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41182 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%A8%20%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%A6 | नासिरुद्दीन महमूद | नासिरूद्दीन महमूद तुर्की शासक था, जिसका शासन काल 1246-1265 ई० तक रहा। जो दिल्ली सल्तनत का आठवां सुल्तान बना। यह भी गुलाम वंश से था। बलबन ने षड़यंत्र के द्वारा 1246 में सुल्तान मसूद शाह को हटाकर नासीरुद्दीन महमूद को सुल्तान बनाया ये एक ऐसा सुल्तान हुआ जो टोपी सीकर अपनी जीविका निर्बहन करता था बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नसीरूद्दीन महमूद से करवाया था
नासिरूद्दीन महमूद इसका जीवकोपार्जन का महत्वपूर्ण साधन कुरान को लिखकर बाजारों में बेचता था।
इन्हें भी देखें
ग़ुलाम वंश | 85 |
1369361 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%A8%E0%A5%87%20%E0%A4%B9%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B2 | एने हंसदत्तर किसमुल | Articles with hCards
एने हंसदत्तर किसमुल (जन्म 8 मार्च 1980 को मोसजेन में) एक नॉर्वेजियन पर्यावरणविद् और सेंटर पार्टी के राजनीतिज्ञ हैं।
वह 1996 में नेचर एंड यूथ में शामिल हुईं और मोसजेन में एक नया स्थानीय अध्याय शुरू किया। 2000 में वह उप नेता चुनी गईं थी और 2003 से 2005 तक वह संगठन की नेता थीं। उन्होंने 2007 में ओस्लो विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री पूरी की थी। वह 2006 और 2007 में नॉर्वेजियन विंड एनर्जी एसोसिएशन की महासचिव थीं, जब उन्हें सेंटर पार्टी के संसदीय समूह के सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था।
जुलाई 2008 में, उन्हें कृषि और खाद्य मंत्रालय में राजनीतिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था। सितंबर 2012 में उन्हें पेट्रोलियम और ऊर्जा मंत्रालय में राज्य सचिव के रूप में पदोन्नत किया गया था।
संदर्भ
जीवित लोग
1980 में जन्मे लोग | 144 |
8338 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%AB%20%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%80 | ५ जनवरी | 5 जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 5वाँ दिन है। साल में अभी और 360 दिन बाकी हैं (लीप वर्ष में 361)।
प्रमुख घटनाएँ
2006 - साउदी अरब के मक्का शहर में एक होटल के ढह जाने से हज के लिए गए ७६ हज यात्रियों की मृत्यु हो गयी।
२०१०-
अमेरिका ने 'आतंक से जुड़े' 14 देशों से अपने यहां आ रहे यात्रियों की जांच और कड़ी करने की घोषणा की। इन देशों में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सऊदी अरब, यमन, लीबिया, नाइजीरिया, सोमालिया, अल्जीरिया, लेबनान और इराक शामिल हैं। इनके अलावा चार देशों क्यूबा, ईरान, सूडान और सीरिया को आतंकवाद प्रायोजक देशों की सूची में शामिल किया गया है।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष दूरबीन केपलर की मदद से हमारे सौरमंडल के बाहर पांच नए ग्रहों की खोज की। इन ग्रहों का नाम केपलर4बी, 5बी, 6बी, 7बी और 8बी रखा गया। 2200 से 3000 डिग्री फारेनहाइट तक के अत्यधिक तापमान के कारण इन ग्रहों को 'हॉट ज्यूपिटर्स' कहा गया है।
इम्पीरियल कॉलेज लंदन के वैज्ञानिकों ने मार्स रिकोनाइसेन्स आर्बिटर से मिली तस्वीरों की फॉरेन्सिक जांच द्वारा मंगल की भूमध्य रेखा के समीप करीब 30 किमी चौडी झीलों का पता लगाया। ये झीले अलास्का और साइबेरिया में पाई जाने वाली झीलों जैसी ही है।
'हरित राजस्थान अभियान' के तहत डूंगरपुर जिला प्रशासन द्वारा जिले भर में फैली बंजर पहाड़ियों की हरितिमा लौटाने के लिए 11 व 12 अगस्त 2009 को किए गए 6 लाख से अधिक पौधारोपण की मुहिम को 'गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड' में सम्मिलित कर लिया गया।
1971 - सबसे पहला एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेला गया।
2014 - जीएसएलवी डी5 द्वारा वाहित संचार उपग्रह जीसैट-14 का प्रक्षेपण भारतीय क्रायोजेनिक इंजन की पहली सफल उड़ान बनी।
उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर 5 जनवरी 2009 को गठबंधन सरकार बनाई।
प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ५ जनवरी १९६६ को नियुक्त किया गया था
जन्म
१९२२ – मुकरी, भारतीय अभिनेता, (निधन २०००)
उदय चोपड़ा (जन्म: 5 जनवरी, 1973) हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता हैं।
एम॰के॰ इंदिरा (पूरा नाम: मंडगड्डे कृष्णराव इंदिरा) (कन्नड़: ಮಂಡಗದ್ದೆ ಕೃಷ್ಣರಾವ್ ಇಂದಿರ)(5 जनवरी 1917 - 15 मार्च 1994) कन्नड़ भाषा की एक प्रसिद्ध उपन्यासकार थी।
सुशील कुमार मोदी (जन्म 5 जनवरी 1952) भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिज्ञ और बिहार के तीसरे उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं। वे बिहार के वित्त मंत्री भी रह चुके हैं।
मंसूर अली ख़ान पटौदी(5 जनवरी 1941 – 22 सितंबर 2011) एक भारतीय क्रिकेटर और पटौदी के नौवे नवाब थे।
कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी 1932 को हुआ।
ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो (उर्दू व सिंधी: ذوالفقار علی بھٹو, जन्म: 5 जनवरी 1928 - मौत: 4 अप्रैल 1979) पाकिस्तान के प्रधान मन्त्री थे।
दीपिका पडुकोण, कन्नड: ದೀಪಿಕಾ ಪಡುಕೋಣ್) एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जिनका जन्म 5 जनवरी 1986 को हुआ
ममता बनर्जी (बांग्ला: মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়, जन्म: जनवरी 5, 1955) भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल की वर्तमान मुख्यमंत्री एवं राजनैतिक दल तृणमूल कांग्रेस की प्रमु
रोवन सेबेस्टियन एटकिंसन (जन्म 5 जनवरी 1955) एक अंग्रेजी अभिनेता, हास्य अभिनेता और पटकथा लेखक हैं।
बारींद्रनाथ घोष (5 जनवरी 1880 - 18 अप्रैल 1959) भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार तथा "युगांतर" के संस्थापकों में से एक थे।
कृष्णमाचारी भारतन (जन्म ५ जनवरी १९६३) भारत के प्रथम श्रेणी क्रिकेट खिलाड़ी हैं।
मनीष सिसोदिया (जन्म : ५ जनवरी १९७२) दिल्ली की पटपड़गंज सीट से विधायक तथा राज्य सरकार में मंत्री है।
शाह जहाँ - पिता जहाँगीर माता ताज बीबी बिलक़िस मकानी जन्म खुर्रम ५ जनवरी १५९२ लाहौर,
भारत स्वाभिमान न्यास - यह न्यास ५ जनवरी २००९ को दिल्ली में पंजीकृत कराया गया था।
मुरली मनोहर जोशी जी का जन्म ५ जनवरी सन् १९३४ को दिल्ली में हुआ था।
परमहंस योगानन्द का जन्म मुकुन्दलाल घोष के रूप में ५ जनवरी १८९३, को गोरखपुर, उत्तरप्रदेश में हुआ।
डाएन कीटन (जन्म डाएन हॉल, ५ जनवरी १९४६) एक अमेरिकी अभिनेत्री, निर्देशक और चलचित्र की कथानक लेखक है।
निधन
1922- अर्नेस्ट शैकलटन, आयरिश विद्रोही (ज. 1874)
1589- कैथरीन (फ्रांस की महारानी)
निकोलिएविश रोमानोव (रूसी : Николай Николаевич Романов ; 6 नवम्बर 1856 – 5 जनवरी 1929) रूस के सेनानायक था
के॰पी॰ उदयभानु (६ जून १९३६ – ५ जनवरी २०१४) भारतीय पार्श्वगायक थे।
इस्सा का निधन ५ जनवरी १८२७ ई०
उदय किरण (२६ जून १९८० – ५ जनवरी २०१४) एक भारतीय फ़िल्म अभिनेता थे जो मुख्य रूप से तेलुगू सिनेमा में काम करते थे
बाहरी कडियाँ
बीबीसी पे यह दिन
जनवरी | 711 |
1264214 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%9F%E0%A4%B0%20%E0%A4%9A%E0%A5%87%E0%A4%B8 | पीटर चेस | पीटर कार्ल डेविड चेस (जन्म 9 अक्टूबर 1993) एक आयरिश क्रिकेटर है जो डरहम काउंटी क्रिकेट क्लब के लिए खेलते थे। वह राइट आर्म मीडियम फास्ट बॉलर हैं, जो राइट हैंड बैटिंग भी करते हैं। दिसंबर 2018 में, वह 2019 सीज़न के लिए क्रिकेट आयरलैंड द्वारा केंद्रीय अनुबंध से सम्मानित किए जाने वाले उन्नीस खिलाड़ियों में से एक था।
पीटर्स की प्रतिभा को पहली बार प्रसिद्ध मलहाइड खिलाड़ी और कोच, एलुन ब्रॉफी द्वारा देखा गया था। 2009 में ब्रोफी के खिलाफ 4 वें XI गेम में यह कहते हुए उद्धृत किया गया था कि "मुझे वहां पता था और फिर चेज़र आयरलैंड के लिए खेलने की क्षमता रखते थे।"
सन्दर्भ
1993 में जन्मे लोग | 114 |
37836 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%B6%E0%A4%A8%20%282008%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29 | तशन (2008 फ़िल्म) | तशन 2008 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
संक्षेप
पूजा सिंह (करीना कपूर) की जो अपने पिता की हत्या का बदला भैयाजी (अनिल कपूर) से लेना चाहती है। भैय्याजी के पच्चीस करोड़ रुपए चुराने के लिए वह जिमी (सैफ अली खान) का सहारा लेती है। जिमी से प्यार का नाटक रचाकर वह पच्चीस करोड़ रुपए लेकर फुर्र हो जाती है। भैयाजी रुपए वसूलने का जिम्मा कानपुर में रहने वाले बच्चन पांडे (अक्षय कुमार) को सौंपते हैं। बच्चन को पूजा अपने प्यार के जाल फंसाकर बेवकूफ बनाना चाहती है, लेकिन वो उसके बचपन का प्यार है। अंत में जिमी, पूजा और बच्चन मिलकर भैयाजी और उनकी गैंग का सफाया कर देते हैं। पूजा पच्चीस करोड़ रुपए चुराने के बाद उन्हें पूरे भारत में अलग-अलग जगहों पर रख देती है। झोपडि़यों में ग्रामीण उसके करोड़ों रुपए संभालते हैं। इस बहाने ढेर सारी जगहों पर घूमाया गया है।
मुख्य कलाकार
अक्षय कुमार
करीना कपूर
दल
संगीत
१॥छलिया-छलिया
२॥दिल हारा रे
३॥टशन
रोचक तथ्य
परिणाम
बौक्स ऑफिस
समीक्षाएँ
नामांकन और पुरस्कार
बाहरी कड़ियाँ
2008 में बनी हिन्दी फ़िल्म | 175 |
1186807 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B8%20%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%B2 | मलाना हिल्स हिमाचल | मलाणा हिमाचल प्रदेश का एक गांव है । यह गांव मालाना क्रीम यानी कि हशीश के लिए सुप्रसिद्ध है । यह भारत देश के हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है ।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, लेकिन अगर कहा जाए कि इसी मुल्क में एक ऐसा गांव भी है, जहां भारत का संविधान नहीं माना जाता!इस बात पर जल्दी यकीन कर पाना मुश्किल है, लेकिन यही हकीकत है!
सबसे पहले बात कर लेते है malana village की लोकेशन के बारे मलाणा विलेज लोकेटिड है हिमाचल प्रदेश के kullu डिस्ट्रिक्ट में और साथ ही ये गिरा हुआ है चंद्रखणी और देओ टिब्बा जैसे बहुत ऊंचे ऊंचे माउंटटेन पीक से घिरा हुआ है।
के बारे में
हिमाचल प्रदेश में एक ऐसा गांव है, जहां के लोग भारत के संविधान को न मानकर अपनी हजारों साल पुरानी परंपरा को मानते हैं. पहाड़ियों से घिरे हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में है ये छोटा सा गांव ‘मलाणा'!
कहा जाता है कि दुनिया को सबसे पहले लोकतंत्र यहीं से मिला था!प्राचीन काल में इस गांव में कुछ नियम बनाए गए, इन नियमों को बाद में संसदीय प्रणाली में बदल दिया गया!
गांव की अपनी संसदीय व्यवस्था
इस गांव के अपने खुद के दो सदन हैं. एक छोटा सदन और एक बड़ा सदन.
बड़े सदन में कुल 11 सदस्य होते हैं, जिसमें 8 सदस्य गांव वालों में से चुने जाते हैं, जबकि तीन अन्य कारदार, गुर और पुजारी स्थायी सदस्य होते हैं!इस सदन की अनोखी बात यह है कि गांव के प्रत्येक घर से एक सदस्य जरूर होता है!
घर का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति ही प्रतिनिधित्व करता है!वहीं, ऊपरी सदन में किसी सदस्य की मृत्यु हो जाए तो पूरे ऊपरी सदन का दोबारा गठन किया जाता है!सिर्फ़ सदन ही नहीं बल्कि मलाणा गांव का अपना प्रशासन भी है; कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए इनके अपने कानून हैं!इनके खुद के थानेदार भी होते हैं और सरकार भी इसमें दखल अंदाजी नहीं करती!अब बारी आती है सदन में सुनवाई की!सदन में हर तरह के मामलों को निपटाया जाता है!यहां फैसले देवनीति से तय होते हैं; संसद भवन के रूप में ऐतिहासिक चौपाल लगाई जाती है!
ऊपरी सदन के 11 सदस्य ऊपर बैठते हैं और निचली सदन के सदस्य नीचे बैठे होते हैं!
यूं तो हर तरह के फैसलों का यहीं पर निपटारा हो जाता है, लेकिन अगर कोई ऐसा मामला फंस जाए जिसको समझ पाना मुश्किल हो रहा हो, तो ऐसे में ये मामला सबसे अंतिम पड़ाव पर भेज दिया जाता है!अंतिम फैसला होता है जमलू देवता का!ये गांव वाले जमलू ऋषि को अपना देवता मानते हैं;इन्ही का फैसला सच्चा और अंतिम माना जाता है!
किसी मामले को जमलू देवता के हवाले करने की बाद बहुत ही अजीबो गरीब तरीके से फैसला किया जाता है. जिन दो पक्षों का मामला होता है, उनसे दो बकरे मंगाए जाते हैं!दोनों ही बकरों की टांग में चीरा लगाकर बराबर मात्रा में जहर भर दिया जाता है. जहर भरने के बाद बकरों के मरने का इंतजार होता है और जिस पक्ष का बकरा पहले मरता है, वह दोषी होता है!अब इस अंतिम फैसले पर कोई सवाल भी नहीं खड़े कर सकता है, क्योंकि इनका मानना है कि यह फैसला खुद जमलू देवता ने सुनाया है!हालांकि साल 2012 के बाद से इस गांव में काफी बदलाव देखने को मिले हैं. मसलन पहले यहां चुनाव भी नहीं होता था, लेकिन साल 2012 के बाद से यहां चुनाव होने लगे हैं.
अकबर की पूजा
इस गांव में अकबर से जुड़ी एक रोचक कहानी भी है. मलाणावासी अकबर को पूजते हैं. यहां साल में एक बार होने वाले ‘फागली’ उत्सव में ये लोग अकबर की पूजा करते हैं!लोगों की मान्यता है कि बादशाह अकबर ने जमलू ऋषि की परीक्षा लेनी चाही थी, जिसके बाद जमलू ऋषि ने दिल्ली में बर्फबारी करा दी थी. एक दिलचस्प बात और है कि ये लोग खुद को सिकंदर का वंशज बताते हैं!इन लोगों की भाषा में भी कुछ ग्रीक शब्दों का इस्तेमाल होता है!
सिकंदर के वंशज
इतिहास से जुड़े इनके पास कोई सबूत तो नहीं हैं,लेकिन इनके अनुसार जब सिकंदर भारत पर आक्रमण करने आया था, उस दौरान कुछ सैनिकों ने उसकी सेना छोड़ दी थी!इन्हीं, सैनिकों ने मलाणा गांव बसाया, यहां तक कि यहां के लोगों का हाव-भाव और नैन-नक्श भी भारतीयों जैसे नहीं हैं!बोली से लेकर शाररिक बनावट तक ये लोग भारतीयों से एकदम अलग नजर आते हैं!
कुछ भी छूने पर है पाबंदी
इस विचित्र गांव में इसके अलावा और भी कई रहस्य हैं, जो इस गांव की ओर लोगों का ध्यान खींचते हैं!
रहस्य से भरे इस गांव में बाहरी लोगों के कुछ भी छूने पर पाबंदी है. इसके लिए इनकी ओर से बकायदा नोटिस भी लगाया गया है, जिसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि किसी भी चीज को छूने पर एक हजार रुपए का जुर्माना देना होगा!इनके जुर्माने की रकम 1000 से लेकर 2500 रुपए तक है. किसी भी सामान को छूने की पाबंदी के बावजूद भी यह स्थान पर्यटकों को आकर्षित करता है!
बाहर से आए लोग दुकानों का सामान नहीं छू सकते. पर्यटकों को अगर कुछ खाने का सामान खरीदना होता है तो वह पैसे दुकान के बाहर रख देते हैं और दुकानदार भी सामान जमीन पर रख देता है!इस नियम का पालन कराने के लिए यहां के लोग इस पर कड़ी नजर रखते हैं!पर्यटकों के लिए इस गांव में रुकने की भी कोई सुविधा नहीं है. पर्यटक गांव के बाहर अपना टेंट लगाकर रात गुजारते हैं!
नशे के व्यापार में अव्वल
रहस्य से भरे इस गांव का एक और सच यह है कि यहां नशे का व्यापार भी खूब फलता-फूलता है. मलाणा गांव की चरस पूरी दुनिया में मशहूर है, जिसे मलाणा क्रीम कहा जाता है!यहां पैदा होने वाली चरस में उच्च गुणवत्ता का तेल पाया जाता है!यही नशा सरकार के लिए भी टेढ़ी खीर साबित होता है. प्रशासन को नशे के व्यापार पर रोक लगाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है. कई अभियान चलाए जाते रहे हैं, लेकिन फिर भी यहां से भारी मात्रा में चरस और अफीम की तस्करी होती है!लेकिन अगर नशे को छोड़ दिया जाए तो हिमाचल के पहाड़ों में बसे इस गांव ने कई रहस्य इतिहास की गर्त में छुपा रखे हैं. भारतीय संविधान के अनुसार चरस की तस्करी करना कानूनी अपराध है।
गांव की अपनी संसदीय व्यवस्था
इस गांव के अपने खुद के दो सदन हैं. एक छोटा सदन और एक बड़ा सदन.
बड़े सदन में कुल 11 सदस्य होते हैं, जिसमें 8 सदस्य गांव वालों में से चुने जाते हैं, जबकि तीन अन्य कारदार, गुर और पुजारी स्थायी सदस्य होते हैं!इस सदन की अनोखी बात यह है कि गांव के प्रत्येक घर से एक सदस्य जरूर होता है!
घर का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति ही प्रतिनिधित्व करता है!वहीं, ऊपरी सदन में किसी सदस्य की मृत्यु हो जाए तो पूरे ऊपरी सदन का दोबारा गठन किया जाता है!सिर्फ़ सदन ही नहीं बल्कि मलाणा गांव का अपना प्रशासन भी है; कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए इनके अपने कानून हैं!इनके खुद के थानेदार भी होते हैं और सरकार भी इसमें दखल अंदाजी नहीं करती!अब बारी आती है सदन में सुनवाई की!सदन में हर तरह के मामलों को निपटाया जाता है!यहां फैसले देवनीति से तय होते हैं; संसद भवन के रूप में ऐतिहासिक चौपाल लगाई जाती है!
ऊपरी सदन के 11 सदस्य ऊपर बैठते हैं और निचली सदन के सदस्य नीचे बैठे होते हैं!
यूं तो हर तरह के फैसलों का यहीं पर निपटारा हो जाता है, लेकिन अगर कोई ऐसा मामला फंस जाए जिसको समझ पाना मुश्किल हो रहा हो, तो ऐसे में ये मामला सबसे अंतिम पड़ाव पर भेज दिया जाता है!अंतिम फैसला होता है जमलू देवता का!ये गांव वाले जमलू ऋषि को अपना देवता मानते हैं;इन्ही का फैसला सच्चा और अंतिम माना जाता है!
किसी मामले को जमलू देवता के हवाले करने की बाद बहुत ही अजीबो गरीब तरीके से फैसला किया जाता है. जिन दो पक्षों का मामला होता है, उनसे दो बकरे मंगाए जाते हैं!दोनों ही बकरों की टांग में चीरा लगाकर बराबर मात्रा में जहर भर दिया जाता है. जहर भरने के बाद बकरों के मरने का इंतजार होता है और जिस पक्ष का बकरा पहले मरता है, वह दोषी होता है!अब इस अंतिम फैसले पर कोई सवाल भी नहीं खड़े कर सकता है, क्योंकि इनका मानना है कि यह फैसला खुद जमलू देवता ने सुनाया है!हालांकि साल 2012 के बाद से इस गांव में काफी बदलाव देखने को मिले हैं. मसलन पहले यहां चुनाव भी नहीं होता था, लेकिन साल 2012 के बाद से यहां चुनाव होने लगे हैं.
अकबर की पूजा
इस गांव में अकबर से जुड़ी एक रोचक कहानी भी है. मलाणावासी अकबर को पूजते हैं. यहां साल में एक बार होने वाले ‘फागली’ उत्सव में ये लोग अकबर की पूजा करते हैं!लोगों की मान्यता है कि बादशाह अकबर ने जमलू ऋषि की परीक्षा लेनी चाही थी, जिसके बाद जमलू ऋषि ने दिल्ली में बर्फबारी करा दी थी. एक दिलचस्प बात और है कि ये लोग खुद को सिकंदर का वंशज बताते हैं!इन लोगों की भाषा में भी कुछ ग्रीक शब्दों का इस्तेमाल होता है!
सिकंदर के वंशज
इतिहास से जुड़े इनके पास कोई सबूत तो नहीं हैं,लेकिन इनके अनुसार जब सिकंदर भारत पर आक्रमण करने आया था, उस दौरान कुछ सैनिकों ने उसकी सेना छोड़ दी थी!इन्हीं, सैनिकों ने मलाणा गांव बसाया, यहां तक कि यहां के लोगों का हाव-भाव और नैन-नक्श भी भारतीयों जैसे नहीं हैं!बोली से लेकर शाररिक बनावट तक ये लोग भारतीयों से एकदम अलग नजर आते हैं!
कुछ भी छूने पर है पाबंदी
इस विचित्र गांव में इसके अलावा और भी कई रहस्य हैं, जो इस गांव की ओर लोगों का ध्यान खींचते हैं!
रहस्य से भरे इस गांव में बाहरी लोगों के कुछ भी छूने पर पाबंदी है. इसके लिए इनकी ओर से बकायदा नोटिस भी लगाया गया है, जिसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि किसी भी चीज को छूने पर एक हजार रुपए का जुर्माना देना होगा!इनके जुर्माने की रकम 1000 से लेकर 2500 रुपए तक है. किसी भी सामान को छूने की पाबंदी के बावजूद भी यह स्थान पर्यटकों को आकर्षित करता है!
बाहर से आए लोग दुकानों का सामान नहीं छू सकते. पर्यटकों को अगर कुछ खाने का सामान खरीदना होता है तो वह पैसे दुकान के बाहर रख देते हैं और दुकानदार भी सामान जमीन पर रख देता है!इस नियम का पालन कराने के लिए यहां के लोग इस पर कड़ी नजर रखते हैं!पर्यटकों के लिए इस गांव में रुकने की भी कोई सुविधा नहीं है. पर्यटक गांव के बाहर अपना टेंट लगाकर रात गुजारते हैं!
नशे के व्यापार में अव्वल
रहस्य से भरे इस गांव का एक और सच यह है कि यहां नशे का व्यापार भी खूब फलता-फूलता है. मलाणा गांव की चरस पूरी दुनिया में मशहूर है, जिसे मलाणा क्रीम कहा जाता है!यहां पैदा होने वाली चरस में उच्च गुणवत्ता का तेल पाया जाता है!यही नशा सरकार के लिए भी टेढ़ी खीर साबित होता है. प्रशासन को नशे के व्यापार पर रोक लगाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है. कई अभियान चलाए जाते रहे हैं, लेकिन फिर भी यहां से भारी मात्रा में चरस और अफीम की तस्करी होती है!लेकिन अगर नशे को छोड़ दिया जाए तो हिमाचल के पहाड़ों में बसे इस गांव ने कई रहस्य इतिहास की गर्त में छुपा रखे हैं! | 1,848 |
7124 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%20%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE | अनंतपुर जिला | अनंतपुर ज़िला (Anakapalli district) भारत के आन्ध्र प्रदेश राज्य का एक ज़िला है। इसका मुख्यालय अनंतपुर है। सन् 2022 में इस ज़िले का विभाजन कर श्री सत्य साई ज़िले का गठन करा गया।
विवरण
यह आन्ध्र प्रदेश का पश्चिमतम ज़िला है, जहाँ ऐतिहासिक दुर्ग, तीर्थस्थान और आधुनिक विकास देखा जा सकता है। इसका क्षेत्रफल 19,130 वर्ग किमी हुआ करता था, लेकिन 2022 में श्री सत्य साई ज़िले के अलग होने से 10,205 वर्ग किमी रह गया। उत्तर में यह कर्नूल ज़िले से, पूर्व में कुड्डापा और चित्तूर तथा दक्षिण और पश्चिम में कर्नाटक राज्य से घिरा है। यह पूरा जिला अपने रेशम व्यापार के आधुनिक रूप के लिए जाना जाता है। पर्यटन की बात करें तो लिपाक्षी मंदिर यहां का प्रमुख आकर्षण है। अनंतपुर आंध्र प्रदेश कुड्डुपा पहाड़ियों के पूर्वी भाग में अवस्थित है। सन 1800 ई तक अनंतपुर ईस्ट इंडिया कम्पनी का प्रमुख केन्द्र था। अनंतपुर का सम्बन्ध थामस मुनरो से भी रहा है, जो यहाँ का प्रथम कलेक्टर था। अनंतपुर के समीप लेपाक्षी ग्राम अपने अद्भुत भित्ति चित्रोंयुक्त मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
पर्यटन स्थल
लिपाक्षी मंदिर
लिपाक्षी वास्तव में एक छोटा सा गांव है जो अनंतपुर के हिंदूपुर का हिस्सा है। यह गांव अपने कलात्मक मंदिरों के लिए जाना जाता है जिनका निर्माण 16वीं शताब्दी में किया गया था। विजयनगर शैली के मंदिरों का सुंदर उदाहरण लिपाक्षी मंदिर है। विशाल मंदिर परिसर में भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान वीरभद्र को समर्पित तीन मंदिर हैं। भगवान वीरभद्र का रौद्रावतार है। भगवान शिव नायक शासकों के कुलदेवता थे। लिपाक्षी मंदिर में नागलिंग के संभवत: सबसे बड़ी प्रतिमा स्थापित है। भगवान गणेश की मूर्ति भी यहां आने वाले सैलानियों का ध्यान आकर्षित करती है।
पेनुकोंडा किला
इस विशाल किले का हर पत्थर उस समय की शान को दर्शाता है। पेनुकोंडा अनंतपुर जिले का एक छोटा का नगर है। प्राचीन काल में यह विजयनगर राजाओं के दूसरी राजधानी के रूप में प्रयुक्त होता था। पहाड़ की चोटी पर बना यह किला नगर का खूबसूरत दृश्य प्रस्तुत करता है। अनंतपुर से 70 किलोमीटर दूर यह किला कुर्नूल-बंगलुरु रोड पर स्थित है। किले के अंदर शिलालेखों में राजा बुक्का प्रथम द्वारा अपने पुत्र वीरा वरिपुन्ना उदियार को शासनसत्ता सौंपने का जिक्र मिलता है। उनके शासनकाल में इस किले का निर्माण हुआ था। किले का वास्तु इस प्रकार का था कि कोई भी शत्रु यहां तक पहुंच नहीं पाता था। येरामंची द्वार से प्रवेश करने पर भगवान हनुमान की 11 फीट ऊंची विशाल प्रतिमा दिखाई पड़ती है। 1575 में बना गगन महल शाही परिवार का समर रिजॉर्ट था। पेनुकोंडा किले के वास्तुशिल्प में हिदु और मुस्लिम शैली का संगम देखने को मिलता है।
पुट्टापर्थी
श्री सत्य साईं बाबा का जन्मस्थान होने के कारण उनके अनेक अनुयायी यहां आते रहते हैं। 1950 में उन्होंने अपने अनुयायियों के लिए आश्रम की स्थापना की। आश्रम परिसर में बहुत से गेस्टहाउस, रसोईघर और भोजनालय हैं। पिछले सालों में आश्रम के आसपास अनेक इमारतें बन गई हैं जिनमें स्कूल, विश्वविद्यालय, आवासीय कलोनियों, अस्पताल, प्लेनेटेरियम, संग्रहालय शामिल हैं। ये सब इस छोटे से गांव को शहर का रूप देते हैं।
श्री कदिरी लक्ष्मी नारायण मंदिर
नरसिम्हा स्वामी मंदिर अनंतपुर का एक प्रमुख तीर्थस्थान है। आसपास के जिलों से भी अनेक श्रद्धालु यहां आते हैं। धर्मग्रंथों के अनुसार नरसिम्हा स्वामी भगवान विष्णु के अवतार थे। मंदिर का निर्माण पथर्लापट्टनम के रंगनायडु जो एक पलेगर थे, ने किया था। रंगमंटप की सीलिंग पर रामायण और लक्ष्मी मंटम की पर भगवत के चित्र उकेरे गए हैं। दीवारों पर बनाई गई तस्वीरों का रंग फीका पड़ चुका है लेकिन उनका आकर्षण बरकरार है। मंदिर के अधिकांश शिलालेखों में राजा द्वारा मंदिर में दिए गए उपहारों का उल्लेख किया गया है। माना जाता है कि जो व्यक्ति इस मंदिर में पूजा अर्चना करता है, उसे अपने सारे दु:खों से मुक्ति मिल जाता है। दशहरे और सक्रांत के दौरान यहां विशेष पूजा अर्चना का आयोजन किया जाता है।
तिम्मम्मा मर्रिमानु
कदिरी से 35 किमी। और अनंतपुर से 100 किलोमीटर दूर स्थित यह स्थान बरगद के पेड़ के लिए प्रसिद्ध है जिसे स्थानीय भाषा में तिम्मम्मा (क़रीब के गांव की स्त्री का नाम जिसे देवी भी माना जता है) मर्रि (बरगद) मानु (पेड) यानी "तिम्मम्मा मर्रि मानु" कहा जाता है। इसे दक्षिण भारत में अपनी तरह का सबसे बड़ा सृक्ष्ण माना जाता है। इस पेड़ की शाखाएं पांच एकड़ तक फैली हुई हैं। 1989 में इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया। मंदिर के नीचे तिम्माम्मा को समर्पित एक छोटा सा मंदिर है। माना जाता है कि तिम्मम्मा का जन्म सेती बालिजी परिवार में हुआ था। अपने पति बाला वीरय्या की मृत्यु के बाद वे सती हो गई। माना जाजा है कि जिस स्थान पर उन्होंने आत्मदाह किया था, उसी स्थान पर यह बरगद का पेड़ स्थित है। लोगों का विश्वास है कि यदि कोई नि:संतान दंपत्ति यहां प्रार्थना करता है तो अगले ही साल तिम्मम्मा की कृपा से उनके घर संतान उत्पन्न हो जाती है। शिवरात्रि के अवसर पर यहां जात्रा का आयोजन किया जाता है जिसमें हजारों भक्त यहां आकर तिम्मम्मा की पूजा करते हैं।
रायदुर्ग किला
रायदुर्ग किले का विजयनगर साम्राज्य के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। किले के अंदर अनेक किले हैं और दुश्मनों के लिए यहां तक पहुंचना असंभव था। इसका निर्माण समुद्र तल से 2727 फीट की ऊंचाई पर किया गया था। मूल रूप से यह बेदारों का गढ़ था जो विजयनगर के शासन में शिथिल हो गया। आज भी पहाड़ी के नीचे किले के अवशेष देखे जा सकते हैं। माना जाता है कि किले का निर्माण जंग नायक ने करवाया था। किले के पास चार गुफाएं भी हैं जिनके द्वार पत्थर के बने हैं और इन पर सिद्धों की नक्काशी की गई है। किले के आसपास अनेक मंदिर भी हैं जैसे नरसिंहस्वामी, हनुमान और एलम्मा मंदिर। यहां भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। इसके अलावा प्रसन्ना वैंकटेश्वर, वेणुगोपाल, जंबुकेश्वर, वीरभद्र और कन्यकपरमेश्वरी मंदिर भी यहां हैं।
लक्ष्मी नरसिंह स्वामी मंदिर
हरियाली के बीच स्थित यह मंदिर अनंतपुर से 36 किलोमीटर दूर है। दंतकथाओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण भगवान लक्ष्मी नरसिंह स्वामी के पदचिह्मों पर किया गया है। विवाह समारोहों के लिए यह मंदिर पसंदीदा जगह है। अप्रैल के महीने में यहां वार्षिक रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। मंदिर परिसर में ही आदि लक्ष्मी देवी मंदिर और चेंचु लक्ष्मी देवी मंदिर भी हैं।
गूटी किला
गूटी अनंतपुर से 52 किलोमीटर दूर है। यह किला आंध्र प्रदेश के सबसे पुराने पहाड़ी किलों में से एक है। किले में मिले प्रारंभिक शिलालेख कन्नड़ और संस्कृत भाषा में हैं। किले का निर्माण सातवीं शताब्दी के आसपास हुआ था। मुरारी राव के नेतृत्व में मराठों ने इस पर अधिकार किया। गूटी कै फियत के अनुसार मीर जुमला ने इस पर शासन किया। उसके बाद यह कुतुब शाही प्रमुख के अधिकार में आ गया। कालांतर में हैदर अली और ब्रिटिशों ने इस पर राज किया। गूटी किला गूटी के मैदानों से 300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। किले के अंदर कुल 15 किले और 15 मुख्य द्वार हैं। मंदिर में अनेक कुएं भी हैं जिनमें से एक के बारे में कहा जाता है कि इसकी धारा पहाड़ी के नीचे से जुड़ी हुई है।
आवागमन
वायु मार्ग
बंगलुरु (200किलोमीटर) और पुट्टापुर्थी (70) हवाईअड्डे से अनंतपुर पहुंचा जा सकता है। बंगलुरु हवाई अड्डा देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा है जबकि पुट्टापुर्थी सीमित शहरों से जुड़ा है।
रेल मार्ग
अनंतपुर से हैदराबाद, बंगलुरु, मुंबई, नई दिल्ली, अहमदाबाद, जयपुर, भुवनेश्वर, पुणे, विशाखापटनम और अन्य प्रमुख शहरों तक रेलों का जाल बिछा हुआ है।
सड़क मार्ग
अनंतपुर से राष्ट्रीय राजमार्ग 7 और 205 गुजरते हैं जो अनंतपुर इस शहर को बड़े शहरों से जोड़ते हैं। आंध्र प्रदेश के अंदर व बाहर की जगहों के लिए निजी व सार्वजनिक बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं।
इन्हें भी देखें
अनंतपुर
श्री सत्य साई ज़िला
बाहरी कड़ियाँ
अनन्तपुर आधिकारिक वेबसाइट
Official Website on Anantapur by National Informatics Centre
Anantapur.com
Information from AP Government websites
District - Anantapur
Jawaharlal Nehru Technological University, Anantapur
Sri Krishnadevaraya University Website
JNTU college of Engineering, Anantapur
About TADPATRI
Anantapur Arts College website
way2njoy
सन्दर्भ
आंध्र प्रदेश के जिले | 1,318 |
698174 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8 | विदारी नवप्रवर्तन | वह नवप्रवर्तन जो नया बाजार और नया नेटवर्क निर्मित करता है और अन्ततः वर्तमान बाजार और नेटवर्क को छिन्न-भिन्न करके बाजार में स्थापित अग्रणी कम्पनियों को हटा देता है, उसे विदारी नवप्रवर्तन (disruptive innovation) या विदारी प्रौद्योगिकी (डिस्रप्टिव टेक्नॉलॉजी) कहते हैं।
उदाहरण :
(१) ट्रांजिस्टर के विकास ने वाल्व को अधिकांश कामों से हटा दिया।
(२) पीसी के आने से मिनी कम्प्यूटर, वर्क स्टेशन आदि बाहर हो गये।
(३) डिजिटल फोटोग्राफी के आने से परम्परागत रासायनिक फोटोग्राफी समाप्त हो गयि।
(४) मोबाइल फोन का विकास एक विदारी नवप्रवर्तन सिद्ध हुआ जिसने परम्परागत अचल फोन को बाजार से हटा दिया।
(५) विकिपीडिया के आने से परम्परागत विश्वकोश बाहर हो गये।
प्रौद्योगिकी
परिवर्तन
नवाचार
विपणन | 113 |
1320972 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%95-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5 | चुम्बक-प्रवाहिकीय द्रव | चुम्बक-प्रवाहिकीय तरल पदार्थ ( magnetorheological fluid या MRF ) ऐसा तरल पदार्थ है जिसकी श्यानता उस पर आरोपित चुंबकीय क्षेत्र पर निर्भर करती है। प्रायः इन्हें किसी दूसरे 'वाहक द्रव' में मिलाकर काम में लिया जाता है। जब चुम्बक-प्रवाहिकीय द्रव को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो इसकी श्यानता बहुत अधिक बढ़ जाती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि चुम्बकीय क्षेत्र को घटाबढ़ाकर ऐसे तरल पदार्थों की पराभव सामर्थ्य (yield stress) को अत्यन्त शुद्धता से नियंत्रित किया जा सकता है। अपने इस गुण के कारण चुम्बक-प्रवाहिकीय द्रवों को अनेक प्रकार से उपयोग में लाया जा रहा है, जैसे चुम्बक-प्रवाहिकीय ब्रेक, चुम्बक-प्रवाहिकीय अवमन्दक, चुम्बक-प्रवाहिकीय क्लच आदि।
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
श्यानता
चुम्बक-प्रवाहिकीय अवमन्दक
चुम्बक द्रवगतिकी
तरल गतिकी | 118 |
853966 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A3 | गैरसैंण | गैरसैंण भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले में स्थित एक शहर है। यह समूचे उत्तराखण्ड राज्य के मध्य है और उत्तराखण्ड राज्य की ग्रीष्मकालीन अस्थाई राजधानी भराड़ीसैंण के नजदीक स्थित है।
क्षेत्र में लगने वाले मेलों में से मां गंगा माई का मेला है, जो वहां के मुख्य गांव गैड की कुलदेवी है
गैरसैंण नामक शब्द का उद्भव
गैरसैंण नाम का शब्द स्थानीय बोली के शब्दों से मिलकर बना है। "गैर" तथा "सैंण"। गैर गढ़वाली भाषा में गहरे स्थान को कहते हैं तथा सैंण नामक शब्द मैदानी भू-भाग का पर्याय है। जिसका अर्थ स्पष्टत: गैर + सैंण = गैरसैंण है, यानि "गहरे में समतल मैदान"। (जैसे गैरसैंण के समीपवर्ती भिकियासैंण, चिन्यालीसैंण, थैलीसैंण, भराड़ीसैंण इत्यादि कुमांऊँ व गढ़वाल के दोसॉंद यानि दो सीमाओं का सीमावर्ती भूभाग) दूसरा अब कुछ लोग गैरसैंण को इस प्रकार भी परिभाषित करने लगे हैं कि यह समीपवर्ती गैड़ नामक गॉंव के नीचे स्थित है, जिस कारण यह गैरसैंण कहलाता है। परन्तु यह तथ्य सटीक होने में संदेहात्मक प्रतीत होता है।
इतिहास
प्राचीन इतिहास
गैरसैंण गढ़वाल क्षेत्र में स्थित है, जिसे प्राचीन कथाओं तथा ग्रन्थों में केदार क्षेत्र या केदारखण्ड कहा गया है। सातवीं शताब्दी के आस-पास यहां आये चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने इस क्षेत्र में ब्रह्मपुर नामक राज्य होने का वर्णन किया है। यह क्षेत्र अर्वाचीन काल से ही भारतवर्ष की हिमालयी ऐतिहासिक, आध्यात्मिक व सॉस्कृतिक धरोहर को समेटे हुए है। लोकप्रचलित कथाओं के अनुसार प्रस्तुत इलाके का पहला शासक यक्षराज कुबेर था। कुबेर के पश्चात् यहां असुरों का शासन रहा, जिनकी राजधानी वर्तमान उखीमठ में हुआ करती थी। महाभारत के युद्ध के बाद इस क्षेत्र में नाग, कुनिन्दा, किरात और खस जातियों के राजाओं का वर्चस्व भी माना जाता रहा है। ईसा से 2500 वर्ष पूर्व से लेकर सातवीं शताब्दी तक यह क्षेत्र कत्यूरियों के अधीन रहा, तत्पश्चात तेरहवीं शताब्दी से लगभग सन् १८०३ तक गढ़वाल के परमार राजवंश के अधीन रहा। सन् १८०३ में आये एक भयंकर भूकंप के कारण इस क्षेत्र का जन-जीवन व भौगोलिक-सम्पदा बुरी तरह तहस-नहस हो गया था, और इसके कुछ समय बाद ही गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा के नेतृत्व में गोरखाओं ने इस क्षेत्र पर आक्रमण कर कब्ज़ा कर लिया और १८०३ से 1815 तक यहां गोरखा राज रहा। 1815 के गोरखा युद्ध के बाद 1815 से 14 अगस्त, 1947 तक ब्रिटिश शासनकाल रहा। इसी ब्रिटिश शासनकाल के अन्तराल 1839 में गढ़वाल जिले का गठन कर अंग्रेजी हुकूमत ने इस क्षेत्र को कुमाऊँ से गढ़वाल जिले में स्थानांतरित कर दिया तथा 20 फरवरी 1960 को इसे चमोली जिले बना दिया गया।
स्थापना
उत्तराखण्ड राज्य के गठन से पहले से ही गैरसैंण को उत्तराखण्ड राज्य की राजधानी के तौर पर प्रस्तावित करना शुरू कर दिया गया था। राजधानी के तौर पर गैरसैण का नाम सबसे पहले ६० के दशक में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने आगे किया था। उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के समय भी गैरसैण को ही राज्य की प्रस्तावित राजधनी माना गया। सन् १९८९ में डीडी पंत और विपिन त्रिपाठी ने गैरसैंण को उत्तराखंड की प्रस्तावित राजधानी के रूप में शामिल किया था। इसके बाद सन् १९९१ में गैरसैंण में अपर शिक्षा निदेशालय एवं डायट का उद्घाटन हुआ। उसी वर्ष भाजपा के तीन मंत्रियों और विधायकों ने गैरसैंण में जनसभा कर उत्तराखण्ड राज्य की मांग का समर्थन किया था। उत्तराखण्ड क्रान्ति दल ने तो सन् १९९२ में गैरसैंण को उत्तराखण्ड की औपचारिक राजधानी तक घोषित कर दिया था। उक्रांद ने पेशावर कांड के महानायक वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली के नाम पर गैरसैंण राजधानी क्षेत्र का नाम चन्द्रनगर रखा था। सन् १९९४ में गैरसैंण राजधानी को लेकर लेकर १५७ दिन का क्रमिक अनशन किया गया। इसके अलावा, सन् १९९४ में ही तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार द्वारा गठित रमाशंकर कौशिक की अगुआई वाली एक समीति ने उत्तराखण्ड राज्य के साथ-साथ गैरसैंण राजधानी की भी अनुशंसा की थी।
९ नवम्बर २००० को उत्तराखण्ड के गठन के बाद गैरसैंण को राज्य की राजधानी घोषित करने की मांग राज्य भर में उठने लगी। सन् २००० में उत्तराखण्ड महिला मोर्चा ने गैरसैंण राजधानी की मांग को लेकर खबरदार रैली निकाली। इसके बाद २००२ में गैरसैंण की मांग को लेकर श्रीनगर में जनता का प्रदर्शन हुआ, और फिर गैरसैंण राजधानी आंदोलन समिति का गठन किया गया। इन्हीं आन्दोलनों के फलस्वरूप उत्तराखण्ड सरकार ने जस्टिस वीरेंद्र दीक्षित की अध्यक्षता में दीक्षित आयोग का गठन किया, जिसका कार्य उत्तराखण्ड के विभिन्न नगरों का अध्ययन कर उत्तराखण्ड की राजधानी के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थल का चुनाव करना था। दीक्षित आयोग ने राजधानी के लिए ५ स्थलों को (देहरादून, काशीपुर, रामनगर, ऋषिकेश तथा गैरसैण) चिन्हित किया, और इन पर व्यापक शोध के पश्चात अपनी ८० पन्नो की रिपोर्ट १७ अगस्त २००८ को उत्तराखण्ड विधानसभा में पेश की। इस रिपोर्ट में दीक्षित आयोग ने देहरादून तथा काशीपुर को राजधानी के लिए योग्य पाया था, तथा विषम भौगोलिक दशाओं, भूकंपीय आंकड़ों तथा अन्य कारकों पर विचार करते हुए कहा था कि गैरसैंण स्थायी राजधानी के लिये सही स्थान नहीं है।
२०१२ में उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने गैरसैंण में एक कैबिनेट बैठक का आयोजन किया। इस सफल बैठक के बाद वर्ष २०१३ में गैरसैण के जीआईसी मैदान में विधानसभा भवन का शिलान्यास किया गया। उसी वर्ष गैरसैंण से लगभग १४ किमी दूर स्थित भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन भूमि पूजन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। २०१४ में बनकर तैयार हुए इस विधानसभा भवन में पहली बार उत्तराखण्ड विधानसभा के तीन दिवसीय सत्र का आयोजन किया गया था। मई २०१४ में उत्तराखण्ड सरकार द्वारा जनपद चमोली के विकासखण्ड गैरसैंण और जनपद अल्मोड़ा के विकासखण्ड चौखुटिया को शामिल कर 'गैरसैंण विकास परिषद' गठित करने का निर्णय लिया गया, जिसका काम गैरसैंण में विधानसभा भवन के निर्माण के साथ-साथ इस क्षेत्र में अवस्थापना विकास से सम्बन्धित योजनाओं की स्वीकृति एवं क्रियान्वयन करान था। इसके बाद २०१५-२०१६ में गैरसैण को नगर पंचायत का दर्जा दे दिया गया। अपनी स्थापना के समय ये नगर ७.५३ वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैला था, और इसकी जनसंख्या ७,१३८ थी। २०१७ में गैरसैंण में फिर एक विधानसभा स्तर का आयोजन किया गया।
४ मार्च २०२० को उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री, त्रिवेंद्र सिंह रावत ने विधानसभा में बजट सत्र के दौरान घोषणा की कि गैरसैंण के नजदीक स्थित भराड़ीसैंण राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी होगी।
भौगोलिक स्थिति
गैरसैंण समुद्र सतह से लगभग 5750 फुट की ऊँचाई पर स्थित मैदानी तथा प्रकृति का सुन्दरतम भू-भाग है। यह समूचे उत्तराखण्ड के बीचों-बीच तथा सुविधा सम्पन्न क्षेत्र माना जाता है। उत्तराखण्ड राज्य के मध्य में होने के कारण बर्षों से चले आ रहे पृथक उत्तराखण्ड राज्य की स्थाई राजधानी के रूप में सर्वमान्य स्वीकार किया जाता रहा है। भौगोलिक दृष्टि से यहॉं की जलवायु को तरगर्म माना जाता है। गैरसैंण का उत्तराखण्ड राज्य के कुमांऊँ, गढ़वाल तथा मैदानी भूभागों के बीचों-बीच स्थित होना इसका मुख्य बिन्दु व बिषय है, जो पर्वतीय क्षेत्रों के विकास लिये नितान्त आवश्यक भी है।
जनसांख्यिकी
7.53 वर्ग किलोमीटर में फैले गैरसैंण नगर की २०११ की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या 7,138 है। नगर में पुरुषों की संख्या 3,582 तथा महिलाओं की संख्या 3,556 हैं। कुल जनसंख्या में से 87.27 प्रतिशत लोग साक्षर हैं।
सभ्यता एवम् संस्कृति
यह हिमालय क्षेत्र की ऐतिहासिक व सॉंस्कृतिक विरासत, ठेठ कुमांऊॅंनी-गढ़वाली सभ्यता व संस्कृति, पर्वतीय जीवन शैली तथा अलौकिक प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए जाना जाता है।
बोली भाषा
गैरसैंण क्षेत्र में आपसी वार्तालाप की बोली-भाषा गढ़वाली तथा कुमांऊॅंनी दोनों मिश्रित बोलियॉं पायी जाती हैं। सरकारी कामकाज में बोलने व लिखने की भाषा अधिकाॅशत: हिन्दी है, परन्तु अंग्रेजी का प्रयोग भी पाया जाता है। अध्ययन व अध्यापन हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में होता है।
आवागमन के स्रोत
वायु मार्ग
गैरसैंण पहुॅंचने के लिये निकटतम हवाई अड्डा रुद्रपुर व हल्द्वानी के मध्य में स्थित पंतनगर हवाई अड्डा है। प्रस्तुत एअरपोर्ट से गैरसैंण की दूरी लगभग 200 किलोमीटर है। जहॉं से सुविधानुसार टैक्सी अथवा कार द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।
दूसरा गैरसैंण के लिये जॉलीग्राण्ट एअरपोर्ट से भी पहुॅंचा जा सकता है। यह देहरादून में है। जहॉं से गैरसैंण लगभग 235 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ से भी सुविधानुसार टैक्सी अथवा कार द्वारा गैरसैंण पहुँचा जा सकता है।
गौचर, यह स्थान गैरसैंण से लगभग पचास-साठ किलोमीटर की दूरी पर है। यहॉं भी हवाई पट्टी बनी हुयी है, परन्तु यहॉं विशेष विमानों द्वारा ही पहुॅंचा जाता है। यहॉं से भी गैरसैंण पहुंचना आसान है।
सबसे निकटतम प्रस्तावित हवाई अड्डा चौखुटिया है। यहॉं से मात्र 30-35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गैरसैंण।
रेल मार्ग
फिलहाल भारतीय रेल द्वारा गैरसैंण पहुंचने के लिये दो रेलवे स्टेशन मौजूद हैं। पहला रेलवे जंक्शन काठगोदाम है, जहॉं से गैरसैंण लगभग 175 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है।
दूसरा रेलवे जंक्शन रामनगर में है, जहॉं से गैरसैंण की दूरी लगभग 150 किलोमीटर है। इन दोनों रेलवे स्टेशनों से सुविधानुसार उत्तराखण्ड परिवहन निगम की बसों अथवा टैक्सी कार द्वारा आसानी से गैरसैंण पहुंचा जा सकता है।
गैरसैंण के लिए रामनगर-चौखुटिया-गैरसैंण रेलमार्ग काफी समय से प्रस्तावित है किंतु राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी की वजह से अभी तक अस्तित्व में नहीं आ पाया है भविष्य में इस मार्ग के बन जाने से सीधे रेलमार्ग द्वारा गैरसैंण पहुंचा जा सकेगा,
सड़क मार्ग
भारत की राजधानी दिल्ली के आनन्द विहार आईएसबीटी से यहॉं के लिए उत्तराखण्ड परिवहन की बसें नियमित रूप से उपलब्ध होती हैं। जिनके द्वारा 15-20 घंटों में गैरसैंण पहुंच सकते हैं। उत्तर भारत के अन्य प्रदेशों के विभिन्न स्थानों से भी गैरसैंण के लियें बसों की सुविधाऐं उपलब्ध हैं।
दिल्ली से मार्ग: राष्ट्रीय राजमार्ग 9 से हापुड़, गजरौला, मुरादाबाद, काशीपुर, रामनगर, भतरोंजखान या घट्टी से भिकियासैंण, पौराणिक बृद्धकेदार, मॉंसी, चौखुटिया होते हुए गैरसैंण आसानी से पहुँचा जा सकता है।
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियॉं
उत्तराखण्ड में हिल स्टेशन
उत्तराखण्ड के नगर
उत्तराखण्ड में पर्यटन
चमोली ज़िले के नगर | 1,569 |
1478018 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%B8 | तमन्ना हाउस | तमन्ना हाउस एक थ्रिलर टेलीविजन श्रृंखला है जो ज़ी टीवी चैनल पर प्रत्येक रविवार से बुधवार रात 10 बजे भारतीय मानक समय पर प्रसारित होती है। यह श्रृंखला अगाथा क्रिस्टी के उपन्यासों के लोकप्रिय रहस्यों का एक समान संस्करण है।
सार
कहानी एक जोड़े के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है: तमन्ना और दिलीप, जो अपने आसन्न तलाक का जश्न मनाने के लिए एक विचित्र पार्टी आयोजित करने का फैसला करते हैं। इसलिए, यह जोड़ा मेहमानों के खेलने के लिए एक गेम का आयोजन करता है और जो भी गेम जीतेगा उसे तलाक का केस हारने वाले व्यक्ति से 5 करोड़ (50 मिलियन रुपये) मिलेंगे। टकराव तब पैदा होता है, जब तमन्ना पार्टी के लिए कुछ नियम निर्धारित करती है, जैसे कि पार्टी में मेहमानों की संख्या 10 होगी, दिलीप केवल एक व्यक्ति को आमंत्रित कर सकता है, और वह व्यक्ति किसी और को आमंत्रित करेगा, इत्यादि, और यदि दिलीप किसी महिला को आमंत्रित करने के बजाय उस महिला को किसी पुरुष को आमंत्रित करना पड़ता है। पहले तो दिलीप को अपनी पत्नी का विचार पसंद नहीं आया, लेकिन उन्होंने उसके नियमों का पालन करने का फैसला किया, क्योंकि शर्त 5 करोड़ रुपये की है।
सारे नियम-कायदे होने के बाद पार्टी का समय रात 10 बजे आता है। जब जोड़े अपने मेहमानों को देखते हैं तो उत्साहित हो जाते हैं, लेकिन परेशान हो जाते हैं क्योंकि उन्होंने अमीर, उच्च वर्ग के मेहमानों को आमंत्रित किया था, और जो मेहमान पार्टी में आए थे वे निम्न वर्ग के लोग थे, जैसे कि मेहमानों में से एक चोर है और दूसरा चोर है। एक है बार डांसर. लेकिन वे गिरोह के साथ जाने का फैसला करते हैं, लेकिन इससे एक और समस्या खड़ी हो जाती है, क्योंकि शर्त के अनुसार तमन्ना और दिलीप के आमंत्रित मेहमानों की संख्या 10 थी, लेकिन 11 मेहमान आए। अब से मेहमानों में से किसी एक को जाना होगा। दूसरी ओर, खेल शुरू होते ही एक हत्या हो जाती है और पार्टी एक मर्डर मिस्ट्री में तब्दील हो जाती है। अब मेहमान यह जानने को बेताब हैं कि हत्या किसने की?
कलाकार
रूबी भाटिया . . . तमन्ना
जस अरोड़ा . . . दिलीप
वीरेंद्र सक्सैना
डोनी कपूर
उपासना सिंह
सत्य
पूजा गर्ग
शिवम शेट्टी
हरजीत वालिया
वैशाली नज़ारथ
हेमन्त पांडे
फाल्गुनी पारिख
विनय पाठक
संदर्भ
एस्सेल ग्रुप पर तमन्ना हाउस का आधिकारिक लॉन्च आर्टिकल
ट्रिब्यून इंडिया पर तमन्ना हाउस समाचार लेख
ज़ी टीवी के कार्यक्रम
भारतीय टेलीविजन धारावाहिक | 401 |
757874 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9E%E0%A4%BF%E0%A4%99%E0%A4%AE%E0%A4%BE%20%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%AE | ञिङमा ग्युद्बुम | ञिङमा ग्युद्बुम (རྙིང་མ་རྒྱུད་འབུམ, Wylie: rnying मा rgyud 'लूट
) 'एकत्र तंत्र के पूर्वजों', यह है कि Mahayoga, Anuyoga और Atiyoga तंत्र के न्यिन्गमा.
केननिज़ैषण
के ञिङमा ग्युद्बुम के न्यिन्गमा था निर्भर उत्पन्न से उत्पन्न 'सामान्यीकरण' के Kangyur और Tengyur द्वारा सरमा परंपराओं, जो सबसे अधिक भाग के लिए बाहर रखा गया न्यिन्गमा साहित्य है। डेविडसन (2005: पी. 225) opines है कि पहले संस्करण की न्यिन्गमा Gyubum शुरू किया गठन से बारहवीं सदी के साथ कुछ ग्रंथों से तैयार Terma साहित्य है।
Space Class
के अनुसार Thondup और Talbott (1997: पी. 48) कर रहे हैं केवल सात मौजूदा ग्रंथों की अंतरिक्ष कक्षा और वे एकत्र कर रहे हैं में न्यिन्गमा Gyubum.
वर्तमान संस्करण
Cantwell और मेयर है 1996 के बाद से प्रकाशित चार मोनोग्राफ पर rNying मा ' i rGyud ', और समीक्षकों द्वारा संपादित की एक संख्या में अपने ग्रंथों. उनके काम की स्थापना की है कि नौ आसानी से उपलब्ध वर्तमान संस्करण में गिर जाते हैं और तीन अलग-अलग लाइनों के वंश. इस प्रकार चार भूटानी संस्करणों के Tshamdrag, Gangteng-एक, Gangteng-बी और Drametse फार्म का एक लाइन के वंश, सभी से एक Lhalung मूल है। के Rigzin, Tingkye, काठमांडू और Nubri संस्करणों के सभी ओलों से एक आम पूर्वज में दक्षिण मध्य तिब्बत, लेकिन काठमांडू और Nubri कर रहे हैं की एक अलग उप-शाखा के लिए Tingkye और Rigzin. Dege ही पर्यत अद्वितीय है।
Harunaga और Almogi (जून, 2009) पकड़ है कि वहाँ रहे हैं पर कम से कम सात मौजूदा संस्करणों के न्यिन्गमा Gyubum के अलग अलग आकार, से लेकर 26 से 46 मात्रा में लंबाई.
Degé (Wylie: sde डीजीई) संस्करण
इस के लिए आगे, Rigpa Shedra (2009) पकड़ है कि न्यिन्गमा Gyubum:"...पहली बार था द्वारा संकलित महान tertön रत्न Lingpa के बाद इसी तरह compilations ग्रंथों के बने 14 वीं सदी में, इस तरह के रूप में Kangyur और Tengyur, था छोड़े गए कई के न्यिन्गमा तंत्र की शिक्षा दी। यह पहली बार प्रकाशित की दिशा में 18 वीं सदी के अंत के मार्गदर्शन के तहत सर्वज्ञ Jigmed Lingpa, में Derge, के संरक्षण के लिए धन्यवाद रीजेंट रानी त्सेवांग Lhamo." जिग्मे Lingpa इकट्ठा न्यिन्गमा ग्रंथों बन गया था कि दुर्लभ है, के साथ शुरू करने के न्यिन्गमा तंत्र में आयोजित पांडुलिपि संग्रह के Mindrolling मठहै। इस संग्रह की न्यिन्गमा तंत्र के लिए नेतृत्व amassing के 'संग्रह की न्यिन्गमा तंत्र', न्यिन्गमा Gyübum (Wylie: rNying-मा rgyud-'लूट) के लिए जो Getse Mahapandita लिखा सूचीपत्र, ठीक करना और इसके लिए व्यवस्था मुद्रण द्वारा याचना महंगी और श्रम प्रधान की परियोजना पर नक्काशी की लकड़ी के ब्लॉक के लिए ब्लॉक प्रिंटिंग. लकड़ी के ब्लॉक पर नक्काशी था forded के माध्यम से संरक्षण के 'Degé' (Wylie: sDe-डीजीई) शाही परिवार की खाँ , जो इष्ट और सम्मानित जिग्मे Lingpa. Getse Mahapandita सबूत पढ़ने के न्यिन्गमा Gyübum.
सूचीपत्र की न्यिन्गमा Gyubum, Degé संस्करण: सामग्री की तालिका से प्रमुख शैलियों और मात्रा @ THL तिब्बती साहित्यिक विश्वकोश
एकत्र तंत्र के Vairochana (Wylie: bai ro ' i rgyud 'भाग)
'एकत्र तंत्र के Vairochana' (བཻ་རོའི་རྒྱུད་འབུམ, Wylie: bai ro ' i rgyud 'लूट
) का संग्रह है प्राचीन तंत्र और गूढ़ निर्देश संकलित और अनुवादित द्वारा आठवीं सदी के तिब्बती मास्टर Vairochana.
सूचीपत्र के एकत्र तंत्र के Vairochana @ THL तिब्बती साहित्यिक विश्वकोश
Tingkyé (Wylie: gting tits) संस्करण
में देर से पिछली सदी में, दिल mgo mkhyen brtse रिन पो चे (顶果钦哲仁波切) (1910-1991) खोजने के लिए और अधिक पांडुलिपियों में भूटान, 46 बक्से में Mtshams अपनी बड़ाई मठ (禅扎寺) और 36 बक्से में Gting tits मठ (定切寺)। इस संस्करण को और अधिक पूरा हो गया है। ग्रंथों द्वारा प्रकाशित किए गए थे के राष्ट्रीय पुस्तकालय भूटान (不丹皇家政府国家图书馆) 1982 में.
एक सराहनीय अग्रणी सूचीपत्र इस संग्रह के सभी सहित, शीर्षक, अध्याय और colophons, द्वारा बनाया गया था कनेको में जापान. कुछ साल बाद, यह उपयोगी गाया एक डिजिटल संस्करण के द्वारा THDL.
Tsamdrak (Wylie: mtshams अपनी बड़ाई) संस्करण
की सूची एकत्र तंत्र के पूर्वजों, Tsamdrak संस्करण @ THL तिब्बती साहित्यिक विश्वकोश
एंथोनी हैन्सन-नाई प्रदान की पहली शीर्षक और colophons की सूची इस संग्रह है। उनका काम था तो में विस्तार एक फुलर सूची सहित अध्याय शीर्षकों द्वारा THDL टीम है।
महत्वपूर्ण बात है, Kunjed ग्यालपो के पहले पाठ में Tsamdrak संस्करण के न्यिन्गमा Gyubum.
सूची मास्टर के संस्करण
हालांकि एक सच नहीं वर्तमान संस्करण में, THL तिब्बती साहित्यिक विश्वकोश के तहत निर्देश के Germano है आसुत एक मास्टर संस्करण लेने के abovementioned संस्करणों में खाते में.
सूची मास्टर के संस्करण की न्यिन्गमा Gyubum @ THL तिब्बती साहित्यिक विश्वकोश
रिग 'dzin Tshe dbang और न ही बू संस्करण
Cantwell, मेयर और फिशर (2002) के साथ सहयोग में उनकी भागीदारी दस्तावेज़ रिग 'dzin Tshe dbang और न ही बू संस्करण के न्यिन्गमा Gyubum.
सूची के रिग 'dzin Tshe dbang और न ही बू rNying मा' i rgyud 'लूट
रिग 'dzin Tshe dbang और न ही बू संस्करण के rNying मा' i rgyud 'लूट: एक सचित्र सूची
'Gangteng' (Wylie: sgang steng) संस्करण
Cantwell, मेयर, Kowalewski और Achard (2006) प्रकाशित किया है एक सूची में अंग्रेजी के इस संस्करण के न्यिन्गमा Gyubum.
स्वदेशी हिमालय प्रवचन में गाया अंग्रेजी: एक emic कथा
गठन तंत्र के अनुसार ञिङमा
जल्दी में प्राकृतिक और अभ्यस्त के भारतीय और चीनी तांत्रिक Buddhadharma और सिद्ध परंपराओं में हिमालय और अधिक से अधिक तिब्बत में सामान्य में, Guhyagarbha तंत्र (Wylie: gsang बीए snying पो
) के Mahayoga वर्ग के साहित्य "का प्रतिनिधित्व करता है सबसे प्रामाणिक दृष्टि के गठन के लिए एक तंत्र के लिए इन ञिङमा प्रजातियों". स्वदेशी तिब्बती टीका संबंधी काम करता है पर चर्चा क्या गठन एक 'तंत्र' में एक गणन के दस या ग्यारह "व्यावहारिक सिद्धांतों का तंत्र" (Wylie: rgyud ची dngos पो
) के रूप में समझा परिभाषित विशिष्ट सुविधाओं की मुख्यधारा तांत्रिक प्रणाली के रूप में समझा जाता है और कल्पना की है कि बिंदु पर समय में:
'एक दृश्य के असली' (Wylie: दे खो ना nyid एलटीए बा
)
'नियत आचरण' (Wylie: ला दोर बीए spyod pa
)
'मंडला सरणी' (Wylie: bkod pa dkyil 'खोर
)
'लगातार उन्नयन के सशक्तिकरण' (Wylie: रिम बराबर bgrod pa dbang
)
'प्रतिबद्धता नहीं है, जो पार' (Wylie: mi 'दा' बा बांध tshig
)
'प्रबुद्ध गतिविधि प्रदर्शित किया जाता है जो' (Wylie: rol pa phrin लास
)
'पूर्ति की आकांक्षा' (Wylie: अपनी du gnyer बीए sgrub pa
)
'प्रसाद लाता है जो लक्ष्य का उपयोग करने के लिए' (Wylie: gnas र stobs pa pa mchod
)
'अटूट चिंतन' (Wylie: एम आई जी.यो बीए टिंग nge 'dzin
है ), और
'मंत्र का सस्वर पाठ' (Wylie: zlos pa sngags
) के साथ 'सील बांधता है जो व्यवसायी साकार करने के लिए' (Wylie: 'चिंग बीए phyag rgya
)।
आधुनिक 'पश्चिमी' प्रवचन अंग्रेजी में: एक etic कथा
समय की मुख्य छात्रवृत्ति
Germano (1992) पर चर्चा की Atiyoga तंत्र में अपने शोध है। Ehrhard (1995) दस्तावेजों की खोज की पांडुलिपियों की न्यिन्गमा Gyubum से नेपाल. 1996 में विश्वविद्यालय में Leiden, मेयर पूरा पहली पीएचडी है कि गया था पर विशेष रूप से rNying मा ' i rGyud 'और अपनी अलग अलग संस्करणों. अपने शोध में उन्होंने स्थापित पहली बार के लिए विभिन्न शाखाओं के संचरण की rNying मा ' i rGyud 'नितंब द्वारा stemmatic विश्लेषण. इन तीन शाखाओं में वह के रूप में पहचान की पूर्व तिब्बती, भूटानी, और दक्षिण केंद्रीय तिब्बती (जो subdivides में दो उप-शाखाएं)। इस मानक बनी हुई है विधि का निर्धारण करने के लिए विभिन्न rNying मा ' i rGyud 'नितंब संस्करण, के बाद से सभी संस्करणों में बाद में पता चला पाया गया है भीतर गिर करने के लिए एक या किसी अन्य के साथ इन लाइनों के संचरण। मेयर की पीएचडी की भी पहचान की पहली अकाट्य सबूत के स्रोतों के Mahāyoga ग्रंथों की समीक्षा की और फिर क्या था जाना जाता है के rNying मा ' i rGyud 'लूट का इतिहास रहा है। Germano के पहले काम किया गया था और आगे के साथ संलग्न Germano (2000) विशेष रूप से संबंधित करने के लिए न्यिन्गमा Gyubum. Cantwell, मेयर और फिशर (2002) के साथ सहयोग में ब्रिटिश लाइब्रेरी प्रलेखित रिग 'dzin Tshe dbang और न ही बू संस्करण के न्यिन्गमा Gyubum. Cantwell और मेयर बाद में प्रकाशित अपने तीसरे मोनोग्राफ पर rNying मा ' i rGyud ', पर चर्चा, अपने इतिहास और इसके विभिन्न संस्करणों और उपलब्ध कराने के महत्वपूर्ण संस्करणों के लिए दो नमूना ग्रंथों: "Kīlaya Nirvāṇa तंत्र और वज्र क्रोध तंत्र: दो ग्रंथों से प्राचीन तंत्र संग्रह". वियना, 2006. Derbac (2007) प्रस्तुत एमए थीसिस पर न्यिन्गमा Gyubum एक पूरे के रूप में. 2008 में, मेयर और Cantwell प्रकाशित अपने चौथे मोनोग्राफ करने के लिए संबंधित rNying मा ' i rGyud ', जिसमें उन्होंने दिखाया है कि लगभग सभी Dunhuang पाठ पर Phur pa बाद में निकल आया के भीतर विभिन्न भागों के rNying मा ' i rGyud ', इस प्रकार साबित करना है कि rNying मा तांत्रिक सामग्री रहे हैं निश्चित रूप से समकालीन या पुराने की तुलना में Dunhuang ग्रंथों. 2010 के रूप में, वे कर रहे हैं अभी भी ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में है और पूरा करने के अपने पांचवें मात्रा पर rNying मा ' i rGyud 'लूट है। के रूप में अच्छी तरह के रूप में मोनोग्राफ, वे भी उत्पादित कैटलाग और कई पत्रिका लेख और सम्मेलन के कागजात पर rNying मा ' i rGyud 'लूट है।
Etic प्रवचन और कथा
में अपनी एमए थीसिस के लिए अलबर्टा विश्वविद्यालय में इलाके के विद्वानों के etic प्रवचन के कई गुना न्यिन्गमा Gyubum संस्करण, Derbac (2007: पी. 2) proffers:"...कि प्रमुख संपादकों के विभिन्न rNying मा ' i rgyud 'नितंब संस्करणों में खेला जाता है एक अब तक अधिक से अधिक भूमिका में emending colophons, कैटलॉग, और संस्करणों की तुलना में विद्वानों है कि पहले ग्रहण किया है।"यह कह में, Derbac सहमत है के साथ एक हाथ पर emic [पारंपरिक] छात्रवृत्ति, जो स्पष्ट रूप से मनाता प्रमुख भूमिका के लिए प्रसिद्ध संपादकों जैसे रत्न Lingpa और जिग्मे Lingpa संकलन में कैटलाग के लिए rNying मा ' i rgyud 'लूट है। इसके अलावा, वह भी इस बात की पुष्टि के निष्कर्ष पहले छात्रवृत्ति, इस तरह के रूप में [1] मेयर के Leiden पीएचडी की थीसिस 1996 गया था, जो बाद में प्रकाशित एक पुस्तक के रूप में 'Phur pa bcu gnyis: एक से शास्त्र प्राचीन तंत्र संग्रह' [2] के निष्कर्ष डेविड Germano के THDL संग्रह 2000 के दशक में, और [3] Cantwell और मेयर की किताब 'Kīlaya Nirvāṇa तंत्र और वज्र क्रोध तंत्र: दो ग्रंथों से प्राचीन तंत्र संग्रह', 2006 में प्रकाशित द्वारा Österreichische Akademie der Wissenschaften, वियना.
Derbac का हवाला देते उपरोक्त सभी तीन स्रोतों, के रूप में अच्छी तरह के रूप में दूसरों के द्वारा काम करता है मेयर और Cantwell पर rNying मा ' i rGyud 'लूट है।
प्राथमिक संसाधन
इतिहास और की प्रकृति एकत्र तंत्र के पूर्वजों - डॉ डेविड Germano (वर्जीनिया विश्वविद्यालय), 25 मार्च, 2002.
TBRC ऑनलाइन संस्करण का सबसे बड़ा ज्ञात संस्करण के न्यिन्गमा Gyubum. पांडुलिपियों से जो इस संग्रह में मुद्रित किया गया है में पाया गया के मठ Tsamdrag में पश्चिमी भूटान और इसमें 46 संस्करणों. यह एक स्कैन संस्करण की फोटो-ऑफसेट संस्करण में प्रकाशित द्वारा 1982 के राष्ट्रीय पुस्तकालय भूटान, थिम्पू. मूल करने के लिए आयोजित किया गया है केलिग्राफ्ड 18 वीं सदी में.
कैटलॉग एकत्र तंत्र के पूर्वजों - तिब्बत और हिमालय लाइब्रेरी कैटलॉग के विभिन्न संस्करणों के न्यिन्गमा Gyubum. सहित: मास्टर सूची है; सूची के एकत्र तंत्र के Vairochana (bai ro ' i rgyud 'भाग); Degé (sde डीजीई) संस्करण; Tingkyé (gting tits) संस्करण; और Tsamdrak (mtshams अपनी बड़ाई) संस्करण है।
नोट
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1235937 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%88%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%A5%E0%A4%BE | पैट्रिक बोथा | पैट्रिक बोथा (जन्म 23 जनवरी 1990) एक दक्षिण अफ्रीकी प्रथम श्रेणी के क्रिकेटर हैं। उन्हें 2015 अफ्रीका टी 20 कप के लिए फ्री स्टेट क्रिकेट टीम टीम में शामिल किया गया था।
वह 2017-18 में सीएसए प्रांतीय वन-डे चैलेंज टूर्नामेंट में अग्रणी रन-स्कोरर थे, जिसमें नौ मैचों में 276 रन थे। वह 2017-18 के सनफोइल 3-डे कप में फ्री स्टेट के लिए अग्रणी रन स्कोरर थे, जिसमें दस मैचों में 716 रन थे।
सितंबर 2018 में, उन्हें 2018 अफ्रीका टी 20 कप के लिए फ्री स्टेट की टीम में नामित किया गया था। वह 2018-19 के सीएसए 3-दिवसीय प्रांतीय कप में फ्री स्टेट के लिए अग्रणी रन स्कोरर थे, जिसमें दस मैचों में 544 रन थे। वह 2018-19 सीएसए प्रांतीय वन-डे चैलेंज में फ्री स्टेट के लिए अग्रणी विकेट लेने वाले थे, जिसमें दस मैचों में ग्यारह आउट थे।
सितंबर 2019 में, उन्हें 2019-20 सीएसए प्रांतीय टी 20 कप के लिए फ्री स्टेट के टीम के कप्तान के रूप में नामित किया गया था।
सन्दर्भ | 165 |
460440 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%AD%E0%A4%A8%20%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B7 | स्तंभन दोष | स्तंभन दोष या नपुंसकता या नुफ्ते या नुत्फ़े () एक प्रकार का यौन अपविकास है। यह संभोग के दौरान शिश्न के उत्तेजित न होने या उसे बनाए न रख सकने के कारण पैदा हुई यौन निष्क्रियता की स्थिति है। इसके मुख्य जैविक कारणों में हृदय और तंत्रिकातंत्र संबंधी बिमारियाँ, मधुमेह, संवेदनामंदक पदार्थों के दुष्प्रभाव आदि शामिल हैं। मानसिक नपुंसकता शारीरिक कमियों की वजह से नहीं बल्कि मानसिक विचारों और अनुभवों के कारण पैदा होती है।
लक्षण
स्तंभन दोष के लक्षण को कई प्रकार से परखा जा सकता है :
कुछ अवसरों पर पूर्ण स्तंभन का प्राप्त होना, जैसे सोने के समय (जब व्यक्ति की मानसिक या मनोवैज्ञानिक समस्याएँ अपेक्षाकृत अनुपस्थित होती हैं), दर्शाता है कि व्यक्ति की शारीरिक संरचनाएँ सुचारु रूप से कार्य कर रही हैं। यह संकेत है कि समस्या शारीरिक से अधिक मानसिक है।
व्यक्ति में बहुमूत्र की शिकायत भी एक कारक है जो स्तंभन में बाधा उत्पन्न करती है। मधुमेह के कारण बहुमूत्र व्यक्ति में तंत्रिकाविकृति उत्पन्न कर सकती है।
इन्हें भी देखें
स्तंभन
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
यौन रोग
मानसिक रोग
स्वास्थ्य समस्याएँ | 176 |
7461 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BE%20%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE | गोण्डा जिला | गोण्डा ज़िला भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है। इस जिले का मुख्यालय गोण्डा है। सरयू और घाघरा नदी के प्रवाह क्षेत्र में बसे होने के नाते यह ज़िला उत्तर प्रदेश के सबसे उपजाऊ जिलों में शामिल है।
इतिहास
इतिहास के एक लम्बे समय प्रवाह में इस जनपद ने अपनी एक विशेष पहचान बना रखी है। प्राचीन काल में इसके वर्तमान भूभाग पर श्रावस्ती का अधिकांश भाग और कोशल महाजनपद फैला हुआ था। महात्मा गौतम बुद्ध के समय इसे एक नयी पहचान मिली। यह उस दौर में इतना अधिक प्रगतिशील एवं समृद्ध था कि महात्मा बुद्ध ने यहाँ २१ वर्ष प्रवास में बिताये थे। गोण्डा जनपद प्रसिद्ध उत्तरापथ के एक छोर पर स्थित है। प्राचीन भारत में यह हिमालय के क्षेत्रों से आने वाली वस्तुओं के अग्रसारण स्थल की तरह काम करता था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अपने विभिन्न उत्खननों में इस जिले की प्राचीनता पर प्रकाश डाला है। गोण्डा एवं बहराइच जनपद की सीमा पर स्थित सहेत महेत से प्राचीन श्रावस्ती की पहचान की जाती है। जैन ग्रंथों में श्रावस्ती को उनके तीसरे तीर्थंकर सम्भवनाथ और आठवें तीर्थंकर चंद्रप्रभनाथ की जन्मस्थली बताया गया है। वायु पुराण और रामायण के उत्तरकाण्ड के अनुसार श्रावस्ती उत्तरी कोशल की राजधानी थी जबकि दक्षिणी कोशल की राजधानी साकेत हुआ करती थी। वास्तव में एक लम्बे समय तक श्रावस्ती का इतिहास ही गोण्डा का इतिहास है। सम्राट हर्षवर्धन (शासनकाल ६०६ से ६४७ ई.) के राज कवि बाणभट्ट ने अपने प्रशस्तिपरक ग्रन्थ हर्षचरित में श्रुत वर्मा नामक एक राजा का उल्लेख किया हैं जो श्रावस्ती पर शासन करता था। दंडी के दशकुमारचरित में भी श्रावस्ती का वर्णन मिलता है। श्रावस्ती को इस बात का श्रेय भी जाता है कि यहाँ से आरंभिक कुषाण काल में बोधिसत्व की मूर्तियों के प्रमाण मिलते हैं। लगता है कि कुषाण काल के पश्चात् इस महत्त्वपूर्ण नगर का पतन होने लगा था। राम शरण शर्मा जैसे इतिहासकारों ने इसे गुप्त काल में नगरों के पतन और सामंतवाद के उदय से जोड़कर देखा है।
इसके बावजूद जेतवन का बिहार लम्बे समय तक, लगभग आठवीं एवं नौवीं शताब्दियों तक, अस्तित्व में बना रहा। मध्यकालीन भारत में गोण्डा एक महत्वपूर्ण स्थान बनाये रखने में सफल रहा। सन १०३३ में किंवदंती अनुसार राजा सुहेलदेव ने सैय्यद मसूद गाजी से टक्कर ली थी। यह भी इतिहास का एक रोचक तथ्य है कि दोनों ही शहर-गोण्डा और बहराइच पूरे देश में समादृत हैं। एक दूसरी लड़ाई मसूद के भतीजे हटीला पीर के साथ अशोकनाथ महादेव मंदिर के पास भी हुई थी जिसमें हटीला पीर मारा गया। अशोकनाथ महादेव मंदिर राजा सुहेलदेव द्वारा बनवाया गया था। जिस पर बाद में हटीला पीर का गुम्बद बनवा दिया गया। .
सन्दर्भ
उत्तर प्रदेश के जिले | 437 |
1466438 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B8%20%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A5%8B | जोस मोरिन्हो | जोस मारियो डॉस सैंटोस फेलिक्स मोरिन्हो,(अंग्रेज़ी:José Mário dos Santos Félix Mourinho) जिन्हें जोस मोरिन्हो के नाम से जाना जाता है, एक पुर्तगाली पेशेवर फुटबॉल प्रबंधक और पूर्व खिलाड़ी हैं जो सीरी ए क्लब रोमा के मुख्य कोच हैं। वह फुटबॉल इतिहास के सबसे सुशोभित प्रबंधकों में से एक हैं, जिन्होंने अपने करियर में 26 ट्रॉफियां जीती हैं, जिनमें दो यूईएफए चैंपियंस लीग खिताब, दो यूईएफए यूरोपा लीग खिताब और सात घरेलू लीग खिताब शामिल हैं।
मोरिन्हो का जन्म पुर्तगाल के सेतुबल में हुआ था और उन्होंने अपने खेल करियर की शुरुआत स्थानीय क्लब बेलेनेंसेस के लिए मिडफील्डर के रूप में की थी। वह 1981 में रियो एवेन्यू, स्पोर्टिंग सीपी और पोर्टो के लिए खेलते हुए पुर्तगाल के शीर्ष डिवीजन में चले गए। उन्होंने 1996 में खेल से संन्यास ले लिया और बेनफिका की युवा टीम में अपना कोचिंग करियर शुरू किया।
मोरिन्हो की पहली वरिष्ठ कोचिंग नौकरी 2001 में आई, जब उन्हें यूनीओ डी लीरिया का प्रबंधक नियुक्त किया गया। उन्होंने अपने पहले सीज़न में क्लब को पुर्तगाली प्राइमिरा लीगा में चौथे स्थान पर पहुंचाया। 2002 में, उन्हें पोर्टो द्वारा काम पर रखा गया, जहां उन्होंने अपने पहले सीज़न में प्राइमिरा लीगा, टाका डी पुर्तगाल और यूईएफए कप जीता। उन्होंने 2004 में फाइनल में मोनाको को हराकर यूईएफए चैंपियंस लीग भी जीती।
पोर्टो में मोरिन्हो की सफलता के कारण उन्हें 2004 में चेल्सी द्वारा नियुक्त किया गया। उन्होंने क्लब में अपने तीन सीज़न में दो प्रीमियर लीग खिताब, दो लीग कप और एक एफए कप जीता। सीज़न की खराब शुरुआत के बाद 2007 में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था।
इसके बाद मोरिन्हो इंटर मिलान चले गए, जहां उन्होंने तीन सीरी ए खिताब, एक कोपा इटालिया और 2010 में यूईएफए चैंपियंस लीग जीता। वह तीन अलग-अलग क्लबों के साथ चैंपियंस लीग जीतने वाले पहले मैनेजर बने।
दो साल के ब्रेक के बाद, मोरिन्हो 2013 में रियल मैड्रिड की कमान संभालते हुए प्रबंधन में लौट आए। उन्होंने अपने पहले सीज़न में ला लीगा और तीसरे सीज़न में यूईएफए चैंपियंस लीग जीती। खराब नतीजों के बाद 2015 में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था।</ref>
इसके बाद मोरिन्हो 2016 में मैनचेस्टर यूनाइटेड चले गए। उन्होंने अपने पहले सीज़न में यूईएफए यूरोपा लीग जीती, लेकिन निराशाजनक अभियान के बाद 2018 में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया।
मोरिन्हो की सबसे हालिया नौकरी टोटेनहम हॉटस्पर में थी, जहां उन्हें 2019 में नियुक्त किया गया था। खराब नतीजों के बाद उन्हें 2021 में बर्खास्त कर दिया गया था।
मोरिन्हो अपनी आक्रामक और मांगपूर्ण प्रबंधन शैली के लिए जाने जाते हैं। खिलाड़ियों के साथ उनके व्यवहार और अपने नियोक्ताओं के साथ अनबन की प्रवृत्ति के लिए उनकी आलोचना की गई है। हालाँकि, वह दुनिया के सबसे सफल प्रबंधकों में से एक हैं, और उनकी टीमों ने लगातार आकर्षक और विजयी फ़ुटबॉल खेला है।
सन्दर्भ | 456 |
1176132 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B8%20%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%B8 | जोस मारिया वास्कोनसेलोस | जोस मारिया वास्कोनसेलोस GColIH (10 अक्टूबर 1956 जन्म), लोकप्रिय उसके द्वारा जाना जाता नोम दे गुएर्रे टौर माटान रुएक ( तेतुम "दो तीव्र आंखें" के लिए) एक है पूर्व Timorese राजनीतिज्ञ जो के रूप में सेवा की है पूर्वी तिमोर के प्रधानमंत्री 22 जून 2018 के बाद से। वह 20 मई 2012 से 20 मई 2017 तक पूर्वी तिमोर के राष्ट्रपति भी रहे । राजनीति में प्रवेश करने से पहले, वह फाल्टिल- फोर्कास डे डेफेसा डी तिमोर-लेस्ते (एफ-एफडीटीएल) के कमांडर थे , जो 2002 से पूर्व तिमोर की सेना थी। 6 अक्टूबर 2011. एफ-एफडीटीएल में सेवा देने से पहले, वह पूर्वी तिमोर या फाल्टिल के राष्ट्रीय स्वतंत्रता के सशस्त्र बलों के अंतिम कमांडर थे (फोरकास आर्मादास पैरा ए लिबरैको नैशनल डी तिमोर लेस्ते ), जो विद्रोही सेना थी जिसने 1975 से 1999 तक क्षेत्र पर इंडोनेशियाई कब्जे का विरोध किया था।
1956 में जन्मे लोग | 145 |
64390 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%80 | तापमापी | तापमापी या थर्मामीटर वह युक्ति है जो ताप या 'ताप की प्रवणता' को मापने के काम आती है। 'तापमिति' (Thermometry) भौतिकी की उस शाखा का नाम है, जिसमें तापमापन की विधियों पर विचार किया जाता है। मनुष्य के शरीर का ताप मापने वाले थर्मामीटर को क्लिनिकल थर्मामीटर कहते है।
तापमापी अनेक सिद्धान्तों के आधार पर निर्मित किये जा सकते हैं। द्रवों का आयतन ताप ग्रहण कर बढ़ जाता है तथा आयतन में होने वाली यह वृद्धि तापक्रम के समानुपाती होता है। साधारण थर्मामीटर इसी सिद्धान्त पर काम करते हैं।
नियत बिंदु
तापमापन की इकाई निर्धारित करने के लिये किसी पदार्थ को क्रमश: दो निश्चित तापीय साम्यावस्थाओं में रखा जाता है। इनको नियत बिंदु (Fixed points) कहते हैं। इन अवस्थाओं में पदार्थ के किसी विशेष गुण के परिमाण निकाल लेते हैं और उनके अंतर को एक निश्चित संख्या में बराबर बराबर बाँट देते हैं। इनमें से प्रत्येक अंश तापमापन की इकाई मानी जाती है, जिसको एक अंश अथवा डिग्री कहते हैं। बहुत समय से तापमापियों (थर्मामीटरों) में हिमबिंदु (Ice point) और भापविंदु (Steam point) का नियत बिंदुओं के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। जिस ताप पर शुद्ध बर्फ और शुद्ध वायुसंतृप्त (air saturated) पानी एक वायुमंडल के दाब पर साथ साथ साम्यावस्था में रहते हैं उसको हिमबिंदु कहते हैं। इसी प्रकार निश्चित दाब पर शुद्ध पानी और शुद्ध भाप का साम्य भापबिंदु बतलाता है।
सामान्य थर्मामीटरों में शीशे की एक छोटी खोखली घुण्डी होती है, जिसमें पारा या द्रव भरा रहता है। तापीय प्रसरण (thermal expansion) के कारण द्रव नली में चढ़ जाता है। उर्पयुक्त दोनों नियत बिंदुओं पर नली में द्रव के तल के सामने चिह्न लगा दिए जाते हैं। सेंटिग्रेड पैमाने में, जिसको अब सेलसियस पैमाना कहते हैं, हिमबिंदु को शून्य और भापबिंदु को 100 डिग्री मानते हैं। इन दोनों चिन्हों के बीच की दूरी को 100 सम भागों में बाँट दिया जाता है। फारेनहाईट मापहाईट मापक्रम में ये दोनों बिंदु क्रमश: 32 और 212 डिग्री माने जाते हैं और इनका अंतर 180 भागों में विभक्त होता है।
उपर्युक्त तापमापियों में तापक्रम तापीय प्रसारण पर आधारित है, किंतु ऐसा आवश्यक नहीं। कोई भी गुण, जो तापवृद्धि के अनुसार एकदिष्टता (monotonically) से बढ़ता है, इस कार्य के लिये प्रयुक्त हो सकता है। वास्तव में प्रयोगशाला के अनेक सुग्राही तापमापी विद्युत्प्रतिरोध के परिवर्तन या तापविद्युत पर आधारित होते हैं। गुणों की तरह द्रव पदार्थो पर भी कोई प्रतिबंध नहीं होता। कोई भी पदार्थ तापमापी में प्रयुक्त किया जा सकता है, किंतु मुख्य समस्या यह है कि पदार्थो और गुणों के भेद से जो विभिन्न तापमापी निर्मित हो सकते हैं उनसे दोनों नियत बिंदुओं को छोड़कर अन्य सब तापों पर पाठ्यांकों में भेद मिलेगा। इससे सिद्ध है कि यह सब मूलत: प्रमाणिक नहीं माने जा सकते।
परमताप
सिद्धांततः उष्मागतिकी (thermodynamics) पर आधारित मापक्रप स्वत:प्रमाण माना जाता है और दूसरे पैमाने उसके अनुसार शुद्ध कर लिए जाते हैं। इस विज्ञान में ऐसे इंजन की कल्पना की गई है जो एक भट्ठी से ऊष्मा लेकर उसका कुछ अंश महत्तम दक्षता (efficiencey) के साथ कार्य में परिवर्तित कर देता है और शेष भाग एक निम्नतापीय संघनित्र (condenser) को दे देता है। इसको कार्नो (carnot) इंजन, अथवा प्रतिवर्ती (Reversible) इजंन, कहते हैं। सिद्धांत के अनुसार अगर भट्ठी और संघनित्र के बहुत से भिन्न तापीय जोड़े एकत्रित हों और एक कार्नो इंजन प्रत्येक के बीच क्रमश: लगाया जाए, तो उसके द्वारा किया गया कार्य इन जोड़ो के तापातर भेद के समानुपाती होता है। इस प्रकार कार्य के मापन से तापांतर ज्ञात किया जा सकता है। इस इंजन की दक्षता उसके सिलिंडर में भरे हुए द्रव्य और उसकी अवस्था पर निर्भर नहीं करती, इसलिए इसको तापमान का आधार माना गया है और इसके द्वारा निर्धारित ताप को परमताप कहते हैं।
सेंटिग्रेड और फारेनहाइट पैमाने की तरह परमताप मापक्रम का शून्य मनमाना नहीं होता। कार्नो इंजन द्वारा किया गया कार्य भट्ठी और संघनित्र दोनों के ताप पर निर्भर करता है। संघनित्र की तापीय अवस्था ऐसी भी हो सकती है कि यह इंजन भट्ठी से प्राप्त समस्त ऊष्मा को कार्य में बदल दे और संघनित्र को उसका कोई भी अंश प्राप्त न हो। ऐसी स्थिति में संघनित्र का ताप परमशून्य माना जाता है।
डिग्री का परिमाण निर्धारण करने के लिये पहले की तरह दो नियत बिंदुओं की आवश्यकता होती है। 1954 ई0 से पूर्व परमताप पैमाने में भी हिम और भाप बिंदुओं का प्रयोग होता था। इन दोनों के तापभेद को 100° परम (100° पा) माना जाता था। इसका यह अर्थ है कि कार्ने इंजन की भट्ठी को भापबिंदु पर और संघनित्र को हिमबिंदु पर रखने से जो कार्य मिलता है उसका शतांश कार्य एक डिग्री प्रदर्शित करती है। इस प्रबंध में बड़ी कठिनाई यह पड़ती है कि हिमबिंदु की यथार्थता सीमित है और भिन्न वैज्ञानिकों द्वारा प्राप्त राशिमानों में ± 01° पा तक का अंतर पाया जाता है। इससे बचने के लिये सन् 1954 से अंतर्राष्ट्रीय निश्चय के अनुसार केवल एक ही नियत बिंदु (पानी के त्रिकबिदुं) का उपयोग होने लगा है। त्रिक्बिंदु उस ताप को कहते हैं जिसपर पानी, बर्फ और जलवाष्प का साम्य संभव है। इसका मान स्वेच्छा से 273.16° पा मान लिया गया है। ऐसा कहा जा सकता है कि सन् 1954 से पूर्व परमताप पैमाना तीन बिंदुओं, (परमशून्य, हिमबिंदु और भापबिंदु) द्वारा निर्घारित होता था, किंतु अब केवल दो बिंदुओं (परमशून्य और त्रिक्बिंदु) का उपयोग होता है। दूसरें शब्दों में इस लेख के प्रारंभ में वर्णित दो नियत बिंदुओं में से एक परमशून्य और दूसरा त्रिक्बिंदू होता है। त्रिक्बिंदू और परमशून्य के बीच कार्य करनेवाले कार्नो इंजन द्वारा जो कार्य होता है उसका 1/273.16 अंश कार्य एक परम डिग्री का बोध करता है।
कार्नो का इंजन आदर्श मात्र है और व्यवहार में इसका निर्माण संभव नहीं, परंतु यह सिद्ध किया जा सकता है कि आदर्श गैस के तापीय प्रसरण द्वारा निर्मित तापमापी के पाठ्यांक परमताप के बराबर होते हैं। अत: आदर्श गैस पैमाना स्वत: प्रमाण, अथवा प्राथमिक मानक (primary standard), माना जाता है। आदर्श गैस उस गैस को कहते हैं जो निम्नलिखित नियम का पालन करती है:
PV = RT
जिसमें (P) दाब, (V) आयतन तथा (T) परमाताप होते है। (R) नियतांक है जिसका मान प्रत्येक आदर्श गैस की एक ग्राम-अणु मात्रा के लिए एक समान होता है।
गैस थर्मामीटर दो प्रकार के होते हैं, एक तो स्थिर आयतन वाले और दूसरे स्थिर दाब वाले। पहले की क्रिया सरल है और उसकी त्रुटियों का संशोधन विश्वसनीय रूप से किया जा सकता है। अत: स्थिर आयतन तापमापियों का ही उपयोग होता है। जैसा नाम के प्रकट है, इनसे गैस का आयतन स्थिर रखकर दाब का मापन किया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय ताप पैमाना
आदर्श गैस तापमापी से ताप निकालने में अथक परिश्रम और समय की आवश्यकता होती है। अनेक कारणों से पाठ में त्रुटियाँ होना संभव है और इनके लिये प्राप्त फलों में संशोधन करना होता है। कुछ त्रुटियाँ तो तापमापी की बनावट में उचित परिवर्तन करके दूर की जाती हैं और कुछ के लिये लंबी गणना करनी होती है। इससे यह सिद्ध है कि गैस तापमापी प्रयोगशाला में दैनिक कार्य के लिये उपयुक्त नहीं हो सकता। इसलिये अंतर्राष्ट्रीय निश्चय के अनुसार कुछ पदार्थों के गलनांक (melting points) और क्वथनांक (boiling points) प्राथमिक मानक के रूप में प्रयुक्त होते हें। ये अंक आदर्श गैस-पैमाने से बहुत परिश्रम के पश्चात् ठीक रूप से माप लिए गए हैं और उनके मान अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति पा चुके हैं।
नियतांक -- सैलसियस ताप डिग्री सें0
1. पानी का त्रिकबिंदु : 0.01 (मूल मानक)
2. आक्सीजन का क्वथनांक (आक्सीजन विंदु) : -182.97 (मानक)
3. हिम और वायुसंतृप्त पानी का साम्य (हिमबिंदु) : 0 (मानक)
4. पानी का क्वथनांक (भापबिंदु) : 100 (मानक)
5. गंधक का क्वथनांक (गंधक बिंदु) : 444.6 (मानक)
6. एंटिमनी का गलनांक (एंटिमनी बिंदु) : 630.5 (मानक)
7. रजत का गलनांक (रजत बिंदु) : 960.8 (मानक)
8. स्वर्ण का गलनांक (स्वर्ण बिंदु) : 1063 (मानक)
इसके अतिरिक्त और भी कुछ नियत बिंदु द्वितीय मानक के रूप में निश्चित किए गए हैं। प्रयोगशाला में काम आनेवाले तापमापी इनसे मिलाकर शुद्ध कर लिए जाते हैं। नियत बिंदुओं के मध्यवर्ती ताप अंतर्वेशन (interpolation) द्वारा ज्ञात किए जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय पैमाने के लिये निम्नलिखित अंतर्वेशन विधियाँ चुनी गई है :
(1) 0 - 180 सें.° सेलसियस तक :
इस तापविधि में प्लैटिनम प्रतिरोध तापमापी का प्रयोग किया जाता है। तार शुद्ध प्लैटिनम का और उसका व्यास 0.05 और 0.20 मिमी. के भीतर होना आवश्यक है। ताप निम्नलिखित अंतर्वेशन विधियाँ चुनी गई है :
R1 = R0 { 1+ At+ Bt2+ C (t - 100) t3}
इसमें (t°) सें. और 0.00° सें. ताप पर विद्युत प्रतिरोध क्रमश: R1 और R0 है। (A,B,C) स्थिरांक हैं, जो भाप, गंधक और ऑक्सीजन बिंदुओं के प्रतिरोधों द्वारा निकाले जाते हैं।
(2) 0° से 660° सें तक:
इसमें भी उपर्युक्त तापमापी प्रयुक्त होता है, किंतु इसका अंतर्वेशन समीकरण निम्नलिखित है :
Rt = R0 (1+ At+ Bt2)
A और B हिम, भाप और गंधक बिंदुओं पर तापमापी के प्रतिरोधों द्वारा निकाले जाते हैं।
(3) 660° से0 1063° से0 तक
इसके लिये एक तापांतर युग्म (thermocouple) का प्रयोग किया जाता है, जिसका एक तार प्लैटिनम का और दूसरा 90 प्रतिशत प्लैटिनम के साथ 10 प्रतिशत रोडियम की मिश्रधातु का बना होता है। तारों का व्यास 0.35 और 0.65 मिमी0 के भीतर होता है तथा एक जोड़ 0° सें° पर रखा जाता है। अतंर्वेशन सूत्र यह है:
E = a + b t + Ct2
(E) तापांतर युग्म में विकसित विद्युतद्वाहक बल (E.M.F.)) और (t) सें° पैमाने में ताप है। स्थिरांक (a) (b) और (c) एंटिमनी, रजत और स्वर्ण बिंदुओं पर वि0 वा0 ब0 का मान ज्ञात करके निकाले जाते हैं।
(4) 1063° से ऊपर के ताप विकरण तापमापियों द्वारा मापे जाते हैं।
विद्युतप्रतिरोधी तापमापी
जिस प्रकार तापवृद्धि से पदार्थों की लंबाई बढ़ती है उसी प्रकार धातु के तारों के विद्युत्प्रतिरोध (resistance) में भी ताप द्वारा वृद्धि होती है। तापीय प्रसरण की तरह इस वद्धि का भी तापमापन में उपयोग हो सकता है। इस कार्य के लिये अनेक धातुओं के तारों का उपयोग होता है। फिर भी प्लैटिनम तार के बने तापमापी का महत्व इसलिये अधिक होता है क्योंकि वह अंतरराष्ट्रीय पैमाने के अंतर्वेशन के लिये प्रयुक्त होता है। तार शुद्ध घातु का और विकृतिमुक्त (unstrained) होना आवश्यक है। तार को बल्ब में पतले अभ्रक, या स्फटिक के ढाँचे पर लपेट कर रखते हैं और उसका विद्युतप्रतिरोध मापकर आवश्यकतानुसार उचित समीकरण (जैसे : Rt = R0 (1+ At+ Bt2) द्वारा ताप की गणना कर लेते हैं। प्रतिरोधमापन के लिये कई प्रकार के विद्युत्सेतुओं (bridges) का उपयोग किया जाता है। इनमें कैलेंडर-ग्रिफिथ का सेतु पुराना और सर्वविदित है। यह व्हीट्स्टोन सेतु के सिद्धांतपर आधारित है।
प्रतिरोधमापन के प्लैटिनम तार को जिन वाहक तारों से संयुक्त किया जाता है वे भी ऊष्मा से गर्म हो जाते हैं, जिससे उनके प्रतिरोध में भी परिवर्तन हो जाता है। यह परिवर्तन भी सेतु द्वारामापित होकर ताप की गणना में अशुद्धि का कारण बन जाता है। कैलेंडर ग्रिफिथ सेतु से इस त्रुटि को दूर करने के लिये ठीक इसी प्रकार के वाहक तार सेतु की संयुग्मी (conjugate) भुजा में भी डाल दिए जाते हैं। दोनों जोड़े तापमापी में पास पास रहते हैं और इनपर ऊष्मा का एक सा प्रभाव पड़ता है। इस कारण सेतु के संतुलन और मापित प्रतिरोध पर इनका कोई असर नहीं होता।
इस त्रुटि को दूर करने का अन्य उपाय यह है कि प्लैटिनम के तार का प्रतिरोध न निकाल कर उसके सिरों के बीच विभवांतर (potential difference) नापते हैं। तार के अंदर निश्चित मात्रा में विदयुद्धारा का प्रवाह किया जाता है। इसके दो सिरों को एक विभवमापी (potentiometer) से जोड़कर विभवातंर माप लेते हैं। प्रतिरोध के समानुपाती होने के कारण विभवांतर से ओम (Ohm) के नियमानुसार प्रतिरोध की गणना कर ली जाती है। इनमें वाहक तारों के प्रतिरोध का प्रभाव पूर्णतया लुप्त हो जाता है।
तापविद्युत् तापमापी
यदि दो भिन्न धातुओं के तार एक परिपथ में संयुक्त हों और उनके संगमबिंदुओं (junctions) को भिन्न ताप (T और T0) पर रखा जाय तो परिपथ में विद्युत धारा का प्रवाह हाने लगता है। यह धारा परिपथ में सुग्राही धारामापी द्वारा देखी जा सकती है। धारा के उत्पादक बल, अर्थात् विद्युद्वाहक बल (emf) का मान क और ख के तापांतर पर निर्भर करता है। अत: इसको नापकर तापांतर ज्ञात कर सकते हैं। ऐसे तार के जोड़ों को तापांतर युग्म (thermocouple) कहते हैं।
अंतराष्ट्रीय पैमाने में प्रयुक्त तापांतर युग्मों की धातुओं का वर्णन ऊपर किया गया है, किंतु प्रयोगशाला में सुग्राहिता (sensitivity) और प्रयोग की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर विभिन्न धातुएँ काम में लाई जाती हैं। तापांतर युग्म में वि0 वा0 ब0 तापांतर पर निर्भर होता है, इसलिये निम्न तापवाले संगम का ताप स्थिर रखा जाता है।
क और ख सिरों को विभवमापी अथवा मिलिवोल्टमापी से संयुक्त करके EMF माप लिया जाता है। मिलिवोल्टमापी में यह सीधा मापित होता है, परंतु यह उतना सुग्राही नहीं है जितना विभवमापी।
विकिरण तापमामी
जब किसी ठोस वस्तु को गरम किया जाता है तो उससे उर्जा का विद्युच्चुंबकीय (electromagnetic) तरंगों के रूप में विकिरण (radiation) होता है। कम तापवृद्धि होने पर तरंगों का तरंगदैर्घ्य (wave length) कम होता है और उनसे ऊष्मा का अनुभव होता हैं। अधिक तापवृद्धि होने पर छोटे तरंगदैर्ध्यवाली तरंगों का आधिक्य हो जाता है, जिनसे प्रकाश की प्रतीति होती है। विकीर्ण ऊर्जा की मात्रा और उसके गुण गर्म वस्तु की अवस्था पर भी निर्भर करते हैं। पूर्णतया काली वस्तु में यह गुण होता है कि वह अपने ऊपर पड़नेवाली समस्त विकीर्ण ऊर्जा का शोषण कर लेती है और स्वत: अधिकतम ऊर्जा का विकिरण करती है। ऐसी वस्तु को कृष्ण वस्तु अथवा कृष्णका भी कहते हैं। यदि चारों ओर से बंद खोखले पिंड की दीवारों को समताप पर रखा जाए तो उसके भीतर उत्पन्न विकीर्ण ऊर्जा गुण और मात्रा में पूर्णतया कृष्णिका विकिरण के समान होती है। अत: प्रयोगशाला में कृष्णिका के लिये ऐसे ही खोखले बर्तन का उपयोग करते हैं। यह अवश्य करते हैं कि उसमें एक छोटा छिद्र बना देते हैं, जिससे भीतर से ऊर्जा बाहर आ सके और उसके गुणों का अध्ययन संभव हो। उच्चतम तापमान के लिये कृष्णिका का उपयोग करते हैं। इसपर आधारित तापमापी दो प्रकार के होते हैं। एक में पूर्ण विकिरण की मात्रा का पापन किया जाता है। इसको पूर्ण विकिरण उत्तापमापी (Total Radiation pyrometer) कहते हैं। दूसरें प्रकार में विकिरण के गुणों का अध्ययन करते हैं। इनको प्रकाशीय उत्तापमापी (Optical Pyrometer) कहते हैं। इन उत्तापमापियों में यह गुण होता है कि इनमें तापमापी को गर्म पदार्थ से संलग्न रखने की आवश्यकता नहीं होती और इनसे ऊँचा ताप मापित हो सकता है। पर इनमें दोष यह है कि सिद्धांतत: इनसे केवल कृष्णिका का तापमापन संभव है। अन्य वस्तुओं का ताप वास्तविक ताप से कम मिलेगा, जिसके लिये संशोधन की आवश्यकता होती है।
पूर्ण विकिरण उत्तापमापी
यह स्टीफन के नियम पर आधारित है। इस नियम के अनुसार किसी कृष्णिका द्वारा विकीर्ण ऊर्जा (E), परम ताप (T) के चौथे घात की समानुपाती होती है, अर्थात्
E = s T 4
(s) एक स्थिरांक है। तापमापन के लिये उच्चतापीय वस्तु का विकिरण किसी लेंस अथवा दर्पण से तापांतर युग्म के एक सिरे पर फोकस कर देते है उससे ऊर्जा ऊज्ञात हो जाती है। अगर स्थिरांक मालूम हो तो उपरोक्त समीकरण द्वारा ताप की गणना हो सकती है। वास्तव में अनेक त्रुटियों के कारण ताप का घात 4 से थोड़ा भिन्न होता है। इसलिए व्यवहार में नीचे दिए गए समीकरण का प्रयोग करते हैं:
E = a (Tb - Tb0)
इसमें (a) और (b) स्थिरांक हैं। b स्टीफन के नियमानुसार 4 होना चाहिए, किंतु यहाँ इसको अज्ञात मान लेते हैं। (T) उच्चतापीय कृष्णिका का ताप और (T0) तापांतर युग्म को ताप है। उत्तापमापक को निश्चित तापों की कृष्णिकाओं के समक्ष रखकर a और b का मान निकाल लिया जाता है। यंत्र में विकिरण के फोकसीकरण का ऐसा प्रबंध रहता है कि उससे मापित ताप उच्चतापीय वस्तु की दूरी पर निर्भर नहीं करता। यदि वस्तु पूर्णतया कृष्ण न हो तो इस अशुद्धि के लिये संशोधन कर लिया जाता है।
प्रकाशीय उत्तापमापी
इनमें कृष्णिका से प्राप्त विकिरण के वर्णक्रम (spectrum) का सूक्ष्म अंश, जिसका तरंगदैर्घ्य लगभग एक होता है, छाँट लिया जाता है और इसकी तीव्रता (intensity) की तुलना एक मानक लैंप की विकिरण तीव्रता से की जाती है। यदि (l) तरंगदैर्घ्य के लिये (T1) परमताप पर कृष्णिका की विकिरण तीव्रता (T1) पर उसकी तीव्रता (E2) हो, तो प्लांक के नियमानुसार
log (E1 / E2) = (C2 / l) (1/ T2 - 1 / T1)
(C2) एक स्थिरांक होता है जिसका मान प्लांक सिद्धांत द्वारा निश्चित है। यदि E1, E2 और T1 ज्ञात हों, तो T2 ज्ञात हो जाता है।
अदृश्य तंतु अत्तापमापियों (Disappearing Filament Pyrometer) में मानक बत्ती की विकिरणतीव्रता में इस प्रकार परिवर्तन करते हैं कि उसकी तीव्रता मापी जानेवाली विकीर्ण ऊर्जा की तीव्रता के बराबर हो जाए। उस समय बत्ती का तंतु अदृश्य हो जाता है।
एक अन्य प्रकार के प्रकाशीय उत्तापमापियों में मानक विकिरण की तीव्रता स्थायी रखी जाती है और अज्ञात ताप के पिंड के विकिरण के सहित उत्तापमापी में प्रवेश करती हैं। दानों को लंबवत् तलों में रेखाध्रुवित (plane polarised) कर दिया जाता है। ऐसा प्रबंध किया जाता है कि प्रत्येक विकिरण का प्रतिबिम्ब अर्धगोलीय तथा एक दूसरे से सटा हुआ बने। इनको एक निकल (nicol) प्रिज्म़ द्वारा देखा जाता है, जिसको इतना घुमाते है कि दोनों प्रतिबिंबों की प्रकाशतीव्रता एक सी पड़े। निकल के घूर्णनकोण से E1/E2 ज्ञात करके उपरोक्त सूत्र से ताप ज्ञात कर लेते हैं।
अतिनिम्न ताप का मापन
अंतर्राष्ट्रीय पैमाने के संबंध में 'निम्न ताप' का 1900 सें0 तक मापन वर्णित है। इससे कम ताप के लिए वाष्पदाबीय तापमापियों (vapour pressure thermometers) का प्रयोग होता है। द्रव की वाष्पदाब उसके ताप पर निर्भर करती है। अत: गैसों को द्रव रूप में परिणत करके उनको वाष्पदाबमापियों में भर लेते हैं। दाब की मात्रा से तुरंत ताप ज्ञात हो जाता हे। इसके लिये आक्सीजन, नाइट्रोजन तथा हीलियम द्रव रूप में प्रयुक्त होते हैं। हीलियम वाष्पदाबीय तापमापियों से लगभग 10 तक ताप मापित हो सकता है। इससे निम्न ताप के लिये चुंबकीय तापमापियों का प्रयोग होता है। इसमें एक समचुंबकीय लवण (paramagnetic salt) नापी जाती है और क्यूरी के नियम के अनुसार गणना करके ताप निकाल लेते हैं। साधारणत: इस ताप में त्रुटियाँ होती हैं, जिनका संशोधन करके परमताप निकाला जाता है।
पारे का तापमापी
पारे का तापमापी सर्वविदित है। अपने अनेक गुणों के कारण यह सर्वसामान्य रूप से प्रयोग में लाया जाता है, किंतु इसकी यथार्थता (accuracy) सीमित होती है। जहाँ विशेष यथार्थता की आवश्यकता होती है वहाँ इसके वाचन में अनेक त्रुटियों के लिये संशोधन करना पड़ता है। इनमें सबसे मुख्य त्रुटि यह होती है कि शून्य चिन्ह बदलता रहता है। यह दो कारणो से होता है। तापमापी जब बनाया जाता है उसके बहुत समय पश्चात् तक उसका शीशा सिकुड़ता रहता है, जिससे शून्य चिन्ह बदलता रहता है। दूसरे, जब भी किसी गरम वस्तु का ताप नापते है, तब शीशे को अपनी सामान्य अवस्था में आने में बहुत समय लगता हैं।
प्राथमिक और द्वितीयक तापमापी
अन्तर्निहित थर्मोडाइनेमिक नियमों और राशियों के भौतिक आधार की जानकारी के स्तर के अनुसार तापमापी या थर्मामीटर को दो अलग समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है। प्राथमिक तापमापी के लिए, पदार्थ की मापित विशेषता इतनी भली प्रकार ज्ञात होती है कि तापमान को बिना किसी अज्ञात परिमाण के परिकलित किया जा सकता है। इसके उदाहरण वे तापमापी हैं जो एक गैस की अवस्था के समीकरण पर, एक गैस में ध्वनि के वेग पर, थर्मल शोर (जॉनसन-न्यिकिस्ट शोर को देखें) वोल्टेज या एक विद्युत प्रतिरोधक के प्रवाह (धारा) पर और एक चुंबकीय क्षेत्र में कुछ रेडियोधर्मी नाभिक के गामा किरण उत्सर्जन की कोणीय असमदिग्वर्ती होने की दशा पर आधारित होते हैं। प्राथमिक तापमापी अपेक्षाकृत जटिल होते हैं।
तापमान
विकास
मापांकन (कैलीब्रेशन)
यथार्थता, विशुद्धता और पुनरुत्पादकता
प्रयोग डाक्टरी थर्मामीटर से९६°©से११०°©की ताप मापी जाती है।
२- पारे का हिमान्क -३९°©होता है।तथा इससे नीचे का ताप मापने के लिए एल्कोहल युक्त थर्मामीटर का प्रयोग करते है।एल्कोहल का हिमान्क -११५°©होता है।
३-पायरोमीटर से सूर्य का ताप मापा जाता है।
तापमापी के अन्य प्रकार
वायुतापमापी
इन्हें भी देखें
तापयुग्म (थर्मोकपल)
ऊष्मामिति
बाहरी कड़ियाँ
History of Temperature and Thermometry
The Chemical Educator, Vol. 5, No. 2 (2000) The Thermometer—From The Feeling To The Instrument
सन्दर्भ
मापन
प्रयोगशाला सामग्री
तापमान | 3,262 |
1176080 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B2%20%E0%A4%AB%E0%A4%A4%E0%A4%B9%20%E0%A4%85%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8 | अब्देल फतह अब्देलरहमान बुरहान | लेफ्टिनेंट जनरल अब्देल फतह अब्देल्रहमान बुरहान ( अरबी : عبد الفتاح عبد الرحمن البرهان ; जन्म 1960) सूडानी राजनीतिज्ञ और सूडानी सेना के जनरल हैं, जो वर्तमान में सूडान की संप्रभुता परिषद के अध्यक्ष के रूप में सेवारत हैं , जो देश का सामूहिक संक्रमणकालीन प्रमुख है। अगस्त 2019 में इस भूमिका संभालने से पहले, वह था वास्तविक सूडान के राज्य के सिर के अध्यक्ष के रूप संक्रमणकालीन सैन्य परिषद के बाद पूर्व अध्यक्ष अहमद अवाद इब्न Auf इस्तीफा दे दिया और अप्रैल 2019 में नियंत्रण हस्तांतरित
1960 में जन्मे लोग | 91 |
1344518 | https://hi.wikipedia.org/wiki/2022%20%E0%A4%B9%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE%20%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AB%E0%A5%8B%E0%A4%9F%20%E0%A4%94%E0%A4%B0%20%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80 | 2022 हंगा टोंगा विस्फोट और सुनामी | हंगा टोंगा-हंगा हापाई का एक बहुत बड़ा विस्फोट, प्रशांत महासागर में टोंगा का एक ज्वालामुखी द्वीप। यह 14 जनवरी 2022 को शुरू हुआ। हुंगा टोंगा देश के मुख्य द्वीप टोंगटापु के उत्तर में है।
विस्फोट के कारण सुनामी टोंगा में, फिजी, अमेरिकी समोआ और प्रशांत महासागर के कुछ हिस्सों में हुआ। फिजी, समोआ, वानुअतु, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, जापान, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका में चेतावनियां जारी की गईं। , कनाडा, मेक्सिको, चिली और इक्वाडोर।
न्यूजीलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका, चिली और पेरू में विनाशकारी सुनामी लहरों की सूचना मिली थी। यह 21वीं सदी का अब तक का सबसे बड़ा ज्वालामुखी विस्फोट है।
संदर्भ
जनवरी 2022 की घटनाएं | 104 |
1172412 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BE | सोडा | सोडा मालपुरा तहसील, टोंक जिले, राजस्थान, भारत का एक छोटा सा गाँव है। सोडा 26 ° 24′12 ° N 75 ° 30″34। E पर स्थित है।
सोडा गांव भारत में पहली इंटरनेट पंचायत होने के लिए प्रसिद्ध है। छवि राजावत सोडा की सबसे कम उम्र की महिला सरपंच हैं।
सोडा गांव एक बहुत ही अच्छी पंचायत है इसमें गोपालपुरा, श्री नगर, गणेशपुरा बनजारण, रामजीपूरा, आदि गावं आते है यहां की जनसंख्या ज्यादातर खेती पर निर्भर रहती है। यहा गोरमेंट हॉस्पिटल स्कूल और बहुत सी सुविधाएं उपलब्ध है।यहां पर शनि महाराज का प्राचीन मंदिर है जिसका हर 6माह मै विशाल मेला भी भरता है और यहां बाबा रामदेव जी महाराज, सीताराम जी, बालाजी, शंकर भगवान का मंदिर भी है इस गांव के प्रवेश करते ही एक बहुत ही बड़ा तालाब है जो पानी से लबालब भरा हुआ है जिसका दृश्य बहुत ही मधुर व शोभनिये है।
सोडा ग्राम की की छवि को मनोरम रूप देने का श्रेय छवि राजावत को जाता है इनके द्वारा गांव मै हर घर शौचालय का निर्माण करवाना, पक्की रोड़ के साथ नालिया बनवाना, हर घर नल कनेक्शन करवाना, सोडा ग्राम को एक नई दिशा व दशा देना आदि शामिल है।
सोडा ग्राम मै SBI बैंक व ATM के साथ साथ सहकारी बैंक भी है यहां के ग्रामवासियो को बैंक सुविधाओं के लिए कही जाना नहीं पड़ता।
संदर्भ | 221 |
590428 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%87%20%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%81%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B0 | चुन्ने मियाँ का मन्दिर | चुन्ने मियाँ का मन्दिर बरेली शहर में एक मुस्लिम व्यवसायी फजलुर्रहमान खां का बनबाया हुआ हिन्दू मन्दिर है जिसे चुन्ने मियाँ के नाम से ठीक उसी प्रकार जाना जाता है जैसे नई दिल्ली का बिरला मन्दिर। यह स्वतन्त्र भारत में हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम उदाहरण है।
बरेली शहर में बड़ा बाजार के पास कोहाड़ापीर क्षेत्र में स्थित इस मन्दिर में लक्ष्मीनारायण की भव्य मूर्तियाँ स्थापित की गयीं हैं।
16 मई 1960 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने इसका विधिवत उद्घाटन किया था।
इतिहास
इस मन्दिर के बारे में जो जानकारी मिलती है उसके अनुसार भारत विभाजन के पश्चात बरेली आ बसे कुछ हिन्दुओं ने चुन्ने मियाँ के नाम से मशहूर एक मुस्लिम की जमीन पर पूजा-पाठ के लिये एक छोटा-सा मन्दिर बना लिया। पास में ही बुधवारी मस्ज़िद भी थी जिसमें मुसलमान नमाज पढ़ा करते थे। चुन्ना मियाँ बहुत पैसे वाले थे उनके पास शेर छाप बीड़ी की एजेंसी हुआ करती थी। उन्होंने जमीन पर कब्ज़ा करने वाले हिन्दू शरणार्थियों पर कोर्ट में केस दायर कर दिया।
मुकदमा चल ही रहा था तभी हरिद्वार से एक संन्यासी स्वामी हरमिलापी ने आकर फजलुर्रहमान खां साहब को समझाया कि मुस्लिमों के पास तो मस्ज़िद है परन्तु इन बेचारे हिन्दुओं के पास क्या है। आप तो सेठ चुन्ना मियाँ के नाम से मशहूर हो ये छोटा सा जमीन का टुकड़ा अपने इन हिन्दू भाइयों को मन्दिर बनाने के लिये दान नहीं दे सकते? कहते हैं कि चुन्ना मियाँ स्वामीजी की बात से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने न सिर्फ़ मुकदमा वापस लिया बल्कि लक्ष्मीनारायण भगवान का भव्य मन्दिर भी बनवा दिया। पूरे बरेली शहर में आज भी यह चुन्ने मियाँ के मन्दिर के नाम से जाना जाता है।
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
बिड़ला मन्दिर
बाहरी कड़ियाँ
चुन्ने मियाँ का लक्ष्मीनारायण मन्दिर, बरेली
Chunne Miyan's Laksmi Narayan Temple of Bareilly in Uttar Pradesh
उत्तर प्रदेश में हिन्दू मंदिर | 308 |
511352 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%A8%20%E0%A4%A8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0 | कुंचन नम्बियार | कुंचन नंबियार (लगभग १७०५- १७७० ई.) मलयालम के आरम्भिक कवि, व्यंगकार थे।
परिचय
इनका जन्म मध्य केरल के कोच्चिस्थान में हुआ था। अंपलप्पुष के देवनारायण नामक शासक के संरक्षण में वहीं बस गए और बाद में त्रावणकोर के शासक मार्तण्ड वर्मा के दरबार में प्रविष्ट हुए। अपने यौवनकाल के प्रारंभिक दिनों में कुंचन नंबियार ने भिन्न शैलियों में काव्यरचना की। उनकी प्रारंभिक कविताओं में भगवत्द्दूत, भागवतम्, नलचरितम् और चाणक्यसूत्रम् के नाम गिनाए जा सकते हैं। वह नवीन एवं अद्भत मलयालम काव्यशैली 'तुक्कलप्पाट्ट' के प्रवर्त्तक हैं। तुक्कल द्रुत गति से प्रचालित करनेवाला नृत्य है जिसमें नर्तक स्वयं पद्यबद्ध कहानियों का गायन करत है। नंबियार ने लगभग साठ तुक्कल कविताएँ लिखी हैं जिनमें कल्याणसौंगधिकम्, कार्त्तवीरार्जुनविजयम्, किरातम् सभाप्रवेशम्, त्रिपुरदहनम्, हरिणीस्वयम्वरम्, रूग्मिणीस्वयम्वरम्, प्रदोषमाहात्म्यम्, स्यमन्तकम् एवं घोषयात्रा सम्मिलित हैं। नंबियार ने अपनी तुक्कल कविताओं में नम्र काव्य-शैली का विकास किया है जिसने समाज के सभी वर्गों को आकृष्ट किया है और जिसके द्वारा उन्होंने समाज की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने का प्रयत्न किया है। यद्यपि उन्होंने इतिहास एवं पुराण से ही अपनी कविताओं के लिए कहानियों का चुनाव किया है तथापि समकालीन सामाजिक जीवन के प्रसग में ही उन्हें चित्रित किया है। हास्य एवं व्यंग के भी वे महान कवि माने जा सकते हैं। उन्होंने मलयालम में अहंकारी सामंतों, भ्रष्ट कर्मचारियों, लोभी और स्त्रीपरायण ब्राह्मणों ओर तुच्छ नायरों इत्यादि समस्त श्रेणी के लोगों पर व्यंग किया है। उनकी अनेक पदोक्तियाँ सर्वसाधारण में यथेष्ट प्रचलित हैं और उन्होंने लोकोक्तियों का स्थान ग्रहण कर लिया है।
मलयालम कवि | 241 |
1169539 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A5%80%20%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE | भारत में पारसी धर्म | पारसी धर्म (जरथुस्त्र धर्म) विश्व का अत्यन्त प्राचीन धर्म है। इस धर्म की स्थापना सन्त ज़रथुष्ट्र ने की थी। इस्लाम के आने के पूर्व प्राचीन ईरान में ज़रथुष्ट्र धर्म का ही प्रचलन था। सातवीं शताब्दी में अरबों ने ईरान को पराजित कर वहाँ के ज़रथुष्ट्र धर्मावलम्बियों को प्रताड़ित करके जबरन इस्लाम में दीक्षित कर लिया था। ऐसी मान्यता है कि कुछ ईरानियों ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया और वे एक नाव पर सवार होकर भारत भाग आये और यहाँ गुजरात तट पर नवसारी में आकर बस गये। वर्तमान समय में भारत में उनकी संख्या लगभग एक लाख है, जिसका 70% मुम्बई में रहते हैं।
ईरान और दूसरे देशों में जब पारसी लोग प्रताड़ित किए जा रहे थे, भारत में सबके लिए सद्भाव का माहौल था। यही कारण है कि आज विश्व में पारसियों की सबसे अधिक संख्या भारत में रहती है। इतना ही नहीं, पारसियों ने भी खुलकर भारत की सेवा की और भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन, अर्थव्यवस्था, मनोरंजन, सशस्त्र सेनाओं तथा अन्यान्य क्षेत्रों में सर्वत्र अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारत में ये लोग कब आये, इसके आधार पर इन्हें 'पारसी' या 'इरानी' कहते हैं।
कहा जाता है किमुसलमानों के अत्याचार से त्रस्त होकर पारसियों का पहला समूह लगभग ब
766 ईसवी में दीव (दमण और दीव) पहुंचा। दीव से वे गुजरात में बस गए। गुजरात से कुछ लोग मुंबई में बस गए। धार्मिक व सांस्कृतिक दृष्टि से पारसी धर्म व समाज भारतीयों के निकट है। पारसी 9वीं-10वीं सदी में भारत आए, ऐसे ऐतिहासिक प्रमाण हैं। भारत में प्रथम पारसी बस्ती का प्रमाण संजाण (सूरत के निकट) का अग्नि स्तंभ है-जो अग्निपूजक पारसीधर्मियों ने बनाया।अब पूरी दुनिया में पारसियों की कुल आबादी संभवतः 1,00,000 से अधिक नहीं है। ईरान में कुछ हजार पारसियों को छोड़कर लगभग सभी पारसी अब भारत में ही रहते हैं और उनमें से भी अधिकांश अब मुंबई में हैं।
पहले पारसी लोग कृषि में व बाद में व्यापार व उद्योग में लगे। भारतीय जहाज निर्माण को इन्होंने पुनर्जीवित कर योरपियों से भारत को सौंपा। पारसियों द्वारा निर्मित जहाज ब्रिटिश नौसेना खरीदती थी (तब तक भाप के इंजन न थे)। फ्रामजी माणेकजी, माणेकजी बम्मनजी आदि ये पारसी नाम इस संबंध में प्रसिद्ध हैं। अंगरेज शासन के साथ इन्होंने संबंध सामान्य रखे परंतु अपनी भारतीय मान्यताओं व स्वाभिमान को अक्षत रखकर। उन्होंने भारत को अपना देश मानकर भारतीय स्वतंत्रता का समर्थन किया।
इन्हें भी देखें
पारसी धर्म
पारसी
फ़ारस
सन्दर्भ
भारत के धर्म | 395 |
1422099 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A5%81%20%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A5%82 | विष्णु मांचू | Articles with hCards
मांचू विष्णु वर्धन बाबू (जन्म 23 नवंबर 1982) एक भारतीय अभिनेता और निर्माता हैं जो तेलुगु सिनेमा और टेलीविजन में अपने काम के लिए जाने जाते हैं। मांचू का 1985 की फिल्म रागिले गुंडेलु के साथ एक बाल कलाकार के रूप में एक संक्षिप्त कार्यकाल था। वर्षों बाद, उन्होंने 2003 की तेलुगु एक्शन फिल्म <i id="mwFQ">विष्णु</i> में अभिनय किया, जिसके लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ पुरुष पदार्पण फिल्मफेयर जीता।
वह फिल्म प्रोडक्शन हाउस 24 फ्रेम्स फैक्ट्री के सह-मालिक हैं और श्री विद्यानिकेतन एजुकेशनल ट्रस्ट के माध्यम से एक शिक्षाविद् हैं, जिसकी स्थापना उनके पिता और अनुभवी तेलुगु अभिनेता मोहन बाबू ने की थी। वह न्यूयॉर्क अकादमी के संस्थापक और अध्यक्ष हैं, जो हैदराबाद में एक स्कूल है, जिसके लिए उनकी पत्नी विरानिका निदेशक हैं और उनके पिता मोहन बाबू अध्यक्ष हैं। वह स्प्रिंग बोर्ड अकादमी और स्प्रिंग बोर्ड इंटरनेशनल प्रीस्कूल के अध्यक्ष भी हैं, जिसकी 75 से अधिक शाखाएँ हैं जो आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में फैली हुई हैं।
2007 में, उन्होंने कॉमेडी फिल्म ढी में अभिनय किया, जो हिट हुई और मांचू ने तेलुगु सिनेमा में अपना करियर स्थापित किया। मांचू सेलिब्रिटी क्रिकेट लीग तेलुगु वारियर्स के प्रायोजकों में से एक है। विष्णु को हाल ही में मूवी आर्टिस्ट एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया था।
प्रारंभिक जीवन
मांचू विष्णु वर्धन बाबू का जन्म मद्रास, तमिलनाडु, भारत (वर्तमान चेन्नई ) में अभिनेता मोहन बाबू और मां, दिवंगत विद्या देवी के घर हुआ था। वह अपने भाई मनोज और बहन लक्ष्मी के साथ बड़ा हुआ।
पद्मशेषद्री बाला भवन स्कूल से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, मांचू ने कंप्यूटर विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी में पढ़ाई करते हुए श्री विद्यानिकेतन इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री ली। उस दौरान उन्होंने भास्कर जेएनटीयू क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व किया और यूनिवर्सिटी बास्केटबॉल टीम की कप्तानी भी की।
आजीविका
1985; 2003-2006: प्रारंभिक कार्य
मांचू ने अपने पिता मोहन बाबू की 1985 की फिल्म रागिले गुंडेलु में एक बाल कलाकार के रूप में अभिनय की शुरुआत की।
उन्होंने शाजी कैलास द्वारा निर्देशित फिल्म विष्णु (2003) में अपनी पहली मुख्य भूमिका निभाई, जिसके लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ पुरुष पदार्पण फिल्मफेयर जीता। उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति की भूमिका निभाई जो कई बाधाओं के बावजूद अपने गुणों से अपने बचपन के प्यार को जीतना चाहता है। अगले वर्ष, उन्हें फिल्म सूर्यम (2004) में देखा गया, जिसमें उन्होंने एक ऐसे लड़के की भूमिका निभाई, जो अपनी मां की अंतिम इच्छा को पूरा करना चाहता है। मांचू ने एक रोमांटिक एक्शन ड्रामा पॉलिटिकल राउडी (2005) में एक नर्तकी के रूप में एक छोटी भूमिका निभाई।
वह अगली बार एक्शन-ड्रामा अस्त्रम (2006) में एक आईपीएस अधिकारी के रूप में दिखाई दिए, जिसे उग्रवादियों को खत्म करने के लिए नियुक्त किया गया है। इसके तुरंत बाद, मांचू को गेम (2006) में विजय राज के रूप में कास्ट किया गया, जो अपने सेलिब्रिटी पिता मोहन बाबू और गुजरे जमाने की नायिका शोभना के साथ स्क्रीन स्पेस साझा कर रहे थे।
वह अगली बार एक्शन-ड्रामा अस्त्रम (2006) में एक आईपीएस अधिकारी के रूप में दिखाई दिए, जिसे उग्रवादियों को खत्म करने के लिए नियुक्त किया गया है। इसके तुरंत बाद, मांचू को गेम (2006) में विजय राज के रूप में कास्ट किया गया, जो अपने सेलिब्रिटी पिता मोहन बाबू और गुजरे जमाने की नायिका शोभना के साथ स्क्रीन स्पेस साझा कर रहे थे।
2008-वर्तमान: करियर में उतार-चढ़ाव
इसके बाद वह 2008 की फिल्म कृष्णार्जुन, 2009 की फिल्म सलीम और 2011 की फिल्म वास्तु ना राजू में दिखाई दिए। 2012 में, कॉमेडी फिल्म ढेनिकाएना रेडी ने उन्हें महत्वपूर्ण सफलता दिलाई; फिल्म ने 200 की कमाई की बॉक्स ऑफिस पर मिलियन। इसके बाद वे वीरू पोटला द्वारा निर्देशित दोसुकेल्था में दिखाई दिए, उन्होंने लावण्या त्रिपाठी के साथ अभिनय किया, इस फिल्म ने 126.3 की कमाई की बॉक्स ऑफिस पर अपने पहले हफ्ते में मिलियन। इसके बाद वह राम गोपाल वर्मा द्वारा लिखित और निर्देशित समीक्षकों द्वारा प्रशंसित अपराध फिल्म राउडी में अपने पिता के साथ दिखाई दिए। फिल्म ने दुनिया भर में की कमाई की अपने रन के दूसरे सप्ताह के अंत में, और बॉक्स ऑफिस पर हिट घोषित की गई।
इसके बाद वह 2008 की फिल्म कृष्णार्जुन, 2009 की फिल्म सलीम और 2011 की फिल्म वास्तु ना राजू में दिखाई दिए। 2012 में, कॉमेडी फिल्म ढेनिकाएना रेडी ने उन्हें महत्वपूर्ण सफलता दिलाई; फिल्म ने 200 की कमाई की बॉक्स ऑफिस पर मिलियन। इसके बाद वे वीरू पोटला द्वारा निर्देशित दोसुकेल्था में दिखाई दिए, उन्होंने लावण्या त्रिपाठी के साथ अभिनय किया, इस फिल्म ने 126.3 की कमाई की बॉक्स ऑफिस पर अपने पहले हफ्ते में मिलियन। इसके बाद वह राम गोपाल वर्मा द्वारा लिखित और निर्देशित समीक्षकों द्वारा प्रशंसित अपराध फिल्म राउडी में अपने पिता के साथ दिखाई दिए। फिल्म ने दुनिया भर में की कमाई की अपने रन के दूसरे सप्ताह के अंत में, और बॉक्स ऑफिस पर हिट घोषित की गई।
मांचू ने <i id="mwmA">राउडी</i> (2014) में अपने पिता मोहन बाबू के साथ कृष्ण की भूमिका निभाई। एक अभिनेता के रूप में अपनी सीमा दिखाते हुए, मांचू ने बाद में राम गोपाल वर्मा द्वारा अभिनीत व्यावसायिक रूप से असफल लेकिन समीक्षकों द्वारा पसंद की गई फिल्म अनुक्षणम (2014) में डीसीपी गौतम को चित्रित किया। उन्होंने दसारी नारायण राव द्वारा निर्मित और निर्देशित 2014 एरा बस में एक नाटकीय अभिनेता के रूप में जारी रखा। इसके बाद वे देवा कट्टा द्वारा निर्देशित एक्शन थ्रिलर डायनामाइट में दिखाई दिए। हालाँकि उन्होंने रास्ते में एक दिलचस्प फिल्म बनाई, लेकिन उन्होंने इसके लिए बॉक्स ऑफिस पर भुगतान किया। मांचू ने रोमांटिक कॉमेडी एंटरटेनर ईदो राकम आदो राकम (2015) के साथ अपनी हास्य प्रतिभा को और साबित किया, जिसमें उन्होंने राज तरुण के साथ सह-अभिनय किया। उसी वर्ष, उन्होंने सारदा के लिए फिल्मांकन पूरा किया लेकिन फिल्म रिलीज़ नहीं हुई। 2017 में, उन्होंने लक्कुन्नोडु में अभिनय किया, जिसने बॉक्स ऑफिस पर खराब प्रदर्शन किया। 2017 के अंत तक, वह पहले ही 20 फिल्मों में दिखाई दे चुके थे।
2018 में उनकी फिल्म में क्राइम ड्रामा गायत्री शामिल है, जिसमें श्रिया सरन और उनके पिता मोहन बाबू ने अन्य महत्वपूर्ण किरदार निभाए हैं और कॉमेडी फिल्म अचारी अमेरिका यात्रा ; और राजनीतिक थ्रिलर वोटर 2019। उनकी अगली फिल्म, मोसागल्लू (2021) , अमेरिकी फिल्म निर्माता जेफरी जी चिन द्वारा निर्देशित एक क्रॉसओवर फिल्म है, जो दुनिया के सबसे बड़े आईटी घोटाले पर आधारित है, जिसे भारत और यूएसए में फिल्माया गया है। इसमें मांचू के अलावा काजल अग्रवाल, सुनील शेट्टी, नवदीप, नवीन चंद्रा और रूही सिंह हैं। यह मार्च 2021 में रिलीज़ हुई थी और बॉक्स ऑफिस पर एक सर्वकालिक महाकाव्य आपदा थी, जो अपने बजट का 1% भी वसूल नहीं कर पाई थी।
अक्टूबर 2021 में, उन्होंने प्रकाश राज के खिलाफ मूवी आर्टिस्ट एसोसिएशन (MAA) के अध्यक्ष के रूप में चुनाव लड़ा और जीता। विष्णु ने एवा एंटरटेनमेंट और 24 फ्रेम्स फैक्ट्री द्वारा निर्मित 'गिन्ना' नामक अपनी अगली परियोजना के बारे में घोषणा की, जिसे शुरू में अगस्त में रिलीज़ करने की योजना बनाई गई थी, लेकिन बाद में उत्पादन में देरी के कारण अक्टूबर 2022 में रिलीज़ की गई। 20-25 करोड़ के बजट में बनी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर केवल 2 करोड़ ही बटोर पाई और डिजास्टर साबित हुई।
व्यक्तिगत जीवन
2009 में, मांचू ने आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी की भतीजी विरानिका रेड्डी से शादी की। 2011 में उनकी जुड़वां बेटियां हुईं। जनवरी 2018 में उन्हें एक बेटा हुआ और अगस्त 2019 में उन्हें एक बेटी हुई।
हल्की-फुल्की कॉमेडी अचारी अमेरिका यात्रा (2018) को फिल्माते समय, मंचू को सेट पर लगभग घातक अनुभव हुआ। अभिनेता, जो मलेशिया में शूटिंग कर रहे थे, बाइक स्टंट दृश्य के दौरान अपने प्रतिद्वंद्वी को हेलमेट से मारने पर गंभीर रूप से घायल हो गए और अपने वाहन का संतुलन खो बैठे और उन्हें जोर से जमीन पर गिरना पड़ा।
फिल्मोग्राफी
निर्माता के रूप में
शिव शंकर (2003; प्रस्तुतकर्ता)
वर्तमान थीगा (2014)
सिंगम 123 (2015; लेखक भी)
मामा मांचू अल्लुडु कंचू (2015)
चदरंगम (2020; Zee5 वेब सीरीज)
भारत का बेटा (2022)
अन्य काम
टेलीविजन
मांचू ने ज़ी तेलुगु की श्रृंखला हैप्पी डेज़ की 100वीं कड़ी का निर्देशन करके टेलीविज़न में अपनी शुरुआत की। सीरीज के 700 एपिसोड में से इस एपिसोड ने सबसे ज्यादा टीआरपी रेटिंग हासिल की। हैप्पी डेज भी 24 फ्रेम्स फैक्ट्री द्वारा निर्मित है। उन्होंने लक्ष्मी टॉक शो या प्रेमथू मी लक्ष्मी का भी निर्देशन किया है।
निर्माता
2009 में, मांचू ने आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी की भतीजी विरानिका रेड्डी से शादी की। 2011 में उनकी जुड़वां बेटियां हुईं। जनवरी 2018 में उन्हें एक बेटा हुआ और अगस्त 2019 में उन्हें एक बेटी हुई।
शिक्षाविद्
मांचू स्प्रिंग बोर्ड इंटरनेशनल प्रीस्कूल के निदेशक हैं। जब वे अपने पिता द्वारा स्थापित श्री विद्यानिकेतन एजुकेशनल ट्रस्ट से जुड़े, तो यह पहले से ही एक अच्छी तरह से स्थापित शैक्षणिक संस्थान था। उन्होंने इस संस्था का कार्यभार संभाला और उन्हें छात्रों को मूल्य-आधारित शिक्षा प्रदान करने वाले मॉडल संस्थानों में बनाया। उन्होंने स्प्रिंग बोर्ड अकादमी में इसका विस्तार और विविधीकरण किया, और न्यूयॉर्क अकादमी में संस्थापक और अध्यक्ष बने।
मांचू अपने पिता द्वारा स्थापित श्री विद्यानिकेतन एजुकेशनल ट्रस्ट चलाते हैं। ट्रस्ट श्री विद्यानिकेतन इंटरनेशनल स्कूल, श्री विद्यानिकेतन डिग्री कॉलेज, श्री विद्यानिकेतन इंजीनियरिंग कॉलेज, श्री विद्यानिकेतन कॉलेज ऑफ फार्मेसी, श्री विद्यानिकेतन कॉलेज ऑफ नर्सिंग, श्री विद्यानिकेतन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट और श्री विद्यानिकेतन कॉलेज फॉर पोस्ट ग्रेजुएशन स्टडीज चलाता है।
आर्मी ग्रीन
मंचू ने पर्यावरण जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए आर्मी ग्रीन नामक एक सामाजिक इकाई शुरू की। इसने श्री विद्यानिकेतन संस्थानों के आसपास के क्षेत्रों में छोटी बस्तियों को अपनाया।
विष्णु मांचू आर्ट फाउंडेशन
मांचू ने विष्णु मांचू आर्ट फाउंडेशन (VMAF) तिरुपति में एक कला फाउंडेशन की स्थापना की। समकालीन और प्रतिभाशाली कलाकारों के लाभ और उपयोग के लिए स्थापित एक संस्था के रूप में जाना जाता है, फाउंडेशन किसी भी वित्तीय और व्यावसायिक बाधाओं से मुक्त एक बहुत जरूरी स्थान प्रदान करता है। VMAF का मुख्य उद्देश्य इच्छुक और प्रतिभाशाली कलाकारों को उनकी रचनात्मकता की पहुंच विकसित करने में सहायता प्रदान करना है। VMAF प्रत्येक वर्ष मेक आर्ट, शो आर्ट और बियॉन्ड आर्ट कार्यक्रमों की एक श्रृंखला आयोजित करता है।
एक कला शिक्षण संस्थान के रूप में, विष्णु मांचू आर्ट फाउंडेशन नियमित रूप से समकालीन कला और कलाकारों से संबंधित मुद्दों पर व्याख्यान और चर्चा आयोजित करता है। VMAF कला प्रेमियों और कलात्मक समुदाय के लिए कला समीक्षकों और प्रसिद्ध शिक्षाविदों के साथ उत्साही बातचीत में शामिल होने का एक स्थान है, जो फाउंडेशन में अपने काम का प्रदर्शन करते हैं। VMAF अपने पारंपरिक कार्यों और नए रचनात्मक विचारों और अभिव्यक्तियों के इंजेक्शन के लिए जाना जाता है।
संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
भारतीय टीवी निर्देशक
भारतीय फिल्म निर्माता
1982 में जन्मे लोग
जीवित लोग | 1,729 |
13221 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0 | महावीर | भगवान महावीर (Mahāvīra) जैन धर्म के चौंबीसवें (24वें) तीर्थंकर थे। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार वर्ष पहले (ईसा से 540 वर्ष पूर्व), वैशाली गणराज्य के कुण्डग्राम में अयोध्या इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय परिवार हुआ था। तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। 12 वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। 72 वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुणिक और चेटक भी शामिल थे। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है।
जैन ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे और ऋषभदेव पहले। हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है– अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) ,ब्रह्मचर्य। उन्होंने अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धान्त दिए। महावीर के सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसन्द हो। यही महावीर का 'जियो और जीने दो' का सिद्धान्त है।
जीवन
जन्म
भगवन महावीर का जन्म ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के कुण्डग्राम में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था। ग्रंथों के अनुसार उनके जन्म के बाद राज्य में उन्नति होने से उनका नाम वर्धमान रखा गया था। जैन ग्रंथ उत्तरपुराण में वर्धमान, वीर, अतिवीर, महावीर और सन्मति ऐसे पांच नामों का उल्लेख है। इन सब नामों के साथ कोई कथा जुडी है।
जैन ग्रंथों के अनुसार, २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त करने के 188 वर्ष बाद इनका जन्म हुआ था।
विवाह
दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर बाल ब्रह्मचारी थे। भगवान महावीर शादी नहीं करना चाहते थे क्योंकि ब्रह्मचर्य उनका प्रिय विषय था। भोगों में उनकी रूचि नहीं थी। परन्तु इनके माता-पिता शादी करवाना चाहते थे। दिगम्बर परम्परा के अनुसार उन्होंने इसके लिए मना कर दिया था। श्वेतांबर परम्परा के अनुसार इनका विवाह यशोदा नामक सुकन्या के साथ सम्पन्न हुआ था और कालांतर में प्रियदर्शिनी नाम की कन्या उत्पन्न हुई जिसका युवा होने पर राजकुमार जमाली के साथ विवाह हुआ।
तपस्या
भगवान महावीर का साधना काल १२ वर्ष का था। दीक्षा लेने के उपरान्त भगवान महावीर ने दिगम्बर साधु की कठिन चर्या को अंगीकार किया और निर्वस्त्र रहे। श्वेतांबर सम्प्रदाय जिसमें साधु श्वेत वस्त्र धारण करते है के अनुसार भी महावीर दीक्षा उपरान्त कुछ समय छोड़कर निर्वस्त्र रहे और उन्होंने केवल ज्ञान की प्राप्ति भी दिगम्बर अवस्था में ही की। अपने पूरे साधना काल के दौरान महावीर ने कठिन तपस्या की और मौन रहे। इन वर्षों में उन पर कई ऊपसर्ग भी हुए जिनका उल्लेख कई प्राचीन जैन ग्रंथों में मिलता है।
केवल ज्ञान और उपदेश
जैन ग्रन्थों के अनुसार केवल ज्ञान प्राप्ति के बाद, भगवान महावीर ने उपदेश दिया। उनके ११ गणधर (मुख्य शिष्य) थे जिनमें प्रथम इंद्रभूति थे।
जैन ग्रन्थ, उत्तरपुराण के अनुसार महावीर स्वामी ने समवसरण में जीव आदि सात तत्त्व, छह द्रव्य, संसार और मोक्ष के कारण तथा उनके फल का नय आदि उपायों से वर्णन किया था।
पाँच व्रत
सत्य ― सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।
अहिंसा – इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पाँच इंद्रीयों वाले जीव) है उनकी हिंसा मत कर, उनको उनके पथ पर जाने से न रोको। उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो। उनकी रक्षा करो। यही अहिंसा का संदेश भगवान महावीर अपने उपदेशों से हमें देते हैं।
अचौर्य - दुसरे के वस्तु बिना उसके दिए हुआ ग्रहण करना जैन ग्रंथों में चोरी कहा गया है।
अपरिग्रह – परिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। यही संदेश अपरिग्रह का माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाहते हैं।
ब्रह्मचर्य- महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। जो पुरुष स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं।
जैन मुनि, आर्यिका इन्हें पूर्ण रूप से पालन करते है, इसलिए उनके महाव्रत होते है और श्रावक, श्राविका इनका एक देश पालन करते है, इसलिए उनके अणुव्रत कहे जाते है।
दस धर्म
जैन ग्रंथों में दस धर्म का वर्णन है। पर्युषण पर्व, जिन्हें दस लक्षण भी कहते है के दौरान दस दिन इन दस धर्मों का चिंतन किया जाता है।
क्षमा
क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं- 'मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूँ। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है। मेरा किसी से वैर नहीं है। मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूँ। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा माँगता हूँ। सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूँ।'
वे यह भी कहते हैं 'मैंने अपने मन में जिन-जिन पाप की वृत्तियों का संकल्प किया हो, वचन से जो-जो पाप वृत्तियाँ प्रकट की हों और शरीर से जो-जो पापवृत्तियाँ की हों, मेरी वे सभी पापवृत्तियाँ विफल हों। मेरे वे सारे पाप मिथ्या हों।'
धर्म
धर्म सबसे उत्तम मंगल है। अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है। महावीरजी कहते हैं जो धर्मात्मा है, जिसके मन में सदा धर्म रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं।
भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था।
मोक्ष
तीर्थंकर महावीर का केवलीकाल ३० वर्ष का था। उनके के संघ में १४००० साधु, ३६००० साध्वी, १००००० श्रावक और ३००००० श्रविकाएँ थी। भगवान महावीर ने ईसापूर्व 527, 72 वर्ष की आयु में बिहार के पावापुरी (राजगीर) में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया। उनके साथ अन्य कोई मुनि मोक्ष को प्राप्त नहीं हुए | पावापुरी में एक जल मंदिर स्थित है जिसके बारे में कहा जाता है कि यही वह स्थान है जहाँ से महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
वर्तमान में
दूसरी सदी के प्रभावशाली दिगम्बर मुनि, आचार्य समन्तभद्र ने तीर्थंकर महावीर के तीर्थ को सर्वोदय की संज्ञा दी थी।
महावीर की अहिंसा केवल सीधे वध को ही हिंसा नहीं मानती है, अपितु मन में किसी के प्रति बुरा विचार भी हिंसा है। वर्तमान युग में प्रचलित नारा 'समाजवाद' तब तक सार्थक नहीं होगा जब तक आर्थिक विषमता रहेगी। एक ओर अथाह पैसा, दूसरी ओर अभाव। इस असमानता की खाई को केवल भगवान महावीर का 'अपरिग्रह' का सिद्धांत भर सकता है। अपरिग्रह का सिद्धांत कम साधनों में अधिक संतुष्टि पर बल देता है। यह आवश्यकता से ज्यादा रखने की सहमति नहीं देता है।
भगवान महावीर के अनुयायी उनके नाम का स्मरण श्रद्धा और भक्ति से लेते है, उनका यह मानना है कि महावीर ने इस जगत को न केवल मुक्ति का संदेश दिया, अपितु मुक्ति की सरल और सच्ची राह भी बताई। भगवान महावीर ने आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु अहिंसा धर्म का उपदेश दिया।
साहित्य
काव्यात्मक
आचार्य समन्तभद्र विरचित “स्वयंभूस्तोत्र” चौबीस तीर्थंकर भगवानों की स्तुति है। इसके आठ श्लोक भगवान महावीर को समर्पित है।
आचार्य समन्तभद्र विरचित युक्तानुशासन एक काव्य रचना है जिसके ६४ श्लोकों में तीर्थंकर महावीर की स्तुति की गयी है।
वर्धमान स्तोत्र- ६४ श्लोक में महावीर स्वामी की स्तुती की गयी है। इसकी रचना मुनि प्रणम्यसागर ने की है। मुनि प्रणम्यसागर ने वीरष्टकम भी लिखा है।
महाकवि पदम कृत महावीर रास - इसका रचना काल वि•स• की 18वीं सदी का मध्यकाल है। इसका प्रथम बार हिंदी अनुवाद और संपादन डॉ. विद्यावती जैन जी द्वारा किया गया था। यह 1994 में प्राच्य श्रमण भारती द्वारा प्रकाशित किया गया था।
पुरातत्व
भगवान महावीर की कई प्राचीन प्रतिमाओं के देश और विदेश के संग्रहालयों में दर्शन होते है। महाराष्ट्र के एल्लोरा गुफाओं में भगवान महावीर की प्रतिमा मौजूद है। कर्नाटक की बादामी गुफाओं में भी भगवान महावीर की प्रतिमा स्थित है।
इन्हें भी देखें
केवली
जय जिनेन्द्र
जैन धर्म में भगवान
नोट
सन्दर्भ
ग्रन्थ
बाहरी कड़ियाँ
जैन धर्म भगवान महावीर एवं जैन दर्शन- महावीर सरन जैन (2013) लोक भारती प्रकाशन इलाहाबाद ( प्रयागराज) ISBN : 978 - 81-8031-080 -9
धर्म
दर्शन
जैन धर्म
तीर्थंकर | 1,519 |
446828 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B2%20%E0%A4%A4%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%80 | फ्रीस्टाइल तैराकी | फ्रीस्टाइल तैराकी तैराकी की एक अनियमित शैली है जो अंतरराष्ट्रीय तैराकी महासंघ (फीना) के नियमों के अनुसार तैराकी प्रतियोगिताओं में इस्तेमाल होती है। फ्रंट क्राल स्ट्रोक लगभग सार्वभौमिक रूप से फ्रीस्टाइल तैराकी के दौरान प्रयोग किया जाता है, चूंकि यह शैली आम तौर पर सबसे तेज होती है। इसी वजह से फ्रीस्टाइल को फ्रंट क्राल का पर्याय भी माना जाता है।
प्रतियोगिताएं
फ्रीस्टाइल तैराकी में आठ सामान्य प्रतियोगिताएं होती हैं, जिनके लिए या तो लंबे जलमार्ग (50 मीटर पूल) या संक्षिप्त जलमार्ग (25 मीटर पूल) का प्रयोग होता है।
50 मी फ्रीस्टाइल
100 मी फ्रीस्टाइल
200 मी फ्रीस्टाइल
400 मी फ्रीस्टाइल (500 गज की दूरी संक्षिप्त जलमार्ग के लिए)
800 मी फ्रीस्टाइल (1000 गज की दूरी संक्षिप्त जलमार्ग के लिए)
1500 मी फ्रीस्टाइल (1650 गज की दूरी संक्षिप्त जलमार्ग के लिए)
4×50 मी फ्रीस्टाइल रिले
4×100 मी फ्रीस्टाइल रिले
4×200 मी फ्रीस्टाइल रिले
बाहरी कड़ियाँ
Swim.ee: तैराकी तकनीक और गति की विस्तृत चर्चा
तैराकी
he:שחייה תחרותית#חופשי | 156 |
10206 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%82%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80 | कूचिपूड़ी | कूचिपूड़ी (तेलुगू : కూచిపూడి) आंध्र प्रदेश, भारत की प्रसिद्ध नृत्य शैली है। यह पूरे दक्षिण भारत में प्रसिद्ध है। इस नृत्य का नाम कृष्णा जिले के दिवि तालुक में स्थित कुचिपुड़ी गाँव के ऊपर पड़ा, जहाँ के रहने वाले ब्राह्मण इस पारंपरिक नृत्य का अभ्यास करते थे। परम्परा के अनुसार कुचिपुडी़ नृत्य मूलत: केवल पुरुषों द्वारा किया जाता था और वह भी केवल ब्राह्मण समुदाय के पुरुषों द्वारा। ये ब्राह्मण परिवार कुचिपुडी़ के भागवतथालू कहलाते थे। कुचिपुडी़ के भागवतथालू ब्राह्मणों का पहला समूह १५५९ विक्रमाब्द के आसपास निर्मित किया गया था। उनके कार्यक्रम देवताओं को समर्पित किए जाते थे।
प्रचलित कथाओं के अनुसार कुचिपुड़ी नृत्य को पुनर्परिभाषित करने का कार्य सिद्धेन्द्र योगी नामक एक कृष्ण-भक्त संत ने किया था।
कूचिपूड़ी के पंद्रह ब्राह्मण परिवारों ने पांच शताब्दियों से अधिक समय तक परम्परा को आगे बढ़ाया है। प्रतिष्ठित गुरु जैसे वेदांतम लक्ष्मी नारायण, चिंता कृष्णा मूर्ति और तादेपल्ली पेराया ने महिलाओं को इसमें शामिल कर नृत्य को और समृद्ध बनाया है। डॉ॰ वेमापति चिन्ना सत्यम ने इसमें कई नृत्य नाटिकाओं को जोड़ा और कई एकल प्रदर्शनों की नृत्य संरचना तैयार की और इस प्रकार नृत्य रूप के क्षितिज को व्यापक बनाया। यह परम्परा तब से महान बनी हुई है जब पुरुष ही महिलाओं का अभिनय करते थे और अब महिलाएं पुरुषों का अभिनय करने लगी हैं।
प्रदर्शन एवं मंचन
नृत्य का प्रदर्शन एक विशेष परंपरागत विधि से होता है। मंच पर परंपरागत पूजन के पश्चात् प्रत्येक कलाकार मंच पर प्रवेश करता है और एक विशेष लयबद्ध रचना धारवु के द्वारा अपना पात्र-परिचय देता है। पात्रों के परिचय और नाटक के भाव तथा परिपेक्ष निर्धारित हो जाने के बाद मुख्य नाट्य आरम्भ होता है। नृत्य के साथ कर्नाटक संगीत में निबद्ध गीत मृदंगम्, वायलिन, बाँसुरी और तम्बूरा इत्यादि वाद्ययंत्रों के साथ नृत्य में सहयोगी भूमिका निभाता है और कथानक को भी आगे बढ़ाने में सहायक होता है। नर्तकों द्वारा पहने जाने वाले आभूषण परंपरागत होते हैं जिन्हें एक विशेष प्रकार की हलकी लकड़ी बूरुगु से निर्मित किये जाने की परंपरा लगभग सत्रहवीं सदी से चली आ रही है।
शैली
भरत मुनि, जिन्होंने नाट्य शास्त्र की रचना की, इस प्रकार के नृत्य के कई पहलुओं की व्याख्या प्रस्तुत करते हैं। बाद में कोई १३वीं सदी के अंतर्गत सिद्धेन्द्र योगी ने इसे एक अलग विशिष्ट शैली का रूप प्रदान किया। माना जाता है कि वे नाट्यशास्त्र में पारंगत थे और कुछ विशेष नाट्यशास्त्रीय तत्वों को चुन कर उन्हें इस नृत्य के रूप में समायोजित किया। उन्होंने पारिजातहरणम नामक नाट्यावली की रचना की।
कुचिपुड़ी नर्तक चपल और द्रुत गति से युक्त, एक विशेष वर्तुलता लिये क्रम में भंगिमाओं का अनुक्रम प्रस्तुत करते हैं और इस नृत्य में पद-संचालन में उड़ान की प्रचुर मात्रा होती है जिसके कारण इसके प्रदर्शन में एक विशिष्ट गरिमा और लयात्मकता का सन्निवेश होता है। कर्नाटक संगीत के साथ प्रस्तुत किया जाने वाला यह नृत्य कई दृष्टियों से भरतनाट्यम के साथ समानतायें रखता है। एकल प्रसूति में कुचिपुड़ी में जातिस्वरम् और तिल्लाना का सन्निवेश होता है जबकि इसके नृत्यम् प्रारूप में कई संगीतबद्ध रचनाओं द्वारा भक्त के भगवान में लीन हो जाने की आभीप्सा का प्रदर्शन होता है। इसके एक विशेष प्रारूप तरंगम् में नर्तकी थाली, जिसमें दो दीपक जल रहे होते हैं, के किनारों पर नृत्य करती है और साथ ही हाथों में एक जलपात्र किन्दी को भी संतुलित रखती है।
नृत्य की वर्तमान शैली कुछ मानक ग्रंथों पर आधारित है। इनमें सबसे प्रमुख है - नंदिकेश्वर रचित "अभिनय दर्पण" और "भरतार्णव"।
प्रमुख कलाकार
लक्ष्मी नारायण शास्त्री
स्वप्नसुंदरी
राजा और राधा रेड्डी
यामिनी कृष्णमूर्ति
यामिनी रेड्डी
कौशल्या रेड्डी
इन्हें भी देखें
विलासिनी नाट्यम्
आंध्र नाट्यम्
भरतनाट्यम्
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
विश्व का सबसे बड़ा कुचिपुड़ी नृत्य कीर्तिमान
कुचिपुड़ी नृत्य की पोशाक और आभूषण
एक मुसलमान का कुचिपुड़ी सीखना चुनौती बीबीसी पर हलीम खान के बारे में एक रपट
राजा और राधा रेड्डी समूह द्वारा प्रस्तुत नृत्य का वीडियो, यू ट्यूब पर
सुझावित ग्रन्थ और सामग्री
Kuchipudi Bhartam. Sri Satguru Publications/Indian Books Centre, Delhi, India, in Raga-Nrtya Series.
शास्त्रीय नृत्य
संस्कृति | 649 |
100730 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A8%20%E0%A4%9C%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%88%20%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A6%E0%A5%AF%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%A3 | २२ जुलाई २००९ का सूर्यग्रहण | २२ जुलाई २००९ का सूर्यग्रहण २१वीं सदी का सबसे लंबा पूर्ण सूर्यग्रहण था, जो कि कुछ स्थानों पर 6 मिनट 39 सेकंड तक रहा। इसके कारण चीन, नेपाल व भारत में पर्यटन-रुचि भी बढ़ी।
यह ग्रहण सौर-चक्र 136 का एक भाग है, जैसे कि कीर्तिमान-स्थापक 11 जुलाई 1991 का सूर्यग्रहण था। इस शृंखला में अगली घटना 2 अगस्त 2027 में होगी। इसकी अनोखी लंबी अवधि इसलिए हैं, कि चंद्रमा उपभू बिंदु पर है, जिससे चंद्रमा का आभासी व्यास सूर्य से 8% बड़ा है (परिमाण 1.080) तथा पृथ्वी अपसौरिका के निकट है जहाँ पर सूर्य थोड़ा सा छोटा दिखाई देता है।
यह इसी महीने के तीन ग्रहणों की शृंखला में दूसरी होगा, जिसमें अन्य हैं 7 जुलाई का चंद्रग्रहण तथा 6 अगस्त का चंद्रग्रहण।
दृश्यता
यह एक सँकरे गलियारे में दृश्य होगा, जो उत्तरी मालदीव, उत्तरी पाकिस्तान व उत्तरी भारत, पूर्वी नेपाल, उत्तरी बांग्लादेश, भूटान, म्याँमार का उत्तरी बिंदु, मध्य चीन तथा प्रशांत महासागर में उसके द्वीपों र्युक्यु द्वीपों, मार्शल द्वीपों तथा किरिबती सहित, से गुजरेगा।
पूर्णता कई बड़े शहरों में दृश्य होगी, जिनमें हैं: सूरत, बड़ोदरा, भोपाल, वाराणसी, पटना, दिनाजपुर, सिलीगुड़ी, तवांग, गुवाहाटी, चोंगछिंग, यिचांग, जिंगजोउ, वुहान, होंगजोउ, शंघाई आदि।
कुछ विशेषज्ञों के अनुसार तारेगना
, बिहार, इस घटना को देखने का सर्वश्रेष्ठ स्थान है।
आंशिक सूर्यग्रहण तो चंद्रमा की उपच्छाया के चौड़े मार्ग पर दिखाई देगा ही, जिसमें अधिकांश दक्षिण एशिया (संपूर्ण भारत व चीन) व उत्तर पूर्वी ओशियानिया शामिल हैं।
समयावधि
यह 21 वी सदी का सबसे बड़ा सूर्यग्रहण था और केवल 13 जून 2132 को ही अवधि के मामले में अतिक्रमित होगा। अधिकतम ग्रहण 02:35:21 UTC को बोनिन द्वीपों के 100 किमी दक्षिण में होगा जो जापान के दक्षिणपूर्व में हैं। अवासित उत्तरी इवो जिमा द्वीप वह स्थलखंड है, जहाँ प्रायः अधिकतम पूर्णता समयावधि होगी, जबकि निकटतम वासित बिंदु है एकुसेकिजिमा, जहाँ यह 6 मिनट 26 सेकंड रहेगा।
छवियाँ
नई दिल्ली में
यह चित्र टीवी से लिया गया है, क्योंकि दिल्ली में पूर्ण ग्रहण नहीं पड़ा था।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
जुलाई 2009 का सूर्यग्रहण: भारतीय शहरों में समय व स्थान
22 जुलाई 2009 के ग्रहण हेतु नासा का गृहपृष्ठ
21वीं सदी का दीर्घतम ग्रहण- 22 जुलाई 2009
जुलाई 2009 का सूर्यग्रहण : भारत में समय
21वीं सदी का दीर्घतम सूर्यग्रहण इंटर्नेट पर विश्वभर में प्रसारित होगा
22 जुलाई 2009 का ग्रहण वेब पर सजीव कैसे देखें
City of Brass at Beliefnet.com: 21वीं सदी का दीर्घतम सूर्यग्रहण
सूर्यग्रहण के दौरान बादलों के कारण गड़बड़ AP
गुवाहाटी से देखें सजीव सूर्यग्रहण
जुलाई 2009 का सूर्यग्रहण (समय)
जुलाई 2009 का सूर्यग्रहण गुरुत्वीय विसंगति की खोजबीन का श्रेष्ठतम मौका है New Scientist
सूर्यग्रहण: सारे रास्ते बिहार को | 426 |
474458 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%A5%E0%A4%BE | अमलसुंथा | अमलसुंथा (Amalasuntha) (495 – 30 अप्रैल 534/535) सन् 526 से 534 तक आस्त्रोगाथों की रानी थी। वह आस्त्रोंगाथों के राजा थियोदोरिक की बेटी थी और मूथारिक से व्याही थी। उनके विवाह के कुछ ही काल बाद उसके पति का देहांत हो गया। पति के मरने पर अमलसुंथा ने अपने पुत्र की अभिभाविका के रूप में रावेना में राज करना शुरू किया। 534 ई. में उसका पुत्र मर गया और वह आस्त्रोगाथों की रानी बनी। अनेक उच्चपदीय और संभ्रांत आस्त्रोगाथों को उसे उनके षड्यंत्र के लिए दंडित करना पड़ा था। अंत में उसके चाचा ने उनसे मिलकर उसे बोलसेना झील के एक द्वीप में कैद कर दिया जहाँ उसकी 535 ई. में हत्या कर दी गई।
सन्दर्भ
रानी | 117 |
996587 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80%20%E0%A5%A7%E0%A5%AB%E0%A5%A6%E0%A5%AB | घड़ी १५०५ | घड़ी १५०५ / (१५०५ 1505 का PHN1505 या पोमंदर वॉच) दुनिया की पहली घड़ी है। इस घड़ी के आविष्कारक,जर्मन, नूर्नबर्ग के ताला बनाने वाले और घड़ीसाज़ पीटर हेनलेन द्वारा, वर्ष 1505 के दौरान, उत्तरी पुनर्जागरण के हिस्से के रूप में शुरुआती जर्मन पुनर्जागरण काल में हुआ। यह दुनिया की सबसे पुरानी घड़ी है जो अभी भी काम करती है। घड़ी का आकार एक छोटे सोने का पानी चढ़ा हुआ तांबे का गोला है, जो एक प्राच्य पॉमेंडर और जर्मन इंजीनियरिंग मिल कर बने पूर्वी प्रभाव को जोड़ती है। 1987 में, घड़ी लंदन के एक प्राचीन वस्तुओं और पिस्सू बाजार में फिर से दिखाई दी। इस घड़ी की शुरुआती कीमत का अनुमान 50 से 80 मिलियन डॉलर (मई 2014) के बीच है।
इतिहास
नूर्नबर्ग
1470 और 1530 के बीच के वर्षों को आमतौर पर नूर्नबर्ग शहर के हेयडे (ब्लुटेज़िट) के
रूप में माना जाता है। उस समय में, शहर शिल्प, विज्ञान और मानवतावाद का केंद्र बन गया। पुनर्जागरण के नए विश्वदृष्टि ने बवेरियन शहर में अपनी पकड़ बनाई। मध्य-युग के दौरान, नूरेमबर्ग होहेनस्टाफ़ेन और लक्ज़मबर्ग के तहत पवित्र रोमन साम्राज्य के सबसे महत्वपूर्ण शहरों में से एक बन गया। इसका एक मुख्य कारण यह था कि नूर्नबर्ग इटली और उत्तरी यूरोप के बीच के दो व्यापारिक केंद्रों में से एक था। साथ ही साथ शिल्प कौशल और लंबी दूरी के व्यापार के लिए शहर समृद्ध बन गया। इस धन के आधार पर, राजनीतिक, धार्मिक, कलात्मक, सांस्कृतिक और तकनीकी पहलुओं को विकसित किया गया जो नूर्नबर्ग को आल्प्स के उत्तर में पुनर्जागरण के सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्रों और मानवतावाद और सुधार का केंद्र बना देगा।घड़ी आविष्कार
पहली बार पहने जाने वाले घड़ी, 16 वीं शताब्दी में शुरू में जर्मन शहरों नूर्नबर्ग और ऑग्सबर्ग में बनाए गए थे, बड़ी घड़ी और घड़ियों के बीच आकार में संक्रमणकालीन थे। मुख्य समय के आविष्कार से पोर्टेबल टाइमपीस संभव हो गए। पीटर हेनलेन पेंडेंट के रूप में पहने जाने वाले सजावटी घड़ी बनाने वाले पहले जर्मन शिल्पकार थे, जो शरीर पर पहनी जाने वाली पहली घड़ी थी। उनकी प्रसिद्धि (घड़ी के आविष्कारक के रूप में) 1511 में जोहान कोच्लस द्वारा पारित पर आधारित है। तब से, हेनलेइन को आमतौर पर पहली पोर्टेबल घड़ियों के आविष्कारक के रूप में जाना जाता है। 16 वीं शताब्दी की शुरुआत में, वह घ्राण निबंध के साथ एक पोमंदर के कैप्सूल में छोटे बदलाव स्थापित करने वाला पहला व्यक्ति बन गया। 1505 में, नूर्नबर्ग का पीटर हेनलीन पोर्टेबल पोमेंडर घड़ी बनाने वाला पहला था, जो दुनिया की पहली घड़ी थी।
इस घड़ी का उत्पादन मुख्य रूप से टॉर्सन पेंडुलम और कॉइल स्प्रिंग तंत्र के लघुकरण के पहले अनदेखे पैमाने द्वारा संभव किया गया था, जो पीटर हेनलेन द्वारा एक तकनीकी इकाई में रखा गया था, एक तकनीकी नवाचार और समय की नवीनता, सभी पदों में संचालित; जो वॉच 1505 को वॉच का वास्तविक आविष्कार बनाता है।
हेन्लिन ने नूर्नबर्ग में फ्रांसिस्कैन मठ में रहते हुए पोमेंडर घड़ी बनाई। जहाँ उन्होंने सदियों से इकट्ठा हुई ओरिएंटल दुनिया का ज्ञान प्राप्त किया, हेनलेन ने नई तकनीकों और उपकरणों का अधिग्रहण किया, जिससे उन्हें गिल्ट पोमेंडर के रूप में पहली घड़ी बनाने में मदद मिली।
अपने जीवनकाल में, हेलेलिन ने अन्य या इसी प्रकार की घड़ियों का निर्माण किया (e। G। ड्रम ड्रम - जिसे बाद में नूर्नबर्ग अंडे कहा जाता है)। उन्होंने 1541 में लिक्टेनौ महल के लिए एक टॉवर घड़ी भी तैयार की, और हेलेलिन परिष्कृत वैज्ञानिक उपकरणों के निर्माता के रूप में जाना जाता था।
पुनखोज
घड़ी की फिर से शुरू होने की कहानी 1987 में लंदन के एक प्राचीन-पिस्सू बाजार में शुरू हुई। 2002 में जब तक एक निजी कलेक्टर ने पॉमेंडर घड़ी खरीदी, तब तक कलेक्टरों के बीच घड़ी का स्वामित्व बदल गया। एक समिति ने 2014 में घड़ी का आकलन किया, विशेष रूप से दो तथ्य जो कि पोमेंडर 1505 के हैं, जिन पर हेनलेइन ने स्वयं हस्ताक्षर किए थे।
डिजाइन
डिजाइन में दो छोटे आधे गोले शामिल थे, एक बंधन काज द्वारा शामिल किया गया था। पोमेंडर के ऊपरी आधे हिस्से को एक दूसरे - थोड़े छोटे - आधे क्षेत्र के नीचे प्रकट करने के लिए खोला जा सकता है।
उस आंतरिक क्षेत्र का शीर्ष डायल दिखाता है। डायल की ऊपरी सतह दिन के पहले छमाही के लिए रोमन संख्याएं दिखाती है, और दिन के दूसरे भाग के लिए डायल अरबी अंकों के बाहरी तरफ यह इतिहास में इस समय अंकों के नए उपयोग के लिए संक्रमण को दर्शाता है।
पोमैंडर घड़ी 16 वीं शताब्दी की शुरुआत में नूर्नबर्ग शहर के छोटे उत्कीर्णन को प्रदर्शित करता है, वर्ष 1320 में निर्मित हेंकेर्टम, जिसे आज भी देखा जा सकता है या अभी भी खड़े वेनस्टैडल, जो अभी भी खड़ा है। अन्य प्रतीकों को भी घड़ी पर उकेरा जाता है, जैसे कि सूर्य, नाग या घड़ी पर उत्कीर्ण किए गए लहंगे।
तकनीकी विवरण
आवरण में तांबे के होते हैं, अग्नि बाहर की ओर और अग्नि चांदी की ओर से घड़ी के अंदर लगी होती है। नए सिरे से पीतल के स्प्रोकेट के अलावा, आंदोलन पूरी तरह से लोहे से बना है। विस्तृत आयाम हैं।
आवरण व्यास: 4.15 सेमी x 4.25 सेमी (भूमध्य रेखा अंगूठी 4.5 सेमी के साथ) - वजन 38.5 ग्राम
संचलन का व्यास: 3.60 सेमी x 3.55 सेमी - वजन: 54.1 ग्राम
घड़ी की गति को तेज करने के लिए एक कुंजी का उपयोग किया जाता है। वॉच 1505 12 घंटे की गणना के समय का उत्पादन करता है।
घड़ी का प्रतीक
द पोमेंडर (जर्मन बिसम्फफेल में फ्रेंच पोएम German अम्ब्रे से प्राप्त) जिसे रिचाफेल भी कहा जाता है, ओरिएंट से एक स्टेटस सिंबल था, और अक्सर यूरोपीय लोगों द्वारा ओरिएंट की सुगंध के साथ पहली मुठभेड़ का प्रतिनिधित्व करता था।
यह पूर्व से पश्चिम तक की प्रमुख हस्तियों के बीच कूटनीतिक आदान-प्रदान का एक मूल्यवान प्रतीकात्मक उपहार बन गया, और माना जाता है कि इसका उपचार और सुरक्षात्मक प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए जैकब कॉर्नेलिज। वैन ओस्टेनसेन ने 1518 में जन गेरिट्ज़ वैन एगमंड वैन डी डेजेनबॉर्ग का चित्र बनाया, जो अल्कमार के चुने हुए प्रमुख थे, 1518 में उनके हाथ में एक पोमेंडर था। यूरोप भर में ओरिएंट से मध्य युग में पोमेंडर फॉर्म का प्रसार किया गया था। घड़ी को यूरोपीय इंजीनियरिंग और ओरिएंटल रूप के बीच एक सांस्कृतिक मुठभेड़ के रूप में देखा जा सकता है। शहरों में खराब स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों के कारण पोमैंडर्स खराब हो गए थे। पॉमेंडर के अंदर कस्तूरी-इत्र का कीटाणुनाशक और गंध प्रतिरोधी प्रभाव था।
नाग सभ्यता में सबसे पुराने पौराणिक प्रतीकों में से एक है, जो मेसोपोटामिया में ग्रीष्मकालीन के रूप में वापस जा रहा है। अपनी खुद की पूंछ (ऑरोबोरोस) खाने वाला सर्प ब्रह्मांड की अनंतता और अनंत जीवन का प्रतीक है। यह सूर्य की कक्षा, द्वंद्व और एक प्राचीन मिस्र के कीमियागर प्रतीक (सभी एक है) का भी प्रतिनिधित्व करता है।
लॉरेल का प्रतीकवाद रोमन संस्कृति में पारित हुआ, जिसने लॉरेल को जीत के प्रतीक के रूप में रखा। यह अनुष्ठान शुद्धि, समृद्धि और स्वास्थ्य के साथ, अमरता से भी जुड़ा हुआ है।
परीक्षा और पुष्टि
कई परीक्षाओं (सूक्ष्म और मैक्रो-फोटोग्राफिक और धातुकर्म परीक्षा, साथ ही एक 3 डी कंप्यूटर टोमोग्राफी) को घड़ी की प्रामाणिकता का प्रमाण देने के लिए बनाया गया था।
सामान्य परीक्षा-परिणाम से पता चला है कि पोमेंडर वॉच का निर्माण हेलेलिन ने 1505 में किया था।
आविष्कार की तारीख की एक पुष्टि भी है, यह पुष्टि करते हुए कि उत्कीर्णन एक मध्ययुगीन विधि की परत के नीचे झूठ बोल रही है। इस आविष्कार को 1905 में जर्मन वॉचमेकर्स एसोसिएशन की 400 वीं वर्षगांठ पर मनाया गया था। इस अवसर पर, नूर्नबर्ग में पीटर हेनलिन को समर्पित एक स्मारक फव्वारा बनाया गया था।
डोनास्टाफ़ में वल्लाह, जो "राजनेताओं, संप्रभु, वैज्ञानिकों और जर्मन जीभ के कलाकारों" के लिए एक स्मारक है, पीटर हेनलेन को घड़ी के आविष्कारक के शब्दों के साथ सम्मानित करता है।
पीटर हेनले द्वारा अन्य पोमेंडर घड़िया
आजकल, दुनिया में केवल दो संरक्षित पोमेंडर घड़ियाँ हैं।
१५०५ से एक निजी स्वामित्व में है, और १५३० से मेलानकथॉन के पोमैंडर वॉच, जिसका स्वामित्व बाल्टीमोर में वाल्टर्स आर्ट म्यूजियम के पास है। यह नूर्नबर्ग शहर के लिए शायद सबसे अच्छा तोहफा था, नूर्नबर्ग सुधारक फिलिप मेलानक्थन और पीटर हेनलेन को इस व्यक्तिगत घड़ी को बनाने के लिए कमीशन लिया गया था। वुपर्टल वॉच म्यूजियम में भी पॉमैंडर वॉच का एक खाली आवास पाया जा सकता है।
घड़ी का ऐतिहासिक प्रभाव
सुमेर की प्राचीनतम ज्ञात सभ्यता का व्यवस्थित ज्ञान, जैसे कि खगोलीय गणनाओं और गणित का व्यवस्थित ज्ञान (समय को मापने के लिए सेक्सुअज़िमल नंबर सिस्टम, भौगोलिक निर्देशांक और फ़रिश्ते, 60 सेकंड मिनट और 60 मिनट घंटे, 360 डिग्री आदि) को सुरक्षित रखा गया था। और इस्लाम के स्वर्ण युग के दौरान प्राचीन ज्ञान और वैज्ञानिक प्रक्रिया विकसित की, यांत्रिक घड़ियों की पूर्णता और नूर्नबर्ग में पहली घड़ी के आविष्कार के लिए अग्रणी, एक प्रक्रिया जो समय के व्यापक ऐतिहासिक खिंचाव को कवर करती है।
घड़ियों को छोटा और पोर्टेबल बनाने की कोशिश हमेशा घड़ी बनाने वालों के लिए एक चुनौती थी, पीटर हेनलेइन पोर्टेबल घड़ियों के आविष्कारक नहीं हैं, बल्कि पहनने योग्य घड़ी समय जो माप सके, अपने समय की सबसे छोटी व्यक्तिगत टाइमकीपिंग डिवाइस है। ओरिएंटल स्टेटस सिंबल, पोमेंडर (या खुशबू वाले सेब) को मिलाकर, एक मिनीटाइज्ड वॉच मूवमेंट के साथ, उनके आविष्कार ने हमारे द्वारा समय को मापने और प्रबंधित करने के तरीके को बदल दिया। ऐतिहासिक रूप से, घड़ी को उसी समय तैयार किया गया था जब लियोनार्डो दा विंची ने मोना लिसा को चित्रित किया था।
इन्हें भी देखें
घड़ीसाज़
घड़ियों का इतिहास
सौर घड़ी
बाहरी कड़ियाँ
यंत्र | 1,551 |
577296 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE | श्रीलंका का स्वतंत्रता संग्राम | श्रीलंका का स्वतंत्रता संग्राम ब्रितानी साम्राज्य से आजाद होने तथा स्वशासन स्थापित करने के लिये लड़ा गया था। यह शान्तिपूर्ण राजनीतिक आन्दोलन था। यह आन्दोलन बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दिनों में शुरू हुआ। इसका नेतृत्व शिक्षित मध्यम वर्ग ने किया और अन्ततः 4 फरवरी 1948 को 'डोमिनियन स्टेट' के रूप में श्री लंका को स्वतंत्रता मिल गयी। अगले चौबीस वर्षों तक श्री लंका डोमिनियन स्टेट बना रहा और २२ मई १९७२ को गणतंत्र बना।
श्रीलंका का इतिहास | 77 |
1459407 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B8%20%E0%A4%B8%E0%A5%8C%20%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%80 | उन्नीस सौ चौरासी | उन्नीस सौ चौरासी (१९८४ के रूप में भी प्रकाशित) अंग्रेजी लेखक जॉर्ज ऑरवेल द्वारा एक डायस्टोपियन सामाजिक विज्ञान कथा उपन्यास और सतर्क कहानी है। यह ८ जून १९४९ को सेकर एंड वारबर्ग द्वारा ऑरवेल की नौवीं और अंतिम पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया था जो उनके जीवनकाल में पूरी हुई थी। सैद्धांतिक रूप से यह अधिनायकवाद, सामूहिक निगरानी और समाज के भीतर लोगों और व्यवहारों के दमनकारी शासन के परिणामों पर केंद्रित है। ऑरवेल, एक लोकतांत्रिक समाजवादी, ने स्टालिनवादी रूस और नाज़ी जर्मनी पर उपन्यास में सत्तावादी राज्य का मॉडल तैयार किया। अधिक व्यापक रूप से उपन्यास समाजों के भीतर सच्चाई और तथ्यों की भूमिका और उन तरीकों की जांच करता है जिनमें उनका हेरफेर किया जा सकता है।
कहानी १९८४ में एक काल्पनिक भविष्य में घटित होती है, जब दुनिया का अधिकांश हिस्सा सतत युद्ध में है। ग्रेट ब्रिटेन, जिसे अब एयरस्ट्रिप वन के रूप में जाना जाता है, अधिनायकवादी सुपरस्टेट ओशिनिया का एक प्रांत बन गया है, जिसका नेतृत्व बिग ब्रदर द्वारा किया जाता है, जो पार्टी की थॉट पुलिस द्वारा निर्मित व्यक्तित्व के एक गहन पंथ द्वारा समर्थित एक तानाशाह नेता है। सत्य मंत्रालय के माध्यम से पार्टी सर्वव्यापी सरकारी निगरानी, ऐतिहासिक निषेधवाद, और व्यक्तित्व और स्वतंत्र सोच को सताने के लिए निरंतर प्रचार में संलग्न है।
नायक, विंस्टन स्मिथ, सत्य मंत्रालय में एक मेहनती मध्य-स्तर का कार्यकर्ता है जो गुप्त रूप से पार्टी से नफरत करता है और विद्रोह के सपने देखता है। वह एक निषिद्ध डायरी रखता है और अपने सहयोगी जूलिया के साथ संबंध शुरू करता है, और वे ब्रदरहुड नामक एक अस्पष्ट प्रतिरोध समूह के बारे में सीखते हैं। हालाँकि, ब्रदरहुड के साथ उनका संपर्क पार्टी एजेंट निकला और स्मिथ को गिरफ्तार कर लिया गया। उसे प्रेम मंत्रालय द्वारा महीनों तक मनोवैज्ञानिक हेरफेर और यातना के अधीन किया जाता है और बिग ब्रदर से प्यार करने के बाद उसे रिहा कर दिया जाता है।
उन्नीस सौ चौरासी राजनीतिक और डायस्टोपियन कथा साहित्य का एक उत्कृष्ट साहित्यिक उदाहरण बन गया है। इसने "ऑरवेलियन" शब्द को एक विशेषण के रूप में लोकप्रिय बनाया, उपन्यास में "बिग ब्रदर", "डबलथिंक", "थॉट पुलिस", "थॉटक्राइम", "न्यूस्पीक", और "२ + २ = ५" सहित सामान्य उपयोग में आने वाले कई शब्दों के साथ। उपन्यास की विषय वस्तु और अधिनायकवाद, जन निगरानी, और अन्य विषयों के बीच अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघन के वास्तविक जीवन उदाहरणों के बीच समानताएं खींची गई हैं। ऑरवेल ने अपनी पुस्तक को एक "व्यंग्य," और "विकृति जिसके लिए एक केंद्रीकृत अर्थव्यवस्था उत्तरदायी है," के प्रदर्शन के रूप में वर्णित किया, जबकि यह भी कहा कि उनका मानना था कि "ऐसा कुछ आ सकता है।" टाइम ने १९२३ से २००५ तक १०० सर्वश्रेष्ठ अंग्रेजी भाषा के उपन्यासों की सूची में उपन्यास को शामिल किया, और इसे मॉडर्न लाइब्रेरी की १०० सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों की सूची में रखा गया, जो संपादकों की सूची में १३ वें स्थान पर और पाठकों के ६ वें स्थान पर पहुंच गया। २००३ में बीबीसी द्वारा द बिग रीड सर्वे में इसे आठवें नंबर पर सूचीबद्ध किया गया था।
लेखन और प्रकाशन
विचार
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में ऑरवेल आर्काइव में उन्नीस सौ चौरासी में विकसित हुए विचारों के बारे में अदिनांकित नोट्स हैं। नोटबुक्स को "जनवरी १९४४ के बाद बाद में पूरा होने की संभावना नहीं" माना गया है, और यह कि "एक मजबूत संदेह है कि उनमें से कुछ सामग्री युद्ध के शुरुआती हिस्से की है"।
१९४८ के एक पत्र में ऑरवेल ने "१९४३ में [पुस्तक] के बारे में पहली बार सोचा" होने का दावा किया है, जबकि दूसरे में वे कहते हैं कि उन्होंने १९४४ में इसके बारे में सोचा था और १९४३ के तेहरान सम्मेलन को प्रेरणा के रूप में उद्धृत करते हैं: "यह वास्तव में क्या करने का मतलब है दुनिया को 'प्रभाव के क्षेत्रों' में विभाजित करने के निहितार्थों पर चर्चा करें (मैंने १९४४ में तेहरान सम्मेलन के परिणामस्वरूप इसके बारे में सोचा था), और इसके अलावा उन्हें सर्वसत्तावाद के बौद्धिक निहितार्थों की पैरोडी करके इंगित किया। ऑरवेल ने मई १९४४ में ऑस्ट्रिया का दौरा किया था और युद्धाभ्यास करते हुए देखा था कि उन्होंने सोचा था कि सोवियत और संबद्ध क्षेत्रों के व्यवसाय को अलग करने की संभावना होगी।
जनवरी १९४४ में साहित्य के प्रोफेसर ग्लीब स्ट्रुवे ने ऑरवेल को येवगेनी ज़मायटिन के १९२४ के डायस्टोपियन उपन्यास वी से परिचित कराया। अपनी प्रतिक्रिया में ऑरवेल ने शैली में रुचि व्यक्त की, और स्ट्रुवे को सूचित किया कि उन्होंने अपने स्वयं के विचारों को लिखना शुरू कर दिया है, "जो अभी या बाद में लिखे जा सकते हैं।" १९४६ में ऑरवेल ने ट्रिब्यून के लिए अपने लेख "फ्रीडम एंड हैप्पीनेस" में एल्डस हक्सले द्वारा १९३१ के डायस्टोपियन उपन्यास ब्रेव न्यू वर्ल्ड के बारे में लिखा, और हम से समानताएं नोट कीं। इस समय तक ऑरवेल ने अपने १९४५ के राजनीतिक व्यंग्य एनिमल फार्म के साथ एक महत्वपूर्ण और व्यावसायिक हिट हासिल कर ली थी, जिसने उनकी प्रोफ़ाइल को बढ़ा दिया। फॉलो-अप के लिए उन्होंने अपना खुद का एक डायस्टोपियन काम करने का फैसला किया।
लिखना
जून १९४४ में अपने ब्रिटिश प्रकाशक सेकर एंड वारबर्ग के सह-संस्थापक फ्रेड्रिक वारबर्ग के साथ बैठक में एनिमल फ़ार्म के रिलीज़ होने से कुछ समय पहले, ऑरवेल ने घोषणा की कि उन्होंने अपने नए उपन्यास के पहले १२ पृष्ठ लिखे हैं। हालाँकि, वह केवल पत्रकारिता से जीविकोपार्जन कर सकता था, और भविष्यवाणी की कि पुस्तक १९४७ से पहले रिलीज़ नहीं होगी प्रगति धीमी गति से चल रही थी; सितंबर १९४५ के अंत तक ऑरवेल ने कुछ ५० पृष्ठ लिखे थे। ऑरवेल पत्रकारिता से जुड़े प्रतिबंधों और दबावों से निराश हो गया और लंदन में शहर के जीवन से घृणा करने लगा। कड़ाके की ठंड के साथ उनका स्वास्थ्य भी खराब हो गया, उनके ब्रोन्किइक्टेसिस और एक फेफड़े में घाव के मामले बिगड़ गए।
मई १९४६ में ऑरवेल स्कॉटिश द्वीप जुरा पर पहुंचे। वह कई वर्षों से एक हाइब्रिड द्वीप पर वापस जाना चाहता था, जिसके लिए डेविड एस्टोर ने सिफारिश की कि वह अपने परिवार के स्वामित्व वाले द्वीप पर एक दूरस्थ फार्महाउस बर्नहिल में रहे। बरनहिल के पास बिजली या गर्म पानी नहीं था, लेकिन यहीं पर ऑरवेल रुक-रुक कर ड्राफ्ट करता था और उन्नीस सौ चौरासी को पूरा करता था। उनका पहला प्रवास अक्टूबर १९४६ तक चला, इस दौरान उन्होंने कुछ पहले से ही पूर्ण किए गए पृष्ठों पर बहुत कम प्रगति की और एक बिंदु पर तीन महीने तक इस पर कोई काम नहीं किया। लंदन में सर्दी बिताने के बाद ऑरवेल जुरा लौट आया; मई १९४७ में उन्होंने वारबर्ग को सूचना दी कि प्रगति धीमी और कठिन होने के बावजूद, वह लगभग एक तिहाई रास्ता था। उन्होंने पांडुलिपि के पहले मसौदे का अपना "भयानक गड़बड़" लंदन भेजा जहां मिरांडा क्रिस्टन ने एक स्वच्छ संस्करण टाइप करने के लिए स्वेच्छा से काम किया। हालांकि, सितंबर में ऑरवेल के स्वास्थ्य में बदलाव आया और वह फेफड़ों की सूजन के कारण बिस्तर पर ही पड़े रहे। उनका वजन लगभग दो स्टोन कम हो गया था और उन्हें बार-बार रात को पसीना आता था, लेकिन उन्होंने डॉक्टर से न मिलने का फैसला किया और लिखना जारी रखा। ७ नवंबर १९४७ को, उन्होंने बिस्तर में पहला मसौदा पूरा किया और बाद में चिकित्सा उपचार के लिए ग्लासगो के पास ईस्ट किलब्राइड की यात्रा की, जहां एक विशेषज्ञ ने तपेदिक के पुराने और संक्रामक मामले की पुष्टि की।
१९४८ की गर्मियों में ऑरवेल को छुट्टी दे दी गई, जिसके बाद वे जुरा लौट आए और उन्नीस सौ चौरासी का पूरा दूसरा मसौदा तैयार किया, जिसे उन्होंने नवंबर में पूरा किया। उन्होंने वारबर्ग से कहा कि किसी को बार्नहिल आकर पांडुलिपि को फिर से टाइप करने के लिए कहें, जो इतना गन्दा था कि यह कार्य केवल तभी संभव था जब ऑरवेल मौजूद था क्योंकि केवल वह ही इसे समझ सकता था। पिछले स्वयंसेवक ने देश छोड़ दिया था और अल्प सूचना पर कोई अन्य नहीं मिला था, इसलिए एक अधीर ऑरवेल ने बुखार और खूनी खाँसी के दौरों के दौरान लगभग ४,००० शब्दों की दर से इसे स्वयं टाइप किया। ४ दिसंबर १९४८ को, ऑरवेल ने तैयार पांडुलिपि को सेकर एंड वारबर्ग को भेज दिया और जनवरी १९४९ में बर्निल को हमेशा के लिए छोड़ दिया। कॉटस्वोल्ड्स के एक सेनेटोरियम में वह स्वस्थ हुआ।
शीर्षक
दूसरे मसौदे के पूरा होने से कुछ समय पहले, ऑरवेल उपन्यास के लिए दो शीर्षकों के बीच हिचकिचाया: द लास्ट मैन इन यूरोप, एक प्रारंभिक शीर्षक, और उन्नीस सौ चौरासी । वारबर्ग ने बाद का सुझाव दिया, जिसे उन्होंने अधिक व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य विकल्प माना। एक सिद्धांत रहा है - डोरियन लिंस्की (उन्नीस सौ चौरासी</i> के बारे में २०१९ की एक किताब के लेखक) द्वारा संदेह किया गया - कि १९८४ को वर्ष १९४८ के व्युत्क्रम के रूप में चुना गया था, जिस वर्ष इसे पूरा किया जा रहा था। लिन्स्की का कहना है कि यह विचार "ऑरवेल के अमेरिकी प्रकाशक द्वारा पहली बार सुझाया गया था," और इसका उल्लेख क्रिस्टोफर हिचेन्स ने २००३ के एनिमल फार्म और १९८४ के अपने परिचय में भी किया था, जिसमें यह भी कहा गया है कि तारीख "तत्कालता और तात्कालिकता" देने के लिए थी अधिनायकवादी शासन के खतरे के लिए"। हालाँकि, लिन्सकी उलटा सिद्धांत को नहीं मानता है:यह विचार [...] इतनी गंभीर किताब के लिए बहुत प्यारा लगता है।[...] विद्वानों ने अन्य संभावनाएं जताई हैं। [उनकी पत्नी] एलीन ने अपने पुराने स्कूल की शताब्दी के लिए 'एंड ऑफ़ द सेंचुरी: १९८४' नामक एक कविता लिखी थी। जीके चेस्टर्टन का १९०४ का राजनीतिक व्यंग्य द नेपोलियन ऑफ़ नॉटिंग हिल, जो भविष्यवाणी की कला का मज़ाक उड़ाता है, १९८४ में खुलता है। द आयरन हील में भी वर्ष एक महत्वपूर्ण तिथि है। लेकिन इन सभी कनेक्शनों को उपन्यास के शुरुआती मसौदों द्वारा संयोग से ज्यादा कुछ नहीं बताया गया है...] पहले उन्होंने १९८०, फिर १९८२ और केवल बाद में १९८४ लिखा। साहित्य में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण तारीख एक देर से संशोधन था।"
प्रकाशन
प्रकाशन की दौड़ में ऑरवेल ने उपन्यास को "एक पशुवत पुस्तक" कहा और इसके प्रति कुछ निराशा व्यक्त की, यह सोचते हुए कि अगर वह इतने बीमार नहीं होते तो यह बेहतर हो जाता। यह ऑरवेल की खासियत थी, जिन्होंने अपनी अन्य पुस्तकों के विमोचन से कुछ समय पहले ही बात कर ली थी। फिर भी, इस पुस्तक को सेकर एंड वारबर्ग द्वारा उत्साहपूर्वक प्राप्त किया गया, जिन्होंने त्वरित कार्रवाई की; जुरा को छोड़ने से पहले ऑरवेल ने उनके प्रस्तावित ब्लर्ब को अस्वीकार कर दिया था जिसने इसे "एक प्रेम कहानी के साथ मिश्रित थ्रिलर" के रूप में चित्रित किया था। उन्होंने गोल्डस्टीन की पुस्तक पर परिशिष्ट और अध्याय के बिना एक संस्करण जारी करने के अमेरिकन बुक ऑफ द मंथ क्लब के एक प्रस्ताव को भी अस्वीकार कर दिया, एक निर्णय जिसके बारे में वारबर्ग ने बिक्री में £४०,००० की कटौती का दावा किया।
उन्नीस सौ चौरासी ८ जून १९४९ को ब्रिटेन में प्रकाशित हुआ था; ऑरवेल ने लगभग ५०० पाउंड की आय का अनुमान लगाया। २५,५७५ प्रतियों हारकोर्ट ब्रेस एंड कंपनी द्वारा पहला प्रिंट मार्च और अगस्त १९५० में और ५,००० प्रतियों के बाद हुआ। २०,००० प्रतियों का एक प्रारंभिक प्रिंट १ जुलाई को और फिर ७ सितंबर को १०,००० प्रतियों के बाद जल्दी से छापा गया। १९७० तक, अमेरिका में ८ मिलियन से अधिक प्रतियां बिक चुकी थीं और १९८४ में यह देश की सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ विक्रेता सूची में सबसे ऊपर थी।
जून १९५२ में ऑरवेल की विधवा सोनिया ब्रोंवेल ने एकमात्र जीवित पांडुलिपि को ५० पाउंड में चैरिटी नीलामी में बेच दिया। मसौदा ऑरवेल से एकमात्र जीवित साहित्यिक पांडुलिपि बना हुआ है, और वर्तमान में प्रोविडेंस, रोड आइलैंड में ब्राउन विश्वविद्यालय में जॉन हे लाइब्रेरी में आयोजित किया गया है।
कथानक
१९८४ में विश्व युद्ध, नागरिक संघर्ष और क्रांति से सभ्यता तबाह हो गई थी। हवाई पट्टी वन (पूर्व में ग्रेट ब्रिटेन के रूप में जाना जाता है) ओशिनिया का एक प्रांत है, जो दुनिया पर शासन करने वाले तीन अधिनायकवादी सुपर-राज्यों में से एक है। यह "द पार्टी" द्वारा "इंग्सोक" ("अंग्रेजी समाजवाद" का एक समाचार पत्र छोटा) और रहस्यमय नेता बिग ब्रदर की विचारधारा के तहत शासित है, जिसके पास व्यक्तित्व का एक गहन पंथ है। थॉट पुलिस और टेलीस्क्रीन (दो-तरफ़ा टेलीविज़न), कैमरा और छिपे हुए माइक्रोफ़ोन के माध्यम से निरंतर निगरानी का उपयोग करके, पार्टी क्रूरता से किसी को भी बाहर निकाल देती है, जो पूरी तरह से उनके शासन के अनुरूप नहीं है। जो लोग पार्टी के समर्थन से बाहर हो जाते हैं, वे "अव्यक्तिगत" बन जाते हैं, उनके अस्तित्व के सभी सबूत नष्ट हो जाते हैं।
लंदन में विंस्टन स्मिथ सत्य मंत्रालय में कार्यरत आउटर पार्टी के सदस्य हैं, जहां वे राज्य के इतिहास के हमेशा बदलते संस्करण के अनुरूप ऐतिहासिक अभिलेखों को फिर से लिखते हैं । विंस्टन द टाइम्स के पिछले संस्करणों को संशोधित करता है, जबकि मूल दस्तावेजों को स्मृति छिद्रों के रूप में ज्ञात नलिकाओं में गिराए जाने के बाद नष्ट कर दिया जाता है, जिससे एक विशाल भट्टी बन जाती है। वह गुप्त रूप से पार्टी के शासन का विरोध करता है और विद्रोह के सपने देखता है, यह जानते हुए भी कि वह पहले से ही एक "विचार-अपराधी" है और एक दिन पकड़े जाने की संभावना है।
एक गद्य पड़ोस में रहते हुए वह एक प्राचीन वस्तुओं की दुकान के मालिक मिस्टर चाररिंगटन से मिलता है, और एक डायरी खरीदता है जहाँ वह पार्टी और बिग ब्रदर की आलोचनाएँ लिखता है। अपने निराशा के लिए, जब वह एक तिमाही का दौरा करता है तो उसे पता चलता है कि उनके पास कोई राजनीतिक चेतना नहीं है। जब वह सत्य मंत्रालय में काम करता है, तो वह मंत्रालय में उपन्यास-लेखन मशीनों को बनाए रखने वाली एक युवा महिला जूलिया को देखता है, जिस पर विंस्टन जासूस होने का संदेह करता है, और उसके प्रति तीव्र घृणा पैदा करता है। उन्हें अस्पष्ट रूप से संदेह है कि उनके वरिष्ठ, इनर पार्टी के एक अधिकारी ओ'ब्रायन, ब्रदरहुड के रूप में जाने जाने वाले एक गूढ़ भूमिगत प्रतिरोध आंदोलन का हिस्सा हैं, जो बिग ब्रदर के बदनाम राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी इमैनुएल गोल्डस्टीन द्वारा गठित है।
एक दिन, जूलिया चुपके से विंस्टन को एक प्रेम पत्र सौंपती है, और दोनों एक गुप्त संबंध शुरू करते हैं। जूलिया बताती है कि वह भी पार्टी से घृणा करती है, लेकिन विंस्टन देखती है कि वह राजनीतिक रूप से उदासीन है और शासन को उखाड़ फेंकने में उदासीन है। शुरू में देश में मिलने के बाद वे बाद में मिस्टर चारिंगटन की दुकान के ऊपर एक किराए के कमरे में मिलते हैं। अफेयर के दौरान, विंस्टन को १९५० के गृहयुद्ध के दौरान अपने परिवार के लापता होने और अपनी प्रतिष्ठित पत्नी कैथरीन के साथ तनावपूर्ण संबंधों को याद है। सप्ताह बाद ओ'ब्रायन विंस्टन को अपने फ्लैट में आमंत्रित करता है, जहां वह खुद को ब्रदरहुड के सदस्य के रूप में पेश करता है और विंस्टन को गोल्डस्टीन द्वारा द थ्योरी एंड प्रैक्टिस ऑफ ओलिगार्किकल कलेक्टिविज्म की एक प्रति भेजता है। इस बीच, राष्ट्र के नफरत सप्ताह के दौरान, ओशिनिया का दुश्मन अचानक यूरेशिया से ईस्टासिया में बदल जाता है, जिस पर ज्यादातर ध्यान नहीं दिया जाता है। विंस्टन को रिकॉर्ड में आवश्यक संशोधन करने में मदद करने के लिए मंत्रालय को वापस बुलाया गया है। विंस्टन और जूलिया ने गोल्डस्टीन की किताब के कुछ हिस्सों को पढ़ा, जो बताता है कि पार्टी कैसे सत्ता बनाए रखती है, इसके नारों के सही अर्थ और सतत युद्ध की अवधारणा। यह तर्क देता है कि अगर पार्टी इसके खिलाफ उठती है तो पार्टी को उखाड़ फेंका जा सकता है। हालाँकि, विंस्टन को कभी भी उस अध्याय को पढ़ने का अवसर नहीं मिलता है जो बताता है कि 'क्यों' पार्टी को सत्ता बनाए रखने के लिए प्रेरित किया जाता है।
विंस्टन और जूलिया को पकड़ लिया जाता है जब मिस्टर चारिंगटन को थॉट पुलिस एजेंट के रूप में प्रकट किया जाता है, और उन्हें प्रेम मंत्रालय में कैद कर दिया जाता है। ओ'ब्रायन आता है, खुद को थॉट पुलिस एजेंट के रूप में भी प्रकट करता है। ओ'ब्रायन विंस्टन से कहते हैं कि उन्हें कभी पता नहीं चलेगा कि ब्रदरहुड वास्तव में मौजूद है या नहीं और गोल्डस्टीन की पुस्तक उनके और पार्टी के अन्य सदस्यों द्वारा सहयोगात्मक रूप से लिखी गई थी। कई महीनों तक, विंस्टन को भूखा रखा गया और अपने विश्वासों को पार्टी के अनुरूप लाने के लिए प्रताड़ित किया गया। ओ'ब्रायन विंस्टन को पुनः शिक्षा के अंतिम चरण के लिए कमरा १०१ में ले जाता है, जिसमें प्रत्येक कैदी का सबसे बुरा डर होता है। जब उन्मत्त चूहों को पकड़ने वाले पिंजरे से सामना हुआ, तो विंस्टन ने खुद को बचाने के लिए जूलिया की निंदा की, और पार्टी के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा की।
विंस्टन सार्वजनिक जीवन में वापस आ गया है और चेस्टनट ट्री कैफे में लगातार आता रहता है। एक दिन, विंस्टन का सामना जूलिया से होता है, जिसे भी प्रताड़ित किया गया था। दोनों बताते हैं कि उन्होंने दूसरे को धोखा दिया और अब प्यार में नहीं हैं। कैफे में वापस, एक समाचार अलर्ट अफ्रीका में यूरेशियन सेनाओं पर ओशिनिया की भारी जीत का जश्न मनाता है। विंस्टन अंत में स्वीकार करता है कि वह बिग ब्रदर से प्यार करता है।
पात्र
मुख्य पात्र
विंस्टन स्मिथ - ३९ वर्षीय नायक जो विद्रोह के विचारों को आश्रय देने वाला एक कट्टरपंथी है और क्रांति से पहले पार्टी की शक्ति और अतीत के बारे में उत्सुक है।
जूलिया - विंस्टन का प्रेमी जो एक गुप्त "कमर से नीचे की ओर विद्रोही" है, जो कट्टरपंथी जूनियर एंटी-सेक्स लीग के सदस्य के रूप में सार्वजनिक रूप से पार्टी सिद्धांत का समर्थन करता है। जूलिया विद्रोह के अपने छोटे-छोटे कामों का आनंद लेती है और अपनी जीवन शैली को छोड़ने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है।
ओ ब्रायन - एक रहस्यमय चरित्र, ओ'ब्रायन इनर पार्टी का सदस्य है जो विंस्टन को पकड़ने के लिए प्रति-क्रांतिकारी प्रतिरोध द ब्रदरहुड के सदस्य के रूप में प्रस्तुत करता है। वह विंस्टन और जूलिया को धोखा देने, फंसाने और पकड़ने का इरादा रखने वाला जासूस है। ओ'ब्रायन का मार्टिन नाम का एक नौकर है।
गौण वर्ण
आरोनसन, जोन्स और रदरफोर्ड - इनर पार्टी के पूर्व सदस्य जिन्हें विंस्टन अस्पष्ट रूप से क्रांति के मूल नेताओं के रूप में याद करते हैं, बिग ब्रदर के बारे में सुनने से बहुत पहले। उन्होंने विदेशी शक्तियों के साथ देशद्रोह की साजिशों को कबूल किया और फिर १९६० के दशक के राजनीतिक शुद्धिकरण में उन्हें अंजाम दिया गया। उनके कबूलनामे और फाँसी के बीच, विंस्टन ने उन्हें चेस्टनट ट्री कैफे में शराब पीते हुए देखा - टूटी हुई नाक के साथ, यह सुझाव देते हुए कि उनकी स्वीकारोक्ति यातना द्वारा प्राप्त की गई थी। बाद में अपने संपादकीय कार्य के दौरान, विंस्टन अखबार के सबूतों को उनके बयानों का खंडन करते हुए देखता है, लेकिन इसे स्मृति छेद में छोड़ देता है। ग्यारह साल बाद पूछताछ के दौरान उसी तस्वीर के साथ उसका सामना हुआ।
बहुत आगे - विंस्टन के एक बार के रिकॉर्ड विभाग के सहयोगी, जिन्हें किपलिंग कविता में "गॉड" शब्द छोड़ने के लिए कैद किया गया था क्योंकि उन्हें "रॉड" के लिए एक और तुकबंदी नहीं मिली थी; विंस्टन ने प्रेम मंत्रालय में उसका सामना किया। एम्पलफोर्थ एक सपने देखने वाला और बुद्धिजीवी है जो अपने काम का आनंद लेता है, और कविता और भाषा का सम्मान करता है, जो उन लक्षणों का कारण बनता है जो उसे पार्टी से अलग करते हैं।
चाररिंगटन - थॉट पुलिस का एक अधिकारी गद्य के बीच एक सहानुभूतिपूर्ण प्राचीन वस्तुओं के डीलर के रूप में प्रस्तुत करता है।
कथरीन स्मिथ - भावनात्मक रूप से उदासीन पत्नी जिसे विंस्टन "छुटकारा नहीं पा सकता"। संभोग को नापसंद करने के बावजूद, कैथरीन ने विंस्टन से शादी की क्योंकि यह उनका "पार्टी के प्रति कर्तव्य" था। हालाँकि वह एक "अच्छे विचारक" विचारक थे, वे अलग हो गए क्योंकि दंपति बच्चों को गर्भ धारण नहीं कर सके। तलाक की अनुमति नहीं है, लेकिन जिन जोड़ों के बच्चे नहीं हो सकते वे अलग रह सकते हैं। अधिकांश कहानी के लिए विंस्टन अस्पष्ट आशा में रहता है कि कैथरीन मर सकती है या "छुटकारा पा सकती है" ताकि वह जूलिया से शादी कर सके। कई साल पहले मौका मिलने पर उसे खदान के किनारे धकेल कर उसे मारने का पछतावा नहीं हुआ।
टॉम पार्सन्स - विंस्टन का भोला पड़ोसी, और बाहरी पार्टी का एक आदर्श सदस्य: एक अशिक्षित, विचारोत्तेजक व्यक्ति जो पार्टी के प्रति पूरी तरह से वफादार है, और पूरी तरह से अपनी आदर्श छवि में विश्वास करता है। वह सामाजिक रूप से सक्रिय है और अपने सामाजिक वर्ग के लिए पार्टी की गतिविधियों में भाग लेता है। वह स्मिथ के प्रति मित्रवत है, और अपनी राजनीतिक अनुरूपता के बावजूद अपने धमकाने वाले बेटे को विंस्टन पर गुलेल चलाने के लिए दंडित करता है। बाद में एक कैदी के रूप में विंस्टन देखता है कि पार्सन्स प्रेम मंत्रालय में है, क्योंकि उसकी बेटी ने थॉट पुलिस को यह कहते हुए उसकी सूचना दी थी कि उसने उसे नींद में बिग ब्रदर के खिलाफ बोलते हुए सुना था। यहां तक कि इससे पार्टी में उनका विश्वास कम नहीं होता है, और वे कहते हैं कि वे कठिन श्रम शिविरों में "अच्छा काम" कर सकते हैं।
श्रीमती। पार्सन्स - पार्सन्स की पत्नी एक वानर और असहाय महिला है जो अपने ही बच्चों से डरती है।
पार्सन्स बच्चे - नौ साल का बेटा और सात साल की बेटी। दोनों जासूसों के सदस्य हैं, एक युवा संगठन जो पार्टी के आदर्शों के साथ बच्चों को प्रेरित करने पर ध्यान केंद्रित करता है और उन्हें अपरंपरागत की किसी भी संदिग्ध घटनाओं की रिपोर्ट करने के लिए प्रशिक्षित करता है। वे महासागरीय नागरिकों की नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं, बिग ब्रदर के सामने जीवन की स्मृति के बिना, और पारिवारिक संबंधों या भावनात्मक भावना के बिना; आंतरिक पार्टी द्वारा परिकल्पित आदर्श समाज।
सिमे - सत्य मंत्रालय में विंस्टन के सहयोगी, एक कोशकार जो न्यूस्पीक शब्दकोश के एक नए संस्करण को संकलित करने में शामिल है। हालांकि वह अपने काम और पार्टी के लिए समर्थन को लेकर उत्साहित हैं, विंस्टन कहते हैं, "वह बहुत बुद्धिमान हैं। वह बहुत स्पष्ट रूप से देखता है और बहुत स्पष्ट रूप से बोलता है।" विंस्टन भविष्यवाणी करता है, सही ढंग से कि साइम एक अव्यक्ति बन जाएगा।
इसके अतिरिक्त, उपन्यास में उल्लिखित निम्नलिखित पात्र, १९८४ के विश्व-निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। क्या ये पात्र वास्तविक हैं या पार्टी प्रचार के ताने-बाने कुछ ऐसा है जिसे न तो विंस्टन और न ही पाठक को जानने की अनुमति है:
बिग ब्रदर - ओशिनिया पर शासन करने वाली पार्टी के नेता और प्रमुख। उसके चारों ओर व्यक्तित्व का एक गहरा पंथ बनता है।
इमैनुएल गोल्डस्टीन - स्पष्ट रूप से पार्टी में एक पूर्व प्रमुख व्यक्ति जो ब्रदरहुड के प्रति-क्रांतिकारी नेता बन गए, और द थ्योरी एंड प्रैक्टिस ऑफ ओलिगार्किकल कलेक्टिविज्म पुस्तक के लेखक हैं। गोल्डस्टीन राज्य का प्रतीकात्मक दुश्मन है - राष्ट्रीय अभिशाप जो वैचारिक रूप से ओशिनिया के लोगों को पार्टी के साथ एकजुट करता है, विशेष रूप से दो मिनट की नफरत और अन्य प्रकार के भय के दौरान।
सेटिंग
विश्व का इतिहास
क्रांति
ऑरवेल के पहले के कई लेख स्पष्ट रूप से इंगित करते हैं कि उन्होंने मूल रूप से यूके में समाजवादी क्रांति की संभावना का स्वागत किया था, और वास्तव में ऐसी क्रांति में भाग लेने की उम्मीद की थी। "इंग्लिश सोशलिज्म" की अवधारणा पहली बार ऑरवेल के १९४१ के निबंध "द लायन एंड द यूनिकॉर्न: सोशलिज्म एंड द इंग्लिश जीनियस" में दिखाई दी, जिसमें ऑरवेल ने एक अपेक्षाकृत मानवीय क्रांति को रेखांकित किया - एक क्रांतिकारी शासन की स्थापना की जो "देशद्रोहियों को गोली मार देगी, लेकिन उन्हें एक पहले से गंभीर परीक्षण, और कभी-कभी उन्हें बरी कर देता है" और जो "किसी भी खुले विद्रोह को तुरंत और क्रूरता से कुचल देगा, लेकिन बोले गए और लिखित शब्द के साथ बहुत कम हस्तक्षेप करेगा"; १९४१ में ऑरवेल ने जिस "इंग्लिश सोशलिज्म" का अनुमान लगाया था, वह "हाउस ऑफ लॉर्ड्स को समाप्त कर देगा, लेकिन राजशाही को बनाए रखेगा"।
उपन्यास में विंस्टन स्मिथ की यादें और इमॅन्यूएल गोल्डस्टीन द्वारा निषिद्ध पुस्तक, द थ्योरी एंड प्रैक्टिस ऑफ ओलिगार्किकल कलेक्टिविज्म के उनके पढ़ने से पता चलता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूनाइटेड किंगडम १९५० के दशक की शुरुआत में एक युद्ध में शामिल हो गया जिसमें परमाणु हथियार थे यूरोप, पश्चिमी रूस और उत्तरी अमेरिका के सैकड़ों शहरों को नष्ट कर दिया। कोलचेस्टर को नष्ट कर दिया गया था, और लंदन को भी व्यापक हवाई हमलों का सामना करना पड़ा, जिससे विंस्टन के परिवार को लंदन अंडरग्राउंड स्टेशन में शरण लेनी पड़ी। संयुक्त राज्य अमेरिका ने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल और लैटिन अमेरिका को अवशोषित कर लिया, जिसके परिणामस्वरूप ओशिनिया का सुपरस्टेट बन गया। नया राष्ट्र गृहयुद्ध में गिर गया, लेकिन किससे लड़ा यह स्पष्ट नहीं है (बच्चे विंस्टन का एक संदर्भ है कि उसने गलियों में प्रतिद्वंद्वी मिलिशिया को देखा था, प्रत्येक के पास अपने सदस्यों के लिए एक अलग रंग की शर्ट थी)। यह भी स्पष्ट नहीं है कि पार्टी का नाम क्या था, जबकि एक से अधिक थे, और क्या यह ब्रिटिश लेबर पार्टी का एक कट्टरपंथी गुट था या १९५० के अशांत के दौरान उत्पन्न एक नया गठन था। आखिरकार, इंग्सोक जीत गया और धीरे-धीरे ओशिनिया में अधिनायकवादी सरकार का गठन किया। ऑरवेल उपन्यास में यह नहीं बताते हैं कि कैसे अमेरिका ने "अंग्रेजी समाजवाद" को अपनी सत्तारूढ़ विचारधारा के रूप में अपनाया; उनके जीवनकाल में यूके में एक समाजवादी क्रांति एक ठोस संभावना थी, और इसे गंभीरता से लिया गया था, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका में किसी भी प्रकार का समाजवाद एक मामूली घटना थी।
इस बीच, यूरेशिया का गठन तब हुआ जब सोवियत संघ ने मुख्य भूमि यूरोप पर विजय प्राप्त की, एक नव- स्तालिनवादी शासन के तहत पुर्तगाल से बेरिंग जलडमरूमध्य तक फैला एक एकल राज्य बनाया। वास्तव में १९४०-१९४४ की स्थिति - पूरे चैनल में एक दुश्मन-नियंत्रित यूरोप का सामना कर रहे ब्रिटेन - को फिर से बनाया गया था, और इस बार स्थायी रूप से - किसी भी पक्ष ने आक्रमण पर विचार नहीं किया, उनके युद्ध दुनिया के अन्य हिस्सों में हुए। ईस्टासिया, अंतिम सुपरस्टेट स्थापित, "एक दशक की भ्रमित लड़ाई" के बाद ही उभरा। इसमें चीन और जापान द्वारा जीते गए एशियाई देश शामिल हैं। (किताब १९४९ में गृह युद्ध में माओत्से तुंग की चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की जीत से पहले लिखी गई थी)। हालांकि ईस्टासिया को यूरेशिया के आकार से मेल खाने से रोका गया है, लेकिन इसकी बड़ी आबादी उस बाधा की भरपाई करती है।
जबकि प्रत्येक राज्य में नागरिकों को अन्य दो की विचारधाराओं को असभ्य और बर्बर मानने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, गोल्डस्टीन की पुस्तक बताती है कि वास्तव में अंधविश्वासों की विचारधारा व्यावहारिक रूप से समान है और इस तथ्य की जनता की अज्ञानता अनिवार्य है ताकि वे अन्यथा विश्वास करना जारी रख सकें। . महासागरीय नागरिकता के लिए बाहरी दुनिया का एकमात्र संदर्भ "युद्ध" में लोगों के विश्वास को सुनिश्चित करने के लिए सत्य मंत्रालय द्वारा बनाए गए प्रचार और (शायद नकली) नक्शे हैं।
हालांकि, इस तथ्य के कारण कि विंस्टन को केवल इन घटनाओं के साथ-साथ पार्टी के ऐतिहासिक अभिलेखों में निरंतर हेरफेर को याद नहीं है, इन घटनाओं की निरंतरता और सटीकता अज्ञात है, और वास्तव में सुपरस्टेट्स के सत्तारूढ़ दलों ने अपनी शक्ति कैसे हासिल की, यह भी बाकी है अस्पष्ट। विंस्टन ने नोट किया कि पार्टी ने हेलीकॉप्टर और हवाई जहाज का आविष्कार करने के लिए श्रेय का दावा किया है, जबकि जूलिया का मानना है कि लंदन की सतत बमबारी केवल एक झूठा-ध्वज अभियान है जो जनता को यह विश्वास दिलाने के लिए बनाया गया है कि युद्ध हो रहा है। यदि आधिकारिक खाता सटीक था, तो स्मिथ की मजबूत यादें और उनके परिवार के विघटन की कहानी बताती है कि परमाणु बमबारी पहले हुई, उसके बाद गृह युद्ध "लंदन में ही भ्रमित सड़क लड़ाई" और सामाजिक युद्ध के बाद के पुनर्गठन की विशेषता थी, जिसे पार्टी पूर्वव्यापी रूप से बुलाती है "क्रांति"।
सटीक कालक्रम का पता लगाना बहुत मुश्किल है, लेकिन अधिकांश वैश्विक सामाजिक पुनर्गठन १९४५ और १९६० के दशक की शुरुआत के बीच हुआ। विंस्टन और जूलिया एक चर्च के खंडहर में मिलते हैं जो "तीस साल पहले" एक परमाणु हमले में नष्ट हो गया था, जो १९५४ को परमाणु युद्ध के वर्ष के रूप में बताता है जिसने समाज को अस्थिर कर दिया और पार्टी को सत्ता पर कब्जा करने की अनुमति दी। उपन्यास में कहा गया है कि "१९८३ की चौथी तिमाही" "नौवीं तीन-वर्षीय योजना की छठी तिमाही" भी थी, जिसका अर्थ है कि पहली तीन-वर्षीय योजना १९५८ में शुरू हुई थी। उसी वर्ष तक, पार्टी ने जाहिर तौर पर ओशिनिया पर नियंत्रण हासिल कर लिया था।
अन्य बातों के अलावा, क्रांति सभी धर्मों को पूरी तरह से मिटा देती है। जबकि भूमिगत "ब्रदरहुड" मौजूद हो सकता है या नहीं भी हो सकता है, किसी भी धर्म को भूमिगत रखने की कोशिश करने वाले किसी पादरी का कोई सुझाव नहीं है। यह नोट किया गया है कि, चूंकि पार्टी वास्तव में इस बात की परवाह नहीं करती है कि गद्य क्या सोचते हैं या क्या करते हैं, हो सकता है कि उन्हें धार्मिक पूजा करने की अनुमति दी गई हो, लेकिन वे ऐसा कोई झुकाव नहीं दिखाते हैं। "सोचा अपराधियों" से निकाले गए प्रकट रूप से बेतुके "कबूलनामे" में धार्मिक विश्वास है - हालाँकि, कोई भी इसे गंभीरता से नहीं लेता है। चर्चों को ध्वस्त कर दिया गया है या अन्य उपयोगों में परिवर्तित कर दिया गया है - सेंट मार्टिन-इन-द-फील्ड्स एक सैन्य संग्रहालय बन गया है, जबकि द्वितीय विश्वयुद्ध बमबारी में नष्ट हुए सेंट क्लेमेंट डेन्स का इस भविष्य में कभी पुनर्निर्माण नहीं किया गया है। अपेक्षाकृत आसानी से धर्म को पूरी तरह से नष्ट करने वाले एक क्रांतिकारी शासन के विचार को एचजीवेल्स की ' द शेप ऑफ थिंग्स टू कम के अन्यथा बहुत अलग भविष्य के साथ साझा किया गया है।
युद्ध
१९८४ में वैश्विक परमाणु युद्ध से उभरे सुपरस्टेट्स ओशिनिया, यूरेशिया और ईस्टासिया के बीच एक सतत युद्ध है। इमैनुएल गोल्डस्टीन द्वारा द थ्योरी एंड प्रैक्टिस ऑफ़ ऑलिगार्सिकल कलेक्टिविज़्म, बताता है कि प्रत्येक राज्य इतना मजबूत है कि गठबंधन बदलने के बावजूद, दो सुपरस्टेट्स की संयुक्त ताकतों के साथ भी इसे हराया नहीं जा सकता है। इस तरह के विरोधाभासों को छिपाने के लिए, अंधराज्यों की सरकारें इतिहास को फिर से लिखती हैं ताकि यह समझाया जा सके कि (नया) गठबंधन हमेशा ऐसा ही था; आबादी पहले से ही इसे दोबारा सोचने और स्वीकार करने की आदी है। युद्ध ओशियानियन, यूरेशियन या ईस्टाशियन क्षेत्र में नहीं लड़ा गया है, लेकिन आर्कटिक कचरे और एक विवादित क्षेत्र में टांगियर्स (उत्तरी अफ्रीका) से डार्विन (ऑस्ट्रेलिया) तक समुद्र और भूमि शामिल है। शुरुआत में ओशिनिया और ईस्टासिया उत्तरी अफ्रीका और मालाबार तट में यूरेशिया से लड़ने वाले सहयोगी हैं।
वह गठबंधन समाप्त हो जाता है, और ओशिनिया, यूरेशिया के साथ संबद्ध, ईस्टासिया से लड़ता है, हेट वीक पर होने वाला एक बदलाव, जो पार्टी के सतत युद्ध के लिए देशभक्ति का उत्साह पैदा करने के लिए समर्पित है। जनता परिवर्तन के प्रति अंधी है; मध्य-वाक्य में एक वक्ता बिना रुके दुश्मन का नाम "यूरेशिया" से बदलकर "ईस्टासिया" कर देता है। जब जनता यह देखकर क्रोधित होती है कि गलत झंडे और पोस्टर प्रदर्शित किए जाते हैं, तो वे उन्हें फाड़ देते हैं; पार्टी ने बाद में पूरे अफ्रीका पर कब्जा करने का दावा किया।
गोल्डस्टीन की पुस्तक बताती है कि अविजित, सतत युद्ध का उद्देश्य मानव श्रम और वस्तुओं का उपभोग करना है ताकि एक सुपरस्टेट की अर्थव्यवस्था प्रत्येक नागरिक के लिए जीवन के उच्च स्तर के साथ आर्थिक समानता का समर्थन न कर सके। अधिकांश उत्पादित वस्तुओं का उपयोग करके, गद्य को गरीब और अशिक्षित रखा जाता है, और पार्टी को उम्मीद है कि उन्हें न तो यह एहसास होगा कि सरकार क्या कर रही है और न ही विद्रोह कर रही है। गोल्डस्टीन आक्रमण से पहले दुश्मन के शहरों पर परमाणु रॉकेटों से हमला करने की एक महासागरीय रणनीति का भी विवरण देता है लेकिन इसे अव्यावहारिक और युद्ध के उद्देश्य के विपरीत कहकर खारिज करता है; १९५० के दशक में शहरों पर परमाणु बमबारी के बावजूद, सुपरस्टेट्स ने इसे इस डर से रोक दिया कि यह शक्तियों को असंतुलित कर देगा। उपन्यास में सैन्य तकनीक द्वितीय विश्व युद्ध से बहुत कम भिन्न है, लेकिन रणनीतिक बमवर्षक विमानों को रॉकेट बमों से बदल दिया गया है, हेलीकॉप्टरों को युद्ध के हथियारों के रूप में भारी इस्तेमाल किया गया था (वे द्वितीय विश्व युद्ध में बहुत मामूली थे) और सतही लड़ाकू इकाइयां सभी लेकिन अपार और अकल्पनीय फ़्लोटिंग किले (एक एकल, अर्ध-मोबाइल प्लेटफॉर्म में एक पूरे नौसेना टास्क फोर्स की मारक क्षमता को केंद्रित करने वाले द्वीप-जैसे गर्भनिरोधक; उपन्यास में एक को आइसलैंड और फरो आइलैंड्स के बीच लंगर डाले जाने के लिए कहा गया है) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है। सी लेन इंटरडिक्शन और इनकार के लिए प्राथमिकता)।
क्लॉड रोज़ेनहोफ़ नोट करते हैं कि:
राजनीतिक भूगोल
उपन्यास में तीन सतत युद्धरत अधिनायकवादी अंधविश्वास दुनिया को नियंत्रित करते हैं:
ओशिनिया (विचारधारा: इंग्सोक, ओल्डस्पीक में अंग्रेजी समाजवाद के रूप में जाना जाता है), जिसका मुख्य क्षेत्र "अमेरिका, अटलांटिक द्वीप समूह, ब्रिटिश द्वीपों, आस्ट्रेलिया और अफ्रीका के दक्षिणी भाग सहित" हैं।
यूरेशिया (विचारधारा: नव-बोल्शेविज़्म), जिसका मुख्य क्षेत्र" पुर्तगाल से बेरिंग जलडमरूमध्य तक यूरोपीय और एशियाई भूभाग का संपूर्ण उत्तरी भाग है।"
ईस्टासिया (विचारधारा: स्व का विस्मरण, जिसे मृत्यु-पूजा के रूप में भी जाना जाता है), जिसका मुख्य क्षेत्र "चीन और इसके दक्षिण के देश, जापानी द्वीप समूह, और मंचूरिया, मंगोलिया और तिब्बत का एक बड़ा लेकिन उतार-चढ़ाव वाला हिस्सा है।"
सुपरस्टेट्स की सीमाओं के बीच स्थित "विवादित क्षेत्र" के नियंत्रण के लिए सतत युद्ध लड़ा जाता है, जो "टैंजियर, ब्राज़ाविल, डार्विन और हांगकांग में अपने कोनों के साथ एक मोटा चतुर्भुज बनाता है", जिसमें इक्वेटोरियल अफ्रीका शामिल है, मध्य पूर्व, भारत और इंडोनेशिया । विवादित क्षेत्र वह है जहां सुपरस्टेट दास श्रम को पकड़ते हैं। मंचूरिया, मंगोलिया और मध्य एशिया में यूरेशिया और ईस्टासिया के बीच और भारतीय और प्रशांत महासागर में विभिन्न द्वीपों पर यूरेशिया और ओशिनिया के बीच लड़ाई भी होती है।
ओशिनिया के मंत्रालय
लंदन में हवाई पट्टी वन की राजधानी, ओशिनिया के चार सरकारी मंत्रालय पिरामिड (३०० मीटर ऊंचे) में हैं, जिनमें से अग्रभाग पार्टी के तीन नारों को प्रदर्शित करता है - "युद्ध शांति है", "स्वतंत्रता गुलामी है", "अज्ञानता शक्ति है" . जैसा कि उल्लेख किया गया है, मंत्रालयों को जानबूझकर उनके वास्तविक कार्यों के विपरीत (डबलथिंक) के नाम पर रखा गया है: "शांति मंत्रालय युद्ध के साथ खुद को चिंतित करता है, झूठ के साथ सत्य मंत्रालय, यातना के साथ प्रेम मंत्रालय और भुखमरी के साथ भरपूर मंत्रालय।" (भाग दो, अध्याय नौ - कुलीन सामूहिकता का सिद्धांत और अभ्यास)।
जबकि एक मंत्रालय का नेतृत्व एक मंत्री द्वारा किया जाता है, इन चार मंत्रालयों के प्रमुख मंत्रियों का कभी उल्लेख नहीं किया जाता है। ऐसा लगता है कि वे जनता की दृष्टि से पूरी तरह से बाहर हैं, बिग ब्रदर सरकार का एकमात्र, कभी-कभी मौजूद सार्वजनिक चेहरा है। इसके अलावा, जब युद्ध लड़ने वाली सेना का नेतृत्व आम तौर पर जनरलों द्वारा किया जाता है, तो किसी का नाम कभी भी उल्लेख नहीं किया जाता है। चल रहे युद्ध की समाचार रिपोर्टें मानती हैं कि बिग ब्रदर व्यक्तिगत रूप से ओशिनिया के लड़ाकू बलों को आदेश देते हैं और उन्हें जीत और सफल सामरिक अवधारणाओं के लिए व्यक्तिगत श्रेय देते हैं। यह स्टालिन के व्यक्तित्व के पंथ की ऊंचाई पर भी सोवियत प्रचार की तुलना में बहुत आगे जाता है।
शांति मंत्रालय
शांति मंत्रालय दो अन्य सुपरस्टेट्स में से किसी एक के खिलाफ ओशिनिया के सतत युद्ध का समर्थन करता है और इसमें संलग्न है:आधुनिक युद्ध का प्राथमिक उद्देश्य (डबलथिंक के सिद्धांतों के अनुसार, यह उद्देश्य एक साथ पहचाना जाता है और इनर पार्टी के निर्देशक दिमाग द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है) जीवन के सामान्य मानक को ऊपर उठाए बिना मशीन के उत्पादों का उपयोग करना है। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत के बाद से औद्योगिक समाज में खपत वस्तुओं के अधिशेष के साथ क्या किया जाए, यह समस्या छिपी हुई है। वर्तमान में जब कुछ मनुष्यों के पास खाने के लिए भी पर्याप्त है, यह समस्या स्पष्ट रूप से अत्यावश्यक नहीं है, और यह ऐसा नहीं हो सकता था, भले ही विनाश की कोई कृत्रिम प्रक्रिया काम नहीं कर रही होती।
बहुतायत मंत्रालय
भरपूर राशन मंत्रालय और भोजन, सामान और घरेलू उत्पादन को नियंत्रित करता है; प्रत्येक वित्तीय तिमाही में यह जीवन स्तर को ऊपर उठाने का दावा करता है, यहां तक कि ऐसे समय में भी जब इसने वास्तव में राशन, उपलब्धता और उत्पादन को कम कर दिया है। सत्य मंत्रालय "बढ़े हुए राशन" के दावों का समर्थन करने वाली संख्याओं की रिपोर्ट करने के लिए ऐतिहासिक अभिलेखों में हेरफेर करके प्लेंटी के दावों की पुष्टि करता है। बहुतायत मंत्रालय भी गद्य के लिए व्याकुलता के रूप में राष्ट्रीय लॉटरी चलाता है; पार्टी के सदस्य इसे एक दिखावटी प्रक्रिया के रूप में समझते हैं जिसमें जीत का भुगतान कभी नहीं किया जाता है।
सत्य मंत्रालय
सत्य मंत्रालय सूचना को नियंत्रित करता है: समाचार, मनोरंजन, शिक्षा और कला। विंस्टन स्मिथ रिकॉर्ड विभाग में काम करते हैं, बिग ब्रदर की वर्तमान घोषणाओं के अनुरूप ऐतिहासिक रिकॉर्ड को "सुधार" करते हैं ताकि पार्टी जो कुछ भी कहती है वह सच प्रतीत हो।
प्रेम मंत्रालय
प्रेम मंत्रालय वास्तविक और काल्पनिक असंतुष्टों की पहचान, निगरानी, गिरफ्तारी और धर्मान्तरण करता है। यह वह जगह भी है जहां थॉट पुलिस असंतुष्टों को पीटती और प्रताड़ित करती है, जिसके बाद उन्हें "दुनिया की सबसे बुरी चीज" का सामना करने के लिए कमरा १०१ में भेज दिया जाता है - जब तक कि बिग ब्रदर और पार्टी के लिए प्यार असंतोष की जगह नहीं ले लेता।
प्रमुख अवधारणाएँ
इंगसोक (अंग्रेजी समाजवाद) ओशिनिया की प्रमुख विचारधारा और दर्शन है, और समाचार पत्र आधिकारिक दस्तावेजों की आधिकारिक भाषा है। ऑरवेल ने पार्टी की विचारधारा को एक कुलीन विश्वदृष्टि के रूप में दर्शाया है जो "हर उस सिद्धांत को अस्वीकार करता है और उसका तिरस्कार करता है जिसके लिए समाजवादी आंदोलन मूल रूप से खड़ा था, और यह समाजवाद के नाम पर ऐसा करता है।"
बिग ब्रदर
बिग ब्रदर उपन्यास में एक काल्पनिक चरित्र और प्रतीक है। वह स्पष्ट रूप से ओशिनिया का नेता है, एक अधिनायकवादी राज्य जिसमें सत्तारूढ़ पार्टी इंग्सोक निवासियों पर "अपने लिए" पूरी शक्ति का इस्तेमाल करती है। ऑरवेल जिस समाज का वर्णन करता है, उसमें प्रत्येक नागरिक अधिकारियों द्वारा निरंतर निगरानी में है, मुख्य रूप से टेलीस्क्रीन (गद्य के अपवाद के साथ)। "बिग ब्रदर इज वॉचिंग यू" स्लोगन द्वारा लोगों को लगातार इसकी याद दिलाई जाती है: एक सूक्ति जो सर्वत्र प्रदर्शित होती है।
आधुनिक संस्कृति में "बिग ब्रदर" शब्द ने सरकारी शक्ति के दुरुपयोग के पर्याय के रूप में शब्दकोश में प्रवेश किया है, विशेष रूप से नागरिक स्वतंत्रता के संबंध में अक्सर विशेष रूप से बड़े पैमाने पर निगरानी से संबंधित।
डबलथिंक
यहाँ कीवर्ड ब्लैकव्हाइट है। इतने सारे न्यूस्पीक शब्दों की तरह इस शब्द के दो परस्पर विरोधी अर्थ हैं। एक विरोधी के लिए लागू, इसका मतलब है कि सादे तथ्यों के विरोधाभास में काला सफेद है, यह दावा करने की आदत है। एक पार्टी सदस्य के लिए लागू, इसका मतलब यह है कि पार्टी के अनुशासन की मांग होने पर यह कहने की निष्ठावान इच्छा है कि काला सफेद है। लेकिन इसका अर्थ यह मानने की क्षमता भी है कि काला सफेद है, और अधिक, यह जानने के लिए कि काला सफेद है, और यह भूल जाना कि किसी ने कभी इसके विपरीत विश्वास किया है। यह अतीत के एक निरंतर परिवर्तन की मांग करता है, जिसे विचार की प्रणाली द्वारा संभव बनाया गया है जो वास्तव में बाकी सभी को गले लगाता है, और जिसे न्यूस्पीक में डबलथिंक के रूप में जाना जाता है। डबलथिंक मूल रूप से किसी के दिमाग में एक साथ दो विरोधाभासी मान्यताओं को धारण करने और दोनों को स्वीकार करने की शक्ति है। — भाग II, अध्याय IX – कुलीन सामूहिकता का सिद्धांत और अभ्यास
समाचार पत्र
द प्रिन्सिपल्स ऑफ़ न्यूस्पीक एक अकादमिक निबंध है जो उपन्यास के साथ जुड़ा हुआ है। यह न्यूस्पीक के विकास का वर्णन करता है, एक कृत्रिम, न्यूनतर भाषा जिसे इंग्सोक के सिद्धांतों के साथ विचारधारात्मक रूप से संरेखित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है ताकि "विधर्मी" विचारों (यानी इंग्सोक के सिद्धांतों के खिलाफ जाने वाले विचार) की अभिव्यक्ति को असंभव बनाया जा सके। यह विचार कि किसी भाषा की संरचना का उपयोग विचार को प्रभावित करने के लिए किया जा सकता है, भाषाई सापेक्षता के रूप में जाना जाता है।
न्यूज़पेक परिशिष्ट का अर्थ उन्नीस सौ चौरासी का एक आशावादी अंत है या नहीं, यह एक महत्वपूर्ण बहस बनी हुई है। कई लोग दावा करते हैं कि यह इस तथ्य का हवाला देते हुए करता है कि यह मानक अंग्रेजी में है और पिछले काल में लिखा गया है: "हमारे अपने से संबंधित, न्यूजपेक शब्दावली छोटी थी, और इसे कम करने के नए तरीके लगातार तैयार किए जा रहे थे" (पृष्ठ . ४२२)। कुछ आलोचकों (एटवुड, बेन्स्टेड, मिलनर, पिंचन) का दावा है कि ऑरवेल के लिए, न्यूजस्पीक और अधिनायकवादी सरकारें अतीत में हैं।
थॉटक्राइम
थॉटक्राइम किसी व्यक्ति के राजनीतिक रूप से अपरंपरागत विचारों का वर्णन करता है, जैसे कि अनकही मान्यताएं और संदेह जो ओशिनिया की प्रमुख विचारधारा इंग्सोक (अंग्रेजी समाजवाद) के सिद्धांतों का खंडन करते हैं। न्यूस्पीक की आधिकारिक भाषा में क्राइमथिंक''' शब्द एक ऐसे व्यक्ति के बौद्धिक कार्यों का वर्णन करता है जो राजनीतिक रूप से अस्वीकार्य विचारों का मनोरंजन करता है और रखता है; इस प्रकार पार्टी की सरकार ओशिनिया के नागरिकों के भाषण, कार्यों और विचारों को नियंत्रित करती है। समकालीन अंग्रेजी उपयोग में थॉटक्राइम उन विश्वासों का वर्णन करता है जो समाज के स्वीकृत मानदंडों के विपरीत हैं, और इसका उपयोग अविश्वास और मूर्तिपूजा, और एक विचारधारा की अस्वीकृति जैसी धार्मिक अवधारणाओं का वर्णन करने के लिए किया जाता है।
विषय-वस्तु
राष्ट्रवाद उन्नीस सौ चौरासी कुछ राजनीतिक ताकतों के पीछे अपरिचित घटनाओं की व्याख्या करने के लिए आवश्यक शब्दावली की कमी के बारे में ऑरवेल के निबंध "नोट्स ऑन नेशनलिज्म" में संक्षेपित विषयों पर विस्तार करता है। उन्नीस सौ चौरासी में पार्टी की कृत्रिम, न्यूनतम भाषा 'न्यूस्पीक' इस मामले को संबोधित करती है।
सकारात्मक राष्ट्रवाद: उदाहरण के लिए, ओशियंस का बिग ब्रदर के लिए सतत प्रेम। ऑरवेल निबंध में तर्क देते हैं कि नव-टोरीवाद और सेल्टिक राष्ट्रवाद जैसी विचारधाराओं को किसी इकाई के प्रति वफादारी की उनकी जुनूनी भावना से परिभाषित किया गया है।
नकारात्मक राष्ट्रवाद: उदाहरण के लिए, इमैनुएल गोल्डस्टीन के लिए ओसियंस की चिरस्थायी घृणा। ऑरवेल निबंध में तर्क देते हैं कि ट्रॉटस्कीवाद और एंटीसेमिटिज्म जैसी विचारधाराओं को किसी इकाई के प्रति उनकी जुनूनी नफरत से परिभाषित किया गया है।
हस्तांतरित राष्ट्रवाद: उदाहरण के लिए, जब ओशिनिया का दुश्मन बदलता है, एक वक्ता मध्य-वाक्य में बदलाव करता है, और भीड़ तुरंत अपनी नफरत को नए दुश्मन में स्थानांतरित कर देती है। ऑरवेल का तर्क है कि स्टालिनवाद जैसी विचारधाराएं और धनी बुद्धिजीवियों के बीच नस्लीय दुश्मनी और वर्ग श्रेष्ठता की पुनर्निर्देशित भावनाएँ इसका उदाहरण हैं। स्थानांतरित राष्ट्रवाद तेजी से भावनाओं को एक शक्ति इकाई से दूसरी में पुनर्निर्देशित करता है। उपन्यास में यह हेट वीक के दौरान होता है, मूल दुश्मन के खिलाफ एक पार्टी रैली। भीड़ उग्र हो जाती है और उन पोस्टरों को नष्ट कर देती है जो अब उनके नए दोस्त के खिलाफ हैं, और कई लोग कहते हैं कि यह उनके नए दुश्मन और पूर्व मित्र के एजेंट का कार्य होना चाहिए। भीड़ में से कई लोगों ने रैली से पहले पोस्टर लगाए होंगे लेकिन सोचिए कि हालात हमेशा से ऐसे ही रहे हैं।
ओ'ब्रायन ने निष्कर्ष निकाला: "उत्पीड़न का उद्देश्य उत्पीड़न है। यातना की वस्तु यातना है। शक्ति का उद्देश्य शक्ति है।"
फ्यूचरोलॉजी
किताब में इनर पार्टी के सदस्य ओ'ब्रायन ने भविष्य के लिए पार्टी की दृष्टि का वर्णन किया है:
सेंसरशिप उन्नीस सौ चौरासी में सबसे उल्लेखनीय विषयों में से एक सेंसरशिप है, विशेष रूप से सत्य मंत्रालय में जहां तस्वीरों और सार्वजनिक अभिलेखागार को "अनपर्सन" (वे लोग जो पार्टी द्वारा इतिहास से मिटा दिए गए हैं) से छुटकारा पाने के लिए हेरफेर किया जाता है। टेलिस्क्रीन पर उत्पादन के लगभग सभी आंकड़े अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए जाते हैं या हमेशा बढ़ती अर्थव्यवस्था को इंगित करने के लिए गढ़े जाते हैं, यहां तक कि ऐसे समय में भी जब वास्तविकता विपरीत होती है। अंतहीन सेंसरशिप का एक छोटा सा उदाहरण विंस्टन पर एक अखबार के लेख में एक अव्यक्ति के संदर्भ को खत्म करने के कार्य का आरोप लगाया जा रहा है। वह कॉमरेड ओगिल्वी के बारे में एक लेख लिखने के लिए भी आगे बढ़ता है, जो एक बना-बनाया पार्टी सदस्य है, जिसने कथित तौर पर "हेलीकॉप्टर से समुद्र में छलांग लगाकर महान वीरता का प्रदर्शन किया ताकि वह जो प्रेषण कर रहा था वह दुश्मन के हाथों में न पड़ जाए।"
निगरानी
ओशिनिया में उच्च और मध्यम वर्ग के पास वास्तविक गोपनीयता बहुत कम है। उनके सभी घर और अपार्टमेंट टेलीस्क्रीन से सुसज्जित हैं ताकि उन्हें किसी भी समय देखा या सुना जा सके। इसी तरह के टेलीस्क्रीन वर्कस्टेशन और सार्वजनिक स्थानों पर छिपे हुए माइक्रोफोन के साथ पाए जाते हैं। लिखित पत्राचार नियमित रूप से सरकार द्वारा वितरित किए जाने से पहले खोला और पढ़ा जाता है। थॉट पुलिस अंडरकवर एजेंटों को नियुक्त करती है, जो सामान्य नागरिक होने का ढोंग करते हैं और विध्वंसक प्रवृत्ति वाले किसी भी व्यक्ति की रिपोर्ट करते हैं। बच्चों को सरकार को संदिग्ध व्यक्तियों की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, और कुछ अपने माता-पिता की निंदा करते हैं। नागरिक नियंत्रित हैं, और विद्रोह का सबसे छोटा संकेत, यहां तक कि एक संदिग्ध चेहरे की अभिव्यक्ति के रूप में कुछ भी, तत्काल गिरफ्तारी और कारावास का परिणाम हो सकता है। इस प्रकार, नागरिकों को आज्ञाकारिता के लिए मजबूर किया जाता है।
गरीबी और असमानता
गोल्डस्टीन की पुस्तक के अनुसार, लगभग पूरी दुनिया गरीबी में रहती है; भूख, प्यास, बीमारी और गंदगी आदर्श हैं। बर्बाद हुए शहर और कस्बे आम हैं: सतत युद्धों और अत्यधिक आर्थिक अक्षमता का परिणाम। सामाजिक क्षय और जर्जर इमारतें विंस्टन को घेर लेती हैं; मंत्रालयों के मुख्यालय के अलावा, लंदन के कुछ हिस्से का पुनर्निर्माण किया गया था। मध्यम वर्ग के नागरिक और गद्य सिंथेटिक खाद्य पदार्थों और खराब-गुणवत्ता वाली "विलासिता" का उपभोग करते हैं, जैसे ऑयली जिन और ढीले-ढाले सिगरेट, "विक्ट्री" ब्रांड के तहत वितरित, निम्न-गुणवत्ता वाले भारतीय-निर्मित "विक्ट्री" सिगरेट की पैरोडी, जो ब्रिटिश सैनिक आमतौर पर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान धूम्रपान करते थे।
विंस्टन एक टूटी हुई खिड़की की मरम्मत के रूप में सरल कुछ का वर्णन करता है, जिसके लिए समिति की मंजूरी की आवश्यकता होती है, जिसमें कई साल लग सकते हैं और इसलिए किसी एक ब्लॉक में रहने वाले अधिकांश लोग आमतौर पर खुद मरम्मत करते हैं (विंस्टन को खुद मिसेज जॉर्ज द्वारा बुलाया जाता है)। पार्सन्स को उसके अवरुद्ध सिंक की मरम्मत करने के लिए)। सभी उच्च-वर्ग और मध्य-वर्ग के आवासों में टेलीस्क्रीन शामिल हैं जो प्रचार और निगरानी उपकरणों के आउटलेट के रूप में काम करते हैं जो थॉट पुलिस को उनकी निगरानी करने की अनुमति देते हैं; उन्हें ठुकराया जा सकता है, लेकिन मध्यवर्गीय आवासों को बंद नहीं किया जा सकता है।
अपने अधीनस्थों के विपरीत, ओशनियन समाज का उच्च वर्ग अपने स्वयं के क्वार्टर में स्वच्छ और आरामदायक फ्लैटों में रहता है, जिसमें शराब, असली कॉफी, असली चाय, असली दूध और असली चीनी जैसे खाद्य पदार्थों के साथ अच्छी तरह से भंडारित पैंट्री होती है, सभी को मना कर दिया जाता है आम जनता। विंस्टन हैरान है कि ओ'ब्रायन के निर्माण कार्य में लिफ्ट, टेलीस्क्रीन को पूरी तरह से बंद किया जा सकता है, और ओ'ब्रायन के पास एक एशियाई नौकर, मार्टिन है। सभी उच्च वर्ग के नागरिकों को "विवादित क्षेत्र" में पकड़े गए दासों द्वारा भाग लिया जाता है, और "द बुक" से पता चलता है कि कई लोगों की अपनी कार या हेलीकॉप्टर भी हैं।
हालांकि, उनके अलगाव और प्रत्यक्ष विशेषाधिकारों के बावजूद, उच्च वर्ग अभी भी सरकार के विचार और व्यवहार के क्रूर प्रतिबंध से मुक्त नहीं है, भले ही झूठ और प्रचार स्पष्ट रूप से अपने स्वयं के रैंकों से उत्पन्न होता है। इसके बजाय, ओशनियन सरकार उच्च वर्ग को राज्य के प्रति अपनी वफादारी बनाए रखने के बदले में अपनी "विलासिता" प्रदान करती है; गैर-अनुरूप उच्च वर्ग के नागरिकों को अभी भी किसी अन्य व्यक्ति की तरह ही निंदा, प्रताड़ित और निष्पादित किया जा सकता है। "द बुक" स्पष्ट करती है कि उच्च वर्ग के रहने की स्थिति केवल "अपेक्षाकृत" आरामदायक है, और पूर्व-क्रांतिकारी अभिजात वर्ग के लोगों द्वारा इसे "आश्रय" माना जाएगा।
गद्य गरीबी में रहते हैं और उन्हें अश्लील साहित्य के साथ बहकाया जाता है, एक राष्ट्रीय लॉटरी जिसकी जीत का भुगतान शायद ही कभी किया जाता है, जो तथ्य प्रचार और ओशिनिया के भीतर संचार की कमी से अस्पष्ट है, और जिन, "जो गद्य पीने वाले नहीं थे"। इसी समय, गद्य उच्च वर्गों की तुलना में अधिक स्वतंत्र और कम डरा हुआ है: उनसे विशेष रूप से देशभक्तिपूर्ण होने की उम्मीद नहीं की जाती है और उन पर निगरानी का स्तर बहुत कम है। उनके अपने घरों में टेलीस्क्रीन की कमी होती है और अक्सर वे जो टेलीस्क्रीन देखते हैं उसका उपहास करते हैं। "पुस्तक" इंगित करती है कि क्योंकि मध्यम वर्ग, निम्न वर्ग नहीं, पारंपरिक रूप से क्रांतियों को शुरू करता है, मॉडल मध्य वर्ग के सख्त नियंत्रण की मांग करता है, महत्वाकांक्षी बाहरी-पार्टी के सदस्यों को आंतरिक पार्टी या "पुनर्संयोजन" के माध्यम से पदोन्नति के माध्यम से निष्प्रभावी किया जाता है। प्रेम मंत्रालय द्वारा, और गद्य को बौद्धिक स्वतंत्रता की अनुमति दी जा सकती है क्योंकि उन्हें बुद्धि की कमी माना जाता है। विंस्टन फिर भी मानते हैं कि "भविष्य गद्य का था"।
जनसंख्या का जीवन स्तर समग्र रूप से अत्यंत निम्न है। उपभोक्ता सामान दुर्लभ हैं, और जो आधिकारिक चैनलों के माध्यम से उपलब्ध हैं, वे निम्न गुणवत्ता वाले हैं; उदाहरण के लिए, पार्टी नियमित रूप से बूट उत्पादन में वृद्धि की सूचना देने के बावजूद, ओशिनिया की आधी से अधिक आबादी नंगे पांव जाती है। पार्टी का दावा है कि युद्ध के प्रयास के लिए गरीबी एक आवश्यक बलिदान है, और "पुस्तक" पुष्टि करती है कि स्थायी युद्ध के उद्देश्य से अधिशेष औद्योगिक उत्पादन का उपभोग करने के लिए आंशिक रूप से सही है। जैसा कि "द बुक" बताती है, समाज वास्तव में भुखमरी के कगार पर बने रहने के लिए डिज़ाइन किया गया है, क्योंकि "लंबे समय में एक पदानुक्रमित समाज केवल गरीबी और अज्ञानता के आधार पर ही संभव था।"
साहित्यिक रूपांकनों के लिए स्रोत उन्नीस सौ चौरासी अपने कई रूपांकनों के स्रोतों के रूप में सोवियत संघ में जीवन और ग्रेट ब्रिटेन में युद्धकालीन जीवन से विषयों का उपयोग करता है। पुस्तक के पहले अमेरिकी प्रकाशन के कुछ समय बाद एक अनिर्दिष्ट तिथि पर निर्माता सिडनी शेल्डन ने ब्रॉडवे मंच पर उपन्यास को अनुकूलित करने में रुचि रखने वाले ऑरवेल को लिखा। ऑरवेल ने शेल्डन को एक पत्र में लिखा (जिसे वह अमेरिकी मंच के अधिकार बेचेंगे) कि उन्नीस सौ चौरासी के साथ उनका मूल लक्ष्य ब्रिटिश समाज पर शासन करने वाली स्टालिनवादी सरकार के परिणामों की कल्पना करना था:[उन्नीस सौ चौरासी] मुख्य रूप से साम्यवाद पर आधारित था, क्योंकि यह अधिनायकवाद का प्रमुख रूप है, लेकिन मैं मुख्य रूप से यह कल्पना करने की कोशिश कर रहा था कि अगर साम्यवाद अंग्रेजी बोलने वाले देशों में मजबूती से जड़ जमा ले, और अब यह केवल एक मात्र नहीं है तो कैसा होगा रूसी विदेश कार्यालय का विस्तार।ऑरवेल के जीवनी लेखक डीजे टेलर के अनुसार, लेखक की ए क्लर्जमैन्स डॉटर (१९३५) में "अनिवार्य रूप से उन्नीस सौ चौरासी का एक ही कथानक है...यह किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में है जिसकी जासूसी की जाती है, और उस पर ध्यान दिया जाता है, और विशाल बाहरी ताकतों द्वारा उत्पीड़ित किया जाता है, जिसके बारे में वे कुछ नहीं कर सकते। यह विद्रोह का प्रयास करता है और फिर समझौता करना पड़ता है।"
बयान "२ + २ = ५", विंस्टन स्मिथ को उनकी पूछताछ के दौरान परेशान करता था, दूसरी पंचवर्षीय योजना का एक कम्युनिस्ट पार्टी का नारा था, जिसने चार वर्षों में पंचवर्षीय योजना को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किया। मॉस्को के घरों के सामने, होर्डिंग और अन्य जगहों पर बिजली की रोशनी में नारा देखा गया था।
ईस्टासिया से यूरेशिया तक ओशिनिया की निष्ठा का स्विच और बाद में इतिहास का पुनर्लेखन ("ओशिनिया ईस्टासिया के साथ युद्ध में था: ओशिनिया हमेशा ईस्टासिया के साथ युद्ध में रहा था। पांच वर्षों के राजनीतिक साहित्य का एक बड़ा हिस्सा अब पूरी तरह से अप्रचलित था"; अध्याय ९) नाजी जर्मनी के साथ सोवियत संघ के बदलते संबंधों का विचारोत्तेजक है। १९३९ की गैर-आक्रामकता संधि पर हस्ताक्षर होने तक दोनों राष्ट्र खुले और अक्सर एक-दूसरे के आलोचक थे। इसके बाद और १९४१ में सोवियत संघ पर नाजी आक्रमण तक जारी रहा, सोवियत प्रेस में जर्मनी की किसी भी आलोचना की अनुमति नहीं दी गई थी, और पूर्व पार्टी लाइनों के सभी संदर्भों को बंद कर दिया गया था - जिसमें अधिकांश गैर-रूसी कम्युनिस्ट पार्टियां भी शामिल थीं, जो इसका पालन करने के लिए प्रवृत्त थीं। रूसी रेखा। ऑरवेल ने वामपंथ के विश्वासघात (१९४१) के लिए अपने निबंधों में संधि का समर्थन करने के लिए ग्रेट ब्रिटेन की कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना की थी। "अगस्त १९३९ के हिटलर-स्टालिन समझौते ने सोवियत संघ की घोषित विदेश नीति को उलट दिया। गोलान्ज [ऑरवेल के कुछ समय के प्रकाशक] जैसे कई साथी-यात्रियों के लिए यह बहुत अधिक था, जिन्होंने पॉपुलर फ्रंट सरकारों और रूस, ब्रिटेन और फ्रांस के शांति ब्लॉक के निर्माण की रणनीति में अपना विश्वास रखा था।
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इमैनुएल गोल्डस्टीन का वर्णन, "छोटी, बकरी की दाढ़ी" के साथ, लियोन ट्रॉट्स्की की छवि को उद्घाटित करता है। टू मिनट्स हेट के दौरान गोल्डस्टीन की फिल्म का वर्णन उन्हें एक मिमियाती भेड़ में बदलते हुए दिखाया गया है। इस छवि का उपयोग सोवियत फिल्म की किनो-आई अवधि के दौरान एक प्रचार फिल्म में किया गया था, जिसमें ट्रॉट्स्की को एक बकरी में बदलते दिखाया गया था। गोल्डस्टीन की तरह ट्रॉट्स्की एक पूर्व उच्च पदस्थ पार्टी अधिकारी थे, जिन्हें बहिष्कृत कर दिया गया था और फिर उन्होंने पार्टी शासन की आलोचना करते हुए एक पुस्तक लिखी, द रेवोल्यूशन बेट्रेयड, १९३६ में प्रकाशित हुई।
बिग ब्रदर की सर्वव्यापी छवियां, एक व्यक्ति जिसे मूंछों के रूप में वर्णित किया गया है, जोसेफ स्टालिन के आसपास निर्मित व्यक्तित्व के पंथ के समान है।
ओशिनिया में समाचार ने उत्पादन के आंकड़ों पर जोर दिया, जैसा कि सोवियत संघ में हुआ था, जहां कारखानों में रिकॉर्ड-सेटिंग (" समाजवादी श्रम के नायकों ") को विशेष रूप से महिमामंडित किया गया था। इनमें से सबसे प्रसिद्ध एलेक्सी स्टैखानोव थे, जिन्होंने कथित तौर पर १९३५ में कोयला खनन के लिए एक रिकॉर्ड बनाया था।
प्रेम मंत्रालय की यातनाएं एनकेवीडी द्वारा उनकी पूछताछ में इस्तेमाल की जाने वाली प्रक्रियाओं को उद्घाटित करती हैं, जिसमें रबड़ की डंडियों का उपयोग, अपनी जेबों में हाथ डालने की मनाही, कई दिनों तक चमकदार रोशनी वाले कमरों में रहना, अपने सबसे बड़े डर के उपयोग के माध्यम से यातना देना, और पीड़ित को उनके शारीरिक पतन के बाद आईना दिखाया जाना शामिल है।
एयरस्ट्रिप वन की यादृच्छिक बमबारी १९४४-१९४५ में बज़ बम और वी-२ रॉकेट द्वारा लंदन के क्षेत्र में बमबारी पर आधारित है।
थॉट पुलिस एनकेवीडी पर आधारित है, जिसने यादृच्छिक "सोवियत विरोधी" टिप्पणियों के लिए लोगों को गिरफ्तार किया। थॉट क्राइम मोटिफ केम्पेताई, जापानी युद्धकालीन गुप्त पुलिस से लिया गया है, जिसने लोगों को "देशभक्तिहीन" विचारों के लिए गिरफ्तार किया था।
"थॉट क्रिमिनल्स" रदरफोर्ड, आरोनसन और जोन्स के इकबालिया बयान १९३० के शो ट्रायल पर आधारित हैं, जिसमें प्रमुख बोल्शेविक निकोलाई बुकहरिन, ग्रिगोरी ज़िनोविएव और लेव कामेनेव द्वारा मनगढ़ंत स्वीकारोक्ति शामिल थी, जो नाज़ी द्वारा भुगतान किए जा रहे थे। लियोन ट्रॉट्स्की के निर्देशन में सोवियत शासन को कमजोर करने के लिए सरकार।
गीत "अंडर द स्प्रेडिंग चेस्टनट ट्री" ("फैलिंग चेस्टनट ट्री के नीचे, मैंने तुम्हें बेच दिया, और तुमने मुझे बेच दिया") एक पुराने अंग्रेजी गीत पर आधारित था जिसे "गो नो मोर ए-रशिंग" कहा जाता था ("अंडर द स्प्रेडिंग चेस्टनट ट्री", जहाँ मैं अपने घुटने के बल गिरा, हम उतने ही खुश थे जितने कि हो सकते थे, 'फैलते शाहबलूत के पेड़ के नीचे।"). यह गीत १८९१ की शुरुआत में प्रकाशित हुआ था। यह गीत १९२० के दशक में एक लोकप्रिय शिविर गीत था, जिसे संबंधित आंदोलनों के साथ गाया गया था (जैसे "छाती" गाते समय किसी की छाती को छूना, और "अखरोट" गाते समय किसी के सिर को छूना)। ग्लेन मिलर ने १९३९ में गाना रिकॉर्ड किया।
"हेट" (टू मिनट्स हेट एंड हेट वीक) पूरे स्टालिनवादी काल में पार्टी के अंगों द्वारा प्रायोजित लगातार रैलियों से प्रेरित थे। ये अक्सर श्रमिकों को उनकी शिफ्ट शुरू होने से पहले दी जाने वाली छोटी-छोटी पेप-वार्ताएँ थीं (टू मिनट्स हेट), लेकिन अक्टूबर क्रांति (हेट वीक) की वर्षगांठ के वार्षिक समारोह के रूप में भी दिनों तक चल सकती थी।
ऑरवेल ने "समाचार पत्र", "डबलथिंक", और "सत्य मंत्रालय" को सोवियत प्रेस और ब्रिटिश युद्धकालीन उपयोग, जैसे "मिनीफॉर्म" दोनों के आधार पर काल्पनिक बनाया। विशेष रूप से उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए निर्मित सोवियत वैचारिक प्रवचन को अनुकूलित किया कि सार्वजनिक बयानों पर सवाल नहीं उठाया जा सकता।
विंस्टन स्मिथ की नौकरी, "इतिहास को संशोधित करना" (और "अनपर्सन" रूपांकन) सोवियत संघ में छवियों की सेंसरशिप पर आधारित है, जिसने समूह तस्वीरों से "गिरे हुए" लोगों की छवियों को प्रसारित किया और पुस्तकों और समाचार पत्रों में उनके संदर्भों को हटा दिया। एक प्रसिद्ध उदाहरण में ग्रेट सोवियत एनसाइक्लोपीडिया के दूसरे संस्करण में लैवेंटी बेरिया के बारे में एक लेख था। सत्ता और निष्पादन से उनके पतन के बाद ग्राहकों को संपादक से एक पत्र प्राप्त हुआ उन्हें बेरिया पर तीन-पृष्ठ के लेख को काटने और नष्ट करने का निर्देश दिया गया और इसके स्थान पर संलग्न प्रतिस्थापन पृष्ठों को एफडब्ल्यू बर्घोलज़ पर आसन्न लेखों का विस्तार करते हुए चिपकाया गया (एक १८वां) सदी के दरबारी), बेरिंग सागर और बिशप बर्कले ।
बिग ब्रदर के "ऑर्डर्स ऑफ द डे" स्टालिन के नियमित युद्धकालीन आदेशों से प्रेरित थे, जिन्हें इसी नाम से पुकारा जाता था। इनमें से अधिक राजनीतिक का एक छोटा संग्रह जोसेफ स्टालिन द्वारा अंग्रेजी में "सोवियत संघ के महान देशभक्ति युद्ध पर" के रूप में प्रकाशित किया गया है (उनके युद्धकालीन भाषणों के साथ)। बिग ब्रदर के ऑर्डर्स ऑफ द डे की तरह स्टालिन के अक्सर प्रशंसित वीर व्यक्ति, कॉमरेड ओगिल्वी की तरह काल्पनिक नायक विंस्टन स्मिथ ने बिग ब्रदर ऑर्डर ऑफ द डे को "सुधारने" (बनाने) का आविष्कार किया।
इंग्सोक का नारा "हमारा नया, सुखी जीवन", टेलीस्क्रीन से दोहराया गया, स्टालिन के १९३५ के बयान को उद्घाटित करता है, जो सीपीएसयू का नारा बन गया, "जीवन बेहतर हो गया है, कामरेड; जीवन अधिक हर्षित हो गया है।"
१९४० में अर्जेंटीना के लेखक जॉर्ज लुइस बोर्जेस ने "त्लोन, उकबार, ऑरबिस टर्शीयस" प्रकाशित किया, जो एक ऐसी दुनिया के "परोपकारी गुप्त समाज" द्वारा आविष्कार का वर्णन करता है जो मानव-आविष्कारित लाइनों के साथ मानव भाषा और वास्तविकता का रीमेक बनाना चाहता है। परियोजना की सफलता का वर्णन करने वाले परिशिष्ट के साथ कहानी समाप्त होती है। बोर्गेस की कहानी १९८४ तक ज्ञानमीमांसा, भाषा और इतिहास के समान विषयों को संबोधित करती है
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, ऑरवेल का मानना था कि १९३९ से पहले मौजूद ब्रिटिश लोकतंत्र युद्ध से नहीं बचेगा। सवाल यह है कि "क्या यह ऊपर से फासीवादी तख्तापलट के माध्यम से या नीचे से समाजवादी क्रांति के माध्यम से समाप्त होगा?" बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि घटनाओं ने उन्हें गलत साबित कर दिया: "वास्तव में क्या मायने रखता है कि मैं यह मानने के जाल में फंस गया कि 'युद्ध और क्रांति अविभाज्य हैं'।" उन्नीस सौ चौरासी (१९४९) और एनिमल फार्म (१९४५) विश्वासघाती क्रांति के विषयों को साझा करते हैं, सामूहिक रूप से व्यक्ति की अधीनता, कठोर रूप से लागू वर्ग भेद (इनर पार्टी, आउटर पार्टी, गद्य), व्यक्तित्व का पंथ, एकाग्रता शिविर, विचार पुलिस, अनिवार्य नियमित दैनिक व्यायाम, और युवा लीग। ओशिनिया ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के लिए एशियाई संकट का मुकाबला करने के लिए ब्रिटिश साम्राज्य के अमेरिकी कब्जे के परिणामस्वरूप हुआ। यह एक नौसैनिक शक्ति है जिसका सैन्यवाद तैरते हुए किले के नाविकों की पूजा करता है, जिसमें से भारत को ब्रिटिश साम्राज्य के "ज्वेल इन द क्राउन" पर पुनः कब्जा करने के लिए लड़ाई दी जाती है। जोसेफ स्टालिन - बिग ब्रदर के तहत अधिकांश महासागरीय समाज यूएसएसआर पर आधारित है। टेलीविज़न पर प्रसारित टू मिनट्स हेट राज्य के दुश्मनों, विशेष रूप से इमैनुएल गोल्डस्टीन (अर्थात लियोन ट्रॉट्स्की) का अनुष्ठान है। १९६० के दशक के शुद्धिकरण (जैसे १९३० के दशक के सोवियत पर्ज, जिसमें बोल्शेविक क्रांति के नेता शामिल थे) में शासन के संस्थापक सदस्यों (जोन्स, आरोनसन और रदरफोर्ड) सहित राष्ट्रीय ऐतिहासिक रिकॉर्ड से हटाई गई तस्वीरों और अखबारों के लेखों में बदलाव किए गए हैं। इसी तरह व्यवहार किया गया)। फ्रांसीसी क्रांति के आतंक के शासनकाल के दौरान भी ऐसा ही हुआ था जिसमें क्रांति के कई मूल नेताओं को बाद में मौत के घाट उतार दिया गया था, उदाहरण के लिए डेंटन जिसे रोबेस्पिएरे ने मौत के घाट उतार दिया था, और फिर बाद में खुद रोबेस्पिएरे का भी वही हश्र हुआ .
अपने १९४६ के निबंध "व्हाई आई राइट" में ऑरवेल बताते हैं कि स्पेनिश गृहयुद्ध (१९३६-३९) के बाद से उन्होंने जो गंभीर रचनाएँ लिखीं, वे "प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अधिनायकवाद के खिलाफ और लोकतांत्रिक समाजवाद के लिए लिखी गईं" थीं। उन्नीस सौ चौरासी क्रांति के बारे में एक सतर्क कहानी है, जिसे अधिनायकवादी रक्षकों ने धोखा दिया है, जो पहले होमेज टू कैटेलोनिया (१९३८) और एनिमल फार्म (१९४५) में प्रस्तावित था, जबकि कमिंग अप फॉर एयर (१९३९) उन्नीस सौ चौरासी में खोई गई व्यक्तिगत और राजनीतिक स्वतंत्रता का जश्न मनाती है। (१९४९)। जीवनी लेखक माइकल शेल्डन ने हेनले-ऑन-थेम्स में ऑरवेल के एडवर्डियन बचपन को सुनहरे देश के रूप में नोट किया; पीड़ितों के साथ सहानुभूति के रूप में सेंट साइप्रियन स्कूल में तंग किया जा रहा है; बर्मा में भारतीय इंपीरियल पुलिस में उनका जीवन और बीबीसी में हिंसा और सेंसरशिप की तकनीक एक सनकी अधिकार के रूप में।
अन्य प्रभावों में शामिल हैं डार्कनेस एट नून (१९४०) और आर्थर कोस्टलर द्वारा द योगी एंड द कमिसार (१९४५); जैक लंदन द्वारा द आयरन हील (१९०८); १९२०: जॉन ए. हॉब्सन द्वारा नियर फ्यूचर में डिप्स ; एल्डस हक्सले द्वारा ब्रेव न्यू वर्ल्ड (१९३२); हम (१९२१) येवगेनी ज़मायटिन द्वारा जिसकी उन्होंने १९४६ में समीक्षा की; और जेम्स बर्नहैम द्वारा प्रबंधकीय क्रांति (१९४०) में तीन अधिनायकवादी महाराज्यों के बीच सतत युद्ध की भविष्यवाणी की गई है। ऑरवेल ने जैसिंथा बुडिकॉम से कहा कि वह एचजी वेल्स द्वारा ए मॉडर्न यूटोपिया (१९०५) की तरह शैलीगत रूप से एक उपन्यास लिखेंगे।
द्वितीय विश्व युद्ध से बाहर निकलते हुए, उपन्यास की मिलावट युद्ध के अंत में राजनीति और बयानबाजी के समानांतर होती है - "शीत युद्ध" (१९४५-९१) की शुरुआत में बदले हुए गठबंधन; सत्य मंत्रालय सूचना मंत्रालय द्वारा नियंत्रित बीबीसी की विदेशी सेवा से निकला है; कमरा १०१ बीबीसी ब्रॉडकास्टिंग हाउस के एक सम्मेलन कक्ष से निकला है; लंदन विश्वविद्यालय का सीनेट हाउस, जिसमें सूचना मंत्रालय शामिल है, मिनिट्रू के लिए वास्तु प्रेरणा है; युद्ध के बाद की गिरावट यूके और यूएस के सामाजिक-राजनीतिक जीवन से निकली है, यानी, १९४८ के गरीब ब्रिटेन ने समाचार पत्रों द्वारा रिपोर्ट की गई शाही विजय के बावजूद अपना साम्राज्य खो दिया; और युद्ध सहयोगी लेकिन शांति-काल का दुश्मन, सोवियत रूस यूरेशिया बन गया।
ऑरवेल के युद्धकालीन लेखन में "इंग्लिश सोशलिज्म" शब्द के उदाहरण हैं; निबंध "द लायन एंड द यूनिकॉर्न: सोशलिज्म एंड द इंग्लिश जीनियस" (१९४१) में उन्होंने कहा कि "युद्ध और क्रांति अविभाज्य हैं... तथ्य यह है कि हम युद्ध में हैं, ने समाजवाद को पाठ्यपुस्तक के शब्द से एक वास्तविक नीति में बदल दिया है" - क्योंकि ब्रिटेन की सेवानिवृत्त सामाजिक वर्ग प्रणाली ने युद्ध के प्रयासों में बाधा डाली और केवल एक समाजवादी अर्थव्यवस्था ही एडॉल्फ हिटलर को हरा देगी। मध्यम वर्ग की इस समझ को देखते हुए, वे भी समाजवादी क्रांति का पालन करेंगे और केवल प्रतिक्रियावादी ब्रिटेन ही इसका विरोध करेंगे, इस प्रकार बल क्रांतिकारियों को सीमित करने के लिए सत्ता लेने की आवश्यकता होगी। एक अंग्रेजी समाजवाद आएगा जो "समझौता की परंपरा और राज्य से ऊपर के कानून में विश्वास के साथ कभी भी स्पर्श नहीं करेगा। यह गद्दारों को गोली मार देगा, लेकिन यह उन्हें पहले से ही एक गंभीर परीक्षण देगा और कभी-कभी उन्हें बरी कर देगा। यह किसी भी खुले विद्रोह को तुरंत और क्रूरता से कुचल देगा, लेकिन यह मौखिक और लिखित शब्दों में बहुत कम हस्तक्षेप करेगा।"उन्नीस सौ चौरासी की दुनिया में "अंग्रेजी समाजवाद" (या न्यूस्पीक में "इंगसॉक") एक अधिनायकवादी विचारधारा है जो अंग्रेजी क्रांति के विपरीत है जिसे उन्होंने देखा था। युद्ध के समय के निबंध "द लायन एंड द यूनिकॉर्न" की उन्नीस सौ चौरासी के साथ तुलना से पता चलता है कि उन्होंने बिग ब्रदर शासन को अपने पोषित समाजवादी आदर्शों और अंग्रेजी समाजवाद के विकृति के रूप में माना। इस प्रकार ओशिनिया ब्रिटिश साम्राज्य का भ्रष्टाचार है, उनका मानना था कि "सोवियत गणराज्यों के संघ के एक कमजोर और मुक्त संस्करण की तरह समाजवादी राज्यों के एक संघ में" विकसित होगा।
आलोचनात्मक स्वीकार्यता
जब यह पहली बार प्रकाशित हुआ, तो उन्नीस सौ चौरासी को आलोचनात्मक प्रशंसा मिली। न्यू स्टेट्समैन के लिए उपन्यास की समीक्षा करते हुए वी.एस. प्रिटचेट ने कहा: "मुझे नहीं लगता कि मैंने इससे अधिक भयावह और निराशाजनक उपन्यास कभी पढ़ा है; और फिर भी, मौलिकता, रहस्य, लिखने की गति और क्रोध को कम करना असंभव है। किताब नीचे रखने के लिए।" पीएच न्यूबी ने द लिसनर पत्रिका के लिए उन्नीस सौ चौरासी की समीक्षा करते हुए इसे "रेक्स वार्नर के द एरोड्रोम के बाद से एक अंग्रेज द्वारा लिखा गया सबसे अधिक गिरफ्तार करने वाला राजनीतिक उपन्यास" बताया। उन्नीस सौ चौरासी की प्रशंसा बर्ट्रेंड रसेल, ईएम फोर्स्टर और हेरोल्ड निकोलसन ने भी की थी। दूसरी ओर, एडवर्ड शैंक्स, द संडे टाइम्स के लिए उन्नीस सौ चौरासी की समीक्षा कर रहे थे, खारिज कर रहे थे; शैंक्स ने दावा किया कि उन्नीस सौ चौरासी ने "उदास वसीयत के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए"। सीएस लुईस भी उपन्यास के आलोचक थे, उनका दावा था कि जूलिया और विंस्टन के संबंध और विशेष रूप से सेक्स पर पार्टी के दृष्टिकोण में विश्वसनीयता की कमी थी, और यह सेटिंग "दुखद के बजाय घिनौनी" थी।
इसके प्रकाशन पर कई अमेरिकी समीक्षकों ने पुस्तक की व्याख्या ब्रिटिश प्रधान मंत्री क्लेमेंट एटली की समाजवादी नीतियों, या जोसेफ स्टालिन की नीतियों पर एक बयान के रूप में की। १९४५ से १९५१ तक प्रधान मंत्री के रूप में कार्य करते हुए, एटली ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में व्यापक सामाजिक सुधारों और परिवर्तनों को लागू किया, और सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले श्रम प्रधान मंत्री बने रहे। इन समीक्षाओं के बाद ऑरवेल ने अमेरिकी ट्रेड यूनियन नेता फ्रांसिस ए. हैनसन को एक पत्र लिखा, जो अपने सदस्यों को पुस्तक की सिफारिश करना चाहते थे लेकिन कुछ समीक्षाओं से चिंतित थे। अपने पत्र में ऑरवेल ने अपनी पुस्तक को व्यंग्य के रूप में वर्णित किया और कहा:
अपने प्रकाशन इतिहास के दौरान, उन्नीस सौ चौरासी को या तो प्रतिबंधित या कानूनी रूप से विध्वंसक या वैचारिक रूप से भ्रष्ट के रूप में चुनौती दी गई है, जैसे कि येवगेनी ज़मायटिन द्वारा डायस्टोपियन उपन्यास वी (१९२४), एल्डस हक्सले द्वारा ब्रेव न्यू वर्ल्ड (१९३२), एल्डस हक्सले द्वारा डार्कनेस एट नून (१९४०) आर्थर कोस्टलर द्वारा, करिन बोए द्वारा कल्लोकेन (१९४०), और रे ब्रैडबरी द्वारा फारेनहाइट ४५१ (१९५३)।
५ नवंबर २०१९ को बीबीसी ने अपने १०० सबसे प्रभावशाली उपन्यासों की सूची में उन्नीस अस्सी-चार का नाम दिया।
स्टैलिनिस्ट पोलैंड से निर्वासित चेस्वाव मीलोश के अनुसार, पुस्तक ने आयरन कर्टन के पीछे भी एक छाप छोड़ी। द कैप्टिव माइंड में लिखते हुए, उन्होंने कहा "[ए] कुछ लोग ऑरवेल के १९८४ से परिचित हैं, क्योंकि इसे प्राप्त करना मुश्किल और खतरनाक दोनों है, यह केवल इनर पार्टी के कुछ सदस्यों के लिए जाना जाता है। ऑरवेल उन्हें अपनी अंतर्दृष्टि के माध्यम से आकर्षित करता है जो वे अच्छी तरह से जानते हैं [...] यहां तक कि जो लोग ऑरवेल को केवल सुनी-सुनाई बातों से जानते हैं, वे भी चकित हैं कि एक लेखक जो कभी रूस में नहीं रहा, उसके जीवन में इतनी गहरी अंतर्दृष्टि होनी चाहिए। लेखक क्रिस्टोफर हिचेन्स ने इसे "सबसे बड़ी प्रशंसाओं में से एक कहा है जो एक लेखक ने कभी दूसरे को प्रदान की है...] ऑरवेल की मृत्यु के केवल एक या दो साल बाद दूसरे शब्दों में केवल इनर पार्टी के भीतर परिचालित एक गुप्त पुस्तक के बारे में उनकी पुस्तक अपने आप केवल इनर पार्टी के भीतर प्रसारित एक गुप्त पुस्तक थी।
अन्य मीडिया में अनुकूलन
उसी वर्ष उपन्यास के प्रकाशन के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका के एनबीसी रेडियो नेटवर्क पर एनबीसी यूनिवर्सिटी थियेटर शृंखला के हिस्से के रूप में एक घंटे का रेडियो अनुकूलन प्रसारित किया गया था। सितंबर १९५३ में सीबीएस के स्टूडियो वन सीरीज़ के हिस्से के रूप में पहला टेलीविज़न रूपांतरण दिखाई दिया। दिसंबर १९५४ में बीबीसी टेलीविज़न ने निगेल निएले द्वारा एक रूपांतरण प्रसारित किया। पहली फीचर फिल्म अनुकूलन, <i id="mwA7A">१९८४</i>, १९५६ में रिलीज़ हुई थी। १९८४ में एक दूसरा फीचर-लम्बाई अनुकूलन, उन्नीस सौ चौरासी , उपन्यास का यथोचित वफादार अनुकूलन था। कहानी को कई बार रेडियो, टेलीविजन और फिल्म के लिए रूपांतरित किया गया है; अन्य मीडिया रूपांतरों में थिएटर (एक संगीतमय और एक नाटक), ओपेरा और बैले शामिल हैं।
अनुवाद
पहला सरलीकृत चीनी संस्करण १९७९ में प्रकाशित हुआ था। यह पहली बार १९८५ में चीन में आम जनता के लिए उपलब्ध था, क्योंकि पहले यह केवल पुस्तकालयों और किताबों की दुकानों के कुछ हिस्सों में सीमित लोगों के लिए खुला था। एमी हॉकिन्स और द अटलांटिक के जेफरी वासेरस्ट्रॉम ने २०१९ में कहा कि पुस्तक कई कारणों से मुख्यभूमि चीन में व्यापक रूप से उपलब्ध है: आम जनता कुल मिलाकर अब किताबें नहीं पढ़ती है; क्योंकि किताबें पढ़ने वाले अभिजात वर्ग वैसे भी सत्ताधारी पार्टी से जुड़ाव महसूस करते हैं; और क्योंकि कम्युनिस्ट पार्टी सांस्कृतिक उत्पादों को अवरुद्ध करने में बहुत आक्रामक होने को एक दायित्व के रूप में देखती है। लेखकों ने कहा "यह था - और बना हुआ है - १९८४ और शेन्ज़ेन या शंघाई में पशु फार्म खरीदना उतना ही आसान है जितना कि यह लंदन या लॉस एंजिल्स में है।" उन्होंने यह भी कहा कि "धारणा यह नहीं है कि चीनी लोग १९८४ के अर्थ का पता नहीं लगा सकते हैं, लेकिन जो लोग इसे पढ़ने के लिए परेशान होंगे, वे बहुत अधिक खतरा पैदा नहीं करेंगे।"
१९८९ तक, उन्नीस सौ चौरासी का ६५ भाषाओं में अनुवाद किया गया था, जो उस समय के किसी भी अन्य अंग्रेजी उपन्यास से अधिक था।
सांस्कृतिक प्रभाव
अंग्रेजी भाषा पर उन्नीस सौ चौरासी का प्रभाव व्यापक है; बिग ब्रदर, रूम १०१, थॉट पुलिस, थॉटक्राइम, अनपर्सन, मेमोरी होल (गुमनामी), डबलथिंक (एक साथ विरोधाभासी विश्वासों को धारण करना और विश्वास करना) और न्यूस्पीक (वैचारिक भाषा) की अवधारणा अधिनायकवादी सत्ता को दर्शाने के लिए सामान्य वाक्यांश बन गए हैं। डबलस्पीक और ग्रुपथिंक दोनों डबलथिंक के जानबूझकर विस्तार हैं, और विशेषण "ऑरवेलियन" का अर्थ ऑरवेल के लेखन के समान है, विशेष रूप से उन्नीस सौ चौरासी । (जैसे मीडियास्पीक) के साथ शब्दों को समाप्त करने का अभ्यास उपन्यास से लिया गया है। ऑरवेल हमेशा के लिए १९८४ से जुड़ा हुआ है; जुलाई १९८४ में एंटोनिन मर्कोस द्वारा एक क्षुद्रग्रह की खोज की गई और इसका नाम ऑरवेल के नाम पर रखा गया।
१९५५ में बीबीसी के द गून शो, १९८५ का एक एपिसोड प्रसारित किया गया था, जिसे स्पाइक मिलिगन और एरिक साइक्स ने लिखा था और यह निगेल निएले के टेलीविजन रूपांतरण पर आधारित था। इसे लगभग एक महीने बाद उसी स्क्रिप्ट के साथ लेकिन थोड़े अलग कलाकारों के साथ फिर से रिकॉर्ड किया गया। १९८५ ऑरवेल के उपन्यास के कई मुख्य दृश्यों की पैरोडी करता है।
१९७० में अमेरिकी रॉक ग्रुप स्पिरिट ने ऑरवेल के उपन्यास पर आधारित "१९८४" गीत जारी किया।
१९७३ में पूर्व- सॉफ्ट मशीन बेसिस्ट ह्यूग हॉपर ने कोलंबिया लेबल (यूके) पर १९८४ नामक एक एल्बम जारी किया, जिसमें "मिनिलुव," "मिनीपैक्स," "मिनिट्रू," और आगे जैसे ऑरवेलियन शीर्षक वाले वाद्य यंत्र शामिल थे।
१९७४ में डेविड बॉवी ने एल्बम डायमंड डॉग्स जारी किया, जो उन्नीस सौ चौरासी उपन्यास पर आधारित माना जाता है। इसमें "वी आर द डेड", "१९८४" और "बिग ब्रदर" ट्रैक शामिल हैं। एल्बम के बनने से पहले, बॉवी के प्रबंधन (मेनमैन) ने बॉवी और टोनी इंग्रासिया (मेनमैन के रचनात्मक सलाहकार) के लिए ऑरवेल की उन्नीस सौ चौरासी के संगीत निर्माण को सह-लेखन और निर्देशित करने की योजना बनाई थी, लेकिन ऑरवेल की विधवा ने मेनमैन को अधिकार देने से इनकार कर दिया।
१९७७ में ब्रिटिश रॉक बैंड द जैम ने एल्बम दिस इज़ द मॉडर्न वर्ल्ड जारी किया, जिसमें पॉल वेलर का ट्रैक "स्टैंडर्ड्स" शामिल है। यह ट्रैक गीत के साथ समाप्त होता है "...और अज्ञानता शक्ति है, हमारे पास भगवान हैं, देखो, आप जानते हैं कि विंस्टन के साथ क्या हुआ।"
१९८४ में रिडले स्कॉट ने एप्पल के मैकिंटोश कंप्यूटर को लॉन्च करने के लिए एक टेलीविजन विज्ञापन, "१९८४" का निर्देशन किया। विज्ञापन में कहा गया है, "१९८४ १९८४ की तरह नहीं होगा", यह सुझाव देते हुए कि एप्पल मैक बिग ब्रदर, यानी आईबीएम पीसी से मुक्ति होगी।
डॉक्टर हू का एक एपिसोड, जिसे "द गॉड कॉम्प्लेक्स" कहा जाता है, एक विदेशी जहाज को कमरे १०१ जैसी जगहों वाले होटल के रूप में प्रच्छन्न दिखाता है, और नर्सरी कविता को भी उद्धृत करता है।
स्टार ट्रेक: द नेक्स्ट जनरेशन पर चेन ऑफ़ कमांड के दो भाग के एपिसोड में उपन्यास से कुछ समानताएँ हैं।
रेडियोहेड का २००३ का एकल "२ + २ = ५", उनके एल्बम हेल टू द थीफ से शीर्षक और सामग्री द्वारा ऑरवेलियन है। थॉम योर्के कहते हैं, “मैं बीबीसी रेडियो ४ पर बहुत सारे राजनीतिक कार्यक्रम सुन रहा था। मैंने खुद को छोटे-छोटे बकवास वाक्यांशों को लिखते हुए पाया, वे ऑरवेलियन प्रेयोक्ति जो [ब्रिटिश और अमेरिकी सरकारें] बहुत पसंद करती हैं। वे रिकॉर्ड की पृष्ठभूमि बन गए।
सितंबर २००९ में अंग्रेजी प्रगतिशील रॉक बैंड म्यूज़ ने द रेसिस्टेंस जारी किया, जिसमें उन्नीस सौ चौरासी से प्रभावित गाने शामिल थे।
मर्लिन मैनसन की आत्मकथा द लॉन्ग हार्ड रोड आउट ऑफ़ हेल में वे कहते हैं: "मैं दुनिया के अंत और मसीह विरोधी के विचार से पूरी तरह से भयभीत था। इसलिए मैं इसके प्रति जुनूनी हो गया... जॉर्ज ऑरवेल द्वारा १९८४ जैसी भविष्यवाणिय किताबें पढ़ना।
अंग्रेजी बैंड बैस्टिल ने अपने गीत "बैक टू द फ्यूचर" में उपन्यास का संदर्भ दिया, उनके २०२२ एल्बम गिव मी द फ्यूचर का पांचवां ट्रैक, शुरुआती गीतों में: "ऐसा लगता है जैसे हमने एक दुःस्वप्न में नृत्य किया / हम १९८४ जी रहे हैं / यदि डबलथिंक्स अब कथा नहीं / हम हक्सले के द्वीप तटों का सपना देखेंगे।"
२००४ में रिलीज़ किया गया, काकू पी-मॉडल/ सुसुमु हिरासावा का गीत बिग ब्रदर सीधे तौर पर १९८४ का संदर्भ देता है, और एल्बम दूर के भविष्य में एक काल्पनिक डायस्टोपिया के बारे में है।उन्नीस सौ चौरासी के विषयों, अवधारणाओं और कथानक के संदर्भ अक्सर अन्य कार्यों में दिखाई देते हैं, विशेष रूप से लोकप्रिय संगीत और वीडियो मनोरंजन में। एक उदाहरण दुनिया भर में हिट रियलिटी टेलीविजन शो बिग ब्रदर है, जिसमें लोगों का एक समूह एक बड़े घर में एक साथ रहता है, जो बाहरी दुनिया से अलग होता है, लेकिन टेलीविजन कैमरों द्वारा लगातार देखा जाता है।
नवंबर २०१२ में अमेरिकी सरकार ने अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि वह वारंट मांगे बिना व्यक्तियों की जीपीएस ट्रैकिंग का उपयोग जारी रखना चाहती है। जवाब में न्यायमूर्ति स्टीफन ब्रेयर ने उन्नीस सौ चौरासी का हवाला देते हुए सवाल किया कि एक लोकतांत्रिक समाज के लिए इसका क्या मतलब है। न्यायमूर्ति ब्रेयर ने पूछा, "यदि आप इस मामले को जीतते हैं, तो पुलिस या सरकार को संयुक्त राज्य के प्रत्येक नागरिक के सार्वजनिक आंदोलन की २४ घंटे निगरानी करने से रोकने के लिए कुछ भी नहीं है। इसलिए यदि आप जीतते हैं, तो आप अचानक उन्नीस सौ चौरासी की तरह ध्वनि उत्पन्न करते हैं..."
पुस्तक गोपनीयता के आक्रमण और सर्वव्यापक निगरानी को छूती है। २०१३ के मध्य से यह प्रचारित किया गया था कि राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी ईमेल और फोन कॉल डेटा के थोक डेटा संग्रह सहित वैश्विक इंटरनेट ट्रैफ़िक की गुप्त रूप से निगरानी और भंडारण कर रहा है। २०१३ के व्यापक निगरानी लीक के पहले सप्ताह के भीतर उन्नीस सौ चौरासी की बिक्री सात गुना तक बढ़ गई। मीडिया के साथ विसंगतियों को समझाने के लिए "वैकल्पिक तथ्यों" वाक्यांश का उपयोग करते हुए केलीनेन कॉनवे से जुड़े विवाद के बाद २०१७ में पुस्तक फिर से ऐमज़ान.कॉम बिक्री चार्ट में सबसे ऊपर है।
न्यूयॉर्क पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा "ऑल टाइम के शीर्ष चेक आउट" की सूची में उन्नीस सौ चौरासी नंबर तीन पर था।
कॉपीराइट कानून के अनुसार, उन्नीस सौ चौरासी और पशु फार्म दोनों ने १ जनवरी २०२१ को ऑरवेल की मृत्यु के ७० कैलेंडर वर्ष बाद दुनिया के अधिकांश हिस्सों में सार्वजनिक डोमेन में प्रवेश किया। यूएस कॉपीराइट समाप्ति दोनों उपन्यासों के लिए अलग है: प्रकाशन के ९५ साल बाद।
जब अमेज़ॅन को पता चला कि प्रकाशक के पास उन्नीस सौ चौरासी के अधिकारों की कमी है, तो उसने बिना किसी घोषणा के रातों-रात लोगों के किंडल से हटा दिया, जिससे विवाद पैदा हो गया।
बहादुर नई दुनिया की तुलना
अक्टूबर १९४९ में उन्नीस सौ चौरासी पढ़ने के बाद हक्सले ने ऑरवेल को एक पत्र भेजा जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि शासकों के लिए नरम स्पर्श से सत्ता में बने रहना अधिक कुशल होगा, जिससे नागरिकों को क्रूरता के बजाय उन्हें नियंत्रित करने की खुशी मिलेगी। ताकत। उन्होंने लिखा है:क्या वास्तव में बूट-ऑन-द-फेस की नीति अनिश्चित काल तक चल सकती है, यह संदिग्ध लगता है। मेरा अपना विश्वास यह है कि सत्तारूढ़ कुलीनतंत्र शासन करने और सत्ता के लिए अपनी वासना को संतुष्ट करने के कम कठिन और व्यर्थ तरीके खोजेगा, और ये तरीके उन तरीकों से मिलते जुलते होंगे जिनका वर्णन मैंने ब्रेव न्यू वर्ल्ड में किया है।
...
अगली पीढ़ी के भीतर मुझे विश्वास है कि दुनिया के शासकों को पता चल जाएगा कि क्लबों और जेलों की तुलना में शिशु कंडीशनिंग और नार्को-सम्मोहन सरकार के उपकरण के रूप में अधिक कुशल हैं, और लोगों को प्यार करने का सुझाव देकर सत्ता की लालसा को पूरी तरह से संतुष्ट किया जा सकता है। कोड़े मारकर और लात मारकर उनकी आज्ञाकारिता के रूप में उनकी दासता।उन्नीस सौ चौरासी के प्रकाशन के बाद के दशकों में हक्सले की ब्रेव न्यू वर्ल्ड की कई तुलनाएँ हुई हैं, जो १७ साल पहले, १९३२ में प्रकाशित हुई थीं वे दोनों केंद्र सरकार के प्रभुत्व वाले समाजों की भविष्यवाणियां हैं और दोनों अपने समय के रुझानों के विस्तार पर आधारित हैं। हालाँकि, उन्नीस सौ चौरासी के शासक वर्ग के सदस्य व्यक्तियों को लाइन में रखने के लिए क्रूर बल, यातना और कठोर मन पर नियंत्रण का उपयोग करते हैं, जबकि ब्रेव न्यू वर्ल्ड में शासक नागरिकों को ड्रग्स, सम्मोहन, आनुवंशिक कंडीशनिंग और आनंददायक विकर्षणों के अनुसार रखते हैं। सेंसरशिप के संबंध में उन्नीस सौ चौरासी में सरकार जनसंख्या को लाइन में रखने के लिए सूचनाओं को कड़ाई से नियंत्रित करती है, लेकिन हक्सले की दुनिया में इतनी जानकारी प्रकाशित होती है कि पाठकों को पता नहीं चलता कि कौन सी जानकारी प्रासंगिक है, और किसकी अवहेलना की जा सकती है।
दोनों उपन्यासों के तत्वों को आधुनिक समय के समाजों में देखा जा सकता है, हक्सले की दृष्टि पश्चिम में अधिक प्रभावशाली है और ऑरवेल की दृष्टि तानाशाही के साथ अधिक प्रचलित है, जिसमें साम्यवादी देशों (जैसे कि आधुनिक चीन और उत्तर कोरिया) शामिल हैं, जैसा कि है उन निबंधों में बताया गया है जो दो उपन्यासों की तुलना करते हैं, जिसमें हक्सले की अपनी ब्रेव न्यू वर्ल्ड रिविजिटेड भी शामिल है।द हैंडमिड्स टेल, वर्चुअल लाइट, द प्राइवेट आई और द चिल्ड्रन ऑफ मेन जैसे बाद के डायस्टोपियन उपन्यासों की तुलना भी की गई है।
संदर्भ
उद्धरण
Hillegas, Mark R. (1967). The Future as Nightmare: H. G. Wells and the Anti-Utopians. Southern Illinois University Press.
Meyers, Jeffery. Orwell: Wintry Conscience of a Generation. W. W. Norton. 2000.
Afterword by Erich Fromm (1961), pp. 324–37.
Orwell's text has a "Selected Bibliography", pp. 338–39; the foreword and the afterword each contain further references.
The Plume edition is an authorised reprint of a hardcover edition published by Harcourt, Inc.
The Plume edition is also published in a Signet edition. The copyright page says this, but the Signet ed. does not have the Pynchon foreword.
Copyright is explicitly extended to digital and any other means.
Orwell, George. 1984 (Vietnamese edition), translation by Đặng Phương-Nghi, French preface by Bertrand Latour .
सामान्य और उद्धृत संदर्भ
Hillegas, Mark R. (1967). The Future as Nightmare: H. G. Wells and the Anti-Utopians. Southern Illinois University Press.
Meyers, Jeffery. Orwell: Wintry Conscience of a Generation. W. W. Norton. 2000.
Afterword by Erich Fromm (1961), pp. 324–37.
Orwell's text has a "Selected Bibliography", pp. 338–39; the foreword and the afterword each contain further references.
The Plume edition is an authorised reprint of a hardcover edition published by Harcourt, Inc.
The Plume edition is also published in a Signet edition. The copyright page says this, but the Signet ed. does not have the Pynchon foreword.
Copyright is explicitly extended to digital and any other means.
Orwell, George. 1984 (Vietnamese edition), translation by Đặng Phương-Nghi, French preface by Bertrand Latour .
अग्रिम पठन
ब्लूम, हेरोल्ड, जॉर्ज ऑरवेल्स १९८४ (२००९), फैक्ट्स ऑन फाइल, इंक। आईएसबीएन 978-1-4381-1468-2
डि नुक्की, एज़ियो और स्टॉरी, स्टीफ़न (संपादक), १९८४ और दर्शन: क्या प्रतिरोध व्यर्थ है? (२०१८), ओपन कोर्ट पब्लिशिंग कंपनी । आईएसबीएन 978-0-8126-9985-2
गोल्डस्मिथ, जैक और नुसबौम, मार्था, ऑन उन्नीस सौ चौरासी : ऑरवेल एंड अवर फ्यूचर (२०१०), प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस । आईएसबीएन 978-1-4008-2664-3
प्लैंक, रॉबर्ट, जॉर्ज ऑरवेल्स गाइड थ्रू हेल: ए साइकोलॉजिकल स्टडी ऑफ़ १९८४ (१९९४), बोर्गो प्रेसिडेंट। आईएसबीएन 978-0-89370-413-1
टेलर, डीजे ऑन उन्नीस सौ चौरासी : ए बायोग्राफी (२०१९), अब्राम्स। आईएसबीएन 978-1-68335-684-4
वैडेल, नाथन (संपादक), द कैम्ब्रिज कम्पेनियन टू'' उन्नीस सौ चौरासी (२०२०), कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस । आईएसबीएन 978-1-108-84109-2
बाहरी संबंध
इंटरनेट बुक लिस्ट पर उन्नीस सौ चौरासी
ब्रिटिश लाइब्रेरी पर उन्नीस सौ चौरासी
१९८४: ओपेरा
ओपन लाइब्रेरी पर उन्नीस सौ चौरासी
इंटरनेट आर्काइव पर १९५३ थिएटर गिल्ड ऑन द एयर रेडियो अनुकूलन
लंदन फिक्शन वेबसाइट पर उन्नीस सौ चौरासी के लंदन पर इतिहासकार सारा वाइज
इलेक्ट्रॉनिक संस्करण
जॉर्ज ऑरवेल – एरिक आर्थर ब्लेयर
प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग ऑस्ट्रेलिया (ई-टेक्स्ट)
एडिलेड विश्वविद्यालय पुस्तकालय से एचटीएमएल और ईपब संकलन
उन्नीस सौ चौरासी (कनाडियन पब्लिक डोमेन ईबुक – पीडीएफ़)
फिल्म संस्करण
स्टूडियो वन: १९८४ (१९५३) (सार्वजनिक डोमेन)
सामूहिक निगरानी
ऐतिहासिक निषेधमात्रवाद
अभिवेचित पुस्तकें | 13,441 |
1024702 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%AB%E0%A4%BE%20%E0%A4%85%E0%A4%B2%20%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%95 | वफा अल सद्दीक | वफ़ा एल सद्दीक (जन्म 1950) एक मिस्र मिस्रविज्ञानी हैं , जो 2004 से 2010 तक काहिरा के मिस्र संग्रहालय के महानिदेशक थे। वह संग्रहालय की पहली महिला निदेशक थीं।
व्यक्तिगत जीवन
वफा अल सद्दीक का जन्म 1950 में मिस्र के नील डेल्टा क्षेत्र में हुआ था। स्वेज संकट के दौरान, उनका परिवार काहिरा चला गया। उन्होंने काहिरा विश्वविद्यालय में पुरातत्व का अध्ययन किया, और बाद में वियना विश्वविद्यालय में पीएचडी पूरी की । वह 15 वर्षों तक जर्मनी के कोलोन में रहीं और काम किया, जिस दौरान वह अपने पति से मिलीं, जो एक फार्मासिस्ट का काम करते थे। उन्होंने 1989 में शादी की, और उनके दो बच्चे हैं। उनकी बहन जल मंत्रालय की राज्य सचिव रह चुकी हैं।
व्यवसाय
मूल रूप से एल सादिक एक पत्रकार बनना चाहती थी, सिक्स-डे युद्ध और योम किप्पल युद्ध में रुचि के कारण। थिब्स और असवान बांध की यात्रा के बाद वह पुरातत्व में रुचि रखने लगीं ।
उन्होंने मार्गरेट थैचर , जिमी कार्टर और हेल्मुट श्मिट , साथ ही मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति अनवर अल-सादात सहित विश्व के नेताओं को ऐतिहासिक पर्यटन प्रदान किए हैं। 27 की उम्र में, वफा अल सद्दीक के लिए तुथंखमुन में प्रदर्शनी न्यू ऑरलियन्स , संयुक्त राज्य अमेरिका काम करने चली गई।
2004 से 2010 तक वह काहिरा के मिस्र संग्रहालय के महानिदेशक थी। वह संग्रहालय की पहली महिला निर्देशक थीं। निदेशक के रूप में, एल सद्दीक का कहना है कि उन्हें संग्रहालय के लिए धन के लिए कई राजनीतिक रूप से प्रेरित बोलियां मिलीं। एल सादिक ने दावा किया कि संग्रहालय ने लगभग एक मिलियन मिस्र के पाउंड की दैनिक आय बनाई, लेकिन इसमें से अधिकांश पैसा वहां खर्च किए जाने के बजाय केंद्र सरकार को स्थानांतरित कर दिया गया। एल सादिक ने अपनी पुस्तक प्रोटेक्टिंग फारोह के खजाने में कहा कि उसने 2011 की मिस्र की क्रांति की भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि उसे विश्वास था कि यह ट्यूनीशियाई क्रांति के समान होगा। अक्टूबर 2010 में, उन्हें तत्कालीन मिस्र के राष्ट्रपति होस्नी मुबारक द्वारा रोम में एक प्रदर्शनी के लिए कलाकृतियों का चयन करने के लिए चुना गया था। बाद में उसकी पसंद खारिज कर दी गई। उसे दिसंबर 2010 में संग्रहालय में अपनी भूमिका छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था, क्योंकि वह सेवानिवृत्ति की आयु तक पहुंच गई थी।
2011 की मिस्र की क्रांति के दौरान, सादिक ने मिस्र के संग्रहालय और मेम्फिस संग्रहालय की लूटपाट देखी। उसने इस घटना के लिए पुलिस अधिकारियों और संग्रहालय के अभिभावकों को दोषी ठहराया। क्रांति के बाद, एल सादिक ने मिस्र के ऐतिहासिक कलाकृतियों के संरक्षण पर चिंता व्यक्त की।
संदर्भ
जीवित लोग
1950 में जन्मे लोग | 432 |
726891 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%2C%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%AD%E0%A4%B2%20%28%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A6%29 | तिमनपुर,संभल (मुरादाबाद) | यह गांव पोस्ट भारतल मदापुर,ब्लॉक संभल, थाना हज़रत नगर गढ़ी, तहसील संभल,जिला संभल, पिन कोड 244301 के अंतर्गत आता है।
यह गांव हिन्दूू.जाट बहुल है।इस गांव की आबादी लगभग 1000 है।यह गांव गन्ना उत्पादन में अग्रणी है ,गन्ना उत्पादन में यह सहकारी गन्ना विकास समिति लिमिटेड बिलारी में प्रथम स्थान रखता है।यह गाँव आर्थिक रूप से मजबूत है।गन्ना यहां का मुख्य व्यवसाय है। राजनीतिक रूप से यह गाँव अति महत्त्वपूर्ण है।भारतीय किसान यूनियन का यहाँं अधिक प्रभाव है।
राजनितिक परिदृश्य -
लोकसभा- संभल
सांसद - शफीकुर्रहमान बर्क
विधानसभा- संभल
विधायक - इक़बाल महमूद
:
राज्य कोड :09 जिला कोड :135 तहसील कोड : 00721
राज्य का जिला नं Up 38
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
उत्तर प्रदेश के जिले (नक्शा)
संभल तहसील के गाँव | 122 |
3426 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0 | भाषा-परिवार | आपस में सम्बंधित भाषाओं को भाषा-परिवार कहते हैं। कौन भाषाएँ किस परिवार में आती हैं, इनके लिये वैज्ञानिक आधार हैं।
इस समय संसार की भाषाओं की तीन अवस्थाएँ हैं। विभिन्न देशों की प्राचीन भाषाएँ जिनका अध्ययन और वर्गीकरण पर्याप्त सामग्री के अभाव में नहीं हो सका है, पहली अवस्था में है। इनका अस्तित्व इनमें उपलब्ध प्राचीन शिलालेखो, सिक्कों और हस्तलिखित पुस्तकों में अभी सुरक्षित है। मेसोपोटेमिया की पुरानी भाषा ‘सुमेरीय’ तथा इटली की प्राचीन भाषा ‘एत्रस्कन’ इसी तरह की भाषाएँ हैं। दूसरी अवस्था में ऐसी आधुनिक भाषाएँ हैं, जिनका सम्यक् शोध के अभाव में अध्ययन और विभाजन प्रचुर सामग्री के होते हुए भी नहीं हो सका है। बास्क, बुशमन, जापानी, कोरियाई, अंडमानी आदि भाषाएँ इसी अवस्था में हैं। तीसरी अवस्था की भाषाओं में पर्याप्त सामग्री है और उनका अध्ययन एवं वर्गीकरण हो चुका है। ग्रीक, अरबी, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी आदि अनेक विकसित एवं समृद्ध भाषाएँ इसके अन्तर्गत हैं।
वर्गीकरण के आधार
भाषा के वर्गीकरण के मुखयतः दो आधार हैं–आकृतिमूलक और अर्थतत्त्व सम्बन्धी। प्रथम के अन्तर्गत शब्दों की आकृति अर्थात् शब्दों और वाक्यों की रचनाशैली की समानता देखी जाती है। दूसरे में अर्थतत्त्व की समानता रहती है। इनके अनुसार भाषाओं के वर्गीकरण की दो पद्धतियाँ होती हैं–आकृतिमूलक और पारिवारिक या ऐतिहासिक।
ऐतिहासिक वर्गीकरण के आधारों में आकृतिमूलक समानता के अतिरिक्त निम्निलिखित समानताएँ भी होनी चाहिए।
१ भौगोलिक समीपता - भौगोलिक दृष्टि से प्रायः समीपस्थ भाषाओं में समानता और दूरस्थ भाषाओं में असमानता पायी जाती है। इस आधार पर संसार की भाषाएँ अफ्रीका, यूरेशिया, प्रशांतमहासागर और अमरीका के खंड़ों में विभाजित की गयी हैं। किन्तु यह आधार बहुत अधिक वैज्ञानिक नहीं है। क्योंकि दो समीपस्थ भाषाएँ एक-दूसरे से भिन्न हो सकती हैं और दो दूरस्थ भाषाएँ परस्पर समान। भारत की हिन्दी और मलयालम दो भिन्न परिवार की भाषाएँ हैं किन्तु भारत और इंग्लैंड जैसे दूरस्थ देशों की संस्कृत और अंग्रेजी एक ही परिवार की भाषाएँ हैं।
२ शब्दानुरूपता- समान शब्दों का प्रचलन जिन भाषाओं में रहता है उन्हें एक कुल के अन्तर्गत रखा जाता है। यह समानता भाषा-भाषियों की समीपता पर आधारित है और दो तरह से सम्भव होती है। एक ही समाज, जाति अथवा परिवार के व्यक्तियों द्वारा शब्दों के समान रूप से व्यवहृत होते रहने से समानता आ जाती है। इसके अतिरिक्त जब भिन्न देश अथवा जाति के लोग सभ्यता और साधनों के विकसित हो जाने पर राजनीतिक अथवा व्यावसायिक हेतु से एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं तो शब्दों के आदान-प्रदान द्वारा उनमें समानता आ जाती है। पारिवारिक वर्गीकरण के लिए प्रथम प्रकार की अनुरूपता ही काम की होती है। क्योंकि ऐसे शब्द भाषा के मूल शब्द होते हैं। इनमें भी नित्यप्रति के कौटुम्बिक जीवन में प्रयुक्त होनेवाले संज्ञा, सर्वनाम आदि शब्द ही अधिक उपयोगी होते हैं। इस आधार में सबसे बड़ी कठिनाई यह होती है कि अन्य भाषाओं से आये हुए शब्द भाषा के विकसित होते रहने से मूल शब्दों में ऐसे घुलमिल जाते हैं कि उनको पहचान कर अलग करना कठिन हो जाता है।
इस कठिनाई का समाधान एक सीमा तक अर्थगत समानता है। क्योंकि एक परिवार की भाषाओं के अनेक शब्द अर्थ की दृष्टि से समान होते हैं और ऐसे शब्द उन्हें एक परिवार से सम्बन्धित करते हैं। इसलिए अर्थपरक समानता भी एक महत्त्वपूर्ण आधार है।
३ ध्वनिसाम्य- प्रत्येक भाषा का अपना ध्वनि-सिद्धान्त और उच्चारण-नियम होता है। यही कारण है कि वह अन्य भाषाओं की ध्वनियों से जल्दी प्रभावित नहीं होती है और जहाँ तक हो सकता है उन्हें ध्वनिनियम के अनुसार अपनी निकटस्थ ध्वनियों से बदल लेती है। जैसे फारसी की क, ख, फ़ आदि ध्वनियाँ हिन्दी में निकटवर्ती क, ख, फ आदि में परिवर्तित होती है। अतः ध्वनिसाम्य का आधार शब्दावली-समता से अधिक विश्वसनीय है। वैसे कभी-कभी एक भाषा के ध्वनिसमूह में दूसरी भाषा की ध्वनियाँ भी मिलकर विकसित हो जाती हैं और तुलनात्मक निष्कर्षों को भ्रामक कर देती हैं। आर्य भाषाओं में वैदिक काल से पहले मूर्धन्य ध्वनियाँ नहीं थी, किन्तु द्रविड़ भाषा के प्रभाव से आगे चलकर विकसित हो गयीं।
४ व्याकरणगत समानता- भाषा के वर्गीकरण का व्याकरणिक आधार सबसे अधिक प्रामाणिक होता है। क्योंकि भाषा का अनुशासन करने के कारण यह जल्दी बदलता नहीं है। व्याकरण की समानता के अन्तर्गत धातु, धातु में प्रत्यय लगाकर शब्द-निर्माण, शब्दों से पदों की रचना प्रक्रिया तथा वाक्यों में पद-विन्यास के नियम आदि की समानता का निर्धारण आवश्यक है।
यह साम्य-वैषम्य भी सापेक्षिक होता है। जहाँ एक ओर भारोपीय परिवार की भाषाएँ अन्य परिवार की भाषाओं से भिन्न और आपस में समान हैं वहाँ दूसरी ओर संस्कृत, फारसी, ग्रीक आदि भारोपीय भाषाएँ एक-दूसरे से इन्हीं आधारों पर भिन्न भी हैं।
वर्गीकरण की प्रक्रिया
वर्गीकरण करते समय सबसे पहले भौगोलिक समीपता के आधार पर संपूर्ण भाषाएँ यूरेशिया, प्रशांतमहासागर, अफ्रीका और अमरीका खंडों अथवा चक्रों में विभक्त होती हैं। फिर आपसी समानता रखनेवाली भाषाओं को एक कुल या परिवार में रखकर विभिन्न परिवार बनाये जाते हैं। अवेस्ता, फारसी, संस्कृत, ग्रीक आदि की तुलना से पता चला कि उनकी शब्दावली, ध्वनिसमूह और रचना-पद्धति में काफी समानता है। अतः भारत और यूरोप के इस तरह की भाषाओं का एक भारतीय कुल बना दिया गया है। परिवारों को वर्गों में विभक्त किया गया है। भारोपीय परिवार में शतम् और केन्टुम ऐसे ही वर्ग हैं। वर्गों का विभाजन शाखाओं में हुआ है। शतम् वर्ग की ‘ईरानी’ और ‘भारतीय आर्य’ प्रमुख शाखाएँ हैं। शाखाओं को उपशाखा में बाँटा गया है। ग्रियर्सन ने आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं को भीतरी और बाहरी उपशाखा में विभक्त किया है। अंत में उपशाखाएँ भाषा-समुदायों और समुदाय भाषाओं में बँटते हैं। इस तरह भाषा पारिवारिक-वर्गीकरण की इकाई है। इस समय भारोपीय परिवार की भाषाओं का अध्ययन इतना हो चुका है कि यह पूर्ण प्रक्रिया उस पर लागू हो जाती है। इन नामों में थोड़ी हेर-फेर हो सकता है, किन्तु इस प्रक्रिया की अवस्थाओं में प्रायः कोई अन्तर नहीं होता।
वर्गीकरण
उन्नीसवीं शती में ही विद्वानों का ध्यान संसार की भाषाओं के वर्गीकरण की ओर आकृष्ट हुआ और आज तक समय-समय पर अनेक विद्वानों ने अपने अलग-अलग वर्गीकरण प्रस्तुत किये हैं; किन्तु अभी तक कोई वैज्ञानिक और प्रामाणिक वर्गीकरण प्रस्तुत नहीं हो सका है। इस समस्या को लेकर भाषाविदों में बड़ा मतभेद है। यही कारण है कि जहाँ एक ओर फेडरिख मूलर इन परिवारों की संख्या 100 तक मानते हैं वहाँ दूसरी ओर राइस विश्व की समस्त भाषाओं को केवल एक ही परिवार में रखते हैं। किन्तु अधिकांश विद्वान् इनकी संख्या बारह या तेरह मानते हैं।
मुख्य भाषा-परिवार
दुनिया भर में बोली जाने वाली क़रीब सात हज़ार भाषाओं को कम से कम दस परिवारों में विभाजित किया जाता है जिनमें से प्रमुख परिवारों का ज़िक्र नीचे है :
भारत-यूरोपीय भाषा-परिवार (भारोपीय भाषा परिवार)
(Indo-European family)
मुख्य लेख हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार
यह समूह भाषाओं का सबसे बड़ा परिवार है और सबसे महत्वपूर्ण भी है क्योंकि अंग्रेज़ी,रूसी, प्राचीन फारसी, हिन्दी, पंजाबी, जर्मन, नेपाली - ये तमाम भाषाएँ इसी समूह से संबंध रखती हैं। इसे 'भारोपीय भाषा-परिवार' भी कहते हैं। विश्व जनसंख्या के लगभग आधे लोग (४५%) भारोपीय भाषा बोलते हैं।
संस्कृत, ग्रीक और लातीनी जैसी शास्त्रीय भाषाओं का संबंध भी इसी समूह से है। लेकिन अरबी एक बिल्कुल विभिन्न परिवार से संबंध रखती है। इस परिवार की प्राचीन भाषाएँ बहिर्मुखी श्लिष्ट-योगात्मक (end-inflecting) थीं। इसी समूह को पहले आर्य-परिवार भी कहा जाता था।
चीनी-तिब्बती भाषा-परिवार
(The Sino - Tibetan Family)
विश्व में जनसंख्या के अनुसार सबसे बड़ी भाषा मन्दारिन (उत्तरी चीनी भाषा) इसी परिवार से संबंध रखती है। चीन और तिब्बत में बोली जाने वाली कई भाषाओं के अलावा बर्मी भाषा भी इसी परिवार की है। इनकी स्वरलहरी एक ही है। एक ही शब्द अगर ऊँचे या नीचे स्वर में बोला जाय तो शब्द का अर्थ बदल जाता है।
इस भाषा परिवार को 'नाग भाषा परिवार' नाम दिया गया है। इसे 'एकाक्षर परिवार' भी कहते हैं। कारण कि इसके मूल शब्द प्राय: एकाक्षर होते हैं। ये भाषाएँ कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, नेपाल, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, भूटान, अरूणाचल प्रदेश, आसाम, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा और मिजोरम में बोली जाती हैं।
सामी-हामी भाषा-परिवार या अफ़्रीकी-एशियाई भाषा-परिवार
(The Afro - Asiatic family or Semito-Hamitic family)
इसकी प्रमुख भाषाओं में आरामी, असेरी, सुमेरी, अक्कादी और कनानी वग़ैरह शामिल थीं लेकिन आजकल इस समूह की प्रसिद्धतम भाषाएँ अरबी और इब्रानी हैं। इन भाषाओं में मुख्यतः तीन धातु-अक्षर होते हैं और बीच में स्वर घुसाकर इनसे क्रिया और संज्ञाएँ बनायी जाती हैं (अन्तर्मुखी श्लिष्ट-योगात्मक भाषाएँ)।
द्रविड़ भाषा-परिवार
(The Dravidian Family)
भाषाओं का द्रविड़ी परिवार इस लिहाज़ से बड़ा दिलचस्प है कि हालाँकि ये भाषाएँ भारत के दक्षिणी प्रदेशों में बोली जाती हैं लेकिन उनका उत्तरी क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषाओं से कोई संबंध नहीं है (संस्कृत से ऋणशब्द लेने के अलावा)।
इसलिए उर्दू या हिंदी का अंग्रेज़ी या जर्मन भाषा से तो कोई रिश्ता निकल सकता है लेकिन मलयालम भाषा से नहीं।
दक्षिणी भारत और श्रीलंका में द्रविड़ी समूह की कोई 26 भाषाएँ बोली जाती हैं लेकिन उनमें ज़्यादा मशहूर तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ हैं। ये अन्त-अश्लिष्ट-योगात्मक भाषाएँ हैं।
यूराल-अतलाई कुल
प्रमुख भाषाओं के आधार पर इसके अन्य नाम – ‘तूरानी’, ‘सीदियन’, ‘फोनी-तातारिक’ और ‘तुर्क-मंगोल-मंचू’ कुल भी हैं। इसका क्षेत्र बहुत विस्तृत है, किन्तु मुख्यतः साइबेरिया, मंचूरिया और मंगोलिया में हैं। प्रमुख भाषाएँ–तुर्की या तातारी, किरगिज, मंगोली और मंचू है, जिनमे सर्व प्रमुख तुर्की है। साहित्यिक भाषा उस्मानली है। तुर्की पर अरबी और फारसी का बहुत अधिक प्रभाव था किन्तु आजकल इसका शब्दसमूह बहुत कुछ अपना है। ध्वनि और शब्दावली की दृष्टि से इस कुल की यूराल और अल्ताई भाषाएँ एक-दूसरे से काफी भिन्न हैं। इसलिए कुछ विद्वान् इन्हें दो पृथक् कुलों में रखने के पक्ष में भी हैं, किन्तु व्याकरणिक साम्य पर निस्सन्देह वे एक ही कुल की भाषाएँ ठहरती हैं। प्रत्ययों के योग से शब्दनिर्माण का नियम, धातुओं की अपरिवर्तनीयता, धातु और प्रत्ययों की स्वरानुरूपता आदि एक कुल की भाषाओं की मुख्य विशेषताएँ हैं। स्वरानुरूपता से अभिप्राय यह है कि मक प्रत्यय यज्धातु में लगने पर यज्मक् किन्तु साधारणतया विशाल आकार और अधिक शक्ति की वस्तुओं के बोधक शब्द पुंल्लिंग तथा दुर्बल एंव लघु आकार की वस्तुओं के सूचक शब्द स्त्रीलिंग होते हैं। (लिखना) में यज् के अनुरूप रहेगा, किन्तु सेव् में लगने पर, सेवमेक (तुर्की), (प्यार करना) में सेव् के अनुरूप मेक हो जायगा।
भारत के भाषा-परिवार
भारत में मुख्यतः चार भाषा परिवार है:-
1. भारोपीय
2. द्रविड़
3. आस्ट्रिक
4. चीनी-तिब्बती
भारत में सबसे अधिक भारोपीय भाषा परिवार (लगभग 73%) की भाषा बोली जाती है।
बाहरी कड़ियाँ
भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी (गूगल पुस्तक ; लेखक - डॉ राम विलास शर्मा)
भारत के भाषा परिवार (गूगल पुस्तक)
Ethnologue
The Multitree Project
भाषा-विज्ञान
ऐतिहासिक भाषाविज्ञान | 1,693 |
940723 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%AE%E0%A5%80%20%E0%A4%B2%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BF | क्वान्टमी लब्धि | विकिरण से प्रेरित किसी प्रक्रम की क्वाण्टमी लब्धि ( quantum yield (Φ)) से तात्पर्य यह है कि एक फोटॉन के अवशोषित होने पर कितने गुना वह विशेष घटना घटित होती है।
उदाहरण के लिए, किसी फोटोडीजनरेशन प्रक्रिया में, प्रकाश के अवशोषण के परिणामस्वरूप अणु विलगित होते हैं। इस प्रक्रम में विलगित अणुओं की संख्या को अवशोषित फोटॉनों की संख्या से भाग देने पर जो संख्या मिलती है वही इस अभिक्रिया की क्वान्टमी लब्धि है। यहाँ क्वान्टमी लब्धि का मान १ से कम होता है जिसका अर्थ है कि सभी अवशोषित फोटॉन अणुओं का फोटोडीजनरेशन नहीं कर पाते हैं।
विकिरण | 99 |
714303 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%80%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A4 | मैकेन्ज़ी पर्वत | मैकेन्ज़ी पर्वतमाला () कनाडा के राज्य युकॉन और नॉर्थवेस्ट टेरीटरीज़ के कुछ हिस्सों को बांटने वाली एक पर्वतमाला है जो पील और लिअर्ड नदी के मध्य स्थित है। इसका नाम कनाडा के दूसरे प्रधानमंत्री अलेक्ज़ेंडर मैकेन्ज़ी के नाम पर उनके सम्मान में रखा गया है। कनाडा का प्रसिद्ध नाहानी राष्ट्रीय अभयारण्य मैकेन्ज़ी के पर्वतों में ही स्थित है।
मैकेन्ज़ी के पर्वतों में विश्व के कुल ज्ञात टंगस्टन का 55% हिस्सा पाया जाता है। नॉर्थेव्स्ट प्रान्त का खदान शहर टंगस्टन और कैन्टुंग खदान मैकेन्ज़ी के पर्वतों में ही स्थित है। इन पर्वतों में सिर्फ़ दो सडकें ही जाती है जो युकॉन में स्थित हैं। नाहानी रेंज मार्ग जो टंगस्टन की तरफ़ जाती हैऔर कैनल मार्ग जो मैकमिलन दर्रा की तरफ़ जाती है।
इस पर्वतमाला का सबसे ऊंचा पहाड़ की ऊँचाई पर स्थित कील चोटी है। दूसरा सबसे ऊंचा पर्वत निर्वाना पर्वत है जो की ऊंचाई पर स्थित है और उत्तर-पश्चिम प्रदेश का सबसे ऊंचा पहाड़ है।
सन्दर्भ
Canadian GeoNames Database entry
आगे पढें
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कील, जे. (1910). A reconnaissance across the Mackenzie mountains on the Pelly, Ross, and Gravel rivers, Yukon, and North West territories. ओटावा: सरकारी प्रेस.
लैटोर, पॉल बी. A Survey of Dall's Sheep in Zone E/1-1, Northern Mackenzie Mountains. Norman Wells, NWT: Dept. of Renewable Resources, उत्तर-पश्चिम प्रदेश की सरकार, 1992.
मिलर, एस. जे., बैरीचेलो, एन., & टैट, डी. ई. एन. (1982). The grizzly bears of the Mackenzie Mountains, Northwest Territories. येलोनाइफ़, N.W.T.: N.W.T. वाइल्ड लाइफ़ सेवा.
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बाहरी कड़ियाँ
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Mountain goat survey, Flat River area, Western Mackenzie Mountains (2004). Artier, N.C.L. ''Dept of Resources, Wildlife, and Economic Development, Gov't of the NWT.
कनाडा के पर्वत
नॉर्थवेस्ट टेरीटरीज़
यूकॉन की पर्वतमालाएँ
नॉर्थवेस्ट टेरीटरीज़ की पर्वतमालाएँ | 370 |
34593 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE | पूर्ण प्रतियोगिता | पूर्ण प्रतियोगिता बाजार के उस रूप का नाम है जिसमें विक्रेताओं की संख्या की कोई सीमा नहीं होती। फ़लतः कोई भी एक उत्पादक (विक्रेता) बाजार में वस्तु की कीमत पर प्रभाव नहीं डाल सकता। अर्थशास्त्र में बाजार को मुख्त्यः दो रूपों में बांटा जाता है : पूर्ण प्रतियोगिता और अपूर्ण प्रतियोगिता। बाजार संरचना के दो चरम बिन्दुओं पर पूर्ण प्रतियोगिता और एकाधिकार हैं।
पूर्ण प्रतियोगिता के लक्ष््ण
पूर्ण प्रतियोगिता के होने के लिये कुछ पूर्वानुमान लिये जाते हैं जो इस प्रकार हैं :
१. प्रत्येक उत्पादक बाजार की पूरी आपूर्ति का इतना छोटा हिस्सा प्रदान करता है की वो अकेला बाजार में वस्तु की कीमत पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकता।
२. प्रत्येक उत्पादक के द्वारा बनाई गयी वस्तु समान होती है।
३. प्रत्येक उत्पादक बाजार में उप्लब्ध उत्पादन तकनीक तक पहुंच रखता है।
४. किसी भी नये उत्पादक के बाजार में आने पर अथवा बाजार में उपस्थित किसी उत्पादक के बाजार से निकलने पर कोई रोक टोक नहीं है।
५. बाजार में विद्यमान प्रत्येक क्रेता और विक्रेता को बाजार का पूर्ण ज्ञान है।
यद्यपि पूर्ण प्रतियोगिता व्यावहारिक जीवन में सम्भव नहीं है, पर शेयर बाजार इसकी विशेषताओं की दृष्टि से बहुत पास पहुंच जाता है। कृषि क्षेत्र(चावल, गेहूं आदि) में भी प्रतियोगिता पूर्ण प्रतियोगिता के समान ही होती है।
~ सदैव पूर्ण प्रतियोगिता के बाज़ार का मूल्य निर्धरण कम रहता है एकाधिकार बाज़ार के तुलना में।
पूर्ण प्रतियोगिता में बाजार मूल्य का निर्धारण
पूर्ण प्रतियोगिता में कोई भी विक्रेता वस्तू का मूल्य स्वंय निर्धारित नहीं कर सकता। अतः वस्तु का मूल्य बाजार में निर्धारित होता है। मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया को समझने के लिये मांग और आपूर्ति को समझना आवश्यक है।
मांग: एक निश्चित मूल्य पर किसी वस्तु की जितनी मात्रा लोग खरीद कर उपयोग करना चाहते हैं उसे वस्तु की मांग कहते हैं।
आपूर्ति: किसी वस्तु के उत्पादक उसकी जितनी मात्रा एक निर्धारित मुल्य पर बाजार में बेचना चाहते हैं उसे वस्तू की बाजार में आपूर्ति कहते हैं।
जब बाजार में कोइ वस्तु आती है तो उसके मांग और उसकी आपूर्ति में सम्बन्ध स्थापित होता है और मूल्य का निर्धारण होता है।
विक्रेता द्वारा उपयुक्त विक्रय परिमाण का निर्धारण
पूर्ण प्रतियोगिता में विक्रेता का मांग-वक्र पुर्णतः लोचशील होता है क्योंकि वह बाजार निर्धारित मूल्य पर जितना चाहे उत्पादन कर सकता है और उसे बेच सकता है। अतः उसे उप्युक्त परिमाण निर्धारित करने के लिये अपने सीमांत लागत वक्र का निर्धरण करना होता है। सीमांत लागत का अर्थ है वर्तमान स्थिति में एक और वस्तु के उत्पाद करने का लागत। सीमांत लागत वक्र अंग्रेजी के अक्षर 'U' के आकार का होता है। इस्का अर्थ है कि जब उत्पादन क्षमता का पूरा प्रयोग नहीं हो रहा है तब सीमांत लागत घट रहा होता है, एक निश्चित क्षमता तक पहुंचने के बाद यह बढ़ने लगता है। जिस बिन्दु पर सीमांत लागत वक्र उत्पादक के मांग वक्र को काटता है, उस बिन्दु पर उपयुक्त उत्पादन का निर्धारण होता है।
जब उत्पादक एक वस्तु का उत्पादन करता है तो उसका मुख्य उद्देश्य होता है लाभ। जब सीमांत लागत अर्थात एक इकाई के उत्पादन का लागत बाजार में स्थापित वस्तु के मुल्य से ऊपर चला जाता है तो इसका अर्थ है कि विक्रेता को उसके उत्पादन से घाटा होगा। अतः जिस बिन्दु पर सीमांत लागत वक्र, विक्रेता के मांग वक्र को काट कर उसके ऊपर चला जाता है, उस बिन्दु के पार उत्पादन करने से विक्रेता को अपना उत्पाद लागत से कम भाव पर बेचना होगा। अतः उत्पादक इस बिन्दु पर पहुंचने के उपरान्त उत्पादन रोक देता है।
सूक्ष्म अर्थशास्त्र
बाज़ार (अर्थशास्त्र)
आर्थिक सिद्धांत | 580 |
1465907 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A5%80 | सुक्तिमती | शुक्तिमती चेदि साम्राज्य की राजधानी है जो हिन्दू साहित्य में वर्णित है। यह इसी नाम की शुक्तिमती नदी के तट पर स्थित है, जो इस क्षेत्र से होकर बहती है। पाली-भाषा के बौद्ध ग्रंथों में इसे सोत्थिवती-नागारा कहा गया है।
किंवदंती
शुक्तिमती का निर्माण चंद्रवंश (चंद्र वंश) के एक चेदि राजा द्वारा किया गया बताया जाता है, जिसे उपरीचर वसु के नाम से जाना जाता है। महाभारत में कहा गया है कि शुक्तिमती नदी कोलाहाला नामक पर्वत पर प्रेम करने के लिए मजबूर होने के बाद जुड़वां बच्चों (एक लड़का और एक लड़की) को जन्म देती है। राजा द्वारा लात मारकर मुक्त किये जाने के बाद, नदी उसे जुड़वाँ बच्चे देती है। उपरिचार वासु लड़के को अपनी सेनाओं का सेनापति बनाता है और लड़की गिरिका से शादी करता है। | 129 |
220234 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8B%E0%A4%B5 | दिमितार बरबातोव | दिमितार इवानोव बरबातोव (बल्गेरियाई भाषा में: Димитър Иванов Бербатов; जन्म 30 जनवरी 1981) इंग्लैंड की मैनचेस्टर यूनाइटेड के स्ट्राइकर के रूप में खेलने वाले एक बल्गेरियाई फुटबॉलर हैं और बल्गेरिया की नेशनल टीम के अब तक के लीडिंग गोल-स्कोरर हैं। उन्होंने ह्रिस्टो स्टोइचकोव को पीछे छोड़ते हुए छह बार बल्गेरियाई फुटबॉलर ऑफ द इयर पुरस्कार जीता है। कुशल और आसान लगने वाली खेलने की स्टाइल उनकी खासियत है, जिसकी वजह से उन्हें प्रशंसा तो मिली है लेकिन साथ ही उन्हें "सुस्त" भी समझा गया है।
ब्लेगीवग्राद में जन्मे बरबातोव ने अपना फुटबॉल करियर स्थानीय क्लब पिरिन ब्लेगीवग्राद से शुरू किया था, लेकिन 1998 में 17 वर्ष की उम्र में वे सीएसकेए सोफिया में शामिल हो गये। जनवरी 2001 में उन्हें बेयर लीवरकुसेन ने साइन किया और 18 महीने बाद 2002 में उन्होंने अपना पहला यूईएफए चैम्पियन्स लीग फाइनल रियल मैड्रिड के खिलाफ थॉमस बर्डेरिक के सब्स्टीटयूट के तौर पर खेला। साढ़े पांच साल तक लीवरकुसेन के साथ रहने के बाद उन्हें टॉटनहैम हॉटस्पर ने साइन किया। इसके दो साल बाद वे मैनचेस्टर यूनाइटेड में शामिल हुए. उन्होंने अपना दूसरा चैम्पियन्स लीग फाइनल 2009 में बार्सिलोना के खिलाफ खेला था।
प्रारंभिक जीवन
बरबातोव के पिता इवान एक स्थानीय क्लब पिरिन ब्लेगीवग्राद में एक पेशेवर फुटबॉलर थे और उनकी माँ मार्गरीटा एक पेशेवर हैंडबॉल खिलाड़ी थीं। युवावस्था में बरबातोव मिलान के प्रशंसक थे और खुद मार्को वान बैस्टेन के जैसा बनना चाहते थे। इंग्लैंड में हुए यूरो'96 में 15 वर्षीय बेरबतोव को न्यूकैसल यूनाइटेड के एलन शिअरर के रूप में नया रोल मॉडल नजर आया, यहाँ तक कि वे सोते समय भी न्यूकैसल की जर्सी पहने रहते थे। उनकी माँ ने बाद में कहा कि एक दिन न्यूकैसल के लिए खेलना, दिमितार का सपना था।
क्लब करियर
प्रारंभिक करियर
बरबातोव का करियर पिरिन ब्लेगीवग्राद से शुरू हुआ और आगे बढ़ा, उसके बाद वे महान स्काउट एवं मैनेजर दिमितार पेनेव की नजर में आये।
सीएसकेए सोफिया
सिर्फ 17 साल की उम्र में बरबातोव अपने पिता के नक्शेकदम पर सीएसकेए सोफिया में चले गये। उनके पिता इवान भी इस क्लब से पहले लेफ्ट विंगर और बाद में डिफेंडर के रूप में खेले थे। 18 साल की उम्र में 1998-99 के सीजन से शुरुआत करते हुए 1998 से जनवरी 2001 के बीच वे बल्गेरियाई ए पीएफजी में सीएसकेए सोफिया की तरफ से खेले। अगले ही वर्ष उन्होंने 27 लीग मैचों में 14 गोल करके तथा 1999 में बल्गेरियाई कप जीत कर खुद को स्थापित करना शुरू कर दिया।
जब बरबातोव 18 वर्ष के थे, तब एक प्रशिक्षण सत्र के बाद उनका अपहरण कर लिया गया। बाद में मारे जा चुके एक बल्गेरियाई गैंगस्टर जॉर्जी इलिएव ने अपने खुद के क्लब लोकोमोटिव प्लोवदिव के साथ अनुबंध करने के लिए इस स्ट्राइकर को मजबूर करने की कोशिश की थी।
जून 2000 में वे इतालवी सेरी ए साइड लेक्की से अनुबंध करने वाले थे। अमेरिकी लेक्की के फुटबॉल के पूर्व डाइरेक्टर पेंटेलिओ कोर्विनो ने एक साक्षात्कार में कहा कि बरबातोव का मेडिकल तो पहले ही हो चुका था, लेकिन जब अनुबंध पर हस्ताक्षर करने का समय आया, तो शायद खिलाड़ी के खुद के एक अन्य अनुरोध के कारण यह प्रयास ठप्प हो गया।
बायर लीवरकुसेन
वर्ष 2000-01 में बरबातोव की 11 मैचों में नौ गोल की उपलब्धि, बेयर लीवरकुसेन को जनवरी 2001 में उन्हें अनुबंधित करने के लिए प्रेरित करने के लिए पर्याप्त थी। अपने क्लब के लिए पहले 67 मैचों में मात्र 16 गोल के साथ बरबातोव ने लीवरकुसेन के साथ अपने करियर की धीमी शुरुआत की। लेकिन उन्होंने क्लब के साथ अपने पहले पूर्ण सीजन के दौरान शानदार कौशल दिखाते हुए एक यादगार एकल प्रयास से ल्योन के विरुद्ध गोल करके तथा लिवरपूल के खिलाफ क्वार्टर फाइनल में गोल करके चैम्पियन्स लीग में निर्णायक भूमिका निभाई. उन्होंने रियल मैड्रिड के खिलाफ फाइनल में भी 38 मिनट के बाद थॉमस बर्डेरिक के सब्स्टीटयूट के रूप में आकर अहम भूमिका निभाई.
2001-02 में लीवरकुसेन Fußball-Bundesliga और DFB-Pokal में उपविजेता रहा। सितंबर 2002 में अपने भावी क्लब मैनचेस्टर यूनाइटेड के खिलाफ बरबातोव ने एक अच्छा गोल किया और 2002-03 के बुन्देस्लिगा सत्र के दौरान बेयर लीवरकुसेन में पहली पसंद वाले फॉरवर्ड के रूप में अपना स्थान पक्का कर लिया। हालांकि, 2003-04 के सीजन में 24 मैचों में 16 गोल करके उन्होंने अपनी प्रतिभा का सुंदर प्रदर्शन किया। अगले दो सीजनों में 2004-05 की चैंपियंस लीग में किये 5 गोल सहित कुल 46 गोल करके वे और अधिक सफल हुए. इससे उनकी प्रतिभा के प्रति लोगों की जागरुकता बढ़ी तथा यूरोप भर की टीमों में अपने प्रति रुचि पैदा करने में वे सफल हुए.
टॉटनहैम हॉटस्पर
2006-07 सीज़न
2004 में बल्गेरियन फुटबॉलर ऑफ द इयर पुरस्कार को लेकर अटकलें लगती रही। लेकिन मई 2006 में जाकर बरबातोव 16 मिलियन यूरो (10.9 मिलियन पौंड) फीस के बदले प्रीमियर लीग साइड टॉटनहैम हॉटस्पर में शामिल हुए और इतिहास के सबसे महंगे बल्गेरियाई खिलाड़ी बन गये। वर्क परमिट मिल जाने के बाद हस्तांतरण पूर्ण हुआ और बरबातोव 1 जुलाई 2006 को टॉटनहैम में शामिल हो गए। बर्मिंघम सिटी के विरुद्ध एक सीजन-पूर्व अभ्यास मैच में टॉटनहैम के खिलाड़ी के तौर पर अपने पहले ही मैच में उन्होंने दो गोल किये।
व्हाइट हार्ट लेन में शेफील्ड यूनाइटेड के खिलाफ टॉटनहैम की तरफ से पहले ही प्रीमियरशिप मैच में बरबातोव ने अपने पहला प्रतियोगी गोल किया। क्वार्टर फाइनल में स्पर के सेविला चले जाने तक, उन्होंने यूईएफए कप में रोबी कीने के साथ फलदायक जोड़ी बनाई। मार्टिन जोल द्वारा अपने स्ट्राइकरों के रोटेशन के बावजूद बरबातोव ने स्वयं को क्लब में पहली पसंद वाले फॉरवर्ड के रूप में मजबूती से स्थापित कर लिया। उन्होंने यूईएफए कप के ग्रुप चरण के दौरान चार मैचों में पाँच गोल करके बेसिकतास तथा क्लब ब्रुग्गे के खिलाफ दो बार मैन ऑफ द मैच पुरस्कार अर्जित किये।
यूरोपीय प्रतियोगिता में अपनी अच्छी फॉर्म के बावजूद बरबातोव ने प्रीमियरशिप के अनुकूल बनने में कुछ समय लिया। हालांकि, विगान एथलेटिक के खिलाफ 3-1 की जीत में उन्होंने एक गोल खुद किया तथा दो गोलों में मदद की। इस उत्कृष्ट प्रदर्शन के साथ वे जल्दी ही लीवरकुसेन में दिखाई अपनी फार्म में लौटने लगे। 9 दिसम्बर 2006 को बरबातोव ने स्पर्स की ओर से कार्लटन एथलेटिक के खिलाफ अपनी टीम की 5-1 से जीत में पहला प्रीमियरशिप गोल किया। बरबातोव ने एफए कप में फुलहैम के विरुद्ध मैच के दूसरे हाफ में सब्स्टीटयूट के रूप में आकर प्रतियोगिता के अपने पहले दो गोल किये। गुडीसन पार्क में एवर्टन के खिलाफ प्रीमियरशिप के एक मैच में आरोन लेनन के एक क्रॉस पेनल्टी स्पॉट के पास से एक ही शॉट द्वारा घर से बाहर का अपना पहला गोल किया। स्पर्स ने यह मैच 2-1 से जीता।
फरवरी 2004 में आर्सिनल के डेनिस बर्गकेम्प और एडू को संयुक्त रूप से मिले प्रीमियर लीग प्लेयर ऑफ द मंथ पुरस्कार के बाद, पहली बार बरबातोव और उनके स्पर्स टीम के साथी रोबी कीने को अप्रैल महीने के लिये संयुक्त रूप से यह पुरस्कार दिया गया। 7 मई 2007 को कार्लटन एथलेटिक के विरुद्ध 2-0 से जीत का पहला गोल करने के साथ ही बरबातोव ने टॉटनहैम के 2006-07 के सीजन में 100वाँ गोल पूरा किया।
बरबातोव उन कुछ लोगों में से हैं जिनके विगान एथलेटिक और मिडिल्सबरो के खिलाफ उत्कृष्ट प्रयासों के साथ किये गये दोनों गोल, बीबीसी की महीने की गोल ऑफ द मंथ की चयनित सूची में शामिल किये गये। बरबातोव ने प्रीमियर लीग के 2006-07 सीजन में 33 मैचों में 12 गोल किये और 11 में सहयोगी भूमिका निभाई.
2006-07 सत्र में अपने अत्यंत प्रभावशाली प्रदर्शन, खासकर सत्र के उत्तरार्ध में, की वजह से उन्हें टॉटनहैम हॉटस्पर प्लेयर ऑफ द इअर का पुरस्कार मिला। बरबातोव को 21 अप्रैल 2007 को एफए प्रीमियर लीग की सीजन की पीएफए टीम में शामिल किया गया। इस टीम में उनके अलावा स्टीवन गेरार्ड तथा डिडिएर ड्रोग्बा सहित केवल तीन खिलाड़ी ही ऐसे थे जो लीग विजेता मैनचेस्टर यूनाइटेड के लिये नहीं खेलते थे।
2007-08 सीज़न
22 दिसम्बर 2007 को उत्तरी लंदन डर्बी में स्पर्स की आर्सिनल से करीबी हार के बाद आर्सिनल के मैनेजर आर्सीन वेंगर ने बरबातोव की थियरी हेनरी से तुलना की।
उनकी पहली स्पर्स प्रीमियर लीग हैटट्रिक 29 दिसम्बर 2007 को रीडिंग के खिलाफ 6-4 से हुई अविश्वसनीय जीत में मिली, जब उन्होंने चार गोल किये।
बरबातोव ने 24 फ़रवरी 2008 को वेम्बले स्टेडियम में चेल्सिया के खिलाफ फुटबॉल लीग कप में टॉटनहैम के लिये अपना पहला कप फाइनल खेला जिसमें उनके पेनाल्टी द्वारा किये गए गोल ने उनकी टीम को बराबरी दिला दी। टॉटनहैम ने यह मैच अतिरिक्त समय के बाद 2-1 से जीता और बरबातोव ने इंग्लिश फुटबॉल में अपनी पहली ट्रॉफी प्राप्त की। 9 मार्च को बरबातोव ने दो हैडर लगा कर वेस्ट हैम यूनाइटेड को 4-0 से ध्वस्त कर दिया।
इसके साथ उनके प्रीमियर लीग में उनके कुल बारह गोल हो गये जो 2007 के उनके लीग टोटल के बराबर था। उन्होंने 15 लीग गोल के साथ सत्र समाप्त किया और इसी प्रकार का कुल रिकॉर्ड सभी प्रकार की प्रतियोगिताओं का रहा, जहाँ कुल 23 गोल और 11 में सहायक भूमिका रही। 19 अप्रैल को विगान में 1-1 से ड्रॉ वाले मैच में उन्होंने इस अभियान में पुनः स्पर्स का सत्र का 100वाँ गोल किया।
2008-09 सीज़न
सीजन 2008-09 की शुरुआत में परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि बरबातोव की सुनहरे भविष्य की इच्छा संबंधी सुर्खियाँ अखबारों में छायी हुई थी। मैनचेस्टर यूनाइटेड द्वारा उनके लिए एक बड़ी बोली लगाये जाने की अफवाहों ने उन्हें बेचैन कर दिया और टॉटनहैम के साथ प्रशिक्षण के बावजूद बरबातोव को संदरलैंड तथा चेल्सिया के खिलाफ मैच में ड्रॉप कर दिया गया। यूनाइटेड के मैनेजर एलेक्स फर्ग्यूसन ने इन अफवाहों को शांत करने की कोशिश में कहा कि हस्तांतरण खिड़की बंद होने से पहले किसी नये खिलाड़ी को साइन करने की बहुत कम संभावना है।
मैनचेस्टर यूनाइटेड
2008-09 सीज़न
काफी अटकलों के बाद, बरबातोव ने 1 सितम्बर 2008 को 23.4 मिलियन पाउण्ड की प्रारंभिक फीस पर मैनचेस्टर यूनाइटेड के साथ अनुबंध किया है, जिसके अनुसार फ्रेजर कैम्पबेल पूरे सीजन के लिये लोन पर टॉटनहैम में शामिल हुए हैं। टॉटनहैम द्वारा उसी दिन बरबातोव के लिए मैनचेस्टर सिटी की बोली स्वीकार करने के बावजूद ऐसा हुआ। यूनाइटेड के साथ बरबातोव का अनुबंध चार साल के लिए है, और वह पहले लुई साहा द्वारा पहनी जाने वाली 9 नंबर की शर्ट पहनते हैं। बाद में बरबातोव ने जोर देकर कहा कि मैनचेस्टर सिटी से अनुबंध के बारे में उन्होंने कभी नहीं सोचा था।
बरबातोव ने मैनचेस्टर यूनाइटेड की ओर से पहले मैच में लिवरपूल के खिलाफ कार्लोस टेवेज द्वारा किये गये गोल में सहायता की थी लेकिन यूनाइटेड यह मैच 2-1 से हार गया। उन्होंने मैनचेस्टर यूनाइटेड के लिए अपने पहले दो गोल 30 सितंबर 2008 को चैंपियंस लीग के ग्रुप चरण में आलबोर्ग बीके के खिलाफ यूनाइटेड की 3-0 से जीत में किये थे। उन्होंने मैनचेस्टर यूनाइटेड के खिलाड़ी के रूप में तीसरा गोल तथा प्रीमियर लीग का अपना पहला गोल वेस्ट ब्रोमविक एल्बिओन के खिलाफ 4-0 की जीत में किया। 29 अक्टूबर 2008 को वेस्ट हैम यूनाइटेड के विरुद्ध मैनचेस्टर यूनाइटेड के घरेलू मैच में दक्ष फुटवर्क का उपयोग करते हुए, रक्षक जेम्स कोलिन्स से आगे निकल कर बरबातोव ने क्रिस्टिआनो रोनाल्डो की गोल करने में सहायता करके स्कोरिंग शुरू की। 17 जनवरी 2009 को उन्होंने बोल्टन वान्डरर्स के विरुद्ध अंतिम क्षणों में गोल करके 1-0 की जीत सुनिश्चित की और सत्र में पहली बार मैनचेस्टर यूनाइटेड को प्रीमियर लीग तालिका के शीर्ष पर पहुँचाया. एफए कप 2008-09 के सेमी-फाइनल में एवर्टन के खिलाफ उनके द्वारा एक पेनल्टी शॉट गलत लगाए जाने की ज्यादा आलोचनाओं पर एलेक्स फरग्यूसन ने बरबातोव का बचाव किया। अंततः मैनचेस्टर यूनाइटेड यह मैच पेनल्टी शूट-आउट में एवर्टन से हार गया। इसके फौरन बाद 25 अप्रैल 2009 को बरबातोव ने मैनचेस्टर यूनाइटेड का पाँचवाँ गोल अपनी पुरानी टीम टॉटेनहैम हॉटस्पर के विरुद्ध किया जब वे हाफ टाइम तक 2-0 से पीछे रहने के बाद मैच में वापस आए तथा 5-2 से जीत हासिल की। मैनचेस्टर यूनाइटेड ने 16 मई 2009 को आर्सिनल के साथ घरेलू मैदान पर 0-0 से ड्रॉ खेल कर प्रीमियर लीग जीत ली जिससे बरबातोव को पहला करियर लीग खिताब हासिल करने तथा प्रतियोगिता जीतने वाला पहला बल्गेरियाई बनने का अवसर मिला। इसी सीजन में बरबातोव 10 गोल में सहायता करके 11 असिस्ट वाले रॉबिन वैन पर्सी के पीछे, फेबरगैस, गेरार्ड तथा लैम्पार्ड के साथ प्रीमियर लीग में संयुक्त रूप से दूसरे स्थान पर रहे।
2009-10 सीज़न
22 अगस्त 2009 को विगान एथलेटिक के खिलाफ घर से बाहर 5-0 की जीत में दूसरा गोल करके बरबातोव ने 2009-10 सीजन का पहला गोल किया। चैंपियंस लीग में वुल्फ्सबर्ग के खिलाफ प्रेरक प्रदर्शन के तीन दिन बाद, 3 अक्टूबर 2009 को सुंदरलैंड के खिलाफ मैनचेस्टर यूनाइटेड के दो बराबरी वाले गोलों में से पहले के लिए उन्होंने एक उत्कृष्ट सीजर-किक लगा कर गोल किया। 31 अक्टूबर को फिर से एक विशिष्ट नियंत्रण और फिनिश के साथ उन्होंने ब्लैकबर्न रोवर्स के खिलाफ गोल किया लेकिन उन्हें इस मैच में चोट लग गई जिसने उन्हें एक महीने से अधिक तक टीम से बाहर रखा। लगभग दो महीने बाद 27 दिसम्बर 2009 को उन्होंने हल के खिलाफ फिर से गोल किया। अगले ही गेम में विगान एथलेटिक के खिलाफ 5-0 से घरेलू जीत में उन्होंने चौथा गोल दागा. दिमितार ने अपना नौवां गोल प्रीमियर लीग में एवर्टन से 3-1 की हार में किया। इस गोल का यह भी मतलब था कि उन्होंने अपने पांच गोल पिछले पाँच शुरुआती लीग मैचों में किये थे। उनका 10वाँ लीग गोल फुलहैम के खिलाफ मजबूत प्रदर्शनों के बाद आया। उन्होंने वेन रूनी के दूसरे गोल के लिए सहायता भी प्रदान की। 27 मार्च 2010 को घर से बाहर बोल्तों वांडरर्स पर 4-0 की जीत में उन्होंने क्लब के लिये लीग के अपने पहले दोहरे गोल किये।
हाल ही में यूनाइटेड के खिताब जीतने के विलंब से शुरू हुए अभियान में गोल रहित रहने के कारण बरबातोव समर्थकों के कुछ वर्गों की आलोचना के शिकार हुए हैं। वेन रूनी को चोट लगने के बाद उन पर भरोसा किये जाने के कारण यह आलोचना और तीव्र हो गई है। एलेक्स फर्ग्यूसन का भी बरबातोव पर निर्भर रहने में विश्वास नहीं रहा है और ऐसा लगता है कि वे रूनी को तेजी से चोट से वापस लाना लाना चाहते हैं। इससे यह कयास लगाया जा रहा है कि ओल्ड ट्रैफर्ड में सिर्फ दो सीजन के बाद संभवतः गर्मियों में हस्तांतरण खिड़की खुलने पर वे यूनाइटेड को छोड़ देंगे।
2010-11 सीज़न
16 जुलाई 2010 को टोरंटो, कनाडा में रोजर्स सेन्टर पर सेल्टिक के खिलाफ एक मैत्री मैच में 3-1 की जीत में बरबातोव ने सीजन पूर्व का पहला गोल किया। 2010 कम्यूनिटी शील्ड में 8 अगस्त को चेल्सिया पर 3-1 की जीत वाले मैच के 92वें मिनट में उन्होंने यूनाइटेड का तीसरा गोल किया। फ्लेचर, गिग्स तथा नैनी के बीच कुछ तेज पारस्परिक आदान-प्रदान के बाद पुर्तगाली ने रबातोव के लिये गेंद उठा दी जिसे उन्होंने आगे बढ़ते हुए चेल्सिया के गोलकीपर हिलेरिओ के ऊपर से गोल में लॉब कर दिया।
अंतर्राष्ट्रीय करियर
बरबातोव ने 17 नवम्बर 1999 को ग्रीस के खिलाफ एक दोस्ताना मैच से बुल्गारिया की ओर से अपनी शुरुआत की। 12 फ़रवरी 2000 को चिली के खिलाफ एक दोस्ताना मैच में उन्होंने राष्ट्रीय टीम के लिए अपना पहला गोल स्कोर किया। 14 अक्टूबर 2009 को 2010 फीफा विश्व कप के एक योग्यता मैच में जॉर्जिया के खिलाफ 6-2 से हुई घरेलू जीत में उन्होंने हैटट्रिक की, जिससे राष्ट्रीय टीम के लिये उनके गोलों की संख्या 46 हो गई जो बुल्गारिया के सर्वकालीन टॉप स्कोरर ह्रिस्टो बोनेव के गोलों से एक कम थी। उन्होंने 18 नवम्बर 2009 को माल्टा के खिलाफ एक दोस्ताना मैच में 4-1 की घर से बाहर जीत में दो गोल किये तथा बुल्गारिया की राष्ट्रीय टीम के सर्वकालीन टॉप स्कोरर बन गये।
2006 में स्टिलियान पेत्रोव के बाद बरबातोव 2006 से 2010 तक टीम के कप्तान भी रहे। अपने प्रदर्शन की हाल ही में आलोचना के बीच अपनी टीम के प्रति बढ़ते मोहभंग के साथ ही कुछ व्यक्तिगत समस्याओं का हवाला देते हुए बरबातोव ने 13 मई 2010 को अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल से संन्यास लेने की घोषणा की। अपने संन्यास के बारे में उन्होंने कहा: "यह एक मुश्किल निर्णय था, लेकिन कभी कभी हमें कठिन निर्णय लेने होते हैं।"
अंतर्राष्ट्रीय गोल
18 नवम्बर 2009 तक खेले गेम्स तक अपडेटेड.
करियर आंकड़े
8 अगस्त 2010 तक खेले गए मैचों के लिए ये आंकड़े एकदम सही हैं
सम्मान
क्लब
सीएसकेए सोफिया
बल्गेरियाई कप (1): 1998-99
टोटेनहैम होटस्पर
फुटबॉल लीग कप (1): 2007-08
मैनचेस्टर यूनाइटेड
प्रीमियर लीग (1): 2008-09
फीफा क्लब विश्व कप (1): 2008
फुटबॉल लीग कप (1): 2009-10
एफए कम्यूनिटी शील्ड (1): 2010
व्यक्तिगत
वर्ष (1) के बल्गेरियाई मैन : 2009
वर्ष (1) के पीएफए प्रीमियर लीग टीम : 2006-07
वर्ष (6) के बल्गेरियाई फुटबॉल के खिलाड़ी: 2002, 2004, 2005, 2007, 2008, 2009
माह (1) के प्रीमियर लीग के खिलाड़ी: अप्रैल 2007*
रोबी कैन से साथ मिलकर
व्यक्तिगत जीवन
"गॉडफादर" फिल्में देख कर बरबातोव ने अंग्रेजी भाषा सीखी. फुटबॉल के अलावा वे ड्राइंग और बास्केटबॉल को भी पसंद करते हैं। बरबातोव अपनी जन्मभूमि बुल्गारिया में बच्चों के लिये धर्मार्थ संगठनों के प्रायोजक हैं पाँच केअर होम्स की सहायता करते हैं। उनकी अपने गृहनगर में एक फुटबॉल अकादमी खोलने की भी योजना है।
15 अक्टूबर 2009 को बरबातोव की लंबे समय की प्रेमिका ऐलेना ने सोफिया, बुल्गारिया के एक अस्पताल में उनके पहले बच्चे, दिआ नामक एक लड़की को जन्म दिया। 28 जुलाई 2010 को द सन ने सूचना दी कि बरबातोव के भाई आसेन जो अपनी पत्नी मिमी के साथ एक बुटीक चलाते हैं, व्यापार ऋण बढ़ने के बाद एक महीने से गायब हैं। हालांकि, एक दिन बाद उनकी माँ ने इन अफवाहों को नकार दिया और कहा कि वे लगातार अपने बेटे के सम्पर्क में हैं।
सन्दर्भ
एक्सटर्नल लिंक्स (बाह्य कड़ियाँ)
ऑफिशियल पर्सनल वेबसाइट ऑफ दिमितार बरबातोव
लीवरकुसेन-हूज हू
1981 में जन्मे लोग
जीवित लोग
ब्लेगीवग्राद के लोग
बल्गेरियाई फुटबॉल खिलाड़ी
बुल्गारिया अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल खिलाड़ी
बल्गेरियाई के प्रवासी फुटबॉलर
एसोसिएशन फुटबॉल फोर्वार्ड्स
पीएफसी पिरिन ब्लेगीवग्राद के खिलाड़ियों के नाम
पीएफसी सीएसकेए सोफिया खिलाड़ियों के नाम
बायर लिवरक्युसेन के खिलाड़ी
टोटेनहैम होटस्पर एफ.सी. खिलाड़ियों के नाम
मैनचेस्टर युनाइटेड एफ.सी. खिलाड़ियों के नाम
प्रीमियर लीग के खिलाड़ियों के नाम
पहले बुंडेसलीगा फुटबॉल खिलाड़ियों के नाम
इंग्लैंड में प्रवासी फुटबॉल खिलाड़ियों के नाम
जर्मनी में प्रवासी फुटबॉल खिलाड़ियों के नाम
यूईएफए यूरो 2004 के खिलाड़ियों के नाम
गूगल परियोजना | 2,988 |
772736 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A4%BE%20%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%2C%202017 | उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, 2017 | उत्तर प्रदेश की सत्तरहवीं विधानसभा के लिए आम चुनाव 11 फरवरी से 8 मार्च 2017 तक सात चरणों में आयोजित हुए। इन चुनावों में मतदान प्रतिशत लगभग 61% रहा। भारतीय जनता पार्टी ने 312 सीटें जीतकर तीन-चौथाई बहुमत प्राप्त किया जबकि सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी गठबन्धन को 54 सीटें और बहुजन समाज पार्टी को 19 सीटों से संतोष करना पड़ा। पिछले चुनावों में समाजवादी पार्टी ने अखिलेश यादव के नेतृत्व में सरकार बनायीं थी।
18 मार्च 2017 को भाजपा विधायक दल की बैठक के बाद योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य एवं दिनेश शर्मा को उपमुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। 19 मार्च 2017 को योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
पृष्ठभूमि
चुनावी प्रक्रिया में परिवर्तन
जनवरी 2016 में, भारत के निर्वाचन आयोग ने सभी 403 विधानसभा क्षेत्रों में अद्यतन चुनावी रोल प्रकाशित किए। [1] जुलाई 2016 में, चुनाव आयोग ने 2017 विधानसभा चुनावों के लिए उत्तर प्रदेश में मतदान बूथों की संख्या बढ़ाने का निर्णय लिया। मुजफ्फरनगर, बुधाणा, पुरकाज़ी, खातोली, चार्तवाल और मिदानपुर के 6 विधानसभा क्षेत्रों में 1500 से अधिक पंजीकृत मतदाताओं और मतदान केंद्रों के 1,6 9 से 1,8 9 बूथों तक उठाए जाने वाले निर्वाचन क्षेत्रों में नए मतदान केन्द्रों की योजना बनाई जाएगी। [2] [3] मतदाता सहायता बूथ स्थापित किए जाएंगे और नए डिजाइन में मतदाताओं की फोटो पर्ची उन्हें भेजी जाएगी। पहली बार, फॉर्म -2 बी में उम्मीदवारों की तस्वीर और उनकी राष्ट्रीयता शामिल होगी।
वाराणसी, गाजियाबाद और बरेली निर्वाचन क्षेत्र सहित 30 जिलों को कवर करने वाले 30 विधानसभा विधानसभा क्षेत्रों में मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) मशीनों का इस्तेमाल किया गया था।
मतदाता सूची के विशेष सारांश संशोधन के मुताबिक जनवरी 2015 तक उत्तर प्रदेश में कुल 14.05 करोड़ मतदाता हैं।
जाति और धर्म के आंकड़े
चुनाव के मुद्दे
चुनाव कार्यक्रम
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, 2017 सात चरणों में सम्पन्न हुए।
ओपिनियन पोल
एग्जिट पोल
परिणाम
परिणाम 11 मार्च 2017 को घोषित किये गए:
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 का सारांश
इन्हें भी देखें
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, 2022
बिहार विधान सभा चुनाव,२०१५
गुजरात विधानसभा चुनाव, 2017
वोटर वैरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल
सन्दर्भ
विधानसभा चुनाव
उत्तर प्रदेश विधान सभा
उत्तर प्रदेश की राजनीति
2017 में भारत के चुनाव | 367 |
163562 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AB%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%AB%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%B8 | लिम्फेटिक फाइलेरियासिस | '''
लिम्फेटिक (लसीका) फाइलेरिया, को आमतौर पर एलिफेंटियासिस के रूप में जाना जाता है। इसमे मनुष्य का पाँव सूज कर हाथी के पाँव के समान भारी हो जाता है। यह रोग में शरीर के अन्य अंगो को भी प्रभावित कर सकता है। इस रोग को विश्व स्तर पर उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (एनटीडी) के रूप में माना जाता है। एक परजीवी रोग है जो सूक्ष्म, धागे के समान गोल (Round Worm, Nematode) के कारण होता है। वयस्क कृमि केवल मानव लसीका प्रणाली (Lymphatic System) में रहते हैं, और लसीका प्रणाली की धमनीयो (लिम्फेटिक शिराओ) को अवरुद्ध कर देते हैं। जिसके कारण उस अंग में सूजन आने लगती है साधारणतया लासिका प्रणाली अन्त:स्रवित द्रव संतुलन को बनाए रखती है और संक्रमण से लड़ती है। लिम्फेटिक (लसीका) फाइलेरिया मच्छरों के काटने से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है।
यूं तो लिम्फेटिक फाइलेरिया रोग आम तौर पर एलिफेंटियासिस के रूप में दिखाई देता है परन्तु यह रोग पुरुषों में, अंडकोश की सूजन, जिसे हाइड्रोसील कहा जाता है और महिलाओं में स्तन एवं गुप्तांग की अप्रत्याशित सूजन का भी कारण बनता है। दुर्भाग्य वश सूजन स्थायी होती है और इसीलिए लसीका फाइलेरिया दुनिया भर में स्थायी विकलांगता का एक प्रमुख कारण है। गंभीर रूप से सूजे एवं विकृत अंगो के कारण प्रभावित रोगियो को आमतौर पर सामाजिक बहिष्कार का भी सामना करना पड़ता है। प्रभावित लोग अक्सर अपनी अक्षमता के कारण काम करने में असमर्थ होते हैं। इस कारण वे अपनी आजीविका कमाने में भी असमर्थ होते है।
स्रोत [1] [2]
https://www.cdc.gov/parasites/lymphaticfilariasis/index.html
https://www.who.int/news-room/fact-sheets/detail/lymphatic-filariasis
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रोग | 253 |
1027726 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5 | सार्वजनिक राजस्व | सार्वजनिक राजस्व (Government revenue) का सम्बन्ध आय प्राप्ति के साधनों, कराधान के सिद्धान्तों तथा उनकी समस्याओं से है। अन्य शब्दों में, करों से प्राप्त होने वाली सब प्रकार की आय तथा सार्वजनिक जमा से होने वाली प्राप्तियों को सार्वजनिक राजस्व में सम्मिलित किया जाता है। इसे केवल 'राजस्व' भी कहते हैं।
स्रोत
ऐसे कई स्रोत हैं जिनसे सरकार राजस्व प्राप्त कर सकती है। सरकारी राजस्व के सबसे आम स्रोत अलग-अलग स्थानों और समयावधियों में भिन्न-भिन्न हैं। आधुनिक समय में, कर राजस्व आम तौर पर सरकार के लिए राजस्व का प्राथमिक स्रोत होता है। ओईसीडी द्वारा मान्यता प्राप्त करों के प्रकारों में आय और मुनाफे पर कर (आय कर और पूंजीगत लाभ कर सहित), सामाजिक सुरक्षा योगदान, पेरोल कर, संपत्ति कर (संपत्ति कर, विरासत कर और उपहार कर सहित), और वस्तुओं पर कर शामिल हैं। सेवाएँ (मूल्य वर्धित कर, बिक्री कर, उत्पाद शुल्क और शुल्क सहित)। इसके अलावा, लॉटरी सरकार के लिए काफी राजस्व भी ला सकती है। 2009 की शुरुआत में, ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने खर्च को बढ़ावा देने के लिए लॉटरी का इस्तेमाल किया, जिससे राज्य सरकारों को 60 मिलियन डॉलर से अधिक अतिरिक्त कर राजस्व प्राप्त हुआ।
गैर-कर राजस्व में सरकारी स्वामित्व वाले निगमों से लाभांश, केंद्रीय बैंक का राजस्व, जुर्माना, शुल्क, संपत्तियों की बिक्री और बाहरी ऋण और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से ऋण के रूप में पूंजी प्राप्तियां शामिल हैं। [उद्धरण वांछित] विदेशी सहायता अक्सर एक प्रमुख है विकासशील देशों के लिए राजस्व का स्रोत, और कुछ विकासशील देशों के लिए यह राजस्व का प्राथमिक स्रोत है। सिग्नोरेज उन तरीकों में से एक है जिससे सरकार अतिरिक्त राजस्व के बदले में अपनी मुद्रा के मूल्य को कम करके राजस्व बढ़ा सकती है, इस तरह से पैसा बचाकर सरकारें वस्तुओं की कीमतें बढ़ा सकती हैं। [उद्धरण वांछित]
संघवादी व्यवस्था के तहत, उप-राष्ट्रीय सरकारें अपने राजस्व का कुछ हिस्सा संघीय अनुदान से प्राप्त कर सकती हैं।[उद्धरण वांछित]
सार्वजनिक वित्त | 309 |
1042446 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BE%20%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%82%E0%A4%A8 | नसीमा खातून | नसीमा खातून मुजफ्फरपुर, बिहार, भारत की एक मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। वह एक अशासकीय संस्था, परचम, की संस्थापक हैं, जिसके सहायता से वह यौनकर्मियों और उनके परिवारों के पुनर्वास के लिए काम करती है।
प्रारंभिक जीवन
नसीमा खातून का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर के चतुर्भुज स्थान में हुआ था। उनके पिता के पास एक चाय स्टाल था, और उन्हें एक यौनकर्मी द्वारा गोद लिया गया था। यही दत्तक दादी थी जिसने नसीमा को एक बच्चे के रूप में पाला। रेड लाइट एरिया में बढ़ते हुए, खातून का बचपन गरीबी, शिक्षा की कमी और पुलिस के छापे के दौरान छिपना, इन सब से भरा था। उनका एकमात्र हल यह था कि उन्हें और उनके बहनों को वेश्यावृत्ति में नहीं धकेला गया। 1995 में उनके लिए चीजें बेहतर हुईं, जब आईएएस अधिकारी राजबाला वर्मा ने यौनकर्मियों और उनके परिवारों के लिए वैकल्पिक कार्यक्रम लाने का फैसला किया। नसीमा ने ऐसे ही एक कार्यक्रम, "बेहतर जीवन विकल्प" में दाखिला लिया, और क्रोशिया करके एक महीने मेंं ₹500 तक कमाने लगी। हालाँकि, उसे अपने पड़ोसियों से इस बात के लिए बहुत पश्चाताप का सामना करना पड़ा, और उनके पिता ने क्रोध मेंं उन्हें सीतामढ़ी के बोहा टोला में उनके नाना के घर भेज दिया। एनजीओ के समन्वयक ने उसके पिता को मना लिया, और उन्हें एनजीओ के तहत अपनी बुनियादी शिक्षा पूरी करने के लिए [[मुम्बई] जाने का अवसर मिला।
परचम
2001 में नसीमा जब मुज़फ़्फ़रपुर लौटी तो उन्होंने पाया की यौनकर्मियों (सेक्स वर्कर्स) की स्थिति अभी भी वैसी ही है। उन्होंने यौनकर्मियों और उनके परिवार दोनों के पुनर्वास के लिए समर्पित एक अशासकीय संस्था, परचम, बनाने का फैसला किया। उन्होंने श्रमिकों को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करने के लिए नुक्कड़ नाटकों का आयोजन किया, और धीरे-धीरे उनकी शिक्षा पर महत्व दिया। वह जल्द ही कामयाब रही। उन्होंने पास के बैंकों के ऋण की मदद से वेश्यालय में बिंदी, मोमबत्तियाँ, अगरबत्ती और माचिस बनाने के छोटे उद्योग शुरू करने में मदद की। उनके प्रयासों से, यौनकर्मियों के रूप में शामिल होने वाली युवा लड़कियों की संख्या में काफी कमी आई है।
2008 में, सीतामढ़ी के बोहा टोला के वेश्यालय पर छापा मारा गया और उसे जला दिया गया। नसीमा और परचम अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे यौनकर्मियों और उनके परिवारों के बचाव में आए। अपने काम के साथ, नसीमा वेश्यालय के निवासियों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं के लिए स्थानीय सरकार का ध्यान आकर्षित करने में कामयाब रही। 2008 में बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार की सीतामढ़ी में "विकास यात्रा" के दौरान, उन्होंने व्यक्तिगत रूप से बोहा टोला की घटना पर अपना ध्यान आकर्षित किया, और उन्होंने उनसे बिहार के सभी यौनकर्मियों के डेटा को संकलित करने का अनुरोध किया। एक साल बाद, बिहार के महिला विकास निगम द्वारा रेड-लाइट क्षेत्रों में सर्वेक्षण करने के उनके सुझावों को स्वीकार कर लिया गया। वह चतुर्भुज स्थान में शुक्ला रोड में अपने निवास पर इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय का एक अध्ययन केंद्र खोलने में भी कामयाब रही, और यहां तक कि भारतीय जीवन बीमा निगम को यौनकर्मियों के लिए जीवन मधुर नामक एक बीमा योजना शुरू करने के लिए राजी किया, जिसमें न्यूनतम ₹25 साप्ताहिक का प्रीमियम था।
2004 में, परचम के बैनर तले, खातून ने जुगनू शुरू करने में मदद की। यौनकर्मियों के बारे में पाँच पन्नों के समाचार पत्र के रूप में। यह यौनकर्मियों के बच्चों द्वारा पूरी तरह से हस्तलिखित, संपादित और छायांकित है। जुगनू अब 32 पन्नों की मासिक पत्रिका है जो बिहार राज्य में यौनकर्मियों के साथ बलात्कार और साक्षात्कार जैसी कहानियों को कवर करती है और लगभग एक हजार प्रतियां बेचती हैं। पत्रिका के अन्य मुख्य आकर्षण में लेखक की अपनी लिखावट में चित्र और चित्रित पत्र शामिल हैं। पत्रिका का मुख्यालय मुज़फ़्फ़रपुर के हाफ़िज़े चौक, सुक्ला रोड में है।
2012 में, नसीमा दिल्ली के पास सीकर में एक नाबालिग सामूहिक बलात्कार पीड़िता को न्याय दिलाने के आह्वान में शामिल थी।
व्यक्तिगत जीवन
नसीमा 2003 में एक सम्मेलन में एक सामाजिक कार्यकर्ता से मिलीं और 2008 में उनसे शादी कर ली। वह जयपुर, राजस्थान से हैं। साथ में, उन दोनों का एक बच्चा, एक लड़का है।
संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
Pages with unreviewed translations | 678 |
214417 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%A8 | कालीन | कालीन (अरबी : क़ालीन) अथवा गलीचा (फारसी : ग़लीच:) उस भारी बिछावन को कहते हैं जिसके ऊपरी पृष्ठ पर आधारणत: ऊन के छोटे-छोटे किंतु बहुत घने तंतु खड़े रहते हैं। इन तंतुओं को लगाने के लिए उनकी बुनाई की जाती है, या बाने में ऊनी सूत का फंदा डाल दिया जाता है, या आधारवाले कपड़े पर ऊनी सूत की सिलाई कर दी जाती है, या रासायनिक लेप द्वारा तंतु चिपका दिए जाते हैं। ऊन के बदले रेशम का भी प्रयोग कभी-कभी होता है परंतु ऐसे कालीन बहुत मँहगे पड़ते हैं और टिकाऊ भी कम होते हैं। कपास के सूत के भी कालीन बनते हैं, किंतु उनका उतना आदर नहीं होता। कालीन की पीठ के लिए सूत और पटसन (जूट) का उपयोग होता है। ऊन के तंतु में लचक का अमूल्य गुण होने से यह तंतु कालीनों के मुखपृष्ठ के लिए विशेष उपयोगी होता है। फलस्वरूप जूता पहनकर भी कालीन पर चलते रहने पर वह बहुत समय तक नए के समान बना रहता है। यानी जल्दी मैला (गन्दा) नहीं होता।
ताने के लिए कपास की डोर का ही उपयोग किया जाता है, परंतु बाने के लिए सूत अथवा पटसन का। पटसन के उपयोग से कालीन भारी और कड़ा बनता है, जो उसका आवश्यक तथा प्रशंसनीय गुण है। अच्छे कालीनों में सूत की डोर के साथ पटसन का उपयोग किया जाता है।
बनाने की विधि
कालीन बुनने के पहले ही ऊन को रँग लिय जाता है। इसके लिए ऊन की लच्छियों को बाँस के डंडों में लटकाकर ऊन को रंग के गरम घोल में डाल दिया जाता है और रंग चढ़ जाने पर उन्हें निकाल लिया जाता है। आधुनिक रँगाई मशीन द्वारा होती है। कुछ मशीनों में रँगाई प्राय: हाथ की रँगाई के समान ही होती है, किंतु रंग के घोल को पानी की भाप द्वारा गरम किया जाता है और लच्छियाँ मशीन के चलने से चक्कर काटती जाती हैं। दूसरी मशीनों में ऊन का धागा बहुत बड़ी मात्रा में ठूँस दिया जाता है और गरम रंग का घोल समय-समय पर विपरीत दिशाओं में पंप द्वारा चलता रहता है। ऐसी मशीनें हाल में ही चली हैं। कालीन में प्रयुक्त होनेवाले ऊन के धागे की रँगाई तभी संतोषजनक होती है जब रंग प्रत्येक तंतु के भीतर बराबर मात्रा में प्रवेश करे। इसका अनुमान तंतु के बाहरी रंग से सदैव नहीं हो पाता और अच्छी रँगाई के लिए कुछ धागों की गुच्छी काटकर देख ली जाती है। अच्छे कालीन के लिए संतोषजनक रँगाई उतनी ही आवश्यक है जितनी पक्की और ठोस बुनाई। कीमती कालीनों के लिए पूर्णतया पक्के रंगों का उपयोग आवश्यक होता है। साधारण कालीनों के लिए रंग को प्रकाश के लिए तो अवश्य ही पक्का होना चाहिए और धुलाई के लिए जितना ही पक्का हो उतना ही अच्छा।
ऊन के ऊपर प्राकृतिक चर्बी रहती है जिससे रंग भली भाँति नहीं चढ़ता। इसलिए ऊन को साबुन और गरम पानी में पहले धो लिया जाता है। साबुन के कुछ दुर्गुणों के कारण संकलित प्रक्षालकों (synthetic detergents) का प्रयोग अब ऊन की धुलाई में अधिक होने लगा है।
हाथ से बुनाई
संसार भर में हाथ की बुनाई प्राय: एक ही रीति से होती है। ताने ऊर्ध्वाधर दिशा में तने रहते हैं। ऊपर वे एक बेलन पर लपेटे रहते हैं जो घूम सकता है। नीचे वे एक अन्य बेलन पर बँधे रहते हैं। जैसे-जैसे कालीन तैयार होता जाता है, वैसे-वैसे उसे नीचे के बेलन पर लपेटा जाता है, जैसा साधारण कपड़े की बुनाई में होता है। ताने के आधे तार (अर्थात डोरे) आगे पीछे हटाए जा सकते हैं और उनके बीच बाना डाला जाता है। इस प्रकार गलीचे की बुनाई उसी सिद्धांत पर होती है जिसपर साधारणत: कपड़े की होती है, परंतु एक बार बाना डालने के बाद ताने के तारों पर ऊन का टुकड़ा बाँध दिया जाता है। टुकड़ा काटकर बाँधना और लंबे धागे का एक सिरा बाँधकर काटना, दोनों प्रथाएँ प्रचलित हैं। बँधा हुआ टुकड़ा लगभग दो इंच लंबा होता है और अगल बगल के तारों में फंदे द्वारा फँसाया जाता है। फंदा डालने की दो रीतियाँ हैं। एक तुरकी और एक फारसी जो चित्र ३ से स्पष्ट हो जाएँगी। ऊन के फंदों की एक पंक्ति लग जाने के बाद बाने के दो तार (अर्थात् डोरे) बुन दिए जाते हैं। तब फिर ऊन के फंदे बाँधे जाते हैं और बाने के तार डाले जाते हैं। प्रत्येक बार बाने के तार पड़ जाने के बाद लोहे के पंजे से ठोककर उनको बैठा दिया जाता है, जिससे कालीन की बुनाई गफ हो। बाना डालने की रीति में थोड़ा बहुत परिवर्तन हो सकता है जिससे कालीन के गुणों में कुछ परिवर्तन आ जाता है। आजकल साधारणत: कालीन बहुत चौड़े बुने जाते हैं। इसलिए इनको बुनते समय तानों के सामने कई एक कारीगर बैठते हैं और प्रत्येक लगभग दो फुट की चौड़ाई में ऊन के फंदे लगाता है। कारीगर अपने सामने आलेखन रखे रहते हैं और उसी के अनुसार रंगों का चुनाव करते हैं। फंदे लगाने की रीति से स्पष्ट है कि ऊन के गुच्छे कालीन के पृष्ठ से समकोंण पर नहीं उठे रहते, कुछ ढालू रहते हैं। हाथ के बुने कालीनों का यह विशेष लक्षण है
कालीन बुने जाने के बाद ऊन के गुच्छे के छोरों को कैंची से काटकर ऊन की ऊँचाई बराबर कर दी जाती है। आवश्यकतानुसार तंतुओं को न्यूनाधिक ऊँचाई तक काटकर उभरे हुए। बेलबूटे आलेखन के अनुसार बनाए जा सकते हैं। ऐसे कालीनों में यद्यपि ऊन की हानि हो जाती है तथापि सुंदरता बढ़ जाती है और ये अधिक पसंद किए जाते हैं।
कुछ कालीन दरी के समान, किंतु ऊनी बाने से, बुने जाते हैं। इनका प्रचलन कम है।
हाथ से बने प्रथम श्रेणी के कालीन मशीन से बने कलीनों की अपेक्षा बहुत अच्छे होते हैं। हाथ से प्रत्येक कालीन विभिन्न आलेखन के अनुसार और विभिन्न नाप, मेल अथवा आकृति का बुना जा सकता है। ये सब सुविधाएँ मशीन से बने कालीनों में नहीं मिलतीं। कालीन में प्रति वर्ग इंच ऊन के ९ से लेकर ४०० तक गुच्छे डाले जा सकते हैं। साधारणत: २०-२५ गुच्छे रहते हैं। भारत, ईरान, मिस्र, तुर्की और चीन हाथ के बने कालीनों के लिए प्रसिद्ध हैं। भारत में मिर्जापुर, भदोही (वाराणसी), कश्मीर, मसूलीपट्टम आदि स्थान कालीनों के लिए विख्यात हैं और इन सब कालीनों में फारसी गाँठ का ही प्रयोग किया जाता है।
मशीन से कालीन की बुनाई
मशीन की बुनाई कई प्रकार की होती है। सबसे प्राचीन ब्रुसेल्स कालीन है। इसमें कालीन के पृष्ठ पर ऊन के धागों का कटा सिरा नहीं रहता, दोहरा हुआ धागा रहता है। बुनावट ऐसी होती हैं कि यदि ऊन पर्याप्त पुष्ट हो तो एक सिरा खींचने पर एक पंक्ति का सारा ऊन एक समूचे टुकड़े में खिंच जाएगा। फिर कई रंगों का आलेखन रहने पर कई रंगों के ऊन का उपयोग किया जाता है और जहाँ आलेखन में किसी रंग का अभाव रहता है वहाँ उन रंगों के धागे कालीन की बुनावट में दबे रहते हैं। केवल उसी रंग के धागे के फंदे बनते हैं जो कालीन के पृष्ठ पर दिखलाई पड़ते हैं। इन कारणों से पाँच से अधिक रंगों का उपयोग एक ही कालीन में कठिन हो जाता है। बारंबार एक ही प्रकार के बेलबूटे डालने के लिए छेद की हुई दफ्तियों का प्रयोग किया जाता है, जैसे सूती कपड़े में बेलबूटे बनाते समय।
ऊन का सिरा कटा न रहने के कारण ये कालीन बहुत अच्छे नहीं लगते। ऊनी धागों का अधिकांश बुनाई के बीच दबा रहता है। इस प्रकार भार बढ़ाने के अतिरिक्त वह किसी काम नहीं आता और कालीन का मूल्य बेकार बढ़ जाता है। इन कालीनों का प्रचलन अब बहुत कम हो गया है।
विल्टन कालीन
विल्टन कालीन की प्रारंभिक बुनावट वैसी ही होती है जैसी ब्रुसेल्स कालीन की, परंतु बुनते समय ऊन के फंदों के बीच धातु का तार डाल दिया जाता है जिसका सिरा चिपटा और धारदार होता है। जब इस तार को खींचा जाता है तब ऊन के फंदे कट जाते हैं और पृष्ठ वैसा ही मखमली हो जाता है जैसा हाथ से बुने कालीन का होता है। मखमली पृष्ठ देखने में सुंदर और स्पर्श करने में बहुत कोमल होता है। तार खींचने का काम स्वयं मशीन बराबर करती रहती है।
विल्टन कालीन में ऊनी मखमली पृष्ठ के गुच्छे ब्रुसेल्स कालीन के दोहरे धागे की अपेक्षा अधिक दृढ़ता से बुनाई में फँसे रहते हैं। ये कालीन बहुधा ब्रुसेल्स की अपेक्षा घने बुने जाते हैं और इनमें तौल बढ़ाने का प्रयत्न नहीं किया जाता। कोमलता और कारीगरी के कारण मूल्य अधिक होने पर भी ये कालीन पसंद किए जाते हैं। सस्ते कालीनों की खपत अधिक होने के कारण सस्ते ऊनी विल्टन बनने लगे, जिनमें सस्ते ऊनी धागे का उपयोग होता है। एकरंगे विल्टन सबसे सस्ते पड़ते हैं और उन लोगों को, जो एकरंगा कालीन पसंद करते हैं, ये कालीन बहुत अच्छे लगते हैं।
चौड़े विल्टन कालीन बनाने में तारवाली रीति से असुविधा होती है। इसलिए फंदे बनाने और उनको काटने में धातु के तार की जगह धातु के अंकुशों का उपयोग होने लगा है।
एक्समिन्स्टर कालीन
मशीन से बने कालीनों में यद्यपि ये कालीन (टफ़्टेड को छोड़कर) सबसे नए हैं, तथापि बुनावट में ये पूर्वदेशीय (ईरान, भारत, चीन इत्यादि के) कालीनों के बहुत समीप हैं। समानता इस बात में है कि ये ऊन के धागों के गुच्छों से बने होते हैं, यद्यपि गुच्छे मशीन द्वारा डाले जाते हैं और उनमें गाँठें नहीं पड़ी रहतीं। एक्समिन्स्टर कालीन की विशेषता यह है कि गुच्छे खड़ी पंक्तियों में ताने के बीच डाले जाते हैं। ये डालने से पहले या बाद में काटे जाते हैं और बाने से बुनावट में कसे रहते हैं। प्रत्येक गुच्छा कालीन की सतह पर दिखाई पड़ता है और आलेखन का अंग रहता है। गुच्छों का कोई भी भाग ब्रुसेल्स और विल्टन कालीनों की तरह छिपा नहीं रहता और इस प्रकार व्यर्थ नहीं जाता। फंदे का कम से कम भाग बाने से दबा रहता है।
इंग्लैंड में इनके बुनने की कला १९वीं शताब्दी के अंत में अमरीका से आई और तब से दिनों दिन इसका विकास होता गया। इस कालीन की बुनावट में खर्च कम पड़ता है और सामान (ऊनी, सूती, पटसनी धागा) भी कम लगता है। बुनावट विशेष सघन सुंदर जान पड़ती है और ऐसे कालीनों के बनाने में असंख्य आलेखनों और रंगों के समावेश की संभावना रहती है। अन्य कालीनों के समान इनमें भी कई मेल होते हैं, परंतु बुनावट में विशेष भेद नहीं होता। भेद केवल गुच्छों के तंतुओं की अच्छाई, सघनता और उनको फँसाने की विधि में होता है।
एक्समिन्स्टर कालीनों की बनावट चित्र ८ में प्रदर्शित की गई है। अलग-अलग कंपनियों के कालीनों में थोड़ा बहुत भेद होते हुए भी साधारणतया दोहरे लिनेन का या सूती ताना, सूती भराऊ बाना और पटसन का दोहरा बाना प्रयुक्त किया जाता है।
आधुनिक मशीनें
पहले मशीन से बने कालीन बहुत चौड़े नहीं होते थे। चौड़े कालीनों के लिए दो या अधिक पट्टियों को जोड़ना पड़ता था, किंतु अब बहुत चौड़े कालीन भी मशीन पर बुने जा सकते हैं। प्राय: सब प्राचीन आलेखनों की प्रतिलिपि बनाई जा सकती है और इस प्रकार समय-समय पर कभी एक, कभी दूसरा आलेखन फैशन में आता रहता है।
इसके अतिरिक्त कालीन बनाने की मशीन, कालीन की बनावट और धागों को रँगने की विधि में दिनोंदिन उन्नति हो रही है। नियत समय में अधिक से अधिक माल तैयार करना और कम से कम श्रम के साथ तैयार करना, यही ध्येय रहता है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के कुछ बाद ही संयुक्त राष्ट्र (अमरीका) के दक्षिणी भाग में सिलाई द्वारा कालीन बनाने की मशीन का आविष्कार हुआ। इनसे "गुच्छित' कालीन बनते हैं। दिन प्रति दिन गुच्छित कालीनों की मशीनों में उन्नति हो रही है। इस समय अमरीका के बाजार में ये कालीन बहुत बड़ी मात्रा में बिकते हैं। गुच्छित कालीनों की मशीनों की माल तैयार करने की क्षमता बहुत अधिक होती है और मशीन लगाने का प्रारंभिक खर्च अधिक होते हुए भी सस्ते कालीन तैयार होते हैं।
इन कालीनों के मुखपृष्ठ और पीठ को एक साथ नहीं बनाया जाता। मुखपृष्ठ के फंदे या तो सिलाई द्वारा पहले से बनी हुई पीठ पर टाँक दिए जाते हैं या गुच्छे रासायनिक लेप द्वारा पीठ के कपड़े पर चिपका दिए जाते हैं। द्वितीय विधि में तप्त करने की कुछ क्रिया के अनंतर चिपकानेवाला पदार्थ पक्का हो जाता है और गुच्छे दृढ़ता से पीठ पर चिपक जाते हैं। ऊन के फंदों के दोनों ओर एक-एक पीठ चिपकाकर और फंदों को बीचोबीच काटकर एक ही समय में दो कालीन भी तैयार किए जा सकते हैं।
कालीन बनते समय ही आलेखनों का बन जाना, या कालीन बन जाने के बाद मुखपृष्ठ का रँगा जाना, या छपाई द्वारा आलेखन उत्पन्न करना, इन सब दिशाओं में भी गुच्छित कालीनों में बहुत प्रगति हुई है।
कालीन की गुणवत्ता
ऊपर कई वर्गो के कालीनों का वर्णन किया गया है। किसी भी वर्ग के कालीन के विषय में यदि कोई अकेला शब्द है जिससे उसके संपूर्ण गुण, दोष, श्रेणी और मूल्य का ज्ञान होता है तो वह कालीन की क्वालिटी है। क्वालिटी प्रधानत: कालीन के मुखपृष्ठ पर ऊनी गुच्छों के घनेपन पर निर्भर रहती है। इस प्रकार ऊँची क्वालिटी, मध्य क्वालिटी, नीची क्वालिटी, कालीन के व्यापार में साधारण शब्द हैं। घने बुने हुए कालीन के लिए साधारणतया बढ़िया और लंबी ऊन का पतला धाग आवश्यक होता है। कीमती ऊन के अधिक मात्रा में लगने के साथ उच्च श्रेणी का ताना बाना आवश्यक होता है। बढ़िया पतले धागे के उपयोग और गाँठों के पास-पास होने से कालीन तैयार होने में समय अधिक लगता है। इस प्रकार ऊँची क्वालिटी के कालीन का मूल्य अधिक होता है।
कालीन की क्वालिटी एक वर्ग इंच में गाँठों की संख्या से प्रदर्शित की जाती है। यद्यपि यह प्रथा तब तक संतोषजनक नहीं होती जब तक यह भी निश्चय न कर लिया जाए कि गाँठें इकहरे धागे से डाली गई हैं या दोहरे अथवा तिहरे धागे से। उदाहरणत:, तिहरे धागे से बना कालीन दोहरे धागे से बने कालीन की अपेक्षा, प्रति वर्ग इंच कम गाँठों का होने पर भी, घना हो सकता है।
चित्र प्रदर्शनी
बाहरी कड़ियाँ
Most Expensive Carpets 2009 https://web.archive.org/web/20100830033412/http://www.rugrag.com/post/Most-Expensive-Rugs-of-2009.aspx
सभ्यता | 2,263 |
834097 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AB%E0%A4%B0%20%E0%A4%B2%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B0 | मुखपृष्ठ/सुसान जेनिफर लनेर |
सन्दर्भ
एक अंग्रेजी लेखिका है। उन्होंने दो पुस्तकें कविता और कई नाटके प्रकाशित कीं है।
जन्म
लेनीयर का जन्म 9 अक्टूबर 1 9 57 बर्मिंघम में हुआ था। 1 9 80 में कैम्ब्रिज से स्नातक होने के बाद, वह अमेरिका में एक हर्केन्स फैलोशिप लेने से पहले एक साल में लेखन और जर्मनी और ब्रिटेन में प्रदर्शन कर रही थी, जहां उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में अभिनय और नाटक का अध्ययन किया।
रचनाएँ
उनकी पहली कविताओं का प्रकाशन, स्वांसोंग, 1 9 82 में प्रकाशित हुआ था। इसे ब्रिटिश अख़बार, डेली मिरर में एक अनुकूल समीक्षा मिली, और विलियम शेक्सपियर और चार्ल्स बोडेलायर को कभी-कभी असाधारण तुलना करने के लिए प्रेरित किया। कुछ लोगों ने उन्हें एक महान नई कवि के रूप में स्वागत किया: रीड व्हाईटमोर, कांग्रेस के पुस्तकालय में एक पूर्व कविता सलाहकार, ने उन्हें "एक संगीतकार-कवि, ताल और ध्वनि के साथ प्यार में पूरी तरह प्रशंसा की"; लंदन विश्वविद्यालय के रानी मैरी के दिवंगत मैल्कम बोवी ने उन्हें "एक महत्वपूर्ण लेखिका" कहा। स्वांसोंग प्रकाशित हुए, जबकि लेनीयर अमेरिका में पढ़ रही थी और किताब और उसके लेखक ने प्रतिष्ठित अखबारों के कुछ सर्वश्रेष्ठ पत्रकारों द्वारा लेखों का आश्वासन देने के लिए पर्याप्त प्रभाव डाला: डीजेआर। न्यूयॉर्क टाइम्स में ब्रुकर और वाशिंगटन पोस्ट में कॉलमैन मैककार्थी।
उसने कविताएं, रेन फॉलोिंग के दूसरे खंड को ओलेअंडर प्रेस के साथ भी प्रकाशित किया| जबकि अमेरिका और इंग्लैंड में लोकप्रिय प्रेस ने सू लेनीयर और उनके काम में बहुत रुचि दिखाई थी, साहित्यिक आलोचकों और शिक्षाविदों ने उनके काम की कोई सूचना नहीं ली, और उनकी पहली कविताएं, "फिनाले" में से केवल एक ही एक लेखिका थी।
तब से, उनका काव्य कैरियर समाप्त हो गया हो एसा प्रतीत होता है; केवल उनके द्वारा ज्ञात काम, मंच के लिए किया गया है।कथित तौर पर, उन्होंने डॉक्टर ओरदर, ईडन सॉंग, और नाइट पतन को लिखा, पिछले दो प्रथम एडिनबर्ग महोत्सव में किया जा रहा है। 1 99 5 में, न्यू स्टेट्समैन एंड सोसायटी ने उनकी तीन कविताएं प्रकाशित कीं, "स्टारडम," "ब्रेकडाउन," और "हॉस्पिटल विज़िट"; पत्रिका ने एक रेडियो प्ले, ए फुल एंड हिज़ हार्ट, की भी सूचना दी, जो रेडियो थ्रीज ड्रामा नाउ पर प्रसारित किया गया था। एक ब्रिटिश वेबसाइट के मुताबिक, विल डेविस के द्वारा कैम्ब्रिज के एक छात्र के रूप में यूनिवर्सल स्टूडियोज द्वारा अपनी पहली पुस्तक के लेखन के बारे में एक पटकथा का चयन किया गया है।
काव्य शिल्प
लेनियर की काव्य शिल्प के बारे में सबसे अधिक बार गौर की गई बात यह थी कि उन्होंने एक कल्पित तरीके से कविता की रचना की और अपने किसी भी काम को संशोधित नहीं किया; स्वांसोंग को प्रकाशक को पहली मसौदा प्रति के रूप में भेजा गया, और न्यूयॉर्क टाइम्स में उन्होंने उद्धृत किया, "'मैं सिर्फ कविताओं को सीधे बाहर लिखति हूं।सबसे पहले मैंने कुछ सुधारने की कोशिश की और मुझे सुधार पसंद नहीं आई, इसलिए मैं इसे और नहीं करती हूं।लॉस एंजिल्स टाइम्स ने "लिस्ट ऑफ वेस्ट में सबसे तेज़ स्क्रॉल" के रूप में उन्हें संदर्भित किया।उनकी पहली कविताएं, और विशेषकर जॉन न्यूटन की कविता की चैम्पियनशिप की तत्काल और प्रफुल्लित प्रशंसा की आलोचना की गई थी, डेविड होलब्रुक, जॉन न्यूटन, ब्लॉब्समी और पोएटिक स्वाद की पुस्तक में। | 519 |
51728 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0 | थानाधार | हिमाचल प्रदेश में स्थित यह जगह सेब के उद्यानों के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थान शिमला से 80 किलोमीटर दूर पुराने भारत-तिब्बत रोड पर स्थित है। इसका हिमाचल के इतिहास में एक विशेष स्थान रहा है। 1916 ई. में सैमुअल स्टोक जोकि फिलाडेल्फिया के एक सामाजिक कार्यकर्ता थे, पहली बार यहां सेब का छोटा सा वृक्ष लेकर आए थे। बाद में वह यहीं के होकर रह गए। यहां अभी भी उनके लगाए उद्यान ''स्टारकिंग डिलेसियस' को देखा जा सकता है।
मुख्य आकर्षण
बरोबाग हिल
यह थानेदर की सबसे ऊंची चोटी है। यहां पर एक बड़ा सा मैदान है इसलिए इस पहाड़ी का नाम बरोबाग पड़ा। यहां से वर्फाच्छादित पहाड़ों का सुंदर नजारा दिखता है। इस पहाड़ी से सतलज नदी भी दिखती है।
पहाड़ी पर एक हारमनी हॉल है। यह हॉल तिमंजिला है। इसका निर्माण 1912 ई. में हुआ था। यह भवन पत्थर, लकड़ी तथा स्लेट का बना हुआ है। यहां पर परमज्योर्तिर मंदिर भी है। इसकी स्थापना 1937 ई. में हुई थी। इस मंदिर में किसी देवता की मूर्त्ति स्थापित नहीं है। इस मंदिर की दीवारों पर संस्कृत भाषा में श्लोक लिखे हूए हैं।
कोतघर
19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में कोतघर युद्ध का मैदान था। ये युद्ध नेपाल, कांगड़ा, कुल्लु, पंजाब के शासकों तथा बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी से हुआ। अंतत: 1843 ई. में गोरखों को हराकर ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे अपने कब्जे में कर लिया। 1843 ई. में यहां गार्टन मिशन स्कूल स्थापित किया गया। 1872 ई. में इसी स्कूल के पास संत मेरी चर्च बनाया गया।
हतू चोटी
इस चोटी की ऊंचाई 11155 फीट है। इस पर हतू देवी का मंदिर है। स्थानीय लोग हतू देवी को अपनी मां मानते हैं। मंदिर में काले पत्थर की देवी की मूर्त्ति स्थापित है। इस पहाड़ी पर देवदार का जंगल है। इस पहाड़ी से आसपास का बहुत ही विहंगम दृश्य दिखता है।
तानी जुब्बार झील
यह झील हतू पहाड़ी से 8 किलोमीटर की दूरी पर है। यह एक छोटी सी झील है। इस झील के पास ही नाग देवता का एक मंदिर है।
निकटवर्ती दर्शनीय स्थान
जुब्बल
(86 किलोमीटर)
यह स्थान शिमला से हाथकोटी जाने के रास्ते पर है। यहां भव्य जुब्बल महल है। अब इस महल को हेरिटेज होटल (टेली: 01781-252001-02) का रूप दे दिया गया है। यह जुब्बल राणाओं का महल था। मूल महल का निर्माण 1027 ई. में हुआ था। लेकिन यह महल 1960 के दशक में आग लगने से नष्ट हो गया था। बाद में इस महल को पुन: बनाया गया। नया महल स्थानीय और यूरोपीय शैली में बना हुआ है। यह महल लकड़ी का बना हुआ है। इसका डिजाइन एक फ्रेंच वास्तुकार ने तैयार किया था।
आवागमन
हवाई मार्ग
जब्बारहट्टी, दिल्ली से मंगलवार, बुधवार तथा शनिवार को अनेक एअरलाइन्स की उड़ानें संचालित होती हैं।
रेल मार्ग
यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन कालका है। यह देश के प्रमुख शहरों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। दिल्ली से कालका शताब्दी, कलकत्ता से हावड़ा-दिल्ली कालका मेल, मुंबई से पश्िचम एक्सप्रेस यहां जाती है।
सड़क मार्ग
थानेदर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 22 पर स्थित है।
हिमाचल प्रदेश के शहर | 501 |
979363 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%88%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE | थाईलैंड में धर्म | थाईलैंड में धर्म भिन्न है। थाई संविधान में कोई आधिकारिक राज्य धर्म नहीं है, जो सभी थाई नागरिकों के लिए धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, हालांकि राजा को कानून द्वारा थ्रावाड़ा बौद्ध होने की आवश्यकता होती है। थाईलैंड में प्रचलित मुख्य धर्म बौद्ध धर्म है, लेकिन हिंदू धर्म का एक मजबूत अंतर्निहित ब्राह्मणों के वर्ग के साथ पवित्र कार्य है। बड़ी थाई चीनी आबादी ताओवाद सहित चीनी लोक धर्मों का भी अभ्यास करती है। चीनी धार्मिक आंदोलन 1970 के दशक में थाईलैंड में फैल गया और बौद्ध धर्म के साथ संघर्ष में आने के लिए हाल के दशकों में यह इतना बढ़ गया है; यह बताया जाता है कि प्रत्येक वर्ष 200,000 थाई धर्म में परिवर्तित हो जाते हैं।कई अन्य लोग, विशेष रूप से ईशान जातीय समूह के बीच, ताई लोक धर्मों का अभ्यास करते हैं। थाई मलेशिया द्वारा गठित एक महत्वपूर्ण मुस्लिम आबादी, विशेष रूप से दक्षिणी क्षेत्रों में मौजूद है।
जनसांख्यिकी
आधिकारिक जनगणना के आंकड़ों के अनुसार 95% से अधिक थाई बौद्ध धर्म का पालन करते हैं। हालांकि, देश के धार्मिक जीवन इस तरह के आंकड़ों से चित्रित किए जाने से कहीं अधिक जटिल हैं। बड़ी थाई चीनी आबादी में से अधिकांश, जो बौद्ध धर्म का पालन करते हैं उनमें से अधिकांश को प्रमुख थेरावा परंपरा में एकीकृत किया गया है, केवल एक नगण्य अल्पसंख्यक के साथ चीनी बौद्ध धर्म को बरकरार रखा गया है।
सिख धर्म
सिख धर्म थाईलैंड में लगभग 70,000 अनुयायियों के साथ एक मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक धर्म है। धर्म भारत से प्रवासियों द्वारा लाया गया था जो 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पहुंचने लगे। बैंकाक में गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा सहित देश में लगभग बीस सिख मंदिर या गुरुद्वारे हैं। 2006 में सिख समुदाय का आंकलन किया था जिसके अनुसार उस समय लगभग 70,000 लोग शामिल थे, जिनमें से अधिकतर बैंकॉक, चियांग माई, नाखोन रत्थासिमा, पट्टाया और फुकेत में रहते थे। आंकलन के समय देश में उन्नीस सिख मंदिर थे। सिख धर्म संस्कृति मंत्रालय के धार्मिक मामलों विभाग के साथ पंजीकृत पांच धार्मिक समूहों में से एक था|
बौद्ध धर्म
थाईलैंड में बौद्ध धर्म काफी हद तक थेरावाड़ा स्कूल है। थाईलैंड की 96% से अधिक आबादी इस तरह के स्कूल का पालन करती है, हालांकि थाई बौद्ध धर्म का प्रयोग चीनी स्वदेशी धर्मों के साथ बड़े थाई चीनी आबादी और थाई द्वारा हिंदू धर्म के साथ किया जाता है। थाईलैंड में बौद्ध मंदिरों को लंबे सुनहरे स्तूपों की विशेषता है, और थाईलैंड का बौद्ध वास्तुकला अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों, विशेष रूप से कंबोडिया और लाओस के समान है, जो थाईलैंड के साथ एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत साझा करते हैं।
हिंदू धर्म
भारतीय मूल के हजारों हिंदू मुख्य रूप से बड़े शहरों में थाईलैंड में रहते हैं। "पारंपरिक हिंदुओं" के इस समूह के अलावा, थाईलैंड अपने शुरुआती दिनों में खमेर साम्राज्य के शासन में था, जिसमें मजबूत हिंदू जड़ें थीं, और थाई के बीच का प्रभाव आज भी बना हुआ है। लोकप्रिय रामकियन महाकाव्य हिंदू रामायण पर आधारित है। आयुथ्या की पूर्व राजधानी का नाम हिंदु भगवान राम के भारतीय जन्मस्थान अयोध्या के लिए रखा गया था।
संदर्भ
थाईलैंड में धर्म | 510 |
1279464 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B8%20%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A8%20%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%B0 | आर्टिस्ट्स कंबाइन ग्वालियर | Artists Combine Gwalior
आर्टिस्ट्स कंबाइन ग्वालियर मराठी और हिन्दी रंगमंच की परम्परा की एक पुरानी संस्था है जिसका मूल ग्वालियर से है। यह संस्था ग्वालियर और मध्यप्रदेश की ही नहीं बल्कि भारत की संभवतः एकमात्र ऐसी संस्था है जो विगत 83 वर्षों से रंगमंच के क्षेत्र में शौकिया एवं अव्यवसायिक दृष्टिकोण से मराठी एवं हिंदी रंगमंच की परंपरा को संरक्षण करते हुए नई पीढ़ी को रंगमंच के प्रशिक्षण के माध्यम से इन परंपराओं को आगे ले जाने का कार्य निरंतर करती आ रही है। संस्था ने अपने नाट्यभवन का नाम नाट्य मंदिर रखा।
इतिहास
संपूर्ण भारत के राज्यों में महाराष्ट्र से रोजी रोटी के लिए निकले महाराष्ट्रीयन परिवार जहां-जहां पर स्थानिक हुए वहां उन्होंने अपनी भाषा, संस्कृति एवं सामाजिक ढांचे को जतन से संभाला ! साथ ही मनोरंजन हेतु मराठी माणुस नाटक के लिए पागलपन की हद तक पागल था इसलिए यह जहां भी जाते मराठी मानुष मिलकर संस्था बनाते एवं मराठी नाटक करते, साथ ही महाराष्ट्र से अगर कोई नाटक मंडली आती तो उसके नाटक को देखने भी सपरिवार जाते !
महाराष्ट्र में 1842 में मराठी में खेला गया पहला नाटक संत कान्हो पात्रा है परंतु ग्वालियर में महाराज शिंदे जी का राज्य था तब सन 1870 में ग्वालियर में मराठी नाटकों का प्रारंभ हुआ अर्थात् आज से 150 वर्षों से अधिक पूर्व में तब शाहूर निवासी ललित कला दर्श, महाराष्ट्र नाट्कयला प्रवर्तक, बलवंत पाटणकर, राजापुरकर आनंद, संगीत नाट्य विलास जैसी बहुत सी कंपनियां महाराष्ट्र से यहां आकर नाटकों का मंचन करती थी ! प्रारंभ में अकबर अली के बाड़े में, फिर गौरखी प्रांगण में नाटकों का मंचन होता था, कुछ समय पश्चात माधवराव शिंदे (सिंधिया) जी ने नाटकों के लिए एक स्वतंत्र प्रेक्षाग्रह का निर्माण किया था !
ग्वालियर में मराठी नाटकों की परंपरा बहुत पुरानी है क्योंकि यहां संत परंपरा भी उतनी ही पुरानी है अन्ना महाराज मठ, ढोली बुआ मठ, चौंडे महाराज, मंगल मूर्ति महाराज, नगरकर महाराज इन स्थानों पर गौन्धल यह प्रकार होता था जो नाटकों का मूल तत्त्व है ऐसा विद्वान पूर्व में लिख कर गए हैं !
ग्वालियर में नाटकों के मंचन हेतु कई नाट्य संस्थाएं अस्तित्व में आई पर कुछ ही प्रस्तुतियों के बाद स्वतः समाप्त हो गई उनमें प्रमुख रूप से नाट्यकला प्रवर्तक, अभिनव संगीत मंडल, नूतन मित्र समाज, विजय समाज, प्रेमी मित्र समाज, मित्र मंडल और आनंद समाज प्रमुख रूप से हैं संस्थाओं का समय 1910 से प्रारंभ होकर लगभग 1950 तक रहा है !
प्रारंभ में नाटकों का मंचन तारागंज की टेकरी, गुब्बारा फाटक, मराठा मंडल बोर्डिंग हाउस, विक्टोरिया कॉलेज में होता था परंतु बाद में टाउन हॉल (ग्वालियर) बनने से नाटकों के मंचन वहां पर नियमित रूप से होने लगे !
आर्टिस्ट्स कंबाइन की स्थापना कब कैसे हुई इसके पीछे रोचक घटना है सन 1936 में तत्कालीन ग्वालियर नरेश श्रीमंत जीवाजी राव शिंदे (सिंधिया) का राज्य रोहण समारोह हुआ था उस समय ललित कला दर्श, मुंबई यहाँ नाटक का मंचन करने आई थी तब उस कंपनी के मालिक स्वर्गीय बापूराव पेंढारकर जी ने सहज "वाय सदाशिव जी" से कहा कि आप इतने नाटकों के शौकीन हैं तो यहां अभी तक आपने कोई संस्था क्यों प्रारंभ नहीं की बस इसी बात का उत्तर था आर्टिस्ट्स कंबाइन ग्वालियर ! उस समय की परंपरा से हटकर नए आजाद में किसी संस्था का नाम आर्टिस्ट्स कम्बाइन ग्वालियर !
इसी प्रकार यादव सदाशिव भागवत अर्थात् वाय सदाशिव भागवत जिने लोग आदर और प्रेम से रावसाहेब कहते थे उन्होंने अपने कुछ साथियों के साथ 1937 में इस संस्था की स्थापना कर कार्य प्रारंभ किया ! परिवर्तन एवं नवीनता यह रावसाहेब के स्वभाव का स्थाई भाव था उस समय के दर्शक आज के समय इतने तकनीकी रूप से समृद्ध नहीं थे, उन्हें तो अभिनय एवं गायन इसी में आनंद आता था ! नेपथ्य किसी भी प्रकार का हो या पारंपरिक ही क्यों नहीं हो परंतु रावसाहेब ने परंपरागत नाटकों से हटकर नई तकनीक एवं परिवेश में आचार्य अत्रे के लिखे नाटक वंदे भारत से उन्होंने श्रीगणेश किया इसमें ग्वालियर के दर्शकों के लिए सब कुछ पहली बार था और वह भी सुखद तथा आश्चर्यचकित करने वाला इसमें रंगमंच पर पहली बार दरवाजे खिड़कियां घरों की दीवारें दिखाने वाला सेट दिखाया गया !
1939 में संस्था द्वारा स्त्री पात्र का काम स्त्री ही करेंगी, यह परंपरा भी प्रारंभ की गई !
परंपरागत मेकअप में कलाकार उस समय सफेदा, पिबड़ी और हिंगुर का मिश्रण उपयोग में लाते थे परंतु रावसाहेब ने मैक्स ट्रैक्टर कंपनी के रंगों की ट्यूब का इस्तेमाल प्रारंभ किया इसमें उन्होने चिन्तू भैया साहेब भागवत को सिखाया और आगे चलकर इस परंपरा में लक्ष्मण भांड, भैया साहेब भागवत बाल कृष्ण भाडेकर और आगे की पीढ़ी में सुधाकर शिरोड़कर, विलास भांड और वर्तमान प्रमोद पत्की एवं शशिकांत गेवराईकर इसी परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं !
सन 1939-40 से स्थानीय लेखकों को प्रोत्साहन देने की परंपरा भी प्रारंभ हुई, जिसमें ना. बा. पराड़कर जी के दो नाटकों का मंचन संस्था द्वारा किया गया और इस परंपरा में अनुवादित नाटकों का मंचन भी किया गया जिसमें प्रा. विजय वापट जी , सुधीर करम्बेडकर एवं डॉ. संजय लघाटे एवं प्रमोद पत्की के अनुवादित नाटकों का मंचन भी किया गया !
सन 1943-44 में 12 वर्ष तक के बच्चों के साथ राव साहेव ने नाटकों का मंचन कर लिटिल थियेटर की एक नई कल्पना ग्वालियर वासियों को दी ! जिसे आगे चलकर सुधाकर शिरोड़कर, सुधीर करम्बेडकर ने इस परम्परा को आगे बढ़ाया तथा वर्ष 2000 से नियमित रूप से रंग शिविर के नाम से डॉक्टर संजय लघाटे अपने सहयोगी साथी सुधीर वैशम्पायन, रवि आफले एवं प्रमोद पत्की के साथ चलाते आ रहे हैं और इसमें अब युवा साथी भी जुड़ गए हैं जो परंपरा के साथ नई तकनीक का उपयोग कर इस कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं !
12 अगस्त 1947 को इस संस्था को नई दिशा , नई सोच देने वाले हमारे संस्थापक का निधन हो गया एवं तब से सभी कलाकारों ने कसम खाई कि इस परंपरा को आगे बढ़ातेहुए वाय सदाशिव के स्वप्न को सब मिलकर पूरा करेंगे एवं इसलिए उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप 12 अगस्त 1948 से हर वर्ष वाय सदाशिव स्मृति दिवस मनाना प्रारंभ किया जो अभी तक निरंतर जारी है ! उनकी स्मृति में स्मृति सुमनरांची तुला , बाल पाडगावकर जी ने गीत लिखा व भालचंद्र पेंडारकर जी ने उसे संगीतबद्ध किया व गाया !
1949 तक ग्वालियर में संस्था की मराठी नाटकों की परंपरा ही चालू थी परंतु संस्था ने 1950 में विधिवत सार्वजनिक रूप से पंजीकृत होकर इसी वर्ष ग्वालियर में हिंदी नाटकों के मंचन का श्रीगणेश किया एवं पहला नाटक बसंत देव द्वारा अनुवादित मुझे वोट दो उनका पहला नाटक था !
संस्था ने सन 1953-54 में मध्यप्रदेश कला परिषद से संबद्धता प्राप्त की तथा 1956 से संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली से संबद्धता प्राप्त किए इसी प्रकार 1964 में मराठी नाट्य परिषद मुंबई महाराष्ट्र शासन से भी मान्यता प्राप्त की !
इस दौरान संस्था का स्वयं का नाटकगृह हो यह कमी सभी सदस्यों को महसूस हुई और इसी के प्रतिफल में 12 अप्रैल 1956 को भूमि पूजन एवं 30 अक्टूबर 1956 को खुला नाट्यगृह तैयार हुआ ! शौकिया कलाकार द्वारा अपने सीमित साधनों के बल पर नाट्यगृह का निर्माण यह रंग मंदिर के इतिहास में विशेष उल्लेखनीय है, 1961 में बंद नाट्यगृह मैं यह परिवर्तित किया गया !
1962 में संस्था ने 25 वर्ष पूर्ण किए एवं केंद्र तथा प्रदेश के मंत्रीगण, सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं नाटककार तथा कलाकारों की उपस्थिति में रजत जयंती वर्ष पूरी गरिमा के साथ मनाया ! इस अवसर पर एक स्मारिका का भी प्रकाशन किया गया था ! मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर हुमायूं कबीर, श्रीमती दुर्गा खोटे एवं डॉ. शंकर दयाल शर्मा थे ! इसी प्रकार संस्था के कार्य की प्रशंसा एवं प्रसद्धि बढ़ती गई और साथ ही आर्थिक जरूरतें भी ! इसी क्रम में संस्था ने पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत हमारा गांव, नवप्रभात जैसे नाटकों का मंचन कर उस कमी को दूर किया, साथ ही दिल्ली, कोलकाता, झांसी, भुसावल, नागपुर, अकोला आदि शहरों में नाट्य प्रस्तुतियों हेतु आमंत्रण आने लगे ! साथ ही मध्य भारत कला परिषद द्वारा आयोजित नाट्य उत्सव में सहभागिता कर सर्वश्रेष्ठ नाट्य प्रस्तुतियों की शील्ड, उत्कृष्ट निर्देशन हेतु स्वर्ण पदक, महामहिम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जी के कर कमलों से ग्रहण किया !
1972 में संस्था के संस्थापक वाय सदाशिव भागवत का 25वा स्मृति दिवस पूरी श्रद्धा, निष्ठा एवं गरिमा के साथ संपन्न हुआ जिसमें सईं परांजपे का सखाराम बाईंडर एवं डॉ. श्रीराम लागू का नटसम्राट नाटक का मंचन विशेष था !
1972-73 में केंद्र शासन के सहयोग से नाट्य गृह में कुर्सियां लगाई गई एवं साथ ही संपूर्ण विद्युत एवं ध्वनि व्यवस्था से सुसज्जित किया गया !
1977 में श्री बंसी कौल के निर्देशन में रंग शिविर लगाया गया था जिसमें मदर एवं जुलूस नाटक तैयारकर उनका मंचन किया गया !
1963 से 2012 तक महाराष्ट्र राज्य नाट्य स्पर्धा, दिल्ली में आयोजित स्पर्धा में, आर्टिस्ट्स कंबाइन ग्वालियर द्वारा अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है और दर्शकों के दिलों पर राज किया है !
1978 तक संस्था द्वारा कुल 250 नाटकों का प्रदर्शन संस्था द्वारा किया जा चुका था इसके अलावा संस्था को कई जगह नाट्य स्पर्धा व नाट्य महोत्सव में पुरस्कृत भी किया जा चुका है !
1988 में संस्था ने स्वर्ण जयंती समारोह पांच दिवसीय नाट्य समारोह के साथ मनाया ! मुख्य अतिथि पु.ल .देशपांडे एवं श्री हबीब तनवीर थे, इसमें दो नाटक संस्था के,एक नाटक हबीब तनवीर जी का एवं दो नाटक ललित कलादर्श मुंबई के थे , साथ ही एक संगोष्ठी का आयोजन भी किया गया था !
1997 में 50वा स्वर्गीय वाय सदाशिव स्मृति दिवस पांच दिवसीय नाट्य समारोह के साथ मनाया गया इसमें मुख्य अथिति जयदेव हट्टंगड़ी थे !
संस्था द्वारा नाटक परिस्थितियों का सिलसिला अविरल चल रहा है परंतु वर्ष 2003 से 2012 तक ग्वालियर के मराठी नाट्य दर्शकों के लिए एक अभिनव योजना प्रारंभ की थी जिसका नाम था रब से रंजन श्रंखला इसमें मुंबई पुणे के नाटकों का मंचन किया जाता था इसे भी लोगों का भरपूर प्यार मिला !
वर्तमान में संस्था द्वारा नाट्य प्रस्तुतियों का सिलसिला अविरल चल रहा है परंतु वर्ष 2003 से 2012 तक ग्वालियर के मराठी नाट्य दर्शकों के लिए एक अभिनव योजना प्रारंभ की थी जिसका नाम था रसिक रंजन श्रंखला इसमें मुंबई व पुणे के नाटकों का मंचन किया जाता था इसे भी लोगों का भरपूर प्यार मिला !
2012 में संस्था के 75 वर्ष पूर्ण हुए इस अवसर पर नए स्वरूप में भवन में कुर्सियों को बदला गया, आवश्यक उपयोगी परिवर्तन कर नई साज-सज्जा के साथ अमृत महोत्सव मनाया गया, इसमें जितनी भी प्रस्तुतियां हुई वह सब महाराष्ट्र की व्यावसायिक नाट्य मंडलियों की थी उसके साथ राजा मानसिंह तोमर के संयुक्त तत्वधान में आधुनिक रंगकर्म पर एक कार्यशाला का आयोजन भी किया था जिसमें मुख्य वक्ता डॉ. गौतम चैटर्जी थे !
श्रीमंत माधवराव सिंधिया ग्वालियर व्यापार मेले में भी संस्था द्वारा समय-समय पर नाट्य प्रस्तुतियां की जाती रही है एवं अभी तक लगभग 500 से अधिक नाटकों का मंचन संस्था द्वारा किया जा चुका है !
ग्वालियर व्यापार मेला में भी संस्था द्वारा समय-समय पर नाट्य प्रस्तुतियां की जाती रही है!
2017 में विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर तीन दिवसीय नाट्य समारोह का आयोजन राजा मानसिंह तोमर के सहयोग से किया गया था साथ ही एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया विषय रंगमंच स्थानीयता बनाम वैश्वीकरण सहभागिता प्रोफेसर बामन केंद्रीय अजीत राय गिरजा शंकर एवं मंगल पांडे ने की थी सूत्रधार डॉक्टर योगेंद्र चौबे रहे !
Performing Wings
आर्टिस्ट्स कंबाइन ग्वालियर
इसके अंतर्गत संस्था द्वारा वर्ष भर के जो नियमित कार्यक्रम है जैसे स्मृति दिवस, स्थापना दिवस, निष्ठा पर्व, रंग शिविर पर शहरों के कलाकारों को साथ लेकर नाट्य प्रस्तुतियां तैयार कर मंचन किया जाता है ! इसके लिए सांस्कृतिक संचालनालय द्वारा भी प्रोत्साहन स्वरूप आर्थिक सहयोग दिया जाता है इसमें नाट्य कला में रुचि रखने वाला हर व्यक्ति सहभागिता ले सकता है इसमें संस्था के नियमों के अनुसार किसी भी कलाकार को कोई मानधन नहीं दिया जाता और ना ही उसे किसी प्रकार का शुल्क लिया जाता है ! यह शौकिया प्रकार है अतः लोग अपने आनंद के लिए यहां आते हैं !
आर्टिस्ट्स कंबाइन इंस्टिट्यूट ऑफ़ परफोर्मिंग आर्टस
2012 से यह महसूस किया गया कि रंगमंच के प्रति विद्यार्थियों एवं युवा पीढ़ी के रुचि बढ़ती जा रही है ! इसमे डॉ. संजय लघाटे ने इस पर कार्य करते हुए संस्था के सदस्यों से नियमानुसार अनुमति लेकर 19 जुलाई 2017 को ACIPA की स्थापना की जिसका प्रमुख उद्देश्य विद्यार्थियों को रंगमंच एवं कला के सभी विषयों का उचित एवं व्यावहारिक प्रशिक्षण देना है ! इस हेतु महाविद्यालय को राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय ग्वालियर मध्य प्रदेश से संबद्धता दी गई !
विशेषज्ञ द्वारा अतिथि व्याख्यान आवश्यक रूप से अन्य जगह जाकर प्रस्तुति देने की व्यवस्था नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से जगह-जगह प्रस्तुतियां शहर में हो रहे अन्य प्रस्तुतियों के अवलोकन एवं उसमें विभिन्न पहलुओं पर चर्चा समीक्षात्मक ईलाइब्रेरी के माध्यम से नाटकों के दिखाना एवं चर्चा करना अन्य महाविद्यालयों की स्पर्धाओं में सहभागिता करना !
परफोर्मिंग स्पेस (प्रदर्शन कार्य स्थान)
ग्वालियर की 150 वर्ष पुरानी नोट परंपराओं में नाटकों का मंचन चित्र एवं रीगल टॉकीज (टाउन हॉल) में होता था परंतु आर्टिस्ट्स कंबाइन के उत्साही सदस्यों ने स्मारक खोज निकाला ! पूर्व में सन 1955 तक ऐसा नाटकों में मंचन के लिए स्थान निश्चित नहीं था, परंतु संस्था के सदस्यों ने एवं आदरणीय वासुदेव शिरगांवकर महाराज जी ने इस समस्या का समाधान निकाला !
12 अप्रैल 1956 को वासुदेव शिरगांवकर जी ने विधिवत जमीन विक्रय करके उस पर नाट्य मंदिर का शिलान्यास किया गया जिसके लिए संस्था के सदस्यों ने सामूहिक श्रमदान कर 25-25 हज़ार एकत्र कर 30 अक्टूबर 1956 को खुला विशाल नाट्यगृह का सपना साकार किया ! इसका उद्घाटन मध्य भारत के पूर्व मुख्यमंत्री श्री तख्तमल जैन द्वारा किया गया ! जनता के विश्वास, सदस्यों के दृण संकल्प एवं सहयोग तथा शासकीय उदार आर्थिक सहयोग से खुला नाट्य मंदिर प्रारंभ किया गया संभवतः यह भारत के किसी संस्था का स्वयं का नाट्य गृह है जो वर्तमान में रंगमंच संबंधी आवश्यक संसाधनों से सुसज्जित है !
पुरस्कार एवं उपलब्धिया
आर्टिस्ट्स कम्बाइन ग्वालियर ने वर्ष 1960 से 2012 तक अपने कार्य का परचम ग्वालियर ही नहीं वरन संपूर्ण भारतवर्ष में फहराया है महाराष्ट्र राज्य नाट्य स्पर्धा, महाराष्ट्र मंडल, कोलकाता नाट्य स्पर्धा, मध्य भारत राज्य नाट्य स्पर्धा, कालिदास समारोह, मध्य प्रदेश नाट्य समारोह, सभी जगह अपने उत्कृष्ट कार्य की छाप छोड़ी है तथा सरणी उपलब्ध है
दिल्ली नाट्य केंद्र द्वारा शिशिर नाट्य समारोह
ब्रह्न्महाराष्ट्र मंडल कलकत्ता, आयोजित मराठी नाट्य स्पर्धा
मध्य भारत राज्य नाट्य महोत्सव (हिंदी)
कालिदास समारोह उज्जैन
महाराष्ट्र समाज नई दिल्ली द्वारा आयोजित मराठी स्पर्धा
अंतर भारतीय मुक्तिबोध नाट्य स्पर्धा रायपुर
महाराष्ट्रमंडल इंदौर द्वारा आयोजित मराठी नाट्य स्पर्धा
विशेष आयोजन
- किसी भी शौकिया संस्था के लिए इसकी रजत जयंती स्वर्ण जयंती एवं प्लैटिनम जुबली अमृत महोत्सव 75 वर्ष मनाना यह जितनी गर्व की बात है उसे ज्यादा आनंद उन सभी सदस्यों को भी होता है जो कि इन आयोजनों का हिस्सा रहे होते हैं !
(अ) रजत जयंती 1937-1962 (25 वर्ष)
(आ) स्वर्ण जयंती 1937 1987 50 वां वर्ष
(इ) स्व. बाय सदाशिव स्मृति स्वर्ण जयंती समारोह (50 वर्ष) सन 1948 से 1997
(ई) अमृत महोत्सव 1937 से 2012 (75वां वर्ष)
(उ) रंग शिविर 1975
प्रकाशन
संस्था द्वारा अभी तक सिर्फ निम्न पुस्तकों का प्रकाशन हुआ है परंतु भविष्य में पुस्तकों पर प्रकाशन का विचार है
(अ) रजत जयंती
(आ) स्वर्ण जयंती
(इ) स्व. बाय सदाशिव स्मृति स्वर्ण जयंती
(ई) ऋणानुबंध
(उ) प्रयोग
(ऊ) प्रयोग त्रैमासिक (1 वर्ष बाद अपरिहार्य कारणों से बंद कर दिया)
(ऋ) रंग शिविर 1977
संस्था के वार्षिक कार्यक्रम
आर्टिस्ट कंबाइन अप्रैल से मार्च के मध्य निम्न कार्यक्रमों का आयोजन नियमित रूप से करती आ रही है !
1. रंग शिविर अप्रैल-मई
2. वाय सदाशिव स्मृति दिवस 12 अगस्त
3. स्थापना दिवस 30 अक्टूबर
4. निष्ठा पर्व 28 फरवरी
5. विश्व रंगमंच दिवस 27 मार्च
इसके अलावा उपलब्धता एवं सुविधा अनुसार अन्य कार्यक्रम एवं प्रस्तुतियां भी तैयार कर मंचन किया जाता है !
संस्था पर किए गए शोध कार्य
Reference List | 2,600 |
387007 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%95%E0%A4%B0%20%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B2 | मकर तारामंडल | मकर या कैप्रिकॉर्न (अंग्रेज़ी: Capricorn या Capricornus) तारामंडल राशिचक्र का एक तारामंडल है। पुरानी खगोलशास्त्रिय पुस्तकों में इसे अक्सर एक सींगों वाले बकरे के रूप में या एक ऐसे जीव के रूप में जो आधा बकरा और एक शार्क मछली हो दर्शाया जाता था। आकाश में इसके पश्चिम में धनु तारामंडल होता है और इसके पूर्व में कुम्भ तारामंडल। दूसरी शताब्दी ईसवी में टॉलमी ने जिन ४८ तारामंडलों की सूची बनाई थी यह उनमें से एक है और अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा जारी की गई ८८ तारामंडलों की सूची में भी यह शामिल है। मकर तारामंडल आकाश में काफ़ी धुंधला नज़र आता है और कर्क तारामंडल के बाद राशिचक्र का दूसरा सब से धुंधला तारामंडल है।
तारे
मकर तारामंडल में १३ मुख्य तारे हैं, हालांकि वैसे इसमें ४९ ज्ञात तारे स्थित हैं जिनको बायर नाम दिए जा चुके हैं। वैज्ञानिकों को सन् २०१० तक इनमें से ३ तारों के इर्द-गिर्द ग्रह परिक्रमा करते हुए पा लिए थे। इस तारामंडल के कुछ प्रमुख तारे अल्गेइदी (α Capricorni), प्राइमा गेइदी (α1 Capricorni), सेकुन्डा गेइदी (α2 Capricorni) और दबीह (β Capricorni) हैं।
इन्हें भी देखें
तारामंडल
मकर राशि
तारामंडल
हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना | 190 |
23239 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%82%E0%A4%B0%20%281982%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29 | अंगूर (1982 फ़िल्म) | अंगूर अंगूर वर्ष 1982 में रिलीज़ हुई हिंदी कॉमेडी फिल्म है जिसका निर्देशन प्रसिद्ध फिल्मकार गुलज़ार ने किया है। ये फिल्म अंग्रेजी के महान नाटककार विलियम शेक्सपियर के नाटक- ‘कॉमेडी ऑफ़ एरर्स’ पर आधारित है।
संक्षेप
इस फिल्म की कहानी जुड़वाँ बच्चों के दो जोड़ों पर आधारित है जो बचपन में बिछुड़ जाते हैं। जब वे बड़े होकर मिलते हैं तो बेहद हास्यप्रद परिस्थितियां पैदा होती हैं।
कथा-सार
राज तिलक अपनी पत्नी और दो जुड़वाँ बच्चों के साथ यात्रा पर निकलते हैं। उनके दोनों जुड़वाँ बच्चों का नाम अशोक है। रास्ते में उन्हें जुड़वाँ बच्चों की एक और जोड़ी मिलती है जिनका नाम वे बहादुर रखते हैं। समुद्री दुर्घटना में परिवार के सदस्य बिछुड़ जाते हैं। अशोक और बहादुर की एक जोड़ी माँ के साथ और दूसरी जोड़ी पिता के साथ अलग-अलग शहरों में रहने लगती है।
अशोक और बहादुर की पहली जोड़ी अपनी अपनी पत्नियों -सुधा और प्रेमा के साथ एक ही घर में रहते हैं। सुधा की बहन तनु भी उन्ही के साथ रहती है। बहादुर और प्रेमा उस घर में नौकर और नौकरानी के रूप में कार्य करते हैं।
अशोक और बहादुर की मालिक-नौकर दूसरी जोड़ी एक अन्य शहर में रहती हैं और दोनों अविवाहित हैं। संयोगवश इस जोड़ी को उसी शहर में आना पड़ता है जिसमें पहली जोड़ी रहती है। परिस्थितियां इस प्रकार घटित होती हैं कि वे पहली जोड़ी के घर में पहुँच जाते हैं। सुधा और प्रेमा भी उन्हें अपना-अपना पति समझने लगती हैं। उनके व्यवहार से सुधा, प्रेमा, तनु और उनके सभी परिचित हैरान और परेशान हो जाते हैं और अनेक हास्यप्रद परस्थितियों उत्पन्न होती हैं। जब दोनों जोड़ियों का आमना-सामना होता है तभी सभी को वास्तविकता का पता चलता है।
कलाकार
संजीव कुमार - अशोक
देवेन वर्मा - बहादुर
मौसमी चटर्जी - सुधा
अरुणा ईरानी - प्रेमा
दीप्ति नवल - तनु
सी.एस.दुबे - छेदीलाल, सुनार
यूनुस परवेज़ - छेदीलाल का कारीगर
टी.पी. जैन - गणेशीलाल, जौहरी
कर्नल कपूर- इंस्पेक्टर सिन्हा
संगीत
फ़िल्म के संगीतकार राहुल देव बर्मन और गीतकार गुलज़ार हैं। गीत-संगीत की दृष्टि से फिल्म साधारण है।
रोचक तथ्य
हिंदी सिनेमा में अपने आरंभिक दिनों में जब गुलज़ार प्रसिद्ध निर्देशक बिमल रॉय के सहायक के रूप में कार्य करते थे तब उन्होंने उनके लिए एक फिल्म लिखी थी- दो दूनी चार, जिसमें जुड़वाँ मालिक और जुड़वाँ नौकर की भूमिकाएं किशोर कुमार और असित सेन ने अदा की थी। देबू सेन निर्देशित ये फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर असफल रही पर गुलज़ार को इस कहानी पर पूरा भरोसा था। उन्होंने 80 के दशक में इस कहानी पर पुनः फिल्म बनाने का फैसला किया।
परिणाम
वर्ष 1982 में अपनी रिलीज़ के समय इस फिल्म ने साधारण सफलता प्राप्त की, परन्तु समय के साथ-साथ इस फिल्म ने दर्शकों पर अपना प्रभाव छोड़ा और आज इस फिल्म की गिनती हिंदी सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ कॉमेडी फिल्मों में की जाती है।
नामांकन और पुरस्कार
30 वें फिल्मफेयर पुरस्कार समारोह
संजीव कुमार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता हेतु नामांकित।
देवेन वर्मा सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता हेतु नामांकित और पुरस्कार जीतने में सफल।
बाहरी कड़ियाँ
1982 में बनी हिन्दी फ़िल्म | 495 |
1196951 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%AE | खाम | खाम (KHAM) भारत के गुजरात राज्य में कांग्रेस द्वारा बनाया गया एक सामाजिक संगठन है जिसका मुख्य उद्देश्य सभी को एक साथ लाना था। खाम का अर्थ 'के से कोली क्षत्रिय, एच से हरिजन, ए से आदीवासी और एम से मुस्लिम' है। खाम का निर्माण करने की योजना झीनाभाई दरज़ी, हरिहर खमबोल्जा एवं सनत महेत ने बनाई थी। इन्होंने देखा गुजरात मे जनता दल के सहयोगी पाटीदार जाति के विरुद्ध चार प्रतिशत राजपूत एवं चौबीस प्रतिशत कोली थे जिससे इनकी खाम बनाने की योजना को बल मिला।
१९७१ में गुजरात में पाटीदार जाति ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया था और जनता दल का साथ देने लगे थे जिसके चलते कांग्रेस ने खाम का निर्माण किया जिसके फलस्वरूप १९८० में कांग्रेस की सरकार बनी जिसमें महत्वपूर्ण भूमिका कोली जाति की थी क्योंकि गुजरात मे २४% कोली जाति की आबादी है एवं गुजरात की प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र मे कोलियों का प्रभाव था। लेकिन बाद में भारतीय जनता पार्टी ने हिंदूत्व के नाम पर खाम की कई जातियों को अपनी तरफ़ पर कर लिया था जिनमे से कांग्रेस की रीढ़ की हड्डी मानी जाने वाली कोली जाति भी भारतीय जनता पार्टी की तरफ़ हो गई जिसके फलस्वरूप गुजरात कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।
खाम निती के चलते कोली जाति १९९८ तक कांग्रेस के साथ बनी रही एवं खाम के लिए कोली जाति बहुत महत्वपूर्ण थी जिसका एक मुख्य कारण माधवसिंह सोलंकी को मुख्यमंत्री बनाएं जाना था। लेकिन जैसे तैसे भारतीय जनता पार्टी ने हिन्दुत्व के नाम पर क्षत्रिय कोलियों को अपनी ओर आकर्षित किया जिसमें मुख्य किरदार कोली समाज के नेता सोमाभाई पटेल का था जिसने खाम की रीढ़ की हड्डी मानी जाने वाली जाति कोली के साथ-साथ अन्य ओवीसी जातियों को भी भारतीय जनता पार्टी की तरफ़ कर दिया एवं सोमाभाई पटेल ही पहले कोली थे जिनको भारतीय जनता पार्टी की तरफ़ से १९८५ में टिकट मिला था।
संदर्भ
कोली | 311 |
1323296 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%8F%E0%A4%B5%E0%A4%82%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A3%20%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF%20%28%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8%29 | सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय (पाकिस्तान) | सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय
( ; देवनागरीकृत : वज़ारत-ए-इतला'आत ओ नश्रियात ) (सङ्क्षिप्त रूप में MoIB ) पाकिस्तान सरकार का मन्त्रिमण्डल स्तर का मन्त्रालय है। जो सरकारी सूचनाओं, मीडिया दीर्घाओं को जारी करने के लिये उत्तरदायी है। सार्वजनिक डोमेन और सरकार ने सार्वजनिक और अन्तरराष्ट्रीय समुदायों के लिये अवर्गीकृत अवैज्ञानिक डाटा। MoIB के पास पाकिस्तान में सूचना, प्रसारण और प्रेस मीडिया से समबन्धित नियमों और विनियमों और विधियों को प्रशासित करने का अधिकार क्षेत्र है।
अधीनस्थ कार्यालय
सूचना सेवा अकादमी
सूचना सेवा अकादमी पाकिस्तान की सिविल सेवा के सूचना समूह अधिकारियों को विशेष प्रशिक्षण के लिये सिविल सेवा अकादमी है।
उर्दू विज्ञान बोर्ड
उर्दू विज्ञान बोर्ड (USB) की स्थापना 1962 में एक प्रस्ताव के माध्यम से " केन्द्रीय उर्दू विकास बोर्ड " के रूप में की गयी थी। 1984 में बोर्ड का नाम बदलकर "उर्दू विज्ञान बोर्ड" कर दिया गया।
बोर्ड ने विभिन्न विज्ञान विषयों, शब्दकोशों और शैक्षिक चार्ट पर 800 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। उर्दू विज्ञान बोर्ड ने उर्दू विज्ञान विश्वकोश विकसित किया है। जिसमें दस खण्ड हैं। इसे फ़ाइन आर्ट मेट पेपर पर मुद्रित किया गया है और इसमें रंगीन चित्र, आरेख और दृश्य शामिल हैं। यह माध्यमिक और उच्च माध्यमिक कक्षाओं के छात्रों, शिक्षकों और शोधकर्ताओं के साथ-साथ सामान्य पाठकों के लिए बहुत उपयोगी है। एक त्रैमासिक "उर्दू विज्ञान पत्रिका" 2002 से उर्दू विज्ञान बोर्ड द्वारा नियमित रूप से प्रकाशित की जा रही है।
उर्दू शब्दकोश बोर्ड
उर्दू शब्दकोश बोर्ड (पूर्व : उर्दू विकास बोर्ड) की स्थापना 1958 में हुई थी। इसे एक प्रस्ताव के माध्यम से बनाया गया था जिसमें कहा गया था कि उर्दू विकास बोर्ड ग्रेटर ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी की तर्ज पर ऐतिहासिक सिद्धान्तों पर उर्दू का एक व्यापक शब्दकोश संकलित और प्रकाशित करेगा। बोर्ड को उर्दू के विकास के लिए कई अन्य कार्य करने के लिये भी कहा गया था।
बाबा-ए-उर्दू मौलवी अब्दुल हक द्वारा स्थापित जो संगठन के पहले मुख्य सम्पादक थे।
बाहरी कड़ियाँ
पाकिस्तान में संचार माध्यम | 317 |
1117245 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%A3%E0%A4%9C%E0%A5%80%20%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%89%E0%A4%AB%E0%A5%80%20%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%AA%20%E0%A4%8F%202019-20 | रणजी ट्रॉफी ग्रुप ए 2019-20 | 2019–20 रणजी ट्रॉफी, रणजी ट्रॉफी का 86 वां सत्र है, जो प्रथम श्रेणी क्रिकेट टूर्नामेंट है जो वर्तमान में भारत में हो रहा है। यह ग्रुप ए में नौ टीमों के साथ चार समूहों में विभाजित 38 टीमों द्वारा लड़ा जा रहा है। समूह चरण 9 दिसंबर 2019 से 15 फरवरी 2020 तक चला। ग्रुप ए और ग्रुप बी में शीर्ष पांच टीमों ने प्रतियोगिता के क्वार्टर फाइनल में प्रगति की।
ग्रुप चरण के मैचों के अंतिम दौर के पहले, गुजरात और आंध्र ने ग्रुप ए से क्वार्टर फाइनल के लिए क्वालीफाई कर लिया था। ग्रुप ए की प्रगति में बंगाल तीसरी और अंतिम टीम थी, जिसने अपने अंतिम मैच में पंजाब को 48 रनों से हराया।
अंक तालिका
फिक्स्चर
राउंड 1
राउंड 2
राउंड 3
राउंड 4
राउंड 5
राउंड 6
राउंड 7
राउंड 8
राउंड 9
सन्दर्भ | 139 |
1264667 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A1%20%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%A1%E0%A4%B0 | डेविड रूडर | डेविड माइकल रूडर (जन्म 6 मई 1953) एक ट्रिनिडाडियन कैल्सपोनियन है, जो सभी समय के सबसे सफल कैल्सपोनियन में से एक के रूप में जाना जाता है।
उन्होंने पीतल बैंड चार्ली के रूट्स के लिए प्रमुख गायक के रूप में प्रदर्शन किया। नौ साल बाद, रूडर ने बैंड के बाहर कदम रखा, 1986 में एक एकल कैलिप्सोनियन के रूप में कैलीपो टेंट में प्रवेश किया, जिसके बाद प्रसिद्धि में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।
"लगभग रातोंरात वह जमैका में मार्ले के आदेश का राष्ट्रीय नायक बन गया, नाइजीरिया में फेला और न्यू जर्सी में स्प्रिंगस्टीन," रोलिंग स्टोन पत्रिका के लिए अमेरिकी पत्रकार और वर्ल्डबीट संवाददाता डाइसन मैकक्लेन ने लिखा।
उनका संगीत जल्दी ही दुनिया भर के संगीत समीक्षकों का विषय बन गया: "न्यूयॉर्क से लंदन तक टोक्यो, जहां जापानी ने रूडर के सबसे बड़े हिट की सीडी जारी की है, जो कि जापानी में अनुवादित गीतों के साथ पूरी की जाती है, रूडर को आधुनिक कैलीफो के सबसे अभिनव लेखक के रूप में वर्णित किया गया है "
सन्दर्भ
1953 में जन्मे लोग | 171 |
541777 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%8F%E0%A4%AB.%E0%A4%B8%E0%A5%80. | सेविला एफ.सी. | सेविला फुटबॉल क्लब (), सेविले में स्थित एक स्पेनी फुटबॉल टीम है। यह वर्तमान में स्पेन के शीर्ष स्तर में खेलती है, ल लिग मे। क्लब 25 जनवरी 1890 पर स्थापित किया गया था। टीम 45,500 क्षमता वाले एस्तेडियो रेमन सांचेज़ पीसजुआन में खेलती है।
सेविला स्पेन में सबसे पुराने फुटबॉल क्लब में से एक है। यूरोपीय स्तर पर, यह लगातार दो युइएफए कप जीता है और 2006 युइएफए सुपर कप। सेविला की अपने शहरी प्रतिद्वंद्वी रियल बेटिस के साथ एक मजबूत प्रतिद्वंद्विता है। 2005 में सेविला के स्थापना के सौ वर्ष, पूरे शहर में समारोह के साथ मनाया गया।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
आधिकारिक वेबसाइट
स्पेन के फुटबॉल क्लब
फुटबॉल क्लब | 111 |
771014 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9 | त्रिलोकी सिंह | त्रिलोकी सिंह, (1908-1980) एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। वह 27 अप्रैल 1967 से 2 अप्रैल 1968, 3 अप्रैल 1970 से 2 अप्रैल 1976 और 3 अप्रैल 1970 से 2 अप्रैल 1976 के दौरान 3 कार्यकालों के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य के रूप में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने वाली भारत की संसद के ऊपरी सदन के राज्यसभा के सदस्य थे। अप्रैल 1976 उनकी मृत्यु तक।[1] वह पहले 1957 से 1962 तक प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य के रूप में उत्तर प्रदेश विधान सभा में विपक्ष के नेता थे। वे लखनऊ पूर्व निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चुने गए थे।
सन्दर्भ
उत्तर प्रदेश की दूसरी विधान सभा के सदस्य
321 - लखनऊ सिटी (पूर्व) के विधायक
लखनऊ के विधायक
प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के विधायक | 123 |
590304 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%20%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2%20%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%B0 | कृष्ण पाल गुर्जर | कृष्ण पाल गुर्जर भारत की सोलहवीं लोक सभा के हरियाणा के फरीदाबाद से सांसद हैं तथा केंद्रीय मंत्रिमण्डल में वे सड़क परिवहन एवं राजमार्ग, शिपिंग राज्य मंत्री थे परन्तु इसके उपरांत इन्हें भारत सरकार के मंत्रिमंडल में सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय, भारत सरकार को संभालने का दायित्व निभा रहे हैं । २०१४ के चुनावों में वे हरियाणा के फरीदाबाद से निर्वाचित हुए। वे भारतीय जनता पार्टी से संबद्ध हैं।
बाहरी कड़ियाँ
भारत के राष्ट्रीय पोर्टल पर सांसदों के बारे में संक्षिप्त जानकारी
सन्दर्भ
१६वीं लोक सभा के सदस्य
जीवित लोग
हरियाणा के सांसद
१७वीं लोक सभा के सदस्य
मोदी मंत्रिमंडल
1957 में जन्मे लोग | 105 |
541605 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%88%E0%A4%8F%E0%A4%AB%E0%A4%8F%20%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%BE%20%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%97%20%E0%A4%AB%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A8%E0%A4%B2%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%9A%E0%A5%80 | यूईएफए यूरोपा लीग फाइनल की सूची | यूईएफए यूरोपा लीग, पूर्व में यूईएफए कप के रूप में जाना जाता था, 1971 में स्थापित एक फुटबॉल प्रतियोगिता है। यह यूरोपीय क्लबों के लिए दूसरा सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता मानी जाती है। प्रतियोगिता के पहले 25 वर्षों के लिए, फाइनल दो लेग पर खेला गया था, लेकिन 1998 के बाद से, प्रतियोगिता का फाइनल एक तटस्थ स्टेडियम में आयोजित किया जाता है। टॉटनहम हॉटस्पर 1972 में उद्घाटन प्रतियोगिता जीती थी।
खिताब 28 विभिन्न क्लबों द्वारा जीता गया है और जिनमें से 12 एक बार से अधिक खिताब जीता है। सेविला ५ खिताब के साथ प्रतियोगिता में सबसे सफल क्लब हैं। अंग्रेज़ी पक्ष मैनचेस्टर यूनाइटेड मौजूदा चैंपियन हैं, वे २०१७ फाइनल में अजाक्स को 2–0 से हरा दिया था।
फाइनल की सूची
नोट्स
A. स्कोर 90 मिनट और अतिरिक्त समय के बाद 0-0 था, गालतासराय पेनल्टी शूटआउट 4-1 से जीता।
B. स्कोर 90 मिनट के बाद 4-4 था, लिवरपूल अतिरिक्त समय के 26 वें मिनट में सुनहरा गोल किया।
C. स्कोर 90 मिनट के बाद 2-2 था।
D. स्कोर 90 मिनट और अतिरिक्त समय के बाद 2-2 था, सेविला पेनाल्टी शूटआउट 3-1 से जीता।
E. स्कोर 90 मिनट के बाद 1-1 था।
F. स्कोर 90 मिनट के बाद 1-1 था।
G. स्कोर 90 मिनट और अतिरिक्त समय के बाद 0–0 था, सेविला पेनाल्टी शूटआउट 4–2 से जीता।
सन्दर्भ
आधिकारिक वेबसाइट
फुटबॉल | 221 |
891345 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%A4%20%E0%A4%96%E0%A5%87%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE | कुलवंत खेज्रोलिया | कुलवंत खेज्रोलिया (जन्म १३ मार्च १९९२) एक भारतीय क्रिकेट है। इन्होंने २६ फरवरी २०१७ को २०१६-१७ में विजय हजारे ट्रॉफी में दिल्ली के लिए अपना पहला लिस्ट ए क्रिकेट मैच खेला। इसी बीच इन्हें पिछले साल २०१७ इंडियन प्रीमियर लीग में मुंबई इंडियंस की टीम द्वारा १० लाख में नीलामी में खरीदे गए थे।
इसके बाद इन्होंने ६ अक्टूबर २०१७ को २०१७-१८ में रणजी ट्रॉफी में दिल्ली के लिए खेलते हुए अपने प्रथम श्रेणी क्रिकेट का पदार्पण किया। साल २०१८ इंडियन प्रीमियर लीग में इन्हें नीलामी के दौरान रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर ने उन्हें खरीदा है।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी
1992 में जन्मे लोग
जीवित लोग
झुंझुनू के लोग
रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के क्रिकेट खिलाड़ी
बाएं हाथ के गेंदबाज | 120 |
19817 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A5%80 | इमली | इमली (अरबी: تمر هندي तमर हिन्दी "भारतीय खजूर") पादप कुल फ़बासी का एक वृक्ष है। इसके फल लाल से भूरे रंग के होते हैं, तथा स्वाद में बहुत खट्टे होते हैं। इमली का वृक्ष समय के साथ बहुत बड़ा हो सकता है और इसकी पत्तियाँ एक वृन्त के दोनों तरफ छोटी-छोटी लगी होती हैं। इसके वंश टैमेरिन्डस में सिर्फ एक प्रजाति होती है।
शरीर में रक्तसंचार को बेहतर बनाने और आयरन की कमी को पूरा करने में इमली सहायक होती है, जिससे शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण अधिक होता है, और आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।
6 आंखों में दर्द या जलन की शिकायत होने पर भी इमली काफी मददगार होती है। ऐसा होने पर इमली के रस में दूध मिलाकर आंखों के बाहर लगाने से आराम मिलता है। आंखों में खुजली होने पर भी इमली असरकारक है।दस्त लगने की समस्या में इमली के बीज काफी फायदेमंद होते हैं। इमली के सूखे हुए बीजों को पीसकर उसमें अदरक पाउडर और उसमें विशप घास और सेंधा नमक मक्खन मिलाकर दूध के साथ पीने पर लाभ मिलता है।
8 बवासीर की समस्या होने पर तेल और घी को समान मात्रा में लेकर उसमें इमली की पत्तियों को तल लें अब इसमें अनार के बीज, सूखा अदरक, धनिया पाउडर डालकर पकाने के बाद दही मिलाकर खाने से लाभ होता है। खूनी बवासीर में इमली के गूदे को दलिया के साथ खाने पर आराम मिलता है।
9 शरीर के किसी अंग में किसी प्रकार की सूजन होने पर एक कटोरी में गेहूं का आटा, इमली के पत्ते, इमली का रस, एक चुटकी नमक लेकर उबालें और जब यह लेप तैयार हो जाए तो इसे गर्म रहने पर ही सूजन वाले स्थान पर लगा लें।
10 इमली में विटामिन बी कॉम्प्लेक्स भी भरपूर मात्रा में होता है, जो मांसपेशियों के विकास के लिए फायदेमंद है। इसमें मौजूद थाइमिन नसों के सुचारू रूप से क्रियान्वयन और मांसपेशियों के विकास में मदद करता है।
11 इमली की की छाल का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाने से चेहर की झाइयां धीरे-धीरे कम होने लगती हैं। कान की समस्या होने पर इमली के रस को तेल में मिलाकर कान में डालने से फायदा होता है।
बाहरी कड़ियाँ
गर्मियों की रानी : खट्टी-मीठी इमली (वेबदुनिया)
फल | 370 |
1385211 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%A5%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A5%E0%A4%AE | पृथ्वीराज सिंह प्रथम | आमेर के कछवाहा राजा चंद्रसेन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र पराक्रमी राजावत योद्धा पृथ्वीराज कछवाहा सिंहासन पर बैठा। मेवाड़ के महाराणा कुंभा ने अपने सैनिक अभियान के तहत् आमेर के कछवाहा राजाओं को मेवाड़ का सामंत बना लिया था।
ध्यातव्य रहे-पृथ्वीराज कछवाहा ने बाबर की सेना को छिन्न भिन्न कर दिया था।
पृथ्वीराज कछवाहा ने मेवाड़ के महाराणा साँगा के नेतृत्व में हुए खानवा के युद्ध में राणा साँगा की ओर से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ। | 79 |
62842 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%95%20%E0%A4%87%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A1%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AD%E0%A4%B5 | मानक इलेक्ट्रोड विभव | साम्यावस्था में अर्ध सेलों (हाफ सेल) के एलेक्ट्रोड विभव को मानक इलेक्ट्रोड विभव (standard electrode potentials) कहते हैं। जब तत्वो को उनके मानक अपचयन विभव के आरोही क्रम मे व्यवस्थित करते हैं तो इस प्रकार प्राप्त हुइ श्रेणी विद्युत रासायनिक श्रेणी कहलाती है।
इनका उपयोग विद्युतरासायनिक सेल (electrochemical cell) (गैल्वानिक सेल) का विभव ज्ञात करने के लिये किया जा सकता है। इसके अलावा इनका उपयोग किसी विद्युतरासायनिक रिडॉक्स (redox) अभिक्रिया के साम्य की स्थिति का पता करने के लिये किया जा सकता है। अर्थात् इसकी सहायता से यह पता कर सकते हैं कि ऊष्मागतिकी की दृष्टि से किसी विद्युतरासायनिक अभिक्रिया की गति की दिशा क्या होगी।
नीचे की सूची में मानक एलेक्ट्रोड विभव वोल्ट में दिये हुए हैं। ये विभव मानक हाइड्रोजन एलेक्ट्रोड (standard hydrogen electrode) के सापेक्ष दिये हुए हैं।
सारणी में दर्शाये गये विभव के मान निम्नलिखित स्थितियों में सत्य होंगे-
तापमान : 298.15 K (25 °C);
the effective concentration of 1 mol/L for each aqueous species or a species in a mercury amalgam;
the partial pressure of 101.325 kPa (absolute) (1 atm, 1.01325 bar) for each gaseous reagent. This pressure is used because most literature data are still given for this value rather than for the current standard of 100 kPa.
the activity of unity for each pure solid, pure liquid, or for water (solvent).
प्रतीक : (s) – ठोस; (l) – द्रव; (g) – गैस; (aq) – जलीय (aqueous) (default for all charged species); (Hg) – अमलगम (amalgam)
सन्दर्भ
https://web.archive.org/web/20080720062116/http://www.jesuitnola.org/upload/clark/Refs/red_pot.htm
https://web.archive.org/web/20090305134158/http://hyperphysics.phy-astr.gsu.edu/Hbase/Tables/electpot.html#c1
इन्हें भी देखें
गैल्वानिक श्रेणी (Galvanic series)
विद्युतरासायनिक विभव (Electrochemical potential)
विद्युत | 257 |
830847 | https://hi.wikipedia.org/wiki/21%20%E0%A4%85%E0%A4%97%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%202017%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%A3 | 21 अगस्त 2017 का सूर्य ग्रहण | 21 अगस्त 2017 के सूर्य ग्रहण में अमेरिका में पूर्ण सूर्य ग्रहण देखा गया, जबकि अन्य देशों में आधा ग्रहण ही देखने में आया। जिसे अमेरिकी मीडिया द्वारा ग्रेट अमेरिकन इक्लिप्स भी कहा गया था।
योजना
अमेरिका में इस ग्रहण के लिए अधिकारी पहले से योजना बना चुके थे। इस ग्रहण को देखने के लिए छोटे शहरों के लोगों को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा था।
तस्वीरें
पूर्ण सूर्य ग्रहण
आधा सूर्य ग्रहण
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
सूर्य ग्रहण | 79 |
642759 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A4%BE | ला रियोजा | रियोजा ला रियोजा अथवा ल रियोहा (pronounced Ri-o-ha) संबंधित हो सकता है:
ला रियोजा प्रान्त (स्पेन) - (La Rioja (Spain)), उत्तरी स्पेन का एक प्रान्त
रियोजा (वाइन) - (Rioja (wine))
२०९०८३ रियोजा - (209083 Rioja), एक छोटा सा ग्रह
ला रियोजा (स्पेनी काँग्रेस चुनाव क्षेत्र) - (La Rioja (Spanish Congress Electoral District))
ला रियोजा विश्वविद्यालय - (University of La Rioja)
ला रियोजा, अल्मेरिया - (Rioja, Almería), अंडालूसिया, स्पेन
ला रियोजा प्रान्त, (पेरू) - (Rioja Province)
ला रियोजा, डिस्ट्रिक्ट - (Rioja District)
ला रियोजा, पेरू - (Rioja, Peru) पेरू का शहर
ला रियोजा प्रान्त (अर्जेन्टीना) - (La Rioja Province, Argentina)
ला रियोजा, अर्जेन्टीना - (La Rioja, Argentina)
ला रियोजा राष्ट्रीय विश्वविद्यालय - (National University of La Rioja)
बर्नार्डीनो बिल्बाओ रियोजा - (Bernardino Bilbao Rioja) (1895-1983), बोलिवियाई सैन्य अधिकारी
फ़्रांसिस्को डी रियोजा - (Francisco de Rioja) (1583-1659), स्पैनिश कवि
बहुविकल्पी शब्द | 139 |
795064 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%A0%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B2 | सरला ठकराल | सरला ठकराल (१९१४ - १५ मार्च २००८), विमान उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला थी। सरला को 'मति' नाम से भी पुकारा जाता था। सरला ठकराल ने १९३६ में २१ वर्ष की आयु में एक विमानन लाइसेंस अर्जित करके एक जिप्सी मोठ को अकेले उड़ाया। उनकी एक ४ साल की बेटी भी थी। प्रारंभिक लाइसेंस प्राप्त करने के बाद, उन्होंने लाहौर फ्लाइंग क्लब के स्वामित्व वाले विमान में एक हज़ार घंटे की उड़ान भर कर रखी और पूरा किया।
१६ वर्ष की आयु में उनका विवाह पी.डी शर्मा से हुआ, जिनके परिवार में ९ पायलट थे। इस कारण उन्हें पायलट बनने के लिए बहुत प्रोत्साहन मिला। उनके पति शर्मा, पायलट का लाइसेंस पाने वाले पहले भारतीय थे। कराची से लाहौर के बीच में तथा १००० घंटे से अधिक की उड़ान भर कर सरला 'लाइसेंस अ' हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। ठकराल आर्य समाज की समर्पित अनुयायी थीं। भारत के स्वतंत्र होने पर वे अपनी दोनों बेटियों के साथ दिल्ली आ गयीं। दिल्ली में वे आर पी ठकराल के सम्पर्क में आयीं और १९४८ में उनसे विवाह किया। सरला सफल व्यवसायी और चित्रकार थीं। उन्होने वस्त्र और आभूषण डिजाइन करना शुरू कर दिया। २००८ में उनकी मृत्यु हो गई।
सन्दर्भ
विमानन
वायुयान चालक
1914 में जन्मे लोग
आर्य समाज | 209 |
1178673 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B6%20%E0%A4%97%E0%A4%A3%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF | आयरिश गणराज्य | आयरिश गणराज्य( or ) एक क्रांतिकारी राज्य था जिसने जनवरी 1919 में यूनाइटेड किंगडम से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। इस गणराज्य ने आयरलैंड के पूरे द्वीप की भूमि पर संप्रभुता का दावा किया, लेकिन 1920 तक इसका कार्यात्मक नियंत्रण आयरलैंड के 32 काउंटियों में से केवल 21 तक सीमित था, तथा ब्रिटिश सशस्त्र बल, उत्तर-पूर्व आयरलैंड के अधिकांश क्षेत्रों के साथ कॉर्क, डबलिन और अन्य प्रमुख शहरों पर पकड़ बनाए रखा। ग्रामीण क्षेत्रों में आयरिश गणराज्य सबसे मजबूत था, और यह अपने सैन्य बलों के माध्यम से उन शहरी क्षेत्रों में आबादी को प्रभावित करने में सक्षम था जिनपर इसका सीधा नियंत्रण नहीं था।
इसकी उत्पत्ति 1916 के ईस्टर राइजिंग से हुई, जब आयरिश गणतंत्रवादी विद्रोहियों ने डबलिन के प्रमुख स्थानों पर कब्ज़ा कर लिया और ब्रिटेन से स्वतंत्र एक आयरिश गणराज्य की घोषणा कर दी थी। उस विद्रोह को कुचल दिया गया था, लेकिन बचे लोगों ने एक पुनर्गठित सिन फ़ेन पार्टी के तहत एकजुट होकर गणराज्य की मांग के लिए प्रचार करने लगे। इस पार्टी ने 1918 के आयरिश आम चुनावों में बड़े पैमाने पर निर्विरोध सीटों से जीतकर स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया और 21 जनवरी 1919 को डबलिन में आयरलैंड के पहले दाएल (विधायिका) का गठन किया। गंराज्यवादियों ने तब अपनी सरकार, अदालत प्रणाली और एक पुलिस बल की स्थापना की। उसी समय, क्रन्तिकारी आयरिश स्वयंसेवक बल, जो दाएल के नियंत्रण में आगये थे, आयरिश रिपब्लिकन आर्मी के रूप में जाने जाने लगे और उन्होंने ब्रिटिश सेना बलों के खिलाफ आयरिश स्वतंत्रता युद्ध छेड़ दिया।
स्वतंत्रता युद्ध 6 दिसंबर 1921 को हस्ताक्षरित एंग्लो-आयरिश संधि के साथ समाप्त हुआ। जिसे 7 जनवरी 1922 को दाएल द्वारा अनुमोदित किया गया। संधि की शर्तों के तहत एक अनंतिम सरकार की स्थापना की गई थी, लेकिन आयरिश गणराज्य 6 दिसंबर 1922 तक नाममात्र के लिए अस्तित्व में रहा, जब आयरलैंड द्वीप के 32 काउंटियों में से 26 आयरिश मुक्त राज्य नामक एक स्व-शासित ब्रिटिश डोमिनियन बन गया। आयरलैंड अधिनियम, 1920 के तहत सरकार द्वारा द्वीप विभाजित कर उत्तरी आयरलैंड के, संघवादी बहुमत वाले उन ६ काउंटियों को दक्षिण से अलग कर दिया गया ताकि वहाँ पर संघवादी बहुमत को बनाये रखा जा सके, वहां की जनता ने संधि के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल कर मुक्त राज्य से बाहर रहकर यूनाइटेड किंगडम में ही रहना स्वीकार किया।
इन्हें भी देखें
आयरिश मुक्त राज्य
आयरिश रिपब्लिकन आर्मी
उत्तरी आयरलैंड
आयरिश स्वतंत्रता युद्ध
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
Anglo-Irish Treaty Debates on-line
आयरलैंड का इतिहास
आयरिश मुक्त राज्य
आयरलैण्ड का स्वतंत्रता संग्राम | 408 |
1269167 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%83%E0%A4%97%E0%A5%8D-%E0%A4%A6%E0%A5%83%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%95 | दृग्-दृश्य-विवेक | दृग्-दृश्य-विवेक अद्वैत वेदान्त का एक ग्रन्थ है जिसे 'वाक्यसुधा' भी कहते हैं। विद्यारण्य स्वामी इसके रचयिता माने जाते हैं किन्तु कुछ लोग इसे आदि शंकराचार्य की रचना मानते हैं।
वर्ण्य विषय
'दृग्-दृश्य-विवेक' में ४६ श्लोक हैं जिसमें दृग् (the seer) दृश्य (the seen) में क्या अन्तर है, इसका विवेचन किया गया है। इसके अलावा समाधि (स्वविकल्प और निर्विकल्प) तथा आत्मा और ब्रह्म की प्रकृति के बारे में बताया गया है।
"दृग्-दृश्य विवेक" प्रकरण ग्रन्थ है। जिन पुस्तकों का अध्यन करने से अद्वैत-वेदान्त के सभी विषयों का संक्षिप्त का परिचय प्राप्त होता हो, वैसी पुस्तकों को 'प्रकरण ग्रन्थ' कहा जाता है। अतः दृग्-दृश्य विवेक को अद्वैत-वेदान्त की भूमिका भी कह सकते हैं। यह ग्रन्थ संसार के सभी धर्मों का सार है।
'दृग्-दृश्य विवेक' का एक और नाम 'वाक्यसुधा' भी है। सुधा का अर्थ होता है अमृत, अतः इसका सामान्य अर्थ हुआ 'वाक्य का अमृत' ।किन्तु यहाँ इसका तात्पर्य है "वेदान्त के चार महावाक्यों के मन्थन से निकला हुआ अमृत" ।
दृग्-दृश्य विवेक का अर्थ है द्रष्टा और दृश्य के अन्तर को पृथक-पृथक रूप में समझ लेना। अर्थात् सत्य (Real) से असत्य (unreal) को अलग करना।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
दृग्-दृश्य-विवेक (श्लोक 1 से 5 तक )
अद्वैत वेदान्त | 196 |
24424 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A4%20%E0%A4%96%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%81 | विलायत ख़ाँ | विलायत खाँ का जन्म 1928 में गौरीपुर (इस समय बांग्लादेश) में एक संगीतज्ञ परिवार में हुआ था। पिता, प्रख्यात सितार वादक उस्ताद इनायत हुसैन ख़ाँ, की जल्दी मौत के बाद उन्होंने अपने नाना और मामा से सितार बजाना सीखा। आठ वर्ष की उम्र में पहली बार उनके सितारवादन की रिकॉर्डिंग हुई। उन्होंने पाँच दशकों से भी अधिक समय तक अपने सितार का जादू बिखेरा। उस्ताद विलायत ख़ाँ की पिछली कई पुश्तें सितार से जुड़ी रहीं और उनके पिता इनायत हुसैन ख़ाँ से पहले उस्ताद इमदाद हुसैन ख़ाँ भी जाने-माने सितारवादक रहे थे। उस्ताद विलायत ख़ाँ के दोनों बेटे, सुजात हुसैन ख़ाँ और हिदायत ख़ाँ भी तथा उनके भाई इमरात हुसैन ख़ाँ और भतीजे रईस ख़ाँ भी जाने माने सितार वादक हैं।
वे संभवतः भारत के पहले संगीतकार थे जिन्होंने भारत की आज़ादी के बाद इंग्लैंड जाकर संगीत पेश किया था। विलायत ख़ाँ एक साल में आठ महीने विदेश में बिताया करते थे और न्यूजर्सी उनका दूसरा घर बन चुका था। विलायत ख़ाँ ने सितार वादन की अपनी अलग शैली, गायकी शैली, विकसित की थी जिसमें श्रोताओं पर गायन का अहसास होता था। उनकी कला के सम्मान में राष्ट्रपति फ़ख़रूद्दीन अली अहमद ने उन्हें आफ़ताब-ए-सितार का सम्मान दिया था और ये सम्मान पानेवाले वे एकमात्र सितारवादक थे। लेकिन उस्ताद विलायत खाँ ने 1964 में पद्मश्री और 1968 में पद्मविभूषण सम्मान ये कहते हुए ठुकरा दिए थे कि भारत सरकार ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में उनके योगदान का समुचित सम्मान नहीं किया। उनके परिवार में उनकी दो पत्नियाँ, दो बेटे और दो बेटियाँ भी हैं।
13 मार्च 2004 को उनका देहांत हो गया। उन्हें फेफ़ड़े का कैंसर था जिसके इलाज के लिए वे जसलोक अस्पताल में भर्ती थे। उनका अधिकतर जीवन कोलकाता में बीता और उनका अंतिम संस्कार भी उन्हें उनके पिता की क़ब्र के समीप दफ़ना कर किया गया।
सन्दर्भ
भारतीय संगीत
शास्त्रीय संगीत
सितार वादक | 305 |
1464164 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%8B | मोनिका बारबरो | मोनिका बारबरो (; जन्म: 18 जून 1990) अमेरिकी अभिनेत्री हैं। वह द कैथेड्रल (2021), टॉप गन: मैवरिक (2022), और एट मिडनाइट (2023) में अपनी फ़िल्मी भूमिकाओं के लिए जानी जाती हैं। वह टेलीविजन शृंखला अनरियल (2016), शिकागो जस्टिस (2017), द गुड कॉप (2018), और फुबार (2023) में प्रमुख भूमिकाओं में भी दिखाई दी हैं।
प्रारंभिक जीवन
मोनिका का जन्म 18 जून, 1990 को सैन फ्रांसिस्को में हुआ था। वह मिल वैली, कैलिफोर्निया में पली-बढ़ी, जहां उन्होंने 2007 में तमलपाइस हाई स्कूल से पढ़ाई पूरी की। जब वह छोटी थी तभी उनके माता-पिता का तलाक हो गया। मोनिका ने कम उम्र में ही नृत्य करना शुरू कर दिया था और बैले को सीखने लगीं। 2010 में स्नातक होने के बाद, उन्होंने अभिनय करने का फैसला किया और सैन फ्रांसिस्को लौट गईं।
करियर
उनकी पहली प्रमुख टेलीविजन भूमिका टेलीविजन शृंखला अनरियल के दूसरे सीज़न में थी। इसके बाद उन्होंने शिकागो जस्टिस में काम किया। इसमें उन्होंने एना वाल्डेज़ की भूमिका निभाई। 2018 में, उन्होंने नेटफ्लिक्स के द गुड कॉप में कोरा वास्केज़ की भूमिका निभाई। 2018 और 2019 के बीच में, एबीसी के कार्यक्रम स्प्लिटिंग अप टुगेदर में उन्होंने कई बार काम किया। 2022 की ब्लॉकबस्टर टॉप गन: मैवरिक में, उन्होंने नौसैनिक एविएटर लेफ्टिनेंट नताशा "फीनिक्स" ट्रेस की भूमिका निभाई।
अगले वर्ष मोनिका ने रोमांटिक कॉमेडी एट मिडनाइट (2023) में अभिनय किया। फिल्म को इसकी कहानी के लिए मिश्रित समीक्षा मिली लेकिन उनके प्रदर्शन की प्रशंसा हुई।
सन्दर्भ
1990 में जन्मे लोग
जीवित लोग
अमेरिकी अभिनेत्री | 244 |
531316 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE%20%E0%A4%86%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%A8 | राजस्थानी भाषा आंदोलन | राजस्थानी भाषा आन्दोलन 1947 से कार्यरत राजस्थानी भाषा के अधिक से अधिक प्रचार एवं मान्यता दिलाने के लिए प्रयासरत आन्दोलन है।
राजस्थानी भाषा "मायड़ बोली" कि आवाज, प्रतिगीत ,प्रेरक गीत के रूप में क्रांतिकारी सुखवीर सिहँ कविया का गीत "क्यूँ भूल्या मायड़ बोली नै" बना ।
मीठो गुड़ मिश्री मीठी, मीठी जेडी खांड
मीठी बोली मायडी और मीठो राजस्थान ।।
गण गौरैयाँ रा गीत भूल्या
भूल्या गींदड़ आळी होळी नै,
के हुयो धोरां का बासी,
क्यूँ भूल्या मायड़ बोली नै ।।
कालबेलियो घुमर भूल्या
नखराळी मूमल झूमर भूल्या
लोक नृत्य कोई बच्या रे कोनी
क्यू भूल्या गीतां री झोळी नै,
कै हुयो धोरां का बासी
क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।
जी भाषा में राणा रुओ प्रण है
जी भाषा में मीरां रो मन मन है
जी भाषा नै रटी राजिया,
जी भाषा मैं हम्मीर रो हट है
धुंधली कर दी आ वीरां के शीस तिलक री रोळी नै,
के हुयो धोरां का बासी,
क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।
घणा मान रीतां में होवै
गाळ भी जठ गीतां में होवे
प्रेम भाव हगळा बतलाता
क्यू मेटि ई रंगोंळी नै,
के हुयो धोरां का बासी
क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।
पीर राम रा पर्चा भूल्या
माँ करणी री चिरजा भूल्या
खम्माघणी ना घणीखम्मा है
भूल्या धोक प्रणाम हमझोळी नै
के हुयो धोरां का बासी,
क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।
बिन मेवाड़ी मेवाड़ कठै
मारवाड़ री शान कठै
मायड़ बोली रही नहीँ तो
मुच्चयाँळो राजस्थान कठै ।।
(थारी मायड़ करे पुकार जागणु अब तो पड़सी रै - Repeat )
- सुखवीर सिंह कविया
Sukhveer singh kaviya
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
साहित्य अकादमी जालस्थल
राजस्थान | 264 |
164397 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A4%B0 | डिस्टेंपर | डिस्टेंपर दीवारों पर पुताई करने के लिए एक विशेष प्रकार का लेप है, जो पानी में घोलकर पोता जाता है। रंग करने का यह सबसे पुराना साधन है। यूनान और मिस्रवाले इसका बहुत उपयोग करते थे।
परिचय
सबसे सादा डिस्टेंपर, जिसे कभी-कभी सफेदी भी कह देते हैं, खड़िया, सरेस और पानी मिलाकर बनाया जाता है। सरेस बाँधने का काम करता है, जिससे लेप रगड़ से उतर न जाय। इस प्रकार बनाए हुए डिस्टेंपर बहुत सस्ते होते हैं, काफी क्षेत्र ढक लेते हैं और बड़ी कूँची या ब्रश से सरलता से पोते जा सकते हैं, किंतु पानी से धोने पर ये छूट भी जाते हैं। इसलिए ये प्राय: भीतरी छत पोतने के लिए, या मामूली सजावट के लिए, भीतर ही प्रयुक्त होते हैं। कालांतर में पुताई मैली हो जाने पर आसानी से धोई जा सकती है और दुबारा डिस्टेंपर करने में विशेष व्यय नहीं पड़ता।
बाजार में डिस्टेंपर गाढ़े लेप या लेई जैसे भी मिलते हैं और सूखे चूर्ण जैसे भी। लगाने से पहले इनमें केवल ठंडा, या गुनगुना (जैसा निदेश हो), पानी मिलाने भर की आवश्यकता रहती है। अच्छे डिस्टेंपर में कुछ नील भी पड़ा होता है, जिससे रंग में निखार आता है। इसमें थोड़ी फिटकरी या सोहागा भी डाला जाता है, जिससे वह रखे रखे ही जम न जाए। जो डिस्टेंपर बाहर खुले में लगाने के लिए होते हैं, उनमें तेल की कुछ मात्रा होती है और उन्हें पानी के बजाय विशेष द्रव में ही घोला जाता है।
सूखा डिस्टेंपर बनाने के लिए सभी चीजें बिल्कुल सूखी हालत में पीसी जाती हैं। यदि तनिक भी नमी हुई तो चूर्ण की टिक्की बन जाएगी और वह सख्त हो जाएगी। सूखे चूर्ण को मुलायम रखने के लिए उसमें थोड़ा सोहागा, सैलिसिलिक अम्ल, फिटकिरी या अन्य कोई सूखा प्रतिरक्षी मिला दिया जाता है। रंगीन डिस्टेंपर बनाने के लिए कोई ऐसा सूखा रंजक मिलाया जाता है, जिसपर चूने या क्षार का प्रभाव न पड़ता हो और जिसका रंग स्थायी हो।
धुलाईसह डिस्टेंपर
धुलाईसह डिस्टेंपर, जिसे जलरोगन भी कहते हैं, उत्कृष्ट कोटि का डिस्टेंपर है। इसमें कुछ तेल या वार्निश मिली रहती है, जो इसे और भी पक्का कर देती है। यह सूखने पर पानी में नहीं घुलता, इसलिए ऐसे डिस्टेंपरवाली दीवारें साफ ठंढे पानी के कपड़े से पोंछ देने से ही साफ हो जाती हैं। इनमें खड़िया के अतिरिक्त कुछ लिथोफोन, जस्तेवाला सफेदा या कोई प्रबल रंजक मिला रहता है, जिससे इनकी आच्छादन क्षमता बढ़ जाती है और आवरण शक्ति भी। हाँ, तेल या वार्निश मिले होने के कारण ये केवल लेई के रूप में ही बिकते हैं, जिसमें ठंढा या गुनगुना पानी मिलाने भर की आवश्यकता रहती है।
पोतने की विधि
डिस्टेंपर उपयुक्त मात्रा में पानी में घोलकर ब्रश से पोता जाता है। पोतने के बाद उसके सूखने से पहले ही सतह पर एक मुलायम ब्रश फेर दिया जाता है, जिससे सतह पर ब्रश के निशान न रह जाएँ। बड़े क्षेत्र में ब्रश द्वारा डिस्टेंपर करने में देर लगती है और रंग में कुछ अंतर आने की आशंका रहती है, इसलिए बहुधा फुहार मशीन का उपयोग किया जाता है। कभी-कभी दीवार की सतह ही धब्बों के कारण, या अनेक प्रकार के प्लास्टरों के कारण, डिस्टेंपर से एक सा रंग ग्रहण करने में असमर्थ रहती है। ऐसी दशा में डिस्टेंपर करने से पहले अस्तर लगाना पड़ता है। डिस्टेंपर बनानेवाली कंपनियाँ ही उपयुक्त अस्तर भी बनाती हैं।
बाहरी कड़ियाँ
Distemper paintings.
A modern example.
A modern example.
गृहोपयोगी वस्तुएँ
ja:絵具#水性の絵具 | 556 |
810514 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%AE.%E0%A4%A1%E0%A5%80.%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE | एम.डी.वाल्साम्मा | मंथूर देवसिया वल्साम्मा (जन्म-२१ अक्तूबर १९६०), एक सेवानिवृत्त भारतीय एथलीट है। वह एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली व्यक्तिगत रूप से दूसरी भारतीय महिला थी और भारतीय धरती पर इसे जीतने वाली पहली महिला थी।
प्रारंभिक जीवन
वल्साम्मा का जन्म २१ अक्तूबर,१९६० केरला के कन्नूर जिले के ओत्ताथई में हुआ था। स्कूल के शुरूआती दिनों से ही उन्होंने एथलेटिक्स में करियर बनाने के लिए सोच लिया था परन्तु मर्सी कॉलेज, पलक्कड़ जाने के बाद वह उसे और गंभीरता से लेने लगी। उनका पहला पदक १९७९ में पुणे में इंटर-यूनिवर्सिटी चैम्पियनशिप में १०० मीटर की बाधा और पेंटाथलॉन में केरल के लिए था।
वह दक्षिणी रेलवे (भारत) में नामांकित थी व उन्हें ऐ.के कुट्टी द्वारा प्रशिक्षित किया गया था। उन्होंने १९८१ में बैंगलोर में इंटर-स्टेट मीटिंग में पांच स्वर्ण पदक जीतकर, ४०० मीटर फ्लैट और ४०० मीटर और १०० मीटर रिले के अतिरिक्त १०० से ४०० मीटर की दूरी पर बाधा दौड़ में सबको प्रभावित किया।
पेशेवर एथलेटिक्स करियर
१९८२ एशियाई खेलों में जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में, वाल्समम् ने ५८.४७ सेकेंड में भारतीय और एशियाई रिकॉर्ड समय में ४०० मीटर बाधा दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। इससे कमलजीत संधू (४०० मीटर-१९७४) के बाद, भारत के लिए एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली दूसरी महिला खिलाड़ी बनी। १९८२ में भारत सरकार द्वारा उन्हें अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया और १९८३ में पदम् श्री से सम्मान दिया गया।
लगभग १५ वर्षों के कैरियर में, एम.डी.वल्साम्मा ने हवाना, टोक्यो, लंदन में, १९८२, १९८६, १९९०, १९९४ एशियाई खेलों के संस्करणों में भाग लिया,और सभी एशियन ट्रैक एंड फील्ड मीट में और एस.ए.एफ गेम्स में भाग लिया प्रत्येक प्रतियोगिता अपनी अलग छाप छोड़ी।
सन्दर्भ
जीवित लोग
1960 में जन्मे लोग
भारतीय महिला खिलाड़ी | 280 |
1465381 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%B2%20%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%80 | विकासशील इंसान पार्टी | विकासशील इंसान पार्टी एक भारतीय राजनीतिक पार्टी है, जिसे औपचारिक रूप से 4 नवंबर, 2018 को बॉलीवुड सेट डिजाइनर मुकेश साहनी द्वारा लॉन्च किया गया था, जिन्होंने 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी के लिए प्रचार किया था। उन्होंने 2019 में तीन लोकसभा क्षेत्रों मधुबनी, मुजफ्फरपुर और खगड़िया से चुनाव लड़े , लेकिन कोई भी सीट जीतने में असफल रहे। पार्टी के समर्थन आधार में मुख्य रूप से निषाद, नोनिया, बिंद, बेलदार समुदाय शामिल है, जिसमें मछुआरों और नाविकों की 20 उपजातियां शामिल हैं।
2020 बिहार विधानसभा चुनाव
वीआईपी पार्टी शुरू में महागठबंधन के साथ जुड़ी हुई थी, लेकिन राष्ट्रीय जनता दल द्वारा अपने छोटे सहयोगियों को आवश्यक महत्व नहीं देने के लिए अपनाए गए प्रतिगामी रुख के कारण सीट बंटवारे में भ्रम के बीच, मुकेश सहनी गठबंधन से बाहर हो गए। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन द्वारा उनका स्वागत किया गया और उन्हें बिहार में चुनाव लड़ने के लिए कुल 11 सीटें दी गईं।पार्टी सफल रही, और हालांकि सहनी खुद चुनाव हार गए,उनकी पार्टी ने चार सीटें जीतीं।
बाद में मुकेश सहनी बिहार विधान परिषद के लिए चुने गए, लेकिन छह साल के कार्यकाल के लिए नहीं, बल्कि डेढ़ साल के कार्यकाल के लिए, जो जुलाई 2022 में समाप्त हो गया।
2022 में दलबदल
पार्टी के अध्यक्ष मुकेश साहनी ने उत्तर प्रदेश 2022 विधान सभा चुनावों में अपनी सहयोगी पार्टी भाजपा के खिलाफ लड़ने का फैसला किया और कहा कि वह 160 उम्मीदवार मैदान में उतारेंगे, उन्होंने कहा कि उनका मुख्य लक्ष्य "(मौजूदा) भाजपा को बाहर करना है" सरकार।"उन्होंने बिहार में अपने सहयोगी के खिलाफ 55 उम्मीदवार खड़े किए, हालांकि उनमें से कोई भी जीतने में सक्षम नहीं था। उत्तर प्रदेश चुनावों में पार्टी की हार के बाद, एक भाजपा विधायक ने कहा कि बिहार की राजनीति में उनका अध्याय खत्म हो गया हैऔर उन्हें मंत्री पद से हटा दिया जाना चाहिए और साथ ही पार्टी में उनके खिलाफ तख्तापलट का संकेत भी दिया। इसके बाद सहनी ने एनडीए की सीट को नजरअंदाज कर दिया। बिहार विधान परिषद चुनाव के लिए वितरण और फिर से भाजपा के खिलाफ सात उम्मीदवार मैदान में उतारे गये थे।
23 मार्च 2022 को, पार्टी के सभी तीन विधायक भाजपा में शामिल हो गए, जिससे पार्टी में कोई विधायक नहीं रह गया।
सन्दर्भ
दलित राजनीति | 374 |
811169 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A3%E0%A4%BE%20%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A4%A8%20%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE | तरुणा मदन गुप्ता | तरुणा मदन गुप्ता वैज्ञानिक "डी" के रूप में नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन प्रॉडक्टिव हेल्थ (एनआईआरआरएच), मुंबई, भारत में काम करती है। उन्होंने बड़े पैमाने पर एस्परगिलोसिस और फेफड़ों के सर्फटेक्ट प्रोटीन पर काम किया है।
जीवनी
तरुणा का जन्म ४ मई १९६८ में नई दिल्ली में हुआ था। उन्होंने १९८९ में बैचलर ऑफ फार्मेसी (बीफैम) दिल्ली इंस्टीट्यूट फॉर फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (डीआईपीईआर), दिल्ली विश्वविद्यालय से की और फिर यही से ही मास्टर ऑफ फार्मेसी (एमफर्म) की भी डिग्री प्राप्त की १९९१ में।
ताराना एम. गुप्ता ने ४० से अधिक पत्रिका लेख प्रकाशित किए हैं।
पुरस्कार
भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन (२००४) से यंग महिला बायोसाइंटिस्ट पुरस्कार
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) युवा वैज्ञानिक पुरस्कार (२००३)
भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) युवा वैज्ञानिक पदक पुरस्कार (१९९८)
सन्दर्भ
भारतीय महिला वैज्ञानिक
विज्ञान में महिलाएं | 134 |
799665 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B2 | मैरी तिन्देल | मैरी डगलस तिन्देल (१९ सितम्बर,१९२०-३१ मार्च,२०११) पेरेरिडोलॉजी (फर्न) और पीढ़ी बबूल और ग्लाइसिन में विशेषज्ञता वाले एक ऑस्ट्रेलियाई वनस्पति वैज्ञानिक थे।
तिन्देल का जन्म रैंडविक, न्यू साउथ व्हलेस के रहने वाले जॉर्ज हेरोल्ड तिन्देल व ग्रेस मटिल्डा तिन्देल के घर में हुआ था। वह एक अकेली बच्ची थी। वह न्यू यॉर्क के प्रार्थमिक स्कूल में पढ़ी तथा उनके पिता ने यूनाइटेड स्टेट्स में ब्रिटिश राजदूत के रूप में सेवा की है। वह सिडनी, ऑस्ट्रेलिया वापस लौट आई अब्बोत्स्लेइघ में स्कूल की पढाई करने के लिए।
तिन्देल ने सिडनी विश्वविद्यालय से वनस्पति विज्ञान में बीएस की डिग्री में ओनोर्स किया और इसी जगह से मास्टर डिग्री भी पूरी की। वह १९४४ में सिडनी के रॉयल बॉटनिकल गार्डन में सहायक वनस्पतिशास्त्री बन गई और बाद में १९४९-१९५१ के रॉयल बॉटनिकल गार्डन में ऑस्ट्रेलिया के वानस्पतिक संपर्क अधिकारी के रूप में कार्य किया। डॉक्टर ऑफ साइंस पूरा करने के बाद, उन्हें एनएसडब्ल्यू पब्लिक वर्क्स के पहले प्रिंसिपल रिसर्च साइंटिस्ट भी नियुक्त किया गया। १९८३ में सिडनी के गार्डन से ३९ साल की सेवा के बाद वह सेवानिवृत्त हुए।
२०११ में तिन्देल की मृत्यु हुई।
सन्दर्भ
1920 में जन्मे लोग
२०११ में निधन
वनस्पति विज्ञान
ऑस्ट्रेलिया के लोग | 194 |
555662 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B8%20%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%9F | स्पाइस जेट | स्पाइस जेट एक कम कीमत वाली विमानन सेवा है जिसका मालिकाना हक सुन ग्रुप ऑफ़ इंडिया के पास है। इसका पंजीकृत कार्यालय चेन्नई तथा तमिलनाडु में है एवं व्यावसायिक कार्यालय गुडगाँव हरियाणा में है। इसनें अपनी सेवाएँ सन २००५, मई से शुरू की तथा २०१२ तक यह बाजार हिस्सेदारी के मामले में एयर इंडिया, किंगफ़िशर, एयरलाइन तथा गो-एयर को पछाड़ के, भारत की तीसरी सबसे बड़ी विमानन सेवा बन चुकी थी। स्पाइस जेट बस एक यात्री वर्ग के अनुसार बने विमानों का ही संचालन करती है। यात्री सेवा के साथ साथ स्पाइस जेट उसी विमान से सामान के परिवहन की सुविधा भी प्रदान करती है।
लक्ष्य स्थल
स्पाइस जेट वर्तमान समय में रोजाना ३३० उड़ानों का संचालन कर रहा है जो की ५७ लक्ष्यों के लिए होती हैं। इनमे से ४७ स्थान भारतीय हैं तथा शेष १० स्थान अंतर्राष्ट्रीय हैं। पांच साल तक अपनी सेवाएँ प्रदान करने के बाद स्पाइस जेट को भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय उड़ान भरने की अनुमति दे दी गयी थी। स्पाइस जेट नें आरंभ में दिल्ली से काठमांडू तथा चेन्नई से कोलम्बो की फ्लाइट्स शुरू की। पहली अन्तरराष्ट्री उढान ७ अक्टूबर २०१० को दिल्ली हवाई अड्डे से भरी गयी।
बेडा
स्पाइस जेट नें पहला आदेश २० अगली पीढ़ी के बोइंग ७३७ -८०० एस विमानों के लिए मार्च २००५ में दिया जिसका डेलिवरी काल २०१० तक था। नवम्बर २०१० में पुनः स्पाइस जेट नें ३० बोइंग ७३७ -८०० विमानों के लिए आदेश दिया।
फरबरी २०१४ के आंकड़ों के अनुसार इस एयरलाइन के पास निम्नवत विमान हैं-
ऐतिहासिक बेडा
इस एयरलाइन नें निम्नलिखित विमान बेड़ों का संचालन किया है-
सेवाएँ
इस विमान सेवा में यात्रियों के मनोरंजन के भरपूर इंतजाम किये गए हैं। वहीँ स्पाइस जेट मैक्स नामक एक ऑफर भी इस विमान सेवा के द्वारा चलाया जाता है जिसमें कि यह बोर्डिंग के दौरान खान पान की सुविधा, बुकिंग के समय सीट चुनने की सुविधा तथा प्रायिकता के अनुसार एयर पोर्ट पर चेक इन की सुविधा प्रदान करती है।
पुरस्कार / सम्मान
३१ दिसम्बर २०१२ के आंकड़ों के अनुसार इस विमान सेवा को निम्न लिखित पुरुष्कार एवं उपलब्धियां प्राप्त हुई हैं-
भारत की सर्व श्रेष्ठतम कम कीमत वाली विमान सेवा पुरुष्कार, आउटलुक ट्रैवलर द्वारा (२००८, २००९, २०१०, २०११ एवं २०१२ में)
भारत की सर्व श्रेष्ठतम कम कीमत वाली अंतर्राष्ट्रीय विमान सेवा पुरुष्कार, ट्रेवल एजेंट्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के द्वारा।
भारत की सबसे अच्छी प्रतिभागी विमान सेवा एल-सी-सी डोमेस्टिक अवार्ड, ट्रेवल एंड हॉस्पिटैलिटी के द्वारा (२०१२)।
हिन्दुस्तान टाइम्स के लिए मार्स द्वारा किये गए एक सर्वे में भारत के सबसे कम कीमत की सर्वश्रेष्ठ विमान सेवा।
कीमत व्यवस्था में प्रवीणता के लिए राष्ट्रीय सम्मान।
सन्दर्भ
https://web.archive.org/web/20140324024832/http://www.wtmlondon.com/page.cfm/Action=Press/PressID=890
Airliner World April 2005 issue
द हिन्दू : Business : SpiceJet to launch operations on May 23
दि इकॉनोमिक टाइम्स - SpiceJet to sell 9,999 seats for Rs 999
Boeing, SpiceJet in Agreement for Up to 20 Next-Generation 737-800s
नई दिल्ली की कंपनियां
कम-लागत वायुसेवाएँ
२००५ की स्थापनाएं
भारतीय वायुयान सेवा
भारतीय कंपनियाँ
विमान सेवा | 485 |
62722 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A5%80%20%E0%A4%AB%E0%A4%B2 | कीवी फल | कीवी (वैज्ञानिक नाम: एक्टीनीडिया डेलीसिओसा) देखने में हल्का भूरा, रोएदार व आयताकार, रूप में चीकू फल की तरह का फल होता है। इसमें विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। किवी एक विशेष प्रकार का स्वादिष्ट फल होता है। किवी अपने सुंदर रंग के लिए लोगो में अधिक पसंद किया जा रहा है। किवी में विटामिन सी, विटामिन इ, विटामिन के और प्रचुर मात्रा में पोटैशियम, फोलेट होते है। किवी फल में अधिक मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट होता है। यह एंटी ऑक्सीडेंट शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है यानि शरीर को बीमारियों से बचाने में मदद करता है।
रोग प्रतिरोधक छमता होती है जिस ब्यक्ति को डेंगू मलेरिया या फिर इंफेक्सम की बीमारी हो यह फल बहुत लाभदायक होता है।
किवी फल के पोषक तत्व
कीवी में उच्च मात्रा में विटामिन सी एव अच्छी मात्रा में फाइबर पाया जाता है। इसके अलावा विटामिन ई, पोटेशियम पॉलिटेक्निक, कॉपर, सोडियम, रोगो से बचाने वाले एंटीऑक्सीडेंट होते है। शरीर के इलेक्ट्रॉन बनाने के लिए फायदेमंद रहती है।
किवी के स्वास्थ्य लाभ-
1.आँखों की रोशनी तेज करने में मदद
कीवी में कई पोषक तत्व पाए जाते है | जो हमारी आँखों की रोशनी को बढ़ाते है | और रोजाना कीवी खाने से आँखों की कई सारी बीमारिया दूर हो जाती है |
2.डियाबीटीस को कंट्रोल करे- kiwi benefits
जिन लोगों को डियाबीटीस होती है उनके लिए भी कीवी बहुत फायदेमंद है. डायबिटीज को कंट्रोल करने के लिए कीवी एक शानदार तरीका है | ये शरीर में मौजूद ग्लूकोज को नियंत्रण करके डायबिटीज में राहत दिलाता है. इसलिए डायबिटीज के मरीज अगर कीवी का सेवन करते हैं तो इससे उनको बहुत लाभ मिलता है.
3.इम्यूनिटी बदने में मददगार -kiwi benefits
इसमे iron और vitamin c काफी मात्रा में होता है |जो की इम्यूनिटी बढ़ाने में मदद करता है | साथ ही में जिन लोगों को शरीर में कमजोरी होती है | और काम करने से जल्दी थक जाते उनके लिए कीवी बोहत लाभकारी है | ये शरीर को ताकत देता है और उसे चुस्त फुर्तीला बना देता है
4.ब्लड प्रेशर में सुधार
जिन लोगों को ब्लड प्रेशर की प्रॉब्लेम होती है उनके लिए कीवी बोहत ही उपयोगी है | ये ब्लड प्रेशर को नॉर्मल करने में मदद करता है | इसके नियमत सेवन से ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है |
5.बालों को झड़ने से रोकना
पोषक तत्व जो बालों को झड़ने से रोकता है और बड़ने में मदद करते है वो सब कीवी में भरपुर मात्रा में पाए जाते है | इसलिए जिस किसी को भी बालों की समस्या है | उसे कीवी का सेवन करने से बहुत लाभ प्राप्त होता है | और उसकी बालों से जुड़ी मुश्किलें दूर हो जाती है |
6.कब्ज को दूर करे
कीवी में बरपुर मात्रा में फाइबर पाया जाता है | जो कब्ज को दूर करने में मदद करता है | इसलिए जिन लोगों को कब्ज की शिकायत होती है | उन लोगों के लिए कीवी बोहत लाभकारी है |
7.प्रेग्नन्सी में लाभकारी
प्रेग्नन्ट औरतों के लिए कीवी एक बोहत ही फायदेमंद फल है | ये प्रेग्नन्सी में न केवल मा को बल्कि उसके पेट में पल रहे शिशु को भी कई सारे पोषक तत्व देता है | जिससे बच्चे का विकास अच्छे से होता है | और अगर गर्भवती महिला इसका सेबन करती है तो ये उसे थकान और एनीमिया से दूर रखने में मदद करता है |
8.बजन नॉर्मल करने में मदद
जिन लोगों को मोटापे के शिकायत है | और जो मोटापे का शिकार है |अगर वो रोजाना कीवी का सेवन करते हैं | तो उनका बजन काम करने में मदद मिल सकती है | और इसके इलवा जिन लोगों का बजन कम है वो भी रोजाना कीवी के सेवन से आपने बजन में सुधार कर सकते है |
9.त्वचा के लिए लाभदायक
हमारी स्किन के लिए विटामिन सी बोहत लाभदायक होता है | जो हमारी त्वचा को चमकदार और मुलायम बनाता है | कीवी में विटामिन सी की मात्रा बरपुर होती है | इसलिए रोजाना कीवी खाने से हमरीं त्वचा में ओर निखार आता है | और इसके साथ ही चेहरे के दाग धबे भी दूर करने में कीवी मदद करता हैं
एक फल का वजन ४० से ५० ग्राम तक होता है। इस फल की खेती नैनीताल जिले के रामगढ़, धारी, भीमताल, ओखलकांडा, , लमगड़ा, मुक्तेश्वर, नथुवाखान, तत्तापानी आदि क्षेत्रों के लिए लाभदायक सिद्ध हुई है। मसूड़ों के लिए भी लाभदायक है।
फल | 723 |
1472065 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A5%8B%20%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%A8%20%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B8%20%E0%A4%AB%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B8 | बोडो लिबरेशन टाइगर्स फोर्स | बोडो लिबरेशन टाइगर्स फोर्स (संक्षिप्त रूप में बीएलटीएफ), जिसे बोडो लिबरेशन टाइगर्स (बीएलटी) के नाम से भी जाना जाता है, एक सशस्त्र उग्रवादी समूह था जो भारत के असम के बोडो बहुल क्षेत्रों में सक्रिय था। बीएलटीएफ की स्थापना 18 जून 1996 को प्रेम सिंह ब्रह्मा और हाग्रामा मोहिलरी द्वारा की गई थी। हाग्रामा मोहिलारी संगठन के प्रमुख थे।
समूह शुरू में असम में बोडोलैंड की एक अलग स्वायत्तता बनाना चाहता था, लेकिन बोडो स्वायत्त परिषद के उन्नयन, बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद की स्थापना के साथ आत्मसमर्पण कर दिया।
बीएलटी के नेताओं ने ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के नेताओं के साथ मिलकर बोडो पीपुल्स प्रोग्रेसिव फ्रंट नामक एक राजनीतिक दल का गठन किया।
समझौता ज्ञापन
10 फरवरी 2003 को, बीएलटीएफ के प्रतिनिधि तथा असम और भारत की सरकारें एक समझौते पर पहुंचीं और नई दिल्ली में एक समझौता ज्ञापन (एमओएस) पर हस्ताक्षर किए। 6 दिसंबर 2003 को कोकराझार में 2,641 कैडरों ने आत्मसमर्पण कर दिया। उनमें से अधिकांश को सीआरपीएफ में शामिल कर लिया गया। अगले दिन, कोकराझार में बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) की अंतरिम 12 सदस्यीय कार्यकारी परिषद का गठन किया गया।
इन्हें भी देखें
बोडोलैंड
नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ़ बोडोलैंड
सन्दर्भ
बोड़ोलैंड | 193 |
1264580 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A4%B6%E0%A4%BE%20%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BE%20%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE | आयशा रज़ा मिश्रा | आयशा रज़ा मिश्रा हिंदी फिल्म अभिनेत्री हैं।
करियर
आयशा रज़ा मिश्रा ने अपने करियर की शुरुआत थिएटर, विज्ञापनों और टेलीविज़न शो में काम करके की। वह मदारी, बेफ़िक्रे (2016), टॉयलेट: एक प्रेम कथा (2017) और सोनू के टीटू की स्वीटी (2018) सहित कई फिल्मों में मातृ भूमिकाओं को निभाती हैं। उन्होंने वीरे दी वेडिंग में एक शोरगुल वाली, हास्य पंजाबी मां के किरदार के लिए प्रशंसा पाई। वह गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल में गुंजन सक्सेना की माँ की भूमिका में रहीं।
व्यक्तिगत जीवन
आयशा ने अभिनेता कुमुद मिश्रा से शादी की है। उनका एक बेटा कबीर है। उनकी भव्य चाचियों में ज़ोहरा सहगल और उज़्रा बट शामिल हैं।
इन्हें भी देखें
नगमा सहर
सहर ज़मान
सन्दर्भ
जीवित लोग
1977 में जन्मे लोग | 123 |
102125 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF | आलिया विश्वविद्यालय | {{Infobox university
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}}आलिया विश्वविद्यालय''' पश्चिम बंगाल का एक विश्वविद्यालय है।
रेफरेंस
पश्चिम बंगाल के विश्वविद्यालय | 282 |
554857 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%2C%20%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1 | पुरोला विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र, उत्तराखण्ड | पुरोला विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र उत्तराखण्ड के 70 निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। उत्तरकाशी जिले में स्थित यह निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है। 2012 में इस क्षेत्र में कुल 58,640 मतदाता थे।
विधायक
2012 के विधानसभा चुनाव में मालचंद इस क्षेत्र के विधायक चुने गए।
|-style="background:#E9E9E9;"
!वर्ष
!colspan="2" align="center"|पार्टी
!align="center" |विधायक
!पंजीकृत मतदाता
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!स्रोत
|-
|2002
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|align="left"|भारतीय जनता पार्टी
|align="left"|माल चन्द्र
|51,144
|63.30%
|2971
|
|-
|2007
|bgcolor="#00FFFF"|
|align="left"|भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
|align="left"|राजेश जुवांठा
|56,403
|73.80%
|525
|
|-
|2012
|bgcolor="#FF9933"|
|align="left"|भारतीय जनता पार्टी
|align="left"|मालचंद
|58,640
|77.60%
|3832
|
|}
कालक्रम
इन्हें भी देखें
टिहरी गढ़वाल लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र
बाहरी कड़ियाँ
उत्तराखण्ड मुख्य निर्वाचन अधिकारी की आधिकारिक वेबसाइट (हिन्दी में)
सन्दर्भ
टिपण्णी
तब राज्य का नाम उत्तरांचल था।
उत्तराखण्ड के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र | 134 |
41442 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B6%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%20%E0%A4%B6%E0%A4%B9%E0%A4%B0 | अक्षांश पर शहर |
70° E
71° 26' E अस्ताना,
72° 35' E अहमदाबाद,
72° 49' E मुंबई,
72° 50' E सूरत,
73° 00' E फैसलाबाद,
73° 02' E रावलपिंडी,
73° 04' E इस्लामाबाद,
73° 22' E ओम्स्क,
73° 51' E पुणे,
74° 20' E लाहौर,
74° 37' E बिश्केक,
75° 49' E जयपुर,
76° 54' E अल्माटी,
77° 34' E बंगलौर,
77° 14' E दिल्ली,
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79° 02' E नागपुर,
80° E
80° 15' E चेन्नई,
80° 20' E कानपुर,
80° 55' E लखनऊ,
82° 56' E नोवोसिबिर्स्क,
85° 09' E पटना,
85° 22' E काठमांडू,
87° 35' E उरुम्की,
88° 22' E कोलकाता,
89° 38' E थिम्पू,
स्थान
स्थान के अनुसार भूगोल | 113 |
67710 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3%20%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE | राम नारायण मल्होत्रा | राम नारायण मल्होत्रा (1926 – 29 अप्रैल, 1997), भारतीय रिज़र्व बैंक के १७वें गवर्नर थे। सन १९९० में भारत सरकार द्वारा प्रशासकीय सेवा के क्षेत्र में इन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। वे आर. एन. मल्होत्रा (1926 - 29 अप्रैल 1997) के नाम से अधिक प्रसिद्ध थे। वे 4 फरवरी 1985 से 22 दिसंबर 1990 तक कार्यरत थे।
मल्होत्रा भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य थे। उन्होंने आरबीआई के गवर्नर के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले सचिव, वित्त और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के भारत के कार्यकारी निदेशक के रूप में कार्य किया था। उनके कार्यकाल के दौरान 500 रुपये का नोट पेश किया गया था। उन्होंने 1986 में 50 रुपये के नोट पर हस्ताक्षर किए। 1990 में उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
उनकी पत्नी अन्ना राजम मल्होत्रा भारतीय प्रशासनिक सेवा की पहली महिला सदस्य थीं।
रामनारायण मल्होत्रा समिति
सन १९९३ में बीमा क्षेत्र में सुधारों की सिफारिश करने के लिए सेवानिवृत्त श्री आर. एन. मल्होत्रा की अध्यक्षता में समिति गठित की गई। इस समिति ने बीमा क्षेत्र का अध्ययन करने तथा पक्षकारों की सुनवाई करने के बाद १९९४ में कुछ सुधारों की सिफारिश की जिसमें बीमा उद्योग के ढांचे, नियामकीय इकाई, प्रतिस्पर्धा सहित विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय दी गयी थी। इस समिति की सिफारिश पर ही बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण यानी इरडा का गठन 19 अप्रैल, 2000 को किया गया।
समिति के सुझाव
(१) निजी क्षेत्र की कंपनियों को कम से कम 100 करोड़ रुपये के अग्रिम पूंजी निवेश के साथ बीमा उद्योग में निवेश करने की अनुमति देना।
(२) विदेशी बीमा कंपनियों को, भारतीय साझेदारों के साथ संयुक्त वेंचर निवेश के माध्यम से भारतीय कंपनियों के साथ काम शुरू करने की अनुमति देना।
(३) भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) का 50% स्वामित्व सरकार को और 50% बड़े पैमाने पर जनता को प्रदान करना, और अपने कर्मचारियों के लिए आरक्षण रखना और समान डिविजनों के साथ एलआईसी और जीआईसी दोनों के लिए 200 करोड़ रुपए तक की पूँजी जुटाना।
(४) बीमा नियंत्रक कार्यालय को पूरी कार्यप्रणाली के साथ फिर से बहाल करना। बीमा अधिनियम के अनुसार, सभी बीमा प्रदाताओं के साथ समान व्यवहार होना चाहिए व सभी पर समान कानून व नियम लागू होने चाहिए।
(५) बीमा उद्योग पर सीधे और व्यक्तिगत रूप से नियंत्रण करने के लिए एक स्वायत्त निकाय के रूप में बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण की स्थापना करना। इसके साथ ही यह सुझाव भी दिया गया कि सरकार को इस निकाय को सभी शक्तियां देनी होगी क्योंकि बीमा क्षेत्र में होने वाला निजीकरण प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देगा, और इस प्रतिस्पर्धा को छूट भी देनी होगी और इस पर लगाम भी लगानी होगी।
इन सुझावों को कई दूसरे सुझावों के साथ लागू किया गया, जिससे भारतीय बीमा के औद्योगिक मानकों में सुधार लाया जा सके। 1999 में आईआरडीए की स्थापना की गई। इन सुधारों को लागू करने में काफी समय लग गया, क्योंकि बीमा कर्मचारियों की राष्ट्रीय संस्था ने इसका कड़ा विरोध किया था।
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
भारतीय रिजर्व बैंक
बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण
१९९० पद्म भूषण
महाराष्ट्र के लोग | 502 |
52842 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%87%20%E0%A4%94%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80 | कव्वे और काला पानी | कव्वे और काला पानी साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कहानी-संग्रह है जिसमें निर्मल वर्मा की सात कहानियाँ- धूप का एक टुकड़ा, दूसरी दुनिया, ज़िंदगी यहाँ और वहाँ, सुबह की सैर, आदमी और लड़की, कव्वे और काला पानी, एक दिन का मेहमा और सुबह की सैर शामिल हैं। इनमें से कुछ कहानियाँ यदि भारतीय परिवेश को उजागर करती हैं तो कुछ हमें यूरोपीय जमीन से परिचित कराती हैं, लेकिन मानवीय संवेदना का स्तर इससे कहीं विभाजित नहीं होता। मानव-संबंधों में आज जो ठहराव और ठंडापन है, जो उदासी और बेचारगी है, वह इन कहानियों के माध्यम से हमें गहरे तक झकझोरती हैं और उन लेखकीय अनुभवों तक ले जाती है, जो किसी इकाई तक सीमित नहीं हैं। घटनाएँ उनके लिए उतनी महत्त्वपूर्ण नहीं, जितना कि परिवेश, जिसकी वे उपज हैं। मात्र व्यक्ति ही नहीं, चरित्र के रूप में एक वातावरण हमारे सामने होता है, जिसे हम अपने बाहर और भीतर महसूस करते हैं। हर कहानी एक गूँज की तरह कहीं भीतर ठहर जाती है और धीरे-धीरे पाठकीय संवेदना में ज़ज्ब होती रहती है। दूसरे शब्दों में, अपने दौर की ये महत्त्वपूर्ण कहानियाँ देर तक और दूर तक हमारा साथ देती हैं। निर्मल वर्मा के भाव-बोध में एक खुलापन निश्चय ही है। न केवल रिश्तों की लहूलुहान पीड़ा के प्रति बल्कि मनुष्य के उस अनुभव और उस वृत्ति के प्रति भी, जो उसे जिन्दगी के मतलब की खोज में प्रवृत्त करती है। यह अकारण नहीं है कि 'कव्वे और काला पानी' के त्रास अंधेरे के बीचोंबीच वे बड़े भाई की दृष्टि से छोटे भाई को देखना और छोटे भाई की दृष्टि से बड़े भाई को देखना और एक निरपेक्ष पीठिका परिवेश में दोनों के प्रति न्याय करना भी आवश्यक पाते हैं।
सन्दर्भ
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी भाषा की पुस्तकें
२०वीं सदी का साहित्य
पुस्तकें
हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना | 297 |
750048 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%20%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%88%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B2 | हेस्नाम कन्हाईलाल | हेस्नाम कन्हाईलाल (17 जनवरी 1941 – 6 अक्तूबर 2016)मणिपुर से एक प्रसिद्ध भारतीय रंगमंच निर्देशक थे। वे ‘कलाक्षेत्र मणिपुर’ के संस्थापक-निदेशक थे। ‘मेमायर्स ऑफ अफ्रीका’, ‘कर्ण’, ‘पेबेट’ ‘डाकघर’, ‘अचिन गायनेर गाथा’ तथा ‘द्रोपदी’ आदि उनकी चर्चित नाट्य प्रस्तुतियां हैं। महाश्वेता देवी की कहानी पर आधारित उनकी प्रस्तुति द्रोपदी अत्यंत प्रशंसित और विवादित रही है।
उन्हें वर्ष 1985 में संगीत नाटक अकादमी, वर्ष 2004 में पद्मश्री तथा वर्ष 2016 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। वे संगीत नाटक अकादमी के फेलो भी थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में भारतीय रंगमंच की विविधिता को समृद्ध किया है। उनकी मृत्यु 6 अक्टूबर, 2016 को मणिपुर की राजधानी इम्फालमें हो गयी।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
हेस्नाम कन्हाईलाल, प्रोफाइल
1941 में जन्मे लोग
२०१६ में निधन
लेखक
नाटककार | 122 |
752475 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A4%97%E0%A4%B0%20%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE | मुरादनगर उपज़िला | मुरादनगर उपजिला, बांग्लादेश का एक उपज़िला है, जोकी बांग्लादेश में तृतीय स्तर का प्रशासनिक अंचल होता है (ज़िले की अधीन)। यह चट्टग्राम विभाग के कुमिल्ला ज़िले का एक उपजिला है, जिसमें, ज़िला सदर समेत, कुल 16 उपज़िले हैं। यह बांग्लादेश की राजधानी ढाका से दक्षिण-पूर्व की दिशा में चट्टग्राम नगर के निकट अवस्थित है। यह मुख्यतः एक ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है।
जनसांख्यिकी
यहाँ की आधिकारिक स्तर की भाषाएँ बांग्ला और अंग्रेज़ी है। तथा बांग्लादेश के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह ही, यहाँ की भी प्रमुख मौखिक भाषा और मातृभाषा बांग्ला है। बंगाली के अलावा अंग्रेज़ी भाषा भी कई लोगों द्वारा जानी और समझी जाती है, जबकि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक निकटता तथा भाषाई समानता के कारण, कई लोग सीमित मात्रा में हिंदुस्तानी(हिंदी/उर्दू) भी समझने में सक्षम हैं। यहाँ का बहुसंख्यक धर्म, इस्लाम है, जबकि प्रमुख अल्पसंख्यक धर्म, हिन्दू धर्म है। चट्टग्राम विभाग में, जनसांख्यिकीक रूप से, इस्लाम के अनुयाई, आबादी के औसतन ८६.९८% है, जबकि शेष जनसंख्या प्रमुखतः हिन्दू धर्म की अनुयाई है, तथा, चट्टग्राम विभाग के पार्वत्य इलाकों में कई बौद्ध जनजाति के लोग निवास करते हैं। यह मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है।
अवस्थिति
मुरादनगर उपजिला बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्वी भाग में, चट्टग्राम विभाग के कुमिल्ला जिले में स्थित है। यहाँ से स्थित निकटतम् बड़ा नगर कुमिल्ला यानी कोमिला है।
इन्हें भी देखें
बांग्लादेश के उपजिले
बांग्लादेश का प्रशासनिक भूगोल
बरिशाल विभाग
उपज़िला निर्वाहि अधिकारी
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
उपज़िलों की सूची (पीडीएफ) (अंग्रेज़ी)
जिलानुसार उपज़िलों की सूचि-लोकल गवर्नमेंट इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट, बांग्लादेश
http://hrcbmdfw.org/CS20/Web/files/489/download.aspx (पीडीएफ)
श्रेणी:चट्टग्राम विभाग के उपजिले
बांग्लादेश के उपजिले | 264 |
888913 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%9F | गलियाकोट | गलियाकोट राजस्थान के डूंगरपुर ज़िले में भारत का एक जनगणना शहर है । यह राजस्थान शहर उदयपुर से लगभग 168 कि॰मी॰ दक्षिण-पूर्व स्थित है । इस शहर का नामकरण स्थानीय भील राजा गलियाकोट के नाम के आधार पर हुआ है । यहाँ दाऊदी बोहरा तीर्थ स्थल है। यह शहर बाबाजी मुल्ला सय्यदी फखरुद्दीन की कब्र के लिए प्रसिद्ध है जो 10 वीं शताब्दी में वहाँ रहता था। कई दाऊदी बोहरा मुस्लिम श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल कब्र पर जाते हैं। गलियाकोट का नामकरण यहाँ के स्थानीय भील राजा के नाम पर किया गया है।
भूगोल
गलियाकोट 23.536 डिग्री उत्तर 74.009 डिग्री ईस्ट में स्थित है। इसकी औसत ऊँचाई 145 मीटर (475 फीट) है ।
जनसांख्यिकी
2001 की जनगणना के अनुसार, गलियाकोट की आबादी 6,636 थी। पुरुषों की आबादी 51% और महिलाओं की आबादी 49% है। गालीकोट में औसत साक्षरता दर 56% है, जो राष्ट्रीय औसत 59.5% से कम है। पुरुष साक्षरता 67% है और महिला साक्षरता 44% है। गलियाकोट में, आबादी का 17% आबादी 6 वर्ष से कम है। यह स्थान रामकादा उद्योग के लिए भी जाना जाता था या प्रसिद्ध था।
फोटो गैलरी
नोट्स और संदर्भ
राजस्थान के शहर
डूंगरपुर ज़िला
डूंगरपुर ज़िले के नगर | 197 |
217111 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%20%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%80%20%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A4%B0 | इंदिरा गांधी नहर | इन्दिरा गाँधी नहर राजस्थान की प्रमुख नहर हैं। इसका पुराना नाम "राजस्थान नहर" था। यह राजस्थान प्रदेश के उत्तर-पश्चिम भाग में बहती है। इसे राजस्थान की मरूगंगा भी कहा जाता है जय राजस्थान यह विश्व की सबसे बङी सिंचाई परियोजना है ।
बीकानेर व गंगानगर में पानी की किल्लत को दूर करने के लिए बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने 1927 में एक नहर निर्माण का कार्य शुरू करवाया था जो बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने करवाया जिसे गंग-नहर नाम दिया गया जो कि आज भी गंगानगर में मौजूद है ।।
राजस्थान की महत्वाकांक्षी इंदिरा गांधी नहर परियोजना से मरूस्थलीय क्षेत्र में चमत्कारिक बदलाव आ रहा है और इससे मरूभूमि में सिंचाई के साथ ही पेयजल और औद्योगिक कार्यो के लिए॰भी पानी मिलने लगा है।
नहर निर्माण से पूर्व लोगों को कई मील दूर से पीने का पानी लाना पड़ता था। लेकिन अब परियोजना के अन्तर्गत बारह सौ क्यूसेक पानी केवल पेयजल उद्योग, सेना एवं ऊर्जा परियोजनाओं के लिए आरक्षित किया गया है। विशेषतौर से चुरू, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, जैसलमेर, बाडमेर और नागौर जैसे रेगिस्तानी जिलों के निवासियों को इस परियोजना से पेयजल सुविधा उपलब्ध कराने के प्रयास जारी हैं। इस योजना से अब जोधपुर, बाड़मेर और पाली जिलों को पेयजल भी मिलेगा।
राजस्थान नहर सतलज और व्यास नदियों के संगम पर निर्मित "हरिके बांध" से निकाली गई है। यह नहर पंजाब व राजस्थान को पानी की आपूर्ति करती है।
पंजाब में इस नहर की लम्बाई 169 किलोमीटर है और वहां इसे राजस्थान फीडर के नाम से जाना जाता है। इससे इस क्षेत्र में सिंचाई नहीं होती है बल्कि पेयजल की उपलब्धि होती है। राजस्थान में इस नहर की लम्बाई 470 किलोमीटर है। राजस्थान में इस नहर को राज कैनाल भी कहते हैं।
राजस्थान नहर इसकी मुख्य शाखा या मेन कैनाल 256 किलोमीटर लंबी हे जबकि वितरिकाएं 5606 किलोमीटर और इसका सिंचित क्षेत्र 19.63 लाख हेक्टेयर आंका गया है। इसकी मेनफीडर 204 किलोमीटर लंबी है जिसका 35 किलोमीटर हिस्सा राजस्थान व 170 किलोमीटर हिस्सा पंजाब व हरियाणा में है।यह नहर राजस्थान की एक प्रमुख नहर है।
इस नहर का पुन: उद्घाटन 31 मार्च 1958 को तत्कालिक गृह मंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने किया हुआ जबकि दो नवंबर 1984 को इसका नाम इंदिरा गांधी नहर परियोजना कर दिया गया।
यह नहर राजस्थान में हनुमानगढ़ जिले के मासितावाली हैड में प्रवेश करती है
2017 में पानी की कमी को देखते हुए इसका सिंचाई क्षेत्र घटाकर 16.17 लाख हेक्टेयर कर दिया गया है
इस नहर से राजस्थान के 10 जिले लाभान्वित हो रहे हैं गंगानगर हनुमानगढ़ बीकानेर जैसलमेर बाड़मेर जोधपुर नागौर चूरू झुंझुनू सीकर
इस नहर का जीरो प्वाइंट मोहनगढ़ जैसलमेर से बढ़ाकर गडरा रोड बाड़मेर कर दिया गया है
इंदिरा गांधी नहर को राजस्थान की जीवन रेखा या मरू गंगा कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी
इंदिरा गांधी नहर से 7 लिफ्ट नहर 9 शाखाएं
निकाली गई है
नवनिर्मित निर्माणाधीन लिफ्ट नहर का नाम बाबा रामदेव लिफ्ट नहर रखा गया है
भैरवदान चालानी प्रस्तावित लिफ्ट नहर है
इस नहर के कारण सेम की समस्या लवणीय समस्या व बीमारियों में वृद्धि हुई है।
इंदिरा गांधी नहर परियोजना वाणी की प्रोजेक्ट भारत और जापान के बीच में संबंधित समझौता है।
[[श्रेणी:राजस्थान में नहरें]
कुल जिले लाभांवित = 10 | 525 |
247091 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%AD%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%88%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8C%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%2C%20%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%A4 | सरदार वल्लभभाई राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, सूरत | सरदार वल्लभभाई राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, सूरत जिसे 'एन आई टी सूरत' के नाम से भी जाना जाता है, प्रौद्योगिकी एवम अभियांत्रिकी का राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान है। यह भारत के लगभग तीस राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (एन आई टी) में से एक है। इसे भारत सरकार ने १९६१ में स्थापित किया था। इसकी संगठनात्मक संरचना एवम स्नातक प्रवेश प्रक्रिया शेष सभी एन आई टी की तरह ही है। संस्थान में इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी, विज्ञान मानविकी और प्रबंधन में स्नातक, पूर्व स्नातक एवम डॉक्टरेट के पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं।
इतिहास
यह पंडित जवाहर लाल नेहरू का सपना था कि भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी में एक नेता के रूप में उभरे। प्रशिक्षित गुणवत्ता एवम तकनीकी जनशक्ति की बढ़ती मांग को पुरा करने के लिये भारत सरकार ने १९५९ और १९६५ के बीच चौदह आरईसी शुरू की (भोपाल, इलाहाबाद, कालीकट, दुर्गापुर, कुरुक्षेत्र, जमशेदपुर, जयपुर, नागपुर, राउरकेला, श्रीनगर, सूरतकल, सूरत, त्रिची और वारंगल में स्थित एनआईटी)।
सरदार वल्लभभाई रीजनल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एण्ड टैक्नोलॉजी जून १९६१ में भारत सरकार और गुजरात की सरकार के बीच एक सहकारी उद्यम के रूप में स्थापित किया गया था। यह भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम पर है।
केंद्र सरकार ने १९९८ में आरईसी की समीक्षा के लिए एक समिति का गठन किया। डॉ॰ आर.ए माशेलकर की अध्यक्षता में समिति ने १९९८ में रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसका शीर्षक था ' भविष्य में आरईसी का शैक्षिक उत्कृष्टता के लिए सामरिक रोड मैप'।
समीक्षा समिति की सिफारिशों को मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने मानकर सत्रह क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कॉलेज (आरईसी) कालेजों को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (एनआईटी) में प्रोन्नत कर दिया।
२००३ में यूजीसी / एआईसीटीई के अनुमोदन से संस्थान को मानद विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया एवम नाम बदलकर सरदार वल्लभभाई राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान कर दिया गया।
भारत की संसद ने ५ जून २००७ को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान अधिनियम पारित कर इन्हे राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान घोषित किया।
प्रशासन
परिसर
परिसर मुम्बई के उत्तर में २६५ किलोमीटर की दूरी पर सूरत में स्थित है। परिसर 265 एकड़ में हरे भरे जंगल में फैला हुआ है। मुख्य प्रवेश द्वार परिसर के दक्षिणी छोर पर स्थित है और सूरत रेलवे स्टेशन से सूरत-ड्युमस राजमार्ग पर 13 किमी दूर स्थित है।
१.१ वर्ग किलोमीटर (२६५ एकड़) परिसर में ५००० निवासियों जिसमे 210 संकाय सदस्यों और लगभग ४,००० परिसर हॉस्टल पर रहने वाले छात्र शामिल है।
प्रवेश और शिक्षा
छात्र जीवन
बाहरी कड़ियाँ
सरदार वल्लभभाई राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान का जालस्थल
सरदार वल्लभभाई राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान का मानचित्र
गूगल मानचित्र पर सरदार वल्लभभाई राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान का मानचित्र
सरदार वल्लभभाई राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान पूर्व छात्र संघ
माइंडबेंड संस्थान का आधिकारिक तकनीकी उत्सव
सन्दर्भ
गुजरात
शिक्षण संस्थान
अभियांत्रिकी संस्थान
भारत के शिक्षण संस्थान
राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान
गुजरात के विश्वविद्यालय | 447 |
8572 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%B9%20%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80 | मजरुह सुल्तानपुरी | मजरुह सुल्तानपुरी () (1 अक्टूबर 1919 − 24 मई 2000) एक भारती उर्दू शायर थे। हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार और प्रगतिशील आंदोलन के उर्दू के सबसे बड़े शायरों में से एक थे। वह 20वीं सदी के उर्दु साहिती जगत के बेहतरीन शायरों में गिना जाता है।
बॉलीवुड में गीतकार के रूप में प्रसिद्ध हुवे। उन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए देश, समाज और साहित्य को नयी दिशा देने का काम किया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा सुल्तानपुर जिले के गनपत सहाय कालेज में मजरुह सुल्तानपुरी ग़ज़ल के आइने में शीर्षक से मजरूह सुल्तानपुरी पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों के शिक्षाविदों ने इस सेमिनार में हिस्सा लिया और कहा कि वे ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने उर्दू को एक नयी ऊंचाई दी है। लखनऊ विश्वविद्यालय की उर्दू विभागाध्यक्ष डॉ॰सीमा रिज़वी की अध्यक्षता व गनपत सहाय कालेज की उर्दू विभागाध्यक्ष डॉ॰जेबा महमूद के संयोजन में राष्ट्रीय सेमिनार को सम्बोधित करते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो॰अली अहमद फातिमी ने कहा मजरूह, सुल्तानपुर में पैदा हुए और उनके शायरी में यहां की झलक साफ मिलती है। वे इस देश के ऐसे तरक्की पसंद शायर थे जिनकी वजह से उर्दू को नया मुकाम हासिल हुआ। उनकी मशहूर पंक्तियों में 'मै अकेला ही चला था, जानिबे मंजिल मगर लोग पास आते गये और कारवां बनता गया' का जिक्र भी वक्ताओं ने किया। लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो॰मलिक जादा मंजूर अहमद ने कहा कि यूजीसी ने मजरूह पर राष्ट्रीय सेमिनार उनकी जन्मस्थली सुल्तानपुर में आयोजित करके एक नयी दिशा दी है।
हिंदी फिल्मों को योगदान
मजरूह सुल्तानपुरी ने पचास से ज्यादा सालों तक हिंदी फिल्मों के लिए गीत लिखे। आजादी मिलने से दो साल पहले वे एक मुशायरे में हिस्सा लेने बम्बई गए थे और तब उस समय के मशहूर फिल्म-निर्माता कारदार ने उन्हें अपनी नई फिल्म शाहजहां के लिए गीत लिखने का अवसर दिया था। उनका चुनाव एक प्रतियोगिता के द्वारा किया गया था। इस फिल्म के गीत प्रसिद्ध गायक कुंदन लाल सहगल ने गाए थे। ये गीत थे-ग़म दिए मुस्तकिल और जब दिल ही टूट गया जो आज भी बहुत लोकप्रिय हैं। इनके संगीतकार नौशाद थे।
जिन फिल्मों के लिए आपने गीत लिखे उनमें से कुछ के नाम हैं-सी.आई.डी., चलती का नाम गाड़ी, नौ-दो ग्यारह, तीसरी मंज़िल, पेइंग गेस्ट, काला पानी, तुम सा नहीं देखा, दिल देके देखो, दिल्ली का ठग, इत्यादि।
पंडित नेहरू की नीतियों के खिलाफ एक जोशीली कविता लिखने के कारण मजरूह सुल्तानपुरी को सवा साल जेल में रहना पड़ा। 1994 में उन्हें फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इससे पूर्व 1980 में उन्हें ग़ालिब एवार्ड और 1992 में इकबाल एवार्ड प्राप्त हुए थे।
नासिर हुसैन के साथ साझेदारी
मजरुह और नासीर हुसैन ने पहली बार फिल्म पेइंग गेस्ट पर सहयोग किया, जिसे नासीर ने लिखा था। नासीर के निदेशक और बाद में निर्माता बनने के बाद वे कई फिल्मों में सहयोग करने गए, जिनमें से सभी के पास बड़ी हिट थीं और कुछ महारूह के सबसे यादगार काम हैं:
तुमसा नहीं देखा (1957)
दिल देके देखो
फिर वोही दिल लया हुन
तेसरी मंजिल (1966)
बहार के सपने
प्यार का मौसम
कारवां (गीत पिया तू अब टू अजा)
याददान की बारात (1973)
हम किसिस कुम नाहेन (1977)
ज़मान को दीखाना है
कयामत से कयामत तक (1988)
जो जीता वोही सिकंदर (1992)
अकेले हम अकेले तुम
कही हन कही ना
मजरूह भी टीएसरी मंजिल के लिए नासीर को आरडी बर्मन पेश करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। तीनों ने उपर्युक्त फिल्मों में से 7 में काम किया। बर्मन ज़मीन को दीखाना है के बाद 2 और फिल्मों में काम करने के लिए चला गया।
मौत
वे जीवन के अंत तक फिल्मों से जुड़े रहे। 24 मई 2000 को मुंबई में उनका देहांत हो गया।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
मजरूह सुल्तान पुरी से जुडी कुछ खास बाते
सीधे-सरल और स्पष्ट इंसान थे गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी
title=%E0%A4%AE%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%B9_%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80 मजरुह सुल्तानपुरी (कविता कोश)
फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता
फ़िल्मी गीतकार
उर्दू शायर
दादासाहेब फाल्के पुरस्कार विजेता | 651 |
570935 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%B8%E0%A4%BE%20%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%A8 | योसा बुसोन | योसा बुसोन या तानिगुचि बुसोन (१७१६–१७ जनवरी १७८४) एक जापानी हाइकु कवि एवं चित्रकार थे, जिन्हें सामान्यत: बुसोन के नाम से जाना गया। इनकी तुलना महान जापानी कवि मात्सुओ बाशो और इस्सा से की जाती है। योसा का मूल नाम तानिगुचि बुसोन था।
डॉ॰ अंजली देवधर द्वारा हिन्दी में अनुवादित योसा बुसोन का एक हाइकु-
एक पतझड़ की सांझ
एक घंटा विश्राम का
एक क्षणिक जीवन में
बुसोन शब्द-शिल्पी हैं, उनका एक हाइकु है-
हारु सामे या
मोनोगातारि युकु
मिने तो कासा।
(मूल हाइकु)
अज्ञेय ने इसका अनुवाद किया है-
वर्षा में वसन्त को मैंने देखा
छाता एक, एक बरसाती
साथ-साथ जाते बतियाते।
(अज्ञेय द्वारा किया गया अनुवाद)
सन्दर्भ
जापानी कवि
साहित्य। हाइकु | 113 |
1323163 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%81%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8%20%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%A8 | संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन | संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा सम्मेलन (United Nations Framework Convention on Climate Chnage (UNFCCC) ; युनाइटेड नेशंस फ़्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लायमेट चेञ्ज ) के ढाँचे में आयोजित वार्षिक सम्मेलन हैं। वे जलवायु परिवर्तन से निपटने में प्रगति का आकलन करने के लिये UNFCCC पार्टियों (पक्षों का सम्मेलन, COP) की औपचारिक बैठक के रूप में कार्य करते हैं, और 1990 के दशक के मध्य में, क्योटो प्रोटोकॉल पर बातचीत करने के लिये विकसित देशों के लिये विधिक रूप से बाध्यकारी दायित्वों को उनके ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करने के लिए बातचीत करते हैं।
2005 में प्रारम्भ हुए सम्मेलनों ने "क्योटो प्रोटोकॉल के लिए पक्षों की बैठक के रूप में सेवा करने वाले दलों के सम्मेलन" (सीएमपी) के रूप में भी काम किया है; सम्मेलन के पक्ष भी जो प्रोटोकॉल के पक्षकार नहीं हैं, वे पर्यवेक्षक के रूप में प्रोटोकॉल से सम्बन्धित बैठकों में भाग ले सकते हैं। 2011 से बैठकों का उपयोग पेरिस समझौते पर बातचीत के लिए डरबन मञ्च गतिविधियों के हिस्से के रूप में 2015 में इसके निष्कर्ष तक किया गया है, जिसने जलवायु कार्रवाई की दिशा में एक सामान्य मार्ग बनाया है।
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन
संयुक्त राष्ट्र
जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन पर संधियों | 202 |
72437 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%89%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%9F | रॉलेट एक्ट | रॉलेट एक्ट को काला कानून भी कहा जाता है। यह 19 मार्च 1919 को भारत की ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से निर्मित कानून था। यह कानून सिडनी रौलेट की अध्यक्षता वाली सेडिशन समिति की सिफारिशों के आधार पर बनाया गया था।
रॉलेट एक्ट का सरकारी नाम अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919 (The Anarchical and Revolutionary Crime Act of 1919) था। इस कानून की मुख्य बातें निम्नलिखित थीं -
प्रथम विश्वयुद्ध में इंग्लैंड की विजय हुई थी | इस समय ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट की घोषणा किया|
१) ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो गया था कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकद्दमा चलाए उसे जेल में बंद कर सके। इस क़ानून के तहत अपराधी को उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने वाले का नाम जानने का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया ।
२) राजद्रोह के मुकद्दमे की सुनवाई के लिए एक अलग न्यायालय स्थापित किया गया ।
३) मुकद्दमे के फैसले के बाद किसी उच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार नहीं था ।
४) राजद्रोह के मुकद्दमे में जजों को बिना जूरी की सहायता से सुनवाई करने का अधिकार प्राप्त हो गया ।
५) सरकार को यह अधिकार मिल गया कि वह बलपूर्वक प्रेस की स्वतंत्रता का अधिकार छीन ले और अपनी इच्छा अनुसार किसी व्यक्ति को कारावास दे दे या देश से निष्कासित कर दे।
वास्तव में क्रांतिकारी गतिविधियों को कुचलने के नाम पर ब्रिटिश सरकार भारतीयों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को समाप्त कर देना चाहती थी। इस कानून द्वारा वह चाहती थी कि भारतीय किसी भी राजनीतिक आंदोलन में भाग न ले।
परिणाम
रौलट एक्ट के विरोध में पूरे देश में विरोध प्रारंभ हो गया। मदन मोहन मालवीय और मोहम्मद अली जिन्ना ने इसके प्रतिवाद में केंद्रीय व्यवस्थापिका के सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। इस कानून को भारतीयों ने काला कानून कहा। इस कानून के विरोध में देशव्यापी हड़तालें, जूलूस और प्रदर्शन होने लगे।
महात्मा गांधी जो अब भारतीय राजनीति के एक प्रमुख व्यक्तित्व बन गए थे वह इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिये। चंपारण, खेड़ा और अहमदाबाद में अपनाए गए सत्याग्रह रूपी हथियार का प्रयोग एक बार फिर उन्होंने रौलट एक्ट के विरोध में करने का निश्चय किया।
महात्मा गाँधीजी ने व्यापक हड़ताल का आह्वान किया। रॉलेट एक्ट गांधीजी के द्वारा किया गया राष्ट्रीय स्तर का प्रथम आंदोलन था। 24 फरवरी 1919 के दिन गांधीजीने मुंबई में एक "सत्याग्रह सभा"का आयोजन किया था और इसी सभा में तय किया गया और कसम ली गई थी की रोलेट एक्ट का विरोध 'सत्य' और 'अहिंसा' के मार्ग पर चलकर किया जाएंँगा। गांधीजी के इस सत्य और अहिंसा के मार्ग का विरोध भी कुछ सुधारवादी नेताओं की ओर से किया गया था, जिसमें सर डि.इ.वादी, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, तेज बहादुर सप्रु, श्री निवास शास्त्री जैसे नेता शामिल थे। किन्तु गांधीजी को बड़े पैमाने पर होमरूल लीग के सदस्यों का समर्थन मिला था।
हड़ताल के दौरान दिल्ली आदि कुछ स्थानों पर भारी हिंसा हुई। इस पर गांधी जी ने सत्याग्रह को वापस ले लिया और कहा कि भारत के लोग अभी भी अहिंसा के विषय में दृढ रहने के लिए तैयार नहीं हैं।
13 अप्रैल को सैफुद्दीन किचलू और सत्यपाल की गिरफ्तारी के विरोध में जलियाँवाला बाग में लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई। अमृतसर में तैनात फौजी कमांडर जनरल डायर ने उस भीड़ पर अंधाधुंध गोलियाँ चलवाईं। हजारों लोग मारे गए। भीड़ में महिलाएँ और बच्चे भी थे। यह घटना ब्रिटिश हुकूमत के काले अध्यायों में से एक है जिसे जालियाँवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है jenral dayar ke dawara chalaya gaya yah aandolan tha
इतिहास रालेट एक्ट
26 जनवरी, 1919 को रॉलेट एक्ट की स्थापना हुई थी। इस समिति के द्वारा लगभग 4 महीनों तक “खोज” की गई और रॉलेट समिति की एक रिपोर्ट में भारत के जाबाज देशभक्तों द्वारा स्वतंत्रता के लिए किये गए बड़े-बड़े और छोटे आतंकपूर्ण कार्यों को बढ़ा-चढ़ाकर, बड़े उग्र रूप में प्रस्तुत किया गया था।
नौकरशाही के दमन चक्र, मध्यादेशराज,युद्धकाल में धन एकत्र करने और सिपाहियों की भर्ती में सरकार द्वारा कठोरता बरते जाने के कारण अंग्रेजी शासन के खिलाफ भारतीय जनता में तीव्र असंतोष पनप रहा था। देश भर में उग्रवादी घटनाएं घट रही थीं। इस असंतोष को कुचलने के लिए अंग्रेजी सरकार रौलट एक्ट लेकर आई।
सरकार ने 1916 में न्यायाधीश सिडनी रौलट की अध्यक्षता में एक समिति गठित की, जिसे आतंकवाद को कुचलने के लिए एक प्रभावी योजना का निर्माण करना था।
रौलट कमेटी के सुझावों के आधार पर फरवरी 1918 में केंद्रीय विधान परिषद में दो विधेयक पेश किए गए। इनमें से एक विधेयक परिषद के भारतीय सदस्यों के विरोध के बाद भी पास कर दिया गया। इसके आधार पर 1919 ई. में रोलेट एक्ट पारित किया गया गया।
इन्हें भी देखें
चम्पारण सत्याग्रह और खेड़ा सत्याग्रह
जलियाँवाला बाग हत्याकांड
रॉलेट समिति
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम | 797 |
616073 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A4%B2%E0%A4%9F%E0%A4%A3 | फलटण | फलटण (Phaltan) भारत के महाराष्ट्र राज्य के सतारा ज़िले में स्थित एक नगर है।
प्रशासनिक
फलटण प्रशासनिक रूप से एक तालुका है। यह सतारा से ५९ किमी उत्तर-पूर्व में तथा पुणे से ११० किमी दूरी पर स्थित है।
इतिहास
फलटण गांव में सेे बाणगंगा यह नदी बहती है। नदी पर बने पूल के एक ओर फलटण तो दूसरी ओर मलठण है। फलटण यह पौराणिक शहर है और महानुभाव पंथो की 'दक्षिण काशी' के नाम से पहचाना जाता है। यहॉ प्रसिद्ध श्रीराम मंदिर है। इस ग्राम देवता के दर्शन के लिए लोग दूर- दूर से आते हैं। हर साल नवंबर- दिसंबर महीने में श्रीराम रथ उत्सव मनाया जाता है। छत्रपती शिवाजी महाराज की पत्नी महारानी सईबाई यह फलटण संस्थानिक नाईक निंबालकर राजवंश से थी।
आकर्षण
फलटण मे श्री राम मंदिर और मुधोजी राजमहल प्रसिद्ध वास्तु है जहाँ आज भी चलचित्र, सिरीयल का चित्रीकरण होता है।यह इतिहासकालिन मन्दिर लकड़ी का बना है व सुंदर कलाकृती का नमूना है। फलटण का जब्रेश्वर मंदिर हेमाडपंथी शैली से बना पुरातन व प्रसिद्ध मंदिर है।
आबा साहेब मंदिर यह महानुभाव पंथीय मंदिर है। यह राजस्थानी लाल पत्थर से बनाया गया है। फलटण तहसील के सस्तेवाडी गाव में रामराजे वॉटर पार्क है।
फलटन में विडनी यह गाँव बैंगन के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ प्राचीनकालीन उत्तेश्वर मंदिर है।
ताथवडा-यहाँ शिवकालीन संतोषगड है।
पिंप्रद- इस गाँव में राजीव दीक्षित गुरुकुल पाठशाला पवार वाडी यहाँ है, जहाँ सिर्फ़ लडके ही रहते हैं।यहाँ उन्हें ठोल, मंजिराच्या इत्यादी सिखाया जाता है।
परिवहन व पर्यटन
यहाँ एक हवाई अड्डा हे जहाँ छोटे हवाई जहाज आपात कालीन परिस्थिति में उतर सकते हैं।
चित्र दिर्घा
इन्हें भी देखें
सतारा ज़िला
सन्दर्भ
सतारा ज़िला
महाराष्ट्र के शहर
सतारा ज़िले के नगर | 275 |
1194919 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%9C%E0%A4%B0%20%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%AC%E0%A4%A1%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE | मेजर सुरेंद्र बडंसरा | मेजर डॉ सुरेन्द्र पूनिया (जन्म : १ जनवरी १९७७), भारतीय जनता पार्टी के एक राजनेता, अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कारप्राप्त खिलाड़ी, लिम्का बुक के रिकार्डधारी, चिकित्सक और भारतीय सेना के भूतपूर्व अधिकारी हैं। वे प्रथम भारतीय एथलीट हैं जिन्होने जिन्होने चार लगातार विश्व चम्पियनशिप के पॉवरलिफ्टिंग और एथलीट की प्रतियोगिताओं में पदक जीते हैं।
जीवन परिचय
सुरेन्द्र पूनिया का जन्म राजस्थान के सीकर में एक किसान परिवार में १ जनवरी १९७७ को हुआ था। उन्होने पुणे के सशस्त्र सेना चिकित्सा महाविद्यालय से एमबीबीएस किया।
मेजर सुरेंद्र पुनिया ने एथलेटिक्स के क्षेत्र में दुनिया भर में भारत का नाम ऊंचा किया है। ये राष्ट्रपति की सुरक्षा दस्ते के प्रमुख भी रह चुके हैं। डॉ. सुरेंद्र पुनिया एएफएमसी से प्रशिक्षित डॉक्टर हैं। न केवल स्पेशल फोर्स के ऑफिसर बल्कि राष्ट्रपति के सुरक्षा दस्ते में रहे। संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन में कांगो में तैनात रहे। वे सेना के सबसे ज्यादा मेडल से सजे मेजर माने जाते हैं। पॉवर लिफ्टिंग और एथलेटिक्स में भारत के लिए लगातार चार स्वर्ण पदक जीतने के कारण उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है। घायल व शहीद सैनिकों की मदद के लिए उन्होंने सोल्जराथॉन नामक वार्षिक मैराथन इवेंट भी शुरू किया।
वर्ष 2014 में लोकसभा चुनावों के दौरान इन्होंने आम आदमी पार्टी के टिकट पर राजस्थान के सीकर से चुनाव भी लड़ा था। मार्च २०१९ में इन्होने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
भारत के खिलाड़ी | 235 |
843389 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AE%20%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A5%80%20%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BE | इमाम अली रिज़ा | अली इबने मूसा आर-रीदा (अरबी: علي ابن موسى الرضا), जिसे अबू अल-हसन, (सी। 29 दिसंबर 765 - 23 अगस्त 818) [2] या फारस (ईरान) में अली अल-रज़ा कहा जाता है इमाम रज़ा (फारसी: امام رضا) पैगंबर मुहम्मद और आठवीं शिया इमाम के वंशज थे, उनके पिता मूसा अल कादीम के बाद और उनके बेटे मुहम्मद अल-जवाद उनके बाद इमाम थे। वह ज़ैदी शिया स्कूल और सूफी के अनुसार इमाम थे। वह एक ऐसे समय में रहते थे जब अब्बासीद खलीफा कई कठिनाइयों का सामना कर रहा था, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण शिया विद्रोह था। खलीफा अल-मामुन ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में अल-रिज़ा को नियुक्त करके इस समस्या का एक उपाय किया, जिसके माध्यम से वह सांसारिक मामलों में शामिल हो सकता था। हालांकि, शिया के विचार के अनुसार, जब अल-मामुन ने देखा कि इमाम ने और अधिक लोकप्रियता प्राप्त कर ली, तो उसने इमाम को ज़हर दे दिया। इमाम को खोरासान के एक गांव में दफनाया गया, जिसे बाद में मशहद नाम प्राप्त हुआ, जिसका अर्थ शहीद का शहर। [4] [5]
जन्म और पारिवारिक जीवन
ज़िल् अल-क़ियादाह के 148 वें, 148 एएच (29 दिसंबर, 765 सीई) पर, इमाम मुसा अल कादिम (शिया इस्लाम का सातवा इमाम) के घर मदीना में एक बेटा पैदा हुआ था। उसे अली नाम दिया गया था और अली अल-रिज़ा कुन्नियत दिया गया था, जिसका शाब्दिक अर्थ अरबी में है, "संतुष्ट", क्योंकि यह माना गया था कि अल्लाह उसके साथ संतुष्ट हुआ। उनका (वैकल्पिक नाम) अबू हसन था, क्योंकि वह अल-हसन का पिता थे; अरब संस्कृति में अपने बेटे के एक आम व्यवहार के बाद एक पिता का नाम पड जाता है, शिया के सूत्रों में वह आमतौर पर अबुल-हसन अल-अस्सानी (दूसरा अबू हसन) कहलाता है, क्योंकि उनके पिता मुसा अल कादिम अबू हसन थे (वह भी अबूल् हसन के नाम से जाना जाते थे -अबूल् हसन अव्व्ल, जिसका अर्थ है पहले अबू हसन)। शीया के बीच अपने उच्च स्तर की स्थिति को रखते हुए उन्हें अन्य सम्मानित खिताब दिए गए हैं, जैसे कि साबिर्, वाफी, राज़ी, जकी अम्द वली [7]
अली का जन्म उनके दादा, जाफर अस-सादिक की मृत्यु के एक महीने बाद हुआ, और अपने पिता की दिशा में मदीना में लाया गया। [8] उनकी मां, नजमा भी, एक प्रतिष्ठित और धार्मिक महिला थीं।
उनकी संतानों और उनके नामों की संख्या के संबंध में विवाद मौजूद हैं। विद्वानों के एक समूह (सुन्नी) का कहना है कि वे पांच बेटे और एक बेटी थे, और ये थे: मुहम्मद अल तक़ी , अल-हसन, जाफर, इब्राहिम, अल हुसैन, एक बेटी। सब्त इब्न अल-जावजी, अपने किताब् में ताधकिरातुल-ख्वास ("ताज़किराट उल ख़्वास" تذکرۃ الخواص- मुहम्मद द पैगंबर ऑफ इस्लाम के उत्तराधिकारियों के प्रारम्भ की शुरुआत करते हैं, कहते हैं कि बेटे केवल चार थे, सूची से हुसैन नाम को छोड़कर। [1 1]
अल्लामा मजलिसी ने बिहारुल अनवार् जल्द 12 पेज 26 में कई बातें नकल करने के बाद बहवाला कुर्बुल्नसाद् लेख किया है कि आपके दो पुत्र थे। इमाम मूसा तकी (अल्लाह तआला प्रसन्न हो )दुसरे मुसा। अनवार नयीमिया 127 में है कि आपकी आप तीन संतान थी।अनवार ालहसीनिया जल्द 3 पी 52 में है कि आप तीन संतान थी। नस्ल् केवल इमाम मुहम्मद तकी से आई थी। स्वाहेक मोह्र्र्का १२३ में है कि आपके पास पांच लड़के और एक लड़की थी यह नवारुल्ब्सार 145 में है कि आप पांच लड़के और एक लड़की थी। ये लोग हैं इमाम मुहम्मद ताकी, हसन, जाफर, इब्राहीम, हुसैन, एक बेटी।
रोज़तह शोहदा 238 में है कि आप पाँच लड़के थे जिनके नाम हैं। इमाम मोहम्मद तकी, हसन, जाफर, इब्राहीम, हुसैन। लेकिन आपकी पीढ़ी केवल इमाम मोहम्मद तकी से बढ़ी है। यही कुछ रहमत उल्लील आलमीन २ पेज १४५ में है। जनातुल खुलुद् 32 में हे कि आपके पास पांच लड़के और एक लड़की है। रोज़ा अल-हज जमालुद्दीन में है कि आपके पास पांच पुत्र हैं। कशफ़ुल गौमा 110 है कि आप छह संतान थी 5 लड़का एक लड़की। यही मतालिब अलसोल में है। कनज़ अलांसाब 96 में है कि आप आठ लड़के थे जिनके नाम हैं इमाम मोहम्मद तक़ी, हादी अली नक़ी, हुसैन, याकूब, इब्राहीम, फेज़्, जाफर।
लेकिन इमाम अलमहदतीन ताज अलमहककीन हज़रत अल्लामा मुहम्मद बिन मुहम्मद नोमान बगदादी अलमतोनि 413 ई हिजरी अलमकलब इस शेख मुफीद् किताब इरशाद 271.345 और ताज ालमफसरीन, अमीन दीन हजरत अबू अली फज़ल बिन हसन बिन फैज़ तबरसी अलमशहदि साहब म्ज्मा अल् बयान अलमतोनफि 548 पुस्तक अलाम अल्वरी में लिखा है, 199 कान ललरज़ामन ालोलद ाबना बादल जाफर मुहम्मद बिन अली ालजवाद ला गैर हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी।
अलावा ईमाम अली रज़ा कोई और संतान न थी। यही कुछ किताब उम्दा अल्तलीब 186 है।
इमाम के रूप में पदनाम
आठवे इमाम अपने पिता की मृत्यु के बाद, दैवीय कमान और अपने पूर्वजों के आदेश के माध्यम से इमामत पर पहुंचे, [12] विशेष रूप से इमाम मूसा अल कादिम, जो बार-बार अपने साथियों से कहते हैं कि उनके बेटे अली इमाम होंगे। [13] जैसे, मख्ज़ूमी कहते हैं कि एक दिन मुसा अल काज़िम् ने हमें बुलाया और हमें इकट्ठा किया और उन्हें "उनके निष्पादक और उत्तराधिकारी" के रूप में नियुक्त किया। [14]
याजिद इब्न सालीत ने भी सातवें इमाम से एक ऐसी ही कथन लिखी है, जब वह मक्का जाने के रास्ते में उन्हें मिले:इमाम ने कहा "अली, जिसका नाम पहले और चौथे इमाम जैसा है, मेरे पीछे इमाम है।" हालांकि, मूसा अल-कज़िम की अवधि में चरम घुटन वातावरण और प्रबल दबाव होने के कारण, उन्होंने कहा, "मैंने जो कहा है वह आपने तक (प्रतिबंधित) रहना चाहिए और इसे किसी को तब तक न बताए, जब तक कि आपको पता न हो कि वह हमारे दोस्तों और साथियों में से है। "[15] [16] यहि अली बिन याकतिन सुनाई गई है, इमाम मूसा अल-कज़िम ने कहा कि" अली मेरे बच्चों में सबसे अच्छा है और मैंने उनको मेरे उपदेश दिये "[13] वक्दी के अनुसार यहां तक कि अपनी जवानी में अली अल-रद्दा अपने पिता कि हदीस संचारित करते थे और मदीना की मस्जिद में फतवा देते थे। [8] [17] हारून रशीद ने अली अल-रिधा को अनुकूल नहीं देखा; और मदीना के लोगों को उनके पास जाने और उनसे सीखने से रोक लगा दी। [18] डॉनल्डसन के अनुसार वह पच्चीस या बीस साल के थे जब वह मदीना में इमाम के रूप में अपने पिता के उत्तराधिकारी हुए और लगभग अठारह साल बाद, खलीफा अल-मामुन ने अली आर-रिज़ा को खुद के खिलाफत के उत्तराधिकारी के रूप प्र्सतुत करके कई शिया गिरोहो को अपने साथ करने का प्रयास किया। "[5]
समकालीन राजनीतिक स्थिति
809 में हारून अल रशीद की मौत के बाद, हारून के दो बेटों ने अब्बासीद साम्राज्य के नियंत्रण के लिए लड़ाई शुरू कर दी। एक बेटा, अल-अमीन, एक अरब मां था और इस प्रकार अरबों का समर्थन था, जबकि उनके भाई अल-मामुन की मां फारसी थी और उसको फारस की सहायता थी। [1 9] अपने भाई को हरा दिया। अल-मामुन ने कई क्षेत्रों में पैगंबर के परिवार के अनुयायियों से कई विद्रोहो का सामना किया। [17]
अल मामुन के युग के शिया, आज के शिया की तरह, जिन्होंने अल-मामुन के ईरान में एक बड़ी आबादी बनाई, ने इमामों को अपने नेताओं के रूप में माना, जिनकी उपदेशो का आध्यात्मिक और स्थलीय एव जीवन के सभी पहलुओं, में पालन किया जाना चाहिए। वे इस्लामिक पैगंबर, मुहम्मद के वास्तविक खलीफा के रूप में उन पर विश्वास करते थे। उमायद की तरह अब्बासियों ने भी उन्को अपनी खिलाफत् के लिए एक बड़ा खतरा माना, क्योंकि शीयाओ ने अल-मामुन को अत्याचारी के रूप में देखा, जो उनके इमामों की पवित्र स्थिति से दूर था। अल्लाह तआबातेई अपनी किताब शिया इस्लाम में लिखते हैं, कि अल-मामुन ने अपनी सरकार के आसपास कई शिया विद्रोहों को शांत करने के लिए,इमाम अल-रिज़ा को खुरासन बुलाया और शिआओं और अल-रिज़ा के रिश्तेदारों को सरकार के विरूद्ध विद्रोह से रोकने के लिए क्राउन प्रिन्स की भूमिका दी। क्योंकि एक तो इससे वे अपने ही इमाम से लड़ते; दूसरे, लोगों में इमामों के लिए आंतरिक लगाव खोने का कारण बनता, क्योंकि इमाम, अल-मामुन की भ्रष्ट सरकार से जुड़ा होते। [20] तीसरा, वह शियाओ को यह विश्वास करने के लिए मानना चाहता था कि उसकी सरकार बुरी नहीं थी, क्योंकि अल-रिज़ तो मामुन के बाद सत्ता में आएंगे। और चौथी, वह खुद को शियाओं के इमाम पर कड़ी निगाह रखना चाहता था, जिससे कि अल-मामुन के ज्ञान के बिना कुछ भी नहीं हो सके।
मामून के हलकों में यह बात तेजी से फैल गयी कि अल-ममुन अली इब्न मूसा अल-रिज़ को क्राउन प्रिंस को बनाने की पेशकश में ईमानदार नहीं था, और यह केवल एक राजनीतिक कदम था। अल-ममुन भी पागल हो गया और सोचा कि अल-रिज़ा भी इसी तरह सोचेगे , और ऐसा ही उनके शिआ। लोगों के संदेह को शांत करने के लिए अल-मामुन ने पहले ही खुद ही,अल-रिज़ा को खलीफा पद की पेशकश की। अल-रीधा, जो इस प्रस्ताव का असली कारण जानते थे, ने विनम्रता से इनकार कर दिया [21] और कहा:
"यदि यह खिलफत् तुम्हारे लिये है, तो यह तुमको अनुमति नहीं है,कि जो परिधान अल्लाह ने आप को दिया उसे उतार दे ओर किसी दुसरे को दे। अगर खिलाफत आपके लिए नहीं है, तो आप मुझे
वो नहीं दे सकते जो तुम्हारा नहीं है। "[17]
अल-मामुन अपने प्रस्ताव को बार बार ईमानदारी से दिखाने का प्रयास कर रहा था और खिलाफत को फिर से भेंट करता रहा, और अंत में अपनी वास्तविक योजना कि अपने क्राउन प्रिंस को अली अल-रिज़ा बनाने के लिए कोशिश करता रहा जब इमाम अल-रिज़ा ने इस स्थिति को भी अस्वीकार कर दिया, तो अल मामुन ने उन्हें धमकी दी कि "आपके पूर्वज अली को दूसरे खलीफा द्वारा चुना गया था ताकि वह तीसरे खलीफा का चुनाव करने के लिए छह सदस्यीय परिषद में हो, और जो छहों में से अनुपालन नहीं करे उसको मारने का आदेश दिया। अगर आप मेरी सरकार में क्राउन प्रिंस की स्थिति को स्वीकार नहीं करते हैं, तो मैं उसी तरह करुगा। " अल-रिज़ा ने कहा कि वह इस शर्त के तहत स्वीकार करेंगे कि सरकार के कोई भी काम उनके नहीं होगा। वह न तो किसी को नियुक्त करेंगे, न ही खारिज करेंगे वह कानून नहीं बनाएगे, या कानून पास करेंगे वह केवल नाम में क्राउन प्रिंस होगे। अल-मामुन खुश हो गया कि अल-रिज़ा ने स्वीकार कर लिया और वे उसकी स्रकार की कामो से भी दूर रहेंगे, ओर उसने भी इमाम कि शर्त स्वीकार कर ली।
अल-ममुन ने काले अब्बासीद झंडे को हरे रंग में भी बदल दिया, [22] [23] [23]जो शियाओ का पारंपरिक मोहम्मद के झंडे और अली का अमामा का रंग था। [24] उन्होंने सिक्कों को अल-मामुन और अली अल-रिज़ा दोनों नामों के साथ भी बनवाने का आदेश दिया
अल-रिज़ा को खुरसान बुलाया गया और उनहोने अल-मामुन के उत्तराधिकारी की भूमिका को अनिच्छा से स्वीकार कर लिया, [12] [25]
अल-मामुन ने इमाम के भाई ज़ायद् को खोरासान में, जिन्होंने मदीना में विद्रोह किया था अपने अदालत में बुलाया अल-ममुन ने उसे अल अली-रिज़ा के सम्मान में मुक्त कर दिया और उसकी सजा को नजरअंदाज कर दिया। [26]
हालांकि, एक दिन, जब अल-अल-रिज़ा एक भव्य सभा में एक भाषण दे रहे थे, उन्होंने सुना कि जयाद ने लोगों के सामने खुद की प्रशंसा की, कहा कि मैं और भी बहुत कुछ हूं। अली अल-रिज़ा ने उनसे कहा: [27]
"हे ज़ैद, क्या आपने कुफा के दुकानदारो के शब्दों पर भरोसा किया है और उन्हें लोगों तक पहुंचाया है? आप किस चीज के बारे में बात कर रहे हैं? अली इब्न अबी तालिब और फातिमा ज़हरा के पुत्र तभी योग्य और उत्कृष्ट हैं जब वो अल्लाह की आदेशो, और अपने आप को पाप और गलती से दूर रखे। आपको लगता है कि आप मूसा अल कादिम, अली इब्न हुसैन और अन्य इमामों की तरह हैं? जबकि वे अल्लाह के रास्ते में कठोर परिश्रम करते थे और रातो को अल्लाह से प्रार्थना करते थे , क्या आपको लगता है कि आपको बिना दर्द के लाभ मिलेगा? जागरूक रहें, कि यदि हममे से कोइ एक व्यक्ति एक अच्छा काम करता है, तो वह दो गुना इनाम प्राप्त करेगा। उसने मुहम्मद के सम्मान को बनाए रखा है यदि वह कुछ बुरा व्यवहार करता है और एक पाप करता है, तो उन्होंने दो पाप किये हैं। एक यह है कि उसने बाकी लोगों की तरह एक बुरा काम किया और दूसरा यह है कि उन्होंने उसने मुहम्मद के सम्मान को बनाए न रखा, हे भाई! जो कोई अल्लाह का पालन करता है वह हमारा है जो पापी है वह हमारा नहीं है अल्लाह ने नूह के बेटे के बारे में कहा, जो अपने पिता के साथ आध्यात्मिक बंधन को काटते हुए कहते हैं, "वह तुम्हारी वंशावली से नहीं है, अगर वह तुम्हारी वंशावली से बाहर न हो गया होता , तो मैं (बचाया) होता और उसे मोक्ष दे दिया।" [27]
बहस
अल-मामुन अरबी में अनुवादित विभिन्न विज्ञानों पर काम करने में बहुत दिलचस्पी थी। इस प्रकार उसने इमाम और मुस्लिम विद्वानों और उनकी उपस्थिति में आने वाले धर्म के संप्रदायों के बीच बहस आयोजित की। [8] [12] इन में से कई शिया हदीसों के संग्रह में दर्ज किए गए हैं,
क्यूम संग्रहालय, ईरान में अब अल-रिज़ा द्वारा लिखित कुरान का एक संस्करण वर्क्स
अल-रिसालह अल-धहाबियाह
मुख्य लेख: अल-रिसालह अल-धहाबियाह
अल-रियालाह अल-धहाबियाय (द गोल्डन ट्रीटाइज़) चिकित्सा उपचार और अच्छे स्वास्थ्य के रखरखाव पर एक ग्रंथ है, जिसे ममुन की मांग के अनुसार लिखा गया है। [8] [2 9] इसे विज्ञान के विज्ञान में सबसे अधिक मूल्यवान इस्लामी साहित्य माना जाता है, और "गोल्डन ग्रंथ" का पात्र था क्योंकि माइन ने इसे सोने की स्याही में लिखे जाने का आदेश दिया था। [8]
मृत्यु
अल-मॉन ने सोचा कि वह उनके उत्तराधिकारी के रूप में अल-रिज़ा का नाम देकर शिया विद्रोहियों की समस्याओं को समप्त करेंगा,। आखिरकार अल-रिज़ा को इस स्थिति को स्वीकार करने के लिए राजी करने में सक्षम होने के बाद, अल-ममुन ने अपनी गलती का एहसास किया, क्योंकि शिया को और भी लोकप्रियता प्राप्त हुई। इसके अलावा, बगदाद में अरब पार्टी उग्र हो गइ जब सुना है कि अल मामुन् न केवल अपने उत्तराधिकारी के रूप इमाम नियुक्त है,। उन्हें डर था कि साम्राज्य उनसे ले लिया जाएगा। इसलिए अरब पार्टी ने, मामुन को अपदस्थ और इब्राहीम इब्न अल महदी, मामुन के चाचा के प्रति निष्ठा देने के लिए तय किया [5] इसलिये मामुन ने इमाम को ज़हर दिलव दिया फिर, मुहम्मद तकी इमाम के पुत्र इमाम हुवे।
शिया इस्लाम | 2,334 |
26474 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%80 | कुण्डलिनी | योग सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक मनुष्य के मेरुदंड के नीचे एक ऊर्जा संग्रहीत होती है जिसके जाग्रत होने पर आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।दिव्यांशु पाठक के अनुसार कुण्डलिनी महाशक्ति दिव्य ऋतम्भरा प्रज्ञा प्रदान करती है साथ ही यह योगीयों के लिए आदिशक्ति हैं। इसका ज़िक्र उपनिषदों और शाक्त विचारधारा के अन्दर कई बार आया है। दरअसल मूलाधार चक्र के सबसे नीचे एक ऊर्जा रूप शिवलिंग की आकृति होती है जिस पर एक सर्पआकृति ऊर्जा साढ़े तीन वलय लेकर लिपटी है । इसका फ़ण इस लिंग के मुण्ड पर फैला है। इस सरपाकृति ऊर्जा के फ़न को मानसिक शक्ति से सभी ऊपर के चक्रों से निकालकर सहस्रार के अतमत्व से समता है है तो ब्रह्म दर्शन होता है।यही कुंडलिनी साधना है ।
इसके अनुसार ध्यान और आसन करने से, - दीवान गोकुलचन्द्र कपूर)é
योग | 133 |
561529 | https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%AE%E0%A4%B2%20%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%A2%E0%A4%BC%E0%A4%BE | राजेन्द्र मल लोढ़ा | राजेन्द्र मल लोढ़ा (जन्म :28 सितंबर 1949) भारत के मुख्य न्यायाधीश हैं। उन्होंने 27 अप्रैल 2014 को उच्चतम न्यायालय के 41 वे मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण किया। 17 दिसम्बर 2008 को भारत का उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बने।
परिचय
वह राजस्थान के जोधपुर मूल निवासी हैं। उन के पिता श्री के एम लोढ़ा राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। उन्होंने विज्ञान स्नातक, विधि स्नातक की शिक्षा जोधपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त की।
करियर
एक वकील के रूप में वे फरवरी 1973 बार कौन्सिल ऑफ राजस्थान से जुड़े। 31 जनवरी 1994 को उन्हें राजस्थान उच्च न्यायालय में न्ययाधीश नियुक्त किया गया। 16 फरवरी 1994 को उनका स्थानांतरण मुंबई उच्च न्यायालय में हुआ। तथा 2 फ़रवरी 2007 को वापिस राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर में हो गया। 13 मई 2008 को आपकी नियुक्ति पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में हुई तथा 17 दिसम्बर 2008 से भारत का उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बने। वर्तमान में भारत के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर 27 अप्रैल 2014 को पदभार सम्भाला।
सन्दर्भ
भारत के मुख्य न्यायाधीश
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश
1949 में जन्मे लोग
जीवित लोग
जोधपुर के लोग | 187 |