text
stringlengths 60
141k
|
---|
दिलौरी एटा जिले के पटियाली प्रखण्ड का एक गाँव है।
एटा ज़िले के गाँव |
पुसल्दा रायगढ मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़ जिले का एक गाँव है।
छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ
रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़ |
दुलारपुर बछवारा, बेगूसराय, बिहार स्थित एक गाँव है।
बेगूसराय जिला के गाँव |
अम्बापुर (अंबापूर) भारत के गुजरात राज्य के गांधीनगर ज़िले में स्थित एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
गुजरात के गाँव
गांधीनगर ज़िले के गाँव |
महाभारत के पश्चात के कुरु वंश के राजा।
कुरुवंश के राजा
प्राचीन पौराणिक राजवंश |
स्तूप (संस्कृत और पालि: से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ "ढेर" होता है) एक गोल टीले के आकार की संरचना है जिसका प्रयोग पवित्र बौद्ध अवशेषों को रखने के लिए किया जाता है। माना जाता है कभी यह बौद्ध प्रार्थना स्थल होते थे। महापरिनर्वाण सूत्र में महात्मा बुद्ध अपने शिष्य आनन्द से कहते हैं- "मेरी मृत्यु के अनन्तर मेरे अवशेषों पर उसी प्रकार का स्तूप बनाया जाये जिस प्रकार चक्रवर्ती राजाओं के अवशेषों पर बनते हैं- (दीघनिकाय- १४/५/११)। स्तूप समाधि, अवशेषों अथवा चिता पर स्मृति स्वरूप निर्मित किया गया, अर्द्धाकार टीला होता था। इसी स्तूप को चैत्य भी कहा गया है। मौर्य शासक अशोक केेे काल में लगभग ८४००० स्पुतो का निर्माण किया गया ।बौद्ध स्तूप को अन्य समुदाय के लोग साधारण ही मानते है।बौद्ध स्तूप के संरक्षण हेतु सरकार कुछ विशेष ध्यान नहीं देती।और न ही अज्ञानता वश आम लोग ही करते है।
स्तूप मंडल का पुरातन रूप हैं।
प्राचीन भारतीय स्थापत्य
प्राचीन भारतीय कला |
बाबू हरिदास वैद्य (१८७२ - १९४८) एक पुस्तकलेखक तथा आयुर्वेदज्ञ थे। उनका मूल नाम "किशनलाल" था। उनके द्वारा हिन्दी में ७ भागों में लिखित "चिकित्साचन्द्रोदय" आयुर्वेद का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है।
किशनलाल का जन्म मथुरा के एक वैश्य कुल में हुआ था। उनके पिता का नाम लाला हीरालाल था। उन्हें अंग्रेजी की ऊँची शिक्षा दिलायी गयी थी। उन्होने बीए तक पढ़ाई की पर बीए की परीक्षा न दे सके।
अक्लमंदी का ख़ाजाना |
पुरकोट, बागेश्वर (सदर) तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
पुरकोट, बागेश्वर (सदर) तहसील
पुरकोट, बागेश्वर (सदर) तहसील |
रोहतक नई दिल्ली एक्स्प्रेस ४३२४ भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन रोहतक जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:रोक) से ०२:३५प्म बजे छूटती है और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:न्डल्स) पर ०४:१५प्म बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है १ घंटे ४० मिनट।
मेल एक्स्प्रेस ट्रेन |
पश्चिमी संयुक्त राज्य (अंग्रेज़ी: वेस्टर्न यूनाइटेड स्टेट्स वॅस्टर्न युनाएटिड स्टेट्स) संयुक्त राज्य अमेरिका का पश्चिमी हिस्सा है, हालाँकि अलग-अलग सन्दर्भों में इस बात पर विवाद होता है के इस देश का कौन सा भाग पश्चिमी है और कौनसा नहीं। १८०० ईसवी से पूर्व एपलाशियन पर्वतमाला का सारा इलाक़ा पश्चिमी माना जाता था। समय के साथ जैसे-जैसे संयुक्त राज्य की सरकार का प्रभाव पश्चिम की ओर बढ़ता गया और मूल अमेरिकी आदिवासियों का नाश होता गया, वैसे-वैसे पश्चिमी संयुक्त राज्य की लोकप्रिय परिभाषा पश्चिम की ओर चलती गयी। अब बहुत से लोग मिसिसिप्पी नदी को या रॉकी पर्वत श्रंखला से पश्चिम वाले क्षेत्र को ही पश्चिमी संयुक्त राज्य में मानते हैं।
इन्हें भी देखिये
संयुक्त राज्य अमेरिका
अमेरिका के क्षेत्र
संयुक्त राज्य अमेरिका |
बैल अंगघात (बेल'स पाल्सी/बेल्स पाल्सी) चेहरे के पक्षाघात का एक प्रकार है जो कपाल तंत्रिका सप्तम (क्रेनिल नर्व वी) के काम करने में गड़्बड़ी के कारण होती है। इसके कारण उस तरफ की चेहरे की पेशियों को नियंत्रित करना सम्भव नहीं हो पाता।
इन्हें भी देखें
प्रमस्तिष्क अंगघात या प्रमस्तिष्क पक्षाघात या सेरेब्रल पाल्सी
बेल्स पाल्सी/ बैल अंगघात |
कुमाऊँ मंड़ल के अतिरिक्त भी नन्दादेवी समूचे गढ़वाल और हिमालय के अन्य भागों में जन सामान्य की लोकप्रिय देवी हैं। नन्दा की उपासना प्राचीन काल से ही किये जाने के प्रमाण धार्मिक ग्रंथों, उपनिषद और पुराणों में मिलते हैं। रूप मंडन में पार्वती को गौरी के छ: रुपों में एक बताया गया है। भगवती की ६ अंगभूता देवियों में नन्दा भी एक है। नन्दा को नवदुर्गाओं में से भी एक बताया गया है। भविष्य पुराण में जिन दुर्गाओं का उल्लेख है उनमें महालक्ष्मी, नन्दा, क्षेमकरी, शिवदूती, महाटूँडा, भ्रामरी, चंद्रमंडला, रेवती और हरसिद्धी हैं। शक्ति के रूप में नन्दा ही सारे हिमालय में पूजित हैं।
नन्दा के इस शक्ति रूप की पूजा गढ़वाल में कुरुड़, दसोली, बधाणगढी, हिंडोली, तल्ली दसोली, सिमली, देवराड़ा, बालपाटा, कांडई दशोली, चांदपुर, गैड़लोहवा आदि स्थानों में होती है। गढ़वाल में राज जात यात्रा का आयोजन भी नन्दा के सम्मान में होता है।
कुमाऊँ में अल्मोड़ा, रणचूला, डंगोली, बदियाकोट, सोराग, कर्मी, पोंथिग, कपकोट तहसील, चिल्ठा, सरमूल आदि में नन्दा के मंदिर हैं। अनेक स्थानों पर नन्दा के सम्मान में मेलों के रूप में समारोह आयोजित होते हैं। नन्दाष्टमी को कोट की माई का मेला,माँ नन्दा भगवती मन्दिर पोथिंग (कपकोट) में नन्दा देवी मेला (जिसे पोथिंग का मेला के नाम से भी जानते हैं) और नैतीताल में नन्दादेवी मेला अपनी सम्पन्न लोक विरासत के कारण कुछ अलग ही छटा लिये होते हैं परन्तु अल्मोड़ा नगर के मध्य में स्थित ऐतिहासिकता नन्दादेवी मंदिर में प्रतिवर्ष भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को लगने वाले मेले की रौनक ही कुछ अलग है।
नंदा देवी मेला महोत्सव किस तरह से मनाया जाता है
उत्तराखंड में नंदा देवी महोत्सव हर साल बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। आस्था और भक्ति का प्रतिक यह मेला तीन से चार दिन तक मनाया जाता है। महोत्सव का शुभारम्भ पंचमी तिथि से किया जाता है। हास्य द्वारा निर्मित माँ नंदा और सुनंदा की प्राकृत प्रतिमाएं बनाई जाती है। प्रतिमाएं मुख्या रूप से नंदा पर्वत के सामना ही बनाई जाती है। षष्टी के दिन पुजारियों द्वारा गोधूली के समय पूजन का सामान और श्वेत वस्त्र लेकर केले के झुरमुटों के पास जाते है और पूजा कार्य होने के बाद धूप दीये जलाकर अक्षत मुट्ठी में लेकर कदली स्तम्भ की ओर फेंके जाते हैं। मान्यता अनुसार सबसे पहले हिलने वाले स्तम्भ से देवी नंदा की प्रतिमा बनाई जाती है और जो स्तम्भ द्वितीय स्थान पर हिलता डुलता है उससे सुनंदा का निर्माण किया जाता है बाकि अन्य स्तभों द्वारा देवी शक्तियों के हाथ पैर बनाये जाते हैं।
अल्मोड़ा में नन्दादेवी के मेले का इतिहास
यूं तो संपूर्ण उत्तराखंड में नंदा देवी को कुल इष्ट देवी मानता आया है । कुरुड़
की नंदा देवी की यात्रा कई सौ सालों से होती आ रही है। नंदा भगवती की यात्रा सिद्ध पीठ कुरुड़ से शिव के कैलाश त्रिशूली के प्रारभ्य भाग तक तक होती चली आई ।प्रत्येक साल से यह यात्रा होती है।बधाणगढ़ी के सभी लोगों व राजा की मां के प्रति अटूट आस्था होने के कारण प्रजा की मांग पर राजा ने मां भगवती को बधाणगढ़ी
में विराजित होने के लिए प्रार्थना की तब राजा की प्रार्थना मां भगवती ने स्वीकार की । इसके पश्चात १६२० के आसपास मां नंदा भगवती भाद्रपद मास में चमोली के सिद्ध पीठ कुरुड़ से कैलाश यात्रा कर वापस बधाणगढ़ी
के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में विराजित हुई । सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के समय मकर सक्रांति को अपने धाम सिद्धपीठ कुरुड़
मैं स्थापित हो गई। प्रत्येक वर्ष यह चक्र होता चला आया।
मां नंदा भगवती की डोली के साथ मां भगवती का सिंहासन व नंदा भगवती की स्वर्ण मूर्ति भी बधाणगढ़ी
के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में विराजमान रहती थी जिसे बधाणगढ़ी
का मंदिर भी कहा जाता है।
क्योंकि बधाणगढ़ी पहले से ही धन-धान्य से परिपूर्ण रहा है इसलिए बधाणगढ़ी पर बगल के शासकों की हमेशा नजर रहती थी और आक्रमण तथा लूट के लिए सदैव तत्पर रहते थे।इसी बीच सन १६७० में चंद्र वंश के राजा बाज बहादुर चंद ने बधाणगढ़ी पर आक्रमण कर दिया । राजा बाज बहादुर चंद की सैन्य शक्ति अधिक होने के कारण उन्होंने बधाणगढ़ी के शासक को युद्ध में हरा दिया ।चंद शासक ने गढ़ में बहुत लूटमार की तथा यहां से कीमती वस्तुएं लूट करके ले गए तथा दक्षिणेश्वर काली मंदिर से (जहां सिद्धपीठ कुरुड़ की नंदा भगवती विराजमान थी) नंदा देवी की स्वर्ण मूर्ति अल्मोड़ा ले आए।नंदा देवी की मूर्ति अपने मल्ला महल(वर्तमान कचहरी) में रखवा दिया।
१६९०-९१ मैं तत्कालीन राजा उद्योत चंद ने उद्योत चंद्रेश्वर तथा पार्वती चंद्रेश्वर मंदिर बनवाए।
१८१५ में अंग्रेजी कमिश्नर ट्रेल ने मल्ला महल से नंदा भगवती की मूर्ति उद्योत चंद्रेश्वर मंदिर में रखवा दिया।
कुछ समय बाद कमिश्नर हिमालय के नंदा देवी चोटी की तरफ गए तथा वापस आने पर उनकी आंखें खराब हो गई लोगों ने विश्वास दिलवाया कि देवी का दोष हो गया। इस पर लोगों की सलाह पर १८१६ में उन्होंने चंद्रेश्वर मंदिर परिसर में ही नंदा का मंदिर बनवाया तथा वहां नंदा देवी की मूर्ति को स्थापित करवाया। बाद में उन्होंने ही नैनीताल में भी मंदिर स्थापित किया। सिद्ध पीठ कुरुड़ की नंदा ही बधाणगढ़ी
में तथा २१५ वर्ष से वही नंदा भगवती अल्मोड़ा में पूजी जाती है
अल्मोड़ा शहर सोलहवीं शती के छटे दशक के आसपास चंद राजाओं की राजधानी के रूप में विकसित किया गया था। यह मेला चंद वंश की राज परम्पराओं से सम्बन्ध रखता है तथा लोक जगत के विविध पक्षों से जुड़ने में भी हिस्सेदारी करता है।
पंचमी तिथि से प्रारम्भ मेले के अवसर पर दो भव्य देवी प्रतिमायें बनायी जाती हैं। पंचमी की रात्रि से ही जागर भी प्रारंभ होती है। यह प्रतिमायें कदली स्तम्भ से निर्मित की जाती हैं। नन्दा की प्रतिमा का स्वरुप उत्तराखंड की सबसे ऊँची चोटी नन्दादेवी के सद्वश बनाया जाता है। स्कंद पुराण के मानस खंड में बताया गया है कि नन्दा पर्वत के शीर्ष पर नन्दादेवी का वास है। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि नन्दादेवी प्रतिमाओं का निर्माण कहीं न कहीं तंत्र जैसी जटिल प्रक्रियाओं से सम्बन्ध रखता है। भगवती नन्दा की पूजा तारा शक्ति के रूप में षोडशोपचार, पूजन, यज्ञ और बलिदान से की जाती है। सम्भवत: यह मातृ-शक्ति के प्रति आभार प्रदर्शन है जिसकी कृपा से राजा बाज बहादुर चंद को युद्ध में विजयी होने का गौरव प्राप्त हुआ। षष्ठी के दिन गोधूली बेला में केले के पोड़ों का चयन विशिष्ट प्रक्रिया और विधि-विधान के साथ किया जाता है।
षष्ठी के दिन पुजारी गोधूली के समय चन्दन, अक्षत, पूजन का सामान तथा लाल एवं श्वेत वस्र लेकर केले के झुरमुटों के पास जाता है। धूप-दीप जलाकर पूजन के बाद अक्षत मुट्ठी में लेकर कदली स्तम्भ की और फेंके जाते हैं। जो स्तम्भ पहले हिलता है उससे नन्दा बनायी जाती है। जो दूसरा हिलता है उससे सुनन्दा तथा तीसरे से देवी शक्तियों के हाथ पैर बनाये जाते हैं। कुछ विद्धान मानते हैं कि युगल नन्दा प्रतिमायें नील सरस्वती एवं अनिरुद्ध सरस्वती की हैं। पूजन के अवसर पर नन्दा का आह्मवान 'महिषासुर मर्दिनी' के रूप में किया जाता है। सप्तमी के दिन झुंड से स्तम्भों को काटकर लाया जाता है। इसी दिन कदली स्तम्भों की पहले चंदवंशीय कुँवर या उनके प्रतिनिधि पूजन करते है। उसके बाद मंदिर के अन्दर प्रतिमाओं का निर्माण होता है। प्रतिमा निर्माण मध्य रात्रि से पूर्व तक पूरा हो जाता है। मध्य रात्रि में इन प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा व तत्सम्बन्धी पूजा सम्पन्न होती है।
मुख्य मेला अष्टमी को प्रारंभ होता है। इस दिन ब्रह्ममुहूर्त से ही मांगलिक परिधानों में सजी संवरी महिलायें भगवती पूजन के लिए मंदिर में आना प्रारंभ कर देती हैं। दिन भर भगवती पूजन और बलिदान चलते रहते हैं। अष्टमी की रात्रि को परम्परागत चली आ रही मुख्य पूजा चंदवंशीय प्रतिनिधियों द्वारा सम्पन्न कर बलिदान किये जाते हैं। मेले के अन्तिम दिन परम्परागत पूजन के बाद भैंसे की भी बलि दी जाती है। अन्त में डोला उठता है जिसमें दोनों देवी विग्रह रखे जाते हैं। नगर भ्रमण के समय पुराने महल ड्योढ़ी पोखर से भी महिलायें डोले का पूजन करती हैं। अन्त में नगर के समीप स्थित एक कुँड में देवी प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है।
मेले के अवसर पर कुमाऊँ की लोक गाथाओं को लय देकर गाने वाले गायक 'जगरिये' मंदिर में आकर नन्दा की गाथा का गायन करते हैं। मेला तीन दिन या अधिक भी चलता है। इस दौरान लोक गायकों और लोक नर्तको की अनगिनत टोलियाँ नन्दा देवी मंदिर प्राँगन और बाजार में आसन जमा लेती हैं। झोड़े, छपेली, छोलिया जैसे नृत्य हुड़के की थाप पर सम्मोहन की सीमा तक ले जाते हैं। कहा जाता है कि कुमाऊँ की संस्कृति को समझने के लिए नन्दादेवी मेला देखना जरुरी है। मेले का एक अन्य आकर्षण परम्परागत गायकी में प्रश्नोत्तर करने वाले गायक हैं, जिन्हें बैरिये कहते हैं। वे काफी सँख्या में इस मेले में अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। अब मेले में सरकारी स्टॉल भी लगने लगे हैं। |
सलाहुद्दीन परवेज़ उर्दू भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानीसंग्रह आइडेण्टिटी कार्ड के लिये उन्हें सन् १९९१ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत उर्दू भाषा के साहित्यकार |
पाहाड़पुर बौद्धबिहार या सोमपुर बिहार या सोमपुर महाविहार एक प्राचीन बौद्ध बिहार है जो बर्तमान में ध्वंस अवस्था में है। यह बांग्लादेश के नवगाँव जिले के बादलगाछी उपजिले के पहाड़पुर में स्थित है। यह भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्रसिद्ध बौद्ध बिहारों में से एक है। १८७९ में कनिंघम ने इसकी खोज की थी। वर्ष १९८५ में यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थल घोषित किया।
पालवंश के द्बितीय राजा धर्मपाल देव ने ८वीं शताब्दी के अन्तिम काल में या ९वीं शताब्दी में इस बिहार का निर्माण कराया था। इस बिहार के पास ही स्थित हलूद विहार और सीताकोट विहार (दिनाजपुर जिला) भी उसी काल के हैं। पहाडपुर के बौद्धबिहार को संसार का सबसे बड़ा बौद्ध बिहार कहा जा सकता है। आकार में इसकी तुलना नालन्दा महाविहार से की जा सकती है। यहाँ केवल भारतीय उपमहाद्वीप के ही नहीं बल्कि चीन, तिब्बत, बर्मा, मलेशिया, इन्डोनेशिया आदि देशों के बौद्ध भी धर्मचर्चा एवं धर्मज्ञान करने के लिये यहाँ आते थे। १०वीं शताब्दी में अतीश दीपंकर श्रीज्ञान इस बिहार के आचार्य थे।
बांग्लादेश में विश्व धरोहर स्थल |
भीम सागर गांव के ज्यादातर लोग खेती पर निर्भर करते है इस कारण रोजगार का साधन ही यही है।
भीमसागर गांव के सरपंच अशोक कुमार ईश्रवाल है ओसियां क्षेत्र के भीमसागर गांव मे बहुत सालों से अशोक कुमार ईश्रवाल सक्रिय है भीमसागर गांव को विकास की ओर लेकर आए ।
ओसियां तहसील के गाँव
जोधपुर ज़िले के गाँव
राजस्थान के गाँव |
लेटपल्लॆ (कडप) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कडप जिले का एक गाँव है।
आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट
आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग
निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल
आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट |
कुणाल बहल भारत के एक उद्यमी तथा ई-कामर्स प्लेटफ्प्प्र्म स्नैपडील के सहसंस्थापक एवं सीईओ हैं। |
स्कून का पत्थर एक लम्बा लाल रंग का बलुआ पत्थर (यानि सैंडस्टोन) है जिसे सदियों से स्कॉट्लैंड के राजाओं के राज्याभिषेक के लिए प्रयोग किया जाता था और सन् १२९६ के बाद ब्रिटेन (मय स्कॉट्लैंड और इंग्लैंड) के सम्राटों के राज्याभिषेकों के लिए भी इस्तेमाल किया गया है। इसे अंग्रेज़ी में "स्टोन ऑफ़ स्कून" (स्टोन ऑफ स्कोन) या "स्टोन ऑफ़ डॅस्टिनि" (स्टोन ऑफ डेस्टीनी, भाग्य का पत्थर) का पत्थर कहा जाता है और स्कॉट्लैंड की गेलिक भाषा में "अन लिया फिल" लिखा जाता है।
इसकी लम्बाई २६ इंच, चौड़ाई १६.७५ इंच और ऊँचाई १०.५ इंच है और इसका वज़न 1५2 किलोग्राम है। इसकी ऊपरी सतह पर तराशे जाने के कुछ निशान हैं। पत्थर के दोनों तरफ लोहे की एक-एक कड़ी है, जो शायद इसे उठाकर हिलाने में आसानी होने के लिए लगवाई गई थीं।
यह पक्का ज्ञात नहीं है के स्कून का पत्थर कहाँ से आया और कितना पुराना है। सन् १२९६ तक यह स्कॉट्लैंड में स्कून के मठ में रखा जाता था जो पॅर्थ़ शहर से कुछ मील उत्तर में पड़ता है। १४वीं सदी के पादरी और इतिहासकार वाल्टर हेमिन्ग्फ़ोर्ड ने लातिनी भाषा में लिखा था - "अपूड मोनेस्टेरियम दे स्कोन पॉजिटस एस्ट लपीस परग्रांडिस इन एक्स्लेशिया देई, जुड़ता मानुम अल्तरे, कोंकेवस क्विडम अध मोडम रोतुंडे कैथेड्रीऐ कॉन्फेक्टस, इन को फुत्रे रेजेस लोको क्वासी कोरोनटिस" यानि "स्कून के मठ में, भगवन के मंदिर में, ऊँची वेदी के नज़दीक़, एक बड़ा पत्थर पड़ा है जिसको अन्दर से ज़रा खोखला कर के गोल कुर्सीनुमा बना दिया गया है और जिसपर इनके (स्कॉटीयों के) राजा अपने अभिषेक के लिए परम्परानुसार बैठाए जाते हैं।"
सन् १२९६ में इंग्लैंड के राजा ऍडवार्ड प्रथम ने स्कॉट्लैंड पर युद्ध करके उसे परास्त कर दिया और ज़बरदस्ती स्कून का पत्थर इंग्लैंड ले आये। उन्होंने एक लकड़ी का सिंहासन बनवाया जिसे अब राजा ऍडवर्ड की कुर्सी ("किंग ऍडवर्डस चेयर") कहा जाता है। इसमें उन्होंने बैठने के तख़्ते के नीचे एक खुला ख़ाना बनवाया जिसमें स्कून का पत्थर आ सके। उसके बाद जब भी किसी ब्रिटिश सम्राट का राज्याभिषेक हुआ है तो वह इसी कुर्सी पर बैठकर हुआ है। क्योंकि कुर्सी पर बैठने वाला एक तरह से स्कून के पत्थर के ऊपर भी विराजमान होता है, इसलिए स्कॉट्लैंड की परंपरा के अनुसार वह स्कॉट्लैंड का भी राजा बन जाता है।
सदियों तक कई स्कॉटियों को यह बात अखरती रही के स्कॉट्लैंड की यह ऐतिहासिक शिला इंग्लैण्ड में रखी जाती है - उनके लिए यह स्कॉट्लैंड की गुलामी का एक प्रतीक बन गया। सन् १९९६ में ब्रिटिश सरकार ने इन भावनाओं को नज़र में रखते हुए यह घोषणा की के यह पत्थर स्कॉट्लैंड में रखा जाएगा और लन्दन तभी लाया जाएगा जब किसी नए राजा का अभिषेक करना हो।
इन्हें भी देखें
राजा ऍडवार्ड की कुर्सी
इंग्लैंड का इतिहास
हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना |
बुंदेलखंड के कलचुरियों के समाज में नीति, मर्यादा, धर्मनिष्ठा के साथ युद्धों की अधिकता थी अत: अनिश्चय का वातावरण था। शैवोपासना का प्रसार युवराज देव के समय में हुआ। इस समय शोण नदी के तट पर मत्तमयूर शैवों का बहुत बड़ा मठ बनाया गया। इतिहासकारों के विचार से युवराजदेव के राज में शैव सिद्धांत, शैवागम, शैवाचार्य, शैवमठ मन्दिरों की बाढ़ सी आ गई थी। बुंदेलखंड में ज्ञान साधना के केन्द्रों के रूप में अनेक मठों का निर्माण किया गया। गुर्गी और बिलहारी के मठ और मंदिर इस समय में साहित्य और अन्य विद्याओं की अभूतपूर्व उन्नति। शैवों के साथ सिद्ध भी जुड़े हुए हैं। कदम्ब गुहा शैव-सिद्धों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है तथा गोलकी मठ के साथ तो अनेक ग्रामों की आय भी जुड़ी थी। युवराज देव के समय में साहित्य के क्षेत्र में कवि "राजशेखर' का बुंदेलखंड में आना और "विद्वशाल भंजिका' नाटक, कर्पूरमंजरी तथा बालरामायण की रचना तत्कालीन साहित्यिक वातावरण को प्रस्तुत करती है। ग्यारवीं शताब्दी में कर्ण ने काशी में "कर्णमेह' नाम से शिव का प्रसिद्ध प्रसाद बनवाया था। ऐसा ही अमकंटक में चित्रकूट देवालय के नाम से निर्माण किया गया। स्थापत्य और वास्तुकला की दृष्टि से यह उत्कृष्ट कलाकृति है। बारहवीं शताब्दी में चंदेलों की बढ़ती हुई शक्ति के समक्ष कलचुरियों का पराभव हुआ। कलचुरिवंश लगभग तीन सौ वर्ष तक दक्षिण बुंदेलखंड का शासक रहा। इनके मदिरों में शिव मंदिर अधिक है साथ ही सामान्यतयर त्रिदेवों की पूजा भी होती थी। मूर्तियों में अलंकरण का प्रावधान और प्राधान्य था। समाज में विभिन्न वर्गों में उपजातियों का निर्माण इसी काल में हुआ था। क्षत्रिय युद्धों में, वैश्य व्यापार में और ब्राह्मण अपनी जीविका के साधनों के लिए सामंतों के आश्रित तो ये ही साथ ही आचार-विचार और रीतिरिवाजों के कठोरकार रहे थे। कलचुरियों के बाद चंदेलकाल में इसका विस्तार ही हुआ।
चंदेल काल :
आठवीं नवीं शताब्दी के उपरांत बुंदेलखंड के समाज में विशेष परिवर्तन आया। विदेशी आक्रमणकारियों के संस्कृत के कारण हिन्दु समाज में कट्टरता की भावना बढ़ी। आर० सी० मजूमदार ने ब्राह्मणों की निरंकुशता को एक अनिवार्य कारण माना जिसके कारण शेष समाज को उनके अधीन बन जाना पड़। दसवीं ग्यारहवीं शताब्दी के इतिहासकार इब्नशुर्दद्व के लेखों में भी इस का समर्थ नहीं मिलता है। चन्देलकाल में जाति विभाजन के दो पहलू थे - व्यावसायिक और विवाह जन्म जो बारहवीं शताब्दी के अंत तक स्थिर न रह सके। जातीय वर्ग विश्रंखलन सभी वर्णों में घटित हुआ। सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए समाज को ब्राह्मणों की ओर देखना पड़ता था। अलबेरुनी ने लिखा है महमूद ने भारतवर्ष की सभी अर्जित घाती और उसका सौंदर्य सोलह आने नष्ट कर दिया। हिन्दुओं के विचार क्रमश: संकीर्णता की ओर बढ़ते गए। इस समय परिवार की दशा व्यावसायिक थी और उपजीविका से संबंध रखती थी। मध्ययुग तक वैश्य केवल कृषि का कार्य करते थे परंतु इस काल में वे कृषि कार्य से एक दम विरक्त हो गए और बूढ़ों के साथ ब्राह्मणों और क्षत्रियों ने इस हस्तगत कर लिया।
केशव प्रसाद मिश्र के अनुसार विवाह जैसे संस्कार में भी ब्राह्मणों को अन्य जाति (क्षत्रियों, वैश्य) की कन्या से विवाह वर्जित था। मध्ययुग के उत्तर में बाल-विवाह भी प्रचलित हुए और उसके निर्मित मनु-समृति और पराशर संहिता की व्यवस्थाओं को दुहराया गया -
अष्ट वर्षा भवेगौरी नव वर्षा तु रोहिणी।
दश वर्षा भवेत्कन्या तत उर्दू रजस्वला।।
प्राप्तेषु द्वादश वर्षे कन्यां यो न प्रयच्छति।
मसि मसि रजस्तस्या: पिवन्ति पितर: स्वयं।।
बाल्यविवाह का एक कारण मुसलमानों अथवा विदेशियों के अत्याचार भी था। विधवा विवाह मना किया गया। बहुविवाह प्रथा प्रचलित रही। धीरे-धीरे जाति के बाहर का संबंध निषिद्ध हुआ। चंदेल राजाओं ने समकुलशील वालों के यहाँ भी विवाह संबंध किए हैं। नारियों की दशा इसी के साथ साथ गिरी और कन्या उत्पन्न करने पर उस ही दृष्टि से देखा गया। नारियों के अभिशप्त दशा में पहुँचने पर पारिवारिक विश्रंखलता आनी स्वाभाविक थी।
भोजन और पेय में शूद्रों को छोड़ कर शेष सभी वर्ण आपस में मिलते जुलते थे। शूद्र कि स्थिती दिन-प्रतिदिन गिरती गई। ब्राह्मण से शूद्र का यह निर्देश "टूरे तावत्स्थीयताम्। ब्राह्मण प्रस्वेद कनिका प्रसरन्ति' उनकी स्थिति का ज्ञापन कराता है। मद्यपान यद्यपि घृणित था परंतु यह प्रचलित था। वस्रों में पैजाम, पगड़ी, मिरजई का चलन था। आभूषण प्राय: सभी स्री-पुरुष पहनते थे।
सामाजिक रीत-रिवाजों में परिशुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता था। कृषि कार्य में बैसाख सुदी तीज को कृषि वर्ष का आरंभ माना जाता था। देवशयन आषाढ़ सुदी ११ को और देव जागरण कार्तिक सुदी ११ को मानना कृषि संबंधी पूजा की रीति थी। सामान्य लोगों में कर्म और उनके फलों का विश्वास था (प्राय: सुकृतिनामर्थे देवायान्ति सहायताम् प्रबोध चन्दोदयय पृ० १४१) पर अनार्य जातियों में विशेषकर गौड़ और सौरों में भूतप्रेत में विश्वास दृढ़ था। फलस्वरुप ये अनेक काल्पनिक देवताओं की पूजा करके धर्म भावना की तृप्ति करते थे। भाव-जगतम, जवार, झाड़ फूँक पर लोगों को औषधियों से भी अधिक विश्वास था। यह तांत्रिकों और अघोरपंथियों का युग था। वर्तमान बुंदेलखंड में जिम ग्राम देवताओं (खेरमाता, भिड़ोहिया, घटोइया, गौड़ बाब, मसानबाबा, नट बाबा, छीट) का प्रचलन है तथा जिन महामारियों की देवियों और शक्तियों की पूजा प्रचलित है वह इन्हीं की देन है।
मनोरंजन के क्षेत्र में उच्चस्तरीय वर्गों में गायन, वादन और नृत्य, अभिनय आदि थे तो शेष वर्गों में पर्यटनशील सपेरे, अभिचार और ऐन्द्रजालिक कार्य थे। इस प्रकार जिन बुराईयों का श्री गणेश इन शताब्दियों में हुआ वह कालान्तर में प्रौढ़ हो गई। आर्थिक दशा सामान्यत: अच्छी थी पर धार्मिक विवाद और संप्रदायगत संघर्ष बढ़ते ही गए। हठयोग #ौर तंत्र का प्रसार भी हुआ। धार्मिक अनैक्य के रहते हुए भी बौद्धधर्म का तिरोहण हुआ परन्तु कुमारिल और शंकर के अभियान के बावजूद जैन धर्म पल्लवित होता रहा। खजुराहो और महोबा में बने जैन मन्दिर इसके प्रमाण हैं। चंदेह शासकों का धर्म हिन्दु था पर वे जैन धर्म के प्रति उदार थे। धर्म में वैष्णव सम्प्रदाय के स्वरुप में परिवर्तन आया। बुद्ध विष्णु के अवतार के रूप में घोषित हो चुके थे। अहिंसा के समादार से वैष्णव धर्म ने जैन धर्म को आसन्त किया है शैव मत प्रसार वैष्णव मते के समानतर ही रहा परन्तु शाक्त को भी लोग मानते रहे। इस प्रकार विष्णु, देवी, गणेश, सूर्य आदि की पूजा प्रचलित थी परन्तु वैदिक विधियां तपंण, सूर्योपासना और हवन क्रमश: महत्वहीन होती गई। प्रत्येक हिन्दु गृह में किसी न किसी देव की लघु मूर्ति प्रतिष्ठित होती गई। हिन्दुओं के पंचांग त्यौहार से भरे पड़े थे। तीर्थ यात्रा की महिमा स्थापित हुई। मन्दिरों का जीर्णोद्धार, तालाब खुदवाना धार्मिक कृत्य बन गया। जहां तक इस्लाम की बात है बुंदेलखंड में इसका प्रभाव मुगलकाल में भी प्राय: नगण्य रहा है।
देशी राज्यों के उदय से प्रदेशीय भाषाओं का उदय भी हुआ। चन्देल साम्राज्य के अंतर्गत बुंदेली की विकास हुआ। अन्य भाषाओं में गौणी, बघेली का विकास हो रहा था। बुंदेली साहित्य का निर्माण इसी समय प्रारंभ हुआ। संस्कृत में उपदेशात्मक साहित्य, सोमदेवकृत कथा सरित्सागर, त्रिविक्रम भ कृत नल चम्पू, कृष्ण मिश्र रचित प्रबोध चन्द्रोदय (नाटक) तथा धार्मिक साहित्य पर भाष्य लिखे गये। ललित कलाओं, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि पर ग्रन्थों का प्रणयन हुआ।
चन्देलों ने जलाशयों और दुर्गों के निर्माण में विशेष शक्ति लगाई कालंजर का दुर्ग यद्यपरि ७वीं शती का निर्मित माना जाता है पर यह चन्देल साम्राज्य का विशेष आकर्षण था। अजयगढ़, बारीगढ़, मतियागढ़ मारफ, मौधा, मरहर, देवगढ़ आदि इसी युग का स्मरण कराते हैं। मुद्राओं में चन्देल और कलचुरियों के सिक्के मिलते जुलते हैं।
चन्देलों ने उस संक्रमण काल में शासन किया है जिसमें मुसलमान क्रमश: विजय की ओर और हिन्दु पतन की ओर बढ़ रहे थे। शासकों की राजनितिक दृष्टि में संकीर्णता होने के कारण राष्ट्रीयता का सार्वभौम भाव प्राय: लुप्त था। देश बाहर और भीतर से संघर्ष की भट्टी में था। कुल मिलाकर धर्म, समाज, संस्कृति और साहित्य में परिस्थितियों से साक्षात् करने वाली दृष्टियों को अपनाया गया। धार्मिक उदारता तो रही पर भीतर से समाज धर्म और संस्कृति में एक कठोर व्यवस्था का ताना बाना बुन रही थी। तांत्रिकों और अघोरपंथियों के उदय के साथ मैथुन और मदिरा का उसी प्रकार प्राबलय हो गया जिस प्रकार वज्रयानियों और मंत्रयानियों में था। हिन्दुधर्म में उपासना के और अनेक माध्यम स्थापित हो गये। धर्म यात्रा, तीर्थ, दान, त्यौहार और व्रतों की मान्यता अधिक हो गई। यही चन्देल कालीन बुंदेली समाज का स्वरुप और संस्कृति थी। |
अल्जीरिया-भारत संबंध अल्जीरिया और भारत के बीच बढ़ते हुए द्विपक्षीय संबंधों को दर्शाता है। अल्जीरिया का नई दिल्ली में एक दूतावास है, और भारत का अल्जीयर्स में एक दूतावास है। दोनों देश गुट निरपेक्ष आंदोलन के सदस्य हैं। अफ्रीकी संघ के सदस्य के रूप में अल्जीरिया एक सुधारित सुरक्षा परिषद में एक स्थायी सीट के लिए भारत की उम्मीदवारी का समर्थन करता है।
द्विपक्षीय व्यापार २००१ में ५५ मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर २०११ में ३.४ बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। २००७ में भारत और अल्जीरिया ने तेल क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए कदम बढ़ाए।
मारुति का अल्जीरिया में एक महत्वपूर्ण बाजार है, यह देश इसका तीसरा सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। वर्ष २०११-१२ में मारुति ने अल्जीरिया में लगभग १७,२४७ कारों का निर्यात किया।
द्विपक्षीय सहयोग और सहायता
मई २००३ में आए भूकम्प से निबटने के लिए अल्जीरियाई भूकंप पीड़ितों के लिए भारत ने मानवीय सहायता के रूप में १ मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रदान किए। इसमें से आधा मिलियन अमेरिकी डॉलर की दवाएं अप्रैल २००४ में सौंपी गईं और बाक़ी आधा पीड़ितों के लिए घरों के लिए निर्माण स्टील के रूप में अक्टूबर २००६ में सौंप दिया गया। इसरो ने जुलाई २0१0 में अल्जीरियाई सैटेलाइट अलसैट २आ को कक्षा में लॉन्च किया।
भारत के द्विपक्षीय संबंध |
डंण्ठी, चम्पावत तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के चम्पावत जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
डंण्ठी, चम्पावत तहसील
डंण्ठी, चम्पावत तहसील |
अंसार अहमद,भारत के उत्तर प्रदेश की सोलहवीं विधानसभा सभा में विधायक रहे। अंसार अहमद समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। २०१२ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश की फाफामऊ विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र (निर्वाचन संख्या-२५४)से चुनाव जीता। इसके पहले अंसार अहमद नवाबगंज विधानसभा सीट से २००२ में विधानसभा सदस्य चुने गए थे और मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार में पशुपालन मंत्री भी रह चुके हैं। परिसीमन आयोग ने नवाबगंज विधानसभा सीट २००८ में खत्म कर दी और फाफामऊ नया विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र बना फिर वह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव २०१२ में फाफामऊ विधानसभा सीट से निर्वाचित हुए।
उत्तर प्रदेश १६वीं विधान सभा के सदस्य
फाफामऊ के विधायक |
१९४७ में सुरक्षा परिषद् में स्थाई सदस्यों के उग्र विरोध और वीटो के प्रयोग के कारण ऐसा गतिरोध उत्पन्न हो गया कि सुरक्षा परिषद् के द्वारा युद्घ और आक्रमणों कि आशंकाओ से भयभीत विश्व को नवीन परिस्थिति का सामना करने के लिए १३ नवम्बर १९४७ को अंतरिम समिति नामक एक सहायक अंग स्थापित किया। इसे छोटी असेम्बली कहा जाता है। यह महासभा का सामान्य अधिवेशन न होने कि दशा में उसके अधिकार क्षेत्र में आने वाले प्रश्नों पर विचार करती है। महासभा के प्रत्येक सदस्य को इसमें एक सदस्य भेजने का अधिकार है। आरम्भ में यह दो बार एक वर्ष के लिए बने गयी थी। नवम्बर १९४९ में इसे निश्चित अवधि के लिए पुनःस्थापित किया गया। सन् १९५२ के बाद इसकी कोई बैठक नहीं हुई है। |
राजगढ़ एक पहाड़ी किला है जो भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले में स्थित है। इसे मुरुमदेव के नाम से भी जाना जाता है। यह किला लगभग २६ वर्षों तक छत्रपती शिवाजी महाराज के शासन में मराठा साम्राज्य की राजधानी थी। बाद में राजधानी को रायगढ़ किले में स्थानांतरित कर दिया गया था। तोरण नामक एक निकटवर्ती किले से खोजे गए खजाने का इस्तेमाल इस किले को बनाने और मजबूत करने के लिए किया गया था।
यह पुणे के दक्षिण-पश्चिम में लगभग ६० किमी (३७ मील) और सह्याद्रि में नासरपुर से लगभग १५ कि.मी. (९.३ मील) दूर स्थित है। यह किला समुद्र तल से १,३७6 मीटर (४,5१४ फीट) ऊँचा है। किले के आधार का व्यास लगभग ४0 किमी (२५ मील) है, जिसने इस पर इतिहास में घेराबंदी करना मुश्किल बना दिया था। किले के खंडहरों में पानी के कुंड और गुफाएँ पाएँ गए हैं। यह किला मुरुमादेवी डोंगर (देवी मुरुम्बा का पर्वत) नामक पहाड़ी पर बनाया गया था। माना जाता है कि इसकी सुरक्षित भौगोलिक स्थिति के कारण ही छत्रपती शिवाजी महाराज ने इसे कई साल शासन का केन्द्र बनाएं रखा।
यह किला शिवाजी के पुत्र राजाराम प्रथम के जन्म, शिवाजी की रानी सई भोसले की मृत्यु, आगरा से शिवाजी की वापसी, अफज़ल खान की पराजय आदि महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ा है। राजगढ़ किला भी उन १७ किलों में से एक था, जिसे शिवाजी ने १६६५ में पुरंदर की संधि पर हस्ताक्षर करते समय मुगल सेना के सेनापति जय सिंह प्रथम के समक्ष रखा था। इस संधि के तहत, २३ किलों को मुगलों को सौंप दिया गया था।
यह किला एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है और विशेष रूप से मानसून के दौरान यहाँ सबसे अधिक भीड़ होती है। यह देखते हुए कि यह किला बहुत बड़ा है और एक ही दिन में इसका पर्यटन नहीं किया जा सकता है, पर्यटक किले पर रात भर रुकना पसंद करते हैं। किले के पद्मावती मंदिर में लगभग ५० लोग बैठ सकते हैं। पानी की टंकियों से पूरे वर्ष भर ताज़े पानी की व्यवस्था की जाती हैं। राजगढ़ की तलहटी के ग्रामीण इन पर्यटकों को स्थानीय प्राचीन वस्तुएँ बेचते हैं।
इन्हें भी देखें
भारत के दुर्ग
महाराष्ट्र का इतिहास
भारत में दुर्ग |
आनंद (स्थविर) बौद्ध धर्म की मान्यताओं के अनुसार बुद्ध के चेचेर भाई थे जो बुद्ध से दीक्षा लेकर उनके निकटतम शिष्यों में माने जाने लगे थे। वे सदा भगवान् बुद्ध की निजी सेवाओं में तल्लीन रहे। वे अपनी तीव्र स्मृति, बहुश्रुतता तथा देशनाकुशलता के लिए सारे भिक्षुसंघ में अग्रगण्य थे। बुद्ध के जीवनकाल में उन्हें एकांतवास कर समाधिभावना के अभ्यास में लगने का अवसर प्राप्त न हो सका। महापरिनिर्वाण के बाद उन्होंने ध्यानाभ्यास कर अर्हत् पद का लाभ किया और जब बुद्धवचन का संग्रह करने के लिए वैभार पर्वत की सप्तपर्णी गुहा के द्वार पर भिक्षुसंघ बैठा तब स्थविर आनंद अपने योगबल से, मानो पृथ्वी से उद्भूत हो, अपने आसन पर प्रकट हो गए। बद्धोपदिष्ट धर्म का संग्रह करने में उनका नेतृत्व सर्वप्रथम था।
बुद्ध के शिष्य |
शान्ति भूषण (११ नवम्बर १९२५ ३१ जनवरी २०२३) भारत के भूतपूर्व कानून एवं न्याय मंत्री एवं सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता थे। वे मोरारजी देसाई सरकार में विधि, न्याय एवं कम्पनी कार्य मन्त्री थे। सन् २००९ में इंडियन एक्सप्रेस द्वारा उन्हें विश्व के सबसे शक्तिशाली भारतीय लोगों की सूची में ७४वें स्थान पर रखा गया था। वे भारत में भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष करने वालों में अग्रणी हैं।
शान्ति भूषण कांग्रेस (ओ) पार्टी और बाद में जनता पार्टी के एक सक्रिय सदस्य थे। वे १४ जुलाई १९७७ से २ अप्रैल १९८० तक राज्य सभा के सदस्य रहे। वे मोरारजी देसाई की सरकार में १९७७ से सरकार के पतन तक विधि, न्याय एवं कम्पनी कार्य मन्त्री रहे। सन् १९८० में वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गये। परन्तु १९८६ में जब भारतीय जनता पार्टी ने एक चुनाव याचिका पर उनकी सलाह नहीं मानी तो उन्होंने भाजपा से त्यागपत्र दे दिया।
तत्कालीन विधि मन्त्री के रूप में, उन्होंने १९७७ में लोकपाल बिल प्रस्तुत किया था जो मोरारजी देसाई की सरकार गिर जाने के कारण पारित नहीं हो सका। सम्प्रति वे अप्रैल २०११ में गठित जन लोकपाल विधेयक की संयुक्त समिति के सह-अध्यक्ष रहे।
इन्हें भी देखें
जन लोकपाल विधेयक
शान्ति भूषण कानून के माहिर खिलाड़ी
नोएडा जमीन विवाद भ्रष्ट लोगों का दुष्प्रचार: शान्ति भूषण
रद्द कर दीजिए प्लॉट, नहीं चाहिए : शान्ति भूषण
माफी नहीं, जेल जाने को तैयार : शान्ति भूषण
देश के आठ प्रधान न्यायाधीश भ्रष्ट थे : शान्ति भूषण का सनसनीखेज आरोप
शान्ति भूषण के पक्ष में आये एन०ए०सी० के सदस्य
प्रशांत भूषण अन्ना की लड़ाई के अहम सिपाही
भारत के विधिमंत्री
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र
भारत के क़ानून एवं न्याय मंत्री
१९२५ में जन्मे लोग
२०२३ में निधन |
स्पाईज इन डिस्गाइज () एक २०१९ अमेरिकी कंप्यूटर-एनिमेटेड स्पाई कॉमेडी फिल्म है। ब्लू स्काई स्टूडियोज द्वारा निर्मित और ट्वेंटिएथ सेंचुरी फ़ॉक्स द्वारा वितरित।
लांस स्टर्लिंग, एच.टी.यू.वी. का एक अहंकारी गुप्त एजेंट। (ऑनर, ट्रस्ट, यूनिटी एंड वेलोर), जापान में जापानी हथियार डीलर कात्सु किमुरा से एक हमले के ड्रोन को पुनर्प्राप्त करने के लिए भेजा जाता है। जैसे ही खरीदार, साइबरनेटिक रूप से बढ़ा हुआ आतंकवादी, किलियन आता है, स्टर्लिंग एच.टी.यू.वी के आदेशों के खिलाफ टूट जाता है। निर्देशक जॉय जेनकिंस, किमुरा और उसके गिरोह को हरा देते हैं, और ड्रोन युक्त ब्रीफकेस के साथ भागने का प्रबंधन करते हैं। ह.त.उ.व में स्टर्लिंग की वापसी अपने सूट में गैर-घातक हथियारों को लैस करने के लिए, एक सामाजिक रूप से अयोग्य एमआईटी स्नातक और बहिष्कृत युवा वैज्ञानिक वाल्टर बेकेट का सामना करने के लिए मुख्यालय। वाल्टर स्टर्लिंग को समझाने की कोशिश करता है कि दुनिया को बचाने का एक और शांतिपूर्ण तरीका है लेकिन स्टर्लिंग उसे अपने नवीनतम आविष्कार: "बायोडायनामिक छुपाने" की व्याख्या करने से पहले उसे निकाल देता है।
स्टर्लिंग को ब्रीफकेस खाली होने का पता चलता है और उसका सामना एक आंतरिक मामलों के एजेंट मार्सी कप्पल से होता है, जो स्टर्लिंग (वास्तव में एक होलोग्राफिक भेष में किलियन) के ड्रोन के साथ छोड़ने के फुटेज का खुलासा करता है, उसे देशद्रोही के रूप में लेबल करता है। स्टर्लिंग एच.टी.यू.वी. और उसे गायब करने में मदद करने के लिए वाल्टर को खोजने का फैसला करता है। इस बीच, किलियन एच.टी.यू.वी. गुप्त हथियारों की सुविधा।
अपने आविष्कार के लिए वाल्टर के घर की खोज करते हुए, स्टर्लिंग ने मनगढ़ंत मिश्रण को निगल लिया और "क्रोमोथ्रिप्सिस" से गुजरकर कबूतर में बदल गया। इससे पहले कि वाल्टर और स्टर्लिंग यह तय कर सकें कि आगे क्या करना है, मार्सी और अन्य एच.टी.यू.वी. एजेंट शहर में दोनों का पीछा करते हैं, लेकिन दोनों स्टर्लिंग की जासूसी कार में भाग जाते हैं। दोनों मेक्सिको के प्लाया डेल कारमेन के एक रिसॉर्ट में किमुरा को ट्रैक करते हैं। वहां, वे मारसी और एच.टी.यू.वी. से पहले वेनिस, इटली में किलियन के ठिकाने के बारे में सीखते हैं। उन्हें फिर से पकड़ सकता है। वेनिस के रास्ते में, वाल्टर मारक बनाने का प्रयास करता है, लेकिन विफल रहता है।
वेनिस पहुंचने पर, वाल्टर का सामना एच.टी.यू.वी. से होता है, जो स्टर्लिंग की स्थिति से अनजान हैं। खुलासा करते हुए कि वह वाल्टर की मां वेंडी के बारे में जानती है, जो एक पुलिस अधिकारी थी, जो ड्यूटी पर मर गई थी, मार्सी उसे स्टर्लिंग को चालू करने में मदद करने के लिए मनाने की कोशिश करती है, लेकिन वाल्टर मना कर देता है। अचानक, एक ड्रोन एच.टी.यू.वी. और वाल्टर और स्टर्लिंग को भागने की अनुमति देता है। दोनों ह.त.उ.व ले जाने वाले ड्रोन की खोज करते हैं। एजेंट डेटाबेस, और वाल्टर इसे पुनः प्राप्त करने का प्रबंधन करता है। हालांकि, किलियन दिखाता है, डेटाबेस लेता है, और वाल्टर को मारने की तैयारी करता है। आसपास के क्षेत्र में सैकड़ों कबूतरों की मदद से वे किलियन का ध्यान भटकाते हैं और भाग जाते हैं। स्टर्लिंग के वेश में एक बार फिर, किलियन एच.टी.यू.वी. से बच निकलता है, मार्सी के स्टर्लिंग के संदेह को हिलाकर रख देता है जब वह उसे रोबोट हाथ से देखता है।
एक पनडुब्बी में पानी के भीतर, वाल्टर ने खुलासा किया कि उसने किलियन पर एक ट्रैकिंग डिवाइस लगाया और उसे हथियारों की सुविधा में ढूंढ लिया। वाल्टर मारक को पूर्ण करने का प्रबंधन करता है और सफलतापूर्वक स्टर्लिंग मानव को फिर से बदल देता है। किलियन के ठिकाने पर पहुंचकर, स्टर्लिंग वाल्टर की सुरक्षा के बारे में चिंतित है और उसे पनडुब्बी में भेज देता है। एक बार अंदर, स्टर्लिंग किलियन का सामना करता है, लेकिन बाहर खटखटाया जाता है और कब्जा कर लिया जाता है क्योंकि किलियन ने खुलासा किया है कि उसने स्टर्लिंग के नेतृत्व में पिछले मिशन में अपने चालक दल को मारने के लिए बदला लेने के लिए डेटाबेस का उपयोग करके एजेंसी में सभी को लक्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर सैकड़ों ड्रोन बनाए हैं। वाल्टर को पनडुब्बी में लौटते देख, किलियन उसे नष्ट कर देता है; उनसे अनभिज्ञ, वाल्टर अपने एक आविष्कार, इन्फ्लेटेबल हग की मदद से जीवित रहता है।
एक बार जब वाल्टर स्टर्लिंग को मुक्त कर देता है, तो दोनों भाग जाते हैं और सहायता के लिए मार्सी से संपर्क करते हैं क्योंकि ड्रोन एच.टी.यू.वी. वाशिंगटन डीसी में मुख्यालय वाल्टर किलियन की बायोनिक भुजा में हैक करने का प्रयास करता है, लेकिन जब किलियन को यह पता चलता है, तो वह एक ड्रोन के साथ हवा से भागने की कोशिश करता है, लेकिन वाल्टर पकड़ लेता है। वाल्टर ने किलियन को हवा के गले में फँसाकर अपनी जान जोखिम में डाल दी और खलनायक के हाथ को निष्क्रिय कर दिया क्योंकि वाल्टर खुद गिर जाता है, लेकिन स्टर्लिंग, जिसने खुद को एक कबूतर में बदल लिया है, पहली बार सफलतापूर्वक उड़ान भरता है और अन्य कबूतरों की मदद से उसे सुरक्षित स्थान पर ले जाता है। जबकि किलियन को ढूंढ कर गिरफ्तार कर लिया जाता है।
दुनिया को बचाने के बावजूद, स्टर्लिंग-बैक अपने मानव रूप में- और वाल्टर को अवज्ञा के लिए निकाल दिया गया। हालांकि, उन्हें जल्दी से एच.टी.यू.वी. जैसा कि एजेंसी वाल्टर के खलनायकी से निपटने के अधिक शांतिपूर्ण तरीकों से सीख सकती थी।
२०१९ की फ़िल्में |
मद्दिकेर तूर्पु (कर्नूलु) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कर्नूलु जिले का एक गाँव है।
आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट
आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग
निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल
आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट |
रायली रीड एक अमेरिकी पॉर्न फिल्म अभिनेत्री है। २०१३ में, लॉस एंजेलिस वीकली ने "१० पोर्न स्टार्स हू कैन बी द नेक्स्ट जेन्ना जेम्सन" की सूची में रायली आठवें स्थान पर रहीं।
१९ साल की उम्र से ही एक पोर्न स्टार के तौर पर अपना करियर शुरू करने वाली रायली रीड सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं, इंस्टाग्राम पर उनके २,५०,००० फ़ॉलोवर्स हैं।
इन्हें भी देखें
महिला व्यस्क फ़िल्म अभिनेता
१९९१ में जन्मे लोग |
सिरसा (न.ज़.आ.), कोश्याँकुटोली तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
(न.ज़.आ.), सिरसा, कोश्याँकुटोली तहसील
(न.ज़.आ.), सिरसा, कोश्याँकुटोली तहसील |
सैनिक आविष्कार उन आविष्कारों को कहते हैं जिसका विकास सबसे पहले सेना के लिए किया गया था। ऐसे बहुत से आविष्कार हैं जो मूलतः सेना द्वारा अपने उपयोग के लिए विकसित किए गए थे किन्तु बाद में उनका उपयोग असैनिक कार्यों में भी होने लगा।
सैनिक आविष्कार जिनका उपयोग असैनिक कार्यों में भी होता है |
कंपनी वर्ष २००२ रिलीजहुई हिन्दी फिल्म है। यह फिल्म की कहानी मुंबई में १९९० के दशक में चल रहे अंडरवर्ल्ड वॉर पर आधारित है, जिसका निर्देशन राम गोपाल वर्मा ने किया है । इस फिल्म में अजय देवगन, मोहनलाल, विवेक ओबेराय, मनीषा कोईराला और अंतरा माली मुख्य भूमिका में नजर आये थे। यह फिल्म वर्ष २००२ की सबसे ज्यादा कमाई करनेवाली फिल्मों में से एक थी। वर्ष २००३ में आयोजित फिल्मफेयर पुरस्कारों में इस फिल्म ने ७ पुरस्कार जीत कर अपना दबदबा साबित किया था।
मोहनलाल - श्रीनिवासन आईपीएस
अजय देवगन - मलिक
मनीषा कोइराला - सरोजा
सीमा बिस्वास - रानीबाई
विवेक ओबेरॉय - चंदू नागरे
राजपाल यादव - जोसेफ
अंतरा माली - कन्नू
आकाश खुराना - विलास पंडित
मदन जोशी - असलम भाई
गणेश यादव - यादव
विजय राज़ - कोड़ा सिंघ
उर्मिला मातोंडकर - विशेष उपस्थिति
ईशा कोप्पिकर - विशेष उपस्थिति
संगीतकार: संदीप चोव्टा
गीतकार : नितिन रायकवार, ताबिश रोमानी, जयदीप सहानी
१. तुमसे कितना प्यार है - अल्ताफ राजा
२. खल्लास - आशा भोसले, सुदेश भोसले, सपना अवस्थी
३. आखों मैं - सौम्या राव
४. प्यार प्यार में - बाबुल सुप्रियो
५. गन्दा है पर - संदीप चोव्टा
नामांकन और पुरस्कार
इस फिल्म को ७ फिल्मफेयर पुरस्कारों से सन्मानित किया गया था।
फिल्मफेयर सर्वोत्तम अभिनेता - अजय देवगन
फिल्मफेयर सर्वोत्तम अभिनेत्री (क्रिटिक्स) - मनीषा कोइराला
फिल्मफेयर सर्वोत्तम सहअभिनेता - विवेक ओबेराय
फिल्मफेयर सर्वोत्तम डेब्यू - विवेक ओबेराय
फिल्मफेयर सर्वोत्तम एडिटिंग - चन्दन अरोरा
फिल्मफेयर सर्वोत्तम कहानी - जयदीप सहानी
फिल्मफेयर सर्वोत्तम डायलोग - जयदीप सहानी
२००२ में बनी हिन्दी फ़िल्म
अपराध पर बनी फ़िल्में |
राष्ट्रीय राजमार्ग ९२७डी (नेशनल हाइवे ९२७ड) भारत का एक राष्ट्रीय राजमार्ग है। यह गुजरात में धोराजी से जामनगर तक जाता है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग २७ का एक शाखा मार्ग है।
इस राजमार्ग पर आने वाले कुछ पड़ाव इस प्रकार हैं: धोराजी, जम कंडोरना, कालावड, जामनगर।
इन्हें भी देखें
राष्ट्रीय राजमार्ग (भारत)
राष्ट्रीय राजमार्ग २७ (भारत) |
बसेरा १९८१ में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है।
शशि कपूर - बलराज कुमार
राखी गुलज़ार - शारदा बलराज कुमार
पूनम ढिल्लों - सरिता सेठी
राज किरन - सागर कुमार
ए के हंगल
नामांकन और पुरस्कार
१९८१ में बनी हिन्दी फ़िल्म |
डेसी बोउटर्सी (१३ अक्टूबर १९४५) सूरीनाम के एक सैन्य खेल प्रशिक्षक, तख्तापलट के नेता, सेना के नेता और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक दल के राजनीतिज्ञ रहे हैं। वे २०१०-२०२० के दौरान सूरीनाम के राष्ट्रपति थे।
१९४५ में जन्मे लोग
सूरीनाम के राजनीतिज्ञ
सूरीनाम के राष्ट्रपति |
कर्टली एम्ब्रोस (जन्म २१ सितंबर १९६३, ) एंटीगुआ और बारबुडा से पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी हैं जिन्होंने १९८८ से २००० तक वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व किया था। वह एक तेज गेंदबाज है, जो कई वर्षों तक वेस्ट इंडीज़ के लिये कोर्टनी वॉल्श के साथ मिलकर शानदार गेंदबाजी साझेदारी के लिए जाने जाते हैं। एम्ब्रोस ने वेस्टइंडीज के लिए ९८ टेस्ट और १७६ एकदिवसीय मैच खेलें, जिसमें उन्होंने क्रमशः ४०५ और २२५ विकेट लिए। अपने कैरियर के अधिकतर समय में वह आईसीसी प्लेयर रैंकिंग में अव्वल रहे और उन्हें दुनिया में सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज का दर्जा दिया गया। १९९२ में एम्ब्रोस को विज्डन क्रिकेटर्स ऑफ द ईयर में से एक नामित किया गया था। अक्टूबर २०१० में उन्हें आईसीसी क्रिकेट हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया और विशेषज्ञों के एक पैनल द्वारा वेस्टइंडीज के सार्वकालिक ग्यारह खिलाड़ियों में उनका चयन किया गया।
इन्हें भी देखें
१९६३ में जन्मे लोग
वेस्ट इंडीज़ के क्रिकेट खिलाड़ी |
बेबे नानकी (पंजाबी: ) (जन्म १४६४-१५१८) सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु (शिक्षक) गुरु नानक देव की बड़ी बहन थीं। बेबे नानकी सिख धर्म की एक महत्वपूर्ण धार्मिक शख्सियत हैं, और पहले गुरसिख के रूप में जानी जाती हैं। वह अपने भाई की "आध्यात्मिक प्रतिभा" का एहसास करने वाली पहली शख्सियत थी।
प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
बेबे नानकी के पिता मेहता कालू और माता तृप्ता थी। लाहौर (वर्तमान कसूर जिले) के पास चहल शहर में जन्मी, बेबे नानकी का नाम उनके दादा-दादी द्वारा रखा गया था, जिन्होंने नानकियन शब्द के नाम पर उनका नाम नानकी रखा था, जिसका अर्थ आपके नाना-नानी का घर होता है। बेबे और जी को सम्मान के संकेत के रूप में उनके नाम के साथ जोड़ा जाता है। बेबे का उपयोग एक बड़ी बहन और जी का प्रयोग सम्मान दिखाने के लिए किया जाता है। बेबे नानकी की ११ साल की उम्र में शादी हो गई थी। उन दिनों इतनी कम उम्र में शादी करने का रिवाज था।
बेबे नानकी को अपने भाई के साथ बहुत लगाव था और वह उनके "प्रबुद्ध आत्मा" को सबसे पहिले पहचानने वावालों में से थी। वह उनसे ५ साल बड़ी थी, लेकिन उनके लिए एक माँ की भूमिका निभाई। उन्होंने न केवल अपने पिता से गुरु नानक की रक्षा की, बल्कि वह उन्हें बिना शर्त प्यार करती थी। गुरु नानक देव को बेबे नानकी के साथ रहने के लिए भेजा गया था जब वह केवल 1५ वर्ष के थे। उनकी स्वतंत्रता को स्थापित करने के लिए, बेब ननकी ने उनके लिए एक पत्नी की तलाश की। बेबे नानकी ने अपने पति के साथ गुरु नानक देव से शादी करने के लिए माता सुलखनी को ढूँढा। चूंकि बेबे नानकी की खुद की कोई संतान नहीं थी, इसलिए वह अपने भाई के बच्चों, श्री चंद और लखमी चंद को पालने में मदद करती थी। बेबे नानकी को गुरु नानक देव के पहले अनुयायी के रूप में जाना जाता है। वह सदा उनके लिए समर्पित थी। साथ ही वह भगवान की भक्ति के एक साधन के रूप में संगीत का उपयोग करने में गुरु नानक देव को प्रेरित करने के लिए जाने जाती हैं। यह जानकर कि उनके पास संगीत प्रतिभा है, उन्होंने उन्हें अपने संगीत को आगे बढ़ाने में मदद करने के लिए एक रीबब खरीदा।
बेबे नानकी की मृत्यु १५१८ में हुई थी। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनके भाई गुरु नानक देव उनके अंतिम दिनों में उनके साथ रहे। उनकी अंतिम सांसें जपुजी साहिब को सुनते हुए बीती। |
सूत्रकणिका विखंडन (मिटोवोंड्रियल फिशन) वह प्रक्रिया है जिसमें एक सूत्रकणिका, दो सूत्रकणिकीय अंगकों (मिटोवोंड्रियल ऑर्गनेलस) के रूप में विभाजित हो जाती है। इसके विपरीत क्रिया 'सूत्रकणिका संलयन' (मिटोवोंड्रियल फेशन) है जिसमें दो सूत्रकणिकाएँ मिलकर एक बड़ी सूत्रकणिका बना लेतीं हैं।
यह भी देखें |
पिकोरनाविरिडाए (पिकोर्नाविरीडाई) वायरस का एक जीववैज्ञानिक कुल है। इसकी सदस्य जातियाँ कशेरुक प्राणियों (जैसे कि मानव) में संक्रमण (इन्फ़ेक्शन) करती हैं।
इन्हें भी देखें |
यहाँ मलेशिया में राजधानियों की एक सूची दी गई है। जो मुख्य रूप से राज्यों के साथ ही मलेशिया की राष्ट्रीय राजधानियों का वर्णन करती है।
मलेशिया की राष्ट्रीय राजधानी कुआलालंपुर है। यह मलेशिया की प्रमुख सांस्कृतिक, व्यापारिक और वित्तीय केंद्र बना हुआ है। मलेशिया की संसद और राजा का आधिकारिक निवास भी कुआलालंपुर में स्थित है। २००१ में, सरकार की सीट को कुआलालंपुर से योजनाबध्द शहर पुत्रजय ले जाया गया, जो तब से, संघीय प्रशासनिक केंद्र के रूप में कार्य कर रही है इसे कभी कभी प्रशासनिक राजधानी के रूप में संबोधित किया जाता है। इन दोनों शहरों को, लबुअन के साथ, मलेशिया के संघीय क्षेत्र के रूप में विशेष दर्जा प्राप्त है।
राज्य की राजधानियाँ
मलक्का, पेनांग, सबा, और सारावाक को छोड़कर मलेशिया में सभी राज्य संवैधानिक राजतंत्र हैं। चार गैर-राजशाही राज्य यांग दि-पेरतुआ नेगेरी (गवर्नर्स) के नेतृत्व में हैं। इस प्रकार, संवैधानिक राजशाही वाले राज्यों में शाही राजधानियाँ या सीटें हैं जहाँ राजमहल का महल या आधिकारिक निवास स्थित है। ये राजधानियाँ कभी-कभी राज्य की प्रशासनिक राजधानियों से भिन्न होती हैं। राज्य प्रशासन प्रत्येक संबंधित राज्य सरकार द्वारा किया जाता है जो चुनाव जीतने के बाद बनती है। कुआलालंपुर के संघीय क्षेत्र, लबुन और पुत्रजय का नेतृत्व यांग दि-पेरतुआ अगोंग और प्रशासनिक संघीय मंत्रालय (मलेशिया) द्वारा किया जाता है।
यह भी देखें
जनसंख्या के अनुसार मलेशिया के शहरों और कस्बों की सूची
एशिया में देशीय उपविभागों की राजधानियाँ
मलेशिया के आबाद स्थान
राजधानियों की सूची |
निसर्ग पटेल (जन्म २० अप्रैल, १९८८) एक अमेरिकी क्रिकेटर हैं। जनवरी २०१८ में, वेस्ट इंडीज में २०17-१८ के क्षेत्रीय सुपर ५० टूर्नामेंट के लिए उन्हें संयुक्त राज्य के टीम में नामित किया गया था। उन्होंने ३१ जनवरी २०१८ को २०17-१८ के क्षेत्रीय सुपर ५० में लेवर्ड द्वीप के खिलाफ संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए अपनी लिस्ट ए की शुरुआत की।
नवंबर २०१८ में, उन्हें ओमान में २०१८ आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन तीन टूर्नामेंट के लिए संयुक्त राज्य के दस्ते में शामिल किया गया था। जून २०१९ में, उन्हें बरमूडा में २०१८-१९ आईसीसी टी २० विश्व कप अमेरिका क्वालीफायर टूर्नामेंट के क्षेत्रीय फाइनल से आगे, संयुक्त राज्य अमेरिका क्रिकेट टीम के लिए ३०-मैन ट्रेनिंग टीम में नामित किया गया था। अगले महीने, वह यूएसए क्रिकेट के साथ तीन महीने के केंद्रीय अनुबंध पर हस्ताक्षर करने वाले बारह खिलाड़ियों में से एक था।
अगस्त २०१९ में, उन्हें २०१८-१९ आईसीसी टी २० विश्व कप अमेरिका क्वालीफायर टूर्नामेंट के क्षेत्रीय फाइनल के लिए संयुक्त राज्य के दल में नामित किया गया था। उन्होंने १८ अगस्त २०१९ को बरमूडा के खिलाफ संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए ट्वेंटी २० अंतर्राष्ट्रीय (टी२०ई) की शुरुआत की। सितंबर २०१९ में, उन्हें २०१९ यूनाइटेड स्टेट्स ट्राई नेशन सीरीज़ के लिए यूनाइटेड स्टेट्स एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय (वनडे) स्क्वाड में नामित किया गया था। उन्होंने १३ सितंबर, २०१९ को पापुआ न्यू गिनी के खिलाफ, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए अपने वनडे की शुरुआत की।
नवंबर २०१९ में, उन्हें २०१९-२० क्षेत्रीय सुपर ५० टूर्नामेंट के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के टीम में नामित किया गया था।
१९८८ में जन्मे लोग |
क़व्वाली (उर्दू: ,) भारतीय उपमहाद्वीप में सूफ़ीवाद और सूफ़ी परंपरा के अंतर्गत भक्ति संगीत की एक धारा के रूप में उभर कर आई। इसका इतिहास ७०० साल से भी ज्यादा पुराना है। वर्तमान में यह भारत, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश सहित बहुत से अन्य देशों में संगीत की एक लोकप्रिय विधा है। क़व्वाली का अंतर्राष्ट्रीय स्वरुप नुसरत फतेह अली खान और के गायन से सामने आया।
पर्शियन सूफ़ी तत्व और परंपरा मे समा या समाख्वानी () [का रिवाज एक आम बात है। इस समाख्वानी में अक्सर निम्न गीत गाये जाते थे और हैं भी।
क़सीदा - किसी की तारीफ़ में कहा / लिखा / गाये जाने वाला पद्य रूप
हम्द - अल्लाह की तारीफ़ या स्रोत में गाये जाने वाले गीत या कविता।
नात ए शरीफ़ (नात) - हज़रत मुहम्मद की शान में कविता या गाये जाने वाले गीत।
मन्क़बत (मनक़बत) - वलियों की शान में कविता या गाये जाने वाले गीत।
मरसिया - शहीदों की शान में गीत, या गाये जाने वाले गीत।
ग़ज़ल - प्रेम गीत। चाहे आप अपने ईश्वर से बात करो, या प्रकृती से या प्रेमिका से या अपने आप से।
मुनाजात - यह एक प्रार्थना है, जिस को दुआ या मुनाजात भी कहा जाता है।
कव्वाली की विषय सामग्री
कव्वाली का स्वरुप
चिश्तिया समुदाय में गायन क्रम
पुराने मशहूर कव्वाल
अज़ीज़ मियाँ कव्वाल
ज़फ़र हुसैन खान बदायुनी
मोहम्मद सईद चिश्ती
नुसरत फतह अली खान
आज के मशहूर कव्वाल
बद्र अली खान (उर्फ़ बद्र मियाँ)
छोटे अज़ीज़ नाजां
मेहर अली शेर अली
राहत नुसरत फतह अली खान
चांद कादरी अफजल चिश्ती
इन्हें भी देखें
कव्वाली का उदभव और विकास, ऐडम नैय्यर, लोक विरसा शोध संस्थान, इस्लामाबाद. १९८८.
वृत्तचित्र: म्यूज़िक ऑफ पाकिस्तान (५२ मिनट) |
यह गीत गोविन्द के रचयिता जयदेव द्वारा १२०० ईस्वी के आसपास संस्कृत भाषा में रचित लघु पुस्तिका है जिसमें कामसूत्र का सार संक्षेप प्रस्तुत किया गया है।
गीत गोविन्द (विकिस्रोत पर) |
रॉकी एक सामान्य पश्चिमी नाम है।
रॉकी एक प्रसिद्ध अंग्रेज़ी चलचित्र का नाम भी है।
रॉकी पर्वत - उत्तर अमेरिका की एक पर्वत श्रृंखला है।
रॉकी (१९८१ फ़िल्म) - १९८१ में बनी हिन्दी फ़िल्म।
रॉकी (१९७६ फ़िल्म) - सिल्वेस्टर स्टेलोन द्वारा अभिनीत अंग्रेज़ी फ़िल्म। |
अकबरपुर शम्भो-अखा-कुढा, बेगूसराय, बिहार स्थित एक गाँव है।
बेगूसराय जिला के गाँव |
पर्णांग या फर्न एक अपुष्पक पौधा है। इसको जड़, तना, पत्ती तीन-भागों में बाँटा जा सकता है। यह बीजाणुधानियों से बीजाणु उत्पन्न करता है। इसीसे नये पौधों की उत्पत्ति होती है। वे बीजाणुधानियाँ पत्तियों में पाई जाती हैं जो ध्यानपूर्वक देखने पर दिखाई देती हैं।
इन्हें भी देखें |
फील्ड हॉकी या मैदानी हॉकी २०१६ के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में रियो डी जनेरियो में ६ से १९ अगस्त ओलंपिक हॉकी सेंटर में खेला गया। इसके स्वरूप और संरचना २०१२ के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक से कई परिवर्तन किए गए। चौबीस टीमों (जिसमें बारह प्रत्येक पुरुषों और महिलाओं के लिए) प्रतिस्पर्धा आयोजित किया गया।
मैच अनुसूची में पुरुषों के स्पर्धा का अनावरण २७ अप्रैल २०१६ को किया गया।
२० मार्च २०14 को अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ इसके प्रारूप में बदलाव किए थे। दो ३५ मिनट को बदल कर उसे १५ मिनट कर तीन हिस्सों में अलग कर दिया और उसमें २ मिनट का आराम के लिए समय भी जोड़ दिया। परिवर्तन उद्देश्य प्रतिस्पर्धा को तेज करना और प्रशंसक को एक अलग अनुभाग कराना था। इसी के साथ ४० सेकंड का समय और भी जोड़ दिया गया जिसमें पेनल्टी और गोल करने पर इस समय का उपयोग किया जाने लगा। खेल का समान स्कोर में समाप्त होने से खेल का नॉकआउट राउंड द्वारा फैसला होता है।
पुरुषों की योग्यता
प्रत्येक महाद्वीपीय के चैंपियन से पाँच को स्वत: ही इसमें ले लिए जाता है। ब्राजील मेज़बान देश के रूप में स्वचालित रूप से योग्य है, लेकिन फिर भी मैदानी हॉकी के अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ (एफआईएच) और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) की आवश्यकता पूर्ति हेतु ब्राजील को अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ के विश्व रैंकिंग में २०१४ के समाप्ति तक कम से कम ३०वें स्थान पर होना चाहिए और २०१५ के पैन अमेरिकी खेलों में ६ से खराब नहीं खेलना है, तभी उसे मेज़बान देश के रूप में अपनी जगह प्राप्त होगी। ब्राजील ने इसे हासिल करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका को पेनल्टी शूट-आउट में हारा दिया और शीर्ष चार में अपना स्थान जमा लिया। इसके अलावा यह २०१४-१५ के विश्व हॉकी लीग में यह सेमीफाइनल के शीर्ष ६ टीमों में शामिल हुई।
महिलाओं की योग्यता
प्रत्येक महाद्वीपीय चैंपियन से पाँच को स्वत: ही यह स्थान प्राप्त हो जाता है। मेज़बान राष्ट्र केवल तब योग्य नहीं होता है यदि एफआईएच विश्व रैंकिंग २०१४ के अंत तक वह कम से कम ४०वें स्थान से ऊपर हो और २०१५ के पैन अमेरिकी खेलों में उसका सातवाँ या उससे अधिक बेकार प्रदर्शन न हो।इस प्रतिबंध का फैसला अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ (एफआईएच) और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) के मध्य किया गया था। इसके अलावा, सात उच्चतम टीम जो सेमीफाइनल के २०१४-१५ के एफआईएच हॉकी विश्व लीग में पहले से योग्य नहीं हो तो उसे शेष स्पर्धा में रहने का मौका मिल जाता है। |
सिकंदराबाद एक्स्प्रेस २५८९ भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन गोरखपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:गप) से ०६:३०आम बजे छूटती है और सिकंदराबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:स्क) पर ०३:३०प्म बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है ३३ घंटे ० मिनट।
मेल एक्स्प्रेस ट्रेन |
४४ अक्षांश दक्षिण (४४त परलेल साउथ) पृथ्वी की भूमध्यरेखा के दक्षिण में ४४ अक्षांश पर स्थित अक्षांश वृत्त है। यह काल्पनिक रेखा हिन्द महासागर, प्रशांत महासागर व अटलांटिक महासागर के दक्षिणी भाग और दक्षिण अमेरिका व न्यूज़ीलैण्ड के भूमीय क्षेत्रों से निकलती है।
इन्हें भी देखें
४५ अक्षांश दक्षिण
४३ अक्षांश दक्षिण |
गोकवरं (कृष्णा) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कृष्णा जिले का एक गाँव है।
आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट
आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग
निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल
आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट |
वासुदेव बलवंत फडके (४ नवम्बर 18४5 १७ फ़रवरी १८८३) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी थे जिन्हें आदि क्रांतिकारी कहा जाता है। वे ब्रिटिश काल में किसानों की दयनीय दशा को देखकर विचलित हो उठे थे। उनका दृढ विश्वास था कि 'स्वराज' ही इस रोग की दवा है।
जिनका केवल नाम लेने से युवकोंमें राष्ट्रभक्ति जागृत हो जाती थी, ऐसे थे वासुदेव बलवंत फडके। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्रामके आद्य क्रांतिकारी थे। उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए सशस्त्र मार्ग का अनुसरण किया। अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए लोगों को जागृत करने का कार्य वासुदेव बलवंत फडके ने किया। महाराष्ट्र की कोळी, भील तथा धांगड जातियों को एकत्र कर उन्होने 'रामोशी' नाम का क्रान्तिकारी संगठन खड़ा किया। अपने इस मुक्ति संग्राम के लिए धन एकत्र करने के लिए उन्होने धनी अंग्रेज साहुकारों को लूटा।
फडके को तब विशेष प्रसिद्धि मिली जब उन्होने पुणे नगर को कुछ दिनों के लिए अपने नियंत्रण में ले लिया था। २० जुलाई १८७९ को वे बीजापुर में पकड़ में आ गए। अभियोग चला कर उन्हें काले पानी का दंड दिया गया। अत्याचार से दुर्बल होकर एडन के कारागृह में उनका देहांत हो गया।
वासुदेव बलवंत फडके
भारत कोश पर वासुदेव बलवन्त फड़के
१८४५ में जन्मे लोग
१८८३ में निधन
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी |
गोबिन्दपुर-१ धरहरा, मुंगेर, बिहार स्थित एक गाँव है।
मुंगेर जिला के गाँव |
कंक्रीट मिश्रक अथवा सीमेंट मिश्रक एक ऐसा उपकरण होता है जो सीमेंट के साथ रेत या बजरी जैसे निर्माण में प्रयुक्त पदार्थ और पानी को साथ में समान रूप से मिश्रित करता है और कंक्रीट तैयार करता है। इस उपकरण का अन्वेषण ओहियो के उद्योगपति कोलम्बस ने किया था। |
एंगस मैडिसन (६ दिसंबर 192६ - २४ अप्रैल २०१०) एक ब्रिटिश अर्थशास्त्री थे। वे आर्थिक विकास और विकास के माप और विश्लेषण के साथ मात्रात्मक मैक्रो आर्थिक इतिहास में विश्व के अग्रणी विशेषज्ञ थे।
नीति सलाहकार और प्रोफेसर
१९६९-१९७१ में, मैडिसन ने अंतर्राष्ट्रीय मामलों के लिए केंद्र की विकास सलाहकार सेवा में काम किया। मैडिसन ने घाना और पाकिस्तान की सरकारों समेत विभिन्न संस्थानों के लिए नीति सलाहकार का पद भी संभाला। इसके अलावा वे ब्राजील, गिनी, मंगोलिया, सोवियत संघ और जापान जैसे देशों के सरकारी नेताओं के सलाहकार भी रहे। इससे उन्हें जो अनुभव प्राप्त हुआ, उसने उनके आर्थिक विकास और समृद्धि को निर्धारित करने वाले कारकों के बारे में वास्तविक ज्ञान को बढ़ाया।
उन्होंने आर्थिक इतिहास के अपने व्यापक ज्ञान और विशेष रूप से जीडीपी और प्रति व्यक्ति जीडीपी के क्षेत्र में आधुनिक अनुसंधानों और तकनीकों का उपयोग किया। उनके काम से इस बात की एक गहरी समझ पैदा हुई कि क्यों कुछ देश अमीर बन गए जबकि अन्य गरीब बने हुए हैं। इस क्षेत्र में मैडिसन को दुनिया का सबसे प्रमुख विद्वान माना जाता था। हालाँकि उनके जीडीपी पुनर्निर्माण की आलोचना भी हुई है।
आख़िरी दो दशकों में मैडिसन ने मुख्यतः पुरातन काल के बारे में डेटा और विश्लेषण पर ध्यान केंद्रित किया। उदाहरणतः उन्होंने पिछले दो हज़ार सालों के चीन के आर्थिक विकास पर एक आधिकारिक अध्ययन प्रकाशित किया। इस अध्ययन ने यूरोप और चीन, जो दुनिया की दो प्रमुख आर्थिक ताक़तों के तौर पर की ताकत और कमजोरियों के बारे में बलों के रूप में ऐतिहासिक बहस को जोरदार बढ़ावा दिया है। रोमन साम्राज्य में प्रति व्यक्ति आय के बारे में उनके अनुमानों का प्रयोग करके कीथ हॉपकिंस और रेमंड डब्ल्यू गोल्डस्मिथ अपने अनुसंधान कार्य को पूरा कर सके। इससे स्वयं मैडिसन का कार्य भी परिणाम तक पहुँच पाया।
वह ऐतिहासिक आर्थिक विश्लेषण सम्बंधी कई पुस्तकों के लेखक भी थे।
पुरस्कार, मृत्यु और विरासत
मैडिसन को अक्टूबर २००७ में मैडिसन को जापान के हितोत्सुबशी विश्वविद्यालय में मानद डॉक्टरेट की उपाधि मिली।
मैडिसन की मृत्यु शनिवार, २४ अप्रैल २०१० को फ्रांस के न्यूरिली-सुर-सीन में पेरिस में हुई। उनकी मृत्यु के सालों बाद भी उनके वैश्विक आर्थिक इतिहास पर किए गए अनुसंधान को महत्वपूर्ण माना गया है।
यह भी देखें
प्रति व्यक्ति जीडीपी (पीपीपी) द्वारा क्षेत्रों की सूची
पिछले जीडीपी (पीपीपी) क्षेत्रों की सूची
मैडिसन प्रोजेक्ट, उनकी मृत्यु के बाद ऐतिहासिक आर्थिक आंकड़ों पर मैडिसन के काम को जारी रखने के लिए मार्च २०१० में एक परियोजना शुरू हुई
२०१० में निधन
१९२६ में जन्मे लोग |
संयुक्त राज्य पर्यावरण संरक्षण संस्थान (ईपीए) संयुक्त राज्य अमेरिका की संघीय सरकार की एक स्वतंत्र कार्यकारी संस्थान है जिसे पर्यावरण संरक्षण मामलों का काम सौंपा गया है। राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने ९ जुलाई, 1९70 को ईपीए की स्थापना का प्रस्ताव रखा; निक्सन के एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करने के बाद २ दिसंबर, 1९70 को इसका संचालन शुरू हुआ।ईपीए की स्थापना के आदेश को सदन और सीनेट में समिति की सुनवाई के द्वारा अनुमोदित किया गया था। एजेंसी का नेतृत्व उसके प्रशासक द्वारा किया जाता है, जिसे राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है और सीनेट द्वारा अनुमोदित किया जाता है।वर्तमान प्रशासक माइकल एस रेगन हैं। ईपीए कैबिनेट विभाग नहीं है, लेकिन प्रशासक को आम तौर पर कैबिनेट रैंक दिया जाता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका का पर्यावरण |
युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में पर्यावरण के शोषण की रोकथाम के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस () एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस है जिसे प्रतिवर्ष ६ नवंबर को मनाया जाता है। युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में पर्यावरण के शोषण को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस की स्थापना ५ नवंबर, २००१ को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा कोफी अट्टा अन्नान के महासचिव के कार्यकाल के दौरान की गई थी। |
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील मुरादाबाद, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
सम्बंधित जनगणना कोड:
राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७१९
उत्तर प्रदेश के जिले (नक्शा)
मुरादाबाद तहसील के गाँव |
ग्रेस एल मैक कैन मोर्ली को भारत सरकार द्वारा विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में सन १९८२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली से हैं।
१९८२ पद्म भूषण
१९०० में जन्मे लोग
१९८५ में निधन |
खैरझिटी (खैर्झीती) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर ज़िले में स्थित एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
छत्तीसगढ़ के गाँव
रायपुर ज़िले के गाँव |
भारत के पश्चिम बंगाल प्रांत के कोलकाता नगर में कलकत्ता फ़िल्म सभा का प्रारंभ १९४७ में सत्यजित राय, चिदानंद दासगुप्ता और कुछ अन्य लोगों ने किया था। |
गुलाम अब्बास ( ; १७ नवंबर १९०९२ नवंबर १९८२) पाकिस्तान के एक लघु कथाकार थे।
गुलाम अब्बास ने दो बार विवाह किया। उनकी पहली पत्नी ज़कीरा से उनकी चार बेटियां और एक बेटा था। उनकी दूसरी पत्नी एक ग्रीक-स्कॉटिश-रोमानियाई महिला थीं जिनका नाम क्रिश्चियन व्लास्टो (जिसे बदल कर ज़ैनब रखा गया) था, जिनके साथ उनका एक बेटा और तीन बेटियाँ थीं।
जज़ीरा-ए-सुखनवराँ (प्रकाशित १९३७)
आनंदी (बाजार) (बॉलीवुड फिल्म मंडी (१९८३) गुलाम अब्बास की लघु कहानी पर आधारित थी)
द वूमेन्स क्वार्टर एंड अदर स्टोरीज़ फ़्रॉम पाकिस्तान (प्रकाशित १९८४)
इंतिखाब गुलाम अब्बास (गुलाम अब्बास द्वारा कहानियों का चयन) (आसिफ फारुखी द्वारा संकलित)
गोंदनी वाला तकिया उपन्यास
१९८२ में निधन
१९०९ में जन्मे लोग
स्रोतहीन कथनों वाले सभी लेख |
एच-२ए (ह२आ) मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज (म्ही) के लिए जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी द्वारा संचालित एक सक्रिय उपभोजित प्रक्षेपण प्रणाली है। तरल ईंधन एच-२ए रॉकेट का इस्तेमाल उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा, चंद्र परिक्रमा अंतरिक्ष यान में लांच में किया गया जाता है। एच-२ए ने पहली उड़ान २001 में भरी। और फरवरी, २016 तक यह ३० बार उड़ान भर चुका है।
जापान के अंतरिक्ष प्रक्षेपण रॉकेट |
चीनी लिपि संसार की प्राचीनतम लिपियों में से है। यह चित्रलिपि का ही रूपांतर है और इसमें अक्षरों की बजाए हज़ारों चीनी भावचित्रों के द्वारा लिखा जाता है। इसमें मानव जाति के मस्तिष्क के विकास की अद्भुत् कहानी मिलती है - मानव ने किस प्रकार मछली, वृक्ष, चंद्र, सूर्य आदि वसतुओं को देखकर उनके आधार पर अपने मनोभावों की व्यक्त करने के लिये एक विभिन्न चित्रलिपि ढूँढ़ निकाली। ईसवी सन् के १७०० वर्ष पूर्व से लगाकर आजतक उपयोग में आनेवाले चीनी शब्दों की आकृतियों में जो क्रमिक विकास हुआ है उसका अध्ययन इस दृष्टि से बहुत रोचक है।
चीनी लिपि की विभिन्न शैलियाँ
हुनान प्रांत में अनयांग की खुदाई के समय कछुओं की अस्थियों पर शांगकालीन (१७६६-११२२ ई.पू.) जो लेख मिले हैं उनसे पता लगता है कि आज से लगभग ३००० वर्ष पूर्व चीन के लोग लिखने की कला से परिचित थे। इस प्रांत के निवासियों का विश्वास था कि इन अस्थियों में जादू है। इन्हें आग पर तपाने से इनपर जो दरारें पड़ जाती थीं उन्हें देखकर पंडित लोग भविष्य का बखान करते थे। कछुओं की अस्थियों के अतिरिक्त, पशुओं की टाँगों और कंधों की हड्डियों पर भी लेख लिखे जाते थे। "चू" राजवंशों के काल में (११२२-२२१ ई.पू.) चीन निवासी काँसे के बर्तनों पर लिखने लगे थे। इस काल में चीनी भाषा में बहुत से नए वर्णो का समावेश किया गया। अब बाँस या लकड़ी की नुकीली कलम की जगह बालों के बने ब्रुश से लोग लिखने लगे थे। क्रमश: उत्तर में चीन की बड़ी दीवार से लेकर दक्षिण की ओर ह्वाई नदी की घाटी तक चीनी लिपि का प्रचार बढ़ा। इसके पश्चात् "छिन" राज्यकाल (२२१-२०६ ई.पू.) में सम्राट् शिह ह्वांग ने चीनी लिपि को एक रूप देने के लिय चीन भर में छिन लिपि का प्रचार किया। लेकिन इस लिपि के कठिन होने के कारण सरकारी फर्मानों के लिखने पढ़ने में बहुत दिक्कत होती थी, इसलिये इस समय "लि" लिपि का प्रचार किया गया जिसमें मुड़ी हुई रेखाओं और गोलाकार कोणों के स्थान पर कोण की सीधी रेखाएँ बनाई जान लगी। इस समय काँसे की जगह बाँस की पट्टियों पर लिखने लगे। इस प्रकार चीनी लिपि को सुव्यवस्थित और एकरूप बनाने के लिये चीन के लोग लगातार परिश्रम करते रहे। "हान" राजवंशों (२०६ ई.पू. से २२१ ई.) और छिन राजवंशों के काल (२६५-४२० ई.) में घसीट और शीघ्रलिपि शैली का प्रचार बढ़ा। ईसवी सन् की चौथी शताब्दी में सुलेखक वांग शिह-छि ने सुंदर अक्षरोंवाली एक आदर्श शैली को जन्म दिया जिससे अधिक व्यवस्थित, सुडौल और चौकोर अक्षर लिखे जाने लगे। आज भी लिखने की यही शैली चीन में प्रचलित है।
चीनी एकाक्षरप्रधान भाषा मानी जाती है, यद्यपि ध्यान रखने की बात है कि उसके एक बार में बोले जानेवाले शब्द में एक या एक से अधिक वर्ण या अक्षर हो सकते हैं। हिंदी या अंग्रेजी आदि भाषाओं की भाँति चीनी ध्वन्यात्मक भाषा नहीं है, अतएव इसमें एक एक शब्द या भाव के लिये अलग अलग संकेतात्मक आकृतियाँ बनाई जाती हैं।
वर्णमाला के अभाव में इस भाषा में प्रत्येक शब्द या भाव के लिये लिखा जानेवाला वर्ण या अक्षर अपने आप में पूर्ण होता है और विभिन्न उपसर्ग या प्रत्यय न लगने से इन वर्णों के मूल में परिवर्तन नहीं होता। हिंदी, अंग्रेजी आदि भाषाओं की भाँति यहाँ विभिन्न प्रत्ययों या कारकचिह्नों की भरमार नहीं रहती जिससे संज्ञा सर्वनाम ओर विशेषणों में विभक्ति प्रत्ययों के साथ परिवर्तन नहीं होता। उदाहरण के लिये लड़का लड़के और लड़कों- इन विभिन्न रूपों के लिये चीनी में एक ही वर्ण लिखा जाता है- हाय त्स। काल, वचन, पुरुष और स्त्रीलिंग पुंलिं्लग का भेद भी यहाँ नहीं है, इस दृष्टि से चीनी भाषा का बोलना अपेक्षाकृत सरल हैं। कुछ शब्दों का उच्चारण करते हुए ऊँचे नीचे सुरभेद (चीनी में इसे शंग कहते हैं) का ध्यान अवश्य रखना पड़ता है। जैसे, चीनी में चू शब्द से सूअर, बाँस, स्वामी और रहना, इन चार अर्थो का बोध होता है। लेकिन जब हम चू शब्द का इसके विशिष्ट सुरभेद के साथ उच्चारण करते हैं तभी हमें अपेक्षित अर्थ का ज्ञान होता है।
लिखावट की कठिनाइयाँ
ऊपर उल्लेख हो चुका है कि चीनी भाषा में प्रत्येक शब्द या भाव के लिये अलग अलग आकृति बनानी पड़ती है। सन् १७१६ में प्रकाशित चीनी भाषा के सबसे बड़े कोश में इस प्रकार के ४० हजार वर्ण या शब्दचिह्न दिए गए हैं, यद्यपि इनमें से लगभग ६-७ हजार ही पिछले कई वर्षो से काम में आते रहे हैं। जिन वर्णो की आकृति बनाते समय ऊपर नीचे बहुत से रेखाचिह्न लगाने पड़ते हैं, उन वर्णो का लिखना कठिन होता है। एक वर्ण में एक बार में अधिक से अधिक लगभग ३३ रेखाचिह्न तक रहते हैं और यदि भूल से कोई चिह्न इधर उधर हो गया तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है। चित्रलिपि के साथ चीनी लिपि का संबंध होने के कारण कोई अच्छा चित्रकार ही चीनी के सुंदर अक्षर लिख सकता है। इन अक्षरों को सीखने के लिए उसका उच्चारण, लिखावट और उनके अंर्थ का ध्यान रखना आवश्यक है, अतएव चीनी लिपि का सीखना काफी कठिन है।
कभी कभी एक वर्ण के स्थान पर दो वर्णो के संयोग से भी चीनी शब्द बनाए जाते हैं। जैसे, "प्रकाश" के लिये सूर्य और चंद्रमा, "अच्छा" के लिये स्त्री और पुत्र, "पुरुष" के लिये खेत और ताकत, "घर" के लिये सूअर और छत, "शांति" के लिये घर में बैठी हुई स्त्री, "मित्रता" के लिये दो हाथ, तथा "वंश" के लिये स्त्री और जन्म का सांकेतिक चिह्न बनाया जाता है। कभी विभिन्न अर्थवाले दो वर्णो के संयोग से बननेवाले शब्दों का अर्थ ही बदल जाता है, यथा-
श्वेउ अध्ययन, वनउ लिखना, श्वेवनउ साहित्य; छिंगउ हरा, न्येनउ वर्ष, छिंगन्येनउ युवावस्था; मिंगउ चमकीला, ट्येनउ आकाश, मिंगट्येनउ कल; शीउ पश्चिम, हुंगउ लाल, शिहउ फल, शी हुंग शिहउ टमाटर; त्सउ अपने आप, लायउ आना, श्वेउ पानी, पीउ कलम, त्स लाय श्वे पीउ फाउंटेन पेन;उ चुंगउ मध्य, ह्वाउ फूल, रेनउ आदमी, मिनउ जनता, कुंगउ साधारण, हउ एकता, काउ देश, चुंग ह्वा रेन मिन कुंग ह कोउ चीनी लोक जनतंत्र।
चीनी भाषा को सरल बनाने के प्रयत्न
भावों को व्यक्त करने की सामथ्र्य, प्रवाहशीलता, व्याकरणपद्धति और शब्दकोश की दृष्टि से चीनी भाषा संसार की समृद्ध भाषाओं में गिनी जाती है। लेकिन कंपोजिंग, टाइपिंग, तार भेजना, समाचारपत्रों को रिपोर्ट भेजना, कोशनिर्माण और प्रौढ़-शिक्षा-प्रचार आदि की दृष्टि से यह काफी क्लिष्ट है, इसलिये प्राचीन काल से ही इस भाषा के संबंध में संशोधन परिवर्तन होते रहे हैं।
ईसवी सन् की दूसरी शताब्दी के बाद चीन में भारतीय बौद्ध साहित्य का प्रवेश होने पर चीनी भाषा के वर्णोच्चारण के प्रामाणिक ज्ञान की आवश्यकता प्रतीत हुई। लेकिन बौद्ध धर्म संबंधी हजारों पारिभाषिक शब्दों का चीनी में अनुवाद करना संभव न था। अतएव इन शब्दों को चीनी चीनी में अक्षरांतरित किया जाने लगा। जैसे, बोधिसत्व को फूसा, अमिताभ को अमि तो फो, शाक्यमुनि को शिह जा मोनि, स्तूप को था, गंगा को हंं ह और जैन को चा एन लिखा जाने लगा।
चीनी को रोमन लिपि में लिखने के प्रयास का इतिहास भी काफी पुराना है। इसके अतिरिक्त पिछले ६० वर्षो से इस लिपि को ध्वन्यात्मक रूप देने के प्रयत्न भी होते रहे हैं। सन् १९११ में पीकिंग बोली के उच्चरण की आदर्श मानकर इस प्रकार का प्रयत्न किया गया। सन् १९१९ में ४ मई के साहित्यिक आंदोलन के पश्चात् दुरूह क्लासिकल भाषा (वन्येन) की जगह बोलचाल की भाषा (पाय् ह्वा) को प्रधानता दी जाने लगी।
सन् १९५१ में जनमुक्ति सेना के चीनी शिक्षक छी च्येन ह्वा ने अपढ़ मजदूरों, किसानों और सैनिकों को अल्प समय में चीनी सिखाने के लिये नई पद्धति का आविष्कार किया। लेकिन लिखने की कठिनाई इससे हल न हुई। इस कठिनाई को दूर करने के लिये नए चीन की केंद्रीय जन सरकार ने चीनी के २००० उपयोगी शब्द चुने और उनकी सहायता से पाठ्यपुस्तकें तैयार की गई। पहले किसी शब्द के उच्चारण से एक से अधिक अर्थो का बोध होता था, या बहुत से शब्द एक से अधिक प्रकार से लिखे जाते थे, लेकिन अब यह बात नहीं है। पुराने शब्दों को सरल बनाने के साथ कुछ नए शब्दों का भी आविष्कार किया गया है। चीन की सरकार ने पीकिंग बोली को आदर्श मानकर २६ अक्षरों की वर्णमाला तैयार कर चीनी लिपि को ध्वन्यात्मक रूप दिया है जिससे चीनी का सीखना सरल हो गया है। पहले यदि २००० शब्द सीखने में ४०० घंटे लगते थ तो अब केवल १०० घटों में इतने ही शब्दों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
पारंपरिक और सरलीकृत अक्षर
१९५६ में, चीन जनवादी गणराज्य की सरकार सरलीकृत चीनी अक्षरों के सार्वजनिक एक सेट करने के लिए सीखने, पढ़ने और चीनी भाषा आसान लेखन बनाने के लिए बनाया है। मुख्यभूमि चीन और सिंगापुर में, लोगों को इन सरल वर्णों का उपयोग करें। हांगकांग, ताइवान और अन्य स्थानों पर जहां वे चीनी बोलते हैं, लोगों को अभी भी और अधिक पारंपरिक वर्ण का उपयोग करें। कोरियाई भाषा में भी चीनी अक्षरों का प्रयोग करता है कुछ शब्दों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जापानी भाषा उन्हें और भी अधिक बार उपयोग करता है। ये वर्ण कोरियाई में हंजा के रूप में और कांजी के रूप में जापानी में जाना जाता है।
एक अच्छी शिक्षा के साथ एक चीनी व्यक्ति आज ६,०००-७,००० अक्षर जानता है। एक मुख्यभूमि अखबार पढ़ने के लिए ३००० चीनी अक्षरों की जरूरत है। हालांकि, सीखने वाले लोग केवल ४०० अक्षर इस्तेमाल कर एक अखबार पढ़ सकते हैं - लेकिन वे कुछ कम प्रयोग किया जाता शब्द लगता होगा।
इन्हें भी देखें |
चेन्दमंगलम (चेंडमंगलम) भारत के केरल राज्य के एर्नाकुलम ज़िले में स्थित एक नगर है।
इन्हें भी देखें
केरल के शहर
एर्नाकुलम ज़िले के नगर |
यहाँ भारत में पायी जाने वाली मछलियों की सूची दी गयी है। यहाँ सूची 'फिश बेस' (फिशबसे) पर आधारित है।
बाज़ार में उपलब्ध मछलियों के नाम |
नहीद अख़्तर पाकिस्तानी पृष्ठभूमि गायिका है। वह शहर मुल्तान में पैदा हुई थी। अख़्तर पाकिस्तान के सर्वश्रेष्ठ गायकों में से एक है। |
लचीलापन और नम्यता अंग्रेजी शब्द 'फ्लेक्सिबिलिटी' के समानार्थी शब्द हैं जिनका प्रयोग अलग-अलग क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे-
संज्ञानात्मक नम्यता (कोग्नीटिव फ्लेक्सिबिलिटी) -- एक संकल्पना पर सोचते हुए शीघ्रता से दूसरी संकल्पना पर सोच सकने की क्षमता। एकाधिक संकल्पनाओं पर एकसाथ सोच सकने की क्षमता। |
संगीत रूप (मुज़िकल फॉर्म) या संगीत वास्तु (मुज़िकल अर्किटेक्चर) संगीत के किसी टुकड़े की पूरी संरजना या योजना को कहते हैं, जिसमें उसको अंशों (सेक्शन्स) में विभाजित करा जाता है। संगीतशास्त्र की एक अध्ययन पुस्तक, ऑक्स्फ़ोर्ड कम्पैनियन टू म्यूज़िक, के अनुसार संगीत रूप का प्रयोग किसी टुकड़े में ऊबा देने वाले अत्याधिक दोहराव और भन्ना देने वाले अत्याधिक असंबद्धता के बीच का मार्ग ढूंढने का कार्य है, जिससे श्रोता सुनने में मुग्ध रहे।
इन्हें भी देखें |
मेकेदाटु (मेकेदातु) भारत के कर्नाटक राज्य के चामराजनगर ज़िले और रामनगर ज़िले की सीमा पर स्थित एक स्थान है जहाँ कावेरी नदी एक गहरी तंग घाटी से गुज़रती है। कनकपुरा के मार्ग से यह बंगलोर से ११० किमी दूर और अर्कावती नदी के संगम के समीप स्थित है।
कन्नड़ भाषा में "मेके दाटु" का अर्थ "बकरे की छलांग" होता है। इस स्थान के बारे में मान्यता है कि कभी यहाँ चरवाहों ने किसी बकरी को एक बाध का शिकार बनने से भागते हुए देखा। वह इस स्थान पर पहुँचा और छलांग मारकर कावेरी के पार हो गया। लेकिन बाघ नदी के तेज़ और गहरे प्रवास से डरकर रुक गया।
अर्कावती और कावेरी के संगमस्थल पर कावेरी की चौड़ाई लगभग १५० मीटर है। इसे मेकेदाटु पहुँचकर केवल १० मीटर के मुँह से गुज़रना पड़ता है। यहाँ कावेरी का प्रवाह बहुत तेज़ और गहरा हो जाता है। नदी के फर्श पर इस बलशाली प्रवास से गढ्ढे बनते रहते हैं। तट पर पत्थर बहुत फिसलन रखते हैं जिस से नदी तक उतर पाना संकटमय होता है। तट के समीप आकर फोटो खीचना भी खतरनाक है। इन कठोर और फिसलने वाली शिलाओं से यहाँ तैरना मना किया जाता है। हालांकि यहाँ तैरना खतरनाक होने का नोटिस लगा हुआ है, फिर भी पर्यटक कभी-कभी इसका प्रयास करते हैं। कई लोग यहाँ डूबकर मर भी चुके हैं।
इन्हें भी देखें
कर्नाटक के जलप्रपात
रामनगर ज़िले का भूगोल
चामराजनगर ज़िले का भूगोल
भारत की तंग घाटियाँ |
हृदयाघात आज मनुष्य-जाति के सर्वाधिक प्राणलेवा रोगों में से प्रमुख है जो मानसिक तनाव एवं अवसाद से जुड़ा हुआ है। दोषपूर्ण भोजन-विधि, मद्यपान, धूम्रपान, मादक पदार्थों का सेवन तथा विश्रामरहित परिश्रम इत्यादि हृदय-रोग के प्रमुख कारण हैं। इसके निदान के लिए जीवन-शैली में परिवर्तन लाने की आवश्यकता प्रमुख है। आधुनिक सभ्यता का यह अभिशाप है कि मनुष्य के जीवन में केवल बाह्य परिस्थितियाँ ही दवाब उत्पन्न नहीं करती बल्कि इंसान स्वयं भी काल्पनिक एवं मिथ्या दवाब उत्पन्न करके अपने को अकारण ही पीड़ित करने लगता है। जब मानव मस्तिष्क को कोई उतेजनापूर्ण सन्देश मिलता है, कुछ ग्रन्थियों मे तत्काल स्राव प्रारम्भ हो जाता है जिसके प्रभाव से सारे देह यन्त्र में विशेषत: हृदय तथा रक्त-संचार में एक उथल-पुथल सी मच जाती है, जिसका आभास नाड़ी के भड़कने से होने लगता है। हृदय शरीर का अत्यन्त संवेदनशील अंग है तथा सारे जीवन बिना क्षणभर विश्राम किए हुए ही निरन्तर सक्रिय रहकर समस्त अवयवों को रक्त तथा पोषक तत्वों की आपूर्ति करता है। मस्तिष्क का अत्याधिक दवाब हृदय में इतनी धड़कन उत्पन्न कर देता है कि उसे सहसा आघात (हार्ट एटैक) हो जाता है।
अघात के कारण
यद्यपि हृदय आघात के कारण अनेक हैं तथापि दबाव ही आघात का प्रमुख कारण है। पुष्टिप्रद भोजन लेते रहने पर भी मानसिक दबाव हृदय को आहत कर देता है। दीर्घकाल तक मानसिक दबाव एवं तनाव के रहने पर पेट में व्रण (पेप्टिक अल्सर), भयानक सिरदर्द (माइग्रेन), अम्लपित (हाइपर एसिडिटि), त्वचा-रोग इत्यादि भी उत्पन्न हो जाते हैं।
मनुष्यों में व्यक्तिगत भेद होते हैं तथा बाह्य परिस्थितियों को ही सारा दोष देना उचित नहीं है। कुछ लोग अन्यन्त विषम परिस्थिति में भी पर्याप्त सीमा तक सम और शान्त रहते हैं तथा कुछ अन्य साधारण-सी विषमता में भी अशान्त हो जाने के कारण सहसा भीषण हृदय-रोग से आहत हो जाते हैं। अतएव यह स्पष्ट है कि मनुष्य का दोषपूर्ण स्वभाव अथवा दोषपूर्ण चिन्तन ही हृदयघात का प्रमुख कारण है।
अघात से बचाव
हमें यह समझ लेना चाहिए कि प्राय: मानसिक दवाब बाह्य परिस्थिति की प्रतिक्रिया होता है किन्तु प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक प्रतिक्रिया बौद्धिक-शक्ति के भेद के कारण भिन्न होती है। अतएव प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में अपनी चिन्तन-शक्ति एवं संकल्प-शक्ति को जगाते रहने का निरन्तर प्रयत्न करते रहना चाहिए तथा अपने स्वाभाव एवं सामर्थ्य तथा परिस्थितियों के अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए।
प्रत्येक मनुष्य को अपने मानसिक दबाव और उससे उत्पन्न तनाव के मूल कारण को अपने भीतर ही अर्थात अपनी चिन्तन-शैली एवं स्वभाव के भीतर ही खोजकर उसके समाधान का बुद्धिमतापूर्ण उपाय करना चाहिए। अतएव यह अत्यन्त आवश्यक है कि हम अपने विचारों और स्वभाव को पूरी तरह से जानें जिससे कि हम विवेक के सदुपयोग द्वारा अपने मानसिक दबावों का नियन्त्रण एवं निराकरण कर सकें। हमें आत्म-विश्लेषण द्वारा अपने गुण, अपने दोष, अपने विश्वास, अपनी आस्थाएं, मान्यताएं, अपने भय और चिन्ताएं, अपनी दुर्बलताएं, हीनताएं, अपनी समस्याएं, अपने दायित्व, अपनी अभिरुचि, सामर्थ्य और सीमाएं जानकर अपने चिन्तन, स्वाभाव एवं जीवन-शैली में आवश्यक परिर्वतन लाने का प्रयत्न करना चाहिए। |
वेंकटेश्वर (, , , ) भगवान विष्णु के दशावतारों में से नवें एवम् चौबीस अवतारों में से तेइसवें अवतार माने जाते हैं। उन्हें गोविंदा, श्रीनिवास, बालाजी, वेंकट आदि नामों से भी जाना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। यह तालाब तिरुमला के पास स्थित है। तिरुमाला-तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं 'सप्तगिरि' कहलाती हैं। वैकुण्ठ एकादशी के अवसर पर लोग तिरुपति वेन्कटेशवर मन्दिर पर प्रभु के दर्शन के लिए आते हैं, जहाँ पर आने के पश्चात उनके सभी पाप धुल जाते हैं। मान्यता है कि यहाँ आने के पश्चात व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है।
तिरुपति वेन्कटेशवर मन्दिर |
सानता-आना प्रदेश अल साल्वाडोर का एक प्रदेश है जिसकी राजधानी सानता-आना है।
अल साल्वाडोर के प्रदेश |
कश्मीर प्रीमियर लीग (उर्दू: ; संक्षिप्त केपीएल) एक पेशेवर ट्वेंटी २० क्रिकेट लीग है जिसका आयोजन पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड द्वारा कश्मीर के पाकिस्तानी प्रशासित क्षेत्र में किया जाता है। अगस्त २०21 तक, लीग में छह फ्रेंचाइजी शामिल हैं: पांच टीमें आज़ाद जम्मू और कश्मीर के पांच प्रमुख शहरों का प्रतिनिधित्व करती हैं और शेष एक टीम प्रवासी कश्मीरियों का प्रतिनिधित्व कर रही है। टीमें डबल राउंड-रॉबिन प्रारूप में खेलेंगी, जिसमें शीर्ष चार टीमें प्लेऑफ के लिए क्वालीफाई करेंगी और अंततः फाइनल के लिए क्वालीफाई करेंगी। विजेता टीम को १० मिलियन रुपये (पीकेआर) की पुरस्कार राशि मिलती है जबकि उपविजेता टीम को ५ मिलियन रुपये (पीकेआर) प्राप्त होते हैं। अगस्त २०21 में, यह घोषणा की गई कि कश्मीर प्रीमियर लीग के मैचों को आधिकारिक टी-२० दर्जा नहीं है।
कश्मीर प्रीमियर लीग (केपीएल) का आधिकारिक एंथम सॉन्ग १६ फरवरी २०२१ को यूट्यूब पर जारी किया गया था। यह शान शाहिद द्वारा निर्देशित और राहत फ़तेह अली खान द्वारा गाया गया था। कई पाकिस्तानी फिल्म हस्तियां, जैसे जुगुन काज़िम, मेहविश हयात, इमान अली, अली गुल पीर, नीलम मुनीर और आयशा उमर, कश्मीर प्रीमियर लीग के ब्रांड एंबेसडर हैं। केपीएल ने एक चैरिटी संगठन के रूप में शाहिद अफरीदी फाउंडेशन के साथ साझेदारी की है।
पहला सीजन (२०२१)
लीग का पहला संस्करण ६ अगस्त, २०२१ से शुरू हुआ और १७ अगस्त, २०२१ तक मुज़फ़्फ़राबाद क्रिकेट स्टेडियम में जारी रहेगा। हर्शल गिब्स लीग के लिए आने वाले एकमात्र विदेशी खिलाड़ी थे, लेकिन उन्होंने पहले सीज़न में अपनी टीम ओवरसीज़ वॉरियर्स के लिए एक भी मैच नहीं खेला। डॉयल कलिनन और मोर्ने वैन वायको केपीएल के पहले संस्करण में दो विदेशी कमेंटेटर हैं। रावलकोट हॉक्स फाइनल में मुजफ्फराबाद टाइगर्स को हराकर पहले सीज़न के चैंपियन थे। १८ अगस्त २०२१ को, यह घोषणा की गई थी कि केपीएल के दूसरे सीज़न में सातवीं टीम- जम्मू जांबाज़ शामिल होगी।
सभी मैच मुजफ्फराबाद क्रिकेट स्टेडियम में खेले जाएंगे। पाकिस्तान में कोविड-१९ महामारी के कारण कश्मीर प्रीमियर लीग के उद्घाटन संस्करण में स्टेडियम में लगभग २५०० दर्शकों को मैच देखने की अनुमति है।
केपीएल शुरू होने से पहले ही सुर्खियों में आ गई थी। पाकिस्तान और भारत के बीच क्रिकेट नहीं होने के बावजूद, केपीएल ने भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर क्षेत्र की विवादित प्रकृति के कारण नई दिल्ली को परेशान कर दिया। ३१ जुलाई २०२१ को, यह बताया गया कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) द्वारा विदेशी क्रिकेटरों से उद्घाटन कश्मीर प्रीमियर लीग (केपीएल) क्रिकेट टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए अनुरोध किया गया था।
इन्हें भी देखें
नेशनल टी-२० कप
पाकिस्तान सुपर लीग
कश्मीर प्रीमियर लीग (भारत)
ट्वेन्टी २० क्रिकेट प्रतियोगिताएं |
नागडी-खा.प.३, थलीसैंण तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
नागडी-खा.प.३, थलीसैंण तहसील
नागडी-खा.प.३, थलीसैंण तहसील |
भरेह (भरह) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के इटावा ज़िले में स्थित एक गाँव है। यहाँ चम्बल नदी और यमुना नदी का संगमस्थल है।यह गाँव सेंगर वंश के राजा रूप सिंह सेंगर की राजधानी भी रही है।वर्तमान में इस भरेह रियासत के राजा अनिरुद्ध सिंह जूदेव हैं। सेंगर राजपूत इस पूरे क्षेत्र के सबसे शक्तिशाली लोग थे। मुगल काल में मुगलों ने कई बार यहाँ के प्रसिद्ध मंदिर भरेश्वर मंदिर को मस्जिद में बदलने की कोशिश अनेक बार की परंतु मुगल शासकों को हर बार यहाँ के शक्तिशाली सेंगर राजपूतों द्वारा मुँह की खानी पड़ी।
इन्हें भी देखें
उत्तर प्रदेश के गाँव
इटावा ज़िले के गाँव |
सीरिया, भूमध्य सागर के पूर्वी छोर पर स्थित है। इसमें १८५,१८० वर्ग किलोमीटर (७१,५०० वर्ग मील) का कुल क्षेत्रफल है, जिसे चौदह प्रशासनिक इकाइयों में विभाजित किया गया है।
सीरिया की सीमाओं में उत्तर और पश्चिम में तुर्की के साथ, पूर्व में इराक, दक्षिण में जॉर्डन और इजराइल, और दक्षिण-पश्चिम में लेबनान की सीमाएं हैं यद्यपि सीरिया का ज्यादा हिस्सा मरुस्थल है, हालांकि इसकी जमीन का २८% भाग सामान्य भूमि है, और फूरात नदी से सिंचाई का पानी सीरिया की कृषि में महत्वपूर्ण है।
सीरिया में सबसे ऊंचा बिंदु हेर्मोन पर्वत है, २,८१४ मीटर (९ 3२२ फीट) में। सबसे निचला विन्दु गलील सागर के पास है, समुद्र से -२00 मीटर (-६५६ फीट)।
सीरिया का मौसम काफी भिन्न है, एक अपेक्षाकृत आर्द्र तट के साथ और एक रेगिस्तान आंतरिक बीच में एक अर्धचाल क्षेत्र से अलग होता है। जबकि अगस्त में केवल २७ डिग्री सेल्सियस (८१ डिग्री फ़ारेनहाइट) औसत समुद्र, रेगिस्तान में तापमान नियमित रूप से ४५ डिग्री सेल्सियस (११३ डिग्री फ़ारेनहाइट) को पार कर जाता है जिसमें तेज गर्मी होती है।
संसाधन और भूमि उपयोग
पेट्रोलियम, फास्फेट, क्रोम और मैंगनीज अयस्क, डामर, लौह अयस्क, रॉक नमक, संगमरमर, जिप्सम, पनबिजली
कृषि योग्य भूमि:
कुल अक्षय जल संसाधन:
४६.१ वर्ग किमी (१997)
क्षेत्र और सीमाएं
नोट: इजराइल कब्जे वाला इलाका ,२९५ किमी क्षेत्र शामिल हैं
इराक ६०५किमी, इजराइल ७६किमी, जॉर्डन ३७५किमी, लेबनान ३७५किमी, तुर्की ८२२किमी
४१ समुद्री मील (७५.९ किमी; ४७.२ मील)
ऊंचाई चरम विन्दु:
तिबिरीस झील या अशद झील (गलील सागर) -२०० मीटर
हेर्मोन पर्वत २,८१४ मीटर
सीरिया का भूगोल
देशानुसार एशिया का भूगोल |
कृषि लागत और मूल्य आयोग (कऐप) भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय का एक संलग्न कार्यालय है। यह जनवरी १९६५ में अस्तित्व में आया।
कृषि लागत एवम मूल्य आयोग १९६५ में कृषि बीमा आयोग था परंतु अब यह १९८५ से कृषि लागत एवम मूल्य आयोग हो गया है। वर्तमान में, आयोग में एक अध्यक्ष, सदस्य सचिव, एक सदस्य (आधिकारिक) और दो सदस्य (गैर-आधिकारिक) शामिल हैं। गैर-आधिकारिक सदस्य कृषक समुदाय के प्रतिनिधि हैं और आमतौर पर कृषक समुदाय के साथ एक सक्रिय संबंध रखते हैं।
आधुनिक तकनीक को अपनाने के लिए काश्तकारों को प्रोत्साहित करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की सिफारिश करना और देश में उभरते मांग पैटर्न के अनुरूप उत्पादकता और समग्र अनाज उत्पादन को बढ़ाना अनिवार्य है। पारिश्रमिक और स्थिर मूल्य वातावरण का आश्वासन कृषि उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि कृषि उपज के लिए बाजार में जगह स्वाभाविक रूप से अस्थिर हो जाती है, जो अक्सर उत्पादकों के लिए अनुचित नुकसान पैदा करते हैं, भले ही वे सर्वोत्तम उपलब्ध प्रौद्योगिकी पैकेज को अपनाते हैं और कुशलता से उत्पादन। प्रमुख कृषि उत्पादों के लिए एमएसपी को सरकार की सिफारिशों के आधार पर, प्रत्येक वर्ष के अंत तक निर्धारित किया जाता है।
अब तक, सीएसीपी २३ वस्तुओं के एमएसपी की सिफारिश करता है, जिसमें ७ अनाज (धान, गेहूं, मक्का, शर्बत, मोती बाजरा, जौ और रागी) शामिल हैं। ५ दालें (चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर)। ७ तिलहन (मूंगफली, रेपसीड-सरसों, सोयाबीन, समुद्री घास, सूरजमुखी, कुसुम, निगर्सिड), और ४ वाणिज्यिक फसलें (खोपरा, गन्ना, कपास और कच्ची जूट)।
कऐप हर साल मूल्य नीति रिपोर्ट के रूप में सरकार को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करती है, अलग-अलग जिंसों के पांच समूहों के लिए, जैसे कि खरीफ फसल, रबी फसल, गन्ना, कच्चा जूट और कोपरा। पांच मूल्य निर्धारण नीति रिपोर्ट तैयार करने से पहले, आयोग एक व्यापक प्रश्नावली तैयार करता है, और सभी राज्य सरकारों और संबंधित राष्ट्रीय संगठनों और मंत्रालयों को उनके विचार मांगने के लिए भेजता है। इसके बाद, अलग-अलग राज्यों, राज्य सरकारों, फ़्सी, नफ़ेद, कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (क्सी), जूट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (ज्सी), व्यापारी संगठनों, प्रसंस्करण संगठनों और प्रमुख केंद्रीय मंत्रालयों जैसे किसानों के साथ अलग-अलग बैठकें की जाती हैं। आयोग उन विभिन्न बाधाओं के आकलन के लिए राज्यों का दौरा करता है जो किसान अपनी उपज के विपणन में सामना करते हैं, या यहां तक कि अपनी फसलों के उत्पादकता स्तर को बढ़ाते हैं। इन सभी सूचनाओं के आधार पर, आयोग तब अपनी सिफारिशों / रिपोर्टों को अंतिम रूप देता है, जो तब सरकार को प्रस्तुत की जाती हैं। सरकार, कऐप रिपोर्ट को राज्य सरकारों और संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों को उनकी टिप्पणियों के लिए परिचालित करती है। उनसे फीड-बैक प्राप्त करने के बाद, केंद्र सरकार की आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (क्सिया) म्स्प्स के स्तर और कऐप द्वारा की गई अन्य सिफारिशों पर अंतिम निर्णय लेती है। एक बार यह निर्णय लेने के बाद, कऐप कऐप की कीमत और गैर-मूल्य सिफारिशों के पीछे तर्क को देखने के लिए विभिन्न हितधारकों के लिए वेब साइट पर अपनी सभी रिपोर्ट डालता है। या यहां तक कि उनकी फसलों के उत्पादकता स्तर को बढ़ाता है। इन सभी सूचनाओं के आधार पर, आयोग तब अपनी सिफारिशों / रिपोर्टों को अंतिम रूप देता है, जो तब सरकार को प्रस्तुत की जाती हैं। सरकार, कऐप रिपोर्ट को राज्य सरकारों और संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों को उनकी टिप्पणियों के लिए परिचालित करती है। उनसे फीड-बैक प्राप्त करने के बाद, केंद्र सरकार की आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (क्सिया) म्स्प्स के स्तर और कऐप द्वारा की गई अन्य सिफारिशों पर अंतिम निर्णय लेती है। एक बार यह निर्णय लेने के बाद, कऐप कऐप की कीमत और गैर-मूल्य सिफारिशों के पीछे तर्क को देखने के लिए विभिन्न हितधारकों के लिए वेब साइट पर अपनी सभी रिपोर्ट डालता है। या यहां तक कि उनकी फसलों के उत्पादकता स्तर को बढ़ाता है। इन सभी सूचनाओं के आधार पर, आयोग तब अपनी सिफारिशों / रिपोर्टों को अंतिम रूप देता है, जो तब सरकार को प्रस्तुत की जाती हैं। सरकार, कऐप रिपोर्ट को राज्य सरकारों और संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों को उनकी टिप्पणियों के लिए परिचालित करती है। उनसे फीड-बैक प्राप्त करने के बाद, केंद्र सरकार की आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (क्सिया) म्स्प्स के स्तर और कऐप द्वारा की गई अन्य सिफारिशों पर अंतिम निर्णय लेती है। एक बार यह निर्णय लेने के बाद, कऐप कऐप की कीमत और गैर-मूल्य सिफारिशों के पीछे तर्क को देखने के लिए विभिन्न हितधारकों के लिए वेब साइट पर अपनी सभी रिपोर्ट डालता है। बदले में, कऐप रिपोर्टों को राज्य सरकारों और संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों को उनकी टिप्पणियों के लिए प्रसारित करता है। उनसे फीड-बैक प्राप्त करने के बाद, केंद्र सरकार की आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (क्सिया) म्स्प्स के स्तर और कऐप द्वारा की गई अन्य सिफारिशों पर अंतिम निर्णय लेती है। एक बार यह निर्णय लेने के बाद, कऐप कऐप की कीमत और गैर-मूल्य सिफारिशों के पीछे तर्क को देखने के लिए विभिन्न हितधारकों के लिए वेब साइट पर अपनी सभी रिपोर्ट डालता है। बदले में, कऐप रिपोर्टों को राज्य सरकारों और संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों को उनकी टिप्पणियों के लिए प्रसारित करता है। उनसे फीड-बैक प्राप्त करने के बाद, केंद्र सरकार की आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (क्सिया) म्स्प्स के स्तर और कऐप द्वारा की गई अन्य सिफारिशों पर अंतिम निर्णय लेती है। एक बार यह निर्णय लेने के बाद, कऐप कऐप की कीमत और गैर-मूल्य सिफारिशों के पीछे तर्क को देखने के लिए विभिन्न हितधारकों के लिए वेब साइट पर अपनी सभी रिपोर्ट डालता है।
कृषि लागत और मूल्य आयोग का जालघर
न्यूनतम समर्थन मूल्य (विकासपीडिया)
न्यूनतम समर्थन मूल्य
भारत सरकार के आयोग
भारत में कृषि |
टरपीन (टर्पेने) हाइड्रोकार्बन वर्ग का असंतृप्त यौगिक है, जिसमें केवल कार्बन और हाइड्रोजन तत्व होते है। टरपीन (टर्पेने) शब्द टरपेंटाइन (टर्पेन्टाइन) (तारपीन का तेल) से निकला है, जिसमें अनेक टरपीन पाए गए हैं।
टरपीनों का सामान्य सूत्र [(च५ह८)न] है जहाँ (न) एक, दो, तीन, चार या चार से अधिक हो सकता है। टरपीन के अनेक अंतर्विभाग हैं। सरलतम टरपीन का सूत्र (च५ह८) है। इसे 'हेमिटरपीन' कहते हैं। हेमिटरपीन के अतिरिक्त वास्तविक टरपीन (च१०ह१६), सेस्किवटरपीन (च1५ह२४), डाइटरपीन (च२०ह३२) ट्राइटरपीन (च३०ह4८) और पॉलिटरपीन (च५ ह८)न सूत्रों के होते हैं, जिनमें (न) पाँच से अधिक संख्या होती है। टरपीनों का वर्गीकरण उनकी संरचना के आधार पर भी किया गया है। एक वर्ग के टरपीनों में कोई चक्रीय संरचना नहीं होती। इसे अचक्रीय (एसायकलीक) या विवृत श्रृंखला का टरपीन कहते है। दूसरे वर्ग में चक्रीय (सायकलीक) संरचना होती है। उसे चक्रीय टरपीन कहते हैं। फिर चक्रीय टरपीन एक वलय वाला, दो वलयवाला या तीन से अधिक वलयवाला हो सकता है। ऐसे टरपीनों को क्रमश: एकचक्रीय, द्विचक्रीय, त्रिचक्रीय, या बहुचक्रीय, टरपीन कहते हैं।
टरपीन की उपस्थिति
टरपीन पौधों में विस्तृत रूप से पाए जाते हैं। ये पौधों के पत्तों, धड़ों, काठों, फूलों और फलों में होते हैं। कुछ पेड़ों और क्षुपों से ओलियोरेजिन या तैलरेजिन निकलता है। इसके आसवन या वाष्प आसवन से टरपीन आसुत होकर निकलता है और आसवन पात्र में ठोस या अर्ध ठोस अवशेष रह जाता है, जिसे रोजिन कहते हैं। आसुत उत्पाद तारपीन का तेल है। इस तेल में अनेक टरपीन रहते हैं, जिनके विभिन्न सदस्यों का पृथक्करण हुआ है। पौधों से प्राप्त वाष्पीशील तेलों में टरपीन के साथ साथ बहुधा टरपीन के आक्सीजन संजात भी पाए जाते हैं। ये संरचना में टरपीन से बहुत मिलते जुलते हैं। इनमें कुछ बड़े व्यापारिक महत्व के हैं। एक ऐसा ही संजात कपूर है।
तारपीन के तेल का उपयोग बहुत काल से सुगंधित द्रव्य के रूप में, पाकनिर्माण तथा ओषाधियों, विशेषत: चर्मरोग और कृमिनाशक औषधियों, में होता आ रहा है। शुद्ध टरपीन के भी ऐसे ही उपयोग हैं। अनेक सुगंधित और कृमिनाशक द्रव्य इनसे आज तैयार होते हैं। सुगंधित द्रव्यों, विशेषत: कृत्रिम पुष्पगंधों के निर्माण में टरपीन का बड़ा महत्वपूर्ण योग है।
पौधों में टरपीन का क्या उपयोग है, इसका ठीक ठीक पता भी नहीं लगा है। संभवत: इनकी गंध से मधुमक्खियाँ आकर्षित होकर परागण (पोलिनेशन) में सहायक होती हैं। पौधों में टरपीन का सृजन कैसे होता है, इसका भी अभी तक ठीक ठीक पता नहीं लगा है। कुछ लोगों ने शर्कराओं से और कुछ लोगों ने ल्युसीन (ल्यूसिन) नामक ऐमिनो यौगिक से इसे प्राप्त करने का दावा किया है, पर यह बात ठोस जीवरासायनिक प्रभाव के आधार पर प्रमाणित नहीं हुई है। प्रकृति में टरपीन बहुधा प्रकाशसक्रिय, दक्षिणावर्ती और वामावर्ती दोनों, रूपों में पाए जाते हैं, जब कि पौधों के अन्य प्राकृतिक उत्पाद, शर्कराएँ, ऐलकालॉयड, ऐमिनो अम्ल आदि सामान्यत: एक ही सक्रिय रूप में पाए जाते हैं। एक टरपीन को दूसरे टरपीन में परिणत होते पाया गया है।
सरलतम टरपीन हेमिटरपीन है, जिसका सूत्र (च५ह८) है। इसे आइसोप्रीन या 'बीटा-मेथाइल-ब्यूटा-डाइन' भी कहते हैं। इसका आविष्कार 1८6० ई० में ग्रैविल विलियमस (ग्रविले विलियम्स) द्वारा हुआ था। कुचूक (काउटूच) के आसवन से उन्होंने इसे द्रव के रूप में प्राप्त किया था। पीछे टिल्डेन ने डाइपेंटीन से इसे प्राप्त किया। यह वर्णहीन द्रव है, जिसका आपेक्षिक घनत्व ०.६९ और क्वथनांक ३३.५ सें. है। बहुत समय तक रखे रहने से यह रबर में बदल जाता है। यहाँ टरपीन का बहुलीकरण होता है। गरम करने या उत्प्रेरकों की उपस्थिति में बहुलकरण बड़ी शीघ्रता से संपन्न होता है। आज आइसोप्रीन कई स्रोतों से प्राप्त हुआ है। इनमें कुछ स्रोत व्यापारिक महत्व के हैं।
वास्तविक टरपीन वर्णहीन द्रव होते हैं। जल में अविलेय, पर ऐलकोहल, बेंज़ीन, ईथर आदि कार्बनिक विलायकों में विलेय होते हैं। इनमें विशिष्ट सौरभिक गंध होती है। ये प्रकाशत: सक्रिय तथा दक्षिणावर्ती और वामावती रूपों में तथा निष्क्रिय रूपों में भी पाए जाते हैं। रसायनत: ये बड़े सक्रिय होते हैं। अनेक अभिकर्मकों, हाइड्रोजन, हाइड्रोजन क्लोराइड, ब्रोमीन, नाइट्रोसिल क्लोराइड आदि से यौगिक बनते हैं। ये बड़े शीघ्र आँक्सीकृत और बहुलकृत हो जाते हैं। वायु से मिलकर ये रेजिन सा पदार्थ बनाते हैं। इनके योगशील यौगिक फ़सिसफ़औ फ़ट्रांसफ़ दोनों रूपों में पाए जाते हैं।
इस वर्ग के अचक्रीय टरपीनों में मरसीन (मिर्सिन) क्वथनांक १६६-१६८ डिग्री और औसिमीन (ऑसिमैने) क्वथनांक १७६-१७८ डिग्री सें०, अधिक महत्व के हैं। मरसीन अनेक वाष्पशील तेलों में, विशेषत: बे तेल (बे ऑयल) में, पाया जाता है। पाइनीन से भी यह प्राप्त हुआ है। इसमें तीन युग्मबंध हैं। यह 3०० डिग्री सें० पर बहुलीकृत हो जाता है और जल्दी आक्सीकृत भी हो जाता है। इसका संरचनासूत्र निम्नलिखित है:
मरसीन और औसिमीन में केवल युग्मबंध की स्थिति में विभिन्नता है। एकचक्रीय टरपीनों में लिमोनीन (लिमोनेने) व्यापक रूप से पाया जाता है। नीबू, संतरे और अन्य वाष्पशील तेलों में यह रहता है। यह वर्णहीन प्रकाशसक्रिय द्रव है। यह दक्षिणावर्ती (क्युमिन तेल में) और वामावर्ती (सिल्वर फर के कोन (कोन) के तेल में), दोनों रूपों में पाया जाता है। इसका निष्क्रिय रूप डाइपेंटीन है, जिसका संश्लेषण जूनियर परकिन द्वारा १९०४ में हुआ था और इससे इसकी संरचना की पुष्टि हो गई। इस वर्ग के टरपिनोलीन, ऐल्फा-टरपिनीन, गामा-टरपिनीन, बीटा-फिलैंड्रीन तथा ऐल्फा-फिलैंड्रीन, अन्य टरपीनों में युग्म बंधों की स्थिति में विभिन्नता है, जैसा निम्नलिखित सूत्रों से पता लगता है -
द्विचक्रीय टरपीनों में दो वलय होते हैं। इनमें साइक्लोहेक्सेन वलय, साइक्लोब्यूटने वलय से संबद्ध रहता है। इनमें केवल एक युग्मबंध रहता है, जिससे योगशील यौगिक बनते हैं। ऐसे टरपीनों में पाइनीन, कैंफीन, फेंचीन किस्म के यौगिक रहते हैं।
सेस्किवटरपीन और उनके आक्सिसंजात तारपीन के तेल में रहते हैं, जिनके प्रभाजक आसवन से ये पृथ्क किए जा सकते हैं। ये सामान्यत: श्यान होते हैं। इनका क्वथनांक २५० डिग्री और २८० डिग्री सें. के बीच तथा आपेक्षिक घनत्व ०.८५ से ०.९४ तक होता है। ये शुद्ध रूप में वर्णहीन होते है, पर अपद्रव्यों के कारण इनमें कुछ नीली आभा आ जाती है। अन्य गुणों में ये अन्य टरपीनों सदृश होते हैं। इनमें सरलता से संरचना बदलने की प्रवृत्ति होती है। संरचना के निर्धारण में भौतिक रीतियाँ, जैसे अवरक्त और पराबैंगनी किरणा अवशोषण इत्यादि, अधिक विश्वसनीय सिद्ध हुई है। इनके आक्सीकरण संजातों का विस्तार से अध्ययन हुआ है, पर विहाइड्रोजनीकरण ही अधिक लाभप्रद सिद्ध हुआ है। विहाइड्रोजनीकरण से कुछ से नैफ्थलीन संजात प्राप्त होते हैं और नैफ्थलीन संजात नहीं प्राप्त होते हैं। कुछ से कैडिलीन (केडेलेने) और कुछ से यूडेलीन (युडिलेन) प्राप्त हुए हैं।
इसके क्वथनांक ३५० - ४०० डिग्री सेल्सियस के बीच होते हैं ये और इनके आक्सीजन संजात सामानयत: रोजिन में पाए जाते हैं। कैंफर तेल में कैंफोरीन नामक डाइटरपीन रहता है। जिसका गलनांक १२९ - १३१ डिग्री सें० है। रोजिन और बालसम में पिमेरिक अम्ल और ऐबिएटिक अम्ल भी पाए जाते है। इनके विहाइड्रोजनीकरण से फिनेंथ्रीन संजात बनते हैं।
इन्हें भी देखें |
आकर ज्ञान विभिन्न प्रकार की खानों की विद्या का ज्ञान रखना एक कला है। यह कला चौंसठ कलाओं में से एक महत्त्वपूर्ण कला है। |
हरसिल (हरसिल) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी ज़िले में स्थित एक ग्राम और सैनिक छावनी है। यह हिमालय में भागीरथी नदी के किनारे बसा एक रमणीय हिल स्टेशन है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग ३४ पर गंगोत्री के हिन्दू तीर्थस्थल के मार्ग में आता है। हरसिल उत्तरकाशी से ७८ किमी और गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान से ३० किमी दूर है। यह अपने प्राकृतिक वातावरण और सेब उत्पादन के लिए जाना जाता है।
हरसिल समुद्र तल से ७,८६० फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से ३० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान जो १,५५३ वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला है। सम्पादित कौशल किशोर मौनी बाबा आश्रम गंगोत्री फोन०८७५५६०५७८१=हर्सिल मे भगवान श्री हरि की लेटि हुयी शिला है जोकि हर्शिल मे लक्ष्मीनारायण मन्दिर के निचे भागीरथी गंगा नदी के किनारे पर स्थित है इस लिए हर्शिल नाम पड़ा है
हरसिल उत्तरकाशी से ७३ किलोमीटर आगे और गंगोत्री से २५ किलोमीटर पीछे तक सघन हरियाली से आच्छादित है। गढ़वाल के अधिकांश सौन्दर्य स्थल दुर्गम पर्वतों में स्थित हैं जहां पहुंचना बहुत कठिन होता है। यही कारण है कि प्रकृति प्रेमी पर्यटक इन स्थानों पर पहुंच नहीं पाते हैं। लेकिन ऐसे भी अनेक पर्यटक स्थल हैं जहां सभी प्राकृतिक विषमता और दुरुहता समाप्त हो जाती है। वहां तक पहुंचना सहज और सुगम होता है। यही कारण है कि इन सुविधापूर्ण प्राकृतिक स्थलों पर अधिक पर्यटक पहुंचते हैं। प्रकृति की एक ऐसी ही एक सुंदर उपत्यका है, हरसिल।
यहां का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है। घाटी के सीने पर भागीरथी का शान्त और अविरल प्रवाह हर किसी को आनन्दित करता है। पूरी घाटी में नदी-नालों और जल प्रपातों की भरमार है। हर कहीं दूधिया जल धाराएं इस घाटी का मौन तोडने में डटी हैं। नदी झरनों के सौंदर्य के साथ-साथ इस घाटी के सघन देवदार के वन मनमोहक हैं। जहां तक दृष्टि जाती है वृक्ष हि वृक्ष दिखाई देते हैं। यहां पहुंचकर पर्यटक इन वृक्षों की छांव तले अपनी थकान को मिटाता है। वनों से थोडा ऊपर दृष्टि पडते ही आंखें खुली की खुली रह जाती है। हिमाच्छादित पर्वतों का आकर्षण तो देखते ही बनता है। ढलानों पर फैले हिमनद भी देखने योग्य है।
दिल्ली-हरिद्वार-हरसिल रिज, अरावली पर्वत श्रृंखला के उत्तरी फैलाव का भूमिगत रिज है, जिसका फैलाव उत्तर उत्तरपूर्व-दक्षिण दक्षिण पश्चिम तक है और जिसका विस्तार अजमेर और जयपुर से होता हुआ आगे अंबा माता-देरि से दिल्ली तक है।
पिछले कुछ वर्षों में भोट जातीय समूह से सम्बन्धित जध लोग छोटी संख्या में यहां आकर बस गये हैं और ये लोग तिब्बती भाषा से मिलती जुलती एक भाषा बोलते हैं।
ऋषिकेश से हरसिल की लंबी यात्रा के बाद यात्री हरसिल में रुक सकते हैं। भोजपत्र के वृक्ष और देवदार के मनमोहक वनों की तलहटी में बसे हरसिल की सुंदरता पर बगल में बहती भागीरथी और आसपास के झरने चार चांद लगा देते हैं। गंगोत्री जाने वाले अधिकतर तीर्थ यात्री हरसिल की इस सुंदरता का आंनंद लेने के लिये यहां रुकते हैं। अप्रैल से अक्टूबर तक हरसिल आना सुगम है, लेकिन बर्फबारी के चलते नवंबर से मार्च तक यहां बहुत कम ही पर्यटक पहुंच पाते हैं। हरसिल की घाटियों का सौंदर्य इन्हीं महीनों में खिलता है, जब यहां की पहाडियां और पेड बर्फ से अच्छादित रहते हैं। गौमुख से निकलने वाली भागीरथी का शांत स्वभाव यहां देखने योग्य है। यहां से कुछ ही दूरी पर डोडीताल है इस ताल में रंगीन मछलियां ट्राडा भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। इन ट्राडा मछलियों को विल्सन नामक एक अंग्रेज़ लाये थे। बगोरी, घराली, मुखबा, झाला और पुराली गांव इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति और इतिहास को समेटे हैं। हरसिल देश की सुरक्षा के नाम पर खींची गई भीतरी पंक्ति में रखा गया है जहां विदेशी पर्यटकों के ठहरने पर प्रतिबंध है। विदेशी पर्यटक हरसिल होकर गंगोत्री, गौमुख और तपोवन सहित हिमालय की चोटियो में तो जा सकते हैं लेकिन हरसिल में नहीं ठहर सकते हैं। हरसिल से सात किलोमीटर की दूरी पर सात तालों का दृश्य विस्मयकारी है। इन्हें साताल कहा जाता है। हिमालय की गोद मे एक श्रृखंला पर पंक्तिबद्ध फैली इन झीलों के दमकते दर्पण में पर्वत, आसमान और बादलों की परछाइयां कंपकपाती सी दिखती हैं। ये झील ९,००० फीट की ऊंचाई पर फैली हैं। इन झीलों तक पहुंचने के रास्ते मे प्रकृति का एक नया ही रूप दिखाई देता है। यहां पहुंचकर प्रकृति का संगीत सुनते हुए झील के विस्तृत सुनहरे किनारों पर घूमा जा सकता है।
हर वर्ष दिवाली के बाद गंगाजी की मूर्ति को उपरी हिमालय में स्थित गंगोत्री धाम से नीचे बसे मुखबा ग्राम में लाया जाता है और पूरी सर्दी भर मुर्ति यहीं रहती है, क्योंकि इन महीनो के दौरन गंगोत्री में बहुत बर्फ गिरती है और उपरी भाग तक पहुंचना दुर्गम हो जाता है।
हरसिल की लोकप्रियता
हरसिल की सुन्दरता को अपने जमाने के लोकप्रिय चलचित्र राम तेरी गंगा मैली में भी दिखाया जा चुका है। बॉलीवुड के सबसे बडे़ शोमैन रहे राज कपूर एक बार जब गंगोत्री घूमने आए थे तो हरसिल की सुन्दरता से मन्त्रमुग्ध होकर यहां की घाटियों पर एक चलचित्र ही बना डाला - राम तेरी गंगा मैली। इस चलचित्र में हरसिल की घाटियों को जिस सजीवता से दिखाया गया है वो देखते ही बनता है। यहीं के एक झरने में चलचित्र की नायिका मन्दाकिनी को नहाते हुए दिखाया गया है। तब से इस झरने का नाम मन्दाकिनी झरना पड़ गया।
इस घाटी से इतिहास के रोचक पहलू भी जुडे हैं। एक अंग्रेज़ थे, फेडरिक विल्सन जो ईस्ट इंडिया कंपनी में कर्मचारी थे। वह थे तो इंग्लैंड वासी लेकिन एक बार जब वह मसूरी घूमने आए तो हरसिल की घाटियों में पहुंच गए। उन्हें यह स्थान इतना भाया कि उन्होंने सरकारी नौकरी तक छोड़ दी और यहीं बसने का मन बना लिया। स्थानीय लोगों के साथ वह शीघ्र ही घुल-मिल गए और गढ़वाली बोली भी सीख ली। उन्होंने अपने रहने के लिए यहां एक बंगला भी बनाया। निकट के मुखबा ग्राम कि एक लड़की से उन्होंने विवाह भी किया। विल्सन ने यहां पर इंग्लैंड से सेब के पौधे मंगावाकर लगाए जो खूब फले-फूले। आज भी यहां सेब की एक प्रजाति विल्सन के नाम से प्रसिद्ध है।
हरसिल की सुंदर घाटियों तक पहुंचने के लिए पर्यटकों को सबसे पहले ऋषिकेश पहुंचना होता है। ऋषिकेश देश के हर कोने से रेल और बस मार्ग से जुडा़ है। ऋषिकेश पहुंचने के बस या टैक्सी द्वारा २१८ किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद यहां पहुंच सकते हैं। यहां का सबसे समीपी हवाईअड्डा है जौलीग्रांट जो देहरादून में है। जौलीग्रांट से बस या टैक्सी द्वारा २३५ किलोमीटर का यात्रा करने के बाद यहां पहुंचा जा सकता है।
समय और मौसम
नवंबर-दिसंबर के महीने में जब यहां बर्फ की चादर जमी होती है तो यहां का सौंदर्य और भी खिल उठता है। बर्फबारी के शौकीन इन दिनों यहां पहुंच सकते हैं। पर्यटकों को यात्रा के दौरान इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वर्ष के किसी भी महीने आएं लेकिन हर समय गरम कपडे़ साथ होने चाहिए। यहां पर खाने-पीने के लिए साफ और सस्ते होटल सरलता से उपलब्ध हो जाते हैं जो बजट के अनुरूप होते हैं। हरसिल में ठहरने के लिए लोकनिर्माण विभाग का एक बंगला, पर्यटक आवास गृह और स्थानीय निजी होटल हैं। यहां खाने-पीने की पर्याप्त सुविधाएं हैं। गंगोत्री जाने वाले यात्री कुछ देर यहां रुककर अपनी थकान मिटाते हैं और हरसिल के सौंदर्य का लुत्फ लेते हैं।
रक्षा कृषि अनुसंधान प्रयोगशाला
रक्षा कृषि अनुसंधान प्रयोगशाला कि एक टुकड़ी जो रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा चलाई जाती है, यहाँ मई १९७३ में स्थापित कि गई थी।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड पर्यटन का आधिकारिक जालस्थल
हरसिल, उत्तराखण्ड पर्यटन के आधिकारिक जालथल पर।
उत्तराखण्ड के गाँव
उत्तरकाशी ज़िले के गाँव |
सुलु (सुलू) दक्षिणपूर्वी एशिया के फ़िलिपीन्ज़ देश का एक प्रान्त है। भौगोलिक रूप से इसमें सुलु द्वीपसमूह के कई द्वीप शामिल हैं और इसकी राजधानी जोलो द्वीप है। यह प्रान्त बैंगसमोरो स्वायत्त क्षेत्र में मुस्लिम मिंडानाओ नामक प्रशासनिक क्षेत्र में शामिल है।
शीर्षकों के लिए बिना क्लिक करे माउस चित्र पर लाएँ और एक क्षण ठहरें
इन्हें भी देखें
बैंगसमोरो स्वायत्त क्षेत्र में मुस्लिम मिंडानाओ
फ़िलिपीन्ज़ के प्रान्त
फ़िलिपीन्ज़ के प्रान्त
मुस्लिम मिन्दनाओ में स्वशासित क्षेत्र |
गगवाडा-गग०ई, पौडी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
गगवाडा-गग०ई, पौडी तहसील
गगवाडा-गग०ई, पौडी तहसील |
डॉ॰ संगीता गौड़ - संगीतकार, शास्त्रीय संगीत गायिका और नाट्य संगीत निर्देशक हैं। वे मानव संसाधन विकास मंत्रालय से हवेली संगीत में अनुसंधान के लिए फैलोशिप प्राप्त कर चुकी हैं।
डॉ॰संगीता गौड़ ने संगीत, स्वर्गीय महादेव गोविंदराव देशपांडे, स्वर्गीय भाई जी विनयचंद्र मुदग्ल, श्रीमती कृष्णा (डीन संगीत संकाय) और प.सुखदेव चतुर्वेदी से सीखा। एम.फिल.-ब्रज संगीत पर शोध। डाक्टरेट दिल्ली विश्वविद्यालय से - "हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और बदलते सौंदर्यबोध" पर किया। शास्त्रीय संगीत के साथ हवेली संगीत, ठुमरी, चैती, होरी, सुफियाना संगीत में भी महारथ। देश भर में संगीत संगीत समारोहों मै हिस्सेदारी। विभिन्न गैर सरकारी संगठनों और सामाजिक संगठनों को के साथ काम किया है।
वह संगीत निर्देशक के रूप में अस्मिता थिएटर ग्रुप के साथ काम करती है। संगीता गौड़ ने कई बहुप्रशंसित नाटकों में संगीत दिया है।
उनमें से कुछ को अमेरिका, रुस, फ्रांस, लंदन, ऑस्ट्रेलिया, एडिनबर्ग फेस्तिवल के अलावा भारत रंग महोत्सव (रानावि,न्सड), संगीत नाटक अकादमी राष्ट्रीय महोत्सव, महिन्द्रा थिएटर महोत्सव, नेहरू सेंटर महोत्सव, मुंबई में भी प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया गया। ऐश्वर्य निधि द्वारा किया गया गांधारी एकल नाटक सिडनी और मेलबोर्न में भी दक्षिण एशिया दिवस पर प्रदर्शन के लिए अगस्त २००८ मै आमंत्रित किया गया था।
गिरीश कर्नाड का तुगलक, भीष्म साहनी का हानूश, स्वदेश दीपक का कोर्ट मार्शल, गोविंद पुरुषोत्तम देशपांडे का अंतिम दिवस, गिरीश कर्नाड का रक्त कल्याण, महेश दत्ताणी का अंतिम समाधान, विजय तेंडुलकर का घासीराम कोतवाल, मुंशी प्रेमचंद का मोटॅ राम का सत्याग्रह, दूधनाथ सिंह का यम-गाथा,भीष्म साहनी का कबीरा खड़ा बाजार मॅ, उदय प्रकाश का वॉरेन हेस्टिंग्स का सान्ड्, राशि बनि के साथ भीष्म साहनी का माधवी एकल नाटक, गांधारी- ऐश्वर्य निधि के साथ एकल, लुसिन दुबे के साथ अनटाईटल एकल आदि। नाटकों में संगीत निर्देशक के रूप में कार्य किया। |
लक्ष्मीपति बालाजी (, , जन्म; २७ सितम्बर १९८१, चेन्नई, तमिलनाडु) एक पूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी है। ये एक दाहिने हाथ तेज मध्यम गेंदबाज है। उन्होंने नवंबर २०१६ में प्रथम श्रेणी क्रिकेट और लिस्ट ए क्रिकेट से अपनी सेवानिवृत्ति की घोषणा की थी। इन्होंने २०१८ इंडियन प्रीमियर लीग में चेन्नई सुपर किंग्स टीम की गेंदबाजी कोचिंग की थी।
लक्ष्मीपति बालाजी का जन्म साल १९८१ में २७ सितम्बर को तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले के उठुकाडू गाँव में हुआ था और इन्होंने क्रिकेट भी इसी राज्य से खेला है।
बालाजी ने साल २००३ मध्यम तेज गति के गेंदबाज के रूप में भारतीय क्रिकेट टीम में जगह बनाई थी। ये साल २००१ से २०१६ तक अपने राज्य तमिलनाडु के लिए खेले थे और अपना पहला टेस्ट क्रिकेट मैच साल २००३ में अहमदाबाद में न्यूज़ीलैंड के खिलाफ खेला था। तो अपना आखिरी टेस्ट मैच २००५ में पाकिस्तान क्रिकेट टीम के खिलाफ खेला था इसके बाद इन्हें वापस जगह नहीं मिली थी। इन्होंने अपना पहला एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैच २००२ में वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम के खिलाफ खेला था और अंतिम मैच २००९ में श्रीलंका क्रिकेट टीम के खिलाफ खेला था।
लक्ष्मीपति बालाजी ने अपने कैरियर में ५ ट्वेन्टी ट्वेन्टी अंतर्राष्ट्रीय मैच भी खेले थे जिसमें पहला मुकाबला साल २०१२ में न्यूज़ीलैंड क्रिकेट टीम के खिलाफ खेला था जो एम ए चिदंबरम स्टेडियम चेन्नई में खेला गया था। आखिरी मुकाबला दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट टीम के खिलाफ २०१२ में कोलम्बो में खेला था।
बालाजी ने २००८ से २०१० तक इंडियन प्रीमियर लीग में अपनी घरेलू टीम चेन्नई सुपर किंग्स के लिए खेले थे जिसमें इन्होंने आईपीएल की पहली हैट्रिक लेकर नया कारनामा किया था। जबकि इसके बाद साल २०११ से २०१३ तक ये कोलकाता नाइट राइडर्स के लिए खेले थे। इन्होंने अपने पूरे आईपीएल कैरियर में ७३ मैचों में ७६ विकेट लिए।
भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी
भारतीय टेस्ट क्रिकेट खिलाड़ी
भारतीय एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी
भारतीय ट्वेन्टी २० क्रिकेट खिलाड़ी
१९८१ में जन्मे लोग
चेन्नई के लोग
दाहिने हाथ के गेंदबाज |
धर्मगढ़ (धरमगढ़) भारत के ओड़िशा राज्य के कलाहांडी ज़िले में स्थित एक गाँव है। राष्ट्रीय राजमार्ग १३०सी यहाँ से गुज़रता है।
इन्हें भी देखें
ओड़िशा के गाँव
कलाहांडी ज़िले के गाँव |
नोमान इब्न साइत इब्न ज़ौता इब्न मरज़ुबान (फारसी: , अरबी: ), जो अबू हनीफ़ा (हनीफ़ा के पिता) के नाम से मशहूर हैं और इन्हें इसी नाम से भी जाना जाता है (जन्म : ६९९ ई. मृत्यु ७६७ ई / ८०-१५० हिजरी साल),अबू हनीफ़ा सुन्नी "हनफ़ी मसलक" (हनफ़ी स्कूल) इसलामी न्यायशास्त्र के संस्थापक थे। यह एक प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान थे। ज़ैदी शिया मुसलमानों में इन्हें प्रसिद्ध विद्वान के रूप में माना जाता है। ''' उन्हें अक्सर "महान इमाम" ( , अल इमाम अल आज़म) कहा और माना जाता है।
अबू हनीफा इराक के शहर कूफ़ा में पैदा हुए थे। वे खलीफ़ा उमय्यद खलीफा अब्द अल मलिक इब्न मरवान के समकालीन थे।उनके पिता, थबित बिन ज़ूता एक व्यापारी थे, जो मूल रूप से काबुल, अफगानिस्तान से थे।
खलीफ़ा अल-मनसूर ७६३ ई. में मुस्लिम दुनिया के खलीफ़ा थे। इन की राजधानी इराक़ का शहर बागदाद था। मुख्य न्यायाधीश स्वर्गवासी होने के कारण वह पद खाली हुआ, उसे भरती करने के लिये, खलीफ़ा ने अबू हनीफ़ा को इस पद के लिये पेशकश की, लैकिन अबू हनीफ़ा स्वतंत्र रहना पसंद करते थे, इस लिये इस प्रस्ताव और पेशकश को ठुकरा दिया। इस पद को अरबी भाशा में "क़ादि-उल-क़ुज़्ज़ात" कहते हैं। इस पद पर उनके छात्र अबू यूसुफ नियुक्त किया गया।
खलीफ़ा अल-मनसूर और दीगर लोगों को यह बात अच्छी नहीं लगी कि, अबू हनीफ़ा इस पद को इनकार किया। चूं कि, अबू हनीफा इस क़ाबिल थे, और उनहें क़ाबिल समझा गया, इसी लिये उन्हें पेशकश की गयी, जिस को अबू हनीफ़ा ने खुद को क़ाबिल न बताते हुवे ठुकरा दिया। इस बात पर खलीफ़ा ने कहा कि तुम झूठ बोल रहे हो। तब अबू हनीफ़ा ने कहा कि अगर वह झूठ बोल रहे हैं तो ऐसे झूठे को ऐसे ऊंचे पद की पेश कश नहीं करना चाहिये। इस बात पर नाराज़ खलीफ़ा ने अबू हनीफ़ा को गिरफ़्तार कर जैल में बंद करवा दिया। कुछ महीनों बाद अबू हनीफ़ा जेल ही में मर गये।
शाह इस्माइल की सफ़वी साम्राज्य १५०८ ई. में अबू हनीफा और अब्दुल कादिर गिलानी की क़बरों को सरकार द्वारा नष्ट कर दिया गया। १५३३ में, तुर्क साम्राज्य ने इराक और अबू हनीफा और अन्य सुन्नी स्थलों के मक़बरों का पुनर्निर्माण किया।
पीढ़ियों की स्तिथि
यह भी माना जाता है कि अबू हनीफ़ा ताबईन जो सहाबा के बाद के दौर के थे, में से थे। सहाबा, मुहम्मद साहब के अनुयाईयों को कहा जाता है।. कुछ और का कहना है कि अबू हनीफ़ा ने करीब छः सहाबियों को देखा है। कम
अल्लाह का डर और नमाज़
अबू हनीफ़ा ने चालीस साल तक इशा के वुज़ू से फज़र की नमाज़ पढ़ी ओर वह रात भर क़ुरआन पढ़ा करते थे।
सहिष्णुता का प्रचार
अबू हनीफ़ा के विचारों के अनुसार मुस्लिम शासकों गैर-मुस्लिम प्रजा के साथ भी बराबरी का व्यव्हार करना चाहिए। किसी भी निर्दोष मुसलमान की हत्या की तरह निर्दोष गैर-मुस्लिम के हत्यारे को भी उतनी ही सज़ा मिलनी चाहिए। वे ईश-निन्दा (ब्लेस्फेमी) के आरोपियों को, विशेष रूप से गैर-मुस्लिम व्यक्तियों के मृत्यु के विरुद्ध थे तथा अन्य अन्य इमामों की तुलना में धर्मत्याग करने वाले मुसलमानों को मृत्यु दंड देने के पक्ष में नहीं थे, हालांकि इतिहास में ऐसी कई घटनाएँ हो चुकी हैं। सामान्य रूप से अन्य धर्म पंथ की तुलना में हनफ़ी अनुयायी अति शांति प्रिय स्वभाव के होते हैं जिसके लिए अबू हनीफ़ा की शिक्षाओं का बड़ा दख़ल है।
रचनायें और संकलन
किताब उल-आसार - उल्लेखन इमाम मुहम्मद अल-शैबानिएए - संकलन जुम्ला ७०,००० हदीस
किताबुल आसार - उल्लेखन इमाम अबू यूसुफ़
आलिम व मुताल्लिम - (गुरू और शिष्य) या (विद्वान और विद्यार्थी)
मुसनद इमाम उल आज़म (हदीसों का संकलन)
किताबुल राद अलल क़ादिरिय्या
अबू हनीफा की जीवनी
इमाम अबू हनीफ़ा - जमील अहमद
अबू हनीफा की वसीयत अंग्रेज़ी में अनुवाद शैख़ इमाम ताहिर महमूद अल-किणी
अबू हनीफ़ा पर किताब
अबू हनीफ़ा की जीवनी
मुस्लिम विरासत पर अबू हनीफ़ा
इमाम अबू हनीफा - शैख़ ग फ हददाद
अबू हनीफा और मुस्लिम देश - ताजीकिस्तान के अध्यक्ष के लेख
अबू हनीफा के चंद गुरु और शिष्य
इस्लामी न्याय शास्त्र |
अलीगंज देहात एटा जिले के अलीगंज प्रखण्ड का एक गाँव है।
एटा ज़िले के गाँव |
हँसी या हास्य मानव भावनाओं की अभिव्यक्ति की एक प्रक्रिया है। किसी भी मनुष्य को हँसी आ सकती है। परन्तु हँसी को कुछ लोग केवल मुस्कुराहट तक सीमित रखते हैं, कुछ लोग मुस्कुराने के साथ-साथ मुँह भी खोलते हैं और कम से कम उनके आगे दाँत भी दिखाई पड़ते हैं। हँसी मामूली और औपचारिक हो सकती है जिसमें चेहरा ज़्यादा हिलता नहीं तो कभी लोग सर और शरीर हिला-हिलाकर हँसते हैं। बहुत ज़्यादा हँसने और देर तक हँसने को कहकहा कहते हैं।
आम धारणा के विपरीत, ज्यादातर हँसी चुटकुलों या ऐसे अन्य हास्यपद कारणों से नहीं आती।
मनुष्य विभिन्न कारणों से हँस सकता है। उनमें से कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:
सफलता का एहसास
किसी चुटकुले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करना
दूसरों की भूल-चूक या उन लोगों की मूर्खता पर हँसना
इन्हें भी देखें
हँसी से मृत्यु
दुष्टता से भरी हँसी
जानवरों में हँसी
घबराने वाली हँसी |
विष्णु प्रताप सिंह,भारत के उत्तर प्रदेश की तीसरी विधानसभा सभा में विधायक रहे। १९६२ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के १७२ - महादेव विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया।
उत्तर प्रदेश की तीसरी विधान सभा के सदस्य
१७२ - महादेव के विधायक
गोंडा के विधायक
कांग्रेस के विधायक |
पारावुर आराधनालय या पारुर आराधनालय (पारवुर सिनेगॉग) केरल के उत्तरी पारावुर में स्थित एक प्राचीन यहूदी आराधनालय है। यह केरल में स्थित सभी यहूदी आराधनालयों में से सबसे बड़ा और सबसे परिपूर्ण है।
वर्तमान समय में यहाँ पूजा-अराधना नहीं की जाती किन्तु केरल सरकार ने हाल ही में इसका जीर्णोद्धार कराया है और अब यह आराधनालय जनता के दर्शन के लिए खोल दिया गया है।
भारत में यहूदी धर्मस्थल |
पाकिस्तानी राजनेता और पाकिस्तान के प्रांत, पंजाब के पूर्व राज्यपाल।
पाकिस्तानी पंजाब के राज्यपाल
पाकिस्तान की राजनीति
पंजाब, पाकिस्तान के राज्यपाल
पाकिस्तान के लोग |
राई विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र, हरियाणा हरियाणा के सोनीपत जिले में स्थित एक विधान सभा क्षेत्र है। यह सोनीपत लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र के अन्तर्गत आता है।
इस क्षेत्र के वर्तमान विधायक जय तीरथ हैं।
ये भी देखें
सोनीपत लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र
हरियाणा के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र |
लालपुर-सुखरौ, यमकेश्वर तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
लालपुर-सुखरौ, यमकेश्वर तहसील
लालपुर-सुखरौ, यमकेश्वर तहसील |
किसी कम्प्यूटर प्रोग्राम को विकसित करने की प्रक्रिया किए जाने वाले कार्य को समझने एवं कार्य के सम्पन्न होने हेतु तर्क निर्धारण से प्रारंभ होती है और यह कार्य प्रवाह तालिका अथवा मिथ्या संकेत की सहायता से किया जाता है। मिथ्या संकेत प्रवाह तालिका का एक विकसित विकल्प है। मिथ्या संकेत मे विभिन्न आकृतियो अथवा चिन्हो की अपेक्षा प्रोग्राम की प्रक्रिया को क्रम मे लिखा जाता है। चूंकि इसका प्रोग्राम को डिजाइन करने मे महत्वपूर्ण स्थान है अत: इसे प्रोग्राम डिजाइन भाषा भी कहा जाता है। मिथ्या संकेत द्वारा प्रोग्राम लिखने के लिये निम्नलिखित मूल तर्को को प्रारूप के रूप मे प्रयोग किया जाता है-
१ अनुक्रम तर्क (सेक्वेंस लॉजिक):- किसी कम्प्यूटर प्रोग्राम मे विभिन्न स्टेटमेंट को एक निश्चित क्रम मे लिखा जाता है। जब प्रोग्राम को चलाया जाता है तो विभिन्न स्टेटमेंट मे दी गई कमांड एवं निर्देशानुसार उसी क्रम मे क्रियांवित होता है। अनुक्रम तर्क का प्रयोग प्रोग्राम मे निर्देशो को कार्य करने के क्रम मे लिखा जाता है। अत: अनुक्रम तर्क के लिये मिथ्या संकेत उसी क्रम मे लिखे जाने चाहिये जिस क्रम मे उनका प्रयोग किया जाना है। मिथ्या संकेत मे स्टेटमेंट का पूर्ण होना; अर्थात अर्धविराम द्वारा दर्शाया जाता है। यूं तो अर्धविराम का प्रयोग करते हुए एक लाईन मे एक से अधिक स्टेटमेंट भी लिखे जा सकते है परन्तु उचित यही रहता है कि एक लाईन मे एक ही स्टेटमेंट लिखा जाए ताकि प्रोग्राम को समझने मे सरलता हो।
२.चयन तर्क-चूंकि इस तर्क का प्रयोग निर्णय लेने के लिये किया जाता है अत: इसे निर्णय तर्क भी कहते है। इसका प्रयोग मिथ्या संकेत मे वहां किया जाता है जहां एक से अधिक वैकल्पिक पथो मे से सही पथ चुनना होता है। इसे चार प्रारूपो मे प्रयोग किया जाता है।
(अ) एक पथीय प्रारूप यह इफ से प्रारंभ होता है और एंडीफ पर समाप्त होता है।इफ के पश्चात तें का प्रयोग होता है और यह तभी कार्यांवित होता है जबकि दी गई शर्त सही हो।
(ब) द्वि पथीय प्रारूप- इसमे इफ औरतें के साथ एल्स का प्रयोग भी किया जाता है। थान शर्त के प्रथम विकल्प के लिये और एल्स शर्त के द्वितीय विकल्प के लिये प्रयोग किया जाता है।
(स) बहुपथीय प्रारूप -इस प्रारूप का प्रयोग उस स्थिति मे किया जाता है जबकि शर्त के दो से अधिक विकल्प को जाचना होता है जबकि इनमे से केवल ही सत्य होता है।
(द) स्थिति प्रारूप इसका प्रयोग किसी अनन्य निर्णय के स्थान पर किया जाता है।
(य) शरण स्थिति प्रारूप-जब किसी शर्त मे कोइ अन्य उप शर्त भी सम्मिलित हो तो शरण स्थिति प्रारूप प्रयोग किया जाता है।
३. आवृति तर्क (इतरेशन लॉजिक)-इसका प्रयोग लूप के प्रदर्शन के लिये किया जाता है। जब एक अथवा अधिक निर्देशो का क्रियांवयन किसी शर्त के आधार पर एक से अधिक बार होना होता है तो इस स्थिति को लूप कहा जाता है। प्रोग्राम मे तीन प्रकार के लूप प्रारूप का प्रयोग किया जाता है--
(अ) डू-व्हाइल लूप प्रारूप -इस प्रारूप मे प्रारंभमे वेळ का प्रयोग किया जाता है साथ ही शर्त भी लिखी जाती है। इसके बाद दो का प्रयोग किया जाता है तथा इसके साथ वह निर्देश होता है जिसका अनुपालन दी गई शर्त के पूरा होने पर किया जाता है। अंत मे एंड्डो इस प्रारूप का समापन दर्शाता है।
(ब) रिपीट अनटिल प्रारूप-इस प्रारूप का प्रारंभ रेपिट से होता है और उन्तील पर समापन होता है। रेपिट और उन्तील के मध्य दिये गए निर्देशो का पालन उन्तील के समक्ष दी गई शर्त के पूरे होने तक बार बार होने लगता है।
(स) फॉर....नेक्स्ट लूप प्रारूप-इस प्रकार के प्रारूप मे आवृति की संख्या निश्चित होती है तथा पहले से ही ज्ञात होती है।
मिथ्या संकेत की विशेषताऎ
(अ) प्रवाह तालिका अथवा अन्य किसी साधन से मिथ्या संकेत से प्रोग्राम को प्रोग्रामिंग भाषा मे कोडिंग करना अपेक्षाकृत अधिक सुविधाजनक होता है।
(ब) प्रवाह तालिका की तुलना मे मिथ्या संकेत मे प्रोग्राम डिजाइन करने से प्रोग्राम मे कोइ भी सुधार करना अत्यन्त सुविधाजनक होता है। प्रवाह तालिका को ऎसी परिस्थिति मे दुबारा ही बनाना पडता है।
(स) इसे सरलता से पढा और समझा सकता है।
(द) इसे लिखने मे कम समय और श्रम लगता है।
मिथ्या संकेत की परिसीमाए
(अ) मिथ्या संकेत मे प्रोग्राम के डिजाइन का रेखांकन नही होता है।
(ब) मिथ्या संकेत मे प्रोग्राम को डिजाइन करने के विशेष नियम नही होते इनका मानकीकरण नही होने के कारण विभिन्न प्रोग्रामर अपनी सुविधानुसार ही इसका प्रयोग करते है। |
मेरी बीवी का जवाब नहीं २००४ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
नामांकन और पुरस्कार
२००४ में बनी हिन्दी फ़िल्म |
हिंदू धर्म भारत के हिंदू लोगों के जीवन, उनके डायस्पोरा और कुछ अन्य क्षेत्रों का एक तरीका है, जिसका प्राचीन और मध्यकाल में हिंदू प्रभाव था। इस्लाम एक एकेश्वरवादी धर्म है जिसमें देवता अल्लाह (अरबी: "ईश्वर": इस्लाम में ईश्वर को कहते हैं), अंतिम पैगंबर मुहम्मद हैं, जिनके बारे में मुसलमानों का मानना है कि इस्लामिक धर्मग्रंथ, कुरान दिया। हिंदू धर्म ज्यादातर धार्मिक धर्मों के साथ साझा करता है, जिनमें बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म शामिल हैं। इस्लाम इब्राहीमी धर्मों के साथ सामान्य शब्द साझा करता है - वे धर्म जो ईब्राहीम के वंशज होने का दावा करते हैं, सबसे पुराने से लेकर सबसे कम उम्र तक, यहूदी, ईसाई, इस्लाम और बहाई धर्म के हैं।
कुरान और हदीस प्राथमिक इस्लामी धर्मग्रंथ हैं। हिंदू धर्म के धर्मग्रंथ श्रुति (चार वेद हैं, जिनमें मूल वैदिक भजन, या संहिताएं शामिल हैं, और संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद) पर टीकाओं के तीन अध्याय हैं; इन्हें प्रामाणिक, आधिकारिक दिव्य रहस्योद्घाटन माना जाता है। इसके अलावा, हिंदू धर्म स्मारिका पर भी आधारित है, जिसमें रामायण, भगवतगीता और पुराण शामिल हैं, जिन्हें पवित्र भी माना जाता है।
हिंदू धर्म और इस्लाम उपवास और तीर्थयात्रा जैसे कुछ अनुष्ठानों को साझा करते हैं, लेकिन धर्मत्याग, निन्दा, खतना, रूढ़िवादी विवाह, मूर्ति निर्माण, वंशानुक्रम, सामाजिक संघर्ष, शाकाहार और अहिंसा पर उनके विचारों में एक गुण के रूप में भिन्नता है। ७ वीं शताब्दी के बाद से उनकी ऐतिहासिक बातचीत में सहयोग और समकालिकता के साथ-साथ धार्मिक हिंसा की अवधि देखी गई है। भारत में हिंदू आबादी की भारी आबादी के कारण, याहा के मुसलमानों ने १३ शताब्दियों तक स्थानीय हिंदू संस्कृतियों को आत्मस्थ किया। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन तक इस्लाम और हिंदू धर्म के बीच की सीमाएं लचीली रहीं।
इस्लाम और हिंदू धर्म के बीच तुलना
ईश्वर का धर्मशास्त्र और अवधारणा
इस्लाम विचार की एक प्रणाली है जो पूर्ण एकेश्वरवाद में विश्वास करता है, जिसे तौहीद कहा जाता है। मुसलमानों को प्रतिदिन, शहादत को इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक के रूप में पुष्टि करने की आवश्यकता होती है, अर्थात "अल्लाह के अलावा कोई अन्य देवता नहीं है और मुहम्मद अल्लाह का बंदे है।"
हिंदू धर्म विचार प्रणाली है जो विभिन्न परंपराओं में विश्वास करती है। उपनिषदों में, एक लोकप्रिय व्याख्या अद्वैत वेदांत परंपरा है। यह पूर्ण अद्वैतवाद है। एक व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप या शुद्ध आत्मा या स्वयं (आत्मा) को महसूस करते हुए सत्य को पाता है। जब व्यक्ति अज्ञान से रहित होता है तो व्यक्ति को पता चलता है कि उनका आंतरिक आत्म (आत्मा) ब्रह्म (अंतिम वास्तविकता) है। जब तक व्यक्ति को इस सच्चाई का पता चलता है, तब तक व्यक्ति आमतौर पर अज्ञानता है और इसलिए सोचता है कि उनके आसपास सब कुछ वास्तविक है और इसमें लिप्त है, जब यह वास्तव में नहीं है और एक भ्रम है (माया)। जो ब्रह्म पूर्ण और शुद्ध है और जो ब्रह्म पूर्ण और शुद्ध है, वही इस विचार की पाठशाला में भी है। जब व्यक्ति विलक्षण रूप से 'मैं' पर ध्यान केंद्रित करता है और आत्म-जांच, ग्रंथों के अध्ययन, नैतिक पूर्णता और ज्ञान और स्वयं पर ध्यान केंद्रित करता है, तो वे ब्रह्म को महसूस करते हैं और सामग्री पर निर्भर नहीं होते हैं।
शास्त्र और संदेशवाहक
इस्लाम के धर्मग्रंथ कुरान और हदीस हैं। मुसलमानों का मानना है कि मुहम्मद अंतिम संदेशवाहक थे, और कुरान ईश्वर से अंतिम पैगंबर तक अंतिम रहस्योद्घाटन था। हदीसों में सुन्नत, या मुहम्मद के जीवन की कहावतें, कार्य और उदाहरण हैं। इस्लाम में कुरान और हदीस को इस्लामी कानून या शरिया का स्रोत माना जाता है।
हिंदू धर्म में कोई पारंपरिक आदेश नहीं है, कोई केंद्रीकृत धार्मिक प्राधिकरण, कोई शासी निकाय, कोई पैगंबर(ओं) और न ही कोई बाध्यकारी पवित्र पुस्तक है। हिंदू धर्म का आध्यात्मिक ज्ञान श्रुति ("क्या सुना है") और स्मृति ("क्या याद है") नामक ग्रंथों में निहित है। इन ग्रंथों में विविध धर्मशास्त्र, पौराणिक कथाओं, अनुष्ठानों, मार्ग, दर्शन के संस्कार और अन्य विषयों पर चर्चा की गई है। हिंदू धर्म में प्रमुख ग्रंथों में वेद, उपनिषद (दोनों श्रुति), महाकाव्य, पुराण, धर्मसूत्र और आगम (सभी स्मृति) शामिल हैं।
हिंदू धर्म के बारे में मुस्लिम विद्वानों की राय
ज़ियाउर रहमान आज़मी अपने "फुसुलुन फाई अदियनिल हिंदी, अल-हिंदुसियातु, वाल बुज़ियातु, वाल ज़ैनियातु, वाज़ सिखियातु और अलकातुत तसव्फ़ी बिहा" (हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म के साथ-साथ भारतीय धर्मों और उनके संबंधों के सर्वेक्षण) में सूफीवाद संबंध के साथ') का कहना है कि कोला जाति तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत में मोहनजोदड़ो में रहती थी, जब तुरानियों ने आकर उन्हें हरा दिया और उनके साथ मिल कर द्रविड़ जाति का उदय हुआ, जो सिंध में मोहनजोदड़ो थे। वे हड़प्पा शहर में बस गए और फिर दक्षिण भारत में फैल गए, और वे अपनी भाषा, कन्नड़ मलय, तमिल और तेलुगु के अनुसार चार समूहों में विभाजित हो गए। इस दौरान वे कई शताब्दियों तक सिंधु के पूर्व से आर्यों के साथ संघर्ष करते रहे। एक समय जब आर्यों की जीत हुई, द्रविड़ों सहित स्थानीय निवासियों ने उनकी निष्ठा स्वीकार की, तब आर्यों ने सामाजिक व्यवस्था को आकार देना शुरू किया और भारत के निवासियों ने वैदिक समाज में प्रवेश किया। आज़मी ने संस्कृत और फ़ारसी के बीच पुरातात्विक समानताओं के साथ-साथ भाषाई समानताओं का हवाला दिया, यह सुझाव देते हुए कि आर्य यूरोपीय फ़ारसी मूल के थे, और उन्होंने यह सुझाव देने के लिए भाषाविज्ञान का हवाला दिया कि संस्कृत बोलने वाले आर्य और फ़ारसी भाषी लोग एक ही क्षेत्र में रहते थे, और वे फारस से आए थे। आर्यों ने तब भारत के मूल निवासियों को चार वर्गों में स्थिति के क्रम में विभाजित किया, ये ब्राह्मण (आर्य पुजारी या मौलवी), क्षत्रिय (राजपूत योद्धा या मराठा थे। ), वैश्य (तुरानी द्रविड़ व्यापारी या व्यापारी और किसान) और शूद्र (तुरानी द्रविड़ मजदूर या मजदूर), पहले दो आर्य उच्च जाति के थे और बाद के दो द्रविड़ निचली जाति के थे। आज़मी के अनुसार, उनमें से शूद्रों को आर्यों द्वारा गंभीर उत्पीड़न और अपमान के अधीन किया गया था, और २० वीं शताब्दी में उन्होंने सामूहिक रूप से धर्मांतरण किया और बड़ी संख्या में आबादी इस्लाम में परिवर्तित हो गई, विशेष रूप से दलित समुदाय, जिनकी स्वैच्छिक भारतीय प्रेस में इस्लाम में धर्मांतरण की सूचना दी जाती है। आज़मी कई स्रोतों का हवाला देते हैं। हिंदुओं ने तब ग्रंथों को लिखने पर ध्यान केंद्रित किया जो पांच युगों में विभाजित थे।
चारों वेदों की रचना प्रथम युग में हुई थी।
दूसरी अवधि में हिंदू दार्शनिकों ने सूफीवाद या मंसूर हल्लज, इब्न अरबी और सरमद कशानी, जो निर्वाण और वहदत अल-ओजुद ओम के सहयोग से, इब्न आदत, अहमद इब्न नामुस, अबू मुस्लिम खोरासानी और मुहम्मद इब्न ज़कारिया राजी हिंदू धर्म पर उन्होंने इस्लाम के नाम पर पुनर्जन्म की अवधारणा का प्रचार किया। इसके अलावा, इस समय, अल्लाह उपनिषद नामक एक उपनिषद भारत के सम्राट जलाल उद्दीन अकबर के शासनकाल के दौरान लिखा गया था, जहां इस्लाम में ईश्वर की अवधारणा पर चर्चा की गई है।
तीसरे काल में धार्मिक नियमों का संग्रह तैयार किया गया। इस दौरान संस्मरण लिखे गए, जिनमें मनुस्मृति सबसे उल्लेखनीय है।
चौथे युग में भारत के निवासियों के साथ आर्यों के मिलन के परिणामस्वरूप आर्य देवता गायब होने लगे। आर्यों ने इंद्र को वज्र के देवता के रूप में, अग्नि को अग्नि के देवता के रूप में, अरुण को आकाश के देवता के रूप में और उषा को सुबह के देवता के रूप में पूजा की। लेकिन बाद में विष्णु जीविका के देवता के रूप में और शिव विनाश के देवता के रूप में उनकी जगह ले ली और पुराण किताबें इन देवताओं की प्रशंसा करते हुए लिखी गईं।
पांचवें युग में, महाभारत, गीता और रामायण की रचना की गई, जिसमें आर्य नेताओं की लड़ाई और युद्ध में उनकी जीत का लेखा-जोखा है।
इसके अलावा, आजमी ने कहा कि मुसलमानों की सर्वसम्मत राय के अनुसार, हिंदू धर्मग्रंथ असमानी किताब नहीं हो सकते हैं, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि हिंदू धर्मग्रंथों इस्लामी पैगंबर मुहम्मद के आगमन सहित में विभिन्न इस्लामी खुशखबरी का वर्णन है। कि पैगंबर इब्राहिम का धर्म इराक में तब प्रकट हुआ जब आर्यों ने अपनी मातृभूमि छोड़ दी, और फिर आर्यों ने इन्हें तोराह और अब्राहम के साहिफाओं से अपनाया जब वे वहां से गुजरे। क्षेत्र, या जब हिंदुओं ने इस्लामी शासन के दौरान मुस्लिम शासकों को संतुष्ट करने के लिए अपने ग्रंथों को संशोधित किया। हालांकि, आज़मी दूसरे दृष्टिकोण के लिए अधिक समर्थन का दावा करते हैं।
आज़मी हिंदू धर्म की मान्यताओं के बारे में कहते हैं,
आज़मी ने इस्लाम के बारे में हिंदुओं की नकारात्मक धारणा का कारण बताया, |
जॉन वेन हेस्टिंग्स (जन्म ४ नवंबर १९८५) एक ऑस्ट्रेलियाई पेशेवर क्रिकेटर हैं, जो विक्टोरियन बुशरेंजर्स और मेलबोर्न स्टार्स के लिए खेलते हैं। पहले वह ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय टीम के लिए खेलते थे। वह एक हरफनमौला खिलाडी हैं जो तेज़-मध्यम गेंदबाजी के साथ-साथ निचले क्रम में बल्लेबाजी भी कर लेते हैं।।
ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट खिलाड़ी
१९८५ में जन्मे लोग
ऑस्ट्रेलियाई वनडे क्रिकेट खिलाड़ी |
वृहद्क्षत्र ने कैकेय देश के पाँचो कैकेय भाइयों का नेतृत्व किया। यह स्थान आज के पाकिस्तान में कहीं स्थित है। कैकेय बंधुओं ने बहुत से योद्धाओं से युद्ध किया। वृहद्क्षत्र ने क्षेमधुर्ति का वध किया। वृहद्क्षत्र पाण्डव पक्ष का योद्धा था।
तीनों भाइयों, पुरूजीत, धृष्टकेतु और वृहद्क्षत्र का वध चौदहवें दिन के युद्ध में द्रोणाचार्य के हाथों हुआ। अन्य कैकेय बंधु अपने अन्य भाइयों द्वारा मारे गए जो कौरव सेना की ओर से युद्ध कर रहे थे।
महाभारत के पात्र |
साउथ एक्स्टेंशन १ दिल्ली के रिंग मार्ग पर पड़ने वाला एक व्यस्त बाजार है। इसके साथ ही यहां आवासीय क्षेत्र भी है। अधिक ब्यौरे हेतु देखें:
साउथ एक्स्टेंशन १
साउथ एक्स्टेंशन २
रिंग मार्ग, दिल्ली के चौक |
रोलुलिनाए (रोलुलिने) तीतर कुल (फेसियेनिडाए) का एक जीववैज्ञानिक उपकुल है। इसकी अधिकांश जातियाँ दक्षिणपूर्वी एशिया और पूर्वी एशिया में मिलती हैं, हालांकि दो जातियाँ अफ्रीका के तंज़ानिया देश में भी मिलती हैं।
इन्हें भी देखें |
Subsets and Splits
No community queries yet
The top public SQL queries from the community will appear here once available.