ताक्षर होते है, तथा जिसमे निश्चित व्यक्ति को यह आदेश होता है कि वह अमुक ( निश्चित) व्यक्ति को अथवा उसके आदेशानुशर अथवा विलेख वाहक को एक निश्चित धनराशि का भुगतान करे। ३. प्रतिज्ञा-पत्र (प्रोमिस्री नोट):- प्रतिज्ञा पत्र एक लिखित विलेख है ( जिसमे बैंक नोट अथवा करन्सी नोट शामील नहीं है ) जिसमे शर्तहीन प्रतिज्ञा-पत्र लिखने वाला हस्ताक्षर करता है और किसी निश्चित व्यक्ति अथवा उनके आदेशानुशार अथवा विलेख के वाहक को एक निश्चित राशि चुकाने का वचन दिया जाता है। ४. हुण्डी (हुंडी):- हुण्डी विनिमय पत्र का एक भारतीय रूप है। यह भारतीय भाषा मे लिखी जाती है व इसमे निश्चित राशि क भुगतान का आदेश होता है। उपरोक्त विनिमय-साध्य विलेखों में अन्तर निम्नलिखित रारणी से स्पष्ट हो जायेगा- इन्हें भी देखें परक्राम्य लिखत अधिनियम १८८१
गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर (गोदर्द स्पेस फ्लाइट सेंटर (गस्फ्क)), १ मई १959 को नासा के पहले अंतरिक्ष उड़ान केंद्र के रूप में, स्थापित किया गया एक प्रमुख अंतरिक्ष अनुसंधान प्रयोगशाला है।
कंकाटि, सारंगापूर मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
सेलप्पन निर्मला (जन्म १९५२ या १९५३) एक भारतीय चिकित्सक है जिसने १९८६ में भारत में एचआईवी का पहला मामला पाया। १९८५ में, ३२ वर्ष की आयु में, वह चेन्नई (मद्रास) में एक सूक्ष्म जीव विज्ञान के छात्र के रूप में काम कर रही थी और उनके शोध प्रबंध के लिए, रक्त के नमूनों को एकत्र करना शुरू किया और उन्हें एचआईवी के लिए परीक्षण किया गया; उनके बीच सकारात्मक परीक्षण देने वाले भारत में एकत्र किए गए पहले नमूने थे। निर्मला को पारंपरिक भारतीय परिवार में उठाया गया था और उनके पति ने मेडिकल रिसर्च में जाने के लिए प्रोत्साहित किया था।। अमेरिका में एचआईवी के औपचारिक नतीजे के जवाब में उनके गुरु, प्रोफेसर सुनीती सोलोमन से वायरस की खोज करने का विचार उनके दिमाग में था, जो १९८२ में शुरू हुआ था।उस समय, एचआईवी अभी भी देश में निषिद्ध विषय था।सकारात्मक परिणाम के बिना मुंबई और पुणे से रक्त के नमूने एकत्र किए गए थे। अनुसंधान योजना में संदेह वाले समूहों से रक्त के लगभग २०० नमूनों को शामिल किया गया था, जिनमें ८० लोगों ने निर्मला द्वारा एकत्रित किये गये थे।चेन्नई में परीक्षण सुविधाओं की कमी के कारण, सुलैमान ने २०० मीटर (१२० मील) दूर वेल्लोर के ईसाई मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में जांच की व्यवस्था की। नमूनों से यह पुष्टि हुई कि एचआईवी भारत में सक्रिय है।यह जानकारीभारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद को दी गयी थी, जिसने प्रधान मंत्री राजीव गांधी और तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री एच. वी. हैंडे को बताया था। एचआईवी बाद में देश में एक महामारी बन गई। निर्मला ने मार्च १९८७ में तमिलनाडु में उनकी दिसेरटेशन, सर्विलांस फॉर एड्स इन तमिल नाडु जमा किया और बाद में चेन्नई में किंग इंस्टीट्यूट ऑफ प्रीवेन्टीवी मेडिसिन और रिसर्च में शामिल हुई। वह वह २०१० में सेवानिवृत्त हुए। १९५० दशक में जन्मे लोग विज्ञान में महिलाएं भारतीय महिला चिकित्सक
टोला-बेलोखर धरहरा, मुंगेर, बिहार स्थित एक गाँव है। मुंगेर जिला के गाँव
बकालो धरमजयगढ मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़ जिले का एक गाँव है। छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़
दिहखास भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के इलाहाबाद जिले के हंडिया प्रखण्ड में स्थित एक गाँव है। इलाहाबाद जिला के गाँव
गरजता चालीसा (रोरिंग फोर्टी) पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध में ४० डिग्री दक्षिण और ५० डिग्री दक्षिण के अक्षांशों (लैटीट्यूड) के बीच चलने वाली शक्तिशाली पछुआ पवन को कहते हैं। पश्चिम-से-पूर्व चलने वाले यह वायु प्रवाह भूमध्य रेखा से वायु दक्षिणी ध्रुव की ओर जाने से और पृथ्वी के घूर्णन से बनते हैं। पृथ्वी के ४० और ५० डिग्री दक्षिण अक्षांशों के बीच बहुत कम भूमि है और अधिकांश भाग में केवल खुला महासागर है जिस से इन पवनों को रोकने वाली पहाड़ियाँ या अन्य स्थलाकृतियाँ अनुपस्थित हैं और इनकी शक्ति बढ़ती जाती है। गरजता चालीसा हवाओं से यहाँ की लहरे भी कभी-कभी तेज़ वायु प्रवाह से उत्तेजित होकर भयंकर ऊँचाई पकड़ लेती हैं। इन लहरों के बावजूद मशीनीकरण के युग से पूर्व यूरोप से ऑस्ट्रेलिया जाने वाली नौकाएँ ४० डिग्री से आगे दक्षिण आकर अपने पालों द्वारा इन गतिशील हवाओं को पकड़कर तेज़ी से पूर्व की ओर जाने का लाभ उठाया करती थीं। इन्हें भी देखें ४० अक्षांश दक्षिण ५० अक्षांश दक्षिण
मालुर श्रीनिवास तिरुमलै अयंगार को प्रशासकीय सेवा के क्षेत्र में १९५६ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये तमिलनाडु राज्य से हैं। १९५६ पद्म भूषण
चिरला मूँजपटा, इलाहाबाद (इलाहाबाद) इलाहाबाद जिले के इलाहाबाद प्रखंड का एक गाँव है।
सिमलक, लोहाघाट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के चम्पावत जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा सिमलक, लोहाघाट तहसील सिमलक, लोहाघाट तहसील
१३४० ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ
५१८ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ
प्राक्केन्द्रकी जीव ऐसे जीवों को कहा जाता है जिनकी कोशिकाओं में झिल्लियों में बंद केन्द्रक नहीं होता। इनके विपरीत सुकेन्द्रिक कोशिकाओं में एक झिल्ली से घिरा हुआ केन्द्रक होता है जिसके अन्दर आनुवंशिक सामान होता है। अधिकतर अकेन्द्रिक जीव एककोशिकीय होते हैं यद्यपि कुछ के जीवनक्रम में कभी-कभी एक बहुकोशिकीय अन्तराल भी आता है। यूनानी भाषा में 'प्रो' (, प्रो) का मतलब '(किसी चीज़ से) पहले' और 'केरी' (, करी) का मतलब 'बीज' या (बादाम या अख़रोट की) 'गरी' होता है। यानि प्रोकेरियोट कोशिकाएँ केन्द्रक के बनने से पहले की (अधिक रूढ़ी) कोशिकाएँ हैं। इसी तरह हिन्दी में 'प्राक्केन्द्रकी' = प्राक् + केन्द्रकी = वे कोशिकाएँ जो सुकेन्द्रकी कोशिकाओं के पहले बनीं थीं। इन्हें भी देखें
अरूण कुमार यादव,भारत के उत्तर प्रदेश की पंद्रहवी विधानसभा सभा में विधायक रहे। २००७ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के फूलपुर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से सपा की ओर से चुनाव में भाग लिया। उत्तर प्रदेश १५वीं विधान सभा के सदस्य फूलपुर के विधायक
जिबाउती का ध्वज (, , ) जिबाउती का राष्ट्रीय ध्वज है। इसे २७ जून १९७७ को इस देश की फ़्रांस से स्वतंत्रता के बाद स्वीकृत किया गया था। हलका नीला रंग आसमान और समन्दर तथा ईसा सोमाली का प्रतिनिधित्व करता है। हरा रंग शांति का प्रतीक है और लाल तारा एकजुटता और स्वतंत्रता में शहीदों के खून का प्रतीक है। जिबाउती के राष्ट्र गान में किसी परिवार का उल्लेख नहीं है। फ़्रेंच सोमालिलैंड की स्थापना से पूर्व तजूरा की सलतनत के ध्वज को ही इस क्षेत्र के लिए प्रयोग में लाया जाता था। जिबाउती के ध्वज की संरचना १९७० में हुई। इसे १९७७ मे स्वीकृत किया गया।
ऊतंगरई (उठंगराई) भारत के तमिल नाडु राज्य के कृष्णगिरि ज़िले में स्थित एक शहर है। राष्ट्रीय राजमार्ग ७७ और राष्ट्रीय राजमार्ग १७९ए यहाँ से गुज़रते हैं। इन्हें भी देखें तमिल नाडु के शहर कृष्णगिरि ज़िले के नगर
संघनित द्रव्य भौतिकी (कंडेन्स्ड मैटर फिजिक्स) भौतिकी की वह शाखा है जो द्रव्य की संघनित प्रावस्थाओं (कंडेन्स्ड फस) के भौतिक गुणों का अध्ययन करती है। संघनित द्रव्य भौतिकी
कुइयाँजान नासिरा शर्मा का एक प्रसिद्ध उपन्यास है। कुइयाँ अर्थात वह जलस्रोत जो मनुष्य की प्यास आदिम युग से ही बुझाता आया है। आमतौर पर हिंदी के लेखकों पर आरोप लगता रहा है कि वे जीवन की कड़वी सच्चाइयों और गंभीर विषयों की अनदेखी करते रहे हैं। हालांकि यदाकदा इसका अपवाद भी मिलता रहा है। लेकिन नासिरा शर्मा की नई पुस्तक कुइयाँजान इन आरोपों का जवाब देने की कोशिश के रूप में सामने आती है। पानी इस समय हमारे जीवन की एक बड़ी समस्या है और उससे बड़ी समस्या है हमारा पानी को लेकर अपने पारंपरिक ज्ञान को भूल जाना। फिर इस बीच सरकारों ने पानी को लेकर कई नए प्रयोग शुरू किए हैं जिसमें नदियों को जोड़ना प्रमुख है। बाढ़ की समस्या है और सूखे का राक्षस हर साल मुँह बाये खड़ा रहता है। इन सब समस्याओं को एक कथा में पिरोकर शायद पहली बार किसी लेखक ने गंभीर पुस्तक लिखने का प्रयास किया है। यह तकनीकी पुस्तक नहीं है, बाक़ायदा एक उपन्यास है लेकिन इसमें पानी और उसकी समस्या को लेकर एक गंभीर विमर्श चलता रहता है। यू के कथा सम्मान यू के कथा सम्मान
वानुअतु महिला राष्ट्रीय क्रिकेट टीम अंतरराष्ट्रीय महिला क्रिकेट में वानुअतु गणराज्य का प्रतिनिधित्व करती है। यह देश में खेल के शासी निकाय, वानुअतु क्रिकेट एसोसिएशन (वीसीए) द्वारा आयोजित किया जाता है, जो अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) का एक सहयोगी सदस्य है। पिछले साल फिजी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदार्पण करने के बाद, वानुअतु ने पहली बार विश्व ट्वेंटी २० के लिए २०12 आईसीसी पूर्वी एशिया-प्रशांत क्षेत्रीय क्वालीफायर में एक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भाग लिया, जिसमें दो मैच जीते और छह टीमों में से चौथे स्थान पर रहे। उसी टूर्नामेंट के २०14 संस्करण में, वे केवल एक जीत (कुक आइलैंड्स के खिलाफ) के साथ अंतिम स्थान पर रहे। वानुअतु का अगला प्रमुख आयोजन पापुआ न्यू गिनी के पोर्ट मोरेस्बी में २०15 के प्रशांत खेलों में महिला टूर्नामेंट था। अप्रैल २०१८ में, आईसीसी ने अपने सभी सदस्यों को पूर्ण महिला ट्वेंटी २० अंतर्राष्ट्रीय (मटी२०आई) का दर्जा दिया। इसलिए, १ जुलाई २०१८ से वानुअतु महिलाओं और एक अन्य अंतरराष्ट्रीय पक्ष के बीच खेले गए सभी ट्वेंटी-२० मैच पूर्ण मटी२०आई रहे हैं।
दमुआ (दमुआ) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के छिंदवाड़ा ज़िले में स्थित एक नगर है। इन्हें भी देखें मध्य प्रदेश के शहर छिंदवाड़ा ज़िले के नगर
शिवाकान्त ओझा,भारत के उत्तर प्रदेश की सोलहवीं विधानसभा सभा में विधायक रहे। २०१२ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश की रानीगंज विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र (निर्वाचन संख्या-२५०)से चुनाव जीता। उत्तर प्रदेश १६वीं विधान सभा के सदस्य रानीगंज के विधायक
आटोमेटिक बग फिक्सिंग : स्वचालित बग-फिक्सिंग मानव प्रोग्रामर के हस्तक्षेप के बिना सॉफ़्टवेयर बग की स्वचालित मरम्मत है। इसे आमतौर पर स्वचालित पैच पीढ़ी, स्वचालित बग मरम्मत या स्वचालित प्रोग्राम मरम्मत के रूप में भी जाना जाता है। इस तरह की तकनीकों का विशिष्ट लक्ष्य सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों में बगैर किसी बाधा के सॉफ्टवेयर प्रोग्राम में बग को खत्म करने के लिए स्वचालित रूप से सही पैच जेनरेट करना है। स्वचालित बग फिक्सिंग अपेक्षित व्यवहार के विनिर्देश के अनुसार किया जाता है जो उदाहरण के लिए एक औपचारिक विनिर्देश या परीक्षण सूट हो सकता है। एक परीक्षण-सूट - इनपुट / आउटपुट जोड़े कार्यक्रम की कार्यक्षमता को निर्दिष्ट करते हैं, संभवतः खोज में ड्राइव करने के लिए एक परख के रूप में उपयोग किए जा सकते हैं। वास्तव में यह ओरण बग दोष के बीच विभाजित किया जा सकता है जो दोषपूर्ण व्यवहार को उजागर करता है, और प्रतिगमन ओरेकल, जो कार्यक्षमता को एन्क्रिप्ट करता है किसी भी कार्यक्रम की मरम्मत विधि को संरक्षित करना चाहिए। ध्यान दें कि एक परीक्षण सूट आमतौर पर अधूरा है और सभी संभावित मामलों को कवर नहीं करता है। इसलिए, एक मान्य पैच के लिए परीक्षण सूट में सभी इनपुट के लिए अपेक्षित आउटपुट का उत्पादन करना संभव है लेकिन अन्य इनपुट के लिए गलत आउटपुट। इस तरह के मान्य लेकिन गलत पैच का अस्तित्व उत्पन्न-और-मान्य तकनीकों के लिए एक बड़ी चुनौती है। हाल ही में सफल स्वचालित बग-फिक्सिंग तकनीक अक्सर परीक्षण सूट के अलावा अन्य अतिरिक्त जानकारी पर निर्भर करती है, जैसे कि पिछले मानव पैच से सीखी गई जानकारी, मान्य पैच के बीच सही पैच की पहचान करने के लिए। अपेक्षित व्यवहार को निर्दिष्ट करने का एक अन्य तरीका औपचारिक विनिर्देशों का उपयोग करना है पूर्ण विनिर्देशों के खिलाफ सत्यापन जो कार्यात्मकताओं सहित पूरे कार्यक्रम के व्यवहार को निर्दिष्ट करता है, कम आम है क्योंकि ऐसे विनिर्देश आमतौर पर व्यवहार में उपलब्ध नहीं होते हैं और इस तरह के सत्यापन की गणना लागत है निषेधात्मक। जनरेट और मान्य: जेनरेट-एंड-वैलिडेट प्रत्येक परीक्षित पैच को इकट्ठा करने के लिए प्रत्येक उम्मीदवार पैच का संकलन और परीक्षण करते हैं जो टेस्ट सूट में सभी इनपुट के लिए अपेक्षित आउटपुट उत्पन्न करते हैं।इस तरह की तकनीक आम तौर पर कार्यक्रम के एक परीक्षण सूट के साथ शुरू होती है, अर्थात्, परीक्षण मामलों का एक सेट, जिसमें से कम से कम एक बग को उजागर करता है। बग-फिक्सिंग प्रणाली के आरंभिक और मान्य जेनरोग्रॉग हैं। जेनरेट-एंड-वैलिड तकनीकों की प्रभावशीलता विवादास्पद बनी हुई है, क्योंकि वे आम तौर पर पैच शुद्धता की गारंटी नहीं देते हैं। फिर भी, हाल ही में अत्याधुनिक तकनीकों के कथित परिणाम आम तौर पर आशाजनक हैं। उदाहरण के लिए, आठ बड़े सी सॉफ़्टवेयर प्रोग्रामों में व्यवस्थित रूप से ६९ वास्तविक विश्व कीड़े एकत्र किए गए, अत्याधुनिक बग-फिक्सिंग सिस्टम पैगंबर ६९ बगों में से १८ के लिए सही पैच उत्पन्न करता है। उम्मीदवार पैच उत्पन्न करने का एक तरीका मूल कार्यक्रम पर म्यूटेशन ऑपरेटरों को लागू करना है। उत्परिवर्तन संचालक मूल कार्यक्रम में हेरफेर करते हैं, संभवतः इसके सार सिंटैक्स ट्री प्रतिनिधित्व के माध्यम से, या अधिक मोटे-दाने वाले प्रतिनिधित्व जैसे कि बयान-स्तर या ब्लॉक-स्तर पर काम करना। पहले आनुवांशिक सुधार के दृष्टिकोण बयान स्तर पर काम करते हैं और एक मौजूदा स्रोत को हटाने या एक ही स्रोत फ़ाइल में किसी अन्य कथन के साथ किसी मौजूदा कथन को बदलने के रूप में सरल हटा / प्रतिस्थापित संचालन करते हैं। हाल ही के दृष्टिकोण अभ्यर्थी पैच के अधिक विविध सेट उत्पन्न करने के लिए अमूर्त सिंटैक्स ट्री स्तर पर अधिक महीन दाने वाले ऑपरेटरों का उपयोग करते हैं। उम्मीदवार पैच उत्पन्न करने के लिए एक अन्य तरीका फिक्स टेम्प्लेट का उपयोग करना है। आमतौर पर बग्स के विशिष्ट वर्गों को ठीक करने के लिए फिक्स टेम्प्लेट पूर्वनिर्धारित परिवर्तन होते हैं। फिक्स टेम्प्लेट के उदाहरणों में यह जाँचने के लिए एक सशर्त विवरण सम्मिलित करना शामिल है कि क्या एक चर का मान शून्य पॉइंटर अपवाद को ठीक करने के लिए अशक्त है, या एक-एक कर त्रुटियों को ठीक करने के लिए एक पूर्णांक स्थिरांक को बदल रहा है। . जनरेट-एंड-वेरिफ़ाइड एप्रोच के लिए स्वचालित रूप से खदानों को ठीक करना भी संभव है। कई उत्पन्न-और-मान्य तकनीक अतिरेक अंतर्दृष्टि पर निर्भर करती हैं: पैच का कोड आवेदन में कहीं और पाया जा सकता है। यह विचार जेनप्रॉग प्रणाली में पेश किया गया था, जहां एएसटी नोड्स के दो ऑपरेटर, इसके अलावा और प्रतिस्थापन, कहीं और से लिए गए कोड पर आधारित थे (यानी एक मौजूदा एएसटी नोड को जोड़ना)। इस विचार को आनुभविक रूप से मान्य किया गया है, दो स्वतंत्र अध्ययनों से पता चला है कि एक महत्वपूर्ण अनुपात (३% -१७%) मौजूदा कोड से बना है। इस तथ्य से परे कि पुन: उपयोग करने के लिए कोड कहीं और मौजूद है, यह भी दिखाया गया है कि संभावित मरम्मत सामग्री का संदर्भ उपयोगी है: अक्सर, दाता संदर्भ प्राप्तकर्ता के संदर्भ के समान है। मरम्मत तकनीक मौजूद हैं जो प्रतीकात्मक निष्पादन पर आधारित हैं। उदाहरण के लिए, सेमीफिक्स मरम्मत की कमी को दूर करने के लिए प्रतीकात्मक निष्पादन का उपयोग करता है। एंजेलिक्स ने बहुस्तरीय पैच से निपटने के लिए एंजेलिक वन की अवधारणा पेश की। कुछ मान्यताओं के तहत, संश्लेषण समस्या के रूप में मरम्मत की समस्या का वर्णन करना संभव है। सेमीफिक्स एंड नोपोल और नोपोल घटक-आधारित संश्लेषण का उपयोग करता है। डायनामोथ गतिशील संश्लेषण का उपयोग करता है। स३ सिंटेक्स-निर्देशित संश्लेषण पर आधारित है। सारचरेपइर संभावित पैच को स म टी फॉर्मूले में परिवर्तित करता है और उम्मीदवार पैच को क्वेरी करता है जो पैच किए गए प्रोग्राम को सभी आपूर्ति किए गए परीक्षण मामलों को पास करने की अनुमति देता है। मशीन सीखने की तकनीक स्वचालित बग-फिक्सिंग सिस्टम की प्रभावशीलता में सुधार कर सकती है। ऐसी तकनीकों का एक उदाहरण गिटहब और सोर्स फोर्ज में खुले स्रोत रिपॉजिटरी से एकत्र मानव डेवलपर्स से पिछले सफल पैच से सीखता है। इसके बाद सभी उत्पन्न उम्मीदवार पैच के बीच संभावित सही पैच को पहचानने और प्राथमिकता देने के लिए सीखा जानकारी का उपयोग करें। वैकल्पिक रूप से, पैच को सीधे मौजूदा स्रोतों से खनन किया जा सकता है। उदाहरण के दृष्टिकोण में दाता अनुप्रयोगों से खनन पैच शामिल हैं या क्यूए वेब साइटों से। सीक्वेंस र एक-पंक्ति पैच उत्पन्न करने के लिए स्रोत कोड पर अनुक्रम से अनुक्रम सीखने का उपयोग करता है। यह एक तंत्रिका नेटवर्क वास्तुकला को परिभाषित करता है जो स्रोत कोड के साथ अच्छी तरह से काम करता है, प्रतिलिपि तंत्र के साथ टोकन के साथ पैच का उत्पादन करने की अनुमति देता है जो कि सीखा शब्दावली में नहीं हैं। उन टोकन को मरम्मत के तहत जावा वर्ग के कोड से लिया गया है।
सारिका, हिंदी मासिक पत्रिका थी जो पूर्णतया गद्य साहित्य के 'कहानी' विधा को समर्पित थी। यह पत्रिका टाइम्स ऑफ़ इंडिया द्वारा प्रकाशित की जाती थी। कमलेश्वर इस पत्रिका के संपादक थे। १९७० से करीब १९८५ (?) तक यह पत्रिका प्रकाशित होती रही। इस पत्रिका के अंतिम समय इसका संपादन कमलेश्वर जी ने छोड़ दिया था और पत्रिका के संपादक कन्हैयालाल नंदन थे। 'सारिका' कमलेश्वर जी के संपादन में साहित्य की बहुत ऊँची पसंद रखने वालों की पहली पसंद थी। अनेक नए लेखकों को कमलेश्वर जी ने जोड़ा था जिनमें निम्नलिखित प्रमुख थे, जो शायद पहली बार प्रकाशित भी सारिका में हुए और बाद में साहित्य जगत में छा गए- जीतेन्द्र भाटिया, आलम शाह ख़ान,अभिमन्यु अनंत, प्रणव कुमार बंदोपाध्याय, प्रदीप शुक्ल, मालती जोशी, इब्राहिम शरीफ, मंजूर एहतेशाम, पृथ्वीराज मोंगा प्रमुख हैं। साथ ही श्रीलाल शुक्ल, भीष्म साहनी जैसे वरिष्ठ लेखक भी सारिका में प्रकाशित हुआ करते थे। कुछ प्रमुख कहानियां जो सारिका में प्रकाशित हुई उनके नाम: रमजान में मौत,आलम शाह ख़ान की पराई प्यास का सफर,जीतेन्द्र भाटिया की 'कोई नहीं और रक्तजीवी' शुक्ल जी की 'द्वन्द', प्रणव कुमार की 'बारूद की सृष्टिकथा' आदि। सारिका में मराठवाड़ा में आये अकाल पर जीतेन्द्र भाटिया की दो कड़ियों की लेख माला 'झुलसते अक्स' ने भी काफी प्रभावित किया थे। हिंदी साहित्य में कहानी लेखन को पहले उतना सम्मान शायद नहीं था जितना की सारिका ने दिलवाया और कथा जगत को कई नए सितारे दिए। आलम शाह ख़ान की किराये की कोख ने तो धूम मचा दी थी ।
बजौली, द्वाराहाट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा बजौली, द्वाराहाट तहसील बजौली, द्वाराहाट तहसील
अनुप्रिया पटेल भारत की सोलहवीं लोकसभा में सांसद हैं। २०१४ के चुनावों में इन्होंने उत्तर प्रदेश की मिर्जापुर सीट से अपना दल की ओर से भाग लिया। अनुप्रिया पटेल मोदी सरकार की सबसे युवा मंत्री हैं तथा वह वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में वर्तमान राज्य मंत्री हैं, अनुप्रिया २०१६ से २०१९ तक भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री थीं। अनुप्रिया पटेल अपना दल की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं उन्हें पार्टी ने सितंबर २०१९ में अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना था | इनके पिता अपना दल के संस्थापक यशकाय डा० सोनेलाल पटेल थे तथा माता श्रीमती कृष्णा पटेल जी हैं २०१२ में अनुप्रिया पटेल उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य चुनी। वह २०१४ के आम चुनाव में मिर्जापुर के निर्वाचन क्षेत्र से भारत की संसद के निचले सदन लोकसभा के लिए चुनी गईं। [२] वह पहले वाराणसी में उत्तर प्रदेश विधानमंडल के रोहनिया निर्वाचन क्षेत्र के लिए विधान सभा के सदस्य के रूप में चुनी गई थीं, जहां उन्होंने २०१२ के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में पीस पार्टी ऑफ इंडिया और बुंदेलखंड कांग्रेस के साथ गठबंधन में एक अभियान लड़ा था। अनुप्रिया पटेल सोने लाल पटेल की बेटी हैं, जिन्होंने उत्तर प्रदेश में स्थित अपना दल की राजनीतिक पार्टी की स्थापना की थी। वह लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर वुमन और छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय, [५] में पूर्व में कानपुर विश्वविद्यालय से पढ़ी थीं। उसके पास मनोविज्ञान में मास्टर डिग्री है और बिजनेहै एडमिनिस्ट्रेशन (एमबीए) में मास्टर्स, [६] और एमिटी में पढ़ाया जाता है पद वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री भारत के राष्ट्रीय पोर्टल पर सांसदों के बारे में संक्षिप्त जानकारी १६वीं लोक सभा के सदस्य उत्तर प्रदेश के सांसद १७वीं लोक सभा के सदस्य १९८१ में जन्मे लोग
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर २६ हो जाती है। वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन ही यह त्यौहार भी मनाया जाता है। यह खासकर कायस्थ वर्ग में अधिक प्रचलित है। उनके ईष्ट देवता ही चित्रगुप्त जी हैं। जो भी प्राणी धरती पर जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है क्योकि यही विधि का विधान है। विधि के इस विधान से स्वयं भगवान भी नहीं बच पाये और मृत्यु की गोद में उन्हें भी सोना पड़ा। चाहे भगवान राम हों, कृष्ण हों, बुध और जैन सभी को निश्चित समय पर पृथ्वी लोक आ त्याग करना पड़ता है। मृत्युपरान्त क्या होता है और जीवन से पहले क्या है यह एक ऐसा रहस्य है जिसे कोई नहीं सुलझा सकता। लेकिन जैसा कि हमारे वेदों एवं पुराणों में लिखा और ऋषि मुनियों ने कहा है उसके अनुसार इस मृत्युलोक के ऊपर एक दिव्य लोक है जहां न जीवन का हर्ष है और न मृत्यु का शोक वह लोक जीवन मृत्यु से परे है। इस दिव्य लोक में देवताओं का निवास है और फिर उनसे भी ऊपर विष्णु लोक, ब्रह्मलोक और शिवलोक है। जीवात्मा जब अपने प्राप्त शरीर के कर्मों के अनुसार विभिन्न लोकों को जाता है। जो जीवात्मा विष्णु लोक, ब्रह्मलोक और शिवलोक में स्थान पा जाता है उन्हें जीवन चक्र में आवागमन यानी जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है और वे ब्रह्म में विलीन हो जाता हैं अर्थात आत्मा परमात्मा से मिलकर परमलक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। जो जीवात्मा कर्म बंधन में फंसकर पाप कर्म से दूषित हो जाता हैं उन्हें यमलोक जाना पड़ता है। मृत्यु काल में इन्हे आपने साथ ले जाने के लिए यमलोक से यमदूत आते हैं जिन्हें देखकर ये जीवात्मा कांप उठता है रोने लगता है परंतु दूत बड़ी निर्ममता से उन्हें बांध कर घसीटते हुए यमलोक ले जाते हैं। इन आत्माओं को यमदूत भयंकर कष्ट देते हैं और ले जाकर यमराज के समक्ष खड़ा कर देते हैं। इसी प्रकार की बहुत सी बातें गरूड़ पुराण में वर्णित है। यमराज के दरवार में उस जीवात्मा के कर्मों का लेखा जोखा होता है। कर्मों का लेखा जोखा रखने वाले भगवान हैं चित्रगुप्त। यही भगवान चित्रगुप्त जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त जीवों के सभी कर्मों को अपनी पुस्तक में लिखते रहते हैं और जब जीवात्मा मृत्यु के पश्चात यमराज के समझ पहुचता है तो उनके कर्मों को एक एक कर सुनाते हैं और उन्हें अपने कर्मों के अनुसार क्रूर नर्क में भेज देते हैं। भगवान चित्रगुप्त परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं और यमराज के सहयोगी हैं। इनकी कथा इस प्रकार है कि सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला जिस पर एक पुरूष आसीन था चुंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की रचना और सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से हुआ था अत: ये ब्रह्मा कहलाये। इन्होंने सृष्ट की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री-पुरूष पशु-पक्षी को जन्म दिया। इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था। धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की मांग ब्रह्मा जी से की तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरूष उत्पन्न हुआ। इस पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा। भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल है। ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलती है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है। इस दिन भगवान चित्रगुप्त और यमराज की मूर्ति स्थापित करके अथवा उनकी तस्वीर रखकर श्रद्धा पूर्वक सभी प्रकार से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर एवं भांति भांति के पकवान, मिष्टान एवं नैवेद्य सहित इनकी पूजा करें। और फिर जाने अनजाने हुए अपराधों के लिए इनसे क्षमा याचना करें। यमराज और चित्रगुप्त की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है। इस संदर्भ में एक कथा का यहां उल्लेखनीय है। सौराष्ट्र में एक राजा हुए जिनका नाम सौदास था। राजा अधर्मी और पाप कर्म करने वाला था। इस राजा ने कभी को पुण्य का काम नहीं किया था। एक बार शिकार खेलते समय जंगल में भटक गया। वहां उन्हें एक ब्रह्मण दिखा जो पूजा कर रहे थे। राजा उत्सुकतावश ब्रह्ममण के समीप गया और उनसे पूछा कि यहां आप किनकी पूजा कर रहे हैं। ब्रह्मण ने कहा आज कार्तिक शुक्ल द्वितीया है इस दिन मैं यमराज और चित्रगुप्त महाराज की पूजा कर रहा हूं। इनकी पूजा नरक से मुक्ति प्रदान करने वाली है। राजा ने तब पूजा का विधान पूछकर वहीं चित्रगुप्त और यमराज की पूजा की। काल की गति से एक दिन यमदूत राजा के प्राण लेने आ गये। दूत राजा की आत्मा को जंजीरों में बांधकर घसीटते हुए ले गये। लहुलुहान राजा यमराज के दरबार में जब पहुंचा तब चित्रगुप्त ने राजा के कर्मों की पुस्तिका खोली और कहा कि हे यमराज यूं तो यह राजा बड़ा ही पापी है इसने सदा पाप कर्म ही किए हैं परंतु इसने कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को हमारा और आपका व्रत पूजन किया है अत: इसके पाप कट गये हैं और अब इसे धर्मानुसार नरक नहीं भेजा जा सकता। इस प्रकार राजा को नरक से मुक्ति मिल गयी। इन्हें भी देखें यम द्वितीया भाई दूज
उत्तर कोरिया, आधिकारिक रूप से कोरिया जनवादी लोकतान्त्रिक गणराज्य (हंगुल: , हांजा: ) पूर्वी एशिया में कोरिया प्रायद्वीप के उत्तर में बसा हुआ देश है। देश की राजधानी और सबसे बड़ा शहर प्योंगयांग है। कोरिया प्रायद्वीप के ३८वें समानांतर पर बनाया गया कोरियाई सैन्यविहीन क्षेत्र उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच विभाजन रेखा के रूप में कार्य करता है। अमनोक नदी और तुमेन नदी उत्तर कोरिया और चीन के बीच सीमा का निर्धारण करती है, वहीं धुर उत्तर-पूर्वी छोर पर तुमेन नदी की एक शाखा रूस के साथ सीमा बनाती है। १९१० में, कोरिया साम्राज्य पर जापान के द्वारा कब्जा कर लिया गया था। १९४५ में द्वितीय विश्व युद्ध के अन्त में जापानी आत्मसमर्पण के बाद, कोरिया को संयुक्त राज्य और सोवियत संघ द्वारा दो क्षेत्रों में विभाजित किया कर दिया गया, जहाँ इसके उत्तरी क्षेत्र पर सोवियत संघ तथा दक्षिण क्षेत्र पर अमेरिका द्वारा कब्जा कर लिया गया। इसके एकीकरण पर बातचीत विफल रही, और १९४८ में, दोनों क्षेत्रों पर अलग-अलग देश और सरकारें: उत्तर में सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक पीपुल रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया, और दक्षिण में पूँजीवादी गणराज्य कोरिया बन गईं। दोनों देश के बीच एक यूद्ध (१९५०-१९५३) भी लड़ा जा चुका हैं। कोरियाई युद्धविधि समझौते से युद्धविराम तो हुआ, लेकिन दोनों देश के बीच शान्ति समझौते हस्ताक्षर नहीं किए गए। उत्तर कोरिया आधिकारिक तौर पर स्वयं को आत्मनिर्भर समाजवादी राज्य के रूप में बताता है। और औपचारिक रूप से चुनाव भी किया जाता है। हालाँकि आलोचक इसे अधिनायकवादी तानाशाही का रूप मानते है, क्योंकि यहाँ की सत्ता पर किम इल-सुंग और उसके परिवार के लोगो का अधिपत्य हैं। कई अन्तरराष्ट्रीय संगठनों के अनुसार उत्तर कोरिया में मानवाधिकार उल्लंघन का समकालीन दुनिया में कोई समानान्तर नहीं है। सत्तारूढ़ परिवार के सदस्य की अगुवाई में कोरिया की श्रमिक पार्टी (डब्ल्यूपीके), देश की सत्ता चलती है और दोनों देशों के पुनर्मिलन के लिए डेमोक्रेटिक फ़्रण्ट का नेतृत्व करता है जिसमें सभी राजनीतिक अधिकारियों के सदस्य होने की आवश्यकता होती है। राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता की विचारधारा "जुचे", १९७२ में "मार्क्सवादी-लेनीनवादी के रचनात्मक प्रयोग" के रूप में संविधान में पेश की गई। राज्य के उद्यमों और सामूहिक कृषि के माध्यम से कृषि उत्पादन पर राज्य का स्वामित्व होता हैं। स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा, आवास और खाद्य उत्पादन जैसी अधिकांश सेवाएँ सब्सिडी वाली या राज्य-वित्त पोषित हैं। १९९४ से १९९८ तक, उत्तर कोरिया में अकाल पड़ा था, जिसके परिणामस्वरूप ०.२४ से ०.४२ मिलियन लोगों की मौत हुई और देश अब भी खाद्य उत्पादन में संघर्ष कर रहा है। उत्तर कोरिया सोंगुन या "सैन्य-पहले" नीति का पालन करता है। १.2१ मिलियन की इसकी सक्रिय सेना, चीन, अमेरिका और भारत के बाद दुनिया में चौथी सबसे बड़ी है। नार्थ कोरिया एक परमाणु हथियार सम्पन्न देश हैं। उत्तर कोरिया अपने आप को एक नास्तिक देश मानता है यहाँ पर कोई आधिकारिक पन्थ भी नहीं है साथ ही सार्वजनिक रूप से पन्थ को एक हासिए पे ही रखा जाता हैं। यहां के तानाशाह किम जोंग उन ने नार्थ कोरिया के डिफेंस मिनिस्टर को अपनी एंटी एयरक्राफ्ट गन से गोली मारी थी क्योंकि किम जोंग उन की एक स्पीच में उनको हल्की सी आंख लग गई थी और किम जोंग उन ने अपने फूफा को देशद्रोह के आरोप में उन्हें फंसाया गया और उन्हें १२० शिकारी कुत्तों के सामने छोड़ दिया क्योंकि किम जोंग उन को लगता था कि उनके फूफा उनसे नॉर्थ कोरिया की सत्ता न छीन ले। किम जोंग उन ने एक अमेरिकन सिटीजन ओटो वार्म्बियर नाम के एक शख्स को सजा सुनाई थी क्योंकि ओटो वार्म्बियर से एक छोटी सी भूल हो गई थी। जब ओटो वार्म्बियर अपने देश अमेरिका गए तब वहां उनकी मृत्यु हो गई थी। जापानी आधिपत्य (१९१०-१९४५) सन् १९०५ में रूसी -जापान युद्ध के बाद जापान द्वारा कब्जा किए जाने के पहले प्रायद्वीप पर कोरियाई साम्राज्य का शासन था। सन् १९४५ में द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद यह सोवियत संघ और अमेरिका के कब्जे वाले क्षेत्रों में बाँट दिया गया। उत्तर कोरिया ने संयुक्त राष्ट्र संघ की पर्यवेक्षण में सन् १९४८ में दक्षिण में हुए चुनाव में भाग लेने से इंकार कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप दो कब्जे वाले क्षेत्रों में अलग कोरियाई सरकारों का गठन हुआ। उत्तर और दक्षिण कोरिया दोनों ही पूरे प्रायद्वीप पर सम्प्रभुता का दावा किया,सकी परिणति सन् १९५० में कोरियाई युद्ध के रूप में हुई। १९५३ में हुए युद्धविराम के बाद लड़ाई तो खत्म हो गई, लेकिन दोनों देश अभी भी आधिकारिक रूप से युद्धरत हैं, क्योंकि शान्तिसन्धि पर कभी हस्ताक्षर नहीं किए गए। दोनों देशों को सन् १९९१ में संयुक्त राष्ट्र में स्वीकार किया गया। २६ मई २००९ में उत्तर कोरिया ने एकतरफा युद्धविराम वापस ले लिया। सोवियत आधिपत्य और कोरिया का विभाजन (१९४५१९५०) १९४५ में जब दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हुआ तो, कोरियाई प्रायद्वीप को ३८वीं समानान्तर रेखा से दो क्षेत्रों में विभाजित कर दिया गया, जिसके उत्तरी क्षेत्र में सोवियत संघ का और दक्षिणी हिस्से पर संयुक्त राज्य अमेरिका का कब्जा रहा। विभाजन रेखा हेतु दो अमेरिकी अधिकारियों, डीन रस्क और चार्ल्स बोनेस्टेल को काम सौंपा गया, उन्होंने देश को लगभग आधे-आधे भाग में विभाजित किया था लेकिन राजधानी सियोल को अमेरिकी नियन्त्रण के तहत रखा था। फिर भी, विभाजन तुरन्त सोवियत संघ द्वारा स्वीकार किया गया। सोवियत जनरल तेरेन्ति शैतकोव ने १९४५ में सोवियत नागरिक प्राधिकरण की स्थापना की सिफारिश की, और उत्तर कोरिया के लिए फरवरी १९४६ में स्थापित अस्थायी पीपल्स कमेटी के अध्यक्ष के रूप में किम इल-सुंग का समर्थन किया। अस्थायी सरकार के दौरान, शैतकोव की मुख्य उपलब्धि, व्यापक भूमि सुधार कार्यक्रम रही जिसने उत्तरी कोरिया की जमींदारी प्रणाली को समाप्त कर दिया। वहाँ के जमींदार और जापानी सहयोगी दक्षिण की और भाग खड़े हुए। शैतकोव ने वहाँ के कई प्रमुख उद्योगों को राष्ट्रीयकृत कर दिया और कोरिया के भविष्य पर बातचीत करने के लिए मॉस्को और सियोल में सोवियत प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व भी किया। ९ सितम्बर 1९48 में डेमोक्रेटिक पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया को स्थापित किया गया। शैतकोव पहले सोवियत राजदूत के रूप में रहे, जबकि किम इल-शुंग को इसका प्रमुख बनया गया। १९४८ में सोवियत सेना उत्तरी कोरिया से वापस लौट गई और १९४९ में अमेरिकी सेना दक्षिण कोरिया से हट गई। राजदूत शैतकोव को सन्देह था की दक्षिण की कम्युनिस्ट विरोधी सरकार, उत्तर पर आक्रमण करने की योजना बना रही हैं, वही वे समाजवाद के तहत कोरियाई प्रायद्वीप के एकीकरण की किम के लक्ष्य के प्रति सहानुभूति रखते थे। दोनों ने दक्षिण पर पहले हमले करने के लिए जोसेफ स्टालिन को मनाने में सफल रहे, जो आगे चल कर कोरियाई युद्ध के रूप में हुआ। कोरियाई युद्ध (१९५०-१९५३) युद्ध के बाद की स्थिति समाज और संस्कृति इन्हें भी देखें एशिया के देश
गंघरा दानापुर, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है। पटना जिला के गाँव
मिखाइल शोलोख़ोव (१९०५-१९८४) रूसी साहित्य के सुप्रसिद्ध कथाकार एवं साहित्य के क्षेत्र में १९६५ के नोबेल पुरस्कार विजेता हैं। मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच शोलोख़ोव का जन्म एक निम्न मध्यवर्गीय रूसी किसान परिवार में २४ मई १९०५ ई० को हुआ था। उनका परिवार दोन कज्जाक सेना के भूतपूर्व क्षेत्र वेशेन्स्काया स्तानित्सा (बड़ा कज्जाक गाँव) के क्रुझिलिन खुतोर (फार्म-प्रतिष्ठान) में रहता था। उनके पिता ने खेती और पशुओं के व्यापार से लेकर कपड़ा बुनने तक कई काम किये। उनकी अशिक्षित माँ एक उक्रेनी किसान परिवार की थीं और एक कज्जाक की विधवा थीं। बाद में अपने बेटे से चिट्ठी-पत्री के उद्देश्य से उन्होंने लिखना पढ़ना सीखा था। मिखाइल शोलोख़ोव की शिक्षा कारगिन, बोगुचार और वेशेन्स्काया के कई स्कूलों में हुई। उन्होंने एक श्रमिक, सामान्य क्लर्क और अध्यापक के रूप में कार्य किया था। धूप से तपते विस्तृत मैदानों में घूम-घूम कर मिखाइल ने बालपन से ही जीवन की नग्न वास्तविकताओं को देखा था। उनका शरीर इस बात का साक्षी था-- जो धूप में लगातार तपते रहने के कारण ताम्र वर्ण में बदल गया था। अपनी जवानी के दिनों में उन्होंने खेतों में कड़ी मेहनत की थी, हल चलाया था, बीज बोया था और फसलें काटी थीं। दोन नदी में मछुआरों की छोटी डोंगी में उस प्रदेश का चप्पा-चप्पा छान मारा था। कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने हँसना सीखा था। १९१८ में जब ऊपरी दोन क्षेत्र भी गृहयुद्ध की चपेट में आ गया तो शोलोख़ोव की पढ़ाई का सिलसिला असमय ही समाप्त हो गया। निर्णय की ऐतिहासिक घड़ी में शोलोख़ोव ने अपना रास्ता चुनने में कोई हिचक नहीं दिखायी। उस समय ऊपरी दोन क्षेत्र में सोवियत विरोधी श्वेत गार्डों की बची-खुची टुकड़ियों की विध्वंसक कार्रवाइयों और कज्जाकों के विद्रोहों के खिलाफ बोल्शेविक जूझ रहे थे। शोलोख़ोव ने बोल्शेविकों का पक्ष लिया और लाल सेना में शामिल होकर प्रतिक्रियावादियों से लोहा लिया। इन अनुभवों का इस्तेमाल आगे चलकर उन्होंने अपनी कृतियों में किया। १९२२ तक वे दोन के क्षेत्र में रहे। इन दिनों उन्हें विभिन्न परिस्थितियों में रहना पड़ा था। १९२३ में गृहयुद्ध की समाप्ति के बाद वे माॅस्को आये और उन्होंने कई काम किये जिनमें बोझा ढोने और ईंटें जोड़ने का काम भी था। शोलोख़ोव १९३२ से कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य रहे। १९३५ में उन्हें सोवियत संसद का सदस्य चुन लिया गया, लेकिन गलत चीजों का विरोध करने के प्रति उनके तेवर कतई नर्म नहीं हुए। द्वितीय विश्वयुद्ध में वे सोवियत सेना की ओर से फासिस्टों के विरुद्ध युद्ध में भी शामिल होकर लड़े और युद्ध समाप्त होने पर शांति आंदोलन के बहुत बड़े समर्थक बने। बचपन से ही साहित्य की ओर उनका झुकाव था। आरंभ में उन्होंने नाटक भी लिखे थे, जिनका मंचन युवा क्लबों के सदस्यों ने किया था। १९२३ ई० से ही शोलोख़ोव की कृतियों का प्रकाशन आरंभ हो गया था। १९२५ में उनकी पहली पुस्तक दोन की कहानियाँ प्रकाशित हुई। शोलोख़ोव का सर्जनात्मक विकास तेजी से हुआ। कम उम्र के बावजूद उनका जीवनानुभव समृद्ध हो चुका था। 'दोन की कहानियाँ' के ३ वर्ष बाद ही (१९२८ में) उनके जगत्-प्रसिद्ध उपन्यास धीरे बहे दोन रे... (एंड क्विट फ्लोज द डॉन) का प्रथम भाग प्रकाशित हुआ, जिसने उन्हें सोवियत लेखकों की प्रथम श्रेणी में प्रतिष्ठित कर दिया। १९२९ में इस उपन्यास का दूसरा भाग, 19३३ में तीसरा और १९४० में चौथा भाग प्रकाशित हुआ। १९४१ में कुंवारी भूमि का जागरण उपन्यास का पहला भाग प्रकाशित हुआ। इन कृतियों ने शोलोख़ोव को सिद्धि एवं प्रसिद्धि दोनों के शिखर पर पहुँचा दिया। शोलोख़ोव में अपने पूर्व के शीर्षस्थ कथाकारों के वैशिष्ट्यों का उत्तम रासायनिक सम्मिश्ररण मिलता है; फिर भी वे उनसे और अपने समकालीनों से सर्वथा पृथक् नज़र आते हैं। वस्तुतः प्रतीति को भेदकर सार तक पहुँचने वाली वैज्ञानिक यथार्थवादी दृष्टि के साथ ही क्रांतिकारी स्वच्छंदतावाद का उद्दाम आवेग भी शोलोख़ोव को मैक्सिम गोर्की से विरासत में मिला था। वैविध्यपूर्ण यथार्थवादी दृश्य- सर्जना और चरित्र-निरूपण में वे लेव तोलस्तोय के उत्तराधिकारी प्रतीत होते हैं। मानव-नियति की त्रासदियों और जीवन के अन्तर्भूत आशावाद की प्रस्तुति में भी वे तोलस्तोय की याद दिलाते हैं। और "आत्मा की जासूसी" के मामले में वे गोगोल के शिष्य अधिक लगते हैं। इन कृतियों की लोकप्रियता का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि १९६० के दशक के अंदर ही 'धीरे बहे दोन रे...' (एंड क्विट फ्लोज द डॉन) के १४९ और 'कुंवारी भूमि का जागरण' (वर्जिन साॅयल अपटर्न्ड) के १२० संस्करण प्रकाशित हुए। प्रकाशन के कुछ समय पश्चात् ही सोवियत संघ की ५० भाषाओं में अनूदित होकर ये उपन्यास जन-जन तक पहुँचे तथा अनेक विदेशी भाषाओं में भी इनके अनुवाद हुए। १९८० तक सोवियत संघ की कुल ८४ भाषाओं में शोलोख़ोव की पुस्तकों की ७ करोड़ ९० लाख प्रतियाँ छप चुकी थीं। जनता ने उनके साहित्य को हृदय से अपनाया क्योंकि उनका साहित्य वस्तुतः देश की जनता को ही अंतःहृदय से समर्पित था। नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने के अवसर पर दिये गये अपने व्याख्यान में भी उन्होंने कहा था कि मैं लेखक का अपना कर्तव्य इसी बात को मानता आया हूं और अभी भी मानता हूं कि अब तक मैंने जो कुछ लिखा है और आगे जो कुछ लिखूंगा, वह इस श्रमिक जनता, निर्माणरत जनता और वीर जनता को मेरा प्रणाम हो, उस जनता को जिसने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया, परंतु जो अपने द्वारा निर्मित जीवन की, अपनी स्वतंत्रता और सम्मान की, अपनी इच्छानुसार अपने भविष्य का निर्माण करने के अपने अधिकार की सगर्व रक्षा करने में सदा समर्थ रही है। दोन की कहानियाँ (टेल्स फ्राॅम द डाॅन) -१९२३ 'धीरे बहे दोन रे...' (मूलतः रूसी में तिचि दोन, अंग्रेजी अनुवाद-'एंड क्विट फ्लोज द डॉन') - १९२८ से १९४० कुँवारी भूमि का जागरण, प्रथम भाग ('आने वाले कल के बीज') (वर्जिन साॅयल अपटर्न्ड) - १९३२ कुँवारी भूमि का जागरण, द्वितीय भाग ('दोन पर फसल कटाई') - १९६० इंसान का नसीबा (द फेट ऑफ ए मैन) {लंबी कहानी/लघु उपन्यास} - १९५७ वे देश के लिए लड़े (दे फाइट फॉर देयर कंट्री) - १९५९ दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान लिखे गये आलेखों के संकलन: स्टालिन पुरस्कार - १९४१ लेनिन पुरस्कार - १९६० नोबेल पुरस्कार - १९६५ इनके अतिरिक्त भी अनेक देशी-विदेशी सम्मानों से सम्मानित। इन्हें भी देखें नोबेल पुरस्कार विजेता १९०५ में जन्मे लोग १९८४ में निधन
इरवान् राष्ट्रीयउद्यान () पश्चिमी थाईलैंडके तेनस्सेरिम्पहाड़ियों के कंचनाब्यूरी प्रांत, अम्फोइसिसावत्में ताम्बोन् था क्रदन मेंस्थित ५५० किमी २ विस्त्रिथ् उद्यानहै।१९७५ में स्थापित किया गया ये उद्यानथाईलैंड की 1२ वीं राष्ट्रीय उद्यानहै। वास्तव में, इरवान् तीन सिरों वाले हिंदू भगवान का नाम है। उद्यान के प्रमुख आकर्षण है इरवान् झरना। वह उद्यान के पूर्वी तरफ स्थित है। सात स्तरों की पूरी लंबाई लगभग १,५०० मीटर अवधि है और प्रत्येक चरण का अपना नाम होता है। पहला झरना लाई केन लुण्ग्ग् है। आगंतुक केंद्र के कार पार्क में से सीधे आप को वहाँ पर एक फ्लैट ट्रेल पर जा सकते हैं। इस पहले झरने का मुख्य आकर्षण है, बड़ी संख्या में तैराकी मछली के तालाबों में पानी के द्वारा गठित चिकनी चूना पत्थर की मूर्ति। दूसरा झरना - वांग मैचा, आमतौर पर तैराकों के साथ व्यस्त है। यह बहुत सुंदर है क्योंकि झरने के नीचे एक छोटी सी गुफा है। तीसरा झरना है फा नाम टोक। यह स्तरीय पहले दो झरने (लगभग २० मीटर ऊंचा) से लंबा है,और फिर से मछली से भरी एक बड़ा तालाब प्रदान करता है। जिस पर आप खुद को ताज़ा कर सकते हैं। चौथा और पांचवां झरना है ओके नांग फी सुर और बुयर माई लांग। इस झरने का मुख्य आकर्षण है, हैरॉक संरचनाओं और घने वनस्पति से घिरे छोटे तालाबों। छठे झरना का नाम् है दांग प्र्यूक सा। पांचवें स्तर के बाद, निशान कहाँ कठोर हो जाता है वहाँ आपको रिकी सीढ़ियों और रस्सी का उपयोग करना होगा। इरवान् झरना का सातवें स्तर तक पहुंचने में कुछ प्रयास होते हैं, क्योंकि ट्रेल का आखिरी खिंचाव विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है। इरवान् राष्ट्रीय उद्यान में चार गुफाओं है: मि, रुअ, वांग बह्दन्, और फरटाट। बढ़ती पूर्वोत्तर झरना के क्षेत्र में खओ नोम नांग नामक एक स्तन के आकार का पहाड़ी है। वनस्पति और जीव उद्यान का ८१% मिश्रित पर्णपाती जंगलों और बाकी पर्णपाती डीप्प्टैरोकार्प् और शुष्क सदाबहार जंगल है। कलगीदार सर्प चील, सलेटी मयूर-तीतर, कालिज, ब्लू व्हिस्लिंग थ्रश, ब्लैक-क्रेस्टेड बुलबुल आदि पक्षियों और हाथी, जंगली सुअर, लार गिबन, साम्भर (हिरण) आदि जानवरों ने भी यहाँ रहति हैं। राष्ट्रीय पार्क, वन्य जीवन और संयंत्र संरक्षण विभाग इरवान् राष्ट्रीय उद्यान - स्थान, प्रजातियों, नक्शे आईयूसीएन श्रेणी ई थाईलैंड के राष्ट्रीय उद्यान
फुफ्फुसीय शोथ () वह तरल पदार्थ होता है, जो फेफड़ों के हवा रिक्त स्थान और परेंकाय्मा (प्रेंचयमा) में जगह ले लेता है। इस तरल पदार्थ की वजह से इम्पैरेड गैस एक्सचेंज अर्थात फेफड़ों द्वारा गैस विनिमय में दिक्कत होती है, और इसकी वजह से सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया भी बाधित होती है।
भारत में मध्यप्रदेश राज्य के शिवपुरी जिले की कोलारस तहसील एवं विधानसभा क्षेत्र कोलारस व थाना क्षेत्र इंदार के अंतर्गत आने वाले एक गांव का नाम डंगौर है। इस गांव की आबादी करीब २००० है। यहां ज्यादातर ब्राह्मण समाज के लोग निवास करते हैं।
द्योकली, डीडीहाट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा द्योकली, डीडीहाट तहसील द्योकली, डीडीहाट तहसील
संभववाद के निम्नलिखित अर्थ हो सकते हैं: संभववाद - पाश्चात्य दर्शन में "प्रतिदर्श यथार्थवाद" (मोडल रीलिम) के लिए; अथवा एक्टुअलिम के नकार के रूप में। संभववाद - भारतीय दर्शन में स्यादवाद के लिए। वह स्थिति जिसके अंतर्गत मानव प्रकृति के बारे में जानने लगता है तथा प्रकृति के बलों से परिचित होता है सम्भववाद कहलाती है।
प्रकाशी तोमर जिन्हें (शूटर दादी और रिवॉल्वर दादी) के नाम से भी जानी जाती है एक बुजुर्ग महिला निशानेबाज हैं। इनका जन्म भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर ज़िले में ०१ जनवरी १९३७ में हुआ था। ये भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के बागपत के जोहड़ी गाँव की निवासी हैं जो अपनी जेठानी चन्द्रो तोमर के साथ निशानेबाजी प्रतियोगिताओं में भाग लेती हैं। उन्होंने इस पेशे को चुनने का मन तब बनाया जब ज्यादातर लोग उम्मीद छोड़ देते हैं यानी ६० वर्ष से अधिक की आयु में। ६५ वर्ष की उम्र में जब उन्होंने शूटिंग रेंज में जाना शुरू किया तो लोगों, खासकर पुरुषों, ने उनका खूब मजाक उड़ाया और तरह तरह के ताने दिए, जैसे 'जा, जाकर फौज में भर्ती हो जा' या फिर 'कारगिल चली जा' आदि, लेकिन यह सब उनकी इच्छाशक्ति को तोड़ नहीं पाया। आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए उन्होंने अपने लक्ष्य पर ध्यान लगाया, जिसने न केवल उन्हें प्रसिद्धी के शिखर पर पहुंचाया बल्कि समाज, आलोचकों और आने वाले पीढ़ियों के लिए एक मिसाल कायम की। अब उनकी बेटी सीमा तोमर एक अंतर्राष्ट्रीय निशानेबाज हैं और गांव के लोग उनका नाम गर्व और सम्मान के साथ लेते हैं। आठ बच्चों की मां प्रकाशी के १५ पोते-पोतियां हैं। वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थित बागपत जिले के जोहरी गांव की रहने वाली हैं और वह महज एक इत्तेफाक ही था जब उन्होंने पहली बार सटीक निशाना लगाया था। इसकी शुरुआत सन् २००० में हुई जब उनकी बेटी सीमा तोमर, जो कि आज शूटिंग के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक जाना माना नाम हैं, ने शूटिंग सीखने के लिए जोहरी राइफल क्लब में दाखिला लिया। हालांकि सीमा शूटिंग सीखना चाहती थी लेकिन अकेले शूटिंग रेंज जाने में घबराती थी। तब प्रकाशी ने सीमा का हौसला बढ़ाने का निर्णय लिया और उसके साथ एकेडमी जानी की ठानी। यही रिवाल्वर दादी की शुरुआत थी। एकेडमी में सीमा को दिखाने के लिए प्रकाशी ने खुद ही बंदूक उठाई और निशाना लगा दिया, जिसे देखकर वहां मौजूद सभी लोग यहां तक कि कोच फारूख पठान भी चौंक गए। यही वह मौका था जब कोच ने प्रकाशी के हुनर को पहचाना और उन्हें एकेडमी में प्रवेश लेने का सुझाव दिया। यह प्रकाशी के लिए एक नये युग की शुरुआत थी लेकिन रास्ता रुकावटों से भरा पड़ा था। प्रकाशी एक गृहिणी हैं इसलिए उनका रोज प्रशिक्षण के लिए एकेडमी जाना संभव नहीं था तो कोच ने उन्हें सप्ताह में एक दिन आने की सलाह दी और बाकी के दिन वह घर पर ही निशानेबाजी का प्रयास करती थीं। तब से ही वह अपनी सफलता की कहानी लिख रही हैं। इतना ही नहीं, उनकी बेटियों में से सीमा तोमर शूटिंग विश्व कप में कोई मेडल जीत कर लाने वाली पहली भारतीय महिला हैं। यह कारनामा उन्होंने २०१० में किया था। वहीं, दादी प्रकाशी और सीमा तोमर ने देशभर में आयोजित प्रतियोगिताओं में २५ मेडल जीते हैं और वृद्ध निशानेबाजी प्रतियोगिता (वेटेरन शूटिंग चैंपियनशिप) में स्वर्ण पदक भी जीता है, यह प्रतियोगिता चेन्नई में आयोजित हुई थी। इससे भी आगे, वे जिन्होंने शुरुआत में प्रकाशी का मजाक उड़ाया था अब अपनी बेटियों को उनके पास निशानेबाजी सीखने के लिए भेजते हैं। प्रकाशी तोमर जो कि एक भारतीय बुजुर्ग महिला निशानेबाज है जिनका जन्म भारत के उत्तरप्रदेश राज्य के मुज़फ्फरनगर में १ जनवरी १९३७ में हुआ था। प्रकाशी का विवाह जय सिंह से हुआ था और उनकी बेटी सीमा तोमर एक अंतर्राष्ट्रीय निशानेबाज हैं। वास्तव में सीमा अंतर्राष्ट्रीय निशानेबाजी खेल संघ द्वारा आयोजित विश्व कप में रजत मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं और वर्तमान में वह भारतीय सेना में कार्यरत हैं। प्रकाशी की पोती रूबी इंस्पेक्टर के तौर पर पंजाब पुलिस में कार्यरत हैं जबकि उनकी बेटी रेखा निशानेबाजी छोड़ चुकी हैं। भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा इन्हें आइकन लेडी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है और वर्ष २०१६ में इन्हें देश की १०० वीमेन अचीवर्स में शामिल किया गया था तथा राष्ट्रपति भवन में इन्हें महामहिम प्रणव मुखर्जी के साथ दोपहर के भोज में आमंत्रित किया गया था। प्रकाशी, स्टार वर्ल्ड पर आमिर खान के शो सत्यमेव जयते और कलर्स टीवी के चर्चित शो इंडियाज गॉट टैलेंट में भी शामिल हो चुकी हैं। गूगल इंडिया के वीमेन विल प्रोग्राम में मुंबई बुलाकर भी इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। प्रकाशी तोमर ने निशानेबाजी की शुरुआत करीब डेढ़ दशक पहले की थी जब वह अपनी पोती और बेटी को निशानेबाजी सिखाने के लिए शूटिंग रेंज लेकर जाया करती थीं। पोती को सिखाने के प्रयास में जब एक दिन उन्होंने खुद बंदूक उठा ली। कोच राजपाल ने इन्हें प्रोत्साहन दिया और उनकी जेठानी चंद्रो तोमर ने भी उनके साथ निशानेबाजी सीखनी शुरू की। प्रकाशी और चन्द्रो ने कई प्रतियोगिताओ में हिस्सा लिया है और करीब २० मेडल जीत चुकी हैं। प्रकाशी की बेटी सीमा तोमर अंतर्राष्ट्रीय स्तर की निशानेबाज हैं, जो कि शूटिंग विश्वकप में रजत पदक जितने वाली पहली भारतीय महिला हैं। सीमा ने यह खिताब २०10 में जीता था। भारतीय महिला निशानेबाज़ उत्तर प्रदेश के लोग भारतीय महिला खिलाड़ी १९३७ में जन्मे लोग
उद्घाटन १८९६ खेलों में हंगरी ने पहली बार ओलंपिक खेलों में भाग लिया, और तब से एथलीट्स ने ज्यादातर ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों और हर शीतकालीन ओलंपिक खेलों में प्रतिस्पर्धा करने के लिए भेजा है। १९२० के प्रथम विश्वयुद्ध के बाद के राष्ट्रों के लिए राष्ट्र को आमंत्रित नहीं किया गया था और यह १९८४ ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के सोवियत नेतृत्व के बहिष्कार में शामिल हुआ था। ग्रीष्मकालीन खेलों में हज़ारों एथलीटों ने कुल ४९१ पदक और शीतकालीन खेलों में ६ पदक जीते हैं, शीर्ष पदक बनाने वाले खेल के रूप में बाड़ लगाने के साथ। हंगरी ने किसी भी अन्य राष्ट्र की तुलना में अधिक ओलंपिक पदक जीते हैं जो कभी भी खेलों की मेजबानी नहीं कर पाई हैं और केवल फिनलैंड के पीछे किसी भी देश की प्रति व्यक्ति संख्या में स्वर्ण पदक की दूसरी सबसे बड़ी संख्या है। हंगरी के लिए राष्ट्रीय ओलंपिक समिति हंगरीय ओलंपिक समिति है, और इसे १८९५ में बनाया और मान्यता प्राप्त थी। ओलंपिक खेलों द्वारा पदक ग्रीष्मकालीन खेलों द्वारा पदक शीतकालीन खेलों द्वारा पदक खेल के द्वारा पदक गर्मियों के खेल से पदक २०१६ ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के बाद अद्यतन सर्दियों के खेल से पदक २०१४ शीतकालीन ओलंपिक के बाद अपडेट किया गया
फोदोंग (फोड़ोंग) भारत के सिक्किम राज्य के उत्तर सिक्किम ज़िले में स्थित एक शहर है। प्रसिद्ध फोदोंग मठ यहाँ स्थित है। इन्हें भी देखें उत्तर सिक्किम ज़िला सिक्किम के नगर उत्तर सिक्किम ज़िला उत्तर सिक्किम ज़िले के नगर
विक्टर कैनिंग (१६ जून १९११ - २१ फरवरी १९८६) उपन्यास और थ्रिलर के एक एक विपुल ब्रिटिश लेखक थे,जो १९५०, १९६० और १९७० के दशक में काफी सफल रहे। वह व्यक्तिगत रूप से मितभाषी थे, कोई संस्मरण नहीं लिखा और अपेक्षाकृत अखबारों में कम साक्षात्कार दीये। १९८६ में निधन १९११ में जन्मे लोग
उत्तर कालिमंतान दक्षिणपूर्व एशिया के इण्डोनेशिया देश का एक प्रान्त है। यह कालिमंतान द्वीप (बोर्नियो) पर स्थित है। इन्हें भी देखें इंडोनेशिया के प्रांत इंडोनेशिया के प्रांत
रोशेल राव (२५ नवम्बर, १९८८) एक भारतीय मॉडल और एंकर हैं। उन्हें २०१२ में "फेमिना मिस इंडिया इंटरनेशनल" के ताज से नवाजा गया था। वह काफी बार किंगफिशर के काफी सारे कैलेंडर में भी प्रदर्शित हुई हैं। २०१५ में वह बिग बॉस ९ एक प्रतिभागी के रूप में शामिल हुई थी। रोशेल राव का जन्म चेन्नई में १९८८ में हुआ था। उनके पास बीएससी में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की डिग्री भी हैं (एमओपी कॉलेज से)। फेमिना मिस इंडिया रोशेल राव ने जनवरी २०१२ में पांचवां पैंटालून्स फेमिना मिस इंडिया साउथ पेजेंट में भाग लिया जहां वह प्रथम रनर अप थे। उसके बाद उन्होंने २०१२ में "फेमिना मिस इंडिया" में भाग लिया और वो ताज भी जीता। उन्होंने तीन उपशीर्षक भी जीते हैं "मिस ग्लैमरस दिवा", "मिस रैंप वॉक", "मिस बॉडी ब्यूटीफुल" आदि। २०१२ में उन्होंने (ओकिनावा, जापान) में आयोजित मिस इंटरनेशनल २०१२ पेजेंट में भारत का प्रतिनिधित्व किया जहां ६८ देशों में से वह नौवें स्थान पर रही। २०१२ में उन्हें "फेमिना मिस इंडिया इंटरनेशनल" के ताज से नवाजा गया। इस सबसे पहले वह चेन्नई में एक एंकर और मॉडल थी। उसके बाद वह "इंडियन प्रीमियर लीग सीजन ६" की मेजबान भी रही। २०१४ में उन्हें "किंगफिशर" के कैलेंडर में भी प्रदर्शित हुई थी। बिग बॉस प्रतिभागी १९८८ में जन्मे लोग
बोहीमियनवाद का तात्पर्य अपरंपरागत जीवन शैली का अभ्यास करने वालों से है, ऐसा अक्सर समान विचारधारा के वे लोग करते हैं जो साहित्य, संगीत या कलात्मक गतिविधियों में दिलचस्पी रखते हैं और जिनके कुछ ही स्थायी सम्बन्ध होते हैं। बोहेमियन लोग घुमक्कड़, साहसी या बंजारे भी हो सकते हैं। वास्तव में बोहेमियन शब्द का अर्थ पूर्वी यूरोपियन और स्लेविक भाषा बोलने वाले बोहेमिया देश में उत्पन्न हुई वस्तु से है, परन्तु धीरे धीरे इस शब्द का प्रयोग उन्नीसवी शताब्दी में फ्रेन्च और अंग्रेजी की बोलचाल की भाषा में उन लोगों के लिए किया जाने लगा जो अपारम्परिक तरीके से रहते हैं और गरीबी और अधिकारहीनता का जीवन जीते हैं जैसे कलाकार, लेखक,पत्रकार,संगीतकार और मुख्य यूरोपियन शहरों में रहने वाले अभिनेता। बोहेमियन शब्द का प्रयोग, बोलचाल की भाषा में, अपरम्परागत अथवा सामाजिक और राजनीतिक रूप से मुख्य विचारधारा से हटकर, सोचने वालों के लिए प्रयोग किया जाता था, जिसे वे लोग उन्मुक्त प्रेम, मितव्ययिता और/अथवा एच्छिक गरीबी के द्वारा व्यक्त करते थे। इस शब्द की उत्पत्ति बोहीमीयनवाद शब्द की उत्त्पत्ती फ्रांस में उन्नीसवी शताब्दी में उस समय हुई जब कलाकार और रचनाकार लोग नीचे तबके के और कम किराए वाले घरों में रोमानी(जिप्सी), लोगों के पड़ोस में रहने लगे। बोहेमियन शब्द फ्रांस के उन रोमानी लोगों के लिए आम तौर पर प्रयुक्त होता था, जो बोहीमिया होते हुए पश्चीमी यूरोप पहुंचे थे। साहित्यिक रूप से फ्रेंच कल्पना में बोहीमियन लोग घुमंतू रोमानी लोगों से सम्बंधित माने जाते थे (ऐसा माना जाता था की वे बोहेमियासे आये हैं), पारंपरिक समाज से हटकर और उनकी असम्मती से बेफिक्र। यह शब्द ऐसे लोगों की ओर संकेत करता है जिनके पास कुछ गुप्त ज्ञान है (फिलिस्तीनी लोगों के विपरीत), और साथ ही साथ कभी कभी इसका मकसद यह संकेत देना भी होता है के ये लोग अपनी व्यक्तिगत सफाई और वैवाहिक ईमानदारी के प्रति ज्यादा ध्यान नहीं देते। स्पेन के सेवाइल में फिल्माए गए फ्रेंच ओपेरा कार्मन में जो स्पैनिश रोमानी लडकी दिखाई गयी है, उसे इस गीत नाट्य का पाठ लिखने वाले मेल्हैक और हालेवी ने बोहीमियन करार किया है। हेनरी मार्गर के छोटी कहानियों के संग्रह सीन्स द ला विए द बोहेम (सीन्स ऑफ बोहेमियन लाइफ), जो १८४५ में प्रकाशित हुई थी, का उद्देश्य बोहेमिया की स्तुति करना और उसे वैध ठहराना था। जिअकोमो पुक्किनी के ओपेरा ला बोहेम (१८९६) का आधार मर्गर की कहानियों की किताब थी। इसके बाद, पुक्किनी का कार्य जौनाथान लार्सन के संगीत रैंट का आधार बनी, बाद में इसी नाम की एक फीचर फिल्म भी बनी। पुक्किनी की तरह, लार्सन सदी के अंत में एक बोहीमियन एन्क्लेव (एक विदेशी अन्तः क्षेत्र) जो एक घने शहरी इलाके में स्थित है, की पड़ताल करते हैं। इस फिल्म में वह इलाका न्यूयॉर्क शहरहै। इस शो में एक गाना है,"ला विए बोहेम," जो उत्तराधुनिक बोहेमियन संस्कृति का कीर्तिगान करता है। अंग्रेजी में, इस अर्थ में बोहेमियन शब्द को प्रारम्भ में विलियम मेक्पीस ठाकरे के उपन्यास,वैनिटी फेयर, जो १८४८ में प्रकाशित हुआ था, ने प्रसिद्धी दिलाई। वैकल्पिक जीवन शैली जो कलाकारों के द्वारा जी जाती है, उसके बारे में आम लोगों के विचार काफी हद तक जोर्ज ड़ू मौरिअर के रोमांटिक बैस्ट सेलिंग उपन्यास ट्रिबली (१८९४) ने बदले। यह उपन्यास बोहेमियन सभ्यता को आधार बना कर लिखा गया था। यह उपन्यास पेरिस के कलाकारों के क्षेत्र में, तीन प्रवासी अंग्रेज कलाकारों, उनकी आयरिश मॉडल और दो रंगीन मिजाज़ पूर्वी यूरोपियन संगीतकारों के विषय में लिखा गया था। स्पेनिश साहित्य में, बोहेमियन उमंग रेमन देल वाल्ले-इन्क्लानस के नाटक लुसस दे बोहेमिया (बोहेमियन लाइट्स), जो १९२० में प्रकाशित हुआ था, में दिखती है। १८४५ में बोहेमियन नागरिकों ने संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए उत्प्रवास करना प्रारम्भ किया, और फिर १८४८ में कुछ उग्र सुधारवादी और पूर्व पादरी भी अमेरिका चले गए, ये वो लोग थे जो एक संवैधानिक सरकार चाहते थे। १८६० में अमेरिकन सिविल युद्ध के प्रारम्भ होने से पहले तक,१८५७ में न्यू यॉर्क शहर में १५ -२० जवान, सुसभ्य पत्रकारों ने स्वयं को "बोहेमियन"कहना प्रारम्भ किया। अन्य शहरों में भी इसी तरह के समूह तोड़ दिए गए-संवाददाता इस तरह के संघर्ष की रिपोर्ट देने के लिए जगह जगह फ़ैल गए। युद्ध के दौरान संवाददाताओं ने स्वयं को "बोहेमियन," कहना प्रारम्भ कर दिया और अखबार वालों ने स्वयं को मोनिकर कहना प्रारम्भ कर दिया। बोहेमियन अखबार लेखक का पर्याय बन गया। १८६६ में, युद्ध संवाददाता जुनिउस हेनरी ब्राउन जो न्यू यॉर्क ट्रीब्युन और हार्पर पत्रिका के लिए लिखते थे, उन्होंने स्वयं को और अपने जैसे कुछ उल्लासित पुरुष और निश्चिन्त महिलाओं को जिनसे वे युद्ध के दिनों में मिले थे, को बोहेमियन कहा। सैन फ्रांसिस्कोके पत्रकार ब्रैट हार्ट ने सबसे पहले १८६१ में गोल्डन एरा में "दा बोहेमियन" के नाम से लिखा था, इस छवि के साथ उन्होंने कई व्यंग्य लिखे, ये सभी व्यंग्य १८६७ में उनकी किताब बोहेमियन पेपर्स में प्रकाशित हुए। हार्ट ने लिखा,"बोहेमिया को कभी भी भौगोलिक तौर पर स्थापित करने की कोशिश नहीं की गयी, लेकिन किसी भी दिन जब आकाश साफ़ हो और सूरज अस्त हो रहा हो, यदि आप टेलीग्राफ पहाडी पर चढ़ेंगे, तो पश्चिम में आप इसकी मनोहर घाटी और बादलों से आच्छादित पहाड़ियों को देखेंगे.... १८६७ में मार्क ट्वेन ने स्वयं को और चार्ल्स वार्रेन स्टोद्दार्ड को बोहेमियन की श्रेणी में रखा। १८७२ तक, पत्रकारों और कलाकारों का एक समूह जो सैन फ्रांसिस्को में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए इकट्ठा होता था जब अपने समूह के लिए नाम की तलाश कर रहा था, तब "बोहेमियन" शब्द एक मुख्य विकल्प बन कर उभरा, और इस तरह से बोहेमियन क्लब का जन्म हुआ। क्लब के सदस्य अपने समुदाय के प्रतिष्ठित और सफल लोग थे और सम्मानित परिवार वाले थे उन्होंने बोहेमियन शब्द को अपनी तरह से पुनः परिभाषित किया और उन लोगों को इसमें शामिल किया जो खिलाड़ी थे, जिनकी कला और अन्य सृजनात्मक वस्तुओं में दिलचस्पी थी और जो श्रेष्ठ कलाओं को पसंद करते थे (बौंस विवान्त्स). क्लब के सदस्य और कवि जॉर्ज स्टर्लिंग ने इस पुनः परिभाषित शब्द पर अपनी प्रतिक्रिया इस तरह से व्यक्त की: अपने विचारों के बावजूद, स्टर्लिंग स्वयं को बोहेमियन क्लब के बहुत नजदीक पाते हैं, और बोहेमियन कलाकारों और उद्योगपतियों के साथ बाग़ में मद्यपान करना पसंद करते हैं। ऑस्कर फरडीनान्ड टैल्गमन तेल्ग्मन्न और जॉर्ज फ्रेडरिक कैमरूनने १८८९ में लिओ, दा रॉयल कैडेट नामक ओपेरा में दा बोहेमियन गाना लिखा। शरारती अमेरिकी लेखक और बोहेमियन क्लब के एक सदस्य जिलेट बर्गेस, जिन्होंने "ब्लर्ब" शब्द का आविष्कार किया, उन्होंने इस अव्यवस्थित जगह जिसका नाम बोहेमिया है, का वर्णन इस तरह से किया: न्यूयॉर्क, में १९०७ में प्यानो बजाने वाले राफेल जोसेफ्फी और उनके दोस्तों जैसे रुबिन गोल्द्मार्क ने मिल के संगीतकारों के एक संस्था "दा बोहेमिंस" बनायी (न्यू यॉर्क संगीतकारों का क्लब) इस शब्द को विविध कलाकार और शैक्षिक समुदायों से जोड़ कर देखा जाता है और सामान्य तौर पर इसे एक व्यापक विशेषण के तौर पर कलाकारों, परिप्रदेश अथवा स्थितिओं के लिए प्रयुक्त किया जाता है:?अमेरिकन कॉलेज डिक्शनरी में बोहेमियन (अनौपचारिक रूप से बोहो) की परिभाषा है,"ऐसा व्यक्ती जिसमे कलात्मक या बौधिक प्रवृत्ती हो, और जो पारंपरिक व्यवहार की चिंता किये बिना रहता हो और कार्य करता हो। पिछले १५० सालों में यूरोप और अमेरिका में कई प्रमुख हस्तियाँ बोहेमियन प्रतिकूल संस्कृति से सम्बंधित रही हैं, और बोहेमियन लोगों की एक विस्तृत सूची बनाने का काम बहुत लंबा हो जाएगा। बोहेमियनवाद को कुछ पूंजीपति लेखकों जैसे होनोरे द बल्जाक ने अनुमोदित किया है, परन्तु अधिकतर पारंपरिक सांस्कृतिक लेखक भी बोहेमियन जीवन शैली का खंडन नहीं करते हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स स्तंभकार डेविड ब्रुक्स का कहना है कि ज्यादा अमेरिकियों के ऊपरी वर्ग का सांस्कृतिक लोकाचार, बोहेमियन संस्कृति से ही निकला है, और उन्होंने इसलिए ही एक स्वविरोधी शब्द "बुर्जुआ बोहेमियांस" या "बोबोस" का आविष्कार किया है। दा बोहेमियन मैनुअल ऑफ स्टाइल के लेखक, लारेन स्टोवर, बोहेमियन शब्द को,बोहेमियन मैनीफैस्टो:अ फील्ड गाइड तो लिविंग ऑन दा ऐज में ५ विविध प्रकार के स्टायल/जीने के तरीकों में विभाजित करते हैं स्ट्रोवर लिखते हैं की, बोहेमियन को "पक्षियों की प्रजातियों की तरह आसानी से वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है", क्योंकि उनमे भी वर्णसंकर और विकास की प्रक्रिया चलती रहती है। वे पाँच प्रकार हैं: नूवो:वे बोहेमियन जिनके पास पैसा है और जो यह प्रयत्न करते हैं की वो पारंपरिक बोहेमियनवाद और समकालीन सभ्यता को जोड़ कर चल सकें। जिप्सी:घुमक्कड़ लोग, नए हिप्पिस, और अन्य जिनमे पुराने रोमांटिक जमाने की तरह से जीने की ललक है। बीट:ये भी घुमक्कड़ होते हैं, परन्तु अभौतिकवादी और कला केन्द्रित होते हैं। जेन:बीट से आगे ये वो लोग होते हैं जिनका ध्यान कला के बजाय आध्यात्मिकता पर होता है। डाण्डी:इनके पास कोई पैसा नहीं होता है, लेकिन ये स्वयं को महंगे या दुर्लभ आइटम - जैसे शराब के ब्रांड के द्वारा धनवान दिखाने की कोशिश करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में, बोहेमियन आवेग को १९६० के हिप्पी प्रतिकूल सभ्यता में देखा जा सकता है (जोबीट पुश्तके लेखकों जैसे विलियम एस बर्रो, एलन न्स्बर्ग और जैक केरौक के कार्य से प्रभावित थे)। रेनबो सभा को समकालीन समय में बोहेमियन अभिव्यक्ती के रूप में देखा जा सकता है। पूर्व काल में बोहेमियन समुदाय बोहेमिया का तात्पर्य ऐसी किसी भी जगह से था जहां कोई सस्ते में रह सके और काम कर सके, और अपारंपरिक तरीके से व्यवहार कर सके;यह एक तरह से उन्मुक्त लोगों का समुदाय था जो सम्मानजनक समाज की सीमाओं से दूर था। उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में कई शहर और उनके पड़ोस को बोहेमिया से जोड़ कर देखा जाता था। यूरोप में: मोंटमारट्रे और पेरिस में मोंटपार्नासे, चेल्सीया, फ़िट्ज़रोविया और सोहो लन्दन में,मयूनिक में स्क्वाबिंग;बेलग्रेड में स्कार्डलिजा और बुडापेस्ट में टबन। संयुक्त राज्य अमेरिका में:न्यूयॉर्क शहर में ग्रीनविच गाँव, और कैलिफौर्निया में टिबूरौन. ऑस्ट्रेलिया में: पौट्स पॉइंट, सिडनी. इन्हें भी देखें २०वी शातब्दी में पश्चिमी उप सभ्यताओं का इतिहास संबंधित संस्कृतियाँ या आंदोलन पूर्व राफेलाइट ब्रदरहुड सन्दर्भग्रंथ सूची (बिब्लियोग्राफी) पैरी, अल्बर्ट. २००५ गैरेट्स एंड प्रीटेंडर्स: अमेरिका में बोहेमियानवाद का इतिहास , कोसिमो, इंक. इसब्न १-५९६०५-०९०-क्स अतिरिक्त पाठ्य सामग्री बोहेमियनवाद और प्रतिकूल संस्कृति उपसभ्याताओं का इतिहास
"स्वस्थतम की उत्तरजीविता" (सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट) एक वाक्यांश है जिसका इस्तेमाल आम तौर पर इसके प्रथम दो प्रस्तावकों: ब्रिटिश बहुश्रुत दार्शनिक हरबर्ट स्पेंसर (जिन्होंने इस शब्द को गढ़ा था) और चार्ल्स डार्विन, द्वारा इस्तेमाल किए गए सन्दर्भ के अलावा अन्य सन्दर्भों में भी किया जाता है। संस्कृत में इसी को दूसरे प्रकार से यों कहा गया है- 'दैवो दुर्बलघातकः' (भगवान भी दुर्बल को ही मारते हैं।) हरबर्ट स्पेंसर ने सबसे पहले इस वाक्यांश का इस्तेमाल चार्ल्स डार्विन की ऑन द ऑरिजिन ऑफ़ स्पीशीज़ को पढ़ने के बाद अपनी प्रिंसिपल्स ऑफ़ बायोलॉजी (१८६४) में किया था जिसमें उन्होंने अपने आर्थिक सिद्धांतों और डार्विन के जैविक सिद्धांतों के बीच समानताएं व्यक्त करते हुए लिखा कि "यह स्वस्थतम की उत्तरजीविता, जिसे मैंने यहां यांत्रिक शब्दों में व्यक्त करने की कोशिश की है, वह तथ्य है जिसे श्री डार्विन ने 'प्राकृतिक चयन', या जीवन के लिए संघर्ष की पक्षपाती दौड़ का संरक्षण बताया है।" डार्विन ने स्पेंसर के नए वाक्यांश "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" का इस्तेमाल सबसे पहले १८६९ में प्रकाशित किए गए ऑन द ऑरिजिन ऑफ़ स्पीशीज़ के पांचवें संस्करण में "प्राकृतिक चयन" के एक समानार्थी शब्द के रूप में किया था। डार्विन ने इसका मतलब "तत्काल, स्थानीय पर्यावरण के लिए बेहतर अनुकूलित" के लिए एक रूपक के रूप में, न कि "सर्वश्रेष्ठ शारीरिक आकृति में" सामान्य अनुमान के रूप में निकाला था। इसलिए, यह कोई वैज्ञानिक वर्णन नहीं है, और यह अधूरा होने के साथ-साथ भ्रामक भी है। आधुनिक जीवविज्ञानी आम तौर पर वाक्यांश "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" का इस्तेमाल नहीं करते हैं क्योंकि यह शब्द प्राकृतिक चयन का सटीक अर्थ नहीं देता है जिसे (प्राकृतिक चयन) जीवविज्ञानी इस्तेमाल और पसंद करते हैं। प्राकृतिक चयन, आनुवंशिक आधार वाले लक्षणों के एक कार्य के रूप में अन्तरीय प्रजनन को संदर्भित करता है। "स्वस्थतम की उत्तरजीविता", दो महत्वपूर्ण कारणों की दृष्टि से गलत है। पहला, उत्तरजीविता, प्रजनन की पहली आवश्यकता मात्र है। दूसरा, जीव विज्ञान में फिटनेस शब्द का एक विशेष अर्थ है जो कि लोकप्रिय संस्कृति में आजकल इस्तेमाल होने वाले इस शब्द के अर्थ से अलग है। जनसंख्या आनुवंशिकी में, फिटनेस या योग्यता, अन्तरीय प्रजनन को संदर्भित करता है। "योग्यता" इस बात को संदर्भित नहीं करता है कि कोई व्यक्ति "शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ" - बड़ा, तेज़ या ताकतवर - या किसी व्यक्तिपरक ज्ञान के अनुसार "बेहतर" है या नहीं. यह एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में प्रजनन दर में अंतर को संदर्भित करता है।. "केवल स्वस्थतम जीवधारियों का ही प्रभुत्व रहेगा" (एक ऐसा दृष्टिकोण जिसका कभी-कभी "सामाजिक डार्विनवाद" के रूप में उपहास भी किया जाता है) अर्थ में वाक्यांश "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" की व्याख्या, विकास के वास्तविक सिद्धांत के अनुरूप नहीं है। प्रजनन कार्य में कामयाबी हासिल करने वाला कोई भी व्यक्तिगत जीवधारी "फिट" है और केवल "शारीरिक रूप से स्वस्थतम" जीवधारियों का ही नहीं, बल्कि अपनी प्रजातियों की उत्तरिजीविता में भी योगदान करेगा, हालांकि कुछ जनसंख्या को अन्य की तुलना में परिस्थितियों में बेहतर ढंग से अनुकूलित किया जाएगा. विकास की एक अधिक सटीक विशेषता "पर्याप्त योग्य की उत्तरजीविता" होगी. "पर्याप्त योग्य की उत्तरजीविता", इस तथ्य से भी प्रभावित है कि जबकि व्यक्तियों, जनसंख्याओं और प्रजातियों के बीच प्रत्यक्ष प्रतिस्पर्धा देखी जाती है, ऐसे बहुत कम सबूत हैं कि प्रतिस्पर्धा से बड़े समूहों के विकास को बल मिल रहा है। उदाहरण के लिए, उभयचर, सरीसृप और स्तनधारियों के बीच; हालांकि ये जानवर खाली पारिस्थितिक आवासों में बढ़कर विकसित हुए हैं। इसके अलावा, सरल अर्थ "जीवित रहने के लिए बेहतर ढंग से सुसज्जित जीवधारियों की उत्तरजीविता" वाले वाक्यांश का गलत मतलब निकालने या गलत ढंग से इस्तेमाल करना बयानबाजी अनुलाप है। डार्विन का मतलब, बदलते पर्यावरण में रहने के लिए बेहतर अनुकूलता हासिल करने वाले जीवधारियों के अन्तरीय संरक्षण द्वारा "तत्काल, स्थानीय पर्यावरण के लिए बेहतर ढंग से अनुकूलित होना" था। यह अवधारणा कोई अनुलापिक अवधारणा नहीं है क्योंकि इसमें फिटनेस का एक स्वतंत्र मानदंड शामिल है। वाक्यांश का इतिहास हरबर्ट स्पेंसर ने सबसे पहले इस वाक्यांश का इस्तेमाल चार्ल्स डार्विन की ऑन द ऑरिजिन ऑफ़ स्पीशीज़ को पढ़ने के बाद अपनी प्रिंसिपल्स ऑफ़ बायोलॉजी (१८६४) में किया था जिसमें उन्होंने अपने आर्थिक सिद्धांतों और डार्विन के जैविक सिद्धांतों के बीच समानताएं व्यक्त करते हुए लिखा कि "यह स्वस्थतम की उत्तरजीविता, जिसे मैंने यहां यांत्रिक शब्दों में व्यक्त करने की कोशिश की है, वह तथ्य है जिसे श्री डार्विन ने 'प्राकृतिक चयन', या जीवन के लिए संघर्ष की पक्षपाती दौड़ का संरक्षण बताया है।" ऑन द ऑरिजिन ऑफ़ स्पीशीज़ के पहले चार संस्करणों में, डार्विन ने "प्राकृतिक चयन" वाक्यांश का इस्तेमाल किया। डार्विन ने १८६८ में प्रकाशित द वेरिएशन ऑफ़ एनिमल्स एण्ड प्लांट्स अंडर डोमेस्टिकेशन के पृष्ठ ६ में लिखा, "जिंदगी की लड़ाई में, संरचना, गठन, या प्रवृत्ति के मामले में किसी तरह का लाभ हासिल करने वाले विविधताओं के इस संरक्षण को मैंने प्राकृतिक चयन नाम दिया है; और श्री हरबर्ट स्पेंसर ने उसी विचार को स्वस्थतम की उत्तरजीविता द्वारा काफी अच्छी तरह से व्यक्त किया है। "प्राकृतिक चयन" शब्द कुछ हद तक बुरा शब्द है क्योंकि यह सचेत विकल्प का संकेत मिलता है; लेकिन थोड़ा सा परिचित होने के बाद इसकी अवहेलना की जाएगी". डार्विन, अल्फ्रेड रसेल वालेस से सहमत थे कि यह नया वाक्यांश - "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" - "चयन" के दुःखदायी मानवीकरण से बच गया, हालांकि इसने "प्रकृति के चयन और मौजियों के बीच के सादृश्य को खो दिया". 18६9 में प्रकाशित द ऑरिजिन के पांचवें संस्करण के अध्याय ४ में, डार्विन फिर समानार्थी शब्द: "प्राकृतिक चयन, या स्वस्थतम की उत्तरजीविता" को प्रदर्शित करते हैं। "स्वस्थतम" शब्द से डार्विन ने "तत्काल, स्थानीय पर्यावरण के लिए बेहतर अनुकूलित" मतलब, न कि "सर्वश्रेष्ठ शारीरिक आकृति में" का आम आधुनिक मतलब निकाला. परिचय में उन्होंने पूरा श्रेय स्पेंसर को देते हुए लिखा, "मैंने इस सिद्धांत को मनुष्य की चयन शक्ति के साथ इसके सम्बन्धी को चिह्नित करने के लिए प्राकृतिक चयन नाम दिया है जिसके द्वारा प्रत्येक मामूली बदलाव को, उपयोगी होने पर, संरक्षित है। लेकिन हरबर्ट स्पेंसर द्वारा अक्सर इस्तेमाल की जाने वाली अभिव्यक्ति स्वस्थतम की उत्तरजीविता अधिक सटीक है और कभी-कभी समान रूप से सुविधाजनक भी है।" द मैन वर्सेस द स्टेट में, स्पेंसर ने एक सत्याभासी व्याख्या को न्यायसंगत सिद्ध करने के लिए एक उपलेख में वाक्यांश का इस्तेमाल किया कि क्यों उनके सिद्धांतों को "उग्रवादी प्रकार के समाजों" द्वारा नहीं अपनाया जाएगा. वह इस शब्द का इस्तेमाल युद्धरत समाजों के सन्दर्भ में करते हैं और उनके सन्दर्भ के रूप से यह पता चलता है कि वह एक सामान्य सिद्धांत लागू कर रहे हैं। "इस प्रकार, स्वस्थतम की उत्तरजीविता द्वारा उग्रवादी प्रकार का समाज जो भी हो सभी मामलों में इसके सामने समर्पण वाली निष्ठा के साथ मिलकर, शासी शक्ति में अथाह विश्वास से चित्रित होता है". हरबर्ट स्पेंसर को सामाजिक डार्विनवाद की अवधारणा का आरम्भ करने का श्रेय दिया जाता है। "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" वाक्यांश विकास और प्राकृतिक चयन के अनुरूप या उससे संबंधित किसी विषय के लिए एक तकिया कलाम के रूप में लोकप्रिय साहित्य में व्यापक तौर पर इस्तेमाल होने लगा है। इस प्रकार इसे अनर्गल प्रतियोगिता के सिद्धांतों के लिए लागू किया जाता है और इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर सामाजिक डार्विनवाद के समर्थकों और विरोधियों दोनों द्वारा किया जाता है। डार्विनवादी विकास के एक वर्णन के रूप में इसकी खामियां भी अधिक स्पष्ट हो गई हैं (नीचे देखें). विकासवादी जीवविज्ञानी आलोचना करते हैं जिस तरह से इस शब्द का इस्तेमाल गैर-वैज्ञानिकों द्वारा किया जाता है और लोकप्रिय संस्कृति में इस शब्द के आसपास जो संकेतार्थ पैदा हुआ हैं। यह वाक्यांश प्राकृतिक चयन की जटिल प्रकृति का सन्देश देने में भी मदद नहीं करता है, इसलिए आधुनी जीवविज्ञानी प्राकृतिक चयन शब्द का इस्तेमाल करना पसंद करते हैं और विशेष रूप से उनका इस्तेमाल भी करते हैं। वास्तव में, आधुनिक जीव विज्ञान में, फिटनेस शब्द ज्यादातर प्रजननात्मक सफलता को संदर्भित करता है और विशिष्ट तरीकों के बारे में स्पष्ट नहीं है जिसमें जीवधारी "फिट" हो सकते हैं जैसा कि "प्ररूपी विशेषताओं में होता है जो अस्तित्व और प्रजनन को बढ़ाता है" (जो मतलब स्पेंसर के दिमाग में था). इसके अलावा, नीचे "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" और नैतिकता का सम्मिश्रण अनुभाग देखें. क्या "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" एक अनुलाप है? "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" को कभी-कभी दावे के साथ अनुलाप या पुनरुक्ति कहा जाता है। तर्क है कि अगर कोई "फिट" शब्द को "उत्तरजीविता और प्रजनन की सम्भावना को बेहतर बनाने वाले प्ररूपी विशेषताओं से संपन्न" के अर्थ में लेता है (जिसे स्पेंसर ने लगभग इसी रूप में समझा था), तो "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" को बस "जीवित रहने के लिए बेहतर तरीके से तैयार रहने वाले जीवधारियों की उत्तरिजीविता" के रूप में लिखा जा सकता है। इसके अलावा, यह अभिव्यक्ति एक अनुलाप या पुनरुक्ति बन जाता है अगर कोई आधुनिक जीव विज्ञान में "फिटनेस" की सर्वाधिक व्यापक तौर पर स्वीकृत परिभाषा का इस्तेमाल करता है जो (इस प्रजनन सम्बन्धी सफलता के अनुकूल पात्रों के किसी समूह के बजाय) केवल प्रजनन सम्बन्धी सफलता है। इस तर्क का इस्तेमाल कभी-कभी दावे के साथ यह कहने के लिए भी किया जाता है कि डार्विन का प्राकृतिक चयन द्वारा विकास सम्बन्धी सम्पूर्ण सिद्धांत मौलिक रूप से अनुलापिक और इसलिए किसी भी व्याख्यात्मक शक्ति से रहित है। हालांकि, अभिव्यक्ति "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" (जिसे अपने ही सन्दर्भ या उससे बाहर के किसी सन्दर्भ में लिया गया हो), प्राकृतिक चयन की क्रियाविधि का एक बहुत ही अधूरा विवरण प्रदान करता है। कारण यह है कि यह प्राकृतिक चयन के लिए किसी मुख्य आवश्यकता, अर्थात् आनुवांशिकता की आवश्यकता, का उल्लेख नहीं करता है। यह सच है कि वाक्यांश "स्वस्थतम की उत्तरजीविता", अपने आप में और अपने आप, एक अनुलाप है अगर फिटनेस को उत्तरजीविता और प्रजनन द्वारा परिभाषित किया जाए. प्राकृतिक चयन, प्रजनन की सफलता में विविधता का एक हिस्सा है जो आनुवंशिक या पैतृक पात्रों द्वारा होता है (प्राकृतिक चयन पर लिखे गए लेख को देखें). अगर कुछ पैतृक पात्र अपने पदाधिकारियों की उत्तरजीविता और प्रजनन को बढाते या घटाते हैं, तो यह यांत्रिक रूप से ("पैतृक" की परिभाषा द्वारा) जिन उत्तरजीविता और प्रजनन को बेहतर बनाने वाले पात्रों का अनुसरण करता है उनकी आवृत्ति पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ेगी. इसे ही विधिवत रूप में "प्राकृतिक चयन द्वारा विकास" कहा जाता है। दूसरी ओर, अगर अन्तरीय प्रजननात्मक सफलता का नेतृत्व करने वाले पात्र पैतृक नहीं हैं तो कोई अर्थपूर्ण विकास नहीं होगा या न ही "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" रहेगी: अगर प्रजननात्मक सफलता में होने वाला सुधार उन प्रवृत्तियों द्वारा हो जो पैतृक नहीं हैं तो इसकी कोई वजह नहीं है कि पीढ़ी दर पीढ़ी इन प्रवृत्तियों की आवृत्ति में वृद्धि हो. अन्य शब्दों में, प्राकृतिक चयन केवल यही नहीं बताता है कि "जीवित बचने वाले जीवित रहते हैं" या "प्रजनन करने वाले प्रजनन करते हैं"; बल्कि, यह बताता है कि "जीवित बचने वाले जीवित रहते हैं, प्रजनन करते हैं और इसलिए किसी भी पैतृक या आनुवंशिक लक्षणों का प्रसार करते हैं जिन्होंने उनकी उत्तरजीविता और प्रजननात्मक सफलता को प्रभावित किया है". यह कथन या बयान अनुलापिक नहीं है: यह परीक्षणयोग्य परिकल्पना पर टिका हुआ है कि ऐसी फिटनेस-प्रभावी पैतृक बदलाव वास्तव में मौजूद है (जो एक ऐसी परिकल्पना है जिसकी पर्याप्त रूप से पुष्टि हो गई है). स्केप्टिक सोसाइटी के संस्थापक और स्केप्टिक मैगज़ीन के प्रकाशक डॉ॰ माइकल शेर्मर अपने १९९७ की किताब, व्हाई पीपल बिलीव वीयर्ड थिंग्स, में इस बहस को संबोधित करते हैं जिसमें वह बताते हैं कि हालांकि अनुलाप कभी-कभी विज्ञान का आरम्भ होते हैं, लेकिन वे कभी इसका अंत नहीं होते हैं और वह यह भी बताते हैं कि उनकी भविष्यसूचक शक्ति की नैतिक गुण द्वारा प्राकृतिक चयन जैसे वैज्ञानिक सिद्धांतों का परीक्षण किया जा सकता है और उन्हें झूठा साबित किया जा सकता है। शेर्मर एक उदाहरण के तौर पर यह बताते हैं कि जनसंख्या आनुवंशिकी का सटीक प्रदर्शन तब होता है जब प्राकृतिक चयन किसी जनसंख्या के परिवर्तन को प्रभावित करेगा या नहीं करेगा. शेर्मर अनुमान लगाते हैं कि अगर होमिनिड के जीवाश्म भी ट्राइलोबाइट्स की तरह एक ही भूवैज्ञानिक स्तर में पाए गए होते तो यह प्राकृतिक चयन के खिलाफ सबूत होता. "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" और नैतिकता का सम्मिश्रण विकास के आलोचकों का कहना है कि "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" व्यवहार के लिए औचित्य प्रदान करता है जो कमजोरों के नुकसान के लिए न्याय के मजबूत समूह वाले मानकों की आड़ में नैतिक मानकों को नजरअंदाज करता है। हालांकि, नैतिक मानकों को स्थापित करने के लिए विकासवादी विवरणों का कोई भी इस्तेमाल एक प्रकृतिवादी भ्रम (या अधिक विशेष रूप से है-चाहिए समस्या) होगा, क्योंकि आदेशात्मक नैतिक बयानों को विशुद्ध रूप से वर्णनात्मक परिसरों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। चीजे कैसी हैं, इसका वर्णन करने का यह मतलब नहीं है कि चीज़ों को उसी तरह होना चाहिए. यह भी सुझाव दिया गया है कि "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" का मतलब कमजोरों के साथ बहुत बुरा बर्ताव करना है, यहां तक कि अच्छे सामाजिक आचरण के कुछ मामलों में भी - अन्य लोगों के साथ सहयोग करते हुए और उनके साथ अच्छा बर्ताव करते हुए - विकासवादी योग्यता में सुधार हो सकता है।. हालांकि इससे है-चाहिए समस्या का समाधान नहीं होता है। दावे के साथ यह भी कहा गया है कि १८८० के दशक के अंतिम दौर के पूंजीपतियों ने जीव विज्ञान के "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" सिद्धांत की व्याख्या "गलाकाट आर्थिक प्रतिस्पर्धा को मजूरी देने वाले एक नैतिक नियम" के रूप में की जिसके फलस्वरूप "सामाजिक डार्विनवाद" का जन्म हुआ जिसने कथित तौर पर निर्बाध अर्थव्यवस्था, युद्ध और नस्लवाद को गौरवान्वित किया। हालांकि ये विचार पहले के हैं और आम तौर पर डार्विन के विचारों के खिलाफ हैं और वास्तव में उनके समर्थकों ने शायद ही कभी डार्विन को समर्थन के लिए तैयार किया जिस समय आम तौर पर धर्म और होरातियो अल्गेर की पौराणिक कथाओं के औचित्य का दावा कर रहे थे। पूंजीवादी विचारधारा के सन्दर्भ में शब्द "सामाजिक डार्विनवाद" की शुरुआत १९४४ में प्रकाशित रिचर्ड होफस्टैड्टर की सोशल डार्विनिज़्म इन अमेरिकन थॉट द्वारा दुर्वचन के शब्द के रूप में की गई थी। डार्विन के विकास के सिद्धांत की एक आलोचना के रूप में वाक्यांश "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" का इस्तेमाल करना परिणामी निवेदन भ्रम का एक उदाहरण है: मानव समाज में हिंसा के लिए एक औचित्य के रूप में स्वस्थतम की उत्तरजीविता की अवधारणा के इस्तेमाल का प्राकृतिक जैविक विश्व में 'प्राकृतिक चयन द्वारा विकास के सिद्धांत" पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" और अराजकतावाद रूसी अराजकतावादी पीटर क्रोपोस्टिन ने "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" की अवधारण को प्रतिस्पर्धा के बजाय सहयोग के समर्थन के रूप में देखा. अपनी किताब मुच्युअल एड: आ फक्टर ऑफ इवॉल्यूशन में उन्होंने जो विश्लेषण किया उसका निष्कर्ष यह निकला कि स्वस्थतम आवश्यक रूप से व्यक्तिगत रूप से प्रतिस्पर्धा में सबसे अच्छे नहीं थे, लेकिन अक्सर एक साथ काम करने में सबसे अच्छे साबित होने वाले लोगों से बने समुदाय से प्रतिस्पर्धा करने में सबसे अच्छे थे। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि जानवरों की दुनिया में हमने देखा है कि प्रजातियों की बहुत बड़ी संख्या समाज में रहती है और यह भी कि वे जीवन के संघर्ष के लिए सबसे अच्चा सहयोग प्राप्त करते हैं: समझ में आया, ज़ाहिर है, इसकी व्यापक डार्विनवादी अर्थ में - न कि अस्तित्व के केवल साधनों के लिए एक संघर्ष के रूप में, बल्कि प्रजातियों की सभी प्राकृतिक प्रतिकूल परिस्थितियों के खिलाफ एक संघर्ष में. जानवरों की प्रजातियां, जिसमे व्यक्तिगत संघर्ष को कम करके एकदम सीमित कर दिया गया है और पारस्परिक सहायता के अभ्यास का सबसे ज्यादा विकास हुआ है, निरपवाद रूप से सबसे ज्यादा संख्या में हैं, सबसे ज्यादा प्रगति कर रहे हैं और आगे की प्रगति के लिए सबसे ज्यादा तैयार हैं। मानव समाज के लिए इस अवधारणा को लागू करके, क्रोपोस्टिन ने पारस्परिक सहायता को विकास के प्रमुख कारकों में से एक रूप में प्रस्तुत किया, अन्य कारक स्व-अभिकथन है और निष्कर्ष निकाला कि पारस्परिक सहायता के अभ्यास में, जिसका हम विकास के सबसे आरंभिक आरम्भों के लिए फिर से चित्र खींच सकते हैं, हमें इस प्रकार हमारे नैतिक धारणाओं की सकारात्मक और स्पष्ट मूल प्राप्त होता है; और हम दृढ़तापूर्वक कह सकते हैं कि मानव की नैतिक प्रगति में, पारस्परिक समर्थन न कि पारस्परिक संघर्ष - का प्रमुख हिस्सा है। इसके व्यापक विस्तार में, वर्तमान समय में भी, हम अभी भी हमारी नस्ल के उत्कृष्ट विकास की सबसे अच्छी गारंटी देखते हैं। इन्हें भी देखें क्रम-विकास या एवोल्यूशन गार्डेन ऑफ़ इडेन पृथ्वी की आयु वाक्यांश का मूल मनोविज्ञान के अग्रदूत गीगा या जीआईजीए द्वारा संकलित विकास उद्धरण अनुलाप या पुनरुक्ति के लिंक स्टीफन जे गौल्ड द्वारा डार्विन्स अनटाइमली बरियल जॉन विल्किंस द्वारा एवोलुशन एंड फिलॉस्फी: ए गुड टॉटोलॉजी इज हार्ड टु फाइंड, टॉक.ऑरिजिंस संग्रह का भाग. मार्क रिडले द्वारा सीए५००: "सरवाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट इज ए टॉटोलॉजी", टॉक.ऑरिजिंस सूचकांक से निर्माणवादी दावों तक. डॉन लिंडसे द्वारा इज "सरवाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट" ए टॉटोलॉजी. डाउटिंग थॉमस द्वारा डार्विन्स ग्रेट टॉटोलॉजी सीए००२: स्वस्थतम की उत्तरजीविता का मतलब है कि "शक्ति सही बनाता है" डेविड ह्यूम - प्राकृतिक धर्म के विषय में बातचीत विकास और दर्शन - क्या विकास शक्ति को सही बनाता है? जॉन एस विल्किंस द्वारा. एलन केयस द्वारा "सरवाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट". निर्माण अनुसन्धान संस्थान से डार्विनिज़्म एण्ड लैसेज़-फेयरे कैपिटलिज़्म क्रोपोस्टिन: पारस्परिक सहायता पारस्परिक सहायता: विकास का एक कारक - अनार्की आर्काइव्स में एचटीएमएल संस्करण
बग्स बनी- वार्नर बन्धु का प्रसिद्ध कार्टून तथा कामिक्स पात्र है ये बेहद शरारती, कुटिल खरगोश है जो हमेशा अपनी चालाकी से लोगो को छकाता रहता है। बग्स बनी धर्म विश्व को सच्चाई दिखाता है।
मौर्यपुत्र भगवान महावीर के ७ वें गणधर(शिष्य) थे। भगवान महावीर के जीवन काल मे ही इन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। मौर्यपुत्र की शंका प्रत्येक गणधर को अपने ज्ञान में कोई ना कोई शंका थी, जिसका समाधान भगवान महावीर ने किया था, मौर्यपुत्र के मन में शंका थी कि, क्या देवता होते हैं या नहीं?
आलोक कुमार चौरसीया भारत के झारखण्ड राज्य की डालटेनगंज सीट से झारखण्ड विकास मोर्चा ( प्रजातांत्रिक) के विधायक हैं। २०१४ के चुनावों में वे इंडियन नेशनल कांग्रेस के उम्मीदवार कृष्णा नन्द त्रिपाठी को ४३४७ वोटों के अंतर से हराकर निर्वाचित हुए। झारखण्ड के विधायक, २०१४-१९
ओर्वकल्लु (कर्नूलु) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कर्नूलु जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
नाभिकीय भौतिकी में, बीटा क्षय (बीटा-डीके) एक प्रकार का रेडियोधर्मी क्षय होता है, जिसमें बीटा कण (एक विद्युत अणु (इलेक्ट्रॉन) या एक धन अणु (पॉज़िट्रॉन)) उत्सर्जित होते हैं। यह दो प्रकार का होता है। विद्युत अणु उत्सर्जन होने पर, इसे बीटा-ऋण () कहते हैं, जबकि धन अणु उत्सर्जन होने पर इसे बीटा धन () कहते हैं। बीटा कणों की गतिज ऊर्जा लगातार वर्णक्रम की होती है और इसका परास शून्य से अधिकतम उपलब्ध ऊर्जा तक होता है। कार्बन-१४ का क्षय होकर नाइट्रोजन-१४ में बदलना इलेक्ट्रॉन क्षय (इलेक्ट्रॉन एमिशन या क्षय) का उदाहरण है। इसी प्रकार, मैगनीशियम-२३ का क्षय होकर सोडियम-२३ में परिवर्तन पॉजिट्रॉन-क्षय या + क्षय का उदाहरण है। नीचे दो अन्य उदाहरण दिये गये हैं- बीटा-क्षय का सामान्य सूत्र- इन्हें भी देखें
परिधि शर्मा भारतीय टेलीविजन की एक विख्यात अभिनेत्री है। इन्होंने अपने अभिनय जीवन की शुरुआत वर्ष २०१० में धारावाहिक तेरे मेरे सपने से की। बाद में वे धारावाहिक रुक जाना नहीं में भी चुनी गई। वर्तमान में, वह ऐतिहासिक धारावाहिक जोधा अकबर में राजपूतानी जोधाबाई की महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इनका जन्म १५ मई १९८७ को इंदौर, मध्य प्रदेश के बाघ क्षेत्र में हुआ था। इन्होंने रखरखाव एवं अनुसंधान केन्द्र से बीबीए की पढाई पूरी की। परिधि शर्मा की शादी तन्मय सक्सेना से हुई है। दोनों एक-दूसरे से एक रक्तदान शिविर में हुई थी। वहीं पहली नजर में दोनों में प्रेम हो गया था। कुछ साल एक-दूसरे से के साथ घूमने-फिरने के बाद इन्होंने शादी कर ली। तेरे मेरे सपने मीरा/रानी रूक जाना नहीं महक जोधा अकबर जोधाबाई भारतीय टेलीविज़न अभिनेत्री १९८७ में जन्मे लोग इंदौर के लोग