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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%B0%E0%A4%B8
मिकी वायरस
मिकी वायरस २०१३ की एक हिन्दी थ्रिलर हास्य फ़िल्म है जिसका निर्देशन सौरभ वर्मा ने किया है। इस फ़िल्म को लिखा भी सौरभ वर्मा ने है और यह 25 अक्टूबर 2013 को सिनेमाघरों में उतारी गई। मिकी वायरस के निर्माता ऑसम फ़िल्म्स के साथ डार मोशन पिक्चर्स ने किया है। फ़िल्म में मुख्य भूमिका में मनीष पॉल, एली अवराम, मनीष चौधरी, पूजा गुप्ता और वरुण बडोला हैं। कथानक मिकी (मनीष पॉल) एक हैकर है, पुलिस इंस्पेक्टर सिद्धार्थ चौहान (मनीष चौधरी) उसे एक गैंग का पर्दाफ़ाश करने के लिए उस गैंग की वेबसाइट हैक करने के काम में लगाता है। इस गैंग के दो लोगों की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो जाती है और पुलिस इन दोनों मौतों की गुत्थी नहीं सुलझा पाती। मिकी इस मिस्ट्री को सुलझाने में पुलिस की मदद कर रहा होता है तभी उसकी गर्लफ़्रेंड कामायनी जॉर्ज (एली अवराम) की हत्या हो जाती है। कामायनी मरने से पहले मिकी से एक बैंक की वेबसाइट हैक करके एक बड़ी रकम एक अकाउंट में ट्रांसफ़र करने के लिए कहती है। चूंकि मरने से ठीक पहले वो मिकी के साथ होती है तो शक की सुई उसी की तरफ़ घूमती है। मिकी अपने दोस्तों की मदद से इस समस्या से निकलने की कोशिश करता है। कलाकार मनीष पॉल - मिकी अरोड़ा एली अवराम - कामायनी मनीष चौधरी - पुलिस इंस्पेक्टर सिद्धार्थ चौहान वरुण बडोला - इंस्पेक्टर देवेन्द्र भल्ला पूजा गुप्ता - चुटनी नितेश पाण्डे - प्रोफेसर राघव कक्कड़ - फ्लोपी विकेश कुमार - पंचो संगीत फ़ील्म का संगीत 3 अक्टूबर 2013 को आय-ट्यून्स ने जारी किया गया। एलबम में छः गाने हैं जिनमें से पाँच की रचना हनीफ शेख ने की है और केवल एक गाने की रचना फैज़ान हुसैन एवं एगनेल रोमन ने की है जबकि हनीफ शेख, मनोज यादव और अरुण कुमार ने गीत लिखे हैं। समालोचना फ़िल्म समीक्षकों को यह फ़िल्म ज्यादा रास नहीं आयी। "आज तक" समाचार के सौरभ द्विवेदी ने इस फ़िल्म को पांच में से ढाई स्टार दिए। ज्यादातर आलोचकों की शिकायत फ़िल्म कि कॉमेडी को लेकर रही। दैनिक भास्कर ने पांच में से केवल 1.5 स्टार दिए और फ़िल्म में साफ़ साफ़ दिखने वाली कमियां भी गिनाईं परन्तु कलाकारों की तारीफ़ कि और लिखा कि कलाकारों ने अपना बेस्ट देने की पूरी कोशिश की। दैनिक जागरण के दुर्गेश सिंह ने फ़िल्म को 2 स्टार देते हुए कहा "अगर आप मनीष पॉल के छोटे पर्दे पर प्रशंसक रहे हैं तो फिल्म देखने जा सकते हैं अन्यथा फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है जिसके लिए फिल्म देखी जाए।" सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक जालस्थल हिन्दी फ़िल्में 2013 में बनी हिन्दी फ़िल्म
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%BE%20%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%A8%20%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE
मानकी मुंडा शासन व्यवस्था
मानकी-मुंडा शासन व्यवस्था झारखण्ड के हो समूह की जनजातियों की एक पारम्परिक शासन प्रणाली है, जिससे परम्परागत रूप से हो लोग शासित होते थे। इस व्यवस्था में कुछ प्रमुख पदाधिकारी होते थे:- मानकी, मुंडा (मुड़ा), डाकुआ/डाकुवा, पाहान/लाया, दिउरी/देउरी, तहसीलदार, आदि। मानकी-मुंडा प्रथा का अनुसरण करने वालों में हो, जनजाति प्रमुख हैं। 1834 के कोल विद्रोह में हो को अधीन करने में अंग्रेजों की विफलता के बाद, आदिवासियों को ब्रिटिश शासन के अधीन रखा गया और इस बात पर सहमत हुए कि उनके शासन की पारंपरिक प्रणाली को जारी रखा जाना चाहिए। विल्किंसन के शासन में 1837 को ब्रिटिश शासन ने मानकी-मुंडा प्रणाली को दोबारा लागू किया। मानकी-मुंडा शासन मुंडा शासन व्यवस्था से अलग है| मानकी-मुंडा प्रणाली यह छोटानागपुर (खासकर कोल्हान) में हो जनजातियों की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था थी। यह प्रणाली दो स्तरों पर कार्य करती है — ग्राम और पीड़। 1. मानकी:- 15-20 गांव के मुंडाओं के ऊपर एक मानकी होता है। वह गांवों के समूह का प्रमुख होता है। यह मुण्डाओं से लगान भी वसूलता था। मुंडाओं के द्वारा विवादों को नहीं सुलझा पाने की स्थिति में विवाद को मानकी के पास भेजा जाता था। 2. मुंडा:- यह गांव का प्रधान होता है। इसे प्रशासन लेने का अधिकार है, परती भूमि का भी वह बंदोबस्ती कर सकता है। कुछ क्षेत्रों में इन्हें मुड़ा भी कहा जाता था। 3. डाकुआ:- यह मुंडा का सहायक होता है। मुंडा गांवों में डाकुआ द्वारा बैठकों, समारोहों, उत्सवों, पर्व-त्योहारों और अन्य अवसरों के लिए ग्रामीणों को सूचित करता है। 4. तहसीलदार:- यह मानकी का सहायक होता था, तहसीलदार के माध्यम से ही मुंडाओं सेे मालगुजारी वसूलता था। 5. दिउरी:- यह गांवों का धार्मिक प्रधान होता है और सामूहिक धार्मिक अनुष्ठान और समारोह का संचालन करता है। यह धार्मिक अपराध जैसे मामलों को भी सुलझाता है। 6. पाहान/लाया:- यह गांवों का मुख्य पुजारी होता है जो गांवों के समुदायिक धार्मिक अनुष्ठानों में पूजा करता है। जनजातियों का प्रमुख मानकी-मुंडा प्रणाली में ग्राम स्तर पर गांवों का प्रमुख मुंडा (मुड़ा) होता है तथा पीड़ स्तर पर गांवों का प्रमुख मानकी होता है। वर्तमान स्थिति कोल विद्रोह के परिणाम स्वरूप, कोल्हान को दक्षिण-पश्चिम फ्रंटियर एजेंसी घोषित कर दिया गया। कैप्टन विल्किंस को इस क्षेत्र का एजेंट बनाया गया। विल्किंस ने इस क्षेत्र की पारंपरिक नागरिक और न्यायिक स्वशासन व्यवस्था का अध्ययन किया और 1837 में इस प्रणाली को ब्रिटिश शासन ने समझौते के तहत लागू किया। 1947 में भारत की आज़ादी के बाद भी इस आदिवासी पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को रद्द या संशोधन नहीं किया गया। हालांकि, इस प्रणाली की लोकप्रियता कम होने लगी। 2018 में, तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने मानकी-मुंडा प्रणाली को आधुनिक युग में भी प्रासंगिक बताया है। फरवरी 2021 में, झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मानकी-मुंडा प्रणाली को दोबारा क्रियाशील बनाने की घोषणा की। झारखण्ड सरकार ने मानकी-मुंडा शासन व्यवस्था की अपेक्षा मांझी-परगना शासन व्यवस्था पर अधिक ध्यान दिया, जिस कारण मानकी और मुंडाओं का सम्मान और विकास नहीं हुआ। उल्लेखनीय लोग मदरा मुंडा : सुतियाम्बे के मुंडा फणि मुकुट राय : सुतियाम्बे का मानकी बिरसा मुंडा : उलिहातु का मुंडा गंगा नारायण सिंह : बांधडीह का मानकी/सरदार जगन्नाथ सिंह : दामपाड़ा का मानकी/सरदार रघुनाथ सिंह : दामपाड़ा का मानकी/सरदार जगन्नाथ धल : घाटशिला का मानकी बिंदराय मानकी : बंदगांव का मानकी सिंदराय मानकी : बंदगांव का मानकी इन्हें भी देखें मांझी परगना शासन व्यवस्था सन्दर्भ झारखंड की संस्कृति
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%98%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%97%E0%A4%A1%E0%A4%97%E0%A4%95%E0%A4%B0
राघवेंद्र गडगकर
प्रो॰ राघवेंद्र गडगकर (अँग्रेजी:Raghavendra Gadagkar, जन्म: 28 जून 1953), एक भारतीय जैवविज्ञानी हैं और बंगलुरू स्थित भारतीय विज्ञान अकादमी के सेंटर फॉर इकोलॉजिकल ऑफ सांइस में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। वे भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने भारत और जर्मनी के बीच अनुसंधान सहयोग को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्हें विगत 7 अगस्त, 2015 को जर्मनी के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘द क्रास ऑफ द ऑर्डर ऑफ मेरिट’ से बंगलुरू स्थित जर्मनी वाणिज्य दूतावास में सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान व्यवहार पारिस्थितिकी और समाज जीव-विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रदान किया गया है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ प्रो॰ राघवेंद्र गडगकर का व्यक्तिगत जाल स्थल राघवेंद्र गडगकर के क्लोकियम लेक्चर से संबंधित समाचार (दैनिक भास्कर) भारतीय वैज्ञानिक 1953 में जन्मे लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%AE%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%B0%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9%20%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8
शमशेर सिंह मन्हास
शमशेर सिंह मन्हास (जन्म ४ जनवरी १९६० को जम्मू, भारत में) भारतीय जनता पार्टी के राजनेता जम्मू और कश्मीर के हैं । वे स्वर्गीय जनक सिंह के पुत्र हैं। वे पेशे से कृषक और राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वह खिलाड़ी भी हैं। शमशेर सिंह मन्हास जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक प्रसिद्ध व्यक्तित्व हैं। वह फरवरी २०१५ में भाजपा के टिकट से जम्मू और कश्मीर से राज्य सभा के लिए चुने गए। संदर्भ भारतीय जनता पार्टी के राजनेता जो जम्मू-कश्मीर के हैं जम्मू और कश्मीर से राज्यसभा सदस्य जम्मू के लोग जीवित लोग 1960 में जन्मे लोग Pages with unreviewed translations
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अनुप्रिया गोयनका
अनुप्रिया गोयनका (जन्म; २९ मई १९८७, कानपुर, उत्तर प्रदेश, भारत) एक भारतीय बॉलीवुड तथा टेलीवुड अभिनेत्री है जिन्होंने २०१८ में सलमान ख़ान और कैटरिना कैफ की मुख्य पात्र के साथ टाइगर जिंदा है तथा पद्मावत फ़िल्म में अभिनय किया है। ये हिन्दी के अलावा तेलुगु भाषी फिल्मों में भी कार्य करती है। उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर की कहानियों के साथ अपना वेब डेब्यू किया और सेक्रेड गेम्स, अभय, क्रिमिनल जस्टिस, असुर: वेलकम टू योर डार्क साइड, आश्रम और क्रिमिनल जस्टिस: बिहाइंड क्लोज्ड डोर्स जैसी सफल श्रृंखलाओं में दिखाई दीं। व्यक्तिगत जीवन अनुप्रिया गोयनका का जन्म २९ मई १९८७ को उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ था। इनके पिता एक कपड़े के उद्योगपति है जबकि माँ गृहिणी है। गोयनका की दो बड़ी बहन है जबकि एक भाई है। इन्होंने अपनी विद्यालयी शिक्षा ज्ञान भारती विद्यालय, साकेत, नई दिल्ली से की थी और इसके बाद इन्होंने स्नातक की पढ़ाई कॉमर्स में शहीद भगत सिंह कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से की थी। फ़िल्मोग्राफी टेलीविजन स्टोरीज़ बाय रवींद्रनाथ टैगोर (2015) क्रिमिनल जस्टिस- बिहाइंड क्लोज़्ड डोर्स सन्दर्भ भारतीय अभिनेत्री 1987 में जन्मे लोग जीवित लोग कानपुर के लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B0%20%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE
दिवाकर शर्मा
दिवाकर शर्मा (१९३३ चूरु,राजस्थान-२००९) संस्कृत, हिंदी तथा राजस्थानी भाषाओं के विद्वान थे। आपने संस्कृत की कलाधिस्नातक परीक्षा कोटा में उत्तीर्ण की थी तथा पीएच. डी. की उपाधि राजस्थान विश्वविद्यालय (जयपुर) से प्राप्त की थी। आपको साहित्य, संस्कृति तथा इतिहास का प्रतिबोधन अपने पिताश्री विद्यावाचस्पति विद्याधर शास्त्री तथा चाचाजी प्रोफेसर दशरथ शर्मा से हुआ। डूंगर कॉलेज, बीकानेर में आप संस्कृत के प्राध्यापक नियुक्त हुए, इस पद से आपकी सेवा निवृत्ति १९९१ में हुई। इसके पश्चात आपने संस्कृत, हिंदी तथा राजस्थानी के प्रोत्साहन हेतु स्थापित संस्था, हिंदी विश्व भारती अनुसंधान परिषद् (बीकानेर) का निर्देशन किया। परिषद् की शोध पत्रिका विश्वम्भरा के आप जीवन पर्यन्त संपादक रहे। आपके निर्देशन में अनेक संस्कृत शोधार्थियों ने पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की। प्रकाशन राजस्थान के संस्कृत साहित्य-सृजन में बीकानेर शेत्र का योगदान (१४७२-१९६५ ई.) आपका मुख्य प्रकाशित ग्रन्थ है। ग्रन्थ में बीकानेर शेत्र के संस्कृत साहित्य का विवेचन तथा संस्कृत साहित्य के इतिहास का वर्णन है। विचित्र पत्रं आपकी द्वितीय रचना है। डॉ॰ दशरथ शर्मा लेख-संग्रह एवं गिरधारीसिंह परिहार-व्यक्तित्व एवं कृतित्व आपकी सहलेखित रचनाएँ हैं। डॉ॰ दशरथ शर्मा लेख-संग्रह में डॉ॰ शर्मा द्वारा लिखित चार सौ से अधिक लेखों की सूची है। गिरधारीसिंह परिहार-व्यक्तित्व एवं कृतित्व में कवि की कृतियों का विवरण तथा विवेचन है। इसके अतिरिक्त डॉ॰ दिवाकर शर्मा के महत्त्वपूर्ण लेख कई शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। संपादन हिंदी विश्व भारती अनुसंधान परिषद् की त्रैमासिक शोध पत्रिका विश्वम्भरा के आप संपादक रहे। राजस्थानी ज्ञानपीठ की राजस्थानी भाषा पत्रिका राजस्थानी गंगा के संपादन कार्य से भी आप सम्बंधित रहे। वरदा,वैचारिकी तथा कला-दर्शन पत्रिकाओं के परामर्श मंडल के भी आप सदस्य रहे। सम्मान राजस्थान संस्कृत अकादमी (जयपुर) द्वारा विशिष्ट विद्वत सम्मान राजस्थान साहित्य अकादमी (उदयपुर) द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान राजस्थान की अनेक सांस्कृतिक और साहित्यिक संस्थाओं ने आपको सम्मान प्रदान किये। सदस्यता राजस्थान साहित्य अकादमी (उदयपुर) की सरस्वती तथा संचालिका के सदस्य राजस्थानी भाषा एवं संस्कृत अकादमी के कोषाध्यक्ष आप अनेक सांस्कृतिक तथा साहित्यिक संस्थाओं के सदस्य रहे। रचनाएँ राजस्थान के संस्कृत साहित्य-सृजन में बीकानेर शेत्र का योगदान (१४७२-१९६५ ई.), प्रकाशक: कलासन प्रकाशन, बीकानेर २००८. विचित्र पत्रम डॉ॰ दशरथ शर्मा लेख संग्रह (प्रथम भाग), संपादक: मनोहर शर्मा, दिवाकर शर्मा; प्रकाशक: हिंदी विश्वभारती अनुसंधान परिषद्, बीकानेर १९७७ गिरधारीसिंह परिहार- व्यक्तित्व एवं कृतित्व, प्रकाशक: राजस्थान ज्ञानपीठ संस्थान, बीकानेर २००१ स्तोत्र सामग्री डॉ॰ दिवाकर शर्मा (संक्षिप्त परिचय) विश्वम्भरा: जुलाई-दिसम्बर '०९/२ सन्दर्भ संस्कृत विद्वान राजस्थान के लोग 1933 में जन्मे लोग राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र २००८ में निधन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%28%E0%A4%B8%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A5%80%20%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A4%AC%29
सेला (सउदी अरब)
सेलाह ( ) आधुनिक सऊदी अरब के मदीना शहरस्थित एक पर्वत है। सऊदी अरब के मदीना नगर में "सात मस्जिदों के जिले" में सेला है। सेला का अर्थ है "कटा हुआ", क्युंकि ऐसा लगता है पहाड़ जैसे किसि चीज से यह कई बार कटा हुआ हो। खाई की लड़ाई में इस्लामी पैगंबर मुहम्मद ने सेला पर्वत पर जीत के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। माउंट सेला का उल्लेख मुहम्मद की कहानियों की कई हदीस में किया गया था जैसे कि द प्रेयर फॉर रेन, द माफी की बी। मलिक। सेलाह का उल्लेख अल-हमदानी ने अपनी पुस्तक भूगोल में अरब प्रायद्वीप के भूगोल में मुहम्मद के 150 साल बाद अपने समय में मदीना शहर के हिस्से के रूप में किया है। उनका नाम और उनके साथी उमर और अली का नाम पहाड़ के ऊपर एक पत्थर पर खुदा हुआ है। कहा जाता है कि सेला बाइबिल में उल्लिखित है, जो इस्लाम के पैगंबर को भी संदर्भित कर सकता है: 11 जंगल और उसरके शहरों को अपनी आवाज़ उठाने दें; उन बस्तियों को खुश होने दें जहां केदार रहते हैं । सेला के लोगों को खुशी के लिए गाने दो; उन्हें पहाड़ से चिल्लाने दें। 12 उन्हें प्रभु को महिमा देने दो और द्वीपों में उसकी प्रशंसा का प्रचार करें। 13 प्रभु एक चैंपियन की तरह बाहर निकलेंगे, एक योद्धा की तरह वह अपने जोश को हलचल करेंगे; एक चिल्लाओ के साथ वह लड़ाई रोना बढ़ा देंगे और अपने दुश्मनों पर विजय प्राप्त करेगा। मुसलमानों का कहना है कि यहूदी सेला पर्वत के पास मदीना में रह रहे थे क्योंकि उन्होंने यह भविष्यवाणी पढ़ी थी और वे जानते थे कि एक नबी आ रहा है। इसीलिए जब भी वे बानू कुरैजा से लड़ते थे तो वे कहते थे कि हमारा समय निकट है पैगंबर आने वाला है, वह हमारे खिलाफ आपसे लड़ेंगे। हालाँकि अधिकांश ईसाई और यहूदी यशायाह 42 में सेला को एडन, आधुनिक दिन जॉर्डन में सेला के संदर्भ में मानते हैं, जो प्राचीन केदार में स्थित है। ईसाइयों का दावा है कि यह शब्द अडोनाई (ईश्वर) है। अगर वे मान लेते हैं कि यह मुहम्मद की भविष्यवाणी है तो यह उन्हें ईश्वर बना देगा। जवाब में मुस्लिम विद्वानों ने यह कहते हुए इसका जवाब दिया कि अडोनाई शब्द का अर्थ "प्रभु", न हैं सिर्फ "ईश्वर"। इसलिए कि ये अध्याय योद्धा के बारे भविष्यवाणी करता है और यह केवल पैगंबर मुहम्मद पर ही मिल सकते है। संदर्भ बाहरी संबंध मदीना नगर पालिका द्वारा माउंट Selae की फोटो । फोटो, कटा हुआ पहाड़ सउदी अरब के पर्वत विकिडेटा पर उपलब्ध निर्देशांक अरबी भाषा पाठ वाले लेख
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अनमोल केसी
अनमोल केसी एक नेपाली फ़िल्म अभिनेता हैं, जो नेपाली फिल्मों में दिखाई देते हैं। इन्होंने सन २०१३ में अभिनय की दुनिया में अपनी पहली फिल्म होस्टेल से शुरुआत की। अनमोल को अपनी पहली बड़ी व्यावसायिक सफलता २०१३ में रिलीज़ हुई जेरी से मिली। फ़िल्मोग्राफ़ी बाहरी कड़ियाँ मिलिए नेपाल के सुपरस्टार से जिसकी हर फिल्म होती है ब्लॉकबस्टर, लेता है मोटी फीस इन्हें भी देखें नेपाल के लोग जीवित लोग नेपाली अभिनेता 1994 में जन्मे लोग
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अजय शर्मा
अजय कुमार शर्मा (जन्म 3 अप्रैल 1964, दिल्ली में) एक पूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी है। अजय शर्मा प्रथम श्रेणी के क्रिकेट में मुख्य रूप से दिल्ली के लिए एक शानदार रन बनाने वाले खिलाड़ी थे, जिन्होंने 67.46 के औसत से 10,000 रन बनाये। 50 पारी की न्यूनतम योग्यता को देखते हुए, केवल तीन खिलाड़ी (सर डोनाल्ड ब्रेडमैन, विजय मर्चेंट और जॉर्ज हेडली) ने प्रथम श्रेणी के क्रिकेट में इस औसत के साथ रन बनाया है। इन्हें भी देखें मैच फिक्सिंग के कारण प्रतिबंधित क्रिकेटरों की सूची सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ क्रिकइन्फो प्रोफाइल: अजय शर्मा भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी 1964 में जन्मे लोग जीवित लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%8B%20%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%87%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A8
तेराकादो सेइकेन
तेराकादो सेइकेन (寺門静軒) (1796 - अप्रैल 16, 1868) एक कुन्फ़्यूशियसी विद्वान थे जो एदो काल के दौरान जापान में रहते थे। वे टोक्यो के बारे में लिखने के लिए जाने जाते हैं। प्रारम्भिक जीवन तेराकादो का जन्म 1796 में मितो डोमेन में हुआ था। उनके पिता एक छोटे सरकारी अधिकारी थे, जिनकी मौत तब हुई जब तेराकादो 13 साल का था । अपने पिता की मौत के बाद कुन्फ़्यूशियसी धर्म की ओर मुड़ने और अंततः एक स्कूल खोलने से पहले वे एक अपचारी जीवन शैली रखते थे। अपने पिता की तरह वे समुराई के रूप में मामूली पद पर थे। पेशेवर जीवन 1831 में उन्होंने "ए अकाउंट ऑफ द प्रास्पेरिटी ऑफ एदो" (江戸繁昌記, एदो हंजोकी) शीर्षक से निबंधों की एक श्रृंखला लिखी। निबंध एक पुस्तक के रूप में संकलित और 1838 में प्रकाशित किए गए थे। निबंध पर 1835 में एडो अधिकारियों द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया था, और वे वुडब्लॉक जिनसे पुस्तक को छापा गया था, प्रकाशन के बाद 1842 में जब्त कर लिए गए थे। साथ ही तेराकादो के अधिकारी होने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। एक समुराई के रूप में अपना पद खोने के बाद वे जापान घूमें और एक स्कूल के शिक्षक और लेखक के रूप में काम किया। 16 अप्रैल, 1868 को उनका निधन हो गया। एदो हंजोकी तोकुगावा सरकार का तीखा सामाजिक व्यंग्य था। उन्होंने कन्बन लिपि में अधिकांश निबंध लिखे, जिनका उपयोग आमतौर पर केवल सरकारी दस्तावेजों में किया जाता है। यह उन विषयों को और गंभीरता से दर्शाता है, जिनके बारे में उन्होंने लिखा था, यहाँ तक की आम लोगों के बीच झगड़े के खातों को भी महाकाव्य लड़ाइयों के स्तर पर पहुचा दिया था। जब होंजो जैसे अमीर जिलों के बारे में लिखते हैं, तो उन्होंने वेश्यालयों जैसे अधिक असामंजीय हिस्सों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने तोकुगावा सरकार की व्यवस्था के भीतर आर्थिक असमानताओं पर अधिक प्रकाश डालने के लिए ऊपरी और निचले वर्गों को भी अक्सर बारीकी से विभेदित किया। एदो हंजोकी ने सामाजिक आलोचकों और लेखकों की बाद की पीढ़ियों को प्रभावित किया। तेराकादो के काम के बारे में बाद में बड़े पैमाने पर विद्वान एंड्रयू एल मारकस द्वारा लिखा गया था। संदर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9F%E0%A5%89%E0%A4%AE%E0%A5%80%20%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A4%B0
टॉमी हिलफिगर
टॉमी हिलफिगर, जिसे पहले टॉमी हिलफिगर कॉर्पोरेशन और टॉमी हिलफिगर इंक के नाम से जाना जाता था, एक अमेरिकी प्रीमियम कपड़ों की कंपनी है, जो परिधान, जूते, सामान, सुगंध और घरेलू सामान बनाती है। कंपनी की स्थापना 1985, और आज यह डिपार्टमेंटल स्टोर्स और 90 देशों में 1400 से अधिक फ्री-रिटेल स्टोर्स में बेची जाती है। 2006 में, निजी इक्विटी फर्म Apax Partners ने टॉमी हिलफिगर का अधिग्रहण लगभग 1.6 बिलियन डॉलर और मई 2004 में PVM Corp. (एनवाईएसई: पीवीएच) (तब फिलिप्स वैन हेसेन के रूप में जाना जाता है) ने कंपनी को खरीदा। डैनियल ग्राइडर को जुलाई 2014 में सीईओ नियुक्त किया गया था, जबकि संस्थापक टॉमी हिलफिगर कंपनी के प्रमुख डिजाइनर बने हुए हैं, जो डिजाइन टीमों का नेतृत्व करते हैं और पूरी रचनात्मक प्रक्रिया की देखरेख करते हैं। 2013 में ब्रांड के माध्यम से खुदरा बिक्री में वैश्विक बिक्री यूएस $ 6.4 बिलियन थी, और 2014 में 6.7 बिलियन डॉलर थी। संदर्भ बाहरी कड़ियाँ Tommy.com कपड़ों के ब्रांड्स
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%97
अपतानी लोग
अपतानी या तानी अरुणाचल प्रदेश की एक जनजाति है। ये लोग अरुणाचल के लोवर सुबंसिरि जिले के जीरो वैली में पाये जाते हैं। इनकी कुल जनसंख्या लगभग 60,000 है। इनकी भाषा का नाम भी 'अपतानी भाषा' है जो चीनी-तिब्बती परिवार की भाषा है। ये सूर्य और चंद्रमा की पूजा करते हैं. ये अपने भूखंडों पर धान की खेती के साथ साथ जलीय कृषि का भी कार्य करते है. घाटी में धान मछली उत्पादन की संस्कृति इस राज्य की एक अनोखी पद्धति हैं. भारत की जनजातियाँ निचला सुबनसिरी ज़िला
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नवयान
नवयान बौद्ध धम्म का एक पुनर्जीवित रूप हैं, जो परमपूज्य डॉ बाबासाहेब भीमराव आम्बेडकर द्वारा किया गया हैं। नवयान का अर्थ है - " नवबौद्ध "। इस बौद्ध धम्म के सारे अनुयायि "आम्बेडकरवादी बौद्ध" होते हैं, इन बौद्धों का आम्बेडकर द्वारा निर्धारीत बाईस प्रतिज्ञाओं का पालन करना अनिवार्य तथा महत्वपूर्ण माना जाता हैं जो डॉ आम्बेडकर ने 14 अक्तुबर 1956 को धम्म परिवर्तन समारोह में दी थी। डॉ आम्बेडकर के इन धम्म परिवर्तीत बौद्ध धम्म अनुयायिओं को भारत सरकार तथा राज्य सरकारों ने "नवबौद्ध" नामक संज्ञा दी हैं। नवयान महायान, थेरवाद और वज्रयान आदी से कुछ मामलों में भिन्न हैं। 2011 के अनुसार, कुल भारतीय बौद्धों में अधिकांश यानी 87% हिस्सा नवयानी बौद्धों (नवबौद्ध) का हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में नवयानी बौद्धों की आबादी 24 से 25 करोड़ तक हैं.... डॉ आम्बेडकर व पत्रकार वार्ता डॉ आम्बेडकर को बौद्ध धम्म का स्वीकार करने से एक दिन पूर्व पत्रकार ने पूछा की, ‘आप जो बौद्ध धम्म अपनाने वाले है वो महायान बौद्ध धर्म होगा या हीनयान बौद्ध धर्म ?’ उत्तर में आम्बेडकर ने कहा की, ‘‘मेरा बौद्ध धर्म न तो महायान होगा और न ही हीनयान होगां, इन दोनों संप्रदायों में कुछ समायरूप भिन्न बातें हैं इसलिए ये बौद्ध धम्म सिर्फ बौद्ध धम्म'' होंगा। जिसमें भगवान बुद्ध के मूल सिद्धांत और केवल विवेकवादी सिद्धांत ही होंगे। बौद्ध धम्म में हिंदू धर्म जैसे किसी भी तरह की जातियां , उच नीच , भेदभाव , कुरीतिया , देव , स्वर्ग नरक , अंधश्रद्धा नही होंगी। सबको समान अधिकार , समता , बंधुंता, दया , करुणा होंगी। यह ‘ बौद्ध धम्म’ होंगा।’’ पत्रकार ने फिर पूछां, “क्या हम इसे बुद्ध धम्म का पुनर्जीवन कह सकते है ?”डॉ आम्बेडकर ने कहा की, आप कह सकते हैं किंतु मैं नहीं कहुंगा। भारत के बौद्ध बोधिसत्व डॉ भीमराव आम्बेडकर और गौतम बुद्ध को एक ही समान सम्मान देते है, क्योंकि वे डॉ भीमराव आम्बेडकर को अपने उद्धारक मार्गदाता तथा भगवान बुद्ध को अपने मार्गदाता मानते है। शुरूवात वर्तमान भारत में जब-जब भगवान बुद्ध को स्मरण किया जाता है, तब-तब स्वाभाविक रूप से डॉ भीमराव आम्बेडकर का भी नाम लिया जाता है। भारतीय स्वतंत्रता के बाद बहुत बड़ी संख्या में एक साथ डॉ॰ आंबेडकर के नेतृत्व में सामूदायिक बौद्ध धम्म परिवर्तन हुआ था। 14 अक्तूबर, 1956 को नागपुर में यह दीक्षा सम्पन्न हुई, जिसमें डॉ आम्बेडकर के साथ 50,00,000 समर्थक बौद्ध बने है, अगले दिन 50,00,000 एवं तिसरे दिन 16 अक्टूबर को चन्द्रपुर में 30,00,000 अनुयायी बौद्ध बने। इस तरह 1 करोड़ 30 लाख से भी अधिक लोगों को डॉ आम्बेडकर ने केवल तीन दिन में बौद्ध बनाया था। इस घटना से भारत में बौद्ध धम्म का पुनरूत्थान या पुनर्जन्म हुआ। मार्च 1959 तक 1.5 से 2 करोड़ लोग बौद्ध बने थे। बौद्ध धम्म भारत के प्रमुख धर्मों में से एक है। बुद्ध धम्म यह प्राचीन काल से है। धम्म ग्रंथ भगवान बुद्ध और उनका धम्म (The Buddha and His Dhamma), डॉ. बी.आर. आम्बेडकर द्वारा लिखित (मूल संस्करण अंग्रेजी भाषा में) सिद्धांत मैं स्वीकार करता हूँ और बुद्ध की शिक्षाओं का पालन करूंगा। मैं हिंदू धार्मिक रुढ़ियों से, भेदभाव से , अंधश्रद्धा से भारतीय लोगों को दूर रखूंगा। हमारा बौद्ध धम्म सबका बौद्ध धम्म है।— डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर, शाम होटल, नागपुर में 13 अक्टूबर 1956 को प्रेस साक्षात्कार बौद्धों का जीवन सुधार सन 2001 की जनगणना के मुताबिक देश में बौद्धों की जनसंख्या 15 करोड़ है जिनमें से अधिकांश बौद्ध (नवबौद्ध) यानि हिंदू से धर्म बदल कर बने हैं। सबसे अधिक 5 करोड़ बौद्ध महाराष्ट्र में बने हैं। उत्तर प्रदेश में 3 करोड़ के आसपास नवबौद्ध हैं। पूरे देश में 1991 से 2001 के बीच बौद्धों की आबादी में 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 1. लिंग अनुपात बौद्धों के बीच महिला और पुरुष का लिंग अनुपात 981 प्रति हजार है। हिन्दुओं (952), मुसलमानों (896), सिख (940) और जैन (944) 2. बच्चों का लिंग अनुपात (0-6 वर्ष) 2001 की जनगणना के अनुसार बौद्धों के बीच लड़कियों और लड़कों का लिंग अनुपात 978 हैं। हिन्दुओं (942), सिख (935) और जैन (940)। 3. साक्षरता दर बौद्ध अनुयायिओं की साक्षरता दर 78.7 प्रतिशत हैं। इस दर में भी हिंदुओं (72.1), मुसलमानों (62.1) और सिखों (69.4) 4. महिलाओं की साक्षरता बौद्ध महिलाओं की साक्षरता दर 72.9 प्रतिशत है। हिंदुओं (66.7) और मुसलमानों (50.1) 5. काम में भागीदारी दर बौद्धों के लिए यह दर 55.6 हैं। यह दर हिंदुओं (46.4), मुसलमानों (31.3) ईसाई (32.0), सिख (42.4) जैन (45.7)। जनसंख्या भारतीय बौद्धों में 95% से अधिक नवबौद्ध हैं। 2011 की भारतीय जनगनणा के अनुसार भारत में बौद्ध करीब 8.5 करोड़ यानी 7% हैं, लेकिन अन्य सर्वेक्षण और विद्वानों के अनुसार भारत में 19% से 22% या 24 करोड़ से 25 करोड़ बौद्ध हैं। इन्हें भी देखें बौद्ध-दलित आंदोलन नवबौद्ध सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ डॉ. अम्बेडकर का मत परिवर्तन और बौद्ध धर्म आंबेडकर के नवयान के ज्ञानमीमांसीय आधार बौद्ध धर्म भारत में बौद्ध धर्म बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय भीमराव आंबेडकर Science journey channel
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%A4-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%20%E0%A4%86%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%A8
गिलगित-बाल्तिस्तान संयुक्त आंदोलन
गिलगित-बाल्तिस्तान संयुक्त आंदोलन (GBUM) पाकिस्तान के स्कार्दू में स्थित गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र का एक राजनीतिक आंदोलन है। यह गिलगित और बाल्टिस्तान को मिलाकर एक पूरी तरह से स्वायत्त राज्य बनाने की मांग करता है। इस इलाक़े को अंग्रेज़ों के ज़माने में उत्तरी क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। GBUM कहता है कि गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र (जो पहले उत्तरी क्षेत्र के नाम से जाना जाता था), को "गिलगित-बाल्तिस्तान" के रूप में निरूपित किया जाना चाहिए और उत्तरी क्षेत्र विधान परिषद को "स्वतंत्र संवैधानिक सभा" का दर्जा दिया जाना चाहिए जिस तरह के अधिकार दिए गए हैं मौजूदा पाक अधिकृत कश्मीर विधान सभा की विधान सभा को दिए गए हैं। अतीत की स्वतंत्रता को पुनः प्राप्त करने का दावा GBUM के अनुसार, यह क्षेत्र कुछ समय के लिए एक स्वतंत्र राष्ट्र था। यह तर्क निम्नलिखित घटनाक्रम पर आधारित है। 1 नवंबर, 1947- कश्मीर रियासत के डोगरा शासकों का शासन समाप्त हुआ 16 नवंबर, 1947- पाकिस्तानी सेना और कबीले वालों ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया । इसका अर्थ निकलता है कि 1 से 16 नवम्बर तक गिलगित-बाल्तिस्तान एक आज़ाद मुल्क था। ब्रिटिश मेजर विलियम ब्राउन के अनुसार, 1 नवंबर, 1947 को कश्मीर के गिलगित स्काउट्स ने महाराजा के सशस्त्र बलों को हटाकर "गिलगित-एस्टोर गणतंत्र" स्थापित करने की गुप्त योजना बनायी थी। गिलगित-बाल्तिस्तान नेशनल अलायंस (GBNA) GBUM से पहले, एक गिलगित-बाल्तिस्तान नेशनल एलायंस (GBNA) हुआ करता था, जो बलवारिस्तान नेशनल फ्रंट (एक बड़ी राजनीतिक इकाई, जो बलवारीस्तान की स्वतंत्रता का दावा करती थी) के साथ में उन्हीं दावों को बढ़ावा देता था। संदर्भ बाहरी कड़ियाँ पाकिस्तान के उत्तरी क्षेत्रों में, एशिया रिपोर्ट एन ° 131 ( अंतर्राष्ट्रीय संकट समूह ), 2 अप्रैल 2007 पाकिस्तान के राजनैतिक दल
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मार्टी केन
मार्टी केन (जन्म 16 मई 1988) न्यूजीलैंड में जन्मे अमेरिकी क्रिकेटर हैं, जो 2009 और 2017 के बीच सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट्स के लिए खेले और वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए खेलते हैं। जून 2020 में, उन्होंने ग्रीस में थेसालोनिकी स्टार क्रिकेट टीम के मुख्य कोच के रूप में एक कार्यकाल बिताया। जून 2021 में, उन्हें खिलाड़ियों के मसौदे के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका में माइनर लीग क्रिकेट टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए चुना गया था। दिसंबर 2021 में, केन को आयरलैंड के खिलाफ उनकी श्रृंखला के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के ट्वेंटी 20 अंतर्राष्ट्रीय (टी20आई) टीम में नामित किया गया था। बाद में उन्हें आयरलैंड के खिलाफ उनके मैचों के लिए यूएसए के एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) टीम में शामिल किया गया। उन्होंने 22 दिसंबर 2021 को आयरलैंड के खिलाफ संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए अपना टी20आई पदार्पण किया। सन्दर्भ क्रिकेट खिलाड़ी 1988 में जन्मे लोग जीवित लोग
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मैके सैल
मैके सैल (जन्म 11 दिसंबर 1961  ) सेनेगल के एक राजनेता हैं जो अप्रैल 2012 से सेनेगल के राष्ट्रपति हैं । फरवरी 2019 में सेनेगल राष्ट्रपति चुनाव में पहले दौर के मतदान में उन्हें फिर से राष्ट्रपति चुना गया। राष्ट्रपति अब्दुलाये वेड के तहत, साले जुलाई 2004 से जून 2007 तक सेनेगल के प्रधानमंत्री थे और जून 2007 से नवंबर 2008 तक नेशनल असेंबली के अध्यक्ष रहे ।  वह 2002 से 2008 तक फटिक के मेयर थे और 2009 तक फिर से इस पद पर रहे। 2012 को। 1961 में जन्मे लोग
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शक्ति प्रवर्धक
शक्ति प्रवर्धक का कार्य वोल्टेज प्रवर्धक से प्राप्त आउटपुट को शक्ति प्रदान करना है। उदाहरणत: माइक्रोफोन द्वारा प्राप्त विद्युत तरंग को वोल्टेज एम्पलीफायर प्रवर्धित करता है, इसे सीधे लाउडस्पीकर को देने पर यह पुन: इन्हे ध्वनि तरंगो मे बदल नही पायेगा। अतः वोल्टेज प्रवर्धक से प्राप्त आउटपुट को एक शक्ति प्रवर्धक को दिया जाता है। जिससे लाउडस्पीकर को संचालित करने योग्य पावर प्राप्त हो जाता है। परिभाषा- "वह ट्राँजिस्टर प्रवर्धक जो ऑडियो आवृत्ति सिगनलोँ के पॉवर स्तर को बढ़ाता है, ट्राँजिस्टर आडियो शक्ति प्रवर्धक कहलाता है"। विशेषताएँ- 1. इसमें प्रयुक्त पावर ट्राँजिस्टर का आकार वोल्टेज प्रवर्धक के ट्राँजिस्टर से बड़ा होता है। 2. इसमें अधिक उष्मा उत्पन्न होती है। 3. इसमें निम्न B मान वाले तथा मोटे बेस वाले ट्राँजिस्टर प्रयोग करते हैँ। 4.शक्ति प्रवर्धक में ट्राँसफार्मर युग्मन का प्रयोग किया जाता है। 5. इसमें लोड का मान कम (5-20 ओम) होती है। 6. संग्राहक धारा (>100 mA) तथा आउटपुट पावर अधिक होती है। 7. इसका B मान (20-50) होता है। 8.आउटपुट प्रतिबाधा कम (200 ओम) होती है। महत्वपूर्ण- वास्तव में कोई पावर प्रवर्धक पावर का प्रवर्धन नहीँ करता है बल्कि यह आउटपुट पर संयोजित d.c. सप्लाई से पावर लेकर उसे a.c. सिगनल पावर में परिवर्तित करता है। चूँकि यह वोल्टेज प्रवर्धक से प्राप्त उच्च वोल्टेज सिगनल का प्रवर्धन करता है अतः इसे लार्ज सिगनल प्रवर्धक कहना उचित होगा। प्रतिबाधा मैचिँग का महत्व - अधिकतम शक्ति स्थानान्तरण प्रमेय के अनुसार किसी नेटवर्क में अधिकतम शक्ति तभी ट्राँसफर होगी जब लोड प्रतिरोध स्रोत प्रतिरोध के तुल्य हो। अर्थात् शक्ति प्रवर्धक से लाउडस्पीकर को अधिकतम शक्ति तभी प्रदान की जा सकती है जब स्रोत प्रतिबाधा तथा लोड प्रतिबाधा समान हो। सूत्र- (N1/N2)^2 =(R'L/RL) जहाँ N1 व N2 क्रमशः ट्राँसफार्मर की प्राथमिक व द्वितीयक कुण्डलियोँ की सँख्या है R'L = इनपुट प्रतिबाधा RL = आउटपुट प्रतिबाधा है। शक्ति प्रवर्धक की कलक्टर दक्षता- "शक्ति प्रवर्धक से प्राप्त a.c. आउटपुट पावर तथा शक्ति प्रवर्धक को बैटरी द्वारा सप्लाई की गई d.c. पावर के अनुपात को उसकी कलक्टर दक्षता कहते हैँ। इसे n से दर्शाते हैँ। n = आउटपुट a.c. पावर/ इनपुट d.c. पावर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%B5%20%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%80
कार्दाशेव मापनी
कार्दाशेव मापनी (Kardashev scale) किसी सभ्यता के प्रौद्योगिकीय विकास के स्तर को मापने की एक विधि है। इसमें सभ्यता द्वारा संचार के लिये उपयोग में ली जाने वाली ऊर्जा को आधार के रूप में लिया जाता है। इस आधार पर सभ्यताओं की तीन श्रेणीया बतायी गयी हैं- श्रेणी-१, श्रेणी-२ तथा श्रेणी-३। 1964 मे कार्दाशेव ने किसी परग्रही सभ्यता के तकनीकी विकास की क्षमता को मापने के लिये इस मापनी को प्रस्तावित किया। रूसी खगोल विज्ञानी निकोलाइ कार्दाशेव के अनुसार सभ्यता के विकास के विभिन्न चरणो को ऊर्जा की खपत के अनुसार श्रेणीबद्ध लिया जा सकता है। इन चरणो के आधार पर परग्रही सभ्यताओं का वर्गीकरण किया जा सकता है। बाहरी कड़ियाँ कार्दाशेव स्केल : सभ्यता के विकास का पैमाना (विज्ञानविश्व) सभ्यता प्रौद्योगिकी
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सना सईद
सना सईद (जन्म 22 सितंबर 1988) भारतीय अभिनेत्री और मॉडल है, जो बॉलीवुड फिल्मों में दिखाई देती है। वह सबसे पहले कुछ कुछ होता है (1998) में एक बाल कलाकार के रूप में दिखाई दीं और हर दिल जो प्यार करेगा (2000) और बादल (2000) में ऐसा करना उन्होंने जारी रखा। वह टेलीविजन कार्यक्रमों में भी दिखाई दीं जैसे बाबुल का आंगन छूटे ना (2008) और लो हो गई पूजा इस घर की (2008)। 2012 में, सना ने करण जौहर की स्टुडेंट ऑफ़ द ईयर में सहायक भूमिका में एक वयस्क के रूप में अपने फ़िल्म करियर की शुरुआत की। फ़िल्म बॉक्स ऑफिस व्यावसायिक सफलता के रूप में उभररी थी। वह झलक दिखला जा (2013), नच बलिए (2015) और फीयर फैक्टर: खतरों के खिलाड़ी (2016) सहित कई रियलिटी कार्यक्रमों में दिखाई दी है। करियर वह गंभीर और व्यावसायिक रूप से सफल फिल्मों कुच कुच होता है (1 99 8), बादल (2000) और हर दिल जो प्यार करगा (2000) में एक बाल कलाकार के रूप में दिखाई दीं। सईद ने स्टार प्लस पर प्रसारित प्रसिद्ध बच्चों के कार्यक्रम फॉक्स किड्स की भी मेजबानी की जिसमें उन्होंने चतुर चाची की भूमिका निभाई। वह सोनी टीवी पर बाबुल का आंगन चुट्टी ना और एसएबी टीवी पर लो हो गेई पूजा इज़ घर की टेलीविज़न शो में भी दिखाई दीं। साना नृत्य रियलिटी शो में छठे स्थान पर रही और नाचने में उनके ऊर्जा के स्तर की सराहना की गई। झलक दिखला जा। [4] 2012 में, सईद ने करण जौहर के छात्र ऑफ द ईयर में मुख्य भूमिका सिद्धार्थ मल्होत्रा, वरुण धवन और आलिया भट्ट के साथ एक सहायक भूमिका में अपनी पहली फिल्म बनाई। उनकी छोटी भूमिका के बावजूद उन्हें अपने बाल सितारा स्मृति के कारण देखा गया था। बॉलीवुड हंगमा के फिल्म आलोचक तरण आदर्श ने लिखा, "सना साएद ग्लैमरस दिखता है और अच्छा करता है"। फिल्म आलोचक कोमल नाहता ने टिप्पणी की, "सना सईद केवल तन्या के रूप में अपने शरीर को झुका और फटकारता है।" फिल्म को देश भर में 1400 से अधिक स्क्रीनों में 1 9 अक्टूबर 2012 को रिलीज़ किया गया था और आलोचकों और अच्छे बॉक्स ऑफिस संग्रहों से मिश्रित समीक्षाओं के लिए सकारात्मक हासिल किया गया था। Boxofficeindia ने फिल्म को तीन हफ्तों के बाद एक सेमीहाइट के रूप में घोषित किया। उसने नाच बाली 7 में 5 वें स्थान पर रखा। इन्हें भी देखें हुमा क़ुरैशी सना खान शमा सिकंदर गौहर खान अदा खान ज़ोया अफ़रोज़ सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ जीवित लोग मुम्बई के लोग 1988 में जन्मे लोग
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ऐन्ड्रयू जैकसन
ऐन्ड्रयू जैकसन (Andrew Jackson, जन्म: १५ मार्च १७६७, देहांत: ८ जून १८४५) संयुक्त राज्य अमेरिका के सातवे राष्ट्रपति थे। वह इस पद पर १८२९ से १८३७ के काल में रहे जिसमें उन्होंने दो दफ़ा चुनाव जीतकर चार-चार साल की दो मियादें पूरी करीं। वह एक राजनेता और सैनिक नेता थे जिन्होनें मूल अमेरिकी आदिवासियों और ब्रिटिश सेना के विरुद्ध युद्ध लड़े और जीते। उन्होंने अमेरिका की केन्द्रीय सरकार को मज़बूत किया, मूल अमेरिकी आदिवासियों की ओर क्रूरता दिखाकर उन्हें अपने निवास-क्षेत्रों से निकलवाया और नागरिकों का पक्ष लेते हुए सरकारी अफ़सरशाही को कमज़ोर किया। इन्हें भी देखें संयुक्त राज्य अमेरिका सन्दर्भ अमेरिका के राष्ट्रपति
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ब्लडी मैरी
ब्लडी मैरी एक किंवदंती है जिसमें भूत, प्रेत या आत्मा इंद्रजाल भविष्य को प्रकट करता है। कहा जाता है कि जब वह अपना नाम बार-बार जपती है तो उसे दर्पण में दिखाया जाता है। ब्लडी मैरी स्पष्टता सौम्य या पुरुषवादी हो सकता है, जो किंवदंती की ऐतिहासिक विविधताओं पर निर्भर करता है। ब्लडी मैरी दिखावे ज्यादातर समूह भागीदारी खेल में "गवाह" हैं। अनुष्ठान ऐतिहासिक रूप से, अटकल अनुष्ठान ने एक अंधेरे घर में युवा महिलाओं को एक मोमबत्ती और हाथ का दर्पण पकड़े हुए सीढ़ियों की एक उड़ान के लिए चलने के लिए प्रोत्साहित किया। जैसा कि वे दर्पण में चकित थे, वे अपने भविष्य के पति के चेहरे का एक दृश्य पकड़ने में सक्षम होने वाले थे]]. हालाँकि, एक मौका था कि वे एक खोपड़ी (या ग्रिम रीपर का चेहरा) देखेंगे, बजाय यह संकेत देते हुए कि वे मरने से पहले जा रहे थे। शादी करने का मौका होता। आज के अनुष्ठान में, ब्लडी मैरी कथित रूप से उन व्यक्तियों या समूहों के लिए प्रकट होती है जो अनुष्ठानिक रूप से कैटोप्ट्रोमेंसी में उसका नाम लेते हैं। ऐसा बार-बार उसके नाम का जप करते हुए मंद-मंद या मोमबत्ती से जले कमरे में रखे दर्पण में किया जाता है। कुछ परंपराओं में, नाम को तेरह बार दोहराया जाना चाहिए (या कुछ अन्य निर्दिष्ट समय की संख्या). ब्लडी मैरी स्पष्ट रूप से एक लाश, चुड़ैल या भूत के रूप में प्रकट होती है, जो मित्रतापूर्ण या बुरी हो सकती है, और कभी-कभी रक्त में ढकी हुई दिखाई देती है। अनुष्ठान के आसपास के विद्या में कहा गया है कि प्रतिभागी उन पर चिल्लाते हुए, उन्हें गलाते हुए, उनका गला घोंटते हुए, उनकी आत्मा को चुराते हुए, उनका खून पीते हुए, झूठ को सह सकते हैं या अपनी आँखें खुजलाना. अनुष्ठान के कुछ रूपांतर ब्लडी मैरी को एक अलग नाम से पुकारते हैं- "हेल मैरी" और "मैरी वर्थ" इसके लोकप्रिय उदाहरण हैं. आधुनिक किंवदंती हानाको-सान में जापान में खूनी मैरी पौराणिक कथाओं का जोरदार विरोध हुआ. घटना स्पष्टीकरण एक लंबे समय के लिए एक मंद रोशनी वाले कमरे में एक दर्पण में घूरने से एक मतिभ्रम हो सकता है। चेहरे की विशेषताएं "पिघल", विकृत, गायब और घूमती दिखाई दे सकती हैं, जबकि अन्य मतिभ्रम तत्व, जैसे कि जानवर या अजीब चेहरे, दिखाई दे सकते हैं। उरबिनो विश्वविद्यालय के जियोवन्नी कैप्टो लिखते हैं कि इस घटना को, जिसे वे "अजीब-चेहरा भ्रम" कहते हैं, माना जाता है कि यह "असामाजिक पहचान प्रभाव" का परिणाम है, जो वर्तमान में मस्तिष्क की चेहरे की पहचान प्रणाली को मिसफायर कर देता है। अज्ञात तरीका। घटना के लिए अन्य संभावित स्पष्टीकरणों में शामिल भ्रम शामिल हैं, कम से कम आंशिक रूप से, ट्रॉक्लर के लुप्त होने के अवधारणात्मक प्रभावों के लिए, और संभवतः स्व-सम्मोहन होता है।. यह भी देखें लोकप्रिय संस्कृति में ब्लडी मैरी भूतों की सूची सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Optical Illusions: Troxler's Fading बच्चों की सड़क संस्कृति डिविनेशन काल्पनिक भूत लोकगीत शैतान अलौकिक किंवदंतियां शहरी किंवदंतियों महिला पौराणिक जीव
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मालशा शेहनी
मालशा शेहनी (जन्म 5 जून 1995) एक श्रीलंकाई क्रिकेटर हैं। उन्होंने 7 फरवरी 2017 को 2017 महिला क्रिकेट विश्व कप क्वालीफायर में भारत के खिलाफ महिला एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट (WODI) की शुरुआत की। 7 जून 2018 को, उन्होंने अपनी महिला ट्वेंटी 20 अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट (WT20I) की शुरुआत भारत के खिलाफ भी की। 2018 महिला ट्वेंटी 20 एशिया कप। नवंबर 2019 में, उन्हें 2019 दक्षिण एशियाई खेलों में महिला क्रिकेट टूर्नामेंट के लिए श्रीलंका की टीम में नामित किया गया था। फाइनल में बांग्लादेश से दो रन से हारकर श्रीलंका टीम ने रजत पदक जीता।
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वर्जीनिया का राज्यपाल
वर्जीनिया राष्ट्रमण्डल के राज्यपाल चार वर्ष के कार्यकाल के लिये वर्जीनिया सरकार के प्रमुख के रूप में कार्य करते हैं। पदस्थ राज्यपाल, राल्फ नॉर्थम ने 13 जनवरी, 2018 को शपथ ली थी। 2021 वर्जीनिया राज्यपाल निर्वाचन में विजय प्राप्त करने के पश्चात, ग्लेन यंगकिन 15 जनवरी, 2022 को 74वें राज्यपाल के रूप में शपथ लेंगे। योग्यता वर्जीनिया संविधान के अनुच्छेद 5, धारा 3 में वर्जीनिया के राज्यपाल चुने जाने के लिये एक व्यक्ति के लिये निम्नलिखित योग्यताएँ सूचीबद्ध हैं : संयुक्त राज्य अमेरिका के नागरिक हो कम से कम तीस वर्ष का हो निर्वाचन से कम से कम पाँच वर्ष पूर्व वर्जीनिया राष्ट्रमण्डल में एक निवासी एवं पंजीकृत मतदाता हो यह सभी देखें बाहरी कड़ियाँ वर्जीनिया संयुक्त राज्य अमेरिका
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राई जनजाति
राई या खम्बू पुर्वी नेपाल, और भारत का सिक्किम, तथा दार्जीलिंग की पहाडि़यों की निवासी अति प्राचीन किरात जनजाति है। राई का असली नाम खोपरिङ खम्बु है, राई का मतलब हाेता है राजा भारत की जनजातियाँ राई लोग भारतीय उपमहाद्वीप के स्वदेशी नृजातीय समूह हैं, जो अब आधुनिक नेपाल और वर्तमान भारत मे है। ये मुख्यतः सिक्किम और पश्चिम बंगाल (मुख्य रूप से दार्जिलिंग हिल्स) के भारतीय राज्यों में निवास करते हैं। वे राई अर्थ राजा थे (पुरानी खस कुरा (नेपाली) में राई का अर्थ राजा होता है। जब राजा पृथ्वी नारायण शाह ने खम्बू राजा को हरा नहीं सकते थे, तो साहा ने किसी तरह उन्हें विश्वास में लिया कि भूमि उनकी हमेशा के लिए है और उन्हें राई नाम दिया है। बिक्रम सम्बत 1632 के आसपास। तब राई को क्षेत्र के शीर्ष नेताओं को प्रदान किया गया था। उन्हें भूमि कर इकट्ठा करने की शक्ति दी गई थी। इसीलिए कभी-कभी राई लोगों को जिमी या जिमी-वाल कहा जाता है। राई किरात समूह से संबंधित हैं। किरात लिम्बु,देवान, सुनुवार, यक्खा और धिमाल इन जातीय भी किरात समुदाय मे आते हैं कीरत राई समुदाय से संबंधित लोगों को कई उप-जाति समूहों में विभाजित किया गया है। लेकिन यह माना जाता है कि किरात राई के मूल रूप से सिर्फ 10 उप-जाति समूह थे: उप-जाति समूह के भीतर भी, किरात राई को पाछा(उप समुह) में विभाजित किया गया है। उदाहरण के लिए, बान्तवा उप-जाति समूह से संबंधित किरात राई के पास कई पाछा हैं जैसे मागंपागं, मुकरुंग, छांगछा, इसरा, आदि। भाषा: किरात राई भाषा के धनी हैं। उनके पास विभिन्न भाषाएं हैं, प्रत्येक उप-जाति समूह अपनी स्वयं की किरात राई भाषाएँ बोलते हैं। लेकिन राज्य की एक भाषा की नीति, प्रवासन, अंतर-जाति और अंतर-उप-जाति विवाह, गरीबी और अन्य संस्कृतियों के प्रभाव के कारण, कई किरात राई भाषाएं पहले ही गायब हो गई हैं, जबकि अन्य विलुप्त होने के कगार पर हैं। बहिंग, कोयू, हयू, यम्फू, यंफे, छिलिंग, लोहरंग,देवान और मेहवांग भाषाएं तेजी से गायब हो रही हैं। देर होने पर, विभिन्न किरात राई समूह अपनी भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रयास कर रहे हैं। लेकिन यह एक कठिन काम है। यह सभी देखें किरात राई यायोक्खा जापान किरात राई यायोक्खा जापान ऐप कि रा या जापान ऐप
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महात्मा गांधी के अनुयायियों की सूची
वैसे तो महात्मा गांधी के अनुयायियों एवं शिष्यों की संख्या अनगिनत है। महत्वपूर्ण नेता और राजनीतिक गतिविधियाँ गाँधीजी से प्रभावित थीं। यहाँ उनके प्रमुख अनुयायियों की सूची दी जा रही है। मार्टिन लूथर किंग नेल्सन मंडेला जेम्स लाव्सन (James Lawson) स्टीव बिको (Steve Biko), औंग सू की (Aung San Suu Kyi) रोमां रोलां मारिया लासर्दा दे मौरा (Maria Lacerda de Moura) अलबर्ट आइंस्टाइन, लांजा देल वस्तो (Lanza del Vasto) मदलीन स्लेड (Madeleine Slade) या मीराबेन जॉन लेनन (John Lennon) अल गोर विनोबा भावे, खान अब्दुल गफ्फार खान या सीमान्त गांधी जमनालाल बजाज, धरमपाल, डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद, जे॰ बी॰ कृपलानी, ठक्कर बापा, रविशंकर महाराज, नानाभाई भट्ट, जे.सी. कुमारप्पा, सरोजिनी नायडू, राजकुमारी अमृत कौर, सुशीला नायर, आशादेवी, आर्यनायकम, महात्मा गांधी गांधीवादी
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कोबाल्ट ब्लू (फ़िल्म)
कोबाल्ट ब्लू हिन्दी भाषा में बनी भारतीय नाटक फ़िल्म है, जिसका लेखन और निर्देशन सचिन कुंडलकर ने किया है। इस फ़िल्म में प्रतीक बब्बर, डॉ॰ नीलेय मेहंदले और अंजलि शिवरामन ने अभिनय किया है। यह इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है जिसमें एक भाई और बहन की कहानी का अनुसरण किया गया है जो एक ही आदमी के प्यार में पड़ जाते हैं; इसमें दिखाई गयी घटनायें एक पारंपरिक मराठी परिवार की हैं। यह फिल्म नेटफ्लिक्स पर 3 दिसंबर 2021 को रिलीज़ होने वाली थी लेकिन बाद में इसे स्थगित करके 2 अप्रैल 2022 को जारी किया गया। कथानक जब एक महत्वाकांक्षी लेखक और उसकी मुक्त विचारों वाली उत्साही बहन अपने घर पर रहने वाले एक किरायेदार से प्यार करने लगते हैं। यह एक ऐसी फिल्म है जो समान सेक्स प्रेम के आसपास अकेलेपन और भय को दर्शाती है। पात्र अनाम पेइंग गेस्ट के रूप में प्रतीक बब्बर तनय विद्याधर दीक्षित के रूप में डॉ नीले मेहेंदले अनंत वी जोशी के रूप में असीम दीक्षित अनुजा दीक्षित के रूप में अंजलि शिवरामन पूर्णिमा इंद्रजीत बहन के रूप में नील भूपालम साहित्य शिक्षक के रूप में गीतांजलि कुलकर्णी के रूप में शारदा दीक्षित श्री दीक्षित के रूप में शिशिर शर्मा सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ भारतीय ड्रामा फ़िल्में भारतीय फ़िल्में 2022 की फ़िल्में हिन्दी फ़िल्में
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खासी विद्रोह
खासी विद्रोह 1830-33 के बीच उत्तर-पूर्वी पहाड़ी पर हुआ। इस विद्रोह का प्रमुख कारण ब्रिटिशों द्वारा वहाँ की स्थानीय जनजातियों को जबरन सड़क निर्माण में लगाया जाना था जिसके विरोध में उन्होंने यह विद्रोह किया। इस विद्रोह का नेतृत्व तीरथ सिंह ने किया और अंततः 1833 में ब्रिटिश सेना द्वारा इस विद्रोह को कुचल दिया गया। इस विद्रोह की शुरुआत सन 1830 ईस्वी मे हुई थीं। खासी विद्रोह असम में हुआ था इसका नेतृत्व तीरत सिंह ने किया थ
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महबूबा मुफ़्ती
महबूबा मुफ़्ती (जन्म: 22 मई 1959, बिजबिहारा), (भारांग: 1 ज्येष्ठ 1881 ) एक भारतीय राजनीतिज्ञ तथा जम्मू और कश्मीर की तेरहवीं और एक महिला के रूप में राज्य की प्रथम मुख्यमन्त्री हैं। महबूबा मुफ्ती से पूर्व वर्ष 1980 में सैयदा अनवरा तैमूर किसी भरतीय राज्य (असम) की पहली मुस्लिम मुख्यमन्त्री बनी थीं। इस प्रकार वे देश के किसी राज्य की दूसरी मुस्लिम मुख्यमन्त्री हैं। वे अनंतनाग से लोकसभा सांसद है। साथ ही जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की राजनेत्री और अध्यक्षा तथा जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमन्त्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद की पुत्री है। पिता की बीमारी के बाद एम्स, दिल्ली में मृत्यु हो जाने के बाद वो जम्मू और कश्मीर की मुख्यमन्त्री बनी हैं।महबूबा मुफ़्ती जम्मू और कश्मीर की पहली महिला राजनेत्री है। प्रारंभिक जीवन वह मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी हैं, जिनका जन्म 1959 में अखरान नोपोरा में हुआ था। उन्होंने कश्मीर विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की। उनकी बहन रूबैया सईद का अपहरण कर लिया गया था जब उनके पिता को 1989 में भारत का गृह मंत्री नियुक्त किया गया था और कुछ दिनों के बाद कुछ आतंकवादियों के बदले छोड़ दिया गया था। भारत में विपक्ष और कई कट्टर राष्ट्रवादियों द्वारा आतंकवादियों की रिहाई की निंदा की गई थी। व्यक्तिगत जीवन इनका विवाह जावेद इकबाल से हुआ था। इनकी दो पुत्रियाँ हैं, इतिजा/सना और इरतिका। इतिजा/सना लन्दन में भारतीय उच्चायोग के साथ काम करती हैं और इरतिका अपने मामा, मुफ़्ती तसद्दुक के साथ हिन्दी फ़िल्म उद्योग में काम करतीं हैं। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ जम्मू & कश्मीर पी॰डी॰पी॰ की बेबसाइट पर आधिकारिक जीवनवृत्त (अंग्रेजी में) 1959 में जन्मे लोग जम्मू और कश्मीर के राजनीतिज्ञ १४वीं लोक सभा के सदस्य १६वीं लोक सभा के सदस्य कश्मीर के लोग जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री
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महादेव गोविंद रानडे
न्यायमूर्ति महादेव गोविन्द रानाडे (१८ जनवरी १८४२ – १६ जनवरी १९०१) एक ब्रिटिश काल के भारतीय न्यायाधीश, लेखक एवं समाज-सुधारक थे। जीवन-वृत्त रानाडे नासिक, महाराष्ट्र के एक छोटे से कस्बे निफाड़ में पैदा हुए थे। उनका जन्म निंफाड में हुआ और आरम्भिक काल उन्होंने कोल्हापुर में बिताया, जहां उनके पिता मंत्री थे। इनकी शिक्षा मुंबई के एल्फिन्स्टोन कॉलेज में चौदह वर्ष की आयु में आरम्भ हुअई थी। ये बम्बई विश्वविद्यालय के दोनों ही; (कला स्नातकोत्तर) (१८६२) एवं विधि स्नातकोत्तर (एल.एल.बी) (१८६६) में) के पाठ्यक्रमों में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए। इन्हें बम्बई प्रेसीडेंसी मैजिस्ट्रेट, मुंबई स्मॉल कौज़ेज़ कोर्ट के चतुर्थ न्यायाधीश, प्रथम श्रेणी उप-न्यायाधीश, पुणे १८७३ में नियुक्त किया गया। सन १८८५ से ये उच्च न्यायालय से जुड़े। ये बम्बई वैधानिक परिषद के सदस्य भी थे। १८९३ में उन्हें मुंबई उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। सन १८९७ में रानाडे उस समिति में भी सेवारत रहे, जिसे शाही एवं प्रांतीय व्यय का लेखा जोखा रखने एवं आर्थिक कटौतियों का अनुमोदन करने का कार्यभार मिला था। इस सेवा हेतु, उन्हें कम्पैनियन ऑफ द ऑर्डर ऑफ इंडियन एम्पायर का दर्जा मिला। इन्होंने सन १८८७ से द डेक्कन एग्रीकल्चरिस्ट्स रिलीफ एक्ट के अन्तर्गत विशेष न्यायाधीश के पदभार को भी संभाला। परिवार राणाडे एक कट्टर चितपावन ब्राह्मण परिवार से थे। उनका जन्म निंफाड़ में हुआ और आरम्भिक काल उन्होंने कोल्हापुर में बिताया, जहां उनके पिता मंत्री थे। उनकी प्रथम पत्नी की मृत्यु के बाद, उनके सुधारकमित्र चाहते थे, कि वे एक विधवा से विवाह कर, उसका उद्धार करें। परन्तु, उन्होंने अपने परिवार का मान रखते हुए, एक बालिका, रामाबाई राणाडे से विवाह किया, जिसे बाद में उन्होंने शिक्षित भी किया। उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने उनके शैक्षिक एवं सामाजिक सुधर कार्यों को चलाया। उनके कोई संतान नहीं थी। धार्मिक-सामाजिक सुधारक अपने मित्रों डॉ॰अत्माराम पांडुरंग, बाल मंगेश वाग्ले एवं वामन अबाजी मोदक के संग, राणाडे ने प्रार्थना-समाज की स्थापना की, जो कि ब्रह्मो समाज से प्रेरित एक हिन्दूवादी आंदोलन था। यह प्रकाशित आस्तिकता के सिद्धांतों पर था, जो प्राचीन वेदों पर आधारित था। प्रार्थना समाज महाराष्ट्र में केशव चंद्र सेन ने आरम्भ किया था, जो एक दृढ़ ब्रह्मसमाजी थे। यह मूलतः महाराष्ट्र में धार्मिक सुधार लाने हेतु निष्ठ था। राणाडे सामाजिक सम्मेलन आंदोलन के भी संस्थापक थे, जिसे उन्होंने मृत्यु पर्यन्त समर्थन दिया, जिसके द्वारा उन्होंने समाज सुधार, जैसे बाल विवाह, विधवा मुंडन, विवाह के आडम्बरों पर भारी आर्थिक व्यय, सागरपार यात्रा पर जातीय प्रतिबंध इत्यादि का विरोध किया। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह एवं स्त्री शिक्षा पर पूरा जोर दिया था। राजनैतिक राणाडे ने पुणे सार्वजनिक सभा की स्थापना की और बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापकों में से एक बने। इन्हें सदा ही बाल गंगाधर तिलक का पूर्व विरोधी, एवं गोपाल कृष्ण गोखले का विश्वस्नीय सलाहकार दर्शाया गया। १९११ के ब्रिटैन्निका विश्वकोष के अनुसार, पूना सार्वजनिक सभा, प्रायः सरकार की युक्तिपूर्ण सलाहों से, सहायता करती रही है। हेनेरी फॉसेट्ट को लिखे एक पत्र में फ्लोरेंस नाइटेंगेल ने लिखा है: १९४३ में, बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने, राणाडे की प्रशंसा की, एवं उन्हें गाँधी और जिनाह के विरोधी का दर्जा दिया। लेखन राणाडे ने सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक औ्र राजनितिक विषयों पर अनेक लेख और पुस्तकें लिखी हैं। इन रचनाओं को अनेक शीर्षकों से संकलित किया गया है। “राणाडे की अर्थशास्त्रीय लेखन” नाम से उनके आलेखों का विपिन चंद्र ने संपादन किया है जिसका प्रकाशन नई दिल्ली स्थित ज्ञान बुक्स प्राइवेट लिमिटेड ने किया। यह सिद्ध करने के लिए कि उनके विचार शास्त्रों के पूर्णत: अनुरूप थे, उन्होंने विद्वत्तापूर्ण ग्रंथ लिखे, जैसे 'विधवाओं के पुनर्विवाह के समर्थन में वेद' और 'बाल विवाह के विरुद्ध शास्त्रों का मत।' विचारधारा राणाडे १९वीं सदी के भारतीय सुधारवादी थे। वे पुनरुत्थानवाद के विरोधी थे। पुनरुत्थानवाद की सीमाओं को रेखांकित करते हुए उन्होंने अपने एक लेख में लिखा था कि- "हमसे जब अपनी संस्थाओं और रस्म-रिवाजों का पुनरुत्थान करने को कहा जाता है तो लोग बहुत परेशान हो जाते हैं कि आखिर किस चीज का पुनरुत्थान करें। क्या हम जनता की उस समय की पुरानी आदतों का पुनरुत्थान करें, जब हमारी सबसे पवित्र जातियां हर किस्म के गर्हित--जैसा कि हम अब उन्हें समझते हैं--कार्य करती थीं, अर्थात पशुओं का ऐसा भोजन और ऐसा मदिरा-पान कि हमारे देश के समस्त पशु-पक्षी और वनस्पति ही खत्म हो जायें? उन पुराने दिनों के देवता और मनुष्य ऐसी भयानक वर्जित वस्तुओं को इतनी अधिक मात्रा में खाते और पीते थे, जिन्हें कोई भी पुनरुत्थानवादी अब दुबारा इस तरह खाने-पीने की सलाह नहीं देगा। क्या हम पुत्रों को उत्पन्न करने की बारह विधियों, अथवा विवाह की आठ विधियों, का पुनरुत्थान करें, जिनमें लड़की को जबर्दस्ती उठा ले जाना सही माना जाता था और मिश्रित तथा अनैतिक संभोग को स्वीकार किया जाता था? ..." सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Economic Ideas of Mahadv Govind Ranade (गूगल बुक्स ; लेखक : ओ पी ब्रह्मचारी) 1842 में जन्मे लोग १९०१ में निधन भारतीय न्यायाधीश मराठी लोग
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पवन उर्जा प्रौद्योगिकी केन्द्र, चेन्नई
भारत के चेन्नई में स्थित पवन उर्जा प्रौद्योगिकी केन्द्र (Centre for Wind Energy Technology) भारत सरकार के अपारम्परिक उर्जा स्रोत मंत्रालय के अधीन स्वायत्त अनुसंधान एवं विकास संस्था है। यह संस्थान पवन ऊर्जा के क्षेत्र में अन्य अनुसंधान एवं विकास संस्थानों के सहयोग से पवन टरबाइन (विंड टर्बाइन) की उप-प्रणालियों तथा घटकों के विकास में नवीन उपलब्धियों पर ध्यान देगा। कार्यकलाप पवन उर्जा प्रौद्योगिकी केन्द्र के क्रियाकलापों को इन पांच सामान्य क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है: वर्तमान पवन टरबाइन संस्थापनों के कार्य निष्पादन में सुधार पवन स्रोत मूल्यांकन हेतु अनुसंधान समर्थन कार्मिक शक्ति प्रशिक्षण एवं मानव संसाधन विकास पवन शक्ति उद्योग के लिए प्रौद्योगिकी समर्थन अनुसंधान एवं उन्नत प्रौद्योगिकी विकास वर्तमान पवन टरबाइन संस्थापनों के कार्य निष्पादन (efficiency) में सुधार लाते हुए उन्नत पवन टरबाइन प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान करना ही अनुसंधान एवं विकास विभाग के प्रमुख क्रियाकलाप हैं। अनुसंधान एवं विकास विभाग ने वर्तमान पवन टरबाइन संस्थापनों के क्षेत्र में ध्यान देते हुए पवन खेतों के ग्रिड संबंधित अन्वेषण, अधिकतम ऊर्जा प्राप्ति हेतु ब्लेड के अनुकूल कोण तथा पवन टरबाइनों के गीयर डिब्बों की असफलताओं के विश्लेषण में कार्य करते हैं। परियोजनाएँ वर्तमान में निम्नांकित परियोजनाएं चालू हैं: न्यूनतम एवं संतुलित पवन क्षेत्रों के लिए डिज़ाइन पद्धतियां एवं डिज़ाइन उपकरणों का विकास करना तथा युक्तिसंगत बनाना। अनुसंधान & विकास/ प्रायोगिक पवन खेत की संस्थापना छोटे पवन टरबाइनों का परीक्षण ग्रिड के साथ पवन टरबाइनों की अंत:संबद्धता का प्रतिरूपण पवन टरबाइन नेसल के चारों ओर प्रवाहित पवन प्रवाह का प्राचलीकरण नवीनीकरण ऊर्जा उपकरणों का संस्थापन बाहरी कड़ियाँ पवन उर्जा प्रौद्योगिकी केन्द्र, चेन्नई का जालघर ऊर्जा भारतीय संस्थान
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सीएट लिमिटेड
Cavi Elettrici e Affini Torino, जिसे आमतौर पर संक्षिप्त नाम CEAT (सीएट) द्वारा जाना जाता है, आरपीजी समूह की प्रमुख कंपनी है। इसकी स्थापना 1924 में ट्यूरिन, इटली में हुई थी। वर्तामान मे, सीएट भारत के प्रमुख टायर निर्माताओं में से एक है और इसकी वैश्विक बाजारों में उपस्थिति है। सीएट एक वर्ष में 165 मिलियन से अधिक टायर का उत्पादन करती है और यात्री कारों, दोपहिया, ट्रकों और बसों, हल्के वाणिज्यिक वाहनों, पृथ्वी-मूवर्स, फोर्कलिफ्ट, ट्रैक्टर, और ऑटो-रिक्शा के लिए टायर का निर्माण करती है। सीईएटी टायर के संयंत्रों की वर्तमान क्षमता प्रति दिन 800 टन से अधिक है। बाहरी कड़ियाँ https://web.archive.org/web/20100916172145/http://ceattyres.in/ भारत के टायर निर्माता
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स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि
स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि जी (जन्म : १९ सितम्बर १९३२, मृत्युः २५ जून २०१९) एक आध्यात्मिक गुरु थे। उन्हें ज्योतिर्मठ पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य बनाया गया था, किन्तु १९६९ में उन्होंने इस पद को स्वेच्छा से त्याग दिया था। उन्होंने हरिद्वार में भारतमाता मन्दिर की स्थापना की। परिचय स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी का जन्म 19 सिंतबर, 1932 को आगरा में हुआ था. लेकिन स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि का परिवार उत्तर प्रदेश के सीतापुर का रहने वाला था. बचपन से ही स्वामी जी की रुचि संन्यास और अध्यात्म में थी. जिसकी वजह से उन्होंने अपना सांसारिक जीवन बहुत कम उम्र में त्याग दिया था. सांसारिक जीवन से संन्यास लेने से पहले लोग उऩ्हें अंबिका प्रसाद पांडेय के नाम से पहचानते थे. इन्हें भी देखें भारतमाता मन्दिर, हरिद्वार सत्यानन्द गिरि बाहरी कड़ियाँ स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि का जालघर शंकराचार्य
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%8F%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%B8%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A3%20%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%9F%E0%A5%80
उत्तर प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी
अन्य राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश एड्स नियंत्रण सोसाइटी भी उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार के एड्स नियंत्रण अथवा जन-जागृति का काम करता है। राज्य के सभी जिलों में एड्स को रोकने के लिए और उच्च जोखिम-वाले समूहों और आम जनता में एचआईवी / एड्स के संचरण नियंत्रण में जिला अस्पताल स्तर पर सुरक्षा क्लिनिक नाको द्वारा स्थापित किये गए हैं। वहाँ भी उच्च जोखिम-वाले मामलों जो सामाज की महिला यौन-कार्यकर्ताओं, पुरुषों से यौन सम्बन्ध रखनेवाले पुरुषों और नसों में नशीली दवाओं के उपयोगकर्ताओं और के लिए परामर्श की सुविधा उपलब्ध रहती है। ट्रेन यात्रियों के लिए एचआईवी जागरूकता सेवा एनईआर रेलवे स्टेशन पर मण्डलीय रेल प्रबन्धक ए के सिंह ने 'माइग्रेन्ट संवेदीकरण परियोजना' का शुभारम्भ करते हुए कहा है कि अन्य प्रदेशों में काम की तलाश में जाने वाले ट्रेन यात्रियों को एचआईवी एड्स के सम्बन्ध में जागरूक करने के लिए रेलवे हर सम्भव सहयोग प्रदान करेगा और इससे सम्बन्धित उपलब्ध सेवाओं के बारे में जानकारी भी उपलब्ध करायेगा। परियोजना के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि लोग उत्तर प्रदेश से और खासतौर से पूर्वांचल क्षेत्र से रोजी-रोटी की तलाश में घर परिवार छोड़ कर मुम्बई, सूरत, दिल्ली आदि शहरों में जाते हैं। कुछ अन्तराल के बाद घर वापस आने पर पुनः दूसरे प्रदेश में चले जाते हैं। इस प्रक्रिया को माइग्रेसन कहते हैं। कभी-कभी विस्थापन के दौरान व्यक्ति जानकारी के अभाव में एचआईवी से संक्रमित हो सकता है और घर लौटने के बाद परिवार को भी संक्रमित कर सकता है। इसलिए जरूरी है कि इस तरह के विस्थापितों को एचआईवी एड्स के प्रसार, बचाव, एड्स और यौनरोग से सम्बन्धित जानकारी उपलब्ध करायी जानी आवश्यक है इसलिए इससे सम्बन्धित स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में जागरूक किया जाएगा। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) के मार्गदर्शन और उप्र राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी 'माइग्रेन्ट संवेदीकरण परियोजना' का संचालन कर रही है। उत्तर प्रदेश एड्स नियंत्रण सोसाइटी की अपर निदेशक कुमुदलता श्रीवास्तव ने भी बताया कि माईग्रेन्ट संवेदीकरण परियोजना का मुख्य उद्देश्य उत्तर प्रदेश से दूसरे प्रदेशों में काम-धन्धे की तलाश में विस्थापित होने वाले लोगों को एचआईवी/एड्स, एचटीआई ट्रीटमेन्ट एवं कण्डोम प्रमोशन आदि के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान करना है, जिससे एचआईवी के संक्रमण को नियंत्रित किया जा सके। उन्होंने कहा कि एचआईवी संक्रमण का प्रसार उत्तर प्रदेश के सामान्य जनसाधारण में अन्य माध्यमों के साथ-साथ विस्थापितों के माध्यम से भी हो रहा है। इसको रोकने के लिए एड्स नियंत्रण सोसाइटी ने रेलवे के सहयोग से 'माइग्रेन्ट संवेदीकरण परियोजना' शुरुआत की है। परियोजना 20 अक्टूबर 2010 से रेलवे स्टेशन चारबाग, वाराणसी कैन्ट रेलवे स्टेशन पर शुरू की जा चुकी है। उनका कहना है कि पलायन करने वाले श्रमिकों के माध्यम से जन समुदाय एवं ग्रामीण क्षेत्र में भी यह बीमारी फैल रही है। बीमारी का कोई टीका और इलाज भी आज तक विकसित नहीं हुआ है, इसलिए एचआईवी एड्स के बारे में जानकारी और सावधानी ही एक मात्र विकल्प है। इस अवसर पर सोसाइटी के अधिकारी, यूनिसेफ के डॉ के भूयन, एडीआरएम रेलवे एके दादरिया, सीनियर डीसीएम राधेश्याम, सीएमएस डॉ किरन मिश्रा और स्टेशन मैनेजर गिरधारी सिंह उपस्थित थे। एचआइवी पॉजिटिव लोगों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास एचआइवी पॉजिटिव लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिएउत्तर प्रदेश एड्स नियंत्रण सोसाइटी मुख्य सचिव और परियोजना के निदेशक ने 2010 में दिशा-निर्देश जरी करके 'एचआइवी/ एड्स के साथ जी रहे लोगों' को सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई सुविधाएँ पहुँचाने को कहा। इन लोगों की समस्याओं को दूर करने के लिए सर्कार ने ग़रीबी-रेखा से निचे रहने की स्थिति के पंजीकरण, जन्म तथा मृत्यु प्रमाणपत्रों के जारी करने और राशन जारी करने के मामलों में प्राथमिकता दी है। फ़ैजाबाद ज़िला एड्स नियंत्रण सोसाइटी उत्तर प्रदेश के ज़िला फ़ैजाबादमें स्थित उत्तर प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी से जुड़ी फ़ैजाबाद ज़िला एड्स नियंत्रण सोसाइटी अपने आप में एक निष्क्रिय सरकारी संगठन के रूप में काम कर रही है। इसकी मिसाल इसी साल 2012 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रक्तदान के लिए जागरूकता पैदा करने के लिए 2012 में एक माह-भर अभियान चलाने का निर्देश से पता चलती है। यह अभियान मई 2012 से 14 जुलाई 2012 तक चलाया जाना था। फैजाबाद जिले में यह जिम्मेदारी जिला एड्स नियंत्रण सोसाइटी की थी कि वह सर्वाधिक बार रक्तदान करने वालों को सूचीबद्ध कर सम्मानित करे तथा पंफलेट, पोस्टर, वालराइटिंग, गोष्ठी, रैली आदि के माध्यम से जनजागरण करे। बावजूद इसके, इस संबंध कार्ययोजना नहीं बनाई गई। इसी से सोसाइटी की इस बाबत गंभीरता को समझा जा सकता है। चंदौली ज़िला एड्स नियंत्रण सोसाइटी चंदौली ज़िला एड्स नियंत्रण सोसाइटी उत्तर प्रदेश के ज़िला चंदौली में एड्स रोकथाम का प्रयास प्रयास करती है। चंदौली ज़िला एड्स नियंत्रण सोसाइटी एक सक्रिय भूमिका निभा रही है। सोसाइटी द्वारा २०११ विश्व एड्स दिवस के अवसर पर ज़िला कलेक्ट्रेट से जिला चिकित्सालय तक जागरुकता रैली निकाली गई। रैली का शुभारंभ जिलाधिकारी विजय कुमार त्रिपाठी ने हरी झंडी आगे के लिए रवाना किया। गैर-सरकारी संगठनों के समन्वय की मिसाल इसी समय पर आयोजित खुशी सोसाइटी फॉर सोशल सर्विसेज की ओर से नुक्कड़ नाटक के माध्यम से एड्स की विस्तृत जानकारी में देखने को मिली। एक और गैर-सरकारी संगठन मानव सेवा एवं पर्यावरण संरक्षण समिति के कार्यालय पर गोष्ठी आयोजित कर एड्स के प्रति लोगों को जागरुकता के प्रयास में भी ऐसी ही मिसाल सामने आई। मानव सेवा केंद्र की ओर से भी जिला क्षय रोग अधिकारी के नेतृत्व में जागरुकता रैली निकाली गई। मैनपुरी ज़िला एड्स नियंत्रण सोसाइटी मैनपुरी ज़िला एड्स नियंत्रण सोसाइटी उत्तर प्रदेश के ज़िला मैनपुरी में एड्स रोकथाम का प्रयास प्रयास करती है। मैनपुरी ज़िला एड्स नियंत्रण सोसाइटी एक सक्रिय भूमिका निभा रही है। सोसाइटी द्वारा समय-समय जागरूकता कार्यक्रम आयोजित होते रहे हैं और इसी शृंखला में २०११ में विजिला एड्स नियंत्रण सोसाइटी के तत्वावधान में आयोजित स्वैच्छिक रक्तदान शिविर का बड़े पैमाने पर आयोजित हुआ। इस शिवर रक्तदान को पुण्य के काम के रूप में पेश किया गया और एड्स के प्रति भी जागरूकता का प्रयास किया गया। चित्रकूट ज़िला एड्स नियंत्रण सोसाइटी चित्रकूट ज़िला एड्स नियंत्रण सोसाइटी उत्तर प्रदेश के ज़िला चित्रकूट में एड्स रोकथाम का प्रयास करती है। चित्रकूट ज़िला एड्स नियंत्रण सोसाइटी एक सक्रिय भूमिका निभा रही है। सोसाइटी द्वारा समय-समय जागरूकता कार्यक्रम आयोजित होते रहे हैं और इसी शृंखला में विश्व एड्स दिवस २०११ पर स्वास्थ्य विभाग सहित अनेक संस्थानों में कार्यक्रम आयोजित किए गए। जिला एड्स नियंत्रण सोसाइटी के तत्वावधान में सीआईसी से महिला जिला चिकित्सालय तक एड्स जागरूकता रैली निकाली गई। जिला चिकित्सालय में संगोष्ठी आयोजित की गई। जिला चिकित्सालय में एड्स विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। सन्दर्भ भारतीय सरकारी एड्स नियंत्रण संस्थाएँ ऍचआइवी-सम्बंधित जानकारी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%81
काष्ठकार्य सम्बन्धी संधियाँ
काष्ठकारी में, अधिक जटिल पुर्जे बनाने के लिये लकड़ी के कई टुकड़ों को जोड़ना पड़ता है। इनको ही 'संधि' कहते हैं। कुछ सन्धियों पर चिपकाने वाले पदार्थ, फास्नर (fasteners) आदि भी लगाने पड़ते हैं जबकि अन्य सन्धियों पर बिना इनके ही केवल लकड़ी ही सीधे लकड़ी जुड़ती है। संधियाँ विभिन्न प्रकार की होतीं हैं। इनके मुख्य गुण हैं- शक्ति, लचीलापन, देखने में संधि की सुन्दरता आदि। आवश्यकता के अनुसार उचित सन्धि का चयन किया जाता है। काष्ठ में लगने वाली सन्धियों की सूची परम्परागत काष्ठ संधियाँ अपरम्परागत काष्ठ संधियाँ संधियों की गुणवत्ता बढ़ाने के परम्परागत तरीके Dowel: A small rod is used internal to a joint both to help align and to strengthen the joint. Traditional joints are used with natural timbers as they do not need any other materials other than the timber itself. for example: Butt joints. Dowel joints are also useful for pegging together weaker, cheaper composite materials such as laminate-faced chipboard, and where limited woodworking tools are available (since only simple drilled holes are needed to take the dowels). संधियों की गुणवत्ता बढ़ाने के अपरम्परागत तरीके Biscuit joints: A small 'biscuit' is used to help align an edge or butt joint when gluing. Domino joiner: A trademarked tool similar to a biscuit joiner, where a piece larger than a biscuit has some of the advantages of dowels, and some of the advantages of biscuits. इन्हें भी देखें काष्ठकारी Cabinet making Timber framing Shaker tilting chair भवन निर्माण Chinese Wooden Architecture Footnotes सन्दर्भ Lee A. Jesberger (2007). Woodworking Terms and Joints. Pro Woodworking Tips.com Bernard Jones (Ed.) (1980). The Complete Woodworker. ISBN 0-89815-022-1 Peter Korn (1993). Working with Wood. ISBN 1-56158-041-4 Sam Allen (1990). Wood Joiner's Handbook. Sterling Publishing. ISBN 0-8069-6999-7 Wolfram Graubner (1992). Encyclopedia of Wood Joints. Taunton Press. ISBN 1-56158-004-X US Forestry Service (1985) Water Repellency and Dimensional Stability of Wood https://web.archive.org/web/20170510010648/https://www.fpl.fs.fed.us/documnts/fplgtr/fplgtr50.pdf बाहरी कड़ियाँ Pro Woodworking Tips - Woodworking British Woodworking Federation - not for profit woodworking body advice on joinery in the UK Terms and Joints Dimensioning woodworking and carpentry joints Craftsmanspace List of French timber framing joints, in French language काष्ठकारी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A4%9A%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5
तरुनी सचदेव
तरुनी सचदेव (१४ मई १९९८ - १४ मई २०१२) एक भारतीय मॉडल और बाल अभिनेत्री थी, जो टेलीविजन विज्ञापनों और फिल्मों में उनके काम के लिए सबसे अच्छी तरह से जाना जाता था। उन्होंने रसना के विज्ञापनों और बॉलीवुड फिल्म पा (२००९) में अभिनय किया, जिसमें वह अमिताभ बच्चन के सहपाठी का अभियान किया। वह मलयाली दर्शकों के बीच अच्छी तरह से लोकप्रिय थी वेल्लिनक्षत्रम में अम्मुक्ट्टी के चित्रण के लिए। जीवनी तरुनी सचदेव का जन्म मुंबई में एक शहर में हुआ, उद्योगपति हरेश सचदेव और उनकी पत्नी गीता सचदेव के घर। उन्होंने बांद्रा, मुंबई में बाई अवबाई फ्रैमजी पेटिट गर्ल्स हाई स्कूल में अपनी स्कूली शिक्षा की। तरुनी की मां इस्कॉन (हरे कृष्णा आंदोलन), मुंबई के राधा गोपीनाथ मंदिर में एक कलीसिया भक्त सदस्य थीं। तरुनी ने भी मंदिर त्यौहारों में नाटकों में प्रदर्शन किया था। तरुनी ने रासना, कोलगेट, आईसीआईसीआई बैंक, रिलायंस मोबाइल, एलजी, कॉफी बाइट, गोल्ड विजेता, शक्ति मसाला और स्टार फ्लश ड्रीम्स जैसे उत्पादों के लिए कई टेलीविजन विज्ञापनों में अभिनय किया। वह उद्योग में सबसे व्यस्त बाल कलाकार में से एक थीं और हिंदी फिल्म पा (२००९) में अमिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन और विद्या बालन के साथ काम किया है। उन्होंने दो मलयालम फिल्मों में भी अभिनय किया: वेल्लिनक्षत्रम (२००४) और सैथीम (२००४)। वह अपने समय का सबसे ज्यादा कमाई करने वाली बाल कलाकार थी। उन्होंने कुछ धारावाहिकों में एक बच्चे के रूप में भी अभिनय किया, जिसमें तमिल का एक धारावाहिक मेटी ओली सन टीवी, सीता की बेटी, मामिनी कुट्टी, एपिसोड ७१२ से अंत तक। उन्होंने हिंदी धारावाहिक सासुरल सिमर का में दुर्गानी के रूप में भी अभिनय किया। उनकी मृत्यु के बाद, हिंदी धारावाहिक में उनकी भूमिका रुहानिका धवन के साथ बदल दी गई थी। मृत्यु १४ मई २०१२ को उनके जन्मदिन वाले दिन को नेपाल में अग्नि एयर फ्लाइट सीएचटी विमान दुर्घटना में तरुनी सचदेव की मृत्यु हो गई। तरुनी की मां गीता सचदेव, जो उड़ान पर उसके साथ भी मर गईं। नेपाल यात्रा के लिए ११ मई २०१२ को तरुनी जाने से पहले, उसने अपने सभी दोस्तों को गले लगाकर कहा, "मैं आखिरी बार आपसे मिल रही हूं"। यद्यपि यह एक मजाक था, उसके सहपाठियों के अनुसार, तारूनी ने "कभी भी अपने दोस्तों को गले लगाया नहीं था या किसी भी पूर्व यात्रा के लिए जाने से पहले उन्हें अलविदा संदेश भेजे थे" फिल्मोग्राफी हिंदी पा (२००९) मलयालम वेल्लिनक्षत्रम (२००४) सैथीम (२००४) तामिल वेत्री सेल्वन (२०१२) धारावाहिक २००९- मेटी ओली (तमिल) सुमिनी इलंगो के रूप में २०११- सासुरल सिमर का दुर्गानी के रूप में सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ भारतीय कलाकार मुंबई के लोग भारतीय अभिनेत्री 1998 में जन्मे लोग २०१२ में निधन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%A6
जमुना निषाद
जमुना निषाद,भारत के उत्तर प्रदेश की पंद्रहवी विधानसभा सभा में विधायक रहे। 2007 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के पिपराइच विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से बसपा की ओर से चुनाव में भाग लिया। जमुना निषाद जी निषादों के मसीहा माने जाते थे ।योगी आदित्यनाथ को दी थी कड़ी टक्कर गोरखपुर संसदीय सीट पर 1999 में हुए चुनाव में जमुना प्रसाद निषाद ने योगी आदित्यनाथ को कड़ी टक्कर दी थी। इस चुनाव में सपा प्रत्याशी के तौर पर वह करीब सात हजार मतों से चुनाव हारे थे।जमुना जी 2007 के मायावती शासनकाल में मत्स्य मंत्री रहे(बसपा) सन्दर्भ उत्तर प्रदेश 15वीं विधान सभा के सदस्य पिपराइच के विधायक
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A1
वैस्टसाइड
वैस्टसाइड () औबेरियन प्रायद्वीप और यूरोप के दक्षिणी छोर पर भूमध्य सागर के प्रवेश द्वार पर स्थित स्व-शासीब्रिटिश विदेशी क्षेत्र जिब्राल्टर में स्थित एक नगरीय क्षेत्र है। यह क्षेत्र रॉक ऑफ़ जिब्राल्टर के पश्चिमी ढलानों के बीच और जिब्राल्टर की खाड़ी (बे ऑफ़ जिब्राल्टर) के पूर्वी तट पर स्थित है। जिब्राल्टर की 98 प्रतिशत से भी अधिक आबादी इसी नगरीय क्षेत्र में निवास करती है। प्रभाग वैस्टसाइड कुल छह आवासीय क्षेत्रों में विभाजित है: नगर क्षेत्र (टाउन एरिया), उत्तरी जिला (नोर्थ डिस्ट्रिक्ट), दक्षिण जिला (साउथ डिस्ट्रिक्ट), ऊपरी नगर (अपर टाउन), सैंडपिट्स और रिक्लेमेशन एरिया। इन आवासीय क्षेत्रों की क्रमशः आबादी है: 3,588, 4,116, 4,257, 2,805, 2,207 और 9,599। सन्दर्भ जिब्राल्टर का भूगोल
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%20%E0%A4%AE%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80
दाल मखानी
दाल मखनी (मक्खन वाली दाल) एक लोकप्रिय व्यंजन है जिसका उद्भव भारतीय उपमहाद्वीप के पंजाब क्षेत्र से हुआ है। दाल मखनी में प्रमुखता से उपयोग की जाने वाली सामग्रियाँ हैं काली उड़द दाल, लाल राजमा, मक्खन और क्रीम। इतिहास दाल मखनी भारतीय उपमहाद्वीप का एक प्रधान व्यंजन है। यह भारत में विभाजन (१९४७ ) के बाद काफी मशहूर हुआ जब पंजाब से कई लोग भारत के उत्तरी क्षेत्रों में रहने के लिए आए पंजाबी समाज जब भारत एवं अन्य अंतर्राष्ट्रीय जगहों पर प्रवास करने लगा तब उन्हीं लोगों के द्वारा स्थानियों लोगों को यह व्यंजन प्रस्तुत किया गया था। कुंदन लाल गुजराल ने दरियागंज, दिल्ली, भारत में मोती महल रेस्तरां खोला एवं दाल मखनी को यहाँ के स्थानीय लोगों से परिचित कराया। दाल मखनी सबसे पहले सरदार सिंह द्वारा बनाई गई थी एवं अब यह सार्वभौमिक तौर पर एक भारतीय डिश के रूप में मान्यता प्राप्त है। बहुत सारे होटलों एवं रेस्तरां में यह कई अलग रूपों में पेश की जाती है। दाल मखनी की लोकप्रियता का प्रमुख कारण इसका विविधता पूर्ण होना है। शाकाहारी व्यंजन होने के चलते इसे एक मुख्य भोजन के रूप में भी परोसा जा सकता है एवं बुफे में भी। भारत में सूप एवं करी जिनमे लाल (मसूर) या पीले रंग की दाल का प्रयोग होता है यहाँ के प्रमुख आहारों में से एक है। हालाँकि दाल मखनी के भारीपन एवं लंबी तैयारी की प्रक्रिया के कारण कई भारतीय अब इसको केवल कोई महत्वपूर्ण दिन जैसे जन्मदिन, राष्ट्रीय छुट्टियों, शादियों और धार्मिक रीति-रिवाजों के दिन ही बनाते हैं। तैयारी पारंपरिक तौर पर दाल मखनी के तैयारी में कई प्रक्रियाऐं होती हैं जो काफी लम्बा समय लेती हैं और इनको पूरा करने के लिए 24 घंटे तक का समय लग सकता है। दाल की चमक क्रीम के इस्तेमाल से काफी बढ़ जाती है एवं यह दही, दूध या बिना दूध के साथ भी तैयार की जा सकती है। खाना पकाने के आधुनिक उपकरणों की उपलब्धता के चलते एवं बिजली से चलने वाले प्रेशर कुकर के कारण इसकी तैयारी का समय काफी घट गया है एवं 2-3 घंटे से भी कम का रह गया है। नोट्स The modern dal makhani was invented by Moti Mahal सन्दर्भ हिमाचली व्यंजन भारतीय व्यंजन
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परवन नदी
परवन अजनार व घोड़ा पछाड की संयुक्त धारा है।यह मध्यप्रदेश के विंध्याचल पर्वत शृंखला से निकलती है। झालावाड में मनोहर थाना में राजस्थान में प्रवेश करती है।झालावाड़ व बांरा में बहती हुई बांरा में पलायता गांव में काली सिंध में मिल जाती है। यह नदी चाचोरनी में नेवज नदी के साथ संगम बनाती है , इस संगम पर एक शिवलिंग व एक किला भी स्थित है। इसी नदी के किनारे बारां जिले में शेेरगढ का किला स्थित हैं। जिसे कौषवध्रन का किला कहां जाता है। पर्यटन विभाग के सहायक निदेशक सिराज अहमद कुरैशी के अनुसार ईस्वी सन 790 में सामंत देवदत्त का शासन रहा। जिसने यहां जैन व बौद्ध धर्म का विहार बनाया। बाद में 8वीं शताब्दी में राजा कोषवर्धन ने इसका नाम कोषवर्धनपुर रखा तथा लंबे समय तक कोषवर्धन के वंशज पीढ़ी दर पीढ़ी राज करते रहे। बाद में 15वीं शताब्दी में मुगल शासक शेरशाह सूरी ने आक्रमण कर दुर्ग पर आधिपत्य कर लिया और तब से इसका नाम शेरगढ़ रखा गया। यहां स्थित खंडहरों में बेगम व नवाब की हवेलियां हैं, जिनमें झरोखे बने हैं। वर्तमान में परवन वृहद सिंचाई परियोजना भी इसका एक हिस्सा है। इस अभयारण्य में हिरण, खरगोश, नीलगाय, काले हिरण, जंगली सुअर, बंदर, तेंदुआ, चीता, सियार, लोमड़ी हैं। वहीं किले के पास से बहती परवन नदी भी लोगों को आकर्षित करती है। जिसके चलते फिल्मों में इसको आसानी के साथ दिखाया जा सकता है। इसी वजह से इस किले में फिल्म लाल कप्तान की शूटिंग भी हुई थी। संदर्भ मध्य प्रदेश की नदियाँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%87%20%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80
एल्वे नदी
एल्वे नदी (/ˈɛlbə/; चेक भाषा: [ˈlabɛ]; जर्मन भाषा: Elbe [ˈɛlbə]; Low German: Elv, अंग्रेजी : Elbe / Elve) मध्य यूरोप की एक प्रमुख नदी है। यह नदी उत्तरी चेक रिपब्लिक के क्रकोनोस (Krkonoše) पर्वतमाला से निकलती है और बहोमिया के अधिकांश भागों से बहती हुई, जर्मनी से होते हुए कक्सहैवेन (Cuxhaven) में उत्तरी सागर में मिल जाती है। कक्सहैवेन, हैम्बर्ग से ११० किमी उत्तर-पश्चिम में है। इस नदी की कुल लम्बाई १०९४ कि,ई है। इस नदी के तट पर ड्रेसडेन शहर बसा है जो चीनी मिट्टी के बर्तन के लिए प्रसिद्ध है। विश्व की नदियाँ
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तन्त्रिका तन्त्र
जिस तन्त्र के द्वारा विभिन्न अंगों का नियंत्रण और अंगों और वातावरण में सामंजस्य स्थापित होता है उसे तन्त्रिका तन्त्र (Nervous System) कहते हैं। तंत्रिकातंत्र में मस्तिष्क, मेरुरज्जु और इनसे निकलनेवाली तंत्रिकाओं की गणना की जाती है। तन्त्रिका कोशिका, तन्त्रिका तन्त्र की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। तंत्रिका कोशिका एवं इसकी सहायक अन्य कोशिकाएँ मिलकर तन्त्रिका तन्त्र के कार्यों को सम्पन्न करती हैं। इससे प्राणी को वातावरण में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त होती तथा एककोशिकीय प्राणियों जैसे अमीबा इत्यादि में तन्त्रिका तन्त्र नहीं पाया जाता है। हाइड्रा, प्लेनेरिया, तिलचट्टा आदि बहुकोशिकीय प्राणियों में तन्त्रिका तन्त्र पाया जाता है। मनुष्य में सुविकसित तन्त्रिका तन्त्र पाया जाता है। तंत्रिकातंत्र के भाग स्थिति एवं रचना के आधार पर तन्त्रिका तन्त्र के दो मुख्य भाग किये जाते हैं- 1* केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र (Central nervous system) एवं a* मस्तिष्क b* मेरुरज्जु 2* परिधीय तंत्रिका तंत्र (Peripheral nervous system) a* कपालीय तंत्रिकाएँ (Cranial nerves) b* मेरुरज्जु की तंत्रिकाएँ (Spinal nerves) कार्यात्मक वर्गीकरण कायिक तंत्रिकातंत्र (Somatic nervous system) Pyramidal arrangement Extrapyramidal system आत्मग तंत्रिकातंत्र (The autonomic nervous system) अनुकंपी तंत्रिकातंत्र (sympathetic) और परानुकंपी तंत्रिकातंत्र (parasympathetic) मस्तिष्क और मेरूरज्जु, केंद्रीय तंत्रिकातंत्र कहलाते हैं। ये दोनों शरीर के मध्य भाग में स्थित हैं। इनमें वे केंद्र भी स्थित हैं, जहाँ से शरीर के भिन्न भिन्न भागों के संचालन तथा गति करने के लिये आवेग (impulse) जाते हैं तथा वे आवेगी केंद्र भी हैं, जिनमें शरीर के आभ्यंतरंगों तथा अन्य भागों से भी आवेग पहुँचते रहते हैं। दूसरा भाग परिधि तंत्रिकातंत्र (peripheral Nervous System) कहा जाता है। इसमें केवल तंत्रिकाओं का समूह है, जो मेरूरज्जु से निकलकर शरीर के दोनों ओर के अंगों में विस्तृत है। तीसरा आत्मग तंत्रिकातंत्र (Autonomic Nervous System) है, जो मेरूरज्जु के दोनों ओर गंडिकाआं की लंबी श्रंखलाओं के रूप में स्थित है। यहाँ से सूत्र निकलकर शरीर के सब आभ्यंतरांगों में चले जाते हैं और उनके समीप जालिकाएँ (plexus) बनाकर बंगों में फैल जो हैं। यह तंत्र ऐच्छिक नहीं प्रत्युत स्वतंत्र है और शरीर के समस्त मुख्य कार्यो, जैसे रक्तसंचालन, श्वसन, पाचन, मूत्र की उत्पत्ति तथा उत्सर्जन, निस्रावी ग्रंथियों में स्रावों (हॉरमोनों की उत्पत्ति) के निर्माण आदि क संचालन करता है। इसके भी दो भाग हैं, एक अनुकंपी (sympathetic) और दूसरा परानुकंपी (parasympathetic)। इन्हें भी देखें तंत्रिकाविकृति विज्ञान तन्त्रिका जैविक तंत्रिका तंत्र कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क तंत्रिका तंत्र
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अनिल करनजय
अनिल करनजय (27 जून 1940 - 18 मार्च 2001) एक पूर्ण भारतीय कलाकार थे। पूर्व बंगाल में जन्म लेनेवाले करनजय ने बनारस में शिक्षा प्राप्त की, जहां उनका परिवार 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप के बंटवारे के बाद बस गया। एक छोटे बच्चे के रूप में वे मिट्टी के साथ खेलने, खिलौने और तीर बनाने में काफी समय बिताते थे। उन्होंने बहुत जल्दी ही जानवरों और पौधों का चित्र बनाना या जिस भी वस्तु ने उन्हें प्रेरित किया उसका चित्र बनाना भी शुरू कर दिया। 1956 में उन्होंने बंगाल स्कूल के एक गुरु और नेपाली मूल के करनमान सिंह की अध्यक्षता वाले भारतीय कला केन्द्र का पूर्णकालिक छात्र बनने के लिए स्कूल छोड़ दिया. इस शिक्षक ने अनिल को व्यापक रूप से प्रयोग करने और हर संस्कृति की कला का अध्ययनके लिए प्रोत्साहित किया। अनिल 1960 तक यहां रहे, इस दौरान वे नियमित रूप से प्रदर्शन और अन्य छात्रों का अध्यापन करते रहे. इसी अवधि के दौरान उन्होंने भारत कला भवन (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय) में बनारस के महाराज के अंतिम दरबारी चित्रकार की देखरेख में लघु चित्रकला का अभ्यास किया। उन्होंने क्ले मॉडलिंग और धातु की ढलाई सीखने के लिए बनारस पॉलिटेक्निक में भी दाखिला लिया। 1960 का क्रांतिकारी दशक 1960 के क्रांतिकारी के दौरान, अनिल भारतीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक-सांस्कृतिक आंदोलन में सबसे आगे थे। 1962 में, करुणानिधान मुखोपाध्याय के साथ उन्होंने संयुक्त कलाकारों की स्थापना की. उनके स्टूडियो के नाम 'शैतान की कार्यशाला' ने पूरे भारत और विदेशों के कलाकारों, लेखकों, कवियों और संगीतकारों को आकर्षित किया। समूह ने एक न चलने वाली चाय की दुकान, पैरडाइज़ कैफे में, बनारस की पहली आर्ट गैलरी की स्थापना की, जहां इस जीवंत शहर के सबसे रंगीन व्यक्तित्व के कुछ लोगों का अक्सर आना-जाना होता था। अनिल और समूह के अन्य लोग इस दौरान एक समुदाय में रहते थे और अनेक देशों के 'अन्वेषकों' से विचार-विमर्श और अनुभव का विनिमय किया। अनिल करनजय कवियों के एक प्रसिद्ध कट्टरपंथी बंगाली समूह भूखी पीढ़ी के एक बहुत सक्रिय सदस्य रहे, जिसे भूखवादी হাংরি আন্দোলন आंदोलन के रूप में भी जाना जाता है। जब एलन गिन्सबर्ग और पीटर ओर्लेवोस्की ने अपने भारत प्रवास के दौरान भूखवादियों से बातचीत की उस समय अनिल बीट जनरेशन से जुड़े थे। भूखवादी पटना, कोलकाता और बनारस में आधारित थे और उन्होंने नेपाल में अवान्त गर्दे के महत्त्वपूर्ण संपर्कों के साथ भी जालसाजी की. अनिल ने भूखवादी प्रकाशनों के लिए अनेक चित्र बनाए. उन्होंने पोस्टर और कविताओं का भी योगदान दिया. और वे भारत में लघु पत्रिका आंदोलन के एक संस्थापक थे। 1969 में, वे नई दिल्ली चले गए जहां उन्होंने दिल्ली शिल्पी चक्र में एक 'लघु पत्रिका प्रदर्शनी' आयोजित की और उसमें भाग लिया। अनिल करनजय की कला और विश्व दृष्टिकोण 70 के दशक के पूर्वार्द्ध में अनिल करनजय ने अपनी तकनीकी परिपक्वता और अपने स्वप्न सरीखे, अक्सर भयानक, गुस्से भरी कल्पना के साथ भारतीय कला हलकों में एक भारी प्रभाव छोड़ा. अपने अधिकांश प्रारंभिक चित्रों में, उन्होंने अजीब परिदृश्यों -धमकी और आरोप; प्राकृतिक रूपों - चट्टानों, बादल, जानवरों और पेड़ से उभरने वाली विकृत मानव रूपों का सृजन किया - जो जन चेतना के लिए एक वाहन बन गए, जो सदियों के दमन के खिलाफ अपनी ऊर्जा को मुक्त कर रही है। अपने दिल्ली जाने के बाद, इतिहास के अत्याचार के लिए एक रूपक की तरह, उनके विकृत मानव रूपों को अक्सर खंडहर के साथ एकीकृत किया गया। लेकिन व्यंग्यात्मक हास्य का एक तत्त्व, इनमें से अधिकांश कैनवासों में अनुपस्थित नहीं है। इसके अलावा, अनिल की कल्पना कभी-कभी एक काव्यात्मक रोमांसवाद, लगभग कोमल अभिव्यक्ति से संपर्क करती है। यह उनके बाद के अधिकांश कामों में और अधिक स्पष्ट हुआ जिनमें परिदृश्य प्रमुख मूल भाव का काम करता है और मानव उपस्थिति का केवल संकेत होता है, अक्सर एक रहस्यमय गंतव्य के लिए जाते रास्ते या सीढ़ियों द्वारा। उनके परिदृश्य में पुरानी दीवारों, द्वार या मूर्तिकला युक्त खम्भों के माध्यम से भूतिया फुसफुसाहट भी गूंजती है। 1972 में उन्होंने एक राष्ट्रीय पुरस्कार जीता, लेकिन इसका उनके जीवन पर बहुत मामूली प्रभाव पड़ा. वे विशिष्ट रूप से स्थापना-विरोधी कलाकार थे और वह अपने बाकी जीवन में भी ऐसे ही रहेंगे. तीव्र सामूहिक भावना और 1960 के दशक की उपलब्धियों ने अनिल पर गहरा प्रभाव डाला था। उसके बाद से वे अक्सर रचनात्मक रूप से अलग महसूस रहने लगे. एक राजनीतिक सांस्कृतिक कार्यकर्ता के रूप में वे हमेशा प्रतिबद्ध रहेंगे और वह भूखी पीढ़ी (হাংরি আন্দোলন) के मलय राय चौधरी, सुबिमल बसाक, समीर रॉयचौधरी, त्रिदिव मित्रा और उस युग के अन्य दूसरे लेखकों से रिश्ता बनाए रखेंगे. लेकिन एक कलाकार के रूप में वे खुद को अपने समकालीनों से एक अंतर पर पाते रहे. समय के साथ, उनका विचार अभिव्यक्ति के उस तरीके के प्रति अधिक झुकाव रहा जिसे कला प्रतिष्ठानों और भारत के एक वैश्विक अर्थव्यवस्था बन जाने से उपजे नए समृद्ध कला संग्राहकों द्वारा फैशन के बाहर माना जाता है। यह विशेष रूप से उनके अंतिम दशक का सच बना जब शुद्ध परिदृश्य उनके संचार के सिद्धांत का वाहन बन गया। हालांकि अभी तक उनके अकेले परिदृश्यों से लोग कभी भी बहुत दूर नहीं रहे हैं। वास्तव में, उनके पेड़ और अन्य प्राकृतिक तत्त्व अजीब मानव इशारों द्वारा अलंकृत हैं। कभी-कभी पूरी प्रकृति एक छिपे दुश्मन के खिलाफ षड्यंत्र करती प्रतीत होती है, जो एक पर्यावरण कार्यकर्ता के रूप में अनिल की गहरी चिंता को दर्शाती है। लेकिन यह केवल उनके विषय नहीं है जिन्होंने उनके लिए कलाकारों की सांसारिक सफलता या विफलता का फैसला करनेवाले शक्तिशाली समूहों में उपेक्षा और अपमान अर्जित किया। यथार्थवाद ने भी इसमें अपनी भूमिका निभाई जो उनके बाद के कार्यों की विशेषता थी। सतह पर ये लगभग शास्त्रीय दिखाई देते हैं, फिर भी उनकी सराहना करनेवालों के लिए अभी तक, वे एक उच्च यथार्थवाद की अभिव्यक्ति कर रहे हैं जो हमारे पूरे समकालीन काल में प्रतिध्वनित है। खुद अनिल ने अपने काम की तुलना एक 'जादुई यथार्थवाद' के साथ की है। जैसा कि उन्होंने अपने पर बनी एक फिल्म में, ड नेचर ऑफ आर्ट, में कहा है: "मेरे चित्र एक सपना हैं, प्रकृति का एक सपना." चित्रों की भावनात्मक सामग्री सर्वोच्च महत्त्व की थी। इसमें अनिल भारतीय शास्त्रीय संगीत, विशेष रूप से राग के बारे में, के अपने विशाल ज्ञान से चित्र बनाते हैं जिसमें एक रचना एक समय या एक मौसम की मनोदशा या भावना को व्यक्त करती है। कला में, इसके समतुल्य को रस कहा जाता है, वस्तुतः रस या सार, एक सौंदर्य दृष्टिकोण है जिसे अनिल ने कालातीत और सार्वभौमिक समझा और अपने चित्रों में उसकी व्याख्या की मांग की. अपने परिपक्व चरण में, कला के बारे में अनिल के दर्शन में एक प्रमुख परिवर्तन आया। जहां उसके आरंभिक कार्यों को वैचारिक रूप में टकराव के तौर पर वर्णित किया जा सकता है, उनके बाद के काम की कल्पना और निष्पादन दर्शक को राहत देने के लिए की गयी। वे खुद को, एक डॉक्टर के सदृश, एक कुशल पेशेवर के रूप में देखते थे। जैसा कि उन्होंने कई अवसरों पर कहा जिसमें वह फिल्म भी शामिल है: "आज के कलाकार की भूमिका हमारे समाज द्वारा दिए गए घावों को भरने की है।" अपने पूरे कैरियर के दौरान, अनिल ने विभिन्न माध्यमों, विशेष रूप से तैलीय रंगों (ऑयल) से काम किया था जिसे वह अत्यधिक उत्कृष्ट मानते थे। लेकिन अंतिम वर्षों में उन्होंने अपने अनेक बेहतरीन चित्रों को सभी सूखे पेस्टलों के ऊपर पेस्टल क्रेयॉन से पूरा किया। यह एक ऐसा माध्यम है जिसमें उन्होंने शायद अपने समय के किसी भी अन्य भारतीय कलाकार से अधिक महारत और अनुसंधानात्मकता दिखाई है। अपने अंतिम दशकों में, अनिल भी एक सफल चित्रकार बन गए। उन्होंने अस्तित्व के एक साधन के रूप में अनेक चित्र बनाए, लेकिन इस शैली में उनका सबसे अच्छा काम ज्यादातर उन लोगों पर है जो उनके करीब हैं। अतीत के उस्तादों की परंपरा का अनुसरण करते हुए, उन्होंने अनेक आत्म-चित्र बनाए. इनमें से कुछ उनके सबसे गहन अभिव्यक्ति वाले कार्यों में शामिल हैं। इन्हें भी देखें मलय रायचौधुरी समीर रायचौधुरी सुबिमल बसाक त्रिदिब मित्रा बासुदेब दाशगुप्ता ऐलन गिंसबर्ग भुखी पीढ़ी (हंगरी जेनरेशन) शक्ति चट्टोपाध्याय देबी राय सन्दर्भ अनिल करनजय अनिल करनजय सुनीत चोपड़ा द्वारा उचित मूल्य पर करनजय के काम का प्रस्ताव, फाइनेंशियल एक्सप्रेस, 21 अगस्त 1997 सुनीत चोपड़ा द्वारा राजनीतिक बयान के रूप में कला, फ्रंटलाइन, 7-20 मार्च 1998 बाहरी कड़ियाँ कलाकार साहित्यिक आंदोलन चित्रकारी 1940 में जन्मे लोग 2003 में लोगों की मृत्यु बंगाली कलाकार भारतीय चित्रकार ललित कला अकादमी के साथी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र
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भारत में धार्मिक हिंसा
भारत में धार्मिक हिंसा भारत में धार्मिक हिंसा में एक धार्मिक समूह के अनुयायियों द्वारा हिंसा के कार्य शामिल हैं, दूसरे धार्मिक समूह के अनुयायियों और संस्थानों के खिलाफ, अक्सर दंगे के रूप में।  भारत में धार्मिक हिंसा में आमतौर पर हिंदू और मुस्लिम शामिल होते हैं । भारत के धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक रूप से सहिष्णु संविधान के बावजूद , सरकार सहित समाज के विभिन्न पहलुओं में व्यापक धार्मिक प्रतिनिधित्व, स्वायत्त निकायों जैसे भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रीय आयोग , और जमीनी स्तर पर सक्रिय भूमिका निभाई जा रही है गैर-सरकारी संगठनों द्वारा किया जाता है, छिटपुट और कभी-कभी धार्मिक हिंसा के गंभीर कार्य होते हैं क्योंकि धार्मिक हिंसा के मूल कारण अक्सर भारत के इतिहास, धार्मिक गतिविधियों और राजनीति में गहरे चलते हैं। घरेलू संगठनों के साथ, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन जैसे एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच भारत में धार्मिक हिंसा के कृत्यों पर रिपोर्ट  प्रकाशित करते हैं । 2005 से 2009 की अवधि में, सांप्रदायिक हिंसा से हर साल औसतन 130 लोगों की मौत हुई या प्रति 100,000 जनसंख्या पर 0.01 की मौत हुई। [ उद्धरण वांछित ] महाराष्ट्र राज्य ने उस पांच साल की अवधि में धार्मिक हिंसा से संबंधित सबसे अधिक हिंसा की संख्या दर्ज की, जबकि मध्य प्रदेश ने २००५ और २०० ९ के बीच प्रति 100,000 जनसंख्या पर उच्चतम मृत्यु दर का अनुभव किया।  The 2012 में, धार्मिक हिंसा से संबंधित विभिन्न दंगों से पूरे भारत में कुल 97 लोग मारे गए। अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग ने धार्मिक अल्पसंख्यकों को सताए जाने में भारत को टियर -2 के रूप में वर्गीकृत किया, वही इराक और मिस्र के रूप में। 2018 की रिपोर्ट में, USCIRF ने हिंदुओं और हिंदू दलितों के खिलाफ हिंसा, धमकी, और उत्पीड़न के माध्यम से " भगवा " करने के अपने अभियान के लिए हिंदू राष्ट्रवादी समूहों पर आरोप लगाया ।  लगभग एक तिहाई राज्य सरकारों ने धर्म-परिवर्तन और / या गौ-हत्या विरोधी कानून लागू किया गैर-हिंदुओं के खिलाफ कानून, और मुसलमानों या दलितों के खिलाफ हिंसा में लगे हुए लोग जिनके परिवार डेयरी, चमड़े या गोमांस के व्यापार में पीढ़ियों से लगे हुए हैं, और ईसाईयों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए। 2017 में "काउ प्रोटेक्शन" लिंच मॉब्स ने कम से कम 10 पीड़ितों को मार डाला। दंगे भारत में आतंकवाद
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कश्मीरी गेट, दिल्ली
कश्मीरी दरवाज़ा (या कश्मीरी गेट) दिल्ली के लाल किले के निकटस्थ पुराने दिल्ली शहर (शाहजहानाबाद) का एक उत्तर मुखी द्वार हुआ करता था। इसका निर्माण एक सैन्य अभियांत्रिक रॉबर्ट स्मिथ द्वारा १८३५ में करवाय़ा गया था, एवं इसके उत्तरी ओर कश्मीर प्रान्त को मुख होने के कारण इसे कश्मीरी दरवाजा कहा गया। यहां से निकलने वाली सड़क कश्मीर को जाती थी। वर्तमान में यह उत्तरी दिल्ली का एक मोहल्ला है, जो पुरानी दिल्ली क्षेत्र में आता है। यहां कुछ महत्त्वपूर्ण मार्ग मिलते हैं, जो लाल किले, महाराणा प्रताप अन्तर्राज्यीय बस टर्मिनल एवं दिल्ली जंक्शन रेलवे स्टेशन को जोड़ते हैं। इतिहास यह पुरानी दिल्ली के उत्तरी द्वार के निकट का क्षेत्र था, जो लाल किले की ओर जाता था। उत्तर अर्थात कश्मीर की ओर मुख होने के कारण इसे कश्मीरी दरवाजा नाम मिला। इसी प्रकार दक्षिणी दरवाजा दिल्ली दरवाजा कहलाता था। जब ब्रिटिश लोगों ने १८०३ में दिल्ली में बसने कि शुरुआत की, तब उन्होंने देखा कि पुरानी दिल्ली अर्थात शाहजहानाबाद की दीवारें विशेषकर १८०४ में मराठा होल्कर के अधिकरण के बाद जीर्ण-शीर्ण अवस्था में थीं। तब उन्होंने दीवारों का मरम्मत कार्य करवाया। ब्रिटिश लोगों ने अपने निवास नगर के उत्तरी ओर वर्तमान कश्मीरी दरवाजे के निकट बनवाये, जहां कभी मुगल महलों एवं नवाबों, सामन्तों के निवास हुआ करते थे। तभी उन्होंने इस दरवाजे का निर्माण करवाया। बाद में यह द्वार पुनः १८५७ के प्रथम भारतीय स्वाधीनता संग्राम के समय प्रकाश में आया। इस दरवाजे से ही भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश सेनाओं पर तोप के गोले बरसाये थे, तथा इस क्षेत्र को सबके एकत्रित होकर रणनीति तय करने एवं ब्रिटिश सेनाओं को प्रतिरोध देने की योजनाएं बनाने में प्रयोग किया करते थे। अंग्रेज़ों ने इस दरवाजे को (उनके अनुसार) विद्रोहियों को नगर में प्रवेश से रोकने हेतु प्रयोग किया था। आज दिखाई देने वाली दीवार में उस समय के हमलों के साक्ष्य तोप के गोलों से हुई क्षति के निशानों के रूप में आज भी विदित हैं। कश्मीरी दरवाजा १८५७ के संग्राम के समय हुए एक महत्त्वपूर्ण ब्रिटिश हमले का साक्ष्य भी रहा था। इसमें १४ सितंबर, १८५७ की प्रातः ब्रिटिश सेनाओं ने एक पुल एवं दरवाजे का बायां भाग बारूद के प्रयोग से ध्वस्त कर उसमें रास्ता बनाकर दिल्ली को पुनराधिग्रहण किया था एवं इस विद्रोह (उनके अनुसार) का अन्त किया था। १८५७ के बाद ब्रिटिश सिविल लाइन्स क्षेत्र को चले गये एवं कश्मीरी दरवाजा क्षेत्र दिल्ली का व्यापारिक एवं फ़ैशन केन्द्र बना रहा। इस स्थान को ये पदवी १९३१ में नयी दिल्ली के बन जाने तक बरकरार रही। १९६५ में यातायात को सुगम बनाने हेतु कश्मीरी दरवाजे का एक भाग ध्वस्त कर दिया गया। तभी से इसे एक संरक्षित स्मारक भी घोषित किया गया तथा भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण विभाग को सौंप दिया गया। १९१० के दशक के आरम्भ में भरत सरकार प्रेस के कर्मचारीगण कश्मीरी गेट के निकटस्थ स्थापित हुए, जिनमें बंगाली समुदाय की उल्लेखनीय संख्या थी। तब उन्होंने यहाँ १९१० में ही दिल्ली दुर्गा पूजा समिति के द्वारा दुर्गा पूजा का आयोजन करना आरम्भ हुआ। यह दुर्गा पूजा आज दिल्ली की सबसे पुरानी दुर्गा पूजा ज्ञात है। दिल्ली राज्य निर्वाचन कमीशन के कार्यालय की इमारत यहां के लोथियन मार्ग पर स्थित है। इसका निर्माण १८९०-९१ में हुआ था। सेंट स्टीफ़न्स कालेज की पुरानी द्विमंजिला इमारत भी यहीं १८९१ से बनी हुआ है और १९४१ तक प्रयोग में थी, जब ये महाविद्यालय यहां से अपने वर्तमान परिसर को स्थानांतरित हुआ। ऐतिहासिक स्थल निकटवर्ती सेंट जेम्स गिरजाघर सेंट जेम्स गिरजाघर, जिसे स्किनर्स चर्च भी कहते हैं, कश्मीरी गेट के निकट ही स्थित है। इसकी स्थापना कर्नल जेम्स स्किनर (१७७८-१८४१), कैवैलरी रेजिमेण्ट- स्किनर्स हॉर्स के एक प्रसिद्ध एंग्लो-इण्डियन सैन्य अधिकारी ने करवायी थी। इसकी अभिकल्पना मेजर रॉबर्ट स्मिथ ने की थी एवं निर्माण १८२६-३६ के बीच हुआ था। अन्तर्राज्यीय बस अड्डा महाराणा प्रताप अन्तर्राज्यीय बस अड्डा (आई.एस.बी.टी) भारत के सबसे पुराने बस एड्डों में से एक है एवं सबसे बड़ा बस अड्डा है। यहां से दिल्ली एवं ७ निकटवर्त्ती राज्यों- हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर तथा उत्तराखण्ड के लिये सभी तरह की बस सेवाएं उपलब्ध हैं। यह १९७६ में बना था। यहां से निकट ही मजनूं का टीला क्षेत्र है, जो तिब्बती शरणार्थी कैम्प के लिये प्रसिद्ध है, तथा यहां १७८३ में बघेल सिंह द्वारा बनवाया गया गुरुद्वारा है। यह गुरुद्वारा उस टीले पर स्मारक रूप में बनवाया गया है, जहां १५०५ में प्रथम सिख गुरु नानक देव की भेंट एक सूफ़ी मजनूं से हुई थी। रेलवे स्टेशन पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन, या दिल्ली जंक्शन रेलवे स्टेशन, जिसकी इमारत किसी पुराने किले के द्वार कि भांति बनी हुई है, निकटवर्ती चांदनी चौक क्षेत्र में बना है, जिसकी पिछली ओर कश्मीरी गेट में ही खुलती है। ये दोनों क्षेत्र एक पैदल पार पुल से जुड़े होते थे, जिसे कौड़िया पुल कहा जाता था। कुछ वर्ष पूर्व हटा दिया गया है। कहते हैं इस पुल का निर्माण १८वीं शताब्दी में मुगल बादशाह शाह आलम के समय में उनके एक दरबारी शाद खां द्वारा कौड़ियों से करवाया गया था। बाद में ब्रिटिश राज में इसे पुनर्निर्माण किया गया था। मेट्रो स्टेशन दिल्ली मेट्रो का कश्मीरी गेट स्टेशन इसकी दो लाइनों: रेड लाइन (दिलशाद गार्डन-रिठाला) एवं येलो लाइन (जहांगीरपुरी-हुडा सिटी सेण्टर) पर पड़ता है। यह इन दोनों मार्गों, सबसे ऊपर -रेड लाइन एवं सबसे नीचे- येलो लाइन का अदला-बदली स्टेशन है। कश्मीरी गेट में ही दिल्ली मेट्रो का मुख्यालय भी स्थित है। जीपीओ इसी क्षेत्र में कश्मीरी दरवाजे के निकट ही भारतीय डाक विभाग का उत्तरी दिल्ली क्षेत्र का प्रधान डाकघर भी स्थित है। यह देश का सबसे पुराना प्रधान डाकघर है। मुगल राजकुमार, दारा शिकोह द्वारा स्थापित किया गया एक पुस्तकालय भी स्थित है। इसे पुरातात्त्विक संग्रहालय के रूप में भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण विभाग द्वारा प्रयोग किया जा रहा है। इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय गुरु गोबिन्द सिंह इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय (जिसे पूर्व में इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय कहते थे), दिल्ली राज्य का एक विश्वविद्यालय है। यह कश्मिरी गेट क्षेत्र में ही स्थित है। यह यहां की एक पुरानी इमारत परिसर में स्थित है जहां पहले दिल्ली पॉलिटेक्निक फ़िर बाद में दिल्ली इंजीनियरिंग कॉलिज एवं दिल्ली इन्स्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी होते थे। ये दोनों ही कॉलेज एक बड़े परिसर में स्थानांतरित हो चुके हैं, क्रमशः बवाना, रोहिणी तथा द्वारका सैक्टर-३ एवं सै-१४ एवं अब इस परिसर को अम्बेडकर विश्वविद्यालय को सौंप दिया गया है। निकट ही श्यामनाथ मार्ग पर , इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय भी १९३८ से खुला हुआ है, जो अब दिल्ली विश्वद्यालय के अधीन है। चित्र दीर्घा सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ दिल्ली के क्षेत्र
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जादविगा लोपाटा
home_townJadwiga Łopata influencedJadwiga Łopata religionJadwiga Łopata influencesJadwiga Łopata residenceJadwiga Łopata Articles with hCards जादविगा लोपाटा, क्राको, पोलैंड के पास रहने वाला एक जैविक किसान है। ग्रामीण संरक्षण पर उनके कार्यों के लिए उन्हें 2002 में गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह पोलिश कंट्रीसाइड (ICPPC) की रक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन की सह-संस्थापक और सह-निदेशक हैं। 2009 में लोपाटा को पोलिश क्रॉस ऑफ मेरिट से सम्मानित किया गया था। संदर्भ बाहरी संबंध पोलिश देश की रक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन ; MIĘDZYNARODOWA Koalicja DLA Ochrony PolskieJ WSI जीवित लोग जन्म वर्ष अज्ञात (जीवित लोग)
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इंटरनेट सुरक्षा
इंटरनेट सुरक्षा कंप्यूटर सुरक्षा की एक शाखा है। इसमें इंटरनेट, ब्राउज़र, वेबसाइट, और नेटवर्क सुरक्षा शामिल है। इसका मकसद इंटरनेट का इस्तेमाल करके किए जानेवाले हमलों के खिलाफ नियम बनाना है। इंटरनेट डाटा लाने या भेजने के लिए प्राकृतिक रूप से महफूज़ नहीं है; इसमें ठगी या हमले का बहुत ज़्यादा जोखिम है। इन खतरों से लड़ने के लिए एन्क्रिप्शन जैसे कई तरीके बने है। लड़ने का तरीका नेटवर्क परत सुरक्षा टीसीपी/आईपी प्रोटोकॉल को क्रिप्टोग्राफी और सुरक्षा प्रोटोकॉल से महफूज़ किया जा सकता है। इन प्रोटोकॉल में वेब ट्रैफिक के लिए एसएसएल और टीएलएस, ईमेल के लिए पीजीपी, और नेटवर्क परत सुरक्षा के लिए आईपीसेक शामिल है। संदर्भ इंटरनेट सुरक्षा
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%97%20%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A5%80
तंग घाटी
तंग घाटी पहाड़ों या चट्टानों के बीच में स्थित ऐसी घाटी होती है जिसकी चौड़ाई आम घाटी की तुलना में कम हो और जिसकी दीवारों की ढलान भी साधारण घाटियों के मुक़ाबले में अधिक सीधी लगे (यानि धीमी ढलान की बजाए जल्दी ही गहरी होती जाए)। तंग घाटियाँ अक्सर तब बन जाती हैं जब कोई नदी सदियों तक चलती हुई किसी जगह पर धरती में एक घाटी काट दे। भारत में चम्बल नदी की घाटियाँ ऐसी ही तंग घाटियों की मिसालें हैं। अन्य भाषाओँ में "तंग घाटियों" को अंग्रेज़ी में "कैन्यन" (canyon) या "गौर्ज" (gorge) बोलते हैं। सब से बड़ी तंग घाटियाँ तिब्बत में स्थित ब्रह्मपुत्र नदी की तंग घाटी १८,००० फ़ुट गहरी है और कुछ स्रोतों के अनुसार यह सब से गहरी तंग घाटी है। ब्रह्मपुत्र को तिब्बत में यरलुंग त्सान्ग्पो (तिब्बती: ཡར་ཀླུངས་གཙང་པོ) कहते हैं इसलिए इस घाटी का नाम भी "यरलुंग त्सान्ग्पो घाटी" है। अन्य स्रोतों के अनुसार नेपाल में स्थित काली गण्डकी नदी की तंग घाटी २१,००० फ़ुट गहरी है और वास्तव में पृथ्वी पर सबसे गहरी तंग घाटी यही है। संयुक्त राज्य अमेरिका के ऐरिज़ोना राज्य में मशहूर ग्रैन्ड कैन्यन नाम की तंग घाटी स्थित है, जो कॉलोरैडो नदी के अनुमानित १। ७ करोड़ वर्षों के लगातार पहाड़ी चट्टानों को तराशने पर बनी है। इसकी औसत गहराई एक मील है। मेक्सिको के चिहुआहुआ राज्य में स्थित बर्रानका देल कोबरे (स्पैनिश: Barranca del Cobre, अर्थ: "ताम्बे की तंग घाटी") की तंग घाटियाँ छह नदियों द्वारा बनाई गयी हैं और यह भी विश्व-प्रसिद्ध हैं। अन्य ग्रहों और उपग्रहों पर तंग घाटियाँ हमारे सौर मंडल के कुछ अन्य ग्रहों और उपग्रहों पर भी तंग घाटियाँ देखी गयी हैं, मसलन - मंगल ग्रह पर वैलिस मैरिनरिस - जो सौर मंडल की सब से बड़ी ज्ञात तंग घाटी है शनि ग्रह के टॅथिस नामक उपग्रह पर इथाका घाटी बुध ग्रह पर बहुत सी जुड़ी हुई तंग घाटियों का मंडल जो ६,४०० किमी लम्बा है इन्हें भी देखें ग्रैन्ड कैन्यन तंग घाटियाँ हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना भू-आकृति विज्ञान
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तारा तारिणी मंदिर
पूर्णेश्वरी माँ तारा तारिणी , भारत की पूर्बी तटीय राज्य ओड़ीशा का ब्रह्मपुर सहर से 30 km दूर ऋषिकुल्या नदी के किनारे रहे पुण्यगिरी ( रत्नागिरी / तारिणी पर्बत/ कुमारी पहाड़) के ऊपर स्थित माँ की प्रसिद्ध शक्ति पीठ हे। यह जागृत शक्ति पीठ भारत के 52 शक्ति पीठों से अनन्यतम है और यहाँ सती के स्थन गिरने कि दाबा कीया जाता है। यहाँ माँ तारा और माँ तारिणी को आदि शक्ति के रूप में पूजा किया जाता है।  भारत में रहे हुए 52 शक्ति पीठों से 4 को तंत्र पीठ की मन्यता दिया जाता है। माँ तारा तारिणी इनहि 4 तंत्र पीठों से एक हैं।    देवी भागवत के अनुसार श्रीहरि विष्णु अनुरोध पर शनि देवी के शरीर में प्रवेश किए और शरीर को 108 भाग में विभक्त कर दिया। और उनमें से 52 भाग मुख्य पीठ के रूप में उभरे। जानकार इन दानों पुराणों की तथ्य को सही मानते हैं। हेवज्र तंत्र के अनुसार प्रसिद्ध तांत्रिक ग्रंथ हेवज्र तंत्र के अनुसार; तत्कालीन पश्चिमी भारत (अब पाकिस्तान) स्वात घाटी में {उद्रंख्य}, पंजाब उत्तर भारत में {जालंधर}, असम पूर्वी भारतीय में {कामरूप} और दक्षिणी भारत में स्थान कुंड के साथ पूर्णागिरी पहाड़ियों पर पूर्णेश्वरी माँ तारा तारिणी (तत्कालीन कलिंग और अब दक्षिण ओडिशा में) 4 प्रमुख तंत्र पीठ हैं। करिबन 2000 साल पहले रचिगई यह प्राचीन तंत्र में इन पीठ के लिए एक श्लोक भी समर्पित है। तारातारिणी शक्तिपीठ एक ऐतिहासिक परिचय: राम प्रसाद त्रिपाठी  पौराणिक ग्रंथों के अनुसार; चार प्रमुख शक्ति पीठ जो तंत्र पीठ का मन्यता रखे है वो इसी प्रकार रहे। ओडिशा, ब्रह्मपुर में माँ तारा तारिणी पीठ(स्थन), पूरी जगन्नाथ मंदिर के परिसर में रहे बिमला (पाद), गुवाहाटी का कमक्षया पीठ (जोनि पीठ) और कोलकाता का दक्षिण कालिका (मुख खंड/पैर की अंगुली)। कालिका पुराण भी इस तथ्य को मान्यता देता है और इसमें वर्णित एक श्लोक में कहा गया है: बिमल़ा पादखंडनच स्तनखंडनच तारिणी (तारा तारिणी) कामाख्या योनिखंडनच मुखखंडनच कालिका अंग प्रत्यंग संगेन विष्णुचक्र क्षेतेन्यच’उन चार शक्तिपीठों में विमला में पादखंड, तारा तारिणी में स्तनखंड, कामाख्या में योनिखंड और दक्षिण कालि में मुख खंड पड़ने के कारण चारों पीठों को मुख्य शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है। तारातारिणी शक्तिपीठ एक ऐतिहासिक परिचय: राम प्रसाद त्रिपाठी तारा तारिणी शक्ति पीठ  और तंत्र पीठ  पुराण में बर्णित हुए सभी शक्ति पीठों भारत में शक्ति उपासना का सुरुयात किया था। उसी सभी 51/ 52 शक्ति पीठों से 4 मुख्य पीठ को आदि शक्ति पीठ भी कहा जाता है।   यहाँ माँ तारा और माँ तारिणी को आदि शक्ति के रूप में पूजा किया जाता है। अति प्राचीन काल से तारा तारिणी एक प्रचंड तंत्र पीठ रहा हैं। किसी भी काम को सिद्ध करने केलिए भक्त इसी पीठ में आते हैं । महात्मा बशिष्ठ के समय से मान्यता हे कि तांत्रिक मंत्र से जाप करनेसे यहां सभी सिद्धि प्राप्त किया जा सकता हे। स्थान मंदिर   19°29 'N 84°53' E. के स्थान पर रहे है और यहाँ ऋषिकुल्या नदी प्रबाहित है। ऋषिकुल्या कु भारत का महान नदी गंगा की भग्नि माना जाता है। यहाँ आने के लिए ज्तिया राजप्था के साथ साथ उनके निकटतम रेल स्टेसन ब्रह्मपुर और निकततम हवाई अड्डे भुवनेश्वर में उपलब्ध।   देवताओं देवी तारा और तारिणी  को  प्रतिनिधित्व कर रहे हैं दो प्राचीन पत्थर की मूर्तियों। दोनों मूर्तियाँ  सोने और चांदी के गहने.के साथ रहे है।   दोनों मूर्तियों के बीच दो पीतल सिर रखा हुआ है , जिसे देबी जिबंट प्रतिमा कहा जाता है।  जागृत शक्ति पीठ होने की है मान्यता। इतिहास जाति, वर्ण, धर्म से ऊपर कोई भी भक्त देवी के दर्शन सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक कर सकता है। यहां के मुख्य पर्वों में चत्र पर्व प्रधान है। हिन्दू कलेन्डर के चैत्र महीना जो मार्च एवं अप्रैल में आता है। उस महीने को बड़ा पवित्र माना जाता है। भक्तों का मानना है कि इस महीने के प्रत्येक मंगलवार को देवी के दर्शन करने से मनुष्य की सभी इच्छाएं तथा आकांक्षाएं पूरी होती हैं। इसलिए मंगलवार को कम से कम 3 से 4 लाख श्रद्धालु भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं। इसी महीने के अंदर लाखों बच्चों का मुंडन भी करवाया जाता है। ये मान्यता है कि नवजात बच्चों का 1 साल पूरा होने के बाद यहां पर प्रथम मुण्डन करवाने से आयु, आरोग्य, अईसूर्य तथा बुद्धि मिलती है। इसके अतिरिक्त नवरात्र, दशहरा, साल के सभी मंगलवार, सक्रांति मुख्यपर्व के रूप में यहां पर मनाया जाता है।पहुुंचने की व्यवस्थाब्रह्मपुर शहर से यह जगह 30 कि.मी. की दूरी पर है। ब्रह्मपुर जो उड़ीसा का एक मुख्य शहरों है वो कोलकाता से चेन्नई जाने वाली राष्ट्रीय राजमार्ग 5, रायपुर से ब्रह्मपुर राष्ट्रीय राजमार्ग 217, कोलकाता से चेन्नई मुख्य रेलवे स्टेशन से संयुक्त है। इसको छोड़कर आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड एवं पश्चिम बंगाल से अच्छी सड़कों की व्यवस्था ब्रह्मपुर तक है। एक प्रमुख स्टेशन होने के कारण भारत के सभी बड़े शहर और मेट्रो को टेªन से आने-जाने की व्यवस्था उपलब्ध है। ब्रह्मपुर पहुंचने के बाद टैक्सी, आॅटो एवं बस से इस जगह तक पहुुंचा जा सकता है। भुवनेश्वर, विशाखापटनम और पुरी से भी टैक्सी सेवा उपलब्ध है। भुवनेश्वर 170 कि.मी. और विशखापटनम 250 कि.मी. नजदीकी हवाईअड्डे है। व्यक्तिगत हैलीकोप्टर और चार्टर फ्लाईट उतरने की व्यवस्था ब्रह्मपुर हवाईअड्डे में उपलब्ध है।रहने की व्यवस्था' तारातारीणी के पास रहने के लिए बहुत अच्छी व्यवस्था नहीं है। फिर भी दिगंत, आई.बी. और उड़ीसा पर्यटन विभाग का अतिथि भवन पर्वत के नीचे उपलब्ध है। इस जगह से 25 कि.मी. की दूरी पर ब्रह्मपुर और 35 कि.मी. की दूरी पर गोपालपुर- अन- सी (जो की एक प्रसिद्ध समुद्र तटीय शहर है) वहां सभी वर्ग के यात्रियों के लिए ठहरने की तथा खाने पीने की भी व्यवस्था उपलब्ध है। प्राचीन शक्तिपीठ तारातारीणी के पास गोपालपुर (35 कि.मी.), तप्तपाणी 79 कि.मी., भैरवी 40 कि.मी., मौर्य सम्राट अशोक के शिलालेख जउगढ़ 4 कि.मी. तथा एशिया की सबसे बड़ी झील चिलका 40 कि.मी. इत्यादि मुख्य प्रयटन स्थल हैं। सन्दर्भ तारातारिणी शक्तिपीठ एक ऐतिहासिक परिचय: राम प्रसाद त्रिपाठी इन्हें भी देखें शक्तिपीठ बाहरी कड़ियाँ तारातारिणी शक्तिपीठ :- उड़ीसा का प्रमुख हिन्दू देवस्थान शक्ति पीठ
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इंपीरियल बैंक ऑफ़ इंडिया
इम्पीरियल बैंक ऑफ इंडिया (IBI) भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बडा़ और सबसे पुराना वाणिज्यिक बैंक था, जिसे १९५५ में बदलकर भारतीय स्टेट बैंक बना दिया गया था। भारतीय बैंक यह बैंक 1921 में भारत आया इसे प्रेसीडेंसी बैंक के नाम से जानते हैं जिसमें बैंक ऑफ हिंदुस्तान बैंक ऑफ बंगाल बैंक ऑफ मुंबई बैंक ऑफ मद्रास शामिल था गोरेवाला समिति की सिफारिश पर 1 जुलाई 1955 को इंपीरियल बैंक का राष्ट्रीयकरण कर 'स्टेट बैंक आॅफ इंडिया'की स्थापना की गई।
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आर्द्र अर्ध-कटिबन्धीय जलवायु
आर्द्र अर्ध-कटिबन्धीय जलवायु (अंग्रेज़ी:Humid subtropical climate) (कोप्पन जलवायु वर्गीकरण Cwa के अनुसार) पृथ्वी पर एक जलवायु क्षेत्र होता है, जिसमें उष्ण, आर्द्र ग्रीष्म काल एवं ठंडे शीतकाळ होते हैं। इस प्रकार के जलवायु में मौसम की विस्तृत श्रेणी आती है और शब्द- अर्ध-कटिबंधीय शीतकालीन जलवायु के लिये एक मिथ्या नाम हो सकता है। इस क्षेत्र के अधिकांश स्थानों सभी ऋतुओं में अच्छी मात्रा में वर्षा (और क्भी हिमपात भी) हो सकती है। इसके साथ पछवा हवाएं अच्छे आंधी-तूफान भी पश्चिम से पूर्व की ओर ला सकती हैं। अधिकांश ग्रीष्मकालीन वर्षाएं दामिनी कड़कने के संग आंधियां और कई बार कटिबन्धीय तूफान या चक्रवात आदि भी लाती हैं। चुने हुए आर्द्र अर्ध-कटिबन्धीय जलवायु शहरों की सारणियां उत्तरी गोलार्ध दक्षिणी गोलार्ध सन्दर्भ आर्द्र अर्धकटिबन्धीय जलवायु
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रीवा रियासत
रीवा भारत के मध्य प्रदेश राज्य में स्थित एक रजवाड़ा था, जो वर्तमान रीवा शहर के आसपास बसा हुआ था। रीवा बघेल वंश की राजधानी थी। रीवा राज्य वर्तमान के मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़ के इलाकों में फैला था । रीवा रियासत में वर्तमानझांसी ,ललितपुर, निवाड़ी ,टीकमगढ़ ,छतरपुर , दामोह( उत्तरी भाग ) पन्ना, सतना, चित्रकूट , बांदा, महोबा (दक्षिणी भाग) , प्रयागराज (इलाहाबाद कि दक्षिणी तहसील) ,मिर्जापुर , सोनभद्र , रीवा, सीधी, सिंगरौली, कोरिया जिला, कटनी, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया , [[डिंडोरी] जिले सम्मिलित थे । जिनमे से अधिकतर रीवा राज्य के नीचे शासन करने वाले राजा राज करते थे। संबंध इन्हें अग्निकुल का वंशज माना जाता है।इतिहास में समुपलब्ध साक्ष्यों तथा भविष्यपुरांण में समुपवर्णित विवेचन कर सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय बनारस के विद्वानों के द्वारा बतौर प्रमाण यजुर्वेदसंहिता, कौटिल्यार्थशास्त्र, श्रमद्भग्वद्गीता, मनुस्मृति, ऋकसंहिता पाणिनीय अष्टाध्यायी, याज्ञवल्क्यस्मृति, महाभारत, क्षत्रियवंशावली, श्रीमद्भागवत, भविष्यपुरांण, रीवा राजवंश का सेजरा, रीवा राज्य का इतिहास, बघेल खण्ड की स्थापत्यकला, अजीत फते नायक रायसा और बघेलखण्ड का आल्हा तथा वरगाहितिप्राप्तोपाधिकानॉ परिहरवंशीक्षत्रियॉणॉ वंशकीर्तनम् नामक पुस्तक में बघेल (बाघेला,सोलांकी) तथा वरग्राही जिसे बघेली बोली में वरगाही ( बरगाही, परिहार) वंश का वर्णन किया गया है।।। मध्य प्रदेश की रियासतें रीवा ज़िला
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भारत के स्वायत्त विधि विद्यालय
भारत में गुणवत्तापूर्ण कानूनी शिक्षा के बढ़ते महत्व के साथ विभिन्न राष्ट्रीय कानून विद्यालयों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है। इस क्रम में छात्रों की आंकक्षाओं का पूरा करने के लिए केन्द्र सरकार ने पहल करते हुए राज्यों के साथ राष्ट्रीय महत्व के विधि विद्यालय / विश्वविद्यालय को स्थापित किया है। वर्तमान में 16 राष्ट्रीय स्तर विधि विद्यालय/विश्वविद्यालय गुणवत्तापूर्ण कानूनी शिक्षा के रुप में समेकित स्नातक और स्नात्तकोत्तर पाठ्यक्रम की पेशकश देशभर के छात्रों को दे रहे हैं। ये विधि संस्थान इन पाठ्यक्रमों के अलावा एनजीओ, सरकारी अधिकारियों प्रशासकों, स्थानीय सरकारी प्रतिनिधियों और पेशेवरों कानूनज्ञ के साथ बॉर कौंसिल के प्रतिनिधियों, अन्य प्रशासकों और पेशेवरों के लिए भी विभिन्न पाठ्यक्रम आयोजित करते हैं। राष्ट्रीय विधि विद्यालय/विश्वविद्यालय चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय , पटना राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, लखनऊ नालसार यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, हैदराबाद गुजरात राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय हिदायतुल्ला राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय,रायपुर नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बंगलुरु नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी, भोपाल नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी,नई दिल्ली नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, जोधपुर नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, ओडिशा राजीव गांधी नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ,पंजाब नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी एण्ड जुडीशियल एकेदमी, आसाम नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एण्ड रिसर्च इन लॉ, रांची नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एडवांस्ड लीगल स्टडीज,कोच्चि तमिलनाडू नेशनल लॉ स्कूल दामोदरन संजीव्वा नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी,विशाखापट्टनम इन्हें भी देखें संयुक्त विधि प्रवेश परीक्षा सन्दर्भ भारत में विधि शिक्षा
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जेम्स जोन्स
अमेरिका का राष्ट्रिय पुस्तक पुरस्कार विजेता। जेम्स जोंस ने १९५२ में अपने पहले प्रकाशित उपन्यास "द ह्वेल टू एन्टर्निटी" के लिए नेशनल बुक अवार्ड जीता, जिसे बड़ी स्क्रीन के लिए तुरंत रूपांतरित किया गया था और बाद में एक टेलीविजन श्रृंखला में एक पीढ़ी बन गई थी। जिंदगी जेम्स रमोन जोन्स का जन्म और उठाया गया था, रॉबिन्सन, इलिनोइस में, रमोन के बेटे और अदा एम। वह १९३९ में १७ साल की उम्र में संयुक्त राष्ट्र सेना में शामिल हुए और द्वितीय विश्व युद्ध के पहले और उसके दौरान २५ वें इन्फैंट्री डिवीजन २७ वें इन्फैंट्री रेजिमेंट में सेवा की, पहली बार हवाई में ओहु पर स्कोफिल्ट बैरकों में, फिर माउंट के युद्ध में ग्वाडलकैनाल ऑस्टेन, गैलोपिंग हॉर्स, और सागर हार्स, जहां उन्होंने अपने टखने को घायल किया। वह अमेरिका लौट आया और जुलाई १९९४ में उसे छुट्टी दे दी गई। अमेरिकी लेखक 1921 में जन्मे लोग १९७७ में निधन सन्दर्भ
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सन्नी सिंह
सन्नी सिंह (जन्म 20 मई 1969) एक लेखिका हैं। जीवनी सन्नी सिंह का जन्म 20 मई 1969 वाराणसी, भारत में हुआ था। उसके पिता सरकारी कार्यालय मे काम करते थे, तो उन्हे परिवार के साथ नियमित रूप से विभिन्न स्थानों पर उनके साथ रहना पड़ता था, जैसे की देहरादून, डिब्रूगढ़, सात और तेजू सहित विभिन्न छावनिया। वह अपने पिता के साथ विदेश मे भी रहे जैसे पाकिस्तान, संयुक्त राज्य अमेरिका और नामीबिया मे। उन्होंने ब्रांडीस विश्वविद्यालय से अंग्रेजी और अमेरिकी साहित्य में स्नातक स्तर की पढ़ाई की। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से स्पेनिश भाषा, साहित्य और संस्कृति में मास्टर डिग्री और बार्सिलोना विश्वविद्यालय, स्पेन से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है।. उन्होंने 1995 में भारत लौटने से पहले मैक्सिको, चिली और दक्षिण अफ्रीका में एक पत्रकार और प्रबंधन कार्यकारी के रूप में काम किया। उन्होंने 2002 में नई दिल्ली में एक स्वतंत्र लेखिका और पत्रकार के रूप में काम किया, उस दौर में अपनी पहली दो किताबें प्रकाशित कीं। अपनी पीएचडी पर काम करने के लिए वह 2002 में बार्सिलोना चली गईं और 2006 में अपना दूसरा उपन्यास प्रकाशित किया। सिंह वर्तमान में लंदन मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी में रचनात्मक लेखन की वरिष्ठ प्राध्यापक हैं। सिंह लंदन में रहती हैं। सिंह लेखकों के क्लब की वर्तमान अध्यक्ष हैं। 2016 में, सिंह ने झलक पुरस्कार की स्थापना की। साहित्यिक कार्य सिंह ने तीन उपन्यास, दो गैर-काल्पनिक पुस्तकें और कई लघु कथाएँ और निबंध प्रकाशित किए हैं। 2003 में, उनके पहला उपन्यास, नानी की आत्महत्या की पुस्तक, ने स्पेन में मार दे लेट्रस पुरस्कार जीता। उनका नया उपन्यास, "होटल आर्केडिया" कुयर्टेट बुक्स द्वारा प्रकाशित किया गया है। पुस्तकें नानी की आत्महत्या की पुस्तक, हार्पर कॉलिन्स प्रकाशक भारत (2000) सिंगल इन द सिटी, पेंगुइन बुक्स ऑस्ट्रेलिया (2000) कृष्णा की आंखें, रूपा और सह (2006) होटल आर्काडिया, चौकड़ी पुस्तकें (2015) अमिताभ बच्चन, ब्रिटिश फिल्म संस्थान (2017) सन्दर्भ भारतीय महिला लेखिका
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सरदार वल्लभ भाई पटेल स्टेडियम, अहमदाबाद
सरदार वल्लभभाई पटेल स्टेडियम, अहमदाबाद, गुजरात राज्य, के नवरंगपुर इलाके में स्थित एक खेल स्टेडियम है। इसे स्पोर्ट्स क्लब ऑफ़ गुजरात स्टेडियम के नाम से भी जाना जाता है। इस स्टेडियम को भारत में खोला गया सबसे पहला वनडे इंटरनैशनल क्रिकेट मैच की मेज़बानी करने का गौरव प्राप्त है। इस स्तदुम ने कई अंतर्राष्ट्रीय एवं घरेलु क्रिकेट मैचों की मेज़बानी की है। १९८२ में, मोंटेरा में इस्सी नाम के नए स्टेडियम के उद्घाटन के बाद से इससे अब किस्सी भी अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए नहीं उपयोग किया जाता है। यह स्टेडियम, रंजी ट्राफी की गुजरात क्रिकेट टीम की गृहभूमिओं में से एक है। इसमें, डे-नाईट मैचों के लिए, फ्लड लाइट जैसे सुविधाएं भी विद्यमान हैं, और घरेलु प्रतियोगिताएं यहाँ आये दिन आयोजित होती रहती हैं। अहमदाबाद नगर निगम इस खेल भूमि की अधिष्ठाता है। हालाँकि यह मुख्यतः क्रिकेट स्तदुम है, परंतु गुजरात सरकार द्वारा आयोजित अन्य कई कार्यक्रम यहाँ आयोजित किये जाते रहे हैं। इतिहास क्रिकेट मेज़बानी अन्तर्राष्ट्रीय घरेलु क्रिकेट अन्य कार्यक्रम स्वर्णिम गुजरात इन्हें भी देखें सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ अहमदाबाद भारत के क्रिकेट स्टेडियम
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पंतनगर
पंतनगर (Pantnagar) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ मण्डल के उधमसिंहनगर ज़िले में स्थित एक नगर है। गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय तथा पंतनगर विमानक्षेत्र यहां ही स्थित हैं। उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री, गोविन्द बल्लभ पन्त के नाम पर ही इस नगर का नाम पंतनगर रखा गया है। इतिहास हिमालय की तलहटी के पास स्थित यह क्षेत्र १९६० से पहले घना जंगल हुआ करता था, जिसका उपयोग उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा १९४७ के विभाजन के बाद पश्चिमी पाकिस्तान से आये हिंदू, सिख और अन्य प्रवासियों के पुनर्वास में किया जा रहा था। १९५४ में, उत्तर प्रदेश सरकार ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तत्कालीन उपराष्ट्रपति, डॉ॰ के॰ आर॰ दामले की अध्यक्षता में एक भारतीय-अमेरिकी टीम को आमंत्रित किया ताकि नैनीताल जनपद के तराई क्षेत्र में एक ग्रामीण विश्वविद्यालय के लिए संभावित स्थल को चुना जाए। इसके बाद, भारत सरकार, तकनीकी सहयोग मिशन और कुछ अमेरिकी भूमि अनुदान विश्वविद्यालयों के बीच एक अनुबंध पर भारत में कृषि शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए हस्ताक्षर किए गए। १७ नवंबर, १८६० को भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विश्वविद्यालय को समर्पित किया था। इस विश्वविद्यालय के आस पास धीरे धीरे लोग बसने लगे, और कुछ वर्षों के बाद इसे पंत नगर कहा जाने लगा। आवागमन पंतनगर में स्थित पंतनगर विमानक्षेत्र सम्पूर्ण कुमाऊँ क्षेत्र का एकमात्र कार्यात्मक हवाई अड्डा है। पंतनगर से एयर इंडिया की दैनिक उड़ानें दिल्ली तक उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त पंतनगर रेल तथा सड़क मार्ग से भी हल्द्वानी-लालकुआं तथा किच्छा-बरेली इत्यादि नगरों से जुड़ा है। पंतनगर के शैक्षणिक संस्थान सामान्य महाविद्यालय कृषि महाविद्यालय गृह विज्ञान महाविद्यालय पशु चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय सामान्य विज्ञान महाविद्यालय मत्सय विज्ञान महाविद्यालय अभियांत्रिकी संस्थान अभियांत्रिकी महाविद्यालय विद्यालय बाल निलयम शिशु विद्यालय कैंपस स्कूल बेसिक प्राथमिक पाठशाला पंतनगर इंटर कालेज, पंतनगर राजकीय कन्या इंटर कालेज, पंतनगर इन्हें भी देखें उधमसिंहनगर ज़िला सन्दर्भ उत्तराखण्ड के नगर उधमसिंहनगर जिला उधमसिंहनगर ज़िले के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A8%20%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%BE
इब्न सीना
अबू अली सीना (फारसी: بو علی‌ سینا ; ९८० – १०३७, अंग्रेजी: Avicenna or Ibn-Sina) फारस के विद्वान, दार्शनिक एवं चिकित्सक थे। उन्होने विविध विषयों पर लगभग ४५० पुस्तकें लिखी जिसमें से २४० अब भी प्राप्य हैं। इसमें से १५ पुस्तकें चिकित्सा विज्ञान से संबंधित हैं। उनकी विश्वविख्यात किताब का नाम क़ानून है। यह किताब मध्यपूर्व जगत में मेडिकल सांइस की सबसे ज़्यादा प्रभावी और पढ़ी जाने वाली किताब है। इस प्रकार अपने समय के प्रसिद्ध चिकित्सक थे। अबू अली सीना न केवल नास्तिक चिकित्सकों और दार्शनिकों में सबसे आगे हैं बल्कि पश्चिम में शताब्दियों तक वे चिकित्सकों के सरदार के रूप में प्रसिद्ध रहे। इब्न सिन्ना (एविसेना) पर दुनिया की प्राचीनता, उसके (दुनिया के) बाद की अस्वीकृति और "भीतर की महान विचारधारा" के अलावा अन्य नास्तिक सिद्धांतों के बारे में अपने बयानों के कारण काफिर और नास्तिक होने का आरोप लगाया गया था।अन्य विद्वानों जिन्होंने यह कहा कि इब्न सिन्ना एक नास्तिक था (शेख अल-थुवैनी के पहले), अल-ग़ज़ाली, इब्न तैमियाह, इब्न अल-क़ायम और अल-ढाबी है। दर्शनशास्त्र और चिकित्सा के अलावा, इब्न सीना के संग्रह में खगोल विज्ञान, कीमियागरी, भूगोल और भूविज्ञान, मनोविज्ञान, इस्लामी धर्मशास्त्र, तर्कशास्त्र, गणित, भौतिकी और कविता पर लेखन शामिल है। परिस्थितियाँ: इब्न सीना ने इस्लामी स्वर्ण युग कहे जाने वाले दौर में लेखन का एक विशाल संग्रह बनाया, जिसमें बाइज़ेंटाइन यूनानी-रोमन, फारसी और भारतीय ग्रंथों के अनुवादों का बड़े पैमाने पर अध्ययन किया गया था।फारस के पूर्वी भाग, प्राचीन ख़ुरासान और मध्य एशिया में समानीद साम्राज्य और फारस के पश्चिमी भाग और इराक में बुईद साम्राज्य ने शैक्षिक और सांस्कृतिक विकास के लिए एक संपन्न वातावरण प्रदान किया।समानीद साम्राज्य के तहत, बुखारा इस्लामी दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में बगदाद का प्रतिद्वंद्वी बन गया। वहां कुरान और हदीस का अध्ययन बहुत ज़ोर-शोर से चल रहा था। विशेष रूप से इब्न सीना और उनके विरोधियों द्वारा दर्शनशास्त्र, फ़िक़्ह और धर्मशास्त्र (कलाम) को और विकसित किया गया।अल-राज़ी और अल-फराबी ने चिकित्सा और दर्शनशास्त्र में प्रणाली विज्ञान और ज्ञान प्रदान किया। इब्न सीना को बल्ख़, ख़्वारेज़्म, गोर्गान, रे, इस्फ़हान और हमादान के महान पुस्तकालयों तक पहुंच प्राप्त थी। विभिन्न ग्रंथों (जैसे बहमनियार के साथ अहद) से पता चलता है कि उन्होंने उस समय के महानतम विद्वानों के साथ दार्शनिक मुद्दों पर बहस की थी।अरुज़ी समरकंदी ने लिखा है कि कैसे इब्न सीना ने ख़्वारेज़्म छोड़ने से पहले अल बेरुनी (एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक और खगोल विज्ञानी), अबू नस्र इराकी (एक प्रसिद्ध गणितज्ञ), अबू सहल मसिही (एक सम्मानित दार्शनिक) और अबू अल-खैर खम्मर एक महान चिकित्सक से मुलाकात की थी। प्रारंभिक जीवन इब्न सीना का जन्म (लगभग) 980 में, मध्य एशिया और प्राचीन ख़ुरासान के एक फारसी राजवंश, समानीद की राजधानी, बुखारा (वर्तमान उज़्बेकिस्तान में) के पास एक गाँव, अफशाना में हुआ था। उनकी माता, सितारा, बुखारा से थीं। जब कि, अधिकांश विद्वानों के अनुसार, इब्न सीना के अधिकांश परिवार वाले सुन्नी इस्लाम को मानते थे, लेकिन उनके पिता, अब्दुल्लाह, बल्ख़ (वर्तमान अफगानिस्तान में) के एक सम्मानित विद्वान थे, जो शायद इस्माइली पंथ में परिवर्तित हो गए थे या सुन्नी इस्लाम में ही बने रहे थे। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ हमेदान नगर (रेडियो इरान) चिकित्सक पाश्चात्य दर्शन मध्ययुग के दार्शनिक
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%B8%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A5%E0%A4%AE%20%28%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BE%29
फ्रांसिस प्रथम (फ्रांस का राजा)
फ्रांसिस प्रथम (१४९४-१५४७) फ्रांस का राजा जो वैलोई के चार्ल्स का पुत्र था। सन् १४९८ में लूई बारहवें के सिंहासनारूढ़ होने पर फ्रांसिस राज्य का संभावित उत्तराधिकारी मान लिया गया। सन् १५१९ में वह रोमन साम्राज्य के सिंहासन के लिए उम्मीदवार बना। इस पद पर चार्ल्स पंचम के चुन लिए जाने पर दोनों नरेशों में जो प्रतिद्वंद्विता प्रारंभ हुई, उसके परिणामस्वरूप १५२१-२९, १५३६-३८ और १५४२-४४ के युद्ध हुए। १५२५ के इटैलियन अभियान में बहादुरी से लड़ने के बाद पेविया नामक स्थान में उसे गहरी शिकस्त उठानी पड़ी। वह बंदी बना लिया गया और अपमानजनक संधि पर हस्ताक्षर होने के बाद ही उसे छुटकारा मिला। वह बड़ी ही ढुलमुल नीति और अस्थिर विचारों का व्यक्ति था। उसके शासन काल में राज्य के अधिकारों और शक्ति में वृद्धि हुई। स्टेट्स जनरल (जनता, अमीरों तथा चर्च के प्रतिनिधियों की सभा) की बैठक बुलाई नहीं जाती थी और 'पार्लमेंट' के विरोध की परवाह नहीं की जाती थी। उसके खर्चीलेपन पर कोई नियंत्रण न था और अपनी प्रेमिकाओं तथा कृपापात्रों को उपहार तथा पेंशन आदि देकर वह मनमाना द्रव्य उड़ाया करता था जिससे प्रजा पर शासन का भार बढ़ता जाता था। वह साहित्यप्रेमी अवश्य था और विद्वानों का आदर करता था जिनमें उसके प्रशंसकों की कमी न थी। फ्रांस के राजा
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एनटीटी डोकोमो
एनटीटी डोकोमो, इन्कार्पोरेशन (株式会社 エヌ ティ ティ ドコモ, काबुशिकी -गैशा एनुतिती डोकोमो?, TYO: 9,437, NYSE: DCM, LSE: NDCM) जापान में प्रमुख मोबाइल फोन ऑपरेटर है। डोकोमो नाम आधिकारिक तौर पर वाक्यांश "do communications over the mobile network" का एक संक्षिप्त नाम है और एक यौगिक शब्द डोकोमो जिसका अर्थ जापानी भाषा में सर्वत्र है। डोकोमो फोन, वीडियो फोन (FOMA और कुछ PHS), आई-मोड (इंटरनेट) और मेल (आई-मोड मेल, लघु मेल और एसएमएस) सेवायें प्रदान करता है। सन्दर्भ
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मिर्ज़ा गालिब (1954 फ़िल्म)
मिर्ज़ा गालिब 1954 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। हिन्दुस्तान के मशहूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की जीवनी पर बनी यह फ़िल्म काफ़ी सराही गयी। संक्षेप चरित्र मुख्य कलाकार भारत भूषण = मिर्ज़ा ग़ालिब सुरैया = नवाब जान निगर सुल्ताना = ग़ालिब की पत्नी दुर्गा खोटे मुराद मुकरी उल्हास कुमकुम इफ़्तेख़ार = बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र रोशन दल संगीत इस फ़िल्म के संगीतकार गुलाम मोहम्मद हैं। रोचक तथ्य परिणाम बौक्स ऑफिस समीक्षाएँ नामांकन और पुरस्कार बाहरी कड़ियाँ 1954 में बनी हिन्दी फ़िल्म
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उबदी
उबदी म.प्र. के खरगोन जिला मुख्यालय से पश्चिम में १५ किमी दूर ठीकरी मार्ग पर स्थित १७०० की आबादी और लगभग ३७० परिवारों का गाँव है। यह गांव लेवा पाटीदार समाज के ६२ गाँवो में से एक पाटीदार बहुल गाँव है। यहां पर १३०(घोषित) पाटीदार परिवार निवास करते हैं। इनके अलावा राजपूत,भील हरिजन आदि भी यहाँ निवासरत है। यहां अधिकतर लोगों का व्यवसाय किसानी है। गांव शिवजी के डमरू के आकार का बसा हुआ है। इतिहास गाँव का इतिहास बहुत पुराना है। लगभग 250 वर्षों पूर्व गाँव को बसाया गया था। पहले गाँव में राजव्यवस्था का चलन था। तत्पश्चात उबदी को समीप के गांव नन्दगाँव की पंचायत में सम्मिलित किया गया। कालान्तर में सन् 1985 में यहाँ पहली बार चुनाव हुए। पहली बार हुए चुनाव में तीन गांव अकावल्या,अघावन और उबदी में सामुहिक रूप से सम्मिलित थे। इस चुनाव में सरपंच उबदी के प्रत्याशी नहार सिंह चौहान को चुना गया। मानचित्र गाँव मुख्यतः खरगोन से पश्चिम में बिल्कुल एक रेखा में बसा है। इसके पूर्व में राज्यमंत्री बालकृष्ण पाटीदार का गांव टेमला, पश्चिम में नन्दगाँव, उत्तर में अकावल्या उत्तर-पूर्व में अघावन और पंधानिया,दक्षिण-पश्चिम में पीपरी और इच्छापुर आदि गांव स्थित है। गांव में लगभग 250 वर्ष प्राचीन रामजी मन्दिर है, जिसके निर्माण के बारे में वर्तमान के निवासियों को कोई जानकारी नहीं है। इसके साथ ही गांव में हनुमानजी,गायत्री माँ,कालिका माँ के मंदिर है। अघावन मार्ग पर एक छोटा सा सरस्वती माता का मंदिर भी है। यह मंदिर अघावन पढ़ने जाने वाले विद्यार्थियों द्वारा ९० के दशक में बनाया गया था। गांव में प्रत्येक समाज की अपनी अलग धर्मशाला भी है,किन्तु यदि बड़ा समारोह समारोह सम्पन्न करना होता है तो अक्सर पाटीदार समाज की धर्मशाला को उपयोग में लाया जाता है। इसके साथ ही यह सम्पूर्ण गाँव हरियाली से परिपूर्ण है। पूर्व की ओर से गांव में प्रवेश करने पर सारा गांव जंगल में बसा हुआ प्रतीत होता है। वृक्षारोपण के क्षेत्र में भी यह गांव बहुत आगे है। उपलब्धि पानी व बिजली बचाने में गाँव पुरस्कृत हो चुका है। लगभग 85% घरों में गोबर गैस संयंत्र स्थापित है। संघ परिवार का विद्यालय सरस्वती शिशु मंदिर भी संचालित है। गाँव में अनेक प्रबुद्ध,संगठनों के पदाधिकारी व शास. सेवक निवास करते हैं। गांव का युवा वर्ग गांव को अपने हाथों में ले चुका है। गांव के किसी भी कार्यक्रम की कल्पना युवाओं की सहायता बगैर की ही नहीं जा सकती है। यहां के युवा शिक्षा के क्षेत्र में भी अपना परचम लहरा रहे हैं। भले ही कुछ युवा इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई भी न कर पाए हो, किन्तु वे भी गांव के सामाजिक कार्यों में हाथ बंटाना अपना निजी कर्तव्य समझते हैं। यह गांव स्वच्छ भारत अभियान के तहत खुले में शौच मुक्त गांव भी घोषित है। जर्मनी और स्विट्जरलैंड के शोधार्थी भी इस गांव पर अध्ययन करने के लिए यहां पहुंच चुके हैं। गांव के सभी समुदायों के लोग आपस में मिल-जुल कर रहते हैं। यहां तक की तथाकथित दलित लोगों को भी मंदिरों में आने की अनुमति प्राप्त है। उनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता है। सवर्ण जाति के वैवाहिक कार्यक्रमों में उन्हें भी भोजन के लिए आमंत्रित किया जाता है। गांव के समस्त काम यहां के लोग मिलकर करते हैं। हालांकि कुछ लोगों की घटिया राजनीति ने गांव को अंधेरे में धकेलने की बहुत कोशिश की किंतु कहा जाता है न कि "रात कितनी भी लंबी हो सूर्य के प्रकाश के सामने नहीं टिक सकती।" बस यही कहावत इस गांव पर लागू हुई है और आज गांव बुलंदियों के नए आयाम लिख रहा है। उपहास गाँव में राजनीति ने जड़ें जमाई है। कुछ समाजसेवी सेवा के नाम पर लोगो को पथभ्रष्ट कर रहे हैं। यद्यपि गांव स्वच्छता के बारे में अनेक पुरस्कार प्राप्त कर चुका है, परंतु फिर भी कुछ लोग आज भी स्वच्छता के बारे में जागरूक नहीं है। कुछ या तो सरकार को इसके बारे में दोष देते हैं या कुछ स्वयं इसके पक्ष में नहीं है। राजनीति गांव को दीमक की तरह खाती हुई जा रही है। पूर्व के अनेक सरपंचों पर भ्रष्टाचारिता की मुहर लगी हुई है। यद्यपि यह तो पूरी तरह सत्य है कि कोई भी नेता अपने परिवार का, अपने रिश्तेदारों का और अपना खुद का भला किए बगैर राजनीति कर ही नहीं सकता, फिर भी वर्तमान सरपंच ने ऐसा नहीं किया है। वह अपने एक हाथ से अपंग है फिर भी गांव की नालियां और गांव का कचरा साफ करने में उन्हें फक्र महसूस होता है। गांव के कुछ व्यक्ति खुद को समाजसेवी कहते हैं और अभी तक अपने ही घर को नहीं सुधार पाए हैं, ऐसे में गांव या समाज को सुधारना पानी पर लकीर खींचने के समान प्रतीत होता है। राजनीति ने अरसे से एक रह रहे पाटीदार समाज को आपसी द्वंद्व में धकेला है। हालांकि अब लोग इन गन्दे गड्ढे से बाहर निकलने लगे है, फिर भी गांव को पूरी तरह पवित्र बनने में अभी भी समय लगेगा। चित्र दीर्घा मध्य प्रदेश के गाँव
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%A8%20%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3
व्यंजन वर्ण
व्यञ्जन वर्ण का प्रयोग वैसी ध्वनियों के लिए किया जाता है जिनके उच्चारण के लिये किसी स्वर की ज़रुरत होती है। ऐसी ध्वनियों का उच्चारण करते समय हमारे मुख के भीतर किसी न किसी अङ्ग विशेष द्वारा वायु का अवरोध होता है। जब हम व्यञ्जन बोलते हैं, हमारी जीभ मुह के ऊपर के हिस्से से रगड़कर उष्ण हवा बाहर आती है। इस तालिका में सभी भाषाओं के व्यञ्जन गिये गये हैं, उनके IPA वर्णाक्षरों के साथ। नोट करें : संस्कृत में ष का उच्चारण ऐसे होता था : जीभ की नोक को मूर्धा (मुँह की छत) की ओर उठाकर श जैसी आवाज़ करना। आधुनिक हिन्दी में ष का उच्चारण पूरी तरह श की तरह होता है। हिन्दी में ण का उच्चारण ज़्यादातर ड़ँ की तरह होता है, यानि कि जीभ मुँह की छत को एक ज़ोरदार ठोकर मारती है। हिन्दी में क्षणिक और क्शड़िंक में कोई फ़र्क़ नहीं। पर संस्कृत में ण का उच्चारण न की तरह बिना ठोकर मारे होता था, फ़र्क़ सिर्फ़ इतना कि जीभ ण के समय मुँह की छत को कोमलता से छूती है। इस पेज में ध्वन्यात्मक चिन्ह दिये गये हैं जो कुछ ब्राउसर पर शायद ठीक से न दिखें। (सहायता) जहाँ भी चिन्ह् जोड़ी में गिये गये हैं, वहाँ दाहिने का चिह्न :en:voiced consonant / घोष व्यञ्जन के लिए है और वायेँ का अघोष के लिए। शेडेड क्षेत्र उन ध्वनियों के लिये हैं जो असम्भव मानी जाती हैं। द्वित्व व्यञ्जन या व्यञ्जन गुच्छ - सूत्र : समानस्य व्यञ्जनस्य समूह: इति 'लघु सिद्धान्त कौमुदी' जब दो समान व्यञ्जन एक साथ आए, तब वह द्वित्व व्यञ्जन या व्यञ्जन गुच्छ बन जाता है,जैसे: सच्ची,दिल्ली। ध्यान दें कि महाप्राण ध्वनियों, जैसे ख, घ, फ, ध, आदि के लिए उसके अल्पप्राण चिह्न के बाद superscript में h का निशान लगाया जाता है, जैसे : ख / kh / ध / dh / इन्हें भी देखें महाप्राण व्यंजन व्यंजन (व्याकरण) हिंदी व्यंजन व्यंजन (भाषा) भाषा भाषा-विज्ञान
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सर्वर
कंप्यूटर के क्षेत्र में, सर्वर हार्डवेयर या सॉफ्टवेयर का एक संयोग है जिसे क्लाइंट की सेवा के लिए डिज़ाइन किया गया है। जब हम केवल 'सर्वर' कहते हैं तब इसका अर्थ एक ऐसा कंप्यूटर है जो किसी सर्वर ऑपरेटिंग सिस्टम को चालू रख रहा हो सकता है। लेकिन साधारणतः 'सर्वर' का अर्थ सेवा प्रदान करने में सक्षम किसी सॉफ्टवेयर या संबंधित हार्डवेयर से होता है। प्रयोग सर्वर शब्द का प्रयोग खास तौर पर इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी (सूचना प्रौद्योगिकी) के क्षेत्र में किया जाता है। अनगिनत सर्वर ब्रांडों वाले उत्पादों (जैसे हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर तथा/अथवा ऑपरेटिंग सिस्टम्स के सर्वर एडिशन) की उपलब्धता के बावजूद आज के बाज़ारों में Apple (ऐपल) और Microsoft (माइक्रोसॉफ्ट) की बहुलता है। सर्वर हार्डवेयर सर्वर ऍप्लिकेशन (अनुप्रयोग) के आधार पर, सर्वरों के लिए आवश्यक हार्डवेयर भिन्न-भिन्न होते हैं। एब्सोल्यूट CPU की गति साधारणतः किसी सर्वर के लिए उतनी महत्वपूर्ण नहीं होती है जितनी एक डेस्कटॉप मशीन के लिए होती है। एक ही नेटवर्क में अनगिनत उपयोगकर्ताओं को सेवा प्रदान करना सर्वर का काम होता है जिससे तेज नेटवर्क कनेक्शन और उच्च I/O थ्रूपुट (throughput) जैसी विभिन्न आवश्यकताएं सामने आतीं हैं। चूंकि सर्वरों को साधारणतः एक ही नेटवर्क पर एक्सेस किया जाता है इसलिए ये बिना किसी मॉनिटर या इनपुट डिवाइस के हेडलेस मोड में चालू रह सकते हैं। उन प्रक्रियाओं का प्रयोग नहीं होता है जो सर्वर की क्रियाशीलता के लिए जरूरी नहीं होते हैं। कई सर्वरों में ग्राफ़िकल यूज़र इंटरफ़ेस (GUI) नहीं होते हैं क्योंकि यह अनावश्यक होता है और इससे उन संसाधनों का भी क्षय होता है जो कहीं-न-कहीं आवंटित होते हैं। इसी तरह, ऑडियो और USB इंटरफ़ेस (अंतराफलक) भी अनुपस्थित रह सकते हैं। सर्वर अक्सर बिना किसी रूकावट और उपलब्धता के कुछ समय के लिए चालू रहता है लेकिन यह उच्च कोटि का होना चाहिए जो हार्डवेयर की निर्भरता व स्थायित्व को अत्यंत महत्वपूर्ण बना सके.यद्यपि सर्वरों का गठन कंप्यूटर के उपयोगी हिस्सों से किया जा सकता है लेकिन मिशन-क्रिटिकल सर्वरों में उन विशिष्ट हार्डवेयर का प्रयोग होता है जो अपटाइम को बढ़ाने के लिए बहुत कम विफलता दर वाला होता है। उदाहरणस्वरूप, तीव्रतर व उच्चतम क्षमता वाले हार्डड्राइवों, गर्मी को कम करने वाले बड़े-बड़े कंप्यूटर के पंखों या पानी की मदद से ठंडा करने वाले उपकरणों और बिजली की बाधित होने की स्थिति में सर्वर की क्रियाशीलता को जारी रखने के लिए अबाधित बिजली की आपूर्तियों की मदद से सर्वरों का गठन हो सकता है। ये घटक तदनुसार अधिक मूल्य पर उच्च प्रदर्शन और निर्भरता प्रदान करते हैं। व्यापक रूप से हार्डवेयर अतिरिक्तता का प्रयोग किया जाता है जिसमें एक से अधिक हार्डवेयर को स्थापित किया जाता है, जैसे बिजली की आपूर्ति और हार्ड डिस्क. इन्हें इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है कि यदि एक विफल हुआ तो दूसरा अपने-आप उपलब्ध हो जाय. इसमें त्रुटियों का पता लगाने व उन्हें ठीक करने वाले ECC मेमोरी डिवाइसों का प्रयोग किया जाता है; लेकिन बिना ECC मेमोरी वाले डिवाइस डाटा में गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं। सर्वर अक्सर रैक-माउंटेड (रैक पर रखे) होते हैं तथा इन्हें सुविधा और सुरक्षा की दृष्टि से शारीरिक पहुंच से दूर रखने के लिए सर्वर कक्षों में रखा जाता है। कई सर्वरों में हार्डवेयर को शुरू करने तथा ऑपरेटिंग सिस्टम को लोड करने में बहुत समय लगता है। सर्वर अक्सर व्यापक पूर्व-बूट मेमोरी परीक्षण व सत्यापन करते हैं और तब दूरदराज के प्रबंधन सेवाओं को शुरू करते हैं। तब हार्ड ड्राइव कंट्रोलर्स सभी ड्राइवों को एक साथ शुरू न करके एक-एक करके शुरू करते हैं ताकि इससे बिजली की आपूर्ति पर कोई ओवरलोड न पड़े और तब जाकर ये RAID प्रणाली के पूर्व-जांच का कार्य शुरू करते हैं जिससे अतिरिक्तता का सही संचालन हो सके. यह कोई खास बात नहीं है कि एक मशीन को शुरू होने में कई मिनट लगते हैं, लेकिन इसे महीनों या सालों तक फिर से शुरू करने की आवश्यकता नहीं हो सकती है। इंटरनेट पर सर्वर लगभग इंटरनेट की पूरी संरचना एक क्लाइंट-सर्वर मॉडल पर आधारित होती है। उच्च-स्तर के रूट नेमसर्वर, DNS सर्वर और रूटर्स इंटरनेट पर ट्रैफिक का निर्देशन करते हैं। इंटरनेट से जुड़े ऐसे लाखों सर्वर हैं जो पूरे विश्व में लगातार चल रहे हैं। इंटरनेट सर्वरों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं में शामिल हैं: वर्ल्ड वाइड वेब डोमेन की नामांकन प्रणाली इलेक्ट्रॉनिक मेल FTP फ़ाइल स्थानांतरण चैट और तात्कालिक संदेशन ध्वनि संचार स्ट्रीमिंग ऑडियो और वीडियो ऑनलाइन गेमिंग एक साधारण इंटरनेट उपयोगकर्ता के द्वारा की गई हर एक कार्रवाई में एक या एक से अधिक सर्वर के साथ एक या एक से अधिक संपर्क की आवश्यकता पड़ती है। ऐसी भी कई प्रौद्योगिकियां हैं जो इंटर-सर्वर स्तर पर संचालित होती हैं। अन्य सेवाओं में संबंधित सर्वरों का उपयोग नहीं होता है; उदाहरणस्वरूप, सहकर्मी-दर-सहकर्मी फ़ाइल शेयरिंग, दूरभाषी के कुछ कार्यान्वयन (जैसे - स्काइप), भिन्न-भिन्न उपयोगकर्ताओं को टेलीविज़न कार्यक्रमों की आपूर्ति [जैसे - Kontiki (कोंटिकी), SlingBox (स्लिंगबॉक्स)]. दैनिक जीवन में सर्वर कोई भी कंप्यूटर या डिवाइस जो अनुप्रयोग या सेवा प्रदान करते हैं, उन्हें सर्वर कहा जा सकता है। किसी उद्यम या कार्यालय परिवेश में नेटवर्क सर्वर की पहचान करना आसान है। एक DSL/केबल मॉडम रूटर एक सर्वर के समान होता है क्योंकि यह एक ऐसा कंप्यूटर प्रदान करता है जिसमें अनुप्रयोग सेवाएं होती है, जैसे IP एड्रेस असाइनमेंट (DHCP के माध्यम से), NAT और फ़ायरवॉल जो कंप्यूटर को बाहरी खतरों से रक्षा करने में मदद करता है। iTunes (आईट्यून्स) सॉफ्टवेयर एक म्युज़िक सर्वर को कार्यान्वित करता है जो कम्प्यूटरों में म्युज़िक को स्ट्रीम (प्रवाहित) करता है। कई घरेलू उपयोगकर्ता शेयर की गई फोल्डरों व प्रिंटरों का निर्माण करते हैं। एक दूसरा उदाहरण यह भी है कि Everquest (एवरक्वेस्ट), World of Warcraft (वर्ल्ड ऑफ़ वारक्राफ्ट), Counter-Strike (काउंटर-स्ट्राइक) व Eve Online (ईव ऑनलाइन) जैसी ऑनलाइन खेलों को होस्ट करने के लिए कई सर्वर हैं। Server कितने प्रकार के होते हैं? चलिए हम बात कर लेते हैं सर्वर कितने प्रकार के होते हैं वैसे तो Server कई प्रकार के होते हैं उनके सभी के कार्य अलग-अलग होते हैं हम आज बात करेंगे कुछ महत्वपूर्ण सर्वर की जो बहुत ज्यादा लोकप्रिय हैं और बहुत ज्यादा उपयोगी भी हैं। 1. File Server यह Server नेटवर्क के द्वारा फाइल ट्रांसफर करता है Server में सभी फाइल कंप्यूटर में Store रहती हैं यह सारी कंप्यूटर फाइल्स को मैनेज करता है और यूजर्स के Request के हिसाब से फाइल्स की कॉपी यूजर्स को दिखाता है। 2. Web Server यह एक प्रकार का Server Software है जो सारे Web Pages को Web Browser में दिखाता है और इसे कंप्यूटर प्रोग्राम भी कहा जाता है इसका मुख्य काम यूजर्स को जानकारी प्रदान करना होता है। यह वेब सर्वर वेब ब्राउजर से जुड़ा हुआ रहता है ताकि यूजर्स के हिसाब से उनको Browser में ही जानकारी प्रदान कर सके। 3. Mail Server यह Server इंटरनेट नेटवर्क पर Email को मैनेज करता है इस सर्वर के द्वारा हम ईमेल को सेंड और रिसीव करते हैं और यूजर्स के अकाउंट की सारी डिटेल्स इस सर्वर में Store रहती है। उदाहरण के तौर पर आप किसी को भी मेल भेज रहे हैं तो वह मेल Mail Server SMTP Protocol का इस्तेमाल करके आपके दोस्त के अकाउंट में चला जाता है। 4. FTP Server FTP Server का पूरा नाम फाइल ट्रांसफर प्रोटोकोल (File Transfer Protocol) है। इसकी मदद से हम किसी भी फाइल को ऑनलाइन ट्रांसफर कर सकते हैं। यह बहुत ही Securely काम करता है। यह सर्वर साथ में File Safety, Transfer Control और फाइल्स की Organization भी प्रदान करता है। 5. Database Server यह एक कंप्यूटर सिस्टम है जिसका कार्य है Database से डाटा को Access करना है और उसे पुनः प्राप्त करने से संबंधित सेवाएं प्रदान करना है। सन्दर्भ सर्वर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%A4
शुद्धाद्वैत
शुद्धाद्वैत वल्लभाचार्य (1479-1531 ई) द्वारा प्रतिपादित दर्शन है। वल्लभाचार्य पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक हैं। यह एक वैष्णव सम्प्रदाय है जो श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करता है। वल्लभाचार्य का जन्म चंपारण में हुआ।बनारस में दीक्षा पूरी करके अपने गृहनगर विजयनगर चले गए जहां इनको कृष्णदेवराय का संरक्षण प्राप्त हुआ। शुद्धाद्वैत दर्शन, आचार्य शंकर के अद्वैतवाद से भिन्न है। 'केवलाद्वैत' मत में जहां माया शबलित ब्रह्म को जगत् का कारण माना गया है एवं सम्पूर्ण जगत् को मिथ्या कहा गया है, वहीं शुद्धाद्वैत मत में माया सम्बन्धरहित नितान्त शुद्ध ब्रह्म को जगत् का कारण माना जाता है। आचार्य शंकर अपने सिद्धान्त के अनुरूप अद्वैत ब्रह्म का प्रतिपादन करते हैं। परन्तु श्रीवल्लभाचार्यचरण भगवान् कृष्णद्वैपायनव्यास के मतानुसार ‘‘शुद्धाद्वैत साकार ब्रह्मवाद“ का प्रतिपादन करते हैं। ‘‘साकार ब्रह्मवादैकस्थापकः“ । श्रीवल्लभाचार्यजी स्पष्ट आज्ञा करते हैं ‘‘शब्द एव प्रमाणम्“ ‘‘तत्राप्यलौकिकज्ञापकमेंव, तत् स्वतः सिद्धप्रमाणभावं प्रमाणम्“। प्रत्यक्षादि प्रमाणों में भ्रान्तत्व का भी दर्शन होने से उनका प्रामाण्य एकान्तिक नहीं हो सकता। अतः उन सबों को न कहकर केवल ‘‘शब्द प्रमाण“ को ही स्वीकार किया गया है एवं उसमें भी अलौकिक ज्ञापक शब्द का ही स्वीकार है। केवलाद्वैत में जहां द्वैत को सर्वथा मायिक मानते हुए जगत् को मिथ्या माना गया है तथा जीव को ब्रह्म का प्रतिबिम्ब माना गया है ( अर्थात् जीव ही ब्रह्म है), वहीं शुद्धाद्वैत में ‘‘ब्रह्मसत्यं जगत्सत्यं अंशोजीवोहि नापरः“ (ब्रह्म सत्य है, जगत सत्य है, जीव ब्रह्म का अंश है) ऐसा कहा गया है। इन्हें भी देखें अद्वैतवाद द्वैताद्वैत द्वैतवाद बाहरी कड़ियाँ शुद्धाद्वैत ब्रह्मवाद भारतीय दर्शन
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फत्तेशिकस्त
फ़त्तेशिकस्त का मतलब है कि साहसी प्रयासों से जीतें. फत्तेशिकस्त एक २०१९ भारतीय मराठी भाषा की ऐतिहासिक ड्रामा फिल्म है, जो दिगपाल लांजेकर द्वारा निर्देशित और एए फिल्म्स के सहयोग से बादाम क्रिएशंस के झंडा तले बनाया गया है। फिल्म में चिन्मय मंडलेकर, मृणाल कुलकर्णी, समीर धर्माधिकारी, अंकित मोहन और मृण्मयी देशपांडे सहायक भूमिकाओं में हैं। संगीत देवदत्त मनीषा बाजी ने किया है, और साउंडट्रैक में संत तुकाराम का भजन शामिल है। मराठा साम्राज्य पर आठ फिल्मों की श्रृंखला(शिवाजी अष्टक) में यह दूसरी फिल्म है। इसके बाद पवनखिंड फिल्म आई थी २०२० में। कथानक फिल्म पुणे के लाल महल में छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगल सेना के सूबेदार और सेनापति शहिस्ता खान के बीच का ऐतिहासिक लड़ाई को दर्शाया और बताया गया है। ढालना छत्रपति शिवाजी महाराज के रूप में चिन्मय मंडलेकर राजमाता जीजाबाई के रूप में मृणाल कुलकर्णी सुभेदार तानाजी मालुसरे के रूप में अजय पुरकर नामदार खान के रूप में समीर धर्माधिकारी शहिस्ता खान के रूप में अनूप सोनी फ़तेह खान के रूप में ऋषि सक्सेना सरसेनापति येसाजी कंक के रूप में अंकित मोहन केसर (फुलवंती) के रूप में मृण्मयी देशपांडे विक्रम गायकवाड़ सरदार चिमनाजी मुद्गल देशपांडे के रूप में किसना के रूप में निखिल राऊत सरदार बालाजी मुद्गल देशपांडे के रूप में प्रसाद लिमये बहिरजी नाइक (जासूस) के रूप में हरीश दुधाड़े दिगपाल लांजेकर सरदार बाजी सरजेराव जेधे के रूप में अक्षय वाघमारे सरदार कोयाजी नाइक बंडाल के रूप में करतलब खान उज़्बेक के रूप में आस्ताद काले राय बागान साहिबा के रूप में तृप्ति तोराडमल महारानी सोयराबाई के रूप में रुचि सवर्ण नक्षत्र मेधेकर बहुबेगम (शाइस्ता खान की बहू) के रूप में अमर सिंह राठौड़ के रूप में रमेश परदेशी सूर्याजी मालुसरे के रूप में गणेश तिडके उत्पादन फोटोग्राफी 30 ऐप्रिल 2019 को शुरू हुई रिलीज़ थियेट्रिकल फत्तेशिकस्त को नाटकीय रूप से १५ नवंबर २०१९ पर रिलीज़ किया गया था। होम मीडिया फिल्म पहली से ZEE5 पर स्ट्रीमिंग के लिए उपलब्ध है। बॉक्स ऑफ़िस फत्तेशिकास्ट ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी शुरुआत की थी। इसने पहले दिन लगभग कलेक्शन किया। दूसरे और तीसरे दिन कलेक्शन बढ़कर और ( ) हुआ था, और पहली हफ़्ते में और का पैसे कलेक्ट हुए थे। गीत संगीत Articles with hAudio microformats Album infoboxes lacking a cover Album articles lacking alt text for covers Articles with hAudio microformats फिल्म के सारे गाने देवदत्त मनीषा बाजी के द्वारा बनाए गए हैं, और गीत संत तुकाराम, वीएस खांडेकर और दिगपाल लांजेकर के द्वारा लिखे गए चुके है। बाहरी संबंध Fatteshikast at ZEE5 2019 की फ़िल्में
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द्रव नोदन प्रणाली केंद्र
द्रव नोदन प्रणाली केंद्र भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह केंद्र तीन स्थानों में स्थित है, पहला तिरुवनंतपुरम के वलियमला में, दूसरा तिरुनेलवेली के महेंद्रगिरि पहाड़ियों में और तीसरा बेंगलुरु में स्थित है। इन केंद्रों में मुख्यतः द्रव एवं क्रयोजेनिक राकेट ईंधनो पर कार्य होता है। इन्हें भी देखें इसरो भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र द्रव नोदन प्रणाली केंद्र अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद राष्ट्रीय वायुमण्डलीय अनुसंधान प्रयोगशाला अर्धचालक प्रयोगशाला, चंडीगढ़ सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र इसरो उपग्रह केंद्र मुख्य नियंत्रण सुविधा बाहरी कड़ियाँ द्रव नोदन प्रणाली केंद्र का जालघर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम
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स्वामी प्रणवानन्द
स्वामी प्रणवानन्द (14 मई १८९६ - १९४१) एक सन्त थे जिन्होने भारत सेवाश्रम संघ की स्थापना की। उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी भाग लिया। वे बाबा गंभीरनाथ जी के शिष्य थे। सन् १९१७ में उन्होने भारत सेवाश्रम संघ की स्थापना की। उनके अनुयायी उन्हे भगवान शिव का अवतार मानते हैं। जीवन परिचय स्वामी प्रणवानन्द का जन्म बंगाल के बाजितपुर गांव में हुआ था जो अब बांग्लादेश में है। उनके बचपन का नाम बिनोद था। उनके पिता विष्णुचरण दास एवं माता शारदा देवी शिवभक्त थे। बचपन से ही वे गहन चिन्तन करते-करते ध्यान-मग्न हो जाते थे। जैसे-जैसे वे बड़े होते गये, उनके ध्यान का समय भी बढ़ता गया। घर वालों ने उन्हें गांव की पाठशाला में भेज दिया। वहां भी वे ध्यानमग्न ही रहते थे। पाठशाला की पढ़ाई खत्म होने पर उन्हें एक अंग्रेजी विद्यालय में भेजा गया। वे कक्षा में सदा अन्तिम पंक्ति में बैठते थे और नाम पुकारने पर ऐसे बोलते थे, जैसे नींद से जागे हों। उन्हें शोर और शरारत पसन्द नहीं थी; पर बुद्धिमान होने के कारण वे सब बच्चों और अध्यापकों के प्रिय थे। बलिष्ठ होने के कारण खेलकूद में हर कोई उन्हें अपने दल में रखना चाहता था। क्रान्तिकारियों से उनका सम्पर्क था जिसके कारण उन्हें कई महीने जेल में भी रहना पड़ा। वे अपने विप्लवी प्राचार्य सन्तोष दत्त से प्रायः सन्यास की बात कहते थे। इस पर प्राचार्य ने उन्हें गोरखपुर के बाबा गम्भीरनाथ के पास भेजा जहाँ उन्हे 1913 ई. में विजयादशमी के दूसरे दिन ब्रह्मचारी की दीक्षा दी। अब तो वे घंटों तक समाधि में पड़े रहते। उनके गुरुजी ही उन्हें बुलाकर कुछ खिला देते थे। आठ महीने बाद गुरुजी के आदेश से वे काशी आये और फिर अपने घर लौट गये। उन्हें 1916 ई. में माघ पूर्णिमा को शिव तत्व की प्राप्ति हुई। इसके एक साल बाद उन्होंने गरीब, भूखों, असहाय और पीड़ितों की सहायता के लिए बाजिदपुर में आश्रम स्थापित किया। सन 1919 में बंगाल में आये भीषण चक्रवात में उन्होंने व्यापक सहायता कार्य चलाया। उनका दूसरा आश्रम मदारीपुर में बना। उन्होंने 1924 ई. में पौष पूर्णिमा के दिन स्वामी गोविन्दानन्द गिरि से संन्यास की दीक्षा ली। अब उनका नाम स्वामी प्रणवानन्द हो गया। उसके बाद उन्होंने गया, पुरी, काशी, प्रयाग आदि स्थानों पर संघ के आश्रमों की स्थापना की। तभी से ‘भारत सेवाश्रम संघ’ विपत्ति के समय सेवा कार्यों में जुटा हुआ है। उन्होंने समाजसेवा, तीर्थसंस्कार, धार्मिक और नैतिक आदर्श का प्रचार, गुरु पूजा के प्रति जागरूकता जैसे अनेक कार्य किये। स्वामी प्रणवानन्द जी जातिभेद को मान्यता नहीं देते थे। उन्होंने अपने आश्रमों में ‘हिन्दू मिलन मंदिर’ बनाये जिनमें जातिगत भेद को छोड़कर सब हिन्दू प्रार्थना करते थे। सबको धर्मशास्त्रों की शिक्षा दी जाती थी। इसके बाद उन्होंने ‘हिन्दू रक्षा दल’ गठित किया। इसका उद्देश्य भी जातिगत भावना से ऊपर उठकर हिन्दू युवकों को व्यायाम और शस्त्र संचालन सिखाकर संगठित करना था। वर्तमान समय में भारत सेवाश्रम संघ के देश-विदेश में 75 आश्रम कार्यरत हैं। ८ जनवरी, १९४१ को अपना जीवन-कार्य पूरा कर उन्होंने देह त्याग किया। उनके जन्मस्थान बाजितपुर में उनकी समाधि है। अब उनके बताए आदर्शों पर उनके अनुयायी संघ को चला रहे हैं। इन्हें भी देखें भारत सेवाश्रम संघ बाहरी कड़ियाँ भारत सेवाश्रम संघ भारत सेवाश्रम संघ, मुम्बई का जालघर महामिलन - भारत सेवाश्रम संघ की मासिक पत्रिका संन्यासी ही नहीं कर्मयोगी भी (अमर उजाला) हिन्दू आध्यात्मिक नेता
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१९४३
1943 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। घटनाएँ १७ जुलाई - ब्रिटेन की रॉयल एयर फोर्स आरएएफ ने जर्मनी के पीनमुंदे रॉकेट बेस पर हमला किया। 22 नवंबर- द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान को हराने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन थियोडोर रूज्वेल्ट, ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल और चीनी शासक च्यांग काई शेक के बीच मंत्रणा हुई। 3 दिसंबर- द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति फेंकलिन डी रूजवेल्ट, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल और तुर्की के राष्ट्रपति इस्मत इनोनु द्वितीय काईरो सम्मेलन में मिले। अज्ञात तारीख़ की घटनाएँ जन्म [[1 जनवरी[[ - रघुनाथ अनंत माशेलकर, भारतीय वैज्ञानिक 24 जनवरी - सुभाष घई १० जुलाई - आर्थर ऐश १० जुलाई - प्रसिद्ध अफ्रीकी अमरीकी टेनिस खिलाड़ी (निधन 1993) १७ जुलाई - निर्मलजीत सिंह सेखों, परमवीर चक्र सम्मानित भारतीय फ़्लाइंग ऑफ़िसर सैनिक निधन जनवरी-मार्च अप्रैल-जून जुलाई-सितंबर अक्टूबर-दिसंबर १९४३ १९४३
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इशारे तेरे
ईशारे तेरे एक पंजाबी गीत है जिसे गुरु रंधावा और ध्वनि भानुशाली द्वारा गाया गया है। इसे टी-सीरीज़ ने 24 जुलाई 2018 को प्रस्तुत किया। संगीत वीडियो गीत को यूट्यूब पर 24 जुलाई 2018 को टी-सीरीज़ द्वारा जारी किया गया था।इसने रिलीज़ के 24 घंटों में 15 मिलियन व्यूज पार कर लिए। रिसेप्शन इस गाने को दर्शकों द्वारा खूब सराहा गया और दोनों गायकों की प्रशंसा की गई। गाने को मीडिया में वर्ष के पार्टी गान के रूप में उद्धृत किया गया था। संदर्भ २०१8 एकल पंजाबी भाषा के गाने टी-सीरीज एकल धवानी भानुशाली गीत गुरु रंधावा गाने
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मौमिता दत्ता
मौमिता दत्ता 2006 में अहमदाबाद में मौजूद अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (Space Applications Centre) में शामिल हुए। तब से वे विभिन्न प्रकार के कुलीन परियोजनाएं जैसे कि- चंद्रयान-1, ओशियनसेट, रिसोर्ससैट और हाएसेट का हिस्सा रह चुकी हैं। उन्हें मंगल परियोजनाओं में मीथेन सेंसर के लिए परियोजना के आयोजक के तौर पर चुना गया था और वह ऑप्टिकल प्रणाली के विकास और सूचक के लक्षण वर्णन और अंशांकन के लिए जिम्मेदार थीं। इसरो की विभिन्न परियोजनाओं के लिए विभिन्न बहु-वर्णक्रमीय पेलोड और स्पेक्ट्रोमीटर के विकास में वे शामिल हैं। उनके अनुसंधान के क्षेत्र हैं - गैस सूचक का लघु रूप तैयार करना जो कि प्रकाशिकी के क्षेत्र में राज्य के अति-आधुनिक प्रौद्योगिकियों में शामिल है। सन्दर्भ महिला वैज्ञानिक विज्ञान में महिलाएं भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन भारतीय महिला वैज्ञानिक भारतीय महिला
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दक्षिण शिलांग विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र
भारतीय राज्य मेघालय का एक विधानसभा क्षेत्र है। यहाँ से वर्तमान विधायक सनबोर शुल्लाई हैं। विधायकों की सूची इस निर्वाचन क्षेत्र से विधायकों की सूची निम्नवत है |-style="background:#E9E9E9;" !वर्ष !colspan="2" align="center"|पार्टी !align="center" |विधायक !प्राप्त मत |- |२०१३ |bgcolor="#00B2B2"| |align="left"| राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी |align="left"| सनबोर शुल्लाई |७१७९ |- |२०१८ |bgcolor="#FF9933"| |align="left"| भारतीय जनता पार्टी |align="left"| सनबोर शुल्लाई |११२०४ |} इन्हें भी देखें शिलांग लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र मेघालय के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सूची सन्दर्भ मेघालय के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र
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ब्यास नदी
ब्यास (, ) पंजाब (भारत) हिमाचल में बहने वाली एक प्रमुख नदी है। नदी की लम्बाई ४६० किलोमीटर है। पंजाब (भारत) की पांच प्रमुख नदियों में से एक है। इसका उल्लेख ऋग्वेद में केवल एक बार है। बृहद्देवता में शतुद्री या सतलुज और विपाशा का एक साथ उल्लेख है। इतिहास ब्यास नदी का पुराना नाम ‘अर्जिकिया’ या ‘विपाशा’ था। यह कुल्लू में व्यास कुंड से निकलती है। व्यास कुंड पीर पंजाल पर्वत शृंखला में स्थित रोहतांग दर्रे में है। यह कुल्लू, मंडी, हमीरपुर और कांगड़ा में बहती है। कांगड़ा से मुरथल के पास पंजाब में चली जाती है। मनाली, कुल्लू, बजौरा, औट, पंडोह, मंडी, सुजानपुर टीहरा, नादौन और देहरा गोपीपुर इसके प्रमुख तटीय स्थान हैं। इसकी कुल लंबाई 460 कि॰मी॰ है। हिमाचल में इसकी लंबाई 256 कि॰मी॰ है। कुल्लू में पतलीकूहल, पार्वती, पिन, मलाणा-नाला, फोजल, सर्वरी और सैज इसकी सहायक नदियां हैं। कांगड़ा में सहायक नदियां बिनवा न्यूगल, गज और चक्की हैं। इस नदी का नाम महर्षि ब्यास के नाम पर रखा गया है। यह प्रदेश की जीवनदायिनी नदियों में से एक है। स्थिति इस नदी का उद्गम मध्य हिमाचल प्रदेश में, वृहद हिमालय की जासकर पर्वतमाला के रोहतांग दर्रे पर 4,361 मीटर की ऊंचाई से होता है। यहाँ से यह कुल्लू घाटी से होते हुये दक्षिण की ओर बहती है। जहां पर सहायक नदियों को अपने में मिलाती है। फिर यह पश्चिम की ओर बहती हुई मंडी नगर से होकर कांगड़ा घाटी में आ जाती है। घाटी पार करने के बाद ब्यास पंजाब (भारत) में प्रवेश करती है व दक्षिण दिशा में घूम जाती है और फिर दक्षिण-पश्चिम में यह 470 कि॰मी॰ बहाने के बाद आर्की में सतलुज नदी में जा मिलती है। व्यास नदी 326 ई. पू. में सिकंदर महान के भारत आक्रमण की अनुमानित पूर्वी सीमा थी। नामोल्लेख वाल्मीकि रामायण में अयोध्या के दूतों की केकय देश की यात्रा के प्रसंग में विपाशा (वैदिक नाम विपाश) को पार करने का उल्लेख है। महाभारत में भी विपाशा के तट पर विष्णुपद तीर्थ का वर्णन है। विपाशा के नामकरण का कारण पौराणिक कथा के अनुसार इस प्रकार वर्णित है, कि वसिष्ठ पुत्र शोक से पीड़ित हो अपने शरीर को पाश से बांधकर इस नदी में कूद पड़े थे किन्तु विपाशा या पाशमुक्त होकर जल से बाहर निकल आए। महाभारत में भी इसी कथा की आवृत्ति की गई है। दि मिहरान ऑव सिंध एंड इट्ज़ ट्रिव्यूटेरीज़ के लेखक रेवर्टी का मत है कि व्यास का प्राचीन मार्ग 1790 ई. में बदल कर पूर्व की ओर हट गया था और सतलुज का पश्चिम की ओर और ये दोनों नदियाँ संयुक्त रूप से बहने लगी थीं। रेवर्टी का विचार है कि प्राचीन काल में सतलुज व्यास में नहीं मिलती थी। किन्तु वाल्मीकि रामायण में वर्णित है कि शतुद्रु या सतलुज पश्चिमी की ओर बहने वाली नदी थी। अत: रेवर्टी का मत संदिग्ध जान पड़ता है। ब्यास को ग्रीक लेखकों ने हाइफेसिस कहा है। पर्यटन स्थल ब्यास नदी के किनारे एक प्रमुख पर्यटन स्थल है कुल्लू । कुल्लू भारत के हिमाचल प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। कुल्लू गर्मी के मौसम में लोगों का एक मनपसंद गंतव्‍य है। मैदानों में तपती धूप से बच कर लोग हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी में शरण लेते हैं। यहां के मंदिर, सेब के बागान और दशहरा हजारों पर्यटकों को कुल्लू की ओर आकर्षित करते हैं। यहां के स्‍थानीय हस्‍तशिल्‍प कुल्लू की सबसे बड़ी विशेषता है। मनाली कुल्लू घाटी के उत्तर में स्थित हिमाचल प्रदेश का लोकप्रिय हिल स्टेशन है। समुद्र तल से 2050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मनाली व्यास नदी के किनारे बसा है। गर्मियों से निजात पाने के लिए इस हिल स्टेशन पर हजारों की तादाद में सैलानी आते हैं। सर्दियों में यहां का तापमान शून्य डिग्री से नीचे पहुंच जाता है। आप यहां के खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों के अलावा मनाली में हाइकिंग, पैराग्लाइडिंग, राफ्टिंग, ट्रैकिंग, कायकिंग जैसे खेलों का भी आनंद उठा सकते है। यहां के जंगली फूलों और सेब के बगीचों से छनकर आती सुंगंधित हवाएं दिलो दिमाग को ताजगी से भर देती हैं। व्‍यास नदी के किनारे बसा हिमाचल प्रदेश का प्रमुख पर्यटन स्थल मंडी लंबे समय से व्‍यवसायिक गतिविधियों का केन्‍द्र रहा है। समुद्र तल से 760 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह नगर हिमाचल के तेजी से विकसित होते शहरों में एक है। कहा जाता है महान संत मांडव ने यहां तपस्‍या की और उनके पास अलौकिक शक्तियां थी। साथ ही उन्‍हें अनेक ग्रन्‍थों का ज्ञान था। माना जाता है कि वे कोल्‍सरा नामक पत्‍थर पर बैठकर व्‍यास नदी के पश्चिमी तट पर बैठकर तपस्‍या किया करते थे। यह नगर अपने 81 ओल्‍ड स्‍टोन मंदिरों और उनमें की गई शानदार नक्‍कासियों के लिए के प्रसिद्ध है। मंदिरों की बहुलता के कारण ही इसे पहाड़ों के वाराणसी नाम से भी जाना जाता है। मंडी नाम संस्‍कृत शब्‍द मंडोइका से बना है जिसका अर्थ होता है खुला क्षेत्र। विद्युत परियोजनाएँ ब्यास नदी और सतलुज नदी के लिंक से एक विद्युत परियोजना बिकसित की गयी है। प्रथम यूनिट के अंतर्गत यह पंडोह में 4711 मिलियन क्‍यूमेक (3.82 एम.ए.एफ.) ब्‍यास जल को 1000 फीट नीचे सतलुज में अपवर्तित करती है। इस बिंदु पर देहर विद्युत गृह की अधिष्‍ठापित क्षमता 990 मेगावाट है, इसके बाद टेल रेस जल सतलुज से बहता हुआ भाखडा के गोबिन्‍दसागर जलशाय में एकत्रित हो जाता है। पंडोह से देहर तक अपवर्तन 38 कि॰मी॰ लम्‍बी जल संवाहक प्रणाली द्वारा होता है जिसमें संयुक्‍त रूप से 25 कि॰मी॰ लम्‍बी एक खुली चैनल तथा दो सुंरगें सम्मिलित हैं। ब्‍यास तथा सतलुज का कुल जलग्रहण क्षेत्र क्रमश: 12560 कि॰मी॰ तथा 56860 कि॰मी॰ है। ब्‍यास परियोजना की द्वितीय यूनिट के अंतर्गत तलवाड़ा के मैदानी भाग में प्रवेश करने से ठीक पहले ब्‍यास नदी पर पौंग बांध है, जिसका सकल भण्‍डारण 435 फुट अर्थ कोर ग्रैवल शैल डैम के पीछे 8572 मिलियन क्‍यूमेक (6.95 एम.ए.एफ.) है। बांध के आधार पर स्थित विद्युत संयंत्र की अधिष्‍ठापित क्षमता 360 मेगावाट है। विवाद देश में रावी और ब्यास नदी जल विवाद काफी पुराना है। यह भारत के दो राज्यों पंजाब (भारत) और हरियाणा के बीच रावी और ब्यास नदियों के अतरिक्त पानी के बंटवारे को लेकर हैं। मुकदमे सालों से अदालतों में हैं। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ हिन्दी नेटिव प्लानेट में मनाली तस्वीरें, ब्यास कुंड - ब्यास नदी सिन्धु नदी की उपनदियाँ भारत की नदियाँ सिन्धु जलसम्भर द्रोणी हिमाचल प्रदेश की नदियाँ ऋग्वैदिक नदियाँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%A8%E0%A4%9A%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%96
बोरशिया मौनचेंगलाडबाख
बोरशिया व्फ्ल् 1900 मौनचेंगलाडबाख e.V. सामान्यतः बोरशिया मौनचेंगलाडबाख के रूप में जाना, मौनचेंगलाडबाख या गलाडबाख, एक जर्मन संघ फुटबॉल क्लब मौनचेंगलाडबाख, नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया में आधारित है। 1900 में स्थापित, बोरशिया मौनचेंगलाडबाख 1965-66 सीजन के दौरान लीग में अपनी पहली उपस्थिति बना रही है, बुन्देस्लिग, जर्मन फुटबॉल लीग प्रणाली के शीर्ष स्तर में खेलते हैं। बाद में क्लब 1970 के दशक के दौरान बुन्देस्लिग पांच बार जीत, जर्मनी की सबसे अच्छी तरह से समर्थित, अच्छी तरह से जाना जाता है और सफल टीमों में से एक बन गया। 2004 के बाद से, बोरशिया मौनचेंगलाडबाख पहले 1919 के बाद से छोटे बोकेल्बेर्ग्स्तदिओन् में खेला होने, 54,057 क्षमता बोरशिया-पार्क में खेला है। बोरशिया मौनचेंगलाडबाख फरवरी 2012 के रूप में 50,000 से अधिक सदस्य हैं और जर्मनी में छठा सबसे बड़ा क्लब है। उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी हैं 1. एफसी कोलोन. क्लब के उपनाम दिए फोह्लेन (बछेडा) है, एक तेजी से, आक्रामक खेल शैली के साथ एक युवा टीम होने के कारण 1970 के दशक में बनाया गया था। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट जर्मनी के फुटबॉल क्लब फुटबॉल क्लब
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%AF
पण्य
अर्थशास्त्र में पण्य (commodity) ऐसी वस्तु होती है जो पूरी या अधिकांश रूप से प्रतिमोच्य हो, यानि उस वस्तु के बराबार मात्रा के अंशों का मूल्य बाज़ार में बराबर या लगभग बराबर माना जाता है। उदाहरण के लिए सोने के 10 ग्राम के दो टुकड़ों का मूल्य बराबर माना जाता है, चाहे उनका उत्पादन अलग समय में, अलग स्थानों में बिलकुल भिन्न प्रकार से करा गया हो। इसी तरह कपास, गेहूँ, लोहा, किसी एक प्रकार का पेट्रोल, खुली चाय की पत्ती, इत्यादि सभी पण्य हैं। अधिकांश पण्य कच्चे माल के बने होते हैं, यानि प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होते हैं। कुछ वृहद उत्पादन द्वारा भारी मात्रा में बनाई जाने वाली वस्तुएँ भी पण्य समझी जा सकती हैं, जैसे कि बहुत से प्रकार के निर्मित रसायन। इन्हें भी देखें प्रतिमोच्यता सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82%20%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%B8%E0%A5%80%20%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%87%20%E0%A4%86%E0%A4%81%E0%A4%97%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%281978%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29
मैं तुलसी तेरे आँगन की (1978 फ़िल्म)
मैं तुलसी तेरे आँगन की 1978 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। संक्षेप चरित्र मुख्य कलाकार नूतन विनोद खन्ना - अजय चौहान विजय आनन्द आशा पारेख - तुलसी चौहान देब मुखर्जी - प्रताप चौहान नीता मेहता त्रिलोक कपूर भगवान हिना कौशर गीता बहल बीरबल सी एस दुबे गोगा कपूर कुमारी नाज़ आनन्द दोस्त प्रवीन कौल पूर्णिमा जगदीश राज - अग्रवाल मास्टर रवि दल संगीत रोचक तथ्य परिणाम बौक्स ऑफिस समीक्षाएँ नामांकन और पुरस्कार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार 1979 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार - नूतन बाहरी कड़ियाँ 1978 में बनी हिन्दी फ़िल्म फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार विजेता
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हाथी मेरे साथी (1971 फ़िल्म)
हाथी मेरे साथी 1971 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इसका निर्देशन एम॰ ए॰ तिरुमुगम ने किया, पटकथा सलीम-जावेद ने लिखी और संवाद इंदर राज आनंद ने लिखें। यह फिल्म 1971 की सबसे ज्यादा व्यावसायिक सफलता अर्जित करने वाली फिल्म थी। इसमें राजेश खन्ना और तनुजा मुख्य भूमिकाओं में हैं। यह उस समय की किसी दक्षिण भारतीय निर्माता द्वारा बनाई गई सबसे सफल हिन्दी फिल्म थी। इसमें लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल द्वारा संगीत और आनंद बख्शी के बोल थे। फिल्म सलीम-जावेद (सलीम खान और जावेद अख्तर) की पहली सहभागिता भी थी, जिन्हें आधिकारिक तौर पर पटकथा लेखकों के रूप में श्रेय दिया गया। संक्षेप राजू (राजेश खन्ना) चार हाथियों के साथ रहता है। वह उनके लिये सड़क के किनारों पर प्रदर्शन करता है। इसी से उनकी रोजी-रोटी चलती है। जब वह छोटा था तो उन हाथियों ने एक तेंदुए से उसकी जान बचाई थी। समय के साथ वह तरक्की करता है और एक चिड़ियाघर, प्यार की दुनिया शुरू करता है। इसमें विभिन्न जंगली जानवर उसके हाथियों के साथ रहते हैं, जिनमें से रामू उसके सबसे करीब है। धीरे-धीरे वह संपत्ति अर्जित कर लेता है और अपना निजी चिड़ियाघर शुरू करता है। इसमें वह बाघ, शेर, भालू और अपने चार हाथियों को रखता है। वह सभी जानवरों को अपना दोस्त मानता है। बाद में उसकी मुलाकात तनु (तनुजा) से होती है और दोनों प्यार में पड़ जाते हैं। तनु के अमीर पिता, रतनलाल (मदन पुरी), इस गठबंधन का विरोध करते हैं लेकिन बाद में युवा जोड़े को शादी करने की अनुमति दे देते हैं। हालाँकि, तनु जल्द ही अपने को उपेक्षित महसूस करने लगती है। जब उनका बच्चा पैदा होता है, तो हालात बिगड़ जाते हैं। तनु, हाथी से उसके बच्चे को शारीरिक नुकसान पहुंचाने के डर से, राजू को हाथी और अपने परिवार के बीच चयन करने के लिए कहती है। राजू पत्नी और बेटे के ऊपर अपने जानवर दोस्तों का चयन करता है। अब रामू दोनों को एक साथ लाने का फैसला करता है, लेकिन खलनायक सरवन कुमार (के एन सिंह) के कारण उसे अपना जीवन बलिदान करना पड़ता है। मुख्य कलाकार राजेश खन्ना — राज कुमार 'राजू' तनुजा — तनुजा डेविड अब्राहम — जॉनी चाचा सुजीत कुमार — गंगू के एन सिंह — सरवन कुमार मदन पुरी — रतनलाल अभि भट्टाचार्य — राजू के पिता जूनियर महमूद — छोटे / झमूरे कुमारी नाज़ — पारो संगीत सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ 1971 में बनी हिन्दी फ़िल्म लक्ष्मीकांत–प्यारेलाल द्वारा संगीतबद्ध फिल्में
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A5%80
छीलानाडी
छीलानाडी गांव (अंग़्रेजी -Chhilanadi ) गाँव यह एक भारतीय प्रांत के राजस्थान राज्य के जोधपुर जिले के बाप तहसिल तथा पंचायत समिति एवं उप तहसिल घंटियाली में स्थित हैं, जो ग्राम पंचायत एवं पंचायत समिति पुनर्गठन - 2020 से पहले ग्राम पंचायत केलनसर का राजस्व गाँव था। यह वर्तमान में ग्राम पंचायत ढाढरवाला का राजस्व गाँव हैं । यह लोकसभा क्षेत्र जोधपुर एवं फलौदी विधानसभा क्षेत्र भाग-122 के क्षेत्र में आता हैं। इस गाँव के ज्यादातर लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि पर निर्भर हैं, कृषि के साथ-साथ पशुपालन- गाय , भैंस, भेङ और बकरी आदि लोगों का प्रमुख आर्थिक व्यवसाय हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE
कविशिक्षा
काव्यरचना संबंधी विधिविधान अथवा रीति की शिक्षा को कविशिक्षा कहते हैं। काव्यसर्जना की प्रतिभा यद्यपि प्राचीन काल से नैसर्गिक किंवा जन्मजात मानी जाती रही है, तथापि संस्कृत काव्यशास्त्र के लगभग सभी प्रमुख आचार्यों ने कवि के लिए सुशिक्षित एवं बहुश्रुत होना आवश्यक बताया है। भामह (काव्यलंकार, १.१०) ने ईसा की छठी-सातवीं शताब्दी में कवियों के लिए शब्दार्थज्ञान की प्राप्ति, शब्दार्थवेत्ताओं की सेवा तथा अन्य कवियों के निबंधों का मनन कर लेने के पश्चात्‌ ही कविकर्म में प्रवृत्त होना उचित माना है। ८०० ई. के लगभग वामन (काव्यालंकारसूत्र, १:३ तथा ११) ने लोकव्यवहार, शब्दशास्त्र, अभिधान, कोश, छंदशास्त्र, कामशास्त्र कला तथा दंडनीति का ज्ञान प्राप्त करने के अतिरिक्त कवियों के लिए काव्यशास्त्र का उपदेश करनेवाले गुरुओं की सेवा भी जरूरी बताई है। ९०० ई. के लगभग राजशेखर ने "काव्यमीमांसा' के १८ अध्यायों में शास्त्रपरिचय, पदवाक्य, विवेक, पाठप्रतिष्ठा, काव्य के स्रोत, अर्थव्याप्ति, कविचर्या, राजचर्या, काव्यहरण, कविसमय, देशविभाग, कालविभाग, आदि विविध कविशिक्षोपयोगी विषयों का निरूपण किया है। वस्तुत: कविशिक्षा संबंधी सामग्री के लिए राजशेखरकृत "काव्यमीमांसा' मानक ग्रंथ है। इसीलिए राजशेखर के परवर्ती आचार्यों के कविशिक्षा पर लिखते समय "काव्यमीमांसा' में उपलब्ध सामग्री का जमकर उपयोग किया है। क्षेमेंद्र ने १०५० ई. के समीप अपने ग्रंथ कविकंठाभरण (संधि १ : २) में काव्यरचना में रुचि रखनेवाले व्यक्तियों को निर्देश दिया है कि वे नाटक, शिल्पकौशल, सुंदर चित्र, मानवस्वभाव, समुद्र, नदी, पर्वत आदि विभिन्न स्थानों का निरीक्षण करने के साथ-साथ साहित्यमर्मज्ञ गुरुओं की सेवा तथा वाक्यार्थशून्य पदों के संनिवेश से काव्यसर्जना का अभ्यास आरंभ करें। वाग्भट (वाग्भटालंकार, १: २, ७ १६ तथा २६) ने ईसा की १२वीं शती के पूर्वार्ध में काव्यरचना के लिए विविध शास्त्रों, कविसमयों आदि के ज्ञान के अतिरिक्त कवि का छंदयोजना तथा अलंकारप्रयोग पर अधिकार होना भी आवश्यक माना है। इतना ही नहीं, वाग्भट ने तो यह भी कहा है कि कवि तभी काव्यरचना करे जब उसका मन प्रसन्न हो। हेमचंद्र (१०८८-११७२) के "काव्यानुशासन" अमरचंद्र (१३वीं शती ई.) के "काव्यकल्पलता', देवेश्वर (१४वीं शती ई.) के "कविकल्पलता' तथा केशव मिश्र (१६वीं शती ई.) के "अलंकारशेखर' इत्यादि ग्रंथों में कविशिक्षा संबंधी पर्याप्त विवरण उपलब्ध हैं जो अधिकांशत: राजशेखर के अनुसार हैं। हिंदी काव्यशास्त्र में कविशिक्षा संबंधी ग्रंथ बहुत कम हैं, तो भी रीतिकाल का पूरा काव्य संस्कृत के उपर्युक्त ग्रंथों से प्रभावित है और इस काल में संस्कृत ग्रंथों की मान्यताओं का परंपरा के रूप में अनुसरण भी किया गया है। आचार्य केशवदास (१५५५-१६१७ ई.) ने "कविप्रिया' में कविता के विषय, काव्यरचना के तरीके, कविनियम (कविसमय) तथा वर्णन परिपाटी को प्रस्तुत किया है। लेकिन उक्त ग्रंथ की अधिकांश सामग्री "अलंकारशेखर' और "काव्यकल्पलता' पर आधृत है। जगन्नाथप्रसाद "भानु' कृत "काव्यप्रभाकर' (१९१० ई. में प्रकाशित) में भी कविशिक्षा संबंधी प्रामाणिक सामग्री मिलती है। उर्दू साहित्य में नए कवि पुराने या प्रतिष्ठित कवियों के संमुख अपनी रचनाएँ इस्लाह (संशोधन) के लिए प्रस्तुत करते रहे हैं। यह भी एक प्रकार की कविशिक्षा ही है। आधुनिक हिंदी साहित्य (१९०० ई. से प्रारंभ) में न केवल साहित्य एवं काव्य संबंधी मान्यताएँ बदली हैं अपितु कविता के प्रतिमान भी परिवर्तित हो गए हैं। आज का कवि रूढ़ परिपाटियों से मुक्त होकर स्वंतत्रचेता होने का प्रयास कर रहा है। प्रकृति, व्यक्ति और समसामयिक सामाजिक परिवेश को वह नए ढंग से नवीन बिंबविधान एवं स्वप्रसूत सरलीकृत छंदों के माध्यम से रूपायित करने की दिशा में अग्रसर हो रहा है। अत: काव्यरचना संबंधी पुराने विधिविधान उसे यथावत्‌ ग्राह्य नहीं हैं। परंतु कविता के स्वरूप तथा शक्ति को बनाए रखने के लिए प्राचीन काल की तरह आज भी यह आवश्यक है कि कवि काव्यरचना आरंभ करने के पूर्व काव्यभाषा, छंद, सामाजिक व्यवहार एवं परिवेश आदि से पूरी तरह परिचित हो जाए। इन्हें भी देखें कविसमय काव्यशास्त्र कवि सम्मेलन कविशिक्षा
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%A8
शेम्पेन
ये वो जनजाति है जिसमें शायद सबसे ज्यादा बदलाव हुआ है और वो आधुनिक समाज का हिस्सा बनते जा रहे हैं. पर फिर भी इस समाज ने अपनी कई खासित बचा कर रखी है. निकोबारी लोगों की भाषा, उनका पहनावा, नृत्य आदि बहुत कुछ ऐसा है जिसमें ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है. 1840 के दशक में पहली बार इस जनजाति से संपर्क साधा गया था. 2014 में पहली बार इस जनजाति को वोटिंग के लिए साथ में लाया गया था. यानी इस जनजाति का आधुनिकरण भी हाल ही में हुआ है. 2001 की जनगणना में ये कहा गया था कि इस जनजाति के 300 लोग मौजूद हैं. शोमपेन जनजाति के लोगों को सबसे ज्यादा आधुनिक माना जा सकता है और यही कारण है कि इस जनजाति के लोग आसानी से घुलमिल जाते हैं और बहुत आसान है यहां जाना.
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%A4%E0%A5%8B%E0%A4%97
जतोग
जतोग (Jutogh) भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के शिमला ज़िले में स्थित एक छावनी नगर (कैंटोनमेंट बोर्ड) है। एक छावनी के रूप में इसकी स्थापना सन् 1843 में हुई थी। इतिहास जतोग को 1843 में ब्रिटिश सरकार द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया था और तब जतोग छावनी की स्थापना हुई। पहले पहल यहाँ गोरखाओं की एक रेजिमेंट आकर बसी थी, और बाद में इसे बिशप कॉटन स्कूल के गवर्नरों को सौंप दिया गया था, लेकिन, इस उद्देश्य के लिए अनुपयुक्त पाए जाने पर, इसे कुछ समय के लिए छोड़ दिया गया था। गर्मियों के महीनों में ब्रिटिश माउंटेन आर्टिलरी की दो बैटरियां और ब्रिटिश इन्फैंट्री की दो कंपनियां यहां तैनात रहती थीं। वर्तमान में जतोग छावनी बोर्ड, छावनी अधिनियम, 2006 के तहत गठित एक सांविधिक निकाय है। छावनी बोर्ड प्रशासन नगरपालिका निकाय के रूप में छावनी बोर्ड के गठन का मूल उद्देश्य इन क्षेत्रों में उचित सफाई व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता के चलते किया गया था। छावनी बोर्ड के कार्यों का दायरा नगरपालिका प्रशासन के पूरे क्षेत्र तक फैला हुआ है। बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने के अलावा, छावनी बोर्ड, जतोग छावनी क्षेत्र के निवासियों के लिए सार्वजनिक कल्याण संस्थानों और सुविधाओं का प्रबंधन भी करता है। जनसांख्यिकी भारत की 2011 जनगणना के अनुसार जतोग छावनी नगर में 2,062 निवासी थे, जिनमें से 1,434 पुरुष और 628 स्त्रियाँ थीं। 0-6 वर्ष के आयु के बच्चों की संख्या 134 (6.50%) थी। साक्षरता दर 90.04% था, जो राज्य औसत 82.80% से अधिक था। पुरुष साक्षरता 97.00% और स्त्री साक्षरता 73.04% थी। इन्हें भी देखें शिमला ज़िला हिमाचल प्रदेश सन्दर्भ हिमाचल प्रदेश के शहर शिमला ज़िला शिमला ज़िले के नगर भारत के कैंटोनमेंट
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%86%E0%A4%A8%E0%A5%82%20%E0%A4%9A%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A4
रोआनू चक्रवात
रोआनू चक्रवात श्रीलंका और भारत से होते हुए 21 मई को दोपहर के समय बांग्लादेश में पहुँचा जिसके कारण बांग्लादेश के कई तटीय इलाकों में बाढ़ के हालात बन गए हैं तथा कई इलाकों में जमीनें धंस गयी हैं। विभिन्न समाचार पत्रों के अनुसार अब तक लगभग 24 लोगों के मारे जाने की ख़बर है तथा पाँच लाख लोगों को अपना घर बार छोड़ना पड़ा है। चक्रवात की वजह से पूरे बांग्लादेश में बिजली आपूर्ति बाधित है तथा कई बन्दरगाहों पर कार्य पर रोक लगा दी है। चक्रवात से श्रीलंका में लगभग ९२ तथा बांग्लादेश में २६ लोगों की जाने गयी। इनके अलावा भारतीय राज्यों तमिलनाडु ,उड़ीसा , केरल तथा आंध्रप्रदेश में भारी मूसलाधार बारिश हुई। तैयारी और प्रभाव श्रीलंका श्रीलंका के मौसम विज्ञान विभाग ने इस चक्रवात हेतु 13 मई को ही चेतावनी जारी कर दी थी। इस तूफान के कारण आयी बाढ़ और भूस्खलन में 37 लोगों की मौत हो गई और 1,34,000 लोगों को उनके स्थान से सुरक्षित स्थान ले जाया गया। 21 मई तक मरने वालों की संख्या 71 तक पहुँच गया और 127 लोगों के लापता होने की सूचना भी मिली। भारत चेन्नई के कुछ भागों और तमिलनाडु में 24 घंटों के भीतर 93 मिमी से लेकर 116 मिमी तक बारिश हुई। चेन्नई के केलमबक्कम में 19 मई को 226 मिमी बारिश हुई। चक्रवात के गोपालपुर से 280 किलोमीटर दूर पहुँचने के बाद से ही ओडिसा में धूल भरी आँधी चलने लगी थी। सूचना के अनुसार पारादीप में 96 मिमी, पुरी में 85 मिमी, चन्दबाली में 63 मिमी, बालासोर में 52 मिमी, कटक में 31 मिमी और भुवनेश्वर में 29 मिमी वर्षा दर्ज किया गया। इस चक्रवात के प्रभाव के कारण ओडिशा में कई स्थानों में भारी वर्षा दर्ज की गई। ओडिशा सरकार ने राज्य के तटीय दक्षिणी और उत्तरी क्षेत्रों में कम से कम 12 जिलों में चेतावनी जारी की। आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी चेतावनी जारी की गयी। बांग्लादेश यहाँ चक्रवात 21 मई को शनिवार के दिन दोपहर के समय 88 किलोमीटर की रफ्तार से आया था। इस चक्रवात के बांग्लादेश में पहुँचने से पहले ही बांग्लादेश की सरकार ने 5 लाख से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थान तक पहुँचा दिया था। इसके आने के बाद पूरे देश में बिजली की सेवा पूरी तरह से ठप हो गई। शाह अमानत अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की सभी उड़ानों को रद्द कर दिया गया। बांग्लादेश के अंतर्देशीय जल परिवहन प्राधिकरण ने जहाजों के आवाजाही पर रोक लगा दी। चक्रवात के बांग्लादेश में आने के बाद 7 जिलों के 24 लोगों की मौत हो गई। इन्हें भी देखें लैला चक्रवात हुदहुद चक्रवात फैलिन चक्रवात सन्दर्भ 2016 में बांग्लादेश चक्रवात प्राकृतिक आपदाएँ
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वियतनामी लिपि
वियतनामी लिपि (वियतनामी भाषा : chữ Quốc ngữ; शाब्दिक अर्थ- राष्ट्र भाषा लिपि) वियतनामी भाषा को लिखने के लिये प्रयुक्त आधुनिक लिपि है। यह लैटिन लिपि पर आधारित है, और विशेष रूप से पुर्तगाली वर्णमाला पर। इसमें कुछ डाइग्राफ तथा ऐक्सेंत चिह्न जोड़कर यह लिपि बनी है जिसमें चार का प्रयोग अतिरिक्त ध्वनि के लिये किया जाता है जबकि अन्य पाँच का उपयोग प्रत्येक शब्द का 'टोन' बताने के लिये किया जाता है। वियतनामी वर्णमाला अपनी डायट्रिक्स की अधिकता (और प्रायः एक ही वर्ण पर दो डायट्रिक्स) के कारण आसानी से पहचानी जाती है। वर्ण वियतनामी वर्णमाला में 29 वर्ण है। {| |A||Ă||Â||B||C||D||Đ||E||Ê||G||H||I||K||L||M||N||O||Ô||Ơ||P||Q||R||S||T||U||Ư||V||X||Y |- |a||ă||â||b||c||d||đ||e||ê||g||h||i||k||l||m||n||o||ô||ơ||p||q||r||s||t||u||ư||v||x||y |} इनके अलावा निम्नलिखित १० डाईग्राफ/ट्राईग्राफ भी प्रयोग किये जाते हैं- CH, GH, GI, KH, NG, NGH, NH, PH, QU, TH, TR लैटिन वर्णमाला के ये वर्ण - "F", "J", "W" और "Z" वियतनामी भाषा के लेखन में उपयोग नहीं होते बल्कि विदेशी शब्दों के लेखन में ही इनका इस्तेमाल होता है। वर्णों के नाम तथा उच्चारण डाईग्राफ़ तथा ट्राईग्राफ़ के उच्चारण KH - [] NG - [] NH - [] PH - [] TH - [] TR - [] QU - [] GH - अन्य वर्तनी G (स्वर i , e और ê के पहले). NGH - अन्य वर्तनी NG (स्वर i , e और ê के पहले). स्वर वियतनामी लेखन में वर्तनी और उच्चारण में सीधा सम्बन्ध नहीं है बल्कि जटिल सम्बन्ध है। कुछ स्थितियों में एक ही वर्ण अन्य ध्वनियों को निरुपित करता है; दूसरी तरफ दो या अधिक वर्ण एक ही ध्वनि के लिये प्रयुक्त होते हैम। ब्यंजन विश्व की लिपियाँ
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कंबोडिया में धर्म
बौद्ध धर्म कंबोडिया का आधिकारिक धर्म है। कंबोडिया की लगभग 97% आबादी थरवाड़ा बौद्ध धर्म का पालन करती है, इस्लाम, ईसाई धर्म और जनजातीय शत्रुता के साथ शेष का बड़ा हिस्सा बनाते हैं। बौद्ध धर्म बौद्ध धर्म कम से कम 5 वीं शताब्दी ईस्वी के बाद से कंबोडिया में अस्तित्व में है, कुछ स्रोतों ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के रूप में अपनी उत्पत्ति रखी है। बौद्ध धर्म 13 वीं शताब्दी ईस्वी के बाद थेरावा बौद्ध धर्म कंबोडियन राज्य धर्म रहा है और बौद्ध धर्म वर्तमान में जनसंख्या का 97% धर्म होने का अनुमान है। कंबोडिया में बौद्ध धर्म का इतिहास लगभग दो हजार साल तक फैलता है, कई साम्राज्य और साम्राज्यों में। बौद्ध धर्म दो अलग-अलग धाराओं के माध्यम से कंबोडिया में प्रवेश किया। हिंदू प्रभावों के साथ बौद्ध धर्म के शुरुआती रूपों ने हिंदू व्यापारियों के साथ फनान साम्राज्य में प्रवेश किया। हिंदू धर्म कंबोडिया पहले फनान साम्राज्य की शुरुआत के दौरान हिंदू धर्म से प्रभावित था। हिंदू धर्म खमेर साम्राज्य के आधिकारिक धर्मों में से एक था। कंबोडिया दुनिया में ब्रह्मा को समर्पित केवल दो मंदिरों में से एक है। कंबोडिया का अंगकोर वाट दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है। इस्लाम इस्लाम कंबोडिया में चाम और मलय अल्पसंख्यकों के बहुमत का धर्म है। पो धर्म के अनुसार, कंबोडिया में 1975 के अंत तक 150,000 से 200,000 मुस्लिम थे जबकि बेन किरणन के शोध दस्तावेज 250,000 के रूप में उच्च थे। खमेर रूज के तहत छेड़छाड़ ने उनकी संख्या खराब कर दी, हालांकि, 1980 के दशक के उत्तरार्ध में वे शायद अपनी पिछली ताकत हासिल नहीं कर पाए। सभी चाम मुस्लिम शफीई स्कूल के सुन्नी हैं। पो धर्म मुस्लिम चाम को कंबोडिया में एक पारंपरिक शाखा और एक रूढ़िवादी शाखा में विभाजित करता है। ईसाई धर्म कंबोडिया में पहला ज्ञात ईसाई मिशन 1555-1556 में डोमिनिकन ऑर्डर के पुर्तगाली सदस्य गैस्पर दा क्रूज़ ने किया था। संदर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%A8%2C%20%E0%A4%85%E0%A4%B8%E0%A4%AE
सेपोन, असम
सेपोन (Sepon) भारत के असम राज्य में स्थित एक शहर है। यह नगर डिब्रूगढ़ ज़िले और शिवसागर ज़िले के बीच बंटा हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग २ इसे दो भागों में विभाजित करता है, जो इन दो ज़िलों में हैं। विवरण सेपोन चाय बागान और गाँवों से घिरा हुआ है। यहाँ एक छोटा रेल स्टेशन है। शहर में कई शिक्षा संस्थाएँ हैं, जिनमें सेपोन कॉलेज, सेपोन उच्च विद्यालय, सेपोन जातीय विद्यापीठ, इत्यादि शामिल हैं। शहर में पंजाब नैशनल बैंक की एक शाखा है। इन्हें भी देखें डिब्रूगढ़ ज़िला शिवसागर ज़िला सन्दर्भ असम के नगर डिब्रूगढ़ ज़िला डिब्रूगढ़ ज़िले के नगर शिवसागर ज़िला शिवसागर ज़िले के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F.%E0%A4%AB%E0%A4%8F%E0%A4%AE
लास्ट.फएम
लास्ट.फएम (English Last.fm) एक संगीत वेबसाइट है, जो यूनाइटेड किंगडम में 2002 में स्थापित है। "ऑडिओस्कोब्रबल" नामक एक संगीत अनुशंसित प्रणाली का उपयोग करते हुए, Last.fm उपयोगकर्ता द्वारा ट्रैक किए गए पटरियों के विवरण रिकॉर्ड करके प्रत्येक उपयोगकर्ता के संगीत स्वाद का विस्तृत प्रोफ़ाइल बनाता है, या तो इंटरनेट रेडियो स्टेशनों, या उपयोगकर्ता के कंप्यूटर या कई पोर्टेबल संगीत उपकरणों से। यह जानकारी म्यूजिक प्लेयर के जरिए (स्पॉटइट, डेज़र, ट्यूडल और म्यूजिकबी के बीच में) या उपयोगकर्ता के म्यूज़िक प्लेयर में इंस्टॉल किए गए प्लगइन के माध्यम से लास्ट.एफ के डाटाबेस में ("स्क्रबबल्ड") स्थानांतरित की जाती है। डेटा तब उपयोगकर्ता के प्रोफाइल पेज पर प्रदर्शित होता है और व्यक्तिगत कलाकारों के लिए संदर्भ पृष्ठों को बनाने के लिए संकलित किया जाता है। कलाकार स्मूथेस्ट आशु पोस्ट मलोने सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A4%BE%20%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%A8%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9
राधा मोहन सिंह
राधा मोहन सिंह (जन्म: 1 सितंबर 1949) भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिज्ञ एवं भारत के वर्तमान केन्द्रीय कृषि मंत्री हैं। वे नौंवी, ग्यारहवीं, तेरहवीं, पंद्रहवीं और सोलहवीं लोकसभा के सांसद निर्वाचित हुए हैं। वह बिहार के पूर्वी चंपारण से लोकसभा सांसद हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, जनसंघ व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक रहे श्री सिंह, सार्वजनिक जीवन में संगठन के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते हैं। इन्हें भी देखें भारत का केन्द्रीय मंत्रिमंडल नरेन्द्र मोदी का मंत्रिमण्डल सन्दर्भ 1949 में जन्मे लोग जीवित लोग १६वीं लोक सभा के सदस्य भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिज्ञ १७वीं लोक सभा के सदस्य मोदी मंत्रिमंडल मोतिहारी के लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/2014%20%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%A8%20%E0%A4%93%E0%A4%B2%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE
2014 शीतकालीन ओलंपिक में बेल्जियम
बेल्जियम 2014 में सोची में 2014 शीतकालीन ओलंपिक में 7 से 23 फरवरी 2014 तक हिस्सा लिया। टीम में पांच खेल में सात एथलीट शामिल थे, 2010 की तुलना में एक कम। टीम का लक्ष्य कुछ शीर्ष -8 प्रदर्शन था। बेल्जियम के प्रधान मंत्री एलियो डि रूपो 2014 के शीतकालीन ओलंपिक में भाग लेने की योजना नहीं बना रहे हैं। उन्होंने सार्वजनिक रूप से नहीं कहा है कि निर्णय एक राजनीतिक संकेत था। सन्दर्भ देश अनुसार शीतकालीन ओलंपिक २०१४
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
जीनोमिक्स
जीनोमिक्स एक विज्ञान है जिसमे हम आर - डीएनए,डी एन ए अनुक्रमण तकनीक एवं जैव सूचना विज्ञान का उपयोग करके जीनोम की संरचना, कार्य एवं अनुक्रमण का अध्ययन करते हैं। यह विधा जीवों के संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण का पता लगाने का प्रयास है। इस विधा के अन्तर्गत जीनोम के अन्दर एपिस्टासिस, प्लियोटरोपी एवं हेटरोसिस जैसे होने वाली प्रक्रियाओ का भी अध्ययन किया जाता है। इतिहास शब्द-साधन जीनोम शब्द का प्रयोग सबसे पहले १९२६ में अंग्रेजी भाषा में किया गया।जीनोमिक्स शब्द का सबसे पहले प्रयोग डाक्टर टॉम रॉड्रिक ने १९८६ में किया । प्रारंभिक अनुक्रमण प्रयास डाक्टर रॉबर्ट डब्ल्यू हौली और उनके सहयोगीयो ने मिलकर १९६४ में प्रथम न्यूक्लिक अनुक्रमण का पता लगाया। यह एलानीन टी-आर एन ए के राइबोन्यूक्लियोटाइड का अनुक्रमण था। १९७२ में वाल्टर फायर्स एवं उनकी टीम ने मिलकर जीवाणुभोजी एमएस२ कोट प्रोटीन के जीन का अनुक्रमण ज्ञात किया। फ्रेडरिक सैंगर और उनके सहयोगीयों ने डी एन ए अनुक्रमण को पता लगाने की तकनीक के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसी तकनीक के कारण जीनोम अनुक्रमण परियोजना की कल्पना की जा सकी। इस कार्य के लिये फ्रेडरिक सैंगर और गिलबर्ट को १९८० का नोबेल पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। १९८१ में सर्व प्रथम मानवीय माइटोकॉन्ड्रिया के संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण का पता लगाया। इसके पश्चात १९८६ में क्लोरोप्लास्ट, १९९२ में यीस्ट एवं १९९५ में एच इंफ्लुएंजा के जीनोम अनुक्रमण की खोज हुई। २००१ में मानवीय जीनोम परियोजना का प्रारूप तैयार किया गया। इस परियोजना के अन्तर्गत एक व्यक्ति विशेष के संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण का पता लगाने के कार्य की रूपरेखा तैयार की गयी। यह परियोजना २००३ में पूरी की गयी। इस्तेमाल जीव विज्ञान में जीन और जीनोम का महत्व किसी भवन की नींव की तरह होता है। अतः जीनोम परियोजना के द्वारामिलने वाली सूचना अति महत्वपूर्ण होती है। जीनोमिक्स का उपयोग जैवप्रौद्योगिकी, मेडिकल, मानवशास्त्र एवं सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में किया जाता है। कृत्रिम जीवविज्ञान के क्षेत्र में भी इसका प्रयोग किया जाता है। सन्दर्भ }} अ=
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शिव निवास पैलेस
शिव निवास पैलेस उदयपुर के महाराणा का पूर्व निवास है। अत्यंत ही खुबसुरत दिखने वाला यह महल पिछोला झील के तट पर बसा है। यह सिटी पैलेस, उदयपुर के दक्षिण में बसा हुआ एवं इसपर काम की शुरुआत महाराणा सज्जन शम्भू सिंह (१८८७-१८८४) के द्वारा की गयी थी। जिसका समापन उनके उत्तराधिकारी महाराणा फतेह सिंह के २०वी सदी के आरम्भ में किया गया। अपने अतिथिशाला के दिनों में इसकी भव्यता देखते बनती थी एवं इसने कई पार्टिया आयोजित होती थी। इन शाही दावतों में विश्व के महत्वपूर्ण व्यक्ति सम्मिलत होते थे, जिसमे यूनाइटेड किंगडम के जॉर्ज व् एवं प्रिंस ऑफ़ वेल्स एडवर्ड्स भी थे। १९५५ में जब भागवत सिंह मेवाड़ के राजा बने, तब उस समय इसको भव्यता को बनाये रखना शाही परिवार के लिए ये काफी मुश्किल सिद्ध हो रहा था। शाही परिवार के स्वामित्व में उस समय कई महल थे एवं उन सबकी भी भव्यता को कायम रखने में काफी परेशानी हो रही थी। उसी दौरान उन्होंने लेक पैलेस को उन्होंने होटल में परिवर्तित किया था जो अच्छी आय का माध्यम बन रहा था। इसको देखते हुए उन्होंने शिव निवास एवं फ़तेह प्रकाश पैलेस को विलासिता (लक्ज़री) होटल में बदलने का निर्णय लिया १९८२ में ४ वर्षों के लम्बी मेहनत के बाद शिव निवास पैलेस को होटल के तौर पर परिवर्तित कर दिया गया। शुरू से ही इसकी भव्यता लोगों को आकर्षित करती थी इसलिए जब इसे होटल के तौर पर खोला गया तब इसकी लोकप्रियता बढ़ने में ज्यादा दिन नहीं लगे। यहाँ पर रुकना एक राजसी अहसास के जैसा हैं और इतिहास के उन पलो में लौटना है। जब यहाँ राजा या रानी रहा करते थे, यही बात व्यक्ति को यहाँ वापस लौटने के लिए मजबूर करती है। इन सबके बाद पिछोला झील के तट पर बसा होना इसकी खूबसुरती में चार चाँद लगाता हैं। अवस्थिति इस महल तक पहुंचे के यातायात के कई साधन उपलब्ध हैं एयरपोर्ट से इसकी दूरी २६ किलोमीटर की है। रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी ४ किलोमीटर हैं, एवं मुख्या बस अड्डे से इसकी दूरी १ किलोमीटर की है। होटल इस होटल की वास्तुकला प्राचीन राजपूत शैली की हैं जो अपने वृहद महलों के लिए हमेशा से विख्यात रहा है। इसकी आतंरिक साज साज में हाथी दांत, मोतियों, गिलास मोसैक्स एवं फ्रेस्कोस पेंटिंग्स का प्रयोग किया है। इनमे से ज्यादातर खाजा उस्ताद एवं कुंदन लाल की कलाकृति हैं जिसे तत्कालीन महाराजा ने खास तौर इन चीज़ों को सीखने के लिए लंदन भेजा था। लंदन से उन्होंने गिलास-मोज़ेक डिज़ाइन एवं फ्रेस्को पेंटिंग सीखकर उन्होंने यहाँ उसका प्रयोग किया। आरंभिक दिनों में इस होटल में ९ सुइट्स थे जो सभी भूमि तल पर ही थे। लेकिन होटल में जब इसे परिवर्तित किया जाने लगा तब इसके दुसरे माले में ८ अपार्टमेंट और जोड़े गए। वर्तमान में इस होटल में ३६ गेस्ट रूम हैं जो इस प्रकार है। 19 डीलक्स रूम्स 8 टेरेस सुइट्स 6 रॉयल सुइट्स 3 इम्पीरियल सुइट्स जब से इसे होटल में परिवर्तित किया गया तब से यह कई मेहमानों की आगवानी हैं जिसमे संमिलित हैं महारानी एलिज़ाबेथ I, नेपाल नरेश, ईरान के शाह एवं जैकलिन कैनेडी एवं अन्य कई प्रसिद्ध व्यक्ति। सन्दर्भ उदयपुर के पर्यटन स्थल उदयपुर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%95%E0%A4%B0%20%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B9%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%9A%E0%A5%80
हैकर समूह की सूची
This is a partial list of notable Hacker Group. हैक्टिविस्ट वैनगार्ड एक विश्व स्तरीय समर्थक और हैक्टिविस्ट संघ और आंदोलन है, जिसे प्रमुख रूप से कई सरकारों, सरकारी संस्थानों और सरकारी एजेंसियों, कॉर्पोरेशन्स और साइंटोलॉजी चर्च के खिलाफ उसके विभिन्न साइबर हमलों के लिए जाना जाता है। हकिविस्ट वैनगार्ड के संस्थापक संतोष कुमार हैं| एनोनिमस (हैकर समूह), 2003 में उत्पन्न हुआ, अननीमस एक समूह था जिसमें लोग गोपनीयता के अधिकार के लिए लड़ने वाले थे। बांग्लादेश ब्लैक हैट हैकर्स, 2012 में स्थापित किया गया। केयोस कंप्यूटर क्लब (CCC), 1981 में स्थापित किया गया, यह यूरोप का सबसे बड़ा हैकर संघ है जिसमें 7,700 पंजीकृत सदस्य हैं। कॉंटी (रैंसमवेयर)|कॉंटी 2021 में सबसे अधिक उत्पादनशील रैंसमवेयर समूहों में से एक, एफबीआई के अनुसार। कोज़ी बेअर, एक रूसी हैकर समूह, जिसे रूस के एक या एक से अधिक खुफिया एजेंसियों से जोड़ा जाता है। क्रोएशियाई क्रांति हैकर्स, एक अब निष्क्रिय हो चुका समूह, जिसे क्रोएशिया के हैकर्सों द्वारा संदर्भित माना गया है, जिन्हें बाल्कन में सबसे बड़ा हमला किया गया है। संदर्भ हैकर समूह
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%87
केबेले
केबेले (ቀበሌ, kebele), जिसका अर्थ अम्हारी भाषा में मुहल्ला होता है, इथियोपिया की प्रशासनिक व्यवस्था में सबसे छोटे दर्जे के उपविभाग का नाम होता है। भारत के दिल्ली व मुम्बई क्षेत्रों की तुलना में केबेले लगभग वॉर्ड के बराबर होते हैं। इथियोपिया में सबसे ऊपर का विभाग किलिल (प्रदेश) होता है, फिर ज़ोन (अंचल), फिर वोरेडा (ज़िला) और फिर केबेले आते हैं। कुल मिलाकर इथियोपिया में लगभग ३०,००० केबेले हैं। इन्हें भी देखें इथियोपिया के उपविभाग वॉर्ड (प्रशासनिक विभाग) मुहल्ला सन्दर्भ इथियोपिया के उपविभाग इथियोपिया की संस्कृति मुहल्ले
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%97%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%80
भूगतिकी
भूगतिकी (Geodynamics) भूभौतिकी की वह शाखा है जो पृथ्वी पर केन्द्रित गति विज्ञान का अध्ययन करती है। इसमें भौतिकी, रसायनिकी और गणित के सिद्धांतों से पृथ्वी की कई प्रक्रियाओं को समझा जाता है। इनमें भूप्रावार (मैंटल) में संवहन (कन्वेक्शन) द्वारा प्लेट विवर्तनिकी का चलन शामिल है। सागर नितल प्रसरण, पर्वत निर्माण, ज्वालामुखी, भूकम्प, भ्रंशण जैसी भूवैज्ञानिक परिघटनाएँ भी इसमें सम्मिलित हैं। भूगतिकी में चुम्बकीय क्षेत्रों, गुरुत्वाकर्षण और भूकम्पी तरंगों का मापन तथा खनिज विज्ञान की तकनीकों के प्रयोग से पत्थरों और उनमें उपस्थित समस्थानिकों (आइसोटोपों) का मापन भूगतिकी में ज्ञानवर्धन की महत्वपूर्ण विधियाँ हैं। पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों पर अनुसंधान में भी भूगतिकी का प्रयोग होता है। इन्हें भी देखें प्लेट विवर्तनिकी भ्रंश (भूविज्ञान) सन्दर्भ भूभौतिकी भूगणित
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A5%8C%E0%A4%82%E0%A4%95
छौंक
छौंक जिसे तड़का (पश्चिमी भाग) या बघार (दक्षिणी भाग) भी कहते हैं, मुख्यत: भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में विभिन्न व्यंजनों को पकाने में प्रयोग की जाने वाली एक विधि है। छौंक लगाने में घी या तेल को गर्म कर उसमें खड़े मसाले (अथवा पिसे मसाले भी) डाले जाते हैं ताकि उनमें समाहित सुगंधित तेल उनकी कोशिकाओं से निकल कर, उस व्यंजन जिसमें इन मसालों को मिलाया जाना है, को, उसका वो खास स्वाद प्रदान कर सकें। छौंक को किसी व्यंजन की शुरुआत या फिर अंत में मिलाया जा सकता है। शुरुआत मे लगे छौंक में अमूमन खड़े मसालों के साथ साथ पिसे मसाले और नमक भी मिलाया जाता है जबकि अंत में लगे छौंक में अक्सर खड़े मसाले ही डाले जाते हैं। शुरुआत में लगा छौंक अक्सर सब्जी पकाने में प्रयोग किया जाता है, जबकि दाल, सांबर आदि व्यंजनों में इसे अंत में मिलाया जाता है। छौंक में प्रयुक्त सामग्रियां छौंक लगाने में मुख्यत: जीरा, हींग, प्याज, लहसुन, काली मिर्च, इलायची (हरी और बड़ी), अदरक, राई, लौंग, तेजपत्ता आदि मसालों का प्रयोग किया जाता है। कुछ खास व्यंजनों में सौंफ, सौंठ, लाल मिर्च, जावित्री, जायफल जैसे मसाले और हरी मिर्च और टमाटर जैसी सब्जियां भी इस्तेमाल की जाती हैं। शब्दोत्पत्ति छौंक कदाचित एक स्वनानुकरणात्मक शब्द है जो उस ध्वनि की व्याख्या करता है जो, गर्म तेल में कच्ची सब्जी या मसाले डालने से उत्पन्न होती है। विभिन्न भाषाओं में नाम नेपाली - झानेको पंजाबी – तड़का (ਤਡ਼ਕਾ,تڑکا) गुजराती – वघार (વઘાર) बंगाली – बगार (বাগার), बगार देवा (বাগার দেয়া), फोड़न (ফোড়ন) तमिल- थालीत्तल (தாளித்தல்) कन्नड़- ओग्गारने (ಒಗ್ಗರಣೆ) तेलुगु– थालिम्पू (తాలింపు) मराठी– फोडणी उर्दू– तड़का (تڑکا), बघार (بگهار) कोंकणी- फोण्ण सन्दर्भ पाकिस्तानी खाना बंगाली खाना भारतीय खाना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%BF
घाना के राष्ट्रपति
घाना गणराज्य के अध्यक्ष चुने गए है राज्य के सिर और सरकार के मुखिया के घाना, साथ ही कमांडर-इन-चीफ की घाना सशस्त्र बलों । घाना के वर्तमान राष्ट्रपति नाना अकुफो-एडो हैं, जिन्होंने 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में अवलंबी जॉन ड्रामानी महामा के खिलाफ 9.45% के अंतर से जीत हासिल की थी। नाना अकुफो-अडो को 7 जनवरी 2017 को पद की शपथ दिलाई गई। पात्रता घाना के 1992 के संविधान के अध्याय 8 के अनुसार, जब तक कोई व्यक्ति घाना के राष्ट्रपति के रूप में चुनाव के लिए योग्य नहीं होगा: (क) वह जन्म से घाना का नागरिक है (ख) उसने चालीस वर्ष की आयु प्राप्त की है; तथा (ग) वह / वह ऐसा व्यक्ति है जो अन्यथा संसद सदस्य चुने जाने के योग्य है, सिवाय इसके कि अनुच्छेद 94 में अनुच्छेद (c), और (e) के अनुच्छेद (2) में निर्धारित अयोग्यताएं यह संविधान ऐसे किसी व्यक्ति के संबंध में, राष्ट्रपति पद के लिए या उस लेख के खंड (5) में दिए गए समय की कमी के कारण नहीं हटाया जाएगा। पद की शपथ घाना के राष्ट्रपति को अकरा के इंडिपेंडेंस स्क्वायर पर घाना के नागरिकों के समक्ष मुख्य न्यायाधीश द्वारा शपथ दिलाई जानी चाहिए। राष्ट्रपति-चुनाव को निम्नलिखित को दोहराना होगा: ", मैं ___ घाना गणराज्य के राष्ट्रपति के उच्च पद के लिए निर्वाचित हुआ (सर्वशक्तिमान ईश्वर की शपथ के नाम पर) (पूरी तरह से पुष्टि करता हूं) कि मैं घाना गणराज्य के लिए वफादार और सच्चा रहूंगा; सभी बार घाना गणराज्य के संविधान का संरक्षण, रक्षा और बचाव करते हैं; और यह कि मैं अपने आप को घाना गणराज्य के लोगों की सेवा और कल्याण के लिए समर्पित करता हूं और सभी प्रकार के व्यक्तियों का अधिकार करता हूं। मैं आगे (पूरी तरह से शपथ) (पूरी तरह से पुष्टि करता हूं) कि मुझे किसी भी समय इस पद की शपथ तोड़नी चाहिए; मैं घाना गणराज्य के कानूनों के लिए खुद को प्रस्तुत करूंगा और इसके लिए दंड भुगतूंगा। (इसलिए मेरी मदद करो भगवान) " प्रतीक चिन्ह निर्वाचित राष्ट्रपति द्वारा पद की शपथ लेने के बाद, ये निम्नलिखित प्रतीक राष्ट्रपति को सौंप दिए जाते हैं। इन उपकरणों का उपयोग उनके कार्यालय के रैंक को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है और विशेष अवसरों पर उपयोग किया जाता है। राष्ट्रपति की तलवार (छवि) और राष्ट्रपति सीट। सोने के साथ एक नक्काशीदार लकड़ी का आसन। राष्ट्रपति के अधिकार और कर्तव्य घाना के संविधान का अध्याय 8 राष्ट्रपति के कर्तव्यों और शक्तियों का वर्णन करता है। राष्ट्रपति के लिए आवश्यक है: संविधान को बनाए रखें व्यायाम कार्यकारी अधिकार घाना की सुरक्षा और मातृभूमि का संरक्षण। संविधान को बनाए रखें इसके अलावा, राष्ट्रपति को शक्तियां दी गई हैं: सरकार की कार्यकारी शाखा के नेता के रूप में के रूप में कमांडर-इन-चीफ की सैन्य युद्ध की घोषणा करना राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों के बारे में जनमत संग्रह करना कार्यकारी आदेश जारी करने के लिए राष्ट्र के लिए सेवा के सम्मान में पदक जारी करना क्षमा जारी करने के लिए सभी कानूनों को निलंबित करने या मार्शल लॉ की स्थिति को लागू करने के लिए आपातकाल की स्थिति घोषित करने के लिए। राष्ट्रपति घाना गणराज्य के नाम पर संधियों, समझौतों या सम्मेलनों को क्रियान्वित या निष्पादित कर सकते हैं। राष्ट्रपति घाना गणराज्य की आबादी के बारे में वरीयता लेंगे और एक राष्ट्रीय जनमत संग्रह के लिए महत्वपूर्ण नीतिगत मामलों का उल्लेख कर सकते हैं, युद्ध की घोषणा कर सकते हैं, शांति और अन्य संधियों की घोषणा कर सकते हैं, वरिष्ठ सार्वजनिक अधिकारियों की नियुक्ति कर सकते हैं और माफी ( घाना की संसद की सहमति के साथ) दे सकते हैं )। गंभीर आंतरिक या बाहरी उथल-पुथल या खतरे, या आर्थिक या वित्तीय संकटों के समय में, राष्ट्रपति "राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक शांति और व्यवस्था के रखरखाव के लिए" आपातकालीन शक्तियों को ग्रहण कर सकते हैं। राष्ट्रपति को पद से हटा दिया जाएगा यदि वह संविधान के प्रावधानों, अध्याय 8 खंड 69 (ii) के अनुसार पाया जाता है - अर्थव्यवस्था या घाना गणराज्य की सुरक्षा के लिए पूर्वाग्रही या अनैतिक। राष्ट्रपति जिस दिन घाना की संसद को पद से हटाते हैं, उस दिन वह राष्ट्रपति पद पर आसीन होंगे। रहने का स्थान घाना के के अध्यक्ष सरकारी निवास था Osu कैसल में (यह भी किले Christiansborg या Christiansborg कैसल के रूप में जाना जाता है) अक्करा । 2007 में, घाना के विपक्षी सांसदों ने एक नए राष्ट्रपति भवन के निर्माण के लिए $ 50 मीटर का ऋण लेने पर संसदीय बहस छेड़ दी । राष्ट्रपति जॉन कुफूर की न्यू पैट्रियोटिक पार्टी के सांसदों ने भारत से ऋण लेने के पक्ष में सर्वसम्मति से मतदान किया।   उनका तर्क था कि राष्ट्रपति ओसू कैसल में नहीं होना चाहिए, जहां गुलामों को रखा जाता था। विपक्षी नेशनल डेमोक्रेटिक कांग्रेस ने कहा कि पैसा कहीं और खर्च किया जाएगा। घाना के पहले राष्ट्रपति द्वारा आवास के रूप में इस्तेमाल किए गए पुराने फ्लैगस्टाफ हाउस को एक संग्रहालय में पुनर्निर्मित किया जा रहा है, जबकि जिस आधार पर यह खड़ा है वह एक अति आधुनिक कार्यालय परिसर के रूप में बनाया जा रहा है और घाना के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए भी निवास स्थान बनाया जा रहा है। उनके कर्मचारी। नया राष्ट्रपति महल अगस्त 2008 तक पूरा होने की उम्मीद थी लेकिन आखिरकार नवंबर 2008 में पूरा हुआ। नए राष्ट्रपति महल के उद्घाटन के समय राष्ट्रपति जॉन कुफूर ने प्रेस को बताया कि महल का नया नाम गोल्डन जुबली हाउस होगा । यह नाम घाना की स्वतंत्रता की 50 वीं वर्षगांठ के संदर्भ में चुना गया था। कार्यालय अंतरिक्ष का एक हिस्सा विदेश मंत्रालय को दे दिया गया है जब उसके कार्यालयों को आग लगाने के कारण इसे स्थानांतरित करना पड़ा था। 2009 में पदभार संभालने के बाद एनडीसी सरकार ने कार्यक्रम स्थल पर जाने से इंकार कर दिया था, क्योंकि रेजीडेंसी का कुछ काम पूरा नहीं हुआ है। राष्ट्रपति अट्टा मिल्स की सरकार ने यह भी नोट किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा अन्वेषण ब्यूरो (बीएनआई) यह सुनिश्चित करना चाहता था कि सरकार में स्थानांतरित होने से पहले कार्यक्रम स्थल पर सुरक्षा में सुधार हो। न्यू पैट्रियॉटिक पार्टी के तहत घाना की 50 वीं वर्षगांठ के जश्न के लिए अपने लिंक को कवर करने की कोशिश में जॉन अट्टा-मिल्स द्वारा इस नाम को फ्लैगस्टाफ हाउस में बदल दिया गया था। 7 फरवरी 2013 को, राष्ट्रपति पद के कार्यालय को अंततः फ्लैगस्टाफ हाउस में स्थानांतरित कर दिया गया।   नाम को जुबली हाउस में वापस कर दिया गया है। परिवहन घाना के राष्ट्रपति के लिए राष्ट्रीय परिवहन सेवाएं हैं: लिमौज़ीन रोल्स रॉयस फैंटम कूपे ( भूत सहित) मर्सिडीज-बेंज एस-क्लास Maybach कारों को एस्कॉर्ट करें बेंटले Maserati कैडिलैक एस्केलेड मानद अनुरक्षण (मोटरसाइकिल) बीएमडब्ल्यू घाना के राष्ट्रपति के लिए हवाई परिवहन सेवाएं हैं:   लंबी दूरी की यात्रा के लिए हवाई जहाज डसॉल्ट फाल्कन 900 (लंबी दूरी की) - मुख्य जेट विमान एम्ब्रेयर जेट 190 (लंबी दूरी की) हेलीकाप्टर मिल एमआई -17 राष्ट्रपति के विमान के रूप में रंग योजना का उपयोग करता घाना का झंडा, धारियों में के उपयोग के अलावा हथियारों के घाना कोट पर पूंछ के बजाय घाना का झंडा । 2012 की शरद ऋतु में गोल्डन जुबली हाउस में एक जेट विमान का अधिग्रहण किया गया था। स्वर्ण जयंती हाउस संपत्ति एजेंसी के प्रमुख के अनुसार राष्ट्रपति के लिए एक एम्ब्रेयर 190 जेट विमान के अधिग्रहण में 105 मिलियन सीडिस (लगभग $ 55 मिलियन) की लागत आई। जेट विमान का नियोजित स्थान घाना के राष्ट्रपति रिट्रीट के पेडूसे लॉज में है। राष्ट्रपति का चुनाव घाना के राष्ट्रपति-चुनाव स्पष्ट विजेता हैं, जैसा कि 7 दिसंबर को आम चुनाव के बाद घाना के निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष द्वारा पता लगाया गया था। राष्ट्रपति चुनाव और उद्घाटन के बीच की अवधि के दौरान, निवर्तमान राष्ट्रपति लंगड़ा बतख होता है, जबकि आने वाला राष्ट्रपति सत्ता के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए एक राष्ट्रपति संक्रमण टीम का प्रमुख होता है। एक बैठक अध्यक्ष फिर से चुनाव जीता है, तो अवलंबी एक राष्ट्रपति के रूप में भेजा नहीं है -elect के रूप में वह या वह कार्यालय में पहले से ही है और राष्ट्रपति बनने के लिए इंतजार कर नहीं है। इसी तरह, यदि कोई उपाध्यक्ष राष्ट्रपति की मृत्यु, इस्तीफे या पद से हटाने (महाभियोग के माध्यम से) राष्ट्रपति पद के लिए सफल होता है, तो वह व्यक्ति कभी भी राष्ट्रपति-चुनाव का पद धारण नहीं करता है, क्योंकि वे तुरंत राष्ट्रपति बन जाएंगे। सबसे हालिया राष्ट्रपति-चुनाव, न्यू पैट्रियॉटिक पार्टी के पूर्व विदेश मंत्री नाना अकुफो-एडो हैं, जिन्होंने 9 दिसंबर 2016 को राष्ट्रपति चुनाव जीता था। घाना का उप-राष्ट्रपति चुनाव राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार होता है जो चुनाव जीतता है। पहली बार घाना के तीसरे संविधान को अपनाने के बाद स्थापित किया गया, उद्घाटन धारक जोसेफ WS डेग्राफ्ट-जॉनसन है । घाना के वर्तमान उप-राष्ट्रपति महामुदु बावुमिया हैं । घाना के तीसरे गणराज्य के गठन तक, उपराष्ट्रपति का पद मौजूद नहीं था। प्रधानमंत्री Kwame Nkrumah बन गया पहला घाना जा करने के लिए निर्वाचित घाना गणराज्य के राष्ट्रपति के रूप में। राष्ट्रपति लीमैन राष्ट्रपति-चुनाव से लेकर राष्ट्रपति तक के सबसे लंबे संक्रमण काल होने का रिकॉर्ड रखते हैं। उनका संक्रमण काल 78 दिनों तक रहा। 1992 में राष्ट्रपति चुनावों से पहले के राष्ट्रपति रावलिंग, पहले से ही घाना राज्य के प्रमुख थे। वह अनंतिम राष्ट्रीय रक्षा परिषद के अध्यक्ष थे। क्योंकि घाना ने 1992 में एक नया संविधान अपनाया था, इसलिए गणतंत्र के राष्ट्रपति का पद खाली था। राष्ट्रपति जॉन कुफूर और राष्ट्रपति जॉन अट्टा मिल्स दोनों ही राष्ट्रपति-चुनाव से राष्ट्रपति के लिए सबसे कम संक्रमण काल होने का रिकॉर्ड रखते हैं, दोनों संक्रमण अवधि केवल 10 दिनों तक चलती है। यह दोनों अध्यक्षों को राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए दूसरे दौर के मतदान ( 2000, 2008 ) की आवश्यकता थी। यह सभी देखें घाना की संसद घाना राज्य के प्रमुखों की सूची स्टाफ के प्रमुख संदर्भ सन्दर्भ घाना के राष्ट्रपति घाना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A5%82%E0%A4%B2%20%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82%20%E0%A4%B9%E0%A4%AE%203
क्या कूल हैं हम 3
क्या कूल हैं हम 3 2015 में आने वाली एक बॉलीवुड एडल्ट कॉमेडी फ़िल्म है। इस फ़िल्म में तुषार कपूर और आफ़ताब शिवदेसानी मुख भूमिकाओं में हैं।आफ़ताब शिवदेसानी इस फ़िल्म में रितेश देशमुख का किरदार को रिप्लेस करेंगे।यह फ़िल्म क्या कूल हैं हम और क्या सुपर कूल हैं हम की अगली कड़ी (सीक्वल) है।ये क्या कूल हैं हम सीरीज़ की तीसरी कड़ी है। पात्र तुषार कपूर आफ़ताब शिवदेसानी मन्दना करीमी शक्ति कपूर कृष्णा अभिषेक सुष्मिता मुखर्जी सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Official Website Balaji Telefilms भारतीय फ़िल्में हिन्दी फ़िल्में
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BE%20%E0%A4%85%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%A8%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%A8%20%E0%A4%94%E0%A4%B0%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8C%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%A8
महाराजा अग्रसेन प्रबंधन और प्रौद्योगिकी संस्थान
महाराजा अग्रसेन प्रबंधन और प्रौद्योगिकी संस्थान (Maharaja Agrasen Institute of Management and Technology-MAIMT) की स्थापना सन 1997 हुआ था। महाराजा अग्रसेन प्रबंधन और प्रौद्योगिकी संस्थान, बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग (कम्प्यूटर साइंस एण्ड इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग, सूचना प्रौद्योगिकी और यांत्रिक और ऑटोमेशन इंजीनियरिंग) और मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन कोर्स चलता है। इन कार्यक्रमों में गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, दिल्ली से संबद्ध हैं। महाराजा अग्रसेन प्रबंधन और प्रौद्योगिकी संस्थान शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अच्छी तरह से जाना जाता हैं। उद्योगपति, व्यापारी, पेशेवर और समाजसेवी के एक समूह द्वारा पदोन्नत महाराजा अग्रसेन तकनीकी शिक्षा सोसायटी द्वारा स्थापित है। अपने अस्तित्व के कम समय में MAIT हार्डवेयर की एक उच्च डिग्री के साथ अपनी अच्छी तरह से सुसज्जित प्रयोगशाला के माध्यम से उत्कृष्टता के एक उच्च स्तर को छुआ है - सॉफ्टवेयर सिम्बायोसिस और विशेष रूप से इंजीनियरिंग की विशेष शाखा के लिए डिजाइन सॉफ्टवेयर आवेदन के साथ पूरक हार्डवेयर आधारित इंजीनियरिंग शिक्षा पर तनाव जारी रखा। प्रत्येक और हर प्रयोगशाला और संस्थान में सुविधा अच्छी तरह से नवीनतम कंप्यूटिंग उपकरणों के साथ सुसज्जित है। वर्तमान में पांच सौ से अधिक नवोदित इंजीनियरों संस्थान पर हैं। सन्दर्भ भारत के कॉलेज हरियाणा चंडीगढ़
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B0%20%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%B8%E0%A5%80
कुक्कुर खाँसी
कूकर कास या कूकर खांसी या काली खांसी wooping cough (अंग्रेज़ी:पर्टसिस, व्हूपिंग कफ़ ,हिमोफिलस पर्टयुसिस ) जीवाणु का संक्रमण होता है जो कि आरंभ में नाक और गला को प्रभावित करता है। यह प्रायः २ वर्ष से कम आयु के बच्चों की श्वसन प्रणाली को प्रभावित करता है। इस बीमारी का नामकरण इस आधार पर किया गया है कि इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति सांस लेते समय भौंकने जैसी आवाज करता है। यह बोर्डेटेल्ला परट्यूसिया कहलाने वाले जीवाणु के कारण होता है। यह जीवाणु व्यक्तियों के बीच श्वसन क्रिया से निष्कासित जीवाणु से फैलती है। यह तब होता है जब संक्रमण युक्त व्यक्ति खांसते या छींकते हैं। यह संक्रमण युक्त व्यक्तियों के शारीरिक द्रवों से संपर्क होने से भी फैलता है जैसे नाक का पानी गिरना। लक्षण जीवाणु संक्रमण के आरंभ से 7 से 17 दिनों के बाद इसके लक्षण विकसित हो पाते हैं। जिनमें लक्षण विकसित हो जाते हैं, वे अधिकांश में 2 वर्ष की आयु से कम होते हैं। ये लक्षण लगभग 6 सप्ताह तक रहते हैं और ये 3 चरणों में विभाजित होते हैं - चरण-1 इन लक्षणों में छींकना, आंखों से पानी आना, नाक बहना, भूख कम होना, ऊर्जा का ह्रास होना और रात के समय खांसना शामिल है। चरण-2 इन लक्षणों में लगातार खांसते रहना और इसके बाद भौंकने जैसी आवाज आना तब जबकि बीमार व्यक्ति सांस लेने का प्रयास करता है, आदि शामिल है। चरण -3 इसके अंतर्गत सुधार की प्रक्रिया आती है जबकि खांसना न तो लगातार होता है और न गंभीर। यह स्तर 4 सप्ताह से प्रायः आरंभ होता है। यह कुकर खांसी कम आयु के रोगियों को होती है जिनकी खांसी 2 सप्ताह तक रहती है। परिचय कुकुर खांसी बच्चों में होने वाली एक संक्रामक तथा खतरनाक बीमारी है। मुख्यत: श्वसन तंत्र को प्रभावित करती है जो विकसित और विकासशील दोनों प्रकार के देशों के लिए अत्यन्त चिन्ता का विषय है। भारत जैसे विकासशील देश में प्रत्येक एक लाख की आबादी पर 587 बच्चे प्रत्येक वर्ष इस बीमारी से ग्रसित होते हैं। इससे बच्चों में मृत्युदर 4.15 प्रतिशत है जो कि कुकुर खांसी के रोगियों का 10 प्रतिशत, एक वर्ष के भीतर मरने वाले बच्चों का आधा भाग है। यह बीमारी बोर्डटेल परट्यूसिस नामक सूक्ष्मजीवी से होती है। संक्रमण की सार्वधिक बीमारियां पांच वर्ष से कम उम्र में होती हैं जोकि नर बच्चों की अपेक्षा मादा बच्चों में अधिक होती है। छह महीने से कम उम्र के शिशुओं में इस बीमारी से मृत्यु-दर अधिक होती है, हालांकि यह बीमारी साल के किसी भी माह में हो सकती है, किन्तु जाड़ा तथा वर्षा की ऋतु में इसकी संभावना सार्वाधिक होती है। अब प्रश्न उठता है कि यह बीमारी एक बच्चे से दूसरे बच्चे में किस प्रकार संक्रमित होती है ? इस बीमारी से ग्रसित बच्चों की नाक बहती है, छींक आती है और वह खांसता है। नाक बहने के क्रम में जो तरल पदार्थ निकलता है, इसी के द्वारा बीमारी फैलती है। खांसी या छींक के दौरान नाक, मुंह तथा सांस छोड़ने के क्रम में जीवाणु आसपास तथा वातावरण में फैल जाता है, जो दूसरे बच्चों में संक्रमित होने का कारण बनता है। यह बीमारी मुख्यत: बच्चों की प्रारंभिक अवस्था में, जब उनके माता-पिता को उनकी बीमारी का पता नहीं चलता, खेल के मैदान में, एक बिछावन पर सोने और एक ही बर्तन में खाने-पीने के क्रम में फैलती है। ऐसी बात नहीं है कि रोग के कीटाणुओं के संक्रमण (बीमार बच्चे से स्वथ्य बच्चे में) के तुरंत बाद बीमारी हो जाती है। रोगाणुओं के आक्रमण के पश्चात लक्षण दिखाई पड़ने में एक से दो सप्ताह का समय लग जाता है। सर्वप्रथम जीवाणु श्वसन तंत्र की भीतरी स Bतह के संपर्क में आकर सतह पर चिपक जाता है, जहां उचित माध्यम पाकर वृद्धि करने लगता है। उसके बाद सतह पर घाव बनता है। फलस्वरूप स्थान फूल जाता है। फिर त्वचा पर नेक्रोसिस की क्रिया होती है। नेक्रोसिस (रक्त प्रवाह की कमी की वजह से त्वचा का क्षय) के कारण अन्य बैक्टीरिया आक्रमण कर त्वचा में तेजी से वृद्धि करना शुरू कर देते है। इतनी प्रक्रिया पूरी होने में एक-दो सप्ताह का समय लग जाता है। उसके बाद रोग अपना लक्षण दिखाना शुरू करता है, जो तीन भागों में प्रकट होता है। शुरू में बच्चे के खांसी होती है तथा नाक से पानी बहता है। फिर धीरे-धीरे खांसी से बच्चे को विशेष परेशानी नहीं होती, किन्तु धीरे-धीरे इसकी गति बढ़ती है क्योंकि श्वसन-तंत्र को प्रभावित करने की प्रक्रिया लगातार बढ़ती जाती है। जैसे-जैसे श्वसन-तंत्र प्रभावित होता है खांसी और खांसने की गति बढ़ती जाती है और एक समय ऐसा आता है कि खांसी की वजह से रोगी रात को सो नहीं पाता है। पहले जो केवल जागृतावस्था में खांसी होती थी अब वह नींद में भी होने लगती है, जिससे बच्चा खांसते-खांसते उठ जाता है। यह स्थिति दो से चार सप्ताह तक बनी रहती है। उसके बाद अपना उग्र और भयंकर रूप धारण कर लेती है। अब पहले की अपेक्षा और जल्दी-जल्दी खांसी का दौरा पड़ने लगता है। इस दौरान एक ऐसा स्थिति आ जाती है कि बच्चे को सांस लेने तक में कठिनाई होने लगती है। उसके बाद सांस लेने के क्रम में एक विशेष प्रकार की आवाज निकलने लगती है, जैसे-किसी कुत्ते के रोने की आवाज। यह आवाज श्वसन-तंत्र में संक्रमण तथा ग्लाटिस के खुलने की वजह से होती है, किन्तु वह हूप-हूप आवाज हमेशा नहीं होती है। उसके बाद खांसी के साथ गाढ़े रंग का बलगम (कफ) निकलता है। एक बात और कि जब खांसी अपना वीभत्स रूप दिखा रही होती है तो ठीक उसके बाद उल्टी होती है और खाया-पीया सब बाहर निकल जाता है। खांसी के दौरान जीभ का बार-बार मुंह से बाहर आने के क्रम में उस पर दांत पड़ने से घाव हो जाने की संभावना अत्यधिक बढ़ जाती है। बार-बार खांसने की वजह से चेहरा लाल हो जाता है। बच्चा चिन्तित रहने लगता है। कई बार तो अत्यधिक उदासीन अपने आप में भौंचक्का, किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में कुछ समझ नहीं पाता कि आखिर मुझे कौन-सी सजा दी जा रही है। मानसिक तनाव की वजह से पूरे शरीर से पसीना छूटने लगता है, भोजन से विरक्ति होने लगती है। वह भोजन करना नहीं चाहता। रोकथाम सभी शिशुओं के लिए कुकर खांसी का टीका लगवाना आवश्यक है। यह टीकाकरण प्रायः डीटीपी संयुक्त रूप में डिप्थेरिया, टिटनेस और कुकर खांसी (परट्यूरसिस) दिया जाता है। पहले वाला संक्रमण और टीकाकरण जिंदगीभर असंक्रमीकरण की गारंटी नहीं देता है। तथापि 6 वर्ष की आयु के बाद वर्धक टीकाकरण की सिफारिश नहीं की जाती है जब तक कि संक्रमण न हुआ हो। इलाज क्या है ? इस बीमारी के इलाज के लिए एन्टीबायोटिक्स का प्रयोग किया जाता है जो इसके दौरे की भयानकता को कम कर देता है। यदि रोग की पहचान प्रारम्भिक अवस्था में हो जाए तो एन्टीबायोटिक्स का प्रयोग काफी लाभदायक सिद्ध हो सकता है। इरिथ्रोमाइसिन या एम्पीसिलिन का प्रयोग सात से दस दिनों तक किया जाता है। आजकल क्लोरम्फेनिकोल का व्यवहार अत्यधिक किया जाता है क्योंकि यह दवा अत्यधिक सस्ती है। घबराहट दूर करने के लिए भी इनकी गोलियां दी जा सकती हैं। श्वसन-नलियों की सिकुड़न को कम करने के लिए ब्रोंकोडायलेटर दिया जाता है। कफ सिरप भी कफ को निकालने के लिए दिया जाता है। खांसी तथा इसके घरेलू इलाज के लिए यहाँ क्लिक करे सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ जीवाणु रोग बच्चों के रोग
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जाने पुतिन चाहिए
"जाने पुतिन चाहिए" - एक ही नाम और जनता के लिए एक खुला प्रधानमंत्री व्लादिमीर पुतिन के इस्तीफे की मांग पत्र के लिए हस्ताक्षर एकत्र अभियान की वेबसाइट. अभियान इंटरनेट मार्च 10 2010 सार्वजनिक संगठनों के विरोध के कार्यकर्ताओं की एक संख्या है, साथ ही रूसी संस्कृति के कई प्रसिद्ध आंकड़े में </ ref>. सर्जक और उपचार के प्रमुख लेखक, "पुतिन जाना चाहिए" था आंद्रेई Piontkovsky संदेश, को संबोधित किया, "रूस के नागरिकों के लिए" एक अत्यधिक महत्वपूर्ण स्वर में बनाए रखा है और व्लादिमीर पुतिन के एक अत्यंत नकारात्मक मूल्यांकन किया है। पता सूचीबद्ध पुतिन युग में सुधार का संदेश ("सभी कि संभव था ही विफल करने के लिए की विफलता") के लेखक के अनुसार में विफल रहा है और दूसरा चेचन युद्ध और रूसी शहरों में मकानों की बमबारी के रूप में इस तरह की घटनाओं को दर्शाता है। संदेश उसके maniacal जुनून के "हर कल्पनीय रास्ते में गैस पाइप बिछाने के लिए, महत्वाकांक्षी लागत (सोची ओलंपिक या रूसी द्वीप करने के लिए पुल की तरह) परियोजनाओं, जो पूरी तरह देश में contraindicated हैं की दीक्षा सबूत है, जहां एक बड़े" को पुतिन भविष्य को समझने की विफलता 'के लेखक के अनुसार आबादी के गरीबी रेखा से नीचे जीवन. " अपील भी देर से राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन और उसके मुहासिरा ("परिवार"), राय के पत्र में, एक के लिए अपनी खुद की सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रयास में राष्ट्रपति कार्यालय में व्लादिमीर पुतिन नामित की आलोचना की. वर्तमान रूसी राष्ट्रपति, दिमित्री मेदवेदेव बकाया "आज्ञाकारी कायममुकाम," "आधुनिक शिमोन Bekbulatovich नामित किया गया था।" लेखकों के लिए कानून प्रवर्तन अधिकारियों के खिलाफ "अपने लोग" मत जाओ और के लिए नहीं ले जाने के लिए बाहर कॉल "भ्रष्ट आपराधिक आदेश." सूत्रों सन्दर्भ वेबसाइट अभियान "पुतिन जाना चाहिए" / नेटवर्क / प्रत्यक्ष इलेक्ट्रॉनिक लोकतंत्र, "पुतिन जाना चाहिए" रूस
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%B0%20%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%B8%E0%A4%A8
आर्थर जेपसन
आर्थर जेपसन (12 जुलाई 1915 - 17 जुलाई 1997) एक अंग्रेजी प्रथम श्रेणी के क्रिकेटर थे जिन्होंने अंपायर बनने से पहले नॉटिंघमशायर के लिए खेला था। क्रिकेट के अलावा वह एक कुशल फुटबॉल गोलकीपर भी थे, जिन्होंने प्रबंधन से हाथ मिलाने से पहले फुटबॉल लीग में 100 से अधिक मैच खेले। 1938 और 1959 के बीच नॉटिंघमशायर के लिए दाएं हाथ के तेज-मध्यम गेंदबाज, उन्होंने 1050 प्रथम श्रेणी विकेट लिए, जो क्लब के इतिहास में शीर्ष दस सबसे शानदार गेंदबाजों में से एक बन गए। उन्होंने तब अंपायर के रूप में 26 साल बिताए, चार टेस्ट मैचों की अध्यक्षता की। अपने फुटबॉल कैरियर में उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दोनों ओर पोर्ट वैले के लिए खेलने से पहले नॉन-लीग पक्षों नेवार्क टाउन, मैंसफील्ड टाउन और ग्रांथम टाउन के लिए खेला। लिंकन सिटी के साथ दो साल के कार्यकाल के बाद अपने करियर को गति देने से पहले, उन्होंने 1946 से 1948 तक स्टोक सिटी के साथ शीर्ष उड़ान में बिताया। बाद में वह नॉन-लीग पक्षों नॉर्थविच विक्टोरिया और ग्लूसेस्टर सिटी के लिए निकले और कुछ समय के लिए लॉन्ग ईटन यूनाइटेड और हिंकले यूनाइटेड का भी प्रबंधन किया। सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A5%80%20%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%BF
शाहमुखी लिपि
शाहमुखी लिपि (गुरुमुखी : ਸ਼ਾਹਮੁਖੀ ; शाहमुखी में : شاہ مکھی) एक फारसी-अरबी लिपि है जो पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के मुसलमानों द्वारा पंजाबी भाषा लिखने के लिये उपयोग में लायी जाती है। भारतीय पंजाब के हिन्दू और सिख पंजाबी लिखने के लिये गुरुमुखी लिपि का उपयोग करते हैं। शाहमुखी, दायें से बायें लिखी जाती है और नस्तालिक शैली में लिखी जाती है। भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य की पोतोहारी बोली लिखने के लिये भी शाहमुखी का उपयोग किया जाता है। गुरुमुखी और शाहमुखी की तुलनात्मक तालिका पंजाबी भाषा लिपि
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