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जोहान्स विल्हेम जेन्सेन (१८७३-१९५०) डेनमार्क के उपन्यासकार, कवि, निबंधकार एवं पत्रकार थे। १९४४ ई० में साहित्य में नोबेल पुरस्कार विजेता।
जोहान्स जेन्सेन का जन्म उत्तरी जटलैंड के हिम्मरफैंड शहर में हुआ था। इनके पिता पशु-चिकित्सक थे। इन्होंने वहाँ के कैथेड्रल स्कूल से मैट्रिक पास किया और फिर डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए कोपेनहेगन गये। परिवार बड़ा होने के कारण इन्हें अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठाना पड़ता था। १८९३ में इन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई शुरू की और १८९५ से ही कहानियाँ भी लिखने लगे थे। १८९७ में इन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई छोड़ कर अपने-आपको पत्रकारिता और साहित्य-सेवा में लगा दिया। १८९८ में स्पेन-अमेरिका युद्ध में इन्हें युद्ध-संवाददाता के रूप में पेरिस की विश्व प्रदर्शनी में भेजा गया, जहाँ के नये वातावरण ने इन पर बड़ा प्रभाव डाला था।
जेन्सेन की औपन्यासिक कृतियों में सबसे पहले कोंगैन्स फाल्ड का प्रकाशन हुआ था, जिसका अंग्रेजी अनुवाद १९३३ ई० में प्रकाशित हुआ। यह डेनिश भाषा का प्रथम प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यास के रूप में जाना गया। इसमें पुराना कृषक-जीवन और उसके विरोधी दृष्टिकोण का सुंदर चित्रण हुआ है। उन्होंने डेनमार्क के ग्रामीण जीवन पर बहुत अच्छा लिखा, नये मुहावरों का प्रयोग किया और यात्रा वर्णन भी लिखे। उनकी रचनाओं के बारे में दि अमेरिकन स्कैंडिनेवियन रिव्यू में कहा गया था: इनके उपन्यास पुराने युग के हैं, पर वे अपने युग के समाज के दर्पण-से हैं। इसमें कथानक की ओर उतना ध्यान देने की आवश्यकता नहीं पड़ती जितना सामयिक चित्रण की ओर।
जेन्सेन ने अपनी आत्मकथा के रूप में अपनी अमेरिका यात्रा की कहानी भी लिखी। ७६ वर्ष की उम्र में प्रकाशित पुस्तक अफ्रीका में यात्रा-वर्णन के साथ-साथ उनके पत्रकारिता और सांस्कृतिक ज्ञान का भी प्रभूत परिचय उपस्थापित हुआ है। जेन्सेन का प्रभाव डेनिश भाषा पर विशेष रूप से पड़ा क्योंकि उन्होंने कुल मिलाकर ७० पुस्तकें लिखी और अगणित लेख लिखे। उनके अनेक विचार ऐसे हैं जिनके बारे में मतभेद की गुंजाइश है, परंतु उनकी अभिव्यक्ति की उच्च शक्ति से इनकार नहीं किया जा सकता।
अफ्रीका ( सांस्कृतिक यात्रा-वर्णन)
नोबेल पुरस्कार विजेता साहित्यकार
१८७३ में जन्मे लोग
१९५० में निधन |
स्यूणा, जैंती तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
स्यूणा, जैंती तहसील
स्यूणा, जैंती तहसील
स्यूणा, जैंती तहसील |
बालेगाव, आसिफाबाद मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है।
आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट
आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग
निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल
आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट |
सय्यद हमीद सईद काज़मी एक राजनीतिज्ञ है पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा में | वह ना-१९२ निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है पाकिस्तानी पंजाब के लिएपाकिस्तानी पंजाब के प्रतिनिधियों - पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा |
पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा के सदस्य |
१३९८ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है।
अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ
तैमूरलंग द्वारा भारत पर आक्रमण।
कबीर साहेब का (लगभग १४वीं-१५वीं शताब्दी) जन्म स्थान काशी, उत्तर है। कबीर साहेब का प्राकट्य सन १३९८ (संवत १४55), में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को ब्रह्ममूहर्त के समय कमल के पुष्प पर हुआ था. |
प्रिंस एंड्रयू, यॉर्क के ड्यूक (एंड्रयू अल्बर्ट क्रिस्चियन एडवर्ड; जन्म १९ फरवरी १९60) ब्रिटिश शाही परिवार के एक सदस्य है। वे महारानी एलिजाबेथ द्वितीय और राजकुमार फिलिप, एडिनबर्ग के ड्यूक के दूसरे पुत्र है। १९86 से उन्हें यॉर्क के ड्यूक की उपादि से जाना जाता है, और वे यूनाइटेड किंगडम के सिंहासन पर उत्तराधिकार के क्रम में नौवे स्थान पर है।
प्रिंस एंड्रयू का जन्म बकिंघम पैलेस, लंदन में हुआ था। उनहोंने हीथरडाउन प्रीपरेटरी स्कूल, बर्कशायर, इंग्लैंड और गोर्डोंसटाउन, स्कॉटलैंड से अपनी प्राथमिक शिक्षा ली। प्रिंस एंड्रू ने यूनिवर्सिटी में पढ़ने के बजाय ब्रिटानिया रॉयल नेवल कॉलेज में जाना पसंद किया। नौसेना में उन्होंने फ़ॉकलैंड युद्ध में सेवा की है, और अपने कैरियर को जारी रखा, १९९९ में वे एक कमांडर और २००१ में मानद कप्तान बन गए।
१९८६ में, प्रिंस एंड्रयू ने प्रिंस ऑफ वेल्स के पोलो प्रबंधक, रोनाल्ड फर्ग्यूसन, की छोटी बेटी, सारा फर्ग्यूसन से शादी की। इस शादी से उन्हें दो बेटियाँ हुईं:राजकुमारी बियैट्रिस और राजकुमारी यूजीनी। एंड्रयू और सारा १९९२ में अलग हो गए, और मई १९९६ में उनहोंने तलाक दे दिया। प्रिंस एंड्रयू शाही परिवार के एक सक्रिय सदस्य है।
इन्हें भी देखें
१९६० में जन्मे लोग
यूनाइटेड किंगडम के लोग |
पुलकित सम्राट (जन्म: २९ दिसम्बर १९८३) एक भारतीय अभिनेता हैं, जो २००६ के धारावाहिक क्योंकि सास भी कभी बहू थी में लक्ष्य वीरानी के अपने किरदार के कारण जाने जाते हैं। इन्होने फिल्मों में अभिनय की शुरुआत बिट्टू बॉस नामक फ़िल्म से की इसके पश्चात २०१३ में फुकरे नामक फ़िल्म की थी।
यह पहले दिल्ली में रहते थे और २००५ को यह दिल्ली से मुंबई आए और किशोर नमित कपूर से अभिनय सीखा। यह ३ नवम्बर २०१४ को गोवा में श्वेता रोहिरा के साथ शादी की। यह श्वेता से २०१० में मुंबई में मिले थे।
पुलकित २००५ में मुंबई में आए और इसके पश्चात वह २००६ में क्योंकि सास भी कभी बहू थी नामक धारावाहिक में लक्ष्य वीरानी का किरदार निभाया और इसी के दौरान उन्हें दर्द के कारण २००७ में इस धारावाहिक को छोड़ना पड़ा। वह इलाज हेतु दुबई गए और आने के बाद उन्हें पसंदीदा नया सदस्य स्टार परिवार और सर्वश्रेष्ठ नया चेहरा भारतीय टेली पुरस्कार मिला।
१९८३ में जन्मे लोग
भारतीय फ़िल्म अभिनेता
दिल्ली के लोग |
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील संभल, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
सम्बंधित जनगणना कोड:
राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७२१
उत्तर प्रदेश के जिले (नक्शा)
संभल तहसील के गाँव |
मसूरी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र उत्तराखण्ड के ७० निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। देहरादून जिले में स्थित यह निर्वाचन क्षेत्र अनारक्षित है। २०१२ में इस क्षेत्र में कुल १०२,७०2 मतदाता थे।
२०१२ के विधानसभा चुनाव में गणेश जोशी इस क्षेत्र के विधायक चुने गए।
!बढ़त से जीत
इन्हें भी देखें
टिहरी गढ़वाल लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र
उत्तराखण्ड मुख्य निर्वाचन अधिकारी की आधिकारिक वेबसाइट (हिन्दी में)
तब राज्य का नाम उत्तरांचल था।
उत्तराखण्ड के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र |
डिगबोई (डिग्बोई) भारत के असम राज्य के तिनसुकिया ज़िले में स्थित एक शहर है। यह ज़िले के पूर्वोत्तती भाग में बसा हुआ है। डिगबोई में १९वीं सदी के अंतिम वर्षों में यहाँ कच्चे तेल की खोज की गयी थी। डिगबोई असम के तेल नगरी के रूप में जाना जाता है। डिगबोई में एशिया में पहली बार तेल कुएँ का खनन हुआ था। १९01 में यहाँ एशिया की पहली रिफाइनरी को शुरू किया गया था। डिगबोई में अभी तक उत्पादन करने वाली कुछ सबसे पुराने तेल कुएँ हैं। भारत की स्वतंत्रता के दशकों बाद तक असम तेल कंपनी के लिए काम कर रहे ब्रिटिश पेशेवरों की एक महत्वपूर्ण संख्या थी। इसीलिए ब्रिटिश लोगों ने डिगबोई को अच्छी तरह से विकसित किया था तथा बुनियादी सुविधाओं से परिपूर्ण किया था। यहाँ मौजूद कुछ बंगले अभी तक ब्रिटिश काल की याद दिलाते हैं। यहाँ डिगबोई क्लब के भाग के रूप में अठारह होल्स का एक गोल्फ कोर्स है।
व्युत्पत्ति और इतिहास
१९वीं सदी के शुरुआती वर्षों में ब्रिटिश सरकार के लोगों ने तिनसुकिया के पूर्वी इलाकों में कोयले और काष्ठ उद्योग के लिए प्रवेश किया। तब यह इलाका घने जंगलों से भरा हुआ था। १८८२ में इंग्लैंड में पंजीकृत कंपनी असम रेलवे एंड ट्रेडिंग कंपनी (ए आर एंड टीसी) के इंजीनियर, डब्ल्यू. एल. लेक और कई मजदूर लेडो तक डिब्रू-सदिया रेलवे लाइन का विस्तार करने में व्यस्त थे। काम में अनेक हाथियों को भी इस्तेमाल किया जा रहा था। घने जंगल के बाहर निकलते हुए एक हाथी के तेल से सने पैरों को देखकर डब्ल्यू. एल. लेक जो कि कनाडा के थे, चिल्लाये "डिग बॉय डिग" (यानी "खोद लड़के खोद")। संभवतः इसी तरह डिगबोई का नामकरण हुआ होगा। डिगबोई के नामकरण की शायद यह सबसे मजेदार कहानी है। परन्तु इसके कोई ठोस तथ्य नहीं है।
अन्य कहानियों के अनुसार दिहिंग नदी की उपनदी डिगबोई नाला से डिगबोई का नाम पड़ा. हाथी के पैरों पर लगे तेल से कच्चे तेल के पता लगने की कहानी पर कुछ लोग यकीन नहीं करते. कुछ पुराने तथ्यों से पता चलता है की बरबिल अंचल से जमीन से तेल रिसने की घटना को कई ब्रिटिश अफसरों और इंजिनिरिओं ने प्रत्यक्ष किया था। ब्रिटिश सैन्य अधिकारी जो १८२५ में इन जंगलों में आये थे, उनकी डायरियों और चिठ्ठियों से पता चलता है की इन इलाकों में कच्चे तेल की मौजूदगी के बारे में उन्हें मालूम था। लेफ्टिनेंट आर. विलकॉक्स, मेजर ए. व्हाइट, कैप्टन फ्रांसिस जेनकींस, कैप्टन पी.एस. हीने आदि वे सब अफसर थे जिन्होंने अलग अलग समय में दिहिंग नदी, बरबिल और वर्तमान डिगबोई के आस पास कच्चे तेल होने का दावा किया था। १८२८ में सी.ए. ब्रूस ने और १८६५ में जियोलाजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के एच.बी. मेडीकाट ने भी ऊपरी असम में कच्चे तेल देखने की बात कही थी। तब यह सारे इंजिनियर कोयले के लिए सर्वेक्षण कर रहे थे।
इन्ही घटनाक्रमों के बीच एक उत्साही अंग्रेज़ इंजिनियर, डब्ल्यू. एल. लेक जो की तेल इंजीनियरिंग में भी रूचि रखता था, ब्रिटिश सरकार की कंपनी को तेल की खोज के लिए राजी कर लिया। १८८९ में खुदाई परियोजना को मंजूरी दी गई। इंजिनियर लेक ने उपकरण, बॉयलर, स्थानीय श्रमिकों और हाथियों को इकठ्ठा करना शुरू किया और सितंबर १८८९ में तेल के पहली खुदाई की गयी। इस खुदाई को नवम्बर १८९० तक जारी रखा गया। कुछ अन्य स्रोतों के मुताबिक कोलकाता की कंपनी मेकिलोप स्टीवर्ट एंड कंपनी के मिस्टर गुडएनफ ने नवंबर १८८६ में तेल के लिए खुदाई का एक व्यवस्थित कार्यक्रम शुरू करने का बीड़ा उठाया था। डिगबोई के ३० किमी दक्षिण पूर्व में नाहरपुंग नामक स्थान में भारत में पहला तेल का कुआँ खोदा गया। यह १०२ फुट गहरा था था परन्तु इसमें से तेल नहीं निकला. लेकिन डिगबोई से २३ किमी उत्तर पश्चिम में माकुम नामक स्थान के द्वितीय तेल कुएँ से तेल निकला। घटनाक्रम कुछ भी रहे हो पर पेनसिल्वेनिया, संयुक्त राज्य अमेरिका में कर्नल ई.एल. ड्रेक को कच्चे तेल की खोज के २३ साल बाद कहीं कच्चे तेल कही पता चला था। तब भारत में शासन कर रहे ब्रिटिश सरकार के लिए बहुत उत्साहित करने वाली खबर थी।
इन्हें भी देखें
डिगबोई तेल शोधनागार
असम के नगर
तिनसुकिया ज़िले के नगर |
हरमन बावेजा (जन्म १३ नवम्बर १९८०) एक भारतीय अभिनेता। उन्होंने बॉलीवुड फ़िल्म लव स्टोरी २०५० से अभिनय आरम्भ किया।
हरमन बावेजा का जन्म निर्देशक कला निर्देशक हैरी बावेजा और निर्माता पम्मी बावेजा के घर हुआ। वो एक सिख पंजाबी परिवार से हैं।
उन्होंने बॉलीवुड फ़िल्म लव स्टोरी २०५० से अभिनय आरम्भ किया। २००९ में उन्होंने विक्ट्री और वॉट्स यॉर राशी? फ़िल्मों में कार्य किया।
नामित कल के सुपर स्टार के लिए स्टारडस्ट अवार्ड - पुरुष (२०१०)
वॉट्स यॉर राशी?
नामित होनहार नवोदित कलाकार के लिए स्क्रीन अवार्ड - पुरुष (२००९)
लव स्टोरी २०५०
नामित कल के सुपर स्टार के लिए स्टारडस्ट अवार्ड - पुरुष (२००९)
लव स्टोरी २०५०
१९८० में जन्मे लोग
दिल्ली के लोग |
गोपालपुर टीकरी, इलाहाबाद (इलाहाबाद) इलाहाबाद जिले के इलाहाबाद प्रखंड का एक गाँव है। |
हरीशपुर (हरिशपुर) भारत के ओड़िशा राज्य के जगतसिंहपुर ज़िले में स्थित एक गाँव है। यहाँ का सर्वंत जगन्नाथ मंदिर प्रसिद्ध है।
इन्हें भी देखें
ओड़िशा के गाँव
जगतसिंहपुर ज़िले के गाँव |
एक्ज़ीक्यूटिव मास्टर (ईएम) या मास्टर ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज (एमएएस) मास्टर डिग्री का ही एक उन्नत स्तर है जो उन एक्ज़ीक्यूटिव पेशेवरों के लिए विशेष रूप से डिजाइन की गई जो अपने करियर के मध्य अवस्था में हैं। डिग्री के आम शीर्षक कला के एक्ज़ीक्यूटिव मास्टर, विज्ञान के एक्ज़ीक्यूटिव मास्टर या व्यवसाय प्रशासन के एक्ज़ीक्यूटिव मास्टर, संचार के एक्ज़ीक्यूटिव मास्टर या मानवीय रसद और प्रबंधन (एमएएसएचएलएम) में उन्नत अध्ययन के एक्ज़ीक्यूटिव मास्टर जैसे क्षेत्र विशिष्ट खिताब हैं।
एक्ज़ीक्यूटिव मास्टर प्रोग्राम में आमतौर पर पूर्णकालिक कामकाजी पेशेवरों भाग लेते हैं, इसलिए यह पाठ्यक्रम भी उन्ही के कार्यक्रमों के हिसाब से रखा जाता हैं। अधिकांश एक्ज़ीक्यूटिव मास्टर प्रोग्राम दो या तीन साल की अवधि के लिए होते हैं एवं प्रति माह इसमें एक या दो क्लास रखे जाते हैं।
संचार में एक्ज़ीक्यूटिव मास्टर ऑफ साइंस
संचार में एक्ज़ीक्यूटिव मास्टर ऑफ साइंस (ईएमएसओएमॉम, एमएसकॉम) कॉर्पोरेट संचार पेशेवरों के डिज़ाइन किया जाता है जिन्हें इस क्षेत्र में महारत हासिल हैं। ईएमएमएसकॉम प्रोग्राम ईएमबीए के समान स्तर पर ही चलते हैं एवं आमतौर पर यह छोटे सीखने वाले सत्रों में होते हैं। यह पाठ्यक्रम समान रूप से पूरे वर्ष की अवधि में वितरित किया जाता है (उदाहरण के लिए: दो वर्ष के दौरान हर दो महीने में ७-दिवसीय सत्र)।
विपणन और बिक्री में एक्ज़ीक्यूटिव मास्टर
एसडीए बोकोनी स्कूल ऑफ मैनेजमेंट - बोककोनी यूनिवर्सिटी (मिलान, इटली) और ईएसएडीई बिजनेस स्कूल (बार्सिलोना, स्पेन) मार्केटिंग और सेल्स में संयुक्त रूप से एक्ज़ीक्यूटिव मास्टर डिग्री प्रदान करता है। कार्यक्रम वेबसाइट: वॉ.एम्स-प्रोग्राम.कॉम
विपणन और बिक्री (ईएमएमएस) में एक्ज़ीक्यूटिव मास्टर विपणन और बिक्री पेशेवरों के लिए डिजाईन किया गया हैं जो अपने अनुभव एवं कौशल में और पैनापन लाना चाहते है।
विभिन्न देशों द्वारा की जाने वाली पेशकश
यूरोप में कई विश्वविद्यालय हैं, जो ईएमएसकॉम या इसके समकक्ष पाठ्यक्रम चलाते हैं। १९९० में, यूनिवर्सिटी डेला स्विसेरा इतालवी जिसे यूनिवर्सिटी ऑफ लोगानो के नाम से भी जाना जाता है ने स्विट्जरलैंड में संचार कार्यक्रम में विज्ञान के पहले एक्ज़ीक्यूटिव मास्टर का शुभारंभ किया। कार्यक्रम की कार्य-सूची अंग्रेजी है और २००६ में इसी ने अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, गैर-सरकारी संगठनों और अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसियों में काम करने वाले पेशेवरों के लिए मानवतावादी लॉजिस्टिक्स और प्रबंधन में उन्नत अध्ययन के नए एक्ज़ीक्यूटिव मास्टर का शुभारंभ किया।
मेलबर्न विश्वविद्यालय के ग्रेजुएट स्कूल ऑफ ह्यूमेनिटीज एंड सोशल साइंसेज में ऑस्ट्रेलिया का एकमात्र एक्ज़ीक्यूटिव मास्टर ऑफ आर्ट्स डिग्री प्रदान करता है। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड स्कूल ऑफ गवर्नमेंट (एएनजेडएसओजी) ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में विभिन्न विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर लोक प्रशासन में एक्ज़ीक्यूटिव मास्टर प्रदान करता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका
बिंघमटन विश्वविद्यालय मैनहट्टन में स्वास्थ्य प्रकिर्या (सिस्टम) कार्यक्रम में एक एक्ज़ीक्यूटिव मास्टर ऑफ साइंस प्रदान करता है। इस कार्यक्रम के लाभों में शामिल हैं:
सिस्टम इंजीनियरिंग तकनीकों, डेटा विश्लेषिकी और प्रक्रिया सुधार का उपयोग करके स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों की समस्याओं को पहचानना एवं उनको हल करना।
इस क्षेत्र के अनुभवी शिक्षकों और पेशेवरों के साथ जुड़ना जिनका रिकॉर्ड पहले से ही काफी अच्छा हैं। |
युकिया अमानो एक जापानी राजनयिक दूत हैं, जो फ़िलहाल अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण के महासचिव हैं। इनका कार्यारंभ: दिसंबर, २००९ से हुआ। इससे पहले वे संयुक्त राष्ट्र में एक अन्तर्राष्ट्रीय सिविल सेवक के तौर पर भी काम कर चुके हैं। |
दूधगंगा नदी (दूधागंगा) भारत के महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों में बहने वाली एक नदी है। यह कृष्णा नदी की एक उपनदी है जो उसकी दाई ओर से उसमें संगम करती है। यह महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग ज़िले की पश्चिमी घाट की पहाड़ियों में उत्पन्न होती है, फिर पूर्व बहकर कोल्हापुर ज़िले से होती हुई कर्नाटक के बेलगाम ज़िले में प्रवेश करती है। यहाँ इसका कृष्णा नदी में विलय हो जाता है।
इन्हें भी देखें
महाराष्ट्र की नदियाँ
कर्नाटक की नदियाँ |
दीप, दीपक, दीवा या दीया वह पात्र है जिसमें सूत की बाती और तेल या घी रख कर ज्योति प्रज्वलित की जाती है। पारंपरिक दीया मिट्टी का होता है लेकिन आज आधुनिक युग में धातु के दीये भी प्रचलन में हैं। प्राचीनकाल में इसका प्रयोग प्रकाश के लिए किया जाता था पर बिजली के आविष्कार के बाद अब यह सजावट की वस्तु के रूप में अधिक प्रयोग होता है। धार्मिक व सामाजिक अनुष्ठानों में इसका महत्व अभी भी बना हुआ है। यह पंचतत्वों में से एक, अग्नि का प्रतीक माना जाता है। दीपक जलाने का एक मंत्र भी है जिसका उच्चारण सभी शुभ अवसरों पर किया जाता है। इसमें कहा गया है कि सुन्दर और कल्याणकारी, आरोग्य और संपदा को देने वाले हे दीप, हमारी बुद्धि के विकास के लिए हम तुम्हें नमस्कार करते हैं। विशिष्ट अवसरों पर जब दीपों को पंक्ति में रख कर जलाया जाता है तब इसे दीपमाला कहते हैं। ऐसा विशेष रूप से दीपावली के दिन किया जाता हैं। अन्य खुशी के अवसरों जैसे विवाह आदि पर भी दीपमाला की जाती है।
दीपक का इतिहास
ज्योति अग्नि और उजाले का प्रतीक दीपक कितना पुरातन है ।इसके विषय में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। गुफाओं में भी यह मनुष्य के साथ था। कुछ बड़ी अंधेरी गुफाओं में इतनी सुन्दर चित्रकारी मिलती है जिसे बिना दीपक के बनाना सम्भव नहीं था। भारत में दिये का इतिहास प्रामाणिक रूप से ५००० वर्षों से भी ज्यादा पुराना हैं जब इसे मुअन-जो-दडो में ईंटों के घरों में जलाया जाता था। खुदाइयों में वहाँ मिट्टी के पके दीपक मिले है। कमरों में दियों के लिये आले या ताक़ बनाए गए हैं, लटकाए जाने वाले दीप मिले हैं और आवागमन की सुविधा के लिए सड़क के दोनों ओर के घरों तथा भवनों के बड़े द्वार पर दीप योजना भी मिली है। इन द्वारों में दीपों को रखने के लिए कमानदार नक्काशीवाले आलों का निर्माण किया गया था।
दीपक भारतीय संस्कृति और जीवन में इस प्रकार मिला जुला है कि इसके नाम पर भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक राग का नाम दीपक राग - रखा गया है। कहते हैं इसके गाने से दीपक अपने आप जलने लगते हैं।
क. पांच तत्व हैं मिट्टी, आकाश, जल, अग्नि और वायु। कहते हैं कि इन पांच तत्वों से ही सृष्टि का निर्माण हुआ है। अतः प्रत्येक हिंदू अनुष्ठान में पंचतत्वों की उपस्थिति अनिवार्य होती है।
ख. दीपमंत्र इस प्रकार है।
शुभंकरोति कल्याणम् आरोग्यं धनसंपदा।
शत्रुबुद्धि विनाशाय दीपज्योति नमस्तुते।।
दीप ज्योति नमस्तुते
सत्य की दीया तप का तेल
हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना |
पैगम्मरपुर पालीगंज, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है।
पटना जिला के गाँव |
सिद्ध अतरौली, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
अलीगढ़ जिला के गाँव |
इंडियामार्ट एक अंतरजाल (इंडिअमार्ट.कॉम) के रूप में भारत के छोटे और मझोले व्यापार से जड़ी संस्थाओं के वैश्विक विक्रेताओं और खरीदारों को जोड़ने वाला बाज़ार है। यह कम्पनी का दावा है कि वह १.५ औद्योगिक उत्पादों के बेचनों के लिए प्लैटफ़ॉर्म और सहायक औज़ार प्रस्तुत करती है। इससे लगभग १0 मिलियन खरीदार विश्वस्नीय और प्रतिस्पर्थक रूप से औद्योगिक उत्पादों के बेचने वालों को चुन सकते हैं। इस कम्पनी के ३३७३ कर्मचारी हैं जो भारत के 8५ से अधिक कार्यालयों से काम कर रहे हैं। इसके वर्तमान निवेषकों में इंटेल कैपिटल (इंटेल कैपिटल) और बेनेट, कोलमन ऐण्ड कम्पनी (बेनेट, कोलमान & को. लैड) शामिल हैं।
इंडियामार्ट का जालस्थल |
द जंगल बुक (अंग्रेजी:थे जंगल बुक; जंगल की किताब) (१८९४) नोबेल पुरस्कार विजेता अंग्रेजी लेखक रुडयार्ड किपलिंग की कहानियों का एक संग्रह है। इन कहानियों को पहली बार कालीचरण १८९३-९४ में पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया था। मूल कहानियों के साथ छपे कुछ चित्रों को रुडयार्ड के पिता जॉन लॉकवुड किपलिंग ने बनाया था। रुडयार्ड किपलिंग का जन्म भारत में हुआ था और उन्होने अपनी शैशव अवस्था के प्रथम छह वर्ष भारत में बिताये। इसके उपरान्त लगभग दस वर्ष इंग्लैण्ड में रहने के बाद वे फिर भारत लौटे और लगभग अगले साढ़े छह साल तक यहीं रह कर काम किया। इन कहानियों को रुडयार्ड ने तब लिखा था जब वो वर्मोंट में रहते थे। जंगल बुक के कथानक में मोगली नामक एक बालक है जो जंगल मे खो जाता है और उसका पालन पोषण भेड़ियों का एक झुंड करता है, अंत मे वह गाँव में लौट जाता है।
पुस्तक में वर्णित कहानियां (और १८९५ में प्रकाशित द सेकंड जंगल बुक में शामिल मोगली से संबंधित पाँच कहानियां भी) वस्तुत: दंतकथाएं हैं, जिनमें जानवरों का मानवाकृतीय तरीके से प्रयोग कर, नैतिक शिक्षा देने का प्रयास किया गया है। उदाहरण के लिए द लॉ ऑफ द जंगल (जंगल का कानून) के छंद में, व्यक्तियों, परिवारों और समुदायों की सुरक्षा के लिए नियमों का पालन करने की हिदायत दी गयी है। किपलिंग ने अपनी इन कहानियों में उन सभी जानकारियों का समावेश किया है जो उन्हें भारतीय जंगल के बारे में पता थी या फिर जिसकी उन्होनें कल्पना की थी। अन्य पाठकों ने उनके काम की व्याख्या उस समय की राजनीति और समाज के रूपक के रूप में की है। उनमें से सबसे अधिक प्रसिद्ध तीन कहानियां हैं जो एक परित्यक्त "मानव शावक" मोगली के कारनामों का वर्णन करती हैं, जिसे भारत के जंगल में भेड़ियों द्वारा पाला जाता है। अन्य कहानियों के सबसे प्रसिद्ध कथा शायद "रिक्की-टिक्की-टावी" नामक एक वीर नेवले और "हाथियों का टूमाई नामक एक महावत की कहानी है। किपलिंग की हर कहानी की शुरुआत और अंत एक छंद के साथ होती है।
भारतीय अंग्रेज़ी साहित्यकार |
सूखीढांग, श्री पूर्णागिरी टनकपुर तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के चम्पावत जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
सूखीढांग, श्री पूर्णागिरी टनकपुर तहसील
सूखीढांग, श्री पूर्णागिरी टनकपुर तहसील |
चीनी राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रशासन या चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिसट्रेशन (सी एन एस ए) चीन की सरकारी अंतरिक्ष संस्था है जो की देश में अंतरिक्ष कार्यक्रमों का संचालन एवं विकास करती है। इसके वर्तमान स्वरूप का गठन सन १९९३ में हुआ था। इस संस्था की सबसे बड़ी उपलब्धि मानव को अंतरिक्ष में भेजना है।
अक्टूबर २००३ में शेनजोऊ ५ स्पेसफ्लाइट द्वारा पहली बार चीनी अंतरिक्ष यात्री यांग लिवेई को अंतरिक्ष में भेजा गया इसी के साथ सोवियत संघ और अमेरिका के बाद अंतरिक्ष में मानव भेजने वाला चीन तीसरा राष्ट्र बना।
२०१३ के अनुसार, दस चीनी अंतरिश में जा चुके हैं:
इन्हें भी देखें
विश्व के प्रमुख अंतरिक्ष संगठन
चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम |
सुशांत दिवगीकर (जन्म: २ जुलाई, १९९०) एक भारतीय समलैंगिक अभिनेता, और मॉडल हैं। वें मिस्टर गे इंडिया २014 के विजेता है। सुशांत बिग बॉस ८ के प्रतिभागी हैं।
१९९० में जन्मे लोग
मुंबई के लोग |
अश्रु का अर्थ होता है आँसू।
पश्चाताप के अश्रु समस्त अपराधों को धो देती है।
वीर पुरुष कभी भी अश्रु नहीं बहाते।
छुप कर अश्रु बहाना कायरता है।
अश्रु मूलतः संस्कृत का शब्द है।
अन्य भारतीय भाषाओं में निकटतम शब्द |
एमराल्ड टैबलेट (एमराल्ड टेबलेट) एक ग्रन्थ है जिसका यूरोपीय अलकेमिस्टों में बहुत सम्मान था। इसे स्मेरगदिन टेबल, या तबुला स्मेरगदीना भी कहते हैं। ऐसा माना जाता रहा है कि इसमें 'प्राइमा मैटेरिया' के ट्रान्सम्यूटेशन के रहस्य लिखे हुए हैं। यह ठीक-ठीक पता नहीं है कि यह पुस्तक किस मूल ग्रन्थ के आधार पर लिखी गयी है। |
देवनगर (खूनीगाड), धारी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
(खूनीगाड), देवनगर, धारी तहसील
(खूनीगाड), देवनगर, धारी तहसील |
५ राईफल्स १९७४ में बनी हिन्दी फ़िल्म है जिसका निर्देशन आई एस जौहर ने किया था। फ़िल्म के प्रमुख कलाकार राजेश खन्ना, शशि कपूर और आई एस जौहर हैं। इस फ़िल्म में अपने समय के मशहूर क़व्वाल अज़ीज़ नाज़ान ने मशहूर क़व्वाली झूम बराबर झूम शराबी गाई है।
आई एस जौहर
नामांकन और पुरस्कार
१९७४ की फ़िल्में
हिन्दी फ़िल्में वर्णक्रमानुसार |
महरौली (मेहरौली) भारत के दिल्ली राज्य में नई दिल्ली के दक्षिणी भाग में एक क्षेत्र है।
महरौली दिल्ली की विधानसभा में एक निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। यह क्षेत्र गुड़गांव के करीब और वसंत कुंज के बगल में स्थित है। आम आदमी पार्टी के नरेश यादव महरौली से मौजूदा विधायक हैं।
महरौली उन सात प्राचीन शहरों में से एक है जो दिल्ली की वर्तमान स्थिति को बनाते हैं। महरौली एक संस्कृत शब्द मिहिरावली से लिया गया है। यह उस बस्ती को दर्शाता है जहाँ विक्रमादित्य के दरबार के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री वराह-मिहिरा अपने सहायकों, गणितज्ञों और तकनीशियनों के साथ रहते थे। साथ ही विभिन्न मत फारसी वंश से इसके नाम के उद्भव का सुझाव देते हैं।
लाल कोट किले का निर्माण तोमर वंश अनंगपाल प्रथम द्वारा लगभग ७३१ ईस्वी में किया गया था। इसे ११वीं शताब्दी में अनंगपाल द्वितीय द्वारा विस्तारित किया गया था जिन्होंने अपनी राजधानी को कन्नौज से लाल कोट में स्थानांतरित कर दिया था। तोमरों को १२वीं शताब्दी में चौहानों द्वारा हराया गया था। पृथ्वीराज चौहान ने किले का विस्तार किया और किला राय पिथौरा का निर्माण किया। उन्होंने इस दिल्ली शहर को अपनी राजधानी बनाया। दिल्ली का महरौली शहर पृथ्वीराज चौहान की राजधानी था। वह ११92 में मोहम्मद ग़ोरी द्वारा पराजित हुए और मारे गए। उसने अपने गुलाम क़ुतुब-उद-दीन ऐबक को यहाँ राजयपाल बनाया और अफगानिस्तान लौट गया। इसके बाद १२06 में, मोहम्मद गोरी की मृत्यु के बाद कुतुबुद्दीन ने खुद को दिल्ली के पहले सुल्तान के रूप में विकसित किया। इस प्रकार दिल्ली गुलाम वंश की राजधानी बन गई जो कि उत्तरी भारत पर शासन करने वाले मुस्लिम सुल्तानों का पहला राजवंश बना। महरौली गुलाम वंश की राजधानी रही जिसने १२90 तक शासन किया। खिलजी वंश के दौरान, राजधानी सिरी में स्थानांतरित हो गई।
अहिंसा स्थल दिल्ली के महरौली में स्थित एक जैन मंदिर है। मंदिर के मुख्य देवता २४वें और अंतिम तीर्थंकर महावीर हैं।
वास्तुकला का सबसे दृश्यमान हिस्सा कुतुब मीनार है जो प्राचीन हिन्दू और बौद्ध मंदिरों पर बनाया गया था जिसे क़ुतुब-उद-दीन ऐबक ने शुरू किया था। बाद में इसमें इल्तुतमिश और अलाउद्दीन खिलजी द्वारा विकास किया गया था। कुतुब परिसर आज यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है। कुतुब मीनार से सटे मंदिरों के कई स्तंभ हैं लेकिन वे क्षतिग्रस्त स्थिति में हैं। १३वीं शताब्दी के सूफी संत ख्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी का मकबरा भी कुतुब मीनार परिसर के पास स्थित है। दरगाह परिसर में बाद के मुगल सम्राटों, बहादुर शाह प्रथम, शाह आलम द्वितीय और अकबर द्वितीय की कब्रें हैं। दरगाह के बाईं ओर एक छोटी मस्जिद मोती मस्जिद है जिसे औरंगजेब के बेटे बहादुर शाह प्रथम द्वारा निजी प्रार्थना के लिए बनाया गया था।
बलबन का मक़बरा दिल्ली सल्तनत के गुलाम वंश के शासक बलबन ने यहां १३वीं शताब्दी में निर्माण किया गया था। यह अभी भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में देखा जा सकता है। आधम ख़ान का मकबरा १५६६ में आधम खान की याद में सम्राट अकबर द्वारा बनवाया गया था। महरौली पुरातत्व पार्क २०० एकड़ में फैला है जो कि कुतुब मीनार स्थल से सटा हुआ है एवं इसका १९९७ में पुनर्विकास किया गया था।
इन्हें भी देखें
दक्षिण पश्चिम दिल्ली ज़िला
दक्षिण पश्चिम दिल्ली ज़िला
दिल्ली के नगर
दक्षिण पश्चिम दिल्ली ज़िले के नगर
दिल्ली में मुहल्ले
दक्षिण दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र |
दारोगा प्रसाद राय डिग्री महाविद्यालय भारतीय राज्य बिहार के सिवान जिले में मैंरवा-गुठनी रोड पर स्थित एक महाविद्यालय है। यहाँ स्नातक तक की शिक्षा दी जाती है। इस महाविद्यालय कि स्थापना ई० सम्वत १९८६ में हुआ था और वर्ष १९९१ में यह महाविद्यालय जय प्रकाश विश्वविद्यालय से संबद्ध हो गया।
सिवान जिले (बिहार) के मैंरवा-गुठनी रोड पर यह जिला मुख्यालय से लगभग १ किमी की दूरी पर स्थित है। इस महाविद्यालय के पास से ही बायपास रोड होकर गुजरती है।
यहाँ निम्नलिखित कोर्स उपलब्ध है।
इन्हें भी देखें
जेडए इस्लामिया कॉलेज
विद्या भवन महिला कॉलेज
बिहार के महाविद्यालय |
खिलचीपुर विधानसभा क्षेत्र मध्य भारत में मध्य प्रदेश राज्य के २३० विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। यह राजगढ़ (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) का एक खंड है।
यह राजगढ़ जिले के अन्तर्गत आता है।
२०१८ विधानसभा चुनाव
इन्हें भी देखें
मध्य प्रदेश के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र |
तैयब ताहिर (जन्म २६ जुलाई १९९३) एक पाकिस्तानी क्रिकेटर हैं जो मध्य पंजाब के लिए खेलते हैं। जनवरी २०२१ में, उन्हें २०२०-२१ पाकिस्तान कप के लिए मध्य पंजाब के दस्ते में नामित किया गया था। प्रतियोगिता के समापन के बाद, उन्हें टूर्नामेंट के बल्लेबाज के रूप में नामित किया गया।
पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी
१९९३ में जन्मे लोग |
वर्ष १९८१ की भारत की जनगणना वर्ष १८७२ से आरम्भ हुई भारत की १२वीं जनगणना थी।
भारत में जनगणनाएँ
भारत का राजनैतिक इतिहास |
संजय सिंह गंगवार उत्तर प्रदेश के पीलीभीत चुनाव क्षेत्र से विधायक है। संजय जी भारतीय जनता पार्टी से निर्वाचित हुए। उन्होंने २०१७ में बाँकी उम्मेदवार जैसे कि अरशद खान, भूपराम और रियाज़ अहमद को हराया और सीट जीती। अगस्त २०१९ के रक्षाबंधन के त्यौहार में उनको ५ हज़ार राखियाँ भी बाँधी गयी थीं।
पीलीभीत की सदर विधानसभा से विधायक संजय जी ने कोरोना काल में अपने क्षेत्र में एक २४*७ कोरोना हेल्पलाइन खोली। |
सैंट लूक़ा चर्च, श्रीनगर भारत के जम्मू और कश्मीर में श्रीनगर के डलगेट क्षेत्र में शंकराचार्य हिल के दक्षिण-पश्चिम ढलान पर छाती रोग अस्पताल के परिसर में स्थित है।
जम्मू और कश्मीर में पर्यटन आकर्षण |
ममरेजपुर नौबतपुर, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है।
पटना जिला के गाँव |
मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएं नरेन्द्र कोहली द्वारा रचित व्यंग्य संग्रह है। |
रुद्रमादेवी एक भारतीय ऐतिहासिक फिल्म है, जो १३वीं सदी में काकतीय वंश की रानी रुद्रमा देवी के जीवन पर आधारित है। इस फिल्म का निर्देशन गुनसेखर ने किया है। इस फिल्म में अनुष्का शेट्टी मुख्य भूमिका रुद्रमा देवी का किरदार निभा रही हैं। यह फिल्म २६ जून २०१५ को सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुआ।
इस फिल्म की कहानी इतिहास से प्रेरित है लेकिन कुछ ऐतिहासिक तथ्यों में फेरबदल हुआ जान पड़ता है|
अनुष्का शेट्टी - रुद्रमा देवी
अल्लू अर्जुन गोना गन्ना रेड्डी
२०१५ की फ़िल्में |
मारियो सियालोजा (जन्म: २९ जुलाई १९३० - मृत्यु: २४ जून, २०१२) (अंग्रेज़ी:मारियो सियालोजा) इतालवी राजनयिक थे। उनका अंतिम पद १९९४ से १९९६ तक सऊदी अरब में इतालवी राजदूत के रूप में था। सेवानिवृत्त होने पर, उन्होंने अपने अंतिम वर्ष इटली के मुस्लिम समुदाय की सेवा में बिताने का फैसला किया था।
१९९८ में, सियालोजा ने मुस्लिम वर्ल्ड लीग की एक शाखा के रोम में उद्घाटन को बढ़ावा दिया, जो एक सऊदी एनजीओ है जिसका केंद्रीय मुख्यालय मक्का में है। उन्होंने १९९८ से २००६ तक उपाध्यक्ष और महानिदेशक के पद पर कब्जा किया और इस्तीफा देने के बाद, समूह की संविधान समिति के सदस्य बने रहे। इसके बाद, वह आंतरिक मंत्रालय में इतालवी इस्लाम के सलाहकार आयोग के सदस्य थे, और इटली के इस्लामी सांस्कृतिक केंद्र के प्रशासन के परामर्शदाता, एकमात्र इस्लामी संस्थान जिसे आधिकारिक तौर पर गणतंत्र के राष्ट्रपति के एक डिक्री द्वारा इटली में मान्यता प्राप्त थी।
१९८८ के अंत में, जब वे संयुक्त राष्ट्र में इटली के उप स्थायी प्रतिनिधि थे, तब शियालोजा ने इस्लाम धर्म अपना लिया।
बैक मारियो सियालोजा के बारे में बीबीसी लेख
१९३० में जन्मे लोग
निधन वर्ष अनुपलब्ध
इस्लाम में परिवर्तित लोगों की सूची
इन्हें भी देखें
मुहम्मद कनूत बेरनस्ट्रोम
मुराद विल्फ़्रेड होफ़मैन |
बघरेना बाह, आगरा, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
आगरा जिले के गाँव |
इण्डिया हाउस १९०५ से १९१० के दौरान लन्दन में स्थित एक अनौपचारिक भारतीय राष्ट्रवादी संस्था थी। इसकी स्थापना ब्रिटेन के भारतीय छात्रों में राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार करने हेतु श्यामजी कृष्ण वर्मा के संरक्षण में हाइगेट, उत्तरी लन्दन के एक छात्र निवास में की गयी थी।
श्यामजी कृष्ण वर्मा ने १८८८ में राजस्थान के अजमेर में वकालत के साथ स्वराज के लिये काम करना शुरू कर दिया था। बाद में रतलाम रियासत में वे दीवान नियुक्त हो गये। मध्यप्रदेश के रतलाम, राजस्थान के उदयपुर और गुजरात के जूनागढ़ में काफी लम्बे समय तक दीवान रहने के उपरान्त जब उन्होंने यह अनुभव किया कि ये राजे-महाराजे अंग्रेजों के खिलाफ़ कुछ नहीं करेंगे तो वे इंग्लैण्ड चले गये और अंग्रेजों की नाक के नीचे लन्दन में हाईगेट के पास एक तिमंजिला भवन खरीद लिया जो किसी पुराने रईस ने आर्थिक तंगी के कारण बेच दिया था।
इस भवन का नाम उन्होंने इण्डिया हाउस रखा और उसमें रहने वाले भारतीय छात्रों को छात्रवृत्ति देकर लन्दन में उनकी शिक्षा का व्यवस्था की।
इण्डिया हाउस की अनुकृति भारत में
श्यामजी कृष्ण वर्मा व उनकी पत्नी भानुमती के निधन के पश्चात उन दोनों की अस्थियों को जिनेवा की सेण्ट जॉर्ज सीमेट्री में सुरक्षित रख दिया गया था। भारत की स्वतन्त्रता के ५५ वर्ष बाद सन २००३ में गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने स्विट्ज़रलैण्ड की सरकार से अनुरोध करके जिनेवा से उन अस्थियों को भारत मँगवाया और श्यामजी के जन्म-स्थान माण्डवी में क्रान्ति-तीर्थ बनाकर उन्हें समुचित संरक्षण प्रदान किया।
क्रान्ति-तीर्थ के परिसर में इण्डिया हाउस की हू-ब-हू अनुकृति बनाकर उसमें क्रान्तिकारियों के चित्र व साहित्य भी रखा गया है। कच्छ जाने वाले सभी देशी विदेशी पर्यटकों के लिये माण्डवी का क्रान्ति-तीर्थ एक उल्लेखनीय पर्यटन स्थल बन चुका है। इसे देखने दूर-दूर से पर्यटक गुजरात आते हैं।
श्यामजी कृष्ण वर्मा
क्रान्ति-तीर्थ: श्यामजी कृष्ण वर्मा मेमोरियल, माण्डवी (गुजरात) - विस्तृत वेबसाइट देखें
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम |
आगर, काफलीगैर तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
आगर, काफलीगैर तहसील
आगर, काफलीगैर तहसील
आगर, काफलीगैर तहसील |
तिरुपत्तूर (तिरुपट्टूर) भारत के तमिल नाडु राज्य के तिरुपत्तूर ज़िले में स्थित एक शहर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। राष्ट्रीय राजमार्ग १७९ए यहाँ से गुज़रता है।
इन्हें भी देखें
तमिल नाडु के शहर
तिरुपत्तूर ज़िले के नगर |
५६५ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है।
अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ |
मल्केपल्लि, काशीपेट मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है।
आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट
आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग
निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल
आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट |
चमन नाहल अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास आज़ादी के लिये उन्हें सन् १९७७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत अंग्रेज़ी भाषा के साहित्यकार |
लुईज़ियाना () संयुक्त राज्य के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित एक राज्य है। इसकी राजधानी बेटन रूज है। एक दूसरा महत्वपूर्ण नगर न्यू आर्लीन्स है जो २००५ में हरिकेन कट्रीना में डूब गया था। अमेरिकी में लुईज़ियाना एकमात्र राज्य है जिसके राजनीतिक उपखंडों को पारिश कहा जाता है जो कि अन्य राज्यों के काउंटियों के बराबर है। लुईज़ियाना के उत्तर में अर्कांसस, पूर्व में मिसिसिपी, पश्चिम में टेक्सास और दक्षिण में मेक्सिको की खाड़ी है।
राज्य की अधिकांश भूमि मिसिसिपी नदी के कारण तलछटीकरण से बनी है। इसमें समृद्ध दक्षिणी बायोम शामिल है। १८०३ में क्षेत्र की अमेरिकी खरीद से पहले, वर्तमान लुइसियाना राज्य एक फ्रांसीसी उपनिवेश था और एक संक्षिप्त अवधि के लिए एक स्पेनिश भी। इसके अलावा, १८वीं शताब्दी में उपनिवेशवादियों ने कई अफ्रीकी लोगों को गुलाम के रूप में आयात किया। २०१५ में लगाये गए अनुमान के अनुसार राज्य की जनसंख्या ४६,८१,६६६ हैं। इसके मुताबिक ये संयुक्त राज्य का २५वां सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य हुआ। यह क्षेत्र के आकार अनुसार ३१वां सबसे बड़ा है। लुईज़ियाना में ८% लोग फ्रेंच और ४% स्पेनी बोलते हैं। ८6% लोगों द्वारा बोली जाने वाली अंग्रेज़ी राज्य में कोई आधिकारिक दर्जा नहीं रखती।
संयुक्त राज्य अमेरिका के राज्य |
बगबुडा घरघोडा मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़ जिले का एक गाँव है।
छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ
रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़ |
लैमार्क या जीन बैप्टिस्ट पियेर आंत्वान द मॉनेट शीवेलियर द (लामार्क, जीन बैपटिस्ते पिएरे एंटॉयन दे मोनेट चेवालियर दे; १७४४ से १८२९ ई.) फ्रांसीसी जैवविज्ञानी थे। लामार्क प्रथम वैज्ञानिक थे, जिन्होंने कशेरुकी और अकशेरुकी जीवों में भेद किया और सर्वप्रथम इनवर्टीब्रेट (इनवेर्टिब्राते) शब्द का उपयोग किया। १८०२ ई. में इन्होंने जीव, या पौधों के अध्ययन के लिए बायोलोजी (बायोलॉजी) शब्द का उपयोग किया। इन्होंने मौसम विज्ञान और मौसम की पूर्वसूचनाओं से संबंधित वार्षिक रिपोर्टों का भी प्रकाशन किया था। ये विकासवाद के जन्मदाता हैं। इनका विकासवाद का सिद्धांत लामार्कवाद कहलाता है। १७८८ मे बोतनी का अध्यक्ष बना था
का जन्म १२ अगस्त १७४४ को बैजेंटाइन के पिकार्डी में हुआ था। १७ वर्ष की आयु में ये सेना में भर्ती हो गए और सन् १७63 में सैनिक जीवन त्याग कर पैरिस चले गए, जहाँ इन्होंने वनस्पतिशास्त्र का अध्ययन किया। १७78 ई इनकी फ्लोर फ्रैंशाइज (फ्लोर फ्रैंकेसी) नामक पुस्तक प्रकाशित हुई। इसके दूसरे वर्ष एकेडेमी सायंस के वनस्पति विभाग में इनकी नियुक्ति हो गई, पर ये इसे छोड़कर समकालीन, फ्रांसीसी, प्राकृतिक विज्ञानी, बुफॉन् के पुत्रों के साथ यात्रा पर प्रशिक्षक के रूप में चले गए। यात्रा से दो वर्ष बाद लौटने पर ये शाही बाग के वनस्पति संग्रहालय के रक्षक नियुक्त हुए। १७93 ई. में ये अजायबघर में प्रोफेसर नियुक्त हुए और अकशेरुकी संग्रह का उत्तरदायित्व लिया। यहाँ इन्होंने १८१९ ई. तक, अपने अंधे होने तक, कार्य किया। इनका बुढ़ापा बड़ी गरीबी में बीता। १८ दिसम्बर १८29 ई. को इनका देहावसान हो गया। |
गौरीपुर पीरपैंती, भागलपुर, बिहार स्थित एक गाँव है।
भागलपुर जिला के गाँव |
अत-तौबा : क़ुरआन का ९ वां अध्याय (सूरा)।
सूरए तौबा मदीना में नाज़िल हुआ और इसमें एक सौ उनतीस (१२९) आयतें हैं
(ऐ मुसलमानों) जिन मुषरिकों से तुम लोगों ने सुलह का एहद किया था अब ख़ुदा और उसके रसूल की तरफ से उनसे (एक दम) बेज़ारी है (१)
तो (ऐ मुषरिकों) बस तुम चार महीने (ज़ीकादा, जिल हिज्जा, मुहर्रम रजब) तो (चैन से बेख़तर) रूए ज़मीन में सैरो सियाहत (घूम फिर) कर लो और ये समझते रहे कि तुम (किसी तरह) ख़़ुदा को आजिज़ नहीं कर सकते और ये भी कि ख़़ुदा काफ़िरों को ज़रूर रूसवा करके रहेगा (२)
और ख़़ुदा और उसके रसूल की तरफ से हज अकबर के दिन (तुम) लोगों को मुनादी की जाती है कि ख़़ुदा और उसका रसूल मुषरिकों से बेज़ार (और अलग) है तो (मुषरिकों) अगर तुम लोगों ने (अब भी) तौबा की तो तुम्हारे हक़ में यही बेहतर है और अगर तुम लोगों ने (इससे भी) मुॅह मोड़ा तो समझ लो कि तुम लोग ख़़ुदा को हरगिज़ आजिज़ नहीं कर सकते और जिन लोगों ने कुफ्र इख़्तेयार किया उनको दर्दनाक अज़ाब की ख़ुष ख़बरी दे दो (३)
मगर (हाँ) जिन मुषरिकों से तुमने एहदो पैमान किया था फिर उन लोगों ने भी कभी कुछ तुमसे (वफ़ा एहद में) कमी नहीं की और न तुम्हारे मुक़ाबले में किसी की मदद की हो तो उनके एहद व पैमान को जितनी मुद्द्त के वास्ते मुक़र्रर किया है पूरा कर दो ख़़ुदा परहेज़गारों को यक़ीनन दोस्त रखता है (४)
और (ऐ रसूल) अगर मुषरिकीन में से कोई तुमसे पनाह मागें तो उसको पनाह दो यहाँ तक कि वह ख़़ुदा का कलाम सुन ले फिर उसे उसकी अमन की जगह वापस पहुँचा दो ये इस वजह से कि
(जब) मुषरिकीन ने ख़ुद एहद षिकनी (तोड़ा) की तो उन का कोई एहदो पैमान ख़़ुदा के नज़दीक और उसके रसूल के नज़दीक क्योंकर (क़ायम) रह सकता है मगर जिन लोगों से तुमने खानाए काबा के पास मुआहेदा किया था तो वह लोग (अपनी एहदो पैमान) तुमसे क़ायम रखना चाहें तो तुम भी उन से (अपना एहद) क़ायम रखो बेषक ख़ुदा (बद एहदी से) परहेज़ करने वालों को दोस्त रखता है (७)
(उनका एहद) क्योंकर (रह सकता है) जब (उनकी ये हालत है) कि अगर तुम पर ग़लबा पा जाएॅ तो तुम्हारे में न तो रिष्ते नाते ही का लिहाज़ करेगें और न अपने क़ौल व क़रार का ये लोग तुम्हें अपनी ज़बानी (जमा खर्च में) खुष कर देते हैं हालाॅकि उनके दिल नहीं मानते और उनमें के बहुतेरे तो बदचलन हैं (८)
और उन लोगों ने ख़ुदा की आयतों के बदले थोड़ी सी क़ीमत (दुनियावी फायदे) हासिल करके (लोगों को) उसकी राह से रोक दिया बेषक ये लोग जो कुछ करते हैं ये बहुत ही बुरा है (९)
ये लोग किसी मोमिन के बारे में न तो रिष्ता नाता ही कर लिहाज़ करते हैं और न क़ौल का क़रार का और (वाक़ई) यही लोग ज़्यादती करते हैं (१०)
तो अगर (अभी मुषरिक से) तौबा करें और नमाज़ पढ़ने लगें और ज़कात दें तो तुम्हारे दीनी भाई हैं और हम अपनी आयतों को वाक़िफकार लोगों के वास्ते तफ़सीलन बयान करते हैं (११)
और अगर ये लोग एहद कर चुकने के बाद अपनी क़समें तोड़ डालें और तुम्हारे दीन में तुमको ताना दें तो तुम कुफ्र के सरवर आवारा लोगों से खूब लड़ाई करो उनकी क़समें का हरगिज़ कोई एतबार नहीं ताकि ये लोग (अपनी ्यरारत से) बाज़ आएँ (१२)
(मुसलमानों) भला तुम उन लोगों से क्यों नहीं लड़ते जिन्होंने अपनी क़समों को तोड़ डाला और रसूल को निकाल बाहर करना (अपने दिल में) ठान लिया था और तुमसे पहले छेड़ भी उन्होनंे ही ्युरू की थी क्या तुम उनसे डरते हो तो अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो ख़़ुदा उनसे कहीं बढ़ कर तुम्हारे डरने के क़ाबिल है (१३)
इनसे (बेख़ौफ (ख़तर) लड़ो ख़ुदा तुम्हारे हाथों उनकी सज़ा करेगा और उन्हें रूसवा करेगा और तुम्हें उन पर फतेह अता करेगा और इमानदार लोगों के कलेजे ठन्डे करेगा (१४)
और उन मोनिनीन के दिल की क़ुदरतें जो (कुफ़्फ़ार से पहुचॅती है) दफ़ा कर देगा और ख़़ुदा जिसकी चाहे तौबा क़ुबूल करे और ख़़ुदा बड़ा वाक़िफकार (और) हिकमत वाला है (१५)
क्या तुमने ये समझ लिया है कि तुम (यॅू ही) छोड़ दिए जाओगे और अभी तक तो ख़ुदा ने उन लोगों को मुमताज़ किया ही नहीं जो तुम में के (राहे ख़़ुदा में) जिहाद करते हैं और ख़़ुदा और उसके रसूल और मोमेनीन के सिवा किसी को अपना राज़दार दोस्त नहीं बनाते और जो कुछ भी तुम करते हो ख़़ुदा उससे बाख़बर है (१६)
मुषरेकीन का ये काम नहीं कि जब वह अपने कुफ्ऱ का ख़ुद इक़रार करते हैं तो ख़ुदा की मस्जिदों को (जाकर) आबाद करे यही वह लोग हैं जिनका किया कराया सब अकारत हुआ और ये लोग हमेषा जहन्नुम में रहेंगे (१७)
ख़़ुदा की मस्जिदों को बस सिर्फ वहीं ्यख़्स (जाकर) आबाद कर सकता है जो ख़़ुदा और रोजे़ आख़िरत पर ईमान लाए और नमाज़ पढ़ा करे और ज़कात देता रहे और ख़़ुदा के सिवा (और) किसी से न डरो तो अनक़रीब यही लोग हिदायत याफ़्ता लोगों में से हो जाएॅगें (१८)
क्या तुम लोगों ने हाजियों की सक़ाई (पानी पिलाने वाले) और मस्जिदुल हराम (ख़ानाए काबा की आबादियों को उस ्यख़्स के हमसर (बराबर) बना दिया है जो ख़ुदा और रोज़े आख़ेरत के दिन पर ईमान लाया और ख़ुदा के राह में जेहाद किया ख़़ुदा के नज़दीक तो ये लोग बराबर नहीं और खुदा ज़ालिम लोगों की हिदायत नहीं करता है (१९)
जिन लोगों ने ईमान क़़ुबूल किया और (ख़़ुदा के लिए) हिजरत एख़्तियार की और अपने मालों से और अपनी जानों से ख़़ुदा की राह में जिहाद किया वह लोग ख़़ुदा के नज़दीक दर्जें में कही बढ़ कर हैं और यही लोग (आला दर्जे पर) फायज़ होने वाले हैं (२०)
उनका परवरदिगार उनको अपनी मेहरबानी और ख़ुषनूदी और ऐसे (हरे भरे) बाग़ों की ख़ुषख़बरी देता है जिसमें उनके लिए दाइमी ऐष व (आराम) होगा (२१)
और ये लोग उन बाग़ों में हमेषा अब्दआलाबाद (हमेषा हमेषा) तक रहेंगे बेषक ख़ुदा के पास तो बड़ा बड़ा अज्र व (सवाब) है (२२)
ऐ ईमानदारों अगर तुम्हारे माँ बाप और तुम्हारे (बहन) भाई ईमान के मुक़ाबले कुफ्ऱ को तरजीह देते हो तो तुम उनको (अपना) ख़ैर ख़्वाह (हमदर्द) न समझो और तुममें जो ्यख़्स उनसे उलफ़त रखेगा तो यही लोग ज़ालिम है (२३)
(ऐ रसूल) तुम कह दो तुम्हारे बाप दादा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारे भाई बन्द और तुम्हारी बीबियाँ और तुम्हारे कुनबे वाले और वह माल जो तुमने कमा के रख छोड़ा हैं और वह तिजारत जिसके मन्द पड़ जाने का तुम्हें अन्देषा है और वह मकानात जिन्हें तुम पसन्द करते हो अगर तुम्हें ख़ुदा से और उसके रसूल से और उसकी राह में जिहाद करने से ज़्यादा अज़ीज़ है तो तुम ज़रा ठहरो यहाँ तक कि ख़ुदा अपना हुक्म (अज़ाब) मौजूद करे और ख़ुदा नाफरमान लोगों की हिदायत नहीं करता (२४)
(मुसलमानों) ख़ुदा ने तुम्हारी बहुतेरे मक़ामात पर (ग़ैबी) इमदाद की और (ख़ासकर) जंग हुनैन के दिन जब तुम्हें अपनी क़सरत (तादाद) ने मग़रूर कर दिया था फिर वह क़सरत तुम्हें कुछ भी काम न आयी और (तुम ऐसे घबराए कि) ज़मीन बावजूद उस वसअत (फैलाव) के तुम पर तंग हो गई तुम पीठ कर भाग निकले (२५)
तब ख़़ुदा ने अपने रसूल पर और मोमिनीन पर अपनी (तरफ से) तसकीन नाज़िल फरमाई और (रसूल की ख़ातिर से) फ़रिष्तों के लष्कर भेजे जिन्हें तुम देखते भी नहीं थे और कुफ़्फ़ार पर अज़ाब नाज़िल फरमाया और काफिरों की यही सज़ा है (२६)
उसके बाद ख़़ुदा जिसकी चाहे तौबा क़ुबूल करे और ख़़ुदा बड़ा बख़्षने वाला मेहरबान है (२७)
ऐ ईमानदारों मुषरेकीन तो निरे नजिस हैं तो अब वह उस साल के बाद मस्जिदुल हराम (ख़ाना ए काबा) के पास फिर न फटकने पाएँ और अगर तुम (उनसे जुदा होने में) फक़रों फाक़ा से डरते हो तो अनकरीब ही ख़ुदा तुमको अगर चाहेगा तो अपने फज़ल (करम) से ग़नीकर देगा बेषक ख़ुदा बड़ा वाक़िफकार हिकमत वाला है (२८)
एहले किताब में से जो लोग न तो (दिल से) ख़ुदा ही पर इमान रखते हैं और न रोज़े आखि़रत पर और न ख़ुदा और उसके रसूल की हराम की हुयी चीज़ों को हराम समझते हैं और न सच्चे दीन ही को एख़्तियार करते हैं उन लोगों से लड़े जाओ यहाँ तक कि वह लोग ज़लील होकर (अपने) हाथ से जज़िया दे (२९)
यहूद तो कहते हैं कि अज़ीज़ ख़़ुदा के बेटे हैं और नुसैरा कहते हैं कि मसीहा (ईसा) ख़़ुदा के बेटे हैं ये तो उनकी बात है और (वह ख़ुद) उन्हीं के मुँह से ये लोग भी उन्हीं काफ़िरों की सी बातें बनाने लगे जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं ख़़ुद उनको क़त्ल (तहस नहस) करके (देखो तो) कहाँ से कहाँ भटके जा रहे हैं (३०)
उन लोगों ने तो अपने ख़़ुदा को छोड़कर अपनी आलिमों को और अपने ज़ाहिदों को और मरियम के बेटे मसीह को अपना परवरदिगार बना डाला हालाॅकि उन्होनें सिवाए इसके और हुक्म ही नहीं दिया गया कि ख़़ुदाए यकता (सिर्फ़ ख़ुदा) की इबादत करें उसके सिवा (और कोई क़ाबिले परसतिष नहीं) (३१)
जिस चीज़ को ये लोग उसका ्यरीक़ बनाते हैं वह उससे पाक व पाक़ीजा है ये लोग चाहते हैं कि अपने मुँह से (फूॅक मारकर) ख़़ुदा के नूर को बुझा दें और ख़़ुदा इसके सिवा कुछ मानता ही नहीं कि अपने नूर को पूरा ही करके रहे (३२)
अगरचे कुफ़्फ़ार बुरा माना करें वही तो (वह ख़़ुदा) है कि जिसने अपने रसूल (मोहम्मद) को हिदायत और सच्चे दीन के साथ (मबऊस करके) भेजता कि उसको तमाम दीनो पर ग़ालिब करे अगरचे मुषरेकीन बुरा माना करे (३३)
ऐ ईमानदारों इसमें उसमें ्यक नहीं कि (यहूद व नसारा के) बहुतेरे आलिम ज़ाहिद लेागों के मालेनाहक़ (नाहक़) चख जाते है और (लोगों को) ख़़ुदा की राह से रोकते हैं और जो लोग सोना और चाँदी जमा करते जाते हैं और उसको ख़़ुदा की राह में खर्च नहीं करते तो (ऐ रसूल) उन को दर्दनाक अज़ाब की ख़ुषखबरी सुना दो (३४)
(जिस दिन वह (सोना चाँदी) जहन्नुम की आग में गर्म (और लाल) किया जाएगा फिर उससे उनकी पेषानियाँ और उनके पहलू और उनकी पीठें दाग़ी जाएॅगी (और उनसे कहा जाएगा) ये वह है जिसे तुमने अपने लिए (दुनिया में) जमा करके रखा था तो (अब) अपने जमा किए का मज़ा चखो (३५)
इसमें तो ्यक ही नहीं कि ख़ुदा ने जिस दिन आसमान व ज़मीन को पैदा किया (उसी दिन से) ख़ुदा के नज़दीक ख़़ुदा की किताब (लौहे महफूज़) में महीनों की गिनती बारह महीने है उनमें से चार महीने (अदब व) हुरमत के हैं यही दीन सीधी राह है तो उन चार महीनों में तुम अपने ऊपर (कुष्त व ख़ून (मार काट) करके) ज़़ुल्म न करो और मुषरेकीन जिस तरह तुम से सबके बस मिलकर लड़ते हैं तुम भी उसी तरह सबके सब मिलकर उन से लड़ों और ये जान लो कि ख़़ुदा तो यक़ीनन परहेज़गारों के साथ है (३६)
महीनों का आगे पीछे कर देना भी कुफ्ऱ ही की ज़्यादती है कि उनकी बदौलत कुफ़्फ़ार (और) बहक जाते हैं एक बरस तो उसी एक महीने को हलाल समझ लेते हैं और (दूसरे) साल उसी महीने को हराम कहते हैं ताकि ख़़ुदा ने जो (चार महीने) हराम किए हैं उनकी गिनती ही पूरी कर लें और ख़ुदा की हराम की हुयी चीज़ को हलाल कर लें उनकी बुरी (बुरी) कारस्तानियाॅ उन्हें भली कर दिखाई गई हैं और खुदा काफिर लोगो को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता (३७)
ऐ ईमानदारों तुम्हें क्या हो गया है कि जब तुमसे कहा जाता है कि ख़़ुदा की राह में (जिहाद के लिए) निकलो तो तुम लदधड़ (ढीले) हो कर ज़मीन की तरफ झुके पड़ते हो क्या तुम आखि़रत के बनिस्बत दुनिया की (चन्द रोज़ा) जिन्दगी को पसन्द करते थे तो (समझ लो कि) दुनिया कीे ज़िन्दगी का साज़ो सामान (आखि़र के) ऐष व आराम के मुक़ाबले में बहुत ही थोड़ा है (३८)
अगर (अब भी) तुम न निकलोगे तो ख़़ुदा तुम पर दर्दनाक अज़ाब नाज़िल फरमाएगा और (ख़़ुदा कुछ मजबरू तो है नहीं) तुम्हारे बदले किसी दूसरी क़ौम को ले आएगा और तुम उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते और ख़़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (३९)
अगर तुम उस रसूल की मदद न करोगे तो (कुछ परवाह् नहीं ख़़ुदा मददगार है) उसने तो अपने रसूल की उस वक़्त मदद की जब उसकी कुफ़्फ़ार (मक्का) ने (घर से) निकल बाहर किया उस वक़्त सिर्फ (दो आदमी थे) दूसरे रसूल थे जब वह दोनो ग़ार (सौर) में थे जब अपने साथी को (उसकी गिरिया व ज़ारी (रोने) पर) समझा रहे थे कि घबराओ नहीं ख़़ुदा यक़ीनन हमारे साथ है तो ख़़ुदा ने उन पर अपनी (तरफ से) तसकीन नाज़िल फरमाई और (फ़रिष्तों के) ऐसे लष्कर से उनकी मदद की जिनको तुम लोगों ने देखा तक नहीं और ख़ुदा ने काफिरों की बात नीची कर दिखाई और ख़़ुदा ही का बोल बाला है और ख़़ुदा तो ग़ालिब हिकमत वाला है (४०)
(मुसलमानों) तुम हलके फुलके (हॅसते) हो या भारी भरकम (मसलह) बहर हाल जब तुमको हुक्म दिया जाए फौरन चल खड़े हो और अपनी जानों से अपने मालों से ख़़ुदा की राह में जिहाद करो अगर तुम (कुछ जानते हो तो) समझ लो कि यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है (४१)
(ऐ रसूल) अगर सरे दस्त फ़ायदा और सफर आसान होता तो यक़ीनन ये लोग तुम्हारा साथ देते मगर इन पर मुसाफ़त (सफ़र) की मषक़क़त (सख़्ती) तूलानी हो गई और अगर पीछे रह जाने की वज़ह से पूछोगे तो ये लोग फौरन ख़़ुदा की क़समें खाॅएगें कि अगर हम में सकत होती तो हम भी ज़रूर तुम लोगों के साथ ही चल खड़े होते ये लोग झूठी कसमें खाकर अपनी जान आप हलाक किए डालते हैं और ख़ुदा तो जानता है कि ये लोग बेषक झूठे हैं (४२)
(ऐ रसूल) ख़़ुदा तुमसे दरगुज़र फरमाए तुमने उन्हें (पीछे रह जाने की) इजाज़त ही क्यों दी ताकि (तुम) अगर ऐसा न करते तो) तुम पर सच बोलने वाले (अलग) ज़ाहिर हो जाते और तुम झूटों को (अलग) मालूम कर लेते (४३)
(ऐ रसूल) जो लोग (दिल से) ख़़ुदा और रोज़े आखि़रत पर ईमान रखते हैं वह तो अपने माल से और अपनी जानों से जिहाद (न) करने की इजाज़त माॅगने के नहीं (बल्कि वह ख़ुद जाएॅगें) और ख़़ुदा परहेज़गारों से खूब वाक़िफ है (४४)
(पीछे रह जाने की) इजाज़त तो बस वही लोग माॅगेंगे जो ख़़ुदा और रोजे़ आखि़रत पर ईमान नहीं रखते और उनके दिल (तरह तरह) के ्यक कर रहे है तो वह अपने ्यक में डावाॅडोल हो रहे हैं (४५)
(कि क्या करें क्या न करें) और अगर ये लोग (घर से) निकलने की ठान लेते तो (कुछ न कुछ सामान तो करते मगर (बात ये है) कि ख़़ुदा ने उनके साथ भेजने को नापसन्द किया तो उनको काहिल बना दिया और (गोया) उनसे कह दिया गया कि तुम बैठने वालों के साथ बैठे (मक्खी मारते) रहो (४६)
अगर ये लोग तुममें (मिलकर) निकलते भी तो बस तुममे फ़साद ही बरपा कर देते और तुम्हारे हक़ में फ़ितना कराने की ग़रज़ से तुम्हारे दरम्यिान (इधर उधर) घोड़े दौड़ाते फिरते और तुममें से उनके जासूस भी हैं (जो तुम्हारी उनसे बातें बयान करते हैं) और ख़़ुदा ्यरीरों से ख़ूब वाक़िफ़ है (४७)
(ए रसूल) इसमें तो ्यक नहीं कि उन लोगों ने पहले ही फ़साद डालना चाहा था और तुम्हारी बहुत सी बातें उलट पुलट के यहाॅ तक कि हक़ आ पहुॅचा और ख़़ुदा ही का हुक्म ग़ालिब रहा और उनको नागवार ही रहा (४८)
उन लोगों में से बाज़ ऐसे भी हैं जो साफ कहते हैं कि मुझे तो (पीछे रह जाने की) इजाज़त दीजिए और मुझ बला में न फॅसाइए (ऐ रसूल) आगाह हो कि ये लोग खुद बला में (औंधे मुँह) गिर पड़े और जहन्नुम तो काफिरों का यक़ीनन घेरे हुए ही हैं (४९)
तुमको कोई फायदा पहुॅचा तो उन को बुरा मालूम होता है और अगर तुम पर कोई मुसीबत आ पड़ती तो ये लोग कहते हैं कि (इस वजह से) हमने अपना काम पहले ही ठीक कर लिया था और (ये कह कर) ख़ुष (तुम्हारे पास से उठकर) वापस लौटतें है (५०)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि हम पर हरगिज़ कोई मुसीबत पड़ नहीं सकती मगर जो ख़़ुदा ने तुम्हारे लिए (हमारी तक़दीर में) लिख दिया है वही हमारा मालिक है और ईमानदारों को चाहिए भी कि ख़़ुदा ही पर भरोसा रखें (५१)
(ऐ रसूल) तुम मुनाफिकों से कह दो कि तुम तो हमारे वास्ते (फतेह या ्यहादत) दो भलाइयों में से एक के ख़्वाह मख़्वाह मुन्तज़िर ही हो और हम तुम्हारे वास्ते उसके मुन्तज़िर हैं कि ख़़ुदा तुम पर (ख़ास) अपने ही से कोई अज़ाब नाज़िल करे या हमारे हाथों से फिर (अच्छा) तुम भी इन्तेज़ार करो हम भी तुम्हारे साथ (साथ) इन्तेज़ार करते हैं (५२)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम लोग ख़्वाह ख़ुषी से खर्च करो या मजबूरी से तुम्हारी ख़ैरात तो कभी कु़बूल की नहीं जाएगी तुम यक़ीनन बदकार लोग हो (५३)
और उनकी ख़ैरात के क़ुबूल किए जाने में और कोई वजह मायने नहीं मगर यही कि उन लोगों ने ख़़ुदा और उसके रसूल की नाफ़रमानी की और नमाज़ को आते भी हैं तो अलकसाए हुए और ख़़ुदा की राह में खर्च करते भी हैं तो बे दिली से (५४)
(ऐ रसूल) तुम को न तो उनके माल हैरत में डाले और न उनकी औलाद (क्योंकि) ख़़ुदा तो ये चाहता है कि उनको आल व माल की वजह से दुनिया की (चन्द रोज़) ज़िन्दगी (ही) में मुबितलाए अज़ाब करे और जब उनकी जानें निकलें तब भी वह काफिर (के काफिर ही) रहें (५५)
और (मुसलमानों) ये लोग ख़ुदा की क़सम खाएॅगें फिर वह तुममें ही के हैं हालाॅकि वह लोग तुममें के नहीं हैं मगर हैं ये लोग बुज़दिल हैं (५६)
कि गर कहीं ये लोग पनाह की जगह (क़िले) या (छिपने के लिए) ग़ार या घुस बैठने की कोई (और) जगह पा जाएॅ तो उसी तरफ रस्सियाँ तोड़ाते हुए भाग जाएँ (५७)
(ऐ रसूल) उनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं जो तुम्हें ख़ैरात (की तक़सीम) में (ख़्वाह मा ख़्वाह) इल्ज़ाम देते हैं फिर अगर उनमे से कुछ (माक़ूल मिक़दार (हिस्सा)) दे दिया गया तो खुष हो गए और अगर उनकी मर्ज़ी के मुवाफिक़ उसमें से उन्हें कुछ नहीं दिया गया तो बस फौरन ही बिगड़ बैठे (५८)
और जो कुछ ख़ुदा ने और उसके रसूल ने उनको अता फरमाया था अगर ये लोग उस पर राज़ी रहते और कहते कि ख़़ुदा हमारे वास्ते काफी है (उस वक़्त नहीं तो) अनक़रीब ही खुदा हमें अपने फज़ल व करम से उसका रसूल दे ही देगा हम तो यक़ीनन अल्लाह ही की तरफ लौ लगाए बैठे हैं (५९)
(तो उनका क्या कहना था) ख़ैरात तो बस ख़ास फकीरों का हक़ है और मोहताजों का और उस (ज़कात वग़ैरह) के कारिन्दों का और जिनकी तालीफ़ क़लब की गई है (उनका) और (जिन की) गर्दनों मेें (गुलामी का फन्दा पड़ा है उनका) और ग़द्दारों का (जो ख़ुदा से अदा नहीं कर सकते) और खुदा की राह (जिहाद) में और परदेसियों की किफ़ालत में ख़र्च करना चाहिए ये हुकूक़ ख़़ुदा की तरफ से मुक़र्रर किए हुए हैं और ख़़ुदा बड़ा वाक़िफ कार हिकमत वाला है (६०)
और उसमें से बाज़ ऐसे भी हैं जो (हमारे) रसूल को सताते हैं और कहते हैं कि बस ये कान ही (कान) हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (कान तो हैं मगर) तुम्हारी भलाई सुन्ने के कान हैं कि ख़़ुदा पर ईमान रखते हैं और मोमिनीन की (बातों) का यक़ीन रखते हैं और तुममें से जो लोग ईमान ला चुके हैं उनके लिए रहमत और जो लोग रसूले ख़़ुदा को सताते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब हैं (६१)
(मुसलमानों) ये लोग तुम्हारे सामने ख़़ुदा की क़समें खाते हैं ताकि तुम्हें राज़ी कर ले हालाॅकि अगर ये लोग सच्चे ईमानदार है (६२)
तो ख़ुदा और उसका रसूल कहीं ज़्यादा हक़दार है कि उसको राज़ी रखें क्या ये लोग ये भी नहीं जानते कि जिस ्यख़्स ने ख़़ुदा और उसके रसूल की मुख़ालेफ़त की तो इसमें ्यक ही नहीं कि उसके लिए जहन्नुम की आग (तैयार रखी) है (६३)
जिसमें वह हमेषा (जलता भुनता) रहेगा यही तो बड़ी रूसवाई है मुनाफे़क़ीन इस बात से डरतें हैं कि (कहीं ऐसा न हो) इन मुलसमानों पर (रसूल की माअरफ़त) कोई सूरा नाज़िल हो जाए जो उनको जो कुछ उन मुनाफिक़ीन के दिल में है बता दे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (अच्छा) तुम मसख़रापन किए जाओ (६४)
जिससे तुम डरते हो ख़़ुदा उसे ज़रूर ज़ाहिर कर देगा और अगर तुम उनसे पूछो (कि ये हरकत थी) तो ज़रूर यूॅ ही कहेगें कि हम तो यूॅ ही बातचीत (दिल्लगी) बाज़ी ही कर रहे थे तुम कहो कि हाए क्या तुम ख़़ुदा से और उसकी आयतों से और उसके रसूल से हॅसी कर रहे थे (६५)
अब बातें न बनाओं हक़ तो ये हैं कि तुम ईमान लाने के बाद काफ़िर हो बैठे अगर हम तुममें से कुछ लोगों से दरगुज़र भी करें तो हम कुछ लोगों को सज़ा ज़रूर देगें इस वजह से कि ये लोग कुसूरवार ज़रूर हैं (६६)
मुनाफिक़ मर्द और मुनाफिक़ औरतें एक दूसरे के बाहम जिन्स हैं कि (लोगों को) बुरे काम का तो हुक्म करते हैं और नेक कामों से रोकते हैं और अपने हाथ (राहे ख़ुदा में ख़र्च करने से) बन्द रखते हैं (सच तो यह है कि) ये लोग ख़़ुदा को भूल बैठे तो ख़़ुदा ने भी (गोया) उन्हें भुला दिया बेषक मुनाफ़िक़ बदचलन है (६७)
मुनाफिक़ मर्द और मुनाफिक़ औरतें और काफिरों से ख़़ुदा ने जहन्नुम की आग का वायदा तो कर लिया है कि ये लोग हमेषा उसी में रहेगें और यही उन के लिए काफ़ी है और ख़़ुदा ने उन पर लानत की है और उन्हीं के लिए दाइमी (हमेषा रहने वाला) अज़ाब है (६८)
(मुनाफिक़ो तुम्हारी तो) उनकी मसल है जो तुमसे पहले थे वह लोग तुमसे कू़वत में (भी) ज़्यादा थे और औलाद में (भी) कही बढ़ कर तो वह अपने हिस्से से भी फ़ायदा उठा हो चुके तो जिस तरह तुम से पहले लोग अपने हिस्से से फायदा उठा चुके हैं इसी तरह तुम ने अपने हिस्से से फायदा उठा लिया और जिस तरह वह बातिल में घुसे रहे उसी तरह तुम भी घुसे रहे ये वह लोग हैं जिन का सब किया धरा दुनिया और आखि़रत (दोनों) में अकारत हुआ और यही लोग घाटे में हैं (६९)
क्या इन मुनाफिक़ों को उन लोगों की ख़बर नहीं पहुँची है जो उनसे पहले हो गुज़रे हैं नूह की क़ौम और आद और समूद और इबराहीम की क़ौम और मदियन वाले और उलटी हुयी बस्तियों के रहने वाले कि उनके पास उनके रसूल वाजेए (और रौषन) मौजिज़े लेाकर आए तो (वह मुब्तिलाए अज़ाब हुए) और ख़ुदा ने उन पर जुल्म नहीं किया मगर ये लोग ख़ुद अपने ऊपर जुल्म करते थे (७०)
और ईमानदार मर्द और ईमानदार औरते उनमें से बाज़ के बाज़ रफीक़ है और नामज़ पाबन्दी से पढ़ते हैं और ज़कात देते हैं और ख़़ुदा और उसके रसूल की फरमाबरदारी करते हैं यही लोग हैं जिन पर ख़़ुदा अनक़रीब रहम करेगा बेषक ख़़ुदा ग़ालिब हिकमत वाला है (७१)
ख़़ुदा ने ईमानदार मर्दों और ईमानदारा औरतों से (बेहषत के) उन बाग़ों का वायदा कर लिया है जिनके नीचे नहरें जारी हैं और वह उनमें हमेषा रहेगें (बेहष्त) अदन के बाग़ोे में उम्दा उम्दा मकानात का (भी वायदा फरमाया) और ख़़ुदा की ख़़ुषनूदी उन सबसे बालातर है- यही तो बड़ी (आला दर्जे की) कामयाबी है (७२)
ऐ रसूल कुफ़्फ़ार के साथ (तलवार से) और मुनाफिकों के साथ (ज़बान से) जिहाद करो और उन पर सख़्ती करो और उनका ठिकाना तो जहन्नुम ही है और वह (क्या) बुरी जगह है (७३)
ये मुनाफे़क़ीन ख़़ुदा की क़समें खाते है कि (कोई बुरी बात) नहीं कही हालाॅकि उन लोगों ने कुफ्ऱ का कलमा ज़रूर कहा और अपने इस्लाम के बाद काफिर हो गए और जिस बात पर क़ाबू न पा सके उसे ठान बैठे और उन लोगें ने (मुसलमानों से) सिर्फ इस वजह से अदावत की कि अपने फज़ल व करम से ख़़ुदा और उसके रसूल ने दौलत मन्द बना दिया है तो उनके लिए उसमें ख़ैर है कि ये लोग अब भी तौबा कर लें और अगर ये न मानेगें तो ख़ुदा उन पर दुनिया और आखि़रत में दर्दनाक अज़ाब नाज़िल फरमाएगा और तमाम दुनिया में उन का न कोई हामी होगा और न मददगार (७४)
और इन (मुनाफे़की़न) में से बाज़ ऐसे भी हैं जो ख़़ुदा से क़ौल क़रार कर चुके थे कि अगर हमें अपने फज़ल (व करम) से (कुछ माल) देगा तो हम ज़रूर ख़ैरात किया करेगें और नेकोकार बन्दे हो जाएॅगें (७५)
तो जब ख़ुदा ने अपने फज़ल (व करम) से उन्हें अता फरमाया-तो लगे उसमें बुख़्ल करने और कतराकर मुॅह फेरने (७६)
फिर उनसे उनके ख़ामयाजे़ (बदले) में अपनी मुलाक़ात के दिन (क़यामत) तक उनके दिल में (गोया खुद) निफाक डाल दिया इस वजह से उन लोगों ने जो ख़़ुदा से वायदा किया था उसके खि़लाफ किया और इस वजह से कि झूठ बोला करते थे (७७)
क्या वह लोग इतना भी न जानते थे कि ख़ुदा (उनके) सारे भेद और उनकी सरगोषी (सब कुछ) जानता है और ये कि ग़ैब की बातों से ख़ूब आगाह है (७८)
जो लोग दिल खोलकर ख़ैरात करने वाले मोमिनीन पर (रियाकारी का) और उन मोमिनीन पर जो सिर्फ अपनी ्यफ़क़कत (मेहनत) की मज़दूरी पाते (्येख़ी का) इल्ज़ाम लगाते हैं फिर उनसे मसख़रापन करते तो ख़़ुदा भी उन से मसख़रापन करेगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है (७९)
(ऐ रसूल) ख़्वाह तुम उन (मुनाफिक़ों) के लिए मग़फिरत की दुआ माॅगों या उनके लिए मग़फिरत की दुआ न माॅगों (उनके लिए बराबर है) तुम उनके लिए सत्तर बार भी बख़्षिष की दुआ मांगोगे तो भी ख़ुदा उनको हरगिज़ न बख़्षेगा ये (सज़ा) इस सबब से है कि उन लोगों ने ख़़ुदा और उसके रसूल के साथ कुफ्र किया और ख़़ुदा बदकार लोगों को मंज़िलें मकसूद तक नहीं पहुँचाया करता (८०)
(जंगे तबूक़ में) रसूले ख़़ुदा के पीछे रह जाने वाले अपनी जगह बैठ रहने (और जिहाद में न जाने) से ख़ुष हुए और अपने माल और आपनी जानों से ख़ुदा की राह में जिहाद करना उनको मकरू मालूम हुआ और कहने लगे (इस) गर्मी में (घर से) न निकलो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि जहन्नुम की आग (जिसमें तुम चलोगे उससे कहीं ज़्यादा गर्म है (८१)
अगर वह कुछ समझें जो कुछ वह किया करते थे उसके बदले उन्हें चाहिए कि वह बहुत कम हॅसें और बहुत रोएँ (८२)
तो (ऐ रसूल) अगर ख़ुदा तुम इन मुनाफेक़ीन के किसी गिरोह की तरफ (जिहाद से सहीसालिम) वापस लाए फिर तुमसे (जिहाद के वास्ते) निकलने की इजाज़त माँगें तो तुम साफ़ कह दो कि तुम मेरे साथ (जिहाद के वास्ते) हरगिज़ न निकलने पाओगे और न हरगिज़ दुष्मन से मेरे साथ लड़ने पाओगे जब तुमने पहली मरतबा (घर में) बैठे रहना पसन्द किया तो (अब भी) पीछे रह जाने वालों के साथ (घर में) बैठे रहो (८३)
और (ऐ रसूल) उन मुनाफिक़ीन में से जो मर जाए तो कभी ना किसी पर नमाजे़ जनाज़ा पढ़ना और न उसकी क़ब्र पर (जाकर) खडे़ होना इन लोगों ने यक़ीनन ख़़ुदा और उसके रसूल के साथ कुफ्ऱ किया और बदकारी की हालत में मर (भी) गए (८४)
और उनके माल और उनकी औलाद (की कसरत) तुम्हें ताज्जुब (हैरत) मंे न डाले (क्योकि) ख़ुदा तो बस ये चाहता है कि दुनिया में भी उनके माल और औलाद की बदौलत उनको अज़ाब में मुब्तिला करे और उनकी जान निकालने लगे तो उस वक़्त भी ये काफ़िर (के काफ़िर ही) रहें (८५)
और जब कोई सूरा इस बारे में नाज़िल हुआ कि ख़़ुदा को मानों और उसके रसूल के साथ जिहाद करो तो जो उनमें से दौलत वाले हैं वह तुमसे इजाज़त मांगते हैं और कहते हैं कि हमें (यहीं छोड़ दीजिए) कि हम भी (घर बैठने वालो के साथ (बैठे) रहें (८६)
ये इस बात से ख़ुष हैं कि पीछे रह जाने वालों (औरतों, बच्चों, बीमारो के साथ बैठे) रहें और (गोया) उनके दिल
पर मुहर कर दी गई तो ये कुछ नहीं समझतें (८७)
मगर रसूल और जो लोग उनके साथ ईमान लाए हैं उन लोगों ने अपने अपने माल और अपनी अपनी जानों से जिहाद किया- यही वह लोग हैं जिनके लिए (हर तरह की) भलाइयाँ हैं और यही लोग कामयाब होने वाले हैं (८८)
ख़़ुदा ने उनके वास्ते (बेहष्त) के वह (हरे भरे) बाग़ तैयार कर रखे हैं जिनके (दरख़्तों के) नीचे नहरे जारी हैं (और ये) इसमें हमेषा रहेंगें यही तो बड़ी कामयाबी हैं (८९)
और (तुम्हारे पास) कुछ हीला करने वाले गवार देहाती (भी) आ मौजदू हुए ताकि उनको भी (पीछे रह जाने की) इजाज़त दी जाए और जिन लोगों ने ख़़ुदा और उसके रसूल से झूठ कहा था वह (घर में) बैठ रहे (आए तक नहीं) उनमें से जिन लोगांे ने कुफ्ऱ एख़्तेयार किया अनक़रीब ही उन पर दर्दनाक अज़ाब आ पहुँचेगा (९०)
(ऐ रसूल जिहाद में न जाने का) न तो कमज़ोरों पर कुछ गुनाह है न बीमारों पर और न उन लोगों पर जो कुछ नहीं पाते कि ख़र्च करें बषर्ते कि ये लोग ख़़ुदा और उसके रसूल की ख़ैर ख़्वाही करें नेकी करने वालों पर (इल्ज़ाम की) कोई सबील नहीं और ख़़ुदा बड़ा बख़्षने वाला मेहरबान है (९१)
और न उन्हीं लोगों पर कोई इल्ज़ाम है जो तुम्हारे पास आए कि तुम उनके लिए सवारी बाहम पहुँचा दो और तुमने कहा कि मेरे पास (तो कोई सवारी) मौजूद नहीं कि तुमको उस पर सवार करूँ तो वह लोग (मजबूरन) फिर गए और हसरत (व अफसोस) उसे उस ग़म में कि उन को ख़र्च मयस्सर न आया (९२)
उनकी आँखों से आँसू जारी थे (इल्ज़ाम की) सबील तो सिर्फ उन्हीं लोगों पर है जिन्होंने बावजूद मालदार होने के तुमसे (जिहाद में) न जाने की इजाज़त चाही और उनके पीछे रह जाने वाले (औरतों, बच्चों) के साथ रहना पसन्द आया और ख़़ुदा ने उनके दिलों पर (गोया) मुहर कर दी है तो ये लोग कुछ नहीं जानते (९३)
जब तुम उनके पास (जिहाद से लौट कर) वापस आओगे तो ये (मुनाफिक़ीन) तुमसे (तरह तरह) की माअज़रत करेंगे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि बातें न बनाओ हम हरग़िज़ तुम्हारी बात न मानेंगे (क्योंकि) हमे तो ख़़ुदा ने तुम्हारे हालात से आगाह कर दिया है अनक़ीरब ख़़ुदा और उसका रसूल तुम्हारी कारस्तानी को मुलाहज़ा फरमाएगें फिर तुम ज़ाहिर व बातिन के जानने वालों (ख़ुदा) की हुज़ूरी में लौटा दिए जाओगे तो जो कुछ तुम (दुनिया में) करते थे (ज़र्रा ज़र्रा) बता देगा (९४)
जब तुम उनके पास (जिहाद से) वापस आओगे तो तुम्हारे सामने ख़ुदा की क़समें खाएगें ताकि तुम उनसे दरगुज़र करो तो तुम उनकी तरफ से मुँह फेर लो बेषक ये लोग नापाक हैं और उनका ठिकाना जहन्नुम है (ये) सज़ा है उसकी जो ये (दुनिया में) किया करते थे (९५)
तुम्हारे सामने ये लोग क़समें खाते हैं ताकि तुम उनसे राज़ी हो (भी) जाओ तो ख़ुदा बदकार लोगों से हरगिज़ कभी राज़ी नहीं होगा (९६)
(ये) अरब के गॅवार देहाती कुफ्र व निफाक़ में बड़े सख़्त हैं और इसी क़ाबिल हैं कि जो किताब ख़ुदा ने अपने रसूल पर नाज़िल फरमाई है उसके एहक़ाम न जानें और ख़ुदा तो बड़ा दाना हकीम है (९७)
और कुछ गॅवार देहाती (ऐसे भी हैं कि जो कुछ ख़ुदा की) राह में खर्च करते हैं उसे तावान (जुर्माना) समझते हैं और तुम्हारे हक़ में (ज़माने की) गर्दिषों के मुन्तज़िर (इन्तेज़ार में) हैं उन्हीं पर (ज़माने की) बुरी गर्दिष पड़े और ख़ुदा तो सब कुछ सुनता जानता है (९८)
और कुछ देहाती तो ऐसे भी हैं जो ख़ुदा और आखि़रत पर ईमान रखते हैं और जो कुछ खर्च करते हैं उसे ख़ुदा
की (बारगाह में) नज़दीकी और रसूल की दुआओं का ज़रिया समझते हैं आगाह रहो वाक़ई ये (ख़ैरात) ज़रूर उनके तक़र्रुब (क़रीब होने का) का बाइस है ख़ुदा उन्हें बहुत जल्द अपनी रहमत में दाख़िल करेगा बेषक ख़ुदा बड़ा बख़्षने वाला मेहरबान है (९९)
और मुहाजिरीन व अन्सार में से (ईमान की तरफ) सबक़त (पहल) करने वाले और वह लोग जिन्होंने नेक नीयती से (कुबूले ईमान में उनका साथ दिया ख़ुदा उनसे राज़ी और वह ख़़ुदा से ख़ुष और उनके वास्ते ख़़ुदा ने (वह हरे भरे) बाग़ जिन के नीचे नहरें जारी हैं तैयार कर रखे हैं वह हमेषा अब्दआलाबाद (हमेषा) तक उनमें रहेगें यही तो बड़ी कामयाबी हैं (१००)
और (मुसलमानों) तुम्हारे एतराफ़ (आस पास) के गॅवार देहातियों में से बाज़ मुनाफिक़ (भी) हैं और ख़ुद मदीने के रहने वालों में से भी (बाज़ मुनाफिक़ हैं) जो निफ़ाक पर अड़ गए हैं (ऐ रसूल) तुम उन को नहीं जानते (मगर) हम उनको (ख़ूब) जानते हैं अनक़रीब हम (दुनिया में) उनकी दोहरी सज़ा करेगें फिर ये लोग (क़यामत में) एक बड़े अज़ाब की तरफ लौटाए जाएॅगें (१०१)
और कुछ लोग हैं जिन्होंने अपने गुनाहों का (तो) एकरार किया (मगर) उन लोगों ने भले काम को और कुछ बुरे काम को मिला जुला (कर गोलमाल) कर दिया क़रीब है कि ख़़ुदा उनकी तौबा कु़बूल करे (क्योंकि) ख़़ुदा तो यक़ीनी बड़ा बख़्षने वाला मेहरबान हैं (१०२)
(ऐ रसूल) तुम उनके माल की ज़कात लो (और) इसकी बदौलत उनको (गुनाहो से) पाक साफ करों और उनके वास्ते दुआएॅ ख़ैर करो क्योंकि तुम्हारी दुआ इन लोगों के हक़ में इत्मेनान (का बाइस है) और ख़़ुदा तो (सब कुछ) सुनता (और) जानता है (१०३)
क्या इन लोगों ने इतने भी नहीं जाना यक़ीनन ख़़ुदा बन्दों की तौबा क़़ुबूल करता है और वही ख़ैरातें (भी) लेता है और इसमें ्यक नहीं कि वही तौबा का बड़ा कु़़बूल करने वाला मेहरबान है (१०४)
और (ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम लोग अपने अपने काम किए जाओ अभी तो ख़़ुदा और उसका रसूल और मोमिनीन तुम्हारे कामों को देखेगें और बहुत जल्द (क़यामत में) ज़ाहिर व बातिन के जानने वाले (ख़ुदा) की तरफ लौटाए जाएॅगें तब वह जो कुछ भी तुम करते थे तुम्हें बता देगा (१०५)
और कुछ लोग हैं जो हुक्मे ख़़ुदा के उम्मीदवार किए गए हैं (उसको अख़्तेयार है) ख़्वाह उन पर अज़ाब करे या उन पर मेहरबानी करे और ख़़ुदा (तो) बड़ा वाकिफकार हिकमत वाला है (१०६)
और (वह लोग भी मुनाफिक़ हैं) जिन्होने (मुसलमानों के) नुकसान पहुॅचाने और कुफ्ऱ करने वाले और मोमिनीन के दरम्यिान तफरक़ा (फूट) डालते और उस ्यख़्स की घात में बैठने के वास्ते मस्जिद बनाकर खड़ी की है जो ख़ुदा और उसके रसूल से पहले लड़ चुका है (और लुत्फ़ तो ये है कि) ज़रूर क़समें खाएगें कि हमने भलाई के सिवा कुछ और इरादा ही नहीं किया और ख़़ुदा ख़ुद गवाही देता है (१०७)
ये लोग यक़ीनन झूठे है (ऐ रसूल) तुम इस (मस्जिद) में कभी खड़े भी न होना वह मस्जिद जिसकी बुनियाद अव्वल रोज़ से परहेज़गारी पर रखी गई है वह ज़रूर उसकी ज़्यादा हक़दार है कि तुम उसमें खडे़ होकर (नमाज़ पढ़ो क्योंकि) उसमें वह लोग हैं जो पाक व पाकीज़ा रहने को पसन्द करते हैं और ख़ुदा भी पाक व पाकीज़ा रहने वालों को दोस्त रखता है (१०८)
क्या जिस ्यख़्स ने ख़़ुदा के ख़ौफ और ख़ुषनूदी पर अपनी इमारत की बुनियाद डाली हो वह ज़्यादा अच्छा है या वह ्यख़्स जिसने अपनी इमारत की बुनियाद इस बोदे किनारे के लब पर रखी हो जिसमें दरार पड़ चुकी हो और अगर वह चाहता हो फिर उसे ले दे के जहन्नुम की आग में फट पडे़ और ख़ुदा ज़ालिम लोगों को मंज़िलें मक़सूद तक नहीं पहुॅचाया करता (१०९)
(ये इमारत की) बुनियाद जो उन लोगों ने क़ायम की उसके सबब से उनके दिलो में हमेषा धरपकड़ रहेगी यहाँ तक कि उनके दिलों के परख़चे उड़ जाएँ और ख़़ुदा तो बड़ा वाक़िफकार हकीम हैं (११०)
इसमें तो ्यक ही नहीं कि ख़ुदा ने मोमिनीन से उनकी जानें और उनके माल इस बात पर ख़रीद लिए हैं कि (उनकी क़ीमत) उनके लिए बेहष्त है (इसी वजह से) ये लोग ख़़ुदा की राह में लड़ते हैं तो (कुफ़्फ़ार को) मारते हैं और ख़ुद (भी) मारे जाते हैं (ये) पक्का वायदा है (जिसका पूरा करना) ख़़ुदा पर लाज़िम है और ऐसा पक्का है कि तौरैत और इन्जील और क़ुरान (सब) में (लिखा हुआ है) और अपने एहद का पूरा करने वाला ख़़ुदा से बढ़कर कौन है तुम तो अपनी ख़रीद फरोख़्त से जो तुमने ख़़ुदा से की है खुषियाँ मनाओ यही तो बड़ी कामयाबी है (१११)
(ये लोग) तौबा करने वाले इबादत गुज़ार (ख़़ुदा की) हम्दो सना (तारीफ़) करने वाले (उस की राह में) सफर करने वाले रूकूउ करने वाले सजदा करने वाले नेक काम का हुक्म करने वाले और बुरे काम से रोकने वाले और ख़ुदा की (मुक़र्रर की हुयी) हदो को निगाह रखने वाले हैं और (ऐ रसूल) उन मोमिनीन को (बेहिष्त की) ख़ुषख़बरी दे दो (११२)
नबी और मोमिनीन पर जब ज़ाहिर हो चुका कि मुषरेकीन जहन्नुमी है तो उसके बाद मुनासिब नहीं कि उनके लिए मग़फिरत की दुआएॅ माँगें अगरचे वह मुषरेकीन उनके क़राबतदार हो (क्यों न) हो (११३)
और इबराहीम का अपने बाप के लिए मग़फिरत की दुआ माँगना सिर्फ इस वायदे की वजह से था जो उन्होंने अपने बाप से कर लिया था फिर जब उनको मालूम हो गया कि वह यक़ीनी ख़़ुदा का दुष्मन है तो उससे बेज़ार हो गए, बेषक इबराहीम यक़ीनन बड़े दर्दमन्द बुर्दबार (सहन करने वाले) थे (११४)
ख़़ुदा की ये ्यान नहीं कि किसी क़ौम को जब उनकी हिदायत कर चुका हो उसके बाद बेषक ख़़ुदा उन्हें गुमराह कर दे हता (यहां तक) कि वह उन्हीं चीज़ों को बता दे जिससे वह परहेज़ करें बेषक ख़ुदा हर चीज़ से (वाक़िफ है) (११५)
इसमें तो ्यक ही नहीं कि सारे आसमान व ज़मीन की हुकूमत ख़़ुदा ही के लिए ख़ास है वही (जिसे चाहे) जिलाता है और (जिसे चाहे) मारता है और तुम लोगों का ख़़ुदा के सिवा न कोई सरपरस्त है न मददगार (११६)
अलबत्ता ख़़ुदा ने नबी और उन मुहाजिरीन अन्सार पर बड़ा फज़ल किया जिन्होंने तंगदस्ती के वक़्त रसूल का साथ दिया और वह भी उसके बाद कि क़रीब था कि उनमे ंसे कुछ लोगों के दिल जगमगा जाएँ फिर ख़ुदा ने उन पर (भी) फज़ल किया इसमें ्यक नहीं कि वह उन लोगों पर पड़ा तरस खाने वाला मेहरबान है (११७)
और उन यमीमों पर (भी फज़ल किया) जो (जिहाद से पीछे रह गए थे और उन पर सख़्ती की गई) यहाँ तक कि ज़मीन बावजूद उस वसअत (फैलाव) के उन पर तंग हो गई और उनकी जानें (तक) उन पर तंग हो गई और उन लोगों ने समझ लिया कि ख़़ुदा के सिवा और कहीं पनाह की जगह नहीं फिर ख़़ुदा ने उनको तौबा की तौफीक दी ताकि वह (ख़़ुदा की तरफ) रूजू करें बेषक ख़़ुदा ही बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान है (११८)
ऐ ईमानदारों ख़़ुदा से डरो और सच्चों के साथ हो जाओ (११९)
मदीने के रहने वालों और उनके गिर्दोनवाॅ (आस पास) देहातियों को ये जायज़ न था कि रसूल ख़़ुदा का साथ छोड़ दें और न ये (जायज़ था) कि रसूल की जान से बेपरवा होकर अपनी जानों के बचाने की फ्रिक करें ये हुक्म उसी सब्ब से था कि उन (जिहाद करने वालों) को ख़़ुदा की रूह में जो तकलीफ़ प्यास की या मेहनत या भूख की षिद्दत की पहुँचती है या ऐसी राह चलते हैं जो कुफ़्फ़ार के ग़ैज़ (ग़ज़ब का बाइस हो या किसी दुष्मन से कुछ ये लोग हासिल करते हैं तो बस उसके ऐवज़ में (उनके नामए अमल में) एक नेक काम लिख दिया जाएगा बेषक ख़ुदा नेकी करने वालों का अज्र (व सवाब) बरबाद नहीं करता है (१२०)
और ये लोग (ख़़ुदा की राह में) थोड़ा या बहुत माल नहीं खर्च करते और किसी मैदान को नहीं क़तआ करते मगर फौरन (उनके नामाए अमल में) उनके नाम लिख दिया जाता है ताकि ख़ुदा उनकी कारगुज़ारियों का उन्हें अच्छे से अच्छा बदला अता फरमाए (१२१)
और ये भी मुनासिब नहीं कि मोमिननि कुल के कुल (अपने घरों में) निकल खड़े हों उनमें से हर गिरोह की एक जमाअत (अपने घरों से) क्यों नहीं निकलती ताकि इल्मे दीन हासिल करे और जब अपनी क़ौम की तरफ पलट के आवे तो उनको (अज्र व आखि़रत से) डराए ताकि ये लोग डरें (१२२)
ऐ इमानदारों कुफ्फार में से जो लोग तुम्हारे आस पास के है उन से लड़ों और (इस तरह लड़ना) चाहिए कि वह लोग तुम में करारापन महसूस करें और जान रखो कि बेषुबहा ख़ुदा परहेज़गारों के साथ है (१२३)
और जब कोई सूरा नाज़िल किया गया तो उन मुनाफिक़ीन में से (एक दूसरे से) पूछता है कि भला इस सूरे ने तुममें से किसी का ईमान बढ़ा दिया तो जो लोग ईमान ला चुके हैं उनका तो इस सूरे ने ईमान बढ़ा दिया और वह वहाँ उसकी ख़ुषियाँ मनाते है (१२४)
मगर जिन लोगों के दिल में (निफाक़ की) बीमारी है तो उन (पिछली) ख़बासत पर इस सूरो ने एक ख़बासत और बढ़ा दी और ये लोग कुफ्ऱ ही की हालत में मर गए (१२५)
क्या वह लोग (इतना भी) नहीं देखते कि हर साल एक मरतबा या दो मरतबा बला में मुबितला किए जाते हैं फिर भी न तो ये लोग तौबा ही करते हैं और न नसीहत ही मानते हैं (१२६)
और जब कोई सूरा नाज़िल किया गया तो उसमें से एक की तरफ एक देखने लगा (और ये कहकर कि) तुम को कोई मुसलमान देखता तो नहींे है फिर (अपने घर) पलट जाते हैं (ये लोग क्या पलटेगें गोया) ख़ुदा ने उनके दिलों को पलट दिया है इस सबब से कि ये बिल्कुल नासमझ लोग हैं (१२७)
लोगों तुम ही में से (हमारा) एक रसूल तुम्हारे पास आ चुका (जिसकी ्यफ़क़्क़त (मेहरबानी) की ये हालत है कि) उस पर ्याक़ (दुख) है कि तुम तकलीफ उठाओ और उसे तुम्हारी बेहूदी का हौका है इमानदारो पर हद दर्जे ्यफीक़ मेहरबान हैं (१२८)
ऐ रसूल अगर इस पर भी ये लोग (तुम्हारे हुक्म से) मुँह फेरें तो तुम कह दो कि मेरे लिए ख़ुदा काफी है उसके सिवा कोई माबूद नहीं मैने उस पर भरोसा रखा है वही अर्ष (ऐसे) बुर्जूग (मख़लूका का) मालिक है (१२९)
सूरए तौबा ख़त्म
यह भी देखें |
हैदराबादी रुपया १९१८ से १९५९ तक हैदराबाद राज्य की मुद्रा थी। यह १९५० से भारतीय रुपया के साथ सह-अस्तित्व में था।
भारत की आजादी के बाद भी 'हैदराबादई रुपया' भारतीय रुपया के साथ समानांतर रूप से सह-अस्तित्व था
भारतीय रुपया की तरह, इसे १६ साल में विभाजित किया गया था, प्रत्येक १२ पैई में। कॉपर (बाद में कांस्य) में तांबे (बाद में कांस्य) में १ और २ पाई और अन्ना के संप्रदायों के लिए कप्रो निकल (बाद में कांस्य) में १ अन्ना और २, ४ और ८ साल और १ रुपये के लिए चांदी में जारी किए गए थे। |
कमालपुर अररिया में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत पुर्णिया मण्डल के अररिया जिले का एक गाँव है।
बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
बिहार के गाँव |
बलेस्क्वीडा का गिरजाघर (स्पेनी भाषा में: कपिला दे ला बेलेस्क्विडा) अस्तूरियास, स्पेन का गिरजाघर है। इस गिरजाघर को १२३२ में बनाया गया था।
स्पेन के गिरजाघर
स्पेन के स्मारक |
कला और डिजाइन के बसलेल अकादमी इसराइल के राष्ट्रीय कला अकादमी और डिजाइन है। यह कुछ अन्य छोटे में परिसरों यरूशलेम और तेल अविव के साथ, माउंट स्कोपस में स्थित है।. |
पीपरा समपतचक, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है।
पटना जिला के गाँव |
कोयेलेख, सल्ट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है।
इन्हें भी देखें
उत्तराखण्ड के जिले
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
उत्तरा कृषि प्रभा
कोयेलेख, सल्ट तहसील
कोयेलेख, सल्ट तहसील |
अहियापुर में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद जिले का एक गाँव है।
बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
बिहार के गाँव |
डॉसन-लैम्बटन हिमानी (डॉसन-लैंब्टन ग्लेशियर) पूर्वी अंटार्कटिका के कोट्स धरती क्षेत्र में दक्षिणपूर्वी वेडेल सागर में बहने वाली एक हिमानी (ग्लेशियर) है। यह ब्रंट हिमचट्टान से तुरंत पश्चिम में है। डॉसन-लैम्बटन हिमानी पर बहुत सी गहरी और विस्तृत खाईयाँ हैं। सन् १९५६ में इसके बारे में एक लिखित ब्योरे के अनुसार समुद्र की तरफ़ इसका मुख लगभग ६० मीटर (२०० फ़ुट) ऊँचा और ६५ किमी (४० किमी) चौड़ा है।
इन्हें भी देखें
कोट्स धरती की हिमानियाँ
अंटार्कटिका की हिमानियाँ |
कन्हौरी गांव भारत देश के हरियाणा राज्य में जिला रेवाड़ी का एक माध्यम आकार का सीमावर्ती गाँव है।
झज्जर जिले का सिलानी गाँव इसका पूर्वज गाँव माना जाता है। वैसे तो यह गाँव जाट बाहुल्य है परंतु इसके अतिरिक्त अन्य जातियों में चमार, धानक, कुम्हार, नाई, खाती, ब्राह्मण व वाल्मीकि यहाँ निवास करते हैं। जाट जाति में चाहार, किन्हा तथा लाम्बा गोत्र मौजूद हैं।
यह गाँव रेवाड़ी व झज्जर के बीच गाँव गुरावड़ा से ४ किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। इसका निकटतम रेलवे स्टेशन पाल्हावास है। इस गाँव में मूलभूत सुविधाओं में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, प्राथमिक चिकित्सालय, आंगनवाडी, मंदिर, चौपाल, सिंचाई नहर, जलघर आदि उपलब्ध हैं।
गाँव के लोग मुख्यतः खेती बाड़ी करते हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ के युवा पुलिस, सेना आदि में जाना पसंद करते हैं। यहाँ की कबड्डी की टीम पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है।
इस गाँव में प्रत्येक वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को बाबा भैरू जी का मेला लगता है। इस दिन बाबा भैरू जी को तेल चढ़ाकर पूजा की जाती है। इस अवसर पर कुश्ती प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है जिसमें दूर दूर से पहलवान आकर अपना लोहा मनवाते हैं। |
राजस्थान में मीणा-मीना विवाद २०१३ से एक राजनीतिक मुद्दा रहा है। |
भार्गव मेरी (जन्म २ फरवरी 199२) एक भारतीय क्रिकेटर हैं जो गुजरात के लिए खेलते हैं। अक्टूबर २019 में, उन्हें २019 -२0 देवधर ट्रॉफी के लिए इंडिया ए के टीम में नामित किया गया था।
१९९२ में जन्मे लोग
भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी |
एशिया कप कुछ एशियाई देशों के बीच क्रिकेट की प्रतियोगिता है, जिसका आयोजन एशिया क्रिकेट काउंसिल करता है। इसमें एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय और टी२० के मैच होते हैं। इसकी स्थापना १९८३ में एशिया क्रिकेट काउंसिल के स्थापना के साथ ही शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य एशियाई देशों के बीच बेहतर रिश्तों को बढ़ाना था। यह ओडीआई और टी२० के प्रारूप में हर दो साल के अंतराल में आयोजित होता है।
एशिया कप की शुरुआत १९८४ में संयुक्त अरब अमीरात के शारजाह शहर में हुई थी। इसी जगह नए बने एशियाई क्रिकेट परिषद का मुख्यालय भी है, जो एशिया कप का आयोजन करता है। यह राउंड-रॉबिन टूर्नामेंट था, जिसमें भारत, श्रीलंका और पाकिस्तान ने भाग लिया था। पहला मैच पाकिस्तान और श्रीलंका के बीच हुआ था। इस टूर्नामेंट में दो जीत के साथ भारत पहले स्थान पर रहा और पाकिस्तान के खिलाफ एक जीत के साथ श्रीलंका ने दूसरा स्थान पाया। पाकिस्तान को दोनों मैचों में हार के कारण बिना जीत के ही वापस जाना पड़ा था।
१९८६ के टूर्नामेंट में श्रीलंका ने मेजबानी की थी। इस टूर्नामेंट में पिछले साल श्रीलंका के साथ हुए विवादित सीरीज़ के कारण भारत ने भाग न लेने का फैसला किया था। इस टूर्नामेंट में बांग्लादेश को पहली बार लिया गया। इस टूर्नामेंट के फ़ाइनल में श्रीलंका ने पाकिस्तान को हरा कर पहला स्थान पाया।
इसका तीसरा टूर्नामेंट १९८८ में बांग्लादेश में था, जो इस देश का पहला बहू-देशीय क्रिकेट टूर्नामेंट था। फ़ाइनल में भारत ने श्रीलंका को ६ विकेट से हारा कर दूसरा एशिया कप अपने नाम किया।
इसका चौथा टूर्नामेंट १९९०९१ को भारत में हुआ था। भारत के साथ खराब राजनीतिक सम्बन्धों के कारण पाकिस्तान ने इस टूर्नामेंट में भाग नहीं लिया। फ़ाइनल में श्रीलंका को हरा कर भारत ने एक बार फिर एशिया कप अपने नाम किया।
१९९३ का टूर्नामेंट भारत पाकिस्तान के बीच खराब राजनीतिक संबंध होने के कारण रद्द कर दिया गया।
१९९५ में ग्यारह साल बाद फिर से संयुक्त अरब अमीरात के शारजाह शहर में इसका टूर्नामेंट आयोजित हुआ। इसमें भारत और श्रीलंका ने बेहतर रन रेट के कारण फ़ाइनल में आ गए, क्योंकि शुरुआती मैचों के बाद सभी तीन टीमों का पॉइंट समान था, इस कारण रन रेट को आधार माना गया। श्रीलंका को फ़ाइनल में हरा कर भारत ने तीसरी बार एशिया कप में अपनी जीत दर्ज की।
इसका छठवाँ टूर्नामेंट श्रीलंका में १९९७ को हुआ था। इस टूर्नामेंट में श्रीलंका ने भारत को ८ विकेट से हरा कर दूसरी बार एशिया कप अपने नाम किया।
बांग्लादेश में दूसरी बार वर्ष २००० में इसका सातवाँ टूर्नामेंट आयोजित किया गया। इसके फ़ाइनल में पाकिस्तान और श्रीलंका ने जगह बनाई, वहीं भारत ने एक मैच में मात्र बांग्लादेश को हरा कर फ़ाइनल से पहली बार बाहर रहा। पाकिस्तान ने श्रीलंका को हरा कर पहली बार एशिया कप अपने नाम किया।
आठवाँ टूर्नामेंट २००४ में श्रीलंका में हुआ। इस बार टूर्नामेंट के प्रारूप में बदलाव किया गया, क्योंकि इसमें संयुक्त अरब अमीरात के साथ साथ होंग कोंग को पहली बार लिया गया। इस बार टूर्नामेंट को तीन भागों में बांटा गया समूह स्तर, सुपर फोर, और फ़ाइनल। समूह स्तर को २ समूह में ३-३ टीम में बांटा गया। सभी एक दूसरे के साथ खेलेंगे और दोनों समूह के सबसे अच्छे टीम सुपर फोर खेलेगी। इसमें जीतने वाली टीम फ़ाइनल में एक दूसरे के आमने सामने होगी। इसमें ग्रुप ए में मेजबानी कर रहा श्रीलंका के साथ भारत और संयुक्त अरब अमीरात थे और ग्रुप बी में पाकिस्तान, बांग्लादेश और होंग कोंग को जगह मिली। संयुक्त अरब अमीरात और होंग कोंग पहले ही ग्रुप स्तर में बाहर हो गए। बांग्लादेश ने सुपर फोर में अपनी जगह बनाई, लेकिन फ़ाइनल में जगह बनाने में असफल रहा। सुपर फोर में श्रीलंका और भारत ने अच्छे प्रदर्शन कर फ़ाइनल में जगह बनाई। फ़ाइनल में श्रीलंका ने भारत को २5 रन से हरा कर एशिया कप फिर अपने नाम किया।
टीमों का प्रदर्शन
इन्हें भी देखें
एशियाई टेस्ट चैम्पियनशिप
एशिया कप २०२३ |
औरंगाबाद महाराष्ट्र का एक प्रमुख शहर है। यह अजंता की गुफाओं के लिये दुनिया भर में मशहूर है।
औरंगाबाद बिहार प्रान्त में भी एक शहर है जो राजधानी पटना से कुछ ही दूरी पर है। |
१२५९ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है।
अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ |
राजेन्द्र कृष्ण हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार थे।
१९१९ में जन्मे लोग
१९८८ में निधन
जहाँ डाल२ पर सोने की चिड़िया ।
अपनी छाया में भगवन् बिठा ले मुझे, मैं हूँ तेरा तु अपना बना ले मुझे ।... |
बूडिदपाडु (कर्नूलु) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कर्नूलु जिले का एक गाँव है।
आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट
आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग
निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल
आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट |
नारोमुरार (नरोमुरार) भारत के बिहार राज्य के नवादा ज़िले में स्थित एक गाँव है।
नारोमुरार वारिसलिगंज प्रखण्ड के प्रशाशानिक क्षेत्र के अंतर्गत राष्ट्रीय राजमार्ग ३१ से १० क्म और बिहार राजमार्ग ५९ से ८ क्म दूर बसा एकमात्र गाँव है जो बिहार के नवादा और नालंदा दोनों जिलों से सुगमता से अभिगम्य है। प्रकृति की गोद में बसा नारोमुरार गाँव, अपने अंदर असीम संस्कृति और परंपरा को समेटे हुए है। यह भारत के उन प्राचीनतम गांवो में से एक है जहाँ ४०० वर्ष पूर्व निर्मित मर्यादा पुरुषोत्तम राम व् परमेश्वर शिव को समर्पित एक ठाकुर वाड़ी के साथ १९२० इसवी, भारत की स्वतंत्रता से २७ वर्ष पूर्व निर्मित राजकीयकृत मध्य विद्यालय और सन १९५६ में निर्मित एक जनता पुस्तकालय भी है। पुस्तकालय का उद्घाटन श्रीकृष्ण सिंह के समय बिहार के शिक्षा मंत्री द्वारा की गयी थी।
वस्तुतः नार का शाब्दिक अर्थ पानी और मुरार का शाब्दिक अर्थ कृष्ण, जिनका जन्म गरुड़ पुराण के अनुसार विष्णु के ८वें अवतार के रूप में द्वापर युग में हुआ, अर्थात नारोमुरार का शाब्दिक अर्थ विष्णुगृह - क्षीरसागर है। ऐसा माना जाता है की १३५२ इसवी में नारो सिंह व् मुरार सिंह नामक दो भाई पहले प्रवासी थे जो सपरिवार यहाँ बसे, समयानुसार यह स्थान फल-फूल कर इन्ही दो भाईयों के नाम पर नारोमुरार गाँव के रूप में विकसित हुआ।
ब्लैक डेथ मानव इतिहास में सबसे विनाशकारी महामारी में से एक था। ब्लैक डेथ मध्य एशिया के टार्टरी मैदान से उत्पन्न माना जाता है, जो सिल्क रुट और समुद्री व्यापर मार्ग से होते हुए मुग़ल सैनिक व् व्यापारियों के साथ पुरे चीन, भारत में फैलते हुए १३४६ ईसवी में यूरोप के बंदरगाह तक पहुँच गयी। ऐसा माना जाता है की यूरोप में प्रवेश के पूर्व इस महामारी के कारण लगभग २.५ करोड़ चीनी व् अन्य एशियाई की मृत्यु हो गयी थी। इस महामारी से यूरोप की कुल आबादी का ३० से ६०% के मारे जाने का अनुमान है।
पण्डारक से स्थानांतरण
१३४० इसवी में यह महामारी पूर्वी भारत से विस्तरित होते हुए पण्डारक, एक गाँव जो वर्तमान में बिहार के पटना जिले में है, पहुँच गयी। महामारी से अपनी जान बचाने के लिए कुछ लोग या तो अफ़सर या आंती गाँव स्थानांतरित हो गए, जो वर्तमान में नवादा जिले के अंतर्गत है। समयानुसार एक जन समूह अफसर से नारोमुरार स्थानांतरित हो गए।
मंदिरों का इतिहास
नारोमुरार मुख्यत: एक हिन्दू गाँव है। गाँव के पवित्र नाम से प्रेरित होकर तथा ईश्वर के प्रति असीम श्रद्धा व् धार्मिक विश्वास की साधना के लिए ग्रामवासियों ने गाँव के सभी दिशाओं में समयानुसार हिन्दू देवी - देवताओं के मंदिरों की स्थापना की - दक्षिण में देवी स्थान, उत्तर में ठाकुर स्थान, पूर्व में दुर्गा स्थान, पश्चिम में शिव मंदिर, केंद्र में शिवालय के साथ गाँव के पास ठाकुर वाड़ी, मथुराधाम सूर्यमंदिर व् विष्णु मंदिर की स्थापना की गयी। गाँव के सभी दिशाओं में देवालय व ग्रामवासियों में असीम श्रद्धा को देखते हुए, इसे मिनी भुवनेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
१३५२ इसवी में जब नारो सिंह व् मुरार सिंह के द्वारा गाँव की स्थापना की गयी तब भगवन के प्रति आस्था व् धार्मिक विश्वास की साधना के लिए एक देवी स्थान का भी निर्माण किया गया था, देवीस्थान गाँव की प्राचीनतम मंदिर है। बिभिन्न हिन्दू देवी - देवताओं की प्राचीन मूर्तियों से घिरी देवी की अर्धगोलाकार प्रतिमा देवीस्थान के मध्य में प्रस्थापित है। देवीस्थान गाँव ही नहीं बल्कि निकटतम गांवो के लिए भी पवित्र स्थानों में से एक जानी जाती है। आस-पास के ग्रामवासी भी यहाँ चर्मरोग व् अन्य रोगों के पारंपरिक आयुर्वेदिक शैली से निवारण हेतु आते हैं।
ठाकुर स्थान परमेश्वर शिव को समर्पित गाँव की उत्तर पूर्व दिशा में प्रतिस्थापित दूसरी प्राचीनतम मंदिर है। समयांतराल ठाकुर स्थान परिसर में एक पार्वती मंदिर की भी स्थापना की गयी।
करीब ४०० वर्ष पूर्व गाँव के दक्षिण-पश्चिम दिशा में एक विशाल व् भव्य ठाकुर वाड़ी का निर्माण किया गया। प्राचीनतम वास्तु कला से निर्मित इस ठाकुर वाड़ी परिसर में जगह-जगह पारंपरिक कुएं आज भी देखे जा सकते है, जो ठाकुर वाड़ी को पेय जल उपलब्ध कराने व् उद्यानों की सिचाईं के लिए बनायीं गयी थी।
ठाकुर वाड़ी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम व परम परमेश्वर शिव को समर्पित दो मंदिर हैं। ठाकुर वाड़ी के परवरिश व् देख-रेख के लिए २ बीघा में निर्मित परिसर के अलावा तत्कालीन महंत के नाम गाँव की १० बीघा जमीन भी आवंटित है। महंत के साथ एक संत समूह भी परिसर की सेवा के लिए नियुक्त किये जाते हैं। ठाकुर वाड़ी परंपरा के अनुसार एक संत का नाम नये महंत के रूप में घोषित होने के बाद उन्हें एक नयी उपाधि दास के द्वारा प्रतिष्ठित किया जाता है।
आदि पराशक्ति माँ दुर्गा स्थान, गांव के कचहरी परिसर में है। दुर्गा पूजा के भव्य आयोजन के लिए आदर्श नाट्यकला परिषद नामक एक समर्पित सांस्कृतिक संगठन है। माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के साथ साथ पुरे नवरात्र में भांति-भांति के सांस्कृतिक कार्यक्रम पुरे गांव में होते हैं। आदर्श नाट्यकला परिषद के द्वारा आयोजित जागरण से एकादशी की रात्रि तक पंच दिवसीय नाट्यकला की श्रृंखला वारिसलिगंज क्षेत्र के साथ साथ आस-पास के ग्रामीण इलाको में भी सुप्रसिद्ध और अद्वितीय मानी जाती है।
शिव पार्वती हनुमान मंदिर
भगवान शिव पार्वती व् रामभक्त हनुमान को समर्पित तीन मंदिर का निर्माण भी गाँव की कचहरी परिसर में समयांतराल किया गया है। एक सामुदायिक सभागार भी हिन्दू पर्व होली व् रामनवमी के अवसर पे सांस्कृतिक कार्यक्रम हेतु मंदिर परिसर से संलग्न है।
सन २००२ इसवी में गाँव के दक्षिण-पूर्व दिशा में श्यामदेव सिंह के द्वारा एक सूर्यमंदिर का निर्माण किया गया। ग्रामवासियों के द्वारा श्यामदेव सिंह के पिता मथुरा सिंह के सम्मान में मंदिर का नाम मथुराधाम सूर्यमंदिर रखा गया। पवित्र हिन्दू पर्व छठ पुजा मनाने हेतु परिसर में एक श्यामकुण्ड की भी निर्माण की गयी। २००२ इसवी में एक शिव मंदिर की भी स्थापना चन्देश्वर सिंह द्वारा की गयी।
शिव पार्वती लक्ष्मी मंदिर
गाँव के पश्चिम दिशा में भगवान शिव पार्वती व् लक्ष्मी को समर्पित तीन मंदिर हैं। शिव मंदिर का निर्माण अजय सिंह के द्वारा २००६ इसवी, पार्वती मंदिर का निर्माण गायत्री देवी द्वारा २०१४ इसवी में और लक्ष्मी मंदिर का निर्माण २०१५ इसवी में प्रवीण सिंह के द्वारा की गयी है। लक्ष्मी पुजा के अवसर पे मंदिर की सुन्दरता पुरे गाँव व् आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रवासियों को आकर्षित करती है। गाँव में भव्य लक्ष्मी पुजा के लिए एक समर्पित सांस्कृतिक संगठन तरुण लक्ष्मी पुजा समिति है जो हर वर्ष पुरे गाँव में लक्ष्मी पुजा का आयोजन करती है।
सन १९४७ इसवी के स्वतन्त्रता आगमन के पूर्व, बिहार, ब्रिटिश राज के अधीन प्रान्तों में से एक था। बेहतर शाशन व्यवस्था के लिए एक प्रान्त कई हिस्सों में विभाजित थी, प्रत्येक भाग का शाशन किसी न किसी जमींदार के अधिकार क्षेत्र में दे दिया गया, नारोमुरार, टिकारी महाराज के अधिकार क्षेत्र में आने वाले दक्षिणी बिहार के २०४६ गांवो में से एक था। १७६४ इसवी में बक्सर जो तब बंगाल प्रेसीडेंसी के अंतर्गत था, में संयुक्त बंगाल के नवाब-मुग़ल व् अवध नवाब के साथ हुए बक्सर के युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी की निर्णायक जीत के बाद १९७३ इसवी में ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाली जमींदारों के बीच परमानेंट सेटलमेंट एक्ट नामक, भूमि से आने वाले राजश्व को सुनिश्चित करने हेतु एक समझौता हुआ। इस समझौते से पूर्व बंगाल, बिहार व् ओडिशा के जमींदारों के पदाधिकारी मुग़लों की ओर से आधिकारिक तौर पर राजश्व वसूली किया करते थे।
पारंपरिक कचहरी में सामन्यतः चार लोग थे जिनका पद व् अधिकार इस तरह था -
गोमस्ता - जमींदार द्वारा राजश्व वसूली के लिए नियुक्त प्रबंधक
पटवारी - हिसाब-किताब के उदेश्य से कार्यरत
बराहिल - वसूले हुए राजश्व को जमींदार तक पहुँचाने के लिए
चौकीदार - सुरक्षा प्रदान करने हेतु
गाँव के मध्य पीपल का एक विशाल वृक्ष हुआ करता था, जमींदार की ओर से एक प्रतिनिधि मंडल नियमित रूप से इस पीपल वृक्ष के नीचे नारोमुरार कचहरी के अधिकार क्षेत्र में आने वाले गांवों से आधिकारिक रूप से कर वसूली का काम किया करते थे। गाँव का यह स्थान आज भी कचहरी (कोर्ट) के नाम से जाना जाता है, स्वंतंत्रता के उपरांत कचहरी परिसर में कई हिन्दू देवी- देवताओं के मंदिर का निर्माण किया गया पर पीपल का विशाल वृक्ष आज भी देखा जा सकता है जो हमें आज भी ज़मींदारी प्रथा का स्मरण कराती है। नारोमुरार कचहरी के अधिकार क्षेत्र में नारोमुरार के अलावा ९ और गाँव थे जिसके ग्रामीण, कर भुगतान के लिए नारोमुरार आते थे, नारोमुरार कचहरी के आधिकार क्षेत्र में आने वाले गाँव - नारोमुरार, खिरभोजना, कुटरी, रामपुर, तुल्ला पुर, गोडा पर, पैंगरी, मसलखामा, शंकर बीघा और बासोचक
नारोमुरार वारिसलिगंज प्रखंड, नवादा जिला के प्रशाशनिक क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले ७५ गांवों में से एक है। चंदन कुमार(रलॉप) नवादा लोकसभा क्षेत्र के वर्तमान सांसद व् अरुणा देवी(ब्जप) वारिसलिगंज विधानसभा क्षेत्र की विधायिका हैं।
४वारिसलिगंज नवादा जिला परिषद् के अंतर्गत आने वाली १६ पंचायत समितियों में से एक है। वारिसलिगंज पंचायत समिति को बेहतर शाशन व्यवस्था हेतु १६ ग्राम पंचायतों में विभाजित किया गया है, नारोमुरार गाँव वारिसलिगंज पंचायत समिति के कुटरी ग्राम पंचायत के अंतर्गत है।
नारोमुरार में चार वार्ड हैं, वर्तमान वार्ड के नाम -
नारोमुरार सेवक संघ
नारोमुरार सेवक संघ गाँव की सर्वांगीण उन्नति के लिए नयी पीढ़ी के एक ग्रामीण समूह द्वारा एक गैर सरकारी व बिना फायदे के उद्देश्य से स्थापित की हुई, बिना किसी उम्मीद के हर संभव गाँव की सेवा में समर्पित एक संस्था है। वर्तमान में संस्था का अधिकार क्षेत्र नारोमुरार गाँव तक सिमित है, सेवक संघ का उद्देश्य गाँव के विशेषाधिकृत नागरिकों की तमाम कुशलता से गाँव का उत्थान करना है। संस्था के सह- संस्थापक आश्विन माह के पवित्र विजयादशमी, २० ऑक्ट २०15 के दिन राजकीयकृत मध्य विद्यालय परिसर में गाँव की सर्वांगीण सेवा के सामान उदेश्य से मिले थे।
जनसंख्या व लिंगानुपात
नारोमुरार, नवादा जिले के वारिसलिगंज प्रखंड अंतर्गत २९० परिवारों का एक गाँव है। जनगणना -२०११ के अनुसार, नारोमुरार की कुल जनसँख्या २०३५ है, जिसमे १०४७ पुरुष व् ९८८ महिला हैं। नारोमुरार में शुन्य से छः वर्ष की आयु के बच्चों की संख्या ३७७, कुल जनसँख्या का १६.५ प्रतिशत है। नारोमुरार का औसतन लिंगानुपात ९४४ है, जो की बिहार राज्य के औसतन लिंगानुपात ९१८ से अधिक है। जनगणना-२०११ के अनुसार गाँव के बच्चों का लिंगानुपात ७६४, बिहार के औसतन ९१८ से कम है।
नारोमुरार गाँव की साक्षरता दर बिहार की तुलना में उच्चतर है। २०११ में, बिहार की ६१.८० की तुलना में ७३.२० थी! गाँव में पुरुषों की साक्षरता दर ८४.८१ प्रतिशत जबकि महिलाओं की साक्षरता दर ६१.४० प्रतिशत है।
नारोमुरार की कुल जनसँख्या में से ६८५, व्यावसायिक गतिविधियों में संलग्न हैं। कुल कामगारों में से ४५.५५% ने इसे अपना प्रमुख व्यवसाय (६ माह से अधिक दिनों से कार्यरत) बताया है जबकि ५४.४५% ने अपनी कार्यावधि ६ माह से कम बताई हैं। २१० लोगों का व्यवसाय खेती (स्वामी या सह-स्वामी) है, जबकि ४९ कृषि से सम्बंधित श्रमिक हैं। ग्रामवासियों का प्रमुख व्यवसाय कृषि और पशुपालन है, चावल व् गेंहू प्रमुख फसलों में से एक है। गाँव की खेतों के बीच से एक नहर गुजरती है, जो मिट्टी को कृषि के लिए और उपजाऊ बनाने का काम करती है। ग्रामवासी फलों के राजा आम के बहुत शौक़ीन है और अपनी दिलचस्पी के लिए गाँव के आस-पास कई आम के बगीचे भी लगाये है, जो गाँव में चार चाँद लगाने का काम करती है। कई ग्रामीण भारतीय सशस्त्र सेनाएँ, पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स, सरकारी महाविद्यालयों व् बहुराष्ट्रीय कम्पनीयों में भी क्रमशः सशस्त्र सेना, मैनेजर, प्रोफेसर व् इंजिनीयर्स के पदों पे कार्यरत है। कुछ ग्रामीण भारत के विख्यात शिक्षण संस्थानों जैसे - राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली विश्वविद्यालय, मगध विश्वविद्यालय, वित विश्वविद्यालय, कीत विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय, अन्नामलाई विश्वविद्यालय से भी शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं।
राजकीयकृत मध्य विद्यालय नारोमुरार
स्कूल कोड : १०३६१४०३४०१
विद्यालय की स्थापना सन १९२० इसवी में शिक्षा विभाग के द्वारा की गयी थी। विद्यालय में कक्षा प्रथम से कक्षा अष्टम तक की शिक्षा दी जाती है। शिक्षा निर्देशन का माध्यम हिंदी है। वर्तमान में विद्यालय आवासीय नहीं है व् विद्यालय के परिचालन का समय ९ पूर्वाहन से ३ अपराहण तक है। विद्यालय की शैक्षणिक सत्र अप्रैल माह में प्रारंभ होती है। विद्यालय परिचालन के लिए एक सरकारी भवन है, जिसमे शिक्षण सम्बंधित निर्देशन के लिए आठ कक्षाएं हैं। पेयजल के स्रोत के लिए विद्यालय में एक चापाकल है जो क्रियाशील है। विद्यालय में पुरुष व् महिला के लिए दो अलग अलग शौचालय है और दोनों क्रियाशील है। विद्यालय परिसर में ९00 पुस्तकों की एक पुस्तकालय भी है। विद्याथियों के लिए साल में एक बार चिकित्सा जाँच की भी व्यवस्था की जाती है। दिव्यांग विद्याथियों को कक्षा के उपयोग हेतु विद्यालय को रैंप की आवश्यकता नहीं है। विद्यालय परिसर में विद्यार्थियों के लिए नियमित रूप से मध्याहन भोजन की भी व्यवस्था की जाती है। वर्तमान में विद्यालय में प्रधानाध्यापक का पद रिक्त है, सन २००८ से २०१२ तक रामानुज सिन्हा विद्यालय के प्रधानाध्यापक के तौर पे कार्यरत थे। वर्तमान में दो महिला शिक्षक सहित विद्यालय में कुल ५ नियमित शिक्षक है। संक्षेप में, सभी कार्यरत शिक्षकों की स्नातक या इस से अधिक की योग्यता है। दूसरी ओर, सभी शिक्षकों को पेशेवर प्रमाणीकरण या डिग्री है। स्कूल के अध्यापक-छात्र अनुपात (पीटीआर) ७१:१ और कक्षा-छात्र अनुपात (एससीआर), ४४:१ है। वर्तमान कार्यरत शिक्षक - मणि देवी, मनोज कुमार, मीना कुमारी, संतोष कुमार सिन्हा और सारंगधर कुमार हैं।
जनता पुस्तकालय नारोमुरार
सन १९५६ में निर्मित एक जनता पुस्तकालय का उद्घाटन श्रीकृष्ण सिंह के समय बिहार के शिक्षा मंत्री द्वारा की गयी थी। नारोमुरार सेवक संघ द्वारा जनता पुस्तकालय को दीवाली के पावन पर्व के दिन १२ नोव को विधायिका अरुणा देवी व् कृष्णनंदन सिंह की उपस्थिति में पुनः प्रारंभ किया गया। पुस्तकालय सभी ग्रामीणों के लिए दिन भर खुला रहता है, पुस्तकालय में सभी आयु वर्ग के लिए, ऋग वेद से मनोहर पोथी और प्रतियोगिता दर्पण से लेकर सुमन सौरभ तक सारी पुस्तकें उपलब्ध हैं।
सेवक संघ गुरुकुल
पवित्र हिन्दू पर्व छठ की संध्या २१ नोव २०१५ को नारोमुरार सेवक संघ द्वारा दीर्घकालिक परियोजना के तहत , संस्था की दूसरी इकाई सेवक संघ गुरुकुल की उद्घाटन की गयी।
सेवक संघ गुरुकुल के उद्देश्य:
आर्थिक रूप से वंचित क्षमतावान बच्चों तक एक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को पहुँचाना।
ऐसी शिक्षा प्रदान करना जो विद्यार्थी को भविष्य में एक उत्तम जीवन पाने में उसकी मदद करे, साथ ही उसे उसकी जन्मभूमि के प्रति उसके कर्तव्यों को भी बताये।
राष्ट्र का निर्माण तथा विश्व को जीवनोपार्जन की एक बेहतर जगह बनाना।
गुरुकुल की कार्यप्रणाली इस प्रकार है: गुरुकुल में अध्ययन की शुल्क २० रुपये प्रति माह है। वर्तमान में गुरुकुल में शून्य वर्ग से दशमी कक्षा तक के सभी विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती है। आर्थिक रूप से वंचित छात्रों को जनता पुस्तकालय से एक शैक्षिक वर्ष के लिए निः शुल्क पुस्तक दी जाती है। एक गुरुकुल इन्वेस्टर्स नेटवर्क का गठन गुरुकुल को हर प्रकार की आर्थिक सहायता के लिए किया गया है, नेटवर्क के सदस्यों की संख्या, सदस्य व् उनके योगदान का निर्णय गुरुकुल की वर्तमान स्थिति के अनुसार हर चार माह के बाद एक बार होती है, जो गुरुकुल के आने वाले चार माह के लिए बीते चार माह के अनुसार अपना अपेक्षित वित्तीय योगदान करते है। विद्यार्थियों की शैक्षिक योग्यता, संख्या व् गुणवत्ता के अनुसार वर्तमान में गुरुकुल को चार अनुभागों में विभाजित किया गया है, गणेश श्रेणी - शुन्य वर्ग से द्वितीय वर्ग, विद्यापति श्रेणी - तृतीय व् चुतर्थ वर्ग, आर्यभट्ट श्रेणी - पंचम व् षष्टम वर्ग, चाणक्य श्रेणी - सप्तम से दशम वर्ग तक। प्रत्येक अनुभाग के लिए एक नियमित अध्यापक हैं, साथ ही गुरुकुल टीचर्स नेटवर्क से एक सहायक शिक्षक भी। भविष्य में सेवक संघ गुरुकुल की नवोदय विद्यालय में प्रवेश के इच्छुक क्षमतावान विद्यार्थियों के लिए एक समर्पित एकलव्य श्रेणी अनुभाग भी प्रारंभ करने की योजना है।
गुरुकुल सरस्वती विनती, ऋग वेद, दशम मंडल में उल्लखित सरस्वती सूक्ति का देवनारायण भरद्वाज के द्वारा की गयी भावार्थ से ली गयी है।
सरस्वतीं देवयन्तो हवन्ते सरस्वतीमध्वरे तायमाने।
सरस्वतीं सुक्र्तो अह्वयन्त सरस्वती दाशुषे वार्यं दात॥
सरस्वति या सरथं ययथ सवधाभिर्देवि पित्र्भिर्मदन्ती।
आसद्यास्मिन बर्हिषि मादयस्वानमीवा इष आधेह्यस्मे॥
सरस्वतीं यां पितरो हवन्ते दक्षिणा यज्ञमभिनक्षमाणाः।
सहस्रार्घमिळो अत्र भागं रायस्पोषं यजमानेषु धेहि॥
सरस्वती विनती के उपरांत गुरुकुल में भारतीय संविधान की उद्देशिका का पाठ भी नियमित रूप से किया जाता है।
आदर्श नाट्यकला परिषद
इसकी स्थापना अशोक सिंह, अनंत सिंह व् रामनिवास सिंह के द्वारा गाँव में भव्य दुर्गा पुजा के आयोजन के उद्देश्य से की गयी थी। शुरुआती समय में संस्था का कार्यालय दामोदर सिंह के दालान में स्थित थी। माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के साथ साथ पुरे नवरात्र में भांति-भांति के सांस्कृतिक कार्यक्रम पुरे गांव के कण-कण को ऊर्जा व् खुशीयों से भर देते है। आदर्श नाट्यकला परिषद के द्वारा आयोजित जागरण से एकादशी की रात्रि तक पंच दिवसीय नाट्यकला की श्रृंखला वारिसलिगंज क्षेत्र के साथ साथ आस-पास के ग्रामीण इलाको में भी सुप्रसिद्ध और अद्वितीय मानी जाती है।
तरुण लक्ष्मी पुजा समिति
इस सांस्कृतिक संसथान की स्थापना सन २०११ इसवी में कौशलेन्द्र सिंह, नवीन कुमार, सिनोद सिंह, उमेश सिंह व् प्रवीण सिंह क द्वारा की गयी। लक्ष्मी पुजा के अवसर पे मंदिर की सुन्दरता पुरे गाँव व् आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रवासियों को आकर्षित करती है। गाँव में भव्य लक्ष्मी पुजा का आयोजन हर वर्ष तरुण लक्ष्मी पुजा समिति के द्वारा की जाती है।
नारोमुरार डाक घर
सरकार के द्वारा गाँव में एक डाक घर की भी स्थापना की गयी है जो आस-पास के आधिकारिक क्षेत्रों में डाक सुविधाएँ प्रदान करती है। आधिकार क्षेत्र - कुटरी ग्राम पंचायत। पता : नारोमुरार डाक घर, नारोमुरार ग्राम, वारिसलिगंज, नवादा, बिहार, भारत, पिन - ८०५१३०
कुटरी ग्राम पंचायत का गोदाम नारोमुरार गाँव में स्थित है। इसके वर्तमान प्रमुख कृष्णनंदन सिंह है। सरकार की सार्वजानिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत आने वाली सारी सुविधाएँ नारोमुरार गोदाम के द्वारा पुरे ग्राम पंचायत में वितरित की जाती है।
प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र नारोमुरार
ग्रामीणों की प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने हेतु गाँव में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है।
आंगनवाड़ी केन्द्र नारोमुरार
केंद्र सरकार द्वारा गाँव में एक आंगनवाड़ी केंद्र की स्थापना, छः वर्ष के शिशु व् माता को मुलभुत स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करने के उदेश्य से की गयी है।
वारिसलिगंज (पटना गया वारिसलिगंज / पटना किउल वारिसलिगंज) नारोमुरार से निकटतम रेलवे स्टेशन है। नारोमुरार गाँव वारिसलिगंज से ७ क्म दूर है, गाँव के लिए निजी टैक्सी स्टेशन परिसर में आसानी से उपलब्ध हैं।
पावापुरी (पटना पावापुरी) नारोमुरार से २५ क्म दूर है, पावापुरी से खराट मोड़ (न्ह ३१) तक नियमित रूप से सार्वजानिक परिवाहन उप्प्लब्ध है, खराट मोड़ से वासोचक के रास्ते नारोमुरार तक निजी टैक्सी उपलब्ध हैं।
मीठापुर, पटना या गाँधी मैदान, पटना वारिसलिगंज
मीठापुर, पटना या गाँधी मैदान, पटना नवादा वारिसलिगंज (रेल व् बस सुविधाएँ उपलब्ध)
मीठापुर, पटना या गाँधी मैदान, पटना बिहार शरीफ खराट मोड़ नारोमुरार
इन्हें भी देखें
बिहार के गाँव
नवादा ज़िले के गाँव |
रामकृपाल यादव एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं। सम्प्रति वे भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता हैं और पूर्व में राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय महासचिव थे। वे सोलहवीं लोकसभा में भाजपा प्रत्याशी के रूप में पाटलिपुत्र लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र सांसद निर्वाचित हुए।
प्रारम्भिक जीवन और पृष्ठभूमि
रामकृपाल यादव का (जन्म १२ अक्तूबर १९५७) में पटना जिला के साबर-चक (पाटलिपुत्र लोकसभा से संबंध) नामक एक छोटे से गांव में हुआ। रामकृपाल यादव को बचपन में ही अपनी जिम्मेदारियों का अहसास हो गया।
१०वीं की परीक्षा १९७४ में माध्यमिक विद्यालय, पटना से तथा १२वीं की परीक्षा १९७६ में उच्च विद्यालय, पटना से करने के बाद १९७२ में बीए ऑनर्स (इतिहास) से उत्तीर्ण किया।
श्रीमती किरण देवी के साथ इनका विवाह हुआ। रामकृपाल यादव के दो पुत्र (अभिषेक यादव और अभिमन्यु यादव) एवं पुत्री (आरती) हैं।
युवा अवस्था से ही छात्र आन्दोलनों में सक्रिय रहे रामकृपाल यादव ने वर्ष १९७७ में अपनी राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। १९७७ छात्र संघ के अध्यक्ष एवं विश्वविद्यालय के सिनेटर चुने गये। पटना नगर निगम के चुनाव में वार्ड संख्या-१० से पार्षद और पटना के उप-महापौर बने। रामकृपाल यादव पहली बार १९९२ में बिहार विधान परिषद के सदस्य बने। १९९३ में पहली बार लोकसभा के सदस्य बने। वर्ष 20१० में राष्ट्रीय जनता दल की ओर से राज्य सभा के सदस्य बने। रामकृपाल यादव एक जमाने में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के काफी करीबी रह चुके हैं। वे राष्ट्रीय जनता दल के बड़े नेता थे।
२०१४ में भाजपा प्रत्याशी के रुप में पाटलिपुत्र लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से १६वीं लोकसभा के सदस्य चुने गये और भारत सरकार में पेय जल एवं स्वच्छता राज्य मंत्री बने।
धारण किए हुए पद
१९८५-१९८६ : पटना नगर निगम के उपमहापौर
१९९२-१९९३ : बिहार विधान परिषद के सदस्य
१९९३-१९९६ : सदस्य, १०वीं लोकसभा (पहला कार्यकाल)
१९९६-१९९७ : सदस्य, ११वीं लोकसभा (दूसरा कार्यकाल)
१९९८-२००५ : अध्यक्ष, बिहार धार्मिक न्यास परिषद् (दर्जा प्राप्त मंत्री, बिहार सरकार)
२००४-२००९ : सदस्य, १४वीं लोकसभा (तीसरा कार्यकाल)
२००४ : सदस्य, सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी समिति, लोकसभा
२००४ : सदस्य, संसद परिसर में सुरक्षा संबंधी समिति, लोकसभा
५ अगस्त २००७ : सदस्य, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस पर स्थायी समिति, लोकसभा
१ मई २००८ : सदस्य, सार्वजनिक उपक्रमों की समिति
२०१० - १६ मई २०१४ : राज्यसभा के लिए निर्वाचित
२०१० : सदस्य, रक्षा समिति
२०१० : सदस्य, सार्वजनिक उपक्रमों की समिति
मई २०१४ : सदस्य, १६ वीं लोकसभा (चौथा कार्यकाल)
१४ अगस्त 20१४ - ९ नवंबर 20१४ : सदस्य, प्राक्कलन समिति
१ सितंबर 20१4 - ९ नवंबर 20१4 : सदस्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन पर स्थायी समिति
१ सितम्बर 20१4 - ९ नवंबर 20१4 : सदस्य, सलाहकार समिति, रेल मंत्रालय
९ नवंबर २०१४ - ५ जुलाई २०१६ : केंद्रीय राज्य मंत्री, पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय, भारत सरकार
५ जुलाई २०१६ - 2५ मई २०१९ : केंद्रीय राज्य मंत्री, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार
मई २०१९ : सदस्य, १७वीं लोकसभा (५वीं अवधि)
२४ जुलाई २०१९ - : सदस्य, लोक लेखा समिति, लोकसभा
१३ सितम्बर २०१९ - : सदस्य, अधीनस्थ विधान समिति, लोकसभा
१३ सितम्बर २०१९- : सदस्य, कृषि संबंधी स्थायी समिति
९ अक्टूबर 201९- : सदस्य, सलाहकार समिति, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय
अध्यक्ष : डॉ. अम्बेडकर खेल और संस्कृति संस्थान, बिहार
लोक सभा सदस्य
१९५७ में जन्मे लोग
भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिज्ञ
१६वीं लोक सभा के सदस्य |
खुदना वैद कायमगंज, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है।
फर्रुखाबाद जिला के गाँव |
शाण्डिल्य नाम गोत्रसूची में है, अत: पुराणादि में शाण्डिल्य नाम से जो कथाएँ मिलती हैं, वे सब एक व्यक्ति की नहीं हो सकतीं। छांदोग्य और बृहदारण्यक उपनिषद् में शाण्डिल्य का प्रसंग है। पंचरात्र की परंपरा में शाण्डिल्य आचार्य प्रामाणिक पुरुष माने जाते हैं। शाण्डिल्यसंहिता प्रचलित है; शाण्डिल्य भक्तिसूत्र भी प्रचलित है। इसी प्रकार शाण्डिल्योपनिषद नाम का एक ग्रंथ भी है, जो बहुत प्राचीन ज्ञात नहीं होता।
युधिष्ठिर की सभा में विद्यमान ऋषियों में शाण्डिल्य का नाम है। राजा सुमंतु ने इनको प्रचुर दान दिया था, यह अनुश पर्व (१३७। २२) से जाना जाता है। अनुशासन ६५.१९ से जाना जाता है कि इसी ऋषि ने बैलगाड़ी के दान को श्रेष्ठ दान कहा था।
महर्षि कश्यप के पुत्र महर्षि असित इनके पुत्र महर्षि देवल जिन्होंने ने अग्नि से एक पुत्र को उत्पन्न किया अग्नि से उत्पन्न होने के कारण इनको शांडिल्य कहा गया इनके दो पुत्र थे श्रीमुख एवं गर्दभ मुख आज भारत के सभी राज्यों में इनके वंशज मौजूद हैं श्रीमुख शांडिल्य गोत्र के चार घराने हैं राम, मणि, कृष्ण और नाथ
शाण्डिल्य नामक आचार्य अन्य शास्त्रों में भी स्मृत हुए हैं। हेमाद्रि के लक्षणप्रकाश में शाण्डिल्य को आयुर्वेदाचार्य कहा गया है। विभिन्न व्याख्यान ग्रंथों से पता चलता है कि इनके नाम से एक गृह्यसूत्र एवं एक स्मृतिग्रंथ भी था।
शांडिल्य ऋषी की समाधी मंदिर भारत मे महाराष्ट्र राज्य मे पुणे नजदीक चाकण शहर मे चक्रेश्वर मंदीर के पास है
रामायण कालखंड के समय बडा आश्रम यहा था |
केरल की झीलों तथा नदियों में जलोत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमें सैकडों नावों की दौड़ प्रतियोगिता होती है जो 'नौका क्रीड़ा' नाम से प्रसिद्ध है। सौ से अधिक मल्लाहों द्वारा खेये जाने वाली सर्पाकार नावों (चुण्डन वल्लम) से लेकर छोटी नावों तक अनेक प्रकार की नावें 'नौका क्रीड़ा' प्रतियोगिता में भाग लेती हैं। ऐसी अनेक नौका क्रीडाएँ हैं जिनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं - 'नेहरू ट्रॉफी नौका क्रीड़ा', 'आरन्मुला उत्रृट्टाति नौका क्रीड़ा', 'पायिप्पाट्टु नौका क्रीड़ा' आदि।
जलोत्सव, केरल का
जलोत्सव, केरल का |
छुरिम एक नेपाली पर्वतारोही और एक सीजन में दो बार माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाली पहली महिला हैं। उनकी यह उपलब्धि २०१३ में गिनिज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में सत्यापित की गयी थी। २०१२ वर्ष में उन्होंने १२ मई और १९ मई को एवरेस्ट पर चढ़ कर इस उपलब्धि को पूर्ण किया। छुरिम के लिए एवेरस्ट पर चढ़ने वाली पहली नेपाली महिला पसांग ल्हामु थी, जिन्होंने पांचवी कक्षा में पढने वाली एक लड़की में भविष्य की योजना का बीज लगाया, और उसे प्रेरित किया।
एक्सपीडिशन डिपार्टमेंट के मुताबिक आज तक एवरेस्ट पर चड़ने वाले नेपाली लोगो की संख्या ३,८४२ हैं, जिसमे से केवल २१९ महिलायें हैं।
छुरिम पूर्वी नेपाल के ताप्लेगंज की शेरपा हैं। वह सभी शेरपा की तरह अपने एक नाम का प्रयोग करती हैं।
नेपाल के लोग |
फाल्गुनी संजय नायर (जन्म १९ फरवरी १९63) एक भारतीय अरबपति व्यवसायी हैं, जो ब्यूटी और लाइफस्टाइल रिटेल कंपनी नायका की संस्थापक और सीईओ हैं, जिसे औपचारिक रूप से एफ एस एन ई-कॉमर्स वेंचर्स के रूप में जाना जाता है, जो उनके अपने नाम का संक्षिप्त नाम है। नायर दो स्व-निर्मित महिला भारतीय अरबपतियों में से एक हैं।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
नायर का जन्म और पालन-पोषण मुंबई, महाराष्ट्र में एक गुजराती परिवार में हुआ था। उसके पिता एक व्यवसायी थे और एक छोटी बियरिंग कंपनी चलाते थे, जिसकी सहायता उनकी माँ करती थी। वह सिडेनहैम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स से बीकॉम में स्नातक हैं और भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद (१९८५ बैच) से स्नातकोत्तर हैं।
१९९३ में, नायर एएफ फर्ग्यूसन एंड कंपनी में सलाहकार की नौकरी छोड़ने के बाद कोटक महिंद्रा समूह में शामिल हो गए। कोटक महिंद्रा में, वह शुरू में विलय और अधिग्रहण (एम एंड ए) टीम की प्रमुख थीं, इससे पहले कि लंदन और न्यूयॉर्क शहर में संस्थागत इक्विटी कार्यालय खोले। २००१ में, वह भारत लौट आई। २००५ में, उन्हें कोटक महिंद्रा कैपिटल, निवेश बैंकिंग इकाई के प्रबंध निदेशक और संस्थागत इक्विटी शाखा कोटक सिक्योरिटीज के निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने २०१२ में नौकरी छोड़ दी।
अप्रैल २०१२ में, ५० साल की उम्र में, उन्होंने अपने खुद के पैसे से $२ मिलियन के साथ नायका की स्थापना की। २0२१ तक नायका की कीमत २.३ बिलियन डॉलर थी, जिससे नायर की संपत्ति अनुमानित १.१ बिलियन डॉलर हो गई। नायर २ स्व-निर्मित महिला भारतीय अरबपतियों में से एक हैं, दूसरी किरण मजूमदार-शॉ हैं। नायका१0 नवंबर २0२१ को $१३ बिलियन के मूल्यांकन पर सूचीबद्ध हुआ। नायकाके सार्वजनिक होने के तुरंत बाद, नायर सबसे धनी स्व-निर्मित महिला भारतीय बन गईं, उनकी कुल संपत्ति $ ६.५ बिलियन तक बढ़ गई, और नेट वर्थ द्वारा शीर्ष २0 भारतीयों की सूची में प्रवेश किया। २0२२ में, नायर ने फोर्ब्स इंडिया रिच लिस्ट में ४४वें स्थान पर अपनी शुरुआत की
फाल्गुनी नायर ने संजय नायर से साल १९८७ में शादी की थी, जिनसे उनकी मुलाकात बिजनेस स्कूल में हुई थी। वह कोहलबर्ग क्राविस रॉबर्ट्स इंडिया के सीईओ हैं। उनके दो बच्चे हैं - अद्वैत नायर और अंचित नायर, जो जुड़वां हैं; अद्वैता नायका फैशन के सीईओ हैं जबकि अंचित खुदरा और ई-कॉमर्स डिवीजनों के प्रमुख हैं।
१९६३ में जन्मे लोग |
सहपऊ (सहपू) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के हाथरस ज़िले में स्थित एक नगर है।
इन्हें भी देखें
उत्तर प्रदेश के नगर
हाथरस ज़िले के नगर |
डाटा इनफ़ोसिस लिमिटेड एक भारतीय सूचना और संचार प्रौद्योगिकी सीएमएमआई स्तर ५ प्रमाणित कंपनी है। यह डेटा समूह का एक हिस्सा है। २०१६ में डेटा ज़्गेन टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड एक ऐसी कंपनी बनी जो क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय भाषाओ में ईमेल पता (ईमेल ईद/ ईमेल एड्डरेस) प्रदान करने में सक्षम है।
उदाहरण के तोर पर :-
हिंदी ईमेल एड्रेस : अ@अशोका.भारत
चीनी ईमेल एड्रेस : @. -
बांग्ला ईमेल एड्रेस :@.
अरबी ईमेल एड्रेस : @.
पंजाबी ईमेल एड्रेस : @.
गुजराती ईमेल एड्रेस: @.
रूस ईमेल एड्रेस : @.
जापानी ईमेल एड्रेस : @ |
हम सब बाराती भारतीय हिन्दी हास्य धारावाहिक है, जिसका प्रसारण ज़ी टीवी पर ४ अप्रैल 200४ से रविवार से बुधवार रात ८ बजे देता था। इसका निर्माण और निर्देशन का कार्य संजय छेल ने किया है। इसमें मुख्य किरदार में टीकू तलसानिया, दिलीप जोशी आदि हैं।
यह एक परिवार की कहानी है, जो शादियों में होने वाले सजावट तैयारी आदि का कार्य करता है। परिवार का हर सदस्य एक विशेष कार्य को करता है।
दिलीप जोशी - नथु मेहता |
चाइना गेट १९९८ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
ममता कुलकर्णी - संध्या राजन
विजू खोटे - घनश्याम
के डी चन्द्रन
नामांकन और पुरस्कार
१९९८ में बनी हिन्दी फ़िल्म |
महरमचक बड़हिया, लखीसराय, बिहार स्थित एक गाँव है।
लखीसराय जिला के गाँव |
कोडरा दनडारी, बेगूसराय, बिहार स्थित एक गाँव है।
बेगूसराय जिला के गाँव |
जॉन ओकीफ़ (जन्म १९ नवम्बर १९३९) एक अमेरिकी तंत्रिका-विज्ञानी और इंस्टिट्यूट ऑफ़ कॉग्निटिव न्यूरोसाइंस तथा डिपार्टमेंट ऑफ़ एनाटोमी (यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन) में प्रोफेसर हैं। उन्हें प्लेस कोशिकाओं की हिपोकैम्पस में प्लेस कोशिकाओं एवं थीटा चरण पुरस्सरण में सामयिक कोडिंग के लिए जाना जाता है। उन्हें २०१४ में एडवर्ड मोजर और मे-ब्रिट मोजर के साथ चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें अमेरिका व ब्रिटेन दो देशों की नागरिकता प्राप्त है।
नोबेल पुरस्कार विजेता जीवविज्ञानी
नोबेल पुरस्कार विजेता
१९३९ में जन्मे लोग |
अर्थसंग्रह मीमांसा का एक लघुकाय प्रकरण ग्रन्थ है, जिसमें शाबरभाष्य में प्रतिपादित बहुत से विषयों का अतिसंक्षेप में निरूपण है। संक्षेप में अधिकतम विषयों को प्रस्तुत करने के कारण इस ग्रन्थ का प्रचार जिज्ञासु-सामान्य में अत्यधिक हुआ और उपयोगी होने पर भी अनेक प्रकरण ग्रन्थ इतने प्रचलितन हो सके। इसके रचनाकार भास्कर हैं। इस ग्रन्थ में निम्नलिखित विषयों का मुख्यतः विवेचन हुआ है-
धर्म तथा उसका लक्षण,
भावना का लक्षण तथा उसके दो भेद,
वेद का लक्षण तथा उसके विभाग,
विधि का लक्षण तथा उसके प्रकार।
भारतीय दार्शनिक चिन्तन वैदिक काल से प्रारंभ होकर अद्यावधि निरन्तर प्रवाहमान है। भारतीय दर्शन में वेद की प्रमाणता को न मानने वाले दर्शनों को नास्तिक कहा गया। इसके विपरीत वेद में आस्था रखने वाले दर्शन आस्तिक दर्शन कहलाये, जिनकी संख्या ६ है। इन दर्शनों में मीमांसा दर्शन का स्थान अन्यतम है। आज भी वेद, ब्राह्मणादि को समझने के अतिरिक्त अन्य शास्त्रों के ज्ञान हेतु मीमांसा का आश्रय लिया जाता है। जैमिनिप्रणीत मीमांसा दर्शन के पश्चात् अन्य मीमांसा ग्रंथ भी लिखे गये जिनमें लौगाक्षिभास्कर कृत अर्थसंग्रह का विशिष्ट स्थान है। अर्थसंग्रह में जैमिनि प्रणीत मीमांसा-दर्शन के मुख्य प्रतिपाद्यविषयों का निरूपण अत्यंत सारगर्भित शैली में प्रस्तुत किया गया है।
इन्हें भी देखें |
ग्राहम इयान ह्यूम (जन्म २३ नवंबर १९९०) एक दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेटर हैं। उन्हें २०१६ अफ्रीका टी २० कप के लिए क्वाज़ुलु-नटाल अंतर्देशीय टीम में शामिल किया गया था। वह २०17 -१८ के सनफोइल ३-दिवसीय कप में क्वाज़ुलु-नटाल अंतर्देशीय के लिए दस मैचों में ४० आउट होने के साथ अग्रणी विकेट लेने वाले थे।
मई २०१९ में, उन्होंने आयरलैंड में २०१९ के अंतर-प्रांतीय कप में उत्तर पश्चिम योद्धाओं के लिए खेला। फरवरी २०२१ में, ह्यूम को उनके बांग्लादेश दौरे के लिए आयरलैंड वोल्व्स के दस्ते में नामित किया गया था।
१९९० में जन्मे लोग |
स्वामी घनानन्द घाना, अफ्रीका में हिन्दू मठ के प्रणेता है। वह मूल अफ्रीकी हैं। |
सागी खुदाबंदपुर, बेगूसराय, बिहार स्थित एक गाँव है।
बेगूसराय जिला के गाँव |
महाभारत के अनुसार परीक्षित अर्जुन के पौत्र अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र तथा जनमेजय के पिता थे। जब ये गर्भ में थे तब अश्वत्थामा ने ब्रम्हशिर अस्त्र से परीक्षित को मारने का प्रयत्न किया था । ब्रम्हशिर अस्त्र का संबंध भी भगवान ब्रम्हा से है तथा ब्रम्हा के ही महान अस्त्र ब्रह्मास्त्र के समान शक्तिशाली, अचूक और घातक कहा गया है। इस घटना के बाद योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अपने योगबल से उत्तरा के मृत पुत्र को पुनः जीवित कर दिया था । महाभारत के अनुसार कुरुवंश के परिक्षीण होने पर जन्म होने से वे 'परीक्षित' कहलाए।
माइकल विटजेल के अनुसार १२ वीं -११ वीं शताब्दी ईसा पूर्व में कुरु साम्राज्य के पौरिकिता राजवंश से संबंधित हैं।
एच.सी.रायचौधुरी ने परीक्षित को नौवीं शताब्दी ईसा पूर्व का माना है। [१२]
वैदिक साहित्य में केवल एक परीक्षित का उल्लेख है । परंतु उत्तर-वैदिक साहित्य (महाभारत और पुराण) इस नाम से दो राजाओं के अस्तित्व का संकेत देते हैं, एक जो कुरुक्षेत्र युद्ध से पूर्व हुए एवं पांडवों के पूर्वज थे और दूजे वह जो पांडवों के अग्रज थे। इतिहासकार एच.सी.रायचौधुरी का मानना है कि दूसरे परीक्षित का वर्णन वैदिक राजा से उपर्युक्त ढंग से मेल खाता है, जबकि पूर्वज 'परीक्षित' के बारे में उपलब्ध विवरण अत्यंत अल्प और असंगत है, साथ ही रायचौधरी प्रश्न करती हैं कि 'क्या वास्तविकता में एक ही नाम के ऐसे दो अलग शासक थे ?'
युधिष्ठिर आदि पांडव संसार से भली-भाँति उदासीन हो चुके थे और तपस्या के अभिलाषी थे। अतः वे शीघ्र ही परीक्षित को हस्तिनापुर का शासन सौंप द्रौपदी समेत तपस्या हेतु प्रस्थान कर गए। परीक्षित जब राजसिंहासन पर आरूढ़ हुए तो महाभारत युद्ध की समाप्ति हुए कुछ समय ही व्यतीत हुआ था, भगवान कृष्ण उस समय तक परमधाम प्रस्थान कर चुके थे और युधिष्ठिर को शासन किए ३६ वर्ष व्यतीत हो चुके थे। राज्य प्राप्ति के अनंतर गंगातट पर उन्होंने तीन अश्वमेघ यज्ञ किए जिनमें अंतिम यज्ञ में देवताओं ने प्रत्यक्ष आकर 'बलि' ग्रहण किया था।
परीक्षित के विषय में प्रमुख तथ्य यह है कि इन्हीं के शासनकाल में द्वापर का अंत और कलियुग का आरंभ होना माना जाता है। इस संबंध में भागवत में एक कथा है -
'एक दिवस राजा परीक्षित को ज्ञात हुआ कि कलियुग उनके राज्य में प्रवेश कर गया है और अधिकार स्थापित करने का अवसर ढूँढ़ रहा है। परीक्षित उसे अपने राज्य से निकाल बाहर करने के लिये ढूँढ़ने निकले। एक दिवस इन्होंने देखा कि एक गौ, एक बैल अनाथ और कातर भाव से खड़े हैं और एक शूद्र जिसका वेष, भूषण और ठाट-बाट राजा के समान था, दंड से उनको प्रताड़ित कर रहा है। बैल के मात्र एक पग (पैर) था। पूछने पर परीक्षित को गौ, बैल और राजवेषधारी शूद्र तीनों ने अपना-अपना परिचय दिया। गौ पृथ्वी, बैल धर्म और शूद्र कलिराज था। धर्मरूपी बैल के सत्य, तप और दयारूपी तीन पग कलियुग ने विच्छेदित कर डाले थे, मात्र एक पग दान के सहारे वह भाग रहा था, उसको भी विच्छेदित कर डालने के लिये कलियुग सतत् उसका पीछा कर रहा था। यह वृत्तांत जानकर परीक्षित को कलियुग पर बड़ा क्रोध हुआ और वे उसका वध करने को उद्यत हुए। कलि के गिड़गिड़ाने पर उन्हें उस पर दया आ गई और उन्होंने उसके रहने के लिये ये स्थान बता दिए - जुआ, स्त्री, मद्य, हिंसा और स्वर्ण। इन पंच स्थानों को छोड़कर अन्यत्र न रहने की कलि ने प्रतिज्ञा की। राजा ने पंच (पांच) स्थानों के साथ साथ ये पंच वस्तुएँ भी उसे दे डालीं - मिथ्या, मद, काम, हिंसा और बैर। इस घटना के कुछ समय पश्चात महाराज परीक्षित एक दिवस आखेट पर निकले। कलियुग सतत् इस घात में था कि किसी प्रकार परीक्षित का अस्तित्व मिटाकर निष्कंटक शासन करे। राजा के मुकुट में स्वर्ण था ही, कलियुग उसमें प्रविष्ट हो गया। राजा ने वन में आखेट की इच्छा से एक हरिण (हिरन) के पीछे घोड़ा दौड़ा दिया। बहुत दूर तक पीछा करने के पश्चात भी हरिण हाथ ना आया। शिथिलता के कारण उन्हें तृष्णा (प्यास) भी हो आई थी। वन मार्ग में एक वृद्ध ऋषि (शमीक) का आश्रम मिला। राजा ने उनसे प्रश्न किया कि 'क्या वह बता सकते हैं कि हरिण किस ओर गया है ? ऋषि मौनी थे, इसलिये राजा की प्रश्न का कुछ उत्तर न दे सके। क्लांत और प्यासे परीक्षित को ऋषि के इस व्यवहार से बड़ा क्रोध हुआ। कलियुग सिर पर सवार था ही, परिक्षित ने निश्चय कर लिया कि ऋषि ने घमंड के वशीभूत हो उत्तर नही दिया और इस अपराध का उन्हें दंड अवश्य मिलना चाहिए। निकट ही एक मृत सर्प पड़ा था। राजा ने तुणीर (तीर) की नोक से उसे उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया और प्रस्थान लिया। (महाभारत, आदिपर्व ३६, १७-२१) ऋषि के श्रृंगी नाम का एक महातेजस्वी पुत्र था। वह घटना के समय आश्रम पर नही था। आश्रम लौटने पर उसने पिता के गले में मृत सर्प लटका देखा। कोपशील श्रृंगी ने पिता के इस अपमान को देखकर हाथ में जल लेकर श्राप दिया कि जिस पापत्मा ने मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है, सात दिवस के भीतर ही तक्षक नाम का सर्प उसे डसकर मृत्युलोक पहुंचा दे। ऋषि को पुत्र के इस अविवेक पर अपार दुःख हुआ और उन्होंने एक शिष्य द्वारा परीक्षित को श्राप का समाचार कहला भेजा जिससे कि वे सतर्क रहें। परीक्षित ने ऋषि के श्राप को अटल समझ अपने पुत्र जनमेजय को शासक पद पर प्रतिष्ठित कर दिया और स्वयं एक ऊंचे प्रासाद पर सब ओर से सुरक्षित होकर रहने लगे । सातवें दिवस तक्षक ने आकर उन्हें डस लिया और विष की घातक प्रभाव से उनका शरीर मृत्यु को प्राप्त हो गया। कहते हैं, तक्षक जब परीक्षित को डसने चला तब मार्ग में उसे कश्यप ऋषि मिले। पूछने पर ज्ञात हुआ कि वे उसके विष से परीक्षित की रक्षा करने जा रहे हैं। तक्षक ने एक वृक्ष पर दाँत मारा, वह तत्काल जलकर भस्म हो गया। कश्यप ने अपनी विद्या से पुनः उसे हरा-भरा कर दिया। इस पर तक्षक ने बहुत सा धन देकर उन्हें बीच मार्ग से लौटा दिया। देवी भागवत में विवरण आता है कि, श्राप का समाचार पाकर परीक्षित ने तक्षक से अपनी प्राणरक्षा के लिये एक सप्त तल प्रासाद निर्मित करवाया और उसके चहुंओर उत्कृष्ट सुरक्षा व्यवस्था स्थापित कर दी। तक्षक को जब यह ज्ञात हुआ तो वह उद्विग्न हो उठा। अंत में परीक्षित तक पहुँचने का उसे एक उपाय सूझा। उसने एक अपने सजातीय सर्प को तपस्वी का रूप देकर उसे कुछ फल दिए और एक फल में एक सूक्ष्म कीट का रूप धरकर आप ही जा बैठा। तपस्वी बना हुआ सर्प तक्षक के निर्देसानुसार परीक्षित के उपर्युक्त सुरक्षित प्रासाद तक जा पहुँचा। प्रहरियों ने इसे भीतर जाने से निषेध कर दिया, परीक्षित को ज्ञात होने पर परीक्षित ने उस तपस्वी रुप धारण किए सर्प को अपने पास बुलवा भेजा और फल लेकर ससम्मान विदा किया। एक तपस्वी मुझे यह फल दे गया है, अतः इसे ग्रहण करने से अवश्य मेरा उपकार होगा, यह सोच उन्होंने शेष फल तो मंत्रियों में वितरित करवा दिए, परंतु दुर्योग से उस एक फल जिसमें तक्षक कीट रुप में उपस्थित था को स्वयं ग्रहण करन के उद्देश्य से काटा। फल से एक कीट निकला जो रक्तवर्ण था एवं उसके नेत्र कृष्णवर्ण थे। परीक्षित ने मंत्रियों से कहा - 'अब सूर्य भी अस्ताचलगामी है, अतः अब तक्षक से मुझे कोई भय नहीं। परन्तु ब्राह्मण के श्राप की भी मानरक्षा होना चाहिए। इसलिये इस कीट से डसने की विधि पूर्ण करवा लेता हूँ।' यह कहकर उन्होंने उस कीट को कंठ पर लगा लिया। परीक्षित के कंठ से स्पर्श होते ही वह नन्हा सा कीट भयंकर सर्प में परिवर्तित हो गया और उसके दंश के साथ परीक्षित का शरीर मृत्यु को प्राप्त हो गया। इस समय परीक्षित की अवस्था ९६ वर्ष की थी।
परीक्षित की मृत्यु पश्चात कलियुग का निषेध करनेवाला कोई न रहा और वह उसी दिवस से निष्कंटक शासन करने लगा। पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिये ही जनमेजय ने सर्पसत्र/सर्पयज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें समस्त ब्रह्माण्ड के सर्प (नाग) मंत्रबल से आकर्षित हो यज्ञ की अग्नि में आहूत हुए।
इनके अतिरिक्त 'परीक्षित' नाम के चार अन्य राजा और हुए हैं जिनमें तीन कुरुवंशीय थे और एक इक्ष्वाकुवंशीय। पहले तीनों में प्रथम वैदिककालीन राजा थे। इनके राज्य की समृद्धि और शांति का उल्लेख अथर्ववेद (२०. १२७, ७-१०) में हुआ है। इनकी प्रशस्ति में आए मंत्र 'पारिक्षित्य मंत्र', के रूप में प्रसिद्ध हैं (ऐतरेय ब्राह्मण. ६, ३२, १०)। दूसरे राजा, अरुग्वत् तथा मागधी अमृता के पुत्र और शंतनु के प्रपितामह थे (महाभारत, आदिपर्व, ९०, ४३-४८)। तीसरे कुरु अविक्षित और वहिन के ज्येष्ठ पुत्र थे (महाभारत आदिपर्व, ८९/४५-४६)। चौथे परिक्षित् अयोध्या के इक्ष्वाकुवंशीय नरेश थे जिनका विवाह मंडूकराज आयु की कन्या सुशोभना से इस शर्त पर हुआ कि वह जल नहीं देखेगी और दिखाई पड़ जाने पर उसे छोड़कर चली जाएगी। किंतु वह शर्त निभ न सकी और वह एक दिन सरोवर का जल देखते ही लुप्त हो गई। राजा बहुत क्रुद्ध हुए और उन्होंने मंडूकवध का सत्र आरंभ कर दिया। अंत में मंडूकराज आयु से उसे पुन: प्राप्त करने पर वे सत्र से विरत हुए (महाभारत वनपर्व, १९०)। |
डॉ लक्ष्मीशंकर मिश्र 'निशंक' (२१ अक्टूबर १९१८ - ३० दिसम्बर २०११) हिन्दी के साहित्यकार थे। वे 'साहित्य भूषण' के साथ ही हिन्दी संस्थान का 'भारत भारती' जैसे सर्वोच्च सम्मानों से सम्मानित थे।
श्री लक्ष्मीशंकर मिश्र का जन्म उत्तर प्रदेश के हरदोई जनपद के भगवंतनगर में हुआ था। लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री ली। हिन्दी में सवैया साहित्य पर उन्होंने शोध किया। इसके बाद कान्यकुब्ज डिग्री कालेज में १९७९ तक उन्होंने शिक्षक के रूप में कार्य किया।
प्रबन्ध काव्य : सुमित्रा
खण्ड काव्य : सिद्धार्थ का गृहत्याग, शांतिदूत, जयभरत, कर्मवीर भरत, संकल्प की विजय,
आत्मकथा : काव्य प्रज्ञा उद्भास (विभीषण की आत्मकथा),
मुक्तक काव्य : शतदल, क्रांतिदूत राना बेनीमाधव, अनुपमा, शंख की सॉस, दर्पण, रामलला की किलकारी, मेरी आरम्भिक कविताएं व तूणीर,
ब्रजभाषा काव्य : प्रेम पियूष, बांसुरी,
अवधी : काव्य पुरवाई,
गद्य साहित्य : साहित्यकार का दायित्व (निबंध संग्रह), संस्मरणों का दीप (संस्मरण) |
वृक्ष-कंगारू (ट्री-कंगारू) डेन्ड्रोलागस जीववैज्ञानिक वंश के धानीप्राणी (मारसूपियल) होते हैं। इनके शरीर वृक्ष विचरण के लिए अनुकूलित होते हैं और यह नया गिनी द्वीप के उष्णकटिबंधीय वर्षावनों, ऑस्ट्रेलिया के सुदूर पूर्वोत्तर के क्वीन्सलैंड राज्य के वर्षवनों और कुछ निकटवर्ती द्वीपों में मिलते हैं। इन स्थानों पर वनों को संकट होने से लगभग सभी वृक्ष-कंगारू जातियाँ संकटग्रस्त हो गई हैं। मैक्रोपोडों में यह एकमात्र वास्तविक वृक्ष विचरणिय वंश है।
इन्हें भी देखें
ऑस्ट्रेलिया के धानीप्राणी
पापुआ न्यू गिनी के स्तनधारी |
देबीपुर (देबीपुर) भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के पूर्व बर्धमान ज़िले में स्थित एक गाँव है। राष्ट्रीय राजमार्ग १३१ए यहाँ से गुज़रता है। यहाँ एक रेलवे स्टेशन भी है।
इन्हें भी देखें
पूर्व बर्धमान ज़िला
पश्चिम बंगाल के गाँव
पूर्व बर्धमान ज़िला
पूर्व बर्धमान ज़िले के गाँव |
चिदंबर रहस्य कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार के. पी. पूर्णचंद्र तेजस्वी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् १९८७ में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत कन्नड़ भाषा की पुस्तकें |
झुनीर (झुनीर) भारत के पंजाब राज्य के मानसा ज़िले में स्थित एक गाँव है। यह ज़िले की सरदूलगढ़ तहसील का भाग है।
इन्हें भी देखें
मानसा जिला, भारत
पंजाब के गाँव
मानसा ज़िला, भारत
मानसा ज़िले, भारत के गाँव |
बंगाल अभियांत्रिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय, शिबपुर पश्चिम बंगाल का एक विश्वविद्यालय है।
पश्चिम बंगाल के विश्वविद्यालय |
रामेश्वर मंदिर मिर्जापुर जिला के विन्ध्याचल में स्थित है। यह जगह राम गया घाट पर, मिर्जापुर से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान राम ने इस जगह पर शिवलिंग की स्थापना की थी।
मिर्जापुर जिले के पर्यटन स्थल |
सिद्धान्त कर्णिक एक भारतीय फिल्म अभिनेता हैं।
प्यार की ये एक कहानी
आसमान से आगे
यह है आशिकी
एक था राजा एक थी रानी
ये मेरा इंडिया
१९८३ में जन्मे लोग
भारतीय फ़िल्म अभिनेता |
हरि ( : हरि
) हिंदू संरक्षक देवता विष्णु के प्राथमिक विशेषणों में से एक है, जिसका अर्थ है 'वह जो दूर ले जाता है' (पाप)। यह उसे संदर्भित करता है जो अंधेरे और भ्रम को दूर करता है, जो आध्यात्मिक प्रगति के सभी बाधाओं को दूर करता है।
हरि नाम महाभारत के विष्णु सहस्रनाम में विष्णु के ६५०वें नाम के रूप में भी प्रकट होता है और वैष्णववाद में इसका बहुत महत्व माना जाता है।
संस्कृत शब्द " हरि " (हरि) प्रोटो-इंडो-यूरोपियन रूट "* एल- चमकने के लिए; फलने-फूलने के लिए; हरा; पीला" से लिया गया है, जिसने फ़ारसी शब्द ज़ार 'गोल्ड', ग्रीक क्लोरोस 'ग्रीन' को भी जन्म दिया। ', स्लाव ज़ेलन 'ग्रीन' और ज़ोल्टो 'गोल्ड', साथ ही अंग्रेजी शब्द येलो और गोल्ड ।
यही मूल संस्कृत के अन्य शब्दों जैसे हरिद्रा, ' हल्दी ' में भी आता है, जिसका नाम इसके पीले रंग के लिए रखा गया है।
हिंदू धर्म में, विष्णु सहस्रनाम पर आदि शंकर की टिप्पणी के साथ शुरुआत करते हुए, हरि को वैष्णववाद के संदर्भ में "हड़पने, जब्त करने, चोरी करने" के मौखिक मूल ह से व्युत्पन्न के रूप में व्युत्पन्न किया गया, जिसकी व्याख्या "बुराई या पाप को दूर करने या हटाने के लिए" के रूप में की गई। ", और विष्णु के नाम का अनुवाद "वह जो संसार को नष्ट करता है" के रूप में किया गया है, जो कि जन्म और मृत्यु के चक्र में उलझाव है, अज्ञानता के साथ, इसका कारण; हारा की तुलना शिव के एक नाम के रूप में करें, जिसका अनुवाद "हथियाने वाला" या "विध्वंसक" के रूप में किया गया है।
हरि के अन्य नाम
हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों जैसे भगवद गीता और महाभारत में हरि के कई नामों का उल्लेख है। कुछ नाम जो काफी बार उपयोग किए जाते हैं वे हैं:
भारतीय धर्मों में
हिन्दू धर्म में
हरिवंश ("हरि का वंश") पुराण और इतिहास दोनों परंपराओं में एक पाठ है।
पीले रंग के जानवरों के नाम के रूप में, हरि शेर ( राशि चक्र चिन्ह सिंह का एक नाम भी), बे घोड़ों या बंदरों का उल्लेख कर सकते हैं। स्त्री हरि संस्कृत महाकाव्यों में पौराणिक "बंदरों की मां" का नाम है।
हरिहर हिंदू धर्म में विष्णु (हरि) और शिव (हारा) दोनों के मिश्रित देवता रूप का नाम है।
हरि पुराणों में चौथे मनु ( मनु तामस, "अंधेरे मनु") के तहत देवताओं के एक वर्ग का नाम है।
हरिदास कर्नाटक का हरि -केंद्रित भक्ति आंदोलन है।
गौड़ीय वैष्णव परंपरा में, हरि कृष्ण और विष्णु दोनों का एक नाम है, जिसका आह्वान हरे कृष्ण महामंत्र में किया गया है (हरे हरि का एक सम्बोधित रूप हो सकता है)।
विष्णु के अवतार श्री हरि ने पौराणिक साहित्य में गजेंद्र को मुक्त किया।
सिख धर्म में
"" (हरि) नाम अक्सर श्री गुरु ग्रंथ साहिब में वाहेगुरु के नाम के रूप में प्रयोग किया जाता है: ॥ हरि, हरि, हरि, हरि नाम है (भगवान का); दुर्लभ वे हैं, जो गुरुमुख के रूप में इसे प्राप्त करते हैं। (एसजीजीएस, अंग.१३१३) वारन भाई गुरदास में, सिख धर्मशास्त्र की प्रारंभिक व्याख्या और व्याख्या, भाई गुरदास द्वापुर युग में हरि कृष्ण के रूप में "" (हरि) नाम को "" अक्षर "" (एच) के साथ जोड़ते हैं। (वाहेगुरु)।
हालांकि, श्री गुरु ग्रंथ साहिब के संदर्भ में, "हरि" नाम सिख धर्म के एक एकेश्वरवादी भगवान को संदर्भित करता है। हरि सिख धर्म में वही देवता हैं जिन्हें हिंदू धर्म में भी जाना जाता है। |
प्तोतपाल सिंह मैनी को सन २००७ में भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली से हैं।
२००७ पद्म भूषण |
अकौनी इमामगंज, गया, बिहार स्थित एक गाँव है।
गया जिला के गाँव |
८० अक्षांश उत्तर (८०त परलेल नॉर्थ) पृथ्वी की भूमध्यरेखा के उत्तर में ८० अक्षांश पर स्थित अक्षांश वृत्त है। यह काल्पनिक रेखा आर्कटिक महासागर व अटलांटिक महासागर और उत्तर अमेरिका, यूरोप व एशिया के भूमीय क्षेत्रों से निकलती है। इस अक्षांश पर केवल चार ही देशों की भूमि स्थित है - रूस (फ़्रांज़ योसेफ़ द्वीपसमूह), कनाडा (कुछ द्वीप), ग्रीनलैण्ड (होवगार्ड द्वीप) और नॉर्वे (स्वालबार्ड द्वीपसमूह)।
इन्हें भी देखें
८१ अक्षांश उत्तर
७९ अक्षांश उत्तर |
हारपुर दुल्हिनबाजार, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है।
पटना जिला के गाँव |
मार्क थॉमस स्टेकेटी (जन्म १७ जनवरी १९९४) एक ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर हैं।
१९९४ में जन्मे लोग
ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट खिलाड़ी |
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