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भाई भाई १९७० में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। मुमताज़ - बिजली महमूद - जॉनी नामांकन और पुरस्कार १९७० में बनी हिन्दी फ़िल्म
वियनासंधि(कन्वेंशन) यह ओज़ोन परत के संरक्षण के लिए एक बहुपक्षीय पर्यावरण समझौता है। इस पर १९८५ के वियना सम्मेलन में सहमति बनी और १९८८ में यह लागू किया गया। १९६ देशों (सभी संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के साथ-साथ ही होली सी,निउए और कुक द्वीपसमूह) के साथ-साथ यूरोपीय संघों द्वारा इसे मंजूर किया जा चुका है। वियनासंधि,ओजोनपरतकीरक्षाकेलिएअंतरराष्ट्रीयप्रयासोंकेलिएएकढांचेकेरूपमेंकार्यकरताहै। हालांकि इसमें सीएफसी के इस्तेमालके लिएकानूनीरूप सेबाध्यकारी न्यूनता केलक्ष्य शामिलनहींहैं,ओज़ोन परत रिक्तीकरणकामुख्यकारणरासायनिककारकहैं।उपरोक्तबातेंमॉन्ट्रियलप्रोटोकॉलमेंरखीगयीं हैं। १९७० के दौरान, अनुसंधान ने संकेत दिया कि मानव निर्मित क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) वायुमंडल में ओजोन अणुओं को कम और परिवर्तित करते हैं। सीएफसी, कार्बन, फ्लोरीन और क्लोरीन से बने स्थिर अणु होते हैं जिनका उपयोग रेफ्रिजरेटर जैसे उत्पादों में प्रमुखता से किया जाता था। ओजोन ह्रास से जुड़े खतरों ने इस मुद्दे को वैश्विक जलवायु मुद्दों में सबसे आगे कर दिया और विश्व मौसम विज्ञान संगठन और संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठनों के माध्यम से समर्थन प्राप्त की। वियना कन्वेंशन १९८५ के वियना सम्मेलन में सहमत हुआ और १९८८ में लागू हुआ। वियना कन्वेंशन ने मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के रूप में नियामक उपायों को बनाने के लिए आवश्यक रूपरेखा प्रदान की। सार्वभौमिकता के संदर्भ में, यह अब तक की सबसे सफल संधियों में से एक है, १९७ राज्यों (सभी संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के साथ-साथ होली सी, नीयू और कुक आइलैंड्स) और यूरोपीय संघ द्वारा भी इसकी अभिपुष्टि की गई। बाध्यकारी समझौता नहीं करते हुए, यह ओजोन परत की रक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है; हालांकि, इसमें सीएफसी के उपयोग के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी कमी लक्ष्य शामिल नहीं किया गया, जोकि ओजोन ह्रास का कारण बनने वाले मुख्य रासायनिक तत्व हैं। संधि के प्रावधानों में ओजोन परत पर प्रभावों के ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए जलवायु और वायुमंडलीय अनुसंधान का अंतर्राष्ट्रीय साझाकरण शामिल है। इसके अलावा, संधि समाप्त हो चुकी ओजोन के हानिकारक प्रभावों और ओजोन परत को प्रभावित करने वाले हानिकारक पदार्थों के उत्पादन को नियंत्रित करने वाली नीतियों के प्रचार का आकलन करने के लिए अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को अपनाने के लिए बुलाती है। वियना कन्वेंशन के परिणामों में से एक ओजोन अनुसंधान प्रबंधकों की बैठक के रूप में जाना जाने वाला सरकारी वायुमंडलीय विशेषज्ञों के एक पैनल का निर्माण था, जो ओजोन की कमी और जलवायु परिवर्तन अनुसंधान का आकलन करता है और सम्मेलन (सीओपी) के लिए एक रिपोर्ट तैयार करता है। इसके अलावा, सीओपी सीएफसी उत्सर्जन को सीमित करने के उद्देश्य से नई नीतियों का सुझाव देने के लिए मूल्यांकन किए गए डेटा का उपयोग करता है। वर्तमान में, सीओपी हर तीन साल में बैठक करता है और मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत एक समान बैठक के समय के साथ समन्वय करता है। ओजोन सचिवालय सीओपी के प्रशासक के रूप में कार्य करता है, पार्टियों के मॉन्ट्रियल मीटिंग (एमओपी), और ओपन-एंडेड वर्किंग ग्रुप जो सम्मेलन के तहत कार्यों को सुविधाजनक बनाने में मदद करते हैं। एक बहुपक्षीय कोष विकासशील राष्ट्रों को कन्वेंशन के तहत दिशानिर्देशों का उपयोग करते हुए ओजोन-घटते रसायनों से संक्रमण की सहायता के लिए मौजूद है, जिसे एक बहुपक्षीय निधि सचिवालय द्वारा प्रशासित किया जाता है। बहुपक्षीय कोष में लगभग १५० देशों में हजारों परियोजनाएं कार्यान्वित हैं, जो लगभग २५०,००० टन ओजोन-क्षयकारी रसायनों के उपयोग को रोकती हैं। उनेप: ओजोन सचिवालय की वेबसाइट एडिथ ब्राउन वीस, प्रक्रियात्मक इतिहास नोट और दृश्य-श्रव्य सामग्री द्वारा परिचयात्मक नोट, संयुक्त राष्ट्र ऑडीओविज़ुअल लाइब्रेरी ऑफ़ इंटरनेशनल लॉ के ऐतिहासिक अभिलेखागार में "वियना कन्वेंशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ़ द ओजोन लेयर" पर। ओजोन परत के संरक्षण के लिए वियना कन्वेंशन, इकोलेक्स में उपलब्ध संधि-पर्यावरण कानून का प्रवेश द्वार (अंग्रेजी में)
पचपेडी धरमजयगढ मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़ जिले का एक गाँव है। छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़
भादौना में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत पुर्णिया मण्डल के अररिया जिले का एक गाँव है। बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ बिहार के गाँव
खडकोट, पिथौरागढ (सदर) तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा खडकोट, पिथौरागढ (सदर) तहसील खडकोट, पिथौरागढ (सदर) तहसील
वांक, थराली तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के चमोली जिले का एक गाँव है। उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) वांक, थराली तहसील वांक, थराली तहसील
मरुंतुवझ मलय भारत के पश्चिमी घाट की पर्वतमाला का एक पर्वत है। दक्षिण भारत के पर्वत
क्वीन्सबरी (अंग्रेज़ी: क्वीन्सबूरी) एक उत्तरपश्चिम लंदन में हैरो बरो का जिला है।
लव के लिये कुछ भी करेगा २००१ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। सैफ़ अली ख़ान - प्रकाश सोनाली बेंद्रे - सपना चोपड़ा फ़रदीन ख़ान - राहुल कपूर ट्विंकल खन्ना - अंजली चोपड़ा जॉनी लीवर - असलम भाई दलीप ताहिल - राजीव चोपड़ा शरत सक्सेना - इंस्पेक्टर सूरज सिंह स्नेहल डाबी - आज कपूर सुरेश भागवत - दास बाबू श्री वल्लभ व्यास नामांकन और पुरस्कार २००१ में बनी हिन्दी फ़िल्म
हाइड्रोजन या उदजन (ह) (मानक परमाणु भार: १.००७९४(७) उ) के तीन प्राकृतिक उपलब्ध [[समस्थानिक होते हैं:१ह, २ह, एंड ३ह। अन्य अति-अस्थायी नाभि (४ह से ७ह) का निर्माण प्रयोगशालाओं में किया गया है, किंतु प्राकृतिक रूप में नहीं मिलते हैं। हाइड्रोजन एकमात्र ऐसा तत्त्व है, जिसके समस्थानिकों को इसके नाम से स्वतंत्र अलग नाम मिले हुए हैं। इनके लिए चिह्न ड एवं त का प्रयोग होता है (बजाय २ह एवं ३ह के)। आईयूपीएसी चाहे ये प्रयोगा प्रचलन में है, किंतु अनुमोदित नहीं है। १ह सर्वसामान्य हाइड्रोजन समस्थानिक है। २ह, दूसरा हाइड्रोजन का स्थिर समस्थानिक होता है। इसका ऑक्सीजन संग यौगिक भारी जल बनाता है। ३ह को ट्राइटियम नाम से जानते हैं। ४ह हाइड्रोजन-४ अति अस्थिर समस्थानिक है। ५ह हाइड्रोजन का अस्थिर समस्थानिक है। ६ह हाइड्रोजन का अस्थिर समस्थानिक है। इसमें १ प्रोटोन व ५ न्यूट्रॉन होते हैं। ७ह एक प्रोटोन व ६ न्यूट्रॉन सहित हाइड्रोजन का अस्थिर समस्थानिक होता है।
नारायणपूर, बोथ मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
ग्वेर्नसे महिला क्रिकेट टीम वह टीम है जो अंतरराष्ट्रीय महिला क्रिकेट मैचों में एक क्राउन निर्भरता ग्वेर्नसे की बेलीविक का प्रतिनिधित्व करती है। ग्वेर्नसे २००५ में संबद्ध सदस्य और २००८ में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के सहयोगी सदस्य बने। अप्रैल २०१८ में, आईसीसी ने अपने सभी सदस्यों को पूर्ण महिला ट्वेंटी २० अंतर्राष्ट्रीय (मटी२०आई) का दर्जा दिया। इसलिए, १ जुलाई २०१८ के बाद ग्वेर्नसे महिलाओं और एक अन्य अंतरराष्ट्रीय पक्ष के बीच खेले जाने वाले सभी ट्वेंटी२० मैच पूर्ण मटी२०आई होंगे।
रजडेत, डीडीहाट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा रजडेत, डीडीहाट तहसील रजडेत, डीडीहाट तहसील
एमिली जीन स्टोन उर्फ़ एमा स्टोन एक अमेरिकी अभिनेत्री हैं। ये एक अकादमी पुरस्कार, एक ब्रिटिश अकादमी फिल्म पुरस्कार और एक गोल्डन ग्लोब पुरस्कार सहित विभिन्न पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं। स्टोन २०१७ में दुनिया की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली अदाकारा थीं और टाइम पत्रिका ने इन्हें दुनिया के १०० सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक के रूप में नामित किया था। स्कॉट्सडेल, एरिज़ोना में पैदा हुईं और पली-बढ़ी, स्टोन ने २००० में द विंड इन द विलो के एक थिएटर प्रोडक्शन में एक बच्ची के रूप में अभिनय शुरू किया। किशोरावस्था में ये अपनी माँ के साथ लॉस एंजिल्स में स्थानांतरित हो गई और इन सर्च ऑफ़ द न्यू पार्ट्रिज फ़ैमिली (२००४) से टेलीविज़न में अपनी शुरुआत की, एक रियलिटी शो जो अपने पायलट एपिसोड के आगे न बढ़ सका। टेलीविज़न पर छोटी भूमिकायें निभाने के बाद ये किशोर कॉमेडी फ़िल्मों की एक श्रृंखला में दिखाई दीं, जिन्होंने मीडिया का ध्यान इनकी ओर आकर्षित किया, जैसे कि सुपरबैड (२००७), द हाउस बन्नी (२००८), ज़ॉम्बीलैंड (२००९)और ईज़ी ए (२०१०) - स्टोन की पहली मुख्य भूमिका, बाफ़्टा राइज़िंग स्टार अवॉर्ड और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड के लिए नामांकन अर्जित किया। इस सफलता के बाद रोमांटिक कॉमेडी क्रेज़ी, स्टूपिड, लव (२०११) और ड्रामा द हेल्प (२०११) में और भी ज़्यादा कामयाबी मिली। २०१२ में आई सुपरहीरो फ़िल्म द अमेज़िंग स्पाइडर-मैन और इसके २०१४ के सीक्वल में स्टोन को ग्वेन स्टेसी के रूप में ज़्यादा बड़ी पहचान मिली। इन्होंने द क्रूड्स (२०१३) और इसके २०२० सीक्वल में मुख्य महिला किरदार ईप को आवाज़ दी। ब्लैक कॉमेडी बर्डमैन (२०१४) में नशे की लत से उबरने वाले किरदार के लिए स्टोन को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के अकादमी पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था, और इनका ब्रॉडवे डेब्यू म्यूज़िकल कैबरे (२०१४-२०१५) के पुनरुद्धार में आया था। रोमांटिक म्यूज़िकल ला ला लैंड (२०१६) में एक महत्वाकांक्षी अभिनेत्री के रूप में अपने प्रदर्शन के लिए इन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अकादमी पुरस्कार जीता। इन्होंने जीवनी खेल फ़िल्म बैटल ऑफ़ द सेक्सेस (२०१७) में बिली जीन किंग और ऐतिहासिक कॉमेडी-ड्रामा द फ़ेवरेट (२०१८) में एबीगेल माशम को चित्रित किया। द फ़ेवरेट के लिए स्टोन ने अपना तीसरा अकादमी पुरस्कार नामांकन प्राप्त किया। तब से अब तक इन्होंने नेटफ़्लिक्स की डार्क कॉमेडी मिनिसिरीज़ मैनियाक (२०१८), कॉमेडी सीक्वल ज़ॉम्बीलैंड: डबल टैप (२०१९), और क्राइम कॉमेडी-ड्रामा <ब>क्रूएला</ब> (२०२१) में अभिनय किया है। शुरूआती जीवन और शिक्षा एमिली जीन स्टोन का जन्म ६ नवंबर, १९८८ को स्कॉट्सडेल, एरीज़ोना में, एक सामान्य-कॉन्ट्रैक्टिंग कंपनी के संस्थापक और सी॰ई॰ओ॰ जेफ़री चार्ल्स स्टोन और गृहिणी क्रिस्टा जीन स्टोन (विवाह पूर्व येगर) के घर हुआ था। ये बारह से पंद्रह साल की उम्र तक कैमलबैक इन रिसॉर्ट के मैदान में रहती थीं। इनका एक छोटा भाई है, स्पेंसर। इनके दादा, कॉनराड ओस्टबर्ग स्टेन, एक स्वीडिश परिवार से थे, जिन्होंने एलिस आइलैंड के माध्यम से अमेरिका में प्रवास करने पर अपने उपनाम को "स्टोन" में बदल दिया। इनकी अपने पुरखों के ज़रिये जर्मन, अंग्रेज़ी, स्कॉटिश और आयरिश जड़ें भी हैं। स्टोन ने ज़ेवियर कॉलेज प्रिपरेटरी एक ऑल-गर्ल कैथोलिक हाई स्कूल में एक फ़्रेशमैन के रूप में भाग लिया, लेकिन अभिनेत्री बनने के लिए एक सेमेस्टर के बाद ही स्कूल छोड़ दिया। इन्होंने अपने माता-पिता के लिए 'प्रोजेक्ट हॉलीवुड' नामक एक पावरपॉइंट प्रेज़ेंटेशन तैयार किया ताकि उन्हें अभिनय के लिए कैलिफ़ोर्निया जाने के लिए मना सकें। जनवरी २००४ में, ये अपनी माँ के साथ लॉस एंजिल्स के एक फ़्लैट में स्थानांतरित हो गयीं। ये याद करती हैं, 'मैं डिज़्नी चैनल पर हर एक शो के लिए गयी और हर एक सिटकॉम पर बेटी की भूमिका निभाने के लिए ऑडिशन दिया', और कहा, 'मुझे कोई किरदार नहीं मिला।' भूमिकाओं के लिए ऑडिशन के बीच, इन्होंने ऑनलाइन हाई-स्कूल कक्षाओं में दाख़िला ले लिया और एक डॉग-ट्रीट बेकरी में पार्ट-टाइम नौकरी करने लगीं। २००४-२००८: प्रारंभिक भूमिकाएँ स्टोन ने वी॰एच॰१॰ टैलेंट प्रतियोगिता रियलिटी शो इन सर्च ऑफ़ द न्यू पार्ट्रिज फ़ैमिली (२००४) में लॉरी पार्ट्रिज के रूप में अपना टेलीविज़न डेब्यू किया। परिणामी शो, द न्यू पार्ट्रिज फ़ैमिली (२००४) एक न बिकने वाला पायलट ही रह गया। इसके बाद इन्होंने लुई सी॰के॰ की एच॰बी॰ओ॰ श्रृंखला लकी लुई में अतिथि भूमिका निभाई। इन्होंने एन॰बी॰सी॰ साइंस फ़िक्शन ड्रामा हीरोज़ (२००७) में क्लेयर बेनेट के किरदार के लिए ऑडिशन दिया लेकिन असफल रहीं और बाद में इसे अपना 'रॉक बॉटम' अनुभव कहा। अप्रैल २००७ में इन्होंने फ़ॉक्स एक्शन ड्रामा ड्राइव में वायलेट ट्रिम्बल की भूमिका निभाई, लेकिन सात एपिसोड के बाद ही शो रद्द कर दिया गया। स्टोन ने ग्रेग मोटोला की कॉमेडी सुपरबैड (२००७) में अपना फ़िल्मी डेब्यू किया, जिसमें माइकल सेरा और जोनाह हिल ने अभिनय किया। फ़िल्म हाई स्कूल के दो छात्रों की कहानी बताती है, जो एक पार्टी के लिए शराब ख़रीदने की योजना बनाने के बाद कई तरह के हास्य-व्यंग्यों से गुज़रते हैं। हिल की रोमांटिक रुचि की भूमिका निभाने के लिए, इन्होंने अपने बालों को लाल रंगा। द हॉलीवुड रिपोर्टर के एक समीक्षक ने इन्हें 'आकर्षक' पाया, लेकिन उन्हें लगा कि इनकी भूमिका ख़राब लिखी गई थी। स्टोन ने अपनी पहली पिक्चर में अभिनय के अनुभव को 'अद्भुत' बताया है... [लेकिन] 'तब से मेरे द्वारा किए गए अन्य अनुभवों से बहुत अलग है।' पिक्चर बॉक्स ऑफ़िस पर हिट थी और इन्हें रोमांचक नए चेहरे के लिए यंग हॉलीवुड अवार्ड मिला। अगले वर्ष, स्टोन ने कॉमेडी द रॉकर (२००८) में अमेलिया स्टोन की भूमिका निभाई, जो एक बैंड में एक गंभीर बास गिटारवादक थी; इन्होंने भूमिका के लिए बास बजाना सीखा। स्टोन, जो ख़ुद को 'बेहद मुस्कुराने और हँसेवाली' बताती हैं, ने स्वीकार किया कि इन्हें एक ऐसा चरित्र निभाना मुश्किल लगा जिसका व्यक्तित्व लक्षण इनसे बहुत अलग था। फ़िल्म और इनकी अदाकारी को आलोचकों से नकारात्मक समीक्षा मिली और बॉक्स ऑफ़िस पर पिट गयी। इनकी अगली रिलीज़, रोमांटिक कॉमेडी द हाउस बन्नी ने बॉक्स ऑफ़िस पर बेहतर प्रदर्शन किया। पिक्चर में ये एक सरोरिटी की अध्यक्षा की भूमिका निभाते हुए नज़र आयीं। फ़िल्म के लिए समीक्षाएं आम तौर पर नकारात्मक थीं, लेकिन स्टोन को उनकी सहायक भूमिका के लिए सराहा गया, टीवी गाइड के केन फ़ॉक्स ने कहा, "[वह] स्टार बनने की राह पर हैं"। स्टोन २००९ में रिलीज़ हुई तीन फ़िल्मों में दिखाई दीं। इनमें से पहली मार्क वाटर्स निर्देशित घोस्ट्स ऑफ़ गर्लफ़्रेड्स पास्ट में मॅथ्यू मॅकोनहे, जेनिफ़र गार्नर और माइकल डगलस के विपरीत थी। चार्ल्स डिकेंस के १८४३ उपन्यास ए क्रिसमस कैरल पर आधारित, इस रोमांटिक कॉमेडी में इन्होंने एक भूतनी की भूमिका निभाई है जो अपने पूर्व प्रेमी का शिकार करती है। पिक्चर की आलोचनात्मक प्रतिक्रिया नकारात्मक थी, हालांकि उसने बॉक्स ऑफ़िस पर थोड़े-बहुत पैसे कमाए। उस वर्ष इनका सबसे अधिक लाभदायक उद्यम रूबेन फ़्लेशर की $१०२.३ मिलियन-ग्रॉसिंग हॉरर कॉमेडी फ़िल्म ज़ॉम्बीलैंड थी, जिसमें वह जेसी ईसेनबर्ग, वुडी हैरेलसन और अबीगैल ब्रेस्लिन के साथ थीं। मूवी में ये एक कॉन आर्टिस्ट और एक ज़ोंबी अपॉकलिप्स की उत्तरजीवी के रूप में दिखाई दीं, एक भूमिका में जिसे एम्पायर पत्रिका के क्रिस हीयूइट ने "कुछ हद तक अंडररिटन" पाया। एक अधिक सकारात्मक समीक्षा में, द डेली टेलीग्राफ़ के टिम रॉबी ने लिखा, 'वे बेहद आशाजनक स्टोन... [हैं] जो अपनी उम्र की तुलना में ज़्यादा समझदार होने की आभा को प्रोजेक्ट करती हैं।' २००९ में स्टोन की तीसरी रिलीज़ कीरन और मिशेल मुलरोनी की पेपर मैन थी, जो एक कॉमेडी-ड्रामा थी जिसने आलोचकों को निराश किया। १९८८ में जन्मे लोग
दरिअपुर (औरंगाबाद) में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद जिले का एक गाँव है। बिहार - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ बिहार के गाँव
कवच-हड्डी लिपि (चीनी - ) चीनी लिपि का सबसे पुराना ज्ञात उदाहरण है। इस लिपि के भाव-चित्र देववाणीय हड्डियां पर मिले हैं जानवर की हड्डियों एवं कछुओं के कवच के अंदुर्नीय हिस्से पर प्रश्न लिखे जाते थे, और इन प्रश्नों के उत्तर अग्नि अटकल से पाये जाते थे। इस लिपि के सबसे पुराने उदाहरण दूसरी सहस्राब्दी आम युग पूर्व के हैं। ५०,००० से अधिक अंकित वस्तुओं में से अधिकतर यिनशू स्थान (श्याओट्व़न में, आधुनिक आन्यांग, हेनान प्रांत के पास) में पाए गए थे। वे शांग वंश के अंतिम नौ राजाओं के अग्नि अटकल के परिणाम हैं। इन राजाओं में से सबसे पहले थे वू़ डिंग के, जिनका राज अभिषेक या तो १२५० आम युग पूर्व या फिर १२०० आम युग पूर्व में हुआ था। १०४६ आम युग पूर्व में जब झौउ राजवंश ने शांग राज को उखाङा, तब सहस्रपर्णी पर अटकल करना प्रचलित हुआ, अतः पश्चिमी झोउ राजवंश के समय में शांग राजवंश के समय की तुलना में बहुत कम देववाणीय हड्डियां मिली है। अब तक, कोई भी झोउ स्थान में यिनशू जितनी अंकित हड्डियां नहीं मिली है, परंतु कम सात्रा में उत्कीर्ण देववाणीय हड्डियां उस समय में बहुत स्थानों में काम आती थी (उस समय की बङी जनसंख्या वाले स्थान में ऐसी हड्डीयां मिली हैं, और ऐसे स्थान २००० आम युग के पश्चात और मिलें हैं)। चीनी भाषा पाठ वाले लेख
क्रेदू मीन, सिन्योरीनो! (एस्पेरांतो: क्रेडुं मीन, सिन्जोरिनो!, हिन्दी: मेरा यक़ीन कीजीये, मोहतरमा!) स्काटलैंड के चेत्सारो रोसेत्ती (सेज़ारों रोसेट्टी) का एस्पेरांतो में लिखा एक नावल है, जिसे १९५० में पबलिश किया गया था। नावल रोसेत्ती की आत्मकथा पर आधारित है। इस किताब में लेखक अपने सेलसमैन की तरह गुज़ारे दिनों के बारे में लिखता है। यह पुस्तक विलियम आॅलड (विलियम ऑल्ड) की एस्पेरांतो की ५० बुनियादी किताबों में शुमार है। हंगरी के शानदोर सातमारी (संडोर स्ज़ाथमरी) ने इस किताब का हंगेरियन में तरजुमा किया है, जब कि मिलान के एस्पेरांतो कल्ब ने इस का अनुवाद इतालवी में कर के २०१३ मैं शाया किया है। नावल का पूरा टेक्सट
सतपुड़ा (सतपुडा) भारत के मध्य भाग में स्थित एक पर्वतमाला है। सतपुड़ा पर्वतश्रेणी नर्मदा एवं ताप्ती की दरार घाटियों के बीच राजपीपला पहाड़ी, महादेव पहाड़ी एवं मैकाल श्रेणी के रूप में पश्चिम से पूर्व की ओर विस्तृत है। पूर्व में इसका विस्तार छोटा नागपुर पठार तक है। यह पर्वत श्रेणी एक ब्लाक पर्वत है, जो मुख्यत: ग्रेनाइट एवं बेसाल्ट चट्टानों से निर्मित है। इस पर्वत श्रेणी की सर्वोच्च चोटी धूपगढ़ १३५० मीटर है, जो महादेव पर्वत पर स्थित है। सतपुड़ा रेंज के मैकाल पर्वत में स्थित अमरकंटक पठार से नर्मदा तथा सोन नदियों का उद्गम होता है। सतपुड़ा पर्वत की उत्पत्ति भ्रंसन क्रिया के फलस्वरूप हुई है। इसके उत्तर में नर्मदा भ्रंस आर दक्षिण में ताप्ती भ्रंस स्थित है। सतपुड़ा की सर्वोच्च चोटी धुपगढ़ महादेव पहाड़ी पर है। इसके पूर्व में मैकाल की पहाड़ी स्थित है जो सतपुड़ा का ही बढ़ा हुआ भाग है जिसकी सर्वोच्च चोटी अमरकंटक है! जो नर्मदा नदी का उद्गम स्थल है सतपुड़ा क्षेत्र से कई महत्वपूर्ण नदियाँ उत्पन्न होती हैं, जैसे कि नर्मदा नदी, महानदी, ताप्ती नदी। इन्हें भी देखें छोटा नागपुर पठार विन्ध्याचल पर्वत शृंखला भारत के प्रायद्वीपीय पठार की स्थलाकृतिक विशेषता भारत की भौतिक संरचना एवं प्रदेश भारत की पर्वतमालाएँ महाराष्ट्र के पर्वत मध्य प्रदेश के पर्वत गुजरात के पर्वत
अपराध स्थान वह स्थान है जहां कोई अपराध हुए हो। अपराध स्थान जहां सबूत प्राप्त होते हैं, जो अपराध और अपराधी को जोडता है। अपराध स्थान पर जांच पड़ताल अपराध दृश्य अन्वेषणकर्ता करता है। सबसे पहले अपराध स्थान को प्रतिबंधित किया जाता है कि कोई भी सबूत नस्ट न हो या उस सबूत को हटा न दे। पहले अपराध दृश्य अन्वेषणकर्ता एक पुलिस वाला होता है। पूरे अपराध स्थान का फोटो लिया जाता है। अपराधिक स्थान पर अन्वेषणकर्ता या कोई और व्यक्ति सबूत को अपनी स्थान से नहीं हटा सकता जब तक उसकी तस्वीर ना ली गई हो। अनधिकृत व्यक्ति को अपराधिक स्थान पर आने नहीं दिया जाता है। अपराध स्थान पर मिले हुए सबूतों को ध्यान से उठाया जाता है फिर उससे उतनी ही ध्यान से पैक किया जाता है कोई सबूत खराब ना हो जाये। अपराध दृश्य अन्वेषणकर्ता को खास ध्यान रखना पड़ता है कि कोई अनजान व्यक्ति अपराध स्थान पर ना आये या किसी भी वस्तु या सबूत को हाथ ना लगाएं। अपराध के दृश्य के प्रकार अपराध किसी भी समय और कही भी हो सकता है। अपराध सिर्फ घर की चार दिवारी में ही नहीं बल्की खुले आशमान के निचे भी हो सकता है। अपराध के दृश्य के तीन प्रकार है- आउटडोर अपराध स्थल अपराध जो चार दिवारी के बहार हुआ हो जेसे की मेदान में या जंगल में। आउटडोर अपराध स्थल की छान बीन करना बहुत मुश्किल होता है। क्योंकी सबूत कराब होने के मोके जादा होते हैं। बारिश, धुल और गर्मी के करण सबूत करब हो जाते हैं। इंडोर अपराध स्थल अपरध जो चार दिवारी के अन्दर हुआ हो जसे की घर में या फैक्ट्री में। इंडोर अपराध स्थल में छान बीन करना जादा मुश्किल नहीं होता है। क्योंकी वहाँ सबूत कराब या नष्ट होने के मोके जादा नहीं होते हैं। वाहन अपराध स्थल वाहन अपराध स्थल वह है जिस में वाहन की चोरी हुए हो। यह अपराध स्थल में छान बीन करना मुश्किल होता है। कहा से कब चोरी हुआ और कहा जाके मिला है यह सब पता लगाना मुश्किल हो जाता है। हिरासत में लेने की कड़ी शुरु से ले कर मामला या केस ख़तम होने तक, उस पूरे मामले की प्रलेखन बनाई जाती है। हिरासत में लेने की कड़ी में यह होता है- जो व्यक्ति सबूत उठा रहा है उसका नाम और जो उस सबूत से जुड़ा हुआ है उस का नाम। जिस तारिक को सबूत उठाया है और आगे भेजा है। एजेंसी का नाम, केस नंबर और अपराध किस तरह का है। जो व्यक्ति केस मी शामिल है उसके नाम। केस की तस्वीरे। न्यायालय की प्रक्रिया। केस का खत्म होने की तारिक और फ़ेसला।
राजमऊ अतरौली, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। अलीगढ़ जिला के गाँव भारत के गाँव आधार
हैचबैक मोटरगाड़ी किसी भी कार के बाहरी ढाँचे के निर्माण की एक लोकप्रिय शैली है। इस शैली की गाड़ियों में सामान्यतः पाँच दरवाजे होते है। दो दरवाजे चालक की तरफ़ एवं दो दरवाजे यात्रियों की बगल में होते हैं। पाँचवाँ दरवाजा गाड़ी के पृष्ठ भाग में होता है। सेडान शैली की गाड़ियों के विपरीत इस प्रकार की गाड़ियों में सामान रखने के लिये अलग से स्थान नहीं होता। हैचबैक गाड़ियों में बैठने के लिये दो कतारों में जगह होती है। पिछली कतार को मोड़ कर समान रखने के लिये उपयोग में लिया जा सकता है। भारत में अधिकतम लोकप्रिय मोटरगाडियाँ हैचबैक शैली की हैं जैसे मारुति ८००, ऑल्टो, वैगन-आर, स्विफ्ट्, ह्युंडई सेन्ट्रो, टाटा इंडिका। इस प्रकार की कारें छोटे परिवारों के लिये उपयुक्त मानी जाती हैं। मारुति सुज़ुकी सिलैरियो - पूर्णत: ऑटोमेटिक कार
वांगीधार, सल्ट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा वांगीधार, सल्ट तहसील वांगीधार, सल्ट तहसील
ऊपरी दिबांग घाटी ज़िला (उपर दिबांग वाल्ली डिस्ट्रिक्ट) भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय अनिनी शहर है। यह भारत की सबसे कम जनसंख्या वाला ज़िला है। इन्हें भी देखें अरुणाचल प्रदेश के जिले
घियारू बगड, रानीखेत तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा बगड, घियारू, रानीखेत तहसील बगड, घियारू, रानीखेत तहसील
मुंड्लपल्लॆ (कडप) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कडप जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
पृथ्वीराजविजयमहाकाव्यम् संस्कृत महाकाव्य है। इसे हिन्दी में 'पृथ्वीराज विजय महाकाव्य' भी कहा जाता है। इसमें तारावड़ी के प्रथम युद्ध में की विजय का वर्णन है। इसमें तरावड़ी के द्वितीय युद्ध का उल्लेख नहीं है। इसकी रचना लगभग ११९१-९२ में जयानक नामक कश्मीरी राजकवि ने किया था। पृथ्वीराजविजयमहाकाव्य की एकमात्र ज्ञात पांडुलिपि भोजपत्र पर शारदा लिपि में है। इसकी खोज १८७५ में जॉर्ज बुहलर ने की थी जब वे कश्मीर में संस्कृत पांडुलिपियों की खोज कर रहे थे। पांडुलिपि अत्यधिक कटी-फटी है, और इसके कई भाग (लेखक का नाम सहित) इससे गायब हैं। यद्यपि लेखक का नाम पांडुलिपि से गायब है किन्तु हरविलास शारदा ने सिद्धान्त दिया कि पाठ की रचना जयनाक ने की थी, जो पृथ्वीराज के दरबारी-कवि थे। यह सिद्धान्त निम्नलिखित बिंदुओं पर आधारित है: इस काव्य के १२वें सर्ग में पृथ्वीराज के दरबार में कश्मीरी कवि जयनाक की प्रविष्टि है। प्रथम सर्ग में, ऐसी आशा जतायी गयी है कि पृथ्वीराज इस काव्य को सुनेंगे। यह इंगित करता है कि कविता की रचना उनके एक दरबारी-कवि ने की थी। इसका रचनाकार कश्मीरी पंडित लगता है, क्योंकि: इसकी काव्यात्मक शैली ११ वीं शताब्दी के कश्मीरी कवि बिल्हण से मिलती-जुलती है। इसका मंगलाचरण तथा ग्रन्थ के आरम्भ में अन्य कवियों की आलोचना, बिल्हण के विक्रमाङ्क-देव-चरित से मिलती-जुलती है। विक्रमाङ्क-देव-चरित , विक्रमादित्य षष्ट के जीवन पर आधारित एक स्तवन काव्य है। पृथ्वीराजविजयमहाकाव्य के १२वें सर्ग में कश्मीर की प्रशंसा है। कश्मीरी विद्वान जोनराज ने इस ग्रन्थ पर एक टीकाग्रन्थ लिखा है। इस काव्य को उद्धृत करने वाला एकमात्र समकालीन व्यक्ति जयरथ था। जयरथ भी एक कश्मीरी था। यह पांडुलिपि कश्मीर में मिली थी। रचना की तिथि कश्मीरी विद्वान जयरथ ने अपनी 'विमर्षिणी' (१२०० ई) में इस काव्य को उद्धृत किया है। इसलिए इस तिथि से पहले निश्चित रूप से इसकी रचना हो चुकी थी। इस महाकाव्य में तराइन के प्रथम युद्ध और उसमें पृथ्वीराज की विजय का उल्लेख है, लेकिन तराइन के द्वितीय युद्ध और उसमें पृथ्वीराज की पराजय का वर्णन नहीं है। यह इंगित करता है कि यह संभवतः ११९१ से ११९२ ई के बीच लिखा गया था (पहले युद्ध के बाद किन्तु दूसरे युद्ध के पहले)। इस प्रकार, पृथ्वीराजविजय पृथ्वीराज के शासनकाल में रचित एकमात्र साहित्यिक ग्रन्थ है जो विलुप्त होने से बचा हुआ है। सिंथिया टैलबोट २०१५ प = ३७ इस महाकाव्य में १२ सर्ग हैं। प्रथम काण्ड में वाल्मीकि, व्यास और भास आदि प्राचीन कवियों की प्रशंसा है। इसमें समकालीन कवियों कृष्ण और विश्वरूप का भी उल्लेख है। इसमें विश्वरूप की भी प्रशंशा की गयी है जो अजमेर का मूल निवासी तथा ग्रन्थ के रचयिता का मित्र और मार्गदर्शक है। इसके बाद इसमें पृथ्वीराज चौहान की प्रशंसा है जिसने कवि को बहुत सम्मान दिया। इसमें उल्लेख है कि बचपन में ही पृथ्वीराज में भविष्य में महान बनने के लक्षण विद्यमान थे। इसमें यह भी उल्लेख है कि राजा छह भाषाओं में प्रवीण था। इसके बाद इसमें पुष्कर का वर्णन है। इसमें कहा गया है कि पुष्कर में 'अजगन्ध महादेव' नामक शिव मन्दिर था। कविता में ब्रह्मा, विष्णु से कहते हैं कि कि मूलतः अजमेर में तीन यज्ञकुण्ड थे जो बाद में झील बन गए। इस सर्ग में यह वर्णन है कि ब्रह्मा ने विष्णु से निवेदन किया कि "पुष्कर में मुसलमानों द्वारा की गयी अशिष्टता" को सुधारने के लिये वे पृथ्वी पर जन्म लें। परिणामस्वरूप पृथ्वीराज का जन्म हुआ। अतः इस ग्रन्थ में पृथ्वीराज को विष्णु के अवतार के रूप में प्रस्तुत किया गया है। पृथ्वीराज के वंश का संस्थापक चहमान सूर्य की कक्षा से प्रकट हुए थे , अतः वे पौराणिक सूर्यवंशी थे। उनके भाई धनंजय उनके सेनापति थे। राजा वासुदेव का जन्म चहमान के वंश में हुआ था। तीसरा और चौथा काण्ड एकबार वन में शिकार करते समय वासुदेव को एक चमत्कारिक गोली मिली। उससे उन्होंने एक विद्याधर (अलौकिक प्राणी) प्रकट किया। प्रसन्न विद्याधर ने उन्हें बताया कि देवी पार्वती, शाकम्भरी नाम से इस वन में निवास करती हैं। विद्याधर ने अपने चमत्कार के द्वारा नमकीन पानी वली एक झील (सांभर झील) का निर्माण किया। विद्याधर ने वासुदेव से कहा कि शाकम्भरी और आशापुरी (वासुदेव की कुलदेवी) सदा इस झील की रक्षा करेंगी और यह झील सदा उनके वंशजों के अधिकार में रहेगी। पृथ्वीराज के पूर्वजों की वंशावली दी गई है: कवि ने इस काण्ड में कुछ आरम्भिक चहमान राजाओं के शासनकाल के बारे में संक्षेप में बताया है: गोविंदराजा द्वितीय (उर्फ गुवाका ई) की बहन की बारह बहनें थीं, लेकिन उसने कान्यकुब्ज (कन्नौज) के राजा से शादी की। उसने अन्य सूइटर्स को हराया, और अपनी बहन को अपनी संपत्ति दी। चंदनराज की रानी रुद्राणी, जिन्हें अतापम्भा या योगिनी भी कहा जाता है, को १००० शिव लिंगम पुष्कर झील के किनारे स्थापित किया गया है। ये लिंग ऐसे थे जैसे दीपक जो अंधकार को दूर करते हैं। वाक्पतिराज प्रथम ने १८८ युद्ध जीते, और पुष्कर में एक शिव मंदिर का निर्माण किया। विग्रहराज द्वितीय ने मुलाराजा, गुजरात के राजा को हराया, जिन्हें कंठ-दुर्गा (कंथकोट) से भागना पड़ा। विग्रहराज ने रीवा (नर्मदा) नदी के तट पर आशापुरी देवी का मंदिर बनाया। वाक्पतिराज द्वितीय ने अघट के शासक अम्बा-प्रसाद को मार डाला। मालवा भोज द्वारा वीराराम की हत्या कर दी गई थी। चामुंडराज ने नरपुर (नरवर) में एक विष्णु मंदिर बनवाया। दुरलाभराजा तृतीय की मातंगों (मुसलमानों) के खिलाफ लड़ाई में मृत्यु हो गई। विग्रहराज द्वितीय ने मालवा के उदयादित्य को सारंगा नाम का एक घोड़ा दिया। इस घोड़े की मदद से, उदयादित्य ने गुजरात के राजा को हराया। पृथ्वीराज प्रथम ने ७०० चालुक्य को मार डाला जो पुष्कर में ब्राह्मणों को लूटने आए थे। उन्होंने सोमनाथ के लिए सड़क पर एक धर्मार्थ संस्थान भी स्थापित अजयराज द्वितीय (उर्फ सलहना) ने मालवा के राजा सुलहना के साथ-साथ मुसलमानों को हराया। उसने दुनिया को चांदी के सिक्कों से भर दिया, और उसकी रानी सोमालेखा को हर दिन ताजे मिट्टी के सिक्कों का इस्तेमाल किया जाता था। रानी ने एक मंदिर के सामने स्टेपवेल बनवाया। अजयराज द्वितीय ने अजयमेरु (अजमेर) शहर की स्थापना की, जो मंदिरों से भरा था और जिसे मेरु कहा जाने योग्य था। कविता आगे बढ़ती है। अजयमेरु को समाप्त करने के लिए। उदाहरण के लिए, यह बताता है कि अजयमेरु के नौकरानियों के लिए लंका और द्वारका जैसे महान महान शहर भी फिट नहीं थे। अर्णोराज ने मुस्लिम आक्रमणकारियों को हराया, जिनमें से कई अजयमेरु के नायकों द्वारा मारे गए थे। जीत का जश्न मनाने के लिए, राजा ने एक झील, और इसे चंद्रा नदी (जिसे अब बांडी नदी कहा जाता है) के पानी से भर दिया। उन्होंने एक शिव मंदिर भी बनाया, और इसका नाम अपने पिता अजयराज (अब अजयपाल मंदिर कहा जाता है) के नाम पर रखा। अर्नोराजा की दो पत्नियाँ थीं: अविची (मारवाड़) का सुधाव, और कंचनदेवी (गुजरात की जयसिम्हा सिद्धराज की बेटी]]। अर्नोराजा और सुधा के तीन बेटे थे, जो तीन गनस (गुणों) के रूप में अलग थे। इनमें से, विग्रहराज चतुर्थ सत्त्व गुन (अच्छा) था। सबसे बड़े पुत्र ( जगददेव), जिसका नाम पाठ में नहीं है) ने अरनोरजा को भृगु के पुत्र के समान सेवा प्रदान की (अपनी माता को मार डाला)। यह पुत्र एक दुष्ट गंध को पीछे छोड़ते हुए बाती की तरह बाहर चला गया। सोमेश्वरा अरनोरजा और कंचनदेवी के पुत्र थे। ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि सोमेश्वर का पुत्र (अर्थात, पृथ्वीराज तृतीय) पौराणिक दिव्य नायक राम का अवतार होगा। इसलिए, जयसिम्हा ने सोमेश्वरा को गुजरात की अपनी अदालत में ले लिया। इसके बाद कविता में सोम (देवता: सोम], बुद्ध, पौरव और भरत (महाभारत: भरत] के सदस्यों सहित पौराणिक चंद्र वंश का वर्णन है। । पांडुलिपि का एक हिस्सा इन श्लोकों के बाद गायब है। इसके बाद, कविता में पौराणिक राजा कार्तवीर्य का वर्णन है, और कहा गया है कि त्रिपुरी के कलचुरि (पृथ्वीराज की माता का परिवार) एक सहसिख ("साहसी") के माध्यम से उनके वंशज थे। हर बिलास सारड १९३५ पी = २०७ कविता में कहा गया है कि जयसिम्हा सिद्धराज (पृथ्वीराज तृतीय के नाना) शिव के भक्त कुंभोदर के अवतार थे। उनके उत्तराधिकारी कुमारपाल (शाब्दिक रूप से "एक बच्चे के रक्षक") ने एक युवा सोमेश्वरा को अपने पास रखा, और इस तरह वह अपने नाम के योग्य बन गया। जब सोमेश्वरा बड़ी हुई, तो उसने कुमारपाल के उस क्षेत्र पर आक्रमण के दौरान कोंकण के राजा का सिर काट दिया। सोमेश्वरा ने त्रिपुरी की राजकुमारी करपुरा-देवी से शादी की। हरविलास शारदा १९३५ प = २०७ पाठ में कहा गया है कि पृथ्वीराज का जन्म ज्येष्ठ)] महीने के ८ वें दिन हुआ था। यह उनके जन्म के समय ग्रहों की स्थिति बताता है, हालांकि कुछ अंश केवल उपलब्ध पांडुलिपि से गायब हैं। पृथ्वीराज का जन्म कई उत्सवों के साथ मनाया गया था। उनकी देखभाल के लिए एक गीली नर्स को नियुक्त किया गया था। उनकी रक्षा के लिए, एक बाघ के पंजे और विष्णु के दस अवतार के चित्र उनके हार से जुड़े थे। रानी फिर से गर्भवती हुई, और उसे जन्म दिया। हरिराज मघा महीने में। } विग्रहराज चतुर्थ यह सुनकर एक खुशहाल व्यक्ति की मृत्यु हो गई कि उसके भाई के दो पुत्रों के साथ पृथ्वी धन्य हो गई। वाक्यांश "कवियों का मित्र" उनकी मृत्यु के साथ गायब हो गया। उनके अविवाहित पुत्र अपरगंगे की भी मृत्यु हो गई। पृथ्वीभट्ट, सुधाव के ज्येष्ठ पुत्र, भी प्रस्थान कर गए, मानो विग्रहराज को वापस लाने के लिए। सुधा की रेखा से नर मोती की तरह गिर रहे थे। लक्ष्मी (भाग्य की देवी) ने सुधवा के वंश को छोड़ दिया, और देखना चाहती थी सोमेश्वरा (पृथ्वीराज के पिता)। इसलिए, चमन मंत्री सोमेश्वरा को सपादलक्ष (चम्मन देश) ले आए। सोमेश्वरा और कर्पूर-देवी अपने दो पुत्रों पृथ्वीराज और हरिराज के साथ अजयमेरु आए। सोमेश्वरा नए चम्मन राजा बने, और एक नए नगर की स्थापना की जहाँ विग्रहराज के महल स्थित थे। उसने अपने पिता अरनोरजा के नाम पर अपने बड़े बेटे द्वारा अर्नोराजा की हत्या के बाद छोड़े गए धब्बे को हटाने के लिए इस नए शहर का नाम रखा। अजयमेरु में, विग्रहराज ने जितने मंदिरों पर विजय प्राप्त की थी, उतने मंदिरों का निर्माण किया था। इन मंदिरों के मध्य में, सोमेश्वर ने वैद्यनाथ (शिव) मंदिर का निर्माण किया, जो कि विग्रहराज के सभी मंदिरों से लंबा था। उन्होंने इस मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु और शिव के चित्र स्थापित किए। उन्होंने मंदिर परिसर में अपने पिता और स्वयं घोड़ों की सवारी के पुतले भी लगाए। जैसे मेरु में पांच कल्पवृक्ष थे, सोमेश्वर ने अजयमेरु में पांच मंदिरों का निर्माण किया। उसने अन्य स्थानों पर इतने सारे मंदिर बनवाए, कि देवताओं की नगरी की आबादी घट गई। सोमेश्वरा ने अपने जवान बेटे की रक्षा के लिए रानी को नियुक्त किया, और फिर स्वर्ग में अपने पिता के साथ रहने के लिए प्रस्थान किया। उनके सभी पूर्ववर्ती, चम्मन से लेकर पृथ्वीभट्ट तक उनका स्वागत करने के लिए आए थे, सिवाय अर्नोरजा के बड़े बेटे को, जो नरक में छिपा था। करपुरा-देवी की रीजेंसी के दौरान, (अजयमेरु) शहर इतनी घनी आबादी वाला था और इसमें कई मानव निर्मित संरचनाएं थीं, जो सूरज जमीन के दसवें हिस्से से अधिक नहीं देख पा रहा था। पृथ्वीराज के मंत्री कदंब-वास ने उन्हें हनुमान राम की सेवा दी। उसने युवा राजा की महिमा में जोड़ने के लिए सभी दिशाओं में सेनाएँ भेजीं। सीखने की सभी शाखाएँ एकजुट हो गईं और पृथ्वीराज के पास आ गईं, और वह उन सभी कलाओं और विज्ञानों के बारे में जानने लगीं, जिनमें एक राजा को कुशल होना चाहिए। कामदेव ने धनुर्विद्या सीखने के लिए, और [[] के डर से जीना बंद कर दिया। शिव। पृथ्वीराज और उनके भाई हरिराज जैसे राम और लक्ष्मण थे। पृथ्वीराज के मामा रिश्तेदार भुवनिका-मल्ल उनके पास यह पता लगाने के लिए आए कि वे केवल दो भुजाओं के साथ पृथ्वी की रक्षा करने में कैसे सक्षम थे। भुवनिका-मल्ल एक दुस्साहसी योद्धा थे, और उन्होंने अपना सारा धन दान में दे दिया। वह छापा मारना चाहता था दक्षिण, लेकिन ऐसा करने के खिलाफ फैसला किया क्योंकि सम्मानित ऋषि अगस्त्य वहीं रहते थे। गरुड़ का अवतार, उन्होंने दो भाइयों की सेवा की, और नागों को अपने अधीन कर लिया। {{सैन | हरविलास शारदा | १९३५ | प = २१०} | कदंब-वास और भुवनिका-मल्ल के समर्थन से, पृथ्वीराज ने अपने लोगों के कल्याण के लिए कई काम किए। जब पृथ्वीराज वयस्क हुआ, तो कई राजकुमारियों ने उससे शादी करने की इच्छा व्यक्त की। उनके अच्छे भाग्य ने उन्हें युद्ध करने के कई अवसर भी दिए। जब विग्रहराज के पुत्र नागार्जुन ने गुदापुरा पर विजय प्राप्त की, तो पृथ्वीराज ने उनके खिलाफ एक सेना का नेतृत्व किया और गुदापुरा किले को घेर लिया। नागार्जुन ने एक योद्धा के कर्तव्य को त्याग दिया, और किले से भाग गया। पृथ्वीराज ने अपने योद्धाओं को मार डाला और किले पर कब्जा कर लिया। वह नागार्जुन की पत्नी और माँ को अजमेर ले आया, और अपने दुश्मनों के सिर अजमेर किले की लड़ाइयों पर रख दिए। एक गोमांस खाने वाला म्लेच्छ घोरी ने उत्तर-पश्चिम में गर्जनी पर कब्जा कर लिया था, जहाँ घोड़े घिसटते थे। उनके दूत एक कोढ़ी के रंग के साथ एक गंजे आदमी थे, और जंगली पक्षियों की तरह बोलते थे। जब उन्होंने सुना कि पृथ्वीराज ने म्लेच्छों को नष्ट करने की कसम खाई है, तो उन्होंने चम्हाण राजधानी में एक राजदूत को भेजा। राजा के (सामंती राजाओं) ने उनके भय से उनके किले में शरण ली। जब उन्होंने नददुला पर कब्जा कर लिया, तो पृथ्वीराज क्रोधित हो गए और उन्हें अपने वश में करने की कसम खाई। पृथ्वीराज के मंत्री कदंब-वास ने उसे क्रोध न करने और ग़ोरी से न लड़ने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि दुश्मन खुद को नष्ट कर देंगे, ठीक उसी तरह जैसे सुंडा और उपसुंद ने खुद को तिलोत्तमा पर बर्बाद कर लिया। बस फिर, गुजरात से एक दूत पहुंचे और पृथ्वीराज को सूचित किया कि गुजरात के राजा का पराजित घोरी की सेना थी। कवियों के प्रमुख पृथ्वीभट्ट ने कदंबवास की प्रशंसा की क्योंकि घोमी को चम्हाण पक्ष की ओर से बिना किसी प्रयास के हराया गया था। फिर उन्होंने तिलोत्तमा की कहानी सुनाई। पृथ्वीराज ने उस पर उपहार देने के बाद दूत को खारिज कर दिया। पृथ्वीराज ने फिर अपनी गैलरी का दौरा किया, जहाँ पृथ्वीभट्ट ने उन्हें रामायण से चित्रण दिखाए, और राजा के कर्मों को उनके पिछले जन्म राम में सुनाया। राजा ने तब तिलोत्तमा का एक चित्र देखा, और कामदेव (प्रेम के देवता) ने उस पर विजय प्राप्त की। पृथ्वीराज ने तिलोत्तमा के लिए लंबे समय तक काम करना शुरू किया, और कामदेव के बाणों से घायल होकर दोपहर को गैलरी से बाहर निकल गए। जैसे ही पृथ्वीराज चित्रवीथी से बाहर आए, उनने सुना कि कोई काव्यपाठ कर रहा है। इस कविता का सार यह था कि यदि कोई कुछ पाने के अत्यन्त प्रयत्न करता है वह वस्तु उसे अवश्य प्राप्त होती है। पृथ्वीराज ने पद्मनाभ (पूर्व राजा विग्रहराज का एक मंत्री) से पूछा कि यह काव्यपाठ कौन कर रहा है। पद्मनाभ ने बताया कि यह जयनक हैं जो ज्ञान की भूमि कश्मीर से आये एक विद्वान हैं। फिर जयनक ने कहा कि मैं कश्मीर से अजयमेरु (अजमेर) आया था, क्योंकि विद्या की देवी ने मुझे विष्णु के अवतार (पृथ्वीराज) की सेवा करने के लिए कहा था। इस महाकाव्य की एकमात्र प्राप्त पांडुलिपि बारहवें अध्याय में अचानक समाप्त हो गयी है। अतः यह अधूरा है, लेकिन इसमें मुहम्मद ग़ोरी पर पृथ्वीराज की विजय (तराइन का पहला युद्ध] ) का उल्लेख है। इन्हें भी देखें तराइन का युद्ध पृथ्वी राजविजय महावाक्य का विश्लेषण हरविलास शारदा द्वारा
भूलगांव, पिथौरागढ (सदर) तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा भूलगांव, पिथौरागढ (सदर) तहसील भूलगांव, पिथौरागढ (सदर) तहसील
खगोलशास्त्र में बहु तारा दो से अधिक तारों का ऐसा गुट होता है जो पृथ्वी से दूरबीन के ज़रिये देखे जाने पर एक-दूसरे के समीप नज़र आते हैं। ऐसा दो कारणों से हो सकता है - यह तारे वास्तव में ही एक दुसरे से सम्बन्ध रखते हैं और एक-दूसरे से गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के कारण इकठ्ठे हैं यह सिर्फ पृथ्वी से देखने में ही पास लगते हैं (जिस तरह से दूर एक-के-पीछे-एक दो पहाड़ एक-दुसरे के पास लग सकते हैं, जबकि एक के पास जाने पर पता लगता है के उनमें पचास मील का फ़ासला भी हो सकता है) ज़्यादातर बहु तारा मंडलों में तीन तारे होते हैं। चार, पाँच, छह और उस से ज़्यादा तारों वाले मंडल भी होते हैं लेकिन कम ही मिलते हैं। अन्य भाषाओँ में अंग्रेज़ी में "बहु तारे" को "मल्टिपल स्टार" (मल्टीपल स्टार) कहा जाता है। इन्हें भी देखें हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
अम्याडी, रानीखेत तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा अम्याडी, रानीखेत तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा अम्याडी, रानीखेत तहसील अम्याडी, रानीखेत तहसील अम्याडी, रानीखेत तहसील
भारतीय तत्त्वशास्त्रमु तेलुगू भाषा के विख्यात साहित्यकार बुलुस वेंकटेश्वरुलु द्वारा रचित एक डॉ॰ राधाकृष्णन की हिस्ट्री ऑफ़ इंडियन फिलॉसफ़ी का अनुवाद है जिसके लिये उन्हें सन् १९५६ में तेलुगू भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत तेलुगू भाषा की पुस्तकें
माई नेम इज लखन्ननएक भारतीय हिंदी भाषा का सिटकॉम टीवी शो है जिसका प्रीमियर २६ जनवरी २०१९ को सब टीवी पर हुआ। इसमें श्रेयस तलपड़े, ईशा कंसारा, परमीत सेठी, अर्चना पूरन सिंह और रिभु मेहरा ने अभिनय किया। लखन एक छोटा गुंडा है जो बुरे काम करता है, लेकिन उसका अच्छा स्वभाव उसे सही रास्ते पर लाता है। वह अपने माता-पिता से प्यार करता है, और काम करके पैसे कमाने का फैसला करता है, जैसा कि उसके पिता चाहते थे (जिसे वह मरा हुआ समझता है)। वह अपने मालिक, लकी से ईर्ष्या करता है, जो चाहता है कि लखन को बाहर कर दिया जाए, और उससे ईर्ष्या हो। जैसे-जैसे लखन हास्यपूर्ण और कठिन परिस्थितियों में दौड़ता रहता है, वह उनसे बाहर निकलने के तरीके खोजता है और एक अच्छा इंसान बनने का प्रयास करता है। श्रेयस तलपड़े लाखन के रूप में राधा के रूप में ईशा कंसरा परमीत सेठी दशरथ के रूप में परमजीत के रूप में अर्चना पूरन सिंह लकी भाई के रूप में संजय नार्वेकर आफताब चुन्नी के रूप में नसीर खान अर्जुन राठौड़ के रूप में रिभु मेहरा दीक्षा कंवल सोनलकर स्वीटी के रूप में जिग्नेश के रूप में जयेश ठक्कर पवन सिंह घंटी के रूप में सब टीवी के कार्यक्रम भारतीय टेलीविजन धारावाहिक
बारबरा मैक्लिंटॉक (१६ जून, १९०२ - २ सितंबर, 199२) एक अमेरिकी वैज्ञानिक और साइटोजेनेटिकिस्ट थी, जिन्हें फिजियोलॉजी या मेडिसिन में १९८३ का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। मैकक्लिंटॉक ने 19२7 में कॉर्नेल विश्वविद्यालय से वनस्पति विज्ञान में पीएचडी प्राप्त की। वहां उन्होंने अपने करियर की शुरुआत मक्का साइटोजेनेटिक्स के विकास में अग्रणी के रूप में की, जो बाकी जीवन के लिए उसके शोध का केंद्र बिंदु था। 19२0 के दशक के उत्तरार्ध से, मैकक्लिंटॉक ने क्रोमोसोम का अध्ययन किया और मक्का में प्रजनन के दौरान वे कैसे बदलते हैं। उसने मक्का के गुणसूत्रों को देखने के लिए तकनीक विकसित की और कई मौलिक आनुवंशिक विचारों को प्रदर्शित करने के लिए सूक्ष्म विश्लेषण का उपयोग किया। उन विचारों में से एक अर्धसूत्रीविभाजन के दौरान क्रॉस-ओवर करके आनुवंशिक पुनर्संयोजन की धारणा थी जिसके द्वारा गुणसूत्र सूचना का आदान-प्रदान करते हैं। उसने मक्का के लिए पहला आनुवांशिक मानचित्र तैयार किया, जो गुणसूत्र के क्षेत्रों को भौतिक लक्षणों से जोड़ता है। उन्होंने टेलोमेयर और सेंट्रोमियर की भूमिका का प्रदर्शन किया, गुणसूत्र के क्षेत्र जो आनुवंशिक जानकारी के संरक्षण में महत्वपूर्ण हैं। उन्हें इस क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ के रूप में मान्यता मिली, प्रतिष्ठित फैलोशिप से सम्मानित किया गया, और १९४४ में नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज के सदस्य चुनी गयी। १९४० और १९५० के दशक के दौरान, मैक्लिंटॉक ने ट्रांसपोज़िशन की खोज की और यह प्रदर्शित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया कि जीन भौतिक विशेषताओं को चालू और बंद करने के लिए जिम्मेदार हैं। उसने मक्की के पौधों की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आनुवंशिक जानकारी के दमन और अभिव्यक्ति की व्याख्या करने के लिए सिद्धांत विकसित किए। अपने शोध और इसके निहितार्थ के संदेह के कारण, उसने १९५३ में अपना डेटा प्रकाशित करना बंद कर दिया। बाद में, उसने दक्षिण अमेरिका से मक्के की दौड़ के साइटोजेनेटिक्स और एथ्नोबोटनी का व्यापक अध्ययन किया। १९६० और १९७० के दशक में मैक्लिंटॉक के शोध को अच्छी तरह से समझा गया, क्योंकि अन्य वैज्ञानिकों ने आनुवंशिक परिवर्तन और आनुवंशिक विनियमन के तंत्र की पुष्टि की थी जो उन्होंने १९४० और १९५० के दशक में अपने मक्का अनुसंधान में प्रदर्शित किया था। क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पुरस्कार और मान्यता, फिजियोलॉजी या मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार सहित, १९८३ में आनुवांशिक ट्रांसपोजिशन की खोज के लिए उन्हें सम्मानित किया गया; वह उस श्रेणी में एक नोबेल पुरस्कार पाने वाली एकमात्र महिला हैं। बारबरा मैकक्लिंटॉक का जन्म १६ जून, १९०२ को हार्टफोर्ड , कनेक्टिकट में एलेनोर मैक्लिंटॉक के रूप में हुआ था, होम्योपैथिक चिकित्सक थॉमस हेनरी मैकक्लिंटॉक और सारा हेंडल मैकक्लिंटॉक से पैदा हुए चार बच्चों में से तीसरी थी। थॉमस मैक्लिंटॉक ब्रिटिश प्रवासियों का बच्चा था; सारा राइडर हैंडी को एक पुराने अमेरिकी मेफ्लावर परिवार से उतारा गया था। मैक्लिंटॉक एक बहुत ही कम उम्र में एक स्वतंत्र बच्चा , एक विशेषता जिसे उसने बाद में "अकेले होने की क्षमता" के रूप में पहचाना। तीन साल की उम्र से लेकर जब तक उसने स्कूल जाना शुरू नहीं किया, तब तक मैकक्लिंटॉक अपने माता-पिता पर आर्थिक बोझ कम करने के लिए न्यू यॉर्क के ब्रुकलिन शहर में एक चाची और चाचा के साथ रहती थी, जबकि उनके पिता ने उसकी चिकित्सा पद्धति स्थापित की थी। उसे एक एकान्त और स्वतंत्र बच्चे के रूप में वर्णित किया गया था। वह अपने पिता के करीब थी, लेकिन उसकी मां के साथ एक मुश्किल रिश्ता था १९०८ में मैकक्लिंटॉक परिवार ब्रुकलिन चला गया और मैक्लिंटॉक ने इरास्मस हॉल हाई स्कूल में अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी की; उन्होंने १९१९ में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने विज्ञान के अपने प्रेम की खोज की और हाई स्कूल के दौरान अपने एकान्त व्यक्तित्व की पुष्टि की। वह कॉर्नेल विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय में अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी। उसकी माँ ने मैकक्लिंटॉक को कॉलेज भेजने का विरोध किया, इस डर से कि वह अविवाहित होगी। मैक्लिंटॉक को कॉलेज शुरू करने से लगभग रोका गया था, लेकिन पंजीकरण शुरू होने से ठीक पहले उसके पिता ने हस्तक्षेप किया और उसने १९१९ में कॉर्नेल में मैट्रिक किया। इंट कॉर्नेल में शिक्षा और अनुसंधान मैक्लिंटॉक ने १९१९ में कॉर्नेल कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर में अपनी पढ़ाई शुरू की। वहाँ, उन्होंने छात्र सरकार में भाग लिया और उन्हें एक सौहार्द में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया, हालाँकि उन्हें जल्द ही पता चला कि वह औपचारिक संगठनों में शामिल नहीं होना पसंद करती हैं। इसके बजाय, मैक्लिंटॉक ने संगीत उठाया, विशेष रूप से जैज़ । उन्होंने वनस्पति विज्ञान का अध्ययन किया, १९२३ में बीएससी प्राप्त किया। आनुवांशिकी में उनकी रुचि तब शुरू हुई जब उन्होंने १९२१ में उस क्षेत्र में अपना पहला कोर्स किया। यह पाठ्यक्रम हार्वर्ड विश्वविद्यालय में एक समान पेशकश पर आधारित था, और सीबी कच्छी द्वारा सिखाया गया था, एक संयंत्र ब्रीडर और आनुवंशिकीविद् हचिसन मैक्लिंटॉक की रुचि से प्रभावित हुए, और उन्हें १९२२ में कॉर्नेल में स्नातक जेनेटिक्स पाठ्यक्रम में भाग लेने के लिए आमंत्रित करने के लिए फोन किया। मैक्लिंटॉक ने हचिसन के निमंत्रण का कारण बताया कि वह जेनेटिक्स में जारी है: "जाहिर है, यह टेलिफोन कॉल ने मेरे भविष्य के लिए मरहूम कर दिया। मैं इसके बाद आनुवांशिकी के साथ रहा। " हालांकि यह बताया गया है कि महिलाएं कॉर्नेल में आनुवांशिकी में प्रमुख नहीं हो सकीं, और इसलिए उनकी एमएस और पीएचडी क्रमशः १९२५ और १९२७ में अर्जित की गईं, जिन्हें आधिकारिक तौर पर वनस्पति विज्ञान में सम्मानित किया गया, हाल के शोधों से पता चला है कि महिलाओं ने स्नातक की डिग्री हासिल नहीं की है। उस समय के दौरान कॉर्नेल का प्लांट ब्रीडिंग डिपार्टमेंट था कि मैक्लिंटॉक कॉर्नेल का छात्र था। एक वनस्पति प्रशिक्षक के रूप में अपने स्नातक अध्ययन और स्नातकोत्तर नियुक्ति के दौरान, मैकक्लिंटॉक ने एक समूह को इकट्ठा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने मक्का में साइटोजेनेटिक्स के नए क्षेत्र का अध्ययन किया। इस समूह ने प्लांट प्रजनकों और साइटोलॉजिस्टों को एक साथ लाया और इसमें मार्कस रोहेड्स , भविष्य के नोबेल पुरस्कार विजेता जॉर्ज बीडल और हेरिएट क्रेइटन शामिल थे । प्लांट ब्रीडिंग विभाग के प्रमुख रॉलिंस ए. इमर्सन ने इन प्रयासों का समर्थन किया, हालाँकि वे स्वयं एक साइटोलॉजिस्ट नहीं थी। उन्होंने लोवेल फिट्ज रैंडोल्फ के लिए एक शोध सहायक के रूप में और फिर कॉर्नेल वनस्पति विज्ञानियों दोनों के लिए लेस्टर डब्ल्यू । मैकक्लिंटॉक के साइटोजेनेटिक अनुसंधान ने मक्का के गुणसूत्रों की कल्पना और विशेषता के विकास के तरीकों पर ध्यान केंद्रित किया। उनके काम के इस विशेष हिस्से ने छात्रों की एक पीढ़ी को प्रभावित किया, क्योंकि यह अधिकांश पाठ्यपुस्तकों में शामिल था। उसने मक्का के गुणसूत्रों की कल्पना करने के लिए कार्माइन धुंधला का उपयोग करके एक तकनीक विकसित की, और पहली बार १० मक्का गुणसूत्रों के आकारिकी को दिखाया। यह खोज इसलिए की गई क्योंकि उसने माइक्रोस्पोर से कोशिकाओं को मूल टिप के विपरीत देखा। गुणसूत्रों के आकारिकी का अध्ययन करके, मैक्लिंटॉक उन विशिष्ट गुणसूत्र समूहों को जोड़ने में सक्षम था जो एक साथ विरासत में मिले थे। मार्कस रोड्स ने कहा कि मैक्लिंटॉक के १९२९ जेनेटिक्स के लक्षण वर्णन पर कागज ट्राईप्लॉइड मक्का गुणसूत्रों मक्का सितोगेनिक क स के प्रति वैज्ञानिक जिज्ञासा शुरू हो रहा है, और क्षेत्र में १७ महत्वपूर्ण प्रगति है कि १९२९ और १९३५ के बीच कॉर्नेल वैज्ञानिकों द्वारा किए गए थे की उसे १० के लिए जिम्मेदार ठहराया १९३० में, मैक्लिंटॉक अर्धसूत्रीविभाजन के दौरान सजातीय गुणसूत्रों के क्रॉस-आकार की बातचीत का वर्णन करने वाला पहला व्यक्ति था। अगले वर्ष, मैैकक्लिंटॉ ने साबित कर दिया गुणसूत्र विदेशी अर्धसूत्रीविभाजन दौरान और आनुवंशिक लक्षण के पुनर्संयोजन। उन्होंने देखा कि एक खुर्दबीन के नीचे देखे गए गुणसूत्रों का पुनर्संयोजन नए लक्षणों के साथ कैसे संबंधित है। इस बिंदु तक, यह केवल परिकल्पना की गई थी कि अर्धसूत्रीविभाजन के दौरान आनुवंशिक पुनर्संयोजन हो सकता है, हालांकि इसे आनुवंशिक रूप से नहीं दिखाया गया था। मैक्लिंटॉक मक्का के लिए पहले आनुवंशिक नक्शा प्रकाशित १९३१ में, मक्का गुणसूत्र पर तीन जीन ९. के आदेश दिखा को पार करने से अधिक अध्ययन वह क्रेगटन के साथ प्रकाशित करने के लिए आवश्यक डेटा प्रदान यह जानकारी; उन्होंने यह भी दिखाया कि बहन क्रोमैटिड्स के साथ-साथ समरूप गुणसूत्रों में भी क्रॉसिंग-ओवर होता है। 1९38 में, उन्होंने सेंट्रोमियर के एक साइटोजेनेटिक विश्लेषण का निर्माण किया, जिसमें सेंट्रोमियर के संगठन और कार्य का वर्णन किया गया, साथ ही इस तथ्य को भी बताया कि यह विभाजित हो सकता है। मैक्लिंटॉक के सफल प्रकाशन और उनके सहयोगियों के समर्थन के कारण, उन्हें राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद से कई पोस्टडॉक्टोरल फेलोशिप से सम्मानित किया गया। इस फंडिंग ने उन्हें कॉर्नेल, मिसौरी विश्वविद्यालय और कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में जेनेटिक्स का अध्ययन जारी रखने की अनुमति दी, जहां उन्होंने ईजी एंडरसन के साथ काम किया। १९३१ और १९३२ की गर्मियों के दौरान, उन्होंने मिसौरी में जेनेटिकिस्ट लुईस स्टैडलर के साथ काम किया, जिन्होंने उन्हें म्यूटेशन के रूप में एक्स-रे के उपयोग से परिचित कराया। एक्स-रे के संपर्क में आने से प्राकृतिक पृष्ठभूमि स्तर के ऊपर उत्परिवर्तन की दर बढ़ सकती है, जिससे यह आनुवंशिकी के लिए एक शक्तिशाली अनुसंधान उपकरण बन सकता है। एक्स-रे-उत्परिवर्तित मक्का के साथ अपने काम के माध्यम से, उन्होंने रिंग क्रोमोसोम की पहचान की , जो तब बनते हैं जब विकिरण के नुकसान के बाद एक एकल गुणसूत्र फ्यूज का अंत होता है। इस साक्ष्य से, मैक्लिंटॉक ने अनुमान लगाया कि क्रोमोसोम टिप पर एक संरचना होनी चाहिए जो सामान्य रूप से स्थिरता सुनिश्चित करेगी। वह पता चला है कि अर्धसूत्रीविभाजन पर अंगूठी गुणसूत्रों का नुकसान हुआ विचित्र रंगना विकिरण गुणसूत्र विलोपन से उत्पन्न करने के लिए आने वाली पीढियों में मक्का पत्ते में। इस अवधि के दौरान, उन्होंने मक्का के गुणसूत्र ६ पर एक क्षेत्र पर न्यूक्लियोलस आयोजक क्षेत्र की उपस्थिति का प्रदर्शन किया, जो न्यूक्लियोलस के संयोजन के लिए आवश्यक है। १९३३ में, उन्होंने यह स्थापित किया कि जब अस्वस्थ पुनर्संयोजन होता है तो कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। इसी अवधि के दौरान, मैक्लिंटॉक ने यह अनुमान लगाया कि गुणसूत्रों की युक्तियों को टेलोमेरस द्वारा संरक्षित किया जाता है । मैक्लिंटॉक से एक फैलोशिप प्राप्त गुगेनहाइम फाउंडेशन कि १९३३ और १९३४ के दौरान संभव जर्मनी में प्रशिक्षण के छह महीने हो गए वह साथ काम करने की योजना बनाई थी कर्ट स्टर्न , जो पार से अधिक का प्रदर्शन किया था ड्रोसोफिला कुछ ही हफ्तों के बाद मैक्लिंटॉक और क्रेगटन किया था इसलिए; हालाँकि, स्टर्न संयुक्त राज्य में चला गया। इसके बजाय, उसने आनुवंशिकीविद् रिचर्ड बी। गोल्डस्मिड के साथ काम किया, जो कैसर विल्हेम संस्थान के प्रमुख थे। यूरोप में बढ़ते राजनीतिक तनाव के बीच उन्होंने जर्मनी को छोड़ दिया, और १९३६ तक कॉर्नेल में वापस आ गईं, जब उन्होंने मिसिसिपी-कोलंबिया विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान विभाग में लुईस स्टैडलर द्वारा उन्हें दिए गए एक सहायक प्रोफेसर की पेशकश को स्वीकार कर लिया। कॉर्नेल में रहते हुए भी उन्हें इमर्सन के प्रयासों से दो साल का रॉकफेलर फाउंडेशन का अनुदान प्राप्त हुआ। मिसौरी में अपने समय के दौरान, मैकक्लिंटॉक ने मक्का साइटोजेनेटिक्स पर एक्स-रे के प्रभाव पर अपने शोध का विस्तार किया। मैक्लिंटॉक ने विकिरणित मक्का कोशिकाओं में गुणसूत्रों के टूटने और संलयन का अवलोकन किया। वह यह दिखाने में भी सक्षम थी कि, कुछ पौधों में, एंडोस्पर्म की कोशिकाओं में सहज गुणसूत्र टूटना हुआ। के दौरान समसूत्री विभाजन , वह कहा कि टूट क्रोमेटिडों की छोर गुणसूत्र के बाद फिर से शामिल हो रहे थे प्रतिकृति । माइटोसिस के एनाफ़ेज़ में, टूटे हुए क्रोमोसोम ने एक क्रोमैटिड ब्रिज का निर्माण किया, जो क्रोमैटिड सेल के ध्रुवों की ओर बढ़ने पर टूट गया। टूटे हुए सिरों को अगले माइटोसिस के इंटरफेज़ में फिर से जोड़ दिया गया, और चक्र को दोहराया गया, जिससे बड़े पैमाने पर उत्परिवर्तन हुआ, जिसे वह एंडोस्पर्म में परिवर्तन के रूप में पहचान सकता है। यह टूटना- रिजेक्टिंग-ब्रिज चक्र कई कारणों से एक प्रमुख साइटोजेनेटिक खोज था। सबसे पहले, यह पता चला कि गुणसूत्रों का फिर से जुड़ाव एक यादृच्छिक घटना नहीं थी, और दूसरा, इसने बड़े पैमाने पर उत्परिवर्तन के स्रोत का प्रदर्शन किया। इस कारण से, यह आज कैंसर अनुसंधान में रुचि का क्षेत्र बना हुआ है। यद्यपि उसका शोध मिसौरी में प्रगति कर रहा था, लेकिन मैकक्लिंटॉक विश्वविद्यालय में अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं था। उन्हें संकाय की बैठकों से बाहर रखा गया था, और अन्य संस्थानों में उपलब्ध पदों से अवगत नहीं कराया गया था। १९४० में, उसने चार्ल्स बर्नहैम को लिखा, "मैंने फैसला किया है कि मुझे दूसरी नौकरी की तलाश करनी चाहिए। जहाँ तक मैं बाहर कर सकता हूँ, यहाँ मेरे लिए और कुछ नहीं है। मैं $ ३,००० में एक सहायक प्रोफेसर हूँ और मुझे लगता है। यकीन है कि यह मेरे लिए सीमा है। प्रारंभ में, मैकक्लिंटॉक की स्थिति विशेष रूप से स्टैडलर द्वारा उनके लिए बनाई गई थी, और शायद विश्वविद्यालय में उनकी उपस्थिति पर निर्भर थी। मैक्लिंटॉक का मानना था कि वह हासिल नहीं होगा कार्यकाल मिसौरी में है, भले ही कुछ खातों के अनुसार, उसे पता था कि वह १९४२ के वसंत में मिसौरी से एक पदोन्नति की पेशकश की जाएगी हालिया प्रमाण पता चलता है कि मैक्लिंटॉक अधिक होने की संभावना का फैसला किया मिसौरी को छोड़ने के लिए क्योंकि उसने अपने नियोक्ता और विश्वविद्यालय प्रशासन पर भरोसा खो दिया था, यह पता लगाने के बाद कि उसकी नौकरी खतरे में पड़ जाएगी अगर स्टैडलर कैलटेक के लिए छोड़ दें, जैसा कि उन्होंने माना था। स्टैडलर के खिलाफ विश्वविद्यालय के प्रतिशोध ने उसकी भावनाओं को बढ़ाया। १९४१ की शुरुआत में, उन्होंने मिसूरी से कहीं और स्थान पाने की उम्मीद में अनुपस्थिति की छुट्टी ले ली। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय में एक विजिटिंग प्रोफसरशिप स्वीकार की, जहां उनके पूर्व कॉर्नेल सहयोगी मार्कस रोहेड्स एक प्रोफेसर थे। रोहेड्स ने अपने शोध क्षेत्र को लांग आइलैंड पर कोल्ड स्प्रिंग हार्बर में साझा करने की पेशकश की। दिसंबर १९४१ में, वह मिलिस्लाव डेमेरेक द्वारा शोध पद की पेशकश की गई, जो कि वाशिंगटन के जेनेटिक्स कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लेबोरेटरी विभाग के कार्नेगी इंस्टीट्यूशन के नवनियुक्त कार्यवाहक निदेशक थे। मैक्लिंटॉक ने अपने योग्यता के बावजूद उनके निमंत्रण को स्वीकार कर लिया और संकाय के स्थायी सदस्य बन गयी। कोल्ड स्प्रिंग हार्बर अपनी साल भर की अस्थायी नियुक्ति के बाद, मैक्लिंटॉक ने कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लेबोरेटरी में पूर्णकालिक अनुसंधान की स्थिति स्वीकार कर ली। वहां, वह बहुत उत्पादक थी और ब्रेक्जिट-फ्यूजन-ब्रिज चक्र के साथ अपना काम जारी रखा, इसका उपयोग एक्स-रे के विकल्प के रूप में नए जीनों को मैप करने के लिए किया गया। १९४४ में, इस अवधि के दौरान आनुवांशिकी के क्षेत्र में उनकी प्रमुखता को मान्यता देते हुए, मैकक्लिंटॉक को नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज के लिए चुना गया था-केवल तीसरी महिला जिसे चुना जाना था। अगले वर्ष वह अमेरिका की जेनेटिक्स सोसायटी की पहली महिला अध्यक्ष बनीं; उन्हें १ ९ ३ ९ में इसका उपाध्यक्ष चुना गया। १ ९ ४४ में उन्होंने जॉर्ज बीडल के सुझाव पर न्यूरोस्पोरा क्रैसा का एक साइटोजेनेटिक विश्लेषण किया, जिसने एक जीन-एक एंजाइम संबंध प्रदर्शित करने के लिए कवक का उपयोग किया था। उन्होंने स्टैनफोर्ड को अध्ययन के लिए आमंत्रित किया। वह सफलतापूर्वक गुणसूत्रों की संख्या, या वर्णित कुपोषण , एन अक्षम्य की और प्रजातियों के पूरे जीवन चक्र का वर्णन किया। बीडेल ने कहा "स्टैनफोर्ड में दो महीने में बारबरा ने न्यूरोसोपा के कोशिका विज्ञान को साफ करने के लिए और अधिक किया था, जो अन्य सभी साइटोलॉजिकल आनुवंशिकीविदों ने पिछले सभी समय में सभी प्रकार के ढालना पर किया था।" एन. क्रैसा तब से शास्त्रीय आनुवंशिक विश्लेषण के लिए एक मॉडल प्रजाति बन गया है। नियंत्रण तत्वों की खोज कोल्ड स्प्रिंग हार्बर प्रयोगशाला में १९४४ की गर्मियों में, मैकक्लिंटॉक ने मक्का के बीज के मोज़ेक रंग पैटर्न और इस मोज़ेक की अस्थिर विरासत के तंत्र पर व्यवस्थित अध्ययन शुरू किया। उन्होंने दो नए प्रमुख की पहचान की और आनुवांशिक लोकी की बातचीत की जिसे उन्होंने डिसोसिएशन ( डीएस ) और एक्टिविटर ( एसी ) नाम दिया। उसने पाया कि डाइजेशन में केवल विघटन नहीं हुआ या गुणसूत्र टूटने का कारण नहीं बना, इससे पड़ोसी जीन पर भी कई तरह के प्रभाव पड़े, जब एक्टिवेटर भी मौजूद था, जिसमें कुछ स्थिर उत्परिवर्तन अस्थिर थे। १९४८ की शुरुआत में, उन्होंने आश्चर्यजनक खोज की कि गुणसूत्र पर विघटन और सक्रियता दोनों स्थानान्तरण या स्थिति को बदल सकते हैं। वह नियंत्रित पार की पीढ़ियों पर मक्का के दाने में रंगाई के बदलते पैटर्न से एसी और डी एस के स्थानांतरण के प्रभाव मनाया, और दो के बीच संबंधों का वर्णन किया लोकी जटिल सूक्ष्म विश्लेषण के माध्यम से। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि एसी गुणसूत्र से डीएस के वाष्पोत्सर्जन को नियंत्रित करता है ९, और यह कि डीएस का आंदोलन गुणसूत्र के टूटने के साथ है। डी एस चलता है, जब अलयूरोने रंग जीन डी एस के दबा प्रभाव से जारी है और सक्रिय रूप है, जो कोशिकाओं में वर्णक संश्लेषण शुरू की के रूप में तब्दील किया गया है। विभिन्न कोशिकाओं में डीएस का स्थानांतरण यादृच्छिक है, यह कुछ और में नहीं बल्कि अन्य में स्थानांतरित हो सकता है, जो रंग मोज़ेक का कारण बनता है। बीज पर रंगीन स्पॉट का आकार पृथक्करण के दौरान बीज विकास के चरण द्वारा निर्धारित किया जाता है। मैकक्लिंटॉक ने यह भी पाया कि डीएस का स्थानांतरण सेल में एसी प्रतियों की संख्या से निर्धारित होता है। १९४८ और १९५० के बीच, उन्होंने एक सिद्धांत विकसित किया जिसके द्वारा इन मोबाइल तत्वों ने उनकी क्रिया को बाधित या संशोधित करके जीन को विनियमित किया। वह "के रूप में नियंत्रित तत्वों" करने वाली उन जीनों से अलग, के रूप में "को नियंत्रित इकाइयों" हदबंदी और उत्प्रेरक के रूप में भेजा। उन्होंने कहा कि जीन विनियमन समझा सकता है कि समान जीनोम वाले कोशिकाओं से बने जटिल बहुकोशिकीय जीवों में अलग-अलग फ़ंक्शन की कोशिकाएं होती हैं। मैक्लिंटॉक की खोज ने जीनोम की अवधारणा को पीढ़ियों के बीच पारित निर्देशों के स्थैतिक सेट के रूप में चुनौती दी। १९५० में, उन्होंने एसी /डीएस पर अपने काम की रिपोर्ट दी और नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंसेज की पत्रिका प्रोसीडिंग्स में प्रकाशित "मक्का में उत्परिवर्तित लोकी की उत्पत्ति और व्यवहार" नामक एक पत्र में जीन विनियमन के बारे में अपने विचारों को बताया। १९५१ की गर्मियों में, उन्होंने कोल्ड स्प्रिंग हार्बर प्रयोगशाला में वार्षिक संगोष्ठी में मक्का में उत्परिवर्तित लोकी की उत्पत्ति और व्यवहार पर उनके काम की सूचना दी, उसी नाम का एक पेपर प्रस्तुत किया। तत्वों और जीन विनियमन को नियंत्रित करने पर उनका काम वैचारिक रूप से कठिन था और उन्हें उनके समकालीनों द्वारा तुरंत समझा या स्वीकार नहीं किया गया था; उसने अपने शोध के स्वागत को "पहेली, यहां तक कि शत्रुता" के रूप में वर्णित किया। फिर भी, मैक्लिंटॉक ने तत्वों को नियंत्रित करने पर अपने विचारों को विकसित करना जारी रखा। उन्होंने १९५३ में जेनेटिक्स में एक पेपर प्रकाशित किया, जहां उन्होंने अपने सभी सांख्यिकीय आंकड़ों को प्रस्तुत किया, और १९५० के दशक के दौरान विश्वविद्यालयों में अपने काम के बारे में बोलने के लिए व्याख्यान यात्राएं कीं। उसने समस्या की जांच जारी रखी और एक नए तत्व की पहचान की जिसे उसने सप्रेसर-म्यूटेटर कहा, जो कि एसी /डीएस के समान है, और अधिक जटिल तरीके से कार्य करता है। एसी / डीएस की तरह , कुछ संस्करण अपने दम पर स्थानांतरित कर सकते हैं और कुछ नहीं कर सकते हैं; एसी /डीएस के विपरीत, जब मौजूद होता है, तो यह उत्परिवर्ती जीनों की अभिव्यक्ति को पूरी तरह से दबा देता है जब वे सामान्य रूप से पूरी तरह से दबाए नहीं जाएंगे। अपने काम के लिए अन्य वैज्ञानिकों की प्रतिक्रियाओं के आधार पर, मैक्लिंटॉक ने महसूस किया कि उसने वैज्ञानिक मुख्यधारा को अलग करने का जोखिम उठाया है, और १९५३ से नियंत्रण तत्वों पर अपने शोध के लेखों को प्रकाशित करना बंद कर दिया। १९५७ में, मैक्लिंटॉक ने नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज से मध्य अमेरिका और दक्षिण अमेरिका में मक्का के स्वदेशी उपभेदों पर शोध शुरू करने के लिए धन प्राप्त किया। वह गुणसूत्रीय परिवर्तनों के माध्यम से मक्का के विकास का अध्ययन करने में रुचि रखती थी, और दक्षिण अमेरिका में होने के कारण उसे बड़े पैमाने पर काम करने की अनुमति मिलेगी। मैकक्लिंटॉक ने मक्का की विभिन्न जातियों के गुणसूत्रीय, रूपात्मक और विकासवादी विशेषताओं का पता लगाया। १९६० और १०७० के दशक में व्यापक काम के बाद, मैक्लिंटॉक और उनके सहयोगियों ने पैलेबोटनी , एथनोबैडनी , और विकासवादी जीवविज्ञान पर अपनी छाप छोड़ते हुए, सेमलेस स्टडीज द क्रोमोसोमल संविधान ऑफ मक्का का प्रकाशन किया। मैक्लिंटॉक ने आधिकारिक तौर पर १९६७ में कार्नेगी इंस्टीट्यूशन में अपने पद से सेवानिवृत्त हुए, और उन्हें वाशिंगटन के कार्नेगी इंस्टीट्यूशन का एक विशिष्ट सेवा सदस्य बनाया गया। इस सम्मान ने उन्हें शीतल हार्बर हार्बर प्रयोगशाला में स्नातक छात्रों और सहयोगियों के साथ वैज्ञानिक रूप में काम करना जारी रखने की अनुमति दी; वह शहर में रहती थी। २० साल पहले उसके निर्णय के संदर्भ में, उसने तत्वों को नियंत्रित करने के लिए अपने काम का विस्तृत विवरण प्रकाशित करना बंद कर दिया, उसने १९७३ में लिखा था: पिछले कुछ वर्षों में मैंने पाया है कि अगर किसी विशेष अनुभव से, किसी अन्य व्यक्ति की प्रकृति को उसकी मौन धारणाओं की चेतना में लाना असंभव नहीं तो मुश्किल है। १९५० के दशक के दौरान मेरे प्रयासों में यह स्पष्ट हो गया कि मैं आनुवंशिकीविदों को यह समझाने के लिए कि जीन की क्रिया को नियंत्रित करना था और नियंत्रित करना था। मान्यताओं की स्थिरता को पहचानना अब उतना ही दर्दनाक है जितना कि कई लोग मक्का में तत्वों को नियंत्रित करने की प्रकृति और उनके संचालन के शिष्टाचार पर पकड़ रखते हैं। वैचारिक परिवर्तन के लिए सही समय का इंतजार करना चाहिए। मैक्लिंटॉक के योगदान का महत्व १९६० के दशक में सामने आया था, जब फ्रांसीसी आनुवंशिकीविदों फ्रेंकोइस जैकब और जैक्स मोनोड के काम ने लैक ऑपेरॉन के आनुवंशिक विनियमन का वर्णन किया था, एक अवधारणा जिसे उन्होंने १९५१ में एस / डीएस के साथ प्रदर्शित किया था। जैकब और मोनोड के १९६१ जर्नल मॉलिक्यूलर बायोलॉजी पेपर "प्रोटीन के संश्लेषण में आनुवंशिक नियामक तंत्र", मैकक्लिंटॉक ने अमेरिकन नेचुरलिस्ट के लिए एक लेख लिखा जिसमें लैक ऑपेरॉन और मक्का में तत्वों को नियंत्रित करने के उनके काम की तुलना की गई थी। जीवविज्ञान में मैक्लिंटॉक के योगदान को अभी भी व्यापक रूप से आनुवंशिक विनियमन की खोज के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है। १९६० के अंत और १९७० के दशक के प्रारंभ में अन्य शोधकर्ताओं ने अंततः बैक्टीरिया, खमीर, और बैक्टीरियोफेज में प्रक्रिया की खोज के बाद मैकक्लिंटॉक को व्यापक रूप से ट्रांसपोज़िशन की खोज करने का श्रेय दिया गया था। इस अवधि के दौरान, आणविक जीवविज्ञान ने महत्वपूर्ण नई तकनीक विकसित की थी, और वैज्ञानिक ट्रांसपोज़ेशन के लिए आणविक आधार दिखाने में सक्षम थे। १९६० के दशक में, एसी /डीएस को अन्य वैज्ञानिकों द्वारा क्लोन किया गया था और उन्हें द्वितीय श्रेणी के ट्रांसपोन्सन के रूप में दिखाया गया था। एसी एक पूर्ण ट्रांसपोसॉन है जो एक कार्यात्मक ट्रांसपोज़ेज़ का उत्पादन कर सकता है , जो कि तत्व को जीनोम के भीतर स्थानांतरित करने के लिए आवश्यक है। डीएस का ट्रांसपोज़ेज़ जीन में उत्परिवर्तन होता है, जिसका अर्थ है कि यह ट्रांसपोज़ेज़ के किसी अन्य स्रोत के बिना नहीं चल सकता है। इस प्रकार, जैसा कि मैकक्लिंटॉक ने देखा, डीएस एसी की अनुपस्थिति में स्थानांतरित नहीं हो सकता है। स्प्म को ट्रांसपोसॉन के रूप में भी चित्रित किया गया है। बाद के शोध से पता चला है कि ट्रांसपोंस आम तौर पर तब तक नहीं चलते हैं जब तक कि सेल को तनाव में नहीं रखा जाता है, जैसे कि विकिरण या टूटना-संलयन-पुल चक्र , और इस प्रकार तनाव के दौरान उनकी सक्रियता विकास के लिए आनुवंशिक भिन्नता के स्रोत के रूप में काम कर सकती है। मैकक्लिंटॉक ने अन्य शोधकर्ताओं द्वारा अवधारणा को समझने से पहले विकास और जीनोम परिवर्तन में ट्रांसपोंस की भूमिका को अच्छी तरह से समझा। आजकल, जीन फ़ंक्शन के लक्षण वर्णन के लिए उपयोग किए जाने वाले उत्परिवर्ती पौधों को उत्पन्न करने के लिए एसी/डीएस का उपयोग संयंत्र जीव विज्ञान में एक उपकरण के रूप में किया जाता है। सम्मान और मान्यता १९४७ में, मैक्लिंटॉक को अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ़ यूनिवर्सिटी वीमेन से अचीवमेंट अवार्ड मिला। उन्हें १९५९ में अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज का फेलो चुना गया। १९६७ में, मैक्लिंटॉक को किम्बर जेनेटिक्स अवार्ड से सम्मानित किया गया; तीन साल बाद, उन्हें १९६७ में रिचर्ड निक्सन द्वारा विज्ञान का राष्ट्रीय पदक दिया गया। थे वह पहली महिला थीं जिन्हें राष्ट्रीय पदक से सम्मानित किया गया था। कोल्ड स्प्रिंग हार्बर १९७३ में उनके सम्मान में एक इमारत का नाम दिया वह १९७८ में लुई और बर्ट फ्रीडमैन फाउंडेशन पुरस्कार और लुईस एस रोसेन्स्टील पुरस्कार प्राप्त किया १९८१ में, वह की पहली प्राप्तकर्ता बन गया मैकआर्थर फाउंडेशन ग्रांट , और बेसिक मेडिकल रिसर्च के लिए अल्बर्ट लास्कर अवार्ड से सम्मानित किया गया, मेडिसिन में वुल्फ प्राइज़ और अमेरिका के जेनेटिक्स सोसाइटी द्वारा थॉमस हंट मॉर्गन मेडल । १९८२ में, उन्हें "आनुवांशिक जानकारी के विकास और अपनी अभिव्यक्ति के नियंत्रण" के लिए कोलंबिया विश्वविद्यालय से लुईसा ग्रॉस होरविट्ज पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। सबसे विशेष रूप से, उन्हें १९८३ में फिजियोलॉजी या मेडिसिन के लिए नोबेल पुरस्कार मिला , जो उस पुरस्कार को पाने वाली पहली महिला थी, और किसी भी बिना नोबेल पुरस्कार जीतने वाली पहली अमेरिकी महिला। इसे " मोबाइल जेनेटिक तत्वों " की खोज के लिए नोबेल फाउंडेशन द्वारा दिया गया था; यह ३० साल से अधिक समय के बाद उसने शुरू में तत्वों को नियंत्रित करने की घटना का वर्णन किया। स्वीडिश अकादमी ऑफ साइंसेज द्वारा उनके वैज्ञानिक कैरियर के संदर्भ में उनकी तुलना ग्रेगर मेंडल से की गई थी जब उन्हें पुरस्कार दिया गया था। उन्हें १९८९ में रॉयल सोसाइटी (फॉरममआरएस) का एक विदेशी सदस्य चुना गया। मैक्लिंटॉक प्राप्त विज्ञान में विशिष्ट उपलब्धि के लिए बेंजामिन फ्रैंकलिन पदक की अमेरिकी दार्शनिक सोसायटी में १९९३ वह विज्ञान डिग्री की १४ मानद डॉक्टर और ह्यूमेन लेटर्स की मानद डॉक्टर की उपाधि से सम्मानित किया गया था। १९८६ में उन्हें राष्ट्रीय महिला हॉल ऑफ फ़ेम में शामिल किया गया । अपने अंतिम वर्षों के दौरान, मैकक्लिंटॉक ने सार्वजनिक जीवन का नेतृत्व किया, विशेष रूप से एवलिन फॉक्स केलर की १९८३ की जीवनी, ए फीलिंग फॉर द ऑर्गैज्म के बाद, मैकक्लिंटॉक की कहानी को लोगों के सामने लाया। वह कोल्ड स्प्रिंग हार्बर समुदाय में एक नियमित उपस्थिति रही, और जूनियर वैज्ञानिकों के लाभ के लिए मोबाइल आनुवंशिक तत्वों और आनुवांशिकी अनुसंधान के इतिहास पर बातचीत की। उनके ४३ प्रकाशनों की खोज और परिवर्तनशील तत्वों की खोज और व्याख्या: बारबरा मैक्लिंटॉक के एकत्रित पत्रों को १९८७ में प्रकाशित किया गया था। उनके सम्मान में मैकक्लिंटॉक पुरस्कार का नाम रखा गया है। पुरस्कार के विजेताओं में शामिल डेविड बॉलकोंब , डेटलेफ़ वेगल रॉबर्ट , जेफरी डी पामर और सूज़न वेस्सलर । बाद के वर्ष मैक्लिंटॉक ने बाद के वर्षों में, नोबेल पुरस्कार, एक प्रमुख नेता और शोधकर्ता के रूप में लॉन्ग आईलैंड, न्यूयॉर्क के कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लेबोरेट्री में क्षेत्र में बिताया। २ सितंबर, 199२ को ९० वर्ष की आयु में, न्यूयॉर्क में हंटिंगटन में प्राकृतिक कारणों से मैक्लिंटॉक की मृत्यु हो गई; उसने कभी शादी नहीं की या उसके बच्चे नहीं थे। उनकी मृत्यु के बाद से, मैक्लिंटॉक विज्ञान इतिहासकार नथानिएल सी। कम्फर्ट द टैंगल्ड फील्ड: बारबरा मैक्लिंटॉक की खोज फॉर द जेनेटिक कंट्रोल के पैटर्न द्वारा जीवनी का विषय रहा है। कमल की जीवनी मैक्लिंटॉक के बारे में कुछ दावों का विरोध करती है, जिसे "मैक्लिंटॉक मिथक" के रूप में वर्णित किया गया है, जिसके बारे में उनका दावा है कि केलर ने पहले की जीवनी से इसे खत्म कर दिया था। केलर की थीसिस थी कि मैकक्लिंटॉक को लंबे समय तक नजरअंदाज किया गया था या उसे उपहास के साथ मुलाकात की गई थी क्योंकि वह विज्ञान में काम करने वाली महिला थी। उदाहरण के लिए, जब मैक्लिंटॉक ने अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किए कि मक्का के आनुवांशिकी मेंडेलियन वितरण के अनुरूप नहीं थे, तो आनुवंशिकीविद् सीवेल राइट ने यह विश्वास व्यक्त किया कि वह अपने काम के अंतर्निहित गणित को नहीं समझते थे, एक विश्वास जो उन्होंने उस समय अन्य महिलाओं के लिए व्यक्त किया था। इसके अलावा, आनुवंशिकीविद् लोटे औरबच ने कहा कि जोशुआ लेडरबर्ग ने मैकक्लिंटॉक की प्रयोगशाला में इस टिप्पणी के साथ दौरा किया था: 'ईश्वर द्वारा, वह महिला या तो पागल है या एक प्रतिभाशाली है।' "जैसा कि एयूअरबैक ने इसे बताया, मैक्लिंटॉक ने अपने घमंड के कारण लेडरबर्ग और उनके सहयोगियों को आधे घंटे के बाद बाहर कर दिया था। वह अहंकार के प्रति असहिष्णु था। ... उसने महसूस किया कि वह अकेले एक रेगिस्तान को पार कर गई है और किसी ने उसका पीछा नहीं किया। '' हालाँकि, आराम से पता चलता है कि मैकक्लिंटॉक को अपने पेशेवर साथियों द्वारा माना जाता था, यहां तक कि अपने करियर के शुरुआती वर्षों में भी। हालांकि, कम्फर्ट का तर्क है कि मैक्लिंटॉक लिंग भेदभाव का शिकार नहीं था, उसे व्यापक रूप से महिलाओं के अध्ययन के संदर्भ में लिखा गया है। विज्ञान में महिलाओं पर सबसे हालिया जीवनी पर काम उनके अनुभव के खातों में है। उसके फील्ड और मरियम किटरेज के बारबरा मैक्लिंटॉक में अकेले: वह लड़कियों एडिथ आशा ललित के बारबरा मैक्लिंटॉक, नोबेल पुरस्कार आनुवंशिकीविद् डेबोरा हाइलिगमान के बारबरा मैक्लिंटॉक के रूप में बच्चों के साहित्य के इस तरह के कार्यों में के लिए एक आदर्श के रूप में आयोजित किया जाता है। नाओमी पासाकॉफ़, बारबरा मैकक्लिंटॉक, जेनेटिक्स के जीनियस द्वारा युवा वयस्कों के लिए एक हालिया जीवनी, वर्तमान साहित्य पर आधारित एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है। ४ मई २००५ को, यूनाइटेड स्टेट्स पोस्टल सर्विस ने "अमेरिकन साइंटिस्ट्स" स्मारक डाक टिकट श्रृंखला, कई विन्यासों में चार ३७-प्रतिशत स्वयं-चिपकने वाला टिकटों का एक सेट जारी किया। चित्रित वैज्ञानिकों में बारबरा मैकक्लिंटॉक, जॉन वॉन न्यूमैन , जोशिया विलार्ड गिब्स और रिचर्ड फेनमैन थे । मैकक्लिंटॉक को स्वीडन से १९८९ के चार-स्टांप मुद्दे में भी चित्रित किया गया था जिसमें आठ नोबेल पुरस्कार विजेता आनुवंशिकीविदों के काम का वर्णन किया गया था। कॉर्नेल विश्वविद्यालय में एक छोटी सी इमारत और कोल्ड स्प्रिंग हार्बर प्रयोगशाला में एक प्रयोगशाला भवन का नाम उसके लिए रखा गया था। बर्लिन की नई " एडलरहोफ डेवलपमेंट सोसाइटी " विज्ञान पार्क में एक सड़क का नाम उनके नाम पर रखा गया है। मैकक्लिंटॉक के व्यक्तित्व और वैज्ञानिक उपलब्धियों में से कुछ को जेफरी यूजीनाइड्स २०११ के उपन्यास द मैरिज प्लॉट में संदर्भित किया गया था , जो लियोनार्ड नामक एक खमीर आनुवंशिकीविद् की कहानी बताता है जो द्विध्रुवी विकार से पीड़ित है । वह कोल्ड स्प्रिंग हार्बर पर आधारित एक प्रयोगशाला में काम करता है। मैक्लिंटॉक की याद दिलाने वाला चरित्र काल्पनिक प्रयोगशाला में एक पुनरावर्तक आनुवंशिकीविद् है, जो अपने तथ्यात्मक समकक्ष के समान खोजों को बनाता है। जुडिथ प्रैट ने मैकक्लिंटॉक के बारे में एक नाटक लिखी, जिसे मैज़े कहा जाता है, जिसे २०१५ में शिकागो में आर्टेमेशिया थिएटर में पढ़ा गया था, और फरवरी-मार्च २०१८ में इथाका एनवाई- कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के घर में निर्मित किया जाएगा। मैकक्लिंटॉक, बी।, काटो यामाकेक, टीए और ब्लुमेंशिन, ए (१९८१) मक्का की जातियों का गुणसूत्र संबंधी संविधान। अमेरिका में दौड़ और किस्मों के बीच संबंधों की व्याख्या में इसका महत्व । चैपिंगो, मैक्सिको: एस्कुएला डी नशीन डी फार्मुरा, कोलीगियो डी पोस्टग्रुडाडो यह भी देखें १९९२ में निधन १९०२ में जन्मे लोग
वजली-अस०३, पौडी तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा वजली-अस०३, पौडी तहसील वजली-अस०३, पौडी तहसील
कुंवर सत्यवीर,भारत के उत्तर प्रदेश की चौथी विधानसभा सभा में विधायक रहे। १९६७ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के २३ - बिजनौर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया। उत्तर प्रदेश की चौथी विधान सभा के सदस्य २३ - बिजनौर के विधायक बिजनौर के विधायक कांग्रेस के विधायक
जिम्बाब्वे क्रिकेट टीम ने सितंबर २०२१ में तीन ट्वेंटी-२० अंतरराष्ट्रीय (टी२०आई) मैच खेलने के लिए स्कॉटलैंड का दौरा किया। सभी मैच एडिनबर्ग के द ग्रेंज क्लब में हुए। स्कॉटलैंड का आखिरी घरेलू अंतरराष्ट्रीय मैच अगस्त २०19 में था। स्कॉटलैंड ने पहला टी२०आई मैच सात रन से जीता, जिसमें जिम्बाब्वे ने दूसरा मैच दस रन से जीतकर श्रृंखला को बराबर किया। जिम्बाब्वे ने तीसरा टी२०आई छह विकेट से जीतकर श्रृंखला २-१ से जीती। जिम्बाब्वे के ब्रेंडन टेलर ने जिम्बाब्वे के आयरलैंड दौरे के अंतिम मैच के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया, जो दो दिन पहले हुआ था। ईएसपीएन क्रिकइन्फो पर सीरीज होम २०२१ में स्कॉटलैंड क्रिकेट २०२१ में ज़िम्बाब्वे क्रिकेट २०२१ में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट प्रतियोगिताएं जिम्बाब्वे क्रिकेट विदेश दौरे स्कॉटलैंड के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट दौरे
दुल्हिन बाज़ार (दुल्हीन बाज़ार) भारत के बिहार राज्य के पटना ज़िले का एक प्रखण्ड है। इन्हें भी देखें बिहार के प्रखण्ड
जलहा सनहौला, भागलपुर, बिहार स्थित एक गाँव है। भागलपुर जिला के गाँव
हरीश चन्द्र मुखोपाध्याय (१८२४ १८६१), भारत के एक पत्रकार और देशप्रेमी थे जिन्होने नील की खेती करने वालों के हित के लिए संघर्ष किया और ब्रिटिश सरकार को इसमें बदलाव लाने के लिए मजबूर किया। बंगाल के नील किसानों की समस्याओं और उनके दुःख-दर्द को सामने लाने में पत्रकार हरीश चंद्र मुखर्जी की बड़ी भूमिका रही है। उन्होंने यह काम अपने अखबार द हिंदू पेट्रियाट अखबार के जरिये किया। उन्होंने लगातार बंगाल के नील किसानों की व्यथा और शोषण की कहानियां प्रकाशित कीं। उनके रिपोर्ट्स से नील प्लांटर्स इतने परेशान हुए कि उन्होंने हिंदू पेट्रियाट अखबार को मुकदमे में फंसाने की कोशिश शुरू कर दी। किन्तु अच्छी बात यह थी कि हिंदू पेट्रियाट अखबार ब्रिटिश टेरिटरी से बाहर भवानीपुर के इलाके से प्रकाशित होता था, इसलिए वे अखबार का प्रकाशन बन्द नहीं कर पाये। लेकिन उन्होंने हरीशचंद्र मुखोपाध्याय को कई तरह से प्रताड़ित किया। नतीजा यह हुआ कि केवल ३७ साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गयी। इतना ही नहीं उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी को भी मुकदमें में उलझाये रखा गया। मगर हरीशचंद्र मुखोपाध्याय के प्रयास इतने कारगर रहे कि ब्रिटिश सरकार को नील आयोग का गठन करना ही पड़ा। जिस तरह हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम अमर है, उसी तरह बंगाल की पत्रकारिता में हरीशचंद्र मुखोपाध्याय की कीर्ति आज भी है। उस काल में बंगाल में उनके नाम के गीत गाये जाते थे। हिंदू पेट्रियाट की पत्रकारिता के जरिये उन्होंने जो बदलाव की बुनियाद रखी, वह अविस्मरणीय है। एक संवाददाता के रूप में १९५३ में उन्होंने इस अखबार में नौकरी की थी, पर केवल दो वर्ष में वे अखबार के प्रधान सम्पादक बन गये और फिर मालिक भी। उसी दौर में १८५७ का विद्रोह हुआ, उन्होंने अपने अखबार में इसकी रिपोर्टिंग भी की और १८५८ के नील बिप्लव की रिपोर्टिंग के लिए तो उनका नाम अमर ही हो गया।
सोलन (सोलन) भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के सोलन ज़िला में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। इस शहर को मशरूम सिटी के नाम से भी जाना जाता है। मशरूम उत्पादन सोलन से २ कि.मी. दूर चंबाघाट में किआ जाता है। सोलन का नाम माता शूलिनी के नाम पर पड़ा है। यहाँ राज्य स्तरीय शूलिनी मेला वर्ष में १ बार लगता है। प्रसिद्ध पांडव गुफा सोलन के करोल पहाड़ी के आंचल में बसी है। मान्यता है कि यह पांडवो के समय में लाक्षागृह के नीचे बनाई गई थी। इन्हें भी देखें हिमाचल प्रदेश के शहर सोलन ज़िले के नगर
ऑस्ट्रिया महिला क्रिकेट टीम ने पांच मैचों की द्विपक्षीय महिला ट्वेंटी २० अंतर्राष्ट्रीय (मटी२०आई) श्रृंखला खेलने के लिए अगस्त २०21 में इटली का दौरा किया। मैच रोम के स्पिनसेटो क्षेत्र में रोमा क्रिकेट ग्राउंड में खेले गए थे, और इटली द्वारा खेले जाने वाले पहले आधिकारिक मटी२०आई मैच थे। जर्सी सहित एक त्रिकोणीय राष्ट्र श्रृंखला निर्धारित की गई थी, लेकिन वे कोविड-१९ यात्रा प्रतिबंधों के कारण भाग लेने में असमर्थ थे। जुलाई २०२१ में, इतालवी क्रिकेट महासंघ ने देश के उत्तर और दक्षिण में प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए और वार्म-अप मैचों में इन दो क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक दल का चयन किया, जिसके बाद एक २०-खिलाड़ियों की टीम (रिजर्व सहित) का चयन किया गया। इटालियंस ओपनर ने सीरीज़ जीता, जो उनका पहला आधिकारिक मटी२०आई मैच था। दूसरे दिन सीरीज बराबर करने के बाद ऑस्ट्रिया ने चौथे दिन डबल हेडर जीतकर अजेय बढ़त हासिल कर ली। इटली ने फाइनल मैच में एक रन से सांत्वना जीत हासिल की, जबकि ऑस्ट्रिया ने सीरीज ३-२ से जीती। ईएसपीएन क्रिकइन्फो पर सीरीज होम २०२१ में एसोसिएट क्रिकेट प्रतियोगिताएं
छद्मावरण (कमोफ़्लेज) शत्रु को उन सभी जानकारियों से वंचित रखने का सैनिक विज्ञान है जिनसे वह युद्धपरिचालन में लाभान्वित हो सकता है। छद्मावरण विज्ञान छिपने के प्राकृतिक साधनों के उपयोग तथा कृत्रिम साधनों के निर्माण का ज्ञान प्रदान करता है। छद्मावरण का प्रयोग प्राचीन काल से ही होता चला आ रहा है। इसके प्रयोग से पराजय को विजय में बदलने के कई उदाहरण इतिहास में मिलते हैं। ईसा से १,२०० वर्ष पूर्व त्रॉय के घेरे में ग्रीकों द्वारा "कपट अश्व" का प्रयोग इसका एक सुंदरतम उदाहरण है। प्रकृति में छद्मावरण का रूप खूब देखने को मिलता है। हिम प्रदेश का रीछ हिम के पर्यावरण में लगभग अदृश्य-सा हो जाता है। प्रथम विश्वयुद्ध में छद्मावरण युद्धपरिचालन का आवश्यक अंग हो गया। पनडुब्बीमार (एन्तिसुब्मरीन) उपाय के रूप में यह अत्यंत सफल रहा। व्यापारी जहाजों पर भड़कीला रंग लगाकर शत्रु को उसकी दिशा और वेग के संबंध में भ्रम उत्पन्न किया जाता था। रहस्यमय क्यूबोट का क्या कहना, जो देखने में व्यापारी जहाज जान पड़ते थे और इन्हें निरापद समझकर शत्रु की पनडुब्बी जब समुद्रपृष्ठ पर आ जाती तो ये गोले उगलना प्रारंभ कर देते थे। द्वितीय विश्वयुद्ध तक हवाई टोह का विकास इतना हो चुका था कि छद्मावरण का महत्व और भी बढ़ गया। छद्मावरण में सभी लाभप्रद कार्रवाइयाँ शामिल हैं, जैसे हवाई प्रेक्षण, फोटोग्राफी और बमबारी से बचाव, पनडुब्बी के खतरे को कम करना, शत्रु को सही आँकड़ों की जानकारी से वंचित रखना, सेना, तोप, शिविर और सैनिक अभिस्थापनों को छिपाना, हवाई जहाज़ों के मैदान, वायुयान ओर औद्योगिक अभिस्थापनों को छिपाना या रूपांतरित करना, प्रत्येक सैनिक की रक्षा करना, आदि। छद्मावरण निर्माण करते समय प्रेक्षक की चर्या का विचार करना चाहिए। हवाई प्रेक्षक सभी दृश्यों के मानसिक चित्र से अनुमान लगाता है। अनुमान सही भी हो सकता है और भ्रामक भी। यदि प्रेक्षक फोटो लेता है तो फोटो के कुशल परीक्षण से अनुमान लगाते हैं। सफल छद्मावरण के लिए भिन्न भिन्न स्थितियों में दृश्यता का विचार करना चाहिए। प्रदीप्ति तथा प्रेक्षक और लक्ष्य के मध्य अवकाश की पारदर्शकता और वैषम्य विचारणीय तत्व हैं। इन तत्वों के परिवर्तन से प्रेक्षक की दृष्टि प्रभावित होती है। इन तत्वों के परिवर्तन से प्रेक्षक की दृष्टि प्रभावित हाती है। धुंध में सीधी प्रदीप्ति और पर्याप्त वैषम्य होने पर भी वस्तु की पहचान नहीं हो पाती। धुंध की चीजों को देखने के लिये अवरक्त कैमरे (इन्फ्रा-रेड कमरा) का प्रयोग किया जाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दिनों इंग्लैंड की सरकार ने सैंकड़ों नकली शहर, हवाई अड्डे, पोतप्रांगण आदि का निर्माण कराया था। इतने कलात्मक ढंग से ये बने थे कि इन स्थानों पर शत्रु के हजारों टन बम बेकार ही बरस गए। इसी प्रकार नकली हवाई अड्डों पर असली हवाई अड्डों की अपेक्षा अधिक धावे हुए। हवाई मैदानों का छद्मावरण एक कला है। इनमें हवाई पट्टी को पर्यावरण के भूप्रदेश से सम्मिश्रित कर दिया जाता है। ऐसा करते समय यह ध्यान रखने की बात है कि ऋतुपरिवर्तन के साथ भूप्रदेश की प्रतीति बदल जाती है। सैनिक का छदृमावरण रंग और रंगीन वस्त्रों से किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, खाकी वर्दी मरुभूमि में और सफेद वर्दी हिम प्रदेशों में खप जाती है। छिपने के लिए छद्मावरण की रीति और स्थिति का चुनाव दोनों समान महत्व के प्रश्न हैं। छिपाने की दृष्टि से सेना को ऐसी पृष्ठभूमि में रखते हैं कि स्थिति के तत्वों में सेना अदृश्य हो जाए। पृष्ठभूमि की प्रतीति में कम से कम परिवर्तन अभीष्ट होता है। पृष्ठभूमि का उत्तम उपयोग करके बिना किसी प्रकार के निर्माणकार्य के ही छिपाव हो सकता है। प्राकृतिक आड़ पर्याप्त हो, तो छिपाना सरल हो तो है और यदि छिटपुट हो, तो भूप्रदेश की अनियमितता से लाभ उठाकर सेना को छिपाते हैं। छद्मावरण अनुशासन ऐसे कार्यकलापों का निवरण है जिनमें पृष्ठभूमि की प्रतीति बदल जाती है या सैनिक लक्ष्य प्रकट हो जाते हैं। फालतू मिट्टी और मलबा सैनिक कार्रवाई के स्पष्ट संकेत हैं, अत: इन्हें या तो छिपा देते हैं, या परिस्थान से सम्मिश्रित कर देते हैं। घरों से निकलनेवाले धुँए को नियंत्रित और व्यासृत करना भी परमावश्यक होता है। कठोर अनुशासन का पालन हर हालत में होना चाहिए। जोर से आदेश देना, नाम लेकर पुकारना, खाँसना, छींकना आदि वर्जित हैं। कोमल भूमि का लाभ उठाना चाहिए। सैनिक उपकरणों को इस प्रकार बाँधना चाहिए कि किसी प्रकार आवाज न होने पाए। गाड़ी पर माल लादते और उतारते समय आवाज नहीं होनी चाहिए। ध्वनिपरासन (साउंड रंगिंग) से शत्रु को अपनी तोपों की स्थिति का पता न लगने देने के लिए आवश्यक है कि चलती-फिरती सेना परासन करे। सैनकि कार्यकलाप और अभिस्थापन को छिपाने की तीन मुख्य विधियाँ हैं : (१) सम्मिश्रण, इसमें छद्मावरण पदार्थ स लक्ष्य को इस प्रकार छिपाते हैं कि लक्ष्य और पदार्थ पृष्ठभूमि के अंग जान पड़ते हैं, (२) अभिस्थापन पर रक्षावरण निर्मित करना (३) सैनिक महत्व के लक्ष्य या क्रियाकलाप की नकल उतारकर शत्रु को भ्रमित करना। यूनिटों को तितर-बितर करना छद्मावरण निर्माण में सहायक होता है। बिखराव से सैनिक कार्यकलापों की पहचान कठिन हो जाती है। विदारी चित्रण (दिसृप्टिव पेंटिंग) भी छद्मावरण की एक प्रचलित विधि है। इसका प्रयोग जहाज, हवाई जहाज, टैंक तथा स्थल अभिस्थापनों के छद्मावरण में किया जाता है। जलयान का विदारी चित्रण करने से उसकी प्राकृतिक संरचना रेखाएँ अदृश्य हो जाती हैं, जिससे उसकी दिशा और वेग का निर्धारण करना कठिन हो जाता है। स्थिर असैनिक अभिस्थापनों का बमवर्षक ओर हवाई टोह लेनेवालों से बचाना कठिन समस्या है। बड़े-बड़े अभिस्थापनों को फोटोग्राफी से गुप्त रखना लगभग असंभव है। फोटोग्राफी से ज्ञात अभिस्थापनों को छद्मावनण उपचार से ऐसा बनाते हैं कि बमवर्षक उन्हें समय से पहचान न पाएँ। कहने की आवश्यकता नहीं कि नदी, सड़क, ओर स्टेडियम जैसे बृहद, ध्यानाकर्षी अभिस्थापनों को छिपाना अत्यंत कठिन है और बमवर्षक इन्हीं स्थलचिह्नों की सहायता से अपने लक्ष्य पहचान लेते हैं। ऐसे अभिस्थापनों के छद्मावरण के लिए यह आवश्यक होता है कि इन अभिस्थापनों का निर्माण करते समय ही सावधानी बरती गई हो। द्वितीय विश्वयुद्ध में जिन छद्मावरण उपायों का प्रयोग हुआ उनसे बमवर्षक और दृष्टिप्रेक्षण को धोखा दिया जाता था। मार्गनिर्देशन राडार तथा अंध बमवर्षक उपकरणों के आविष्कार से अब इन विधियों से काम नहीं चल सकता। परमाणु बम ओर रॉकट के युग में अधिक सुनियोजित और वैज्ञानिक छद्मावरण विधि का विकास करना इस युग की अनिवार्य आवश्यकता है।
मजियाडी-अ०व०-३, यमकेश्वर तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के पौड़ी जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा मजियाडी-अ०व०-३, यमकेश्वर तहसील मजियाडी-अ०व०-३, यमकेश्वर तहसील
ज़ाहिदा जेदी (४ जनवरी, १९३० ११ जनवरी, 20११) भारतीय विद्वान, अंग्रेजी साहित्य की प्रोफेसर, कवि, नाटककार और साहित्यिक आलोचक थे। उनके साहित्यिक योगदान में सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, और दार्शनिक पहलुओं से संबंधित उर्दू और अंग्रेजी में ३० से अधिक पुस्तकें, और चेखव, पिरंडेलो, बेकेट, सार्त्र और आईनेस्को के साहित्यिक कार्यों का अनुवाद शामिल हैं। उन्होंने उर्दू और अंग्रेजी में भारतीय और पश्चिमी लेखकों के कई नाटकों का निर्माण किया और निर्देशित किया।उसनेग़ालिब इंस्टीट्यूट, दिल्ली, द्वारा उर्दू ड्रामा के लिए हम सब ग़ालिब अवॉर्ड और कुल हिन्दू बहादुर शाह जफर अवार्ड प्राप्त किया। ज़ाहिदा जैदी का जन्म ४ जनवरी १९३० को मेरठ, भारत में हुआ।वह पांच बहनों में सबसे कम उम्र की थी। उसके पिता, एस. एम मुस्तेह्सिन जैदी, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में गणित पढ़ाते रहे थे और मेरठ में एक जाने-माने वकील थे।जब ज़ैदी बहुत छोटी था, तब उसके पिता की मौत हो गई थी। उस के दादा, के जी सैकुलन एक प्रसिद्ध सामाजिक सुधारक थे, जबकि उसके नाना, मौलाना ख्वाजाअल्ताफ हुसैन हालीएक उर्दू कवि थे। उसकी एक बड़ी बहन, सजीदा जैदी, जो उसके दो महीने बाद मर गई, भी एक प्रसिद्ध कवि और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में शिक्षा की प्रोफेसर थी; साहित्यिक समुदाय में दोनों को "जैदी बहनों" के रूप में जाना जाता था। हालांकि वो रूढ़िवादी मुस्लिम समाज से थी, उसने और साजिदा ने एएमयू में छात्र रहते बुर्का पहनना बंद कर दिया था और वह अपनी साइकिल पर कक्षा में जाती थीं। १९३० में जन्मे लोग २०११ में निधन
चिनगॊल्लपालॆं (कृष्णा) में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के कृष्णा जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
जूलियन कैलेंडर प्राचीन प्रकार का रोमन सौर कैलेंडर था। इसकी जगह आज ग्रेगोरी कैलेंडर चलता है।
लिंजिर, सांरगढ मण्डल में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के अन्तर्गत रायगढ़ जिले का एक गाँव है। छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़
अंबरनाथ का शिव मंदिर ११वीं शताब्दी का एक ऐतिहासिक हिंदू मंदिर है, जिसकी पूजा अभी भी भारत के महाराष्ट्र में मुंबई के पास अंबरनाथ में की जाती है। इसे अम्बरेश्वर शिव मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, और स्थानीय रूप से पुरातन शिवालय के रूप में जाना जाता है। यह अंबरनाथ रेलवे स्टेशन से २ किमी. दूर वृंदावन (वल्धुनी) नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर १०६० ईस्वी में बनाया गया था। मंदिर के पत्थरों में खूबसूरती से नक्काशी की गई थी। यह संभवत: शिलाहार राजवंश के राजा छित्तराज द्वारा बनवाया गया था। ऐसा अनुमान है कि इसका पुनर्निर्माण उनके पुत्र मुमुनि ने भी किया था। इस मंदिर को पांडवकालीन मंदिर भी बताया जाता है। मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर जैसा पूरे विश्व में कोई मंदिर नहीं है। मंदिर का गर्भगृह जमीन के नीचे है। यह मंडप से लगभग २० सीढ़ियां नीचे की ओर है और आकाश के तरफ खुला है। इसका शिखर मंडप की ऊंचाई से थोड़ा ऊपर की ओर तक है जो स्पष्ट रूप से कभी पूरा नहीं हुआ था। यह भूमिजा रूप में है और अगर पूरा हो जाता तो उदयपुर, मध्य प्रदेश में उदयेश्वर मंदिर, जिसे नीलकंठेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, जो १०५९ में प्रारंभ हुआ और गोंदेश्वर मंदिर, सिन्नर के करीब होता। जो कुछ भी बनाया गया था, उससे यह स्पष्ट है कि शिखर ने गवाक्ष-मधुकोश के चार कोनों वाले पट्टियों का अनुसरण किया होगा, जो मीनार की पूरी ऊंचाई तक निर्बाध रूप से फैला हुआ है। यूनेस्को ने अंबरनाथ शिव मंदिर को सांस्कृतिक विरासत घोषित किया है। महाराष्ट्र में स्थापत्य
गर्ट्रूड बेले एलियन (२३ जनवरी, १९१८ - २१ फरवरी, १९९९) एक अमेरिकी बायोकेमिस्ट और फार्माकोलॉजिस्ट थी, जिन्होंने १९८८ में जॉर्ज एच. हिचिंग्स और सर जेम्स ब्लैक के साथ फिजियोलॉजी या मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार साझा किया था। अकेले और हिचिंग्स और ब्लैक के साथ काम करते हुए, एलियन ने नवीन अनुसंधान विधियों का उपयोग करके नई दवाओं को विकसित किया, जो बाद में एड्स ड्रग के रोकने का कारण बनेगी । उन्होंने अंग प्रतिरोपण के लिए प्रयोग की जाने वाली पहली इम्युनोसप्रेक्टिव दवा अज़ैथोप्रिन विकसित की। उन्होंने दाद संक्रमण के उपचार के लिए पहली सफल एंटीवायरल दवा, एसाइक्लोविर भी विकसित की। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा एलियन का जन्म २३ जनवरी १९१८ को न्यूयॉर्क शहर में हुआ था, माता-पिता रॉबर्ट एलियन, एक लिथुआनियाई यहूदी आप्रवासी और एक दंत चिकित्सक। १९२९ की वॉल स्ट्रीट क्रैश के बाद उनके परिवार ने अपना धन खो दिया। जब वह १५ साल की थी, तब उसके दादा कैंसर से मर गए, जिससे वह इस बीमारी को ठीक करने की कोशिश करने के लिए तैयार हो गई। उन्होंने १९३७ में हंटर कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और १९४१ में केमिस्ट्री और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय (एम.एस.सी.) में एक डिग्री प्राप्त की। उस समय लैंगिक पक्षपात के कारण उसके पंद्रह फेलोशिप के आवेदन ठुकरा दिए गए थे, इसलिए उसने एक सचिवीय स्कूल में दाखिला लिया, जो नौकरी मिलने के छह सप्ताह पहले हुआ था। स्नातक अनुसंधान की स्थिति प्राप्त करने में असमर्थ, उसने सुपरमार्केट में एक खाद्य गुणवत्ता पर्यवेक्षक के रूप में काम किया, और न्यूयॉर्क में एक खाद्य प्रयोगशाला के लिए, अचार की अम्लता और अंडे की जर्दी के रंग का परीक्षण कर रहा है जो कि मेयोनेज़ में जा रहा है। बाद में, उन्होंने जॉर्ज एच. हिचिंग्स के सहायक के रूप में टकहोई, न्यू यॉर्क (अब ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन) के बुराहोल्स-वेलकम दवा कंपनी में काम किया। ६ परीक्षण और त्रुटि के बजाय प्राकृतिक यौगिकों की नकल करके हिचिंग्स दवाओं के विकास के एक नए तरीके का उपयोग कर रही थी। उनका मानना था कि अगर वह कैंसर कोशिकाओं को विकास के लिए कृत्रिम यौगिकों को स्वीकार करने में विफल कर सकते हैं, तो वे सामान्य कोशिकाओं को नष्ट किए बिना भी नष्ट हो सकते हैं। उन्होंने प्यूरिन के साथ काम करना शुरू कर दिया, और १९५० में उन्होंने कैंसर विरोधी दवाओं का विकास किया। उसने न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय टंडन स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग (तब ब्रुकलिन पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट) में नाइट स्कूल जाना शुरू किया, लेकिन कई वर्षों की लंबी-चौड़ी यात्रा के बाद, उसे सूचित किया गया कि वह अब अपनी ओर से डॉक्टरेट जारी नहीं रख सकेगी समय के आधार पर, उसे अपनी नौकरी छोड़नी होगी और पूरे समय स्कूल जाना होगा। एलियन ने अपने जीवन में नौकरी करने और डॉक्टरेट की नौकरी छोड़ने का फैसला किया। उसने कभी औपचारिक पीएचडी प्राप्त नहीं की । , लेकिन बाद में में न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय टंडन स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग (तत्कालीन पॉलिटेक्निक विश्वविद्यालय) से मानद पीएचडी और १९९८ में हार्वर्ड विश्वविद्यालय से मानद एसडी की उपाधि से सम्मानित किया गया। कैरियर और अनुसंधान एलियन ने अन्य संगठनों के अलावा नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट , अमेरिकन एसोसिएशन फॉर कैंसर रिसर्च एंड वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के लिए भी काम किया था। १९६७ से १९८३ तक, वह बरोज़ वेलकम के लिए प्रायोगिक चिकित्सा विभाग की प्रमुख थीं। वह ड्यूक विश्वविद्यालय से १९७१ से १९८३ तक फार्माकोलॉजी के प्रायोगिक प्रोफेसर और प्रायोगिक चिकित्सा से संबद्ध थे और १९८३ से १९९९ तक शोध प्रोफेसर रही। परीक्षण-और-त्रुटि पर भरोसा करने के बजाय, एलियन और हिचिंग्स ने सामान्य मानव कोशिकाओं और रोगजनकों के बीच जैव रसायन में अंतर का इस्तेमाल किया (रोग पैदा करने वाले एजेंट जैसे कैंसर कोशिका, प्रोटोजोआ, बैक्टीरिया और वायरस) दवाओं को डिजाइन करने के लिए जो उन्हें मार या बाधित कर सकते थे। मेजबान कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाए बिना विशेष रोगजनकों का प्रजनन। विकसित की गई दवाओं का उपयोग विभिन्न प्रकार की विकृतियों के इलाज के लिए किया जाता है, जैसे कि ल्यूकेमिया, मलेरिया, अंग प्रत्यारोपण अस्वीकृति ( अजैथियोप्रिन ), साथ ही हरपीज ( एसाइक्लोविर , जो अपनी तरह की पहली चयनात्मक और प्रभावी दवा थी)। एलायन के अधिकांश शुरुआती कार्य प्यूरीन के उपयोग और विकास से आए थे। एलियन के आविष्कारों में शामिल हैं: १९६७ के दौरान उन्होंने कंपनी के प्रायोगिक थेरेपी विभाग के प्रमुख के पद पर कब्जा कर लिया और १९८३ में आधिकारिक तौर पर सेवानिवृत्त हुए। अपनी सेवानिवृत्ति के बावजूद, एलियन ने प्रयोगशाला में लगभग पूर्णकालिक काम करना जारी रखा, और एज़िडोथाइमिडिन के अनुकूलन का निरीक्षण किया, जो एड्स के उपचार के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पहली दवा बन गई। पुरस्कार और सम्मान १९८८ में "ड्रग ट्रीटमेंट के महत्वपूर्ण नए सिद्धांत" की खोज के लिए एलीयन को हिचिंग्स और सर जेम्स ब्लैक के साथ मिलकर फिजियोलॉजी या मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार मिला। उन्हें १९९० में नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज का सदस्य चुना गया, १९९१ में चिकित्सा संस्थान का सदस्य और १९९१ में अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज का फेलो भी। पुरस्कारों में गरवन-ओलिन मेडल (१९६८), नेशनल मेडल ऑफ साइंस (१९९१), और लेमेल्सन-एमआईटी लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (१९९७) शामिल हैं। १९९१ में एलियन नेशनल इन्वेंटर्स हॉल ऑफ फ़ेम में शामिल होने वाली पहली महिला बनीं। उन्हें १९९१ में राष्ट्रीय महिला हॉल ऑफ फ़ेम में भी शामिल किया गया। १९९२ में, वह इंजीनियरिंग एंड साइंस हॉल ऑफ फ़ेम के लिए चुनी गईं। वह १९९५ में रॉयल सोसाइटी (फॉरममआरएस) की एक विदेशी सदस्य चुनी गईं। हंटर कॉलेज से स्नातक करने के तुरंत बाद, एलियन ने सिटी कॉलेज ऑफ़ न्यूयॉर्क में एक उत्कृष्ट सांख्यिकी छात्र, लियोनार्ड कैंटर से मुलाकात की। उन्होंने शादी करने की योजना बनाई, लेकिन लियोनार्ड बीमार हो गए। २५ जून, १९४१ को, उनके दिल के संक्रमण, बैक्टीरियल एंडोकार्डिटिस से मृत्यु हो गई। एलियन ने कभी शादी नहीं की और न ही उनके बच्चे थे। उसने अपने शौक को फोटोग्राफी, यात्रा और संगीत सुनने के रूप में सूचीबद्ध किया। नॉर्थ कैरोलिना के रिसर्च ट्रायंगल पार्क में ब्रीज वेलकम चले जाने के बाद एलियन पास के चैपल हिल में चला गयी। १९९९ में उत्तरी कैरोलिना में गर्ट्रूड एलियन की मृत्यु हो गई, ८१ वर्ष की आयु। महिला जीव वैज्ञानिक १९९९ में निधन १९१८ में जन्मे लोग
लताकरंज (लताकरञ्ज ; वानस्पतिक नाम: कैसल्पिनिया क्रिस्टा) एक प्रकार का करंज या कंजा है जिसे हिन्दी में कटकरंज, कंटकरेज, गजगा, कटकलेजी, पांशुल, पट्टिल, पूतिक, पूतिकरंज, सागर गोट आदि कहते हैं। वैद्यक में यह कटु, उष्ण और वात-कफ नाशक कहा गया है । इसका बीज दीपन, पथ्य तथा गुल्म और विप को दूर करनेवाला माना जाता है ।
वंदवासी (वंदवसी) भारत के तमिल नाडु राज्य के तिरुवन्नामलई ज़िले में स्थित एक नगर है। इन्हें भी देखें वांडीवाश का युद्ध तमिल नाडु के शहर तिरुवन्नामलई ज़िले के नगर
देवदास १९५५ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। १९५५ मे बनी यह फिल्म शरत्चंद्र चटोपाध्यायके उपन्यास 'देवदास'पर आधारीत है। इसी उपन्यास पर आधारीत इसी नाम की फिल्म १९३६ मे भी बन चुकी है। १९३६ की फिल्म कुंदनलाल सहगल द्वारा अभिनित थी, जबकी १९५५ मे रिलीज हुए देवदासमे दिलीप कुमारने प्रमुख किरदार निभाया है। फिल्म को बहुत जादा सफलता मिली और यह फिल्म बॉलीवूडमे एक मिसाल बन गयी। दिलीपकुमारके साथही साथ पारो और चंद्रमुखी का किरदार निभाने वाली सुचित्रा सेन और वैजयंतीमाला के अभिनय को भी बडा सराहया गया। इस फिल्म के चलते दिलीपकुमार एक सशक्त अभिनेता के रूप मे उभर आए। दिलीप कुमार, *सुचित्रा सेन, *वैजयन्तिमाला, *मोतिलाल सचिन देव बर्मन नामांकन और पुरस्कार देवदास हिन्दी उपन्यास शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय लिखित देवदास (१९३५ फ़िल्म) कुन्दन लाल सहगल अभिनीत देवदास (१९५५ फ़िल्म) दिलीप कुमार, वैजयन्ती माला अभिनीत देवदास (२००२ फ़िल्म) शाहरुख़ ख़ान, माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या राय अभिनीत १९५५ में बनी हिन्दी फ़िल्म
बेराईचक सहकुंड, भागलपुर, बिहार स्थित एक गाँव है। भागलपुर जिला के गाँव
१३७३ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ
विलो विल्सन(जन्म: ३१ अगस्त १९८२, इंग्लिश: ग. विलो विल्सन) अमेरिकी कॉमिक्स लेखक, गद्य लेखक, निबंधकार और पत्रकार हैं। ग्वेन्डोलिन विलो विल्सन३१ अगस्त, १९८२को न्यू जर्सी, संयुक्त राज्य अमेरिका में नास्तिकता पर विस्वास रखने वाले माता पिता के घर में जन्म लिया। विल्सन नेबोस्टन विश्वविद्यालयमें अध्ययन किया, जहां कई धर्मों का अध्ययन किया और इस्लाम धर्म अपना लिया। कई वर्षों तककाहिरामेंरहीं। २००७ में, उन्होंनेकाहिरानाम से अपना पहला ग्राफिक उपन्यास प्रकाशित किया, जिसमें छह काहिरा निवासियों के भाग्य एक जादुईशीशद्वाराअंतःसंबंधित हैं। २००८ मेंएयर केसाथ आई, जो बेलीट नामक एक फ्लाइट अटेंडेंट की कहानी बताती है, जो एक आतंकवादी संगठन की योजनाओं में शामिल है और अलौकिक घटनाओं का पता लगा रही है। २००९ मेंएयरकोआइजनर पुरस्कार केलिए नामांकित किया गया था। २०११ में उसनेद बटरफ्लाई मस्जिदकिताब लिखी जिसमें वह इस्लाम में अपने रूपांतरण का वर्णन करती हैं। २०१२ में, विल्सन ने अपना पहला काल्पनिक उपन्यासअलिफ द अनसीनप्रकाशित किया, जिसमें एक अरबहैकरको एक पौराणिक सपने की दुनिया मेंखींचागया और जिसके साथ उसने सीधेविश्व काल्पनिक पुरस्कार जीता। ह्यूगो अवार्डसाथ ही आइजनर पुरस्कार के लिए दूसरा नामांकन। विल्सन अपने पति उमर से शादीशुदा है और उसकी दो बेटियां हैं। काहिरा(ग्राफिक उपन्यास, २००७) एयर(ग्राफिक उपन्यास, २००८-१०) बटरफ्लाई मस्जिद(गैर-फिक्शन, २०११) अलिफ़ द अनसीन(काल्पनिक, २०१२), जर्मनद अलिफ़ द अदृश्य(२०१८, फिशर टोर)आईएसबीएन ९७८-३-५९६-२99३6-२ सुश्री मार्वल(२०१४ से कॉमिक) सर्वश्रेष्ठ उपन्यास केलिएअलिफ द अनसीन केलिएवर्ल्ड फैंटेसी अवार्ड(२०१३) ह्यूगो पुरस्कार(२०१५)सुश्री मार्वल वॉल्यूम १ केलिएसर्वश्रेष्ठ ग्राफिक स्टोरीश्रेणी में: नो नॉर्मल(चित्रकारों एड्रियन अल्फोना और जेक व्याट के साथ) एयर केलिएआइजनर अवार्ड(२००९) के लिएनामांकन सुश्री मार्वल केलिए आइजनर पुरस्कार (२०१५) के लिए नामांकन जी. विलो विल्सन की वेबसाइट १९८२ में जन्मे लोग इस्लाम में परिवर्तित लोगों की सूची इन्हें भी देखें रुकैया वारिस मकसूद
ईति, खेती को हानि पहुँचानेवाले उपद्रव। इन्हें छह प्रकार का बताया गया है : अतिवृष्टिरनावृष्टि: शलभा मूषका: शुका:। प्रत्यासन्नाश्च राजान: षडेता ईतय: स्मृता:।। (अर्थात् अतिवृष्टि, अनावृष्टि, टिड्डी पड़ना, चूहे लगना, पक्षियों की अधिकता तथा दूसरे राजा की चढ़ाई।) भारतीय विश्वास के अनुसार अच्छे राजा के राज्य में ईति भय नहीं सताता। तुलसीदास ने इसका उल्लेख किया है: दसरथ राज न ईति भय नहिं दुःख दुरित दुकाल। प्रमुदित प्रजा प्रसन्न सब सब सुख सदा सुकाल।। सूरदास ने कुराज में ईतिभय की संभावना दिखाई है : अब राधे नाहिनै ब्रजनीति। सखि बिनु मिलै तो ना बनि ऐहै कठिन कुराजराज की ईति।
नूरपूर झाड़सा (नूरपुर झारसा) भारत के हरियाणा राज्य के गुरुग्राम ज़िले में स्थित एक गाँव है। इन्हें भी देखें हरियाणा के गाँव गुरुग्राम ज़िले के गाँव
आजाद हिन्द फौज के अभियोग से तात्पर्य नवम्बर १९४५ से लेकर मई १९४६ तक आजाद हिन्द फौज के अनेकों अधिकारियों पर चले कोर्ट-मार्शल से है। कुल लगभग दस मुकदमे चले। इनमें पहला और सबसे प्रसिद्ध मुकद्दमा दिल्ली के लाल किले में चला जिसमें कर्नल प्रेम सहगल, कर्नल गुरुबख्श सिंह तथा मेजर जनरल शाहनवाज खान पर संयुक्त रूप से चला। द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक नाटकीय बदलाव आया। १५ अगस्त १९४७ भारत को आजादी मिलने तक, भारतीय राजनैतिक मंच विविध जनान्दोलनों का गवाह रहा। इनमें से सबसे अहम् आन्दोलन, आजाद हिन्द फौज के १७ हजार जवानों के खिलाफ चलने वाले मुकदमे के विरोध में जनाक्रोश के सामूहिक प्रदर्शन थे। मेजर जनरल शहनवाज को मुस्लिम लीग और ले. कर्नल गुरुबख्श सिंह ढिल्लन को अकाली दल ने अपनी ओर से मुकदमा लड़ने की पेशकश की, लेकिन इन देशभक्त सिपाहियों ने कांग्रेस द्वारा जो डिफेंस टीम बनाई गई थी, उसी टीम को ही अपना मुकदमा पैरवी करने की मंजूरी दी। मजहबी भावनाओं से ऊपर उठकर सहगल, ढिल्लन, शहनवाज का यह फैसला सचमुच प्रशंसा के योग्य था। हिन्दुस्तानी तारीख में 'लाल किला ट्रायल' का अहम् स्थान है। लाल किला ट्रायल के नाम से प्रसिध्द आजाद हिन्द फौज के ऐतिहासिक मुकदमे के दौरान उठे इस नारे 'लाल किले से आई आवाज-सहगल, ढिल्लन, शहनवाा' ने उस समय हिन्दुस्तान की आजादी के हक के लिए लड रहे लाखों नौजवानों को एक सूत्र में बांध दिया था। वकील भूलाभाई देसाई इस मुकदमे के दौरान जब लाल किले में बहस करते, तो सड़कों पर हजारों नौजवान नारे लगा रहे होते। पूरे देश में देशभक्ति का एक वार सा उठता। १५ नवम्बर १९४५ से ३१ दिसम्बर १९४५ यानी, ५७ हिन्दुस्तान की आजादी के संघर्ष में टर्निंग पॉइंट था। यह मुकदमा कई मोर्चों पर हिन्दुस्तानी एकता को मजबूत करने वाला साबित हुआ। कांग्रेस की डिफेंस टीम में सर तेज बहादुर सप्रू के नेतृत्व में मुल्क के उस समय के कई नामी-गिरामी वकील भूलाभाई देसाई, सर दिलीपसिंह, आसफ अली, पं॰ जवाहरलाल नेहरू, बख्शी सर टेकचंद, कैलाशनाथ काटजू, जुगलकिशोर खन्ना, सुल्तान यार खान, राय बहादुर बद्रीदास, पी.एस. सेन, रघुनंदन सरन आदि शामिल थे जो खुद इन सेनानियों का मुकदमा लड़ने के लिए आगे आए थे। सर तेज बहादुर सप्रू की अस्वस्थता के कारण वकील भूलाभाई देसाई ने आजाद हिन्द फौज के तीनों वीरों सिपाहियों की तरफ से वकालत की। अभियोग की कार्यवाही संवाददाताओं और जनता के लिए खुली हुई थी। मुकदमे के दौरान पूरे मुल्क में देशभक्ति का माहौल पैदा हो गया। लोग अपने मुल्क के लिए मर मिटने को तैयार हो गए। सारे मुल्क में सरकार के खिलाफ धरने प्रदर्शन हुए, एकता की सभाएं हुईं, जिसमें मुकदमे के मुख्य आरोपी कर्नल प्रेम कुमार सहगल, कर्नल गुरुबख्श सिंह ढिल्लन, मेजर जनरल शहनवाज की लम्बी उम्र की दुआएं की गर्इं। अंग्रेज हुकूमत ने सहगल-ढिल्लन-शहनवाज पर ब्रिटिश सम्राट के खिलाफ बगावत करने का इल्जाम लगाया। लेकिन सीनियर एडव्होकेट भूलाभाई देसाई की शानदार दलीलों ने इस मुकदमे को आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों के हक में कर दिया। भूलाभाई ने मुकदमे की शुरुआत इस बात से की, 'इस समय न्यायालय के समक्ष, किसी परतंत्र जाति द्वारा अपनी मुक्ति के लिए संघर्ष करने का अधिकार कसौटी पर है।' भूलाभाई देसाई की पहली दलील थी- 'जापान से पराजय के बाद अंग्रेजी सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल हंट ने जब खुद आजाद हिन्द फौज के जवानों को जापानी सेना के सुपुर्द कर दिया और उनसे कहा, आज से आप हमारे मुलाजिम नहीं और मैं अंग्रेजी सरकार की ओर से आप लोगों को जापान सरकार को सौंपता हूं, आप लोग जिस प्रकार अंग्रेजी सरकार के प्रति वफादार रहे, उसी प्रकार अब जापानी सरकार के प्रति वफादार रहें। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे, तो आप दण्ड के भागी होंगे। कर्नल हंट का जापानी सेना के सम्मुख समर्पण और भारतीय सेना को जापानियों को सौंपने के बाद, इन जवानों पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत करने का मुकदमा नहीं बनता।' इसके अलावा भूलाभाई देसाई की दूसरी अहम् दलील थी- 'अंतर्राष्ट्रीय कानून के मुताबिक हर आदमी को अपनी आजादी हासिल करने के लिए लड़ाई लड़ने का अधिकार है। आजाद हिन्द फौज एक आजाद और अपनी इच्छा से शामिल हुए लोगों की फौज थी और उनकी निष्ठा अपने देश से थी। जिसको आजाद कराने के लिए नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने देश से बाहर एक अस्थायी सरकार बनाई थी और अपना एक संविधान था। इस सरकार को विश्व के नौ देशों की मान्यता प्राप्त थी।' अपनी दलील को साबित करने के लिए उन्होंने मशहूर कानूनविद् बीटन के कथन को उध्दृत किया - 'अपने मुल्क की आजादी को हासिल करने के लिए, हर गुलाम कौम को लड़ने का अधिकार है। क्योंकि, अगर उनसे यह हक छीन लिया जाए, तो इसका मतलब यह होगा कि एक बार यदि कोई कौम गुलाम हो जाए, तो वह हमेशा गुलाम होगी।' विचारणा (ट्रायल) के परिणाम इस ट्रायल ने पूरी दुनिया में अपनी आजादी के लिए लड़ रहे लाखों लोगों के अधिकारों को जागृत किया। सहगल, ढिल्लन और शाहनवाज के अलावा आजाद हिन्द फौज के अनेक सैनिक जो जगह-जगह गिरफ्तार हुए थे और जिन पर सैकड़ों मुकदमे चल रहे थे, वे सभी रिहा हो गए। ३ जनवरी १९४६ को आजाद हिन्द फौज के जांबाज सिपाहियों की रिहाई पर 'राईटर एसोसिएशन ऑफ अमेरिका' तथा ब्रिटेन के अनेक पत्रकारों ने अपने अखबारों में मुकदमे के विषय में जमकर लिखा। इस तरह यह मुकदमा अंतर्राष्ट्रीय रूप से चर्चित हो गया। अंग्रेजी सरकार के कमाण्डर-इन-चीफ सर क्लॉड अक्लनिक ने इन जवानों की उम्र कैद सजा माफ कर दी। हवा का रुख भांपकर वे समझ गए, कि अगर इनको सजा दी गई तो हिन्दुस्तानी फौज में बगावत हो जाएगी। विचारणा के दौरान ही भारतीय जलसेना में विद्रोह शुरू हो गया। मुम्बई, कराची, कोलकाता, विशाखापत्तनम आदि सब जगह विद्रोह की ज्वाला फैलते देर न लगी। इस विद्रोह को जनता का भी भरपूर समर्थन मिला। आजाद हिन्द सैनिकों का क्या हुआ? (नाज-ए-हिन्द सुभाष) आजाद हिन्द फौज आज़ाद हिन्द फ़ौज
अलीबाग (अलीबाग) भारत के महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ ज़िले में स्थित एक नगर है। यह उस ज़िले का मुख्यालय भी है। अलीबाग कोंकण क्षेत्र में, महाराष्ट्र के पश्चिमी तट पर, अरब सागर के किनारे बसा हुआ एक छोटा-सा शहर है। १७वीं शताब्दी में बनी इस जगह की उन्नति छत्रपति शिवाजी महाराज ने की थी। १८५२ में इसे एक तालुका घोषित किया गया। 'महाराष्ट्र का गोआ' तीन तरफ से पानी से घिरे होने के कारण अलीबाग में बहुत सारे सुंदर तट हैं। सभी तटों के किनारे नारियल और सुपारी के पेड़ होने से सारा इलाका किसी उष्णकटिबंधीय समुद्र तट जैसा लगता है। यहाँ का मौसम बहुत सुहावना होता है और तट बिल्कुल अनछुए से लगते हैं। यहाँ की हवा प्रदूषणरहित व ताज़ी है और तटों का दृष्य किसी स्वर्ग जैसा लगता है। अलीबाग बालूतट पर काली रेत आश्चर्यचकित करती है। अलीबाग एक तटीय शहर है, इसलिए यहाँ के स्थानीय व्यंजन मछली से बने होते हैं। मौसम सुहावना रहता है जहाँ तापमान न बहुत ज्यादा होता है और न बहुत कम। अधिकतम तापमान ३६ डिग्री सेल्सियस होता है। यहाँ आने के लिए सर्दियाँ सबसे अच्छा व उपयुक्त समय होता है। मुंबई से ३० किमी दूर अलीबाग, परिवहन के सभी साधनों, जैसे रेल, वायु और सड़क से भलीभाँति जुड़ा है। मुंबई का अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा और पेन का रेलवे स्टेशन इसके सबसे निकट है। तसच श्री ५१ शक्तिपीठांपैकी एक पूर्ण शक्तिपीठ असलेल्या श्री पदमक्षी रेणुका देवीचे स्थान आहे अलिबाग. तसच ते पर्यटक स्थळ असून आई पदमाक्षी ला कोकणची भवानी महणून ओळखली जाते इन्हें भी देखें रायगढ़ ज़िला, महाराष्ट्र रायगढ़ ज़िला, महाराष्ट्र महाराष्ट्र के शहर रायगढ़ ज़िले, महाराष्ट्र के नगर
मिहरबान सिंह,भारत के उत्तर प्रदेश की प्रथम विधानसभा सभा में विधायक रहे। १९५२ उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के १४३ - विधूना (पश्चिम) भरथना (उत्तर) इटावा (उत्तर) विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया। उत्तर प्रदेश की प्रथम विधान सभा के सदस्य १४३ - विधूना (पश्चिम) भरथना (उत्तर) इटावा (उत्तर) के विधायक इटावा के विधायक कांग्रेस के विधायक
कामायि, जैनथ मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
चीन और जापान भौगोलिक रूप से पूर्वी चीन सागर द्वारा विलगित हैं। जापान के ऊपर चीन की भाषा, वास्तु, संस्कृति, धर्म, दर्शन तथा विधि से काफी प्रभाव है। १९वीं शताब्दी के मध्य में जब युनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका आदि ने जापान को अपना व्यापार खोलने के लिये विवश कर दिया तो इसका परिणाम सकारात्मक हुआ और जापान तेजी से आधुनिकीकरण की ओर बढ़ा जिसे मीजी पुनःस्थापन (मीजी रिस्टोरेशन) कहते हैं। उसके बाद जापान चीन को ऐसा देश मानने लगा जो पिछड़ा तथा अपने आप को पश्चिमी देशों से रक्षा करने में असमर्थ है। इन्हें भी देखें प्रथम चीन-जापान युद्ध द्वितीय चीन-जापान युद्ध चीन जापान के कड़वे रिश्ते चीन जापान संबंध (चाइना रेडियो) नया नहीं है जापान और चीन के बीच टकराव चीन ने जापान से संबंध तोड़े (बीबीसी हिन्दी ; सितम्बर २०१०)
कालाढूँगी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र उत्तराखण्ड के ७० निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। नैनीताल जिले में स्थित यह निर्वाचन क्षेत्र अनारक्षित है। यह क्षेत्र साल २००८ के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन आदेश से अस्तित्व में आया। २०१२ में इस क्षेत्र में कुल ११३,३२५ मतदाता थे। २०१२ के विधानसभा चुनाव में बंशीधर भगत इस क्षेत्र के विधायक चुने गए। !बढ़त से जीत इन्हें भी देखें नैनीताल-ऊधमसिंह नगर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र उत्तराखण्ड मुख्य निर्वाचन अधिकारी की आधिकारिक वेबसाइट (हिन्दी में) तब राज्य का नाम उत्तरांचल था। उत्तराखण्ड के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र
संध्या हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री हैं। नामांकन और पुरस्कार १९३२ में जन्मे लोग
आफताब आलम (जन्म ३० नवंबर १९९२) एक अफ़ग़ानिस्तान के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी हैं। उन्होंने २०१० की शुरुआत में अफ़ग़ानिस्तान की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के लिए एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय अर्थात् वनडे क्रिकेट में पदार्पण किया था। वहीं उन्होंने २०१७-१८ में अहमद शाह अब्दाली ४ दिवसीय टूर्नामेंट में मिज़ ऐनाक क्षेत्र के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पदार्पण किया था। जुलाई २०१८ में, वह २०१८ गाजी अमानुल्ला खान क्षेत्रीय एक दिवसीय टूर्नामेंट में स्पीन घर टाइगर्स के लिए सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज रहे थे जिन्होंने ४ मैचों में १० विकेट लिए थे। सितंबर २०१८ में, उन्हें अफगानिस्तान प्रीमियर लीग टूर्नामेंट के पहले संस्करण में बल्ख की टीम में नामित किया गया था। जबकि अप्रैल २०१९ में, उन्हें २०१९ क्रिकेट विश्व कप के लिए अफगानिस्तान की टीम में नामित किया गया। अफगानिस्तान के एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी अफगानिस्तान के ट्वेन्टी २० क्रिकेट खिलाड़ी १९९२ में जन्मे लोग दाहिने हाथ के गेंदबाज
डीडी पंजाबी एक पंजाबी टीवी चैनल है। यह एक मनोरंजन चैनल है। इन्हें भी देखें डीडी नेशनल पर प्रसारित कार्यक्रमों की सूची ऑल इंडिया रेडियो डीडी डायरेक्ट प्लस देश अनुसार दक्षिण एशियाई टेलीविजन चैनलों की सूची चेन्नई में मीडिया सूचना और प्रसारण मंत्रालय दूरदर्शन की आधिकारिक इंटरनेट साईट दूरदर्शन न्यूज़ साईट पैक पर एक लेख मीडिया वर्ल्ड एशिया पंजाबी टीवी चैनल
मैनचेस्टर सिटी फुटबॉल क्लब, मैनचेस्टर में स्थित एक अंग्रेजी फुटबॉल क्लब है। सेंट मार्क (वेस्ट गोर्तोन्) के रूप में १८८० में स्थापित किया गया था, बाद में वे १८८७ में अर्द्विक एसोसिएशन फुटबॉल क्लब बन गए और १८९४ में मैनचेस्टर सिटी। क्लब २००३ के बाद सिटी ऑफ मैनचेस्टर स्टेडियम में अपने घरेलू मैच खेलत है। क्लब के सबसे सफल अवधि १९६० के दशक और १९७० के दशक में था, जब वे लीग चैम्पियनशिप, एफए कप, लीग कप जीता। १९८१ के बाद क्लब गिरावट में चला गया और सबसे खराब १९९८ में जब वे तीसरे स्तर में चला गया। क्लब २००२ में प्रीमियर लीग में लौटे, २००८ में क्लब अबू धाबी समूह द्वारा खरीदा गया था और यह दुनिया में सबसे धनी में से एक बन गए। २०१२ में, क्लब, ४४ साल में अपना पहला लीग खिताब प्रीमियर लीग जीता। इंग्लैंड के फुटबॉल क्लब
सर अल्फ्रेड जूल्स "फ्रेडी" एयर (२९ अक्टूबर १९१० २७ जून १९८९) एक ब्रितानी दार्शनिक थे। एयर तार्किक विधेयवाद को बढ़ावा देने के कारण विख्यात हैं जिसका उल्लेख उनकी पुस्तकों भाषा, सत्य और तर्क (१९३६) तथा ज्ञान की समस्या (१९५६) में मिलता है। १९१० में जन्मे लोग १९८९ में निधन विज्ञान के दार्शनिक
होसपेट या विजयनगर, भारत के कर्नाटक राज्य के विजयनगर जिले में स्थित एक शहर है। यह उस जिले का मुख्यालय है। होसापेटे हम्पी शहर से १२ किमी की दूरी पर स्थित है। इन्हें भी देखें कर्नाटक के शहर बेल्लारी ज़िले के नगर
दिव्य दृष्टि एक भारतीय अलौकिक ड्रामा टेलीविजन श्रृंखला है जो २३ फरवरी २०१९ से २३ फरवरी २०२० तक स्टार प्लस पर प्रसारित हुई। फायरवर्क्स प्रोडक्शंस के तहत निर्मित, इसमें सना सैय्यद, न्यारा बनर्जी, संगीता घोष, अधविक महाजन और मिश्कत वर्मा ने अभिनय किया। इसे कन्नड़ में दिव्य दृष्टि के रूप में डब किया गया और स्टार सुवर्णा पर प्रसारित किया गया। कहानी एक गर्भवती महिला विद्या की अपने गुरुजी से मुलाकात से शुरू होती है। वे पिशाचिनी, एक दुष्ट पिशाचिनी और गुरुजी के पूर्व शिष्य के बारे में बात करते हैं, जो भगवान शिव के तीन शक्तिशाली और जादुई रत्नों के पीछे जा रहा है जो उसके पास हैं। यदि उसे तीनों रत्न मिल गए तो वह इतनी शक्तिशाली हो जाएगी कि उसे कोई रोक नहीं पाएगा। गुरुजी ने अपने दो शिष्यों को सुरक्षित रखने के लिए दो रत्न, तत्व रत्न, तत्वों को नियंत्रित करने की शक्ति के साथ, और मायावी रत्न, भ्रम और मन पर नियंत्रण की शक्ति के साथ दिए थे। हालाँकि, पिशाचिनी ने अपने जादू से इन शिष्यों को मार डाला और दोनों रत्न, जिन्हें वह एक पेंडेंट में पहनती है, और उनकी शक्तियां हासिल कर लीं। वह अब तीसरे और तीन रत्नों में से सबसे शक्तिशाली, काल विजय रत्न के पीछे हैं, जिसमें भविष्य के दर्शन कराने की शक्ति और भविष्य को बदलने की शक्ति है, जो स्वयं गुरुजी के पास है। विद्या और गुरुजी उसकी गुफा में जाते हैं, जहां पिशाचिनी प्रकट होती है और गुरुजी से काल विजय रत्न मांगती है। गुरुजी जादू का उपयोग करते हैं और पिशाचिनी को एक तरफ धकेल देते हैं जबकि वह विद्या पर मणि फेंकते हैं। पिशाचिनी, ठीक हो जाती है और आने वाले मणि को पकड़ने के लिए उसके सामने चली जाती है। फिर काल विजय रत्न उसकी दाहिनी आंख में प्रवेश करता है, उसे नष्ट कर देता है और उसके अंदर एक चमकदार लाल रोशनी प्रकट करता है। फिर मणि विद्या के गर्भ में चली जाती है। फिर गुरुजी उसे बताते हैं कि उसके अजन्मे जुड़वां बच्चों को मणि की शक्तियां मिलेंगी और उसे चेतावनी दी कि वह उसके बाद आने वाली अंधेरी शक्तियों से सावधान रहें और पूर्णिमा से सावधान रहें। फिर वह विद्या को भाग जाने के लिए कहता है। दिव्या शर्मा शेरगिल के रूप में न्यारा बनर्जी : विद्या और सार्थक की बेटी, दृष्टि की जुड़वां बहन, शिखर की पत्नी, उसके पास भविष्य बदलने की शक्तियां हैं (२०१९-२०२०) दृष्टि शर्मा शेरगिल के रूप में सना सैय्यद : विद्या और सार्थक की बेटी; दिव्या की जुड़वां बहन; रक्षित की पत्नी; उसमें भविष्य देखने की शक्ति है (२०१९२०२०) पिशाचिनी के रूप में संगीता घोष : पाटली की माँ; दिव्या और दृष्टि की कट्टर दुश्मनी (२०१९२०२०) रक्षित शेरगिल के रूप में अध्विक महाजन : महिमा और चेतन का बेटा; राशि का भाई; दृष्टि के पति (२०१९२०२०) शिखर शेरगिल के रूप में मिश्कत वर्मा : अशेलेशा और भरत का बेटा; दिव्या के पति (२०१९२०२०) महिमा शेरगिल के रूप में वैष्णवी महंत : गुरुजी की बेटी; चेतन की पत्नी; रक्षित और राशि की माँ (२०१९२०२०) रोमी सूद के रूप में कुशाग्रे दुआ: नादिका और सर्वेश का बेटा; चिरंजीवी के शिष्य; दृष्टि का दत्तक भाई (२०१९२०२०) दैत्य वानर के रूप में करण खन्ना: शिखर का धोखेबाज, दिव्या का पूर्व पति (२०१९) गुरुजी के रूप में राज जुत्शी : महिमा के पिता; रक्षित और राशि के नाना; विद्या, सचिनी, चिरंजीवी और अन्य के गुरु; एक विरोधी होने का खुलासा; नकली काल देवता (२०१९-२०२०) चेतन शेरगिल के रूप में गिरीश सहदेव : महिमा के पति; रक्षित और राशि के पिता; भरत के बड़े भाई (२०१९) अश्लेषा शेरगिल "ऐश" के रूप में पारुल चौधरी : भरत की पत्नी; शिखर की माँ; पिशाचिनी का पूर्व साथी (२०१९-२०२०) ओजस्विनी शेरगिल "ओजस" के रूप में रिधिमा तिवारी : सनी, सिमरन और ट्विंकल की मां; रक्षित, राशि और शिखर की चाची (२०१९-२०२०) भरत शेरगिल "बैरी" के रूप में इमरान खान : अश्लेषा के पति; शिखर के पिता; चेतन का छोटा भाई पूर्व साथी (२०१९) पाटली के रूप में ऋचा राठौड़ : पिशाचिनी की बेटी; रक्षित की पूर्व नकली बेटी (२०१९) राशि शेरगिल के रूप में प्रकृति नौटियाल: चेतन और महिमा की बेटी; रक्षित की छोटी बहन (मृतक) (२०१९) लावण्या के रूप में मानसी श्रीवास्तव : नरक की एक दुष्ट छिपकली ; रक्षित की पूर्व मंगेतर और सनी की विधवा; सचिन की साथी, दृष्टि और दिव्या की देवरानी (२०१९) सनी शेरगिल के रूप में अंकित नारंग : लावण्या के पूर्व पति; ओजस्विनी का पुत्र; सिमरन और ट्विंकल का बड़ा भाई; रक्षित, राशि और शिखर का चचेरा भाई (मृतक) (२०१९) सिमरन शेरगिल के रूप में सृष्टि माहेश्वरी: सनी और ट्विंकल की बहन; ओजस्विनी की बेटी; रक्षित, राशि और शिखर की चचेरी बहन (२०१९-२०२०) ट्विंकल शेरगिल के रूप में अमिका शैल : सनी और सिमरन की बहन; ओजस्विनी की बेटी; रक्षित, राशि और शिखर की चचेरी बहन (२०१९) बिच्छू के रूप में पारस मदान : सचिनी का सहायक (मृतक) (२०१९) गरिमा वालिया के रूप में ईवा आहूजा : बृज की पत्नी; दिव्या की पालक माँ (२०१९) बृज वालिया के रूप में प्रियांक ततारिया : गरिमा के पति; दिव्या के पालक पिता (२०१९) नादिका सूद उर्फ लकी के रूप में रितु वशिष्ठ: सर्वेश की पत्नी; रोमी की माँ; दृष्टि की पालक माँ (२०१९) सर्वेश सूद के रूप में हेतल पुनीवाला: नादिका के पति; रोमी के पिता; दृष्टि के पालक पिता (२०१९) चिक्की के रूप में अंतरा बनर्जी : विक्की की बहन; लाल चकोर का सहायक (२०१९-२०२०) विक्की / विक्की मल्होत्रा के रूप में रोहित चौधरी: लाल चकोर का सहायक; रक्षित का दोस्त (२०१९) तमन्ना जैन बाल दृष्टि शर्मा के रूप में (२०१९) बाल दिव्या शर्मा के रूप में अलीना लाम्बे (२०१९) विद्या शर्मा के रूप में रति पांडे : सार्थक की पत्नी; दृष्टि और दिव्या की माँ; गुरुजी का शिष्य; सचिनी द्वारा मारा गया (२०१९) सार्थक शर्मा के रूप में अमित डोलावत : विद्या के पति; दृष्टि और दिव्या के पिता; सचिनी द्वारा मारा गया (२०१९) मोहना राठौड़ के रूप में अंतरा बिस्वास : सचिनी की दोस्त; नज़र से (२०१९) स्टार प्लस के धारावाहिक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक
साधारणत: विषाक्त पादप (पोइसनस प्लांट) ऐसे पौधे होते हैं जिनका समस्त अथवा थोड़ा अंश किसी भी दशा में खा लेने पर, किसी किसी में केवल स्पर्शमात्र से भी, हानिकारक परिस्थिति पैदा हो जाती है। इसके फलस्वरूप तत्काल मृत्यु हो सकती है। विषाक्त पौधों में निश्चित रूप से विषैले पदार्थ रहते हैं। विषैले पदार्थ कई रासायनिक तत्वों के सम्मिश्रण से बने होते हैं। ऐसे पदार्थ १. ऐमिन, २. प्युरिन, ३. ऐल्केलॉयड, ४. ग्लुकोसाइड तथा ५. सैपोनिन हैं। कुछ प्रोटीन भी विषैले होते हैं। कार्बोलिक अम्ल, ऑक्सैलिक अम्ल के कारण भी कुछ पौधे विषाक्त होते हैं। छोटे से लेकर बड़े बड़े वृक्ष तक विषाक्त होते हैं। कुछ एककोशिकीय वैक्टीरिया, कुछ शैवाल, जैसे माइक्रोसिस्टस (माइक्रोसिस्टस) और एनाबीना (अनाबएना) भी विषाक्त होते हैं। कुछ कवक, जैसे क्लेविसेप्स (क्लेविसेप्स), मशरूम आदि भी, विषाक्त होते हैं। विषैले मशरूम कई प्रकार के होते हैं। कुछ आँत को, कुछ रूधिर को, कुछ तंत्रिकातंत्र को, कुछ मस्तिष्क को और कुछ नेत्रों को आक्रांत करते हैं। विषाक्त पादपों में एकोनिटम नैपेलस (एकोनिटम नेपेलस), रैननकुलस स्क्लेरेटस (रनुंक्युलस स्कलेरट्स), एनोना स्क्वैमोसा (अनोना स्क्वामोसा), भड़भाड़ (अर्गमोन मेक्सिकना, बिहार में इसे "घमोई" कहते हैं), सत्यानाशी, अफीम, तथा मदार (कैलोट्रोपीस) हैं। भड़भाँड़ के बीज काले सरसों के ऐसे और आकार के होते हैं। इसके तेल के खाने से बेरी-बेरी से मिलता-जुलता रोग होता है।
यह समस्तीपुर जिला केन्द्र से १५ किमी उत्तर दिशा में हैं, इस परखणड में ३२ पंचायत है, यह उतर दिशा में दरभंगा जिला तक फैला हुआ है, समस्तीपुर, बिहार का एक प्रखण्ड।
अभिता एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री है जो तमिल फिल्मों और टेलीविजन में अभिनय करती है। वह विक्रम (अभिनेता) के साथ सेतु सहित उल्लेखनीय प्रस्तुतियों में दिखाई दी। वह एक किशोरी के रूप में, अभिता टेलीविजन धारावाहिक, नैन्सी में सांघवी अभिनीत, थिरुवोटियूर में अपने घर के पास फिल्माया करती थी। उस धारावाहिक के निर्देशक ने उनका हुनर देखा और उनके माता-पिता से बात की, जिससे वह अपने अगले टीवी धारावाहिक क्रिमिनल में नायिका की बहन की भूमिका निभा सके। कुछ धारावाहिकों को करने के बाद, उन्होंने गोलमाल नाम की एक कम बजट की फिल्म की, जो मुख्य अभिनेत्री की बहन का अभिनय था और फिर एक बी-ग्रेड फिल्म जिसका नाम मलयालम में देवदासी था। उस समय, निर्देशक बाला ने अभिता को विक्रम के साथ "सेतु" में एक प्रमुख भूमिका के लिए चुना, जिसे कीर्ति रेड्डी और राजश्री ने छोड़ दिया था। बाला ने अपने चरित्र को चित्रित करने के बाद, फिल्म के लिए जेनिला के अपने मूल नाम से अभिता का नाम बदल दिया। फिल्म दिसंबर १९९९ में एक उपनगरीय थिएटर में एक एकल शो में खुली, लेकिन शब्द-प्रचार के माध्यम से निर्मित हुई और चेन्नई में कई सिनेमा हॉलों में एक सौ दिनों तक चला, एक महत्वपूर्ण और व्यावसायिक सफलता बन गई। सेतु ने तमिल में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता और फिल्मफेयर पुरस्कार और सिनेमा एक्सप्रेस पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ फिल्म श्रेणी में जीत हासिल की, जबकि अभिता ने एक ब्राह्मण लड़की की भूमिका के लिए महत्वपूर्ण प्रशंसा हासिल की। सेतु की सफलता के बाद, अभिता को प्रस्तावों की भरमार हो गई, लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने और अन्नामलाई विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में पीजी समाप्त करने के लिए चुना। २००५ में, उन्हें एक और सफलता मिली और उन्होंने करुणानिधि द्वारा लिखी गई कन्नम्मा में मुख्य भूमिका निभाने के लिए साइन किया, लेकिन ऐसा करने के लिए उन्होंने अनजाने में ही उल्लाकदथल नामक एक अन्य फिल्म को चुना। उस फिल्म के निर्माताओं ने शिकायत की और निर्माता की परिषद द्वारा उसे प्रतिबंधित कर दिया, जिससे उसे दोनों फिल्मों से बाहर कर दिया गया। बाद में उस वर्ष उन्होंने अब्बास और कुणाल के साथ अनार्कीगल में अभिनय किया। उनकी अगली फिल्म सुइताचाई विधायक थी, जिसने २००६ में रिलीज़ में देरी की थी, और उन्हें सत्यराज के सामने दिखाया गया था और उन्हें आखिरी बार नामु नाडू में सारनराज की पत्नी के रूप में देखा गया था। अभिता ने २००७ में थिरुमथी सेल्वम में मुख्य मुख्य अभिनेत्री के रूप में छोटे पर्दे पर शुरुआत की, जिसमें उन्होंने संजीव के साथ अभिनय किया। इस शो ने उन्हें छोटे पर्दे की सबसे चर्चित जोड़ी के रूप में स्थापित किया और उन्हें शो में अपने किरदारों सेल्वम और अर्चना के लिए तमिल दर्शकों के बीच अपार लोकप्रियता मिली। यह शो २००८ से २०१३ तक ४ साल के लिए तमिल छोटे पर्दे पर राज करने वाला सुपरहिट था।
मुर्दाखोर उन जीव-जंतुओं को कहते हैं जो अपने आवासीय क्षेत्र में उपस्थित मृत जैविक पदार्थों को खाकर अपना निर्वाह करते हैं। यह मांसाहारी और शाकाहारी दोनों ही श्रेणियों के हो सकते हैं। यह मृत प्राणियों और पौधों को खाकर पर्यावरण की खाद्य शृंखला में अहम भूमिका अदा करते हैं। भोजन व्यवहार के अनुसार प्राणी
चक्रव्यूह या पद्मव्यूह हिंदू युद्ध शास्त्रों मे वर्णित अनेक व्यूहों (सैन्य-संरचना) में से एक है। चक्रव्यूह एक बहु-स्तरीय रक्षात्मक सैन्य संरचना है जो ऊपर से देंखने पर चक्र या पद्म की भाँति प्रतीत होती है इसके हर द्वार की रक्षा एक महारथी योध्दा करता है। इस व्यूह का प्रयोग महाभारत में कौरवो के प्रधान सेनापति द्रोणाचार्य द्वारा धर्मराज युधिष्ठिर को बंदी बनाने हेतु हुआ था। अभिमन्यु और चक्रव्यूह इसके भेदन का ज्ञान पांडव पक्ष में केवल अर्जुन, कृष्ण, प्रद्युम्न व अभिमन्यु को ही था, परंतु इसकी रचना के अवसर पर वहाँ केवल अभिमन्यु ही मौजूद था। अभिमन्यु ने यह ज्ञान अपनी माँ के गर्भ में ही प्राप्त कर लिया था किंतु वह इससे निकलने मार्ग नही जान पाया था। अत: जब युध्द में अभिमन्यु ने इसमें प्रवेश किया तो उसने छ: द्वार को तोड़ दिया लेकिन सातवें द्वार पर कौरव पक्ष के सभी महारथियों ने धर्मविरूध्द मिलकर उसका वध कर दिया। महाभारत के पात्र महाभारत के पात्र
२००६ विश्व महिला मुक्केबाजी प्रतियोगिता महिला विश्व एमेच्योर मुक्केबाजी प्रतियोगिता थी। विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिताएं
नंंदिनी गुप्ता एक भारतीय मॉडल और सौंदर्य प्रतियोगिता की उपाधि धारक हैं, जिन्हें फेमिना मिस इंडिया २०२३ का ताज पहनाया गया था। नंदिनी गुप्ता वर्ष २०२३ के लिए मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व करेगी ये राजस्थान के कोटा जिले के भांडाहेडा गांव से ताल्लुक रखती है
रूस की सभी भाषाओं में, रूसी राष्ट्रीय स्तर पर एकमात्र आधिकारिक भाषा है। रूसी भाषा के साथ रूस के विभिन्न क्षेत्रों में ३५ अलग-अलग भाषाओं को आधिकारिक भाषा माना जाता है। आज रूस में १०० से अधिक अल्पसंख्यक भाषाएं बोली जाती हैं| रूसी साम्राज्य का एकमात्र आधिकारिक भाषा था जो १९१७ तक अस्तित्व में था। सोवियत काल के दौरान, विभिन्न अन्य जातीय समूहों की भाषाओं की नीति नीति में उतार-चढ़ाव हुई। राज्य ने देश भर में विभिन्न भाषाओं के लिए वर्णमाला और व्याकरण विकसित करने में मदद की, जिसमें पहले लिखित रूप की कमी थी। हालांकि प्रत्येक घटक गणराज्य की अपनी आधिकारिक भाषा थी, एकजुट भूमिका, और बेहतर स्थिति रूसी के लिए आरक्षित थी। रूस रूसी संघ की एकमात्र संघीय आधिकारिक भाषा है, रूस के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में कई अन्य आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त भाषाएं हैं - रूस के संविधान के अनुच्छेद ६८ में रूस के विभिन्न गणराज्यों को रूस के अलावा आधिकारिक (राज्य) भाषाओं को स्थापित करने की अनुमति मिलती है। डैगस्टन का संविधान राज्य भाषाओं के रूप में "रूसी और दगस्टान के लोगों की भाषाओं" को परिभाषित करता है, हालांकि भाषाओं की कोई व्यापक सूची नहीं दी गई थी। कानून की परियोजना में दगस्टान गणराज्य की भाषाओं पर ३२ भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है। रूसी भाषा पूर्वी स्लाविक भाषाओं में सर्वाधिक प्रचलित भाषा है। रूसी यूरोप की एक प्रमुख भाषा तो है ही, विश्व की प्रमुख भाषाओं में भी इस का विशेष स्थान है, हालाँकि भौगोलिक दृष्टि से रूसी बोलने वालों की अधिकतर संख्या यूरोप की बजाय एशिया में निवास करती है। रूसी भाषा की गिनती शिक्षा की भाषाएं हर साल रूसी शिक्षा मंत्रालय और विज्ञान स्कूलों में उपयोग की जाने वाली भाषाओं पर आंकड़े प्रकाशित करता है। २०१४/२०१५ में १३.७ मिलियन रूसी छात्रों के पूर्ण बहुमत [३३] (१३.१ मिलियन या ९ ६%) ने रूसी शिक्षा को शिक्षा के माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया हैं। लगभग १.६ मिलियन या १2% छात्रों ने एक विषय के रूप में अपनी (गैर-रूसी) मूल भाषा का अध्ययन किया हैं। सबसे अधिक पढ़ाई भाषा क्रमश: 34७, २५३, १0७ हजार छात्रों के साथ तातार, चेचन और चुवाश हैं। रूस की भाषाएँ
१२ जून ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का १६३वाँ (लीप वर्ष में १६४ वाँ) दिन है। साल में अभी और २०२ दिन बाकी हैं। १७५२- कर्नाटक में चन्दा साहिब ने आत्मसमर्पण कर दिया। १८१२- नेपोलियन बोनापार्ट ने रूस पर हमला किया। १८३०- फ्रांस ने अल्जीरिया के उपनिवेशीकरण की प्रक्रिया शुरु की थी। १८९८- जनरल एमिलियो ओगिनाल्डो ने स्पेन से पुर्तगाल के स्वतंत्रता की घोषणा की। १९७५ इलाहाबाद उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला इन्दिरा गांधीऔर राजनारायन के चुनावी मुकदमे का १९९०- रूसी संसद ने औपचारिक रूप से रूस की संप्रभुता की घोषणा की। पद्मिनि, हिंदी, तमिल और मलयालम चलचित्र अभिनेत्री (मेरा नाम जोकर) (जिस देश में गंगा बहती है) जयश्री तल्पड़े, मराठी अभिनेत्री (शर्मीली) १९७२- दीनानाथ गोपाल तेंदुलकर- महात्मा गाँधी की जीवनी के लेखक १९७६ गोपीनाथ कविराज- संस्कृत के विद्वान और महान दार्शनिक थे। २०००- पी.एल देशपांडे, मराठी लेखक २००३- ग्रेगरी पेक, अमेरिकी अभिनेता २०१५- नेक चन्द सैनी, पद्मश्री २०२० - आनंद मोहन ज़ुत्शी गुलज़ार देहलवी - प्रसिद्ध उर्दू शायर रूस दिवस : रूस बीबीसी पे यह दिन
लुई नैपोलियन् बोनापार्ट (२० अप्रैल १८०८ - ९ जनवरी १८७३ ई.) फ्रांसीसी रिपब्लिक का प्रथम राष्ट्रपति तथा नैपोलियन तृतीय के रूप में द्वितीय फ्रांसीसी साम्राज्य का शासक था। वह नैपोलियन प्रथम का भतीजा तथा उत्तराधिकारी था। चार्ल्स लूई नेपोलियन बोनापार्ट यूरोप के उन्नीसवीं शताब्दी के शासकों में सबसे अधिक साहसिक और विलक्षण था। यह नैपोलियन महान के भाई लुई बोनापार्ट तथा नैपोलियन की सौतेली लड़की जोसेफीन की पुत्री हार्टेस ब्यूहारनेइस से पेरिस में १८०८ ई. में उत्पन्न हुआ था। उस समय इसका चाचा नैपोलियन महान् अपने गौरव के शिखर पर था। नैपोलियन के निष्कासन पर लुई नैपोलियन अपनी माँ के साथ स्विट्जरलैंड चला गया। वहीं अपनी मां की देखभाल में इसने शिक्षा पाई। कुछ काल तक यह जर्मनी तथा इटली में भी रहा। लुई नैपोलियन उस वातावरण में शिक्षित एवं दीक्षित हुआ जहाँ उसकी पारिवारिक परंपराएँ फ्रेंच क्रांति एवं राष्ट्रीयता की पर्यायवाची बनीं। फ्रांस से वियना की व्यवस्था को समाप्त कर बोनापार्ट वंशीय शासन स्थापित करना लुई नैपोलियन का जीवन लक्ष्य बना। इटली के क्रांतिकारी दल कारबोनारी के सदस्य की हैसियत से लुई नैपोलियन ने पोप के विरूद्ध चलाऐ गए १८३१ के असफल आंदोलन में भाग लिया। लुई नैपोलियन ने स्ट्रासवर्ग (स्ट्रास्बर्ग) के दुर्गरक्षकों द्वारा एक असफल विद्रोह कराया जिसके परिमाणस्वरूप फ्रांस के शासक लुई फिलिप द्वारा उसे अमरीका भेज दिया गया। वहाँ से १८३७ में वह स्विट्जरलैंड लौटा और १८३८ में इंग्लैंड पहुँचा। सन् १८३९ में लुई नैपोलियन ने एक पुस्तक की रचना की जिसमें नैपोलियन बोनापार्ट के विचारों की व्याख्या करते हुए 'बोनापार्टवाद', समाजवाद तथा शांतिवाद का विचित्र सम्मिश्रण उपस्थित किया गया था। इस रचना के परिणाम स्वरूप सारे फ्रांस में नैपोलियम को लेकर कुछ रुढ़िगत एवं पौराणिक गल्प चलने लगे। नैपोलियन अजेय स्वीकार किया गया और उसकी तथाकथित पराजय शत्रुओं का षड़यंत्र मात्र बतायी गयी। तत्कालीन फ्रेंच शासक लुई फिलिप ने भी औपचारिक रूप से इस तथ्य को संमुख अपनी आस्था प्रकट की तथा अगस्त, १८४० ई. में सेंट हेलेना से नेपोलियन महान की अस्थियाँ मँगवाकर उन्हें पूर्ण पवित्रता के साथ स्थापित किया। इसी समय लुई नैपोलियन बोलोन (बॉउलोगने) में सैनिक विद्रोह कराने में असफल हुआ और बंदी बनाकर हैग के किले में बंद कर दिया गया। कारागार में लुई ने राजनीतिक और सामाजिक विषयों पर कुछ पुस्तकें लिखीं। छ: वर्ष के उपरांत १८४६ में वह किसी प्रकार से निकल भाषा और लंदन में शरण ली। १८४८ की फ्रेंच क्रांति में इसे अपने लक्ष्य तक पहुँचने का अवसर मिला। इस बार उसने मौन ग्रहण करना ही श्रेयस्कर समझा तथा इंगलैंड के निवासियों के संमुख विधान और व्यवस्था की शपथ खाई। सितंबर १८४८ ई. में वह पाँच डिपार्टमेंट से नेशनल विधान परिषद का सदस्य हुआ तथा अगले दिसंबर में एक बहुसंख्यक मत के साथ वह नई गणतंत्रीय व्यवस्था का अध्यक्ष बना। अब धीरे धीरे नैपोलियन ने सेना के नेताओं को अपनी ओर आकर्षित करना प्रारंभ किया तथा २ दिसम्बर १८५१ ई. में माँरनी (मॉर्नी), सेंट आरनाड (सेंट अरनॉड) सरीखे मंत्रियों तथा पुलिस प्रमुख मॉपास (मौपा) की सहायता से एक षड़यंत्र कर शासनसत्ता हथिया ली और ठीक एक वर्ष बाद स्वयं को 'नैपोलियन तृतीय' के नाम से फ्रांस का सम्राट घोषित किया। नैपोलियन की गार्हस्थिक नीति का उद्देश्य फ्रांस को धनधान्य से समृद्धशाली बनाना था। उसने आर्थिक उदारता का सिंद्धांत अपनाया, लुई फिलिप के सभी मध्यमवर्गीय सुधारों को अपना योगदान दिया, वैयक्तिक उद्योगों एवं व्यवसाओं से सारे नियंत्रण हटा लिए और उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों में मशीनों का प्रयोग तथा औद्योगिक कारपोरेशन की स्थापना को बढ़ावा दिया। क्रेडिट लियानेस (क्र्डिट ल्येनीस) क्रेडिट-फानसियर (क्र्डिट फॉन्शियर) तथा सोसाइटी जनरल (सोसित ज्ञ्राले) ऐसी ऐजेंसीज़ की स्थापना कर उसने फ्रांस की राष्ट्रीय पूँजी बढ़ायी। १८५५ और १८६७ की औद्योगिक प्रदर्शनी इस बात का साक्ष्य देती थी कि नैपोलियन के तत्वावधान में फ्रांस की कितनी भौतिक समृद्धि हुई। किंतु अपनी वैदेशिक नीति में लुई नैपोलियन ने नैपोलियन महान की भाँति कुछ ऐसी साहसिक छलांगे लीं जिनके परिणाम स्वरूप उसका पतन हुआ तथा यूरोपीय राष्ट्र उसे भी नैपोलियन महान की ही भाँति स्वातंत्र्य अपहरण करनेवाला समझने लगे। क्रीमिया के युद्ध में उसने ब्रिटेन के साथ रूस के विरुद्ध तुर्की साम्राज्य की सहायता कर फ्रांस की वैदेशिक प्रतिष्ठा बढ़ायी। इटली के एकीकरण में कावूर (कैवर) का समर्थन किया तथा सैवाय (सवोय) और नीस (निस) के प्रदेश प्राप्त किए किंतु कावूर की मंजिल आधी ही पार हुई थी कि इसने उसे संधि के लिए विवश किया। परिणामस्वरूप यूरोप में इसे विश्वासघाती और प्रतिक्रियावादी समझा गया। जब बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया को परास्त कर दिया तो नैपोलियन इसे अपनी ही पराजय समझ बैठा। अतएव बिस्मार्क की गणना में जर्मनी का एकीकरण फ्राँस को खदेड़ देने में ही पूर्णत्व को पहुँचता था। लुई नैपोलियन ने बिस्मार्क से अंतत: युद्ध छोड़ ही दिया और १८७१ के सीडन (सेडन) के युद्ध क्षेत्र में उसे बिस्मार्क के सामने नत होना पड़ा और फ्रांस में 'तृतीय गणतंत्र' की स्थापना हुई। लुई नैपोलियन ने ब्रिटेन के साथ ओपीयम (ओपीम) युद्ध में भाग लेकर (१८५८ से ६०) सुदूर पूर्व चीन में फ्रेंच प्रभुत्व स्थापित किया और कंबोडिया में फ्रेंच प्रोटेक्टोरेट (फ्रेंच प्रोटेक्टरते) बनाया। लुई नैपोलियन का मेक्सिको अभियान यद्यपि फ्रेंच प्रतिष्ठा को पुनर्जीवित करने का उपक्रम था किंतु इसमें भी नेपोलियन को लज्जित होना पड़ा। इन्हें भी देखें नेपोलियन बोनापार्ट या नेपोलियन प्रथम फ़्रांस का इतिहास
विक्टोरिया मेमोरियल हाल ( हिन्दी अनुवाद: विक्टोरिया स्मारक शाला) या संक्षिप्त में सिर्फ विक्टोरिया मेमोरियल, भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल के कोलकाता नगर में स्थित एक ब्रिटिश कालीन स्मारक है। १९०६ से १९२१ के बीच निर्मित यह स्मारक इंग्लैण्ड की तत्कालीन साम्राज्ञी महारानी विक्टोरिया को समर्पित है। इस स्मारक में विविध शिल्पकलाओं का सुंदर मिश्रण है। इसके मुगल शैली के गुंबदों पर सारसेनिक और पुनर्जागरण काल की शैलियों का प्रभाव दिखाई पड़ता है। इस भवन के अंदर एक शानदार संग्रहालय भी है जहाँ रानी के पियानो और स्टडी-डेस्क सहित ३,००० से भी अधिक अन्य वस्तुएँ प्रदर्शित की गई हैं। यह प्रतिदिन मंगलवार से रविवार तक प्रात: दस बजे से सायं साढ़े चार बजे तक खुलता है, सोमवार को यह बंद रहता है। जनवरी १९०१ में रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर लॉर्ड कर्जन ने एक स्मारक के निर्माण का सुझाव दिया। लॉर्ड कर्जन ने एक संग्रहालय और उद्यानों के साथ एक भव्य इमारत के निर्माण का प्रस्ताव रखा। वेल्स के राजकुमार, जो बाद में जार्ज पंचम के रूप में सिंहासनारूढ़ हुए, ने ४ जनवरी १९०६ को इसका शिलान्यास किया और इसे औपचारिक रूप से १९२१ में जनता के लिए खोल दिया गया। १९१२ में विक्टोरिया मेमोरियल का निर्माण पूरा होने से पहले जॉर्ज पंचम ने भारत की राजधानी को कलकत्ता से नई दिल्ली स्थानांतरित करने की घोषणा की। इस प्रकार विक्टोरिया मेमोरियल का निर्माण एक राजधानी के बजाय एक प्रांतीय शहर में हुआ। विक्टोरिया मेमोरियल को भारतीय राज्यों, ब्रिटिश राज के व्यक्तियों और लंदन में ब्रिटिश सरकार द्वारा वित्त-पोषित किया गया था। भारत के राजकुमारों और लोगों ने धन के लिए लॉर्ड कर्ज़न की अपील का उदारतापूर्वक जवाब दिया और स्मारक के निर्माण की कुल लागत, एक करोड़ पांच लाख रुपये, पूरी तरह से उनके स्वैच्छिक दान से प्राप्त हुई थी। १९०५ में कर्ज़न के भारत से प्रस्थान के बाद विक्टोरिया मेमोरियल के निर्माण में कुछ देरी हुई। विक्टोरिया मेमोरियल का शिलान्यास १९०६ में किया गया था और भवन १९२१ में खोला गया। निर्माण का काम मेसर्स मार्टिन एंड कंपनी, कोलकाता को सौंपा गया। १९१० में अधिरचना पर काम शुरू हुआ। डिजाइन और वास्तुकला विक्टोरिया मेमोरियल के वास्तुकार विलियम इमर्सन (१८४३-१९२४) थे जो रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स के अध्यक्ष थे। यह डिजाइन इंडो-सारसेनिक पुनर्जागरण शैली में है, जिसमें ब्रिटिश और मुगल तत्वों के मिश्रण का उपयोग वेनीशियाई, मिस्री, दक्कनी और इस्लामिक वास्तुशिल्प प्रभाव के साथ किया गया है। इमारत ३३८-२२८ फुट (१०३ मीटर ६९ मीटर) और १८४ फुट (५६ मीटर) ऊँची है। इसका निर्माण सफेद मकराना संगमरमर से किया गया है। विक्टोरिया मेमोरियल के उद्यानों को लॉर्ड रेडडेल और डेविड पेन द्वारा डिजाइन किया गया था। इमर्सन के सहायक विन्सेन्ट जेरोम एश ने उत्तरी पहलू के पुल और बगीचे के फाटकों को डिजाइन किया। १९०२ में इमर्सन ने विक्टोरिया मेमोरियल के लिए अपने मूल डिजाइन को स्केच करने के लिए एश के साथ मिलकर काम किया। १९०३ के दिल्ली दरबार के लिए अस्थायी प्रदर्शनी भवन को डिजाइन करने के बाद लार्ड कर्ज़न ने एश को इमर्सन के लिए उपयुक्त सहायक पाया। विक्टोरिया मेमोरियल का केंद्रीय गुंबद के ऊपर विजय की देवी (एंजेल ऑफ़ विक्ट्री) की मूर्ति स्थापित है जिसकी लम्बाई १६ फीट (४.९ मीटर) है। गुंबद के चारों ओर अन्य मूर्तियाँ भी हैं जो कला, वास्तुकला, न्याय, दान, मातृत्व, विवेक और शिक्षा का मूर्तिमान सादृश्य प्रदर्शित करती हैं। विक्टोरिया मेमोरियल सफेद मकराना संगमरमर से बना है। डिजाइन में यह अपने मुख्य गुंबद, चार सहायक गुंबदों, अष्टकोणीय गुंबददार छतरियों, ऊँचे पोर्टल्स, छत और गुंबददार कोने वाले मीनारों के साथ ताजमहल की रचना शैली को प्रतिध्वनित करता है। विक्टोरिया मेमोरियल में २५ चित्र दीर्घाएँ हैं। इनमें शाही गैलरी, राष्ट्रीय नेताओं की गैलरी, पोर्ट्रेट गैलरी, सेंट्रल हॉल, मूर्तिकला गैलरी, हथियार और शस्त्रागार गैलरी और नई कलकत्ता गैलरी शामिल हैं। विक्टोरिया मेमोरियल में थॉमस डेनियल (१७४९-१८४०) और उनके भतीजे विलियम डेनियल (१७६९-१८३७) के कार्यों का सबसे बड़ा एकल संग्रह है। इसमें दुर्लभ और पुरातन पुस्तकों का संग्रह भी है जैसे कि विलियम शेक्सपियर के कार्यों का सचित्र निरूपण, आलिफ़ लैला और उमर खय्याम की रुबाइयत के साथ-साथ नवाब वाजिद अली शाह के कथक नृत्य और ठुमरी संगीत के बारे में किताबें आदि। विक्टोरिया मेमोरियल के बगीचे का विस्तार ६४ एकड़ (२६०,००० म) है। इसका रखरखाव २१ बागवानों की टीम द्वारा किया जाता है। बगीचे को रेडेस्देल और डेविड पेन द्वारा डिज़ाइन किया गया था। इमारत के चारों ओर पक्की चौकी है और वारेन हेस्टिंग्स, लॉर्ड कॉर्नवालिस, रॉबर्ट क्लाइव, आर्थर वेलेज़्ली और लॉर्ड डलहौजी की स्मारक प्रतिमायें हैं। इनके साथ बगीचे में भारत के गवर्नर-जनरल लॉर्ड विलियम बैन्टिक (१८३३-१८३५), रिपन (१८८०-८४) और राजेंद्र नाथ मुकर्जी की मूर्तियाँ भी हैं। कोलकाता की इमारतें कोलकाता के दर्शनीय स्थल कोलकाता का इतिहास भारत में स्मारक
मखोलियागांव, पिथौरागढ (सदर) तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा मखोलियागांव, पिथौरागढ (सदर) तहसील मखोलियागांव, पिथौरागढ (सदर) तहसील
६७पी/चुरयुमोव-गेरासिमेंको बृहस्पति-परिवार का एक धूमकेतु है। ये मूल रूप से काइपर घेरे से है। इसकी कक्षीय अवधि ६.४५ वर्ष, घूर्णन काल लगभग १२.४ घंटे और अधिकतम गति १३५,००० किलोमीटर प्रति घंटा (३८ किलोमीटर प्रति सेकंड) है। ये यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के रोसेटा मिशन का गंतव्य था।
फिलिप ("फिल") एलन एमेंरी (जन्म; २५ जून १९६४, न्यू साउथ वेल्स के सेंट इवेज़ में) एक पूर्व ऑस्ट्रेलियाई और न्यू साउथ वेल्स के क्रिकेट खिलाड़ी हैं। ये एक विकेट-कीपर और एक मूल्यवान बाएं हाथ के बल्लेबाज के रूप में जाने जाते थे। ऑस्ट्रेलिया के इस दिग्गज क्रिकेट खिलाड़ी ने अपने क्रिकेट कैरियर में मात्र एक टेस्ट और एक ही वनडे मैच खेला था। ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट खिलाड़ी ऑस्ट्रेलियाई वनडे क्रिकेट खिलाड़ी ऑस्ट्रेलियाई टेस्ट क्रिकेट खिलाड़ी १९६४ में जन्मे लोग न्यू साउथ वेल्स के लोग
कॉफ़ीख़ाना, कॉफ़ीघर या कॉफ़ीहाउस (कॉफीहाउस) ऐसे स्थान को बोलते हैं जो ग्राहकों को कॉफ़ी का पेय बनाकर पिलाए। यह बहुत हद तक चायख़ाने की तरह होता है और इसे एक प्रकार का विशेष रेस्तरां समझा जा सकता है। अक्सर इसमें कॉफ़ी के साथ-साथ चाय, चॉकलेट पेय और हलकी खाने की चीज़ें भी उपलब्ध होती हैं। यूरोप, तुर्की, ईरान और मध्य पूर्व के अन्य भागों में कॉफ़ीख़ानों का बहुत रिवाज है। अरब देशों और मध्य पूर्व के अन्य हिस्सों के कॉफ़ीख़ानों में अक्सर हुक़्क़े भी मिलते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में भी कुछ स्थानों पर कॉफ़ीख़ाने मौजूद हैं। विश्व के कई स्थानों में कॉफ़ीख़ानों का गहरा सांस्कृतिक महत्व है। उत्तर भारत के चायख़ानों की तरह वही लोगों के मिलने का स्थान होते हैं। अक्सर लेखक अपनी लिखाईयाँ कॉफ़ीख़ानों में रचते हैं। अपने स्थाई ग्राहकों के लिए कॉफ़ीख़ाने एक अनौपचारिक सभा-स्थल का काम देते हैं। इन्हें भी देखें रेस्तरां के प्रकार
नारहैत्युन कज़ल वनस कश्मीरी भाषा के विख्यात साहित्यकार एम. फ़ारूक़ नाज़की द्वारा रचित एक कवितासंग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् १९९५ में कश्मीरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत कश्मीरी भाषा की पुस्तकें
ऊंचाकोट, डीडीहाट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा ऊंचाकोट, डीडीहाट तहसील ऊंचाकोट, डीडीहाट तहसील
कुर्रु भाषा भारत की संकटग्रस्त भाषाओं में से एक है। यह निश्चित रूप से खतरे में है। आईएसओ कोड: येऊ इन्हें भी देखें भारत में संकटग्रस्त भाषाओं की सूची भारत की भाषाएँ भारत में स्थानीय वक्ताओं की संख्यानुसार भाषाओं की सूची भारत की संकटग्रस्त भाषाएँ
२०२३ एएफसी एशियाई कप, एएफसी एशियाई कप का १८वां संस्करण होगा। एशिया के अन्तर्राष्ट्रीय पुरुषों के फुटबॉल की इस चैम्पियनशिप का आयोजन एशियाई फुटबॉल संघ (एएफसी) द्वारा कराया जाता है।
१८ अक्षांश उत्तर (१८त परलेल नॉर्थ) पृथ्वी की भूमध्यरेखा के उत्तर में १८ अक्षांश पर स्थित अक्षांश वृत्त है। यह काल्पनिक रेखा हिन्द महासागर (बंगाल की खाड़ी और अरब सागर), प्रशांत महासागर व अटलांटिक महासागर और मध्य अमेरिका, दक्षिणपूर्वी एशिया (म्यान्मार, थाइलैण्ड, फ़िलिपीन्स, लाओस, वियतनाम, इत्यादि), सउदी अरब, ओमान, यमन व अफ़्रीका के भूमीय क्षेत्रों से निकलती है। यह भारत के महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के भूमीय क्षेत्रों से निकलती है। इन्हें भी देखें १९ अक्षांश उत्तर १७ अक्षांश उत्तर
तेजापूर, नेरडिगोंड मण्डल में भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत के अदिलाबादु जिले का एक गाँव है। आंध्र प्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट आंध्र प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग निक की वेबसाइट पर आंध्र प्रदेश पोर्टल आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस की सरकारी वेबसाइट
ज्योती एक भारतीय हिन्दी धारावाहिक है, जिसका प्रसारण इमेजीन पर १६ फरवरी २००९ से २७ नवम्बर २०१० तक सोमवार से शुक्रवार रात ८:३० को होता था। बाद में यह समय ७:३० हो गया। ज्योती (स्नेहा वाघ) एक परिवार की सबसे बड़ी बेटी का नाम है, जिस पर यह कहानी आधारित है। ये अपने परिवार के लिए एक अकेली काम करते रहती है और अपने इच्छाओं और सपनों को अपने परिवार के लिए भूल जाती है। उसे कई समय बात अपने सपनों का राजकुमार मिलता है। लेकिन तभी उसे पता चलता है कि वह और उसकी छोटी बहन एक दूसरे से प्यार करते हैं। उसके बाद ज्योति फिर अपने पहले वाले कार्यों में लग जाती है। इसके बाद उसके जीवन में एक नया मोड़ आता है जब उसे यह बात पता चलती है कि उसकी बहन सुषमा उसकी बहन नहीं है। उसके बाद ज्योति को फिर से एक अमीर व्यक्ति से प्यार हो जाता है और वह उससे शादी कर लेती है। इसके बाद तीसरी बार उसके जीवन में परेशानी आती है। उसकी एक और बहन सुधा (सृति झा) में दोहरा व्यक्तित्व होता है। दिन में अपने घर में वह धीमी बोलने वाली लड़की होती है और बाहर में रात को वह देविका बन जाती है। उसके बाद वह सुधा को दिमाग के डॉक्टर के पास ले जाती है। इसके बाद सुधा को पंकज के छोटे भाई उदय से प्यार हो जाता है और वह दोनों गुपचुप शादी कर लेते हैं। इसके बाद छोटी माँ, ज्योति के ऊपर आरोप लगाती है कि उसके कारण ही यह सभी परेशानी हो रहा है। लेकिन ज्योति की परेशानी यह थी कि सुषमा जो बृज के साथ रह रही थी। वह बहुत अधिक पी कर सुषमा को मारते रहता था। यह परेशानी तब हल हो जाती है जब सुषमा को ज्योति अपने घर वापस ले आती है। स्नेहा वाघ - ज्योती कबीर सीसोदिया सृति झा - सुधा शर्मा श्रीनिधि शेट्टी - सुषमा शर्मा समीर शर्मा - बृज वरुण खंडेलवाल - संदीप शर्मा दिव्यलक्ष्मी - मीनल वशिष्ठ राठोड़ गीतु बावा - पूनम शर्मा जाहिदा परवीन - पद्मा देवी संजय बत्रा - ज्योती के पिता सर्वर आहूजा - तुहिना वोहरा आलोक नरूला - उदय वशिष्ठ आमिर दल्वी - कबीर सीसोदिया अंकित अरोड़ा - विक्रांत सीसोदिया पल्लवी सुभाष चन्द्रन - आशा सीसोदिया ऋतुराज - कबीर के पिता आलिका शेख - वर्णिका भारतीय टेलीविजन धारावाहिक एनडीटीवी इमैजिन के कार्यक्रम
दामकोहलर संख्या या डैमकोहलर संख्या (अंग्रेज़ी- दमलेर नंबर, अथवा डा) एक प्रकार की विमाहीन संख्या होती है, जिसका प्रयोग रासायनिक अभियान्त्रिकी में किया जाता है। इसका प्रयोग किसी रासायनिक प्रतिक्रिया समयरेखा यानी रिएक्शन टाइमस्केल( प्रतिक्रिया दर ) का उस अभिक्रिया में होने वाली परिवहन घटनाओँ का सम्बंध समझने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका नाम जर्मन केमिस्ट गेरहार्ड डैमखेलर के नाम पर रखा गया है। कार्लोवित्ज़ संख्या (का) का इससे सम्बंध इस प्रकार होता है- आम तौर पर दामकोहलर संख्या रिएक्शन टाइमस्केल का संवहन टाइमस्केल और वॉल्यूमेट्रिक प्रवाह दर से संबंध दर्शाती है, जो रिएक्टर के माध्यम से निरंतर ( प्लग प्रवाह या स्ट्र) या अर्ध-बैच रासायनिक प्रक्रियाओं के लिए इस प्रकार होती है: जिन अभिकर्मक प्रणालियों (रीऐक्टिंग सिस्टम) में अंतरप्रवाह द्रव्यमान परिवहन भी हो रहा हो, वहाँ दूसरी दामकोहलर संख्या ( दाई ) को रासायनिक प्रतिक्रिया की दर के द्रव्यमान हस्तांतरण दर के अनुपात के रूप में परिभाषित किया गया है इसे विशिष्ट द्रव और रासायनिक टाइमस्केल के अनुपात के रूप में भी परिभाषित किया गया है: चूंकि प्रतिक्रिया समयसीमा प्रतिक्रिया दर द्वारा निर्धारित की जाती है, दामकोहलर संख्या के लिए सटीक सूत्र का निर्धारण दर कानून समीकरण के अनुसार होता है। एक सामान्य रासायनिक प्रतिक्रिया आ ब के लिए, जो कि नवे ऑर्डर की पावर लॉ कैनेटिक्स फ़ॉलो कर रही हो, ऐसी संवहन प्रवाह प्रणाली के लिए दामकोहलर संख्या को निम्न रूप में परिभाषित किया गया है: क = रासायनिक गतिकी प्रतिक्रिया दर स्थिरांक (रीऐक्शन रेट कॉन्स्टंट) सी ० = प्रारंभिक कॉन्सेंट्रेशन न = प्रतिक्रिया ऑर्डर = मान निवास समय (या मीन रेज़िडेन्स टाइम) या स्पेस टाइम दूसरी ओर, दूसरी दामकोहलर संख्या को इस प्रकार परिभाषित किया गया है: क ग वैश्विक भार परिवहन गुणांक है आ इंटरफेशियल क्षेत्रफल है डा का मान इस बात का एक त्वरित अनुमान प्रदान करता है कि रूपांतरण को किस हद तक प्राप्त किया जा सकता है। अंगूठे के एक नियम के रूप में, जब डा ०.१ से कम होता है तो १०% से कम रूपांतरण प्राप्त होता है, और जब डा १० से अधिक होता है तो ९०% से अधिक का रूपांतरण अपेक्षित होता है। सीमा को बर्क-शूमैन सीमा कहा जाता है । रसायनशास्त्र की विमाहीन संख्याएँ रासायनिक अभिक्रिया अभियान्त्रिकी
पंचवटी एक्स्प्रेस २११० भारतीय रेल द्वारा संचालित एक मेल एक्स्प्रेस ट्रेन है। यह ट्रेन मनमाड जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:म्म्र) से ०६:१०आम बजे छूटती है और मुंबई छ. शिवाजी टर्मिनस रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड:कस्टम) पर १०:४५आम बजे पहुंचती है। इसकी यात्रा अवधि है ४ घंटे ३५ मिनट। मेल एक्स्प्रेस ट्रेन
कठुआ (कथुआ) भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के कठुआ ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है और इसी नाम की तहसील का मुख्यालय भी। कठुआ' शब्द डोगरी भाषा के ठुआं' से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ 'बिच्छू' है। कुछ लोगों का मत है कि कठुआ शब्द 'कश्यप' ऋषि के नाम से उत्पन्न हुआ है। कठुआ, जम्मू से ८७ किलोमीटर और पठानकोट से लगभग २५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पहले इसे 'कठुई' के नाम से जाना जाता था लेकिन बाद में इसका नाम बदलकर कठुआ रख दिया गया। ऐतिहासिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण माना जाने वाला यह जिला लगभग २००० वर्ष पुराना माना जाता है। यह स्थान जहां एक ओर मंदिरों, जैसे धौला वाली माता, जोदि-दी-माता, आशापूर्णी मंदिर आदि के लिए जाना जाता है वहीं दूसरी ओर यह बर्फ से ढ़के पर्वतों, प्राकृतिक सुंदरता और घाटियों के लिए भी प्रसिद्ध है। यह नगर जम्मू कश्मीर का 'प्रवेश द्वार' तथा औद्योगिक नगर भी है। धौला वाली माता समुद्र तल से ६००० फीट की ऊंचाई पर स्थित धौला वाली माता मंदिर एक धार्मिक केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध है। विशेषकर नवरात्र के दौरान काफी संख्या में भक्तगण यहां आते हैं। ऐसा माना जाता है कि एक बार किसी शेफर्ड (पानी के जहाज की देखभाल करने वाला) को स्वप्न आया कि माता उसे मांधी धर में बुला रही है। शेफर्ड मांधी धर मे जाता है तो देवी उसे कन्या के रूप में दर्शन देती है। उस के पश्चात् से शेफर्ड नियमित रूप से देवी की उपासना करने लगता है। कहा जाता है कि शेफर्ड जहां रहता था एक बार उस जगह बहुत अधिकं बर्फबारी हुई। शेफर्ड की परेशानियों को देख माता ने उससे कहा कि वह उस स्थान पर जा रही है जहां अभी धौली वाली माता स्थित है। शेफर्ड ने उस स्थान पर धौली वाली माता के मंदिर का निर्माण करवाया। प्रत्येक वर्ष नवरात्रा के दौरान हजारों की संख्या में भक्तगण जोदि-दि-माता के दर्शन के लिए आते हैं। कठुआ जिले के बंजल से चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर समुद्र तल से लगभग ७,००० फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह एक खूबसूरत स्थान है जो कि अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण पर्यटकों को अधिक आकर्षित करता है। यह स्थान समुद्र तल से ७,००० फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह बहुत ही खूबसूरत घाटी है जिसकी चौड़ाई एक किलोमीटर और लंबाई पांच किलोमीटर है। चीड़, देवदार के पेड़ से घिरे इस घाटी के दोनों तरफ से नदियां प्रवाहित होती है। सर्दियों में अधिक ठंड और गर्मियों में खुशनुमा मौसम होने के कारण यह स्थान पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। इसके अलावा यहां एक पुराना नाग मंदिर भी है। जहां से प्रत्येक वर्ष होने वाली यात्रा कैलाश कुंड जाती है। यह एक खूबसूरत घास का मैदान है जो समुद्र तल से ७००० फीट की ऊंचाई पर स्थित है। छ: महीने तक प्राय: बर्फ से ढकी होने के कारण इस जगह की खूबसूरती एकाएक पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींचती है। सरथाल बानी से २० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बानी एक छोटी गैलेशियर घाटी है। जो कि समुद्र तल से ४२०० फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मिनी कश्मीर के नाम से भी प्रसिद्ध है। भद्रवाह, चम्बा आदि से आने वाले ट्रैकर्स के लिए यहां एक आधार शिविर की भी व्यवस्था की गई है। इसके अलावा झरने, नदियां, जंगल और विशाल घास के मैदान भी पर्यटकों को अपनी ओर आर्कषित करते है। हिमालय के मध्य में स्थित धार महानपुर खूबसूरत पर्यटन स्थल है। यह जगह कठुआ जिले के बसौहली से २७ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सघन चीड़ और देवदार के जंगलों से घिरी यह जगह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण अधिक प्रसिद्ध है। यहां का मौसम सर्दियों के दौरान ठंडा और गर्मियों में सुहावना रहता है। इसके अलावा राज्य सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा यहां पर्यटकों के लिए अनेक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। माता सुंदरीकोट मंदिर कठुआ जिले के शिवालिक पर्वत पर स्थित माता सुंदरीकोट समुद्र तल से १००० मीटर की ऊंचाई पर है। यह जगह भिलवाड़ से लगभग सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऊंचे पर्वत पर स्थित माता सुंदरीकोट मंदिर के समीप ही बेर का पौधा है। माना जाता है देवी की प्रतिमा स्थित इस जगह पर पाई गई थी। माता सुंदरीकोट मंदिर कठुआ से २२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आशा पूर्णी मंदिर आशा पूर्णी मंदिर कठुआ जिले के प्रमुख मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को भगत छज्जू राम ने १९४९ ई. में बनवाया था। जोकि समुद्र तल से तीस फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है। पौराणिक कथा के अनुसार, यह वहीं स्थान है जहां भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र द्वारा देवी की राख बिखेरी गई थी। जिसके पश्चात़ से इस जगह का नाम आशा पूर्णी मंदिर रखा गया था। माता बालाजी सुंदरी मंदिर कठुआ जिले के शिवालिक पर्वत पर स्थित माता बालाजी सुंदरी मंदिर पुराने मंदिरों में से है। माना जाता है कि यह मंदिर लगभग दो सौ वर्ष पुराना है। यह मंदिर समुद्र तल से ५००० फीट की ऊंचाई पर स्थित है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार एक बाह़मण घास काट रहा था। घास काटते समय उसकी दराती पत्थर पर लग जाती है और उस पत्थर में से खून आने लगता है। वह पत्थर को एक बरगद के वृक्ष के नीचे रख देता है और उसकी पूजा करने लगता है। इसी मूर्ति को मंदिर में मूर्ति में रूप में रखा गया है। हरेक साल नवरात्रा के दौरान मंदिर में मेले का आयोजन किया जाता है। इन्हें भी देखें कठुआ बलात्कार मामला कठुआ का इतिहास कठुआ ज़िले का आधिकारिक जालस्थल जम्मू और कश्मीर के शहर कठुआ ज़िले के नगर
दशौली, बेरीनाग तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के पिथोरागढ जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा दशौली, बेरीनाग तहसील दशौली, बेरीनाग तहसील
सोलेसिस एक कम्प्युटर संचालन प्रणाली है, जिसे सन माइक्रोसिस्टम ने बनाया था। पहले इस संचालन प्रणाली के बनाने का स्रोत को गुप्त रखा गया था। बाद में जब इस संचालन प्रणाली को सन माइक्रोसिस्टम ने बंद कर दिया उसके पश्चात इसके स्रोत को प्रकाशित किया गया और सभी के उपयोग के लिए खोला गया।
रोटरी इन्टरनेशनल रोटरी क्लबों का संगठन है। रोटरी क्लब संसार भर में सेवा करने वाले क्लब हैं। यह पंथनिरपेक्ष (सेक्युलर) संगठन है जो जाति, लिंग, वर्ण या राजनैतिक विचारधारा के भेदभाव के बिना सबको सदस्य बनाती है। संसार में ३२,००० से अधिक रोटर क्लब हैं जिसमें १३ लाख से अधिक लोग सदस्य हैं। रोटरी, व्यापार और पेशेवर लोगों का विश्वव्यापी संगठन है, जो मानवीय सेवा, सभी व्यवसायों में उच्च नैतिक स्तर को बढ़ावा देने और दुनिया में शांति और सद्भावना के निर्माण में सहायता देने हेतु विश्वव्यापी रूप से एकजुट होकर कार्यरत है। रोटरी के सदस्यों को रोटेरियंस कहा जाता हैं और वें पहनी हुई लेपल पिन के द्वारा आसानी से पहचाने जाते हैं। रोटरी व्हील, रोटरी इंटरनेशनल का आधिकारिक लोगो है। रोटरी का आदर्श वाक्य है "सेवा स्व से ऊपर". रोटेरियंस, स्थानीय रोटरी क्लब के सदस्य होते है और उनके क्लब द्वारा निर्धारित समय पर, हर हफ्ते एक बार मिलते हैं। विश्व भर में फैले असंख्य स्थानीय रोटरी क्लब "रोटरी इन्टरनेशनल" संस्था के आधार स्तंभ है। विश्व के १६३ देशों में स्थापित ३२००० क्लबों में १३ लाख से भी ज्यादा रोटेरियंस कार्यरत हैं। प्रशासनिक सुविधा के लिए, स्थानीय क्लबों को एक जिले में शामिल किया जाता है जिसका एक विशेष नम्बर होता है। १९०५ में पॉल हैरिस, जो पेशे से वकील थे और अन्य तीन लोगों ने मिलकर, अमरीका के शिकागो में रोटरी की स्थापना की। रोटरी दुनिया का सबसे पहला "सेवा संगठन" बना। रोटरी का वास्ता है - सत्य, न्याय, लोगों के बीच संबंधों में सुधार और विश्व शांति. रोटरी की गतिविधियाँ, विशेष रूप से स्थानीय क्लबों के स्तर पर किए गये कार्यों से, स्थानीय और विश्व समुदाय की सेवा करने का अवसर प्रदान करता है। रोटरी के चार उद्देश्य आपसी परिचय को बढ़ाना ताकि सेवा के नित्य नये अवसर मिल सकें। व्यापार व व्यवसाय में उच्च नैतिक आदर्शों की स्थापना करना। प्रत्येक आजीविका/व्यवसाय को सम्मान की दृष्टि से देखना और हर रोटेरियन की आजीविका को समाज सेवा का एक माध्यम /अवसर मानते हुए सम्मान प्रदान करना। प्रत्येक रोटेरियन के निजी, व्यावसायिक व सामाजिक जीवन में सेवाभावना के आदर्श को समाहित करना। अन्तरराष्ट्रीय समझ, सद्भावना व शान्ति को ऐसी व्यापारिक व व्यावसायिक गतिविधियों के सहारे से बढ़ावा देना जो सेवा भावना से ओतप्रोत हों। सेवा के चार आयाम निम्न प्रकार हैं :- १- अपने क्लब को शक्ति व अपनी सामर्थ्य भर सहयोग देना। २- अपने व्यवसाय / व्यापार / सेवा कार्य में अधिकतम सफलता हासिल करना। यह निरंतर ध्यान रखना कि दीर्घकालिक सफलता चतुर्मुखी परीक्षा पर खरे उतर कर ही हासिल हो सकती है। ३- हर आजीविका समाज सेवा का ही एक माध्यम है, अतः एक सफल कार्यकारी बन कर अपने समाज के धन, वैभव, प्रतिष्ठा, सुख-सुविधा में उत्तरोत्तर श्रीवृद्धि करना। जो किन्ही कारणों से, आपके जितना सफल नहीं हो पा रहे हैं, उनकी ओर सहायता का हाथ बढ़ाना ताकि वे भी आपके साथ कदम से कदम मिला कर चल सकें। ४- रोटरी की इस भावना व ध्येय को अन्तर्राष्ट्रीय विस्तार दे कर वैश्विक स्तर पर सद्भावना व सहयोग बढ़ाना। रोटरी इंटरनेशनल का जालघर रोटरी क्लब के बारे में प्राय: पूछे गये प्रश्न
जूलिएट नादिया बोलेंजर (; १६ सितंबर १८८७२२ अक्टूबर १९७९) एक फ्रेंच संगीतकार, संचालक, और शिक्षक थी। वह २० वीं सदी के अग्रणी संगीत कंपोजरों और संगीतकारों में से कई की उस्ताद होने के लिए उल्लेखनीय है। वह कभी कभी एक पियानोवादक और अरगनिस्ट के रूप में प्रदर्शन भी किया करती थी। उसने पश्चिमी संगीत की दुनिया को संगीत की उन बारीकियों से दुनिया को वाक़िफ़ कराया, जिन्हें पहले कभी पहचाना ही नहीं गया था। वह एक संगीत परिवार से थी और उसने पेरिस संगीतविद्यालय में एक छात्र के रूप में जल्दी सम्मान हासिल किये। लेकिन, उसने यह मानते हुए कि वह एक संगीतकार के रूप में कोई विशेष प्रतिभा नहीं है, संगीत लेखन छोड़ दिया और एक शिक्षक बन गई। इस क्षमता में, उसने युवा संगीतकारों की, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य अंग्रेजी बोलने वाले देशों से, कई पीढ़ियों को प्रभावित किया। नादिया के शागिर्दों में लियोनार्ड बर्नस्टाइन, आरोन कॉपलैंड, क्विंसी जोन्स, एस्टर पियाज़्ज़ोला, फिलिप ग्लास, जॉन इलियट गार्डिनर जैसे संगीतकार शामिल हैं। नादिया ने पेरिस में पढ़ाई पूरी करने के बाद ब्रिटेन और अमरीका में मशहूर संगीत विद्यालयों, जिन्हों में जूलियट स्कूल, यहूदी मोइनोहिन स्कूल, रॉयल कॉलेज ऑफ म्यूज़िक और रॉयल अकेडमी ऑफ़ म्यूज़िक जैसी बड़ी संस्थाओं भी शामिल हैं, में संगीत का अधियापन किया, लेकिन अपने जीवन के अधिकांश के लिए उसका प्रमुख आधार उसके परिवार का पेरिस में फ्लैट था, जहां वह ९२ वर्ष की आयु में अपनी मृत्यु तक अपने कैरियर के शुरू से ही सात दशकों के अधिकांश के लिए संगीत सिखाने का काम करती रही। वह पहली महिला थी जिसने अमेरिका और यूरोप में कई प्रमुख आर्केस्ट्रा का संचालन किया, जिन्हों में बीबीसी सिम्फ़नी, बोस्टन सिम्फ़नी, हाले ऑर्केस्ट्रा और न्यूयॉर्क फिल्हार्मोनिक जैसे म्यूज़िक कॉन्सर्ट भी शामिल थे। उसने कोपलैंड और स्ट्राविंस्की द्वारा कार्यों सहित, कई विश्व प्रीमियरों का आयोजन किया। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा नाडिया बोलेंजर फ्रेंच संगीतकार और पियानोवादक अर्नेस्ट बोलेंजर (१८१५-१९००) और उनकी पत्नी रासा मििशेत्स्काया (१८५६-१९३५), एक रूसी राजकुमारी के घर १६ सितंबर १८८७ को पेरिस में पैदा हुई थी। उनकी एक बेटी थी जिसकी नादिया के जन्म से पहले एक शिशु के रूप में मृत्यु हो गई थी। नादिया का जन्म अपने पिता के ७२वें जन्मदिन को हुआ था। फ़्रांसीसी संगीत संचालक
व्यास सम्मान से सम्मानित लीलाधर जगुडी द्वारा लिखी गई एक पुस्तक है जिसके लिए वर्ष २०१८ का २८ वा० व्यास सम्मान लीलाधर जी को दिया गया इनकी एक और महत्वपूर्ण कृति - अनुभव के आकाश में चांद
हेनरी चतुर्थ के सिहासनरूढ होने के साथ ही फ्रांस में इसके द्वारा स्थापित बूर्बो राजवंश आगामी दो सौ वर्षो तक फ्रांस में सतासीन रहा|