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षट्कर्म (अर्थात् 'छः कर्म') हठयोग में बतायी गयी छः क्रियाएँ हैं। षटकर्म द्वारा सम्पूर्ण शरीर की शुद्धि होती है एवं देह निरोग रहता है। ये षटकर्म निम्नलिखित हैं- धौति, बस्ति, नेति, नौलि, त्राटक, कपालभाति नेति दो प्रकार नेति : नेति के दो प्रकार होते हैं - अन्य: १-तेलनेति २-दुग्धनेेति । धौति : धौति (धोना) बारह प्रकार की होती है - १. वातसार धौति २. वारिसार धौति ३. बहिव्सार धौति ८.कपाल रन्ध्र धौति ९. दण्ड धौति १०. वमन धौति ११. वस्त्र धौति १२. मूलशोधन धौति २-वार्ह ( बाहरी) इन्हें भी देखें पंचकर्म -- आयुर्वेद में पाँच कर्म : वमन, विरेचन, अनुवासन बस्ति, निरूह बस्ति तथा नस्य
चरणजीत सिंह चन्नी (जन्म १ मार्च १963) पंजाबी राजनीतिज्ञ हैं और पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य हैं | वे २००७ से पंजाब विधान सभा के सदस्य हैं और दो बार खरार (खरार) म्युनिसिपल काउंसिल के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. वह दूसरे अमरिंदर सिंह मंत्रालय में तकनीकी शिक्षा और प्रशिक्षण मंत्री और पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता थे। पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत ने चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब कांग्रेस के विधायक दल का नेता चुने जाने का ऐलान किया था | वह पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री थे चरणजीत सिंह चन्नी २०२२ पंजाबविधानसभा चुनाव में कांग्रेस कि तरफ से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे | वह भदौड़ और चमकौर साहिब, दोनों सीटों से चुनाव मैदान में थे | उन्हें दोनों ही सीटों से मात खानी पड़ी | प्रारंभिक जीवन, शिक्षा और व्यक्तिगत जीवन चन्नी का जन्म पंजाब के मकरौना कलां गांव में हुआ था। उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की है और पीटीयू जालंधर से एमबीए किया है। वह दलित सिख समुदाय से हैं। वह वर्तमान में पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से संबंधित विषय में प्रोफेसर इमानुएल नाहर के साथ पीएचडी कर रहे हैं। उन्होंने कमलजीत कौर से शादी की और उनके दो बच्चे हैं। प्रारंभिक राजनीतिक करियर चन्नी २०१५ से २०१६ तक पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे। वह दूसरे अमरिंदर सिंह मंत्रालय में तकनीकी शिक्षा और प्रशिक्षण मंत्री थे। पंजाब के मुख्यमंत्री सितंबर २०२१ में, वह कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में बाद के इस्तीफे के बाद सफल हुए। वह पंजाब के पहले दलित सिख मुख्यमंत्री हैं। टिप्पणीकारों ने सुझाव दिया कि पंजाब की बड़ी दलित आबादी और अन्य पार्टियों द्वारा इसे अपील करने के प्रयासों ने सिंह के उत्तराधिकारी के रूप में चन्नी की कांग्रेस की पसंद को प्रभावित किया होगा। कैबिनेट की नियुक्ति २६ सितंबर को पंद्रह नए मंत्रियों ने शपथ ली; दूसरे अमरिंदर सिंह मंत्रालय के कई मंत्रियों को बरकरार रखा गया था। पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद, चन्नी ने कई नीतिगत घोषणाएं कीं। २१ सितंबर को उन्होंने बेअदबी के मामले में कार्रवाई का वादा किया और कहा कि जल निर्माण योजनाओं के बिजली बिल माफ कर दिए जाएंगे और कनेक्शन बहाल कर दिए जाएंगे. २३ सितंबर को उन्होंने कहा कि "कक्षा डी" सरकारी नौकरियों को नियमित किया जाएगा; उन्हें पहले आउटसोर्स किया गया था। २०२२ विधानसभा चुनावों के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में नियुक्त किया गया ६ फरवरी २०२२ को चरणजीत सिंह चन्नी को आगामी चुनावों के लिए मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में नियुक्त किया गया था, दो विकल्प थे, अर्थात, चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू। ६ फरवरी को लुधियाना में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में घोषित किया। कांग्रेस के अनुसार चरणजीत सिंह चन्नी को जनमत सर्वेक्षणों द्वारा चुना गया था। पंजाब के मुख्यमंत्री सितंबर २०२१ में, वह कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में बाद के इस्तीफे के बाद सफल हुए। वह पंजाब के पहले दलित सिख मुख्यमंत्री हैं। टिप्पणीकारों ने सुझाव दिया कि पंजाब की बड़ी दलित आबादी और अन्य पार्टियों द्वारा इसे अपील करने के प्रयासों ने सिंह के उत्तराधिकारी के रूप में चन्नी की कांग्रेस की पसंद को प्रभावित किया होगा। कैबिनेट की नियुक्ति २६ सितंबर को पंद्रह नए मंत्रियों ने शपथ ली; दूसरे अमरिंदर सिंह मंत्रालय के कई मंत्रियों को बरकरार रखा गया था। पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद, चन्नी ने कई नीतिगत घोषणाएं कीं। २१ सितंबर को उन्होंने बेअदबी के मामले में कार्रवाई का वादा किया और कहा कि जल निर्माण योजनाओं के बिजली बिल माफ कर दिए जाएंगे और कनेक्शन बहाल कर दिए जाएंगे. २३ सितंबर को उन्होंने कहा कि "कक्षा डी" सरकारी नौकरियों को नियमित किया जाएगा; उन्हें पहले आउटसोर्स किया गया था। २०२२ विधानसभा चुनावों के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में नियुक्त किया गया ६ फरवरी २०२२ को चरणजीत सिंह चन्नी को आगामी चुनावों के लिए मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में नियुक्त किया गया था, दो विकल्प थे, अर्थात, चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू। ६ फरवरी को लुधियाना में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में घोषित किया। कांग्रेस के अनुसार चरणजीत सिंह चन्नी को जनमत सर्वेक्षणों द्वारा चुना गया था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनीतिज्ञ १९६३ में जन्मे लोग पंजाब के मुख्यमंत्री
मदर डेरी भारत सरकार के राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड के स्वामित्व में एक कंपनी है। यह बोर्ड मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अंतर्गत एक वैधानिक निकाय है। यह कंपनी दूध और डेरी उत्पादों का निर्माण, विपणन और बिक्री करता है। मदर डेरी की स्थापना १९७४ में राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की सहायक कंपनी के रूप में हुई थी। कंपनी के प्रबंध निदेशक मनीष बंदलिश हैं। मदर डेरी को १९७४ में 'ऑपरेशन फ्लड' के तहत राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के स्वामित्व में एक सहायक कंपनी के रूप में शुरू किया गया था। यह दुग्ध क्रांति के तहत एक पहल थी, जिसका उद्देश्य भारत को दूध के लिए आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाना था। मदर डेरी तरल दूध की अपनी आवश्यकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा डेरी सहकारी समितियों और ग्रामीण स्तर के किसान केंद्रित संगठनों से प्राप्त करती है। यह मूल रूप से दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के हिस्सों पर केंद्रित है। बाजार में इसके १५०० मिल्क बूथ और ३०० सफल आउटलेट हैं। बाद में इसका विस्तार भारत के अन्य क्षेत्रों में हुआ। यह वर्तमान में ४०० सफल आउटलेट्स (दुकानें) के माध्यम से दूध और दुग्ध उत्पाद बेचती है। यह दिल्ली-एनसीआर में प्रमुख दूध आपूर्तिकर्ता है और इस क्षेत्र में प्रति दिन लगभग ३० लाख लीटर दूध बेचती है। यह दूध से बने उत्पाद भी प्रदान करती है , जैसे दही, छाछ, लस्सी, घी, आदि। भारत में ग्रामीण विकास भारत में खुदरा व्यापार
मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह यु या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप उ एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश का फैलाव भारत, मध्य पूर्व, कॉकस, यूरोप और उत्तरी अफ़्रीका में है। भारत में इसकी यु२ उपशाखा काफ़ी पायी जाती है, जो मध्य एशिया और यूरोप में भी मिलती है - यहाँ तक की यही उपशाखा एक ३०,००० साल पुराने रूसी शिकारी के शव में भी मिली है। स्पेन और पोलैंड के रोमा लोगों में ३०-६५% इसकी यु३ उपशाखा के वंशज पाए गए हैं। वैज्ञानिकों ने अंदाज़ा लगाया है के जिस स्त्री के साथ मातृवंश समूह पी शुरू हुआ वह आज से लगभग ५५,००० वर्ष पूर्व मध्य पूर्व में रहती थी। अन्य भाषाओँ में इन्हें भी देखें मनुष्य मातृवंश समूह हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
नासा/आईपैक ग़ैर-गैलेक्सीय कोष (नासा/इपाक एक्स्ट्रागलैक्टिक डेटाबसे) इंटरनेट पर उपलब्ध एक खगोलशास्त्रीय कोष है जिसमें हमारी गैलेक्सी आकाशगंगा से बाहर स्थित खगोलीय वस्तुओं की जानकारी संचय की गई है। इन वस्तुओं में गैलेक्सियाँ, क्वेज़ार, एक्स-किरणों और अवरक्त-किरणों (इन्फ़्रारेड) के स्रोत, इत्यादि शामिल हैं। इसे १९८० के दशक में कैलिफ़ोर्निया के दो खगोलशास्त्रियों - जॉर्ज हेलू और बैरी मैडोर - ने स्थापित किया था और इसे चलाने का ख़र्च अमेरिकी अन्तरिक्ष अनुसन्धान प्राधिकरण नासा से आता है। जून २०१२ तक इस कोष में १७ करोड़ खगोलीय वस्तुओं पर जानकारी एकत्रित की गई जा चुकी थी, जिसमें भिन्न स्रोतों और प्रणालियों से मिली जानकारी और माप में तालमेल किया गया था। इसमें कई तरंगदैर्घ्य (वेवलेंथ) के प्रयोग से १८.२ करोड़ कड़ियाँ जोड़ी जा चुकी थीं। इन्हें भी देखें
निशान साहिब या निशान साहब सिखों का पवित्र त्रिकोणीय ध्वज है। यह पर्चम कपास या रेशम के कपड़े का बना होता है, इसके सिरे पर एक रेशम की लटकन होती है। इसे हर गुरुद्वारे के बाहर, एक ऊंचे ध्वजडंड पर फ़ैहराया जाता है। झंडे के केंद्र में तलवार, ढाल , कटार होता है। निशान साहिब खालसा पंथ का पारंपरागत प्रतीक है। काफ़ी ऊंचाई पर फ़ैहराए जाने के कारण निशान साहिब को दूर से ही देखा जा सकता है। किसी भी जगह पर इसके फहरने का दृष्य, उस मौहल्ले में खालसा पंथ की मौजूदगी का प्रतीक माना जाता है। हर बैसाखी पर इसे नीचे उतार लिया जाता है और एक नए पर्चम से बदल दिया जाता है। सिख इतिहास के प्रारंभिक काल में निशान साहिब की पृष्ठभूमि लाल रंग की थी। फ़िर इस का रंग सफ़ेद हुआ और फिर केसरिया। सन् १६०९ में पहली बार गुरु हरगोबिन्दजी ने अकाल तख़्त पर केसरिया निशान साहिब फहराया था। बहरहाल, निहंग द्वारा प्रबंधित किए गए गुरुद्वारों में निशान साहिब के पृष्ठभूमि का रंग इस्पाती नीला होता है। सिंहा के अनुसार, गुरु हरगोबिन्द ने निशान साहिब का इस्तेमाल शुरू किया था, परंतु खंडा के इस्तेमाल बाद में किया जाने लगा(संभवतः १९वीं सदी में)। मैकलेओड के अनुसार, निरंकर्णी सतगुरु दरबार सिंह (१८५५-७०) ने एक लाल निशान साहिब फहराया था एक प्रतीक के रूप में, उनके अभियान के चिन्ह के रूप में जो "सिखों की ब्राह्मण चंगुल से मुक्ती" को प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता था। यह सिख साम्राज्य का भी ध्वज था। परिचय एवं रूपाकृती निशान साहिब हर गुरुद्वारे के बाहर एक ऊंचे लकड़ी या धातु रचित ध्वजडंड द्वारा फ़ैहराया जाता है। यह ध्वज त्रिकोंणियाकारी होता है। इसके केसरिया पृष्ठभूमि पर केंद्र में एक नीले रंग का खंडा, अंकित होता है। आम तौर पर जब की इसकी पृष्ठभूमि केसरिया रंग की होती है परंतू यह(कुछ मौकों पर) अन्य रंगों में भी प्रदर्शित हो सकता है। निशान साहब की मेज़बानी कर रहे ध्वजडंड के शिखर पर(डंडमुकुट के रूप में) एक खंडा लगा होता है। ध्वजडंड के कलश पर खंडे की मौजूदगी इस बात का प्रतीक है की हर सिख और बलकी कोई भी व्यक्ती उस भवन में प्रवेश करने के लिये स्वतंत्र है और बेफ़िक्र होकर ईश्वर की अराधना कर सकता है। सिख समाज में निशान साहब का बहुत सम्मानित स्थान है और इसे बहुत इज़्ज़त के साथ रखा जाता है। इस ध्वज को पवित्र माना जाता है इसलिए हर साल बैसाखी के पर्व के दौरान इसे दूध और पानी से पवित्र किया जाता है और जब निशान साहिब का केसरिया रंग फीका पड़ जाता है तब एक नए एवं नवीन ध्वज से उसे बदल दिया जाता है। किसी भी संस्था के ध्वज की तरह, निशान साहब खालसा का प्रतीक है और इसे हर गुरुद्वारा परिसरों में फहराया जाता है। इन्हें भी देखें
उत्पादन इंजीनियरी (प्रोडक्शन इंजीनियरिंग), निर्माण प्रौद्योगिकी, इंजीनियरी विज्ञानों तथा प्रबन्धन विज्ञानों का संयोजन है। इन्हें भी देखें
रानीपुर कहलगाँव, भागलपुर, बिहार स्थित एक गाँव है। भागलपुर जिला के गाँव
यह भारत की एक प्रमुख नदी घाटी परियोजना हैं। परियोजना का प्रारम्भ लाभान्वित होने वाले राज्य भारत की नदी घाटी परियोजनाएं भारत का भूगोल
धुलगांव-ल०प०-३, यमकेश्वर तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा धुलगांव-ल०प०-३, यमकेश्वर तहसील धुलगांव-ल०प०-३, यमकेश्वर तहसील
मौदहा (मौदाहा) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के हमीरपुर ज़िले में स्थित एक नगर है। इन्हें भी देखें हमीरपुर ज़िला, उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश के नगर हमीरपुर ज़िला, उत्तर प्रदेश हमीरपुर ज़िले, उत्तर प्रदेश के नगर
वंग या रांगा या टिन (तीन) एक रासायनिक तत्त्व है। लैटिन में इसका नाम स्टैन्नम (स्तन्नम) है जिससे इसका रासायनिक प्रतीक स्न लिया गया है। यह आवर्त सारणी के चतुर्थ मुख्य समूह (में ग्रुप) की एक धातु है। वंग के दस स्थायी समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ११२, ११४, ११५, ११६, ११७, ११८, ११९, १२०, १२२ तथा १२४) प्राप्त हैं। इनके अतिरिक्त चार अन्य रेडियोऐक्टिव समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ११३, १२१, १२३ और १२५) भी निर्मित हुए हैं। र्ब वंग की मिश्रधातु का उपयोग आज से ५,००० वर्ष पूर्व भी होता था। वंग धातु की बनी सबसे प्राचीन बोतल मिस्र की स्थित समाधि में पाई गई, जो लगभग ईसा से १,५०० वर्ष पूर्वकाल की है। वंग के अयस्क मिस्र में नहीं मिलते। इस कारण वहाँ यह धातु अवश्य ही बाहर से आई होगी। ईसा से लगभग ३०० वर्ष पूर्व इंग्लैंड में वंग के धातुकर्म के नमूने मिलते हैं। यहाँ वंग की खानें थीं। उस समय यह धातु रोम में जाती थी। दक्षिणी अमरीका के आदिवासियों को वंग की मिश्रधातुओं का ज्ञान था। भारत में सिंधु घाटी की सभ्यता के काल के प्राप्त धातु पदार्थों में वंग पाया गया है। ऐसा अनुमान है कि उस समय वंग ईरान से आता था। ईसा से पाँच शताब्दी पूर्व आयुर्वेद काल में सुश्रुत में त्रपु (वंग) तथा वाग्भट्ट के अष्टांगहृदय में भी वंग के यौगिक का वर्णन आया है। रसरत्नसमुच्चय में वंग धातु तथा वैग भस्म दोनों के गुणों की विवेचना की गई है। वंग मुक्त अवस्था में प्राप्त नहीं है। पृथ्वी की सतह पर इसकी मात्रा लगभग ४० ग्राम प्रति टन है। इसके प्रमुख अयस्क हैं : कैसिटेराइट, (स्नो२) और सल्फाइड। मलयेशिया, थाइलैंड, इंडोनेशिया, कांगो, नाइजीरिया तथा बोलिविया में वंग की मुख्य खानें हैं। वंग के अयस्क में प्राय: १ से ५ प्रतिशत टिन ऑक्साइड (स्नो२) उपस्थित रहता है। इस कारण इसे सांद्रित करना आवश्यक है। उच्च घनत्व तथा अचुंबकीय गुणों के द्वारा ही कैसिटेराइट का सांद्रण करते हैं। सांद्रित अयस्क को कोयले से मिश्रित कर परावर्तनी (रेवरबेरेट्री) अथवा वात्या (ब्लास्त) भट्ठी में रखकर अपचयन (रेडउंक्शन) करने से वंग धातु प्राप्त होती है। अशुद्ध वंग के विशुद्ध करने की अनेक विधियाँ हैं। वंग श्वेत रंग की कोमल तन्य (दुक्टाइल) धातु है। इसके तार सरलता से खींचे जा सकते हैं, परंतु वंग की चादर मोड़ने पर कटकटाने की ध्वनि होती है, जिसे वंग की चिल्लाहट कहते हैं। धातु के दो अपररूपी रूपांतरण (एलोट्रोपिक मोड़फिकेशन्स) हैं। सामान्य अवस्था में यह श्वेत रंग की धातु है, परंतु यदि वंग को अधिक काल तक १३ सें. ताप से नीचे रखा जाए, तो यह भुरभुरा एवं भूरे रंग के चूर्ण में परिवर्तित होकर वंग का दूसरा अपररूप बनाता है, जो निम्न ता पर स्थायी है। वंग के कुछ भौतिक स्थिरांक ये हैं : संकेत स्न, परमाणु संख्या ५०, परमाणु भार ११८.६९, गलनांक २३१.९ डिग्री सें., क्वनांक २,२७२ डिग्री सें., घनत्व ७.३१ ग्राम प्रति घन सेमी., परमाणु व्यास ३.१६ ऐंग्स्ट्रॉम, विद्युत् प्रतिरोधकता ११.५ माइक्रोओम-सेंमी. तथा आयनन विभव (आयोनिज़ेशन पॉटेंशियल) ७.३ इवो (एव)। सामान्य ताप पर वंग वायु द्वारा प्रभावित नहीं होता, परंतु उच्च ताप पर उसपर ऑक्साइ की परत जम जाती है। श्वेत ताप पर वंग वायु में जल कर डाइऑक्साइड, (स्नो२) बनाता है। यह तप्त अवस्था में पीले रंग का और सामान्य ताप पर श्वेत रंग का पदार्थ है। वंग तनु अम्लों में धीरे धीरे घुलकर, (स्न++), यौगिक बनाता है और हाइड्रोजन मुक्त करता है। धातु पर सांद्र नाइट्रिक अम्ल की अभिक्रिया द्वारा जलयुक्त स्टैनिक ऑक्साइड अथवा मेटास्टैनिक अम्ल (मैटास्टेनी एसिड) बनता है। वंग क्षारीय विलयन में घुलकर स्टैनेट बनाता है, जिसके फलस्वरूप हाइड्रोजन मुक्त हो जाता है। वंग के दो प्रकार के यौगिक ज्ञात हैं : एक स्टैंनस, जिसमें वंग की संयोजकता २ है और दूसरा स्टैनिक, जिसमें वंग की संयोजकता चार रहती है। इसके दो ऑक्साइड, स्टैनस ऑक्साइ, (स्नो) और स्टैनिक ऑक्साइ, (स्नो२), होते हैं। गंधक के साथ वंग को गरम करने से स्टैनस सल्फाइड, (स्न्स) प्राप्त होता है। स्टैनिक सल्फ़ाइड (स्न्स२) भी बनता है। हेलोजन के साथ वंग स्टैन्स हैलाइड और स्टैनिक हैलाइड बनाता है। वंग के क्लोराइड रंगबंधक के रूप में रेशम रंगने में काम आते हैं। यह नाइट्रोजन, हाइड्रोजन और फ़ॉस्फोरस के साथ भी यौगिक बनाता है। इसके नाइट्रेट और फ़ॉस्फ़ेट अस्थायी होते हैं। क्लोरोस्टैनिक अम्ल का अमोनियम लवण, [(न ह४)२ स्न्क्ल६] रेशम रंगने में काम आता है। वंग अनेक उपसहसंयोजकता (कूर्डिनेट) यौगिक बनाता है। वंग मुलम्मा करने और मिश्रधातुओं के निर्माण में काम आता है। लोहे पर वंग से कलई करने पर उसपर न मुरचा ही लगता और न अम्लों का जल्दी असर पड़ता है। काँसा इसकी महत्व की मिश्रधातु है। खाद्य पदार्थों के डिब्बों में वंग की कलई करने से वे जल्द आक्रांत नहीं होते। वंग के अनेक यौगिक वस्त्र उद्योग, रँगाई, काँच एवं चीनी मिट्टी के पात्र के उद्योगों में काम आते हैं।
आइसीसी चैम्पियंस ट्रॉफ़ी २०१३ (), ६ से २३ जून २०१३ के मध्य इंगलैण्ड और वेल्स में प्रयोजित एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट-प्रतियोगिता थी। सभी मैच तीन नगरों में आयोजित किये जायेंगे : लंदन (द ओवल में), बर्मिंघम (एजबेस्टन में) और कार्डिफ़ (कार्डिफ वेल्स स्टेडियम में)। आइसीसी चैम्पियंस ट्रॉफ़ी २०१३ विजेता को $२० लाख पुरस्कार राशि प्राप्त होगी, जो प्रतियोगिता की शुरुआत तक सबसे बड़ी राशि है। भारत ने फाइनल में इंग्लैंड को ५ रन से हरा कर ये प्रतियोगिता जीत ली। यह सातवीं और अन्तिम आइसीसी चैम्पियंस ट्रॉफ़ी है जैसा कि यह २०१७ में आईसीसी विश्व टेस्ट से प्रतिस्थापित की जानी है। तथापि जनवरी २०१४ में, आईसीसी ने पुष्टि की अगली चैंपियंस ट्रॉफी टूर्नामेंट २०१७ में होगी और प्रस्तावित विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप को रद्द कर दिया गया है। नियम और विनिमय आइसीसी चैम्पियंस ट्रॉफ़ी २०१३ आठ टीमों के मध्य खेली जाने वाली प्रतियोगिता है जो दो समूहों में वरियता और विभक्त की गई है। प्रत्येक टीम अपने समूह में प्रत्येक टीम के साथ खेलेगी। अंकों के आधार पर प्रत्येक समूह से दो टीमें सेमी-फाइनल में पहुँचेंगी। शीर्ष पांच बल्लेबाज शीर्ष पांच गेंदबाज अन्य रोचक तथ्य भारत ने पहली बार चैम्पियंस ट्रॉफ़ी पूर्ण रूप से अपने नाम की, इससे पूर्व सन् २००२ में श्रीलंका के साथ साझा की थी। महेंद्र सिंह धोनी भारत के पहले ऐसे कप्तान हैं, जिन्होंने भारत को टी-२० विश्व कप, विश्व कप और अब चैम्पियंस ट्रॉफ़ी का ख़िताब जितवाया है। चैंपियंस ट्रॉफ़ी की इस प्रतियोगिता में भारतीय टीम ने सभी मैच जीते। शिखर धवन ने गोल्डन बैट का पुरस्कार जीता और अपना पुरस्कार बाढ़ में मारे गए लोगों और उनके परिजनों को समर्पित किया। भारत ने इस प्रतियोगिता के अन्त तक चैम्पियंस ट्रॉफी में १५ मैच जीते हैं और इंग्लैण्ड ने १० मैच हारे हैं। धोनी की कप्तानी में यह १४० वाँ एकदिवशीय मैच था जिन्में से ८२ में जीत मिली। ईएसपीएन क्रिकइन्फो पर टूर्नामेंट साइट आईसीसी चैंपियन्स ट्रॉफ़ी
घाघरा नदी (घाघरा रिवर) या कर्णाली नदी (करनाली रिवर) तिब्बत, नेपाल और भारत में बहने वाली एक नदी है। यह गंगा नदी की एक प्रमुख उपनदी है। घाघरा पहनने वाला चोला होता है इसी के नाम पर इसका नाम घाघरा पड़ा (एक किवदंती के अनुसार) यह दक्षिणी तिब्बत के ऊंचे पर्वत शिखरों (हिमालय) से मानसरोवर झील के समीप से निकलती है। यहाँ से यह नेपाल में प्रवेश करती है, जहाँ इसका नाम कर्णाली है। इसके बाद यह भारत के उत्तर प्रदेश एवं बिहार में प्रवाहित होती है। लगभग ९७० किमी की यात्रा के बाद बलिया और छपरा के बीच यह गंगा में मिल जाती है। घाघरा के किनारे बहराइच और बाराबंकी जनपद के बसे हुए क्षेत्र को गांजर क्षेत्र भी कहा जाता है ऐसा माना जाता है कि यह क्षेत्र एक सांस्कृतिक रूप से और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ क्षेत्र है यहां विभिन्न भाषाई और सामाजिक सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र है यह बहराइच, सीतापुर, गोंडा,बाराबंकी, अयोध्या, टान्डा, राजेसुल्तानपुर, दोहरी घाट, बलिया आदि शहरों के क्षेत्रों से होकर गुजरती है। इन्हें भी देखें भारत की नदियाँ नेपाल की नदियाँ तिब्बत की नदियाँ गंगा नदी की उपनदियाँ
शेखर दत्त भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के राज्यपाल रहे। इसके पहले वह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के रूप में भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय में सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए। दत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा की १९६९ बैच के मध्य प्रदेश कैडर के अफसर है। वह भारतीय थलसेना में शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारी रहे एवं १९७१ के भारत-पाक युद्ध में शौर्य के लिए उन्हें सेना पदक से भी नवाजा गया। दत्त मध्य प्रदेश सरकार के आदिम जाति और अनुसूचित जाति कल्याण, स्कूल शिक्षा, खेल एवं युवा कल्याण विभागों में प्रमुख सचिव रहने के साथ ही विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएँ दे चुके हैं। उन्हें भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में आयुर्वेद, योग व प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध एवं होम्योपैथी (आयुष) विभाग का सचिव नियुक्त किया गया था। भारतीय खेल प्राधिकरण के महानिदेशक के रूप में दत्त ने २००३ नवम्बर में हैदराबाद, भारत में आयोजित हुए प्रथम एफ्रो-एशियाई खेलों की मेजबानी में भूमिका निभाई। बाद में वह रक्षा उत्पादन विभाग में संयुक्त सचिव बने एवं अंततः सन् २००५ में भारत के रक्षा सचिव का पदभार ग्रहण किया। जुलाई २००७ में शेखर दत्त सेवानिवृत्त हुए। इसके तुरंत पहले उन्हें दो वर्ष के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा उप-सलाहकार का कार्यकाल मिला। महामहिम श्री शेखर दत्त, छत्तीसगढ़ के राज्यपाल छत्तीसगढ़ के राज्यपाल
तल्ला डौडा, रानीखेत तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा डौडा, तल्ला, रानीखेत तहसील डौडा, तल्ला, रानीखेत तहसील
महाराजपुर दवरी कलाँ की एक पंचायत है और यहा विशालकाय बरगद का पेड है जिस पर गाय के अक्स बने हे साथ ही एक चौसठ जौगनी देवी का प्राचीन मंदिर है यह मध्यप्रदेश में स्थित एक शहर है जो की तहसील देवरी जिला सागर में आता है यहा एक विसालकाय बरगद का पेड हे और चौसठ योगिनी का मंदिर है
अपतानी (अप तानी, अप) भाषा भारत के अरुणाचल प्रदेश में बोली जाने वाली एक भाषा है। यह तिब्बती-बर्मी भाषा-परिवार की तानी उपशाखा की भाषा है। यह सर्वाधिक संकटग्रस्त केवल बोली जाने वाली भाषा है। इसके लिखने का कोई मानक नहीं है। इन्हें भी देखें निचला सुबनसिरी ज़िला अरुणाचल प्रदेश की भाषाएँ भारत की संकटग्रस्त भाषाएँ निचला सुबनसिरी ज़िला
माधुरी मेहता (जन्म १ नवंबर १99१) एक भारतीय क्रिकेटर हैं। उन्होंने २०१2 में वेस्ट इंडीज की महिला क्रिकेट टीम के खिलाफ महिला वनडे इंटरनेशनल और महिला ट्वेंटी २० अंतर्राष्ट्रीय मैच खेले। ओड़िशा के लोग भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ी भारतीय महिला एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी १९९१ में जन्मे लोग
एलान १९९४ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। मधू - मोहिनी शर्मा दलीप ताहिल - पुलिस कमिश्नर देसाई मोहनीश बहल - विजय शर्मा मोहन जोशी - बाबा ख़ान नामांकन और पुरस्कार १९९४ में बनी हिन्दी फ़िल्म
कलर्स सिनेप्लेक्स सुपरहिट्स एक भारतीय हिंदी व दक्षिण भारत की फिल्में प्रसारित करने वाला टीवी चैनल है, जो वायकॉम १८ द्वारा चलाया जा रहा है। जिसे १ अप्रैल २०२२ को रिश्ते सिनेप्लेक्स के जगह लॉन्च किया गया था। इससे पहले, चैनल बॉलीवुड और दक्षिण भारतीय दोनों फिल्मों को हिंदी में डब करके प्रसारित करता था। लेकिन १ अप्रैल 202१ को कलर्स सिनेप्लेक्स बॉलीवुड के लॉन्च के बाद, चैनल केवल दक्षिण भारतीय हिंदी-डब फिल्मों का प्रसारण करता है, जबकि बाद वाला एक समर्पित बॉलीवुड मूवी चैनल है। एक क्रिकेट टूर्नामेंट - रोड सेफ्टी वर्ल्ड सीरीज़ श्रृंखला सड़क सुरक्षा के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए महाराष्ट्र के सड़क सुरक्षा प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित एक टी२० क्रिकेट प्रतियोगिता है। रोड सेफ्टी वर्ल्ड सीरीज़ में, क्रिकेट वर्ल्ड लीजेंड्स एक नेक काम के लिए एक-दूसरे के खिलाफ मैच करेंगे। यह ११ मैचों की सीरीज होगी जो टी२० फॉर्मेट में खेली जाएगी। श्रृंखला में भारत, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, वेस्टइंडीज और दक्षिण अफ्रीका के कुछ बड़े नाम हैं जैसे सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग, युवराज सिंह, जहीर खान, ब्रायन लारा, शिवनारायण चंद्रपॉल ।, आदि और भारत के पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर श्रृंखला के आयुक्त हैं। [९] यह सीरीज ७ से २२ मार्च २०२० तक कलर्स सिनेप्लेक्स पर शाम ६ बजे प्रसारित की गई थी। श्री रवि गायकवाड़ , आरटीओ के प्रमुख, ठाणे (कोंकण रेंज), महाराष्ट्र सरकार, रोड सेफ्टी वर्ल्ड सीरीज़ के संस्थापक हैं, जिन्होंने भारतीय सड़कों और दुनिया भर में जीवन बचाने के लिए खेल के साथ सड़क सुरक्षा की अवधारणा को एकीकृत किया। सड़क सुरक्षा के लिए समर्थन करने वाले व्यक्ति श्री रवि गायकवाड़ , सड़क सुरक्षा प्रकोष्ठ, महाराष्ट्र सरकार के वरिष्ठ सदस्य हैं। शांत भारत सुरक्षित भारत के अध्यक्ष रवि गायकवाड़ ने योहन ब्लेक की भारत यात्रा और सड़क सुरक्षा अभियान के लिए उनके प्रयासों की सराहना की, जिसके लिए लोगों को शिक्षित करने और उन्हें अपनी जिम्मेदारियों के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है ताकि भारतीय सड़कों पर अधिक से अधिक लोगों की जान बचाई जा सके। टी १० लीग - अबू धाबी टी १० लीग सीज़न ५ को कलर्स सिनेप्लेक्स और वूट के साथ चैनल पर प्रसारित किया गया था। भारत में हिन्दी टी वी चैनल हिन्दी टीवी चैनल
नान कन्यालीकोठ, कपकोट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा कन्यालीकोठ, नान, कपकोट तहसील कन्यालीकोठ, नान, कपकोट तहसील
मगध पर शासन करने वाले बृहद्रथ वंश के अंतिम शासक थे इनको इन्हीं के मंत्री शुनक ने धोखे से मार दिया था। बृहद्रथ वंश की स्थापना बृहद्रथ राजा ने की थी, इनकी राजधानी गिरिवरज थी, परंतु बृहद्रथ ने अपने पिता के नाम पर राजग्रव्ज रख लिया।।
६ जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ६वाँ दिन है। साल में अभी और ३५९ दिन बाकी हैं (लीप वर्ष में 3६0)। एपिफ़नी (एपीफनी) अथवा 'प्रभुप्रकाश' नामक ईसाई पर्व परम्परागत रूप से ६ जनवरी को मनाया जाता है। यह लगभग सन् २०० ई. में प्राच्य चर्च में प्रारंभ हुआ। १९०७ - डॉ मारिया मॉन्टेसरी (मारिया मांटेसरी) ने प्रथम बाल - गृह की योजना को पूर्ण करके संचालन का शुभारंभ किया। १९२१ - महात्मा गाँधी द्वारा बिहार विद्यापीठ की स्थापना। १९७७ - एचपीटी-३२ दीपक की प्रथम उड़ान २००४ - जय भारत जननीय तनुजते कर्नाटक राज्य कआ आधिकारिक गान घोषित हुई थी। २०१० - नई दिल्ली में यमुना बैंक-आनंद विहार सेक्शन की मेट्रो रेलों का परिचालन आरंभ। २०१०- चीन के हुनान प्रांत में झियांगतान इलाके में स्थित कोयले की खदान की भूमिगत तारों में आग लगने से खाद्दान में आग लग गई जिसमें २५ खनिकों की मौत हो गई तथा तीन अन्य लापता हो गए। २०१६-२०१६ के उत्तर कोरियाई परमाणु परीक्षण १८७२- अलेक्सांदर स्क्र्याबिन - रूस के संगीतकार एवं पियानोवादक १८८३- खलील जिब्रान - लेबनानी-अमेरिकी कलाकार, कवि तथा लेखक १८९४- आचार्य उदयवीर शास्त्री - भारतीय दर्शन के उद्भट विद्वान् १९१८- भरत व्यास- हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध गीतकार १९२८- विजय तेंडुलकर - प्रसिद्ध मराठी नाटककार, लेखक, निबंधकार, फिल्म व टीवी पठकथालेखक, राजनैतिक पत्रकार और सामाजिक टीपकार १९३१- ई एल डाक्टारो-अमेरिकी साहित्यकार, वर्लड्स फ़ेयर उपन्यास के लिए १९८६ में अमेरिका का राष्ट्रीय पुस्तक पुरस्कार १९३२- कमलेश्वर - हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार १९३६- डार्लीन हार्ड - महिला टेनिस खिलाड़ी १९४०- नरेंद्र कोहली १९६६- ए आर रहमान-हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार १९७१- मधु कोडा झारखंड के भूतपूर्व मुख्यमंत्री १९८४- दिलजीत दोसांझ -पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार एवं मशहूर गायक १९८६- इरिना श्याक (इरिना शेख)- रूसी मॉडल और अभिनेत्री। १९९३- पवन नेगी- बाएँ हाथ से धीमी गति के गेंदबाज तथा बाएँ हाथ के बल्लेबाज १८४०- फैनी बर्नीअंग्रेजी उपन्यासकार तथा नाटककार १८४७- त्यागराज- भक्तिमार्गी कवि एवं कर्णाटक संगीत के महान संगीतज्ञ १८८४- ग्रेगर जॉन मेंडल- १८८५- भारतेन्दु हरिश्चंद्र १९५२- लुई ब्रेल १९७१- प्रोतुल चन्द्र सरकार- प्रसिद्ध जादूगर २०००- अजीत प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला के शाही परिवार के सदस्य २०१०- सुटोमु यामागुकी - परमाणु हमलों को झेलकर ६५ वर्षों तक जीवित रहने वाले एकमात्र व्यक्ति बीबीसी पे यह दिन
निलुवुगंड्ल (कर्नूलु) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कर्नूलु जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
द ट्रिब्यून एक अंग्रेजी भाषा का भारतीय दैनिक समाचार पत्र है जो चंडीगढ़, नई दिल्ली, जालंधर, देहरादून और बठिंडा से प्रकाशित होता है। २ फ़रवरी १८८१ को, लाहौर (अब पाकिस्तान में) में एक परोपकारी सरदार दयाल सिंह मजीठिया द्वारा यह स्थापित किया गया था। यह ट्रस्ट पांच न्यासियों द्वारा चलाया जाता है। यह भारत का एक प्रमुख समाचार पत्र है जो की दुनिया भर में पढ़ा जाता है। भारत में, यह पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेशऔर चंडीगढ़ संघ राज्य क्षेत्र का अग्रणी अंग्रेजी दैनिक है। डॉ हरीश खरे ट्रिब्यून समूह के समाचार पत्रों के मुख्य संपादक हैं। अंग्रेजी भाषा के द ट्रिब्यून की दो सह प्रकाशन- दैनिक ट्रिब्यून (हिंदी में) और पंजाबी ट्रिब्यून (पंजाबी में) हैं। आर. के. सिंह दैनिक ट्रिब्यून के और सुरिंदर सिंह तेज ''पंजाबी ट्रिब्यून के संपादक हैं। 'द ट्रिब्यून' का में इंटरनेट संस्करण जुलाई १९९८ शुरू किया गया था। 'पंजाबी ट्रिब्यून' और 'दैनिक ट्रिब्यून' के इंटरनेट संस्करणों को १६ अगस्त २०१० को शुरू किया गया। तीनों समाचार पत्र 'द ट्रिब्यून ट्रस्ट' द्वारा प्रकाशित है। न्यायमूर्ति एस. एस. सोढ़ी ट्रिब्यून ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। इसमें श्री नरेन्द्र नाथ वोहरा, लेफ्टिनेंट जनरल एस. एस. मेहता (सेवानिवृत्त), श्री नरेश मोहन और श्री गुरबचन जगत न्यासियों के रूप में शामिल हैं। प्रेम भाटिया, हरि जय सिंह, एच. के. दुआ, और राज चेंगप्पा अतीत में द ट्रिब्यून के मुख्य संपादक रहे हैं। अंग्रेजी भाषा के समाचार पत्र
मणिपुर क्रिकेट टीम एक क्रिकेट टीम है जो भारतीय घरेलू प्रतियोगिताओं में मणिपुर राज्य का प्रतिनिधित्व करती है। जुलाई २०१८ में, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने टीम को उन नौ नए पक्षों में से एक के रूप में नामित किया, जो रणजी ट्रॉफी और विजय हजारे ट्रॉफी सहित २०१८-१९ सत्र के लिए घरेलू टूर्नामेंट में प्रतिस्पर्धा करेंगे। २०१८-१९ सत्र से आगे, शिव सुंदर दास को टीम के कोच के रूप में नियुक्त किया गया था। सितंबर २०१८ में, उन्होंने २०१८-१९ के विजय हजारे ट्रॉफी के शुरुआती मैच में पुदुचेरी को ८ विकेट से हरा दिया। अगले दिन, उन्होंने सिक्किम को १० विकेट से हराकर टूर्नामेंट का अपना पहला मैच जीता। विजय हजारे ट्रॉफी में अपने पहले सीज़न में, वे प्लेट ग्रुप में छठे स्थान पर रहे, अपने आठ मैचों में दो जीत और पांच हार के साथ। एक मैच भी बिना नतीजे के समाप्त हुआ। यशपाल सिंह 4८८ रन बनाकर प्रमुख रन-स्कोरर के रूप में समाप्त हुए और नौ विकेट के साथ टीम के लिए बिश्वोरजीत कोंथौजम प्रमुख विकेट लेने वाले गेंदबाज थे। नवंबर २०१८ में, २०१८-१९ रणजी ट्रॉफी के अपने शुरुआती मैच में, वे सिक्किम से एक पारी और २७ रन से हार गए। उन्होंने मिजोरम को आठ विकेट से हराकर प्रतियोगिता के तीसरे दौर में २०१८-१९ रणजी ट्रॉफी का अपना पहला मैच जीता। उन्होंने अपने आठ मैचों में तीन जीत के साथ तालिका में २०१८-१९ टूर्नामेंट को छठे स्थान पर रखा। मार्च २०१९ में, मणिपुर ने २०१८-१९ के सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी के ग्रुप ए में छठा स्थान हासिल किया, जिसमें उनके छह मैचों में से एक जीत थी। मयंक राघव टूर्नामेंट में टीम के लिए सबसे अधिक रन बनाने वाले, ३०१ रन बनाने वाले और यशपाल सिंह चार विकेट लेने वाले प्रमुख विकेटकीपर थे।
बरा सूर्यगढा, लखीसराय, बिहार स्थित एक गाँव है। लखीसराय जिला के गाँव
सनौर (सनौर) भारत के पंजाब राज्य के पटियाला ज़िले में स्थित एक नगर है। इन्हें भी देखें पंजाब के शहर पटियाला ज़िले के नगर
ढेंकानाल लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र भारत के उड़ीसा राज्य का एक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र है। ओड़िशा के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र
अमलीभौना रायगढ मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़ जिले का एक गाँव है। छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़
खांड (खंड) या खांड बाणसागर (खंड बंसगर) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के शहडोल ज़िले में स्थित एक नगर है। यह बाणसागर बाँध के जलाशय के समीप स्थित है। इन्हें भी देखें मध्य प्रदेश के शहर शहडोल ज़िले के नगर
कुण्डलपुर राजगृही के पास नालंदा स्टेशन से ३ मील दूरी पर है। यह भगवान महावीर का जन्म स्थान माना जाता है।
राजकरण सिंह (सन् १९५४ - ३० अक्टूबर २०११) भारतीय भाषा आंदोलन के पुरोधा थे। उन्होने संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं में अग्रेजी की अनिवार्यता को समाप्त करने के लिए दिल्ली में अपने साथी पुष्पेन्द्रसिंह चैहान के साथ अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन के नाम से संघ लोक सेवा आयोग के समक्ष १६ साल तक निरंतर धरना-प्रदर्शन करते रहे। इसी मुद्दे पर २९ दिन लम्बी आमरण अनशन की गूंज संसद से लेकर भारतीय भाषा समर्थकों को झकझोर कर रख दिया था। श्री राजकरण सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद के बिष्णुपुरा गाँव में हुआ था। उनके इस आंदोलन की विराटता का पता इसी बात से साफ झलकता है कि देश के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल, चतुरानन्द मिश्र, मुलायमसिंह यादव, शरद यादव, रामविलास पासवान सोमपाल शास्त्री सहित चार दर्जन से अधिक सांसदों ने कई समय यहां के आंदोलन में भाग लिया था। इस आंदोलन में देश केराष्ट्रीय समाचार पत्रों के अच्युतानन्द मिश्र सहित दर्जनों वरिष्ठ सम्पादकों, साहित्यकारो, समाजसेवियों, गांधीवादियों, ने यूपीएससी के आगे सडक पर लगे धरने में कई बार भाग लिया। उनके निधन की सूचना मिलते ही दिल्ली में उनके सहयोगियों व मित्रों में शोक की लहर छा गयी। उनके निधन पर संसदीय राजभाषा समिति के सदस्य सांसद प्रदीप टम्टाए भारतीय विदेश सेवा के सेवानिवृत उच्चाधिकारी महेश चन्द्रा, यूएनआई के पूर्व समाचार सम्पादक बनारसी सिंह, भाषा आंदोलन के साथी पुष्पेन्द्र सिंह चैहान, सम्पादक देवसिंह रावत, पत्रकार रविन्द्रं सिंह धामी, ओमप्रकाश हाथपसारिया, इंजीनियर विनोद गोतम, चैधरी केपी सिंह सहित अनेक गणमान्य लोगों ने गहरा शोक प्रकट करते हुए अपनी भावभीनी श्रद्वांजलि दी। भारतीय भाषाओं को उनका सम्मान दिलाने के लिए वह अंतिम सांसों तक निरंतर संघर्षरत रहे। भारतीय भाषाओं व भारतीयता के इस समर्पित पुरोधा ने भारतमाता की सेवा के लिए विवाह तक नही किया था। उनके राष्ट्रवादी विचारों व भारतीय भाषाओं के प्रति अनन्य सेवा साधना को देखते हुए आर्य समाज उनका हृदय से सम्मान करता रहा और आर्य समाज के आग्रह पर ही वे कई वर्षो से दिल्ली के चावडी बाजार स्थित सीताराम बाजार के आर्य समाज मंदिर में निवास कर रहे थे। वे भ्रष्टाचार के विरूद्ध आंदोलन में एक मूक समर्पित सिपाई रहे। यही नहीं, 'प्यारा उत्तराखण्ड' के सम्पादक देव सिंह रावत के अनन्य मित्र होने के कारण वे उत्तराखण्ड राज्यगठन जनांदोलन से लेकर २ अक्टूबर २011 तक मनाये गये काला दिवस पर भी सक्रिय भागेदारी निभाते रहे। इन्हें भी देखें भारतीय भाषा आन्दोलन श्याम रुद्र पाठक प्रशासन के लिए अंग्रेजी जरूरी क्यों? (राजकरण सिंह) 'राजकरण सिंह के विचारों को आगे बढ़ाने की जरूरत'
सोनाक्षी सिन्हा (; जन्म २ जून १९८७) भारतीय अभिनेत्री हैं। वो अभिनेता शत्रुघन सिन्हा और अभिनेत्री पूनम सिन्हा की पुत्री हैं। उन्होंने फ़िल्म दबंग (२०१०) से फ़िल्मों में पदार्पण किया जिसमें उन्हें सर्वश्रेष्ठ पदार्पण अभिनेत्री का फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला। वह एक शत्रुघ्न सिन्हा जो की बिहार के है, जो एक प्रमुख् अभिनेता और एक राजनेता और पूनम सिन्हा(शादी के पहले की सिंधी सरनेम: चंदीरामानी) जो की सिंधी है उनकी बेटी है। वह दो जुड़वां भाइयों, लव सिन्हा और कुश सिन्हा के साथ तीन बच्चों में सबसे छोटी है। सोनाक्षी मुंबई में आर्य विद्या मंदिर से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और श्रीमती नाथीबाई दामोदर थ्रैक्रसे महिला विश्वविद्यालय, मुंबई, महाराष्ट्र, से फैशन डिजाइनिंग में स्नातक की उपाधि प्राप्त किया है। सिन्हा ने २००५ में मेरा दिल लेके देखो जैसी फिल्मों के लिए वस्त्र डिजाइन कर के, एक कॉस्ट्यूम डिजाइनर के रूप में अपने पेशा की शुरुआत की। और उसके बाद फिर लक्मे फैशन वीक २००९, लक्मे फैशन वीक २००८ में रैंप पर भी चली। उन्होंने अपनी अभिनय की पेशा सलमान खान के साथ, दबंग से किया था। सिन्हा यो यो हनी सिंह के साथ एक संगीत वीडियो में दिखाई दी जिसका शीर्षक सुपरस्टार था। २०१९ में, उन्होंने कॉमेडी फिल्म टोटल धमाल में एक गीत 'मुंगडा' में अभिनय किया। इसके बाद उन्होंने आदित्य रॉय कपूर, संजय दत्त, माधुरी दीक्षित, आलिया भट्ट और वरुण धवन सहित कलाकारों की टुकड़ी के साथ पीरियड रोमांस फिल्म कलंक में अभिनय किया। यह फिल्म व्यावसायिक रूप से अच्छा प्रदर्शन करने में विफल रही। सोनाक्षी ने फिल्म खानदानी शफाखाना में भी काम किया। सिन्हा मिशन मंगल में अगले स्टार होंगे, जिसमें एक कलाकारों की टुकड़ी है, जिसमें अक्षय कुमार, विद्या बालन और तापसी पन्नू शामिल हैं। वह अजय देवगन, संजय दत्त और परिणीति चोपड़ा के साथ युद्ध ड्रामा फ़िल्म भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया में दिखाई दे रहे हैं। उसके बाद, वह सलमान खान के साथ दबंग ३ में अपनी भूमिका को फिर से निभाएंगे, जो प्रभु देवा द्वारा निर्देशित होगी। सिन्हा एक पेशेवर पशु प्रेमी है और वह कुत्तों और बिल्लियों की गोद लेने और नसबंदी की वकालत एक पेटा के अभियान के दौरान रख चुकी हैं। इन्हें भी देखें हुमा क़ुरैशी (अभिनेत्री) सना अमीन शेख १९८७ में जन्मे लोग भारतीय फ़िल्म अभिनेत्री फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता
|कैप्शन =उडुपी में श्री कृष्ण मठ का प्रवेश द्वार| स्क्रिपटिर् = वेद, उपनिषद, भगवत गीता, ब्रह्मसूत्र , पंचरात्र, भागवत पुराण, महाभारत , रामायण, सर्वमूल ग्रंथ |रेजियोंस = कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिल नाडु, आंध्र प्रदेश }}सत वैष्णव(संस्कृत: सदवैष्णव), (लोकप्रिय रूप से माधव संप्रदाय,माधव वैष्णव और ब्रह्म संप्रदाय''' के रूप में जाना जाता है), हिंदू धर्म की वैष्णव-भागवत परंपरा के भीतर एक संप्रदाय है। सत वैष्णव की स्थापना तेरहवीं शताब्दी के दार्शनिक-संत माधवाचार्य ने की थी, जिन्होंने हिंदू दर्शन के तत्त्ववाद (द्वैत) ("यथार्थवादी दृष्टिकोण से तर्क") वेदांत उप-विद्यालय विकसित किया था।
स्विचित संधारित्र (स्विच्ड कैपेसिटर) इलेक्ट्रानिक परिपथों में प्रयुक्त एक अवयव है। इसका उपयोग विविक्त-काल संकेत प्रसंस्करण (डिस्क्रेट टाइम सिग्नल प्रोसेसिंग) में किया जाता है। स्विचित संधारित्रों का उपयोग करते हुए जो फिल्टर बनाये जाते हैं उन्हें 'स्विचित संधारित्र फिल्टर' (स्विचड़-कपसिटर फिल्टर) कहते हैं। एकीकृत परिपथ के अन्दर फिल्टर बनाने में ये विशेष रूप से उपयोगी हैं क्योंकि आईसी के अन्दर सही मान वाले प्रतिरोधक और संधारित्र बनाना महंगा काम है। इन्हें भी देखें स्विच मोड पॉवर सप्लाई (स्म्प्स)
कमलाकर भट्ट एक प्रधान स्मार्त पंडित थे । उनके परदादा ऋग्वेदी देशस्थ ब्राह्मण रामेश्वर भट्ट १५२२ ई० मे पैठण छोड़कर वाराणसी चले आए थे । रामेश्वर भट्ट के पुत्र नारायण भट्ट अपने समय (लिखावटों की समय १५४०-१५७० ई०) के एक दिग्गज पंडित थे । त्रिस्थलीसेतु, अन्त्येष्टिपद्धति और प्रयोगरत्न उन्के प्रमुख रचनाए है । उन्के प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्ही के निर्देश मे टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया था । नारायण भट्ट ने ही वहा विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की पुनःप्रतिष्ठा की थी, जिसके लिये वाराणसी के सारे पण्डितों ने मिलकर उन्कों 'जगद्गुरु' उपाधि दिया था । नारायण भट्ट के ज्येष्ठपुत्र तथा कमलाकर भट्ट के पिता रामकृष्ण भट्ट मीमांसा-दर्शन और स्मृतिशास्त्र के सुप्रसिद्ध पंडित थै । दुसरे पुत्र शंकर भट्ट भी मीमांसा-दर्शन के बड़े पंडित थे । शंकर भट्ट के पुत्र नीलकण्ठ भट्ट ने अपने पृष्ठपोषक (इटावा जिला मे स्थित) भरेह के राजा भगवन्तदेव सेंगर के नाम पर भगवन्तभास्कर नामक धर्म-कर्म के अनुष्ठान-पद्धति और धर्म के सिद्धांत से संबंधित एक विशाल ग्रंथ की रचना की है । गुजरात, महाराष्ट्र और कोंकण के हिन्दु लोग इस ग्रन्थ के विधानों को मानते है । कमलाकर भट्ट के बड़े भाई दिवाकर भट्ट के पुत्र विश्वेश्वर भट्ट (उर्फ गागा भट्ट) ने छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक किया था । इन्होने निम्नलिखित ग्रन्थकी रचना की है हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न धर्म-कर्मों के अनुष्ठान-पद्धति और धर्म के मामले मे विशेष सिद्धांतों से संबंधित १६१२ ई० मे रचित निर्णयसिन्धु (इस ग्रन्थ मे करीब १०० स्मृतिआ और ३०० निबंधों से वचन उद्धृत किया गया है) हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित के विभिन्न तरीक़े के शान्ति-स्वस्त्ययन के अनुष्ठान-पद्धति से संबंधित शान्तिरत्न हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न तरीके के प्रायश्चित्तों के अनुष्ठान-पद्धति से संबंधित प्रायश्चित्तरत्न हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित कर्मविपाक से संबंधित कर्मविपाकरत्न हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित भक्ति के विभिन्न लक्षण से संबंधित भक्तिरत्न हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न दानकर्मों के अनुष्ठान-पद्धति से संबंधित दानकमलाकर हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित बावड़ी, कूया, तालाव, बगीचा, सेतु और घरों के निर्माणविधि और उन्के प्रतिष्ठा के अनुष्ठान-पद्धति से संबंधित पूर्तकमलाकर हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न देवताओं की मूर्ति और मंदिर के प्रतिष्ठा-पद्धति से संबंधित प्रतिष्ठाकमलाकर हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न संस्कारों के अनुष्ठान-पद्धति से संबंधित संस्कारकमलाकर हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित राज्य-शासन के पद्धति से संबंधित नीतिकमलाकर हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न तरीक़े के व्रतों के अनुष्ठान-पद्धति से संबंधित व्रतकमलाकर हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित समय-गणना के विधि से संबंधित समयकमलाकर हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न मन्त्र के प्रयोग से संबंधित मन्त्रकमलाकर हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित कानूनी विचार-प्रक्रिया से संबंधित व्यवहारकमलाकर हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न तीर्थस्थल के माहात्म्य और तीर्थयात्रा के अनुष्ठान-पद्धति से संबंधित तीर्थकमलाकर हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न तरीक़े के श्राद्धों के अनुष्ठान-पद्धति से संबंधित श्राद्धसार हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न तरीक़े के सदाचारों से संबंधित आचारदीपिका हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित सम्पत्ति के उत्तराधिकार-विधि से संबंधित दायविभाग हिन्दुशास्त्रों के बीच मतभेद निरसन से संबंधित विवादताण्डव हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित शूद्रों के विभिन्न अधिकारों से संबंधित शूद्रधर्मतत्त्व ब्राह्मणोके गोत्र से संबंधित गोत्रप्रवरदर्पण ऋग्वेदी ब्राह्मणोके सन्ध्यावन्दनादि दैनिक क्रियायो के अनुष्ठान-पद्धति से संबंधित बह्वृचाह्निकप्रयोग लापता वा अपहृत सामान और व्यक्ति को वापस पाने के लिये कार्तवीर्याजुन के उपासना से संबंधित कार्तवीर्यार्जुनदीपदानप्रयोग मीमांसा-सूत्र के उपर शास्त्रमाला नामक स्वरचित टीका कुमारिल भट्ट विरचित तन्त्रवार्तिक नामक मीमांसा-दर्शन के एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ के उपर तन्त्रवार्तिकटीका नामक स्वरचित टीका पार्थसारथि मिश्र के शास्त्रदीपिका नामक मीमांसा-सूत्र के भाष्य के उपर शास्त्रदीपिकालोक नामक स्वरचित टीका मीमांसा-दर्शन के विभिन्न तरीक़े के नियम ओर उन्के प्रयोग से संबंधित तत्त्वकमलाकर मीमांसा-दर्शन के उपर मीमांसा-कुतूहल नामक स्वरचित निबंध मम्मताचार्य विरचित काव्यप्रकाश नामक संस्कृत काव्यशास्त्र के एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ के उपर काव्यप्रकाशव्याखा नामक स्वरचित टीका रामकौतुक नामक स्वरचित संस्कृत काव्य इन ग्रन्थों के देखने से विदित होता है कि कमलाकर भट्ट १६१०-१६४० ई० काल मे अपनी सारे लिखावटें की थी । अभी तक सिर्फ निर्णयसिन्धु, शान्तिरत्न और शूद्रधर्मतत्त्व - इन ३ किताबों को ही छपवाया गया है । बंगाल, असम और मिथिला को छोड़कर भारत के और सभी इलाकों के हिन्दु, विषेश करके जो उत्तर भारत मे रहते है, वो निर्णयसिन्धु और विवादताण्डव के विधान को मानते है । १८५४ ई० मे नेपालके प्रधानमंत्री जङ्गबहादुर राणा ने मुलुकी आइन नामक संविधान को निर्णयसिन्धु के आधार पर निर्माण किया था । कमलाकर भट्ट नामसे एक और विख्यात पंडित वाराणसी मे रहते थे । वे नृसिंह भट्ट के पुत्र, कृष्ण भट्ट के पौत्र और दिवाकर दैवज्ञ के प्रपौत्र थे । उन्के पूर्वजों का निवास महाराष्ट्र के परभणी जिला मे स्थित गोलग्राम मे था । उन्होंने सूर्यसिद्धान्त के उपर सौरवासना नामक स्वरचित टीका, गणितशास्त्र से संबंधित शेषवासना नामक स्वरचित ग्रन्थ और सिद्धान्ततत्त्वविवेक (१६५८ ई० मे रचित) नामक ज्योतिषशास्त्र से संबंधित एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ कि रचना की है । निर्णयसिन्धु (ज्वालाप्रसाद मिश्र द्वारा हिन्दी टीका सहित)
आई एम कलाम नील माधव पंडा द्वारा निर्देशित व स्माइल फाउंडेशन द्वारा निर्मित २०११ की हिन्दी फिल्म है। इसकी कहानी एक गरीब राजस्थानी लड़के छोटू जो भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से प्रेरित है, के चारों और घूमती है साजिश भारत के पूर्व राष्ट्रपति, छोटू के चरित्र हर्ष मायर, जो दिल्ली की एक झुग्गी बस्ती में रहने वाला लड़का है, ने निभाया है। इसे विभिन्न फिल्म समारोहों में प्रदर्शित किया गया और इसे कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, १२ मई २०१० को ये ६३ वें कान फिल्म समारोह के बाजार खंड में दिखाई गई। छोटू राजस्थान का रहने वाला एक १२ साल का बुद्धिमान लड़का है। गरीबी में पैदा हुआ, वह सड़क के किनारे स्थित भोजन स्टाल पर काम करने के लिए उसकी मां द्वारा स्टाल के स्वामी भाटी को दे दिया जाता है। उसकी माँ बार-बार कहती है "स्कूल हमारे भाग्य में नहीं है"। फिल्म ये बताती है कि भाग्य कुछ नहीं होता है और किस तरह नियति को अपनी कड़ी मेहनत के द्वारा बदला जा सकता है। एक दिन छोटू राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम को टेलीविजन पर देखता है उनसे काफी प्रेरित हो जाता है। छोटू अपना नाम बदलकर कलाम रख लेता है और वह ये निश्चय करता है कि वह एक ऐसा व्यक्ति बनेगा जो टाई पहनता है और जिसका दूसरों के द्वारा सम्मान किया जाता है। छोटू / कलाम चाय तैयार करना और भोजन के स्टाल के लिए आवश्यक अन्य बातों को जल्दी ही सीख लेता है और वह अपनी योग्यता और विचारों से भाटी को काफी खुश कर देता है। कलाम (छोटू) की भाटी के वहां काम करते हुए राजा के बेटे राजकुमार रणविजय सिंह (हसन साद) से दोस्ती हो जाती है। जल्द ही कलाम और राजकुमार सच्चे मित्र बन, उपहार, किताबें और व्यक्तिगत वस्तुओं को आपस में बाँटने लगते हैं। एक अन्य कर्मचारी, लपटन (पितोबश त्रिपाठी )कलाम से चिढ़ता है और उसकी पुस्तकों को नष्ट कर देता है व उस पर दैनिक कामकाज थोप कर उसे परेशान करता है। कलाम हिंदी में एक निबंध लेखन में प्रिंस की मदद करता है जिसके लिए राजकुमार को पुरस्कार मिलता है। लेकिन उसकी खुशी कम समय के लिए ही रहती है क्योंकि महल के गार्ड कलाम के कमरे में कपड़े और किताबें पाते हैं और कलाम पर एक चोर होने का आरोप लगाया जाता है, वह राजकुमार को उसके पिता के क्रोध से बचने के लिए वह उन वस्तुओं के स्रोत का खुलासा नहीं करता है। निराश कलाम वह राष्ट्रपति से मिलने के लिए दिल्ली जाता है पर बहुत कोशिशों के बाद भी वह असफल रहता है। अंत में वह राष्ट्रपति को एक पत्र लिखता है और बताता है कि कड़ी मेहनत के द्वारा न की भाग्य द्वारा कोई भी आम बच्चा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या एक सफल, सम्मानित व्यक्ति बन सकता है। इस बीच, राजकुमार अपने पिता को बताता है कि कलाम को कपड़े उसने दिए थे और प्रथम पुरस्कार दिलाने वाला भाषण कलाम ने लिखा था। राजा को अपनी गलती का एहसास होता है और वह नई दिल्ली में कलाम को खोजने के राजकुमार को भेजता है। कलाम इंडिया गेट के पास पाया जाता है और राजकुमार उसे वापस घर ले आता है। राजा उसे बताता है कि वह भी राजकुमार के साथ एक ही स्कूल में अध्ययन कर सकता हैं और कलाम की मां को भी वह काम पर रख लेता है। भाटी कलाम की स्कूल की फीस का भुगतान करने के लिए तैयार हो जाताप् है, लेकिन कलाम कहता है कि वह खुद ही अपनी फीस का भुगतान करेगा। अंत में कलाम का सपना सच होता है और वह राजकुमार के साथ स्कूल जाता है। फिल्म इस सन्देश के साथ समाप्त होती है कि "बच्चे न केवल जानकारी के लिए ....बल्कि परिवर्तन के लिए भी स्कूल जाते हैं।" हर्ष मायर छोटू/कलाम के चरित्र में। हसन साद, राजकुमार रणविजय के चरित्र में। गुलशन ग्रोवर ढाबा मालिक बाटी के चरित्र में। बीट्रिस ऑर्डेइक्स (फ्रांसीसी कलाकार) लूसी के चरित्र में। पीतोबाश त्रिपाठी लपटन के चरित्र में।। मीना मीर छोटू की माँ के चरित्र में।। बिस्वजीत बाल सुखा सिंह के चरित्र में। रजत भल्ला पुलिस हवलदार के चरित्र में। गरिमा भारद्वाज रानी सा के चरित्र में। संजय चौहान राजा रुद्र प्रताप सिंह के चरित्र में। एस. डी. चौहान रणविजय का नौकर के चरित्र में। ५ अगस्त २०११ को आई एम कलाम भारत के सिनेमाघरों में प्रदशित की गयी। २९ जुलाई को एक विशेष स्क्रीनिंग दिल्ली स्थित डॉ एपीजे कलाम के आवास पर आयोजित की गयी ताकि उनका आशीर्वाद लिया जा सके। २०१० में बनी हिन्दी फ़िल्म
पनईकुलम (पनाईकुलम) भारत के तमिल नाडु राज्य के रामनाथपुरम ज़िले में एक गाँव है। इन्हें भी देखें तमिल नाडु के गाँव रामनाथपुरम ज़िले के गाँव
यूक्रेन ने पहली बार ओलंपिक खेलों को १९९४ में एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भाग लिया, और तब से एथलीटों ने हर ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों और शीतकालीन ओलंपिक खेलों में प्रतिस्पर्धा करने के लिए भेजा है। पीले-ब्लूज़ के लिए स्वर्ण पदक जीतने वाला पहला एथलीट ओक्साना बाईल था। इससे पहले, आधुनिक यूक्रेन के एथलीट ज्यादातर रूसी साम्राज्य (१९००-१९१२) और १९५२ से १९९२ तक सोवियत संघ के हिस्से के रूप में भाग लेते थे, और सोवियत संघ के विघटन के बाद, १९९२ में यूनिफाइड एथलीट यूनिफाइड टीम का हिस्सा थे। १९९२ में स्वतंत्र यूक्रेन से तातियाना गुत्सु यूनिफाइड टीम का सर्वश्रेष्ठ एथलीट बन गया। ऐतिहासिक रूप से, यूक्रेन के कुछ एथलीट थे जिन्होंने रोमानिया, पोलैंड और अन्य देशों के रंगों का भी बचाव किया था। कृपया ध्यान दें कि सभी एथलीट नेशनल यूक्रेनियन नहीं हैं। स्वतंत्र रूप से, यूक्रेन ने ग्रीष्मकालीन खेलों में कुल मिलाकर ११९ पदक और शीतकालीन खेलों में ७, ग्रीष्मकालीन जिमनास्टिक्स और सर्दियों में बायैथलॉन के साथ राष्ट्र के शीर्ष पदक बनाने वाले खेल के रूप में जीत हासिल की है। यूक्रेन की राष्ट्रीय ओलंपिक समिति १९९० में बनाई गई थी और १९९३ में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा मान्यता प्राप्त थी। ग्रीष्मकालीन खेलों द्वारा पदक शीतकालीन खेलों द्वारा पदक गर्मियों के खेल से पदक सर्दियों के खेल से पदक
धनीगांव, सांरगढ मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़ जिले का एक गाँव है। छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़
पसीणा-घुड०ई, पौडी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा पसीणा-घुड०ई, पौडी तहसील पसीणा-घुड०ई, पौडी तहसील
चन्दामामा बच्चों व युवाओं पर केंद्रित एक लोकप्रिय मासिक पत्रिका है जिसमें भारतीय लोककथाओं, पौराणिक तथा ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित कहानियाँ प्रकाशित होती हैं। १९४७ में इस पत्रिका की स्थापना दक्षिण भारत के नामचीन फिल्म निर्माता बी नागी रेड्डी ने की, उनके मित्र चक्रपाणी पत्रिका के संपादक बने। १९७५ से नागी रेड्डी के पुत्र विश्वनाथ इस का संपादन करते हैं। मार्च २००७ में मुम्बई स्थित सॉफ्टवेयर कंपनी जीयोडेसिक ने पत्रिका समूह का अधिग्रहण कर लिया। जुलाई २००८ में समूह ने अपनी वेबसाईट पर हिन्दी, तमिल व तेलगु में पत्रिका के पुराने अंक उपलब्ध कराने आरंभ किये। इन्हें भी देखें चंदा मामा दूर के देवपुत्र (हिन्दी की अन्य बालपत्रिका) चन्दामामा का जालस्थल
महाराष्ट्र भारत का एक राज्य है जो भारत के पश्चिमी प्रायद्वीपीय क्षेत्र में स्थित है। इसकी गिनती भारत के सबसे धनी एवं समृद्ध राज्यों में की जाती है। महाराष्ट्र शब्द संस्कृत का है जो दो शब्दों द्वारा मिलकर बना है महा तथा राष्ट्र इसका अर्थ होता है महान देश। यह नाम यहाँ के संतों की देन है। इसकी राजधानी मुंबई है जो भारत का सबसे बड़ा शहर और देश की आर्थिक राजधानी के रूप में भी जानी जाती है। और यहाँ का पुणे शहर भी भारत के बड़े महानगरों में गिना जाता है। यहाँ का पुणे शहर भारत का छठवाँ सबसे बड़ा शहर है। महाराष्ट्र की जनसंख्या सन २०११ में ११,२३,७२,९७२ थी, विश्व में सिर्फ़ ग्यारह ऐसे देश हैं जिनकी जनसंख्या महाराष्ट्र से ज़्यादा है। इस राज्य का निर्माण १ मई, १९६० को मराठी भाषी लोगों की माँग पर की गयी थी। यहां मराठी भाषा ज्यादा बोली जाती है। मुंबई, अहमदनगर, पुणे, औरंगाबाद, भोकरदन, कोल्हापूर, नाशिक, नागपुर, ठाणे, शिर्डी, मालेगांव, सोलापुर, अकोला, लातुर, उस्मानाबाद, अमरावती और नांदेड महाराष्ट्र के अन्य मुख्य शहर हैं! ऐसा माना जाता है कि सन १००० ईसा पूर्व से पहले महाराष्ट्र में खेती होती थी लेकिन उस समय मौसम में अचानक परिवर्तन आया और कृषि रुक गई थी। सन् ५०० इसापूर्व के आसपास बम्बई (प्राचीन नाम शुर्पारक, सोपर) एक महत्वपूर्ण पत्तन बनकर उभरा था। यह सोपर ओल्ड टेस्टामेंट का ओफिर था या नहीं इस पर विद्वानों में विवाद है। प्राचीन १६ महाजनपद, महाजनपदों में अश्मक या अस्सक का स्थान आधुनिक अहमदनगर के आसपास है। सम्राट अशोक के शिलालेख भी मुम्बई के निकट पाए गए हैं। मौर्यों के पतन के बाद यहाँ बघेल (गडेरिया) का उदय वर्ष २३० में हुआ। वकटकों के समय अजन्ता गुफाओं का निर्माण हुआ। चालुक्यों का शासन पहले सन् ५५०-७६० तथा पुनः ९७३-११८० रहा। इसके बीच राष्ट्रकूटों का शासन आया था। अलाउद्दीन खिलजी वो पहला मुस्लिम शासक था जिसने अपना साम्राज्य दक्षिण में मदुरै तक फैला दिया था। उसके बाद मुहम्मद बिन तुगलक (१३२५) ने अपनी राजधानी दिल्ली से हटाकर दौलताबाद कर ली। यह स्थान पहले देवगिरि नाम से प्रसिद्ध था और औरंगाबाद के निकट स्थित है। बहमनी सल्तनत के टूटने पर यह प्रदेश गोलकुण्डा के आशसन में आया और उसके बाद औरंगजेब का संक्षिप्त शासन। इसके बाद मराठों की शक्ति में उत्तरोत्तर वुद्धि हुई और अठारहवीं सदी के अन्त तक मराठे लगभग पूरे महाराष्ट्र पर तो फैल ही चुके थे और उनका साम्राज्य दक्षिण में कर्नाटक के दक्षिणी सिरे तक पहुँच गया था। १८२० तक आते आते अंग्रेजों ने पेशवाओं को पूर्णतः हरा दिया था और यह प्रदेश भी अंग्रेजी साम्राज्य का अंग बन चुका था। देश को आजादी के उपरान्त मध्य भारत के सभी मराठी इलाकों का संमीलीकरण करके एक राज्य बनाने की मांग को लेकर बड़ा आंदोलन चला। आखिर १ मई १९६० से कोकण, मराठवाडा, पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिण महाराष्ट्र, उत्तर महाराष्ट्र (खानदेश) तथा विदर्भ, संभागों को एकजुट करके महाराष्ट्र की स्थापना की गई। राज्य के दक्षिण सरहद से लगे कर्नाटक के बेलगांव शहर और आसपास के गावों को महाराष्ट्र में शामील करने के लिए एक आंदोलन चल रहा है। नासिक गजट २४६ ईसा पूर्व में महाराष्ट्र में मौर्य सम्राट अशोक एक दूतावास भेजा जो करने के लिए स्थानों में से एक के रूप में उल्लेख किया है जो बताता है और यह तीन प्रांतों और ९९,००० गांवों सहित के रूप में ५८० आम था की एक चालुक्यों शिलालेख में दर्ज की गई है। नाम राजवंश, पश्चिमी क्षत्रपों, गुप्त साम्राज्य, गुर्जर, प्रतिहार, वकातका, कदाम्बस्, चालुक्य साम्राज्य, राष्ट्रकूट राजवंश और बघेल के शासन से पहले पश्चिमी चालुक्य का शासन था। चालुक्य वंश ८ वीं सदी के लिए ६ वीं शताब्दी से महाराष्ट्र पर राज किया और दो प्रमुख शासकों ८ वीं सदी में अरब आक्रमणकारियों को हराया जो उत्तर भारतीय सम्राट हर्ष और विक्रमादित्य द्वितीय, पराजित जो फुलकेशि द्वितीय, थे। राष्ट्रकूट राजवंश १० वीं सदी के लिए ८ से महाराष्ट्र शासन किया। सुलेमान "दुनिया की ४ महान राजाओं में से एक के रूप में" राष्ट्रकूट राजवंश (अमोघावर्ह) के शासक कहा जाता है। १२ वीं सदी में जल्दी ११ वीं सदी से अरब यात्री दक्कन के पठार के पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य और प्रभुत्व था चोल राजवंश.कई लड़ाइयों पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य और राजा राजा चोल, राजेंद्र चोल, जयसिम्ह द्वितीय, सोमेश्वरा मैं और विक्रमादित्य षष्ठम के राजा के दौरान दक्कन के पठार में चोल राजवंश के बीच लड़ा गया था। जल्दी १४ वीं सदी में आज महाराष्ट्र के सबसे खारिज कर दिया जो बघेल वंश, दिल्ली सल्तनत के शासक आला उद दीन खलजी द्वारा परास्त किया गया था। बाद में, मुहम्मद बिन तुगलक डेक्कन के कुछ हिस्सों पर विजय प्राप्त की और अस्थायी रूप से महाराष्ट्र में बघेल रियासत देवगीरी किसी (दौलताबाद ) के लिए दिल्ली से अपनी राजधानी स्थानांतरित कर दिया। १३४७ में तुगलक के पतन के बाद, गुलबर्ग के स्थानीय बहमनी सल्तनत अगले १५० वर्षों के लिए इस क्षेत्र गवर्निंग, पदभार संभाल लिया है। बहमनी सल्तनत के अलग होने के बाद, १५१८ में, महाराष्ट्र में विभाजित है और पांच डेक्कन सल्तनत का शासन था। अहमदनगर अर्थात् निज़ाम्शा, बीजापुर के आदिलशाह, गोलकुंडा की कुतुब्शह्, बिदर की बरीदशाही, एलिचपूर ( अचलपूर ) या बेरार ( विदर्भ ) की इमादशाही। इन राज्यों में अक्सर एक दूसरे के बीच लड़ा। संयुक्त, वे निर्णायक १५६५ में दक्षिण के विजयनगर साम्राज्य को हरा दिया।महाराष्ट्र में चंद्रपुर,नागपुर नगर गोंड राजा बख्त बुलंद शाह द्वारा बसाया गया और कई वर्षो तक सफल शासन किया।यहां गोंड राजाओं द्वारा निर्मित कई भव्य ऐतिहासिक इमारतें उस दौर की याद दिलाती है। इसके अलावा मुंबई के वर्तमान क्षेत्र १५३५ में पुर्तगाल से कब्जा करने से पहले गुजरात की सल्तनत का शासन और फारुखि वंश मुग़ल विलय से पहले १३८२ और १६०१ के बीच खानदेश क्षेत्र पर शासन किया था। मलिक अंबर १६०७-१६२६ अहमदनगर के निजामशाही राजवंश के रीजेंट था। इस अवधि के दौरान उन्होंने मुर्तजा निजाम शाह की ताकत और शक्ति में वृद्धि हुई है और एक बड़ी फौज खड़ी। मलिक अंबर डेक्कन क्षेत्र में छापामार युद्ध का प्रस्तावक से एक होने के लिए कहा है। मलिक अंबर सिंहासन पर उसके दामाद कानून के बैठने की महत्त्वाकांक्षा थी जो उसकी सौतेली माँ, नूरजहाँ, से दिल्ली में शाहजहां कुश्ती शक्ति की सहायता की। १७ वीं सदी तक, शाहजी भोसले, मुगलों और बीजापुर के आदिल शाह की सेवा में एक महत्वाकांक्षी स्थानीय सामान्य, उसकी स्वतंत्र शासन स्थापित करने का प्रयास किया। उनके पुत्र शिवाजीराजे भोसले ने मराठा साम्राज्य की नींव डाल दी और एक विशाल साम्राज्य खडा किया। उनके पश्चात मराठा रियासत के सरदार बड़ौदा के गायकवाड़, इंदौर के होळकर, ग्वालियर के शिंदे और पेशवाओं (प्रधानमंत्रियों) द्वारा विस्तार किया गया था। उन्होंने मुगलोंको परास्त किया और भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी और मध्य भागों में बड़े प्रदेशों पर विजय प्राप्त की। १७६१ में पानीपत की तीसरी लड़ाई में हार के बाद मराठा उनकी सर्वोच्चता बहाल और अठारहवीं सदी के अंत तक नई दिल्ली सहित मध्य और उत्तर भारत पर शासन किया। तीसरे एंग्लो मराठा युद्ध (१८१७-१८१८) १८१९ में देश पर शासन मराठा साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कंपनी का अंत करने के लिए नेतृत्व किया। ब्रिटिश उत्तरी डेक्कन को पाकिस्तान में कराची से एक क्षेत्र में फैला है जो मुंबई प्रेसीडेंसी के हिस्से के रूप में इस क्षेत्र शासित. मराठा राज्यों की संख्या में ब्रिटिश आधिपत्य को स्वीकार करने के लिए बदले में स्वायत्तता को बनाए रखना है, रियासतों के रूप में कायम है। वर्तमान में महाराष्ट्र के क्षेत्र में सबसे बड़ी रियासतों नागपुर, सातारा और कोल्हापुर थे, सातारा १८४८ में बॉम्बे प्रेसीडेंसी को कब्जे में लिया गया था और नागपुर प्रांत, मध्य प्रांतों के बाद के हिस्से बनने के लिए १८५३ में कब्जा कर लिया था। हैदराबाद के राज्य के निजाम का हिस्सा है, १८५३ में अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया और १९०३में मध्य प्रांत को कब्जे में लिया गया था किया गया था जो बरार। हालांकि, मराठवाड़ा प्रदेश वर्तमान में महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा है, ब्रिटिश काल के दौरान निजाम हैदराबाद राज्य का हिस्सा बना रहा। ब्रिटिश शासन के कारण उनके भेदभावपूर्ण नीतियों के सामाजिक सुधारों और बुनियादी सुविधाओं के साथ ही विद्रोह में सुधार के द्वारा चिह्नित किया गया था। २० वीं सदी की शुरुआत में, आजादी के लिए संघर्ष बाल गंगाधर टिलक और विनायक दामोदर सावरकर जैसे चरमपंथियों और जस्टिस महादेव गोविंद रानडे, गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता और दादाभाई नौरोजी जैसे नरमपंथियों के नेतृत्व में आकार ले लिया। १९४२ में भारत छोड़ो आंदोलन के क्षेत्र में एक अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन और हमलों द्वारा चिह्नित किया गया था जो गांधी द्वारा बुलाया गया था। 'भारत छोड़ो' के लिए अंग्रेजों को अल्टीमेटम मुंबई में दी गई और सत्ता के हस्तांतरण और १९४७ में भारत की आजादी में हुआ था। बी जी खेर त्रिकोणीय बहुभाषी मुंबई प्रेसीडेंसी के पहले मुख्यमंत्री थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद, कोल्हापुर सहित डेक्कन राज्य अमेरिका, १९५० में पूर्व मुंबई प्रेसीडेंसी से बनाया गया था जो बम्बई राज्य में एकीकृत कर रहे थे। १९५६ में, राज्य पुनर्गठन अधिनियम भाषायी तर्ज पर भारतीय राज्यों को पुनर्गठित किया और मुंबई प्रेसीडेंसी राज्य मध्य प्रांत और बरार से तत्कालीन हैदराबाद राज्य और विदर्भ क्षेत्र से मराठवाड़ा (औरंगाबाद डिवीजन) के मुख्य रूप से मराठी भाषी क्षेत्रों के अलावा द्वारा बढ़ा दिया गया है। इसके अलावा, मुंबई राज्य के दक्षिणी भाग मैसूर एक को सौंप दिया गया था। १९५४-१९५५ से महाराष्ट्र के लोगों को दृढ़ता से द्विभाषी मुंबई राज्य के खिलाफ विरोध और डॉ॰ गोपालराव खेडकर के नेतृत्व में संयुक्त महाराष्ट्र समिति का गठन किया गया था। महागुजराथ् आंदोलन भी अलग गुजरात राज्य के लिए शुरू किया गया था। गोपालराव खेडकर, एस.एम. जोशी, एस.ए. डांगे, पी.के. अत्रे और अन्य नेताओं को अपनी राजधानी के रूप में मुंबई के साथ महाराष्ट्र का एक अलग राज्य के लिए लड़ाई लड़ी। १ मई १९६० को, बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और १०५, मानव का बलिदान निम्नलिखित अलग मराठी बोलने वाले राज्य महाराष्ट्र और गुजरात के नए राज्यों में पहले मुंबई राज्य को विभाजित करके बनाई गई थी रहती है। मराठी के कुछ विलय के स्थानीय लोगों की मांग अर्थात् बेलगाम, कारवार और नीपानी अभी भी प्रलंबीत है। यह कुल मिलाकर ८४० गाँव है जो कर्नाटक छोडकर महाराष्ट्र में शामिल होना चाहते हैं। भूगोल और जलवायु महाराष्ट्र का अधिकतम भाग बेसाल्ट खडकों का बना हुआ है। इसके पश्चिमी सीमा से अरब सागर है। इसके पड़ोसी राज्य गोवा, कर्नाटक, तेलंगना, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात है। महाराष्ट्र भारत देश के कुल क्षेत्रफल का ९.३६ % क्षेत्रफल में फैला हुआ है। और महाराष्ट्र की सबसे उच्ची चोटी कलसुबाई शिखर है। जिसकी उच्चाई १६४६ मीटर (५४०० फिट) है। महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई है और नागपूर इसकी उपराजधानी हे। क्षेत्र, संभाग और ज़िले महाराष्ट्र में छः प्रशासनिक विभाग (संभाग) हैं: राज्य के छः विभाग आगे और ३६ ज़िलों, १०९ उपविभागों, और महाराष्ट्र के तालुके - ३५८=३५५+३ (मुंबई उपनगर जिल्हेमे अंधेरी,कुर्ला,बोरिवली ये तीन तालुके प्रशासकीय सोय के लिये बनाये गये है।) मुख्य ३५५ तालुकाओं में विभाजित हैं। महाराष्ट्र में ३६ जिले हैं - मुंबई उपनगर जिला (सबअर्बन) इन्हें भी देखें महाराष्ट्र के लोकसभा सदस्य महाराष्ट्र में धर्म सरकार का आधिकारिक जालस्थल महाराष्ट्र राज्य का ई-सेवा पोर्टल महाराष्ट्र का इतिहास महाराष्ट्र की कला, साहित्य, सैरसपाटा, क्रिडा एवम मनोरंजन की जानकारी महाराष्ट्र प्राईम जालस्थल महाराष्ट्र से संबंधित सरकारी जालस्थलों की सूची महाराष्ट्र पर्यटन का आधिकारिक जालस्थल मराठी संगीत का जालस्थल भारत के राज्य १९६० स्थापनाएँ भारत में १९६० में स्थापित राज्य और क्षेत्र
खगोलजीव विज्ञान पूरे ब्रह्माण्ड में जीवन के शुरुआत, फैलाव, क्रम विकास और भविष्य के अध्ययन को कहते हैं। विज्ञान का यह क्षेत्र कई कठिन प्रश्नों का जवाब देने की कोशिश करता है, मसलन - पृथ्वी के आलावा जीवन कहीं पनप सकता है? यदि हाँ, तो उसे कहाँ खोजा जाए? क्या अन्य प्रकार के जीवन हमसे इतने भिन्न होंगे के हम यह पहचान ही न पाए के वह जीवित है? पृथ्वी पर जीवन कैसे आरम्भ हुआ? रसायन के मिश्रणों से जीवों के शरीर बने होते हैं। रसायन कब और कैसे केवल रसायन न रहकर जीव बन जाते हैं? अलग-अलग वातावरणों में जीवन कैसे पनप सकता है? पृथ्वी को छोड़कर क्या पृथ्वी के जीव अन्य स्थानों पर फल-फूल सकते हैं? अभी तक वैज्ञानिकों को केवल एक ही ग्रह ज्ञात है जिसपर जीवन है: पृथ्वी। इस वजह से केवल इसी एक उदहारण से प्रेरित होकर वह ऐसे अन्य स्थानों की कल्पना करते आए हैं जहाँ जीवन संभव हो। हाल ही में खोजे गए ग़ैर-सौरीय ग्रहों से हमारे सूरज के अलावा अन्य तारों के वासयोग्य क्षेत्रों में भी ग्रहों के मिलने की उम्मीदें जागी हैं, जिस से यह लग रहा है के खगोलजीव विज्ञान संभवतः एक नए दौर की दहलीज़ पर हो सकता है। अन्य भाषाओँ में "खगोलजीव विज्ञान" को अंग्रेज़ी में "ऐस्ट्रोबायॉलॉजी" (एस्ट्रोबायोलॉजी) कहते हैं। पृथ्वी पर जीवन का अध्ययन करके वैज्ञानिकों को एक परिस्थितियों की सूची तो मिल गयी है जो जीवन के अनुकूल है। इसमें कार्बन ज़रूरी माना जाता है क्योंकि इसके परमाणुओं में लम्बे-लम्बे अणु बनाने की क्षमता है। वैसे तो वैज्ञानिक अन्य तत्वों का भी जीवन का आधार बनाने की कल्पना करते हैं लेकिन कार्बन यह भूमिका बहुत सहजता से निभाता है। पानी की मौजूदगी भी ज़रूरी मानी जाती है क्योंकि इसमें तरह-तरह के रसायान मिश्रित हो सकते हैं। इसका अर्थ है के जीवन के लिए ग्रह न तो इतना गरम होना चाहिए के पानी सिर्फ भाप के रूप में ही हो और न ही इतना सर्द के सिर्फ़ बर्फ़ ही के रूप में मिले। इन बातों को नज़र में रखते हुए अभी तक वैज्ञानिक सूरज जैसे तारों को ही जीवन-योग्य ग्रहों का रक्षक मानते थे, लेकिन हाल में लाल बौने तारों के इर्द-गिर्द भी पृथ्वी जैसे ग्रहों के मिलने की संभावनाएं दिखने लगी हैं क्योंकि ऐसे तारे बहुत लम्बे कालो के लिए अपने इर्द-गिर्द के ग्रहीय मंडलों में स्थाई परिस्थितियाँ रख सकते हैं। यह एक बहुत ही अहम खोज है क्योंकि सूरज-जैसे तारे ब्रह्माण्ड में कम प्रतिशत में मिलते हैं, जबकि लाल बौने तारों की तादाद बहुत ही ज्यादा है। अगर अन्य ग्रहों पर जीवन कार्बन और पानी पर आधारित भी हो, यह नहीं कहा जा सकता के उनके शरीरों में भी कोशिकाएँ (सेल) होंगी जिन्हें बनाने के नियम पृथ्वी के जीवों की तरह डी॰ऍन॰ए॰ पर आधारित होंगे। यह संभव है के उन जीवों में कोई और व्यवस्था आधार हो। चरमपसंदी जीवों से प्रेरणा जैसे-जैसे पृथ्वी पर जीवों के फैलाव के बारे में जानकारी बढ़ी है, वैज्ञानिकों को ऐसी जगहों पर चरमपसंदी जीव फलते-फूलते हुए मिले हैं जहाँ कभी जीवन ना-मुमकिन समझा जाता था। कभी सोचा जाता था के गहरे समुद्र के तहों की खाइयों के भयंकर दबाव में जीव नहीं रह सकते। यह भी सोचा जाता था के बहुत अधिक तापमान (६० सेंटीग्रेड से ज़्यादा) में भी जीव नहीं रह सकते। लेकिन पिछले कुछ दशकों में वैज्ञानिकों ने गहरे समुद्र में ज्वालामुखीय गर्मी से खौलते हुए पानी और गैस के फव्वारे पाए हैं जिनमें चरमपसंदी जीवाणु पनप रहे हैं। खगोलशास्त्रियों का विशवास है के सौर मंडल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति के प्राकृतिक उपग्रह यूरोपा की बर्फीली सतह के नीचे एक पानी का समुद्र है जिसे बृहस्पति का भयंकर ज्वारभाटा बल गूंथता रहता है। संभव है वहाँ भी ऐसे गर्म पानी के क्षेत्र और उनमें पनपते सूक्ष्मजीव हों। इसी तरह समझा जाता था के खुले अंतरिक्ष के व्योम में और विकिरण-ग्रस्त (यानी रेडियेशन से भरपूर) वातावरण में जीव नहीं रह सकते, क्योंकि इनमें उनकी कोशिकाएँ फट जाती हैं और उनका डी॰ऍन॰ए॰ ख़राब हो जाता है। लेकिन अब राइज़ोकार्पन ज्योग्रैफ़िकम (पर्वतों पर पत्थरों पर उगने वाली एक किस्म की लाइकेन काई) जैसे जीव पाए जा चुके हैं जो अंतरिक्ष यान द्वारा व्योम में ले जाए गए और १५ दिनों के बाद पृथ्वी पर वापस लाने पर ज़िन्दा पाए गए। इस से वैज्ञानिकों को अब यह भी शंका होने लगी है के संभव है के जीव उल्कापिंडों द्वारा एक ग्रह से दुसरे ग्रह तक फैल सकें। कुछ वैज्ञानिक तो यहाँ तक सोचते हैं के शायद पृथ्वी पर जीवन शुरू में इसी तरह किसी और ग्रह से आया हो। इस कल्पना में किसी अन्य ग्रह पर (संभवतः मंगल पर) कभी जीवाणु रहें हो सकते है जबकि पृथ्वी किसी भी जीवन से महरूम थी। फिर मंगल पर एक बड़ा उल्कापिंड पड़ा जिस से मंगल की कुछ बड़ी चट्टानें उड़कर अंतरिक्ष में चली गई और उनमें से कुछ पृथ्वी की ओर भी निकलीं। जब यह पृथ्वी के पास पहुँची तो पृथ्वी ने अपने गुरुत्वाकर्षण से उन्हें खींच लिया और वे स्वयं उल्कापिंड बनकर पृथ्वी पर गिरीं। इनमें कुछ जीवाणु जीवित बच गए जिन्हें पृथ्वी का वातावरण अनुकूल लगा और वे फैलने लगे। अन्य वैज्ञानिक इस कल्पना में बहुत से नुक्स निकलकर इसे असंभव कहते हैं। विवाद जारी है। इन्हें भी देखें हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
मांधाता विधानसभा क्षेत्र मध्य भारत में मध्य प्रदेश राज्य के २३० विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। यह खंडवा (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) का एक खंड है। यह खंडवा जिले के अन्तर्गत आता है। विधानसभा के सदस्य २०१८: नारायण पटेल, कांग्रेस २०१३: लोकेंद्रसिंह तोमर, भाजपा २००८: लोकेंद्रसिंह तोमर, भाजपा १९९८: राजनारायण सिंह पूर्णी, कांग्रेस १९९३: रघुराजसिंह तोमर, भाजपा १९९०: रघुराजसिंह तोमर, भाजपा १९८५: राजनारायण सिंह पूर्णी, कांग्रेस १९८०: रघुराजसिंह तोमर, भाजपा १९७७: रघुराजसिंह तोमर, भाजपा १९७२: रघुनाथ मंडलोई, भाजपा १९६७: राधाकिशन भगत, (निर्दली) २०१८ विधानसभा चुनाव इन्हें भी देखें मध्य प्रदेश के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र
पीपरावान नौबतपुर, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है। पटना जिला के गाँव
पाली फूलपुर, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। इलाहाबाद जिला के गाँव
समजातीय श्रेणी (होमोलागोस सिरीज) यौगिकों की ऐसी श्रेणी को कहते हैं, जिनको एक सामान्य सूत्र द्वारा निरूपित किया जा सके। ऐसे सामान्य सूत्रों में प्रायः केवल एक ही प्राचल (पैरामीटर) होता है। उदाहरण के लिये, अल्केन एक समजातीय श्रेणी है जिसमें मिथेन, इथेन, प्रोपेन,ब्यूटेन आदि यौगिक आते हैं। इसका सामान्य सूत्र आँह२न+२ है।
अलादासपुर कायमगंज, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। गाँव, अलादासपुर, कायमगंज
यह भारत के पूर्वोत्तर राज्य मेघालय की राजधानी, शिलांग में स्थित शैक्षणिक संस्थानों की सूची है: पूर्वोत्तर इंदिरा गांधी क्षेत्रीय स्वास्थ्य एवं चिकित्सा संस्थान भारतीय प्रबंधन संस्थान राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान राष्ट्रीय फैशन टेक्नालॉजी संस्थान, शिलांग पूर्वोत्तर आयुर्वेद एवं होम्योपैथी संस्थान लेडी कीन कॉलेज रेड लाबान कॉलेज सेंट एन्थोनीज़ कॉलेज सेंट एड्मण्ड्ज़ कॉलेज *एड लबान कालेज, शिलांग लेडी कियाने कालेज, शिलांग सेंट एन्थोनी कालेज, शिलांग सेंट एड्मंड कालेज, शिलांग सेंट मैरी कालेज, शिलांग शंकरदेव कालेज, शिलांग सेंग खासी कालेज, शिलांग शिलांग कामर्स कालेज चेरापुंजीड कालेज, शिलांग वूमेन्स कालेज, शिलांग शिलांग लॉ कालेज पूर्वोत्तर इंदिरा गांधी क्षेत्रीय स्वास्थ्य एवं चिकित्सा संस्थान अंग्रेजी और विदेशी भाषाओ का केन्द्रीय संस्थान पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय (नेहू) मार्टिन लूथर क्रिश्चियन युनिवर्सिटी, मेघालय टेक्नो ग्लोबल विश्वविद्यालय प्रौद्योगिकी एवं प्रबंधन विश्वविद्यालय (यूएसटीएम) विलियम कैरे विश्वविद्यालय शिलांग में शिक्षा
विश्वास की प्रतिमा या विश्वास स्वरूपम राजस्थान के नाथद्वारा में निर्मित हिंदू भगवान शिव की एक मूर्ति है। इस प्रतिमा का उद्घाटन २९ अक्टूबर २०२२ को किया गया था। वर्तमान में, विश्वास की प्रतिमा विश्व में भगवान शिव की सबसे ऊँची प्रतिमा है। इस प्रतिमा में शिव अपने पैरों को मोड़कर बैठे हुए हैं और अपने बाएँ हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए दर्शाया गया है। शिव का बायाँ पैर उनके दाहिने पैर के घुटने के ऊपर है। चेहरे का भाव ध्यानपूर्ण मुद्रा में दिखाई पड़ता है। "भगवान शिव" किस इस प्रतिमा में एक विशिष्ट तांबे की छटा है। इसमें दो सुविधाजनक बिंदु हैं जो आसपास के ग्रामीण इलाकों का मनोरम दृश्य पेश करते हैं। शिव प्रतिमा को २०११ में बनाना शुरू किया गया था, जो की २०१६ में बनाया गया और २०२० में ही पूरा बन कर लोगों के दर्शन के लिए तैयार हुआ। समग्र प्रतिमा ३६९ फीट (११२ मीटर) ऊंची है; और भगवान शिव का सिंहासन ११० फीट (३४ मीटर) ऊँची है। इस प्रतिमा को २० किलोमीटर (१२ मील) दूर से देखा जा सकता है। प्रतिमा के आंतरिक भाग में एक भव्य गर्भगृह के साथ-साथ २० फीट (६.१ मीटर), ११0 फीट (३४ मीटर), और २७० फीट (८२ मीटर) पर सार्वजनिक दर्शक दीर्घाएँ हैं। इस दीर्घाओं में महादेव की सवारी नंदी बैल की एक मूर्ति है, जिसकी ऊंचाई २५ फीट (७.६ मीटर) और लंबाई 3७ फीट (११ मीटर) है। १६ एकड़ के मैदान में वाहन एकत्रित करने की सुविधा, तीन प्रकृति उद्यान, एक भोजनालय, एक लेजर फव्वारा और हस्तशिल्प दुकानों के लिए एक बड़ा क्षेत्र, देखने के मंच, संगीतमय फव्वारे, स्मारिका दुकानें और एक तालाब भी शामिल है। त्वरित स्थानीय दर्शनीय स्थलों की यात्रा के लिए बगल में ही एक मिनी ट्रेन स्थापित है। इस प्रतिमा की कल्पना भारतीय व्यवसायी मदन पालीवाल ने की थी और इसका निर्माण शापूरजी पालोनजी ने किया था। विश्वास की प्रतिमा की मूर्ति 'कुमावत नरेश' ने बनाई थी। इसकी संरचना में प्रबलित सीमेंट कंक्रीट की दीवारों का एक आंतरिक भाग बनाया गया जो एक संरचनात्मक स्टील ढांचे से घिरा होता था जो स्वयं एक ढले हुए उच्च-प्रदर्शन वाले कंक्रीट बाहरी भाग से घिरा होता था। सतह पर तरलकृत जस्ते का छिड़काव किया गया, फिर तांबे से लेपित किया गया था।
जगदम्बा प्रसाद,भारत के उत्तर प्रदेश की तीसरी विधानसभा सभा में विधायक रहे। १९६२ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के १३५ - सुरहुरपुर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय की ओर से चुनाव में भाग लिया। उत्तर प्रदेश की तीसरी विधान सभा के सदस्य १३५ - सुरहुरपुर के विधायक फैजाबाद के विधायक निर्दलीय के विधायक
सौंदा (सौंदा) भारत के झारखण्ड राज्य के रामगढ़ ज़िले में स्थित एक नगर है। इन्हें भी देखें झारखंड के शहर रामगढ़ ज़िले के नगर
थापला, भिकियासैण तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा थापला, भिकियासैण तहसील थापला, भिकियासैण तहसील
भद्रवाही भाषा (भादरवाही लैंग्वेज) भारत के जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के डोडा ज़िले में बोली जाने वाली एक पहाड़ी भाषा है। यह डोगरी भाषा के बहुत समीप है और इसे कभी-कभी उसकी उपभाषा भी समझा जाता है। इसका नाम डोडा ज़िले के भद्रवाह शहर पर पड़ा है, हालांकि यह पूरे ज़िले में बोली जाती है। इसकी स्वयं कुछ अपनी उपभाषाएँ हैं, जिनमें भलेसा तहसील में बोली जाने वाली भलेसी भाषा भी है। इन्हें भी देखें जम्मू और कश्मीर की भाषाएँ
वीरा सिम्हा रेड्डी गोपीचंद मालिनेनी द्वारा लिखित और निर्देशित और मिथरी मूवी मेकर्स द्वारा निर्मित एक २०२३ भारतीय तेलुगु भाषा की एक्शन ड्रामा फिल्म है। इसमें नंदमुरी बालकृष्ण दोहरी भूमिका में हैं, जिसमें श्रुति हासन, वरलक्ष्मी सरथकुमार, हनी रोज और दुनिया विजय हैं। फिल्म स्कोर और साउंडट्रैक एस थमन द्वारा रचित थे। प्रिंसिपल फोटोग्राफी फरवरी २०२२ में शुरू हुई और दिसंबर २०२२ में समाप्त हुई। वीरा सिम्हा रेड्डी १२ जनवरी २०२३ को संक्रांति सप्ताहांत पर रिलीज़ हुई थी। फिल्म को आलोचकों से मिश्रित समीक्षा मिली और बॉक्स-ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया, जिसने दुनिया भर में १३४ करोड़ की कमाई की। फिल्म की आधिकारिक घोषणा जून २०२१ में मिथरी मूवी मेकर्स द्वारा नंदमुरी बालकृष्ण अभिनीत और गोपीचंद मालिनेनी द्वारा निर्देशित एनबीके १०७ के कामकाजी शीर्षक के साथ की गई थी। फिल्म को औपचारिक रूप से १३ नवंबर २०२१ को एक पूजा समारोह के साथ लॉन्च किया गया था। फिल्म की शूटिंग २०२२ की पहली तिमाही तक शुरू होने की खबर थी। फिल्म की मुख्य फोटोग्राफी १८ फरवरी २०२२ को सिरसिला में शुरू हुई और दिसंबर २०२२ में समाप्त हुई। अक्टूबर २०२२ में, फिल्म का आधिकारिक शीर्षक वीरसिम्हा रेड्डी के रूप में अनावरण किया गया था। थमन एस ने इस फिल्म के लिए संगीत तैयार किया है। "जय बलय्या" शीर्षक वाला पहला गीत २६ नवंबर २०२२ को जारी किया गया था। "सुगुणा सुंदरी" नामक दूसरा गीत १५ दिसंबर २०२२ को जारी किया गया था। "मा बावा मनोभावुलु" शीर्षक वाला तीसरा गीत २४ दिसंबर २०२२ को जारी किया गया था। "मास मोगुडु" नामक चौथा गीत ९ जनवरी २०२३ को जारी किया गया था। वीरा सिम्हा रेड्डी १२ जनवरी २०२३ को संक्रांति सप्ताहांत के लिए रिलीज़ हुई। फिल्म के नाट्य अधिकार ७३ करोड़ की लागत से बेचे गए थे। फिल्म के डिजिटल स्ट्रीमिंग अधिकार डिज़्नी+ हॉत्स्टार द्वारा १४ करोड़ में अधिग्रहित किए गए थे, और २३ फरवरी 20२३ को प्रीमियर किया गया था इसका प्रीमियर २३ अप्रैल 20२३ को स्टार मां पर टेलीविजन पर किया गया था भारतीय एक्शन फ़िल्में भारतीय एक्शन ड्रामा फ़िल्में २०२३ की फ़िल्में
पुछडी लगा काण्डई, सतपुली तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा काण्डई, पुछडी लगा, सतपुली तहसील काण्डई, पुछडी लगा, सतपुली तहसील
मनमोतयां कोंकणी भाषा के विख्यात साहित्यकार तुकाराम रामा शेट द्वारा रचित एक निबंध-संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् २०१३ में कोंकणी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत कोंकणी भाषा की पुस्तकें
इतालवी पूर्वी अफ्रीका, आओई) अफ्रीका के हॉर्न में एक इतालवी उपनिवेश था। इसका गठन १९३६ में इतालवी सोमालिया, इतालवी इरिट्रिया, और नए कब्जे वाले इथियोपियाई साम्राज्य के विलय के माध्यम से हुआ था, द्वितीय इटालो-इथियोपियाई युद्ध में विजय प्राप्त की। इतालवी पूर्वी अफ्रीका को छह राज्यपाल में विभाजित किया गया था। इरिट्रिया और सोमालिया, १८८० के दशक से इतालवी संपत्ति, कब्जा किए गए इथियोपियाई क्षेत्र के साथ बढ़े हुए थे और इरिट्रिया और सोमालिया राज्यपाल बन गए। "इतालवी इथियोपिया" के शेष में हरार, गल्ला-सिदामो, अम्हारा, और [[सियोआ गवर्नेंटेट] शामिल थे। ]एस। फ़ासीवादी औपनिवेशिक नीति में एक फूट डालो और जीतो विशेषता थी, और सोमाली और तिग्रेयान लोगों को अम्हारा लोगों के साथ अपने संबंधों को कमजोर करने के प्रयास में समर्थन दिया। जो इथियोपियाई साम्राज्य में सत्तारूढ़ जातीय समूह था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, इतालवी पूर्वी अफ्रीका कब्जा किया गया एक ब्रिटिश के नेतृत्व वाली सेना द्वारा [[ब्रिटिश साम्राज्य सहित] द्वितीय विश्व युद्ध में|औपनिवेशिक इकाइयों]] और इथियोपियाई गुरिल्ला नवंबर १९४१ में। युद्ध के बाद, इतालवी सोमालिया और इरिट्रिया ब्रिटिश प्रशासन के अधीन आ गए, जबकि इथियोपिया ने अपनी स्वतंत्रता हासिल कर ली। १९५० में, कब्जे वाले सोमालिया संयुक्त राष्ट्र सोमालीलैंड का ट्रस्ट क्षेत्र बन गया, १९५० से १९६० में अपनी स्वतंत्रता तक इटली द्वारा प्रशासित। अधिकृत इरिट्रिया १९५२ में एक इथियोपिया का स्वायत्त हिस्सा बन गया, मई १९९१ में वास्तविक स्वतंत्रता प्राप्त कर रहा था, और १९९३ में पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त कर रहा था। इरित्रिया का इतिहास इथियोपिया का इतिहास अफ़्रीका का सींग
ट्रेसी ऑस्टिन (जन्म: १२ दिसंबर, १९६२) टेनिस की अमरीका की भूतपूर्व खिलाड़ियों में से एक हैं। महिला टेनिस खिलाड़ी टेनिस ग्रैंड स्लैम विजेता महिला टेनिस ग्रैंड स्लैम विजेता अमरीकी ओपन विजेता
मृगांक सूर (जन्म १९५३ फतेहगढ़) भारत के एक तंत्रिकावैज्ञानिक हैं। वे वे एमआईटी के साइमन सेन्टर फॉर सोसल ब्रेन के निदेशक एवं तंत्रिकाविज्ञान के न्यूटन प्रोफेसर हैं।
नो टाइम टू डाई () एक आगामी जासूसी फिल्म है और जेम्स बॉन्ड श्रृंखला में २५वीं किस्त के रूप में मेट्रो-गोल्डविन-मेयर और यूनिवर्सल पिक्चर्स के लिए ईऑन प्रोडक्शंस द्वारा निर्मित की जाएगी। फिल्म में मी६ एजेंट जेम्स बॉन्ड के रूप में अपने ५वें प्रदर्शन में डैनियल क्रेग शामिल हैं। इस फिल्म का निर्देशन कैरी जोजी फुकुनागा द्वारा किया गया है, जिन्होंने नील पुरविस और रॉबर्ट वेड के शुरुआती मसौदे के आधार पर स्कॉट जेड बर्न्स और फोएब वालर-ब्रिज के साथ पटकथा लिखी थी। राल्फ़ फ़िएनेस, नोमी हैरिस, बेन व्हिस्वा, जेफ्री राइट, और ली सेडॉक्स ने पिछली फ़िल्मों से अपनी-अपनी भूमिकाओं को फिर से निभाया, जबकि अभिनेता रामी मालेक, अना अरमास, लशाना लिंच, डेविड डेंसिक, डाली बेन्सालाह और बिली मैग्नेसेन ने अभिनय किया। मुख्य कलाकार। स्पेक्टर के बाद श्रृंखला की कोलंबिया पिक्चर्स के अनुबंध की समाप्ति के बाद, यूनिवर्सल पिक्चर्स द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वितरित की जाने वाली फ्रेंचाइजी में यह पहली फिल्म होगी। जेम्स बॉन्ड फ़िल्में २०२१ की फ़िल्में
चक मलूक , पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चकवाल ज़िले का एक कस्बा और यूनियन परिषद् है। यहाँ बोले जाने वाली प्रमुख भाषा पंजाबी है, जबकि उर्दू प्रायः हर जगह समझी जाती है। साथ ही अंग्रेज़ी भी कई लोगों द्वारा काफ़ी हद तक समझी जाती है। प्रभुख प्रशासनिक भाषाएँ उर्दू और अंग्रेज़ी है। इन्हें भी देखें पाकिस्तान के यूनियन काउंसिल पाकिस्तान में स्थानीय प्रशासन चकवाल जिले के यूनियन परिषदों की सूची पाकिस्तान ब्यूरो ऑफ़ स्टॅटिस्टिक्स की आधिकारिक वेबसाइट-१९९८ की जनगणना(जिलानुसार आँकड़े) चकवाल ज़िले के यूनियन परिषद् पाकिस्तानी पंजाब के नगर
श्रीलंका में, शृंखला में ईलम तमिल (श्रीलंकाई तमिल) का उपयोग श्रीलंका के तमिलों को उनके आनुवंशिक मूल के साथ संदर्भित करने के लिए किया जाता है। इस संदर्भ में श्रीलंका के आधिकारिक दस्तावेजों में भी शृंखला का उपयोग किया जाता है। उन्हें श्रीलंकाई तमिल भी कहा जाता है। ब्रिटिश के दौरान नियम, 'श्रृंखला परम्परा तमिलर' से अलग करने के लिए उपयोग किया गया भारतीय तमिलों जिन्होंने तमिलनाडु से लाया गया था और में बसे कॉफी और चाय बागानों। श्रीलंकाई तमिल, जो सदियों से श्रीलंका के उत्तर पूर्वी प्रांतों में बहुमत में रह रहे हैं, श्रीलंका के अन्य हिस्सों में भी अल्पसंख्यक के रूप में रह रहे हैं। सामान्य अर्थों में, सभी श्रीलंकाई तमिल जो श्रीलंका के नागरिक हैं, उन्हें श्रीलंकाई तमिलों से प्यार करना चाहिए, लेकिन श्रीलंका के मामले में, तमिल भाषी श्रीलंकाई मुसलमान भाषायी रूप से अपनी पहचान नहीं रखते हैं। उन्हें श्रीलंकाई मुसलमानों के रूप में वर्गीकृत करने की प्रथा है। इस प्रकार तमिल भाषी मुस्लिम और पहाड़ी तमिल जिन्होंने हाल ही में श्रीलंका को अपनी मातृभूमि के रूप में अपनाया है, उन्हें श्रीलंकाई तमिलों की श्रेणी में शामिल नहीं किया गया है। यद्यपि क्षेत्र, जाति, धर्म आदि सहित विभिन्न पहलुओं में श्रीलंकाई तमिलों के बीच मतभेद हैं, वे भाषा और कई अन्य कारकों के मामले में श्रीलंका में अन्य जातीय समूहों से एक ही समूह के रूप में पाए जाते हैं। १९४८ में श्रीलंका को अंग्रेजों से आजाद कराने के बाद से तमिलों और सिंहली के बीच संघर्ष चल रहा है। राजनीतिक अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण संघर्ष १९८३ के बाद गृहयुद्ध में बदल गया, कई श्रीलंकाई तमिल भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और कई यूरोपीय देशों में रहकर श्रीलंका से भाग गए। लगभग एक तिहाई श्रीलंकाई तमिलों ने श्रीलंका छोड़ दिया है और दूसरे देशों में रह रहे हैं। कुछ अनुमानों ने संख्या को ८००,००० से अधिक बताया है। इसके अलावा, एक लाख से अधिक श्रीलंकाई तमिलों ने गृहयुद्ध में अपनी जान गंवाई है। हालांकि २००९ में युद्ध के अंतिम चरण में श्रीलंकाई सरकार की जीत की तलाश में बड़े पैमाने पर हताहतों और संपत्ति के नुकसान के बीच युद्ध समाप्त हो गया, श्रीलंकाई तमिलों की मूलभूत समस्याएं अनसुलझी हैं। श्रीलंकाई तमिलों की उत्पत्ति के बारे में विद्वानों में कोई सहमति नहीं है। इसका मुख्य कारण उचित साक्ष्य का अभाव है। एक अन्य उल्लेखनीय कारण नस्लीय भावना के राजनीतिक संदर्भ के बीच में विद्वानों की विफलता है। इसके अलावा आरोप हैं कि श्रीलंकाई सरकार राजनीतिक कारणों से श्रीलंकाई तमिल क्षेत्रों में उचित खुदाई की अनुमति नहीं दे रही है। श्रीलंका के इतिहास को बताने वाली प्राचीन पुस्तक महावमिसम श्रीलंकाई पारंपरिक तमिलों की उत्पत्ति को जानने के लिए कोई सबूत नहीं देती है। मूल रूप से, महावमवाद बौद्ध धर्म और सिंहली पर केंद्रित है। तमिलों के सन्दर्भ केवल उन्हीं मामलों के संबंध में पाए जाते हैं जो इसके उक्त उद्देश्य के लिए प्रासंगिक या हानिकारक हैं। ऐसा लगता है कि विश्वनाथन काल के दौरान भी, जब महावंश को सिंहल जाति के पितामह के रूप में उल्लेख किया गया था, वैवाहिक संबंधों के कारण पांडिचेरी से बड़ी संख्या में तमिल श्रीलंका आए थे। हालांकि, यह मान लेना उचित है कि वे सिंहली जातीय समूह का हिस्सा थे। हालांकि, इस तरह के संदर्भ यह स्पष्ट करते हैं कि तमिलनाडु के लोग श्रीलंका से अच्छी तरह परिचित थे और यह कि सीलोन द्वीप और तमिलनाडु के बीच की कड़ी जनता के लिए आसानी से सुलभ थी। इतना ही नहीं, महावमीसम द्वारा दिए गए संदर्भों से यह ज्ञात होता है कि कई तमिलों ने पूर्व-ईसाई काल से अनुराधापुर पर कब्जा कर लिया है। प्राचीन काल में प्रसिद्ध बंदरगाह मटोट्ट था, तमिलनाडु के व्यापारियों ने कई शोधकर्ताओं की राय पर बहुत प्रभाव डाला। . पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व से। १०वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक श्रीलंका की राजधानी अनुराधापुर में तमिल व्यापारियों और मूर्तिकारों की मौजूदगी के प्रमाण मिलते हैं। श्रीलंकाई तमिलों का खाना ज्यादातर दक्षिण भारतीय प्रभावशाली होता है। यह विशेष रूप से तमिलनाडु और केरल के व्यंजनों से निकटता से जुड़ा हुआ है। साथ ही, श्रीलंका पर शासन करने वाले यूरोपीय लोगों का भी प्रभाव है। परंपरागत रूप से, श्रीलंकाई तमिलों के मुख्य व्यंजन चावल पर आधारित होते हैं। बाजरा, तारो, करकुमा और वरगु जैसे छोटे अनाज का भी उपयोग किया जाता है। सभी श्रीलंकाई तमिल आमतौर पर दोपहर के भोजन के लिए दिन में कम से कम एक बार करी खाते हैं। कुछ इलाकों में रात में भी चावल खा रहे हैं। प्राचीन काल में, पहले दिन चावल को पानी पिलाने और अगले दिन नाश्ते के रूप में खाने की प्रथा थी। जाफना में अधिकांश तमिल उबले हुए चावल पसंद करते हैं जिन्हें कुट्टारीसी कहा जाता है। स्थानीय रूप से उपलब्ध समुद्री भोजन जैसे सब्जियां, मांस, मछली आदि का उपयोग करी पकाने के लिए किया जाता है। पारंपरिक सब्जियां जैसे बैंगन, केला, वेंडी, कद्दू, बीन्स, सहजन और कंद स्थानीय रूप से उत्पादित किए जाते हैं। आजकल, वे गाजर, चुकंदर और लीक जैसी पश्चिमी सब्जियां भी पैदा करते हैं। इसके अलावा पालक, पालक, वल्लरई, पोन्नंगकानी और सहजन पालक जैसे पालक का भी खाना पकाने के लिए उपयोग किया जाता है। श्रीलंका में तमिल क्षेत्रों में एक लंबी तटरेखा है जो मछली, शार्क, केकड़ा, स्क्विड, झींगा और ट्राउट जैसे समुद्री भोजन की एक विस्तृत विविधता प्रदान करती है। श्रीलंकाई तमिलों का हालिया इतिहास, विशेष रूप से अंग्रेजों से श्रीलंका की स्वतंत्रता के बाद की अवधि में, सिंहली और तमिलों के लिए विभिन्न रूपों में संघर्ष का इतिहास रहा होगा। स्वतंत्रता-पूर्व काल में, तमिल और सिंहली नेताओं के बीच समानता प्रतीत होती थी, लेकिन जातीय मुद्दे की नींव स्वतंत्रता-पूर्व वर्षों में बनी थी। ब्रिटेन से मुक्ति से पहले विश्व मंच पर कुछ घटनाओं और उसके बाद के नीतिगत परिवर्तनों का लाभ उठाते हुए, श्रीलंकाई सरकार ने कई देशों की सहायता से, लिट्टे के खिलाफ एक सैन्य अभियान शुरू किया। श्रीलंकाई सेना ने धीरे-धीरे पूर्वी प्रांत में लिट्टे के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और मुल्लातिवु में अंतिम लड़ाई में लिट्टे को हरा दिया। ब्रिटेन से मुक्ति के बाद जाफना साम्राज्य के गठन के बाद से, अधिकांश तमिल क्षेत्र लगातार एक अलग राजनीतिक इकाई रहे हैं। जाफना साम्राज्य को पुर्तगाली और डच शासन के दौरान एक अलग इकाई के रूप में माना और प्रबंधित किया गया था। १८१५ में सीलोन के अंतिम स्वतंत्र राज्य कैंडी पर ब्रिटिश विजय के बाद, १८३३ में लागू किए गए राजनीतिक और प्रशासनिक सुधारों के तहत पूरे द्वीप को एकजुट किया गया और पांच प्रांतों में विभाजित किया गया। प्रशासनिक सुविधा के लिए यह व्यवस्था श्रीलंकाई तमिलों के बाद के राजनीतिक पाठ्यक्रम को निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस सुधार के आधार पर स्थापित विधान परिषद में छह गैर-सरकारी सदस्यों के लिए जगह थी। इसमें तमिलों और सिंहली को जाति के आधार पर एक-एक स्थान दिया गया था। १८८९ में एक और सिंहली और एक मुसलमान को जगह मिली। इस सभा में तमिल प्रतिनिधि एक-एक करके धनी कुलीन थे जो तमिल क्षेत्रों को छोड़कर कोलंबो में बस गए थे। उनका व्यवसाय और निवेश तमिल क्षेत्रों से बाहर था। इस प्रकार, उन्हें श्रीलंका के तमिल क्षेत्रों को श्रीलंका के हिस्से के रूप में एकजुट करने का अवसर मिला। इसलिए इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। उनका लक्ष्य सरकारी परिषद में श्रीलंकाई लोगों का प्रतिनिधित्व करना था। यह सभी देखें १९१० में पेश किए गए पीपुल्स रिफॉर्म ने विधानमंडल के गैर-आधिकारिक सदस्यों की संख्या में दस की वृद्धि की। चूंकि तमिलों और सिंहली को राज्य का समान भागीदार माना जाता था, तमिल सिंहली के प्रतिनिधियों की संख्या अभी भी लगभग बराबर थी। २०वीं शताब्दी के दूसरे दशक में, सिंहली तमिल नेताओं ने अधिक प्रतिनिधित्व और अधिक से अधिक राजनीतिक अधिकार हासिल करने की मांग की। सिंहली नेताओं ने जोर देकर कहा कि सिंहली की सदस्यता हासिल करने के लिए प्रतिनिधियों को मंडल के आधार पर जाना जाना चाहिए। हालांकि जाफना एसोसिएशन ने इसे नहीं माना। उन्होंने उसी नस्लीय प्रतिनिधित्व की मांग की जो जगह में था। हालांकि, एक प्रभावशाली कोलंबो तमिल नेता पोन्नम्बलम अरुणाचलम ने श्रीलंकाई स्वायत्तता के लिए एक संयुक्त आंदोलन बनाने के लिए सिंहल नेताओं के साथ काम किया। जाफना एसोसिएशन सिंहली नेताओं द्वारा कोलंबो में तमिलों को सदस्यता देने के वादे के आधार पर सिंहली के साथ काम करने के लिए सहमत हुई। इसके बाद, श्रीलंका राष्ट्रीय कांग्रेस, एक आंदोलन जिसमें सिंहली और तमिल शामिल थे, उभरा। १९२० के मैनिंग सुधारों ने कैंडी में सिंहली का पक्ष लिया और तटीय सिंहली तमिलों को दिए गए आश्वासन की भाषा से हट गए। निराश होकर अरुणाचलम ने श्रीलंका राष्ट्रीय कांग्रेस से नाम वापस ले लिया और तमिल महासन सभा का गठन किया । यह विभाजन श्रीलंका में तमिल राष्ट्र के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना बन गया। मैनिंग सुधारों के आधार पर गठित विधानसभा में तमिलों और सिंहली की सदस्यता असमान हो गई और तमिलों को बहुत नुकसान हुआ। गृहयुद्ध का अंत १९४८ में अंग्रेजों ने श्रीलंका को आजाद कराया और पूरे श्रीलंका को सिंहली बहुमत वाली सरकार के हवाले कर दिया। इसके बाद समस्याओं का एक सिलसिला शुरू हुआ। भारतीय नागरिकता अधिनियम, तमिल क्षेत्रों में नियोजित सिंहली आप्रवासन और केवल सिंहली कानून ने तमिलों के अधिकारों को प्रभावित किया। पोन्नम्बलम, जो एक मंत्री थे, ने भारतीय नागरिकता अधिनियम का समर्थन किया और तमिल कांग्रेस पार्टी दो में विभाजित हो गई। एस। जे। वी सेलवनयागम के नेतृत्व में कई लोगों ने पार्टी छोड़ दी और श्रीलंका फेडरल पार्टी (श्रीलंका तमिल नेशनल पार्टी) की शुरुआत की। पार्टी ने जातीय समस्या के समाधान के रूप में एक संघीय व्यवस्था का प्रस्ताव रखा। आजादी से पहले भी, कई सिंहली नेताओं ने जोर देकर कहा कि केवल सिंहली ही आधिकारिक भाषा है। १९५६ में बौद्ध और सिंहली भावनाओं के साथ सत्ता में आए एस. डब्ल्यू आर। डी। भंडारनायके ने सिंहली को एकमात्र आधिकारिक भाषा बनाने वाला कानून पारित किया। टीएनए ने इसके खिलाफ कोलंबो में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया। इसे हिंसा से दबा दिया गया था। देश भर में जातीय दंगे भड़क उठे और तमिल लोग बहुत प्रभावित हुए। भंडारनायके ने तमिल भाषा पर कुछ अधिकार देने के लिए सेलवनायक के साथ एक समझौता किया। इसे बांदा-सेल्वा समझौते के नाम से जाना गया। लेकिन सिंहली नेताओं के कड़े विरोध के कारण भंडारनायके ने अचानक इस सौदे को छोड़ दिया। उनकी पत्नी सिरिमा भंडारनायके, जो भंडारनायके की मृत्यु के बाद सत्ता में आईं, सिंहली-केवल कानून लागू करने में सक्रिय थीं। १९६५ में, डडले सेनानायके के नेतृत्व में यूनाइटेड नेशनल पार्टी ने फिर से सत्ता हासिल की। जिला आधार पर सत्ता के कुछ हस्तांतरण के वादे को स्वीकार करते हुए, टीएनए ने सरकार को समर्थन देने की पेशकश की। पार्टी ने कुछ साल बाद अपना समर्थन वापस ले लिया क्योंकि उसे अपेक्षित लाभ नहीं मिला। संघर्ष का उदय फिर, १९३१ में, डनमोर सुधार के आधार पर एक और नया संविधान लागू हुआ। इसने सिंहली की मांग को स्वीकार कर लिया और सभी लोगों के मताधिकार के साथ क्षेत्र के आधार पर सरकारी परिषद में सदस्यों के चुनाव का मार्ग प्रशस्त किया। श्रीलंका को ९ प्रांतों और कुल ५० निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया गया था। इनमें से केवल ७ निर्वाचन क्षेत्र श्रीलंकाई तमिलों के लिए उपलब्ध थे। जाफना युवा कांग्रेस, एक वामपंथी युवा आंदोलन, जो उस समय जाफना में प्रभावशाली था, ने डोनोमोर में पहले संवैधानिक चुनाव के बहिष्कार के लिए अभियान चलाया। इसने इस आधार पर बहिष्कार का आह्वान किया कि उसने तमिल मुद्दे पर विचार नहीं किया और श्रीलंका के लोगों को पर्याप्त स्वायत्तता नहीं दी। इसने उन लोगों को भी राजी किया जो उत्तरी प्रांत के ४ निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव नहीं लड़ने वाले थे। इसके आधार पर सरकारी परिषद में तमिलों की संख्या सिंहली की तुलना में ३८ से घटकर ३ हो गई है। युवा कांग्रेस के विरोधियों ने बाद के चुनाव जीते, क्योंकि स्थिति को समझने वाले कई लोगों ने चुनाव की मांग की। सरकारी परिषद में तमिलों की संख्या ३८ से ७ थी। उस समय बनी १० सदस्यीय कैबिनेट में एक भी तमिल मंत्री नहीं था। जी। जी। पो्नम्बलम उप मंत्री पद समेत तीन तमिलों डब्ल्यू. दुरईचामी को अध्यक्ष का पद भी दिया गया था। १९३४ में, ब्रिटिश सरकार ने श्रीलंका के संविधान में संशोधन के लिए लॉर्ड सोलबरी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया। फिर, जी। जी। पोन्नम्बलम के नेतृत्व में, एस.पी. जे। वी सेल्वनायगम, ई. एम। वी कोलंबो स्थित तमिल नेताओं जैसे नागनाथन ने एक संतुलित प्रतिनिधित्व निकाय की मांग को आगे बढ़ाया जिसे तब फिफ्टी टू फिफ्टी के नाम से जाना जाता था। वहीं, जाफना में कुछ लोगों ने संघीय व्यवस्था की मांग की। लेकिन सोलबरी आयोग, जिसने इनमें से किसी भी मांग पर ध्यान नहीं दिया, ने सिंहली बहुमत के पक्ष में एक राजनीतिक समझौता किया। हालाँकि, अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करने की आशा में संविधान में कुछ प्रावधान जोड़े गए थे। विशेष रूप से, धारा, जिसे व्यापक रूप से अनुच्छेद २९ के रूप में जाना जाता है, का उद्देश्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ कानूनों के निर्माण को रोकना था। १९४७ के चुनाव में सोलबरी राजनीतिक कार्यक्रम पर आधारित, ६८ सिंहली सदस्यों के विरुद्ध केवल १३ श्रीलंकाई तमिल सदस्य चुने गए थे। फिफ्टी टू फिफ्टी मांगों की विफलता के बाद, ऐसी स्थिति में जहां कोई अन्य वैकल्पिक योजना नहीं थी, तमिल नेताओं ने डी। एस। सेनानायके की सरकार के साथ सहयोग करने का निर्णय लिया। निर्दलीय सदस्य सी. तमिल कांग्रेस पार्टी के नेता सुंदरलिंगम। जी। पोन्नम्बलम को मंत्री पद भी दिया गया था। १९७० में दो-तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में आई सिरिमा भंडारनायके ने श्रीलंका को ब्रिटेन से अलग करने और इसे एक गणतंत्र में बदलने के लिए एक नया संविधान तैयार किया। यापू का गठन किया गया था और श्रीलंका गणराज्य की स्थापना १९७२ में सिंहल के साथ आधिकारिक भाषा के रूप में और बौद्ध धर्म पूरे देश में प्रमुख धर्म के रूप में हुई थी। साथ ही, शिक्षा के क्षेत्र में मानकीकरण ने तमिल छात्रों को निराश किया है। युवाओं में उग्रवाद बढ़ने लगा। नरमपंथी तमिल नेता युवाओं के दबाव में आ गए। इस प्रकार, श्रीलंकाई तमिल राजनीतिक दलों, तमिल नेशनल पार्टी, तमिल कांग्रेस और सीलोन वर्कर्स कांग्रेस ने थोंडामन के नेतृत्व में तमिल यूनाइटेड फ्रंट का गठन किया और सरकार को कुछ मांगें रखीं। इसके बाद १९७६ में श्रीलंका में तमिलों के लिए अलग राज्य की मांग का प्रस्ताव पारित किया गया और तमिल यूनाइटेड फ्रंट का नाम बदलकर तमिल यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट कर दिया गया । मोर्चा का उद्देश्य शांति के अपने लक्ष्य को प्राप्त करना था। ७० के दशक के अंत और ८० के दशक की शुरुआत में, शांति प्रक्रिया में विश्वास खो चुके कुछ युवा छोटे समूहों में काम कर रहे थे। १९८३ के जातीय दंगों के बाद, उदारवादी राजनीतिक दलों का प्रभाव धीरे-धीरे कम हो गया। कई सशस्त्र आंदोलन फले-फूले। इनके बीच आंतरिक अंतर्विरोध भी बार-बार सामने आए। समय के साथ, लिट्टे उस बिंदु तक बढ़ गया जहां उसने उत्तर पूर्व के बड़े हिस्से को नियंत्रित किया। १९८७ में श्रीलंकाई तमिलों की भागीदारी के बिना श्रीलंका-भारत समझौता हुआ था। इसके आधार पर सत्ता के हस्तांतरण के लिए प्रांतीय परिषदों का गठन किया गया और तमिल को राष्ट्रभाषा घोषित किया गया। शांति बनाए रखने के लिए उत्तर पूर्व में तैनात भारतीय शांतिदूत। बाद की घटनाओं ने भारतीय शांति सैनिकों और लिट्टे के बीच तनाव पैदा कर दिया और दोनों पक्षों के बीच युद्ध का कारण बना। १९८९ में, भारतीय शांति सैनिकों को समझौते के उद्देश्य को पूरा किए बिना वापस लेने के लिए मजबूर किया गया था। फिर से, उत्तर-पूर्व के कई हिस्से लिट्टे के नियंत्रण में आ गए। श्रीलंकाई सरकार और लिट्टे के बीच विदेशी मध्यस्थों के साथ कई शांति वार्ताएं हुई हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। युद्ध की समाप्ति के बावजूद श्रीलंकाई तमिलों का मुद्दा अनसुलझा है। वहीं श्रीलंकाई तमिलों का राजनीतिक नेतृत्व एक बार फिर उदारवादी राजनेताओं के हाथों में पड़ गया है। दूसरी ओर, विदेशों में रहने वाले कई श्रीलंकाई तमिल इस मामले में विभिन्न स्तरों पर शामिल रहे हैं। इस बीच सरकार ने कलमुनाई से युद्ध के दौरान लापता हुए तमिलों की सूची तैयार करने की शुरुआत कर दी है. श्रीलंकाई तमिलों का आनुवंशिक अध्ययन प्रसिद्ध श्रीलंकाई तमिल
मालदा टाउन रेलवे स्टेशन (म्ल्डट) मालदा टाउन शहर का रेलवे स्टेशन है। पश्चिम बंगाल में रेलवे स्टेशन
२०१९ विटालिटी ब्लास्ट टी २० ब्लास्ट का २०१९ सीज़न है, जो वर्तमान में इंग्लैंड और वेल्स में खेला जा रहा एक पेशेवर ट्वेंटी २० क्रिकेट लीग है। यह दूसरा सत्र है जिसमें ईसीबी द्वारा चलाए जा रहे घरेलू टी २० प्रतियोगिता को नए प्रायोजन सौदे के कारण विटैलिटी ब्लास्ट का ब्रांड बनाया गया है। लीग में १८ प्रथम श्रेणी की काउंटी टीमें शामिल हैं, जिन्हें नौ टीमों के दो डिवीजनों में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रत्येक को जुलाई और सितंबर के बीच सामान्य से थोड़ी देर बाद खेले गए जुड़नार के साथ खेला गया है। फाइनल मुकाबला २१ सितंबर २०१९ को बर्मिंघम के एजबेस्टन क्रिकेट ग्राउंड में होने वाला है। वर्स्टरशायर रैपिड्स डिफेंडिंग चैंपियन हैं। ७ अगस्त २०१९ को, लीसेस्टरशायर फॉक्स और बर्मिंघम बियर के बीच मैच में, लेस्टरशायर के कोलिन एकरमैन ने अठारह रन पर सात विकेट लिए। ये ट्वेंटी २० क्रिकेट मैच में सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी के आंकड़े थे।
बसंतपुर लैंलूगा मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़ जिले का एक गाँव है। छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़
सुदेश भोंसले एक भारतीय पाश्व गायक है। इनका जन्म एन आर भोंसले और श्रीमती सुमनताय भोंसले के घर हुआ। सुदेश भोंसले को उनकी अमिताभ बच्चन के गानो के लिये जाना जाता है। सुदेश भोंसले को पहला अवसर फिल्म जलजला (१९८८) के पार्शव गायन मे मिला। व्यवसायिक तोर पर इन्होने कई साल सन्जीव कुमार और अनिल कपुर के लिये मिमिक्री आर्टिस्ट के तौर पर डबिन्ग की। इनको पहली सफलता अमिताभ बच्चन अभिनित फिल्म हम (१९९०) के गाने 'जुम्मा चुम्मा दे दे' से मिली। सन २०१० मे इन्होने महात्मा रामचन्द्र वीर और आचार्य धर्मेन्द्र द्वारा रचिय वज्रान्ग वन्दना महास्त्रोत एव्म वज्रान्ग विनय स्रोत के अदभुत एव्म अद्धितय भजनो को अपना मधुर स्वर दिया है। भारतीय फिल्म पार्श्वगायक
किशुनी चक इमामगंज, गया, बिहार स्थित एक गाँव है। गया जिला के गाँव
चकमा (चक्मा) बांग्लादेश के चट्टग्राम पहाड़ी क्षेत्र का सबसे बड़ा समुदाय है। यह चकमा भाषा बोलते हैं जो एक हिन्द-आर्य भाषा है और हिन्दू व थेरवाद बौद्ध धर्मों के अनुयायी होते हैं। यह भारत के मिज़ोरम राज्य और बर्मा के रखाइन राज्य के कुछ क्षेत्रों में भी निवास करते हैं। आनुवांशिक दृष्टि से चकमा लोगों का बर्मा व तिब्बत की मूल जातियों से सम्बन्ध है। बांग्लादेश के चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र, म्यांमार के रखाइन क्षेत्र और भारत के त्रिपुरा, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, असम और पश्चिम बंगाल राज्यों में चकमा लोग रहते हैं।चकमा लोग प्राचीन मगध से असम होते म्यांमार तक पहुँचे हैं।चकमा लोगों का संबंध शाक्य लोगों से है। मा का अर्थ लोग है। चक का संबंध सक्क ( शाक्य ) से है। चकमा का अर्थ हुआ - शाक्य लोग।चकमा लोग तथागत बुद्ध के वंशज हैं। ये बौद्ध धम्म को मानते हैं। इनके हर गाँवों में बुद्ध विहार हैं। बुद्ध पूर्णिमा इनका प्रिय पूर्णिमा है। इनके पुरोहित भिक्खु कहे जाते हैं। असम प्रवास के दौरान शाक्य का परिवर्तन चकमा में हुआ। असमिया में " स " को " च " में बदलने की प्रबल प्रवृति है यथा संदूक - चंदुक/ साबुन - चाबोन/ सजा - चाजा/ सुराही- चुराइ आदि। पूर्वोत्तर की अन्य भाषाओं में भी यह प्रवृत्ति है। मिसाल के तौर पर, मिरी भाषा में पुलिस को पुलिच, पेंसिल को पेंचिल और कसाई को कचाई बोलते हैं। " स " का " च " में बदल जाने की इसी प्रवृत्ति के कारण शाक्य लोग उधर जाकर चकमा हो गए। इन्हें भी देखें भारत की जनजातियाँ बर्मा की मानव जातियाँ बांग्लादेश की मानव जातियाँ भारत की मानव जातियाँ भारत में शरणार्थी
सत्यपाल मलिक भारतीय राजनीतिज्ञ तथा मेघालय के १९वें राज्यपाल थे। ३० सितम्बर २०१७ से २१ अगस्त तक बिहार राज्य के राज्यपाल रहे । इससे पहले अलीगढ़ सीट से १९८९ से १९९१ तक जनता दल की तरफ से सांसद रहे। १९९६ में समाजवादी पार्टी की तरफ से फिर चुनाव लड़े लेकिन हार गए। मेरठ के एक कॉलेज से उन्होंने पढ़ाई की है। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। २१ अगस्त २०१८ को जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल नियुक्त किये गए। इतिहास में दर्ज गतिविधियां मलिक ने जम्मू कश्मीर से विशेष अधिकार कानून हटवाने में सक्रिय भूमिका निभाई। श्री मलिक जम्मू कश्मीर के एकमात्र ऐसे राज्यपाल रहे जिनके कार्यकाल में अनुच्छेद ३५ आ हटा। वे इसके हटने से पहले भी वहां के राज्यपाल थे तथा इस अनुच्छेद के हटने के बहुत समय बाद तक वे राज्यपाल रहे। बिहार के राज्यपाल ९वीं लोक सभा के सदस्य जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल
बांग्लादेश क्रिकेट टीम ने नवंबर २०१९ में दो टेस्ट और तीन ट्वेंटी-२० अंतरराष्ट्रीय (टी२०ई) मैच खेलने के लिए भारत का दौरा किया। टेस्ट सीरीज़ ने उद्घाटन २०१९21 आईसीसी विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप का हिस्सा बनाया। यह दूसरी बार था जब बांग्लादेश ने भारत के साथ टेस्ट सीरीज़ खेलने के लिए भारत का दौरा किया और पहली बार बांग्लादेश ने भारत में भारत के खिलाफ एक टी२०ई सीरीज़ खेली। टेस्ट सीरीज़ में पहले दिन/रात का मैच भी खेला जाता है। बांग्लादेश के कप्तान शाकिब अल हसन को शुरू में दौरे पर टीम का नेतृत्व करने के लिए चुना गया था। हालाँकि, २९ अक्टूबर २०१९ को, अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने आईसीसी के भ्रष्टाचार-निरोधी संहिता का उल्लंघन करने के बाद, शाकिब को दो साल के लिए सभी क्रिकेट से प्रतिबंधित कर दिया। शाकिब के प्रतिबंध के बाद, मोमिनुल हक को टीम के टेस्ट कप्तान के रूप में और महमूदुल्लाह को टी२०ई के कप्तान के रूप में नामित किया गया था। दौरे का पहला मैच, दिल्ली में टी२०ई, १,००० पुरुषों का ट्वेंटी-२० अंतर्राष्ट्रीय मैच खेला जाना था। प्रारूप में भारत के खिलाफ अपनी पहली जीत दर्ज करने के लिए, बांग्लादेश ने सात विकेट से मैच जीता।हालाँकि, भारत ने अगले दो मैच जीतकर श्रृंखला २-१ से जीती। तीसरे और अंतिम मैच में, भारत के दीपक चहर ने टी२०ई मैच में सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी के रिकॉर्ड के लिए सात रन देकर छह विकेट लिए। भारत ने टेस्ट सीरीज़ २-० से जीती, जिसमें दोनों मैच तीन दिन के अंदर खत्म हुए। यह घर में भारत की लगातार बारहवीं टेस्ट सीरीज जीत थी, जो किसी भी टीम द्वारा घर पर सबसे अधिक थी। यह टेस्ट में भारत की लगातार सातवीं जीत, टीम के लिए एक रिकॉर्ड और विराट कोहली की कप्तानी में लगातार सातवीं जीत भी भारत के लिए एक रिकॉर्ड है। एक पारी के दूसरे टेस्ट में भारत की जीत के अंतर ने उन्हें एक पारी से टेस्ट क्रिकेट में लगातार चार जीत दर्ज करने वाली पहली टीम बना दिया।
चहार्महाल और बाख़्तियारी (फार्शियन: ) एक प्रांत हैं दक्षिणपश्चिम ईरान मैं। ईरान के प्रांत
पटना एक्स्प्रेस ७०९१ भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन सिकंदराबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:स्क) से १०:००प्म बजे छूटती है और पटना जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:पन्बे) पर ०९:५०आम बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है ३५ घंटे ५० मिनट। मेल एक्स्प्रेस ट्रेन
धोबियाकलापुर नौबतपुर, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है। पटना जिला के गाँव
नांगल चौधरी (नंगल चौधरी) भारत के हरियाणा राज्य के महेंद्रगढ़ ज़िले में स्थित एक नगर है। इन्हें भी देखें हरियाणा के शहर महेंद्रगढ़ ज़िले के नगर
ईस्ट फ़िंचली (अंग्रेज़ी: ईस्ट फिंच्ले) एक उत्तर लंदन में बार्नेट बरो का जिला है।
चक काठर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के इलाहाबाद जिले के हंडिया प्रखण्ड में स्थित एक गाँव है। इलाहाबाद जिला के गाँव
यह हिन्दी पुस्तकों के एक प्रमुख प्रकाशक हैं। इन्हें भी देखें भारत के प्रकाशन संस्थान
नवें लोक पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार कुलवंत सिंह विर्क द्वारा रचित एक कहानीसंग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् १९६८ में पंजाबी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत पंजाबी भाषा की पुस्तकें
अमेरिकन बुली (अमेरिकन बुली) हाल ही में बनाई गई एक साथी कुत्ते की नस्ल है, जिसे मूल रूप से अमेरिकन बुली केनेल क्लब (अबक्क) द्वारा मान्यता प्राप्त है। इसे १५ जुलाई, २०१३ से यूनाइटेड केनेल क्लब (यूनाइटेड केनेल क्लब) द्वारा मान्यता दी गई है। यह एक मजबूत नस्ल है जिसे आकार की चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है: पॉकेट, स्टैंडर्ड, क्लासिक और एक्स्ट्रा लार्ज श्रेणी। इस नस्ल को यूएसए में १९८० और १९९० के दशक में बनाया गया था, जिसमें कई कुत्तों की नस्लों को जोड़ा गया था। इस नई नस्ल को बनाने के लिए मुख्य कुत्ते की नस्लों को मिलाया गया, जो कि अमेरिकन स्टाफ़ोर्डशायर टेरियर, ब्रिटश बुलडॉग और अमेरिकन बुलडॉग था।
कशाग (तिब्बती : , विलिए: बका-शाग, जिपी: गदाग, ल्हासा डायलेक्ट: [का]; चीन: ; पिंयीन: ग्क्सी), तिब्बत की शासी परिषद थी जो किंग राजवंश के शासन के समय से लेकर १९५९ तक अस्तित्व में थी। इसकी स्थापना १७२१ में हुई थी और १७५१ में कियोन्लांग सम्राट ने इसे लागू किया था। २८ मार्च १९५९ को चीन के सर्वोच्च नेता झाऊ एन्लाई (ज़ू एनलाई) कशाग को औपचारिक रूप से निरस्त करने की घोषणा की थी। तिब्बत का इतिहास तिब्बत की राजनीति
९८४ ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ
ये प्रारंभिक 'कोशिकाएं हैं। ये एक कोशिकिय होते है। इनमे केन्द्रक कला नहीं पायी जाती है। प्रोकैरियोटिक कोशिका में कोई स्पष्ट केन्द्रक नहीं होता है। केन्द्रकीय पदार्थ कोशिका द्रव में बिखरे होते हैं। इन कोशिकओं के कलाविहीन केन्द्रक को आरंभी केन्द्रक कहते हैं। इन कोशिकओं में क्लोरोप्लास्ट, गॉल्जीबाड़ी, तारककाय, माइक्रोकान्ड्रिया तथा अन्तः द्रव्यीजालिका (ए.र.) नहीं पायी जाती है। फिर भी ७०स प्रकार के राइबोसोम्स पाये जाते हैं तथा इनमें डीएनए हिस्टोन प्रोटीन से सम्बद्ध नहीं होता है। नीले- हरे शैवालों तथा जीवाणुओं में ये कोशिकाएं पायी जाती हैं। इनमें केन्द्रक के चारों और पायी जाने वाली झिल्ली अनुपस्थित होती हैं। साइक्लोसिस नही पाया जाता है। अगर फ्लेजेला उपस्थित हैं तो वह फ्लेजेला प्रोटीन का बना होता हैं। अनुलेख तथा अनुवाद का कार्य जीवद्रव्य में होता है।
नया संसार १९४१ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। नामांकन और पुरस्कार १९४१ में बनी हिन्दी फ़िल्म
चरक एक महर्षि एवं आयुर्वेद विशारद के रूप में विख्यात हैं। वे कुषाण राज्य के राजवैद्य थे। इनके द्वारा रचित चरक संहिता एक प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रन्थ है। इसमें रोगनाशक एवं रोगनिरोधक दवाओं का उल्लेख है तथा सोना, चाँदी, लोहा, पारा आदि धातुओं के भस्म एवं उनके उपयोग का वर्णन मिलता है। आचार्य चरक ने आचार्य अग्निवेश के अग्निवेशतन्त्र में कुछ स्थान तथा अध्याय जोड्कर उसे नया रूप दिया जिसे आज चरक संहिता के नाम से जाना जाता है । ३००-२०० ई. पूर्व लगभगआयुर्वेद के आचार्य महर्षि चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में होती है।चरक की शिक्षा तक्षशिला में हुई ।इनका रचा हुआ ग्रंथ 'चरक संहिता' आज भी वैद्यक का अद्वितीय ग्रंथ माना जाता है। इन्हें ईसा की प्रथम शताब्दी का बताते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि चरक कनिष्क के राजवैद्य थे परंतु कुछ लोग इन्हें बौद्ध काल से भी पहले का मानते हैं।आठवीं शताब्दी में इस ग्रंथ का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ और यह शास्त्र पश्चिमी देशों तक पहुंचा।चरक संहिता में व्याधियों के उपचार तो बताए ही गए हैं, प्रसंगवश स्थान-स्थान पर दर्शन और अर्थशास्त्र के विषयों की भी उल्लेख है।उन्होंने आयुर्वेद के प्रमुख ग्रन्थों और उसके ज्ञान को इकट्ठा करके उसका संकलन किया । चरक ने भ्रमण करके चिकित्सकों के साथ बैठकें की, विचार एकत्र किए और सिद्धांतों को प्रतिपादित किया और उसे पढ़ाई लिखाई के योग्य बनाया ।यह सब ठीक है। चरकसंहिता आयुर्वेद में प्रसिद्ध है। इसके उपदेशक अत्रिपुत्र पुनर्वसु, ग्रंथकर्ता अग्निवेश और प्रतिसंस्कारक चरक हैं। प्राचीन वाङ्मय के परिशीलन से ज्ञात होता है कि उन दिनों ग्रंथ या तंत्र की रचना शाखा के नाम से होती थी। जैसे कठ शाखा में कठोपनिषद् बनी। शाखाएँ या चरण उन दिनों के विद्यापीठ थे, जहाँ अनेक विषयों का अध्ययन होता था। अत: संभव है, चरकसंहिता का प्रतिसंस्कार चरक शाखा में हुआ हो। चरकसंहिता में पालि साहित्य के कुछ शब्द मिलते हैं, जैसे अवक्रांति, जेंताक (जंताक - विनयपिटक), भंगोदन, खुड्डाक, भूतधात्री (निद्रा के लिये)। इससे चरकसंहिता का उपदेशकाल उपनिषदों के बाद और बुद्ध के पूर्व निश्चित होता है। इसका प्रतिसंस्कार कनिष्क के समय ७८ ई. के लगभग हुआ। त्रिपिटक के चीनी अनुवाद में कनिष्क के राजवैद्य के रूप में चरक का उल्लेख है। किंतु कनिष्क बौद्ध था और उसका कवि अश्वघोष भी बौद्ध था, पर चरक संहिता में बुद्धमत का जोरदार खंडन मिलता है। अत: चरक और कनिष्क का संबंध संदिग्ध ही नहीं असंभव जान पड़ता है। पर्याप्त प्रमाणों के अभाव में मत स्थिर करना कठिन है। प्राचीन भारत के वैज्ञानिक
पूरे आसमान के ३६० डिग्री को जब १२ भागों में विभक्त किया जाता है, तो उससे ३०-३० डिग्री की एक राशी निकलती है। इन्हीं राशियों को मेष, वृष-मीन कहा जाता है। किसी भी जन्मकुंडली में तीन राशियों को महत्वपूर्ण माना जाता है। राशी, जिसमें जातक का सूर्य स्थित हो, वह सूर्य-राशी के रूप में, जिसमें जातक का चंद्र स्थित हो, वह चंद्र-राशी के रूप में तथा जिस राशी का उदय जातक के जन्म के समय पूर्वी क्षितीज में हो रहा हो, वह लग्न-राशी के रूप में महत्वपूर्ण मानी जाती है। आजकल बाजार में लगभग सभी पति्रकाओं में राशी-फल की चर्चा रहती है, कुछ पत्रिकाओं में सूर्य-राशी के रूप में तथा कुछ में चंद्र-राशी के रूप में भविष्यफल का उल्लेख रहता है, किन्तु ये पूर्णतया अवैज्ञानिक होती हैं और व्यर्थ ही उसके जाल में लाखों लोग फंसे होते हैं। इसकी जगह लग्न-राशी फल निकालने से पाठकों को अत्यधिक लाभ पहुंच सकता है, क्योंकि जन्मसमय में लगभग दो घंटे का भी अंतर हो तो दो व्यक्ति के लग्न में परिवर्तन हो जाता है, जबकि चंद्रराशी के अंतर्गत ढाई दिन के अंदर तथा सूर्य राशी के अंतर्गत एक महीनें के अंदर जन्मलेनेवाले सभी व्यक्ति एक ही राशी में आ जाते हैं। लेकिन चूंकि पाठकों को अपने लग्न की जानकारी नहीं होती है, इसलिए ज्योतिषी लग्नफल की जगह राशी-फल निकालकर जनसाधारण के लिए सर्वसुलभ तो कर देते हें, पर इससे ज्योतिष की वैज्ञानिकता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। किसी प्रकार की सामयिक भविष्यवाणी किसी व्यक्ति के लग्न के आधार पर सटीक रूप में की जा सकती है, किन्तु इसकी तीव्रता में विभिन्न व्यक्ति के लिए अंतर हो सकता है। किसी विशेष महीनें का लिखा गया लग्न-फल उस लग्न के करोड़ों लोगों के लिए वैसा ही फल देगा, भले ही उसमें स्तर, वातावरण, परिस्थिति और उसके जन्मकालीन ग्रहों के सापेक्ष कुछ अंतर हो। जैसे किसी विशेष समय में किसी लग्न के लिए लाभ एक मजदूर को २५-५० रुपए का और एक व्यवसायी को लाखों का लाभ दे सकता है। इस प्रकार की भविष्यवाणी `गत्यात्मक गोचर प्रणाली के आधार पर की जा सकती है। इस महीनें से हर महीने विभिन्न लग्नवालों के लिए लग्न-राशी फल की चर्चा की जाएगी, जिन्हें अपने लग्न की जानकारी न हो, वे अपनी जन्म-तिथि, जन्म-समय और जन्मस्थान के साथ मुझसे संपर्क कर सकते हैं। उन्हें उनके लग्न की जानकारी दे दी जाएगी। रामायण के राम ने सीता का पाणी ग्रहण ज्योतिष के आधार पर किया था। हो सकता है इसलिये सीता का जन्म ओर मृत्यु कैसा हुआ किसीको मालुम नहीं है। रामायण ओर महाभारत के कई पात्र ऋषि मुनियो़का जन्म भी ऐसा ही हुआ है। --महाऋषि
स्पेनी आर्मडा (या अजेय आर्मडा ; स्पेनी : ग्रैंड य फेलिक्सीमा अर्मादा) स्पेन की १३० जहाजों वाली एक नौसेना थी जिसे अगस्त १५८८ में इंग्लैण्ड को जीतने के लिये रवाना किया गया था। मेडिना सिडोनिया के ड्यूक इसके कमाण्डर थे। इसका उद्देश्य इंग्लैण्ड की रानी एलिजाबेथ प्रथम को सत्ताच्युत करना था। किन्तु यह आर्मडा पराजित हुआ और इस जीत से इंग्लैण्ड की नौसेना की धाक जम गयी। इन्हें भी देखिये इंग्लैंड का इतिहास इंग्लैंड का इतिहास
२० सितंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का २६३वॉ (लीप वर्ष मे २६४ वॉ) दिन है। साल मे अभी और १०२ दिन बाकी है १८७८- अंग्रेजी दैनिक द हिंदू के साप्ताहिक अंक का प्रकाशन शुरु। १९४६- पहला कांत फिल्म समारोह आयोजित। अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और तालिबान से वार्ता के लिए गठित सरकारी शांति परिषद के शीर्ष वार्ताकार बुरहानुद्दीन रब्बानी की काबुल में अमेरिकी दूतावास के समीप स्थित निवास पर, पगड़ी में विस्फोटक छिपाए, आत्मघाती हमलावर द्वारा हत्या कर दी गई। पाकिस्तान में शिया तीर्थयात्रियों को लेकर प्रांतीय राजधानी क्वेटा से सीमावर्ती शहर ताफतान जा रही बस को बलूचिस्तान के मस्तांग जिले में बंदूकधारियों ने रुकवा कर २६ लोगों को गोली मार दी। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सशस्त्र सेनाओं में समलैंगिकों के सेवा करने पर लगी १८ वर्ष पुरानी रोक हटाने की घोषणा की। भारतीय ज्ञानपीठ ने २००९ के लिए ४५वां ज्ञानपीठ पुरस्कार हिंदी लेखक अमरकांत और श्रीलाल शुक्ल को संयुक्त रूप से तथा २०१० के लिए ४६वां ज्ञानपीठ पुरस्कार कन्नड़ लेखक चंद्रशेखर कांबर को प्रदान करने की घोषणा की। पाकिस्तान के लाहौर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शेख अजमत ने फेसबुक सहित धार्मिक विद्वेष फैलाने में शामिल सभी वेबसाइट पर रोक लगाने का आदेश दिया। १८९७- नाना साहब परुलेकर, मराठी पत्रकार। महेश भट्ट, अर्थ, सारांश, नाम जैसी हिंदी कला फिल्में देने वाले निर्माता निर्देशक। सोफिया लोरेन, प्रसिद्ध अभिनेत्री १९३३- एनी बेसेंट, भारत में होमरुल लीग की संस्थापिका। १९९६- दया पवार, प्रसिद्ध साहित्यकार १९९९- राजकुमारी, तमिल सिनेमा की स्वप्न सुंदरी नाम से विख्यात अभिनेत्री। उनकी फिल्म हरिदास ११४ सप्ताह तक चेन्नई के सिनेमाघर में चलती रही थी। बीबीसी पे यह दिन
राष्ट्रीय राजमार्ग ३०९ (नेशनल हाइवे ३०९) भारत का एक राष्ट्रीय राजमार्ग है। यह उत्तराखण्ड में रुद्रपुर से श्रीनगर तक जाता है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग ९ का एक शाखा मार्ग है। इस राजमार्ग पर आने वाले कुछ मुख्य पड़ाव इस प्रकार हैं: रुद्रपुर, गदरपुर, काशीपुर, रामनगर, पौड़ी, श्रीनगर। इन्हें भी देखें राष्ट्रीय राजमार्ग (भारत) राष्ट्रीय राजमार्ग ९ (भारत)
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन एक हिन्दी सेवी संस्था है। मुजफ्फरपुर के हिन्दू भवन के हाते में १९ अक्टूबर १९१९ को, श्रीयुत जगन्नाथ प्रसाद एम॰ ए॰ बी॰ एल॰ काव्यतीर्थ के सभापतित्व में, हिन्दी सेवियों और हिन्दी प्रेमियों की एक सार्वजनिक सभा हुई, जिसमें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना का निर्णय किया गया। १९१० में हिन्दी को जन-जन तक पहुंचाने के लिए अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई थी। १९२० में सम्मेलन का १०वां अधिवेशन बिहार में सुनिश्चित हुआ और इसी के साथ बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना की सुगबुगाहट भी शुरू हो गई। आखिरकार डॉ राजेंद्र प्रसाद के विशेष पहल व लक्ष्मी नारायण सिंह, मथुरा प्रसाद दीक्षित, बाबू वैद्यनाथ प्रसाद सिंह, पीर मोहम्मद यूनिस, लतीफ हुसैन नटवर और पंडित दर्शन केशरी पांडेय जी के प्रयास से मुजफ्फरपुर के हिन्दू भवन में १९ अक्टूबर १९१९ को जगन्नाथ प्रसाद के सभापतित्व में सार्वजनिक सभा हुई जिसमें बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना का निर्णय हुआ। १९१९ में साहित्य सम्मेलन की स्थापना के बाद १९२० में अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का १०वां सम्मेलन पटना में आयोजित करने की घोषणा हुई थी। जिसको लेकर ही पटना में अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना की गई। शुरू में ज़मीन उपलब्ध न होने के चलते किराए की भूमि पर इसके कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता था। पहले इसका मुख्यालय मुजफ्फरपुर में हुआ करता था फिर १९३५ में इस मुख्यालय को पटना में लाया गया और १९३७ में हिन्दी साहित्य सम्मेलन के लिए कदमकुआं में अपनी ज़मीन मिली। साहित्य सम्मेलन प्रारंभ से ही हिन्दी साहित्य जगत की बड़ी विभूतियों और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े सारे बड़े नेताओं का केन्द्र हुआ करता था। डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद समेत कई बड़ी विभूतियां साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष पद को सुशोभित करते रहे। इन्हें भी देखें अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का जालघर बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में जुटेंगे देश भर के विद्वान
परिहार या प्रतिहार राजवंश भारत के सबसे शक्तिशाली वंश में से एक है प्रतिहार गुर्जर वंश ने छठी शताब्दी से लेकर ११ वीं शताब्दी तक शासन किया गुर्जर प्रतिहार ने अनेक विदेशी आक्रमणों को सामना किया तथा गुर्जरों ने भारत की रक्षार्थ हेतु विदेशी आक्रमणकारियों को भारत में घुसने नहीं दिया गुर्जर प्रतिहार का सबसे शक्तिशाली शासक मीर भोज को माना जाता है तथा भारत से विदेशी आक्रमणों काा सबसेे इन्हीं केे शासन कॉल मैं हुआ था गुर्जर प्रतिहार
चैतन्यचरितामृत, बांग्ला के महान भक्तकवि कृष्णदास कविराज द्वारा रचित ग्रन्थ है जिसमें चैतन्य महाप्रभु (१४८६-१५३३) के जीवन और शिक्षाओं का विवरण है। यह मुख्य रूप से बांग्ला भाषा में रचित है किन्तु शिक्षाष्टकम समेत अन्य भक्तिपूर्ण काव्य संस्कृत छन्द में भी हैं। इसमें चैतन्य महाप्रभु के जीवनचरित, उनकी अन्तर्निहित दार्शनिक वार्ताओं, कृष्ण के नामों और हरे कृष्ण मंत्र के जप का भी विशेष विवरण हैं। श्री चैतन्यचरितामृत गौडीय सम्प्रदाय का आधार ग्रन्थ है जिसमें गौडीय सम्प्रदाय के दर्शन का सार निहित है। अध्यन-मनन के साथ-साथ यह विग्रह स्वरुप होकर बहुत से घरों में पूजित भी होता है। १७७५ के आसपास सुकल श्याम अथवा बेनीकृष्ण ने इस ग्रन्थ का इसी नाम से ब्रजभाषा में अनुवाद किया। चैतन्यचरितामृत तीन खण्डों में विभक्त है, जिनके नाम हैं- आदिलीला, मध्यलीला और अन्त्यलीला।
प्रबोधनकार केशव सीताराम ठाकरे (१७ सितम्बर १८८५ - २० नवम्बर १९७३) एक सत्यशोधक आंदोलन के चोटी के समाज सुधारक और प्रभावी लेखक थे। शिव सेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे उनके पुत्र थे . उनका कर्तृत्व और प्रतिभा अनेकानेक रंगों में पुष्पित-पल्लवित हुई। विचारवंत, नेता, लेखक, पत्रकार, संपादक, प्रकाशक, वक्ता, धर्म सुधारक, समाज सुधारक, इतिहास संशोधक, नाटककार, सिनेमा पटकथा संवाद लेखक, अभिनेता, संगीतज्ञ, आंदोलनकारी, शिक्षक, भाषाविद, लघु उद्योजक, फोटोग्राफर, टाइपिस्ट, चित्रकार जैसे दर्जनों विशेषण अर्पित करने के बावजूद उनका व्यक्तित्व एक दशांगुल ऊंचा ही रहेगा। उन्होंने खजूर की तरह ऊंचा होने की बजाय वटवृक्ष की तरह अपने व्यक्तित्व को विस्तृत किया। मानो एक ही व्यक्ति ने सौ लोगों का आयुष्यमान जीने का पुरुषार्थ किया हो। प्रबबोधनकार द्वारा रचित महत्वपूर्ण ग्रन्थ निम्नलिखित हैं- प्रबोधनकार केशव सीताराम ठाकरे कौन थे प्रबोधनकार? बाल ठाकरे के पिता की कहानी बयां करेगी वेबसाइट (दैनिक जागरण) राज ठाकरे के दादा देवास में पढ़े थे (वेबदुनिया) ठाकरे, केशव सीताराम ठाकरे, केशव सीताराम
धर्मेश्वर गाछ में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत पुर्णिया मण्डल के अररिया जिले का एक गाँव है। बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ बिहार के गाँव
बुनी हुई रस्सी हिन्दी के विख्यात साहित्यकार भवानीप्रसाद मिश्र द्वारा रचित एक कवितासंग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् १९७२ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी भाषा की पुस्तकें २०वीं सदी का साहित्य
संवैधानिक राजशाही, किसी राज्य की उस शासन-प्रणाली को कहते हैं जिसमें सर्वोच्च शासक राजा तो होता है लेकिन उसकी शक्तियाँ किसी संविधान या क़ानून द्वारा सीमित होती हैं, यानि वह अपनी मनमानी से राज नहीं कर सकता। राजा को बांधने वाला क़ानून लिखित या अलिखित हो सकता है। ब्रिटेन और जापान ऐसी संवैधानिक राजशाहीयों के उदाहरण हैं। ऐसे अधिकतर देशों में राजनैतिक शक्तियाँ अक्सर किसी नागरिकों द्वारा चुनी हुई संसद के अधीन होती हैं, इसलिये इन्हें कभी-कभी संसदीय राजशाही भी कहा जाता है। ज्यादातर देशों में राजशाही संवैधानिक हैं लेकिन कुछ देशों में शासन तरह से निरंकुशता या राजतन्त्र है. ऐसे देशों के नाम हैं; स्वाज़ीलैंड (पूर्ण राजतन्त्र), ओमान (पूर्ण राजतन्त्र), दारुस्सलाम (पूर्ण राजतन्त्र), सऊदी अरब (पूर्ण धर्मतन्त्र), वेटिकन (पूर्ण धर्मतन्त्र), कतर (मिश्रित शासन), यूएई (मिश्रित शासन) और बहरीन (मिश्रित शासन)। वर्तमान में, लगभग ४४ देशों में राज्य के प्रमुख के रूप में एक सम्राट है. इन ४४ राजाओं में शामिल हैं; ३ अफ्रीका में , ६ ओशिनिया में ,१० उत्तरी अमेरिका में ,१२ यूरोप में और 1३ एशिया में हैं। इन्हें भी देखें सरकार के रूप
अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र भारत के अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह का एक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र है। २०१४ चुनाव में सोलहवीं लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी के विष्णु पद राय यहाँ के सांसद बने। अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह