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वासुदेव हरि चाफेकर
वासुदेव हरि चाफेकर और उनके भाइयों को आरम्भिक भारतीय क्रांतिकारियों में स्थान दिया जाता है। वासुदेव चाफेकर का जन्म 1880 में कोंकण में चित्पावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने मराठी भाषा के माध्यम से शिक्षा ले ली। समय के साथ, वह पुणे में चिंचवड में बस गए। बचपन में, तीनों भाइयों ने पिता की मदद करने के लिए हरि कीर्तन की मदद की। इसने चाफेकर भाइयों की शिक्षाओं में विभाजन किया। वासुदेव चाफेकर ने अपने भाइयों, दामोदर चाफेकर और बालकृष्ण चाफेकर के साथ राजनीति और क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। उन्होंने हथियारों के साथ भारतीय युवाओं को प्रशिक्षण दिया। पुणे में राजनीतिक विकास से प्रेरित होकर, ये भाई क्रांतिकारी आंदोलन में बदल गए। अंग्रेजों के ब्रिटिश कानून की पुरानी सहमति के लिए अंग्रेजों का एक मजबूत विरोध था। तिलक ने अंग्रेजों के खिलाफ केसरी पर हमला किया, जिन्होंने भारतीय संस्कृति में हस्तक्षेप किया। तीनों भाई इस कॉल से प्रेरित थे। उन्होंने लोगों का आयोजन किया इसी समय, अंग्रेजों ने पुणे में प्लेग की जगह राक्षस पैटर्न पहन कर वाल्टर चार्ल्स रैंडला को भारत में आमंत्रित किया। रंदन ने उपचारात्मक उपायों के अनिवार्य कार्यान्वयन शुरू किया ऐसा करने में, उन्होंने सामाजिक अशांति को दूर करने की कोशिश की। इससे अंग्रेजों के खिलाफ चाफेकर भाई के नफरत का कारण हुआ। उन्होंने जवाबी कार्रवाई करने के लिए एक योजना तैयार की। भाइयों ने अपने खराब व्यवहार के लिए पुणे में रैंड को मारने की साजिश रची। उस समय, हीराम महोत्सव विक्टोरिया की रानी के शासनकाल के साथ मनाया गया था। सब कुछ प्रकाश हो गया था। एक भोज भी आयोजित किया गया था। 22 जून 1897 को दामोदर चाफेकर, एक जवान आदमी ने गाड़ी छोड़ दी और गणेश ख़िंद में इंतजार कर रहे थे, जो रात के मध्य रैंड पर चक्कर लगाकर घर से बाहर निकल गया। रेंड कुछ समय तक कोमा में बना था और अंततः 3 जुलाई 1897 को मृत्यु हो गई। इसी समय, दामोदर के भाई बालकृष्ण ने लेफ्टिनेंट एरिस्ट पर गोली चलाई जो किरण के साथ बैठे थे। चाफेकर भाइयों को बचने में सफल होने के बाद, तीन भाइयों को बाद में गिरफ्तार किया गया। दामोदर को मुंबई में गिरफ्तार किया गया था और 18 अप्रैल 18 9 8 को उन्हें यरवदा जेल में फांसी दी गई थी। उसके बाद, वासुदेव को 8 मई 18 99 को फांसी दी गई और बालकृष्ण को 16 मई, 18 99 को फांसी दी गई, और तीन चाफेकर भाई शहीद थे। भारतीय क्रांतिकारी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AC%E0%A5%82%20%E0%A4%89%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B9%20%E0%A4%87%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A8%20%E0%A4%85%E0%A4%B2-%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9
अबू उबैदाह इब्न अल-जर्राह
अबू उबैदाह इब्न अल-जर्राह; Abu Ubaidah Ibn Al-Jarrah: ) ''‏‎ इस्लामी पैंगबर हजरत मुहम्मद सहाब के सहाबाओ में से एक थे और खलीफा हजरत उमर के खिलाफत शासन काल में एक बड़े वर्ग के कमांडर थे तथा खलीफा हजरत उमर के उत्तराधिकारियो की सूची में भी थे। प्रारंभिक जीवन हजरत अबू उबैदाह का जन्म 583 ईस्वी में मक्का, अरब में हुआ था। इनके पिता अबू उबैदाह अब्दुल्लाह इब्न अल जर्राह पेशे से एक व्यापारी थे जो अरब के एक कुरैश कबीले से थे। हजरत अबू उबैदाह कुरैश कबीले के धनी व्यक्तियो में से एक थे जिस कारण अपनी शीलता और बहादुरी के लिए मक्का में कुरैश के बीच प्रसिद्ध थे अबू उबैदाह ने हजरत अबु बक्रर सिद्दीक के इस्लाम स्वीकार करने के एक दिन बाद इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। सैन्य नेतृत्व हजरत अबू उबैदाह ने लेवंत क्षेत्र में अधिक सैन्य नेतृत्व किया जिसमें रशीदुन सेना को महत्वपूर्ण सफलताएँ मिली जिसके लिए उन्हें 634 ईस्वी में लेंवत क्षेत्र का गवर्नर भी नियुक्त किया गया था जो 638 तक रहे गवर्नर के पद समाप्ति के एक वर्ष वाद 639 ईस्वी में मृत्यु हो गई थी। सरिय्या अबू उबैदाह इब्न अल-जर्राह एक प्रारंभिक इस्लामी अभियान था जो अगस्त 627 में इस्लामिक कैलेंडर के 6हिजरी के चौथे महीने में हुआ था। इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद द्वारा साथी (सहाबा) मुहम्मद बिन मसलमा रज़ि० के नेतृत्व में बनू सालबा जनजाति पर पहला हमला विफल रहा, मसलमा रज़ि० के साथियों की शहादत के बाद रबीउल आखिर 06 हि० ही में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत अबू उबैदाह इब्न अल-जर्राह रजि० को जुलक़िस्सा की ओर रवाना फ़रमाया। उन्होंने चालीस व्यक्तिों को लेकर सहाबा किराम रजि० की शहादतगाह का रुख किया और रात भर पैदल सफर कर के बहुत सवेरे बनू सालवा के इलाके में पहुंचते ही छापा मार दिया, लेकिन लेकिन वे जल्दी से पहाड़ों पर भाग गए। मुसलमानों ने उनके मवेशी, कपड़े ले लिए और एक आदमी को पकड़ लिया। पकड़े गए आदमी ने इस्लाम कबूल कर लिया और मुहम्मद ने उसे रिहा कर दिया। इन्हें भी देखें मुहम्मद की सैन्य उपलब्धियाँ मुहम्मद के अभियानों की सूची सन्दर्भ इस्लाम अरब रशीदुन खिलाफत इस्लामी नेता सहाबा
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%BE%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%81
लहन्दा भाषाएँ
लहन्दा (, ਲਹੰਦਾ) या लाहन्दा (, ਲਾਹੰਦਾ) पंजाबी भाषा की पश्चिमी उपभाषाओं के समूह को कहा जाता है। पंजाबी में 'लहन्दा' शब्द का मतलब 'पश्चिम' होता है, जिस से इन भाषाओं का यह नाम पड़ा है - तुलना के लिए हिन्दी की पूर्वी उपभाषाओं को पारम्परिक रूप से अक्सर 'पूरबिया' कहा जाता है। लहन्दा समूह में हिन्दको, पोठोहारी और सराईकी जैसी कई उपभाषाएँ शामिल हैं। सराईकी जैसी दक्षिणी लहन्दा भाषाओं में कुछ सिन्धी भाषा से मिलते-जुलते लक्षण हैं जबकि हिन्दको जैसी उत्तरी लहन्दा भाषाओं में दार्दी भाषाओं से कुछ मिलती-जुलती चीज़ें मिलती हैं। इन्हें भी देखें हिन्दको भाषा सराईकी भाषा पोठोहारी भाषा बाहरी जोड़ चन्न परदेसी (), यूट्यूब पर पोठोहारी नाटक, अंग्रेज़ी उपशीर्षकों के साथ सन्दर्भ पंजाबी भाषा हिन्द-आर्य भाषाएँ पंजाबी उपभाषाएँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A5%8D
इंद्रस्
इंद्रस् एक आर्य थे और ऋग्वैदिक नायक भी। ये पौराणिक इंद्र से भिन्न हैं और तथाकथित सनातन या हिंदू धर्म से इनका कोई संबंध नहीँ है। परिचय इंद्रस् पहले ऐसे आर्य थे जिन्होंने पूरे आर्य साम्राज्य को एक सूत्र किया तथा असीरिया के राजा वृत्र को हराया। हिलब्रैण्ट ने सूर्य रूपी इन्द्र का वर्णन करते हुए कहा है: वृत्र शीत (सर्दी) एवं हिम का प्रतीक है, जिससे मुक्ति केवल सूर्य ही दिला सकता है। ये दोनों ही कल्पनाएँ इन्द्र के दो रूपों को प्रकट करती हैं, जिनका प्रदर्शन मैदानों के झंझावात और हिमाच्छादित पर्वतों पर तपते हुए सूर्य के रूप में होता है। वृत्र से युद्ध करने की तैयारी के विवरण से प्रकट होता है कि देवों ने इन्द्र को अपना नायक बनाया तथा उसे शक्तिशाली बनाने के लिए प्रभूत भोजन-पान आदि की व्यवस्था हुई। इन्द्र प्रभूत सोमपान करता है। इन्द्र का अस्त्र वज्र है जो विद्युत प्रहार का ही एक काल्पनिक नाम है। ऋग्वेद में इन्द्र को जहाँ अनावृष्टि के दानव वृत्र का वध करने वाला कहा गया है, वहीं उसे रात्रि के अन्धकार रूपी दानव का वध करने वाला एवं प्रकाश का जन्म देने वाला भी कहा गया है। ऋग्वेद के तीसरे मण्डल के वर्णनानुसार विश्वामित्र के प्रार्थना करने पर इन्द्र ने विपाशा (व्यास) तथा शतद्रु नदियों के अथाह जल को सुखा दिया, जिससे भरतों की सेना आसानी से इन नदियों को पार कर गयी। जन्म 6000-4000 ईसा पूर्व (अनुमानित) माता शवषी पिता त्वष्टा/त्वष्ट्र पत्नी शची गुरु अर्यमा अन्य नाम पुरंदर द्यौस् कृष्णारि वृत्रह्न या वृत्रघ्न शक्र शतक्रतु दाशराज्ञि कथा आर्य
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आभास मित्रा
आभास मित्रा, जन्म 3 जून 1955 , भारत में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) में एक सैद्धांतिक खगोल भौतिकीविद् हैं । उन्हें मुख्य रूप से ब्लैक होल पर प्रकाशित एक लेख से जाना जाता है जर्नल पीयर फाउंडेशन ऑफ फिजिक्स लेटर्स में । इस लेख में, वह एक प्रदर्शन प्रस्तुत करता है जिसके अनुसार ब्लैक होल का अस्तित्व (असीम रूप से घनी विलक्षणता के अर्थ में) आइंस्टीन के सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत के सख्त अनुप्रयोग के साथ असंगत होगा। उसके लिए, ये वस्तुएँ वास्तव Objects of Eternal Collapse(में) . Meet the Indian who took on Stephen Hawking Final State of Spherical Gravitational Collapse and Likely Source of Gamma Ray Bursts Scientific Resume of Abhas Mitra Mass of Schwarzschild Black Holes Is Indeed Zero And Black Hole Candidates Are Quasi Black Holes Black-Holes-or-Balls-of-Quark-Gluon-Plasma? 20वीं सदी के भारतीय खगोलविद
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केली पत्रैसी,संभल (मुरादाबाद)
केली पत्रैसी मुरादाबाद जिले की संभल तहसील का एक गांव हैं जो कि अब संभल जिले की भौगोलिक सीमा में स्थित है। भारत के महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार सन् 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक इस गांव के कुल परिवारों की संख्या 184 है। केली पत्रैसी की कुल जनसंख्या 1068 है जिसमें पुरुषों की संख्या 589 और महिलाओं की संख्या 479 है। स्थानीय प्रशासन भारत के संविधान और पंचायती राज अधिनियम के तहत केली पत्रैसी गांव स्थानीय प्रशासन गांव के प्रधान के तहत है। ग्राम प्रधान गांव के मतदाताओं द्वारा चुना गया गया जन-प्रतिनिधि है जो ग्राम पंचायत के जरिए गांव के संसाधनों और विकास कार्यों की देखरेख करता है। गांव के प्रधान को पंचायती राज अधिनियम के तहत सीमित कानूनी अधिकार भी प्राप्त हैं। नजदीकी स्थल मुरादाबाद हस्तिनापुर जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान नैनीताल सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ उत्तर प्रदेश के जिले (नक्शा) संभल तहसील के गाँव
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जय भगवान चौधरी
जे.बी. चौधरी (जय भगवान चौधरी) हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व उप-कुलपति और पद्मश्री पुरस्कार प्राप्तकर्ता (2003)। बाद में उन्हें जी.बी. के वाइस चांसलर के रूप में नियुक्त किया गया। पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर, नैनीताल पूर्व छात्र संगठन पाकिस्तान फार्म वैज्ञानिकों ने उन्हें सर्वोच्च पुरस्कार, मियां एम अफजल हुसैन पुरस्कार से सम्मानित किया था। उन्होंने कुछ किताबें लिखी हैं वह नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज का एक निर्वाचित साथी है। सन्दर्भ बाहरी लिंक हरियाणा के वैज्ञानिक विज्ञान और इंजीनियरिंग में पद्म श्री के प्राप्तकर्ता लिविंग लोग कृषि विज्ञान के राष्ट्रीय अकादमी
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लोहे का पुल
दिल्ली में यमुना नदी पर बने पहले रेल तथा सड़क यातायात के लिए बना पुल को लोहे के पुल के नाम से जाना जाता है। रेलवे की तकनीकी भाषा में यह पुल नं २४९  के नाम से जाना जाता है। भारत में सबसे पुराने तथा लम्बे पुलो में अन्यतम है। इस पुल का निर्माण कार्य सन् १८६३ में शुरू हुआ और १८६६ में बनकर समाप्त हुआ इसे एक वर्ष पश्चात सन् १८६७ में जनसाधारण के लिए  खोला गया था।  यह एक डबल डेक स्टील ट्रस ब्रिज निर्माण शेली में बना पुल है जो कि यमुना नदी के  पूर्वी तट को पश्चिमी किनारे से जोड़ती है। यह शहादरा को  दिल्ली शहर से जोड़ता है। इस पुल का निर्माण कार्य ईस्ट इंडिया रेलवे  कम्पनी द्वारा की गई थी। इसके निर्माण कार्य में १६ लाख १६ हजार ३३५ पाउंड की धनराशि व्यय की गई थी। इस पुल कि  कुल लंबाई के २६४० फुट है  जो कि १२ स्तंभ के उपर २०२.५ फुट की दूरी पर स्थित है। ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान भारत के दो प्रमुख शहर पूर्व में बसा हुआ कलकत्ता और उत्तर में बसा दिल्ली को जोड़ने की आखिरी कड़ी थी। इस से लाहौर से कलकत्ता तक सीधा सम्पर्क बन गया।इस पुल को पहले एक लाइन के लिए बनाया गया था लेकिन यातायात के दबाव के कारण इसे दोहरी लाइन में परिवर्तित किया गया था। इसे दोहरी लाइन में परिवर्तित करने की तिथि के तथ्यो में थोड़ा मतभेद अवश्य है एक स्थान पर यह १९१३  दर्शाता है और एक स्थान पर यह १९३२ में कार्य शुरू किया गया और १९३४ में फिर से चालू किया गया बताया जाता है। इस इस पुल कि खासियत इसकी दोहरी उपयोगिता है यह सड़क यातायात के साथ-साथ रेल यातायात दोनों को सुगम रुप से जारी रखता है। इसका ऊपरी भाग रेल यातायात के लिए बना है और निचले स्तर पर सड़क यातायात के लिए बनाया गया है। यमुना नदी पर बने इस पुल कि एक ओर कृति इलाहाबाद में बना है जो कि इलाहाबाद को नेनी से जोड़ती है जो कि उत्तर मध्य रेलवे के इलाहाबाद मुगलसराय प्रभाग में आता है। इस इतिहासिक विशालकाय पुल के समीप एक ओर नया पुल निर्माणाधीन है जिसके बने जाने के बाद इस कि रेल यातायात सेवा बन्द कर दी जाएगी लेकिन तब भी यह सड़क यातायात के लिए उपयोग आता रहेगा। इस पुल के निकट एक ओर पुल गीता कालोनी पुल जो कि सड़क यातायात के लिए बनाया गया है के बावजूद इस पुल कि उपयोगिता कम नहीं होगी। यह हमेशा एक स्मारक के रूप में दिल्ली वाशियो के मन में बसा रहेगा यह भी देखें सेतु भारत में पुलों की सूची संदर्भ यमुना नदी पर पुल दिल्ली में परिवहन भारत में सेतु नदी के अनुसार भारत में सेतु
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A8
फ्रैंकनस्टाइन
{{Infobox Book | | name = Frankenstein;or, The Modern Prometheus | image = | image_caption = Illustration from the frontispiece of the 1831 edition by Theodor von Holst जब विक्टर ने देखा की दैत्य जीवित हो उठा है तो वह कमरा छोड़कर भाग गया, हालांकि वह दैत्य उस तरह विक्टर की ओर बढ़ा था जैसे कि एक नवजात शिशु अपने माता-पिता की ओर बढ़ता है। विक्टर का दैत्य के प्रति दायित्व, इस उपन्यास की मुख्य विषय-वस्तु है। मॉर्डन प्रोमिथियस द मॉर्डन प्रोमिथियस उपन्यास का उपशीर्षक है (हालांकि इस उपन्यास के कई नए संस्करण इसका इस्तेमाल नहीं करते और सिर्फ परिचय में ही इसका ज़िक्र करते हैं). प्रोमिथियस, यूनानी पौराणिक कथाओं के मुताबिक, वह देवता था जिसने मानव जाति का सृजन किया। वह प्रोमिथियस ही था जिसने स्वर्ग से आग्नि चुराकर मानव को दी थी। जब देवताओं के राजा ज़ीयस को यह बात पता चली तो उन्होंने सज़ा के तौर पर प्रोमिथियस को ताउम्र एक चट्टान के साथ बांधकर रख दिया जहां रोज़ एक परभक्षी पक्षी आकर उसका कलेजा खाता था, लेकिन वह दोबारा उग जाता था और पक्षी अगले दिन आकर उसे दोबारा खाता था, अंत में प्रोमिथियस को हेराकल्स (हरक्यूलीस) ने इस बंधन से मुक्ति दिलाई. प्रोमिथियस लातिन में भी सुनाए जाना वाला एक पौराणिक कथा है लेकिन कहानी बिल्कुल अलग है। इस कहानी में प्रोमिथियस मिट्टी और पानी से मानव का सृजन करता है, जो फ्रैंकनस्टाइन में एक अहम विषय-वस्तु है क्योंकि विक्टर भी प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करता है और परिणामस्वरूप उसकी रचना ही उसे सज़ा देती है। प्रोमिथियस की यूनानी पौराणिक कथा में जो देवता है, वह विक्टर फ्रैंकनस्टाइन से तुल्य है, जिस तरह विक्टर नए तौर तरीकों से मानव का सृजन करता है ठीक उसी ही तरह देवता भी मानव जाति का सृजन करता है। एक तरह से विक्टर नें भगवान से मानव सृजन का रहस्य छीन लिया ठीक वैसे ही जैसे कि देवता ने स्वर्ग से आग चुराकर मानव को सौंप दी थी। विक्टर औऱ देवता दोनों ही अपने कर्मों की सज़ा पाते हैं। विक्टर को अपने सगे-संबंधियों की मौत की वजह से बहुत कष्ट झेलना पड़ता है और उसे डर भी सताता है कि उसके द्वारा किया गया सृजन उसे मार डालेगा मेरी शेली के लिए प्रोमिथियस कोई नायक नहीं था बल्कि कुछ-कुछ शैतान की तरह था, जिसे वह मानव को आग देने का दोषी मानती थी और जिसकी वजह से मानव जाति को मांस खाने की बुरी लत लग गई (आग से पाक कला विकसित हुई और उससे शिकार और हत्याएं भी शुरू हो गईं). इस दावे के प्रति मेरी का समर्थन, उपन्यास के 17वें अध्याय में देखने को मिलता है, जहां "दैत्य" विक्टर फ्रैंकनस्टाइन से कहता है: "मेरा भोजन मनुष्य नहीं है; मैं अपने पेट के लिए मेमने और बच्चे को नहीं मारता; मेरे पोषण के लिए बेर और बंजुफल ही काफी हैं।" आम तौर पर रूमानी दौर के कलाकारों के लिए, मानव को प्रोमिथियस का तोहफा 18वीं सदी के दो महान अव्यवहारिक वादों को दर्शाता है: औद्योगिक क्रांति और फ्रांसिसी क्रांति, जिसमें दोंनों महान वादे और अनकहे-अनसुने सक्षत भय मौजूद थे। बायरन को एशिलस के नाटक प्रोमिथियस बाउंड से खासा लगाव था और पर्सी शेली जल्द ही अपना प्रोमिथियस अनबाउंड (1820) लिखने वाले थे। "मॉर्डन प्रोमिथियस" शब्द इमैनुएल कैंट ने गढ़ा था, जिसमें उन्होंने बेंजामिन फ्रैंकलिन और उस दौरान किए गए उनके विद्युतीय प्रयोगों का ज़िक्र किया था। शेली के स्रोत शेली ने अपने उपन्यास में कई अलग स्रोतों का समावेश किया, जिनमें से एक थी ओविड की प्रोमिथियन दंतकथा। जॉन मिल्टन के पैराडाइस लॉस्ट और सैम्युल टेलर कोलेरिज के "द राइम ऑफ द एंशियंट मरीनर ", वह किताबें जो दैत्य को कैबिन में मिलती हैं, का असर उपन्यास में साफ देखने को मिलता है। साथ ही शेली दंपत्ति ने विलियम थॉमस बेकफोर्ड के गॉथिक उपन्यास वैथेक को पढ़ा था। फ्रैंकनस्टाइन में मेरी शेली की मां मेरी वॉल्स्टोनक्राफ्ट का कई जगह ज़िक्र है और उनकी मुख्य किताब "अ विंडिकेशन ऑफ द राइट्स ऑफ वुमन " का भी, जिसमें पुरुषों और महिलाओं में समान शिक्षा की कमी का वर्णन किया गया है। अपनी मां के विचारों को अपने काम में शामिल करना भी उपन्यास के सृजन और मातृत्व की विषय-वस्तु से ही जुड़ा है। मेरी ने फ्रैंकनस्टाइन के चरित्र के लिए हम्फ्री डेवी की किताब एलिमेंट्स ऑफ केमिकल फिलोसॉफी से शायद कुछ प्रेरणा भी ली होगी जिसमें डेवी ने लिखा है कि "विज्ञान ने... मानव को कई शक्तियां प्रदान की हैं जिन्हें सृजनात्मक कहा जा सकता है; और जिसकी बदौलत वह अपने आस-पास के जीव-जंतुओं को बदलने और सुधारने में सक्षम हुआ है।.." विश्लेषण शेली ने अपने उपन्यास की एक विवेचना का खुद प्रसंगवश उल्लेख किया है, जब वह अपने पिता विलियम गॉडविन की अतिवादी राजनीति का हवाला देती है। शेली के उपन्यास में एक जगह दैत्य और विक्टर एक हिमनद पर आमने-सामने आते हैं। दैत्य अकेलेपन और बहिष्कृत होने की अपनी भावनाओं का वर्णन करता है। विक्टर फिर भी नहीं देख पाता है कि उसने ही इस दैत्य का बहिष्कार किया था और यह उसका दायित्व बनता था कि वह उस दैत्य को प्यार करे और उसको अपना कुछ समय दे, जैसा कि बचपन में उसके माता-पिता ने उसके लिए किया था। विक्टर को इतना अलगाव क्यों है? वह खुद को एक पिता की तरह क्यों नहीं देखता? द नाइटमेअर ऑफ रोमांटिक आईडियलिसम नामक निबंध में लेखक कहता है, "जब फ्रैंकनस्टाइन बाप बनता है […], वह बच्चों के प्रति अपने कर्तव्य को आसानी से भूल जाता है […], एक सृजनकर्ता होते हुए भी उसमें एक गुण की कमी है और वह गुण वह है उसके लिए वह अपने माता-पिता की प्रशंसा करता है: उन्हें इस बात का बोध था कि जिसे उन्होंने जन्म दिया है उसके प्रति उनका दायित्व बनता है।.." (शेली 391) यह लेखक यह भी कहता है कि "(फ्रैंकनस्टाइन द्वारा) जिंदगी में […] एक व्यस्क की भूमिका को स्वीकार करने से इनकार करके […]वह सृजन की शक्ति को कायम रखता है। लेकिन उसी के साथ-साथ वह बिल्कुल गैर-ज़िम्मेदार भी है […] और उसमें अपने कर्मों के परिणामों को झेलने की हिम्मत नहीं है।"(शेली 391) यह वाक्य अपनी रचना के प्रति विक्टर की मानसिक्ता का वर्णन करते हैं। दुर्भाग्यवश, फ्रैंकनस्टाइन का कोमल बचपन उसे असली दुनिया के लिए तैयार नहीं कर पाया। उसे बढ़ा होकर अपने कर्मों की ज़िम्मदारी उठाने की कभी ज़रूरत नहीं पड़ी. फ्रैंकनस्टाइन सृजनकर्ता और सृजन के बीच के रिश्तों को ढूंढने की कोशिश करता है और साथ ही परिजनों और समाज के प्यार और स्वीकृति की वैश्विक ज़रूरत को भी बयां करता है। विक्टर द्वारा अपनी रचना का बहिष्कार करना दैत्य को बहिष्कृत अनुभव कराता है और उस दैत्य के अंदर गुस्से और खेद की भावना को जन्म देता है और हिंसक प्रतिक्रिया में वह उन लोगों को मार डालता है जो विक्टर के बहुत करीबी थे, यह सिलसिलता अंत तक चलता है जब विक्टर खुद मर जाता है और दैत्य खुद को नष्ट करने के लिए चला जाता है। फ्रैंकनस्टाइन की एक प्रचलित विषय-वस्तु अकेलापन और मनुष्य पर होने वाले अकेलेपन के प्रभाव हैं। यह विषय-वस्तु, उपन्यास के तीन मुख्य पात्रों: वॉल्टन, फ्रैंकनस्टाइन और दैत्य, के विचारों और अनुभवों के ज़रिए दर्शाई गई है। कहानी की शुरूआत में वॉल्टन के पत्र उसकी अकेलेपन की भावनाओं से भरे हैं क्योंकि वह जिस साहसिक अभियान पर निकला था उसमें कुछ रोचक नहीं रह गया था। विक्टर पूरी किताब में डर और बेचैनी का अनुभव करता है। कहानी की शुरुआत में विक्टर का कार्य उसे उसके परिवार से अलग कर देता है। वह कई वर्ष अकेलेपन में बिताता है। कहानी में आगे चलकर जब उसके परिजन और दोस्त मरने लगते हैं तो उसके अनुभव और भी कड़वे जाते हैं। उसने कहा है "यह मनोदशा मेरे उस स्वास्थ्य को खा गई है, जो पहले झटके से बचने के बाद पूरी तरह ठीक हो गया था। मैंने इंसान के चेहरे से किनारा कर लिया था; खुशी से भरी हर एक आवाज़ मुझे काटती थी; एकांतवास ही मेरा इकलौता सहारा था- घनघोर अंधेरा— मौत की तरह सन्नाटा". फ्रैंकनस्टाइन ने इसी तरह की भावनाओं को फिर व्यक्त किया जब उसने कहा "दुनिया के एक सबसे घिनौने काम में लिप्त, मैं अकेलेपन में डूब गया था, जहां कोई भी एक पल के लिए मेरा ध्यान भटका नहीं सकता था, मेरी इच्छाएं मर चुकीं थीं, मैं बैचेन और घबराने लगा था।" दैत्य बताता है कि किस तरह उसके अकेलापन ने उसे बदल दिया जब वह कहता है "मैं यह विश्वास नहीं कर सकता कि मैं वही हूं जिसके विचार कभी श्रेष्ठ और उत्तम सुंदरता और अच्छाई से भरे पड़े थे। लेकिन ऐसा भी है, कि एक पतित फरिश्ता एक विद्वेशपूर्ण शैतान बन जाता है। फिर भी उसके सूनेपन में भगवान और इंसान के उस दुशमन के दोस्त थे; लेकिन मैं फिर भी अकेला हूं". शेली स्पष्ट रूप से इस विष्य-वस्तु का अन्वेशण कर रही थी क्योंकि अकेलापन उसके मुख्य चरित्रों की महत्वपूर्ण प्रेरणा है। नाइटमेअर: बर्थ ऑफ हॉरर में क्रिस्टोफर फ्रेलिंग इस विष्य-वस्तु की चर्चा उपन्यास में अभिव्यक्त जीवच्छेदन के विपरीत करते हैं, क्योंकि शेली शाकाहारी थीं। तीसरे अध्याय में विक्टर लिखते हैं कि उन्होंने "अजीव मिट्टी में जान फूंकने के लिए जीवित प्राणी को यातना दी." और दैत्य कहता है: "मेरा भोजन मनुष्य नहीं है; मैं अपने पेट के लिए मेमने और बच्चे को नहीं मारता." एक अल्पसंख्क विचार को रखते हुए, आर्थर बेलेफेंट ने अपनी किताब फ्रैंकनस्टाइन, द मैन एंड द मॉन्स्टर (1999,ISBN 0-9629555-8-2) में दावा करते हैं कि मेरी शेली की मंशा थी कि पाठक यह समझे कि दैत्य कभी विद्यमान ही नहीं था और यह कि विक्टर फ्रैंकनस्टाइन ने ही तीनों हत्याएं की थीं। उनकी इस विवेचना में, यह कहानी विक्टर के नैतिक पतन का अध्य्यन है और इस कहानी में वैज्ञानिक परिकल्पना के पहलू विक्टर की कल्पना हैं। एक और अल्पमत साहित्यिक आलोचक जॉन लौरिस्टन की 2007 की किताब "द मैन हू रोट फ्रैंकनस्टाइन " में किया गया दावा है, जिसमें वह कहते हैं कि मेरी के पति, पर्सी बायशी शेली, उपन्यास के लेखक थे। मेरी शेली के प्रमुख विद्वान इस अनुमान को ज्यादा त्वज्जो नहीं देते हैं, हालांकि आलोचक कैमिली पागलिया ने इसकी उत्साहपूर्वक प्रशंसा की है और जर्मेन ग्रीर ने इसकी तीखी आलोचना की है। डेलावेयर विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी के प्रोफेसर चार्लस ई रॉबिन्सन ने 2008 में प्रकाशित फ्रैंकनस्टाइन के अपने संस्करण में इस विवादित लेखन को कुछ हद तक समर्थन दिया है, रॉबिन्सन ने फ्रैंग्कंस्टीन की हस्तलिपियों को दोबारा पढ़ा और उनमें पर्सी शेली द्वारा की गई मदद को मान्यता दी. अभिग्रहण शुरूआत में आलोचको ने इस किताब को ज्यादा पसंद नहीं किया, साथ ही इस बात को लेकर कई अटकलें भी लगती रहीं कि इसका असली लेखक कौन है। सर वॉल्टर स्कॉट ने लिखा कि "सबसे बढ़कर, यह कार्य हमें प्रभावशाली लगा क्योंकि यह लेखक की वास्तविक निपुणता और व्यक्त करने की खुशनुमा शक्ति का अंदाज़ा देता है", हालांकि ज्यादातर समालोचकों ने इसे "बेतुकेपन का एक भयानक और घिनौने उतक माना". (क्वाटर्ली रिव्यू) इस तरह की समालोचनाओं के बावजूद, फ्रैंकनस्टाइन ने बहुत जल्द ही प्रसिद्धि हासिल कर ली. कई नाटकों और रंगमंचों द्वारा अपनाए जाने के बाद यह और भी मशहूर हो गया — मेरी शेली ने 1823 में रिचर्ड ब्रिंसले पीक के नाटक प्रीसम्पशन: ऑर द फेट ऑफ फ्रैंकनस्टाइन, को भी देखा. फ्रैंकनस्टाइन का फ्रांसीसी अनुवाद 1821 में ही प्रकाशित कर दिया गया (जूल्स सालादिन द्वारा अनूदित, फ्रैंकनस्टाइन: ऊ ला प्रोमिथी मॉर्डन) 1818 में गुमनाम प्रकाशन के बाद से ही फ्रैंकनस्टाइन की बहुत प्रशंसा भी हुई है और आलोचना भी. उस समय के आलोचकों द्वारा की गई समीक्षा इन दो मतों को दर्शाती है। द बेले एसेंबली ने उपन्यास को "निर्भीक परिकल्पना" (139) करार दिया. क्वार्टर्ली रिव्यू ने कहा कि "लेखक के पास कल्पना और भाषा दोनों की शक्ति है"(185). सर वॉल्टर स्कॉट, ने ब्लैकवुड एडिबर्ग मैगज़ीन में लिखते हुए बधाई दी, "लेखक की वास्तविक निपुणता और व्यक्त करने की खुशनुमा शक्ति", हालांकि जिस तरह से दैत्य ने दुनिया और भाषा का ज्ञान हासिल किया उससे वह कम सहमत थे। द एडिनबर्ग मैगज़ीन और लिट्ररी मिसलेनी ने उम्मीद व्यक्त की कि "वह इस लेखक के और उपन्यास चाहेंगे"(253). दो अन्य समीक्षाओं में जहां यह मालूम पड़ता है कि लेखक विलियम गॉडविन की बेटी है, उपन्यास की आलोचना मेरी शेली के स्त्रीयोचित स्वभाव पर हमला है। ब्रिटिश आलोचक ने उपन्यास की कमियों को लेखक की गलती बताया है; "इसकी लेखक, हमारे मुताबिक, एक स्त्री है, यह उसका क्षोभ है और यही इस उपन्यास की सबसे बड़ी गलती है; लेकिन अगर वह लेखिका अपने लिंग की सौम्यता को भूल जाए, तो हमें ऐसा कोई कारण नज़र नहीं आता है कि क्यों; और इसलिए हम इस उपन्यास को आगे बिना किसी टिप्पणी के खारिज करते हैं।"(438). द लिट्ररी पैनोरमा और नेशनल रजिस्टर ने उपन्यास पर हमला बोलते हुए इसे "एक मशहूर उपन्यासकार की बेटी" द्वारा लिखित "मिस्टर गॉडविन के उपन्यासों की नकल" करार दया. इन शुरूआती अस्वीकृतियों के बावजूद, 20वीं शताबदी के मध्य के बाद से इस उपन्यास को आलोचकों ने काफी पसंद किया है। एम ए गोल्डबर्ग और हारोल्ड ब्लूम जैसे प्रमुख आलोचकों ने इस उपन्यास की "सौंदर्यबोधी और नैतिक" अहमियत की प्रशंसा की है और हाल ही के कुछ वर्षों में यह उपन्यास मनोविश्लेषण और नारीवादी आलोचना के लिए एक मशहूर विषय बन चुका है। आज यह उपन्यास आमतौर पर रूमानी और गॉथिक साहित्य और वैज्ञानिक परिकल्पना का एतिहासिक कार्य माना जाता है। प्रचलित संस्कृति में फ्रैंकनस्टाइन आज की लोकप्रिय पागल वैज्ञानिक शेली में मेरी शैली के फ्रैंकनस्टाइन को पहला उपन्यास कहा जाता है। हालांकि प्रचलित संस्कृति ने निष्कपट और सरल विक्टर फ्रैंकनस्टाइन को एक अति दुष्ट चरित्र में तब्दील कर दिया है। जैसा दैत्य को पहले पेश किया गया था, उससे बिल्कुल अलग इसने दैत्य को भी एक सनसनीखेज़, अमानुषिक प्राणी में बदल दिया है। असली कहानी में विक्टर जो सबसे बुरा काम करता है वह है डर के मारे दैत्य की उपेक्षा करना. वह डर पैदा करना नहीं चाहता. दैत्य भी एक मासूम, प्यारे प्राणी की तरह अस्तित्व में आता है। जब दुनिया उस पर अत्याचार करती है तो उसके मन में द्वेष की भावना पनपती है। अंत में विक्टर विज्ञान के ज्ञान को सक्षत शैतान और खतरनाक रूप से आकर्षक बताता है। हालांकि किताब प्रकाशित होने के तुरंत बाद, रंगमंच निर्देशकों को इस कहानी को दृश्यों में पेश करने में कठिनाई महसूस होने लगी. 1823 में शुरू हुए प्रदर्शनों के दौरान नाटककार यह बात मानने लगे कि इस उपन्यास को रंगमंच पर पेश करने के लिए वैज्ञानिक और दैत्य के अंतर्भावों के खत्म करना पड़ेगा. अपनी सनसनीखेज़ हिंसक हरकतों की बदौलत दैत्य कार्यक्रमों का सितारा बन गया। वहीं विक्टर को एक बेवकूफ की तरह पेश किया जाने लगा जो सिर्फ प्रकृति के रहस्यों में उलझा रहता था। इस सब के बावजूद यह नाटक असली उपन्यास से कहीं ज्यादा मेल खाते थे जोकि फिल्मों में नहीं होता था। इसके हास्यप्रद संस्करण भी आए और 1887 में लंदन में "फ्रैंकनस्टाइन, ऑर द वैम्पायर्स विकटिम " नाम से एक खिल्ली उड़ाता हुआ संगीतमय संस्करण भी प्रदर्शित किया गया। मूक फिल्में कहानी में जान डालने का प्रयास करती रहीं. शुरूआती फिल्में जैसे कि, एडिसन कंपनी की एक-रील फ्रैंकनस्टाइन (1910) और लाइफ विदाउट सोल (1915) उपन्यास की कथावस्तु से जुड़े रहने में कामयाब रहे. हालांकि 1931 में जेम्स वेल ने एक फिल्म का निर्देशन किया जिसने कहानी को बिल्कुल उलट कर रख दिया. युनिवर्स सिनेमा में काम करते-करते, वेल की फिल्म ने कथावस्तु में ऐसे कई तत्व जोड़े जिन्हें आज के आधुनिक दर्शक बखूबी जानते हैं: "डॉ॰" की तस्वीर. फ्रैंकनस्टाइन, जो कि शुरूआत में एक निष्कपट, युवा छात्र था; ईगोर की तरह दिखने वाला चरित्र (फिल्म में नाम: फ्रिट्ज़), जो शरीर के अंगों को इकट्ठा करते वक्त गलती से अपने मालिक के लिए एक अपराधी का दिमाग लाता है; और एक सृजन का एक सनसनीखेज़ दृश्य जो रसायनिक प्रक्रिया की बजाय विद्युतीय शक्ति पर केंद्रित होता है। (शेली के असली उपन्यास में कथावाचक के तौर पर फ्रैंकनस्टाइन जानबूझ के वह प्रक्रिया नहीं बताता जिससे उसने दैत्य का सृजन किया था, क्योंकि उसे डर था कि कोई दूसरा इस प्रयोग को दोबारा करने की कोशिश करेगा). इस फिल्म में वैज्ञानिक एक अहंकारी, होनहार, व्यस्क है, ना कि एक युवा. फिल्म में दूसरा वैज्ञानिक स्वेच्छा से दैत्य को मारने का काम करता है, लेकिन फिल्म कभी भी फ्रैंकनस्टाइन को उसके कार्यों की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए दबाव नहीं डालती है। वेल की सीक्वेल ब्राइड ऑफ फ्रैंकनस्टाइन (1935) और इसके बाद के सीक्वेल सन ऑफ फ्रैंकनस्टाइन (1939) और घोस्ट ऑफ फ्रैंग्कंस्टीन (1942) सभी सनसनी, डर और अतिशयोक्ति से भरी पड़ी थीं और साथ ही साथ डॉ॰ फ्रैंकनस्टाइन और दूसरे चरित्र और भी बुरे होते चले गए। इन्हें भी देखें [[फ्रैंकनस्टाइन तर्क|फ्रैंकनस्टाइन'' तर्क]] फ्रैंकनस्टाइन कॉम्प्लेक्स फ्रैंकनस्टाइन का दैत्य लोकप्रिय संस्कृति में फ्रैंकनस्टाइन होमुनकोलस गोलेम जोहान कॉनरोड डिपेल सन्दर्भ नोट्स ग्रंथ सूची अल्डिस, ब्रायन W."ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पेसियस:: मेरी शेली". स्पेकुलेशन ऑन स्पेकुलेशन: थिउरिज ऑफ साइंस फिक्शन. 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Frankenstein ओडियोबुक के साथ पूर्ण पाठ (प्रस्तावना के बिना) प्रFrankenstein बिना प्रस्तावना के लिबरीवोक्स से ओडियोबुक, (अज्ञात संस्करण) Frankenstein , ऑनलाइन साहित्य पुस्तकालय, जिसमें प्रस्तावना शामिल है (अज्ञात संस्करण) Frankenstein मेरी शेली द्वारा ऑनलाइन पाठ, जिसमें प्रस्तावना और अंतिम पत्र शामिल है। Mary Wollstonecraft Shelley Chronology & Resource Site "On Frankenstein", पर्सी बिशे शेली द्वारा पुनरीक्षण. 1818 उपन्यास कल्पना में आर्कटिक कल्पना में जर्मनी कल्पना में स्विट्जरलैंड ब्रिटिश विज्ञान कल्पना उपन्यास प्रथम उपन्यास अंग्रेजी भाषा के उपन्यास पत्रोपयुक्त उपन्यास काल्पनिक वैज्ञानिक फ्रैंकनस्टाइन गॉथिक उपन्यास डरावना उपन्यास मेरी शेली द्वारा उपन्यास स्वच्छंदतावाद गुमनाम रूप से प्रकाशित साहित्य बायोपुंक उपन्यास श्रेष्ठ लेख योग्य लेख गूगल परियोजना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A3%20%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2
अरुण गोविल
अरुण गोविल एक हिन्दी फिल्म एवं दूरदर्शन अभिनेता हैं। इन्होने रामानंद सागर निर्मित हिन्दी धारावाहिक रामायण में राम की भूमिका निभायी थी। इससे इनको बहुत प्रसिद्धि मिली। पुरस्कार व्यक्तिगत जीवन अरुण गोविल का जन्म राम नगर उत्तरप्रदेश में हुआ৷ इनकी प्रारम्भिक शिक्षा उत्तरप्रदेश से ही हुई৷ उन्ही दिनों यह नाटक में अभिनय करते थे৷ इनके पिता चाहते थे कि यह एक सरकारी नौकरीपेशा बने पर अरुण गोविल का सोचना विपरीत था৷ अरुण कुछ ऐसा करना चाहते थे जो यादगार बने, इसलिए सन् १९७५ में यह बम्बई चले गए और वहाँ खुद का व्यवसाय प्रारम्भ किया उस वक्त यह केवल १७ वर्ष के थे৷ कुछ दिनों के बाद इन्हें अभिनय के नए नए रास्ते मिलना शुरु हुए৷ प्रमुख धारावाहिक अरुण गोविल ज्यादातर राजश्रीवालों की पारिवारिक फ़िल्मों में काम करते थे, जिनमें जीवन मूल्यों को अनदेखा नहीं किया जाता है। रामानंद सागर-निर्देशित रामायण में भगवान राम का किरदार भी ऐसे ही था। इसलिए गोविल भी राम का किरदार अच्छे से कर पाए और यही उनकी शोहरत का मुख्य कारण बना। प्रमुख फिल्में सन्दर्भ हिन्दी अभिनेता 1958 में जन्मे लोग जीवित लोग रामानंद_सागर_के_धारावाहिक_के_किरदार
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मिचेल डू प्रीज़
मिचिएल डू प्रीज़ (जन्म 3 जनवरी 1996) एक नामीबियाई क्रिकेटर हैं। उन्होंने 2015 आईसीसी विश्व ट्वेंटी 20 क्वालीफायर टूर्नामेंट के लिए नामीबिया के दस्ते के हिस्से के रूप में ज़िवागो ग्रोएनवाल्ड की जगह चुनी। अगस्त 2018 में, उन्हें 2018 अफ्रीका टी20 कप के लिए नामीबिया की टीम में नामित किया गया था। वह टूर्नामेंट में नामीबिया के लिए चार मैचों में 164 रन के साथ अग्रणी रन-स्कोरर थे। अक्टूबर 2018 में, उन्हें बोत्सवाना में 2018-19 आईसीसी विश्व ट्वेंटी 20 अफ्रीका क्वालीफायर टूर्नामेंट के लिए दक्षिणी उप क्षेत्र समूह में नामीबिया के दस्ते में नामित किया गया था। जून 2019 में, वह 2019–20 अंतर्राष्ट्रीय सत्र से पहले क्रिकेट नामीबिया के एलीट मेन्स स्क्वाड में नामित होने वाले पच्चीस क्रिकेटरों में से एक थे। मार्च 2021 में, उन्हें युगांडा के खिलाफ उनकी श्रृंखला के लिए नामीबिया के ट्वेंटी 20 अंतर्राष्ट्रीय (टी20आई) टीम में नामित किया गया था। उन्होंने 3 अप्रैल 2021 को युगांडा के खिलाफ नामीबिया के लिए अपना टी20आई डेब्यू किया। सितंबर 2021 में, डु प्रीज़ को 2021 आईसीसी पुरुष टी20 विश्व कप के लिए नामीबिया की टीम में नामित किया गया था। नवंबर 2021 में, उन्हें नामीबिया के एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) दस्ते में 2021 नामीबिया त्रिकोणी सीरीज के लिए नामित किया गया था। उन्होंने ओमान के खिलाफ नामीबिया के लिए 26 नवंबर 2021 को अपना वनडे डेब्यू किया। सन्दर्भ क्रिकेट खिलाड़ी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8
तातारस्तान
तातारस्तान गणतंत्र (रूसी: Респу́блика Татарста́н, रेस्पुब्लिका तातारस्तान; तातार: Татарстан Республикасы, तातारस्तान रेस्पुब्लिकासी; अंग्रेज़ी: Tatarstan Republic) या तातारिया (Тата́рия, Tatariya) रूस का एक संघीय खंड है जो उस देश की प्रशन प्रणाली में गणतंत्र का दर्जा रखता है। यह रूस के वोल्गा संघीय विभाग का हिस्सा है। तातारस्तान की राजधानी काज़ान है जो रूस के सबसे बड़े और सबसे समृद्ध शहरों में से एक है और इसे कभी-कभी 'रूस की तीसरी राजधानी' भी कहा जाता है। इस गणतंत्र का नाम तातार लोगों पर पड़ा है जो यहाँ के मूल निवासी हैं, हालांकि यहाँ रूसी और अन्य जातियों के भी बहुत लोग रहते हैं। भूगोल तातारस्तान रूस की राजधानी मास्को से ८०० कि० मी० दूर है। इसका क्षेत्र वोल्गा नदी से लेकर कामा नदी (वोल्गा की एक उपनदी) तक विस्तृत है और पूर्व में यूराल पर्वतों तक जाता रहा है। इतिहास तुर्की और मंगोल दौर ७०० से १३०० ईसवी के काल में तातारस्तान के क्षेत्र में तुर्की लोगों का वोल्गा बुल्गारिया (Volga Bulgaria) राज्य हुआ करता था जिसका सन् ९२२ में इस्लामीकरण हो गया। इस राज्य पर की वजह से रूस, ख़ज़र लोगों और किपचक लोगों का दबाव होने के बावजूद यह आज़ाद रहा और इसके यूरोप और मध्य पूर्व के साथ गहरे व्यापारिक सम्बन्ध थे। १२३० के दशक में बातु ख़ान की मंगोल फ़ौजों ने इसे परास्त कर दिया और जो नया मिश्रित समुदाय पैदा हुआ उन्हें 'वोल्गा तातार' (Volga Tatar) के नाम से जाना जाता था। यह लोग तातार भाषा बोलने लगे। १४३० के दशक में यहाँ काज़ान ख़ानत शुरू हुई और इसकी राजधानी काज़ान शहर में थी। रूसी साम्राज्य का दौर १५२० के दशक में रूस के त्सार इवान भयानक (Ivan the Terrible) ने काज़ान ख़ानत पर हमला किया और १५२२ में काज़ान पर क़ब्ज़ा कर लिया। उसने बहुत से मुस्लिम तातारों को ज़बरदस्ती ईसाई बनाया और १५९३ में इस इलाक़े की सभी मस्जिदें तोड़ दी गई। बहुत से गिरजे बनाए गए लेकिन मस्जिद बनाए पर सख़्त मनाही रही। बहुत अरसे बाद कैथरीन महान के ज़माने में १७६६-१७७० काल में यहाँ पहली मस्जिद बनाने की अनुमति मिली। १९वीं सदी में यहाँ के मुस्लिम समुदाय में जदीद (Джадид, Jadid) नामक विचारधारा फैली। जदीदियों का कहना था कि कट्टरवाद बुरा है, ग़ैर-मुस्लिम समुदायों के लोगों के साथ भाईचारे से रहना चाहिए और पश्चिमी ज्ञान और शिक्षा को अपनाना चाहिए। सोवियत संघ और उसके बाद का दौर १९१७ में रूस में साम्यवादी (कोम्युनिस्ट) क्रान्ति हुई। रूस के कुछ इलाक़ों में गृह युद्ध छिड़ा, जिस दौरान कुछ तातार राष्ट्रवादियों ने यहाँ एक आज़ाद गणतंत्र चलाने की कोशिश की लेकिन उसका विलय ज़बरदस्ती सोवियत संघ में कर दिया गया। यहाँ सूखा आया जिसमें ४ लाख से ६ लाख के बीच लोग मरे। सोवियत संघ जब टूट रहा था, तब ३० अगस्त १९९० को तातारस्तान ने अपने इलाक़े पर अपना अधिपत्य घोषित कर दिया। एक नया संविधान बनाया गया जिसमें १९९२ में तो तातारस्तान को एक स्वतन्त्र राज्य घोषित किया गया लेकिन २०२२ में जोड़े गए अनुच्छेद १ और ३ के अनुसार तातारस्तान को रूसी संघ का भाग भी घोषित किया गया। तातारस्तान के कुछ नज़ारे इन्हें भी देखें तातार लोग काज़ान रूस के गणतंत्र सन्दर्भ रूस के प्रशासनिक विभाग रूस के गणतंत्र तातार तातारस्तान
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%9A%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0
सामाजिक चक्र
सामाजिक परिवर्तन के के सन्दर्भ में सामाजिक चक्र (social cycle) की मूल मान्यता यह है कि सामाजिक परिवर्तन की गति और दिशा एक चक्र की भाँति है और इसलिए सामाजिक परिवर्तन जहाँ से आरम्भ होता है, अन्त में घूम कर फिर वहीं पहुँच कर समाप्त होता है। यह स्थिति चक्र की तरह पूरी होने के बाद बार-बार इस प्रक्रिया को दोहराती है। इसका उत्तम उदाहरण भारत, चीन व ग्रीस की सभ्यताएँ हैं। चक्रीय सिद्धान्त के कतिपय प्रवर्तकों ने अपने सिद्धान्त के सार-तत्व को इस रूप में प्रस्तुत किया है कि इतिहास अपने को दुहराता है’। चक्रीय सिद्धान्तों के विचारानुसार परिवर्तन की प्रकृति एक चक्र की भाँति होती है। अर्थात् जिस स्थिति से परिवर्तन शुरू होता है, परिवर्तन की गति गोलाकार में आगे बढ़ते-बढ़ते पुनः उसी स्थान पर लौट आती है जहाँ पर कि वह आरम्भ में थी। विलफ्रेडो परेटो ने सामाजिक परिवर्तन के अपने चक्रीय सिद्धान्त में यह दर्शाने का प्रयत्न किया है कि किस भाँति राजनीतिक, आर्थिक तथा आध्यात्मिक क्षेत्र में चक्रीय गति से परिवर्तन होता रहता है। परेटों का चक्रीय सिद्धान्त परेटो (Parato) के अनुसार प्रत्येक सामाजिक संरचना में जो ऊँच-नीच का संस्तरण होता है, वह मोटे तौर पर दो वर्गों द्वारा होता है- उच्च वर्ग तथा निम्न वर्ग। इनमें से कोई भी वर्ग स्थिर नहीं होता, अपितु इनमें ‘चक्रीय गति’ पायी जाती है। चक्रीय गति इस अर्थ में कि समाज में इन दो वर्गों में निरन्तर ऊपर से नीचे या अधोगामी और नीचे से ऊपर या ऊर्ध्वगामी प्रवाह होता रहता है। जो वर्ग सामाजिक संरचना में ऊपरी भाग में होते हैं वह कालान्तर में भ्रष्ट हो जाने के कारण अपने पद और प्रतिष्ठा से गिर जाते हैं, अर्थात। अभिजात-वर्ग अपने गुणों को खोकर या असफल होकर निम्न वर्ग में आ जाते हैं। दूसरी ओर, उन खाली जगहों को भरने के लिए निम्न वर्ग में जो बुद्धिमान, कुशल, चरित्रवान तथा योग्य लोग होते हैं, वे नीचे से ऊपर की ओर जाते रहते हैं। इस प्रकार उच्च वर्ग का निम्न वर्ग में आने या उसका विनाश होने और निम्न वर्ग का उच्च वर्ग में जाने की प्रक्रिया चक्रीय ढंग से चलती रहती है। इस चक्रीय गति के कारण सामाजिक ढाँचा परिवर्तित हो जाता है या सामाजिक परिवर्तन होता है। परेटो के अनुसार सामाजिक परिवर्तन के चक्र के तीन मुख्य पक्ष हैं- राजनीतिक, आर्थिक तथा आदर्शात्मक। राजनीतिक क्षेत्रमें चक्रीय परिवर्तन तब गतिशील होता है जब शासन-सत्ता उस वर्ग के लोगों के हाथों में आ जाती है जिनमें समूह के स्थायित्व के विशिष्ट-चालक अधिक शक्तिशाली होते हैं। इन्हें ‘शेर’ (lions) कहा जाता है। समूह के स्थायित्व के विशिष्ट-चालक द्वारा अत्यधिक प्रभावित होने के कारण इन ‘शेर’ लोगों का कुछ आदर्शवादी लक्ष्यों पर दृढ़ विश्वास होता है और उन आदर्शों की प्राप्ति के लिए ये शक्ति का भी सहारा लेने में नहीं झिझकते। शक्ति-प्रयोग की प्रतिक्रिया भयंकर हो सकती है, इसलिए यह तरीका असुविधाजनक होता है। इस कारण वे कूटनीति का सहारा लेते हैं और ‘शेर, से अपने को ‘लोमड़ियों’ (foxes) में बदल लेते हैं और लोमड़ी की भाँति चालाकी से काम लेते हैं। लेकिन निम्न वर्ग में भी लोमड़ियाँ होती हैं और वे भी सत्ता को अपने हाथ में लेने की फिराक में रहती हैं। अन्त में, एक समय ऐसा भी आता है जबकि वास्तव में उच्च वर्ग की लोमड़ियों के हाथ से सत्ता निकालकर निम्न वर्ग की लोमड़ियों के हाथ में आ जाती है, तभी राजनीतिक क्षेत्र में या राजनीतिक संगठन और व्यवस्था में परिवर्तन होता है। जहाँ तक आर्थिक क्षेत्रया आर्थिक संगठन और व्यवस्था में परिवर्तन का प्रश्न है, परेटो हमारा ध्यान समाज के दो आर्थिक वर्गों की ओर आकर्षित करते हैं। वे दो वर्ग हैं- (1) सट्टेबाज (speculators) और (2) निश्चित आय वाला वर्ग (rentiers) पहले वर्ग के सदस्यों की आय बिल्कुल अनिश्चित होती है, कभी कम तो कभी ज्यादा; पर जो कुछ भी इस वर्ग के लोग कमाते हैं वह अपनी बुद्धिमत्ता के बल पर ही कमाते हैं। इसके विपरीत, दूसरे वर्ग की आय निश्चित या लगभग निश्चित होती है क्योंकि वह सट्टेबाजों की भाँति अनुमान पर निर्भर नहीं है। सट्टेबाजों में सम्मिलन के विशिष्ट-चालक की प्रधानता तथा निश्चित आय वाले वर्ग के समू ह में स्थायित्व के विशिष्ट-चालक की प्रमुखता पाई जाती है। इसी कारण पहले वर्ग के लोग आविष्कारकर्ता, लोगों के नेता या कुशल व्यवसायी आदि होते हैं। यह वर्ग अपने आर्थिक हित या अन्य प्रकार की शक्ति के मोह से चालाकी और भ्रष्टाचार का स्वयं शिकार हो जाता है जिसके कारण उसका पतन होता है और दूसरा वर्ग उसका स्थान ले लेता है। समाज की समृद्धि या विकास इसी बात पर निर्भर है कि सम्मिलन का विशिष्ट-चालक वाला वर्ग नए-नए सम्मिलन और आविष्कार के द्वारा राष्ट्र को नवप्रवर्तन की ओर ले जाए और समूह के स्थायित्व के विशिष्ट-चालक वाला वर्ग उन नए सम्मिलनों से मिल सकने वाले समस्त लाभों को प्राप्त करने में सहायता दें। आर्थिक प्रगति या परिवर्तन का रहस्य इसी में छिपा हुआ है। उसी प्रकार आदर्शात्मक क्षेत्रमें अविश्वास और विश्वास का चक्र चलता रहता है। किसी एक समय-विशेष में समाज में विश्वासवादियों का प्रभुत्व रहता है परन्तु वे अपनी दृढ़ता या रूढ़िवादिता के कारण अपने पतन का साधन अपने -आप ही जुटा लेते हैं और उनका स्थान दूसरे वर्ग के लोग ले लेते हैं। इन्हें भी देखें सामाजिक परिवर्तन सामाजिक सिद्धान्त समाज विज्ञान
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B5
कस्तूरी बिलाव
कस्तूरी बिलाव (Civet), जिसे गंधमार्जार या गंधबिलाव भी कहा जाता है, एशिया और अफ्रीका के ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों (विशेषकर वनों) में मिलने वाला एक छोटा, पतला, बिल्ली के आकार से मिलता-जुलता और अधिकतर निशाचरी स्तनधारी प्राणी होता है। कई जीववैज्ञानिक जातियों को सामूहिक रूप से कस्तूरी बिलाव बुलाया जाता है, जो सभी मांसाहारी गण के वाइवेरिडाए कुल की सदस्य हैं (हालांकि वाइवेरिडाए कुल की सभी जातियाँ कस्तूरी बिलाव नाम से नहीं जानी जाती)। कस्तूरी बिलावों में अपनी दुम के नीचे एक गंधग्रंथि से एक विशेष प्रकार की कस्तूरी गंध उत्पन्न करने की क्षमता होती है। यह आसानी से वृक्षों में चढ़ जाते हैं और आम तौर पर रात्रि में ही बाहर निकलते हैं। कस्तूरी गंध के प्रयोग कस्तूरी बिलावों की कस्तूरी गंध के रसायनों को इत्र या कस्तूरी में मिलाकर बेचा जाता है। इसमें से सिवेटोन (Civetone) नामक कीटोन निकाला गया है। सुगंधित द्रव्यों के निर्माण में इसकी गंध प्रयुक्त होती है। शारीरिक विशेषताएँ इनकी वैसी तो कई जातियाँ हैं जिनमें एक भारत का प्रसिद्ध बड़ा भारतीय कस्तूरी बिलाव (The Zibeth, Viverra zibetha) है, जो ऑस्ट्रेलिया से भारत और चीन तक फैला हुआ है। कद लगभग तीन फुट लंबा और 10 इंच ऊँचा होता है। रंग स्लेटी, जिसपर काली चित्तियाँ रहती हैं। दूसरा अफ्रीकी कस्तूरी बिलाव (African civet, Civette des civetta) है, जो इससे बड़ा ऊँचा तथा इससे गाढ़े रंग का और बड़े बालोवाला होता है। वैसे तो कस्तूरी बिलाव का शरीर बिल्ली जैसा होता है लेकिन इसका मुख कुछ-कुछ कुत्ते की भाँति आगे से खिंचा हुआ होता है। इनमें एक ग्रंथि होती है जिस से वह अपनी कस्तूरी जैसी महक पैदा करते हैं। ऐतिहासिक रूप से कस्तूरी बिलावों को मारकर उनकी ग्रंथि निकल ली जाती थी और उसका प्रयोग इत्तर बनाने के लिए किया जाता था। आधुनिक युग में जीवित पशु से ही बिना ग्रंथि निकले इस गंध के रसायन इकट्ठे किये जाते हैं। इन्हें भी देखें वाइवेरिडाए बिन्तुरोंग या ऋक्ष बिडाल (Bear Cat) सन्दर्भ वाइवेरिडाए साधारण स्तनधारी नाम अफ़्रीका के स्तनधारी एशिया के स्तनधारी हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%AF%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%93%E0%A4%82%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%9A%E0%A5%80
भारत की राजनयिक यात्राओं की सूची
इस की एक सूची है राज्य के प्रमुखों और सरकार के प्रमुखों , जो भारत का दौरा किया है। 2020 सूची यह सूची अधूरी है ; आप इसका विस्तार करके मदद कर सकते हैं । 2019 सूची यह सूची अधूरी है ; आप इसका विस्तार करके मदद कर सकते हैं । 2018 सूची 2017 सूची संपादित करें 2016 की सूची 2015 की सूची 2014 2013 की सूची 2012 की सूची 2011 की सूची 2010 की सूची 2005-2009 सूची 1955-2003 सूची इन्हें भी देखें गणराज्य गणतंत्र दिवस संविधान दिवस (भारत) स्वतंत्रता दिवस (भारत) बाहरी कड़ियाँ राष्ट्रीय त्यौहार भारत के प्रमुख दिवस
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%20%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%9A%E0%A4%9F%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A5%80
राम चन्द्र चटर्जी
रामचंद्र चटर्जी 22 मार्च 1890 को गुब्बारे में उड़ान भरने और पैराशूट से उतरने वाले पहले भारतीय बने। वे एक भारतीय कलाबाज़, जिमनास्ट, बैलूनिस्ट, पैराशूटिस्ट और देशभक्त थे। वह गुब्बारे में उड़ान भरने वाले और पैराशूट से उतरने वाले पहले भारतीय थे। वह एक पेशे के रूप में गुब्बारा उड़ाने वाले पहले भारतीय भी थे। उनके साहस ने गुब्बारे के साथ काम किया और पैराशूट ने उन्हें राष्ट्रीय नायक बना दिया। मृत्यु अप्रैल 1892 में, रामचंद्र उस वक्त गंभीर रूप से घायल हो गए थे जब उनका गुब्बारा बनारस में एक पहाड़ी पर उतरा। उन्हें कलकत्ता लाया गया लेकिन वे अपनी चोटों से उबर नहीं पाए और 9 अगस्त 1892 को उनकी मृत्यु हो गई। संदर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%96
लाख
लाख (संस्कृत: लक्ष) दक्षिण एशिया एवं कुछ अन्य देशों में प्रयुक्त एक संख्यात्मक इकाई है जो सौ हजार (१००,०००) के बराबर होती है। गणितीय पद्धति में इसे (105) भी लिखा जाता है। भारतीय संख्या पद्धति में इसे १,००,००० लिखा जाता है। आधिकारिक और अन्य प्रसंगों में लाख का प्रयोग भारत, बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान, म्यांमार तथा श्रीलंका आदि में बहुतायत में किया जाता है। प्रयोग लाख का प्रयोग संबंधित देशों में संख्यावाचक के साथ गुणवाचक या विशेषण के रूप में भी किया जाता है। जैसे- लखपति (लाखों का मालिक) और नौलखा (नौ लाख का) आदि। लाख का प्रयोग एकवचन के साथ बहुवचन में भी होता है। परिमेय संख्या के साथ एकवचन तथा अपरिमेय संख्या के साथ बहुवचन का प्रयोग किया जाता है। हालांकि यदि संख्यावाचक की बजाय गुणवाचक के साथ परिमेय संख्या जुड़ी हो बहुवचन का प्रयोग किया जाता है। व्युत्पत्ति और क्षेत्रीय भेद एक मत के अनुसार लाख शब्द की व्युत्पत्ति पालि भाषा के लक्ख से हुई है जिसका अर्थ लक्ष्य, पौरुष चिह्न अथवा जुए में लगाया गया दाँव है। यहीं से लाख का संख्यात्मक मान सौ हजार प्राप्त किया गया है। अन्य संभावित व्युत्पत्ति संस्कृत के लक्ष से संबंधित है जिसका अर्थ भी हिंदी और पालि के समान ही है। असमिया: लाख बंगाली भाषा: लाख or लोक्खो धिवेही भाषा: लक्क गुजराती: लाख हिंदी: लाख मुंबईया हिंदी: पेटी (पेट़ी)(पेटी का मतलब यहाँ ब्रीफ़केस से है जिसका आशय उस रक़म से है जो कि १०० रूपयों के बण्डल में एक ब्रीफ़केस या पेटी में आ सके।) कन्नड़: लक्ष कश्मीरी: लाच कोंकणी: लाख or लक्ष मलयालम: लक्षम मराठी: लाख or लक्ष नेपाली: लाख ओड़िया: ଲକ୍ଷ लखिया पश्तो: लाख पंजाबी: / लक्ख रोमानी: लाख संस्कृत: लक्ष सिंहली: लक्ष तमिल : लच्छम Telugu: लक्ष तुलु: लक्ष उर्दू: लाख़ सन्दर्भ इन्हें भी देखें करोड़ लाख (लाह)
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%80
देवदासी
ये ‘देवदासी’ प्राचीन प्रथा है। भारत के कुछ क्षेत्रों में खास कर दक्षिण भारत में महिलाओं को धर्म और आस्था के नाम पर वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेला गया। जबकि धर्म से इसका कोई संबंध नहीं है । सामाजिक-पारिवारिक दबाव के चलते ये महिलाएं इस धार्मिक कुरीति का हिस्सा बनने को मजबूर हुर्इं। देवदासी प्रथा के अंतर्गत कोई भी महिला धार्मिक स्थल में खुद को समर्पित करके देवता की सेवा करती थीं। देवता को खुश करने के लिए मंदिरों में नाचती थीं। इस प्रथा में शामिल महिलाओं के साथ धर्म स्थल के पुजारियों ने यह कहकर शारीरिक संबंध बनाने शुरू कर दिए कि इससे उनके और भगवान के बीच संपर्क स्थापित होता है। धीरे-धीरे यह उनका अधिकार बन गया, जिसको सामाजिक स्वीकायर्ता भी मिल गई। उसके बाद राजाओं ने अपने महलों में देवदासियां रखने का चलन शुरू किया। मुगलकाल में, जबकि राजाओं ने महसूस किया कि इतनी संख्या में देवदासियों का पालन-पोषण करना उनके वश में नहीं है, तो देवदासियां सार्वजनिक संपत्ति बन गर्इं। कर्नाटक के 10 और आंध्र प्रदेश के 14 जिलों में यह प्रथा अब भी बदस्तूर जारी है। देवदासी प्रथा को लेकर कई गैर-सरकारी संगठन अपना विरोध दर्ज कराते रहे। सामान्य सामाजिक अवधारणा में देवदासी ऐसी स्त्रियों को कहते हैं, जिनका विवाह मंदिर या अन्य किसी धार्मिक प्रतिष्ठान से कर दिया जाता है। उनका काम मंदिरों की देखभाल तथा नृत्य तथा संगीत सीखना होता है। पहले समाज में इनका उच्च स्थान प्राप्त होता था,वे समाज में पूजनीय होती थीं बाद में हालात बदतर हो गये। इन्हें मनोरंजन की एक वस्तु समझा जाने लगा। देवदासियां परंपरागत रूप से वे ब्रह्मचारी होती हैं, पर अब उन्हे पुरुषों से संभोग का अधिकार भी रहता है। यह एक अनुचित और गलत सामाजिक प्रथा है। इसका प्रचलन दक्षिण भारत में प्रधान रूप से था। बीसवीं सदी में देवदासियों की स्थिति में कुछ परिवर्तन आया। अँगरेज़ ने तथा समाज सुधारकों ने देवदासी प्रथा को समाप्त करने की कोशिश की तो लोगों ने इसका विरोध किया। इसलिए शायद आर्य भूमि भारत में हुए अनेक विद्वान एवं बुद्धिजीवी जातिवाद के कट्टर विरोधी रहे है जिनमे स्वामी विवेकानंद, राजा राममोहन राय ,डॉ आंबेडकर जैसे महान समाजवादी भी शामिल हैं। भारत को अपने इतिहास से बहुत कुछ सिखने की जरूरत है। लेकिन इसमें दी गई जानकारी से आप असहमत हो सकते है है क्योंकि उपरोक्त दी गई सूचनाओं का कोई प्रामाणिक स्रोत नही है ।
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ड्रेकुला अनटोल्ड
ड्रेकुला अनटोल्ड () वर्ष 2014 की अमेरिकी डार्क फैंटासी, एक्शन व हाॅर्रर प्रधान फिल्म हैं। यह नवोदित निर्देशक गैरी शाॅर की पहली फीचर फिल्म है जिसकी पटकथा मैट सेज़ामा और बुर्क शार्पलेस ने लिखी है। [4] फिल्म की कहानी आयरिश उपन्यासकार ब्रैम स्टोकर की 1897 की किताब 'ड्रेकुला' पर आधारित है, जिसमें मुख्य शीर्षक किरदार 'काउंट ड्रेकुला' के उद्गम कथा, यानी व्लाद द इम्पेलर की कहानी की परिकल्पना की गई है। अभिनेता ल्युक इवान्स शीर्षक भूमिका में हैं तथा साराह गेडाॅन, डाॅमिनिक कूपर, आर्ट पार्किन्सन एवं चार्ल्स डांस सहयोगी भूमिकाओं में हैं। अगस्त 5, 2013 में उत्तरी आयरलैंड को फिल्मांकन के लिए चुना गया। युनिवर्सल पिक्चर्स ने अक्टूबर 10, 2014 को सिनेमाघरों एवं आईमैक्स में पर्दापर्ण किया। सिनेमा जगत में इस विख्यात काल्पनिक खलपात्र की आरंभिक जीवन का यह पुनर्रचना है। मिश्रित प्रतिक्रिया के बावजूद आलोचकों ने, ल्युक इवान्स के बेहतरीन अभिनय की प्रशंसा के साथ कहानी और पात्र भूमिकाओं पर कसे निर्देशन की भी समीक्षा की, फिल्म 'ड्रेकुला अनटोल्ड' ने वैश्विक बाॅक्स ऑफिस पर $217 मिलियन की व्यावसायिक कमाई कर बढ़िया प्रदर्शन किया। साउंड एण्ड विजन इंडिया ने फिल्म को हिंदी, तमिल और तेलुगू में डब किया। सारांश मध्य युग के समय, व्लाद टेपेस (ल्युक इवान्स) वैलेचीया और ट्रांसिलवेनिया का शहजादा होता था। उसके बचपन में, उसे शाही राजकुमारों की तरह ऑटोमन साम्राज्य की ओर से बंधक बनाकर, उन्हें सुल्तान की जैनिसैरी फौज में बहाल करने लायक एक सिपाही की तरह तालीम दी जाती है, जो बाद में एक बहादुर योद्धा बनता है। अपने कई हजार दुश्मनों को भाले की नोंक पर मौत के घाट उतार उन्हें खुले मैदान में खड़ा कर देने बाद उसे व्लाद दी इम्पेलर की उपाधि दी जाती है। हाँलाकि उसे इन खूनखराबे से चिढ़ हो जाती है, सो इन बुरी दिनो से छुड़ाने के लिए वापस अमन कायम करने की कोशिश करता है। एक दिन जंगलों में, व्लाद और उसके सिपाहियों को झरने के पास एक हेलमेट मिलता है। इस डर से कि ऑटोमैन के खोजी दल रास्ते में हमले की फिराक़ में हैं, वो लोग झरने के रास्तों से गुजरकर "ब्रोकेन टुथ" नामक पहाड़ी की ऊँचाई पर बसी गुफा जा पहुँचते हैं। ज्यों ही वह लोग गुफा के भीतर दाखिल होते हैं, वहां ज़मीन पर कालीन की तरह बिछे कई कुचली हुई हड्डियों का ढेर मिलता है; और अचानक ही अंधेरे में कोई अंजान प्राणी (चार्लस डांस) उनपर हमला कर डालता हैं जिसकी लाल सुर्ख आँखें हैं, जिसमें इंसानों से कई ज्यादा बेमिसाल फुर्ती और ताकत है। व्लाद के कई साथी मारे जाते हैं, फिर वह गुफा में ही पड़ी तलवार से उस साए को ज़ख्मी कर डालता है। जिस तलवार से व्लैड ने उस प्राणी को काटा तो धूप में उसके लहु के तरह वह भी घुलने लगता है और अब तो वह भी गुफा के मुहाने पर पड़ रही धूप के कारण व्लाद का पीछा छोड़ देती है। किले पर उसके वापसी पर, व्लैड को स्थानीय भिक्षु से पता चलता वह प्राणी दरअसल एक पिशाच है, जो कभी इंसान था जिसे नर्क की गहराई से आए शैतान ने उसे तलब किया और बतौर समझौते अपनी काली ताकतें सौंपने से पहले शैतान ने चाल चली और उसी गुफा में सदा रह जाने का शाप दे जाते हुए यह कहता है, अब वह तब रिहा होगा जब कोई उसका लहु पीए, उसके बाद वह किसी और इंसान का खून पी जाए। वहां लगभग हर शख्स का स्वागत है जो ताकत के बदले में उसे गुफा से निकालने की आजादी भी दिलाए। अगले दिन, जब इस्टर के दावत पर व्लाद अपनी बीवी मिरेना (साराह गैडाॅन), और बेटे इनगेरैस (आर्ट पार्किनसन), और अपनी प्रजा साथ लुत्फ ले रहा था, तभी ऑटोमैन की फौजी टुकड़ी वहां किले पर अचानक आ धमकती है। व्लाद उन्हें बतौर खिदमत में चांदी के सिक्कों का इनाम पेश करता है, लेकिन दूत के मुताबिक ऑटोमैन की पलटन से कई सिपाही लापता है, अंदाजा है कि व्लाद ने उन सबको मार डाला होगा। व्लाद दंभ भरते हुए किसी की भी जान लेने के मामले से इंकार करता है। फिर तो दूत उस खिदमत के इनाम के साथ 1,000 लड़कों की मांग रखता है जिन्हें जैनिसैरी की तालीम देकर, आगे सल्तनत कायम करने लायक तैयार किया जा सके। व्लाद इसे नामंजूर करता है, लेकिन फौजी तादाद में कम और तुर्कियों के बराबर ना होने पर वह परेशानी में पड़ जाता है। मिरेना को इसका भरोसा रहता है, चुंकि व्लाद और मेहमेद (डाॅमिनिक कूपर) दोनों बचपन के दिनों में, सगे भाईयों की तरह रहें हैं, तो इस मामले पर बात करने की सलाह देती है, ताकि शायद मेहमेद उन्हें रहम बख़्श दे। मेहमेद द्वितीय के सामने हाजिर होकर वह मुल्क से और बच्चें ना दे पाने की असमर्थता जताता है। मसले की नाकामी देख, बच्चों के बदले वह खुद को पेश करने की कोशिश करता है; लेकिन सुल्तान इसे इंकारता है और व्लाद के बेटे को सौंपने की मांग रखता है। तब सुल्तान अपने दूत को व्लाद के बेटे को लाने भेजता है। व्लाद इस मसले पर अपनी बीवी से यह कहता है, कि वह अपने बेटे साथ दूत और ओटोमैन के सिपाहियों से मिलने जा रहा है। व्लाद तब मिरेना को भरोसा दिलाता है कि उसे और बच्चों को छोड़ने से पहले दूत व उसके सिपाहियों से अकेले में मिलने जाता है। निहत्थे जाते देख; इनगेरैस घबराकर, उसके पीछे पड़कर, उसका हाथ पकड़ता है और अपने पिता से सुल्तान की फौज में भर्ती होने को मंजूरी की बात कहता है। ज्यों ही व्लाद उस तुर्की दूत के पास, मुस्कराते हुए पहुँचता है, तो व्लाद उससे कुछ परेशानी होने का खेद जाहिर करता है। व्लाद अपने बेटे को मां की ओर भागने कहता है, और फिर दूत की तलवार छीनते हुए उसे और उसे घेरे सिपाहियों को मार डालता है। फिर यह जानते हुए कि इस हरकत से उसे जंग अख्तियार करना होगा, व्लाद उस "ब्रोकेन टूथ" वाली पहाड़ पर वापिस आकल उस पिशाच से मदद की दरकार करता है। फिर एक धकेलते हुए, वह पिशाच उसके लौटने की वजह पुछता है। जवाब में व्लाद, उसकी पिशाच की शक्तियों के दम पर ओटोमैन फौज को हराने की बात कहता है। फिर वह पिशाच इसके नतीजे के बारे में बताता है, और उसे अपना खून देता, जो व्लाद को अस्थायी तौर पर पिशाच की शक्तियां प्रदान कर सकती है। उसे खबरदार करता है कि उसे तीन दिनों के भीतर खुद को इंसानी लहु पीने की बेचैनी पर काबू रखना होगा, तभी वह वापस इंसानी रूप में लौट सकेगा। अन्यथा, वह हमेशा के लिए एक पिशाच बनकर रह जाएगा और एक दिन उसे अपने ही रचयिता से मदद की गुहार करनी पड़गी। व्लाद यह प्रस्ताव कबूल कर लेता है और पिशाच का लहु पी जाता है, जिसके साथ उसे दर्दनाक और मौत से भयानक एहसास की तब्दिलियों साथ गुजरना पड़ता है। जागने पर खुद को जंगल में पाने बाद, व्लाद को महसूस होता है कि उसकी इंद्रिय शक्तियाँ पहले से काफी बढ़ चुकी है, ताकत और तेजी में इंसानों से कहीं ज्यादा, यहां तक की वह खुद को चमगादड़ों की ओट में भी बदल सकता था; पर उसकी त्वचा सीधी धूप में झुलस पड़ती है। जब वह वापिस कैसेल ड्रैकुला पहुँचता है, ओटोमैन की फौज हमला कर चुकी होती है, लेकिन व्लाद उनपे अकेले ही टूट पड़कर सबको मार डालता है। फिर किले में मौजूद अपनी प्रजाओं को कोज़िया के मठ पर भेज देता है, जोकि पहाड़ों के किनारे ही बसा है, जहाँ उन्हें महफूज रहने लायक पनाह मिल सकें। इस सफर के दौरान, मिरेना को व्लाद के शापित होने का पता तब मालूम होता जब व्लैड एक चांदी के सिक्के को दबाकर खुद को कमजोर कर रहा है ताकि अनभिज्ञ लोगों के नजदीक आने पर उनका खून पीने के लिए हमला ना कर पाए। इसके बाद व्लाद कसम खाता है कि वह इंसानी खून से खुद को परहेज करेगा, वह राजी हो जाती है कि वह दुबारा अमरता पा लेगा ताकि ओटोमैन को हरा सके। पर श्केलगिम नाम का एक रोमनी, को व्लाद के पिशाच का पता चलता है, इस दावे को पुख्ता करने के लिए वह नौकर के रूप में उसे अपना खून पीने को कहता है; लेकिन व्लाद इंकार करता है। ज्यों ही वे लोग मठ के नजदीक पहुँचते, धात लगाए बैठे ओटोमैन के सिपाही वैलाह पर टूट पड़ते है; और जब तक व्लाद और उनके आदमी पीछे हटने में कामयाब होते, व्लाद की इस अचानक आई अमानवीय ताकत से उसके प्रजा में संदेह यकीन में बदल जाता है। अगले दिन मठ में, वहां के भिक्षुक को शाप का पता चलते ही वह राजकुमार और उसके प्रजा को व्लैड के खिलाफ कर देता है, जिसके लिए उसे धूप में जलते घर पर फंसा दिया जाता है। पर धुएँ की कालिख से सूरज ढप जाता है, जिससे व्लाद आग से बच निकलता है और गुस्से में अपने पिशाच बनने की वजह सिर्फ अपने लोगों को ओटोमैन के हुकूमत से बचाना था। इससे पहले कि आवेग में वह उनके विरुद्ध कुछ करता, मिरेना उसे रोककर शांत होने को कहती है। उसी रात, ओटोमैन की सैनिक जुलूस मठ की ओर बढ़ता है। व्लाद अपनी चमगादड़ो के विशाल झुंड से उन्हें पीछे खदेड़ देती है, हालाँकि उन सिपाहियों को पहले ही प्रलोभन दे दिया गया था, तो उनमें से मुट्ठी भर तुर्की सिपाही मठ में घुस गए और वहां के कई बाशिंदों में मारकाट मचाकर इनगेरैस को अगुवा कर लिया जाता है। मिरेना अपने बेटे को बचाने की कोशिश करती है, और मठ किनारे की ऊँची दीवार से गिर जाती है। मरते हुए, मिरेना याचना के साथ व्लाद को सूरज उगने से पहले उसका लहु पीने कहती जिससे उसे अपने बेटे को बचाने की ताकत मिल जाए। व्लाद को आनिच्छा से उसका लहु पीना पड़ता है, जिसके परिणाम पर आखिरकार वह एक पूर्ण पिशाच बनता है और जिसके साथ ही उसकी शक्तियाँ पहले काफी ज्यादा बढ़ जाती है। व्लाद मठ की ओर लौटता है और वहां पहरे पर बैठे लोग से भिड़ते हुए पिशाच की तरह जानलेवा वार करता है। वहीं ओटोमैन की सैन्य छावनी पर, मेहमेद अपनी युरोप की विशाल फौज के साथ हमले की तैयारी में रहता है। व्लाद और उसकी पिशाच फौज पहुँचकर कत्लेआम मचाते देख ओटोमैन के सिपाही खौफजदा हो जाते हैं, इस बीच व्लैड खुद मेहमेद सामने हाजिर होता है, जो इनगेरैस को अपनी कैद में रखा था। पहले से ही चौकस कि पिशाच की शक्ति चांदी के कारण क्षीण पड़ जाती है, मेहमेद छावनी की फर्श पर बिछे कालीन हटाते हुए सभी चांदी के सिक्कों को सामने लाता है,जिससे व्लैड की ताकत और गति थम जाती है, और तब उसकी असावधानी का लाभ उठाकर अपनी चांदी की तलवार के दम पर व्लैड से भिड़ जाता है। व्लाद पर उसके हावी होते ही, पहले से इंतजाम लकड़ी के खुँटे से उसका दिल बेधं डालने की कोशिश करता, लेकिन व्लाद चमगादड़ो के झुंड में बदलकर उससे बच जाता है फिर "ड्रैकुला, शैतान का बेटा" का नाम लेकर, उसी खुँटे से मेहमेद को मार डालता है और उसका खून पी जाता है, अपनी इस पाश्विक स्थिति से उपजे क्रुरता पर व्लाद घुटने टेक देता है। जैसे ही वह मेहमेद की छावनी से बाहर आते, ड्रैकुला और इनगेरैस को दूसरे पिशाच बन चुके लोग उन्हें घेरकर, और उसके बेटे को उसके इंसान होने कारण उन्हें सौंपकर मार डालने को धमकाते है। तभी वही भिक्षु सामने आ जिसने वैलाह के लोगों को व्लाद के खिलाफ खड़ा किया और अब एक सलीब पकड़ कर उन पिशाचों को पीछे हटाता है। तभी उनमें से एक पिशाच जब इनगेरैस पर झपटता है, ड्रैकुला उसे भाले से पेवस्त कर उसके बेटे को नुकसान ना पहुँचाने को आगाह करता है। ड्रैकुला उस भिक्षु से इनगेरैस को दूर करने का हुक्म देता है, फिर अपनी शक्तियों के बल पर आकाश पर छाए बादलों को हटा देता है। सूरज की रोशनी में सारे पिशाच धूल में मिल जाते हैं, तब तक ड्रैकुला भी जली लाश की तरह धराशायी हो जाता है। व्लाद को मृत मान लिया जाता है और युरोप भी ओटोमैन के हमले से बच जाता है, इनगेरैस को वैलेचिया के नए शहजादे के तौर पर ताज-ओ-तख्त से नवाजा जाता है। हालाँकि, श्केलगिम चोरी छुपे ड्रैकुला के पार्थिव शरीर को नजदीकी छावनी में लाकर उसे अपना खून चढ़ाकर पुनर्जीवित करता है। फिर वर्तमान के दिनों में, व्लाद की मुलाकात इस आधुनिक शहर (लंदन) की सड़क पर मीना नाम की औरत से होती है, जो बिलकुल उसे मिरेना की याद दिलाती है, और बातों बातों में वह उन कविता की पंक्तियों को दोहराते हैं जो उनके बीच होती है। वहीं व्लाद को शापित करने वाला पिशाच भी, सामान्य इंसानों की तरह अब जीवित दिखाई पड़ता है, अपने से दूर जाते देख उनके पीछे चल पड़ता है, और पहले से रचे योजना में ड्रैकुला के भविष्य के बारे में कहता है, "तो फिर तमाशा शुरू किया जाए !" कास्ट हिन्दी डबिंग कर्मचारी डब संस्करण जारी करने का वर्ष: १७ अक्टूबर, २०१४ (सिनेमा), २३ जनवरी, २०१५ (डीवीडी/ब्लू-रे डिस्क) मीडिया: सिनेमा/डीवीडी/ब्लू-रे डिस्क द्वारा निर्देशित: ???? अनुवाद: ???? समायोजन: ???? उत्पादन: साउंड एण्ड विजन इंडिया डब अन्य भाषाओं: तमिल/तेलुगू सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ 2014 की फ़िल्में अंग्रेज़ी फ़िल्में अमेरिकी फ़िल्में जापानी फिल्म
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गौतमबुद्ध नगर
गौतम बुद्ध नगर गौतम बुद्ध नगर उत्तरी भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के एक बड़े पैमाने पर उपनगरीय जिला है। यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (भारत) का हिस्सा है। ग्रेटर नोएडा जिले के प्रशासनिक मुख्यालय है। जिले की जनगणना के अनुसार , पिछले एक दशक में 51.52 % की वृद्धि दर्ज की, भारत के सबसे तेजी से बढ़ते भागों में से एक है 2011 के गौतम बुद्ध इसलिए यह सदा ही गौतम बुद्ध नगर के रूप में लिखा जाता है, के बाद [3] जिले का नाम था। स्थान जिला गौतम Budhh नगर उत्तर प्रदेश के पश्चिम में स्थित है। जिले में भारत के दो मुख्य नदियों के बीच के क्षेत्र अर्थात् गंगा और Yamuna.he यमुना नदी दिल्ली और फरीदाबाद जिले से गौतम बुद्ध नगर को अलग करती है। गौतम बुद्ध नगर पूर्व में उत्तर और दक्षिण, और खैर तहसील के लिए दिल्ली और गाजियाबाद से घिरा है। दक्षिण अलीगढ़ में दिल्ली के जिला गाजियाबाद और सीमाओं के उत्तर में , पूर्व बुलंदशहर में हरियाणा राज्य के पश्चिमी सीमा पर स्थित हैं। जनसांख्यिकी 2011 की जनगणना के अनुसार, गौतम बुद्ध नगर 1,674,714 की आबादी है। यह जनसंख्या के मामले में 640 भारतीय जिलों के कुल में से 294 वें स्थान पर है। [4] [4] गौतम बुद्ध नगर वर्ग प्रति 1,161 निवासियों की जनसंख्या घनत्व है किलोमीटर ( 3,010 / वर्ग मील)। [4] दशक 2001-2011 पर इसका जनसंख्या वृद्धि दर 39.32 % थी। [4] गौतम बुद्ध नगर , [4] और साक्षरता दर हर 1000 पुरुषों के लिए 852 महिलाओं की एक लिंग अनुपात है 82.2 % की। कारण दिल्ली के करीब निकटता के लिए , जनसंख्या जिले में आबादी का 82.2 % के साथ अत्यधिक साक्षर है साक्षर 74.04 % के राष्ट्रीय औसत की तुलना में। [4 ] महिला lieracy 65.46 % के राष्ट्रीय औसत की तुलना में काफी ज्यादा 72.78 % पर खड़ा है। [ 3] इन्फ्रास्ट्रक्चर गौतम बुद्ध नगर प्रस्तावित दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा। [5] नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस-वे में शामिल है और एक और यमुना एक्सप्रेस वे इस जिले से होकर गुजरता है। औद्योगीकरण जिला राज्य स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर न सिर्फ महत्वपूर्ण है आर्थिक संरचना के मामले में , जिला also.So के अन्य क्षेत्रों में हो रहा है। उत्तर प्रदेश के कुल राजस्व का 25% गौतम बुद्ध नगर से प्राप्त होता है। [प्रशस्ति पत्र की जरूरत] नोएडा और ग्रेटर नोएडा जिले के औद्योगिक केन्द्र हैं। जिला प्रशासन जिला प्रशासन एक आईएएस अधिकारी है और जब भी आवश्यक जिले के सभी मामलों पर मेरठ डिवीजन के डिवीजनल कमिश्नर कच्छा कौन जिलाधिकारी की अध्यक्षता में किया गया है। उन्होंने कहा कि राज्य और केंद्र सरकार के लिए संपत्ति के रिकॉर्ड और राजस्व संग्रह के प्रभार में है, और शहर में आयोजित सभी चुनावों की देखरेख। उन्होंने यह भी शहर में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि एक मुख्यमंत्री देवेलोपेमेंट अधिकारी द्वारा सहायता प्रदान की है, तीन अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (कार्यपालिका, वित्त / राजस्व और भूमि अधिग्रहण), एक शहर Magistrate.The जिले के सदर, Daadri और Jewar एक सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में प्रत्येक के रूप में नामित तीन तहसीलों में विभाजित किया गया है जो भी जिले magistrate.District करने के लिए रिपोर्ट 3 विकास अधिकारियों को दिया गया है: -Noida, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरणों के अध्यक्ष की अध्यक्षता में जो कर रहे हैं और प्रत्येक अधिकार भी आईएएस अधिकारी हैं, जो अपने स्वयं के मुख्य कार्यकारी अधिकारी है। पुलिस प्रशासन का एक आईपीएस अधिकारी हैं और कानून व्यवस्था लागू करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट के प्रति जवाबदेह है जो वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व में है, उन्होंने कहा कि पुलिस (शहर, ग्रामीण, आवागमन और अपराध) के चार अधीक्षकों और पुलिस के आठ उप अधीक्षकों द्वारा सहायता प्रदान की है। इसके वर्तमान जिलाधिकारी श्री एल०वाई०सुहास (आई०ए०एस) हैं।
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राष्ट्रीय राजमार्ग २२ (भारत)
राष्ट्रीय राजमार्ग २२ (National Highway 22) भारत का एक राष्ट्रीय राजमार्ग है। यह बिहार में भारत व नेपाल की सीमा पर स्थित सोनबरसा से झारखंड में चंदवा तक जाता है। राज्य राष्ट्रीय राजमार्ग २२ दो राज्यों से गुज़रता है: बिहार: सोनबरसा (भारत-नेपाल सीमा), सीतामढ़ी, मुज़फ़्फ़रपुर, हाजीपुर, पटना, पुनपुन, गया, बोधगया, डोभी झारखंड: हंटरगंज, चतरा, बालूमठ, चंदवा इन्हें भी देखें राष्ट्रीय राजमार्ग (भारत) राष्ट्रीय राजमार्ग २२ (भारत, पुराना संख्यांक) सन्दर्भ रारा 022 रारा 022 रारा 022
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%96%20%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE
पाकिस्तान में सिख धर्म
आधुनिक पाकिस्तान के क्षेत्र में सिख धर्म की व्यापक विरासत और इतिहास है, हालांकि सिख वर्तमान रूप से पाकिस्तान में एक छोटा सा समुदाय बनाते हैं। अधिकांश सिख पंजाब प्रांत में रहते हैं, जो बड़े पंजाब क्षेत्र का हिस्सा है जहाँ से यह धर्म मध्य युग में पैदा हुआ था, और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत में पेशावर। ननकाना साहिब,करतारपुर साहिब गुरुद्वारा जिसे मूल रूप से गुरुद्वारा दरबार साहिब के नाम से जाना जाता है, सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जन्मस्थान पंजाब प्रांत में स्थित है। 18 वीं और 19वीं शताब्दी में, सिख समुदाय एक शक्तिशाली राजनीतिक ताकत बन गया, सिख नेता रणजीत सिंह ने पहला सिख साम्राज्य स्थापित किया, जिसकी राजधानी लाहौर में हुई थी, जो आज पाकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। सिखों की महत्वपूर्ण आबादी पंजाब के सबसे बड़े शहरों जैसे लाहौर, रावलपिंडी और फैसलाबाद में बसे। 1947 में भारत के विभाजन के बाद, अल्पसंख्यक हिंदू और सिख भारत चले गए जबकि भारत के कई मुस्लिम शरणार्थियों ने पाकिस्तान में बसना पसंद किया था। जनसांख्यिकी पाकिस्तान का राष्ट्रीय डाटाबेस और पंजीकरण प्राधिकरण (एनएडीआरए) सरकार के अनुसार, 2012 में पाकिस्तान में 6,146 सिख पंजीकृत थे। अमेरिकी विदेश विभाग समेत अन्य स्रोतों का दावा है कि पाकिस्तान में सिख जनसंख्या 20,000 जितनी अधिक होगी। पाकिस्तानी सिख कई पाकिस्तानी सिख आकर संयुक्त राजशाही और कनाडा जैसे देशों में प्रवास कर रहे हैं। ब्रिटेन की 2001 की जनगणना के अनुसार, ब्रिटेन में 346 पाकिस्तानी सिख थे। संयुक्त अरब अमीरात में भी एक बढ़ता हुआ पाकिस्तानी सिख प्रवासी समुदाय भी हैं| भारत और पाकिस्तान की आजादी से पहले गुरुद्वारा डेरा साहिब 1947 में आजादी से पहले, सिख पूरे उत्तरी पाकिस्तान, विशेष रूप से पंजाब क्षेत्र में फैले हुए थे और किसानों और व्यापारियों के रूप में अपनी अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पंजाब की राजधानी लाहौर तब भी थी और आज भी रणजीत सिंह की समाधि समेत कई महत्वपूर्ण सिख धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों का स्थान है। नानकाना साहिब के पास के शहर में नौ गुरुद्वारे हैं, और यह सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्मस्थान है। नानकाना साहिब के गुरुद्वारों में से प्रत्येक गुरु नानक देव के जीवन में विभिन्न घटनाओं से जुड़े हुए हैं। शहर दुनिया भर में सिखों के लिए तीर्थयात्रा का एक महत्वपूर्ण स्थल बना हुआ है। पाकिस्तान का भारत से अलगाव (1947) पाकिस्तान में सबसे बड़ी सिख जनसंख्या पेशावर में ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में पाई जाती है, जहाँ "नानावती" (संरक्षण) के पश्तून कानून ने हिंसा के पैमाने को बचाया जो पंजाब के सिंधु नदी में था। दक्षिण एशिया में सिख और मुस्लिम समुदायों के बीच लंबे समय तक तनाव के बावजूद, पश्तून सिखों के धार्मिक अल्पसंख्यक के प्रति सहिष्णु थे | सन्दर्भ सिख धर्म पाकिस्तान
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नवागढ़
नवागढ़ (Nawagarh) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के बेमेतरा ज़िले में स्थित एक नगर है। विवरण पहले यह अवभाजित दुर्ग जिले में था। यह दुर्ग से इसकी दूरी करीब 100 कि०मी० और बेमेतरा से 25 कि०मी० है। यह मुंगेली व बेमेतरा जिले के ठीक मध्य में स्थित है। मंदिरों की नगरी कहा जाने वाला नवागढ़ अपने आप में पुरातात्विक इतिहास संजोए है। कल्चुरी राजाओं के 36 गढ़ों में से एक गढ़ के रूप में नवागढ़ आज भी प्रतिष्टित है। जहाँ राजा के द्वारा निर्माण करायी हुई बावड़ी आज भी बावली पारा में विद्यमान है, जिसमें अत्यधिक पानी होने के कारण लोहे के दरवाजे से बंद कर दिया गया है, जो पहले पुरे नगर में जल का स्रोत हुआ करता था। यहाँ समय-समय पर अनेक प्राचीन अवशेष मिलते हैं, जो इसकी पुरातात्विक महत्त्व को प्रदर्शित करता है। नवागढ़ और उसके आसपास उपजाऊ भूमि है। लेकिन सिंचाई का साधन नहीं होने के कारण कृषि उन्नत नहीं है। श्री शमी गणेश का विश्व का एक मात्र प्रसिद्ध मन्दिर नवागढ़ की शोभा को चार चाँद लगाता है। इस मन्दिर की रचना तांत्रिक विधि द्वारा की गयी है। इसके अतिरिक्त यहाँ पर बहुत प्राचीन तालाब है,यहाँ तालाबो की बहुत संख्या है| इन्हें भी देखें बेमेतरा ज़िला सन्दर्भ बेमेतरा ज़िला छत्तीसगढ़ के नगर बेमेतरा ज़िले के नगर
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हूपू
हूपू (Hoopoe) एक पक्षी है जो अफ़्रीका, एशिया और युरोप में बहुत स्थानों पर पाया जाता है। यह अपने रंगों, चोंच और सिर पर पंखों के मुकुट से आसानी से पहचाना जाता है। यह उपुपिडाए (Upupidae) जीववैज्ञानिक कुल की एकमात्र अस्तित्ववान जाति है। सेंट हेलेना हूपू एक भिन्न जाति हुआ करती थी लेकिन वह अब विलुप्त हो गई है। माडागास्कर में एक माडागास्कर हूपू नामक उपजाति मिलती है जिसे कुछ जीववैज्ञानिक कभी-कभी अलग जाति बताते हैं। इन्हें भी देखें ब्युसेरोटीफ़ोर्मीस कोरैसीफ़ोर्मीस सन्दर्भ अफ़्रीका के पक्षी एशिया के पक्षी यूरोप के पक्षी ब्युसेरोटीफ़ोर्मीस
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वारिस शाह
वारिस शाह (पंजाबी: , ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ) एक पंजाबी कवि थे जो मुख्य रूप से अपने "हीर राँझा" नामक काव्य-कथा के लिये मशहूर हैं। कहा जाता है कि उन्होंने हीर को "वारिस की हीर" बना कर अमर कर दिया। जन्म वारिस शाह का जन्म सन् १७२२ ईसवी में सैयद गुलशेर शाह के घर लाहौर से क़रीब ५० किलोमीटर दूर शेख़ूपुरा ज़िले के गाँव जंडियाला शेर ख़ान () में हुआ। ज़्यादातर भारतीय उपमहाद्वीप के लेखकों ने वारिस शाह का जन्म सन् १७०४, १७३०, १७३५ या १७३८ में अनुमानित किया है। परन्तु पिता-पुरखी बाबा वारिस शाह की मज़ार की सेवा करने वाले और हाल ही में 'बज़्म-ए-कलाम वारिस शाह सोसायटी' की बुनियाद रखने वाले शेख़ूपुरा के ख़ादिम वारसी, पिरो ग़ुलाम पैगंबर और जज अहमद नवाज़ रांझा आदि सहित पाकिस्तान के विद्वानों का भी यही मानना है कि वारिस शाह का जन्म सन् १७२२ ईसवी में हुआ था। दरबार वारिस शाह के बाहर लगी पत्थर की शिला पर अरबी भाषा में बाबा जी का जन्म सन् १७२२ और देहांत १७९८ में हुआ लिखा है। बचपन में वारिस शाह को इन के पिता वलों पिंड जंड्याला संतुष्ट खान की ही मस्जिद में पढ़ने के लिए भेजा गया। यह मस्जिद अब भी इस कवि की मज़ार के दक्षिण-पश्चिम की तरफ मौजूद है। उस के बाद इन्हों ने दर्शन-ए-नज़ामी की शिक्षा कसूर में मौलवी ग़ुलाम मुर्तज़ा कसूरी से हासिल की। वहाँ फ़ारसी और अरबी में उच्च तालीम (विद्या) प्राप्त करके यह पाकपटन चले गए। पाकपटन में बाबा'रीद की गद्दी पर मौजूद बुज़ुर्गों से इन को आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिस के बाद यह रानी हांस (कई लेखकों ऊँट पालक राम) की मस्जिद में बतौर इमाम रहे और धार्मिक विद्या का प्रसार करते रहे। हीर की रचना वारिस शाह से पहले दमोदर ने (मुग़ल बादशाह अकबर के राज समय क़िस्सा हीर-रांझा की रचना की), मुकबल (समेत 1764 में), अहमद गुज्जर (औरंगजेब के राज समय), हामद (सन 1220 हिजरी में) सहित पति चरा. ईवाण, गंगा भट्ट और गुरदास गुणी हीर लिख चुके थे। ईमाम होने के समय में मस्जिद रानी हांस के स्थान पर वारिस शाह ने 1767 ईसवी में हीर की रचना संपूर्ण की। छोटी ईंट का बना यह मस्जिद आज भी मिंटगुमरी कालेज के अहाते अंदर यादगार के तौर पर मौजूद है। बताते हैं कि वारिस की हीर इतनी लोकप्रिय हुई कि लोग दूर दूरगामे से उन से उनके द्वारा रचित हीर सुनने आते और हीर सुन कर दीवानों की तरह झूमने लगते। इस तरह वारिस शाह की हीर ने कई रांझे बना दिये। पाकिस्तान के अलग-अलग शहरों में रांझा जाति के इलावा बहुत सी ओर भी ऐसे लोग हैं, जो रांझे न हो कर भी अपने नाम के साथ रांझा लिखते हैं। जो लोग वारिस की हीर सुनकर झूमने लगते थे और हीर सुन कर वारिस शाह के शिष्य बन गए, उन को लोगों ने रांझे कहना शुरू कर दिया, जो पिता-पुरखी अब उन की उपनाम बन चुका है। मज़ार जंडियाला शेर ख़ान में ही पीर सैयद वारिस शाह की मज़ार है। वारिस शाह के दरबार की हालत ९-१० वर्ष पहले बहुत दयनीय थी। आसपास सारी जगह कच्ची और नम होने के कारण वारिस शाह और उनके पिता सहित दरबार में मौजूद दूसरे मज़ारों के आशा के पास बरसात के दिनों में पानी खड़ा हो जाता थी और श्रद्धालूओं को दरबार में माथा टेकने के लिये मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। परन्तु अब पाकिस्तान सरकार और श्रद्धालूओं ने प्रयास करके दरबार पक्का, खुला-सुंदर और हवादार बना दिया है। सन् २००८ में वारिस शाह की सालगिरह पर तीन दिन तक २३ जुलाई से २५ जुलाई तक उनकी मज़ार पर उर्स मनाई गई थी जिस दौरान २४ जुलाई को पूरे शेख़ूपुरा ज़िले में सरकारी छुट्टी ऐलान की गई थी और २५ जुलाई को "वारिस की हीर" नाटक करवाया गया था। हर वर्ष उर्स पर करीब ५०,००० लोग वारिस शाह के दरबार में हाज़री भरते हैं और मेले में हर कोई हीर पढ़ने वाला अपने-अपने अंदाज में पुरानी रवायत अनुसार यहाँ हीर पढ़ता है। इन्हें भी देखें हीर राँझा बुल्ले शाह पंजाबी कवि सूफ़ी कवि
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काठात
यह भारत की एक प्राचीन राजपूत जाति है जिनकी जड़ें पृथ्वीराज चौहान से जुड़ी हैं। राजस्थान चीता-मेहरात(काठात) समुदाय 4 ज़िलो मे बहुतायत मे हे ये लोग हिंदू धर्म के अनुयायी रहे है ये मुख्यत: काठा जी के 3 वचनो पर हमेशा से जीवन पद्धती जीते  पर समय के साथ ये लोग फिर से अपनी हिंदू जड़ों और राजपूत खून को पहचान रहे हे|इन्हें कई समुदाय के लोगों द्वारा धर्म परिवर्तन हेतु भड़काया गया, जिसकी वजह से कई लोगों को इस्लाम कबूल करना पड़ा। हैं। काफी विचार-विमर्श के बाद काठाजी के वंशजो ने अपने में ही चार भाग बना लिये, जो डांगोँ के नाम से जानी जाती हैं। इसमें जो चौथी डांग वो चीता वंश की हे। डांग का अर्थ क्षेत्र से हैं। राजस्थान के मेवात में मेवातियो की भी डांगे हैं। मीणा क्षेत्रों में भी डांगोँ का प्रचलन हैं। काठातो की डांगों में व अन्य डांगों यह अन्तर है कि काठातो की डांगे उस क्षेत्र के मूल पुरुष के नाम से हैं। ये डांगे इस प्रकार है 1.जोधाजी की डांग 2.करना जी की डांग 3.गाजी जी की डांग 4.चीता की डांग करना जी की डांग - इनके तीन पुत्र हुए- 1.पांचाजी, 2.सुल्तानजी और 3.हिन्दूजी पांचाजी ने राजियावास व हथाणखेड़ा बसाया। सुल्तानजी चांग में रहे और 3.हिन्दूजी ने जोहरखेड़ा बसाया सुल्तानजी के तीन पुत्र हुए - 1.हमीरजी - जिन्होंने चिताड़ बसाई, 2.राजाबाई (पुत्री) और 3.मेहराणजी हमीरजी के तीन लड़के हुए 1.मानाजी, 2.खेताजी, 3.नरबदजी (जो मालवे चला गया)। सुल्तान जी की पुत्री राजा बाई का विवाह मैसूर के बादशाह अनीस बख्श के पुत्र करीमुद्दीन के साथ कर दिया गया। चांग में आबाद सुल्तानजी के पुत्र मेहराणजी के चार पुत्र हुए- 1.पृथ्वीराज, 2.सम्माजी, 3.मालाजी और 4.दुदाजी पृथ्वीराज और सम्माजी नाऔलाद गये मालाजी के तीन लड़के हुए 1.मानाजी 2.करीमाजी और 3.पीथाजी दूदाजी के भी तीन पुत्र हुए, जिसमें 1.जैवाजी सराधना बैठा (पांच गांव बसाये), दूसरे 2.हादाजी (जिसने हदावतो का बाडिया और रेलडा बसाया), तीसरे 3.लाखाजी (वंशज लखावत कहलाये)। मालाजी के तीन पुत्र हुए, उनमें 1.मानाजी (मानपुरा व कोटड़ी बसाया), 2.करमाजी ऊत (नाऔलाद) गया। तीसरा लड़का 3.पीथाजी चांग में रहा। मानाजी की औलाद नेपाजी ने नानणा बसाया। पीथाजी के तीन लड़के हुए - 1.भोजाजी, 2.रूपाजी व 3.राजाजी रूपाजी ने मालाजी का बाड़िया व राजा जी ने बड़ी पोल बसायी भोजाजी के एक लड़का हुआ दूदाजी इनके फत्ताजी और फत्ताजी से चार लड़के हुए 1.अमराजी, 2.अन्द्रराजी, 3.राजाजी व 4.रायजी । दूदा जी के इन चार पुत्रों के वंशज मुख्यत दस गावों में आबाद है जिनको खान जी का रावला थोक से भी जाना जाता है। इन दस गावों में चांग, अमरपुरा, लालपुरा, बडीपोल, जगमालपुरा, सालाकोट, रूपनगर, छोटी रूपनगर, हरराजपुरा, फतेहगढ़ सल्ला और कालीपाटीया आते है। फत्ता जी के सबसे बड़े पुत्र अमरा जी के वंशज सबसे ज्यादा 6 गावो में आबाद हे जो की अमरपुरा, बडीपोल, जगमालपुरा, रूपनगर, छोटी रूपनगर और कालीपाटीया है। अमरा जी के चार पुत्र हुए 1.जगमाल जी , 2.देवा जी , 3. कैरा जी और 4. पीथा जी जगमाल जी के दो पुत्र हुए 1. रामा जी जिन्होंने जगमालपुरा बसाया और 2. दुला जी इनके भी तीन पुत्र हुए उसमे उसमे से 1. उदा जी और 2.हीरा जी की गुवाड़ी रूपनगर में आबाद हे जो की रूपनगर की चारो गुवाड़ी में से दो गुवाड़ी है। और इनके तीसरे पुत्र 3.बग्गा जी की संतान जगमालपुरा में आबाद हे। अमरा जी के दूसरे पुत्र देवा जी को एक लड़का हुआ लाला जी जिसके वंशज बाडीपोल में रहते हे। अमरा जी के तीसरे पुत्र कैरा जी के तीन पुत्र हुए 1. अक्का जी , 2. रुगा जी और 3.काना जी इसमें से अक्का जी और रूगा जी के वंशज अमरपुरा में आबाद हे और काना जी के वंशज छोटी रूपनगर और सुगालिया में रहते हे। अमरा जी के चौथे पुत्र पीथा जी के एक ही पुत्र हुआ बग्गा जी और इनके 1.लालू जी और 2.हमता जी की गुवाड़ी भी चारो गुवाड़ी में से एक हे जो की रूपनगर मे रहते हे। लालू जी के 3 पुत्र हुए 1.चंदा जी, 2.जोधा जी और 3.पाड़ा जी चंदा जी ने कालीपाटीया बसाया और पूरे कालीपाटीया में इन्ही के वंशज आबाद हे। जोधा जी के दो पुत्र हुए 1. मेथा जी (दीना गिरदावर का परिवार)और 2.मोती जी और पाड़ा जी के एक परिवार ही चला जो की अल्फू और रेशम जी का परिवार हे। इन दोनो (जोधा जी और पाड़ा जी )भाईयो के परिवार को मोती मल्ला का परिवार कहा जाता है जो की चारो गुवाड़ी की चौथी गुवाड़ी हे जो रूपनगर में ही रहते हे। फत्ता जी के दूसरे पुत्र अन्द्रराजी के दो लड़के हुए 1. डूगा जी और 2. जोधा जी । जोधा जी के भी दो पुत्र हुए 1.दुर्गा जी और 2.हीरा जी। इनका एक ही परिवार चला जो की सालाकोट में रहता है। दुर्गा जी के नाथू जी और इनके पूरा जी और इनके जफरू जी और जफरू जी के तीन पुत्र हुए 1.दीना जी , 2. दाऊ जी और 3.लाला जी इनके परिवार को जफरू दादा या पूरा दादा की गुवाड़ी के नाम से जाना जाता जो की रूपनगर में ही रहते हे। अन्द्रराजी के दूसरे बेटे डूगा के तीन पुत्र हुए 1.देवा जी, 2.साबा जी और 3.सावंत जी इसमें देवा जी के ज्यादातर वंशज रूपनगर में ही आबाद हे और थोड़े बहुत साबा जी और सावंत जी के वंशज के साथ में सालाकोट में रहते हे। देवा जी के दो पुत्र हुए 1.मैदा जी और 2.माना जी फत्ता जी के चौथे बेटे राय जी ने फतेहगढ़ सल्ला बसाया जिनके वंशज केवल फतेहगढ़ में ही रहते हे।
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भारत में ऊष्मा लहर २०१५
भारत में अप्रैल/मई २०१५ ऊष्मा लहर २६ मई तक १००० से अधिक लोगों की मृत्यु हो गयी और विभिन्न क्षेत्र इससे प्रभावित हुये। भारतीय शुष्क मौसम में ऊष्मीय लहरें चलती हैं जिन्हें लू भी कहा जाता है। ये मुख्यतः मार्च से आरम्भ होकर मई तक चलती हैं। प्रभावित क्षेत्र ऊष्मा लहर मध्य प्रदेश, विदर्भ, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार और झारखण्ड सहित भारत के विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में प्रभावी है। २१ मई को भारत की राजधानी नई दिल्ली में तापमान दर्ज किया गया। इसी दिन झारसुगुदा में तापमान दर्ज किया गया और इसमें लू के प्रभाव से कम से कम १२ लोगों की मौत हो गयी। २३ मई को इलाहबाद में तापमान दर्ज किया गया। भारत के महानगरों दिल्ली और कोलकाता में क्रमशः  और तापमान दर्ज किया गया। ओडिशा राज्य में लू के प्रकोप से २३ लोगों की मौत होग गयी सबसे अधिक मौतें आन्ध्र प्रदेश राज्य में हुई जहाँ कम से कम २४६ लोगों की मौत हो गयी। हैदराबाद में २२ मई को तापमान दर्ज किया गया जो पिछले वर्षों के इसी दिन के अधिकतम तापमान के सामान्य मान  से अधिक है। इसके अगले दिन नगर का तापमान पुनः पिछले वर्षों के सामान्य मान 39.5 °C (103.1 °F) से अधिक  दर्ज किया गया। २४ मई को खम्मम में अब तक का सबसे अधिक तापमान दर्ज किया गया। समुद्र तल से २,०१० मीटर (६,५८० फुट) ऊँचाई पर स्थित मसूरी जैसे पहाड़ी इलाके का तापमान भी  दर्ज किया गया। Recorded Temperatures सन्दर्भ 2015 में भारत भारत की जलवायु
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दुनिया का सबसे अनमोल रतन
दुनिया का सबसे अनमोल रतन प्रेमचंद की पहली कहानी थी। यह कहानी कानपुर से प्रकाशित होने वाली उर्दू पत्रिका ज़माना में १९०७ में प्रकाशित हुई थी। यह प्रेमचंद के कहानी संग्रह सोज़े वतन में संकलित है। पात्र दिलफिगार दिलफरेब परिचय इसमें दिलफरेब दिलफिगार से कहती है कि- "अगर तू मेरा सच्चा प्रेमी है, तो जा दुनिया की सबसे अनमोल चीज लेकर मेरे दरबार में आ।" उसे पहला रतन फाँसी पर चढ़ने वाले काले चोर की आँखों से टपका हुआ आँसू मिला किंतु दिलफरेब ने वह स्वीकार नहीं किया। वह दूसरा रतन प्रेमी तथा प्रेमिका की चिता की मुट्ठीभर राख लेकर दिलफरेब के दरबार में गया किंतु वह भी सबसे अनमोल रतन नहीं माना गया । खून का वह आखिरी कतरा जो वतन की हिफाजत में गिरे- दुनिया का सबसे अनमोल रतन माना गया। विशेषताएँ इस कहानी में प्रेमचंद का देशप्रेम साफ झलकता है। इन्हें भी देखें प्रेमचंद सन्दर्भ कहानी प्रेमचंद
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हैदराबादी रुपया
हैदराबादी रुपया 1918 से 1959 तक हैदराबाद राज्य की मुद्रा थी। यह 1950 से भारतीय रुपया के साथ सह-अस्तित्व में था। भारत की आजादी के बाद भी 'हैदराबादई रुपया' भारतीय रुपया के साथ समानांतर रूप से सह-अस्तित्व था मूल्यवर्ग भारतीय रुपया की तरह, इसे 16 साल में विभाजित किया गया था, प्रत्येक 12 पैई में। कॉपर (बाद में कांस्य) में तांबे (बाद में कांस्य) में 1 और 2 पाई और ½ अन्ना के संप्रदायों के लिए कप्रो निकल (बाद में कांस्य) में 1 अन्ना और 2, 4 और 8 साल और 1 रुपये के लिए चांदी में जारी किए गए थे।
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कृष्णगिरि जिला
कृष्णगिरि ज़िला भारत के तमिल नाडु राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय कृष्णगिरि है। विवरण इसे पहले "अरियालुर" के नाम से जाना जाता था। क्षेत्र में बहुत से काले (यानि कृष्ण) रंग के ग्रेनाइट के टीले हैं, जिनके कारण से क्षेत्र का नाम कृष्णगिरि पड़ा। अंग्रेजी का शब्द मैंगो (यानि आम) तमिल भाषा से अवतरित है और कृष्णगिरि वो जगह है, जहां शायद दुनिया के सबसे स्वादिष्ट आम मिलते हैं। होसूर इस जिले का एक प्रमुख औद्योगिक केन्द्र है। चित्रदीर्घा इन्हें भी देखें कृष्णगिरि तमिल नाडु तमिल नाडु के जिले सन्दर्भ तमिलनाडु के जिले
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A5%8C%E0%A4%A8%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%96%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%20%28%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%95%E0%A4%BE%29
रजौन प्रखण्ड (बाँका)
रजौन (Rajoun) बिहार के बांका जिले के 11 प्रखंडों में से एक है। यह अंगप्रदेश के महत्वपूर्ण कस्बों में से एक है। यह रेशम नगरी या सिल्क सिटी भागलपुर को झारखंड की उप राजधानी दुमका से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग (NH 133E) पर स्थित है। NH 133E को फोर-लेन हाईवे में अपग्रेड करने का प्रस्ताव है। यह निकट भविष्य में रजौन की कनेक्टिविटी और विकास को बढ़ाएगा। इसमें अठारह ग्राम पंचायतें शामिल हैं। यह धोरैया विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है जिसमें धोरैया प्रखंड और रजौन प्रखंड शामिल हैं। इतिहास भागलपुर का कुख्यात अखफोड़वा कांड रजौन थाने से ही शुरू हुआ था और इसका व्यापक असर यहीं हुआ था। इस पर गंगाजल फिल्म भी बनी है। इस फिल्म में अजय देवगन मुख्य अभिनेता थे। रजौन प्रखन्ड में कुछ गांव है: पूनसिया, नवादा, विष्णुपुर, कोतवाली, बामदेव, चकपरासी, बनगांव, नरीपा, मंझगांय, नीमा, धर्मचक, दुर्गापुर, खरबा, खरौनी, सोहानी, खैरा, राजावर, लीलातारी तेरहमाइल, आदि। जनसांख्यिकी अंगिका यहां की क्षेत्रीय भाषा है। यहां की ऑफिशियल भाषा हिंदी है। 2011 जनगणना के अनुसार यहां की कुल जनसंख्या 1,62,553 है। जिसमें 85,576 पुरूष और 76,977 महिलाएँ हैं। परिवहन रजौन जिला मुख्यालय बांका से लगभग 20 किमी और भागलपुर से 26 किमी दूर है। प्रसिद्ध मंदार पर्वत यहां से करीब 21 किमी दूर है। यह रेलवे लाइन और रोडवेज दोनों के माध्यम से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। धौनी (DWLE) रेलवे स्टेशन इस शहर का मुख्य रेलवे स्टेशन है। यह भागलपुर-हंसडीहा-दुमका-बांका रेल लाइन पर स्थित है। शिक्षा डीएन सिंह कॉलेज तथा पॉलीटेक्निक कॉलेज कोतवाली, बांका क्षेत्र के छात्रों के लिए एक प्रमुख शैक्षणिक संस्थान है और यहां कई हिंदी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूल भी स्थित हैं। मुख्य आकर्षण लीलातरी गांव के समीप अवस्थित ज्येष्ठगौर मंदिर और शहर में स्थित राजवनेश्वर धाम यहां के प्रमुख मंदिर हैं।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A5%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B8%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%AF
थेल्स का प्रमेय
ज्यामिति में थेल्स के प्रमेय (Thales' theorem) के अनुसार किसी भी वृत्त के परिधि पर स्थित तीन बिन्दुओं A, B तथा C हो तो कोण ABC का मान ९० अंश होगा यदि AC उस वृत्त का कोई व्यास हो। यह प्रमेय 'अन्तःनिर्मित कोण प्रमेय' (inscribed angle theorem) का एक विशेष रूप है। प्रायः इस प्रमेय के खोज का श्रेय थेल्स को दिया जाता है किन्तु कभी-कभी पाइथागोरस को भी इसका आविष्कारकर्ता माना जाता है। रेखाखॅड LM||CDहै सिधद करना है AM/AB=AN/AD बाहरी कड़ियाँ Munching on Inscribed Angles Thales' theorem explained With interactive animation Thales' Theorem by Michael Schreiber, The Wolfram Demonstrations Project. त्रिभुज की ज्यामिति es:Teorema de Tales#Segundo teorema he:משפט תאלס#המשפט השני
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A8
कार्यान्वन
कार्यान्वन, (अंग्रेज़ी- Praxis) आचरन , चलन या अमल वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी सिद्धांत , पाठ या कौशल को अधिनियमित, अवतीर्ण, साकार, लागू या व्यवहार में लाया जाता है। "प्रैक्सिस" का तात्पर्य विचारों को शामिल करने, लागू करने, अभ्यास करने, साकार करने या उद्यम करने के कार्य से भी हो सकता है। दर्शनशास्त्र के क्षेत्र में यह एक आवर्ती विषय रहा है, जिसकी चर्चा प्लेटो , अरस्तू , सेंट ऑगस्टीन , फ्रांसिस बेकन , इमैनुएल कांट , सोरेन कीर्केगार्ड , लुडविग वॉन मिज़ , कार्ल मार्क्स , एंटोनियो ग्राम्शी , मार्टिन हेइडेगर , हन्ना अरेंड्ट, जीन-पॉल सार्त्र ,पाउलो फ्रायर , मरे रोथबार्ड , और कई अन्य के लेखन में की गई है । इसका राजनीतिक, शैक्षिक, आध्यात्मिक और चिकित्सा क्षेत्र में अर्थ है। मार्क्सवाद
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पौष कृष्ण सप्तमी
पौष कृष्ण सप्तमी भारतीय पंचांग के अनुसार दसवें माह की बाइसवी तिथि है, वर्षान्त में अभी ६८ तिथियाँ अवशिष्ट हैं। पर्व एवं उत्सव प्रमुख घटनाएँ जन्मswami Vivekananda निधन इन्हें भी देखें हिन्दू काल गणना तिथियाँ हिन्दू पंचांग विक्रम संवत बाह्य कड़ीयाँ हिन्दू पंचांग १००० वर्षों के लिए (सन १५८३ से २५८२ तक) आनलाइन पंचाग विश्व के सभी नगरों के लिये मायपंचांग डोट कोम विष्णु पुराण भाग एक, अध्याय तॄतीय का काल-गणना अनुभाग सॄष्टिकर्ता ब्रह्मा का एक ब्रह्माण्डीय दिवस महायुग सन्दर्भ सप्तमी पौष
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रोज केरकेट्टा
रोज केरकेट्टा (5 दिसंबर, 1940) आदिवासी भाषा खड़िया और हिन्दी की एक प्रमुख लेखिका, शिक्षाविद्, आंदोलनकारी और मानवाधिकारकर्मी हैं। आपका जन्म सिमडेगा (झारखंड) के कइसरा सुंदरा टोली गांव में खड़िया आदिवासी समुदाय में हुआ। झारखंड की आदि जिजीविषा और समाज के महत्वपूर्ण सवालों को सृजनशील अभिव्यक्ति देने के साथ ही जनांदोलनों को बौद्धिक नेतृत्व प्रदान करने तथा संघर्ष की हर राह में आप अग्रिम पंक्ति में रही हैं। आदिवासी भाषा-साहित्य, संस्कृति और स्त्री सवालों पर डा. केरकेट्टा ने कई देशों की यात्राएं की है और राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं। पारिवारिक जीवन रोज केरकेट्टा खड़िया आदिवासी समुदाय से हैं जो झारखंड की पांच प्रमुख आदिवासी समुदायों में से एक है। उनकी मां का नाम मर्था केरकेट्टा और पिता का नाम एतो खड़िया उर्फ प्यारा केरकेट्टा है जो एक लोकप्रिय शिक्षक, समाज सुधारक, राजनीतिज्ञ और सांस्कृतिक अगुआ थे। क्रिस्टोफर केरकेट्टा और प्रदीप कुमार सोरेंग (दिवंगत) उनके दो भाई हैं और रोशनी केरकेट्टा (दिवंगत), ग्लोरिया सोरेंग, शशि केरकेट्टा और सरोज केरकेट्टा चार बहने हैं। अपने पिता प्यारा केरकेट्टा की तरह ही रोज ने भी आजीविका के लिए शिक्षकीय जीवन को अपनाया। उनका विवाह सुरेशचंद्र टेटे से हुआ था। जिनसे उनके वंदना टेटे और सोनल प्रभंजन टेटे दो बच्चे हैं। वंदना टेटे अपने नाना प्यारा केरकेट्टा और मां की तरह झारखंड आंदोलन से जुड़ी हैं और पिछले 30 वर्षों से सामाजिक-सांस्कृतिक व साहित्यिक क्षेत्र में सक्रिय हैं। शिक्षा प्रारंभिक शिक्षा कोंडरा (जिला गुमला), खुँटी टोली एवं सिमडेगा (जिला सिमडेगा) से बी. ए. सिमडेगा कॉलेज, सिमडेगा से एम. ए. रांची विश्वविद्यालय, रांची (झारखंड) से रांची विश्वविद्यालय, रांची (झारखंड) से ‘खड़िया लोक कथाओं का साहित्यिक और सांस्कृतिक अध्ययन’ विषय पर डा. दिनेश्वर प्रसाद के मार्गदर्शन में पीएच. डी. शिक्षण कार्य माध्यमिक विद्यालय लड़बा (1966), सिमडेगा कॉलेज, सिमडेगा (1971-72), पटेल मौन्टेसरी स्कूल, एच. ई. सी. रांची (1976), बी. एन. जालान कॉलेज, सिसई (1977-82), जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, रांची विश्वविद्यालय, रांची (झारखंड) (1982-दिसंबर 2000) शिक्षा क्षेत्र में विशेष भागीदारी ग्रामीण, पिछड़ी, दलित, आदिवासी, बिरहोड़ एवं शबर आदिम जनजाति महिलाओं के बीच शिक्षा एवं जागरूकता के लिए विशेष प्रयास। बिहार एवं झारखंड शिक्षा परियोजना की महिला समाख्या का नेतृत्व और उसकी रिसोर्स पर्सन मूल्यांकन कार्य झारखंड शिक्षा परियोजना सहित अनेक शैक्षणिक एवं सामाजिक संस्थाओं का मूल्यांकन झारखंड पब्लिक सर्विस कमीशन (जे. पी. एस. सी.) युनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यू. जी. सी.) अब तक पांच पीएच. डी. शोध उपाधियों (2 संताली, कुड़ुख, खड़िया और नागपुरी एक-एक) का निदेशन शांति निकेतन विश्वविद्यालय में इंटरव्यूवर सामाजिक क्षेत्र में भागीदारी, कार्य एवं संबद्धता विगत 50 वर्षों से भी अधिक समय से शिक्षा, सामाजिक विकास, मानवाधिकार और आदिवासी महिलाओं के समग्र उत्थान के लिए व्यक्तिगत, सामूहिक एवं संस्थागत स्तर पर सतत सक्रिय। अनेक राज्य स्तरीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ जुड़ाव। आदिवासी, महिला, शिक्षा और साहित्यिक विषयों पर आयोजित सम्मेलनों, आयोजनों, कार्यशालाओं एवं कार्यक्रमों में व्याख्यान व मुख्य भूमिका के लिए आमंत्रित। झारखंड नेशनल एलायंस ऑफ वीमेन, रांची (झारखंड) जुड़ाव, मधुपुर, संताल परगना (झारखंड) बिरसा, चाईबासा (झारखंड) आदिम जाति सेवा मंडल, रांची (झारखंड) झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा (झारखंड) प्यारा केरकेट्टा फाउण्डेशन, रांची (झारखंड) की संस्थापक सदस्य आदि अनेक संगठनों व संस्थाओं से जुड़ाव। मुद्दों पर कार्य आदिवासी महिलाओं का विस्थापन, पलायन, उत्पीड़न, शिक्षा, जेन्डर संवेदनशीलता, मानवाधिकार एवं सम्पत्ति पर अधिकार. राज्य स्तर पर भागीदारी झारखंड आदिवासी महिला सम्मेलन की संस्थापक और 1986 से 1989 तक अन्य संस्थाओं एवं संगठनों के सहयोग से उसका संयोजन-संचालन झारखंड गैर-सरकारी महिला आयोग की अध्यक्ष (2000 से 2006 तकद्ध राष्ट्रीय स्तर पर भागीदारी राष्ट्रीय नारी मुक्ति संघर्ष सम्मेलन, पटना, रांची और कोलकाता में रांची सम्मेलन का संयोजन मानवाधिकार पर मुम्बई, बंगलोर, दिल्ली, कोलकाता और छत्तीसगढ़ में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भागीदारी एशिया पैसिफिक वीमेन लॉ एंड डेवलेपमेंट कार्यशाला, चेन्नई 1993 में बर्लिन में आयोजित आदिवासी दशक वर्ष के उद्घाटन समारोह 1994 में वर्ल्ड सोशल फोरम में इंडियन सोशल फोरम में भाषायी-साहित्यिक योगदान पाठ्यक्रम निर्माण, जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, रांची विश्वविद्यालय खड़िया प्राइमर निर्माण, एन. सी. ई. आर. टी., नई दिल्ली खड़िया भाषा ध्वनिविज्ञान, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें खड़िया लोक कथाओं का साहित्यिक और सांस्कृतिक अध्ययन (शोध ग्रंथ), प्रेमचंदाअ लुङकोय (प्रेमचंद की कहानियों का खड़िया अनुवाद), सिंकोय सुलोओ, लोदरो सोमधि (खड़िया कहानी संग्रह), हेपड़ अवकडिञ बेर (खड़िया कविता एवं लोक कथा संग्रह), खड़िया निबंध संग्रह, खड़िया गद्य-पद्य संग्रह, प्यारा मास्टर (जीवनी) पगहा जोरी-जोरी रे घाटो (हिंदी कहानी संग्रह), जुझइर डांड़ (खड़िया नाटक संग्रह), सेंभो रो डकई (खड़िया लोकगाथा) खड़िया विश्वास के मंत्र (संपादित), अबसिब मुरडअ (खड़िया कविताएं) स्त्री महागाथा की महज एक पंक्ति (निबंध) बिरुवार गमछा तथा अन्य कहानियां (हिंदी कहानी संग्रह) विगत कई वर्षों से झारखंडी महिलाओं की त्रैमासिक पत्रिका ‘आधी दुनिया’ का संपादन। इसके अतिरिक्त विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, दूरदर्शन तथा आकाशवाणी से सभी सृजनात्मक विधाओं में हिन्दी एवं खड़िया भाषाओं में सैंकड़ों रचनाएँ प्रकाशित एवं प्रसारित। आपकी रचनाओं का अन्य भारतीय भाषाओं में भी अनुवाद हो चुका है। सम्मान 2008 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रथम रानी दुर्गावती राष्ट्रीय सम्मान और समय-समय पर अनेक क्षेत्रीय व राज्य स्तरीय पुरस्कारों-सम्मानों से सम्मानित। संप्रति जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, राँची विश्वविद्यालय, राँची से सेवानिवृत्ति के पश्चात् स्वतंत्र लेखन एवं विभिन्न नागरिक संगठनों में सक्रिय भागीदारी। और जानकारी She's A Professor And, For Her Tribe, The Keeper Of A Way Of Life This Rose chose to pluck the thorns from Jharkhand's oppressed women Rose Kerketta at Women's Tribunal Against Poverty New Delhi सन्दर्भ Zealous Reformers, Deadly Laws The Master Speaks Reinventing Revolution: New Social Movements and the Socialist Tradition in India (Google eBook) डॉ रोज केरकेट्टा को मिला रानी दुर्गावती सम्मान डॉ रोज केरकेट्टा के कहानी संग्रह पगहा जोरी-जोरी रे घाटो .का विमोचन आदिवासी लेखिका रोज केरकेट्टा को अयोध्या प्रसाद खत्री सम्मान रोज केरकेट्टा को प्रभावती सम्मान बाहरी कड़ियाँ खड़िया आदिवासी समुदाय का जाल स्थल प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन का फेसबुक पेज प्यारा करेकेट्टा द्वारा समर्थित सांस्कृतिक संगठन ‘झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा' का जाल स्थल डॉ॰ रोज केरकेट्टा का फेसबुक पेज आदिवासी आदिवासी (भारतीय) झारखंड आदिवासी साहित्य आदिवासी साहित्यकार भारतीय महिला साहित्यकार भारतीय आदिवासी महिला साहित्यकार
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8D%E0%A4%A1%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A8%20%E0%A4%B9%E0%A4%AC%E0%A4%B2
ऍडविन हबल
ऍडविन पावल हबल (अंग्रेज़ी: Edwin Powell Hubble, जन्म: २० नवम्बर १८८९, देहांत: २८ सितम्बर १९५३) एक अमेरिकी खगोलशास्त्री थे जिन्होनें हमारी गैलेक्सी (आकाशगंगा या मिल्की वे) के अलावा अन्य गैलेक्सियाँ खोज कर हमेशा के लिए मानवजाती की ब्रह्माण्ड के बारे में अवधारणा बदल डाली। उन्होंने यह भी खोज निकाला के कोई गैलेक्सी पृथ्वी से जितनी दूर होती है उस से आने वाले प्रकाश का डॉप्लर प्रभाव उतना ही अधिक होता है, यानि उसमे लालिमा अधिक प्रतीत होती है। इस सच्चाई का नाम "हबल सिद्धांत" रखा गया और इसका सीधा अर्थ यह निकला के हमारा ब्रह्माण्ड निरंतर बढ़ती हुई गति से फैल रहा है। इन्हें भी देखें जॉर्ज लेमैत्रे बिग बैंग सिद्धांत खगोलशास्त्र सन्दर्भ बहरी कड़ियाँ टाइम मैगज़ीन में हबल की जीवनी पर लेख अमेरिकी वैज्ञानिक खगोलशास्त्र खगोलशास्त्री हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF
अभि
अभि संस्कृत में एक उपदेश है, जिसे पाली, बंगाली, असमिया और हिंदी में भी पाया जाता है। आज कल, यह नाम बनाने में एक उत्पादक तत्त्व बना हुआ है। मूल "अभि" शब्द का पहला संदर्भ प्राचीन हिंदू पवित्र ग्रंथ ऋग्वेद पुस्तक 1, भजन 164 में मिलता है। शब्द अक्सर वेदों, उपनिषद और भगवद गीता में प्रकट होता है। अर्थ "अभि" एक क्रिया विशेषण या पूर्वसर्ग (देखें है उपसर्ग) ने अपने संदर्भ के आधार पर विभिन्न अर्थ के साथ। मैकडोनेल के संस्कृत शब्दकोष के अनुसार: क्रिया विशेषण के रूप में, इसका अर्थ है "प्रति, निकट" एक पूर्वसर्ग प्लस के रूप में कर्म कारक, इसका मतलब है "की ओर; करने के लिए, के खिलाफ, से अधिक; के लिए, के लिए, के संबंध में" यह माना जाता है कि संस्कृत में अपने दम पर "अभि" शब्द (उदाहरण के लिए, प्राचीन कविता में) का अर्थ सूर्य की पहली किरण है। प्रयोग "अभि" लड़कों और पुरुषों के लिए एक सामान्य भारतीय नाम भी है। हालांकि लड़कियों में एक नाम कम आम है, इसे अक्सर उपनाम के रूप में प्रयोग किया जाता है, "अभिलाषा" के लिए। इस तथ्य से भ्रम होता है कि नाम का हिंदी में वर्तमान अर्थ भी है ("अब")। 'अभि' शब्द कई भारतीय पुरुष और महिला नामों और शब्दों में उपसर्ग के रूप में प्रयोग किया जाता है। अभिनय, अभिज्ञान, अभिराम, अभीनेश: नाम का उदाहरण अभिजित, अभिलाष, अभिमन्यु, अभिषेक, अभिनव : शब्दों का उदाहरण अभिधम्म, अभिषेक, अभियान प्रसिद्ध ऐतिहासिक शख्सियतें अभिमन्यु प्रसिद्ध आधुनिक दिन के आंकड़े अभिषेक बच्चन अभिनव बिंद्रा अभिजीत भट्टाचार्य प्रसिद्ध फिल्में अभिमान अभिनेत्री संदर्भ बाहरी कड़ियाँ शिकारीपुरा हरिहरेश्वर द्वारा संदर्भ के साथ "अभि" शब्द की उत्पत्ति और अर्थ पर व्यापक टिप्पणी हिंदी शब्द बंगाली शब्द संस्कृत शब्द
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A5%80%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%B0
भीण्डर
भीण्डर (Bhinder) भारत के राजस्थान राज्य के उदयपुर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह उदयपुर से 60 किलोमीटर दूर स्थित है। महाराज रणधीर सिंह भीण्डर राजस्थान के प्रसिद्ध सामाजिक-राजनीतिक नेतृत्वकारी व्यक्तित्व और जनता सेना के संस्थापक महाराज रणधीर सिंह भींडर ने भींडर के राजमहल में जन्म लिया। रणधीर सिंह भींडर भारत के गौरव महाराणा प्रताप के भाई शक्ति सिंह के वंशज है। उन्होंने अपनी वंश परंपरा के अनुसार बचपन से ही विधार्थी जीवन से सामाजिक समर्पण और जन सरोकार रखा जिसके कारण के विद्यार्थियों के एक बहुत अच्छे नेता के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने अपने जीवन के शुरुआत के समय और युवा अवस्था से ही सामाजिक विकासकर्ता के रूप में सार्वजनिक जीवन शुरू किया। उनका जीवन जनहित के मुद्दों पर और जनता की समस्याओं के समाधान के साथ जुड़ा होने के कारण उनके समर्थकों के आग्रह पर वे समाज में सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन के लिए एक लोकप्रिय जननेता और सफल नेतृत्वकारी व्यक्तित्व के रूप में राजनीतिक व्यवस्था में शामिल हुए। उनके व्यक्तित्व और जन हितार्थ कार्यशैली के कारण उन्होंने राजस्थान, भारत में एक सफल लोकप्रिय राजनीतिक व्यक्तित्व की छवि प्राप्त की है। महाराज रणधीर सिंह भींडर का जन्म मेवाड़, राजस्थान के उदयपुर जिले में भींडर के राजमहल में महाराज साहेब भैरव सिंह जी और राणीसा आनंद कंवर जी से हुआ था। यह सर्व विदित है कि उनके पूर्वज महान नायक और देशभक्त महाराणा प्रताप सिंह की बहादुरी के कारण मुगल शासन में एकमात्र स्वतंत्र राज्य के लिए मेवाड़ अच्छी तरह से जाने जाता रहा है। महाराज रणधीर सिंह भींडर के पूर्वजों ने मेवाड़ की रक्षा और विकास के लिए महाराणा प्रताप के सिद्धांतों का पालन व निर्वाह करते हुए बहुत अच्छी भूमिका निभाई। मेवाड़ वह रियासत रहा जहां राजपूत और भील योद्धा आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़े थे और उन्होंने राष्ट्र की विरासत और गौरव को कायम रखा था। मेवाड़ में महाराणा प्रताप के समय से ही भील और अन्य सामान्यजन की बराबर स्थिति रही है। जीवन के प्रारंभिक चरण में एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में महाराज रणधीर सिंह भींडर ने अपने पूर्वजों की जीवन शैली पर आधारित जन कल्याण और जनहित के लिए समर्पित भूमिका निभाई। रणधीर सिंह को आनुवांशिकता के तौर पर "त्याग, तपस्या और बलिदान" के समृद्ध सांस्कृतिक-नैतिक मूल्य और संस्कार विरासत में मिले है। उन्होंने उदयपुर के सेंट पॉल सीनियर सेकेंडरी स्कूल में अध्ययन किया। इसके पश्चात उन्होंने कृषि विज्ञान (बीएससी) में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और कृषि विस्तार (एमएससी) में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वे सामाजिक सेवा कार्य के दौरान भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेतृत्व के आग्रह पर तत्कालीन दिवंगत भूतपूर्व मुख्यमंत्री भैरों सिंह जी शेखावत के समय राजनीति में शामिल हुए। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वे राजनीति में शामिल हुए। इस दौरान किसानों के हित और कल्याण के लिए कार्य करते हुए वे एक किसान नेता बन गए। एक लोकप्रिय परिवर्तनकारी जननेता के साथ ही वे आज भी एक अच्छी तरह से पहचाने जाने वाले किसान नेता हैं। समाज और क्षेत्र में सामाजिक परिवर्तन के कार्य के साथ वे क्षत्रीय महासाभा में शामिल हुए और वे अभी भी सामाजिक सुधारऔर कल्याणकारी संगठन के अध्यक्ष रहे हैं ।किसानों और स्थानीय लोगों के लिए सकारात्मक स्थायी परिवर्तन और सामाजिक विकास कार्य करने के लिए वह सामाजिक कार्यों के साथ राजनीतिक क्षेत्र में शामिल हुए। भींडर क्षेत्र में किसानों और जनता ने उनके साथ जुड़कर सामाजिक-राजनीतिक कार्यक्रमों को गहराई से समर्थन दिया। राजनीतिक जीवन में उनकी एक सकारात्मक परिवर्तनकारी नेतृत्व वाले व्यक्तित्व की भूमिका और सक्रिय सामाजिक भागीदारी के कारण वह भींडर और मेवाड़ ही नहीं राजस्थान के एक बड़े जननेता के तौर पर अच्छी तरह से पहचाने जाते हैं। उनके सामाजिक जीवन में सही दिशा में आगे बढ़ने से और महाराणा प्रताप के एक वंशज के तौर पर जनविकास में निरंतर जुड़े रहते हुए वे क्षेत्र के विकास की जरुरत के रूप में एक आवश्यक नेतृत्वकारी और परिवर्तनकारी के तौर पर माने जाने लगे। सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों और सक्रिय सामाजिक भूमिका को देखते हुए जनता ने उन्हें उम्मीदवार के रूप में चुना जिस पर उन्होंने 1993 और 1998 में विधायक के लिए मैदान में उतरकर चुनाव लड़ा। उन्होंने चुनाव में क्षेत्र के विकास के मुद्दे उठाए और बाद में जनता के साथ संघर्ष करके कई ऐसे मुद्दों को लागू करवाया जो उनके जनसंघर्ष के परिणामस्वरुप क्षेत्र के विकास के लिए संभव हो पाए। उनकी लोकप्रियता और विकास में सक्रीय भूमिका के कारण क्षेत्र की जनता के आग्रह पर वे फिर से मैदान में उतरे और उन्होंने वर्ष 2003 में चुनाव जीता। उन्होंने यह चुनाव राजस्थान के पूर्व गृह मंत्री के खिलाफ लड़कर जीता और विधायक चुने गए। उन्होंने उस चुनाव में भारी मात्र में व्यापक जन समर्थन के कारण काफी वोट हासिल किए, इससे उनको अच्छा अनुभव भी मिला। एक विधायक के रूप में उन्होंने बहुत सारी उपलब्धियां हासिल की और उन्होंने जनता व क्षेत्र के विकास के लिए कई अतिरिक्त लक्ष्य अर्जित किए। उन्होंने भींडर क्षेत्र को बहुत अधिक विकसित किया और रिकॉर्ड योग्य लक्ष्य हासिल किए, जिन्हें कोई अन्य राजनीतिक नेता इस तरह सार्थक अंजाम नहीं दे सकता है। उन्होंने इसके पश्चात् भी एक चुनाव लड़ा लेकिन कुछ राजनीतिक कारणों से आवश्यक लक्ष्य हासिल नहीं हुआ लेकिन उन्होंने इस चुनाव में भी फिर से बहुत अधिक वोट प्राप्त किए। उन्होंने जनता के साथ मिलकर और अपने सामाजिक विकास के लिए काम करना जारी रखा। जिन कुछ राजनितिक कारणों से वोटों का पिछले चुनाव में थोड़ा अंतर रहा, उनके समर्थकों और क्षेत्र की जनता ने उनसे राजनीतिक कारणों से अलग रहकर क्षेत्र को सर्वांगीण विकास की धारा से वापस जोड़ने के लिए निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने का आग्रह किया। समर्थकों और जनता के व्यापक समर्थन पर उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और भारी मतों से भींडर विधान सभा से विजयी होकर 2013 में फिर विधायक चुने गए। 2013 से विधायक रहते हुए उन्होंने कई जबरदस्त विकास के कार्य करवाए। इनमें दो सबसे उल्लेखनीय कार्य कानोड़, भींडर और कुराबड को तहसील बनाने के हुए है जिसकी जनता की वर्षों से मांग व जरुरत थी। उन्होंने अमरपुरा में खेल गाँव व लूणदा में आदिवासी बालिका छात्रावास खुलवाए। समय की जरुरत को देखते हुए उनसे भावनात्मक, राजनितिक और सामाजिक रूप से जुड़े लाखों अनुयाइयों और मेवाड़-राजस्थान की जनता के आग्रह पर जनता सेना का गठन किया गया जो काफी समय से परिवर्तनकारी जन सेना के रूप में निरंतर विकास और जन संघर्ष के मार्ग में अग्रणी है और क्षेत्र-प्रदेश-देश में प्रगति का मार्ग प्रशस्त करने के लिए आगे बढ़ रही है। सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में उनकी सक्रिय भूमिका के कारण उनकी भींडर क्षेत्र, मेवाड़ में, राज्य स्तर पर राजस्थान में और राष्ट्रीय स्तर पर देश में एक बहुत अच्छे जननेता के रूप में पहचान बनी है। वह लगातार लोगों और विकास के अधिकारों के लिए संघर्ष का नेतृत्व करते रहे हैं और एक अच्छे बड़े सामाजिक व राजनीतिक नेता के रूप में काम कर रहे है। राजनीति में एक व्यापक परिवर्तन को देखते हुए आपके नेतृत्व में जनता सेना का गठन किया गया है जो आपके दृष्टिकोण के अनुसार समाज और राष्ट्र में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए समर्पित हैं। उनका और जनता सेना की सक्रीय टीम का उद्देश्य समाज और कार्यक्षेत्र को जरुरत के अनुसार बदलते हुए विकास की सही दिशा में आगे ले जाना है। भींडर क्षेत्र की जनता ने वर्तमान और पिछले कार्यकाल के दौरान हुए व्यापक परिवर्तन और विकास को और आगे बढ़ाने के लिए महाराज रणधीर सिंह भींडर जनता सेना के साथ हमेशा जन सेवा के लिए कार्यरत रहते है। इन्हें भी देखें उदयपुर ज़िला बाहरी जोड़ महाराज रणधीर सिंह भीण्डर सन्दर्भ राजस्थान के शहर उदयपुर ज़िला उदयपुर ज़िले के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%A8%20%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%8C%E0%A4%B0
अंदरून लाहौर
अंदरून लाहौर , पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर शहर का एक इलाक़ा और एक यूनियन परिषद् है। यह लाहौर का एक प्रमुख इलाक़ा है। शहर के अन्य इलाक़ों के सामान ही यहाँ बोले जाने वाली प्रमुख भाषा पंजाबी है, जबकि उर्दू प्रायः हर जगह समझी जाती है। साथ ही अंग्रेज़ी भी कई लोगों द्वारा समझी और शिक्षा तथा व्यवसाय के क्षेत्र में उपयोग की जाती है। प्रभुख प्रशासनिक भाषाएँ उर्दू और अंग्रेज़ी है। लाहौर की वाणिज्यिक, आर्थिक महत्त्व के कारण यहाँ पाकिस्तान के लगभग सारे प्रांतों के लोग वास करते हैं। सन्दर्भ इन्हें भी देखें पाकिस्तान के यूनियन काउंसिल पाकिस्तान में स्थानीय प्रशासन पंजाब (पाकिस्तान) लाहौर ज़िला बाहरी कड़ियाँ लाहौर के यूनियनों की सूची पाकिस्तान ब्यूरो ऑफ़ स्टॅटिस्टिक्स की आधिकारिक वेबसाइट-१९९८ की जनगणना(जिलानुसार आँकड़े) लाहौर लाहौर के यूनियन परिषद् पाकिस्तानी पंजाब के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%88%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%AE
थाईलैंड क्रिकेट टीम
थाईलैंड राष्ट्रीय क्रिकेट टीम वह टीम है जो अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में थाईलैंड के साम्राज्य का प्रतिनिधित्व करती है। टीम का आयोजन क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ थाईलैंड द्वारा किया जाता है, जो 2005 से अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) का सहयोगी सदस्य रहा है, 1995 और 2005 के बीच एक संबद्ध सदस्य रहा है। थाईलैंड के लगभग सभी मैच अन्य एशियाई टीमों के खिलाफ आए हैं, जिसमें कई एशियाई क्रिकेट परिषद टूर्नामेंट भी शामिल हैं। अप्रैल 2018 में, आईसीसी ने अपने सभी सदस्यों को पूर्ण ट्वेंटी 20 अंतर्राष्ट्रीय (टी20ई) का दर्जा दिया। 1 जनवरी 2019 से थाईलैंड और अन्य आईसीसी सदस्यों के बीच खेले गए सभी ट्वेंटी-20 मैच एक पूर्ण टी20ई हैं। थाईलैंड ने अपना पहला टी20ई 24 जून को मलेशिया के खिलाफ 2019 मलेशिया ट्राई-नेशन सीरीज़ के दौरान खेला। सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%BF
काणि
काणि आदिवासी भारत के पश्चिमी घाट के दक्षिणी भाग में रहते हैं। मुख्यतः ये केरल के तिरुवनंतपुरम में इलामला में कोट्टायार झील और कोल्लम जिले में रहते हैं। 1980 के दशक में वैज्ञानिकों ने इन्हें आरोग्यपाच नामक पौधे से जीवनी नाम की एक जड़ी बूटी बनाते देखा था। तबसे इन्हें यह जड़ी बूटी बनाने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन मुहैया कराया जाता रहा है। संदर्भ यह भी देखें मती मोती भारत की जनजातियाँ भारत के सामाजिक समुदाय
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आनन्द मार्ग
आनन्द मार्ग ("आनंद का मार्ग", आनंद मार्ग और आनन्द मार्ग भी लिखा गया है) एक सामाजिक एवं आध्यात्मिक पन्थ है। इसका आरम्भ सन् १९५५ में बिहार के जमालपुर में श्री प्रभात रंजन सरकार (१९२१ - १९९०) द्वारा की गयी थी या यह आधिकारिक तौर पर आनन्द मार्ग प्रचारक संघ (आनंद के मार्ग के प्रचार के लिए संगठन) एक है 1955 में प्रभात रंजन सरकार द्वारा भारत के जमालपुर, बिहार, भारत में स्थापित सामाजिक-आध्यात्मिक संगठन और आंदोलन, यह प्रभात रंजन सरकार द्वारा प्रस्तावित दर्शन और जीवन शैली का भी नाम है, जिसे व्यक्तिगत विकास, सामाजिक सेवा और समाज के आसपास के परिवर्तन के लिए एक व्यावहारिक दर्शन के रूप में वर्णित किया गया है। बाहरी कड़ियाँ Ananda Marga Pracaraka Samgha official website AMGK website सम्प्रदाय
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B2%20%28%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%29
कोल (विधानसभा क्षेत्र)
कोइल विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र उत्तर प्रदेश विधान सभा, भारत के 403 निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। यह अलीगढ़ जिले का एक हिस्सा है और अलीगढ़ (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र] में पाँच विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। 1951 में इस विधानसभा क्षेत्र में पहला चुनाव "DPACO (1951)" (परिसीमन आदेश) पारित होने के बाद हुआ था।2008 में "संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन" पारित होने के बाद, निर्वाचन क्षेत्र को पहचान संख्या 75 सौंपा गया था वार्ड/क्षेत्र कोइल विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के विस्तार केसी कोइल, मॉर्थल KC और वार्ड न। के PC भमोला माफी, 7, 22, 28, 30 से 34, 36, 40 से 44, 47, 48, 49, 51, 52, 53 और 57 हैं। (एम। कॉर्प) कोइल तहसील का। विधान सभा सदस्य सन्दर्भ
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आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक
आर्थिक मुक्ति सूचकांक (Index of Economic Freedom) एक मानक माप है जो विश्व के देशों की अर्थव्यवस्थाओं की आर्थिक स्वतंत्रता के स्तर को मापता है। यह प्रत्येक देश की नीति-नियमों के कई आर्थिक आयामों का अध्ययन करता है और फिर उन आयामों के लिए और पूरे देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक सूचकांक देता है। जो देश आर्थिक रूप से अमुक्त या दमित हैं उनमें सरकार अपने नागरिकों और व्यापारिक ईकाईयों को स्वतंत्रता से अपना आर्थिक जीवन में निर्णय लेने का अधिकार नहीं देती, और नागरिक अपनी आर्थिक स्थिति को स्वयं सुधारने से भिन्न प्रकार से प्रतिबंधित होते हैं। ऐसे अधिकांश देशों में या तो निर्धनता व्याप्त होने लगती है, या फिर उनमें कोई तेल जैसा खनिज होता है जिसके निर्यात से अर्थव्यवस्था में पैसा आता रहता है। जिन देशों में आर्थिक मुक्ति की स्थिति है, उनमें नागरिक और व्यापारिक ईकाईयाँ स्वतंत्रता से आर्थिक निर्णय ले सकते हैं और समय के साथ इनमें सम्पन्नता की स्थिति व्याप्त हो जाती है। जिन देशों की आर्थिक नीतियाँ उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक में सबसे ऊपर के 20% में डालती हैं, उनकी प्रति व्यक्ति आय अगले 20% से दो गुना और सबसे आर्थिक रूप से अमुक्त 20% से पाँच गुना है। संचालक आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक का संकलन और प्रकाशन संयुक्त राज्य अमेरिका का द हेरिटेज फाउंडेशन नामक विचारक समूह करता है। 2020 सूचकांक 2020 में सिंगापुर का आर्थिक स्वतंत्रता माप 89.4 था, और इस आधार पर वह विश्व की सबसे मुक्त अर्थव्यवस्था का स्वामी था। अपनी आर्थिक नितियों से सिंगापुर लम्बे काल से इस सूचकांक में ऊँचे अंक पर रहा है, जिस से वहाँ तेज़ी से विकास और आय में बढ़ौतरी हुई है। आर्थिक स्वतंत्रता की नीतियों के कारणवश, सिंगापुर की वार्षिक प्रति व्यक्ति आय 2020 तक 58,484 अमेरिकी डॉलर हो चुकी है, जो उसके भूतपूर्व उपनिवेशी शासक, यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन), से कहीं अधिक है - ब्रिटेन की वार्षिक प्रति व्यक्ति आय 39,229 है। भारत का माप 56.5 था और वहाँ एक अधिकतर अमुक्त अर्थव्यवस्था थी। भारत की वार्षिक प्रति व्यक्ति आय $1,877 तक ही पहुँची है। टीका: ██ मुक्त (80–100) ██ अधिकतर मुक्त(70–79.9) ██ मध्यम मुक्त(65–69.9) ██ मध्यम अमुक्त(60–64.9) ██ अधिकतर अमुक्त (55–59.9) ██ अधिकतर अमुक्त(50–54.9) ██ दमित (0–49.9) इन्हें भी देखें मुक्त बाज़ार नियोजित अर्थव्यवस्था अभाव अर्थव्यवस्था अर्थिक संतुलन बाहरी कड़ियाँ आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक, सभी देशों की नवीनतम सूची, द हेरिटेज फाउंडेशन सन्दर्भ आर्थिक संकेतक अंतर्राष्ट्रीय कोटिक्रम तुलनात्मक आर्थिक प्रणालियाँ सामाजिक सांख्यिकी संकेतक अर्थनीति
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%8C%E0%A4%B0
लाहौर
लाहौर ( / ਲਹੌਰ, ) पाकिस्तान के प्रांत पंजाब की राजधानी है एवं कराची के बाद पाकिस्तान में दूसरा सबसे बडा आबादी वाला शहर है। इसे पाकिस्तान का दिल नाम से भी संबोधित किया जाता है क्योंकि इस शहर का पाकिस्तानी इतिहास, संस्कृति एवं शिक्षा में अत्यंत विशिष्ट योगदान रहा है। इसे अक्सर पाकिस्तान बागों के शहर के रूप में भी जाना जाता है। लाहौर शहर रावी एवं वाघा नदी के तट पर भारत पाकिस्तान सीमा पर स्थित है। लाहौर का ज्यादातर स्थापत्य मुगल कालीन एवं औपनिवेशिक ब्रिटिश काल का है जिसका अधिकांश आज भी सुरक्षित है। आज भी बादशाही मस्जिद, अली हुजविरी शालीमार बाग एवं नूरजहां तथा जहांगीर के मकबरे मुगलकालीन स्थापत्य की उपस्थिती एवं उसकी महत्ता का आभास करवाता है। महत्वपूर्ण ब्रिटिश कालीन भवनों में लाहौर उच्च न्यायलय जनरल पोस्ट ऑफिस, इत्यादि मुगल एवं ब्रिटिश स्थापत्य का मिश्रित नमूना बनकर लाहौर में उपस्थित है एवं ये सभी महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल के रूप में लोकप्रिय हैं। मुख्य तौर पर लाहौर में पंजाबी को मातृ भाषा के तौर पर इस्तेमाल की जाती है हलाकि उर्दू एवं अंग्रेजी भाषा भी यहां प्रचलन में है एवं नौजवानों में लोकप्रिय है। लाहौर की पंजाबी शैली को लाहौरी पंजाबी के नाम से भी जाना जाता है जिसमे पंजाबी एवं उर्दू का सुंदर मिश्रण होता है। १९९८ की जनगणना के अनुसार शहर की जनगणना लगभग ७ लाख आंकी गयी थी जिसके जून २००६ में १० लाख होने की गणना गयी थी। इस अनुमान के अनुसार लाहौर् दक्षिण एशिया में पांचवी सबसे बडी जनसंख्या वाला एवं दुनिया में २३वीं सबसे बडी आबादी वाला शहर है। इतिहास ऐसा माना जाता है कि लाहौर की स्थापना भगवान राम के पुत्र भगवान लव ने की थी। आज भी कुछ ऐसे अंश मिलते हैं जिन से भगवान राम के दिनो की याद ताज़ा हो जाती हे इन अंश में लव का मंदिर भी है। लव का उच्चारण लह भी किया जाता है, जिससे कि लाहौर शब्द की उत्पत्ति मानी जाती है। पाकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा शहर लाहौर यहां की सांस्कृतिक राजधानी के रूप विख्यात है। यह शहर पिछली कई शताब्दियों से बुद्धिजीवियों और सांस्कृतिक गतिविधियों का गढ़ रहा है। रावी नदी के किनारे स्थित यह शहर पंजाब प्रांत की वाणिज्यिक गतिविविधों का केन्द्र है। पर्यटकों के देखने के लिए यहां लोकप्रिय और चर्चित पर्यटन स्थलों की भरमार है। लाहौर फोर्ट, बादशाही मस्जिद, अकबरी गेट, कश्मीरी गेट, चिड़ियाघर, शालीमार गार्डन, वजीर खान मस्जिद आदि चर्चित स्थल हैं। ग़ैर मुस्लिमों के पवित्र स्थल मंदिर कन्हैयालाल लिखते हैं कि पुराने स्थापत्य और कला के मंदिर, हिंदूओं के प्रार्थना स्थल बहुत हैं जिन का उल्लेख नहीं हो सकता। छोटे छोटे शिवाले-ओ-ठाकुरद्वारे-ओ-देवी द्वारे अगणित हैं। इन में से-ओ-जदीद दोनों किस्म के हैं। मगर सखी अह्द में पुरानी इमारात के मंदिर भी अज सर-ए-नौ नबाए गए थे जिन की इमारात ताज़ा नज़र आती हैं। बाअज़ मंदिर जो उन से नामी गिरामी हैं और ख़ास-ओ-आम वहां जा कर पूजा करते हैं इस क़िस्म में लिखे जाते हैं। (1) मगर याद रहे कि ये कन्हैयालाल ने 1882ई. में अपने पुस्तक तारीख़ लाहौर में लिखा था। और आज बहुत से स्थापत्य का विनाश हो चुका हैं। शिवाला बावा ठाकुर गिर शिवाला राजा दीनानाथ राजा कलानौर शिवाला बख़्शी भगत राम मकान धर्म साला बाबा ख़ुदा सिंह ठाकुर द्वारा राजा तेजा सिंह शिवाले गुलाब राए जमादार वो मंदिर जिस में अब भी पूजा होती है कृष्ण मंदिर वाल्मीकि का मंदिर सिखों के प्रार्थना स्थल समाध महाराजा रणजीत सिंह गुरुद्वारा डेरा साख़ब गुरुद्वारा काना काछ गुरुद्वारा शहीद गंज जन्मस्थान गुरु राम दास लाहौर के मंदिर वाल्मीकि जी का मंदिर कृष्ण जी मंदिर रवि रोड लाहौर लाहोर के प्रख्यात स्थापत्य प्रमुख आकर्षण वजीर खान मस्जिद पुराने शहर की यह मस्जिद अपनी टाइल की कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है। बहुत बार इसे लाहौर के गाल के जासूस के नाम से भी संबोधित किया जाता है। यह मस्जिद 1634-35 ई. में मुगल सम्राट शाहजहां के काल में बननी शुरू हुई थी और इससे बनने में सात वर्ष का समय लगा था। मस्जिद को चिनिओट के शेख इलमुद्दीन अंसानी ने बनवाया था। बाद में उसे लाहौर का गवर्नर अर्थात वजीर बना दिया गया था। मस्जिद में फारसी भाषा में अनेक प्रकार के अभिलेख मुद्रित हैं। चिड़ियाघर 1872 में स्थापित लाहौर का यह चिड़ियाघर विश्व के सबसे प्राचीन चिड़ियाघरों में एक है। इस चिड़ियाघर को विकसित करने का श्रेय श्री लाल महुन्द्रा राम को जाता है। इस चिड़ियाघर में 136 प्रजातियों के 1381 जीवों, 49 सरीसृपों, 336 स्तनपायी 996 प्रकार की चिड़ियों को देखा जा सकता है। 1872 से 1923 तक यह चिड़ियाघर लाहौर नगर निगम के अधीन रहा था। चिड़ियाघर वनस्पति उद्यान में पेड़-पौधों की विविध किस्मों को भी देखा जा सकता है। बादशाही मस्जिद इस मस्जिद को 1673 ई. में मुगल सम्राट औरंगजेब ने बनवाया था। यह मस्जिद मुगल काल की सौंदर्य और भव्यता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। पाकिस्तान की इस दूसरी सबसे बड़ी मस्जिद में एक साथ 55000 हजार लोग नमाज अदा कर सकते हैं। बादशाही मस्जिद का डिजाइन दिल्ली की जामा मस्जिद से काफी मिलता-जुलता है । मस्जिद लाहौर किले के नजदीक स्थित है। हाल में मस्जिद परिसर में एक छोटा संग्रहालय भी जोड़ा गया है। किम्स गन किम्स गन या भंगियावाला तोप लाहौर संग्रहालय में रखी एक विशाल तोप है। यह गन 14 फीट या 4.38 मीटर लंबी है। गन का औसत व्यास 9.5 इंच है। यह गन लाहौर में 1757 ई. में शाहवाली खान के निर्देश पर शाह नजीर द्वारा लाई गई थी। यह ऐतिहासिक गन एशिया महाद्वीप की सबसे विशाल गनों में एक है। माना जाता है कि इस गन को तांबे और पीतल से बनाया गया है। 1761 में पानीपत के युद्ध में अहमदशाह अब्दाली ने इस गन का इस्तेमाल किया था। लाहौर किला लाहौर के उत्तर-पश्चिम किनारे में स्थित यह किला यहां का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। किले के भीतर शीश महल, आलमगीर गेट, नौलखा पेवेलियन और मोती मस्जिद देखी जा सकती है। यह किला 1400 फीट लंबा और 1115 फीट चौड़ा है। यूनेस्को ने 1981 में इसे विश्वदाय धरोहरों सूची में शामिल किया है। माना जाता है कि इस किले को 1560 ई. में अकबर ने बनवाया था। आलमगीर दरवाजे से किले में प्रवेश किया जाता है जिसे 1618 में जहांगीर ने बनवाया था। दीवाने आम और दीवाने खास किले के मुख्य आकर्षण हैं। लाहौर म्युजियम यह म्युजियम 1894 में स्थापित किया गया था। ओल्ड यूनिवर्सिटी हॉल के निकट स्थित इस म्युजियम को दक्षिण एशिया के सबसे विशाल म्युजियमों में एक माना जाता है। म्युजियम में मुगलों, सिक्खों और ब्रिटिश काल की अनेक बहुमूल्य और दुर्लभ कलाकृतियों को देखा जा सकता है। यहां वाद्ययंत्रों, प्राचीन आभूषणों, कपड़ों, मिट्टी के बर्तनों और हथियारों का विस्तृत संग्रह देखा जा सकता है। दौड़ते हुए बुद्ध की मूर्ति म्युजियम की एक अमूल्य एवं दुर्लभ निधि है। शालीमार गार्डन इस गार्डन को मुगल सम्राट शाहजहां ने 1641 ई. में बनवाया था। चारों ओर से ऊंची दीवारों से घिरा यह गार्डन अपने जटिल फ्रेमवर्क के लिए प्रसिद्ध है। 1981 में यूनेस्को ने इसे लाहौर किले के साथ विश्वदाय धरोहरों में शामिल किया था। फराह बख्स, फैज बख्स और हयात बख्स नामक चबूतरे गार्डन की सुंदरता में वृद्धि करते हैं। जहांगीर का मकबरा शाहदरा नगर के निकट स्थित जहांगीर मकबरा मुगल सम्राट जहांगीर को समर्पित है। इसे जहांगीर की मृत्‍यु के 10 साल बाद उनके पुत्र शाहजहां ने बनवाया था। एक बगीचे के अंदर स्थित मकबरे की मीनारें 30 मीटर ऊंची हैं। मकबरे के भीतरी हिस्से में भित्तिचित्रों की सुंदर सजावट है। हजूरी बाग लाहौर के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में यह खूबसूरत बाग शामिल है। इसके पूर्व में लाहौर किला, उत्तर में रणजीत सिंह की समाधि, पश्चिम में बादशाही मस्जिद और दक्षिण में रोशनई दरवाजा स्थित है। इस बाग का निमार्ण 1813 ई. में पंजाब के महान शासक महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाया था। इस बाग को कोहिनूर हीर को अफगान के शासक शाह शुजा से पुन: भारत लाए जाने के उपलक्ष्य में बनवाया गया था। आवागमन वायु मार्ग लाहौर का अल्लामा इकबाल अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र दिल्ली के इंदिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र से वायुमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। दिल्ली और लाहौर के बीच नियमित फ्लाइटें हैं। सड़क मार्ग दिल्ली और लाहौर के बीच चलने वाली बस के माध्यम से सड़क मार्ग द्वारा लाहौर पहुंचा जा सकता है। खेल लाहौर के मस़हूर खेलों मैं क्रिकेट, हाकी, और फ़ुटबाल स़ामिल हैं। लाहौर स्थित गद्दाफी स्टेडियम पाकिस्तान का एक प्रमुख क्रिकेट का मैदान है। चित्र दीर्घा भगिनी शहर लाहौर के सात भगिनी शहर है: बेलग्रेड, सर्बिया (2007). इस्तांबुल, तुर्की (1975). सारिवोन, उत्तरी कोरिया (1988). झि'आन, चीन (1992). कोर्ट्रिज्क, बेल्जियम (1993). फेज़, मोरोक्को (1994). कोर्डोबा, स्पेन (1994). समरकंद, उज़्बेकिस्तान (1995). इस्फहान, ईरान (2004). मसहद, ईरान (2006). ग्लासगो, स्कॉटलैंड, यूनाइटेड किंगडम (2006). हाउनस्लो, इंग्लैंड, यूनाइटेड किंगडम. शिकागो, इलीनॉइस, संयुक्त राज्य अमेरिका (2007). दुशान्बे, तजाकिस्तान. फ्रेस्नो, कैलिफोर्निया, संयुक्त राज्य अमेरिका. क्राकॉ, पोलैंड शैक्षिक संस्थान इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय، लाहौर पंजाब विश्वविद्यालय، लाहौर = साहित्य यहां बहुत जुल्म हुआ हिंदू सिख के ऊपर मुस्लिम बलात्कारियों द्वारा सन्दर्भ बाहरी कडियाँ लाहौर शहर की सरकार का जालस्थल (अंग्रेज़ी में) Lahore Photos and History Azad Kashmir Tourism Lahore City Portal Lahore City Government Lahore Classifieds 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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%93%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A5%8B
मारिया ओनेटो
मारिया ओनेटो (18 अगस्त 1966 – 2 मार्च 2023) एक अर्जेंटीना थिएटर, फिल्म और टेलीविजन अभिनेत्री थीं । वह एक प्राप्त 2011 कोनेक्स पुरस्कार अपने नाटकीय काम के लिए मनोरंजन में, और 2006 की अर्जेंटीना टीवी श्रृंखला में अपनी भूमिका के लिए भी जानी जाती है <i id="mwDw">मोंटेक्रिस्टो</i>, जिसके लिए उसने जीत हासिल की क्लेरिन और मार्टिन फिएरो अवार्ड्स नाटक और उभरते सितारे में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के रूप में । उन्होंने स्थानीय उत्पादन का भी निर्देश दिया रॉक संगीत <i id="mwFg">अजीब गुजर रहा है</i> 2011 में । ओनेटो का जन्म 18 अगस्त 1966 को ब्यूनस आयर्स में हुआ था। वह एस्टेला मैरी पास्टर और जॉर्ज ओनेटो की बेटी थीं, जो सेगबा ( के एक कर्मचारी थे। ) और रेस्टोरराइटर जिनकी 1967 में अचानक मायोकार्डियल इंफार्क्शन से मृत्यु हो गई थी जब मारिया एक वर्ष की थी। परिवार मार्टिनेज, ब्यूनस आयर्स के उपनगर में रहता था। उसे एक नन स्कूल में नामांकित किया गया था, और 17 साल की उम्र में उसने ब्यूनस आयर्स विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान का अध्ययन करना शुरू किया, जहाँ उसने थिएटर में अभिनय किया। उसने चार साल में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और कुछ समय के लिए उसी स्कूल में अपनी माँ के रूप में काम किया, जो मनो-शैक्षणिक रिपोर्ट तैयार करती थी। 1991 में उसने स्पोर्टिवो टेट्राल, रिकार्डो बार्टिस की थिएटर वर्कशॉप में प्रवेश किया, जिसका उसने बहुत आनंद लिया। वहां कक्षाएं लेने के बाद, उन्होंने अन्य अभिनेताओं को पढ़ाया। उन्होंने 1996 में छोड़ दिया, साहित्य का अध्ययन करने की योजना बनाई, और बेनाविदेज़, अर्जेंटीना चली गईं, लेकिन उन्होंने पाया कि वह एक अभिनेत्री बनना चाहती थीं, जिसे उन्होंने राफेल स्प्रेगेलबर्ड के प्रोडक्शन ड्रैगिंग द क्रॉस, के साथ शुरू किया, जिसके बाद वह रुक गईं। अन्य काम केवल अभिनय पर ध्यान केंद्रित करने के लिए। ओनेटो ने ल्यूक्रेसिया मार्टेल की 2008 की फिल्म <i id="mwKg">द हेडलेस वुमन</i> में वेरोनिका की भूमिका निभाई, जो एक मध्यम आयु वर्ग की महिला है, जो अपराधबोध से ग्रस्त हो जाती है और एक अज्ञात वस्तु के साथ हिट एंड रन के बाद अपने सामान्य जीवन से अलग हो जाती है। ओनेटो ने एडुआर्डो "टेटो" पावलोवस्की के 1987 के नाटक पोटेस्टैड (लिट। पावर ) नॉर्मन ब्रिस्की द्वारा निर्देशित, जो नोह थिएटर से प्रेरणा लेता है और जिसमें ओनेटो एक लड़की के अपहरणकर्ता की भूमिका निभाता है। मारिया ओनेटो 2 मार्च 2023 को 56 साल की उम्र में ब्यूनस आयर्स में अपने अपार्टमेंट में मृत पाई गई थीं २०२३ में निधन 1966 में जन्मे लोग स्पेनिश भाषा पाठ वाले लेख
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%85%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B9%20%E0%A4%95%E0%A4%AA
सुल्तान अजलान शाह कप
सुल्तान अजलान शाह कप मलेशिया में आयोजित एक वार्षिक अंतरराष्ट्रीय पुरुष मैदानी हॉकी प्रतियोगिता है। सुल्तान अजलान शाह हॉकी कप का आयोजन हर साल मलेशिया में किया जाता है ऑस्ट्रेलिया ने अब तक सबसे ज्यादा बार (10 बार) यह प्रतियोगिता जीती है। 2019 में दक्षिण कोरिया भारत को हराकर अजलान शाह कप 2019 का विजेता बना। इतिहास अजलान शाह कप की शुरुआत 1983 में द्विवार्षिक प्रतियोगिता के रूप में हुई थी, तब इसका नाम राजा तुन अज़लान शाह कप था। 1985 में प्रतियोगिता का नाम मलेशिया के नौंवे शासक और फील्ड हॉकी के शौकीन सुल्तान अज़लान शाह के नाम पर रख दिया गया। प्रतियोगिता की पहली विजेता ऑस्ट्रेलिया थी। यह प्रतियोगिता 1998 के बाद अपनी लोकप्रियता के कारण प्रति वर्ष आयोजित किया जाने लगा। सन्दर्भ हॉकी
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पूर्णिमा राव
पूर्णिमा राव (); (जन्म ३० जनवरी १९६८ ,सिकंदराबाद ,आंध्रप्रदेश ) एक पूर्व भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ी है। इन्होंने भारतीय महिला क्रिकेट टीम की ओर से १९९३ से १९९५ तक कुल ५ टेस्ट मैच खेले थे जबकि १९९३ से २००० तक ३३ वनडे मैच खेले थे। पूर्णिमा राव घरेलू क्रिकेट प्रतियोगिताओं में एयर इंडिया क्रिकेट टीम की कप्तान भी रह चुकी है।और साथ भारतीय टीम की भी कप्तानी कर चुकी है इन्होंने ३ टेस्ट मैच और ८ वनडे मैचों में कप्तानी की थी। सन्दर्भ 1967 में जन्मे लोग जीवित लोग हैदराबाद के लोग भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ी भारतीय महिला टेस्ट क्रिकेट खिलाड़ी भारतीय महिला एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी भारतीय क्रिकेट कोच भारतीय महिला क्रिकेट कप्तान २००० महिला क्रिकेट विश्व कप में खेलने वाली भारतीय खिलाड़ी १९९३ महिला क्रिकेट विश्व कप में खेलने वाली भारतीय खिलाड़ी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A5%8D
मनस्
मनस् (हिन्दी : मन) का सामान्य अर्थ " प्राणियों में वह शक्ति या कारण जिससे उनमें वेदना, संकल्प, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, बोध और विचार आदि होते हैं" , है । यह वह शक्ति है जिससे धारणा, भावना आदि की जाती हैं। आरम्भिक बौद्ध धर्म के सन्दर्भ में मनस् के लिए मिलते-जुलते दो और शब्द प्रयुक्त हुए हैं- चित्त और विन्नाण । ये तीनों शब्द प्रायः 'मन' के सामान्य अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं। बौद्ध इसे छठी इंद्रिय मानते हैं। क्षणिकवादी बौद्ध चित्त ही को आत्मा मानते हैं। वे कहते हैं कि जिस प्रकार अग्नि अपने को प्रकाशित करके दूसरी वस्तु को भी प्रकाशित करती है, उसी प्रकार चित्त भी करता है। बौद्ध लोग चित्त के चार भेद करते हैं—कामावचर, रूपावचर, अरूपावचर औऱ लोकोत्तर । वैशेषिक दर्शन में मन एक अप्रत्यक्ष द्रव्य माना गया है । संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, और संस्कार इसके गुण बतलाए गए हैं और इसे अणुरूप माना गया है। इसका धर्म संकल्प विकल्प करना बतलाया गया है तथा इसे उभयात्मक लिखा है; अर्थात् उसमें ज्ञानेंद्रिय और कर्मेंद्रिय दोनों के धर्म हैं । (एकादशं मनो ज्ञेयं स्वगुणेनोभयात्मकम् - मनुसंहिता) । योगशास्त्र में इसे 'चित्त' कहा है । वेदान्तसार के अनुसार अंतःकरण की चार वृत्तियाँ है— मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार । संकल्प विकल्पात्मक वृत्ति को मन, निश्चयात्मक वृत्ति को बुद्धि और इन्हीं दोनों के अंतर्गत अनुसंधानात्मक वृत्ति को चित्त औऱ अभिमानात्मक वृत्ति को अंहकार कहते हैं। पंचदशी में इंद्रियो के नियन्ता मन ही को अंतःकरण माना है । आन्तरिक व्यापार में मन स्वतंत्र है, पर बाह्य व्यापार में इंद्रियाँ परतंत्र हैं। पंचभूतों की गुणसमष्टि से अंतःकरण उत्पन्न होता है जिसकी दो वृत्तियाँ हैं मन और बुद्धि। मन संशयात्मक और बुद्धि निश्चयात्मक है। वेदान्त में प्राण को मन का प्राण कहा है। मृत्यु होने पर मन इसी प्राण में लय हो जाता है। इसपर शंकराचार्य कहते हैं कि प्राण में मन की वृत्ति लय हो जाती है, उसका स्वरूप नहीं। चार्वाक के मत से मन ही आत्मा है। योग के आचार्य पतञ्जलि चित्त को स्वप्रकाश नहीं स्वीकार करते। वे चित्त को दृश्य और जड़ पदार्थ मानकर उसको एक अलग प्रकाशक मानते हैं जिसे आत्मा कहते हैं। उनके विचार में प्रकाश्य और प्रकाशक के संयोग से प्रकाश होता है, अतः कोई वस्तु अपने ही साथ संयोग नहीं कर सकती । योगसूत्र के अनुसार चित्तवृत्ति पाँच प्रकार की है—प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और स्मृति । ( प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्दप्रमाण; एक में दूसरे का भ्रम—विपर्यय;स्वरूपज्ञान के बिना कल्पना— विकल्प; सब विषयों के अभाव का बोध—निद्रा और कालांतर में पूर्व अनुभव का आरोप स्मृति कहलाता है ।) पंचदशी तथा अन्य दार्शनिक ग्रंथों में मन या चित्त का स्थान हृदय या हृत्पझगोलक लिखा है। पर आधुनिक पाश्चात्य विज्ञान अंत:करण के सारे व्यापारों का स्थान मस्तिष्क में मानता है जो सब ज्ञानतंतुओं का केंद्रस्थान है। खोपड़ी के अन्दर जो टेढ़ी मेढ़ी गुरियों की सी बनावट होती है, वही अंतःकरण है। उसी के सूक्ष्म मज्जा-तंतु-जाल और कोशों की क्रिया द्वारा सारे मानसिक व्यापार होते हैं। भूतवादी वैज्ञानिकों के मत से चित्त, मन या आत्मा कोई पृथक् वस्तु नहीं है, केवल व्यापार-विशेष का नाम है, जो छोटे जीवों में बहुत ही अल्प परिमाण में होता है और बड़े जीवों में क्रमश: बढ़ता जाता है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें मन मस्तिष्क चित्त बौद्ध शब्दावली
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%98%E0%A4%A8
रा नवघन
रा नवघन , 1025–1044 CE में गुजरात के जूनागढ़ में वामनस्थली का चूड़ासमा अहीर शासक था। वह रा दिया का पुत्र था तथा सोलंकी राजा की कैद से बचा के एक दासी ने उसे देवायत बोदार अहीर को सौंप दिया था। अहीर चूड़ासमा राजाओं के समर्थक थे, इन्हीं अहीर समर्थकों से साथ मिलकर नवघन ने सोलंकी राजा को पराजित करके वामनस्थली का राज्य पुनः हासिल किया। जूनागढ़ में रा नवघन ने कई वर्षों तक शासन किया। उसके शासन काल में ही उसकी धर्म बहन जाहल अहीर का सिंध प्रांत के हमीर सुमरो ने अपहरण कर लिया था। रा नवघन ने हमीर सुमरो को मार कर अपनी बहन की रक्षा की थी। रा नवघन, रा खेंगर के पिता थे। दयाश्रय व कुमार प्रबंध आदि प्रसिद्ध महाकाव्यों में रा नवघन, रा खेंगर दोनों को ही 'अहीर राणा' या 'चरवाहा राजा' के नाम से संबोधित किया गया है। रा नवघन प्रथम जूनागढ़ शासक रा दियास का पुत्र था। रा दियास सोलंकी राजा के साथ युद्ध में पराजित हुआ व मारा गया। एक साल से भी कम आयु के पुत्र रा नवघन को अकेला छोड़ कर रा दियास की पत्नी सती हो गयी। सोलंकी राजा रा दियास के पुत्र को मारना चाहता था तथा उसकी सोलंकी राजा से रक्षा हेतु रा नवघन को देवायत बोदार नामक विश्वसनीय अहीर को सौप दिया गया।. देवायत बोदार ने नवघन को दत्तक पुत्र स्वीकार किया व अपने पुत्र की तरह पाला पोसा। परंतु किसी धोखेबाज़ ने इसकी खबर राजा सोलंकी को दे दी और इस खबर को गलत साबित करने हेतु देवत बोदार ने अपने स्वयं के पुत्र का बलिदान देकर नवघन को बचाया। कालांतर में देवायत बोदार ने सोलंकी राजा के विरुद्ध युद्ध लड़ने की ठान ली।. बोदार अहीरों व सोलंकी राजा के बीच घमासान युद्ध हुआ।. अंत में अहीर जीत गए और चूड़ासम वंश की पुनर्स्थापना हुयी व रा नवघन राजा बनाया गया।. इन्हें भी देखें वैष्णव गोप आभीर चंद्रवंश यदुवंशी नारायणी सेना शूर साम्राज्य अहीर सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%20%E0%A4%A6%E0%A4%B6%E0%A4%AE%E0%A5%80
आश्विन कृष्ण दशमी
आश्विन कृष्ण दशमी भारतीय पंचांग के अनुसार सातवें माह की पच्चीसवी तिथि है, वर्षान्त में अभी १५५ तिथियाँ अवशिष्ट हैं। पर्व एवं उत्सव प्रमुख घटनाएँ जन्म निधन इन्हें भी देखें हिन्दू काल गणना तिथियाँ हिन्दू पंचांग विक्रम संवत बाह्य कड़ीयाँ हिन्दू पंचांग १००० वर्षों के लिए (सन १५८३ से २५८२ तक) आनलाइन पंचाग विश्व के सभी नगरों के लिये मायपंचांग डोट कोम विष्णु पुराण भाग एक, अध्याय तॄतीय का काल-गणना अनुभाग सॄष्टिकर्ता ब्रह्मा का एक ब्रह्माण्डीय दिवस महायुग सन्दर्भ दशमी आश्विन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%AF%E0%A5%8B%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%95%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE
गैलिलैयो का विषमांक नियम
चिरसम्मत यांत्रिकी और शुद्ध गतिविज्ञान में, गैलिलैयो के विषमांक नियम के अनुसार "विरामावस्था से मुक्त पतनशील किसी वस्तु द्वारा समान समयान्तरालों में विस्थापित दूरियाँ एक दूसरे से उसी अनुपात में होती हैं जिस अनुपात में एक से प्रारम्भ होने वाले विषमांक [अर्थात् 1: 3: 5: 7:...:(2n-1)]”। उपपत्ति nतम सेकण्ड में विरामावस्था से मुक्त पतनशील किसी वस्तु द्वारा विस्थापित दूरी निम्न समीकरण द्वारा दी जाती है: यहाँ g गुरुत्वाकर्षण त्वरण है। प्रथम सेकण्ड में वस्तु द्वारा विस्थापित दूरी = द्वितीय सेकण्ड में वस्तु द्वारा विस्थापित दूरी = तृतीय सेकण्ड में वस्तु द्वारा विस्थापित दूरी = सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6%20%28%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A4%A8%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%29
न्यायवाद (चीनी दर्शनशास्त्र)
न्यायवाद (चीनी भाषा: 法家, फ़जिया; अंग्रेज़ी: Legalism, लीगलिज़म) प्राचीन चीनी इतिहास के झोऊ राजवंश के झगड़ते राज्यों के काल के सौ विचारधाराओं नामक दौर में प्रचलित एक विचारधारा थी। यह सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था पर केन्द्रित थी और जीवन के लक्ष्य और धार्मिक मामलों के साथ इसका ज़्यादा सरोकार नहीं था। शुरू में इस विचारधारा को उल्लेखित चिन राज्य के राजनेता शांग यांग (商鞅, Shang Yang, ३९०-३३८ ईसापूर्व) ने किया। इसे आगे सब से अधिक विकसित हान फ़ेईज़ी (मृत्यु २३३ ईपू) और ली सी (मृत्यु २०८ ईपू) ने किया। इनके अनुसार इंसान की मूल प्रकृति स्वार्थी है और इसे कभी बदला नहीं जा सकता। इसलिए समाज को सुव्यवस्थित रखने के लिए कड़े क़ानूनों की आवश्यकता है जिन्हें सख़्ती से लागू किया जाए। न्यायवादियों के लिए राष्ट्र और राज्य का हित नागरिकों के हित से बढ़कर है। इसलिए ज़रूरी है कि राज्य सम्पन्न और शक्तिशाली हो भले नागरिकों को कितना ही मुश्किल जीवन ही क्यों न जीना पड़े। राजाओं के लिए सलाह हान फ़ेईज़ी के अनुसार किसी भी शासक को तीन तत्वों का प्रयोग करना चाहिए: फ़ा (法, कानून या सिद्धांत): क़ानूनों को स्पष्ट रूप से लिखा जाना चाहिए और सभी नागरिकों पर बराबरी से लागू होना चाहिए। जो क़ानून का पालन करे उसे सुरक्षा और इज़्ज़त मिलनी चाहिए और जो उसे तोड़े उसे सज़ा मिलनी चाहिए। क़ानून में मनमानी की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। सब को क़ानून का ज्ञान होना चाहिए। राज्य क़ानून के अनुसार चलना चाहिए, न की राजा को अपनी मन-मर्ज़ी के क़ानून बनाने चाहिए। अगर इस सिद्धांत का पालन हो तो कमज़ोर राजा भी प्रभावशाली हो सकता है। शु (術, विधि और तरीक़ा): शासक को कुछ विशेष और गुप्त तरीक़ों से यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए की कोई अन्य सत्ता न छीन ले। इसलिए किसी को भी शासक के इरादों का ठीक पता नहीं होना चाहिए। नागरिकों को साधारण जीवन जीने के लिए केवल 'फ़ा' (क़ानून) के पालन की ज़रुरत है। उस से अधिक सत्ता में आने के लिए या राजनैतिक रूप से शक्तिशाली बनाने के लिए क्या करना चाहिए, इन बातों पर पर्दा डला रहना चाहिए। शी (勢, शक्ति और प्रतिभा): शासक को हमेशा याद रखना चाहिए की शक्ति सिंहासन से जुड़ी होती है न की किसी व्यक्ति-विशेष से। इसलिए शासक को सदैव हालात पर, घटना चक्रों पर और बनते हुए माहौल पर नज़र रखनी चाहिए। इन्हें भी देखें सौ विचारधाराएँ झगड़ते राज्यों का काल सन्दर्भ चीन का दर्शनशास्त्र चीन का इतिहास
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%AF%E0%A4%BE
हर्रैया
हर्रैया (Harraiya) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बस्ती ज़िले में स्थित एक नगर और नगरपंचायत है। भूगोल हर्रैया मनोरमा नदी के तट पर स्थित है। इस नदी की महिमा का वर्णन शास्त्रों में भी है: यथा - अन्य क्षेत्रे कृतं पापं काशी क्षेत्रे विनश्यति। काशी क्षेत्रे कृतं पापं प्रयाग क्षेत्रे विनश्यति। प्रयाग क्षेत्रे कृतं पापं मनोरमा विनश्यति। मनोरमा कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति। हर्रैया एक तहसील है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में, हर्रैया तहसील के अमोढ़ा राज्य के लगभग 250 शहीदों को ब्रिटिश सरकार ने छावनी स्थित पीपल के पेड़ों से लटका दिया था। हर्रैया नाम के बारे में एक महाकाव्य कहानी है कि भगवान राम सीता और लक्ष्मण के साथ रामायण युग में इसी रास्ते से यात्रा की थी। इसलिए इसे अवधी में हरिरहिया कहा गया जो बाद में हर्रैया में बदल गया। हर्रैया एक विधान सभा क्षेत्र भी है। वर्तमान में इस विधान सभा का प्रतिनिधि श्री अजय सिंह कर रहे हैं । इस क्षेत्र मे कई धार्मिक स्थल एवं ऐतिहासिक विरासत है । जनसांख्यिकी 2001 भारत की जनगणना में, हर्रैया की आबादी 8333 थी पुरुषों की आबादी 52% और महिलाओं की 48% थी। हर्रैया की एक औसत साक्षरता 65% थी। जो राष्ट्रीय औसत 59.5% से अधिक थी जिसमे पुरुष साक्षरता 72% और महिला साक्षरता 56% थी। हर्रैया में जनसंख्या का 17% उम्र के 6 वर्ष से कम थी। हर्रैया के अन्तर्गत प्रमुख गाँव अमोढ़ा, कौड़ी कोल, कटास, कौवाडाड, दुहवा मिश्र ,भादासी, छावनी, बेलभरिया राम गुलाम, कुबेर गंज, श्रंगीनारी, तालागांव, हंसराजपुर, औरंगाबाद, बरहपुर, शेरवाडीह, परशुरामपुर, पकरी जप्ती, भीटी मिश्र, रमवापुर, धिरौलीबाबू,शेखपुरा, गुंडा कुंवर, बभंनगंवा, पचवस, पखेरवा, बबुरीबाबु, रामगढ, लजघटा, खेसुआ, जैतापुर, इनौली, अरजानीपुर, नेदुला, कोहराये, जगदीशपुर, निदूरी खम्हौवा, पेनहाँ, पूरे गंगाराम, भदावल, मधवापुर, हुंडरा कुंवर, मुरादीपुर।चौकड़ी मल्लूपुर, घोरसाएं, वीरपुर, करनाई, नीमडड, चैनपुर राय , कनरक पुर , मरवटिया कुंवर, मदनापुर, पुरैन खास, हशीनाबाद, अमारी भैरवपर, नान्देकुआं, थान्हाखास बसदेवा कुंवर जैसे कई गांव मौजूद हैं। इन्हें भी देखें बस्ती ज़िला सन्दर्भ बस्ती ज़िला उत्तर प्रदेश के नगर बस्ती ज़िले के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%95%20%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%A3
ध्वन्यात्मक लिप्यन्तरण
ध्वन्यात्मक लिप्यन्तरण (फोनेटिक ट्राँसलिट्रेशन) मशीनी लिप्यन्तरण की एक विधि है। यह एक लिप्यन्तरण विधि है जिससे कि हिन्दी आदि भारतीय लिपियों को आपस में तथा रोमन में बदला जाता है। टाइपिंग विधि के रूप में ध्वन्यात्मक लिप्यन्तरण का एक मुख्य प्रयोग इण्डिक टाइपिंग विधि के रूप में है। प्रयोक्ता हिन्दी (अथवा कोई इण्डिक) टैक्स्ट को रोमन लिपि में टाइप करता है तथा यह रियल टाइम में समकक्ष देवनागरी (अथवा इण्डिक लिपि) में ध्वन्यात्मक रूप से परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार का स्वचालित परिवर्तन ध्वन्यात्मक टैक्स्ट ऍटीटर, वर्ड प्रोसैसर तथा सॉफ्टवेयर प्लगइन के द्वारा किया जाता है। परन्तु सर्वश्रेष्ठ तरीका फोनेटिक आइऍमई का प्रयोग है जिसकी सहायता से टैक्स्ट किसी भी ऍप्लीकेशन में सीधे ही लिखा जा सकता है। फोनेटिक ट्राँसिलिट्रेशन आधारित आइऍमई के उदाहरण हैं बरह आइऍमई, इण्डिक आइऍमई, गूगल इण्डिक लिप्यन्तरण आदि। ये मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:- निश्चित लिप्यन्तरण स्कीम आधारित इस प्रकार के औजार एक निश्चित लिप्यन्तरण स्कीम के आधार पर टैक्स्ट को भारतीय लिपि में बदलते है। इस प्रकार के टाइपिंग औजारों के उदाहरण हैं:- इण्डिक आइऍमई, बरह आइऍमई आदि। शब्दकोश आधारित इस तरह के औजार पहले रोमन में टाइप किये गये शब्द को एक शब्दकोश के साथ तुलना करते हैं और फिर उसे समकक्ष हिन्दी (इण्डिक) शब्द में बदलते हैं। ऐसे औजार कृत्रिम बुद्धिमता से युक्त होते हैं तथा सबसे उपयुक्त शब्द को खुद ही चुन लेते हैं। किसी विशेष स्कीम से बंधे न होने के कारण ये रोमनागरी के अभ्यस्तों के लिये तथा जो कि पहली बार अथवा शुरु में हिन्दी टाइप कर रहे हों, सर्वाधिक सरल एवं उपयुक्त होते हैं। शब्दकोश आधारित पहला ध्वन्यात्मक लिप्यन्तरण औजार क्विलपैड द्वारा बनाया गया था, बाद में गूगल तथा माइक्रोसॉफ्ट ने भी इस प्रकार के औजार बनाये। इस प्रकार के टाइपिंग औजारों के उदाहरण हैं:- ऑनलाइन - गूगल इण्डिक लिप्यन्तरण, क्विलपैड आदि। ऑफलाइन - गूगल आइऍमई, माइक्रोसॉफ्ट इण्डिक लॅंगविज इनपुट टूल आदि। कंप्यूटर हिन्दी टाइपिंग हिन्दी कम्प्यूटिंग इण्डिक कम्प्यूटिंग लिप्यन्तरण
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AB%20%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%88
यूसुफ ज़ज़ई
यूसुफ ज़ज़ई (जन्म 25 दिसंबर 1998) एक अफगान क्रिकेटर हैं। उन्होंने 10 अगस्त 2017 को 2017 गाजी अमानुल्लाह खान क्षेत्रीय एक दिवसीय टूर्नामेंट में बैंड-ए-अमीर क्षेत्र के लिए अपनी लिस्ट ए की शुरुआत की। उन्होंने 14 सितंबर 2017 को 2017 शापेजा क्रिकेट लीग में एमो शार्क के लिए अपना ट्वेंटी 20 पदार्पण किया। दिसंबर 2017 में, उन्हें 2018 अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप के लिए अफगानिस्तान की टीम में नामित किया गया था। उन्होंने 13 मार्च 2018 को 2018 अहमद शाह अब्दाली 4 दिवसीय टूर्नामेंट में बैंड-ए-अमीर क्षेत्र के लिए प्रथम श्रेणी में पदार्पण किया। सितंबर 2018 में, उन्हें अफगानिस्तान प्रीमियर लीग टूर्नामेंट के पहले संस्करण में पक्तिया के दस्ते में नामित किया गया था। नवंबर 2019 में, उन्हें बांग्लादेश में 2019 एसीसी इमर्जिंग टीम्स एशिया कप के लिए अफगानिस्तान की टीम में नामित किया गया था। जुलाई 2021 में, यूसुफ को पाकिस्तान के खिलाफ उनकी श्रृंखला के लिए अफगानिस्तान के एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) टीम में चार आरक्षित खिलाड़ियों में से एक के रूप में नामित किया गया था। सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%9D%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80
मोरझंगी
मोरझंगी , पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के डेरा ग़ाज़ी ख़ान ज़िले का एक कस्बा और यूनियन परिषद् है। यहाँ बोले जाने वाली प्रमुख भाषा पंजाबी है, जबकि उर्दू प्रायः हर जगह समझी जाती है। साथ ही अंग्रेज़ी भी कई लोगों द्वारा काफ़ी हद तक समझी जाती है। प्रभुख प्रशासनिक भाषाएँ उर्दू और अंग्रेज़ी है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें पाकिस्तान के यूनियन काउंसिल पाकिस्तान में स्थानीय प्रशासन पंजाब (पाकिस्तान) डेरा ग़ाज़ी ख़ान ज़िला बाहरी कड़ियाँ D.G। खान जिले के यूनियन परिषदों की सूची पाकिस्तान ब्यूरो ऑफ़ स्टॅटिस्टिक्स की आधिकारिक वेबसाइट-1998 की जनगणना(जिलानुसार आँकड़े) डेरा ग़ाज़ी ख़ान ज़िले के यूनियन परिषद् पाकिस्तानी पंजाब के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A7%E0%A4%BE
कविवचनसुधा
कविवचनसुधा भारतेन्दु हरिशचंद्र द्वारा सम्पादित एक हिन्दी समाचारपत्र था। इसका प्रकाशन १५ अगस्त १८६७ को वाराणसी आरम्भ हुआ जो एक क्रांतिकारी घटना थी। यह कविता-केन्द्रित पत्र था। इस पत्र ने हिन्दी साहित्य और हिन्दी पत्रकारिता को नये आयाम प्रदान किए। हिन्दी के महान समालोचक डॉ. रामविलास शर्मा लिखते हैं- "कवि वचन सुधा का प्रकाशन करके भारतेन्दु ने एक नए युग का सूत्रपात किया।" आरम्भ में भारतेन्दु 'कविवचनसुधा' में पुराने कवियों की रचनाएँ छापते थे, जैसे चंद बरदाई का रासो, कबीर की साखी, जायसी का पद्मावत, बिहारी के दोहे, देव का अष्टयाम और दीनदयालु गिरि का अनुराग बाग। लेकिन शीघ्र ही पत्रिका में नए कवियों को भी स्थान मिलने लगा। पत्रिका के प्रवेशांक में भारतेन्दु ने अपने आदर्श की घोषणा इस प्रकार की थी - खल जनन सों सज्जन दुखी मति होंहि, हरिपद मति रहै। अपधर्म छूटै, स्वत्व निज भारत गहै, कर दुख बहै।। बुध तजहि मत्सर, नारि नर सम होंहि, जग आनंद लहै। तजि ग्राम कविता, सुकविजन की अमृतवानी सब कहै। 'कविवचनसुधा' में साहित्य तो छपता ही था, उसके अलावा समाचार, यात्रा, ज्ञान-विज्ञान, धर्म, राजनीति और समाज नीति विषयक लेख भी प्रकाशित होते थे। इससे पत्रिका की जनप्रियता बढ़ती गई। लोकप्रिया इतनी कि उसे मासिक से पाक्षिक और फिर साप्ताहिक कर दिया गया। प्रकाशन के दूसरे वर्ष यह पत्रिका पाक्षिक हो गई थी और 5 सितंबर, 1873 से साप्ताहिक। कविवचनसुधा के द्वितीय प्रकाशन वर्ष में मस्टहेड के ठीक नीचे निम्नलिखित पद छपता था - निज-नित नव यह कवि वचन सुधा सकल रस खानि। पीवहुं रसिक आनंद भरि परमलाभ जिय जानि॥ सुधा सदा सुरपुर बसै सो नहिं तुम्हरे जोग। तासों आदर देहु अरु पीवहु एहि बुध लोग॥ भारतेन्दु की टीकाटिप्पणियों से अधिकरी तक घबराते थे और "कविवचनसुधा" के "पंच" पर रुष्ट होकर काशी के मजिस्ट्रेट ने भारतेन्दु के पत्रों को शिक्षा विभाग के लिए लेना भी बंद करा दिया था। सात वर्षों तक 'कविवचनसुधा' का संपादक-प्रकाशन करने के बाद भारतेन्दु ने उसे अपने मित्र चिंतामणि धड़फले को सौंप दिया और 'हरिश्चंद्र मैग्जीन' का प्रकाशन 15 अक्टूबर, 1873 को बनारस से आरम्भ किया। 'हरिश्चंद्र मैग्जीन' के मुखपृष्ठ पर उल्लेख रहता था कि यह 'कविवचनसुधा' से संबद्ध है। सन्दर्भ हिन्दी पत्रकारिता
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE
संयोजकता
तत्वों की संयोजन शक्ति (Combining Power) को संयोजकता (Valency) का नाम दिया गया है। संयोजकता का यथार्थ ज्ञान ही समस्त रसायन शास्त्र की नींव है। पिछले वर्षो में द्रव्यों के स्वभाव तथा गुणों का अधिक ज्ञान होने के साथ साथ संयोजकता के ज्ञान में भी वृद्धि हुई है। दूसरे शब्दों में, संयोजकता एक संख्या है जो यह प्रदर्शित करती है कि जब कोई परमाणु कितने इलेक्ट्रॉन प्राप्त करता है, या खोता है या साझा करता है जब वह अपने ही तत्व के परमाणु से या किसी अन्य तत्व के परमाणु से बन्धन बनाता है। इतिहास 19वीं शताब्दी के लगभग मध्यकाल में अंग्रेज रसायनज्ञ फ्रैंकलैंड (Frankland) तथा जर्मन रसायनज्ञ कॉल्बे (Kolbe) ने संयोजकता के विषय में अपनी कल्पनाएँ व्यक्त कीं। फ्रैंकलैंड ने प्रदर्शित किया कि अकार्बनिक (inorganic) यौगिकों में प्राय: एक केंद्रीय तत्व अन्य तत्वों के निश्चित तुल्यांकों से संयोग करता है। उदाहरण के लिए, नाइट्रोजन, फ़ॉस्फ़ोरस तथा आर्सेनिक का एक परमाणु हाइड्रोजन तथा क्लोरीन के तीन अथवा पाँच परमाणुओं से संयोग करके यौगिक बनाता है। इस प्रकार ऐसा प्रतीत होता है कि संयुक्त हानेवाले तत्वों की संयोजनशक्ति सदैव अन्य परमाणुओं की निश्चित संख्या से संतुष्ट हो सकती है। अतएव यदि हाइड्रोजन की संयोजकता को इकाई मान लिया जाए, तो किसी तत्व की संयोजकता हाइड्रोजन परमाणुओं की उन संख्याओं के बराबर होगी जिनके साथ उस तत्व का परमाणु संयोग कर सकता है। उदाहरणार्थ, क्लोरीन, ऑक्सीजन परमाणुओं की उन संख्याओं के बराबर होगी जिनके साथ उस तत्व का परमाणु संयोग कर सकता है। उदाहरणार्थ, क्लोरीन, ऑक्सीजन तथा कार्बन का एक परमाणु हाइड्रोजन के क्रमश: एक, दो, तीन तथा चार परमाणुओं से संयोग करता है। इसलिए क्लोरीन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन तथा कार्बन की संयोजकताएँ क्रमश: एक, दो, तीन तथा चार हैं। कुछ तत्व हाइड्रोजन के साथ संयोग नहीं करते। ऐसे तत्वों की संयोजकता, क्लोरीन या ऑक्सीजन की संयोजकता को क्रमश: एक या दो मानकर, निकाली जा सकती है। उदाहरण के लिए थोरियम का एक परमाणु क्लोरीन के चार तथा ऑक्सीजन के दो परमाणुओं से संयोग करता है। अत: थोरियम की संयोजकता चार है। प्राय: तत्वों की संयोजकता को रेखाओं द्वारा दिखाया जाता है। इन रेखाओं को 'संयोजकता बंधन' (Valency bonds) कहा जा सकता है। प्रसिद्ध कार्बनिक रसायनज्ञ केकूले (Kekule) के विचार भी फ्रैंकलैंड के विचारों से मिलते जुलते थे। केवल एक बात में दोनों में तीव्र मतभेद था। जैसा उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है, अकार्बनिक यौगिकों में बहुधा एक ही तत्व की संयोजकता विभिन्न यौगिकों में भिन्न हो सकती है। उदाहरण के लिए, PCI3 तथा PCI5 यौगिकों में फ़ॉस्फ़ोरस की संयोजकता क्रमश: तीन तथा पाँच है। इसके विपरीत कार्बनिक यौगिकों में, जो अधिकतर कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन के संयोग से बने होते हैं, इन तत्वों की संयोजकता स्थिर और सब कार्बनिक यौगिकों में क्रमश: चार, एक, दो तथा तीन, होती है। इनकी संयोजकताओं में साधारणतया कभी अंतर नहीं होता। संयोजकता के बारे में स्पष्ट ज्ञान प्राप्त होने से रसायनज्ञों को तत्वों के परमाणुभार निकालने में बहुत सहायता मिली है। किसी भी तत्व का परमाणुभार उसके तुल्यांकी भार और संयोजकता के गुणनफल के बराबर होगा। तत्वों के तुल्यांकी भार प्रयोगों द्वारा सरलता से निकाले जा सकते हैं। उन्नीसवीं शताब्दी के चौथे भाग में, जब रूसी महान्‌ वैज्ञानिक मेंडेलीफ़ (Mandeleef) ने आवर्त सारणी (Periodic Table) का वर्णन किया, तो उन्होंने साथ ही साथ उस सारणी में किसी तत्व की स्थिति और उसकी संयोजकता का संबंध भी सुस्पष्ट किया। तत्वों को उनके परमाणुभार के क्रम से रखने पर, प्रत्येक तत्व अपने से आठवें तत्व के साथ भौतिक तथा रासायनिक गुणों में समानता प्रदर्शित करता है। इस प्रकार निष्क्रिय गैसों के आविष्कार के बाद, वर्तमान आवर्त सारणी नौ समूहों में बँट जाती है। इनमें निष्क्रिय गैसों, जैसे हीलियम, नीअन, आगंन, क्रिप्टन, जीनन तथा रैडन का समूह शून्य समूह कहलाता है, क्योंकि ये तत्व किसी भी अन्य तत्व के प्रति साधारणतया संयोजनशक्ति नहीं प्रदर्शित करते। अगला समूह ऐलकैली या क्षारीय धातुओं (जैसे लीथियम, सोडियम, पोटैशियम आदि) का प्रथम समूह है और इन सबकी संयोजकता भी हाइड्रोजन, क्लोरीन तथा ऑक्सिजन सब के प्रति एक होती है। इसी प्रकार द्वितीय (मैग्नीशियम, कैल्सियम आदि), तृतीय (बोरॉन, ऐल्यूमिनियम आदि) तथा चतुर्थ (कार्बन, सिलिकन आदि) समूह के तत्वों की संयोजकता क्रमश: दो, तीन तथा चार है। पाँचवें (नाइट्रोजन, फ़ॉसफ़ोरस आदि), छठे (सल्फ़र, क्रोमियम आदि), सातवें (फ्लुओरीन, क्लोरीन, ब्रोमीन आदि) समूह के तत्व ऑक्सीजन के प्रति तो क्रमश: पाँच, छह तथा सात संयोजकताएँ प्रदर्शित करते हैं, परंतु हाइड्रोजन तथा क्लोरीन के प्रति इन समूहों के तत्वों की संयोजकताएँ क्रमश: तीन, दो तथा एक हैं। रासायनिक बंध 20वीं शताब्दी के आरंभिक काल में वैज्ञानिक सर जे.जे. टॉमसन तथा नील्स बोर ने प्रयोगों तथा अपनी कल्पनाओं द्वारा परमाणुओं की रचना के बारे में हमारे ज्ञान में वृद्धि की ओर रदरफर्ड ने परमाणुओं के नाभिक (nuclear) रूप की विवेचना की। इसके अनुसार प्रत्येक परमाणु के केंद्र या नाभि में बहुत सूक्ष्म पिंड होता है, जिसपर धनावेश होता है और इसी धनावेश की बराबर संख्या के इलैक्ट्रॉन (electron) केंद्र के चारों ओर परिधियों में चक्कर लगाया करते हैं। अंतिम परिधि के इलेक्ट्रॉनों को 'संयोजन इलेक्ट्रॉन' का नाम दिया गया है, क्योंकि 'संयोजकता के इलेक्ट्रॉन सिद्धांत' के अनुसार, यही इलेक्ट्रॉन तत्व की संयोजनशक्ति निर्धारित करते हैं। उदाहरण के लिए, आवर्त तालिका के प्रथम दो समूहों के परमाणुओं की रचना नीचे दी गई है : H He 1 2 Li Be B C N O F Ne 2,1 2,2 2,3 2,4 2,5 2,6 2,7 2,8 Na Mg Al Si P S Cl Ar 2,8,1 2,8,2 2,8,3 2,8,4 2,8,5 2,8,6 2,8,7 2,8,8 उपर्युक्त सारणी में निष्क्रिय गैसों के परमाणुओं की अंतिम परिधि में (हीलियम को छोड़कर जिसमें 2 इलेक्ट्रॉन होते हैं) 8 इलेक्ट्रॉन होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह विन्यास इतना स्थायी है कि ये स्वयं साधारणतया किसी रासायनिक क्रिया में भाग नहीं लेते और अन्य तत्व भी एक, दो, या तीन इलेक्ट्रॉन खोकर, या बढ़ाकर, इन्हीं के विन्यास को प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं। उदाहरण के लिए, सोडियम का परमाणु एक इलेक्ट्रॉन खोकर और फ़्लुओरीन का परमाणु एक इलेक्ट्रॉन की वृद्धि करके सोडियम फ्लोराइड बनाते हैं और इस क्रिया में सोडियम (Na+) तथा फ़्लुओराइड दोनों आयन निष्क्रिय गैस नीऑन का इलेक्ट्रॉन विन्यास प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार की संयोजकता को विद्युत संयोजकता (electrovalency) कहा जाता है। विद्युत्संयोजकता से बने यौगिक साधारणतया उच्च गलनांक और क्वथनांकवाले होते है और जल में विलीन होकर आयनित हो जाते हैं। इस प्रकार की विद्युत्संयोजकता की कल्पना सर्वप्रथम जर्मन रसायनज्ञ कॉसेल (Kossel) ने 1916 में की थी। इसके अतिरिक्त अमरीकी रसायनज्ञ ल्यूइस (Lewis) ने कुछ ही मास बाद कल्पना की कि उपर्युक्त विधि के अतिरिक्त कुछ तत्व एक अन्य विधि से भी निष्क्रिय गैसों का इलेक्ट्रॉन विन्यास प्राप्त कर सकते हैं। इस कल्पना के अनुसार संयोग करनेवाले दो परमाणु कभी कभी अपने एक, दो, या तीन इलेक्ट्रॉनों का साझा करके दोनों के दोनों निष्क्रिय गैसों का विन्यास प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार की संयोजकता को सहसंयोजकता (covalency) का नाम दिया गया है और इसमें बने सहसंयोजक यौगिक साधारणतया निम्न गलनांक तथा क्वथनांक प्रदर्शित करते है और अधिकतर कार्बनिक विलायकों में विलेय होते हैं। इन दोनों के अतिरिक्त एक अन्य प्रकार की संयोजकता की कल्पना की गई है, जिसमें एक यौगिक या तत्त्व अपने दो खाली इलेक्ट्रॉन किसी दूसरे यौगिक या तत्व को देकर, दोनों में निष्क्रिय गैसों के इलेक्ट्रॉन विन्यास की अवस्था ला देता है। उदाहरण के लिए, अमोनिया अपने दो खाली इलैक्ट्रॉन हाइड्रोजन या बोरॉन क्लोराइड को प्रदान करके, उनको क्रमश: हीलियम तथा नीऑन का इलैक्ट्रॉन विन्यास दे देता है। इस प्रकार की संयोजकता को उपसहसंयोजकता (Coordinate covaiency) कहा गया है, क्योंकि इस प्रकार की संयोजकता की कल्पना उपसहसंयोजक यौगिकों, जैसे हेक्साऐमीन, कोबाल्टी क्लोराइड तथा पोटैशियम फेरोसायनाइड आदि के गुणों को समझने में बहुत सहायक सिद्ध हुई है। नामकरण तथा तत्वों की संयोजकता का वितरण तत्वों की आवर्त सारणी, जो उनके एलेक्ट्रानिक विन्यास पर आधारित है, किसी तत्व के परमाणु मे सबसे बाहरी कक्षा मे उपस्थित इलेक्ट्रानो की संख्या ही उस तत्व की संयोजकता होती हैं। तत्वों की संयोजकता का एक संकेत देती है: संयोजकता 0 : संयोजकता 0: He, Ne, Ar, Kr, Xe, Rn संयोजकता 1 : एकसंयोजी Valence 1: H, Li, Na, K, Rb, Cs, Fr, Ag, Cu, Hg, Au, F, I, Br, Cl संयोजकता 2 : द्विसंयोजी Valence 2: Be, Mg, Ca, Sr, Ba, Ra, Fe, Ni, Cu, Zn, Cd, Pt, Hg, Sn, Pb, O, Si, Se, Te, C, Po संयोजकता 3 : त्रिसंयोजी Valence 3: Al, Au, Fe, Co, Ni, Cr, Mn, Cl, Br, I, Ga, In, Tl, N, P, As, Sb, Bi, Cr संयोजकता 4 : चतुःसंयोजी Valence 4: C, Si, Ge, Sn, Pb, S, Se, Te, Pt, Ir, Mn, S, N, Po संयोजकता 5 : पंचसंयोजी Valence 5: Bi, Sb, As, P, N, I, Br, Cl संयोजकता 6 : षटसंयोजी Valence 6: Te, Se, S, Mn, Cr संयोजकता 7 : सप्तसंयोजी Valence 7: Mn, Cl, Br, I संयोजकता 8 : अष्टसंयोजी सन्दर्भ इन्हें भी देखें रासायनिक आबंध रासायनिक बन्ध रासायनिक गुण रसायनशास्त्र की विमाहीन संख्याएँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%96%E0%A4%BE%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80
बिरखा बावड़ी
बिरखा बावड़ी भारतीय राज्य राजस्थान के जोधपुर में स्थित एक बावड़ी है। इस संरचना का निर्माण जोधपुर शहर में पानी के संरक्षण के लिए और एक ख़ास शैली में बनाया गया था। बावड़ी का डिजाइन भारतीय वास्तुकार अनु मृदुल द्वारा किया गया और इसका भुगतान जोधपुर में स्थित एक रियल एस्टेट फर्म एसजी ग्रुप द्वारा किया गया था। बावड़ी का निर्माण कृषि और घरेलू उपयोग के लिए वर्षा के जल को इकट्ठा करने के लिए बिरखा बावड़ी निर्माण किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य यही था कि सूखा पड़ने पर लंबे समय के लिए पानी को बचाया जा सके इस कारण इसका निर्माण किया गया। सन्दर्भ जोधपुर के दर्शनीय स्थल बावड़ी राजस्थान में बावड़ी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B8%202
ब्रह्मोस 2
ब्रह्मोस 2 (BrahMos-2) रूस की एनपीओ मशीनोस्त्रोयेनिया और भारत की रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन द्वारा वर्तमान में संयुक्त रूप से विकासाधीन एक हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। जो एक साथ ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड द्वारा गठित है। यह ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल श्रृंखला की दूसरी क्रूज मिसाइल है। ब्रह्मोस-2 की रेंज 290 किलोमीटर और मेक 7 की गति होने की संभावना है। उड़ान के क्रूज चरण के दौरान मिसाइल एक स्क्रैमजेट एयरब्रेस्टिंग जेट इंजन का प्रयोग करेगी। मिसाइल की उत्पादन लागत और भौतिक आयाम सहित अन्य विवरण, अभी तक प्रकाशित नहीं किए गए हैं। इस मिसाइल की 2020 तक परीक्षण के लिए तैयार होने की उम्मीद है। ब्रह्मोस-2 की योजनाबद्ध परिचालन सीमा 290 किलोमीटर तक सीमित कर दी गई है क्योंकि रूस मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) का एक हस्ताक्षरकर्ता सदस्य देश है, जो रूस को 300 किलोमीटर (190 मील। 160 एनएमआई) के ऊपर सीमाओं वाली मिसाइलों को विकसित करने में अन्य देशों की मदद से रोकता है। हालांकि, अब भारत एक मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था हस्ताक्षरकर्ता सदस्य देश बन गया है। इसकी शीर्ष गति वर्तमान ब्रह्मोस 1 की दोगुनी होगी। और यह दुनिया में सबसे तेज क्रूज मिसाइल होगी। ब्रह्मोस 2 को मेक 5 की गाति से पार करने के लिए रूस एक विशेष और गुप्त ईंधन सूत्र विकसित कर रहा है। अक्टूबर 2011 तक मिसाइल के कई रूपों का डिजाइन पूरा किया गया था। और 2012 में परीक्षण शुरू होने वाले थे। चौथी पीढ़ी के बहुउद्देश्यीय रूसी नौसेना विध्वंसक (प्रोजेक्ट 21956) को भी ब्रह्मोस 2 से लैस करने की संभावना है। ब्रह्मोस एयरोस्पेस ने भारत के पूर्व राष्ट्रपति ऐ॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम के सम्मान में मिसाइल को ब्रह्मोस-2 (के) का नाम दिया है। इन्हें भी देखें रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन भारतीय हाइपरसोनिक मिसाइल ब्रह्मोस-1 सन्दर्भ भारत के प्रक्षेपास्त्र प्रक्षेपास्त्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%80
मन्दोदरी
मन्दोदरी रामायण के पात्र, पंच-कन्याओं में से एक हैं जिन्हें चिर-कुमारी कहा गया है। मन्दोदरी मयदानव की पुत्री थी। उसका विवाह लंकापति रावण के साथ हुआ था। हेमा नामक अप्सरा से उत्पन्न रावण की पटरानी जो मेघनाद और अक्षय कुमार की माता तथा मायासुर की कन्या थी। अतिकाय , त्रिशरा , देवान्तक और नरान्तक रावण और दम्यमालिनी के पुत्र थे मेघनाद और अक्षयकुमार रावण और मन्दोदरी के पुत्र थे। रावण को सदा यह अच्छी सलाह देती थी और कहा जाता है कि अपने पति के मनोरंजनार्थ इसीने शतरंज के खेल का प्रारम्भ किया था। इसकी गणना भी पंचकन्याओं में है सिंघलदीप की राजकन्या और एक मातृका का भी नाम मन्दोदरी था। सन्दर्भ मंदोदरी महान ऋषि कश्यप के पुत्र मायासुर की गोद ली हुई पुत्री थी, रावण से शादी के पच्यात मंदोदरी के तीन पुत्र हुए जिनका नाम मेघनाद अक्षकुमार और अतिक्य था कुछ कथाओं के अनुसार मंदोदरी अपने पूर्व जन्म में एक मेंडकी थी और सप्तऋषि के आशीर्वाद से उन्हें मनुष्य रूप मिला था मंदोदरी के पूर्व जन्म की संपूर्ण कथा हिन्दू धर्म रामायण के पात्र रावणmp
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A3%20%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80
अनिर्वण लाहिड़ी
अनिर्बान लहिरी () (Anirbāṇ Lāhiṛī; जन्म २९ जून १९८७) एक भारतीय प्रोफेशनल गॉल्फर है। ये यूरोपीयन ,एशियन तथा पीजीए टूअर में खेलते हैं। इन्होंने 2016 ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक खेलों में क़्वालीफाई किया। व्यक्तिगत जीवन लहिरी ने गॉल्फ़ खेल अपने पिता डॉ॰ तुषार लहिरी से मात्र आठ वर्ष की उम्र में ही सीखा था।" सन्दर्भ बाहरी कड़ियां Profile on the Professional Golf Tour of India's official site भारत के खिलाड़ी बैंगलोर के खिलाड़ी बंगलोर के लोग 1987 में जन्मे लोग जीवित लोग 2016 ओलम्पिक में भारत के खिलाड़ी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%281971%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29
परवाना (1971 फ़िल्म)
परवाना 1971 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। संक्षेप कुमार सेन (अमिताभ बच्चन), आशा (योगिता बाली) से प्यार करता है जो पेशे से एक कलाकार है.  आशा एक नृत्य प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए ऊटी जाती है और एक अमीर चाय बागान मालिक राजेश (नवीन निश्चल) से प्यार करने लग जाती है.  जब कुमार को यह पता चलता है तो वह आशा के चाचा, अशोक वर्मा (ओम प्रकाश) के पास जाता है, और शादी में आशा का हाथ मांगता है.  जब चाचा मना कर देते हैं तो कुमार उनकी हत्या की योजना इस तरह बनाता है और ऐसा जाल बुनता है कि किसी को उस पर शक नहीं हो.  फिर वह चाचा जी की हत्या कर देता है और राजेश को हत्या के आरोप में फंसा देता है.  उसको लगता है इस तरह वह आशा के प्यार को जीतने में सफल हो जायेगा लेकिन आशा अभी भी राजेश से प्यार करती है, और उसकी बेगुनाही पर विश्वास करती है.  आशा कुमार से शादी करने का वादा करती है अगर वह राजेश को उसकी मौत की सजा से मुक्त कर सके.  अंत में कुमार को एहसास होता है कि आशा हमेशा राजेश से ही प्यार करती रहेगी.  वह चाचा जी की हत्या की योजना का विवरण देते हुए अपना बयान लिखता है, राजेश को देता है, और आत्महत्या कर लेता है.  आशा और राजेश एक हो जाते हैं. चरित्र मुख्य कलाकार अमिताभ बच्चन - कुमार सेन नवीन निश्चल योगिता बाली शत्रुघन सिन्हा ओम प्रकाश हेलन - कैबरे नर्तकी लक्ष्मी छाया - कमला सिंह ललिता पवार - सरिता सिंह असित सेन अभि भट्टाचार्य अनवर अली विक्रम गोखले राम मोहन दल संगीत रोचक तथ्य परिणाम बौक्स ऑफिस समीक्षाएँ नामांकन और पुरस्कार बाहरी कड़ियाँ 1971 में बनी हिन्दी फ़िल्म
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%A8%20%E0%A4%93%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%BE
सेगुन ओलायिंका
सेगुन ओलायिंका (जन्म 12 अगस्त 1988) एक नाइजीरियाई क्रिकेटर हैं। वह 2013 आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन छह टूर्नामेंट में खेले। अक्टूबर 2021 में, उन्हें सिएरा लियोन के खिलाफ उनकी श्रृंखला के लिए नाइजीरिया के ट्वेंटी 20 अंतर्राष्ट्रीय (टी20आई) टीम में नामित किया गया था। उन्होंने 26 अक्टूबर 2021 को सिएरा लियोन के खिलाफ नाइजीरिया के लिए अपना टी20आई डेब्यू किया। अक्टूबर 2021 में, उन्हें रवांडा में 2021 आईसीसी पुरुष टी20 विश्व कप अफ्रीका क्वालीफायर टूर्नामेंट के क्षेत्रीय फाइनल के लिए नाइजीरिया की टीम में नामित किया गया था। सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%86%20%E0%A4%97%E0%A4%88
आशिकी आ गई
'आशिकी आ गई' एक भारतीय हिंदी-भाषा का गीत है जिसे अरिजीत सिंह ने गाया है और [[मिथून] द्वारा संगीतबद्ध किया गया है। 2021 साउंडट्रैक एल्बम राधे श्याम, प्रभास और पूजा हेगड़े अभिनीत। गाने को मिथुन ने लिखा है। यह गाना 1 दिसंबर 2021 को जारी किया गया था। गाने का म्यूजिक वीडियो उसी दिन म्यूजिक लेबल टी-सीरीज़ के तहत जारी किया गया था। ट्रैक, 'आशिकी आ गई' प्रभास और पूजा हेगड़े की विशेषता वाला एक रोमांटिक नंबर है। रिलीज़ गाने का टीज़र 29 नवंबर 2021 को जारी किया गया था। संगीत वीडियो 1 दिसंबर 2021 को टी-सीरीज़ द्वारा जारी किया गया था। यह गाना रिलीज़ होने के उसी दिन आयट्यून्स पर और 1 दिसंबर 2021 को जिओ सावन और गाना पर ऑनलाइन स्ट्रीमिंग के लिए उपलब्ध कराया गया था। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ गीत अरिजीत सिंह के गीत पूजा हेगड़े की विशेषता वाले गाने
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%B0%20%28%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%A4%29
कालाकांकर (रियासत)
कालाकांकर अवध का एक रियासत था। वर्तमान में यह उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला में स्थित हैं। इतिहास इस राजवंश का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। गोरखपुर का मझौली गांव इस राजवंश का मूल स्थान रहा है। वहां से चलकर मिर्जापुर के कान्तित परगना से होते हुए इस वंश के राय होममल्ल ने मानिकपुर से उत्तर बडग़ौ नामक स्थान पर अपना महल बनवाया था। वहीं उनका ११९३ में राज्याभिषेक हुआ। इसके काफी बाद में जब इस राजवंश के राजा हनुमत सिंह उत्तराधिकारी बने तो उन्होने कालाकाकर को अपनी राजधानी बनाने का फैसला किया। इसी परिवार से राजा अवधेश सिंह, राजा दिनेश सिंह जैसे नामी गिरामी व्यक्ति पैदा हुए। राजा दिनेश सिंह आजादी के बाद लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री रहे , जबकि उनकी पुत्री राजकुमारी रत्ना सिंह भी प्रतापगढ से कई बार संसद सदस्य रह चुकी हैं। स्वतंत्रता संग्राम में कालाकांकर का योगदान फिरंगियों के चंगुल से देश को आजाद कराने में जिले के कालाकांकर का भी अपना एक इतिहास है। यहां महात्मा गाँधी ने खुद विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। आजादी की लड़ाई के दौरान लोगों तक क्रांति की आवाज पहुंचाने के लिए हिन्दी अखबार ‘हिन्दोस्थान’ कालाकांकर से ही निकाला गया था। इसमें आजादी की लड़ाई और अंग्रेजों के अत्याचार से संबंधित खबरों को प्रकाशित कर लोगों को जगाने का काम शुरू हुआ। इस तरह यहां की धरती ने स्वतंत्रता की लड़ाई में पत्रकारिता के इतिहास को स्वर्णिम अक्षरों में लिखा। कुंडा तहसील में स्थित कालाकांकर प्राथमिक विद्यालय के पास जवाहर लाल नेहरू बाल क्रीड़ा स्थल है। ‘कालाकांकर और भारत स्वतंत्रता संघर्ष १८५७ से १९४७ तक’ नामक किताब के मुताबिक क्रीड़ास्थल पर एक चबूतरा था, जो आज भी है। आजादी की लड़ाई के समय महात्मा गांधी १४ नवम्बर १९२९ को कालाकांकर पहुंचे। उन्होंने उसी चबूतरे पर शाम के वक्त सभा की। जिसमें अंग्रेजी ताकतों का खुलकर विरोध करने का निर्णय लिया गया। इसी दिन गांधीजी ने चबूतरे पर ही विदेशी कपड़े एकत्र कराया। विदेशी कपड़ों को आजादी के दीवाने आसपास के क्षेत्रों से भी बैलगाड़ी पर लाद कर वहां इकट्ठा किए। उन कपड़ों के ढेर की होली जलाकर गांधीजी ने अंग्रेजों का विरोध किया था। जानकार बताते हैं कि बाद में जिस लकड़ी से कपड़ों को जलाया गया उस जमाने में उसकी ५०० में नीलामी हुई थी। कालाकांकर के इस इतिहास को आज बच्चे भले न जान रहे हों पर बुजुर्गों के दिमाग में ये बातें अब भी मीठे सपनों की तरह घूम रही हैं। कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह आजादी के समय ‘हिन्दोस्थान’ नामक हिन्दी अखबार निकाला। जिसमें अंग्रेजों के अत्याचार की खबर छापकर जनता को जागरूक करने का काम किया गया। किताब में लिखा गया है कि कालाकांकर गंगापार ‘अब कौशाम्बी’ जिले के सिराथू स्टेशन पर हर रोज वह अखबार भेजा जाता था। वहां से ट्रेन के जरिए इलाहाबाद, कलकत्ता, कानपुर सहित अन्य शहरों व क्षेत्रों में अखबार का वितरण होता था। राजा दिनेश सिंह ने उस वक्त राउंड द टेबल नामक अंग्रेजी अखबार निकाला था। ‘कालाकांकर और भारत स्वतंत्रता संघर्ष १८५७ से १९४७ तक’ नामक किताब में कालाकांकर के कई ऐतिहासिक पहलू मिलते हैं। किताब में लिखा गया है कि विदेशी कपड़ों की होली जलाने के दूसरे दिन १५ नवम्बर १९५९ को गांधीजी ने राजभवन पर तिरंगा फहराया था। उस स्थल पर आज भी १४ नवम्बर को मेला लगता है। १८५७ की क्रांति इसी रियासत के लाल प्रताप सिंह आजादी के आंदोलन में ऐतिहासिक भूमिका निभानेवाली प्रतापगढ़ के कालाकांकर राज के जयेष्ट युवराज थे। वे कालाकांकर नरेश राजा हनुमंत सिंह के पुत्र थे। उस जमाने की सबसे कठिन लड़ाइयों में एक चांदा की लड़ाई में वह अंग्रेजों से बहुत वीरता से टक्कर लेते हुए १९ फ़रवरी १८५८ को शहीद हुए थे। १९ फ़रवरी २००९ को भारतीय डाक विभाग ने लाल प्रताप सिंह पर एक डाक टिकट और प्रथम दिवस आवरण जारी किया। कालाकांकर में महात्मा गाँधी का दौरा 14 नवम्बर 1929 को महात्मा गांधी कालाकांकर आये थे और उन्होंने कालाकांकर नरेश राजा अवधेश सिंह के साथ गांधी चबूतरे पर विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। वहां गांधी चबूतरा अभी भी मौजूद है। इन्हें भी देखें कालाकांकर सन्दर्भ उत्तर प्रदेश रियासत
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A5%80%E0%A4%B8%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A5%89%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
डीसी कॉमिक्स
डीसी कॉमिक्स एक अमेरिकी कॉमिक पुस्तक प्रकाशक कम्पनी है। यह डीसी एंटरटेनमेंट की प्रकाशन इकाई है, जो वार्नर ब्रदर्स की एक सहायक कंपनी है। डीसी कॉमिक्स अमेरिका की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी कॉमिक पुस्तक कंपनियों में से एक है, और कई सांस्कृतिक रूप से प्रतिष्ठित पात्रों के निर्माण के लिए जानी जाती है, जिनमें बैटमैन, सुपरमैन, और वंडर वूमन और साथ में कुछ खलनायक जैसे- लेक्स लुथर, जोकर, केटवोमेन, भी शामिल हैं। उनकी अधिकांश कथाएं एक काल्पनिक डीसी यूनिवर्स में घटित होती है। डीसी यूनिवर्स जस्टिस लीग, जस्टिस सोसाइटी ऑफ अमेरिका, सुसाइड स्क्वाड, और टीन टाइटन्स जैसी प्रसिद्ध टीमों और द जोकर, लेक्स लूथर, कैटवूमन और द पेंगुइन जैसे कई खलनायकों का घर है। कंपनी ने वॉचमेन, वी फॉर वेंडेटा सहित गैर-डीसी यूनिवर्स से संबंधित सामग्री भी प्रकाशित की है, जिन्हें उनके वैकल्पिक ब्रांड, वर्टिगो के तहत प्रकाशित किया गया है। सन्दर्भ डीसी कॉमिक्स
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%B0%20%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%B0%2C%20%E0%A4%AE%E0%A4%A5%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE
जंतर मंतर, मथुरा
'यंत्र प्रकार' तथा 'सम्राट सिद्धांत' जैसे ग्रंथों की रचना द्वारा राजा जय सिंह तथा उनके राजज्योतिषी पं॰ जगन्नाथ ने इस विज्ञान के प्रसार में अपना अमूल्य योगदान दिया। इन्होने अपनी देख-रेख में 5 वेधशालाएं- दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में स्थापित करायीं। जय सिंह ने भारतीय खगोलविज्ञान को यूरोपीय विचारधारा से भी जोड़ा. अतः यह कहना उचित होगा की जयसिंह की वेधशालाएं ही भारत में भविष्य के तारामंडल की आधार बनीं. इस प्रकार पाषाण संरचनाओं से वेधशाला और वेधशालाओं से तारामंडलों का एक चक्र पूर्ण हुआ। मथुरा की वेधशाला १८५० के आसपास ही नष्ट हो चुकी थी। जंतर मंतर मथुरा
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A5%81%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A5%80%20%E0%A4%B6%E0%A5%8C%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF
खुड्डी शौचालय
 खुड्डी शौचालय या पिट टॉयलेट एक प्रकार का शौचालय है जो जमीन पर एक गड्ढे में मानव मल एकत्र करता है. इसमें या तो पानी का इस्तेमाल नहीं होता या फ्लश वाले खुड्डी शौचालयों में प्रति फ्लश एक से तीन लीटर पानी का प्रयोग किया जाता है. उचित तरीके से निर्मित और रखरखाव किए गए शौचालय खुले में शौच करने से पर्यावरण में फैले मानव मल की मात्रा कम करके बीमारी फैलना कम कर सकते हैं. यह मल और भोजन के बीच मक्खियों द्वारा रोगाणुओं का स्थानांतरण कम करता है. ये रोगाणु संक्रामक अतिसार और आंत के कीड़े संबंधी संक्रमणों के प्रमुख कारण होते हैं. वर्ष 2011 में संक्रामक अतिसार के कारण पांच साल से कम आयु के लगभग 0.7 मिलियन बच्चों की मौत हुई और 250 मिलियन बच्चों की पढ़ाई छूट गई. गड्ढा युक्त शौचालय मल को लोगों से अलग करने के लिए सबसे कम लागत वाले उपाय हैं. एक खुड्डी शौचालय में आम तौर पर तीन मुख्य हिस्से होते हैं: जमीन पर एक गड्ढा, एक छोटे छेद वाली पटिया या फर्श, और एक आश्रय. गड्ढा विशेष रूप से कम से कम 3 मीटर (10 फीट) गहरा और 1 मीटर (3.2 फीट) चौड़ा होता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का सुझाव है कि इन्हें आसान पहुंच बनाम दुर्गंध के मुद्दों को संतुलित करते हुए घर से एक तर्कपूर्ण दूरी पर निर्मित किया जाए. प्रदूषण के जोखिम को कम करने के लिए भूजल और ऊपरी सतह के पानी से यथासंभव दूरी होनी चाहिए. बच्चों को इसमें गिरने से बचाने के लिए स्लैब में छेद 25 सेंटीमीटर (9.8 इंच) से बड़ा नहीं होना चाहिए. मक्खियों को आने नहीं देने के लिए गड्ढे में प्रकाश नहीं पहुंचने देना चाहिए. इसके लिए फर्श में छेद को ढंकने के लिए उस समय ढक्कन का प्रयोग करने की आवश्यकता हो सकती है जब इसका इस्तेमाल नहीं हो रहा हो. जब गड्ढा ऊपर से 0.5 मीटर (1.6 फीट) तक भर जाता है, तो इसे या तो खाली करा देना चाहिए अथवा नया गड्ढा बनवाना चाहिए और नये स्थान पर आश्रय ले जाना चाहिए या नया बनवाना चाहिए. गड्ढे से निकाले गए मल कीचड़ का प्रबंधन जटिल होता है. यह काम यदि उपयुक्त तरीके से नहीं किया गया तो पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों को खतरा रहता है. बुनियादी खुड्डी शौचालय में कई तरीकों से सुधार किया जा सकता है. इसमें से एक तरीका है गड्ढे से लेकर ढांचे के ऊपर तक एक वेंटिलेशन पाइप जोड़ना. यह वायु प्रवाह को सुधारता है और शौचालय की दुर्गंध को कम करता है. जब पाइप का ऊपरी सिरा जाली (आमतौर पर फाइबरग्लास से निर्मित) से ढंका होता है तो यह मक्खियों को भी कम कर सकता है. इस प्रकार के शौचालयों में फर्श के छेद को ढंकने के प्रयोग होने वाले ढक्कन की आवश्यकता नहीं रहती. अन्य संभावित सुधारों में तरल पदार्थ बहकर नाली में जाने के लिए फर्श का निर्माण और स्थिरता में सुधार के लिए ईंट और सीमेंट के छल्लों से गड्ढे के ऊपरी हिस्से का सुदृढ़ीकरण शामिल है. वर्ष 2013 में अनुमानतः 1.77 बिलियन लोगों ने खुड्डी शौचालयों का उपयोग किया. इसका ज्यादातर उपयोग विकासशील विश्व के साथ ग्रामीण और जंगली इलाकों में किया गया. वर्ष 2011 में लगभग 2.5 बिलियन लोगों की पहुंच उपयुक्त शौचालय तक नहीं थी और एक बिलियन लोग अपने आस-पास के क्षेत्रों में खुले में शौच करने जाते थे. दक्षिण एशिया और उप-सहारा वाले अफ्रीका की शौचालयों तक पहुंच सबसे बुरी थी. विकासशील देशों में एक साधारण खुड्डी शौचालय की लागत आम तौर पर 25 से 60 अमेरिकी डॉलर आती है. चालू हालत में शौचालय के रखरखाव की लागत 1.5 से 4 डॉलर प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष आती है जिसपर अक्सर विचार नहीं किया जाता. ग्रामीण भारत के कुछ हिस्सों में महिलाओं को ऐसे व्यक्ति से विवाह करने से इनकार करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए शौचालयों को बढ़ावा देने के लिए "शौचालय नहीं, दुल्हन नहीं" अभियान चलाया गया है. सन्दर्भ स्वच्छता
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A7%E0%A5%AF%E0%A5%A8%E0%A5%AE%20%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%A8%20%E0%A4%93%E0%A4%B2%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4
१९२८ ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत
भारत ने नीदरलैंड्स की राजध्धानी एम्स्टर्डैम में आयोजित १९२८ ग्रीष्मकालीन ऑलंपिक्स में भाग लिया था। 1928 ओलंपिक में भारत ने 21 खिलाड़ियों का दल भेजा था। इन खेलों में पुरुष फ़ील्ड हॉकी टीम ने स्वर्ण पदक जीता था। यह परिपाटी फ़िर १९५६ के ऑलंपिक खेलों तक चली थी। 1928 के ओलिंपिक में कुल ९ टीमों ने भाग लिया था भारत ने सभी मैचों में जीत हासिल की। मेजर ध्यानचंद ने कुल ११ गोल किये। पदक धारक स्वर्ण जयपाल सिंह (कप्तान), रिचर्ड एलन (गोलकीपर), ध्यान चन्द, मॉरिस गेटेले, कुलिन, लेस्ली हैमंड, फ़ीरोज़ खान, जॉर्ज मार्थिन्स, रेक्स नॉरिस, ब्रूम एरिक पिनिगर (उपकप्तान), माइकल रॉक, फ़्रेडरिक सीमैन, अली शौकत एवं सैयद युसुफ़ — मैदानी हॉकी, पुरुष टीम स्पर्धा। सन्दर्भ आधिकारिक ऑलंपिक रिपोर्ट अन्तर्राष्ट्रीय ऑलंपिक समिति का परिणाम डाटाबेस १९२४ ऑलंपिक खेल ओलम्पिक में भारत
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मणिकुंतला सेन
मणिकुंतला सेन (बंगाली: মণিকুন্তল ন; 1911-1987); भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होने वाली पहली महिला थीं। वह बंगाली भाषा के संस्मरण शेडिनर कोठा (अंग्रेजी में इन सर्च ऑफ फ्रीडम: एन अनफिनिश्ड जर्नी के रूप में प्रकाशित) के लिए जानी जाती हैं, जिसमें भारत के इतिहास के कुछ सबसे अशांत समय के दौरान अपने अनुभवों का वर्णन किया है। प्रारंभिक जीवन मणिकुंतला सेन का जन्म बरिसाल में हुआ था, जो अब बांग्लादेश में है। वह राष्ट्रवादी जात्रा नाटककार मुकुंद दास की गतिविधियों के लिए जाना जाती है। ब्रजमोहन कॉलेज, कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने बी.ए की डिग्री प्राप्त की थी तथा 1938 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एम.ए पास किया। 1923 में जब वे बरिशल गए तो सेन महात्मा गांधी से मिली और उन्होंने वेश्याओं के एक समूह को मुक्ति की दिशा में काम करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया। अपनी मित्र बिमलप्रतिभा देवी के माध्यम से वह महिला शक्ति संघ के नेताओं और कई प्रमुख कांग्रेसी महिलाओं से परिचित हुईं; इसने उनके नवजात नारीवाद को पोषित किया और उन्हें समाज में महिलाओं की स्थिति में बदलाव की आवश्यकता के बारे में सोचने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने सौम्येंद्रनाथ टैगोर की क्रांतिकारी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से संपर्क किया। थर्ड इंटरनेशनल का हिस्सा 'असली' कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया तब भूमिगत थी, और बहुत खोज के बाद अंततः उसे पता चला कि इसका मुख्यालय वास्तव में बरिशल में था। सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%A6%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BF
मंददृष्टि
मंददृष्टि (Amblyopia) ऐसा विकार है जिसमें यद्यपि बाहर से नेत्र पूर्णत: स्वस्थ दिखाई देते हैं, परंतु वस्तुत: उनमें किसी भी चीज को स्पष्ट देखने की क्षमता नहीं रहती। परिचय यह विकार कभी-कभी जन्मजात होता है तथा कभी-कभी किसी रोग के उपद्रवस्वरूप बाद में भी उत्पन्न हो जाता है। जन्म से ही दृष्टि में कमी का होना प्राय: एक ही आँख में मिलता है। प्रधान कारण नेत्र की आवर्तन संबंधी विकृति, विषम दृष्टि है तथा इसके साथ ही साथ उस नेत्र में निकटदृष्टि एवं दूरदृष्टि विकार भी रहता है। इस कारण का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि दृष्टि की यह कमी जन्मजात नहीं, बल्कि बाद में ही उत्पन्न हो सकती है, क्योंकि आवर्तन संबंधी विकृति को चश्मे द्वारा ठीक न करने के कारण वस्तु का चित्र ठीक दृष्टिपटल पर नहीं बनता, जिसका फल यह होता है कि उस दृष्टिपटल (retina) से देखने का कार्य लिया ही नहीं जाता, जिसके कारण देखने के कार्य में निपुण बनना तो दूर रहा, दृष्टिपटल अपनी प्रकृतिप्रदत्त शक्ति को भी खो देता है। इस प्रकार की अवस्था को 'कार्य संलग्नता जनित मंददृष्टि' (Amblyopia Exanopsia) कहते हैं। इसलिये यह आवश्यक है कि जन्मजात या शैशवकालीन मोतियाबिंद की शल्य चिकित्सा शीध्र करा लेनी चाहिए, ताकि कार्य न करने के कारण दृष्टिपटल अपनी शक्ति न खो दे। सात या आठ वर्ष की उम्र के पश्चात् उत्पन्न दृष्टि बाधा इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न नहीं करती। इस प्रकार के रोगियों में यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पूर्ण सावधानी के साथ परीक्षा करने के पश्चात् भी चश्मा देने से आरंभ में लाभ नहीं मालूम पड़ता, बल्कि जब कुछ दिनों तक चश्मा लगा लिया जाता है तभी उससे कुछ लाभ मालूम पड़ने लगता है, क्योंकि दीर्घ काल से बेकार दृष्टिपटल धीरे धीरे ही देखने का अभ्यासी होता है। एकनेत्रीय मंददृष्टि बहुधा तिर्यक दृष्टि (squint) का कारण बन जाती है, क्योंकि इस अवस्था में एक नेत्र के विकृत होने के कारण द्विनेत्री दृष्टि (binocular vision) का कुछ भी महत्व नहीं रहता। हिस्टीरिया में होनेवाली मंददृष्टि (hysterical amblyopia) के अंदर पुतली और फंडस (fundus) तो स्वाभाविक अवस्था में रहते हैं, परंतु परीक्षा करने पर दृष्टिक्षेत्र (field of vision) में सर्पिल प्रतिबंध (spiral restriction) मिलता है। इन्हें भी देखें सन्दर्भ रोग आँख
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%97%E0%A4%AE%20%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%28%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29
बेगम जान (फ़िल्म)
बेगम जान वर्ष 2017 की एक एक्शन-ड्रामा प्रधान फ़िल्म है जिसका निर्देशन एवं लेखन राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक श्रीजीत मुखर्जी ने किया है तथा मुकेश भट्ट, विशेष भट्ट एवं प्ले एंटेरटेनमेंट ने सह निर्माण किया है। फ़िल्म के सह-निर्माताओं में साक्षी भट्टट एवं श्री वेंकटेश फ़िल्मस के एक्जिक्युटिव निर्माता कुमकुम सहगल भी सम्मिलित हैं। फ़िल्म का छायांकन गोपी भगत ने किया है। वहीं गीतकार कौसर मुनिरानंद राहत इंदौरी जी ने फ़िल्म के लिए पटकथा एवं संवाद भी लिखा है। फ़िल्म अप्रैल 14, 2017 को प्रदर्शित हुई। अभिनेत्री विद्या बालन फ़िल्म में एक वेश्यालय की मुखिया की शीर्षक भूमिका में हैं, तथा कहानी की पृष्ठभूमि में 1947 के भारतीय स्वतंत्रता के दौर में उपजी विभाजन को रखा गया है। यह बंगाली फ़िल्म राजकाहिनी की रिमेक है। सारांश 1 9 47 में भारत ने अंग्रेजों से स्वतंत्रता मांगी, भारत के अंतिम वायसराय, माउंटबेटनने सिरिल रैडक्लिफ को भारत और पाकिस्तान दोनों हिस्सों में विभाजित करने की जिम्मेदारी सौंपी। रेडक्लिफ ने दो लाइनें बनाईं - एक पंजाब में और बंगाल में एक और। इस लाइन को रेडक्लिफ लाइन के रूप में जाना जाता था। बेगम जान (विद्या बालन) एक वेश्या है जो सक्करगढ़ और दोरंगाला के शहरों के बीच एक वेश्यालय चलाती है। वेश्याएं कई लड़कियां हैं जिन्होंने खुद को उठाया, जो या तो उनके परिवारों द्वारा त्याग दिए गए या उन्हें छोड़ दिया गया था और अब उनके लिए काम करते हैं। वेश्यालय के सदस्यों में एक बुजुर्ग महिला भी शामिल है जिसे अम्मा (इला अरुण), सुजीत (पितोबास त्रिपाठी) नामक एक स्थानीय कार्यकर्ता शामिल हैं, जो अपने ग्राहकों और अंकल सलीम (सुमित निझावान) को लेकर आते हैं। वे सरकारी अधिकारियों हरि प्रसाद (आशिष विद्यार्थी), इलियास खान (रजत कपूर) और इंस्पेक्टर श्याम सिंह (राजेश शर्मा) से यात्रा करते हैं और उन सभी निवासियों से वेश्यालय को बेदखल करने के लिए कह रहे हैं, क्योंकि यह उस भूमि पर है जो रैडक्लिफ रेखा से गुजरना है सुजीत और रूबीना (गौहर खान) के बीच प्रेम को दिखाया गया है। बेगम जान के वेश्यालय को राजा साहब (नसीरुद्दीन शाह) की देखरेख में रखा जाता है, जिनके संरक्षण के तहत वे सुरक्षित और सुन्दर हैं। वह अपने करों और कर्तव्यों का भुगतान करता है बेगम जान इस मामले में उनकी मदद के लिए उन्हें संदेश भेजते हैं। वह वेश्यालय में आती है और उनके लिए प्रस्तुत करता है और उनकी दुर्दशा सुनकर, वह उन्हें यह बताकर आश्वासन देता है कि वह जल्द ही दिल्ली जा रहे हैं और इस मामले पर वहां चर्चा करेंगे। हालांकि, वह युवा शबनम (मिश्ति चक्रवर्ती) के साथ रात बिताने की मांग करते हैं, जो हाल ही में वेश्यालय में दुर्व्यवहार के बाद एक मानसिक क्षति के रूप में शामिल हो गए थे। बेगम को रात में आनंद लेने के लिए कहा जाता है, जबकि वह अपनी रात का आनंद उठाते हैं। वह उपकृत करने के लिए मजबूर है बेगम जान और उसके बैंड को एक महीने का नोटिस देने के बावजूद उन्हें छोड़ने के कई असफल प्रयासों के बाद, हरी और इलियास, एक हताश आखिरी रिज़ॉर्ट के रूप में, सोनपुर में एक कुख्यात हत्यारे कबीर (चंकी पांडे) की सहायता के लिए, उसे धमकी देने के लिए उसके सदस्यों को वेश्यालय खाली करने के लिए राजा साब एक दिन वेश्यालय में वापस लौटे, बेगम जान को यह सूचित करने के लिए कि उनके प्रयास विफल रहे हैं और अब उन्हें वेश्यालय खाली करना होगा। बेगम, जो उम्मीद कर रहा था, निराशा में चौंक गया। कबीर बेगम की प्यारी कुत्तों को मारने के लिए आगे बढ़ते हैं, यहां तक ​​कि बेगम और उनकी लड़कियों को भी अपने मांस खिलाती हैं। वह फिर से सुजीत को मारता है जब वह बेगम जान के कुछ सदस्यों के साथ बाजार से लौट रहा है। वह अपने जीवन का त्याग करते हुए भागने के लिए उन्हें प्रेरित करता है यह हत्या बेगम जान और उसके सदस्यों को आगे बढ़ती है। कबीर की धमकी देने की रणनीति के परिणामस्वरूप, बेगम सलीम से पूछता है कि हर एक लड़की को हथियारों का इस्तेमाल करने और वापस लड़ने के लिए प्रशिक्षण दिया जाए। गहन प्रशिक्षण अभ्यास सत्र आयोजित किए जाते हैं। इस बीच, मास्टरजी (विवेक मुशरान), लाडली के शिक्षक, बेगम जान से प्यार में हैं और उनके प्रस्ताव में, अनजान है कि गुलाबा नामित एक और वेश्या (पल्लवी शारदा), उनके लिए भी भावनाओं की संकोच करते हैं बेगम जान ने अपने प्रस्ताव को खारिज कर दिया और उसे छोड़ने के लिए कहा, एक क्रूर मास्टर की मदद से उसे मारने की योजना बना ली। वह बेलाग जान से विश्वासघात करने वाले वेश्यालय से भागने के लिए गुलाबा को आश्वस्त करता है। गुलाबा ऐसा करता है, लेकिन मास्टरजी उसे छोड़ देता है और उसे एक घोड़े की गाड़ी में अपने साथी द्वारा बलात्कार करने देता है। उसने प्रतिशोध की प्रतिज्ञा दी उसी रात, कबीर और उनके लोग वेश्यालय पर हमला करते हैं, बेगम के रूप में, और लड़कियां लड़ती हैं लेकिन कोई फायदा नहीं। गुलाबॉ वापस लौट आते हैं और बाद में मास्टरजी के गले को मारते हैं, जबकि वह कबीर और उनके गुंडों द्वारा वेश्यालय पर हमला करते हुए देख रहे हैं। हालांकि, वह जल्द ही उसके बाद जल्द ही गोली मार दी गई। गुंडों ने वेश्यालय के अंदर उजाले हुए मशालों को फेंक दिया, जिसके कारण इमारतें लपटों में घिरी हुई थीं। बेगम जान और उनकी लड़कियां एक निश्चित लड़ाई लड़ीं। कई मारे गए हैं वह और उसके चार जीवित सदस्य मुस्कुराते हुए अपने घर को जलते हुए दिख रहे थे; वे इमारत के अंदर चलते हैं और दरवाजे बंद करते हैं। वे मृत्यु को जलाते हैं क्योंकि अम्मा चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मावती की कहानी बताती है, जिन्होंने बेगम जान की दुर्दशा की तरह ही दुश्मनों के हाथों में गिरने से इनकार कर दिया और शहीद होकर शहीद होकर शहीद हो गया।जैसे ही फिल्म समाप्त हो जाती है, इलियास, हरि प्रसाद और श्याम सिंह को उनके कार्यों का अपमान माना जाता है; इलियास खुद को गोली मारता है और हमें वेश्यालय के अवशेष और बेगम जान की विरासत के अंत में दिखाया गया है। कलाकार विद्या बालन - बेगम जान श्रेया सरन ईला अरूण - अम्मा गौहर खान - रुबिना पल्लवी शारदा - गुलाबो प्रियंका - जमीला रिद्धिमा तिवारी - अंबा फ्लोरा सैनी - मैना रविज़ा चौहान - लता पूनम राजपूत - रानी मिष्ठी (इंद्राणी चक्रवर्ती - शबनम  ग्रेसी गोस्वामी - लाडली पितोबाश त्रिपाठी - सुरजीत सुमित निझावन  - सलीम मिर्ज़ा आशीष विद्यार्थी - हर्षवर्धन  चंकी पांडेय - कबीर  रजित कपूर - इलियास विवेक मुशरान - मास्टर राजेश शर्मा - श्याम नसीरुद्दीन शाह - राजा जी निर्माण फ़िल्मांकन एवं शूटिंग संगीत प्रदर्शन सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ 2017 की फ़िल्में हिन्दी फ़िल्में विभाजन आधारित फ़िल्में
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A5%80
बहुवर्गी
जीवविज्ञान में जीवों के किसी समूह के सन्दर्भ में बहुवर्गी या पोलीफायली (Polyphyly) वह दशा होती है जिसमें दो या उस से अधिक एकवर्गी (मोनोफायली) समूहों को इस आधार पर सम्मिलित करा जाता है कि उनमें कुछ जीववैज्ञानिक लक्षण सामान होते हैं, जिस से उन जातियों में अभिसारी क्रमविकास (कॉनवेर्जन्ट एवोल्यूशन) के प्रमाण दिखते हैं। यह पारवर्गी (पैराफायली) से भिन्न है, जिनमें एक सांझी पूर्वज जाति होती है लेकिन जीववैज्ञानिक समानताओं की उपस्थिति अनिवार्य नहीं है। इन्हें भी देखें क्लेड एकवर्गी पारवर्गी सांझा पूर्वज सन्दर्भ वर्गानुवंशिकी
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किंग मैथर्स
रिलैप्स अमरीकी रैपर एमिनेम की छठी स्टूडियो एल्बम है, जो 15 मई 2009 को इंटरस्कोप रिकार्ड्स पर रिलीज़ (जारी) की गयी। अपनी नींद की गोलियों की लत और लेखकों से विवाद के कारण, पांच साल तक रिकॉर्डिंग से दूर रहने के बाद, यह एन्कोर (2004) के बाद मूल रचना पर आधारित उसकी पहली एल्बम है। एल्बम के लिए 2007 से 2009 के दौरान कई रिकॉर्डिंग स्टूडियो में रिकॉर्डिंग सत्र हुए और मुख्य रूप से डॉ॰ ड्रे, मार्क बेट्सन, और एमिनेम ने निर्माण संभाला। सैद्धांतिक रूप से, रिलैप्स उसके ड्रग पुनर्वास की समाप्ति, एक काल्पनिक पतन के बाद रैपिंग तथा उसके स्लिम शैडी पहलू से संबंधित है। अपने पहले सप्ताह में ही 6,08,000 प्रतियां बेच कर एल्बम ने यू.एस. बिलबोर्ड 200 चार्ट पर पहले स्थान से शुरुआत की। 2009 की एक सबसे प्रत्याशित एल्बम रिलीज़ के रूप में, अंततः संयुक्त राज्य अमेरिका में इसकी 19 लाख से अधिक प्रतियां बिकीं और नतीजतन इसके तीन एकल गानों ने चार्ट में सफलता हासिल की। रिलीज़ के दौरान, रिलैप्स को आमतौर पर अधिकतर संगीत आलोचकों से मिश्रित समीक्षाएं मिलीं, उनकी ये प्रतिक्रियाएं अधिकतर एमिनेम के गीत लेखन और विषयों के आधार पर विभाजित थीं। इसके फलस्वरूप 52 वें ग्रेमी पुरस्कारों के दौरान उसे सर्वश्रेष्ठ रैप एल्बम के लिए ग्रेमी पुरस्कार मिला। पृष्ठभूमि 2005 के बाद से ही, एमिनेम अपने संगीत से नाता तोड़ कर हिप हॉप निर्माता बन कर अन्य रिकॉर्ड कार्यों को करने का इच्छुक था, विशेषकर उन कलाकारों के लिए, जो उसके अपने लेबल शैडी रिकॉर्ड्स के लिए साइन किये गये थे। हालांकि, एमिनेम का बुरा दौर तब शुरू हुआ जब 2005 की गर्मियों में थकान और अपनी नींद की गोलियों की लत के कारण यूरोपीयन लेग ऑफ़ द एंगर मैनेजमेंट टूर रद्द करना पड़ा। इसके अगले वर्ष, अपनी पूर्व पत्नी किम्बर्ली स्कॉट से उनका पुर्नविवाह केवल 11 हफ़्तों तक रहा जिसके पश्चात् उनका दोबारा तलाक हो गया, जबकि बाद में उसके करीबी दोस्त और सहयोगी रैपर डिशॉन "प्रूफ" होल्टन की डेट्रॉयट के एक नाईट क्लब के बाहर तकरार के दौरान गोली मार कर हत्या कर दी गयी। इस से निराश हो कर, एमिनेम नशीली दवाओं का आदी बन गया और तेज़ी से खुद में सिमटता चला गया। जून 2009 में XXL के लिए एक साक्षात्कार में, एमिनेम ने स्वयं पर प्रूफ की मौत के प्रभाव के बारे में बताते हुए कहा : मई 2007 से ही एमिनेम द्वारा आगामी एल्बम पर ध्यान लगाने की खबरें 50 सेंट और स्टेट कुओ, जो शैडी रिकॉर्ड के क्रमशः वर्तमान और पूर्व सदस्य थे, द्वारा दी जा रहीं थीं। इसके अतिरिक्त, रैपर बिज़ार - हिप हॉप समूह-D12 के सदस्य - ने बताया कि समूह की तीसरी स्टूडियो एल्बम को रोका गया था क्योंकि इंटरस्कोप रिकॉर्ड्स पहले एमिनेम की एल्बम रिलीज़ करना चाहते थे। वर्ष के अंत तक, शैडी रिकॉर्ड से जुड़े अतिरिक्त संगीतकारों, जिनमे द अलकेमिस्ट, बिशप लेमोन्ट, काशिस और ओबी ट्राइस शामिल थे, ने विभिन्न मौकों पर पुष्टि की कि रैपर नई एल्बम पर जी जान से जुटा हुआ था। 12 सितम्बर 2007 को रेडियो स्टेशन WQHT हॉट 97 पर एक चर्चा में एमिनेम ने कहा कि वह लिम्बो में था और वह निकट भविष्य में कोई भी नई सामग्री रिलीज़ करने के बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कह सकता था। इसके बाद रैपर ने विस्तार से बताया कि वह लगातार रिकार्डिंग स्टूडियो में काम कर रहा था और निजी मुद्दों के निपटने से खुश था। तथापि, दिसंबर 2007 में, एमिनेम को मेथाडोन की अधिक मात्रा में खुराक लेने के कारण अस्पताल में भर्ती किया गया था। 2008 के शुरू में, अपनी लत से बाहर आने के लिए उसने ट्वेल्व स्टेप (12 चरणों में) प्रोग्राम शुरू किया और उसके अनुसार, 20 अप्रैल 2008 से उसने नशा करना छोड़ दिया है। रिकॉर्डिंग 2005 में रैपर द्वारा अपनी नींद की गोलियों की लत का इलाज़ कराने के दो साल बाद, रिलैप्स की रिकॉर्डिंग के शुरूआती चरणों के दौरान, रिकॉर्ड निर्माता और बास ब्रदर्स के लंबे समय से डेट्रॉइट सहयोगी जेफ़ बास ने एमिनेम के साथ 25 गानों पर काम किया। प्रूफ की मौत के कारण, एमिनेम एक अवधि तक कुछ भी नया नहीं लिख सका, क्योंकि उसने महसूस किया कि उसके द्वारा लिखी गयी हर चीज़ रिकॉर्डिंग के लायक नहीं थी। इस से बचने के लिए बास ने ऐसी निर्माण शैली को चुनने का फैसला किया जिसके अनुसार कलाकार को कहानी लिखने की बजाय अपने सर के ऊपर से गुजरने वाले गीत के लिए रैप करना था। इसके बाद एमिनेम मुक्त रूप से या टोकने से पहले एक समय में एक लाइन गाता था और उसके बाद दूसरी लाइन गाता था। इसी समय, एमिनेम के गीत अधिकारों के सुपरवाईज़र, जोएल मार्टिन के अनुसार, रैपर ने ध्यान दिए बिना अतिरिक्त गीतों का संग्रह करना शुरू किया, जैसा कि अक्सर वह दूसरे कलाकारों की संगीत परियोजनाओं को ध्यान में रख कर बनाई गयी चीज़ों के साथ उन्हें रिकॉर्ड कर के या उनका निर्माण कर के करता था, किन्तु अंत में उन्हीं गीतों को चुनता था जिन्हें वह वास्तव में पसंद करता था। एमिनेम द्वारा निर्मित "ब्यूटीफुल", रिलैप्स का इकलौता ऐसा गाना था जिसे उन सालों में रिकॉर्ड किया गया, जब वह शांत नहीं था। 2007 में एमिनेम ने फर्नडेल, मिशिगन, में एफिजी स्टूडियो खरीदा तथा 54 साउंड रिकार्डिंग स्टूडियो की अपनी पूर्व निर्माण टीम से अपने कार्य संबंध ख़त्म कर दिए जिसमे बॉस ब्रदर्स भी शामिल थे। इसके पश्चात् उसने निर्माता डॉ॰ ड्रे के साथ रिकॉर्डिंग जारी रखी, जिन्होनें सितंबर 2007 में कहा कि उनका इरादा खुद को दो महीने तक रिलैप्स के निर्माण के लिए समर्पित करने का था। डॉ॰ ड्रे के साथ काम करते हुए एमिनेम को निर्माण की प्रक्रिया की बजाय, जो कि ज्यादातर ड्रे द्वारा संभाली जाती थी, गाने लिखने की प्रक्रिया पर ध्यान देने का मौका मिला। अपने मिलजुल कर काम करने के लम्बे इतिहास तथा संगीतमय "आपसी समझ", जिसे केवल वह तथा डॉ॰ ड्रे ही समझते थे, के कारण रैपर ने विशाल निर्माण के लिए डॉ॰ ड्रे के चुनाव को सही साबित कर दिया। इससे रैपर को डॉ॰ ड्रे के संग्रह से धुनें चुनने का अवसर मिला, जिससे उसे अलग अलग प्रकारों की तालों के अनुसार अभ्यास करने के लिए चुनौती मिली। इसके एक वर्ष तक एल्बम का निर्माण एफिजी स्टूडियो में हुआ, क्योंकि इसके बाद रिकॉर्डिंग सत्रों को सितंबर 2008 में ओरलेंडो, फ्लोरिडा में स्थानांतरित कर दिया गया। तब तक, एमिनेम ने गीत लेखन को फिर से ऐसी गति पर करना शुरू कर दिया था जिसके कारण अक्सर उसे लिखने की बजाय रिकॉर्डिंग में अधिक समय लगता था। अपनी नयी रचनात्मक गति का कारण उसने संयम बताते हुए स्वीकार किया कि उसका मस्तिष्क उन बाधाओं से मुक्त हो गया था जिन्होंने पिछले वर्षों के दौरान नशीली दवाओं के दुरुपयोग के कारण उसे कुंद कर दिया था। गीत लिखने की प्रक्रिया की शुरुआत में डॉ॰ ड्रे अपनी कई धुनों की सीडी एमिनेम को देते थे, जिन्हें वह स्टूडियो में एक अलग कमरे में सुनता था तथा अपनी पसंद तथा स्वयं को सर्वाधिक प्रेरित करने वाली धुनों को चुनता था। इसके बाद रैपर वाद्य के हिसाब से गीत लिखता था, जबकि डॉ॰ ड्रे व उनका स्टाफ नये संगीत के निर्माण करना जारी रखता था। जब एक बार जब वह महसूस करता था कि वह काफी गीतों के लिए लिख चुका है, तो वह एक पूरा दिन अपने गानों को उस सीमा तक रिकॉर्ड करता रहता था कि आने वाले दिनों में उसकी आवाज़ बैठ जाती थी। उस बिंदु पर, रैपर फिर से नये गानों के लिए गीत लिखना शुरू कर देता था। प्रक्रिया छह महीने तक जारी रही और एमिनेम को अपनी दूसरी एल्बम रिलैप्स 2 के लिए काफी सामग्री भी मिल गयी। इस रिकॉर्डिंग अवधि के दौरान, रिलैप्स के लिए बने कई गाने इंटरनेट पर लीक हो गये, जिसमे "क्रेक अ बोटल" का एक अधूरा संस्करण भी शामिल था। इसके बाद जनवरी 2009 में डॉ॰ ड्रे तथा 50 सेंट के अतिरिक्त स्वरों के साथ गाना ख़त्म हुआ। लीक होने के बावजूद, ब्रिटिश समाचारपत्र द इंडीपेंडेंट के अनुसार, एल्बम को गुप्त रूप से पूरा किया जा रहा था। यहां तक कि इंटरस्कोप के बहुराष्ट्रीय मालिक पोलीडोर रिकॉर्ड्स के अनुसार, उस समय एल्बम की कोई जानकारी नहीं थी। 23 अप्रैल को, एमिनेम ने बताया की केवल उसके तथा डॉ॰ ड्रे के पास रिलैप्स की अंतिम प्रति थी, जबकि उसके मेनेजर पॉल रोज़नबर्ग ने बताया कि अवैध बिक्री से बचने के लिए रिलीज़ करने की तिथि से एक महीने पहले तक म्यूज़िक कम्पनी के पास एमिनेम के रिकॉर्ड लेबल तक नहीं थे। संगीत XXL के लिए एक साक्षात्कार में, एमिनेम ने रिलैप्स की अवधारणा के पीछे अपने नशा पुर्नवास की समाप्ति का हवाला दिया और इसके बाद इस तरह से रैप किया मानो वह नशे में हो, साथ ही साथ उसके काल्पनिक "क्रेज़ी" स्लिम शैडी पहलू की भी वापसी हुई। साक्षात्कारकर्ता डाटवॉन थॉमस के अनुसार, एमिनेम को एल्बम के लिए प्रेरणा उसकी बीती ज़िन्दगी के नशीली दवाओं के मुद्दों के साथ टेलीविज़न शो तथा अपराध व सीरियल किलर (योजनानुसार क्रमबद्ध हत्या करने वाला) से युक्त वृत्तचित्रों से मिली, चूंकि रैपर "सीरियल किलर और उनकी मानसिकता" के प्रति आकर्षित था। मई 2009 में, द न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए गये एक साक्षात्कार में एमिनेम ने सीरियल किलर के बारे में अपने दृष्टिकोण पर चर्चा करते हुए कहा : रिलैप्स की शुरुआत एक छोटे नाटक "डॉ॰ वेस्ट" से होती है, जिसमे अभिनेता डोमिनिक वेस्ट एक ऐसे ड्रग काउंसलर के रूप में आवाज़ देते हैं जिनकी विश्वसनीयता कम होने के कारण एमिनेम पुनः नशीली दवाओं का सेवन करने के साथ, एक बार फिर अपने स्लिम शैडी मैडमैन स्वरूप (पागलों जैसी मानसिकता) में पहुँच जाता है। इस छोटे नाटक के बाद "3 a.m." की शुरुआत होती है जहाँ एमिनेम खुद को देर रात में क्रमवार हत्यों की झड़ी लगाने वाले एक अवसादग्रस्त सीरियल किलर के रूप में पेश करता है। जब "3 a.m." को एल्बम की रिलीज से पहले एकल रूप में जारी किया गया, तो एमिनेम ने पाया कि गीत उस चीज़ को नजदीकी से प्रतिबिम्बित करता है जो उसके अनुसार पूरे एल्बम का नकारात्मक पहलू था। "माय मॉम" में रैपर अपनी नशे की प्रवृत्तियों के विषय में अपनी माँ को बताता है और इस तरह उसे पता चलता है कि वह भी उसकी तरह नशे का आदि हो गया है। एमिनेम अपनी पारिवारिक कहानियों को "इन्सेन" में जारी रखता है, जिसमे वह खुद को एक शोषण के शिकार बच्चे के रूप में देखता है। एमिनेम के अनुसार, "इन्सेन" का लक्ष्य एक ऐसा गीत बनाना था जिससे श्रोताओं को घृणा हो और "उन्हें उल्टी आ जाए", साथ ही बताया कि उन्हें यह विचार गाने की पहली लाइन के बारे में सोचते हुए आया ("I was born with a dick in my brain/Yeah, fucked in the head"). उसकी तथाकथित पूर्व प्रेमिका मारिया कैरे को उसके वर्तमान पति निक केनन के साथ "बैगपाइप्स फ्रॉम बगदाद" में निशाना बनाया गया है, जिसमे एमिनेम एक पुंगी लूप के ऊपर रैप करता है। "हैलो" के बाद, जिसमे एमिनेम खुद को कई वर्षों तक "मानसिक रूप से" अनुपस्थित रहने के बाद दोबारा वापसी करता है, रैपर ने अपनी हिंसक कल्पनाओं को "सेम साँग एंड डांस" में ज़ारी रखा, जहाँ वह लिंडसे लोहान और ब्रिटनी स्पीयर्स का अपहरण करता है तथा हत्या कर देता है। "सेम साँग एंड डांस" की उत्तेजित धुन एमिनेम को उस डांस ट्रेक की याद दिलाती है, जिसने उसे कुछ ऐसा लिखने के लिए प्रेरित किया जिसे सुन कर "महिलाएं बोल सुने बिना डांस करने लगती हैं और वास्तव में नहीं जान पातीं कि वे किस बकवास गाने के लिए डांस कर रहीं हैं"। एल्बम के नौंवें गाने, "वी मेड यू" में एमिनेम कई प्रसिद्ध हस्तियों की नक़ल करता है और एक "पॉप स्टार सीरियल किलर" की भूमिका निभाता है। एमिनेम ने पाया कि उसकी विभिन्न "प्रसिद्ध हस्तियों पर चोट" व्यक्तिगत कारणों से नहीं थी, अपितु अपनी लेखन प्रक्रिया के दौरान तुकबंदी के लिए "एकदम से दिमाग में आये हुए नामों को उठा" लिया गया था। "मेडिसिन बॉल" में एमिनेम मृतक अभिनेता क्रिस्टोफर रीव की नक़ल तथा उनके जैसा अभिनय करता है, ताकि उसके दर्शक "इस पर हंसें और इसके फ़ौरन बाद उन्हें अपनी हंसी लगभग बुरी लगे।" अगला गाना स्टे वाइड अवेक है जिसमे काफी भयानक मारधाड़ है। एमिनेम महिलाओं पर हमला करने और उनके साथ बलात्कार के बारे में रैप करता है। डॉ॰ ड्रे ने भी "ओल्ड टाइम्स सेक में एक मेहमान भूमिका निभाई है, एक युगल गीत जिसे एमिनेम एक "मजेदार, किन्तु पुराने समय की याद दिलाने वाले" गीत के रूप में वर्णित करता है, जिसमे वह तथा डॉ॰ ड्रे एक दूसरे के बाद रैपिंग करते हैं। इस गाने के बाद "मस्ट बी गांजा" आता है जिसमे एमिनेम मानता है कि रिकॉर्डिंग स्टूडियो में काम करना उसके लिए एक नशीली दवा और लत की तरह है।" "मि. मैथर्स" नामक छोटे नाटक के बाद, जिसमे एमिनेम एक अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता है, "देजा वू" 2007 में उसकी ओवरडोज़ और संगीत से दूरी के बाद उसकी नशे पर निर्भरता के विषय में बताता है। गाने में एमिनेम यह भी बताता है कि इसने किस प्रकार उसके पिछले पांच सालों में प्रभावित किया है, जिसमे एक दौर ऐसा भी आया जब उसकी बेटी अपने पिता के व्यवहार से डरने लगती है। "ब्यूटीफुल", एक कहानी है जिसकी प्रेरणा रॉक थेरेपी के "रीचिंग आउट" से ली गयी है, भी उसी समय को दर्शाती है जब एमिनेम को यह विश्वास हो चला था कि वह "पतन के गर्त" तक पहुँच गया था और अपने भविष्य की अंतिम आशा को खो चुका था। एमिनेम को लगा कि स्वयं को याद दिलाने के लिए "ब्यूटीफुल" के साथ साथ "एनीबॉडी हू इज़ इन अ डार्क प्लेस [...] देट यू केन गेट आउट ऑफ़ इट" को एल्बम में शामिल करना महत्त्वपूर्ण होगा। "क्रैक अ बोटल", जिसमे डॉ॰ ड्रे और 50 सेंट ने मिल कर काम किया है, के बाद रिलैप्स की समाप्ति "अंडरग्राउंड" से होती है। एल्बम के अंतिम गाने में एमिनेम ने अपने कुख्यात होने के बाद अपने संगीत और गीतों के सार और पंचलाइनों को "द हिप हॉप शॉप टाइम्स" की यादों के द्वारा (हिपहॉप दुकान डेट्रॉयट में एक कपड़े की दुकान थी जहां स्थानीय रैपर-जिनमे एमिनेम भी शामिल था-आपस में मुकाबला करते थे) दोबारा ढूँढने की चेष्टा की है और इसीलिए उसने अपने गाने की अश्लील सामग्री के बारे में परवाह नहीं की। एल्बम की समाप्ति केन केरिफ की वापसी के साथ होती है, एक बिंदास समलैंगिक चरित्र, जो एन्कोर से पहले एमिनेम की हर एल्बम में दिखाया गया था। रिलीज़ और प्रचार 2007 में, शैडी रिकार्डस के रैपर काशिस ने इस का शीर्षक किंग मैथर्स के नाम से बताते हुए एल्बम के विषय में चर्चा करते हुए कहा कि यह उस वर्ष रिलीज़ हो जायेगी। बहरहाल, एमिनेम के प्रचारक डेनिस डेनेही ने इसका खंडन करते हुए कहा कि "2007 में कोई एल्बम रिलीज़ नहीं की जानी थी" और बताया कि अगस्त 2007 तक इसका कोई निश्चित शीर्षक भी नहीं था। इसके एक साल बाद कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया, जिसके बाद 15 सितम्बर 2008 को, एमिनेम की आत्मकथा "द वे आई एम् " के प्रकाशन के जश्न के मौके पर शेड 45 द्वारा आयोजित एक समारोह में, रैपर ने रिलैप्स के नाम से एक स्टूडियो एल्बम को रिलीज़ करने की अपनी योजना की पुष्टि की. पार्टी के दौरान, उसने दर्शकों के सामने "आई'एम् हेविंग अ रिलैप्स" नामक गीत का अंश भी गाया। एल्बम को जारी करने की तिथि के संबंध, रॉलिंग स्टोन ने अक्टूबर 2008 के लेख में लिखा कि वर्जिन मेगास्टोन ने 27 नवम्बर 2008 को रिलैप्स के वितरण की योजना बनाई थी, जो कि संयोग से संयुक्त राज्य अमेरिका में थैंक्सगिविंग डे था। 27 अक्टूबर को इंटरस्कोप के एक प्रवक्ता ने बताया कि अभी तक कोई आधिकारिक तिथि तय नहीं की गयी थी और किसी भी वेबसाईट द्वारा पोस्ट की गयीं रिलीज़ की तिथियाँ निराधार थीं। 16 नवम्बर 2008 को टोटल रिक्वेस्ट लाइव के समापन के दौरान फोन पर बातचीत करते हुए एमिनेम ने दृढ़तापूर्वक कहा कि रिलैप्स 2009 की पहली तिमाही में, सही तौर पर कहें तो साल के पहले दो महीनों में कभी भी, रिलीज़ की जाएगी, तथा बताया कि वह एल्बम के लिए गानों का चयन कर रहा था। दो महीने पहले लीक होने के बावजूद, "क्रैक अ बोटल" और प्रोमोशनल सिंगल को आख़िरकार 2 फ़रवरी 2009 में वैधानिक भुगतान के बाद डिजिटल डाउनलोड के लिए जारी किया गया, तथा यू.एस. बिलबोर्ड हॉट 100 में पहले स्थान पर भी पहुँच गया, जबकि एमिनेम के मैनेज़र पॉल रोज़नबर्ग के अनुसार गाने के लिए म्यूजिक वीडियो का निर्माण तथा निर्देशन सिंड्रोम द्वारा किया गया और मई से ले कर जून के शुरू में कई भागों में इसे जारी किया गया। रिलीज़ के समय कई विरोधाभासी ख़बरों में गाने को रिलैप्स में शामिल किये जाने पर विवाद हुआ। प्रारंभिक भ्रम के बावजूद, अंततः यूनिवर्सल म्यूज़िक ग्रुप ने एक प्रेस विज्ञप्ति में आख़िरकार इस गाने को एल्बम में शामिल किए जाने की पुष्टि की। 5 मार्च के बाद, इसी तरह के प्रेस बयानों के जरिये यूनिवर्सल ने रिलैप्स की क्षेत्रीय रिलीज की तारीख सार्वजनिक की। जल्द ही एल्बम 15 मई 2009 को इटली और नीदरलैंड में मिलनी थी, जबकि अधिकांश यूरोपीय देशों और ब्राज़ील में यह 18 मई तथा इसके एक दिन बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी बेचीं जानी थी। इसके अतिरिक्त, रिकॉर्ड लेबल पर एमिनेम की दूसरी एल्बम, रिलैप्स 2 की भी घोषणा की गयी जो साल के अंत तक रिलीज़ की जानी थी। एमिनेम ने बताया कि उसने तथा डॉ॰ ड्रे ने काफी मात्रा में संगीत रिकॉर्ड कर रखा था और दोनों एलबम को रिलीज़ करने के पश्चात् श्रोता सभी गाने सुन सकते थे। क्रैक अ बोटल को रिलीज़ करने के पश्चात्, "वी मेड यू" का म्यूज़िक विडियो 7 अप्रैल को प्रसारित किया गया और इसके एक सप्ताह बाद 13 अप्रैल को यह खरीदने के लिए उपलब्ध हो गया। वीडियो को जोसेफ काहन द्वारा निर्देशित किया गया था और इसका प्रीमियर एमटीवी के कई चैनलों के साथ एमटीवी की वेबसाइट पर भी किया गया। 28 अप्रैल को, एल्बम के तीसरे एकल गीत, "3 a.m." को एक बार फिर से भुगतान के पश्चात् संगीत डाउनलोड के लिए रिलीज़ किया। "3 a.m." का म्यूज़िक विडियो सिंड्रोम द्वारा निर्देशित था और डेट्रॉयट में फिल्माया गया था। कई दिनों तक वीडियो के ट्रेलर ऑनलाइन दिखने के बाद, इसका प्रीमियर 2 मई को सिनेमैक्स पर हुआ। एलबम की रिलीज से पहले "ओल्ड टाइम्स सेक" और "ब्यूटीफुल" के रूप में दो और एकल वितरित किये गये थे जिन्हें iTunes स्टोर पर क्रमशः 5 मई और 12 मई को बिक्री के लिए भेजा गया। एल्बम के प्रीमियम संस्करण की खरीद पर "माय डार्लिंग" और "केयरफुल व्हाट यू विश फॉर" उपलब्ध थे। इससे पहले 4 अप्रैल 2009 में, 2009 NCAA अंतिम चार, की कवरेज के दौरान CBS पर एमिनेम को एक भाग में दिखाया गया जहाँ उसने "लव लैटर टू डेट्रॉयट" के कुछ शब्द गाये। बाद में उसी दिन रैपर ने हिप हॉप ग्रुप रन - DMC टू द रॉक और रोल हॉल ऑफ फेम के बारे में भी बताया। द डेट्रायट न्यूज़ के एडम ग्राहम ने इसे रिलैप्स के लिए "पहले से सोचे गये प्रचार का एक हिस्सा" बताया। 31 मई को रैपर ने 2009 MTV मूवी अवार्ड्स के दौरान लाइव प्रदर्शन किया, जबकि जून 2009 में वह हिप हॉप मैगजीन वाइब तथा XXL के संस्करणों के मुखपृष्ठ पर दिखाई दिया, जिसमे दूसरी में उसे रिलैप्स का प्रचार करने के लिए एमिनेम और मार्वेल कॉमिक्स के बीच हुए एक समझौते के तहत दिखाया गया था, जिसके अनुसार यदि मार्वल उसे तथा द पनिशर को लेकर कोई संस्करण बनाता है तो उसे कानून को हाथ में लेने वाले मार्वेल के मुख्य किरदार द पनिशर के रूप में पोज़ देना था। 19 मई 2009 को एल्बम के साथ एक iPhone गेम जारी की गयी। नेवर से नेवर टूर पर समूह के साथी सदस्यों रॉयस दा 5'9" के साथ स्विफ्टी व कुनिवा (D12) को रिलैप्स के बारे में लाइव साक्षात्कार तथा बातचीत करने के लिए किस 100FM द्वारा रोक दिया गया। रॉयस ने कहा कि एलबम खेल को बदल कर रख देगी और मजाक में कहा कि एमिनेम द्वारा अपनी एल्बम को उतारने के बाद उसे स्वयं की एल्बम को तीन साल तक पीछे धकेलना पड़ सकता है। कुनिवा ने कहा कि D12 ने रिलैप्स के लिए कई गाने रिकॉर्ड किये किन्तु उसे यकीन नहीं था कि इनसे एल्बम बनेगी अथवा नहीं। इसके बाद स्विफ्टी ने पुष्टि की कि वास्तव में 2009 में एमिनेम दो एल्बम उतारने जा रहा था, रिलैप्स के बाद रिलैप्स 2। रिलैप्स को 21 दिसंबर,2009 को सात बोनस गानों के साथ दोबारा रिलैप्स:रिफिल के रूप में जारी किया गया, जिसमे एकल "फॉरएवर" (मूलतः मोर देन अ गेम साउंडट्रेक पर) और "टेकिंग माय बॉल" (डीजे हीरो के साथ रिलीज़) सहित पांच पुराने बिना रिलीज़ किये गये गाने शामिल थे। इसके फिर से रिलीज पर, एमिनेम ने कहा "मैं मूल रूप से बनाई गयी योजना से इतर प्रशंसकों के लिए इस वर्ष और अधिक सामग्री वितरित करना चाहता हूँ। आशा है कि द रिफिल के ये गाने प्रशंसकों को तब तक बांध कर रखेंगे जब तक कि अगले साल तक हमारी रीलैप्स 2 नहीं आती"। आर्टवर्क रिलैप्स एल्बम का कवर सबसे पहले 21 अप्रैल 2009 को एमिनेम के ट्विटर अकाउंट के माध्यम से प्रकाशित किया गया था। इसमें रैपर के सिर को दवा की हजारों गोलियों द्वारा ढके हुए दिखाया गया है। कवर पर एक स्टीकर दवा के पर्चे के लेबल की तरह है, जिसमे एमिनेम रोगी है और डॉ॰ ड्रे चिकित्सक हैं। एमटीवी न्यूज़ के गिल कौफ्मैन ने कवर को रैपर के संघर्ष तथा नशीली दवाओं की लत से जोड़ कर वर्णित करते हुए कहा, कि इस कला में एमिनेम द्वारा अपने निजी मुद्दों को प्रदर्शित करने की आदत का ही प्रदर्शन है। एल्बम बुकलेट और बैक कवर में दवाइयों के पर्चों के डिज़ाइन थे। बुकलेट के पीछे प्रूफ को श्रद्धांजली अर्पित की गयी है, जहाँ एमिनेम बताता है कि वह संयमित है तथा उसने उसके लिए गाना लिखने का प्रयास किया, लेकिन कोई भी इतना अच्छा नहीं था इसलिए वह पूरी एल्बम उसे समर्पित करता है। सीडी खुद को एक दवा की बोतल पर ढक्कन के रूप में प्रदर्शित करती है जिसमे स्लेटी रंग पर बड़े बड़े लाल अक्षरों में लिखा हुआ है "पुश डाउन एंड टर्न"। प्रतिक्रिया व्यवसायिक प्रदर्शन 2009 की एक सबसे प्रत्याशित एल्बम के रूप मॅ, रिलैप्स साल की सर्वाधिक बिकने वाली हिप हॉप एल्बम भी थी। अपनी रिलीज़ के समय, रिलीज के पहले हफ्ते में अपनी 6,08,000 प्रतियां बेच कर एल्बम ने यू.एस. बिलबोर्ड 200 चार्ट पर प्रथम स्थान से शुरुआत की। यू.एस. के अतिरिक्त, अन्य कई देशों में भी रिलैप्स अपने पहले हफ्ते में प्रथम स्थान पर पहुँचने में सफल रही जिनमे ऑस्ट्रेलिया, फ़्रांस, नोर्वे, डेनमार्क और न्यूज़ीलैंड शामिल थे, जबकि इसके अलावा इसने कई देशों में चोटी के पांच गानों में जगह बनाई, जिनमे जर्मनी, इटली, फिनलैंड, स्पेन, बेल्जियम, नीदरलैंड, ऑस्ट्रिया, स्विट्जरलैंड और स्वीडन शामिल थे। अपने दूसरे हफ्ते में एल्बम दूसरे स्थान पर टिकी रही तथा 2,11,000 प्रतियों सहित कुल 8,19,000 प्रतियां बेच कर साल की पांचवी बेस्ट सैलर बन गई। तीसरे सप्ताह में 1,41,000 प्रतियां और बेचने के बाद, अमेरिका में केवल तीन हफ़्तों में 9,62,000 प्रतियां बेच कर रिलैप्स दूसरे स्थान पर पहुँच गयी, चौथे सप्ताह में तीसरे स्थान पर गिरते हुए रिलैप्स ने 87,000 प्रतियां बेच कर अपनी कुल बिक्री को 10,49,000 प्रतियों तक पहुंचा दिया। अगले हफ्ते, रिलैप्स चौथे स्थान पर खिसक गयी और 72000 प्रतियां बेचीं गयीं। अपने छठे सप्ताह में, रिलैप्स 47,000 प्रतियां बेच कर पांचवें स्थान पर थी जिससे इसकी अमेरिका में कुल बिक्री 11,69,000 पर पहुँच गयी। अपने सातवें सप्ताह में नौंवे स्थान पर पहुँचने के साथ रिलैप्स ने 39,000 प्रतियों की बिक्री के साथ कुल यू.एस. बिक्री को 12,07,000 पर पहुंचा दिया। अपने आठवें सप्ताह में 34,000 प्रतियां और बेच कर अपनी कुल यू.एस. बिक्री को 12,41,000 तक पहुंचा कर रिलैप्स नौंवें स्थान पर बनी रही। यह 2009 की बेस्ट सैलर रैप एल्बम बन गयी। एल्बम की संयुक्त राज्य अमेरिका में 18,91,000 से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। आलोचनात्मक प्रतिक्रियाएं अपनी रिलीज़ के समय, मेटाक्रिटिक के 59/100 के कुल अंकों के आधार पर एल्बम को आम तौर पर आलोचकों से मिश्रित समीक्षाएं प्राप्त हुईं। "प्रभावशाली ढंग से केन्द्रित तथा अच्छा काम" कहने के बावज़ूद, लॉस एंजिल्स टाइम्स के लेखक एन पॉवेर्स ने इसे सामान्यतः मिश्रित समीक्षा दी और पाया कि इसका संगीत "उत्कृष्ट नहीं था", यह कहते हुए कि "एमिनेम अपने संगीत को नयी श्रेणी में पहुंचा सकता था। उसके द्वारा प्रस्तुत किया गया अभी भी शक्तिशाली है, लेकिन संकीर्ण ढंग से फिल्माया गया है"। NME के लुईस पैटिसन ने रिलैप्स को 5/10 अंक दिए और पाया कि एमिनेम का शब्द खेल "नीचता की गहराई तक दुष्ट" था, किन्तु अंततः महसूस किया कि "एल्बम का जरूरत से अधिक एहसास अत्यंत थकाने वाला, तथा सही मायनों में अपनी फॉर्म को प्राप्त करने के रूप में आनंदरहित था। MSN म्यूज़िक की अपनी उपभोक्ता गाइड में, आलोचक रॉबर्ट क्रिस्टगो ने एल्बम को B रेटिंग दी और इसे "माह की सबसे खराब" का नाम देते हुए संकेत दिया "एक खराब रिकॉर्ड जिसका विवरण शायद ही कभी इसके अतिरिक्त और विचारों को जन्म देता है। ऊपरी स्तर पर पर यह जरूरत से अधिक मूल्यांकन प्राप्त, निराशाजनक या कुंठित हो सकता है। निचले स्तर पर यह घृणित हो सकता है"। क्रिस्टगो ने एमिनेम के गीतों के लिए नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की और उसे यह कहते हुए सनसनी फ़ैलाने का आरोपी करार दिया कि "यह स्लिम शैडी एल्बम नहीं है। स्लिम शैडी अपने आप में आलोकमय था।" द विलेज वॉइस के थिओन वेबर ने इसके सनसनीखेज गीतों की आलोचना करते हुए कहा "एक नम गुंजायमान चैम्बर जिसमें वह व्यर्थ के अलगाव में अपनी "सदमा देने वाली शैली" को जारी रखता है"। 5 में से 4 स्टार देते हुए रोलिंग स्टोन के लेखक रोब शेफील्ड ने इसे "और अधिक दर्दनाक, ईमानदार और महत्वपूर्ण रिकॉर्ड" बताया, जिसे उन्होनें एमिनेम की बहुप्रशंसित तीसरी एलबम द एमिनेम शो के साथ देखा था। आलम्यूज़िक के स्टीफन थॉमस अर्लवाइन ने इसे "संगीत के हिसाब से हॉट, सघन और नाटकीय" एल्बम के रूप में वर्णित किया और कहा कि "उसका प्रवाह इतना बढ़िया है, उसकी शब्दों के साथ खेलने की गति इतनी तेज़ है कि यह कल्पना करना बेईमानी लगता है कि उसने अपने लम्बे समय से दिमाग में घर बनाए हुए विचारों तथा दुष्टों के अतिरिक्त किसी और को संबोधित किया है"। द डेली टेलीग्राफ ने एमिनेम के नशे की लत और इसकी अति को ईमानदारी से दिखाने के लिए एल्बम की सराहना की। एंटरटेनमेंट वीकली के लिया ग्रीनब्लाट ने इसे A-रेटिंग दी और कहा " रिलैप्स के असली प्रतिध्वनि नाजुक, दु:खद प्रतिभा से आती है जो उस चित्रित मुसकान के पीछे है। वाईब के बैंजामिन मिडोस इन्ग्राम के अनुसार एल्बम की अवधारणा "दोषयुक्त" थी, लेकिन उन्होनें एमिनेम के गीत लेखन की प्रशंसा करते हुए लिखा, " खुद की रैप कला का सीमाओं से बाहर विस्तार करते हुए..., एम् शब्दों के साथ चमत्कारिक काम करता है, रचना प्रयोगात्मक और भावात्मक है, एक विशेषज्ञ फार्म के साथ खेलता है"। इसके विपरीत, पॉपमैटर्स के एलन रान्ता ने रिलैप्स को 3/10 अंक दिए और लिखा "स्पष्ट शब्दों में, विक्षिप्त होने के कारण इस तरह की कट्टर नफरत से भरा भाषण देना कोई अच्छा बहाना नहीं है, खासकर जब यह इस तरह के बिना कोई साज सज्जा के साथ पेश किया जाए। संक्षेप में, रिलैप्स एक जबरदस्ती चमकाई गयी नफरत से भरी खिचड़ी से अधिक कुछ नहीं है, जो समाज के दिशा के साथ चलने के लिए अनुकूल नहीं है।" स्पूतनिकम्यूज़िक के जॉन ए हैन्सन ने इसे 5 में से 1 स्टार दिया और पाया कि एमिनेम के गीतों में सार की कमी थी। एल्बम ने 52 वें ग्रेमी पुरस्कार समारोह में सर्वश्रेष्ठ रैप एल्बम का ग्रेमी पुरस्कार जीता। ट्रैक लिस्टिंग सभी गाने एमिनेम द्वारा लिखे गए थे। सैंपल क्रेडिट "इन्सेन" में रोंडा बुश द्वारा लिखित "जॉक बॉक्स" के कथन शामिल हैं, जिन्हें वास्तव में द स्किनी बॉयज़ ने प्रदर्शित किया था। "वी मेड यू" में वॉल्टर एगन की "हॉट समर नाइट्स" के कथन शामिल है। "ब्यूटीफुल" में क्वीन + पॉल रोजर्स की "रीचिंग आउट" के अंश शामिल हैं। "क्रैक अ बोटल" में माइक ब्रेंट की "Mais dans ma lumière" के कथन शामिल हैं। स्टाफ जेफ बास - ट्रैक 17 में कीबोर्ड, बास और गिटार मार्क बट्सन - 17 को छोड़कर सभी ट्रैक्स में कीबोर्ड एरिक "जीसस" कूम्स - ट्रैक 3, 13 14 और 18 में गिटार; ट्रैक 13, 14 और 18 में बास सीन क्रूज़ - ट्रैक 5 और 16 में गिटार डॉ॰ ड्रे - कार्यकारी निर्माता, ट्रैक 1-16, 18-20 में निर्माता, ट्रैक 1–10, 12–16, 18–20 में मिक्सिंग इंजीनियर माइक एलिजोंडो - ट्रैक 2, 4, 8 और 12 में गिटार; ट्रैक 2, 4 और 5 में कीबोर्ड; ट्रैक 2 में बास पॉल फोले - ट्रैक 15 और 20 पर रिकॉर्डिंग इंजीनियर ब्रायन "बिग बास" गार्डनर - मास्टरिंग इंजीनियर कॉनोर गिलिगन - ट्रैक 6 में सहायक इंजीनियर टॉमी हिक्स, जूनियर - ट्रैक 3, 4, 13, 14 और 18 में सहायक इंजीनियर मौरिसियो "वीटो" इरागोरी - ट्रैक 1-10, 12-16, 18-20 में रिकॉर्डिंग इंजीनियर ट्रेवर लॉरेंस, जूनियर - ट्रैक 1-6, 8, 12-14 में कीबोर्ड ट्रेसी नेल्सन - ट्रैक 14 में पार्श्व स्वर डवॉन पार्कर - 9 और 17 के अलावा सभी ट्रैक में कीबोर्ड लिज़ेट रैन्गल - ट्रैक 20 में सहायक इंजीनियर लुइस रेस्टो - ट्रैक 17 में कीबोर्ड रॉबर्ट रेयेस - ट्रैक 1-10, 12-16, 18-20 में सहायक इंजीनियर रुबेन रिवेरा - ट्रैक 20 में रिकॉर्डिंग इंजीनियर जो स्ट्रेंज - ट्रैक 1-10, 12, 15-20 में सहायक इंजीनियर माइक स्ट्रेंज - ट्रैक 17 में मिक्सिंग इंजीनियर, ट्रैक 1-6, 8-10, 12-20 में रिकॉर्डिंग इंजीनियर चार्मेगने ट्रिप - ट्रैक 9 में कोरस (सहगान) स्वर चार्ट चार्ट स्थिति और बिक्री चार्ट प्रगति और सफलता रिलीज़ इतिहास नोट्स सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक एल्बम वेबसाइट डिस्कोग्स पर रिलैप्स 2009 एल्बम एमिनेम एल्बम आफ्टरमाथ इंटरटेनमेंट एल्बम डॉ॰ ड्रे द्वारा निर्मित एल्बम एमिनेम द्वारा निर्मित एल्बम मार्क बैट्सन द्वारा निर्मित एल्बम हॉररकोर एल्बम शैडी रिकॉर्ड्स एल्बम
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अस्तोला द्वीप
अस्तोला (استولا) या सतदीप (अर्थ: सात पहाड़ियों वाला द्वीप) या हफ़्त तलार (ہفت تلار) पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रान्त के मकरान तट से २५ किमी (१६ मील) दूर अरब सागर में स्थित एक द्वीप है। इस पर कोई स्थाई आबादी नहीं है और यह पास के पसनी नामक क़स्बे व बंदरगाह से लगभग ५ घंटों में पहुँचा जा सकता है। प्रशासनिक नज़र से यह बलोचिस्तान के ग्वादर ज़िले में पड़ता है। आबादी न होने के कारण यहाँ प्रकृति का राज है और कई पक्षी व जानवर यहाँ रहते हैं। भूगोल अस्तोला द्वीप एक ढलान वाले पठार का बना हुआ है जिसपर सात पहाड़ी टीले हैं। वातावरण शुष्क होने के कारण पौधे व पेड़ कम हैं। द्वीप का दक्षिणी छोर धीमी ढलान से समुद्र-तल तक आता है जबकि उत्तरी छोर पर अचानक गहरी खाई के बाद समुद्र है। अस्तोला पाकिस्तान का सबसे बड़ा समुद्री द्वीप है। यह ६.७ किमी (४.२ मील) लम्बा और २.३ किमी (१.४ मील) चौड़ा है। इसका क्षेत्रफल लगभग ६.७ वर्ग किमी (२.६ वर्ग मील) है। मंदिर व मस्जिद अस्तोला को प्राचीन काल में सतद्वीप बुलाया जाता था जो इसके सात टिलों पर आधारित नाम है। यहाँ काली का एक प्राचीन मंदिर है जो हिन्दुओं के लिए तीर्थ है लेकिन वर्तमान काल में यह खंडहर बन चुका है। द्वीप पर एक छोटी मस्जिद भी है जिसे अनुकूल मौसम में यहाँ पसनी से मछली पकड़ने आये मछुआरे प्रयोग करते हैं। इन्हें भी देखें ग्वादर मकरान सन्दर्भ पाकिस्तान के द्वीप बलोचिस्तान हिन्दू तीर्थ स्थल हिन्द महासागर के द्वीप
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तेज पत्ता (बे लीफ)
तेज़ पत्ता, बे लॉरेल के एक सुगन्धित पत्ते को सन्दर्भित करता है (लौरस नोबिलिस, लौरेसिया). ताज़ा या सूखे तेज़ पत्तों को उनके विशिष्ट स्वाद और खुशबू के लिए खाना पकाने में इस्तेमाल किया जाता है। इन पत्तों का इस्तेमाल अक्सर सूप, दमपुख्त, ब्रेजों और पैटे जैसे भूमध्यसागरीय व्यंजनों में स्वाद के लिए किया जाता है। ताज़ा पत्ते बहुत मंद होते हैं और तोड़े जाने और कई हफ्तों तक सुखाये जाने तक वे अपना पूरा स्वाद विकसित नहीं कर पाते हैं। वर्गीकरण कई अन्य पौधे "बे लीफ" शब्द का उपयोग करते हैं, लेकिन वह बे लॉरेल की पत्तियों के सन्दर्भ में नहीं होता. इनमें शामिल है: कैलिफोर्निया बे लीफ कैलिफोर्निया बे वृक्ष की पत्तियां (अम्बेल्युलारिया कैलिफोर्निका), जिन्हें 'कैलिफोर्निया लॉरेल', 'ओरेगन मायर्टल' और 'पेपरवुड' के नाम से भी जाना जाता है, भूमध्यसागरीय बे के समान होते हैं, लेकिन इसका स्वाद और अधिक कड़क होता है। "इंडियन बे लीफ" (तेज़ पत, तेज़पत, तेज़पत्ता या तमालपत्र या "बिरयानी आकु" या "बगारा आकु" या "पल्लव आकु" तेलुगू में या "पुनाई इलाई" तमिल में) दिखने में, सिनेमोमम तेज़पत्ता (मालाबाथरम) वृक्ष के पत्ते अन्य तेज पत्तों के समान होते हैं लेकिन पाक शाला संबंधी उपयोगों में यह काफी भिन्न होते है, जिसमें दालचीनी (कासिया) के जैसी खुशबू और स्वाद होता है लेकिन यह उनसे हलके होते हैं। पाक कला के सन्दर्भ में, इसे तेज़ पत्ता कहना भ्रामक होता है, क्योंकि यह बे लॉरेल पेड़ से एक भिन्न प्रजाति का होता है, इसका स्वाद बे लॉरेल पत्ते के समान नहीं होता और इसे खाना पकाने में बे लॉरेल पत्तों के एक विकल्प के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. "इन्डोनेशियाई तेज़ पत्ता" या "इन्डोनेशियाई लॉरेल" (सलाम पत्ता) सिज़िगियम पोलियैनथम के पत्ते. इसे आमतौर पर इंडोनेशिया के बाहर नहीं पाया जाता है, इस जड़ी बूटी को मांस और कभी-कभी सब्जियों में इस्तेमाल किया जाता है। भारतीय तेज पत्ते की तरह, इसे भी गलत ढंग से यह नाम दिया गया है क्योंकि यह पौधा वास्तव में मायरटेसिया परिवार का सदस्य है। इतिहास बे लॉरेल वृक्ष को लिखित इतिहास की शुरुआत से उगाया जाता रहा है। तेज़ पत्ता एशिया माइनर में शुरु हुआ और भूमध्य और उपयुक्त मौसम वाले अन्य देशों में फैल गया। तेज़ पत्ता उत्तरी क्षेत्रों में नहीं उगाया जाता है, क्योंकि ये पौधे ठंडी जलवायु में नहीं पनपते हैं। तुर्की तेज़ पत्ते के प्रमुख निर्यातकों में से एक है, हालांकि इन्हें फ्रांस, बेल्जियम, इटली, रूस, मध्य अमेरिका, उत्तर अमेरिका और भारत के क्षेत्रों में भी पाया जाता है। लॉरेल वृक्ष जिससे तेज़ पत्ता प्राप्त किया जाता है यूनान और रोम में प्रतीकात्मक और वस्तुतः दोनों ही रूप से बहुत महत्वपूर्ण था। लॉरेल को प्राचीन पौराणिक कथाओं में पाए जाने वाले केंद्रीय घटक के रूप में पाया जाता है जो इस पेड़ को सम्मान के प्रतीक के रूप में महिमा मंडित करता है। तेज़ पत्ता यूरोप और उत्तरी अमेरिका में पाक क्रिया में सबसे व्यापक रूप से प्रयोग किए जाने वाली जड़ी बूटीयों में से एक है। स्वाद और सुगंध अगर साबूत खाया जाए तो, तेज़ पत्ते तिक्त होते है और इसका स्वाद तेज़, कड़वा होता है। जैसा की कई मसालों और स्वाद में वृद्धि करने वाले सामग्रियों के साथ होता है, तेज़ पत्ते की सुगंध उसके स्वाद से अधिक उल्लेखनीय है। सुखाये जाने पर, इसकी खुशबू जड़ी बूटी जैसी, थोड़ी सी पुष्प जैसी और कुछ हद तक अजवायन के पत्ते और जलनीम के जैसी होती है। माइक्रीन, जो कई सुगन्धित तेलों का घटक है जिनका इस्तेमाल परफ्यूम बनाने में किया जाता है, उसे तेज़ पत्ते से निकाला जा सकता है। तेज़ पत्ते में सुगन्धित तेल यूजेनोल भी शामिल है। उपयोग तेज़ पत्ता कई यूरोपीय व्यंजनों (विशेष रूप से भूमध्य क्षेत्र के) को पकाने की एक विशेषता है और साथ ही उत्तरी अमेरिका में भी इस्तेमाल किया जाता है। उनका इस्तेमाल सूप, दमपुख्त, मांस, समुद्री भोजन और सब्जियों के व्यंजन में किया जाता है। ये पत्तियां कई शास्त्रीय फ्रांसीसी व्यंजनों में भी अपना स्वाद बिखेरती हैं। इन पत्तियों को अक्सर इनके पूरे आकार में इस्तेमाल किया जाता है (कभी-कभी एक बुके गार्नि में) और परोसने से पहले हटा दिया जाता है। भारतीय (संस्कृत नाम तमालपत्र) और पाकिस्तानी पाकशालाओं में तेज़ पत्ते का उपयोग अक्सर बिरयानी और अन्य मसालेदार व्यंजनों में तथा गरम मसाले में एक घटक के रूप में किया जाता है - हालांकि हर रोज घरेलू रसोई में इसका इस्तेमाल नहीं होता. तेज़ पत्ते को खाना पकाने से पहले कुचला या पीसा जा सकता है। कुचले हुए पत्ते खड़े पत्ते की तुलना में अपनी वांछित खुशबू को अधिक प्रदान करते हैं, लेकिन इन्हें हटाना अधिक मुश्किल होता है और इसलिए इन्हें अक्सर एक मलमल बैग या चाय की थैली के अन्दर इस्तेमाल किया जाता है। पिसी हुई पत्तियों को खड़े पत्ते की जगह इस्तेमाल किया जा सकता है और इन्हें हटाने की जरूरत नहीं होती, लेकिन यह वर्धित सतही क्षेत्र के कारण अपेक्षाकृत मजबूत होता है और कुछ व्यंजनों में बनावट वांछनीय नहीं भी हो सकता है। तेज पत्तों को पेंट्री में खाद्य कीट, मक्खियों और तिलचट्टों को दूर भगाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यह भी सच है कि रोमन लोग सेंट वेलेंटाइन दिवस पर अपने तकिये के नीचे एक सूखा तेज़ पत्ता रखते हैं। यह माना जाता था कि इस पत्ते के कारण स्वप्न में उपयोगकर्ता की मुलाक़ात अपने भावी पति/पत्नी से होती है। औषधीय मूल्य मध्य युग में तेज़ पत्तियों को गर्भपात कराने वाला और कई जादुई गुणों वाला माना जाता था। उनका इस्तेमाल कभी कीट-पतंगों को दूर रखने के लिए किया जाता था, जिसका कारण था पत्ते में लोरिक एसिड की मौजूदगी जो इसे कीटनाशी गुणों से युक्त करती थी। तेज़ पत्तियों में कई ऐसे गुण हैं जो उन्हें उच्च रक्त शर्करा, माइग्रेन सिर दर्द, बैक्टीरियल और कवक संक्रमण और गैस्ट्रिक अल्सर के इलाज में उपयोगी बनाते हैं। तेज़ पत्तियों और जामुन को उनके कसैले, वातहर, स्वेदजनक, पाचन, मूत्रवर्धक, उबकाई और भूख बढ़ानेवाले गुणों के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। तेज़ पत्ते के तेल, (ओलियम लौरी) का प्रयोग छिलने और मोच में तिला के लिए किया जाता है। सिर दर्द के लिए एक हर्बल उपचार के रूप में तेज़ पत्ते का इस्तेमाल किया गया है। इसमें एक यौगिक होता है जिसे पर्थेनोलाइड कहते हैं, वह माइग्रेन के उपचार में उपयोगी साबित हुआ है। तेज़ पत्ता शारीरिक इन्सुलिन प्रक्रिया में अधिक कुशलता से सहायक होता है जिससे रक्त में शर्करा स्तर में कमी होती है। इसका इस्तेमाल पेट के अल्सर के प्रभाव को कम करने के लिए भी किया गया है। तेज़ पत्ते में यूजेनोल होता है, जो जलन-विरोधी और ऑक्सीडेंट-विरोधी गुण प्रदान करता है। तेज़ पत्ता कवक-विरोधी और जीवाणु-विरोधी भी होता है और इसका इस्तेमाल गठिया, राजोरोध और पेट दर्द के इलाज के लिए किया गया है। सुरक्षा लॉरेल परिवार के कुछ सदस्यों, साथ ही असंबंधित लेकिन देखने में समान पर्वतीय लॉरेल और चेरी लॉरेल में ऐसे पत्ते होते हैं जो मनुष्यों और पशुओं के लिए जहरीले होते हैं। जबकि इन पौधों को पाक इस्तेमाल के लिए कहीं भी बेचा नहीं जाता है, तेज़ पत्ते के साथ उनकी समानता ने इस धारणा को बल दिया है कि तेज़ पत्ते को खाना पकाने के बाद भोजन से हटा दिया जाना चाहिए क्योंकि वे जहरीले होते हैं। यह सच नहीं है - तेज़ पत्तियों को विषाक्त प्रभाव के बिना खाया जा सकता है। हालांकि, वे पूरी तरह से खाना पकाने के बाद भी बहुत कठोर बने हुए रहते हैं और अगर इन्हें साबुत या बड़े टुकड़ों में निगल लिया जाए तो वे पाचन तंत्र में खरोंच या घुटन का जोखिम पैदा कर सकते हैं। इस प्रकार तेज़ पत्ते के इस्तेमाल वाले अधिकांश व्यंजनों में खाना पकाने की प्रक्रिया के बाद उन्हें हटा देने की सलाह दी जाती है। खेती ठंढ से मुक्त या हल्के ठंढ वाले क्षेत्रों में माली यह पाते हैं कि ज़मीन में रोपे गए बे लॉरेल पौधे स्वेच्छा से विशाल वृक्ष, और उनसे भी लम्बे हो जाते हैं; लेकिन छंटाई करते रहने पर बे लॉरेल पेड़ एक छोटी झाड़ी की तरह बढ़ता है। बे लॉरेल को कंटेनरों में भी विकसित किया जा सकता है, जिसका आकार पेड़ के अंतिम आकार के रूप में उसके विकास को रोकता है। नए पौधों को लेयरिंग, या कलम के द्वारा उगाया जाता है, क्योंकि बीज से उगाना मुश्किल हो सकता है। बे पेड़ को बीज से उगाना मुश्किल होता है, जिसका आंशिक कारण है बीज का कम अंकुरण दर और लम्बी अंकुरण अवधि. फली हटाये हुए ताज़े बीज का अंकुरण दर आमतौर पर 40% होता है, जबकि सूखे बीज और/या फली सहित बीज का अंकुरण दर और भी कम होता है। इसके अलावा, बे लॉरेल के बीज की अंकुरण अवधि 50 दिन या उससे अधिक होती है, जो अंकुरित होने से पहले बीज के सड़ जाने के खतरे को बढ़ा देता है। गिबेरेलिक एसिड के साथ बीज का उपचार करना बीज की उपज को बढ़ाने में उतना ही उपयोगी हो सकता है, जितना कि जड़ संचार में नमी के स्तर की सावधानी पूर्वक निगरानी करना. दीर्घा सन्दर्भ जड़ी-बूटी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A4%9F%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%B0%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%8B
फटा पोस्टर निकला हीरो
फटा पोस्टर निकला हीरो २०१३ की बॉलीवुड की एक्शन हास्य फ़िल्म है। फ़िल्म में मुख्य भूमिका शाहिद कपूर और इलियाना डी'क्रूज़ ने निभाई है। फ़िल्म के निर्देशक टिप्स म्यूज़िक फ़िल्म्स के रमेश तौरानी हैं और राजकुमार सन्तोषी फ़िल्म निर्माता हैं, जिन्होंने घायल (1990), अंदाज़ अपना अपना (1994), ख़ाकी (2004) और अजब प्रेम की ग़ज़ब कहानी (2009) जैसी फ़िल्मों का निर्देशन कार्य किया है। फ़िल्म 20 सितम्बर 2013 को जारी की गयी। पटकथा यह एक युवा लड़के विश्वास राव (शाहिद कपूर) की कहानी है जो हीरो बनने के सपने देखता है। उसकी माँ सावित्री देवी (पद्मिनी कोल्हापुरी) ऑटोरिक्शा चलाती हैं और चाहती हैं कि उनका बेटा ईमानदार पुलिस अफ़सर बने। सावित्री के पति, यशवंत राय (मुकेश तिवारी) भ्रष्ट पुलिस अफ़सर होते हैं, जिनकी एक कार दुर्घटना में मौत हो जाती है। उस समय वो अवैध तरीके से मिली संपत्ति लेकर, अपनी बीवी और नवजात बच्चे विश्वास को छोड़कर भाग रहे थे। विश्वास को मुंबई के पुलिस विभाग से इंटरव्यू का बुलावा आता है। लेकिन वह फ़िल्म इंडस्ट्री में मौके की तलाश रहा होता है। वह फ़िल्मी दुनिया के लिए अपना संघर्ष शुरू कर देता है। एक दिन जब वह पुलिस की वर्दी में घूम रहा होता है, उसकी मुलाकात सामाजिक कार्यकर्ता काजल (इलीना डीक्रूज़) से होती है, जो उसे भूल से पुलिस अफ़सर समझ लेती है। यह बात तेज़ी से फैलती है। ग़लती से विश्वास की फ़ोटो अख़बार में छप जाती है। बाद में विश्वास के जीवन में बहुत उतार चढ़ाव आने का दौर आरम्भ होता है। कलाकार शाहिद कपूर - विश्वास राव इलियाना डी'क्रूज़ - सामाजिक कार्यकर्ता काजल दर्शन जरीवाला सौरभ शुक्ला संजय मिश्रा पद्मिनी कोल्हापुरी - विश्वास की माँ सावित्री देवी नर्गिस फ़ख़री (आयटम गीत में विशेष उपस्थिति) सलमान ख़ान - अपने ही रूप में विशेष उपस्थिति मुकेश तिवारी - यशवंत राय (विश्वास के पिता) जाकिर हुसैन संगीत फ़िल्म का संगीत प्रीतम चक्रबर्ती ने बनाया है जिसके गीत इरशाद कामिल और अमिताभ भट्टाचार्य ने लिखे हैं। प्रथम गीत तु मेरे अगल बगल है २६ जुलाई २०१३ को जारी किया गया। यह गीत मिका सिंह ने गाया है। फ़िल्म के पाँच गीत: हे मिस्टर डीजे एक क्लब गीत है जो बेनी दयाल, शेफाली आलवरीज एवं शाल्मली खोलगडे ने गाया है। गीत रंग शरबतों का आतिफ़ असलम एवं चिन्मयी ने गाया है। एक अन्य संस्करण मैं रंग शरबतों का (बदला हुआ संस्करण) अरिजीत सिंह ने गाया है। धतिंग नाच एक आयटम नम्बर है जो नर्गिस फ़ख़री पर फ़िल्माया गया है और नेहा कक्कड़ और नकाश ने इसे गाया है। फ़िल्म के अन्य चार गीत संगीत स्ट्रीमिंग सेवा सावन पर ​​विशेष रूप से जारी किए गए। विज्ञापन चित्र फ़िल्म फटा पोस्टर निकला हीरो का विज्ञापन चित्र अर्थात झलक १४ जुलाई २०१३ को जारी की गयी थी। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ भारतीय फ़िल्में 2013 में बनी हिन्दी फ़िल्म
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%AF%E0%A4%B0%20%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1
एयर न्यूज़ीलैंड
एयर न्यूजीलैंड , न्यूजीलैंड का राष्ट्रीय एयरलाइन्स एवं ध्वज वाहक हैं। ऑकलैंड में अवस्थितः ये एयरलाइन्स २५ घरेलु उड़ानों एवं 26 अंतरराष्ट्रीय उड़ानों, जो 15 देशों एशिया , यूरोप , नार्थ अमेरिका से होकर गुजरता है। ये एयरलाइन्स १९९९ से स्टार अलायन्स का सदस्य हैं। एयर न्यूजीलैंड का उद्भव १९४० में तस्मानिया एम्पायर एयरवेज लिमिटेड के नाम से हुआ था, ये एक फ्लाइंग बोट कंपनी थी जो ट्रांस तस्मान् फ्लाइट्स के तौर पर न्यूजीलैंड एवं ऑस्ट्रेलिया के बीच उड़ान भरती थी। १९६५ में इस कंपनी को न्यूजीलैंड की सरकार ने खरीद लिया एवं इसका नामकरण एयर न्यूज़ीलैंड कर दिया गया। ये एयरलाइन 1978 तक अंतरराष्ट्रीय रुट्स पे ही उड़ान भरती थी लेकिन जब इसका सम्मिलन घरेलु विमान सेवा वाली न्यूजीलैंड नेशनल एयरवेज कारपोरेशन के साथ कर दिया गया तो ये घरेलु रुट्स पे भी उड़ान भरने लगी। 1989 में इसका निजीकरण कर दिया गया लेकिन २००१ में सरकार ने पुनः इसकी स्वमित्ववा हासिल कर ली जब ऑस्ट्रेलिया की एयरलाइन्स कंपनी अनसेट ऑस्ट्रेलिया के साथ इसकी भागीदारी असफल हो गई। साल 2008 तक , एयर न्यूज़ीलैंड में 11.7 मिलियन यात्री सफर करते हैं। एयर न्यूज़ीलैंड की रूट का तंत्र ऑस्ट्रेलिया एवं दक्षिण प्रशांत पर एवं साथ में लम्बी दूरी के सेवाओं में पूर्वी एशिया , उतरी अमेरिका एंड यूनाइटेड किंगडम में केंद्रित हैं। यह एयरलाइन्स अपनी रुट्स के चलते सारी दुनिआ का परिभ्रमण करती हैं। इस एयरलाइन्स का मुख्यालय ऑकलैंड हवाई अड्डे में अवस्थित है जो ऑकलैंड के शहरी क्षेत्र के दक्षिणी भाग मनगेर में स्तिथ हैं। इसके मुख्यालय की ईमारत का नाम “द हब” हैं जो ऑकलैंड एयरपोर्ट से 20 Km की दूरी एवं सेंट्रल ऑकलैंड के पश्चिमी रिक्लेमेशन में हैं। अनुषंगी संचालन अनुषंगी (सहयोगी) एयर न्यूज़ीलैंड के संचालन सहयोगी निम्नलिखित हैं। एयर न्यूज़ीलैंड कंसल्टिंग एयर न्यूज़ीलैंड हॉलीडेज एयर न्यूज़ीलैंड कार्गो एयर न्यूज़ीलैंड के चार पूर्ण स्वामित्व वाली सहयोगी एयरलाइन्स हैं। इसके तीन पूरी तरह से एकीकृत क्षेत्रीय एयरलाइन हैं- एयर नेल्सन, ईगल एयरवेज और माउंट कुक एयरलाइन ये सब साथ मिलकर एयर न्यूज़ीलैंड लिंक बनाते हैं। एयर नेल्सन जो नेल्सन में अवस्थित हैं , ऐनजेड 8000 सीरीज इसकी फ्लाइट्स का नंबर हैं। ईगल एयरवेज जो हैमिलटन में अवस्थित हैं, ऐनजेड 2000 सीरीज इसकी फ्लाइट्स का नंबर हैं। माउंट कुक एयरलाइन जो क्रिस्चुरच में अवस्थित हैं , ऐनजेड 5000 सीरीज इसकी फ्लाइट्स का नंबर हैं। प्रायोजक एयर न्यूज़ीलैंड , घरेलु रग्बी क्लब प्रतियोगिता एयर न्यूज़ीलैंड कप 2009 का प्रमुख प्रायोजक था। यह एयरलाइन्स एयर न्यूज़ीलैंड वाइन अवार्ड्स एवं एयर न्यूज़ीलैंड फैशन एक्सपोर्ट अवार्ड को भी प्रायोजित करता हैं। गंतव्यों एयर न्यूज़ीलैंड एवं इसके सहयोगी 25 घरेलु गंतव्यों एवं २६ अंतरार्ष्ट्रीय गंतव्यों में सेवाएं उपलब्ध कराता हैं जिसमे एशिया, यूरोप, नार्थ अमेरिका एवं ओशिनिया के क्षेत्र सम्मिलत हैं। एयर न्यूज़ीलैंड केवल 6 घरेलु डेस्टिनेशंस को सेवाएं उपलब्ध कराता हैं जबकि बचे हुए 19 गंतव्यों पे इसके सहयोगी सेवाएं उपलब्ध कराते हैं।। कोडशेयर एग्रीमेंट्स एयर न्यूज़ीलैंड का कोडशेयर एग्रीमेंट्स निम्नलिखित एयरलाइन्स के साथ हैं : एयर कनाडा एयर चीन असिआना एयरलाइन्स एयर कालीन एयर ररोटोंगा एयर ताहिती नई एयर वानातू निप्पन एयरवेज कैथे पसिफ़िक एतिहाद एयरवेज फिजी एयरवेज जेट एयरवेज लुफ्थांसा सिंगापुर एयरलाइन्स साउथ अफ्रीकन एयरवेज थाई एयरवेज इंटरनेशनल तुर्किश एयरलाइन्स यूनाइटेड एयरलाइन्स वर्जिन अटलांटिक एयरवेज वर्जिन ऑस्ट्रेलिया सन्दर्भ विमान सेवा
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यांत्रिकी तथा द्रव्यगुण
यांत्रिकी तथा द्रव्यगुण यांत्रिकी में द्रव्यपिंडों की गति का अध्ययन किया जाता है। यह गति सम्पूर्ण पिंड की भी हो सकती है और आंतरिक भी। भौतिकी की इस शाखा का बहुत महत्व है और इसके सिद्धांत भौतिकी के प्रत्येक विभाग मे, विशेषतया अभियान्त्रिकी (इंजीनियरिंग) और शिल्पविज्ञान में, प्रयुक्त होते हैं। इसके मूल में जो सिद्धांत लागू हाते हैं, उनको सर्वप्रथम न्यूटन ने प्रतिपादित किया था। लैग्रेंज, हैमिल्टन आदि वैज्ञानिकों ने इन नियमों को गंभीर गणितीय रूप देकर जटिल समस्याएँ हल करने योग्य बनाया। मूल समीकरणों द्वारा ऊर्जा संवेग (momentum), कोणीय संवेग इत्यादि, नवीन राशियों की कल्पना की गई। इस विज्ञान के मुख्य नियम ऊर्जा संरक्षण, संवेग संरक्षण तथा कोणीय संवेग संरक्षण हैं। सिद्धांत रूप से ज्ञात बलों के अधीन किसी भी पिंड की गति का पूरा विश्लेषण किया जा सकता है। द्रव्य गुण शाखा में द्रव्य की तीनों अवस्थाओं ठोस, द्रव, तथा गैस के गुणों की विवेचना की जाती है। इन गुणों के आपसी संबंधों की भी चर्चा की जाती है और इनसे संबंधित आँकड़े ज्ञात किए जाते हैं। कुछ गुण जिनका अध्ययन किया जाता है, ये हैं घनत्व, प्रत्यास्थता गुणांक, श्यानता, पृष्ठतनाव, गुरुत्वाकर्षण गुणांक इत्यादि। भौतिकी
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राष्ट्रीय राजमार्ग १४८एम (भारत)
राष्ट्रीय राजमार्ग १४८एम (National Highway 148M) भारत का एक राष्ट्रीय राजमार्ग है। यह पूरी तरह गुजरात में है और दक्षिण में वड़ोदरा से उत्तर में आंकलाव तक जाता है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग ४८ का एक शाखा मार्ग है। मार्ग इस राष्ट्रीय राजमार्ग पर कुछ मुख्य पड़ाव हैं - वड़ोदरा, भाइली, समीयाला, लक्ष्मीपुरा, संगम, पादरा, डभासा, महुवा, किंखलोड़, बोरसद, निसरया, अलारसा, आंकलाव। इन्हें भी देखें राष्ट्रीय राजमार्ग (भारत) राष्ट्रीय राजमार्ग ४८ (भारत) सन्दर्भ रारा 148M रारा 148M
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होमी व्यारावाला
होमी व्यारावाला (9 दिसंबर 1913-15 जनवरी 2012) को भारत की पहली महिला फोटो पत्रकार माना जाता है। होमी अपने लोकप्रिय उपनाम “डालडा 13” से मशहूर रही हैं। 1930 में बतौर छायाकार अपनी करियर शुरू करने के बाद होमी 1970 में स्वेच्छा से सेवानिवृत्त हो गईं। होमी को उनकी विशिष्ट उपलब्धियों को देखते हुए 2011 में भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। गूगल ने उनकी विरासत का सम्मान करते हुए उनके जन्म की 104वीं सालगिरह पर अपने ‘डूडल’ के साथ सम्मानित किया। गूगल ने भारत की पहली महिला फोटो पत्रकार होमी व्यारावाला को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें ‘लेंस के साथ पहली महिला’ के रूप में सम्मान दिया। इस डूडल का रेखांकन मुंबई के चित्रकार समीर कुलावूर द्वारा किया गया। जीवन परिचय व्यारावाला का जन्म 09 दिसम्बर 1913 को गुजरात के नवसारी के एक मध्यवर्गीय पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता पारसी उर्दू थियेटर में अभिनेता थे। उनका पालन पोषण मुंबई में हुआ तथा उन्होंने पहले-पहल फोटोग्राफी अपने मित्र मानेकशाॉ व्यारावाला से तथा बाद में जे०जे० स्कूल ऑफ आर्ट से सीखी। उनकी पहली तस्वीर बॉम्बे क्रॉनिकल में प्रकाशित हुई जहां उन्हेें प्रत्येक छायाचित्र के लिए एक रुपया बतौर पारिश्रमिक प्राप्त होता था। होमी का विवाह टाइम्स ऑफ इंडिया में बतौर छायाकार काम करने वाले मानेकशाॉ जमशेतजी व्यारावाला के साथ हुआ। वह अपने पति के साथ दिल्ली आ गईं और ब्रिटिश सूचना सेवा के कर्मचारी के रूप में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान चित्र लेने का काम शुरू कर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने इलेस्ट्रेटिड वीकली ऑफ इंडिया मैगजीन के लिए कार्य करना शुरू किया जो 1970 तक चला। इस दौरान उनके कई श्वेत-श्याम छायाचित्र चर्चित हुए। उनके कई फोटोग्राफ टाइम, लाइफ, दि ब्लैक स्टार तथा कई अन्य अन्तरराष्ट्रीय प्रकाशनों में फोटो-कहानियों के रूप में प्रकाशित हुए। अपने पति के देहान्त के बाद होमी दिल्ली छोड़कर वडोदरा आ गईं। 1982 में वो अपने बेटे फारूख के पास राजस्थान के पिलानी में चली आईं, जहां फारूख पिलानी के बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (बिट्स) में अध्यापन कार्य करते थे। लेकिन 1989 में कैंसर से बेटे की मौत के बाद होमी एक बार फिर अकेली हो गईं। बाद का जीवन उन्होंने अकेलेपन में वडोदरा के एक छोटे से घर में बिताया। छायांकन द्वारा पत्रकारिता दिल्ली आते ही होमी को अपने काम को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलनी शुरू हो कई। सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और मुहम्मद अली जिन्ना की उतारी गईं उनकी कई तस्वीरें चर्चा में रहीं। बाद के दिनों में उनके छायांकन के प्रिय विषय भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू रहे। उनके ज्यादातर चित्र उनके उपनाम ‘डालडा-13’ के साथ प्रकाशित हुए। उनके इस नाम के पीछे एक रोचक वाकया रहा। उनका जन्म 1913 में हुआ, अपने होने वाले पति से उपनकी पहली मुलाकात 13 साल की उम्र में हुई और उनकी पहली कार का नंबर प्लेट था डी.एल.डी 13। 1970 में अपने पति की मृत्य के बाद होमी व्यारावाला ने अचानक अपने पेशे से संन्यास ले लिया। इसकी वजह उन्होंने नई पीढ़ी के छायाकारों के बुरे बर्ताव को बताया। बाद में तकरीबन 40 वर्षों तक उन्होंने कैमरे से एक भी चित्र नहीं उतारा। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने अपने करियर के उत्कर्ष पर छायांकन को क्यों छोड़ दिया, तो उनका जवाब था, “अब इसका कोई औचित्य नहीं रह गया था। हमारी पीढ़ी के पास छायाकारों के लिए कुछ उसूल थे। यहां तक की हम लोगों ने अपने लिए एक ड्रेसकोड का भी पालन किया। हमने एक दूसरे को सहकर्मी के रूप में सहयोग और सम्मान दिया। लेकिन अचानक सबकुछ बुरी तरह से बदल गया। नई पीढ़ी जिस किसी भी प्रकार से पैसे कमाने के पीछे पड़ी थी। मैं इस भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहती थी।" बाद के दिनों में व्यारावाला ने अपने चित्रों का संग्रह दिल्ली स्थित अल-काज़ी फाउंडेशन ऑफ आर्ट्स को दान कर दिया। जिसके बाद 2010 में राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, मुंबई ने अल-काज़ी फाउंडेशन ऑफ आर्ट्स के साथ मिलकर उनके छायाचित्रों की एक प्रदर्शनी का आयोजन किया। उपलब्धियां अपनी तस्वीरों के माध्यम से उन्होंने राष्ट्र के तत्कालीन सामाजिक तथा राजनैतिक जीवन को दर्शाया। उन्होंने 16 अगस्त 1947 को लाल किले पर पहली बार फहराये गये झंडे, भारत से लॉर्ड माउन्टबेटन के प्रस्थान, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू तथा लाल बहादुर शास्त्री की अंतिम यात्रा के भी छायाचित्र लिए। उनके कार्य में चार दशकों का फैलाव है, जिसमें स्वतंत्रता की ललक के साथ-साथ नए राष्ट्र में नहीं निभाये गए वायदों के प्रति हताशा भी दिखाई देती है। सिगरेट पीते हुए जवाहरलाल नेहरू और साथ ही भारत में तत्कालीन ब्रिटिश उच्चायुक्त की पत्नी सुश्री सिमोन की मदद करते हुए एक तस्वीर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री की एक अलग ही छवि दर्शाती है। वह ब्‍लैक एण्‍ड व्हाइट माध्‍यम को वरीयता देती थीं। वो दिन की रौशनी के दौरान, लो-एंगल शॉट तथा छवियों के विस्‍तार के लिए बैक लाइट का उपयोग करती थी, जिससे विषय-वस्‍तु की गहराई तथा ऊचाई को दिर्शाया जा सके। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ प्रथम महिला फोटो जर्नलिस्ट होमी व्यारावाला को मिलेगी युवाओं की चहेती पहली ''नैनो" Homai Vyarawalla: India's First Woman Photo Journalist फोटोग्राफर 1913 में जन्मे लोग पद्म विभूषण धारक
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हम्पी
हम्पी या विजयनगर मध्यकालीन हिंदू राज्य विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी। तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित यह नगर अब हम्पी (पम्पा से निकला हुआ) नाम से जाना जाता है और अब केवल खंडहरों के रूप में ही अवशेष है। इन्हें देखने से प्रतीत होता है कि किसी समय में यहाँ एक समृद्धशाली सभ्यता निवास करती होगी। भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित यह नगर यूनेस्को के विश्व के विरासत स्थलों में शामिल किया गया है। हर साल यहाँ हज़ारों की संख्या में पर्यटक और तीर्थयात्री आते हैं। हम्पी का विशाल फैलाव गोल चट्टानों के टीलों में विस्तृत है। घाटियों और टीलों के बीच पाँच सौ से भी अधिक स्मारक चिह्न हैं। इनमें मंदिर, महल, तहख़ाने, जल-खंडहर, पुराने बाज़ार, शाही मंडप, गढ़, चबूतरे, राजकोष.... आदि असंख्य इमारतें हैं। हम्पी में विठाला मंदिर परिसर निःसंदेह सबसे शानदार स्मारकों में से एक है। इसके मुख्य हॉल में लगे ५६ स्तंभों को थपथपाने पर उनमें से संगीत लहरियाँ निकलती हैं। हॉल के पूर्वी हिस्से में प्रसिद्ध शिला-रथ है जो वास्तव में पत्थर के पहियों से चलता था। हम्पी में ऐसे अनेक आश्चर्य हैं, जैसे यहाँ के राजाओं को अनाज, सोने और रुपयों से तौला जाता था और उसे गरीब लोगों में बाँट दिया जाता था। रानियों के लिए बने स्नानागार मेहराबदार गलियारों, झरोखेदार छज्जों और कमल के आकार के फव्वारों से सुसज्जित होते थे। इसके अलावा कमल महल और जनानखाना भी ऐसे आश्चयों में शामिल हैं। एक सुंदर दो-मंजिला स्थान जिसके मार्ग ज्यामितीय ढँग से बने हैं और धूप और हवा लेने के लिए किसी फूल की पत्तियों की तरह बने हैं। यहाँ हाथी-खाने के प्रवेश-द्वार और गुंबद मेहराबदार बने हुए हैं और शहर के शाही प्रवेश-द्वार पर हजारा राम मंदिर बना है। स्थिति हम्पी आंध्र प्रदेश राज्य की सीमा के पास मध्य कर्नाटक के पूर्वी हिस्से में तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित है। यह बैंगलोर से ३७६ किलोमीटर (२३४ मील), हैदराबाद से ३८५ किलोमीटर (२३९ मील) और बेलगाम से २६६ किलोमीटर (१६५ मील) दूर स्थित है। यहाँ का निकटतम रेलवे स्टेशन होसापेट (होस्पेट) में है, जो लगभग १३ किलोमीटर (८.१ मील) दूर है। सर्दियों के दौरान, बसें और रेलें हम्पी को गोवा, सिकंदराबाद और बैंगलोर से जोड़ती हैं। यह बादामी और ऐहोल पुरातात्विक स्थलों से १४० किलोमीटर (८७ मील) दूर दक्षिण-पूर्व में है। दृश्य चित्र वीथी कैसे पहुंचा जाये वायु द्वारा - कर्नाटक में हुबली हवाई अड्डा हम्पी के लिए निकटतम हवाई अड्डा है, जो यहाँ से 166 किमी दूर है। हुबली के लिए नियमित उड़ानें बेंगलुरु से आती हैं। यहां आप कैब या बस ले सकते हैं।   रेल मार्ग - हम्पी का निकटतम रेलवे स्टेशन होसपेट जंक्शन है जो हम्पी से सिर्फ 13 किलोमीटर दूर है। होस्पेट रेल द्वारा देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है और बैंगलोर, हैदराबाद और गोवा से कई नियमित ट्रेनें यहाँ आती हैं। यहां से आप वाहन लेकर पहुंच सकते हैं।   सड़क मार्ग से - हम्पी बस सेवा कर्नाटक के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ी हुई है। कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम की बसों के अलावा, कई निजी और पर्यटक बसें नजदीकी शहरों से हम्पी तक जाती हैं। इन्हें भी देखें विजयनगर जिला विजयनगर साम्राज्य विजयनगर का वास्तुशिल्प कनकगिरि हरिहर बुक्का कृष्णदेवराय विद्यारण्य बाह्यसूत्र मंदिरों का शहर : हम्पी (श्री न्यूज) आस्था और ऐतिहासिक पवित्रता (के विक्रम सिंह) हम्पी के चित्र विजयनगर मानचित्र परियोजना (अंग्रेज़ी में) हम्पी- कर्नाटक राज्य पर्यटन विजयनगर-कला और स्थापत्य हम्पी का इतिहास, रोचक बातें, प्रसिद्ध मंदिर कर्नाटक कर्नाटक के शहर आज का आलेख हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना कर्नाटक में पुरातत्व स्थल
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भेलसंहिता
भेलसंहिता संस्कृत में रचित आयुर्वेद का ग्रन्थ है। इसके रचयिता भेलाचार्य हैं जो अत्रेय के छः शिष्यों में से एक थे। अग्निवेश भी अत्रेय के ही शिष्य थे। भेलसंहिता कई शताब्दियों तक अप्राप्य हो गई थी किन्तु १८८० में ताड़पत्र पर लिपिबद्ध एक प्रति प्राप्त हुई। इस प्रति की भाषा संस्कृत तथा लिपि तेलुगु है। यह तन्जावुर के राजमहल पुस्तकालय में मिली। इसकी रचना 1650 के आसपास हुई लगती है। इसमें बहुत सी त्रुटियाँ हैं तथा कुछ पत्र इतने खराब हो गए हैं कि उन्हें पढ़ पाना सम्भव नहीं है। चरकसंहिता की भांति इस ग्रन्थ में भी आठ भाग हैं। प्रत्येक अध्याय के अन्त में इत्याह भगवानात्रेय (ऐसा भगवान अत्रेय ने कहा) आता है। संरचना भेलसंहिता आठ भागों में विभक्त है जिन्हें 'स्थान' कहा गया है। ये आठ स्थान हैं: कल्पस्थानम् चिकित्सास्थानम् इन्द्रियस्थानम् शरीरस्थानम् विमानस्थानम् निदानस्थानम् सूत्रस्थानम् सिद्धिस्थानम् इन्हें भी देखें बोवर पाण्डुलिपि -- यह आयुर्वेद की सबसे पुरानी पाण्डुलिपियों में से एक है। इसमें भेलसंहिता के कुछ अंश भी हैं। बाहरी कड़ियाँ भेलसंहिता (संस्कृत विकिस्रोत) भेलसंहिता (हिन्दू-आनलाइन) भेलसंहिता (क्योटो विश्वविद्यालय) संस्कृत ग्रन्थ आयुर्वेद
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हाउसा भाषा
हाउसा भाषा (Hausa language) पश्चिमी अफ़्रीका में बोली जाने वाली एक भाषा है। यह अफ़्रो-एशियाई भाषा-परिवार की चाडी शाखा की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसे 3.5 करोड़ लोग मातृभाषा के रूप में और करोड़ों अन्य द्वितीय भाषा के रूप में बोलते हैं। शुरु में यह दक्षिणी नाइजर और उत्तरी नाइजीरिया के हाउसा समुदाय की भाषा हुआ करती थी लेकिन समय के साथ-साथ फैलकर पूरे पश्चिमी अफ़्रीका के एक बड़े भूभाग की सम्पर्क भाषा बन गई। यह एक सुरभेदी भाषा है और सुरों के अंतर के आधार पर इसे कई पारम्परिक उपभाषाओं में बांटा जाता है। आरम्भ में हाउसा भाषा को "अजमी" कहलाने वाले अरबी लिपि के एक परिवर्तित रूप में लिखा जाता था लेकिन अब इसे "बोको" कहलाने वाले रोमन लिपि के एक रूप में लिखा जाता है। इन्हें भी देखें चाडी भाषाएँ हाउसा लोग सन्दर्भ चाडी भाषाएँ बेनिन की भाषाएँ बुर्कीना फ़ासो की भाषाएँ कैमरून की भाषाएँ नाइजर की भाषाएँ नाइजीरिया की भाषाएँ कोत दिव्वार की भाषाएँ सूडान की भाषाएँ घाना की भाषाएँ टोगो की भाषाएँ
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हास्य योग
बिना किसी वाह्य कारण के, प्रयत्नपूर्वक लम्बे समय तक हंसने की क्रिया को हास्ययोग कहते हैं। हास्ययोग इस विश्वास पर आधारित है कि हास्ययोग से भी वही सारे लाभ होते हैं जो अनायास हंसने से मिलते हैं। हास्ययोग प्रायः समूह में किया जाता है जिसमें एक-दूसरे से आँख से आँख मिलाकर, चुटकुले सुन-सुनाकर, तथा अन्य खिलवाड़ करके हास्य पैदा किया जाता है। १९६० के दशक में हास्ययोग को प्रायः पार्कों में सुबह के समय आयोजित किया जाता था जिसमें प्रायः वृद्ध लोग भाग लेते थे। योग
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इंद्रा (2002 फिल्म)
इंद्रा 2002 की भारतीय तेलुगू भाषा की एक्शन ड्रामा फिल्म है, जो बी. गोपाल द्वारा निर्देशित और वैजयंती मूवीज बैनर के तहत सी. अश्विनी दत्त द्वारा निर्मित है। फिल्म में चिरंजीवी, सोनाली बेंद्रे और आरती अग्रवाल हैं, जबकि शिवाजी, मुकेश ऋषि और प्रकाश राज, मणि शर्मा सहायक भूमिकाएँ निभाते हैं। इस फिल्म ने तीन राज्यों नंदी पुरस्कार जीतें और दक्षिण में दो फिल्मफेयर पुरस्कार जीतें, जिसमें से चिरंजीवी ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए नंदी पुरस्कार और फिल्मफेयर पुरस्कार (तेलुगु) दोनों जीतें। यह फिल्म 24 जुलाई 2002 को रिलीज़ हुई और सिनेमा घरों में फिल्म काफी सफल साबित हुई। ₹10 करोड़ के बजट पर बनी फिल्म ने ₹34 करोड़ का कारोबार किया जो की उस समय के इतिहास में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली तेलुगू फिल्म बन गई। इस फिल्म को तमिल में इंधिरन के रूप में डब किया गया और हिंदी में इंद्रा: द टाइगर के रूप में रिलीज़ किया गया। बाद में इसे भोजपुरी में इंद्रा एक शेर के रूप में डब किया गया। इंद्रा को भारतीय बंगाली सिनेमा में दादा (2005) और बांग्लादेशी बंगाली सिनेमा में गोरिबर दादा (2006) के रूप में बनाया गया था। इंद्रा चिरंजीवी के फिल्मी करियर की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक है। यह पोकिरी (2006) तक अगले चार वर्षों तक सबसे अधिक कमाई करने वाली तेलुगु फिल्म बनी रही। कलाकार इंद्रसेना रेड्डी, शंकर नारायण के रूप में चिरंजीवी युवा इंद्रसेना रेड्डी के रूप में सज्जा तेजा स्नेहलता रेड्डी के रूप में आरती अग्रवाल पल्लवी रेड्डी के रूप में सोनाली बेंद्रे शिवाजी वीरा मनोहर रेड्डी, गिरि के रूप में तनिष युवा वीरा मनोहर रेड्डी के रूप में इंद्रा की बड़ी बहन के रूप में इलावरासी विनय प्रसाद इंद्रा की सबसे बड़ी बहन के रूप में वीरा शंकर रेड्डी के रूप में मुकेश ऋषि प्रकाश राज चेन्ना केशव रेड्डी के रूप में पुनीत इस्सर शौकत अली खान के रूप में वीरा शिवा रेड्डी के रूप में रज़ा मुराद वाल्मीकि रेड्डी, इंद्रसेना रेड्डी के सहायक के रूप में तनिकेला भरणी कृष्ण रेड्डी के रूप में आहुति प्रसाद, इंद्रसेना रेड्डी के बहनोई सुनील बालू रेड्डी के रूप में, वीरा शंकर रेड्डी के बहनोई ब्रह्मानंदम पंडित के रूप में समीर विजया सिम्हा रेड्डी, इंद्रसेना रेड्डी के चाचा के रूप में सन्दर्भ
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ऐडमिरल
ऐडमिरल (admiral) या नौसेनाध्यक्ष किसी देश या राज्य की नौसेना के सर्वोच्च अधिकारी या अधिकारियों को कहा जाता है। तुलना के लिए यह पद थलसेना के 'जनरल' या 'सेनापति' के बराबर समझा जाता है। शब्दोत्पत्ति 'ऐडमिरल' शब्द कई रूपों में विश्व की बहुत सी भाषाओं में पाया जाता है। मूल रूप से यह यूरोप की भाषाओं में अरबी भाषा के 'अमीर अल-बहर' (), यानि 'समुद्र का सरदार', से आया है। देशानुसार कंधे के तमग़े अधिकतर देशों की नौसेनाओं की वर्दियों में ऐडमिरलों के कन्धों पर चार तारों वाले या तीन पतली और एक मोटी धारी वाले चिह्न रहते हैं। लेकिन नीचे देखा जा सकता है कि कुछ राष्ट्रों में ऐसा नहीं होता। इन्हें भी देखें नौसेना सन्दर्भ नौसेनाध्यक्ष नौसेना नौसैनिक पद अरबी शब्द
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स्वचालित गणक मशीन
स्वचालित गणक मशीन (अंग्रेज़ी:आटोमेटिड टैलर मशीन, लघु:एटीएम) को आटोमेटिक बैंकिंग मशीन, कैश पाइंट, होल इन द वॉल, बैंनकोमैट जैसे नामों से यूरोप, अमेरिका व रूस आदि में जाना जाता है। यह मशीन एक ऐसा दूरसंचार नियंत्रित व कंप्यूटरीकृत उपकरण है जो ग्राहकों को वित्तीय हस्तांतरण से जुड़ी सेवाएं उपलब्ध कराता है। इस हस्तांतरण प्रक्रिया में ग्राहक को कैशियर, क्लर्क या बैंक टैलर की मदद की आवश्यकता नहीं होती है। खुदरा यानि रिटेल बैंकिंग के क्षेत्र में एटीएम बनाने का विचार समांनातर तौर जापान, स्वीडन, अमेरिका और इंग्लैंड में जन्मा और विकसित हुआ। हालांकि सबसे पहले इसका प्रयोग कहां शुरू हुआ यह अभी तय नहीं हो पाया है। इतिहास मौटे मौर, लंदन और न्यूयॉर्क में सबसे पहले इससे प्रयोग में लाए जाने के उल्लेख मिलते हैं। 1960 के दशक में इसे बैंकोग्राफ के नाम से जाना जाता था। कुछ दावों के अनुसार सबसे पहले प्रायोगिक तौर पर 1961 में सिटी बैंक ऑफ न्यूयॉर्क ने न्यूयॉर्क शहर में ग्राहकों की सेवा में चालू किया था। वैसे ग्राहकों ने तब इसे अस्वीकृत कर दिया था। इस कारण छह माह के बाद ही इससे हटा लिया गया था। इसके बाद टोक्यो, जापान में 1966 में इसका उपयोग हुआ था। आधुनिक एटीएम की सबसे पहली पीढ़ी का प्रयोग 27 जून, 1967 में लंदन के बार्केले बैंक ने किया था। उस समय तक कुछ ही ग्राहकों को इसकी सेवा का लाभ मिल पाया था। उस समय आज के एटीएम कार्ड के बजाए क्रेडिट कार्ड के जरिए इसकी सेवाओं का उपयोग किया जाता था। इसके पहले ग्राहक कॉमेडी एक्टर रेग वरने बने थे। इंग्लैंड ने प्रयोग में लाई गई मशीन के आविष्कार का श्रेय जॉन शेपर्ड को जाता है। इसके विकास में इंजीनियर डे ला रूई का भी महत्त्वपूर्ण योगदान है। वर्तमान एटीएम मशीनें इंटरबैंक नेटवर्क से जुड़ी होती हैं। यह नेटवर्क पीयूएलएसइ, पीएलयूएस आदि नामों से जाने जाते हैं। प्रयोग वर्तमान युग में एटीएम का प्रयोग मानव दिनचर्या का महत्त्वपूर्ण अंग बन गया है। अतएव एटीएम प्रयोग करते समय कुछ सावधानियां आवश्यक हैं। इन सावधानियों को ध्यान में न रखने पर बेवजह की कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। एटीएम से पैसा निकालते समय, खासकर रात के समय तो एक साथी को लेकर अवश्य जाएं। एटीएम कार्ड को पहले से बाहर निकाल कर रखें। मशीन के पास पहुंचने पर अपने पर्स आदि से निकालने में समय न लगाएं। रात के समय इस बात का खासतौर पर ख्याल रखें कि कोई संदेहास्पद व्यक्ति आपके आसपास न हो। कोशिश करें अगर ज्यादा रकम निकालने जा रहे हैं तो ऐसे क्षेत्र का एटीएम चुने जो तुलनात्मक तौर पर अधिक सुरक्षित हो। एटीएम का प्रयोग करते समय ध्यान रखें कि कोई आपका पिन नम्बर न देख पाए। अव्वल तो कोई आपके साथ एटीएम केबिन में अनजाना व्यक्ति मौजूद ही नहीं होना चाहिए। अपने शरीर से एटीएम की-पेड को कवर रखें। एटीएम मशीन से निकलने के बाद निकाली गई राशि को गिने जरूर पर यह भी ध्यान रखें कि ऐसा करते समय किसी की निगाहें आप पर न हों। मशीन से प्राप्त रसीद को अपने पास जरूर रखें और इसका मिलान अपने अपने बैंक स्टेटमेंट से अवश्य करें। अगर कोई समस्या हो तो संबंधित बैंक से संपर्क करें। पिन नम्बर को याद रखें। अगर याद नहीं हो पाता है तो उसे ऐसी जगह लिखकर रखें जहां सिर्फ आप की ही पहुंच हो। एटीएम का प्रयोग करते समय इसका बेहद सावधानी से प्रयोग करें और इसे मशीन के आसपास रखा न छोड़े। अपने फोन नम्बर, घर के पते, नाम या संकेताक्षरों आदि पर अपना पिन नम्बर न रखें। पिन डालते समय कीपैड को अपने दूसरे हाथ से छुपाए रखें। समस्याएं ग्राहकों के लिए बैंकों से रुपयों की निकासी सरल बनाने हेतु एटीएम मशीनों को लागू किया गया था, लेकिन इन एटीएम मशीनों में भी कई समस्याएं आती रहती हैं। इनके कारण ग्राहकों को कई बार परेशानी उठानी पड़ जाती है। मशीन से कभी नकली नोट निकल आते हैं तो कभी बिना नोट निकले ही निकाले गए रुपयों की खाली रसीद बाहर दिखा देती है। इसका संभावित कुछ हद तक कारण बैंकों में चाइनीज कंप्यूटर तकनीक का प्रयोग माना जा रहा है। इसके अलावा हाल की कुछ घटनाओं से एटीएम मशीन को ही चोरी कर ले जाने की घटनाएं सुनाई दी हैं। इनके कारण चोरी या लूट का अलार्म न बजना या मशीन के तार काटे जाने पर स्विच यानी कंट्रोल रूम को खबर भी न लग पाना आदि हैं। एटीएम मशीन मरम्मत के लिये खुली होने की स्थिति में स्विच के साथ अपना संपर्क तोड़ देती है। ऐसे समय बैंक अधिकारी या एटीएम वैंडर के सामने मशीन की आवश्यक मरम्मत की जाती है। परंतु एटीएम मशीनों की चेस्ट या तिजोरी खुली होने की दशा में भी ये मशीनें स्विच को झूठा संदेश देते हुए आनलाइन रहती हैं। यानी ऐसा संभव है कि मशीन चोर ले जाएं और स्विच को खबर भी न लगे। कई बार किसी एटीएम मशीन से नकली नोट निकल पड़ते हैं और बैंक इनकी कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होता। कई बार जब एटीएम मशीन खाते से रुपये तो निकाले दिखा देती है लेकिन नकदी मशीन से बाहर नहीं आती या कभी कम ही निकालती है। ऐसी शिकायतों के लिये ग्राहक बैंक में पूछताछ करते हैं तो बैंक अपने काल सेंटर का नंबर थमा देते हैं। टोल फ्री नंबर पर चलाए जा रहे इस काल सेंटर की लाइन मिलना ही पहले तो मुश्किल है और मिल भी जाए तो आधे घंटे की बातचीत के बावजूद ग्राहक को राहत नहीं मिल पाती। सामान्यत: काल सेंटर ग्राहकों को बिना मांगे शिकायत संख्या तक उपलब्ध नहीं कराते। ग्राहक शिकायत संख्या लेकर मानसिक तनाव ग्रस्त हो इससे कहीं बेहतर है कि बैंक में जाकर चैक से अपनी राशि निकाले और इन झंझटों से मुक्त रहे। प्रायः एटीएम कार्ड और इंटरनेट बैंकिंग के आवेदन पर साफ लिखा होता है कि किसी किस्म के नुकसान के लिए बैंक की जवाबदेही नहीं होगी। हैकिंग और पासवर्ड चोरी में बैंककर्मियों की संलिप्तता के मामले भी अब खुलने लगे हैं। ग्राहक अपने खोए हुए एटीएम कार्ड को अपने बैंक में जाकर कैंसिल नहीं करवा सकते। बैंक दावा करता है कि आप किसी भी शाखा से एटीएम कार्ड जारी करवा सकते हैं, लेकिन यही कार्ड खो जाए तो पहले बैंक के काल सेंटर में इसकी शिकायत दर्ज करानी है। शिकायत नंबर लेकर बैंक को सूचित करना है। खोए हुए एटीएम कार्ड से नकदी निकालने के अलावा खरीददारी भी संभव है सो ग्राहक चाहता है कि तुरंत उसे खोए कार्ड से मुक्ति मिलनी चाहिए। एटीएम कार्ड का गलत इस्तेमाल हो तो ग्राहक को पुलिस या कोर्ट कचहरी के चक्कर भी कटवा सकत है। यदि आपने किसी दूसरे बैंक का एटीएम कार्ड किसी दूसरे बैंक के एटीएम में इस्तेमाल किया है और राशि नहीं मिली है तो दोगुनी मानसिक परेशानी झेलनी पडी़। सकती है। एटीएम मशीन फेल होने की दशा में बैंक की एकांउटिंग प्रणाली भी फेल हो जाती है। एटीएम कोड के अनुसार राशि का भुगतान हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता। मशीन में उपलब्ध 100, 500 व 1000 के डिब्बों से दूसरी करेंसी की आपूर्ति न हो सके इसके लिए न तो कोई मकैनिकल न ही कोई साफ्टवेयर में व्यवस्था है। इस दृष्टि से ये मशीनें बैंकिंग के लिये सुरक्षित नहीं मानी जा सकती। गलत भुगतान की प्रविष्टियों को ठीक करने की व्यवस्था भी कारगर नहीं है। कभी मशीन आवाज करती रहती है, पैसा बाहर नहीं निकलता और एटीएम हैंग हो जाता है। कभी यह राशि किसी दूसरे ग्राहक को अनायास ही मिल जाती है क्योंकि राशि बीच में अटकी रहती है और एटीएम अचानक काम करना शुरू कर देता है। कभी ग्राहक की यही राशि एटीएम में नकदी, कागज या रिबन फीड करने वाली कम्पनी के लोगों के हाथ भी लग जाती है। एटीएम मशीनों के मेंटीनैंस के नाम पर एटीएम में नकदी भरना, दो बार दिन में एटीएम परिसर की सफाई, एयरकंडीशन का चालू रहना, एटीएम मशीन का जीरो डाउन होना, सुरक्षा की दृष्टि से दृश्य और अदृश्य कैमरों का चालू रहना, एटीएम से हर प्रचालन की पर्ची निकलना, दरवाजे का बंद रहना ताकि एक समय में एक ग्राहक एटीएम में रहे, रात में पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था, सुरक्षा के लिये गार्ड आदि इनके वार्षिक मेटीनैंस के कुछ प्रमुख हिस्से हैं जिनका पालन नहीं होता। सन्दर्भ ATM Full Form In Hindi । What Is ATM, Definition & Uses 2023 बाहरी कड़ियाँ स्वचालन बैंक वित्तीय उपकरण भुगतान उपकरण बैंकिंग प्रौद्योगिकी वाणिज्यिक मशीनें हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना परीक्षित लेख
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आचंट लक्ष्मीपति
आचंट लक्ष्मीपती (३ मार्च,१८८० - ६ अगस्त १९६२) प्रसिद्ध आयुर्वेद वैद्य थे। वे चेन्नै में आयुर्वेद वैद्य सँस्था में १९२० से १९२८ तक नौकरी करते थे। आचंट लक्ष्मीपति का जन्म आँध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी जिले के माधवरम गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम रामय्य और माता का नाम जानकम्मा था। लक्ष्मीपति  मेट्रिक्युलेशन उतीर्ण हुए। उसके बाद एफ ए उतीर्ण होने के बाद स्थानिक तहसीलदार कार्यालय में नौकरी करने लगे। उसके बाद बी ए पास होने के बाद उन्होने एम बी बी एस (आयुर्वेद) कोर्स किया। वे प्रसिद्ध आयुर्वेद पंडित दीवि गोपालाचार्य के शिष्य थे।. सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Textbook of Ayurveda Historical Background (लेखक- ए लक्ष्मीपति) 1880 में जन्मे लोग आयुर्वेदाचार्य
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भरणी
यह एक नक्षत्र है। नक्षत्रों की कड़ी में भरणी को द्वितीय नक्षत्र माना जाता है। इस नक्षत्र का स्वामी शुक्र ग्रह होता है। जो व्यक्ति भरणी नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे सुख सुविधाओं एवं ऐसो आराम चाहने वाले होते हैं। इनका जीवन भोग विलास एवं आनन्द में बीतता है। ये देखने में आकर्षक व सुन्दर होते हैं। इनका स्वभाव भी सुन्दर होता है जिससे ये सभी का मन मोह लेते हैं। इनके जीवन में प्रेम का स्थान सर्वोपरि होता है। इनके हृदय में प्रेम तरंगित होता रहता है ये विपरीत लिंग वाले व्यक्ति के प्रति आकर्षण एवं लगाव रखते हैं। भरनी नक्षत्र के जातक उर्जा से परिपूर्ण रहते हैं। ये कला के प्रति आकर्षित रहते हैं और संगीत, नृत्य, चित्रकला आदि में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। ये दृढ़ निश्चयी एवं साहसी होते हैं। इस नक्षत्र के जातक जो भी दिल में ठान लेते हैं उसे पूरा करके ही दम लेते हैं। आमतौर पर ये विवाद से दूर रहते हैं फिर अगर विवाद की स्थिति बन ही जाती है तो उसे प्रेम और शान्ति से सुलझाने का प्रयास करते हैं। अगर विरोधी या विपक्षी बातों से नहीं मानता है तो उसे अपनी चतुराई और बुद्धि से पराजित कर देते हैं। जो व्यक्ति भरणी नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे विलासी होते हैं। अपनी विलासिता को पूरा करने के लिए ये सदैव प्रयासरत रहते हैं और नई नई वस्तुएं खरीदते हैं। ये साफ सफाई और स्वच्छता में विश्वास करते हैं। इनका हृदय कवि के समान होता है। ये किसी विषय में दिमाग से ज्यादा दिल से सोचते हैं। ये नैतिक मूल्यों का आदर करने वाले और सत्य का पालन करने वाले होते हैं। ये रूढ़िवादी नहीं होते हैं और न ही पुराने संस्कारों में बंधकर रहना पसंद करते हें। ये स्वतंत्र प्रकृति के एवं सुधारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले होते हैं। इन्हें झूठा दिखावा व पाखंड पसंद नहीं होता। इनका व्यक्तित्व दोस्ताना होता है और मित्र के प्रति बहुत ही वफादार होते हैं। ये विषयों को तर्क के आधार पर तौलते हैं जिसके कारण ये एक अच्छे समालोचक होते हैं। इनकी पत्नी गुणवंती और देखने व व्यवहार मे सुन्दर होती हैं। इन्हें समाज में मान सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है। इस नक्षत्र के देवता यमराज है| स्रोत नक्षत्र
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हमहुंग
हमहुंग, उत्तर कोरिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर है, और दक्षिण हमग्योंग प्रांत की राजधानी है। 2005 के अंत में, पास हुँगनाम एक वार्ड (क्युओक) हमहुंग-सी के भीतर बनाया गया था। इसकी जनसंख्या 768,551 है। भूगोल हमहुंग उत्तर पूर्वी उत्तर कोरिया के दक्षिण हमग्योंग प्रांत में सोंगचोन नदी के बाईं तरफ पर, हमहुंग मैदान के पूर्वी भाग में स्थित है। जलवायु हमहुंग में गर्म, आर्द्र गर्मियों और मध्यम ठंड, शुष्क सर्दियों के साथ एक आर्द्र महाद्वीपीय जलवायु ( कोपेन जलवायु वर्गीकरण : Dwa ) है। इतिहास यी सिओंग-गे, यी राजवंश के संस्थापक, 1400 में उनके बेटे द्वारा एक सफल तख्तापलट के बाद शहर में सेवानिवृत्त हो गये। हालाँकि उनके बेटे ने सामंजस्य स्थापित करने के लिए दूत भेजे थे, लेकिन उनके पिता ने उन्हें मार डाला था। एक आधुनिक कोरियाई अभिव्यक्ति, 'हमहुंग के लिये राजा के दूत', ऐसे एक व्यक्ति को संदर्भित करता है जो यात्रा पर जाता है और फिर से कभी वापस नहीं आता है। 1910 और 1945 के बीच कोरिया के जापानी शासन के दौरान इसे कांके के नाम से जाना जाता था। इसे लाल सेना ने 22 अगस्त 1945 को आजाद किया था। अर्थव्यवस्था हमहुंग उत्तर कोरिया में एक महत्वपूर्ण रासायनिक उद्योग केंद्र है। यह एक औद्योगिक शहर है जो उत्तर कोरियाई विदेशी व्यापार के लिए एक प्रमुख बंदरगाह के रूप में कार्य करता है। उत्पादन में वस्त्र (विशेष रूप से विनालोन), धातु के बर्तन, मशीनरी, परिष्कृत तेल और प्रसंस्कृत भोजन शामिल हैं। जेल शिविर हमहुंग के पास दो बड़े पुनर्वसन शिविर स्थित हैं: पूर्वोत्तर हमहुंग में क्यो-ह्वा-सो नं. 9, और हमहुंग के उत्तर में योंग्वांग काउंटी में क्यो-ह्वा-सो नं 22 है। परिवहन शहर एक परिवहन हब है, जो विभिन्न पूर्वी बंदरगाहों और उत्तरी आंतरिक क्षेत्र को जोड़ता है। हमोंग स्टेशन प्योंगरा लाइन रेलवे पर है। यह शहर तोकसन एयरपोर्ट के माध्यम से हवाई मार्ग से भी जुड़ा हुआ है। शहर को 28 फरवरी, विनाइल कारखाने के माध्यम से पश्चिम हमहुंग को हंगनाम से जोड़ने वाली एक छोटी लाइन भी बनाया गया है। संस्कृति हमहुंग में उत्तर कोरिया के सबसे बड़ा थियेटर हमहुंग ग्रांड थियेटर स्थित है। यहां एक राष्ट्रीय संग्रहालय ही स्थित है। सन्दर्भ विकिडेटा पर उपलब्ध निर्देशांक उत्तर कोरिया के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0
अमृत संस्कार
अमृत संस्कार या अमृत सांचर (जिसे खांडे दे पाहुल भी कहा जाता है) दीक्षा का सिख समारोह है जो बपतिस्मा से मिलता जुलता है। अमृत गोचर दीक्षा संस्कार गुरु गोबिंद सिंह द्वारा शुरू किया गया था जब उन्होंने 1699 में खालसा की स्थापना की थी। एक सिख जिसे खालसा में शुरू किया गया है, को सिंह (पुरुष) या कौर (महिला) के बाद "अमृतधारी" या "खालसा" के रूप में नामित किया गया है। दीक्षा लेने वालों से अपेक्षा की जाती है कि वे स्वयम को वाहेगुरु को समर्पित करें और खालसा राज की स्थापना के लिए काम करें। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Amrit Ceremony All About Sikhs Glossary Eliminating Doubt's before/after Take Amrit (Katha in Punjabi)
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%9F%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%BE%20%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9F
कैटरिना अल्बर्ट
कैटरिना अल्बर्ट ई पारादीस (; 11 सितम्बर 1869 – 27 जनवरी 1966) स्पेनी कातालोन्याई लेखिका थीं, जिन्होंने आधुनिकतावाद आंदोलन में हिस्सा लिया था। इनके साहित्यिक कौशल की ख़ोज 1898 में हुई जब इन्हें जोक्स फ़्लोराल्स (हिन्दी: पुष्प खेल) पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके ठीक पश्चात इन्होंने लेखन कार्य के लिए विक्टर कैट्ला छद्म नाम अपना लिया। यह नाम इन्होंने अपने उस उपन्यास के नायक से लिया जिसे ये कभी पूरा नहीं कर पाई थीं। नाटककार के रूप में इनकी सफ़लता और कविता रचना में इनकी उत्कृष्टता के बावजूद इन्हें सबसे अधिक इनके कथा साहित्य में किए गए कार्य के लिए जाना जाता है, विशेष रूप से इनकी शैली की शक्ति और लेखन में शब्दो के चयन की प्रचुरता के लिए ये विख्यात हैं। इनकी मृत्यु इनके गृह नगर ला'इस्काला, कातालोन्या, में 1966 में हुई और इन्हें सेमेंतिरी वैई डी ला'इस्काला (कैटलन: Cementiri Vell de l’Escala) में दफ़नाया गया। प्रारंभिक जीवन कैटरिना अल्बर्ट ई पारादीस का जन्म कातालोन्या के ला'इस्काला में 11 सितम्बर 1869 को हुआ। इनके पिता का नाम लुईस अल्बर्ट और माता का नाम डोलोर्स पारादीस था। लुईस वकील, राजनीतिज्ञ और ग्रामीण ज़मींदार थे। कैटरिना अपने माता-पिता की चार संतानों में से सबसे बड़ी थीं। इन्होंने अपने पिता और नानी की मृत्यु के पश्चात अपनी माँ और भाई-बहनों की जिम्मेदारी सम्भाली तथा पारिवारिक संपत्ति का भी ध्यान रखा। इन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा स्थानीय प्राथमिक विद्यालय से प्राप्त की व एक वर्ष जिरोना बोर्डिंग स्कूल में भी व्यतीत किया जहाँ इन्होंने फ़्रांसीसी भाषा सीखी। बाकि शिक्षा इन्होंने घर से प्राप्त की। कैरियर अल्बर्ट ने पौरुष छद्म नाम 'विक्टर कैट्ला' अपनाया क्योंकि उस समय महिलाएँ लेखन उद्योग में अधिक स्वतंत्र नहीं थीं। यह नाम इन्होंने अपने उस उपन्यास के नायक से लिया जिसे ये कभी पूरा नहीं कर पाई थीं। अपने लेखन कैरियर में इन्होंने लघुकथा व उपन्यास से लेकर कविताएँ और रंगमंच के लिए एकालाप भी लिखे। अपने जीवन काल में इन्होंने यूरोप के कई देशों का भ्रमण किया और कातालोन्या की राजधानी बार्सिलोना में कई बार थोड़े-थोड़े समय के लिए रहीं। बार्सिलोना में 1904 के पश्चात इन्होंने एक फ़्लैट भी खरीद लिया। नाटककार के रूप में इनकी सफ़लता और कविता रचना में इनकी उत्कृष्टता के बावजूद इन्हें सबसे अधिक इनके कथा साहित्य में किए गए कार्य के लिए जाना जाता है, विशेष रूप से इनकी शैली की शक्ति और लेखन में शब्दो के चयन की प्रचुरता के लिए ये विख्यात हैं। अल्बर्ट की मृत्यु इनके गृह नगर ला'इस्काला, कातालोन्या, में 1966 में हुई और इन्हें सेमेंतिरी वैई डी ला'इस्काला (कैटलन: Cementiri Vell de l’Escala) में दफ़नाया गया। सोलिटूड अल्बर्ट की सबसे उत्कृष्ट रचना सोलिटूड (कैटलन: Solitud, हिन्दी: एकांत) उपन्यास है। इसे आधुनिकतावाद आंदोलन की सबसे प्रमुख काल्पनिक साहित्य रचनाओं में से एक माना जाता है। यह सबसे पहले जोवेंतूत पत्रिका में 1904 से 1905 के बीच प्रकाशित हुई। इसे सम्पूर्ण किताब के रूप में बिब्लियोटेका जोवेंतूत प्रेस ने 1905 में प्रकाशित किया और इसके ठीक बाद विक्टर कैट्ला को ख्याति प्राप्त होने लगी। इस उपन्यास की मुख्य किरदार मीला नाम की एक औरत है। मीला अपने विवाह के पश्चात पाती है कि उसका विवाहित जीवन बर्बाद है क्योंकि उसका पति ना तो उसे भौतिक सुख दे सकता और ना ही यौन संतुष्टि, वो यहाँ तक कि उसे सुरक्षा तक मुहैया करा सकता: मीला का कहानी का खलनायक बलात्कार कर देता है और उसके पति को कोई फ़र्क ही पड़ता और शायद इस वारदात के पीछे उसके पति का भी हाथ होता है। कहानी मीला के कष्ट भरे जीवन के इर्दगिर्द घूमती है। साहित्यिक कृतियाँ अल्बर्ट का साहित्यिक जीवन तीन अवधियों में विभाजित किया जा सकता है: आधुनिकतावाद "El cant dels mesos" (1901), कविताओं का संग्रह "Llibre Blanc-Policromi-Tríptic" (1905), कविताओं का संग्रह "Quatre monòlegs" (1901), एकालापो का संग्रह "Drames rurals" (1902), कहानियों का संग्रह "Ombrívoles" (1904), कहानियों का संग्रह "Caires Vius" (1907), कहानियों का संग्रह "Solitud" (1905), उपन्यास 1907 से स्पेनी गृहयुद्ध तक "La Mare-Balena" (1920), कहानियों का संग्रह "Un film 3.000 metres" (1926), उपन्यास "Marines" (1928), गद्यावली "Contrallums" (1930), कहानियों का संग्रह युद्धोत्तर अवधि "Retablo" (1944), स्पेनी भाषा में कहानियों का संग्रह "Mosaic" (1946), साहित्यिक गद्य का संग्रह "Vida mòlta" (1950), कहानियों का संग्रह "Jubileu" (1951), कहानियों का संग्रह "Obres Completes" (1951). "Obres Completes" (1972). सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ विक्टर कैट्ला की जीवनी विक्टर कैट्ला के जीवन से जुडी वीडियो विक्टर कैट्ला की एकीकृत प्राधिकरण फ़ाइल प्रविष्टि सोलिटूड के बारे में सम्पूर्ण जानकारी कैटरिना अल्बर्ट की अंतर्राष्ट्रीय मानक नाम पहचानकर्ता प्रविष्टि विक्टर कैट्ला की एस॰यू॰डी॰ओ॰सी॰ प्रविष्टि फ्रांस के राष्ट्रीय पुस्तकालय की विक्टर कैट्ला पर प्रविष्टि 1869 में जन्मे लोग कैटलन भाषा के लेखक १९६६ में निधन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9F%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE
लैम्बर्ट का कोज्या नियम
प्रकाशिकी में लैम्बर्ट के कोज्या नियम (Lambert's cosine law) के अनुसार किसी लैम्बर्टी तल से विकरित उर्जा की तीव्रता का प्रेक्षित मान उस तल के लम्बवत रेखा तथा प्रेक्षक के दृष्टि-रेखा (line of sight) के बीच के कोण के कोज्या के समानुपाती होता है। यह नियम 'कोज्या उत्सर्जन नियम' या 'लैम्बर्ट का उत्सर्जन नियम' भी कहलाता है। इस नियम को जोहान्न हेनरिक लैम्बर्ट ने १७६० में 'फोटोमेट्रिया' में प्रकाशित किया था। इन्हें भी देखें परावर्तनीयता (Reflectivity) Radiometry Photometry 3D computer graphics
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उपाख्यान
उपाख्यान (उप + आख्यान) किसी बड़ी कहानी के अन्दर लिखी गई छोटी कहानी को कहते हैं। उदाहरण के रूप में महाभारत जैसे आदि ग्रंथ में कई छोटी-छोटी कहानियाँ या उपाख्यान मौजूद हैं। महाभारत के उपाख्यान शकुन्तला उपाख्यान ययाति उपाख्यान महाभिष उपाख्यान अणिमाण्डव्य व्युषिताश्व तपति उपाख्यान वशिष्ठ उपाख्यान और्व उपाख्यान पंचेन्द्र उपाख्यान सुन्द-उपसुन्द उपाख्यान सार्ंगक उपाख्यान सौभवध उपाख्यान नलोपाख्यान अगस्त्य उपाख्यान ऋष्याशृंग उपाख्यान कार्तवीर्य उपाख्यान (जामदग्न्य) शुकन्या उपाख्यान मान्धातृ उपाख्यान जन्तु उपाख्यान श्येन-कपोतीय उपाख्यान अष्टावक्रीय उपाख्यान यवक्रीत उपाख्यान वैन्य उपाख्यान मत्स्य उपाख्यान माण्डूक उपाख्यान इन्द्रद्युम्न उपाख्यान धुन्धुमार उपाख्यान पतिव्रता उपाख्यान मुद्गल उपाख्यान रामोपाख्यान सावित्री उपाख्यान आरणेयम् उपाख्यान इन्द्रविजय उपाख्यान अम्बा उपाख्यान विश्व उपाख्यान त्रिपुर उपाख्यान कर्ण-शाल्य-संवाद उपाख्यान या हंस-काकीय उपाख्यान इन्द्र-नमुचि उपाख्यान वृद्ध-कुमारी उपाख्यान षोडशराज उपाख्यान नारद-पार्वत उपाख्यान राम उपाख्यान मुचुकुन्द उपाख्यान उष्ट्रग्रीवा उपाख्यान दण्ड-उत्पत्ति-कथन उपाख्यान ऋषभ-गीता उपाख्यान (सुमित्र उपाख्यान) कपोत उपाख्यान कृतघ्न उपाख्यान जापक उपाख्यान चिरकारि उपाख्यान कुण्डधार उपाख्यान नारायणीय-हयशिर उपाख्यान ऊँचवृत्ति उपाख्यान सुदर्शन उपाख्यान विश्वमित्र उपाख्यान भंगाश्वन उपाख्यान उपमन्यु उपाख्यान मतंग उपाख्यान वीतहव्य उपाख्यान विपुला उपाख्यान च्यवन उपाख्यान नृग उपाख्यान नचिकेत उपाख्यान कीट उपाख्यान उतंक उपाख्यान (या उत्तंक उपाख्यान) नकुल उपाख्यान यक्ष प्रश्न आख्यान इन्हें भी देखें आख्यान इतिहास अट्टकथा कथा चरित बाहरी कड़ियाँ भारतीय कथा परंपरा (राधावल्लभ त्रिपाठी) भारतीय साहित्य
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भाई धरम सिंह
भाई धरम सिंह अथवा भाई धर्म सिंह (१६६६–१७०८) १७वीं सदी के भारत में ख़ालसा पंथ की शुरूआत करने वाले प्रथम पाँच सिखों पंज प्यारे में से एक थे। उनके नाम का महत्व धर्म के प्रति आस्थावान होने से है।गुरु गोविंद सिंह द्वारा बनाए गए पंज प्यारे में से एक भाई धर्म सिंह जी के वंशज आज भी हमारे बीच मौजूद है जिला मेरठ के हस्तिनापुर के पास एक जाट परिवार से हैं जिनका नाम है भाई गुरप्रीत सिंह वे सदा ही समाज सेवा में लगे रहते हैं।। वे ट्विटर पर भी मौजूद हैं BabaGurpreetji https://twitter.com/BabaGurpreetJi?t=f5oSGXitR-AD23HJAr3XdQ&s=09 सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Bhai Dharam Singh ji भारतीय सिख
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महिमा चौधरी
महिमा चौधरी (जन्म: 13 सितंबर, 1973) हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री हैं। व्यक्तिगत जीवन महिमा चौधरी, नाम असल ऋतु चौधरी है लेकिन परदे की अदाकारा खुद परदे पर महिमा चौधरी कहलाना पसंद करती है। परदेस से अपने फिल््मी कैरियर की शुरुआत करने वाली महिमा हिन््दी सिनेमा जगत की उन हिरोईनों में से जिन््हों बोल््ड सिन करने के बजाए अपनी अदाकारी और किरदार के जरिए लोगों के दिलों पर राज करने की कोशिश की। परदेस में बतौर गंगा वो दिलकस लगी तो दाग द फायर में संजीदा लगी। वही तेरे नाम में स््टेज डांस के जरिए महिमा ने ये भी सावित कर दिया कि आइटम नंबर में भी किसी से कम नहीं। महिला में आपको हल््की सी छाप माधुरी दीक्षित की॥॥खासतौर से तब जब वे हंसती हैं। महिमा को देखकर लगता ही नहीं इंसान के पास हंसी से बेहतरीन चीज कौई और है। बहरहाल वे क््या कर रही इसका अंदाजा नहीं। धड़कन फ़िल्म में उनका किरदार बहुत अच्छा है। वे एक कुशल अभिनेत्री हैं। वे अपने दमदार अभिनय से अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवाती हैं। प्रमुख फिल्में नामांकन और पुरस्कार सन्दर्भ अभिनेत्री हिन्दी अभिनेत्री 1973 में जन्मे लोग जीवित लोग पश्चिम बंगाल के लोग
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कार्लटन मिड त्रिकोणीय सीरीज 2014-15
2015 कार्लटन मिड त्रिकोणीय सीरीज़ ऑस्ट्रेलिया में आयोजित एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट था। यह ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और भारत के बीच एक त्रि-राष्ट्र श्रृंखला थी। ऑस्ट्रेलिया ने फाइनल में इंग्लैंड को 112 रन से हराकर अपने 20 वां ऑस्ट्रेलियाई त्रिकोणीय श्रृंखला का खिताब जीता। पिछले ऑस्ट्रेलियाई तिरंगी एकदिवसीय श्रृंखला के विपरीत, प्रत्येक टीम ने राउंड-रॉबिन चरण (चार बार आम तौर पर नहीं) के दौरान केवल दो बार खेल लिया था, और फाइनल को तीन-तीन सर्वश्रेष्ठ के बजाय एक एकल मैच के तौर पर खेला गया था, 2015 के क्रिकेट विश्व कप को समायोजित करने के लिए, जो श्रृंखला के तुरंत बाद का पालन किया। क्रिकेट विश्व कप के दौरान फरवरी 2015 में, भारत के टीम के निदेशक रवि शास्त्री ने त्रिकोणीय सीरीज की समय-सारणी की आलोचना करते हुए कहा कि यह समय और ऊर्जा का "अपशिष्ट" था। राउंड रोबिन मैचेस फाइनल सन्दर्भ
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