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जेन कोयुम (अंग्रेजी :जान कौम) (यूक्रेन ) ; का जन्म २४ फ़रवरी १९७६ हुआ था ये एक अमेरिकी इंटरनेट उद्यमी और कंप्यूटर इंजीनियर है। वह $ १९ अरब अमेरिका के लिए फरवरी २०१४ में फेसबुक इंक द्वारा अधिग्रहण कर लिया था ' ये एक वर्तमान में एक मोबाइल संदेश अनुप्रयोग वाट्सऐप के सह संस्थापक है तथा फेसबुक के मैँनेंजिग संस्थापक है ' २०१४ में फोर्ब्स के अनुसार ये अमेरिकियों के अमीरों में अपना स्थान बना लिया था ' जेन कोयुम इनका जन्म कीव यूक्रेन में हुआ था ' ये एक यहूदी है '। ये कीव के बाहर फेस्टिव में पले बढे और १९९२ में माउंटेन व्यू उसकी मां और दादी के साथ कैलिफोर्निया चले गए ' वहां एक सामाजिक सहायता कार्यक्रम में एक छोटे से दो बेडरूम का अपार्टमेंट दिया गया जिससे इमके परिवार को मदद मिल गयी ' इन्होंने २००९ में वाट्सऐप जो कि एक तत्काल संदेश सेवा का अनुप्रयोग है इनकी स्थापना की थी ' और ये वर्तमान में वाट्सऐप के सह संस्थापक है ' वाट्सऐप के अलावा ये फेसबुक भी मैनेंजिग संस्थापक है ' १९७६ में जन्मे लोग
गणेश प्रसाद जायसवाल,भारत के उत्तर प्रदेश की प्रथम विधानसभा सभा में विधायक रहे। १९५२ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के २४७ - इलाहाबाद शहर (पूर्व) विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया। उत्तर प्रदेश की प्रथम विधान सभा के सदस्य २४७ - इलाहाबाद शहर (पूर्व) के विधायक इलाहाबाद के विधायक कांग्रेस के विधायक
कालजानी नदी (कल्जानी रिवर) भूटान और भारत में बहने वाली एक नदी है, जो तोर्षा नदी की प्रमुख उपनदी है। तोर्षा स्वयं ब्रह्मपुत्र नदी की एक उपनदी है। कालजानी भूटान में हिमालय के चरणों में उत्पन्न होती है और फिर भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में प्रवेश करती है, जहाँ इसका अधिकांश मार्ग है और जहाँ इसका विलय तोर्षा नदी में होता है। फिर यह संयुक्त नदी बांग्लादेश में प्रवेश करती है, जहाँ इसका विलय ब्रह्मपुत्र में होता है। इन्हें भी देखें भूटान की नदियाँ पश्चिम बंगाल की नदियाँ भारत की नदियाँ ब्रह्मपुत्र नदी की उपनदियाँ
द गेम एक मानसिक खेल है जिसमें खेलने वाले का उद्देश्य 'द गेम' के बारे में सोचने से बचना होता है। 'द गेम' के ध्यान में आने का मतलब है हार, जिसका तुरंत एलान किया जाना चाहिए। द गेम के ज़्यादातर संस्करणों को जीतना नामुमकिन है। खेलने का तरीका 'द गेम'खेलने के तीन नियम माने जाते हैं:- १. दुनिया के सभी लोग 'द गेम' खेल रहे हैं। (कभी-कभी: "कोई भी अपनी मर्ज़ी से 'द गेम' न खेलने का निश्चय नहीं कर सकता") २.'द गेम' के बारे में सोचने से व्यक्ति हार जाता है। ३. हर हार का ऐलान किया जाना चाहिए। यह ऐलान या तो मौखिक हो सकता है या फिर किसी अन्य तरीके से: जैसे फेसबुक, ट्विटर द्वारा। ज़्यादातररणनीतियाँ इसी लक्ष्य को मन में रखकर बनाई जाती हैं की ज्यादा से ज्यादा लोगों को 'द गेम' के बारे में पता चले जिससे की वे सब भी 'द गेम' हार जाएँ। अक्सर ऐसा करने के लिए लोग ज़ोर से 'द गेम' चिल्लाते है, या फिर किसी सार्वजनिक जगह पर 'द गेम' लिख आते हैं। इन्हें भी देखें
नागर शैली उत्तर भारतीय हिन्दू स्थापत्य कला की तीन में से एक शैली है। 'नागर' शब्द की उत्पत्ति नगर से हुई हैं। इस शैली का प्रसार हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत माला तक देखा जा सकता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार नागर शैली के मंदिरों की पहचान आधार से लेकर सर्वोच्च अंश तक इसका चतुष्कोण होना है। विकसित नागर मंदिर में गर्भगृह, उसके समक्ष क्रमशः अन्तराल, मण्डप तथा अर्द्धमण्डप प्राप्त होते हैं। एक ही अक्ष पर एक दूसरे से संलग्न इन भागों का निर्माण किया जाता है। शैली के अङ्ग 'नागर' शब्द नगर से बना है। सर्वप्रथम नगर में निर्माण होने के कारण इन्हे नागर की संज्ञा प्रदान की गई। शिल्पशास्त्र के अनुसार नागर मंदिरों के आठ प्रमुख अंग है - (१) मूल आधार - जिस पर सम्पूर्ण भवन खड़ा किया जाता है। (२) मसूरक - नींव और दीवारों के बीच का भाग (३) जंघा - दीवारें (विशेषकर गर्भगृह की दीवारें) (४) कपोत - कार्निस (५) शिखर - मंदिर का शीर्ष भाग अथवा गर्भगृह का उपरी भाग (६) ग्रीवा - शिखर का ऊपरी भाग (७) वर्तुलाकार आमलक - शिखर के शीर्ष पर कलश के नीचे का भाग (८) कलश - शिखर का शीर्षभाग नागर शैली का क्षेत्र उत्तर भारत में नर्मदा नदी के उत्तरी क्षेत्र तक है। परंतु यह कहीं-कहीं अपनी सीमाओं से आगे भी विस्तारित हो गयी है। नागर शैली के मंदिरों में योजना तथा ऊॅंचाई को मापदंड रखा गया है। नागर वास्तुकला में वर्गाकार योजना के आरंभ होते ही दोनों कोनों पर कुछ उभरा हुआ भाग प्रकट हो जाता है जिसे 'अस्त' कहते हैं। इसमें चांड़ी समतल छत से उठती हुई शिखा की प्रधानता पाई जाती है। यह शिखा कला उत्तर भारत में सातवीं शताब्दी के पश्चात् विकसित हुई अर्थात परमार शासकों ने वास्तुकला के क्षेत्र में नागर शैली को प्रधानता देते हुए इस क्षेत्र में नागर शैली के मंदिर बनवाये। इस शैली के मंदिर मुख्यतः मध्य भारत में पाए जाते है जैसे - कंदरिया महादेव मंदिर (खजुराहो) लिंगराज मंदिर - भुवनेश्वर (ओड़िसा ) जगन्नाथ मंदिर - पुरी (ओड़िसा ) कोणार्क का सूर्य मंदिर - कोणार्क (ओड़िसा ) मुक्तेश्वर मंदिर - (ओड़िसा ) खजुराहो के मंदिर - मध्य प्रदेश दिलवाडा के मंदिर - आबू पर्वत (राजस्थान ) सोमनाथ मंदिर - सोमनाथ (गुजरात) इन्हें भी देखें हिन्दू मंदिर स्थापत्य द्रविड़ शैली: दक्षिण भारतीय मन्दिर स्थापत्य वेसर शैली: मिश्रित भारतीय शैली
दुबई अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम, पहले इसे दुबई स्पोर्ट्स सिटी क्रिकेट स्टेडियम के नाम से भी जाना जाता था, जो दुबई, संयुक्त अरब अमीरात में स्थित एक क्रिकेट स्टेडियम है। यह स्टेडियम देश के तीन स्टेडियमों में से एक है, अन्य दो में एक शारजाह क्रिकेट स्टेडियम और एक अबू धाबी में शेख ज़ायद क्रिकेट स्टेडियम हैं। इस मैदान मेंं दर्शकों की अधिकतम क्षमता २५,००० है। विश्व के स्टेडियम विश्व के प्रमुख खेल मैदान संयुक्त अरब अमीरात के क्रिकेट स्टेडियम
सहमति का अर्थ एकमत होना है। सहमति एक हिन्दी शब्द है। राष्ट्रपति पद के लिए एंडीए शासन काल में अब्दुल कलाम के नाम पर सहमति बन पाई थी। अन्य भारतीय भाषाओं में निकटतम शब्द
जीताडीह भारत के बिहार प्रांत के भागलपुर जिला के अर्न्तगत एक गाँव है, जो गौराडीह प्रखंड़ के मुरहन पंचायत में पड़ता है। भागलपुर जिला के गाँव
जसुबेन शिल्पी अथवा जसु शिल्पी (१० दिसम्बर १९४८ १४ जनवरी २०१३) एक भारतीय कास्य-मूर्तिकार थीं। उन्होंने अपने जीवन में ५२५ अर्धप्रतिमाएँ और २२५ बड़ी प्रतिमाओं का निर्माण किया। उन्होंने लोकप्रिय रूप से "भारत की कास्य महिला" के नाम से जाना जाता था। उन्होंने अपने जीवन में ५२५ अर्धमूर्तियाँ और २२५ बड़े आकार की प्रतिमाओं का निर्माण किया। उनके कार्यों में मोहनदास कर्मचन्द गाँधी, रानी लक्ष्मीबाई, स्वामी विवेकानन्द और वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमाएँ भी शामिल हैं। उनके द्वारा निर्मित मूर्तियाँ विभिन्न भारतीय राज्यों जैसे तमिल नाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, राजस्थान, बिहार, उत्तराखण्ड में स्थापित हो चुकी हैं। उन्होंने अहमदाबाद नगर निगम से अनुबंध करके विभिन्न मूर्तियों का निर्माण किया जिन्हें नगर में स्थापित किया गया। उनके द्वारा निर्मित मोहनदास क्रमचन्द गाँधी और मार्टिन लूथर किंग की मूर्तियाँ फ्लोरिडा विश्वविद्यालय, जैक्सनविले, शिकागो और शेर्लोट का नगर, नॉर्थ केरोलिना में स्थापित किया गया। जसुबेन का १४ जनवरी २०१३ को पूर्णहृदरोध के कारण निधन हो गया। २०१३ में निधन १९४८ में जन्मे लोग
नेत्रपटलदर्शन (ओफ्थाल्मोस्कोपी या फंडस्कोपी) एक प्रकार का नेत्र परीक्षण है जिसमें चिकित्सक आँखों के फण्डस (फंडू) के अन्दर देखता है| इसके लिए जो उपकरन उपयोग में लाया जाता है उसे नेत्रपटलदर्शी (ओफ्थाल्मोस्कोप या फंडस्कोप) कहते हैं। दृष्टिपटल (रेटिना) के स्वास्थ्य को जाँचने के लिए यह जाँच अति महत्वपूर्ण है।
बेरुए फूलपुर, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। इलाहाबाद जिला के गाँव
पाकिस्तान की एक प्रमुख राजनैतिक दल। पाकिस्तान के राजनैतिक दल
प्राकृतिक खतरा एक प्राकृतिक घटना है जिसका मानव और अन्य जानवर, या पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। प्राकृतिक खतरे की घटनाओं को दो व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:भूभौतिकीय और जैविक. एक प्राकृतिक खतरे और एक आपदा के बीच अंतर का एक उदाहरण यह है कि एक भूकंप खतरा है जो १९०६ सैन फ्रांसिस्को भूकंप आपदा का कारण बना था,प्राकृतिक खतरों को मानवजनित प्रक्रियाओं द्वारा उकसाया या प्रभावित किया जा सकता है, उदा-: (भूमि उपयोग परिवर्तन, जल निकासी और निर्माण से सम्बंधित है। बीमारी एक प्राकृतिक खतरा है जिसे शहरीकरण या खराब स्वच्छता जैसे मानवीय कारकों द्वारा बढ़ाया जा सकता है। कई लोगों को प्रभावित करने वाली बीमारी को प्रकोप या महामारी कहा जा सकता है। कुछ मामलों में, एक खतरा मौजूद होता है कि बीमारी के खिलाफ मानव निर्मित रक्षा विफल हो सकती है, उदाहरण के लिए एंटीबायोटिक प्रतिरोध के माध्यम सेहोता है। २००० में, संयुक्त राष्ट्र ने अंतर्राष्ट्रीय प्रारंभिक चेतावनी कार्यक्रम शुरू किया ताकि भेद्यता के अंतर्निहित कारणों को संबोधित किया जा सके और आपदा जोखिम में कमी के महत्व के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देकर आपदा-लचीला समुदायों का निर्माण किया जा सके। सतत विकास का एक अभिन्न अंग, सभी प्रकार के खतरों (यूएन/आईएसडीआर, २०००) के कारण मानव, आर्थिक और पर्यावरणीय नुकसान को कम करने के लक्ष्य के साथ हुआ। २००६-२००७ संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस की थीम "आपदा न्यूनीकरण शिक्षा स्कूल में शुरू होती है" थी। सार्वजनिक सुरक्षा पेशेवरों के फाउंडेशन ने एक अंतरराष्ट्रीय खुले निबंध या वृत्तचित्र प्रतियोगिता के साथ एक अंतरराष्ट्रीय अभियान शुरू किया। बुशफायर एंड नेचुरल हैजर्ड्स सीआरसी से प्राकृतिक खतरा अनुसंधान
पश्चिम बर्धमान ज़िला ( ) भारत के पश्चिम बंगाल राज्य का एक जिला है। इसका मुख्यालय आसनसोल है। सन् २०१७ तक यह बर्धमान ज़िले का भाग हुआ करता था, लेकिन उस वर्ष में ज़िले को विभाजित कर के इस ज़िले और पूर्व बर्धमान ज़िले का गठन करा गया। इन्हें भी देखें पूर्व बर्धमान ज़िला पश्चिम बंगाल के जिले
मार्ताण्ड वर्मा, केरल का साहित्यकार सी॰ वी॰ रामन पिल्लै का १८९१ में प्रकाशित हुआ एक मलयालम उपन्यास है। राजा रामा वर्मा के अंतिम शासनकाल से मार्ताण्ड वर्मा का राज्याभिषेक तक वेनाड (तिरुवितांकूर) का इतिहास आख्यान करना एक अतिशयोक्तिपूर्ण कथा रूप में ही इस उपन्यास प्रस्तुत किया है। कोल्लवर्ष ९०१-९०६ (ग्रेगोरी कैलेंडर: १७२७-१७३२) समय में हुआ इस कहानी का शीर्षक पात्र को सिंहासन वारिस का स्थान से हटाने के लिए पद्मनाभन तम्पि और एटुवीटिल पिल्लयों ने लिटाया दुष्कर्म योजनाओं से संरक्षित करना अनन्तपद्मनाभन, माँकोयिकल कुरुपु और सुभद्र लोगों के कोशिशों और संबंधित घटनाओं से आगे बढ़ता है कथानक। इस उपन्यास, भारतीय उपमहाद्वीप और पश्चिमी, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक परंपराओं के समृद्ध संकेतों का उपयोग करता है। उपन्यास के ऐतिहासिक तत्वों को अनंतपद्मनाभन और पारुकुट्टी की प्रेम कहानी के साथ-साथ अनंतपद्मनाभन के वीरतापूर्ण कार्रवाइयों द्वारा समर्थित किये जाते हैं, जबकि रूमानियत के पहलुओं को ज़ुलेखा के एकतरफा प्यार और परुकुट्टी की अपने प्रेमी के लिए लालसा से प्रस्तुत की जाती हैं। वेनाड की अतीत की राजनीति को एट्टुवीटिल पिल्लयों की परिषद, पद्मनाभन तम्बी के लिए सिंहासन के बाद के दावे, तख्तापलट के प्रयास, सुभद्रा के देशभक्तिपूर्ण आचरण और अंत में विद्रोह के दमन के बाद उसकी दुःखद अंत के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। इतिहास और कल्पित कथा का आपस में जुड़ा प्रतिनिधित्व वर्णन श्रेण्यत शैली के माध्यम से प्राप्त किया जाता है, जिसमें विभिन्न पात्रों के लिए स्थानीय भाषाएं, आलंकारिक अलंकरण, और बीते समय के लिए उपयुक्त भाषा की नाटकीय और पुरातन शैली का मिश्रण शामिल है। यह उपन्यास मलयालम भाषा और दक्षिण भारत में प्रकाशित हुआ पहला ऐतिहासिक उपन्यास है। १८९१ में लेखक द्वारा स्वयं प्रकाशित पहला संस्करण, मिश्रित समीक्षाओं सकारात्मक प्राप्त हुआ, लेकिन पुस्तक की बिक्री ने महत्वपूर्ण राजस्व का उत्पादन नहीं किया। १९११ में प्रकाशित संशोधित संस्करण, एक बड़ी सफलता थी और एक बहुविक्रीत बन गया। १९३३ के चलचित्र रूपांतरण मार्ताण्ड वर्मा ने उस समय उपन्यास के प्रकाशकों के साथ कानूनी विवाद को जन्म दिया और स्वत्वाधिकार उल्लंघन का विषय बनने वाली मलयालम में पहली साहित्यिक कृति बन गई। इस उपन्यास का अंग्रेजी, तमिल और हिंदी में अनुवाद किया गया है, और इसे कई बार संक्षिप्त संस्करणों और अन्य क्षेत्रों जैसे चलचित्र और रंगमंच के साथ साथ रेडियो, टेलीविज़न, और चित्रकथा में भी रूपांतरित किया गया है। उपन्यास में वर्णित त्रावणकोर की ऐतिहासिक कहानी लेखक के बाद के उपन्यासों, धरमराजा (१९१३) और रामराजाबहदूर (१९१८-१९१९) में जारी है। प्रश्नगत उपन्यास सहित इन तीन उपन्यासों को मलयालम साहित्य में सीवी के ऐतिहासिक आख्यान और सीवी के उपन्यास त्रयी के रूप में जाना जाता है। केरल और तमिलनाडु में विश्वविद्यालयों द्वारा प्रस्तुत पाठ्यक्रमों के साथ-साथ केरल राज्य शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया इस उपन्यास मलयालम साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों में से एक माना जाता है। पात्रों के सम्बंध वंश अज्ञात परिवार आनुशंगिक वंश परिवार मार्ताण्ड वर्मा उपन्यास की कहानी के दौरान मारा गया पात्र। धरमराजा उपन्यास की कहानी के दौरान मारा गया पात्र। मार्ताण्ड वर्मा उपन्यास मॆं सक्रिय पात्र। धरमराजा उपन्यास मॆं सक्रिय पात्र। मार्ताण्ड वर्मा उपन्यास की कहानी के दौरान इस पात्र की स्वाभाविक मृत्यु हो जाती है। धरमराजा उपन्यास की कहानी के दौरान इस पात्र की स्वाभाविक मृत्यु हो जाती है। मार्ताण्ड वर्मा, धरमराजा और राम राजा बहदूर उपन्यासों में यह पात्र प्रकट होता है। राम राजा बहदूर उपन्यास की कहानी के दौरान मारा गया पात्र। यह पात्र, केवल मार्ताण्ड वर्मा और धरमराजा उपन्यासों में प्रकट होता है। राम राजा बहदूर उपन्यास में सक्रिय पात्र। यह पात्र, केवल धरमराजा और राम राजा बहादुर उपन्यासों में प्रकट होता है। राम राजा बहदूर उपन्यास की कहानी के दौरान इस पात्र की स्वाभाविक मृत्यु हो जाती है। इन्हें भी देखें मार्ताण्डवर्मा (मलयालम भाषा में)- सयह्ना फाउन्डेशन।
पवन सर्राफ (जन्म १७ दिसंबर २०००) एक नेपाली क्रिकेटर हैं। उन्होंने २५ जनवरी २०१९ को संयुक्त अरब अमीरात के खिलाफ नेपाल के लिए अपना एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) पदार्पण किया। २००० में जन्मे लोग नेपाली क्रिकेट खिलाड़ी
दिघिरपार (दिघिरपर) भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के दक्षिण २४ परगना ज़िले में स्थित एक नगर है। इन्हें भी देखें दक्षिण २४ परगना ज़िला दक्षिण २४ परगना ज़िला पश्चिम बंगाल के शहर दक्षिण २४ परगना ज़िले के नगर
नेपाल के पश्चिमांचल विकास क्षेत्रका लुम्बिनी प्रान्त का एक जिला है।ईस जिलाका सदरमुकाम तौलिहवा है। नेपाल के जिले
तेरहवीं पुतली कीर्तिमती ने इस प्रकार कथा कही- एक बार राजा विक्रमादित्य ने एक महाभोज का आयोजन किया। उस भोज में असंख्य विद्धान, ब्राह्मण, व्यापारी तथा दरबारी आमन्त्रित थे। भोज के मध्य में इस बात पर चर्चा चली कि संसार में सबसे बड़ा दानी कौन है। सभी ने एक स्वर से विक्रमादित्य को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ दानवीर घोषित किया। राजा विक्रमादित्य लोगों के भाव देख रहे थे। तभी उनकी नज़र एक ब्राह्मण पर पड़ी जो अपनी राय नहीं दे रहा था। लेकिन उसके चेहरे के भाव से स्पष्ट प्रतीत होता था कि वह सभी लोगों के विचार से सहमत नहीं है। विक्रम ने उससे उसकी चुप्पी का मतलब पूछा तो वह डरते हुए बोला कि सबसे अलग राय देने पर कौन उसकी बात सुनेगा। राजा ने उसका विचार पूछा तो वह बोला कि वह असमंजस की स्थिति में पड़ा हुआ है। अगर वह सच नहीं बताता, तो उसे झूठ का पाप लगता है और सच बोलने की स्थिति में उसे डर है कि राजा का कोपभाजन बनना पड़ेगा। अब विक्रम की जिज्ञासा और बढ़ गई। उन्होंने उसकी स्पष्टवादिता की भरि-भूरि प्रशंसा की तथा उसे निर्भय होकर अपनी बात कहने को कहा। तब उसने कहा कि महराज विक्रमादित्य बहुत बड़े दानी हैं- यह बात सत्य है पर इस भूलोक पर सबसे बड़े दानी नहीं। यह सुनते ही सब चौंके। सबने विस्मित होकर पूछा क्या ऐसा हो सकता है? उस पर उस ब्राह्मण ने कहा कि समुद्र पार एक राज्य है जहाँ का राजा कीर्कित्तध्वज जब तक एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ प्रतिदिन दान नहीं करता तब तक अन्न-जल भी ग्रहण नहीं करता है। अगर यह बात असत्य प्रमाणित होती है, तो वह ब्राह्मण कोई भी दण्ड पाने को तैयार था। राजा के विशाल भोज कक्ष में निस्तब्धता छा गई। ब्राह्मण ने बताया कि कीर्कित्तध्वज के राज्य में वह कई दिनों तक रहा और प्रतिदिन स्वर्ण मुद्रा लेने गया। सचमुच ही कीर्कित्तध्वज एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ दान करके ही भोजन ग्रहण करता है। यही कारण है कि भोज में उपस्थित सारे लोगों की हाँ-में-हाँ उसने नहीं मिलाई। राजा विक्रमादित्य ब्राह्मण की स्पष्टवादिता से प्रसन्न हो गए और उन्होंने उसे पारितोषिक देकर सादर विदा किया। ब्राह्मण के जाने के बाद राजा विक्रमादित्य ने साधारण वेश धरा और दोनों बेतालों का स्मरण किया। जब दोनों बेताल उपस्थित हुए तो उन्होंने उन्हें समुद्र पार राजा कीर्कित्तध्वज को राज्य में पहुँचा देने को कहा। बेतालों ने पलक झपकते ही उन्हें वहाँ पहुँचा दिया। कीर्कित्तध्वज के महल के द्वार पर पहुँचकर उन्होंने अपना परिचय उज्जयिनी नगर के एक साधारण नागरिक के रूप में दिया तथा कीर्कित्तध्वज से मिलने की इच्छा जताई। कुछ समय बाद जब ने कीर्कित्तध्वज के सामने उपस्थित हुए, तो उन्होंने उसके यहाँ नौकरी की माँग की। कीर्कित्तध्वज ने जब पूछा कि वे कौन सा काम कर सकते हैं तो उन्होंने का जो कोई नहीं कर सकता वह काम वे कर दिखाएँगे। राजा कीर्कित्तध्वज को उनका जवाब पसंद आया और विक्रमादित्य को उसके यहाँ नौकरी मिल गई। वे द्वारपाल के रूप में नियुक्त हुए। उन्होंने देखा कि राजा कीर्कित्तध्वज सचमुच हर दिन एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ जब तक दान नहीं कर लेता अन्न-जल ग्रहण नहीं करता है। उन्होंने यह भी देखा कि राजा कीर्कित्तध्वज रोज़ शाम में अकेला कहीं निकलता है और जब लौटता है, तो उसके हाथ में एक लाख स्वर्ण मुद्राओं से भरी हुई थैली होती है। एक दिन शाम को उन्होंने छिपकर कीर्कित्तध्वज का पीछा किया। उन्होंने देखा कि राजा कीर्कित्तध्वज समुद्र में स्नान करके एक मन्दिर में जाता है और एक प्रतिमा की पूजा-अर्चना करके खौलते तेल के कड़ाह में कूद जाता है। जब उसका शरीर जल-भुन जाता है, तो कुछ जोगनियाँ आकर उसका जला-भुना शरीर कड़ाह से निकालकर नोच-नोच कर खाती हैं और तृप्त होकर चली जाती हैं। जोगनियों के जाने के बाद प्रतिमा की देवी प्रकट होती है और अमृत की बून्दें डालकर कीर्कित्तध्वज को जीवित करती है। अपने हाथों से एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ कीर्कित्तध्वज की झोली में जाल देती है और कीर्कित्तध्वज खुश होकर महल लौट जाता है। प्रात:काल वही स्वर्ण मुद्राएँ वह याचकों को दान कर देता है। विक्रम की समझ में उसके नित्य एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ दान करने का रहस्य आ गया। अगले दिन राजा कीर्कित्तध्वज के स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त कर चले जाने के बाद विक्रम ने भी नहा-धो कर देवी की पूजा की और तेल के कड़ाह में कूद गए। जोगनियाँ जब उनके जले-भुने शरीर को नोचकर ख़ाकर चली गईं तो देवी ने उनको जीवित किया। जीवित करके जब देवी ने उन्हें स्वर्ण मुद्राएँ देनी चाहीं तो उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि देवी की कृपा ही उनके लिए सर्वोपरि है। यह क्रिया उन्होंने सात बार दुहराई। सातवीं बार देवी ने उनसे बस करने को कहा तथा उनसे कुछ भी मांग लेने को कहा। विक्रम इसी अवसर की ताक में थे। उन्होंने देवी से वह थैली ही मांग ली जिससे स्वर्ण मुद्राएँ निकलती थीं। ज्योंहि देवी ने वह थैली उन्हें सौंपी- चमत्कार हुआ। मन्दिर, प्रतिमा- सब कुछ गायब हो गया। अब दूर तक केवल समुद्र तट दिखता था। दूसरे दिन जब कीर्कित्तध्वज वहाँ आया तो बहुत निराश हुआ। उसका वर्षों का एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ दान करने का नियम टूट गया। अन्न-जल त्याग कर अपने कक्ष में असहाय पड़ा रहा। उसका शरीर क्षीण होने लगा। जब उसकी हालत बहुत अधिक बिगड़ने लगी, तो विक्रम उसके पास गए और उसकी उदासी का कारण जानना चाहा। उसने विक्रम को जब सब कुछ खुद बताया तो विक्रम ने उसे देवी वाली थैली देते हुए कहा कि रोज़-रोज़ कडाह में उसे कूदकर प्राण गँवाते देख वे द्रवित हो गए, इसलिए उन्होंने देवी से वह थैली ही सदा के लिए प्राप्त कर ली। वह थैली राजा कीर्कित्तध्वज को देकर उन्होंने उस वचन की भी रक्षा कर ली, जो देकर उन्हें कीर्कित्तध्वज के दरबार में नौकरी मिली थी। उन्होंने सचमुच वही काम कर दिखाया जो कोई भी नहीं कर सकता है। राजा कीर्कित्तध्वज ने उनका परिचय पाकर उन्हें सीने से लगाते हुए कहा कि वे सचमुच इस धरा पर सर्वश्रेष्ठ दानवीर हैं, क्योंकि उन्होंने इतनी कठिनाई के बाद प्राप्त स्वर्ण मुद्रा प्रदान करने वाली थैली ही बेझिझक दान कर डाली जैसे कोई तुच्छ चीज़ हो। सिंहासन बत्तीसी की अन्य पुतलियाँ
भोपा राजस्थान ,भारत में लोक देवताओं का गायन करने वाला एक समुदाय है। ये मुख्य रूप से राजस्थान में ही है। भोपा शब्द पुरुषों के लिए प्रयोग करते है तथा भोपी स्त्रियों के लिए प्रयोग किया जाता है। भोपा राजस्थान में पाबूजी की फड़ और देवनारायण की फड़ में चित्रों को देखकर गायन करते हैं। ये भोपे मन्दिरों में भी गायन करते हैं। पाबूजी की फड़ देवनारायण की फड़ राजस्थान का संगीत भारतीय लोक गायक राजस्थान के गायक राजस्थान के सामाजिक समुदाय
भेरिया में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद जिले का एक गाँव है। बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ बिहार के गाँव
लोगों द्वारा सुना गया। जिसका कोई लिखित प्रमाण न हो किंतु अनेक लोगों द्वारा कहे जाने के कारण विश्वसनीय लगता हो।
उरुग्वे दौर १९८६ से १९९३ तक फैले सामान्य व्यापार के टैरिफ और व्यापार के ढांचे के भीतर आयोजित बहुपक्षीय व्यापार वार्ता का ८ वां दौर था और १२३ देशों को "अनुबंधित पार्टियां" के रूप में अपनाया गया। गोल ने विश्व व्यापार संगठन का निर्माण किया, जिसमें गैट विश्व व्यापार संगठन के समझौतों का एक अभिन्न हिस्सा बना रहा।
वर्तमानूर, बजार्हथ्नूर मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
इयान एडवर्ड ओ'ब्रायन (जन्म १० जुलाई १९७६) न्यूजीलैंड के पूर्व क्रिकेटर हैं, जिन्होंने २२ टेस्ट, १० वनडे और ४ टी२०आई खेली हैं। एक तेज गेंदबाज, उन्होंने २०08 में वेस्टइंडीज के खिलाफ ७५ रन देकर ६ विकेट के लिए ७३ टेस्ट विकेट लिए। उन्होंने वेलिंगटन, लीसेस्टरशायर काउंटी क्रिकेट क्लब और मिडलसेक्स काउंटी क्रिकेट क्लब के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेला। जनवरी २०१२ में पुरानी चोट की समस्या के कारण उन्होंने सभी क्रिकेट से संन्यास ले लिया। न्यूज़ीलैंड के क्रिकेट खिलाड़ी न्यूज़ीलैंड के वनडे क्रिकेट खिलाड़ी १९७६ में जन्मे लोग
२००८ के आईसीसी विश्व ट्वेंटी-२० क्वालीफायर आईसीसी ट्वेंटी-२० विश्व कप क्वालीफायर के उद्घाटन टूर्नामेंट था और उत्तरी आयरलैंड में अगस्त २००८ २ और ५ के बीच खेला गया था स्टोरमॉन्ट, बेलफास्ट में। शीर्ष तीन २००९ आईसीसी विश्व ट्वेन्टी २०, टी-२० क्रिकेट के अंतरराष्ट्रीय चैम्पियनशिप में खेलेंगे। छह प्रतिस्पर्धा टीमों थे: बरमूडा, कनाडा, आयरलैंड, केन्या, नीदरलैंड और स्कॉटलैंड। प्रतियोगिता आयरलैंड और नीदरलैंड, जो ट्रॉफी साझा ने जीती बाद बारिश मजबूर अंतिम एक गेंद पर बोल्ड बिना छोड़ दिया जाना। दोनों टीमें इंग्लैंड में २००९ आईसीसी विश्व ट्वेंटी-२० के फाइनल के लिए क्वालीफाई किया। प्रतियोगिता से जिम्बाब्वे की वापसी के बाद, दो फाइनल तीसरे स्थान पर काबिज स्कॉटलैंड जो केन्या का सफाया से जुड़े हुए थे।
ज्यूडा चक झीना, रानीखेत तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा झीना, ज्यूडा चक, रानीखेत तहसील झीना, ज्यूडा चक, रानीखेत तहसील
रणबीर कपूर एक भारतीय अभिनेता हैं जो हिंदी फिल्मों में दिखाई देते हैं। संजय लीला भंसाली की रोमांटिक ड्रामा सांवरिया (२००७) में सोनम कपूर के साथ अभिनय की शुरुआत करने से पहले, उन्होंने आ अब लौट चलें (१९९९) और ब्लैक (२००५) फिल्मों में एक सहायक निर्देशक के रूप में अपना करियर शुरू किया। यह एक व्यावसायिक विफलता थी लेकिन कपूर को सर्वश्रेष्ठ पुरुष पदार्पण के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला । उन्होंने २००९ में तीन फिल्मों में प्रमुख भूमिकाओं के साथ खुद को स्थापित किया आने वाले युग के नाटक वेक अप सिड, कॉमेडी अजब प्रेम की गजब कहानी और नाटक रॉकेट सिंह: सेल्समैन ऑफ द ईयर । उन्होंने इन तीनों फिल्मों में अपने संयुक्त काम के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड जीता। २०१० में, कपूर ने व्यावसायिक रूप से सफल राजनीतिक थ्रिलर ' राजनीति ' में अर्जुन और माइकल कोरलियोन पर आधारित एक किरदार निभाया। २०११ से २०१३ तक, कपूर ने प्रत्येक व्यक्तिगत वर्ष की शीर्ष कमाई वाली हिंदी फिल्मों में अभिनय किया। इम्तियाज अली के संगीत रॉकस्टार (२०११) में, उन्होंने एक महत्वाकांक्षी गायक की भूमिका निभाई, और अनुराग बसु की कॉमेडी-ड्रामा बर्फी में! (२०१२), उन्होंने एक हर्षित बहरे और गूंगे व्यक्ति के रूप में अभिनय किया। दोनों फिल्मों में उनके प्रदर्शन को समीक्षकों द्वारा सराहा गया और उन्होंने फिल्मफेयर में लगातार दो सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार अर्जित किए और पूर्व में उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड भी मिला। रोमांटिक कॉमेडी ये जवानी है दीवानी (२०१३) ने २.९५ बिलियन (२0२0 में ४.३ बिलियन या यूएस $ ५७ मिलियन के बराबर) की कमाई की, जो भारतीय सिनेमा की सबसे अधिक कमाई करने वालों में से एक के रूप में उभरी। इस सफलता के बाद व्यावसायिक विफलताओं की एक श्रृंखला में भूमिकाएँ मिलीं, जिनमें पीरियड क्राइम ड्रामा बॉम्बे वेलवेट (२०१५), रोमांस तमाशा (२०१५), और कॉमिक मिस्ट्री जग्गा जासूस (२०१७) शामिल हैं; बाद में पिक्चर शूरू प्रोडक्शंस के तहत कपूर के प्रोडक्शन की शुरुआत भी हुई, जिसे उन्होंने अनुराग बसु के साथ बनाया। इस अवधि में उनकी एकमात्र व्यावसायिक सफलता करण जौहर के रोमांस ऐ दिल है मुश्किल (२०१६) के साथ आई, जिसमें उन्होंने अनुष्का शर्मा के साथ एकतरफा प्रेम संबंध में शामिल संगीतकार के रूप में अभिनय किया। कपूर ने २०१८ में करियर में वापसी की, जब उन्होंने राजकुमार हिरानी की बायोपिक संजू में परेशान अभिनेता संजय दत्त की भूमिका निभाई, जिसने से अधिक की कमाई की। अपनी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली रिलीज के रूप में उभरने के लिए। इसने उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का एक और फिल्मफेयर पुरस्कार दिलाया। बॉलीवुड हंगामा पर रणबीर कपूर रिपोर्टर के रणबीर कपूर पर इशारा करते ही आलिया भट्ट शरमा गई, पूछा 'आर' उसके लिए लकी है या नहीं ; फ़िल्मों की सूची
बोहरागाँव, नैनीताल तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के नैनीताल जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा बोहरागाँव, नैनीताल तहसील बोहरागाँव, नैनीताल तहसील
११५८ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ
तनकवार इमामगंज, गया, बिहार स्थित एक गाँव है। गया जिला के गाँव
फ्री प्रेस जर्नल भारत में प्रकाशित होने वाला अंग्रेजी भाषा का एक समाचार पत्र (अखबार) है। इन्हें भी देखें भारत में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों की सूची भारत में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र अंग्रेजी भाषा के समाचार पत्र
भेगलासी-कौडिया-१, सतपुली तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा भेगलासी-कौडिया-१, सतपुली तहसील भेगलासी-कौडिया-१, सतपुली तहसील
कोली खेड़ा भारत के राजस्थान राज्य मे झालावाड़ जिले के पिड़ावा तहसील मे एक गांव है। यह गांव कोली खेड़ा पंचायत के अंतर्गत आता है। यह कोटा डिवीजन में है। यह जिला मुख्यालय झालावाड़ से दक्षिण की ओर ५४ क्म की दूरी पर स्थित है। पिड़ावा से ७ कि.मी. और राज्य की राजधानी जयपुर से ३५० कि.मी. दूर है। राजस्थान के गाँव
राष्ट्रीय राजमार्ग १६१बीबी (नेशनल हाइवे १६१ब्ब) भारत का एक राष्ट्रीय राजमार्ग है। यह तेलंगाना में मदनूर से बोधन तक जाता है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग ६१ का एक शाखा मार्ग है। इन्हें भी देखें राष्ट्रीय राजमार्ग (भारत) राष्ट्रीय राजमार्ग ६१ (भारत)
हुसेनापुरं (अनंतपुर) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अनंतपुर जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
बल्ख़ (/ बी एल एक्स/; पश्तो और फारसी : , बाल्क ; प्राचीन ग्रीक : , बाक्रा ; बैक्ट्रियन : , बखलो ) अफगानिस्तान के बाल्क प्रांत में एक शहर है, लगभग २० किमी (१२ मील) उत्तरपश्चिम प्रांतीय राजधानी, मजार-ए शरीफ़, और अमू दाराय नदी और उजबेकिस्तान सीमा के ७४ किमी (४६ मील) दक्षिण में। यह ऐतिहासिक रूप से बौद्ध धर्म, इस्लाम और ज़ोरोस्ट्रियनवाद का एक प्राचीन केंद्र था और बाद के शुरुआती इतिहास के बाद से खोरासन के प्रमुख शहरों में से एक था। बाल्क हिंदू ग्रंथों [१] , विशेष रूप से महाकाव्य महाभारत में अपने शुरुआती उल्लेखों में से एक है, जहां इसे बहलिक या वालिका कहा जाता है। कुरुक्षेत्र युद्ध में भाग लेने के लिए इसका शासक उल्लेख किया गया है। [२] बाल्क का प्राचीन शहर प्राचीन यूनानियों को बैक्ट्रा के रूप में जाना जाता था, जिसका नाम बैक्ट्रिया को दिया गया था। इसे ज्यादातर बैक्ट्रिया या तोखारिस्तान के केंद्र और राजधानी के रूप में जाना जाता था। मार्को पोलो ने बाल्क को "महान और महान शहर" के रूप में वर्णित किया। बाल्क अब अधिकांश भाग के लिए खंडहर का द्रव्यमान है, जो लगभग ३६५ मीटर (१,१98 फीट) की ऊंचाई पर, मौसमी बहने वाली बाल्क नदी के दाहिने किनारे से १2 किमी (७.५ मील) स्थित है। फ्रांसीसी बौद्ध अलेक्जेंड्रा डेविड-नेल बाल्ख के साथ शम्भाला से जुड़े थे, जो फारसी शाम-ए-बाला ("ऊंचा मोमबत्ती") भी अपने नाम की व्युत्पत्ति के रूप में पेश करते थे। [४] इसी तरह से, गुर्जिफियन जेजी बेनेट ने अटकलों को प्रकाशित किया कि शम्बाला एक बैक्ट्रियन सूर्य मंदिर शम्स-ए-बाल्क था। [५] शहर का बैक्ट्रियन भाषा नाम था। प्रांत या देश का नाम पुरानी फारसी शिलालेखों में भी दिखाई देता है (भी १६; दार पर्स ई .१६; एनआर ए ३) बाक्सरी, यानी बखत्री के रूप में। यह अवेस्ता में बाक्सिकी के रूप में लिखा गया है। इससे मध्यवर्ती रूप बाक्सली, संस्कृत बहलीका (बलिका) भी "बैक्ट्रियन" के लिए आया था, और आधुनिक फारसी बाल्क्स, यानी बाल्क और अर्मेनियाई बहल को पारदर्शी बनाकर। बाल्क को पहला शहर माना जाता है, जिसमें २००० से १५०० ईसा पूर्व के बीच अमू दाराय के उत्तर से भारत-ईरानी जनजातियां चली गईं। [७] अरबों ने इसे प्राचीन काल के कारण उम्म अल-बेलद या शहरों की मां कहा। शहर परंपरागत रूप से जोरोस्ट्रियनवाद का केंद्र था। [८] नाम जरियास्पा, जो या तो बाल्क के लिए वैकल्पिक नाम है या शहर के हिस्से के लिए एक शब्द है, महत्वपूर्ण ज़ोरोस्ट्रियन अग्नि मंदिर अज़र-ए-एएसपी से प्राप्त हो सकता है। [८] बल्क को उस स्थान के रूप में माना जाता था जहां ज़ोरोस्टर ने पहले अपने धर्म का प्रचार किया था, साथ ही वह स्थान जहां वह मर गया था। चूंकि भारत-ईरानियों ने बल्क में अपना पहला साम्राज्य बनाया [९] (बैक्ट्रिया, दक्सिया, बुखडी) कुछ विद्वान का मानना है कि यह इस क्षेत्र से था कि भारत-ईरानियों की विभिन्न तरंगें उत्तर-पूर्व ईरान और सेइस्तान क्षेत्र में फैलीं, जहां वे कुछ हद तक इस क्षेत्र के फारसी, ताजिक , पश्तुन और बलूच लोग बन गए। बदलते माहौल ने प्राचीन काल से मरुस्थलीकरण का नेतृत्व किया है, जब क्षेत्र बहुत उपजाऊ था। इसकी नींव पौराणिक कथाओं में दुनिया के पहले राजा कीमारर्स के लिए पौराणिक रूप से अंकित है; और यह कम से कम निश्चित है कि, बहुत ही शुरुआती तारीख में, यह इक्बाटन, निनवे और बाबुल का प्रतिद्वंद्वी था। लंबे समय तक शहर और देश दोहरीवादी जोरोस्ट्रियन धर्म की केंद्रीय सीट थी, जिसमें से संस्थापक, ज़ोरोस्टर, फारसी कवि फर्डोवी के अनुसार दीवारों के भीतर मृत्यु हो गई। अर्मेनियाई सूत्रों का कहना है कि पार्थियन साम्राज्य के अर्सासिड वंश ने बाल्क में अपनी राजधानी की स्थापना की। एक लंबी परंपरा है कि अनाहिता का एक प्राचीन मंदिर यहां पाया जाना था, एक मंदिर इतना समृद्ध था कि उसने लूटपाट को आमंत्रित किया। बाल्क के राजा की हत्या के बाद अलेक्जेंडर द ग्रेट ने बैक्ट्रिया के रोक्साना से शादी की। [१०] यह शहर ग्रीको-बैक्ट्रियन साम्राज्य की राजधानी थी और सेलेक्यूड साम्राज्य (२०८-२०६ ईसा पूर्व) द्वारा तीन साल तक घिरा हुआ था। ग्रीको-बैक्ट्रियन साम्राज्य के निधन के बाद, अरबों के आगमन से पहले भारत-सिथियन, पार्थियन, इंडो-पार्थियन, कुशन साम्राज्य, इंडो- ससानिड्स, किदारसाइट्स, हेफ्थालाइट साम्राज्य और ससानीद फारसियों द्वारा इसका शासन किया गया था। बैक्ट्रियन दस्तावेज - चौथी से आठवीं शताब्दी में लिखे गए बैक्ट्रियन भाषा में - उदाहरण के लिए, कामर्ड और वाखश जैसे स्थानीय देवताओं के नाम को लगातार उजागर करते हैं, उदाहरण के लिए, अनुबंधों के गवाहों के रूप में। दस्तावेज बाल्क और बामियान के बीच के क्षेत्र से आते हैं, जो बैक्ट्रिया का हिस्सा है। [१ १] बाल्क शहर बौद्ध देशों के लिए प्रसिद्ध है क्योंकि अफगानिस्तान के दो महान बौद्ध भिक्षुओं - ट्रैपुसा और बहलिका । उनके अवशेषों पर दो स्तूप हैं। एक लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार, बुद्ध में बौद्ध धर्म बुद्ध के शिष्य भल्लिका द्वारा पेश किया गया था, और शहर ने उसका नाम प्राप्त किया था। वह इस क्षेत्र के व्यापारी थे और बोधगया से आए थे। साहित्य में, बल्क को बलिका, वालिका या बहलिका के रूप में वर्णित किया गया है। बाल्क में पहला विहार भल्लिका के लिए बनाया गया था जब वह बौद्ध भिक्षु बनने के बाद घर लौट आया था। कुआंज़ांग ६३० में बाल्क का दौरा किया जब यह हिनायन बौद्ध धर्म का एक समृद्ध केंद्र था। जुआनजांग के संस्मरणों के अनुसार, ७ वीं शताब्दी में उनके दौरे के समय शहर में लगभग सौ बौद्ध अभियुक्त थे। वहां ३,००० भिक्षु थे और बड़ी संख्या में स्तूप और अन्य धार्मिक स्मारक थे। सबसे उल्लेखनीय स्तूप नवभारत (संस्कृत, नव विहार: नया मठ) था, जिसमें बुद्ध की विशाल प्रतिमा थी। अरब विजय से कुछ समय पहले, मठ एक ज्योतिषी अग्नि मंदिर बन गया। १० वीं शताब्दी के एक अरब यात्री, भूगोलकार इब्न हककाल के लेखन में इस इमारत का एक उत्सुक संदर्भ मिलता है, जो बाल्क को मिट्टी के बने, छतरियों और छः द्वारों के साथ, और आधे परसांग के लिए विस्तारित करता है । उन्होंने एक महल और एक मस्जिद का उल्लेख भी किया। एक चीनी तीर्थयात्रियों, फा-हेन, (सी .४००) ने शान शान, कुचा , काशीगर , ओश, उदयाना और गंधरा में प्रचलित हिनायन अभ्यास पाया। जुआनजांग ने टिप्पणी की कि बौद्ध धर्म का व्यापक रूप से बाल्क के हुनिश शासकों द्वारा अभ्यास किया जाता था, जो भारतीय शाही स्टॉक से निकले थे। [१२] एक कोरियाई साधु, हुइचओ , अरब आक्रमण के बाद आठवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उल्लेख किया गया कि बाल्क के निवासियों ने बौद्ध धर्म का पालन किया और बौद्ध राजा का पालन किया। उन्होंने अरब आक्रमण पर ध्यान दिया और उस समय बाल्क का राजा निकटवर्ती बदाकशान भाग गया था। [१३] इसके अलावा, हम जानते हैं कि खोरासन में कई बौद्ध धार्मिक केंद्रों का विकास हुआ। बाल्क शहर के नजदीक नवाब (नया मंदिर) सबसे महत्वपूर्ण था, जो स्पष्ट रूप से राजनीतिक नेताओं के लिए एक तीर्थ केंद्र के रूप में कार्य करता था जो श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए दूर और व्यापक रूप से आए थे। [१४] संस्कृत चिकित्सा, फार्माकोलॉजिकल विषाक्त विज्ञान ग्रंथों की एक बड़ी संख्या का अनुवाद अल-मंसूर के विज़ीर खालिद के संरक्षण के तहत अरबी में किया गया था। खालिद बौद्ध मठ के एक मुख्य पुजारी का पुत्र था। जब अरबों ने बल्क पर कब्जा कर लिया तो कुछ परिवार मारे गए; खालिद समेत अन्य लोग इस्लाम में परिवर्तित होकर बच गए। उन्हें बगदाद के बरमीकिस के रूप में जाना जाता था। [१५] बाल्क में एक प्राचीन यहूदी समुदाय अस्तित्व में था जैसा कि अरब इतिहासकार अल-मक्रीज़ी ने दर्ज किया था, जिसने लिखा था कि समुदाय को अश्शूर राजा सन्हेरीब द्वारा यहूदियों के बाल्क में स्थानांतरित करके स्थापित किया गया था। बाल्क में एक बाब अल-याहूद (यहूदियों का गेट) और अल-याहुदिया (यहूदी शहर) अरब भूगोलकारों द्वारा प्रमाणित किया जाता है। [१६] मुस्लिम परंपरा ने कहा कि यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता बल्क के पास भाग गया और यहेजकेल को वहां दफनाया गया। [१७] ग्यारहवीं शताब्दी में इस यहूदी समुदाय को नोट किया गया था क्योंकि शहर के यहूदियों को गजनी के सुल्तान महमूद के लिए एक बाग बनाए रखने के लिए मजबूर किया गया था, जिसके लिए उन्होंने ५०० डायरहेम्स का कर चुकाया था। यहूदी मौखिक इतिहास के मुताबिक, तिमुर ने बल्क के यहूदियों को इसे बंद करने के लिए एक द्वार के साथ एक शहर की चौथाई दी। [१८] बाल्क में यहूदी समुदाय की उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में रिपोर्ट हुई थी जहां यहूदी अभी भी शहर की एक विशेष तिमाही में रहते थे। [१९] प्रसिद्ध यहूदी एक्सेगेटे हिवी अल- बाल्कि बाल्क से था। ७ वीं शताब्दी में फारस की इस्लामी विजय के समय, हालांकि, बल्क ने उमर की सेनाओं से वहां भागने वाले फारसी सम्राट याज़देगेर ई के लिए प्रतिरोध और एक सुरक्षित आश्रय प्रदान किया था। बाद में, ९वीं शताब्दी में, याकूब बिन लाथ के-सेफर के शासनकाल के दौरान, इस्लाम स्थानीय आबादी में दृढ़ता से निहित हो गया। अरबों ने ६४२ में फारस पर कब्जा कर लिया (उथमान के खलीफाट के दौरान, ६४४-६५६ ईस्वी)। बाल्क की भव्यता और धन से आकर्षित, उन्होंने ६४५ ईस्वी में इस पर हमला किया। यह केवल ६५३ में था जब अरब कमांडर अल-अहनाफ ने फिर से शहर पर छापा मारा और श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए मजबूर किया। हालांकि, शहर पर अरब पकड़ कमजोर रहा। यह क्षेत्र ६६३ ईस्वी में मुवाया द्वारा पुनः प्राप्त किए जाने के बाद ही अरब नियंत्रण में लाया गया था। प्रो। उपसाक इन शब्दों में इस विजय के प्रभाव का वर्णन करते हैं: "अरबों ने शहर को लूट लिया और लोगों को अंधाधुंध मार दिया। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने नव-विहार के प्रसिद्ध बौद्ध मंदिर पर हमला किया, जिसे अरब इतिहासकारों ने 'नव बहारा' कहा और इसे शानदार स्थानों में से एक के रूप में वर्णित करें, जिसमें उच्च स्तूपों के चारों ओर ३६० कोशिकाओं की एक श्रृंखला शामिल थी। उन्होंने कई छवियों और स्तूपों पर लगाए गए रत्नों और गहने लूट लिया और विहार में जमा धन को हटा दिया लेकिन शायद कोई उल्लेखनीय नहीं था अन्य मठवासी इमारतों या वहां रहने वाले भिक्षुओं को नुकसान पहुंचा "। अरब हमलों के मठों या बाल्क बौद्ध आबादी के बाहर सामान्य उपशास्त्रीय जीवन पर थोड़ा असर पड़ा था। बौद्ध धर्म अपने मठों के साथ बौद्ध शिक्षा और प्रशिक्षण के केंद्रों के रूप में विकसित होना जारी रखा। चीन, भारत और कोरिया के विद्वानों, भिक्षुओं और तीर्थयात्रियों ने इस स्थान पर जाना जारी रखा। बाल्क में अरब शासन के खिलाफ कई विद्रोह किए गए थे। बाल्क पर अरबों का नियंत्रण लंबे समय तक नहीं रहा क्योंकि यह जल्द ही स्थानीय राजकुमार के शासन में आया था, जो एक उत्साही बौद्ध नाज़क (या निजाक) तारखन कहलाता था। उन्होंने अरबों को अपने क्षेत्र से ६७० या ६७१ में निष्कासित कर दिया। कहा जाता है कि उन्होंने नवा-विहार के मुख्य पुजारी (बार्माक) को न केवल तबाह कर दिया बल्कि इस्लाम को गले लगाने के लिए उन्हें सिरदर्द किया। एक अन्य खाते के अनुसार, जब बाल्क को अरबों ने जीत लिया था, नवा-विहार के मुख्य पुजारी राजधानी में गए थे और एक मुस्लिम बन गए थे। इसने बाल्क के लोगों को नाराज कर दिया। उसे हटा दिया गया था और उसका बेटा अपनी स्थिति में रखा गया था। कहा जाता है कि नाज़क तरखन ने न केवल मुख्य पुजारी बल्कि उनके बेटों की भी हत्या कर दी है। केवल एक जवान बेटा बचाया गया था। उन्हें अपनी मां ने कश्मीर में ले जाया था जहां उन्हें दवा, खगोल विज्ञान और अन्य विज्ञान में प्रशिक्षण दिया गया था। बाद में वे बाल्क लौट आए। प्रो। मकबूल अहमद ने कहा, "एक यह सोचने के लिए प्रेरित है कि परिवार कश्मीर से निकला, संकट के समय, उन्होंने घाटी में शरण ली। जो कुछ भी हो, उनकी कश्मीरी उत्पत्ति निस्संदेह है और यह बार्मेक्स के गहरे हित को भी समझाती है, बाद के वर्षों में, कश्मीर में, क्योंकि हम जानते हैं कि वे कश्मीर से कई विद्वानों और चिकित्सकों को अब्बासिड्स कोर्ट में आमंत्रित करने के लिए जिम्मेदार थे। " प्रो। मकबूल याह्या बिन बरमक के दूत द्वारा तैयार रिपोर्ट में निहित कश्मीर के विवरणों को भी संदर्भित करता है। उन्होंने अनुमान लगाया कि संग्रामपिता द्वितीय (७९७-८०१) के शासनकाल के दौरान दूत शायद कश्मीर का दौरा कर सकता था। ऋषि और कला के लिए संदर्भ दिया गया है। उमय्यद अवधि के दौरान बाल्क लोगों द्वारा मजबूत प्रतिरोध के बावजूद अरबों ने केवल ७१५ ईस्वी में अपने नियंत्रण में बाल्क लाने में कामयाब रहे। कुतुबा इब्न मुस्लिम अल-बिहिली, एक अरब जनरल खुरासन के राज्यपाल और पूर्व में ७०५ से ७१५ तक था। उन्होंने अरबों के लिए ओक्सस से परे भूमि पर एक दृढ़ पकड़ स्थापित किया। उन्होंने ७१५ में तोखारिस्तान (बैक्ट्रिया) में तर्खन निजाक से लड़ा और मारा। अरब विजय के चलते, विहार के निवासी भिक्षुओं को या तो मार दिया गया या उनके विश्वास को त्यागने के लिए मजबूर किया गया। विहार को जमीन पर धराशायी कर दिया गया था। मठों के पुस्तकालयों में पांडुलिपियों के रूप में अनमोल खजाने को राख में रखा गया था। वर्तमान में, शहर की केवल प्राचीन दीवार, जो इसे एक बार घेरती है, आंशिक रूप से खड़ी है। नवा-विहार तख्त-ए-रुस्तम के पास, खंडहर में खड़ा है। [२०] ७२६ में, उमायाद के गवर्नर असद इब्न अब्दल्लाह अल-कासरी ने बाल्क का पुनर्निर्माण किया और इसमें एक अरब गैरीसन स्थापित किया, [२१] जबकि एक दूसरे दशक में, उन्होंने अपने प्रांतीय राजधानी को स्थानांतरित कर दिया। [२२] उमाय्याद काल ७४७ तक चली, जब अबू मुसलमान ने अब्बासिड क्रांति के दौरान अब्बासिड्स (अगले सुन्नी खलीफाट राजवंश) के लिए कब्जा कर लिया। शहर ८२१ तक अब्बासिड हाथों में रहा, जब इसे ताहिरिद राजवंश ने ले लिया, यद्यपि अभी भी अब्बासिड्स के नाम पर। ८७० में, सफरीद इसे कब्जा कर लिया। सफ़विद से ख़्वारीजीमशाह तक ८७० में, याकूब इब्न अल-लेथ अल-सेफर ने अब्बासिद शासन के खिलाफ विद्रोह किया और सिस्तान में सैफरीड राजवंश की स्थापना की। उन्होंने वर्तमान अफगानिस्तान और वर्तमान में ईरान पर कब्जा कर लिया। उनके उत्तराधिकारी अमृत इब्न अल-लेथ ने समानाइड्स से ट्रांसोक्सियाना को पकड़ने की कोशिश की, जो आम तौर पर अब्बासिड्स के वासल थे, लेकिन वह ९ ०० में बाल्क की लड़ाई में इस्माइल समानी द्वारा पराजित और कब्जा कर लिया गया था। उन्हें अब्बासिद खलीफा को कैदी के रूप में भेजा गया था और ९02 में निष्पादित किया गया था। साफ्फारिद की शक्ति कम हो गई थी और वे समानिद के वस्सल बन गया। इस प्रकार बाल्क अब उन्हें पास कर दिया। बाल्क में सामनीद शासन ९९७ तक चले, जब उनके पूर्व अधीनस्थों, गज़नाविदों ने इसे कब्जा कर लिया। १००६ में, बखख को करखानिड्स ने कब्जा कर लिया था, लेकिन गजनाविद ने इसे १००८ फिर से हासिल कर लिया। अंत में, सेल्जुक (तुर्क) ने १०९५ में बाल्क पर विजय प्राप्त की। १११५ में, यह अनियमित ओघुज तुर्कों द्वारा कब्जा कर लिया गया और लूट लिया गया। ११४१ और ११४२ के बीच, खट्जज्म की लड़ाई में काल-खित्ता खानते द्वारा सेल्जुक को पराजित करने के बाद, ख्वार्जम के शाह एटिस द्वारा बाल्क को पकड़ा गया था। अहमद संजर ने अल-अल-दीन हुसैन द्वारा आदेशित एक घुरीद सेना को निर्णायक रूप से हरा दिया और उन्होंने सेल्जुक के एक वासल के रूप में उन्हें रिहा करने से पहले दो साल तक कैदी बना लिया। अगले वर्ष, उन्होंने खुटल और तुखारिस्तान से विद्रोही ओघुज तुर्कों के खिलाफ मार्च किया। लेकिन वह दो बार पराजित हुआ और मर्व में दूसरी लड़ाई के बाद कब्जा कर लिया गया। ओघुज़ ने अपनी जीत के बाद खोरासन को लूट लिया। बाल्क को नाममात्र रूप से पश्चिमी करखानिड्स के पूर्व खान महमूद खान ने शासित किया था, लेकिन असली शक्ति तीन साल तक निशाबुर के अमीर मुय्याद अल-दीन अय आबा ने आयोजित की थी। अंततः अंततः कैद से बच निकला और टर्मेज के माध्यम से मर्व लौट आया। ११५७ में उनकी मृत्यु हो गई और ११६२ में उनकी मृत्यु तक बल्क का नियंत्रण महमूद खान को पास कर दिया गया। ११६२ में खड़खानों द्वारा ११६५ में कर खित्तियों द्वारा, ११९८ में घूरिड्स द्वारा और फिर १२०६ में खवेयरज़्माह द्वारा इसे पकड़ा गया था। १२ वीं शताब्दी में मुहम्मद अल-इड्रिसी, विभिन्न शैक्षणिक प्रतिष्ठानों के पास, और एक सक्रिय व्यापार को लेकर बोलता है। शहर और भारत के रूप में पूर्व तक फैले शहर से कई महत्वपूर्ण वाणिज्यिक मार्ग थे। १२ वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में स्थानीय कालक्रम अबू बकर अब्दुल्ला अल-वाइज़ अल-बाल्की द्वारा बल्क (फदाइल-ए-बल्क) की मेरिट्स कहती हैं कि एक महिला को केवल दाऊद की खट्टन (महिला) के रूप में जाना जाता है, ८४८ बाल्क के गवर्नर नियुक्त किए गए थे, उन्होंने "शहर और लोगों के लिए विशेष जिम्मेदारी" के साथ उनसे कब्जा कर लिया था, जबकि वह खुद को नश्द्द (न्यू जॉय) नामक एक विस्तृत आनंद महल बनाने में व्यस्त थे। [२३] १२२० में चंगेज खान ने बल्क को बर्खास्त कर दिया, अपने निवासियों को कुचला और रक्षा करने में सक्षम सभी इमारतों को ले लिया - उपचार जिसके लिए इसे १४ वीं शताब्दी में तिमुर द्वारा फिर से अधीन किया गया। इसके बावजूद, मार्को पोलो (शायद इसके अतीत का जिक्र करते हुए) अभी भी इसे "एक महान शहर और सीखने की एक महान सीट" के रूप में वर्णित कर सकता है। जब इब्न बट्टुता ने १३३३ के आसपास कार्तिड्स के शासनकाल के दौरान बाल्क का दौरा किया, जो १३३५ तक फारस स्थित मंगोल इल्खानाते के तादजिक वासल थे, उन्होंने इसे अभी भी खंडहर में एक शहर के रूप में वर्णित किया: "यह पूरी तरह से जबरदस्त और निर्वासित है, लेकिन कोई भी देख रहा है ऐसा लगता है कि यह इसके निर्माण की दृढ़ता के कारण निवास किया जाएगा (क्योंकि यह एक विशाल और महत्वपूर्ण शहर था), और इसकी मस्जिद और कॉलेज अब भी अपनी बाहरी उपस्थिति को संरक्षित करते हैं, उनके भवनों पर लिपिस-नीले रंग के रंगों के साथ शिलालेखों के साथ। " [२४] इसे १३३८ तक पुनर्निर्मित नहीं किया गया था। इसे १३८ ९ में तमेरलेन द्वारा कब्जा कर लिया गया था और इसके गढ़ को नष्ट कर दिया गया था, लेकिन उनके उत्तराधिकारी शाहरुख ने १४०७ में गढ़ बनाया। १६ वीं से १९वीं शताब्दी १५०६ में उज्बेक्स ने मुहम्मद शैबानी के आदेश के तहत बाल्क में प्रवेश किया। १५१० में उन्हें सफविद द्वारा संक्षेप में निष्कासित कर दिया गया था। बाबुर ने १५११ और १५१२ के बीच फारसी सफाविदों के वासल के रूप में बाल्क पर शासन किया था। लेकिन उन्हें बुखारा के खानते ने दो बार पराजित किया और उन्हें काबुल से रिटायर होने के लिए मजबूर होना पड़ा। १५ ९ ८ और १६०१ के बीच सफविद शासन को छोड़कर बखरा बुखारा द्वारा शासित था। मुगल सम्राट शाहजहां ने १६४० के दशक में कई वर्षों तक वहां से लूट लिया। फिर भी, १६४१ से मुगल साम्राज्य द्वारा बल्क पर शासन किया गया था और शाहजहां द्वारा १६४६ में एक उपहा (शाही शीर्ष-स्तरीय प्रांत) में बदल दिया गया था, केवल १६४७ में पड़ोसी बदाखशन सुबाह की तरह ही खो गया था। बाल्क अपने युवाओं में औरंगजेब की सरकारी सीट थीं। १७३६ में इसे नादर शाह ने विजय प्राप्त की थी। उनकी हत्या के बाद, स्थानीय उज़्बेक हदजी खान ने १७४७ में बाल्क की आजादी की घोषणा की, लेकिन उन्होंने १७४८ में बुखारा को प्रस्तुत किया। दुरानी राजतंत्र के तहत यह १७५२ में अफगानों के हाथों में गिर गया। बुखारा ने इसे १७९३ में वापस कर लिया। १८२६ में कुंडुज के शाह मुराद ने इसे जीत लिया, और कुछ समय बुखारा के अमीरात के अधीन था। १८५० में, अफगानिस्तान के अमीर डोस्ट मोहम्मद खान ने बाल्क पर कब्जा कर लिया, और उस समय से यह अफगान शासन के अधीन रहा। [२५] १८६६ में, बाढ़ के मौसम के दौरान मलेरिया के प्रकोप के बाद, बाल्क ने पड़ोसी शहर मजार-ए शरीफ़ को अपनी प्रशासनिक स्थिति खो दी। [२६] [२७] २० वीं से २१ वीं शताब्दी १९११ में बल्क में अफगान बसने वालों के बारे में ५०० घरों, यहूदियों की एक उपनिवेश और खंडहर और मलबे के एकड़ के बीच में एक छोटा सा बाजार स्थापित किया गया था। पश्चिम ( अक्चा ) गेट में प्रवेश करते हुए, एक तीन मेहराब से गुजरता है, जिसमें कंपेलरों ने पूर्व जामा मस्जिद के अवशेषों को मान्यता दी ( फारसी : , अनुवाद। जामा 'मस्जिद, शुक्रवार मस्जिद)। [२८] बाह्य दीवारों, ज्यादातर पूरी तरह से निराशा में, परिधि में ६.५-७ मील (१०.५-११.३ किमी) का अनुमान लगाया गया था। दक्षिण-पूर्व में, वे एक चक्कर या रैंपर्ट पर उच्च सेट किए गए थे, जो एक मंगोल मूल को संकलकों को इंगित करता था। उत्तर-पूर्व में किला और गढ़ शहर को एक बंजर पर्वत पर अच्छी तरह से बनाया गया था और दीवारों और मोएटेड थे। हालांकि, उनमें से थोड़ा बायां था लेकिन कुछ खंभे के अवशेष थे। ग्रीन मस्जिद (फारसी : , अनुवाद। मस्जिद सबज़), [१] [२] अपने हरे-टाइल वाले गुंबद के लिए नामित है (तस्वीर को दाएं कोने में देखें) और ख्वाजा अबू नासर पारसा की मकबरा कहा जाता है, पूर्व मदरसा ( अरबी : , स्कूल) के बचे हुए प्रवेश द्वार के अलावा कुछ भी नहीं था। इस शहर को कुछ हज़ार अनियमित (कैसीदार) द्वारा गिरफ्तार किया गया था, अफगान तुर्कस्तान के नियमित सैनिकों को मजारी शरीफ़ के पास तख्तपुल में छावनी दी गई थी। उत्तर-पूर्व के बागों में एक कारवांसरई था जिसमें एक आंगन के एक तरफ बनाया गया था, जिसे चेनार पेड़ प्लैटानस ओरिएंटलिस के समूह द्वारा छायांकित किया गया था। [२९] १९३४ में आधुनिकीकरण की एक परियोजना शुरू की गई, जिसमें आठ सड़कों का निर्माण किया गया, आवास और बाजार बनाए गए। आधुनिक बाल्क कपास उद्योग का केंद्र है, जो आमतौर पर पश्चिम में "फारसी भेड़ का बच्चा" (कराकुल) और बादाम और खरबूजे जैसे कृषि उपज के रूप में जाना जाता है। १९९० के गृह युद्ध के दौरान साइट और संग्रहालय को लूटपाट और अनियंत्रित खुदाई से पीड़ित हुई है। २००१ में तालिबान के पतन के बाद कुछ गरीब निवासियों ने प्राचीन खजाने को बेचने के प्रयास में खोद दिया। अस्थायी अफगान सरकार ने जनवरी २००२ में कहा कि उसने लूटपाट बंद कर दिया था। [३०] बाल्क के प्राचीन खंडहर पहले बौद्ध निर्माण इस्लामी भवनों की तुलना में अधिक टिकाऊ साबित हुए हैं। टॉप-रुस्टम आधार पर व्यास में ४६ मीटर (५० गज़) और शीर्ष पर २७ मीटर (३० ऐड), परिपत्र और लगभग १५ मीटर (४९ फीट) ऊंचा है। चार सर्कुलर वाल्ट इंटीरियर में डूब गए हैं और बाहर से चार मार्ग नीचे छेद किए गए हैं, जो शायद उन्हें ले जाते हैं। इमारत का आधार सूर्य-सूखे ईंटों का ६० सेमी (२.० फीट) वर्ग और १०० से १३० मिमी (३.९ से ५.१ इंच) मोटाई का निर्माण होता है। तख्त-ई रुस्तम असमान पक्षों के साथ योजना में वेज आकार के हैं। यह स्पष्ट रूप से पिस मिट्टी (यानी मिट्टी के साथ मिश्रित मिट्टी) के बने होते हैं। यह संभव है कि इन खंडहरों में हम चीनी यात्री जुआनजांग द्वारा वर्णित नव विहार को पहचान सकें । पड़ोस में कई अन्य शीर्ष (या स्तूप) के अवशेष हैं। मजार-ए शरीफ़ के लिए सड़क पर खंडहरों के मैदान शायद आधुनिक बाल्क के खड़े लोगों की तुलना में पुराने शहर की साइट का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्राचीन खंडहरों और किलेबंदी से आज ब्याज के कई स्थानों को देखा जाना चाहिए: सईद सुबान कुली खान के मदरसा । ख्वाजा नासर पारसा के मंदिर और मस्जिद बाला-हसर। कवि रबी बाल्की की मकबरा। नौ डोम्स मस्जिद (मस्जिद-ए नो गो गोंद)। यह उत्तम सजावटी मस्जिद जिसे हाजी पियादा भी कहा जाता है, अब तक का सबसे पहला इस्लामी स्मारक अफगानिस्तान में पहचाना गया है। तेपे रुस्तम और तख्त-ई रुस्तम संग्रहालय पहले देश में दूसरा सबसे बड़ा संग्रहालय था, लेकिन हाल के दिनों में इसका संग्रह लूटने से पीड़ित है। इस संग्रहालय को ब्लू मस्जिद के संग्रहालय के रूप में भी जाना जाता है, जो इमारत को धार्मिक पुस्तकालय के साथ साझा करता है। साथ ही बाल्क के प्राचीन खंडहरों से प्रदर्शन, संग्रह में १३ वीं शताब्दी के कुरान और अफगान सजावटी और लोक कला के उदाहरण सहित इस्लामी कला के काम शामिल हैं। फारसी भाषा और साहित्य के विकास में बाल्क की एक प्रमुख भूमिका थी। फारसी साहित्य के प्रारंभिक कार्यों को कवियों और लेखकों द्वारा लिखा गया था जो मूल रूप से बाल्क से थे। कई प्रसिद्ध फारसी कवि बाल्क से आए, उदाहरण के लिए: १३ वीं शताब्दी में बाल्क में पैदा हुए और शिक्षित मावलाना रुमी अमीर खुसरो देहलावी, जिनके पिता अमीर सैफुद्दीन यहां से थे दावत शाह समरकंडी के अनुसार, बल्क में पैदा हुए मनुचहिरी बांधघानी रशीदुद्दीन वाटवत, कवि सनी बल्की, कवि शहीद बल्की, अबुल मुवेद बल्की, अबू शुक्कर बाल्की, मारूओफी बाल्खी, ९वीं या १० वीं शताब्दी के शुरुआती कवि फारसी कविता के इतिहास में पहली महिला कवि रबी बाल्की १० वीं शताब्दी में रहती थीं १० वीं शताब्दी के दार्शनिक और वैज्ञानिक, जिनके पिता बाल्क मूल थे, एविसेना या इब्न सिना अनसुरी बाल्की, १० वीं या ११ वीं सदी के कवि १२ वीं शताब्दी अंवरी, बल्क में रहते थे और मर गए थे दक्की बाल्खी, अबू मंसूर मुहम्मद इब्न अहमद दक्की बाल्खी, यहां पैदा हुए अन्य उल्लेखनीय लोग इब्राहिम इब्न आदम, एक सूफी संत और प्रतिष्ठित शासक बाल्क खालिद इब्न बर्माक, अब्बासिद खलीफाट के वजीर और प्रमुख बार्मकीड परिवार के सदस्य अबू जयद अल- बाल्की, फारसी (८५०-९३४), बहुलक: भूगोलकार, गणितज्ञ , चिकित्सक , मनोवैज्ञानिक और वैज्ञानिक इस्लामी दार्शनिक इस्लामी दार्शनिक में ज्योतिषी और खगोलविद अबू माशर अल-बाल्की हिवी अल-बाल्की, बुखारन यहूदी एक्सेगेटे और बाइबिल आलोचक अबू-शकुर बाल्की (९१५-?), फारसी कवि १२ वीं शताब्दी के ईरानी इतिहासकार और फारसी पुस्तक फ़ारस -नामा के लेखक के लिए पारंपरिक नाम इब्न बाल्की अब्दुल्लाह, इब्न सीना (अविसेना) के पिता और सम्मानित इस्माइल विद्वान यह भी देखें बार्माकिड्स, जो उस शहर से थे। बौद्ध धर्म के सिल्क रोड ट्रांसमिशन प्राचीन ईरानी शहर अफ़ग़ानिस्तान के जिले
रामपुर मुदरी कासिमपुर हुसेन कन्नौज, कन्नौज, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। कन्नौज जिला के गाँव भारत के गाँव आधार
भारत और उत्तर कोरिया के बीच व्यापार और राजनयिक संबंध बढ़ रहे हैं। भारत प्योंगयांग में एक दूतावास रखता है, और उत्तर कोरिया का नई दिल्ली में एक दूतावास है। भारत उत्तर कोरिया के सबसे बड़े व्यापार भागीदारों में आता है। इसमें मुख्यतः खाद्य सहयोग आता है। सी के मुताबिक़ २०१३ में भारत ने उत्तर कोरिया को ६० मिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया। भारत उत्तर कोरिया- दक्षिण कोरिया के वापस जुड़कर एक राष्ट्र बनाने के लक्ष्य का समर्थन करता है। किंतु भारत ने उत्तर कोरिया का पाकिस्तान को समर्थन देने का और उसके परमाणु कार्यक्रम का लगातार विरोध किया है। भारतीय उपमहाद्वीप केलोग कोरिया के रीति-रिवाजों और मान्यताओं से पुरातन काल में भी परिचित थे। इस बात की गवाही चीनी बौद्ध तीर्थयात्री, इत्सिंगके रिकॉर्डों की गहराई से दी जाती है, जो सन ६७३ में भारत पहुंचे थे। इत्सिंग लिखते हैं कि भारतीय कोरियाई लोगों को "मुर्गे के उपासक" मानते थे। कोरियाई लोगों के बारे में यह अवधारणा कोरिया के सिलाराजवंश की एक किंवदंती के रूप में सामने आई थी। किंवदंती है कि ईस्वी सन् ६५ में सिला राजा तल-हे को पड़ोसी जंगल में पड़े हुए एक सुनहरे बक्से के बारे में बताया गया था। वे स्वयं वहाँ जांच करने गए और एक सुनहरे बक्से की खोज की, जो दिव्य प्रकाश से जगमगाता हुआ एक पेड़ की एक शाखा से लटका हुआ था। पेड़ के नीचे एक मुर्गा घूम रहा था, और जब बक्सा खोला गया, तो उसके अंदर एक सुंदर लड़का मिला। लड़के को "अल-ची" नाम दिया गया था जिसका अर्थ "शिशु" था और सुनहरे बक्से से उसके निकालने के तथ्य पर ज़ोर देने के लिए उसका उपनाम "किम" (यानी स्वर्ण) दिया गया था। राजा ने औपचारिक रूप से लड़के को अपना बेटा माना और ताज पहनाया। जब किम अल-ची सिंहासन पर विराजमान हुए, तो सिल्ला को "क्ये-रिम" कहा जाता था जिसका अर्थ है "मुर्गा-वन", उसी मुर्ग़े के ऊपर जो पेड़ के नीचे पाया गया था। २००१ में, हौ ह्वांग-ओक का स्मारक, जिसे कुछ लोगों द्वारा भारतीय मूल की राजकुमारी माना जाता है, का उद्घाटन अयोध्या में एक कोरियाई प्रतिनिधिमंडल द्वारा किया गया था, जिसमें सौ से अधिक इतिहासकार और सरकारी प्रतिनिधि शामिल थे। २०१६ में, एक कोरियाई प्रतिनिधिमंडल ने स्मारक को विकसित करने का प्रस्ताव दिया। इस प्रस्ताव को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने स्वीकार कर लिया। भारत आने वाला एक प्रसिद्ध कोरियाई आगंतुक ह्ये-चो था, जो सिला से एक कोरियाई बौद्ध भिक्षु था, जो उस समय के तीन कोरियाई राज्यों (सामगुक) में से एक था। चीन में अपने भारतीय शिक्षकों की सलाह पर, उन्होंने ७२३ ईस्वी में बुद्ध की भूमि भारत की भाषा और संस्कृति से परिचित होने के लिए काम किया। उन्होंने चीनी, वांग ओछौनचुकगुक जौन या "पांच भारतीय राज्यों की यात्रा का खाता" में अपनी यात्रा का एक यात्रा वृत्तांत लिखा। इसे लंबे समय से लुप्त माना जा रहा था, लेकिन २० वीं शताब्दी की शुरुआत में डनहुंग पांडुलिपियों के बीच इसकी एक एक पांडुलिपि मिल गई। मैबर सल्तनत का एक अमीर व्यापारी, अबू अली ("पै-हा-ली" या "बू-हा-अर"), मैबर शाही परिवार के साथ निकटता से जुड़े था। उन लोगों से अनबन होने के बाद, वह चीन के युआन राजवंश के मंगोल सम्राट के यहाँ काम करने लगा। वहाँ उसने एक कोरियाई महिला से शादी की।ये महिला पहले संघ नाम के एक तिब्बती की पत्नी थी। हाल के दौरे २३ अप्रैल २०१५ को उत्तर कोरिया के विदेश मंत्री री सू योंग ने उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम पर भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ वार्ता के लिए भारतीय गणराज्य की राजधानी नई दिल्ली का दौरा किया और अतिरिक्त मानवीय सहायता का अनुरोध किया। किंतु हाल ही में उत्तर कोरिया द्वारा पाकिस्तान के समर्थन में दिए गए बयान के कारण कोई समझौता नहीं हो पाया। १५ मई २०१८ को भारतीय विदेश राज्य मंत्री विजय कुमार सिंह ने उत्तर कोरियाई उपाध्यक्ष किम योंग-डे और विदेश और संस्कृति मंत्रियों के साथ मुलाकात की। यह सभी देखें भारत के द्विपक्षीय संबंध
अइमग (मंगोलियाई: , ) मंगोलियाई और तुर्की भाषाओँ में 'क़बीले' के लिए एक शब्द होता है। आधुनिक मंगोलिया और चीन के कुछ हिस्सों में यह 'प्रान्त' के लिए भी एक शब्द है। चीन द्वारा नियंत्रित भीतरी मंगोलिया क्षेत्र को कभी प्रशासन के लिए अइमगों में बांटा जाता था। धीरे-धीरे इन अइमगों को नगर-पालिकाओं में बदल दिया गया और सन् २००४ तक केवल तीन अइमग ही बचे थे: ख़िलिन गोल, ख़िन्गन और अल्ख़ा। मंगोलिया के प्रान्तों को आज भी 'अइमग' का ही नाम दिया जाता है। तुलना के लिए यह भारत के राज्यों के बराबर हैं। अइमगों से नीचे एक 'सुम' (मंगोलियाई: ) नाम की श्रेणी है जो भारत के ज़िलों के बराबर है। इन्हें भी देखें
इंजीनियरी के क्षेत्र में नियन्त्रण और लाइसेंसिंग की जाती है ताकि जनता की सुरक्षा, कल्याण, आदि सुनिश्चित किये जा सकें। भारत में किसी विश्वविद्यालय से इंजीनियरी में बैचलर या मास्टर्स डिग्रीधारी ही सलाहकार इंजीनियर के रूप में काम कर सकते हैं। इसके साथ ही उन्हें स्थानीय नगरपालिका से लाइसेंस प्राप्त होना चाहिये या उनके साथ पंजीकृत होना चाहिये, तभी वे अपने सार्वजनिक योजना, डिजाइन, चित्रकारी (ड्राइंग) आदि जमा कर सकते हैं। अन्य देशों में भी विभिन्न प्रकार की व्यवस्थाएँ हैं।
योनास ब्योर्कमैन ने कार्लोस मोया को ६-३, ७-६ से हराया। १९९७ आर सी ए प्रतियोगिता आर सी ए प्रतियोगिता
क्लोज सर्किट टेलिविज़न कैमरा एक प्रकार का कैमरा होता है जिसे सीसीटीवी (अंग्रेजी: क्लोस्ड-सर्किट टेलीविज़न कमरा) अर्थात् (चत्व) कहा जाता है। इस कैमरा से एक ही स्थल पर बैठकर उस स्थल के आस-पास हो रही घटनाओं पर नज़र रखी जा सकती और लोगों की गतिविधियों को वीडियोज़ के रूप में सुरक्षित रखा जा सकता है। सीसीटीवी कैमरे काफी उपयोगी होती है क्योंकि कार्यालय ,बैंकों ,विद्यालय तथा विश्वविद्यालय में हमेशा कोई न कोई घटना घटित होती रहती है जब सीसीटीवी कैमरे लगे रहते हैं तो कैमरे सब कैद कर देते हैं। दोस्तो जैसा की आप जानते है की मार्किट में अलग अलग प्रकार के कैमरे उपलब्ध है और यह सिर्फ देखने में ही अलग नही होते है बल्कि इनमे अलग अलग टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल किया जाता है जैसे की नेटवर्क या इप कमरा, वायरलेस कमरा आदि. एनालॉग सीसीटीवी कैमरा आईपी सीसीटीवी कैमरा वायरलेस सीसीटीवी कैमरा एच डी सीसीटीवी कैमरा
मिस्टर परफेक्ट (श्रीमान आदर्श) २०११ की भारतीय तेलुगु भाषा की रोमांटिक कॉमेडी फिल्म है , जो दशरध द्वारा निर्देशित है , और बीटी दिल राजू द्वारा निर्मित है । फिल्म में प्रभास , काजल अग्रवाल और तापसी पन्नू हैं , जबकि मुरली मोहन , प्रकाश राज , सयाजी शिंदे , नासर और के. विश्वनाथ सहायक भूमिकाएँ निभाते हैं। फिल्म २२ अप्रैल २०११ को सकारात्मक समीक्षा के लिए रिलीज़ हुई। फिल्म ने वर्ष २०११ के लिए "सर्वश्रेष्ठ तेलुगु परिवार" मनोरंजन के लिए नव निगमित नागी रेड्डी मेमोरियल पुरस्कार जीता। यह फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर बहुत बड़ी ब्लॉकबस्टर (एल टाइम ब्लॉकबस्टर) साबित हुई , तथा वर्ष २०१३ की सबसे अधिक कमाई करने वाली भारतीय फिल्मों में से एक बन गई ।
हुस्सेनापुरं (अनंतपुर) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अनंतपुर जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
संशोधन १९९६ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। मनोज बाजपेयी - भँवर आशुतोष राना - वीडीओ ऑफिस में क्लर्क नामांकन और पुरस्कार १९९६ में बनी हिन्दी फ़िल्म
कुलूत, गणराज्य के रूप में ख्यात एक प्राचीन भारतीय समाज था। इस जाति का प्राचीनतम उल्लेख महा भारत में प्राप्त होता है। उसमें इसका उल्लेख कश्मीर, सिंधु-सौवीर, गंधार, दर्शक, अभिसार, शैवाल और वाहलीक के साथ हुआ है। इसी ग्रंथ में इनका उल्लेख यवन, चीन और कंबोज के साथ हुआ है। वराहमिहिर ने इनका उल्लेख उत्तरपश्चिम और उत्तरपूर्व प्रदेश के निवासी के रूप में किया है उत्तरपश्चिम में कीर, कश्मीर, अभिसार, दरश, तंगण, सैरिंध, किरात, चीन आदि के साथ इनका उल्लेख है और उत्तरपूर्व में तुखार, ताल, हाल, भद्र और लहद आदि के साथ इनकी चर्चा है। मुद्राराक्षस में विशाखदत्त ने इन्हें 'म्लेच्छ' कहा है और इनका उल्लेख कश्मीर सैंधव, चीन, हुण, आदि के साथ किया है। युवानच्वांग नामक चीनी ने अपने यात्रावृत्त में लिखा है कि वह जलंधर से कुलूत गया था। चंबा से सोमेश्वर देव और असत देव (१०५० ई.) का जो ताम्रशासन प्राप्त हुआ है उससे ज्ञात होता है कि कुलूत लोग त्रिगर्त (जलंधर) और कीर के निकटवर्ती थे। इन सभी उल्लेखों से ऐसा प्रतीत होता है कि कुलूत लोग कांगड़ा जिले में कूलू घाटी के निवासी थे और संभवत: वे दो भागों में विभक्त थे। साहित्य में इन्हें म्लेच्छ कहा गया है। संभव वे उत्तरपश्चिम की आक्रामक जातियों में से रहे हों और उत्तरीपश्चिमी भाग में आकर बस गए हों। उनके मंगोली जाति के होने का भी अनुमान किया जाता है। दूसरी-पहली शती ई. पू. इनका अपना एक गणराज्य था ऐसा उनके सिक्कों से ज्ञात होता है। उनके सिक्कों पर जो अभिलेख हैं उनकी भाषा संस्कृत है। उनसे ज्ञात होता है कि इस काल तक उनमें राजाओं की प्रथा प्रचलित हो गई थी। सिक्कों पर राजा के रूप में वीर यश्स, विलत-मित्र, सचमित्र और आर्य के नाम मिलते हैं।
किसी ग्रह के चारों ओर स्थित गैस एवं अन्य पदार्थों के घेरे को वायुमण्डल (ऐटमॉसफीयर) कहते हैं। वायुमण्डल, ग्रह के गुरुत्वीय आकर्षण के कारण ग्रह से 'चिपका' रहता है। इन्हें भी देखें पृथ्वी का वायुमंडल
भारतीय शिक्षा बोर्ड भारत की एक मान्यताप्राप्त शिक्षा परिषद है जिसे भारत सरकार द्वारा ४ अगस्त २०२२ को पहली बार मान्यता मिली। यह विदेशी और मैकाले प्रणीत शिक्षा पद्धति के विकल्प के रूप में भारत का स्वदेशी शिक्षा बोर्ड है। भारत सरकार ने भारतीय शिक्षा बोर्ड का गठन करके उसके संचालन का दायित्व स्वामी रामदेव के पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट को सौंपा है। भारत की स्वतन्त्रता के ७५ वर्ष पूरे होने पर भारत सरकार ने शिक्षा व्यवस्था पर बड़ा बदलाव किया है। शिक्षा में भारतीयता का भाव लाने के लिए सरकार ने भारतीय शिक्षा बोर्ड का गठन किया है और इसके संचालन का जिम्मा स्वामी रामदेव के पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट को सौंपा है। इस पर स्वामी रामदेव ने प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी का आभार जताते हुए कहा है कि आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर केंद्र की मोदी सरकार ने भारतीय शिक्षा बोर्ड का गठन कर ऐतिहासिक कार्य किया है। स्वामी रामदेव ने ही की थी पहल सीबीएसई की तर्ज पर शिक्षा का 'स्वदेशीकरण' करने के लिए एक राष्ट्रीय स्कूल बोर्ड स्थापित करने की पहल स्वामी रामदेव ने ही की थी। वर्ष २०१५ में उन्होंने अपने हरिद्वार स्थित वैदिक शिक्षा अनुसंधान संस्थान के माध्यम से एक नया स्कूली शिक्षा बोर्ड शुरू करने का विचार सरकार के समक्ष रखा था। इस स्कूली शिक्षा बोर्ड में 'महर्षि दयानन्द की पुरातन शिक्षा' और आधुनिक शिक्षा का मिश्रण करके भारतीय शिक्षा बोर्ड की स्थापना की जानी थी। हालांकि शिक्षा मंत्रालय ने वर्ष २०१६ में यह प्रस्ताव खारिज कर दिया था। इसके बाद भी स्वामी रामदेव प्रयास में लगे रहे मोदी सरकार के मंत्रियों से मिलकर भारतीय शिक्षा बोर्ड के फायदे बताए। जिस पर वर्ष २०१९ के आम चुनाव शुरू होने कुछ पहले भारतीय शिक्षा बोर्ड के गठन की प्रक्रिया को पूरा कर लिया। जिससे वर्ष २०१९ के लोकसभा चुनावों के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने से कुछ घंटे पहले मंजूरी मिल जाए। महर्षि संदीपनी राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान की आपत्तियां हुईं खारिज वहीं शिक्षा मंत्रालय के तहत आने वाले स्वायत्त संगठन महर्षि सांदीपनी राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन ने इस प्रक्रिया पर आपत्ति जताई थी। बताया गया है कि महर्षि सांदीपनी राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान अपना खुद का भारतीय शिक्षा बोर्ड शुरू करना चाह रहा था। लेकिन सरकार ने उसके द्वारा की गई आपत्तियों को अस्वीकार कर दिया। भारतीय शिक्षा बोर्ड देश का पहला राष्ट्रीय स्कूल बोर्ड माना जाएगा और उसे पाठ्यक्रम तैयार करने, स्कूलों को संबद्ध करने, परीक्षा आयोजित करने और प्रमाण पत्र जारी करके भारतीय पारंपरिक ज्ञान का मानकीकरण करने का अधिकार होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति राष्ट्रीय शिक्षा दिवस (भारत) गुरुकुल शिक्षा पद्धति गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय भारतीय शिक्षा बोर्ड को पैन इंडिया एजुकेशन बोर्ड के रूप में मान्यता मिली भारत में शिक्षा
पामीर (अंग्रेजी: पामीर माउंटेन्स, फ़ारसी: ), मध्य एशिया में स्थित एक प्रमुख पठार एवं पर्वत शृंखला है, जिसकी रचना हिमालय, तियन शान, काराकोरम, कुनलुन और हिन्दू कुश शृंखलाओं के संगम से हुआ है। पामीर विश्व के सबसे ऊँचे पहाड़ों में से हैं और १८त सदी से इन्हें 'विश्व की छत' कहा जाता है। इसके अलावा इन्हें इनके चीनी नाम 'कोंगलिंग' के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ उगने वाले जंगली प्याज़ के नाम पर इन्हें प्याज़ी पर्वत भी कहा जाता था। ताजिकिस्तान में स्थित इस्माइल सामानी पर्वत इस पर्वतमाला का सबसे ऊँचा पहाड़ है। पामीर एक गाँठ के रूप में है जहाँ विभिन्न दिशाओं में स्थित पर्वतश्रेणियाँ आकर मिलती हैं। यहाँ से उत्तर की ओर थान शान, पूर्व की ओर कुनलुन और कराकोरम, दक्षिणपूर्व की ओर हिमालय एवं पश्चिम की ओर हिंदूकुश पर्वतश्रेणी जाती है। पठार की औसत ऊँचाई २०,००० फुट है और घाटियाँ १२,००० से १४,००० फुट ऊँची है। अधिकांश भाग पर्वतीय एवं शेष पर घास के मैदान हैं। जलवायु शुष्क है जिससे यहाँ का जनजीवन कठोर हो जाता है। यहाँ अनेक झीलें स्थित हैं और यहीं ऑक्सस नदी का उद्गमस्थल भी है। जलवायु की विषमता यहाँ अधिक है, क्योंकि नवंबर से अप्रैल तक शीताधिक्य के कारण यह दुर्गम हो जाता है। अन्य महीनों में ताप अपेक्षाकृत ठीक रहता है। ताजिकिस्तानी क्षेत्र में सर्वोच्च स्टालिन शिखर २४,४९० फुट तथा चीन के क्षेत्र में मुस्ताग़ अता पर्वत पर कुंगूर की चोटी २५,१४६ फुट ऊँची है। शुष्क जलवायु एवं अनुपजाऊ होते हुए भी इस क्षेत्र में पूर्व पश्चिम को मिलानेवाले दो प्राचीन मार्ग हैं। पामीर पर्वतों का विस्तार कहाँ से कहाँ तक है यह विवाद का विषय है, लेकिन इनका अधिकांश भाग ताजिकिस्तान के कूहिस्तोनी-बदख़्शान स्वशासित प्रांत और अफ़ग़ानिस्तान के बदख़्शान प्रान्त में स्थित है। उत्तर में यह किर्गिज़स्तान की अलाय घाटी के साथ साथ में तियान शान पहाड़ों से मिलते हैं जबकि दक्षिण में इनका मिलन अफ़ग़ानिस्तान के वाख़ान गलियारे, गिलगित-बल्तिस्तान और पाकिस्तान में हिंदू कुश पर्वतमाला से होता है। पूर्व में इस पर्वतमाला का अंत चीनी सीमा पर होता है। इसे ताजिकिस्तान का पठार माना जाता है। मध्य एशिया के पर्वत अफ़्ग़ानिस्तान के पर्वत ताजिकिस्तान के पर्वत अफ़्ग़ानिस्तान की पर्वतमालाएँ ताजिकिस्तान की पर्वतमालाएँ
शत्रु सम्पत्ति अधिनियम १९६८ भारतीय संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जिसके अनुसार शत्रु सम्पत्ति पर भारत सरकार का अधिकार होगा। पाकिस्तान से १९६५ में हुए युद्ध के बाद १९६८ में शत्रु संपत्ति (संरक्षण एवं पंजीकरण) अधिनियम पारित हुआ था। इस अधिनियम के अनुसार जो लोग बंटवारे या १९६५ में और १९७१ की लड़ाई के बाद पाकिस्तान चले गए और वहां की नागरिकता ले ली थी, उनकी सारी अचल संपत्ति 'शत्रु संपत्ति' घोषित कर दी गई। उसके बाद पहली बार उन भारतीय नागरिकों को संपत्ति के आधार पर 'शत्रु' की श्रेणी में रखा गया, जिनके पूर्वज किसी शत्रु राष्ट्र के नागरिक रहे हों। यह कानून केवल उनकी संपत्ति को लेकर है और इससे उनकी भारतीय नागरिकता पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है। इस अधिनियम के प्रावधानों को महमूदाबाद के राजा ने अदालत में चुनौती दी थी और सर्वोच्च न्यायालय ने उनके पक्ष में निर्णय दिया था किन्तु 'शत्रु संपत्ति संशोधित अध्यादेश २०१६' के लागू होने और 'शत्रु नागरिक' की नई परिभाषा के बाद विरासत में मिली ऐसी संपत्तियों पर से भारतीय नागरिकों का मालिकाना हक़ ख़त्म हो गया है। शत्रु संपत्ति अध्यादेश, २०१६ जारी किया गया शत्रु संपत्ति कानून संशोधन विधेयक २०१७ को संसद की मंजूरी शत्रु संपत्ति कानून संशोधन विधेयक २०१७ को संसद की मंजूरी भारत के अधिनियम
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील मुरादाबाद, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है। सम्बंधित जनगणना कोड: राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७१९ उत्तर प्रदेश के जिले (नक्शा) मुरादाबाद तहसील के गाँव
द सोशल नेटवर्क सामाजिक नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक की खोज के इतिहास व उसके परिणामस्वरूप हुए कानूनी मुकदमो के बारो में बनी एक नाटकिये फिल्म है। फ़िल्म डेविड फिंचर द्वारा निर्देशित की गयी थी व इसमे जेस्सी इसन्ब्र्ग, एंड्रयू गारफील्ड, जस्टिन टिम्बरलेक, बे्रन्डा सांग, आर्मि हैमर, मैक्स मिन्गहेला, राशीडा जोन्स और रूनी मारा ने अभिन्ये दिया है। फिल्म सर्वश्रेष्ठ फिल्म संपादन, सर्वश्रेष्ठ रूपांतरित पटकथा व सर्वश्रेष्ठ मूल स्कोर की श्रेणी मे अकादमी पुरस्कार (२०११) जीत चुकी है। फिल्म बेन मेज्रिच के द्वारा लिखे द् अएक्सिडेनटल बिल्लिन्यर उपन्यास (२००९) पर आधारित है। फ़िल्म के निर्मान मे न तो फेसबुक के निर्माता मार्क ज़ुकेरबर्ग व ना ही फेसबुक की टीम मे से किसी ने सहयोग किया था। फ़िल्म संयुक्त राज्य अमेरिका मे अक्टूबर १०, 20१० को रिलिज हुई थी। जेस्सी इसन्ब्र्ग मार्क के रूप में एंड्रयू गारफील्ड एडुआर्डो सेव्रेन के रूप में जस्टिन टिम्बरलेक शॉन पार्कर के रूप में बे्रन्डा सांग क्रिस्टी ली के रूप में आर्मि हैमर कैमरून विन्क्लेवोस्स के रूप में मैक्स मिन्गहेला दिव्या नरेंद्र के रूप में राशीडा जोन्स मर्य्लिन डेलपी रूनी मारा एरिका अलब्राइट के रूप में कास्टिंग अगस्त २००९ में अमेरिका के विभिन्न राज्यों में आयोजित की गई था। अपने उद्घाटन के सप्ताहांत के दौरान फिल्म संयुक्त राज्य अमेरिका में # १ पर पहुंच गयी थी व २७7१ सिनेमाघरों में २२.४ करोड़ डॉलर की कमाई की. फिल्म अपने दूसरे सप्ताह के अंत में शीर्ष स्थान बरकरार रही थी। २७ फ़रवरी 20११ तक, इस फिल्म ने संयुक्त राज्य अमेरिका में ९६,९६2,69४ डॉलर व पूरे विश्व मे १2४,१53,३५२ डॉलर की कमाई कर चुकी है। . द सोसल नेटवर्क, इंटरनेट मूवी डेटाबेस पे यू ट्यूब पे फिल्म पर मार्क ज़ुकेरबर्ग की टिप्पणियाँ
अनुराधा रॉय (लीला नायडू) एक गायिका/नर्तकी है, उन्हें डॉ निर्मल चौधरी(बलराज साहनी) से प्रेम हो जाता है। पिता की मर्जी के विरुद्ध वे डॉ चौधरी से विवाह करती हैं और एक पुत्री की माँ बनती है। डॉ चौधरी एक छोटे से गाँव में लोगों की दिन रात सेवा करते हैं और उनके पास अपने परिवार के लिये बिल्कुल समय नहीं है। ऐसे में एक दिन दीपक (अभि भट्टाचार्य) उनकी जिन्दगी में आते हैं और अनुराधा को समझा बुझा कर फिर से कलकत्ता जाने के लिये राजी करते हैं। अंत में प्रेम की जीत होती है, यानी अनुराधा अपने पति डॉ निर्मल चौधरी को छोड़ कर नहीं जातीं। इस फिल्म में कलाकारों के अभिनय के अलावा एक चीज और भी खास है और वह है सुप्रसिद्ध सितार वादक पंडित रविशंकर का मधुर संगीत। फिल्म के मुख्य कलाकार थे बलराज साहनी, अभि भट्टाचार्य, नासिर हुसैन, हरि शिवदासानी और असित सेन की पर सही मायनों में यह फिल्म थी खूबसूरत अभिनेत्री लीला नायडू की। नामांकन और पुरस्कार गोल्डेन बियर बर्लिन १९६१ १९६० में बनी हिन्दी फ़िल्म
लुणतरा, घाट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के चमोली जिले का एक गाँव है। उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) लुणतरा, घाट तहसील लुणतरा, घाट तहसील
मानव शरीर का निचला लिंब टाँग होता है। इसके प्रमुख अंग हैं: पैर, जंघा, घुटना, नितम्ब एवं अंगुलियाँ।टांगों का उपयोग खड़े होने के लिए किया जाता है, और नृत्य जैसे मनोरंजन सहित सभी प्रकार के गतिविधि, और एक व्यक्ति के द्रव्यमान का एक महत्वपूर्ण भाग बनाते हैं।
एम्मा लुईस लैम्ब (जन्म १६ दिसंबर १९९७) एक अंग्रेजी क्रिकेटर हैं, जो लंकाशायर विमेन, नॉर्थ वेस्ट थंडर और मैनचेस्टर ओरिजिनल्स के लिए खेलती हैं, और पहले लंकाशायर थंडर के लिए खेल चुकी हैं। लैम्ब एक बैटिंग ऑलराउंडर हैं, और ऑफ स्पिन गेंदबाजी करते हैं। उन्होंने सितंबर २०२१ में इंग्लैंड की महिला क्रिकेट टीम के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया। १९९७ में जन्मे लोग
२०१९२२ आईसीसी क्रिकेट विश्व कप चैलेंज लीग आईसीसी क्रिकेट विश्व कप चैलेंज लीग का उद्घाटन संस्करण है, यह एक क्रिकेट टूर्नामेंट है जो २०२३ क्रिकेट विश्व कप योग्यता प्रक्रिया का हिस्सा है। क्रिकेट विश्व कप चैलेंज लीग ने विश्व क्रिकेट लीग (डब्ल्यूसीएल) का स्थान लिया, जिसे पहले क्रिकेट विश्व कप के मार्ग के रूप में इस्तेमाल किया गया था। सितंबर २०१९ में पहला मैच हुआ, सभी मैचों को लिस्ट ए दर्जा प्राप्त था। लीग में नामीबिया में हुआ आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन दो २०१९ टूर्नामेंट के समापन के बाद विश्व क्रिकेट लीग में २१वें से ३२वें स्थान पर रहने वाली बारह टीमें हैं। बारह टीमों को दो समूहों में विभाजित किया गया है, जिसमें प्रत्येक समूह वार्षिक आधार पर तीन बार छह-टीम टूर्नामेंट हो रहे है। प्रत्येक समूह में शीर्ष टीम २०२२ में हो रही प्ले-ऑफ टूर्नामेंट के लिए आगे बढ़ेगी, जो २०२२ क्रिकेट विश्व कप क्वालीफायर टूर्नामेंट का भाग है। इसके अलावा, किसी भी शीर्ष टीम को अगले क्रिकेट विश्व कप लीग २ में पदोन्नत किया जा सकता है। इस चैलेंज लीग की दो शीर्ष टीमों में से और २019२२ आईसीसी क्रिकेट विश्व कप लीग २ में आखिरी की दो टीमें, इन चार टीमों में से जो भी २०२२ आईसीसी क्रिकेट विश्व कप प्ले-ऑफ में दो उच्च स्थान पर रहेगी, वो अगले लीग २ में खेलेंगी जबकि निचली रैंक वाली दो टीमें अगले चैलेंज लीग में खेलेंगी। आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन दो २०१९ टूर्नामेंट के समापन के बाद विश्व क्रिकेट लीग में निम्नलिखित टीमों को २१वें से ३२वें स्थान पर रखा गया और उन्हें ग्रुप ए और बी के लिए आवंटित किया गया। (आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन दो २०१९ में ५वीं) (आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन तीन २०१८ में तीसरे) (आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन तीन २०१८ में ५वीं) (आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन चार २०१८ में तीसरे) (आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन चार २०१८ में ५वीं) (आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन पांच २०१७ में तीसरे) (आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन दो २०१९ में छठे) (आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन तीन २०१८ में चौथे) (आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन तीन २०१८ में छठे) (आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन चार २०१८ में चौथे) (आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन चार २०१८ में छठे) (आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन पांच २०१७ में चौथे) प्रत्येक समूह को २०१९ से २०२२ तक प्रत्येक वर्ष में एक बार एक राउंड-रॉबिन टूर्नामेंट प्रारूप में खेलने के लिए निर्धारित किया गया था। हर टीम कुल १५ मैच और टूर्नामेंट में कुल ९० मैच खेले जायेंगे। जुलाई २०१९ में, अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने घोषणा की कि मलेशियाई क्रिकेट एसोसिएशन और क्रिकेट हांगकांग टूर्नामेंट के २०१९ दौर की मेजबानी करेंगे। हालांकि, हांगकांग में अस्थिरता का हवाला देते हुए, लीग बी में २०१९ मैच ओमान में स्थानांतरित कर दिए गए थे। अक्टूबर २०१९ में, आईसीसी ने पुष्टि की कि मलेशिया २०२० के दौर के लिए फिर से मेजबान होगा, वहीं युगांडा क्रिकेट एसोसिएशन लीग बी मैचों की मेजबानी करेगा। मलेशिया में २०२० लीग ए टूर्नामेंट मूल रूप से मार्च २०२० में होने वाला था। हालांकि, मार्च २०२० में, कोविड-१९ महामारी के कारण टूर्नामेंट को स्थगित कर दिया गया और ३० सितंबर से १० अक्टूबर २०२० तक के लिए पुनर्निर्धारित किया गया। १० जून २०२० को युगांडा में २०२० लीग बी टूर्नामेंट भी महामारी के कारण स्थगित कर दिया गया था। २५ अगस्त २०२० को पुनर्निर्धारित २०२० लीग ए टूर्नामेंट को फिर से स्थगित कर दिया गया। दिसंबर २०२० में, आईसीसी ने कोविड-१९ महामारी के कारण हुए व्यवधान के बाद एक संशोधित कार्यक्रम की घोषणा की। २०२३ क्रिकेट विश्व कप
जब गर्म वायु राशियाँ तेज़ी से ठंडी वायुराशियों के ऊपर स्थापित होती हैं तो उष्ण वाताग्र का निर्माण होता है। मध्य अक्षांशों में उष्ण वताग्र की ढ़ाल प्रवणता १:१00 से १:४०० तक होती है।
आदर्श चिड़िया भारतीय राज्य राजस्थान के बालोतरा जिला के गिड़ा तहसील का एक राजस्व गाँव है। आदर्श चिड़िया चिड़िया ग्राम पंचायत का एक राजस्व गांव है। यह गिड़ा तहसील मुख्यालय से २३ किमी दूर तथा बालोतरा जिला मुख्यालय से ४५ किमी दूर स्थित है। आदर्श चिड़िया - गांव का विवरण मौसम और जलवायु यह गांव रेगिस्तानी क्षेत्र जिस की उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्र में पहाड़ियां और पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्र में रेत के टीले है। गांव में सामान्य वर्षा होती हैं, वार्षिक वृष्टि करिब ३५० मिलिमीटर है जिस का अधिकतम हिस्सा मनसून में होता है। चिड़िया में गृष्मकाल अप्रैल से अगस्त तक होता हैं और इस दौरान वायु में सापेक्षिक आद्रता ज़्यादा रहता है। नवंबर से फरवरी शहर में सर्दी का मौसम माना जाता है। दिसम्बर और जनवरी गांव में सब से ज़्यादा आरामदेह मौसम के महीने हैं। इन्हें भी देखें
गृहातुरता ( = गृह + आतुरता ; नोस्टेल्जिया) एक विशेष प्रकार की मानसिकता है। गृहातुर व्यक्ति प्रायः किसी पुराने समय या स्थान से सम्बन्धित अपनी मधुर स्मृतियों के आते ही उनकी प्रशंसा करने लगता है।
ग्लोस या ग्लॉस (अंग्रेज़ी: ग्लॉस; यूनानी: , ग्लोसा, अर्थ: जीह्वा) किसी लेख में किसी शब्द का अर्थ समझाने के लिए करी गई छोटी सी टिप्पणी को कहते हैं। यह अक्सर वाक्य के साथ पृष्ठ के किनारों पर या छोटे अकार के अक्षरों में शब्द के ऊपर, नीचे या साथ में लिखा होता है। ग्लोस लिखाई की भाषा में या पढ़ने वाले की मातृभाषा में हो सकता है (अगर वह लेख की मूल भाषा से अलग हो)। अक्सर धार्मिक भाषाओँ में लिखे ग्रंथों के पृष्ठों के किनारों पर शब्दों के अर्थ लिखे जाते हैं और कभी-कभी ऐसे ग्लोस पढ़ने वाले ख़ुद भविष्य में अपने लिए डाल देते हैं। ग्लोस और शब्दकोश शुरू में ग्लोस केवल पृष्ठों में भाषा समझाने के लिए लिखी गई टिप्पणियों को कहा जाता था। धीरे-धीरे ऐसी टिप्पणियों को एकत्रित कर के पुस्तकों के अंत में अलग विभाग में डाला जाने लगा। इन विभागों को 'ग्लोसरी' (ग्लोसरी) कहा जाने लगा। बाद में ऐसे ही शब्दार्थों को एकत्रित करके अलग पुस्तकों में छापा गया और यह विश्व के पहले शब्दकोष बने। भाषाविज्ञान में किसी भाषा के शब्द को 'ग्लोस करने' का अर्थ है उसका अर्थ संक्षिप्त रूप में किसी अन्य भाषा में समझाना। इन्हें भी देखें
भीटी तालुका असदुल्लापुर, इलाहाबाद (इलाहाबाद) इलाहाबाद जिले के इलाहाबाद प्रखंड का एक गाँव है।
प्राचीन मणिपुर या प्राचीन कंलैपाक् वर्तमान मणिपुर के मध्य मेदान में प्रचलित एक प्राचीन सभ्यता है। १४४५ इसाई पूर्व से लेकर ये सभ्यता प्रचलित हैं। इनके कयी राजधानी है, इनमें से कंला सहर सबसे प्रमुख राजधानी है। प्राचीन मणिपुर का शाही इतिहास १४४५ ईसा पूर्व में तंगजा लीला पखंगबा के शासनकाल के साथ शुरू हुआ था। पोलो (सगोल कांगजेई) के खेल का आविष्कार तांगजा लीला पखंगबा के उत्तराधिकारी राजा कांगबा (१४०५ ईसा पूर्व-१३५९ ईसा पूर्व) के शासनकाल के दौरान हुआ था । यह उल्लेखनीय उपलब्धि कई प्राचीन मणिपुरी शास्त्र सहित कांगबालोन और कांगजैलोन में दर्ज की गई है। मणिपुर (कंगलैपाक) का क्षेत्र पहाड़ी है और इस प्रकार, प्राचीन मणिपुर में कई छोटे क्षेत्र शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी बोली, सांस्कृतिक विशिष्टताएं और पहचान है। प्राचीन मणिपुरी भाषा (मणिपुरी भाषा के आधुनिक का प्रारंभिक रूप) के एक अमीर अन्न भंडार था । मैतै शास्त्र (पुया- मणिपुरी ग्रंथों), कई विषयों की, पुरातन में मणिपुरी लिपि में उपलब्ध है। सबसे पुराने ग्रंथों में से एक है वाकोक्लोन हील थिलेन सलाई अमाइलोन पुकोक पुया, जिसे १३९८ ईसा पूर्व (भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली द्वारा सत्यापित) में लिखा गया था। प्राचीन मणिपुर के अधिकांश लोग अपनी भूमि से बंधे किसान थे।उनके आवास तत्काल परिवार के सदस्यों तक ही सीमित थे। आम घरों केप्राचीनवास्तुशिल्पडिजाइनों को टिकाऊ, पर्यावरण के अनुकूल और किफायती माना जाता था।यह गर्मगर्मी केदौरान शीतलन प्रभाव देता है और ठंडासर्दी केदौरान वार्मिंग प्रभाव देता है। पहाड़ियों और मैदानों की स्वदेशी जातियों का प्राचीन धर्मसनमाही धर्म है। अंतरिक्ष समय इकाई की अमूर्त अवधारणा ब्रह्मांड का परम ईश्वर निर्माता है।प्राचीन मणिपुर की सभ्यता की शुरुआत से ही दैवीय और उसके बाद के जीवन में विश्वास निहित था।प्राचीन शासक राजाओं के दैवीय अधिकार पर आधारित थे। लाल-लूप प्रणाली (शाब्दिक रूप से, लाल का अर्थ हैयुद्ध; लुप का अर्थ हैक्लबयासंघ यासंगठन) प्राचीन मणिपुर में एक प्रमुख प्रणाली थी।प्रणाली के अनुसार, १६ वर्ष से अधिक आयु के स्वदेशी जातीयता का प्रत्येक पुरुष सदस्य था। इसे भी देखीए
विराट बिनोद सिंह (जन्म ८ दिसंबर १९९७), एक भारतीय क्रिकेटर हैं। अपने बचपन के कोच / संरक्षक वेंकटरम के तहत प्रशिक्षण, विराट ने २०१३-१४ के दौरान झारखंड के लिए अपनी पहली शुरुआत की, १६ साल की उम्र में। एक बाएं हाथ का बल्लेबाज जो बल्लेबाजी क्रम में तीसरे स्थान पर आता है, उसने दिसंबर 20१४ में देवधर ट्रॉफी में ईस्ट ज़ोन के लिए पदार्पण करते हुए इंटरजोनल मैच भी खेले हैं। आईपीएल २०२० में उन्हें सनराइजर्स हैदराबाद ने १.९ करोड़ में खरीदा था।
नगला कृपा खैर, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। अलीगढ़ जिला के गाँव
बांतेन दक्षिणपूर्व एशिया के इण्डोनेशिया देश के जावा द्वीप पर स्थित एक प्रान्त है। यह जावा के पश्चिमतम भाग में स्थित है और यहाँ से पश्चिम में जलसन्धि के पार सुमात्रा द्वीप स्थित है। ऐतिहासिक रूप से बांतेन को "सुमात्रा का द्वार" माना जाता था। यहाँ की संस्कृति की अपनी एक विशेष पहचान है। इन्हें भी देखें इंडोनेशिया के प्रांत इंडोनेशिया के प्रांत
पुणे एक्स्प्रेस १०३८ भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन गोरखपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:गप) से ०३:३०प्म बजे छूटती है और पुणे जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:पुणे) पर ०४:१०आम बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है ३६ घंटे ४० मिनट। मेल एक्स्प्रेस ट्रेन
कराची में भारत का महावाणिज्य दूतावास पाकिस्तान में भारत का एक राजनयिक मिशन था। राजीव डोगरा ने कराची, पाकिस्तान में महावाणिज्य दूत के रूप में कार्य किया। वाणिज्य दूतावास क्लिफ्टन, कराची में स्थित था। जनवरी १९९५ से वाणिज्य दूतावास सेवाएं बंद हैं। बेनजीर भुट्टो ने दिसंबर १९९४ में कराची में भारतीय वाणिज्य दूतावास को बंद कर दिया। यह भी देखें भारत के राजनयिक मिशन भारत के भूतपूर्व राजनयिक मिशन पाकिस्तान में राजनयिक मिशन
चन्दुलाल बारहदरी हैदराबाद के पुराने शहर का एक मोहल्ला है। यह एक औद्योगिक स्थान है। यह मोहल्ला महाराजा चंदू लाल के नाम पर पड़ा है जो हैदराबाद के तीसरे निज़ाम, मीर अकबर अली खान सिकंदर जाह, (आसिफ़ जाह तृतीय) के समय में हैदराबाद प्रांत के प्रधानमंत्री और उर्दू कवि रहे। इन्हें भी देखें महाराजा चंदू लाल मीर अकबर अली खान सिकंदर जाह, आसिफ़ जाह तृतीय
ज़ूम एअर जेक्सस एअर सर्विसेस का ब्रांड नेम है। यह एक क्षेत्रीय एअरलाइन है। फरवरी २०१७ मे इसे एयर ऑपरेटर्स का प्रमाण पत्र प्राप्त हो गया। फिलहाल ज़ूम एअर भारत मे ९ गंतव्यओं तक उड़ान भर्ती है। ज़ूम एअर को २०१३ मे श्री सुरेन्द्र कुमार कौशिक ने स्थापित किया था। भारतीय विमानन मंत्रालय ने अनापत्ति प्रमाण पत्र २०१४ मे ज़ूम एअर को दे दिया। सितंबर २०१६ तक ज़ूम एअर ने अपने पहले विमान कि डीलिवरी ले ली थी। ज़ूम एअर को ३ फरवरी २०१७ को एयर ऑपरेटर प्रमाण पत्र प्राप्त हो गया और विमानों का संचालन १५ फरवरी से दिल्ली-कोलकाता-दुर्गापुर की फ्लाइट से शुरू हो गया। ज़ूम एअर को प्राइवेट ग्रुप रवि शंकर सिंह ने २० करोड़ इक्विटी प्रदान की है। अगस्त २०१७ मे ज़ूम एअर के पास २ बोम्बार्डियर सीआरजे २00 विमान हैं। भारतीय वायुयान सेवा
सामी शब्द जड़ (सेमिटिक वर्ड रूट) अरबी, इब्रानी और सीरियाई जैसी सामी भाषाओं के क्रिया और संज्ञा शब्दों में व्यंजनों की उस छोटी शृंखला को कहते हैं जो किसी मूल अवधारणा (कॅान्सेप्ट) या चीज़ को दर्शाते हैं। इन जड़-व्यंजनों के इर्द-गिर्द स्वर वर्णों (या कभी-कभी अन्य व्यंजनों) को डालकर उस अवधारणा पर आधारित अलग-अलग अर्थों के शब्द बनाए जाते हैं। त्रि-व्यंजनीय (ट्रिकॉनसोन्न्टल, तीन व्यंजनों वाली) जड़ें सबसे आम हैं, हालांकि चार-व्यंजनीय (क्वाड्रिकॉनसोन्न्टल) जड़ें भी कहीं-कहीं मिलती हैं। आम बोलचाल की हिन्दी, पंजाबी, कश्मीरी, फ़ारसी व तुर्की भाषाओं में बहुत से अरबी-मूल के शब्द हैं इसलिए इन शब्द जड़ों के उदाहरण इन भाषाओं में भी दिखते हैं। उदाहरण के लिए अरबी में: किताब (पुस्तक), कुतुब (पुस्तकें), कातिब (लेखक), कुत्ताब (कई लेखक), कतबा (उसने लिखा), मकतूब (लिखा हुआ), यकतुबू (वह लिखता है) - सभी 'क-त-ब' के व्यंजनों के बीच में स्वर बदलकर बनाए जाते हैं। यह 'क-त-ब' की त्रिव्यंजनीय जड़ 'लिख' की अवधारणा बताती है। इन्हें भी देखें सामी भाषा परिवार
राणेबेन्नूर (रनेबेनूर) या राणेबेन्नूरु (रनेबेन्नुरू) भारत के कर्नाटक राज्य के हावेरी ज़िले में स्थित एक नगर है। राष्ट्रीय राजमार्ग ४८ यहाँ से गुज़रता है। समीप ही राणेबेन्नूर कृष्णमृग अभयारण्य स्थित है। इन्हें भी देखें राणेबेन्नूर कृष्णमृग अभयारण्य कर्नाटक के शहर हावेरी ज़िले के नगर
गौजाजाली हल्द्वानी नगर का एक आवासीय क्षेत्र और वार्ड है, जो नगर के केंद्र से लगभग ६ किमी दक्षिण में राष्ट्रीय राजमार्ग १०९ पर स्थित है। दिसंबर २०१७ तक यह क्षेत्र कई पृथक गांवों के रूप में अस्तित्व में था, जिसके बाद इसे हल्द्वानी नगर निगम में शामिल कर दिया गया। इन्हें भी देखें हल्द्वानी के आवासीय क्षेत्र
पंजूखिरिया फर्रुखाबाद, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। फर्रुखाबाद जिला के गाँव
मेहदीपटनम हैदराबाद के दक्षिण-पश्चिमी भाग में एक प्रमुख इलाक़ा है। यह मुसी नदी के उत्तर; आसिफ़-नगर के पास स्थित है। इसे अपना नाम मेहदी नवाज जंग से मिला था जो हैदराबाद प्रांत के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ और नौकरशाह थे। लोकसभा में यह हैदराबाद चुनाव क्षेत्र के अंदर आता है जिसमें वर्तमान सांसद असदुद्दीन ओवैसी हैं। तेलंगाना विधान सभा में यह नामपल्ली चुनाव क्षेत्र में है जिसमें जाफर हुसैन वर्तमान विधायक हैं। ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम में इसके पार्षद माजिद हुसैन हैं (जो हैदराबाद के पूर्व मेयर भी थे।) पिछले २ दशकों में अधिक विकास के कारण आज यह एक वाणिज्यिक केंद्र बन गया है| अन्य उपनगरों के साथ इसकी निकटता ने इसे एक शॉपिंग सेंटर बना दिया है सोने का बाजार मेहदीपट्टनम में ओकाज कॉम्प्लेक्स नामी एक केंद् है जिसमें अन्य गहने कि दुकानें है जैसे मुजतबा ज्वैलर्स शरीकृष्ण ज्वैलर्स , डेनिश ज्वैलर्स और मालाबार गोल्ड एंड डायमंड्स । उत्तर भारतीय भोजन परोसने वाले रेस्तरां जैसे प्रिंस होटल , प्रिंस कैफे और रेस्टोरेंट, सिटी डायमंड होटल, पैराडाइज होटल, अल बैक श्वामा सेंटर, आदि यहां दिख सकते है जो हैदराबादी भोजन परोसते हैं। हाल ही में यहां सबवे, मैकडॉनल्ड्स, डोमिनोज पिज्जा, केएफसी और पिज्जा हट जैसे स्थापित किए गए हैं। स्वाथी टिफिन हैदराबाद के सबसे पुराने टिफिन केंद्रों में से एक है जो लोगों के बीच पसंदीदा है। और मिठाई की दुकानें जैसे दिल्लीवाला स्वीट्स आंड चाट , जी. पुल्ला रेड्डी स्वीट्स , आदि उपलब्ध हैं। रमजान के दौरान यहां हलीम भी परोसी जाती है मेहदीपटनम में बहुत सारे मूवी थिएटर और मल्टीप्लेक्स हैं जो लोगों को दैनिक आधार पर मनोरंजित करते हैं। अम्बा थिएटर , इस्वर थिएटर, गैलेक्सी थिएटर और ऐशियन मल्टीप्लेक्स सबसे प्रमुख हैं। सबसे उल्लेखनीय विवाह / समारोह हॉल किंग्स पैलेस और किंग्स कोहिनूर कन्वेंशन (दोनों रेड रोज पैलेस द्वारा प्रबंधित हैं ) अन्य में एमपी गार्डन फंक्शन हॉल, महबूब मेंशन, आदि शामिल हैं जो विवाह या अन्य समारोहों के लिए किराए पर दिए जाते हैं। अस्पताल और क्लिनिक सरोजिनी देवी नेत्र अस्पताल यहाँ स्थित है। यह एक सरकारी अस्पताल है जो मरीजों की मुफ्त सेवा करता है। जयाभूषण अस्पताल यहाँ का सबसे पुराना बहु-विशिष्ट अस्पताल है। अन्य महत्वपूर्ण अस्पतालों में अनुषा अस्पताल, औलिव अस्पताल, वसन आई केयर, मीना मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल, प्रीमियर अस्पताल और म्म अस्पताल शामिल हैं। कई मेडीकल क्लीनिक यहां देखे जा सकते हैं। मेहदीपट्टनम में ट्सर्टक बस डिपो है जिस्से चेवेल्ला, मोइनाबाद, उप्पल, सिकंदराबाद, लिंगमपल्ली, कोटि, गाचीबोवली, मद्धापूर, आरम्घड, आदी जा सकते है। पीवी नरसिम्हा राव एक्सप्रेसवे से राजीव गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को भी जा सकते है। निकटतम मार्ट्स ट्रेन स्टेशन नामपल्ली और लक्डीकापुल में हैं । मेहदीपटनम में बहुत सारे स्कूल और कॉलेज है। कॉलेज जैसे सेंट एन कॉलेज फॉर विमेन जी। पुल्ला रेड्डी शैक्षिक संस्थानों, के. नागी रेड्डी एजुकेशनल एंड कल्चरल सोसाइटी, लाल बहादुर डिग्री कॉलेज यहाँ स्थित है। इस इलाके के स्कूलों में शामिल हैं: हिदायत इस्लामिक इंटरनेशनल स्कूल ब्लूमस बियॉन्ड इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंटल स्किल्स ब्लूमिंग बड्स टेक्नो हाई स्कूल एम.एस क्रिएटिव स्कूल एम.एस हाई स्कूल सफदरिया गर्ल्स उर्दू मीडियम स्कूल ब्राइट स्टार स्कूल गौतम मॉडल स्कूल सिलिकॉन वैली स्कूल श्री चैतन्य टेक्नो स्कूल हैप्पी स्कोलर स्कूल दिल्ली पब्लिक स्कूल विवेकानंद हाई स्कूल जी. नारायणम्मा हाई स्कूल शार्प स्कोलर स्कूल पीस एंगल्स हाई स्कूल सनराइज हाई स्कूल क्रिस्टल हाई स्कूल। मस्जिद-ए-अजीजिया; मेहदीपटनम की सबसे बड़ी मस्जिद है। इसमें चार मंजिलें हैं और हर मंजिल पर एक वुज़ू खाना है। शुक्रवार का उपदेश उर्दू और अरबी दोनों में दिए जाते हैं, जो मुख्य रूप से वर्तमान / समकालीन विषय पर केंद्रित हैं। खाजा गुलशन मस्जिद यह मस्जिद हैदरअबाद के सबसे पुराने मस्जिद मै से एक है। यहां अन्य प्रसिद्ध लोग उपदेश और भाषण देते है। कुतुब शाही मस्जिद (छोठी मस्जिद) यह मस्जिद मुराद नगर, अरब लेन में स्थित है और छोठी मस्जिद के नाम से जाना जाता है। मस्जिद ए मोहम्मदिया विश्व कॉलोनी, हिल कॉलोनी में स्थित है। हैदराबाद में मुहल्ले विकिडेटा पर उपलब्ध निर्देशांक
ललित शौर्य एक युवा हिन्दी कवि एवं व्यंगकार हैं। युवा शौर्य ने छोटी उम्र में पांच पुस्तकों का प्रकाशन कर उपलब्धि हासिल की है। उनका एक व्यक्तिगत काव्य संकलन भी आ चुका है। विज्ञान और इंजीनियरिंग के छात्र शौर्य का रचना संसार अनूठा है। उनकी हिंदी भक्ति आश्चर्य में डालती है। शौर्य को कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।
डॉ बिन्देश्वरी पाठक (जन्म: ०२ अप्रैल १९४३) विश्वविख्यात भारतीय समाजिक कार्यकर्ता एवं उद्यमी हैं। उन्होने सन १९७० मे सुलभ इन्टरनेशनल की स्थापना की। सुलभ इंटरनेशनल मुख्यतः मानव अधिकार, पर्यावरणीय स्वच्छता, ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों और शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन आदि क्षेत्रों में कार्य करने वाली एक अग्रणी संस्था है। श्री पाठक का कार्य स्वच्छता और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अग्रणी माना जाता है। इनके द्वारा किए गए कार्यों की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है और पुरस्कृत किया गया है। १५ अगस्त २०२३ को ८० वर्ष की उम्र में दिल्ली के आईम्स में श्री पाठक का निधन हो गया। डॉ बिन्देश्वरी पाठक ने का जन्म भारत के बिहार प्रान्त के रामपुर में हुआ। उन्होने सन १९६४ में समाज शास्त्र में स्नातक की उपाधि ली। सन १९६७ में उन्होने बिहार गांधी जन्म शताब्दी समारोह समिति में एक प्रचारक के रूप में कार्य किया। वर्ष १९७० में बिहार सरकार के मंत्री श्री शत्रुहन शरण सिंह के सुझाव पर सुलभ शौचालय संस्थान की स्थापना की। बिहार से यह अभियान शुरू होकर बंगाल तक पहुंच गया। वर्ष १९८० आते आते सुलभ भारत ही नहीं विदेशों तक पहुंच गया। सन, १९८० में इस संस्था का नाम सुलभ इण्टरनेशनल सोशल सर्विस आर्गनाइजेशन हो गया। सुलभ को लिए अन्तर्राष्ट्रीय गौरव उस समय प्राप्त हुआ जब संयुक्त राष्ट्र संघ की आर्थिक एवं सामाजिक परिषद द्वारा सुलभ इण्टरनेशनल को विशेष सलाहकार का दर्जा प्रदान किया गया। सन १९८० में उन्होने स्नातकोत्तर तथा सन १९८५ में पटना विश्वविद्यालय से पीएच डी की उपाधि अर्जित की। उनके शोध-प्रबन्ध का विषय था - बिहार में कम लागत की सफाई-प्रणाली के माध्यम से सफाईकर्मियों की मुक्ति (लिबरेशन ऑफ स्कैवेन्जर्स थ्रू लो कास्ट सेनिटेशन इन बिहार)। बिंदेश्वर पाठक ने सामाजिक विज्ञान में स्नातक किया। उन्होंने अपनी परास्नातक उपाधि १९८० में और डॉक्टरेट की उपाधि १९८५ में पटना विश्वविद्यालय से प्राप्त की। उच्चकोटि के लेखक और वक्ता के रूप में श्री पाठक ने कई पुस्तके भी लिखीं। स्वच्छता और स्वास्थ्य पर आधारित विभिन्न कार्यशालाओं और सम्मेलनों में श्री पाठन ने अभूतपूर्व योगदान दिया। स्वच्छता के लिए आंदोलन एक पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में जन्मे और बिहार में पले बढे डॉ॰ पाठक ने अपने पीएच.डी. का अध्ययन क्षेत्र "भंगी मुक्ति और स्वच्छता के लिए सर्व सुलभ संसाधन" जैसे विषय को चुना और इस दिशा में गहन शोध भी किया। १९६८ में श्री पाठक भंगी मुक्ति कार्यक्रम से जुड़े रहे और उन्होंने तब इस सामाजिक बुराई और इससे जुड़ी हुई पीड़ा का अनुभव किया। श्री पाठक के दृढ निश्चय ने उन्हें सुलभ इंटरनेशनल जैसी संस्था की स्थापना की प्रेरणा दी और उन्होंने १९७० में भारत के इतिहास में एक अनोखे आंदोलन का शुभारंभ किया। श्री पाठक ने १९७० में सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की सुलभ इंटरनेशनल एक सामाजिक सेवा संगठन है जो मुख्यतः मानव अधिकार, पर्यावरणीय स्वच्छता, ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों और शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन आदि क्षेत्रों में कार्य करती है। इस संस्था के ५०,००० समर्पित स्वयंसेवक हैं। श्री पाठक ने सुलभ शौचालयों के द्वारा बिना दुर्गंध वाली बायोगैस के प्रयोग की खोज की। इस सुलभ तकनीकि का प्रयोग भारत सहित अनेक विकाशसील राष्ट्रों में बहुतायत से होता है। सुलभ शौचालयों से निकलने वाले अपशिष्ट का खाद के रूप में प्रयोग को भी प्रोत्साहित किया। पुरस्कार एवं सम्मान श्री पाठक को भारत सरकार द्वारा १९९१ में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन् २००३ में श्री पाठक का नाम विश्व के ५०० उत्कृष्ट सामाजिक कार्य करने वाले व्यक्तियों की सूची में प्रकाशित किया गया। श्री पाठक को एनर्जी ग्लोब पुरस्कार भी मिला। श्री पाठक को इंदिरा गांधी पुरस्कार, स्टाकहोम वाटर पुरस्कार इत्यादि सहित अनेक पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया है। उन्होने पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने के लिये प्रियदर्शिनी पुरस्कार एवं सर्वोत्तम कार्यप्रणाली (बेस्ट प्रक्टिसेस) के लिये दुबई अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किया है। इसके अलावा सन २००९ में अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा संगठन (आईआरईओ) का अक्षय उर्जा पुरस्कार भी प्राप्त किया। ८० वर्ष की उम्र में श्री पाठक का निधन हो गया। १५ अगस्त २०२३ की सुबह वे दिल्ली स्थित सुलभ इंटरनेशनल कार्यालय में स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल हुए। उन्होंने तिरंगा फहराया और उसके कुछ देर बाद ही अचानक से गिर गए, जिसके तत्काल बाद उन्हें इलाज के लिए दिल्ली के आईम्स में भर्ती कराया गया। दोपहर १.४२ बजे चिकित्सकों ने पाठक को मृत घोषित कर दिया। चिकित्सको ने मौत का कारण 'कार्डियक अरेस्ट' बताया। इन्हें भी देखें एक राष्ट्रीय योद्धा के बारे में डॉ॰ पाठक का साक्षात्कार १४ अप्रैल को न्यूयॉर्क में 'बिन्देश्वरी पाठक दिवस' (नवभारत टाइम्स) १९९१ पद्म भूषण सामाजिक कार्य में पद्म भूषण प्राप्तकर्ता
आषाढ शुक्ल चतुर्दशी भारतीय पंचांग के अनुसार चतुर्थ माह की चौदहवी तिथि है, वर्षान्त में अभी २५६ तिथियाँ अवशिष्ट हैं। पर्व एवं उत्सव इन्हें भी देखें हिन्दू काल गणना हिन्दू पंचांग १००० वर्षों के लिए (सन १५८३ से २५८२ तक) विश्व के सभी नगरों के लिये मायपंचांग डोट कोम विष्णु पुराण भाग एक, अध्याय तॄतीय का काल-गणना अनुभाग सॄष्टिकर्ता ब्रह्मा का एक ब्रह्माण्डीय दिवस
सिकती में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत पुर्णिया मण्डल के अररिया जिले का एक गाँव है। बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ बिहार के गाँव
पचीसी मध्यकालीन भारत में उत्पन्न एक बोर्ड खेल है जिसे 'भारत का राष्ट्रीय खेल' कहा जाता है।
भारत की जनगणना अनुसार यह गाँव, तहसील बिलारी, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है। सम्बंधित जनगणना कोड: राज्य कोड :०९ जिला कोड :१३५ तहसील कोड : ००७२० इन्हें भी देखें बिलारी तहसील के गाँव
औसेर तिरवा, कन्नौज, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। कन्नौज जिला के गाँव
बेरिंग ज़मीनी पुल (बेरिंग लैंड ब्रिज) या बेरिंजिया (बेरिंगिया) एक ज़मीनी पुल था जो एशिया के सुदूर पूर्वोत्तर के साइबेरिया क्षेत्र को उत्तर अमेरिका के सुदूर पश्चिमोत्तर अलास्का क्षेत्र से जोड़ता था। इस धरती के पट्टे की चौड़ाई उत्तर से दक्षिण तक लगभग १,६०० किमी (१,००० मील) थी यानि इसका क्षेत्रफल काफ़ी बड़ा था। पिछले हिमयुग के दौरान समुद्रों का बहुत सा पानी बर्फ़ के रूप में जमा हुआ होने से समुद्र-तल आज से नीचे था जिस वजह से बेरिंजिया एक ज़मीनी क्षेत्र था। हिमयुग समाप्त होने पर बहुत सी यह बर्फ़ पिघली, समुद्र-तल उठा और बेरिंजिया समुद्र के नीचे डूब गया। जब बेरिंजिया अस्तित्व में था तो क्षेत्रीय मौसम अनुकूल होने की वजह से यहाँ बर्फ़बारी कम होती थी और वातावरण मध्य एशिया के स्तेपी मैदानों जैसा था। इतिहासकारों का मानना है कि उस समय कुछ मानव समूह एशिया से आकर यहाँ बस गए। वह बेरिंजिया से आगे उत्तर अमेरिका में दाख़िल नहीं हो पाए क्योंकि आगे भीमकाय हिमानियाँ (ग्लेशियर) उनका रास्ता रोके हुए थीं। इसके बाद बेरिंजिया और एशिया के बीच भी एक बर्फ़ की दीवार खड़ी होने से बेरिंजिया पर चंद हज़ार मानव लगभग ५,००० सालों तक अन्य मानवों से बिना संपर्क के हिमयुग के भयंकर प्रकोप से बचे रहे। आज से क़रीब १६,५०० वर्ष पहले हिमानियाँ पिघलने लगी और वे उत्तर अमेरिका में प्रवेश कर गए। लगभग उसी समय के आसपास बेरिंजिया भी पानी में डूबने लगा और आज से क़रीब ६,००० वर्ष पहले तक तटों के रूप वैसे हो गए जैसे कि आधुनिक युग में देखे जाते हैं। बेरिंजिया लगभग ४,००० किमी लम्बा और १,६०० किमी चौड़ा था। यह आधुनिक साइबेरिया की लेना नदी से लेकर कनाडा की मैकेन्ज़ी नदी तक पहुँचता था। इसका क्षेत्र इतना बड़ा था कि कुछ भूवैज्ञानिकों के अनुसार यह एक ज़मीनी पुल कम और एक उपमहाद्वीप ज़्यादा था। मैमथों के अवशेषों की हड्डियों में मौजूद कोलेजन पर अनुसंधान करके वैज्ञानिकों ने यह मत दिया है कि पश्चिमी बेरिंजिया (साइबेरिया) पूर्वी बेरिंजिया (युकोन/अलास्का) से ज़यादा शुष्क और ठंडा था और इसलिए पूर्वी बेरिंजिया में प्राणियों और पौधों की अधिक समृद्धि और विविधता थी। बेरिंजिया एक बड़ा क्षेत्र था और इसका अधिकतर भाग हिमानियों से मुक्त था और इसके स्तेपी जैसे क्षेत्र पर बहुत से जानवर रहते थे। इसलिए कुछ हज़ार मानव भी यहाँ रह पाए। माना जाता है कि यह ५-१७ हज़ार साल तक बेरिंजिया में रहे और दूसरे मानव समाजों से इनका कोई संपर्क नहीं था। कुछ इतिहासकारों का सोचना है कि एक ज़माने में बेरिंजियाई मानवों की पाषाणयुगीय संस्कृति पूरे बेरिंजिया में पूर्व में साइबेरिया के प्रिमोर्ये क्षेत्र से लेकर पश्चिम में अलास्का तक और दक्षिण में होक्काइदो तक फैली हुई थी। बेरिंजियाइयों के कोई अवशेष नहीं मिलें हैं क्योंकि यह पूरा उपमहाद्वीप अब सागर के नीचे डूबा हुआ है। इन बेरिंजियाई लोगों का जीवन यक़ीनन कठिन था क्योंकि यह एक अत्यंत सर्द इलाक़ा था। यह एक शिकारी-फ़रमर जीवनी व्यतीत करते थे और औसतन ४० साल से भी कम उम्र तक जीते होंगे। गर्मियों में बड़ी तादाद में मच्छर और अन्य कीट उन्हें परेशान करते होंगे, जैसा कि साइबेरिया में भी देखा जाता है। जब मौसम बदला और उनका इलाक़ा डूबने पर बेरिंजियाई उत्तर अमेरिका में जाने पर मजबूर हुए, तो उन्हें अमेरिका की अलग आब-ओ-हवा में नए सिरे से जीवन व्यतीत करना सीखना पड़ा होगा। २००५ में हुए एक अनुवांशिकी (जेनेटिक) अनुसंधान से संकेत मिलता है कि शायद ८० से भी कम बेरिंजियाइयों का वंश आधुनिक काल तक चल पाया है, यानि अन्य सभी किसी-न-किसी मुसीबत में पड़कर बिना आगे वंश चलाए ही ख़त्म हो गए। बेरिंजिया पर ऊँट, मैमथ, अमेरिकी सिंह, घोड़े, हिरण, भेड़, भेड़िया और स्तेपी भैंसे जैसे जानवर रहा करते थे। उत्तर अमेरिका में हाथी (मैमथ), बालदार गैंडा और सिंह अब विलुप्त हैं लेकिन वे इसी ज़मीनी पुल के ज़रिये एशिया से वहाँ पहुँचे। अध्ययन से यह भी ज्ञात हुआ है कि वास्तव में ऊँटों का वंश सबसे पहले उत्तर अमेरिका में शुरू हुआ था और ऊँट वहाँ से बेरिंजिया से गुज़रकर एशिया और विश्व के अन्य भागों में पहुँचे। इतिहासकार अंदाज़ा लगते हैं कि बेरिंजिया में मैमथ (एक हाथी की विलुप्त जाती) जैसे भीमकाय जानवरों के बीच रहकर बेरिंजियाई मानव उनके शिकार में माहिर हो गए थे। बाद में जब यह फैलकर अलास्का और उत्तर अमेरिका के अन्य भागों में गए तो वहाँ भी उन्होंने अपनी महारत से बड़े पैमाने पर इन बड़े जानवरों का शिकार जारी रखा। उत्तर अमेरिकी महाद्वीप में मैमथ, मैस्टोडॉन और बालदार गैंडे के विलुप्त हो जाने का यह एक बड़ा कारण माना जाता है। इन्हें भी देखें प्रागैतिहासिक उत्तर अमेरिका
आउटलुक : रेटिग के साथ जुड़ा हुआ यह शब्द भी भावी संभावनाओं को दर्शाता है। कंपनी/संस्था या देश का भविष्य क्या है अथवा इसकी क्या संभावना है जैसे सवाल पूछते समय आउटलुक शब्द का उपयोग किया जाता है। आउटलुक के आधार पर ही निवेश करने का निर्णय कम्पी को लिया जाता है क्योंकि आउटलुक पॉजिटिव, निगेटिव या फिर स्टेबल (स्थिर) हो सकता है। निवेशकों के लिए यह हितकारक है कि वे निवेश करते समय कंपनी, संस्था या देश के आउटलुक पर ध्यान दें। ऑर्डर बुक : कंपनी की ऑर्डर बुक में कितने ऑर्डर बकाया पड़े हैं इसकी जानकारी के आधार पर कंपनी के कार्य परिणाम, भविष्य एवं स्थिरता का अनुमान लगाया जा सकता है। कंपनी के पास ऑर्डर ही न हों या भरपूर ऑर्डर न हों तो ऐसी स्थिति कंपनी के लिए अच्छी नहीं माना जाती, जबकि निरंतर ऑर्डर मिलने वाली तथा ऑर्डर बुक में भरपूर ऑर्डर रखने वाली कंपनी की स्थिति सुदृढ़ मानी जाती है। ऑर्डर बुक भरपूर होने का अर्थ यह है कि कंपनी के पास भरपूर काम है तथा भविष्य में उसकी आय निरंतर बनी रहेगी। आर्बिट्रेज : एक शेयर बाजार से निर्धारित शेयरों की कम भाव पर खरीदारीी करके उसे दूसरे बाजार में ऊंचे भाव पर बेच देने की प्रवृत्ति को आर्बिट्रेज कहा जाता है। उदाहरण स्वरूप बीएसई पर एबीसी कंपनी के शेयर १४५.२० रू. के भाव पर खरीद कर उसी समय एनएसई पर १४५.३० रू. पर बेच देने की प्रक्रिया को आर्बिट्रेज कहते हैं। इस प्रकार आपको १० पैसे का अंतर मिलता है। ये सौदे एक ही समय किये जाते हैं तथा इसमें बड़ी संख्या में सौदे किये जाते हैं। पुराने समय में एक ही समय पर एक ही स्क्रिप के अलग-अलग भाव हुआ करते थे परंतु अब ऑन लाइन ट्रेडिंग सुविधा होने से इसकी मात्रा काफी घट गयी है। अब इस प्रकार के सौदों में भाव का अंतर काफी कम होता है, परंतु भारी मात्रा में सौदे होने से इनमें भरपूर लाभ अर्जित होता है। इस प्रकार का कारोबार करने वालों को आर्बिट्रेजर कहा जाता है। कई बार एक ही कमोडिटी, करेंसी या सिक्युरिटीज के तीन चार एक्सचेंज पर अलग-अलग भाव अंतर पर सौदे होते हैं, जिसमें एक बाजार से नीचे भाव में खरीद कर दूसरे बाजार में ऊंचे भाव पर बेचा जाता है। यहां महत्वपूर्ण यह है कि ये सौदे दोनों एक्सचेंजों पर एक ही समय पर किये जाते हैं। ब्रोकर इस काम के लिए विशेष स्टॉफ रखते हैं, जो बीएसई और एनएसई दोनों पर भरपूर मात्रा में सौदे करते रहते हैं। आर्बिट्रेशन : इस शब्द का अर्थ आर्बिट्रेज से काफी अलग है। आर्बिट्रेशन का अर्थ है विवादों का निपटान। जब ब्रोकर और ब्रोकर के बीच या ब्रोकर और ग्राहक के बीच कोई विवाद हो जाता है तो इस प्रकार के विवाद को निपटाने के लिए मध्यस्थ की नियुक्ति की जाती है, जिसे आर्बिट्रेटर कहा जाता है और उसके निपटान की प्रक्रिया को आर्बिट्रेशन प्रोसेस कहा जाता है। शेयर बाजार में ऐसे विवादों के निपटान के लिए एक खास विभाग एक्सचेंज के नियमों एवं उपनियमों के तहत कार्य करता है। इस प्रकार के मामलों में आर्बिट्रेटर की नियुक्ति एक्सचेंज के नियमों के अनुसार होती है और उसके द्वारा दिये गये निर्णय ब्रोकर और ग्राहकों पर लागू होते हैं। इस प्रक्रिया में आर्बिट्रेटर दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपना निर्णय देता है। ऑक्शन (नीलाम) : शेयर बाजार में जब कोई निवेशक शेयर बेच देता है, परंतु समय पर उसकी डिलिवरी देने में विफल हो जाता है तो एक्सचेंज की कार्य पद्धति के तहत निवेशक के शेयर डिलिवरी दायित्व को उतारने के लिए उतने ही शेयरों का आवश्यक रूप से ऑक्शन (नीलाम) किया जाता है। इस प्रक्रिया में ऑक्शन के जरिए उतनी संख्या के शेयर बाजार के वर्तमान भाव पर ब्रोकर के द्वारा खरीदे जाते हैं और इसके भाव अंतर का बोझा निवेशक से वसूला जाता है। इसका कारण यह है कि निवेशक ने अपने पास शेयर हुए बिना भी उनको बेच दिया था। हमने इसके पहले शार्ट सेल्स (खोटी बिक्री) की चर्चा की थी। उसमें भी शार्ट सेल्स करने वाले निवेशक को बाजार भाव पर शेयर खरीद कर डिलिवरी देनी होती है, परंतु जब कोई निवेशक स्वेच्छा से ऐसा नहीं करता है तो बाजार के नियमों के तहत स्टॉक एक्सचेंज द्वारा आवश्यक रूप से नीलामी के मार्फत उस सौदे का निपटान किया जाता है। एलॉटमेंट : कंपनियों के सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के दौरान निवेशकों द्वारा किये गये आवेदन पर मिले हुए शेयरों को शेयर एलॉटमेंट कहा जाता है। एसटीटी : सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टेक्स को सारांश में एसटीटी कहते हैं। सरकार के `कर नियम` के अनुसार शेयर सिक्युरिटीज के प्रत्येक सौदे पर एसटीटी लागू होता है। सरकार को इस मार्ग से प्रतिदिन भारी राजस्व मिलता है। यह `कर` ब्रोकरों को भरना होता है हालांकि ब्रोकर इसे अपने ग्राहकों से वसूल लेते हैं। प्रत्येक कांट्रेक्ट नोट या बिल में ब्रोकरेज के साथ-साथ एसटीटी भी वसूला जाता है। एफआईआई : शेयर बाजार को नचाने वाला, बाजार की चाल निर्धारित करने वाला यह शब्द बाजार से संबंधित समाचारों में बार-बार सुनने को मिलता है। प्रायः इस बात पर आप अपना ध्यान देते हैं कि एफआईआई की लिवाली या बिकवाली के कारण बाजार का यह हाल हुआ। एफआईआई, यानि की फॉरेन इंस्टिट्युशनल इन्वेस्टर अर्थात विदेशी संस्थागत निवेशक। ये संस्थागत निवेशक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होते हैं। ये अपने स्वयं के देश के लोगों से बड़ी मात्रा में निवेश के लिए धन एकत्रित करते हैं और उनका अनेक देशों के शेयर बाजार में निवेश करते हैं। इन संस्थागत निवेशकों के ग्राहकों की सूची में सामान्य निवेश से लेकर बड़े निवेशक - पेंशन फंड आदि होते हैं, जिसका एकत्रित धन एफआईआई अपनी व्यूहरचना के अनुसार विविध शेयर बाजारों की प्रतिभूतियों में निवेश करके उस पर लाभ कमाते हैं और उसका हिस्सा अपने ग्राहकों को पहुंचाते हैं। चूंकि इन लोगों के पास धन काफी विशाल मात्रा में होता है और प्राय: ये भारी मात्रा में ही लेवाली या बिकवाली करते हैं जिससे शेयर बाजार की चाल पर सीधा प्रभाव पड़ता है। भारत में तो अभी उनका ऐसा वर्चस्व है कि लगता है शेयर बाजार को वे ही चलाते हैं। वर्ष २००८ में जब अमेरिका में आर्थिक मंदी आयी थी तब इस वर्ग ने भारतीय पूंजी बाजार से अपना निवेश निरंतर निकाला था, जिससे भारतीय बाजार में भी गिरावट होती गयी। किसी भी एफआईआई को भारतीय शेयर बाजार में निवेश करने से पहले अपना पंजीकरण भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) तथा भारतीय रिजर्व बैंक के पास करवाना होता है तथा इनके नियमों का पालन करना होता है। वर्तमान समय में सेबी के पास ११०० से अधिक एफआईआई पंजीकृत है। एक्सपोजर : साधारण शब्दों में इसे जोखिम कहा जा सकता है। जब कोई निवेशक किसी कंपनी में निवेश करता है तो यह कहा जाता है कि उक्त निवेशक ने कंपनी में एक्सपोजर लिया है। एक्सपोजर मात्र कंपनी में ही नहीं बल्कि संपूर्ण उद्योग या अर्थतंत्र में भी लिया जाता है। जब कोई निवेशक अन्य देश में निवेश करता है तो कहा जाता है कि उसने उस देश के अर्थ तंत्र में या उस देश की कंपनियों, उद्योगों में एक्सपोजर अर्थात जोखिम ली है। वायदे के सौदों में यह शब्द काफी उपयोग में लाया जाता है क्योंकि जब कोई ट्रेडर प्युचर कांट्रेक्ट करता है तब वह भविष्य की जोखिम लेता है। व्यक्ति जब भी कोई निवेश करता है तब उसके मूल्य में घट-बढ़ की संभावना होने से उस निवेश का एक्सपोजर कहा जाता है। बेस्ट बाई : जो शेयर खरीदने के लिए उत्तम माने जाते हैं या जिन शेयरों का खरीदारी के लिए उत्तम भाव माना जाता है उन्हें ``बेस्ट बाई`` कहा जाता है। ये कंपनियां श्रेष्ठ हैं अथवा भविष्य में उनका भाव अपने वर्तमान भाव से बढ़ने की संभावना होती है ऐसी स्क्रिप या शेयर को बेस्ट बाई के रूप में गिना जाता है। अनेक बार एनालिस्ट विद्यमान स्थित के आधार पर किसी शेयर को बेस्ट बाई कहते हैं, उस समय उन कंपनियों का शेयर भाव बढ़ने की प्रबल संभावनाएं रहती हैं। ब्लू चिप : शेयर बाजार की श्रेष्ठ - मजबूत कंपनियों के लिए यह शब्द उपयोग में लाया जाता है। किसी कंपनी का ब्लू चिप होने का अभिप्राय यह है कि उसके शेयर निवेशकों के लिए पसंदीदा शेयर हैं। इस प्रकार की कंपनियों में सौदे भी काफी होते हैं, उतार-चढ़ाव भी काफी होता है और उनमें निवेशकों का आकर्षण भी खूब बना रहता है। बोल्ट (बीएसई (बांबे स्टॉक एक्सचेंज) ऑन लाइन ट्रेडिंग : बोल्ट अर्थात प्रतिभूतियों की ऑनलाइन स्क्रीन आधारित ट्रेडिंग सुविधा उपलब्ध कराने वाला टर्मिनल। बीएसई के सदस्यों को एक्सचेंज की तरफ से इस टर्मिनल की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है। बबल : पिछले कुछ वर्षों से यह शब्द भी संपूर्ण विश्व में चचि है विशेषकर बाजार में जब कोई भी प्रकरण खुलता है तो उसे ``बबल बस्र्ट`` हुआ है ऐसा कहा जाता है। बबल अर्थात बुलबुला और बस्र्ट अर्थात फटना। जब किसी शेयर का भाव बुलबुले की तरह फूलता रहे और एक सीमा पर आने के बाद धड़ाम से गिर जाये तो इसे बुलबुला फूटना कहा जाता है। करेक्शन : शेयर बाजार की दैनिक रिपोर्ट में इस शब्द का उपयोग होता रहता है। बाजार खूब बढ़ गया हो और एक निश्चित ऊंचाई पर पहुंचने के बाद तेजी के रूझाान के बीच जो गिरावट दर्ज की जाती है उसे बाजार में करेक्शन कहा जाता है। उदाहरण के लिए शेयर बाजार यदि निरंतर ४ दिन एकतरफा बढ़ता रहे और पांचवे दिन उसमें गिरावट आ जाये तो उसे करेक्शन के नाम से जाना जाता है। समय-समय पर इस प्रकार का करेक्शन बाजार के स्वास्थ्य के लिए अच्छा प्रतीक माना जाता है। निरंतर एकतरफा बढ़ते रहने वाला बाजार जोखिमपूर्ण हो जाता है जिसमें आगे जाकर एक साथ भारी गिरावट की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। कार्पोरेट एक्शन : कंपनी द्वारा जब कभी भी शेयरधारकों या बाजार से संबंधित कोई निर्णय लिया जाता है तो उसे कार्पोरेट एक्शन कहा जाता है। उदाहरण के लिए लाभांश / ब्याज का भुगतान, राइट / बोनस इश्यू, मर्जर/डिमर्जर, बाई बैक, ओपन ऑफर जैसी बातों कार्पोरेट एक्शन कही जाती हैं। कांट्रेक्ट नोट : शेयर बाजार में सौदे करते समय कांट्रेक्ट नोट का काफी महत्व है। आप जिस शेयर ब्रोकर के जरिये शेयरों की खरीद बिक्री करें, उससे हर बार कांट्रेक्ट नोट लेने का आग्रह करें। आपके शेयरों के सौदे किस समय तथा किस भाव पर हुए, उस पर कितनी दलाली, सिक्युरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स, सर्विस टैक्स लगा है इन सबका उल्लेख कांट्रेक्ट नोट में होता है। आपको ब्रोकर से सौदे के २४ घंटे के भीतर कांट्रेक्ट नोट मिल जाना चाहिए, परंतु सामान्य रूप से ब्रोकर इसमें ३-४ दिन लगा देते हैं। कांट्रेक्ट नोट पाना आपका अधिकार बनता है और यही आपके सौदे का दस्तावेजी प्रमाणित प्रमाण भी है। यदि किसी कारण से आपका ब्रोकर विफल हो जाये और आपको अपने सौदे के शेयर या उसकी रकम उससे लेनी निकलती है तो इस कांट्रेक्ट नोट के आधार पर हीी आप अपना दावा पेश कर सकते हैं। ब्रोकर के विफल होने पर एक्सचेंज कांट्रेक्ट नोट के आधार पर ही आपका दावा मान्य करता है, जिसमें आपको एक्सचेंज की तरफ से १० लाख रूपये तक की सुरक्षा मिलती है। ऐसी स्थिति में कांट्रेक्ट नोट ही मात्र ऐसा दस्तावेज है जो आपके दावे का आधार बनता है। ऐसा न होने पर आपका दावा वैध नहीं माना जायेगा। अतः ब्रोकरों के साथ व्यवहार करते समय कांट्रेक्ट नोट लेने का आग्रह करें, इसकी उपेक्षा न करें तथा इसे संभाल अपने पास रखें। याद रखें इस कांट्रेक्ट नोट पर ब्रोकर का सेबी पंजीकरण क्रमांक होना भी आवश्यक है। कॉर्नरिंग : जब कोई निश्चित व्यक्ति या ग्रुप किसी शेयर विशेष की खरीदारी करके उस पर एकाधिकार जमाने के लिए इका करता है तो इसे उस शेयर की कॉर्नरिंग हो रही है, ऐसा कहा जाता है। ऐसा करने के अनेक कारण हो सकते हैं परंतु यह बात निश्चित है कि ऐसा करने के पीछे उक्त समूह या व्यक्ति की उस शेयर में रूचि है। कंसेंट ऑर्डर : प्रतिभूति बाजार में यह शब्द पिछले एक-दो वर्षों से प्रचलित हुआ है। बाजार का कोई भी मध्यस्थती - खिलाड़ी नीति नियमों का उल्लंघन करता है तब उसके विरूद्ध कार्रवाई की जाती है। उल्लंघन करने वाली हस्ती अपना अपराध स्वीकार न करे तो वह अपना विवाद सेट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक ले जा सकता है। ऐसा करने पर उसे काफी खर्च करना पड़ सकता है तथा समय भी काफी बर्बाद हो सकता है। यदि कोई हस्ती इन लंबी कानूनी प्रक्रियाओं से बचना चाहे तो वह अपनी भूल स्वीकार कर लेता है और सेबी उस पर निर्धारित आर्थिक दंड लगाकर एक कंसेंट ऑर्डर जारी कर देती है। ऐसा करने से समय और खर्च बच जाता है, जबकि अपराधी को आर्थिक सजा भी मिल जाती है। हालांकि विशेष प्रकार के अपराधों में ही कंसेंट ऑर्डर की सुविधा मिलती है। गंभीर प्रकार के अपराध करके कंसेंट ऑर्डर के जरिए मुक्ति नहीं पायी जा सकती। न्यायालयों में विवादों के ढेर लगे हुए हैं तथा मामलों के निर्णय आने में वर्षों लग जाते हैं ऐसी स्थिति में कंसेंट ऑर्डर के जरिए मामलों को निपटाना एक व्यवहारिक मार्ग है। विदेशों में यह प्रथा प्रचलित है। सेबी द्वारा यह प्रथा शुरू करने के बाद अनेक मामलों के निर्णय जल्दी हो पाये हैं और आर्थिक दंड के रूप में इस प्रक्रिया के जरिए काफी धन जमा हुआ है। इस राशि का उपयोग इन्वेस्टर प्रोटेक्शन या एज्यूकेशन पर किया जा सकता है। डिलिस्टिंग : आईपीओ (पब्लिक इश्यू) के बाद जिस प्रकार शेयरों की शेयर बाजार में लिस्टिंग होती है उसी प्रकार अनेक बार कंपनियां अपने शेयरों की शेयर बाजार से डिलिस्टिंग करवाती हैं। शेयर डिलिस्टि हो जाने के बाद उनके सौदे शेयर बाजार पर नहीं हो सकते। इस प्रकार डिलिस्टिंग शेयरधारकों एवं निवेशकों के हित में नहीं है। डिलिस्टिंग अलग-अलग कारणों से होती है। कोई कंपनी डिलिस्टिंग करार का पालन नहीं करती है और डिलिस्टिंग की फीस नहीं भरती है तब एक्सचेंज पहले उसके शेयरों को सस्पेंड कर देता है उसके बाद भी यदि कंपनी निर्धारित समय के अंदर डिलिस्टिंग करार में वणि शर्तों का पालन नहीं करती है तो अंत में एक्सचेंज उसके शेयरों को डिलिस्टि करने की नोटिस दे देते हैं। ऐसा होने पर भी यदि कंपनी कोई उत्तर न दे तो एक्सचेंज उसके शेयरों को अपनी सूची से हटा देती है। इस प्रकार की डिलिस्टिंग एक सजा के रूप में या कार्रवाई के रूप में होती है, जिसका भोग उसके शेयरधारकों को भोगना पड़ता है, जिससे वे अपने शेयरों के सौदे बाजार में नहीं कर सकते और शेयरों की प्रवाहिता शून्य हो जाती है। जबकि अनेक बार कंपनियां अपनी स्वैच्छा से डिलिस्टिंग कराती हैं। ऐसा करते समय कंपनियों को सेबी के डिलिस्टिंग दिशा-निर्देशों का पालन करना होता है, जिसके तहत कंपनी को शेयरधारकों के पास से स्वयं ही शेयर खरीदने पड़ते हैं। इस प्रकार स्वैच्छिक डिलिस्टिंग के मामले में उसके शेयरधारकों को नुकसान सहन नहीं करना पड़ता है। डिसइन्वेस्टमेंट : यह शब्द पिछले कुछ वर्षों से अपनी अर्थ व्यवस्था और बाजार में प्रचलित हुआ है। इन्वेस्टमेंट का अर्थ है निवेश करना जबकि डिसइन्वेस्टमेंट का मतलब है निवेश खाली करना। सरकारी अर्थात सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की स्थापना सरकार ने की होती है, जिससे उस कंपनी का संपूर्ण मालिकाना हक सरकार के पास ही रहता है। बदलते समय और उदारीकरण के वातावरण में निजीकरण का दायरा बढ़ता जा रहा है। सरकार इन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों से अपना हिस्सा (निवेश) खाली करती है तो इसे डिसइन्वेस्टमेंट कहा जाता है। यह खाली किये जाने वाला हिस्सा सरकार सार्वजनिक जनता, निजी निवेशकों, बैंकों, संस्थाओं आदि को प्रस्तावित करती है। इस प्रकार धन एकत्रित करके सरकार उस रकम का उपयोग सामाजिक विकास के कार्यों में करती है। साथ ही सामान्य निवेशकों को सार्वजनिक क्षेत्र की इन कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी लेने का अवसर मिलता है। डिसइन्वेस्टमेंट के बाद शेयरों की स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टिंग होती है और उसमें सौदे भी होते हैं। सरकार पिछले कई वर्षों से धीमी गति से डिसइन्वेस्टमेंट कर रही है। जिसके कारण ही अनेक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के शेयर सूचीबद्ध हैं, जिनमें ओएनजीसी, एनटीपीसी, भेल इत्यादि कंपनियों का समावेश है। वर्ष २०१०-११ के बजट में ४० हजार करोड़ रू. डिसइन्वेस्टमेंट के जरिए एकत्रित करने का लक्ष्य रखा गया है। हाल ही में सरकार की तरफ से डिसइन्वेस्टमेंट का पहला चरण शुरू हुआ है जिसे ध्यान में रखते हुए बांबे स्टॉक एक्सचेंज ने पीएसयूडॉटकॉम के नाम से एक अलग वेबसाइट भी तैयार की है जिस पर पीएसयू के डिसइन्वेस्टमेंट से संबंधित आवश्यक जानकारियां उपलब्ध करायी गयी है। दीर्घावधि के लिए निवेश करने वाले निवेशकों के लिए ये कंपनियां श्रेष्ठ मानी जाती हैं। निवेशकों को इस साइट से ऐसी अनेक जानकारियां मिल सकती हैं जो उनके निवेश निर्णय में सहायक होती हैं। डीपी (डिपॉजिटरी पर्टिसिपेंट) : शेयरधारक, कंपनी और डिपॉजिटरी की कड़ी अर्थात डीपी। बैंक, वित्तीय संस्थाएं और शेयर दलाल आदि डीपी बन सकते हैं। जिस प्रकार बैंक खातेधारकों की रकम संभाल कर रखते हैं उसी प्रकार डिपॉजिटरी निवेशकों की प्रतिभूतियों को इलेक्ट्रानिक स्वरूप में संभाल कर रखते हैं। हमारे देश में एनएसडीएल (नेशनल सिक्युरिटीज डिपॉजिटरी लि.) और सीडीएसएल (सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज इंडिया लि.) नाम की दो डिपॉजिटरी हैं। शेयर बाजार में सौदे करने के लिए निवेशक को अपना डिमैट खाता खुलवाना आवश्यक है। यह खाता डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट के पास खुलवाया जाता है। डाइवर्सिफिकेशन (विविधीकरण) : शेयर बाजार ही नहीं निवेश जगत में भी यह शब्द काफी महत्व रखता है। सभी अंडे एक टोकरी में नहीं रखे जाते, आपने यह कहावत तो सुनी ही होगी। इसी प्रकार सारा निवेश एक शेयर में नहीं करना चाहिए बल्कि अलग-अलग शेयरों में करना चाहिए और इतना ही नहीं ये शेयर भी अलग-अलग उद्योगों से जुड़ी कंपनियों के होने चाहिए। इस प्रकार विविध उद्योगों की कंपनियों के शेयरों में निवेश करना विविधीकरण कहलाता है। ऐसा करने से निवेशकों की जोखिम घटती है, कारण कि यदि सारे अंडे एक ही टोकरी में हों और वह टोकरी गिर जाय तो सारे अंडे नष्ट हो जायेंगे। इसी प्रकार सारा निवेश किसी एक ही कंपनी के शेयरों में हो और दुर्भाग्यवश यदि उस कंपनी के साथ कुछ अनहोनी हो जाये तो निवेशकों का सारा निवेश नष्ट हो सकता है। ऐसा करने के बजाय विविध शेयरों में निवेश होने से डाइवर्सिफिकेनशन का लाभ मिलता है। जिसमें यदि किसी एक या दो कंपनियों के शेयर गिर भी जायें तो अन्य शेयरों में किया गया निवेश उसकी जोखिम को कम कर देता है। अलग-अलग उद्योगों के शेयर रखने के पीछे उद्देश्य यह है कि प्रायः किसी एक समय में सभी उद्योगों की कंपनी में मंदी का दौर नहीं रहता। एक उद्योग में मंदी होने पर दूसरे उद्योग की तेजी का लाभ मिल जाता है। हां, यह दूसरी बात है कि पूरे वित्त बाजार में ही भारी गिरावट का दौर न आ जाय। यहां यह बात भी समझानी जरूरी है कि निवेश का डाइवर्सिफिकेशन मात्र शेयरों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। निवेशकों को मात्र शेयरों में निवेश करने से भी जोखिम होती है। भले ही उसने अनेक प्रकार के शेयरों में निवेश किया हो। पूरा शेयर बाजार ही मंदी की चपेट में आ जाय तो क्या हो? निवेशकों को अपने असेट का भी डाइवर्सिफिकेशन रखना चाहिए। जिसे दूसरे शब्दों में असेट एलोकेशन भी कहा जाता है। सरल शब्दों में कहा जाय तो निवेशकों को शेयरों के बाद सोना, चांदी, प्रापर्टी, बैंक या कार्पोरेट डिपॉजिट, बांड्स, सरकारी बचत योजनाओं इत्यादि में भी निवेश करना चाहिए। ऐसा करने से उसकी संपूर्ण जोखिम का विभाजन हो जाता है और वह अपने पूरे निवेश को खोने से बच सकता है। डिसगोर्जमेंट : यह शब्द उच्चारण में काफी भारी भरकम लगता है परंतु इसका अभिप्राय काफी सरल है। कोई भी हस्ती शेयर बाजार या पूंजी बाजार में गैर व्यवहारिक तरीके से घोटाले करके दूसरों की रकम डकार ले तब सेबी ऐसे मामलों की जांच करके इन हस्तियों के पास से गैर व्यवहारिक तरीके से कमाई गयी रकम वसूल करने का अधिकार रखती है। इस उद्देश्य से सेबी डिसगोर्जमेंट ऑर्डर जारी करती है। इस प्रकार की वसूली को डिसगोर्जमेंट कहा जाता है। ताजा उदाहरण के रूप में इस शब्द को समझों तो वर्ष २००३- २००५ के दौरान अनेकों आईपीओ में बेनामी डिमैट एकाउंट खुलवाकर मल्टिपल आवेदन करके अनेक लोगों ने अनुचित लाभ कमाया। चूंकि उस समय बाजार तेजी पर था और आईपीओ में शेयर पाने वाले लोगों को सेकेंडरी बाजार में लिस्टिंग के बाद अच्छा लाभ मिलता था। बेनामी मल्टिपल आवेदनों के कारण छोटे आवेदक आईपीओ में शेयर पाने से वंचित रह गये थे। सेबी ने लंबी जांच के बाद ऐसे अनेक लोगों के पास से उनके द्वारा गैर व्यवहारिक तरीके से कमाई गयी रकम डिसगोर्ज (वसूल) की और अप्रैल के शुरूआत में इस वसूल की गयी रकम को मुआवजे के रूप में उन लोगों में बांटा जो आईपीओ में उक्त शेयर प्राप्त करने से वंचित रह गये थे। भारतीय पूंजी बाजार के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ। भारत के वित्त मंत्री के हाथों निवेशकों को मुआवजे के चेक दिये गये। इस प्रकार डिसगोर्जमेंट शब्द जरूर भारी है, लेकिन निवेशकों के लिए लाभदायी एवं राहत भरा है। इस उदाहरण से निवेशकों में सिस्टम तथा बाजार के प्रति विश्वास बढ़ना स्वाभाविक है। सेबी अपने इस अधिकार से उन लोगों पर अंकुश बनाये रख सकती है, जो बाजार में गैर कानूनी और गैर व्यवहारिक तरीके से लाभ कमाना चाहते हैं। डिस्क्लोजर : यह शब्द सेबी के नियमों से लेकर शेयर बाजार व तमाम नीति -नियमों में उपयोग किया जाता है। साधारण अर्थों में इसका अर्थ है खुलासा करना अर्थात डिस्क्लोज करना। इस शब्द का पूंजी बाजार में काफी महत्व है। इसके आधार पर ही निवेश का निर्णय लिया जाता है। निवेशकों को कंपनी तथा उसके मध्यस्थतों के बारे में आवश्यक जानकारियां समय-समय पर मिलती रहे इसके लिए सेबी समय-समय पर डिस्क्लोजर के नियम बनाती एवं संशोधित करती रहती है। निवेश करने का निर्णय लेने में ये जानकारियां काफी महत्व रखती हैं। इस्यूअर : प्रतिभूतियां जारी करने वाली कंपनी या संस्थान को इस्यूअर कहा जाता है। साधारण शब्दों में शेयर या प्रतिभूतियां जारी करने वाली कंपनियों या संस्थाओं को इस्यूअर कहा जाता है। फंडामेंटल : शेयर बाजार या फिर कंपनी से संबंधित रिपोर्टों में अनेक बार फंडामेंटल शब्द पढ़ने या सुनने को मिलता है। उदाहरण के तौर पर कंपनी के या बाजार के फंडामेंटल मजबूत हैं या कमजोर हैं इत्यादि-इत्यादि। फंडामेंटल अर्थात मूलभूत तत्व या परिणाम। कंपनी बिक्री, नफा, आय, मार्जिन, डिमांड इत्यादि के संबंध मेें अच्छा प्रदर्शन करती हो तो फंडामेंटल की दृष्टि से कंपनी मजबूत गिनी जाती है। इसी प्रकार अनेक कंपनियों के परिणाम अच्छे आने पर या अन्य उत्साहवर्धक नीतियों की घोषणा एवं अच्छी प्रगति होने पर बाजार में सकारात्मक रूझाान दिखायी देता है तो यह आर्थिक जगत के मजबूत फंडामेंटल का आधार बनता है। निवेशकों को पूंजी बाजार में निवेश करते समय कंपनियों एवं बाजार के फंडामेंटल पर विशेष ध्यान देना चाहिए। अनेक बार कंपनियों का फंडामेंटल तो मजबूत रहता है, परंतु बाजार का फंडामेंटल कमजोर रहने से शेयरों के भाव कम रह सकते हैं। निवेशकों को ऐसे समय में कंपनी के फंडामेंटल को अधिक महत्व देना चाहिए। गाइडन्स : कंपनी जब आगामी समय में होने वाले अपने संभावित टर्नओवर या बिजनेस या कार्य के संकेत देती है तो उसे गाइडन्स कहा जाता है। प्रायः आईटी (इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजीज) कंपनियां इस शब्द का काफी उपयोग करती हैं। इंफोसिस ने आगामी तिमाही के लिए अपना गाइडन्स जाहिर किया था, जिससे उसके शेयरों का भाव काफी चढ़ा, ऐसे समाचार आपने पढ़े होंगे। कंपनी के भावी संकेतों के आधार पर उद्योग विशेष के संकेत का अनुमान भी लगाया जा सकता है। गाइड लाइन अर्थात मार्ग रेखा : सेबी शेयर बाजार अथवा बाजार के मध्यस्थतों के लिए जब-जब भी नीति-नियम जाहिर करती है तो उसे मार्ग रेखा कहा जाता है, इनका पालन करना आवश्यक होता है। दूसरे शब्दों में इसे शर्त एवं नियम भी कहा जा सकता है। केवाईसी (नो योर क्लाइंट / कस्टमर) : वर्तमान समय में केवाईसी एक जरूरत बन गया है विशेषकर बैंक एकाउंट, शेयर ब्रोकर के पास ट्रेडिंग एकाउंट या फिर डिमैट एकाउंट खुलवाते समय केवाईसी का उपयोग होता है। बेनामी तथा गैरकानूनी प्रवृत्ति का धन बाजार में प्रवेश न कर पाये इसके लिए यह नियम लागू किया गया है। `नो योर क्लाइंट` अर्थात आप अपने ग्राहक को जानो-पहचानो। दूसरे शब्दों में कहें तो ग्राहक वास्तव में अस्तित्व में है या नहीं, इसकी जांच करना जरूरी हो गया है। काला धन, अपराध व अंडरवल्र्ड का धन, हवाले का धन आदि बैंकिंग व शेयर बाजार के माध्यम से प्रवेश कर रहा है ऐसी शंका या भय के आधार पर सरकार ने इस पर अंकुश लगाने के लिए केवाईसी का पालन करना आवश्यक बनाया है। इससे पहले आईपीओ घोटाले के समय बोगस डिमैट और बैंक एकाउंट खुलवाने के प्रकरण प्रकाश में आये हैं, जिनमें कि वास्तव में कोई खाताधारक होता ही नहीं था और अनेक बेनामी और बोगस खाते खुल गये थे। इसके बाद सेबी ने पूंजीबाजार में केवाईसी आवश्यक करने का निर्णय लिया जो म्युच्युअल फंड के लिए भी लागू हो गया है। लिस्टिंग : सार्वजनिक निर्गम में आवेदकों को शेयर आबंटित करने के बाद उन शेयरों को शेयर बाजार की ट्रेडिंग सूची पर सूचीबद्ध करवाया जाता है। इसे शेयरों की लिस्टिंग कहा जाता है। लिक्विडिटी (प्रवाहिता) : शेयर बाजार में रूपये की आपूर्ति अधिक हो और बढ़ते हुए भाव में भी निरंतर लिवाली बढ़ती रहे तो बाजार में प्रवाहिता अधिक है ऐसा माना जाता है। इसका एक अर्थ यह भी है कि ले-बेच दोनों निरंतर होती रहे और उनमें वाल्यूम भी काफी हो तो लिक्विडिटी अच्छी कहलाती है। बाजार में तेजी के लिए अच्छी लिक्विडिटी होना महत्वपूर्ण है। मंदी में लिक्विडिटी कम हो जाती है अथवा कम लिक्विडिटी होेने पर बाजार में मंदी आ जाती है। अनेक बार बाजार में अधिक लिक्विडिटी के कारण भाव काफी बढ़ने लगते हैं जिससे बाजार में जोखिम बढ़ जाती है। भारतीय रिजर्व बैंक समय-समय पर बाजार में लिक्विडिटी को अंकुश में रखने के लिए कदम उठाती रहती है। लुढ़कना (एक ही दिन में भारी गिरावट) : शेयर बाजार का इंडेक्स सेंसेक्स या फिर निप्टी यदि एक ही दिन में काफी गिर जाये तो इसे लुढ़कना अर्थात भारी गिरावट कहा जाता है। सामान्यतः एक ही दिन में ४००-५०० अंकों की गिरावट बाजार के लुढ़कने या फिर इतने ही अंकों की वृद्धि बाजार के उछलने का प्रतीक माना जाता है। मार्केट ब्रेड्थ : बाजार की चाल एवं प्रवृत्ति को दर्शाने वाली बातों को मार्केट ब्रेड्थ कहा जाता है। शेयर बाजार में जब यह जानना हो कि बाजार की चाल सकारात्मक है या नकारात्मक तो इसका अनुमान निकालने के लिए मार्केट ब्रेड्थ को देखना चाहिए। एक्सचेंज पर सूचीबद्ध कंपनियों में से जितनी भी कंपनियों के दिन भर के दौरान सौदे होते हैं उनमें से बढ़ने वाली और घटने वाली दोनों स्क्रिपें होती हैं। यदि बढ़ने वाली स्क्रिपों की संख्या अधिक हो तो मार्केट ब्रेड्थ पॉजिटिव और यदि घटने वाली स्क्रिपों की संख्या अधिक हो तो मार्केट ब्रेड्थ निगेटिव कही जाती है। उदाहरण स्वरूप बीएसई पर सूचीबद्ध कंपनियों में यदि किसी दिन २५०० स्क्रिपों में सौदे हुए हों और उसमें से १५०० स्क्रिपों के भाव बढ़े हों और १००० स्क्रिपों के भाव घटे हों मार्केट ब्रेड्थ पॉजिटिव अर्थात सकारात्मक कही जाती है। इसके विपरीत होने पर मार्केट ब्रेड्थ निगेटिव अर्थात नकारात्मक कहलाती है। बाजार का रूझाान जानने के लिए निवेशकों को घटने वाली और बढ़ने वाली स्क्रिपों पर ध्यान देना चाहिए। यह संख्या शेयर बाजार की वेबसाइट पर उपलब्ध है। बीएसई और एनएसई दोनों की वेबसाइट पर मार्केट ब्रेड्थ रोज-रोज ऑन लाइन देखने को मिलती है। सेंसेक्स की ३० स्क्रिपों में से २५ स्क्रिपें बढ़ी हों और ५ घटी हों तो सेंसेक्स की मार्केट ब्रेड्थ पॉजिटिव कही जाती है। इसी प्रकार प्रत्येक इंडेक्स की अपनी -अपनी मार्केट ब्रेड्थ जानी जा सकती है। प्लेज शेयर (गिरवी रखे गये शेयर) : कोई भी निवेशक या खुद कंपनियों के प्रमोटर शेयरों को बैंक या अन्य वित्तीय संस्थानों के पास गिरवी रखकर ऋण ले सकते हैं। इस प्रकार ऋण के लिए बतौर गारंटी गिरवी रखे गये शेयरों को प्लेज शेयर कहा जाता है। कंपनियां इस मार्ग से शेयर गिरवी रखकर ऋण सुविधाएं लेती हैं और उसका उपयोग कंपनी के विकास कार्यों पर करती हैं। ऋण लेने के लिए यह एक आसान एवं अच्छा मार्ग है। परंतु सत्यम कंप्यूटर घोटाले के बाद हुई जांच में सेबी का ध्यान इस तरफ गया कि कंपनी के प्रमोटर भारी संख्या में शेयर गिरवी रखकर धन इका करके उसका अन्यत्र उपयोग कर लेते हैं, जिससे कंपनी को कोई फायदा नहीं होता। इस विषय में पारदर्शिता के अभाव में निवेशकों को इस सच्चाई का पता नहीं लग पाता है कि प्रमोटरों की कंपनी में कितनी शेयरधारिता है क्योंकि प्रमोटरों की शेयरधारिता ही इस बात का संकेत है कि प्रमोटरों का कंपनी के साथ कितना हित जुड़ा हुआ है। सत्यम घोटाले के उजागर होने के बाद ही सेबी ने समय-समय पर प्रमोटरों द्वारा गिरवी रखे गये उनके हिस्से के शेयरों की जानकारी घोषित करने का दिशा-निर्देश जारी किया। निवेशकों को प्रमोटरों की शेयरधारिता पर ध्यान रखना चाहिए। प्रॉफिट बुकिंग : शेयर बाजार में यह शब्द सबसे अधिक महत्व का है, जो कि न केवल समझाने के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि इसका अमल भी महत्वपूर्ण है। जब आप कोई शेयर ४५ रू. के भाव पर लें और एक-आधे वर्ष बाद उसका भाव ८५ रू. हो जाये और आप यह शेयर बेचकर नफा कर लें तो इसे प्रॉफिट बुकिंग कहा जाता है। सामान्यतः निवेशक लालच में इतना आकर्षक लाभ मिलने पर भी और अधिक बढ़ने के लालच में उन शेयरों को बेचकर प्रॉफिट बुक नहीं करते, जिससे अनेक बार फिर से भाव घट जाने पर या तो उनका नफा जाता रहता है या वे नुकसान में भी जा सकते हैं। जब तक आप ४५ रू. का शेयर ८५ रू. में बेचते नहीं हैं तब तक आपका वह नफा सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहता है। वास्तव में उसे बेचकर उसकी रकम प्राप्त करने पर ही आप प्रॉफिट हासिल कर सकते हैं। निवेशकों को कौन सा शेयर किस भाव पर निकाल कर अपना प्रॉफिट बुक कर लेना चाहिए, इसकी समझा होनी जरूरी है। पेनी स्टॉक्स : जिन शेयरों का भाव पैसों में अर्थात १० पैसे से लेकर ९० पैसे तक या फिर १ रूपये - २ रूपये में बोला जाता हो उन्हें पेनी स्टॉक्स कहा जाता है। ऐसी कंपनियां बिल्कुल घटिया दर्जे की मानी जाती हैं तथा इनके शेयरों का कोई खरीदार नहीं रहता। प्रायः ऐसी कंपनियां जेड ग्रुप में रहती हैं और इन कंपनियों में अधिकांशत : सटोरियो या ऑपरेटर हिस्सा लेते हैं। अपवाद स्वरूप अनेक बार ऐसी कंपनियों में भी कोई कंपनी ऐसी होती है जो टर्नअराउंड हो सकती है। पीबीटी : प्रॉफिट बिफोर टेक्स - अर्थात सरकार को चुकाये जाने वाले करों के भुगतान के पूर्व का लाभ। पीबीटी वह मुनाफा है जिसमें सरकार को चुकाये जाने वाले करों (टैक्स) का समायोजन नहीं किया गया होता है। रिकवरी : यह करेक्शन से बिल्कुल विपरीत स्थिति दर्शाती है अर्थात निरंतर घटते हुए बाजार में जब गिरावट रूक जाये और बाजार बढ़ने लगे तो इसे रिकवरी कहा जाता है। बाजार एक साथ घटता ही रहे तो इसे मंदी गिना जाता है परंतु मंदी के कुछ दिनों के बाद बाजार में सुधार हो तो उसे रिकवरी कहते हैं। जिस प्रकार किसी बीमार आदमी के स्वास्थ्य में दवा लेने के बाद कुछ सुधार हो तो उसे रिकवरी कहते हैं उसी प्रकार गिरते हुए बाजार में सुधार होने पर रिकवरी कहा जाता है। रिलिस्टिंग : डिलिस्टिंग की तरह ही एक शब्द है रिलिस्टिंग। जब कोई कंपनी एक या अनेक कारणों से नियमों का उल्लंघन करने पर डिलिस्टि कर दी जाती है तो उसके बाद वह कंपनी फिर से उन नियमों का पालन करके एक्सचेंज में अपने शेयर फिर से लिस्ट करवा लेती है। इस प्रकार दुबारा सूचीबद्ध हुई कंपनियों के लिए रिलिस्टिंग शब्द का प्रयोग होता है। निवेशकों के लिए यह खुशी की बात होती है क्योंकि जिस कंपनी के शेयर मात्र कागज के टुकड़े रह गये थे उनमें फिर से प्रवाहिता आ जाती है, उन्हें खरीदा-बेचा जा सकता है। रोल बैक : अभी हाल ही में बजट के बाद वित्त मंत्री के मुंह से यह शब्द बार-बार बोला गया। इसका अर्थ यह है कि उठाया गया कदम पीछे नहीं लेना अर्थात जो निर्णय ले लिया गया वह ले लिया गया, उसे वापस नहीं लिया जायेगा। उदाहरण के लिए पेट्रोल की भाव वृद्धि घोषित करने के बाद वित्त मंत्री ने कहा कि उसका रोल बैक नहीं होगा तो इसका अर्थ यह हुआ कि भाव वृद्धि की घोषणा वापस नहीं ली जायेगी। रेग्युलेशन : इस सरल शब्द का अर्थ इसिलये समझाना जरूरी है कि अधिकांश लोग रेग्युलेशन्स को नियंत्रण (कंट्रोल) मानते हैं, जबकि वास्तव में रेग्युलेशन नियमन है। ऐसे तो इन दोनों की भूमिका एक जैसी लगती है परंतु वास्तव में ये कहीं अलग भी हैं। कंट्रोल में स्वामित्व का भाव रहता है, जबकि नियमन में नियम का पालन करवाने का इरादा होता है। सेबी नाम की पूंजी बाजार की नियामक संस्था शेयर बाजार, शेयर ब्रोकर, म्युच्युअल फंड आदि का नियमन करती है। संबंधित हस्तियों से नियमों का पालन करवाने की जवाबदारी का निर्वाहन करवाना नियमन है। रिस्ट्रक्चरिंग : सामान्य अर्थों में इसका मतलब है पुनर्गठन। कार्पोरेट भाषा में कहें तो जब कोई कंपनी खास उद्देश्यों के साथ अपने घाटे में कमी लाने या लाभदायिकता बढ़ाने के प्रयास स्वरूप जो कुछ फेरबदल करती है उसे स्ट्रक्चरिंग कहा जाता है। निवेशकों को कंपनी द्वारा उठाये गये इस प्रकार के कदमों का ध्यान से अध्ययन करना चाहिए। इसका मुख्य उद्देश्य कंपनी की स्थिति सुधारना होता है। रिहेबिलाइजेशन अथवा रिवाइवल : जो कंपनी कंगाल होकर बीमार पड़ गयी हो तो उसके पुनर्रूत्थान की संभावना होने पर इसका प्रयास शुरू कर दिया जाता है। इसके लिए बीआईएफआर अपना मत व्यक्त करती है तथा कंपनी के प्रबंधन को ऐसा करने के लिए उचित समय देती है। ऐसी कंपनियों के पुनर्रूत्थान की प्रक्रिया पर निवेशकों को ध्यान रखना चाहिए और उसके आधार पर निवेश करने का निर्णय लेना चाहिए। हालांकि ऐसी बीमार और पुनर्रूत्थान की संभावनाओं वाली कंपनियों के भाव काफी गिर जाते हैं और उनमें सौदे भी नाम मात्र के होते हैं, परंतु यदि कोई मजबूत ग्रुप ऐसी कंपनी को संभालने के लिए तैयार हो जाये तो कंपनी के शेयरों का भाव रिकवर हो सकता है। ऐसी कंपनियों में जहां निवेश जोखिम भरा होता है वहीं इनमें लाभ की संभावनाएं भी रहती है। रेटिंग : कंपनी के वित्तीय परिणाम, कार्य परिणाम, ट्रैक रिकॉर्ड आदि के आधार पर कंपनी की प्रतिभूतियों या कंपनियों को रेटिंग प्रदान की जाती है, जो कंपनी की साख एवं पात्रता का स्तर दर्शाती है। कंपनी या संस्थाओं के अतिरिक्त देश को भी रेटिंग उपलब्ध करायी जाती है। उदाहरण स्वरूप स्टैंडर्ड एंड पुअर (एस एंड पी), मूडीज जैसी संस्थाएं देश की समग्र आर्थिक स्थिति के आधार पर संबंधित राष्ट्र को भी रेटिंग प्रदान करती हैं। समय-समय पर मौजूदा स्थितियों के अनुवर्ती रेटिंग को अपग्रेड या डाउनग्रेड किया जाता है। किसी देश की रेटिंग ऊंची और अच्छी होती है तो विश्व के अन्य देशों के निवेशक उक्त देश के उद्योग धंधों में निवेश करने के लिए प्रेरित होते हैं। सर्किट ब्रेकर : सर्किट फिल्टर स्क्रिप पर लागू होता है जबकि बाजार के इंडेक्स पर सर्किट ब्रेकर लागू होता है। इंडेक्स दिन के दौरान कितने अंक या प्रतिशत बढ़ या घट सकता है इसकी मर्यादा को नियंत्रित रखने के लिए सर्किट ब्रेकर लागू किया जाता है। आपने कई बार सुना होगा कि सेंसेक्स या निप्टी निश्चित प्रतिशत टूटने (घटने) के कारण बाजार कुछ समय के लिए बंद कर देना पड़ा। सर्किट ब्रेकर का उपयोग बाजार को तेजडि़यों और मंदेडि़यों की गिरप्त से बचाने के लिए किया जाता है ताकि एक ही दिन में भारी मात्रा में उतार-चढ़ाव न हो सके। समय-समय पर सर्किट ब्रेकर की सीमा में फेरबदल किया जाता है। सर्किट फिल्टर : किसी भी स्क्रिप का भाव एक ही दिन में अनावश्यक रूप से घटे या बढ़े नहींं अथवा कोई ऑपरेटर खिलाड़ी ऐसा न कर सके इसके लिए स्टॉक एक्सचेंज प्रत्येक स्क्रिप के उतार-चढा]व (चंचलता) को अंकुश में रखने के लिए सर्किट फिल्टर का तरीका अपनाती है। शेयरों के भाव के साथ कोई निरंकुश होकर छेड़खानी न कर सके इस उद्देश्य से शेयर बाजार विविध सर्किट फिल्टर निर्धारित करता है, जो कि २० प्रतिशत की रेंज में होती हैं। जो स्क्रिप जितनी ज्यादा चंचल होती है उसे अंकुश में रखने के लिए कम प्रतिशत से सर्किट फिल्टर लागू किया जाता है, जबकि कम चंचलता वाली स्क्रिपों पर सर्किट फिल्टर का प्रतिशत अधिक होता है। एक्सचेंज सर्किट फिल्टर की सीमा में समय-समय पर परिवर्तन करता रहता है। उदाहरण के बतौर एबीसी कंपनी पर यदि ५ प्रतिशत की दर से सर्किट फिल्टर लागू है तो किसी एक कार्य दिवस में उस कंपनी के शेयरों का भाव अधिकतम या तो ५ प्रतिशत बढ़ सकता है या ५ प्रतिशत घट सकता है इससे अधिक की घट-बढ़ होने पर उस कंपनी के उस दिन सौदे नहीं हो सकते। यह सर्किट फिल्टर एक दिन के लिए लागू होता है। अगले कार्य दिवस उसे फिर से नये सौदे करने की अनुमति मिल जाती है, परंतु उस दिन भी उस पर वही सर्किट फिल्टर की सीमा लागू रहती है। इस प्रकार किसी शेयर में ऊपरी सर्किट तेजी का तथा निचला सर्किट मंदी का संकेत देता है। निवेशक स्क्रिपों पर लगी सर्किट फिल्टर को ध्यान में रखकर उस स्क्रिप के संबंध में अनुमान लगा सकते हैं। सर्कुलर ट्रेडिंग : शेयर बाजार में सटोरियों या ऑपरेटरों का एक ऐसा वर्ग भी रहता है जो अपनी पसंदीदा स्क्रिप की आपस में ही खरीद-बिक्री करके उसके भाव को अपनी इच्छित दिशा में ले जाने का प्रयास करता है। इस समूह के लोग पहले से ही आपस में सांठ-गांठ कर लेते हैं और आपस में ही शेयरों को खरीद-बेचकर उस शेयर के प्रति बाजार में विशेष रूझाान बनाने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार की ट्रेडिंग को सर्कुलर ट्रेडिंग कहा जाता है। सामान्य निवेशकों के लिए यह खेल समझाना कठिन जरूर है, परंतु निरंतर निरीक्षण एवं अनुभव के आधार पर इस तरह के खेल को समझाा जा सकता है और उनके इस जाल से बचा जा सकता है। एक्सचेंज का सर्वेलंस विभाग भी ऐसे सौदों पर विशेष ध्यान रखता है और ऐसे मामले सामने आने पर उन पर आवश्यक कानूनी कार्यवाही भी करता है। आम निवेशकों को तेजी के समय किसी विशेष स्क्रिप की खरीदारी करने से पहले इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि कहीं उसमें सर्कुलर ट्रेडिंग करके उन्हें लुभाने का प्रयास तो नहीं किया गया है। स्टॉप लॉस : प्रॉफिट बुकिंग की तरह ही बाजार में लॉस की अर्थात घाटे की बुकिंग करनी होती है, जिसे स्टॉप लॉस कहा जाता है तथा उचित समय पर ऐसा न कर पाने पर घाटा बढ़ता जाता है। माना कि कोई शेयर ४५ रू. के भाव पर लिया और उसका भाव घटकर ३८ रू. रह गया तथा आगे भी उसमें घटने का ही रूझाान दिखायी दे तो निवेशकों को ३८ रू. के स्तर पर शेयर बेच कर अपने घाटे को मर्यादित कर लेना चाहिए। ऐसा न करने पर घाटे की मात्रा काफी ज्यादा हो सकती है। रोज-रोज की खरीद-बिक्री के दौरान प्रॉफिट बुकिंग और स्टॉप लॉस की नीति का उपयोग प्रचुर मात्रा में होता है। स्टॉप लॉस को दूसरे शब्दों में कहें तो इसका अर्थ है कि घाटे की मर्यादा को नियंत्रित कर लेना। निवेशक इस प्रकार की खास सूचना के साथ अपना ऑर्डर भी रख सकते हैं। स्टीम्युलस पैकेज : वैश्विक आर्थिक मंदी के बाद यह शब्द पूरे विश्व में प्रचलित हो गया। मंदी से उद्योग को उबारने के लिए या उस उद्योग का अस्तित्व टिकाये रखने के लिए जब सरकार राहत पैकेज घोषित करती है तो उसे स्टीम्युलस पैकेज कहा जाता है। राहत पैकेज में करों से छूट या मुक्ति, अनुदान, ब्याज माफी, ऋण वापस करने के नियमों में छूट जैसी अनेक सुविधाओं का समावेश होता है। सरकार अपने बजट से ये सुविधाएं उस उद्योग को बचाने के लिए उपलब्ध कराती है। ये सुविधाएं निश्चित समयावधि के लिए होती हैं, स्थायी नहीं। इसलिये जब भी इस तरह का राहत पैकेज वापस लिया जाता है तब संबंधित उद्योग में थोड़ी सी घबराहट जरूर नजर आती है और उसका असर उन कंपनियों के शेयरों पर भी पड़ता है। हालांकि सरकार राहत पैकेज वापस लेते समय इस बात की सुनिश्चितता करती है कि क्या वह उद्योग अपने बल पर खड़ा होने के लिए लायक बन गया है? राहत पैकेज से संबंधित सरकारी निर्णय उक्त उद्योग की कंपनियों के शेयरधारकों के लिए काफी संवेदनशील होते हैं। सेबी : यह पूंजी बाजार - शेयर बाजार की नियामक संस्था है, जिसका पूरा नाम सिक्युरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया है। सेबी का मूलभूत उद्देश्य है `पूंजी बाजार का स्वस्थ विकास एवं निवेशकों का रक्षण।` सेबी का गठन संसद में पारित प्रस्तावों के अनुरूप किया गया है, जो एक स्वायत्त नियामक संस्था है। इसके नियम शेयर बाजारों, शेयर दलालों, मर्चेंट बैंकरों, म्युच्युअल फंडों, पोर्टफोलियो मैनेजरों सहित पूंजी बाजार से संबंधित अनेक मध्यस्थतों पर लागू होते हैं। सेट अर्थात सिक्युरिटीज अपीलेट ट्रिब्युनल (एसएटी) : यह सेबी से सम्बद्ध एक न्यायालय के समान ज्युडिसरी बॉडी है। सेबी के आदेश के सामने सेट में अपील की जा सकती है। सेट के आदेश सेबी को मानने पड़ते हैं या सेबी उसके सामने भी अपील कर सकती है और हाईकोर्ट में भी अर्जी कर सकती हैं। जिस प्रकार इन्कम टैक्स के सामने अपील में जाने के लिए इन्कम टैक्स अपीलेट ट्रिब्युनल होती है उसी प्रकार `सेट` एक ट्रिब्युनल है। स्वीट (स्वेट) इक्विटी : आईपीएल मैच के विवाद के दौरान यह शब्द थोड़ा चर्चा में आया था, परंतु शेयर बाजार और आर्थिक जगत में यह शब्द वर्षों से प्रचलित है। कंपनी जब अपने कर्मचारियों एवं निदेशकों को रियायती शर्तों पर इक्विटी शेयर देती है तब ऐसे शेयरों को स्वीट शेयर कहा जाता है। सामान्यतः ये स्वीट (स्वेट) इक्विटी शेयर कर्मचारियों एवं निदेशकों को उनके द्वारा कंपनी के हित में किये गये महत्वपूर्ण योगदान के बदले दिये जाते हैं। कभी -कभी ये शेयर बिल्कुल निःशुल्क भी दिये जाते हैं। सिक कंपनी : बीमार कंपनी या मंद कंपनी को सिक कंपनी कहा जाता है। कंपनी अधिनियम में बीमार कंपनी की व्याख्या की गयी है जिसके अनुसार जिस कंपनी की नेटवर्थ समाप्त हो गयी हो अर्थात जिस कंपनी का संचित घाटा बढ़कर उसकी नेटवर्थ से अधिक हो गया हो तो उसे बीमार कंपनी माना जाता है और ऐसी कंपनी बीमार कंपनी कही जाती है। बीमार हो चुकी कंपनी का इलाज हो सकता है, जिसके तहत प्रमोटर कंपनी में अन्य धन का निवेश करते हैं, दूसरे प्रमोटरों को सहभागी बनाते हैं जिससे वह कंपनी बीमारी से बाहर आ सकती है। बीमार कंपनी को बीआईएफआर (बोर्ड फार इंडस्ट्रीयल एंड फाइनेंशियल रिकंस्ट्रक्शन्स) में सूचीबद्ध कराना होता है। यह बोर्ड कंपनी की स्थिति की जांच करके उसके इलाज की सलाह देता है। यदि उसे सुधरने का कोई रास्ता नजर नहीं आता तो ऐसी कंपनियों को वाइंड-अप (बंद) करने की सलाह दी जा सकती है। निवेशकों को ऐसी कंपनियों पर दोहरी नजर रखनी चाहिए। यदि ऐसी कंपनियों के सुधरने की संभावना हो तो उस कंपनी के शेयर कम भाव पर खरीद लेने चाहिए और यदि कंपनी बंद होती नजर आये तो अपने शेयर बेच देने चाहिए। सेलिंग प्रेशर : शेयर बाजार में यह शब्द प्रचलित होने के साथ-साथ घबराहट फैलाने वाला है। इसका अर्थ है बिकवाली का दबाव। जब शेयर बाजार में निरंतर या बड़ी मात्रा में बिकवाली होने लगे तब ऐसी स्थिति को सेलिंग प्रेशर कहा जाता है। इससे बाजार मंदी की ओर जाता है। सेलिंग प्रेशर पूरे बाजार का भी हो सकता है या एफआईआई या म्युच्युअल फंड जैसे समूह का भी हो सकता है। जब किसी एक वर्ग द्वारा बिकवाली का दबाव हो तो ज्यादा चिंता की बात नहीं परंतु जब यह दबाव सभी वर्गों में हो तो ऐसी स्थिति चिंतादायक होती है। शेयरहोल्डिंग पैटर्न : यह शब्द निवेशकों में अधिक लोकप्रिय नहीं है परंतु इसका महत्व काफी है। प्रत्येक कंपनी का शेयरहोल्डिंग पैटर्न होता है। इसका अर्थ यह है कि उक्त कंपनी की शेयरपूंजी में किस-किस वर्ग के कितने शेयर हैं, इसकी जानकारी शेयर पैटर्न कहलाती है तथा इसके आधार पर कंपनी का मूल्यांकन भी किया जा सकता है। किसी भी कंपनी में अलग-अलग शेयरधारक होते हैं, जिसमें कंपनी के प्रमोटरों के अलावा सार्वजनिक जनता, विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई), म्युच्युअल फंड, घरेलू संस्थागत निवेशक (जिसमें बीमा कंपनियों, बैंकों आदि का समावेश होता है), एनआरआई (अनिवासी भारतीय) आदि। सामान्यतः जिस कंपनी में प्रमोटरों की शेयरधारिता अधिक होती है उसे मजबूत कंपनी माना जाता है इसका कारण यह है कि कंपनी के प्रमोटरों का हिस्सा अधिक होने पर वे उसके विकास के लिए अधिक सक्रिय एवं गंभीर रहते हैं, ऐसा माना जाता है। जिस कंपनी की शेयरधारिता में जनता का हिस्सा कम होता है बाजार में उनके शेयर कम रहते हैं, जिससे बाजार में उसकी मांग बढ़ने पर भाव ऊंचे रहने या बढ़ने की संभावना अधिक रहती है। इसी प्रकार एफआईआई, वित्तीय संस्थाओं और म्युच्युअल फंड की शेयरधारिता अधिक होने वाली कंपनियों को भी अच्छा माना जाता है क्योंकि उन कंपनियों में फंडामेंटल मजबूती के आधार पर ही तो इन वित्त विशेषज्ञों ने इनमें निवेश किया होगा, ऐसा माना जा सकता है। इस प्रकार कंपनी के शेयरहोल्डिंग पैटर्न को देखकर उस कंपनी की सेहत का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। प्रत्येक कंपनी की स्वयं की वेबसाइट या शेयरबाजार की वेबसाइट पर प्रत्येक कंपनी का शेयरहोल्डिंग पैटर्न उपलब्ध है। निवेशक निवेश करने से पहले संबंधित कंपनी के शेयरहोल्डिंग पैटर्न को देख लें, ऐसी सलाह दी जाती है। शॉर्ट कवरिंग : शॉट्स सेल्स (बनावटी बिकवाली) शब्द की चर्चा हमने पहले की थी। इस बार उसमें से सृजित दूसरे शब्द शॉर्ट कवरिंग को समझाते हैं। बाजार जब गिरावट की तरफ होता है तो उस समय मंदेडि़ये हाथ में शेयर न होने पर भी उनकी बिकवाली कर देते हैं, जिससे यदि बाजार उनकी धारणा के अनुसार और घटता है तो वे घटे हुए भाव पर शेयर खरीद कर उसकी डिलिवरी दे देते हैं अथवा सौदे को भाव अंतर के साथ बराबर कर देते हैं। इस प्रकार जब बाजार में अधिकांश कारोबारी खोटी बिकवाली करके बाद में शेयरों की खरीदी करने लगे अर्थात शॉर्ट सेल्स करने के बाद खरीदी करने लगे तो ऐसी स्थिति को श@ार्ट कवरिंग कहा जाता है। शेयर बाजार से संबंधित इस शब्द का अखबारों में या दैनिक मार्केट रिपोर्ट में काफी उपयोग होता है। शॉर्ट कवरिंग के कारण बाजार घटने से रूका या बाजार रिकवर हुआ ऐसी बातें सुनने को मिलती हैं। इस प्रकार शॉर्ट कवरिंग गिरते हुए बाजार को थामने का काम करता है। शेयर बाजार में डिस्काउंट : शेयर बाजार में डिस्काउंट का दूसरा अर्थ भी होता है। जब बाजार में किसी कंपनी के शेयर का भाव उसके मूल भाव से नीचे चल रहा है तो उसे डिस्काउंट कहा जाता है। इसे विलो पार अर्थात सममूल्य से कम भी कहा जाता है। दूसरी तरफ किसी कंपनी के शेयरों का विद्यमान बाजार भाव यदि उसके समभावित भाव से कम चल रहा हो तो इसे भी शेयर डिस्काउंट पर मिल रहा है, ऐसा कहा जाता है। यह हुई शेयर के भाव में डिस्काउंट की बात। दूसरी तरफ शेयर बाजार में अनेक ऐसी घटनाएं एवं समाचार होते हैं जहां इस शब्द का उपयोग किया जाता है। किसी घटना के होने की संभावना मात्र से बाजार पर उसका असर पड़ जाये और वह घटना वास्तव में घटित होने पर उसका खास असर बाजार पर न पड़े तो कहा जाता है कि वह घटना डिस्काउंट हो गयी। उदाहरण के लिए रिजर्व बैंक की घोषणाएं होने की संभावना से ही बाजार पर उसका असर पड़ जाये और सचमुच घोषणा होने पर उसका कोई खास असर दिखायी न दे तो कहा जाता है कि रिजर्व बैंक की घोषणाएं डिस्काउंट हो गयी। टॉप और बॉटम : शेयर बाजार में जब भी कोई शेयर या सूचकांक अपने उच्चतम स्तर पर पहुंचता है तो कहा जाता है कि उक्त शेयर या उक्त इंडेक्स ने अपना टॉप बना लिया है। इसी प्रकार निचले स्तर पर होने पर बॉटम कहलाता है। यह टॉप या बॉटम समय अंतराल के आधार पर निर्धारित होता है। उदाहरण स्वरूप सेंसेक्स ने वर्ष २००९ में १७५०० का टॉप और ७६०० का बॉटम बनाया। टर्नअराउंड : जब कोई कंपनी घाटे से बाहर निकल कर मुनाफा करने लगे या भारी घाटा दर्शाने वाली कंपनी का घाटा नाम मात्र रह जाये तो ऐसी कंपनी को टर्नअराउंड कंपनी कहा जाता है। निवेशकों को ऐसी कंपनियां तलाशते रहनी चाहिए क्योंकि ऐसी कंपनियों में आगामी समय में मुनाफे की गुंजाइश बढ़ जाती है जिससे उनके भाव बढ़ने की संभावना हो जाती है। व्यापारिक पत्रिकाओं, रिसर्च एजेंसियों, स्टॉक एक्सचेंज की वेबसाइट का निरंतर अवलोकन करके इस प्रकार की कंपनियों को चिन्हित किया जा सकता है। कई बार किसी निश्चित उद्योग में मंदी का दौर समाप्त होने पर उस क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां टर्नअराउंड हो जाती हैं। इसी प्रकार कई बार पूरा बाजार भी टर्नअराउंड होता है, जिसमें बाजार निरंतर गिरावट वाले निगेटिव रूझाान से निकलकर सकारात्मक की ओर प्रस्थान करता है। टेकओवर : जब कोई एक कंपनी दूसरी कंपनी का अधिग्रहण करती है तो इसे टेकओवर कहा जाता है। कार्पोरेट क्षेत्र में बड़ी कंपनियां अपने जैसा ही कारोबार करने वाली छोटी परंतु अच्छी कंपनियों का टेकओवर करके अपना कद बढ़ाती हैं। आपने कुछ समय पूर्व स्टील क्षेत्र की टाटा स्टील द्वारा विदेशी कंपनी कोरस के अधिग्रहण की बात सुनी होगी। अभी हाल ही में फोर्टिस हेल्थकेयर ने विदेशी कंपनी पार्कवे का मेजोरिटी हिस्सा अधिग्रहित किया है। भारती एयरटेल अफ्रीका की जेन कंपनी का अधिग्रहण करके चर्चा में रही है। कोई भी कंपनी जब दूसरी कंपनी का टेकओवर करती है तब उसका स्वामित्व या नियंत्रण अपने कब्जे में ले लेती है, जिसके कारण ये टेकओवर शेयरधारकों एवं निवेशकों के लिए संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण हो जाते हैं। जब कोई मजबूत और समर्थ कंपनी किसी दूसरी कमजोर कंपनी का अधिग्रहण करती है तो कमजोर कंपनी के शेयरधारक खुश हो जाते हैं, जबकि अधिग्रहित करने वाली कंपनी के शेयरधारक सोचते हैं कि इससे उनकी कंपनी पर बोझा न बढ़े तो अच्छा। टेकओवर परस्पर आपसी सहमति से भी होता है तथा बाजार की व्यूहरचना के साथ चालाकी से भी किया जाता है जिसमें अनेक बार जिस कंपनी का टेकओवर किया जाता है उस कंपनी के मैनेजमेंट को अंधेरे में भी रखा जाता है। इस प्रकार के ``टेकओवर वार`` के अनेक किस्से कार्पोरेट इतिहास में दर्ज हैं। ऐसे टेकओवर को ``होस्टाइल टेकओवर`` कहा जाता है। इस विषय की जटिलता एवं शेयरधारकों की सुरक्षा एवं हितों के विभिन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए सेबी ने टेकओवर रेग्युलेशन्स बनाया है और समय-समय पर आवश्यकतानुसार उसमें सुधार भी किया जाता है। निवेशकों को कार्पोरेट टेकओवर के किस्सों पर नजर रखनी चाहिए क्योंकि आगामी वर्षों में ऐसे किस्से बढ़ने की संभावना है। भारी प्रतिस्पर्धा में न टिक पाने वाली छोटी एवं मध्यम कद की कंपनियों को विशालकाय कंपनियां टेकओवर कर लें तो ऐसे में उन छोटी कंपनियों की किस्मत बदल जाती है, जिसका प्रभाव दोनों कंपनियों के शेयर भावों पर पड़ता है। टार्गेट : इसका सरल अर्थ है लक्ष्य। शेयर बाजार में टार्गेट शब्द का उपयोग शेयरों के भाव के संदर्भ में व्यापकता से उपयोग किया जाता है। विशेषकर एनालिस्ट अपनी रिपोर्ट में इस शब्द का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए एक कंपनी के शेयरों का भाव आगामी तीन महीनों या छह महीनों में ५०० रू. तक पहुंचने का टार्गेट है। इस टार्गेट अर्थात लक्ष्य के लिए एनालिस्ट विभिन कारण भी बताते हैं। टार्गेट भाव शार्ट टर्म के लिए अधिक उपयोग किया जाता है और उसमें परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर बदलाव भी किया जाता है। यहां इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि जब कोई एनालिस्ट किसी शेयर का टार्गेट भाव बताये तो उसके आधार पर आंख बंद करके निवेश नहीं करना चाहिए। तेजी के समय ऐसे टार्गेट भले ही पूरे हो जायें, लेकिन हमेशा ऐसा हो ही, यह जरूरी नहीं। ट्रीगर : यह शब्द जरा संजीदा है। इसका सादा अर्थ है बाजार का ``चालक बल`` या ड्राइवर। बाजार की भाषा में कहें तो मार्केट को ऊंचा लेे जाने के लिए किसी ट्रीगर की जरूरत होती है। शेयर बाजार एक या अनेक कारक तत्वों के आधार पर संचालित होता है, उसकी गति ऊपर या नीचे की ओर हो सकती है परंतु बाजार को वेग देने के लिए ट्रीगर प्वाइंट जरूरी है। उदाहरण के लिए सरकार जब कोई उदार एवं प्रोत्साहनात्मक नीति जाहिर करती है तब बाजार को ऊपर जाने के लिए ट्रीगर मिल जाता है अथवा रिलायंस जैसी विशाल कंपनी का परिणाम काफी उत्साहवर्धक जाहिर हो तो यह भी बाजार को ऊपर ले जाने के लिए ट्रीगर बन सकता है। रिजर्व बैंक की ऋण नीति अत्यधिक प्रोत्साहन वाली थी जिससे बाजार को ऊपर जाने का ट्रीगर मिल गया। इस प्रकार शेयर बाजार की चाल को वेग देने वाले कारक तत्वों को ट्रीगर कहा जाता है। अहा जिदंगी या उसके इस कॉलम को पढ़ना भी आपके लिए ट्रीगर हो सकता है क्योंकि इसको पढ़कर आप लाभान्वित होते हैं। यूसीसी : युनिक क्लाइंट कोड - शेयर दलालों के पास अपना पंजीकरण कराने वाले प्रत्येक ग्राहक को एक कोड नंबर दिया जाता है। ब्रोकर के पास शेयरों के सौदे लिखवाते समय ग्राहकों को यह कोड नंबर बताना होता है। युलिप''' : अप्रैल के महीने में यह नाम विवादित हो गया था। युलिप का पूरा नाम है `यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान`। अर्थात एक ऐसी निवेश योजना जिसमें निवेश करने से व्यक्ति का जीवन बीमा भी हो जाता है। उसके द्वारा किये गये निवेश को सिक्युरिटीज मार्केट में निवेश किया जाता है जिससे उसे प्रतिभूति बाजार का एक्सपोजर भी मिलता है। अभी हम इसके विवाद की बात करने के बजाय युलिप के बारे में बताना चाहेंगे। युलिप एक म्युच्युअल फंड के समान स्कीम है जो निवेश के साथ बीमा का भी लाभ ऑफर करती है। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि निवेशकों को बीमा प्रोडक्ट में बीमा के तरीके से ही निवेश करना चाहिए। जो व्यक्ति सचमुच अपने परिवार के हित में अपने जीवन को बीमित करना चाहता है उसके निवेश में बीमे की मात्रा अधिक रहने वाली योजनाओं का समावेश होना चाहिए। युलिप में बीमा का हिस्सा काफी कम होता है और सिक्युरिटीज में निवेश का हिस्सा काफी ऊंचा होता है। युलिप हो या ऐसी ही कोई अन्य योजना निवेशकों को चाहिए कि वे इन योजनाओं का बारीकी से अध्ययन करके ही अपनी आवश्यकता के अनुरूप इसका चयन करें। शेयर मार्केट कैसे सीखे [ शेयर बाजार क्या है?
तैलीहाट, गरुङ तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा तैलीहाट, गरुङ तहसील तैलीहाट, गरुङ तहसील
स्टोनहॅन्ज (अंग्रेज़ी: स्टोनहेंगे) ब्रिटेन की विल्टशायर काउंटी में स्थित एक प्रसिद्ध प्रागैतिहासिक (प्रीहिस्टोरिक) स्थापत्य है। यह एक महापाषाण शिलावर्त (बड़ी शिलाओं को व्यवस्थित करके बनाया गया गोला) है। इसमें ७ मीटर (२३ फ़ुट) से भी ऊँची शिलाओं को धरती में गाड़कर खड़ा करके एक चक्र बनाया गया था। इतिहासकार अनुमान लगाते हैं कि इसका निर्माण पाषाण युग और कांस्य युग में ३००० ईसापूर्व से २००० ईसापूर्व काल में सम्पन्न हुआ। स्टोनहॅन्ज के प्राचीन निर्माताओं के ध्येय के बारे में विद्वानों में मतभेद है लेकिन यहाँ ३००० ईसापूर्व काल से शुरु होकर मानव क़ब्रों के चिह्न मिलते हैं जिनमें सबसे प्राचीन अस्तियाँ ३००० ईपू में अग्निदाह किये गये एक मृतक की हैं। इन्हें भी देखें
गगनदीप वशिष्ठ (जन्म १९६९) या जी.डी वशिष्ठ या गुरुदेव जीडी वशिष्ठ, एक भारतीय लाल किताब ज्योतिषी और एक प्रेरक वक्ता हैं। वे एक भारतीय ज्योतिषी , खगोल वैज्ञानिक और आध्यात्मिक गुरु हैं। उनका ज्योतिष पर आधारित टी.वी. प्रदर्शन अनेको विख्यात चैनलों जैसे की सोनी, इंडिया टीवी, साधना, आस्था, इंडिया न्यूज़, आदि में प्रसारित हो चूका है। जालंधर में ६४ वें सरस्वती ज्योतिष सम्मेलन और प्रदर्शनी में ज्योतिष के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए उन्हें शुद्ध सोने का एक विशेष प्रतीक दिया गया था। श्री वशिष्ठ का जन्म २८ अक्टूबर १९६९ को श्री एमएल वशिष्ठ और श्रीमती आदर्श के घर मलसियान, नकोदर , जालंधर , पंजाब , भारत में हुआ था ।
त्सुल्ट्रिम चोनजोर, जिन्हें चुल्टिम चोनजोर के नाम से भी जाना जाता है, एक लद्दाख के स्टोंगडे गांव के भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता हैं। भारत सरकार ने उन्हें उनके सामाजिक कार्यों के लिए २०२१ में पद्म श्री, चौथे सर्वोच्च भारतीय नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया। १९६५ से २००० तक, उन्होंने भारत सरकार के हस्तशिल्प विभाग में काम किया। क्षेत्र में सड़क संबंध में कमी के कारण उन्होंने २०१४ से २०१७ तक लद्दाख के करग्याक गांव को हिमाचल प्रदेश के दारचा गांव से जोड़ने वाली ३८ किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण आरंभ किया। उन्होंने अपनी निधि से ५७ लाख रुपये खर्च किए और अपनी पैतृक संपत्ति भी बेच दी। सीमा सड़क संगठन ने उनके प्रयासों की प्रशंसा की, और उन्हें सड़क परियोजना को पूरा करने की जिम्मेदारी दी। १९४९ में जन्मे लोग सामाजिक कार्य में पद्मश्री प्राप्तकर्ता
जपुजी साहिब एक सिख प्रार्थना है जो गुरु ग्रन्थ साहिब के आरम्भ में है। इसकी रचना गुरु नानक देव ने की थी। जपुजी का आरम्भ 'मूलमंत्र' से होता है, उसके बाद इसमें ३८ और पद हैं, और अन्त में 'शलोक' (श्लोक) है। जो ३८ पद हैं वे अलग-अलग छन्दों में है। गुरु ग्रन्थ साहिब की मूलवाणी जपुजी गुरु नानक द्वारा जनकल्याण हेतु उच्चारित की गई अमृतमयी वाणी है। 'जपुजी' एक विशुद्ध , सूत्रमयी दार्शनिक वाणी है जिसमें महत्वपूर्ण दार्शनिक सत्यों को सुन्दर, अर्थपूर्ण और संक्षिप्त भाषा में काव्यात्मक ढंग से अभिव्यक्त किया गया है। इस वाणी में धर्म के सच्चे शाश्वत मूल्यों को बड़े मनोहारी ढंग से प्रस्तुत किया गया है। इसमें ब्रह्मज्ञान का अलौकिक प्रकाश है। गुरु नानक की जन्म साखियों में इस बात का उल्लेख है कि जब गुरुजी सुलतानपुर में रहते थे, तो वे रोजाना निकटवर्ती वैई नदी में स्नान करने के लिए जाया करते थे। जब वे २७ वर्ष के थे, तब एक दिन प्रातःकाल वे नदी में स्नान करने के लिए गए और तीन दिन तक नदी में समाधिस्थ रहे। वृतांत में कहा है कि इस समय गुरुजी को ईश्वर का साक्षात्कार हुआ था। उन पर ईश्वर की कृपा हुई थी और दिव्य अनुकम्पा के प्रतीक रूप में ईश्वर ने गुरुजी को एक अमृत का प्याला प्रदान किया थ। वृतांतों में इस बात की साक्षी मौजूद है कि इस अलौकिक अनुभव की प्रेरणा से गुरुजी ने मूलमंत्र का उच्चारण किया था, जिससे जपुजी साहिब का आरम्भ होता है। जपुजी का प्रारंभिक शब्द एक ओमकारी बीज मंत्र या 'मूल मंत्र' है जिसमें प्रभु के गुण नाम कथन किए गए हैं। एक ओंकार सतिनाम, करता पुरखु निरभऊ, निरबैर, अकाल मूरति, अजूनी, सैभं गुर प्रसादि समस्त जपुजी को मोटे तौर पर चार भागों में विभक्त किया गया है- १. पहले सात पद, २. अगले बीस पद, ३. इसके बाद के चार पद, ४. शेष सात पद। पहले सात पदों में अध्यात्म की खोजी जीवात्मा की समस्या को समझाया गया है। दूसरा भाग पाठकों को उत्तरोत्तर साधन पथ की ओर अग्रसर करता जाता है, जब तक कि जीवात्मा को महान सत्य का साक्षात्कार नहीं हो जाता। तीसरे भाग में ऐसे व्यक्ति के मानसिक रुझानों और दृष्टि का वर्णन किया है, जिसने अध्यात्म का स्वाद चख लिया हो। अंतिम भाग में समस्त साधना का सार प्रस्तुत किया गया है, जो स्वयं में अत्यधिक मूल्यवान है, क्योंकि इस भाग में सत्य और शाश्वत सत्य, साधना पथ की ओर, उन्मुख मननशील आत्मा का आध्यात्मिक विकास के चरणों का प्रत्यक्ष वर्णन किया गया है। भाषा एवं शैली जपुजी श्री गुरुनानकजी की आध्यात्मिक वाणी के साथ ही अद्वितीय साहित्यिक रचना भी है। इसकी प्रश्नोत्तर शैली पाठक के भावों पर अमिट छाप छोड़ती है। इसमें स्वयं गुरुजी ने जिज्ञासु के मन के प्रश्नों या आशंकाओं का उल्लेख करके उनका तर्कपूर्ण ढंग से समाधान किया है। इसमें संदेह नहीं कि जपुजी एक दार्शनिक और विचार प्रधान कृति है और इसकी रचना गुरुजी की अन्य वाणी की भाँति रागों के अनुसार नहीं की गई है। किन्तु फिर भी इसमें अनेक छंदों का प्रयोग किया गया है। इसमें मुख्य छंद, दोहा, चौपाई तथा नाटक आदि हैं। जपुजी के आरम्भ और अन्त में एक श्लोक है। जपुजी के पहले चरण की पहली तीन पंक्तियों का तुकान्त एक है और उसमें आगे तीन पंक्तियों का अलग। 'एक ओंकार...' प्रसादि स्तुति है। 'आदि सच... ही भी सच' भी मंत्र स्वरूप तर्कमयी स्तुति है। वार की भाँति पंक्तियों का तुकांत भी मध्य से ही मिलता है। जैसे हुकमी उत्तम नीचु हुकमि लिखित दुखसुख पाई अहि। इकना हुकमी बक्शीस इकि हुकमी सदा भवाई अहि ॥ मध्य अनुरास का एक उदाहरण- सालाही सालाही एती सुरति न पाइया। नदिआ अते वाह पवहि समुंदि न जाणी अहि ॥ इसी तरह कहा जा सकता है कि पौके रूप में विचार अभिव्यक्त करने का प्रारंभ गुरुनानक ने किया। कुछ शब्दों में बार-बार दोहराने से भी संगीतमयी लय उत्पन्न हो गई है। जैसे- तीसरे चरण में 'गावे को' का बार-बार दोहराना सूत्र शैली में शब्दों का प्रयोग बहुत संक्षिप्त रूप से किया गया है। इस संक्षिप्तता तथा संयम के लिए रूपक का प्रयोग अक्सर होता है। जपुजी में रूपक का अधिकतर प्रयोग किया गया है। जैसे- पवणु गुरु पाणी पिता माता धरति महतु। दिवस राति दुई दाई दाइआ खेले सगलु जगतु ॥ जपुजी के अंतिम चरण में सुनार की दुकान का रूपक मनुष्य के सदाचारी जीवन तथा आत्म प्रगति के साधनों को प्रकट करता है। इसी तरह शरीर को 'कपकहना जिसमें शरीर का नाश तथा फिर नवरूप धारण करने की प्रक्रिया जान पती है। 'आपे बीजे आपे ही खाहु' किसानी जीवन के क्रियाकर्म सिद्धान्त को स्पष्ट करता है। 'मति विचि रत्न जवाहर माणिक' में मनुष्य के गुण आदि को रत्न, जवाहर तथा मोती कहा है। 'असंख सूर मुह भरव सार' कहकर आत्मिक योद्धा की विवशता का दर्शन दिया है जो धर्म क्षेत्र में कुरीतियों का सामना करते हुए उनके वार को झेलता रहता है। 'संतोख थापि रखिया जिनि सूति' कहकर संसार के नियमबद्ध होने का भेद समझा दिया है। जैसे- सूत्र में सब मनके पिरोये रहते हैं, इसी तरह संतोख नियम रूपी धागे में सारा जगत पिरोया हुआ है। बीसवीं पौमें बुद्धि की शुद्धता के लिए बहुत अलंकृत वाणी में मन को सृष्टि के दर्शन को समझाया गया है। गुरुनानकजी लोकगुरु थे। इसीलिए उन्होंने ईश्वरीय संदेश को जन-जन तक पहुँचाने के लिए जपुजी में लोकभाषा का ही सर्वाधिक उपयोग किया। 'जपुजी' की भाषा उस समय की संतभाषा कही जा सकती है, जिसमें ब्रज भाषा का मिश्रण है। जपुजी के रचनाकाल में संस्कृत के शब्दों को उनके पंजाबी या तद्भव रूप में लिखा जाता था। जपुजी में कुछ शब्द अरबी-फारसी के तत्सम रूप में भी हैं। जैसे-पीर, परो, दरबार, कुदरत, हुक्म आदि। अधिकतर तद्भव रूप ही लिए गए हैं, जैसे हदूरी (हजूरी), नंदरी (नजरी), कागद (कागज) आदि। इसके अतिरिक्त योगियों की विशेष प्रकार की शब्दावली पंजाबी रूप में पौ२८ और २९ में मिलती है। 'जपुजी' गुरुवाणी में है जो कि गुरुनानक बोलते थे, यद्यपि अक्षरों का आविष्कार उन्होंने नहीं किया था। अपनी विशिष्ट भाषा और सशक्त शैली के माध्यम से गुरुजी ने 'जपुजी' में सर्वोच्च सत्य और उसकी सनातन खोज संबंधी उच्च बौद्धिक एवं अमूर्त विचारों को स्पष्ट एवं सशक्त रूप में अभिव्यक्त किया है। विनोबाजी के कथनानुसार ऐसा करना गुरुनानक का आदर्श था। 'जिव होवे फरमाणु' के भाव की व्याख्या करते हुए उन्होंने लिखा है, "मुझे लगता कि यहाँ संस्कृत और अरबी दोनों अर्थ लेकर शब्दों की रचना की है। आखिर गुरुजी हिंदू और मुसलमान दोनों को जो चाहते थे, 'सगल जस्माती' करना चाहते थे। गुरु गोविन्द सिंह द्वारा रचित दशम ग्रन्थ के आरम्भ में है। यह स्तोत्र के रूप में है और मुख्यतः ब्रजभाषा एवं संस्कृत में है। कुछेक अरबी शब्द भी हैं। इसमें १९९ पद्य हैं। जपुजी साहिब की भाँति जापजी साहिब में भी ईश्वर के गुणों का बखान किया गया है। इसमें भगवान के ९५० नाम दिए गए हैं जो ब्रह्मा, शिव, विष्णु से शुरू होकर हिन्दुओं के सभी देवताओं और देवियों के अवतारों के नाम भी हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि ये सभी नाम एक ही असीम, शाश्वत स्रष्टा के नाम हैं। एक तरह से यह भारतीय साहित्य की सहस्रनाम परम्परा की रचना है जिसे 'अकाल सहस्रनाम' भी कहते हैं। सहस्रनामों में ईश्वर के अरबी नाम 'खुदा', 'अल्लाह' आदि भी दिए गए हैं। इसमें ईश्वर के विभिन्न 'शस्त्रधारी' नाम भी हैं जो दशम ग्रन्थ की वीरोचित भावना के अनुरूप हैं। इन्हें भी देखें गुरु ग्रन्थ साहिब जपजी साहिब (देवनागरी में) गुरु नानक देव
बिन्दुमती दास,भारत के उत्तर प्रदेश की दूसरी विधानसभा सभा में विधायक रहे। १९५७ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के २८५ - प्रतापगंज विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया। उन्होंने १९६७ से १९७२ तक राज्य सभा, भारतीय राज्य परिषद की संसद में उत्तर प्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व किया। वह १९५७ में उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुनी गईं और बाराबंकी जिले के कोटवा से थीं। उनका विवाह डॉ आर बी दास से हुआ था और उनकी एक बेटी थी। उत्तर प्रदेश की दूसरी विधान सभा के सदस्य २८५ - प्रतापगंज के विधायक बाराबंकी के विधायक कांग्रेस के विधायक
बॉम्बे एट नाइट १९७९ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। नामांकन और पुरस्कार १९७९ में बनी हिन्दी फ़िल्म
तत्त्वमीमांसा या पराभौतिकी(अंग्रेज़ी-मेटाफिसिक्स) दर्शनशास्त्र की वह शाखा है,जो वास्तविकता के सिद्धांत एवं यथार्थ व स्वत्व/सत्ता की मूलभुत-मौलिक प्रकृति, अस्तित्व, अस्मिता, परिवर्तन, दिक् और समय, कार्य-कारणता,अनिवार्यता तथा संभावना के प्रथम (आद्य) सिद्धांतों (मूलनियम) का अध्ययन करती है। इसमें चेतना की प्रकृति और मन और पुद्गल (मैटर) के बीच संबंध , द्रव्य (सब्सटेन्स) और गुण (प्रॉपर्टी) के बीच, और क्षमता और वास्तविकता के बीच संबंध के बारे में प्रश्न शामिल हैं । यह ब्रह्मांड के परम तत्व की खोज करते हुये उसके परम स्वरूप का विवेचन करती है। इसका प्रमुख विषय वो परम तत्व ही होता है जो इस संसार के होने का कारण है और इस संसार का आधार है। इसमें उस परम तत्व के अस्तित्व को खोजने की प्रयास तथा उसकी व्याख्या कई प्रकार से की जाती है। कई उसे आकार रूप मानकर परिभाषित करते हैं,तो कई उसे निराकर रूप मानते हैं। परम्परागत रूप से इसकी चार शाखाएँ हैं - ब्रह्माण्डविद्या(कॉस्मोलॉजी), सत्तामीमांसा(आन्टोलॉजी),ईश्वरमीमांसा(प्राकृतिक धर्ममीमांसा) एवं मन का दर्शन। तत्वमीमांसा, पाश्चत्य दर्शन की शाखा "मेटाफिजिक्स" का भारतीय समकक्ष है तथा हिंदी भाषा में उसी संज्ञा का अनुवाद भी है। शब्द "मेटाफिजिक्स" दो ग्रीक शब्दों से आया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है "प्राकृतिक के बाद या पीछे या [उसके अध्ययन] के बीच"। यह सुझाव दिया गया है कि यह शब्द पहली शताब्दी सी०ई० संपादक द्वारा गढ़ा गया हो सकता है, जिन्होंने अरस्तू के कार्यों के विभिन्न छोटे चयनों को उस ग्रंथ में इकट्ठा किया जिसे अब हम मेटाफिजिक्स ( , मेटा टा फिजिका , अक्षरशः -"भौतिक विज्ञान के बाद") के नाम से जानते हैं। द फिजिक्स ', अरस्तू की अन्य कृतियों में से एक है)। तत्वमीमांसा में प्रमुख प्रश्न ये हैं- अन्ततः क्या है? किसकी सत्ता/ अस्तित्व है? जो है, वह कैसा है? (जिसकी सत्ता है),उसकी प्रकृति क्या है? "मेटाफिज़िक्स" की शब्दोत्पत्ति शब्द "मेटाफिज़िक्स" यूनानी शब्द (मेटा ,"बाद" या "परे") और (फिसिका/फिज़िका , "भौतिकी") से निकला है। यह शब्द, पहली बार अरस्तू के कई कृतियों के शीर्षक के रूप में इस्तेमाल किया गया था, क्योंकि आमतौर पर अरस्तू के संपूर्ण कार्यों के संस्करणों में भौतिकी के विषय के बाद उनका संकलन किया गया था। उपसर्ग मेटा- ("बाद") इंगित करता है कि ये कार्य भौतिकी के अध्यायों के "बाद" आते हैं। हालांकि, अरस्तू ने स्वयं इन पुस्तकों के विषय को मेटाफिज़िक्स नहीं कहा: उन्होंने इसे "प्रथम दर्शन" (ग्रीक : ) से संबोधित किया। माना जाता है कि अरस्तू के कार्यों के संपादक, रोड्स के एंड्रोनिकस ने "प्रथम दर्शन" की पुस्तकों को अरस्तू द्वारा रचित एक और कृति, " " (भौतिकी) के ठीक बाद रखा, और उन्हें " " (ता मेता ता फिसिका बिब्लिआ) या "पुस्तकें (जो) भौतिकी (की पुस्तकों) के बाद (आतीं हैं)", कहा। हालांकि, एक बार नाम दिए जाने के बाद, टिप्पणीकारों ने इसकी उपयुक्तता के अन्य कारण खोजने का प्रयास किया। उदाहरण के लिए, थॉमस एक्विनास ने इसे हमारे दार्शनिक अध्ययनों के बीच कालानुक्रमिक या शैक्षणिक क्रम को संदर्भित करने वाला समझा, ताकि "मेटाफिजिकल विज्ञान" का अर्थ "वे जो हम भौतिक दुनिया से संपृक्त विज्ञान में महारत हासिल करने के बाद अध्ययन करते हैं"। यह शब्द अन्य मध्ययुगीन टिप्पणीकारों द्वारा भी गलत पढ़ा गया था, जिन्होंने सोचा था कि इसका अर्थ "भौतिक से परे क्या है" का विज्ञान है। इस परंपरा का अनुसरण करते हुए, उपसर्ग मेटा- को हाल ही में विज्ञान के नामों से पहले जोड़ा गया है ताकि उच्च विज्ञान को पूर्व और अधिक मौलिक समस्याओं से निपटने के लिए नामित किया जा सके: इसलिए मेटामैथमैटिक्स(अधिगणित), मेटाफिजियोलॉजी(अधि शरीरक्रियाशास्त्र), आदि। एक व्यक्ति जो मेटाफिज़िक्स सिद्धांतों को बनाता या विकसित करता है उसे मेटाफिज़िसि(शि)यन कहा जाता है। आम बोलचाल में पूर्वोक्त संदर्भों से भी भिन्न अर्थ के लिए मेटाफिज़िक्स शब्द का उपयोग किया जाता है, अर्थात् मनमानी गैर-भौतिक या जादुई संस्थाओं में विश्वास के लिए। उदाहरण के लिए, "मेटाफिजिकल उपचार" का अर्थ उन माध्यम से उपचार करना है जो वैज्ञानिक के बजाय जादुई हैं। यह प्रयोग प्रकल्पित तत्वमीमांसा के विभिन्न ऐतिहासिक स्कूलों से उपजा है जो विशेष रूप से तत्वमीमांसक प्रणालियों के आधार के रूप में सभी प्रकार की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संस्थाओं को पोस्ट करके संचालित होता है। एक विषय के रूप में तत्वमीमांसा ऐसी जादुई संस्थाओं में विश्वासों को नहीं रोकता है, लेकिन न ही यह उन्हें बढ़ावा देता है। बल्कि, यह वह विषय है जो शब्दावली और तर्क प्रदान करता है जिसके साथ ऐसे विश्वासों का विश्लेषण और अध्ययन किया जा सकता है, उदाहरण के लिए अपने भीतर और विज्ञान जैसी अन्य स्वीकृत प्रणालियों के साथ विसंगतियों की खोज करना । "तत्वमीमांसा" की शब्दोत्पत्ति तत्वमीमांसा शब्द एक नवगढ़ित शब्द है जो भारत सरकार द्वारा अंग्रेज़ी शब्द मेटाफिज़िक्स का अनुवाद है। यह दर्शन परिभाषा कोश में मेटाफिज़िक्स का हिंदी समकक्ष है। यह दो संस्कृत शब्दों से जुड़कर बना है, -तत्व और मीमांसा। तत्वमीमांसा शब्द को परिभाषित करना अत्यंत कठिन है। बीसवीं सदी के 'मेटा-लैंग्वेज' और 'मेटाफिलोसोफी' जैसी प्रविधिक शब्दावलीयां इस धारणा को प्रोत्साहित करते हैं कि तत्वमीमांसा, एक ऐसा अध्ययन है जो किसी तरह "भौतिकी से परे" जाता है, एक ऐसा अध्ययन जो न्यूटन और आइंस्टीन और हाइजेनबर्ग के सांसारिक सरोकारों से परे है। यह धारणा गलत है। आत्मा और अंतरिक्ष की अवधारणा और इनके अन्तर्सम्बन्धों को जानना और समझना ही तत्व ज्ञान है। इसे चेतना, अंतरिक्ष, समय, वस्तु और उर्जा की अवधारणा और इनके अन्तर्सम्बन्धों को जानना एवं समझना भी कह सकते हैं। तत्वमीमांसा अध्ययन,प्रागनुभविक (आ प्रीओरी) केनिगमन का उपयोग करके किया जाता है ।मूलभूत गणितकी तरह, (जिसे कभी-कभी संख्याओं के अस्तित्व पर लागू तत्वमीमांसा का एक विशेष रूप माना जाता है), यह दुनिया की संरचना का एक सुसंगत वृतांत देने का प्रयास करता है, जो दुनिया की हमारी रोजमर्रा की और वैज्ञानिक धारणा की व्याख्या करने में सक्षम हो, और विरोधाभासों से मुक्त हो।गणित में, संख्याओं को परिभाषित करने के कई अलग-अलग तरीके हैं;इसी तरह, तत्वमीमांसा में, वस्तुओं, गुणों और लक्ष्यों को परिभाषित करने के लिए कई अलग-अलग तरीके हैं, ताकि यह अपनी स्वभाव की अवधारणा बन सके, और अन्य ईकाइयां जिससे दुनिया बनाने का दावा किया जाता हैं।जबकि तत्वमीमांसा, एक विशेष मामलों में, परमाणु और सुपरस्ट्रिंग्स जैसे मौलिक विज्ञान द्वारा मानी गई इकाइयों का अध्ययन कर सकता है, इसका मूल विषय वस्तु, संपत्ति और कारणता जैसी श्रेणियों का समूह है जिसे वैज्ञानिक सिद्धांत अभिगृहित मानते हैं।उदाहरण के लिए: यह दावा करना कि "इलेक्ट्रॉनों पर आवेश होता है"एक वैज्ञानिक सिद्धांत का अनुमोदन करना है; इलेक्ट्रॉनों के लिए "वस्तु" के रूप में माना जाने का क्या अर्थ है , आवेश को "गुण" होने का क्या अर्थ है और दोनो, इलेक्ट्रॉन और आवेश के अंतरिक्ष नामक भू-आकृतिक इकाई में अस्तित्व का क्या अर्थ है, का अनुसंधान करने का कार्य तत्वमीमांसा का है। तत्वमीमांसा द्वारा अध्ययन किए गए "संसार" के बारे में दो व्यापक दृष्टिकोण हैं।तत्वमीमांसक यथार्थवादके अनुसार, तत्वमीमांसा द्वारा अध्ययन की जाने वाली वस्तुएँ किसी भी पर्यवेक्षक से स्वतंत्र रूप से मौजूद होती हैं, इसलिए यह विषय सभी विज्ञानों में सबसे मौलिक है।दूसरी ओर,तत्वमीमांसक यथार्थवाद- विरोधवाद मानता है कि तत्वमीमांसा द्वारा अध्ययन की गई वस्तुएं एक पर्यवेक्षक के मस्तिष्क के अंदर मौजूद हैं, इसलिए यह विषयआत्मनिरीक्षणऔर अवधारणात्मक विश्लेषण का एक रूप बन जाता है। यह प्रतिज्ञप्ति हाल ही की है।कुछ दार्शनिक, विशेष रूप सेकांट, इन दोनों "विश्वों" और प्रत्येक के बारे में क्या अनुमान लगाया जा सकता है पर चर्चा करते हैं।कुछ, जैसेतार्किक प्रत्यक्षवादी, और कई वैज्ञानिक, तत्वमीमांसक यथार्थवाद को अर्थहीन और अविश्वसनीय के रूप में अस्वीकार करते हैं।अन्य उत्तर देते हैं कि यह आलोचना किसी भी प्रकार के ज्ञान पर भी लागू होती है, जिसमें ठोस विज्ञान भी शामिल है, जो मानव प्रत्यक्षण की विषय वस्तु के अलावा किसी भी चीज़ का वर्णन करने का दावा करता है, और कि इस प्रकार प्रत्यक्षण की दुनिया ही, एक अर्थ मेंवास्तुनिष्ठ दुनियाहै ।तत्वमीमांसा स्वयं आमतौर पर यह परिकल्पित करता है कि इन प्रश्नों पर पहले से कुछ रुख लिया गया है और यह विकल्प से स्वतंत्र आगे बढ़ सकता है - किस रुख को लेने का सवाल इसके बजाय दर्शनशास्त्र की एक अन्य शाखा, ज्ञानमीमांसा से संबंधितहै। तत्वमीमांसा की अस्वीकृति और आलोचना मेटा-तत्त्वमीमांसा दर्शनशास्त्र की वह शाखा है जो तत्त्वमीमांसा की नींव से संबंधित है। कई व्यक्तियों ने सुझाव दिया है कि अधिकांश या सभी तत्वमीमांसा को अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए, एक मेटा-आध्यात्मिक स्थिति जिसे तत्त्वमीमांसक अपस्फीतिवाद या तात्त्विक अपस्फीतिवाद के रूप में जाना जाता है। १६वीं शताब्दी में, फ्रांसिस बेकन ने विद्वतात्मक तत्वमीमांसा को खारिज कर दिया, और जिसे अब अनुभववाद कहा जाता है, उसके लिए दृढ़ता से तर्क दिया, जिसे बाद में आधुनिक अनुभवजन्य विज्ञान के जनक के रूप में देखा गया। १८वीं शताब्दी में, डेविड ह्यूम ने एक मजबूत रुख अपनाया और तर्क दिया कि सभी वास्तविक ज्ञान में या तो गणित या तथ्य के मामले शामिल होते हैं और वो तत्वमीमांसा, जो इनसे आगे जाता है, बेकार है। उन्होंने एंक्वीरी कॉन्सिडरिंग हमन अन्डरस्टैंडिंग ( मानवीय समझ से सम्पृक्त अन्वीक्षण) (१७४८) को इस कथन के साथ समाप्त किया: यदि हम अपने हाथ में कोई खण्ड [पुस्तक] ले लें; उदाहरण के लिए, देवत्व या स्कूल तत्वमीमांसा की; आइए हम पूछें, क्या इसमें मात्रा या संख्या से संबंधित कोई अमूर्त तर्कणा है? नहीं। क्या इसमें तथ्य और अस्तित्व के विषय में कोई प्रयोगात्मक तर्कणा शामिल है? नहीं, तो इसे अग्नि की लपटों के हवाले कर दें: क्योंकि इसमें कुतर्क और मतिभ्रम के अलावा कुछ भी नहीं हो सकता। ह्यूम की इन्क्वायरी सामने आने के तैंतीस साल बाद, इमैनुएल कांट ने अपना शुद्ध तर्कबुद्धि की आलोचना प्रकाशित किया। यद्यपि उन्होंने पिछले अधिकांश तत्वमीमांसा को खारिज करने में ह्यूम का अनुसरण किया, उन्होंने तर्क दिया कि अभी भी कुछ संश्लेषणात्मक प्रागनुभविक ज्ञान के लिए जगह थी, जो तथ्य के मामलों से संबंधित है, फिर भी जिसे अनुभव से स्वतंत्र प्राप्त किया जा सकता है। इनमें अंतरिक्ष, समय और कार्य-कारणता की मूलभूत संरचनाएँ शामिल थीं। उन्होंने इच्छा की स्वतंत्रता और "चीजें जो स्वयं मे हैं", अनुभव की अंतिम (लेकिन अज्ञात) वस्तुओं, के अस्तित्व के लिए भी तर्क दिया। विट्गेन्स्टाइन ने यह अवधारणा पेश की कि तत्वमीमांसा तर्क के माध्यम से सौंदर्यशास्त्र के सिद्धांतों से प्रभावित हो सकती है, एक दुनिया "परमाणु तथ्यों" से बनी है। १९३० के दशक में, ए जे आयर और रुडोल्फ कार्नैप ने ह्यूम की प्रतिज्ञप्ति का समर्थन किया; कार्नाप ने उपरोक्त अंश उद्धृत किया। उन्होंने तर्क दिया कि तत्त्वमीमांसक कथन न तो सत्य हैं और न ही असत्य, बल्कि निरर्थक हैं, क्योंकि उनके अर्थ के सत्यापन सिद्धांत के अनुसार, एक कथन तभी सार्थक है जब इसके पक्ष या विपक्ष में अनुभवजन्य साक्ष्य हो सकते हैं। इस प्रकार, जबकि आयर ने स्पिनोज़ा के एकत्ववाद को खारिज कर दिया, उन्होंने बहुलवाद, जो कि विपरीत पद, के प्रति प्रतिबद्धता से परहेज किया, दोनों विचारों को निरर्थक मानते हुए। कार्नैप ने बाहरी दुनिया की वास्तविकता पर विवाद के साथ भी इसी तरह का रुख अपनाया। जबकि तार्किक प्रत्यक्षवाद आंदोलन को अब मृत माना जाता है (एक प्रमुख प्रस्तावक अयेर ने १९७९ के एक टीवी साक्षात्कार में स्वीकार किया था कि "वह लगभग सब गलत था"), इसने दर्शन के विकास को प्रभावित करना जारी रखा है। इस तरह की अस्वीकृतियों के खिलाफ तर्क देते हुए, विद्वतावादी दार्शनिक एडवर्ड फेसर ने माना कि ह्यूम की तत्वमीमांसा की आलोचना, और विशेष रूप से ह्यूम का कांटा, "कुख्यात रूप से आत्म-खंडन" करने वाला है। फेसर का तर्क है कि ह्यूम का कांटा स्वयं एक वैचारिक सत्य नहीं है और अनुभवजन्य रूप से परीक्षण योग्य नहीं है। एमी थॉमासन जैसे कुछ जीवित दार्शनिकों ने तर्क दिया है कि कई तत्त्वमीमांसक प्रश्नों को केवल शब्दों के उपयोग के तरीके को देखकर ही हल किया जा सकता है; टेड साइडर जैसे अन्य लोगों ने तर्क दिया है कि तत्त्वमीमांसक प्रश्न सत्ववाचक हैं, और विज्ञान से प्रेरित सैद्धांतिक गुणों, जैसे कि सरलता और व्याख्यात्मक शक्ति के अनुसार सिद्धांतों की तुलना करके उनके उत्तर देने की दिशा में प्रगति की जा सकती है। तत्वमीमांसा का इतिहास और विचार-सम्प्रदाय गुफा चित्रों और अन्य प्रागैतिहासिक कला और रीति-रिवाजों के विश्लेषण जैसे संज्ञानात्मक पुरातत्व से पता चलता है कि बहुऋतुजीवी दर्शन या शामनी तत्वमीमांसा का एक रूप दुनिया भर में व्यवहारिक आधुनिकता के जन्म तक फैला हो सकता है। इसी तरह की मान्यताएँ वर्तमान "पाषाण युग" संस्कृतियों जैसे ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों में पाई जाती हैं। बहुऋतुजीवी दर्शन रोजमर्रा की दुनिया के साथ-साथ एक आत्मा या अवधारणा जगत् के अस्तित्व और सपने देखने और अनुष्ठान के दौरान, या विशेष दिनों या विशेष स्थानों पर इन दुनियाओं के बीच अन्तर्क्रिया को दर्शाता है। यह तर्क दिया गया है कि बारहमासी दर्शन ने प्लेटोवाद का आधार बनाया, जिसमें प्लेटो ने बनाने के बजाय बहुत पुरानी व्यापक मान्यताओं को स्पष्ट किया। कांस्य - युग प्राचीन मेसोपोटामिया और प्राचीन मिस्र जैसी कांस्य युग की संस्कृतियों (समान रूप से संरचित लेकिन कालानुक्रमिक रूप से बाद की संस्कृतियों जैसे मायांस और एज़्टेक के साथ) ने कारणों और ब्रह्मांड विज्ञान को समझाने के लिए पौराणिक कथाओं, मानवरूपी देवताओं, मन-शरीर द्वैतवाद और एक आध्यात्मिक जगत पर आधारित विश्वास प्रणाली विकसित की। ऐसा प्रतीत होता है कि ये संस्कृतियाँ खगोल विज्ञान में रुचि रखती थीं और हो सकता है कि उन्होंने इनमें से कुछ इकाइयों के साथ तारों को जोड़ा या पहचाना हो। प्राचीन मिस्र में, व्यवस्था ( माट ) और अव्यवस्था ( इस्फ़ेट ) के बीच तात्त्विक अंतर महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। अरस्तू के अनुसार, पहला नामित यूनानी दार्शनिक, छठी शताब्दी ईसा पूर्व की शुरुआत में मिलेटस के थेल्स हैं। उन्होंने दुनिया की घटनाओं को समझाने के लिए परंपरा की पौराणिक (मिथकीय) और दैवीय व्याख्याओं के बजाय पूरी तरह से भौतिक व्याख्याओं का उपयोग किया। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने पानी को भौतिक संसार का एकमात्र अंतर्निहित सारघटक (बाद में अरिस्टोटेलियन शब्दावली में आर्खी ) माना है। उनके साथी, लेकिन युवा मिलेटसईयों, एनाक्सिमेंडर और एनाक्सिमनीज़ ने भी क्रमशः एपिरॉन (अनिश्चित या असीम) और वायु जैसे एकत्ववादी अंतर्निहित सिद्धांतों को प्रस्तुत किया। एक अन्य स्कूल (विचार - सम्प्रदाय) दक्षिणी इटली में इलीयाई सम्प्रदाय था। समूह की स्थापना पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व की शुरुआत में पारमेनिदीज़ द्वारा की गई थी, और इसमें एलिया के ज़ेनो और समोस के मेलिसस शामिल थे। पद्धतिगत रूप से, ईलियाई मोटे तौर पर तर्कवादी थे, और उन्होंने स्पष्टता और अनिवार्यता के तार्किक मानकों को सत्य का मानदंड माना। पारमेनिदीज़ का मुख्य सिद्धांत यह था कि वास्तविकता एक अपरिवर्तनीय और सार्वभौमिक सत्त्व है। ज़ेनो ने अपने विरोधाभासों में परिवर्तन और समय की भ्रामक प्रकृति को प्रदर्शित करने के लिए प्रसंगापत्ति का उपयोग किया। इसके विपरीत, इफिसुस के हेराक्लीटस ने परिवर्तन को केंद्रीय बनाते हुए सिखाया कि "सभी चीजें प्रवाहित होती हैं"। संक्षिप्त सूक्तियों में व्यक्त उनका दर्शन काफी गूढ़ है। उदाहरण के लिए, उन्होंने विपरितों की एकता की भी शिक्षा दी। डेमोक्रिटस और उनके शिक्षक ल्यूसिपस, ब्रह्मांड के लिए एक परमाणु सिद्धांत तैयार करने के लिए जाने जाते हैं। इन्हें वैज्ञानिक पद्धति का अग्रदूत माना जाता है। चीनी दर्शन में तत्वमीमांसा का पता झोउ राजवंश की शुरुआती चीनी दार्शनिक अवधारणाओं जैसे तियान (स्वर्ग) और यिन और यांग से लगाया जा सकता है। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में ताओवाद ( दाओडेजिंग और ज़ुआंगज़ी में) के उदय के साथ सृष्टिमीमांसा की ओर एक मोड़ देखा गया और प्राकृतिक दुनिया को गतिशील और लगातार बदलती प्रक्रियाओं के रूप में देखा गया जो स्वचालित रूप से एक एकल अंतर्निहित तत्त्वमीमांसक स्रोत या सिद्धांत ( ताओ ) से उत्पन्न होती हैं। एक और दार्शनिक स्कूल जो इस समय के आसपास उभरा वह प्रकृतिवादियों का स्कूल था जिसने परम तत्त्वमीमांसक सिद्धांत को ताईजी के रूप में देखा, यिन और यांग की ताकतों से बना "सर्वोच्च ध्रुवीयता" जो हमेशा संतुलन की तलाश में परिवर्तन की स्थिति में थे। चीनी तत्वमीमांसा, विशेष रूप से ताओवाद की एक और चिंता , सत्त्व और गैर-सत्त्व ( आप और वू) का संबंध और उनकी प्रकृति है। ताओवादियों का मानना था कि परम, ताओ भी अस्तित्वहीन या अनुपस्थित है। अन्य महत्वपूर्ण अवधारणाएँ स्वतः स्फूर्त उत्पत्ति या प्राकृतिक जीवशक्ति ( ज़िरान ) और "सहसंबंधी अनुनाद" ( गैनिंग ) की थीं। हान राजवंश (२२० ई.पू.) के पतन के बाद, चीन ने नव-ताओवादी जुआनक्स्यू स्कूल का उदय देखा। यह स्कूल बाद के चीनी तत्वमीमांसा की अवधारणाओं को विकसित करने में बहुत प्रभावशाली था। बौद्ध दर्शन ने चीन में प्रवेश किया (लगभग पहली शताब्दी) और नए सिद्धांतों को विकसित करने के लिए मूल चीनी तत्त्वमीमांसक अवधारणाओं से प्रभावित हुआ। मूल दर्शन के तियानताई और हुआयेन स्कूलों ने घटना के अंतर्विरोध के सिद्धांत में शून्यता ( रिक्तिता, कोंग ) और बुद्ध-स्वभाव ( फो ज़िंग ) के भारतीय सिद्धांतों को बनाए रखा और पुनर्व्याख्या की। झांग ज़ई जैसे नव-कन्फ्यूशियंसवादीयों ने अन्य स्कूलों के प्रभाव में "सारघटक" ( ली ) और जीवशक्ति ऊर्जा ( क्यूई ) की अवधारणाओं को विकसित किया। सुकरात और प्लेटो प्लेटो अपने प्रत्यय के सिद्धांत के लिए प्रसिद्ध है (जिसे वह अपने संवादों में सुकरात के मुख से बुलवाते हैं)। प्लेटोनिक यथार्थवाद (जिसे आदर्शवाद का एक रूप भी माना जाता है) को सामान्यों की समस्या का समाधान माना जाता है; यानी, विशेष वस्तुओं में जो समानता है वह यह है कि वे एक विशिष्ट रूप साझा करती हैं जो कि उनके संबंधित प्रकार के अन्य सभी के लिए सार्वभौमिक है। इस सिद्धांत के कई अन्य पहलू हैं: ज्ञानमीमांसक: प्रत्ययों का ज्ञान मात्र संवेदी डेटा की तुलना में अधिक निश्चित है। नैतिक: अच्छाई (शुभ) का स्वरूप (प्रत्यय) नैतिकता के लिए एक वस्तुनिष्ठ मानक निर्धारित करता है। समय और परिवर्तन: प्रत्ययों की दुनिया शाश्वत और अपरिवर्तनीय है। समय और परिवर्तन केवल निचली संवेदी दुनिया से संबंधित हैं। "समय अनंतता की एक गतिशील छवि है"। अमूर्त वस्तुएँ और गणित: संख्याएँ, ज्यामितीय आकृतियाँ, आदि, प्रत्ययों की दुनिया में मन-स्वतंत्र रूप से मौजूद हैं। प्लेटोवाद नव प्लेटोवाद में विकसित हुआ, एक एकेश्वरवादी और रहस्यमय अभिरुचि वाला एक दर्शन जो प्रारंभिक ईसाई युग में अच्छी तरह से जीवित रहा। प्लेटो के शिष्य अरस्तू ने तत्वमीमांसा सहित लगभग हर विषय पर व्यापक रूप से लिखा। सामान्यों की समस्या का उनका समाधान प्लेटो के समाधान से भिन्न है। जबकि प्लेटोनीय प्रत्यय जगत में अस्तित्वगत रूप से स्पष्ट हैं, अरस्तुई सार विशेष-सत्त्वों में रहते हैं। शक्यता और वास्तविकता एक द्वंद्व के सिद्धांत हैं जिनका उपयोग अरस्तू ने अपने दार्शनिक कार्यों में गति, कारणता और अन्य मुद्दों का विश्लेषण करने के लिए किया था। परिवर्तन और कार्य-कारण का अरिस्टोटेलियन सिद्धांत चार कारणों तक फैला है: उपादान - कारण, आकारिक कारण, निमित्त्त-कारण और अंतिम कारण। कुशल कारण उस चीज़ से मेल खाता है जिसे अब कारण सरलता के रूप में जाना जाता है। अंतिम कारण स्पष्ट रूप से प्रयोजनात्मक हैं, एक अवधारणा जिसे अब विज्ञान में विवादास्पद माना जाता है। पदार्थ/रूप द्वंद्व को पदार्थ/सार भेद के रूप में बाद के दर्शन में अत्यधिक प्रभावशाली बनना पड़ा। अरस्तू की मेटाफिजिक्स , पुस्तक १ में प्रारंभिक तर्क, इंद्रियों, ज्ञान, अनुभव, सिद्धांत औप्रर ज्ञान के इर्द-गिर्द घूमते हैं। मेटाफिजिक्स में पहला मुख्य ध्यान यह निर्धारित करने का प्रयास है कि बुद्धि "स्मृति, अनुभव और कला के माध्यम से संवेदना से सैद्धांतिक ज्ञान की ओर कैसे आगे बढ़ती है"। भारतीय दर्शन पर अधिक: हिंदू दर्शन सांख्य भारतीय दर्शन की एक प्राचीन प्रणाली है जो द्वैतवाद पर आधारित है जिसमें चेतना और पदार्थ के पम सिद्धांत शामिल हैं। इसे भारतीय दर्शन के तर्कवादी स्कूल के रूप में वर्णित किया गया है। यह हिंदू धर्म के योग स्कूल से सबसे अधिक संबंधित है, और इसकी पद्धति प्रारंभिक बौद्ध धर्म के विकास पर सबसे प्रभावशाली थी। सांख्य एक गणनावादी दर्शन है जिसका ज्ञानमीमांसा ज्ञान प्राप्त करने के एकमात्र विश्वसनीय साधन के रूप में छह में से तीन प्रमाणों को स्वीकार करता है। इनमें प्रत्यक्ष (अवगम), अनुमान और शब्द (आप्तवाचन, विश्वसनीय स्रोतों की शब्द/गवाही) शामिल हैं। सांख्य सख्त रूप से द्वैतवादी है। सांख्य दर्शन ब्रह्मांड को दो वास्तविकताओं से युक्त मानता है; पुरुष (चेतना) और प्रकृति (पदार्थ)। जीव (जीवित सत्) वह अवस्था है जिसमें पुरुष किसी न किसी रूप में प्रकृति से बंधा होता है। सांख्य विद्वानों का कहना है कि इस संलयन से बुद्धि ("आध्यात्मिक जागरूकता") और अहंकार (अहम् चेतना) का उदय हुआ। इस स्कूल द्वारा समष्टि का वर्णन इस प्रकार है की उसे विभिन्न प्रकार के तत्वों, इंद्रियों, भावनाओं, गतिविधि और मन के विभिन्न क्रमपरिवर्तन और संयोजनों से युक्त पुरुष-प्रकृति इकाइयों द्वारा निर्मित किया गया है। असंतुलन की स्थिति के दौरान, अधिक घटकों में से एक दूसरे पर हावी हो जाता है, जिससे एक प्रकार का बंधन पैदा होता है, विशेषकर मन का। इस असंतुलन, बंधन के अंत को सांख्य विद्यालय द्वारा विमुक्ति या मोक्ष कहा जाता है। सांख्य दार्शनिकों द्वारा ईश्वर या सर्वोच्च सत्ता के अस्तित्व को सीधे तौर पर अधिकथित नहीं किया गया है, न ही इसे प्रासंगिक माना गया है। सांख्य ईश्वर के अंतिम कारण को नकारता है । जबकि सांख्य विद्यालय वेदों को ज्ञान का एक विश्वसनीय स्रोत मानता है, पॉल ड्यूसेन और अन्य विद्वानों के अनुसार यह एक नास्तिक दर्शन है। विद्वानों के अनुसार, सांख्य और योग सम्प्रदायों के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर, यह है कि योग स्कूल एक "व्यक्तिगत, फिर भी सारतं: निष्क्रिय, देवता" या "व्यक्तिगत भगवान" को स्वीकारता है। सांख्य अपने गुणों (गुणों, जन्मजात प्रवृत्तियों) के सिद्धांत के लिए जाना जाता है। इसमें कहा गया है कि गुण तीन प्रकार के होते हैं: सत्त्व अच्छा, दयालु, ज्ञानवर्धक, प्रदीपक , सकारात्मक और निर्माणकारी होता है; रजस गतिविधि, अराजक, जुनून, आवेगी, संभावित रूप से अच्छा या बुरा में से एक है; और तमस अंधकार, अज्ञान, विनाशकारी, सुस्त, नकारात्मक का गुण है। सांख्य विद्वानों का कहना है कि हर चीज़, सभी जीवन रूपों और मनुष्यों में ये तीन गुण होते हैं, लेकिन अलग-अलग अनुपात में। इन गुणों की परस्पर क्रिया किसी व्यक्ति या वस्तु के चरित्र, प्रकृति व स्वभाव को परिभाषित करती है और जीवन की प्रगति को निर्धारित करती है। गुणों के सांख्य सिद्धांत पर बौद्ध धर्म सहित भारतीय दर्शन के विभिन्न विचार सम्प्रदायों द्वारा व्यापक रूप से चर्चा, विकास और परिष्कृत किया गया था। सांख्य के दार्शनिक ग्रंथों ने हिंदू नीतिशास्त्र के विभिन्न सिद्धांतों के विकास को भी प्रभावित किया। आत्म-तादात्म्य (सेल्फ-इडेन्टाइटी) के स्वभाव का बोध भारतीय तत्वमीमांसा की वेदांत प्रणाली का प्रमुख उद्देश्य है। उपनिषदों में, आत्म-चेतना प्रथम-व्यक्ति अनुक्रमिक आत्म-जागरूकता नहीं है या ना हीं आत्म-जागरूकता, जो पहचान के बिना आत्म-संदर्भ है, और वह आत्म-चेतना भी नहीं है जो एक प्रकार की इच्छा के रूप में दूसरी आत्मचेतना से संतुष्ट होती है। यह आत्मसिद्धि (सेल्फ-रियालिसशन) है; चेतना से युक्त आत्मन् की अनुभूति जो अन्य सभी का नेतृत्व करती है। उपनिषदों में आत्म-चेतना शब्द का अर्थ मनुष्य के अस्तित्व और प्रकृति व स्वभाव के बारे में ज्ञान है। इसका अर्थ है हमारे अपने स्वयं के वास्तविक सत्, प्राथमिक वास्तविकता, की चेतना। आत्म-चेतना का अर्थ है आत्म-ज्ञान, प्रज्ञा अर्थात प्राण का ज्ञान जो एक ब्रह्म द्वारा प्राप्त किया जाता है। उपनिषदों के अनुसार आत्मन् या परमात्मन् अभूतपूर्व रूप से अज्ञात है; यह अहसास (अनुभूति) की वस्तु है। आत्मा अपनी मूल (सारभूत) प्रकृति में अज्ञात है; यह अपनी मूल प्रकृति में अज्ञात है क्योंकि यह शाश्वत विषय है जो स्वयं सहित सभी चीज़ों के बारे में जानता है। आत्मा ज्ञाता भी है और ज्ञात भी। तत्वमीमांसाक आत्मन् को या तो परमनिरपेक्ष से भिन्न या परमनिरपेक्ष से पूर्णतः सदृश मानते हैं। उन्होंने अपने अलग-अलग रहस्यमय अनुभवों के परिणामस्वरूप विचार के तीन सम्प्रदायों - द्वैतवादी सम्प्रदाय, अर्ध-द्वैतवादी सम्प्रदाय और अद्वैतवादी सम्प्रदाय को रूप दिया है। प्रकृति और आत्मन्, जब दो अलग और विशिष्ट पहलुओं के रूप में माने जाते हैं, तो श्वेताश्वतर उपनिषद के द्वैतवाद का आधार बनते हैं। अर्ध-द्वैतवाद रामानुज के वैष्णव-एकेश्वरवाद और आदि शंकराचार्य की शिक्षाओं में निरपेक्ष एकत्ववाद में परिलक्षित होता है। आत्म-चेतना चेतना या तुरीय की चौथी अवस्था है, पहले तीन वैश्वानर, तैजस और प्रज्ञा हैं। ये वैयक्तिक चेतना की चार अवस्थाएँ हैं। आत्मसिद्धि की ओर ले जाने वाले तीन अलग-अलग चरण हैं। पहला चरण किसी के भीतर आत्मन् की महिमा को इस रहस्यमय तरीके से समझना है जैसे कि वह उससे अलग हो। दूसरा चरण स्वयं के साथ "मैं-अंतर्गत" की पहचान करना है, जो मूल स्वभाव में पूरी तरह से शुद्ध आत्मन् के सदृश है। तीसरा चरण में यह महसूस करना है कि आत्मन् ब्राह्मन् है, यह कि आत्मन् और परमनिरपेक्ष के बीच कोई अंतर नहीं है। चौथा चरण "मैं परमनिरपेक्ष हूं" - अहं ब्रह्म अस्मि का एहसास है। पाँचवाँ चरण यह समझने में है कि ब्रह्म वह "सब कुछ" है जिसका अस्तित्व है, और वह भी जो अस्तित्व में नहीं है। केंद्रीय प्रश्न व अवधारणाएं सत्तामीमांसा (ऑण्टोलॉजी)दर्शनशास्त्रकी वह शाखा है जोअस्तित्व,सत्,संभवन्औरवास्तविकताजैसी अवधारणाओं का अध्ययन करती है।इसमें यह प्रश्न शामिल हैं कि इकाइयों कोबुनियादी या मौलिक श्रेणियोंमें कैसे बांटा जाता है और इनमें से कौन सी इकाई सबसे मौलिक स्तर पर मौजूद हैं।ओन्टोलॉजी को कभी-कभीसत् के विज्ञान केरूप में जाना जाता है ।इसेविशेष तत्वमीमांसा, जो कि सत् के अधिक विशिष्ट पहलुओं से संबंधित है, के विपरीतसामान्य तत्वमीमांसाके रूप में चित्रित किया गया है । सत्तामीमांसक अक्सर यह निर्धारित करने की कोशिश करते हैं किकौनसी श्रेणियांयाउच्चतम प्रकार हैं और कैसे वेश्रेणियों की एक प्रणालीबनाते हैं जो सभी इकाइयों का एक व्यापक वर्गीकरण प्रदान करती है।आमतौर पर प्रस्तावित श्रेणियों में पदार्थ ,गुण,संबंध,मामलों की परिस्थितिऔर घटनाएं ( अनुवृत्त ) शामिल हैं ।इन श्रेणियों को विशिष्टताऔर सार्वभौमिकता , अमूर्तता औरसंक्षिप्तता या संभावना और अनिवर्यता जैसी मौलिक तत्वमीमांसा अवधारणाओं से पहचाना जाता है।विशेष रुचि की बात, सत्तामीमांसक निर्भरताकी अवधारणा है, जो यह निर्धारित करती है कि किसी श्रेणी की इकाईयां मौलिक स्तर पर मौजूद हैं या नहीं।सत्तामीमांसा के भीतर असहमति अक्सर इस बारे में होती है कि क्या एक निश्चित श्रेणी से संबंधित इकाईयां मौजूद हैं और यदि हां, तो वे अन्य इकाईयों से कैसे संबंधित हैं। अस्मिता और परिवर्तन अंतरिक्ष और समय वस्तुएँ हमें दिक् और समय में दिखाई देती हैं, जबकि अमूर्त इकाईयां जैसे वर्ग, गुण और संबंध नहीं।दिक् और समय इस कार्य को वस्तुओं के आधार के रूप में कैसे पूरा करते हैं?क्या अंतरिक्ष और समय स्वयं इकाई हैं, किसी रूप में?क्या उनका अस्तित्व वस्तुओं से पहले होना चाहिए?उन्हें वास्तव में कैसे परिभाषित किया जा सकता है?समय परिवर्तन से कैसे संबंधित है;क्या समय के अस्तित्व के लिए हमेशा कुछ बदलना चाहिए? शास्त्रीय दर्शन ने उद्देशयवादीअंतिम कारणोंसहित कई कारणों को मान्यता दी ।विशेष सापेक्षताऔरक्वांटम फील्ड सिद्धांतमेंअंतरिक्ष, समय और कार्य-कारण की धारणाएं आपस में उलझ जाती हैं, साथ ही कार्य-कारणों के कालगत क्रम इस बात पर निर्भर हो जाते हैं कि कौन उन्हें देख रहा है।भौतिकी के नियम समय में सममित हैं, इसलिए उन्हें समय को पीछे चलने के रूप में वर्णित करने के लिए समान रूप से अच्छी तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है।फिर हम उसे एक ही दिशा में बहने वाला,समय का तीर, और एक ही दिशा में प्रवाहित होने वाला कारण-निमित्त क्यों मानते हैं? उस मामले के लिए, क्या कोई प्रभाव उसके कारण से पहले हो सकता है?यह माइकल डमेटद्वारा १९५४ के एक पेपर का शीर्षक था, जिसने एक चर्चा छेड़ दी जो आज भी जारी है।इससे पहले, १९४७ में,सीएस लुईस नेतर्क दिया था कि हम परिणाम से संपृक्त, अर्थपूर्ण रूप से प्रार्थना कर सकते हैं, उदाहरणतः , एक चिकित्सा परीक्षण, यह मानते हुए कि परिणाम पिछले घटनाओं द्वारा निर्धारित किया जाता है: "मेरी स्वतंत्र इच्छा ब्रह्मांडीय आकार में योगदान देती है।" इसी तरह, क्वांटम यांत्रिकीकी कुछ व्याख्याएं, जो १९४५ से चली आ रही हैं, समय-में पिछे हुए कारण प्रभावों को शामिल करती हैं। कार्य-कारण कई दार्शनिकों द्वाराप्रतितथ्यात्मकोंकी अवधारणा से जुड़ा हुआ है।यह कहना कि आ के कारण ब हुआ है, का अर्थ है कि यदि आ नहीं हुआ होता तो ब नहीं होता।इस विचार कोडेविड लेविसने अपने १९७३ के पेपर "कुआसशन( कारणता)" में आगे बढ़ाया था। उनके बाद के शोधपत्र आगे उनके कार्य-कारण के सिद्धांत को विकसित करते हैं। यदि विज्ञान का उद्देश्य कारणों और प्रभावों को समझना और उनके बारे में भविष्यवाणियां करना है, तो आमतौर परविज्ञान के दर्शन केआधार के रूप में कार्य-कारणता की आवश्यकता होती है । अनिवार्यता और संभाव्यता तत्वमीमांसाक इस सवाल की जांच करते हैं कि दुनिया कैसी हो सकती थी।ऑन द प्लुरलिटी ऑफ वर्ल्ड्समेंडेविड लेविस नेठोसनिश्चयमात्रक यथार्थवादनामक एक दृष्टिकोण का समर्थन किया , जिसके अनुसार चीजें कैसे हो सकती थीं, इसके बारे में तथ्य अन्यठोसदुनियाओं द्वारा ही सत्यापन किए जा सकते हैं जिनमें चीजें अलग हैं।गॉटफ्रीड लाइबनिजसहित अन्य दार्शनिकों ने भीसंभावित दुनिया के विचार के साथ काम किया है।सभी संभव संसारोंमें एक अनिवार्य तथ्य सत्य है।एक संभावित तथ्य किसी संभावित दुनिया में सच होता है, भले ही असली दुनिया में न हो।उदाहरण के लिए, यह संभव है कि बिल्लियों की दो पूंछें हो सकती थीं, या कोई सेब का कोई विशेष नस्ल न मौजूद हो।इसके विपरीत, कुछ प्रतिज्ञप्तियां अनिवार्य रूप से सत्य प्रतीत होते हैं, जैसे किविश्लेषणात्मक प्रतिज्ञप्तियां, उदाहरण के लिए, "सभी कुंवारे अविवाहित हैं।"यह विचार कि कोई भीविश्लेषणात्मक सत्य,अनिवार्य हो, दार्शनिकों के बीच सार्वभौमिक रूप से सहमति नहीं है।एक कम विवादास्पद दृष्टिकोण यह है कि आत्म-अस्मिता अनिवार्य है, क्योंकि यह दावा करना मौलिक रूप से असंगत लगता है कि कोई भीक्सस्वयं के समान नहीं है;इसेअस्मिता के नियमके रूप में जाना जाता है , जो एक विख्यात "प्रथम सिद्धांत" है।इसी प्रकार, अरस्तू नेगैर-विरोधाभास के सिद्धांत (अव्याघात - नियम) कावर्णन किया है : यह असंभव है कि वही गुण किसी चीज़ का होना चाहिए और नहीं भी होना चाहिए ... यह सभी सारघटकों में सबसे निश्चित है ... इसलिए जो निरुपण का कार्य करते हैं वे इसे अंत-परम मत के रूप में संदर्भित करते हैं।क्योंकि यह स्वभाव से ही अन्य सभी सूक्तियों का स्रोत है। इन्हें भी देखें जैन दर्शन के अनुसार तत्त्व सात है। यह हैं- जीव- जैन दर्शन में आत्मा के लिए "जीव" शब्द का प्रयोग किया गया हैं। आत्मा द्रव्य जो चैतन्यस्वरुप है। अजीव- जड़ या की अचेतन द्रव्य को अजीव (पुद्गल) कहा जाता है। आस्रव - पुद्गल कर्मों का आस्रव करना बन्ध- आत्मा से कर्म संवर- कर्म बन्ध को रोकना निर्जरा- कर्मों को शय करना मोक्ष- मरण के चक्र से मुक्ति को मोक्ष कहते हैं।
बेड़ी का अर्थ क़ैद करनेवाली ज़ंजीरें हैं। मिटा दो इन ग़ुलामी की बेड़ियों को। अन्य भारतीय भाषाओं में निकटतम शब्द
पल्लव लिपि या पल्लव ग्रन्थ एक ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न लिपि है जिसका नाम दक्षिणी भारत के पल्लव वंश से आता है। इसे ४थी शताब्दी ईस्वी के बाद से देखा जाता है। भारत में पल्लव लिपि ग्रन्थ लिपि में बदल गयी। दक्षिण पूर्वी एशिया में पल्लव लिपि फैली और बाली लिपि , जावा लिपि , कावी , बेयबायिन , सोम , बर्मी , खमेर , धम्म लान्ना , थाई , लाओ और नयी थाई लू वर्णमाला में बदल गयी । २०१८ में यूनिकोड में पल्लव लिपि को शामिल करने का प्रारंभिक प्रस्ताव रखा गया। ब्राह्मी परिवार की लिपियाँ
मॉनमाउथ फायर एण्ड रॅस्क्यू स्टेशन (, ) मॉनमाउथ, वेल्स, में रोकफ़ील्ड सड़क पर स्थित दमकल और बचाव केंद्र है। स्टेशन के कार्यक्षेत्र में मॉनमाउथ और उसके आसपास के इलाके आते हैं, तथा यह साउथ वेल्स फायर एण्ड रॅस्क्यू सर्विस के अंतर्गत आता है। मॉनमाउथ फायर एण्ड रॅस्क्यू स्टेशन में एक स्टेशन कमांडर है जो दो अन्य स्टेशनों के लिए भी जिम्मेदार है। स्टेशन में एक निगरानी प्रबंधक भी है जो स्टेशन और इसके संसाधनों का ध्यान व रखरखाव करता है। स्टेशन में निम्नलिखित कार्मिक व उपकरण हैं: छह कर्मीदल प्रबंधक सोलह फायर फाइटर एक प्रशासनिक सहायक दो अग्रपंक्ति उपकरण (दमकल इंजन), जिनमें से एक में वर्धित सड़क यातायात टकराव (रोड ट्रैफ़िक कोलिज़न) की बचाव क्षमता है। साउथ वेल्स फायर एण्ड रॅस्क्यू सर्विस की आधिकारिक वेबसाइट
एस्टोनिया, आधिकारिक तौर पर एस्टोनिया गणतंत्र उत्तरी यूरोप के बाल्टिक क्षेत्र में स्थित एक देश है। इसकी सीमाएं उत्तर में फिनलैंड खाड़ी, पश्चिम में बाल्टिक सागर, दक्षिण में लातविया और पूर्व में रूस से मिलती है। एस्टोनिया मौसमी समशीतोष्ण जलवायु से प्रभावित है। एस्तोनियाई बाल्टिक फिन्स के वंशज है और फिनिश भाषा से एस्तोनियन भाषा में बहुत सी समानताएं हैं। एस्टोनिया का आधुनिक नाम रोमन इतिहासकार टेसीटस की सोच माना जाता है, जिन्होंने अपनी किताब जरमेनिया (जर्मानिया) (का. ई. ९८) में व्यक्ति का उल्लेख ऐसिती के रूप में किया। एस्टोनिया एक लोकतांत्रिक संसदीय गणतंत्र है और पन्द्रह काउंटियों में विभाजित है। देश की राजधानी और सबसे बड़ा शहर तालिन्न है। केवल १.४ करोड़ की आबादी के साथ, एस्टोनिया यूरोपीय संघ का सबसे कम की आबादी वाला सदस्य है। एस्टोनिया २२ सितम्बर १92१, से लीग ऑफ नेशन, १7 सितंबर १99१ से संयुक्त राष्ट्र, १ मई 200४ के बाद से यूरोपीय संघ और और २९ मार्च २००४ के बाद से नाटो का सदस्य है। एस्टोनिया ने क्योटो प्रोटोकॉल पर भी हस्ताक्षर किए हैं। यूरोप के देश
मनोवैज्ञानिक युद्ध (साइकोलॉजिकल वरफरे (प्सिवर)) आधुनिक मनोवैज्ञानिक आपरेशनों के मूल हथियार हैं। इन्हें अन्य नामों (प्सी ऑप, पॉलिटिकल वरफरे, हार्ट्स एंड मिंड, एंड प्रोपेगंडा आदि) से भी जाना जाता है। मनोवैज्ञानिक युद्ध के अन्तर्गत बहुत सी तकनीकों का प्रयोग किया जाता है। ये तकनीकें लक्षित जनसमुदाय के मूल्य तंत्र (वेल्यू सिस्टम्स), विश्वासों (बेलीफ सिस्टम्स), आवेगों (इमोशन्स), वाहकों (मोटीव), तर्क-वितर्क (रीसोनिंग) एवं व्यवहार आदि को प्रभावित करने के उद्देश्य से की जातीं हैं। मनोवैज्ञानिक युद्ध के लक्ष्य सरकारें, संगठन, समूह या व्यक्ति हो सकते हैं। पहचान की राजनीति बांटो और राज करो सूचना संग्राम (इन्फार्मेशन वारफेयर) भीड़ का मनोविज्ञान
कविता रावत (अंग्रेजी :कविता राउत) (जन्म ०५ मई १९८५) एक भारतीय लम्बी-दौड़ के रनर है। इनका जन्म महाराष्ट्र के नासिक ज़िले में १९८५ में हुआ था। इनका वर्तमान में भारतीय रिकॉर्ड में भी नाम है। इन्होंने २०१० के राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य पदक जीता था। १९८५ में जन्मे लोग भारतीय महिला खिलाड़ी नासिक के लोग
ऑस्ट्रेलिया में मेलबर्न के समीप स्थित शहर। आस्ट्रेलिया के शहर