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जॉन बारवा
आर्कबिशप जॉन बारवा, एसवीडी। कटक-भुवनेश्वर के रोमन कैथोलिक आर्चिडोसिस की सेवाकारी आर्कबिशप है। प्रारंभिक जीवन  उनका जन्म 1 जून 1 9 55 को ग्बिरा, ओडिशा, भारत में हुआ था। धार्मिक जीवन  14 अप्रैल 1 9 85 को उन्हें डिस्ट्रिक्ट वर्ड सोसायटी का कैथोलिक प्रीस्टर्ड किया गया था। उन्हें 4 फरवरी, 2006 को राउरकेला के सह-अभियोजक बिशप नियुक्त किया गया था और 1 9 अप्रैल 2006 को बिशप का पदभार संभाला। राउरकेला के बिशप के रूप में उनका कार्यकाल 2 अप्रैल को शुरू हुआ पोप बेनेडिक्ट XVI द्वारा 11 फरवरी 2011 को कटक-भुवनेश्वर के रोमन कैथोलिक आर्चिडोसिस के आर्कबिशप को नियुक्त किया गया। सन्दर्भ 1955 में जन्मे लोग जीवित लोग ओड़िशा के लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%A1%20%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%95
बैड बैंक
बैड बैंक () एक आर्थिक अवधारणा है जिसके अंतर्गत आर्थिक संकट के समय घाटे में चल रहे बैंकों द्वारा अपनी देयताओं को एक नये बैंक को स्थानांतरित कर दिया जाता है। जब किसी बैंक की गैर निष्पादित संपत्ति सीमा से अधिक हो जाती है तब राज्य के आश्वासन पर एक ऐसे बैंक का निर्माण किया जाता है जो मुख्य बैंक की देयताओं को एक निश्चित समय के लिए धारण कर लेता है। १९९१-९२ के दौरान स्वीडन में इस तरह की प्रक्रिया द्वारा आर्थिक चुनौतियों का सामना किया गया था। २0१२ में स्पेन ने आर्थिक संकट के दौरान ऐसे ही बैंकों का सहारा लिया है। इन बैड बैंकों को १0 से १५ वर्ष की समय सीमा दी गयी है। स्थानीय सरकार द्वारा इन बैंकों को निर्धारित अवधि में लाभ में लेकर आना होगा। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Bankers whisper: Spain's bailout bill could rise अर्थव्यवस्था आर्थिक समस्याएँ
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लौंडेबाजी
किसी पुरुष का किसी पुरुष के साथ मलद्वार अथवा गुदा द्वार के साथ सम्भोग करना लौंडेबाजी या गुदा मैथुन (sodomy) कहलाता है। इस अपराध को धारा ३७७ (भारतीय दण्ड संहिता) के अंतर्गत रखा गया है इस अपराध को सबिओत करने के लिए ये साबित करना आवश्यक है की लिंग का प्रवेश गुदा द्वार से हुआ था। लिंग के गुदा द्वार मे प्रवेश करने के प्रयास पे धारा 511 लगायी जाती है जिसके तहत अपराधी को कुछ वर्षो के कारावास से लेकर आजीवन कारावस तक, जुरमाना अथवा दोनों किये जा सक्य्ते है। निष्क्रिय माध्यम (पुरुष जिसके साथ भी ये अपराध हुआ हो ) द्वारा दि गयी सहमति भी मानय नहीं होती अर्थात सहमती देना कोई मायने नहीं रखता है। इसके अलवा अगर निष्क्रिय माध्यम ने सहमती दि है तो ये अपराध दोनों पर लागु होगा और निष्क्रिय माध्यम भी इस अपराध मे भागीदार माना जायेगा। अगर निष्क्रिय माध्यम कोई 18 साल से छोटा बच्चा हो तो आरोपी पर POCSO एक्ट Protection of Children from Sexual Offences Act( लैंगिक अपराधो से बालको का सरंक्षण अधिनियम) के तहत भी मुकदमा चलता है जिसके तहत सजा की अवधि 7 वर्ष से कम नही हो सकती परन्तु आजीवन कारावास मे बदल सकती है तथा अपराधी को सजा के साथ उचित जुरमाना भी लगाया जाता है। इन्हें भी देखें समलैंगिकता धारा ३७७ (भारतीय दण्ड संहिता)
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राजनीतिक सिद्धांतवादियों की सूची
राजनीतिक सिद्धांतवादी वह होता है जो राजनीतिक सिद्धांत व राजनीतिक दर्शन का निर्माण या मूल्यांकन करने में शामिल होता है। सिद्धांतवादी या तो शिक्षाविद या स्वतंत्र विद्वान हो सकते हैं। उल्लेखनीय ऐतिहासिक राजनीतिक सिद्धांतवादी अरस्तू जॉन ऑस्टिन Simion Bărnuțiu Frederic Bastiat Jeremy Bentham Jean Bodin एडमण्ड बर्क Jean-Jacques Burlamaqui John C. Calhoun चाणक्य Cicero Friedrich Engels Benjamin Franklin Hugo Grotius Georg Wilhelm Friedrich Hegel Johann Gottfried von Herder थॉमस Hobbes Immanuel Kant जॉन लॉक Niccolò Machiavelli जेम्स मैडिसन कार्ल मार्क्स जॉन स्टुअर्ट मिल जॉन मिल्टन Gustave de Molinari Charles de Secondat, Baron de Montesquieu थॉमस More थॉमस पेन प्लेटो Samuel von Pufendorf Jean-Jacques Rousseau John of Salisbury Baruch Spinoza Lysander Spooner Alexis de Tocqueville Ryōhei Uchida 20वीं सदी के राजनीतिक सिद्धांतवादी Bruce Ackerman Theodor Adorno Giorgio Agamben Tariq अली Gabriel Almomd Louis Althusser Hannah Arendt Raymond Aron मुहम्मद Asad Benjamin बार्बर अर्नेस्ट Barker रॉबर्ट N. Bellah Seyla Benhabib वाल्टर Benjamin Isaiah बर्लिन Hans T. Blokland Allan ब्लूम Norberto Bobbio Eoin Ó Broin स्टीफ़ेन Bronner वेंडी ब्राउन जेम्स Burnham Cornelius Castoriadis Noam Chomsky टोनी क्लिफ G. D. H. कोल विलियम E. Connolly Drucilla कॉर्नेल Dobrica Ćosić (1921–2014), Yugoslav and Serbian जोसेफ Cropsey रॉबर्ट Dahl जॉन Dewey Raya Dunayevskaya जॉन Dunn रोनाल्ड Dworkin डेविड Easton Frantz Fanon रिचर्ड E. Flathman Michel Foucault नैंसी Fraser डेविड D. Friedman कार्ल Friedrich Erich Fromm विलियम Galston Emma Goldman Antonio Gramsci Che Guevara Alma Guillermoprieto Amy Gutmann Jürgen Habermas Clive Hamilton Michael Hardt Louis Hartz Friedrich Hayek David Held Paul Hirst L. T. Hobhouse John Holloway Bonnie Honig Allama Iqbal C.L.R. James Jean Jaurès Leo Jogiches V. O. Key, Jr. Kim Il-Sung Russell Kirk Leszek Kołakowski Chandran Kukathas Will Kymlicka Ernesto Laclau Rose Wilder Lane Harold J. Laski Harold D. Lasswell Henri Lefebvre Claude Lefort Vladimir Lenin Theodore J. Lowi Steven Lukes Rosa Luxemburg Dwight Macdonald Tibor Machan Alasdair MacIntyre C. B. Macpherson Harvey Mansfield Herbert Marcuse David Miller Chantal Mouffe Antonio Negri Saul Newman Anne Norton Martha Nussbaum Robert Nozick Michael Oakeshott Susan Moller Okin Thomas Pangle Carole Pateman Lorenzo Peña Hanna Fenichel Pitkin John Plamenatz J.G.A. Pocock Robert D. Putnam Ayn Rand John Rawls Prabhat Ranjan Sarkar Joseph Raz Murray Rothbard Jean-Paul Sartre Mario Savio Carl Schmitt Joseph Schumpeter Judith N. Shklar James C. Scott Leo Strauss चार्ल्स टेलर लियोन ट्रॉट्स्की रॉबर्टो Mangabeira Unger Eric Voegelin Jouke de Vries Graham Wallas माइकल Walzer Beatrice Webb सिडनी Webb Simone Weil शेल्डन Wolin Iris Marion Young Raúl Zibechi Howard Zinn
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तफ़सीरे जलालेन
तफ़सीरे जलालेन या "तफ़सीर अल-जलालैन"(अंग्रेज़ी:Tafsir al-Jalalayn) कुरआन की टीका-व्याख्या (तफ़्सीर) की अरबी भाषा में पुस्तक है, एक बहुत ही छोटी टिप्पणी है, जिसे दो प्रसिद्ध टीकाकारों, इमाम जलालुद्दीन महली (791 हिजरी - 864 हिजरी) और जलालुद्दीन सुयुति (849 हिजरी - 911 हिजरी ) ने लिखा था। तफ़सीर जलालिन लगभग पाँच शताब्दियों से लोकप्रिय है। इमाम जलालुद्दीन सुयुती की उत्कृष्ट कृतियों में तफ़सीर जलालिन का एक प्रमुख और विशेष महत्व है। यह भाष्य अपनी संक्षिप्तता और व्यापकता, सुदृढ़ता, अर्थ और व्याख्या के कारण विद्वानों और छात्रों के ध्यान का केंद्र रहा है। विषयों के सन्दर्भ में विद्वानों और ज्ञानियों का विशेष आदर होता है और बहुधा इसका अध्ययन किया जाता है। यह कुरआन की अन्य व्याख्याओं की तुलना में कुरआन की संक्षिप्त टिप्पणी और संक्षिप्त अनुवाद भी है। तफ़सीर अल-जलालयन का अंग्रेजी , फ्रेंच, बंगाली , उर्दू , फारसी, मलय / इंडोनेशियाई, तुर्की और जापानी सहित कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है। दो अंग्रेजी अनुवाद हैं। इन्हें भी देखें तफ़्सीर सन्दर्भ इस्लाम पुस्तकें
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जलालुद्दीन रूमी
मौलाना मुहम्मद जलालुद्दीन रूमी (३० सितम्बर, १२०७) फारसी साहित्य के महत्वपूर्ण लेखक थे जिन्होंने मसनवी में महत्वपूर्ण योगदान किया। इन्होंने सूफ़ी परंपरा में नर्तक साधुओंं (गिर्दानी दरवेशों) की परंपरा का संवर्धन किया। रूमी अफ़ग़ानिस्तान के मूल निवासी थे पर मध्य तुर्की के सल्जूक दरबार में इन्होंने अपना जीवन बिताया और कई महत्वपूर्ण रचनाएँ रचीं। कोन्या (मध्य तुर्की) में ही इनका देहांत हुआ जिसके बाद आपकी कब्र एक मज़ार का रूप लेती गई जहाँ आपकी याद में सालाना आयोजन सैकड़ों सालों से होते आते रहे हैं। रूमी के जीवन में शम्स तबरीज़ी का महत्वपूर्ण स्थान है जिनसे मिलने के बाद इनकी शायरी में मस्ताना रंग भर आया था। इनकी रचनाओं के एक संग्रह (दीवान) को दीवान-ए-शम्स कहते हैं। जीवनी इनका जन्म फारस देश के प्रसिद्ध नगर बल्ख़ में सन् 604 हिजरी में हुआ था। रूमी के पिता शेख बहाउद्दीन अपने समय के अद्वितीय पंडित थे जिनके उपदेश सुनने और फतवे लेने फारस के बड़े-बड़े अमीर और विद्वान् आया करते थे। एक बार किसी मामले में सम्राट् से मतभेद होने के कारण उन्होंने बलख नगर छोड़ दिया। तीन सौ विद्वान मुरीदों के साथ वे बलख से रवाना हुए। जहां कहीं वे गए, लोगों ने उसका हृदय से स्वागत किया और उनके उपदेशों से लाभ उठाया। यात्रा करते हुए सन् 610 हिजरी में वे नेशांपुर नामक नगर में पहुंचे। वहां के प्रसिद्ध विद्वान् ख्वाजा फरीदउद्दीन अत्तार उनसे मिलने आए। उस समय बालक जलालुद्दीन की उम्र ६ वर्ष की थी। ख्वाजा अत्तार ने जब उन्हें देखा तो बहुत खुश हुए और उसके पिता से कहा, "यह बालक एक दिन अवश्य महान पुरुष होगा। इसकी शिक्षा और देख-रेख में कमी न करना।" ख्वाजा अत्तार ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ मसनवी अत्तार की एक प्रति भी बालक रूमी को भेंट की। वहां से भ्रमण करते हुए वे बगदाद पहुंचे और कुछ दिन वहां रहे। फिर वहां से हजाज़ और शाम होते हुए लाइन्दा पहुंचे। १८ वर्ष की उम्र में रूमी का विवाह एक प्रतिष्ठित कुल की कन्या से हुआ। इसी दौरान बादशाह ख्व़ाजरज़मशाह का देहान्त हो गया और शाह अलाउद्दीन कैकबाद राजसिंहासन पर बैठे। उन्होंने अपने कर्मचारी भेजकर शेख बहाउद्दीन से वापस आने की प्रार्थना की। सन् ६२४ हिजरी में वह अपने पुत्र सहित क़ौनिया गए और चार वर्ष तक यहां रहे। सन ६२८ हिजरी में उनका देहान्त हो गया। रूमी अपने पिता के जीवनकाल से उनके विद्वान शिष्य सैयद बरहानउद्दीन से पढ़ा करते थे। पिता की मृत्यु के बाद वह दमिश्क और हलब के विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने के लिए चले गये और लगभग १५ वर्ष बाद वापस लौटे। उस समय उनकी उम्र चालीस वर्ष की हो गयी थी। तब तक रूमी की विद्वत्ता और सदाचार की इतनी प्रसिद्ध हो गयी थी कि देश-देशान्तरों से लोग उनके दर्शन करने और उपदेश सुनने आया करते थे। रूमी भी रात-दिन लोगों को सन्मार्ग दिखाने और उपदेश देने में लगे रहते। इसी अर्से में उनकी भेंट विख्यात साधू शम्स तबरेज़ से हुई जिन्होंने रूमी को अध्यात्म-विद्या की शिक्षा दी और उसके गुप्त रहस्य बतलाये। रूमी पर उनकी शिक्षाओं का ऐसा प्रभाव पड़ा कि रात-दिन आत्मचिन्तन और साधना में संलग्न रहने लगे। उपदेश, फतवे ओर पढ़ने-पढ़ाने का सब काम बन्द कर दिया। जब उनके भक्तों और शिष्यों ने यह हालत देखी तो उन्हें सन्देह हुआ कि शम्स तबरेज़ ने रूमी पर जादू कर दिया है। इसलिए वे शम्स तबरेज़ के विरुद्ध हो गये और उनका वध कर डाला। इस दुष्कृत्य में रूमी के छोटे बेटे इलाउद्दीन मुहम्मद का भी हाथ था। इस हत्या से सारे देश में शोक छा गया और हत्यारों के प्रति रोष और घृणा प्रकट की गयी। रूमी को इस दुर्घटना से ऐसा दु:ख हुआ कि वे संसार से विरक्त हो गये और एकान्तवास करने लगे। इसी समय उन्होंने अपने प्रिय शिष्य मौलाना हसामउद्दीन चिश्ती के आग्रह पर 'मसनवी' की रचना शुरू की। कुछ दिन बाद वह बीमार हो गये और फिर स्वस्थ नहीं हो सके। ६७२ हिजरी में उनका देहान्त हो गया। उस समय वे ६८ वर्ष के थे। उनकी मज़ार क़ौनिया में बनी हुई है। कविता रूमी की कविताओं में प्रेम और ईश्वर भक्ति का सुंदर समिश्रण है। इनको हुस्न और ख़ुदा के बारे में लिखने के लिए जाना जाता है। माशूके चूँ आफ़्ताब ताबां गरदद। आशक़ बे मिसाल-ए-ज़र्र-ए-गरदान गरदद। चूँ बाद-ए-बहार-ए-इश्क़ जुंबाँ गरदद। हर शाख़ के ख़ुश्क नीस्त, रक़सां गरदद। यह भी देखें मौलाना संग्रहालय दृश्य मालिका संबंधित कड़ियाँ मसनवी मसनवी (विकिस्रोत) जलालुद्दीन रूमी (विकिस्रोत) जलालुद्दीन रूमी / चौधरी शिवनाथसिंह शांडिल्य (विकिस्रोत) ईंट की दीवार / जलालुद्दीन रूमी (विकिस्रोत) चौधरी शिवनाथसिंह शांडिल्य (विकिस्रोत) مقالات सन्दर्भ बाहरी कडियाँ फ़ारसी साहित्यकार तुर्की सूफ़ी कवि सूफ़ीवाद
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A5%81
सेतु
सेतु एक प्रकार का ढाँचा जो नदी, पहाड़, घाटी अथवा मानव निर्मित अवरोध को वाहन या पैदल पार करने के लिये बनाया जाता है। पुल का संक्षिप्त इतिहास पुलों का लंबा इतिहास रहा है। ज्ञात इतिहास के अनुसार पहली और दूसरी सदी में रोमनकाल की वास्तुकला में पुलों का निर्माण भी शामिल था। उस जमाने में अधिकांश पुल खाइयों के ऊपर लकड़ी से बनाए जाते थे। 12वीं सदी में ऐसे पुल बनाए जाने लगे जिनमें साथ में घर भी होते थे। ऐसा ही एक पुल 1176 में लंदन में बनाया गया था जो पत्थरों से निर्मित था। 1779 से पुलों में लोहे और इस्पात का भी इस्तेमाल किया जाने लगा। इस समय तक पुल छोटे होते थे, लेकिन समय के साथ समुद्रों के ऊपर भी पुल बनाने की जरूरत महसूस होने लगी। समुद्र के ऊपर बनाए गए शुरुआती पुलों में अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को और मैरिन काउंटी को जोड़ने वाले गोल्डन गैट पुल का नाम लिया जा सकता है जिसका निर्माण वर्ष 1937 में पूरा हुआ था। 2.7 किलोमीटर लंबा यह पुल सैन फ्रांसिस्को खाड़ी के ऊपर बनाया गया है। ओरेसंड जलडमरूमध्य के ऊपर डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन और स्वीडन के शहर मैल्मो को जोड़ने वाला 7.8 किलोमीटर लंबा पुल बनाया गया। विश्व का सबसे लंबा समुद्री पुल हाल ही में चीन में निर्मित किया गया हैं - गझोऊ ब्रिज है। गझोऊ खाड़ी के ऊपर निर्मित किया गया यह पुल 35.67 किलोमीटर लंबा है और शंघाई व निंगबो शहरों को आपस में जोड़ता है। सेतु के प्रकार सेतु मुख्यतः ६ प्रकार के होते हैं : चाप सेतु (Arch bridges), धरन सेतु (Beam bridges) भुजोत्तोलक सेतु (Cantilever bridges), झूला पुल या 'निलम्बन सेतु' (Suspension bridges), केबल-तनित सेतु (Cable-Stayed bridge) और ट्रस सेतु (Truss bridges) बीम सेतु बीम सेतु एक प्रकार के क्षैतिज बीम से बने सेतु होते है जो किनारों से अबटमेंट्स (एक स्पान को जोड़ने वाली वास्तु) द्वारा जुड़े होते हैं। अगर किसी सेतु बीम के अंदर एक से अधिक स्पान होते है तो उन्हे हम पियर्स के द्वरा जोड़ते हैं। सेतु बीम मुख्यतः लकड़ी या फिर लोहे के बने होते हैं। प्रत्येक बीम में एक या एक से अधिक स्पान होते हैं। इन सेतुओं में स्पान की लंबाई बहुत मायने रखती है अगर स्पान की लंबाई अधिक है तो उसकी मजबूती कम होगी। अक्सर इसकी लंबाई २५० मीटर से अधिक नहीं रखी जाती। विश्व का सबसे लंबा बीम सेतु संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी लुइसियाना झील में पोंतचरटरायण सेतु है। इस सेतु की पूरी लंबाई ३८.३५ किलोमीटर है और इसके अंदर प्रियुक्त हर स्पान की लंबाई ५६ फीट है। भुजोत्तोलक सेतु कांटीलीवेर सेतु कांटीलीवेर्स के प्रियोग से बनते है ये सेतु एक तरफ से कांटीलीवेर बीम से जुड़े होते है और दूसरा छोर बगेर किसी सपोर्ट के होता है ईन सेतुओ के अंदर भी बीम सेतुओ की जेसा निर्माण होता है लेकिन सेतु पर लगने वाले बल की दिशा अलग होती और ईन सेतुओ के अंदर लंबे स्पान प्रियोग किए जाते है। दुनिया का सबसे लंबा कांटीलीवेर सेतु क्वीबेक सेतु है जो की कनाड़ा में है। ईस्की कुल लंबाई ५४९ मीटर है और ईस्के अंदर प्रियोग होने वाले स्पान की लंबाई ११७ मीटर है। चाप सेतु आर्क सेतुओ के अंदर हर आर्क के बाद अबटमेंट्स (दो स्पान को जोड़ने के लिए) जो इसको बीम सेतु से अलग करते है क्यूकी बीम सेतु में अबटमेंट्स केवल कीनारो पर होते थे। ये सेतु पथरो के प्रियोग से बनाए जाते है एन्को बनाने की सुरुआत ग्रीको ने की थी २१० मीटर के स्पान के साथ सोलकं सेतु जो की सोका नदी के ऊपर सॉलवेनिया के सोलकं में है दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पथर से निर्मित आर्क सेतु है ईस्का निर्माण १९०५ में हुआ था और इसके निर्माण में ५०००० टन पथर का प्रियोग हुआ था यह सेतु केवल १८ दिनो में बनकर पूरा हो गया था वही फ़र्देनबृशके सेतु दुनिया का सबसे बड़ा आर्क सेतु है। ईस्के अंदर हर स्पान की लंबाई ९० मीटर है। ईं दोनो सेतुओ में केवल इतना अंतर है कि सोलानक सेतु केवल पथर् से निर्मित सेतु है वही फ़र्देनबृशके सेतु में पथर के अलवा सीमेन्ट का भी प्रियोग किया गया है। इन्हें भी देखें विभिन्न प्रकार के सेतु विश्व के सबसे लम्बे चाप-सेतुओं की सूची झूला पुल रवीन्द्र सेतु हावड़ा सेतु उपरिगामी सेतु मिलाऊ वायाडक्ट सेतु बाहरी कड़ियाँ Bridges : पुलों के बारे में सर्वांगीण जानकारी
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सोफ़ी टर्नर
सोफ़ी बेलिंडा जोनस (विवाह पूर्व टर्नर) एक अंग्रेज़ अदाकारा हैं। ये गेम ऑफ़ थ्रोन्स में सांसा स्टार्क तथा ऐक्स-मेन फ़िल्म शृंखला में एक युवा जीन ग्रे/फ़ीनिक्स का किरदार निभाने के लिए जानी जातीं हैं। ये मशहूर अमरीकी गायक एवं गीतकार जो जोनस की बीवी और बॉलीवुड की नामवर अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा की जेठानी हैं। आरम्भिक जीवन अभिनय निजी ज़िन्दगी साल 2016 में सोफ़ी ने मशहूर अमरीकी गायक एवं गीतकार जो जोनस को डेट करना शुरू किया था। इस जोड़े ने अगले ही बरस अक्टूबर में अपनी सगाई का ऐलान कर दिया। दो साल बाद दोनों ने दो बार शादी की। पहली रस्म 1 मई 2019 को लास वेगास में रखी गई थी और फिर दंपति ने उस ही वर्ष जून में परिवार की मौजूदगी में दोबारा शादी कर ली। सोफ़ी ने फ़रवरी 2020 में अपने गर्भवती होने की ख़ुशख़बरी दुनिया को सुनाई और 22 जुलाई को लॉस एंजिलिस के एक अस्पताल में बेटी को जन्म दिया। दंपति ने अपनी बेटी का नाम विला रखा है। अभिनय श्रेय सन्दर्भ जीवित लोग अंग्रेज़ फ़िल्म अभिनेता 1996 में जन्मे लोग
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सुज़ुकी सिआज़
सुज़ुकी सिआज़ 2014 से सुज़ुकी द्वारा निर्मित एक सबकॉम्पैक्ट सेडान है। इसे कई एशियाई, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी बाजारों में सुज़ुकी SX4 सेडान को बदलने के लिए विकसित किया गया है। यह भारत में पहली बार बिक्री पर गया, जो सितंबर 2014 में सुजुकी के लिए सबसे बड़ा बाजार था। यह वर्तमान में सुजुकी द्वारा निर्मित दो सेडान की बड़ी सेडान है, दूसरी डिजायर है । सियाज को मध्य पूर्वी बाजार के लिए 2021 से टोयोटा बैज के तहत टोयोटा बेल्टा के रूप में बेचा गया है। " बेल्टा " नेमप्लेट का प्रयोग पहले जापानी घरेलू बाजार XP90 टोयोटा यारिस सेडान के लिए किया गया था।
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अविरत यात्रा
[अविरत यात्रा] नई दिल्ली में धार्मिक और आध्यात्मिक युवाऒं द्वारा शुरू किया गया एक अभियान है। इस यात्रा का मकसद खुद की बेचैनी को दूर करना है। किस लिए बेचैन हैं हम? पूर्णता हासिल करने के लिए। इस सृष्टि के सूक्ष्म रज कण से लेकर विशालकाय पर्वत और क्षुद्र एक कोशकीय जीव से लेकर सर्वाधिक बुद्धिमान समझे जाने वाली मनुष्य जाति तक सभी सिर्फ और सिर्फ पूर्णता हासिल करने के लिए ही संघर्ष कर रहे हैं। अरबों वर्षों से एक अविरत यात्रा जारी है। चाहें वो मयखाने में बैठा शराबी हो या किसी मंदिर में बैठा पुजारी। सभी की जद्दोजहद का मकसद एक है। सिर्फ अवस्था विशेष का अंतर है। कोई आगे हैं और कोई पीछे। अब सवाल यह है कि क्या हम अधूरे हैं? अरबों अरब मनुष्यों की बेचैनी बताती है कि 'हां हम अपूर्ण हैं। अधूरे हैं।' मृत्यु जो हमारे जीवन का अटल सत्य है, हमें बार-बार याद दिलाती है कि 'हमारा बस तो खुद हमारे जीवन पर भी नहीं है।' हम तय नहीं कर सकते हैं कि ठीक अगले छण हमारे जीवन की दिशा क्या होगी। तो क्या नियति के दास के अतिरिक्त हम कुछ भी नहीं हैं? क्या हममें और कीट पर्यन्त क्षुद्र जीव में कोई अंतर नहीं है? और तभी हमारी चेतन बगावत कर उठती है। वैदिक मनीषियों से लेकर आधुनिक युग में स्वामी विवेकानंद तक की आवाज हमारे दिलो-दिमाग को झकझोर कर रख देती है। नहीं, मृत्यु हमारी नियति नहीं हो सकती है। सिर्फ श्वेताश्वर उपनिषद ही नहीं बल्कि हमारे अंतरमन से निकली आवाज भी हमसे कहती है कि वयमं अमृतस्य पुत्राः। हम अमृत के पुत्र हैं। अहमं ब्रहमास्मि। मैं स्वयं साक्षात ब्रहम हूं। और यकीन जानिए कि जब तक पूर्णता न मिल जाए, हममें से कोई भी चैन से नहीं बैठने वाला है। अब एक सवाल और है। ये पूर्ण अवस्था है क्या? आखिर इस पूर्णता के मायने क्या हैं? इसका जवाब आसान हैं। जब हमें उस अवस्था का प्रत्यक्ष ग्यान हो जाए, जिसका उल्लेख आदि जगत गुरु शंकराचार्य ने निर्वाण षटकम् में किया है। जरा देखिए तो आदि जगत गुरु निर्वाण षटकम् में क्या कह रहे हैं- मनोबुध्यहंकार चिताने नाहं। न च श्रोतजिव्हे न च घ्राणनेत्रे। न च व्योमभूमी न तेजू न वायु। चिदानंदरुप शिवोहं शिवोहं ॥ १ ॥ इस श्लोक की पहली तीन पंक्तियों में हम क्या नहीं है यह बताया गया है। शंकराचार्य जी कहते हैं कि मैं मन, बुद्धि, अहंकार, नाक, कान, जुबान, त्वचा, आंखे, पृथ्वी, आप, तेज, वायू, आकाश इन में से कुछ भी नहीं। बाकी रहा प्राण, आत्मा वही मैं हूं। और यह आत्मा कैसा है? तो वह भगवंतरूप शिवरूप, सत चित आनंदरूप, शिवरूप है। अविरत यात्रा
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF
बरांगाय
बरांगाय (barangay, brgy, bgy) फ़िलिपीन्ज़ की प्रशासन प्रणाली में सबसे छोटा प्रशासनिक विभाग होता है और अक्सर गाँव, ज़िले या मोहल्ले के लिए प्रयोग होता है। अनौपचारिक भाषा में किसी भी शहर के अंदरूनी मोहल्ले को बरांगाय कहते हैं। यह शब्द कई ऑस्ट्रोनीशियाई भाषाओं के "बलांगाय" शब्द का विकृत रूप है, जिसका अर्थ एक विशेष प्रकार की "नाव" होता है जिसपर प्राचीनकाल में ऑस्ट्रोनीशियाई लोगों ने फ़िलिपीन्ज़ द्वीपों पर अप्रवास करा था। इन्हें भी देखें मुहल्ला ऑस्ट्रोनीशियाई भाषाएँ सन्दर्भ फ़िलिपीन्ज़ के उपविभाग फ़िलिपीनी संस्कृति फ़िलिपीनी समाज मानवीय पर्यावास तगालोग शब्द मुहल्ले देशीय उपविभागों के प्रकार
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%20%28%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A3%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%29
नियंत्रक (नियंत्रण सिद्धान्त)
नियंत्रण सिद्धान्त में नियन्त्रक (कन्ट्रोलर) वह युक्ति या उप-प्रणाली होती है जो गतिकीय तन्त्र को नियन्त्रित करने और उसकी संचालन स्थिति में आवश्यकता अनुसार भौतिक परिवर्तन करता है। डिजिटल कन्ट्रोल प्रणाली में नियंत्रक एक कलनविधि (एल्गोरिद्म) के रूप में होता है। नियन्त्रक का कार्य 'प्लान्ट' P के इन्पुट्स को इस प्रकार बदलना है कि उस सिस्टम को इच्छित प्रावस्था (स्टेट) में ले जाया जा सके। यह भी आवश्यक होता है कि सिस्टम को इच्छित प्रावस्था में ले जाने में कम से कम समय लगे, कम से कम ऊर्जा का व्यय हो, ओवरशूट/अन्डरशूट एक सीमा में रहें, स्थायी स्थिति में त्रुटि न्यूनतम या शून्य हो, आदि आदि। पीआईडी नियंत्रक एक प्रसिद्ध पारम्परिक नियन्त्रक है जो अब भी बहुतायत में प्रयोग किया जाता है। किन्तु अब कुछ अन्य प्रकार के नियन्त्रक भी प्रय्ग किये जाने लगे हैं, जैसे अरैखिक नियंत्रक, अनुकूली नियंत्रक (adaptive controller), इष्ट नियंत्रक (ऑप्टिमल कन्ट्रोलर), मॉडेल प्रिडिक्टिव कन्ट्रोलर, रोबस्ट कन्ट्रोलर, बुद्धिमान नियंत्रक आदि। इन्हें भी देखिये पीआईडी नियंत्रक सन्दर्भ नियंत्रण
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कट्टरतावाद
कट्टरतावाद, कट्टरवाद या मूलभूतवाद () आमतौर पर एक ऐसी धार्मिक धारणा है जो कि जड़ या अपरिवर्तनीय मान्यताओं के प्रति अटूट लगाव को इंगित करती है। हालांकि, कट्टरतावाद कुछ निश्चित समूहों के बीच एक प्रवृत्ति के तौर पर लागू होता आया है। यह मुख्य रूप से धर्म में, यद्यपि एकमात्र रूप में नहीं, दिखाई पड़ता है जो कि सख़्त अविकलता (strict literalism) द्वारा चित्रित है। कट्टरतावाद कुछ विशिष्ट धर्मग्रंथों, आस्थातंत्रों, या विचारधाराओं और अंतर्समूह और बाह्यसमूह के अंतर को बनाए रखने की सार्थकता की एक मजबूत भावना पर लागू होता है, जिसका पवित्रता पर विशेष जोर होता है और एक पूर्ववर्ती आदर्श पर लौटने की इच्छा रखता है जहाँ से इसके हिमायतियी मानते हैं कि सदस्य भटक गए हैं। मान्यताओँ की विविधता का नकार, जैसा कि इन स्थापित "मूल सिद्धांतों" और समूह के भीतर उनकी स्वीकृत व्याख्या पर लागू होती है, अक्सर इस प्रवृत्ति से उत्पन्न होती है। इन्हें भी देखें सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ कट्टरतावाद धार्मिक कट्टरतावाद
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तौकीर रज़ा खान
तौकीर रज़ा खान एक भारतीय राजनीतिज्ञ और उत्तर प्रदेश राज्य के इस्लामी धर्मगुरु हैं। वह बरेली मसलक के एक धार्मिक नेता और राजनीतिक दल इत्तेहाद-ए-मिल्लत परिषद के संस्थापक हैं। वह अहमद रज़ा खान के परपोते हैं। देवबंदी मुसलमानों द्वारा भेदभाव का दावा करते हुए, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से अलग होने के बाद वह ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (जदीद) के प्रमुख भी हैं। व्यक्तिगत जीवन करियर धार्मिक करियर विचार विवाद संदर्भ जन्म वर्ष अज्ञात (जीवित लोग) जीवित लोग
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पालक्काड़ जंक्शन रेलवे स्टेशन
पालक्काड़ जंक्शन (पहले ओलावक्कोड जंक्शन, स्टेशन कोड: PGT), भारतीय राज्य केरल के पालक्काड़ शहर में स्थित एक रेलवे स्टेशन है, और जिले का दूसरा सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन है। भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, पालक्काड़ जंक्शन केरल राज्य का सबसे स्वच्छ रेलवे स्टेशन है। यह षोर्णुर जंक्शन और त्रिवेंद्रम सेंट्रल रेलवे स्टेशन के बाद पटरियों की संख्या के मामले में केरल राज्य का तीसरा सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन है। यह केरल के सबसे लंबे रेलवे प्लेटफार्मों में से एक है। स्टेशन से श्री गुरुवायुरप्पन मंदिर 3 किमी, पुथूर, जहां प्रसिद्ध पुथूर-वेला प्रतिवर्ष मनाया जाता है 5 किमी, पलक्कड़ फोर्ट 5.6 किमी, धोनी झरने 7.2 किमी, सिरुवेनी बांध 43 किमी और साइलेंट वैली नेशनल पार्क 45 किमी की दूरी पर स्थित है यह केरल के पालक्काड़ शहर के लिए प्रमुख रेलवे केन्द्र के रूप में कार्य करता है, जबकि दूसरा छोटा स्टेशन पलक्कड़ टाउन रेलवे स्टेशन है जो शहर के भीतर स्थित है। अवस्थिति स्टेशन पलक्कड़ केएसआरटीसी बस स्टैंड से पर स्थित है। ओलवाक्कोड पलक्कड़ का एक उपनगर है और एनएच 213 पर स्थित है जो पालक्काड़ को कोड़िकोड से जोड़ता है। यह स्टेशन पालक्काड़ रेलवे मंडल का मुख्यालय भी है। यह भारतीय रेलवे के दक्षिणी रेलवे क्षेत्र के महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशनों में से एक है। रेलमार्ग पालक्काड़ जंक्शन जोलारपेट्टई-शोरानूर रेलवे मार्ग पर स्थित है और पलक्कड़ - मदुरई रेल मार्ग का समाप्ति बिंदु है। भूमिकारूप व्यवस्था स्टेशन में पांच प्लेटफार्म उपलब्ध है। प्लेटफार्म 1, 2 और 3 का उपयोग शोरनूर, त्रिशूर और पलक्कड़ शहर की ओर जाने वाली ट्रेनों के लिए किया जाता है, वहीं प्लेटफॉर्म 4 और 5 का उपयोग मुख्य रूप से चेन्नई की ओर जाने वाली ट्रेनों के लिए किया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम, जो प्रचलित रूट रिले इंटरलॉकिंग सिस्टम को बदल देगा, को भी पूरा किया गया। पोलाची जंक्शन से ट्रेनों के यहां प्रवेश करते ही जंक्शन पर ट्रेन का आवागमन काफी अधिक हो जाएगा। मेमू शेड यहां षोर्णुर और इरोड के बीच चलने वाली उपनगरीय ट्रेनों की देख-भाल के लिए एक मेनलाइन इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट मेमू शेड संचालित किया जाता है। संदर्भ बाहरी कड़ियाँ भारत के रेलवे जंक्शन केरल में रेलवे स्टेशन पालक्कड़ रेलवे मंडल पालक्काड़ ज़िला
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डोगा
डोगा एक काल्पनिक चरित्र है, एक भारतीय कॉमिक बुक एंटी-हीरो कैरेक्टर है जो राज कॉमिक्स में प्रदर्शित होता है, जो पूरे भारत में प्रकाशित और वितरित किया जाता है। नवंबर 1992 में तरुणकुमार वाही, संजय गुप्ता और कलाकार मनु द्वारा निर्मित, डोगा उस समय राज कॉमिक्स में पहला और इकलौता एंटी-हीरो था। यह किरदार पहली बार कर्फ्यू इशू में दिखाई दिया था। उसका पहला नाम सूरज है, हालांकि उसका उपनाम अभी तक निर्दिष्ट नहीं किया गया है। अपने अतीत में हुई घटनाएं और अपने जीवन में हुई क्रूरता से प्रभावित, परिस्थितियों के परिणामस्वरूप एक अनाथ युवा सूरज ने जीवन भर विकृत अपराध प्रणाली से नफरत की। बचपन से झेले गए दर्द और अफसोस को खत्म करने और अपने करीबी लोगों की मौत का बदला लेने के लिए सूरज ने एक कुत्ते के मुखौटे के पीछे अपनी पहचान छुपाई, "डोगा" नामक एक क्रूर और खूंखार निग्रानीकर्ता के किरदार को अपनाया और अपने शहर को अपराध और भ्रष्टाचार से साफ करना शुरू किया, जिसकी शुरुआत उसने स्थानीय गुंडों के नरसंहार से की। बचपन से ही आघातित होने के कारण डोगा एक सनकी और क्रूर लेकिन आदर्शवादी निगरानीकर्ता होता है जो समस्या को हल करने के बजाय उसे उखाड़ फेंकने में विश्वास करता है, और दुनिया के कानूनों को बनाए रखने में विश्वास नहीं करता है क्योंकि वह पूरी व्यवस्था को भ्रष्ट मानता है। अपने अनेक प्रशंसकों के कारण डोगा को राज कॉमिक्स द्वारा बनाए गए तीन सबसे लोकप्रिय कॉमिक्स में से एक माना जाता है (अन्य दो नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव हैं)। उनकी कॉमिक्स में वास्तविक जीवन जैसी कहानियाँ हैं जो आमतौर पर सच्ची घटनाओं से प्रेरित होती हैं, जो उनकी कॉमिक्स को विज्ञान कथा से दूर एक यथार्थवादी दुनिया देती हैं, जिसके कारण वह वयस्क पाठकों के बीच अधिक लोकप्रिय है। अगस्त 2008 में भारतीय फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप ने घोषणा की कि वे सोनी पिक्चर्स इंटेरटैनमेंट द्वारा निर्मित एक परियोजना में डोगा के चरित्र पर एक फिल्म बनाएंगे। उत्पादन वर्ष 2010 के मध्य में शुरू होने की उम्मीद थी। लेकिन परियोजना को स्थगित कर दिया गया। उत्पादन 2013 के मध्य में शुरू होने की उम्मीद थी और माना जा रहा था कि कुणाल कपूर मुख्य भूमिका निभाएंगे। मूल सूरज एक अनाथ था जिसे बचपन में एक क्रूर डकैत डाकू हल्कन सिंह ने कूड़े के ढेर में ढूंढा था, जिसका उसने पुलिस छापे के दौरान खुदको बचाने के लिए इस्तेमाल किया। लेकिन उसने सूरज के साथ कुत्ते की तरह व्यवहार किया (वह उसे कुत्ता कहकर ही बुलाता था)। हल्कन की देखभाल में बच्चे ने अंतहीन भयावहता देखी जो अंततः उसे मनोविकृत बनने की ओर ले गई। आखिरकार वह एक अपहृत लड़की सोनू के साथ हलकान की गुफा से भाग निकला। सूरज का जीवन बेहतर होना शुरू हुआ जब वह आद्रक चाचा और उनके भाइयों से मिला। शुरुआत में वह दूसरों से छिपकर उनके जिम में कसरत करता था। उसके जुनून को देखकर अदरक ने बच्चे को भारोत्तोलन के लिए अपने जिम (लायन जिम) का उपयोग करने की अनुमति दी, जिससे उसे अपनी मांसपेशियों का बनाने में मदद मिली। उसने हल्दी खान से मार्शल आर्ट, धनिया खान से मुक्केबाजी और कालीमिर्ची खान से निशानेबाजी और फाइटर पायलट का प्रशिक्षण भी लिया। इसके कुछ समय बाद सूरज ने अपने इस नए परिवार पर आई त्रासदी के कारण डोगा का रूप लिया। जिम के एक पूर्व सदस्य किलोटा ने खुद के लिए एक जगह बनाई और अपने प्रतिद्वंद्वियों को स्थायी रूप से खत्म करने की कोशिश की। किराए के गुंडों द्वारा किए गए नरसंहार में सूरज अकेला जीवित बचा था। बदला लेने के लिए सूरज ने अपनी पहचान छिपाने के लिए एक कुत्ते का मुखौटा पहनकर डोगा के रूप को अपनाया। उसने किलोटा के गिरोह को मार डाला और आगे चलकर संगठित अपराध (खासकर मुंबई में) के खिलाफ अकेले लड़ना शुरू किया। उसके बाद उसने डाकू हल्कन सिंह को मार डाला, जो उस समय तक मंत्री हलकट बन चुका था। उसकी अकेले युद्ध लड़ने की बहादुर छवि के कारण मुंबई के लोग उसे 'मुंबई का बाप' कहते हैं। महत्वपूर्ण आँकड़े: ऊंचाई - 6'5 वजन - 94 किलो लव इंटरेस्ट - मोनिका / लोमडी (वह इंस्पेक्टर चीता की छोटी बहन है, जो शुरू में खुद को लोमडी के रूप में प्रच्छन्न करती है क्योंकि वह डोगा से नफरत करती थी और उसकी असली पहचान जानना चाहती थी, लेकिन जब उसे पता चला कि डोगा कोई और नहीं बल्कि सूरज है, तो उसका मंगेतर, वह तय करती है कि डोगा के प्रयास में उसकी मदद करने के लिए वह हमेशा मौजूद रहेगी। वह अभी भी अपराधियों से निपटने के डोगा के बर्बर तरीके से नफरत करती है, लेकिन फिर भी, उससे प्यार करती है। हालांकि, डोगा नहीं जानता कि मोनिका लोमडी है। ) क्षमताएं और ताकत असाधारण शारीरिक शक्ति और धीरज, मार्शल आर्ट के विशेषज्ञ, गोलियों को चकमा देने की क्षमता (काली मिर्च कला), विशेषज्ञ निशानेबाज, उनके शस्त्रागार में बहुत सारे हथियार हैं, कुत्तों के साथ संवाद कर सकते हैं और उन्हें आदेश दे सकते हैं, त्वरित सजगता और एक चतुर दिमाग है जो उसे अपने दुश्मनों से खतरे पर बातचीत करने के साथ-साथ पुलिस द्वारा पकड़े जाने से बचने में सक्षम बनाता है। उनकी शारीरिक शक्तियाँ जिम में अत्यंत कठोर कसरत का परिणाम हैं, अन्य सुपर-नायकों के विपरीत जिनके पास विशेष महाशक्तियाँ हैं (उदाहरण के लिए- परमाणु, जो अपनी परमाणु महाशक्ति के लिए उन्नत विज्ञान पर निर्भर हैं या शक्ति जिनके पास देवी जैसी महाशक्तियाँ हैं)। उसने कोबी से भी लड़ा है, जो एक भेड़िया जैसा सुपरहीरो है, जो उससे कहीं ज्यादा लंबा और मजबूत है। वह सबसे मजबूत सुपरहीरो है, अगर विशेष शक्तियों पर विचार नहीं किया जाता है। डोगा नाम कुत्ते की व्युत्पत्ति है, एक ऐसा प्राणी जो बेहद बहादुर है। कुत्ते डरावने भी होते हैं और उन्हें अक्सर सुरक्षा के लिए रखा जाता है। कुत्ते के ये स्वभाव डोगा के चरित्र में काफी प्रमुख हैं। हालाँकि "डोगा" नाम के पीछे एक अलग कहानी है जो उनकी एक कॉमिक्स में छपी थी। यह नाम उसके चारों चाचाओं के संस्थानों से आए हैं - लायन डेन (Den), लायन अकल्ट (Occult), लायन जिम (Gym) और लायन एम (Aim)। सबसे उपयुक्त रूप से एक निग्रानीकर्ता सुपरहीरो के रूप में वर्गीकृत किए जाने वाला डोगा एक शिकारी कुत्ते की तरह दिखने वाला मुखौटा पहनता है और अपने विनाशकारी तौर-तरीकों से अपराधियों के मन में आतंक पैदा करता है। डोगा अपराधियों को बल से मारना पसंद करता है जो कभी-कभी अत्यधिक होता है लेकिन यही उसे रोमांचक बनाता है। डोगा अक्सर अपने चाचाओं की सहायता लेता है, खासकर कालीमिर्च चाचा से जो एक निशानेबाज हैं। डोगा की अपने शहर मुंबई से भी काफी प्रासंगिकता है। मुंबई का डोगा के चरित्र पर और कहानी पर गहरा प्रभाव रहता है। पुलिस के बीच भ्रष्टाचार, राजनीतिक हत्याएं, आतंकवादी हमले, अंडरवर्ल्ड अपराध आदि डोगा की कहानियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। डोगा के कई कारनामों में सूरज के मुंबई के परिदृश्य और शहरी परिदृश्यों के उत्कृष्ट ज्ञान का लाभ उठाना शामिल है। मित्र डोगा (सूरज) ने अपनी कहानियों के दौरान कई दोस्त बनाए, जिनमें से कुछ को उसकी वास्तविक पहचान के बारे में पता चल गया। राघवेंद्र चाचा अदरक चाचा धनिया चाचा हल्दी चाचा काली मिर्ची चाचा इंस्पेक्टर चीता (अब सेवानिवृत्त, निजी जासूस के रूप में कार्यरत) मोनिका - इंस्पेक्टर चीता की बहन। डोगा के बाद के मुद्दों में यह पता चला था कि सूरज चौधरी के परिवार के न्यायाधीश के अंतर्गत आता है और किरण को अपनी बहन के रूप में जोड़ता है जो उसकी सहयोगी है और उसकी गुप्त पहचान जानता है। मोहर सिंह (शेर जिम के रसोइया) इंस्पेक्टर सूर्य डॉ. भानु किरण बाद की एक कहानी में यह पता चलता है कि मोनिका वास्तव में सूरज की खोई हुई प्रेमिका सोनू थी, जिसके बारे में डोगा सोचता था कि उसकी मृत्यु कई साल पहले हो गई थी। यह "आई लव यू" नामक एक कॉमिक और उपन्यास में बताया गया था। उसने राज कॉमिक्स के अन्य सुपरहीरो के साथ भी काम किया है, जिनमें परमानु, नागराज, सुपर कमांडो ध्रुव, इंस्पेक्टर स्टील, भेरिया और शक्ति शामिल हैं। सभी चाचा राघवेंद्र चाचा: वह अन्य सभी चाचाओं के गुरु घंटाल (शिक्षकों के शिक्षक) हैं। उन्हें अक्सर महान चाची के साथ भी जाना जाता था। अदरक चाचा: एक बार के भारोत्तोलन चैंपियन। वह लॉयन जिम चलाते हैं। डोगा के लिए एक पिता के समान। धनिया चाचा: अदरक का छोटा भाई। एक पूर्व-भारी मुक्केबाजी चैंपियन, अब अपना खुद का मुक्केबाजी स्कूल 'लायंस डेन' नाम से चलाता है। डोगा ने उनसे बॉक्सिंग कला सीखी। धनिया का अर्थ धनिया (या सीताफल) भी होता है। हल्दी चाचा: अदरक का एक और भाई। मार्शल आर्ट का विशेषज्ञ। 'लायन ऑकल्ट' नाम का एक मार्शल आर्ट सेंटर का मालिक है। डोगा को मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण दिया। हल्दी का अर्थ हल्दी भी होता है। कालीमिर्ची चाचा: भाइयों में से अंतिम। एक चैंपियन शार्प शूटर। आग्नेयास्त्रों और विस्फोटकों में विशेषज्ञ। शूटिंग के लिए ट्रेनिंग सेंटर 'लायन ऐम क्लब' चलाता है। डोगा ने उनकी देखरेख में अपने निशानेबाजी कौशल का सम्मान किया। कालीमिर्ची का मतलब काली मिर्च भी होता है। तूने मारा डोगा को कॉमिक में डोगा को उसके चारों चाचा काल पहेलिया के प्रभाव में आकर उसे लगभग मार डालने वाले थे। दुश्मन उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी हैं: काल पहेलिया जेनाइन चटर्जी बिहारी भाई बुल्डॉग रात की रानी बिग बैड बॉस रेड बटन कालनित्य ब्लडमैन सरकार युवा जाह्नवी बेहल ऐंग्री झा अभिनव देसोर गायबचंद निर्मूलक शक्तियाँ डोगा कुत्तों से बात कर सकता है, जिसकी मदद से मुंबई के सीवरों में चलते हुए उसे जानकारी मिलती रहती है। इसके अलावा उसके पास कोई विशेष शक्ति नहीं है। वह बचपन में अपराधियों और अपराध से पीड़ित दर्द के कारण अपने क्रोध को नियंत्रित करने के लिए अपराध से लड़ता है। युद्ध में वह अपने मार्शल आर्ट प्रशिक्षण, अपनी निडरता, जिम में वर्षों कसरत करने के कारण अपनी प्रभावशाली शारीरिक शक्ति के साथ-साथ बंदूकों और बमों के ऊपर निर्भर करता है। डोगा ने असाधारण रूप से उच्च स्तर की दर्द सहनशीलता दिखाई है। प्रकाशित श्रृंखला राज कॉमिक्स ने खून में जन्मा नामक डोगा कॉमिक्स की एक श्रृंखला प्रकाशित की। यह डोगा कॉमिक्स की एक लंबी श्रंखला थी। श्रृंखला की पहली कॉमिक्स में डोगा तेरे करण और कई अन्य कहानियाँ शामिल हैं। कालानुक्रमिक क्रम में इस श्रृंखला के भाग हैं- रक्त श्रृंखला में जन्मे डोगा तेरे करन नसुर डोगा निकल पड़ा डोगा भूखा डोगा सो जा डोगा वफ़ा श्रृंखला वफा वफ़ादारी डोगा हिंदू है सीरीज डोगा हिंदू है अपना भाई दोगा डोगा हाय हाय रो पड़ा डोगा डोगा का कर्फ्यू एक्सप्रेस वे सीरीज एक्सप्रेसवे स्पीड एक्स स्पीड ब्रेकर थंबा वृद्ध योद्धा वृद्ध वॉरियर गोल्डन रेसर गोल्डन हीरो ओल्ड इज़ गोल्ड डोगा उनमूलन सीरीज डोगा निर्मूलक डोगा बेकाबु डोगा न्याय डोगा उन्मात डोगा अंश डोगा ध्वस्त निर्मूलक क्रांति डोगा अस्त रक्त कथा श्रृंखला कचरा पेटि मेरी सोनू बलिदान तुम्हारा हलकान हो टाइटल राज कॉमिक्स ने डोगा पर सैकड़ों कॉमिक्स बनाए हैं। एक सूची देखी जा सकती है राज कॉमिक्स द्वारा डोगा टाइटल डोगा की अब तक प्रकाशित सभी कॉमिक्स क्रमानुसार: कर्फ्यू ये है डोगा मैं हूँ डोगा अदरक चाचा गैंडा चोर सिपाही इन्स्पेक्टर चीता कुत्ता फौज मुकाबला बुल्डॉग खतरनाक (खास) हड़ताल डोगा ज़िन्दाबाद बिच्छू आखिरी गोली डोगा और झबरा सुपरबॉय गोल्डन हत्यारा कुत्ताराज जबरदस्त निशाना दिल पर बूबो-बूबो तिरंगा (खास) 786 (खास) मैं हूँ भेड़िया (खास) तंदूर मगरमच्छ चीख डोगा चीख लोमड़ी काली विधवा खराब कानून आई लव यू (खास) कायर हाँथ और हथियार मारा गया डोगा मरेंगे डोगा के दुश्मन दो फौलाद (खास) शेर का बच्चा (खास) मर्द और मुर्दा (खास) ठंडी आग (खास) खाकी और खद्दर (खास) खूनी पहेलियाँ (खास) डेड्लाइन मृत्युदाता ट्रॉम्बे ट्रिक डोगा को गाडो डोगा-शक्ति रात की रानी भूल गया डोगा (खास) सावधान डोगा (खास) कौन बड़ा जल्लाद (खास) चार मीनार खों का खतरा (खास) आठ घंटे (खास) डोगा मार (खास) निसाचर (खास) बट्लर टाइम ओवर (खास) बचिए मैडम वेलेंटाइन हे राम टॉर्चर जलियाँवाला आज मत मर जरा बच के घुसपैठिया (खास) 4 किलोमीटर आगे बाडीगार्ड वरदीवाला डोगा बिक गया डोगा मुंबई का बाप रेस हर मोड़ पर खड़ा है डोगा डोगा ने मारा (खास) हेड्लाइन डोगा हाजिर है डिंग डौंग डोगा वर्दी और बंदूक (खास) तूने मारा डोगा को अपुन बोला किल डोगा बॉम्बे डाइंग (खास) वेलकम डोगा वेलकम स्टील निशाने पर डोगा (खास) अदरक के पंजे (खास) क्यों मारूँ पागल को जान जोखिम में डोगा का पोस्ट्मॉर्टेम (खास) डोगा की अदालत बोली और बारूद (खास) क्यों फेंका कूड़े पर (खास) तू समझता क्यों नहीं डोगा (खास) ब्रह्मांड के रक्षक कालू 420 डोगा 440 (खास) अपुन पागल है डील (खास) डोगा माई ब्रदर (खास) ये शादी होकर रहेगी (खास) कोबी भाई (खास) एक म्यान दो तलवार (खास) गंगवर (खास) गुड टाइम बैड टाइम (खास) गटर हमारा है (खास) रोबो ब्रेकर (खास) दौलत है ऐसी चीज़ (खास) डोगा है ही ऐसी चीज़ (खास) मुझे मरना है (खास) पाकिस्तान ज़िन्दाबाद (खास) शैतान राग (खास) नरम गरम (खास) डोगा जेल में (खास) भाड़ में जा (खास) डोगा हमें दो (खास) घुसा हिन्दुस्तानी (खास) बाप का राज़ (खास) भाग डोगा भाग (खास) कौन बचेगा कौन मरेगा (खास) काला तिरंगा (खास) धमा चौकड़ी (खास) हाँथ उठा डोगा गन झुका स्टील (खास) अंधा डोगा (खास) गुंडा गमराज खूनी डोगा (खास) फौलाद नहीं फटते (खास) कहाँ गया डोगा (खास) बारूद पुत्र डोगा (खास) काल और डोगा (खास) काल और काली (खास) आई हेट डोगा पैसा फेंक तमाशा देख सूरज डोगा बन गोली नंबर 10 मैं भी पुलिसवाला हाँथ जोड़ हथियार छोड़ अब तू नहीं मैं डोगा से मरवाऊँगा गायबचंद इंडियन आइडल भाई कमाल है दूसरा खून गनतंत्र डुगडुगी डोगा डोगा नीति सुपर ईडियट खाकी चूहा डोगा हरण डोगा का एनकाउंटर सर्वनाश डोगा तेरे कारण (बॉर्न इन ब्लड सीरीज से) नासूर डोगा (बॉर्न इन ब्लड सीरीज से) निकल पड़ा डोगा (बॉर्न इन ब्लड सीरीज से) प्रसंजीत (खास) भूखा डोगा (बॉर्न इन ब्लड सीरीज से) सो जा डोगा (बॉर्न इन ब्लड सीरीज से) वफ़ा (वफ़ा सीरीज से) वफ़ादार (वफ़ा सीरीज से) डोगा हिन्दू है (डोगा हिन्दू है सीरीज से) अपना भाई डोगा (डोगा हिन्दू है सीरीज से) डोगा हाय हाय (डोगा हिन्दू है सीरीज से) रो पड़ा डोगा (डोगा हिन्दू है सीरीज से) डोगा का कर्फ्यू (डोगा हिन्दू है सीरीज से) एक्स्प्रेस वे (एक्स्प्रेस वे सीरीज से) स्पीड एक्स (एक्स्प्रेस वे सीरीज से) ब्रेक ब्रेकर (एक्स्प्रेस वे सीरीज से) थंबा (एक्स्प्रेस वे सीरीज से) 26/11 (खास) हल्ला बोल वृद्ध वॉरियर गोल्डन रेसर गोल्डन हीरो ओल्ड इज गोल्ड अभिशप्त 8:36 मातृभूमि चेहरा लक्ष्य बेधी लक्ष्य पुरुष 72 घंटे रावण डोगा शुभयस्य शीघ्रम रात का भक्षक डोगा निर्मूलक (डोगा उन्मूलन सीरीज से) डोगा बेकाबू (डोगा उन्मूलन सीरीज से) डोगा न्याय (डोगा उन्मूलन सीरीज से) डोगा उन्मत (डोगा उन्मूलन सीरीज से) डोगा अंश (डोगा उन्मूलन सीरीज से) डोगा ध्वस्त (डोगा उन्मूलन सीरीज से) निर्मूलक क्रांति (डोगा उन्मूलन सीरीज से) डोगा अस्त (डोगा उन्मूलन सीरीज से) कचरा पेटी (रक्त कथा सीरीज से) अब राज कॉमिक्स डाइजेस्ट भी प्रकाशित कर रहा है जिसमें डोगा के 3-6 कॉमिक्स के सेट शामिल हैं। अब तक 10 डाइजेस्ट जारी किए जा चुके हैं। अनुकूलन निर्देशक अनुराग कश्यप ने घोषणा की कि वह फैंटम फिल्म्स और राज कॉमिक्स द्वारा निर्मित डोगा पर एक फिल्म बनाएंगे, हालांकि यह परियोजना स्थगित कर दी गई है। हाल में राज कॉमिक्स ने विक्की कौल द्वारा निर्देशित रबर स्विच फिल्म्स के साथ "डोगा - मुंबई का रखवाला" नाम की एक लघु फ़िल्म का निर्माण किया। संदर्भ   भारतीय काॅमिक्स
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%B5
फीलपाँव
श्लीपद, फीलपाँव या हाथीपाँव (Elephantiasis) के रोगी के पाँव फूलकर हाथी के पाँव के समान मोटे हो जाते हैं। परंतु यह आवश्यक नहीं कि पाँव ही सदा फूले; कभी हाथ, कभी अंडकोष, कभी स्तन आदि विभिन्न अवयव भी फूल जाते हैं। रोग के बहुत से मामलों में कोई लक्षण होता तथापि, कुछ मामलों में हाथों, पैरों या गुप्‍तांगों में काफी अधिक सूजन हो जाती है। त्‍वचा भी मोटी हो सकती है और दर्द हो सकता है। शरीर में परिवर्तनों के कारण प्रभावित व्‍यक्त्‍िा को सामाजिक और आर्थिक समस्‍याएं हो सकती है। कारण और निदान संक्रमित मच्‍छर के काटने से इसके कीड़े फैलते है। जब मनुष्‍य बच्‍चा होता है तो आम तौर पर संक्रमण आरंभ हो जाता है। तीन प्रकार के कीड़े होते है जिनके कारण बीमारी फैलती है: Wuchereria bancrofti, Brugia malayi, और Brugia timori. Wuchereria bancrofti यह सबसे सामान्‍य है। यह कीड़ा lymphatic system को नुकसान पहुंचाता है। रात के समय एकत्रित किए गए खून को, एक प्रकार के सूक्ष्‍मदर्शी के द्वारा देखने पर इस बीमारी का पता चलता है। खून को thick smear के रूप में और Giemsa के साथ दाग के रूप में होना चाहिए।. बीमारी के विरूद्ध एंटीबाडियों हेतु खून की जांच भी की जा सकती है। यह शोथ न्यूनाधिक होता रहता है, परंतु जब ये कृमि अंदर ही अंदर मर जाते हैं, तब लसीकावाहिनियों का मार्ग सदा के लिए बंद हो जाता है और उस स्थान की त्वचा मोटी तथा कड़ी हो जाती है। लसीका वाहिनियों के मार्ग बंद हो जाने से यदि अंग फूल जाएँ, तो कोई भी औषध ऐसी नहीं है जो अवरुद्ध लसीकामार्ग को खोल सके। कभी कभी किसी किसी रोगी में शल्यकर्म द्वारा लसीकावाहिनी का नया मार्ग बनाया जा सकता है। इस रोग के समस्त लक्षण फाइलेरिया के उग्र प्रकोप के समान होते हैं। रोकथाम और उपचार जिस समूह में यह बीमारी हो, उस संपूर्ण समूह की उपचार के द्वारा वार्षिक आधार पर रोकथाम करके बीमारी से पूरी तरह छुटकारा पाया जा सकता है। इसमें लगभग छ: वर्ष लग सकते हैं। प्रयोग की गई दवाओं में albendazole के साथ ivermectin या albendazole के साथ diethylcarbamazine शामिल है।. दवाईयां बड़े कीड़ों को नहीं मारती परंतु कीड़ों के स्‍वयं मर जाने तक बीमारी को आगे फैलने से रोकती है। मच्छरों के काटने से बचाव के प्रयासों के साथ साथ मच्‍छरों की संख्‍या को कम करने और बेडनेट के प्रयोग की सिफारिश भी की जाती है। महामारी 120 मिलियन से अधिक व्‍यक्ति lymphatic filariasis से संक्रमित है। 73 देशों में लगभग 1.4 बिलियन व्‍यक्तियों पर बीमारी का खतरा मडरा रहा है। अफ्रीका तथा एशिया के क्षेत्र में यह आम हैं। इस बीमारी के कारण, एक वर्ष में कई बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान होता है। बाहरी कड़ियाँ Podoconiosis blog with video from Gimbie, Ethiopia 'End in Sight' for elephantiasis -Retrieved Oct 9 2008 Antibiotics help combat Elephantiasis Elephantiasis photographic documentation The Carter Center Lymphatic Filariasis Elimination Program सन्दर्भ रोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%20%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%BE
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना मुद्रा बैंक के तहत एक भारतीय योजना है जिसकी शुरुआत भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ८ अप्रैल २०१५ को नई दिल्ली में की थी। इस योजना का मुख्य उद्धेश स्वरोजगार को बढ़ावा देना है,इस योजना के तहत गैर-कॉर्पोरेट और गैर-कृषि, लघु/सूक्ष्म उद्यमों को 10 लाख रुपये तक की लोन सुविधा प्रदान की जाती है । आकडे की माने तो अब तक अनुमान है की देश में 18.60 लाख करोड़ रु का लोन लघु और सूक्ष्म उद्यमी को दिया जा चुका है उद्देश्य मुद्रा बैंक के तहत प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के हस्तक्षेप के तहत इसमें तीन श्रेणीयां है -शिशु ,किशोर और तरुण। ये तीनों श्रेणीयां लाभार्थियों को विकास और वृद्धि में मदद करेगी। यानि आसान शब्दों में कहा जाय तो मुद्रा लोन योजना केंद्र सरकार द्वारा निचले व माध्यम वर्ग के लोगों को आसान शर्तों व कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध करवाने के लिए शुरू किया गया है। मुद्रा बैंक के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैः 1. सूक्ष्म वित्त के ऋणदाता और कर्जगृहिता का नियमन और सूक्ष्म वित्त प्रणाली में नियमन और समावेशी भागीदारी को सुनिश्चित करते हुए उसे स्थायित्व प्रदान करना। 2. सूक्ष्म वित्त संस्थाओं (एमएफआई) और छोटे व्यापारियों, रिटेलर्स, स्वसहायता समूहों और व्यक्तियों को उधार देने वाली एजेंसियों को वित्त एवं उधार गतिविधियों में सहयोग देना। 3. सभी एमएफआई को रजिस्टर करना और पहली बार प्रदर्शन के स्तर (परफॉर्मंस रेटिंग) और अधिमान्यता की प्रणाली शुरू करना। इससे कर्ज लेने से पहले आकलन और उस एमएफआई तक पहुंचने में मदद मिलेगी, जो उनकी जरूरतों को पूरी करते हो और जिसका पुराना रिकॉर्ड सबसे ज्यादा संतोषजनक है। इससे एमएफआई में प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी। इसका फायदा कर्ज लेने वालों को मिलेगा। 4. कर्ज लेने वालों को ढांचागत दिशानिर्देश उपलब्ध कराना, जिन पर अमल करते हुए व्यापार में नाकामी से बचा जा सके या समय पर उचित कदम उठाए जा सके। डिफॉल्ट के केस में बकाया पैसे की वसूली के लिए किस स्वीकार्य प्रक्रिया या दिशानिर्देशों का पालन करना है, उसे बनाने में मुद्रा मदद करेगा। 5. मानकीकृत नियम-पत्र तैयार करना, जो भविष्य में सूक्ष्म व्यवसाय की रीढ़ बनेगा।6. सूक्ष्य व्यवसायों को दिए जाने वाले कर्ज के लिए गारंटी देने के लिए क्रेडिट गारंटी स्कीम बनाएगा। 7. वितरित की गई पूंजी की निगरानी, कर्ज लेने और देने की प्रक्रिया में मदद के लिए उचित तकनीक मुहैया कराएगा। 8. छोटे और सूक्ष्म व्यवसायों को प्रभावी ढंग से छोटे कर्ज मुहैया कराने की प्रभावी प्रणाली विकसित करने के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत उपयुक्त ढांचा तैयार करना। 9. प्रधानमंत्री मुद्रा योजना का मुख्य उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है और आर्थिक समावेशीकरण को बढ़ावा देना है। प्रदर्शन इस योजना के तहत मनीकंट्रोल॰कॉम के अनुसार, लगभग 1,65,000 लोग लाभ उठाने के ओवर-आलेखन सरकार ने 1 सितंबर 2015 से इस योजना के लिए अमरीकी डालर $ 157,400,000 जुटाए हैं इनको जहां सुविधा हुई है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Sarkari Yojana 2015 में भारत डिजिटल इण्डिया की पहल मोदी प्रशासन की पहल भारत में सरकारी योजनाएँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%81%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8%20%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%A8
जलवायु परिवर्तन सम्मेलन
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात जलवायु परिवर्तन को लेकर वैश्विक स्तर पर चर्चाएँ प्रारंभ हुईं। १९७२ मे स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में पहला सम्मेलन आयोजित किया गया। तय हुआ कि प्रत्येक देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए घरेलू नियम बनाएगा। इस आशय की पु्ष्टि हेतु १९७२ में ही संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का गठन किया गया तथा नैरोबी को इसका मुख्यालय बनाया गया। पृथ्वी सम्मेलन स्टॉकहोम सम्मेलन के २० वर्ष पश्चात ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में सम्बद्ध राष्ट्रों के प्रतिनिधि एकत्रित हुए तथा जलवायु परिवर्तन संबंधित कार्ययोजना के भविष्य की दिशा पर पुनः चर्चा आरंभ भी। इस सम्मेलन को रियो सम्मेलन, स्टॉकहोम २०, ९२ अभिसमय, तथा एजेण्डा २१ आदि नामों से भी जाना जाता है। रियो में यह तय किया गया कि सदस्य राष्ट्र प्रत्येक वर्ष एक सम्मेलन में एकत्रित होंगे तथा जलवायु संबंधित चिंताओं और कार्ययोजनाओं पर चर्चा करेंगें। इस सम्मेलन को कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (कोप) नाम दिया गया। १९९5 में पहला कोप सम्मेलन आयोजित किया गया। १९९५ से २०११ तक कुल १७ कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज आयोजित किये जा चुके हैं। प्रमुख जलवायु परिवर्तन सम्मेलन कोप-३, क्योटो, जापान १९९७ रियो-१०, रियो डि जेनेरियो, ब्राजील २००२ कोप-१३, बाली, इण्डोनेशिया २००७ कोप-15, कोपनहेगन कोप-१७, डरबन, दक्षिण अफ्रीका २०११ कोप-20, लिमा कोप-21, पेरिस, फ्रांस 2015 cop-23,cotavise,Poland 2018 सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ http://wayback.vefsafn.is/wayback/20090422213329/http://unep.org/ https://web.archive.org/web/20111222050605/http://www.un.org/geninfo/bp/enviro.html https://web.archive.org/web/20170423110639/http://www.earthsummit.info/ https://web.archive.org/web/20150905203912/http://wecanada.org/about-earth-summit/earth-summit-history/ पर्यावरण जलवायु परिवर्तन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%85%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0
मोहिनी अवतार
मोहिनी हिन्दू भगवान विष्णु का एकमात्र स्त्री अवतार है। इसमें उन्हें ऐसे स्त्री रूप में दिखाया गया है जो सभी को मोहित कर ले। उसके मोह में वशीभूत होकर कोई भी सब भूल जाता है, इस अवतार का उल्लेख महाभारत में भी आता है। समुद्र मंथन के समय जब देवताओं व असुरों को सागर से अमृत मिल चुका था, तब देवताओं को यह डर था कि असुर कहीं अमृत पीकर अमर न हो जायें। तब वे भगवान विष्णु के पास गये व प्रार्थना की कि ऐसा होने से रोकें। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर अमृत देवताओं को पिलाया व असुरों को मोहित कर अमर होने से रोका। मोहिनी अवतार और भस्मासुर भस्मासुर पौराणिक कथाओं में ऐसा दैत्य था जिसने भगवान शिव से वरदान माँगा था कि वो जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा। कथा के अनुसार भस्मासुर ने इस शक्ति का गलत प्रयोग शुरू किया और स्वयं शिव जी को भस्म करने चला। शिव जी ने विष्णु जी से सहायता माँगी। विष्णु जी ने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण किया, भस्मासुर को आकर्षित किया और नृत्य के लिए प्रेरित किया। नृत्य करते समय भस्मासुर विष्णु जी की ही तरह नृत्य करने लगा और उचित मौका देखकर विष्णु जी ने अपने सिर पर हाथ रखा, जिसकी नकल शक्ति और काम के नशे में चूर भस्मासुर ने भी की। भस्मासुर अपने ही वरदान से भस्म हो गया। समुद्र मंथन और मोहिनी अवतार समुद्र मन्थन के दौरान अंतिम रत्न अमृत कलश लेकर भगवान विष्णु धनवंतरी रूप में प्रकट हुए। असुर भगवान धन्वंतरि से अमृत कलश लेकर भाग गए तो विष्णु ने एक नारी का रूप लिया वे बहुत सुन्दर थी उस नारी का नाम मोहिनी रखा गया। मोहिनी ने असुरों से अमृत लिया और देवताओं के पास गईं। उन्होंने असुरों को अपनी ओर मोहित कर लिया और देवताओं को अमृत पिलाने लगीं। मोहिनी रूपी विष्णु की चाल स्वरभानु नाम का दानव समझ गया और वह देवता का भेस लेकर अमृत पीने चला गया। मोहिनी को जब ये बात पता चली तो उन्होंने स्वरभानु का सिर सुदर्शन चक्र से काट दिया किंतु तब तक उसके गले से अमृत की घूंट नीचे चली गई और वह अमर हो गया और राहु के नाम से उसका सिर और केतु के नाम से उसका धड़ प्रसिद्ध हुआ। सन्दर्भ धार्मिक ग्रन्थों का संदर्भ अग्नि पुराण ३.१२ (अमृत वितरण हेतु विष्णु द्वारा मोहिनी रूप धारण, रुद्र की मोहिनी पर आसक्ति व वीर्यपात आदि) गणेश पुराण २.३९.२० (भस्मासुर द्वारा शिव को मारने की चेष्टा पर विष्णु का मोहिनी रूप में प्रकट होना), गरुड़ पुराण १.२१.४(वामदेव शिव की १३ कलाओं में से एक), गर्ग संहिता १०.१७.२०(राजा नारीपाल की पत्नी, नारीपाल का वृत्तान्त), १०.१७.४६(रानी सुरूपा को पूर्व जन्म का स्मरण : मोहिनी अप्सरा द्वारा तप से सुरूपा रूप में जन्म), नारद पुराण १.६६.१२७(निरंजन की शक्ति मोहिनी का उल्लेख), १.९१.८०(वामदेव शिव की १२वीं कला), २.७(राजा रुक्मांगद को धर्मपथ से विचलित करने के लिए ब्रह्मा द्वारा मोहिनी की उत्पत्ति), २.२३(मोहिनी द्वारा रुक्मांगद राजा से एकादशी व्रत न करने का दुराग्रह), २.३२+ (मोहिनी द्वारा रुक्मांगद से पुत्र धर्मांगद के मस्तक की मांग), २.३५+ (देवताओं द्वारा मोहिनी को वरदान की चेष्टा, रुक्मांगद - पुरोहित के शाप से मोहिनी का भस्म होना, यम लोक में यातनाएं, दशमी के अन्त भाग में स्थान की प्राप्ति, पुन: शरीर प्राप्ति), २.८२(वसु ब्राह्मण के उपदेश से मोहिनी द्वारा तीर्थ यात्रा का उद्योग, दशमी तिथि के अन्त भाग में स्थित होना), पद्म पुराण २.३४.३९(सखियों द्वारा सुनीथा को पुरुष विमोहिनी विद्या का उपदेश), २.११८(विष्णु द्वारा मोहिनी रूप धारण कर विहुण्ड के विमोहन का वृत्तान्त), ४.१०(समुद्र मन्थन से अमृत उत्पन्न होने पर विष्णु का मोहिनी रूप धारण कर दैत्यों का विमोहन और देवों को अमृत प्रदान), ६.४९(वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी व्रत का माहात्म्य : धनपाल वैश्य के दुष्ट पुत्र धृष्टबुद्धि की मुक्ति), ६.२२०(मोहिनी वेश्या की प्रयाग जल से मुक्ति, जन्मान्तर में हेमांगी रानी बनना), ब्रह्मवैवर्त्त पुराण ४.३१+ (मोहिनी का रम्भा से संवाद, काम स्तोत्र, ब्रह्मा से संवाद, ब्रह्मा को शाप), ब्रह्माण्ड पुराण २.३.४.१०(अमृत वितरणार्थ विष्णु द्वारा धारित मोहिनी रूप पर शिव की आसक्ति), ३.४.१०.२७(मोहिनी अवतार द्वारा देवों को अमृतपान कराने का वर्णन, मोहिनी दर्शन से शिव का वीर्यपात), ३.४.१९.६५(कामदेव की ५ बाण शक्तियों में से एक), ३.४.१९.७४ (गीतिचक्र रथेन्द्र के पंचम पर्व पर स्थित १६ शक्तियों में से एक), भविष्य पुराण ३.२.१८(गौरीदत्त व धनवती - पुत्री, शूली आरोपित चोर से विवाह, प्रहेलिका का अर्थ बताने वाले पण्डित से गर्भ धारण आदि), भागवत पुराण १.३.१७(विष्णु के २१ अवतारों में १३वें मोहिनी अवतार का उल्लेख), ८.८+ (मोहिनी द्वारा अमृत वितरण का आख्यान), ८.१२(मोहिनी की क्रीडा का वर्णन, मोहिनी द्वारा शिव का मोहन), मत्स्य पुराण २५१.७(मोहिनी अवतार द्वारा असुरों के मोहन व देवों को अमृत प्रदान का कथन), वायु पुराण २५.४८(मधु - कैटभ से पीडित होने पर ब्रह्मा के समक्ष मोहिनी माया के प्रकट होने का कथन, ब्रह्मा द्वारा मोहिनी माया के नामकरण, मधु - कैटभ द्वारा मोहिनी से पुत्रत्व वर की प्राप्ति), २५.५० (महाव्याहृति : ब्रह्मा द्वारा मोहिनी माया को महाव्याहृति नाम प्रदान), शिव पुराण ३.२०(मोहिनी के रूप से शिव के वीर्य की च्युति, हनुमान का जन्म), स्कन्द पुराण १.१.१२(मोहिनी रूपी विष्णु द्वारा दैत्यों की अमृतपान से वंचना), लक्ष्मीनारायण १.९२(मोहिनी रूप धारी विष्णु द्वारा अमृत के वितरण की कथा), १.१६२.४२(मधु - कैटभ वध हेतु विष्णु द्वारा महामाया की सहायता से मोहिनी रूप धारण), १.१८४.५८(शिव को समाधि से बाहर लाने के लिए कृष्ण द्वारा मोहिनी रूप धारण, मोहिनी के दर्शन से ब्रह्मा, काम आदि के वीर्य का पतन, कामदेव की सहायता से मोहिनी द्वारा शिव को मोहित करना आदि), १.१९९.१६(शिव द्वारा दानवों को मोहित करनेv वाली मोहिनी के रूप के दर्शन की इच्छा, मोहिनी के दर्शन से वीर्यपात आदि का वृत्तान्त), १.२८६.१५(ब्रह्मा द्वारा राजा रुक्मांगद के व्रत को भंग करनेv के लिए मोहिनी का सृजन तथा रुक्मांगद के प्रति प्रेषण), १.२८७-२९२(रुक्मांगद - मोहिनी आख्यान), १.५१५.३(ब्रह्मा की मानसी कन्या मोहिनी द्वारा ब्रह्मा के सेवन का हठ, ब्रह्मा द्वारा उपेक्षा पर ब्रह्मा तथा ऋषियों को अपूज्यत्व तथा षण्ढत्व का शाप, षण्ढत्व नाश हेतु मोहिनी की अर्चना का कथन), २.५७.७८(निद्रा देवी का अपर नाम), २.२४६.९०(अज्ञानमूलक वृक्ष के रूपक में मोहिनी के रसतृष्णा होने का उल्लेख), ३.१६.८५(व्याघ्रानल असुर के वध हेतु लक्ष्मी द्वारा मोहिनी रूप धारण करना, व्याघ्रानल असुर का मोहिनी को देख जडीभूत होना आदि), ३.१७०.१९(विष्णु के ३३वें धाम के रूप में मोहिनी का उल्लेख), कथासरित्सागर ८.३.११८(याज्ञवल्क्य ऋषि द्वारा सूर्यप्रभ को मोहिनी विद्या प्रदान करना) शंकर ने दौड़कर क्रीड़ा करती हुई मोहिनी को ज़बरदस्ती पकड़ लिया। महादेव शिव शंकर की तत्कालीन दयनीय अवस्था का चित्र देखना हो तो श्रीमद्भागवत, स्कन्द 8, अध्याय 12, देखने का कष्ट करें जिसमें लिखा है- आत्मानं मोचयित्वाङग सुरर्षभभजान्तरात्।प्रादवत्सापृथु श्रोणी माया देवविनिम्र्मता।। 30।। तस्यासौ पदवीं रूद्रो विष्णोरद्भुत कम्मर्णः।प्रत्यपदत्तकामेन वैदिणेव निनिर्जितः।। 31।। तस्यानुधावती रेतश्चल्कन्दार्माघरेतसः।शुष्मिणो यूथपस्येव वासितामनु धावतः।। 32।। अर्थात् : हे महाराजा ! तदन्तर देवों में श्रेष्ठ शंकर के दोनों बाहुओं के बीच से अपने को छुड़ाकर वह नारायणनिर्मिता विपुक्ष नितंबिनी माया (मोहिनी) भागचली॥ 30: अपने वैरी कामदेव से मानो परास्त होकरमहादेव जी भी विचित्र चरित्र वाले विष्णु का मायामय मोहिनी रूप के पीछे-पीछे दौड़ने लगे॥ 31: पीछा करते-करते ऋतुमती हथिनी के अनुगामी हाथी की तरह अमोघवीर्य महादेव का वीर्य स्खलित होने लगा॥ 32।। बाहरी कड़ियाँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%86%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%A8
बिजोलिया किसान आन्दोलन
बिजोलिया आन्दोलन मेवाड़ राज्य के किसानों द्वारा 1897 ई मे किया गया था। यह आन्दोलन किसानों पर अत्यधिक लगान लगाये जाने के विरुद्ध किया गया था। यह आन्दोलन बिजोलिया जागीर से आरम्भ होकर आसपास के जागीरों में भी फैल गया। इसका नेतृत्व विभिन्न समयों पर विभिन्न लोगों ने किया, जिनमें फ़तेह करण चारण, सीताराम दास, विजय सिंह पथिक और माणिक्यलाल वर्मा के नाम उल्लेखनीय हैं। यह आन्दोलन लगभग आधी शताब्दी तक चला और 1941 में समाप्त हुआ। वर्तमान समय में बिजोलिया, राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित है। आंदोलन के मुख्य कारण थे- 84 प्रकार के लाग बाग़ (कर), लाटा कूंता कर (खेत में खड़ी फसल के आधार पर कर), चवरी कर (किसान की बेटी के विवह पर), तलवार बंधाई कर (नए जागीरदार बनने पर कर) आदि । यह सर्वाधिक समय (44 साल) तक चलने वाला एकमात्र अहिंसक आन्दोलन था। इसमें महिला नेत्रियो जैसे अंजना देवी चौधरी, नारायण देवी वर्मा व रमा देवी आदि ने भी प्रमुखता से हिसा लिया था। गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने समाचार पत्र प्रताप में इस आंदोलन को प्रमुखता दी थी। जानकी देवी का संबंध बिजौलिया किसान आंदोलन से रहा था। आन्दोलन के चरण इस आन्दोलन को मुख्यतः तीन चरणों में विभक्त माना जाता है- प्रथम चरण (1897-1916) बिजोलिया के राव कृष्ण सिंह ने किसानों पर पांच रुपए की दर से चवंरी कर लगा दिया था जिसके अंतर्गत किसानों को अपनी पुत्री के विवाह पर ठिकाने को कर देना पड़ता था। बिजोलिया ठिकाने में अधिकतर धाकड़ जाति के लोग थे। 1897 में गिरधारीपुरा नामक गांव में गंगाराम धाकड़ के पिता के मृत्यु भोज के अवसर पर किसानों ने एक सभा रखी जिसमें कर बढ़ोतरी की शिकायत मेवाड़ के महाराजा से करने का प्रस्ताव रखा गया। इस हेतु नानजी पटेल एवं ठाकरी पटेल को उदयपुर भेजा गया। महाराणा ने हामिद नामक जांच अधिकारी भेजा। 1913 में, फ़तेह करण चारण के नेतृत्व में, लगभग 15,000 किसानों ने 'नो टैक्स' अभियान शुरू किया, जिसके तहत उन्होंने बीजोलिया की भूमि को बंजर छोड़ने और इसके बजाय बूंदी, ग्वालियर और मेवाड़ राज्यों के पड़ोसी क्षेत्रों में किराए के भूखंडों पर खेती करने का फैसला किया। इसके परिणामस्वरूप पूरे बिजोलिया में कृषि भूमि असिंचित रह गई और खाद्य सामग्री की कमी के अलावा जागीर के राजस्व में भारी गिरावट आई। किसान आंदोलन में उनकी भूमिका के कारण, फ़तेह करण चारण से उनकी जागीर (सामंती-अनुदान) छीन ली गई और उन्हें मेवाड़ से निर्वासित कर दिया गया। 1906 कृष्ण सिंह की मृत्यु के बाद नये ठिकानेदार पृथ्वी सिंह ने जनता पर 'तलवार बधाई शुल्क' अर्थात उत्तराधिकार शुल्क लगा दिया। 1903 में साधु सीताराम दास व उनके सहयोगियों को बिजोलिया से निष्कासित कर दिया गया। स्थानीय नेताओं द्वारा आंदोलन चलाया गया - 1.प्रेमचंद भील 2. फतेहकरण चारण 3.ब्रह्मदेव द्वितीय चरण (1916 -1923 ) इस चरण का नेतृत्व विजय सिंह पथिक ने किया था जो 1916 में इस आन्दोलन से जुड़े थे जब पृथिवी सिंह ने जागीरदार बनने पर जनता पर 'तलवार बंधाई का कर' लगा दिया। 1917 ई में 'उपरमाल पंचायत बोर्ड' की स्थापना की गई व मन्ना जी पटेल को इसका अध्यक्ष बनाया गया। मेवाड़ रियासत में बिंदुलाल भट्टाचार्य 1919 की अध्यक्षता में आयोग गठित किया गया। AGG हॉलेंड के प्रयासों से किसानों व रियासत के बीच एक समझौता हुआ लेकिन ठिकाने ने इसे लागू नहीं किया। विजय सिंह पथिक ने इस आंदोलन के मुद्दे को कांग्रेस के अधिवेशन में उठाया। तृतीय चरण (1923-1941 ) तीसरे चरण में जमना लाल बजाज ने नेतृत्व संभाला एवं हरिभाऊ उपाध्याय को नियुक्त कर दिया। माणिक्यलाल वर्मा ने अपने 'पंछीड़ा' गीत से किसानों में जोश भर दिया। विजय सिंह पथिक का गीत - पीड़ितों का पंछीडा। भंवरलाल जी ने अपने गीतों से किसानों को प्रेरित किया। प्रेमचंद जी का रंगभूमि उपन्यास बिजौलिया आंदोलन पर आधारित है उमा जी का खेड़ा - यहां माणिक्य लाल वर्मा विद्यालय संचालित किया करते थे। 1941 में रियासत व किसानों के बीच समझौता हो गया एवं आंदोलन का अंत हो गया।  सन्दर्भ भारत के किसान आन्दोलन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%20%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AE%E0%A4%A3%E0%A4%BF%20%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%B2
राम शिरोमणि शुक्‍ल
राम शिरोमणि शुक्‍ल,भारत के उत्तर प्रदेश की पंद्रहवी विधानसभा सभा में विधायक रहे। 2007 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के रानीगंज विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से बसपा की ओर से चुनाव में भाग लिया। इनके खिलाफ आरोप है कि इन्होंने अजबनारायण हरिश्चंद्र नाम से एक डिग्री कॉलेज खोला है जिसके लिए जो जमीन ली गई उसमे कई लोगों को धमकाया गया और जबरन कब्जा आदि किया, सरकारी जमीनों पर भी अवैध कब्जा किया गया। कई बार बीजेपी में शामिल हुए और कई बार वापिस बीएसपीमें भी आए सन्दर्भ उत्तर प्रदेश 15वीं विधान सभा के सदस्य बीरापुर के विधायक
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जैविक खाद्य पदार्थ
जैविक खाद्य पदार्थ इस तरीके से बनाये जाते हैं कि उत्पादन के दौरान सिंथेटिक सामग्री के उपयोग को सीमित किया जा सके अथवा बाहर निकाला जा सके. मानव इतिहास के अधिकांश हिस्से में कृषि का वर्णन जैव के रूप में किया जा सकता है; केवल 20वीं सदी के दौरान भोजन आपूर्ति के लिए अधिक मात्रा में कृत्रिम रसायनों की आपूर्ति की गई थी। उत्पादन की इस नवीनतम शैली को "परमाणु रहित" कहा जाता है। जैविक उत्पादन के तहत, परमाणु रहित अजैविक कीटनाशकों, कीटनाशक दवाईयों और औषधियों का प्रयोग प्रतिबंधित हैं और यह अंतिम उपाय के रूप में सुरक्षित है। हालांकि, आम धारणा के विपरीत कुछ अजैविक उर्वरकों का उपयोग अभी भी किया जाता है। अगर पशुओं को शामिल किया जाये तो एंटीबायोटिक दवाओं और वृद्धि हार्मोन के नित्य इस्तेमाल के बिना उनका पालन-पोषण किया जाना चाहिए और आमतौर पर उन्हें स्वस्थ आहार खिलाना चाहिए. अधिकांश देशों में, जैविक उत्पादन आनुवांशिक रूप से संशोधित नहीं होता है। यह सुझाव दिया गया है कि कृषि और खाद्य में नैनोप्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग एक और प्रौद्योगिकी है जिसे प्रमाणित जैविक खाद्य पदार्थ से बाहर निकालने की आवश्यकता है। द सॉयल एसोसिएशन (यूके (UK)) नैनो-अपवर्जन लागू करने वाला पहला जैविक प्रमाणकर्ता है। त्यापैकी पहिल्या गटातील पदार्थ हे सजीवांपासून जैविक खाद्य पदार्थ इस तरीके से बनाये जाते हैं कि उत्पादन के दौरान सिंथेटिक सामग्री के उपयोग को सीमित किया जा सके अथवा बाहर निकाला जा सके. मानव इतिहास के अधिकांश हिस्से में कृषि का वर्णन जैव के रूप में किया जा सकता है; केवल 20वीं सदी के दौरान भोजन आपूर्ति के लिए अधिक मात्रा में कृत्रिम रसायनों की आपूर्ति की गई थी। उत्पादन की इस नवीनतम शैली को "परमाणु रहित" कहा जाता है। जैविक उत्पादन के तहत, परमाणु रहित अजैविक कीटनाशकों, कीटनाशक दवाईयों और औषधियों का प्रयोग प्रतिबंधित हैं और यह अंतिम उपाय के रूप में सुरक्षित है। हालांकि, आम धारणा के विपरीत कुछ अजैविक उर्वरकों का उपयोग अभी भी किया जाता है। अगर पशुओं को शामिल किया जाये तो एंटीबायोटिक दवाओं और वृद्धि हार्मोन के नित्य इस्तेमाल के बिना उनका पालन-पोषण किया जाना चाहिए और आमतौर पर उन्हें स्वस्थ आहार खिलाना चाहिए. अधिकांश देशों में, जैविक उत्पादन आनुवांशिक रूप से संशोधित नहीं होता है। यह सुझाव दिया गया है कि कृषि और खाद्य में नैनोप्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग एक और प्रौद्योगिकी है जिसे प्रमाणित जैविक खाद्य पदार्थ से बाहर निकालने की आवश्यकता है। द सॉयल एसोसिएशन (यूके (UK)) नैनो-अपवर्जन लागू करने वाला पहला जैविक प्रमाणकर्ता है। जैविक खाद्य उत्पादन अत्यंत विनियमित उद्योग है, जो निजी बागवानी से भिन्न है। वर्तमान में, यूरोपीय संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, जापान और कई अन्य देशों में विशेष प्रमाणीकरण प्राप्त करने के लिए निर्माताओं की आवश्यकता होती है जिससे वे अपनी सीमाओं के भीतर आहार को "जैविक" रूप में बेच सके. अधिकांश प्रमाणपत्र कुछ रसायनों और कीटनाशकों के इस्तेमाल की अनुमति देते हैं, इसलिए उपभोक्ताओं को अपने संबंधित स्थलों में उन मानकों के बारे में पता होना चाहिए जिनके आधार पर खाद्य पदार्थ को "जैविक" माना जायेगा. ऐतिहासिक रूप से, for historical use जैविक कृषि अपेक्षाकृत छोटे परिवार द्वारा चलाये जाने वाले कार्य है, इसलिए एक समय जैविक खाना केवल छोटे भंडारों और छोटे किसानों के बाज़ार में ही उपलब्ध था। हालांकि, 1990 के दशक के बाद से जैविक खाद्य उत्पादन का वृद्धि दर एक वर्ष मे लगभग 20% हैं, जो विकसित और विकासशील देशों दोनों में बाकी के खाद्य उद्योग से बहुत ज्यादा है। अप्रैल 2008 में जैविक खाद्य पदार्थ की बिक्री दुनिया भर में खाद्य पदार्थ की बिक्री की तुलना में 01-02% है। शब्द का अर्थ और इसकी उत्पत्ति 1939 में लॉर्ड नॉर्थबॉर्न ने अपनी पुस्तक लुक टू द लैंड (1940) में कृषि के लिए पूर्णतावादी, पारिस्थितिक रूप से संतुलित पद्धति का वर्णन करने के लिए "खेत को एक जीव" समझने की अवधारणा से बाहर जैविक कृषि शब्द को गढ़ा है - उसके विपरीत जिसे वह रासायनिक खेती कहता है, जो "आयात प्रजनन" पर निर्भर है और "कभी भी न तो आत्मनिर्भर हो सकती है और न ही पूर्ण रूप से जैविक हो सकती है।" यह "जैविक" शब्द के वैज्ञानिक प्रयोग से अलग है, जिसका आशय कार्बनयुक्त अणुओं के एक वर्ग से है विशेष रूप से जो जीवन के रसायन शास्त्र में शामिल है। जैविक खाद्य की पहचान करना जैविक खाद्य के उत्पादन की जानकारी के लिए इसे भी देखें: जैविक कृषि. परिष्कृत जैविक खाद्य में आमतौर पर केवल जैविक सामग्री शामिल होते हैं। अगर अजैविक सामग्री मौजूद हैं तो खाद्य पदार्थ में शामिल संपूर्ण पौधों और पशु सामग्री का कुछ प्रतिशत जैविक होना चाहिए (संयुक्त राज्य, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में 95%) और किसी भी अजैविक रूप से उत्पन्न सामग्री विभिन्न कृषि आवश्यकताओं के अधीन होनी चाहिए. जैविक होने का दावा करने वाले खाद्य पदार्थ कृत्रिम खाद्य योज्य से मुक्त होने चाहिए और अक्सर कृत्रिम तरीकों, सामग्रियों और स्थितियों जैसे रासायनिक विधि से पकाना, खाद्य किरणन और आनुवांशिक रूप से परिष्कृत सामग्री के साथ संसाधित होने चाहिए. कीटनाशकों के उपयोग की अनुमति तब तक ही दी जाती है जब तक कि वे सिंथेटिक नहीं हैं। जैविक खाद्य में दिलचस्पी लेने वाले पूर्व उपभोक्ता गैर-रासायनिक रूप से पोषित, ताजा या कम संसाधित खाद्य पसंद करते है। उन्हें ज्यादातर सीधे उत्पादकों से खरीदना पड़ता था: "अपने किसान को जानो, अपने खाद्य को पहचानो" उनका आदर्श था। "जैविक" के निर्माण में भाग लेने वाले तत्वों की निजी परिभाषाओं का विकास प्रत्यक्ष अनुभव: किसानों से बात करके, खेतों की दशा देखकर और खेती की गतिविधियों, के माध्यम से हुआ। प्रमाणीकरण प्राप्त कर या प्रमाणीकरण के बिना जैविक खेती की प्रथाओं का उपयोग कर छोटे-छोटे खेतों में सब्जियां उगाई गई (और पशुओं का पालन-पोषण किया गया) और व्यक्तिगत उपभोक्ता की निगरानी की गई। जैसे-जैसे जैविक खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ती गई, वैसे-वैसे सुपरमार्केट जैसी बड़ी-बड़ी दुकानों के माध्यम से होने वाली अधिकाधिक बिक्रियों ने बड़ी तेज़ी से किसानों के साथ होने वाले प्रत्यक्ष संपर्क की जगह लेना शुरू कर दिया. आजकल जैविक खेतों के लिए कोई सीमा नहीं है और वर्तमान में कई बड़ी कंपनियों के पास एक जैविक विभाग है। हालांकि, सुपरमार्केट उपभोक्ताओं के लिए, खाद्य उत्पादन आसानी से दिखाई देने योग्य नहीं है और उत्पाद लेबलिंग जैसे "प्रमाणित जैव" पर निर्भर है। इन सभी बातों के आश्वासन के लिए यह सरकारी विनियमों और तृतीय-पक्ष निरीक्षकों पर निर्भर होता है। एक "प्रमाणित जैविक" लेबल आम तौर पर उपभोक्ताओं के पास यह पता करने के लिए एकमात्र तरीका है कि संसाधित उत्पाद "जैविक" है या नहीं. यूएसडीए (USDA) जैविक किसानों का निरीक्षण नहीं करता है। 30 तीसरी पार्टी निरीक्षकों में से 15 निरीक्षकों को अंकेक्षण के बाद परिवीक्षा के तहत रखा जाता है। 20 अप्रैल 2010 को कृषि विभाग ने कहा कि यह लेखा परीक्षक के जैविक खाद्य उद्योग के परस्पर स्वीकृत निरीक्षण में प्रमुख अंतराल उजागर होने के बाद कीटनाशकों की खोज के लिए जैविक रूप से उत्पन्न खाद्य पदार्थों के परीक्षण की आवश्यकता के चलते नियमों को लागू करना शुरू करेगा. कानूनी परिभाषा प्रमाणित जैविक होने के लिए, उत्पादों को इस तरह विकसित और निर्मित किया जाना चाहिए जिससे वे उस देश के निर्धारित मानकों का पालन कर सके जिसके तहत उन्हें बेचा जाता है: ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलियाई जैव मानक और नासा (NASAA) जैव मानक कनाडा: कनाडा राजपत्र, कनाडा की सरकार यूरोपीय संघ: ईयू (EU)-ईको-रेगुलेशन स्वीडन: क्राव (KRAV) यूनाइटेड किंगडम: पर्यावरण, खाद्य एवं ग्रामीण कार्य विभाग (डेफ्रा)(DEFRA) नॉर्वे: देबिओ जैविक प्रमाणन भारत: एनपीओपी (NPOP), (राष्ट्रीय जैविक पदार्थ उत्पादन कार्यक्रम) जापान: जास (JAS) मानक. संयुक्त राज्य अमेरिका: राष्ट्रीय जैव कार्यक्रम नोप (NOP) मानक पर्यावरणीय प्रभाव खेती की पारंपरिक और जैविक प्रणालियों की तुलना और जांच करने के लिए कई सर्वेक्षण और अध्ययन किये गए हैं। इन सर्वेक्षणों में सामान्य सर्वसम्मति यह है कि जैविक कृषि निम्नलिखित कारणों के कारण कम हानिकारक हैं: जैविक खेत पर्यावरण में सिंथेटिक कीटनाशकों का उपभोग या रिलीज़ नहीं करते हैं जिनमें से कुछ में मिट्टी, पानी और स्थानीय स्थलीय और जलीय वन्य जीवन को नुकसान पहुंचाने की क्षमता होती है। परंपरागत खेतों की तुलना में जैविक खेत विविध पारितंत्रों अर्थात् कीड़े और पौधों, साथ ही पशुओं की आबादी को बनाए रखने में बेहतर हैं। या तो प्रति इकाई क्षेत्र या प्रति इकाई उपज/पैदावार की गणना करने के समय जैविक खेत कम ऊर्जा का उपयोग करते हैं और कम अपशिष्ट का उत्पादन करते हैं, उदाहरणार्थ, रसायनों के लिए पैकेजिंग सामग्री जैसे अपशिष्ट हालांकि, जैविक कृषि के तरीकों के कुछ आलोचकों का मानना है कि एक ही मात्रा में खाद्य के उत्पादन के लिए परंपरागत खेतों की तुलना में जैविक खेतों के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता होती है (नीचे 'उपज' अनुभाग देखें). उनका तर्क है कि अगर यह सच है तो जैविक खेत संभावित रूप से वर्षावनों को नष्ट कर सकते है और कई पारितंत्रों का सफाया कर सकते है। अन्य रिपोर्टों के समान ब्रिटेन में 2003 में पर्यावरण खाद्य और ग्रामीण मामलों के विभाग द्वारा जांच में पाया गया कि जैविक कृषि "सकारात्मक पर्यावरणीय लाभ का उत्पादन कर सकती है", लेकिन अगर क्षेत्र के बजाय उत्पादन इकाई के आधार पर तुलना की जाती है तो कुछ लाभ कम हो जाते हैं या खो जाते हैं। Yield एक अध्ययन में पता चला है कि 50% कम उर्वरक और 97% कम कीटनाशक का प्रयोग करके जैविक खेतों की उपज 20% कम हो गयी हैं। पैदावार की तुलना करने वाले अध्ययनों के परिणाम मिश्रित है। समर्थकों का दावा है कि जैविक रूप से प्रबंधित मिट्टी की गुणवत्ता उच्च होती है और इसमें पानी प्रतिधारण अधिक होता है। यह सूखे के समय में जैविक खेतों के लिए पैदावार बढ़ाने में मदद कर सकता है। डेनमार्क की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि क्षेत्र दर क्षेत्र आलू, चुकंदर और बीज घास के जैविक खेतों का उत्पादन पारंपरिक खेती के उत्पादन का आधा है। इस तरह के निष्कर्ष और कम उपज वाले मवेशियों से खाद पर जैविक खाने की निर्भरता ने वैज्ञानिकों द्वारा की जा रही आलोचना को प्रोत्साहित किया है कि जैविक कृषि पर्यावरण की दृष्टि से अस्वस्थ है और पूरे विश्व को खिलाने में असमर्थ है। इन आलोचकों में नोर्मन बोर्लौग, "हरित क्रांति" (Green Revolution) के उत्पादक और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता है जो यह दावा करते है कि जैविक कृषि प्रथाएं नाटकीय रूप से क्रोपलैंड का विस्तार करके और प्रक्रिया में पारितंत्रों को नष्ट करने के बाद कम से कम 4 अरब लोगों का पालन-पोषण करती है। माइकल पोलन, ओम्निवोर'स डिलिमा के लेखक, ने इस बात पर यह प्रतिक्रिया दी है कि दुनिया की कृषि की औसत पैदावार आधुनिक दीर्घकालिक खेती उपज की तुलना में काफी कम है। औसत वैश्विक पैदावार को आधुनिक जैव स्तरों के अनुसार करने से दुनियाभर की खाद्य पदार्थ आपूर्ति में 50% तक की वृद्धि की जा सकती है। 2007 के एक अध्ययन, जिसमें दो कृषि प्रणालियों की समग्र दक्षता का आकलन करने के लिए 293 विभिन्न तुलनाओं से प्राप्त शोध को एक अध्ययन में संकलित किया गया है, से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि ...जैविक विधियां वर्तमान मानव आबादी को बनाए रखने और संभवतः कृषि भूमि के अंश में वृद्धि के बिना भी एक बड़ी आबादी के लिए प्रति व्यक्ति वैश्विक आधार पर पर्याप्त खाद्य का उत्पादन कर सकती है। (सार से)शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि विकसित देशों में औसतन जैविक प्रणाली परंपरागत कृषि द्वारा उत्पादित उपज का 92% उत्पादन करती है, विकासशील देशों में जैविक प्रणाली पारंपरिक खेतों की तुलना में 80% अधिक उत्पादन करती है क्योंकि कुछ गरीब देशों में सिंथेटिक सामग्री की तुलना में जैविक कृषि के लिए आवश्यक सामग्री किसानों को ज्यादा आसानी से उपलब्ध हो जाती है। दूसरी ओर, वे समुदाय जिनके पास मिट्टी भरने के लिए पर्याप्त खाद की कमी है जैविक कृषि के साथ संघर्ष करते है और मिट्टी तेजी से घटती जाती है। ऊर्जा दक्षता सेब उत्पादन प्रणालियों की निरंतरता का एक अध्ययन यह प्रदर्शित करता है कि अगर परंपरागत खेती प्रणाली की तुलना जैविक विधि से की जाये तो जैविक प्रणाली अधिक ऊर्जा कुशल है। बहरहाल, अपतृण नियंत्रण के लिए जुताई हेतु जैविक कृषि का व्यापक उपयोग इसी कारण से बहस का मुद्दा है। साथ ही कम पोषक तत्व वाले घने उर्वरकों को शामिल करने से ईंधन के उपयोग में वृद्धि का परिणाम ईंधन की खपत दर में वृद्धि होती है। सामान्य विश्लेषण यह है कि जैविक उत्पादन विधियां आमतौर पर अधिक ऊर्जा कुशल हैं क्योंकि वे रासायनिक संश्लेषित नाइट्रोजन का उपयोग नहीं करती है। लेकिन आम तौर पर अपतृण नियंत्रण और अधिक गहन भूमि प्रबंधन प्रथाओं के लिए अन्य विकल्पों की कमी से वजह से वे पेट्रोलियम का अधिक उपभोग करते हैं। ऊर्जा दक्षता निर्धारित करना कठिन है; उपरोक्त मामले में लेखक 1976 में लिखी गयी एक पुस्तक का उल्लेख करता है। जैविक खेतों के संबंध में दक्षता और ऊर्जा की खपत का सही मूल्य अभी निर्धारित किया जाना है। कीटनाशक और किसान बहुत से ऐसे अध्ययन है जिनमें खेत मजदूरों के स्वास्थ्य पर कीटनाशकों के दुष्प्रभाव और प्रभाव का विवरण दिया गया है। यहां तक कि जब कीटनाशकों का उपयोग सही ढंग से किया जाता है तब भी वे हवा और खेत मजदूरों के शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं। इन अध्ययनों के माध्यम से ऑर्गनोफॉस्फेट कीटनाशकों को पेट दर्द, चक्कर आना, सिर दर्द, उल्टी, साथ ही आंख और त्वचा समस्याओं जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जोड़ दिया गया है। इसके अलावा, कई अन्य अध्ययनों से पता चला है कि कीटनाशकों से अनावरण श्वास प्रश्वास सम्बन्धी समस्याओं, स्मृति विकार, त्वचा सम्बन्धी समस्याओं, कैंसर, अवसाद, तंत्रिका विज्ञान घाटा, गर्भपात और जन्म दोष जैसी अधिक गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ा हुआ है। अनुसंधान की सहकर्मी-समीक्षा का सारांश कीटनाशक अनावरण और स्नायविक परिणाम के बीच की कड़ी और ऑर्गनोफॉस्फेट अनावरण कार्यकर्ताओं में कैंसर की जांच करता है। दक्षिण अमेरिका से आयातित फलों और सब्जियों में अधिक मात्रा में कीटनाशक होने की संभावना है, और उनमें कीटनाशकों का उपयोग भी हो सकता है जिनका उपयोग संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रतिबंधित है। स्वैन्सन हाक जैसे प्रवासी पक्षियों के लिए अर्जेंटीना शीतकालीन प्रवास है जहां मोनोक्रोटोफोस कीटनाशक की विषाक्तता के कारण उनमें से हजारों पक्षी मृत पाए गए थे। कीटनाशक के अवशेष 2002 में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि "पारंपरिक रूप से उत्पन्न खाद्य पदार्थों की तरह जैविक खाद्य पदार्थों में लगातार एक तिहाई अवशेष होते है।" संयुक्त राज्य अमेरिका में कीटनाशक अवशेषों की निगरानी कीटनाशक डेटा प्रोग्राम (यूएसडीए (USDA) का एक हिस्सा जो 1990 में निर्मित किया गया था) द्वारा की जाती है। तब से इसने खपत के स्थान के नजदीक से नमूनों को एकत्रित करके 400 से अधिक विभिन्न प्रकार के कीटनाशकों के लिए 60 अलग अलग प्रकार के खाद्य का परीक्षण किया है। 2005 में उनके सबसे नवीनतम परिणामों में पाया गया है कि: कई अध्ययनों ने इस खोज की पुष्टि यह पता करके की है कि 77 प्रतिशत पारंपरिक खाद्य की तुलना में 25 प्रतिशत जैविक खाद्य में सिंथेटिक कीटनाशक अवशेष होते है। 1993 में राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन ने यह निर्धारित किया है कि शिशुओं और बच्चों का आहार ही कीटनाशकों के खतरे का प्रमुख स्रोत है। 2006 में किए गए हाल ही के एक अध्ययन के तहत 23 स्कूली बच्चों के आहार की जगह जैविक खाद्य देने से पहले और देने के बाद उनमें ऑर्गनोफॉस्फोरस कीटनाशक के खतरे का स्तर ज्ञात किया गया। इस अध्ययन में पाया गया कि जब बच्चों को जैविक आहार की तरफ स्विच किया गया तो ओर्गनोफोस्फोरस कीटनाशक अनावरण का स्तर नाटकीय रूप से तुरंत गिर गया। कानून द्वारा स्थापित खाद्य अवशेष सीमा बच्चों के साथ विशेष रूप से सेट है और प्रत्येक कीटनाशक के लिए बच्चे के जीवनकालिक अन्तर्ग्रहण पर विचार किया जाता है। स्वास्थ्य पर पड़ने वाले कुछ कीटनाशकों के प्रभाव पर प्राप्त डेटा विवादस्पद हैं। उदाहरण के लिए, कुछ प्रयोगों में हर्बीसाइड एट्राजीन को टेराटोजन प्रदर्शित किया गया है जो कम सांद्रता अनावृत नर मेंढ़कों में नामर्दानगी का कारण बनता है। एट्राजीन के प्रभाव के तहत, नर मेंढ़कों में या तो विकृत जननग्रन्थि अथवा वृषण जननग्रन्थि, जिसमे अंडे अविकृत होते है, की घटनायें अत्यधिक मात्रा में पाई गयी है। लेकिन प्रभाव उच्च सांद्रता में काफी कम थे क्योंकि ये एस्ट्राडाअल जैसे अंतःस्त्रावी तंत्र को प्रभावित करने वाले अन्य टेराटोजन के साथ अनुकूल है। जैविक कृषि के मानक सिंथेटिक कीटनाशकों का उपयोग करने की अनुमति नहीं देते है लेकिन वे पौधों से व्युत्पन्न विशिष्ट कीटनाशकों के उपयोग की अनुमति देते है। सबसे आम जैविक कीटनाशकों, प्रतिबंधित उपयोग के लिए ज्यादातर जैविक मानकों द्वारा स्वीकृत, में Bt, पैरीथ्रम और रोटेनोन शामिल है। रोटेनोन में जलीय जीव और मछली के लिए उच्च विषाक्तता होती है, अगर चूहों में इसका इंजेक्शन लगाया जाये तो यह पार्किंसंस रोग का कारण बनता है और स्तनधारियों में अन्य विषाक्तता प्रदर्शित करता है। संयुक्त राज्य अमेरिका पर्यावरण संरक्षण एजेंसी और राज्य की एजेंसियां समय-समय पर संदेहास्पद कीटनाशकों के लाइसेंस की समीक्षा करती है लेकिन डी-लिस्टिंग प्रक्रिया धीमी है। इस धीमी प्रक्रिया का एक उदाहरण कीटनाशक दिक्लोर्वोस या डीडीवीपी (DDVP) का उदाहरण दे कर समझाया गया है जिसकी हाल ही में 2006 वर्ष में ईपीए (EPA) ने निरंतर बिक्री प्रस्तावित की है। इपीए (EPA) ने 1970 के दशक के बाद से विभिन्न अवसरों पर इस कीटनाशक पर लगभग प्रतिबंध लगा दिया है लेकिन इसने काफी सबूत जो यह सुझाव देते है कि डीडीवीपी (DDVP) विशेष रूप से बच्चों में केवल कैंसरकारी ही नहीं बल्कि मानव तंत्रिका तंत्र के लिए खतरनाक भी है, के बावजूद ऐसा कभी नहीं किया है। इपीए (EPA) ने "यह निर्धारित किया है कि जोखिम चिंता के स्तर को पार नहीं करते है", चूहों में डीडीवीपी (DDVP) के दीर्घकालिक अनावरण के अध्ययन ने कोई जहरीला प्रभाव नहीं दिखाया है। पोषण का महत्व और स्वाद अप्रैल 2009 में क्वालिटी लो इनपुट फ़ूड (क्यूएलआइऍफ़ (QLIF)), यूरोपीय आयोग द्वारा वित्त पोषित पंचवर्षीय एकीकृत अध्ययन, के परिणाम ने यह पुष्टि की है कि "जैविक और परंपरागत खेती प्रणालियों से प्राप्त फसलों और पशु उत्पादों की गुणवत्ता काफी अलग है।" विशेष रूप से, फसल और पशुओं के पोषण की गुणवत्ता पर जैविक और कम इनपुट खेती के प्रभाव का अध्ययन करने वाली क्यूएलआइऍफ़ (QLIF) परियोजना के परिणामों से "पता चला है कि जैविक खाद्य उत्पादन विधियों के परिणाम: (क) पोषण की दृष्टि से वांछनीय यौगिक (जैसे, विटामिन/एंटीऑक्सिडेंट और बहु-संतृप्त वसा अम्ल जैसे ओमेगा-3 और सीएलए (CLA)); (ख) फसलों और/या दूध की सीमा में कम स्तर के पोषण की दृष्टि से अवांछनीय यौगिक जैसे भारी धातु, माइकोटोक्सिंस, कीटनाशकों के अवशेष और ग्लाईको-एल्कलोइद्स (ग) सूअरों में विष्ठा संबंधी साल्मोनेला सायबान का कम जोखिम" होते हैं। क्यूएलआइऍफ़ (QLIF) अध्ययन से यह भी निष्कर्ष निकला है कि "मानव और जानवर स्वास्थ्य पर जैविक आहार के सकारात्मक स्वास्थ्य प्रभाव के लिए आवश्यक सबूत प्रदान करने हेतु आगे और अधिक विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता होती है।" वैकल्पिक रूप से, यूके (उक) के खाद्य मानक एजेंसी के अनुसार "उपभोक्ता जैविक फल, सब्जिया और मांस खरीदना पसंद कर सकते हैं क्योंकि उनका मानना है कि अन्य खाद्य की तुलना में वे अधिक पौष्टिक होते है। हालांकि, वर्तमान वैज्ञानिक सबूत के शेष भाग इस दृष्टिकोण का समर्थन नहीं करते है।" 2009 में ऍफ़एसए (FSA) द्वारा कमीशन 50 साल के एकत्र सबूतों के आधार पर लंदन स्कूल ऑफ़ हाइजीन एण्ड ट्रोपिकल मेडिसिन में आयोजित एक 12-महीने की व्यवस्थित समीक्षा से निष्कर्ष निकाला गया है कि "इस बात का कोई अच्छा सबूत नहीं है कि पोषक तत्व सामग्री के सापेक्ष में जैविक आहार की खपत स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।" अन्य अध्ययनों से पता चला है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि जैविक खाद्य अधिक से अधिक पोषण मूल्य, अधिक उपभोक्ता सुरक्षा या स्वाद में कोई विशिष्ट अंतर प्रदान करता है। स्वाद के बारे में, 2001 के एक अध्ययन से निष्कर्ष निकला है कि जैविक सेब गुप्त स्वाद परीक्षण से मीठे थे। सेब की दृढ़ता को पारंपरिक रूप से उत्पन्न सेबों की तुलना में अधिक दर्ज़ा दिया गया है। खाद्य परिरक्षकों का सीमित उपयोग तेजी से जैविक खाद्य पदार्थ की विकृति का कारण हो सकता है। वहीं दूसरी ओर दुकानों में इस बात की गारंटी दी जाती है कि इस तरह के खाद्य पदार्थ अधिक विस्तारित समय के लिए जमा नहीं किये जाते हैं, तब भी पोषक तत्व जिन्हें खाद्य परिरक्षक सुरक्षित रखने में असफल है जल्दी ही नष्ट हो जाते है। संभवत जैविक खाद्य में उच्च मात्रा के प्राकृतिक बाओटोक्सिन भी हो सकतें हैं, जैसे आलू में सोलानिन, बाहरी रूप से प्रयुक्त हर्बीसाइड्स और फफूंदीनाशी आदि की कमी की क्षतिपूर्ति के लिए. हालांकि वर्तमान पढ़ाई में, पारंपरिक और जैविक खाद्य पदार्थों के बीच प्राकृतिक बाओटोक्सिन की मात्रा में अंतर का कोई संकेत नहीं है। लागत आम तौर पर जैविक उत्पादों की लागत समान पारंपरिक उत्पादों की तुलना में 10 से 40% अधिक है। यूएसडीए (USDA) के अनुसार, औसतम अमेरिकी व्यक्तियों ने 2004 में किराने के सामान पर 1,347 डॉलर खर्च किये हैं; इस प्रकार पूरी तरह से जैविक की तरफ स्विच करने से किराने के सामान पर उनकी लागत $538.80 प्रति वर्ष ($44.90/मास) तक पहुंच जाएगी और आधे समान के लिए जैविक की तरफ स्विच करने से किराने के सामान पर उनकी लागत $269.40 प्रति वर्ष ($22.45/मास) तक बढ जाएगी. संसाधित जैविक खाद्य पदार्थों की कीमत परंपरागत समकक्षों की तुलना में भिन्न हो सकती है। 2004 में च्वाइस पत्रिका द्वारा एक ऑस्ट्रेलियाई अध्ययन में यह पता चला है कि सुपरमार्केट में संसाधित जैविक खाद्य पदार्थ 65% अधिक महंगा हो सकते हैं, लेकिन यह अनुरूप नहीं था। कीमतें अधिक हो सकती है क्योंकि जैविक उत्पाद का उत्पादन एक छोटे पैमाने पर किया जाता है और इन्हें पृथक रूप से पीसने और संसाधित करने की आवश्यकता हो सकती है। इसके अलावा, क्षेत्रीय बाजारों में ज्यादा केंद्रीकृत उत्पादन से शिपिंग लागत में वृद्धि हुई है। डेयरी और अंडे के मामले में, पशुओं की आवश्यकताऐ जैसे पशुओं की संख्या जिन्हें प्रति एकड़ उत्थित किया जा सकता है, या पशुओं की नस्ल और उनका फ़ीड रूपान्तरण अनुपात लागत को प्रभावित करता है। संबंधित आंदोलन जीवगतिकी कृषि, जैविक कृषि की विधि, जैविक खाद्य आंदोलन से अत्यधिक संबंधित है। तथ्य और आंकड़े जबकि जैविक खाद्य दुनिया भर के खाद्य पदार्थ की कुल बिक्री का 1-2% है, विकसित और विकासशील दोनों देशों में बाकी के खाद्य उद्योग को छोड़कर जैविक खाद्य का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। दुनियाभर में जैविक खाद्य की बिक्री 2002 में यूएस (US) $23 बिलियन से 2008 में $52 तक पहुंच गयी है। 1990 के दशक के बाद से विश्व जैविक बाजार प्रति वर्ष 20% बढ़ रहा है, ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि भविष्य वृद्धि दर देश के अनुसार प्रतिवर्ष 10% -50% रेंज के भीतर है। उत्तर अमेरिका संयुक्त राज्य अमेरिका: जैविक खाद्य अमेरिकी खाद्य बाजारक्षेत्र का तेजी से बढ़ता क्षेत्र है। जैविक खाद्य की बिक्री पिछले कुछ वर्षों से एक वर्ष के लिए 17 से 20 प्रतिशत हो गई है, जबकि परंपरागत खाद्य की बिक्री एक वर्ष में केवल 2 से 3 प्रतिशत बढ़ीं है। 2003 में प्राकृतिक खाद्य भंडारों और 73 प्रतिशत परंपरागत किराने की दुकानों में लगभग 20,000 जैविक उत्पाद उपलब्ध थे। 2005 में जैविक उत्पादों की बिक्री कुल खाद्य पदार्थ बिक्री की 2.6% है। दो तिहाई जैविक दूध और क्रीम और आधा जैविक पनीर और दही परम्परागत सुपरमार्केट के माध्यम से बिकता है। कनाडा: जैविक खाद्य की बिक्री 2006 में $1 बिलियन से ऊपर पहुच गयी, कनाडा में खाद्य की बिक्री 0.9% थी। किराने की दुकानों से जैविक खाद्य की बिक्री 2006 में 2005 की तुलना में 28% उच्चतर थी। कनाडा की आबादी में 13% ब्रिटिश कोलंबियन है लेकिन 2006 में कनाडा में बेचे गए जैविक खाद्य का 26 प्रतिशत उन्होंने ख़रीदा है। यूरोप यूरोपीय संघ इयू25 (EU25) में उपयोगी कृषि क्षेत्र का 3.9% भाग जैविक उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है। ऑस्ट्रिया (11%) और इटली (8.4) और उसके बाद चेक गणराज्य और ग्रीस (दोनों के पास 7.2%) ऐसे देश है जिनके पास जैविक भूमि उच्चतम अनुपात में है। सबसे कम आंकड़े माल्टा (0.1%), पोलैंड (0.8%) और आयरलैंड (0.6%) के लिए दिखाए गए है। ऑस्ट्रिया: 2007 में 11.6% किसानों ने जैविक रूप से उत्पादन किया। सरकार ने इस आंकड़े को 2010 तक 20 प्रतिशत तक पहुंचने के लिए प्रोत्साहन प्रदान किया है। 2006 में ऑस्ट्रिया के सुपरमार्केट (डिस्काउंट स्टोर सहित) में बिकने वाले सभी खाद्य उत्पादों में 4.9 प्रतिशत जैविक थे। 8000 विभिन्न जैविक उसी साल ही उत्पाद उपलब्ध थे। इटली: कानून के अनुसार 2005 के बाद से सभी स्कूलों का खाद्य जैविक होना चाहिए. पोलैंड: 2005 में 168000 हेक्टेयर भूमि जैविक प्रबंधन के तहत राखी गयी थी। 7 प्रतिशत पोलिश उपभोक्ता वो खाना खरीदते हैं जो यूरोपीय संघ और पारिस्थितिकी के विनियमन के अनुसार उत्पन्न किया गया था। जैविक बाजार का मूल्य 50 लाख यूरो (2006) अनुमानित है। यूके (UK): जैविक खाद्य की बिक्री 1993/94 में 100 मिलियन पाउंड से 2004 में 1.21 बिलियन पाउंड तक बढ़ी है (2003 में 11% की बढत). कैरिबियन क्यूबा: 1990 में सोवियत संघ के पतन के बाद, कृषि निवेश जो पूर्वी ब्लॉक से ख़रीदे गए थे अब क्यूबा में उपलब्ध नहीं है और कई क्यूबा खेत आवश्यकता के चलते जैविक विधियों में परिवर्तित हो गए है। नतीजतन, जैविक कृषि क्यूबा में एक मुख्यधारा प्रथा है, जबकि यह अन्य ज्यादातर देशों में एक वैकल्पिक प्रथा बनी हुई है। हालांकि क्यूबा में जैविक कहे जाने वाले कुछ उत्पाद अन्य देशों में प्रमाणीकरण जरूरतों को संतुष्ट नहीं कर पाएंगे (उदाहरण के लिए, फसलों को आनुवंशिक रूप से संशोधित किया जा सकता है), क्यूबा यूरोपीय संघ बाजारों को जैविक नींबू और खट्टे रस जो जैविक मानकों को पूरा करते है निर्यात करता है। क्यूबा का जैविक तरीकों की तरफ रूपांतरण देश को जैविक उत्पादों का वैश्विक सप्लायर बना सकता है। जैविक ओलंपियाड जैविक ओलंपियाड 2007 से जैविक नेतृत्व के बारह उपायों के आधार पर देशों को स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक से सम्मानित करता है। . स्वर्ण पदक विजेता थे: 11.8 मिलियन जैविक हेक्टेयर के साथ ऑस्ट्रेलिया. 83,174 जैविक खेतों के साथ मैक्सिको. 15.9 मिलियन प्रमाणित जंगली जैविक हेक्टेयर के साथ रोमानिया. 135 हजार टन जैविक जंगली फसल उत्पादन के साथ चीन. 1805 जैविक अनुसंधान प्रकाशनों के साथ डेनमार्क. आइऍफ़ओएएम् (IFOAM) के 69 सदस्यों के साथ जर्मनी. 1,998,705 जैविक हेक्टेयर की वृद्धि के साथ चीन. 27.9% जैविक प्रमाणित कृषि भूमि के साथ लिचेंस्टीन. हेक्टेयर जैविक में 8488% वार्षिक वृद्धि के साथ माली. अपनी कृषि भूमि में वार्षिक 3.01% की जैविक वृद्धि के साथ लाटविया. कुल कृषि में जैविक साझा की 4-वार्षिक वृद्धि के10.9% के साथ लिचेंस्टीन. 103 यूरो के जैविक उत्पादन पर प्रति व्यक्ति वार्षिक खर्च के साथ स्विट्ज़रलैंड. इन्हें भी देखें ऑस्ट्रेलियाई जैविक कृषि एवं बागवानी सोसायटी चीन हरित खाद्य विकास केंद्र समुदाय-समर्थित कृषि इकोलेबल आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य कोषेर खाद्य पदार्थ प्राकृतिक खाद्य पदार्थ जैविक वस्त्र जैविक कृषि जैविक कृषि सार-संग्रह (ऑर्गनिक फार्मिंग डाइजेस्ट) जोखिम प्रबंधन एजेंसी मौसमी खाद्य स्थायी कृषि स्थायी खाद्य तंत्र स्थायी जीवन-यापन द फ्यूचर ऑफ़ फ़ूड (जैविक खाद्य पर एक खंड के साथ आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य के बारे में एक वृत्तचित्र फ़िल्म) सम्पूर्ण खाद्य पदार्थ सन्दर्भ आगे पढ़ें जैविक तत्वों पर पारंपरिक बनाम जैविक कृषि पर कीटनाशक और खाद्य ओंटारियो कॉलेज ऑफ़ फैमिली फिज़िसियंस से कीटनाशकों पर व्यापक प्रेस विज्ञप्ति Nutrition.gov से कीटनाशक और खाद्य (पीडीएफ (PDF)) पुस्तिका पर्यावरण संरक्षण एजेंसी से खाद्य पर कीटनाशक के अवशेष की सीमाएं पूर्वोत्तर जैविक कृषि एसोसिएशन से खाद्य में कीटनाशक कार्सिनोजेनिक पोटेंसी प्रॉजेक्ट से अन्य प्राकृतिक एवं कृत्रिम पदार्थों की तुलना में आहार पूरकों के संभावित विषाक्त खतरों के श्रेणीकरण पर एफडीए (FDA) की गवाही प्राकृतिक बनाम कृत्रिम रसायनों पर, द एनवायरनमेंटल कैंसर डिस्ट्रैक्शन के डॉ ब्रूस एम्स और डॉ लोइस स्विस्की-गोल्ड से पैरासेल्सस टु पैरासाइंस - द एनवायरनमेंटल कैंसर डिस्ट्रैक्शन एसीएसएच (ACSH) अवकाश रात्रिभोज सूची. अमेरिकी विज्ञान एवं स्वास्थ्य परिषद्, हमारे खाद्य में विषाक्त पदार्थों पर. बाहरी कड़ियाँ Organic Nutrition प्राकृतिक' - बेहतर स्वास्थ्य के लिये पेस्टिसाइड एक्शन नेटवर्क विषाक्त कीटनाशकों के खतरों, उनसे हमारे संपर्क या उनसे हमें होने वाले खतरों और हमारे निवास एवं कार्य पर्यावरण में उनकी उपस्थिति को समाप्त करने के लिए कार्यरत. सस्टेनेबल टेबल (स्थायी तालिका) स्थायी खाद्य मुद्दों पर शैक्षिक संसाधन ऑर्गनिक कंज्यूमर्स एसोसिएशन (जैव उपभोक्ता एसोसिएशन) जैविक खाद्य में उपभोक्ताओं की रुचि को प्रोत्साहित करने वाला प्रमुख अमेरिका-आधारित लाभ-निरपेक्ष संगठन ऑर्गनिक फेडरेशन ऑफ़ यूक्रेन (यूक्रेन जैविक संघ) जैविकता को प्रोत्साहन देने वाला यूक्रेनियन अम्ब्रेला लाभ-निरपेक्ष संगठन USDA नैशनल ऑर्गनिक प्रोग्राम (यूएसडीए राष्ट्रीय जैविक कार्यक्रम) संयुक्त राज्य अमेरिका में जैविक खाद्य के उत्पादन एवं लेबलिंक मानकों के प्रशासन के लिए जिम्मेदार द ब्रिटिश लाइब्रेरी - ऑर्गनिक फ़ूड इंडस्ट्री गाइड (ब्रिटिश पुस्तकालय - जैविक खाद्य उद्योग मार्गदर्शिका) ब्रिटेन के सूत्रों की सूचना प्रभाव का न्यूनीकरण? जैविक खाद्य के अर्थ. जैविक खाद्य के अर्थ पर शैक्षणिक अनुसंधान. जैविक खाद्य के लाभ समझाता है कि क्यों जैविक खाद्य एक बेहतर विकल्प है जैविक खाद्य स्थायी खाद्य तंत्र श्रेष्ठ लेख योग्य लेख गूगल परियोजना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%AF%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%B0%20%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B9
विजयशंकर चिक्कान्याह
विजयशंकर चिक्कानैया (जन्म 16 जून 1987) एक जर्मन क्रिकेटर हैं जो राष्ट्रीय टीम के लिए खेलते हैं। मई 2019 में, बेल्जियम के खिलाफ तीन मैचों की श्रृंखला के लिए उन्हें जर्मनी के ट्वेंटी 20 अंतर्राष्ट्रीय (टी20ई) टीम में रखा गया था। मैच जर्मन क्रिकेट टीम द्वारा खेले जाने वाले पहले टी20ई थे। उन्होंने 11 मई 2019 को बेल्जियम के खिलाफ जर्मनी के लिए टी20ई की शुरुआत की। उसी महीने बाद में, उन्हें ग्वेर्नसे में 2018-19 आईसीसी टी 20 विश्व कप यूरोप क्वालीफायर टूर्नामेंट के क्षेत्रीय फाइनल के लिए जर्मनी के टीम में नामित किया गया था। उन्होंने 15 जून 2019 को जर्मनी के रीजनल फाइनल में ग्वेर्नसे के खिलाफ मैच खेला। हालांकि, इटली के खिलाफ मैच में घुटने की चोट के कारण, बाद में उन्हें टूर्नामेंट से बाहर कर दिया गया था। सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%A3
रक्त परीक्षण
रक्त-परीक्षण रक्त के नमूनों पर किया जाने वाला एक प्रयोगशाला विश्लेषण है, जो कि सामान्यतः सुई या फिन्गार्प्रिक की सहायता से बांह के रग से लिया जाता है। रक्त परीक्षण का उपयोग शारीरिक और जैव रासायनिक, जैसे रोग, खनिज सामग्री, दवा प्रभावशीलता और इन्द्रिय प्रकार्य का निर्धारण करने के लिए किया जाता है। इनका उपयोग दवा परीक्षण के लिए भी किया जाता है। हालांकि अधिकांशतः रक्त परीक्षण शब्द का प्रयोग किया जाता है, लेकिन अधिकांश नियमित परीक्षण (रुधिरविज्ञान को छोड़कर) रक्त कोशिकाओं के बजाय प्लाज्मा या सीरम पर किए जाते हैं। निष्कर्षण वेनीपंकचर उपयोगी है क्योंकि विश्लेषण के लिए शरीर से कोशिकाओं और बहिर्कोशिकीय द्रव (प्लाज्मा) निकालने का अपेक्षाकृत }गैर-आक्रामक तरीका है। चूंकि ऑक्सीजन और पोषक तत्व प्रदान करने और निष्कासन हेतु अपशिष्ट उत्पाद को उत्सर्गी प्रणाली में वापस ले जाने के लिए माध्यम के रूप, रक्त का प्रवाह संपूर्ण शरीर में होता है, इसलिए रक्तधारा की अवस्था प्रभावित होती है, या कई चिकित्सकीय स्थितियों में इसके द्वारा प्रभावित होती है। इन्हीं कारणों से, रक्त परीक्षण सबसे अधिक किया जाने वाला चिकित्सकीय परीक्षण है। सुई द्वारा रक्त खींचने वाला व्यक्ति, प्रयोगशाला तकनीशियन और नर्स की रोगी के रक्त निष्कर्षण के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। हालांकि, विशेष परिस्थितियों और आपातकालीन स्थितियों में, कभी कभी सहायक चिकित्सक और चिकित्सक रक्त निकालते हैं। इसके अलावा, श्वसन चिकित्सक को धमनीय रक्त गैस के लिए धमनीय रक्त निकालने हेतु प्रशिक्षित किए जाते हैं। रक्त परीक्षण के प्रकार जैव-रासायनिक विश्लेषण एक बुनियादी चयापचय पैनल सोडियम, पोटेशियम, क्लोराइड, बिकारबोनिट, रक्त यूरिया नाइट्रोजन (बीयूएन), मैग्नीशियम, क्रिएटिनाइन और ग्लूकोज मापता है। इसमें कभी-कभी कैल्शियम भी शामिल होता है। कुछ रक्त परीक्षणों में, जैसे ग्लूकोज, कोलेस्ट्रॉल मापने के लिए या एसटीडी की उपस्थिति या कमी निर्धारित करने के लिए, रक्त नमूने लिए जाने से पहले आठ से बारह घंटे खाली पेट (भोजन नहीं करने) रहने की आवश्यकता होती है। अधिकांश रक्त परीक्षणों के लिए, रक्त आमतौर पर रोगी की नस से ली जाती है। हालांकि, अन्य विशिष्ट रक्त परीक्षणों, जैसे धमनीय रक्त गैस के लिए जैसे, धमनी से रक्त निकालने की आवश्यकता होती है। धमनीय रक्त के रक्त गैस विश्लेषण का उपयोग मुख्यतः फुफ्फुसीय से संबंधित कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन के स्तर का पता लगाने के लिए किया जाता है, लेकिन इसका उपयोग चयापचय की विशेष स्थितियों के लिए रक्त pH और बाइकार्बोनेट मापने के लिए भी किया जाता है। जबकि नियमित ग्लूकोज परीक्षण निश्चित समय पर किए जाते हैं, ग्लूकोज सहिष्णुता परीक्षण में शरीर द्वारा ग्लूकोज संसाधित किए जाने की दर निर्धारित करने के लिए बार-बार परीक्षण किया जाता है। सामान्य श्रेणियां आण्विक प्रोफ़ाइल प्रोटीन वैद्युतकणसंचलन (सामान्य तकनीक -- कोई विशिष्ट परीक्षण नहीं) पश्चिमी धब्बा (सामान्य तकनीक -- कोई विशिष्ट परीक्षण नहीं) यकृत कार्य परीक्षण पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन (डीएनए). वर्तमान परिवेश में डीएनए परीक्षण रक्त की बहुत कम मात्रा में भी == रक्त परीक्षण के प्रकार == जैव-रासायनिक विश्लेषण एक बुनियादी चयापचय पैनल सोडियम, पोटेशियम, क्लोराइड, बिकारबोनिट, रक्त यूरिया नाइट्रोजन (बीयूएन), मैग्नीशियम, क्रिएटिनाइन और ग्लूकोज मापता है। इसमें कभी-कभी कैल्शियम भी शामिल होता है। कुछ रक्त परीक्षणों में, जैसे ग्लूकोज, कोलेस्ट्रॉल मापने के लिए या एसटीडी की उपस्थिति या कमी निर्धारित करने के लिए, रक्त नमूने लिए जाने से पहले आठ से बारह घंटे खाली पेट (भोजन नहीं करने) रहने की आवश्यकता होती है। अधिकांश रक्त परीक्षणों के लिए, रक्त आमतौर पर रोगी की नस से ली जाती है। हालांकि, अन्य विशिष्ट रक्त परीक्षणों, जैसे धमनीय रक्त गैस के लिए जैसे, धमनी से रक्त निकालने की आवश्यकता होती है। धमनीय रक्त के रक्त गैस विश्लेषण का उपयोग मुख्यतः फुफ्फुसीय से संबंधित कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन के स्तर का पता लगाने के लिए किया जाता है, लेकिन इसका उपयोग चयापचय की विशेष स्थितियों के लिए रक्त pH और बाइकार्बोनेट मापने के लिए भी किया जाता है। जबकि नियमित ग्लूकोज परीक्षण निश्चित समय पर किए जाते हैं, ग्लूकोज सहिष्णुता परीक्षण में शरीर द्वारा ग्लूकोज संसाधित किए जाने की दर निर्धारित करने के लिए बार-बार परीक्षण किया जाता है। सामान्य श्रेणियां आण्विक प्रोफ़ाइल प्रोटीन वैद्युतकणसंचलन (सामान्य तकनीक -- कोई विशिष्ट परीक्षण नहीं) पश्चिमी धब्बा (सामान्य तकनीक -- कोई विशिष्ट परीक्षण नहीं) यकृत कार्य परीक्षण पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन (डीएनए). वर्तमान परिवेश में डीएनए परीक्षण रक्त की बहुत कम मात्रा में भी किया जाना संभव है: इसका उपयोग सामान्यतः विधि चिकित्साशास्त्र सम्बंधी विज्ञान में किया जाता है, लेकिन इसका उपयोग कई विकृतियों के नैदानिक प्रक्रिया में भी किया जा सकता है। उत्तरी धब्बा (आरएनए) यौन संक्रामक रोग कोशिकीय मूल्यांकन संपूर्ण रक्त-गणना (या "पूर्ण रक्त-गणना") लोहितकोशिकामापी == रक्त परीक्षण के प्रकार == जैव-रासायनिक विश्लेषण एक बुनियादी चयापचय पैनल सोडियम, पोटेशियम, क्लोराइड, बिकारबोनिट, रक्त यूरिया नाइट्रोजन (बीयूएन), मैग्नीशियम, क्रिएटिनाइन और ग्लूकोज मापता है। इसमें कभी-कभी कैल्शियम भी शामिल होता है। कुछ रक्त परीक्षणों में, जैसे ग्लूकोज, कोलेस्ट्रॉल मापने के लिए या एसटीडी की उपस्थिति या कमी निर्धारित करने के लिए, रक्त नमूने लिए जाने से पहले आठ से बारह घंटे खाली पेट (भोजन नहीं करने) रहने की आवश्यकता होती है। अधिकांश रक्त परीक्षणों के लिए, रक्त आमतौर पर रोगी की नस से ली जाती है। हालांकि, अन्य विशिष्ट रक्त परीक्षणों, जैसे धमनीय रक्त गैस के लिए जैसे, धमनी से रक्त निकालने की आवश्यकता होती है। धमनीय रक्त के रक्त गैस विश्लेषण का उपयोग मुख्यतः फुफ्फुसीय से संबंधित कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन के स्तर का पता लगाने के लिए किया जाता है, लेकिन इसका उपयोग चयापचय की विशेष स्थितियों के लिए रक्त pH और बाइकार्बोनेट मापने के लिए भी किया जाता है। जबकि नियमित ग्लूकोज परीक्षण निश्चित समय पर किए जाते हैं, ग्लूकोज सहिष्णुता परीक्षण में शरीर द्वारा ग्लूकोज संसाधित किए जाने की दर निर्धारित करने के लिए बार-बार परीक्षण किया जाता है। सामान्य श्रेणियां आण्विक प्रोफ़ाइल प्रोटीन वैद्युतकणसंचलन (सामान्य तकनीक -- कोई विशिष्ट परीक्षण नहीं) पश्चिमी धब्बा (सामान्य तकनीक -- कोई विशिष्ट परीक्षण नहीं) यकृत कार्य परीक्षण पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन (डीएनए). वर्तमान परिवेश में डीएनए परीक्षण रक्त की बहुत कम मात्रा में भी किया जाना संभव है: इसका उपयोग सामान्यतः विधि चिकित्साशास्त्र सम्बंधी विज्ञान में किया जाता है, लेकिन इसका उपयोग कई विकृतियों के नैदानिक प्रक्रिया में भी किया जा सकता है। उत्तरी धब्बा (आरएनए) यौन संक्रामक रोग कोशिकीय मूल्यांकन संपूर्ण रक्त-गणना (या "पूर्ण रक्त-गणना") लोहितकोशिकामापी और MCV ("मध्य कणिकीय मात्रा") रक्ताणु अवसादन दर (ESR) अनुकूलता परीक्षण. रक्त आधान या प्रत्यारोपण के लिए रक्त-प्रारूप निर्धारण रक्त संवर्ध सामान्यतः संक्रमण का संदेह होने पर लिया जाता है। सकारात्मक संवर्ध और परिणामी संवेदनशीलता परिणाम अक्सर चिकित्सीय उपचार हेतु मार्गदर्शन करने में उपयोगी होते हैं। और MCV ("मध्य कणिकीय मात्रा") रक्ताणु अवसादन दर (ESR) अनुकूलता परीक्षण. रक्त आधान या प्रत्यारोपण के लिए रक्त-प्रारूप निर्धारण रक्त संवर्ध सामान्यतः संक्रमण का संदेह होने पर लिया जाता है। सकारात्मक संवर्ध और परिणामी संवेदनशीलता परिणाम अक्सर चिकित्सीय उपचार हेतु मार्गदर्शन करने में उपयोगी होते हैं। भविष्य के विकल्प 2008 में, वैज्ञानिकों ने घोषणा की कि अधिक लागत प्रभावी लार परीक्षणों को अब कुछ रक्त परीक्षणों से बदला जा सकेगा, क्योंकि लार में रक्त में मौजूद प्रोटीन की 20 % मात्रा होती है। इन्हें भी देखें सामान्य रक्त परीक्षण के लिए संदर्भ श्रेणियां (एक लंबी सूची के साथ) मूत्र परीक्षण, शरीर द्रव परीक्षण की एक सामान्य शैली स्कम परीक्षण, रक्त बेमेलपन के लिए एक सामान्य परीक्षण रक्त फ़िल्म, सूक्ष्मदर्शी द्वारा रक्त कोशिकाओं को देखने का एक तरीका रुधिर विज्ञान, रक्त का अध्ययन सन्दर्भ रक्त परीक्षण चिकित्सकीय परीक्षण गूगल परियोजना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%98%E0%A4%B0
बार्सिलोना गिरजाघर
बार्सिलोना गिरजाघर (कैटलन भाषा: Catedral de la Santa Creu i Santa Eulàlia, स्पैनिश : Catedral de la Santa Cruz y Santa Eulalia) स्पेन दे बार्सिलोना शहर में स्थित एक गिरजाघर है। ये गोथिक शैली में बना हुआ है। ये आर्कबिशप की सीट है। इसे 13वीं से 15वीं सदी के दौरान बनाया गया। लेकिन इसका मुख्य काम 14वीं सदी में हुआ था। इसका मठ 1448ई. में बनाया गया। इसका मुखोटा 19वीं सदी में नव-गोथिक शैली में बनाया गया था। इतिहास ये गिरजाघर बार्सिलोना के यूलिना (Eulalia of Barcelona) को समरपित है। उन्होंने रोमन समय के दौरान आपनी शहादत दी थी। गैलरी बाहरी कड़ियाँ Official site Overview, with plan Legends of Saint Eulalia. Martyrdom, Burial in Cathedral Crypt, Why it always rains during Barcelona Festival स्पेन के गिरजाघर स्पेन के स्मारक
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चेस्टर
चेस्टर इंग्लैंड के चेशायर में एक चारदीवारी वाला कैथेड्रल शहर है। यह अंग्रेजी-वेल्श सीमा के करीब, डी नदी पर स्थित है। 2011 में 79,645 की आबादी के साथ, यह चेशायर वेस्ट और चेस्टर (एक एकात्मक प्राधिकरण जिसकी 2011 में 329,608 की आबादी थी) का सबसे अधिक आबादी वाला समझौता है और इसके प्रशासनिक मुख्यालय के रूप में कार्य करता है। यह चेशायर का ऐतिहासिक काउंटी शहर भी है और वॉरिंगटन के बाद चेशायर में दूसरा सबसे बड़ा समझौता है। चेस्टर की स्थापना 79 ईस्वी में सम्राट वेस्पासियन के शासनकाल के दौरान "कैस्ट्रम" या रोमन किले के रूप में देव विक्ट्रिक्स नाम से की गई थी। रोमन ब्रिटेन में मुख्य सैन्य शिविरों में से एक, देवा बाद में एक प्रमुख नागरिक बस्ती बन गया। 68 9 में, मर्सिया के राजा एथेलरेड ने वेस्ट मर्सिया के मिनस्टर चर्च की स्थापना की, जो बाद में चेस्टर का पहला कैथेड्रल बन गया, और एंगल्स ने डेन के खिलाफ शहर की रक्षा के लिए दीवारों को बढ़ाया और मजबूत किया। चेस्टर इंग्लैंड के अंतिम शहरों में से एक था जो नॉर्मन्स के अधीन था, और विलियम द कॉन्करर ने शहर और पास की वेल्श सीमा पर हावी होने के लिए एक महल के निर्माण का आदेश दिया। 1541 में चेस्टर को शहर का दर्जा दिया गया था। चेस्टर की शहर की दीवारें देश में सबसे अच्छी तरह से संरक्षित हैं और ग्रेड I सूचीबद्ध स्थिति है। इसमें कई मध्ययुगीन इमारतें हैं, लेकिन शहर के केंद्र के भीतर कई श्वेत-श्याम इमारतें विक्टोरियन पुनर्स्थापन हैं, जो ब्लैक-एंड-व्हाइट रिवाइवल आंदोलन से उत्पन्न हुई हैं। 100 मीटर (330 फीट) खंड के अलावा, दीवारें लगभग पूरी हो चुकी हैं। औद्योगिक क्रांति ने शहर में रेलवे, नहरों और नई सड़कों को लाया, जिसने पर्याप्त विस्तार और विकास देखा; चेस्टर टाउन हॉल और ग्रोसवेनर संग्रहालय इस अवधि के विक्टोरियन वास्तुकला के उदाहरण हैं। पर्यटन, खुदरा उद्योग, लोक प्रशासन और वित्तीय सेवाएं आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं। चेस्टर शहर में प्रवेश करने वाली मुख्य सड़कों पर सड़क के संकेतों पर चेस्टर इंटरनेशनल हेरिटेज सिटी के रूप में हस्ताक्षर करता है। इतिहास रोमन सम्राट वेस्पासियन के शासनकाल के दौरान रोमन लेगियो II एडियूट्रिक्स ने 79 ईस्वी में चेस्टर की स्थापना "कैस्ट्रम" या रोमन किले के रूप में की थी जिसका नाम देवा विक्ट्रिक्स था। यह प्राचीन कार्टोग्राफर टॉलेमी के अनुसार, सेल्टिक कॉर्नोवी की भूमि में स्थापित किया गया था, [6] उत्तर की ओर रोमन विस्तार के दौरान एक किले के रूप में, और इसका नाम देव नाम दिया गया था या तो डी की देवी के बाद, या सीधे से नदी के लिए ब्रिटिश नाम। नाम का 'विक्ट्रिक्स' भाग लेगियो XX वेलेरिया विक्ट्रिक्स के शीर्षक से लिया गया था जो देवा पर आधारित था।. सेंट्रल चेस्टर की चार मुख्य सड़कें, ईस्टगेट, नॉर्थगेट, वाटरगेट और ब्रिजगेट, इस समय निर्धारित मार्गों का अनुसरण करती हैं। सैन्य अड्डे के आसपास एक नागरिक बस्ती विकसित हुई, संभवतः किले के साथ व्यापार से उत्पन्न हुई। किला, ब्रिटानिया के रोमन प्रांत के अन्य किलों की तुलना में 20% बड़ा था, जिसे यॉर्क (एबोराकम) और कैरलियन (इस्का ऑगस्टा) में एक ही समय में बनाया गया था; इससे यह सुझाव दिया गया है कि लंदन (लोंडिनियम) के बजाय किले ), ब्रिटानिया सुपीरियर के रोमन प्रांत की राजधानी बनने का इरादा था। सिविलियन एम्फीथिएटर, जिसे पहली शताब्दी में बनाया गया था, में 8,000 से 10,000 लोग बैठ सकते थे। यह ब्रिटेन में सबसे बड़ा ज्ञात सैन्य अखाड़ा है, और यह एक अनुसूचित स्मारक भी है। रोमन खदान में मिनर्वा श्राइन ब्रिटेन में अभी भी सीटू में एकमात्र रॉक कट रोमन मंदिर है। कम से कम चौथी शताब्दी के अंत तक किले को सेना द्वारा घेर लिया गया था। यद्यपि सेना ने 410 तक किले को छोड़ दिया था जब रोमन ब्रिटानिया से पीछे हट गए थे, रोमानो-ब्रिटिश नागरिक समझौता जारी रहा (शायद कुछ रोमन दिग्गज अपनी पत्नियों और बच्चों के साथ पीछे रह रहे थे) और इसके रहने वालों ने शायद किले का उपयोग करना जारी रखा और आयरिश सागर से हमलावरों से सुरक्षा के रूप में इसकी सुरक्षा। मध्यकालीन रोमन सैनिकों के हटने के बाद, रोमानो-ब्रिटिश ने कई छोटे-छोटे राज्यों की स्थापना की। माना जाता है कि चेस्टर पॉविस का हिस्सा बन गया है। डेवरडोई चेस्टर के लिए 12 वीं शताब्दी के अंत तक एक वेल्श नाम था (cf Dyfrdwy, डी नदी के लिए वेल्श)। एक अन्य, जिसे 9वीं शताब्दी में ब्रिटेन के इतिहास में प्रमाणित किया गया है, पारंपरिक रूप से नेनिअस को जिम्मेदार ठहराया गया है, वह है केयर लीजन ("किला" या "सिटी ऑफ द लीजन"); यह बाद में कैरलीन और फिर आधुनिक वेल्श कैर में विकसित हुआ। (शहर के महत्व को प्रत्येक मामले में सरल रूप लेने के द्वारा नोट किया जाता है, जबकि मॉनमाउथशायर में इस्का ऑगस्टा, एक अन्य महत्वपूर्ण सैन्य आधार, पहले उस्क पर कैरलीन के रूप में जाना जाता था, और अब कैरलीन के रूप में जाना जाता था)। कहा जाता है कि राजा आर्थर ने "सेनाओं के शहर" (कैरलेन) में अपनी नौवीं लड़ाई लड़ी थी और बाद में सेंट ऑगस्टीन चर्च को एकजुट करने की कोशिश करने के लिए शहर आए, और वेल्श बिशप के साथ अपने धर्मसभा का आयोजन किया। 616 में, नॉर्थम्ब्रिया के एथेलफ्रिथ ने चेस्टर की क्रूर और निर्णायक लड़ाई में एक वेल्श सेना को हराया, और संभवत: तब से इस क्षेत्र में एंग्लो-सैक्सन की स्थिति स्थापित की। नॉर्थम्ब्रियन एंग्लो-सैक्सन ने ब्रिटिश नाम, लेगासीस्टर के पुराने अंग्रेजी समकक्ष का इस्तेमाल किया, जो 11 वीं शताब्दी तक चालू था, जब वेल्श के उपयोग के साथ समानांतर में, पहला तत्व उपयोग से बाहर हो गया और साधारण नाम चेस्टर उभरा। 689 में, मर्सिया के राजा एथेलरेड ने वेस्ट मर्सिया के मिनस्टर चर्च की स्थापना की, जिसे प्रारंभिक ईसाई स्थल माना जाता है: इसे सेंट जॉन द बैपटिस्ट, चेस्टर (अब सेंट जॉन्स चर्च) के मंत्री के रूप में जाना जाता है, जो बाद में पहला कैथेड्रल बन गया। . बहुत बाद में, एथेलरेड की भतीजी, सेंट वेरबर्ग के शरीर को 9वीं शताब्दी में स्टैफोर्डशायर के हनबरी से हटा दिया गया था और इसे डेनिश लुटेरों द्वारा अपवित्रता से बचाने के लिए, एसएस पीटर और पॉल के चर्च में फिर से दफनाया गया था - बाद में एबी चर्च बन गया। (वर्तमान गिरजाघर)। उसका नाम अभी भी सेंट वेरबर्ग स्ट्रीट में याद किया जाता है जो कैथेड्रल के साथ और शहर की दीवारों के पास से गुजरता है। एंग्लो-सैक्सन ने डेन के खिलाफ शहर की रक्षा के लिए चेस्टर की दीवारों को बढ़ाया और मजबूत किया, जिन्होंने इसे थोड़े समय के लिए कब्जा कर लिया जब तक कि अल्फ्रेड ने सभी मवेशियों को जब्त नहीं किया और उन्हें बाहर निकालने के लिए आसपास की भूमि को बर्बाद कर दिया। यह अल्फ्रेड की बेटी एथेलफ्लैड, लेडी ऑफ द मर्सियंस थी, जिसने नए एंग्लो-सैक्सन बुर का निर्माण किया। अकेले सेंट पीटर को समर्पित एक नए चर्च की स्थापना 907 ईस्वी में लेडी thelfleda द्वारा क्रॉस बनने के लिए की गई थी। 973 में, एंग्लो-सैक्सन क्रॉनिकल ने रिकॉर्ड किया कि, बाथ में अपने राज्याभिषेक के दो साल बाद, इंग्लैंड के राजा एडगर चेस्टर आए, जहां उन्होंने एक महल में अपना दरबार रखा, जिसे अब हैंडब्रिज में पुराने डी ब्रिज के पास एडगर फील्ड के नाम से जाना जाता है। एक बजरा की कमान संभालते हुए, उन्हें एडगर के फील्ड से डी नदी तक सेंट जॉन द बैपटिस्ट के महान मिनस्टर चर्च में छह (भिक्षु हेनरी ब्रैडशॉ रिकॉर्ड करता है कि उन्हें आठ राजाओं द्वारा पंक्तिबद्ध किया गया था) की छोटी दूरी पर रेगुली कहा जाता था। 1071 में, किंग विलियम द कॉन्करर ने ह्यूग डी'वेरांचेस को बनाया, जिन्होंने चेस्टर कैसल का निर्माण किया, चेस्टर का पहला अर्ल (दूसरी रचना)। 14वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक उत्तर पश्चिम इंग्लैंड में शहर की प्रमुख स्थिति का मतलब था कि इसे आमतौर पर वेस्टचेस्टर के नाम से भी जाना जाता था। इस नाम का इस्तेमाल सेलिया फिएनेस ने 1698 में शहर का दौरा करते समय किया था। और मोल फ़्लैंडर्स में भी इसका उपयोग किया जाता है। प्रारंभिक आधुनिक काल अंग्रेजी गृहयुद्ध में, चेस्टर ने किंग चार्ल्स I के शाहीवादी कारण का पक्ष लिया, लेकिन 1643 में सांसदों द्वारा वश में कर लिया गया। चेस्टर के मेयर, चार्ल्स वॉली को कार्यालय से हटा दिया गया और उनकी जगह एल्डरमैन विलियम एडवर्ड्स ने ले लिया। एक अन्य एल्डरमैन, एक शाही सांसद और पूर्व मेयर, फ्रांसिस गामुल को डी मिल्स को आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया गया था: उन्हें ध्वस्त कर दिया जाना था, और शहर की जमीन पर नई मिलों का निर्माण किया जाना था। औद्योगिक इतिहास चेस्टर ने औद्योगिक क्रांति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जो 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इंग्लैंड के उत्तर पश्चिम में शुरू हुई थी। न्यूटाउन का शहर गांव, शहर के उत्तर पूर्व में स्थित है और श्रॉपशायर यूनियन कैनाल से घिरा हुआ है, इस उद्योग के केंद्र में था। बड़े चेस्टर मवेशी बाजार और दो चेस्टर रेलवे स्टेशन, चेस्टर जनरल और चेस्टर नॉर्थगेट स्टेशन का मतलब था कि न्यूटाउन अपने मवेशी बाजार और नहर के साथ, और होल अपने रेलवे के साथ श्रमिकों के विशाल बहुमत को प्रदान करने के लिए जिम्मेदार थे और बदले में, विशाल राशि औद्योगिक क्रांति के दौरान चेस्टर के धन उत्पादन का। 1841 तक जनसंख्या 23,115 थी। आधुनिक युग चेस्टर में काफी मात्रा में भूमि वेस्टमिंस्टर के 7 वें ड्यूक के स्वामित्व में है, जो एक्लेस्टन गांव के पास एक संपत्ति, ईटन हॉल का मालिक है। मेफेयर में उनकी लंदन की संपत्तियां भी हैं। ग्रोसवेनर ड्यूक का पारिवारिक नाम है, जो शहर में ग्रोसवेनर ब्रिज, ग्रोसवेनर होटल और ग्रोसवेनर पार्क जैसी सुविधाओं की व्याख्या करता है। चेस्टर की अधिकांश वास्तुकला विक्टोरियन युग की है, कई इमारतें जैकोबीन अर्ध-लकड़ी शैली पर बनाई गई हैं और जॉन डगलस द्वारा डिजाइन की गई हैं, जिन्हें ड्यूक ने अपने प्रमुख वास्तुकार के रूप में नियुक्त किया था। उनके पास मुड़ी हुई चिमनी के ढेर का एक ट्रेडमार्क था, जिनमें से कई शहर के केंद्र की इमारतों पर देखे जा सकते हैं। डगलस ने अन्य इमारतों ग्रोसवेनर होटल और सिटी बाथ के बीच डिजाइन किया। 1911 में, डगलस के शिष्य और शहर के वास्तुकार जेम्स स्ट्रॉन्ग ने नॉर्थगेट स्ट्रीट के पश्चिम की ओर तत्कालीन सक्रिय फायर स्टेशन को डिजाइन किया। वेस्टमिंस्टर की संपत्ति से संबंधित सभी इमारतों की एक अन्य विशेषता 'ग्रे डायमंड्स' है - हीरे के निर्माण में रखी गई लाल ईंटों में ग्रे ईंटों का एक बुनाई पैटर्न। द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में, किफायती आवास की कमी का मतलब चेस्टर के लिए कई समस्याएं थीं। शहर के बाहरी इलाके में कृषि भूमि के बड़े क्षेत्रों को 1950 और 1960 के दशक की शुरुआत में आवासीय क्षेत्रों के रूप में विकसित किया गया था, उदाहरण के लिए, ब्लाकॉन का उपनगर। 1964 में, यातायात की भीड़ से निपटने के लिए शहर के केंद्र के आसपास और आसपास एक बाईपास बनाया गया था। इन नए विकासों ने स्थानीय चिंता का कारण बना दिया क्योंकि भौतिकता [स्पष्टीकरण की आवश्यकता] और इसलिए शहर की भावना को नाटकीय रूप से बदला जा रहा था। 1968 में, अधिकारियों और सरकार के सहयोग से डोनाल्ड इन्सॉल की एक रिपोर्ट ने सिफारिश की कि चेस्टर में ऐतिहासिक इमारतों को संरक्षित किया जाए। नतीजतन, इमारतों को समतल करने के बजाय नए और अलग-अलग तरीकों से इस्तेमाल किया गया। 1969 में शहर संरक्षण क्षेत्र नामित किया गया था। अगले 20 वर्षों में द फाल्कन इन, डच हाउस और किंग्स बिल्डिंग जैसी ऐतिहासिक इमारतों को बचाने पर जोर दिया गया। 13 जनवरी 2002 को, चेस्टर को फेयरट्रेड सिटी का दर्जा दिया गया था। इस स्थिति को फेयरट्रेड फाउंडेशन द्वारा 20 अगस्त 2003 को नवीनीकृत किया गया था। सन्दर्भ इंग्लैंड की काउंटी इंग्लैंड के शहर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%AE%E0%A4%BF%20%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97%20%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE
शहरी भूमि सीलिंग अधिनियम
शहरी भूमि सीलिंग अधिनियम भारत में १९७६ में पारित किया गया था। यह अधिनियम शहरी विकास पर एक बड़ी बाधा है, अतः कई राज्यों ने इसे हटा दिया है, जैसे कि गुजरात और महाराष्ट्र| हालांकि, वहाँ अभी भी भवनों के लिए भूमि की निकासी के लिए आवश्यक प्रक्रिया में काफी भ्रम की स्थिति है, क्योंकि कानून के निरस्त होने का जमीनी तोर पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा है। महाराष्ट्र सरकार ने आम लोगों के लिए कम लागत के आवास उपलब्ध कराने के लिए इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत जमीन के बड़े हिस्सों को खरीदा है। निरस्त की पूर्व शर्त के अनुसार राज्य सरकारों को जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत अनुदान करना था, जिसका इस्तेमाल प्रमुख बुनियादी विकास परियोजनाओं के लिए होगा। भारत के अधिनियम
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डियान मॉर्गन
डियान मॉर्गन (जन्म 5 अक्टूबर 1975) एक अंग्रेजी अभिनेत्री, कॉमेडियन, टेलीविजन प्रस्तोता और लेखिका हैं। वह चार्ली ब्रूकर के वीकली वाइप पर फिलोमेना कंक और बीबीसी टू सिटकॉम मदरलैंड में लिज़ के रूप में और अन्य मॉक्युमेंट्रीज़ में और नेटफ्लिक्स डार्क कॉमेडी सीरीज़ आफ्टर लाइफ में कैथ के रूप में जानी जाती हैं। उन्होंने बीबीसी टू कॉमेडी सीरीज़ लिखा और अभिनय किया। प्रारंभिक जीवन मॉर्गन का जन्म बोल्टन , ग्रेटर मैनचेस्टर में 5 अक्टूबर 1975 को हुआ था। वह एक फिजियोथेरेपिस्ट और घर पर रहने वाली मां की बेटी है और उनका एक भाई है। वह पास के फ़र्नवर्थ और केयर्सली में पली-बढ़ी , और केयर्सली में जॉर्ज टॉमलिंसन स्कूल में पढ़ाई की। जब वह 20 वर्ष की थी, तब उन्होंने लॉटन में ईस्ट 15 एक्टिंग स्कूल में अध्ययन किया। उन्होंने 2020 के एक साक्षात्कार में कहा, "मेरे पिता के परिवार में कुछ अभिनेता थे: जूली गुडइयर , फ्रैंक फिनेले औरजैक वाइल्ड थें। हम रेडग्रेव्स की तरह हैं। जूली को वास्तव में मैंडीज़ का स्पर्श मिला। शायद मैं उन्हें मैंडी की मां के रूप में कास्ट कर सकता हूं।" करियर पीटर के के फीनिक्स नाइट्स में डॉन के रूप में मॉर्गन का एक छोटा सा हिस्सा था, इससे पहले कि वह विभिन्न नौकरियों में काम करती थीं, जिसमें एक दंत सहायक, एक टेलीमार्केटर, एक चिप की दुकान पर एक आलू छीलने वाला, एवन बेचना, और एक कारखाने में वर्मिंग टैबलेट को बॉक्सिंग करना शामिल था। उन्होंने बाद कॉमेडी में अपना पहला प्रयास किया। उन्हें 2006 में हैकनी एम्पायर न्यू एक्ट ऑफ द ईयर पुरस्कार में दूसरे स्थान पर रखा गया था, और 2006 के मजेदार महिला पुरस्कारों में उपविजेता के रूप में रखा गया था। मॉर्गन और जो विल्किन्सन ने बाद में मैश के दो एपिसोड नामक एक स्केच कॉमेडी जोड़ी बनाई। उन्होंने 2008 से लगातार तीन वर्षों तक एडिनबर्ग फेस्टिवल फ्रिंज में प्रदर्शन किया और 2010 में वे रॉबर्ट वेब के व्यंग्य समाचार शो रॉबर्ट्स वेब पर दिखाई दी । 2012 में, इस अधिनियम ने अपनी दूसरी बीबीसी रेडियो श्रृंखला ( डेविड ओ'डोहर्टी की सह-अभिनीत ) पूरी की, और बीबीसी थ्रीज़ लाइव एट द इलेक्ट्रिक में दिखाई दी। व्यक्तिगत जीवन मॉर्गन लंदन के ब्लूम्सबरी जिले में अपने प्रेमी, बीबीसी कॉमेडी निर्माता बेन कॉडेल के साथ रहती हैं। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ
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दर्शन सिंह
सन्त दर्शन सिंह (1921–1989) भारत के आधुनिक काल के आध्यात्मिक गुरुओं में थे। दिल्ली स्थित सावन कृपाल रुहानी मिशन से संचालित सन्त मत विचारधारा के प्रणेता रहे। उर्दू व फारसी में वे सिद्धहस्त थे तथा सूफ़ी रहस्यात्मक शायरी में कई अत्यंत गहरी रचनाएँ उन्होंने मानवजाति को दीं। प्रारंभिक जीवन दर्शन सिंह जी का जन्म १४ सितंबर १९२१ को हुआ। उनके पिता संत कृपाल सिंह जी बाबा सावन सिंह जी के अनुयायी थे। ५ वर्ष की आयु में ही दर्शन ने बाबा सावन सिंह जी से सुरत शब्द योग की दीक्षा प्राप्त की तथा उनके मार्गदर्शन में रुहानी सफर शुरु किया। 1948-1974 तक पिता कृपाल सिंह के मार्गदर्शन में यह सफर जारी रहा। 1974 में संत कृपाल सिंह जी इन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित करके परमेश्वर के चरणों में लीन हुए। दर्शन सिंह जी की शिक्षा लाहौर के पंजाब विश्वविद्यालय के सरकारी कॉलेज में हुई। ३७ वर्ष की सरकारी नौकरी के पश्चात् १९७९ में वे वित्त मंत्रालय में डिप्टी सचिव के पद से रिटायर हुए। आध्यायात्मिक गुरु उन्होंने दिल्ली में सावन कृपाल रुहानी मिशन की स्थापना की। इनके नेतृत्व में दिल्लि में कृपाल आश्रम की स्थापना हुई तथा इस मिशन के ५५० से अधिक केंद्र ४० देशों में स्थापित हुए। आपने छटे कॉन्फ्रेन्स ऑफ वर्ल्ड फेलोशिप ऑफ रिलिजन्स, एशियन कॉन्फ्रेन्स ऑफ रिलिजन्स फॉर पीस तथा दिल्ली में आयोजित पंद्रहवें मानव एकता सम्मेलन का नेतृत्व भी किया। 1986 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा आंतरिक और बाह्य शांति के विषय पर अपना संदेश देने के लिये आमंत्रित किया गया। वहाँ दिये गये अपने संदेश में उन्होंने सकारात्मक अध्यात्म (positive mysticism) पर ज़ोर दिया, जिसके अंतर्गत हम परिवार, समाज और विश्व के प्रति अपने समस्त उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने के साथ-साथ अपने आध्यात्मिक लक्ष्य को भी प्राप्त कर सकते हैं। रचनाएँ पुस्तकें तलाश-ए-नूर मता ए नूर मंज़िल-ए-नूर संगीत एलबम संत दर्शन सिंह जी द्वारा रचित कुछ चुनिंदा ग़ज़लों को प्रख्यात ग़ज़ल गायक गुलाम अली ने अपनी आवाज़ में टी-सीरीज़ द्वारा प्रकाशित एलबम कलाम-ए-मोहब्बत में गाया। कुछ चुनिंदा शे'र राज़-ए-निहाँ थी ज़िंदगी, राज़-ए-निहाँ है आज भी। वहम-ओ-गुमाँ अज़ल में थी, वहम-ओ-गुमाँ है आज भी।। सम्मान अपनी रूहानी शायरी की कि़ताबों के लिये चार बार उर्दू अकादमी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। सन्दर्भ संत मत 1921 में जन्मे लोग १९८९ में निधन
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शैरन (उपग्रह)
शैरन, जिसे कैरन भी कहतें हैं, बौने ग्रह यम (प्लूटो) का सब से बड़ा उपग्रह है। इसकी खोज १९७८ में हुई थी। २०१५ में प्लूटो और शैरन का अध्ययन करने के लिए अमेरिकी सरकार द्वारा एक "न्यू होराएज़न्ज़" (हिंदी अर्थ: "नए क्षितिज") नाम का मनुष्य-रहित अंतरिक्ष यान भेजने की योजना है। शैरन गोलाकार है और उसका व्यास १,२०७ किमी है, जो प्लूटो के व्यास के आधे से थोड़ा अधिक है। उसकी सतह का कुल क्षेत्रफल लगभग ४५.८ लाख वर्ग किलोमीटर है। जहाँ प्लूटो की सतह पर नाइट्रोजन और मीथेन की जमी गुई बर्फ़ है वहाँ शैरन पर उसकी बजाए पानी की बर्फ़ है। प्लूटो पर एक पतला वायुमंडल है लेकिन शैरन के अध्ययन से संकेत मिला है के उसपर कोई वायुमंडल नहीं है और उसकी सतह के ऊपर सिर्फ़ खुले अंतरिक्ष का व्योम है। शैरन पर प्लूटो की तुलना में पत्थर कम हैं और बर्फ़ अधिक है। अन्य भाषाओँ में शैरन को अंग्रेज़ी में "Charon" लिखा जाता है। भीतरी बनावट खगोलशास्त्रियों में आपस में मतभेद है के शैरन के अन्दर बर्फ़ और पत्थर की अलग तहें हैं या पूरे उपग्रह में एक जैसा बर्फ़ और पत्थर का मिश्रण है। प्लूटो और शैरन का घनत्व देखकर अंदाजा लगाया जाता है के प्लूटो का ७०% द्रव्यमान पत्थर है जबकि शैरन का केवल ५०-५५% पत्थर है। इस से कुछ वैज्ञानिकों की सोच है के प्लूटो पर किसी अन्य वस्तु के ज़बरदस्त टकराव से उसका ऊपर का मलबा उड़कर एक उपग्रह के रूप में इकठ्ठा हो गया। इसलिए शैरन में प्लूटो की ऊपरी सतह की बर्फ़ अधिक है और प्लूटो के अन्दर के पत्थर कम। लेकिन इस विचार में एक शंका पैदा होती है - अगर वास्तव में ऐसा हुआ होता तो शैरन का और भी बड़ा प्रतिशत हिस्सा बर्फ़ का बना होना चाहिए और प्लूटो का और भी बड़ा प्रतिशत हिस्सा पत्थर का। इसलिए कुछ अन्य वैज्ञानिकों का मानना है के शैरन और प्लूटो शुरू से ही अलग वस्तुएँ थीं जो टकराई, लेकिन फिर अलग होकर एक-दुसरे की परिक्रमा करने लगी। उपग्रह या जुड़वाँ ग्रह प्लूटो और शैरन का मेल सौर मण्डल में अनोखा है। शैरन का व्यास (डायामीटर) प्लूटो के आधे से ज़्यादा है और उसका द्रव्यमान प्लूटो का ११.६% है - जो सौर मण्डल में किसी भी उपग्रह-ग्रह की जोड़ी में सबसे अधिक है। तुलना के लिए पृथ्वी के चन्द्रमा का व्यास पृथ्वी का लगभग एक-चौथाई और द्रव्यमान पृथ्वी का केवल १.२% है। इस कारण से प्लूटो और शैरन का मिला हुआ द्रव्यमान केन्द्र का बिंदु प्लूटो के अन्दर नहीं बल्कि इन दोनों के बीच के खुले व्योम में पड़ता है और प्लूटो और शैरन दोनों इस बिंदु की परिक्रमा करते हैं। अगर खगोलशास्त्र की परिभाषाएँ सख्ती से लगाई जाएँ तो ऐसी स्थिति में दो खगोलीय वस्तुओं को ग्रह-उपग्रह न कहकर जुड़वाँ ग्रह कहा जाता है। फिर भी आम तौर पर शैरन को प्लूटो का उपग्रह ही माना जाता है। इन्हें भी देखें यम (ग्रह) न्यू होराएज़न्ज़ प्राकृतिक उपग्रह यम के प्राकृतिक उपग्रह सौर मंडल हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B8
केन्सास
केन्सास मध्य-पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित राज्य है। कान्सास का नाम मूल अमरीकी जनजाति कंसा के नाम पर रखा गया है जो कि इस क्षेत्र में निवास करते थे। पहले यूरोपीय अमेरिकी लोग 1812 में आकर केन्सास में बसे। जब 1854 में अमेरिकी सरकार द्वारा इसे आधिकारिक रूप से औपनिवेशीकरण के लिये खोला गया, तो लोग न्यू इंग्लैंड और पड़ोसी मिसौरी से तेजी से बसना शुरू हुए। 29 जनवरी 1861 को कान्सास ने राज्य के रूप में संघ में प्रवेश किया। गृहयुद्ध के बाद, कैनसस की आबादी तेजी से बढ़ी जब प्रवासियों की लहरों ने प्रेरियों को खेत में बदल दिया। 2015 तक, कैनसस सबसे अधिक उत्पादकता वाले कृषि राज्यों में से एक था, जो कि गेहूँ मक्का, ज्वार और सोयाबीन की उच्च पैदावार पैदा करता है। केन्सास क्षेत्र के अनुसार 15वां सबसे बड़ा राज्य है और 29,11,641 की आबादी के साथ 34वां सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है। अंग्रेजी अधिकारिक भाषा है जो कि लगभग 91% जनता द्वारा मातृभाषा के रूप में बोली जाती है। ईसाई धर्म के प्रोटेस्टैंट सम्प्रदाय को सबसे ज्यादा माना जाता है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ संयुक्त राज्य अमेरिका के राज्य
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97
अनंगरंग
अनंगरंग (अनंगरंग) , कल्याणमल्ल प्रणीत एक कामशास्त्रीय ग्रन्थ जिसमें मैथुन संबंधी आसनों का विवरणी है। ४२० श्लोकों एवं १० स्थल नामक अध्यायों में विभक्त यह ग्रन्थ 'भूपमुनि' के रूप में प्रसिद्ध कलाविदग्ध क्षत्रिय विद्वान कल्याणमल्ल द्वारा अपने घनिष्ठ मित्र लोदीवंशावतंस लाडखान के कौतुहल के लिये रची गयी थी। विश्व की विविध भाषाओं में इस ग्रन्थ के अनेक अनुवाद प्रकाशित हैं। अध्याय प्रथमस्थलं - स्त्रीलक्षणं द्वितीय स्थलं - चन्द्रकल तृतीयस्थलं - शशमृगादिभेदं चतुर्त्थस्थलं - सामान्यधर्म्मं पंचस्थलं - देशनियम षष्ठस्थलं - विवाहाद्युद्देशं सप्तमस्थलं - बाह्यसंभोगविधानं अष्टमस्थलं - सुरतभेद नवमस्थलं - दशमस्थलं - वशीकरणादिकं काम-विषयक अन्य प्राचीन ग्रन्थ कामसूत्र पंचशक्य स्मरप्रदीप रतिमंजरी रसमंजरी इन्हें भी देखें कल्याणमल्ल कामशास्त्र बाहरी कड़ियाँ Text of the Burton translation of the Ananga Ranga संस्कृत ग्रन्थ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%8B%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8B%20%E0%A4%A5%E0%A5%89%E0%A4%AE%E0%A4%B8
तोविनो थॉमस
तोविनो थॉमस (जन्म 21 जनवरी 1989) एक भारतीय अभिनेता और फिल्म निर्माता हैं जो मुख्य रूप से मलयालम फिल्मों में काम करते हैं। उन्होंने 2012 में फिल्म प्रभुविंते मक्कल से शुरुआत की थी। उन्होंने फ़िल्म एबीसीडी (2013), 7थ डे (2014) और एन्नु निंटे मोइदीन (2015) में अभिनय किया। उन्होंने नेटफ्लिक्स की सुपरहीरो फिल्म मिन्नल मुरली (2021) में मुख्य किरदार की भूमिका निभाई है। वे फिल्म किलोमीटर्स एंड किलोमीटर्स के सह-निर्माता रहे। 21 जनवरी 2021 को उन्होंने अपना खुद का प्रोडक्शन हाउस - तोविनो थॉमस प्रोडक्शंस लॉन्च किया। काला उनके अपने प्रोडक्शन हाउस की पहली फ़िल्म है जिसमें उन्होंने प्रतिपक्षी की भूमिका भी निभाई है। जन्म तोविनो का जन्म त्रिस्सूर के इरिनजालाकुडा में हुआ था। उनके पिता एलिक्कल थॉमस पेशे से वकील थे। उनकी माँ का नाम शीला थॉमस है। उनके भाई-बहन टिंगस्टन थॉमस और धन्या थॉमस हैं। शिक्षा उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा तमिलनाडु के डॉन बॉस्को हायर सेकेंडरी स्कूल, इरिंजलाकुडा से पूरी की। वे डॉन बॉस्को हाई स्कूल की हैंडबॉल टीम का हिस्सा थे और स्कूल लीडर के रूप में भी कार्य करते थे। उन्होंने तमिलनाडु कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, कोयंबटूर, तमिलनाडु से इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार इंजीनियरिंग में स्नातक किया। वे खेल और स्वास्थ्य के प्रति हमेशा सजग रहे। उन्होंने मॉडलिंग भी की थी। पुरस्कार उन्हें एन्नु निंटे मोइदीन (2015) में अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार दिया गया था। इन्हें भी देखें आर्य (अभिनेता) कमल हासन दिलीप (मलयालम अभिनेता) दुलकर सलमान बसिल जोसेफ़ लिजो जोस पेल्लीस्सेरी संदर्भ बाहरी कड़ियाँ अभिनेता फ़िल्म निर्माण मलयालम अभिनेता
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%87%20%282007%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29
अपने (2007 फ़िल्म)
अपने 2007 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। यह फिल्म पहेली बार वास्तविक जीवन में पिता धर्मेंद्र और बेटे सनी देओल और बॉबी देओल एक साथ दर्शाता है। संक्षेप चरित्र मुख्य कलाकार धर्मेन्द्र सनी द्योल बॉबी द्योल शिल्पा शेट्टी - सिमरन कैटरीना कैफ़ किरन खेर - रवि विक्टर बैनर्जी आर्यन वैद्य दिव्या दत्ता - पूजा राजेन्द्र गुप्ता - मुक्केबाज दल संगीत हिमेश रेशमिया द्वारा रचा गया इस फिल्म का संगीत आम जनता को पसंद आया। रोचक तथ्य परिणाम बौक्स ऑफिस समीक्षाएँ नामांकन और पुरस्कार बाहरी कड़ियाँ अपने
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%80%20%E0%A4%87%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%A8%E0%A4%B2
एमनेस्टी इण्टरनेशनल
एमनेस्टी इंटरनेशनल एक अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवी संस्था है जो अपना उद्देश्य "मानवीय मूल्यों, एवं मानवीय स्वतंत्रता, को बचाने एवं भेदभाव मिटाने के लिए शोध एवं प्रतिरोध करने एवं हर तरह के मानवाधिकारों के लिए लडना" बताती है। इस संस्थान की स्थापना ब्रिटेन में १९६१ में की गयी थी। एमनेस्टी मानवाधिकारों के मुद्दे पर बहुद्देशीय प्रचार अभियान चलाकर, शोध कार्य कर के पूरे विश्व का ध्यान उन मुद्दों की ओर आकर्षित करने एवं एक विश्व जनमत तैयार करने की कोशिश करता है। ऐसा करके वे खास सरकारों, संस्थानों या व्यक्तियों पर दबाव बनाने की कोशिश करते हैं। इस संस्थान को १९७७ में "शोषण के खिलाफ" अभियान चलाने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया था। तथा १९७८ में संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार पुरस्कार से नवाजा गया था। लेकिन इस संस्थान की हमेशा यह कहकर आलोचना की जाती है कि पश्चिमी देशों के लिए इस संस्थान में हमेशा एक खास पूर्वाग्रह देखा जाता है। 25 अक्टूबर 2018 को इसके बेंगलूर स्थित दफ्तर व इसके निदेशक आकार पटेेेल के घर ईडी ने फेेमा के उल्लंघन के आरोप मेे छापे मारेे। आलोचना संदर्भ सूची बाहरी कड़ियाँ एमनेस्टी का आधिकारिक जालस्थल स्वयं सेवक संगठन नोबल शांति पुरस्कार के प्राप्तकर्ता नोबेल पुरस्कार सम्मानित संगठन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%BE%20%28%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%29
उत्तरा (महाभारत)
उत्तरा राजा विराट की पुत्री थीं। जब पाण्डव अज्ञातवास कर रहे थे, उस समय अर्जुन वृहनलला नाम ग्रहण करके रह रहे थे। वृहनलला ने उत्तरा को नृत्य, संगीत आदि की शिक्षा दी थी। जिस समय कौरवों ने राजा विराट की गायें हस्तगत कर ली थीं, उस समय अर्जुन ने कौरवों से युद्ध करके अपूर्व पराक्रम दिखाया था। अर्जुन की उस वीरता से प्रभावित होकर राजा विराट ने अपनी कन्या उत्तरा का विवाह अर्जुन से करने का प्रस्ताव रखा था किन्तु अर्जुन ने यह कहकर कि उत्तरा उनकी शिष्या होने के कारण उनकी पुत्री के समान थी, उस सम्बन्ध को अस्वीकार कर दिया था। कालान्तर में उत्तरा का विवाह अभिमन्यु के साथ सम्पन्न हुआ था। चक्रव्यूह तोड़ने के लिए जाने से पूर्व अभिमन्यु अपनी पत्नी से विदा लेने गया था। उस समय उसने अभिमन्यु से प्रार्थना की थी हे उत्तरा के धन रहो तुम उत्तरा के पास ही। परीक्षित का जन्म इन्हीं की कोख से अभिमन्यु की मृत्यु के बाद हुआ था। उत्तरा के भाई का नाम उत्तर था। महाभारत के युद्ध के अंत में अश्वथामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर उत्तरा के गर्भ को नष्ठ कर दिया था , जिसे बाद में भगवान कृष्ण द्वारा पुर्नजीवित किया गया। सन्दर्भ महाभारत के पात्र महाभारत के पात्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AC%E0%A5%82%20%E0%A4%9C%E0%A4%B9%E0%A4%B2
अबू जहल
अम्र इब्न हिशाम अल-मख़ज़ुमी (570 - 13 मार्च 624), (अंग्रेज़ी:Amr ibn Hisham ) जिसे अबू जहल (अज्ञानता का पिता) के नाम से अधिक जाना जाता है। कुरैश के मक्का के बहुदेववादी बुतपरस्त नेताओं में से भी एक थे, जो इस्लाम और मुहम्मद के कट्टर-दुश्मनों में से एक थे और शुरुआती मुसलमानों के विरोध के ध्वजवाहक थे। के प्रति अपने विरोध के लिए जाने जाते थे। बद्र की लड़ाई में मुसलमानों से लड़ते हुए सहाबी अब्दुल्लाह बिन मसऊद द्वारा मारे गए थे। वर्तमान में आज पाकिस्तान ओर भारत में जो राजड़ समाज है वो अबू जहल के बेटे हजरते अकर्मा रदी.अन्ना की ओलाद है। वर्तमान राजस्थान के डेरासर रिछोली में यह राजड़ समाज ज्यादा है अबू जहल से संबंधित कुरआन की आयतें अब्दुल्लाह बिन अब्बास का कहना है कि अबू जहल के बारे में कुरआन की 84 आयतें सामने आईं। इन्हें भी देखें बद्र की लड़ाई सहाबा सहाबा और सहाबियात की सूची सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0
बेपनाह प्यार
बेपनाह प्यार (अनुवाद। अंतहीन प्यार) एक भारतीय रोमांटिक ड्रामा टेलीविजन श्रृंखला है, जिसे बालाजी टेलीफिल्म्स के तहत एकता कपूर द्वारा निर्मित किया गया है। कलर्स टीवी पर 3 जून 2019 को इसका प्रीमियर हुआ। इसमें पर्ल वी पूरी, इशिता दत्ता और अपर्णा दीक्षित को रघबीर, प्रगति और बानी के रूप में दिखाया गया है। यह श्रृंखला दो प्रेमियों के इर्द-गिर्द घूमती है, जहां एक दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है, लेकिन भाग्य उन्हें एक साथ वापस लाता है जब वह अपने वादों को पूरा करने के लिए लौट आती है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ बालाजी टेलीफिल्म्स के धारावाहिक
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%20%E0%A4%B6%E0%A5%88%E0%A4%B2-%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A3%E0%A5%80
प्रवाल शैल-श्रेणी
प्रवालभित्तियाँ या प्रवाल शैल-श्रेणियाँ (coral reefs) समुद्र के भीतर स्थित चट्टान हैं जो प्रवालों द्वारा छोड़े गए कैल्सियम कार्बोनेट से निर्मित होती हैं। वस्तुतः ये इन छोटे जीवों की बस्तियाँ होती हैं। साधारणत: प्रवाल-शैल-श्रेणियाँ, उष्ण एवं उथले जलवो सागरों, विशेषकर प्रशांत महासागर में स्थित, अनेक उष्ण अथवा उपोष्णदेशीय द्वीपों के सामीप्य में बहुतायत से पाई जाती है। ऐसा आँका गया है कि सब मिलाकर प्रवाल-शेल-श्रेणियाँ लगभग पाँच लाख वर्ग मील में फैली हुई हैं और तरंगों द्वारा इनके अपक्षरण से उत्पन्न कैसियम मलवा इससे भी कहीं अधिक क्षेत्र में समुद्र के पेदें में फैला हुआ है। कैल्सियम कार्बोनेट की इन भव्य शैलश्रेणियों का निर्माण प्रवालों में प्रजनन अंडों या मुकुलन (budding) द्वारा होता है, जिससे कई सहस्र प्रवालों के उपनिवेश मिलकर इन महान आकार के शैलों की रचना करते हैं। पॉलिप समुद्र जल से घुले हुए कैल्सियम को लेकर अपने शरीर के चारों ओर प्याले के रूप में कैल्सियम कार्बोनेट का स्रावण करते हैं। इन पॉलिपों के द्वारा ही प्रवाल निवह का निर्माण होता है। ज्यों ज्यों प्रवाल निवहों का विस्तार होता जाता है, उनकी ऊर्ष्वमुखी वृद्धि होती रहती है। वृद्ध प्रवाल मरते जाते हैं, इन मृत्तक प्रवालों के कैल्सियमी कंकाल, जिनपर अन्य भविष्य की संततियां की वृद्धि होती है, नीचे दबते जाते हैं। कालांतर में इस प्रकार से संचित अवसाद श्वेत स्पंजी चूनापत्थर के रूप में संयोजित (cemented) हो जाते हैं। इनकी ऊपरी सतह पर प्रवाल निवास पलते और बढ़ते रहते हैं। इन्हीं से प्रवाल-शैल-श्रेणियाँ बनती हैं समुद्र सतह तक आ जाने पर इनकी ऊर्ध्वमुखी वृद्धि अवरुद्ध हो जाता है, क्योंकि खुले हुए वातावरण में प्रवाल कतिपय घंटों से अधिक जीवि नहीं रह सकते। सागर की गह्वरता और ताप का प्रवालशृंखलाओं के विस्तरर पर अत्याधिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि शैलनिर्माण करने वाले जीव केवल उन्हीं स्थानों पर जीवित रह सकते है, जहाँ पर जल निर्मल, उथला और उष्ण होता है। प्रवाल के लिये २०० सें. ऊपर का ताप और २०० फुट से कम की गहराई अत्याधिक अनुकूल होती है। मुख्य प्रश्न= प्रवाल श्रेणियों की उत्पत्ति से संबंधित 3 सिद्धांतों के नाम? उत्तर= 1,डार्विन का अवतलन सिद्धांत 2, मरे का स्थलीय स्थायित्व सिद्धांत,3, डेली का हिमानी नियंत्रण सिद्धांत प्रवालभित्तियों के भेद स्थिति और आकार के अनुसार इन्हें निम्नलिखित तीन वर्गो में वर्गीकृत किया गया है : (१) तटीय प्रवालभित्तियाँ (Fringing reefs) : समुद्रतट पर पाई जाती हैं और मंच के रूप में ज्वार के समय दिख पड़ती हैं। (२) प्रवालरोधिकाएँ (barrier reefs) : इस प्रकार की शैल भित्तियाँ, समुद्रतट से थोड़ी दूर हटकर पाई जाती है, जिससे कि इन और तट के बीच में छिछले लैगून (lagoon) पाए जाते हैं। यदि कहीं पर ये लैगून गहरे हो जाते हैं, तो वे एक अच्छे बंदरगाह निर्माण करते हैं। प्रशांत महासागर में पाए जानेवाले अनेक ज्वालामुखी द्वीप इस प्रकार की भित्तियों से घिरे हुए हैं। (३) अडल या प्रवाल-द्वीप-वलय (Atolls) : उन वर्तुक कारीय भित्तियों को अडल कहते हैं जिनके मध्य में द्वीप की अपने लैगून होता है। साधारणत: ये शैल भित्तियाँ असंतत होती हैं, जिसके खुले हुए स्थानों से हो कर लैगून के अंदर जाया जा सकता है। प्रवाल-शैल-श्रेणियों का निर्माण तटीय प्रवाल-शैल-भित्ति का निर्माण, तट के समीप पाई जानेवाली शिलाओं में प्रवालों के प्रवाल-द्वीप-वलय का निर्माण (डारविन के अनुसार) (क) प्रथम दशा में ज्वालामुखीय पर्वत थोड़ा धँसता है और पर्वत के किनारे किनारे प्रवालीय चट्टानें बनती हैं। इस प्रकार ज्वालामुखी द्वीप की तटीय प्रवालभित्ति का निर्माण होता है।। (ख) पर्वत के धँस जाने पर प्रवालद्वीप, वलयपर्वत से अलग हो जाता है और इस प्रकार सामान्य धँसाव द्वारा प्रवालरोधिकओं का निर्माण होता है। (ग) इस स्थिति में विशाल धँसाव के कारण विशाल खाइयों का निर्माण होता है। (घ) चौथी दशा लगभग वलयाकार प्रवाल द्वीप के समान होती हैं, किंतु पूर्णतया समान नहीं होती। (च) इस दशा में पूर्ण प्रवाल द्वीप वलय का निर्माण हो जाता है। (छ) यह स्थिति धँसी हुई प्रवालरोधिका तथा वलयाकार प्रवाल द्वीप में पाई जाती है। इसमें एक ऊँचे उठे प्रवाल-द्वीप-वलय का निर्माण होता है। इसमें धँसाव शीघ्र होता है और प्रवालजीव मर जाते हैं।प्रवालरोधिका और अडल''' का निर्माण सामान्यत: निम्नलिखित तीन विधियों से होता है : (१) तटीय प्रवालभित्तियों का निर्माण ऐसे ज्वालामुखी द्वीपों के चारों ओर होता है, जो समुद्र में धँसना प्रारंभ कर देते हैं। शनै: शनै:, जैसे जैसे द्वीप नीचे धँसता जाता है, प्रवाल भित्तियाँ वैसे ही वैसे ऊपर की ओर बढ़ती जाती हैं। ज्वालामुखी द्वीपों का अधोगमन और अपक्षरण होते रहने के कारण, ये द्वीप अंततोगत्वा समुद्र के गर्भ में विलीन हो जाते हैं और इस प्रकार से ज्वालामुखी द्वीप की तटीय प्रवालभित्ति का निर्माण होता है। (२) दूसरे मतानुसार ऐसा समझा जाता है कि हिमानी युग में समुद्र जल से हिमानियों के बनने के कारण समुद्रसतह नीचे गिर गई और ताप में अत्यधिक कमी हो जाने के कारण पूर्वस्थित मालाएँ नष्ट हो गईं। हिमानी युग बीत जाने पर जब समुद्र पुन: उष्ण होने लगे तो हिमानियों के द्रवित हो जाने से समुद्र की सतह ऊपर उठने लगी और पहले की तरंगों द्वारा निर्मित सीढ़ियों पर पुन: प्रवाल वृद्धि प्रारंभ हो गई। जैसे जैसे समुद्र की सतह ऊपर उठती गई वैसे ही वैसे मालाएँ भी ऊँचाई में बढ़ती गई और इस प्रकार से वर्तमान युग में पाई जानेवाली तटीय प्रवाल भित्ति और अडल का निर्माण हुआ। (३) तीसरे मत से २०० फुट से कम गहरे छिछले समुद्रांतर तटों पर प्रवाल भित्तियों का निर्माण हो जाता है। ऐसे स्थानों पर न तो समुद्रसतह के ऊपर उठने और न द्वीप के धँसने की आवश्यकता पड़ती है। उपयोग प्रवाल या मूँगे का उपयोग आभूषणों के निर्माण में होता है इसका क्रोड (core) बहुत कठोर होता है। बाह्य भाग के निकाल देने पर अंदर का भाग बहुत उच्च कोटि की पॉलिश ले सकता है। उससे प्रवाल का लाल, पीला, गुलाबी, पिंक, भूरा या काला, रंग निखर जाता है। कठोरता के कारण यह सरलता से मनका के या स्थायी अन्य रूपों में परिणत हो जाता है। इसका विशिष्ट घनत्व लगभग २.६८ होता है। अल्प अपद्रव्यों के कारण इसमें रंग होता है। पिंक मूँगे में मैंगनीज का लेश रहता है। यदि मूँगे पर तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की एक छोटी बूँद डाली जाए, तो उससे बुलबुले निकलते हैं। इससे प्राकृतिक मूँगे का कृत्रिम मूँगे से विभेद किया जाता है। आयुर्वेदिक औषधियों में प्रवाल भस्म का प्रयोग प्रचुरता से होता है। इन्हें भी देखें प्रवाल बाहरी कड़ियाँ Coral Reefs- At the Smithsonian Ocean Portal How Coral Reefs Work International Coral Reef Initiative International Year of the Reef in 2008 Moorea Coral Reef Long Term Ecological Research Site (US NSF) ARC Centre of Excellence for Coral Reef Studies NOAA's Coral-List Listserver for Coral Reef Information and News NOAA's Coral Reef Conservation Program Exhibition of the Mexican Caribbean coral reef biodiversity aquarium in Xcaret Mexico NOAA's Coral Reef Information System ReefBase: A Global Information System on Coral Reefs National Coral Reef Institute Nova Southeastern University Marine Aquarium Council NCORE National Center for Coral Reef Research University of Miami Science and Management of Coral Reefs in the South China Sea and Gulf of Thailand NBII portal on coral reefs Microdocs: 4 kinds of Reef & Reef structure Reefrelieffounders.com: Coral reef resources, images, education, threats, solutions Images Coral Reef of Gulf of Kutch Seminar on Corals and Coral Reefs by Nancy Knowlton (Smithsonian) जैव उत्पाद
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%AC%E0%A4%88%20%E0%A4%A6%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE
मुंबई दैनिक संध्या
मुंबई दैनिक संध्या भारत में प्रकाशित होने वाला हिंदी भाषा का एक समाचार पत्र (अखबार) है। इन्हें भी देखें भारत में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों की सूची सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ NEWSPAPERS.co.in - A dedicated portal showcasing online newspapers from all over India Newspaper Index - Newspapers from India - Most important online newspapers in India ThePaperboy.com India - Comprehensive directory of more than 110 Indian online newspapers भारत में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र हिंदी भाषा के समाचार पत्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9
यामिनी सिंह
यामिनी सिंह (जन्म 17 मई, 1997) एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जो मुख्य रूप से भोजपुरी फिल्मों में कार्य करती हैं। उनका निक नाम ‘शायरा’ है। उन्होंने अरविन्द अकेला कल्लू और अवधेश मिश्रा के साथ 2019 की फिल्म 'पत्थर के सनम' से भोजपुरी फिल्मों में पदार्पण किया। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा यामिनी सिंह का जन्म 17 मई 1997 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में यहाँ हुआ था। उन्होंने रानी लक्ष्मी बाई मेमोरियल सीनियर सेकेंडरी स्कूल से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। वह डॉ. डी वाई पाटिल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पुणे और इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की। वह एक फैशन डिजाइनर भी हैं। यामिनी सिंह के फेवरेट एक्टर में भोजपुरी अभिनेता दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ हैं। व्यवसाय यामिनी का सफर संघर्षों से भरा रहा है। यामिनी को भोजपुरी फिल्म उद्योग की सबसे लंबी अभिनेत्री माना जाता हैं, इसीलिए उन्हें शुरुवात में फ़िल्म पाने में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा । उन्होनें धैर्य से काम किया और उन्हें मिली सभी फिल्मों में, उन्होंने अपने अभिनय से सभी को अपना प्रशंसक बनाया। धीरे-धीरे यामिनी का अभिनय उनकी लंबाई पर भारी पड़ गया और उन्हें फिल्मों में मुख्य भूमिकाएँ मिलने लगीं। आज वह भोजपुरी सिनेमा की सुपरस्टार अभिनेत्री हैं। वह भोजपुरी फिल्म उद्योग में अच्छी फिल्मों को बनाने की वकालत करती है । वह अपनी भोजपुरी की शुरुआत 2019 की फिल्म पत्थर के सनम से अरविंद अकेला कल्लू के साथ करती है। वह लल्लू की लैला में दिनेश लाल यादव और छलिया में अरविंद अकेला कल्लू के साथ भी दिखाई देती हैं। संदर्भ भोजपुरी अभिनेत्री फ़ैशन डिज़ाइनर भोजपुरी फ़िल्में जीवित लोग 1997 में जन्मे लोग भोजपुरी फिल्म निर्देशक
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%20%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%88%E0%A4%A6
रेहाना बिन्त ज़ैद
रेहाना बिन्त ज़ैद(अंग्रेज़ी:Rayhana bint Zayd) बनू नज़ीर जनजाति की एक यहूदी महिला थीं, इस्लामिक पैगंबर मुहम्मद की पत्नी थीं और उम्मुल मोमिनीन अर्थात "विश्वास करने वालों की माँ" के रूप में भी माना जाता है। जीवनी रेहाना का जन्म यहूदी खानदान में हुआ था। बनू नज़ीर जनजाति से वह अपनी शादी के बाद बनू कुरैज़ा जनजाति का हिस्सा बन गई। उनका हुकम नामी व्यक्ति से विवाह हुआ था जो मुसलमानों से युद्ध में मारा गया था। इब्न साद ने लिखा है बनू कुरैज़ा से युद्व के पश्चात विधवा रेहाना को विमुक्त कर दिया गया और बाद में इस्लाम में उसके धर्मांतरण के बाद मुहम्मद से शादी कर ली गई। अल-थलाबी ने सहमति व्यक्त की कि वह मुहम्मद की पत्नियों में से एक बन गई और सबूतों का हवाला दिया कि उन्होंने उसके लिए महर का भुगतान किया। इब्न हाजर मुहम्मद द्वारा रेहाना को उनकी शादी पर घर देने का संदर्भ देते हैं। एंटनी वेसल्स ने सुझाव दिया कि मुहम्मद ने बनू नज़ीर और बनू कुरैजा दोनों जनजातियों के साथ दोहरी संबद्धता के कारण राजनीतिक कारणों से रेहाना से शादी की, जबकि लेस्ली हेज़लटन ने महसूस किया कि यह मुहम्मद के गठबंधन बनाने का सबूत है। इस्लामी विद्वानों के बीच इस बात पर आम सहमति नहीं है कि क्या रेहाना आधिकारिक रूप से मुहम्मद की पत्नियों में से एक थी। हाफ़िज़ इब्न मिंडा और शिबली नोमानी मानते थे कि वह अपनी मृत्यु के बाद बनू नज़ीर लौट आई थी। मृत्यु हज के 11 दिन बाद 631 में रेहाना की जवानी ही मृत्यु हो गई, और उसे मुहम्मद की अन्य पत्नियों के साथ मदीना में जन्नत अल-बक़ी कब्रिस्तान में दफनाया गया। सन्दर्भ इस्लाम मुहम्मद सहाबिया इन्हें भी देखें मुहम्मद मुहम्मद के अभियानों की सूची उम्मुल मोमिनीन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
सृष्टिवाद
सृष्टिवाद (Creationism) वह साम्प्रदायिक विचार है जो मानता है कि प्रकृति और उसके विविध पक्ष (पृथ्वी, जीवन, मानव आदि) को किसी अलौकिक 'भगवान' ने बनाया है। आधुनिक विज्ञान, जीवन की उत्पत्ति क्रम-विकास या एवोल्यूशन द्वारा मानता है जिसमें सबसे पहले जल में एककोशीय जीवों की उत्पत्ति हुई और उससे क्रमशः अन्य जटिल जीवों की। सन्दर्भ इन्हें भी देखें क्रमिक विकास जीवन की उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व का इतिहास जीवन की उत्पत्ति छद्मविज्ञान
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%97%E0%A4%B2%20%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%BF%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%95
गुगल लिपि परिवर्तक
भारत के गुगल लैब ने किसी जालपृष्ठ [वेब पेज] को आपकी मनपसंद लिपि में पढ़ने की सुविधा प्रदान की है। अब तमिल जालपृष्ठों को रोमन लिपि में परिवर्तित कर पढ़ा जा सकता है। यहां किसी पाठ का अनुवाद नहीं अपितु लिप्यंतरण किया जाता है। यह स्वराधारित प्रक्रिया है। इस परिवर्तक की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि यह है कि अब हम किसी भारतीय भाषा में उपलब्ध सामग्री चाहे वह यूनिकोड रहित हो उसे यूनिकोड में परिवर्तित कर सकते है। इस सुविधा के कारण हम लिप ऑफ़िस, श्री लिपि, शुशा, शिवाजी, कृति देव, आकृति आदि फ़ौंट में किया हुआ काम यूनिकोड में परिवर्तित कर सकते है। यूनिकोड परिवर्तन करना बहुत कष्टसाध्य काम था। याद रखे कि आपके संगणक में यूनिकोड सक्रिय किया गया है। किसी वेबसाइट को देखने के लिए पाठ क्षेत्र (टैक्स्ट एरिया में) यूआरएल टाइप करके आपकी पसंदीदा लिपि को चुन कर उसे परिवर्तित करने के लिए बटन दबाइए। इस परिवर्तक में निम्नलिखित लिपि उपलब्ध है : - [[ ] ] यूनानी रोमन फ़ारसी गुजराती देवनागरी कन्नड़ मलयालम गुरुमुखी रूसी सर्बियाई तमिल तेलुगु इसमें सभी लोकप्रिय साइट के फ़ौंट यूनिकोड में परिवर्तित होकर दिखाए जाएँगे। अगर आपकी कोई पसंदीदा साइट के फ़ौंट यूनिकोड में परिवर्तित होने में मुश्किल हो रही है तो आप संबधित सामग्री उस फ़ौंट के साथ गुगल लैब को निम्नलिखित वि-पत्र पते पर भेज दें – [email protected] सभी साइट का परिवर्तन कभी कभी संभव नहीं हो पाता है। एचटीएमएल समर्थित पृष्ठों का ही परिवर्तन संभव है। जिन साइटों पर कुकीज सक्रिय करना आवश्यक होता है वहां परिवर्तन संभव नहीं होता है। अगर साइट में काम्प्लैक्स जावा का प्रयोग किया गया है तो वहां भी परिवर्तन नहीं किया जा सकता। कभी कभी परिवर्तन करने के बाद भी मूल लिपि में पृष्ठ दिखाया देते है क्योंकि छवियों को परिवर्तित नहीं किया जाता है। इसी तरह सामग्री मूल रूप में न होकर जावा स्क्रिप्ट द्वारा भरी हो तो उसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता गुगल लिपि परिवर्तक स्वयं उन पृष्ठों को पुनः एचटीएमएल में लिख कर उसे आपकी लिपि में परिवर्तित करके प्रस्तुत करता है। आप निश्चिन्त होकर साइट पर विचरण कर सकते हो। आप अगर चाहे तो ऊपरी बार पर किसी साइट को मूल पृष्ठ पर जाकर बगैर परिवर्तन करके देख सकते है। वेब पेज के किसी टैक्स्ट को आप टैक्स्ट एरिया में चिपका कर देख भी सकते है जिससे पूरे वेब पृष्ठ को परिवर्तित करने की आवश्यकता नहीं होगी। अगर आप परिवर्तन आपकी पसंदीदा लिपि में नहीं कर पा रहे हो तो गुगल लैब को ज़रुर सुचित करें। [email protected] कृपया आप स्वयं आज़माकर देखें और गुगल लैब से निम्न पते पर संपर्क करें ताकि यह योजना सफल बन सके। https://web.archive.org/web/20110711112500/http://scriptconv.googlelabs.com/
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%AE%20%E0%A4%AE%E0%A4%88
८ मई
8 मई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 128वॉ (लीप वर्ष में 129 वॉ) दिन है। साल में अभी और 237 दिन बाकी है। दिवस विश्व रेडक्रॉस दिवस विश्व थैलेसीमिया दिवस प्रमुख घटनाएँ २०१०- छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने दंतेबाड़ा में टाड़मेटला हमले के एक माह बाद बीजापुर-भोपालपट्टनम राष्ट्रीय राजमार्ग-16 पर सीआरपीएफ के बख्तरबंद वाहन को बारूदी सुरंग विस्फोट कर उड़ा दिया। इस घटना में आठ जवान शहीद हो गए। विस्फोट में वहां से गुजर रहे दो नागरिक भी घायल हो गए। 1945 - द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त 1933 - गांधी का आत्म शुद्धि का 21 दिवसीय उपवास शुरू। बी.आर. अंबेडकर ने इस अभियान की निदा की। जन्म 1929 - गिरिजा देवी 1916 - स्वामी चिन्मयानंद 1988 - पी आर श्री जेश निधन ● 1915 - मास्टर अमीचन्द ●1915 अवध बिहारी बॉस ●1899 - वासुदेव हरि चाफेकर ●1777 - मीर क़ासिम ●1915 - भाई बाल मुकुंद, मास्टर अमीरचंद के भाई बहारी कडियाँ बीबीसी पे यह दिन मई
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%BF%20%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%A8%2C%20%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1%202008
राष्ट्रपति शासन, नागालैंड 2008
राष्ट्रपति शासन, नागालैंड 2008, भारत के नागालैंड प्रांत में 3 जनवरी, 2008 से प्रारंभ होने वाला राष्ट्रपति शासन है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में 1 जनवरी को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में नगालैंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की सिफारिश की गई थी। इसे 3 जनवरी को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने मंजूर कर दिया। इस शासन ने भाजपा समर्थित डेमोक्रेटिक एलायंस के मुख्यमंत्री नेफियू रियो के शासन को समाप्त किया। शासन लागू होने के पहले का घटनाक्रम 13 दिसम्बर 2007: विधानसभा में पेश अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया। इसमे नेफियू रियो की सरकार विवादित तरीके से बच गई। विधानसभा अध्यक्ष ने तीन निर्दलीयों को मतदान में हिस्सा लेने से रोक दिया। उन्होंने व्यवस्था दी थी कि सत्तारूढ़ एनपीएफ के नौ असंतुष्ट विधायकों के मत अवैध हैं। इसके बाद 60 सदस्यीय सदन में अविश्वास प्रस्ताव 19 के मुकाबले 23 मतों से गिर गया। 23 दिसम्बर 2007: सत्तारूढ़ एनपीएफ के नौ बागी सदस्यों नौ विधायकों ने कांग्रेस से हाथ मिला लिया। राज्य के कांग्रेसी विधायकों ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मुलाकात कर एन रियो सरकार को बर्खास्त करने की मांग की। 1 जनवरी 2008: मंत्रिमंडल की बैठक में नगालैंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की सिफारिश की गई। 3 जनवरी 2008: राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने राष्ट्रपति शासन मंजूर कर दिया। स्रोत </div> बाहरी कडियाँ नागालैण्ड
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%81%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE
वायु संहिता
वायु संहिता (शिवपुराण) के पूर्व और उत्तर भाग में पाशुपत विज्ञान, मोक्ष के लिए भगवान शिव के ज्ञान की प्रधानता, हवन, योग और शिव-ध्यान का महत्त्व समझाया गया है। भगवान शिव ही चराचर जगत् के एकमात्र देवता हैं। भगवान शिव के 'निर्गुण' और 'सगुण' रूप का विवेचन करते हुए कहा गया है कि शिव एक ही हैं, जो समस्त प्राणियों पर दया करते हैं। अध्ययन क्षेत्र प्रयाग में ऋषियों द्वारा सम्मानित सूतजी के द्वारा कथा का आरम्भ,विद्यास्थानों एवं पुराणों का परिचय तथा वायु संहिता का प्रारम्भ(1) ऋषियों का ब्रह्माजी के पास जा उनकी स्तुति करके उनसे परम पुरुष के विषय में प्रश्न करना और ब्रह्माजी का आनन्दमग्न हो ‘रुद्र’ कहकर उत्तर देना (2) ब्रह्माजी के द्वारा परमतत्त्व के रूप में भगवान् शिव की ही महत्ता का प्रतिपान, उनकी कृपा को ही सब साधनों का फल बताना तथा उनकी आज्ञा से सब मुनियों का नैमिषारण्य में आना (3) नैमिषारग्य में दीर्घसत्र के अन्त में मुनियों के पास वायुदेवता का आगमन, उनका सत्कार तथा ऋषियों के पूछने पर वायु के द्वारा पशु, पाश एवं पशुपति का तात्त्विक विवेचन (4-5) ऊं महेश्वर की महत्ता का प्रतिपादन (6) ब्रह्माजी की मूर्छा, उनके मुख से रुद्रदेव का प्राकट्य, सप्राण हुए ब्रह्माजी के द्वारा आठ नामों से महेश्वर की स्तुति तथा रुद्र की आज्ञा से ब्रह्मा द्वारा सृष्टि-रचना (7-12) भगवान् रुद्र के ब्रह्माजी के मुख से प्रकट होने का रहस्य, रुद्र के महामहिम स्वरूप का वर्णन, उनके द्वारा रुद्रगणों की सृष्टि तथा ब्रह्माजी के रोकने से उनका सृष्टि से विरत होना (13-14) ब्रह्माजी के द्वारा अ्द्धनारीश्वर रूप की स्तुति तथा उस स्त्रोत की महिमा (15) महादेवजी के शरीर से देवी का प्राकट्य और देवी के भ्रूमध्यभाग से शक्ति का प्रादुर्भाव (16) भगवान् शिव का पार्वती तथा पार्षदों के साथ मन्दराचल पर जाकर रहना (17-24) पार्वती की तपस्या, एक व्याघ्र पर उनकी कृपा (25) गौरीदेवी का व्याघ्र को अपने साथ ले जाने के लिये ब्रह्माजी से आज्ञा माँगना (26) मन्दराचल पर गौरीदेवी का स्वागत, महादेवजी के द्वारा उनके और अपने उत्कृष्ट स्वरूप एवं अविच्छेद्य सम्बन्ध पर प्रकाश (27) अग्नि और सोम के स्वरूपका विवेचन तथा जगत्की अग्नीषोमात्मकता का प्रतिपादन (28) जगत् ‘वाणी और अर्थरूप’ है-इसका प्रतिपादन (29) ऋषियों के प्रश्न का उत्तर देते हुए वायुदेव के द्वारा शिव के स्वतन्त्र एवं सर्वानुग्राहक स्वरूप का प्रतिपादन (30-32) पाशुपत-व्रत की विधि और महिमा तथा भस्मधारण की महत्ता (33) बालक उपमन्यु को दूध के लिये दु:खी देख माता का उसे शिव की तथा उपमन्यु की तीव्र तपस्या (34) भगवान् शंकर का इन्द्ररूप धारण करके उपमन्यु के भक्तिभाव की परीक्षा लेना (35) इन्हें भी देखें विद्येश्वर संहिता रुद्र संहिता कोटिरुद्र संहिता कैलास संहिता वायु संहिता सन्दर्भ शिवपुराण
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%A4%20%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%28Underground%20Great%20Wall%20of%20China%29
चीन की भूमिगत महान दीवार (Underground Great Wall of China)
चीन की भूमिगत महान दीवार ( ) सुरंगों की विशाल प्रणाली के लिए एक अनौपचारिक नाम है जिनका उपयोग चीन चलित (mobile) अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों को संग्रहित और परिवहन करने के लिए करता है। सुरंगों की गोपनीयता के कारण उनके बारे में अधिक जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है; हालाँकि, यह माना जाता है कि सुरंगों से चलित अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों को अलग-अलग साइलो में बंद किया जा सकता है, और संभवतः प्रबलित भूमिगत बंकरों में संग्रहित किया जा सकता है। यह प्रत्यक्ष परमाणु हमले में अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों के जीवित रहने की संभावना को बढ़ाता है, ताकि दूसरे प्रहार (second strike) में उनका उपयोग किया जा सके। यह स्थिर परमाणु साईलोस में स्थित अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों के विपरीत, है जो आम तौर पर प्रत्यक्ष परमाणु हमले से नहीं बचते। फ़िलिप कार्बर की अगुवाई में जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय की एक टीम के द्वारा लिखी गई एक रिपोर्ट ने चीन की जटिल सुरंग प्रणाली (जो 5,000 किमी लम्बी है) का नक्शा बनाने के लिए तीन साल का अध्ययन किया गया। रिपोर्ट ने निर्धारित किया कि चीनी परमाणु शस्त्रागार को कम आँका जाता है और सुरंग नेटवर्क में 3,000 से अधिक परमाणु वारहेड संग्रहित हो सकते हैं। कार्बर के गलत सुझाव के साथ यह काल्पनिक अधिकतम भंडारण या आधारित क्षमता विखंडनीय उत्पादन, पश्चिमी मीडिया ने यह समझ लिया कि 3,000 हथियार वहाँ में वास्तव में थे। कार्बर के अध्ययन में कहा गया है कि सुरंगों के B61-11 जैसे पारंपरिक या कम उपज वाले पृथ्वी-मर्मज्ञ परमाणु हथियारों द्वारा भंग होने की संभावना नहीं है। संदर्भ बाहरी कड़ियाँ चीन के भूमिगत महान दीवार, करबर 2011 के रणनीतिक निहितार्थ। FAS द्वारा होस्ट किया गया। पीडीएफ Pages with unreviewed translations
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%9F%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A
पाइटौर्च
ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट (GPU) के माध्यम से मजबूत त्वरण के साथ टेनसर कंप्यूटिंग (जैसे नमपाइ ) गम्भीर तंत्रिका नेटवर्क जो टेप-आधारित स्वचालित भेदभाव प्रणाली पर बनाया गया है पाइटौर्च एक मुक्त स्रोत यंत्र शिक्षण पुस्तकालय के आधार पर बाना टौर्च पुस्तकालय है, जिसका इस्तेमाल संगणक दृष्टि (computer vision) और प्राकृतिक भाषा संसाधन मे होता है, मुख्य रूप से फेसबुक के कृत्रिम बुद्धि अनुसंधान प्रयोगशाला (FAIR) द्वारा विकसित है। यह संशोधित बीएसडी लाइसेंस के तहत मुक्त और ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर है। हालांकि पायथन इंटरफ़ेस अधिक उन्नत और विकास का प्राथमिक केन्द्र है, पाइटौर्च में सी++ अंतराफलक भी है। गम्भीर शिक्षण सॉफ्टवेयर के कई टुकड़े जैसे टेस्ला ऑटोपायलट , उबेर का पायरो, हगिंगफेस का ट्रांसफॉर्मर्स, पियार्च लाइटनिंग , और कैटलिस्ट पाइटोर्च के शीर्ष पर बनाए गए हैं। पाइटौर्च दो उच्च-स्तरीय सुविधाएँ प्रदान करता है: इतिहास फेसबुक कोनवोल्युशन आर्कीटेक्टर फॉर फास्ट फीचर एंबेडिंग ( Caffe2 ) और पाइटौर्च दोनों को संचालित करता है, लेकिन दोनो फ्रेमवर्क द्वारा परिभाषित मॉडल परस्पर असंगत है। ओपन न्यूरल नेटवर्क एक्सचेंज ( ONNX ) परियोजना फेसबुक और माइक्रोसॉफ्ट द्वारा सितंबर 2017 में दोनो फ्रेमवर्क के बीच मॉडल परिवर्तित करने के लिए बनाई गई थी। Caffe2 को मार्च 2018 के अंत में PyTorch में मिला दिया गया था। पाइटौर्च टेंसर्स पाइटौर्च एक क्लास को परिभाषित करता है जिसे Tensor कहा जाता है (torch.Tensor) जो संख्याओं के सजातीय बहुआयामी आयताकार सरणियों को संग्रहीत और संचालित करता है। पाइटौर्च टेंसर्स, नमपाइ Arrays के समान है, लेकिन कूडा-सक्षम एनवीडीआ GPU पर भी संचालित किये जा सकते है। PyTorch Tensors के विभिन्न उप-प्रकारों का समर्थन करता है। मॉड्यूल ऑटोग्राड मॉड्यूल पाइटोर्च स्वचालित भेदभाव नामक एक विधि का उपयोग करता है। एक रिकॉर्डर रिकॉर्ड करता है कि ऑपरेशन ने कैसा प्रदर्शन किया है, और फिर यह ग्रेडिएंट्स की गणना करने के लिए इसे पीछे की ओर दोहराता है। यह विधि विशेष रूप से शक्तिशाली होती है जब फॉरवर्ड पास पर मापदंडों के विभेदीकरण की गणना करके एक पर समय बचाने के लिए तंत्रिका नेटवर्क का निर्माण किया जाता है। ओपटीम मॉड्यूल torch.optim एक मॉड्यूल है जो तंत्रिका नेटवर्क के निर्माण के लिए उपयोग किए जाने वाले विभिन्न अनुकूलन एल्गोरिदम को लागू करता है। आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले अधिकांश मेथडस पहले से ही समर्थित हैं, इसलिए उन्हें फिर से बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। एनएन मॉड्यूल पाइटोर्च ऑटोग्राद, कम्प्यूटेशनल ग्राफ़ को परिभाषित करना और ग्रेडिएंट लेना आसान बनाता है, लेकिन जटिल न्यूरल नेटवर्क को परिभाषित करने के लिए कच्चा ऑटोग्रैड थोड़ा कम-स्तर हो सकता है। यह वह जगह है जहाँ nn मॉड्यूल मदद कर सकता है। यह सभी देखें डीप लर्निंग सॉफ्टवेयर की तुलना विभिन्न प्रोग्रामिंग DeepSpeed टौर्च (यंत्र शिक्षण) टेन्सर संदर्भ बाहरी कड़ियाँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%85%E0%A4%AC%E0%A5%82%20%E0%A4%95%E0%A4%BC%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%BE%20%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%A8%20%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A5%80%20%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%28%E0%A4%96%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%B0%E0%A4%BE%29
सरिय्या अबू क़तादा बिन रबी अंसारी (ख़िज़रा)
सरिय्या हज़रत अबू क़तादा बिन रबी अंसारी रज़ि० (ख़िज़रा) या सरिय्या ख़िज़रा झड़प सैन्य अभियान मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आदेश पर नवंबर 629 ईस्वी, और इस्लामी कैलेंडर के 8वें महीने 8 हिजरी में हुआ। अभियान इस्लाम के विद्वान सफिउर्रहमान मुबारकपुरी लिखते हैं कि इस झड़प की वजह यह थी कि नज्द के अंदर क़बीला मुहारिब के इलाके में ख़िज़रा नामी एक जगह पर बनू गतफ़ान सेना जमा कर रहे थे, इसलिए उन का सर कुचलने के लिए अल्लाह रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत अबू क़तादा बिन रबी अंसारी को पंद्रह आदमियों की टीम देकर रवाना किया। उन्होंने दुश्मन के कई आदमियों को कत्ल और क़ैद किया और ग़नीमत का माल भी हासिल किया। इस मुहिम में वह पंद्रह दिन मदीना से बाहर रहे। इस अभियान के बाद, मुहम्मद की बढ़ती शक्ति के कारण, कई कबीलों ने अपनी निष्ठा को बदल दिया और इस्लाम में परिवर्तित हो गए। उनमें से थे: बानी दज़ोबियन, बानू फज़ारा, बानू मुर्रा के हाथ बनू एब्स। इब्न अबी अल-अवजा अल-सुलामी के अभियान में अपने अनुयायियों से लड़ने के बाद,बनू सुलेयम ने खुद को मुहम्मद को सौंप दिया, जहां अधिकांश मुसलमान और बनू सुलेयम जो एक दूसरे से लड़े थे, मारे गए थे। मदीना के आसपास के अधिकांश कबीलों ने भी मुहम्मद की सर्वोच्चता को मान्यता दी। सराया और ग़ज़वात इस्लामी शब्दावली में अरबी शब्द ग़ज़वा इस्लाम के पैग़ंबर के उन अभियानों को कहते हैं जिन मुहिम या लड़ाईयों में उन्होंने शरीक होकर नेतृत्व किया,इसका बहुवचन है गज़वात, जिन मुहिम में किसी सहाबा को ज़िम्मेदार बनाकर भेजा और स्वयं नेतृत्व करते रहे उन अभियानों को सरियाह(सरिय्या) या सिरया कहते हैं, इसका बहुवचन सराया है। इन्हें भी देखें सरिय्या अबू हदरद सलमी सरिय्या अबू उबैदाह इब्न अल-जर्राह (ख़ब्त) मुहम्मद की सैन्य उपलब्धियाँ मुहम्मद के अभियानों की सूची ग़ज़वा ए दूमतुल जन्दल सन्दर्भ मुहम्मद इस्लाम इस्लाम का इतिहास अरब इतिहास मुस्लिम विजय बाहरी कड़ियाँ Ar-Raheeq Al-Makhtum|Ar Raheeq Al Makhtum– The Sealed Nectar (Biography Of The Noble Prophet) -First PRIZE WINNER BOOK Ar Raheeq Al Makhtum अर्रहीकुल मख़तूम (सीरत नबवी), पैगंबर की जीवनी (प्रतियोगिता में प्रथम पुस्तक) अर्रहीकुल मख़तूम
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%87%20%E0%A4%8F%E0%A4%B8%20%E0%A4%8F%E0%A4%B8%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF
जे एस एस विश्वविद्यालय
जे एस एस विश्वविद्यालय मैसूर में स्थित एक मानद विश्वविद्यालय है। इसे जे एस एस उच्च शिक्षा एवं अनुसन्धान अकादमी (JSS Academy of Higher Education & Research) भी कहते हैं। पहले इसका नाम जगद्गुरु श्री शिवरात्रीश्वर विश्वविद्यालय था। इसकी स्थापना सन २००८ में हुई थी। यह संस्थान जे एस एस महाविद्यापीठ द्वारा स्ंचालित है जो अनेकों प्रकार के शिक्षा संस्थान चलाता है। जे एस एस उच्च शिक्षा एवं अनुसन्धान अकादमी मुख्यतः चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा पर अपना ध्यान केन्द्रित किए हुए है। इसके अन्तर्गत मैसूर के मुख्य परिसर में जे एस एस चिकित्सा महाविद्यालय, जे एस एस दन्तचिकित्सा महाविद्यालय तथा जे एस एस फार्मेसी महाविद्यालय चलते हैं। इसके अलावा तमिलनाडु के उटकमुण्ड में भी एक फार्मेसी महाविद्यालय है। अधीनस्थ महाविद्यालय Medical College & Hospital Dental College & Hospital College of Pharmacy, Mysore College of Pharmacy, Ooty Faculty of Life Sciences Dept. of Health System Management Studies रैंकिंग नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क ने इस अकादमी को पूरे भारत के संस्थानों में ५९वाँ स्थान दिया है। and 37 among universities in 2018. JSS College of Pharmacy was ranked 10 by the NIRF pharmacy ranking. सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ कर्नाटक के मानद विश्वविद्यालय
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%9A%E0%A4%9F%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A5%80
रानी चटर्जी
सबीहा शेख (जन्म 3 नवंबर 1979), जिन्हें पेशेवर रूप से रानी चटर्जी के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से भोजपुरी फिल्मों में काम करती हैं। वह ससुरा बड़ा पैसावाला , देवरा बड़ा सतावेला और रानी नंबर 786 जैसी फिल्मों में अपनी भूमिकाओं के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने 2020 में आई वेबसीरीज मस्तराम में भी काम किया था। प्रारंभिक जीवन रानी चटर्जी का जन्म 3 नवंबर 1979 को एक मुस्लिम परिवार में साहिबा शेख के रूप में हुआ था। वह मुंबई में जन्मी और पली-बढ़ी। चटर्जी ने अपनी स्कूली शिक्षा तुंगेश्वर एकेडमी हाई स्कूल, वसई से की। खैर, रानी जो अपने दस्तावेजों पर मूल रूप से साहिबा शेख है, इसके पीछे एक दिलचस्प कारण साझा करती है। रानी ने हाल ही में मीडिया के एक वर्ग से बात करते हुए कहा, "2004 में मैं एक भोजपुरी फिल्म की शूटिंग कर रही थी, जिसका नाम ससुरा बड़ा प्यासावाला था और एक दिन हम एक मंदिर में एक सीक्वेंस की शूटिंग कर रहे थे, जहाँ मुझे फर्श पर अपना सिर पीटना था और शूटिंग के दौरान कुछ मीडिया में लोग मेरा इंटरव्यू लेने आए थे, वहाँ भी काफी भीड़ थी, शूटिंग भी देख रहे थे। तो मेरे निर्देशक ने सोचा कि मेरे मूल नाम का खुलासा करने से एक दृश्य बन सकता है क्योंकि मैं एक मुस्लिम हूँ। इसलिए जब कोई व्यक्ति मेरा नाम पूछता है। रानी ने कहा और जब उन्होंने मेरे उपनाम के बारे में पूछा तो उन्होंने कुछ भी नहीं कहा और चटर्जी ने कहा कि रानी मुखर्जी उस समय बहुत प्रसिद्ध थीं। और वह इस नाम से भी प्रसिद्ध हुईं। रानी यह भी जोड़ती है, "मेरा परिवार उस नाम को मेरी पहचान के रूप में रखने के लिए मुझ पर निश्चित रूप से गुस्सा था, लेकिन उसने उन्हें आश्वस्त किया क्योंकि वह वास्तव में उस नाम को भाग्यशाली मानती थी। मनोज तिवारी फिल्म में मेरे साथ थे और यह बॉक्स ऑफिस पर बहुत बड़ी हिट बन गई।" वास्तव में, कई रिकॉर्ड बनाए। जिसके कारण मुझे बहुत काम दिया गया और मैं भोजपुरी सिनेमा में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली अभिनेत्री बन गई। अभिनय 2003 में भोजपुरी पारिवारिक नाटक फिल्म ससुरा बड़ा पइसावाला में मनोज तिवारी के साथ अभिनय कर पहली बार फिल्मों में कदम रखा था। ये फिल्म काफी सफल रही और कई सारे पुरस्कार जीतने में भी कामयाब रही। इन्हें नागिन के लिये 2013 में हुए 6वें भोजपुरी पुरस्कार समारोह में साल की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला था। अपनी पहली फिल्म करने के बाद इन्होंने कई अन्य फिल्मों में भी काम किया था, हालाँकि कोई भी उतनी अधिक सफल नहीं हो पायी। इन फिल्मों में बंधन टूटे ना (2005), दामाद जी (2006), सीता (2007), तोहार नइखे कवनो जोड़ तू बेजोड़ बाड़ू हो (2009), देवरा बड़ा सतावेला (2010), दिलजले (2011), छैला बाबू (2011), फूल बनल अंगार (2011), गंगा यमुना सरस्वती (2012) और धड़केला टोहरे नेम करेजवा (2012) है। 2013 में इनकी फिल्म नागिन आई, जिसके लिए इन्हें पुरस्कार भी मिल चुका है। इसके बाद रानी नंबर 786 (2013) में इन्होंने काम किया। 2013 में केवल दो फिल्मों में काम करने के बाद 2014 में इन्होंने कई सारे फिल्मों में काम किया। जिसमें इंस्पेक्टर चाँदनी, रानी चली ससुराल, रावड़ी रानी, शेरनी, प्रेम दीवानी, चाँदनी, एक लैला तीन छैला, दरिया दिल और भगजोगनी था, इसके बाद 2015 में इन्होंने दिल दीवान माने ना, छोटकी दुल्हिन, दिल और दीवार, माई का कर्ज़, दुलारा, जानम, पायल, दुर्गा, रानी बनल ज्वाला थी। इसके बाद 2016 में कर्ज़, शिव रक्षक, वकालत, घरवाली बाहरवाली, मैं रानी हिम्मत वाली, जोड़ी नंबर 1, परशासन, रियल इंडियन मदर, देवरा इशकबाज, लव और राजनीति 2 शामिल है। 2017 में इनकी दो ही फिल्म प्रदर्शित हुई, जिसमें रंगबाज और इच्छाधारी है। रानी ने एक पंजाबी फिल्म आसरा में अभिनय किया है। 2020 में MX Player की वेबसीरीज मस्‍तराम में रानी चटर्जी हॉट अंदाज में नजर आई थीं। बाद में उन्होंने कूकू ऐप वेबसीरीज रानी का राजा में अभिनय किया। इन्हें भी देखें आम्रपाली दुबे काजल राघवानी सहर अफशा अंतरा बिस्वास सपना सप्पू संदर्भ बाहरी कड़ियाँ जीवित लोग भारतीय फ़िल्म अभिनेत्री भोजपुरी अभिनेत्री मुंबई के लोग 1989 में जन्मे लोग
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लकी बिष्ट
लकी बिष्ट एक पूर्व एनएसजी कमांडो और जासूस हैं जिन्होंने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के निजी सुरक्षा अधिकारी के रूप में कार्य किया है। बिष्ट को 2009 में भारत के सर्वश्रेष्ठ एनएसजी कमांडो का पुरस्कार मिला प्रारंभिक जीवन और सैन्य कैरियर लकी बिष्ट का जन्म उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट में हुआ, वह 2003 में 16 साल की उम्र में विशेष बलों में शामिल हुए थे। उन्होंने अपने विशेष जासूस और कमांडो प्रशिक्षण को पूरा करने के लिए इज़राइल में ढाई साल बिताए। लकी बिष्ट नरेंद्र मोदी (जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे) के सुरक्षा अधिकारी भी थे।2009 में उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के सर्वश्रेष्ठ कमांडो के रूप में चुना गया था।2022 में लकी सिंह का भारत के प्रसिद्ध अपराध लेखक और लेखक हुसैन जैदी ने उनके जीवन, करियर और रॉ रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के एजेंट के रूप में खुफिया क्षेत्र में दुनिया भर में किए गए कारनामों के बारे में साक्षात्कार लिया। 2009 जब 8 नवंबर 2010 को संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा देश के दौरे पर भारत में थे, तब बिष्ट ने सुरक्षा विस्तार में भूमिका निभाई। उन्होंने कुछ सरकारी सुरक्षा एजेंसियों जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड, भारतीय सेना, अनुसंधान और विश्लेषण विंग, विशेष बल, असम राइफल्स के साथ भी काम किया है और विभिन्न देशों में मिशनों का नेतृत्व किया है। विवाद बिष्ट उत्तराखंड के सबसे बड़े गैंगस्टरों के दोहरे हत्याकांड का आरोपी व्यक्ति है।5 सितंबर 2011 को उत्तराखंड पुलिस ने लकी पर उसके साथी उत्तराखंड के सबसे बड़े गैंगस्टर के दोहरे हत्याकांड का आरोप लगाया। उन्हें तीन साल से अधिक समय तक जेल में रखा गया और 11 जेलों में ले जाया गया, और 11 मार्च 2015 को रिहा कर दिया गया। सबूतों की कमी के कारण 6 मार्च 2018 को नैनीताल जिला अदालत ने उन्हें क्लीन चिट दे दी। लकी 2018 में फिर से विशेष बलों में शामिल हो गए और 2019 में सेवानिवृत्त हो गए। उन्होंने 2019 में बॉलीवुड में अपना करियर शुरू किया। भारतीय फिल्म उद्योग लकी बिष्ट ने 2019 में एक लेखक के रूप में भारतीय फिल्म उद्योग में प्रवेश किया। A book on his life रॉ हिटमैन: द रियल स्टोरी ऑफ़ एजेंट लीमा उनके जीवन पर एक किताब R.A.W. हिटमैन: द रियल स्टोरी ऑफ़ एजेंट लीमा साइमन एंड शूस्टर द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका में 4,2023 जुलाई को और भारत में 6,2023 को रिलीज़ होगी। यह पुस्तक हुसैन जैदी द्वारा लिखी गई है और इसकी प्रस्तावना नीरज कुमार (पुलिस अधिकारी) आईपीएस (पूर्व- दिल्ली पुलिस प्रमुख) द्वारा लिखी गई है। सचिन तेंदुलकर के बाद साइमन एंड शुस्टर द्वारा किसी भी भारतीय के जीवन पर प्रकाशित यह दूसरी पुस्तक है। संदर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0
अभियांत्रिकी स्नातकोत्तर
अभियांत्रिकी स्नातकोत्तर (संक्षिप्त एम. ई. या एम. इंज) अभियांत्रिकी के क्षेत्र में पेशेवर स्नातकोत्तर की डिग्री होती है। अंतरराष्ट्रीय विविधताएँ ऑस्ट्रेलिया ब्राज़िल कनाडा कोलम्बिया क्रोएशिया फिनलैंड फ्रांस जर्मनी भारत इटली न्यूजीलैंड नेपाल जापान दक्षिण कोरिया पोलैंड स्लोवाकिया स्पेन स्वीडन यूनाइटेड किंगडम संरचना इतिहास All articles with failed verification Articles with failed verification from August 2016 अन्य स्नातक परास्नातक संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा इन्हें भी देखें ABET, प्रत्यायन बोर्ड के लिए इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी (संयुक्त राज्य अमेरिका) स्नातक की डिग्री बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग ब्रिटिश डिग्री संक्षिप्त इंजीनियर की डिग्री इंजीनियरिंग में डॉक्टर की उपाधि मास्टर की डिग्री मास्टर ऑफ साइंस सन्दर्भ
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टेक-टू इंटरएक्टिव
टेक-टू इंटरएक्टिव सॉफ्टवेयर, Inc. (), टेक-टू के रूप में भी जानी जाती हैं, एक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय प्रकाशक, डेवलपर और वीडियो गेम और वीडियो गेम के बाह्य उपकरणों के वितरक हैं। टेक-टू पूरी तरह से रॉकस्टार गेम्स और 2के गेम्स के मालिक हैं। कंपनी का मुख्यालय, न्यूयॉर्क शहर में हैं और विंडसर, यूनाइटेड किंगडम में अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय हैं। टेक-टू ने कई उल्लेखनीय खेल प्रकाशित किए हैं, इसकी सबसे प्रसिद्ध श्रृंखला ग्रांड थेफ्ट ऑटो सहित। यह भी देखे ग्रैंड थेफ्ट ऑटो V सन्दर्भ बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ वीडियो गेम प्रकाशक
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यरुशलम की दीवारें
यरुशलम की दीवारें (, , ) पुराने यरुशलम में स्थित प्राचीन दीवार (लगभग 1 वर्ग कि.मी.) के क्षेत्र घेरती है। जब 1535 ईस्वी में, यरूशलम शहर उस्मान साम्राज्य का हिस्सा बना था, सुल्तान सुलेमान प्रथम ने शहर की ध्वस्त दीवारों का पुनर्निर्माण करने का आदेश दिया। 1537 से 1541 के बीच इस निर्माण में चार साल लगे। दीवार की लंबाई 4,018 मीटर (2.4 9 66 मील) है, औसत ऊंचाई 12 मीटर (39.37 फीट) है और औसत मोटाई 2.5 मीटर (8.2 फीट) है। दीवार में 34 पहरे वाली मीनारें (वॉचटावर) और सात मुख्य द्वार यातायात के लिए खुले हैं। पुरातत्वविदों द्वारा दो छोटे द्वार फिर से खोले गए हैं। विश्व धरोहर 1981 में यरूशलम की दीवार को यरूशलेम के पुराने शहर के साथ यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सूची में जोड़ा गया था। सन्दर्भ यरुशलम इज़राइल में विश्व धरोहर स्थल
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मकड़ी
मकड़ी आर्थ्रोपोडा संघ का एक प्राणी है। यह एक प्रकार का कीट है। इसका शरीर शिरोवक्ष (सिफेलोथोरेक्स) और उदर में बँटा रहता है। इसका उदर खंड रहित होता है तथा उपांग नहीं लगे रहते हैं। इसके सिरोवक्ष से चार जोड़े पैर लगे रहते हैं। इसमें श्वसन बुक-लंग्स द्वारा होता है। इसके पेट में एक थैली ( swippernet ) होती है, जिससे एक चिपचिपा पदार्थ निकलता है, जिससे यह जाल बुनता है। यह मांसाहारी जन्तु है। जाल में कीड़े-मकोड़ों को फंसाकर खाता है| मकड़ियां हवा में सांस लेने वाले आर्थ्रोपोड हैं जिनके आठ पैर होते हैं, आम तौर पर जहर इंजेक्ट करने में सक्षम नुकीले चीलेरे, और रेशम निकालने वाले स्पिनरनेट। वे अरचिन्ड का सबसे बड़ा क्रम हैं और जीवों के सभी क्रमों में कुल प्रजातियों की विविधता में सातवें स्थान पर हैं। मकड़ियों अंटार्कटिका को छोड़कर हर महाद्वीप पर दुनिया भर में पाए जाते हैं, और लगभग हर भूमि आवास में स्थापित हो गए हैं। अगस्त 2021 तक, टैक्सोनोमिस्ट्स द्वारा 129 परिवारों में 49,623 मकड़ी प्रजातियों को दर्ज किया गया है। हालांकि, वैज्ञानिक समुदाय के भीतर इस बात को लेकर मतभेद रहा है कि इन सभी परिवारों को कैसे वर्गीकृत किया जाना चाहिए, जैसा कि 1900 से प्रस्तावित 20 से अधिक विभिन्न वर्गीकरणों से पता चलता है। शारीरिक रूप से, मकड़ियाँ (सभी अरचिन्ड्स के साथ) अन्य आर्थ्रोपोड्स से भिन्न होती हैं, जिसमें सामान्य शरीर खंड दो टैगमाटा, सेफलोथोरैक्स या प्रोसोमा, और ओपिसथोसोमा, या पेट में जुड़े होते हैं, और एक छोटे, बेलनाकार पेडिकेल से जुड़ते हैं, हालांकि, जैसा कि वहाँ है वर्तमान में न तो पैलियोन्टोलॉजिकल और न ही भ्रूण संबंधी साक्ष्य है कि मकड़ियों का कभी एक अलग वक्ष जैसा विभाजन था, सेफलोथोरैक्स शब्द की वैधता के खिलाफ एक तर्क मौजूद है, जिसका अर्थ है फ्यूज्ड सेफलॉन (सिर) और वक्ष। इसी तरह, पेट शब्द के इस्तेमाल के खिलाफ तर्क दिए जा सकते हैं, क्योंकि सभी मकड़ियों के ओपिसथोसोमा में एक हृदय और श्वसन अंग होते हैं, एक पेट के असामान्य अंग। कीड़ों के विपरीत, मकड़ियों में एंटीना नहीं होता है। सबसे आदिम समूह, मेसोथेला को छोड़कर, मकड़ियों के पास सभी आर्थ्रोपोडों का सबसे केंद्रीकृत तंत्रिका तंत्र होता है, क्योंकि उनके सभी गैन्ग्लिया सेफलोथोरैक्स में एक द्रव्यमान में जुड़े होते हैं। अधिकांश आर्थ्रोपोड्स के विपरीत, मकड़ियों के अंगों में कोई एक्स्टेंसर मांसपेशियां नहीं होती हैं और इसके बजाय उन्हें हाइड्रोलिक दबाव द्वारा विस्तारित किया जाता है। उनके एब्डोमेन में उपांग होते हैं जिन्हें स्पिनरनेट में संशोधित किया गया है जो रेशम को छह प्रकार की ग्रंथियों से बाहर निकालते हैं। मकड़ी के जाले आकार, आकार और इस्तेमाल किए गए चिपचिपे धागे की मात्रा में व्यापक रूप से भिन्न होते हैं। अब ऐसा प्रतीत होता है कि सर्पिल ओर्ब वेब सबसे शुरुआती रूपों में से एक हो सकता है, और मकड़ियाँ जो उलझे हुए कोबवे उत्पन्न करती हैं, वे ओर्ब-वीवर मकड़ियों की तुलना में अधिक प्रचुर और विविध हैं। रेशम पैदा करने वाले स्पिगोट्स के साथ मकड़ी जैसे अरचिन्ड लगभग 386 मिलियन वर्ष पहले डेवोनियन काल में दिखाई दिए, लेकिन इन जानवरों में स्पष्ट रूप से स्पिनरनेट की कमी थी। 318 से 299 मिलियन वर्ष पहले कार्बोनिफेरस चट्टानों में सच्चे मकड़ियों पाए गए हैं, और सबसे आदिम जीवित उप-ऑर्डर, मेसोथेला के समान हैं। आधुनिक मकड़ियों के मुख्य समूह, Mygalomorphae और Araneomorphae, पहली बार 200 मिलियन वर्ष पहले ट्राइसिक काल में दिखाई दिए। बघीरा किपलिंगी प्रजाति को 2008 में शाकाहारी के रूप में वर्णित किया गया था, लेकिन अन्य सभी ज्ञात प्रजातियां शिकारी हैं, जो ज्यादातर कीड़ों और अन्य मकड़ियों पर शिकार करती हैं, हालांकि कुछ बड़ी प्रजातियां पक्षियों और छिपकलियों को भी लेती हैं। ऐसा अनुमान है कि दुनिया की 2.5 करोड़ टन मकड़ियाँ प्रति वर्ष 400-800 मिलियन टन शिकार को मार देती हैं। मकड़ियाँ शिकार को पकड़ने के लिए कई तरह की रणनीतियों का उपयोग करती हैं: उसे चिपचिपे जाले में फँसाना, उसे चिपचिपे बोलों से बांधना, पता लगाने से बचने के लिए शिकार की नकल करना, या उसे नीचे गिराना। अधिकांश मुख्य रूप से कंपन को महसूस करके शिकार का पता लगाते हैं, लेकिन सक्रिय शिकारियों के पास तीव्र दृष्टि होती है, और जीनस पोर्टिया के शिकारी अपनी पसंद की रणनीति और नए विकसित करने की क्षमता में बुद्धिमत्ता के लक्षण दिखाते हैं। मकड़ियों की हिम्मत ठोस पदार्थ लेने के लिए बहुत संकरी होती है, इसलिए वे अपने भोजन को पाचक एंजाइमों से भरकर तरल कर देती हैं। वे अपने पेडिपलप्स के आधार के साथ भी भोजन पीसते हैं, क्योंकि अरचिन्ड्स में क्रस्टेशियंस और कीड़ों के पास मैंडीबल्स नहीं होते हैं। मादाओं द्वारा खाए जाने से बचने के लिए, जो आम तौर पर बहुत बड़े होते हैं, नर मकड़ियाँ विभिन्न प्रकार के जटिल प्रेमालाप अनुष्ठानों द्वारा संभावित साथी के रूप में अपनी पहचान बनाती हैं। अधिकांश प्रजातियों के नर कुछ संभोग से बचे रहते हैं, जो मुख्य रूप से उनके छोटे जीवन काल तक सीमित होते हैं। मादाएं रेशम के अंडे के मामले बुनती हैं, जिनमें से प्रत्येक में सैकड़ों अंडे हो सकते हैं। कई प्रजातियों की मादाएं अपने बच्चों की देखभाल करती हैं, उदाहरण के लिए उन्हें अपने साथ ले जाकर या उनके साथ भोजन साझा करके। प्रजातियों की एक अल्पसंख्यक सामाजिक हैं, सांप्रदायिक जाले का निर्माण कर रहे हैं जो कुछ से 50,000 व्यक्तियों तक कहीं भी रह सकते हैं। सामाजिक व्यवहार अनिश्चित सहनशीलता से लेकर, जैसे कि विधवा मकड़ियों में, सहकारी शिकार और भोजन-साझाकरण तक होता है। यद्यपि अधिकांश मकड़ियाँ अधिकतम दो वर्षों तक जीवित रहती हैं, टारेंटयुला और अन्य माइगलोमॉर्फ मकड़ियाँ कैद में 25 वर्ष तक जीवित रह सकती हैं। जबकि कुछ प्रजातियों का जहर मनुष्यों के लिए खतरनाक है, वैज्ञानिक अब दवा में और गैर-प्रदूषणकारी कीटनाशकों के रूप में मकड़ी के जहर के उपयोग पर शोध कर रहे हैं। स्पाइडर रेशम हल्कापन, ताकत और लोच का एक संयोजन प्रदान करता है जो सिंथेटिक सामग्री से बेहतर होता है, और मकड़ी रेशम जीन को स्तनधारियों और पौधों में डाला जाता है ताकि यह देखा जा सके कि इन्हें रेशम कारखानों के रूप में उपयोग किया जा सकता है या नहीं। अपने व्यापक व्यवहार के परिणामस्वरूप, मकड़ियाँ कला और पौराणिक कथाओं में सामान्य प्रतीक बन गई हैं जो धैर्य, क्रूरता और रचनात्मक शक्तियों के विभिन्न संयोजनों का प्रतीक हैं। मकड़ियों के एक तर्कहीन डर को अरकोनोफोबिया कहा जाता है। शब्द-साधन स्पाइडर शब्द प्रोटो-जर्मेनिक स्पिन-एरॉन- से निकला है, जिसका शाब्दिक अर्थ है "स्पिनर" (मकड़ी कैसे अपने जाले बनाती है), प्रोटो-इंडो-यूरोपीय रूट *(एस) पेन- से, "आकर्षित करने के लिए, खिंचाव, स्पिन करने के लिए" ". विवरण शारीरिक योजना मकड़ियाँ चीलेसीरेट्स हैं और इसलिए आर्थ्रोपोड हैं। आर्थ्रोपोड के रूप में उनके पास: संयुक्त अंगों के साथ खंडित शरीर, सभी काइटिन और प्रोटीन से बने छल्ली में ढके होते हैं; सिर जो कई खंडों से बने होते हैं जो भ्रूण के विकास के दौरान फ्यूज हो जाते हैं। चेलीसेरेट होने के कारण, उनके शरीर में दो टैगमाटा होते हैं, खंडों के समूह जो समान कार्य करते हैं: सबसे प्रमुख, जिसे सेफलोथोरैक्स या प्रोसोमा कहा जाता है, उन खंडों का एक पूर्ण संलयन है जो एक कीट में दो अलग टैगमाता, सिर और वक्ष का निर्माण करेंगे; रियर टैगमा को एब्डोमेन या ओपिसथोसोमा कहा जाता है। मकड़ियों में, सेफलोथोरैक्स और पेट एक छोटे बेलनाकार खंड, पेडिकेल से जुड़े होते हैं। खंड संलयन का पैटर्न जो कि चेलीसेरेट्स के सिर बनाता है, आर्थ्रोपोड्स के बीच अद्वितीय है, और जो सामान्य रूप से पहला हेड सेगमेंट होगा वह विकास के प्रारंभिक चरण में गायब हो जाता है, जिससे कि अधिकांश आर्थ्रोपोड्स के विशिष्ट एंटीना की कमी होती है। वास्तव में, चेलीसेरेट्स के केवल मुंह के आगे के उपांग, चेलीसेरे की एक जोड़ी होते हैं, और उनके पास ऐसी किसी भी चीज़ की कमी होती है जो सीधे "जबड़े" के रूप में कार्य करती हो। मुंह के पीछे के पहले उपांगों को पेडीपैल्प्स कहा जाता है, और चेलीसेरेट्स के विभिन्न समूहों के भीतर विभिन्न कार्य करते हैं। मकड़ियाँ और बिच्छू एक चेलिसरेट समूह, अरचिन्ड्स के सदस्य हैं। बिच्छू के चीले के तीन भाग होते हैं और इनका उपयोग भोजन में किया जाता है। मकड़ियों के चीलेरे के दो खंड होते हैं और नुकीले होते हैं जो आम तौर पर जहरीले होते हैं, और उपयोग में नहीं होने पर ऊपरी वर्गों के पीछे दूर हो जाते हैं। ऊपरी वर्गों में आम तौर पर मोटी "दाढ़ी" होती है जो उनके भोजन से ठोस गांठों को छानती है, क्योंकि मकड़ियां केवल तरल भोजन ले सकती हैं। बिच्छू के पेडिप्पल आमतौर पर शिकार को पकड़ने के लिए बड़े पंजे बनाते हैं, जबकि मकड़ियों के काफी छोटे उपांग होते हैं जिनके आधार भी मुंह के विस्तार के रूप में कार्य करते हैं; इसके अलावा, नर मकड़ियों ने शुक्राणु हस्तांतरण के लिए उपयोग किए जाने वाले अंतिम खंडों को बड़ा कर दिया है। मकड़ियों में, सेफलोथोरैक्स और पेट एक छोटे, बेलनाकार डंठल से जुड़े होते हैं, जो रेशम का उत्पादन करते समय पेट को स्वतंत्र रूप से स्थानांतरित करने में सक्षम बनाता है। सेफलोथोरैक्स की ऊपरी सतह एक एकल, उत्तल कारपेट से ढकी होती है, जबकि नीचे की तरफ दो सपाट प्लेटों से ढकी होती है। पेट नरम और अंडे के आकार का होता है। यह विभाजन का कोई संकेत नहीं दिखाता है, सिवाय इसके कि आदिम मेसोथेला, जिसके जीवित सदस्य लिपिस्टीडिए हैं, की ऊपरी सतह पर खंडित प्लेटें हैं। परिसंचरण और श्वसन अन्य आर्थ्रोपोडों की तरह, मकड़ियाँ कोइलोमेट्स होती हैं जिसमें कोइलोम प्रजनन और उत्सर्जन प्रणाली के आसपास के छोटे क्षेत्रों में कम हो जाता है। इसका स्थान मुख्य रूप से एक हेमोकोल द्वारा लिया जाता है, एक गुहा जो शरीर की अधिकांश लंबाई को चलाता है और जिसके माध्यम से रक्त बहता है। हृदय शरीर के ऊपरी हिस्से में एक ट्यूब है, जिसमें कुछ ओस्टिया होते हैं जो गैर-वापसी वाल्व के रूप में कार्य करते हैं जो रक्त को हीमोकोल से हृदय में प्रवेश करने की अनुमति देता है लेकिन सामने के छोर तक पहुंचने से पहले इसे छोड़ने से रोकता है। हालांकि, मकड़ियों में, यह केवल पेट के ऊपरी हिस्से पर कब्जा कर लेता है, और रक्त को हीमोकोल में एक धमनी द्वारा छोड़ा जाता है जो पेट के पीछे के छोर पर खुलती है और धमनियों को शाखाओं में बांटती है जो पेडिकल से गुजरती हैं और कई हिस्सों में खुलती हैं। सेफलोथोरैक्स। इसलिए मकड़ियों में खुले परिसंचरण तंत्र होते हैं। कई मकड़ियों के रक्त में बुक फेफड़े होते हैं जिसमें ऑक्सीजन परिवहन को और अधिक कुशल बनाने के लिए श्वसन वर्णक हेमोसायनिन होता है। मकड़ियों ने बुक लंग्स, एक श्वासनली प्रणाली, या दोनों के आधार पर कई अलग-अलग श्वसन शरीर रचनाएँ विकसित की हैं। Mygalomorph और Mesothelae मकड़ियों में हेमोलिम्फ से भरे बुक फेफड़ों के दो जोड़े होते हैं, जहां पेट की उदर सतह पर खुलने से हवा हवा में प्रवेश करती है और ऑक्सीजन फैलती है। यह कुछ बेसल एरेनोमोर्फ मकड़ियों के लिए भी मामला है, जैसे परिवार हाइपोचिलिडे, लेकिन इस समूह के शेष सदस्यों में बुक फेफड़ों की केवल पूर्ववर्ती जोड़ी बरकरार है, जबकि सांस लेने वाले अंगों की पिछली जोड़ी आंशिक रूप से या पूरी तरह से ट्रेकिआ में संशोधित होती है, जिसके माध्यम से ऑक्सीजन हीमोलिम्फ में या सीधे ऊतक और अंगों में विसरित होता है। शुष्कन का विरोध करने में मदद करने के लिए छोटे पूर्वजों में श्वासनली प्रणाली विकसित होने की सबसे अधिक संभावना है। श्वासनली मूल रूप से स्पाइराक्ल्स नामक उद्घाटन की एक जोड़ी के माध्यम से परिवेश से जुड़ी हुई थी, लेकिन अधिकांश मकड़ियों में स्पाइराक्ल्स का यह जोड़ा बीच में एक में जुड़ गया है, और स्पिनरनेट के करीब पीछे की ओर चला गया है। जिन मकड़ियों में श्वासनली होती है उनमें आमतौर पर उच्च चयापचय दर और बेहतर जल संरक्षण होता है। मकड़ियां एक्टोथर्म हैं, इसलिए पर्यावरणीय तापमान उनकी गतिविधि को प्रभावित करते हैं। भोजन, पाचन और उत्सर्जन चीलेकेरेट्स के बीच विशिष्ट रूप से, मकड़ियों के चीलेरा के अंतिम खंड नुकीले होते हैं, और मकड़ियां उनका उपयोग चीलिकारे की जड़ों में विष ग्रंथियों से शिकार में जहर डालने के लिए कर सकती हैं। परिवार उलोबोरिडे(Uloboridae) और होलार्चाइडे(Holarchaeidae), और कुछ लिपिस्टीडिए(Liphistiidae) मकड़ियों, अपनी विष ग्रंथियों को खो दिया है, और इसके बजाय रेशम के साथ अपने शिकार को मारते हैं। बिच्छू सहित अधिकांश अरचिन्डों की तरह, मकड़ियों की एक संकीर्ण आंत होती है जो ठोस पदार्थों को बाहर रखने के लिए केवल तरल भोजन और फिल्टर के दो सेट का सामना कर सकती है। वे बाहरी पाचन की दो अलग-अलग प्रणालियों में से एक का उपयोग करते हैं। कुछ पाचन एंजाइमों को मिडगुट से शिकार में पंप करते हैं और फिर शिकार के तरल ऊतकों को आंत में चूसते हैं, अंततः शिकार की खाली भूसी को पीछे छोड़ देते हैं। अन्य एंजाइमों के साथ बाढ़ करते हुए, चेलीसेरे और पेडिपलप्स के आधारों का उपयोग करके शिकार को लुगदी में पीसते हैं; इन प्रजातियों में, चेलीसेरा और पेडिपैल्प्स के आधार एक पूर्व-ओरल गुहा बनाते हैं जो उनके द्वारा संसाधित किए जा रहे भोजन को धारण करती है। सेफलोथोरैक्स में पेट एक पंप के रूप में कार्य करता है जो भोजन को पाचन तंत्र में गहराई से भेजता है। मिडगुट में कई पाचक सीका, डिब्बे होते हैं जिनमें कोई अन्य निकास नहीं होता है, जो भोजन से पोषक तत्व निकालते हैं; अधिकांश पेट में होते हैं, जिस पर पाचन तंत्र हावी होता है, लेकिन कुछ सेफलोथोरैक्स में पाए जाते हैं। अधिकांश मकड़ियाँ नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट उत्पादों को यूरिक एसिड में बदल देती हैं, जिसे शुष्क पदार्थ के रूप में उत्सर्जित किया जा सकता है। मालफिजियन नलिकाएं ("छोटी नलियां") हीमोकोल में रक्त से इन अपशिष्टों को निकालती हैं और उन्हें क्लोअकल कक्ष में डाल देती हैं, जहां से उन्हें गुदा के माध्यम से बाहर निकाल दिया जाता है। यूरिक एसिड का उत्पादन और मालफिजियन नलिकाओं के माध्यम से इसका निष्कासन एक जल-संरक्षण विशेषता है जो स्वतंत्र रूप से कई आर्थ्रोपोड वंशों में विकसित हुई है जो पानी से बहुत दूर रह सकते हैं, उदाहरण के लिए कीड़े और अरचिन्ड के नलिकाएं पूरी तरह से अलग-अलग हिस्सों से विकसित होती हैं। हालांकि, कुछ आदिम मकड़ियां, सबऑर्डर मेसोथेला और इन्फ्राऑर्डर मायगालोमोर्फे, पैतृक आर्थ्रोपोड नेफ्रिडिया ("छोटी किडनी") को बनाए रखती हैं, जो अमोनिया के रूप में नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट उत्पादों को निकालने के लिए बड़ी मात्रा में पानी का उपयोग करती हैं। केंद्रीय तंत्रिका तंत्र मूल आर्थ्रोपॉड केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में आंत के नीचे चलने वाली तंत्रिका डोरियों की एक जोड़ी होती है, सभी खंडों में स्थानीय नियंत्रण केंद्रों के रूप में युग्मित गैन्ग्लिया के साथ; मुंह के आगे और पीछे सिर खंडों के लिए गैन्ग्लिया के संलयन द्वारा गठित एक मस्तिष्क, ताकि अन्नप्रणाली गैन्ग्लिया के इस समूह से घिरा हो। आदिम मेसोथेला को छोड़कर, जिनमें से लिपिस्टिडाई एकमात्र जीवित परिवार है, मकड़ियों के पास बहुत अधिक केंद्रीकृत तंत्रिका तंत्र होता है जो कि अरचिन्ड्स के लिए विशिष्ट होता है: अन्नप्रणाली के पीछे सभी खंडों के सभी गैन्ग्लिया जुड़े होते हैं, जिससे कि सेफलोथोरैक्स काफी हद तक भर जाता है तंत्रिका ऊतक और पेट में कोई गैन्ग्लिया नहीं है; मेसोथेला में, पेट के गैन्ग्लिया और सेफलोथोरैक्स का पिछला हिस्सा अप्रयुक्त रहता है। अपेक्षाकृत छोटे केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के बावजूद, कुछ मकड़ियाँ (जैसे पोर्टिया) जटिल व्यवहार प्रदर्शित करती हैं, जिसमें परीक्षण और त्रुटि दृष्टिकोण का उपयोग करने की क्षमता भी शामिल है। इंद्रिय अंग आँखें सेफलोथोरैक्स के ऊपरी-सामने के क्षेत्र में मकड़ियों की मुख्य रूप से चार जोड़ी आंखें होती हैं, जो एक परिवार से दूसरे परिवार में भिन्न-भिन्न पैटर्न में व्यवस्थित होती हैं। सामने की प्रमुख जोड़ी पिगमेंट-कप ओसेली ("छोटी आंखें") नामक प्रकार की होती है, जो कि अधिकांश आर्थ्रोपोड्स में कप की दीवारों द्वारा डाली गई छाया का उपयोग करके केवल उस दिशा का पता लगाने में सक्षम होते हैं जिससे प्रकाश आ रहा है। हालांकि, मकड़ियों में ये आंखें चित्र बनाने में सक्षम होती हैं। माना जाता है कि अन्य जोड़े, जिन्हें द्वितीयक आंखें कहा जाता है, को पुश्तैनी चेलिसरेट्स की मिश्रित आंखों से लिया गया माना जाता है, लेकिन अब मिश्रित आंखों के अलग-अलग पहलू नहीं हैं। प्रमुख आंखों के विपरीत, कई मकड़ियों में ये माध्यमिक आंखें एक परावर्तक टेपेटम ल्यूसिडम से परावर्तित प्रकाश का पता लगाती हैं, और भेड़िया मकड़ियों को टेपेटा से परावर्तित टॉर्चलाइट द्वारा देखा जा सकता है। दूसरी ओर, कूदने वाली मकड़ियों की द्वितीयक आंखों में कोई टेपेटा नहीं होता है। प्रिंसिपल और सेकेंडरी आंखों के बीच अन्य अंतर यह है कि बाद वाले में रबडोमेरेस होते हैं जो आने वाली रोशनी से दूर की ओर इशारा करते हैं, ठीक कशेरुकियों की तरह, जबकि व्यवस्था पूर्व में विपरीत है। मुख्य आंखें भी केवल आंखों की मांसपेशियां होती हैं, जो उन्हें रेटिना को स्थानांतरित करने की अनुमति देती हैं। मांसपेशियों के अभाव में, द्वितीयक आंखें गतिहीन होती हैं। कुछ कूदने वाली मकड़ियों की दृश्य तीक्ष्णता दस गुना अधिक होती है, जो कि कीड़ों के बीच सबसे अच्छी दृष्टि होती है। [उद्धरण वांछित] यह तीक्ष्णता लेंस की एक टेलीफोटोग्राफिक श्रृंखला, एक चार-परत रेटिना, और स्कैन में विभिन्न चरणों से आंखों को घुमाने और छवियों को एकीकृत करने की क्षमता। [उद्धरण वांछित] नकारात्मक पक्ष यह है कि स्कैनिंग और एकीकृत प्रक्रियाएं अपेक्षाकृत धीमी हैं। आँखों की कम संख्या वाली मकड़ियाँ हैं, जिनमें से सबसे आम छह आँखें हैं (उदाहरण, पेरीगोप्स सुटेरी) जिनमें आँखों की एक जोड़ी पूर्वकाल मध्य रेखा पर अनुपस्थित है। अन्य प्रजातियों में चार आंखें होती हैं और कैपोनिडे परिवार के सदस्यों की संख्या कम से कम दो हो सकती है। गुफाओं में रहने वाली प्रजातियों की कोई आंखें नहीं होती हैं, या उनकी आंखें देखने में असमर्थ होती हैं। अन्य इंद्रियां अन्य आर्थ्रोपोड्स की तरह, मकड़ियों के क्यूटिकल्स बाहरी दुनिया के बारे में जानकारी को अवरुद्ध कर देंगे, सिवाय इसके कि वे कई सेंसर या सेंसर से तंत्रिका तंत्र के कनेक्शन में प्रवेश कर जाते हैं। वास्तव में, मकड़ियों और अन्य आर्थ्रोपोड्स ने अपने क्यूटिकल्स को सेंसर के विस्तृत सरणियों में संशोधित किया है। विभिन्न स्पर्श सेंसर, ज्यादातर ब्रिस्टल जिन्हें सेटे कहा जाता है, मजबूत संपर्क से लेकर बहुत कमजोर वायु धाराओं तक, बल के विभिन्न स्तरों पर प्रतिक्रिया करते हैं। रासायनिक सेंसर अक्सर सेटे के माध्यम से स्वाद और गंध के समकक्ष प्रदान करते हैं। एक वयस्क एरेनियस में 1,000 तक ऐसे केमोसेंसिटिव सेटे हो सकते हैं, जिनमें से अधिकांश पैरों की पहली जोड़ी के तारसी पर होते हैं। मादाओं की तुलना में पुरुषों के पेडिपलप्स पर अधिक केमोसेंसिटिव ब्रिसल्स होते हैं। उन्हें महिलाओं द्वारा उत्पादित सेक्स फेरोमोन के प्रति उत्तरदायी दिखाया गया है, संपर्क और वायु-जनित दोनों। जंपिंग स्पाइडर इवार्चा कलिसिवोरा स्तनधारियों और अन्य कशेरुकियों के रक्त की गंध का उपयोग करता है, जो विपरीत लिंग को आकर्षित करने के लिए रक्त से भरे मच्छरों को पकड़कर प्राप्त किया जाता है। क्योंकि वे लिंगों को अलग-अलग बताने में सक्षम हैं, यह माना जाता है कि रक्त की गंध फेरोमोन के साथ मिश्रित होती है। मकड़ियों के अंगों के जोड़ों में स्लिट सेंसिला भी होता है जो बल और कंपन का पता लगाता है। वेब-बिल्डिंग मकड़ियों में, ये सभी यांत्रिक और रासायनिक सेंसर आंखों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हैं, जबकि सक्रिय रूप से शिकार करने वाली मकड़ियों के लिए आंखें सबसे महत्वपूर्ण हैं। अधिकांश आर्थ्रोपोडों की तरह, मकड़ियों में संतुलन और त्वरण सेंसर की कमी होती है और वे अपनी आंखों पर भरोसा करते हैं कि उन्हें कौन सा रास्ता तय करना है। आर्थ्रोपोड्स के प्रोप्रियोसेप्टर, सेंसर जो मांसपेशियों द्वारा लगाए गए बल और शरीर और जोड़ों में झुकने की डिग्री की रिपोर्ट करते हैं, अच्छी तरह से समझे जाते हैं। दूसरी ओर, अन्य आंतरिक सेंसर स्पाइडर या अन्य आर्थ्रोपोड के बारे में बहुत कम जानकारी है। चित्र दीर्घा सन्दर्भ मकड़ियाँ आर्थ्रोपोडा
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B9%20%E0%A4%98%E0%A5%8B%E0%A4%B7%E0%A4%A3%E0%A4%BE
विवाह घोषणा
हिन्दू धर्म में; सद्गृहस्थ की, परिवार निर्माण की जिम्मेदारी उठाने के योग्य शारीरिक, मानसिक परिपक्वता आ जाने पर युवक-युवतियों का विवाह संस्कार कराया जाता है। समाज के सम्भ्रान्त व्यक्तियों की, गुरुजनों की, कुटुम्बी-सम्बन्धियों की, देवताओं की उपस्थिति इसीलिए इस धर्मानुष्ठान के अवसर पर आवश्यक मानी जाती है कि दोनों में से कोई इस कत्तर्व्य-बन्धन की उपेक्षा करे, तो उसे रोकें और प्रताड़ित करें। पति-पत्नी इन सन्भ्रान्त व्यक्तियों के सम्मुख अपने निश्चय की, प्रतिज्ञा-बन्धन की घोषणा करते हैं। यह प्रतिज्ञा समारोह ही विवाह संस्कार है। विवाह संस्कार में देव पूजन, यज्ञ आदि से सम्बन्धित सभी व्यवस्थाएँ पहले से बनाकर रखनी चाहिए। विशेष व्यवस्था विवाह संस्कार में देव पूजन, यज्ञ आदि से सम्बन्धित सभी व्यवस्थाएँ पहले से बनाकर रखनी चाहिए। सामूहिक विवाह हो, तो प्रत्येक जोड़े के हिसाब से प्रत्येक वेदी पर आवश्यक सामग्री रहनी चाहिए, कमर्काण्ड ठीक से होते चलें, इसके लिए प्रत्येक वेदी पर एक-एक जानकार व्यक्ति भी नियुक्त करना चाहिए। एक ही विवाह है, तो आचार्य स्वयं ही देख-रेख रख सकते हैं। सामान्य व्यवस्था के साथ जिन वस्तुओं की जरूरत विशेष कमर्काण्ड में पड़ती है, उन पर प्रारम्भ में दृष्टि डाल लेनी चाहिए। उसके सूत्र इस प्रकार हैं। वर सत्कार के लिए सामग्री के साथ एक थाली रहे, ताकि हाथ, पैर धोने की क्रिया में जल फैले नहीं। मधुपर्क पान के बाद हाथ धुलाकर उसे हटा दिया जाए। यज्ञोपवीत के लिए पीला रंगा हुआ यज्ञोपवीत एक जोड़ा रखा जाए। विवाह घोषणा के लिए वर-वधू पक्ष की पूरी जानकारी पहले से ही नोट कर ली जाए। वस्त्रोपहार तथा पुष्पोपहार के वस्त्र एवं मालाएँ तैयार रहें। कन्यादान में हाथ पीले करने की हल्दी, गुप्तदान के लिए गुँथा हुआ आटा (लगभग एक पाव) रखें। ग्रन्थिबन्धन के लिए हल्दी, पुष्प, अक्षत, दुर्वा और द्रव्य हों। शिलारोहण के लिए पत्थर की शिला या समतल पत्थर का एक टुकड़ा रखा जाए। हवन सामग्री के अतिरिक्त लाजा (धान की खीलें) रखनी चाहिए। ‍वर-वधू के पद प्रक्षालन के लिए परात या थाली रखे जाए। पहले से वातावरण ऐसा बनाना चाहिए कि संस्कार के समय वर और कन्या पक्ष के अधिक से अधिक परिजन, स्नेही उपस्थित रहें। सबके भाव संयोग से कमर्काण्ड के उद्देश्य में रचनात्मक सहयोग मिलता है। इसके लिए व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों ही ढंग से आग्रह किए जा सकते हैं। विवाह के पूर्व यज्ञोपवीत संस्कार हो चुकता है। अविवाहितों को एक यज्ञोपवीत तथा विवाहितों को जोड़ा पहनाने का नियम है। यदि यज्ञोपवीत न हुआ हो, तो नया यज्ञोपवीत और हो गया हो, तो एक के स्थान पर जोड़ा पहनाने का संस्कार विधिवत् किया जाना चाहिए। ‍अच्छा हो कि जिस शुभ दिन को विवाह-संस्कार होना है, उस दिन प्रातःकाल यज्ञोपवीत धारण का क्रम व्यवस्थित ढंग से करा दिया जाए। विवाह-संस्कार के लिए सजे हुए वर के वस्त्र आदि उतरवाकर यज्ञोपवीत पहनाना अटपटा-सा लगता है। इसलिए उसको पहले ही पूरा कर लिया जाए। यदि वह सम्भव न हो, तो स्वागत के बाद यज्ञोपवीत धारण करा दिया जाता है। उसे वस्त्रों पर ही पहना देना चाहिए, जो संस्कार के बाद अन्दर कर लिया जाता है। जहाँ पारिवारिक स्तर के परम्परागत विवाह आयोजनों में मुख्य संस्कार से पूर्व द्वारचार (द्वार पूजा) की रस्म होती है, वहाँ यदि हो-हल्ला के वातावरण को संस्कार के उपयुक्त बनाना सम्भव लगे, तो स्वागत तथा वस्त्र एवं पुष्पोपहार वाले प्रकरण उस समय भी पूरे कराये जा सकते हैं ‍विशेष आसन पर बिठाकर वर का सत्कार किया जाए। फिर कन्या को बुलाकर परस्पर वस्त्र और पुष्पोपहार सम्पन्न कराये जाएँ। परम्परागत ढंग से दिये जाने वाले अभिनन्दन-पत्र आदि भी उसी अवसर पर दिये जा सकते हैं। इसके कमर्काण्ड का संकेत आगे किया गया है। ‍पारिवारिक स्तर पर सम्पनन किये जाने वाले विवाह संस्कारों के समय कई बार वर-कन्या पक्ष वाले किन्हीं लौकिक रीतियों के लिए आग्रह करते हैं। यदि ऐसा आग्रह है, तो पहले से नोट कर लेना-समझ लेना चाहिए। पारिवारिक स्तर पर विवाह-प्रकरणों में वरेच्छा, तिलक (शादी पक्की करना), हरिद्रा लेपन (हल्दी चढ़ाना) तथा द्वारपूजन आदि के आग्रह उभरते हैं। उन्हें संक्षेप में दिया जा रहा है, ताकि समयानुसार उनका निवार्ह किया जा सके। इसी संस्कार का पंचम चरण है विवाह घोषणा। विवाह घोषणा विवाह घोषणा की एक छोटी-सी संस्कृत भाषा की शब्दावली है, जिसमें वर-कन्या के गोत्र पिता-पितामह आदि का उल्लेख और घोषणा है कि यह दोनों अब विवाह सम्बन्ध में आबद्ध होते हैं। इनका साहचर्य धर्म-संगत जन साधारण की जानकारी में घोषित किया हुआ माना जाए। बिना घोषणा के गुपचुप चलने वाले दाम्पत्य स्तर के प्रेम सम्बन्ध, नैतिक, धामिर्क एवं कानूनी दृष्टि से अवांछनीय माने गये हैं। जिनके बीच दाम्पत्य सम्बन्ध हो, उसकी घोषणा सवर्साधारण के समक्ष की जानी चाहिए। समाज की जानकारी से जो छिपाया जा रहा हो, वही व्यभिचार है। घोषणापूवर्क विवाह सम्बन्ध में आबद्ध होकर वर-कन्या धर्म परम्परा का पालन करते हैं। स्वस्ति श्रीमन्नन्दनन्दन चरणकमल भक्ति सद् विद्या विनीतनिजकुलकमलकलिकाप्रकाशनैकभास्कार सदाचार सच्चरित्र सत्कुल सत्प्रतिष्ठा गरिष्ठस्य .........गोत्रस्य ........ महोदयस्य प्रपोत्रः .......... महोदयस्य पोत्र.......... महोदयस्य पुत्रः॥ ....... महोदयस्य प्रपौत्री, ........ महोदयस्य पौत्री .........महोदसस्य पुत्री प्रयतपाणिः शरणं प्रपद्ये। स्वस्ति संवादेषूभयोवृर्द्धिवर्रकन्ययोश्चिरंजीविनौ भूयास्ताम्। अगला कार्यक्रम इससे अगला कार्यक्रम या चरण है विवाह मंगलाष्टक। अन्य चरण इसी प्रकार हिन्दू विवाह के बाईस चरण होते हैं। इन सभी चरणों के बाद हिन्दू विवाह पूर्ण होता है। इन्हें भी देखें बाहरी कड़ियाँ [https://web.archive.org/web/20170924010059/http://hindi.awgp.org/?gayatri%2FAWGP_Offers%2Fparivar_nirman%2Fsanskar%2Fmerriage%2F गायत्री शांतिकुंज की ओर से] हिन्दू संस्कार हिन्दू विवाह विवाह संस्कार
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE
नौतनवा
नौतनवा (Nautanwa) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महराजगंज ज़िले में स्थित एक नगर पालिका है। यह गोरखपुर से लगभग 87 किलोमीटर, महराजगंज से लगभग 68 किलोमीटर तथा भारत-नेपाल सीमा पर स्थित सोनौली से 7 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। भूगोल नौतनवा 27.43°N 83.42°E पर स्थित है। इसकी औसत ऊंचाई 89 मीटर (291 फीट) है। यह शहर तराई क्षेत्र में शिवालिक हिमालय की तलहटी में स्थित है। नौतनवा उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले में एक तहसील / ब्लॉक है। 2011 की जनगणना के अनुसार नौतनवा ब्लॉक का उप-जिला कोड 00944 है। नौतनवा ब्लॉक में लगभग 259 गाँव हैं। भूगर्भशास्त्र ईंट मिट्टी हर जगह प्रचुर मात्रा में है और शहर के बाहर ईंटें बनाई जाती हैं। इस क्षेत्र की मिट्टी हल्की रेतीली या पीले भूरे रंग की घनी मिट्टी है। नदियों में पाई जाने वाली रेत मध्यम से मोटे दाने वाली, भूरे सफेद से भूरे रंग की होती है और भवन निर्माण के लिए उपयुक्त होती है। जनसांख्यिकी 2001 की भारत की जनगणना के अनुसार, नौतनवा की जनसंख्या 29,259 थी। पुरुष जनसंख्या का 52% और महिलाएं 48% हैं। नौतनवा की औसत साक्षरता दर 62% है, जो राष्ट्रीय औसत 59.5% से अधिक है: पुरुष साक्षरता 71% है और महिला साक्षरता 52% है। नौतनवा में, आबादी का 17% 6 साल से कम उम्र के हैं। इन्हें भी देखें महराजगंज ज़िला नौतनवा तहसील के अंतर्गत गांवों की सूची सन्दर्भ महराजगंज ज़िला उत्तर प्रदेश के नगर महाराजगंज ज़िले के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%20%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A5%E0%A5%81%E0%A4%B0
गोविंद माथुर
गोविंद माथुर (जन्म 14 अप्रैल 1959) एक भारतीय न्यायाधीश हैं। वर्तमान में, वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश हैं। वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय और राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश हैं। करियर गोविंद माथुर को 2 सितंबर 2004 को राजस्थान उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्हें 29 मई 2006 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। इसके बाद 21 नवंबर 2017 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया गया था। 24 अक्टूबर 2018 को, वरिष्ठतम न्यायधीश होने के नाते, उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। 10 नवंबर 2018 को, फिर से उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। जबकि 14 नवंबर 2018 को, उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। सन्दर्भ 1959 में जन्मे लोग जीवित लोग भारतीय न्यायाधीश
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तेलंगाना के चुनाव
तेलंगाना के चुनाव भारत के तेलंगाना राज्य में प्रति पांच वर्ष में लोकसभा तथा विधानसभा के लिए होने वाले आम चुनाव हैं। तेलंगाना राज्य में कुल 19 लोकसभा एवं 118 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं। राजनैतिक दल लोकसभा चुनाव ज्ञातव्य है कि साल 2014 तक तेलंगाना अविभाजित आंध्र प्रदेश राज्य का हिस्सा था। 2 जून 2014 को आंध्र प्रदेश के उत्तरी भाग के 16 जिलों को मिलाकर तेलंगाना के रूप में नवीन राज्य का गठन किया गया जिसके अंतर्गत आंध्र प्रदेश के 42 में से 17 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र नवगठित राज्य तेलंगाना को मिले तथा आंध्र प्रदेश में केवल 25 सीटें ही रह गईं। दलवार परिणाम कुल लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र- 17 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रवार परिणाम राज्यसभा विधानसभा चुनाव कुल विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र- 119 इन्हें भी देखें मध्य प्रदेश के चुनाव छत्तीसगढ़ के चुनाव संदर्भ भारत में चुनाव
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पूर्व माध्यमिक विद्यालय, लख्खी बाग
पूर्व माध्यमिक विद्यालय देहरादून, उत्तराखंड के लख्खी बाग में स्थित एक सरकारी विद्यालय है। इसकी स्थापना राज्य सरकार द्वारा २००३ में की गई थी। विद्यालय के बारे में सामान्य जानकारी इस प्रकार है:- देहरादून में स्थिति : लख्खी बाग, देहरादून, जिला - देहरादून, उत्तराखंड - २४८ ००१ दिशा : यह देहरादून रेलवे स्टेशन से ६५० मीटर की दूरी पर लख्खी बाग में स्थित है। समय : गर्मी में ७:३० सुबह से १:०० दोपहर सर्दी में १०:०० सुबह से ४:०० शाम कार्य दिवस : सोमवार से शनिवार। अन्य विशेषतायें/विशेष रुचि : सह-शिक्षा वाले इस विद्यालय में लगभग ८७ छात्र हैं और यहां ६टीं कक्षा से लेकर १२वीं तक है।
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रति अग्निहोत्री
रति अग्निहोत्री (जन्म: 10 दिसंबर, 1960) हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री हैं। व्यक्तिगत जीवन रति अग्निहोत्री का जन्म 10 दिसंबर 1960 को उत्तर प्रदेश के बरेली में एक रूढ़िवादी पंजाबी परिवार में हुआ था। अग्निहोत्री ने 9 फरवरी 1985 को व्यवसायी और वास्तुकार अनिल विरवानी से शादी की, इसने, अपने पिता की मृत्यु के साथ, उन्हें हिंदी फिल्मों को छोड़ने के लिए राजी कर लिया। 1986 में, दंपति के बेटे तनुज विरवानी का जन्म हुआ। वह हिंदी फिल्मों और टेलीविजन में काम करने वाले अभिनेता हैं। अग्निहोत्री और विरवानी का 2015 में तलाक हो गया। प्रमुख फिल्में नामांकन और पुरस्कार नामांकन फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार - एक दूजे के लिए (1982) फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार - तवायफ (1985) सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ बॉलीवुड अभिनेत्री हिन्दी अभिनेत्री 1960 में जन्मे लोग जीवित लोग
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कैंटरबरी के आर्चबिशप
कैंटरबरी के आर्चबिशप, चर्च ऑफ़ इंग्लैण्ड के एक वरिष्ठ बिशप और प्रमुख होते हैं। वे विश्वविस्तृत आंग्लिकाई ऐक्य और एंग्लिकन धर्म के चिन्हनात्मक प्रमुख हैं(जैसे पोप रोमन कैथोलिक संप्रदाय के होते हैं)। तथा वे कैंटरबरी के बिशप-क्षेत्र के प्रदेशीय बिशप होते हैं। वर्त्तमान आर्चबिशप, परणपूज्य आर्चबिशप जस्टिन वेल्बी हैं, जिनका पदस्थापन २१ मार्च २०१३ को हुआ था। वेल्बी, १४०० वर्ष पुराने इस संसथान के १०५वें पदाधिकारी हैं। इस संसथान की शुरुआत कैंटरबरी के ऑगस्टीन के साथ हुई थी, जिन्हें ५९७ ई॰ में रोम से इंग्लैण्ड, ईसाइयत के प्रचार के लिए भेजा गया था। ६ठी शताब्दी में ऑगस्टीन से १६वीं शताब्दी तक, कैंटरबरी की आर्चबिशपी, रोम के गिर्जा के साथ एकमत की स्थिति में थी, परंतु अंग्रेज़ी सुधर के बाद, इंग्लैंड की चर्च ने, पोप और रोमन कैथोलिक चर्च के अधिकार से खुद को अलग कर लिया। सुधर से पहले तक, कैंटरबरी कैथेड्रल के बिशप के चुनाव की प्रक्रिया बदलते रहा करती थी:कभी चुनाव द्वारा या कभी पोप द्वारा, अन्यथा इंग्लैंड के शासक द्वारा। सुधरकाल के बाद से, चर्च ऑफ़ इंग्लैंड, मुख्यतः एक राजकीय गिर्जा की हैसियत रखता है, और तत्पश्चात्, आर्चबिशप के नामांकन का आधिकारिक अधिकार ब्रिटिश मुकुट के पास रहा है। वर्त्तमान समय में, कैंटरबरी के आर्चबिशप की नियुक्ति, ब्रिटिश संप्रभु द्वारा ]प्रधानमंत्री की सलाह पर होता है, जोकि दो नामों की अनुसूची में से अगले पदाधिकारी का चुनाव किया करते हैं। इन्हें भी देखें एंग्लिकन धर्म अंग्रेज़ी सुधर कैंटरबरी के ऑगस्टीन कैंटरबरी कैथेड्रल सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Archbishop of Canterbury – official website The Archbishopric of Canterbury, from Its Foundation to the Norman Conquest, by John William Lamb", Published 1971, Faith Press, from Google Book Search कैंटरबरी के आर्चबिशप ईसाई धर्म एंग्लिकन धर्म
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कॉमेडी सर्कस
कॉमेडी सर्कस सोनी पर प्रसारित होने वाला एक भारतीय हिन्दी हास्य धारावाहिक है। इसमें प्रतिभागी लोगों को हँसाते हैं। इसका प्रसारण 16 जून 2007 से शुरू हुआ। संस्करण भाग 1 काशीफ खान और अली असगर - विजेता स्वप्निल जोशी और वीआईपी - द्वितीय विजेता उर्वशी ढोलकिया और शकील सिद्दीकी खयाली सहरण और करिश्मा तन्ना किरण कर्मकार और सुनील संवरा प्रताप फौजदार और केतकी दवे वरुण बदोला और दीपक दुत्ता। भाग 2 यह 26 अप्रैल 2008 से शुरू हुआ। जुही परमार और वीआईपी - विजेता काम्या पंजाबी और राजीव ठाकुर - द्वितीय विजेता सुदेश लहरी और कृष्णा अभिषेक अपरा मेहता और शैलेश लोढ़ा सायंतनी घोष और कुलदीप दुबे सुचेता खन्ना और सलीम अफरीदी आकाशदीप साइगल और परवेज़ सिद्दीकी राजेश कुमार और राजीव निगम छितराशी रावत और रहमान खान संस्करण के नाम कॉमेडी सर्कस कॉमेडी सर्कस 2 कॉमेडी सर्कस काँटे की टक्कर कॉमेडी सर्कस 3 का तड़का कॉमेडी सर्कस महासंग्राम कॉमेडी सर्कस के सुपरस्टार्स कॉमेडी सर्कस का जादू जुबली कॉमेडी सर्कस कॉमेडी सर्कस के तानसेन कॉमेडी सर्कस का नया दौर कहानी कॉमेडी सर्कस की कॉमेडी सर्कस के अजूबे कॉमेडी सर्कस के महाबली सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक जालस्थल
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जेसन मोमोआ
जोसफ जेसन नामकह मोमोआ (जन्म: 1 अगस्त 1979) एक हवाई-अमेरिकी अभिनेता, मॉडल, फ़िल्म निर्माता तथा निर्देशक हैं। उन्हें मिलिट्री साइंस फिक्शन टेलीविजन श्रृंखला स्टार्गेट अटलांटिस (2004―2009) में रॉनन डेक्स की, एचबीओ फंतासी टेलीविजन श्रृंखला गेम ऑफ़ थ्रोन्स (2011―2012) में खल ड्रोगो की, और नेटफ्लिक्स श्रृंखला फ्रंटियर (2016―वर्तमान) में डेक्लन हार्प की भूमिकाएं निभाने के लिए जाना जाता है। मोमोआ ने 2011 की तलवार और जादूगरी पर आधारित फिल्म कॉनन द बारबैरियन में मुख्य भूमिका निभाई। वर्तमान में वह डीसी एक्सटेंडेड यूनिवर्स में एक्वामैन की भूमिका निभा रहे हैं। इस भूमिका में वह 2016 की सुपरहीरो फिल्म बैटमैन वर्सेज सुपरमैन: डॉन ऑफ जस्टिस में अतिथि भूमिका में दिखाई दिए, और उसके बाद 2017 की फ़िल्म जस्टिस लीग और 2018 में अपनी एकल फिल्म एक्वामैन में वह दिखाई दिए। रोड टू पालोमा एक निर्देशक, लेखक और निर्माता के रूप में मोमोआ की पहली फिल्म थी। 11 जुलाई 2014 को रिलीज़ हुई इस फिल्म में उन्होंने मुख्य भूमिका भी निभाई थी। प्रारंभिक जीवन मोमोआ का जन्म 1979 में होनोलुलु, हवाई में हुआ था। वे अपने माता-पिता की इकलौती संतान हैं। उनकी माता, जिनका नाम कोनी है, फोटोग्राफर हैं जबकि उनके पिता, जोसफ मोमोआ, चित्रकार हैं। उनका लालन-पालन नोरवॉक, जो कि आईओवा (अमरीकी राज्य) में है, में उनकी माता द्वारा हुआ। उच्च शिक्षा के बाद, मोमोआ ने कॉलेज में समुद्री जीव विज्ञान की पढ़ाई की। नौजवान होने पर, मोमो ने बहुत ज्यादा भ्रमण किया। उन्होंने पेरिस में पस्टेल पेंटिंग्स सीखी तथा तिब्बत में बौद्धिक ज्ञान प्राप्त किया। करियर 1998 में अंतरराष्ट्रीय डिज़ाइनर टाकेयो किकुची ने मोमोआ के मॉडलिंग करियर को प्रोत्साहित किया। मोमोआ ने वर्ष 1999 में हवाई का 'मॉडल ऑफ द ईयर' खिताब जीता और 'मिस टीन हवाई' प्रतियोगिता की मेजबानी भी किया। उन्नीस की उम्र में उन्होंने एक सर्फ की दुकान में पार्ट-टाइम नौकरी भी की। बाद में उन्होंने एक्शन ड्रामा श्रृंखला 'बेवॉच हवाई' (1999―2001) में जैसन इयोन का किरदार निभाया। नॉर्थ शोर (2004―2005) में उनकी उपस्थिति के अलावा, 'जॉनसन फैमिली वेकेशन' (2004), और 'स्टार्गेट: अटलांटिस' (2005―2009), कॉमेडी-नाटक टेलीविजन श्रृंखला 'द गेम' (2009) के चार एपिसोड में मोमोआ को रोमन के रूप में डाला गया था। उन्होंने 'कॉनन द बार्बेरियन' (2011) में शीर्षक नायक को चित्रित किया, इसी नाम की 1982 की फिल्म का पुनर्मूल्यांकन और अर्नोल्ड श्वार्ज़नेगर द्वारा प्रसिद्ध एक भूमिका। मोमोआ ने अपने ऑडिशन के माध्यम से एचबीओ के गेम ऑफ थ्रोन पर खल ड्रोगो की अपनी भूमिका प्राप्त की, जिसमें उन्होंने एक हका प्रदर्शन किया, युद्ध के मैदान पर परंपरागत रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले कई डरावनी माओरी युद्ध नृत्यों में से एक। 'स्टार्गेट अटलांटिस' के सीज़न 4 की शूटिंग खत्म होने के बाद, मोमोआ ने अपने ड्रेडलॉक्स काट दिए। उनका वजन उन्हें सिरदर्द दे रहा था। कार्यक्रम उनके निर्णय के साथ सहमत हो गया और उन्होंने एक दृश्य फिल्म बनाने की योजना बनाई जहां रॉनन ने सीजन 5 के 'ब्रोकन टाइस' (हिंदी में अनुवाद - 'टूटे हुए संबंध') में अपने बालों को काट दिया, लेकिन अंततः साई-फाई नेटवर्क द्वारा उस परिवर्तन को रद्द कर दिया गया। सीजन 5 के लिए फिल्मांकन के पहले दिन, उनके ड्रेडलॉक्स को दोबारा जोड़ा गया, लेकिन प्रक्रिया बहुत महेंगी पड़ रही थी। मोमोआ ने अपने स्टंट डबल की विग का उपयोग करना शुरू किया जब तक एक कस्टम विग बनवाकर तैयार करवाई गई। मोमोआ ने 'राइट टू पालोमा' (2014), एक अमेरिकी नाटक थ्रिलर फिल्म को निर्देशित और सह-लेखन किया, लेखकों जोनाथन हिर्शबेन और रॉबर्ट होमर मोलहान के साथ। फिल्म में मोमोआ, सारा शाही, लिसा बोनेट, माइकल रेमंड-जेम्स और वेस स्टडी हैं। यह फ़िल्म 2014 सरसोता फिल्म फेस्टिवल में प्रीमियर हुई। 15 जुलाई, 2014 को न्यूयॉर्क शहर और लॉस एंजेलेस में फिल्म की सीमित नाटकीय रिलीज थी। मार्च 2014 में, मोमोआ कारी एलवेस और हैली वेब के साथ अंधेरे कॉमेडी / थ्रिलर इंडी 'शुगर माउंटेन' में शामिल हो गए; जिसकी मुख्य फोटोग्राफी अलास्का में की गई थी। उन्होंने सनडांस टीवी नाटक श्रृंखला 'द रेड रोड' (2014―2015) पर एक रामपाउ माउंटेन इंडियन, फिलिप कोपस के रूप में भी अभिनय किया। जून 2014 में, मोमोआ को सुपरहीरो फिल्म 'बैटमैन बनाम सुपरमैन: डॉन ऑफ जस्टिस' में एक्वामैन की भूमिका में शामिल किए जाने की खबरें आईं। एक्वामैन के रूप में मोमोआ की भूमिका की पुष्टि अक्टूबर 2014 में हुई थी। इसने एक्वामैन की लाइव एक्शन नाटकीय शुरुआत की। उन्होंने एक्वामैन एकल फिल्म में भी अभिनय किया, जिसे 2018 के अंत में जारी किया गया। उन्होंने कनाडाई डरावनी एक्शन फिल्म 'वूल्व्स' (हिंदी अनुवाद - 'भेड़िए') में कॉनर को भी चित्रित किया। मोमोआ ने 2014 साई-फाई डरावनी फिल्म, 'डीबग' में अभिनय किया; यह मोमोआ के पूर्व 'स्टार्गेट अटलांटिस' सह-कलाकार, ब्रिटिश-कनाडाई अभिनेता डेविड हेवलेट द्वारा लिखित और निर्देशित फ़िल्म थी। फरवरी 2015 में, यह घोषणा की गई थी कि वे नाटक थ्रिलर फिल्म 'द बैड बैच' में एक नरभक्षक को चित्रित करेंगे। 2015 में, मोमोआ ने कनाडाई एक्शन फिल्म 'ब्रेवन' में काम किया, जिसे 2 फरवरी, 2018 को जारी किया गया था। 2017 की शुरुआत में, उन्होंने आधिकारिक तौर पर 'जस्ट कॉज़' फिल्म श्रृंखला पर हस्ताक्षर किए। जुलाई 2018 में, मोमो को ऐप्पल के आगामी भविष्य-आधारित नाटक श्रृंखला 'सी' के लिए डाला गया था। व्यक्तिगत जीवन 2005 में पारस्परिक मित्रों के द्वारा जान-पहचान कराने के बाद मोमोआ ने अभिनेत्री लिसा बोनट के साथ एक रिश्ता शुरू किया। हालांकि पहले यह माना जा रहा था कि मोमोआ और बोनेट ने 15 नवंबर, 2007 को शादी की, लेकिन जोड़े ने कानूनी रूप से अक्टूबर 2017 तक शादी नहीं की थी। बोनेट से अपनी शादी के माध्यम से, मोमोआ जोए क्राविट्ज़ के सौतेले पिता बन गए। 23 जुलाई, 2007 को, बोनेट ने उनके पहले बच्चे, लोला इओलानी मोमोआ नाम की बेटी को जन्म दिया। 15 दिसंबर, 2008 को, उनके दूसरे बच्चे, नाकोआ-वुल्फ मणकाउपो नामकह मोमोआ नाम का एक बेटा पैदा हुआ था। मोमोआ की मां ने जन्म की घोषणा की और कहा कि नाकोआ का मतलब है "योद्धा" और मण "शक्ति / भावना" के लिए है, जबकि काउ (का + उ, "बारिश") और पो ("अंधेरा") अपने जन्मदिन के आसपास की परिस्थितियों से संबंधित है (वह लॉस एंजेलेस में दुर्लभ खराब मौसम की रात में पैदा हुआ था)। वह अपने नाम का नामकह अपने पिता के साथ साझा करता है। दिसंबर 2017 में, मोमोआ पुरुषों की 'हेल्थ' पत्रिका के कवर पर आए और एक्वामैन के लिए अपनी फिटनेस दिनचर्या का विवरण देने वाले एक लेख के साथ दिखाया गया था। मोमोआ पोर्ट एडीलेड फुटबॉल क्लब के प्रशंसक हैं।मोमोआ न्यूजीलैंड ऑल ब्लैक्स का भी समर्थन करते हैं। मार्शल आर्ट्स मोमोआ ने स्टार्गेट अटलांटिस के रॉनन और कॉनन के रूप में अपनी भूमिका के लिए मार्शल आर्ट्स सीखा। 2017 में मोमोआ ने ब्राजीलियाई जिउ-जित्सु का अभ्यास शुरू किया। चेहरे का निशान 15 नवंबर, 2008 को, हॉलीवुड, कैलिफ़ोर्निया में एक मधुशाला, 'बर्ड्स कैफे' में तकरार के दौरान एक आदमी ने टूटी हुई बियर ग्लास को मोमोआ के चेहरे पर दे मारा। उन्हें पुनर्निर्माण सर्जरी के दौरान लगभग 140 टांके लगे और उनके बाद के काम में निशान स्पष्ट दिखाई देता है। टैटू मोमोआ के शरीर पर कई टैटू हैं। इनमें से सबसे प्रमुख ट्राइबल हाफ स्लीव है जिसमें काले रंग के त्रिभुजों की नौ पंक्तियां हैं जो उनके बाएं बांह को घेर रही हैं। मोमोआ ने समझाया है कि टैटू उमाकुआ, उनके हवाईयन परिवार के क्रेस्ट, मनो या शार्क का है। त्रिभुज शार्क दांत का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने कहा, "यह आपके दिल से अंधेरा दूर करने और प्रकाश लाने के लिये है, लेकिन हम अभी भी उस पर काम कर रहे हैं।" अपने दाहिने बाहरी भुजा पर, मोमोआ में एक टैटू है जिसमें "एतरे टॉजोर्स इव्र" लिखा है, जो मोटे तौर पर फ्रांसीसी से "हमेशा नशे में" के रूप में अनुवाद करता है। उनकी सौतेली बेटी, जोए क्रॉविट्ज़, और गेम ऑफ थ्रॉन्स के सीजन 1 की उनकी सहकलाकार, जेमी साइव्स, के एक ही स्थान पर समान टैटू हैं। मोमोआ के दाहिने आंतरिक भुजा पर एक टैटू है जिसमें "प्राइड ऑफ जिप्सीज़" लिखा है, जो कि उनकी फिल्म और वाणिज्यिक उत्पादन कंपनी का नाम है। उनके मध्य दाएं उंगली पर एक स्मारक टैटू है, जिसमें 2013 में निधन होने वाले उनने सबसे अच्छे दोस्त की याद में "डायब्लो" लिखा है। उसके दाहिने अंगूठे और तर्जनी अंगुली के बीच भी एक छोटी खोपड़ी का टैटू है। मोमोआ ने लिसा बोनेट और अपने दोनो बच्चों, लोला और वुल्फ, के हस्ताक्षर का टैटू अपने छाती के बाएं तरफ लाल स्याही से बनवाया है। फिल्मोग्राफी फ़िल्म टेलीविज़न सन्दर्भ फ़िल्म निर्माता अभिनेता 1979 में जन्मे लोग जीवित लोग
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महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा (26 मार्च 1907 — 11 सितम्बर 1987) हिन्दी भाषा की कवयित्री थीं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तम्भों में से एक मानी जाती हैं। आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है। महादेवी ने स्वतन्त्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की। न केवल उनका काव्य बल्कि उनके सामाजसुधार के कार्य और महिलाओं के प्रति चेतना भावना भी इस दृष्टि से प्रभावित रहे। उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और शृंगार से सजाया कि दीपशिखा में वह जन-जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों को ही नहीं समीक्षकों को भी गहराई तक प्रभावित किया। उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी की कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल ब्रजभाषा में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत और बांग्ला के कोमल शब्दों को चुनकर हिन्दी का जामा पहनाया। संगीत की जानकार होने के कारण उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अन्तिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं। उनका बाल-विवाह हुआ परन्तु उन्होंने अविवाहित की भाँति जीवन-यापन किया। प्रतिभावान कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ-साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। उन्हें हिन्दी साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। भारत के साहित्य आकाश में महादेवी वर्मा का नाम ध्रुव तारे की भाँति प्रकाशमान है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूजनीय बनी रहीं। वे पशु पक्षी प्रेमी थी गाय उनको अति प्रिय थी । वर्ष 2007 उनका जन्म शताब्दी के रूप में मनाया गया। 27 अप्रैल 1982 को भारतीय साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से इन्हें सम्मानित किया गया था। गूगल ने इस दिवस की याद में वर्ष 2018 में गूगल डूडल के माध्यम से मनाया । जीवनी जन्म और परिवार महादेवी का जन्म 26 मार्च 1907 को प्रातः 8 बजे फ़र्रुख़ाबाद उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ। उनके परिवार में लगभग 200 वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद पहली बार पुत्री का जन्म हुआ था। अतः बाबा बाबू बाँके विहारी जी हर्ष से झूम उठे और इन्हें घर की देवी — महादेवी मानते हुए पुत्री का नाम महादेवी रखा। उनके पिता श्री गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे। उनकी माता का नाम हेमरानी देवी था। हेमरानी देवी बड़ी धर्म परायण, कर्मनिष्ठ, भावुक एवं शाकाहारी महिला थीं। विवाह के समय अपने साथ सिंहासनासीन भगवान की मूर्ति भी लायी थीं वे प्रतिदिन कई घंटे पूजा-पाठ तथा रामायण, गीता एवं विनय पत्रिका का पारायण करती थीं और संगीत में भी उनकी अत्यधिक रुचि थी। इसके बिल्कुल विपरीत उनके पिता गोविन्द प्रसाद वर्मा सुन्दर, विद्वान, संगीत प्रेमी, नास्तिक, शिकार करने एवं घूमने के शौकीन, माँसाहारी तथा हँसमुख व्यक्ति थे। महादेवी वर्मा के मानस बंधुओं में सुमित्रानन्दन पन्त एवं निराला का नाम लिया जा सकता है, जो उनसे जीवन पर्यन्त राखी बँधवाते रहे। निराला जी से उनकी अत्यधिक निकटता थी, उनकी पुष्ट कलाइयों में महादेवी जी लगभग चालीस वर्षों तक राखी बाँधती रहीं। शिक्षा महादेवी जी की शिक्षा इन्दौर में मिशन स्कूल से प्रारम्भ हुई साथ ही संस्कृत, अंग्रेज़ी, संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा अध्यापकों द्वारा घर पर ही दी जाती रही। बीच में विवाह जैसी बाधा पड़ जाने के कारण कुछ दिन शिक्षा स्थगित रही। विवाहोपरान्त महादेवी जी ने 1919 में क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद में प्रवेश लिया और कॉलेज के छात्रावास में रहने लगीं। 1921 में महादेवी जी ने आठवीं कक्षा में प्रान्त भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया। यहीं पर उन्होंने अपने काव्य जीवन की शुरुआत की। वे सात वर्ष की अवस्था से ही कविता लिखने लगी थीं और 1925 तक जब उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की, वे एक सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी कविताओं का प्रकाशन होने लगा था। कालेज में सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ उनकी घनिष्ठ मित्रता हो गई। सुभद्रा कुमारी चौहान महादेवी जी का हाथ पकड़ कर सखियों के बीच में ले जाती और कहतीं ― “सुनो, ये कविता भी लिखती हैं”। 1932 में जब उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम॰ए॰ पास किया तब तक उनके दो कविता संग्रह नीहार तथा रश्मि प्रकाशित हो चुके थे। वैवाहिक जीवन सन् 1916 में उनके बाबा श्री बाँके विहारी ने इनका विवाह बरेली के पास नबाव गंज कस्बे के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया, जो उस समय दसवीं कक्षा के विद्यार्थी थे। श्री वर्मा इण्टर करके लखनऊ मेडिकल कॉलेज में बोर्डिंग हाउस में रहने लगे। महादेवी जी उस समय क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद के छात्रावास में थीं। श्रीमती महादेवी वर्मा को विवाहित जीवन से विरक्ति थी। कारण कुछ भी रहा हो पर श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कोई वैमनस्य नहीं था। सामान्य स्त्री-पुरुष के रूप में उनके सम्बन्ध मधुर ही रहे। दोनों में कभी-कभी पत्राचार भी होता था। यदा-कदा श्री वर्मा इलाहाबाद में उनसे मिलने भी आते थे। श्री वर्मा ने महादेवी जी के कहने पर भी दूसरा विवाह नहीं किया। महादेवी जी का जीवन तो एक संन्यासिनी का जीवन था। उन्होंने जीवन भर श्वेत वस्त्र पहना, तख्त पर सोईं और कभी शीशा नहीं देखा। सन् 1966 में पति की मृत्यु के बाद वे स्थायी रूप से इलाहाबाद में रहने लगीं। कार्यक्षेत्र महादेवी का कार्यक्षेत्र लेखन, सम्पादन और अध्यापन रहा। उन्होंने इलाहाबाद में प्रयाग महिला विद्यापीठ के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। यह कार्य अपने समय में महिला-शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम था। इसकी वे प्रधानाचार्य एवं कुलपति भी रहीं। 1923 में उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका ‘चाँद’ का कार्यभार संभाला। १९३० में नीहार, १९३२ में रश्मि, १९३४ में नीरजा, तथा १९३६ में सांध्यगीत नामक उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए। १९३९ में इन चारों काव्य संग्रहों को उनकी कलाकृतियों के साथ वृहदाकार में यामा शीर्षक से प्रकाशित किया गया। उन्होंने गद्य, काव्य, शिक्षा और चित्रकला सभी क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किये। इसके अतिरिक्त उनकी 18 काव्य और गद्य कृतियां हैं जिनमें मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, शृंखला की कड़ियाँ और अतीत के चलचित्र प्रमुख हैं। सन १९५५ में महादेवी जी ने इलाहाबाद में साहित्यकार संसद की स्थापना की और पं इलाचंद्र जोशी के सहयोग से साहित्यकार का सम्पादन संभाला। यह इस संस्था का मुखपत्र था। उन्होंने भारत में महिला कवि सम्मेलनों की नीव रखी। इस प्रकार का पहला अखिल भारतवर्षीय कवि सम्मेलन 15 अप्रैल 1933 को सुभद्रा कुमारी चौहान की अध्यक्षता में प्रयाग महिला विद्यापीठ में सम्पन्न हुआ। वे हिन्दी साहित्य में रहस्यवाद की प्रवर्तिका भी मानी जाती हैं। महादेवी बौद्ध पन्थ से बहुत प्रभावित थीं। महात्मा गांधी के प्रभाव से उन्होंने जनसेवा का व्रत लेकर झूसी में कार्य किया और भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया। 1936]] में नैनीताल से 25 किलोमीटर दूर रामगढ़ कसबे के उमागढ़ नामक गाँव में महादेवी वर्मा ने एक बंगला बनवाया था। जिसका नाम उन्होंने मीरा मन्दिर रखा था। जितने दिन वे यहाँ रहीं इस छोटे से गाँव की शिक्षा और विकास के लिए काम करती रहीं। विशेष रूप से महिलाओं की शिक्षा और उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए उन्होंने बहुत काम किया। आजकल इस बंगले को महादेवी साहित्य संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। शृंखला की कड़ियाँ में स्त्रियों की मुक्ति और विकास के लिए उन्होंने जिस साहस व दृढ़ता से आवाज़ उठाई हैं और जिस प्रकार सामाजिक रूढ़ियों की निन्दा की है उससे उन्हें महिला मुक्तिवादी भी कहा गया। महिलाओं व शिक्षा के विकास के कार्यों और जनसेवा के कारण उन्हें समाज-सुधारक भी कहा गया है। उनके सम्पूर्ण गद्य साहित्य में पीड़ा या वेदना के कहीं दर्शन नहीं होते बल्कि अदम्य रचनात्मक रोष समाज में बदलाव की अदम्य आकांक्षा और विकास के प्रति सहज लगाव परिलक्षित होता है। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद नगर में बिताया। 11 सितम्बर 1987 को इलाहाबाद में रात 9 बजकर 30 मिनट पर उनका देहांत हो गया। प्रमुख कृतियाँ महादेवी जी कवयित्री होने के साथ-साथ विशिष्ट गद्यकार भी थीं। उनकी कृतियाँ इस प्रकार हैं। कविता संग्रह श्रीमती महादेवी वर्मा के अन्य अनेक काव्य संकलन भी प्रकाशित हैं, जिनमें उपर्युक्त रचनाओं में से चुने हुए गीत संकलित किये गये हैं, जैसे आत्मिका, परिक्रमा, सन्धिनी (१९६५), यामा (१९३६), गीतपर्व, दीपगीत, स्मारिका, नीलांबरा और आधुनिक कवि महादेवी आदि। महादेवी वर्मा का गद्य साहित्य रेखाचित्र: अतीत के चलचित्र (१९४१) और स्मृति की रेखाएं (१९४३), संस्मरण: पथ के साथी (१९५६) और मेरा परिवार (१९७२) और संस्मरण (१९८३) चुने हुए भाषणों का संकलन: संभाषण (१९७४) निबंध: शृंखला की कड़ियाँ (१९४२), विवेचनात्मक गद्य (१९४२), साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध (१९६२), संकल्पिता (१९६९) ललित निबंध: क्षणदा (१९५६) कहानियाँ: गिल्लू संस्मरण, रेखाचित्र और निबंधों का संग्रह: हिमालय (१९६३), अन्य निबंध में संकल्पिता तथा विविध संकलनों में स्मारिका, स्मृति चित्र, संभाषण, संचयन, दृष्टिबोध उल्लेखनीय हैं। वे अपने समय की लोकप्रिय पत्रिका ‘चाँद’ तथा ‘साहित्यकार’ मासिक की भी सम्पादक रहीं। हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने प्रयाग में ‘साहित्यकार संसद’ और रंगवाणी नाट्य संस्था की भी स्थापना की। महादेवी वर्मा का बाल साहित्य महादेवी वर्मा की बाल कविताओं के दो संकलन छपे हैं। ठाकुरजी भोले हैं आज खरीदेंगे हम ज्वाला समालोचना आधुनिक गीत काव्य में महादेवी जी का स्थान सर्वोपरि है। उनकी कविता में प्रेम की पीर और भावों की तीव्रता वर्तमान होने के कारण भाव, भाषा और संगीत की जैसी त्रिवेणी उनके गीतों में प्रवाहित होती है वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। महादेवी के गीतों की वेदना, प्रणयानुभूति, करुणा और रहस्यवाद काव्यानुरागियों को आकर्षित करते हैं। पर इन रचनाओं की विरोधी आलोचनाएँ सामान्य पाठक को दिग्भ्रमित करती हैं। आलोचकों का एक वर्ग वह है, जो यह मानकर चलते हैं कि महादेवी का काव्य नितान्त वैयक्तिक है। उनकी पीड़ा, वेदना, करुणा, कृत्रिम और बनावटी है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल जैसे मूर्धन्य आलोचकों ने उनकी वेदना और अनुभूतियों की सच्चाई पर प्रश्न चिह्न लगाया है — दूसरी ओर आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जैसे समीक्षक उनके काव्य को समष्टि परक मानते हैं। शोमेर ने ‘दीप’ (नीहार), मधुर मधुर मेरे दीपक जल (नीरजा) और मोम सा तन गल चुका है कविताओं को उद्धृत करते हुए निष्कर्ष निकाला है कि ये कविताएं महादेवी के ‘आत्मभक्षी दीप’ अभिप्राय को ही व्याख्यायित नहीं करतीं बल्कि उनकी कविता की सामान्य मुद्रा और बुनावट का प्रतिनिधि रूप भी मानी जा सकती हैं। सत्यप्रकाश मिश्र छायावाद से संबंधित उनकी शास्त्र मीमांसा के विषय में कहते हैं ― “महादेवी ने वैदुष्य युक्त तार्किकता और उदाहरणों के द्वारा छायावाद और रहस्यवाद के वस्तु शिल्प की पूर्ववर्ती काव्य से भिन्नता तथा विशिष्टता ही नहीं बतायी, यह भी बताया कि वह किन अर्थों में मानवीय संवेदन के बदलाव और अभिव्यक्ति के नयेपन का काव्य है। उन्होंने किसी पर भाव साम्य, भावोपहरण आदि का आरोप नहीं लगाया केवल छायावाद के स्वभाव, चरित्र, स्वरूप और विशिष्टता का वर्णन किया।” प्रभाकर श्रोत्रिय जैसे मनीषी का मानना है कि जो लोग उन्हें पीड़ा और निराशा की कवयित्री मानते हैं वे यह नहीं जानते कि उस पीड़ा में कितनी आग है जो जीवन के सत्य को उजागर करती है। यह सच है कि महादेवी का काव्य संसार छायावाद की परिधि में आता है, पर उनके काव्य को उनके युग से एकदम असम्पृक्त करके देखना, उनके साथ अन्याय करना होगा। महादेवी एक सजग रचनाकार हैं। बंगाल के अकाल के समय १९४३ में इन्होंने एक काव्य संकलन प्रकाशित किया था और बंगाल से सम्बंधित “बंग भू शत वंदना” नामक कविता भी लिखी थी। इसी प्रकार चीन के आक्रमण के प्रतिवाद में हिमालय नामक काव्य संग्रह का सम्पादन किया था। यह संकलन उनके युगबोध का प्रमाण है। गद्य साहित्य के क्षेत्र में भी उन्होंने कम काम नहीं किया। उनका आलोचना साहित्य उनके काव्य की भांति ही महत्वपूर्ण है। उनके संस्मरण भारतीय जीवन के संस्मरण चित्र हैं। उन्होंने चित्रकला का काम अधिक नहीं किया फिर भी जलरंगों में ‘वॉश’ शैली से बनाए गए उनके चित्र धुंधले रंगों और लयपूर्ण रेखाओं का कारण कला के सुंदर नमूने समझे जाते हैं। उन्होंने रेखाचित्र भी बनाए हैं। दाहिनी ओर करीन शोमर की क़िताब के मुखपृष्ठ पर महादेवी द्वारा बनाया गया रेखाचित्र ही रखा गया है। उनके अपने कविता संग्रहों यामा और दीपशिखा में उनके रंगीन चित्रों और रेखांकनों को देखा जा सकता है। पुरस्कार व सम्मान उन्हें प्रशासनिक, अर्धप्रशासनिक और व्यक्तिगत सभी संस्थाओँ से पुरस्कार व सम्मान मिले। 1943 में उन्हें ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ एवं ‘भारत भारती’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद 1952 में वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत की गयीं। 1956 में भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवा के लिये ‘पद्म भूषण’ की उपाधि दी। 1971 में साहित्य अकादमी की सदस्यता ग्रहण करने वाली वे पहली महिला थीं। 1988 में उन्हें मरणोपरांत भारत सरकार की पद्म विभूषण उपाधि से सम्मानित किया गया। सन 1969 में विक्रम विश्वविद्यालय, 1977 में कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल, 1980 में दिल्ली विश्वविद्यालय तथा 1984 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने उन्हें डी.लिट की उपाधि से सम्मानित किया। इससे पूर्व महादेवी वर्मा को ‘नीरजा’ के लिये 1934 में ‘सक्सेरिया पुरस्कार’, 1942 में ‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये ‘द्विवेदी पदक’ प्राप्त हुए। ‘यामा’ नामक काव्य संकलन के लिये उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। वे भारत की 50 सबसे यशस्वी महिलाओं में भी शामिल हैं। 1968 में सुप्रसिद्ध भारतीय फ़िल्मकार मृणाल सेन ने उनके संस्मरण ‘वह चीनी भाई’ पर एक बांग्ला फ़िल्म का निर्माण किया था जिसका नाम था नील आकाशेर नीचे। 16 सितंबर 1991 को भारत सरकार के डाकतार विभाग ने जयशंकर प्रसाद के साथ उनके सम्मान में 2 रुपये का एक युगल टिकट भी जारी किया है। महादेवी वर्मा का योगदान साहित्य में महादेवी वर्मा का आविर्भाव उस समय हुआ जब खड़ीबोली का आकार परिष्कृत हो रहा था। उन्होंने हिन्दी कविता को बृजभाषा की कोमलता दी, छंदों के नये दौर को गीतों का भंडार दिया और भारतीय दर्शन को वेदना की हार्दिक स्वीकृति दी। इस प्रकार उन्होंने भाषा साहित्य और दर्शन तीनों क्षेत्रों में ऐसा महत्त्वपूर्ण काम किया जिसने आनेवाली एक पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया। शचीरानी गुर्टू ने भी उनकी कविता को सुसज्जित भाषा का अनुपम उदाहरण माना है। उन्होंने अपने गीतों की रचना शैली और भाषा में अनोखी लय और सरलता भरी है, साथ ही प्रतीकों और बिंबों का ऐसा सुंदर और स्वाभाविक प्रयोग किया है जो पाठक के मन में चित्र सा खींच देता है। छायावादी काव्य की समृद्धि में उनका योगदान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। छायावादी काव्य को जहाँ प्रसाद ने प्रकृतितत्त्व दिया, निराला ने उसमें मुक्तछंद की अवतारणा की और पंत ने उसे सुकोमल कला प्रदान की वहाँ छायावाद के कलेवर में प्राण-प्रतिष्ठा करने का गौरव महादेवी जी को ही प्राप्त है। भावात्मकता एवं अनुभूति की गहनता उनके काव्य की सर्वाधिक प्रमुख विशेषता है। हृदय की सूक्ष्मातिसूक्ष्म भाव-हिलोरों का ऐसा सजीव और मूर्त अभिव्यंजन ही छायावादी कवियों में उन्हें ‘महादेवी’ बनाता है। वे हिन्दी बोलने वालों में अपने भाषणों के लिए सम्मान के साथ याद की जाती हैं। उनके भाषण जन सामान्य के प्रति संवेदना और सच्चाई के प्रति दृढ़ता से परिपूर्ण होते थे। वे दिल्ली में 1983 में आयोजित तीसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन के समापन समारोह की मुख्य अतिथि थीं। इस अवसर पर दिये गये उनके भाषण में उनके इस गुण को देखा जा सकता है। यद्यपि महादेवी ने कोई उपन्यास, कहानी या नाटक नहीं लिखा तो भी उनके लेख, निबंध, रेखाचित्र, संस्मरण, भूमिकाओं और ललित निबंधों में जो गद्य लिखा है वह श्रेष्ठतम गद्य का उत्कृष्ट उदाहरण है। उसमें जीवन का सम्पूर्ण वैविध्य समाया है। बिना कल्पना और काव्यरूपों का सहारा लिए कोई रचनाकार गद्य में कितना कुछ अर्जित कर सकता है, यह महादेवी को पढ़कर ही जाना जा सकता है। उनके गद्य में वैचारिक परिपक्वता इतनी है कि वह आज भी प्रासंगिक है। समाज सुधार और नारी स्वतंत्रता से संबंधित उनके विचारों में दृढ़ता और विकास का अनुपम सामंजस्य मिलता है। सामाजिक जीवन की गहरी परतों को छूने वाली इतनी तीव्र दृष्टि, नारी जीवन के वैषम्य और शोषण को तीखेपन से आंकने वाली इतनी जागरूक प्रतिभा और निम्न वर्ग के निरीह, साधनहीन प्राणियों के अनूठे चित्र उन्होंने ही पहली बार हिंदी साहित्य को दिये। मौलिक रचनाकार के अलावा उनका एक रूप सृजनात्मक अनुवादक का भी है जिसके दर्शन उनकी अनुवाद-कृत ‘सप्तपर्णा’ (१९६०) में होते हैं। अपनी सांस्कृतिक चेतना के सहारे उन्होंने वेद, रामायण, थेरगाथा तथा अश्वघोष, कालिदास, भवभूति एवं जयदेव की कृतियों से तादात्म्य स्थापित करके ३९ चयनित महत्वपूर्ण अंशों का हिन्दी काव्यानुवाद इस कृति में प्रस्तुत किया है। आरम्भ में ६१ पृष्ठीय ‘अपनी बात’ में उन्होंने भारतीय मनीषा और साहित्य की इस अमूल्य धरोहर के सम्बंध में गहन शोधपूर्ण विमर्ष किया है जो केवल स्त्री-लेखन को ही नहीं हिंदी के समग्र चिंतनपरक और ललित लेखन को समृद्ध करता है। इन्हें भी देखें हिंदी साहित्य छायावादी युग आधुनिक हिंदी गद्य का इतिहास महादेवी वर्मा की रचनाएँ टीका-टिप्पणी    क.    छायावाद के अन्य तीन स्तंभ हैं, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और सुमित्रानंदन पंत।    ख.    हिंदी के विशाल मन्दिर की वीणापाणी, स्फूर्ति चेतना रचना की प्रतिमा कल्याणी ―निराला    ग.    उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी को कोमलता और मधुरता से संसिक्त कर सहज मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का द्वार खोला, विरह को दीपशिखा का गौरव दिया और व्यष्टि मूलक मानवतावादी काव्य के चिंतन को प्रतिष्ठापित किया। उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। ―निशा सहगल    घ.    “इस वेदना को लेकर उन्होंने हृदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने रखी हैं, जो लोकोत्तर हैं। कहाँ तक ये वास्तविक अनुभूतियाँ हैं और कहाँ तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना, यह नहीं कहा जा सकता।” ―आचार्य रामचंद्र शुक्ल    ङ.    “महादेवी का ‘मैं’ सन्दर्भ भेद से सबका नाम है।” सच्चाई यह है कि महादेवी व्यष्टि से समष्टि की ओर जाती हैं। उनकी पीड़ा, वेदना, करुणा और दुखवाद में विश्व की कल्याण कामना निहित है। ―हज़ारी प्रसाद द्विवेदी    च.    वस्तुत: महादेवी की अनुभूति और सृजन का केंद्र आँसू नहीं आग है। जो दृश्य है वह अन्तिम सत्य नहीं है, जो अदृश्य है वह मूल या प्रेरक सत्य है। महादेवी लिखती हैं: “आग हूँ जिससे ढुलकते बिन्दु हिमजल के” और भी स्पष्टता की माँग हो तो ये पंक्तियाँ देखें: मेरे निश्वासों में बहती रहती झंझावात/आँसू में दिनरात प्रलय के घन करते उत्पात/कसक में विद्युत अंतर्धान। ये आँसू सहज सरल वेदना के आँसू नहीं हैं, इनके पीछे जाने कितनी आग, झंझावात प्रलय-मेघ का विद्युत-गर्जन, विद्रोह छिपा है। ―प्रभाकर श्रोत्रिय    छ.    महादेवी जी की कविता सुसज्जित भाषा का अनुपम उदाहरण है ―शचीरानी गुर्टू    ज.    महादेवी के प्रगीतों का रूप विन्यास, भाषा, प्रतीक-बिंब लय के स्तर पर अद्भुत उपलब्धि कहा जा सकता है। ―कृष्णदत्त पालीवाल    झ.    एक महादेवी ही हैं जिन्होंने गद्य में भी कविता के मर्म की अनुभूति कराई और ‘गद्य कवीतां निकषं वदंति’ उक्ति को चरितार्थ किया है। विलक्षण बात तो यह है कि न तो उन्होंने उपन्यास लिखा, न कहानी, न ही नाटक फिर भी श्रेष्ठ गद्यकार हैं। उनके ग्रंथ लेखन में एक ओर रेखाचित्र, संस्मरण या फिर यात्रावृत्त हैं तो दूसरी ओर सम्पादकीय, भूमिकाएँ, निबंध और अभिभाषण, पर सबमें जैसे सम्पूर्ण जीवन का वैविध्य समाया है। बिना कल्पनाश्रित काव्य रूपों का सहारा लिए कोई रचनाकार गद्य में इतना कुछ अर्जित कर सकता है, यह महादेवी को पढ़कर ही जाना जा सकता है। ―रामजी पांडेय    ञ.    महादेवी का गद्य जीवन की आँच में तपा हुआ गद्य है। निखरा हुआ, निथरा हुआ गद्य है। 1956 में लिखा हुआ उनका गद्य आज 50 वर्ष बाद भी प्रासंगिक है। वह पुराना नहीं पड़ा है। ―राजेन्द्र उपाध्याय सन्दर्भ ग्रन्थसूची । । । । । । । । बाहरी कड़ियाँ जीवनी और निबंध संस्मरण विविध </div> महादेवी वर्मा हिन्दी गद्यकार हिन्दी कवयित्रियाँ प्रयागराज ज्ञानपीठ सम्मानित द्विवेदी पदक भारत भारती मंगला प्रसाद पुरस्कार १९५६ पद्म भूषण फ़र्रूख़ाबाद के हिन्दी कवि भारतीय महिला साहित्यकार इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र साहित्य अकादमी फ़ैलोशिप से सम्मानित‎ साहित्य और शिक्षा में पद्म विभूषण के प्राप्तकर्ता
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संस्कृत आयोग
प्रथम संस्कृत आयोग भारत सरकार ने प्रथम संस्कृत आयोग की 1956 में संस्कृत आयोग की स्थापना की थी। प्रोफेसर सुनीति कुमार चटर्जी को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने एक रिपोर्ट तैयार की जो साहित्य तथा कला कृति है। संस्कृत आयोग ने संस्कृत के विविध आयामों पर विस्तृत प्रकाश डाला। द्वितीय संस्कृत आयोग द्वितीय संस्कृत आयोग का गठन 58 साल बाद २०१४ में किया गया और इसे यूपीए-2 सरकार ने लोकसभा चुनाव के कुछ पहले ही गठित किया था। इसके अध्यक्ष पद्मभूषण सत्यव्रत शास्त्री थे। संस्कृत भाषा के सभी स्वरूपों की मौजूदा स्थिति का मूल्यांकन करने और पारम्परिक संस्कृत ज्ञान को आधुनिक शिक्षा प्रणाली से जोड़ने के लिये दूसरे संस्कृत आयोग का गठन किया गया था। प्राचीन भारत में वैज्ञानिक उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए आयोग ने भाषा के उन्नयन के लिए कई सिफारिशें की हैं। आयोग ने अपनी 460 पृष्ठों की अंतिम रिपोर्ट मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सौंप दी है। प्रमुख संस्तुतियाँ 13 सदस्यीय पैनल ने स्कूली शिक्षा में चार भाषा फार्मूले को लागू करने का भी सुझाव दिया है। इसके तहत कक्षा 6 से 10 तक संस्कृत की पढ़ाई को अनिवार्य विषय बनाने की सिफारिश की गई है। विशेष प्रयोगशालाएं स्थापित करने की भी सिफारिश की गई है, जहां वैज्ञानिक और विद्वान साथ-साथ बैठकर प्राचीन भारत के वैदिक यज्ञों, वैदिक यज्ञ की राख के उपचारात्मक गुण, वर्षा आदि विश्वासों का परीक्षण कर सकें। सभी वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी संस्थाओं में संस्कृत पेपर को अनिवार्य किया जाए। सभी संकायों में संस्कृत अध्यापकों की नियुक्ति की जाए। जैसा कि इस आयोग ने सिफारिश की है कि कक्षा 6 से 10 तक संस्कृत की पढ़ाई को अनिवार्य विषय बनाया जाए, लेकिन इस पर केन्द्र सरकार कह चुकी है स्कूलों में 10वीं कक्षा तक संस्कृत भाषा को अनिवार्य विषय बनाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। केन्द्र सरकार नई दिल्ली के राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, तिरुपति के राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली के लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ और उज्जैन के महर्षि संदिपनी राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान जैसे विश्वविद्यालयों के माध्यम से संस्कृत भाषा, साहित्य और दुर्लभ शास्त्रों के परिरक्षण, प्रसार, संरक्षण और विकास के सभी उपाय कर रही है। राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के तहत 21 आदर्श संस्कृत महाविद्यालय, चार आदर्श शोध संस्थान, 11 परिसर और महर्षि सांदिपनी राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान के अधीन 73 वैदिक पाठशालाएं हैं जिन्हें वित्तीय सहायता दी जाती है। इसके अलावा संस्कृत के प्रख्यात विद्वानों के सम्मान के लिये सम्मान प्रमाण-पत्र और संस्कृत के युवा विद्वानों के सम्मान के लिये महर्षि वादरायण व्यास सम्मान की योजना चल रही है। इस योजना के तहत अप्रवासी भारतीय या विदेशी नागरिक के लिये एक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी समाविष्ट किया गया है। बाहरी कड़ियाँ संस्कृत आयोग की रपट (अंग्रेजी) द्वितीय संस्कृत आयोग की संस्तुतियाँ संस्कृत आयोग का प्रतिवेदन १९५६-५७ संस्कृत
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पतंगा
शलभ, पतंगा या परवाना तितली जैसा एक कीट होता है। जीवविज्ञान श्रेणीकरण के हिसाब से तितलियाँ और पतंगे दोनों 'लेपीडोप्टेरा' वर्ग के प्राणी होते हैं। पतंगों की १.६ लाख से ज़्यादा क़िस्में (स्पीशीयाँ) ज्ञात हैं, जो तितलियों की क़िस्मों से लगभग १० गुना हैं। वैज्ञानिकों ने पतंगों और तितलियों को अलग बतलाने के लिए ठोस अंतर समझने का प्रयत्न किया है लेकिन यह सम्भव नहीं हो पाया है। अंत में यह बात स्पष्ट हुई है कि तितलियाँ वास्तव में रंग-बिरंगे पतंगों का एक वर्ग है जो भिन्न नज़र आने की वजह से एक अलग श्रेणी समझी जाने लगी हैं। अधिकतर पतंगे निशाचरता दिखलाते हैं (यानी रात को सक्रीय होते हैं), हालाँकि दिन में सक्रीय पतंगों की भी कई जातियाँ हैं। रोशनी के लिए आकर्षण मनुष्य हमेशा से पतंगों का आग और अन्य रोशनियों के साथ आकर्षण-जैसा लगने वाला व्यवहार देखते आये हैं। पतंगों की इन हरकतों के लिए वैज्ञानिकों ने दो सम्भव कारण बताए हैं: पतंगे उड़ते हुए चाँद की रोशनी का प्रयोग करते हैं। धरती के प्राणियों को अपने से बहुत दूर स्थित चाँद एक ही जगह नज़र आता है, जिस वजह से उड़ते हुए पतंगों को और चलते हुए मनुष्यों को चाँद अपने साथ-साथ चलता हुआ प्रतीत होता है। इस वजह से अगर कोई चलते हुए चाँद को अगर अपने से ठीक एक ही दिशा में रखे तो वह एक लकीर में बिलकुल सीधा चलेगा। इसी तरह पतंगे उड़ते हुए चाँद को अपने से एक ही दिशा में रखते हैं। पृथ्वी पर करोड़ों सालों से यह व्यवस्था उनको लाभ दे रही है। मानवी सभ्यता के साथ यह बदल गया। अब बहुत से कृत्रिम रोशनी के स्रोत हैं। लेकिन अगर कोई पतंगा किसी दिये को चाँद की जगह प्रयोग करते हुए उसे अपने से एक ही दिशा में रखता है तो सीधा उड़ने की बजाए वास्तव में उसके गोल-गोल उड़ता रहता है। उसे देखने वाले मनुष्यों को लगता है कि किसी रोशनी के पास चकराता हुआ यह पतंगा रोशनी से आकर्षित हो रहा है। कुछ मादा पतंगे अपने शरीर पर ऐसे रसायन बनातीं हैं जिस से अवरक्त प्रकाश (इंफ़्रारेड) उत्पन्न होता है। इस से नर पतंगे आकर्षित होते हैं। ठीक ऐसा ही अवरक्त प्रकाश आग से आता है, जिस कारणवश नर पतंगे दीयों-मोमबत्तियों से आकर्षित होते हैं। भारतीय लोक-संस्कृति में भारतीय उपमहाद्वीप की लोक संस्कृति में परवानों (पतंगों) के शमा (दिये) के लिए बेबस आकर्षण की तुलना अक्सर किसी प्रेमी की अपनी प्रेमिका के लिए आकर्षण से की गई है। इसपर अनगिनत कवितायेँ लिखी गई हैं और गाने बने हैं, मसलन: शम्मा कहे परवाने से, परे चला जा, मेरी तरह जल जाएगा, पास नहीं आ फ़िल्म: 'कटी पतंग', गाना: 'प्यार दीवाना होता है' वो अनजाना ढूंढती हूँ, वो दीवाना ढूंढती हूँ, जलाकर जो छुप गया है, वो परवाना ढूंढती हूँ फ़िल्म: 'तीसरी मंज़िल', गाना: 'ओ हसीना ज़ुल्फ़ों वाली' उड़ ना जाए कभी क्या पता कोई भँवरा मुझे लूट के, भँवरा नहीं है मेरा नाम है परवाना फ़िल्म: 'जब प्यार किसी से होता है', गाना: 'ओ जान ना जाना' इन्हें भी देखें तितली जिप्सी शलभ शल्कपंखी गण (Lepidoptera) सन्दर्भ कीट शायरी शल्कपंखी गण
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%82%E0%A4%9F%E0%A5%80%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A0%E0%A5%8C%E0%A4%B0
बंटी राठौर
बंटी राठौर (जन्म 1 जुलाई 1973) एक भारतीय लेखक और अभिनेता हैं, जो हिंदी फिल्म उद्योग में हैं। उन्हें कई सफल बॉलीवुड फिल्मों जैसे धमाल (2007), ऑल द बेस्ट: फन बिगिन्स (2009), खिलाडी 786 (2012), एक पहेली लीला (2015), यमला पगला दीवाना: फिर से (2018), टोटल धमाल (2019), हैप्पी हार्डी एंड हीर (2020) के लिए जाना जाता है। प्रारंभिक और व्यक्तिगत जीवन राठौर का जन्म मेरठ, उत्तर प्रदेश में तेजेंद्र सिंह राठौर के रूप में हुआ था। उन्होंने चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ से पढ़ाई की। राठौर ने 2004 में मोनिका राठौर से शादी की। उनके 2 बच्चे हैं 2007 में बेटा वत्सल राठौर और 2011 में बेटी कनक राठौर। सन्दर्भ भारतीय लेखक 1973 में जन्मे लोग जीवित लोग भारतीय अभिनेता
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बामनदास बसु
वामन दास बसु (1867-1930) सिविल सर्जन एवं प्रसिद्ध लेखक थे। उन्होंने उस काल में भी अनेकों विषयों पर पुस्तकें लिखी जिनके बारे मे अन्य लोगों ने एक दशक के बाद लेखन तथा शोध किये। श्रीश चंद्र वसु उनके बड़े भाई थे। कृतियाँ ‘द सिद्धान्त कौमुदी ऑफ भट्टोजि दीक्षित’, पाणिनि अफिस, इलाहावाद, ई.सं. १९०४–१९०७) History of education in India under the rule of the East India Company (Modern Review, Kolkata, 1922) Story of Satara (1922) Rise of Christian Power in India (1923) The Colonization of India by Europeans (1925) Ruin of Indian Trade and Industry (1930) The Vedantasutras of Badarayan The Bhakti ratnavali The Brihajjatakam of Varah Mihir इनमें से 'राइज़ ऑफ क्रिश्चियन पॉवर इन इण्डिया' अंग्रेजी शासन के विरोध की भावना से ओतप्रोत है। इसने अपने समय में तहलका मचा दिया था। इसी पुस्तक के आधार पर सुन्दर लाल ने हिन्दी में 'भारत में अंग्रेजी राज' लिखा। इस पुस्तक ने भी तहलका मचाया। स्वदेशी परंपरा के गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के स्नातक एवं इतिहासकार जयचन्द्र विद्यालंकार ने अपनी पुस्तक वामनदास वसु को समर्पित की। वामन दास बसु 1909 से 1919 तक पाणिनि प्रेस से भी जुड़े रहे। इस दौरान 38 पुस्तकें लिखी गयी। इन्होने वेदों का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद भी किया। बाहरी कड़ियाँ The history of British Occupation of India History of education in India under the rule of the East India Company Online Books by Baman Das Basu भारतीय चिकित्सक आर्थिक इतिहासकार
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
जतिन कनकिया
जतिन कनकिया (1952-1999), एक भारतीय अभिनेता थे। कॉमेडी भूमिकाओं के लिए जाने जाने वाले , उनका करियर गुजराती नाटकों, हिंदी टेलीविजन शो और हिंदी बॉलीवुड फिल्मों में काम करने से लेकर था । उनके कौशल और सफलता ने उन्हें "प्रिंस ऑफ कॉमेडी" होने का अनौपचारिक खिताब दिलाया। करियर कनकिया का करियर गुजराती और हिंदी थिएटर में भूमिकाओं के साथ शुरू हुआ, जिसके बाद उनकी पहली प्रमुख टेलीविजन भूमिका कॉमेडी श्रृंखला, श्रीमान श्रीमती में थी , जहाँ उन्होंने केशव कुलकर्णी की मुख्य भूमिका निभाई, जो एक विवाहित, मध्यमवर्गीय गृहस्वामी है, जो एक क्रश विकसित करता है। उनकी फिल्म स्टार पड़ोसी पर, अर्चना पूरन सिंह द्वारा निभाई गई , और उनके पति के साथ प्रतिद्वंद्विता, राकेश बेदी द्वारा निभाई गई , जो बदले में कुलकर्णी की गृहिणी रीमा लागू के लिए तैयार है । राष्ट्रीय टेलीविजन नेटवर्क, दूरदर्शन पर प्रसारित , यह श्रृंखला भारत के सबसे लोकप्रिय टेलीविजन शो में से एक बन गई। कनकिया ने दूरदर्शन पर निर्मित छोटी कॉमेडी श्रृंखला में भी अभिनय किया और अन्य कॉमेडी श्रृंखलाओं में कैमियो की भूमिका निभाई। उन्होंने द्वारा निर्मित कई शो में काम कियाअधिकारी ब्रदर्स प्रोडक्शन कंपनी, साथ ही अन्य उत्पादकों द्वारा। टेलीविजन पर कनकिया की सफलता ने हम साथ साथ हैं जैसी बड़े बजट की हिंदी फिल्मों में छोटी भूमिकाएँ निभाईं । मौत कनकिया का करियर 26 जुलाई 1999 को छोटा हो गया जब 46 साल की उम्र में अग्नाशय के कैंसर से उनकी मृत्यु हो गई। पुरस्कार कनकिया को भारतीय टेलीविजन में उनके योगदान के लिए 2001 में उद्घाटन इंडियन टेली अवार्ड्स में मरणोपरांत सम्मानित किया गया था । फिल्मोग्राफी धारावाहिक मिर्च मसाला कमाल है कमाल (दूरदर्शन) फिल्में संदर्भ बाहरी कड़ियां 1952 में जन्मे लोग १९९९ में निधन हिन्दी अभिनेता
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%B0%20%28%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%95%29
अनवर (गायक)
अनवर हुसैन (उर्दू : انور حَسَین), जिन्हें उनके पहले नाम अनवर के नाम से अधिक जाना जाता है, एक पार्श्व गायक हैं, जिन्होंने गायक मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ के प्रति अपनी आवाज़ के अचेतन रूप से हिंदी पार्श्व उद्योग में प्रसिद्धि हासिल की। उनका आज तक का सबसे लोकप्रिय गीत मनमोहन देसाई निर्देशित अमिताभ बच्चन और शत्रुघ्न सिन्हा -स्टारर नसीब (1981) से "दोस्ती इम्तिहान लेती है", और महेश भट्ट निर्देशित आदित्य पंचोली- अभिनेता साठी 1991 में "ऐसा भी तो वक़्त" हैं। प्रारंभिक वर्ष अनवर का जन्म 1949 में मुंबई में हुआ था; उनके पिता एक कुशल हारमोनियम वादक और प्रसिद्ध गुलाम हैदर के सहायक संगीत निर्देशक थे। उन्हें उस्ताद अब्दुल रहमान खान द्वारा संयोग से प्रशिक्षित किया गया था, संयोग से वही संगीत अकादमी थी जिसने महान पार्श्व गायक महेंद्र कपूर का निर्माण किया था । अनवर ने विभिन्न समारोहों में मोहम्मद रफ़ी के गीत गाना शुरू किया। यह उन संगीत कार्यक्रमों में से एक के दौरान था जिसे अनवर को संगीत निर्देशक कमल राजस्थानी द्वारा देखा गया था, जिसने उन्हें अपनी फिल्म मेरे घर नवाज़ के लिए गाने का मौका दिया। गायन कैरियर 1977 में, हास्य अभिनेता महमूद और संगीत निर्देशक राजेश रोशन ने अनवर को फिल्म जनता हवलदार के लिए गाने के लिए काम पर रखा। प्रसिद्ध अभिनेता राजेश खन्ना के गीत "तेरी आंखें की छत", और "हम का भूल गए" का चित्रण किया गया था। फिल्म और गीत दोनों सुपरहिट थे; इसलिए अनवर को काम और पहचान मिलने लगी। संगीत निर्देशक कमल राजस्थानी का कहना है कि गीत "कसमें हम आपके जान के" के रिकॉर्डिंग सत्र के दौरान, मोहम्मद रफ़ी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अनवर को एक गायक के रूप में वर्णित किया जो उनके बाद उनकी जगह ले सकता था। अनवर ने संगीत निर्देशक खय्याम, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, कल्याणजी आनंदजी से बप्पी लाहिड़ी, अनु मलिक और वर्तमान में दिलीप सेन-समीर सेन के नेतृत्व में राजसी पार्श्व गायिका लता मंगेशकर, आशा भोसले के साथ अलका याज्ञनिक के साथ युगल गीत गाए। तीस साल से अधिक के करियर की अवधि में, अनवर ने फिल्मी गीतों, शास्त्रीय गीतों और समकालीन गज़लों, भजनों, कव्वाली और सूफी गीतों सहित कई प्रकार के गीत गाए। उन्हें राज कपूर के प्रेम रोग में गाने का प्रस्ताव दिया गया, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया। हालाँकि उन्हें सुधा मल्होत्रा ​​के साथ युगल गीत प्यार हो गया का गाना गाने को मिला। मनमोहन देसाई चाहते थे कि वह अमिताभ बच्चन स्टारर मर्द में गाएं, लेकिन बाद में गाने शब्बीर कुमार के पास गए क्योंकि अनवर ने बहुत ज्यादा मांग की। हाल के वर्ष नवंबर 2007 में हिंदुस्तान टाइम्स को दिए एक साक्षात्कार में, उन्होंने आशिकी के रिलीज़ होने के बाद कुमार सानू के उदय का हवाला दिया, जहां उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका जाने का कारण बताया, जहां उन्होंने सैन फ्रांसिस्को और लॉस एंजिल्स में दर्शकों को लाइव शो किया एंजिल्स। 2004 में अनवर ने सहारा चैनल के लोकप्रिय आरकेबी शो पर प्रसारित मेरी आशिकी से पेहले नामक एक एल्बम की रचना की। एल्बम के सभी गाने इस कदर मंत्रमुग्ध कर रहे थे कि कोई भी मोहम्मद रफ़ी के जादू को समझेगा और अनवर की प्रतिभा को सराहेगा। 2007 में उन्होंने कंस्ट्रक्शन बिजनेस में दाखिला लिया। उन्होंने कहा कि वह अपने नवीनतम एल्बम तोहफा की रिहाई की उम्मीद कर रहे थे। वह अपने सौतेले भाई अरशद वारसी और सौतेली बहन आशा सचदेवा के साथ अच्छी स्थिति में नहीं है। उन्हें मुंबई मिरर द्वारा एक नाईट बार में गाकर प्राप्त की गई अल्प आय पर रहने की सूचना मिली थी। 20 नवंबर, 2010 के साक्षात्कार के लिए मुंबई मिरर में प्रकाशित, अनवर को कुछ टीवी शो जैसे कि रश्तन के भंवर में उल्झी नियाती के लिए गाने का प्रस्ताव मिला। उल्लेखनीय गाने फिल्मी गाने "हम से का भूल हुई, जो ये सज़ा हम का मिली" (फ़िल्म: जनता हवलदार, राजेश खन्ना अभिनीत) "एक अकेला मन का पंची" (फिल्म: सरदार) "सोहनी मेरी सोहनी .. रब से ज़ियादा तेरा नाम लेता हूँ" (फिल्म: सोहनी महिवाल, सनी देओल और पूनम ढिल्लन द्वारा अभिनीत) "ये प्यार तो कुछ कुछ होता है" (फिल्म: प्रेम रोग, ऋषि कपूर अभिनीत) (यह विशेष गीत उन्होंने पुराने समय की गायिका सुधा मल्होत्रा ​​के साथ गाया था, और अनवर की बहन आशा सचदेव पर चित्रित किया गया था।) "नज़र से फूल चुनती है" (फ़िल्म: अहिस्ता अहिस्ता) "यूं ज़ेहर ज़िन्दगी का" (फ़िल्म: सलाम ए मोहब्बत (1983), तबरेज़ और फरीदा जलाल अभिनीत) "मोहब्बत अब तिजारात" (फिल्म: अरपन, जीतेंद्र अभिनीत) "रब ने बनाया मुजे तेरे लीये" (फिल्म: हीर रांझा, अनिल कपूर अभिनीत) "जिंदगी इम्तिहान लेती है" (फिल्म: नसीब, अमिताभ बच्चन अभिनीत) "हाथों की चंद लकीरों का" (फिल्म: विधाता, जिसमें दिलीप कुमार अभिनीत हैं) "शायर बना दीया" (फ़िल्म: ये इश्क नहीं अहसन, ऋषि कपूर अभिनीत) "ऐसा भी देखो वक़्त" (फ़िल्म: साठी, आदित्य पंचोली अभिनीत) अन्य चयनित हिट गाने "चांद से फूल तलक" (फिल्म: जान-ए-वफ़ा) "ये हुस्न ये शबाब" (फिल्म: शिव चरण) "मेरे ख्याल की रहगुजर" (फिल्म: ये इश्क नहीं आसन) "मौसम मौसम प्यारा मौसम" (फिल्म: थोडिसी बेवाफाई) "एक पल हसना" (फिल्म: बहार आ गई तो) "हुज़ूर आप ये तोफ़ा" (फ़िल्म: घर का सुख "कहाँ जाते हो रुक जाओ" (फिल्म: दूल्हा बिकता है) "ओ साथी रे" (फिल्म: कोबरा) "मैने ज़मीन पर चांद" (फिल्म: परबत के पार) "दिल तो गया है अपना" (फ़िल्म: अनोखा इन्सान) "रुक जा साथी" (दरवाजा देश ) "उताओ जाने मस्ती में" (फिल्म: बेशक) "कैसी सोरात" (फिल्म: आवारा जिंदगी) "ओ जाने जाना जाना" (फिल्म: प्रतिगृह) "मेन तेरे पास हूं" (फिल्म: डू डिसेन ) "लागी रे मेहंदी" (फिल्म: मक्कार) "जब आयेंगे पल कभी" (फिल्म: युदपथ) "ये सफ़र भी कितना सुहाना है" (फ़िल्म: सावल) "एक ताज महल दिल में" (फिल्म: कसक ) "तुमन झमगटा आशिको का" (फिल्म: पड़ोसी की बीवी "हम उन्की आरज़ू में" (फ़िल्म: नूर ए इलही) "दिल दिवानो का डोला" (फिल्म: तहलका) "मुख्य फ़कीर इश्क़ मेरा" (फ़िल्म: इश्क ख़ुदा है) "अगवा हवा मिट्टी और पानी" (फिल्म: हीर रांझा) "जा मेरी दी लाडली" (पंजाबी फिल्म: सरपंच) "एक गल दास मैनु बोतल" (पंजाबी फिल्म: सरपंच) "कोई परदेसी आया परदेस में " (फिल्म: हम हैं लाजवाब) चयनित शास्त्रीय ग़ज़लें बहार आयी है भरदे आप का ऐतबार कौन करे तर्क--ए-मोहब्बत तू ही अपना हाथ से फूल सी सोरत चुनिंदा समकालीन ग़ज़लें लब पे तेरे इक़रार ए मोहब्बत ये काफ़्स हाय मुजको अज़ीज़ है जाबसे करैब होके चले गदियं गीनते दिन बीते समकालीन ग़ज़ल एल्बम नगमा महबूब मेरे तोहफा सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक साइट मुहम्मद रफ़ी की याद में। Keeping his master's voice alive 1949 में जन्मे लोग जीवित लोग बॉलीवुड गायक भारतीय फ़िल्मी गायक भारतीय मुस्लिम मुम्बई के गायक
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हव्वा हनीम
हव्वा हनीम या ईवा डे विट्रे-मेयेरोविच (अंग्रेज़ी:Eva de Vitray-Meyerovitch) (जन्म: 5 नवंबर 1909) इस्लाम की एक फ्रांसीसी विद्वान, सेंटर नेशनल डे ला रीचर्चे साइंटिफ़िक (CNRS) के एक शोधकर्ता, अनुवादक और लेखक थी, जिन्होंने कुल चालीस पुस्तकें प्रकाशित कीं और कई लेख। वह सूफी गुरु हमजा अल कादिरी अल बौचिची की शिष्या थीं। फ्रांस की मुक्ति के बाद, ईवा सीएनआरएस में शामिल हो गईं, जहां वह जल्द ही मानव विज्ञान विभाग की निदेशक बन गईं। उल्लेखनीय ईवा ने कवि और लेखक मुहम्मद इकबाल की पुस्तक द रिकंस्ट्रक्शन ऑफ रिलिजियस थॉट इन इस्लाम के माध्यम से इस्लाम की खोज की। तीन साल तक सोरबोन में ईसाई व्याख्या का अध्ययन करने के बाद, उसने मुस्लिम बनने का फैसला किया। उसने अरबी नाम हनीम रख लिया, जो उसके ईसाई नाम का अनुवाद है। ईवा को फारसी कवि जलाल उद दीन रूमी (1207-1273) के काम में बहुत दिलचस्पी थी, जिसके माध्यम से वह इस्लाम, सूफीवाद के रहस्यमय पहलू से अवगत हुई। इसके बाद, उसने फ़ारसी सीखना शुरू किया। इसके तुरंत बाद, उन्होंने मुहम्मद इकबाल और रूमी के अपने पहले अनुवाद फ्रेंच में प्रकाशित किए। 1968 में, ईवा ने जलाल उद दीन रूमी के काम में रहस्यमय विषयों पर पेरिस विश्वविद्यालय में अपने डॉक्टरेट शोध प्रबंध का बचाव किया।1969 से 1973 तक, उन्होंने काहिरा में अल-अजहर विश्वविद्यालय में पढ़ाया। 1971 में, उन्होंने मक्का की तीर्थ यात्रा की और मदीना का भी दौरा किया।1972 से अपनी मृत्यु तक, उन्होंने नियमित रूप से रूमी के लेखन और इस्लाम, सूफीवाद और भंवर दरवेशों पर लिखे गए कार्यों के एनोटेट अनुवाद प्रकाशित किए।1990 में, उन्होंने रूमी की मसनवी का अपना अनुवाद प्रकाशित किया1,700 पृष्ठों में 50,000 छंदों का एक विशाल काम, पहली बार फ्रेंच में अनुवादित। 1985 में मोरक्को में स्कली के माध्यम से, वह एक जीवित सूफी आध्यात्मिक मार्गदर्शक, हमजा अल कादिरी अल बौचिची से मिलीं , जिनकी शिक्षा का वह अपनी मृत्यु तक पालन करेंगी। [21] वह रूमी, इस्लाम और सूफीवाद पर फ्रांस और विदेशों में एक वक्ता के रूप में भी सक्रिय थीं। इसके अलावा, उसने फ्रांस संस्कृति और टेलीविजन के लिए कई कार्यक्रम रिकॉर्ड किए । मृत्यू ईवा डे विट्रे-मेयेरोविच की मृत्यु 24 जुलाई, 1999 को पेरिस में रुए क्लाउड-बर्नार्ड के उनके अपार्टमेंट में हुई थी। उन्हें पेरिस क्षेत्र के थिएस में एक निजी समारोह में दफनाया गया था । तुर्की में अपने अंतिम सम्मेलन के दौरान, उन्होंने कोन्या में दफन होने की इच्छा व्यक्त की थी। 2003 में, उसके अवशेषों को कोन्या में स्थानांतरित करने के लिए कदम उठाए गए थे, जिसे 2008 में अंतिम रूप दिया गया था। 17 नवंबर, 2008 को कोन्या में विटरे-मेयरोविच के ताबूत को दफनाने के साथ एक आधिकारिक समारोह हुआ। उसकी कब्र जलाल उद दीन रूमी के मकबरे के सामने है। इन्हें भी देखें मरियम पेट्रोनिन मरीन एल हिमर मौरिस बुकाये ब्रूनो अब्दुल हक़ गाइडरडोनी सन्दर्भ 1909 में जन्मे लोग मुस्लिम वैज्ञानिक इस्लाम में परिवर्तित लोगों की सूची लेखक इस्लाम और विज्ञान फ़्रांस के लोग
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अतिपरवलयिक फलन
गणित में, अतिपरवलयिक फलन (hyperbolic functions) ऐसे फलन हैं जो सामान्य त्रिकोणमितीय फलनों से मिलते-जुलते किन्तु अलग फलन हैं। हाइपरबोलिक साइन "sinh" ( या ), और हाइपरबोलिक कोसाइन "cosh" (), मूलभूत अतिपरवलयिक फलन हैं। इनसे हाइपरबोलिक टैन्जेन्ट "tanh" ( या ), हाइपरबोलिक कोसेकेन्ट "csch" या "cosech" ( या ), हाइपरबोलिक सेकेन्ट "sech" ( या ), तथा हाइपरबोलिक कोटैन्जेन्ट "coth" ( या ), व्युत्पन्न हुए हैं। परिभाषा अतिपरवलयिक फलनों को कई तरह से पारिभाषित किया जाता है। एक विधि इनको इक्सपोनेन्शियल फलन के फलन के रूप में परिभाषित करती है- Hyperbolic sine: Hyperbolic cosine: Hyperbolic tangent: Hyperbolic cotangent: Hyperbolic secant: Hyperbolic cosecant: हाइपरबोलिक फलनों को अवकल समीकरणों के हल के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। हाइपरबोलिक साइन और हाइपरबोलिक कोसाइन निम्नलिखित तन्त्र के अनन्य हल हैं- such that and . ये फलन निमनलिखित समीकरण के अन्न्य हल भी हैं- such that for the hyperbolic cosine, and for the hyperbolic sine. Hyperbolic functions may also be deduced from trigonometric functions with complex arguments: Hyperbolic sine: Hyperbolic cosine: Hyperbolic tangent: Hyperbolic cotangent: Hyperbolic secant: Hyperbolic cosecant: where i is the imaginary unit with the property that The complex forms in the definitions above derive from Euler's formula. सन्दर्भ फलन
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अम्बर गुरंग
अंबर गुरुंग ( नेपाली : अम्बर गुरुङ फरवरी 26, 1938 - 7 जून, 2016) एक नेपाली , संगीतकार , गायक, और गीतकार थे। उन्होंने नेपाल के राष्ट्रगान , " सयौं थुँगा फूलका " की रचना की। प्रारंभिक जीवन महासंगीतकार (महान संगीतकार) अंबर गुरुंग दार्जिलिंग , भारत , मैं पैदा हुए थे जहां उनके पिता, उजीर सिंह गुरुंग, जोकि ब्रिटिश भारतीय सेना में एक पूर्व सैनिक थे, गोरखा जिले , नेपाल मैंएक पुलिसकर्मी के रूप में सेवारत। उनके संगीत की प्रारंभिक शिक्षा उनकी मां ने बचपन में उन्हें भी एवं उन्हें गाने के लिए प्रोत्साहित भी किया , उन्होंने स्वयं ही नेपाली भारतीय और पश्चिमी वाद्ययंत्र बजाना सीखा। टर्नबुल स्कूल, दार्जिलिंग, मैं अध्ययन के दौरान उन्हें बाइबिल की पंक्तियां गाने के दौरान संगीत से प्रेम हो गया। 1950 के दशक में उनका नेपाली कवि अगम सिंह गिरि के साथ संगति अत्यंत महत्वपूर्ण रही। उन्होंने भानु भक्त स्कूल जिसकी स्थापना गिरि संगीत विद्यालय के द्वारा की गई थी के प्रधानाध्यापक के पद पर नियुक्त किया गया विद्यालयमैं उन्होंने ‘संगीत की कला अकादमी’, की शुरुआत की। 1960 के दशक, अगम सिंह गिरि द्वारा लिखित में अपने प्रसिद्ध गीत 'नौ दो लाख तारा "(भारत में नेपाली प्रवासी भारतीयों के कष्टों के बारे में एक गीत) की रिकॉर्डिंग की। उनकी अकादमी मैं कई प्रसिद्ध संगीतकार जैसे गोपाल योन्जों , कर्मा योन्जो , अरुणा लामा , शरण प्रधान, पीटर कार्थक , इंद्र गजमेर , जितेंद्र हरदेवा और रंजीत गजमेर। वह यहां 1965 से 1962 के लोक मनोरंजन इकाई, पश्चिम बंगाल सरकार दार्जिलिंग मैं मुख्य संगीतकार के रूप में काम किया। सन 1969 में वह काठमांडू नेपाल में आकर बस गए उपलब्धियां 1 जनवरी 2014 को, उन्हें हांगकांग की हिमालयन टोन संगीत अकादमी द्वारा " महासंगीतकार" उपाधि से सम्मानित किया गया। हिमालय टोन के निदेशक ने कहा कि कि लगभग 6 दशकों से नेपाली संगीत में उनके उल्लेखनीय योगदान के कारण वह इस उपाधि के लिए सर्वथा योग्य है। नेपाल के राष्ट्रीय गान , सयौं थुँगा फूलका (2007) हेतु संगीत दिया उन्हें नेपाल नरेश महेंद्र ने नेपाल वापस लौट कर आने तथा संगीत विभाग की स्थापना एवं उसका प्रतिनिधित्व करने हेतु बुलाया उन्होंने संगीत निर्देशक के तौर पर लगभग 30 वर्ष तक अपनी सेवाएं प्रदान की वह आधुनिक नेपाली संगीत के पितृ पुरुष के रूप में जाने जाते हैं उन्होंने कई पश्चिमी संगीत शैली को नेपाली संगीत में समाहित किया उन्होंने 1000 से अधिक गानों को लिखा तथा रिकॉर्ड किया (1961-2006) उन्होंने पहली नेपाली कोरल्स (chorales) की रचना एवं आयोजन किया (1988, 1997) पहली नेपाली ओपेरा मुनामदन, ( "Muna और मदन," 1979), का आयोजन, मालती Mangale ( "मालती और Mangale," 1986) कुन्जिनि (1963) पहली नेपाली cantatas, स्मृति ( "संस्मरण," 1964), बहादुर गोरखा आयोजित (1972) 3 फीचर फिल्मों और कई वृत्तचित्रों बनाए प्रकाशित 3 किताबें: गीत के 2 संस्करणों, समालेरा राखा ( “Keep It Safe”, 1969) और अख्चरका आवाजहरु (“Sounds of Words,” 2003), और निबंध और संस्मरण का एक संकलन, खा गए तिवारी दिनहरु ( “Remembrance of Days Past,” 2006, जिसे 2007 के लिए उत्तम शांति साहित्य पुरस्कार मिला) 25 से अधिक जीवन समय पुरस्कार और बधाई के साथ सम्मानित अंतरराष्ट्रीय संगीत और सांस्कृतिक मंचों, सहित कम से • लगातार प्रस्तोता: "एशिया के गीत," द्वारा प्रायोजित यूनेस्को फिलीपींस, जापान और चीन में, संगीत की शिक्षा पर सम्मेलन, संगीत शिक्षा, स्पेन के लिए इंटरनेशनल सोसायटी द्वारा प्रायोजित ... पेशेवर इतिहास कुलपति, नेपाल संगीत एवं नाटक अकादमी, काठमांडू, नेपाल (2010-2016) अध्यक्ष, नेपाल संगीत केंद्र काठमांडू , नेपाल (2006-2007) संगीत निर्देशक, नेपाल अकादमी (कला और साहित्य) काठमांडू , नेपाल (1968-1996) संगीत शिक्षक, डॉ Grahams होम्स, कलिम्पोंग , दार्जिलिंग (1967-1968) संगीत मुख्यमंत्री, लोक मनोरंजन इकाई, पश्चिम बंगाल, दार्जिलिंग, भारत सरकार (1962-1965) सबसे पहले गाना रिकॉर्ड नौ दो लाखे तारा ( "नेपाली प्रवासी भारतीयों का गान") पुरूस्कार माननीय। रचना "Rato रा चंद्र सूर्य" के लिए नेपाली सेना के कर्नल (2011) उत्तम शांति Shahitya पुरस्कार (2007) कांतिपुर एफएम लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार (2006) हिट्स एफएम लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (2001) मधुरिमा फूलकुमार महतो पुरस्कार काठमांडू (2000) टुबोर्ग आउटस्टैंडिंग पुरस्कार (1999) छवि पुरस्कार, छवि टीवी, काठमांडू (1999) जगदम्बा श्री काठमांडू (1998) भूपाल मान सिंह, काठमांडू (1998) शा-शंका, झापा (1996) गिरि पुरस्कार, दार्जिलिंग, भारत (1994) गोल्डन बांसुरी पुरस्कार (CEDOS), सिक्किम, भारत (1993) इंद्र राज्य लक्ष्मी प्रज्ञा पुरस्कार काठमांडू (1987) चीना लता पुरस्कार काठमांडू (1983) गोरखा दक्षिण बहू काठमांडू (1971) स्वर्ण पदक, रेडियो नेपाल , काठमांडू (1970 उन्होंने ब्रिटेन, अमेरिका, हांगकांग, जापान, फिलीपींस, चीन, मलेशिया, स्पेन देशों का दौरा किया। सम्मान "महासंगीतकार" " अंबर गुरुंग रात्रिi" के दौरान 1 जनवरी 2014 को हिमालय टोन ,हांगकांग द्वारा प्रदत्त कलिम्पोंग, भारत (1994, 2008) तमु लोचर एमयूएल आयोजक समिति (2007) डेमोक्रेटिक नेशनल यूथ फेडरेशन, नेपाल (2007) हमदर्द प्रयोगशालाओं, सम्मान पत्र (2007) आदिबासी जनजातीय उत्त्थान राष्ट्रीय प्रतिष्ठान (2007) स्वदेशी गीतकार सोसायटी, नेपाल (2006) नारायण गोपाल संगीत सम्मान (2005) दार्जिलिंग, भारत (2005, 1994, 1968) नेपाल साहित्य परिसाद, सिक्किम, भारत (2005) नेपाल सम्मान एवरेस्ट फाउंडेशन, नेपाल (2003) रेडियो पुरस्कार सेवा बिकास समिति , नेपाल (2002) खा पा संगीत पूचा, भक्तापुर (2002) तमु सांस्कृतिक प्रतिष्ठान, नेपाल (2001) नेपाल सांस्कृतिक परिषद, नेपाल (2000) न्यूयॉर्क, एनवाई , अमेरिका (1998) बोस्टन, एमए, अमेरिका (1998) वाशिंगटन डीसी, अमेरिका (1998) लंदन, इंग्लैंड (1998) इलाम, नेपाल (1998) मित्रा सेन, Bhagsu, भारत (1996) कुर्सियांग , भारत (1994) मिरिक , भारत (1994) आस्था परिवार (1992) मृत्यु 7 जून, 2016 की सुबह, गुरुंग ग्रांडे इंटरनेशनल अस्पताल में उसका उपचार के दौरान 79 साल की उम्र में निधन हो गया। गुरुंग पहले अपने घेघा में एक ट्यूमर के उपचार के लिए आए थे। गुरुंग को आईसीयू में भर्ती कराया गया और जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा गया था। सन्दर्भ https://web.archive.org/web/20140107073357/http://alopalo.com/news-details.php?nid=90 https://web.archive.org/web/20101107014544/http://ambergurung.com/bio.html https://web.archive.org/web/20110713030742/http://www.info-nepal.com/profiles/musicians/ambergurung.html बाहरी कड़ियाँ Articles By Ambar Gurung published in Kantipur Nepalicollections.com – Amber Gurung's Song Amber gurung Ratri – Hong kong nepali.com Amber gurung Ratri - Alopalo.com Mahasenani AG - ekantipur.com Nepali wiki नेपाली संगीतकार
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A5%B0%20%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80
वी॰ शान्ताकुमारी
वेंकटरमैया शांताकुमारी (उपाख्य 'शान्ताक्का' ; जन्म ०५ फरवरी १९५२) राष्ट्र सेविका समिति की वर्तमान अखिल भारतीय प्रमुख संचालिका हैं। भारत की स्त्रियों की एक संस्था है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ही दर्शन के अनुरूप कार्य करती है और इसकी समानान्तर संस्थाओं में से एक है। वे वर्ष २०१२ से इसकी प्रमुख संचालिका हैं। वे कई वर्षों तक भारतीय विद्या भवन बेंगलुरू में अध्यापिका रही। समिति के कार्य के लिए 1995 में स्वेच्छा निवृत्ति ले लीं और अपना पूरा समय समिति के विस्तार एवं विकास के लिए दे रही हैं। इनका केन्द्र नागपुर है। संदर्भ बाहरी कड़ियाँ राष्ट्रसेविका समिति का जालघर राष्ट्रसेविका समिति के प्रमुख संचालिकाओं का जीवन परिचय - From Laxmibai Kelkar to V Shantha Kumari, here’s how RSS’ women’s wing shaped over the years(हिन्दी: लक्ष्मीबाई केल्कर से वी शांति कुमारी तक, यहां आरएसएस की महिलाओं के पंखों को आकार दिया गया है।) संघ परिवार के नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 1952 में जन्मे लोग कर्नाटक के लोग जीवित लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य गूगल परियोजना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%9F%E0%A4%B0%20%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%20%28%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A4%B0%29
पीटर बर्ज (क्रिकेटर)
पीटर जॉन पार्नेल बर्ज (17 मई 1932 - 5 अक्टूबर 2001) एक ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर थे, जिन्होंने 1955 से 1966 के बीच 42 टेस्ट मैच खेले। एक खिलाड़ी के रूप में सेवानिवृत्त होने के बाद, वह एक अत्यधिक सम्मानित मैच रेफरी बन गया, जिसने अन्य 25 टेस्ट और 63 वनडे की देखरेख की। वह 1965 में विजडन क्रिकेटर ऑफ द ईयर थे और 1997 में "खिलाड़ी, प्रशासक और अंतर्राष्ट्रीय रेफरी के रूप में क्रिकेट की सेवा के लिए, और रेसिंग का दोहन करने के लिए" ऑर्डर ऑफ ऑस्ट्रेलिया (एएम) के सदस्य बनाए गए थे। सन्दर्भ ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट खिलाड़ी दाहिने हाथ के बल्लेबाज़ 1932 में जन्मे लोग २००१ में निधन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/1936%20%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%A8%20%E0%A4%93%E0%A4%B2%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%95%20%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE
1936 शीतकालीन ओलंपिक पदक तालिका
पदक तालिका अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) द्वारा प्रदान की गई जानकारी पर आधारित है और आईओसी के अपने प्रकाशित पदक तालिका में सम्मेलन के अनुरूप है। डिफ़ॉल्ट रूप से, टेबल को देश से एथलीटों की जीत के स्वर्ण पदक की संख्या के अनुसार आदेश दिया जाता है (इस संदर्भ में, एक राष्ट्र एक राष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया एक इकाई है)। रजत पदक की संख्या को ध्यान में रखा जाता है और उसके बाद कांस्य पदक की संख्या। यदि राष्ट्र अभी भी बांध रहे हैं, तो समान रैंकिंग दी गई है और उन्हें वर्णानुक्रम में सूचीबद्ध किया गया है। सन्दर्भ वर्ष अनुसार शीतकालीन ओलम्पिक पदक तालिका
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सास्केन टेक्नोलॉजीज
सास्केन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (पूर्व में सास्केन कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड) एक भारतीय बहुराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी कंपनी है, जो भारत के बैंगलोर में स्थित है, जो सेमीकंडक्टर, ऑटोमोटिव, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, एंटरप्राइज ग्रेड डिवाइस, स्मार्ट उपकरण और पहनने योग्य वस्तुएँ, औद्योगिक और दूरसंचार जैसे उद्योगों में वैश्विक ग्राहकों को उत्पाद इंजीनियरिंग और डिजिटल परिवर्तन सेवाएँ प्रदान करती है। मूल सास्केन की शुरुआत इसके अध्यक्ष और एमडी राजीव सी मोदी और तीन अन्य सह-संस्थापकों: कृष्णा झावेरी, सुरेश ढोलकिया और बदरुद्दीन अग्रवाल के दिमाग की उपज के रूप में हुई। सास्केन १९८९ में कैलिफोर्निया के फ़्रेमोंट में एक छोटे से गोदाम में सिलिकॉन ऑटोमेशन सिस्टम्स के रूप में अस्तित्व में आया। बाद में, कंपनी ने अपना नाम बदलकर सास्केन कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड कर लिया। 'सास्केन' नाम इसके मूल नाम (एसएएस) और ज्ञान के लिए स्कॉटिश शब्द 'केन' () से मिलकर बना है। फरवरी २०१७ में सास्केन ने घोषणा की कि उसने ऑटोमोटिव, एंटरप्राइज़ ग्रेड डिवाइस, स्मार्ट डिवाइस और पहनने योग्य, औद्योगिक और उपग्रह संचार जैसे व्यवसायों में ग्राहकों की सेवा के लिए अपना नाम बदलकर सास्केन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड कर लिया है। जनवरी २०१८ में सास्केन ने अपनी ३० साल पुरानी विरासत को प्रतिबिंबित करने के लिए एक नए लोगो का अनावरण किया। सास्केन २००० से अधिक लोगों को रोजगार देता है, जो बेंगलुरु, पुणे, चेन्नई, कोलकाता और हैदराबाद (भारत), कौस्टिनन और टाम्परे (फिनलैंड), डेट्रॉइट (संयुक्त राज्य अमेरिका), और बीजिंग और शंघाई (चीन) में विकास केंद्रों से काम करता है। सास्केन की उपस्थिति जर्मनी, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका में भी है। जुलाई २०२२ में, सास्केन ने घोषणा की कि अभिजीत काबरा को सीईओ के रूप में नियुक्त किया गया था। सहायक सास्केन नेटवर्क इंजीनियरिंग लिमिटेड (एसएनईएल), सास्केन की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी, तब बनाई गई थी जब कंपनी ने ब्लू ब्रॉडबैंड टेक्नोलॉजीज के संचालन का अधिग्रहण किया था। सास्केन ने जून 2006 में आईसॉफ्टटेक प्राइवेट लिमिटेड, चेन्नई का अधिग्रहण किया सितंबर 2006 में, सास्केन ने बोट्निया हाईटेक ओए नामक एक फिनिश कंपनी का भी अधिग्रहण किया। इसे अब सास्केन फ़िनलैंड ओए के नाम से जाना जाता है। 24 जनवरी 07 को सास्केन ने टाटा ऑटोकॉम्प के साथ एक संयुक्त उद्यम में प्रवेश किया है। संयुक्त उद्यम को TACO सास्केन ऑटोमोटिव इलेक्ट्रॉनिक्स प्राइवेट लिमिटेड (TSAE) के नाम से जाना जाएगा। संदर्भ बंबई स्टॉक एक्स्चेंज में सूचित कंपनियां भारतीय सॉफ्टवेयर कम्पनियाँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%A8%20%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B9
तानसेन समारोह
तानसेन समारोह या तानसेन संगीत समारोह हर साल दिसंबर के महीने में मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के बेहत गांव में मनाया जाता है। यह एक 4 दिन का संगीतमय कल्पात्मक नाटक है। दुनिया भर से कलाकार और संगीत प्रेमी यहाँ पर महान भारतीय संगीत उस्ताद तानसेन को श्रद्धांजलि देने के लिए इकट्ठा होते हैं। यह समारोह मध्य प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा तानसेन के मकबरे के पास आयोजित किया जाता है। इस समारोह में पूरे भारत से कलाकारों को गायन एवं वाद्य प्रसतुति देने के लिए आमंत्रित किया जाता है। राष्ट्रीय संगीत समारोह तानसेन समारोह मूल रूप से एक स्थानीय त्योहार हुआ करता था, लेकिन यह पूर्व केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री (1952 - 1962) बी. वी. केसकर (1903 – 28 अगस्त 1984) की पहल थी जिससे तानसेन समारोह को एक लोकप्रिय राष्ट्रीय संगीत समारोह में बदला गया। देश-विदेश के संगीत प्रेमी इसके लिए आतुर रहते हैं। तानसेन सम्मान प्रतिष्ठित 'राष्ट्रीय तानसेन सम्मान' एक संगीत पुरस्कार है जो हिंदुस्तानी संगीत के प्रतिपादकों को दिया जाता है। 2000 - उस्ताद अब्दुल हलीम जफर खान - सितार उस्ताद 2001 - उस्ताद अमजद अली खान - सरोद उस्ताद 2002 - नियाज़ अहमद खान 2003 - पंडित दिनकर कायकिनि 2004 - पंडित शिवकुमार शर्मा - संतूर वादक 2005 - मालिनी राजुरकर - ग्वालियर घराने की हिंदुस्तानी गायक और टप्पा और तराना की विख्यात गायक 2006 - सुलोचना ब्रहस्पति - हिंदुस्तानी गायक और रामपुर-सहसवान घराने की प्रतिपादक 2007 -  पंडित गोकुलोत्सव महाराज - हिंदुस्तानी गायक 2008 - उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान - हिंदुस्तानी गायक और रामपुर-साहसवान घराने के प्रतिपादक 2009 - अजय पोहनकर - हिंदुस्तानी गायक और किराना घराने के प्रतिपादक 2010 - सविता देवी - बनारस घराने से हिंदुस्तानी गायक 2011 - राजन और साजन मिश्रा - गायक जोड़ी 2013 - विश्व मोहन भट्ट - हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत वादक 2014 - पंडित प्रभाकर करेकर - भारतीय शास्त्रीय गायक 2015 - अजोय चक्रबर्ती - भारतीय हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक 2015 - पं. लक्ष्मण कृष्णराव पण्डित - गायक (कृष्णराव शंकर पण्डित के पुत्र) 2016 - पं. दालचन शर्मा - पखावज वादक 2017 - पं. उल्हास कशलकर - शास्त्रीय गायक (जयपुर घराना) 2018 - मंजू मेहता - सितार वादक (अहमदाबाद) 2019 - पंडित विद्याधर व्यास - भारतीय हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक 2020- पंडित सतीश व्यास (संतूर वादक) 2021-[ [ पण्डित नित्यानंद हल्दीपुर - बांसुरी वादक - मुंबई]] यह भी देखें हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत कर्नाटक शास्त्रीय संगीत ग्वालियर मध्य प्रदेश संदर्भ बाहरी कड़ियाँ तानसेन समारोह ग्वालियर ज़िला ग्वालियर हिन्दुस्तानी संगीत
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A4
एवरेस्ट पर्वत
एवरेस्ट पर्वत (नेपाली: सगरमाथा, संस्कृत: देवगिरि) दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत शिखर है, जिसकी ऊँचाई 8,848.86 मीटर है। यह हिमालय का हिस्सा है। पहले इसे XV के नाम से जाना जाता था। माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई उस समय 29,002 फीट या 8,840 मीटर मापी गई थी। वैज्ञानिक सर्वेक्षणों में कहा जाता है कि इसकी ऊंचाई प्रतिवर्ष 2 से॰मी॰ के हिसाब से बढ़ रही है। नेपाल में इसे स्थानीय लोग सगरमाथा (अर्थात स्वर्ग का शीर्ष) नाम से जानते हैं, जो नाम नेपाल के इतिहासविद बाबुराम आचार्य ने सन् 1930 के दशक में रखा था - आकाश का भाल। तिब्बत में इसे सदियों से चोमोलंगमा अर्थात पर्वतों की रानी के नाम से जाना जाता है। सर्वे ऑफ नेपाल द्वारा प्रकाशित, (1:50,000 के स्केल पर 57 मैप सेट में से 50वां मैप) “फर्स्ट जॉईन्ट इन्सपेक्सन सर्वे सन् 1979-80, नेपाल-चीन सीमा के मुख्य पाठ्य के साथ अटैच” पृष्ठ पर ऊपर की ओर बीच में, लिखा है, सीमा रेखा, की पहचान की गई है जो चीन और नेपाल को अलग करते हैं, जो ठीक शिखर से होकर गुजरता है। यह यहाँ सीमा का काम करता है और चीन-नेपाल सीमा पर मुख्य हिमालयी जलसंभर विभाजित होकर दोनो तरफ बहता है। सर्वोच्च शिखर की पहचान विश्व के सर्वोच्च पर्वतों को निर्धारित करने के लिए सन् 1808 में ब्रिटिशों ने भारत का महान त्रिकोणमितीय सर्वे को शुरु किया। दक्षिणी भारत से शुरु कर, सर्वे टीम उत्तर की ओर बढ़ा, जो विशाल 500 कि॰ग्रा॰ (1,100 lb) का विकोणमान (थियोडोलाइट)(एक को उठाकर ले जाने के लिए 12 आदमी लगते थें) का इस्तेमाल करते थे जिससे सम्भवत: सही माप लिया जा सके। सन् 1830 में वे हिमालय के नजदीक पहाड़ो के पास पहुँचे, पर नेपाल अंग्रेजों को देश में घुसने देने के प्रति अनिच्छुक था क्योंकि नेपाल को राजनैतिक और सम्भावित आक्रमण का डर था। सर्वेयर द्वारा कई अनुरोध किये गये पर नेपाल ने सारे अनुरोध ठुकरा दिये। ब्रिटिशों को तराई से अवलोकन जारी रखने के लिए मजबूर किया गया, नेपाल के दक्षिण में एक क्षेत्र है जो हिमालय के समानान्तर में है। तेज वर्षा और मलेरिया के कारण तराई में स्थिति बहुत कठिन थी: तीन सर्वे अधिकारी मलेरिया के कारण मारे गये जबकि खराब स्वास्थ्य के कारण दो को अवकाश मिल गया। फिर भी, सन् 1847 में, ब्रिटिश मजबूर हुए और अवलोकन स्टेशन से लेकर 240 किलोमीटर (150 mi) दूर तक से हिमालय कि शिखरों कि विस्तार से अवलोकन करने लगे। मौसम ने साल के अन्त में काम को तीन महिने तक रोके रखा। सन् 1847 के नवम्बर में, भारत के ब्रिटिश सर्वेयर जेनरल एन्ड्रयु वॉग ने सवाईपुर स्टेशन जो हिमालय के पुर्वी छोर पर स्थित है से कई सारे अवलोकन तैयार किये। उस समय कंचनजंघा विश्व कि सबसे ऊँची चोटी मानी गई और उसने रुचीपुर्वक नोट किया कि, इस के पीछे भी लगभग 230 किमी (140 mi) दूर एक चोटी है। जौन आर्मस्ट्रांग, जो वॉग के सह अधिकारी थें ने भी एक जगह से दूर पश्चिम में इस चोटी को देखा जिसे उन्होने नाम दिया चोटी ‘बी’(peak b)। वॉग ने बाद में लिखा कि अवलोकन दर्शाता है कि चोटी ‘बी’ कंचनजंघा से ऊँचा था, लेकिन अवलोकन बहुत दूर से हुआ था, सत्यापन के लिए नजदीक से अवलोकन करना जरुरी है। आने वाले साल में वॉग ने एक सर्वे अधिकारी को तराई में चोटी ‘बी’ को नजदिक से अवलोकन करने के लिए भेजा पर बादलों ने सारे प्रयास को रोक दिया। सन् 1849 में वॉग ने वह क्षेत्र जेम्स निकोलसन को सौंप दिया। निकोलसन ने 190 (120 mi) कि॰मी॰ दूर जिरोल से दो अवलोकन तैयार किये। निकोलसन तब अपने साथ बड़ा विकोणमान लाया और पूरब की ओर घुमा दिया, पाँच अलग स्थानों से निकोलसन ने चोटी के सबसे नजदीक 174 कि॰मी॰ (108 mi) दूर से 30 से भी अधिक अवलोकन प्राप्त किये। अपने अवलोकनों पर आधारित कुछ हिसाब-किताब करने के लिए निकोलसन वापस पटना, गंगा नदी के पास गया। पटना में उसके कच्चे हिसाब ने चोटी ‘बी’ कि औसत ऊँचाई 9,200 मी॰ (30,200 ft) दिया, लेकिन यह प्रकाश अपवर्तन नहीं समझा जाता है, जो ऊँचाई को गलत बयान करता है। संख्या साफ दर्शाया गया, यद्यपि वह चोटी ‘बी’ कंचनजंघा से ऊँचा था। यद्यपि, निकोलसन को मलेरिया हो गया और उसे घर लौट जाने के लिए विवश किया गया, हिसाब-किताब खत्म नहीं हो पाया। माईकल हेनेसी, वॉग का एक सहायक रोमन संख्या के आधार पर चोटीयों को निर्दिष्ट करना शुरु कर दिया, उसने कंचनजंघा को IX नाम दिया और चोटि ‘बी’ को XV नाम दिया। सन् 1852 मई सर्वे का केन्द्र देहरादून में लाया गया, एक भारतीय गणितज्ञ राधानाथ सिकदर और बंगाल के सर्वेक्षक ने निकोलसन के नाप पर आधारित त्रिकोणमितीय हिसाब-किताब का प्रयोग कर पहली बार विश्व के सबसे ऊँची चोटी का नाम एक पूर्व प्रमुख के नाम पर एवरेस्ट दिया, सत्यापन करने के लिए बार-बार हिसाब-किताब होता रहा और इसका कार्यालयी उदघोष, कि XV सबसे ऊँचा है, कई सालों तक लेट हो गया। वॉग ने निकोलस के डाटा पर सन् 1854 में काम शुरु कर दिया और हिसाब-किताब, प्रकाश अपवर्तन के लेन-देन, वायु-दाब, अवलोकन के विशाल दूरी के तापमान पर अपने कर्मचारियों के साथ लगभग दो साल काम किया। सन् 1856 के मार्च में उसने पत्र के माध्यम से कलकत्ता में अपने प्रतिनिधी को अपनी खोज का पूरी तरह से उदघोष कर दिया। कंचनजंघा की ऊँचाई साफ तौर पर 28,156 फीट (8,582 मी॰) बताया गया, जबकि XV कि ऊँचाई (8,850 मी॰) बताई गई। वॉग ने XV के बारे में निष्कर्ष निकाला कि “अधिक सम्भव है कि यह विश्व में सबसे ऊँचा है”। चोटी XV (फिट में) का हिसाब-किताब लगाया गया कि यह पुरी तरह से 29,000 फिट (8,839.2 मी॰) ऊँचा है, पर इसे सार्वजनिक रूप में 29,002 फीट (8,839.8 मी॰) बताया गया। 29,000 को अनुमान लगाकर 'राउंड' किया गया है इस अवधारणा से बचने के लिए 2 फीट अधिक जोड़ा दिया गया था। एवरेस्ट पर्वत का नाम एवरेस्ट का तिब्बती नाम कोमोलंगमा (ཇོ་མོ་གླང་མ, शाब्दिक अर्थ "पवित्र माता") है। किंग चीन के सम्राट कांग्शी के शासनकाल के दौरान यह नाम पहली बार 1721 कांग्सी एटलस पर एक चीनी प्रतिलेखन के साथ दर्ज किया गया था, और फिर पूर्व मानचित्र के आधार पर फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता डी'एनविल द्वारा पेरिस में प्रकाशित 1733 के नक्शे पर त्चौमोर लैंक्मा के रूप में दिखाई दिया। इसे चोमोलुंगमा और (विली में) जो-मो-ग्लांग-मा के रूप में भी लोकप्रिय रूप से रोमन किया जाता है। आधिकारिक चीनी प्रतिलेखन ( 珠穆朗瑪峰) है, जिसका पिनयिन रूप Zhūmùlǎngmǎ Fēng है। जबकि अन्य चीनी नाम मौजूद हैं, जिनमें शेंगमी फेंग ( 聖母峰, 圣母峰, शाब्दिक अर्थ "पवित्र माँ शिखर") शामिल हैं, इन नामों को बड़े पैमाने पर मई 1952 से समाप्त कर दिया गया क्योंकि चीन के आंतरिक मामलों के मंत्रालय ने 珠穆朗玛峰 (रोमनीकृत: माउंट कोमोलंगमा) इस एकमात्र नाम को अपनाने का एकहुक्मनामा जारी किया था। प्रलेखित स्थानीय नामों में "देवदुंघा" ("पवित्र पर्वत") शामिल है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इसका आमतौर पर उपयोग किया जाता है या नहीं। 1849 में, ब्रिटिश सर्वेक्षण यदि संभव हो तो स्थानीय नामों को संरक्षित करना चाहता था (उदाहरण के लिए, कंचनजंगा और धौलागिरी), और भारत के ब्रिटिश सर्वेयर जनरल एंड्रयू वॉ ने तर्क दिया कि स्थानीय नाम के लिए उनकी खोज के रूप में उन्हें कोई सामान्य रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला स्थानीय नाम नहीं मिला, क्योकि नेपाल और तिब्बत विदेशियों के बहिष्कार से बाधित था। वॉ ने तर्क दिया कि चूंकि कई स्थानीय नाम थे, इसलिए एक नाम को अन्य सभी नामों पर पसंद करना मुश्किल होगा; उन्होंने फैसला किया कि पीक XV का नाम ब्रिटिश सर्वेक्षक सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर रखा जाना चाहिए, जो उनके पूर्ववर्ती भारत के सर्वेयर जनरल थे। एवरेस्ट ने स्वयं वॉ द्वारा सुझाए गए नाम का विरोध किया और 1857 में रॉयल ज्योग्राफिकल सोसाइटी को बताया कि "एवरेस्ट" को हिंदी में नहीं लिखा जा सकता है और न ही "भारत के मूल निवासी" द्वारा उच्चारित किया जा सकता है। वॉ का प्रस्तावित नाम आपत्तियों के बावजूद प्रबल रहा, और 1865 में, रॉयल ज्योग्राफिकल सोसाइटी ने आधिकारिक तौर पर माउंट एवरेस्ट को दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत के नाम के रूप में अपनाया। एवरेस्ट (/ˈɛvərɪst/) का आधुनिक उच्चारण सर जॉर्ज के उनके उपनाम (/ˈiːvrɪst/ EEV-rist) के उच्चारण से अलग है। 19वीं सदी के अंत में, कई यूरोपीय मानचित्रकारों ने गलत तरीके से माना कि पर्वत का मूल नाम गौरीशंकर था, बलकी जो काठमांडू और एवरेस्ट के बीच का पर्वत है उसका नाम गौरीशंकर था। 1960 के दशक की शुरुआत में, नेपाली सरकार ने नेपाली नाम सागरमाथा (IAST प्रतिलेखन) या सागर-मठ (सागर-मथा, [sʌɡʌrmatʰa], शाब्दिक रूप से "आकाश की देवी") गढ़ा। एवरेस्ट के लिए नेपाली नाम सागरमाथा (सगरमाथा) है जिसका अर्थ है "महान नीले आकाश में सिर" सागर (sagar) का अर्थ है "आकाश" और माथा (māthā) जिसका अर्थ नेपाली भाषा में "सिर" है। एवरेस्ट बेस कैंप ट्रेक अधिकतम ऊंचाई: 18,513 फीट कठिनाई स्तर: मुश्किल हवाई अड्डा: काठमांडू, नेपाल आरंभ और अंत बिंदु: ट्रेक काठमांडू से शुरू और समाप्त होता है। एटीएम: आपके ट्रेक शुरू होने से पहले नामचे बाजार में आखिरी एटीएम बिंदु है। इन्हें भी देखें पर्वत हिमालय भूगोल सन्दर्भ हिमालय पृथ्वी के चरम स्थान आठ हज़ारी सप्तचोटी हिमालय के आठ हज़ारी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%80%20%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
पश्चिमी शिया
पश्चिमी शिया राजवंश (चीनी: 西夏, शी शिया; अंग्रेजी: Western Xia) जिसे तान्गूत साम्राज्य (Tangut Empire) भी कहा जाता है पूर्वी एशिया का एक साम्राज्य था जो आधुनिक चीन के निंगशिया, गांसू, उत्तरी शान्शी, पूर्वोत्तरी शिनजियांग, दक्षिण-पश्चिमी भीतरी मंगोलिया और दक्षिणी मंगोलिया पर सन् १०३८ से १२२७ ईसवी तक विस्तृत था। तान्गूत लोग तिब्बती लोगों से सम्बंधित माने जाते हैं और उन्होंने चीनी लोगों का पड़ोसी होने के बावजूद चीनी संस्कृति नहीं अपनाई। तिब्बती और तान्गूत लोग इस साम्राज्य को मिन्याक साम्राज्य (Mi-nyak) बुलाते थे। तान्गुतों ने कला, संगीत, साहित्य और भवन-निर्माण में बहुत तरक्की की थी। सैन्य क्षेत्र में भी वे सबल थे - वे शक्तिशाली लियाओ राजवंश, सोंग राजवंश और जिन राजवंश (१११५–१२३४) का पड़ोसी होते हुए भी डट सके क्योंकि उनका फ़ौजी बन्दोबस्त बढ़िया था। रथी, धनुर्धर, पैदल सिपाही, ऊँटों पर लदी तोपें और जल-थल दोनों पर जूझने को तैयार टुकड़ियाँ सभी उनकी सेना का अंग थीं और एक-साथ आयोजित तरीक़े से लड़ना जानती थीं। इन सब के बावजूद, आगे चलकर तान्गूत साम्राज्य पर युआन राजवंश स्थापित करने वाले मंगोल लोगों के घातक हमले हुए जिसमें तान्गूतों के बहुत से लिखित दस्तावेज़ और अधिकतर इमारतें ध्वस्त हो गई। इस कारणवश तान्गूतों पर अनुसन्धान कर रहे इतिहासकारों और भाषावैज्ञानिकों को काफ़ी दिक्क़तें होती हैं और इस साम्राज्य और उसके संस्थापकों के बारे में बहुत से प्रश्न हैं जिनपर कभी न अंत होने वाले विवाद जारी रहते हैं। नाम और भाषा तान्गूत लोग अपनी तान्गूत भाषा बोलते थे, जो तिब्बती भाषा के समीप एक तिब्बती-बर्मी भाषा-परिवार की सदस्य थी। उन्होने चीनी भावचित्रों की देखा-देखी अपनी एक चित्रलिपि पर आधारित लिपि बना ली थी जिसमें वे तान्गूत भाषा लिखा करते थे। वे अपने साम्राज्य को औपचारिक रूप से 'श्वेत और उच्च महान शिया राज्य' (, फियोव ब्यिय ल्हयिय ल्हयिय) बुलाते थे। अनौपचारिक रूप से वे इसे 'मि-न्याग' कहते थे लेकिन चीनी स्रोत उन्हें 'पश्चिमी शिया' (चीनी भाषा में 'शी शिया') बुलाते थे जो नाम बाद में पाश्चातीय विद्वान इस्तेमाल करने लगे। इन्हें भी देखें तान्गूत लोग सोंग राजवंश जिन राजवंश (१११५–१२३४) लियाओ राजवंश सन्दर्भ चीन के राजवंश चीन का इतिहास
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF
मांसपेशीय स्मृति
मांसपेशीय स्मृति किसी कार्य को मांसपेशी की सहायता से कई बार लगातार करने पर उस मांसपेशी को वह कार्य याद रहता है और हम उस कार्य को जल्दी कर पाते हैं। यदि कोई भी कार्य हम लंबे समय तक करते हैं, तो उस कार्य को करने के लिए हमें अधिक सोचने की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि यह कार्य हमारी मांसपेशी कर लेती है। यह क्रिया दिमाग को अधिक सोचने और अधिक कार्य करने से बचाती है। इसका मुख्य रूप से उदाहरण साइकल चलाना, कुंजी पटल का उपयोग करना आदि हैं। यदि कोई दिमाग में चोट आदि के कारण अपनी स्मृति खो भी दे तो वह इस प्रकार के कार्यों को करना नहीं भूल सकता। परंतु इसके लिए कोई भी कार्य को लम्बे समय तक करना होता है, जब तक की आपका शरीर उस कार्य को करने हेतु अपनी आदत में शामिल न कर ले। इतिहास गाड़ी चलाना सीखने में किसी भी प्रकार के वाहन को चलाना सीखते समय दिमाग को कभी कभी याद नहीं रहता की कैसे गाड़ी रोकना है और कैसे दिशा बदलना है। परंतु धीरे धीरे जब उस पर अधिक अभ्यास करते हैं तो वह स्मृति के जैसे ही हमारे मांसपेशी द्वारा नियंत्रित होने लगता है। लगभग 1900 सदी में एक अनुसंधान के पश्चात इस बात का पता चला था। इसके पश्चात वर्ष 1987 में भी एक अनुसंधान किया गया जिससे इसकी पुष्टि हुई। इसके अलावा कुछ अनुसंधानो में यह भी पाया गया की लिखते समय भी मांसपेशीय स्मृति का ही उपयोग किया जाता है। अवधारण पहले इसे वाहन स्मृति कहते थे परंतु अब इसे मांसपेशीय स्मृति कहते हैं। 1900 सदी में इसके प्रति लोगों का आकर्षण बहुत था। जिसके कारण कई अनुसंधान किए गए, जिनसे यह पता लगा की यह स्मृति केवल कुछ समय के अभ्यास से याद नहीं होती बल्कि यह वर्षों के अभ्यास से ही स्वतः याद हो जाती है। इसके साथ ही यह भी पता चला की यह कोई विशेष कार्य जैसे गाड़ी चलाना आदि में ही नहीं होता बल्कि पूरे जीवन में हम जो भी कार्य करते रहते हैं वह सभी कार्य हमारे मांसपेशी में स्मृति के रूप में याद होते रहते हैं। जिससे हम अधिक गति से उस कार्य को कर सकें। शरीर विज्ञान व्यवहार किसी भी वाहन को चलाना सीखते समय हम धीमी गति के साथ और कई बाधाओं के साथ ही सीखते हैं। यह कार्य सीखते समय कठिन होता है और जब हम अभ्यास कर लेते हैं तो यह कार्य सरल हो जाता है। मांसपेशी स्मृति कूटबन्धन यह मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है। पहली जो कुछ समय के लिए होती है और दूसरी जो अधिक समय तक होती है। मांसपेशी स्मृति कूटबन्धन को भी मांसपेशीय स्मृति कहते हैं। शक्ति प्रशिक्षण और अनुकूलता शक्ति को किस प्रकार से उपयोग करना है इसका प्रशिक्षण लेना अर्थात उसे सही ढंग से उपयोग करना है। यदि हमें किसी भी कार्य को करने में असहजता होती है तो हम फिर भी उस कार्य को करते हैं तो हमें उस पर किस प्रकार से शक्ति का उपयोग करना है यह समझ में आ जाता है। इसके अलावा हमारा शरीर भी उस कार्य को करने के अनुकूल बनता जाता हैं। हमारा शरीर हर कार्य को करने के लिए सक्षम नहीं है और न ही हम अन्य लोगों के जैसे कार्य को कर सकते हैं। क्योंकि कोई भी कार्य जो कोई दूसरा व्यक्ति कर रहा है, वह उसके कई वर्षों के प्रयास के पश्चात हुआ है। उदाहरण के लिए जब हम कोई भी वजन का सामान उठाते हैं तो वह यदि अधिक भारी होता है तो हम उसे नहीं उठा सकते परंतु कोई और उसे सहजता से उठा सकता है क्योंकि उसके मांसपेशी में अधिक वजन के सामान को उठाने हेतु अनुकूल बन चुका है। वहीं यदि आप कोई ऐसा कार्य करते हैं जो अन्य कोई व्यक्ति नहीं कर पा रहा है तो उसका अर्थ है कि आपके मांसपेशी में उस कार्य को करने के लिए अनुकूल बन चुका है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ स्मृति
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कोलंबिया के राष्ट्रपति
कोलम्बिया के राष्ट्रपति ( स्पेनिश : Presidente डी कोलम्बिया ), आधिकारिक तौर रूप में जाना जाता कोलंबिया के गणराज्य के राष्ट्रपति ( स्पेनिश : Presidente डे ला रिपब्लिका डी कोलम्बिया ) है राज्य के सिर और सरकार के मुखिया के कोलम्बिया । राष्ट्रपति का कार्यालय 1819 के संविधान के अनुसमर्थन पर स्थापित किया गया था, जिसे कांग्रेस के अंगोस्तूरा ने दिसंबर 1819 में बुलाया था, जब कोलंबिया " ग्रैन कोलम्बिया " था । पहले राष्ट्रपति जनरल साइमन बोलिवर , [3] 1819 में पद ग्रहण किया। उनकी स्थिति, शुरू में स्व-घोषित, बाद में कांग्रेस द्वारा पुष्टि की गई थी। कोलंबिया गणराज्य के वर्तमान राष्ट्रपति इवान डुके मर्केज़ हैं , जिन्होंने 7 अगस्त, 2018 को पदभार संभाला था।
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डॉक्सिंग
डॉक्सिंग (अंग्रेज़ी:Doxing जो dox से आता है -जो लघुरूप है documents अर्थात दस्तावेज़ का) एक इंटरनेट पर प्रचलित रवैया है जिसके अंतरगत एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति पर शोध करता है और दूसरे व्यक्ति या संस्था की निजी या पूरी पहचान सामने लाने वाली जानकारी सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करता है। इसके लिए प्रयोग में लाए जाने वाली पद्धतियों में वह जानकारी को प्राप्त करना है जो सार्वजनिक रूप से सामाजिक मीडिया जालस्थल जैसेकि फेसबुक पर है या हैकिंग और सामाजिक अभियंत्रण से प्राप्त होती है। यह इंटरनेट सतर्कता और हैक सक्रियतावाद से नज़दीकी से जुड़ा है। डॉक्सिंग कई कारणों से हो सकता है, जिसमें कानून प्रवर्तन, व्यापारिक आकलन, जोखिम विश्लेषण, ज़बरदस्ती वसूली, अवपीड़न, ऑनलाइन शर्मिंदा करना और स्वत: नियुक्त सतर्कता से प्रेरित न्याय भी शामिल हैं। सन्दर्भ इंटरनेट संस्कृति
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लाडब्रोक्स कोरल
लडोब्रोक्स कोरल एक ब्रिटिश सट्टेबाजी और जुआ कंपनी है। यह लंदन में स्थित है। यह पहले संयुक्त राज्य अमेरिका के बाहर हिल्टन होटल ब्रांड का मालिक था, और 1999 से 2006 तक हिल्टन ग्रुप पीएलसी के रूप में जाना जाता था। नवंबर 2016 में, लाडोब्रोक्स ने गाला कोरल समूह का अधिग्रहण किया, और इसका नाम बदलकर लाद्रोक्स कोरल कर दिया। कंपनी को लंदन स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किया गया था, और मार्च 2018 में जीवीसी होल्डिंग्स द्वारा अधिग्रहण किए जाने तक एफटीएसई 250 इंडेक्स का सदस्य था। सन्दर्भ
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चिकित्सकीय परीक्षण
आयुर्विज्ञान में मानव शरीर का स्वास्थ्य और उपचार मुख्यतः देखा जाता है। इसके लिये शरीर के कई परीक्षण किये जाते हैं। इन्हें चिकित्सकीय परीक्षण (Medical test) कहा जाता है। ये कई प्रकार के होते हैं: नाक और गले के सबसे ऊपरी हिस्से के लिए नेजोस्कोपी, स्वरयंत्र यानी लैरिंग्स के लिए डायरेक्ट लैरिंगोस्कोपी, सांस की नली के लिए ब्रोंकोस्कोपी, छाती के बीच में दिल, धमनियों आदि की जंच के लिए मीडियास्टिनोस्कोप, खाने की नली के ऊपरी हिस्से की जांच के लिए इसोफेगोस्कोपी, आमाशय के निचले सिरे को देखने के लिए गेस्ट्रोडियोडिनोस्कोपी पेंक्रियास और पूरे बाइल सिस्टम को देखने के लिए एआरसीपी स्कोप का प्रयोग किया जाता है। प्रोक्टोस्कोप रेक्टम के लिए, सिग्मोयडोस्कोप बड़ी आंत के आखिरी सिरे की जांच के लिए और कोलोनोस्कोप कोलोन की जांच के लिए की जाती है। इनके अलावा भी कई अन्य परीक्षण किये जाते हैं। इनमें रक्त और मूत्र परीक्षण, एक्सरे और ईसीजी, कॉलेस्ट्रॉल के लिए लिपिड प्रोफाइल, ग्लूकोज स्तर परीक्षण, ईसीजी, सोनोग्राफी आदि आते हैं। अधिक आयु होने पर परीक्षण कराने पर भविष्य में स्वस्थ रह सकते हैं। जीवन शैली के कारण होने वाले रोगों की रोकथाम में सहायक होते हैं। इस बारे में सभी को पता होना चाहिये किस आयु में कौन-से परीक्षण कराएं, ताकि गंभीर रोगों के होने की आशंका खत्म की जा सके। आयु जनित परीक्षण ३० वर्ष रक्त और मूत्र परीक्षण, चेस्ट एक्सरे और ईसीजी। कॉलेस्ट्रॉल के लिए लिपिड प्रोफाइल, ग्लूकोज लेवल परीक्षण, ईसीजी, सोनोग्राफी। कारण: ये परीक्षण तनाव जनित रोगों जैसे रक्तचाप और मधुमेह की सटीक सूचना देने में सक्षम होते हैं। लाभ: सोनोग्राफी, पोलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम की सूचना देगी, जिससे वजन में बढ़ोतरी मासिक में अनियमितता का समय पर इलाज हो सकता है। फेफड़ों के कैंसर, टीबी और एम्फीसिमा एक्सरे से जल्दी पकड़ में आता है। ३५ वर्ष ३० वर्ष की आयु में कराए गए सभी परीक्षण। इनके अलावा महिलाओं के लिए: पैप स्मीयर, मैमोग्राफी, रक्त परीक्षण, रक्तचाप। लाभ: थायरॉइड परीक्षण, थायरॉइड के डिसऑर्डर हाइपोथायराइडिज्म और हाइपर थायरॉइडिज्म का पता करने में मदद करता है। पैप स्मीयर परीक्षण सर्वाइकल कैंसर को आरंभिक स्तर में ही बता कर सचेत कर देता है। ४० वर्ष ३५ वर्ष की आयु में कराए जाने वाले सारे परीक्षण और आंखों की जांच। महिलाओं के लिए: पैप स्मीयर, पेट की सोनोग्राफी, मैमोग्राम। कारण: इस आयु में लोग कोलेस्ट्रॉल, रक्तचाप और मधुमेह के प्रति बेहद संवेदनशील हो जाते हैं। लाभ: दृष्टि कम होने के कारण सिरदर्द, थकान और अन्य परेशानियां हो सकती हैं। महिलाओं के लिए रजोनिवृत्ति के निकट होने के कारण सोनोग्राफी कराना ठीक रहता है, इससे एब्डोमन के सभी अंग लिवर, तिल्ली, किडनी, पैंक्रियाज की भी स्क्रीनिंग हो जाती है। ४५ वर्ष रक्त, मूत्र, छाती एक्सरे, ईसीजी, लिपिड प्रोफाइल, रक्त शूगर, सोनोग्राफी, कार्डियक स्ट्रेस परीक्षण। महिलाओं के लिए: बोन डेसिटोमीट्री और मैमोग्राम। कारण: इस आयु में ह्वदय रोग होने की आशंका बढ़ जाती है। लाभ: टू डी इको ह्वदय के फंक्शन की जानकारी देता है। रजोनिवृत्ति पूर्व की इस अवस्था में महिलाओं के ऑस्टियोपोरोसिस होने का खतरा बढ़ जाता है। ये इसकी रोकथाम में मदद करते हैं। ५० वर्ष रक्त, मूत्र, ईसीजी, लिपिड प्रोफाइल, रक्त शर्करा, सोनोग्राफी, कार्डियक स्ट्रेस परीक्षण। महिलाओं के लिए: गर्भाशय की सोनोग्राफी और ओवरी स्ट्रेस परीक्षण। कारण: ज्यों-ज्यों आयु बढ़ती जाती है, ह्वदय रोग होने की आशंका बढ़ती जाती है। लाभ: समय से परीक्षण कराने पर कैंसर की शुरूआती अवस्था मे पहचान होने पर इलाज संभव है। कार्डियक स्ट्रेस परीक्षण कोरोनरी आर्टरी डिजीज की उपस्थिति और होने की संभावना बता देता है। ५५ वर्ष प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन परीक्षण कारण: पीएसए एक तरह का रक्त परीक्षण है, जो प्रोस्टेट कैंसर की पहचान बताता है। यदि रक्त में इसकी मात्रा अधिक होती है, तो बायोप्सी करानी चाहिए। लाभ: समय से जांच पर कैंसर को बढ़ने से रोका जा सकता है और प्रभावी इलाज संभव है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें नैदानिक परीक्षा (शिक्षा) बाहरी कड़ियाँ कब कराएं मेडिकल टेस्ट (पत्रिका.कॉम) चिकित्सकीय परीक्षण
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%B0%20%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%A4
एपिपोलर रेखागणित
एपिपोलर रेखागणित स्टीरियो कैमरा का संबंध निर्धारित करता हे। जब दो कैमरा अलग जगह से एक त्रिविम दृश्यन स्थल की ओर देखते है, एपिपोलर रेखागणित उस स्थल और उसके कैमरा प्रोजेक्शन की बाधाओं को निर्धारित करता है। परस्पेकटि‌व प्रोजेक्शन जब त्रिविम दृश्यन स्थल की प्रोजेक्शन कैमरा की 2 दृश्यन छवि सतह पर होती है इसे परस्पेकटि‌व प्रोजेक्शन कहते है। यहाँ पिनहोल कैमरा मान लेते है। पिनहोल कैमरा आंतरिक (इनट्रिनसिक) (K द्वारा चिह्नित) मैट्रिक्स मे उसकी फोकल लंबाई, सेंसर लंबाई-चौड़ाई और कैमरा तिरछापन की जानकारी होती है। स्थल की छवि का स्थान कैमरा आंतरिक मैट्रिक्स निर्धारित करता है, पर इस मे स्थल की गहराई खो जाती है। उलटा प्रोजेक्शन से पिक्सल के सथ्ल की दिशा प्राप्त हो सकती है। एपिपोल कैमरा मध्य बिंदू की दूसरी कैमरा पर छवि को एपिपोल कहते है। चित्र मे eL और eR द्वारा चिह्नित एपिपोल हैॅ। OL और OR, बाएँ और दांए कैमरा के क्रम के अनुसार मध्य बिंदू हैं। एपिपोलर रेखा दिये हुअे चित्र मे (eRXR) रेखा दांए कैमरा की एपिपोलर रेखा है। स्थल (X, X1, X2, X3) के प्रोजेक्शन इस एपिपोलर रेखा (eRXR) पर स्थित है। एपिपोलर रेखा स्थल की प्रोजेक्शन की खोजने की जगह घटाता है। यह कंप्यूटर कलन विधियों के द्वारा एक त्रिविम दृश्यन बिंदू स्थान खोजने की गति को तेज करता है। प्रत्येक एपिपोलर रेखा में कम से कम एक एपिपोल होता है। एपिपोलर प्लेन चित्र मे X, OL तथा OR से बने प्लेन को एपिपोलर प्लेन कहते हैं। एपिपोलर प्लेन और कैमरे की छवि सतह के मिलान की रेखा एपिपोलर रेखा होती है। प्रत्येक एपिपोलर प्लेन मे एक रेखा सार्वजनिक होता है, इसे एपिपोलर एक्सिस केहते है। दिये हुअे चित्र मे रेखा (OLOR) एपिपोलर एक्सिस है। फंडामेंटल मैट्रिक्स एपिपोलर रेखागणित के बाधाओं को खोजने के लिए यहाँ दिये हुअे चित्र के तीन रेखाओं का प्रयोग करेंगे (ORX), (OROL), एवं (XOL)। यह तीनों रेखाएं एपिपोलर प्लेन (OR, X, OL) पर स्थित हैं इसलिए इनका वेक्टर ट्रिपल प्रोडक्ट शून्य होना चाहिए। प्रदर्शन के लिए विचार करें कि सथ्ल X की प्रोजेक्शन बाएं और दाएं कैमरा पर (uL, vL) और (uR, vR) क्रम के अनुसार स्थित है। इस बाधा से यह समीकरण मिलता है: PL और PR क्रम के अनुसार दाएं और बाएं कैमरा के होमोजिनिय्स पिकस्ल है। मानलेत‌े है K दोनो कैमराओं के लिए एक समान है। xR और xL की दिशा क्रम के अनुसार ORX और OLX की ओर है। उलटा प्रोजेक्शन से सथ्ल X की दिशा वेक्टर मिलती है जिसे रोटेशन मैट्रिक्स (R द्वारा चिह्नित) से मैट्रिक्स प्रोडक्ट लेके बाएं कैमरा की निर्देशांक फ्रेम मे दरसाते हैं। यहाँ फंडामेंटल मैट्रिक्स (F द्वारा चिह्नित) दोनो कैमराओं की छवि का संबंध निर्धारित करता है। SB मैट्रिक्स (OROL) रेखा (वेक्टर) की क्रौस प्रोडक्ट मैट्रिक्स है। उपयोग एपिपोलर रेखागणित के कुछ उपयोग इस प्रकार हैं: दृश्य ओडोमैट्री दिए गए छवियों के मिलान पिक्सल से एपिपोलर रेखागणित का प्रयोग कर कैमराओं के बीच के स्थान परिवर्तन एक अज्ञात स्केल तक प्राप्त की जा सकती है। गतिवान से संरचना रोबोटिक्स और कंप्यूटर दृष्टि के क्षेत्र में इंजीनियर एपिपोलर रेखागणित का उपयोग कर, विभिन्न सथ्लों का पुनर्निर्माण कंप्यूटर सिमुलेशन में करते हैं। छवि भ्रांत करना एपिपोलर रेखागणित का उपयोग करके, दिए गए दूसरे कैमरा का स्थान से उसकी छवि भ्रांत की जा सकती है। संदर्भ संगणक दृष्टि ज्यामिति
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%88%E0%A4%B6%20%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%A2%E0%A4%BC%E0%A5%80
ईश सोढ़ी
इन्द्रबीर सिंह ईश सोढ़ी () (जन्म ३१ अक्टूबर १९९२) एक न्यूजीलैंड क्रिकेट टीम के खिलाड़ी है और नॉर्थरन डिस्ट्रिक्ट के लिए घरेलू क्रिकेट खेलते हैं। इन्होंने अपने टेस्ट क्रिकेट की शुरुआत २०१३ में बांग्लादेश क्रिकेट टीम के खिलाफ की थी जबकि एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट कैरियर की शुरुआत ०२ अगस्त २०१५ को ज़िम्बाब्वे क्रिकेट टीम के खिलाफ की थी ,ये मुख्य रूप से स्पिन गेंदबाजी की भूमिका निभाते है। सन्दर्भ जीवित लोग 1992 में जन्मे लोग न्यूज़ीलैंड के क्रिकेट खिलाड़ी न्यूज़ीलैंड के वनडे क्रिकेट खिलाड़ी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%82%20%E0%A4%B2%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%80
शानू लहिरी
शानु लहिरी (२३ जनवरी १९२८ - १ फरवरी २०१३) एक बंगाली चित्रकार और कला शिक्षक थी। वह कोलकाता की सबसे प्रमुख महिला सार्वजनिक कलाकारों में से एक थी, कोलकाता में शहर को सुशोभित करने और आक्रामक राजनैतिक घोषणाओं को छिपाने के लिए व्यापक भित्तिचित्र कला ड्राइव का उपक्रम किया। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा लहिरी का जन्म २३ जनवरी १९२८ को कोलकाता (तब कलकत्ता) में मजूमदार परिवार में हुआ था। वह कला और क्राफ्ट, कलकत्ता के गवर्नमेंट कॉलेज की छात्र थी, जहां से उन्होंने १९५१ में स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी। वह एआईएफएसीएस के राष्ट्रपति के स्वर्ण पदक प्राप्त करने के लिए कॉलेज का पहली छात्र थी। जीवनी लहिरी बंगाल कला ऑफ आर्ट की एक चित्रकार थी। चित्रों की उनकी पहली प्रदर्शनी १९५० में हुई थी। १९६० में उन्होंने पेरिस जाने के लिए एक छात्रवृत्ति प्राप्त की, जिसमें भारत और विदेशों में दोनों चित्रकला प्रदर्शनों की एक श्रृंखला थी। १ फरवरी, २०१३ को उनका कोलकाता में निधन हो गया। उन्होंने अपनी आंखों का दान किया, और केरटोला श्मशान में उसका अंतिम संस्कार किया गया। सन्दर्भ २०१३ में निधन भारतीय महिलाएँ भारतीय चित्रकार बंगाली लेखक 1928 में जन्मे लोग कोलकाता के लोग महिला कलाकार
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लम्बा कूच
लॉन्ग मार्च (Long March) या दीर्घ प्रयाण या लम्बा कूच 16 अक्टूबर 1934 से शुरु होकर 20 अक्टूबर 1935 तक चलने वाला चीन की साम्यवादी (कुंगचांगतांग) सेना का एक कूच था जब उनकी फ़ौज विरोधी गुओमिंदांग दल (राष्ट्रवादी समूह) की सेना से बचने के लिए 370 दिनों में लगभग 6000 मील का सफ़र तय किया। वास्तव में यह एक कूच नहीं बल्कि कई कुचों की शृंखला थी जिसमें से जिआंगशी प्रान्त से अक्टूबर 1934 को शुरू हुआ कूच सबसे प्रसिद्ध है। यह कूच माओ ज़ेदोंग (माओ-त्से-तुंग) और झोऊ एन्लाई के नेतृत्व में किये गए और पश्चिमी चीन के दुर्गम क्षेत्रों से गुज़रकर पहले पश्चिम की ओर और फिर उत्तर मुड़कर शान्शी प्रान्त में ख़त्म हुआ। कुल मिलकर इस कूच पर 1,00,000 साम्यवादी सैनिक निकले थे लेकिन इसके अंत कर इनमें से 20% ही जीवित बचे। कालक्रम 1930: Unofficial founding of the Jiangxi–Fujian Soviet by Mao Zedong and Zhu De. 1931: December, Zhou Enlai arrives in Ruijin and replaces Mao as leader of the CCP. 1932: October, at the Ningdu Conference, major CCP military leaders criticize Mao's tactics; Mao is demoted to figurehead status. 1933: Bo Gu and Otto Braun (Li De) arrive from the USSR, reorganize the Red Army, and take control of Party affairs. They defeat four encirclement campaigns. 1933: September 25, start of the Fifth Encirclement Campaign. Bo and Braun are defeated. 1934: October 16, breakout of 130,000 soldiers and civilians led by Bo Gu and Otto Braun, beginning the Long March. 1934: November 25 – December 3, Battle of Xiang River. 1935: January 15–17, Zunyi Conference. The leadership of Bo and Braun is denounced. Zhou becomes the most powerful person in the Party; Mao becomes Zhou's assistant. 1935: June–July, troops under Zhou and Mao meet with Zhang Guotao's troops. The two forces disagree on strategy, and separate. 1935: April 29 – May 8, crossing of the Jinsha River, a major tributary of the Yangtze. 1935: May 22, Yihai Alliance with the Yi people. 1935: May 29, CCP forces capture Luding Bridge. 1935: July, CCP forces cross the Jade Dragon Snow Mountains. 1935: August, CCP forces cross the Zoigê Marsh. 1935: September 16, CCP forces cross the Lazikou Pass. 1935: October 22, Union of the three armies in Shaanxi, end of the Long March. 1935: November, Mao becomes leader of the CCP. Zhou becomes Mao's assistant. इन्हें भी देखें माओ ज़ेदोंग माओ त्से-तुंग चीन का गृहयुद्ध सन्दर्भ चीन का इतिहास चीनी साम्यवादी पार्टी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/2006-07%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B2%20%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%95%20%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%83%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A4%B2%E0%A4%BE
2006-07 राष्ट्रमंडल बैंक श्रृंखला
कॉमनवेल्थ बैंक सीरीज़ 2006-07 सत्र के लिए ऑस्ट्रेलिया में एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट का नाम था। यह ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के बीच एक त्रिकोणीय राष्ट्र शृंखला थी। ऑस्ट्रेलिया ने टूर्नामेंट में सिर्फ सात मैचों के बाद फाइनल में जगह बनाई, और पांच मैचों में भाग लिया, जिसमें पांच गेम खेलना बाकी था। फाइनल में दूसरे स्थान पर सीरीज़ के आखिरी मैच में न्यूज़ीलैंड और इंग्लैंड दोनों ही आए थे और दोनों ने केवल 2 गेम जीते थे; इंग्लैंड ने इस तरह का सेमीफाइनल जीता। इंग्लैंड ने ट्रॉफी उठाने के लिए दो मैचों की फाइनल सीरीज़ जीती, 1997 के बाद से यह उनकी पहली बड़ी एक दिवसीय टूर्नामेंट जीत थी और पिछले 20 वर्षों से उनकी पहली ऑस्ट्रेलियाई त्रिकोणीय शृंखला जीत है, जब उन्होंने एशेज भी जीती थी। सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%91%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%AE%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%A6%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BF%E0%A4%A3%20%E0%A4%85%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%202016
ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम का दक्षिण अफ्रीका दौरा 2016
ऑस्ट्रेलिया राष्ट्रीय क्रिकेट टीम मेजबान टीम के खिलाफ पांच एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय की एक श्रृंखला और आयरलैंड के खिलाफ एक वनडे खेलने के लिए एकान्त सितंबर-अक्टूबर २०१६ में दक्षिण अफ्रीका दौरा कर रहे हैं। पश्चिमी प्रांत क्रिकेट संघ (डब्लूपीसीए) क्रिकेट दक्षिण अफ्रीका (सीएसए) के पांचवें वनडे के बारे में चिंताओं के साथ योम किप्पुर पर आयोजित किया जा रहा उठाया। स्थिरता आगे जाना होगा की योजना बनाई है, लेकिन डब्लूपीसीए कहा है कि मैच भविष्य में धार्मिक दिन के साथ टकराव नहीं है। खिलाड़ी दोनों जेम्स फॉल्कनर और शान मार्श की चोट के कारण इस दौरे से बाहर हो गए थे। मार्श, उस्मान ख्वाजा के साथ बदल दिया गया था जबकि कोई प्रतिस्थापन फॉल्कनर के लिए बनाया गया था। क्रिस मॉरिस उसे दो महीने के लिए बाहर सत्तारूढ़ घुटने की चोट का सामना करना पड़ा। उन्होंने द्वैने प्रेटोरिस से बदल दिया गया था। एबी डी विलियर्स कोहनी की चोट के कारण श्रृंखला से बाहर हो गए और रिली रोसो द्वारा बदल दिया गया था। एबी डिविलियर्स भी ऑस्ट्रेलिया के बाद के दौरे का शासन था। वनडे बनाम आयरलैंड वनडे बनाम दक्षिण अफ्रीका 1ला वनडे 2रा वनडे 3रा वनडे 4था वनडे 5वा वनडे क्रिकेट टीमों के दौरे
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लकी अली
लकी अली (जन्म 19 सितंबर 1958), असली नाम "मकसूद अली (مقصود علی)", एक भारतीय गायक-गीतकार, संगीतकार और अभिनेता है। व्यक्तिगत जीवन अली बॉलीवुड के मशहूर सितारे महमूद के दूसरे बेटे हैं। प्रमुख फिल्में नामांकन और पुरस्कार अली ने भारतीय संगीत दृश्य पर आत्मात्मक एल्बम सुनोह के साथ अपनी शुरुआत की, जिसने उन्हें गायक के रूप में स्थापित किया। इस एल्बम ने 1996 में "स्क्रीन अवार्ड्स" में सर्वश्रेष्ठ पॉप पुरुष वोकलिस्ट और १९९७ में चैनल वी. के "व्यूअर चॉइस अवॉर्ड" सहित भारतीय संगीत में कई शीर्ष पुरस्कार जीते। उनका गाना "ो सनम" बहुत लोकप्रिय हुआ और दुनिय भर में सराहा गया। अभिनय कैरियर वह पहली बार मेहमूद द्वारा निर्देशित 1962 में "छोटे नवाब" (द छोटे राजकुमार) में दिखाई दिए। अभिनय से लंबे समय तक दूर रहने के बाद, वह संजय गुप्ता के काँटे (2002 फ़िल्म) में लौटे, जिसमें उन्होंने किंवदंती अमिताभ बच्चन, संजय दत्त और सुनील शेट्टी जैसे प्रमुख सितारों के साथ काम किया। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ लकी अली का आधिकारिक जालस्थल लकी अली का ब्लॉग बॉलीवुड फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता हिन्दी अभिनेता भारतीय_फिल्म_पार्श्वगायक 1958_में_जन्मे_लोग जीवित_लोग
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ट्यूनीशिया के प्रधानमंत्रियों की सूची
ट्यूनीशिया के प्रधानमंत्री है सरकार के मुखिया का ट्यूनीशिया कार्यालय गणराज्य की घोषणा के साथ 1957 में अपनी उन्मूलन तक 1800 में निर्माण के बाद से। 1969 में रिपब्लिकन प्रणाली के तहत स्थिति को पुनर्जीवित किया गया था। 1969 में कार्यालय के अस्तित्व में आने के बाद से ट्यूनीशिया के 15 प्रधान मंत्री हो चुके हैं। स्वतंत्रता से पहले स्थिति मौजूद थी क्योंकि ट्यूनीशिया के राजा ने सरकार के प्रमुख के रूप में एक भव्य वज़ीर नियुक्त किया था। हालाँकि, 1957 में गणतंत्र घोषित होने पर इसे समाप्त कर दिया गया था। ट्यूनीशिया के 1959 के संविधान ने एक राष्ट्रपति प्रणाली की स्थापना की, जहाँ राष्ट्रपति राज्य के प्रमुख और राष्ट्रपति दोनों थे ।सरकार के प्रमुख । नवंबर 1969 को, राष्ट्रपति हबीब बोरगुइबा ने बही लाडघम को रिपब्लिकन प्रणाली के तहत पहले प्रधान मंत्री के रूप में नियुक्त करके स्थिति को वापस लाया । 2011 की क्रांति से पहले प्रधान मंत्री की भूमिका राष्ट्रपति की सहायता करने तक ही सीमित थी। 2014 में नए संविधान को अपनाने के साथ , संवैधानिक शक्तियों का विस्तार हुआ, जिससे प्रधान मंत्री प्रमुख घरेलू नीतियों के लिए जिम्मेदार हो गए । कम उम्र के व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनने के लिए था युसुफ Chahed उम्र के 40 साल पर जबकि सबसे पुराना था बेजी कैड एससेब्सी उम्र के 85 वर्ष। दो प्रधानमंत्रियों - मोहम्मद घनौची और यूसुफ चहेद - ने एक से अधिक राष्ट्रपतियों के अधीन कार्य किया। बाद में दो प्रधान मंत्री राष्ट्रपति बने: ज़ीन एल अबिदीन बेन अली (1987–2011) और बेजी कैड एस्सेबी (2014–2019)। वर्तमान में सात जीवित पूर्व प्रधान मंत्री हैं। 27 मार्च 2020 को मरने वाले सबसे हाल के पूर्व प्रधान मंत्री हमीद करौई हैं ।
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जटायु अर्थ सेंटर नेचर पार्क
जटायु अर्थ सेंटर, जिसे जटायु नेचर पार्क या जटायु रॉक के नाम से भी जाना जाता है, केरल के कोल्लम के चदयामंगलम में एक पार्क और पर्यटन केंद्र है। यह समुद्र तल से 350 मीटर (1200 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। जटायु नेचर पार्क को दुनिया की सबसे बड़ी पक्षी मूर्ति होने का गौरव प्राप्त है, जो जटायु की है। इस मूर्ति का माप ( लंबा, चौड़ा, ऊंचा और फर्श क्षेत्र में फैला हुआ है। जिसे राजीव आंचल ने तराशा था। यह रॉक-थीम प्रकृति पार्क बीओटी मॉडल के तहत केरल राज्य में पहली सार्वजनिक-निजी भागीदारी पर्यटन पहल थी। पार्क कोल्लम शहर से लगभग और राज्य की राजधानी तिरुवनंतपुरम से दूर है। इस पार्क का कार्य पूर्ण होने के पश्चात , इसे 17 अगस्त 2018 को आगंतुकों के लिए खोल दिया गया है।</onlyinclude> मूल चदयामंगलम (जटायुमंगलम) शहर के पास स्थित पार्क, जिसे जटायु के नाम पर रखा गया था। जटायु रामायण (एक हिंदू महाकाव्य) में एक अर्ध-देवता थे, जिनके पास एक गरुड़ का रूप था। महाकाव्य के अनुसार, रावण जब सीता माता को लंका ले जाने का प्रयास कर रहा था जब जटायु ने उन्हें बचाने की कोशिश की। जटायु ने रावण के साथ बहादुरी से लड़ाई लड़ी, लेकिन जटायु बहुत बूढ़ा होने के कारण रावण ने जल्द ही उसे हरा दिया, रावण ने जटायु के पंख काट दिए थे , और जटायु चादयमंगलम में चट्टानों पर जा कर गिर गये। राम और लक्ष्मण ने सीता की खोज के दौरान, पीड़ित और मरने वाले जटायु का पीछा किया, जिन्होंने उन्हें रावण के साथ युद्ध की सूचना दी और उन्हें बताया कि रावण दक्षिण की ओर चला गया था पार्क मूर्ति प्रतिमा एक किंवदंती का प्रतिनिधित्व करती है, और महिलाओं की सुरक्षा, और उनके सम्मान और सुरक्षा का प्रतीक है।इसे राजीव आंचल ने डिजाइन किया और तराशा था। विस्तार निष्ठा पार्क 4 जुलाई 2018 को आगंतुकों के लिए खोला गया और केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन द्वारा इसका सॉफ्ट-उद्घाटन किया गया।पार्क का पहला चरण का था और इसमें के दायरे वाला साहसिक क्षेत्र शामिल था।29 नवंबर 2015 को दुबई कॉरपोरेशन फॉर टूरिज्म एंड कॉमर्स के स्टेकहोल्डर रिलेशंस के निदेशक, माजिद अल मैरी ने केरल के मुख्यमंत्री श्री ओमान चांडी के साथ निर्माणाधीन जटायु नेचर पार्क का दौरा किया। पहुंच और गुण स्थान और पहुंच यह पार्क केरल के कोल्लम जिले में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। पार्क में जाने के लिए किसी विशेष परिवहन की आवश्यकता नहीं है, हालांकि आगंतुकों को पार्क के शीर्ष तक पहुंचने के लिए केबल कार का उपयोग करना पड़ता है। पार्क में प्रवेश करने के इच्छुक आगंतुकों को एक सशुल्क टिकट प्राप्त करना होगा। पर्यटक केवल कैमरे ला सकते हैं, और किसी भी बैग की अनुमति नहीं है। अन्य वस्तुओं के लिए लॉकर प्रदान किए जाते हैं और शीर्ष में प्रवेश करने से पहले एक सुरक्षा जांच प्रक्रिया होगी। शिलालेख और पट्टिका संग्रहालय के बाहर एक पट्टिका गिरे हुए जटायु को श्रद्धांजलि देती है, के जयकुमार द्वारा अनुवादित एक कविता में, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन द्वारा समर्पित की गई थी। "पहाड़ी के ऊपर कुछ देर चिंतन करते हुए खड़े रहें" यहीं पर जटायु गिरे अपने तालों से ब्लॉक करने और तोड़ने की कोशिश कर रहा है विदेशी सूक्ति जो छल में जब्त एक बेटी का अनमोल मोती...'' सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ कोल्लम ज़िले में पर्यटन आकर्षण रामायण में स्थान भारत में बाह्य मूर्तियाँ भारतीय वास्तुशास्त्र
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सूरज (1966 फ़िल्म)
सूरज 1966 में बनी हिन्दी भाषा की ऐतिहासिक फ़न्तासी और रूमानी फिल्म है। इसका निर्माण एस. कृष्णमूर्ति ने किया और निर्देशन टी प्रकाश राव द्वारा किया गया। फिल्म में वैजयन्ती माला और राजेन्द्र कुमार मुख्य भूमिका में हैं, जबकि मुमताज़, जॉनी वॉकर, ललिता पवार, गजानन जागीरदार, डेविड, आग़ा, मुकरी, मल्लिका और निरंजन शर्मा सहायक भूमिकाओं में हैं। फिल्म में संगीत शंकर-जयकिशन द्वारा दिया गया था, जिसके बोल शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी ने लिखें थे। संक्षेप विक्रम सिंह (डेविड) प्रताप नगर के महाराजा हैं और अपने सेनापति संग्राम सिंह की वर्षों की निष्ठावान सेवा से प्रभावित हैं। वह उसे महाराजा बनाने का फैसला करते हैं और अपनी बेटी अनुराधा की शादी उसके बेटे, प्रताप के साथ करने के लिए सहमत हो जाते हैं। सालों बाद, विक्रम अपने बड़ी हो चुकी अनुराधा (वैजयन्ती माला) को राजकुमार प्रताप सिंह (अजीत) के राज्याभिषेक में जाने और उसे अपने पति के रूप में स्वीकार करने के लिए भेजता है। सफर में बिना किसी सुरक्षाकर्मी के, उसके साथ केवल उसकी सेविका कलावती (मुमताज़) जाती है। कुछ ही समय बाद, विक्रम को सूचित किया जाता है कि कलावती का अपहरण सूरज सिंह (राजेन्द्र कुमार) नाम के एक दस्यु ने किया है। वह तदनुसार संग्राम के पास पहुँचता है और यहीं पर उन्हें झटके के साथ का पता चलता है कि कलावती अनुराधा बन रही है, और वह उसकी बेटी है जिसका अपहरण कर लिया गया है। तब सूरज को गिरफ्तार किया जाता है और उसे एक तहखाने में रखा जाता है, और प्रताप की ताजपोशी और उसके बाद अनुराधा के साथ शादी की तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। मुख्य कलाकार वैजयन्ती माला — राजकुमारी अनुराधा सिंह राजेन्द्र कुमार — सूरज सिंह अजीत — राजकुमार प्रताप सिंह गजानन जागीरदार — राम सिंह आग़ा — कोतवाल भक्ति चरन भारती — गीता सिंह डेविड — महाराजा विक्रम सिंह निरंजन शर्मा — महाराजा संग्राम सिंह ललिता पवार — महारानी मुकरी — अनोखे केशव राणा जॉनी वॉकर — भोला मुमताज़ — कलावती माल्विका — माधुरी नीतू सिंह — बालिका गीता संगीत फिल्म का संगीत शंकर-जयकिशन ने बनाया था। गाने के बोल शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी ने लिखें थे। इस एल्बम में गायिका शारदा की शुरुआत चार्टबस्टर गीत "तितली उड़ी उड़ जो चली" से हुई थी। यह वह गीत है जिसके लिए उन्हें सबसे ज्यादा याद किया जाता है। इस साउंडट्रैक को प्लैनेट बॉलीवुड द्वारा 100 महानतम बॉलीवुड साउंडट्रैक की सूची में 86वें नम्बर पे रखा गया था। "बहारों फूल बरसाओ" गीत 1966 की बिनाका गीत माला वार्षिक सूची में सबसे ऊपर था। इसी तरह, "तितली उड़ी उड जो चली" गीत को 21वें नम्बर पर सूचीबद्ध किया गया था। नामांकन और पुरस्कार बाहरी कड़ियाँ 1966 में बनी हिन्दी फ़िल्म शंकर–जयकिशन द्वारा संगीतबद्ध फिल्में
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इंदूमति
ये विदर्भराज भोज की बहन, राजा अज की पत्नी और दशरथ की माता थी। पूर्व जन्म में यह (हारिणी) अप्सरा थीं। इंद्र ने इन्हें तृणबिंदु ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए भेजा था। ऋषि ने इन्हें मनुष्य योनि में जन्म पाने का अभिशाप दे दिया था। इनके अत्यंत विनय करने पर ऋषि ने इनको स्वर्गीय पुष्प का प्रदर्शन करने पर फिर से इंद्र लोक में वापस हो सकने का वचन प्रदान किया था। एक बार जब ये अज के साथ वाटिका विहार कर रही थी उस समय इन्हें नींद आ गई। ये लता मंडप में सोइ हुई थी। नारद जी, जो उसी समय संयोग वश स्वर्ग से आ रहे थे, वीणा से पारिजात की माला इनके ऊपर गिर पड़ी। फलतः ये दिवंगत होकर पुनः इंद्रलोक पहुँच गई। सन्दर्भ हिंदी साहित्य कोश- भाग-2, पृष्ठ- 41 पौराणिक/साहित्यिक चरित्र
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