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धोरेटा मंडरायल कस्बे से ४ किलोमीटर की दुरी पर स्थित है यह मंडरायल ब्लॉक की एक ग्राम पंचायत है |
खिरी पालीगंज, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है।
पटना जिला के गाँव |
१२ फरवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ४३वॉ दिन है। वर्ष मे अभी और ३२२ दिन बाकी है (लीप वर्ष मे ३२३)।
१५०२ - वास्को दा गामा भारत की दूसरी यात्रा के लिए अपने जहाज में लिस्बन से रवाना हुआ।
१५४१ - वर्तमान चिली की राजधानी सेंटियागो की स्थापना पेड्रो दा वॉल्दिविया ने की।
१९१२ - चीनी गणराज्य ने ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपनाया।
गूगल ने जीमेल में बदलाव कर इसे सोशल नेटवर्किंग साइट के फीचर देते हुए जीमेल बज़की शुरुआत की। इसके तहत मेसेजों के फौरन अपडेट तो मिलेंगे ही इसके अलावा फोटो व विडियो शेयरिंग समेत कई और फीचर्स भी जोड़ दिए गए हैं। एक्सर्पट्स का कहना है कि गूगल को फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल वेबसाइट्स से मिल रही टक्कर को ...
केंद्र सरकार ने तेलंगाना पर गठित सेवानिवृत न्यायाधीश बी. एन. श्रीकृष्ण की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यिय उच्च स्तरिय समिति की जांच का दायरा तय करते हुए समिति से अलग तेलंगाना के साथ ही अखंड आंध्र प्रदेश के विकल्प पर भी विचार करने को कहा गया। समिति को रिपोर्ट सौंपने के लिए ३१ दिसम्बर २०१० तक का समय दिया गया।
हरिद्वार महाकुंभ में सात अखाडों के करीब पचास हजार संन्यासियों और विभिन्न अखाडों के लगभग चार हजार नागा अवधूतों सहित लगभग ५५ लाख श्रद्धालुओं ने पहले शाही स्नान पर गंगा में डुबकी लगाई।
ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने इस्लामी क्रांति की ३१वीं वर्षगांठ पर उच्च स्तर के संवर्धित यूरेनियम की पहली खेप तैयार करने और ईरान के परमाणु संपन्न देश होने की घोषणा कर दी।
१८०९ - अब्राहम लिंकन, अमेरिका के १६वें राष्ट्रपति
१९२० - प्राण, भारतीय अभिनेता
१९२२- तन् हुसैन ऑन, मलेशिया के तीसरे प्रधानमंत्री (मृ. १९९०)
१९८० - हुआन कार्लोस फरेरो - स्पेन के क्ले कोर्ट के मशहूर टेनिस खिलाड़ी
१८०४ - इमानुएल कैंट, जर्मन विचारक
बीबीसी पे यह दिन |
दुनियां, चम्पावत तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के चम्पावत जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
दुनियां, चम्पावत तहसील
दुनियां, चम्पावत तहसील |
तोर्बत-ए-जाम (फारसी: ) ईरान में रज़ावी ख़ोरासान प्रांत का एक शहर है। इस शहर की जनसंख्या वर्ष २००६ की जनगणना के अनुसार ८६,२४० है।
रज़ावी ख़ोरासान प्रांत |
यह विश्व इतिहास के सबसे बड़े साम्राज्यों की सूची हैं, लेकिन इस सूची को पूरी तरह से माना नहीं जा सकता हैं क्योकि किस "साम्राज्य" को इस श्रेणी में रखा जाये बहुत ही कठिन हैं, और विद्यमानो की बीच विवाद का विषय रहा हैं।
सबसे बड़े साम्राज्य भूमि क्षेत्र अनुसार
संदर्भ के लिए, ध्यान दें कि पृथ्वी की कुल भूमि क्षेत्र है। यहसूची उन साम्राज्यों की है, जिनकी शासित क्षेत्र, कुल क्षेत्र के २% से ज्यादा रही हैं।
साम्राज्य शासित क्षेत्र के अनुसार
इन्हें भी देखें
भारत में सबसे बड़े साम्राज्यों की सूची
उत्तमावस्थाओं की सूचियाँ |
पॉल जैकब ड्यूसेन (पॉल जाकोब डेऊसेन ; ; ७ जनवरी १८४५ ६ जुलाई १९१९) जर्मनी में जन्मे एक भारतविद तथा कील विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक थे। वे आर्थर शोपेनहावर से अत्यधिक प्रभावित थे तथा फ्रेडरिक नीत्शे एवं स्वामी विवेकानन्द के मित्र थे। सन १९११ में उन्होने शोपेनहावर सोसायटी (जर्मन : श्कोपेनहौर-गेसेल्स्चफ्ट) की स्थापना की। ड्यूसेन हिन्दू धर्म के इतने प्रशंसक थे कि उन्होने अपने नाम का संस्कृतीकरण करके 'देवसेन' कर लिया था।
संस्कृत के विद्वान |
लिटल इंडिया सिंगापुर के मध्य में स्थित एक स्थान है।
सिंगापुर के स्थानक |
मीठापुर बीहता, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है।
पटना जिला के गाँव |
तरछा गौराडीह, भागलपुर, बिहार स्थित एक गाँव है।
भागलपुर जिला के गाँव |
१२३८९ एवं १२३९० गया-एग्मोर सुपरफास्ट एक्सप्रेस भारतीय रेलवे से सम्बंधित सुपरफ़ास्ट रेल है जो की गया एवं एम.जी.आर.चेन्नई के बीच चलती है। |
हैरोल्ड जोसेफ लॉस्की (लास्की, हरोल्ड जोसेफ) (३० जून १८९३ २४ मार्च १९५०) ब्रिटेन के राजनीतिक सिद्धान्तकार, अर्थशास्त्री, लेखक एवं प्रवक्ता थे। वे राजनीति में सक्रिय रहे तथा १९४५-१९४६ में ब्रिटेन के मजदूर दल (लेबर पार्टी) के अध्यक्ष रहे। वे १९२६ से १९५० तक लन्दन अर्थशास्त्र स्कूल में प्राध्यापक रहे।
लास्की का जन्म इंग्लैंड के मैनचेस्टर नगर के एक संभ्रांत यहूदी परिवार में ३० जून १८९३ ई. को हुआ था। पिता नाथन लास्की इंग्लैंड में कपास के आयात के प्रमुख व्यवसायी थे। माँ का नाम था सारा लास्की। हैरोल्ड उनकी दूसरी संतति थे। लालन पालन परंपरागत यहूदी संस्कार में हुआ। मैंचेस्टर के ग्राम स्कूल तथा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के न्यू कालेज में शिक्षा, १९१३ में 'वेट' पुरस्कार मिला। १९१४ में आधुनिक इतिहास में फर्स्ट क्लास ऑनर्स। राजनीति विज्ञान के पंडित। शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् अमरीका के मैकगिल विश्वविद्यालय के अध्यापक (१९१४-१६) नियुक्त हुए। इसके पश्चात् हारवर्ड (19१६-१९१८), ऐमहर्स्ट (१९१७), येल (१९१९-२०, १९३१), विश्वविद्यालयों में उन्होंने अध्ययन किया। 19२० ई. में 'लंडन स्कूल ऑव इकोनॉमिक्स में अध्ययनार्थ लंदन आए। १९३६ में वहीं राजनीति के प्रोफेसर हो गए एवं जीवन पर्यंत अध्यापन करते रहे। इसी व्यवधान में मैगडेलेन कालेज, केंब्रिज (१९२२-२५), येल (१९३१-३३) मास्को (१९३४), ट्रिनिटी कॉलेज, डवलिन (१९३६) में उन्होंने विशेष व्याख्यान दिए।
उनकी कृतियों में निम्नलिखित मुख्य हैं -
१. ऑथोरिटी इन मॉडर्न स्टेट (१9१9);
२. ए ग्रामर ऑव पॉलिटिक्स (19२5);
३. लिबर्टी इन मॉडर्न स्टेट (19३0);
४. दि अमेरिकन प्रेसीडेंसी (19४0)।
उनकी रचना की विशेषता है धैर्य और प्रतिभा, जो समान मात्रा में उपलब्ध है। सन् १९३७ ई. में एथेंस (ग्रीस) विश्वविद्यालय ने उन्हें एल.एल.डी. की उपाधि दी।
लास्की १९२१ से १९३० तक ब्रिटिश इंस्टिट्यूट ऑव एडल्ट एडूकेशन के उपाध्यक्ष रहे। १९२२-२६ की अवधि में यह फेबियन सोसायटी के सदस्य थे। १९२९ में लॉर्ड चांसलर के डेलिगेटेड लेजिस्लेशन कमेटी के सदस्य हुए। इसी तरह स्थानीय शासन की विभागीय कमेटी, लीगस एडूकेशन; इंडस्ट्रियल कोर्ट; काउंसिल ऑव दी इंस्टिट्यूट ऑव पब्लिक ऐडमिनिस्ट्रेशन; मजदूर दल (लेबर पार्टी) की एक्जिक्यूटिव कमेटी के सदस्य रहे।
लास्की सिद्धांत से समाजवादी थे तथा प्राकृतिक अधिकारों के हिमायती थे।
व्यक्तिगत स्वातंत्रय में उनकी बड़ी आस्था थी। किंतु १९३१ में जब ब्रिटेन में मजदूर सरकार (लेबर पार्टी की सरकार) का पतन हुआ तो वह इस विचार के हो गए कि ब्रिटेन में थोड़ी क्रांति आवश्य है। निदान १९४६ में द्वितीय महायुद्ध का अवसान होने पर, जब ब्रिटेन में मजदूर सरकार अत्यधिक बहुमत से स्थापित हुई तो एक सामाजिक क्रांति अलक्षित रूप में हो गई एवं लास्की की कल्पना - 'जन-कल्याण-राज्य' सत्य हो उठी। उस समय वह ब्रिटेन के मजदूर दल के अध्यक्ष थे। राजनीति में रहने पर भी उन्हें अपने निर्वाचन में दिलचस्पी नहीं थी। मजदूर दल के टिकट पर पार्लिमेंट में अपना निश्चित निर्वाचन एवं मंत्रिमंडल में आने की संभावना रहते हुए भी उन्होंने टिकट नहीं लिया।
हैरोल्ड का विवाह फ्रीदा केरी से हुआ एवं १९१५ में उनकी एकमात्र संतान कन्या डायना (डायना मेटलैंड) पैदा हुई। विवाह के समय हैरोल्ड १८ साल के थे; फ्रीदा २६ साल की! वह बहुत ही प्रगतिशील विचार की थी। संतति-सौंदर्य-वर्धन शास्त्र (यूजेनिक्स) पर भाषण देती थी। वह क्रिस्तान थी; हैरोल्ड यहूदी। धर्म की विषमता के कारण लास्की परिवार से उन दोनों को अलग होना पड़ा। पर १९२० में फ्रीदा यहूदी धर्म में दीक्षित हो गई। अत: परिवार से लास्की का संबंध पुन: स्थापित हो गया।
लास्की की शिक्षा पूर्णत: बौद्धिक थी। कला या संगीत का कोई प्रभाव उनके जीवन में परिलक्षित नहीं होता। संतति-सौंदर्य-वर्धन में उनकी विशेष रुचि थी। उन्होंने गॉल्टन क्लब की स्थापना की, जहाँ इस विषय पर विचार वार्ता होती रहती थी। पुस्तकों का संकलन उनकी हॉबी थी। टेनिस के वह अच्छे खिलाड़ी थे। पत्रकारिता से उनका घनिष्ठ संबंध था। किसी समय वह दैनिक डेली हेरल्ड के सह संपादक रह चुके थे। उन्होंने एडमंड बर्क तथा जॉन स्टुअर्ट मिल की कृतियों का संपादन किया। इंग्लैंड एवं अमरीका के पत्रों में वह बहुधा अपना निबंध प्रकाशित करते रहते थे। लार्ड ब्राइस के पश्चात् अमरीका की राजनीति, इतिहास तथा विधान से लास्की के समान अन्य कोई व्यक्ति परिचित नहीं रहा है। वाग्मिता में उनका स्थान इस शताब्दी के उच्चतम वक्ताओं में है।
मार्च २४, सन् १९५० ई. को इनका देहांत हुआ। बहुत से लोगों का अनुमान है कि अत्यत कार्यसंकुल जीवन रहने के कारण उनकी असामयिक मृत्यु हुई।
लास्की का प्रभाव विश्वव्यापी रहा है। लंडन स्कूल ऑव इकॉनॉमिक्स में अध्यापन करते समय संसार के भिन्न भिन्न देशों से छात्र-छात्राएँ अध्ययन के निमित्त उनके पास आते रहे और उनकी प्रगतिशील समाजवादी भावनाओं से प्रभावित हो अपने अपने देश में जनकल्याण की योजनाओं में उन सबों ने किसी न किसी रूप में अवश्य योग दिया। उनके कितने ही छात्र आज एशिया एवं अफ्रीका के विभिन्न देशों में राजनीति में एव उच्च सरकारी पदों पर विराजमान हैं। विद्यार्थियों से उन्हें अत्यधिक प्रेम था। उन्हें हर तरह सहायता पहुँचाने के लिए वह सर्वदा इच्छुक रहते थे। उनके लिए लास्की के घर का दरबाजा सदा खुला रहता था। एक विशिष्ट विद्वान् ने कहा - लास्की वर्तमान युग के सबसे प्रगतिशील एवं निर्भीक विचारकों में थे। राजनीति विज्ञान का एक स्कूल ही उन्हें केंद्र बनाकर विकसित हुआ है।
मार्टिन, किंग्सली : हैरोल्ड लास्की (१९५३)
१९४५ में जन्मे लोग
१९५० में निधन |
प्यार का तराना १९९३ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
नामांकन और पुरस्कार
१९९३ में बनी हिन्दी फ़िल्म |
() ब्राज़ील का एक शहर है। इसकी जनसंख्या ४८०.४३९ लोग थी और साओ पाउलो राज्य में दसवां सबसे बड़ा शहर है।
ब्राज़ील के शहर |
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव , तहसील ठाकुरद्वारा, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
सम्बंधित जनगणना कोड:
राज्य कोड :०९
जिला कोड :१३५
तहसील कोड : ००७१७
गाँव कोड: ११४४९०
इन्हें भी देखें
उत्तर प्रदेश की तहसीलों का नक्शा
ठाकुरद्वारा तहसील के गाँव |
गुरैली, लोहाघाट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के चम्पावत जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
गुरैली, लोहाघाट तहसील
गुरैली, लोहाघाट तहसील |
सर्न (ऑर्गनीसशन यूरोपैनए पौर ला रेचर्चे नुक्लैरी या सर्न (फ़्रान्सीसी में) = यूरोपीय नाभिकीय अनुसन्धान संगठन) कण भौतिकी की विश्व की सबसे बड़ी प्रयोगशाला है। यह फ्रान्स और स्विट्जरलैण्ड की सीमा पर जिनेवा के उत्तर-पश्चिमी उपनगरीय क्षेत्र में है। इस संस्था में बीस यूरोपीय सदस्य देश हैं। इस समय लगभग २६०० स्थाई कर्मचारी एवं दुनिया भर के कोई ५०० विश्वविद्यालयों एवं ८० राष्ट्रों के लगभग ७९३० वैज्ञानिक एवं अभियन्ता कार्यरत हैं।
भारत भी इसका २००२ से इसका एक पर्यवेक्षक देश है। वर्तमान में भारत को २०१७ में सहायक सदस्य ( एसोसिएट मेंबर ) बनाया गया ।
कार्य एवं उद्देश्य
इसका प्रमुख उद्देश्य उच्च ऊर्जा भौतिकी से सम्बन्धित अनुसंधान करने के लिये विभिन्न प्रकार के कण त्वरकों का विकास करना है।
एक आम आदमी के लिए सर्न में निम्न सुविधाएँ उपलब्द्ध हैं:
विज्ञान और नवप्रवर्तन का ग्लोब का निर्माण २००५ के अन्त में किया गया। यह रविवार को छोड़कर दिन के समय हमेशा खुला रहता है।
कण भौतिकी के लिए माइक्रोकोस्म संग्रहालय - यह सर्न के इतिहास का दर्शन भी करवाता है।
इन्हें भी देखें
वृहद हेड्रॉन संघट्टक (लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर)
राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र इन्दौर (र्कट इंदौर)
यूरोप में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी |
निकी वैन डेन बर्ग (जन्म २० जून १९८९) एक दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेटर है। उन्हें २०16 के अफ्रीका टी २० कप के लिए उत्तर पश्चिम टीम में शामिल किया गया था। अगस्त २०17 में, उन्हें टी २० ग्लोबल लीग के पहले सीज़न के लिए डरबन कलंदर्स टीम में नामित किया गया था। हालांकि, अक्टूबर २०17 में, क्रिकेट दक्षिण अफ्रीका ने शुरू में टूर्नामेंट को नवंबर २०18 तक के लिए टाल दिया, जिसके तुरंत बाद इसे रद्द कर दिया गया।
जून २०१८ में, उन्हें २०१८-१९ सीज़न के लिए हाईवेल्ड लायंस टीम के लिए टीम में नामित किया गया था। सितंबर २०१८ में, उन्हें २०१८ अफ्रीका टी २० कप के लिए उत्तर पश्चिम के टीम में नामित किया गया था। वह २०१८-१९ सीएसए ४-डे फ्रैंचाइज़ सीरीज़ में लायंस के लिए अग्रणी रन-स्कोरर थे, जिसमें दस मैचों में ६९१ रन थे। सितंबर २०१९ में, उन्हें २०१९-२० सीएसए प्रांतीय टी २० कप के लिए उत्तर पश्चिम के टीम में नामित किया गया था। |
बिशुनपुर अमास, गया, बिहार स्थित एक गाँव है।
गया जिला के गाँव |
मलेरिया या दुर्वात एक वाहक-जनित संक्रामक रोग है जो प्रोटोज़ोआ परजीवी द्वारा फैलता है। यह मुख्य रूप से अमेरिका, एशिया और अफ्रीका महाद्वीपों के उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधी क्षेत्रों में फैला हुआ है। प्रत्येक वर्ष यह ५१.५ करोड़ लोगों को प्रभावित करता है तथा १० से ३० लाख लोगों की मृत्यु का कारण बनता है जिनमें से अधिकतर उप-सहारा अफ्रीका के युवा बच्चे होते हैं। मलेरिया को आमतौर पर गरीबी से जोड़ कर देखा जाता है किंतु यह खुद अपने आप में गरीबी का कारण है तथा आर्थिक विकास का प्रमुख अवरोधक है।
मलेरिया सबसे प्रचलित संक्रामक रोगों में से एक है तथा भंयकर जन स्वास्थ्य समस्या है। यह रोग प्लास्मोडियम गण के प्रोटोज़ोआ परजीवी के माध्यम से फैलता है। केवल चार प्रकार के प्लास्मोडियम (प्लाजमोडियम) परजीवी मनुष्य को प्रभावित करते है जिनमें से सर्वाधिक खतरनाक प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम (प्लाजमोडियम फालसीपेरम) तथा प्लास्मोडियम विवैक्स (प्लाजमोडियम विवैक्स) माने जाते हैं, साथ ही प्लास्मोडियम ओवेल (प्लाजमोडियम ओवाले) तथा प्लास्मोडियम मलेरिये (प्लाजमोडियम मलेरीए) भी मानव को प्रभावित करते हैं। इस सारे समूह को 'मलेरिया परजीवी' कहते हैं।
लक्षणों के आधार पर मलेरिया का इलाज़ कैसे
अनेक मलेरिया-ग्रस्त क्षेत्रों में बुखार के हर मरीज को मलेरिया का आनुमानिक निदान दे दिया जाता है और कुनैन से इलाज शुरु कर दिया जाता है। इसके साथ ही रक्त की पट्टिकाएँ भी बना ली जाती हैं, लेकिन इलाज शुरु करने के लिए इसके परिणामों की प्रतीक्षा नहीं की जाती। ऐसा कई ऐसे क्षेत्रों में भी किया जाता है जहाँ सामान्य प्रयोगशाला परीक्षणों की सुविधाए उपलब्ध नहीं हों। लेकिन मलावी में हुआ एक अध्ययन बताता है कि बुखार के साथ-साथ यदि गुदा का तापमान, नाखूनों में रक्तहीनता और तिल्ली के आकार को भी ध्यान में लिया जाए तो मलेरिया के अनावश्यक उपचार से बहुत बचा जा सकता है (निदान में २१ से ४१ तक बढ़ोतरी)।).
रक्त की सूक्ष्मदर्शी से जांच
रक्त पट्टिकाओं का सूक्ष्मदर्शी से परीक्षण करना मलेरिया के निदान का सबसे सस्ता, अच्छा तथा भरोसेमंद तरीका माना जाता है।
इस परीक्षण से चारों मलेरिया परजीवियों के विशिष्ट लक्षणों के द्वारा अलग-अलग निदान किया जा सकता है। रक्त पट्टिकाएँ दो तरह से बनाई जाती हैं - पतली और मोटी। पतली पट्टिकाओं में परजीवी की बनावट को बेहतर ढंग से सुरक्षित रखा जा सकता है, वहीं दूसरी ओर मोटी पट्टिकाओं से कम समय में रक्त की अधिक मात्रा की जाँच की जा सकती है और इससे कम मात्रा के संक्रमण का भी निदान किया जा सकता है। अनुभवी परीक्षक रक्त में ०.००००००1 प्रतिशत तक के संक्रमण को पहचान सकते हैं। इन कारणों से मोटी और पतली दोनों पट्टियाँ बनाई जाती हैं। साथ ही एक से अधिक वलय चरणों की जाँच करना जरूरी होता है, क्योंकि चारों परजीवियों के वलय चरण बहुधा एक जैसे दिखते हैं।.
मलेरिया के निदान के लिए अनेक एंटीजन-आधारित डिपस्टिक (अंग्रेजी: दिप्स्टिक) परीक्षण या मलेरिया रैपिड एंटीजन टेस्ट (अंग्रेजी: मलेरिया रेपिड एंटीजेन टेस्ट, मलेरिया त्वरित एंटीजन परीक्षण) भी उपलब्ध हैं। इन्हें रक्त की केवल एक बूंद की आवश्यकता होती है, और सिर्फ १५-२० मिनट में ही परिणाम सामने आ जाता है, प्रयोगशाला की आवश्यकता नहीं होती है। ये सूक्ष्मदर्शी जांच से थोडे कमतर माने जाते है। लेकिन जिन क्षेत्रों में सूक्ष्मदर्शी जांच की सुविधा उपलब्ध नहीं होती या परीक्षकों को मलेरिया के निदान का अनुभव नहीं होता वहाँ प्रभावित क्षेत्र में जा कर रक्त की एक बून्द से एण्टीजन परीक्षण कर लिया जाता है। सबसे पहले इन परीक्षणों का विकास पी. फैल्सीपैरम के किण्वक ग्लूटामेट डीहाइड्रोजनेज़ को एंटीजन के रूप में प्रयोग करके किया गया। लेकिन जल्दी ही एक अन्य किण्वक लैक्टेट डीहाड्रोजनेज़ का प्रयोग करके ऑप्टिमल-आईटी (अंग्रेजी: ऑप्टिमल-इट) नामक परीक्षण का विकास किया गया। ये किण्वक रक्त में अधिक समय तक मौजूद नहीं रहते और परजीवी का खात्मा हो जाने पर ये भी रक्त से निकल जाते हैं, अतः इन परीक्षणों का उपयोग इलाज की सफलता या विफलता जानने के लिये भी किया जाता है। ऑप्टिमल-आईटी फैल्सीपैरम और गैर-फैल्सीपैरम मलेरिया में अन्तर भी कर सकता है। यह पी. फैल्सीपैरम का ०.०१ प्रतिशत और गैर-फैल्सीपैरम मलेरिया परजीवियों का ०.१ प्रतिशत तक रक्त में निदान कर सकता है। इसके अतिरिक्त पी. फैल्सीपैरम विशिष्ट हिस्टिडीन-भरपूर प्रोटीनों (अंग्रेजी: प. फालसीपेरम स्पेसिफिक हिस्टिडिन-रीछ प्रोटीन) पर आधारित पैराचैक-पीएफ (अंग्रेजी: पराचेक-प्फ) रक्त में ०.००2 प्रतिशत तक मलेरिया परजीवी का निदान कर सकता है, लेकिन यह फैल्सीपैरम और गैर-फैल्सीपैरम मलेरिया में अन्तर नहीं कर पाता है।
इनके अतिरिक्त पॉलीमरेज़ श्रृंखला अभिक्रिया (अंग्रेजी: पोलमेरसे चैन रिऐक्शन, पक्र) का प्रयोग करके और आणविक विधियों के प्रयोग से भी कुछ परीक्षण विकसित किये गए हैं, लेकिन ये अभी काफी महंगे हैं, तथा केवल विशिष्ट प्रयोगशालाओं में ही उपलब्ध हैं। सस्ते, संवेदी तथा सरल परीक्षणों के विकास की अब भी आवश्यकता है, जिनका प्रयोग क्षेत्र में, मलेरिया के निदान के लिए किया जा सके।
गंभीर मलेरिया का निदान
गंभीर मलेरिया को अफ्रीका मे प्रायः पहचान लेने में गलती होती है, जिसके चलते अन्य प्राणघातक बीमारियों का इलाज भी नहीं हो पाता है। रक्त में परजीवी की मौजूदगी केवल गंभीर मलेरिया से ही नहीं, अन्य कई जानलेवा बीमारियों के चलते भी हो सकती है। हाल के अध्ययन बताते हैं कि मलेरिया-जनित मूर्च्छा और गैर-मलेरिया-जनित मूर्च्छा में अन्तर करने के लिए मलेरियल रेटिनोपैथी (आँख के रेटिना के आधार पर पहचान) किसी भी अन्य परीक्षण से बेहतर है। |
राज कोमल उर्दू के एक प्रसिद्ध शायर थे। उनका जन्म २५ सितंबर १९२८ को सियालकोट (वर्तमान में पाकिस्तान) में हुआ था। देश के विभाजन के बाद उन्होंने दिल्ली को ही अपना निवास स्थल और कर्म भूमि बनाया था।
साहित्य में योगदान
बलराज कोमल को भारत की साहित्य अकादमी ने उनकी कविता संग्रह "परिन्दों भरा आसमान" के लिए १९८५ में पुरस्कार से सम्मनित किया था। २०११ में उन्हें भारत सरकार की ओर से पद्मश्री का ख़िताब भी मिला था। उनके विभिन्न योगदानों में "मेरी नज़्में", "रिश्ता-ए-दिल", "उगला वर्क़", "आँखें और पांव" (कहानीयों का संग्रह) और "अदब की तलाश" (व्यंग) शामिल हैं। वह एक अनुवादक भी थे। उन्होंने अंग्रेज़ी, हिन्दी, उर्दू और पंजाबी की रचनाओं को एक से दूसरी भाषा में अनुवाद भी किए थे।
२५ नवंबर २०१३ को बलराज कोमल का देहान्त हो गया था।
१९२८ में जन्मे लोग
२०१३ में निधन
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत उर्दू भाषा के साहित्यकार |
बन्डोला ल० खुगसा-अ०५, पौडी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
खुगसा-अ०५, बन्डोला ल०, पौडी तहसील
खुगसा-अ०५, बन्डोला ल०, पौडी तहसील |
बनू नज़ीर जनजाति की एक यहूदी महिला थीं, इस्लामिक पैगंबर मुहम्मद की पत्नी थीं और उम्मुल मोमिनीन अर्थात "विश्वास करने वालों की माँ" के रूप में भी माना जाता है।
रेहाना का जन्म यहूदी खानदान में हुआ था।
बनू नज़ीर जनजाति से वह अपनी शादी के बाद बनू कुरैज़ा जनजाति का हिस्सा बन गई। उनका हुकम नामी व्यक्ति से विवाह हुआ था जो मुसलमानों से युद्ध में मारा गया था।
इब्न साद ने लिखा है बनू कुरैज़ा से युद्व के पश्चात विधवा रेहाना को विमुक्त कर दिया गया और बाद में इस्लाम में उसके धर्मांतरण के बाद मुहम्मद से शादी कर ली गई। अल-थलाबी ने सहमति व्यक्त की कि वह मुहम्मद की पत्नियों में से एक बन गई और सबूतों का हवाला दिया कि उन्होंने उसके लिए महर का भुगतान किया। इब्न हाजर मुहम्मद द्वारा रेहाना को उनकी शादी पर घर देने का संदर्भ देते हैं। एंटनी वेसल्स ने सुझाव दिया कि मुहम्मद ने बनू नज़ीर और बनू कुरैजा दोनों जनजातियों के साथ दोहरी संबद्धता के कारण राजनीतिक कारणों से रेहाना से शादी की, जबकि लेस्ली हेज़लटन ने महसूस किया कि यह मुहम्मद के गठबंधन बनाने का सबूत है।
इस्लामी विद्वानों के बीच इस बात पर आम सहमति नहीं है कि क्या रेहाना आधिकारिक रूप से मुहम्मद की पत्नियों में से एक थी। हाफ़िज़ इब्न मिंडा और शिबली नोमानी मानते थे कि वह अपनी मृत्यु के बाद बनू नज़ीर लौट आई थी।
हज के ११ दिन बाद ६३१ में रेहाना की जवानी ही मृत्यु हो गई, और उसे मुहम्मद की अन्य पत्नियों के साथ मदीना में
जन्नत अल-बक़ी कब्रिस्तान में दफनाया गया।
इन्हें भी देखें
मुहम्मद के अभियानों की सूची |
मुम्ब्रा (माम्बरा) भारत के महाराष्ट्र राज्य के ठाणे ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ठाणे का एक उपनगर है और मुम्बई महानगरीय क्षेत्र का भाग है।
मुम्ब्रा अपने बॉम्बे स्लैंग और स्ट्रीट फूड के लिए प्रसिद्ध है। यह ठाणे महानगर पालिका द्वारा प्रशासित है।
इन्हें भी देखें
महाराष्ट्र के शहर
ठाणे ज़िले के नगर |
आनन्द विकटन भारत में प्रकाशित होने वाला तमिल भाषा का एक समाचार पत्र (अखबार) है।
इन्हें भी देखें
भारत में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों की सूची
भारत में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र
तमिल भाषा के समाचार पत्र |
दिन अमादेर १९७७ में बनी बंगाली भाषा की फिल्म है।
नामांकन और पुरस्कार
१९७७ में बनी बंगाली फ़िल्म |
एक सनदी शहर या चार्टर शहर एक ऐसा शहर है जिसमें शासन प्रणाली सामान्य कानून के बजाय शहर के अपने सनदी या चार्टर दस्तावेज़ द्वारा परिभाषित की जाती है। जिन देशों में शहर के सनद को कानून द्वारा अनुमति प्राप्त है, उन में उपस्थित कोई शहर प्रशासन के निर्णय के द्वारा अपने सनद को अपना या संशोधित कर सकता है। इन शहरों को मुख्य रूप से स्थानीय निवासियों या तृतीय पक्ष प्रबंधन प्रणाली के माध्यम से प्रशासित किया जा सकता है, क्योंकि एक सनद किसी शहर को अपना प्रशासनिक ढांचा चुनने का अधिकार देता है। |
सेंट्रल यूरोप कप एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट है जो हर साल प्राग, चेक गणराज्य में मध्य यूरोप से आमंत्रित टीमों के बीच खेला जाता है। चेक क्रिकेट यूनियन द्वारा आयोजित, और विनोस क्रिकेट ग्राउंड में खेला गया, टूर्नामेंट पहली बार २०१४ में ५० ओवर के टूर्नामेंट के रूप में आयोजित किया गया था और इस प्रारूप को २०१९ में ट्वेंटी २० में बदलने तक बनाए रखा। २०21 तक, पोलैंड ने सबसे अधिक मौकों (तीन बार) पर टूर्नामेंट जीता है।
पोलैंड ने २०१४ में उद्घाटन समारोह जीता, दोनों टीमों के अंकों के आधार पर टूर्नामेंट के स्तर को समाप्त करने के बाद अपने सिर से सिर के रिकॉर्ड के आधार पर स्विट्जरलैंड से आगे निकल गया। पोलैंड ने २०१५ में खिताब बरकरार रखा। २०१६ के टूर्नामेंट में केवल तीन टीमें थीं, जिनमें पोलैंड की विशेषता नहीं थी, और पहली बार मेजबानों द्वारा जीता गया था। पोलैंड ने २०१७ में वापसी की और तीसरी बार टूर्नामेंट जीता। स्विट्जरलैंड ने २०१८ में अपने तीनों मैच जीतकर खिताब अपने नाम किया था।
चेक ने फाइनल में हंगरी को हराकर २०१९ संस्करण जीता। २०२० संस्करण सितंबर में होने वाला था और यह आधिकारिक ट्वेंटी २० अंतर्राष्ट्रीय (टी२०आई) का दर्जा पाने वाला पहला होगा क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने जनवरी २०१९ से अपने सदस्यों के बीच खेले जाने वाले सभी योग्य मैचों को यह दर्जा दिया है। २०२० के संस्करण में पिछले संस्करणों की तुलना में अधिक टीमें शामिल होंगी, जिसमें छह राष्ट्रीय टीमें भाग ले रही हैं - ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, हंगरी, लक्जमबर्ग, माल्टा और मेजबान चेक गणराज्य। हालांकि, इस क्षेत्र में कोविड-१९ महामारी के बिगड़ने के कारण १४ सितंबर २०२० को टूर्नामेंट रद्द कर दिया गया था।
२०२१ का संस्करण प्राग में २१ से २३ मई २०२१ के बीच खेला गया था। भाग लेने वाली टीमें ऑस्ट्रिया और लक्ज़मबर्ग के साथ मेजबान चेक गणराज्य थीं। माल्टा भी भाग लेने वाले थे, लेकिन कोविड-१९ प्रतिबंधों के कारण उन्हें वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह मध्य यूरोप कप का सातवां संस्करण था और टी२०आई का दर्जा पाने वाला पहला संस्करण था। ऑस्ट्रिया ने पहली बार टूर्नामेंट जीता। |
गोपीपुर पालीगंज, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है।
पटना जिला के गाँव |
बांबी () १९४२ में वॉल्ट डिज़्नी द्वारा निर्मित एनीमेटेड फिल्म है। एक सिधा डीवीडी के लिए अगली कड़ी, बांबी २, था जारी की २००६।
इस फिल्म को तीन बार डब किया गया था. पहला डब १९४७ में हिंदुस्तानी (हिंदी और उर्दू का मिश्रण) में किया गया था। डबिंग को १९४६ में अधिकृत किया गया था और १९४७ में रिलीज़ होने तक भारत के विभाजन के दौरान इसका निर्माण किया गया था। हिंदुस्तानी में डब किए गए संवाद की पेशकश के अलावा, इस संस्करण ने मूल संगीत स्कोर को देशी भारतीय संगीत से बदल दिया। २१वीं सदी में दो आधुनिक हिंदी डबिंग बनाई गईं।
हिन्दी डबिंग कलाकार १
डब संस्करण जारी करने का वर्ष: १९४७
गीतकार: क़मर जलालाबादी
रचनात्मक पर्यवेक्षक: जैक कटिंग
संगीतकार: हुस्न लाल और भगत राम (दोनों हुस्नलाल भगतराम के नाम से जाने जाते हैं)
संगीत वितरक: सारेगामा इंडिया लिमिटेड
उत्पादन: फेमस पिक्चर्स लिमिटेड
वर्ष रिकॉर्डिंग: १९४६
हिन्दी डबिंग कलाकार २
डब संस्करण जारी करने का वर्ष: २००६
मीडिया: टेलीविज़न (डिज्नी चैनल)
निर्देशक: एलिज़ा लुईस
उत्पादन: मेन फ़्रेम सॉफ्टवेयर कम्युनिकेशंस
हिन्दी डबिंग कलाकार १
डब संस्करण जारी करने का वर्ष: २००८
निर्देशक: लीला रॉय घोष
उत्पादन: साउंड एण्ड विजन इंडिया
डब अन्य भाषाओं: मराठी/गुजराती |
शाज़िया इल्मी एक भारतीय राजनीतिज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता है। वह पहले स्टार न्यूज पर एक टेलीविजन पत्रकार और एंकर थीं। इन्होंने आम आदमी पार्टी की विचारधारा से प्रभावित होकर इसमें अपनी सदस्यता ले ली थी। इन्होंने आम आदमी पार्टी में बतौर कार्यकर्ता रहकर लोकसभा चुनाव २०१४ में गाजियाबाद से अपना नामांकन दाखिल किया था। लेकिन इन्हें यहाँ हार का सामना करना पड़ा। वह दिल्ली से चुनाव लडना चाहती थी, परंतु उन्हें गाजियाबाद का टिकट दिया गया। दिनांक २४ मई २०१४ को इन्होंने आम आदमी पार्टी के सभी पदों से अपना इस्तीफा दे कर भाजपा में शामिल हुईं।
इन्हें भी देखें
सैयद शाहनवाज हुसैन
आरिफ मोहम्मद खान
सैयद अता हसनैन
शीबा असलम फ़हमी
जावेद जाँनिसार अख्तर
भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिज्ञ
१९७० में जन्मे लोग |
भारतीय राजस्व सेवा (अंग्रेज़ी: इंडियन रेवेनू सर्विसेस), लागू रूप इर्स, भारत सरकार की भारतीय सिविल सेवा के अन्तर्गत्त राजस्व सेवा है। यह सेवा वित्त मंत्रालय (भारत) के अधीन राजस्व विभाग के अन्तर्गत्त कार्यरत है। इसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न प्रत्यक्ष कर एवं अप्रत्यक्ष करों का संग्रह क केन्द्र सरकार को उपलब्ध कराना है। १९२४ में केन्द्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम ने आयकर अधिनियम के प्रशासन के लिए प्रकार्यात्मक जिम्मेदारी के साथ केन्द्रीय राजस्व बोर्ड सांविधिक निकाय का गठन किया। प्रत्येक प्रांत के लिए आयकर आयुक्त नियुक्त किए गए तथा सहायक आयुक्त तथा आयकर अधिकारी उनके नियंत्रणाधीन रखे गये। सर्वोच्य पदों के लिए आई सी एस से अधिकारियों को लिया गया और निम्नतर सोपान पदों को प्रोन्नति के माध्यम से भरा गया। आयकर सेवा की स्थापना १९४४ में की गई , जो बाद में भारतीय राजस्व सेवा (आयकर) के नाम से जानी गई।
आयकर अधिकारियों (वर्ग-ई) का पहला बैच आई ए और ए एस तथा संबंद्ध सेवाओं के लिए संधीय सेवा आयोग द्वारा संचालित १९४३ परीक्षा के माध्यम से बर्ष १९४४ में सीधे भर्ती किया गया।
भारतीय आयकर विभाग का आधिकारिक जालस्थल
भारतीय राजस्व विभाग - आयकर, के सदस्यों की प्रशिक्षण अकादमी
भारतीय राजस्व विभाग - कस्टम्स एवं केन्द्रीय एक्साइज़, के सदस्यों की प्रशिक्षण अकादमी
केन्द्रीय नागरिक सेवाएं
भारत में कर
वित्त मंत्रालय (भारत)
भारतीय राजस्व सेवाएं |
आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री (३० सितम्बर, १८९७ - ०१ अगस्त, १९७३) एक भारतीय वैदिक विद्वान, लेखक, शिक्षाविद और दयानन्द ब्राह्म महाविद्यालय के प्राचार्य थे, जो डी ए वी कॉलेज ट्रस्ट और प्रबन्धन सोसायटी के प्रबन्धन के तहत एक संस्थान था। १९६८ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया।
आचार्य विश्वबन्धु जी को उनके माता पिता का दिया हुआ नाम चमन लाल था। बालक चमन लाल का जन्म ३० सितम्बर, १८९७ में सरगोधा जिला के भेरा नामक गांव में हुआ। आजकल यह स्थान पाकिस्तान में है। इनके पूज्य पिता जी का नाम राम लुभाया (दिलशाद) था जो कश्मीर राज्य के पुलिस विभाग में नौकरी करते थे। बालक चमनलाल माता के पास ही रहते थे। इनकी माता धार्मिक वृत्ति और सरल स्वभाव की थीं। माता का प्रभाव इन पर भी पड़ा, इनकी प्रवृत्ति भी धार्मिक बनती गई। इनका बाल्यावस्था में ही भेरा में चल रहे आर्यसमाज से सम्पर्क हो गया, अतः इन पर आर्यसमाज का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। भेरा में एक कृपाराम ऐंग्लो संस्कृत हाई स्कूल तथा गवर्नमेण्ट हाई स्कूल भी था। बालक चमनलाल ने गवर्नमेण्ट हाई स्कूल की अपेक्षा आर्यसमाज के स्कूल में पढ़ना ही उचित समझा। बालक चमनलाल अवस्था में छोटे पर बुद्धि में सबसे प्रखर थे। उसकी कुशाग्रबुद्धि की प्रायः सभी प्रशंसा करते, इसका फल यह हुआ कि उसका प्रभाव अपने सहपाठियों पर अच्छी तरह पड़ने लगा और वह छोटी सी अवस्था में ही छात्रों की श्रद्धा के पात्र बन गये। धीरे-धीरे उन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के साहित्य को पढ़ लिया, और अपने साथियों को भी पढ़ाना प्रारम्भ कर दिया। समय मिलने पर अपने साथियों को साथ लेकर कहीं नगर से बाहर जाकर बैठते और चर्चा भी करते। धीरे धीरे चमनलाल का प्रभाव दूसरे स्कूल के छात्रों पर भी पड़ने लगा। उनके मार्ग दर्शन में गवर्नमेण्ट हाई स्कूल और आर्य समाजीय स्कूल के छात्रों ने मिल कर 'धर्म रक्षा' नामक एक सभा भी चलाई।
बालक चमनलाल पूरे साल आर्यसमाज मन्दिर में सांयकाल के समय सत्यार्थप्रकाश की कथा सुनाया करते थे। अवस्था में छोटे, ज्ञान में बड़े चमनलाल के द्वारा जब कथा की जाती तो छोटे बड़े तथा हाई स्कूल के छात्र भी आकर कथा सुना करते थे। अभी वे पढ़ ही रहे थे कि उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। पिताजी भेरा से दूर कश्मीर में नौकरी करते थे। इतना होने पर भी बालक चमनलाल विचलित नहीं हुए और अपने परिश्रम से १९१३ में मैट्रिक परीक्षा अच्छे अंकों में उत्तीर्ण की। उस समय अच्छे छात्रों को छात्रवृत्ति मिला करती थी। बालक चमन लाल को भी छात्रवृत्ति मिली और वे पढ़ने के लिए लाहौर चले गए। उस समय लाहौर सभी तरह से अच्छा माना जाता था। वह शिक्षा तथा आर्यसमाज का केन्द्र था। अब बालक चमनलाल युवक हो गये और उन्होंने वहां डी.ए.वी. काॅलेज में इण्टर कक्षा में प्रवेश लिया, संस्कृत, भौतिकी तथा रसायन विज्ञान जैसे विषयों को पढ़ाई के लिए चुना। इण्टरमीडिएट उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने बी.ए. में विज्ञान विषयों को छोड़कर आर्ट्स ले लिया। साथ में संस्कृत विषय भी रखा।
युवक चमन लाल अपनी दिनचर्या के अनुसार कार्य करते, काॅलेज जाते, अच्छे छात्रों के साथ सम्पर्क बनाये रखते, नित्यप्रति आर्य समाज मन्दिर भी जाया करते। इसी समय महात्मा हंसराज जी भी शिक्षा विभाग से मुक्त हुए थे। महात्मा हंसराज जी डी.ए.वी.कालेज के प्रधानाचार्य थे। पर जब तक युवक चमन लाल जी बी.ए. में पहुंचे, तब तक महात्मा हंसराज काॅलेज के प्रिंसिपल पद से मुक्त हो कर डी.ए.वी. काॅलेज प्रबन्धक सभा के प्रधान बन गए थे। अब महात्मा हंसराज जी के पास प्रशासन का उतना भार नहीं था जितना प्रिंसिपल के समय, अब वे छात्रों से मिलते जुलते, उनके साथ आर्य समाज की बातें करते, नियमित रूप से अनारकली के आर्य समाज और छात्रावास में छात्रों द्वारा संचालित आर्य युवक समाज के साप्ताहिक सत्संगों में जाया करते। वे काॅलेज के अच्छे छात्रों की खोज में रहते, जो छात्र उन्हें वैदिक, धार्मिक तथा सामाजिक तौर पर अच्छा लगता उसमें और भी आर्य समाज की भावना भरते। ऐसी स्थिति में युवक चमनलाल भी उनकी दृष्टि से कैसे ओझल रह सकते थे। साथ ही स्वयं युवक चमनलाल भी उनके प्रभाव से प्रभावित हुए बिना कैसे रहते।
युवक चमनलाल से न केवल जूनियर विद्यार्थी ही प्रभावित होते थे अपितु उनके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व, बुद्धिकौशल, ज्ञानराशि तथा आर्य समाज के प्रति गहरी पैठ के कारण सीनियर विद्यार्थी भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते थे। उनके प्रति उनसे बड़े विद्यार्थियों का भी बड़ा आदर भाव था। उनको छात्रावास में भी बड़े आदर से देखा जाता था।आचार्य जी ने इण्टर परीक्षा उार्ण करके बी.ए.में प्रवेश लिया। बी.ए.में भी आपने छात्रवृत्ति प्राप्त की अच्छे अंक ले कर बी.ए.परीक्षा उत्तीर्ण की। एम.ए.में आपने अपना प्रिय विषय संस्कृत ही चुना। उस समय पंजाब विश्वविद्यालय (लाहौर) के ओरियण्टल काॅलेज के प्रिंसिपल डा.ए.सी. वुल्नर थे। वे आचार्य विश्वबन्धु जी के वैदुष्य तथा रुचिपूर्ण अध्ययन से अच्छे प्रभावित थे। विश्वबन्धु जीअपनी प्रतिभा के कारण डा. वुल्नर के अति प्रिय छात्र हो गए। आचार्य विश्वबन्धु ने १९१९ में एम.ए. संस्कृत परीक्षा सबसे अधिक अंक लेकर उत्तीर्ण की। इतने अंक प्राप्त किए कि पिछले सभी रिकार्ड तोड़ दिए। डा. वुल्नर आचार्य जी से इतने प्रसन्न तथा प्रभावित हुए कि उन्होंने स्टेट स्कालरशिप (सरकारी छात्रवृत्ति) के लिए विश्वबन्धु जी के नाम की संस्तुति की। आचार्य जी को वह विशिष्ट छात्रवृत्ति दे दी गई। वह छात्रवृत्ति तीन सौ रुपये मासिक की थी। यह तीन सौ रुपयों की छात्रवृत्ति उस समय के छात्रों के लिए एक विशिष्ट सम्मान था। चार साल तक विलायत में यह छात्रवृत्ति मिलनी थी। विश्वबन्धु जी को इस प्रकार की विशिष्ट छात्रवृत्ति के प्राप्त होने से कोई प्रसन्नता नहीं हुई और उन्होंने एक क्षण में ही ऐसी छात्रवृत्ति को लेने से नम्रतापूर्वक मना कर दिया। उन्होंने डा. वुल्नर का बडे़ विनम्र भाव से धन्यवाद करते हुए कहा कि मैं अपने जीवन के गुरु महात्मा हंसराज जी की अनुमति प्राप्त कर ही इस आदरमयी छात्रवृत्ति को ग्रहण कर सकता हूं। महात्मा हंसराज जी आचार्य विश्वबन्धु का भाव समझ गए और उन्होंने भी उनके द्वारा छात्रवृत्ति ग्रहण न करने की भावना की सराहना की।
आप विलायत तो नहीं गए पर उन्होंने १९२० में पंजाब विश्वविद्यालय से शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की। उस परीक्षा में भी आप सर्वप्रथम रहे। उस समय महात्मा हंसराज जी डी.ए.वी. काॅलेज के लिए एक इस प्रकार के प्राध्यापकों का मण्डल तैयार कर रहे थे जो साधारण जीवन निर्वाह पर आजीवन सदस्य बन जाये। चुने हुए इन युवकों को २५ वर्ष तक काॅलेज में पढ़ाने का व्रत लेना पड़ता था। चमनलाल से विश्वबन्धु-महात्मा हंसराज जी ने विश्वबन्धु जी को भी आजीवन सदस्य के रूप में चुन लिया। आचार्य विश्वबन्धु ने डी.ए.वी. काॅलेज की आजीवन सदस्यता स्वीकार करने से पूर्व महात्मा जी के सामने विनम्र भाव से कहा था कि मैं काॅलेज की आजीवन सदस्यता काॅलेज में पढ़ाने के लिए नहीं अपितु पंजाब विश्वविद्यालय से चलाये जाने वाली शास्त्री आदि श्रेणियों के स्थान पर अपनी ही परीक्षाओं को प्रारम्भ करने के लिए ले रहा हूं। युवक चमन लाल का यह एक साहसिक कदम था। इससे पहले शास्त्री आदि की संस्कृत श्रेणियां डी.ए.वी. काॅलेज के कुछ दूरी पर चलती थीं। युवक चमन लाल ने उसी स्थान पर डी.ए.वी. काॅलेज प्रबन्धकर्त्री सभा के तत्त्वावधान में विशारद, शास्त्री के स्थान पर स्वतन्त्र रूप से विद्यावाचस्पति इत्यादि उपाधि दिए जाने वाली श्रेणियों को चलाने की प्रतिज्ञा की, इस प्रतिज्ञा के साथ ही भीष्म पितामह के समान आजीवन ब्रह्मचारी रहने की भी प्रतिज्ञा की। सभी को यह बहुत अच्छा लगा और युवक चमन लाल की बात मान ली गई। यह बात १९२१ वैसाखी के शुभ दिन की है। उसी दिन से चमन लाल ने अपना नाम 'विश्वबन्धु' रख लिया। उसी दिन से नवीन परिपाटी के आधार पर श्रेणियां चलाने के लिए दयानन्द ब्राह्म महाविद्यालय नामक संस्था को प्रारम्भ कर दिया गया। विश्वबन्धु उसके प्रथम आचार्य बने।
साहित्य - सुधा
वेद सन्देश भाग १
वेद सन्देश भाग २
वेद सन्देश भाग ४
अथर्ववेद (शौनकीय) - पद-पाठ एवं शायनाचार्य भाष्य सहित
ऋग्वेद (पदपाठ तथा भाष्य सहित)
विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान
वैदिक पदानुक्रम कोष
विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान परिचय पुस्तिका (हिन्दी में 'हिस्ट्री इन हिन्दी') में आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री का विस्तृत परिचय (पफ डावनलोड)
१९६८ पद्म भूषण
साहित्य और शिक्षा में पद्म भूषण के प्राप्तकर्ता
१८९७ में जन्मे लोग
१९७३ में निधन |
मुराऊ बिघा अतरी, गया, बिहार स्थित एक गाँव है।
गया जिला के गाँव |
चँदौस गभाना, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
अलीगढ़ जिला के गाँव |
मल्लॆल (कडप) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कडप जिले का एक गाँव है।
आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट
आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग
निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल
आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट |
पीपली-मवाल.-३, चौबटाखाल तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
पीपली-मवाल.-३, चौबटाखाल तहसील
पीपली-मवाल.-३, चौबटाखाल तहसील |
बिलखौथ्लिर (बिल्खवालीर) भारत के मिज़ोरम राज्य के कोलासिब ज़िले में स्थित एक कस्बा है।
इन्हें भी देखें
मिज़ोरम के नगर
कोलासिब ज़िले के नगर |
गंज जलालाबाद भारत में उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के ब्लॉक मल्लावाँ में एक गाँव है, जो हरदोई व उन्नाव जिलों की सीमा पर राजकीय राजमार्ग ३८ पर स्थित है।
इस गाँव में कई विद्यालय हैं, जिनमें परिषदीय विद्यालय, प्रताप सिंह स्मारक शिक्षण संस्थान, छोटेलाल स्मारक पब्लिक स्कूल प्रमुख हैं। गाँव में स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया की एक शाखा भी है।
इस गाँव से थोड़ी दूर उत्तर में स्थित कपिलेश्वर महादेव का मंदिर दर्शनीय स्थल है, जो शारदा नहर के किनारे पर स्थित है।
देवलदेवी एवं पहला शूद्र जैसे प्रसिद्ध उपन्यासों के लेखक सुधीर मौर्य इसी गाँव से हैं।
हरदोई ज़िले के गाँव |
द फेट ऑफ द फ्यूरियस (फास्ट एंड फ्यूरियस ८ या फास्ट ८) अमेरिकी एक्शन फ़िल्म है। एफ॰ गैरी ग्रे द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म के निर्माता नील एच॰ मोरिट्ज़, विन डीज़ल, माइकल फोटरेल और क्रिस मॉर्गन हैं, और मॉर्गन ने इसकी पटकथा भी लिखी है। यह द फास्ट एंड द फ्यूरियस फ़िल्म शृंखला की आठवीं फ़िल्म है। इस फ़िल्म को पहले ४ अप्रैल २०१७ को बर्लिन में, और फिर १४ अप्रैल २०१७ को विश्व भर के सिनेमाघरों में जारी किया गया था। फ़िल्म को समीक्षकों से मिश्रित समीक्षाएं मिली, और इसने दुनिया भर में १.२ बिलियन डॉलर से अधिक की कमाई की।
डोमिनिक "डॉम" टोरेटो लेटी ओर्टिज़ के साथ हवाना में अपने हनीमून पर है, जहाँ उसका चचेरा भाई फर्नांडो एक स्थानीय रेसर राल्डो का उधार नहीं चुका पाने के कारण मुश्किल में पड़ जाता है। अपने चचेरे भाई को छुड़वाने के लिए डॉम राल्डो को एक रेस की चुनौती देता है, और उसे परास्त कर उसकी कार को नहीं लेता, और इसके बजाय फर्नांडो के लिए अपनी कार छोड़ देता है।
इसके अगले ही दिन साइबरटेररिस्ट साइफर डॉम से संपर्क करती है, और उसे अपने लिए काम करने पर मजबूर करती है। जब डॉम साइफर के इरादों पर सवाल उठाता है, तो वह उसे उसकी पूर्व प्रेमिका और डीएसएस एजेंट ऐलेना नेवेस से उसके बेटे के बारे में बताती है, जिसके अस्तित्व के बारे में डॉम अब तक अनजान था। कुछ ही समय बाद, डिप्लोमैटिक सिक्योरिटी सर्विस की ओर से एजेंट ल्यूक हॉब्स डॉम और उसकी टीम को बर्लिन में एक सैन्य चौकी से एक ईएमपी डिवाइस प्राप्त करने का काम सौंपता है। भगदड़ के दौरान, डॉम बगावत कर जाता है, और हॉब्स को रास्ते से हटाकर साइफर के लिए डिवाइस चुरा ले जाता है। परिमाणस्वरूप हॉब्स को गिरफ्तार कर लिया जाता है, और उसी हाई-सिक्योरिटी जेल में भेजा जाता है, जिसमें उसने डेकर्ड शॉ को कैद किया था। जेल से भाग निकलने के बाद डेकर्ड और हॉब्स को खुफिया ऑपरेटिव मिस्टर नोबडी और उसके साथी द्वारा भर्ती किया जाता है ताकि वे डॉम और साइफर को पकड़ सकें।
न्यूयॉर्क नगर में, साइफर डॉम को रूसी रक्षा मंत्री से एक परमाणु फुटबॉल को पुनः प्राप्त करने के लिए भेजती है; डॉम का सामना एक बार फिर उसकी टीम से होता है, और झड़प में वह डेकर्ड को मार देता है। लेटी उसे पकड़ने में लगभग सफल हो ही गयी होती है, लेकिन तभी कॉनर रोड्स घात लगाकर उस पर हमला कर देता है, जिसके बाद डॉम उसकी जान बचता है। इससे क्रोधित होकर साइफर डॉम के सामने ही ऐलेना को मार देती है।
डॉम रूस में एक अड्डे पर घुसपैठ कर ईएमपी डिवाइस से एक एक परमाणु पनडुब्बी को निष्क्रिय करता है, ताकि साइफर इसे हाईजैक कर परमाणु युद्ध छेड़ दे। एक बार फिर उसकी टीम उसे रोकने का प्रयास करती है; वे पनडुब्बी पर नियंत्रण करने की या फिर दरवाजों को बंद करने की कोशिश करते हैं ताकि पनडुब्बी खुले पानी में जाने न पाए। इस बीच अपनी माँ मैग्डलीन के समझने पर डेकर्ड, जिसे मृत माना जा रहा था, ओवेन के साथ मिलकर डॉम के बेटे को बचाने के लिए साइफर के विमान में घुसपैठ करता है। जैसे ही डेकर्ड बच्चे के सुरक्षित होने की सुचना देता है, डॉम तुरंत अपनी टीम से जुड़ जाता है, और सबसे पहले ऐलेना की मौत का बदला लेते हुए रोड्स को मार देता है। इससे नाराज साइफर डॉम पर एक इंफ्रारेड होमिंग मिसाइल दाग देती है, लेकिन वह अपनी टीम से अलग होकर उस पनडुब्बी की ओर चला जाता है, जिस पर मिसाइल लग जाती है। टीम शीघ्र ही डॉम के चारों ओर घेरा बनाकर उसे विस्फोट से बचा लेती है। तब डेकर्ड विमान के अगले हिस्से में पहुंचकर पराजित साइफर का सामना करता है, और वह पैराशूट लेकर प्लेन से बाहर कूदकर बच निकलती है।
मिस्टर नोबडी अपने साथी के साथ न्यूयॉर्क नगर में डॉम से मिलकर उसे बताते हैं कि साइफर अभी भी एथेंस में जीवित है। हॉब्स को उसकी डीएसएस की नौकरी वापस देने की पेशकश की जाती है, लेकिन वह अपनी बेटी के साथ अधिक समय बिताने के लिए मन कर देता है। डेकर्ड भी डॉम और हॉब्स के साथ अपने मतभेदों को अलग रखते हुए डॉम को उसका बेटा सौंप देता है, जिसका नाम वह अपने बहनोई ब्रायन ओ'कोनर के नाम पर ब्रायन रख देता है।
विन डीज़ल डोमिनिक टोरेटो
जेसन स्टेथम डेकर्ड शॉ
ड्वेन जॉनसन ल्यूक हॉब्स
मिशेल रोड्रिग्ज़ लैटी ओर्टिज़
टायरेसे गिब्सन रोमन पियर्स
क्रिस ब्रिजेस तेज पार्कर
स्कॉट ईस्टवुड एरिक रीसनर / लिटिल नोबडी
नताली इमैन्यूल रामसे
एल्सा पटाकी एलेना नेवेस
कर्ट रसेल मिस्टर नोबडी
शार्लीज़ थेरॉन साइफर
टेगो क्लैडरोन लियो
डॉन ओमर सैंटोस
ल्यूक इवांस ओवेन शॉ
क्रिस्टोफर हिवु कॉनर रोड्स
पैट्रिक सेंट एस्प्रिट डीएस एलन
हेलेन मिरेन मैगडलीन शॉ (विशेष उपस्थिति)
सेलेस्टिनो कॉर्निले राल्दो
२०१७ की फ़िल्में
द फास्ट एंड द फ्यूरियस |
"पॉन डे रिप्ले" बारबेडियन गायिका रिहाना का प्रथम एकल गीत है, जो उनकी डेब्यू स्टूडियो एल्बम म्यूजिक ऑफ़ द सन (२००५) के लिए रिकॉर्ड किया गया था। यह वाडा नोबल्स, अलीशा "एम जेस्टी" ब्रूक्स, कार्ल स्टर्कन और इवान रोजर्स द्वारा लिखित और निर्मित किया गया था। इस गाने को २४ मई २००५ को एल्बम से मुख्य एकल के रूप में रिलीज़ किया गया था। डेफ जैम रिकॉर्डिंग के साथ एक छह एल्बम रिकॉर्ड डील पर हस्ताक्षर करने से पहले, "पॉन डे रिप्ले" तीन गीतों में से एक था जिसे रिकॉर्ड करने के लिए उसके डेमो टेप को रिकॉर्ड लेबल पर भेजा जाना था। यह एक डांस-पॉप, डांसहॉल और आर एंड बी गीत है जिसमें पॉप और रेगे के तत्व हैं। बारबाडोस की दो आधिकारिक भाषाओं में से एक, बारबन क्रियोल में, गीत के नाम का अर्थ है: "इसे दोबारा बजाओ।"
"पॉन डे रिप्ले" को संगीत आलोचकों से ज्यादातर सकारात्मक समीक्षा मिली, जिन्होंने गाने की रचना और गायिका के पहले एकल के रूप में इसकी पसंद की प्रशंसा की। यह गीत एक व्यावसायिक सफलता था, जो न्यूजीलैंड में और यूएस बिलबोर्ड डांस क्लब सॉन्ग्स चार्ट में नंबर एक पर रहा। यह यूएस बिलबोर्ड हॉट १०० चार्ट और यूके सिंगल्स चार्ट दोनों पर नंबर दो पर पहुंच गया, जबकि ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, डेनमार्क और स्विट्जरलैंड सहित आठ अन्य देशों में शीर्ष पांच में स्थान हासिल करने में सफल रहा। यह अमेरिका के रिकॉर्डिंग इंडस्ट्री एसोसिएशन द्वारा दो बार प्लेटिनम प्रमाणित किया गया था, जो दर्शाता है कि इसकी २० लाख से अधिक प्रतियों की हुई थी। गीत के संगीत वीडियो को लिटिल एक्स द्वारा निर्देशित किया गया था, और इसमें रिहाना को अपने दोस्तों के साथ एक क्लब में दिखाया गया है, जो डीजे से अपने पसंदीदा गीत को बार-बार बजाने के लिए कहती हैं।
"पॉन डे रिप्ले" (रेडियो एडिट) ३:३४
"पॉन डे रिप्ले" (रेडियो एडिट) ३:३४
"पॉन डे रिप्ले" (एलीफैंट मैन रीमिक्स) ३:३७
"पॉन डे रिप्ले" (पॉन डे क्लब प्ले वर्शन) ७:३२
"पॉन डे रिप्ले" (कोट्टो रीप्ले डब वर्शन) ६:४७
सीडी मैक्सी-एकल (यूरोपियन वर्शन)
"पॉन डे रिप्ले" (रेडियो एडिट) ३:३४
"शुड आई? (फीचरिंग जे-स्टेटस)" ३:०६
"पॉन डे रिप्ले" (कोट्टो रीप्ले डब) ६:४८
यू-मिक्स रीमिक्स सॉफ्टवेयर "पॉन डे रिप्ले"
जर्मन सीडी एकल
"पॉन डे रिप्ले" (एल्बम वर्शन) ४:०६
"पॉन डे रिप्ले" (कोट्टो रीप्ले डब) ६:४८
मेट्रोलिरिक्स पर गीत के बोल
रिहाना के गीत |
रापा नुई राष्ट्रीय उद्यान एक राष्ट्रीय उद्यान और यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है जो ईस्टर द्वीप, चिली में स्थित है।
चिली का भूगोल |
बबलिया, भिकियासैण तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
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उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
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उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
बबलिया, भिकियासैण तहसील
बबलिया, भिकियासैण तहसील |
सत्यनारायण जटिया एक भारतीय राजनीतिज्ञ तथा वर्तमान भारत केे मध्य प्रदेश से वरिष्ठ सदन राज्यसभा के सांसद हैं।
१९४६ में जन्मे लोग |
फरीदचक जगदीशपुर, भागलपुर, बिहार स्थित एक गाँव है।
भागलपुर जिला के गाँव |
बरली ग्रामीण महिला विकास संस्थान इन्दौर स्थित एक संस्थान है जो ग्रामीण तथा जनजातीय महिलाओं के लिए आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाती है जिनको विद्यालय जाने का अवसर नहीं मिला या जिन्होने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी। ज्ञातव्य है कि भिलाला जनजाति में 'बरली' लड़कियों का एक बहुत ही सामान्य नाम है। इस संस्था का मानना है कि महिलाएँ समाज की केन्द्रीय स्तम्भ हैं। यह सम्स्थान इन्दौर के उत्तरी भाग में स्थित है।
इस संस्थान में प्रशिक्षण पाने वाली अधिकांश महिलाएँ पश्चिमी मध्य प्रदेश से आती हैं। यहाँ सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े (जैसे अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग, शारीरिक रूप से विकलांग, अनाथ, विधवा, परित्यक्ता आदि को प्राथमिकता दी जाती है। छत्तीसगढ़ क्षेत्र में कांकेर, इमलीपाड़ा में इसकी तीन शाखाएँ हैं जहाँ की व्यवस्था बरली से प्रशिक्षण-प्राप्त लड़कियाँ चलातीं हैं।
बरली ग्रामीण महिला विकास संस्थान का जालघर |
लोलक घड़ी (पेंडुलम क्लॉक) वह घड़ी है जिसमें समय प्रदर्शित करने वाली प्रणाली का चालन एक लोलक की सहायता से होता है। इसका आविष्कार सन १६५६ में क्रिश्चियन हाइगेंस ने किया था। तब से आरम्भ करके लगभग १९३० तक यह संसार की सर्वाधिक शुद्ध समयदर्शी तंत्र था। आजकल इन्हें सजावटी सामान एवं पुरातन सामान के रूप में प्रयोग किया जाता है।
लोलक घड़ी वस्तुतः एक अनुनादी युक्ति है जो अपनी लम्बाई के अनुसार एक निश्चित दर से दोलन करती है तथा किसी अन्य दर से दोलन का विरोध करती है। किन्तु यह स्थिर अवस्था में कार्य करने के लिये ही उपयुक्त है। किसी गतिशील एवं त्वरित होने वाली चीज में यह सही समय नहीं बता पायेगी।
घड़ियाँ लोलक घड़ियां गर्मियों में सुसत हो जाती है क्यूंकि लोलाक की लम्बाई बढ़ जाती हैं जिससे इकाई दोलन में लगा हुआ समय बढ जाता हैं |
अप्रैल फूल दिवस पश्चिमी देशों में प्रत्येक वर्ष पहली अप्रैल को मनाया जाता है। कभी-कभी इसे ऑल फ़ूल्स डे के नाम से भी जाना जाता हैं। १ अप्रैल आधिकारिक छुट्टी का दिन नहीं है परन्तु इसे व्यापक रूप से एक ऐसे दिन के रूप में जाना और मनाया जाता है जब एक दूसरे के साथ व्यावाहारिक परिहास और सामान्य तौर पर मूर्खतापूर्ण हरकतें की जाती हैं। इस दिन मित्रों, परिजनों, शिक्षकों, पड़ोसियों, सहकर्मियों आदि के साथ अनेक प्रकार की नटखट हरकतें और अन्य व्यावहारिक परिहास किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य होता है। बेवकूफ और अनाड़ी लोगों को शर्मिंदा करना।
पारम्परिक तौर पर कुछ देशों जैसे न्यूज़ीलैण्ड, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में इस प्रकार के परिहास केवल दोपहर तक ही किये जाते हैं और यदि कोई दोपहर के बाद इस प्रकार का प्रयत्न करता है तो उसे "अप्रैल फ़ूल" कहा जाता है। ऐसा इसीलिये किया जाता है क्योंकि ब्रिटेन के समाचारपत्र जो अप्रैल फ़ूल पर मुख्य पृष्ठ निकालते हैं वे ऐसा केवल पहले (सुबह के) संस्करण के लिए ही करते हैं।
इसके अतिरिक्त फ़्रांस, आयरलैण्ड, इटली, दक्षिण कोरिया, जापान, रूस, नीदरलैण्ड, जर्मनी, ब्राजील, कनाडा और अमेरिका में जोक्स का सिलसिला दिन भर चलता रहता है। १ अप्रैल और मूर्खता के बीच सबसे पहला दर्ज किया गया संबंध चॉसर के कैंटरबरी टेल्स (१392) में पाया जाता है। कई लेखक यह बताते हैं कि १6वीं सदी में एक जनवरी को न्यू ईयर्स डे के रूप में मनाये जाने का चलन एक छुट्टी का दिन निकालने के लिए प्रारम्भ किया गया था, किन्तु यह सिद्धान्त पुराने सन्दर्भों का उल्लेख नहीं करता है।
चॉसर के कैंटरबरी टेल्स (१३९२) में "नन्स प्रीस्ट्स टेल" में 'सिन मार्च बिगन थर्टी डेज एंड टु ' का उल्लेख किया गया है। चॉसर का मतलब संभवतः मार्च के ३२ दिन के बाद से है यानी २ मई, जो इंग्लैण्ड के किंग रिचर्ड ई की बोहेमिया की एन के साथ सगाई की सालगिरह की तारीख है, जो १३८१ में हुई थी। हालांकि पाठक ऊपरी तौर पर इस लाइन का गलत मतलब "३२ मार्च" अर्थात् १ अप्रैल के रूप में लगाते हैं। चॉसर की कहानी में अहंकारी मुर्गे शॉन्टेक्लीर को एक लोमड़ी द्वारा चालाकी से फंसा लिया जाता है।
१५०८ में एक फ्रांसीसी कवि ने एक प्वाइजन डी एवरिल (अप्रैल फूल, जिसका शाब्दिक अर्थ है "अप्रैल फिश") का सन्दर्भ दिया, जो एक संभावित छुट्टी की तरफ इशारा करता है। १५३९ में फ्लेमिश कवि 'डे डेने' ने एक अमीर आदमी के बारे में लिखा जिसने १ अप्रैल को अपने नौकरों को मूर्खतापूर्ण कार्यों के लिए भेजा था। १686 में जॉन ऑब्रे ने इस छुट्टी को "मूर्खों का पवित्र दिन" कहा जो पहला ब्रिटिश संदर्भ है। १ अप्रैल १698 को कई लोगों को "शेर की धुलाई देखने" के लिए धोखे से टावर ऑफ लंदन में ले जाया गया था। "अप्रैल फूल" का नाम 'फीस्ट ऑफ फूल' की तरह प्रतिध्वनित होता है जो मध्यकाल में २८ दिसम्बर को मनाया जाने वाला एक छुट्टी का दिन था।
मध्य काल में यूरोपीय शहरों में न्यू ईयर्स डे २५ मार्च को मनाया जाता था। फ्रांस के कुछ हिस्सों में न्यू ईयर्स सप्ताह भर चलने वाली छुट्टी थी जो १ अप्रैल को ख़त्म होती थी। इसीलिए यह संभव है कि अप्रैल फूल्स की शुरुआत इसीलिए हुई कि जिन लोगों ने १ जनवरी को इसे मना लिया था उन लोगों ने दूसरी तिथियों को यह दिन मनाने का मज़ाक उड़ाया था। नव वर्ष दिवस के रूप में १ जनवरी का इस्तेमाल सोलहवीं शताब्दी के मध्य तक फ्रांस में आम था और इस तिथि को एडिक्ट ऑफ रुसिलोन द्वारा १564 में आधिकारिक तौर पर अपना लिया गया।
अठारहवीं सदी में इस समारोह को अक्सर नोह के काल की ओर वापस जाने के समान समझा जाता था। १७८९ में प्रकाशित एक अंग्रेजी अखबार के लेख के अनुसार इस दिन की शुरुआत का संबंध उस दिन से है जब नोह ने पानी कम होने से पहले ही अपने कबूतरों को बहुत जल्दी भेज दिया था; उसने ऐसा हिब्रू महीने की पहली तारीख को किया जिसका संदर्भ अप्रैल से है।
राईट ओनली मेमोरी : साइनेटिक्स (सिगनेटिक) ने राईट ओनली मेमोरी आईसी डाटा बुक्स का विज्ञापन १९७२ से लेकर १९७० के दशक के अंत तक किया।
डेसिमल टाइम : कई देशों में कई बार दोहराया गया, इस झांसे में यह दावा किया गया था कि समय की प्रणाली को बदलकर उन इकाईयों के रूप में कर दिया जाएगा जिसमें समय १० के पावर पर आधारित होगा।
टैको लिबर्टी बेल : १९९६ में टैको बेल ने दी न्युयॉर्क टाइम्स में एक पूरे पेज का विज्ञापन देकर यह घोषणा की कि उन्होंने "देश पर से कर्ज के भार को कम करने के लिए" लिबर्टी बेल को खरीद लिया है और इसे "टैको लिबर्टी बेल" का नाम दिया है। जब बिक्री के बारे में पूछा गया तो व्हाईट हाउस के प्रेस सचिव माइक मैककरी ने मजाकिया अंदाज में जवाब दिया कि लिंकन मेमोरियल भी बेच दिया गया है और अब इसे लिंकन मरकरी मेमोरियल के रूप में जाना जाएगा.
लेफ्ट हेंडेड व्हूपर्स : १९९८ में, बर्गर किंग ने यूएसए टुडे में यह कहते हुए एक विज्ञापन दिया कि लोग उन बायें हाथ के लोगों के लिए एक हूपर प्राप्त कर सकते हैं जिनकी चटनियाँ दाहिनी ओर के लिए डिजाइन की गयी हैं। ग्राहकों ने न केवल नए बर्गर मंगाने के आदेश दिए बल्कि कुछ ने विशेष रूप से "पुराने", दाएँ हाथ के बर्गर का अनुरोध किया।
एपल बायज द बीटल्स : बॉब लेफ्सेत्ज़ ने एक अप्रैल फूल्स डे लेटर जारी किया जिसमें म्यूजिक इंडस्ट्री में चल रही अफवाहों का जिक्र था।
रेडियो स्टेशनों द्वारा
जोवियन प्लूटोनियन गुरुत्वाकर्षण प्रभाव : १९७६ में, ब्रिटिश एस्ट्रोनोमर सर पैट्रिक मूर ने बीबीसी रेडियो २ के श्रोताओं को बताया कि उस दिन सबेरे ठीक ९:४७ बजे दो ग्रहों के विशेष रूप से समानांतर होने से एक उर्ध्वगामी गुरुत्वाकर्षण बल पैदा होगा जो लोगों को हल्का महसूस कराएगा. उन्होंने अपने श्रोताओं को हवा में कूदने और "हवा में तैरने का एक अद्भुत अनुभव" प्राप्त करने के लिए आमंत्रित किया। दर्जनों श्रोताओं ने फोन करके यह बताया कि उनका अनुभव सफल रहा था।
स्पेस शटल ने सैन डियागो में लैंड किया : १९९३ में डीजे डेव रिचर्डसन ने सैन डियागो में केजीबी एफएम के श्रोताओं को कहा कि स्पेश शटल डिस्कवरी का रास्ता बदलकर एडवर्ड्स एयर फ़ोर्स बेस से मोंटगोमेरी फील्ड में लैंड करने की व्यवस्था की गयी थी, जो एक छोटा सा एयरपोर्ट था जिसका रनवे ४,५७७ फुट का था। हज़ारों लोग उस तथाकथित लैंडिंग को देखने के लिए एयरपोर्ट पहुँच गए जिससे समूचे करनी मेसा में ट्रैफिक जाम हो गया। मजे की बात तो यह है कि उस समय कोई भी शटल ऑर्बिट में मौजूद ही नहीं था।
एक मेयर की मौत : १९९८ में स्थानीय डब्ल्यूएएएफ शॉक जॉक्स ओपी और एंथनी ने यह बताया कि बोस्टन के मेयर थॉमस मेनिनो एक कार दुर्घटना में मारे गए हैं। मेनिनो उस समय एक विमान में थे, जिसके कारण यह मज़ाक और भी विश्वसनीय हो गया क्योंकि उनसे संपर्क कर पाना संभव नहीं था। यह अफवाह बहुत तेजी से समूचे शहर में फ़ैल गयी, आखिरकार न्यूज स्टेशनों को इस अफवाह को गलत बताने के लिए एक एलर्ट जारी करना पड़ा. इस जोड़ी को शीघ्र ही निकाल दिया गया था।
फोन कॉल : १९९८ में ब्रिटेन के प्रेजेंटर वेस्ट मिडलैंड्स रेडियो स्टेशन के निक टफी ने स्वयं को ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर होने का बहाना कर तत्कालीन दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला के साथ बातें करने के लिए कॉल किया। कॉल के पूरा होने के बाद जब निक ने नेल्सन को पूछा कि वे अप्रैल फूल्स डे के लिए क्या कर रहे हैं वह लाइन डेड हो गया।
बीबीसी रेडियो ४ (२००५) द टुडे प्रोग्राम ने समाचारों में यह घोषणा की कि लम्बे समय से चल रहे सीरियल द आर्चर्स ने अपने थीम ट्यून को बदलकर एक आधुनिक डिस्को शैली में कर लिया है।
नेशनल पब्लिक रेडियो : अमेरिका में नेशनल पब्लिक रेडियो हर साल १ अप्रैल को एक विस्तृत न्यूज स्टोरी करता है। ये आम तौर पर कामोबेश समुचित रूप से शुरू होते हैं और फिर ज्यादा से ज्यादा अनौपचारिक हो जाते हैं। इस कहानी का एक ताजा उदाहरण "इबोड़' नामक एक पोर्टेबल शरीर नियंत्रक उपकरण है। २००८ में इसने बताया कि आईआरएस ने इस बात की पुष्टि करने के लिए कि छूट की चेक राशी को वास्तव में खर्च किया गया था या नहीं, वह चेकों की जगह उपभोक्ता वस्तुओं को भेज रही थी। यह झूठे प्रायोजकों के बारे में भी जिक्र करती है जैसेकि "एनपीआर के लिए सहयोग सोयलेंट कॉरपोरेशन से आता है, जो अलग-अलग रंगों में प्रोटीन युक्त फ़ूड प्रोडक्ट्स का निर्माण करती है। सोयलेंट ग्रीन एक आदमी है।
थ्री डॉलर क्वाइन : २००८ में सीबीसी रेडियो प्रोग्राम एज इट हैप्पेंस में एक रॉयल कैनेडियन मिंट स्पोक्समैन का साक्षात्कार किया गया जिसने पाँच-डॉलर के कैनेडियाई बिल की जगह तीन डॉलर के सिक्के का इस्तेमाल करने की योजना की "न्यूज" का खुलासा किया। इस सिक्के को देश के एक-डॉलर के सिक्के (जिसे इसके दूसरी ओर खुदे एक साधारण लून की वजह से आम तौर पर एक "लूनी" कहा जाता था) और दो-डॉलर के सिक्के ("टूनी") के उपनामों के अनुरूप एक "थ्रीनी" के रूप में रूपांतरित किया गया था।
कंट्री टू मेटल : मुनरो, उत्तरी कैरोलीना में कंट्री और गॉस्पेल डब्ल्यूआईएक्सई हर साल एक मज़ाक करते हैं। २००९ में मिडडे के होस्ट बॉब रोजर्स ने यह घोषणा की कि वह अपने शो को हेवी मेटल के रूप में तब्दील कर रहे हैं। इसके बाद कई फोन कॉल आये लेकिन उनमें से तकरीबन आधे उन श्रोताओं के थे जो एक गाने का आग्रह करना चाहते थे।
यू२ लिव ऑन रूफटॉप इन कॉर्क : २009 में यू२ के हज़ारों प्रशंसकों को एक विस्तारित झांसे में लेकर बेवकूफ बनाया गया जब वे यह विश्वास करके कॉर्क में ब्लैकपूल में एक शॉपिंग सेंटर की ओर दौर चले कि बैंड एक सरप्राइज रूफटॉप कंसर्ट करना चाहती है। इस शरारत को कॉर्क के रेडियो स्टेशन रेड एफएम द्वारा आयोजित किया गया था। वास्तव में यह बैंड यू२ओपिया नामक एक श्रद्धांजलि बैंड था।
सेल फोन बैन : न्यूजीलैंड में रेडियो स्टेशन द एजेज मॉर्निंग मैडहाउस ने १ अप्रैल को समूचे देश को यह जानकारी देने के लिए प्रधानमंत्री की मदद माँगी कि न्यूजीलैंड में सेलफ़ोनों पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा. इस नए क़ानून पर नाराजगी जाहिर करने के लिए सैकड़ों कॉलरों ने फोन किया।
टेलीविजन स्टेशनों द्वारा
पीसा की मीनार : डच टेलीविजन न्यूज ने यह सूचना दी कि १९५० के दशक में पीसा की मीनार गिर गयी थी। कई लोगों ने आश्चर्य से स्टेशन को फोन किया।
स्पैगेटी ट्रीज : बीबीसी टेलीविजन कार्यक्रम पैनोरमा ने १९५७ में स्विस को पेड़ों से स्पैगेटी हटाते हुए दिखाकर एक प्रसिद्ध झांसा दिया। उन्होंने दावा किया था कि इस तिरस्कृत परजीवी, स्पैगेटी वीविल को ख़त्म कर दिया गया है। अनगिनत लोगों ने यह जानने के लिए बीबीसी को कॉल किया कि वे किस प्रकार अपनी स्पैगेटी ट्रीज उत्पन्न करेंगे। वास्तव में इसे सेंट अलबांस में फिल्माया गया था।
१९६२ में स्वीडिश नेशनल टेलीविजन ने ५ मिनट का एक विशेष कार्यक्रम दिखाया कि किस प्रकार आप टीवी के सामने एक नायलन मोजा रखकर एक रंगीन टीवी प्राप्त कर सकते हैं। इसका एक विस्तृत उल्लेख फिजिक्स में शामिल किया गया जिसपर यह सिद्धांत आधारित था।
स्मेल ओ विजन : १९६५ में बीबीसी ने एक दुर्गन्ध को हवाई तरंगों के जरिये सभी दर्शकों तक पहुँचाने की एक नयी तकनीक का ट्रायल करने के बारे में बताया। कई दर्शकों ने कथित रूप से बीबीसी को ट्रायल के सफल रहने की रिपोर्ट दी। २००७ में बीबीसी की वेबसाइट ने इस झांसे के ऑन लाइन वर्जन को दोहराया.
१९८० में बीबीसी ने बिग बेन नामक एक प्रसिद्ध क्लॉक टावर के प्रस्तावित बदलाव की सूचना दी। रिपोर्टरों ने बताया कि अब यह घड़ी डिजिटल हो जायेगी.
१९८९ में बीबीसी स्पोर्ट्स के कार्यक्रम ग्रैंडस्टैंड पर प्रसारण के दौरान ही प्रस्तोता डेस लीनम के पीछे न्यूज रूम के स्टाफ के बीच एक झगड़ा शुरू हो गया। बाद में यह खुलासा किया गया कि यह अप्रैल फूल दिवस का एक मज़ाक था।
कॉमेडी सेन्ट्रल पर साउथ पार्क के निर्माता ने सीजन के प्रीमियर, जिसमें एरिक कैटमैन के पिता के बारे में खुलासा किया जाना था, को चलाने की जगह टेरेंस एंड फिलिप के एक नकली एपिसोड का प्रसारण किया जिसका शीर्षक था "टेरेंस एंड फिलिप इन नॉट विदाउट माई एनस". इसके कारण नाराज होकर प्रसारण के अगले सप्ताह तक प्रशंसकों ने कॉमेडी सेन्ट्रल को तकरीबन २,००० शिकायतें लिख डालीं। इस घटना की पैरोडी सीजन १३ के एपिसोड ईट, प्रे, क्वीफ में की गयी, जो घटना के बाद अप्रैल फूल दिवस पर प्रसारित होने वाला पहला एपिसोड था।
द ट्रबल विद ट्रेसी : २००३ में द कॉमेडी नेट वर्क इन कनाडा ने यह घोषणा की कि वह १९७० के दशक के कनाडाई सिटकॉम द ट्रबल विद ट्रेसी का एक रीमेक तैयार करेगी और इसका प्रसारण करेगी। मूल सीरीज को व्यापक रूप से सबसे बुरे सिटकॉमों में से एक समझा जाता है। कई मीडिया संस्थान इस मज़ाक के घेरे में आ गए।
२००४ में ब्रिटिश ब्रेकफास्ट शो जीएमटीवी ने एक स्टोरी तैयार की जिसमें यह दावा किया गया कि यॉर्कशायर वाटर एक नए "डायट टैप वाटर" का परीक्षण किया था जिससे पहले ही चार महीनों में एक ग्राहक को उसके एक और आधे स्टोन की समस्या ख़त्म करने में मदद मिली थी। इस परीक्षण के सफल रहने की घोषणा के बाद यह दावा किया गया था कि रसोई घर के सिंक्स में एक तीसरा टैप जोड़ा जाएगा जो ग्राहकों के लिए पानी की पहुँच को आसान बानायेगा. कहानी के बाद, यॉर्कशायर वाटर से दर्शकों ने १०,००० सवाल पूछे थे।
२००६ में बीबीसी ने यह रिपोर्ट दी कि नंबर १० डाउनिंग स्ट्रीट जो युनाईटेड किंगडम के प्रधानमंत्री का आधिकारिक निवास है इसके दरवाजे को लाल रंग से पेंट किया जाएगा. उन्होंने एक लाल दरवाजा ले जाते हुए श्रमिकों की फुटेज दिखाई. लाल रंग उस राजनीतिक दल का आधिकारिक रंग था जिसने उस समय सरकार का गठन किया था। यही कहानी ब्रिटिश अखबार द डेली मेल में भी प्रकाशित की गयी जिसने नए डिजाइन को अप्रैल फेवेल का नाम दिया था। वास्तव में यह दरवाजा काला है।
२००८ में बीबीसी ने उड़ती हुई पेंगुइन की एक नयी कालोनी का पता लगाए जाने की रिपोर्ट दी। यहाँ तक कि एक विस्तृत वीडियो सेगमेंट भी तैयार किया गया जिसमें टेरी जोंस (मोंटी पाइथन फेम के) को अन्टार्कटिक में पेंगुइनों और अमेजन के जंगलों की और उनकी उड़ान के साथ टहलते हुए दिखाया गया था।
२०१० के द वन शो ने "क्लोंड यूनिकॉर्न्स" पर एक कार्यक्रम दिखाया और बाद में बताया इस यह अप्रैल फूल था।
२०१० में ईएसपीएन के पार्डन द इंटरप्शन के टोनी कॉर्नहेजर और डैन लीबाटर्ड ने यह रिपोर्ट की कि उस दिन शुरू हुए वाले मास्टर्स टूर्नामेंट में टाइगर वुड ने यह आग्रह किया था कि उनको हाल के निजी परेशानियों से दूर रखने की कोशिश में न्यू मीडिया ने उन्हें उनके दिए गए नाम एल्ड्रिक से संबोधित करती है। इसके बाद होस्ट ने इस स्टोरी को एक मज़ाक बताने से पहले इसके फायदों और नुकसान पर बहस किया।
२०१० में ब्रिटिश अखबार द सन ने अपने नये "स्क्रैच एंड स्निफ" पेपर के बारे में सादे अखबार का एक सैम्पल देते हुए एक लेख प्रकाशित किया। इसके कारण बहुत से पाठकों ने सुगंध को सूंघने के लिए पेपर को नाक से लगाकर सूंघा.
गेम शो द्वारा
जियोपार्डी! एंड व्हील ऑफ फॉर्चून
१ अप्रैल १997 को एक अप्रैल फूल जोक के एक हिस्से के रूप में एलेक्स ट्रेबेक और पैट सैजेक ने अपनी होस्टिंग की ड्यूटी आपस में बदल ली। सैजेक ने उस दिन जियोपार्डी ! को होस्ट किया।
! (जब कई व्हील-प्रेरित श्रेणियाँ दिखाई गयीं) और ट्रेबेक ने व्हील ऑफ फॉर्चून को होस्ट किया जिसमें सैजक और वाना व्हाईट ने प्रतियोगियों की भूमिका निभाई .जियोपार्डी! के उदघोषक जॉनी गिल्बर्ट ने उस दिन दोहरी जिम्मेदारी निभाई जबकि व्हील के नियमित उदघोषक चार्ली ओडोनेल ने कुछ हिस्सों को उदघोषित किया जिसमें गिल्बर्ट के साथ कार्यक्रम की शुरुआत और सैजक एवं व्हाईट को यह कहते हुए कि उन्होंने गेम में जीती गयी राशि के अलावा बोनस राउंड में २५,००० डॉलर जीता है जिसे उन्होंने अपने संबंधित चैरिटीज में बांट दिया है। एपिसोड के दौरान "रियली लांग टाईटल" की श्रेणी में एक जवाब के रूप में सुपरकैलीफ़्रैजाइलिस्टिकएक्सपियालिडोसियस एक पजल भी दिखाया गया।
१ अप्रैल २००८ को एलेक्स ट्रेबेक जियोपार्डी
! में एक नकली मूँछ लगाकर आये. साथ ही, व्हील ऑफ फॉर्चून के उदघोषक पैट सैजेक ने एक विग के अंदर एक गंजी टोपी पहनी जिसे उन्होंने बाद में उतार दिया .
एक अप्रैल २०१० को सैजेक जियोपार्डी ! की शुरुआत के दौरान ट्रेबेक का परिचय कराते हुए सामने आये।
!. गेम में एक अन्य गैर-महत्त्वपूर्ण जगह पर इस तरह की रीडिंग द राउंड श्रेणियों में ट्रेबेक की जगह अन्य लोग दिखाई दिए जिनमें जेफ़ प्रोब्स्ट और नील पैट्रिक हैरिस शामिल थे। उस दिन के व्हील ऑफ फॉर्चून में लोगों को उस दिन के एपिसोड में "सामान्य से अलग" १० चीजों का पता लगाने के लिए सचेत किया गया; कार्यक्रम के वेबसाइट ने यह बताते हुए एक प्रिंट करने योग्य चेकलिस्ट भी शामिल किया कि इस तरह की प्रत्येक असामान्यता कहाँ देखी जा सकती है (लेकिन यह नहीं कि ये कहाँ होंगी) .२ अप्रैल को साइट ने सभी १० गलतियों को दिखाते हुए एक फोटो गैलरी लगाई, इसके साथ-साथ उस दिन के एपिसोड की समाप्ति भी दिखाई गयी थी जिसमें पैट और वाना एक दूसरे से लड़ गए थे। इस मज़ाक में सैजेक, व्हाईट और उदघोषक चार्ली ओडोनेल शामिल थे।
द प्राइस इज राईट ने इस दिन को अक्सर अनेक परिहासों के संकलन के रूप में दिखाते हुए मनाया है, जिसमें अक्सर मजाकिया पुरस्कार (जैसे कि सस्ती चीजें या काल्पनिक जगहों की सैर) शामिल किये जाते हैं या अपनी प्रस्तुति में परिहासों (जैसे कि ज्यादातर पुरस्कारों को सारी नाटकीय घटनाओं के दौरान नष्ट कर दिया जाता है) को शामिल करते हैं। ज्यादातर मामलों में, जैसे ही प्रतियोगी को पता चलता है कि यह एक अप्रैल फूल का मज़ाक था, वास्तविक शोकेस में लग्जरी और स्पोर्ट्स कार जैसे आकर्षक पुरस्कार बांटे जाते हैं। यह चलन १९८० के दशक से लोकप्रिय हुआ है, लेकिन इसे ड्रयू कैरी के युग से इसे पुनः शुरू किया गया है।
२००९ और २०१० में कैथी किन्नी कैरी की निंदा करने के लिए द ड्रयू कैरी शो में कैरी के दुश्मन मियामी बोबैक के पात्र में सामने आयी।
२००९ के एपिसोड में थिंक म्यूजिक का इस्तेमाल करने वाले गेमों के लिए मैच गेम के थिंक म्यूजिक को दिखाया गया जिसमें बोबैक एक कार पुरस्कार से उसके टायरों को निकाल रहे थे और दूसरे पर एक व्हील लॉक लगा रहे थे, शोकेस शोडाउन व्हील पर अनियमित साउंड इफेक्ट, ट्रिप वीडियो के गलत फोटोग्राफ और एक शोकेस जहाँ सभी पुरस्कारों को गलत तरीके से बांटते हुए दिखाया गया था।
२०१० के एपिसोड में वन अवे में शो को एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर एवं "माइटी साउंड इफेक्ट लेडी" के हाथों में देकर सभी प्रतियोगियों को एक ही नाम (हालांकि सीबीएस पीआर ने असली नामों को दिखाया) मिमी से संबोधित किया गया। पिक-ए-पेयर ने छुट्टी के विषय पर किरणे की कई चीजों का इस्तेमाल किया जबकि प्लिनको ने "एज सीन ऑन टीवी"-विषय पर छोटे-छोटे पुरस्कारों का उपयोग किया। मॉडलों ने स्टेज के लोगों के साथ कई जगहों पर वन बिड प्लेकार्ड और उनके होल्डरों का मिलान नहीं होते (२००९ की शुरुआत में छः विशेष प्लेकार्ड डिजाईनों को अपनाया गया था, जिसमें प्रत्येक अलग-अलग रंगों और डिजाइनों के थे; इनका मिलान करना था) का खेल दिखाया था। तकरीबन एक जैसे दो शोकेसों में, जब एक दूसरे कार को दूसरे शोकेस पर जोड़ा गया तो बोबैक को दो एक सामान शोकेसों के लिए चुनौती देते हुए कैरी को एक घूमनेवाले टेबल से चोट लग गयी थी।
हॉलीवुड स्क्वायर्स ने तीन मौकों पर अप्रैल फूल के परिहास दिखाए हैं:
१९८७ में यह घोषणा की गयी थी कि वापसी करने वाला चैम्पियन बीमार हो गया था और उसकी जगह दूसरे प्रतियोगी को भेजा गया था। गेम के पहले सवाल के बाद प्रतियोगी की महिला प्रतिरोधी ने उसपर चीटिंग करने का आरोप लगाया और तब यह विवाद और गरमा गया जबतक कि पुरुष प्रतियोगी को प्रतियोगियों के एक ऊँचे प्लेटफॉर्म की ओर धक्का नहीं दे दिया गया जिससे होस्ट जॉन डेविडसन पूरी तरह हतप्रभ रह गए। बाद में, यह पता चला था कि "प्रतिस्थापित" प्रतियोगी एक स्टंटमैन था और उसकी प्रतिरोधी एक अभिनेत्री थी।
१९८८ में सेंटर स्क्वेयर जोन रिवर्स ने उस दिन कार्यक्रम को होस्ट करने के लिए डेविडसन के साथ अपने जगहों की अदला-बदली की थी
(शुरुआत के दौरान उनके स्क्वेयर का परिचय काये जाने के बाद डेविडसन को अप्रैल फूल्स! बताया गया था)।
२००३ में निर्माताओं हेनरी विंकलर और माइकल लीविट ने होस्ट टॉम बर्जरौन और अन्य स्टार्स में अब तक के दो सबसे मुश्किल प्रतियोगियों को शामिल कर एक अप्रैल फूल्स जोक का प्रदर्शन किया, जिसमें से एक थोड़ा नशे में और दूसरा हद से ज्यादा भावुक था, जिसने समूचे शो के दौरान पूरी तरह बर्जरौन के धीरज की परीक्षा ली। हकीकत में, प्रतियोगी डेविडसन संस्करण पर १९८७ के परिहास की तरह अभिनेता (ई.ई. बेल और कैरी आर्मस्ट्राँग) थे।
अन्य गेम शो:
१९८७ में, पुरुषों पर कार्ड शार्क लगे समूह के १० मतदान एक दर्शकों के लिए कहा गया था उनमें से कितनी चींटियों असली होगा खाने चॉकलेट में डूबा यदि उनके मंगेतर करने के लिए कहा उन्हें. इसके बाद, उन लोगों में से एक को उसकी प्रेमिका द्वारा वास्तव में ऐसा करने को कहा गया और उसने अनिच्छा पूर्ण ढंग से ऐसा किया, जब बाद में यह कहा गया कि यह सिर्फ एक अप्रैल फूल का परिहास था।
१९९१ में द चैलेंजर्स के प्रतियोगी यह देखकर आश्चर्य में पड़ गए कि गेमबोर्ड ने अत्यंत कठिन श्रेणियों "प्री-कोलंबियन आर्किटेक्चर", "एग्जिस्टेशनल पोएट्स" और "द पॉलिटिक्स ऑफ बुरुंडी" को उनके सामने रखा है; पहले प्रतियोगी द्वारा एक श्रेणी को चुनने के बाद, यह बताने के लिए कि यह अप्रैल फ़ूड डे है, स्क्रीन पर एक बड़ा सा ग्राफिक दिखाया गया। जब प्रतियोगियों देखा कि उनके कार्ड पर दिखाई गयी जोक की श्रेणियाँ उन श्रेणियों से मेल नहीं खा रही हैं तो उनके द्वारा यह महसूस करने के बाद कि कुछ-ना-कुछ गड़बड़ है, डिक क्लार्क ने प्रमुख लेखक और शृंखला के जज गैरी जॉनसन कहा कि क्या उन्हें और भी कुछ करना है; जॉनसन ने बताया और इससे अधिक बुरुंडी की पॉलीटिक्स नहीं मिलने पर अपनी निराशा जाहिर की जिसपर क्लार्क ने जवाब दिया, "हाँ.. अपने रूम में जाइए, क्या आप जायेंगे?"
१ अप्रैल २००३ को गेम शो नेटवर्क के असली कार्यक्रमों के होस्टों ने एक दूसरे होस्टों के स्थान पर होस्ट किया जो १997 में व्हील ऑफ फॉर्चून के पैट सीजेक और एलेक्स ट्रेबेक द्वारा जियोपार्डी
! को होस्ट किये जाने जैसा ही था. क्रैम के ग्राहम एलवुड ने एक अतिथि होस्ट के रूप में व्हैमी! को होस्ट किया। द ऑल-न्यू प्रेस के योर लक को टोड न्यूटन द्वारा नियमित रूप से होस्ट किया गया था। रशियन रूलेट के मार्क वालबर्ग ने फ्रेंड ऑर फ़ो?' पर अतिथि होस्ट की भूमिका निभाईजिसे केनेडी द्वारा नियमित रूप से होस्ट किया जाता था। व्हैमी ! के न्युटन ने' रशियन रूलेट में अतिथि होस्ट की जिम्मेदारी ली जिसे नियमित रूप से वालबर्ग द्वारा होस्ट किया जाता था। फ्रेंड ऑर फ़ो? के केनेडी ने' विनट्यूशन को गेस्ट के रूप में होस्ट किया जिसे नियमित रूप से मार्क समर्स द्वारा होस्ट किया जाता था। विनट्यूशन के समर्स ने क्रीम में अतिथि होस्ट की भूमिका निभाई जिसे एलवुड द्वारा नियमित रूप से होस्ट किया जाता था।एकमात्र शो जिसमें कोई अतिथि होस्ट नहीं था वह था लिंगो, जिसे चक वूलरी ने होस्ट किया .वूलरी इसे होस्ट करते रहे जबकि अन्य होस्ट वाल बर्ग और समर्स येलो टीम पर और केनेडी एवं एलवुड रेड टीम पर चैरिटी के लिए एक दूसरे के बदले काम किया था। (वाल बर्ग और समर्स ने ५००-० से जीत हासिल की) उस दिन न्यूटन उदघोषक बने थे।
क्रेमवैक्स : १९८४ में पूर्व के ऑन लाइन परिहासों में, एक सन्देश जारी किया गया कि सोवियत यूनियन में यूजनेट को उपयोगकर्ताओं के लिए खोल दिया गया था।
कैनेडियाई न्यूज साईट बॉर्क.ऑर्ग ने २००२ में यह घोषणा की थी कि वित्त मंत्री पॉल मार्टिन ने "प्राइज चैरोलैस कैटल और हैंडसम फॉन रनर डक्स की नस्ल को बढ़ावा देने के लिए अपना इस्तीफा दे दिया है।"
एसएआरएस इन्फेक्ट्स हांगकांग : २००३ में उस दौरान जब हांगकांग को एसएआरएस (सार्स) द्वारा बुरी तरह प्रभावित किया गया था, तब यह अफवाह उड़ी थी कि हांगकांग में कई लोग एसएआरएस (सार्स) द्वारा संक्रमित और नियंत्रण से बाहर हो गए थे, जिसके कारण इस क्षेत्र को बचाने के लिए सभी प्रवासी पोर्टों को बंद कर दिया जाना था और यह कि हांगकांग के तत्कालीन चीफ एग्जीक्यूटिव थांग ची हवा ने इस्तीफा दे दिया था। इससे हांगकांग के सुपरमार्केट के शॉपरों में तुरंत बुरी तरह खलबली मच गयी थी। हांगकांग की सरकार ने इस अफवाह को गलत बताने के लिए एक पत्रकार सम्मलेन बुलाया था। यह अफवाह जो अप्रैल फूल के एक परिहास के इरादे से उड़ाई गयी थी, इसे मिंग पाओ न्यूजपेपर की वेबसाइट का डिजाइन तैयार करने की कोशिश में एक छात्र द्वारा शुरू किया गया था। अप्रैल फूल की शरारत के तौर पर फैलाई गयी इस अफवाह को एक छात्र द्वारा मिंग पाओ अखबार की वेबसाइट की डिजाइन की नकल द्वारा शुरू किया गया था। इस घटना के लिए उसपर मुकदमा किया गया था।
बिल गेट्स की हत्या: २००३ में कई चीनी और दक्षिण कोरियाई वेबसाइटों ने यह दावा किया था कि सीएनएन ने माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स की ह्त्या की रिपोर्ट दी थी, जिसके बाद दक्षिण कोरियाई स्टॉक मार्केट में १.५% की गिरावट दर्ज की गयी थी।
नेशनस्टेट्स द्वारा १ अप्रैल को सालाना तौर पर एक मज़ाक किया जाता है। २००४ में, मजाक यह था कि आबादी में भारी कमी की कोशिश की जा रही थी और सभी देशों की आबादी ५ मिलियन लोगों के रूप में सेट कर दी जायेगी. 200५ में, एक सन्देश (संभवतः होमवर्ल्ड सुरक्षा विभाग से) जारी किया गया था कि अमेरिकी क़ानून के अनुसार नेशनस्टेट्स अवैध था। २००८ में, नेशनस्टेट्स ने युनाइटेड नेशंस की जगह एक नयी "वर्ल्ड एसेम्बली" तैयार की थी, क्योंकि उन्हें युनाइटेड नेशंस की ओर से इसके नाम को बगैर अनुमति के इस्तेमाल करने के लिए जब्ती और बंदी की एक नोटिस प्राप्त हुई थी। बाद में यह पता चला था कि यह मज़ाक नहीं था और एक अप्रैल फूल के मजाक के रूप में इसके इस्तेमाल की प्रेरणा ऐसे अनुमान से मिली थी जो बहुत ही अविश्वसनीय था।
मंगल पर पानी : २००५ में नासा की सरकारी वेबसाइट पर मंगल पर पानी होने की तथाकथित तस्वीरों के साथ एक नयी स्टोरी डाली गयी। वास्तव में यह तस्वीर सिर्फ एक मार्क कैंडी बार पर रखे एक पानी के ग्लास की एक तस्वीर थी।
वॉ.हास्टफ्वर्क्स.कॉम सालाना तौर पर एक झूठा आर्टिकल डालती है। २००६ में यह आर्टिकल "हाऊ एनिमेटेड टैटूज वर्क्स" के रूप में था जबकि २००७ में "हाऊ फोन सेल इम्प्लान्ट्स वर्क": २००८ में "हाऊ द एयर फ़ोर्स वन हाइब्रिड वर्क्स"; २००९ में "हाऊ रीचार्जेबल गम वर्क्स"; २०१० में "हाउ द ट्वैपलर वर्क्स" के रूप में था।
रिस्क्स डाइजेस्ट अक्सर एक अप्रैल १ का इश्यू प्रकाशित करती है।
डेड फेयरी होक्स : २००७ में जादूगरों के एक इल्युजन डिजाइनर ने अपनी वेबसाइट पर एक अज्ञात आठ-इंच के जीव के मृत शरीर को दिखाते हुए कुछ तस्वीरें पोस्ट की जिसके एक अप्सरा की ममीकृत तस्वीर होने का दावा किया गया था। बाद में उसने इस अप्सरा को एबाय पर २८० पाउंड में बेच दिया था।
मोतोशी साक्रीबोतो : २००७ में स्क्वेयर एनिक्स फैनसाइट स्क्वेयर हैवेन ने यह रिपोर्ट दी कि गेम म्यूजिक कम्पोजर मोटी शाकुराबा और हितोशी साकीमोतो ने एक गठबंधन की घोषणा की है। इसके परिणाम स्वरुप एक संयुक्त स्वरुप को मोतोशी साक्रीबोतो का नाम दिया गया। यह अफवाह एक सच्चाई के रूप में उस समय सामने आई जब १ अप्रैल २००३ को विपक्षी रोल प्लेयिंग गेम डेवलपर स्क्वेयर और एनिक्स का विलय हो गया और कई लोगों ने इस न्यूज को एक अप्रैल फूल जोक मान लिया।
एक वीडियो गेम वेबसाइट आईजीएन ने २००७ के अप्रैल फूल्स डे को एक असल-जैसा दिखने वाला लीजेंड ऑफ ज़ेल्दा मूवी का ट्रेलर रिलीज़ किया। कई लोगों ने काफी उत्साहित होकर धीरे-धीरे यह विश्वास कर लिया कि एक असली ज़ेल्दा मूवी आने वाली है, लेकिन आईजीएन ने खुलासा कर दिया कि यह एक धोखा था। बाद में अफवाहें उड़ाई गयीं कि एक असल लीजेंड ऑफ ज़ेल्दा फिल्म बनायी जा रही है।
वूकीपीडिया, स्टार वार्स की विकी ने कई अप्रैल फूल के प्रैंक्स तैयार किये हैं। २००७ में स्टार वार्स के चरित्र काइल कैटार्न की नाम पर वूकीपीडिया का नाम बदलकर कतरनीपीडिया रख दिया था। २००८ में उन्होंने अपने मुख्य पृष्ठ के समूचे टेक्स्ट को औरेबेश भाषा में बदल दिया था और विजिटरों को वूकीपीडिया के अंगरेजी भाषा के संस्करण के लेखों को देखने के लिए वूकीपीडिया की सिस्टर साइट धरती पीडिया (जो असल में स्टार वार्स की ह्यूमर विकी थी) पर जाने का निर्देश दिया था। २००९ में वूकीपीडिया ने घोषणा की कि वे अब कैनन के रूप में विस्तारित यूनिवर्स मैटिरियल को स्वीकार नहीं करेंगे और यह कि साइट केवल स्टार वार्स की फिल्मों की सूचनाओं को ही स्वीकार करेगी, जिसके जरिये उन्होंने लम्बे समय से कायम इस नीति को नकार दिया था कि विस्तारित यूनिवर्स मैटिरियल को फिल्म की सामग्री के सामान समझा जाएगा.
माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च द्वारा पाई के पुनर्मूल्यांकन का दावा : २००८ में माइक्रोसॉफ्ट इंस्टिट्यूट फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी इन गवर्नमेंट्स के एक एग्जिक्यूटिव ने अपने निजी ब्लॉग में १९९८ के अप्रैल फूल्स हॉक्स का एक स्पूफ अपडेट किया जिसमें यह दावा किया गया था की अलाबाना के स्टेट लेजिस्लेचर ने पाई के मान को गोलमोल कर इसे "३ में बाइब्लीकल मान" के रूप में तब्दील कर दिया था। २००८ के एक मजाक में यह दावा किया गया कि माइक्रोसॉफ्ट ने पाई का एक सही नियत मान ३.१४१९९९ होना निर्धारित किया है या जिसे कंपनी की भाषा में "१.047३३३ की तीन आसान किश्तें" कहते हैं .
२००८ में ऑस्ट्रेलियाई वीडियो गेमिंग वेबसाइट कंपनी माईमीडिया ने माईमीडिया: द मूवी पर एक सूचना और प्रीव्यू जारी किया, इस संभावित आगामी मूवी का एनीमेशन और निर्माण ऑस्ट्रेलियन फिल्म कमीशन द्वारा किया जाना था, जिसकी कुछ ही दिनों के बाद एक धोखे के रूप में पुष्टि की गयी। माना जाता है कि यह फिल्म एक कॉमिक सीरीज पर आधारित थी जिसे साइट के सम्पादकीय स्टाफों में से एक, मैट केली द्वारा तैयार किया गया था। तब से यह एक लगातार चलने वाला वेबसाइट परिहास बन गया है जिसमें एक कपोल कल्पित फिल्म को अनेक अतिरिक्त ट्रेलरों के जरिये जमकर प्रचारित किया जाता है।
१ अप्रैल २००८ को ब्लिजार्ड ने अपनी वेबसाइट पर वर्ल्ड ऑफ वारक्राफ्ट के लिए एक नए हीरो क्लास का चित्रण करते हुए तस्वीरें और लेख रिलीज़ की, जिसे रैथ ऑफ द लिंच किंग के विस्तारित पैक में डेथ नाईट के साथ शामिल किया जाना था। उन्होंने स्टार क्राफ्ट ई वेबसाइट पर टेरांस के लिए नए "टौरेन मरीन" पर एक लेख भी जारी किया।
स्कोरिनसेशनस.कॉम ने यह घोषणा की थी कि आगामी इंडियाना जोक्स एंड द किंगडम ऑफ द क्रिस्टल स्कल पर कम्पोजर जॉन विलियम्स की जगह डैनी एल्फमैन लेंगे - और उन्होंने स्कोरिंग सत्रों की तस्वीरें भी उपलब्ध कराईं.
२००८ में युतुबे के फ्रंट पेज पर दिखाए गए सभी वीडियो रिकरॉल के साथ हाइपर लिंक कर दिए गए। इस शरारत की शुरुआत मुख्य साइट पर आने से पहले युतुबे के अंतरराष्ट्रीय पोर्टल्स पर इस्तेमाल की गयी।
२००९ में वीडियो, लिंक्स और ज्यादातर टेक्स्ट (यूनिकोडस प्रतिस्थापन के जरिये) को उलटा कर दिया गया ओर साइट के नए लेआउट को देखने में उपयोगकर्ताओं की मदद के लिए एक लिंक भी डाल दिया जिसके साथ-साथ कुछ हिंट्स जैसे कि मॉनीटर को उल्टी दिशा में लटकाना या ऑस्ट्रेलिया में जाना शामिल थे।
२०१० में वीडियो की क्वालिटी सेटिंग में "टेक्स्टप" के नाम से एक नया विकल्प तैयार किया गया। इस विकल्प पर क्लिक करने से वीडियो के नीचे एक संदेश आता था जिसे इस प्रकार पढ़ा जा सकता था "टेक्स्ट ओनली मोड़ का उपयोग कर आप बैंड विथ की लागत में प्रति सेकण्ड युतुबे १ डॉलर की बचत करते हैं। नियमित युतुबे पर जाने के लिए यहाँ क्लिक करें और आपको अप्रैल फूल्स डे की शुभकामनाएं!"
देव्घंटर्ट देव्घंटर्ट का सर्वाधिक कुख्यात अप्रैल फूल्स जोक २००८ में आया था, जब सभी सदस्यों के आइकन "सो आई हर्ड यू लाइक मडकिप्ज" के रूप में बदल दिए गए थे। २०१० में प्रत्येक सदस्य का अवतार एक सेट के किसी भी आइकन से बदल दिया गया था जिसमें टीम जैकब, टीम एडवार्ड, लीजेंड ऑफ द सीकर और लेडी गागा के सेट शामिल थे साथ ही आइकन का मिलान करने वाले सिग्नेचर भी दिए गए थे।
राष्ट्रपति बराक ओबामा का नैस्कार (नास्कार)' के लिए फंडिंग से अपने हाथ खींच लेना - १ अप्रैल २००९ को ऑटो इंडस्ट्री बेलआउट की स्थिति में कार एंड ड्राइवर ने अपनी वेबसाइट पर यह दावा किया कि राष्ट्रपति बराक ओबामा ने शेवरले और डॉज को नैस्कार (नास्कार) के लिए फंडिंग बंद कर देने का आदेश दिया था। जब नैस्कार (नास्कार) के परेशान प्रशंसकों ने कार एंड ड्राइव की वेबसाइट पर प्रतिरोध किया तब पाठकों से खेद प्रकट करते हुए इस आलेख को वेबसाइट से हटा लिया गया।
१ अप्रैल २००९ को तिंकग्रीक.कॉम ने टाउनटाउन स्लीपिंग बैग (द एम्पायर स्ट्राइक्स बैक के एक प्रसिद्ध दृश्य के आधार पर) को "पेश" किया। इस मजाकिया सामग्री की जबरदस्त लोकप्रियता की वजह से तिंकग्रीक अब इस सामग्री को मार्केट में लाने की कोशिश कर रही है।हप://ब्लॉग.वीर्ड.कॉम/गडगेट्स/२००९/०४/टाउनटाऊँ-स्लीपी.हत्मल
एक्सपीडिया ने १ अप्रैल २००९ को मंगल की उड़ान का एक प्रस्ताव देते हुए एक मजाक चलाया। इसे आतंरिक तौर पर प्रोजेक्ट डाउन स्टार के नाम से जाना गया।
१ अप्रैल २००९ को ऐसा लगा था कि गोनुल्योर्सल्फ.ऑर्ग पर कॉनफिकर का "संक्रमण" हो गया है।
१ अप्रैल 20१0 को टेकक्रंच ने अप्रैल फूल्स डे के कुछ सर्वश्रेष्ठ ऑन लाइन प्रैंक्स शामिल किये।
१ अप्रैल 20१0 को फार्क के प्रत्येक टैब पर प्रत्येक हेडलाइन का पहला लेटर एक एक्रौस्टिक जैसे कि "ऑल हेल हिप्नोटोड" के रूप में तैयार किया गया था। मुख्य पृष्ठ पर एक छुपा हुआ सन्देश यह था "देयर इज नो ड्रयू ओनली जूल, हैप्पी अप्रैल फूल्स डे फ्रॉम फार्क."
१ अप्रैल 20१0 को एक आधिकारिक ब्लौग घोस्टवाच: बिहाइंड द कर्टेल्स ने रिपोर्ट दिया कि लेखक स्टीफन वोल्क द सिम्प्संस फॉर हैलोवेन के एक आगामी एपिसोड के लिए योगदान करने जा रहे हैं और यह कि वे स्वयं एक कैमियो की भूमिका में काल्पनिक पात्र पाइप्स के साथ दिखाई देंगे। साईट पर एक छिपा हुआ सन्देश यह था, "...अप्रैल फूल्स', घोस्ट वाचर्स!"
अप्रैल फ़ूल्स डे रैक
थिंकग्रीक हर साल एक न्यूजलेटर भेजती है जिसमें ज्यादातर झूठे प्रोडक्ट्स शामिल होते हैं। इनमें से कई प्रोडक्ट जैसे कि ८-बिट टाई, को ग्राहक की मांग की वजह से आखिरकार तैयार करना पडॉ॰
नियोपेट्स: लोकप्रिय साइट नियोपेट्स हर साल में नियमित रूप से मजाकिया किस्से चलाती है। ये साइट की डिजाइन में बद्लाव से लेकर मुफ़्त पुरस्कारों की घोषणा के रूप में कुछ भी हो सकती हैं। असल में, जब नियोपेट्स के लिये नयी डिजाइन जारी की गयी थी, कई लोगों ने शिकायत की थी और यह बताने की मांग की थी कि क्या यह एक बाद का अप्रैल फ़ूल का जोक था। यह नहीं था।
अप्रैल फ़ूल दिवस पर असली समाचार
अप्रैल फ़ूल के मजाकों का सिलसिला कभी-कभी लोगों को १ अप्रैल को जारी की गयी असल समाचाअर की स्टोरीज पर शक करने को बाध्य कर देता है।
१ अप्रैल १946 को एलुइतन द्वीप पर आये भूकंप और सुनामी ने हवाई और अलाकासा में १65 लोगों की जान ले ली थी जिसके कारण एक सुनामी वार्निंग सिस्टम तैयार किया गया (वैग्यानिक तौर पर पैसिफ़िक सुनामी वार्निंग सेंटर) तैयार किया गया, जिसे पैसिफ़िक ओसियन के देशों के लिये १949 में स्थापित किया गया था। इस सुनामी को हवाई में अप्रैल फ़ूल डे सुनामी के रूप में जाना गया क्योंकि लोग इस अनुमान से जान देने लगे थे कि चेतावनी एक अप्रैल फ़ूल का मज़ाक भर थी।
ग्रीस के किंग जौर्ज ई की मौत १ अप्रैल १947 को हुई थी।
एएमसी ग्रेम्लिन को पहली बार १ अप्रैल १970 को पेश किया गया था।
१९७९ में ईरान ने १ अप्रैल को अपने राष्ट्रीय गणतंत्र दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषणा की थी। चालीस सालों के बाद भी इसे एक मजाक ही समझा जाता है।
१ अप्रैल १984 को गायक मार्विन गाए को उनके पिता ने गोली मार दी थी। वास्तव में लोगों ने विशेष तौर पर एक पिता के हत्यारा होने के पहलू के कारण, इसे एक झूठी न्यूज स्टोरी समझ लिया।
१ अप्रैल १993 को नैस्कार (नास्कार) विंस्टन कप सिरीज के चैम्पियन एलान कुल्विक्सी एक हवाई दुर्घतना में मारे गये थे जिसमें ट्राई-सिटीज एयर पोर्ट के पास ब्लौंटविले, टेनेसी में हूटर्स औफ़ अमेरिका के एग्जिक्यूटिव शामिल थे। यह पार्टी अगले दिन होने जा रहे फ़ूड सिटी ५०० क्वालिफ़ाइंग के लिये जा रही थी।
१ अप्रैल १998 को डेथरॉक लीजेंड रोज़ विलियम्स ने आत्मह्त्या कर अपनी जान दे दी थी।
१ अप्रैल १999 को द कैनेडियन नॉर्थवेस्ट टेरिटरीज को बाँट दिया गया था और अब यह टेरिटरी नुनावुट कम टु बी के नाम से जानी जाती है।
स्क्वायर और इसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनी एनिक्स का विलय १ अप्रैल २००३ को किया गया था और इसे मूलतः एक जोक समझा गया।
हांगकांग के एक मशहूर गायक और अभिनेता लेस्ली चियांग ने भारी डिप्रेशन के कारण २००३ में आत्महत्या कर ली थी।
जीमेल (ग्मेल) के १ अप्रैल को लांच होने को एक मज़ाक समझा गया था, क्योंकि गूगल पारंपरिक तौर पर हर १ अप्रैल को अप्रैल फूल्स डे के होक्स जारी करती है और घोषित किया गया १ जीबी का ऑनलाइन स्टोरेज उस समय मौजूदा ऑनलाइन ईमेल सेवा के लिए बहुत ही ज्यादा था (गूगल के हॉक्सेस देखें)। गूगल से सम्बंधित दूसरी घटना जिसे एक हॉक्स नहीं समझा गया १ अप्रैल २००७ को हुई जब गूगल के न्युयॉर्क सिटी ऑफिस के कर्मचारियों को एलर्ट किया गया था कि एक इंजिनियर के क्युबिकिल में रखा गया एक बॉल पाइथन भाग गया है और खो गया है। एक अंदरूनी ई मेल में बताया गया कि "टाइमिंग .. इससे अधिक परेशान करने वाला नहीं हो सकता था" लेकिन सांप का भागना वास्तव में एक असली घटना थी ना कि एक मजाक.
२००५ में हास्य कलाकार मिच हेडबर्ग की मौत को वास्तव में एक अप्रैल फूल जोक के रूप में खारिज कर दिया गया था। हास्य कलाकार की २९ मार्च २००५ को हुई मौत की घोषणा ३१ मार्च को की गयी थी लेकिन कई अखबारों ने इस स्टोरी को १ अप्रैल २००५ तक शामिल नहीं किया था।
१ अप्रैल २००७ को पहली डायरी ऑफ ए विम्पी किड बुक प्रकाशित की गयी थी।
ब्रिटिश स्प्रिंटर ड्वेन चैम्बर्स १ अप्रैल २००८ से कुछ ही समय पहले अंग्रेजी रग्बी लीग टीम कासलफोर्ड टाइगर्स में शामिल हुए थे। यह एथलीट नशीली दवाओं के एक हाई प्रोफाइल प्रतिबंध और रग्बी में जाहिरा तौर पर अपनी अलोकप्रियता के बाद उस समय टॉप फ्लाईट एथलेटिक्स में वापसी करने जा रहा था, जिसे कई लोगों ने अप्रैल फूल्स डे का एक मज़ाक समझा.
१ अप्रैल २००८ को यह रिपोर्ट दी गयी की यूईएफ़ए (उएफा) को अपने आधिकारिक प्रायोजक मैकडोनाल्ड्स के साथ एक विवाद की वजह से यूरोपीय अंडर-2१ फुटबॉल चैम्पियनशिप के दौरान बोरास एरेना में अपने रेस्टोरेंट को बंद करने के लिए एक स्वीडिश फास्ट फ़ूड चेन मैक्स की जरूरत है और यह आवश्यक है कि इस एरेना में केवल आधिकारिक प्रायोजक ही संचालन कर सकता है। इस एरेना को बाद में एक टूर्नामेंट साईट में तब्दील कर दिया गया था।
१ अप्रैल २००८ को पर्श ने यह घोषणा की कि जीनोम (ग्नोमे) डेस्कटॉप वेब ब्राउजर एपीफैनी मोजिला के जेको इंजिन से बदल कर अब सफारी और केडीई (कड़े) के समतुल्य एप्लीकेशन कंकरर वेबकिट इंजिन को अपना लेगा।
१ अप्रैल २००९ को एलान शीयरर... के केयर टेकर मैनेजर बन गए थे।
१ अप्रैल २००९ को सीबीएस (क्ब्स) ने अपने दिन के समय दिखाए जाने वाले नाटक गाइडिंग लाईट को ७२ सालों के बाद १8सितम्बर, २००९ को प्रसारित होने वाले इसके अंतिम एपिसोड के साथ रद्द करने की घोषणा की।
१ अप्रैल २००९ को कॉनफिकर नामक एक वायरस / वर्म लाखों कम्प्यूटरों में घुस गया और निजी जानकारियों को खंगालना और फाइलों को मिटाना शुरू कर दिया। इसको एक मजाक समझा गया था लेकिन समूचे अमेरिका में अनगिनत कम्प्यूटरों पर इसका प्रभाव हुआ। इस घटना के पहले एनबीसी, फॉक्स न्यूज, एबीसी और सीबीएस जैसी न्यूज मीडिया ने अपने दर्शकों को इसका आक्रमण होने से पहली फायरवॉल इंस्टाल करने और अपने विंडोज कम्प्यूटरों को अपडेट करने के लिए कहा.
१ अप्रैल 20१0 को सोनी कम्प्यूटर इंटरटेनमेंट ने सोनी प्ले स्टेशन ३ के लिये फ़िल्मवेयर ३.2१ रिलीज़ किया था। इस फ़िल्म वेयर ने सभी प्लेस्टेशन ३ मॉडलों के अदर ओएस को डिसेबल कर दिया था। अदर ओएस फ़ीचर ने ग्राहकों को प्लेस्टेशन ३ को पूरी तरह एक कम्प्यूटर रनिंग लिनक्स के रूप में इस्तेमाल करने की सुविधा दी थी। इस फ़िल्मवेयर अपग्रेड की टाइमिंग १ अप्रैल को होने के कारण कई लोगों ने समझा कि यह एक मज़ाक था।
१ अप्रैल 20१0 को चार्ली शीन ने घोषणा की कि वे टू एंड ए हाफ़ मैन को छोड़ने पर विचार कर रहे हैं।
दुनिया भर के अन्य मज़ाकिया दिन
ईरानी लोग फ़ारसी नये साल (नोरौज) के तेरहवें दिन एक दूसरे पर जोक्स का प्रयोग करते हैं जो १ अप्रैल या २ अप्रैल को पड़ता है। यह दिन जिसे ५३६ ईसा पूर्व में सिज़्दा बेदर के रूप में मनाया जाता था और यह दुनिया में अभी तक कायम सबसे प्राचीन मजाकिया-परंपरा है; इस तथ्य ने कई लोगों को यह मानने पर बाध्य किया कि अप्रैल फ़ूल दिवस का मूल इस परंपरा में निहित है।
फ़्रांस और फ़्रांसीसी-भाषी कनाडा में १ अप्रैल की परम्परा में प्वाइजन डी एव्रिल (शाब्दिक तौर पर अप्रैल की मछ्ली) शामिल है जिसमें एक पेपर मछ्ली को शिकार की पीठ पर चुपके से चिपका दिया जाता है। यह परंपरा अन्य देशों में भी फ़ैली हुई है, जैसे कि इटली (जहाँ शब्द पेसे दी एप्राइल (शाब्दिक तौर पर अप्रैल की मछ्ली) को इस दिन के दरम्यान इस्तेमाल किये गये किसी भी जोक से संदर्भित किया जाता है)। स्पेनिश भाषी देशों में २८ दिसम्बर को डा दे लॉस संटोज़ इनोसेन्ट्स, डे ऑफ द होली इनोसेंट्स के रूप में इसी तरह के मज़ाक किये जाते हैं। यह रिवाज बेल्जियम के कुछ खास क्षेत्रों में देखा जाता है, जिसमें प्रोविंस ऑफ एन्टरैप शमिल है। फ़्लेमिश परंपरा उन बच्चों के लिये है जो अपने माता पिता या शिक्षकों को बंद कर देते हैं और उस दिन या अगले दिन उन्हें एक ट्रीट देने का वादा करने पर ही छोड़ते हैं।
कोरिया की मोनार्क ऑफ जोसियन डाईनास्टी, रॉयल फैमिली और देशों को साल के पहले स्नोवी डे के अवसर पर एक दूसरे से झूठ बोलने और एक दूसरे को बेवकूफ बनाने की छूट दी गयी है, भले ही वे किसी भी समुदाय से हों. वे बॉल के अन्दर बर्फ के टुकड़ों को डालते हैं और इसे मजाक के शिकार के पास झूठा खेद प्रकट करते हुए भेज देते हैं। जिसे यह बर्फ का टुकड़ा प्राप्त होता था उसे गेम का लूजर समझा जाता था और उसे भेजने वाले की इच्छा पूरी करनी होती थी। क्योंकि इन प्रैंक्स को जान बूझ कर तैयार नहीं किया जाता था, ये नुकसान दायक नहीं होते थे और अक्सर ऐसा चैरिटी के लिए या विश्वासपात्र नौकरों की भलाई के लिए किया जाता था।
पोलैंड में प्राइमा अप्रैलिस (लैटिन में "१ अप्रैल") एक जोक्स से भरा दिन होता है; लोग, मीडिया (जो कभी-कभी जानकारियों को अधिक विश्वसनीय बनाने में सहयोग करते हैं) और यहाँ तक कि सार्वजनिक संस्थानों द्वारा हॉक्स तैयार किये जाते हैं। आमतौर पर गंभीर गतिविधियों से परहेज किया जाता है। यह प्रयास इतना तीव्र होता है कि १ अप्रैल १683 को लियोपोल्ड ई के साथ साइन किये गए तुर्क विरोधी गठबंधन को एक दिन पहले 3१ मार्च को तय कर दिया गया था।
स्कॉटलैंड में अप्रैल फूल्स डे को पारंपरिक तौर पर हंट द गौक डे (स्कॉट वालों के "गौक" का मतलब एक कोयल या एक मूर्ख व्यक्ति है) कहा जाता है, हालांकि यह नाम अब इस्तेमाल नहीं होता है। पारंपरिक मजाक में किसी से मदद के लिए एक सीलबंद अनुरोध को प्रदान करना शामिल होता है। वास्तव में सन्देश में लिखा होता है "दिना लाफ, दिना स्माइल. हंट द गोक ऐनादर माइल". इसे प्राप्त करने वाला इसे पढ़ने के बाद यह बताएगा कि वह केवल तभी कोई मदद कर सकता है जब वह पहले दूसरे व्यक्ति से संपर्क करेगा और उस नए शिकार व्यक्ति को उसी तरह का सन्देश, उसी तरह के परिणाम के साथ भेजेगा.
डेनमार्क में १ मई को "माज-काट" के रूप में जाना जाता है जिसका मतलब "मे-कैट" होता है और ऐतिहासिक रूप से अप्रैल फूल्स डे के समान होता है। हालांकि, डेनमार्क वासी अप्रैल फूल्स डे ("अप्रिल्स्नार") भी मनाते हैं और १ मई को इस तरह के मजाक कम हो जाते हैं।
स्पेन और आइबेरो अमेरिका में इसी तरह की एक तारीख २८ दिसम्बर क्रिस्चियन डे है जिसे मैसेकर ऑफ इनोसेंट्स के जश्न के रूप में मनाया जाता है। क्रिस्चियन सेलेब्रेशन स्वयं एक छुट्टी का दिन है, एक धार्मिक दिन, लेकिन प्रैंक्स की परम्परा नहीं है, हालांकि इस तरह का चलन पहले देखा गया था। इबेरो-अमेरिका के कुछ क्षेत्रों में जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के साथ मजाक करता है, आम तौर पर मजाक करने वाला रोने लगता है: "इनोसेंटी पलोमीटा क्यू ते देजस्ते इंगार" (तुम कितने सीधे-सादे कबूतर हो जिसे मैंने मूर्ख बना दिया). स्पेन में आम तौर पर यही कहना काफी है (इनोसेंट !). "इनोसेंट ". इसके बावजूद मेनोरका के स्पेनिश द्वीप में "दिया ड'इंगार"'' ('फूलिंग डे') १ अप्रैल को मनाया जाता है क्योंकि मेनोरका १8 वीं शताब्दी के दौरान ब्रिटिश के स्वामित्व में था।
इन्हें भी देखें
अप्रैल फूल एक जासूस एवं डबल एजेंट का कोडनेम है जिसने कथित तौर पर इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के पतन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
फॉसिल फूल्स डे
एडिबल बुक डे
'पिगासस अवार्ड', १ अप्रैल को दिया जाने वाला एक मजाकिया पुरस्कार जिसे "पैरानौर्मल फ्रॉड" के लिए प्रदान किया जाता है।
सिज़दा बेदर, फारसी नव वर्ष के उपलक्ष्य में वसंत के मौसम में दो हफ्तों तक चलने वाले समारोह के अंतिम दिन अप्रैल फूल्स डे की ही तरह खूब मजाक किये जाते हैं।
अप्रैल फूल्स डे ऑन दी वेब: दी मोस्ट कंप्लीट लिस्टिंग ऑफ अप्रैल फूल्स डे जोक्स दैट वेब साइट्स हेव रन इच इअर फ्रॉम २००४ ऑल दी वे अंटिल दी प्रजेंट
म्यूज़ियम ऑफ होक्सेस: टॉप १०० अप्रैल फूल्स डे होक्सेस ऑफ ऑल टाइम
टॉप १०० अप्रैल फूल्स प्रेंक्स एंड गैजेट्स
अप्रैल फूल का दिन
अप्रैल के त्यौहार |
हरीशचन्द्र सिंह,भारत के उत्तर प्रदेश की चौथी विधानसभा सभा में विधायक रहे। १९६७ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के ४६ - दातागंज विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय की ओर से चुनाव में भाग लिया।
उत्तर प्रदेश की चौथी विधान सभा के सदस्य
४६ - दातागंज के विधायक
बदायूं के विधायक
निर्दलीय के विधायक |
गुढ़ा राजस्थान के नागौर जिले में परबतसर पंचायत समिति का एक गांव है।
यह ग्राम पंचायत मुख्यालय भी है।
नागौर ज़िले के गाँव |
संता आना का गिरजाघर (स्पेनी भाषा में: इग्लेसिया दे सांता आना) एक गिरजाघर है जो बारसेलोना, स्पेन में स्थित है। १८८१ ई. में इसे बिएन दे इंतेरेस कल्चरल की सूची में शामिल किया गया था।
स्पेन के गिरजाघर
स्पेन के स्मारक |
कॉकपिट या फ्लाइट डेक आम तौर पर वायुयान के अगले भाग के निकट वह क्षेत्र होता है, जिससे पायलट वायुयान पर नियंत्रण रखता है। सिवाय कुछ छोटे वायुयान के, अधिकांश आधुनिक कॉकपिट बंद होते हैं और बड़े वायुयानों के कॉकपिट भी भौतिक रूप से केबिन से अलग होते हैं। कॉकपिट से वायुयान को जमीन पर और हवा में नियंत्रित किया जाता है।
१९१४ में पहली बार वायुयान में पायलट के कक्ष के लिए कॉकपिट शब्द का प्रयोग हुआ। लगभग १९३५ से अनौपचारिक रूप से कॉकपिट का प्रयोग कार के चालक के बैठने की जगह, विशेष रूप से एक उच्च प्रदर्शन वाले में, के सन्दर्भ में भी किया जाने लगा और फॉर्म्यूला वन में यह आधिकारिक शब्दावली है। संभवत: यह शब्द अधिकांशतः एक रॉयल नेवी जहाज में कॉक्सवेन के स्टेशन के लिए नौकायन शब्द से एवं बाद में जहाज के पतवार नियंत्रण की स्थिति से संबंधित है।
वायुयान के कॉकपिट के उपकरण पैनल में उड़ान संबंधी उपकरण और नियंत्रण शामिल होते हैं जो पायलट को वायुयान उड़ाने में सक्षम बनाता है। अधिकांश वायुयानों में एक दरवाजा कॉकपिट को यात्री कक्ष से अलग करता है। ११ सितम्बर २००१ के आतंकवादी हमलों के बाद सभी प्रमुख हवाई कंपनियों ने कॉकपिट को अपहरणकर्ताओं के प्रवेश के विरुद्ध सुदृढ़ किया।
आम तौर पर एक बड़े वायुयान में कॉकपिट को फ्लाइट डेक के रूप में जाना जाता है। इस शब्द की उत्पत्ति आरएएफ के द्वारा अलग, ऊपरी प्लेटफार्म के लिए उपयोग किये जाने वाले शब्द से हुई है, जहां पायलट और सह-पायलट बड़ी तैरने वाली नौकाओं में बैठते थे।
अर्गनामिक्स (कर्मचारी परिस्थिति विज्ञान)
बंद केबिन के साथ सबसे पहला हवाई जहाज १९१३ में इगोर सिकॉर्सकी के वायुयान दॅ ग्रैन्ड के रूप में दिखाई दिया। हालांकि, १९२० के दशक के दौरान ऐसे कई यात्री विमान थे जिसमें विमान के कर्मीदल खुली हवा में रहते थे जबकि यात्री एक केबिन में बैठते थे। द्वितीय विश्व युद्ध में सैन्य द्विपंखी वायुयानों और प्रथम लड़ाकू एवं हमलावर विमानों में भी खुले कॉकपिट होते थे। बंद कॉकपिट वाले आरंभिक वायुयान १९२४ के फोकर ट्राई-मोटर, १९२६ के फोर्ड ट्राई-मोटर, १९२७ के लॉकहीड वेगा, द स्पिरिट ऑफ सेंट लुइस, सैन्य परिवहन विमान के रूप में प्रयोग किए जाने वाले १९३१ के टेलर क्लब, जर्मन जंकर्स, एवं १९३० के मध्य दशक के दौरान डगलस और बोइंग कंपनियों द्वारा निर्मित यात्री विमान थे। प्रशिक्षण विमानों एवं फसलों के ऊपर कीटनाशक छीटने वाले विमानों को छोड़कर, १९५० के मध्य दशक तक खुले कॉकपिट वाले वायुयान प्राय: विलुप्त हो चुके थे।
कॉकपिट खिड़कियां धूप रक्षक से सुसज्जित हो सकती हैं। अधिकांश कॉकपिटों में खिड़कियां होती हैं जिन्हें उस समय खोला जा सकता है जब वायुयान जमीन पर रहता है। बड़े विमानॉ में कांच की शीशे की लगभग सभी खिड़कियों में परावर्तन रोधी परत और बर्फ को पिघलाने के लिए एक आंतरिक तापन तत्व होता है। छोटा वायुयान एक पारदर्शी वायुयान छतरी से सुसज्जित हो सकता है।
अधिकांश कॉकपिटों में पायलट का नियंत्रण स्तंभ या नियंत्रक लीवर केंद्र में (मध्य लीवर) स्थित रहता है, यद्यपि कुछ सैन्य तीव्र गति वाले जेट वायुयानों एवं कुछ व्यावसायिक वायुयानों में पायलट पार्श्व-लीवर का उपयोग करता है (आम तौर पर यह बाहरी इंजन के हिस्से में और/या बायीं तरफ स्थित रहता है).
कॉकपिट की बनावट, विशेष रूप से तीव्र गति के सैन्य जेट वायुयान में वायुयान निर्माताओं के भीतर और विभिन्न निर्माताओं के बीच में तथा विभिन्न राष्ट्रों के बीच भी मानकीकरण हुआ है। एक सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम "मूल छह" पद्धति थी, बाद में १९३७ के समय से रॉयल एयर फोर्स के द्वारा "मूल टी" विकसित किया गया, जिसे पायलट उपकरण की स्कैनिंग का अनुकूलन करने के लिए तैयार किया गया था।
आधुनिक कॉकपिट के डिजाइन में कर्मचारी परिस्थिति विज्ञान और मानव कारक संबंधी चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। कॉकपिट की बनावट एवं कार्य यह प्रदर्शित करता है कि नियंत्रण प्रणालियों को सूचना का अतिभार उत्पन्न किए बिना पायलट के द्वारा स्थिति के प्रति जागरूकता में वृद्धि करने के लिए तैयार किया गया है। अतीत में, कई कॉकपिटों, विशेष रूप से लड़ाकू विमान में, पायलटों के आकार को सीमित किया जो उसमें फिट हो सकते थे। अब, कॉकपिटों को प्रथम प्रतिशतक महिला शारीरिक आकार एवं ९९वें प्रतिशतक पुरुष आकार को समायोजित करने के लिए तैयार किया जा रहा है।
तीव्र गति से चलने वाले एक सैन्य जेट वायुयान के डिजाइन में कॉकपिट से जुड़े हुए पारंपरिक "घुंडी एवं डायल" नहीं रहते हैं। अब इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले लगभग पूर्ण रूप से उपकरण पैनलों का स्थान ले लेते हैं जो स्थान बचाने के लिए अक्सर स्वयं पुन:-समनुरूप बनाने योग्य होते हैं। जबकि अब भी कुछ कठोर तार वाले समर्पित स्विचों का अखंडता और सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए, कई पारंपरिक नियंत्रण प्रणालियों का स्थान बहु-कार्य वाली पुन:-समनुरूप बनाने योग्य नियंत्रण प्रणालियां या तथाकथित "कोमल कुंजी (सॉफ्ट की)" ले लेती हैं। पायलट को सिर ऊपर एवं आंख बाहर रखने की स्थिति - तथाकथित हैंड्स ऑन थ्रॉटल ऐंड स्टिक या एचओटीएएस (होटस) अवधारणा में बनाए रखने में सक्षम करने के लिए नियंत्रण प्रणालियों को लीवर एवं उपरोधक में शामिल किया जाता है। इन नियंत्रण प्रणालियों में नए नियंत्रण मीडिया जैसे कि हेल्मेट माउंटेड साइटिंग सिस्टम या डायरेक्ट वॉयस इनपुट (डीवीआई) के द्वारा और अधिक वृद्धि की जा सकती है। श्रवण डिस्प्ले में नई प्रगति वायुयान की स्थिति के संबंध में जानकारी एवं विमान प्रणालियों की बेहतर निगरानी के लिए चेतावनी वाली ध्वनियों के आकाशीय स्थानीकरण हेतु डायरेक्ट वॉयस आउटपुट की भी अनुमति प्रदान करता है। कॉकपिट की बनावट (डिजाइन) में एक केन्द्रीय अवधारणा "डिजाइन आई पोजिशन या "डीईपी" है।
आधुनिक विमानों में नियंत्रण पैनल का नक्शा समूचे उद्योग में व्यापक रूप से एकीकृत हो गया है। उदाहरण के लिए बहुसंख्यक प्रणालीगत नियंत्रण (जैसे कि विद्युत, ईंधन, जलदाब विज्ञान और दाबानुकूलन) आमतौर पर एक ऊपरी पैनल की छत पर स्थित होते हैं। आम तौर पर रेडियो पायलट की सीटों के बीच एक पैनल पर स्थित होते हैं जिसे धानी (पेडेस्टल) कहा जाता है। स्वचालित उड़ान नियंत्रण प्रणालियों जैसे कि स्वचालन यन्त्र को आमतौर पर वायुरोधी शीशे के नीचे एवं मुख्य उपकरण पैनल के ऊपर ग्लेयरशील्ड पर स्थापित किया जाता है।
उड़ान संबंधी उपकरण
आम तौर पर आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक कॉकपिट में आवश्यक समझे जाने वाले उड़ान संबंधी उपकरण हैं- एमसीपी (मैप), पीएफडी (पड़), एनडी (न्द), ईआईसीएएस (एइकास), एफएमएस/सीडीयू (फ्म्स/क्डू) एवं एफएमएस/क्डू तथा पूर्तिकर (बैक-अप उपकरण).
एक विधा नियंत्रण पैनल, जो आम तौर पर पायलट के सामने एक लंबे संकीर्ण पैनल के केन्द्र में स्थित होता है, का उपयोग हेडिंग (एचडीजी), गति (एसपीडी) ऊंचाई (एएलटी), ऊर्ध्वाधर गति (वी/एस), ऊर्ध्वाधर विमानचालन (वीएनएवी) और पार्श्व विमानचालन (एलएनएवी) को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है। इसका उपयोग स्वचालन यन्त्र एवं स्वत:उपरोधक दोनों को संलग्न करने या अलग करने के लिए भी किया जा सकता है। एक क्षेत्र के पैनल को आमतौर पर "ग्लेयरशील्ड पैनल" के रूप में जाना जाता है। एमसीपी (मैप) इकाई के लिए एक बोइंग नाम (जिसे अनौपचारिक रूप से इकाई/पैनल के लिए एक सामान्य नाम के रूप में अपनाया गया है) है, जो विभिन्न ऑटोफ्लाइट कार्यों के चयन एवं मापदण्ड निर्धारण की अनुमति प्रदान करता है। एयरबस वायुयान की समान इकाई को एफसीयू (उड़ान नियंत्रण इकाई) के रूप में जाना जाता है।
प्राथमिक उड़ान डिस्प्ले आम तौर पर एक प्रमुख स्थान पर स्थित होगा, या तो केन्द्र में या एमएम में या कॉकपिट के किसी एक तरफ. अधिकांश स्थितियों में यह ऊंचाई सूचक, वायु की गति एवं उन्नतांश सूचकों (आम तौर पर एक टेप डिस्प्ले के रूप में) और ऊर्ध्वाधर गति सूचक की एक अंकीकृत प्रस्तुति को शामिल करता है। कई स्थितियों में यह हेडिंग सूचक के कूछ रूप एवं आईएलएस/वीओआर (इल्स/वोर) विचलन सूचकों को शामिल करेगा। कई मामलों में संलग्न एवं सशस्त्र स्वत:आक्रमण प्रणाली विधाओं का एक सूचक उन्नतांश (ऊंचाई), गति, ऊर्ध्वाधर गति और हेडिंग के लिए चुने हुए मानों के संकेत के कुछ रूप के साथ उपस्थित रहेगा. पायलट ही एनडी के साथ अदला-बदली करने का निर्णय ले सकता है।
विमानचालन डिस्प्ले, जो पीएफडी के समीप हो सकता है, वर्तमान मार्ग एवं अगले सन्दर्भ बिन्दु, वायु की वर्तमान गति एवं वायु की दिशा के संबंध में जानकारी दर्शाता है। यह पीएफडी से अदला-बदली करने के लिए पायलट द्वारा चयन योग्य हो सकता है।
इंजन के संकेत और विमानकर्मी को चेतावनी देने वाली प्रणाली (बोइंग के लिए इस्तेमाल की जानेवाली) या इलेक्ट्रॉनिक केन्द्रीकृत विमान मॉनिटर (एयरबस के लिए) पायलट को निम्नलिखित जानकारी की निगरानी करने की अनुमति प्रदान करेगी : न१, न२ और न३ के लिए ईंधन का तापमान, ईंधन प्रवाह, विद्युत प्रणाली, कॉकपिट या केबिन का तापमान एवं दाब, नियंत्रण सतह और ऐसी ही अन्य बातें. पायलट बटन दबा कर सूचना का प्रदर्शन करना चाह सकता है।
पायलट द्वारा उड़ान प्रबंधन प्रणाली/नियंत्रण इकाई का प्रयोग निम्नांकित सूचना दर्ज करने एवं उसकी जांच करने के लिए किया जा सकता है: उड़ान योजना, गति नियंत्रण, विमान चालन नियंत्रण और ऐसी ही अन्य बातें.
पूर्तिकर (बैक-अप) उपकरण
कॉकपिट के एक कम प्रमुख हिस्से में, अन्य उपकरणों की विफलता की स्थिति में, पूर्तिकर (बैक-अप) उपकरणों का एक सेट होगा, जो उड़ान संबंधी बुनियादी जानकारी जैसे कि गति, ऊंचाई, हेडिंग और विमान की ऊंचाई को दर्शाएगा.
वांतरिक्ष उद्योग प्रौद्योगिकियां
संयुक्त राज्य अमेरिका में संघीय उड्डयन प्रशासन (एफएए)() (फा) और राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (एनएएसए) ((नासा)) ने कॉकपिट की बनावट के कर्मचारी परिस्थिति विज्ञान संबंधी पहलुओं पर शोध किये हैं एवं उन्होंने विमान उद्योग की दुर्घटनाओं की छानबीन की है। कॉकपिट डिजाइन अनुशासनों में संज्ञानात्मक विज्ञान, तंत्रिका विज्ञान, मानव एवं कम्प्यूटर की पारस्परिक क्रिया, मानव कारक संबंधी इंजीनियरिंग, मानव शरीर मापन का अध्ययन एवं कर्मचारी परिस्थिति विज्ञान शामिल हैं।
वायुयान डिजाइनों ने पूरी तरह से डिजिटल "कांच की कॉकपिट" को अपनाया है। ऐसे डिजाइनों में, विमान चालन संबंधी नक्शे सहित उपकरण एवं गेज, एआरआईएनसी ६६१ (अरिनक ६६१) नामक एक यूजर इंटरफेस मार्कप लैंग्वेज का प्रयोग करते हैं। यह मानक एक स्वतंत्र कॉकपिट प्रदर्शन प्रणाली के बीच इंटरफेस को परिभाषित करता है, जो आम तौर पर एक ही निर्माता द्वारा निर्मित होता है और वैमानिकी उपकरण और उपयोगकर्ता के अनुप्रयोग जिसकी इसके द्वारा प्रदर्शन (डिस्प्ले) एवं नियंत्रण प्रणालियों के माध्यम से समर्थन किये जाने की आवश्यकता होती है, अक्सर विभिन्न निर्माताओं द्वारा निर्मित होते हैं। समग्र प्रदर्शन प्रणाली और इसे संचालित करने वाले अनुप्रयोग के बीच अलगाव, अत्यधिक विशेषज्ञता और स्वतंत्रता की अनुमति प्रदान करता है।
इन्हें भी देखें
कांच का कॉकपिट
उड़ान संबंधी उपकरण
"द एयरक्राफ्ट कॉकपिट - फ्रॉम स्टिक-एंड-स्ट्रिंग टू फ्लाई-बाई-वायर, एल.ऍफ़.ई. कूम्ब्स द्वारा, १९९०, पैट्रिक स्टीफेंस लिमिटेड, वेलिंगबोरोह."
"फाइटिंग कॉकपिट: १९१४ - २०००, बाइ एल.ऍफ़.इ. कूम्ब्स, १९९९, एयरलाइफ पब्लिशिंग लिमिटेड, श्रीयुबरी."
"कंट्रोल इन द स्काई: द इवोल्युशन एंड हिस्ट्री ऑफ़ द एयरक्राफ्ट कॉकपिट, बाइ एल.ऍफ़.ई. कूम्ब्स, २००५, पेन एंड स्वोर्ड बूक्स लिमिटेड, बार्न्सले."
एफ-५ (फ-3५) कॉकपिट ने सुरक्षा, आराम में नए मानक स्थापित किये
ए३८० (आ३८०) कॉकपिट
इंडियन एयर फ़ोर्स में वायुयान के कॉकपिट तस्वीरें
श्रेष्ठ लेख योग्य लेख |
करुप्पूर (करुप्पुर) भारत के तमिल नाडु राज्य के सेलम ज़िले में स्थित एक नगर है।
इन्हें भी देखें
तमिल नाडु के शहर
सेलम ज़िले के नगर |
क्रिएटिव कॉमन्स (क्रिएटिव कॉमनस (क्क)) एक लाभनिरपेक्ष संस्था (नॉन-प्रोफिट) है जो ऐसे सर्जनात्मक कार्यों को बढ़ावा देने का कार्य करती है जिनका उपयोग करते हुए दूसरे लोग नियमपूर्वक उसे आगे बढ़ा सकें। इसका मुख्यालय कैलिफोर्निया के माउण्टेन व्यू में स्थित है। इस संस्था ने जनता के निःशुल्क उपयोग के लिए 'क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेन्स' नामक बहुत से कापीराइट लाइसेंस जारी किए हैं।
क्रिएटिव कॉमन्स का आधिकारिक जालस्थल
क्रिएटिव कॉमन्स विकि (अंग्रेजी, रूसी, जर्मन आदि कई भाषाओं में)
लाभ निरपेक्ष संगठन |
आर्देय किरौली, आगरा, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
आगरा जिले के गाँव |
मुजतबा यूसुफ एक भारतीय क्रिकेटर हैं। उन्होंने २१ फरवरी २०१९ को सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी २०१८-१९ में जम्मू-कश्मीर के लिए अपना ट्वेंटी २० डेब्यू किया। उन्होंने अपनी लिस्ट ए की शुरुआत ३ अक्टूबर २०१९ को, जम्मू-कश्मीर के लिए २०१९२० विजय हजारे ट्रॉफी में की। उन्होंने २०१९-२० रणजी ट्रॉफी में जम्मू-कश्मीर के लिए १२ फरवरी २०२० को प्रथम श्रेणी में पदार्पण किया।
भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी |
देवकोट्टई (देवकोत्ताई) भारत के तमिल नाडु राज्य के शिवगंगा ज़िले में स्थित एक नगर है।
इन्हें भी देखें
तमिल नाडु के शहर
शिवगंगा ज़िले के नगर |
सरस्वती सुमन हिन्दी की एक पत्रिका है। यह देहरादून,उत्तराखंड से प्रकाशित होती है। यह पत्रिका २६ जून २००२ से नियमित प्रकाशित हो रही है। इसका प्रकाशन रानी सरस्वती सिंह जी की स्मृति में उनके पति आनंद सुमन सिंह द्वारा करवाया जाता है । इसका उद्देश केवल साहित्य और सरस्वती जी की स्मृति को समर्पित है। |
नोहटा इमामगंज, गया, बिहार स्थित एक गाँव है।
गया जिला के गाँव |
तंत्रिका विज्ञान में जैविक तंत्रिका नेटवर्क ऐसे न्यूरांस के समूह को कहाँ जाता है जो मस्तिष्क से सूचना का आदान प्रदान करने के काम आते है। इस सूचना का प्रसारण एक विद्युत-रासायनिक प्रक्रिया के द्वारा होता है।
इसको दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं :
केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तथा
स्वतंत्र तंत्रिका तंत्र।
केंद्रीय तंत्रिका तंत्र
केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को मस्तिष्क मेरु तंत्रिका तंत्र भी कहते हैं। इसके अंतर्गत अग्र मस्तिष्क, मध्यमस्तिष्क, पश्च मस्तिष्क, अनुमस्तिष्क, पौंस, चेतक, मेरुशीर्ष, मेरु एवं मस्तिष्कीय तंत्रिकाओं के १२ जोड़े तथा मेरु तंत्रिकाओं के ३१ जोड़े होते हैं।
मस्तिष्क करोटि गुहा में रहता है तथा तीन कलाओं से, जिन्हें तंत्रिकाएँ कहते हैं आवृत रहता है। भीतरी दो कलाओं के मध्य में एक तरल रहता है, जो मेरुद्रव कहलाता है। यह तरल मस्तिष्क के भीतर पाई जानेवाली गुहाओं में तथा मेरु की नालिका में भी रहता है। मेरु कशेरुक नलिका में स्थित रहता है तथा मस्तिष्कावरणों से आवृत रहता है। यह तरल इन अंगों को पोषण देता है, इनकी रक्षा करता है तथा मलों का विसर्जन करता है।
मस्तिष्क में बाहर की ओर धूसर भाग तथा अंदर की ओर श्वेत भाग रहता है तथा ठीक इससे उल्टा मेरु में रहता है। मस्तिष्क का धूसर भाग सीताओं के द्वारा कई सिलवटों से युक्त रहता है। इस धूसर भाग में ही तंत्रिका कोशिकाएँ रहती हैं तथा श्वेत भाग संयोजक ऊतक का होता है।
तंत्रिकाएँ दो प्रकार की होती हैं : (१) प्रेरक (मोटर) तथा (२) संवेदी (सेन्सरी)।
मस्तिष्क के बारह तंत्रिका जोड़ों के नाम निम्नलिखित हैं:
(१) घ्राण तंत्रिका,
(२) दृष्टि तंत्रिका,
(३) अक्षिप्रेरक तंत्रिका,
(५) त्रिक तंत्रिका,
(७) आनन तंत्रिका,
(८) श्रवण तंत्रिका,
(९) जिह्वा कंठिका तंत्रिका,
(११) मेरु सहायिका तंत्रिका तथा
मस्तिष्क एवं मेरु के धूसर भाग में ही संज्ञा केंद्र एवं नियंत्रण केंद्र रहते हैं। मेरु में संवेदी (पश्च) तथा चेष्टावह (अग्र) तंत्रिका मूल रहते हैं।
अग्र मस्तिष्क दो गोलार्धों में विभाजित रहता है तथा इसके भीतर दो गुहाएँ रहती हैं जिन्हें पाश्र्वीय निलय कहते हैं। संवेदी तंत्रिकाएँ शरीर की समस्त संवेदनाओं को मस्तिष्क में पहुँचाकर अनुभूति देती हैं तथा चेष्टावह तंत्रिकाएँ वहाँ से आज्ञा लेकर अंगों से कार्य कराती हैं। केंद्रीय तंत्रिकाएँ विशेष कार्यों के लिए होती हैं। इन सब तंत्रिकाओं के अध: तथा ऊध्र्व केंद्र रहते हैं। जब कुछ क्रियाएँ अध: केंद्र कर देते हैं तथा पश्च ऊध्र्व केंद्रों को ज्ञान प्राप्त होता है, तब ऐसी क्रियाओं को प्रतिवर्ती क्रियाएँ (रेफ़्लेक्स एक्शन) कहते हैं। ये कियाएँ मेरु से निकलनेवाली तंत्रिकाओं तथा मेरु केंद्रों से होती हैं। मस्तिष्क का भार ४० औंस होता है। मस्तिष्क की घमनियाँ अंत: घमनियाँ होती हैं, अत: इनमें अवरोध होने पर, या इनके फट जाने पर संबंधित भाग को पोषण मिलना बंद हो जाता है, जिसके कारण वह केंद्र कार्य नहीं करता, अत: उस केंद्र से नियंत्रित क्रियाएँ अवरुद्ध हो जाती हैं। इसे ही पक्षाघात (परलिसिस) कहते हैं।
स्वतंत्र तंत्रिका तंत्र
यह स्वेच्छा से कार्य करता हैं। इसमें एक दूसरे के विरुद्ध कार्य करनेवाली अनुकंपी (सिम्पथेटिक) तथा सहानुकंपी (परसिम्पथेटिक), दो प्रकार की तंत्रिकाएँ रहती हैं। शरीर के अनेक कार्य, जैसे रुधिरपरिसंचरण पर नियंत्रण, हृदयगति पर नियंत्रण आदि स्वतंत्र तंत्रिका से होते हैं। अनुकंपी शृंखला करोटि गुहा से श्रोणि गुहा तक कशेरुक दंड के दोनों ओर रहती है तथा इसमें कई गुच्छिकाएँ (गंग्लियनस) रहती हैं।
कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क |
दक्षिण एशियाई पाषाण युग, नवपाषाण, मध्यपाषाण और [[
पुरापाषाण काल|पुरापाषाण युग]] का संयुक्त युग है। |
गुना मध्य प्रदेश, भारत का एक जिला है ! गुना शहर जिला मुख्यालय है! जिले की जनसंख्या १६,६६,७६७ (२००१ जनगणना) है !
यह ११,०६४ वर्ग किमी का क्षेत्र है और शिवपुरी जिले के उत्तर पूर्व में अशोकनगर जिला द्वारा पूर्व में, विदिशा जिला से दक्षिणपूर्व पर, राजगढ़ जिले के दक्षिण पश्चिम में, पश्चिम और उत्तर पश्चिम झालावाड़ और बारां जिलों जो राजस्थान राज्य में है द्वारा घिरा हुआ है ! सिंध नदी जिले के पूर्वी किनारे के साथ उत्तर की ओर बहती है !गुना सिरोंज के मध्य ही आरोन नगर लगभग ३३ किलोमीटर दूर है गुना से
पंचमुखी हनुमान आश्रम
बीस भुजा देवी
हनुमान मंदिर कैंट
हनुमान मंदिर ए बी रोड
राम जानकी मंदिर बमौरी
खैरोदा मंदिर बमौरी
कंकाली मंदिर बमौरी
क्राइस्ट द किंग चर्च
निहाल देवी मन्दिर
संतोषी माता मंदिर नई सडक गुना
पाटई हनुमान जी मन्दिर
टुका श्री हनुमान मंदिर राघोगढ़
प्राचीन गादेर गुफा
चार धाम मंदिर जामनेर
श्री संकट मोचन हनुमान मंदिर आवन
माँ काली मंदिर राघोगढ़
इन्हें भी देखें
मध्य प्रदेश के जिले |
मांगूरजान (मंगुर्जन) भारत के बिहार राज्य के किशनगंज ज़िले में स्थित एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
बिहार के गाँव
किशनगंज ज़िले के गाँव |
मसूर (मसूर) भारत के महाराष्ट्र राज्य के सतारा ज़िले में स्थित एक बड़ा गाँव है। यह कराड से १४ किमी उत्तर में स्थित है। यहाँ संत रामदास द्वारा स्थापित हनुमान को समर्पित ११ मारुति मन्दिरों में से एक स्थित है, जिस कारणवश यहाँ भारी तादाद में हिन्दू श्रद्धालु आते हैं।
इन्हें भी देखें
महाराष्ट्र के गाँव
सतारा ज़िले के गाँव |
विश्वनाथ काशिनाथ राजवाडे (२४ जून १८६३ ३१ दिसम्बर १९२६) भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार, विद्वान, लेखक तथा वक्ता थे। वे 'इतिहासाचार्य राजवाडे' के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं। वह संस्कृत भाषा और व्याकरण के भी प्रकाण्ड पण्डित थे, जिसका प्रमाण उनकी सुप्रसिद्ध कृतियाँ 'राजवाडे धातुकोश' तथा 'संस्कृत भाषेचा उलगडा', आदि हैं। उन्होने 'भारतीय विवाह संस्था का इतिहास' (मराठी:) नामक प्रसिद्ध इतिहासग्रन्थ की रचना की। आद्य समाज के विकास के इतिहास के प्रति गहन अनुसंधानात्मक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण की परिचायक यह ग्रन्थ इतिहासाचार्य राजवाडे के व्यापक अध्ययन और चिन्तन की एक अनूठी उपलब्धि है।
विश्वनाथ काशीनाथ राजवाडे के बारे में जैसा कि कहा गया है: जैसे ही उन्हें पता चलता कि किसी जगह पर पुराने (इतिहास सम्बन्धी) कागज-पत्र मिलने की सम्भावना है, वह धोती, लम्बा काला कोट, सिर पर साफा पहने, अपने लिए भोजन पकाने के इने-गिने बर्तनों का थैला कन्धे पर डाले निकल पड़ते और उन्हें प्राप्त करने के लिए अथक परिश्रम करते। इसी परिश्रम का सुपरिणाम था - मराठों के इतिहास की स्रोत-सामग्री वाले 'मराठांची इतिहासाची साधने' (मराठों के इतिहास के स्रोत) नमक महाग्रन्थ का २२ खण्डों में प्रकाशन। मराठा इतिहास के अध्यन के लिए उन्होने भारत के हजारों गाँवों एवं ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण किया तथा इससे सम्बन्धित दस्तावेज एकत्र किया। उन्होने विश्व इतिहास के विभिन्न पक्षों पर भी टिप्पणी की है। वे भारत इतिहास संशोधक मंडल, पुणे के संस्थापक सदस्यों में से थे।
भारतीय बुद्धिवाद के विरुद्ध पाश्चात्य आरोपों का प्रतिकार करने वाले इतिहासकार, वैयाकरण, समालोचक और भाष्यकार विश्वनाथ काशीनाथ राजवाड़े चिपलूणकर से तिलक तक की मराठी बुद्धिजीवी परम्परा के श्रेष्ठ प्रतिनिधि थे। प्राच्यवादी मान्यताओं का समर्थन करते हुए राजवाड़े ने युरोपियनों पर यह आरोप लगाया कि पहले तो वे ऐतिहासिक स्मृतियों को नष्ट करते हैं, फिर वे कहते हैं कि हमारा कोई इतिहास ही नहीं है। उनकी मान्यता के खिलाफ़ राजवाड़े ने 'विल टू हिस्ट्री' के माध्यम से दावा किया कि हमारा इतिहास है, लेकिन हम ऐतिहासिक स्मृतियों को कहीं भूल बैठे हैं जिन्हें पुनः प्राप्त किया जाना है। इतिहासाचार्य की जनप्रिय उपाधि से विभूषित राजवाड़े को तर्कनिष्ठ और वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण के साथ भारत के सामाजिक राजनीतिक इतिहास के पुनर्निर्माण का श्रेय जाता है।
विशुद्ध अनुसंधान की धुन में राजवाड़े ने महाराष्ट्र भर में गाँव-गाँव घूमकर संस्कृत की पांडुलिपियों और मराठा इतिहास के स्रोत जमा किये। इस सामग्री को २२ खण्डों में प्रकाशित किया गया। वैदिक तथा अन्य शास्त्रों के ठोस आधार पर आधारित राजवाड़े द्वारा मराठी में लिखित 'भारतीय विवाह संस्थेचा इतिहास' (१९२६) एक सर्वकालीन प्रासंगिक ग्रंथ है। 'भारतीय विवाह संस्था का इतिहास' हिंदी में भी काफ़ी पढ़ी जाने वाली पुस्तक है। लेखक ने गहरी पैठ के साथ इस कृति में भारत में विवाह की संस्था के विकास के विभिन्न सोपानों की चर्चा की है। राजवाड़े ने स्वयं बताया है कि वे विष्णुकांत चिपलूणकर के लेखों, काव्य- इतिहासकार रायबहादुर काशीनाथ पंत साने के ऐतिहासिक पत्र एवं परशुराम गोडबोले द्वारा प्रकाशित काव्य से प्रभावित हुए। उन्हें महाराष्ट्र की ज्ञान-परम्परा के लिए गर्व की अनुभूति हुई। एरिक वुल्फ़ ने अपनी प्रसिद्ध कृति 'युरोप ऐंड द पीपुल विदाउट हिस्ट्री' में कहा है कि मानवशास्त्र इतिहास का अन्वेषण करता है। राजवाड़े के लेखन में भी इतिहास और मानवविज्ञान के अंतःसंबंधों का यह पहलू भारतीय विवाह-संस्था और परिवार-व्यवस्था के इतिहास और मराठों के उद्भव तथा विकास के इतिहास बखूबी दिखायी पड़ता है।
विश्वनाथ काशीनाथ राजवाड़े का जन्म २४ जून १८६३ को महाराष्ट्र के रायगढ़ ज़िले के वरसई गाँव में हुआ था। जब वे तीन वर्ष के थे उनके पिता का देहांत हो गया। आगे का लालन-पालन उनके ननिहाल वरसई में हुआ। बाद में वे अपने चाचा के पास पुणे के नज़दीक वडगाँव में आ गये। पुणे में राजवाड़े का प्राथमिक शिक्षण शनिवार पेठ की पाठशाला में हुआ। बाबा गोखले की पाठशाला, विष्णुकांत चिपलूणकर के न्यू स्कूल और फिर बाद में मिशन स्कूल से उन्होंने माध्यमिक की शिक्षा पूरी की। १८८२ में राजवाड़े ने मैट्रिकुलेशन किया। आगे की शिक्षा के लिए बॉम्बे के एल्फ़िंस्टन कॉलेज में दाख़िला लिया पर धनाभाव के कारण वे अध्ययन जारी नहीं रख पाये। बाद में पुणे में पब्लिक सर्विस सेकण्ड ग्रेड परीक्षा में बैठने वाले विद्यार्थियों को पढ़ा कर उन्होंने धनोपार्जन किया और डेक्कन कॉलेज में आगे की पढ़ाई के लिए नाम दर्ज कराया। यद्यपि कॉलेज के पाठ्यक्रम में लगी पाठ्यपुस्तकों से राजवाड़े कभी संतुष्ट नहीं हुए, फिर भी रामकृष्ण गोपाल भण्डारकर, जो तब पुणे के डेक्कन कॉलेज में प्रोफ़ेसर थे और न्यायकोशकर्ता म.म. झलकीकर जैसे विद्वानों के सान्निध्य में उन्होंने काफ़ी कुछ सीखा। अपनी रुचि के विषयों इतिहास, अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र, समाजशास्त्र का अध्ययन करते हुए राजवाड़े ने १८९१ में बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसी दौरान १९८८ में उनका विवाह हुआ, गृहस्थी की ज़िम्मेदारी हेतु स्नातकोपरांत उन्होंने पुणे के न्यू इंग्लिश स्कूल में अध्यापन कार्य शुरू किया, पर पत्नी की मृत्यु हो जाने बाद उन्होंने १८९३ में नौकरी छोड़ दी।
प्राथमिक शिक्षा से लेकर कॉलेज तक की उच्च शिक्षा से संबंधित अपने अनुभव को राजवाड़े ने ग्रंथमाला मासिक पत्रिका में कनिष्ठ, मध्यम व उच्च शालान्तीत स्वानुभव (प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्चशालाओं के मेरे अनुभव) शीर्षक निबंध द्वारा प्रस्तुत किया। इस रचना में उन्होंने शिक्षा के व्यावसायिक हितों को सामाजिक उत्तरदायित्वों पर वरीयता देने की तत्कालीन परम्परा की कठोर आलोचना की। १८९४ में अनुवाद आधारित 'भाषान्तर' नामक मराठी पत्रिका सम्पादित करने के अलावा १९१० में उन्होंने पुणे में भारत इतिहास संशोधक मण्डल की स्थापना की और अपने द्वारा इकट्ठे किये गये ऐतिहासिक स्रोतों, कृतियों और स्वयं द्वारा किये गये ऐतिहासिक कायों को मण्डल के सुपुर्द कर दिया। उच्च रक्तचाप से ग्रस्त राजवाड़े १९२६ के मार्च महीने में टिप्पणियों से भरे ट्रंक के साथ धुले गये। वहीं इस महान अन्वेषक, वैयाकरण, मानवशास्त्री और इतिहासकार का ३१ दिसम्बर १९२६ को देहान्त हुआ। १९२६ में उनकी असामयिक मृत्यु के पश्चात् धुले-स्थित राजवाड़े संशोधक मण्डल की स्थापना हुई और उनके कार्य और स्रोत सामग्रियाँ वहीं रखी गयीं। आज भी ये दोनों संस्थान अपने योगदान से भारतीय इतिहास और संस्कृति को समृद्ध करने में लगे हुए हैं। उनके सम्मान में भारतीय इतिहास कांग्रेस ने विश्वनाथ काशीनाथ राजवाड़े अवार्ड की संस्तुति की जो भारतीय इतिहास के क्षेत्र में जीवन-पर्यन्त योगदान के लिए दिया जाता है।
इतिहास सम्बन्धी विचार
राजवाड़े का मानना था कि ग्रांट डफ़ सहित अन्य औपनिवेशिक इतिहासकारों द्वारा लिखित भारत का इतिहास विजेताओं द्वारा लिखित विजित देश का इतिहास है। इसलिए उसमें सत्य का अभाव है और महत्त्वहीन घटनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया गया है। पूर्व-लिखित इतिहास की छानबीन के पश्चात् राजवाड़े इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि सच्चे इतिहास को प्रकाश में लाये बिना राष्ट्र में स्वत्व की चेतना का न तो निर्माण ही हो पायेगा न ही विकास। इसी बीच अपने एक विद्यार्थी काका राव पण्डित को मिले कुछ स्रोतों की जानकारी मिलने पर राजवाड़े उन स्रोतों को हस्तगत किया और दो माह के अविश्रांत परिश्रम द्वारा १८९६ में 'मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने' (मराठों के इतिहास के स्रोत) शीर्षक पुस्तक का पहला खण्ड प्रकाशित हुआ। पानीपत के युद्ध से संबंधित २०२ पत्र इसी खण्ड में हैं।
इतिहास स्रोत-सामग्री जुटाने की इसी रीति के साथ राजवाड़े ने दृढ़ और अनथक प्रयासों से पूरे महाराष्ट्र का दौरा किया। ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थानों के बार-बार निरीक्षण, वास्तुशास्त्रीय अध्ययन दृष्टि और पुरातात्त्विक साक्ष्यों की मदद से राजवाड़े ने महाराष्ट्र के जनजीवन, वहाँ की भाषा, रीति-रिवाज़ों और साहित्य के मानवशास्त्रीय और समाजशास्त्रीय दृष्टि से अध्ययन के उपरांत जो निष्कर्ष निकाले उसके फलस्वरूप मराठों के इतिहास की स्रोत सामग्री के बाईस खण्ड प्रकाशित हुए। उनकी मृत्यु के समय अर्थात् १९२६ तक इससे भी ज़्यादा अप्रकाशित संग्रह राजवाड़े के पास एकत्र हो चुका था।
इन खण्डों में राजवाड़े ने दीर्घ प्रस्तावनाएँ लिखी हैं। उन्होंने इतिहास-बोध, इतिहासविषयक तर्कनिष्ठ और वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इतिहास वैज्ञानिक पद्धति से ही लिखा जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि राजवाड़े ने वन्य समाज और प्रागैतिहासिक समाज की स्थितियों का विश्लेषण व आर्ष प्रथाओं का विवेचन करते समय पुराणों, श्रुतियों, संहिताओं, महाभारत तथा हरिवंश आदि उपलब्ध साक्ष्यों को अपने अनुसंधान का आधार बनाया। उन्होंने माना कि परिस्थिति तथा मानव के संघर्ष से इतिहास बनता है। उसमें ईश्वरीय संकेतों अथवा एक ही व्यक्ति के कृतित्व के बजाय साधारण और असाधारण व्यक्तियों के जीवन-चरित्र का मिश्रण होता है। इतिहास की व्यापकता पर दृष्टिपात करते हुए राजवाड़े बताते हैं कि इतिहास तत्कालीन समाज का भौतिक तथा आत्मिक चरित्र है।
राजवाड़े हिंदूवाद के कद्दावर रक्षक होने के साथ-साथ उसके कट्टर आलोचक भी थे। हिंदूवाद को वे सामाजिक- आर्थिक व्यवस्था मानते थे। शिवाजी जयंती के अवसर पर १९११ में तिलक के पत्र केसरी में लिखते हुए उन्होंने चातुर्वर्ण्य व्यवस्था का समर्थन किया और इसे सामाजिक संगठन का उत्तम रूप बतलाया। साथ ही उन्होंने मराठी समाज पर यह आरोप भी लगाया कि इस व्यवस्था का ठीक से पालन न करना ही उसके पतन का कारण बना। हिंदूवाद अथवा ब्राह्मणवाद की आड़ में राजवाड़े ने हमेशा मराठी भाषा-भाषी लोगों के उत्तरदायित्व और कर्तव्यों को सामूहिक रूप से महाराष्ट्र धर्म के रूप में व्यक्त किया और उसकी उन्नति के लिए उसपर ज़ोर दिया।
राजवाड़े इतिहास को केवल 'इति-हा-अस' अर्थात् वह जो घटित हुआ ही नहीं मानते थे। उनकी मान्यता थी कि सैद्धांतिक पहलुओं से साथ इतिहास को समाज-विज्ञान ही माना जाए। उनका यह मत हीगेल की इस बात से मेल खाता है कि इतिहास अपने सही अर्थों में दर्शन के रूप में व्यक्त होता है। राजवाड़े ने शाहजी पर लिखे निबंध में मराठों के शक्ति-लोप को पुनर्स्थापित करने हेतु 'डायलेक्टिस ऑफ़ डिफ़ीट' अर्थात् हार के द्वंद्व पर चर्चा करते हुए बताया कि उत्तम, सुडौल तथा निश्चित हथियार बनाने की कला के विकास के लिए वैज्ञानिक ज्ञान की जो पूर्व तैयारी आवश्यक होती है, वह उस समय महाराष्ट्र में नहीं थी। भक्तिकालीन कवियों पर हमला बोलते हुए राजवाड़े ने बताया कि जब (शाहजी के जीवन काल में) युरोप में देकार्त, बेकन आदि विचारशील लोग, सृष्टि में रहने वाले विविध पदार्थों की खोज करने वालों को प्रोत्साहित कर रहे थे, उसी समय अपने यहाँ एकनाथ, तुकाराम, दासोपंत, निपटनिरंजन आदि संत-महात्मा पंच महाभूतों को नष्ट कर ब्रह्म साक्षात्कार का मार्ग दिखाने का प्रयास कर रहे थे। इनके उलट राजवाड़े ने सत्रहवीं सदी के संत समर्थ गुरु रामदास की तत्त्व-मीमांसा का स्वागत किया। जिनकी कविताओं में मराठा शक्ति की पुनर्स्थापना की आकांक्षा समेटने वाली राजनीतिक गोलबंदी और मराठी राष्ट्रीयता के पुनरुत्थान की भावनाएँ व्यक्त होती थीं। इसके अलावा भारतीय मार्क्सवादियों से बहुत पहले राजवाड़े पहले चिंतक थे जिन्होंने राष्ट्रीयता की बात की और भारत को एक बहु-राष्ट्रीय राज्य बताया।
भारतीय विवाह संस्था का इतिहास
१९२०-२३ के दौरान भारतीय विवाह पद्धति पर लिखे उनके निबंध संकलित रूप में 'भारतीय विवाह संस्थेचा इतिहास' (भारतीय विवाह संस्था का इतिहास) के रूप में १९२६ में प्रकाशित हुए। इसका पहला अध्याय स्त्री-पुरुष समागम में कई अतिप्राचीन आर्य प्रथाओं का ज़िक्र था। यह पहली बार १9२३ की मई में पुणे की चित्रमयजगत पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। इसमें वेद संहिता, महाभारत और हरिवंश के उद्धरणों और साक्ष्यों द्वारा यह कहा गया था कि अत्यंत प्राचीन आर्य समाज में भाई-बहन और पिता-पुत्री के बीच शारीरिक संबंध होते थे। इन निर्बंध शारीरिक संबंधों का आगे किस प्रकार विकास हुआ यही इस निबंध का विषय था। इस पुस्तक का दूसरा अध्याय स्त्रियों की वंश-प्रवर्तक शक्ति और प्रजापति संस्था में उन्होंने यह दिखाया कि कैसे एक बालक को दूसरे से अलग पहचानने के लिए पिता की जगह मातृकुल का नाम दिया गया, क्योंकि तब स्त्री-पुरुष संबंध मिले-जुले होते थे। साथ ही राजवाड़े इसमें यह भी दिखाते हैं कि प्रजापति संस्था से पूर्व वंशावतरण स्त्रियों के अधीन था और प्रजापति संस्था के प्राचीन आर्य समाज के रूप में विकसित होने के तीन परिणाम निकले। पहला यह कि प्रजापति कुल की पृथक् रूप में स्थापना की प्रक्रिया शुरू हुई। दूसरा यह कि दूर देशों में जाकर बस्तियाँ बसाने की प्रथा चल पड़ी। बहु-भार्याक और एकपतिक प्रजापति संस्था में क्रमागत रूप से परिवर्तन शुरू हुआ। इस ग्रंथ का तीसरा अध्याय आतिथ्य की एक आर्य प्रथा में प्रमाणस्वरूप महाभारत के उद्योग पर्व के पैंतालीसवें अध्याय में वर्णित इष्टान पुत्रान विभवान स्वान्श्च दारान अर्थात् संकटकाल में अपनी स्त्री भी अपने मित्र को निर्मल अंतःकरण से अर्पित की जाए द्वारा राजवाड़े ने यह बताया कि भारतीय ऐसा कभी नहीं मानते थे कि अपने मित्र को स्व-स्त्री सम्भोगार्थ देने में कोई नीतिभंग होता है। इसका समर्थन पाणिनि ने द्विगोर्लुगनपत्ये (४-१- ८८) सूत्र में द्वायोर्मित्रयोरपत्यं द्वैमित्रि अर्थात् दो मित्रों के अपत्य या संतति को द्वैमित्रि कह कर किया है। इस स्थिति में पितृत्व दोनों ही मित्रों को मिलता है। इस ग्रंथ के चौथे अध्याय अग्नि और यज्ञ में भारतीय विवाह संस्था के इतिहास और परम्परा का विस्तार से स्पष्टीकरण करने के लिए अग्नि का सामाजिक इतिहास बताते हुए राजवाड़े ने यज्ञ की प्रक्रिया, फल-श्रुति और उनसे सम्बद्ध दंत कथाओं का उल्लेख किया है। साथ ही इसमें उन्होंने स्त्री-पुरुष के सामूहिक रूप से लैंगिक समागम में एकनिष्ठ विवाह (मोनोगैमी) पद्धति के ऐतिहासिक विकास की प्रक्रिया दर्शायी है। इस ग्रंथ में क्षेपक रूप में भारतीय विवाह संस्था के इतिहास विषय पर राजवाड़े द्वारा लिखित टिप्पणियाँ लग्नसंस्था शीर्षक के अंतर्गत सम्मिलित की गयीं।
भारतीय विवाह संस्थेचा इतिहास के हिंदी संस्करण का मूल्यांकन करते हुए एक समीक्षक ने लिखा है कि हमारे पुनर्जागरण के कई मनीषी दूर अतीत में स्वर्णलोक की कल्पना में लीन थे। राजवाड़े उनसे बिलकुल अलग थे। भारतीय विवाह संस्था का इतिहास में वे इतिहास परिकल्पना को बिलकुल उलट देते हैं। वे जो लिखते हैं उसका निष्कर्ष कुछ यह है कि सतयुग और द्वापर दरअसल पाशविक, बर्बर और अर्धमानवीय संस्कारों और नैतिक मूल्यों के युग थे और जिन महान नैतिक (ख़ास तौर से स्त्री-पुरुष संबंधों में) मूल्यों पर हम अपना सीना फुलाए रहते हैं, वे कलियुग की देन हैं। वैदिक और वेद-पूर्व समाजों का रूप कुछ और ही था, वह नहीं जिसे हम मोहवश मान बैठते हैं। राजवाड़े का मानवशास्त्र, पुरातत्त्व और सांस्कृतिक इतिहास से जुदा बोध पुरातनियों को पचेगा नहीं। जहाँ सब कुछ दिव्य और दैवी माना जाता हो, वहाँ मनुष्य के लाखों बरसों के संघर्ष और विकास से उत्पन्न समाज-व्यवस्था का विचार अजनबी जान पड़ेगा लेकिन राजवाड़े पुरातनियों की ज़मीन छीन लेते हैं।
भारतीय विवाहसंस्थेचा इतिहास
इतिहासाचार्य वि.का.राजवाडे समग्र साहित्य खंड १ -मराठी भाषा व व्याकरण
इतिहासाचार्य वि.का.राजवाडे समग्र साहित्य खंड २ -मराठी ग्रंथ व ग्रंथकार
इतिहासाचार्य वि.का.राजवाडे समग्र साहित्य खंड ३ -संस्कृत भाषा विषयक
इतिहासाचार्य वि.का.राजवाडे समग्र साहित्य खंड ४ -अभिलेख संशोधन
इतिहासाचार्य वि.का.राजवाडे समग्र साहित्य खंड ५ -मराठी धातुकोष
इतिहासाचार्य वि.का.राजवाडे समग्र साहित्य खंड ६ -व्युत्पत्ती कोष
इतिहासाचार्य वि.का.राजवाडे समग्र साहित्य खंड ७,८ -समाजकारण व राजकारण
इतिहासाचार्य वि.का.राजवाडे समग्र साहित्य खंड ९ - आत्मवृत्त व लेख
इतिहासाचार्य वि.का.राजवाडे समग्र साहित्य खंड १० -प्रस्तावना खंड
इतिहासाचार्य वि.का.राजवाडे समग्र साहित्य खंड ११ -इतिहास
इतिहासाचार्य वि.का.राजवाडे समग्र साहित्य खंड १२ -संपादक राजवाडे
इतिहासाचार्य वि.का.राजवाडे समग्र साहित्य खंड १३ -समग्र संत साहित्य
तीर्थरूप शहाजीराजे भोसलें यांचे चरित्र
मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड १ ते २२ (संपादन आणि प्रस्तावना)
राजवाडे लेखसंग्रह (संपादक - तर्कतीर्थ लक्ष्मणशास्त्री जोशी; साहित्य अकादमी प्रकाशन)
राधामाधवविलासचंपू (संपादन आणि प्रस्तावना)
संस्कृत प्रतिशब्दशः भाषांतर
संस्कृत भाषेचा उलगडा
ज्ञानेश्वर नीति कथा
ज्ञानेश्वरी (राजवाडे संहिता) : अध्याय १ (२३ पानी प्रस्तावनेसह), ४, १२
ज्ञानेश्वरीतील मराठी भाषेचे व्याकरण
१. जी.पी. देशपांडे (१992), राजवाड़ेज़ वेल्टनचुंग ऐंड जर्मन थाट, इकॉनॉमिक ऐंड पोलिटिकल वीकली, खण्ड २७, अंक ४३/४४.
२. राम शरण शर्मा (२009), रीथिंकिंग इण्डियाज़ पास्ट्स, ऑक्सफ़र्ड युनिवर्सिटी प्रेस, नयी दिल्ली.
३. प्राची देशपांडे (२००७), क्रिएटिव पास्ट्स : हिस्टोरिकल मेमोरी ऐंड आइडेंटिटी इन वेस्टर्न इण्डिया १७००-१९६०, कोलंबिया युनिवर्सिटी प्रेस, कोलंबिया.
इतिहासाचार्य विश्वनाथ काशीनाथ राजवाडे : समग्र साहित्य |
सुरकाली गॉव, कांडा तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
गॉव, सुरकाली, कांडा तहसील
गॉव, सुरकाली, कांडा तहसील |
यथार्थवाद (रीलिम) से तात्पर्य उस विचारधारा से है जो कि उस वस्तु एवं भौतिक जगत को सत्य मानती है, जिसका हम ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं। पशु, पक्षी, मानव, जल थल, आकाश इत्यादि सभी वस्तुओं का हम प्रत्यक्षीकरण कर सकते हैं, इसलिए ये सभी सत्य हैं, वास्तविक हैं। यथार्थवाद, जैसा यह संसार है वैसा ही सामान्यतः उसे स्वीकार करता है। यथार्थवाद यद्यपि आदर्शवाद के विपरीत विचारधारा है किन्तु यह बहुत कुछ प्रकृतिवाद एवं प्रयोजनवाद से साम्य रखती है।
यथार्थवाद किसी एक सुगठित दार्शनिक विचारधारा का नाम न होकर उन सभी विचारों का प्रतिनिधित्व करता है जो यह मानते हैं कि वस्तु का अस्तित्व हमारे ज्ञान पर निर्भर करता है किन्तु यथार्थवाद विचारक मानते हैं कि वस्तु का स्वतंत्र अस्तित्व है, चाहे वह हमारे अनुभव में हो अथवा नहीं। वस्तु तथा उससे संबंधित ज्ञान दोनों अलग-अलग सत्तायें हैं। विश्व में अनेक ऐसी वस्तुएं हैं जिनके विषय में हमें कोई ज्ञान नहीं होता परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वे वस्तुएं अस्तित्व में नहीं हैं। ज्ञान तो हमेशा बढ़ता जाता है। जगत का सम्पूर्ण रहस्य मानव ज्ञान की सीमा में कभी नहीं आ सकता। कहने का तात्पर्य यह है कि वस्तु की स्वतंत्र स्थिति है चाहे मनुष्य को उसका ज्ञान हो अथवा नहीं। व्यक्ति का ज्ञान उसे वस्तु की स्थिति से अवगत कराता है, परन्तु वस्तु की स्थिति का ज्ञान मनुष्य को न हो तो वस्तु का अस्तित्व नष्ट नहीं होता। यथार्थवाद के अनुसार हमारा अनुभव स्वतंत्र न होकर वाह्य पदार्थों के प्रति प्रतिक्रिया का निर्धारण करता है। अनुभव वाह्य जगत से प्रभावित है और वाह्य जगत का वास्तविक सत्ता है। यथार्थवाद के अनुसार मनुष्य को वातावरण का ज्ञान होना चाहिये। उसे यह पता होना चाहिए कि वह वातावरण को परिवर्तित कर सकता है अथवा नहीं और इसी ज्ञान के अनुसार उसे कार्य करना चाहिये।
यथार्थवाद का नवीन रूप वैज्ञानिक यथार्थवाद है जिसे आज 'यथार्थवाद' के नाम से ही जान जाता है। वैज्ञानिक यथार्थवादियों ने दर्शन की समस्याओं को सुलझाने में विशेष रूचि प्रदर्शित नहीं की। उनके अनुसार यथार्थ प्रवाहमय है। यह परिवर्तनशील है और इसके किसी निश्चित रूप को जानना असंभव है। अतः वह यह परिकल्पित करता है कि यथार्थ मानव मन की उपज नहीं है। सत्य मानव मस्तिष्क की देन है। यथार्थ मानव-मस्तिष्क से परे की वस्तु है। उस यथार्थ के प्रति दृष्टिकोण विकसित करना सत्य कहा जायेगा। जो सत्य यथार्थ के जितना निकट होगा वह उतना ही यथार्थ सत्य होगा।
यथार्थवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसका बीजारोपण मानव मस्तिष्क में अति प्राचीन काल में ही हो गया था, जबकि वह अपने चारों ओर के वातावरण की वस्तुओं से प्रभावित होकर उन्हीं को यथार्थ मान लेता है। बटलर के अनुसार बहुत बड़ी संख्या में व्यक्तियों के लिए संसार निर्विवाद यथार्थ है। यदि उसकी यथार्थता के सम्बन्ध में पूछा जाय तो शीघ्र ही उत्तर प्राप्त होगा कि वास्तव में यह जगत यथार्थ है। अज्ञात क्रिया एवं उपयुक्ति के अकृत्रिम क्षणों में हम सभी जगत के वाह्य रूप को स्वीकार करते हुए यही मनोवृत्ति धारण करेंगे। यहाँ तक कि आदर्शवादी विचारक अपने अनधिकृत क्षणों में इस प्रकार की अकृत्रिमता के दोषी हैं, ऐसा यथार्थवादियों का कथन है।
किन्तु जहाँ तक यथार्थवाद के वैज्ञानिक स्वरूप का प्रश्न है हम यह कह सकते हैं कि जिस यथार्थवादी विचारधारा का बहुत पहले मानव मस्तिष्क में अचेतन रूप से बीजारोपण हो गया था, उसका सूत्रपात १६वीं शताब्दी के अन्त में हुआ जो १७वीं शताब्दी तक पहुँचते पहुँचते एकदम स्पष्ट हो गया।
अपने विकास क्रम में यथार्थवाद प्राचीन काल से आधुनिक काल तक अनेक रूपों में उपस्थित हुआ। प्राचीन यथार्थवाद के अनुसार सृष्टि के दो रूप थे
(१) प्राकृतिक व्यवस्था की सृष्टि, जिसमें परिवर्तन संभव है।
(२) दैवीय व्यवस्था की सृष्टि जिसमें परिवर्तन की कोई सम्भावना नहीं है।
इस प्रकार बौद्धिकतावादी यथार्थवाद ने द्वैतवाद का समर्थन किया है। बौद्धिकतावादी यथार्थवाद के अनुसार दैवी जगत में कोई परिवर्तन नहीं होता इसलिए वहाँ पर शिक्षा का कोई प्रश्न नहीं। सीखना केवल प्राकृतिक जगत में ही संभव है, दैवीय जगत में नहीं।
यथार्थवाद के प्रादुर्भाव के दो प्रमुख कारण थे- प्रथम, प्राचीनकाल से चली आने वाली आदर्शवादी विचारधारा का १६वीं शताब्दी तक आडम्बरपूर्ण एवं खोखला हो जाना तथा द्वितीय, विज्ञान का विकास। सोलहवीं शताब्दी तक लगभग सभी प्राचीन तथा मध्यकालीन आदर्श महत्वहीन हो चुके थे। उनमें किसी का विश्वास न था क्योंकि वे वर्तमान मानव जीवन के लिए उपयोगी नहीं थे। वे मनुष्य की सामान्य आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ थे। वे मानसिक विकास तो कर सकते थे किन्तु मनुष्यों में क्रियाशीलता एवं व्यावहारिकता उत्पन्न नहीं कर सकते थे। प्राचीन आदर्श समय की माँग को पूरा करने में असमर्थ थे, इसलिए मनुष्य ऐसे आदर्श की माँग करने लगा जो वास्तविक जीवन व्यतीत करने में सहायक हो। परिणाम स्वरूप मध्यकाल में मठवाद एवं विद्वद्वाद के बाद पुनरूत्थान काल का जन्म हुआ।
पुनरूत्थान काल के इस युग में मनुष्य में एक ऐसी लहर उत्पन्न हो गयी कि परलोक के बजाय मानवीय गुणों का विकास करना मानव जाति का प्रधान लक्ष्य हो गया। इसके परिणामस्वरूप 'मानवतावाद' का प्रादुर्भाव हुआ और धीरे धीरे मानवतावाद सिसरोवाद में परिवर्तित हो गया क्योंकि सिसरों की लेखन शैली अपने जीवन का मुख्य लक्ष्य बन गया। इसके उपरान्त 'सुधारकाल' का जन्म हुआ। मानवतावाद एवं सुधारवाद के परिणामस्वरूप मनुष्य बुद्धि एवं विवेक पर आस्था रखने लगा और इनके आधार पर सभी वस्तुओं को समझने का प्रयास करने लगा। उनके विश्वास को और अधिक दृढ़ विज्ञान के विकास ने किया जो यथार्थवाद के जन्म का दूसरा महत्वपूर्ण कारण है। कोपरनिकस, गैलीलियो, न्यूटन, जॉन केपलर, हारवीज, बेकन इत्यादि के शोधों के फलस्वरूप मानव दृष्टिकोण की संकीर्णता एवं अन्ध विश्वास नष्ट हो गये। वैज्ञानिक युग का आरम्भ हुआ और इस युग ने बुद्धि एवं विवेक को अधिक प्रधानता दी तथा मनुष्य का ध्यान वास्तविकता की ओर आकृष्ट किया। इस प्रकार भौतिक दार्शनिकता एवं वैज्ञानिक प्रवृत्ति के समावेश से यथार्थवाद का जन्म हुआ जो परलोक की सत्ता को अस्वीकार करता है।
भारतीय दर्शन में न्याय एवं वैशेषिक दर्शन यथार्थवाद के समकक्ष माने जाते हैं।
न्याय दर्शन के प्रवर्तक गौतम थे जो अक्षपाद के नाम से भी प्रसिद्ध थे। न्याय दर्शन में तार्किक आलोचना का आश्रय लिया गया है। अन्य सभी भारतीय दर्शन की भाँति न्याय दर्शन का उद्देश्य भी मोक्ष प्राप्ति है, किन्तु इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति आवश्यक है। न्याय दर्शन में प्रमाण का विशेष महत्व है। यह दर्शन जीवन की समस्याओं का समाधान करने के लिए प्रमाणों द्वारा किसी विषय की परीक्षा करता है। जिसके द्वारा प्रभा की उत्पत्ति होती है, उसे प्रमाण कहते हैं। प्रभा का अर्थ है यथार्थ ज्ञान अथव यथार्थ अनुभव। न्याय दर्शन के अनुसार यथार्थ ज्ञान चार उपायों से प्राप्त किया जा सकता है, इसलिए प्रमाण भी चार माने गये हैं। यथा प्रत्यक्ष, अनुमान उपमान एवं शब्द। जो अनुभव इन्द्रियों के संयोग से प्राप्त होता है और जिसके विषय में सन्देह का अभाव होता है तथा जो यथार्थ भी होता है उसे प्रत्यक्ष कहते हैं। किसी हेतु अथवा लक्षण के ज्ञान से उस हेतु को धारण करने वाले पदार्थ का ज्ञान करना अनुमान कहलाता है। उपमान के द्वारा नाम एवं नामी का सम्बन्ध जान जाता है। गवय अथवा नील गाय, सामान्य गाय के समान होती है। इसको सुनकर जब कोई व्यक्ति 'गो' अर्थात सामान्य गाय के समान पशु को नीलगाय समझने लगता है तब उसे उपमान द्वारा प्राप्त ज्ञान कहा जाता है। चार्वाक दर्शन में उपमान को प्रमाण स्वीकार नहीं किया गया है। शब्द न्याय दर्शन के अनुसार अन्तिम प्रमाण है। शब्दों एवं वाक्यों से हम पदार्थों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। यह ज्ञान शब्द प्रमाण द्वारा होता है। इसलिए कहा गया है आप्तोपदेशः शब्दः अर्थात यथार्थ का ज्ञान रखने वाले पुरूष का वचन ही शब्द प्रमाण है।
वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक महर्षि कणाद ने द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय एवं अभाव इन सात पदार्थों पर विचार किया है। न्याय एवं वैशेषिक को यहाँ यथार्थवादी कहा गया है किन्तु दोनों ही मुक्ति पर विश्वास करते हैं। अपने विवेचन में यह यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाते हैं, इसीलिए इन्हें यथार्थवाद कहा गया है।
जैन दर्शन का स्यादवाद भी यथार्थवादी माना गया है। स्यादवाद सहिष्णुता एवं विनीतता का मार्ग है जो हमें छात्रों में जनतंत्रात्मक मनोवृत्ति का विकास करने की प्रेरणा देता है, साथ ही दूसरों के विचारों को सुनना, दूसरे के रीति रिवाजों को समझना तथा लोकतंत्र के संचालन की भी शिक्षा देता है। भारतीय यथार्थवाद जीवन के प्रति यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने का परामर्श देता है, किन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि ईश्वर, आत्मा इत्यादि को यह अनावश्यक बताता है। |
दोनेकल् (अनंतपुर) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अनंतपुर जिले का एक गाँव है।
आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट
आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग
निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल
आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट |
ताशीगंग (ताशीगौंग), जिसे प्रशासनिक स्रोतों में अप मोहाल ताशीगंग (उप मोहल ताशीगौंग) भी कहा जाता है, भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के किन्नौर ज़िले में स्थित एक गाँव है। यह सतलुज नदी की घटी में स्थित है, हालांकि स्पीति नदी भी समीप बहती है। यह तिब्बत की सीमा के बहुत पास है।
सड़क - यह राष्ट्रीय राजमार्ग ५ द्वारा अन्य स्थानों से जुड़ा हुआ है, जो करीब ही गुज़रती है। नाको और खाब के दोनों गाँव समीप ही हैं।
रेल - शिमला का रेलस्टेशन सबसे नज़दीकी रेल सम्पर्क है।
वायु - कुल्लू-मनाली का हवाई अड्डा सबसे समीप है। यह सड़क द्वारा २४५ किमी दूर है।
इन्हें भी देखें
हिमाचल प्रदेश के गाँव
किन्नौर ज़िले के गाँव |
नोवियाल (नोवियल) एक कृत्रिम भाषा है, जिसे १९२८ में ओटो येस्पर्सन नामक एक डैनिश भाषाविद् ने निर्मित किया था। यह शब्द "नोव" (नया) और "इआल" (अन्तर्राष्ट्रीय सहायक भाषा) से बना है।
वर्णमाला और उच्चारण
यह भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है जिसमें २४ अक्षर हैं। नोवियाल भाषा में व, ज़ अक्षर नहीं हैं।
परमात्मा की प्रार्थना
नोवियाल भाषा की गिनती
इन्हें भी देखें
ओटो येस्पर्सन, एक अन्तर्राष्ट्रीय भाषा (१९२८)
नोवियाल भाषा विकिपीडिया
नोवियाल फेसबुक पर
अन्तर्राष्ट्रीय सहायक भाषाएँ
विश्व की भाषाएँ |
मिथोन (मेथोन) (यूनानी : ), शनि का एक छोटा सा प्राकृतिक उपग्रह है। यह माइमस और ऍनसॅलअडस की कक्षाओं के बीच स्थित है। मिथोन को सर्वप्रथम कैसिनी इमेजिंग टीम द्वारा देखा गया तथा अस्थायी पदनाम दिया गया। यह सेटर्न ज़्क्सी तौर पर भी नामित है। कैसिनी अंतरिक्ष यान ने मिथोन की दो यात्राएँ की है और उसकी इससे निकटतम पहुँच २० मई २०१2 को १९०० किमी (१,१8१ मील) बनी थी। मिथोन नाम 2१ जनवरी २०05 को आईएयू के ग्रहीय प्रणाली नामकरण पर कार्यकारी समूह द्वारा अनुमोदित हुआ था। इसकी २०06 में आईएयू महासभा में पुष्टि हुई थी।
शनि के प्राकृतिक उपग्रह |
एसिड फैक्ट्री २००९ की एक बॉलीवुड फ़िल्म है।
२००९ में बनी हिन्दी फ़िल्म |
डौंर-म०ब०-३, सतपुली तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
डौंर-म०ब०-३, सतपुली तहसील
डौंर-म०ब०-३, सतपुली तहसील |
आजमाबाद गोपालपुर, भागलपुर, बिहार स्थित एक गाँव है।
भागलपुर जिला के गाँव |
गोैलामला, यमकेश्वर तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
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उत्तरा कृषि प्रभा
गोैलामला, यमकेश्वर तहसील
गोैलामला, यमकेश्वर तहसील |
टोला-गोरैया धरहरा, मुंगेर, बिहार स्थित एक गाँव है।
मुंगेर जिला के गाँव |
हम्माम एक हम्माम (अरबी : , तुर्की : हमाम) या तुर्की स्नान एक प्रकार का भाप स्नान या मुस्लिम दुनिया से जुड़े सार्वजनिक स्नान का स्थान यह राजसी स्नानागार का फारसी भाषा अनुवाद है। है। यह मुस्लिम दुनिया की संस्कृति में एक प्रमुख विशेषता रखता है और रोमन 'थर्मा' के मॉडल से विरासत में मिली थी। मुस्लिम स्नानागार या हम्माम ऐतिहासिक रूप से मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका में पाए जाते हैं, अल-अंडालस (इस्लामी स्पेन और पुर्तगाल), मध्य एशिया, भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिणपूर्वी यूरोप में ओटोमन शासन के अधीन। मुस्लिम स्नानागार पर एक भिन्नता, विक्टोरियन तुर्की स्नान, एक चिकित्सा, सफाई की एक विधि और विक्टोरियन युग के दौरान विश्राम के लिए एक जगह के रूप में लोकप्रिय हो गई, जो तेजी से ब्रिटिश साम्राज्य, संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में फैल रही थी।
इस्लामी संस्कृतियों में हम्माम का महत्व धार्मिक और नागरिक दोनों में था. यह अनुष्ठान की आवश्यकता प्रदान करता था, और सामान्य स्वच्छता भी प्रदान करता था और समुदाय में अन्य सामाजिक कार्यों जैसे पुरुषों और महिलाओं के लिए एक सामूहिक बैठक स्थान की तरह उपयोगित था। पुरातात्विक अवशेष इस्लामी दुनिया में स्नानघरों के अस्तित्व को उमय्यद काल (७वीं-८वीं शताब्दी) के रूप में प्रमाणित करते हैं और उनका महत्व आधुनिक समय तक कायम है। उनकी वास्तुकला रोमन और ग्रीक स्नानघरों के लेआउट से विकसित हुई और इसमें कमरों का एक नियमित क्रम था: एक कपड़े उतारने वाला कमरा, एक ठंडा कमरा, गर्म कमरा और गर्म कमरा। भट्टियों द्वारा ऊष्मा उत्पन्न की जाती है जो गर्म पानी और भाप प्रदान करती है, जबकि धुआं और गर्म हवा फर्श के नीचे नाली के माध्यम से प्रसारित की जाती थी। एक लंगोटी धारण करते हुए आगंतुक स्वयं के कपड़े उतारते हैं, और पसीने को प्रेरित करते हुए धीरे-धीरे उत्तरोत्तर गर्म कमरों में चले जाते हैं। फिर उन्हें आमतौर पर पुरुष या महिला कर्मचारियों (आगंतुक के लिंग से मेल खाते हुए) द्वारा साबुन और जोरदार रगड़ से धोया जाता है, फिर गर्म पानी में खुद को धोकर समाप्त किया जाता है। रोमन या ग्रीक स्नान के विपरीत, स्नान करने वाले आमतौर पर खुद को खड़े पानी में डुबोने के बजाय बहते पानी से धोते थे, हालांकि पूल में विसर्जन ईरान जैसे कुछ क्षेत्रों के हम्माम में प्रथागत था। जबकि सभी हम्माम में सामान्य सिद्धांत समान हैं, प्रक्रिया और वास्तुकला के कुछ विवरण क्षेत्र से क्षेत्र में भिन्न होते हैं।
शब्द "हम्माम" () एक संज्ञा है जिसका अर्थ है "स्नान", "बाथरूम", "बाथहाउस", "स्विमिंग पूल", आदि। यह अल-अम्मा ( ) शब्द का मूल भी है जिसका अर्थ है गर्म पानी का झरना, लिस्बन में अल्फामा पड़ोस के नाम की उत्पत्ति। [९] अरबी से, यह फ़ारसी () और वहाँ से तुर्की (हमाम) में चला गया।
अंग्रेजी में "तुर्की बाथ" शब्द पहली बार १६४४ में दर्ज किया गया है।
व्युत्पत्ति और प्रारंभिक विकास
सार्वजनिक स्नानघर रोमन और हेलेनिस्टिक संस्कृति में एक प्रमुख नागरिक और शहरी संस्थान थे और पूरे भूमध्यसागरीय दुनिया में पाए जाते थे। वे शुरुआती बीजान्टिन साम्राज्य के शहरों में ६ वीं शताब्दी के मध्य तक महत्वपूर्ण बने रहे, जिसके बाद नए स्नानघरों के निर्माण में गिरावट आई और मौजूदा सदियों में धीरे-धीरे छोड़ दिया गया। ७वीं और ८वीं शताब्दी में मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में अरब मुस्लिम शासन के विस्तार के बाद, उभरते हुए इस्लामी समाजइस संस्था को अपनी जरूरतों के लिए अपनाने के लिए जल्दी थे। मुस्लिम समाज के लिए इसके महत्व को अंततः प्रार्थना से पहले वशीकरण (वुदू और ग़ुस्ल) करने की धार्मिक आवश्यकता और शारीरिक और आध्यात्मिक शुद्धता पर एक सामान्य इस्लामी जोर द्वारा गारंटी दी गई थी, हालांकि विद्वान मोहम्मद होसीन बेनखेरा ने तर्क दिया है कि हम्माम प्रारंभिक इस्लाम में धार्मिक उद्देश्यों के लिए वास्तव में आवश्यक नहीं थे और यह संबंध बाद के इतिहासकारों द्वारा आंशिक रूप से माना गया था। उनका तर्क है कि हम्माम की प्रारंभिक अपील कम से कम कुछ मुस्लिम डॉक्टरों द्वारा इसके समर्थन से अन्य सेवाओं (जैसे शेविंग) के लिए इसकी सुविधा से प्राप्त हुई है।चिकित्सा के एक रूप के रूप में, और एक ऐसे क्षेत्र में जहां वे सदियों से मौजूद थे, में इसके सुखों की निरंतर लोकप्रिय प्रशंसा से। उन्होंने यह भी नोट किया कि शुरू में कई इस्लामी विद्वानों (उलमा) ने, विशेष रूप से मलिकी विद्वानों ने हम्माम के उपयोग का कड़ा विरोध किया था। इन शुरुआती उलमाओं ने हम्माम को पूरे शरीर के स्नान (ग़ुस्ल) के लिए अनावश्यक माना और सवाल किया कि क्या सार्वजनिक स्नान स्थान उचित शुद्धि प्राप्त करने के लिए पर्याप्त रूप से साफ हो सकते हैं। उन्हें इस बात की भी चिंता थी कि सामूहिक स्नान के स्थान अवैध यौन क्रिया के लिए स्थान बन सकते हैं। फिर भी, यह विरोध उत्तरोत्तर फीका पड़ गया और ९वीं शताब्दी तक अधिकांश विद्वानों को हम्माम के मुद्दे पर बहस करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, हालांकि कुछ रूढ़िवादी हलकों में इसे संदेह के साथ देखा जाना जारी रहा।
सबसे पहले ज्ञात इस्लामी हम्माम सीरिया के क्षेत्र में उमय्यद खलीफा (६६१-७५०) के दौरान महलों और रेगिस्तानी महल के हिस्से के रूप में बनाए गए थे। ये उदाहरण कुसायर 'अमरा, हम्माम अल-सारा, क़सर अल-हेयर अल-शर्की, और ख़िरबत अल-मजफ़र में पाए जाते हैं। इस अवधि के तुरंत बाद, इस्लामी स्नानघरों को मुस्लिम दुनिया के अधिकांश हिस्सों में पुरातात्विक रूप से प्रमाणित किया गया है, जिसमें हम्माम इदरीसिड काल (८ वीं के अंत में) के दौरान मोरक्को में वोलुबिलिस (स्वयं एक पूर्व रोमन उपनिवेश) के रूप में दूर दिखाई देते हैं। ९वीं शताब्दी की शुरुआत तक)। ऐतिहासिक ग्रंथ और पुरातात्विक साक्ष्य ८ वीं शताब्दी में कॉर्डोबा और अल-अंडालस के अन्य शहरों में हम्माम के अस्तित्व का भी संकेत देते हैं। ईरान में, जिसमें पहले सार्वजनिक स्नान की एक मजबूत संस्कृति नहीं थी, ऐतिहासिक ग्रंथों में १०वीं शताब्दी में स्नानघरों के अस्तित्व के साथ-साथ चिकित्सीय प्रयोजनों के लिए गर्म झरनों के उपयोग का उल्लेख है; हालांकि, इस क्षेत्र में हम्माम की प्रारंभिक उपस्थिति और विकास का दस्तावेजीकरण करने के लिए अपेक्षाकृत कम पुरातात्विक जांच हुई है।
मुसलमानों ने अन्य कार्यों को छोड़ कर शास्त्रीय स्नानागार के कई मुख्य तत्वों को बरकरार रखा जो उनकी प्रथाओं के लिए कम प्रासंगिक थे। उदाहरण के लिए, ठंडे कमरे से गर्म कमरे तक की प्रगति को बनाए रखा गया था, लेकिन गर्म कमरे से बाहर निकलने के बाद ठंडे पानी में डुबकी लगाना अब आम बात नहीं थी, न ही व्यायाम को स्नान संस्कृति में शामिल किया गया था क्योंकि यह शास्त्रीय व्यायामशालाओं में था। इसी तरह, और अधिक आम तौर पर, मुस्लिम स्नान करने वाले आमतौर पर खुद को रुके हुए पानी में नहाने के बजाय बहते पानी में नहाते हैं। यद्यपि प्रारंभिक इस्लामी इतिहास में महिलाओं ने आम तौर पर हम्माम का संरक्षण नहीं किया था, १० वीं शताब्दी के आसपास पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग घंटे (या अलग-अलग सुविधाएं) प्रदान करने के लिए कई जगहों पर यह आम बात हो गई थी। इसने हम्माम को महिलाओं के सामाजिक जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका हासिल करने की अनुमति दी, क्योंकि वे कुछ सार्वजनिक स्थानों में से एक थे जहां वे पुरुषों से दूर इकट्ठा और सामाजिककरण कर सकते थे। हम्माम का निजी स्वामित्व और महलों और मकानों में एकीकृत किया जा सकता था, लेकिन कई मामलों में उन्होंने नागरिक या धर्मार्थ संस्थानों के रूप में काम किया जो एक बड़े धार्मिक/नागरिक परिसर का हिस्सा थे। इस तरह के परिसरों को वक्फ समझौतों द्वारा शासित किया जाता था, और हम्माम अक्सर अन्य संस्थानों जैसे मस्जिदों के रखरखाव के लिए राजस्व के स्रोत के रूप में काम करते थे।
तुर्की की संस्कृति |
रविदास मेहरोत्रा,भारत के उत्तर प्रदेश की सोलहवीं विधानसभा सभा में विधायक रहे। २०१२ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश की लखनऊ मध्य विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र (निर्वाचन संख्या-१७४)से चुनाव जीता।
उत्तर प्रदेश १६वीं विधान सभा के सदस्य
लखनऊ मध्य के विधायक
१९५५ में जन्मे लोग |
मुर्ग मखानी एक मुगलाई पकवान है। यह भारत एवं पाकिस्तान में बहुत प्रचलित है। |
डेल्फी ( / घ एल एफ आ / ) में एक शहर और है काउंटी सीट के कैरोल काउंटी , में अमेरिकी राज्य के इंडियाना । [[] लाफेट के उत्तर-पूर्व में बीस मिनट की दूरी पर स्थित , यह लाफायेट, इंडियाना मेट्रोपॉलिटन स्टैटिस्टिकल एरिया का हिस्सा है । २०१० की जनगणना में जनसंख्या २,८९३ थी ।
इंडियाना के शहर |
फास्ट एंड फ्यूरियस ६ (फास्ट ६ या फ्यूरियस ६ के नाम से भी जानी जाती है), २०१३ की एक अमेरिकी एक्शन फ़िल्म है। जस्टिन लिन द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म के निर्माता नील एच॰ मोरिट्ज़, विन डीज़ल और क्लेटन टाउनसेंड हैं, और इसकी पटकथा क्रिस मॉर्गन द्वारा लिखी गयी है। यह द फास्ट एंड द फ्यूरियस फ़िल्म शृंखला की छठी फ़िल्म है। इस फ़िल्म को पहले १७ मई २०१३ को यूनाइटेड किंगडम में, और फिर २४ मई २०१३ को विश्व भर के सिनेमाघरों में जारी किया गया था। फ़िल्म को समीक्षकों से सकारात्मक समीक्षाएं मिली, और इसने दुनिया भर में ७८५ मिलियन डॉलर से अधिक की कमाई की।
रियो डि जेनेरो में चोरी के बाद से ही डॉम और उसकी टीम अलग-अलग जगहों पर रह रही है। ल्यूक हॉब्स डॉम को बताता है कि उसकी पूर्व प्रेमिका लैटी ओर्टिज़ ज़िंदा है, तथा ब्रिटेन में अपराधी ओवेन शॉ के साथ अवैध कार्यों में संलग्न है। डॉम अपने सभी साथियों को पुनः एकत्र करता है, और वे सभी लैटी से मिलने ब्रिटेन जाते हैं, जहां उन्हें पता चलता है कि लैटी को पिछला कुछ याद नहीं। डॉम और लैटी की अनेकों मुलाकातों के बाद अंत में वे सभी शॉ को एक हवाई अड्डे में रोकते हैं, जहाँ उसके गुंडों से उनका संघर्ष भी होता है। इसी संघर्ष में हान को बचाने के चक्कर में गिसेल की मृत्यु हो जाती है, लैटी रिले को मर देती है, और डॉम शॉ का पीछा करते हुए उसके विमान में विस्फोट कर देता है, जिसमें वह बुरी तरह घायल हो जाता है। लैटी को हालाँकि अब भी पहले का कुछ याद नहीं रहता, लेकिन वह फिर भी डॉम के साथ चली जाती है।
विन डीज़ल डोमिनिक टोरेटो
पॉल वॉकर ब्रायन ओ'कॉनर
ड्वेन जॉनसन ल्यूक हॉब्स
मिशेल रोड्रिग्ज़ लैटी ओर्टिज़
जोर्डना ब्रूस्टर मिया टोरेटो
टायरेसे गिब्सन रोमन पियर्स
क्रिस ब्रिजेस तेज पार्कर
सुंग कांग हान ल्यू
ल्यूक इवांस ओवेन शॉ
गीना कैरानो रिले हिक्स
गैल गैडट गिसेल याशर
जॉन ऑर्टिज़ आर्टूरो ब्रागा
शीया व्हिघम स्टेसीक
एल्सा पटाकी एलेना नेवेस
डेविड अजला आइवरी
किम कोल्ड क्लाउस
थ्यूर लिंडहार्ट फिरोज़
जो तस्लिम जाह
क्लारा पागेट वेग
जेसन स्टेथम डेकार्ड शॉ (विशेष उपस्थिति)
द फास्ट एंड द फ्यूरियस |
संस्कृत भाषा में रचित बौद्धों का चरितप्रधान साहित्य अवदान साहित्य कहलाता है। "अवदान" (प्राकृत अपदान) का अमरकोश के अनुसार अर्थ है - प्राचीन चरित, पुरातन वृत्त (अवदानं कर्मवृत्तंस्यात्)। "अवदान" से तात्पर्य उन प्राचीन कथाओं से है जिनके द्वारा किसी व्यक्ति की गुणगरिमा तथा श्लाघनीय चरित्र का परिचय मिलता है। कालिदास ने इसी अर्थ में "अवदान" शब्द का प्रयोग किया है (रघुवंश, ११. २१)। बौद्ध साहित्य में "जातक" शब्द भी बहुशः इसी अर्थ में प्रचलित है, परन्तु अवदान जातक से कतिपय विषयों में भिन्न है। "जातक" भगवान बुद्ध की पूर्वजन्म की कथाओं से सर्वथा सम्बद्ध होते हैं जिनमें बुद्ध ही पूर्वजन्म में प्रधान पात्र के रूप में चित्रित किए गए रहते हैं। "अवदान" में यह बात नहीं पाई जाती। अवदान प्रायः बुद्धोपासक व्यक्तिविशेष आदर्श चरित होता है। बौद्धों ने जनसाधारण में अपने धर्म के तत्वों के प्रचार के निमित्त सुबोध संस्कृत गद्य-पद्य में इस सुन्दर साहित्य की रचना की है।
इस साहित्य का प्रख्यात ग्रंथ "अवदानशतक" है जो दस वर्गों में विभक्त है तथा प्रत्येक वर्ग में दस-दस कथाएँ हैं। इन कथाओं का रूप थेरवादी (हीनयानी) है। महायान धर्म के विशिष्ट लक्षणों का यहाँ विशेष अभाव दृष्टिगोचर होता है। यहाँ बोधिसत्व संप्रदाय की बातें बहुत कम हैं। बुद्ध की उपासना पर आग्रह करना ही इन कथाओं का उद्देश्य है। इन कथाओं का वर्गीकरण एक सिद्धान्त के आधार पर किया गया है। प्रथम वर्ग की कथाओं में बुद्ध की उपासना करने से विभिन्न दशा के मनुष्यों (जैसे ब्राह्मण, व्यापारी, राजकन्या, सेठ आदि) के जीवन में चमत्कार उत्पन्न होता है तथा वे अगले जन्म में बुद्धत्व पाते हैं। अवदानशतक का चीनी भाषा में अनुवाद तृतीय शताब्दी के पूर्वार्ध में हुआ था। फलतः इसका समय द्वितीय शताब्दी माना जाता है।
महायानी सिद्धांतों पर आश्रित कथानकों का रोचक वर्णन इस लोकप्रिय ग्रंथ का प्रधान उद्देश्य है। इसका ३४वाँ प्रकरण "महायानसूत्र" के नाम से अभिहित किया गया है। यह उल्लेख ग्रंथ के मौलिक सिद्धांतों की दिशा प्रदर्शित करने में उपयोगी माना जा सकता है। दिव्यावदान, अवदानशतक के कथानक तथा काव्यशैली से विशेषतः प्रभावित हुआ है। इसकी आधी कथाएँ विनयपिटक से और बाकी सूत्रालंकार से संगृहीत की गई हैं। समग्र ग्रंथ का तो नहीं, परन्तु कतिपय कथाओं का अनुवाद चीनी भाषा में तृतीय शतक में किया गया था। शुंग वंश के राजा पुष्यमित्र (१७८ ई.पू.) तक का उल्लेख यहाँ उपलब्ध होता है। फलतः इसके कतिपय अंशों का रचनाकाल द्वितीय शताब्दी मानना उचित होगा, परन्तु समग्र ग्रंथ का भी निर्माणकाल तृतीय शताब्दी के बाद नहीं है।
दिव्यावदान के ही कतिपय अवदान (२६-२९ अवदान) महाराज प्रियदर्शी अशोक से संबद्ध होने के कारण "अशोकावदान" के नाम से पुकारे जाते हैं। इन कथाओं का, जो ऐतिहासिक दृष्टि से नितांत महत्वपूर्ण हैं, केन्द्रबिन्दु प्रियदर्शी अशोक ही हैं जिनके व्यक्तिगत घरेलू जीवन, धार्मिक निष्ठा तथा धर्मप्रचार के अदम्य उत्साह की जानकारी के लिए ये कथाएँ अभिप्रेत हैं। इस अवदान में दो कथाएँ अपनी रोचकता के कारण विशेष महत्त्व रखती हैं। अशोक के पुत्र कुणाल की करुण कथा बौद्धयुग की रोमांचक कथाओं में बड़ी प्रख्यात है। बुद्ध का रूप धारण कर मार का आचार्य उपगुप्त से शिक्षा के लिए प्रार्थना करना भी बड़ा ही रोचक आख्यान है, नाटक के समान हृदयावर्जक है।
कालान्तर में अवदानशतक की कथाओं का ही श्लोकबद्ध संक्षिप्त रूप अनेक ग्रंथों में मिलता है। "अवदानशतक" के ऊपर आश्रित ग्रंथों में कल्पद्रुमावदानमाला प्राचीनतम प्रतीत होत है। इसकी प्रथम तथा अवदानशतक की अंतिम कथा एक ही है। आचार्य उपगुप्त ने इन कथाओं को अशोक के उपदेश के लिए कहा है। यहाँ अवदानशतक के प्रत्येक वर्ग की प्रथम तथा द्वितीय कथाओं का ही शब्दान्तर से वर्णन है। रत्नावदानमाला में इसी प्रकार प्रत्येक वर्ग की तीसरी और चौथी कथाओं का संक्षेप है। अशोकावदानमाला, द्वाविंशत्यवदान, भद्रकल्पावदान, व्रतावदानमाला, विचित्रकर्णिकावदान तथा सुमोगधावदान इस साहित्य के अन्य ग्रंथ हैं। काश्मीरी कवि क्षेमेंद्र (११वीं शताब्दी) रचित तथा उनके पुत्र सोमेंद्र द्वारा सम्पूरित अवदानकल्पलता इस साहित्य का सचमुच एक बहुमूल्य रत्न है जिसकी आभा तिब्बती अनुवाद में भी किसी प्रकार फीकी नहीं होने पाई है। |
द स्टेटसमैन भारत मे प्रकाशित होने वाला एक अंग्रेजी भाषा का समाचार पत्र है। |
महाबन्धुल (बर्मी भाषा: ; ६ नवम्बर १७८२ १ अप्रैल १825) १८२१ से १८२५ में अपनी मृत्यु तक शाही बर्मी सेना का सेनापति था। उसने प्रथम आंग्ल-बर्मी युद्ध में अंग्रेजों से लोहा लिया था। बर्मा में महाबन्धुल को नायक के रूप में सम्मान प्राप्त है।
इन्हें भी देखें
बर्मा का इतिहास
प्रथम आंग्ल-बर्मी युद्ध
बर्मा का इतिहास |
एचएमआर प्रौद्योगिकी एवं प्रबंधन संस्थान एक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज है जो हमिद्पुर,नई दिल्ली, भारत में स्थित है और दोनों प्रबंधन और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों की पेशकश करता है। एचएमआर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट स्नातक स्तर पर इंजीनियरिंग के क्षेत्र के साथ-साथ प्रबंधन ( एमबीए ), और कंप्यूटर अनुप्रयोगों (एमसीए) में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में कई पाठ्यक्रम प्रदान करता है। यह गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय , दिल्ली से संबद्ध है।
एचएमआर की स्थापना २००२ में एआईसीटीई , एनसीटी, दिल्ली सरकार और गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय , दिल्ली के अनुमोदन से की गई थी। इसे हीरा लाल, मोहन देवी, रीता गुप्ता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा खोला गया था। ट्रस्ट ने अत्याधुनिक शैक्षिक सुविधाओं जैसे कि डिज़ाइन किए गए और हवादार वर्ग कमरे, प्रयोगशालाओं, कंप्यूटर प्रयोगशालाओं और पुस्तकालय को बनाने के लिए सभी प्रयास किए हैं। इंफ्रा स्ट्रक्चरल सुविधाएं न केवल पांच इंजीनियरिंग विषयों में छात्रों की मौजूदा ताकत के लिए प्रदान करती हैं, बल्कि भविष्य के विस्तार और प्रौद्योगिकी और प्रबंधन के क्षेत्र में पाठ्यक्रमों के अलावा के लिए भी प्रदान करती हैं।
संस्थान का परिसर ३ एकड़ के क्षेत्र में फैला है जो एक सुरक्षित और सुरक्षित वातावरण प्रदान करता है। परिसर में एक मुख्य प्रशासनिक ब्लॉक, पुस्तकालय, नवीनतम उपकरण, कार्यशालाएं, कोई सभागार नहीं है, सम्मेलन कक्ष एक में बिल्कुल नहीं है और एक गरीब कैंटीन नहीं है।
संस्थान ज्ञान और तकनीकी शिक्षा और अनुसंधान पर जोर देने के साथ एमबीए और एमसीए और बीटेक कार्यक्रमों में कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। संस्थान ने मूल्य संवर्धन कार्यक्रम भी शुरू किया है, जिसके तहत छात्र प्रत्येक नए सेमेस्टर में नई तकनीक के बारे में जानने के लिए और संबंधित प्रौद्योगिकी का उपयोग कर एक परियोजना बनाते हैं, ताकि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपने अभिनव दिमाग और रचनात्मकता को दिखा सकें।
एचएमआर प्रौद्योगिकी एवं प्रबंधन संस्थान में निम्नलिखित इंजीनियरिंग प्रभाग हैं:
इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार
इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स
मैकेनिकल और स्वचालन
सभी पाठ्यक्रमों में प्रवेश गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित सामान्य प्रवेश परीक्षा (सीईटी) के माध्यम से होता है। हालांकि कुछ सीटें प्रबंधन कोटा (५ लाख) के माध्यम से आरक्षित हैं, जिसमें प्रबंधन जीजीएसआईपीयू द्वारा निर्धारित मानदंडों के आधार पर निर्णय लेता है। इसके साथ ही, डिप्लोमा धारकों के लिए पार्श्व प्रविष्टियों के माध्यम से कुछ सीटें हैं, दुसरे वर्ष में। |
काशीपेट (कासिपेट) भारत के तेलंगाना राज्य के मंचेरियल ज़िले में स्थित एक नगर है।
इन्हें भी देखें
तेलंगाना के नगर
मंचेरियल ज़िले के नगर |
जेम्स नाम से शुरू होने वाले लेख
जेम्स वेब खगोलीय दूरदर्शी
जेम्स क्लर्क मैक्सवेल
सेंट जेम्स पैलेस
राजकुमार जेम्स, वेसेक्स के अर्ल
जेम्स ब्रेड टेलर
जेम्स नॉक्स पोल्क
जेम्स बॉन्ड फ़िल्म शृंखला
जेम्स अब्राहम गार्फ़ील्ड |
पागलादिया नदी (पगलेडिया रिवर) भारत के असम राज्य में बहने वाली एक नदी है। यह ब्रह्मपुत्र नदी की एक उपनदी है जो भूटान में उत्पन्न होती है और फिर बाक्सा ज़िले और नलबाड़ी ज़िले से बहकर ब्रह्मपुत्र में विलय हो जाती है।
इन्हें भी देखें
ब्रह्मपुत्र नदी की उपनदियाँ
भूटान की नदियाँ
असम की नदियाँ |
दुजेल इराक के सलादिन प्रांत में एक शिया जिला है। यह इराक की राजधानी बगदाद के ६५ किलोमीटर (४० मील) उत्तर में स्थित है, और इसमें लगभग १००,००० निवासी हैं। यह १९८२ के दुजेल नरसंहार और २००८ दुजेल बमबारी का स्थान था।
इराक का भूगोल |
ऐसा कहा जा रहा है कि सुभाष चन्द्र बोस कि अन्तिम ज्ञात यात्रा और विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु के बाद नेताजी के साथ जो मूल्यवान वस्तुएँ मिलीं थी, उसका आजाद हिन्द के लोगों ने दुरुपयोग किया। आजाद हिंद फौज के कोष को उस समय सात लाख डॉलर के बराबर आंका गया था। आजाद हिंद फौज के कोष के गबन के बारे में सबसे पहले अनुज धर ने सन् २०१२ में छपी 'इंडियाज बिगेस्ट कवर-अप' नामक अपनी पुस्तक में विस्तार से लिखा था।
वर्ष २०१६ में सार्वजिनक किए गए नेता जी से जुड़े दस्तावेजों से इस बात की पुष्टि हुई है कि आजाद हिंद फौज का खजाना चुराया गया था। सन् १९५१ से १९५५ के दौरान भारत और जापान के बीच हुई बातचीत से यह भी पता चलता है कि भारत की तत्कालीन नेहरू सरकार को इस कोष के गबन के बारे में पता था। नैशनल आर्काइव की गोपनीय फाइलों से पता चलता है कि सरकारी अधिकारियों को नेता जी के दो पूर्व सहयोगियों पर शक था। उनमें से एक सहयोगी को सम्मान दिया गया और नेहरू की पंचवर्षीय योजना कार्यक्रम का प्रचार सलाहकार बनाया गया।
२१ मई, १९५१ को तोक्यो मिशन के मुख्य अधिकारी के. के. चित्तूर ने राष्ट्रमंडल मामलों के सचिव बी. एन. भट्टाचार्य को सुभाष चंद्र बोस के दो सहयोगियों- प्रॉपेगैंडा मिनिस्टर एस. ए. अय्यर और तोक्यो में आजाद हिंद फौज के मुख्याधिकारी मुंगा रामामूर्ति के बारे में संदेह जाहिर करते हुए लिखा था-
जैसा कि आपको अवश्य पता होगा, इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के फंड के दुरुपयोग को लेकर रामामूर्ति के विरुद्ध गंभीर आरोप हैं। इसमें स्वर्गीय सुभाष चंद्र बोस की निजी संपत्ति भी शामिल है, जिसमें बड़ी मात्रा में हीरे, आभूषण, सोना और अन्य मूल्यवान वस्तुएँ हैं। यह सही हो या गलत, लेकिन अय्यर का नाम भी इन आरोपों से जोड़ा जा रहा है।
आजाद हिंद फौज का खजाना चुराने वाले को नेहरू ने दिया था इनाम?
नेहरू सरकार की चुप्पी से लूटा गया आईएनए का खजाना
आज़ाद हिन्द फ़ौज |
नैया १९७९ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
ज़रीना वहाब - गीता
सी एस दुबे
दिनेश ठाकुर - डॉक्टर
जय श्री टी - नर्तकी / गायिका
नामांकन और पुरस्कार
१९७९ में बनी हिन्दी फ़िल्म |
अभिप्रेरण (मोतीवेशन) का अर्थ किसी व्यक्ति के लक्ष्योन्मुख (गोल-ओरिएंटेड) व्यवहार को सक्रिय या उर्जान्वित करना है। मोटिवेशन दो तरह का होता है - आन्तरिक (इण्ट्रीन्सिक) या वाह्य (एक्स्ट्रीन्सिक)। अभिप्रेरण के बहुत से सिद्धान्त हैं। अभिप्रेरण के मूल में शारीरिक कष्टों को न्यूनतमीकरण तथा आनन्द को अधिकतम् करने की मूल आवश्यकता हो सकती है; या इसके पीछे विशिष्त आवश्यकताएँ, जैसे खाना, आराम करना या वांछित वस्तुएँ, रूचि (हॉबी), लक्ष्य, आदर्श आदि हो सकते हैं। अभिप्रेरण की जड़ में कुछ अल्प-स्पष्ट कारण, जैसे - स्वार्थ, नैतिकता/अनैतिकता आदि भी हो सकते हैं।
प्रेरणा के स्रोत
प्रेरणा के प्रमुख ४ स्रोत होते हैं- आवश्यकताएं, चालक, उद्दीपन, प्रेरक।
प्रत्येक प्राणी की कुछ मौलिक आवश्यकताएं होती है। जिसके बिना उसका अस्तित्व सम्भव नहीं है जैसे भोजन, पानी, हवा इत्यादि। इन आवश्यकताओ की तृप्ति पर ही व्यक्ति का जीवन निर्भर करता है।
प्राणी की आवश्यकता से चालक का जन्म होता है। चालक, शक्ति का वह स्रोत है जो प्राणी को क्रियाशील करता है। जैसे भोजन की आवश्यकता से भूख-चालक की उत्पत्ति होती है। भूख चालक उसे भोजन की खोज करने के लिए प्रेरित करता है।
पर्यावरण की वे वस्तुएं जिसके द्वारा प्राणी के चालकों की तृप्ति होती है, उद्दीपन कहलाती हैं। भूख एक चालक है, और भूख चालक को भोजन संतुष्ट करता है। अतः भूख चालक के लिए भोजन उद्दीपन है। आवश्यकता, चालक व उद्दीपन तीनों में सम्बन्ध होता है।
आवश्यकता, चालक को जन्म देती है। चालक बढे़ हुए तनाव की दशा है जो कार्य और प्रारम्भिक व्यवहार की ओर अग्रसर करता है। उद्दीपन बाहरी वातावरण की कोई भी वस्तु होती है जो आवश्यकता की सन्तुष्टि करती है और इस प्रकार क्रिया के द्वारा चालक को कम करती है।
प्रेरक शब्द व्यापक है। प्रेरकों को आवश्यकता, इच्छा, तनाव, स्वभाविक स्थितियाँ, निर्धारित प्रवृतियाँ, रूचि, स्थायी उद्दीपक आदि से जाना जाता है। यह किसी विशेष उद्देश्य की ओर व्यक्ति को ले जाते हैं।
अभिप्रेरण के प्रकार
(१) जन्मजात अभिप्रेरण - भूख, प्यास, भय आदि
(२) अर्जित अभिप्रेरण
(क) सामाजिक अभिप्रेरण -- समूह में रहना, संचय, प्रेम, युयुत्सा
(ख) व्यक्तिगत अभिप्रेरण -- अभिवृत्ति, विश्वास, रूचि, महत्वकांक्षा का स्तर, लक्ष्य, आदत
प्रेरणा, विचारों और व्यवहार को प्रभावित करती है। इसे एक चक्र के रूप में देखा जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति के अनुभवों की प्रेरणा दूसरे को प्रभावित करती है। जो व्यवहार, विश्वासों, इरादों, और प्रयासों से बनता है। यह अभिप्रेरण से जुड़ा हुआ है |
जय श्री कृष्ण (कलर्स) एक हिन्दी टी वी चैनल कलर्स का एक पौराणिक कार्यक्रम है।
कलर्स चैनल के कार्यक्रम
भारतीय टेलीविजन धारावाहिक |
तारानगर (तरनागर) भारत के राजस्थान राज्य के चूरू ज़िले में स्थित एक नगर है।
तारानगर चुरू ज़िले के उत्तर भाग में स्थित है। इसकी जलवायु उष्ण कटिबंधीय है। चारो ओर थार मरुस्थल है। यहाँ पर ग्रीष्म ऋतु में तापमान उच्चतम स्तर पर ५०च से अधिक रहता है और सर्दियों में तापमान गिरकर ०च तक पहुंच जाता है।
तारानगर के गांवों का इतिहास श्री सार्वजनिक पुस्तकालय तारानगर द्वारा प्रकाशित तथा ब्रह्मानंद पारीक व कालू राम पुरोहित बुचावास द्वारा संपादित अर्चना भाग २ स्मारिका से विस्तृत रूप में पढ़ा जा सकता है। जाट यहाँ कि बड़ी आबादी है और प्रमुखता से प्रत्येक सामजिक, राजनीतिक कार्यो में भाग लेते है।
गोगाजी इस क्षेत्र में विशेष पूजनीय देवता है। तेजाजी महाराज कि भी सर्वसमाज द्वारा पूजा जाता है।
शिक्षा का स्तर यहाँ काफी उच्च है। इस क्षेत्र में तारानगर ने पिछले कुछ समय में काफी तरक्की की है और आज राजस्थान के बड़े शिक्षा के क्षेत्रों में गिना जाता है। हर साल सरकारी व निजी संस्थानों द्वारा राज्य स्तर पर सैकड़ों मेरिट दी जाती है |
तारानगर से हर वर्ष हजारो जवान सेना में भर्ती होते है। अपने देश कि रक्षा अपने तन-मन के द्वारा पूर्ण रूप से करते है। देश के वीर जवानों कि प्रति यहाँ के लोगो में इज्जत है। हर साल शहीद दिवस मनाया जाता है।
राजनीति में भी तारानगर काफी उच्च स्तर पर है। यहा से चुने हुए प्रतिनिधि कई बार सरकार में मंत्री पद पर स्थापित हो चुके है।
खेल खेल में भी तारानगर से कई खिलाडी है, जो राज्य स्तर पर खेलते है।
इन्हें भी देखें
तारानगर विधानसभा क्षेत्र (राजस्थान)
तारानगर में किसानों को बाटे ऋण माफ़ी प्रमाण पत्र- न्यूज हंट
राजस्थान के शहर
चूरू ज़िले के नगर |
लालबाग का राजा मुंबई का सबसे अधिक लोकप्रिय सार्वजनिक गणेश मंडल है। लालबागचा राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल की स्थापना वर्ष १९३४ में चिंचपोकली के कोलियों के द्वारा हुई थी। यह मुंबई के लालबाग, परेल इलाके में स्थित हैं।
यह गणेश मंडल अपने १० दिवसीय समारोह के दौरान लाखों लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस प्रसिद्ध गणपति को नवसाचा गणपति (इच्छाओं की पूर्ति करने वाला) के रूप में भी जाना जाता है। हर वर्ष दर्शन पाने के लिए यहाँ करीबन ५ किलो मीटर की लंबी कतार लगती है। लालबाग के गणेश मूर्ति का विसर्जन गिरगांव चौपाटी में दसवें दिन किया जाता है।
इस मंडल की स्थापना वर्ष १९३४ में अपने मौजूदा स्थान पर (लालबाग, परेल) हुई थी। पूर्व पार्षद श्री कुंवरजी जेठाभाई शाह, डॉ॰ वी.बी कोरगाओंकर और स्थानीय निवासियों के लगातार प्रयासों और समर्थन के बाद, मालक रजबअली तय्यबअली ने बाजार के निर्माण के लिए एक भूखंड देने का फैसला किया। मंडल का गठन उस युग में हुआ जब स्वतंत्रता संघर्ष अपने पूरे चरम पर था। लोकमान्य तिलक ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ की लोगों की जागृति के लिए सार्वजनिक गणेशोत्सव को विचार-विमर्श को माध्यम बनाया था। यहा धार्मिक कर्तव्यों के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक मुद्दों पर भी विचार विमर्श किया जाता था। मुम्बई में गणेश उत्सव के दौरान सभी की नजर प्रसिद्ध लालबाग के राजा के ऊपर होती है। इन्हें मन्नतों का गणेश भी कहा जाता है। लालबाग में स्थापित होने वाले गणेश भगवान की प्रतिमा के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं और ये भक्तगण कई कई घंटो (२० से २५ घंटे) तक कतारों में खड़े रहते हैं। गणेश चतुर्थी के दिन लालबाग के राजा यानी गणेश भगवान की प्रतिमा की प्रतिष्ठापना के बाद यहां मन्नत के साथ आने वाले भक्तगणों में बॉलीवुड के कई मशहूर फिल्मी सितारे भी शामिल होते हैं। बॉलीवुड की फिल्मी हस्तियां सुबह आकर ही यहां गणेश भगवान की पूजा कर अपने मनोकामना पूरी होने की प्रार्थना करते हैं।
"लालबागचा मंडल" में आई हुई दान रकम से कई चैरिटी भी चलती है। इस मंडल की अपनी कई अस्पताल और एम्बुलेंस हैं जहां गरीबों का निःशुल्क इलाज किया जाता है। प्राकृतिक आपदाओं में राहत कोष के लिए भी "लालबागचा मंडल" आर्थिक रूप से मदद करता है। १९५९ में कस्तूरबा फंड, १९४७ में महात्मा गांधी मेमोरियल फंड और 'बिहार बाढ़ राहत कोष' के लिए दान दिया गया था। |
भीमकाय टक्कर परिकल्पना (गियांट-इम्पैक्ट हाइपोथेसिस), चन्द्रमा की उत्पत्ति से सम्बन्धित परिकल्पना है। इस परिकल्पना के अनुसार, लगभग ४.५ बिलियन वर्ष पहले पृथ्वी के साथ एक विशालकाय पिण्ड की टक्कर हुई थी जो मंगल के आकार का था। चन्द्रमा की उत्पत्ति पृथ्वी के उन मलवों से हुई जो इस टक्कर के परिणामस्वरूप बने थे। |
प्रतिस्पर्धा जीवों या प्रजातियों के बीच एक अंतःक्रिया है जिसमें दोनों जीवों को नुकसान होता है। दोनों द्वारा उपयोग किए जाने वाले कम से कम एक संसाधन (जैसे भोजन , पानी और क्षेत्र) की सीमित आपूर्ति एक कारक हो सकती है। पारिस्थितिकी , विशेष रूप से सामुदायिक पारिस्थितिकी में प्रजातियों के भीतर और प्रजातियों के बीच प्रतिस्पर्धा एक महत्वपूर्ण विषय है। प्रतिस्पर्धा कई अंतःक्रियात्मक जैविक और अजैविक कारकों में से एक है जो सामुदायिक संरचना को प्रभावित करती है। एक ही प्रजाति के सदस्यों के बीच प्रतिस्पर्धा को अंतर-विशिष्ट प्रतियोगिता के रूप में जाना जाता है, जबकि विभिन्न प्रजातियों के व्यक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा को अंतर-विशिष्ट प्रतियोगिता के रूप में जाना जाता है;प्रतिस्पर्धा हमेशा सीधी नहीं होती है, और यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से हो सकती है।
प्रतिस्पर्धी बहिष्करण सिद्धांत के अनुसार, संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा करने के लिए कम अनुकूल प्रजातियों को या तो अनुकूलित करना चाहिए या मर जाना चाहिए, हालांकि प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में प्रतिस्पर्धात्मक बहिष्करण शायद ही कभी पाया जाता है। विकासवादी सिद्धांत के अनुसार, प्राकृतिक चयन में संसाधनों के लिए प्रजातियों के भीतर और प्रजातियों के बीच यह प्रतिस्पर्धा महत्वपूर्ण है। हालांकि, प्रतिस्पर्धा बड़े समूहों के बीच विस्तार की तुलना में कम भूमिका निभा सकती है; इसे 'रूम टू रोम' परिकल्पना कहा जाता है।
प्रतियोगिता (जीव विज्ञान)
'विजय के रोमांच' के लिए जैविक आधार
जनसंख्या की गतिशीलता |
सकद, केरमेरि मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है।
आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट
आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग
निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल
आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट |
भारत अधिराज्य, वर्तमान भारत(अर्थात् भारत गणराज्य) की संक्रमणकालीन अवस्था थी। यह ३ वर्ष तक; १९४७ से १९५० में संविधान के प्रवर्तन तक, अस्तित्व में रही थी। यह मूल रूप से भारत में ब्रिटिश-उपनिवेशिक शासित अवस्था से स्वतंत्र, स्वायत्त, लोकतान्त्रिक, भारतीय गणराज्य के बीच की अस्थाई शासन अथवा राज्य थी। इसे आधिकारिक रूप से हिंदी में भारत अधिराज्य एवं अंग्रेजी में डोमिनियन ऑफ़ इणृडिया() कहा था। सन १५ अगस्त १९४७ में ब्रितानियाई संसद में भारतीय स्वतन्त्रता अधीनियम पारित होने के बाद, अधिकारिक तौर पर, यूनाईटेड किंगडम की सरकार ने भारत पर अपनी प्रभुता त्याग दी और भारत में स्वशासन अथवा स्वराज लागू कर दिया। इसके साथ ही ब्रिटिश भारत(ब्रिटिश-भारतिय उपनिवेष) का अंत हो गया और भारत कैनडा और ऑस्ट्रेलिया की ही तरह एक स्वायत्त्योपनिवेष(डोमिनियन) बन गय, (अर्थात ब्रिटिश साम्राज्य में ही स्वायत्त इकाई)। ब्रिटिश संसद के भारत-सम्बन्धित सारे विधानाधिकारों को (१९४५ में गठित) भारत की संविधान सभा के अधिकार में सौंप दिया गया, भारत, ब्रिटिश-राष्ट्रमंडल प्रदेश का सहपद सदस्य भी बन गया साथ ही ब्रिटेन के राजा ने भारत के सम्राट का शाही खिताब त्याग दिया। ब्रिटिश स्वायत्तयोपनिवेष एवं रष्ट्रमाडल प्रदेश का हिस्सा होने के नाते इंगलैंड के राजा ज्यौर्ज (षष्ठम) को भारत का राष्ट्राध्यक्ष बनाया गया एवं आन्य राष्ट्रमंडल देशों की तरह ही भारतीय लहज़े में उन्हें भारत के राजा की उपाधि से नवाज़ा गया (यह पद केवल नाम-मात्र एवं शिष्टाचार के लिये था), भारत में उनका प्रतिनिधित्व भारत के महाराज्यपाल(गवरनर-जनरल) के द्वारा ही होता था। १९५० में संविधान के लागू होने के साथ ही भारत एक पूर्णतः स्वतन्त्र गणराज्य बन गया और साथ ही भारत के राजा के पद को हमेशा के लिये स्थगित कर दिया गया, और भारत के संविधान द्वारा स्थापित लोकतान्त्रिक प्रक्रिया द्वारा चुने गए भारत के महामहिं राष्ट्रपति के पद से बदल दिया गया। इस बीच भारत में दो महाराज्यपालों को नियुक्त किया गया, महामहिम महाराज्यपाल लाॅर्ड माउण्टबेटन और महामहिम महाराज्यपाल चक्रवर्ती राजागोपालाचारी। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी इस अधिराज्य के अन्तिम गवर्नर-जनरल थे।
भारत में ब्रिटिश-औपनिवेशिक-काल के दैरान स्वशासन व स्वराज की मांगें कई बार उठती रहीं पर ब्रिटिश सरकार ने इन मांगों को हर बार खारिज कर दिया व सारे आंदोलनों को बल द्वारा दबाने की कोशिश करती रही। परंतू १९२० के दशक में स्वराज के लिये शुरू हुए इस आंदोलन को पूर्ण-स्वराज में परिवर्तित होने में देर नहीं लगी। तमाम उतार-चढ़ावों के बाद करीब ३० वर्षों के बाद १९४७ अंग्रेज़ सरकार ने भारत को स्वराज प्रदान करने का फ़ैसला कर लिया। महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये गए नमक सत्याग्रह की सफ़लता व उसे मिले विशाल जनसमर्थन के बाद अंग्रेज़ सरकार समझ गई थी की भारत को ज़यादा समय तक अब विदेशी-नियंत्रण में रखना असंभव था, और स्वतंत्रता केवल समय की बात रह गई थी। कौंग्रेस द्वारा किये गए पूर्ण-स्वराज घोशणा, ब्रिटिश-भारतिय नौसेना का विद्रोह और द्वितीय विष्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन में आई आर्थिक-मंदी ने आखरी कील का काम किया। १९४७ में ब्रिटेन की संसद में भारतिय स्वतंत्रता अधीनियम के पारित होने के बाद, ब्रिटिश सरकार ने भारत पर अधिपत्यता त्याग दी और इसी के साथ भारत में स्वराज की स्थापना हुई। इसके बाद, ब्रिटिश कानूनन् प्रक्रिया के तहत भारत को ब्रिटिश-उपनिवेष से ब्रिटिश-स्वायत्तयोपनिवेष(डोमीनियन) का दरजा दे दिया गया। जिसके बाद, कानून तौर पर भारत एक स्वायत्तय एवं स्वतंत्र राष्ट्र बन गया एवं प्रक्रिया-स्वरूप भारत, ब्रिटिश-राष्ट्रमंडल प्रदेश का हिस्सा बन गया और आन्य राष्ट्रमंडल प्रदेशों की तरह ब्रिटेन के राजा, जौर्ज षष्ठम को भारत का राष्ट्राध्यक्ष बना दिया गया, जिसके तहत भारतिय कानूनन् तैहज़े में उन्हें भारत के राजा का पारंपरिक एवं नम-मात्र के पद से सम्मानित किया गया। भारत में उनका प्रतिनिधित्व भारत के महाराज्यपाल(गवर्नर-जनरल) द्वारा होता था, जिन्हें "भारत के राजा" का सारा कार्याधिकार हासिल था।
१९५० में संविधान को संविधानसभा की स्वीकृती मिल गई और २६ जनवरी १९५० को संविधान के परवर्तन के साथ ही भारत एक स्वतंत्र गणराज्य बन गया और आधिराजकिय व्यवस्था को संविधान द्वारा गणराजकिय व्यवस्था से बदल दिया गया। भारत के राजा व महाराज्यप्ल के पद को समाप्त कर दिया गया एवं लोकतांत्रिक रूप से चुने हुए भारत के महामहिं राष्ट्रपति को राष्ट्राध्यक्ष बना दिया गया।
राजतंत्रिक व्यवस्था एवं कार्यप्रणाली
अधिराजकीय राजतंत्रिक व्यवस्था में सारे स्वायत्त्योपनिवेशों (या अधिराज्य) का केवल एक ही नरेश एवं एक ही राजघराना होता है, अर्थात सारे अधिराज्यों पर एक ही व्यक्ति (सम्राट, नरेश राजा या शासक) का राज होता है। यह नरेश, हर एक अधिराज्य पर सामान्य अधिकार रखता है एवं हर अधिराज्य में संवैधानिक व कानूनन रूप से उसे राष्ट्राध्यक्ष का दर्जा प्राप्त होता है। यह होने के बावजूद सारे अधिराज्य स्वतंत्र एवं तथ्यस्वरूप स्वतंत्र रहते हैं क्योंकि हर देश में अपनी खुद की स्वतंत्र सरकार होती है और नरेश का पद केवल परंपरागत एवं कथास्वरूप का होता है। शासक का संपूर्ण कार्यभार एवं कार्याधिकार उस देश के महाराज्यपाल के नियंत्रण मे रहता है जिसे तथ्यस्वरूप सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। इस तरह की व्यवस्था सार्थक रूप से ब्रिटिश साम्राज्य व ब्रिटिश-राष्ट्रमंडल प्रदेशों(ब्रिटेन, कैनडा, ऑस्ट्रेलिया, अदि) व पूर्व ब्रिटिश अधिराज्यों की शासन प्रणाली में देखी जा सकती है। भारत में इस क्षणिक स्वयत्योपनिवेशिय काल में इसी तरह की शासन प्रणाली रही थी। इस बीच भारत में विधानपालिकी का पूरा कार्यभार संविधानसभा पर था व कार्यपालिका का मुखिया भारत के प्रधानमंत्री थे। इस बीच भारत पर केवल एक; राजा जाॅर्ज (षष्ठम) का राज रहा, एवं दो महारज्यपालों व एक प्रधानमंत्री की नियुक्ती हुई।
भारत के नरेशों की सूची
भारत के महाराज्यपालों की सूची
भारत अधिराज्य के प्रधानमंत्रियों की सूची
इन्हें भी देखें
भारत का विभाजन
अन्तरिम भारत सरकार
भारत गणराज्य का इतिहास
भारत का इतिहास
१९५० में विस्थापित देश या क्षेत्र |
कैंडलस्टिक पैटर्न की खोज एक जापानी व्यापारी द्वारा की गयी थी | इसलिए इस कैंडल को जापानी कैंडल भी कहा जाता है | इनके आकार के आधार पर इन्हें कई वर्गो में विभाजित किया गया है | हैमर पैटर्न भी एक प्रकार का कैंडलस्टिक पैटर्न है जो डाउन ट्रेंड को अपट्रेंड में बदलने का कार्य करता है | जब किसी कैंडल में निचे की शैडो, उसके बॉडी से दुगने से अधिक हो तथा अपर शैडो बहुत छोटी हो या न हो तब इस प्रकार के कैंडल को हैमर कैंडल के नाम से जाना जाता है | इस कैंडल में रंग का कोई विशेष महत्व नहीं होता है | यह कैंडल लाल या हर हो सकता है | लेकिन यदि इस कैंडल का रंग हरा हो तो पैटर्न अधिक प्रभावशाली होता है | इस कैंडल का निर्माण तब होता है जब बाज़ार में बड़ी बिकवाली के बाद बुल्स हावी होकर बड़ी खरीदारी कर लेते है | यह कैंडल बुल्स तथा बियर्स के मध्य ऐसे युद्ध को दर्शाता है जिसमें बुल्स विजय हासिल करते है | यह एकल कैंडलस्टिक पैटर्न का एक प्रकार है |
जब यह हैमर कैंडल किसी डाउन ट्रेंड के बॉटम पर बनता है तब इस पैटर्न को हैमर कैंडलस्टिक पैटर्न कहा जाता है | इस कैंडल के निर्माण के बाद डाउन ट्रेंड के अंत तथा अपट्रेंड की शुरुआत का संकेत मिलता है | एक ट्रेडर इन्ही संकेत का लाभ उठा कर ट्रेड करता है तथा मुनाफा कमाता है |
सामान्यतः इस पैटर्न का निर्माण शेयर के सपोर्ट के लेवल पर होता है | जब कंपनी का शेयर अपने सपोर्ट के लेवल के आस-पास पहुचता है तब बुल्स शेयर में खरीदारी करने लगते है इस कारण से इस पैटर्न का निर्माण हो जाता है |
हैमर कैंडलस्टिक पैटर्न के कन्फर्म हो जाने के बाद ट्रेडर खरीदारी में ट्रेड लेते है तथा अपना स्टॉप लॉस हैमर कैंडल के लो पर लगाते है |
हैंगगिंग मैन और हैमर पैटर्न में अंतर
हैंगिंग मैन कैंडलस्टिक पैटर्न दिखने में हुबहु हैमर कैन्डल्स्टिक पैटर्न की तरह ही होता है परंतु इन दोनों पैटर्न में एक बहुत बड़ा अंतर होता है | जहां हैमर कैंडलस्टिक पैटर्न डाउनट्रेंड के बाद बनता है वही हैंगगिंग मैन कैन्डल्स्टिक पैटर्न अपट्रेंड के बाद बनता है।
हैमर और शूटिंग स्टार कैन्डल्स्टिक पैटर्न में अंतर
शूटिंग स्टार कैन्डल्स्टिक पैटर्न हैमर कैंडलस्टिक से दिखने में एकदम उल्टा होता है। शूटिंग स्टार पैटर्न डाउनट्रेंड का संकेत देता है। शूटिंग स्टार अधिकतर अपने रेजिस्टेंस या सप्लाई जोन के पास बनता है और यह दर्शाता है की अब यहां से स्टॉक का प्राइस नीचे जा सकता है।
जितना ज्यादा महत्व हैमर पैटर्न को दिया जाता है बुलिश ट्रेंड का संकेत देने के लिए उतना ही महत्व शूटिंग स्टार पैटर्न को दिया जाता है बेयरिश ट्रेंड की तरफ इशारा करने के लिए | |
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