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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0%E0%A4%BF%E0%A4%B0
युधिष्ठिर
प्राचीन भारत के महाकाव्य महाभारत के अनुसार युधिष्ठिर पांच पाण्डवों में सबसे बड़े भाई थे। वे यम और कुंती के पुत्र थे। वो भाला चलाने में निपुण थे और वे कभी झूठ नहीं बोलते थे। महाभारत के अंतिम दिन उन्होंने अपने मामा शल्य का वध किया जो कौरवों की तरफ था। इनके भाई क्रमश: कर्ण , भीमसेन , अर्जुन , नकुल और सहदेव थे। इन्होंने अपना शक आरंभ किया था जिसे युधिष्‍ठिर संवत् कहते हैं। इतिहास इनका राज्याभिषेक काल कलि संवत के ३६ वर्ष पूर्व अर्थात् ईपू ३१३८ है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ महाभारत के पात्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%9C%E0%A4%BC
जूलिया अल्वारेज़
जूलिया अल्वारेज़ (जन्म २७ मार्च, १९५०) एक अमरीकन नव रूपवादी कवयित्री, उपन्यासकार तथा निबंधकार हैं। उनकी ख्याति प्रमुख रूप से “हाउ द गार्शिया गर्ल्स लॉस्ट देयर एक्सेंट” (1991), “इन द टाइम ऑफ़ द बटरफ्लाइज़” (1994), और “यो!” (1997) नामक उपन्यासों से हुई। उनके प्रकाशनों में कवयित्री रूप में “होमकमिंग”(१९८४), “द वूमेन आई कैप्ट टू माईसैल्फ”(२००४) तथा निबंधकार के रूप में आत्मकथात्मक संकलन “समथिंग टू डिक्लेयर” आदि शामिल हैं। कई साहित्यिक आलोचकों ने उन्हें सबसे महत्वपूर्ण लातिन रचनाकारों में से एक माना है। उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यावसायिक सफलता भी मिली है। जूलिया अल्वारेज़ ने युवा पाठकों के लिए अनेकों पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें "टिया लोला" पुस्तक-शृंखला भी शामिल है। बच्चों के लिए उनकी पहली तस्वीर पुस्तक सन् २००२ ई. में प्रकाशित "द सीक्रेट फुटप्रिंट्स" है। न्यूयॉर्क में जन्मीं जूलिया ने डोमिनिकन गणराज्य में अपने बचपन के आरंभिक दस वर्ष बिताए। साहित्यिक लेखन जूलिया अल्वारेज़ को अपने समय के आलोचनात्मक तथा वाणिज्यिक रूप से सबसे सफल लातिन रचनाकारों में से एक माना जाता है। उनके प्रकाशित कार्यों में पाँच उपन्यास, एक निबंध-संकलन, तीन काव्य-संग्रह, चार बाल पुस्तकें तथा दो किशोर उपन्यास शामिल हैं। संदर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/2020%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6%20%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5
2020 संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद चुनाव
2020 संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद चुनाव संयुक्त राष्ट्र के दौरान 17 और 18 जून 2020 पर आयोजित किया गया था 74 वें सत्र की संयुक्त राष्ट्र महासभा में आयोजित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में न्यूयॉर्क शहर । 1 जनवरी 2021 को शुरू होने वाले दो साल के शासनादेशों के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पांच गैर-स्थायी सीटों के लिए चुनाव हुए थे। सुरक्षा परिषद के रोटेशन नियमों के अनुसार, जिसके तहत दस गैर-स्थायी यूएनएससी सीटें विभिन्न क्षेत्रीय ब्लॉक्स के बीच घूमती हैं, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के सदस्य पारंपरिक रूप से मतदान और प्रतिनिधित्व उद्देश्यों के लिए खुद को विभाजित करते हैं, पांच उपलब्ध सीटों को निम्नानुसार आवंटित किया गया था: संयुक्त राष्ट्र में भारत
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%A8%E0%A4%BE
मांडना
मांडना राजस्थान , मालवा और निमाड़ क्षेत्र की लोक कला है। इसे विशेष अवसरों पर महिलाएँ ज़मीन अथवा दीवार पर बनाती हैं। मांडना, मंडन शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है सज्जा। मांडने को विभिन्न पर्वों, मुख्य उत्सवों तथा ॠतुओं के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है। इसे आकृतियों के विभिन्न आकार के आधार पर भी बाँटा जा सकता है। उदाहरण-स्वरुप चौका, मांडने की चतुर्भुज आकृति है जिसका समृद्धि के उत्सवों में विशेष महत्व है जबकि त्रिभुज, वृत्त एवं स्वास्तिक लगभग सभी पर्वों या उत्सवों में बनाए जाते है। कुछ आकृतियों में आनेवाले पर्व का निरुपण एवं उस दौरान पड़ने वाले पर्वों को भी बनाया जाता है। मांडना की पारंपरिक आकृतियों में ज्यामितीय एवं पुष्प आकृतियों को लिया गया है। इन आकृतियों में त्रिभुज, चतुर्भुज, वृत्त, स्वास्तिक, शतरंज पट का आधार, कई सीधी रेखाएँ, तरंग की आकृति आदि मुख्य है। इनमें से कुछ आकृतियाँ हड़प्पा की सभ्यता के काल में भी मिलती है। पुष्प आकृतियाँ ज्यादातर सामाजिक एवं धार्मिक विश्वास तथा जादू-टोने से जुड़ी हुई हैं जबकि ज्यामितीय आकृतियां तंत्र-मंत्र एवं तांत्रिक रहस्य से। कुछ ज्यामितीय आकृतियों के रूप किसी देवी या देवता से जुड़े होते हैं जैसे कि षष्टकोण जो दो त्रिभुज के जोड़कर बनाया जाता है, देवी लक्ष्मी को चिह्नित करता है। माडने की यह आकृति काफी प्रसिद्ध है तथा इसे विशेषत: दीपावली तथा सर्दियों में फसल कटाई के समय उत्सव में बनाया जाता है। इनके अलावा बहुत सारी आकृतियां किसी मुख्य आकृति के चारों ओर बनाई जाती है। ये आकृतियां सामाजिक एवं धार्मिक परंपरा पर आधारित होती है जिसमें वर्षों पुराने रीति-रिवाज तथा विभिन्न पर्वों में महिलाओं की दृष्टि को प्रदर्शित करती है। सन्दर्भ रंगोली
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%80%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%8B%E0%A4%AD
पश्चिमी विक्षोभ
पश्चिमी विक्षोभ या वेस्टर्न डिस्टर्बन्स (Western Disturbance) भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी इलाक़ों में सर्दियों के मौसम में आने वाले ऐसे तूफ़ान को कहते हैं जो वायुमंडल की ऊँची तहों में भूमध्य सागर, अन्ध महासागर और कुछ हद तक कैस्पियन सागर से नमी लाकर उसे अचानक वर्षा और बर्फ़ के रूप में उत्तर भारत, पाकिस्तान व नेपाल पर गिरा देता है। उत्तर भारत में रबी की फ़सल के लिये, विशेषकर गेंहू के लिये, यह तूफ़ान अति-आवश्यक होते हैं। मानसून से अंतर ध्यान दें कि उत्तर भारत में गर्मियों के मौसम (सावन) में आने वाले मानसून से पश्चिमी विक्षोभ का बिलकुल कोई सम्बन्ध नहीं होता। मानसून की बारिशों में गिरने वाला जल दक्षिण से हिन्द महासागर से आता है और इसका प्रवाह वायुमंडल की निचली तहों में होता है। मानसून की बारिश ख़रीफ़ की फ़सल के लिये ज़रूरी होती है, जिसमें चावल जैसे अन्न शामिल हैं। इन्हें भी देखें रबी की फ़सल मॉनसून सन्दर्भ भारत की जलवायु तूफ़ान पवन वर्षण
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%81%E0%A4%96%E0%A5%87%E0%A4%82%20%281993%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29
आँखें (1993 फ़िल्म)
आँखें डेविड धवन द्वारा निर्देशित 1993 में बनी हिन्दी भाषा की एक्शन कॉमेडी फिल्म है। इसमें गोविन्दा दोहरी भूमिका में है और साथ में चंकी पांडे भी है। यह बॉक्स ऑफिस पर ब्लॉकबस्टर थी और 1993 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली भारतीय फिल्म है। संक्षेप अमीर हँसमुख राय (कादर ख़ान) अपने दो शरारती बच्चों से परेशान है, बुन्नू (गोविन्दा) और मुन्नू (चंकी पांडे)। दोनों कोई चीज गंभीरता से नहीं लेते। इससे परेशान होकर हँसमुख उन्हें घर से निकाल देता है। फिर वो दोनों आवारा घूमते हैं। फिर ऐसा लगता है कि बुन्नू मर गया है। उसका कोई जुड़वा ग्रामीण गौरीशंकर (गोविन्दा) आता है और उसे बुन्नू समझा जाता है। साथ ही वो दोनों असली मुख्यमंत्री को हटाकर डूप्लीकेट लगाने वाली साज़िश में भी फँसते हैं। मुख्य कलाकार चंकी पांडे - मुन्नू गोविन्दा - बुन्नू / गौरीशंकर राजबब्बर - मुख्यमंत्री / सारंग कादर ख़ान - हँसमुख सदाशिव अमरापुरकर - इंस्पेक्टर प्यारे मोहन रागेश्वरी - प्रिया मोहन रितु शिवपुरी - रितु शिल्पा शिरोडकर - चंद्रमुखी बिन्दू - अनुराधा हरीश पटेल - मोन्टो गुलशन ग्रोवर - नटवर शाह रज़ा मुराद - डीसीपी शक्ति कपूर - तेजेश्वर दीना पाठक - दादी राकेश बेदी - गुलशन कपूर "गुल्लू" नीना गुप्ता - मुख्यमंत्री की पत्नी गुड्डी मारुति - चबिया युनुस परवेज़ - सेठ सुखीराम गोविन्द नामदेव गैविन पैकर्ड संगीत संगीतकार - बप्पी लाहिड़ी गीतकार - इन्दीवर रोचक तथ्य फिल्म में दिखाया गया बंदर का नाम बजरंगी था। चेन्नई से मँगाया गया बंदर निर्माता पहलाज निहलानी के मुताबिक जो बोलते थे वो करता था। क्योंकि बंदर का रोल लंबा था इसलिए उसे पाँच लाख रुपए दिए गए थे जबकि चंकी पांडे को उससे कम ढाई लाख रुपए दिए थे। .इस फिल्म में तीन कलाकार दोहरी भूमिका में थें-गोविंदा,कादर ख़ान और राज बब्बर सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आँखें बप्पी लाहिड़ी द्वारा संगीतबद्ध फिल्में
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%BF
चीनी लिपि
चीनी लिपि संसार की प्राचीनतम लिपियों में से है। यह चित्रलिपि का ही रूपांतर है और इसमें अक्षरों की बजाए हज़ारों चीनी भावचित्रों के द्वारा लिखा जाता है। इसमें मानव जाति के मस्तिष्क के विकास की अद्भुत् कहानी मिलती है - मानव ने किस प्रकार मछली, वृक्ष, चंद्र, सूर्य आदि वसतुओं को देखकर उनके आधार पर अपने मनोभावों की व्यक्त करने के लिये एक विभिन्न चित्रलिपि ढूँढ़ निकाली। ईसवी सन् के 1700 वर्ष पूर्व से लगाकर आजतक उपयोग में आनेवाले चीनी शब्दों की आकृतियों में जो क्रमिक विकास हुआ है उसका अध्ययन इस दृष्टि से बहुत रोचक है। चीनी लिपि की विभिन्न शैलियाँ हुनान प्रांत में अनयांग की खुदाई के समय कछुओं की अस्थियों पर शांगकालीन (1766-1122 ई.पू.) जो लेख मिले हैं उनसे पता लगता है कि आज से लगभग 3000 वर्ष पूर्व चीन के लोग लिखने की कला से परिचित थे। इस प्रांत के निवासियों का विश्वास था कि इन अस्थियों में जादू है। इन्हें आग पर तपाने से इनपर जो दरारें पड़ जाती थीं उन्हें देखकर पंडित लोग भविष्य का बखान करते थे। कछुओं की अस्थियों के अतिरिक्त, पशुओं की टाँगों और कंधों की हड्डियों पर भी लेख लिखे जाते थे। "चू" राजवंशों के काल में (1122-221 ई.पू.) चीन निवासी काँसे के बर्तनों पर लिखने लगे थे। इस काल में चीनी भाषा में बहुत से नए वर्णो का समावेश किया गया। अब बाँस या लकड़ी की नुकीली कलम की जगह बालों के बने ब्रुश से लोग लिखने लगे थे। क्रमश: उत्तर में चीन की बड़ी दीवार से लेकर दक्षिण की ओर ह्वाई नदी की घाटी तक चीनी लिपि का प्रचार बढ़ा। इसके पश्चात् "छिन" राज्यकाल (221-206 ई.पू.) में सम्राट् शिह ह्वांग ने चीनी लिपि को एक रूप देने के लिय चीन भर में छिन लिपि का प्रचार किया। लेकिन इस लिपि के कठिन होने के कारण सरकारी फर्मानों के लिखने पढ़ने में बहुत दिक्कत होती थी, इसलिये इस समय "लि" लिपि का प्रचार किया गया जिसमें मुड़ी हुई रेखाओं और गोलाकार कोणों के स्थान पर कोण की सीधी रेखाएँ बनाई जान लगी। इस समय काँसे की जगह बाँस की पट्टियों पर लिखने लगे। इस प्रकार चीनी लिपि को सुव्यवस्थित और एकरूप बनाने के लिये चीन के लोग लगातार परिश्रम करते रहे। "हान" राजवंशों (206 ई.पू. से 221 ई.) और छिन राजवंशों के काल (265-420 ई.) में घसीट और शीघ्रलिपि शैली का प्रचार बढ़ा। ईसवी सन् की चौथी शताब्दी में सुलेखक वांग शिह-छि ने सुंदर अक्षरोंवाली एक आदर्श शैली को जन्म दिया जिससे अधिक व्यवस्थित, सुडौल और चौकोर अक्षर लिखे जाने लगे। आज भी लिखने की यही शैली चीन में प्रचलित है। एकाक्षरप्रधान भाषा चीनी एकाक्षरप्रधान भाषा मानी जाती है, यद्यपि ध्यान रखने की बात है कि उसके एक बार में बोले जानेवाले शब्द में एक या एक से अधिक वर्ण या अक्षर हो सकते हैं। हिंदी या अंग्रेजी आदि भाषाओं की भाँति चीनी ध्वन्यात्मक भाषा नहीं है, अतएव इसमें एक एक शब्द या भाव के लिये अलग अलग संकेतात्मक आकृतियाँ बनाई जाती हैं। वर्णमाला के अभाव में इस भाषा में प्रत्येक शब्द या भाव के लिये लिखा जानेवाला वर्ण या अक्षर अपने आप में पूर्ण होता है और विभिन्न उपसर्ग या प्रत्यय न लगने से इन वर्णों के मूल में परिवर्तन नहीं होता। हिंदी, अंग्रेजी आदि भाषाओं की भाँति यहाँ विभिन्न प्रत्ययों या कारकचिह्नों की भरमार नहीं रहती जिससे संज्ञा सर्वनाम ओर विशेषणों में विभक्ति प्रत्ययों के साथ परिवर्तन नहीं होता। उदाहरण के लिये लड़का लड़के और लड़कों- इन विभिन्न रूपों के लिये चीनी में एक ही वर्ण लिखा जाता है- हाय त्स। काल, वचन, पुरुष और स्त्रीलिंग पुंलिं्लग का भेद भी यहाँ नहीं है, इस दृष्टि से चीनी भाषा का बोलना अपेक्षाकृत सरल हैं। कुछ शब्दों का उच्चारण करते हुए ऊँचे नीचे सुरभेद (चीनी में इसे शंग कहते हैं) का ध्यान अवश्य रखना पड़ता है। जैसे, चीनी में चू शब्द से सूअर, बाँस, स्वामी और रहना, इन चार अर्थो का बोध होता है। लेकिन जब हम चू शब्द का इसके विशिष्ट सुरभेद के साथ उच्चारण करते हैं तभी हमें अपेक्षित अर्थ का ज्ञान होता है। लिखावट की कठिनाइयाँ ऊपर उल्लेख हो चुका है कि चीनी भाषा में प्रत्येक शब्द या भाव के लिये अलग अलग आकृति बनानी पड़ती है। सन् 1716 में प्रकाशित चीनी भाषा के सबसे बड़े कोश में इस प्रकार के 40 हजार वर्ण या शब्दचिह्न दिए गए हैं, यद्यपि इनमें से लगभग 6-7 हजार ही पिछले कई वर्षो से काम में आते रहे हैं। जिन वर्णो की आकृति बनाते समय ऊपर नीचे बहुत से रेखाचिह्न लगाने पड़ते हैं, उन वर्णो का लिखना कठिन होता है। एक वर्ण में एक बार में अधिक से अधिक लगभग 33 रेखाचिह्न तक रहते हैं और यदि भूल से कोई चिह्न इधर उधर हो गया तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है। चित्रलिपि के साथ चीनी लिपि का संबंध होने के कारण कोई अच्छा चित्रकार ही चीनी के सुंदर अक्षर लिख सकता है। इन अक्षरों को सीखने के लिए उसका उच्चारण, लिखावट और उनके अंर्थ का ध्यान रखना आवश्यक है, अतएव चीनी लिपि का सीखना काफी कठिन है। कभी कभी एक वर्ण के स्थान पर दो वर्णो के संयोग से भी चीनी शब्द बनाए जाते हैं। जैसे, "प्रकाश" के लिये सूर्य और चंद्रमा, "अच्छा" के लिये स्त्री और पुत्र, "पुरुष" के लिये खेत और ताकत, "घर" के लिये सूअर और छत, "शांति" के लिये घर में बैठी हुई स्त्री, "मित्रता" के लिये दो हाथ, तथा "वंश" के लिये स्त्री और जन्म का सांकेतिक चिह्न बनाया जाता है। कभी विभिन्न अर्थवाले दो वर्णो के संयोग से बननेवाले शब्दों का अर्थ ही बदल जाता है, यथा- श्वेउ अध्ययन, वनउ लिखना, श्वेवनउ साहित्य; छिंगउ हरा, न्येनउ वर्ष, छिंगन्येनउ युवावस्था; मिंगउ चमकीला, ट्येनउ आकाश, मिंगट्येनउ कल; शीउ पश्चिम, हुंगउ लाल, शिहउ फल, शी हुंग शिहउ टमाटर; त्सउ अपने आप, लायउ आना, श्वेउ पानी, पीउ कलम, त्स लाय श्वे पीउ फाउंटेन पेन;उ चुंगउ मध्य, ह्वाउ फूल, रेनउ आदमी, मिनउ जनता, कुंगउ साधारण, हउ एकता, काउ देश, चुंग ह्वा रेन मिन कुंग ह कोउ चीनी लोक जनतंत्र। चीनी भाषा को सरल बनाने के प्रयत्न भावों को व्यक्त करने की सामथ्र्य, प्रवाहशीलता, व्याकरणपद्धति और शब्दकोश की दृष्टि से चीनी भाषा संसार की समृद्ध भाषाओं में गिनी जाती है। लेकिन कंपोजिंग, टाइपिंग, तार भेजना, समाचारपत्रों को रिपोर्ट भेजना, कोशनिर्माण और प्रौढ़-शिक्षा-प्रचार आदि की दृष्टि से यह काफी क्लिष्ट है, इसलिये प्राचीन काल से ही इस भाषा के संबंध में संशोधन परिवर्तन होते रहे हैं। ईसवी सन् की दूसरी शताब्दी के बाद चीन में भारतीय बौद्ध साहित्य का प्रवेश होने पर चीनी भाषा के वर्णोच्चारण के प्रामाणिक ज्ञान की आवश्यकता प्रतीत हुई। लेकिन बौद्ध धर्म संबंधी हजारों पारिभाषिक शब्दों का चीनी में अनुवाद करना संभव न था। अतएव इन शब्दों को चीनी चीनी में अक्षरांतरित किया जाने लगा। जैसे, बोधिसत्व को फूसा, अमिताभ को अमि तो फो, शाक्यमुनि को शिह जा मोनि, स्तूप को था, गंगा को हंं ह और जैन को चा एन लिखा जाने लगा। चीनी को रोमन लिपि में लिखने के प्रयास का इतिहास भी काफी पुराना है। इसके अतिरिक्त पिछले 60 वर्षो से इस लिपि को ध्वन्यात्मक रूप देने के प्रयत्न भी होते रहे हैं। सन् 1911 में पीकिंग बोली के उच्चरण की आदर्श मानकर इस प्रकार का प्रयत्न किया गया। सन् 1919 में 4 मई के साहित्यिक आंदोलन के पश्चात् दुरूह क्लासिकल भाषा (वन्येन) की जगह बोलचाल की भाषा (पाय् ह्वा) को प्रधानता दी जाने लगी। सन् 1951 में जनमुक्ति सेना के चीनी शिक्षक छी च्येन ह्वा ने अपढ़ मजदूरों, किसानों और सैनिकों को अल्प समय में चीनी सिखाने के लिये नई पद्धति का आविष्कार किया। लेकिन लिखने की कठिनाई इससे हल न हुई। इस कठिनाई को दूर करने के लिये नए चीन की केंद्रीय जन सरकार ने चीनी के 2000 उपयोगी शब्द चुने और उनकी सहायता से पाठ्यपुस्तकें तैयार की गई। पहले किसी शब्द के उच्चारण से एक से अधिक अर्थो का बोध होता था, या बहुत से शब्द एक से अधिक प्रकार से लिखे जाते थे, लेकिन अब यह बात नहीं है। पुराने शब्दों को सरल बनाने के साथ कुछ नए शब्दों का भी आविष्कार किया गया है। चीन की सरकार ने पीकिंग बोली को आदर्श मानकर 26 अक्षरों की वर्णमाला तैयार कर चीनी लिपि को ध्वन्यात्मक रूप दिया है जिससे चीनी का सीखना सरल हो गया है। पहले यदि 2000 शब्द सीखने में 400 घंटे लगते थ तो अब केवल 100 घटों में इतने ही शब्दों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। पारंपरिक और सरलीकृत अक्षर 1956 में, चीन जनवादी गणराज्य की सरकार सरलीकृत चीनी अक्षरों के सार्वजनिक एक सेट करने के लिए सीखने, पढ़ने और चीनी भाषा आसान लेखन बनाने के लिए बनाया है। मुख्यभूमि चीन और सिंगापुर में, लोगों को इन सरल वर्णों का उपयोग करें। हांगकांग, ताइवान और अन्य स्थानों पर जहां वे चीनी बोलते हैं, लोगों को अभी भी और अधिक पारंपरिक वर्ण का उपयोग करें। कोरियाई भाषा में भी चीनी अक्षरों का प्रयोग करता है कुछ शब्दों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जापानी भाषा उन्हें और भी अधिक बार उपयोग करता है। ये वर्ण कोरियाई में हंजा के रूप में और कांजी के रूप में जापानी में जाना जाता है। एक अच्छी शिक्षा के साथ एक चीनी व्यक्ति आज 6,000-7,000 अक्षर जानता है। एक मुख्यभूमि अखबार पढ़ने के लिए ३००० चीनी अक्षरों की जरूरत है। हालांकि, सीखने वाले लोग केवल 400 अक्षर इस्तेमाल कर एक अखबार पढ़ सकते हैं - लेकिन वे कुछ कम प्रयोग किया जाता शब्द लगता होगा। इन्हें भी देखें चीनी भावचित्र चीनी लिपि लिपि
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%A4
प्रतिशत
प्रतिशत (Percent) गणित में किसी अनुपात को व्यक्त करने का एक तरीका है। प्रतिशत का अर्थ है प्रति सौ या प्रति सैकड़ा (% =1/100) ; एक सौ में एक। उदाहरण के लिये माना कि गणित के प्रश्नपत्र का पूर्णांक 50 है और उस प्रश्नपत्र में कोई छात्र 48 अंक प्राप्त करता है तो कहते हैं कि उस छात्र को 48/50 = 96/100 = 96 प्रतिशत (96%) अंक मिले। इसी तरह कहते हैं कि वायुमंडल में आक्सीजन की मात्रा 20% है। किसी कक्षा में 20 विद्यार्थियों में से केवल 15 ही उतीर्ण हुए तो कहेंगे कि केवल 75% विद्यार्थी उतीर्ण हुए तथा 25% अनुतीर्ण (फेल) हो गये। 1. साधारण भिन्न या दशमलव भिन्न को प्रतिशत भिन्न में बदलने के लिए उस भिन्न में 100 से गुणा करते हैं। उदाहरण 1. 7/8 को प्रतिशत भिन्न में लिखिए। हल: 7/8 = (7/8*100)% = 87.5% 2. प्रतिशत भिन्न को दशमलव या साधारण भिन्न में बदलने के लिए उस भिन्न में 100 से भाग देते हैं। उदाहरण 2. 40% को साधारण भिन्न में लिखिए। हल: 40% = 40/100 = 2/5 3. किसी वस्तु के भाव में x % वृद्धि हो जाने पर, इस मद पर खर्च न बढ़े इसके लिए वस्तु की खपत में कमी = [x/(x+100)] * 100 अन्य प्रणालियाँ विभिन्न स्थितियों में किसी अनुपात को व्यक्त करने के अलग-अलग तरीके अपनाए जाते हैं। प्रतिशत में अनुपात का आधार (हर) १०० होता है। इसी प्रकार १०००, १ लाख, या १० लाख को आधार मानकर भी अनुपातों को व्यक्त करने की प्रथा है। यदि १० लाख लोगों में से ७ लोग किसी रोग से पीड़ित हैं तो कहते हैं कि उस रोग से दुनिया के ७ पीपीएम (parts per million) लोग पीड़ित हैं। बाहरी कड़ियाँ Express learning - percentages BBC raw money प्रारम्भिक अंकगणित
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B0
सेलांगोर
सेलांगोर मलेशिया का एक राज्य है। यह मलय प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर स्थित है। सेलांगोर का क्षेत्र कुआला लम्पुर और पुत्रजय के संघीय क्षेत्रों को घेरे हुए है, जो कभी इसी राज्य का हिस्सा हुआ करते थे। सकल घरेलू उत्पाद (जी॰डी॰पी॰) के हिसाब से सेलांगोर की अर्थव्यवस्था पूरे मलेशिया की अर्थव्यवस्था की २३% है और यह अन्य किसी भी राज्य से अधिक है। इस राज्य की जनसंख्या भी किसी अन्य राज्य से अधिक है और जीवन स्तर सबसे ऊँचा है। राजपरिवार व औपचारिक नाम मलेशिया में अलग-अलग राज्यों के पुराने राजपरिवारों को संवैधानिक दर्जा मिला हुआ है। सेलांगोर का संवैधनिक अध्यक्ष सुल्तान कहलाता है हालांकि इस पद के साथ कोई वास्तविक प्रशासनिक अधिकार नहीं आते। मलेशिया में कुछ राज्यों को औपचारिक अरबी भाषा के नाम भी दिये जाते हैं और सेलांगोर का नाम "सेलांगोर दार-उल-एहसान" (سلاڠور دار الإحسان) है, यानि "सेलांगोर, एहसानों का घर"। इन्हें भी देखें मलेशिया के राज्य व संघीय क्षेत्र सन्दर्भ मलेशिया के राज्य व संघीय क्षेत्र मलक्का जलसन्धि
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%20%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%80
लोक वानस्पतिकी
लोकवानस्पतिकी (Ethnobotany) वनस्पति विज्ञान की एक शाखा है जिसमें वनस्पतियों एवं लोगों के पारस्परिक सम्बन्धों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। इसमें संस्कृतियों एवं पेड़-पौधों के आपसी जटिल सम्बन्धों को समझने एवं उनकी व्याख्या करने की कोशिश की जाती है। इसमें अध्ययन करते हैं कि विभिन्न संस्कृतियाँ पौधों का कैसे उपयोग करतीं हैं (जैसे भोजन, दवा, सौन्दर्य-प्रसाधन, रंजक, वस्त्र, भवन-निर्माण, हथियार, साहित्य, कर्मकाण्ड एवं सामाजिक जीवन में); बाहरी कड़ियाँ Importance of local names of some useful plants in ethnobotanical study (Harish Singh ; Botanical Survey of India) Society for Economic Botany International Society of Ethnobiology Society of Ethnobiology Journal of Ethnobiology and Ethnomedicin be Journal of Ethnobotany Research and Applications Latin American and Caribbean Bulletin of Medicinal and Aromatic Plants "Before Warm Springs Dam: History of Lake Sonoma Area" This California study has information about one of the first ethnobotanical mitigation projects undertaken in the USA. Grow Your Own Drugs, a BBC 2 Programme presented by ethnobotanist James Wong. Institute for Ethnomedicine वनस्पतिशास्त्र की शाखाएँ पारम्परिक ज्ञान भेषजज्ञान
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%98%E0%A4%9F%E0%A4%A8
सामाजिक संघटन
समाजशास्त्र में, सामाजिक संगठन एक सैद्धांतिक अवधारणा होती है जिसके अंतर्गत एक समाज या सामाजिक संरचना को एक "क्रियाशील संघटन" के रूप में देखते हैं। इस दृष्टिकोण से, आदर्शतः, सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, सामाजिक विशेषताओं, जैसे कानून, परिवार, अपराध आदि, के संबंधों का निरीक्षण समाज के अन्य लक्षणों के साथ पारस्परिक क्रिया के दौरान किया जाता है। एक समाज या सामाजिक संघटन के सभी अवयवों का एक निश्चित प्रकार होता है जो उस संघटन के स्थायित्व और सामंजस्य को बनाकर रखता है। इलियट तथा मैरिल के अनुसार " सामाजिक संगठन वह दशा या स्थिति है, जिसमें एक समाज में विभिन्न संस्थाएं अपने मान्य तथा पूर्व निश्चित उद्देश्यों के अनुसार कार्य कर रही होती है। इतिहास समाज का एक संघटन के रूप में प्रतिदर्श या इसकी अवधारणा का विकास 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में फ्रांसिस समाजशास्त्री, एमिले डुर्कहेम के द्वारा किया गया था। डुर्कहेम के अनुसार, एक संघटन या समाज का प्रकार्य जितना ही विशिष्ट होगा उसका विकास भी उतना ही अधिक होगा, इसका ठीक विपरीत भी सत्य होगा. आमतौर पर, संस्कृति, राजनीति और अर्थशास्त्र समाज की तीन प्रमुख गतिविधियां हैं। सामाजिक स्वास्थ्य इन तीन गतिविधियों की सुव्यवस्थित पारस्परिक क्रिया पर निर्भर करता है। इसलिए, सामाजिक संघटन के "स्वास्थ्य" को संस्कृति, राजनीति और अर्थशास्त्र की पारस्परिक क्रिया के प्रकार्य के रूप में देखा जा सकता है, जिसका एक सिद्धांत के रूप में अध्ययन किया जा सकता है, प्रतिदर्श बनाया जा सकता है और विश्लेषण किया जा सकता है। "संघटनात्मक समाज" की अवधारणा की और अधिक विस्तृत व्याख्या हर्बर्ट स्पेंसर द्वारा उनके निबंध "द सोशल ऑर्गेनिज़्म" में की गयी थी। संबंधित तथ्य इसकी एक समवृत्त अवधारणा का नाम गाइआ अवधारणा है जिसमें संपूर्ण पृथ्वी की परिकल्पना एक एकल एकीकृत संघटन के रूप में की गयी है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Conceivia.com - समाज की एक नई प्रणाली बना रहे हैं। क्या आर्थिक प्रणाली एक संघटन के सामान है? सामाजिक संघटन का द्रव मैट्रिक्स सामाजिक मनोविज्ञान और सामाजिक संघटन निबंध: वैज्ञानिक, राजनीतिक और चिन्तनशील - स्पेंसर की पुस्तक के खंड 1 में निबंध "द सोशल ऑर्गनिज़म" सम्मिलित है समाजशास्त्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%91%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97
ऑपेरा प्रयोग
ऑसिलेशन प्रोजेक्ट विद इमल्शन-(ट्) रैकिंग एपरेटस (हिन्दी अनुवाद : पायसन लक्ष्यानुसरण उपकरण के साथ दोलन परियोजना), म्यूऑन न्यूट्रिनों के दोलन से प्रप्त टाऊ न्यूट्रिनों को संसूचित करने के लिए वैज्ञानिक प्रयोगों में प्रयुक्त उपकरण है। यह प्रयोग जिनेवा, स्विट्ज़रलैण्ड में स्थित सर्न व ग्रान सास्सो, इटली स्थित ग्रान सास्सो की राष्ट्रीय प्रयोगशाला के मध्य सहयोग है और सर्न न्यूट्रिनो से ग्रान सास्सो न्यूट्रिनो किरण पुंज का उपयोग करते हैं। यह प्रक्रिया सर्न स्थित सुपर प्रोटॉन सिंक्रोट्रॉन से आरम्भ होती है जहाँ प्रोटॉन गुच्छों से पाइआन और केऑन प्राप्त करने के लिए इन्हें कार्बन के लक्ष्य पर से भेदित करवाया जाता है। इन कणों के क्षय से म्यूऑन व न्यूट्रिनों प्राप्त होते हैं। सन्दर्भ प्रायोगिक भौतिकी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B6%E0%A5%80
निर्जला एकादशी
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर २६ हो जाती है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते है इस व्रत मे पानी का पीना वर्जित है इसिलिये इस निर्जला एकादशी कहते है। कथा जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली भीम ने निवेदन किया- पितामह! आपने तो प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में 'वृक' नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊँगा? पितामह ने भीम की समस्या का निदान करते और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- नहीं कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है। अतः आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। निःसंदेह तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे। इतने आश्वासन पर तो वृकोदर भीमसेन भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन जो स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा इस मंत्र के साथ दान करता है। दूसरी कथा एक बार महर्षि व्यास पांडवो के यहाँ पधारे। भीम ने महर्षि व्यास से कहा, भगवान! युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते है और मुझसे भी व्रत रख्ने को कहते है परन्तु मैं बिना खाए रह नही सकता है इसलिए चौबीस एकादशियो पर निरहार रहने का कष्ट साधना से बचाकर मुझे कोई ऐसा व्रत बताईये जिसे करने में मुझे विशेष असुविधा न हो और सबका फल भी मुझे मिल जाये। महर्षि व्यास जानते थे कि भीम के उदर में बृक नामक अग्नि है इसलिए अधिक मात्रा में भोजन करने पर भ उसकी भूख शान्त नही होती है महर्षि ने भीम से कहा तुम ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का व्रत रखा करो। इस व्रत मे स्नान आचमन मे पानी पीने से दोष नही होता है इस व्रत से अन्य तेईस एकादशियो के पुण्य का लाभ भी मिलेगा तुम जीवन पर्यन्त इस व्रत का पालन करो भीम ने बडे साहस के साथ निर्जला एकादशी व्रत किया, जिसके परिणाम स्वरूप प्रातः होते होते वह सज्ञाहीन हो गया तब पांडवो ने गगाजल, तुलसी चरणामृत प्रसाद, देकर उनकी मुर्छा दुर की। इसलिए इसे भीमसेन एकादशी भी कहते हैं। विधान यह व्रत नर नारी दोनो को करना चाहिए। इस दिन निर्जल व्रत करते हुए शेषशायी रूप मे भगवान विष्णु की अराधना का विशेष महत्व है। इस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करके गोदान, वस्त्र दान, छत्र, फल आदि का दान करना चाहिये। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ एकादशी हिन्दू त्यौहार
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%AA%E0%A4%A4%20%E0%A4%A8%E0%A4%97%E0%A4%B0%2C%20%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%80
लाजपत नगर, दिल्ली
लाजपत नगर दक्षिण दिल्ली का एक प्रमुख क्षेत्र है। यहां एक बडी निजि आवासीय कालोनी, सरकारी आवासीय कालोनी के साथ- साथ ही एक बड व प्रसिद्ध बाजार भी है, जो कि सेन्ट्रल मार्किट के नाम से प्रसिद्ध है। यह प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी श्री लाला लाजपत राय के सम्मान में नामित है। लाजपतनगर, दिल्ली दिल्ली के रिंग मार्ग पर आने वाला एक बस स्टॉप भी है। प्रमुख भाग अयह मुख्यतः चार भागों में विभाजित है: भाग - १ (एकदम उत्तरी क्षेत्र जोकि रिंग रेलवे से लगा हुआ है, व लाजपत नगर रेलवे स्टेशन भे यहीं स्थित है) भाग -२ (यह भा-१ के दक्षिण में स्थित है, व सेन्टृअल मार्किट तक आता है। इन दोनों भागों में मुख्यतः आवासेय कालोनी स्थित है। भाग - ३ (यह भी सेण्ट्रल मार्किट के दक्षिण पूर्व में ही स्थित है व रिंग मार्ग तक जाता है। भाग - ४ (यह रिंग मार्ग के दक्षिण में स्थित है। सेंट्रल मार्किट दिल्ली की मार्केट की बात हो और लाजपत नगर के सेंट्रल मार्केट का नाम याद न आए ऐसा हो ही नहीं सकता है। यह मार्केट खरीदारों के लिए स्वर्ग है जहाँ बच्चों, लड़कों, लड़कियों से ले कर बड़े -बुजर्गों तक का सामान मिल जायेगा। दिल्ली के पास लगते नोएडा, फरीदबाद, गाजियाबाद तक के लोग यहाँ से खरीदारी करना पसंद करते हैं क्यों कि इस बाजार में पारम्परिक भारतीय परिधान से ले कर पश्चिमी कपड़ो तक मिलंगे, साथ ही डिजायनर जुते, चप्पलों की तो यहाँ भरमार है। यह दिल्ली के सबसे पुराने बाजारों में से एक है। यहाँ अपने बजट के हिसाब से अपने लिए सामान खरीद सकते हैं। चुनमुन, रितु वेयरस, स्पोर्ट किंग आदि बड़े नामों के साथ, सड़क के किनारे लगी छोटी छोटी दुकानों से सस्ता सामान भी खरीद सकते हैं, बस थोड़ा सा मोल भाव करना पड़ेगा। कपड़ो के अलावा यदि घर के लिए साजो समान लेना हो तो यहाँ घर के सजावट के लिए भरपूर समान है। होम साज, जगदीश स्टोर आदि और कई छोटी मोटी दुकानें हैं जहाँ से घर के लिए परदे खूबसूरत सजावटी चीजे ले सकते हैं। टीवी, फ्रिज और इलेक्ट्रॉनिक सामान से तो यह बाजार भरा पड़ा है। एक से एक नए गजेट यहाँ मिल जायेंगे। बाजार में हर वक्त भीड़ रहती है और अब सुरक्षा की नज़र से भी यहाँ कई प्रबंध किए गए हैं। खरीदारी के आलावा यहाँ पर बने थ्री सीज़ सिनेमा में पिक्चर का मजा भी ले सकते हैं। और घूमते घूमते थक जाए तो खाने के लिए एक से बढ़ कर एक जगह हैं। चाट पापडी, में आलू की चाट और चाइनिस चाट, मोमो यहाँ के स्पेशल खाने के नाम पर याद आ जाते हैं। गोल्डन फीस्टा से ग्रीलिड सेंडविच खा सकते हैं, फ़ूड यूनियन में अच्छी काफ़ी और बढ़िया पिज्जा का मजा ले सकते हैं, ठेले पर मिलते दाल के लड्डू और उबली मसाला लगा के छली भुट्टा यहाँ का बहुत पसंद किया जाता है। नमकीन घर के लिए ले जाने का दिल है तो सिन्धी नमकीन भंडार जा सकते हैं। यहाँ बेसन गुजराती पापडी के साथ उबली हरी मिर्चे लेना न भूले। दिल्ली की बेहतर मार्केट के रूप में जाने जानी वाली इस जगह पर बस इसी बात का ध्यान रखे कि मोलभाव जरुर करे और खरीदारी का मजा खाने पीने के साथ खूब लें। मेट्रो स्टेशन यह दिल्ली मेट्रो रेल की दक्षिण विस्तार वाली येलो लाइन शाखा का एक प्रस्तावित स्टेशन भी है। दिल्ली के बस स्टॉप रिंग मार्ग के बस स्टॉप दिल्ली के स्थल दिल्ली मेट्रो ब्लूलाइन मेट्रो स्टेशन दिल्ली के क्षेत्र दिल्ली में सड़कें दिल्ली के आवासीय क्षेत्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%B2%E0%A5%80
कासली
कासली, सीकर जिले से 9 किलोमीटर पूर्व में स्थित एक गाँव है जिसे गांवडी या बड़ा गाँव भी कहा जाता है.कासली में सभी जातियों के लोग एकता और प्रेम से रहते हैं यहाँ पर राजपूत, कायमखानी, कुम्हार, ब्राह्मण और जाट मुख्य जातियां प्रेम और सोहार्द के साथ निवास करती हैं. इस गाँव में वर्षा के दिनों में बहुत तेज भहाव के साथ नदी बहती है. MD kasli इतिहास रतनलाल मिश्र ने भी लिखा है कि कुम्भलगढ़ प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि महाराणा कुम्भा जांगलस्थल को युद्ध में रोंदता हुआ आगे बढे और उन्होने कासली को अचानक जीत लिया। उस समय कासली पर सम्भवतः चन्देलों का राज्य था जो पहले चौहानों के सामन्त थे पर उनके कमजोर पड़ने पर स्वतंत्र हो गए थे। रेवासा, कासली और संभवत: खाटू के आसपास का प्रदेश इनके अधिकार में था। महाराणा के दुन्दुभियों के जयघोष से धुंखराद्रि (धोकर, जिसे वर्तमान में सीकर कहा जाता है ) को भी जीत लिया था । महाराणा ने आगे बढकर खण्डेले के दुर्ग को और शेखावाटी के अनेक स्थानों को पददलित कर दिया। भारत के गाँव
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%A3%E0%A4%A7%E0%A5%80%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B0
रणधीर कपूर
रणधीर कपूर (जन्म-15 फरवरी 1947) हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं। राज कपूरजी के सुपुत्र तथा करिश्मा और करीना कपूर के पिता जीन्होने सत्तर,अस्सीके दशकमे काफी धूम मचायी थी। . एक बेहतरीन और उनके बहोत जॉली अंदाजको चाह्ने वाला उनका एक खास दर्शक वर्ग बना। उनकी फ़िल्मे जैसे .. जवानी दिवानी,हाथ कि सफाई,रामपूर का लक्ष्मण,ढोंगी,खलीफा,कच्चा चोर,कल आज और कल,पोंगा पंडित,कस्मे वादे,बिवी ओ बिवी,भंवर,हरजाई,हमराही,चाचा भातीजा,राम भरोसे,आज का महात्मा,लफंगे,खलिफा,आखरी डाकू,पुकार यह फ़िल्मे,उनके गाने लोगोंको बहोत पसंद आये। . रणधीरजी ने निर्देशन दिया धरम करम,हीना,प्रेम ग्रंथ इन फ़िल्मोनको भी अच्छी सफलता मिली। .. 'किशोर कुमार'उनके हमेशा चहेते गायक रहे हैं। रणधीर कपूरजी ज्यादातर अपने खुदके प्लैबैक के लिये किशोरदा का आवाज लेते रहे। .इस जोड़ी के कई गाने जैसे 'रामपुरका का वासी हु मैं लछमन मेरा नाम','गुम है किसीके प्यारमे दिल सुबह शाम'और फ़िल्म जवानी दिवानि का 'जा ने जा धुंडता फिर रहा' तथा 'भवरे की गुंजन ए मेरा दिल' यह गाने लोग आजभी गुनगुनाते रहते हैं। . फिल्मी सफर पुरस्कार व्यक्तिगत जीवन उन दिनों अधिकतर मशहूर लोगों को उनके निकनेम से पुकारा जाता था । इनका निकनेम "डब्बू" था । प्रमुख फिल्में जवानी दीवानीkal aaj aur kal dharam karam hath ki safai kasme vaade चाचा भतीजा सन्दर्भ 1947 में जन्मे लोग जीवित लोग हिन्दी अभिनेता मुम्बई के लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AA
गिम्प
गिम्प (GIMP), एक प्रमुख रास्टर ग्राफिक्स सम्पादक है जो मुक्त स्रोत है। इसका उपयोग छवि सवांरने (retouching), छवि सम्पादन (image editing]], मुक्त-रूप चित्रण, आदि के लिये किया जाता है। इसके अलावा इसका उपयोग छबियों की कोडिंग बदलने (transcoding) और अन्य विशिष्ट कार्यों के लिये भी किया जाता है। यद्यपि इसकी डिजाइन चित्रकारी के लिये नहीं की गयी है, तथापि कुछ कलाकार और रचनाकार लोग इसका उपयोग इस काम के लिये भी करते हैं। यह फोटोशॉप का मुक्तस्रोत और निःशुल्क विकल्प है और जी.पी.एल. के अन्दर प्रकाशित है। यह लिनक्स, विन्डोज़ और मैक ओएस के लावा कई अन्य प्लेटफार्मों पर भी चलता है। बाहरी कड़ियाँ Photoshop vs GIMP: Difference Between the Two Powerful Photo Editors मुक्तस्रोत सॉफ्टवेयर फोटो सम्पादन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%A0%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%80
लट्ठमार होली
लट्ठमार होली भारत का एक प्रमुख त्योहार है। यह बरसाना और नंदगाँव में विशेष रूप से मनाया जाता है। इन दोनों ही शहरों को राधा और कृष्ण के निवास स्थान के रूप में भी जाना जाता है। तिथि लट्ठमार होली हर साल होली के त्योहार के समय बरसाना और नंदगाँव में खेला जाता है। इस समय हजारों श्रद्धालु और पर्यटक देश-विदेश से इस त्योहार में भाग लेने के लिए यहाँ आते हैं। यह त्योहार लगभग एक सप्ताह तक चलता है और रंग पंचमी के दिन समाप्त हो जाता है। आमतौर पर बरसाना की लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इस दिन नंदगाँव के ग्वाल बाल बरसाना होली खेलने आते हैं और अगले दिन फाल्गुन शुक्ल दशमी को ठीक इसके विपरीत बरसाना के ग्वाल बाल होली खेलने नंदगाँव जाते हैं। इस दौरान इन ग्वालों को होरियारे और ग्वालिनों को हुरियारीन के नाम से सम्बोधित किया जाता है। उत्पत्ति लट्ठमार होली की उत्पत्ति के विषय में पौराणिक कथाओं में विस्तार से वर्णन दिया गया है, जो मूलतः राधा-कृष्ण के प्रेम प्रसंगों से जुड़ा है। कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण और उनके मित्र नंदगाँव से अपनी प्रेमिका राधा और उनकी सखियों पर रंगों का छिड़काव करने के लिए बरसाना आते हैं। लेकिन जैसे ही कृष्ण और उनके मित्र बरसाना में प्रवेश करते हैं तो वहाँ राधा और उनकी सखियाँ उनका लाठियों से स्वागत करती हैं। इसी हास्य विनोद का अनुसरण करते हुए, हर साल होली के अवसर पर नंदगाँव के ग्वाल बाल बरसाना आते हैं और वहाँ की महिलाओं द्वारा रंग और लाठी से उनका स्वागत किया जाता है। चित्रदीर्घा यह भी देखें होली राधा कृष्ण नंदगाँव, मथुरा बरसाना सन्दर्भ हिन्दू पर्व होली मथुरा ज़िले में पर्यटन आकर्षण
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%88%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AE
ईरान में इस्लाम
फारस की (637-651) ने सासैनियन साम्राज्य के अंत और फारस में पारिवारिक धर्म की अंतिम गिरावट का नेतृत्व किया। हालांकि, पिछली फारसी सभ्यताओं की उपलब्धियां खो गईं, लेकिन नई इस्लामी राजनीति द्वारा काफी हद तक अवशोषित हुईं। तब से इस्लाम ईरान का आधिकारिक धर्म रहा है, मंगोल छापे और इल्खानाट की स्थापना के बाद थोड़ी अवधि के अलावा। 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद ईरान इस्लामी गणराज्य बन गया। इस्लामी विजय से पहले, फारसी मुख्य रूप से ज़ोरोस्ट्रियन पारसी थे; हालांकि, बड़े पैमाने पर ईसाई और यहूदी समुदायों भी थे, खासतौर पर उस समय के उत्तर-पश्चिमी, पश्चिमी और दक्षिणी ईरान, मुख्य रूप से कोकेशियान अल्बानिया, असोस्टान, फारसी आर्मेनिया और कोकेशियान इबेरिया के क्षेत्रों में। पूर्वी सासैनियन ईरान, जो अब पूरी तरह से अफगानिस्तान और मध्य एशिया बना है, मुख्य रूप से बौद्ध धर्म था। इस्लाम की ओर आबादी का धीमी लेकिन स्थिर आंदोलन था। जब इस्लाम को ईरानियों के साथ पेश किया गया था, तो कुलीनता और शहरवासियों को बदलने वाला पहला मौका था, इस्लाम किसानों और देहकानों या भूमिगत सज्जनों के बीच धीरे-धीरे फैल गया।। इस्लाम ईरान का 99.4% का धर्म है। ईरान का लगभग 90% शिया हैं और लगभग 10% सुन्नी हैं। ईरान में अधिकांश सुन्नी कुर्द, लरेस्टानी लोग (लारेस्तान से), तुर्कमेन और बलूच हैं, जो उत्तर-पश्चिम, पूर्वोत्तर, दक्षिण और दक्षिणपूर्व में रहते हैं। यद्यपि ईरान आज शिया मुस्लिम विश्वास के गढ़ के रूप में जाना जाता है, लेकिन यह 15 वीं शताब्दी के आसपास तक बहुत कुछ नहीं हुआ। सफवीद राजवंश ने शिया इस्लाम को सोलहवीं शताब्दी की शुरुआत में आधिकारिक राज्य धर्म बनाया। यह भी माना जाता है कि सत्तरवीं शताब्दी के मध्य तक ईरान के अधिकांश लोग और अज़रबैजान के समकालीन पड़ोसी गणराज्य के क्षेत्र शिया बन गए थे। एक संबद्धता जारी रहा है। निम्नलिखित शताब्दियों में, फारसी स्थित शियाओं के राज्य-उत्साह के साथ, फारसी संस्कृति और शिया इस्लाम के बीच एक संश्लेषण का गठन किया गया था। सन्दर्भ ईरान इस्लाम का इतिहास हिन्दी दिवस लेख प्रतियोगिता २०१८ के अन्तर्गत बनाये गये लेख
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%B8%20%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE
इंडियानापोलिस टेनिस प्रतियोगिता
इंडियानापोलिस टेनिस प्रतियोगिता (जिसे आर सी ए प्रतियोगिता के नाम से भी जाना जाता है) पुरुषों की टेनिस की एक वार्षिक स्पर्धा है जिसका आयोजन एटीपी टूर के भाग के रूप में इंडियानापोलिस में किया जाता है। इसकी शुरुआत 1987 में हुई और यह जुलाई के मास में एक हफ़्ते तक खेले जाने वाली प्रतियोगिता है। वर्ष 2007 में इसका आयोजन 23 से 29 जुलाई तक हुआ। पूर्व विजेता एकल बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट संयुक्त राज्य अमेरिका में होने वाली टेनिस प्रतियोगिता
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%81
ओशियानी भाषाएँ
ओशियानी भषाएँ (Oceanic languages) ऑस्ट्रोनीशियाई भाषा परिवार की मलय-पोलेनीशियाई शाखा का एक भाषा-परिवार है। इस परिवार में ४५० से १,५०० के बीच सदस्य भाषाएँ आती हैं जो प्रशान्त महासागर के पॉलीनीशिया, मेलानीशिया और माइक्रोनीशिया क्षेत्रों पर विस्तृत हैं। इतने बड़े भूक्षेत्र पर फैले होने के बावजूद इन भाषाओं को कुल मिलाकर केवल २० लाख लोग बोलते हैं। ६ लाख मातृभाषियों वाली पूर्वी फ़ीजीयाई भाषा और ३.७ लाख मातृभाषियों वाली सामोआई भाषा इस परिवार की सबसे बड़ी सदस्य हैं। कीरीबती, टोंगवी, तहीतिवी, माओरी, पश्चिमी फ़ीजीयाई और कुआनुआ भाषाएँ भी प्रत्येक १ लाख लोगों से ज़्यादा वक्ता रखती हैं। इन्हें भी देखें ऑस्ट्रोनीशियाई भाषा परिवार फ़ीजीयाई भाषा सन्दर्भ मलय-पोलेनीशियाई भाषाएँ ऑस्ट्रोनीशियाई भाषाएँ ओशिआनिया की भाषाएँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%88
चौरई
चौरई (Chaurai) या चौरई खास (Chaurai Khas) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के छिंदवाड़ा ज़िले में स्थित एक नगर है। राष्ट्रीय राजमार्ग ३४७ यहाँ से गुज़रता है। विवरण चौरई से छिंदवाडा, अमरवाड़ा एवं सिवनी की दूरी 35 किलोमीटर है। चौरई विधान सभा क्षेत्र मे बिछुआ और चाँद तहसील शामिल हैं। माचागोरा बाँध चौरई से 15.2 दूर माचागोरा गाँव स्थित है, जहाँ पेंच नदी पर माचागोरा बाँध खड़ा है। प्रमुख धार्मिक स्थल प्राचीन माँ बंजारी मंदिर (सिवनी रोड चौरई) श्री दिव्य साईं मंदिर (चांद रोड चौरई) प्रसिद्ध माता मंदिर (ग्राम देवी मंदिर चौरई) शिवशक्ति मँदिर (पेंच कॉलोनी चौरई) चर्च (चांद रोड) मस्जिद (मेन रोड) जैन मंदिर (छोटी बाजार) गायत्री मंदिर (संजय निकुंज) दादा धूनिवाले मंदिर (चांद रोड) जोडा हनुमान मंदिर (पुलिस थाना परिसर) साईं - राम - शिव मंदिर (बैल बाजार) हनुमान मंदिर (ब्लाक कालोनी) पँचमुखी हनुमान मंदिर (तहसील परिसर) काली मंदिर (बैल बाजार) काली मंदिर (पानी की टंकी वार्ड नं 1) श्री सिद्धेश्वर महाकाल मंदिर वार्ड न. 06(महाकाल उत्सव समिति चौरई) गेट वाले दादा हनुमान मंदिर (रेलवे फाटक) दुर्गा मंदिर "खेड़ापति" (कुंडा फाटक) श्री पंचमुखी हनुमान मंदिर (कृषि उपज मंडी परिसर) श्री राम मंदिर (छोटी बाजार) बजरंग मंदिर शंकर मढ़िया (सब्जी बाजार) नगबेड़नी माता मंदिर (झंडा मोहल्ला) शिव मंदिर (अस्पताल परिसर) राधा कृष्ण मंदिर (कुइयां मोहल्ला) तुलसी जयंती सन् 1966 से चौरई में तुलसी जयंती प्रतिवर्ष बडे धूमधाम से मनायी जाती है 21 दिनो तक अंखड रामायण के पाठ के पश्चात तुलसी जंयती के दिन रामायण समापन के बाद माता मंदिर से गोस्वामी तुलसीदास जी की फोटो पालकी में रखकर पुरे नगर में घूमायी जाती है इनके पीछे झाकियाँ व शैला नृत्य करते हुए लोग आगे बढ़ते हैँ। नगर की तुलसी जयंती जिसकी ख्याति दूर दूर तक है इसमे शैला नृत्य,जस प्रतियोगिता और झाकियाँ आदि प्रमुख है जिसे देखने लोग दूर दूर से आते हैँ स्थानीय कलामंच में शैला नृत्य का आयोजन होता है जिसमे आस-पास क्षेत्रो से आये ग्रामीण बडे उत्साह से भाग लेते हैँ ओर जनप्रतिनिधियो के द्वारा पुरस्कार पाते है साथ ही चौरई में गणेश उत्सव और शारदीय नवरात्री भी बड़े धूमधाम से मनायी जाती हैं। महाशिवरात्रि शिव जी की बारात प्रति वर्ष महाकाल उत्सव समिति चौरई एवं समस्त चौरई नगर के भक्तजनो  द्वारा महाशिव रात्रि के पावन पर्व पर कालो के काल बाबा महाकाल {महादेव } की भव्य सवारी {पालकी } बारात एवं महाप्रसाद का आयोजन किया जाता है जिसमे गाजे बाजे के साथ बाबा महाकाल अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए चौरई नगर में निकलते है तत्पश्चात शाम को भगवान भोलेनाथ की बारात गाजे बाजे एवं आतिशवाजी के साथ बारात निकलती है बारात कुण्डा फाटक के श्री सिद्वेश्वर महाकाल मंदिर से निकल कर मुख्य मार्ग होते हुये शंकर मढ़िया सब्जी मंडी पहुचती है जहा पर भगवान महादेव और माता गोरा रानी का विवाह संपन्न होता है प्रमुख शिक्षण संस्थान केन्द्रीय विद्यालय शासकीय प्राथमिक शाला शासकीय माध्यमिक विद्यालय उत्कृष्ट विद्यालय डीपी मिश्रा स्कूल कन्या शाला स्कूल (वीरांगना अवंति बाई कन्या शाला) कला एंव वाणिज्य महाविद्यालय फर्स्ट स्टेप स्कूल रेडीयण्ट स्कूल यश मेमोरियल कान्वेंट स्कूल सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल सरस्वती ज्ञान मंदिर स्कूल ITI कालेज महात्मा गांधी पब्लिक स्कूल बैल बाजार यहा हर बुधवार को बैल बाजार लगती है जिसमे दूर दूर से लोग मवेशी खरीदने आते हैँ। सप्ताहिक बाजार हर रविवार यहाँ सप्ताहिक बाजार लगती है जिसमे दूर दूर से लोग बाजार करने आते हैँ। इस क्षेत्र में सब्जी उत्पादन ज्यादा होने के कारण प्रतिदिन ताजी सब्जीयाँ उपलब्ध रहती है और आसानी से खरीदी ली जाती हैँ। कमलनाथ स्टेडियम यह एक प्रमुख खेल मैदान हैँ इस स्टेडियम मे मुख्य रूप से क्रिकेट और फूटवाँल ज्यादा खेला जाता है जिसमे हरसाल ट्राफी होती है साथ ही 15 अगस्त और 26 जनवरी को आयोजन इसी मैदान पर होता है जिसमे रेली और विभिन्न प्रकार के रंगारंग प्रस्तुति स्कूल के बच्चे देते हैँ। संदर्भ मध्य प्रदेश के शहर छिंदवाड़ा जिला छिंदवाड़ा ज़िले के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A5%80
गोमसी
गोमसी (Gomsi) भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य के पूर्व सियांग ज़िले में रानी गाँव और सीका तोदे गाँव के बीच स्थित एक पुरातत्व स्थल है, जहाँ मध्यकालीन सुतिया राज्य के अवशेष मिलते हैं। सम्भव है कि यह उस राज्य की एक व्यापारिक निरीक्षण चौकी थी। यहाँ उस समय का एक मानवकृत पुखुरी (तालाब) भी स्थित है। चित्रदीर्घा इन्हें भी देखें सुतिया राज्य रानी, पूर्व सियांग सीका तोदे सन्दर्भ पूर्व सियांग ज़िला अरुणाचल प्रदेश में पुरातत्व स्थल
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%95%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A0%20%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%20%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B0%2C%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%B0
नीलकण्ठ महादेव मन्दिर, कालिंजर
कालिंजर दुर्ग के पश्चिमी भाग में यहां के अधिष्ठाता देवता नीलकंठ महादेव का एक प्राचीन मंदिर भी स्थापित है। इस मंदिर को जाने के लिए दो द्वारों से होकर जाते हैं। रास्ते में अनेक गुफाएँ तथा चट्टानों को काट कर बनाई शिल्पाकृतियाँ बनायी गई हैं। वास्तुशिल्प की दृष्टि से यह मंडप चंदेल शासकों की अनोखी कृति है। मंदिर के प्रवेशद्वार पर परिमाद्र देव नामक चंदेल शासक रचित शिवस्तुति है व अंदर एक स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है। मन्दिर के ऊपर ही जल का एक प्राकृतिक स्रोत है, जो कभी सूखता नहीं है। इस स्रोत से शिवलिंग का अभिषेक निरंतर प्राकृतिक तरीके से होता रहता है। बुन्देलखण्ड का यह क्षेत्र अपने सूखे के कारण भी जाना जाता है, किन्तु कितना भी सूखा पड़े, यह स्रोत कभी नहीं सूखता है।> कालिंजर दुर्ग में २४९ ई. में हैहय वंशी कृष्णराज का शासन था, एवं चतुर्थ शताब्दी में नागों का अधिकार हुआ, जिन्होंने यहाँ नीलकंठ महादेव का मन्दिर बनवाया। चन्देल शासकों के समय से ही यहां की पूजा अर्चना में लीन चन्देल राजपूत जो यहां पण्डित का कार्य भी करते हैं, वे बताते हैं कि शिवलिंग पर उकेरे गये भगवान शिव की मूर्ति के कंठ का क्षेत्र स्पर्श करने पर सदा ही मुलायम प्रतीत होता है। यह भागवत पुराण के सागर मंथन के फलस्वरूप निकले हलाहल विष को पीकर, अपने कंठ में रोके रखने वाली कथा के समर्थन में साक्ष्य ही है। मान्यता है कि यहां शिवलिंग से पसीना भी निकलता रहता है। अबूझ पहेली मंदिर के ठीक पीछे की तरफ पहाड़ काटकर पानी का कुंड बनाया गया है। माना जाता है कि इस प्राचीनतम किले में मौजूद खजाने का रहस्य भी इसी प्रतिलिपि में है, लेकिन आज तक कोई इसका पता नहीं लगा सका है। इस मंदिर के ऊपर पहाड़ है, जहां से पानी रिसता रहता है। बुंदेलखंड सूखे के कारण जाना जाता है, लेकिन कितना भी सूखा पड़ जाए, इस पहाड़ से पानी रिसना बंद नहीं होता है। कहा जाता है कि सैकड़ों साल से पहाड़ से ऐसे पानी निकल रहा है, ये सभी इतिहासकारों के लिए अबूझ पहेली की तरह है। निकटस्थ ऊपरी भाग स्थित जलस्रोत हेतु चट्टानों को काटकर दो कुंड बनाए गए हैं जिन्हें स्वर्गारोहण कुंड कहा जाता है। इसी के नीचे के भाग में चट्टानों को तराशकर बनायी गई काल-भैरव की एक प्रतिमा भी है। इनके अलावा परिसर में सैकड़ों मूर्तियाँ चट्टानों पर उत्कीर्ण की गई हैं। शिवलिंग के समीप ही भगवती पार्वती एवं भैरव की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। प्रवेशद्वार के दोनों ही ओर ढेरों देवी-देवताओं की मूर्तियां दीवारों पर तराशी गयी हैं। कई टूटे स्तंभों के परस्पर आयताकार स्थित स्तंभों के अवशेष भी यहां देखने को मिलते हैं। इतिहासकारों के अनुसार कि इन पर छः मंजिला मन्दिर का निर्माण किया गया था। इसके अलावा भी यहाँ ढेरों पाषाण शिल्प के नमूने हैं, जो कालक्षय के कारण जीर्णावस्था में हैं। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ कालिंजर उत्तर प्रदेश के हिन्दू तीर्थ नीलकंठ शिव मंदिर गुप्त राजवंश
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भारतीय पाठक सर्वेक्षण
भारतीय पाठक सर्वेक्षण (The Igqkendian Readership Survey (IRS)) विश्व का सबसे बड़ा पाठक सर्वे है। इसमें प्रति वर्ष ढाई लाख से अधिक पाठकों का सर्वेक्षण किया जाता है। भारतीय पाठक सर्वेक्षण २०१७ मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल (एमआरयूसी) ने वर्ष 2017 का पाठक सर्वेक्षण जारी कर दिया है। इस में 3 लाख 20 हजार घरों की राय ली गई है जो इतिहास में दुनिया का सबसे बड़ा नमूना (सैंपल) भी है। 16 महीने के लंबे समय में सर्वे को 26 राज्यों में पूरा किया गया। यह सर्वे रीडरशीप स्टडीज काउंसिल ऑफ इंडिया और मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल ने करवाया था। भारत के सभी भाषाओं के अखबारों की कुल पाठक संख्या के आधार पर जो २० सर्वाधिक पठित सूची बनी है , उसमें हिन्दी समाचार पत्र दैनिक जागरण सबसे ऊपर है। सर्वाधिक पढ़े जाने वाले दस भारतीय अखबारों में अंग्रेजी भाषा का एक भी पत्र नहीं है। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया भले ही अंग्रेजी अखबारों में प्रथम स्थान पर है लेकिन सभी भारतीय भाषाओं के अखबारों की कुल प्रसार संख्या के मामले में ग्यारहवें स्थान पर है। बीस स्थानों में केवल एक ही अंग्रेजी का अखबार अपना स्थान बना पाया है जबकि हिन्दी के ८ पत्र प्रथम २० में स्थान बनाने में सफल हुए हैं। नीचे प्रथम ११ पत्रों की सूची और उनकी पाठक संख्या दी गयी है- (१) दैनिक जागरण -- 7,03,77,000 (२) हिन्दुस्तान -- 5,23,97,000 (३) अमर उजाला --4,60,94,000 (४) दैनिक भास्कर -- 4,51,05,000 (५) डेली तान्ती (तमिल) -- 2,31,49,000 (६) लोकमत (मराठी) -- 1,80,66,000 (७) राजस्थान पत्रिका -- 1,63,26,000 (८) मलयल मनोरमा (मलयालम) -- 1,59,95,000 (९) इनाडु (तेलुगु) -- 1,58,48,000 (१०) प्रभात खबर -- 1,34,92,000 (११) ताइम्स ऑफ इंडिया (अंग्रेजी) -- 1,30,47,000 विश्लेषण मीडिया विश्लेषक समाचार-पत्रों की प्रसार संख्या में हुई वृद्धि का बड़ा कारण देश में नवशैक्षिक वर्ग के उभार को मानते हैं। भारत के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में नए पढ़े-लिखे लोगों की संख्या तजी से बढ़ रही है। पहली पीढ़ी के ऐसे साक्षरों के लिए अख़बार पढ़ना उनकी साक्षरता को साबित करने का सबसे महत्वपूर्ण साधान है। यह बात भारत की जनगणना के ताजा आंकड़ों से भी सिद्ध होती है। 2011 की जनगणना में भारत में 74 प्रतिशत लोगों को साक्षर पाया गया है, जबकि 2001 में यही आंकड़ा 64.8 प्रतिशत था। 2017 में आई फिक्की-केपीएमजी की रिपोर्ट ने भी प्रिंट मीडिया की वृद्धि की तरफ संकेत किया था। यह भी उत्साहवर्धक है कि प्रिंट में भी यह विकास अधिकांशतः हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में ही हुआ है। जबकि अंग्रेजी अखबारों के पाठक मेट्रो और द्वितीय श्रेणी के नगरों तक की सीमित हैं। सम्पूर्ण विश्व में प्रिंट मीडिया का दायरा लगातार सिमट रहा है, इसके विपरीत भारत में यह तेजी से बढ़ रहा है। भारतीय पाठक सर्वेक्षण २०१९ 2019 की पहली तिमाही के लिए इंडियन रीडरशिप सर्वे (आईआरएस) की रिपोर्ट जारी कर दी गई है। इसके अनुसार, दैनिक जागरण सात करोड़ 36 लाख 73 हजार पाठक संख्या के साथ पहले स्थान पर है, दैनिक भास्कर 5.14 करोड़ पाठकों के साथ दूसरे स्थान पर है, अमर उजाला पाठक संख्या 4.76 करोड़ के साथ तीसरे स्थान पर है। 'हिन्दुस्तान' और 'हिन्दुस्तान टाइम्स' के आंकड़े जारी नहीं किए गए हैं क्योंकि अभी इनकी समीक्षा की जा रही है। कुछ हफ्तों बाद हिंदुस्तान समूह के आंकड़े जारी होने पर रैंकिंग में बदलाव आने के आसार हैं। इसमें शीर्ष 10 अखबारों की सूची में अंग्रेजी का केवल एक अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' है। यह अंग्रेजी अखबार एक करोड 52 लाख 36 हजार की पाठक संख्या के साथ नौवें स्थान पर है। रपट में कहा गया है कि प्रिन्ट उद्योग बढ़ रहा है। रपट में आईआरएस के 2017 के सर्वेक्षण के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर कहा गया है कि तब से अब तक पाठकों की संख्या में 1.8 करोड़ की वृद्धि दर्ज की गयी है, जबकि पत्रिकाओं के 90 लाख अतिरिक्त पाठक हुये हैं। पूरी दुनिया में जहां एक तरफ प्रिंट मीडिया उद्योग ढलान पर है, वहीं भारत में हिंदी पत्र-पत्रिकाओं सहित क्षेत्रीय भाषाओं के मीडिया के योगदान की बदौलत प्रिंट मीडिया के पाठकों की संख्या बढ़कर 42.5 करोड़ तक पहुंच गयी। इस वृद्धि में हिंदी समाचार पत्रों का योगदान सबसे अधिक रहा है क्योंकि इसके पाठकों की संख्या एक करोड़ तक बढ़ी है। क्षेत्रीय भाषाओं और अंग्रेजी पत्रों के पाठकों की संख्या भी बढ़ी है। एमआरयूसी के चेयरमैन आशीष भसीन ने मुंबई में रिपोर्ट जारी करते हुए बताया कि गांवों, शहरों और महानगरों के तीन लाख 24 हजार घरों से लिए गए आंकड़ों का अध्ययन कर यह सर्वे तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि यह धारणा एक बार फिर टूटी है कि इंटरनेट की वजह से समाचार पत्रों के पाठक कम हो रहे हैं। भसीन के अनुसार प्रिंट मीडिया तेज रफ्तार से बढ़ रहा है और पिछले सर्वे के 40 करोड़ 70 लाख के मुकाबले आज इसके पाठकों की संख्या 42 करोड़ 50 लाख हो चुकी है। बाहरी कड़ियाँ Website of Media Research Users Council Website of Hansa Research IRS: बढ़ते डिजिटल के बावजूद नहीं थम रही प्रिंट मीडिया की रफ्तार (अप्रैल, २०१९) IRS Q1 2019: Hindi newspapers torchbearers of north India, Dainik Jagran leads the list (मई २०१९) पत्रकारिता
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विश्व आर्थिक मंच
विश्व आर्थिक फ़ॉरम स्विट्ज़रलैंड में स्थित एक ग़ैर-लाभकारी संस्था है। इसका मुख्यालय कोलोग्नी में है। स्विस अधिकारीयों द्वारा इसे एक निजी-सार्वजनिक सहयोग के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था के रूप में मान्यता प्राप्त हुई है। इसका मिशन विश्व के व्यवसाय, राजनीति, शैक्षिक और अन्य क्षेत्रों में अग्रणी लोगों को एक साथ ला कर वैशविक, क्षेत्रीय और औद्योगिक दिशा तय करना है। इतिहास इस मंच की स्थापना 1971 में यूरोपियन प्रबन्धन के नाम से जिनेवा विश्वविद्यालय में कार्यरत प्रोफेसर क्लॉस एम श्वाब द्वारा की गई थी। उस वर्ष यूरोपियन कमीशन और यूरोपियन प्रोद्योगिकी संगठन के सौजन्य से इस संगठन की पहली बैठक हुई थी। इसमें प्रोफेसर श्वाब ने यूरोपीय व्यवसाय के 444 अधिकारीयों को अमेरिकी प्रबन्धन प्रथाओं से अवगत कराया था। वर्ष 1987 में इसका नाम विश्व आर्थिक फ़ॉरम कर दिया गया और तब से अब तक, प्रतिवर्ष जनवरी महीने में इसके बैठक का आयोजन होता है। प्रारम्भ में इन बैठकों में प्रबन्धन के तरीकों पर चर्चा होती थी। प्रोफेसर ने एक मॉडल बनाया था जिसके अनुसार सफल व्यवसाय वही माना जाता था जिसमें अधिकारी अंशधारी और अपने ग्राहकों के साथ अपने कर्मचारी और समुदाय जिनके बीच व्यस्वसाय चलता है, उसका भी पूरा खयाल रखते हैं। वर्ष 1973 में जब नियत विनिमय दर से विश्व के अनेक देश किनारा करने लगे और अरब-इजराइल युद्ध छिड़ने के कारण इस बैठक का ध्यान आर्थिक और सामाजिक मुद्दों की और मुड़ा और पहली बार राजनीतिज्ञों को इस बैठक के लिए निमंत्रित किया गया। रजनीतज्ञों ने इस बैठक को अनेक बार एक तटस्थ मंच के रूप में भी इस्तेमाल किया। 1988 में ग्रीस और तुर्की ने यहीं पर आपसी यूद्ध को टालने का एलान किया था। 1992 में रंगभेद नीति को पीछे रखते हुए, तत्कालीन दक्षिण अफ़्रीकी राष्ट्रपति और नेल्सन मंडेला, जिन्होंने रंगभेद नीति के विरोध में जीवन पर्यन्त संगर्ष किया था, पहली बार सार्वजनिक रूप से एक साथ देखे गए थे। 1994 में इजराइल और पलेस्टाइन ने भी आपसी सहमति से मसौदे पर मुहर लगाई थी। सदस्यता इस संस्था की सदस्यता अनेक स्तर पर होती है और ये स्तर उनकी संस्था के कार्य कलापों में सहभागिता पर निर्भर करती है। सदस्यता के लिए वह कम्पनी जाते हैं जो विश्व भर में अपने उद्योग में अग्रणी होते हैं अथवा किसी भौगोलिक क्षेत्र के प्रगति में अहम भूमिका निभा रहे होते हैं। कुछ विकसित अर्थव्यवस्था में कार्यरत होते हैं या फिर विकसशील अर्थव्यवस्था में। महत्वपूर्ण गतिविधियाँ इस फ़ॉरम की सर्वाधिक चर्चित घटना वार्षिक शीतकालीन बैठक में होती है जिसका आयोजन दावोस नामक स्थान पर किया जाता है। इस आयोजन में भागीदारिता सिर्फ निमंत्रण से होती है और इसकी ख़ास बात यह है की इस छोटे शहर में भागीदार अनौपचारिक परस्पर बातचीत में अनेक समस्याओं का समाधान निकला जाता है। इस बैठक में लगभग २,५०० लोग भाग लेते हैं जिसमें विश्व जगत के, अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिज्ञ, गिने चुने बुद्धिजीवी और पत्रकार प्रमुख होते हैं। इसमें उन विषयों पर चर्चा होती है जिस पर विश्व समुदाय की चिंतन अत्यावश्यक मानी जाती है। उदहारण के लिए, २०१२ में इस बैठक में "महान परिवर्तन: नए प्रतिरूप', २०१३ में 'लचीला गतिशीलता', २०१४ में 'विश्व का पुनर्निर्माण-समाज, राजनीति और व्यवसाय के लिए परिणाम' और २०१५ में "नए वैश्विक सन्दर्भ' पर वार्षिक बैठक हुई थी। वर्ष २००७ में इस संस्था ने एक ग्रीष्मकालीन वार्षिक बैठक का आयोजन प्रारम्भ किया। इसका आयोजन चीन के दो सहारों के बीच बारी बारी से किया जाता है। इसमें लगभग १५०० सहभागी आते हैं और वे अधिकतर तेजी से बढ़ते आर्थिक व्यवस्थाएं अर्थात चीन, भारत, रूस, मेक्सिको और ब्राज़ील- से आते हैं। यह वह लोग होते हैं जो अगली पीढ़ी की युवा उद्योगपति अथवा राजनीतिज्ञ जो अपनी सोच और विचारों से दुनिया को अवगत कराते हैं और जो आने वाले समय में विश्व मंच पर महत्वपूर्ण योगदान साबित होगा। यह संस्था इस बात से भली भांति परिचित है की क्षेत्रीय विचारधारा सम्पूर्ण विश्व के लिए लाभकारी होती है क्योंकि इन विचारों में स्थानीय स्थिति का समावेश होता है। इसे ध्यान में रख कर यह संस्था क्षेत्रीय मीटिंग का भी समय समय पर अफ्रीका, पूर्वी एशिया, लातिनी अमरीका और मध्य पूर्व के देशों में मीटिंग आयोजित करती है। इन सभाओं में नीतिगत व्यापार के नायक, स्थानीय सरकार के नायक और गैर-सरकारी संस्थाओं का मिलन होता है और उस क्षेत्र में उन्नति के लिए आवश्यक कार्य और उसकी दिशा पर चर्चा होती है। यह संस्था ८०० लोगों का युवा विश्व नेता फ़ॉरम का संचालन भी करता है। वर्ष २००७ से संस्था ने सामजिक उद्यम्यिों को अपने क्षेत्रीय और वार्षिक सम्मलेन में आमंत्रित करना प्रारम्भ किया। इसका औचित्य यह था कि विश्व भर में इस बात की विवेचना हो की किसी भी उन्नति और प्रगति से समाज के सभी वर्गों को एक सा लाभ पहुँचना चाहिए और समाज में होने वाली क्षति को पहले ही भाँपा जा सके। वर्ष २०११ में इस संस्था ने एक संजाल बनाया जिसमें २०-३० वर्ष के आयु के लोगों को मिलाने की पहल की गए जिनमें विश्व को नई दिशा दिखाने की क्षमता थी। अनुसन्धान रिपोर्ट यह संस्था प्रबुद्ध मण्डल की भी भूमिका निभाता है और अपने द्वारा किए गए अनुसन्धानों पर आधारित रिपोर्ट भी प्रस्तुत करता है। यह सारी रिपोर्ट अधिकतर प्रतिस्पर्धा, वैश्विक जोखिम और परिदृश्य सोच से सम्बन्धित होती हैं। प्रतिस्पर्धा टीम ने वैश्विक रिपोर्ट में विश्व भर में देशों के बीच प्रतिस्पर्धा के बारे में लिखा था और विश्व भर के सभी देशों में फैले पुरुष और नारी के बीच असमानता पर भी एक रिपोर्ट बनाई थी। पहल 2002 में विश्व स्वास्थ्य पहल के अन्तर्गत इस संस्था ने सार्वजनिक-निजी क्षेत्रों के सहयोग से एच•आई•वी / एड्स, टुबेरकोलोसिस और मलेरिया जैसी बिमारियों को दूर करने की पहली कोशिश की थी। विश्व शिक्षा पहल के अन्तर्गत भारत, मिश्र और जॉर्डन के सरकारों और सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी का मिलन करवा कर कम्प्यूटर और इ-लर्निंग का विस्तार करने का बीड़ा उठाया था। पार्टनरिंग अगेंस्ट करप्शन पहल के तहत 140 कम्पनी ने आपस में मिल कर अपने साथ हुए भ्रष्ट कार्यकलापों को बाँटा और ऐसी परिस्थितयों से निपटने के उपाय पर विचार करने लगे। सन्दर्भ अग्रीमन्ट साइन्ड विद द डबल्यू ई एफ. https://web.archive.org/web/20150411062209/https://www.news.admin.ch/। पिगमैन. पेज ६-२२। केल्लेरमैन. पेज. २२९ https://web.archive.org/web/20160104193157/http://www.telegraph.co.uk/finance/personalfinance/?xml=%2Fmoney%2Fexclusions%2Fhubpages%2Fdavos2008%2Fdavoshistory.xml. डबल्यू ई एफ ऐन्ड दावोस: ए ब्रीफ हिस्ट्री. द टेलग्रैफ। https://web.archive.org/web/20160110055001/http://www.weforum.org/community/forum-young-global-leaders. फॉरम अव यंग ग्लोबल लीडर. वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ॉरम। https://web.archive.org/web/20160112131645/http://www.weforum.org/404.html. वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ॉरम— इवेन्ट. वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ॉरम। पिगमैन. पेज. ४३, ९२–११२। बहारी कड़ियाँ "The Forum's youtube channel" "Behind the Scenes at Davos" broadcast 14 February 2010 on 60 Minutes ´How to Open the World Economic Forum´ - Matthias Lüfkens in Interview with 99FACES.tv "Everybody’s Business: Strengthening International Cooperation in a More Interdependent World" launched May 2010, Doha, Qatar
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BF%20%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A4%A8
विधि दर्शन
विधिदर्शन या विधि का दर्शनशास्त्र ( Philosophy of law ) दर्शनशास्त्र तथा विधिशास्त्र की एक शाखा है जो विधि की प्रकृति व स्वभाव और मानदंडको की अन्य प्रणालियों, विशेषतः नीतिशास्त्र और राजनीतिक दर्शन के साथ कानून के संबंधों की अन्वीक्षा करती है, विशेष रूप से मानवीय मूल्यों, दृष्टिकोण, प्रथाओं और राजनीतिक समुदायों के संबंध में। यह वह दर्शनविद्या है जो 'विधि क्या है?', 'कानूनी वैधता के मानदंड क्या है?', 'विधि तथा नैतिकता में क्या सम्बन्ध है?' आदि प्रश्नों पर विचार करती है। परंपरागत रूप से, कानून का दर्शन कानून के बारे में उन प्रस्तावों को स्पष्टतः व्यक्त करने और उनका बचाव करने से आगे बढ़ता है जो सामान्य और अमूर्त हैं - यानी, जो किसी विशेष समय में एक विशिष्ट विधिक प्रणाली के लिए नहीं (उदाहरण के लिए, 1900 में यूनाइटेड किंगडम) बल्कि सभी काल के सभी विधिक प्रणालियों व विधियों के लिए सच हैं। सभी कानूनों का अस्तित्व या शायद हर समय। कानून के दर्शन का उद्देश्य अक्सर कानून को मानदंडकों और अन्य प्रणालियों, जैसे नैतिकता (नीतिशास्त्र) या अन्य सामाजिक सम्मेलन मे भेद करना है। विधि के दर्शन और विधिशास्त्र को अक्सर एक दूसरे के स्थान पर उपयोग किया जाता है, हालांकि विधिशास्त्र कभी-कभी तर्क के उन रूपों व पद्धतियों को शामिल करता है जो अर्थशास्त्र या समाजशास्त्र में फिट होते हैं। विधि
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A4%BE%20%E0%A4%89%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%A8
रूपा उन्नीकृष्णन
| show-medals = | updated = }} रूपा उन्नीकृष्णन राष्ट्रमण्डल खेलों में निशानेबाज़ी में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारत की पहली खिलाड़ी हैं। इन्होंने 1998 राष्ट्रमण्डल खेल, कुआलालम्पुर में शूटिंग स्पर्धा में स्वर्ण पदक प्राप्त किया था। इससे पहले 1994 राष्ट्रमण्डल खेल, विक्टोरिया में शूटिंग स्पर्धा में उन्होंने रजत पदक जीता था। 1999 में उन्हें प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। संप्रति वे न्यूयॉर्क, अमेरिका में रहती हैं। उनके पति श्री श्रीनिवासन एक पत्रकार हैं। सन्दर्भ 1998 राष्ट्रमण्डल खेलों में भारत के पदक विजेता खिलाड़ी भारतीय महिला निशानेबाज़
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हाँ और ना
हाँ और ना (या न / नहीं) दो शब्दों का जोड़ है जो एक समान रूप से प्रयुक्त है। इनमें में पहला शब्द सकारात्मकता प्रदर्शित करता है तो दूसरा शब्द नकारात्मकता दिखाता है। कई बार इन शब्दों का प्रयोग लोगों की सोच या कार्य-शैली जानने के लिए होता है। उदाहरण प्रश्न: क्या आप अकसर समय कम होने के बारे में या बहुत सारे कार्य एक साथ आने के बारे में शिकायतें करते रहते हैं ? हाँ / ना सन्दर्भ शब्द और वाक्यांश
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२०१२ आईसीसी विश्व ट्वेन्टी २०
२०१२ आईसीसी विश्व ट्वेन्टी २० आईसीसी विश्व ट्वेन्टी २० क्रिकेट का चौथा संस्करण था जो कि श्रीलंका ने आयोजित किया था तथा इसका फाइनल वेस्ट इंडीज़ टीम ने जीता था। टूर्नामेंट की शुरुआत १८ सितम्बर २०१२ को पहला मैच खेला गया था एवं ७ अक्टूबर को फाइनल मैच का आयोजन हुआ था। प्रतियोगिता में चार ग्रुप रखे गए जिसमें हर ग्रुप में तीन - तीन टीमें रखी गई। मैचों की समय चारणी २१ सितम्बर २०११ को ही घोषित करदी थी। जगह सभी मैच निम्न तीन क्रिकेट मैदानों पर खेले गए थे। ग्रुप ग्रुप स्टेज २१ सितम्बर २०११ को ही घोषित कर दिए थे। ग्रुप ए ए १ ए २ क्यू २ ग्रुप बी बी १ बी २ क्यू १ ग्रुप सी सी १ सी २ ग्रुप डी डी १ डी २ ग्रुप स्टेज ग्रुप ए ग्रुप बी ग्रुप सी ग्रुप डी सुपर ८ ग्रुप १ ग्रुप २ फाइनल फाइनल मैच वेस्ट इंडीज़ और श्रीलंका के बीच खेला गया था जिसमें विंडीज ने लंका को हराया था। सन्दर्भ ट्वेन्टी - ट्वेन्टी विश्व कप आईसीसी पुरुष टी20 विश्व कप
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बएकदू पर्वत
बएकदू पर्वत (कोरियाई: 백두산, Baekdu-san), जिसे चांगबाई पर्वत (चीनी: 长白山, Changbai shan) या बाईतोऊ (Baitou) भी कहा जाता है, उत्तर कोरिया और चीन की सरहद पर स्थित एक २,७४४ मीटर ऊंचा ज्वालामुखी है। यह चांगबाई पर्वत शृंखला का सबसे ऊंचा शिखर है। यह पूरे कोरियाई प्रायद्वीप (पेनिन्सुला) का भी सबसे ऊंचा पहाड़ है। कोरिया के लोग इसे एक पवित्र पर्वत मानते हैं और इसे कोरिया का एक राष्ट्रीय चिह्न समझते हैं। अनुमान लगाया जाता है कि यह ज्वालामुखी जब सन् ९६९ ईसवी के आसपास फटा तो इसपर एक ५ किमी चौड़ा और ८५० मीटर गहरा क्रेटर बन गया जिसके कुछ भाग में अब 'तियान ची' (天池, Heaven Lake, यानि 'स्वर्ग झील') नामक एक सुन्दर ज्वालामुखीय झील स्थित है। यह ज्वालामुखी अभी भी जीवित है और पिछली दफ़ा सन् १९०३ में फटा था। इसके भविष्य में फिर से फटने की सम्भावना है। यही पहाड़ इस क्षेत्र की तीन सबसे महत्वपूर्ण नदियों का स्रोत है: सोंगहुआ नदी, यालू नदी और तूमन नदी। नाम का अर्थ 'बएकदू-सान' (백두산) का अर्थ कोरियाई भाषा में 'सफ़ेद सिर वाला पहाड़' होता है। अंग्रेज़ी बोलने वाले ज्वालामुखी-विशेषज्ञों ने शुरू में जब यह नाम चीनी भावचित्रों में पढ़ा तो इसका उच्चारण ग़लती से 'बाईतोऊ' किया जो आज तक चला आ रहा है। इस पहाड़ को मान्छु भाषा में 'गोल्मिन शांग्गीयान अलिन' (Golmin Šanggiyan Alin) कहा जाता है, जिसका मतलब 'सफ़ेद पर्वत' है और अन्य भाषाओँ के नाम इसी से उत्पन्न हुए थे। मौसम बएकदू पहाड़ पर मौसम तेज़ी से बदलता है और अचानक ख़राब हो सकता है। शिखर पर औसत तापमान −८.३ °सेंटीग्रेड रहता है हालांकि सर्दियों में −४८ °सेंटीग्रेड तक गिर सकता है। गर्मियों में जुलाई के महीने में औसत तापमान १० °सेंटीग्रेड होता है। साल में आठ महीने शिखर बर्फ़-ग्रस्त रहता है। इन्हें भी देखें ज्वालामुखीय झील चान्गबाई पर्वत यालू नदी तूमन नदी सन्दर्भ जीलिन चीन के पर्वत ज्वालामुखी मंचूरिया दो हज़ारी
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हर्मन कार्ल वोगेल
हरमन कार्ल वोगल ( /च oʊ ɡ əl / ; जर्मन: [ˈfoːɡl̩] ; 3 अप्रैल 1841 – 13 अगस्त 1907) एक जर्मन खगोल वैज्ञानिक थे। उनका जन्म लीपज़िग, सैक्सोनी के साम्राज्य में हुआ था। 1882 से 1907 तक वह खगोलभौतिकी वेधशाला, पोट्सडैम के निदेशक थे। उन्होंने तारों के वर्णक्रमीय विश्लेषण का उपयोग करके व्यापक खोज की। जीवन वोगेल का जन्म 1841 में लीपज़िग में हुआ था। उनके पिता यूनाइटेड बर्गर्सचुलेन के निदेशक थे और लीपज़िग में रियलस्कूल के संस्थापक थे। उनके भाई-बहनों में एक एडुआर्ड वोगेल (1829-1856), अफ्रीका के खोजकर्ता और खगोलशास्त्री थे; दूसरे एलिस पोल्को (1823-1899), कवि और गायक और जूली दोहमके (1827-1913), लेखक, प्रकाशक, अनुवादक थे। 1862 में, वोगेल ने ड्रेसडेन में पॉलिटेक्निकम में अपनी पढ़ाई शुरू की और 1863 में लीपज़िग विश्वविद्यालय गए। लीपज़िग में वह कार्ल क्रिश्चियन ब्रुन्स के सहायक थे और फ्रेडरिक विल्हेम रुडोल्फ एंगेलमैन द्वारा किए गए दोहरे सितारों के मापन में भाग लेते थे। वोगेल को निहारिकाओं और तारा गुच्छों पर काम करने के लिए जेना से 1870 में डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया था और उसी वर्ष वह 20 किमी कील के दक्षिण में कामरहेरन वॉन बुलो, सी के स्टर्नवार्ट बोथकैंप में चले गए। यहां उन्होंने आकाशीय पिंडों पर अपना पहला वर्णक्रमीय विश्लेषण किया। विल्हेम ओसवाल्ड लोहसे उनके सहायक बने। पोट्सडैम (एओपी) में नव स्थापित खगोलभौतिकी वेधशाला के एक कर्मचारी जो संस्थान के उपकरणों की योजना और स्थापना का काम करता है के रूप में काम करने के लिए, वोगेल ने 1874 में वेधशाला छोड़ दी, । इस संबंध में, उन्होंने 1875 की गर्मियों में ब्रिटेन की एक अध्ययन यात्रा की। 1882 से 1907 तक वोगेल एओपी के निदेशक थे और इस समय इसे खगोल भौतिकी के एक विश्व-अग्रणी संस्थान के रूप में विकसित किया। 1907 में पॉट्सडैम में हरमन कार्ल वोगेल की मृत्यु हो गई। कार्य क्षेत्र वोगेल ने खगोल विज्ञान में स्पेक्ट्रोस्कोप के उपयोग का बीड़ा उठाया। उन्होंने इस उपकरण को ग्रहों के वायुमंडल का रासायनिक विश्लेषण करने के लिए लागू किया और 1871 में डॉप्लर प्रभाव का उपयोग करके सूर्य की घूर्णन अवधि का पता करने वाले पहले व्यक्ति बने। उन्हें सितारों के फोटोग्राफिक-स्पेक्ट्रोस्कोपिक रेडियल वेग माप का आविष्कारक भी माना जाता है। उन्हें संभवतः यह पता लगाने के लिए जाना जाता है कि कुछ सितारों का वर्मक्रम समय के साथ थोड़ा बदल गया, लाल की ओर और फिर बाद में नीले रंग की ओर बढ़ गया। इस परिणाम की उनकी व्याख्या यह थी कि तारा पृथ्वी की ओर बढ़ रहा था और फिर दूर जा रहा था, और साथ में वर्णक्रमीय बदलाव डॉपलर प्रभाव का परिणाम थे। ये तारे द्रव्यमान के एक छिपे हुए केंद्र के चारों ओर परिक्रमा करते हुए दिखाई दिए, और इस प्रकार वे द्वितारा प्रणाली थे। हालांकि, प्रत्येक मामले में साथी तारे का पता दूरबीन का उपयोग करके नहीं किया जा सकता था, और इसलिए इन दो तारा प्रणालियों को स्पेक्ट्रोस्कोपिक बायनेरिज़ नामित किया गया था। उदाहरण के लिए, अल्गोल के घटकों में आवधिक डॉपलर शिफ्ट प्राप्त करके, वोगेल ने 1889 में साबित किया कि यह एक द्वितारा था। इस प्रकार, अल्गोल पहले ज्ञात स्पेक्ट्रोस्कोपिक बायनेरिज़ में से एक था (और इसे एक ग्रहण बाइनरी के रूप में भी जाना जाता है जिसमें एक तीसरा तारा होता है जिसे अब बाइनरी सिस्टम के चारों ओर घूमने के लिए जाना जाता है)। 1892 में वोगेल ने 51 सितारों के लिए रेडियल वेग आँकणा तैयार किया। वोगेल की तकनीक स्विस खगोलविदों मिशेल मेयर और डिडियर क्येलोज़ द्वारा अपनाया गया था जिन्होंने एक तारे 51 पेगासी की परिक्रमा कर रहे बहिर्ग्रह की खोज की घोषणा की थी। मेयर और क्वेलोज़ ने अपनी खोज के लिए 2019 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार साझा किया। वोगेल ने पृथ्वी पर डॉप्लर प्रभाव का भी प्रयोग किया था। 1875 में, उन्होंने जर्मन बोर्सिग - लोकोमोटिव की सीटी के साथ ध्वनिक क्षेत्र में प्रभाव का प्रदर्शन किया। 1895 में हर्मन कार्ल वोगेल को पोर ले मेरिट फर विसेंसचाफ्ट अंड कुन्स्टे से सम्मानित किया गया था और अन्य लोगों के अलावा, निम्नलिखित विद्वान समाजों के सदस्य थे: गेसेलशाफ्ट डेर विसेंसचाफ्टन ज़ू गोटिंगेन प्रुसियन एकैडमी ऑफ साइंसेज़, बर्लिन रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी, लंदन सम्मान पुरस्कार फ्रेंच एकेडमी ऑफ साइंसेज से वाल्ज़ पुरस्कार (1890) रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी का स्वर्ण पदक (1893) नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज से हेनरी ड्रेपर मेडल (1893) उपलब्धि का लैंडस्क्रोनर पदक (1898) रिचर्ड सी. व्हाइट पर्पल ऑनर्स मेडल (1899) ब्रूस मेडल (1906) उसके नाम पर नामकरण किया गया चंद्रमा पर क्रेटर वोगेल मंगल ग्रह पर क्रेटर वोगेल क्षुद्रग्रह 11762 वोगेल । संदर्भ आगे पढें हेनरी ड्रेपर एंड्र्यू आइंस्ली कॉमन रॉबर्ट जूलियस ट्रम्पलर गैलीलियो गैलीली जियोवानी बतिस्ता होडिएर्ना बाहरी कणियाँ संक्षिप्त जीवनी १९०७ में निधन 1841 में जन्मे लोग जमर्न खगोलशास्त्री विकिपरियोजना खगोलशास्त्र उन्नीसवीं सदी के वैज्ञानिक रोयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के स्वर्ण पदक विजेता
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%80
चीनी मिट्टी
चीनी मिट्टी (या, केओलिनाइट / Kaolinite) एक प्रकार की सफेद और सुघट्य मिट्टी हैं, जो प्राकृतिक अवस्था में पाई जाती है। इसका रासायनिक संघटन जलयुक्त ऐल्यूमिनो-सिलिकेट (Al2O3. 2SiO2. 2H2O) है। चीनी मिट्टी को 'केओलिन' भी कहते हैं। चीनी भाषा में केओलिन का अर्थ 'पहाड़ी डाँडा' होता है। डांडे बहुधा फेल्सपार खनिज के होते हैं और इस फेल्सपार का रासायनिक विघटन होने के कारण चीन मिट्टी या केओलिन इन्हीं डाँडों में पाई जाती है, बल्कि उस सफेद और सुघट्य मिट्टी को भी कहते हैं जो विघटन के स्थान से बहकर किसी अन्य स्थान में जमा हो जाती है। इसलिये चीनी मिट्टी दो प्रकार की होती है : १. वह जो विघटनस्थल पर पाई जाती है, तथा २. वह जे विघटन के स्थान से बहकर दूसरे स्थान में जमी पाई जाती है। उपयोग चीनी मिट्टी का उपयोग बर्तन, प्याले, कटोरी, थाली, अस्पताल में काम में लाए जानेवाले सामान, बिजली के पृथक्कारी (इंसुलेटर), मोटरगाड़ियों के स्पार्क प्लग, तापसह ईटें इत्यादि बनाने में होता है। रबर, कपड़ा तथा कागज बनाने में चीनी मिट्टी को पूरक की तरह उपयोग में लाते हैं। कभी कभी इसे दवा के रूप में भी खिलाते हैं। हैजा इत्यादि बीमारी में केओलिन दी जाती है। भारत में चीनी मिट्टी भारत में चीनी मिट्टी बिहार की राजमहल पहाड़ियों और पथरगट्टा नामक स्थान के पास, दिल्ली के आसपास की पहाड़ियों में तथा केरल में त्रिवेंद्रम के पास कुंडारा नामक स्थान में अच्छी और प्रचुर मात्रा में मिलती है। राजस्थान में कई स्थानों पर (विशेषकर पहाड़ियों पर), मध्यप्रदेश, बंबई, गुजरात, चेन्नै, बंगाल और आंध्रप्रदेशों में भी चीनी मिट्टी बहुतायत से पाई जाती है। असम और पंजाब में भी चीनी मिट्टी प्रचुर मात्रा में पाई जाने की संभावना है। गुणधर्म एवं वर्गीकरण मृद्भाण्ड (pottery) उद्योग में उपयागी हाने के लिय चीनी मिट्टी के कुछ अन्य गुण भी होने चाहिए जैसे, गीली रहने पर उसे मनचाही आकृति दे देना, सूखने पर कठोर हो जाना, ऊँचे ताप पर न गलना सूखने पर या आग में पकने पर भी दी हुई आकृति का ज्यों का त्यों बना रहना, सूखने वा आग में पकाने पर नियमित रूप से सिकुड़ना, तथा इन गुणों को ध्यान में रखते हुए उपर्युक्त दो प्रकार की चीनी मिट्टी का आगे और भी वर्गीकरण किया जा सकता है, जैसे: १. वह चीनी, मिट्टी जो आग में पकाने पर सफेद रहती है और वह चीनी मिट्टी जो आग में पकाने पर सफेद नहीं रहती; २. सूखने और पकाने पर अधिक सिकुड़नेवाली चीनी मिट्टी और कम सिकुड़नेवाली चीनी मिट्टी; ३. ऊँचे ताप पर गल जानेवाली और न गलनेवाली चीनी मिट्टी; ४. विशेष सुघट्य और कम सुघट्य मिट्टी तथा ५. छोटे कणोंवाली मिट्टी और बड़े कणोंवाली मिट्टी। विशेष प्रकार के गुणोंवाली मिट्टी ही विशेष प्रकार के उद्योग में अधिक उपयोगी सिद्ध होती हे, जैसे ऊँचे ताप को सह सकनेवाली मिट्टी का उपयोग तापसह ईटों के बनाने में होता है। मकान इत्यादि बनाने के लिये पकाने पर सुंदर और लाल हो जानेवाली मिट्टी अधिक उपयोगी है। प्याले, कटोरी इत्यादि बनाने में आग में पकाने पर सफेद रहनेवाली मिट्टी को ही लोग अधिक पसंद करते हैं। कपड़ा, कागज या रबर बनाने के उद्योग में खूब छोटे कणोंवाली सफेद मिट्टी की ही अधिक माँग है। उपयोग में लाने के पहले चीनी मिट्टी को अपद्रव्यों से मुक्त करना पड़ता है। यह क्रिया चीनी मिट्टी को पानी से 'धोकर' की जाती है। इसके लिए चीनी मिट्टी को पानी में मिलाकर नालियों में बहाया जाता है। अपद्रव्य भारी होने के कारण नीचे बैठ जाते हैं और चीनी मिट्टी पानी के साथ बह जाती है। कुछ दूर बहने के बाद इस चीनी-मिट्टी-युक्त पानी को एक टंकी में जमा कर लिया जाता है। कुछ समय के बाद चीनी मिट्टी भी पानी में नीचे बैठ जाती है। ऊपर का पानी निकाल लिया जाता है और मिट्टी सुखा ली जाती है। बाहरी कड़ियाँ चीनी मिट्टी के बर्तन मिट्टी मृद्भाण्ड
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मोंटी कार्लो
मोंटी कार्लो मोनाको के विभिन्न प्रशासनिक क्षेत्रों में से एक है एवं उसके सबसे धनी क्षेत्रों में से गिना जाता है।अक्सर लोग इसे लोग मोनाको की राजधानी समझने की भूल करते हैं। जबकि औपचारिक रूप से मोनाको की कोई राजधानी नहीं है। मोंटी कार्लो को पूरी दुनिया में उसके कसीनो (जुआ खेलने के अडडों) के लिए जाना जाता है। इसकी स्थापना सन १८६६ में हुई थी और इसका नाम मोंटी कार्लो इतालवी से प्रसृत हुआ है जिसका मूल रूप "माउंट चार्ल्स" है, जो उस समय के राजकुमार का नाम था (चार्ल्स तृतीय)। इन्हें भी देखें मोंटी कार्लो कसीनो सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ मोंटी कार्लो एवं मोनैको में सैर-सपाटे की जानकारी से भरा जालस्थल मोंटी कार्लो का आधिकारिक जालस्थल मोनाको शहर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A1%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%80
उडुपी
उडुपी (Udupi), जिसे तुलू भाषा में ओडिपु कहा जाता है, भारत के कर्नाटक राज्य के उडुपी ज़िले में स्थित एक नगर है। यह उस ज़िले का मुख्यालय भी है। विवरण उडुपी कृष्ण मंदिर, तुलु अष्टमथा के लिए उल्लेखनीय है और इसका नाम लोकप्रिय उडुपी व्यंजन पर है। यह भगवान परशुराम क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है, और कानाकाणा किंडी के लिए प्रसिद्ध है। तीर्थयात्रा का केंद्र, उडुपी को राजाता पीठ और शिवली (शिबालेल) के रूप में जाना जाता है। इसे मंदिर शहर भी कहा जाता है। मणिपाल उडुपी शहर के भीतर एक इलाके है। उडुई औद्योगिक हब मैंगलोर से लगभग 60 किमी उत्तर में स्थित है और सड़क के अनुसार राज्य की राजधानी बेंगलुरू के लगभग 422 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। इन्हें भी देखें उडुपी ज़िला सन्दर्भ कर्नाटक के शहर उडुपी ज़िला उडुपी ज़िले के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%B2%20%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
प्रबल अन्योन्य क्रिया
प्रबल अन्योन्य क्रिया (अक्सर प्रबल बल, प्रबल नाभिकीय बल और कलर अन्योन्य क्रिया के नाम से भी जाना जाता है) () प्रकृति की चार मूलभूत अन्योन्य क्रियाओं में से एक है, अन्य तीन अन्योन्य क्रियाएं गुरुत्वाकर्षण, विद्युत चुम्बकीय अन्योन्य क्रिया और दुर्बल अन्योन्य क्रिया हैं। नाभिकीय स्तर पर यह अन्योन्य क्रिया विद्यत चुम्बकीय अन्योन्य क्रिया से १०० गुना प्रबल है अतः दुर्बल व गुरुत्वीय अन्योन्य क्रियाओं से यह बहुत ज्यादा प्रबल है। इस अन्योन्य क्रिया को प्रोटोनों व न्यूट्रोनों के बन्धन बल के रूप में भी पहचाना जाता है। इतिहास सत्तर के दशक से पहले भौतिकविद आण्विक नाभिक की बन्धन प्रक्रिया के बारे में अनिश्चित थे। यह उस समय भी ज्ञात था कि नाभिक प्रोटोनों व न्यूट्रॉनों से मिलकर बना है जहाँ प्रोटॉन धनावेशित कण हैं और न्यूट्रॉन अनावेशित (आवेश विहीन) कण हैं। अतः ये प्रभाव एक दुसरे के विरोधी दिखाई देते थे। तत्कालीन भौतिक ज्ञान के अनुसार, धनावेशित कण एक दुसरे को प्रतिकर्षित करते हैं और अतः नाभिक का विघटन बहुत ही जल्दी होना चाहिए अथवा नाभिक अस्थित्व में नहीं होना चाहिए। यद्यपि यह कभी प्रेक्षित नहीं किया गया। अतः इस प्रक्रिया को समझने के लिए नये भौतिकी की जरुरत थी। प्रोटॉनों के परस्पर विद्युत चुम्बकीय प्रतिकर्षण के के बावजूद आण्विक नाभिक को समझने के लिए एक नया प्रबल आकर्षण बल का अभिगृहित दिया गया। इस कल्पित बल को प्रबल बल (Strong force) नाम दिया गया, जिसे एक मूलभूत बल माना गया जो नाभिक पर आरोपित होता है जहाँ नाभिक प्रोटॉनों व न्यूट्रॉनों से बना होता है। यहाँ इस बल का वाहक π± व π0 को माना गया। साथ ही इन कणों के द्रव्यमान के आधार पर इस बल की परास फर्मी (१०−१५) कोटि की मानी जाने लगी। इसका आविष्कार बाद में हुआ कि प्रोटॉन व न्यूट्रॉन मूलभूत कण नहीं हैं बल्कि अपने घटक कणों क्वार्क से मिलकर बने हैं। नाभिकीय कणों के मध्य लगने वाला प्रबल आकर्षण बल प्रोटॉन व न्यूट्रॉन के अन्दर स्थित क्वार्कों को बांधे रखने वाले मूलभूत कण का पार्श्व प्रभाव मात्र है। क्वांटम क्रोमो गतिकी के सिद्धान्तानुसार क्वार्क रंगीन आवेश रखते हैं यद्यपि यह रंग सामान्य रंगो से सम्बन्धित नहीं है। अलग वर्ण आवेश वाले क्वार्क प्रबल अन्योन्य क्रिया के प्रभाव में एक दूसरे को आकर्षित करते हैं जिसके वाहक ग्लुओन नामक कण हैं। विवरण इस अन्योन्य क्रिया को प्रबल कहने का मुख्य कारण इसका सभी अन्योन्य क्रियाओं में प्रबलतम होना है। यह बल विद्युत चुम्बकीय बलों से १०२ गुणा, दुर्बल बल से १०६ गुणा और गुरुत्वीय बल से १०३९ गुणा प्रबल होता है। प्रबल बल का व्यवहार इस बल का अध्ययन मुख्यतः क्वांटम क्रोमो गतिकी (QCD) में किया जाता है जो की मानक प्रतिमान का एक महत्वपूर्ण भाग है। गणितीय रूप से क्वांटम क्रोमो गतिकी सममिति समूह SU(3) पर आधारित अक्रमविनिमय आमान सिद्धान्त है। क्वार्क व ग्लुओन ही केवल ऐसे मूलभूत कण हैं जो विलुप्त नहीं होने वाला वर्ण-आवेश रखते हैं अतः प्रबल अन्योन्य क्रिया में भाग लेते हैं। प्रबल बल प्रत्यक्ष रूप से केवल क्वार्क व ग्लुओन से ही क्रिया करता है। सन्दर्भ ये भी देखें नाभिकीय भौतिकी क्वांटम क्षेत्र सिद्धान्त मानक प्रतिमान दुर्बल अन्योन्य क्रिया गुरुत्वाकर्षण भौतिकी नाभिकीय भौतिकी कण भौतिकी भौतिक अवधारणायें
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%20%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%A1%20%E0%A4%91%E0%A4%AB%E0%A4%BC%20%E0%A4%AD%E0%A4%97%E0%A4%A4%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9
द लीज़ेंड ऑफ़ भगत सिंह
द लीज़ेंड ऑफ भगत सिंह () 2002 में रिलीज़ हुई भारतीय हिंदी भाषा की बायोपिक फ़िल्म है। फ़िल्म का निर्देशन राजकुमार सन्तोषी ने किया है। यह फ़िल्म क्रांतिकारी भगत सिंह के बारे में है, जिन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के साथी सदस्यों के साथ भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी थी। फ़िल्म की मुख्य भूमिका में अजय देवगन, सुशांत सिंह, डी. संतोष और अखिलेन्द्र मिश्रा हैं। फ़िल्म के अन्य सहायक कलाकार राज बब्बर, फ़रीदा जलाल और अमृता राव हैं। यह फिल्म भगत सिंह के बचपन, जलियाँवाला बाग हत्याकांड के गवाह बनने तथा 24 मार्च 1931 को आधिकारिक मुकदमे से पहले उन्हें फांसी दिए जाने तक के जीवन का वर्णन करती है। फिल्म का निर्माण कुमार और रमेश तौरानी की टिप्स इंडस्ट्रीज द्वारा ₹20-25 कराड़ के बजट पर किया गया था। फ़िल्म की कहानी और संवाद क्रमशः संतोषी और पीयूष मिश्रा द्वारा लिखे गए थे तथा अंजुम राजाबली ने पटकथा तैयार की थी। के. वी. आनंद, वी. एन. मयेकर और नितिन चंद्रकांत देसाई क्रमशः सिनेमैटोग्राफी, संपादन और प्रोडक्शन डिजाइन के प्रभारी थे। मुख्य फोटोग्राफी जनवरी से मई 2002 तक आगरा, मनाली, मुंबई और पुणे में हुई थी। साउंडट्रैक और फिल्म स्कोर ए. आर. रहमान द्वारा रचित है। फ़िल्म के गाने "मेरा रंग दे बसंती" और "सरफरोशी की तमन्ना" विशेष रूप से खूब पसंद किये गये हैं। द लीजेंड ऑफ भगत सिंह को आम तौर पर सकारात्मक समीक्षा के साथ 7 जून 2002 को रिलीज़ किया गया था। फ़िल्म में निर्देशन, कहानी, पटकथा, तकनीकी पहलुओं और देवगन तथा सुशांत के प्रदर्शन पर सबसे अधिक ध्यान दिया गया था। हालाँकि फ़िल्म ने बॉक्स ऑफिस पर ख़राब प्रदर्शन किया और केवल ₹13 करोड़ की कमाई कर पाई। फ़िल्म ने हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म और देवगन के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के साथ दो राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार जीते। फ़िल्म ने आठ नामांकन में से तीन फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीते। कहानी कुछ अधिकारी सफेद कपड़े में ढके तीन शवों को एक नदी के पास फेंकने और जलाने के लिए ले जाते हैं लेकिन ग्रामीणों ने उन्हें रोक दिया और शवों का अनावरण किया। त्रासदी तब होती है जब विद्यावती नाम की एक बूढ़ी महिला भी एक शव का अनावरण करती है और अपने बेटे को कपड़े के नीचे पाती है और अपने बेटे को उस हालत में देखकर घबरा जाती है। उन तीन युवाओं की मौत पर शोक व्यक्त करते हुए 24 मार्च को एक बड़ी हड़ताल की गई। इस बीच, कराची के मालिर स्टेशन पर, महात्मा गांधी स्टेशन से पहुंचते हैं और अपने समर्थकों को उनकी प्रशंसा करते हुए देखते हैं। उस भीड़ में सिर्फ तीन युवा मरे हुओं को न बचाने के लिए महात्मा गांधी का अपमान कर रहे थे। बाद में यह पता चलता है कि वे क्रमशः भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु थे। उन्होंने गांधीजी को एक बना हुआ काला गुलाब उपहार में दिया और उन्हें इसका कारण बताया। गांधीजी ने उन्हें बताया कि वह देश के लिए उनकी भावनाओं की सराहना करते हैं और वह उन्हें बचाने के लिए अपनी जान दे सकते थे। उन्होंने कहा कि वे युवा देशभक्ति के गलत रास्ते पर थे और जीना नहीं चाहते थे। एक युवा उनके उत्तर से असहमत होते हुए कहता है कि उनका इरादा ब्रिटिश सरकार के समान था जो कभी भी तीन युवा क्रांतिकारियों को मुक्त नहीं करना चाहते थे। उसने कहा कि गांधीजी ने कभी भी उन्हें मुक्त करने की पूरी कोशिश नहीं की। गांधीजी ने यह भी कहा कि वे कभी भी हिंसा के मार्ग का समर्थन नहीं करते। युवाओं की भीड़ फिर भी असहमत थी और उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि इतिहास उनसे यह सवाल हमेशा पूछेगा। उन्होंने गांधीजी का अपमान जारी रखा और भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की प्रशंसा की। भगत सिंह के पिता किशन सिंह गुप्त रूप से उनका स्वागत करते हैं। कहानी बाद में पिछली घटनाओं पर आधारित होती है। भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था। वह कुछ ब्रिटिश अधिकारियों को ऐसे लोगों पर अत्याचार करते हुए देखता है जो दोषी भी नहीं थे। युवा भगत ने यह भी सुना है कि जब वह अपने पिता की गोद में था, जो सभी अत्याचारों को देखने के बाद वापस जा रहे थे, तो ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें "ब्लडी इंडियंस" कहा था। 12 साल की उम्र में, भगत ने जलियाँवाला बाग नरसंहार के परिणाम देखने के बाद भारत को ब्रिटिश राज से मुक्त कराने की शपथ ली। नरसंहार के तुरंत बाद, उन्हें मोहनदास करमचंद गांधी की सत्याग्रह नीतियों के बारे में पता चला और उन्होंने असहयोग आन्दोलन का समर्थन करना शुरू कर दिया, जिसमें हजारों लोग ब्रिटिश निर्मित कपड़े जलाते थे और स्कूल, कॉलेज की पढ़ाई और सरकारी नौकरियां छोड़ देते थे। फरवरी 1922 में, चौरी चौरा घटना के बाद गांधीजी ने आंदोलन बंद कर दिया। गांधीजी द्वारा धोखा महसूस करने पर, भगत ने एक क्रांतिकारी बनने का फैसला किया। वयस्क होकर वह कानपुर जाते हैं और भारत की आजादी के संघर्ष में एक क्रांतिकारी संगठन, हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो जाते हैं। इस संगठन का उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त करना है। वह अपनी गतिविधियों के लिए जेल जाते हैं। सिंह के पिता, किशन सिंह, उसे ₹60,000 की फीस पर जमानत देते हैं ताकि वह उसे डेयरी फार्म चलाने और मन्नेवाली नाम की लड़की से शादी करने के लिए तैयार कर सके। भगत घर से भाग जाते हैं और एक नोट छोड़ जाते हैं जिसमें लिखा होता है कि देश के प्रति उनका प्यार सबसे पहले है। जब साइमन कमीशन के खिलाफ प्रदर्शन करते समय लाला लाजपत राय को पुलिस ने पीट-पीटकर (लाठीचार्ज करके) मार डालती है, तब भगत, शिवराम हरि राजगुरु, सुखदेव थापर और चंद्र शेखर आजाद के साथ मिलकर जॉन पी. सॉन्डर्स (जिन्हें गलती से जेम्स ए स्कॉट समझ लिया जाता है) की हत्या कर देता है, एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जिसने 17 दिसंबर 1928 को लाला लाजपत राय को मारने का आदेश दिया था। घटना के दो दिन बाद, वे पुलिस से बचने के लिए भेष बदल लेते हैं। पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के लिए हत्या के गवाहों के साथ पहचान प्रक्रिया शुरू कर देती है। बाद में, कलकत्ता में, वे सोचने लगते हैं कि उनके प्रयास व्यर्थ हो गए हैं और वे एक विस्फोट की योजना बनाने का निर्णय लेते हैं। यतीन्द्रनाथ दास से मिलने के बाद, जो अनिच्छा से सहमत हो जाते हैं, वे बम बनाने की प्रक्रिया सीखते हैं और जांचते हैं कि यह सफल है या नहीं। आज़ाद को चिंता होने लगती है कि भगत को कुछ हो सकता है। भगत को बाद में सुखदेव द्वारा सांत्वना मिलती है और आज़ाद भी अनिच्छा से सहमत हो जाते हैं। 8 अप्रैल 1929 को, जब अंग्रेजों ने व्यापार विवाद और सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक का प्रस्ताव रखा, तो भगत ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर केन्द्रीय विधान सभा पर बमबारी शुरू कर दी। किसी के हताहत होने की स्थिति से बचने के इरादे से सिंह और दत्त ने खाली बेंचों पर बम फेंके। बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और सार्वजनिक रूप से मुकदमा चलाया गया। इसके बाद भगत ने क्रांति के अपने विचारों के बारे में भाषण देते हुए कहा कि वह खुद को दुनिया के लिए स्वतंत्रता सेनानी बताना चाहते थे, न कि अंग्रेजों के द्वारा जो उन्हें हिंसक लोगों के रूप में गलत तरीके से पेश करते हैं। उन्होंने असेंबली पर बमबारी का कारण भी यही बताया। भगत जल्द ही भारतीय जनता, विशेषकर युवा पीढ़ी, मजदूरों और किसानों के बीच गांधी से अधिक लोकप्रिय हो गए। भगत सिंह और उनके साथी क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया जाता है और उन्हें मुकदमे का सामना करना पड़ता है। उन्हें मौत की सजा सुनाई जाती है और 23 मार्च, 1931 को उन्हें फांसी दे दी जाती है। द लीज़ेंड ऑफ़ भगत सिंह एक शक्तिशाली और प्रेरणादायक फिल्म है। यह भगत सिंह के जीवन और कार्यों को एक सटीक और भावनात्मक तरीके से चित्रित करती है। फिल्म भगत सिंह की वीरता, देशभक्ति और बलिदान की भावना को दर्शाती है। फिल्म के अभिनय और निर्देशन दोनों ही शानदार हैं। अजय देवगन ने भगत सिंह की भूमिका में एक शानदार प्रदर्शन दिया है। उन्होंने भगत सिंह के साहस, दृढ़ संकल्प और देशभक्ति को पूरी तरह से पकड़ लिया है। राजकुमार संतोषी ने फिल्म का निर्देशन एक कुशल और प्रभावी तरीके से किया है। उन्होंने भगत सिंह के जीवन और कार्यों को एक रोचक और आकर्षक तरीके से प्रस्तुत किया है। द लीज़ेंड ऑफ़ भगत सिंह एक ऐसी फिल्म है जो भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय को याद करती है। यह फिल्म भगत सिंह की वीरता और बलिदान की भावना को याद दिलाती है, जो आज भी भारत के युवाओं को प्रेरित करती है। देशप्रेम से लबरेज फिल्म के दृश्य फिल्म में भगत सिंह के बचपन का एक दृश्य दिखाया गया है, जिसमें जलियांवाला बाग में शहीद हुए देशवासियों को देखकर उनका ह्रदय बदल जाता है और वह भी देश के लिए कुछ करने की ठान लेते हैं. इसके साथ एक और दृश्य हैं, जब भगत अपनी पार्टी ज्वाइन करने के लिए जाते हैं और तेज धारदार भाला पकड़ कर देशप्रेम के अपने जुनून को दिखाते हैं. इसके साथ फिल्म के उस दृश्य को तो भुलाया ही नहीं जा सकता, जिसमें भगत सिंह अपने साथियों के साथ भूख हड़ताल करते हैं और उनके अंदर मौजूद देशप्रेम की ताकत ही उनसे इतनी लंबी भूख हड़ताल करवा पाती है। फिल्म में इस तरह के कई सीन हैं, जिन्हें देखकर भारतीय अपने स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानियों को महसूस कर सकते हैं। कलाकार भगत सिंह के रूप में अजय देवगन युवा भगत के रूप में नक्शदीप सिंह सुखदेव थापर के रूप में सुशांत सिंह डी. संतोष शिवराम राजगुरु के रूप में अखिलेंद्र मिश्रा चंद्र शेखर आज़ाद के रूप में भगत के पिता किशन सिंह संधू के रूप में राज बब्बर भगत की मां विद्यावती कौर संधू के रूप में फरीदा जलाल मन्नेवाली, भगत की मंगेतर के रूप में अमृता राव लाहौर सेंट्रल जेल में डिप्टी जेलर, खान बहादुर मोहम्मद अकबर के रूप में मुकेश तिवारी मोहनदास करमचंद "एम.के." के रूप में सुरेंद्र राजन गांधी उर्फ़ "महात्मा गांधी" पंडित जवाहरलाल नेहरू के रूप में सौरभ दुबे मोतीलाल नेहरू के रूप में स्वरूप कुमार मदन मोहन मालवीय के रूप में अरुण पटवर्धन केनेथ देसाई सुभाष चंद्र बोस के रूप में लाला लाजपत राय के रूप में सीताराम पांचाल बटुकेश्वर दत्त उर्फ ​​"बी.के. दत्त" के रूप में भास्वर चटर्जी भगवती चरण वोरा के रूप में अमित धवन जय गोपाल के रूप में हर्ष खुराना शिव वर्मा के रूप में कपिल शर्मा इंद्राणी बनर्जी दुर्गावती देवी उर्फ ​​"दुर्गा भाभी" के रूप में जतीन्द्र नाथ दास उर्फ़ "जतिन दास" के रूप में अमिताभ भट्टाचार्य शीश खान प्रेम दत्त के रूप में अजय घोष के रूप में संजय शर्मा राजा तोमर महाबीर सिंह के रूप में रामसरन दास के रूप में दीपक कुमार बंधु गया प्रसाद के रूप में नीरज शाह किशोरी लाल के रूप में प्रदीप बाजपेयी देस राज के रूप में आदित्य वर्मा सचिन्द्रनाथ सान्याल के रूप में रोमी जसपाल जयदेव कपूर के रूप में सुनील ग्रोवर फणींद्र नाथ घोष के रूप में अबीर गोस्वामी माहौर के रूप में प्रमोद पाठक हंस राज वोहरा के रूप में आशु मोहिल विस्तार 1998 में, फिल्म निर्देशक राजकुमार संतोषी ने क्रांतिकारी भगत सिंह पर कई किताबें पढ़ीं और उन्हें लगा कि एक बायोपिक उनके रुचि को पुनर्जीवित करने में मदद करेगी। हालांकि मनोज कुमार ने 1965 में शहीद नामक भगत के बारे में एक फिल्म बनाई थी, संतोषी ने महसूस किया कि फिल्म में गीत और संगीत के मोर्चे पर प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत होने के बावजूद, यह भगत सिंह की विचारधारा और दृष्टि पर ध्यान केंद्रित नहीं करता था। अगस्त 2000 में, पटकथा लेखक अंजुम राजाबली ने संतोषी को हर दयाल पर अपने काम के बारे में बताया, जिनकी क्रांतिकारी गतिविधियों ने उधम सिंह को प्रेरित किया। संतोषी ने तब राजाबली को भगत के जीवन पर आधारित एक स्क्रिप्ट का मसौदा तैयार करने के लिए राजी किया क्योंकि वह उधम सिंह से प्रेरित थे। संतोषी ने राजाबली को क्रांतिकारी की जीवनी, के. के. खुल्लर की किताब 'शहीद भगत सिंह' की एक प्रति दी। राजाबली ने कहा कि किताब पढ़ने के बाद भगत सिंह के बारे में मेरे मन में एक गहरी जिज्ञासा पैदा हो गई। मैं निश्चित रूप से उनके बारे में और जानना चाहता था।" पत्रकार कुलदीप नायर की किताब 'द मार्टिर: भगत सिंह "ज एक्सपेरिमेंट्स इन रेवोल्यूशन" (2000) पढ़ने के बाद भगत सिंह में उनकी रुचि और बढ़ गई। अगले महीने, राजाबली ने भगत सिंह पर अपना शोध शुरू किया, जबकि संतोषी ने स्वीकार किया कि यह एक मुश्किल काम है। फिल्म और टेलीविजन संस्थान, भारत के स्नातक गुरपाली सिंह और इंटरनेट ब्लॉगर सागर पंड्या ने उनकी सहायता की। संतोषी को भगत सिंह के छोटे भाई कुलतार सिंह से भी भगत से के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला, जिन्होंने निर्देशक को बताया कि अगर फिल्म भगत सिंह की विचारधारा को सही ढंग से दर्शाती है तो उन्हें उनका पूरा सहयोग मिलेगा। रोचक तथ्य फिल्म का निर्माण 150 करोड़ रुपये के बजट पर किया गया था, जो उस समय की भारतीय फिल्मों के लिए एक रिकॉर्ड था। फिल्म की शूटिंग भारत के कई हिस्सों में की गई, जिसमें लाहौर, दिल्ली, और लंदन शामिल हैं। इस फिल्म के लिए अजय देवगन ने भगत सिंह के बारे में काफी शोध किया था और उनकी तरह दिखने के लिए अपने बालों और दाढ़ी को कटवाया था। फिल्म को आलोचकों और दर्शकों से समान रूप से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर भी अच्छा प्रदर्शन किया और 2002 की सबसे अधिक कमाई करने वाली भारतीय फिल्मों में से एक बन गई। अपनी रिलीज के बाद से, द लीजेंड ऑफ भगत सिंह को राजकुमार संतोषी के सर्वश्रेष्ठ कार्यों में से एक माना गया है। अजय देवगन ने दिसंबर 2014 में कहा था कि ज़ख्म (1998) के साथ द लीजेंड ऑफ भगत सिंह उनके करियर की अब तक की सर्वश्रेष्ठ फिल्म थी। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि उन्होंने इसके बाद इतनी अच्छी स्क्रिप्ट नहीं देखी है। 2016 में, फिल्म को हिंदुस्तान टाइम्स की "बॉलीवुड की शीर्ष 5 बायोपिक्स" की सूची में शामिल किया गया था। द लीजेंड ऑफ भगत सिंह को स्पॉटबॉय और द फ्री प्रेस जर्नल दोनों की बॉलीवुड फिल्मों की सूची में जोड़ा गया था। जिन्हें 2018 में भारत के स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाने के अवसर पर फिल्म को दिखाया जाने लगा। वहीं अगले वर्ष, डेली न्यूज़ एंड एनालिसिस और ज़ी न्यूज़ ने भी इसे गणतंत्र दिवस पर देखने के लिए फिल्मों में सूचीबद्ध किया। शुरुआत में सनी देओल को भगत सिंह की भूमिका के लिए चुना गया था, लेकिन राजकुमार संतोषी के साथ मतभेद के कारण उन्होंने यह प्रोजेक्ट छोड़ दिया। तब राजकुमार संतोषी ने पुराने अभिनेताओं के बजाय नए चेहरों को लेना पसंद किया, लेकिन ऑडिशन देने वाले कलाकारों से वे खुश नहीं थे। नए कलाकारों में उन्होंने अजय देवगन को मुख्य किरदार के लिए चुना गया क्योंकि राजकुमार संतोषी को लगा कि उनके पास "एक क्रांतिकारी की आंखें हैं। जब देवगन ने भगत सिंह की वेशभूषा में स्क्रीन टेस्ट दिया, तो संतोषी को यह देखकर "सुखद आश्चर्य" हुआ कि देवगन का चेहरा भगत सिंह से काफी मिलता-जुलता था और उन्होंने उन्हें इस भूमिका में ले लिया। अजय देवगन ने इस फिल्म को अपने करियर का "सबसे चुनौतीपूर्ण काम" बताया। अजय देवगन ने भगत सिंह जैसा दिखने के लिए उन्होंने अपना वजन भी कम किया था। संगीत परिणाम बॉक्स आफ़िस पर शुद्ध कमाई: 6.57 करोड़ रूपये समायोजित राशि: रु 21.67 करोड़ रूपये बाक्स आफिस पर कमाई गई राशि: रु 9.30 करोड़ रूपये समायोजित कुल राशि: रु 30.67 करोड़ रूपये नामांकन और पुरस्कार 50वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में, द लीजेंड ऑफ भगत सिंह ने सर्वश्रेष्ठ हिंदी फीचर फिल्म का पुरस्कार जीता और अजय देवगन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला। और 48वें फिल्मफेयर पुरस्कारों में द लीजेंड ऑफ भगत सिंह फिल्म को तीन नामांकन प्राप्त हुए और तीन जीते सर्वश्रेष्ठ बैकग्राउंड स्कोर ए. आर. रहमान, सर्वश्रेष्ठ फिल्म समीक्षक कुमार तौरानी, रमेश तौरानी और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (अजय देवगन) को मिला। फिल्म द लीजेंड ऑफ भगत सिंह -फिल्म संरचना- अजय देवगन द लीजेंड ऑफ भगत सिंह फिल्म 7 जून 2002 को संजय गढ़वी की फिल्म "मेरे यार की शादी है", और भगत सिंह पर आधारित एक और फिल्म "शहीद" 23 मार्च 1931 को एक साथ रिलीज हुई थी, जिसमें बॉबी देओल ने क्रांतिकारी की भूमिका निभाई थी। बाहरी कड़ियाँ 2002 में बनी हिन्दी फ़िल्म सन्दर्भ
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उपभोक्ता संरक्षण
उपभोक्ता संरक्षण एक प्रकार का सरकारी नियंत्रण है जो उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करता है। परिचय आज ग्राहक जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावट, बिना मानक की वस्तुओं की बिक्री, अधिक दाम, ग्यारन्टी के बाद सर्विस नहीं देना, हर जगह ठगी, कम नाप-तौल इत्यादि संकटों से घिरा है। ग्राहक संरक्षण के लिए विभिन्न कानून बने हैं, इसके फलस्वरूप ग्राहक आज सरकार पर निर्भर हो गया है। जो लोग गैरकानूनी काम करते हैं, जैसे- जमाखोरी, कालाबाजारी करने वाले, मिलावटखोर इत्यादि को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त होता है। ग्राहक चूंकि संगठित नहीं हैं इसलिए हर जगह ठगा जाता है। ग्राहक आन्दोलन की शुरुआत यहीं से होती है। ग्राहक को जागना होगा व स्वयं का संरक्षण करना होगा। उपभोक्ता आन्दोलन का प्रारंभ अमेरिका में रल्प नाडेर द्वारा किया गा था। नाडेर के आन्दोलन के फलस्वरूप 15 मार्च 1962 को अमेरिकी कांग्रेस में तत्काली राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी द्वारा उपभोक्ता संरक्षण पर पेश विधेयक को अनुमोदित किया था। इसी कारण 15 मार्च को अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। अमेरिकी कांग्रेस में पारित विधेयक में चार विशेष प्रावधान थे। उपभोक्ता सुरक्षा के अधिकार। उपभोक्ता को सूचना प्राप्त करने का अधिकार। उपभोक्ता को चुनाव करने का अधिकार। उपभोक्ता को सुनवाई का अधिकार। अमेरिकी कांग्रेस ने इन अधिकारों को व्यापकता प्रदान करने के लिए चार और अधिकार बाद में जोड़ दिए। उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार। क्षति प्राप्त करने का अधिकार। स्वच्छ वातावरण का अधिकार। मूलभूत आवश्यकताएं जैसे भोजन, वस्त्र और आवास प्राप्त करने अधिकार। जहां तक भारत का प्रश्न है, उपभोक्ता आन्दोलन को दिशा 1966 में जेआरडी टाटा के नेतृत्व में कुछ उद्योगपतियों द्वारा उपभोक्ता संरक्षण के तहत फेयर प्रैक्टिस एसोसिएशन की मुंबई में स्थापना की गई और इसकी शाखाएं कुछ प्रमुख शहरों में स्थापित की गईं। स्वयंसेवी संगठन के रूप में ग्राहक पंचायत की स्थापना बीएम जोशी द्वारा 1974 में पुणे में की गई। अनेक राज्यों में उपभोक्ता कल्याण हेतु संस्थाओं का गठन हुआ। इस प्रकार उपभोक्ता आन्दोलन आगे बढ़ता रहा। 24 दिसम्बर 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर उपभोक्ता संरक्षण विधेयक संसद ने पारित किया और राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित होने के बाद देशभर में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू हुआ। इस अधिनियम में बाद में 1993 व 2002 में महत्वपूर्ण संशोधन किए गए। इन व्यापक संशोधनों के बाद यह एक सरल व सुगम अधिनियम हो गया है। इस अधिनियम के अधीन पारित आदेशों का पालन न किए जाने पर धारा 27 के अधीन कारावास व दण्ड तथा धारा 25 के अधीन कुर्की का प्रावधान किया गया है। उपभोक्ता उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार कोई व्यक्ति जो अपने उपयोग के लिये सामान अथवा सेवायें खरीदता है वह उपभोक्ता है। विक्रेता की अनुमति से ऐसे सामान/सेवाओं का प्रयोग करने वाला व्यक्ति भी उपभोक्ता है। अत: हम में से प्रत्येक किसी न किसी रूप में उपभोक्ता ही है। उपभोक्ता के अधिकार उन उत्पादों तथा सेवाओं से सुरक्षा का अधिकार जो जीवन तथाणगथ़िं संपत्ति को हानि पहुँचा सकते हैं। उत्पादों तथा सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, , शुद्धता, मानक तथा मूल्य के बारे में जानने का अधिकार जिससे कि उपभोक्ता को अनुचित व्यापार पद्धतियों से बचाया जा सके। जहाँ भी संभव हो, वहां प्रतियोगात्मक मूल्यों पर विभिन्न उत्पादों सेवाओं तक पहुँच के प्रति आश्वासित होने का अधिकार। सुनवाई और इस आश्वासन का अधिकार कि उचित मंचों पर उपभोक्ता के हितों को उपयुक्त विनियोग प्राप्त होगा। अनुचित या प्रतिबंध व्यापार पद्धतियों या उपभोक्ताओं के अनैतिक शोषण के विरुद्ध सुनवाई का अधिका शिकायतें क्या-क्या हो सकती हैं? किसी व्यापारी द्वारा अनुचित/प्रतिबंधात्मक पध्दति के प्रयोग करने से यदि आपको हानि/क्षति हुई है अथवा खरीदे गये सामान में यदि कोई खराबी है या फिर किराये पर ली गई/उपभोग की गई सेवाओं में कमी पाई गई है या फिर विक्रेता ने आपसे प्रदर्शित मूल्य अथवा लागू कानून द्वारा अथवा इसके मूल्य से अधिक मूल्य लिया गया है। इसके अलावा यदि किसी कानून का उल्लंघन करते हुए जीवन तथा सुरक्षा के लिये जोखिम पैदा करने वाला सामान जनता को बेचा जा रहा है तो आप शिकायत दर्ज करवा सकते हैं. कौन शिकायत कर सकता है? स्वयं उपभोक्ता या कोई स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठन जो समिति पंजीकरण अधिनियम 1860 अथवा कंपनी अधिनियम 1951 अथवा फिलहाल लागू किसी अन्य विधि के अधीन पंजीकृत है, शिकायत दर्ज कर सकता है। शिकायत कहां की जाये शिकायत कहां की जाये, यह बात सामान सेवाओं की लागत अथवा मांगी गई क्षतिपूर्ति पर निर्भर करती है। अगर यह राशि 20 लाख रूपये से कम है तो जिला फोरम में शिकायत करें। यदि यह राशि 20 लाख रूपये से अधिक लेकिन एक करोड़ रूपये से कम है तो राज्य आयोग के समक्ष और यदि एक करोड़ रूपसे अधिक है तो राष्ट्रीय आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज करायें। वैबसाईट www.fcamin.nic.in पर सभी पते उपलब्ध हैं। शिकायत कैसे करें उपभोक्ता द्वारा अथवा शिकायतकर्ता द्वारा शिकायत सादे कागज पर की जा सकती है। शिकायत में शिकायतकर्ताओं तथा विपरीत पार्टी के नाम का विवरण तथा पता, शिकायत से संबंधित तथ्य एवं यह सब कब और कहां हुआ आदि का विवरण, शिकायत में उल्लिखित आरोपों के समर्थन में दस्तावेज साथ ही प्राधिकृत एजेंट के हस्ताक्षर होने चाहिये। इस प्रकार की शिकायत दर्ज कराने के लिये किसी वकील की आवश्यकता नहीं होती। साथ ही इस कार्य पर नाममात्र न्यायालय शुल्क ली जाती है। क्षतिपूर्ति उपभोक्ताओं को प्रदाय सामान से खराबियां हटाना, सामान को बदलना, चुकाये गये मूल्य को वापस देने के अलावा हानि अथवा चोट के लिये क्षतिपूर्ति। सेवाओं में त्रुटियां अथवा कमियां हटाने के साथ-साथ पार्टियों को पर्याप्त न्यायालय वाद-व्यय प्रदान कर राहत दी जाती है। उपभोक्ता अधिकार सरंक्षण के कुछ कानून उपभोक्ता के साथ ही स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठन, केंद्र या राज्य सरकार, एक या एक से अधिक उपभोक्ता कार्यवाही कर सकते हैं। भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम-1885, पोस्ट आफिस अधिनियम 1898, उपभोक्ता/सिविल न्यायालय से संबंधित भारतीय वस्तु विक्रय अधिनियम 1930, कृषि एवं विपणन निदेशालय भारत सरकार से संबंधित कृषि उत्पाद ड्रग्स नियंत्रण प्रशासन एमआरटीपी आयोग-उपभोक्ता सिविल कोर्ट से संबंधित ड्रग एण्ड कास्मोटिक अधिनियम-1940, मोनापालीज एण्ड रेस्ट्रेक्टिव ट्रेड प्रेक्टिसेज अधिनियम-1969, प्राइज चिट एण्ड मनी सर्कुलेशन स्कीम्स (बैनिंग) अधिनियम-1970 उपभोक्ता/सिविल न्यायालय से संबंधित भारतीय मानक संस्थान (प्रमाण पत्र) अधिनियम-1952, खाद्य पदार्थ मिलावट रोधी अधिनियम-1954, जीवन बीमा अधिनियम-1956, ट्रेड एण्ड मर्केन्डाइज माक्र्स अधिनियम-1958, हायर परचेज अधिनियम-1972, चिट फण्ड अधिनियम-1982, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, रेलवे अधिनियम’-1982 इंफार्मेषन एंड टेक्नोलोजी अधिनियम-2000, विद्युत तार केबल्स-उपकरण एवं एसेसरीज (गुणवत्ता नियंत्रण) अधिनियम-1993, भारतीय विद्युत अधिनियम-2003, ड्रग निरीक्षक-उपभोक्ता-सिविल अदालत से संबंधित द ड्रग एण्ड मैजिक रेमिडीज अधिनियम-1954, खाद्य एवं आपूर्ति से संबंधित आवश्यक वस्तु अधिनियम-1955, द स्टेंडर्डस ऑफ वेट एण्ड मेजर्स (पैकेज्ड कमोडिटी रूल्स)-1977, द स्टैंडर्ड ऑफ वेट एण्ड मेजर्स (इंफोर्समेंट अधिनियम-1985, द प्रिवेंशन ऑफ ब्लैक मार्केटिंग एण्ड मेंटीनेंस आफॅ सप्लाइज इसेंशियल कमोडिटीज एक्ट-1980, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड/केंद्र सरकार से संबंधित जल (संरक्षण तथा प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम-1976, वायु (संरक्षण तथा प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम-1981, भारतीय मानक ब्यूरो-सिविल/उपभोक्ता न्यायालय से संबंधित घरेलू विद्युत उपकरण (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश-1981, भारतीय मानक ब्यूरो से संबंधित भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम-1986, उपभोक्ता न्यायालय से संबंधित उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, पर्यावरण मंत्रायल-राज्य व केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड से संबंधित पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 भारतीय मानक ब्यूरो-सिविल-उपभोक्ता न्यायालय से संबंधित विद्युत उपकरण (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश संक्षिप्त परिचय एम. आर . टी . पी . - आजकल भ्रमित करने वाले झूठे विज्ञापनों को आधार बनाकर उपभोक्‍ता का शोषण करने की प्रवृति कुछ व्‍यापारियों में पनपनती दिखाई दे रही है। कभी-कभी तो असंभव बातों को गारंटी की जाती है, जो पूरी नहीं हो पाती है। प्रचारित की गई वस्‍तुएं गुणवत्‍ता की नहीं होती है ओर उनका मूल्‍य अधिक लिया जाता है। कई बार एकाधिकारिता का लाभ उठाकर अधिक मुल्‍य लिया जाता है। इसी तरह के शोषण से उपभोक्‍ता को बचाने के लिए केंद्र सरकार से द्वारा बनाया गया मोनोपोलिस एंड रेस्ट्रिक्टिव ट्रेड प्रेक्टिसेस एक्‍ट, 1969 प्रभावशील है, जिसे संक्षेप में एमआरटीपी एक्‍ट कहा जाता है। ऐसी शिकायत होने पर उपभोक्‍ता को इसकी सूचना एमआरटीपी कमीशन को देनी चाहिए ताकि उसे शोषण से मुक्ति दिलाई जा सके ओर व्‍यापारी के विरूध्‍द आवश्‍यक कार्यवाही की जा सके। उपभोक्‍तागण ऐसे प्रकरण खाद्य विभाग को भी भेज सकते हैं। उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम - उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 व्‍यापार और उद्योग के शोषण से उन लोगों के अधिकारों और हितों को बचाने के लिए बनाया गया था जो किसी न किसी प्रकार से उपभोक्‍ता है। इस अधिनियम के अनुसार कोई भी व्‍यक्ति, जो अपने प्रयोग हेतु वस्‍तुएं एवं सेवाएं खरीदता है उपभोक्‍ता है। क्रेता की अनुमति से इन वस्‍तुओं एवं सेवाओं का प्रयोगकर्ता भी उपभोक्‍ता है। इन्हें भी देखें संशोधित उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, २००२ राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस (भारत) बाहरी कड़ियाँ कोर ग्रुप - भारत सरकार के उपभोक्ता मंत्रालय द्वारा मान्यताप्राप्त संस्था भारत सरकार का उपभोक्ता मामलों का विभाग उपभोक्ता अधिकार मंच (हिन्दी चिट्ठा) Consumer Protection Act in India अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत (महाकौशल प्रांत) जागरूकता की मुहिम धीमी न पड़ने दें Consumer Education and Research Centre (CERC)(India) List of Consumer Rights as stated by the Government of India Consumers International, the global voice for consumers GotTrouble.com Consumer Rights Resource विधि
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%AC
यूट्यूब
यूट्यूब अमेरिका की एक वीडियो देखने वाला प्लेटफॉर्म है, जिसमें पंजीकृत सदस्य वीडियो क्लिप देखने के साथ ही अपना वीडियो अपलोड भी कर सकते हैं। इसे पेपैल के तीन पूर्व कर्मचारियों, चाड हर्ले, स्टीव चैन और जावेद करीम ने मिल कर फरवरी 2005 में बनाया था, जिसे नवम्बर 2006 में गूगल ने 1.65 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीद लिया। यूट्यूब अपने पंजीकृत सदस्यों को वीडियो अपलोड करने, देखने, शेयर करने, पसंदीदा वीडियो के रूप में जोड़ने, रिपोर्ट करने, टिप्पणी करने और दूसरे सदस्यों के चैनल की सदस्यता लेने देता है। इसमें सदस्यों से लेकर कई बड़े कंपनियों के तक वीडियो मौजूद रहते हैं। इनमें वीडियो क्लिप, टीवी कार्यक्रम, संगीत वीडियो, फ़िल्मों के ट्रेलर, लाइव स्ट्रीम आदि होते हैं। कुछ लोग इसे वीडियो ब्लॉगिंग के रूप में भी प्रयोग करते हैं। गैर-पंजीकृत सदस्य केवल वीडियो ही देख सकते हैं, वहीं पंजीकृत सदस्य असीमित वीडियो अपलोड कर सकते हैं और वीडियो में टिप्पणी भी जोड़ सकते हैं। कुछ ऐसे वीडियो, जिसमें मानहानि, उत्पीड़न, नग्नता, अपराध करने हेतु प्रेरित करने वाले वीडियो या जो भी 18 वर्ष से कम आयु के लोगों के लिए घातक हो, उन्हें केवल 18+ आयु के पंजीकृत सदस्य ही देख सकते हैं। यूट्यूब अपनी कमाई गूगल एडसेंस से करता है, जो साइट के सामग्री और दर्शकों के अनुसार अपना विज्ञापन दिखाता है। इसमें अधिकांश वीडियो निःशुल्क देखा जा सकता है, परन्तु कुछ वीडियो को देखने के लिए पैसे देने पड़ते हैं। इनमें से एक फिल्में उधार लेकर देखना भी सम्मिलित है, जिसमें आप कुछ पैसे देकर फ़िल्म देख सकते हैं। यूट्यूब प्रीमियम की सदस्यता भी आप पैसे देकर ले सकते हैं, जिससे आप बिना कोई विज्ञापन के कई सारे वीडियो देख सकते हैं और साथ ही यूट्यूब प्रीमियम पर कुछ ऐसे वीडियो भी हैं, जिसे केवल आप यूट्यूब प्रीमियम की सदस्यता खरीद कर ही देख सकते हैं। इतिहास पेपाल के तीन पूर्व कर्मचारी चाड हर्ले, स्टीव चैन, और जावेद करीम] ने मध्य फरवरी 2005 में यूट्यूब बनाई थी। सैन ब्रूनो आधारित सेवा उपयोग कर्ता द्वारा डत्पन्न वीडियॊ सामग़्री जिसमें मूवी क्लिप्स टीवी क्लिप्स और म्यूजिक वीडियो शामिल हैं (user-generated video content) प्रदर्शित करने के एडोब फ़्लैश तकनीक का उपयोग करता है साथ ही शौकिया सामग्री (TV) जैसे छोटे मूल वीडियो (music videos) और वीडियॊ (videoblogging) ब्लॉगिंग अक्टूबर 2006 में, गूगल इंक ने घोषणा की थी कि उसने एक कम्पनी का अधिग्रहण करने के लिए $1.65 अरब स्टाक में एक समझौता किया है। 13 नवम्बर 2006 को यह समझौता पूरा कर लिया गया गूगल ने 14 नवम्बर 2006 को यूट्यूब के साथ समझौता पूर्ण कर दिया। यूट्यूब पर सबसे पहला उपलोड किया गया वीडियो मी ऐट द ज़ू है जिसमें सह-संस्थापक जावेद करीम सैन डिएगो चिड़ियाघर में दिखाए गए हैं। यह 23 अप्रैल 2005 को अपलोड हुआ था। इसे अभी भी यूट्यूब पर देखा जा सकता है। . YouTube के 5 सबसे बड़े चैनल के नाम -: T-Series PewDiePie Mr. beast Coca Melon Bright side एक कहानी जो कि अक्सर मीडिया में दोहराई गयी है उसके अनुसार, हर्ले और चैन, 2005 के शुरुआती महीनों के दौरान सैन फ्रांसिस्को में चेन के अपार्टमेंट में एक डिनर पार्टी में खींचे वीडियो को बाँटने में कठिनाई आई थी और इससे ही यूट्यूब के विचार का जन्म हुआ। करीम पार्टी में शामिल नहीं थे और उन्होंने इस बात से इनकार किया है कि पार्टी हुई थी, लेकिन चैन ने टिप्पणी की है, "यह एक कहानी है और इसे पाच्य बनाने के लिए, चारों ओर विपणन विचारों से मजबूत किया गया था"। करीम ने यूट्यूब के लिए प्रेरणा 2004 में हिन्द महासागर में आई सुनामी के वीडियो क्लिप ऑनलाइन नहीं मिलने को माना है। हर्ले और चेन ने कहा कि यूट्यूब के लिए मूल विचार के लिए एक ऑनलाइन डेटिंग सेवा का एक वीडियो संस्करण था, और हॉट और नॉट" वेबसाइट से प्रभावित था। जल्द से जल्द यूट्यूब वेबसाइट के संस्करण जीवित वेबैक मशीन, 28 अप्रैल 2005 को 19 जून 2013 को लिया गया।। यूट्यूब पर अधिक लोगों द्वारा देखे जाने के लिए, आपको उच्च-गुणवत्ता वाली सामग्री बनानी चाहिए जो वास्तविक प्रशंसकों को आकर्षित करे। इसका मतलब है कि आपको यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि आपके थंबनेल और अन्य चैनल तत्व आपके चैनल की समग्र थीम से मेल खाते हों। यूट्यूब, एक उद्यम वित्त पोषित प्रौद्योगिकी स्टार्टअप के रूप में $11.5 मिलियन के निवेश से नवम्बर 2005 और अप्रैल 2006 में सिकोइया कैपिटल के बीच शुरू हुआ था। यूट्यूब के प्रारम्भिक मुख्यालय साइन मेटिओ, कैलिफोर्निया में एक पिज़्ज़ेरिया और जापानी रेस्त्राँ के ऊपर स्थित थे | डोमेन नाम www.youtube.com 14 फरवरी 2005 को सक्रिय हो गया था, और वेबसाइट बाद के महीनों में विकसित किया गया था। सामाजिक प्रभाव 2005 में यूट्यूब की शुरूआत से पहले, आम कंप्यूटर उपयोगकर्ताओं के लिए ऑनलाइन वीडियो पोस्ट के लिए कुछ सरल तरीके उपलब्ध थे इण्टरफ़ेस का आसानी से उपयोग करने के अलावा यूट्यूब ने यह सम्भव बनाया है कि कोई भी वीडियो पोस्ट करने के लिए कम्प्यूटर का उपयोग कर सकता है जिसे कुछ ही मिनटों में लाखों लोग देख सकते हैं। यूट्यूब ने विविध विषयों के साथ वीडियो साझेदारी को इंटरनेट (Internet culture) कल्चर का सबसे महत्वपूर्ण भाग बना दिया है। यूट्यूब के सामाजिक प्रभाव का का ताजा उदाहरण 2006 में बस अंकल वीडियॊ (Bus Uncle) की सफलता थी यह हांगकांग की बस में एक युवा और बड़े आदमी के बीच एनिमेटेड वार्तालाप दिखाता है और इस पर मुख्यधारा के मीडिया में व्यापक चर्चा की गइ थी व्यापक कवरेज प्राप्त करने के लिए एक और यूट्यूब गिटार है जिसमें पाचेलबेल कैनन (Pachelbel's Canon) की प्रस्तुति एक इलेक्ट्रिक गिटार पर दिखाइ गइ थी (electric guitar) वीडियो में कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले कलाकार का नाम नहीं दिया गया था और इस कार्यक्रम को लाखों दर्शक मिले बाद में न्यूयार्क टाइम्स ने गिटारवादक के नाम का खुलासा २३ साल के जियांग हुन लिम (Jeong-Hyun Lim) के रूप में किया जिसने यह ट्रैक अपने शयन कक्ष में रिकार्ड किया था यूट्यूब प्लेटफॉर्म पर लोग अपने चैनल के साथ इसे बनाने के लिए अलग-अलग उद्देश्य रखते हैं, लेकिन लक्ष्य जो भी हो,यूट्यूब हर व्यक्ति के उद्देश्य को पूरा करता है। कुछ मज़ेदार वीडियो बनाकर लोगों का मनोरंजन करना चाहते हैं, जबकि अन्य अपने व्यवसाय का प्रचार करना चाहते हैं। सेवा की शर्तें यूट्यूब की सेवा शर्तों के अनुसार (terms of service) उपयोगर्ता कापीराइट धारक और वीडियॊ में दिखाए गए लोगों की अनुमित से ही वीडियॊ अपलोड कर सकता है अश्लीलता, नग्नता, मानहानि, उत्पीड़न, वाणिज्यिक और विज्ञापन और आपराधिक आचरण को प्रोत्साहित करने वाली सामग्री निषिद्ध हैं। अपलोड करने वाला यूट़्यूब को अपलोड की हुई सामग्री किसी भी उद्देश्य के लिए वितरित करने या संशोधित करने का अधिकार देता है यह लाइसेंस उस समय रद्द हो जाता है जब अपलोड करने वाला सामग्री साइट से मिटा देता है उपयोगकर्ता साइट पर तभी तक वीडियो देख सकते हैं जब तक कि वे सेवा शर्तों पर सहमत हैं; डाउनलोड करने के लिए अपने माध्यम या वीडियो की नकल की अनुमति नहीं है।यूट्यूब सहयोगी कार्यक्रम में शामिल होने के योग्य बनने के लिए न्यूनतम 1,000 ग्राहकों का होना एक प्रमुख मानदंड है। यूट्यूब की कमाई मई 2007 में, यूट्यूब ने अपना पार्टनर प्रोग्राम (YPP) लॉन्च किया, जो ऐडसेन्स पर आधारित एक प्रणाली है, जो वीडियो के अपलोडर को साइट पर विज्ञापन द्वारा उत्पादित राजस्व को साझा करने की अनुमति देता है (इसी से यूट्यूब से पैसे कमाते है)। यूट्यूब आम तौर पर सहयोगी कार्यक्रम में वीडियो से विज्ञापन राजस्व का 45 प्रतिशत लेता है, जिसमें 55 प्रतिशत अपलोडर के पास जाता है। यूट्यूब सहयोगी कार्यक्रम के दस लाख से अधिक सदस्य हैं। ट्यूबमोगुल के मुताबिक, 2013 में यूट्यूब पर एक प्री-रोल विज्ञापन (जो वीडियो शुरू होने से पहले दिखाया गया है) विज्ञापनदाताओं को प्रति 1000 विचारों पर औसतन 7.60 डॉलर खर्च करता है। रुचि रखने वाले विज्ञापनदाताओं की कमी के कारण आमतौर पर आधे से अधिक योग्य वीडियो में प्री-रोल विज्ञापन नहीं होता है। यूट्यूब नीतियाँ विज्ञापन के साथ मुद्रीकृत किए जा रहे वीडियो में सामग्री के कुछ रूपों को शामिल करने से प्रतिबंधित करती हैं, जिनमें हिंसा, कठोर भाषा, यौन सामग्री, "विवादास्पद या संवेदनशील विषय और घटनाएँ शामिल हैं, जिनमें युद्ध, राजनीतिक संघर्ष, प्राकृतिक आपदाओं और त्रासदियों से संबंधित विषय शामिल हैं, भले ही ग्राफिक इमेजरी नहीं दिखाई गई हो" (जब तक कि सामग्री "आमतौर पर समाचार योग्य या हास्यपूर्ण न हो और निर्माता का इरादा सूचित या मनोरंजन करना हो"), और वीडियो जिनके उपयोगकर्ता टिप्पणियों में "अनुचित" सामग्री होती है। 2013 में, यूट्यूब ने दर्शकों को वीडियो देखने के लिए सशुल्क सब्सक्रिप्शन की आवश्यकता के लिए कम से कम एक हजार ग्राहकों वाले चैनलों के लिए एक विकल्प पेश किया। अप्रैल 2017 में, YouTube ने सशुल्क सब्सक्रिप्शन के लिए 10,000 आजीवन दृश्यों की पात्रता आवश्यकता निर्धारित की। 16 जनवरी, 2018 को, विमुद्रीकरण के लिए पात्रता आवश्यकता को पिछले 12 महीनों के भीतर 4,000 घंटे के वॉच-टाइम और 1,000 ग्राहकों के लिए बदल दिया गया था। इस कदम को यह सुनिश्चित करने के प्रयास के रूप में देखा गया कि वीडियो का मुद्रीकरण विवाद का कारण न बने, लेकिन छोटे यूट्यूब चैनलों को दंडित करने के लिए इसकी आलोचना की गई। यूट्यूब प्ले बटन, यूट्यूब क्रिएटर रिवॉर्ड्स का एक हिस्सा, यूट्यूब द्वारा इसके सबसे लोकप्रिय चैनलों की मान्यता है। निकेल प्लेटेड कॉपर-निकल एलॉय, गोल्डन प्लेटेड ब्रास, सिल्वर प्लेटेड मेटल, रूबी और रेड टिंटेड क्रिस्टल ग्लास से बनी ट्राफियां कम से कम एक लाख, एक मिलियन, दस मिलियन, पचास मिलियन सब्सक्राइबर और एक सौ वाले चैनलों को दी जाती हैं। मिलियन ग्राहक, क्रमशः। "विज्ञापनदाता-अनुकूल सामग्री" पर यूट्यूब की नीतियां मुद्रीकृत किए जा रहे वीडियो में शामिल की जाने वाली सामग्री को प्रतिबंधित करती हैं; इसमें अत्यधिक हिंसा, भाषा, यौन सामग्री, और "विवादास्पद या संवेदनशील विषय और घटनाएँ शामिल हैं, जिनमें युद्ध, राजनीतिक संघर्ष, प्राकृतिक आपदाएँ और त्रासदियाँ शामिल हैं, भले ही ग्राफिक इमेजरी न दिखाई गई हो", जब तक कि सामग्री "आमतौर पर समाचार योग्य या कॉमेडिक और निर्माता का इरादा सूचित करना या मनोरंजन करना है"। सितंबर 2016 में, उपयोगकर्ताओं को इन उल्लंघनों के बारे में सूचित करने के लिए एक उन्नत अधिसूचना प्रणाली शुरू करने के बाद, यूट्यूब की नीतियों की प्रमुख उपयोगकर्ताओं द्वारा आलोचना की गई, जिनमें फिलिप डीफ्रैंको और व्लॉगब्रदर शामिल थे। डेफ्रैंको ने तर्क दिया कि ऐसे वीडियो पर विज्ञापन राजस्व अर्जित करने में सक्षम नहीं होना "एक अलग नाम से सेंसरशिप" था। यूट्यूब के एक प्रवक्ता ने कहा कि जबकि नीति स्वयं नई नहीं थी, सेवा ने "हमारे रचनाकारों के लिए बेहतर संचार सुनिश्चित करने के लिए अधिसूचना और अपील प्रक्रिया में सुधार किया"। बोईंग बोईंग ने 2019 में बताया कि LGBT कीवर्ड्स के परिणामस्वरूप विमुद्रीकरण हुआ। संयुक्त राज्य अमेरिका में नवंबर 2020 और दुनिया भर में जून 2021 तक, YouTube प्लेटफ़ॉर्म पर किसी भी वीडियो का मुद्रीकरण करने का अधिकार सुरक्षित रखता है, भले ही उनका अपलोडर YouTube सहयोगी कार्यक्रम का सदस्य न हो। यह उन चैनलों पर होगा जिनकी सामग्री "विज्ञापनदाता के अनुकूल" मानी जाती है, और अपलोडर को कोई हिस्सा दिए बिना सारा राजस्व सीधे Google को जाएगा। आलोचना कॉपी अधिकार/प्रतिलिप्यधिकार (copyright) के कानून की ऑनलाइन सामग्री का पालन नहीं करने के कारण यू ट्यूब की कई बार आलोचना हो चुकी है एक विडियो के अपलोड करने के समय यूट्यूब के प्रयोगकर्ता को निम्न सन्देश के साथ एक स्क्रीन दिखाया जाता है किसी टी वि शो, संगीत, विडियो, संगीत कंसर्ट या आपके लिए खुद बनाये सामग्री कीअनुमति के बिना व्यापर को अपलोड नही करें कॉपी अधिकार टिप्स पेज और समुदाय निर्देश आपको किसी दुसरे के कॉपी अधिकार के उल्लंघन नही करने में मदद करता है इस सुझाव के बाद अभी भी टेलिविज़न शो, फ़िल्म, म्यूजिक विडियो के बहुत से अनधिकृत क्लिप्स हैं जो यूट्यूब पर है यूट्यूब पोस्टिंग के पहले ऐसे वीडियो को नहीं देखता और डिजीटल मिल्लेनियम कॉपी रिघ्त एक्ट (Digital Millennium Copyright Act) पर धारक को नोटिस जारी करने का जिम्मा होता है विअकोम (Viacom) और इंग्लिश प्रेमिएर लीग (Premier League) समेत संगठनों ने यू ट्यूब के विरुद्ध कॉपी अधिकार रोकने में कम प्रयास करने के आरोप में मुकदमा (lawsuit) किया है $ 1 अरब हर्जाने (damages) की माँग करते हुए विअकोम ने कहा की इसने यू ट्यूब पर 1,50,000 से अधिक अनाध्रिकृत क्लिप्स पाया है " जो 1.5 अरब बार देखा गया है यूट्यूब ने जबाब दिया की सामग्री के मालिक को उसके काम की रक्षा में मदद के लिए उसके कानूनी मजबूरी से अलग है वियाकम के मुकदमा शुरु करने के बाद यूट्यूब ने डिजिटल फिंगरप्रिण्ट के निशानों की एक प्रणाली शुरु की जो अपलोडेड वीडियॊ के कापीराइट उल्लघन के मामलों कॊ रॊकता है जुलाई 2008 में, वियाकम ने अदालत का एक फैसला जीता जिसके तहत यूट्यूब कॊ साइट पर वीडियों देखाने वाले उपयोगकर्ताओं की वीडियो देखने की आदतों का विवरण देना था इस आदेश ने यूट्यूब के लिए परेशानी खड़ी कर दी क्योंकि किसी उपयोगकर्ता की देखने सम्बन्धी आदतों की पहचान उसके आइपी पते (IP address) और लागिन नाम के संयोग से हॊ सकती है इलेक्ट्रॉनिक फ्रंटियर फाउंडेशन (Electronic Frontier Foundation) ने अदालत के फैसले की यह कह कर आलोचना की इससे निजता के अधिकार का उल्लंघन हॊता है। जनपद न्यायालय के न्यायाधीश लुई स्टैंटन (Louis Stanton) ने निजता के अधिकार पर चिन्ता कॊ सट्टा बताते हुए खारिज कर दिया और यूट्यूब को दस्तावेजों जॊ 12 टेराबाइट्स (terabyte) के आँकड़ों के आसपास है। सौंपने का आदेश दिया न्यायाधीश स्टैटन ने वियाकम का यह अनुरॊध ठुकरा दिया कि यूट्यूब (source code) अपने खॊज इजन (search engine) का स्रोत कोड दे अदालत ने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि यूट्यूब ने वीडियो कापीराइट का उल्लंघन किया है यूट्यूब को अपने कुछ वीडियो में आपराधिक सामग्री के कारण आलोचना का सामना करना पड़ा हालाँकि यूटयूब की सेवा शर्तें (terms of service) अनुचित या मानहानि (defamatory) की सम्भावना वाले कार्यक्रम अपलोड करने पर रोक लगाता है लेकिन सभी वीडियॊशो आनलाइन होने से पहले देख न पाने के कारण समय समय पर कमियाँ सामने आना स्वाभाविक है वीडियो के लिए विवादास्पद क्षेत्रों में हॊलॊकास्ट इनकार (Holocaust denial) और हिल्सबर्ग आपदा (Hillsborough Disaster) शामिल हैं जिसमें 1989 में लिवरपूल (Liverpool) के 96 फुटबाल प्रशंसकों की कुचल कर मृत्यु हो गई थी। बन्द कर देना यूट्यूब शुरु होने के बाद इस पर कइ देशों जिनमें ट्यूनीशिया थाइलैंड ईरान शामिल है ने रोक लगा दी जिसे बाद में हटा लिया गया 1 अक्टूबर, 2007 में तुर्की में वीडियो के कुछ पेजों पर रोक लगा दी गइ दो दिन बाद यह रॊक हटा ली गयी हाल में २२ जनवरी २००८ में तुर्की में यूट्यूब पर एक बार फिर रोक लगाइ गइ तीन दिन बाद ही यह रोक हटा ली गयी तुर्की में 5 मई 2008 से यूट्यूब पर रोक लगी हुयी। संयुक्त अरब अमीरात में भी कुछ पेजों पर रोक लगी हुयी है On February 23, 2008, Pakistan blocked YouTube due to "offensive material" towards the Islamic faith, including the display of pictures of the prophet Muhammad. पाकिस्तान अधिकारियों का यह काम से कम से कम दो घण्टो के लिए यूट्यूब साइट को दुनिया भर में ब्लॉक कर दिया हजारो पाकिस्तानी होट-स्पॉट शील्ड कहे जाने वाले एक वीपीएन (VPN) सॉफ़्टवेयर प्रयोग कर 3 दिनों का ब्लॉक किया। यू ट्यूब का प्रतिबन्ध 26 फरवरी 2008 को आक्रामक पदार्थो को साइट से हटाने के बाद खत्म हुआ यूट्यूब के बहुत से पदार्थ होने के कारण बहुत से देशों से प्रतिबन्ध का डर भी सहता है मिनालन्द चीन से यह 18 अक्टूबर से तल्वानी झणृडा के रोक के कारण बन्द था यूट्यूब को उ आर एल चीन का अपना सर्च इंजन बिदु (Baidu) को दुबारा निदेशित किया गया यह 31 अक्टूबर को खोला गया कुछ देशों में स्कूल ने छात्रो के दुर्व्यवहार, झगडे जातिगत व्यवहार और बढे बैंडविड्थ प्रयोग और अन्य अनुचित सामग्री के कारण के कारण वीडियो अपलोड को बन्द कर दिया स्पैमिंग ई मेल स्पैम फिल्टरिंग तकनीक के हालिया विकास और उनके व्यापक प्रयोग से स्पम्मेर्स यू ट्यूब को लोकप्रिय विडियो साइट्स के विज्ञापन के रूप में करने लगे हैं इसे रोकने के लिए यू ट्यूब ने उ आर एल के टिपण्णी के साथ उसे रोक २००६ से रोक दिया है, यदि एक प्रयोगकर्ता एक उ आर एल के साथ एक टिपण्णी पोस्ट करना चाहता है तो यह त्याग दिया जाएगा और नहीं दिखाया जाएगा अगस्त २००७ के रूप में यह फेअतुरे प्रोफाइल टिप्पणी तक बढ़ा प्रतीत होता है साथ ही प्रयोगकर्ता को एक संदेश "आपका टिपण्णी प्रक्रिया त्रुटी " प्राप्त करेगा हलाँकि पोस्टिंग लिंक्स अभी भी बुलेटिन निजी संदेश या समूह चर्चा में सम्भव हैं साथ ही, यदि कोई प्रयोगकर्ता एक छूते समय में बहुत सी टिपण्णी पोस्ट करता है तो उससे इक कैप्चा (CAPTCHA) को पूरा करने को कहा जा सकता है, जो एक बाढ़ नियंत्रण में कमी के आरोप का दोषी हो कैप्चा (CAPTCHA) की कमी साईट के कुछ इलाकों में अभी भी मौजूद है स्पम्मेर्स के अन्य उदाहरणों में विडियो की धमकी से अलग शामिल है (इस संदेश को<नम्बर > दोस्तों को पोस्ट करो या आपकी माँ मारेगी <नम्बर> घंटे समेत) वे संदेश को प्रयोगकर्ता के इन्बोक्स में भेज सकते है ये कुछ स्पैम अकाउंट यू ट्यूब पर कुछ अश्लील विडियो भी पोस्ट किए हैं यू ट्यूब की एक नई विशेषता ""अपने दोस्तों को आमंत्रित करो " को ऐ मेल से भेजे का है वास्तव में यह विशेषता यू ट्यूब के प्रयोग से एक बड़ा समुदाय बनने का है जब स्पम्मेर्सने इसे जाना तब वे इसे प्रयोग किए और सब सम्भव ऐ मेल पता को भेज सके और हाँ, वे अब वे व्यवस्था कॊ धॊखा देने में भी सक्षम हॊ गए हैं इन दिनॊं स्पैमर्स ने इस मार्ग का अधिक उपयॊग किया क्योंकि वे इसका उपयॊग स्पैम फिल्टर को हराने के साथ पाठक और शायद views पाने में कर सकते हैं " वे सभी स्पैमर्स के रूप में ही काम करते हैं। . तकनीकी नोट वीडियो प्रारूप यूट्यूब की विडियो प्लेबैक तकनीक मैक्रोमीडिया (Macromedia) के फ्लैश प्लेयर (Flash Player) पर आधारित है यह तकनीक साईट को अधिक गुणवत्ता के साथ स्थपित विडियो प्लेबैक तकनीको को (जैसे विण्डो मीडिया प्लेयर (Windows Media Player),क्विक टाइम (QuickTime) और रियल प्लेयर (RealPlayer) की तुलना में विडियो प्रर्दशित करने की अनुमति देता है जिसकी प्रयोगकर्ता को विडियो देखने के क्रम में एक एक वेब ब्राउजर (web browser) प्लगइन को इंस्टाल और डाउनलोड करने (plugin) की जरूरत होती है फ्लैश को एक प्लगइन की जरूरत होती है पर एडोबे ९० % ऑनलाइन कंप्यूटर पर मौजूद होंगे प्रयोगकर्ता डाउनलोड मोडे या फुल स्क्रीन मोडे में विडियो को देख सकते हैं और प्लेबैक के दौरान अडोब फ्लैश प्लेयर (Adobe Flash Player) के फुल स्क्रीन विडियो के कारण इसे बिना री लोडइंग के स्विच मोड पर संभव है 9विडियो तृतीय पक्ष मीडिया प्लेयर जैसे जीओएम् प्लेयर (GOM Player),किचकिचाना (gnash)विएलसी (VLC) के साथ भी प्ले बेक हो सकता है साथ ही साथऍफ़ऍफ़ एम् पिई (ffmpeg) जी-आधारित विडियो प्लेयर के साथ भी प्ले बैक हो सकता है। यू ट्यूब पर अपलोड किए गए विडियो लम्बाई में दस मिनट और १०२४ मब (1गिगाब्य्ते (Gigabyte)) के एक संचिका साइज़ तक सिमित है। मानक इंटरफेस के द्वारा एक विडियो एक समाया में अपलोड किया जा सकता है और बहु विडियो एक विण्डो (Windows) आधारित प्लगइन (plugin) अपलोड किया जा सकता है। यू ट्यूब विडियो को फ्लैश video (Flash Video) प्रारूप में उप्लोअदिंग में बदलता है यू ट्यूब सामग्री को अन्य प्रारूप में भी बदल सकता है ताकि यह वेब साईट के बाहर भी देखा जा सके (देखें नीचे (below)) YouTube अपलोड विडियो स्वीकार करता है .,WMV (.WMV), .AVI (.AVI), .MOV (.MOV), MPEG (MPEG) और .MP4 (.MP4) स्वरुप हैं यह ३ जीपी (3GP) को समर्थन देता है, विडियो को सीधे मोबाइल फ़ोन से अपलोड करने कि अनुमति देता है स्तरीय और उच्च गुणवत्ता का विडियो A standard-quality YouTube video has a picture 320 pixels wide by 240 pixels high and uses the Sorenson Spark (Sorenson Spark) H.263 (H.263) video codec (codec). विडियो सिग्नल का बिट दर (bit rate) करीब ३१४ के बिट/ एक निर्भर अपलोड विडियो फ्रेम दर के साथ [1] फ्रेम दर के साथ (frame rate)hai मार्च २००८ में यू ट्यूब ने एक फेअतुरे प्रारम्भ किया जिसने, उच् मानक'प्रारूप को देखने की अनुमति दी यह प्रारूप इस तारीख के बाद उप्लोअदेद किसी विडियो के लिए बेहतर विडियो परिभाषा (४०० ३६० पिक्सॅल ३२० २४० पिक्सॅल की जगह) की सम्भावना की अनुमति देता है। यू ट्यूब निर्णय करता है कि कौन सा विडियो वास्तविक अपलोड के इस विकसित मानक का सक्षम है। प्रयोगकर्ताबेहतर गुणवत्ता को अपने अकाउंट पजों में ख़ुद स्विच के लिए विडियो गुणवत्ता सेटिंग पेजों पर "जब उपलब्ध हो तो मुझे हमेशा उच्चा गुणवत्ता दिखाओ"को चुन सकते हैं यू ट्यूब के उच्च गुणवत्ता विडियो दो संस्करणों में उपलब्ध हैं, दोनों के पास ४८० ३६० पिक्सॅल के आकर का एक पिक्चर साइज़ उपलब्ध है एक विडियो के वेब पता पर &ऍफ़एम् टी =६को जोड़ कर, यह एच.२६३ (H.263) कोडएक को मोनो (mono) सोउन्दके प्रयोग के साथ प्ले किया जाता है और &ऍफ़ एम् टी को जोड़ कर, यह एच.२६४/एम् पि ई जी -४ ऐ वि सी (H.264/MPEG-4 AVC) स्तेरेओ अ असीसोउन्दके (stereo) साथ प्रयोग कर (AAC) प्ले किया जाता है जब पूछा गया कि यू ट्यूब ने एच डी (HD) प्रारूप को क्यों नही चुना तब साईट ने उत्तर दिया कि " हमारा सामान्य दर्शन यह सुनिश्चित करना है कि अधिक से अधिक लोग यू ट्यूब को पा सके और वह विडियो तुरत स्टार्ट हो सके और आसानी से प्ले हो सके इसी एक कारण से आप हमें इस"सुपर डुपर यू ट्यूब एच डी"को बुलाते नही देखते हैं, क्योंकि अधिकांश लोग विडियो के प्ले के लिए अधिक देर तक इंतजार नही कर सकते हैं ध्वनि प्रारूप गुणवत्ता मानक के यू ट्यूब विडियो में एक एमपी 3 (MP3)ऑडियो वीडियो स्ट्रीम शामिल करती है गलती से (mono) यह २२०५० एचजेड़ पर नमूने (bit rate) में ६४ के बिट/एस के दर (sampled) पर मोनो में कूटबद्ध है जो करीब १० के एच जेड़ का एक ऑडियो बैंडविड्थ (bandwidth) दे रहा है। गलत बिट दर खरा को डिलीवर करता है पर हाई फाई (hi-fi) ऑडियो मानक को नही.एक स्तरीय यू ट्यूब विडियो के पास एक स्टेरेओ (stereo)ऑडियो ट्रैक का होना सम्भव है यदि मूवी संचिका बदलने के पहले ऍफ़एलवि (FLV) प्रारूप में अपलोड होती है यह कार्यक्रम के साथ हो सकता है, जैसे लिनुक्स और विन्डोज़ (Windows) के लिए ऍफ़ऍफ़पिईजी (ffmpeg) और मसिन्तोश (Macintosh) के लिए फ़ऍफ़पिईजीएक्स (ffmpegX) या वाणिज्यिक रीवा एफेल्वी एनकोडर के लिए windows सामग्री पहुँच यूट्यूब पर यू ट्यूब सामान्य विडियो संचिका फॉर्मेट को स्वीकार करता है और उनको फ्लैश video (Flash Video) में उन्हें ऑनलाइन देखने को उपलब्ध करने के लिए बदलता haiजून २००७ से नया अपलोड विडियो भी एच .२६४ (H.264) के एन्कोडिंग का प्रयोग किया है H.264 (H.264) YouTube बाहर हर यू ट्यूब विडियो एक एच टी एम् एल मर्कुप के टुकड़े से जुदा है जो विडियो को जोड़ने में उपयोग हो सकता है या यह यू ट्यूब वेबसाइट मर्कुप में एक छूटा जूद विडियो को वेबपेज के लोड होने पर ख़ुद प्ले की अनुमति देता है। ये विकल्प खासकर सामजिक नेट्वर्किंग (social networking) के साईट के उपयोगकर्ताओं के साथ लोकप्रिय हैं गूगल (iGoogle) होमपेज के साथ उपलब्ध एक गद्गेत के द्वारा भी यू ट्यूब एक्सेस किया जा सकता hai यू ट्यूब विडियो इन्टरनेट कनेक्शन के साथ भी देखने के लिए डिजाईन किया गया है, और कोई भी विशेषता उन्हें ऑफलाइन डाउनलोड या देखने की अनुमति नहीं देता फिर भी, इस उद्द्देश्य के लिए बहुत से तीसरे पक्ष के वेबसाइट, अनुप्रयोग और ब्राउजर (जैसे firefox विस्तार) मौजूद हैं विकल्प के लिए, ऍफ़ एल वि संचिका को अस्थाई इंटरनेट संचिकाएँ (Temporary Internet Files) विण्डो में फोल्डर या जी एन यू (GNU) स्य्स्तेम में एस्थायी फोल्डर से अस्थायी दिरेक्टोरी में कॉपी किया जा सकता है ऍफ़ एल वि संचिका तब सीधे एडिटेड हो सकती हैं और देखि जा सकती हैं या वि एल सी मीडिया प्लेयर (VLC media player) जैसे विभिन्न अनुप्रयोगों का उपयोग कर दूसरे फॉर्मेट में बदली जा सकती हैं मोबाइल पर यू ट्यूब ने अपना मोबाइल साईट लॉन्च किया, यू ट्यूब मोबाइल १५ जून 2007 से यह एक्स एच टी एम् एल (xHTML) पर आधारित है और ३ पि जी (3GP) विडियो को एच २६३/ऐ एम् आर कोडेक और आर टी पि (RTSP) स्त्रेअमिंग के साथ प्रयोग करता है यह एम्.यू ट्यूब .कॉम या यू ट्यूब मोबाइल जावा प्रयोग के द्वारा एक वेब इंटरफेस पर उपलब्ध है। टीवी पर यू ट्यूब टी वि चैनल इन्फोर्मेशन टी व् 2 (Information TV 2) पर है और यह ७ जनवरी, 2008 को शुरू हुआ चैनल यू ट्यूब वेब साईट से विडियो साझा सामग्री को प्रसारित कर रहा है एप्पल टीवीपर, iPhone (iPhone) आइपॉड और स्पर्श (iPod touch) एप्पल आई एन सी (Apple Inc.) ने २० joon2007 को घुसना की की यू ट्यूब एक फ्री सॉफ्टवेर अपडेट के स्थापना के बाद एप्पल टी व् (Apple TV) पर एक्सेस योग्य होगा कार्य में कातेगोरी से ब्राउजिंग, विडियो सर्च और एप्पल टी व् पर सीधे उनके यू ट्यूब अकाउंट पर लोग ओं करने के लिए सदस्यों की योग्यता को शामिल करता है। हजारो सबसे अधिक ताजा और लोकप्रिय यू ट्यूब विडियो का एक्सेस उपलब्ध है और हर सप्ताह हजारू और विडियो को जुड़ने की योजना है पूरा कात्लोग २००७ में उपलब्ध कराने की लक्ष्य था एप्पल वि पि डेविड मूडी के अनुसार देर का कारण एप्पल के विडियो मानक में हाल के सब यू ट्यूब सामग्री को ट्रांस्कोदे करने की जरूरत थी एच 264 (H.264) एप्पल ने बुधवार २० जून 2007 को घुसना की यू ट्यूब आई फ़ोन पर लॉन्च से उपलब्ध होगा स्त्रेअमिंग वाई - फाई (Wi-Fi) या ई डीजी ई (EDGE) से अधिक है ई फ़ोन के लिए यू ट्यूब पर विडियो एप्पल के चयनित एच .२६४ (H.264) प्रारूप में एनकोडेड है सब विडियो फ़ोन के छितिज़ अभिविन्यास में देखा जाता है जैसा की यू ट्यूब विडियो के पास ४ :३ का और आई फ़ोन के ३:२ का अनुपात है, विडियो को किनारे से काले बार से अवश्य देखना चाहिए प्रारम्भ में सब विडियो आई फ़ोन पर उपलब्ध नहीं थे क्योंकि सारे विडियो एच .२६४ पर रेकॉर्डेड नहीं थे यू ट्यूब के हर विडियो के दू संस्करण है, एक वाई फाई प्रयोग के लिए उच् बैंडविड्थ और एक ई दी जी ई या ३ जी प्रयोग के लिए निम्न संकल्प एप्पल टी वि संस्करण से अलग प्रयोगकर्ता अपने यू ट्यूब अकाउंट में लोग इन नहीं कर सकता पर सिर्फ़ आई फ़ोन के लिए एक अलग पसंदीदा सूची बना सकता hai एनोटेशन जून २००८ में, यू ट्यूब ने एक बेटा टेस्ट (beta test) लॉन्च किया जो नोट को डिसप्ले कर सकता है या एक विडियो में लिंक कर सकता है अन्नातोशन सूचना को जुड़ने के लिए अनुमति देता है, उदहारण के लिए बहुत सी संभावनाओ के साथ कहानिया (आगले दृश्य के चयन लिए दर्शक क्लिक करे) और अन्य यू ट्यूब विडियो के लिंक्स यू ट्यूब वेबसाइट में एम्बेडेड अन्नोटेशन विडियो में दिखी नाही देंगे स्थानीकरण 19 जून, 2007, ई. एरिस को स्च्मिद्त (Eric E. Schmidt)पेरिस में नए स्थानीकरण के लिए लॉन्च किया गया वेबसाइट का पूरा इंटरफेस स्थानीय संस्करण में विविन्न देशों में उपलब्ध है गूगल का लक्ष्य फ्रांस में [[DailyMotion|डेली मोशन (DailyMotion) जैसे विडियो साझे वेबसाइट के साथ प्रतिस्पर्धा करना है इसने स्थानीय टेलिविज़न स्टेशन जैसे एम् 6 (M6) और फ्रांस टेलिविज़न (France Télévisions) के साथ विडियो सामग्री के कानूनी प्रसारण का समझौता किया 17 अक्टूबर (October 17), 2007 को यह घोषणा की गई की एक होन्ग कोंग संस्करण को लॉन्च किया गया था। यू ट्यूब के स्टीव चेन ने कहा इसका अगला लक्ष्य talwan होगा २२ अक्टूबर (October 22)२००७ को न्यू जीलैंड की यह कहते लॉन्च पार्टी थी, की इसका लक्ष्य न्यू जीलैंड में यू ट्यूब सेलिब्रेटी को सहायता करना है यह जल्द स्पष्ट था की ऐसे न्यू जीलैंड के विकास के साथ तीन अच्छे दोस्त को दिखता है जो एक साथ रहते हैं यू ट्यूब को तुर्की के स्थानीय संस्करण में बनने की योजना परेशानी में है, हलाँकि तुर्की के अधिकारीयों ने यू ट्यूब को तुर्की में एक ऑफिस बनाने को कहा है जो तुर्की के कानून के अधीन होगा यू ट्यूब कहता है कि इसे करने का उसका इरादा नहीं हैं और उसके विडियो तुर्की कानूनों के अधीन नहीं हैं तुर्की के अधिकारीयों ने चिंता व्यक्त किया है कि यू ट्यूब ने पोस्ट विडियो का प्रयोग मुस्तफा कमाल अतातुर्क (Mustafa Kemal Atatürk) का अपमान करने और मुस्लिमो (Muslim) के अन्य सामानों पर प्रहार के लिए किया है चैनल प्रकार यू ट्यूब.कॉम के सदस्य को "चैनल टाइप" कहे जाने वाले समूह के हिस्सा बन्ने का प्रस्ताव है जो उनके चैनल को अधिक विशिष्ट बनता है एक बार जब आप निदेशक अकाउंट सेटिंग पर दस्तखत किया तब आप को असीमित विडियो लम्बाई का ऑफर दिया गया पर यह लंबा ऑफर नहीं है, हलाँकि उस समय जिन प्रयोगकर्ताओं ने "निदेशक" समूह को जों किया उन्हें अभी भी असीमित विडियो लेंथ सेटिंग हैं उस समय उनके पास सिमित १०० एम् बी विडियो साइज़ में था पर अब ये अकाउंट १०२४ एम् बी (१ जी बी) पर सिमित है इस प्रकार हैं : यू टूबर, यू ट्यूब का एक सामान्य दर्शक nideshak, मूवी मेकर अपने विडियो को यू ट्यूब दर्शको को दिखाते हैं संगीतकार, संगीतकार या बंद कोवेरिंग सोंग या असली दिखाते या सोंग पर पथ देते, स्केल, चोर्द आदि हास्य कलाकार (Comedian) यू ट्यूब दर्शको को अपना हास्य दिखाते हास्य कलाकार गुरु कुछ ख़ास क्षेत्रों में अनुभवी लोग जो जो करते हैं उसकी विडियो बनते हैं गैर लाभ (Non-profit), एक स्थिति के द्वारा प्राप्त किया 501 (c) (3) का गैर लाभ संगठनों को स्वीकार किए जाते हैं यूट्यूब के गैर लाभ कार्यक्रम है। रिपोर्टर (Reporter) जो स्थानीय समाचार और अंतरराष्ट्रीय या वर्तमान घटनाओं के .विडियो बनने के नागरिक या पेशेवर वीडियो रैंकिंग यू ट्यूब विडियो को सम्मान देता है, इसमे अधिक लोकप्रिय "अधि देखा गया" है जो ४ श्रेणियों में बंटा हैं, आज, इस सप्ताह, इस माह और हर समय.आदर में शामिल हैं सर्वाधिक देखा गया सर्वोच्च श्रेणी सर्वाधिक विचार किया हुआ शीर्ष पसंद बढ़ती वीडियो हाल ही में प्रदर्शित सर्वाधिक उत्तरित वीडियो रैंकिंग पर विवाद कुछ यू ट्यूब के देखे गए विडियो विवाद के विषय रहे हैं हालाकि दावा रहा है कि मात्र को खत्म करने के लिए ख़ुद काम किया गया जो यू ट्यूब के सेवा के नियम (terms of service) माफ़ कर दिया गया मार्च २००८ में ब्राजील के बंद द्वारा केंसी दे सेर सेक्सी म्यूजिक इस माय होत होत सेक्स (Music Is My Hot Hot Sex) के उनोफ्फिसिअल गाने को 1१४ मिलियन (Cansei De Ser Sexy) दर्शको से देखा गया स्वचालित या haiking (hacking) दिखने के आरोप के बाद इसे अस्थायी तरीके से हटा दिया गया, उप्लोअदर के हटाने से पहले यू ट्यूब के एक प्रवक्ता ने कहा की " हम यू ट्यूब पर आकडो की रक्षा के उपाय कर रहे हैं हालाकि यह कैसे होता है यह जानना थोड़ा कठिन है पर यह प्रबल नही है जैसे ही यह हमारा\ऐ ध्यान में अता है की शीर्ष पेज पर आने के लिए इसने किसे ग़लत किया तब हम विडियो या चैनल को हटा देंगेइटली के क्लारुस बर्टेल, जिसने विडियो अपलोड किया उसने इसके रंकिंग को तेज़ करने के प्रयास से इंकार किया, कहा "यह सब मुझसे सम्बंधित नही है "मुझे इससे कोई मतलब नही है गियर के आरोपों से मुझे मेरी ओर से बहुत दुखी हैं . " यू ट्यूब विडियो के अवरिल लाविंगने (Avril Lavigne) गाना girlfriend (Girlfriend) भी अधिक दृश्यों के आरोप में ख़ुद रिफ्रेश मचनिस्म के लिंक है जो एक फंसिते (fansite) अवरिल बंद ऐड्स द्वारा अवरिल लाविगने को समर्पित है लिंक पर क्लिक करने पर हर १५ सेकंड पर गर्लफ्रेंड के विडियो ख़ुद रेलोअद हो जायेंगे अवरिल लाविगने के फेन " इन्टरनेट के ब्रोव्स करने, परीक्षा के लिए पढ़ाई या सोने के लिए भी के समय इस पेज को खोलने" में उत्साहित हैं देखने की अधिक ताकत के लिए इस पेज के दो या अधिक विन्डोज़ ब्राउजर को खोलो " गर्लफ्रेंड के विडियो ने जुद्सों लैप्प्ली (Judson Laipply) द्वारा एवोलुशन ऑफ़ डांस को जुलाई २००८ में यू ट्यूब पर सदाबहार सबसे अधिक देखे विडियो माना अगस्त २००८ में दोनों वीडियों को करीब ९५ मिलियन दर्शको ने देखा अनिमेफ्रेंचिसे evangelion (Evangelion) का यू ट्यूब का विडियो फेअतुरे के ९७ मिलियन दर्शक रहे हैं पर ख़ुद दिखने के कारण यू ट्यूब की सूची से बाहर है यूट्यूब वीडियो पुरस्कार २००६ में यू ट्यूब ने सालाना यू ट्यूब विडियो अवार्ड प्रस्तुत किया श्रेणी में " सबसे अधिक पसंद किया विडियो " शामिल थी यू ट्यूब ने दावेदारों को नामांकित करता है और प्रयोगकर्ता विजेता का निर्णय करते हैं केवल वास्तविक, प्रयोगकर्ता निर्मित विडियो नामांकित होते हैं २००६ के अवार्ड के नामांकित थे पीटर ओकली (गेरित्रिक १९७२) (Peter Oakley (geriatric1927)), लोनली गर्ल १५ (LonelyGirl15), थे विनेकोने (thewinekone), रेनेत्तो (Renetto), नेज्जोमिक (Nezzomic) और चढ़ वादर (Chad Vader) हाल की घटनाएँ राजनीतिक अभियान २००८ के यु एस राष्ट्रपत के चुनाव में राजनितिक उम्मीदवार यू ट्यूब का प्रचार में उपयोग कर रहे हैं i वोटर उम्मीदवार के बयां को देख सकते हैं और राषट्रपति के पद के उम्मीदवार (उद्धरण के लिए उम्मीदवार रों पाल (Ron Paul), हिलेरी क्लिंटन, बरैक ओबामा और जोए बिडेन (Joe Biden)) के पक्ष में (या विपक्ष में) विडियो बना सकते हैं। तीसरे दल के राष्ट्रपती पद के उम्मीदवार ने भी यू ट्यूब का व्यापक प्रयोग कीया है। Libertarian (Libertarian) Steve Kubby (Steve Kubby)'s campaign debuted a short animated film, featuring the faces and voices of campaign contributors who financed its production, on YouTube on September 29th, 2007. यू एस की मीडिया ने प्रायःटिपण्णी किया है कि यू ट्यूब ने रिपब्लिकन सिनेटर जोर्ज एलेन (George Allen) के २००६ की हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है क्योकि कथित जातिगत टिपण्णी के विडियो क्लिप को यू ट्यूब के दर्शको द्वारा अभियान के दौरान दिखाया गयाजेम्स कोटेकी (James Kotecki) जैसे राजनितिक टीकाकार भी यू ट्यूब के राजनीती की दुनिया में शामिल हैं बहुत से टीकाकार यू ट्यूब पर एक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के विडियो बनते हैं या यू ट्यूब क प्रयोग अपने विचारो को सुनाने के लिए करते हैं हाल ही में फ्रांस और इटली के राजनेता जैसे एंटोनियो डी पिएत्रो (Antonio Di Pietro) भी साईट को अपने अभियान के हिस्से के रूप में करते आ रहे हैं पूर्व ऑस्ट्रलियन प्रधानमंत्री जॉन हॉवर्ड द्वारा २००७ के संघीय चुनाव में लीड के लिए यू ट्यूब का भी प्रयोग किया गया है। सीएनएन के यौतुबे के राष्ट्रपति के बहस २००८ के राष्ट्रपतीय चुनाव में रन उप में, की एन एन ने एक बहस प्रसारित किया जिसमे उम्मीदवारों ने यू ट्यूब के प्रयोगकर्ताओं के सुपुर्द किए पूल से सवालों को पेश किया क्षेत्र के एक बड़े रेंज से सारे सवालों के तकनीक के प्रयोग के कारण फॉरम को पहले से "सर्वाधिक लोकतान्त्रिक राष्ट्रपतीय बहस माना गया है। अप्रैल मूर्खों का मूर्खों के लिए अप्रैल 2008 (April Fools' Day) prank (prank) दिवस है, मुख पृष्ठ पर हर "विडियो" रिक एस्ले (Rick Astley) की दुबारा निदेशित " नेवर गोंना गिव यू उप (Never Gonna Give You Up)" सबको जिसने साईट पर विडियो (rickrolling) देखने का प्रयास किया यू ट्यूब पार्टनर प्रोग्राम 2022 यू ट्यूब सहयोगी कार्यक्रम (YPP) रचनाकारों को अतिरिक्त यू ट्यूब टूल और सुविधाएँ प्रदान करता है जैसे कि निर्माता सहायता टीम तक सीधी पहुँच। यह वीडियो पर पेश किए जा रहे विज्ञापनों से सामग्री पर आय साझा करने की भी अनुमति देता है। यू ट्यूब की मुद्रीकरण नीतियां उन नीतियों की एक सूची है जो यू ट्यूब चैनलों को मुद्रीकृत करने की अनुमति देती हैं। यदि आप एक यू ट्यूब भागीदार हैं, तो आपके अनुबंध, YouTube भागीदार कार्यक्रम नीतियों के अनुसार, अंततः यू ट्यूब पर पैसा बनाने के लिए इन मुद्रीकरण नियमों का पालन करना आवश्यक है। सन्दर्भ बाहरी लिंक यूट्यूब अंतरजाल ऑनलाइन सामाजिक नेटवर्किंग अमेरिकी कम्पनियाँ
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858902
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%B9%20%E0%A4%A8%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BC
सुन्नह नमाज़
सुन्नह् नमाज़ () एक ऐच्छिक नमाज़ है जिसे मुस्लमान दिन के किसी भी वक़्त कभी भी अदा कर सकते हैं। इन नमज़ो को पाँच दैनिक नमाज़ो के साथ में अदा करते हैं, जो सब मुसलमानो पर फर्ज़ है। यहां पर विभिन्न प्रकार की नमाज़े हैं : (1) कुछ को अनिवार्य नमाज़ के रूप में एक ही समय में अदा किया जाता है, (2) कुछ नमज़ो को किसी भी निश्चित समय पर अदा किया जाता है, जैसे रात में देर से , (3) कुछ को ख़ास हालातों जैसे कि सूखे के दोरान वगै़रह। सब ऐच्छिक नमाज़े मूलतः मुहम्मद (स०अ०व०) द्वारा अदा की जाती थी। References See also नफ़्ल नमाज़ इरफानी इस्लाम नमाज़
111
765583
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B5%E0%A5%81%E0%A4%B2%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%AE
अवुल कासिम
अवुल कासिम: (Abul Kasim); दक्षिण इथियोपिया में एक पर्वत है ओरमिया क्षेत्र के आर्सी जोन में स्थित इस पर्वत की समुद्र तल से 2,573 मीटर (8,442 फीट) की ऊंचाई है यह सर्उ वॉरडा में सर्वोच्च बिंदु है इहा। लेकिन इस पर्वत को अब्बा मुदा के घर के रूप जाना जाता है जो ओरोमो की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं के लिए बहुत महत्त्व है, लेकिन यह मुस्लिम संत शेख हुसैन के वंशज की कब्र है जो महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। सन्दर्भ पर्वतमालाएँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8D%20%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE
पल्लिपुरम् किला
पल्लिपुरम दुर्ग केरल के एर्नाकुलम जिले में है। यह दुर्ग वैपिन द्वीप के सबसे उत्तरी छोर पर स्थित है। आकार की दृष्टि से यह षटभुजाकार है। यह 'अयिक्कोट्ट' या 'अलिकोट्ट' के नाम से प्रसिद्ध है। इसका निर्माण पुर्तगालियों ने १५०३ में किय था। यह भारत में यूरोपीय लोगों द्वारा निर्मित सबसे पुराना दुर्ग है। १६६१ में डचों का इस दुर्ग पर अधिकार हो गया और १७८९ में उन्होने इसे त्रावणकोर सरकार को बेच दिया। बाहरी कड़ियाँ वैपिन द्वीप में पल्लिपुरम का किला केरल में दुर्ग पुर्तगाली दुर्ग केरल में स्थापत्य
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%A8%20%E0%A4%9F%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%B0
ग्लेन टर्नर
ग्लेन मैटलैंड टर्नर (जन्म 26 मई 1947, ) क्रिकेट खिलाड़ी है जो राष्ट्रीय न्यूजीलैंड क्रिकेट टीम के लिये 1969 से 1983 तक खेलते थे। वह न्यूजीलैंड के सर्वश्रेष्ठ और सबसे अधिक उर्वर बल्लेबाज थे। डुनेडिन में जन्मे ग्लेन ने 41 टेस्ट और 41 ही एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैचों में न्यूजीलैंड का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने वॉस्टरशायर काउंटी क्रिकेट क्लब की तरफ से भी पर्याप्त क्रिकेट खेला। टेस्ट में उन्होंने 44.64 की औसत से 2,991 रन सात शतक लगाकर बनाए। वनडे में 1,598 रन 47.00 की औसत 3 शतक लगाकर बनाए। उनकी कुछ उपलब्धियों में 1975 क्रिकेट विश्व कप में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज, सबसे बड़ी एक दिवसीय पारी (201 गेंद) और प्रथम श्रेणी में 100 शतक शामिल है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें रिचर्ड हैडली 1947 में जन्मे लोग न्यूज़ीलैंड के क्रिकेट खिलाड़ी जीवित लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%9C%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%AB%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%20%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE
मुजफ्फरपुर जिला
मुजफ्फरपुर जिला, बिहार के ३८ जिलों में से एक है। इसका प्रशासकीय मुख्यालय मुजफ्फरपुर है। यह जिला उत्तर में पूर्वी चंपारण और सीतामढ़ी, दक्षिण में वैशाली और सारण, पूर्व में समस्तीपुर और दरभंगा तथा पश्चिम में गोपालगंज से घिरा है। हिंदी और मैथिली यहाँ की प्रमुख भाषाएँ हैं, जबकि बज्जिका/पश्चिमी मैथिली यहाँ की स्थानीय बोली सन्दर्भ इन्हें भी देखें मुजफ्फरपुर प्रसिद्ध व्यक्ति साहित्यकार : बाबू देवकी नंदन खत्री, दिनकर, रामबृक्ष बेनीपुरी, जानकी वल्लभ शास्त्री, अनामिका लेखक : राय प्रभाकर प्रसाद (जन्म गाँव भरथआ, बाद में पटना में बसे) स्वतंत्रता सेनानी: खुदीराम बोस , जुब्बा साहनी योगेन्द्र शुक्ल,शुक्ल बंधु ,रामसंजीवन ठाकुर, पण्डित सहदेव झा राजनेता: चंदेश्वर प्रसाद नारायण सिंह (नेपाल तथा जापान के राजदूत), पंजाब (भारत) तथा उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे। रामेश्वर प्रसाद सिन्हा - प्रसिद्ध राजनीति़ज्ञ तथा संविधान सभा के सदस्य, महेश प्रसाद सिन्हा, राम दयालु सिंह, जार्ज फर्नान्डिस तथा जयनारायण निषाद- सांसद हिन्दुत्व रक्षक साकेत शुभम् (श्री राम संजीवन ठाकुर राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, मजदूर नेता के पौत्र और अंतर्राष्ट्रीय हिन्दू परिषद् मोदफलपुर मुजफ्फरपुर के प्रथम अध्यक्ष, कलाकार : स्वाति शर्मा :- पार्श्व गायिका बन्नो तेरा स्वैगर तनु वेड्स मनु, ऐश्वर्य निगम :- पार्श्व गायक मुन्नी बदनाम हुई फिल्म दबंग । ■मुजफ्फरपुर शक्शियतो की राजधानी खुदीराम बोस जुब्बा सहनी योगेन्द्र शुक्ल जानकी वल्लभ शास्त्री राम संजीवन ठाकुर जय नारायण प्रसाद निषाद रधुनाथ पाण्डेय जगदीश ठाकुर ॐॐॐ हिन्दू चेहरे हिन्दुत्व रक्षक साकेत शुभम् (श्री राम संजीवन ठाकुर राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, मजदूर नेता के पौत्र और अंतर्राष्ट्रीय हिन्दू परिषद् मोदफलपुर मुजफ्फरपुर के प्रथम अध्यक्ष बिहार के जिले मुज़फ्फरपुर जिला
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%9F%E0%A5%89%E0%A4%A8
प्रोटॉन
प्राणु (प्रोटॉन) एक धनात्मक विद्युत आवेशयुक्त मूलभूत कण है, जो परमाणु के नाभिक में न्यूट्रॉन के साथ पाया जाता हैं। इसे p प्रतीक चिन्ह द्वारा दर्शाया जाता है। इस पर 1.602E−19 कूलाम्ब का धनावेश होता है। इसका द्रव्यमान 1.6726E−27 किग्रा होता है जो इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान से लगभग 1845 गुना अधिक है। प्राणु तीन प्राथमिक कणो दो अप-क्वार्क और एक डाउन-क्वार्क से मिलकर बना होता है। स्वतंत्र रूप से यह उदजन आयन H+ के रूप में पाया जाता है। प्रोटोन की खोज रेडरफोर्ड ने की विवरण प्राणुफर्मिऑन होते है, जिनकी प्रचक्रण १/२ होती है और यह तीन क्वार्क से मिलकर बने होते है अर्थात यह बेर्यॉन (हेड्रॉन का एक प्रकार) के रूप में होते है। इनके दो अप-क्वार्क एवं एक डाउन-क्वार्क आपस में सशक्त बल (strong force) से जुडे होते है जोग्लुऑन द्वारा लागू होते है। प्राणु और न्यूट्रॉन का जोडा न्युक्लिऑन कहलाता है जो किपरमाणु नाभिक में नाभकीय बल (nuclear force) से आपस में बंधे होते है। उदजन ही एक मात्र ऐसा तत्व है जिसके परमाणु नाभिक में प्राणु अकेला पाया जाता है अन्यथा अन्य सभी परमाणु के नाभिक में प्राणु न्यूट्रॉन के साथ पाया जाता है। उदजन परमाणु के नाभिक में केवल एक प्राणु होता हैन्यूट्रॉन नहीं होता है जबकि इसके दो भारी समस्थानिक ड्यूटेरियम में एक प्राणु व एक न्यूट्रॉन एवं ट्रिटियम में एक प्राणु व दो न्यूट्रॉन होते है। स्थायित्व प्राणु, इलेक्ट्रॉन (ऋणात्मक बीटा-क्षय) का अवशोषण कर न्यूट्रॉन में बदल जाता है। p+ + e- → no + ve जहॉ p प्राणु, e इलेक्ट्रॉन, n न्यूट्रॉन और ve इलेक्ट्रॉन न्यूट्रीनो है। इसके विपरित न्यूट्रॉन इलेक्ट्रॉन (ऋणात्मक बीटा क्षय) का उत्सर्जन कर प्राणु में बदल जाता है। no → p+ + e- + ve- प्राणु की अर्ध-आयु बहुत लम्बी होती है (आज के ब्रह्माण्ड की आयु से भी अधिक) इतिहास प्रोटोन ग्रीक शब्द प्रोटोस protos से हुआ है जिसका अर्थ होता है। "प्रथम्"। १९२० में रदरफोर्ड ने इसका नामकरण किया। भौतिकी भौतिक शब्दावली
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AB%E0%A5%80
चिल्फी
चिल्फी (Chilphi) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के कबीरधाम ज़िले में स्थित एक गाँव है। राष्ट्रीय राजमार्ग 30 यहाँ से गुज़रता है। यह 807 मीटर (2648 फुट) की ऊँचाई पर स्थित एक पहाड़ी क्षेत्र है। यहाँ का मौसम रमणीय है और पास के प्राकृतिक दृश्य पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इस कारण इसे कभी-कभी "छत्तीसगढ़ का कश्मीर" कहा जाता है। इन्हें भी देखें कबीरधाम ज़िला सन्दर्भ कबीरधाम ज़िला छत्तीसगढ़ के गाँव कबीरधाम ज़िले के गाँव छत्तीसगढ़ में हिल स्टेशन
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सक्सेना
सक्सेना एक भारतीय उपनाम है, जो मुख्य रूप से उत्तरी और मध्य भारत में पाया जाता है। सक्सेना उपनाम मुख्य रूप से चित्रगुप्त वंशी कायस्थों में पाया जाने वाले उपनाम है । इनका ये उपनाम राजा शाक्य जो शक्ति उपाशक थे उन्होंने शकस्थान के राजाओं को उनके ही राज्य में जा के मारा , शको पर इस विजय को गर्व से कायस्थ कुल के राजाओं ने अपने नाम से सक्सेना( शक्यसेना / सकसेना/शक्सेना etc) उपनाम लिखा । क्युकी कायस्थ श्रेष्ठ कुल में पाए जाते है इसलिए वो शास्त्र और शस्त्र दोनो रखते है उनका पुराना पहचान शाक्य मुनि से था सक्सेना उपनाम शकसेना/ सकसेन वो सतवाहन राजवंश ने अपनाया था क्युकी सतवाहन राजवंश सक्सेना कायस्थ का राजवंश था और इन्होंने ही शको पर विजय पाने के बाद शक संवत की शुरुआत की थी । इसे धारण करने वाले उल्लेखनीय लोगों में शामिल हैं: अभिषेक सक्सेना, भारतीय बॉलीवुड और पंजाबी फ़िल्म निर्देशक अनुज सक्सेना (जन्म 1967), भारतीय निर्माता गिरीश चंद्र सक्सेना, जम्मू और कश्मीर के पूर्व राज्यपाल गोपालदास नीरज, भारतीय कवि और लेखक गुंजन सक्सेना, भारतीय वायुसेना अधिकारी जलज सहाय सक्सेना (जन्म 1986), भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी। जतिन सहाय सक्सेना (जन्म 1982), भारतीय प्रथम-श्रेणी क्रिकेट खिलाड़ी के पी सक्सेना (1932-2013), हिन्दी व्यंग्यकार और लेखक नीलम सक्सेना चंद्रा (जन्म 1969), भारतीय कवि और लेखक नितिन सक्सेना, भारतीय कंप्यूटर वैज्ञानिक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना (1927-2003), भारतीय हिन्दी कवि शरत सक्सेना, भारतीय अभिनेता शिब्बन लाल सक्सेना, भारतीय राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी विरेन्द्र सक्सेना, भारतीय अभिनेता संदर्भ भारतीय उपनाम
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बनाना रिपब्लिक
केला गणतंत्र, जिसे अंग्रज़ी में मूल रूप से बनाना रिपब्लिक (banana republic) कहा जाता है, राजनैतिक रूप से अस्थिर देश होता है जिसकी अर्थव्यवस्था किसी ऐसे विशेष कृषि, खनिज या अन्य उत्पादन के निर्यात पर निर्भर हो जिसकी विश्व में भारी माँग है। ऐसे देशों में अक्सर एक छोटा सम्भ्रांत वर्ग राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था पर नियंत्रण कर लेता है। वह फिर अपना कब्ज़ा बनाए रखने के लिए विदेश से हथियार खरीदता है और स्वयं को वफादार एक सेना खड़ी कर लेता है। देश की बाकी जनता को राजनीतिक अधिकारों से वंछित रखा जाता है। अक्सर यह सम्भ्रांत वर्ग विदेशी कम्पनियों से साठ-गाठ कर लेता है, जो देश के विशेष उत्पादन को कम कीमत देकर बाहरी विश्व में आपूर्ति करने पर नियंत्रण करना चाहते हैं, और सम्भ्रांत वर्ग को व्यक्तिगत पैसा देकर धनवान बना देते हैं। इस से देश से किसी मूल्यवान उत्पादन का भारी मात्रा में निर्यात होते हुए भी देश की जनता निर्धन ही रहती है। कई ऐसे देशों में यदि देश के सम्भ्रांत वर्ग से चुना गया शासक अपने देश की भलाई करने की चेष्टा में आर्थिक या राजनीतिक सुधार करने का प्रयास करता है तो यह विदेशी कम्पनियाँ अपना लाभ-स्रोत बचाने के लिए तख्ता-पलटकर शासक के शत्रुओं को सत्ता में लाने की कोशिश करती हैं। नामोत्पत्ति बीसवी शताब्दि के आरम्भिक भाग में कई अमेरिकी कम्पनियों ने मध्य अमेरिका में हौण्डुरस और उसके पड़ोसी देशों में केला उगाने के बड़े बागान चलाए, क्योंकि वहाँ की जलवायु और भूमि इसके अनुकूल थी और उस फल की संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य विकसित देशों में भारी माँग थी। यूनाइटिड फ्रूट कम्पनी ऐसी एक प्रमुख कम्पनी थी। इन कम्पनियों ने फिर इन देशों में भारी हस्तक्षेप करा और समय-समय पर उनमें सत्ता बदलवाई। ऐसे देशों में सामाजिक और आर्थिक पिछड़ापन और राजनीतिक उत्पीड़न सामान्य स्थिति बन गया। ऐसे देशों को सन् 1901 में अमेरिकी लेखक, ओ हेन्री, ने व्यंग्य कसते हुए इन्हें "बनाना रिपब्लिक" का ह्रासकारी नाम दिया, जिस से तात्पर्य था कि जिस देश पर फल बेचने वाले व्यापारियों ने कब्ज़ा करा हुआ हो उसका क्या अस्तित्व है। इन्हें भी देखें ह्रासकारी हौण्डुरस सन्दर्भ ह्रासकारी राजनैतिक भ्रष्टाचार राजनीतिक शब्दावली आर्थिक विकास शक्ति अवस्था के अनुसार देश जिन्स लोकप्रिय संस्कृति में केले
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मोनारख जी महाराज
मेघवँश के महान संत श्री मोनारख जी राजस्थान के जालोर के निवासी थे| आबुपर्वत पर मेवाड के महाराज कुम्भा का आधिपत्य था| कुम्भा कई संत महात्माओँ से परचा माँगना था| परचा नही देने पर उनको कारागृह में डाल देता था| इस प्रकार कुम्भा ने हजारोँ संत महात्माओँ को बंदी बना दिया था| जब मोनारख जी इस बात का पता चला तो वे जालोर छोड आबुपर्वत पर आ गए तथा ओरिया नामक स्थान पर रहने लगे | कुम्भा के भय से यहाँ पर कोई भी भगवान का भजन नही करते थे लेकिन मोनारख जी नियम था कि प्रतिदिन प्रात: पाँच भजन तंदूरे पर गाकर ही भोजन ग्रहण करत थे| अपने नियमानुसार भजन करने लगे| जब कुम्भा को इस बात की खबर लगी तो उसने अपने सैनिको को भेजा तथा कहा कि उसको दरबार मे हाजिर करो| सैनिकोँ ने मोनारख जी से बिनती की कि महाराणा ने आपको दरबार में पेश होने का हुकम दिया है| मोनारख जी कुम्भा के समक्ष पेश हुए | कुम्भा ने कहा कि मेरे राज्य मे भक्ति करने वालो को परचे अर्थात चमत्कार दिखाने पडते है अन्यथा उन्हे कारगृह मे डाल दाया जाता है| मोनारख जी ने तदुंरा हाथ मे लिया तथा रखियो के अनगिनत परचे बताए| महाराणा कुम्भा उनके समक्ष नतमस्तक होकर चरणोँ में गिर गया| सभी बंदी महात्माओँ को आजाद कर दिया| महाराणा कुम्भा ने इन्हे अपना सतगुरू बना लिया| मोनारख जी ने अचलगढ से करीब चार किलोमीटर दूर ओरिया गाँव में ही समाधि ले ली| वर्तमान मे इनके समाधिस्थल पर मंदिर बना हुआ हैँ| ये एक कवि भी थे| इनके द्वारा लिखित भजन भगतोँ द्वारा गाए जाते थे|| बोलो श्री मोनारख जी महाराज की जय||
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सादुलपुर विधानसभा क्षेत्र (राजस्थान)
सादुलपुर विधानसभा क्षेत्र राजस्थान में चूरू जिले में स्थित विधान सभा क्षेत्र है। यह क्षेत्र चूरू लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र के अन्तरगत आता है। यह क्षेत्र 1962 में अस्तित्व में आया विधायक यहाँ से चुने गये विधायक जय नारायण पूनियां राज्य सरकार में मंत्री रहे। तथा इंद्र सिंह पूनियां राज्य सरकार में संसदीय सचिव रहे हैं ! 2018 ।। डॉ कृष्णा पूनिया ।। कांग्रेस इन्हें भी देखें राजस्थान राज्य विधानसभा चुनाव, 2008 चूरू लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%A5%20%281990%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29
अग्निपथ (1990 फ़िल्म)
{{About||इस फ़िल्म की रीमेक के लिए|अग्निपथ अग्निपथ 1990 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। आज क्लासिक में गिनी जाने वाली ये फिल्म टिकट खिड़की पर असफ़ल रही थी। अमिताभ बच्चन के अभिनय की आलोचना हुई लेकिन मिथुन चक्रवर्ती के अभिनय को समीक्षकोँ और दर्शकोँ दोनोँ का प्यार मिला। हालाँकि अमिताभ तथा मिथुन दोनोँ को अभिनय के लिए पुरस्कार मिला। मुख्य कलाकार अमिताभ बच्चन मिथुन चक्रवर्ती माधवी (अभिनेत्री) नीलम डैनी डेन्जोंगपा आलोक नाथ रोहिणी हट्टंगड़ी टिन्नू आनन्द विक्रम गोखले अर्चना पूरन सिंह शरत सक्सेना गोगा कपूर मोंटी अवतार गिल - उस््मान भाई बाहरी कड़ियाँ 1990 में बनी हिन्दी फ़िल्म हिन्दी फ़िल्में
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प्रीतिश नन्दी
प्रीतिश नन्दी (Pritish Nandy) (जन्म- १५ जनवरी १९५१) एक पत्रकार, कवि, राजनेता एवं दूरदर्शन-व्यक्तित्व हैं। सम्प्रति वह भारत् के ऊपरी सदन राज्य सभा के सदस्य हैं। उन्होने अनेकों काव्य रचनाओं का पल्लवन किया है तथा बांग्ला से अंग्रेजी में अनेकों कविताओं का अनुवाद भी किया है। प्रारम्भिक जीवन प्रीतिश नंदी का जन्म बिहार राज्य के भागलपुर में हुआ था। उनकी माता जी का नाम प्रफुल्ल नलिनी नंदी तथा पिता जी का नाम सतीश चन्द्र नन्दी है। उनकी शिक्षा ला मार्टिनीअर कॉलेज, कोलकाता (La Martiniere College) में हुई। थोड़े समय के लिये उन्होने प्रेसिडेंसी कॉलेज, कोलकाता में भी अध्ययन किया। उनकी माता जी ला मार्टिनीअर कॉलेज में शिक्षिका थीं जो स्वतंत्रता के बाद उसी कालेज की उप-प्रधानाध्यापिका बनीं। बाहरी कड़ियाँ Pritish Nandy Communications Writer's Workshop India भारतीय पत्रकार
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पंजाब कृषि विश्वविद्यालय
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (Punjab Agricultural University (PAU)) लुधियाना में स्थित पंजाब सरकार का कृषि विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना १९६२ में की गयी थी। यह गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पन्तनगर के बाद भारत में दूसरा सबसे पुराना कृषि विश्वविद्यालय है। १९६० के दशक में भारत की हरित क्रांति में इस विश्वविद्यालय की अहम भूमिका थी। सन २००५ में इसका विभाजन करके गुरु अंगद देव पशुचिकित्सा एवं पशुविज्ञान महाविद्यालय (Guru Angad Dev Veterinary and Animal Sciences University) निर्मित किया गया। बाहरी कड़ियाँ पंजाब कृषि विश्वविद्यालय का जालघर (अंग्रेजी) पंजाब के विश्वविद्यालय
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खानदान (1979 फ़िल्म)
खानदान (अंग्रेज़ी: blood) 1979 में अनिल गाँगुली द्वारा निर्देशित, सिब्ते हसन रिज़वी द्वारा निर्मित हिन्दी फिल्म है। इस पारिवारिक कथा आधारित फ़िल्म के प्रमुख कलाकार जितेन्द्र, सुलक्षणा पंडित व बिन्दिया गोस्वामी, संगीतकार खय्याम और गीतकार नख्श लयालपुरी है। संक्षेप गौरीशंकर (सुंदर पुरोहित) अपनी पत्नी (निरूपा रॉय), दो पुत्र विकास (सुजीत कुमार) व रवि (जितेन्द्र) के साथ रहता है। विकास धनी लकड़ी नन्दा (बिन्दू) से विवाह करता है और रवि कॉलेज की पढ़ाई कर रहा है। रवि ऊषा (सुलक्षणा पंडित) के प्रति आकर्षित हुए उसे विवाह करना चाहता है। इधर गौरीशंकर की सेवानिवृत्ति होने को है और विकास अभी बेरोजगार है। कुछ दिन बाद विकास को नौकरी का प्रस्ताव आता है जिसलिए उसे 5000 जमा कराना है। नन्दा अपने चाचा से रूपये उधार लिए नरेश को देती है, जिससे उसे नौकरी मिलती है। उधर रवि को अपने मालिक के 5000 चुराने का इल्ज़ाम में पुलिस गिरफ्तार करती है। अदालत उसे तीन महीने क़ैद की सज़ा देती है, जिसे सुन गौरीशंकर की मृत्यु होती है। सज़ा के बाद घर आये रवि सुनता है के ऊषा का विवाह दीनानाथ का पुत्र राकेश (राकेश रोशन) से निश्चय किया गया है। रवि बम्बई जाकर नौकरी पाए अपनी माँ को पैसे भेजता रहता है। रवि व ऊषा की अगली भेट के बाद होने वाले घटनाओं को आगे की कथा में दर्शाया गया है। मुख्य कलाकार जितेन्द्र - रवि गौरीशंकर श्रीवास्तव सुलक्षणा पंडित - ऊषा बिन्दिया गोस्वामी - सन्ध्या सुजीत कुमार - विकास गौरीशंकर श्रीवास्तव बिन्दू - नन्दा विकास श्रीवास्तव निरूपा रॉय - सावित्री गौरीशंकर श्रीवास्तव सुंदर पुरोहित - गौरीशंकर श्रीवास्तव ए के हंगल - मास्टरजी, ऊषा का पिता दीना पाठक - ऊषा की माँ राज किशोर - सन्ध्या का भाई पिंचू कपूर - सन्ध्या का पिता राकेश रोशन - राकेश दीनानाथ जानकीदास - केदारनाथ राजन हक्सर - ठेकेदार जगन्नाथ बीरबल - मुंशी श्यामलाल, डाकिया दिनेश हिंगू - रवि का मित्र मोहन चोटी - ऊषा का मंगेतर धूमल - मंगेतर का चाचा दल निर्देशक – अनिल गांगुली निर्माता – सिब्ते हसन रिज़वी संगीतकार – खय्याम गीतकार – नख्श लयालपुरी पार्श्वगायक – किशोर कुमार, लता मंगेशकर, नितिन मुकेश, सुलक्षणा पंडित संगीत सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ बॉलीवुड 1979 में बनी हिन्दी फ़िल्म भारतीय फ़िल्में हिन्दी फ़िल्में
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लीलावतीज़ डॉटर्स
लीलावतीज़ डॉटर्स भारतीय महिला वैज्ञानिकों की जीवनियों का एक संकलन है। 2008 में भारतीय विज्ञान अकादमी ने इसे पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया था। पुस्तक का सम्पादन रोहिणी गोडबोले और राम रामस्वामी ने किया है। किताब के सभी निबंध महिला वैज्ञानिकों के जीवन और उनके अनुभव व संघर्षों का वर्णन करते हैं, और यह समझने का प्रयत्न करते हैं कि इन महिलओं ने विज्ञान को अपनी कारकिर्दगी कैसै चुना और बनाए रखा। लीलावतीज़ डॉटर्स का शीर्षक बारहवीं सदी के गणितज्ञ भास्कर द्वितीय की बेटी लीलावती, और भास्कर द्वारा रचित उसी नाम के ग्रंथ से प्रेरित है। लीलावती भास्कर और उनकी बेटी के बीच अंकगणित, बीजगणित और ज्यामिति विषयों पर हुई बात-चीत के रूप में हैं। वर्ण्यविषय इस संकलन में वनस्पति-विज्ञानिक जानकी अम्माल, भौतिक शास्त्री बी. विजयलक्ष्मी, मौसम विज्ञानी अन्ना मणि, तरल गतिकी विज्ञानी रमा गोविंदराजन, आदि कई महिला वैज्ञानिकों की जीवनियाँ हैं। सन्दर्भ भारतीय महिला वैज्ञानिक
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प्रशांत खेलों में क्रिकेट
पेसिफिक गेम्स का एक क्रिकेट टूर्नामेंट, पहले साउथ पैसिफिक गेम्स, 1979 में शुरू किया गया था और 1980 के दशक और 1990 के दशक में मेजबान देश की सुविधाओं के आधार पर खेल में रुक-रुक कर खेला गया था। 2003 से, क्रिकेट ने प्रत्येक प्रशांत खेलों में भाग लिया। 2003 से पहले के टूर्नामेंटों का विस्तृत रिकॉर्ड नहीं रखा गया है और यह जानने से परे है कि प्रत्येक खेलों में किस टीम ने स्वर्ण और रजत पदक जीते हैं, पहले तीन टूर्नामेंटों की निश्चितता के साथ कम ही जाना जाता है। टीम द्वारा प्रदर्शन किंवदंती – स्वर्ण – रजत – कांस्य GS – ग्रुप चरण Q – योग्य  — मेजबान पुरुषों का टूर्नामेंट महिला टूर्नामेंट संदर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%AB%E0%A5%8B%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AB%E0%A5%80
पैनोरमिक फोटोग्राफी
पैनोरमिक फोटोग्राफी विशेष उपकरण या सॉफ्टवेयर का उपयोग करके फोटोग्राफी की एक तकनीक है, जो क्षैतिज रूप से विस्तारित क्षेत्रों के साथ छवियों को कैप्चर करती है। इसे कभी-कभी विस्तृत प्रारूप फोटोग्राफी के रूप में जाना जाता है। यह शब्द एक ऐसे फ़ोटोग्राफ़ पर भी लागू किया गया है, जिसे अपेक्षाकृत विस्तृत पक्षानुपात में क्रॉप किया गया है, जैसे कि वाइड-स्क्रीन वीडियो में परिचित लेटरबॉक्स प्रारूप। जबकि "वाइड-एंगल" और "पैनोरमिक" फोटोग्राफी के बीच कोई औपचारिक विभाजन नहीं है, "वाइड-एंगल" आमतौर पर एक प्रकार के लेंस को संदर्भित करता है, लेकिन इस प्रकार के लेंस का उपयोग करने से छवि को पैनोरमा बनाने की आवश्यकता नहीं होती है। १:१.३३ के सामान्य फिल्म फ्रेम को कवर करने वाले अल्ट्रा वाइड-एंगल फिशये लेंस के साथ बनाई गई छवि को स्वचालित रूप से पैनोरमा नहीं माना जाता है। एक छवि जो देखने के क्षेत्र को दर्शाती है, या मानव आँख के क्षेत्र से अधिक है - लगभग १६०°×७५° - को पैनोरमिक कहा जा सकता है। इसका आम तौर पर मतलब है कि इसका पहलू अनुपात २:१ या उससे बड़ा है, छवि कम से कम दोगुनी चौड़ी है क्योंकि यह उच्च है। परिणामी छवियाँ एक विस्तृत पट्टी का रूप लेती हैं। कुछ पैनोरमिक छवियों में पक्षानुपात ४:१ और कभी-कभी १०:१ होता है, जो ३६० डिग्री तक के दृश्य क्षेत्रों को कवर करता है। एक वास्तविक मनोरम छवि को परिभाषित करने में पहलू अनुपात और क्षेत्र का कवरेज दोनों महत्वपूर्ण कारक हैं। फोटो-फिनिशर और एडवांस्ड फोटो सिस्टम (एपीएस) कैमरों के निर्माता किसी भी प्रिंट प्रारूप को व्यापक पहलू अनुपात के साथ परिभाषित करने के लिए "पैनोरमिक" शब्द का उपयोग करते हैं, जरूरी नहीं कि ऐसे फोटो जिनमें देखने का एक बड़ा क्षेत्र शामिल हो। इतिहास पैनोरमा का उपकरण पेंटिंग में मौजूद था, विशेष रूप से २० ईस्वी में पोम्पेई में पाए गए भित्ति चित्रों में एक विस्टा के एक इमर्सिव 'पैनोप्टिक' अनुभव को उत्पन्न करने के साधन के रूप में बहुत पहले फोटोग्राफी का आगमन। फोटोग्राफी के आगमन से पहले की सदी में और १७८७ से, रॉबर्ट बार्कर के काम के साथ, यह विकास के एक शिखर पर पहुंच गया जिसमें पूरे भवनों का निर्माण ३६० डिग्री पैनोरमा, और यहाँ तक कि शामिल प्रकाश प्रभाव के लिए किया गया था। और गतिशील तत्व। दरअसल, फोटोग्राफी के आविष्कारकों में से एक, डागुएरे का करियर लोकप्रिय पैनोरमा और डियोराम के उत्पादन में शुरू हुआ। एक पेंटब्रश के बिना एक विस्तृत शहर का दृश्य बनाने के विचार और लालसा ने फ्रेडरिक वॉन मार्टन को प्रेरित किया। वॉन मार्टन ने एक विशेष पैनोरमिक कैमरे का उपयोग करके पैनोरमिक डग्युएरियोटाइप बनाया जिसे उन्होंने स्वयं बनाया था। कैमरा सिंगल डगरेरियोटाइप प्लेट पर व्यापक दृश्य कैप्चर कर सकता है। संपूर्ण और विशद विवरण में एक शहर का दृश्य दर्शकों के सामने रखा गया है। पैनोरमिक कैमरों का विकास पैनोरमा के लिए उन्नीसवीं सदी की सनक का तार्किक विस्तार था। पैनोरमिक कैमरे के लिए पहले रिकॉर्ड किए गए पेटेंट में से एक जोसेफ पुचबर्गर द्वारा ऑस्ट्रिया में १८४३ में हाथ से क्रैंक किए गए, १५० ° देखने के क्षेत्र, ८-इंच फोकल लंबाई वाले कैमरे के लिए प्रस्तुत किया गया था, जिसने अपेक्षाकृत बड़े डागुएरोटाइप को उजागर किया था, .) लंबा। एक अधिक सफल और तकनीकी रूप से बेहतर पैनोरमिक कैमरा अगले साल १८४४ में जर्मनी में फ्रेडरिक वॉन मार्टेंस द्वारा इकट्ठा किया गया था। उनका कैमरा, मेगास्कोप, घुमावदार प्लेटों का उपयोग करता था और सेट गियर की महत्वपूर्ण विशेषता को जोड़ता था, जो अपेक्षाकृत स्थिर पैनिंग गति प्रदान करता था। नतीजतन, कैमरे ने फोटोग्राफिक प्लेट को ठीक से उजागर कर दिया, अस्थिर गति से परहेज किया जो एक्सपोजर में असमानता पैदा कर सकता है, जिसे बैंडिंग कहा जाता है। मार्टेंस को एक फोटोग्राफर/प्रकाशक लेरेबर्स द्वारा नियुक्त किया गया था। यह भी संभव है कि पुचबर्गर ने अपने कैमरे का पेटेंट कराने से पहले मार्टेंस कैमरा में सुधार किया हो। सामग्री की उच्च लागत और प्लेटों को ठीक से उजागर करने की तकनीकी कठिनाई के कारण, डागुएरियोटाइप पैनोरमा, विशेष रूप से कई प्लेटों (नीचे देखें) से एक साथ पाई गई दुर्लभ हैं। वेट-प्लेट कोलोडियन प्रक्रिया के आगमन के बाद, फोटोग्राफर आने वाले एल्बम के दो से एक दर्जन प्रिंटों को कहीं भी ले जाएंगे और एक मनोरम छवि बनाने के लिए उन्हें एक साथ जोड़ देंगे। यह फोटोग्राफिक प्रक्रिया तकनीकी रूप से आसान थी और डागुएरोटाइप की तुलना में बहुत कम खर्चीली थी। जबकि विलियम स्टेनली जेवन्स का पोर्ट जैक्सन, न्यू साउथ वेल्स का वेट-कोलोडियन पैनोरमा, शेल कोव के ऊपर एक ऊंची चट्टान से, नॉर्थ शोर १९५३ तक उनकी १८५७ की स्क्रैप-बुक में अनदेखा रहा, कुछ सबसे प्रसिद्ध शुरुआती पैनोरमा थे १८६० के दशक में अमेरिकी गृहयुद्ध में यूनियन आर्मी के लिए एक फोटोग्राफर जॉर्ज एन बरनार्ड द्वारा इस तरह से इकट्ठा किया गया था। उनके काम ने किलेबंदी और इलाके के विशाल अवलोकन प्रदान किए, जो इंजीनियरों, जनरलों और कलाकारों द्वारा समान रूप से मूल्यवान थे। (अमेरिकी गृहयुद्ध की फोटोग्राफी और फोटोग्राफर देखें)  १८७५ में उल्लेखनीय प्रयास के माध्यम से, बर्नार्ड ओटो होल्टरमैन और चार्ल्स बेलिस ने सिडनी हार्बर के व्यापक दृश्य को रिकॉर्ड करने के लिए ५६ गुणा ४६ सेंटीमीटर मापने वाली तेईस गीली प्लेटों को लेपित किया। स्टीरियो साइक्लोग्राफ एक महोगनी-वुडेड बॉक्स में संयुक्त दो-फिक्स्ड फ़ोकस पैनोरमिक कैमरा वाला कैमरा। कैमरे के स्तर को सेट करने में फोटोग्राफर की मदद करने के लिए लेंस के बीच में एक संकेतक के साथ लेंस एक दूसरे से आठ सेंटीमीटर अलग थे। एक घड़ी मोटर ने कैमरे को घुमाने वाले शाफ्ट को मोड़ने के साथ-साथ नौ सेंटीमीटर चौड़ी फिल्म को पहुँचाया। कैमरा ९×८० . बना सकता है सेमी जोड़ी जिसे एक विशेष दर्शक की आवश्यकता होती है। इन छवियों का उपयोग ज्यादातर मानचित्रण उद्देश्यों के लिए किया जाता था। वंडर पैनोरमिक कैमरा रूडोल्फ स्टर्न द्वारा बर्लिन, जर्मनी में १८९० में निर्मित, वंडर पैनोरमिक कैमरा को अपनी प्रेरक शक्ति के लिए फोटोग्राफर की आवश्यकता थी। कैमरे के अंदर एक तार, तिपाई पेंच में एक छेद के माध्यम से लटका हुआ, लकड़ी के बॉक्स कैमरे के अंदर एक चरखी के चारों ओर घाव। नयनाभिराम फ़ोटो लेने के लिए, फ़ोटोग्राफ़र ने एक्सपोज़र शुरू करने के लिए मेटल कैप को लेंस से दूर घुमाया। रोटेशन को पूर्ण ३६०-डिग्री दृश्य के लिए सेट किया जा सकता है, जो अठारह इंच लंबा नकारात्मक उत्पादन करता है। पेरिफोटे १९०१ में पेरिस के लुमियर फ्रेरेस द्वारा निर्मित। पेरिफोट में एक स्प्रिंग-वाउंड क्लॉक मोटर थी जो घूमती थी, और अंदर की बाधा ने फिल्म के रोल और इसके टेक-अप स्पूल को पकड़ रखा था। शरीर से जुड़ा एक ५५ मिमी जैरेट लेंस और एक प्रिज्म था जिसने फिल्म में आधा मिलीमीटर चौड़ा एपर्चर के माध्यम से प्रकाश को निर्देशित किया। लघु रोटेशन शॉर्ट रोटेशन, रोटेटिंग लेंस और स्विंग लेंस कैमरों में एक लेंस होता है जो कैमरा लेंस के रियर नोडल पॉइंट के चारों ओर घूमता है और एक घुमावदार फिल्म प्लेन का उपयोग करता है। जैसे ही तस्वीर ली जाती है, लेंस अपने पीछे के नोडल बिंदु के चारों ओर घूमता है, जबकि एक स्लिट फिल्म की एक ऊर्ध्वाधर पट्टी को उजागर करता है जो लेंस की धुरी के साथ संरेखित होती है। एक्सपोजर आमतौर पर एक सेकंड का एक अंश लेता है। आमतौर पर, ये कैमरे ११०° से १४०° के बीच के दृश्य क्षेत्र और २:१ से ४:१ के पक्षानुपात को कैप्चर करते हैं। बनाई गई छवियाँ मानक २४ मिमी × ३६ मिमी ३५ मिमी फ़्रेम की तुलना में नकारात्मक पर १.५ और ३ गुना अधिक स्थान घेरती हैं। इस प्रकार के कैमरों में वाइडलक्स, नोब्लेक्स और होराइजन शामिल हैं। इनका नकारात्मक आकार लगभग २४×५८ मिमी है। रूसी "स्पेसव्यू एफटी -२", मूल रूप से एक आर्टिलरी स्पॉटिंग कैमरा है, जो ३६-एक्सपोज़र ३५ मिमी फिल्म पर व्यापक नकारात्मक, १२ एक्सपोज़र का उत्पादन करता है। लघु रोटेशन कैमरे आमतौर पर कुछ शटर गति प्रदान करते हैं और खराब ध्यान केंद्रित करने की क्षमता रखते हैं। अधिकांश मॉडलों में एक निश्चित फोकस लेंस होता है, जो लेंस के अधिकतम एपर्चर की हाइपरफोकल दूरी पर सेट होता है, जो अक्सर लगभग १० मीटर (३० फीट) पर होता है। फ़ोटोग्राफ़र जो नज़दीकी विषयों की तस्वीरें लेना चाहते हैं, उन्हें कम रोशनी की स्थितियों में कैमरे के उपयोग को सीमित करते हुए अग्रभूमि को फ़ोकस में लाने के लिए एक छोटे एपर्चर का उपयोग करना चाहिए। घूमने वाले लेंस कैमरे सीधी रेखाओं में विकृति पैदा करते हैं। यह असामान्य लगता है क्योंकि व्यापक, घुमावदार दृष्टिकोण से ली गई छवि को सपाट देखा जा रहा है। छवि को सही ढंग से देखने के लिए, दर्शक को पर्याप्त रूप से बड़े प्रिंट का उत्पादन करना होगा और इसे फिल्म प्लेन के वक्र के समान रूप से वक्र करना होगा। मानक फोकल लेंथ लेंस के साथ स्विंग-लेंस कैमरे का उपयोग करके इस विकृति को कम किया जा सकता है। एफटी-२ में ५० मिमी है जबकि अधिकांश अन्य ३५ मिमी स्विंग लेंस कैमरे एक चौड़े कोण लेंस का उपयोग करते हैं, अक्सर २८ मिमी।  इन-कैमरा स्टिचिंग का उपयोग करते हुए डिजिटल कैमरों से शूट किए गए पैनोरमा में इसी तरह की विकृति देखी जाती है। पूर्ण रोटेशन घूमने वाले पैनोरमिक कैमरे, जिन्हें स्लिट स्कैन या स्कैनिंग कैमरे भी कहा जाता है, ३६०° या अधिक डिग्री रोटेशन करने में सक्षम हैं। एक घड़ी की कल या मोटर चालित तंत्र लगातार कैमरे को घुमाता है और फिल्म को कैमरे के माध्यम से खींचता है, इसलिए फिल्म की गति छवि विमान में छवि आंदोलन से मेल खाती है। एक्सपोजर एक संकीर्ण भट्ठा के माध्यम से किया जाता है। छवि क्षेत्र का मध्य भाग एक बहुत ही तीक्ष्ण चित्र बनाता है जो पूरे फ्रेम में सुसंगत होता है।  डिजिटल रोटेटिंग लाइन कैमरे लाइन द्वारा एक ३६०° पैनोरमा रेखा की छवि बनाते हैं। इस शैली में डिजिटल कैमरे पैनोस्कैन और आईस्कैन हैं। एनालॉग कैमरों में सर्कुट (१९०५), लेमे (१९६२), हुलचेरामा (१९७९), ग्लोबुस्कोप (१९८१), सेट्ज़ राउंडशॉट (१९८८) और लोमोग्राफी स्पिनर ३६० ° (२०१०) शामिल हैं। फिक्स्ड लेंस फिक्स्ड लेंस कैमरे, जिन्हें फ्लैटबैक, वाइड व्यू या वाइड फील्ड भी कहा जाता है, में फिक्स्ड लेंस और एक फ्लैट इमेज प्लेन होता है। ये पैनोरमिक कैमरे का सबसे सामान्य रूप हैं और सस्ते एपीएस कैमरों से लेकर परिष्कृत ६×१७ सेमी और ६×२४ सेमी मध्यम प्रारूप वाले कैमरों तक हैं। शीट फिल्म का उपयोग करने वाले पैनोरमिक कैमरे १०×२४ इंच तक के प्रारूपों में उपलब्ध हैं। एपीएस या ३५ मिमी कैमरे फिल्म के एक छोटे से क्षेत्र का उपयोग करके पैनोरमिक पहलू अनुपात में क्रॉप की गई छवियों का उत्पादन करते हैं। विशिष्ट ३५ मिमी या मध्यम प्रारूप फिक्स्ड-लेंस पैनोरैमिक कैमरे सामान्य से अधिक छवि चौड़ाई वाली छवियों का उत्पादन करने के लिए विस्तारित लंबाई के साथ-साथ फिल्म की पूरी ऊंचाई को कवर करने के लिए वाइड फील्ड लेंस का उपयोग करते हैं।  पैनोरमिक चित्र बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के निर्माणों के पिनहोल कैमरों का उपयोग किया जा सकता है। एक लोकप्रिय डिजाइन 'ओटमील बॉक्स' है, एक ऊर्ध्वाधर बेलनाकार कंटेनर जिसमें पिनहोल एक तरफ बना होता है और फिल्म या फोटोग्राफिक पेपर अंदर की दीवार के चारों ओर लपेटा जाता है, और पिनहोल के किनारे तक लगभग सही होता है। यह १८०° से अधिक दृश्य के साथ अंडे के आकार की छवि बनाता है। चूंकि वे एक ही एक्सपोजर में फिल्म को उजागर करते हैं, फिक्स्ड लेंस कैमरों का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक फ्लैश के साथ किया जा सकता है, जो घूर्णी पैनोरमिक कैमरों के साथ लगातार काम नहीं करेगा। समतल छवि तल के साथ, ९०° दृश्य का सबसे चौड़ा क्षेत्र है जिसे फ़ोकस में और महत्वपूर्ण वाइड-एंगल विरूपण या विग्नेटिंग के बिना कैप्चर किया जा सकता है। १२० डिग्री के निकट इमेजिंग कोण वाले लेंस को छवि के किनारों पर विगनेटिंग को सही करने के लिए एक केंद्र फ़िल्टर की आवश्यकता होती है। १८०° तक के कोणों को कैप्चर करने वाले लेंस, जिन्हें आमतौर पर फ़िशआई लेंस के रूप में जाना जाता है, अत्यधिक ज्यामितीय विकृति प्रदर्शित करते हैं, लेकिन आमतौर पर रेक्टिलिनियर लेंस की तुलना में कम चमक फॉलऑफ़ प्रदर्शित करते हैं।  इस प्रकार के कैमरे के उदाहरण हैं: ताइयोकोकी विस्कावाइड-१६ एसटी-डी (१६ मिमी फिल्म), सिसिलियानो कैमरा वर्क्स पन्नारोमा (३५ मिमी, १९८७ ), हैसलब्लैड एक्स-पैन (३५ मिमी, १९९८), लिनहोफ़ ६१२पीसी, हॉर्समैन एसडब्ल्यू६१२, लिनहोफ़ टेक्नोरमा ६१७, टोमियामा आर्ट पैनोरमा ६१७ और ६२४, और फ़ूजी जी६१७ और जीएक्स६१७ (मध्यम प्रारूप फ़िल्म)। पैनोमॉर्फ लेंस कैटाडियोप्ट्रिक लेंस के विपरीत, बिना किसी ब्लाइंड स्पॉट के एक पूर्ण गोलार्ध का दृश्य प्रदान करता है। डिजिटल फोटोग्राफी खंडित पैनोरमा की डिजिटल सिलाई डिजिटल फोटोग्राफी के साथ, पैनोरमा बनाने का सबसे आम तरीका चित्रों की एक श्रृंखला लेना और उन्हें एक साथ सिलाई करना है। दो मुख्य प्रकार हैं: बेलनाकार पैनोरमा मुख्य रूप से स्थिर फोटोग्राफी में उपयोग किया जाता है और गोलाकार पैनोरमा आभासी-वास्तविकता छवियों के लिए उपयोग किया जाता है। खंडित पैनोरमा, जिसे स्टिच्ड पैनोरमा भी कहा जाता है, पैनोरमिक छवि बनाने के लिए दृश्य के थोड़े अतिव्यापी क्षेत्रों के साथ कई तस्वीरों को जोड़कर बनाया जाता है। सिलाई सॉफ्टवेयर का उपयोग कई छवियों को संयोजित करने के लिए किया जाता है। आदर्श रूप से, लंबन त्रुटि के बिना छवियों को एक साथ सही ढंग से सिलाई करने के लिए, कैमरे को उसके लेंस प्रवेश छात्र के केंद्र के बारे में घुमाया जाना चाहिए। सिलाई सॉफ्टवेयर कुछ लंबन त्रुटियों को ठीक कर सकता है और लंबन त्रुटियों को ठीक करने की उनकी क्षमता में विभिन्न कार्यक्रम भिन्न प्रतीत होते हैं। सामान्य तौर पर विशिष्ट पैनोरमा सॉफ्टवेयर सामान्य फोटोमैनीपुलेशन सॉफ्टवेयर में निर्मित कुछ सिलाई की तुलना में इस पर बेहतर लगता है। कुछ डिजिटल कैमरे विशेष रूप से स्मार्टफोन कैमरे आंतरिक रूप से, कभी-कभी वास्तविक समय में मानक सुविधा के रूप में या स्मार्टफोन ऐप इंस्टॉल करके सिलाई कर सकते हैं। कैटाडिओप्ट्रिक कैमरे लेंस- और दर्पण-आधारित (कैटाडिओप्ट्रिक) कैमरों में लेंस और घुमावदार दर्पण होते हैं जो लेंस के प्रकाशिकी में ३६०-डिग्री क्षेत्र के दृश्य को दर्शाते हैं। उपयोग किए गए दर्पण के आकार और लेंस को विशेष रूप से चुना और व्यवस्थित किया जाता है ताकि कैमरा एक ही दृष्टिकोण बनाए रखे। एकल दृष्टिकोण का अर्थ है कि संपूर्ण पैनोरमा अंतरिक्ष में एक बिंदु से प्रभावी ढंग से चित्रित या देखा जाता है। कोई बस प्राप्त छवि को एक बेलनाकार या गोलाकार पैनोरमा में बदल सकता है। यहाँ तक कि देखने के छोटे क्षेत्रों के परिप्रेक्ष्य विचारों की भी सटीक गणना की जा सकती है। कैटाडिओप्ट्रिक सिस्टम (पैनोरैमिक मिरर लेंस) का सबसे बड़ा फायदा यह है कि क्योंकि कोई लेंस (जैसे मछली की आंख) के बजाय प्रकाश किरणों को मोड़ने के लिए दर्पण का उपयोग करता है, छवि में लगभग कोई रंगीन विपथन या विकृतियाँ नहीं होती हैं। छवि, दर्पण पर सतह का प्रतिबिंब, एक डोनट के रूप में होता है जिसमें एक सपाट पैनोरमिक चित्र बनाने के लिए सॉफ़्टवेयर लागू किया जाता है। इस तरह के सॉफ्टवेयर की आपूर्ति आमतौर पर उस कंपनी द्वारा की जाती है जो सिस्टम का निर्माण करती है। चूंकि संपूर्ण पैनोरमा एक ही बार में चित्रित किया जाता है, इसलिए गतिशील दृश्यों को बिना किसी समस्या के कैप्चर किया जा सकता है। नयनाभिराम वीडियो को कैप्चर किया जा सकता है और रोबोटिक्स और पत्रकारिता में अनुप्रयोगों को मिला है।  मिरर लेंस सिस्टम डिजिटल कैमरे के सेंसर के केवल एक आंशिक भाग का उपयोग करता है और इसलिए कुछ पिक्सेल का उपयोग नहीं किया जाता है। अंतिम छवि के रिज़ॉल्यूशन को अधिकतम करने के लिए हमेशा उच्च पिक्सेल गणना वाले कैमरे का उपयोग करने की अनुशंसा की जाती है। स्मार्टफोन के लिए सस्ते ऐड-ऑन कैटाडिओप्ट्रिक लेंस भी हैं, जैसे गोपैनो माइक्रो और कोगेटो डॉट । कलात्मक उपयोग स्ट्रिप पैनोरमा एड रुशा की एवरी बिल्डिंग ऑन द सनसेट स्ट्रिप (१९६६) को इमारत के अग्रभागों को एक साथ फोटो खिंचवाने के लिए बनाया गया था, जैसा कि एक पिकअप ट्रक के पीछे से ४ की यात्रा करते हुए देखा गया था। गली की लंबाई किमी. उस समय के अपने काम की विडंबनापूर्ण 'डपैन' भावना में उन्होंने एक फोल्डआउट बुक में स्ट्रिप फॉर्म में काम प्रकाशित किया, जिसका उद्देश्य 'द स्ट्रिप' के दोनों तरफ सही अभिविन्यास में देखने के लिए एक तरफ या दूसरे से देखा जाना था। रुस्चा के काम से पहले, १९५४ में योशिकाज़ु सुजुकी ने जापानी वास्तुकला पुस्तक गिन्ज़ा, कवाई, गिन्ज़ा हैचो में गिन्ज़ा स्ट्रीट, टोक्यो पर हर इमारत का एक अकॉर्डियन-फोल्ड पैनोरमा तैयार किया। जॉइनर्स जॉइनर्स (जिसके लिए पैनोग्राफी और पैनोग्राफ शब्दों का इस्तेमाल किया गया है) एक फोटोग्राफिक तकनीक है जिसमें एक तस्वीर को कई अतिव्यापी तस्वीरों से इकट्ठा किया जाता है। यह मैन्युअल रूप से प्रिंट के साथ या डिजिटल छवि संपादन सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके किया जा सकता है और एक दृश्य के चौड़े कोण या पैनोरमिक दृश्य के समान हो सकता है, जो खंडित पैनोरमिक फोटोग्राफी या छवि सिलाई के प्रभाव में समान है। एक योजक अलग है क्योंकि आसन्न चित्रों के बीच अतिव्यापी किनारों को हटाया नहीं जाता है; किनारा तस्वीर का हिस्सा बन जाता है। 'जॉइनर्स' या 'पैनोग्राफी' इस प्रकार एक प्रकार का फोटोमोंटेज और कोलाज का एक उप-सेट है। इस तकनीक में कलाकार डेविड हॉकनी का प्रारंभिक और महत्वपूर्ण योगदान है। मानवीय दृष्टि के साथ उनके आकर्षण के माध्यम से, उनकी कलाकृतियों में एक व्यक्तिपरक दृश्य प्रस्तुत करने के उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप समाधान के रूप में (अक्सर कई संपूर्ण) ३५ मिमी फिल्मों के १०×१५ सेमी हाई-स्ट्रीट-संसाधित प्रिंटों का मैनुअल असेंबलिंग हुआ। उन्होंने परिणामी कट-एंड-पेस्ट मोंटाज को "जॉइनर्स" कहा, और उनका सबसे प्रसिद्ध "पियरब्लॉसम हाइवे" है, जिसे गेटी म्यूजियम द्वारा आयोजित किया जाता है। उनके समूह को "हॉकनी जॉइनर्स" कहा जाता था, और वे आज भी जॉइनर्स को पेंट और फोटोग्राफ करते हैं। जान डिबेट्स की डच माउंटेन सीरीज़ (१९७१ के आसपास) नीदरलैंड के समुद्र के किनारे का पहाड़ बनाने के लिए पैनोरमिक दृश्यों की सिलाई पर निर्भर करती है। पुनरुत्थानवादी १९७० और १९८० के दशक में कला फोटोग्राफरों के एक स्कूल ने पैनोरमिक फोटोग्राफी की, नए कैमरों का आविष्कार किया और प्रारूप को पुनर्जीवित करने के लिए पाए गए और अपडेट किए गए एंटीक कैमरों का उपयोग किया। नए पैनोरमिस्टों में केनेथ स्नेलसन, डेविड एविसन, आर्ट सिनसाबाग और जिम अलिंदर शामिल थे। डिजिटल सिलाई एंड्रियास गुर्स्की अक्सर अपने बड़े प्रारूप वाले पैनोरमिक इमेजरी में डिजिटल सिलाई का उपयोग करते हैं। संदर्भ अग्रिम पठन बाहरी संबंध A timeline of panoramic cameras १८४३–१९९४ Stanford University CS १७८ interactive Flash demo e×plaining the construction of cylindrical panoramas. How to build a panoramic camera with intricate technical details and optical specifications for constructing a swing-lens panoramic camera. A home-made panoramic head bracket for taking panoramic photographs. IVRPA - The International VR Photography Association Pages with unreviewed translations
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शोला और शबनम (1961 फ़िल्म)
शोला और शबनम 1961 में बनी हिन्दी भाषा की नाट्य प्रेमकहानी फ़िल्म है। धर्मेन्द्र, तरला मेहता, अभि भट्टाचार्य, विजयलक्ष्मी और एम. राजन अभिनीत ये फ़िल्म रमेश सैगल द्वारा निर्देशित है। यह धर्मेंद्र की शुरुआती फिल्मों में से एक है। संक्षेप रवि या "बुन्नू" और संध्या, रवि के गरीब होने के बावजूद बचपन के प्रेमी हैं। रवि गरीब और संध्या अमीर हैं। संध्या के पिता, जो रेलवे में एक वरिष्ठ अधिकारी हैं, का तबादला किया गया; रवि और संध्या अलग हो गए हैं। कई सालों बाद, रवि (धर्मेन्द्र) एक युवा युवक में परिपक्व हो गया है। अमीर या प्रभावशाली नहीं होने के कारण, रवि को नौकरी ढूंढना मुश्किल हो गया और उसने अपने दोस्त प्रकाश (एम. राजन) से संपर्क करने का फैसला किया। प्रकाश एक खुशहाल भाग्यशाली बच्चा है, जिसका परिवार जंगलों के बीच एक बड़ा लकड़ी का कारखाना चलाता है। उसने उसे उदार वेतन (300 रुपये प्रति माह) पर रवि को रखा, हालांकि रवि केवल 100 रुपये मांगता है। प्रकाश का बड़ा भाई आकाश है। आकाश स्नातक किया हुआ है, उसके कुटिल पिता के कारण उसकी प्रेमिका, एक गरीब गांव लड़की ने आत्महत्या की है। आकाश अक्सर नशे रहता है, लेकिन अपने छोटे भाई से प्यार करता है। प्रकाश उसके पिता के दोस्त की बेटी संध्या (तारला मेहता) से प्यार हो गया, जो उनके जंगल के घर में आती है। यह वही संध्या है जिसने अपने बचपन में रवि से प्यार किया था। रवि उसे पहले पहचान नहीं पाता है, लेकिन सच्चाई का क्षण तब आता है जब प्रकाश रवि को गाना गाने को कहता है। यह वही गीत था जो रवि और संध्या बचपन में गाया करते थे, और वे दोनों इसे महसूस करते थे, हालांकि रहस्य को प्रकट नहीं करते। रवि अभी भी उस लड़की से प्यार करता है जिससे वह बचपन में अलग हो गया था, लेकिन अपने दोस्त प्रकाश की खुशी के रास्ते में नहीं आना चाहता। संध्या भी रवि से प्यार करती है, और प्रकाश की बजाय उससे शादी करना चाहती है। फिल्म के अंत तक, प्रकाश रवि और संध्या के विशेष संबंधों से अनजान है। संध्या के लिए रवि की भावनाओं को आकाश द्वारा महसूस किया जाता है, जिसने खुद को प्यार में खो दिया है। आकाश को अब एक विकल्प का सामना करना पड़ रहा है: या तो रवि और संध्या के सच्चे प्यार को अनदेखा कर दे और संध्या और प्रकाश के संघ के साथ आगे बढ़ जाए, या रवि और संध्या के साथ हो जाए और अपने भाई प्रकाश का दिल को तोड़ दें। मुख्य कलाकार धर्मेन्द्र - रवि (बुन्नू) तरला मेहता - संध्या एम. राजन - प्रकाश अभि भट्टाचार्य - आकाश विजयलक्ष्मी - तृप्ति धुमाल - मुंशीजी लीला मिश्रा - बुन्नू की माँ मुबारक - आकाश के पिता संगीत सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ 1961 में बनी हिन्दी फ़िल्म खय्याम द्वारा संगीतबद्ध फिल्में
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दशरथचन्द
दशरथचन्द एक नगर पालिका है और नेपाल के सुदूरपश्चिम प्रदेश में बैतड़ी जिले का जिला मुख्यालय है। यह एक हिल स्टेशन है, जो भारतीय सीमा के समीप महाकाली नदी के ऊपर स्थित है। २०११ की नेपाल की जनगणना के अनुसार इसकी जनसंख्या ३४,५७५ है, जो ७,२५७ घरों में निवास करती है। इतिहास दशरथचन्द नगर पालिका की स्थापना १९९७ में हुई थी, जब नेपाल सरकार ने देशभर में २२ नवीन नगर पालिकाओं की स्थापना की थी। छह ग्राम विकास समितियों के विलय द्वारा इस नगर पालिका की स्थापना की गयी थी। ये समितियाँ थी: दशरथचन्द, खलंगा, त्रिपुरासुन्दरी, थालेगड़ा, जोगननाथ और बाराकोट। २०११ की नेपाल की जनगणना के अनुसार तत्कालीन दशरथचन्द नगर पालिका की कुल जनसंख्या १७,४२७ थी, कुल क्षेत्रफल ५५.०१ वर्ग किलोमीटर था, और इसे १३ वार्डों में बांटा गया था। मार्च २०१७ में नेपाल सरकार ने देश के सभी स्थानीय स्तर के निकायों को ७५३ नए स्थानीय स्तर के ढांचों में पुनर्गठित कर दिया। इस समय गुरुखोला, देहिमांडौ, दुर्गा भवानी, दुर्गास्थान (आंशिक रूप से), ग्वालेक और नागार्जुन ग्राम विकास समितियों का भी दशरथचन्द नगर पालिका में विलय कर दिया गया, और इसे ११ वार्डों में पुनर्व्यवस्थित किया गया। इसके बाद से दशरथचन्द नगर पालिका की कुल जनसंख्या ३४,५७५ व्यक्ति है और कुल १३५.१५ वर्ग किलोमीटर है। मीडिया स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए दशरथचन्द में दो एफएम रेडियो स्टेशन हैंसौगत एफएम (१०३.६ मेगाहर्ट्ज) और रेडियो सनशर (१०६.६ मेगाहर्ट्ज)। रेडियो न्वेड्यू एक अन्य सामुदायिक रेडियो स्टेशन है। परिवहन महाकाली राजमार्ग दशरथचन्द को दक्षिण में धनगढ़ी से और उत्तर में आपी नगर पालिका से जोड़ता है। सन्दर्भ नेपाल के शहर
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पश्चिमी बहन द्वीप
पश्चिमी बहन द्वीप भारत के अण्डमान व निकोबार द्वीपसमूह के अण्डमान द्वीपसमूह भाग में रटलैण्ड द्वीप और छोटे अण्डमान के बीच डंकन जलसन्धि में स्थित दो बहन द्वीपों में से एक है। दूसरा टापू पूर्वी बहन द्वीप हैं और वह इस द्वीप से थोड़ा बड़ा है। यह दोनों २५० मीटर दूर हैं लेकिन एक कोरल रीफ़ द्वारा जुड़े हुए हैं। यह पैसेज द्वीप से ६ किमी दक्षिणपूर्व और उत्तरी भाई द्वीप से १८ किमी उत्तर में हैं। विवरण द्वीप का आकार नाश्पाती है। पूर्वोत्तर-दक्षिणपश्चिम दिशा में लम्बाई ३८० मीटर और चौड़ाई ३४० मीटर है। इसका अधिकांश हिस्सा वन से ढका है। तट हर ओर पथरीला है लेकिन पूर्वोत्तर में एक नन्हा-सा रेतीला भाग है। इसका सर्वोच बिन्दु समुद्रतल से ७१ मीटर ऊँचा है। इन्हें भी देखें पूर्वी बहन द्वीप दो बहनें द्वीप डंकन जलसन्धि सन्दर्भ भारत के निर्जन द्वीप भारत के द्वीप अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह के द्वीप
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एडॉल्फ ऐशमान
ओटो एडॉल्फ ऐशमान (उचार्ण; 19 मार्च 1906 – 1 जून 1962) एक जर्मन नाजी एसएस-Obersturmbannführer (लेफ्टिनेंट कर्नल) और प्रलय के प्रमुख आयोजकों में से एक था। ऐशमान पर SS-Obergruppenführer (जनरल/लेफ्टिनेंट जनरल) रेइनहार्ड हेद्रिच द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मन कब्जे के पूर्वी यूरोप में बड़े पैमाने पर यहूदियों के निर्वासन के लिए बस्तियों और तबाही शिविरों में सुविधा और प्रबंधन के लिए नियुक्त कीया गया था। 1960 में, वह अर्जेंटीना में मोसाद, इजराइल की खुफिया सेवा द्वारा पकड़ लिया गया था। इसराइल में एक व्यापक रूप से प्रचारित मुकदमे में वह युद्ध अपराधों का दोषी पाया गया था और 1962 में फांसी पर लटका दिया गया था। जर्मनी के लोग
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द स्काई इज़ पिंक
द स्काई इज़ पिंक एक आगामी भारतीय हिन्दी जीवनी फ़िल्म है, जो शोनाली बोस द्वारा निर्देशित और आरएसवीपी मूवीज़, रॉय कपूर फिल्म्स और पर्पल पेबल पिक्चर्स के बैनर तले सिद्धार्थ रॉय कपूर, रोनी स्क्रूवाला और चोपड़ा द्वारा सह-निर्मित है। इसमें प्रियंका चोपड़ा, फरहान अख्तर और ज़ायरा वसीम हैं। बॉलीवुड से तीन साल के ब्रेक के बाद यह चोपड़ा की फिल्मों में वापसी है। यह 25 साल से विवाहित एक दंपति की प्रेम कहानी पर आधारित है, जिसे उनकी चंचल किशोरी बेटी - आयशा चौधरी के परिप्रेक्ष्य से बताया गया है, जो एक लाइलाज बीमारी से ग्रसित है। द स्काई इज़ पिंक प्रियंका चोपड़ा, रोनी स्क्रूवाला और सिद्धार्थ रॉय कपूर के बीच छठा सहयोग है। तीनों ने इससे पहले फैशन, कमीने, वॉट्स यॉर राशी?, सात ख़ून माफ़ और बर्फी! जैसी फिल्मों में साथ काम किया था। फिल्म की मुख्य फोटोग्राफी अगस्त 2018 में शुरू हुई, और फिल्मांकन 11 मार्च 2019 को पूरा हुआ। 13 सितंबर 2019 को टोरंटो अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में इसका प्रीमियर निर्धारित है, जिसके बाद 11 अक्टूबर को इसे दुनिया भर में नाटकीय रूप से जारी किया जाएगा। पात्र ज़ायरा वसीम आइशा चौधरी के रूप में, एक प्रेरक वक्ता जो पल्मोनरी फाइब्रोसिस से ग्रसित है प्रियंका चोपड़ा अदिति चौधरी के रूप में, आयशा की माँ जो पेशे से मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सक हैं। फ़रहान अख्तर नरेन चौधरी के रूप में, आयशा के पिता रोहित सुरेश सराफ ईशान चौधरी के रूप में, आयशा के भाई, जो एक संगीतकार और संगीत निर्माता हैं राजश्री देशपांडे एक विशेष उपस्थिति में सैमी जॉन हेनीज़ की आवाज़ जूनियर कलाकारों के लिए यूके डबिंग / वॉयसओवर करते हुए फिल्मांकन 8 अगस्त 2018 को मुम्बई में द स्काई इज़ पिंक का फिल्मांकन शुरू हुआ। फिल्म का दूसरा शेड्यूल 13 अक्टूबर 2018 को लंदन में शुरू हुआ और 17 अक्टूबर 2018 को समाप्त हो गया। यह वैसे दिल्ली शेड्यूल का ही हिस्सा था, जो नवंबर 2018 के अंतिम सप्ताह में समाप्त हुआ था। अंडमान द्वीप समूह में फिल्मांकन 11 मार्च 2019 को पूरा हुआ। फिल्म के लिए एक गीत जून 2019 में मुंबई में शूट किया गया था। संगीत फिल्म का संगीत और पार्श्व संगीत प्रीतम द्वारा रचित है। विपणन और रिलीज फिल्म का पहला लुक 23 जुलाई 2019 को जारी किया गया था। द स्काई इज़ पिंक का प्रीमियर 13 सितंबर 2019 को 44 वें टोरंटो अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में होना है, और 11 अक्टूबर को दुनिया भर में नाटकीय रूप से रिलीज़ होगी। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ बॉलीवुड हँगामा पर द स्काई इज़ पिंक आगामी फ़िल्में भारतीय फ़िल्में 2019 में बनी हिन्दी फ़िल्म
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नेही नागरीदास
नेही नागरीदास की राधावल्लभ सम्प्रदाय के प्रमुख भक्त कवियों में गणना की जाती है जीवन परिचय भक्त कवियों में नागरीदास नाम के तीन कवि विख्यात हैं ,परन्तु राधावल्लभ सम्प्रदाय के नागरीदास जी के नाम के पूर्व नेही उपाधि के कारण आप अन्य कवियों से सहज ही अलग हो जाते हैं। नागरीदास जी का जन्म पँवार क्षत्रिय कुल में ग्राम बेरछा (बुन्देलखंड ) में हुआ था। इनके जन्म-संवत का निर्णय समसामयिक भक्तों के उल्लेख से ही किया जा सकता है। इस आधार पर नागरीदास जी जन्म-संवत १५९० के आसपास ठहरता है। भक्ति की ओर नागरीदास जी की रूचि शैशव से ही थी। भक्त-जनों से मिलकर आपको अत्यधिक प्रसन्नता होती थी। एक बार सौभाग्य से स्वामी चतुर्भुजदास जी से आप का मिलाप हुआ। इनके सम्पर्क से रस-भक्ति का रंग नागरीदास जी को लगा और ये घर -परिवार छोड़कर वृन्दावन चले आये। यहाँ आकर आपने वनचंद स्वामी से दीक्षा ली. (श्री हितहरिवंश ;सिद्धांत और साहित्य :गो ० ललितशरण ;पृष्ठ ४१७ )इस प्रकार रस-भक्ति में इनका प्रवेश हुआ। नेही नागरीदास जी हितवाणी और नित्य विहार में अनन्य निष्ठां थी। वे हितवाणी के अनुशीलन में इतने लीन रहते की उन्हें अपने चारों ओर के वातावरण का भी बोध न रहता। परन्तु इस प्रकार के सरल और अनन्य भक्त से भी कुछ द्वेष किया और इन्हें विवस होकर वृन्दावन छोड़ बरसाने जाना पड़ा।इस बात का उल्लेख नागरीदास जी ने स्वयं किया है : जिनके बल निधरक हुते ते बैरी भये बान। तरकस के सर साँप ह्वै फिरि-फिरि लागै खान।। नागरीदास जी राधावल्लभ सम्प्रदाय के प्रारम्भिक कवियों में गिने जाते हैं। ध्रुवदास जी को जिस प्रकार सम्प्रदाय की रस-रीति को सुगठित बनाने का श्रेय है ,उसीप्रकार नागरीदास जी को उसके उपासना-मार्ग को सुव्यवस्थित बनाने का गौरव प्राप्त है रचनाएँ सिद्धांत दोहावली :९३५ दोहे पदावली : पद १०२ रस पदावली ;(स्फुट पद सहित ) २३२ पद भक्ति माधुर्य नागरीदास जी ने आत्म-परिचय के रूप में लिखे गए एक सवैये में अपने आराध्य ,अपनी उपासना और अपने उपासक- धर्म का सुन्दर दंग से उल्लेख किया है: सुन्दर श्री बरसानो निवास और बास बसों श्री वृन्दावन धाम है। देवी हमारे श्री राधिका नागरी गोत सौं श्री हरिवंश नाम है।। देव हमारे श्रीराधिकावल्लभ रसिक अनन्य सभा विश्राम है। नाम है नागरीदासि अली वृषभान लली की गली को गुलाम है।। इस सवैये से कि नेही जी के आराध्य राधा और कृष्ण हैं। कृष्ण का महत्त्व राधिकावल्लभ के रूप में ही अंगीकार किया गया है। स्वयं नागरीदास जी वृषभान लली की गली को गुलाम हैं। नागरीदास जी की निष्ठां एवं अनन्यता अत्यधिक तीव्र थी। अपने राधाष्टक में आपने राधा और श्री हितहरिवंश के अतिरिक्त किसी और को स्वीकर नहीं किया है। इसी कारण राधाष्टक की राधावल्लभ सम्प्रदाय में अत्यधिक मान्यता है ~~ रसिक हरिवंश सरवंश श्री राधिका , सरवंश हरवंश वंशी। हरिवंश गुरु शिष्य हरिवंश प्रेमवाली हरिवंश धन धर्म राधा प्रशंसी। राधिका देह हरिवंश मन , राधिका हरिवंश श्रुतावतंशी। रसिक जन मननि आभरन हरिवंश हितहरिवंश आभरन कल हंस हंसी।। राधा और हितहरिवंश में इस प्रकार की दृढ़ निष्ठां के कारण जहाँ एक ओर उन्होंने अपने पदों में बरसाने का वर्णन किया है ~ बरसानों हमारी रजधानी रे। महाराज वृषभानु नृपति जहाँ कीरतिदा सुभ रानी रे।। गोपी-गोप ओप सौं राजैं बोलत माधुरी बानी रे। रसिक मुकटमणि कुँवरि राधिका वेद पुरान बखानी रे।। खोरि साँकरी मोहन ढुक्यो दान केलि रति ठानी रे। गइवर गिरिवन बीथिन विहरत गढ़ विलास सुख दानी रे।। बाह्य स्रोत ब्रजभाषा के कृष्ण-काव्य में माधुर्य भक्ति :डॉ रूपनारायण :हिन्दी अनुसन्धान परिषद् दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली के निमित्त :नवयुग प्रकाशन दिल्ली -७ सन्दर्भ भक्त कवि कवि महाकवि हिन्दी भाषा हिन्दी साहित्य
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%B8%E0%A5%8C%E0%A4%B0%20%E0%A4%97%E0%A4%A0%E0%A4%AC%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%A8
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन
अन्तरराष्ट्रीय सौर गठबन्धन ( ; इण्टरनेशनल सोलर अलायंस ) (पुराना नाम : , ; इण्टरनेशनल अजेंसी फ़ॉर सोलर टेक्नोलॉजीज़ एण्ड एप्लिकेशंस , INSTA ) सौर ऊर्जा पर आधारित 121 देशों का एक सहयोग संगठन है। जिसका शुभारम्भ भारत व फ़्रांस द्वारा 30 नवम्बर 2015 को पैरिस में किया गया। यह भारत के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा की गयी पहल का परिणाम है। जिसकी घोषणा उन्होंने सर्वप्रथम लन्दन के वेम्बली स्टेडियम में अपने उद्बोधन के दौरान की थी। यह संगठन कर्क व मकर रेखा के बीच स्थित राष्ट्रों को एक मंच पर लाएगा। ऐसे राष्ट्रों में धूप की उपलब्धता बहुलता में है। इस संगठन में ये सभी देश सौर ऊर्जा के क्षेत्र में मिलकर काम करेंगे। इस प्रयास को वैश्विक स्तर पर ऊर्जा परिदृश्य में एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। मुख्यालय इस संगठन का अन्तरिम सचिवालय राष्ट्रीय सौर उर्जा संस्थान, ग्वालपहाड़ी, गुरुग्राम जनपद में बनाया गया है। इसका उद्घाटन 25 जनवरी 2016 को हुआ था। मुख्यालय के निर्माण हेतु भारत सरकार ने राष्ट्रीय सौर उर्जा संस्थान कैम्पस के भीतर पाँच एकड़ जमीन आवण्टित की है। 25 जनवरी 2016 को भारत के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्‍द्र मोदी और फ़्रांस के राष्ट्रपति श्री फ्रांस्वा ओलान्द ने संयुक्त रूप से अन्तरराष्ट्रीय सौर गठबन्धन मुख्यालय की आधारशिला रखी। प्रगति 2016 के मरक्केश जलवायु सम्मेलन में 15 नवम्बर 2016 को इस सन्धि का आधिकारिक प्रारूप प्रस्तुत किया गया और पहले दिन 15 देशों ने इस पर हस्ताक्षर किये। ये देश थे- बांग्लादेश, ब्राज़ील, बुर्कीना फासो, कम्बोडिया, कांगो, डोमिनिकन रिपब्लिक, इथियोपिया, गिनी रिपब्लिक, मैडागास्कर, माली, नौरु, नाइजर, तंज़ानिया तथा तुवालु। वर्तमान में कुल देेेशों की संख्या 76 हो गयी है। पलाउ के जुड़ने के बाद कॉप 26 जलवायु के दौरान अमेरिका उक्त समझौते पर हस्ताक्षर कर आईएसए का 101 वाँ सदस्य देश बन गया। सन्दर्भ इन्हें भी देखें भारत में सौर ऊर्जा बाहरी कड़ियाँ इंटरनेशनल सोलर अलायंस समिट में बोले मोदी, सूर्य देवता गठबंधन में सबसे बड़े साथी भारत बना सोलर पावर की राजधानी, चीन को इस क्षेत्र में भी देगा चुनौती अंतर्राष्ट्रीय संगठन सौर ऊर्जा
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ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम
उष्मागतिकी के शून्यवें सिद्धांत में ताप की भावना का समावेश होता है। यांत्रिकी में, विद्युत् या चुंबक विज्ञान में अथवा पारमाण्वीय विज्ञान में, ताप की भावना की कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है । उष्मागतिकी के प्रथम सिद्धांत द्वारा ऊष्मा की भावना का समावेश होता है। जूल के प्रयोग द्वारा यह सिद्ध होता है कि किसी भी पिंड को (चाहे वह ठोस हो या द्रव या गैस) यदि स्थिरोष्म दीवारों से घेरकर रखें तो उस पिंड को एक निश्चित प्रारंभिक अवस्था से एक निश्चित अंतिम अवस्था तक पहुँचाने के लिए हमें सर्वदा एक निश्चित मात्रा में कार्य करना पड़ता है। कार्य की मात्रा पिंड की प्रारंभिक तथा अंतिम अवस्थाओं पर ही निर्भर रहती है, इस बात पर नहीं कि यह कार्य कैसे किया जाता है। यदि प्रारंभिक अवस्था में दाब तथा आयतन के मान p0 तथा V0 हैं तो कार्य की मात्रा अंतिम अवस्था की दाब तथा आयतन पर निर्भर रहती है, अर्थात् कार्य की मात्रा p तथा V का एक फलन है। यदि कार्य की मात्रा का W हैं तो हम लिख सकते हैं कि W = U - U0 (4) यह समीकरण एक राशि U की परिभाषा है जो केवल उस पिंड की अवस्था पर ही निर्भर रहती है न कि इस बात पर कि वह पिंड उस अवस्था में किस प्रकार पहुँचा है। इस राशि को हम पिंड की आंतरिक ऊर्जा कहते हैं। यदि कोई पिंड एक निश्चित अवस्था से प्रारंभ करके विभिन्न अवस्थाओं में होते हुए फिर उसी प्रारंभिक अवस्था में आ जाए तो उसकी आंतारिक ऊर्जा में कोई अंतर नहीं होगा, अर्थात् f dU = 0 (5) और (dU) एक यथार्थ अवकल (परफ़ेक्ट डिफ़रेन्शियल) है। यदि कोई पिंड एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाए तो (U-U0-W) का मान सर्वदा शून्य के बराबर नहीं होगा। यदि प्रत्येक अवस्था के लिए U का मान ज्ञात कर लिया गया है तो यह अंतर ज्ञात किया जा सकता है। यदि पिंड की दीवारों का कोई भाग उष्मागम्य है तो सर्वदा इस अंतर के बराबर ऊष्मा उस पिंड को देनी पड़ेगी। यदि ऊष्मा की मात्रा Q है तो Q = U - U0 - W (6) इस समीकरण में Q उन्हीं एककों में नापा जाएगा जिसमें W, परंतु यदि हमने Q का एकक पहले ही निश्चित कर लिया है तो हम इस समीकरण द्वारा इन दोनों एककों का अनुपात ज्ञात कर सकते हैं। इस प्रकार जूल के प्रयोग द्वारा हम ऊष्मा का यांत्रिक तुल्यांक निकाल सकते हैं। इस प्रयोग में Q शून्य के बराबर होता है और (U-U0) का मान ऊष्मा के एककों में ज्ञात किया जाता है। समीकरण (6) उष्मागतिकी के प्रथम सिद्धांत का गणितीय रूप है। इसमें W वह कार्य है जो बाहर से उस पिंड पर किया जाता है। यदि यह पिंड स्वयं कार्य करे, जिसका परिणाम dW हो और किसी प्रक्रम (प्रोसेस) में निकाय की आंतरिक ऊर्जा जिस परिमाण में बढ़े वह dU हो तो गिनती ऊष्मा उस निकाय को दी जाएगी वह तो dQ होगी और dQ = dU + dW (7) और आगे बढ़ने के पहले हम एक ऐसे प्रक्रम का वर्णन करेंगे जिसका उपयोग उषमागतिकी में बहुत किया जाता है। इसे प्राय: स्थैतिक (सिस्टम) के आयतन को एक अत्यणु परिमाण dV से परिवर्तित करें तो इसका ताप भी थोड़ा परिवर्तित हो जाएगा। साम्यावस्था प्राप्त होने पर इसके आयतन में मान ले हम थोड़ा और अत्यणु परिवर्तित करें। इस तरह हम धीरे धीरे अवस्था 1 से अवस्था 2 में पहुँच जायँगे। यदि हमारे परिवर्तनों का परिमाण धीरे-धीरे शून्य की ओर बढ़े तो अंत में 1 से 2 तक परिवर्तन कहते हैं। ऐसे प्रक्रम का यह भी लक्षण है कि विस्थापनों, किए गए कार्य एवं अवशोषित ऊष्मा के चिह्नों को उलटकर इस निकाय को अवस्था 2 से कारण इन प्रक्रमों को उत्क्रमणीय प्रक्रम कहते हैं। जो प्रक्रम उत्क्रमणीय नहीं होते उन्हें अनुत्क्रमणीय प्रक्रम कहते हैं। यह सरलता से सिद्ध किया जा सकता है कि यदि किसी निकाय की दाब p हो तो एक उत्क्रमणीय प्रक्रम में यह जो कार्य करेगा वह pdV के बराबर होगा। अतएव उष्मागतिकी के प्रथम सिद्धांत को हम इस तरह भी लिख सकते हैं : dQ = dU + pdV (8) विशेष स्थितियाँ ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के समीकरण में आने वाले चरों के मान, कुछ विशेष स्थितियों में, नीचे दिए गये हैं- ऊष्मागतिकी ऊष्मागतिकी के नियम
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रत्नाकर मटकरी
रत्नाकर रामकृष्ण मटकरी (17 नवंबर 1938 - 17 मई 2020) एक मराठी लेखक, एक फिल्म और नाटक निर्माता/निर्देशक और महाराष्ट्र, भारत के एक स्व-शिक्षित कलाकार थे। ज़िंदगी मटकरी का जन्म 17 नवंबर 1938 को मुंबई में हुआ था। 1958 में मुंबई विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डिग्री हासिल करने के बाद, उन्होंने अगले बीस वर्षों तक बैंक ऑफ इंडिया में काम किया। 1978 से, उन्होंने अपना समय विशेष रूप से फिल्मों और नाटकों के लेखन और निर्माण/निर्देशन के लिए समर्पित किया। उनका विवाह कलाकार प्रतिभा मटकरी से हुआ था। भारत में COVID-19 महामारी के दौरान एक सप्ताह पहले COVID-19 के लिए सकारात्मक परीक्षण करने के बाद, 17 मई 2020 को मुंबई में उनकी मृत्यु हो गई। साहित्यिक करियर मटकरी का पहला काम, वन-एक्ट प्ले वेदी मनसे (वेदी मानसे), 1955 में मुंबई में ऑल इंडिया रेडियो पर प्रस्तुत किया गया था। उनका नाटक पाहुणी (पाहुणी) अगले वर्ष एक अन्य स्थान पर प्रस्तुत किया गया था। मटकरी ने 1970 के दशक में समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए एक स्तंभकार के रूप में काम किया। उन्होंने आपले महानगर (आपले महानगर) में चार साल तक सोनारी सावल्या (सोनेरी सावल्या) स्तंभ लिखा। मटकरी की अब तक की 98 कृतियों में 33 नाटक, उनके एकांकी नाटकों के 8 संग्रह, उनकी लघु कथाओं की 18 पुस्तकें, 3 उपन्यास, बच्चों के लिए कविताओं की एक पुस्तक, और 14 नाटक और बच्चों के लिए नाटकों के तीन संग्रह शामिल हैं। उनकी रचनाओं में वयस्कों के लिए गुढ़ा कथा (गूढकथा) - रहस्य - शामिल हैं जो यथार्थवाद को बनाए रखते हैं। मटकरी ने मराठी के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं में कुछ नाटक लिखे। रत्नाकर मटकरी की "डार्कनेस" नामक पुस्तक का मराठी से अंग्रेजी में अनुवाद किया गया था। मटकरी के कई उपन्यासों को मंच के लिए रूपांतरित किया गया है। संगीतमय नाटक चार दिवस प्रेमाचे (चार दिन प्रेमाचे) को 850 से अधिक बार जनता के सामने प्रस्तुत किया गया है, और इसके हिंदी और गुजराती में अनुवादित संस्करण भी प्रस्तुत किए गए हैं। उनका नाटक "लोककथा 78" (लोककथा 78) मराठी और हिंदी में प्रस्तुत किया गया था। नाट्य कैरियर मटकरी ने अपने स्वयं के नाटकों जैसे प्रेम कहानी", विनाशकदुन विनाशकदे", "लोककथा 78", और सते लोटे में अभिनय किया। उन्होंने अदभुतच्य राज्यत (अद्भुताच्या राज्यात) जैसे लोकप्रिय वन मैन शो भी प्रस्तुत किए। मटकरी ने विशेष रूप से आर्ट हाउस थिएटर को बढ़ावा दिया। इस प्रकार, 1972 में, उन्होंने सूत्रधार (सूत्रधार) की स्थापना की, एक संस्था जिसने अब तक 12 कला गृह नाटकों का निर्माण किया है। वयस्कों के लिए नाटकों के निर्माण और निर्देशन के अलावा, मटकरी ने विशेष रूप से 1962 में बाल नाट्य संस्था (बालनाट्यसंस्था) की स्थापना की, जिसने अब तक बच्चों के लिए 22 नाटकों का निर्माण किया है, जिनमें से अधिकांश एकांकी हैं। उन्होंने इनमें से कई नाटकों में एक अभिनेता के रूप में अभिनय किया, जिनमें संगति (सांगाती), "शरवरी (शर्वरी), "चित्रतले घर" (चित्रतले घर), और "तुमची गोष्ट (तुमची गोष्ट ) शामिल हैं। निखारे द न्यू प्ले भारत में कोविड-19 महामारी से मृत्यु भारतीय टीवी निर्देशक संगीत नाटक अकादमी पुरस्कृत मुंबई विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र मराठी लेखक २०२० में निधन 1938 में जन्मे लोग Pages with unreviewed translations
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श्रीलंका की भाषाएं
श्रीलंका (आधिकारिक नाम श्रीलंका समाजवादी जनतांत्रिक गणराज्य) दक्षिण एशिया में हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में स्थित एक द्वीपीय देश है। भारत के दक्षिण में स्थित इस देश की दूरी भारत से मात्र ३१ किलोमीटर है। १९७२ तक इसका नाम सीलोन (अंग्रेजी:Ceylon) था, जिसे १९७२ में बदलकर लंका तथा १९७८ में इसके आगे सम्मानसूचक शब्द "श्री" जोड़कर श्रीलंका कर दिvbhnhgया गया। श्रीलंका का सबसे बड़ा नगर कोलम्बो समुद्री परिवहन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण yash kumar बन्दरगाह है। श्रीलंका में भारत-यूरोपीय, द्रविड़ और ऑस्ट्रोनियन परिवारों के भीतर कई भाषाएं बोली जाती हैं। श्रीलंका सिंहली और तमिल को आधिकारिक दर्जा देता है। द्वीप राष्ट्र पर बोली जाने वाली भाषा पड़ोसी भारत, मालदीव और मलेशिया की भाषाओं से गहराई से प्रभावित होती है। अरब बसने वालों और पुर्तगाल, नीदरलैंड और ब्रिटेन की औपनिवेशिक शक्तियों ने श्रीलंका में आधुनिक भाषाओं के विकास को भी प्रभावित किया है। बोली भाषा 2016 तक, सिंहला yash kumar भाषा ज्यादातर सिंहली लोगों द्वारा बोली जाती है, जो राष्ट्रीय आबादी का लगभग 74.9% और कुल 16.6 मिलियन है। यह सिंहला अबुगिदा लिपि का उपयोग करता है, जो प्राचीन ब्रह्मी लिपि से लिया गया है। सिंधला की बोलीभाषा रोडिया भाषा, चोडोदी वेदहास के निम्न जाति समुदाय द्वारा बोली जाती है। माना जाता है कि वेदहा लोग 2002 में केवल 2,500 थे, माना जाता है कि एक बार एक अलग भाषा बोली जाती है, तमिल भाषा श्रीलंकाई तमिलों के साथ-साथ पड़ोसी भारतीय राज्य तमिलनाडु के तमिल प्रवासियों और अधिकांश श्रीलंकाई मूरों द्वारा बोली जाती है। तमिल वक्ताओं की संख्या लगभग 4.7 मिलियन है। श्रीलंकाई क्रेओल मलय भाषा के 50,000 से अधिक वक्ताओं हैं, जो मलय भाषा से काफी प्रभावित हैं। विदेशी प्रभाव की भाषाएं श्रीलंका में अंग्रेजी आबादी के लगभग 10% द्वारा स्पष्ट रूप से बोली जाती है, और व्यापक रूप से आधिकारिक और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाती है। यह लगभग 74,000 लोगों की मूल भाषा है, मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में। पुर्तगाली मूल के 3,400 लोगों में से एक मुट्ठी भर श्रीलंकाई पुर्तगाली बोलते हैं। श्रीलंका में मुस्लिम समुदाय व्यापक रूप से धार्मिक उद्देश्यों के लिए अरबी का उपयोग करता है। शायद ही कभी इस्तेमाल किया जाता है अरवी, तमिल का एक लिखित रजिस्टर है जो अरबी लिपि का उपयोग करता है और अरबी से व्यापक व्याख्यात्मक प्रभाव पड़ता है। संदर्भ श्रीलंका की भाषाएँ
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अध्ययन सुमन
अध्ययन सुमन (जन्म 13 जनवरी 1988, मुम्बई, भारत) एक भारतीय अभिनेता हैं जिन्होनें बॉलीवुड में अपना कार्य हाल-ए-दिल नामक फ़िल्म से किया। वो भारतीय अभिनेता शेखर सुमन के पुत्र हैं। वृत्ति अध्ययन सुमन अभिनेता शेखर सुमन और अलका सुमन के पुत्र हैं। अध्ययन की प्रथम फ़िल्म अनिल देवगन द्वारा निर्देशित और कुमार मंगत द्वारा निर्मित हाल-ए-दिल थी। उनकी प्रथम सफल फ़िल्म इमरान हाशमी और कंगना राणावत द्वारा अभिनीत २००९ में प्रदर्शित फ़िल्म राज़ २ थी, समालचकों के अनुसार उनका प्रदर्शन फ़िल्म में खराब नहीं था और उन्होंने इसमें अच्छा प्रदर्शन नहीं किया लेकिन उनके अनुसार वो प्रमुख नायक का किरदार और उन्हें खलनायक का अभिनय करना चाहिए। महेश भट्ट की फ़िल्म जश्न्न में प्रमुख नायक की भूमिका पाकर उन्होंने समालोचकों को चुप कर दिया। यद्दपि फ़िल्म कोई जादुई प्रभाव नहीं कर पायी लेकिन समालोचकों के अनुसार उनका अभिनय खराब नहीं था। उनकी अगली फ़िल्म अजय देवगन और तमन्ना के साथ २०१३ में प्रदर्शित हिम्मतवाला है। फ़िल्म बाहरी कड़ियाँ अध्ययन सुमन का आधिकारिक वेब पृष्ठ 1988 में जन्मे लोग भारतीय फ़िल्म अभिनेता भारतीय पुरुष आवाज अभिनेताओं जीवित लोग बिहार के लोग
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मूलचन्द सियाग
चौधरी मूलचन्द सियाग (1887 - 1978) राजस्थान में नागौर जिले के महान जाट सेवक, किसानों के रक्षक तथा समाज-सेवी महापुरुष थे। आपने अपने काम के साथ ही अपनी समाज-सेवा, ग्राम-उत्थान ओर शिक्षा प्रसार की योजनानुसार गांव-गांव में घूम-घूम कर किसानों के बच्चों को विद्याध्ययन की प्रेरणा दी। आपने मारवाड़ में छात्रावासों की एक शृंखला खड़ी कर दी। आपने "मारवाड़ जाट कृषक सुधारक सभा" और "मारवाड़ किशान सभा" नामक संस्थाओं की स्थापना की। आपने मारवाड़ जाट इतिहास की रचना करवाई।चौधरी दानवीर सिंह जाट भारतीय मारवाड़ में किसानों की हालत जिस समय चौधरी मूलचन्द का जन्म हुआ, उस समय मारवाड़ में किसानों की हालत बड़ी दयनीय थी। मारवाड़ का ८३ प्रतिशत इलाका जागीरदारों के अधिकार में था इन जागीरदारों में छोटे-बडे सभी तरह के जागीदार थे। छोटे जागीरदार के पास एक गांव था तो बड़े जागीरदार के पास बारह से पचास तक के गांवो के अधिकारी थें और उन्हें प्रशासन, राजस्व व न्यायिक सभी तरह के अधिकार प्राप्त थे। ये जागीरदार किसानों से न केवल मनमाना लगान (पैदावार का आधा भग) वसूल करते थे बल्कि विभिन्न नामों से अनेक लागबों व बेगार भी वसूल करते थें किसानों का भूमि पर कोई अधिकार नहीं था और जागीरदार जब चाहे किसान को जोतने के लिए दे देता था। किसान अपने बच्चों के लिए खेतों से पूंख (कच्चे अनाज की बालियां) हेतु दो-चार सीटियां (बालियां) तक नहीं तोड सकता था। जबकि इसके विपरीत जागीरदार के घोडे उन खेतों में खुले चरते और खेती को उजाड़ते रहते थे और किसान उन्हें खेतों में से नहीं हटा सकते थे। इसके अलावा जागीरदार अपने हासिल (भूराजस्व) की वसूली व देखरेख के लिए एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी जो ‘कण्वारिया‘ कहलाता था, रखता था। यह कणवारिया फसल पकने के दिनों में किसानों की स्त्रियों को खेतों से घर लौटते समय तलाशी लेता था या फिर किसानों के घरों की तलाशी लिया करता था कि कोई किसान खेत से सीटियां तोड़कर तो नहीं लाया है। यदि नया अनाज घर पर मिल जाता था तो उसे शारीरिक और आर्थिक दण्ड दोनों दिया जाता था। लगान के अलावा जागीरदारों ने किसान का शोषण करने के लिए अनेक प्रकार की लागें (अन्य घर) लगा रखी थी जो विभिन्न नामों से वसूल की जाती थी, जैसे मलबा लाग, धुंआ लाग आदि-आदि इसके अलावा बैठ-बेगार का बोझ तो किसानों पर जागीरदार की ओर से इतना भारी था कि किसान उसके दबाव से सदैव ही छोडकर जागीरदार की बेगार करने के लिए जाना पड़ता था। स्वयं किसान को ही नहीं, उनकी स्त्रियों को भी बेगार देनी पड़ती थी। उनको जागीरदारों के घर के लिए आटा पीसना पड़ता था। उनके मकानों को लीपना-पोतना पडता था और भी घर के अन्य कार्य जब चाहे तब करने पड़ते थे। उनका इंकार करने का अधिकार नहीं था और न ही उनमे इतना साहस ही था। इनती सेवा करने पर भी उनको अपमानित किया जाता था। स्त्रियां सोने-चांदी के आभूषण नहीं पहन सकती थी। जागीरदार के गढ के समाने से वे जूते पहनकर नहीं निकल सकती थी। उन्हें अपने जूते उतारकर हाथों में लेने पडते थे। किसान घोडों पर नहीं बैठ सकते थे। उन्हे जागीरदार के सामने खाट पर बैठने का अधिकार नहीं था। वे हथियार लेकर नहीं चल सकते थें किसान के घर में पक्की चीज खुरल एव घट्टी दो ही होती थी। पक्का माकन बना ही नहीं सकते थे। पक्के मकान तो सिर्फ जागीरदार के कोट या महल ही थे। गांव की शोषित आबादी कच्चे मकानों या झोंपड़ियों में ही रहती थी। किसानों को शिक्षा का अधिकार नहीं था। जागीरदार लोग उन्हें परम्परागत धंधे करने पर ही बाध्य करते थे। कुल मिलाकर किसान की आर्थिक व सामाजिक स्थिति बहुत दयनीय थी। जी जान से परिश्रम करने के बाद भी किसान दरिद्र ही बना रहता था क्योंकि उसकी कमाई का अधिकांश भाग जागीरदार और उसके कर्मचारियों के घरों में चला जाता था। ऐसी स्थिती में चौधरी मूलचन्द ने मारवाड़ के किसानों की दशा सुधारने का बीड़ा उठाया। चौधरी श्री मूलचन्दजी का जीवन परिचय चौधरी श्री मूलचन्दजी का जन्म वि॰सं॰ १९४४ (१८८७ई.) पौष कृष्णा ६ को नागौर से लगभग ६ मील उत्तर बालवा नामक एक छोटे-से गांव में चौधरी श्री मोतीरामजी सियाग के घर हुआ था। इनकी माताजी का नाम दुर्गादेवी था। जब ये ९ वर्ष के हुए तब ऑफ पिताजी ने इन्हें नजदीक के गांव अलाय में जैन यति गुरांसा अमरविजयजी के पास उपासरे में पढने हेतु भेज दिया। उपासरे में भोजन और निवास दोनों सुविधाएं थी। उपासरे के बाहर गांव में भी एक अन्य स्थान पर शिक्षक पुरानी पद्धति से हिन्दी भाषा और गणित के पहाड़े व हिसाब करना आदि पढाते थे, मूलचन्दजी उपासरे के अलावा वहां भी पढने जाने लगे। जैन उपासरे की अनुशासित व संयमी दिनचर्या यथा समय पर उठना, शौच जान, उपासरे की सफाई करना, स्नान, भोजन और फिर पढने जाना आदि से मूलचन्दजी में समय का सदुपयोग व परिश्रम करने की आदत विकसित हुई। तीन वर्ष तक यही क्रम चलता रहा जिससे आपको पढने-लिखने व हिसाब किताब का पूरा ज्ञान हो गया। प्रायः सब प्रकार की हिनदी पुस्तकों को आप पढने और समझने लगे थे। कुछ संस्कृत के लोक भी अर्थ सहित याद कर लिये गये थे। गणित के जटिल प्रश्नों को हल करने की क्षमता भी विकसित हो गयी थी। उपासरे में धर्म-चर्चा व उससे सम्बंधित प्राप्त पुस्तकें, प्रवासी जैन बंधुओं से मिलना व उनसे चर्चा करना आदि से आपका ज्ञान बढता ही गया, बुद्धि में प्रखरता और विचारों में व्यावहारिक पढाई में पारंगत हो जाने के बाद चौधरी मूलचन्दजी अपने अध्यापक व जैन गुरांसा से आशीर्वाद लेकर पास के एक गांव गोगे लाव में बच्चों को पढाने हेतु अध्यापक बनकर चले गये। अलया में जहां चौधरी साहब विद्यार्थी थे, वहां गोगेलाव में अध्यापक होने के नाते इन्हें अपने व्यवहार में बदलाव लाना पडा। गांव में अब विद्यार्थियों के अलावा गांववासी भी आपका सम्मान व अभिवादन करते थे। आप वहां विद्यार्थियों को हिन्दी व गणित पढाने के साथ व्यावहारिक ज्ञान और सदाचरण की शिक्षा भी देते थे। पढने वाले बच्चों में ज्यादातर महाजनों के बच्चे थे। चौधरी सहाब का इन दिनों ऐसे व्यक्तियों से समफ हुआ। जो अंग्रेजी जानते थे। तब इन्हें भी अपने में अंग्रेजी ज्ञान की कमी महसूस होने लगी और धीरे-धीरे इनमें अंग्रेजी पढने की जिज्ञासा बढने लगी। गोगेलाव में अंग्रेजी पढना संभव नहीं था, क्योंकि एक तो वे स्वयं अध्यापक थे और दूसरा यहां जो भी अंग्रेजी पढे-लिखे लोग आते थे, अधिक समय नहीं ठहरते थे और छुट्टी पर चले जाते थे। अन्त में अंग्रेजी पढने की इच्छा अधिकाधिक बलवती होने पर ढाई-तीन वर्ष गोगेलाव में रहने के बाद पुनः अलाव लौट आये। चौधरी मूलचन्दजी अलाव में वापस गुरांसा के पास जैन उपासरे में रहनें लगे और अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त करने हेतु रेल्वे के बाबू और स्टेशन मास्टर के पास आने जाने लगे और अंग्रेजी पढने लगे। अब चौधरी साहब को उपासरे में भोजन करने से ग्लानि होने लगी तो उन्होंने रेल्वे गार्ड से कोई काम दिलाने की प्रार्थना की। गार्ड इन्हें सूरतगढ ले गया और वहां रेल्वे के पी.डब्ल्यू.आई. के यहां नौकर रखवा दिया। कुछ दिनों तक घर पर कार्य करने के बाद गार्ड ने इन्हें आठ रुपया मासिक पर रेल्वे की नौकरी में लगा दिया, जहां टंकी में पानी ऊपर चढाने वाली मशीन पर काम करना था। इनके बड़े भाई श्री रामकरणजी उस समय कमाने के लिए कानपुर गये हुए थें जब वह वापस घर आये, चौधरी मूलचन्दजी को भी अपने साथ कानपुर ले गये ताकि ज्यादा कमाया जा सके। परन्तु जब वहां इनके लायक कोई काम नहीं मिला तो आप पुनः सूरतगढ लौट आये। चौधरी साहब अब यहां अस्पताल जाकर कपाउण्डरी का काम सीखने लगे। कुछ दिनों बाद यहीं पर आपका परिचय पोस्ट ऑफिस के संसपेक्टर महोदय से हुआ जिन्होने पोस्ट ऑफिस में मेल-पियोन के पद पर लगा दिया। कुछ दिनों तक काम सीखने के बाद आपको एक महीने में पोस्टमैन बनाकर महाजन (बीकानेर रियासत) स्टेशन भेज दिया। वहां चौधरी साहब डाक बांटने हेतु घर-घर और गांव-गांव घूमने लगे और अनेक व्यक्तियों के संपर्क में आने लगें अत्यन्त मनोयोग व प्रसन्नतापूर्वक काम करने के कारण महाजन के सभी समाज और वर्गों के लोग इनसे बहुत खुश थें इसी बीच इनका तबादला सूरतगढ हो गया। वहां वह पहले भी रह चुके थे। सूरतगढ में आप कई वर्ष तक रहे। इस दौरान अनेक विषयों की पुस्तकों के पठन तथा मनन और विशिष्टजनों के सत्संग के साथ पोस्टमैन का कार्य बड़ी ईमानदारी से करते रहें सूरतगढ से फिर आपका तबादला नोखा हो गया, जहां ढाई तीन वर्ष के लगभग रहें अन्त में नोखा से आपकी बदला अपने ही घर नागौर में हो गई। इस दौरान चौधरी साहब के मन में समाज-सेवा का भाव पैदा हो गया था और वह इस दिशा में कार्य करने लग गये थे। नागौर में आपको देहातो में डाक वितरण का कार्य सौंपा गया था। आप अपने काम के साथ् ही अपनी समाज-सेवा, ग्राम-उत्थान ओर शिक्षा प्रसार की योजनानुसार गांव-गांव में घूम-घूम कर किसानों के बच्चों को विद्याध्ययन की प्रेरणा देने लगे। इससे जागीरदारों को बड़ी तकलीफ होने लगी और उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर इनका स्थानान्तरण गांवो से नागौर शहर की ड्यूटी पर करवा दियां फिर भी आप अपने मिशन में लगे रहे और जब समाज-सेवा के कार्य भार ज्यादा बढने लगा तो आपने १९३५ ई. में नौकरी से त्यागपत्र देकर पूरे जोश के साथ कृषक समाज के उत्थान के कार्य में जुट गये और अनेक कष्टों को सहते हुए अंतिम सांस तक इसी कार्य में लगे रहे। शिक्षा के माध्यम से जन सेवा चौधरी मूलचन्दजी जी के मन में शिक्षा के माध्यम से जन सेवा की प्रेरणा जाट स्कूल संगरिया से मिली। आपके प्रयास से ४ अप्रैल १९२७ को चौधरी गुल्लारामजी के मकान में "जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर" की स्थापना की। चौधरी मूलचन्दजी की इच्छा नागौर में छात्रावास खोलने की थी। आपने अपने घर पर कुछ छात्रों को पढ़ने के लिए रखा। बाद में बकता सागर तालाब पर २१ अगस्त १९३० को नए छात्रावास की नींव डाली। इस छात्रावास के खर्चे की पूरी जिम्मेदारी चौधरी मूलचन्दजी पर थी। आपने जाट नेताओं के सहयोग से अनेक छात्रावास खुलवाए। बाडमेर में १९३४ में चौधरी रामदानजी डऊकिया की मदद से छात्रावास की आधारशिला रखी। १९३५ में मेड़ता छात्रवास खोला। आपने जाट नेताओं के सहयोग से जो छात्रावास खोले उनमें प्रमुख हैं:- सूबेदार पन्नारामजी धीन्गासरा व किसनाराम जी रोज छोटी खाटू के सहयोग से डीडवाना में, ईश्वर रामजी महाराजपुरा के सहयोग से मारोठ में, भींयाराम जी सीहाग के सहयोग से परबतसर में, हेतरामजी के सहयोग से खींवसर में छात्रावास खुलवाए। इन छात्रावासों के अलावा पीपाड़, कुचेरा, लाडनूं, रोल, जायल, अलाय, बिलाडा, रतकुडि़या, आदि स्थानों पर भी छात्रावासों की एक शृंखला खड़ी कर दी। इस शिक्षा प्रचार में मारवाड़ के जाटों ने अपने पैरों पर खड़ा होने में राजस्थान के तमाम जाटों को पीछे छोड़ दिया। मारवाड़ जाट कृषक सुधारक सभा के संस्थापक सन् १९३७ में चटालिया गांव के जागीरदार ने जाटों की ८ ढाणियों पर हमला कर लूटा और अमानुषिक व्यवहार किया। चौधरी साहब को इससे बड़ी पीड़ा हुई और उन्होंने तय किया की जाटों की रक्षा तथा उनकी आवाज बुलंद करने के लिए एक प्रभावशाली संगठन आवश्यक है। अतः जोधपुर राज्य के किसानों के हित के लिए २२ अगस्त १९३८ को तेजा दशमी के दिन परबतसर के पशु मेले के अवसर पर "मारवाड़ जाट कृषक सुधारक सभा" नामक संस्था की स्थापना की। चौधरी मूलचंद इस सभा के प्रधानमंत्री बने और गुल्लाराम जी रतकुड़िया इसके अध्यक्ष नियुक्त हुए। मारवाड़ किसान सभा की स्थापना किसानों की प्रगति को देखकर मारवाड़ के जागीरदार बोखला गए। उन्होंने किसानों का शोषण बढ़ा दिया और उनके हमले भी तेज हो गए। जाट नेता अब यह सोचने को मजबूर हुए की उनका एक राजनैतिक संगठन होना चाहिए। सब किसान नेता २२ जून १९४१ को जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर में इकट्ठे हुए जिसमें तय किया गया कि २७ जून १९४१ को सुमेर स्कूल जोधपुर में मारवाड़ के किसानों की एक सभा बुलाई जाए और उसमें एक संगठन बनाया जाए। तदानुसार उस दिनांक को मारवाड़ किसान सभा की स्थापना की घोषणा की गयी और मंगल सिंह कच्छवाहा को अध्यक्ष तथा बालकिशन को मंत्री नियुक्त किया गया। मारवाड़ किशान सभा का प्रथम अधिवेशन २७-२८ जून १९४१ को जोधपुर में आयोजित किया गया। मारवाड़ किसान सभा ने अनेक बुलेटिन जारी कर अत्यधिक लगान तथा लागबाग समाप्त करने की मांग की। मारवाड़ किसान सभा का दूसरा अधिवेशन २५-२६ अप्रैल १९४३ को सर छोटू राम की अध्यक्षता में जोधपुर में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में जोधपर के महाराजा भी उपस्थित हुए। वास्तव में यह सम्मेलन मारवाड़ के किसान जागृति के इतिहास में एक एतिहासिक घटना थी। इस अधिवेशन में किसान सभा द्वारा निवेदन करने पर जोधपुर महाराज ने मारवाड़ के जागीरी क्षेत्रों में भूमि बंदोबस्त शु्रू करवाने की घोषणा की। मारवाड़ किसान सभा जाटों के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि थी। मारवाड़ जाट इतिहास के रचयिता १९३४ में सीकर में आयोजित जाट प्रजापति महायज्ञ के अवसर पर ठाकुर देशराज ने 'जाट इतिहास' प्रकाशित कराया, तब से ही चौधरी मूलचन्दजी के मन में लगन लगी कि मारवाड़ के जाटों का भी विस्तृत एवं प्रामाणिक रूप से इतिहास लिखवाया जाए क्योंकि 'जाट इतिहास' में मारवाड़ के जाटों के बारे में बहुत कम लिखा है। तभी से आप ठाकुर देशराज जी से बार-बार आग्रह करते रहे। आख़िर में आपका यह प्रयत्न सफल रहा और ठाकुर देशराज जी ने १९४३ से १९५३ तक मारवाड़ की यात्राएं की, उनके साथ आप भी रहे, प्रसिद्ध-प्रसिद्ध गांवों व शहरों में घूमे, शोध सामग्री एकत्र की, खर्चे का प्रबंध किया और १९५४ में "मारवाड़ का जाट इतिहास" नामक ग्रन्थ प्रकाशित कराने में सफल रहे। मारवाड़ के जाटों के लिए चौधरी मूलचंदजी की यह अमूल्य देन थी। जाट जाति के गौरव को प्रकट करने वाले साहित्य के प्रकाशन व प्रचार में भी चौधरी मूलचंदजी की बड़ी रूचि थी। ठाकुर देशराज जी द्वारा लिखित 'जाट इतिहास' के प्रकाशन व प्रचार में आपने बहुत योगदान दिया एवं जगह-जगह स्वयं ने जाकर इसे बेचा। 'जाट वीर तेजा भजनावाली' तथा 'वीर भक्तांगना रानाबाई' पुस्तकों का लेखन व प्रकाशन भी आपने ही करवाया था। आपने जाट जाति के सम्बन्ध में उस समय तक जितना भी साहित्य प्रकाशित हुआ था, उसे मंगवाकर संग्रह किया तथा उसके लिए नागौर के छात्रावास में एक पुस्तकालय स्थापित किया। अब यह पुस्तकालय आपके नाम से "श्री चौधरी मूलचंदजी सीहाग स्मृति जाट समाज पुस्तकालय" किशान केसरी श्री बलदेवराम मिर्धा स्मारक ट्रस्ट धर्मशाला नागौर में स्थित है। चौधरी मूलचन्द जी का मूल्यांकन चौधरी मूलचन्द जी सीहाग का मूल्यांकन करें तो वे अपने आप में एक जीवित संस्था थे, उनके द्वारा स्थापित संस्थाएं तो केवल उनकी छाया मात्र थी। वे भारत के अन्य प्रान्तों में 'राजस्थान के महारथी' के नाम से प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन जातीय सेवा व मारवाड़ के किसानों की दशा सुधारने व उन्हें ऊंचा उठाने में लगा दिया और जीवन के अन्तिम समय तक उसमें लगे रहे। उनकी सेवाओं के लिए १७ जनवरी १९७५ को विशाल समारोह में मारवाड़ के कृषक समाज की और से आपको एक अभिनन्दन पत्र भेंट किया गया जिसमें आपको "किशान जागृति के अग्रदूत" और 'कर्मठ समाज सुधारक' के रूप में याद किया चौधरी बलदेव राम जी मिर्धा तो यहाँ तक कहा करते थे किमुझे जनसेवा के कार्य को करने में यदि किसी एक व्यक्ति ने प्रेरणा दी तो वह चौधरी मूलचन्द जी सीहाग थे। ऐसे महान जाट सेवक, किसानों के रक्षक तथा समाज-सेवी चौधरी मूलचन्द जी सीहाग का देहावसान पौष शुक्ला १३ संवत २०३४ तदनुसार शनिवार २१ जनवरी १९७८ को हो गया। राजस्थान राजस्थान के लोग
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क्रोएशिया
क्रोएशिया दक्षिण पूर्व यूरोप यानि बाल्कन में पानोनियन प्लेन, और भूमध्य सागर के बीच बसा एक देश है। देश का दक्षिण और पश्चिमी किनारा एड्रियाटिक सागर से मिलता है। देश की राजधानी और सबसे बड़ा शहर जगरेब है, जो तट से भीतर स्थित है। एड्रियाटिक सागर के किनारे कई हज़ार द्वीप हैं, इस समुद्र के किनारे पर्यटन के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ हैं। पूर्व यूगोस्लाविविया के देश इनके पड़ोसी हैं जैसे - उत्तर में स्लोवेनिया और हंगरी, उत्तर पूर्व में सर्बिया, पूर्व में बॉस्निया और हर्ज़ेगोविना और दक्षिण पूर्व में मोंटेंग्रो से इसकी सीमाएं मिलती हैं। एड्रियाटिक सागर के पार इटली है (350 km) जिसका द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यहाँ उपस्थिति थी। यहाँ के निवासी मुख्यतः क्रोएट हैं जो अपने आपको ह्राओत कहते हैं। यहाँ की भाषा भी पूर्वी स्लाविक वर्ग में आती है। आज जिसे क्रोएशिया के नाम से जाना जाता है, वहां सातवीं शताब्दी में क्रोट्स ने कदम रखा था। उन्होंने राज्य को संगठित किया। तामिस्लाव प्रथम का 925 ई. में राज्याभिषेक किया गया और क्रोएशिया राज्य बना। राज्य के रूप में क्रोएशिया ने अपनी स्वायत्तता करीबन दो शताब्दियों तक बरकरार रखी और राजा पीटर क्रेशमिर चतुर्थ और जोनीमिर के शासन के दौरान अपनी ऊंचाई पर पहुंचा। वर्ष 1102 में पेक्टा समझौता के माध्यम से क्रोएशिया के राजा ने हंगरी के राजा के साथ विवादास्पद समझौता किया। वर्ष 1526 में क्रोएशियन संसद ने फ्रेडिनेंड को हाउस ऑफ हाब्सबर्ग से सिहांसन पर आरुढ़ किया। 1918 में क्रोएशिया ने आस्ट्रिया-हंगरी से अलग होने की घोषणा कर यूगोस्लाविया राज्य में सहस्थापक के रूप में जुड़ गया। द्वितीय विश्व युद्ध के समय नाजियों ने क्रोएशिया के क्षेत्र पर कब्जा जमा स्वतंत्र राज्य क्रोएशिया की स्थापना की। युद्ध खत्म होने के बाद क्रोएशिया दूसरे यूगोस्लाविया के संस्थापक सदस्य के रूप में शामिल हो गया। 25 जून 1991 में क्रोएशिया ने स्वतंत्रता की घोषणा करते हुए संप्रभु राज्य बन गया। भूगोल मध्य में पहाड़ी और तट पर एड्रियाटिक का महत्वपूर्ण स्थान है। औसत तापमान -३ से १८ डिग्री तक रहता है। भूमध्य सागर के किनारे होने से तटीय इलाक़ों में भूमध्यसागरीय जलवायु है। क्षेत्र मध्य क्रोएशिया स्लावोनिया इस्त्रिया डाल्मेशिया महत्वपूर्ण शहर ज़ाग्रेब स्प्लिट ज़दरी रिजेका सलोना पोला ओसिजेक यह भी देखिए wikt:क्रोएशिया (विक्षनरी) सन्दर्भ यूरोप के देश
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भुवन बाम
भुवन बाम (जन्म 22 जनवरी 1994) दिल्ली, भारत के एक भारतीय हास्य कलाकार, गायक, गीतकार और यूट्यूब व्यक्तित्व हैं। उन्हें उनके यूट्यूब कॉमेडी चैनल "बीबी की वाइन्स" के लिए जाना जाता है। भुवन 2018 में १० मिलियन सब्सक्राइबर को पार करने वाले पहले भारतीय यूट्यूबर बने थे। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा भुवन बाम का जन्म 22 जनवरी 1994 को दिल्ली में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक (प्रारम्भिक) शिक्षा ग्रीन फील्ड्स स्कूल, दिल्ली से की और शहीद भगत सिंह कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।भुवन बाम ने अपने करियर की शुरुआत एक संगीतकार के रूप में रेस्त्राँ में की और बाद में उन्होंने खुद के गानों की रचना शुरू की। यूट्यूब कैरियर भुवन बाम ने अपने इंटरनेट करियर की शुरुआत एक न्यूज रिपोर्टर के व्यंग्यात्मक वीडियो से की, जिसने कश्मीर बाढ़ के कारण एक महिला से अपने बेटे की मौत के बारे में असंवेदनशील सवाल पूछा, जिसे फेसबुक पर लगभग १५ विचार मिले। उनका पहला वीडियो पाकिस्तान में वायरल हुआ, जिसने जून 2015 में बाम को अपना खुद का यूट्यूब चैनल बनाने के लिए प्रेरित किया। बीबी की वाइन्स बीबी की वाइन्स एक यूट्यूब चैनल है, जिसके 2-10 मिनट तक के लंबे वीडियो में नगरीय किशोरों के जीवन को दर्शाया गया है, और उनके दोस्तों और परिवार के साथ उसकी सनसनीखेज बातचीत - सभी पात्र स्वयं भुवन बाम के द्वारा निभाये गये हैं। वीडियो को बाम द्वारा एक फोन पर फ्रंट कैमरे का उपयोग करके फिल्माया गया है। उन्होंने मूल रूप से अपने वीडियो फेसबुक पर अपलोड किए, और फिर यूट्यूब पर चले गए। बाम इंडिया फिल्म प्रोजेक्टिन २०१८ में एक अतिथि वक्ता थे, जहां उन्होंने भारत के सबसे बड़े 'डिजिटल स्टार' बनने की अपनी यात्रा के बारे में बताया था। फेस्टिवल में उन्होंने मल्लिका दुआ और कनीज़ सुरका के साथ भारत में कॉमेडी के परिदृश्य पर भी चर्चा की। अकेले ही उनके सारे किरदार निभाते हैं चाहे वह बेंचो का हो या उनके टीटू मामा का इसीलिए कई लोगो का मानना यह भी है कि भुवन वन मैन आर्मी हैं। हाल ही में उनका एक गाना और शॉर्ट फिल्म भी आयी थी ,जिसने लोगो के दिल में काफी जगह बनाई थी। सन्दर्भ भारतीय यूट्यूब प्रयोगकर्ता 1994 में जन्मे लोग भारतीय संगीत कलाकार दिल्ली के लोग भारतीय यूट्यूबर बाहरी कड़ियाँ
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स्क्रूज मैकडक
स्क्रूज मैकडक (Scrooge McDuckScrooge McDuck) सन १९४७ में सृजित एक कार्टून पात्र है। इसका विकास वाल्ट डिजनी कम्पनी के लिए कार्ल बार्क्स (Carl Barks) ने किया था। ये स्काटिश मूल का अमेरिकी अरबपति है जो बहुत ज्यादा कंजूस है। ये डोनाल्ड डक का चाचा है। पैसा कमाना कोई इस पात्र से सीखे। माना जाता है कि ये पात्र अमेरिकी अरबपति रोकफेलर पे किया गया व्यगंय है अपना पैसा कमाने तथा बचाने हेतु ये किसी भी सीमा तक जा सकता है। बिगल बोयज, फ्लिनट हार्ट ग्लोमगोल्ड ्, मैजिका द स्पैल इसके सबसे बड़े दुशमन हैं। डोनाल्ड डक के तीन भतीजें लुई, ड्युई, हुई इसके सबसे विश्वास पात्र साथी है। लांच पैड इसका विमान चालक है, ये डकबर्ग नामक नगर के निवासी हैं। जायरो इसका वैज्ञानिक सलाहकार है। इसके किस्से डकटेलस के नाम से आते रहे हैं। डक्ट्रेप में डुब्बी वैन्डक, उसकी बेटी वैन्डक जो अपनी सीईओ द्वारा बंद कर रहा था, जो अपनी सीईओ द्वारा बंद था, प्रतिदान/मुझे देख रहे हैं कि डाक्टर्ड के बारे में डालू और प्रतिदान के रूप में डाला नहीं है। रचनाकार इतिहास प्रमुख पात्र विशेष घटनाएँ कार्टून
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हानबोक
हानबोक ( दक्षिण कोरिया में) या चोसन-ओत ( उत्तर कोरिया में) पारंपरिक कोरियाई कपड़े हैं। "हानबोक" शब्द का शाब्दिक अर्थ है "कोरियाई कपड़े"। हानबोक को कोरिया काल के तीन साम्राज्यों (पहली शताब्दी ईसा पूर्व -7 वीं शताब्दी ईस्वी) में खोजा जा सकता है, जो अब उत्तरी कोरिया और मंचूरिया के लोगों में जड़ें हैं। हानबोक के प्रारंभिक रूपों को इसी अवधि में गोगुरियो मकबरे के भित्ति चित्रों की कला में देखा जा सकता है, जिसमें 5वीं शताब्दी की सबसे शुरुआती भित्ति चित्र हैं। इस समय से, हानबोक की मूल संरचना में जोगोरी जैकेट, बाजी पैंट, छीमा स्कर्ट और पो कोट शामिल थे। हानबोक की मूल संरचना को चलने-फिरने में आसानी की सुविधा के लिए डिजाइन किया गया था और शामनावादी प्रकृति के कई रूपों को एकीकृत किया गया था। हानबोक की ये बुनियादी संरचनात्मक विशेषताएं आज भी अपेक्षाकृत अपरिवर्तित बनी हुई हैं। हालाँकि, वर्तमान में हनबोक जो आजकल पहना जाता है, जोसॉन राजवंश में पहने जाने वाले हानबोक के बाद का पैटर्न है। एडी 7 के बाद कोरिया के शासकों और अभिजात वर्ग के कपड़े विदेशी और स्वदेशी दोनों शैलियों से प्रभावित थे, जिसमें विभिन्न चीनी राजवंशों के महत्वपूर्ण प्रभाव शामिल थे, जिसके परिणामस्वरूप कपड़ों की कुछ शैलियों, जैसे कि सोंग राजवंश से सिमुई, पुरुष अधिकारियों द्वारा पहने जाने वाले ग्वानबोक को तीन राज्यों की अवधि में देखा जा सकता है और बाद में तांग, सोंग, और मिंग राजवंशों, की अदालती कपड़ों की प्रणाली से प्रभावित हुए, और दरबार में महिलाओं के दरबार के कपड़े और राजघराने की महिलाएं के कपड़े तांग और मिंग राजवंशों की कपड़ों की शैली से प्रभावित थीं, गोरियो राजवंश के दौरान मंगोल कपड़ों से चोलिक, और मांचू कपड़ों से मागोजा । सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी द्विपक्षीय था और उच्च वर्ग द्वारा पहने जाने वाले युआन राजवंश के कुछ कपड़ों पर गोरियो हानबोक का सांस्कृतिक प्रभाव था (अर्थात मंगोल शाही महिलाओं के कपड़े और युआन शाही दरबार में पहने जाने वाले कपड़े )। आम लोग इन विदेशी फैशन प्रवृत्तियों से कम प्रभावित थे, और मुख्य रूप से उच्च वर्गों से अलग स्वदेशी कपड़ों की शैली पहनते थे। जोगोरी को दाईं ओर बंद करना हान चीनी जैकेट की नकल है, बंद करने की इस शैली को यूरेन (右衽) कहा जाता है और कम से कम शांग राजवंश के बाद से चीन में उत्पन्न हुआ है। हालाँकि, प्राचीन जोगोरी की उत्पत्ति हुई है या हुफू या खानाबदोश पोशाक से प्रभावित हुई है, जो एशिया में उत्तरी खानाबदोश लोगों द्वारा पहनी जाती है, हुफू विशेषताओं को साझा करना जैसे कि शुरू में जोगोरी को सामने से बंद करना बाईं ओर (左袵 ज़ुओरेन ), संकीर्ण आस्तीन और पतलून के साथ पहना जाना। पोशाक का समान संयोजन (यानी जैकेट और पतलून) चीनी कपड़ों के इतिहास में रुकू (चीनी के लिए स्वदेशी और किंग वूलिंग द्वारा हुफू को अपनाने से पहले भी इस्तेमाल किया जाता है) और कुक्सी (袴褶), किंग वूलिंग द्वारा अपनाई गई हुफू-शैली की पोशाक, के उपयोग के माध्यम से दिखाई देते हैं, जिसे शांग्शी ज़ियाकु (चीनी भाषा: 上褶下袴; शाब्दिक रूप से 'ऊपरी शरीर पर छोटा कोट, निचले शरीर पर पतलून') संकीर्ण आस्तीन के साथ छोटे कोट और बंद रियर के साथ पतलून की रचना। हालांकि, बंद रियर वाली पतलून खानाबदोश शैली की पतलून थी जिसे किंग वूलिंग ने पेश किया था और इसे वास्तव में कू के बजाय कुन (裈) के रूप में संदर्भित किया जाना चाहिए; कुन मुख्य रूप से योद्धाओं और नौकरों द्वारा पहना जाता था और सामान्य आबादी द्वारा नहीं पहना जाता था। कोरियाई औपचारिक या अर्ध-औपचारिक अवसरों और कार्यक्रमों जैसे त्योहारों, समारोहों और अनुष्ठानों के लिए हानबोक पहनते हैं। 1996 में, दक्षिण कोरियाई संस्कृति, खेल और पर्यटन मंत्रालय ने दक्षिण कोरियाई नागरिकों को हानबोक पहनने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए "हानबोक दिवस" की स्थापना की। शब्द-साधन हानबोक नाम का पहला रिकॉर्ड किया गया सबूत 1881 के दस्तावेज़ जौंगचिइल्गी ( हंगुल : 정치일기) से है। दस्तावेज़ में, जापानी पारंपरिक कपड़ों और पश्चिमी कपड़ों से कोरियाई कपड़ों को अलग करने के लिए हानबोक का इस्तेमाल किया गया था। जापानी कपड़ों से कोरियाई कपड़ों को अलग करने के लिए महारानी म्योंगसौंग की हत्या का वर्णन करने वाले 1895 के दस्तावेज़ में हानबोक का इस्तेमाल किया गया था। नाम की उत्पत्ति स्पष्ट नहीं है, क्योंकि ये दस्तावेज कोरियाई साम्राज्य ( हंगुल : 대한제국) से पहले के हैं, जिसने हंजा हान को लोकप्रिय बनाया। 1900 से शुरू होकर, कोरियाई समाचार पत्रों ने हंजा हन का इस्तेमाल उन शब्दों में किया जो कोरियाई कपड़ों का वर्णन करते हैं, जैसे कि हैंगुगयूइबोग ( हंगुल : 한국의복), हैंगुगयेबोग ( हंगुल : 한국예복) और डेहान-न्योबोग ( हंगुल : 대한녀복)। हानबोक का इस्तेमाल 1905 के एक अखबार के लेख में किया गया था, जिसमें कोरियाई कपड़े पहने धर्मी सेना का वर्णन किया गया था। 1 मार्च के आंदोलन के बाद, हानबोक कोरियाई लोगों का एक महत्वपूर्ण जातीय प्रतीक बन गया। 1900 के दशक में बढ़ते राष्ट्रवाद से प्रभावित होकर, हानबोक एक ऐसा शब्द बन गया जिसका अर्थ है कोरियाई लोगों के अनूठे कपड़े जिन्हें दूसरों से अलग किया जा सकता है, जैसे कि जापानी, पश्चिमी और चीनी कपड़े। एक ही अर्थ के साथ अन्य शब्द, उरिओत ( हंगुल : 우리옷 ) और जोसॉनओत (हंगुल : 조선옷), एक साथ उपयोग किए गए थे। जोसॉनओत, जो उत्तर में अधिक लोकप्रिय था, कोरिया के विभाजन के बाद उत्तर कोरिया में अन्य की जगह ले लिया। निर्माण और डिजाइन परंपरागत रूप से, महिलाओं के हानबोक में जोगोरी (एक ब्लाउज शर्ट या जैकेट) और छीमा (एक पूर्ण, लपेटने वाली स्कर्ट) शामिल होती है। पहनावा को अक्सर 'चीमा जोगोरी' के रूप में जाना जाता है। पुरुषों के हानबोक में जोगोरी और लूज फिटिंग वाली बाजी (पतलून) होती है। जोगोरी जोगोरी हानबोक का मूल ऊपरी वस्त्र है, जो पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा पहना जाता है। यह हाथ और पहनने वाले के शरीर के ऊपरी हिस्से को कवर करता है। जोगोरी के मूल रूप में गिल, गित, डोंगजोंग, गोरम और आस्तीन होते हैं। गिल ( हंगुल : 길) आगे और पीछे दोनों तरफ परिधान का बड़ा हिस्सा है, और गित ( हंगुल : 깃) कपड़े का एक बैंड है जो कॉलर को ट्रिम करता है। डोंगजोंग ( हंगुल : 동정) एक हटाने योग्य सफेद कॉलर है जिसे गित के अंत में रखा जाता है और आमतौर पर इसे चुकता किया जाता है। गोरम ( हंगुल : 고름) कोट-स्ट्रिंग हैं जो जोगोरी को बांधते हैं। महिलाओं के जोगोरी में कुतडोंग ( हंगुल : 끝동) हो सकता है, जो आस्तीन के अंत में रखा गया एक अलग रंग का कफ होता है। दो जोगोरी अपनी तरह की सबसे पुरानी जीवित पुरातात्विक खोज हो सकती हैं। यांगचॉग हॉ कबीले के मकबरे में से एक दिनांक 1400-1450 है, जबकि दूसरा सांगवोन्सा मंदिर (संभवतः एक भेंट के रूप में छोड़ दिया गया) में बुद्ध की एक मूर्ति के अंदर खोजा गया था, जो 1460 के दशक का है। समय के साथ जोगोरी का रूप बदल गया है। जबकि पुरुषों की जोगोरी अपेक्षाकृत अपरिवर्तित रही, जोसॉन राजवंश के दौरान महिलाओं की जोगोरी नाटकीय रूप से कम हो गई, जो 19 वीं शताब्दी के अंत में अपनी सबसे छोटी लंबाई तक पहुंच गई। हालाँकि, सुधार के प्रयासों और व्यावहारिक कारणों से, महिलाओं के लिए आधुनिक जोगोरी अपने पहले के समकक्षों की तुलना में अधिक लंबी है। बहरहाल, लंबाई अभी भी कमर से ऊपर है। परंपरागत रूप से, गोरम छोटे और संकीर्ण थे, हालांकि आधुनिक गोरम लंबे और चौड़े हैं। कपड़े, सिलाई तकनीक और आकार में भिन्न-भिन्न प्रकार की जोगोरी हैं। छीमा छीमा "स्कर्ट" को संदर्भित करता है, जिसे हंजा में सांग () या गन () भी कहा जाता है। अंडरस्कर्ट, या पेटीकोट परत को सोक्चिमा कहा जाता है। गोगुरियो के प्राचीन भित्ति चित्रों और ह्वांगनाम-डोंग, ग्योंग्जू के पड़ोस से खुदाई में मिले मिट्टी के खिलौने के अनुसार, गोगुरियो महिलाओं ने बेल्ट को ढकते हुए जोगोरी के साथ एक चीमा पहना था। हालांकि धारीदार, चिथड़े और गोर स्कर्ट गोगुरियो और जोसॉन काल से जाने जाते हैं, छीमा आम तौर पर आयताकार कपड़े से बने होते थे जिन्हें स्कर्ट बैंड में कल्लोलित या इकट्ठा किया जाता था। इस कमरबंद ने स्कर्ट के कपड़े को ही आगे बढ़ाया और स्कर्ट को शरीर के चारों ओर बन्धन के लिए बनाया। सोक्चिमा को मोटे तौर पर 20वीं शताब्दी की शुरुआत तक ओवरस्कर्ट के समान तरीके से बनाया गया था, जब पट्टियाँ जोड़ी गईं, बाद में एक बिना आस्तीन की चोली या 'सुधारित' पेटीकोट में विकसित हुई। 20वीं शताब्दी के मध्य तक, कुछ बाहरी छीमा ने बिना आस्तीन की चोली भी प्राप्त कर ली थी, जिसे बाद में जोगोरी द्वारा कवर किया गया था। बाजी बाजी पुरुषों के हानबोक के निचले हिस्से को संदर्भित करता है। यह कोरियाई में "पतलून" के लिए औपचारिक शब्द है। वेस्टर्न स्टाइल पैंट की तुलना में यह टाइट फिट नहीं बैठता। विशाल डिजाइन का उद्देश्य कपड़ों को फर्श पर बैठने के लिए आदर्श बनाना है। यह आधुनिक पतलून के रूप में कार्य करता है, लेकिन आजकल बाजी शब्द का प्रयोग आमतौर पर कोरिया में किसी भी प्रकार की पैंट के लिए किया जाता है। बांधने के लिए बांधने के लिए एक बाजी की कमर के चारों ओर एक पट्टी होती है। पोशाक की शैली, सिलाई विधि, कढ़ाई आदि के आधार पर बाजी अरेखित ट्राउजर, लेदर ट्राउजर, सिल्क पैंट या कॉटन पैंट हो सकते हैं। पो पो एक सामान्य शब्द है जो बाहरी वस्त्र या ओवरकोट का जिक्र करता है। पो के दो सामान्य प्रकार हैं, कोरियाई प्रकार और चीनी प्रकार। कोरियाई प्रकार कोरिया काल के तीन राज्यों की एक सामान्य शैली है, और इसका उपयोग आधुनिक दिनों में किया जाता है। एक बेल्ट का उपयोग तब तक किया जाता था जब तक कि इसे देर से जोसॉन राजवंश के दौरान एक रिबन द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया गया था। दुरुमागी पो की एक किस्म है जिसे सर्दी से बचाव के लिए पहना जाता था। यह व्यापक रूप से जोगोरी और बाजी के ऊपर एक बाहरी वस्त्र के रूप में पहना जाता था। इसे जुमागुई, जुचौई या जुई भी कहा जाता है। चीनी प्रकार चीन से पो की विभिन्न शैलियों है। उत्तर-दक्षिण राज्यों की अवधि से शुरू होकर, 1895 में कोरियाई प्रकार के दुरुमागी को राष्ट्रव्यापी अपनाने तक इतिहास के माध्यम से उनका उपयोग किया गया था। जोकी और मगोजा जोकी ( ) एक प्रकार की बनियान है, जबकि मैगोजा एक बाहरी जैकेट है। हालांकि जोकी और मागोजा जोसॉन राजवंश (1392-1897) के अंत में बनाए गए थे, जिसके बाद सीधे पश्चिमी संस्कृति ने कोरिया को प्रभावित करना शुरू किया, कपड़ों को पारंपरिक कपड़े माना जाता है। प्रत्येक को गर्मजोशी और स्टाइल के लिए जोगोरी के ऊपर भी पहना जाता है। मागोजा कपड़ों को मूल रूप से मांचू लोगों के कपड़ों के अनुसार स्टाइल किया गया था, और 1887 में टियांजिन में अपने राजनीतिक निर्वासन से लौटने के बाद किंग गोजोंग के पिता हेंगसॉन डेवोंगुन के बाद कोरिया में पेश किया गया था। मागोजा उस मैगवे से प्राप्त हुए थे जिसे उन्होंने निर्वासन में वहां की ठंडी जलवायु के कारण पहना था। इसकी गर्मी और पहनने में आसानी के कारण, कोरिया में मागोजा लोकप्रिय हो गया। इसे "डीओत जोगोरी" (शाब्दिक रूप से "एक बाहरी जोगोरी ") या माग्वे भी कहा जाता है। मागोजा में जोगोरी और दुरुमागी (एक ओवरकोट ) के विपरीत, कॉलर को ट्रिम करने वाले कपड़े का बैंड गित, और न ही गोरम (तारों को बांधना ) है। मागोजा मूल रूप से एक पुरुष परिधान था लेकिन बाद में यूनिसेक्स बन गया। पुरुषों के लिए मैगोजा में सोप है (कोरियाई: 섶 , सामने की ओर ओवरलैप्ड कॉलम) और महिलाओं के मगोजा से लंबा है, ताकि दोनों पक्ष नीचे की ओर खुले हों। एक मगोजा रेशम से बना होता है और एक या दो बटनों से सजाया जाता है जो आम तौर पर एम्बर से बने होते हैं। पुरुषों के मगोजा में, बटन दाईं ओर से जुड़े होते हैं, जैसा कि महिलाओं के मगोजा में बाईं ओर होता है। बच्चों के हानबोक परंपरागत रूप से, काची दुरुमागी (शाब्दिक रूप से "एक मैगपाई का ओवरकोट") को सोलबिम ( हंगुल : 설빔) के रूप में पहना जाता था, कोरियाई नव वर्ष पर पहने जाने वाले नए कपड़े और जूते, जबकि वर्तमान में, इसे डोल ,बच्चे के पहले जन्मदिन का जश्न के लिए एक औपचारिक परिधान के रूप में पहना जाता है। यह बच्चों का रंगीन ओवरकोट है। यह ज्यादातर युवा लड़कों द्वारा पहना जाता था। कपड़े को ओबांगजंग दुरुमागी भी कहा जाता है जिसका अर्थ है "पांच दिशाओं का एक ओवरकोट"। इसे जोगोरी (एक जैकेट) और जोकी (एक बनियान) के ऊपर पहना जाता था, जबकि पहनने वाला इसके ऊपर जॉनबोक (एक लंबी बनियान) रख सकता था। काची दुरुमागी को हेडगियर जैसे युवा लड़कों के लिए बोकजॉन (एक चोटी वाली कपड़े की टोपी), होगॉन (बाघ पैटर्न के साथ चोटी वाली कपड़े की टोपी) या युवा लड़कियों के लिए गुल्ले (सजावटी हेडगियर ) के साथ भी पहना जाता था। अवसर हानबोक को इसके उद्देश्यों के अनुसार वर्गीकृत किया गया है: रोजमर्रा की पोशाक, औपचारिक पोशाक और विशेष पोशाक। औपचारिक अवसरों पर औपचारिक पोशाकें पहनी जाती हैं, जिसमें बच्चे का पहला जन्मदिन, शादी या अंतिम संस्कार शामिल है। शामन और अधिकारियों के लिए विशेष पोशाकें बनाई जाती हैं। हानबोक सिर्फ 100 साल पहले तक रोजाना पहना जाता था, इसे मूल रूप से चलने-फिरने में आसानी के लिए डिज़ाइन किया गया था। लेकिन अब, इसे केवल उत्सव के अवसरों या विशेष वर्षगाँठ पर ही पहना जाता है। यह एक औपचारिक पोशाक है और अधिकांश कोरियाई अपने जीवन में विशेष समय जैसे शादी, चुसौक (कोरियाई थैंक्सगिविंग), और सॉल्लाल (कोरियाई नव वर्ष) के लिए एक हानबोक रखते हैं, बच्चे अपने पहले जन्मदिन समारोह ( हंगुल : 돌잔치) आदि के दौरान हानबोक पहनते हैं। जबकि पारंपरिक हानबोक अपने आप में सुंदर था, पीढ़ियों से डिजाइन धीरे-धीरे बदल गया है। हानबोक का मूल इसका सुंदर आकार और जीवंत रंग है, हानबोक को हर रोज पहनने के रूप में सोचना मुश्किल है, लेकिन लोगों की इच्छा को दर्शाते हुए कपड़े, रंग और विशेषताओं के परिवर्तन के माध्यम से इसे धीरे-धीरे क्रांतिकारी बनाया जा रहा है। महिलाओं के पारंपरिक हानबोक में जोगोरी शामिल है, जो एक प्रकार का जैकेट है, और छीमा, जो स्कर्ट के चारों ओर एक लपेट है जिसे आमतौर पर पेटीकोट के साथ पहना जाता है। एक आदमी के हानबोक में जोगोरी (जैकेट) और बैगी पैंट होते हैं जिन्हें बाजी कहा जाता है। अपर बाहरी परतें भी हैं, जैसे पो जो एक बाहरी कोट है, या रोब, जोकी जो एक प्रकार का बनियान और मागोजा है जो गर्मी और शैली के लिए जोगोरी पर पहना जाने वाला एक बाहरी जैकेट है। हानबोक का रंग सामाजिक स्थिति और वैवाहिक स्थिति का प्रतीक है। उदाहरण के लिए, चमकीले रंग आमतौर पर बच्चों और लड़कियों द्वारा पहने जाते थे, और मध्यम आयु वर्ग के पुरुषों और महिलाओं द्वारा मौन रंग। अविवाहित महिलाएं अक्सर पीले रंग की जोगोरी और लाल छीमा पहनती थीं, जबकि मैट्रॉन हरे और लाल रंग की होती थीं, और बेटों वाली महिलाएं गहरा नीला पहनती थीं। उच्च वर्ग के लोग तरह-तरह के रंग पहनते थे। इसके विपरीत, आम लोगों को सफेद कपड़े पहनने की आवश्यकता थी, लेकिन विशेष अवसरों पर हल्के गुलाबी, हल्के हरे, भूरे और चारकोल के रंगों के कपड़े पहने। साथ ही, हानबोक की सामग्री से दर्जा और पद की पहचान की जा सकती है। उच्च वर्गों ने गर्म महीनों में बारीकी से बुने हुए रेमी कपड़े या अन्य उच्च ग्रेड हल्के पदार्थों के हानबोक में और शेष वर्ष के दौरान सादे और पैटर्न वाले रेशम के कपड़े पहने। इसके विपरीत, सामान्य लोग कपास तक ही सीमित थे। पहनने वाले की इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए हानबोक पर पैटर्न की कढ़ाई की गई थी। शादी की पोशाक पर बड़े लाल फूलों का एक पौधा, सम्मान और धन की इच्छा का प्रतिनिधित्व करते हैं। कमल के फूल महिमा की आशा का प्रतीक हैं, और चमगादड़ और अनार बच्चों की इच्छा दिखाते हैं। ड्रेगन, फीनिक्स, क्रेन और बाघ केवल राजस्व और उच्च पदस्थ अधिकारियों के लिए थे। इतिहास कोरिया के तीन राज्य हानबोक कोरिया काल के तीन राज्यों (57 ईसा पूर्व से 668 ईस्वी) तक का पता लगाया जा सकता है। प्राचीन हानबोक की उत्पत्ति आज के उत्तरी कोरिया और मंचूरिया के प्राचीन कपड़ों में पाई जा सकती है। कुछ लोगों ने अनुमान लगाया कि पुरातनता का हानबोक अपनी उत्पत्ति का पता यूरेशियन स्टेप्स के खानाबदोश कपड़ों से लगा सकता है, जो साइबेरिया में पश्चिमी एशिया से पूर्वोत्तर एशिया तक फैले हुए हैं, जो स्टेपी रूट द्वारा परस्पर जुड़े हुए हैं। पश्चिमी और उत्तरी एशिया में अपने खानाबदोश मूल को दर्शाते हुए, प्राचीन हानबोक ने पूर्वी एशिया में खानाबदोश संस्कृतियों के होबोक प्रकार के कपड़ों के साथ संरचनात्मक समानताएं साझा कीं, जिन्हें घुड़सवारी और चलने-फिरने में आसानी के लिए डिज़ाइन किया गया था। हानबोक के प्रारंभिक रूपों को गोगुरियो मकबरे के भित्ति चित्रों की कला में 6वीं शताब्दी ईस्वी से इसी अवधि में देखा जा सकता है। छोटी, तंग पतलून और तंग, कमर की लंबाई वाली जैकेट, त्वी (एक सैश जैसी बेल्ट) पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा पहनी जाती थी। महिलाओं ने विनिमेयता के अनुसार स्कर्ट पहनी थी। हानबोक की ये बुनियादी संरचनात्मक और डिजाइन विशेषताएं आज भी अपेक्षाकृत अपरिवर्तित हैं, लंबाई और जिस तरह से जोगोरी के उद्घाटन को वर्षों से मोड़ा गया था, को छोड़कर, परिवर्तन हुए थे। मूल रूप से काफ्तान के समान, कपड़ों के केंद्रीय मोर्चे पर जोगोरी का उद्घाटन बंद था; फोल्ड ओपनिंग बाद में बाईं ओर बदल गई और अंत में दाईं ओर बंद हो गई। छठी शताब्दी ईस्वी के बाद से, जोगोरी को दाईं ओर बंद करना एक मानक अभ्यास बन गया। महिलाओं की जोगोरी की लंबाई भी पूरे समय बदलती रहती है। उदाहरण के लिए, महिलाओं की जोगोरी जो गोगुरियो चित्रों में दिखाई देती हैं, जो पांचवीं शताब्दी ईस्वी के उत्तरार्ध की हैं, उन्हें पुरुष की जोगोरी की तुलना में लंबाई में कम दर्शाया गया है। गोगुरियो के शुरुआती दिनों में, जोगोरी जैकेट कमर पर बेल्ट वाले कूल्हे-लंबाई वाले कफ्तान अंगरखे थे, और पो ओवरकोट पूरे शरीर की लंबाई वाले कफ्तान वस्त्र भी कमर पर बेल्ट थे। पैंट कमरेदार थे, जो नोइन उला के ज़ियोनग्नू दफन स्थल पर पाए गए पैंट के समान समानता रखते थे।  कुछ गोगुरियो अभिजात वर्ग ने दूसरों की तुलना में टखने पर तंग बाइंडिंग के साथ विशाल पैंट पहनी थी, जो लंबाई, कपड़े की सामग्री और रंग के साथ दर्जा के प्रतीक हो सकते थे। महिलाएं कभी पैंट पहनती थीं या फिर प्लीटेड स्कर्ट पहनती थीं। वे कभी-कभी अपनी स्कर्ट के नीचे पैंट पहनते थे। दो प्रकार के जूतों का उपयोग किया जाता था, एक केवल पैर को ढकता था, और दूसरा निचले घुटने तक। इस अवधि के दौरान, शंक्वाकार टोपी और इसके समान रूप, कभी-कभी चिड़ियों के पंखों से सजी , हेडगियर के रूप में पहने जाते थे। पक्षी के पंख के आभूषण, और सुनहरे मुकुट के पक्षी और पेड़ के रूपांकनों को आकाश से प्रतीकात्मक संबंध माना जाता है।  गोगुरियो काल के शाही पोशाक को ओचेबॉक के नाम से जाना जाता था। दुरुमागी (जोगोरी के ऊपर पहना जाने वाला एक लंबा, आउटजैकेट ) गोरीयो राजवंश के दौरान उत्तरी चीनी द्वारा पहने जाने वाले लंबे कोट से बहुत प्रभावित था, लेकिन इसकी उत्पत्ति गोगुरियो पोजे से हुई थी, जो गोगुरियो काल के दौरान पहना जाने वाला एक लंबा परिधान था। हालांकि मंगोलियाई कपड़ों के साथ समानताएं हैं, यह अपने मूल के संदर्भ में गोगुरियो के बाद से कोरिया की पारंपरिक पोजे से लिया गया है।।मूल रूप से दुरुमागी को गोगुरियो के उच्च वर्ग द्वारा विभिन्न समारोहों और अनुष्ठानों के लिए पहना जाता था; रूप को बाद में संशोधित किया गया था और यह इसका संशोधित रूप है जिसे बाद में सामान्य आबादी द्वारा पहना जाता था। उत्तर-दक्षिण राज्यों की अवधि और गोरियो राजवंश उत्तर-दक्षिण राज्यों की अवधि (698-926 ईस्वी) में, सिला और बाल्हे ने चीन के तांग राजवंश से एक गोलाकार-कॉलर वस्त्र, दालयॉग को अपनाया। सिला में, सिला की रानी जिंदोक के दूसरे वर्ष में सिला के मुयोल द्वारा दालयॉग की शुरुआत की गई थी। चीन से दालयॉग शैली का इस्तेमाल ग्वानबोक के रूप में किया जाता था, जो सरकारी अधिकारियों, दूल्हों और ड्रैगन रोब के लिए एक औपचारिक पोशाक, राजसी के लिए एक औपचारिक पोशाक जोसॉन के अंत तक थी। संयुक्त सिला सिला साम्राज्य ने 668 ईस्वी में तीन राज्यों को एकीकृत किया। संयुक्त सिला (668-935 ई.) कोरिया का स्वर्ण युग था। संयुक्त सिला में, तांग चीन और फारस से विभिन्न रेशम, लिनन और फैशन आयात किए गए थे। इस प्रक्रिया में, तांग की दूसरी राजधानी लुओयांग, की नवीनतम फैशन प्रवृत्ति जिसमें चीनी पोशाक शैलियों शामिल थी, को भी कोरिया में पेश किया गया, जहां कोरियाई सिल्हूट पश्चिमी साम्राज्य सिल्हूट के समान हो गया। सिला के राजा मुयोल ने व्यक्तिगत रूप से कपड़े और बेल्ट के लिए स्वेच्छा से अनुरोध करने के लिए तांग राजवंश की यात्रा की; हालांकि यह निर्धारित करना मुश्किल है कि किस विशिष्ट रूप और प्रकार के कपड़ों को प्रदान किया गया था, हालांकि सिला ने बोकडू (幞頭; इस अवधि के दौरान हेम्पेन हुड का एक रूप), दानय्रुनपो (團領袍; गोल कॉलर गाउन), बानबी, बेदांग (䘯襠 ) और प्यो (褾) का अनुरोध किया था। पुरातत्व संबंधी निष्कर्षों के आधार पर, यह माना जाता है कि जिन कपड़ों को रानी जिंदोक शासन के दौरान वापस लाया गया था, वे दानय्रुनपो और बोकडू हैं। रानी जिंदोक के शासनकाल के दौरान बोकडू शाही अभिजात, दरबारी संगीतकारों, नौकरों और दासों के आधिकारिक ड्रेस कोड का भी हिस्सा बन गया; यह पूरे गोरियो राजवंश में इस्तेमाल किया जाता रहा। 664 ईस्वी में, सिला के मुनमु ने आदेश दिया कि रानी की पोशाक तांग राजवंश की पोशाक के समान होनी चाहिए; और इस प्रकार, महिलाओं की पोशाक ने तांग राजवंश की पोशाक संस्कृति को भी स्वीकार कर लिया। महिलाओं ने भी अपनी स्कर्ट से जुड़ी कंधे की पट्टियों को अपनाने के माध्यम से तांग राजवंश के कपड़ों की नकल करने की मांग की और जोगोरी के ऊपर स्कर्ट पहनी। इस समय के दौरान तांग राजवंश का प्रभाव महत्वपूर्ण था और सिला दरबार में तांग दरबारी पोशाक नियमों को अपनाया गया था। सिला में पेश किए गए तांग राजवंश के कपड़ों ने सिला कोर्ट के कपड़ों की पोशाक को असाधारण बना दिया, और अपव्यय के कारण, राजा ह्यूंडोग ने वर्ष 834 ईस्वी के दौरान कपड़ों पर प्रतिबंध लगा दिया। सिला की आम जनता ने अपने पारंपरिक कपड़े पहनना जारी रखा। बाल्हे बाल्हे (698-926 ईस्वी) ने तांग से कई तरह के रेशम और सूती कपड़े और रेशम उत्पादों और रेमी सहित जापान से विविध वस्तुओं का आयात किया। बदले में, बाल्हे फर और चमड़े का निर्यात करेगा। बाल्हे की कपड़ों की संस्कृति विषम थी; यह न केवल तांग राजवंश से प्रभावित था बल्कि गोगुरियो और स्वदेशी मोहे लोगों के तत्वों को भी विरासत में मिला था। तीन राज्यों की अवधि की परंपरा को जारी रखने के लिए प्रारंभिक बाल्हे अधिकारियों ने कपड़े पहने थे। हालांकि, बाल्हे के मुन के बाद, बाल्हे ने तांग राजवंश के तत्वों को शामिल करना शुरू कर दिया, जिसमें इसके आधिकारिक पोशाक के लिए पुटौ और गोल कॉलर गाउन शामिल हैं। पुरुषों के रोज़मर्रा के कपड़े हेडगियर के मामले में गोगोरीयो कपड़ों के समान थे; यानी पक्षी के पंखों के साथ भांग या शंक्वाकार टोपी; वे चमड़े के जूते और बेल्ट भी पहनते थे। ऐसा लगता है कि महिलाओं के कपड़ों ने तांग राजवंश (यानी लंबी आस्तीन के साथ ऊपरी वस्त्र जो आंशिक रूप से लंबी स्कर्ट से ढके हुए और चलने की सुविधा के लिए घुमावदार युक्तियों के साथ जूते) से कपड़ों को अपनाया है, लेकिन साथ ही अनग्योन (युंजुआन; एक रेशम शॉल) भी पहना है जो दिखाई देने लगा तांग राजवंश के अंत के बाद। अनग्योन उपयोग देर से बाल्हे अवधि के लिए अद्वितीय है और शाल से विशिष्ट है जो तांग राजवंश की महिलाओं द्वारा पहना जाता था। बाल्हे के लोगों ने गर्म रखने के लिए मछली की खाल की स्कर्ट और समुद्री तेंदुए के चमड़े का टॉप भी पहना था। गोरियो उत्तरी-दक्षिण काल में आयातित चीनी शैली, हालांकि, अभी भी आम लोगों द्वारा उपयोग किए जाने वाले हानबोक को प्रभावित नहीं करती थी। निम्नलिखित गोरियो काल में, टॉप पर स्कर्ट पहनने की चीनी तांग राजवंश शैली का उपयोग फीका पड़ने लगा, और कुलीन वर्ग में स्कर्ट पर टॉप पहनने को पुनर्जीवित किया गया था। छीमा (तांग-शैली से प्रभावित फैशन) के तहत शीर्ष पहनने का तरीका गोरियो में गायब नहीं हुआ और पूरे गोरियो राजवंश में टॉप ओवर स्कर्ट पहनने की स्वदेशी शैली के साथ सह-अस्तित्व में रहा; यह टांग-शैली प्रभावित फैशन प्रारंभिक जोसॉन राजवंश तक पहना जाता रहा और केवल मध्य और देर से जोसॉन काल में गायब हो गया। गोरियो बौद्ध चित्रों में, रॉयल्टी और रईसों के कपड़े और सिर पर आमतौर पर सोंग राजवंश की वस्त्र प्रणाली का अनुसरण किया जाता है। गोरीयो पेंटिंग "वाटर-मून अवलोकितेश्वर", उदाहरण के लिए, एक बौद्ध पेंटिंग है जो चीनी और मध्य एशियाई दोनों सचित्र संदर्भों से ली गई। दूसरी ओर, युआन राजवंश में पहने जाने वाले चीनी कपड़े गोरियो के चित्रों में शायद ही कभी दिखाई दता है। बाद में जब गोरियो मंगोल शासन (1270 -1356) के अधीन था, तब गोरियो किंग्स और गोरियो सरकारी अधिकारियों द्वारा सोंग राजवंश प्रणाली का विशेष रूप से उपयोग किया गया था। मंगोल शासन के तहत हानबोक महत्वपूर्ण परिवर्तनों से गुजरा। 13 वीं शताब्दी में गोरियो राजवंश ने मंगोल साम्राज्य के साथ एक शांति संधि पर हस्ताक्षर किए, कोरियाई शाही घर में शादी करने वाली मंगोलियाई राजकुमारियों ने अपने साथ मंगोलियाई फैशन लाया जो औपचारिक और निजी जीवन दोनों में प्रचलित होने लगा। युआन शाही परिवार की कुल सात महिलाओं का विवाह गोरियो के राजाओं से हुआ था। युआन राजवंश की राजकुमारी ने मंगोल जीवन शैली का पालन किया, जिसे कपड़े और मिसाल के संबंध में युआन परंपराओं को नहीं छोड़ने का निर्देश दिया गया था। नतीजतन, युआन के कपड़े गोरियो दरबार में पहने जाते थे और उच्च वर्ग के परिवारों द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों को प्रभावित करते थे जो गोरियो दरबार का दौरा करते थे। युआन कपड़ों की संस्कृति जिसने उच्च वर्गों और कुछ हद तक आम जनता को प्रभावित किया उसे मंगोलपुंग कहा जाता है। युआन राजवंश के राजनीतिक बंधक और युआन समर्थक राजा चुंग्रियॉल ने युआन की राजकुमारी से शादी की और मंगोल कपड़ों में बदलने के लिए एक शाही आदेश की घोषणा की। युआन राजवंश के पतन के बाद, केवल मंगोल कपड़े जो गोरियो संस्कृति के लिए फायदेमंद और उपयुक्त थे, बनाए रखा गया जबकि अन्य गायब हो गए। मंगोल प्रभाव के परिणामस्वरूप, छीमा स्कर्ट को छोटा कर दिया गया था, और जोगोरी को कमर से ऊपर उठा दिया गया था और छाती पर एक लंबी, चौड़ी रिबन, गोरम (दाईं ओर बंधा हुआ एक विस्तारित रिबन) त्वी (यानी शुरुआती सैश जैसी बेल्ट) के बजाय बांधा गया था और आस्तीन थोड़े घुमावदार थे। सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी द्विपक्षीय था और गोरीयो का युआन राजवंश (1279-1368) के मंगोलों के दरबार पर सांस्कृतिक प्रभाव था; एक उदाहरण मंगोल दरबार के अभिजात, रानियों और रखैलों की पोशाक पर गोरियो महिलाओं के हानबोक का प्रभाव है जो राजधानी खानबालिक में हुआ था। हालांकि, मंगोल दरबार के कपड़ों पर यह प्रभाव मुख्य रूप से युआन राजवंश के अंतिम वर्षों में हुआ। युआन राजवंश के दौरान, गोरियो के कई लोगों को युआन में जाने के लिए मजबूर किया गया था; उनमें से अधिकांश कोंगन्यो (शाब्दिक रूप से "श्रद्धांजलि महिला" के रूप में अनुवादित), नपुंसक और युद्ध कैदी थे। गोरियो की लगभग 2000 महिलाओं को उनकी इच्छा के विरुद्ध कोंगन्यो के रूप में युआन भेजा गया था। यद्यपि गोरियो की महिलाओं को बहुत सुंदर और अच्छी नौकर माना जाता था, लेकिन उनमें से ज्यादातर दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में रहती थीं, जो कठिन श्रम और यौन शोषण से चिह्नित होती थीं। हालाँकि, यह भाग्य उन सभी के लिए आरक्षित नहीं था; और एक गोरियो महिला युआन राजवंश की अंतिम महारानी बनीं; यह महारानी गी थीं जिन्हें 1365 में महारानी के रूप में पदोन्नत किया गया था। युआन राजवंश के ऊपरी वर्ग पर गोरियो का अधिकांश सांस्कृतिक प्रभाव तब हुआ जब महारानी गी महारानी के रूप में सत्ता में आईं और कई गोरियो महिलाओं को अदालत की नौकरानी के रूप में भर्ती करना शुरू कर दिया। युआन राजवंश के दौरान मंगोल दरबार के कपड़ों पर गोरियो के प्रभाव को गोरीओयांग ("गोरियो शैली") के रूप में करार दिया गया था और स्वर्गीय युआन राजवंश कवि, झांग जू द्वारा स्क्वायर कॉलर (方領) के साथ एक छोटी बान्बी (半臂 ) के रूप में गाया गया था। हालांकि, अब तक, गोरियो से प्रभावित मंगोल शाही महिलाओं के कपड़ों की उपस्थिति पर आधुनिक व्याख्या लेखकों के सुझावों पर आधारित है। ह्यूनही पार्क के अनुसार: "मंगोलियाई शैली की तरह, यह संभव है कि मिंग राजवंश द्वारा युआन राजवंश की जगह लेने के बाद, यह कोरिया शैली [कोरिया यांग ] मिंग काल में कुछ चीनी को प्रभावित करती रही, जो आगे की जांच का विषय है।" जोसॉन राजवंश महिलाओं के रोजमर्रा के वस्त्र प्रारंभिक जोसॉन ने बैगी, ढीले कपड़ों के लिए महिलाओं के फैशन को जारी रखा, जैसे कि बाक इक (1332-1398) के मकबरे से भित्ति चित्र पर देखा गया। जोसॉन राजवंश के दौरान, छीमा या स्कर्ट ने अधिक फैलाव में अपनाया, जबकि जोगोरी या ब्लाउज ने अधिक कड़ा और छोटा रूप लिया, पिछली शताब्दियों के हानबोक से काफी अलग है, जब छीमा बल्कि पतली और जोगोरी बैगी और लंबी थी, जो कमर के स्तर से नीचे तक पहुंचती थी। कोरिया पर जापानी आक्रम (1592-98) या इमजिन युद्ध के बाद, प्रायद्वीप पर आर्थिक कठिनाई ने कम कपड़े का उपयोग करने वाली करीब-फिटिंग शैलियों को प्रभावित किया हो सकता है। जोसॉन में सत्तारूढ़ विचारधारा के रूप में नव-कन्फ्यूशीवाद प्रारंभिक जोसॉन राजवंश के राजाओं द्वारा स्थापित किया गया था; इसने जोसॉन में सभी सामाजिक वर्गों द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों की शैली (राजघरानों, दरबार के सदस्यों, अभिजात और आम लोगों की पोशाक सहित) को सभी प्रकार के अवसरों में शामिल किया, जिसमें शादी और अंतिम संस्कार शामिल थे। पुरुषों में सत्यनिष्ठा और महिलाओं में शुद्धता जैसे सामाजिक मूल्य भी इस बात से परिलक्षित होते थे कि लोग कैसे कपड़े पहनेंगे। उच्च वर्गों, राजशाही और दरबार की महिलाओं ने हानबोक पहना था जो मिंग राजवंश के कपड़ों से प्रेरित था और साथ ही साथ एक विशिष्ट कोरियाई शैली के रूप को बनाए रखता था; बदले में, निम्न वर्ग की महिलाएं आमतौर पर उच्च वर्ग की महिलाओं के कपड़ों की नकल करती थीं। 15वीं शताब्दी में, नव-कन्फ्यूशीवाद पंद्रहवीं और सोलहवीं शताब्दी में सामाजिक जीवन में बहुत निहित था, जो स्थिति के आधार पर कपड़ों (कपड़े के उपयोग, कपड़े के रंग, रूपांकनों और आभूषणों सहित) के सख्त नियमन की ओर ले जाता है। नव-कन्फ्यूशीवाद महिलाओं के फुल-प्लीटेड छीमा, लंबी जोगोरी और कई परतों वाले कपड़ों को भी प्रभावित करता है ताकि त्वचा को कभी प्रकट न किया जा सके। 15वीं शताब्दी में, महिलाओं ने फुल-प्लीटेड छीमा पहनना शुरू कर दिया, जो शरीर की रेखाओं को पूरी तरह से छिपा देता है और लंबी लंबाई जोगोरी। 15वीं शताब्दी ई. छीमा-जोगोरी शैली निस्संदेह चीन से शुरू की गई एक कपड़ों की शैली थी। हालाँकि, 16वीं शताब्दी तक, जोगोरी कमर तक छोटा हो गया था और ऐसा प्रतीत होता है कि वह करीब से फिट हो गया है, हालांकि 18वीं और 19वीं शताब्दी के घंटी के आकार के सिल्हूट के चरम पर नहीं। 16वीं शताब्दी में महिलाओं की जोगोरी लंबी, चौड़ी और कमर से ढकी होती थी। महिलाओं की जोगोरी की लंबाई धीरे-धीरे कम होती गई: यह लगभग 65 सेमी 16वीं सदी में, 55 सेमी 17वीं सदी, 45 सेमी 18 वीं शताब्दी में, और 28 सेमी 19वीं सदी में, कुछ 14.5 सेमी जितना छोटा। स्तनों को ढकने के लिए एक हौरिती (허리띠) या जोरिनमाल (졸잇말) पहना जाता था। हौरिती के साथ शॉर्ट जोगोरी पहनने का चलन गिसेंग द्वारा शुरू किया गया था और जल्द ही उच्च वर्ग की महिलाओं में फैल गया। सामान्य और निम्न वर्ग की महिलाओं के बीच, एक प्रथा सामने आई जिसमें उन्होंने स्तनपान को और अधिक सुविधाजनक बनाने के लिए एक कपड़ा हटाकर अपने स्तनों को प्रकट किया। अठारहवीं शताब्दी में, जोगोरी इतनी छोटी हो गई थी कि छीमा का कमरबंद दिखाई दे रहा था; यह शैली पहली बार जोसॉन कोर्ट में महिला मनोरंजनकर्ताओं पर देखी गई थी। जब तक यह आधुनिक समय तक नहीं पहुंच गया, तब तक जोगोरी छोटा होता रहा; यानी सिर्फ स्तनों को ढंकना। सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी के दौरान स्कर्ट की पूर्णता कूल्हों के चारों ओर केंद्रित थी, इस प्रकार पश्चिमी बसल के समान एक सिल्हूट बन गया। स्कर्ट की परिपूर्णता 1800 के आसपास अपने चरम पर पहुंच गई। 19वीं शताब्दी के दौरान घुटनों और टखनों के आसपास स्कर्ट की पूर्णता हासिल की गई थी, जिससे छीमा को त्रिकोणीय या ए-आकार का सिल्हूट मिला, जो आज भी पसंदीदा शैली है। वांछित रूपों को प्राप्त करने के लिए कई अंडरगारमेंट्स जैसे कि दारिसोकगोत, सोक्ससोगॉत डान्सोकगोत, और गोजेंगी को नीचे पहना जाता था। 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में जोगोरी को लंबा करने के उद्देश्य से एक कपड़े सुधार आंदोलन ने व्यापक सफलता का अनुभव किया और आधुनिक हानबोक के आकार को प्रभावित करना जारी रखा। आधुनिक जोगोरी लंबी हैं, हालांकि अभी भी कमर और स्तनों के बीच आधा है। कभी-कभी सौंदर्य कारणों से हौरिती को उजागर किया जाता है। 19वीं शताब्दी के अंत में, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, हुंगसॉन डेवोंगुन ने मागोजा पेश किया, एक मांचू-शैली की जैकेट, जिसे आज तक अक्सर जोगोरी के ऊपर पहना जाता है। पुरुषों के रोजमर्रा के वस्त्र महिलाओं के हानबोक की तुलना में पुरुषों के हानबोक में थोड़ा बदलाव देखा गया। जोगोरी और बाजी का रूप और डिजाइन शायद ही बदला हो। इसके विपरीत, आधुनिक ओवरकोट के समकक्ष पुरुषों के लंबे आउटवियर में नाटकीय परिवर्तन आया। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से पहले, यांगबान पुरुषों ने यात्रा करते समय लगभग हमेशा जुंगचिमक पहना था। जुंगचिमक में बहुत लंबी आस्तीन थी, और इसके निचले हिस्से में दोनों तरफ और कभी-कभी पीठ पर विभाजन होता था ताकि गति में एक स्पंदन प्रभाव पैदा हो सके। कुछ के लिए यह फैशनेबल था, लेकिन दूसरों के लिए, अर्थात् कट्टर विद्वानों के लिए, यह शुद्ध घमंड के अलावा और कुछ नहीं था। डेवोनगुन ने अपने कपड़े सुधार कार्यक्रम के एक भाग के रूप में सफलतापूर्वक जुंगचिमक पर प्रतिबंध लगा दिया और अंततः जुंगचिमक गायब हो गया। दुरुमागी, जो पहले जुंगचिमक के नीचे पहना जाता था और मूल रूप से एक घर की पोशाक थी, ने यांगबन पुरुषों के लिए औपचारिक आउटवियर के रूप में जुंगचिमक को बदल दिया। दुरुमागी अपने पूर्ववर्ती से इस मायने में अलग है कि इसमें तंग आस्तीन हैं और दोनों तरफ या पीठ पर विभाजन नहीं है। यह लंबाई में भी थोड़ा छोटा है। दुरुमागी को अपनाने के बाद से पुरुषों का हानबोक अपेक्षाकृत समान रहा है। 1884 में, गैप्सिन ड्रेस रिफॉर्म हुआ। 1884 के राजा गोजोंग के आदेश के तहत, केवल संकीर्ण बाजू के पारंपरिक ओवरकोट की अनुमति थी; जैसे, सभी कोरियाई, उनके सामाजिक वर्ग, उनकी उम्र और उनके लिंग की परवाह किए बिना, दुरुमागी या चाकसुई या जू-उई (周衣) पहनना शुरू कर दिया। टोपी औपचारिक पोशाक का एक अनिवार्य हिस्सा था और कन्फ्यूशियस मूल्यों के जोर के कारण इस युग के दौरान आधिकारिक टोपी का विकास और भी अधिक स्पष्ट हो गया। गात को मनुष्य के जीवन में एक अनिवार्य पहलू माना जाता था; हालांकि, गात को अधिक अनौपचारिक सेटिंग में बदलने के लिए, जैसे कि उनके निवास, और अधिक आरामदायक महसूस करने के लिए, जोसॉन-युग के अभिजात वर्ग ने बहुत सारी टोपियां भी अपनाईं, जो चीन से पेश की गई थीं, जैसे कि बांगग्वान, साबांगग्वान, डोंगपाग्वान, वार्योंगग्वान, जौंगजाग्वान। उन चीनी टोपियों की लोकप्रियता आंशिक रूप से कन्फ्यूशीवाद की घोषणा के कारण हो सकती है और क्योंकि उनका उपयोग चीन में साहित्यिक हस्तियां और विद्वानों द्वारा किया जाता था। 1895 में, किंग गोजोंग ने वयस्क कोरियाई पुरुषों को अपने बाल छोटे करने का आदेश दिया और पश्चिमी शैली के कपड़ों को अनुमति दी गई और उन्हें अपनाया गया। सामग्री और रंग उच्च वर्गों ने गर्म मौसम में बारीकी से बुने हुए रेमी कपड़े या अन्य उच्च श्रेणी के हल्के पदार्थ और शेष वर्ष के सादे और पैटर्न वाले रेशम के हानबोक पहने थे। आम लोगों को कानून के साथ-साथ संसाधनों द्वारा कपास तक ही सीमित रखा गया था। उच्च वर्ग विभिन्न प्रकार के रंग पहनते थे, हालांकि चमकीले रंग आमतौर पर बच्चों और लड़कियों द्वारा पहने जाते थे और मध्यम आयु वर्ग के पुरुषों और महिलाओं द्वारा मातहत रंग। कानून द्वारा आम लोगों को सफेद रंग के रोज़मर्रा के कपड़ों तक ही सीमित रखा गया था, लेकिन विशेष अवसरों के लिए उन्होंने हल्के गुलाबी, हल्के हरे, भूरे और चारकोल के हल्के रंगों को पहना था। छीमा का रंग पहनने वाले की सामाजिक दर्जा और कथन को दर्शाता है। उदाहरण के लिए, एक समुद्री रंग ने संकेत दिया कि एक महिला के बेटे थे। केवल शाही परिवार ही छीमा के तल पर गुबांक -मुद्रित पैटर्न (सोने की पत्ती) वाले कपड़े पहन सकता था। मुकुट पुरुष और महिला दोनों ने अपने बालों को एक लंबी चोटी में तब तक पहना था जब तक कि उनकी शादी नहीं हो गई, उस समय बालों को बांधा गया था; पुरुष के बालों को सिर के शीर्ष परसांगतु (상투) नामक एक शीर्ष गाँठ में बांधा गया था, और महिला के बालों को एक गेंद के आकार या कोमोरी में घुमाया गया था और गर्दन के पीछे के ऊपर सेट किया गया था। महिलाओं के नुकीले बालों में फास्टनर और सजावट दोनों के रूप में एक लंबा पिन, या बिन्यो (비녀) पहना जाता था। बिन्यो की सामग्री और लंबाई पहनने वाले के वर्ग और स्थिति के अनुसार भिन्न होती है। और लट में बालों को बांधने और सजाने के लिए रिबन या डेंगी (댕기) भी पहना जाता था। महिलाओं ने अपनी शादी के दिन जोकदुरी पहनी थी और ठंड से बचाव के लिए अयम पहना था। पुरुषों ने एक गात पहना था, जो वर्ग और दर्जा के अनुसार भिन्न होता था। 19वीं सदी से पहले, उच्च सामाजिक पृष्ठभूमि और गिसेंग की महिलाएं विग ( गाचे ) पहनती थीं। अपने पश्चिमी समकक्षों की तरह, कोरियाई लोग बड़े और भारी विग को अधिक वांछनीय और सौंदर्यपूर्ण मानते थे। गाचे के लिए महिलाओं का उन्माद ऐसा था कि 1788 में राजा जौंगजो ने शाही डिक्री द्वारा गाचे के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था, क्योंकि उन्हें मानसिक प्रतिबंध और संयम के कोरियाई कन्फ्यूशियस मूल्यों के विपरीत माना जाता था। नव-कन्फ्यूशीवाद के प्रभाव के कारण, पूरे समाज में महिलाओं के लिए यह अनिवार्य था कि वे बाहर जाने पर अपने चेहरे को उजागर करने से बचने के लिए हेडड्रेस (ने-ए-सुगे ) पहनें; उन हेडड्रेस में शामिल हो सकते हैं सुगेछीमा (एक हेडड्रेस जो एक छीमा की तरह दिखती थी, लेकिन उच्च वर्ग की महिलाओं द्वारा और बाद में जोसॉन के अंत में सभी वर्गों के लोगों द्वारा पहनी जाने वाली शैली में संकरी और छोटी थी), जांग-ओत, और नेउल (जो केवल दरबारी महिलाओं और कुलीन महिलाओं के लिए अनुमति थी)। 19वीं शताब्दी में यांगबन महिलाओं ने जोकदुरी पहनना शुरू किया, एक छोटी सी टोपी जिसने गाचे की जगह ले ली। हालांकि सदी के अंत में गाचे को गिसेंग सर्कल में व्यापक लोकप्रियता मिली। उत्तरकालीन विकास आज का हानबोक हानबोक का प्रत्यक्ष वंशज है, जो कुलीन महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले या जोसॉन काल में कम से कम मध्यम वर्ग के लोगों द्वारा पहना जाता था, विशेष रूप से 1 9वीं शताब्दी के अंत में। हानबोक पांच सौ वर्षों के दौरान जोसॉन राजाओं के शासनकाल में विभिन्न परिवर्तनों और फैशन के दौर से गुजरा था और अंततः विकसित हुआ जिसे अब हम ज्यादातर विशिष्ट हानबोक मानते हैं। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, हानबोक को बड़े पैमाने पर पश्चिमी सूट और पोशाक जैसे नए पश्चिमी आयातों से बदल दिया गया था। आज, औपचारिक और आकस्मिक वस्त्र आमतौर पर पश्चिमी शैलियों पर आधारित होते हैं। हालांकि, हानबोक अभी भी पारंपरिक अवसरों के लिए पहना जाता है, और शादियों, चंद्र नव वर्ष, वार्षिक पैतृक संस्कार, या बच्चे के जन्म जैसे समारोहों के लिए आरक्षित है। सामाजिक दर्जा विशेष रूप से गोरियो राजवंश से, हानबोक ने कई प्रकार और घटकों के माध्यम से सामाजिक दर्जा में अंतर निर्धारित करना शुरू कर दिया, और उनकी विशेषताओं - उच्चतम सामाजिक दर्जा वाले लोगों (राजाओं) से, निम्न सामाजिक दर्जा वाले लोगों के लिए (दास)। यद्यपि आधुनिक हानबोक किसी व्यक्ति का दर्जा या सामाजिक दर्जा को व्यक्त नहीं करता है, हानबोक विशेष रूप से गोरियो और जोसॉन राजवंशों में भेद का एक महत्वपूर्ण तत्व था। वस्त्र ह्वारोत ह्वारोत या ह्वाल-ओत ( हंगुल : 활옷) एक राजकुमारी और एक रखैल द्वारा एक राजा की बेटी के लिए पूर्ण पोशाक, उच्च वर्ग के लिए औपचारिक पोशाक, और गोरियो और जोसॉन राजवंशों के दौरान सामान्य महिलाओं के लिए दुल्हन के वस्त्र थे। ह्वाल-ओत पर लोकप्रिय कशीदाकारी पैटर्न कमल, फ़ीनिक्स, तितलियाँ और दीर्घायु के दस पारंपरिक प्रतीक थे: सूर्य; पहाड़; पानी; बादल; चट्टानें/पत्थर; चीड़ के पेड़; अमरता का मशरूम; कछुए; सफेद क्रेन, और हिरण। प्रत्येक पैटर्न समाज के भीतर एक अलग भूमिका का प्रतिनिधित्व करता है, उदाहरण के लिए: एक ड्रैगन एक सम्राट का प्रतिनिधित्व करता है, एक फीनिक्स एक रानी का प्रतिनिधित्व करता है; फूलों के पैटर्न एक राजकुमारी और एक रखैल द्वारा एक राजा की बेटी को प्रतिनिधित्व करते थे, और बादल और सारस उच्च रैंकिंग अदालत के अधिकारियों का प्रतिनिधित्व करते थे। पूरे कोरियाई इतिहास में इन सभी पैटर्नों में दीर्घायु, सौभाग्य, धन और सम्मान के अर्थ थे। ह्वाल-ओत की प्रत्येक आस्तीन में नीले, लाल और पीले रंग की धारियां भी थीं - एक महिला आमतौर पर लाल रंग की स्कर्ट और पीले या हरे रंग की जोगोरी, एक पारंपरिक कोरियाई जैकेट पहनती थी। ह्वाल-ओत को जोगोरी और स्कर्ट के ऊपर पहना गया था। एक महिला ने अपने बालों को एक बन में भी पहना था, एक सजावटी हेयरपिन और एक औपचारिक मुकुट के साथ। सजावटी हेयरपिन से एक लंबी रिबन जुड़ी हुई थी, हेयरपिन को योंगजाम (용잠 ) के रूप में जाना जाता है। हाल के दिनों में, लोग अपनी शादी के दिन ह्वाल-ओत पहनते हैं, और इसलिए कोरियाई परंपरा आज भी जीवित है। वॉनसाम वॉनसाम (हंगुल: 원삼) जोसॉन राजवंश में एक विवाहित महिला के लिए एक औपचारिक ओवरकोट था। वॉनसाम को चीन से भी अपनाया गया था और माना जाता है कि यह तांग राजवंश की वेशभूषा में से एक था जिसे एकीकृत तीन राज्यों की अवधि में प्रदान किया गया था। यह ज्यादातर रॉयल्टी, उच्च रैंकिंग अदालत की महिलाओं, और महान महिलाओं द्वारा पहना जाता था और रंग और पैटर्न कोरियाई वर्ग प्रणाली के विभिन्न तत्वों का प्रतिनिधित्व करते थे। महारानी ने पीला पहना था; रानी ने लाल पहना था; ताज राजकुमारी ने बैंगनी-लाल रंग पहना था; इस बीच एक राजकुमारी, एक रखैल द्वारा एक राजा की बेटी, और एक कुलीन परिवार की एक महिला या निम्न ने हरे रंग की पोशाक पहनी थी। सभी ऊपरी सामाजिक रैंकों में आमतौर पर प्रत्येक आस्तीन में दो रंगीन धारियां होती हैं: पीले रंग के वॉनसाम में आमतौर पर लाल और नीले रंग की धारियां होती हैं, लाल रंग के वॉनसाम में नीली और पीली धारियां होती हैं, और हरे रंग के वॉनसम में लाल और पीले रंग की धारियां होती हैं। निचले वर्ग की महिलाओं ने कई रंगीन धारियों और रिबन पहने थे, लेकिन सभी महिलाओं ने आमतौर पर पारंपरिक कोरियाई जूते ओन्हे या डांगे के साथ अपना पहनावा पूरा किया। दांगुई दांगुई या तांगवी (हंगुल: 당의) रानी, एक राजकुमारी, या एक उच्च रैंकिंग सरकारी अधिकारी की पत्नी के लिए मामूली औपचारिक वस्त्र थे, जबकि इसे जोसॉन राजवंश में महान वर्ग के बीच प्रमुख समारोहों के दौरान पहना जाता था। मौसम के आधार पर "दांग-उई" को अलग-अलग बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री, इसलिए उच्च वर्ग की महिलाओं ने सर्दियों में मोटी दांग-उई पहनी थी, जबकि वे गर्मियों में पतली परतें पहनती थीं। दांग-उई कई रंगों में आया, लेकिन पीला और/या हरा सबसे आम था। हालाँकि सम्राट ने बैंगनी दांग-उई पहनी थी, और रानी ने लाल रंग की पोशाक पहनी थी। जोसॉन राजवंश में, साधारण महिलाएं अपनी शादी की पोशाक के हिस्से के रूप में दांग-उई पहनती थीं। म्यौनबोक और जौगुइ म्यौनबोक म्यौनबोक (हंगुल: 면복) राजा के धार्मिक और औपचारिक अनुष्ठानिक वस्त्र थे, जबकि जौगुई गोरियो और जोसॉन राजवंशों के दौरान रानी के समकक्ष थे। म्यौनबोक म्यौनय्रू-ग्वान (हंगुल: 면류관) और गुजांग-बोक (हंगुल: 구장복) से बना था। म्यौनय्रू-ग्वान के पास मोती थे, जो ढीले थे; ये राजा को दुष्टता देखने से रोकेंगे। म्यौनय्रू-ग्वान के बाएँ और दाएँ पक्षों में कपास की टहनियाँ भी थीं, और ये राजा को भ्रष्ट अधिकारियों के प्रभाव से बेखबर बनाने वाले थे। गुजांग-बोक काला था, और इसमें नौ प्रतीक थे, जो सभी राजा का प्रतिनिधित्व करते थे। नौ प्रतीक ड्रैगन : एक ड्रैगन की उपस्थिति राजा के शासन के समान होती है और अनन्तर दुनिया में संतुलन लाती है। आग : राजा से अपेक्षा की जाती थी कि वह बुद्धिमान और ज्ञानपूर्ण होगा और लोगों पर प्रभावी ढंग से शासन करेगा, जैसे कि अग्नि द्वारा दर्शाए गए मार्गदर्शक प्रकाश। तीतर : तीतर की छवि भव्यता का प्रतिनिधित्व करती है। पर्वत : पर्वत ऊँचे होने के कारण राजा पद की दृष्टि से समान था और आदर और पूजा का पात्र था। बाघ : एक बाघ राजा के साहस का प्रतिनिधित्व करता था। बंदर : एक बंदर ज्ञान का प्रतीक है। चावल : चूंकि लोगों को जीने के लिए चावल की आवश्यकता होती थी, इसलिए राजा की तुलना इस खाद्य पदार्थ से की जाती थी क्योंकि उसके पास उनके कल्याण की रक्षा करने की जिम्मेदारी होती थी। कुल्हाड़ी : इससे संकेत मिलता है कि राजा के पास जान बचाने और लेने की क्षमता थी। जल पौधा : राजा की भव्यता का एक और चित्रण। जौगुई जौगुई (हंगुल: 적의) को शाही परिवार के भीतर एक स्टेटस सिंबल के रूप में विभिन्न रंगों के उपयोग के माध्यम से व्यवस्थित किया गया था। महारानी ने बैंगनी-लाल रंग का जौगुई पहना था, रानी ने गुलाबी रंग की और ताज की राजकुमारी ने गहरे नीले रंग की पोशाक पहनी थी। "जौक" का अर्थ तीतर होता है, और इसलिए जौगुई में अक्सर तीतरों के चित्रण होते थे जिन पर कढ़ाई की जाती थी। चौल्लिक चौल्लिक (हंगुल: 철릭) मंगोल अंगरखा का कोरियाई रूपांतर था, जिसे गोरियो राजवंश के दौरान 1200 के दशक के अंत में आयात किया गया था। कोरियाई कपड़ों के अन्य रूपों के विपरीत, चौल्लिक, कपड़ों के एक आइटम में एक किल्ट के साथ ब्लाउज का एक समामेलन है। कपड़ों के लचीलेपन ने आसान घुड़सवारी और तीरंदाजी की अनुमति दी। जोसॉन राजवंश के दौरान, वे इस तरह की गतिविधियों के लिए राजा और सैन्य अधिकारियों द्वारा पहने जाते रहे। यह आमतौर पर एक सैन्य वर्दी के रूप में पहना जाता था, लेकिन जोसॉन राजवंश के अंत तक, इसे और अधिक आकस्मिक स्थितियों में पहना जाना शुरू हो गया था। एक अनूठी विशेषता ने चौल्लिक की आस्तीन को अलग करने की अनुमति दी, जिसे एक पट्टी के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता था यदि पहनने वाला युद्ध में घायल हो गया था। एंगसाम एंगसाम (हंगुल: 앵삼;鶯衫) राष्ट्रीय सरकार की परीक्षा और सरकारी समारोहों के दौरान छात्रों के लिए औपचारिक कपड़े थे। यह आमतौर पर पीले रंग का होता था, लेकिन परीक्षा में सबसे अधिक अंक प्राप्त करने वाले छात्र को हरे रंग का एंगसाम पहनने की क्षमता से पुरस्कृत किया जाता था। यदि उच्चतम स्कोर करने वाला छात्र युवा था, तो राजा ने उसे लाल रंग के एंगसाम से सम्मानित किया। यह नामसाम (난삼/襴衫) के समान था लेकिन एक अलग रंग के साथ। एक्सेसरीज़ बिन्यो बिन्यो या पिन्यो (हंगुल: 비녀) एक पारंपरिक सजावटी हेयरपिन था, और सामाजिक स्थिति के आधार पर फिर से एक अलग आकार का टिप था। परिणामस्वरूप, बिन्यो को देखकर व्यक्ति की सामाजिक दर्जे का निर्धारण करना संभव हो गया। शाही परिवार में महिलाओं के पास ड्रैगन या फीनिक्स के आकार का बिन्यो था जबकि सामान्य महिलाओं के पास पेड़ या जापानी खुबानी के फूल थे। और बिन्यो शादी का सबूत था। इसलिए, एक महिला के लिए, बिन्यो शुद्धता और शालीनता की अभिव्यक्ति थी। डेंग्गी डेंग्गी एक पारंपरिक कोरियाई रिबन है जो लट में बालों को बांधने और सजाने के लिए कपड़े से बना है। नोरिगे नोरिगे (हंगुल: 노리개) महिलाओं के लिए एक विशिष्ट पारंपरिक एक्सेसरी था; यह सामाजिक रैंक की परवाह किए बिना सभी महिलाओं द्वारा पहना जाता था। हालांकि, पहनने वाले की सामाजिक रैंक ने नोरिगे के विभिन्न आकारों और सामग्रियों को निर्धारित किया। दांग्ये दांग्ये या तांग्ये (हंगुल: 당혜) जोसॉन राजवंश में विवाहित महिलाओं के लिए जूते थे। दांग्ये को अंगूर, अनार, गुलदाउदी या बड़े लाल फूलों वाले पेड़ों से सजाया गया था: ये दीर्घायु के प्रतीक थे। कुंघे शाही परिवार में एक महिला के लिए दांग्ये को कुंघे (हंगुल: 궁혜) के रूप में जाना जाता था, और वे आमतौर पर फूलों से बने होते थे। ओन्हे एक साधारण महिला के लिए दांग्ये को ओन्हे (हंगुल: 온혜) के नाम से जाना जाता था। आधुनिक समय हालांकि हानबोक एक पारंपरिक पोशाक है, लेकिन इसे आधुनिक फैशन में फिर से लोकप्रिय बनाया गया है। "कोरियन इन मी" के मॉडर्न हानबोक और किम मिही जैसे समकालीन ब्रांडों ने अपने आधुनिक कपड़ों में पारंपरिक डिजाइनों को शामिल किया है। आधुनिक हानबोक को अंतरराष्ट्रीय हाउते कॉउचर में चित्रित किया गया है; कैटवॉक पर, 2015 में जब कार्ल लेगरफील्ड ने चैनल के लिए कोरियाई मॉडल तैयार किए, और फिल ओह द्वारा फोटोग्राफी में पेरिस फैशन वीक के दौरान। इसे ब्रिटनी स्पीयर्स और जेसिका अल्बा जैसी अंतरराष्ट्रीय हस्तियों और टेनिस खिलाड़ी वीनस विलियम्स और फुटबॉल खिलाड़ी हाइन्स वार्ड जैसे एथलीटों ने भी पहना है। हानबोक एशियाई-अमेरिकी हस्तियों के बीच भी लोकप्रिय है, जैसे लिसा लिंग और मिस एशिया 2014, एरिको ली कटयामा । इसने रेड कार्पेट पर भी उपस्थिति दर्ज कराई है, और एसएजी अवार्ड्स में सैंड्रा ओह द्वारा पहना गया है, और सैंड्रा ओह की मां द्वारा पहना गया है, जिन्होंने 2018 में एमी अवार्ड्स के लिए एक हानबोक पहनने के लिए फैशन इतिहास बनाया। दक्षिण कोरियाई सरकार ने फैशन डिजाइनरों को प्रायोजित करके हानबोक में रुचि के पुनरुत्थान का समर्थन किया है। घरेलू स्तर पर, हानबोक स्ट्रीट फैशन और संगीत वीडियो में ट्रेंडी बन गया है। इसे ब्लैकपिंक और बीटीएस जैसे प्रमुख के-पॉप कलाकारों द्वारा पहना गया है, विशेष रूप से " हाउ यू लाइक दैट " और "आइडल" के लिए उनके संगीत वीडियो में। जैसा कि हानबोक का आधुनिकीकरण जारी है, राय फिर से डिजाइन पर विभाजित हैं। सियोल में, एक पर्यटक हानबोक पहनक पांच भव्य महलों (चांगदौकगुंग, चांगग्योंगगुंग, दौकसुगुंग, ग्योंगबोकगुंग और ग्योंगहुइगुंग) की मुफ्त यात्रा करता है। फ़ुटनोट कोरियाई संस्कृति चीनी भाषा पाठ वाले लेख लेख जिनमें कोरियाई भाषा का पाठ है Pages with unreviewed translations संदर्भ आन, म्योंग सूक (안명숙); किम, योंग सौ (김용서) (कोरियाई में) 1998। हनुगुक पोशिकसा (한국복식사)। सियोल। येहक्सा (예학사) ISBN 978-89-89668-11-4 किम, की सौन (김기선). 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अदिति गुप्ता (मेंस्ट्रूपीडिया)
अदिति गुप्ता 'मेंस्ट्रूपीडिया' वेबसाइट की संस्थापक हैं. अदिति गुप्ता 'मेंस्ट्रूपीडिया' वेबसाइट की संस्थापक हैं। उपलब्धियाँ ‘नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ़ डिज़ाइन’से पढ़ाई के दौरान अदिति गुप्ता ने इसी मुद्दे पर शोध किया, जो अब 'मेंस्ट्रूपीडिया' वेबसाइट में तब्दील हो चुका है। जानकारी इसके बाद अदिति ने इस मुद्दे पर जानकारी देने वाली सामग्री तैयार की और उसे कॉमिक्स के अंदाज़ में पेश किया। काम इन कॉमिक्स को लेकर अदिति, मेहसाना, गांधी नगर, अहमदाबाद और रांची के स्कूलों में गईं जहां लड़कियों, उनके अभिभावक और शिक्षकों ने इन्हें काफ़ी पसंद किया। इस्तेमाल अदिति की तैयार की गई सामग्री का इस्तेमाल उत्तर भारत के पांच राज्यों के स्कूलों में हो रहा है। फोर्ब्स सूची उन्हें फोर्ब्स इंडिया ने 30 अंडर 30 की सूची में शामिल किया गया है। सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%B7%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%A6%E0%A4%BE
उषा प्रियंवदा
उषा प्रियंवदा (जन्म २४ दिसम्बर १९३०) प्रवासी हिंदी साहित्यकार हैं। कानपुर में जन्मी उषा प्रियंवदा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. तथा पी-एच. डी. की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। इसी समय उन्हें फुलब्राइट स्काॅलरशिप मिली और वे अमरीका चली गईं। अमरीका के ब्लूमिंगटन, इंडियाना में दो वर्ष पोस्ट डाॅक्टरल अध्ययन किया और १९६४ में विस्कांसिन विश्वविद्यालय, मैडिसन में दक्षिण एशियाई विभाग में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्य प्रारंभ किया। आजकल वे सेवानिवृत्त होकर लेखन और भ्रमण कर रही हैं। उषा प्रियंवदा के कथा साहित्य में छठे और सातवें दशक के शहरी परिवारों का संवेदनापूर्ण चित्रण मिलता है। उस समय शहरी जीवन में बढ़ती उदासी, अकेलेपन, ऊब आदि का अंकन करने में उन्होंने अत्यंत गहरे यथार्थबोध का परिचय दिया है। प्रमुख कृतियाँ कहानी संग्रहः वनवास, कितना बड़ा झूठ, शून्य, जिन्दग़ी और गुलाब के फूल(1961), एक कोई दूसरा(1966), फिर वसंत आया (1961), कितना बड़ा झूठ (1972) धनंजय सिंह (पटना विश्वविद्यालय) उपन्यासः - पचपन खंभे लाल दीवारे (1961) , रुकोगी नहीं राधिका (1967) , शेषयात्रा (1984) , अंतर्वंशी (2000) , भया कबीर उदास (2007) , नदी (2013)। पुरस्कार व सम्मान वर्ष २००७ के पद्मभूषण डॉ॰ मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार से सम्मानित। सन्दर्भ 1930 में जन्मे लोग जीवित लोग प्रवासी हिन्दी साहित्यकार
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%82%E0%A4%9F%E0%A4%B010%20%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%A8%20%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%95
एंटर10 टेलीविजन नेटवर्क
एंटर10 टेलीविज़न नेटवर्क (पूर्व में एंटर 10 टेलीविज़न नेटवर्क प्राइवेट लिमिटेड) एक भारतीय मास मीडिया कंपनी है जिसका मुख्यालय मुंबई में है। इतिहास नेटवर्क 15 अक्टूबर 2004 को लॉन्च किया गया था। 2009 में, दंगल नाम का एक और चैनल भोजपुरी मनोरंजन चैनल के रूप में लॉन्च हुआ। 2019 में, इसकी श्रेणी में दर्शकों की संख्या सबसे अधिक थी। 2016 में,फक्त मराठी को एक मराठी फिल्म चैनल के रूप में लॉन्च किया गया, जो 2019 में सामान्य मनोरंजन में बदल गया। बंगाली मनोरंजन चैनल एंटर10 बांग्ला 2018 में शुरू हुआ। नेटवर्क ने 23 सितंबर, 2020 को कन्नड़ फिल्म अभिनेत्री हरिप्रिया के साथ ब्रांड एंबेसडर और एक भोजपुरी मनोरंजन चैनल, एंटर 10 रंगीला के साथ एक कन्नड़ मनोरंजन चैनल दंगल कन्नड़ लॉन्च किया। दंगल प्ले दंगल प्ले एक भारतीय सब्सक्रिप्शन वीडियो ऑन-डिमांड और ओवर-द-टॉप स्ट्रीमिंग सेवा है जिसका स्वामित्व एंटर10 टेलीविजन नेटवर्क के पास है। इसे 6 नवंबर 2022 को एंटर10 टेलीविजन नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक मनीष सिंघल द्वारा लॉन्च किया गया था। ऐप दंगल टीवी, दंगल २, भोजपुरी सिनेमा टीवी और एंटर10 बांग्ला की पेशकश को जोड़ता है । यह एक ऑन-डिमांड वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म है जो विशेष रूप से हिंदी, भोजपुरी और बंगाली भाषा में मनोरंजन और फिल्में प्रदान करता है। दंगल प्ले वर्तमान में वेब, एंड्रॉइड, आईओएस, एलजी स्मार्ट टीवी (वेबओएस), सैमसंग टीवी (टाइज़ेन) और गूगल क्रोमकास्ट पर उपलब्ध है। यह सेवा फ्रीमियम बिजनेस मॉडल का अनुसरण करती है। कुछ सामग्री उपयोगकर्ताओं को मुफ्त में स्ट्रीम करने के लिए उपलब्ध होगी, और बाकी को एक्सेस करने के लिए सदस्यता की आवश्यकता होगी। दंगल प्ले की सामग्री में हिंदी और बांग्ला शो और भोजपुरी फिल्में शामिल हैं। चैनल एयर चैनल निष्क्रिय चैनल अन्य परिसंपत्तियां एंटर10 म्यूजिक भोजपुरी एक फिल्म वितरण और संगीत इकाई है। विवाद 8 अक्टूबर, 2020 को, फक्त मराठी के मालिक शिरीष पट्टनशेट्टी को टेलीविजन रेटिंग में हेरफेर करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। संदर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8B%E0%A4%B7%20%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%B2
संतोष पोल
संतोष पोल (जन्म 4 नवंबर, 1974) एक भारतीय झोलाछाप डॉक्टर है, जिसने 2003 से 2016 तक महाराष्ट्र के धोम शहर में छह लोगों की हत्या करने की बात कबूल की, कथित तौर पर उन्हें स्यूसिनाइलकोलाइन का इंजेक्शन देकर, एक न्यूरो-पेशी लकवाग्रस्त दवाई। इस घटना के लिए मीडिया द्वारा उन्हें डॉ। डेथ करार दिया गया था। 2020 की मराठी टेलीविजन श्रृंखला देवमानस में, किरण गायकवाड़ के चरित्र को डॉ. अजीतकुमार देव कहा जाता है, जो मुख्य रूप से संतोष पोल के जीवन पर आधारित है। जीवित लोग सिलसिलेवार हत्यारे पुरुष 1974 में जन्मे लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A8%20%E0%A4%9C%E0%A5%82%E0%A4%A8
२२ जून
22 जून ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 173वाँ (लीप वर्ष में 174 वाँ) दिन है। साल में अभी और 192 दिन बाकी हैं। प्रमुख घटनाएँ 1593 - सिसाक की लड़ाई में ईसाइयों की सामुहिक सेना ने उस्मानी तुर्कों (ऑटोमन) को हरा दिया। 1844 - येल विश्वविद्यालय में डेल्टा कप्पा एप्सिलन सोसायटी की स्थापना हुई। 1897 - पुणे में चाफेकर बंधुओं ने तत्कालीन जिलाधिकारी वाल्टर चार्ल्स रैण्ड की गोली मारकर हत्या कर दी। 1906- स्वीडन ने अपना ध्वज अपनाया। 1911 - जॉर्ज पंचम का राजतिलक हुआ। 1922- आयरिश रिपब्लिकन आर्मी के एजेंट ने बेलग्रेविया में ब्रिटिश फील्ड मार्शल हेनरी ह्यूजेस विल्सन की हत्या कर दी। हत्या करने वाले को १८ जुलाई को मौत की सजा सुनाई गई। 1941 - द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी ने सोवियत रूस पर आक्रमण किया। इसमें जर्मनी की निर्णायक हार हुई थी। जन्म . 1922 - मोना लिसा, फिलिपिनी अभिनेत्री . 1932 - अमरीश पुरी, हिन्दी फिल्मों के प्रसिद्ध खलनायक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी गणेश घोष का जन्म 22 जून 1900 में हुआ. निधन भारत के प्रसिद्ध कवी जगन्नाथदास 'रत्नाकर' का निधन 1932 में हुआ.  बौद्ध भिक्षु, पालि भाषा के मूर्धन्य विद्वान तथा लेखक भदन्त आनन्द कौसल्यायन का निधन 22 जून 1988 में हुआ. 22 जून 2022 भारतीय महिला क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान रूमेली धर ने क्रिकेट के सभी प्रारूपों से सन्यास लिया। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ जून
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%28%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B2%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%AA%E0%A5%88%E0%A4%9F%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A8%29
मॉर्निंग स्टार (कैंडलस्टिक पैटर्न)
मॉर्निंग स्टार कैंडलस्टिक पैटर्न एक बुलिश, ट्रेंड रिवर्शल पैटर्न है जो डाउन ट्रेंड में चल रहे शेयर को अपट्रेंड में बदलने का संकेत देता है। यह ट्रिपल कैंडलस्टिक पैटर्न का एक प्रकार है | जब कोई शेयर डाउन ट्रेंड में लगातार ट्रेड कर रहा होता है तब एक ऐसा दौर आता है जब कंपनी के शेयर निवेशक को आकर्षक लगने लगता है | ऐसे में वे इस लेवल पर खरीदारी करना आरंभ कर देते है | खरीदारी के कारण यह मॉर्निंग स्टार कैंडलस्टिक पैटर्न का रूप ले लेता है | वैसे तो बुलिश ट्रेंड रिवर्शल पैटर्न कई सारे है लेकिन ये पैटर्न सबसे अलग है | यह पैटर्न तीन कैंडल से मिलकर बनता है तथा तीनों कैंडल के सही रंग में होना आवश्यक है | इस पैटर्न में पहली कैंडल बड़ी, बेयरिश कैंडल होती है जो बड़ी मंदी का संकेत देती है | इसके बाद बनने वाली कैंडल गैप डाउन ओपन होती है तथा एक छोटी बॉडी वाली कैंडल का निर्माण करती है | इस दूसरी कैंडल में अपर तथा लोअर शैडो लगभग एक समान होता है | इस कैंडल में अपर तथा लोअर शैडो का समान होना बियर्स तथा बुल्स के मध्य युद्ध को दर्शाता है | यह कैंडल बियर्स की शक्ति के कम होने का संकेत देता है | इस पैटर्न में तीसरी कैंडल गैपअप ओपन होती है तथा बड़ी बुलिश कैंडल का निर्माण कर देती है | यह कैंडल बुल्स के विजय को दर्शाती है | इन तीनों कैंडल को संयुक्त रूप से मॉर्निंग स्टार कैंडल कहा जाता है | लेकिन जब यह पैटर्न किसी डाउन ट्रेंड के बॉटम में बनता है तब इसे मॉर्निंग स्टार कैंडलस्टिक पैटर्न कहा जता है | इस पैटर्न में तीसरी बुलिश कैंडल का वॉल्यूम जितना अधिक होता है, पैटर्न उतना ही प्रभावशाली होता है | जब कोई कैंडल मॉर्निंग स्टार कैंडल के तीसरे कैंडल का हाई ब्रेक कर ऊपर निकल जाता है तब एक ट्रेडर इसमे खरीदारी में ट्रेड लेता है | इस पैटर्न में ट्रेडर अपना स्टॉप लॉस मॉर्निंग स्टार कैंडल का low तथा टार्गेट 1:1 लगाते है | मॉर्निंग स्टार कैंडलस्टिक पैटर्न के प्रकार मॉर्निंग स्टार कैंडलस्टिक पैटर्न तीन कैन्डल से मिलकर बनने वाला एक तरह का कैन्डल्स्टिक पैटर्न है परंतु इसमे भी आपको अलग - अलग वर्ज़न देखने को मिल सकते हैं जैसे कि - मॉर्निंग डोजी स्टार पैटर्न मॉर्निंग पिन बार स्टार पैटर्न एबंडेंट बेबी पैटर्न मॉर्निंग डोजी स्टार पैटर्न यह एक नॉर्मल मॉर्निंग स्टार कैंडलस्टिक पैटर्न जैसा हमने इसके पहले पढ़ा | इसमे सबसे पहला कैन्डल एक लाल रंग का मारूबुजु होता है फिर दूसरा कैन्डल एक डोजी/स्पिनिंग टॉप होता है और अगला कैन्डल एक हरे रंग का कैन्डल होता है | इस पैटर्न को हम मॉर्निंग डोजी स्टार पैटर्न (Morning Doji Star pattern) कहते हैं और इसे ही मॉर्निंग स्टार कैंडलस्टिक पैटर्न भी कहा जाता है | मॉर्निंग पिन बार स्टार पैटर्न मॉर्निंग पिन बार स्टार पैटर्न में पहला कैन्डल और तीसरा कैन्डल एक जैसा होता है बस फर्क सिर्फ इतना होता है कि इसका दूसरा कैंडलस्टिक एक पिनबार कैन्डल (hammer candle / शूटिंग स्टार) होता है | एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न यह पैटर्न डोजी स्टार पैटर्न जैसा ही होता है जिसमे पहला कैन्डल लाल रंग का दूसरा कैन्डल डोजी/स्पिनिंग टॉप और तीसरा कैन्डल हरा होता है | एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न में फर्क सिर्फ इतना होता है कि इसका जो दूसरा कैन्डल बनता है वह बहुत बड़े गैप के साथ बनता है | डोजी कैन्डल के दोनों तरफ गैप बहुत ज्यादा होने के कारण इसे एबंडेंट बेबी कैंडलस्टिक पैटर्न कहा जाता है | सन्दर्भ तकनीकी विश्लेषण कैंडलस्टिक पैटर्न
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%B2%E0%A4%A8%20%E0%A4%B5%E0%A5%89%E0%A4%95%E0%A4%B0
एलन वॉकर
एलन वॉकर का जन्म २४ अगस्त १९९७ को नॉर्थम्प्टन (इंग्लैंड) में हुआ | एलन को मुख्यतः उनके गाने "faded" के लिए जाना जाता है | प्रारंभिक जीवन एलन "Hilde Omdal Walker" जो की नॉर्वे की निवासी हैं तथा "Philip Alan Walker" जो की इंग्लैंड के निवासी हैं के बेटे हैं | जन्म के समय, उन्हें अपने पैतृक मूल के आधार पर नॉर्वे और यूनाइटेड किंगडम दोनों में दोहरी नागरिकता प्रदान की गई थी ।दो साल की उम्र में, वह अपने माता-पिता और भाई-बहनों के साथ, बर्गन , नॉर्वे चले गए । वॉकर का जन्म दो भाई-बहनों के साथ हुआ, एक बड़ी बहन, कैमिला, इंग्लैंड में पैदा हुई और एक छोटा भाई, एंड्रियास, नॉर्वे में पैदा हुआ । सन्दर्भ 1997 में जन्मे लोग जीवित लोग
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थीबी (उपग्रह)
थीबी (यूनानी: Θήβη, अंग्रेज़ी: Thebe) बृहस्पति ग्रह का चौथा सब से अंदरूनी उपग्रह है। इस उपग्रह की खोज ५ मार्च १९७९ को स्टीफ़न सायनोट (Stephen Synnott) नामक अमेरिकी खगोलशास्त्री ने वॉयजर प्रथम द्वारा ली गयी तस्वीरों का अध्ययन कर के की थी। यह उपग्रह बृहस्पति के छल्लों में स्थित है और थीबी गोसेमर छल्ले के बाहरी किनारे पर स्थित है। यह छल्ला इसी उपग्रह से उभरी हुई धुल का बना है। यह बृहस्पति की परिक्रमा उस ग्रह से २,१८,००० किमी की दूरी पर करता है। थीबी बृहस्पति के इतना पास होने से और उस ग्रह की तुलना में बहुत छोटा होने से बृहस्पति की स्थिरमुखी परिक्रमा करता है, यानि परिक्रमा करते हुए थीबी का एक ही रुख़ हमेशा बृहस्पति की ओर होता है। अकार और रंग-रूप ऐमलथीया का अकार बेढंगा है और उनका माप ११६ - ९८ - ८४ कीमी है (लम्बाई, चौड़ाई, गहराई)। इसका रंग काफ़ी लाल है। वैज्ञानिक अंदाज़ा लगते हैं कि यह अधिकतर पानी की बर्फ का बना हुआ है और इसमें लालीमा प्रदान करने वाले कुछ तत्व मिले हुए हैं। जब गैलिलेओ यान ने इसका अध्ययन किया तो इसपर पहाड़ियाँ और क्रेटर नज़र आये थे। इन्हें भी देखें बृहस्पति उपग्रही छल्ले सन्दर्भ प्राकृतिक उपग्रह बृहस्पति के प्राकृतिक उपग्रह सौर मंडल
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मयिलाडुतुरै
मयिलाडुतुरै (Mayiladuthurai) भारत के तमिल नाडु राज्य के मयिलाडुतुरै ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। विवरण शहर कावेरी नदी के तट पर ऐतिहासिक तंजावुर क्षेत्र में स्थित है। मयिलाडुतुरै एक प्रसिद्ध रेलवे जंक्शन है और शहर क्षेत्र के प्रमुख शहरों जैसे तिरुचिरापल्ली, तंजावुर, कुंभकोणम और तिरुवरुर से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। मयिलाडुतुरै एक लोकसभा क्षेत्र भी है जिसका प्रतिनिधित्व अन्नाद्रमुक के ओएस मणियन द्वारा किया जाता है। नाम और महत्व किंवदंतियों का कहना है कि एक शाप के कारण देवी पार्वती ने मयूरम में मोर के रूप में जन्म लिया और मयूरनाथर रूपी भगवान शिव की पूजा की। मयूरम का संस्कृत में अर्थ मोर है और बाद में इसका तमिल भाषा में मयिलाडुतुरै के रूप में अनुवाद किया गया। मयिलाडुतुरै महांगल (मयिलाडुतुरै के संत) पुस्तक के अनुसार अनेक संत मयिलाडुतुरै के आसपास रहे और अंतिम शांति (समाधि) प्राप्त की। कई सिद्धार भी यहां रहे हैं। आज भी यहां मयिलाडुतुरै के बाहरी पश्चिमी इलाके में एक सिद्धारकाडू (इसका मतलब है "संतों का वन") नामक गांव है। किवदंती के अनुसार यह थरुकवानम.आई का हिस्सा था। वैसे भी मयिलाडुतुरै तीन अलग शब्दों का एक संयोजन है, माइल (का अर्थ मयूर है) + आदुम (का नृत्य) + तुरयी (का अर्थ है स्थान). कुल मिलाकर मयिलाडुतुरै का मतलब है मयूर नृत्य का स्थान। परिवहन एवं संचार मयिलाडुतुरै सड़क और रेल द्वारा अच्छी तरह से देश के बाकी हिस्सों से जुड़ा हुआ है। निकटतम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा माइलादुत्रयी से 132 किलोमीटर की दूरी पर तिरूचिरापल्ली में है। चेन्नई, तंजावुर, तिरुवरुर, कुंभकोणम, तिरूचिरापल्ली, चिदंबरम, नागपट्टिनम, कोयंबतूर, मदुरै, पांडिचेरी, और तिरुनलवेली को नियमित रूप से सरकारी और निजी बस सेवा सुलभ है। मयिलाडुतुरै दक्षिण भारत के सभी महत्वपूर्ण शहरों और कस्बों के साथ रेल से जुड़ा हुआ है। मैसूर-मयिलाडुतुरै एक्सप्रेस बंगलौर को मैसूर से जोड़ती है। चेन्नई, विल्लुपुरम को नियमित और वाराणसी एवं भुवनेश्वर को साप्ताहिक रेल सेवाएं उपलब्ध हैं। मयूरम कहावत ஆயிரம் ஆனாலும் மாயூரம் ஆகாது "अयरम अनालम मयूरम अगादू" एक पुरानी कहावत है। इसका मतलब यह है कि हज़ारों खूबियों वाले हज़ार स्थान होंगे लेकिन मयूरम (मयिलाडुतुरै ) की कोई तुलना नहीं। मयूरम में सांस्कृतिक विरासत, कृषि और आर्थिक प्रगति को समर्थन देने और बनाए रखने के लिए आज भी इस कहावत का भरपूर प्रयोग किया जाता है। उल्लेखनीय व्यक्ति मौजूदा विश्व शतरंज चैंपियन विश्वनाथन आनंद इस शहर से ही हैं। अर्थव्यवस्था अधिकतर व्यावसायिक प्रतिष्ठान केंद्रीय शहर में स्थित हैं। अधिकतर आबादी कूरायनाडू (कोरनाड) और थिरू-इंदलूर (थिरीविज़न्दूर) नामक दो उपनगरीय इलाके में स्थित है। मयिलाडुतुरै अपने सोने के गहनों के व्यापार और विवाह-हॉल के लिए प्रसिद्ध है। शहर में लगभग एक सौ विवाह हॉल हैं और शादी समारोह के लिए अपने क्षेत्र के श्रेष्ठ लोग (सस्ते और आसानी से उपलब्ध) और सेवाएं मयिलाडुतुरै में सुलभ होने के कारण विभिन्न स्थानों से लोग यहां शादी समारोह आयोजित करने आते हैं। यह चेन्नई (चिदंबरम, विल्लुपुरम के द्वारा), त्रिची (वाया कुंभकोणम, तंजौर) और तिरुवरुरके लिए रेलवे जंक्शन है। वर्ष (2005-2006) मयिलाडुतुरै-त्रिची रेलवे लाइन ब्रॉड गेज में परिवर्तित. (2006-2007) यूनीगेज के तहत मयिलाडुतुरै-विल्लुपुरम रूपांतरण हो रहा है। पूम्पुहार मयिलाडुतुरै मयिलाडुतुरै स किमी से 25 की दूरी पर है। उपजाऊ भूमि होने के कारण कृषि इस क्षेत्र की मुख्य गतिविधि है। चावल और गन्ना इसके दो मुख्य उत्पाद हैं। मयिलाडुतुरै में दो चीनी मिलें स्थित हैं। प्राचीन दिनों में, कूरायनाडू (मायावरम का उपनगर) रेशम की साड़ियों (9 गज) की बुनाई के लिए प्रसिद्ध था और अभी भी तमिल लोग "कूरेप पट्टू" (कूरई रेशम) और कूरेप पुड़वई (साड़ी) शब्द का उपयोग कर रहे हैं। अवस्थिति यह मद्रास से लगभग 281 किमी दूर दक्षिण में है और मुख्य लाइन के माध्यम से रेलगाड़ी और सड़क से भी पहुँचा जा सकता है। चेन्नई से मयिलाडुतुरै पहुँचने का सबसे अच्छा रास्ता ईसीआर (ईस्ट कोस्ट रोड) पांडिचेरी के माध्यम से है। मयिलाडुतुरै दक्षिणी रेलवे के प्रमुख जंक्शनों में से एक है इसकी लाइनें मद्रास, त्रिची, तिरुवरुर और तरंगमपदी को निकलती हैं। शहर संयुक्त तंजावुर जिले में था लेकिन अब यह नागपट्टिनम जिले का हिस्सा है। यह एक शैक्षिक जिले का मुख्यालय है और तमिलनाडु के 40 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। मयिलाडुतुरै दैनिक ट्रेन सेवा द्वारा सीधे कोयंबटूर, बंगलौर और मैसूर से जुड़ा हुआ है। मयिलाडुतुरै के आसपास धर्मापुरम, मूंगिल थूटम, मनामपंडल, अरुपति, सेम्बनारकोइल, मीलापप्ती गांव हैं। नटियांजलि मयिलाडुतुरै नटियांजलि त्योहार के लिए भी प्रसिद्ध है। चिदम्बरन के नटराज मंदिर की नटियांजलि के समान मयिलाडुतुरै में एक और नटियांजलि है जिसे "मयूरा नटियांजलि" कहा जाता है। मयूरा नटियांजलि महा शिवरात्रि के दौरान बाहरी मयूरनाथर मंदिर (पेरिया कोविल) में हर साल मनाया जाता है। दुनिया भर से भरत नाटयम नर्तक इस त्योहार में भाग लेते हैं। यह मयूरा नटियांजलि मयिलाडुतुरै और आसपास के लोगों के समर्थन और प्रोत्साहन से सांस्कृतिक कल्याण ट्रस्ट "सप्तस्वरागल" नामक ट्रस्ट द्वारा आयोजित की जाती है। यह माइलाइ सप्तस्वरांगल संगीत और ललित कला अकादमी के लोगों द्वारा निर्देशित की जाती है। राजनीति मयूरम विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र मयिलाडुतुरै (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) का हिस्सा है। जनसांख्यिकी भारत की जनगणना मयिलाडुतुरै की आबादी 84,290 थी। पुरुषों की जनसंख्या 50% और महिलाओं की जनसंख्या 50% है। माइलादुत्रयी की औसत साक्षरता दर 80% है, जो कि राष्ट्रीय औसत दर 59.5% से अधिक है: पुरुष साक्षरता 84% है और महिला साक्षरता 76% है। मयिलाडुतुरै में 9% जनसंख्या 6 साल से कम उम्र के बच्चों की है। मंदिर उठा वैदेश्वर मंदिर - कुटलम में स्थित उठा वैदेश्वर मंदिर जिसे 'बड़ा मंदिर' भी कहा जाता है, शिव को समर्पित एक मंदिर है। मयूरनाथर मंदिर - मयूरनाथर मंदिर जिसे 'बड़ा मंदिर' मंदिर भी कहा जाता है, शिव को समर्पित एक मंदिर है जहाँ तेवरम का पाठ किया जाता है। वलालर मंदिर - गुरु स्थल के लिए प्रसिद्ध, नदी कावेरी के उत्तरी तट में वलालर मंदिर एक विख्यात शिव मंदिर है। अय्यारपर मंदिर - भगवान शिव को समर्पित अय्यारपर मंदिर, शहर के केंद्र में स्थित है। इस मंदिर का तुला महोत्सव प्रसिद्ध है और यह अक्टूबर के महीने में मनाया जाता है। परिमला रंगनाथर मंदिर - तिरु-इंदलूर उपनगर का श्री विष्णु मंदिर, परिमला रंगनाथर मंदिर, 108 दिव्य देशम में से एक है। सेंतागुड़ी दुर्गा मंदिर - दुर्गा मंदिर भी प्रसिद्ध है और मयिलाडुतुरै से 2 किमी दूर है। तिरुकादैयूर अबिरामी अम्मन मंदिर - यह मंदिर सदाबिसेगम, मनिविझा के लिए प्रसिद्ध है। चिरायु के लिए लोग इस मंदिर में आते हैं और मयिलाडुतुरै से 18 किमी दूर स्थित है। तिरुम्बापुरम मंदिर - तिरुम्बापुरम एक बहुत ही प्राचीन शिव मंदिर है। यह दक्षिणा कालहस्ती के रूप में जाना जाता है। यह पेरलम (7 किमी पश्चिम) के पास स्थित है। तिरुमाननचेरी मंदिर - माइलादुत्रयी के बहुत निकट तिरुमाननचेरी बहुत मशहूर मंदिर है - www.thirumanancheri.info से मंदिर के बारे में और अधिक विवरण मिल सकता है। कनगी मंदिर - कनगी मंदिर मेलैयूर में है जो मयिलाडुतुरै से 24 किमी दूर स्थित है। पूम्पुहार मेलैयूर से 4 किमी दूर स्थित है। पुनुगिश्वरर मंदिर - पुनुगिश्वरर मंदिर भगवान शिव और उनकी पत्नी नायकी सांता को समर्पित है। कोरनाड में स्थित है। सीबिट कैट द्वारा पूजा जाता है। श्री वानमुटी पेरूमल, कोझीकुथी (शहर से 5 किमी बाहर कुंभकोणम रोड पर स्थित), मायावरम के निकट एक अद्वितीय मंदिर है जिसमें इसके मुख्य देवता भगवान श्रीनिवास पेरूमल (प्यार से "वानम-मुटी" पेरूमल- चूंकि वह बढ़ता ही रहा) 16 फ़ीट ऊंचे खड़े हैं। सबसे खास विशेषता यह है कि पूरी मूर्ति एक ही अंजीर के पेड़ से तराशी गई है जिसकी असली जड़ें आज भी नीचे बढ़ रही हैं। 1000 साल से अधिक पुराना गंगैयी कोंडा चोलापुरम, माइलादुत्रयी से सिर्फ़ 40 किमी दूर एक मंदिर है। यह एक दर्शनीय ऐतिहासिक स्थल है। शहर के आसपास नवग्रह मंदिर स्थित हैं। माइलादुत्रयी के आसपास के क्षेत्र में कई प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनमें सबसे महत्वपूर्ण वैथीश्वरनकोइल है। मंदिर परिसर कई ज्योतिषियों का घर है जो नाड़ी ज्योतिदम '' तरीके से भाग्य बताते हैं। शहर में एक मेधा दक्षिणामूर्ति मंदिर भी है। अन्य महत्वपूर्ण मंदिरों में शामिल हैं सुकरान मंदिर और तिरुकदावुर का मंदिर जो भगवान अमृतकादेश्वर और अबिरामी देवी को समर्पित है। सैवम और तमिल की समृद्धि के लिए गठित संस्थाओं में से एक धर्मापुरम अधीनम (मठ) मयूरम के पूर्वी भाग में है। तमिल महीने "ऐपासी" में, कावेरी नदी में "तुला स्नानम" के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। कुलोतुंगा चोलन से निर्मित शिव मंदिर मूवलर मार्कासगया मयिलाडुतुरै से 4 किमी दूर है। शिक्षा मयिलाडुतुरै एक शैक्षिक जिले का मुख्यालय है। महाविद्यालय ऐ.जी.आर.ऐ. कॉलेज ऑफ़ एडुकेशन, चोलमपेटयी ऐ.वी.सी. कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स, मयिलाडुतुरै ऐ.वी.सी. कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग ऐ.वी.सी. कॉलेज ऑफ़ पॉलिटेक्निक धर्मापुरम अधिनाम आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज, धर्मापुरम, मयिलाडुतुरै ज्ञानम्बिगई कॉलेज फ़ॉर वुमन - राजनोतम, मयिलाडुतुरै ऐ.आर.सी. विश्वनाथन आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज, मयिलाडुतुरै जे.एम.एच. अरेबिक कॉलेज, मयिलाडुतुरै पूम्पुहार कॉलेज, मेलैयूर, मयिलाडुतुरै टी.बी.एम. एल. कॉलेज, पोरियार विद्यालय राज मैट्रिकुलेशन हायर सेकेंडरी स्कूल, कोरनाड आइडियल (सीबीएसई), माइलादुत्रयी डीबीटीआर नेशनल हायर सेकेंडरी स्कूल किटप्पा नगरपालिका हायर सेकेंडरी स्कूल गवर्नमेंट गर्ल्ज़ हायर सेकेंडरी स्कूल सेंट पॉल गर्ल्ज़ हायर सेकेंडरी स्कूल गुरु ज्ञान संबंदर मिशन मैट्रिकुलेशन हायर सेकेंडरी स्कूल अरिवैलयम मैट्रिकुलेशन हायर सेकेंडरी स्कूल श्री गुरु ज्ञान संबंदर हायर सेकेंडरी स्कूल, धर्मापुरम रोटरी क्लब मैट्रिकुलेशन हायर सेकेंडरी स्कूल सिल्वर जुबली मैट्रिकुलेशन हायर सेकेंडरी स्कूल ऐ.आर.सी. कमात्ची मैट्रिकुलेशन हायर सेकेंडरी स्कूल मूवालूर मुथाटी राममीर्थम अमियार हायर सेकेंडरी स्कूल आज़ाद स्कूल नसरूल मुस्लिमीन हायर सेकेंडरी स्कूल, निदूर, मयिलाडुतुरै अल हाजी मैट्रिकुलेशन स्कूल, निदुर, मयिलाडुतुरै सांस्कृतिक कल्याण ट्रस्ट सप्तस्वरांगल ट्रस्ट, मयिलाडुतुरै संगीत विद्यालय मैलयी सप्तस्वरांगल_फ़ाइन आर्ट्स अकादमी, पालाकरायी, मयिलाडुतुरै इन्हें भी देखें मयिलाडुतुरै ज़िला सन्दर्भ मयिलाडुतुरै ज़िला तमिल नाडु के शहर मयिलाडुतुरै ज़िले के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%A3%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A5%87
वीणा सहस्त्रबुद्धे
वीणा सहस्त्रबुद्धे (14 सितंबर 1948 - 29 जून 2016) प्रमुख भारतीय गायिका और कानपुर से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की संगीतकार थी। उनकी गायन शैली की जड़ें ग्वालियर घराने में थीं, लेकिन वह जयपुर और किराने घरानों से भी यह उधार ली गई थीं। सहस्रबुद्धे को ख़याल और भजन की गायिका के रूप में भी जाना जाता है। संगीत करियर वीणा सहस्रबुद्धे का जन्म संगीत परिवार में हुआ था। उनके पिता शंकर श्रीपाद बोदस गायक विष्णु दिगंबर पलुस्कर के शिष्य थे। उन्होंने अपने पिता के तहत अपनी संगीत की प्रारंभिक शिक्षा शुरू की और फिर अपने भाई काशीनाथ शंकर बोडस से परिक्षण लिया। उन्होंने बचपन में कथक नृत्य भी सीखा था। वीणा ने गायन और संस्कृत दोनों में स्नातक और परास्नातक किया था। 2013 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार दिया गया था। उन्हें अखिल भारतीय गन्धर्व मंडल महविद्यालय से संगीत अलंकार प्राप्त हुआ था। वह आईआईटी कानपुर में शिक्षण भी कर चुकी थीं। 1979 में उन्होंने कानपुर विश्वविद्यालय से संस्कृत में परास्नातक की डिग्री प्राप्त की। सन्दर्भ 1948 में जन्मे लोग २०१६ में निधन संगीत नाटक अकादमी पुरस्कृत कानपुर के लोग भारतीय शास्त्रीय गायिका
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उत्पल
उत्पल का अर्थ खिलता हुआ कमल होता है। उत्पल माने पद्म। यह शब्द हिंदी में काफी प्रयुक्त होता है, यदि आप इसका सटीक अर्थ जानते है तो पृष्ठ को संपादित करने में संकोच ना करें (याद रखें - पृष्ठ को संपादित करने के लिये रजिस्टर करना आवश्यक नहीं है)। दिया गया प्रारूप सिर्फ दिशा निर्देशन के लिये है, आप इसमें अपने अनुसार फेर-बदल कर सकते हैं। वृक्ष आयुर्वेद में इसका भरपूर वर्णन किया गया है| उदाहरण मूल नील कमल अन्य अर्थ संबंधित शब्द हिंदी में अन्य भारतीय भाषाओं में निकटतम शब्द शब्दार्थ
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बिमल मित्र
विमल मित्र या बिमल मित्र (18 दिसंबर 1912 - 1991) एक विख्यात बांग्ला लेखक व उपन्यासकार हैं। विमल ने सन्‌ 1938 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बांग्ला साहित्य में एम.ए. की उपाधि ली और रेलवे में विभिन्न पदों पर नौकरी की। जून 1956 में उन्होनें डिप्टी चीफ कंट्रोलर के पद से इस्तीफा दे दिया और स्वतंत्र लेखन करने लगे। उन्होंने भारतीय साहित्य को लगभग साढ़े तीन दशकों तक लिखते हुए 60 से अधिक उपन्यास और कहानी संग्रह दिए हैं। उनकी सर्वाधिक चर्चित कृतियों में साहिब बीवी और गुलाम शामिल है, जिस पर एक लोकप्रिय फिल्म का भी निर्माण हुआ। मुजरिम हाजिर नाम उनकी एक अन्य कृति पर एक लोकप्रिय टीवी धारावाहिक का भी निर्माण हुआ। हिन्दी पाठकों को उनकी जो रचनाएं अनुवादित होकर पढ़ने को मिली, उनमें 'साहब बीवी और गुलाम', 'खरीदी कौड़ियों के मोल' (दो-खंड), 'इकाई, दहाई, सैकड़ा', 'बेगम मेरी विश्वास' (दो खंड), 'दायरे के बाहर', 'मैं', 'राजा बादल', 'चरित्र', 'गवाह नंबर 3', 'वे दोनों', 'काजल', 'कन्यापक्ष', 'रोकड़ जो नहीं मिली,' 'चलो कलकत्ता,' 'हासिल रहा तीन', 'तपस्या', 'राग भैरवी', 'सुबह का भूला' जैसी कृतियां उल्लेखनीय हैं। सन्दर्भ बांग्ला साहित्यकार 1912 में जन्मे लोग १९९१ में निधन
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कहता है दिल जी ले ज़रा
कहता है दिल जी ले ज़रा सोनी टीवी पर प्रसारित होने वाला एक धारावाहिक है। यह १५ अगस्त २०१३ से ८ मई २०१४ तक चला। इसमें संगीता घोष व रुसलान मुमताज़ मुख्य किरदार निभा रहे हैं। कलाकार संगीता घोष (सांची) - मुख्य किरदार रुसलान मुमताज़ (ध्रुव यशवर्धन गोयल) - मुख्य किरदार महरु शेख (नीना यशवर्धन गोयल) - ध्रुव यशवर्धन गोयल की माँ ऋषद राणा (अन्वय यशवर्धन गोयल) - ध्रुव यशवर्धन गोयल का बड़ा भाई अमित बहल (यशवर्धन गोयल) - ध्रुव यशवर्धन गोयल के पिता विवाना सिंह (सुपर्णा अन्वय गोयल) मीनक्षी सेठी (सुमन) - सांची की दादी सुलभा देशपांडे (आजी) - सांची की दादी डेलनाज पॉल (दिलशाद) - सांची की पड़ोसी विष्णु भोलवानी (प्रदीप प्रभु) प्रियंका सिड़ना (प्राची) - सांची की बहन नबील मिराजकर (अद्वैत प्रभु) आश्चर्य शेट्टी (दीपाली प्रदीप प्रभु) विनय जैन (ऋषि) विशाल नायक (शिवम) गौरव बाजपई (सुनील) सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ
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पाकिस्तान के गवर्नर जनरल
यहाँ पाकिस्तान के स्वतंत्रता उपरांत गवर्नर-जनरल गण की सूची दी गयी है। इनका पूर्ण काल1947 – 1958 के बीच रहा। उसके बाद पाकिस्तान गणतंत्र बन गया। तब वहाँ राष्ट्रपति होने लगे। मोहम्मद अली जिन्नाह, 15 अगस्त 1947–11 सितंबर 1948 ख्वाजा नजीमुद्दीन, 14 सितंबर 1948–17 अक्टूबर 1951 गुलाम मोहम्मद, 17 अक्टूबर 1951–6 अक्टूबर 1955 इस्कंदर मिर्जा, 6 अक्टूबर 1955–23 मार्च 1956 इन्हें भी देखें भारत के गवर्नर जनरल ब्रिटिश साम्राज्य गवर्नर जनरल पाकिस्तान के राष्ट्रपति वाइसरॉय ब्रिटिश राज भारत का विभाजन बांग्लादेश का इतिहास पाकिस्तान का इतिहास पाकिस्तान के गवर्नर जनरल
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%95
एलिजा कुक
एलिजा कुक (24 दिसंबर 1818 – 23 सितम्बर 1889) चार्टिस्ट आंदोलन से जुड़ी एक अंग्रेजी लेखक और कवि थी। वह महिलाओं के लिए राजनीतिक आजादी की समर्थक थी, और शिक्षा के माध्यम से स्वयं सुधार की विचारधारा में विश्वास करती थी, जिसे उसने "लैवलिंग अप" कहा था। इससे वो इंग्लैंड और अमेरिका दोनों में श्रमिक वर्ग की जनता के बीच हद लोकप्रिय हो गई। बचपन एलिजा कुक लंदन रोड, साउथवार्क, जहां उनका जन्म हुआ था, में रहने वाले एक ब्राजियर (एक पीतल-कार्यकर्ता) के ग्यारह बच्चों में सबसे कम उम्र की थी। जब वह नौ साल की थी, तो उसके पिता व्यवसाय से सेवानिवृत्त हुए, और परिवार होरशाम के नजदीक सेंट लियोनार्ड वन में एक छोटे से खेत में रहने के लिए गया। उसकी मां ने कल्पनाशील साहित्य के लिए एलिजा की आदत को प्रोत्साहित किया, लेकिन बच्चा लगभग पूरी तरह से आप-शिक्षित था। वह पंद्रह वर्ष से पहले छंद लिखने लगीं; वास्तव में, उनकी सबसे लोकप्रिय कविताएं, जैसे कि 'आई एम्फ़्लॉट' और 'स्टार ऑफ ग्लेनगैरी', की रचना उसके  लड़कीपन में की गई थीं। कैरियर उनका पहला दीवान, लेईज़ ऑफ अ वाईल्ड हार्प, 1835 में प्रकाशित हुया, जब वह केवल सत्रह की थीं। इसके अनुकूल स्वागत से उत्साहित हो कर उसने साप्ताहिक डिस्पैच, महानगर पत्रिका, नई मासिक पत्रिका, और साहित्यिक राजपत्र को गुमनाम रूप से छंद भेजना शुरू किया; विलियम जेरदन ने इनमें से अंतिम में अपनी प्रशंसा की। कुछ समय बाद उसने अपने आप को रैडिकल साप्ताहिक डिस्पैच तक सीमित कर दिया, जहां उनका पहला योगदान हस्ताक्षर 'सी' के तहत 27 नवंबर 1836 को प्रकाशित हुआ था।, और वह अगले दस वर्षों के लिए इसके पृष्ठों पर रही।  इसका संपादक था विलियम जॉनसन फॉक्स और उसका मालिक था लंदन का एक एल्डरमैन जेम्स हार्मर। वह हर्मर के निवास, इन्ग्रैस एबे, ग्रीनहिथे, केंट में एक समय के लिए रही थी, और वहां उसने अपनी कुछ रचनाएँ को लिखा था। सन्दर्भ 1818 में जन्मे लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A7%20%E0%A4%85%E0%A4%97%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4
२१ अगस्त
21 अगस्त ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 233वॉ (लीप वर्ष मे 234 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 132 दिन बाकी है। प्रमुख घटनाएँ १७१८ - तुर्की और वेनिस के बीच शांति संधि हुई। १७७२ - स्वीडन में गुस्ताव तृतीय ने 50 वर्ष पुराने संसद के शासन को समाप्त कर तानाशाही स्थापित की। १७९० - जनरल मीडोस की अगुआई में ब्रितानी सेना ने तमिलनाडु के दिंदीगुल पर कब्जा कर लिया। १८४२ - तस्मानिया में होबर्ट शहर की स्थापना हुई। १९१५ - प्रथम विश्व युद्ध में इटली ने तुर्की के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की। १९३८ - इटली में सार्वजनिक उच्च विद्यालयों में यहूदी शिक्षकों के पढ़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 1944- अमरीका, ब्रिटेन,रूस और चीन के प्रतिनिधियों ने संयुक्त राष्ट्र के संगठन की योजनाओं को लेकर मुलाकात की १९५९ - हवाई अमेरिका का पचासवाँ राज्य बना। १९६३ - बुद्ध मंदिर पैगोडा में छापे के विरोध में दक्षिण वियतनाम में मार्शल लॉ की घोषणा की गई। १९६५ - रोमानिया में संविधान लागू हुआ। १९६८ - चेकोस्लोवाकिया के स्थानीय रेडियो द्वारा पराग्वे पर सोवियत संघ के नेतृत्व में हमले की घोषणा की गई। 1972- भारत में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम,1972 पारित 1982- स्विटजरलैंड के राजा सोभूजा द्वितीय का 83 वर्ष की आयु में निधन 1983- फिलीपीन्स के विपक्षी नेता बेनिग्नोत अक्कीनो की हत्या १९८६ - कैमरून में ज्वालामुखी विस्फोट से निकली जहरीली गैसों से 2000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई। 1988- भारत नेपाल सीमा पर आये तीव्र भूकंप से एक हजार लोगों की मौत १९९१ - लातविया ने संयुक्त सोवियत संघ रूस से अलग होने की घोषणा की। 2006- प्रसिद्व शहनाई वादक बिस्मिल्लाह ख़ान का नब्बे वर्ष की आयु में निधन जन्म 1922- मेल फिशर, अमेरिकी खजाना खोजक और मेल फिशर समुद्री विरासत संग्रहालय के संस्थापक (मृ. 1998) 1973- सर्गी ब्रिन रूसी अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक, सॉफ्टवेयर डेवलपर और गूगल के सह-संस्थापक। 1978 - भूमिका चावला - भारतीय अभिनेत्री निधन 1931- पंडित विष्णु दिगंबर 2006: शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ान (जन्म: 21 मार्च, 1916) को वाराणसी में बहारी कडियाँ बीबीसी पे यह दिन अगस्त वर्ष के दिवस
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सैयदा अरोब शाह
सैयदा अरोब शाह (जन्म 31 दिसंबर 2003) एक पाकिस्तानी क्रिकेटर हैं। अक्टूबर 2019 में, बांग्लादेश के खिलाफ श्रृंखला के लिए उसे पाकिस्तान के दस्ते में शामिल किया गया। उसने 4 नवंबर 2019 को बांग्लादेश के खिलाफ पाकिस्तान के लिए महिला दिवस की अंतर्राष्ट्रीय (मवनडे) शुरुआत की। उन्होंने 17 दिसंबर 2019 को इंग्लैंड के खिलाफ पाकिस्तान के लिए महिला ट्वेंटी 20 अंतर्राष्ट्रीय (डब्ल्यूटी20आई) बनाया। जनवरी 2020 में, ऑस्ट्रेलिया में 2020 के आईसीसी महिला टी20 विश्व कप के लिए उन्हें पाकिस्तान की टीम में रखा गया था। दिसंबर 2020 में, उन्हें 2020 पीसीबी अवार्ड्स के लिए महिला इमर्जिंग क्रिकेटर ऑफ द ईयर के रूप में चुना गया। सन्दर्भ
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रमेश ठाकुर
रमेश ठाकुर या रमेश ठाकुर पत्रकार (जन्म नाम रमेश सिंह) एक भारतीय वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और ब्लॉगर है। जिनका जन्म १० अगस्त १९८३ को पीलीभीत, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था। इन्होंने अपने पत्रकारिता कैरियर भारत के कई जाने माने समाचार पत्रों के लिए कार्य किया। पत्रकारिता कैरियर पत्रकार रमेश ठाकुर ने वर्ष २००५ से दिल्ली में दूरदर्शन के रिसर्च विभाग से शुरूआत थी इसके बाद इन्होंने २००९ में ए टू जेड न्यूज चैनल में बतौर रिसर्च हेड के रूप में कार्य किया। तत्पश्चात पत्रकार ठाकुर ने कुछ समय ईटीवी में भी कार्य किया था। इसके लावा प्रिंट मीडिया का रूख किया। इन्होंने भारत में प्रकाशित होने वाला राष्ट्रीय समाचार पत्र अमर उजाला नामक समाचार पत्र दिल्ली से भी पत्रकारिता की। बाद में वर्ष २०११ इन्होंने राष्ट्रीय समाचार पत्रदैनिक जागरण में डिप्टी ब्यूरो चीफ के रूप में किया और वर्ष २०१३ में फरीदाबाद स्थानांतरण हो जाने के बाद इन्होंने दैनिक जागरण समाचार पत्र को छोड़ दिया था। ठाकुर ने बाद में हाई अलर्ट व्यूज नामक साप्ताहिक अखाबर का संचालन भी शुरू किया है। ये राष्ट्रीय समाचार पत्र जनसत्ता के लिए भी लिखते हैं। वर्तमान में कार्य पत्रकार रमेश ठाकुर पिछले १२ वर्षों से लगातार राजनैतिक, स्वास्थ्य, संचार, अपराध, पर्यटन, पर्यावरण आदि देश की मार्मिक ज्वलंत मुद्दों पर तकरीबन सभी लीडिंग अखबारों व प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेख एवं आलेख लिखते आ रहे हैं। इन्होंने विशेष रूप से नवभारत टाइम्स, मुंबई सामना, दैनिक जागरण,राज एक्सप्रेस व डेली न्यूज़ के लिए नियमित नामचीन हस्तियों के साक्षात्कार किया करते हैं। इसके अलावा पत्रकार रमेश ठाकुर देश का जाना माना समाचार चैनल आज तक न्यूज चैनल व आईबीएन7 चैनल की डिजिटल विंग के लिए आमंत्रित विशेष रपट लिखते आ रहे है। इन्होंने आकाशवाणी के कई स्टेशनों पर केजुअल के तौर पर भी काम बहुत कार्य किया है।शिवसेना के मुखपत्र 'सामना ' में इनका वीकली कॉलम 'राजधानी लाइव' इस समय काफी चर्चित है, जो प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होता है। इसमें राजधानी दिल्ली में हफ्ते में घटित सियासी घटनाओं को रेखांकित किया जाता है। साल 2019 को साउथ अफ्रीका स्थित जांबिया विश्वविधायल ने रमेश ठाकुर को डाॅक्टरेट उपाधी से नवाजा है। सम्मान रमेश ठाकुर को दैनिक जागरण में रहते समय अपनी अच्छी पत्रकारिता के लिए इंडिया बुक आफॅ रिकार्ड से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा वर्ष २०१४ में कलमकार अवार्ड मिला। वर्ष २०१६ में दा हीरो पुरस्कार से नवाजा गया और साल जनवरी २०१७ में सोसायटी डेवलेपमेंट पुरस्कार-२०१७ से भी नवाजे गए थे। सन्दर्भ जीवित लोग 1983 में जन्मे लोग उत्तर प्रदेश के लोग भारतीय पत्रकार पत्रकार
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%97%E0%A4%B0%20%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE
सुजानगर उपज़िला
सुजानगर उपजिला, बांग्लादेश का एक उपज़िला है, जोकी बांग्लादेश में तृतीय स्तर का प्रशासनिक अंचल होता है (ज़िले की अधीन)। यह राजशाही विभाग के पाबना ज़िले का एक उपजिला है, जिसमें, ज़िला सदर समेत, कुल 10 उपज़िले हैं, और मुख्यालय पाबना सदर उपज़िला है। यह बांग्लादेश की राजधानी ढाका से पूर्व की दिशा में अवस्थित है। यह मुख्यतः एक ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है। जनसांख्यिकी यहाँ की आधिकारिक स्तर की भाषाएँ बांग्ला और अंग्रेज़ी है। तथा बांग्लादेश के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह ही, यहाँ की भी प्रमुख मौखिक भाषा और मातृभाषा बांग्ला है। बंगाली के अलावा अंग्रेज़ी भाषा भी कई लोगों द्वारा जानी और समझी जाती है, जबकि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक निकटता तथा भाषाई समानता के कारण, कई लोग सीमित मात्रा में हिंदुस्तानी(हिंदी/उर्दू) भी समझने में सक्षम हैं। यहाँ का बहुसंख्यक धर्म, इस्लाम है, जबकि प्रमुख अल्पसंख्यक धर्म, हिन्दू धर्म है। राजशाही विभाग में, जनसांख्यिकीक रूप से, इस्लाम के अनुयाई, आबादी के औसतन ८८.४२% है, जबकि शेष जनसंख्या प्रमुखतः हिन्दू धर्म की अनुयाई है। यह मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है। अवस्थिती सुजानगर उपजिला बांग्लादेश के पूर्वी भाग में, राजशाही विभाग के पाबना जिले में स्थित है। इन्हें भी देखें बांग्लादेश के उपजिले बांग्लादेश का प्रशासनिक भूगोल राजशाही विभाग उपज़िला निर्वाहि अधिकारी सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ उपज़िलों की सूची (पीडीएफ) (अंग्रेज़ी) जिलानुसार उपज़िलों की सूचि-लोकल गवर्नमेंट इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट, बांग्लादेश http://hrcbmdfw.org/CS20/Web/files/489/download.aspx (पीडीएफ) श्रेणी:राजशाही विभाग के उपजिले बांग्लादेश के उपजिले
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE
अजमेर-मेरवाड़ा
अजमेर (मेरवाड़ा), जिसे अजमेर प्रांत और अजमेर (मेरवाड़ा)-नसीराबाद के नाम से भी जाना जाता है, ऐतिहासिक अजमेर क्षेत्र में ब्रिटिश भारत का एक पूर्व प्रांत है। यह क्षेत्र 25 जून 1818 को संधि द्वारा दौलत राव सिंधिया द्वारा अंग्रेजों को सौंपा गया था। यह 1936 तक बंगाल प्रेसीडेंसी के अधीन था जब यह उत्तरी-पश्चिमी प्रांतों के कमिश्नरेट एल 1842 का हिस्सा बन गया। अंत में 1 अप्रैल 1871 को यह अजमेर-मेरवाड़ा-केकरी के रूप में एक अलग प्रांत बन गया। यह 15 अगस्त 1 9 47 को अंग्रेजों को छोड़कर स्वतंत्र भारत का हिस्सा बन गया।. इस प्रांत में अजमेर (मेरवाड़) के जिलों शामिल थे, जो राजनीतिक रूप से शेष ब्रिटिश भारत से राजपूताना के कई रियासतों के बीच एक संलग्नक बनाते थे। जो स्थानीय राजाओं द्वारा शासित थे, युद्ध में हार के बाद, जिन्होंने ब्रिटिश सत्ता को स्वीकार किया, अजमेर-मेरवाड़ा सीधे अंग्रेजों द्वारा प्रशासित किया गया था। 1842 में दोनों जिलों एक कमिश्नर के अधीन थे, फिर उन्हें 1856 में अलग कर दिया गया और उन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा प्रशासित किया गया। आखिरकार, 1858 के बाद, एक मुख्य आयुक्त जो राजपूताना एजेंसी के लिए भारत के गवर्नर जनरल के अधीनस्थ थे। विस्तार और भूगोल प्रांत का क्षेत्र 2,710 वर्ग मील (7,000 किमी 2) था। पठार, जिसका केंद्र अजमेर है, को उत्तर भारत के मैदानों में सबसे ऊंचा बिंदु माना जा सकता है; पहाड़ियों के चक्र से जो इसे अंदर रखता है, देश पूर्व में, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर में थार रेगिस्तान क्षेत्र की तरफ नदी घाटियों की ओर - हर तरफ दूर हो जाता है। अरावली रेंज जिले की विशिष्ट विशेषता है। अजमेर और नासीराबाद के बीच चलने वाली पहाड़ियों की श्रृंखला भारत के महाद्वीप के वाटरशेड को चिह्नित करती है। दक्षिण-पूर्व ढलानों पर जो बारिश होती है वह चंबल में जाती है, और इसलिए बंगाल की खाड़ी में; जो उत्तर-पश्चिम की तरफ लूनी नदी में पड़ता है, जो खुद को कच्छ के रान में छोड़ देता है। .. प्रांत शुष्क क्षेत्र कहलाता है कि सीमा पर है; यह उत्तर-पूर्वी और दक्षिण-पश्चिमी मानसून के बीच किसानी योग्य भूमि है, और इसके प्रभाव से परे है। दक्षिण-पश्चिम मॉनसून बॉम्बे से नर्मदा घाटी को साफ करता है और नीमच में टेबललैंड पार करने से मालवा, झलवार और कोटा और चंबल नदी के दौरान स्थित देशों को भारी आपूर्ति मिलती है।. = मेरवाडा का इतिहास प्राचीन काल में, मीना प्रमुख निवासी थे। नाडोल के चौहान राजपूतों ने उनको पराजित किया और यहाँ अपना राज्य स्थापित किया। नाडोल के चौहान राजपूतों की कई अलग-अलग गोत्रों ने यहां विभिन्न स्थानों पर शासन किया। समय-समय पर पड़ोसी रियासतों से भाटी, राठौर, पंवार, सिसोदिया व अन्य राजपूतों ने यहां आकर ठिकाने स्थापित किए जैसे नरवर, बवाल, बड़लिया, बोराज, पर्वतपुरा, माखुपुरा, खाजपुरा, होकरा, कानस, मोतीसर, भवानीखेडा, कोटाज, इत्यादि जहा आज भी रावत राजपूतों की जनसंख्या अधिक है क्योंकि यह ठिकाने इन्होंने स्थापित किए थे।और यही बस गए। मेरवाड़ा क्षेत्र के इन सभी राजपूतों को आम बोलचाल में ठाकर भी कहा जाता है और वे अपनी उपाधि रावत से भी जाने जाते हैं। मेरवाड़ा संस्कृत के मेर शब्द से बना है जिसका अर्थ पहाड़ या पर्वत होता है और इस क्षेत्र में पहाड़ों के अधिकता के कारण ये क्षेत्र मेरवाड़ा कहलाया। इस क्षेत्र में बाहरी आक्रमणकारियों, पड़ोसी रियासतों और अंग्रेजो ने समय समय पर इस क्षेत्र को अपने अधीन करने के लिए हमले किए पर वे ऐसा नहीं कर पाए। न ही मुगल और न कोई अन्य रियासत इस क्षेत्र को अपने अधीन कर पाए मेरवाड़ा हमेशा स्वतंत्र रहा । जिससे यहां के राजपूतों के आर्थिक स्थिति खराब हो गई और यहां के लोग शिक्षा में पिछड़ गए इसलिए यहां के लोगों ने खेती करना शुरू कर दिया और अंत में जब अंग्रेजो का इस क्षेत्र पर शासन हो गया तब उन्होंने मेरवाड़ा रेजिमेंट बना कर यहां के बहुत से राजपूतों को फोज में भर्ती कर दिया। ब्रिटिश शासन अजमेर क्षेत्र का हिस्सा, क्षेत्र 25 जून 1818 की एक संधि के हिस्से के रूप में ग्वालियर राज्य के दौलत राव सिंधिया द्वारा अंग्रेजों को सौंपा गया था। फिर मई 1823 में मेरवाड़ा (मेवार) भाग उदयपुर द्वारा ब्रिटेन को सौंपा गया था राज्य। इसके बाद अजमेर-मेरवाड़ा को सीधे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा प्रशासित किया गया था। 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद, 1858 में कंपनी की शक्तियां ब्रिटिश क्राउन और भारत के गवर्नर जनरल को स्थानांतरित कर दी गईं। अजमेर-मेरवाड़ा के उनके प्रशासन को एक मुख्य आयुक्त द्वारा नियंत्रित किया गया था जो राजपूताना एजेंसी के लिए ब्रिटिश एजेंट के अधीन था।. सन्दर्भ ऐतिहासिक भारतीय क्षेत्र
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पाश्चात्य काव्यशास्त्र
पाश्चात्य काव्यशास्त्र (वेस्टर्न पोएटिक्स) के उद्भव के साक्ष्य ईसा के आठ शताब्दी पूर्व से मिलने लगते हैं। होमर और हेसिओड जैसे महाकवियों के काव्य में पाश्चात्य काव्यशास्त्रीय चिंतन के प्रारम्भिक बिंदु मौजूद मिलते हैं। ईसापूर्व यूनान में वक्तृत्वशास्त्रियों का काफ़ी महत्त्व था। समीक्षा की दृष्टि से उस समय की फ़्राग्स तथा क्लाउड्स जैसी कुछ नाट्यकृतियाँ काफ़ी महत्त्वपूर्ण और उल्लेखनीय हैं। फ़्राग्स में कविता को लेकर यह प्रश्न किया गया है कि वह उत्कृष्ट क्यों मानी जाती है? काव्य समाज को उपयोगी प्रेरणा तथा मनोरंजन के कारण महत्त्वपूर्ण हैं या आनंद प्रदान करने तथा मनोरंजन के कारण? इस तरह से काव्यशास्त्रीय चिंतन-सूत्र यूनानी समाज में बहुत पहले मौजूद रहे और विधिवत काव्य-समीक्षा की शुरुआत प्लेटो से हुई। प्लेटो प्लेटो ने काव्य की सामाजिक उपादेयता का सिद्धांत प्रतिपादित किया। उसके अनुसार काव्य को उदात्त मानव-मूल्यों का प्रसार करना चाहिए। देवताओं तथा वीरों की स्तुति एवं प्रशंसा काव्य का मुख्य विषय होना चाहिए। काव्य-चरित्र ऐसे होने चाहिए जिनका अनुकरण करके आदर्श नागरिकता प्राप्त की जा सके। प्लेटो ने जब अपने समय तक प्राप्त काव्य की समीक्षा की तो उन्हें यह देख कर घोर निराशा हुई कि कविता कल्पना पर आधारित है। वह नागरिकों को उत्तमोत्तम प्रेरणा एवं विचार देने के बजाय दुर्बल बनाती है। प्लेटो के विचार से सुव्यवस्थित राज्य में कल्पनाप्रणव कवियों को रखना ठीक नहीं होगा, क्योंकि इस प्रकार के कलाकार झूठी भावात्मकता उभार कर व्यक्ति की तर्क-शक्ति कुंठित कर देते है जिससे भले-बुरे का विवेक समाप्त हो जाता है। प्लेटो ने कवियों और कलाकारों को अपने आदर्श राज्य के बाहर रखने की सिफारिश की थी। उनका मानना था कि काव्य हमारी वासनाओं को पोषित करने और भड़काने में सहायक है इसलिए निंदनीय और त्याज्य है। धार्मिक और उच्च कोटि का नैतिक साहित्य इसका अपवाद है किंतु अधिकांश साहित्य इस आदर्श श्रेणी में नहीं आता है। प्लेटो के कला और काव्य-संबंधी विवेचन से सौंदर्यशास्त्रीय एवं काव्यशास्त्रीय चिंतन में अनुकृति-सिद्धांत का समावेश हुआ। उनके अनुसार काव्य, साहित्य और कला जीवन और प्रकृति का किसी न किसी रूप में अनुकरण है। काव्य को कला का ही एक रूप मानने वाले प्लेटो के अनुसार कवि और कलाकार अनुकरण करते हुए मूल वस्तु या चरित्रों के बिम्बों और दृश्यों की प्रतिमूर्ति उपस्थित करते हैं। वे उस वस्तु या चरित्र की वास्तविकता का ज्ञान नहीं रखते। कलाओं और कविताओं को निम्न कोटि का मानने वाले प्लेटो अनुकरण के दो पक्ष मानते हैं— पहला जिसका अनुकरण किया जाता है और दूसरा अनुकरण का स्वरूप। अगर अनुकरण का तत्त्व मंगलकारी है और अनुकरण पूर्ण एवं उत्तम है तो वह स्वागत योग्य है। परंतु प्रायः अनुकृत्य वस्तु अमंगलकारी होती है तथा कभी-कभी मगंलकारी वस्तु का अनुकरण अधूरा और अपूर्ण होता है। ऐसी दशा में कला सत्य से परे और हानिकारक होती है। अरस्तू आगे चलकर प्लेटो के शिष्य अरस्तू ने कलाओं को अनुकरणात्मक मानते हुए भी उनके महत्त्व को स्वीकार किया। यह प्लेटो के विचारों से भिन्न दृष्टि थी। प्लेटो के विचार जहाँ नैतिक और सामाजिक हैं, वहीं अरस्तू की दृष्टि सौंदर्यवादी है। उन्होंने विरेचन-सिद्धान्त प्रस्तुत किया। इस सिद्धांत के अनुसार गम्भीर कार्यों की सफल और प्रभावशाली अनुकृति वर्णन के रूप में न होकर कार्यों के रूप में होती है जिसमें करुणा और भय उत्पन्न करने वाली घटनाएँ होती हैं जो इन भावों के विरेचन द्वारा एक राहत और आनंद प्रदान करती हैं। अरस्तू के विचार से भय और करुणा के दो भाव हमारे भीतर घनीभूत होते रहते हैं। इस प्रकार की त्रासदी को देखने पर कुशल अभिनय द्वारा ये भाव संतुलित और समंजित हो जाते हैं और इस प्रकार हमारे मन को राहत और आनंद की अनुभूति होती है। कविता या नाटक के पात्रों के बीच इन उत्तेजित वासनाओं और उसके दुष्परिणामों का हमारे शरीर और जीवन से सीधा संबंध न होने के कारण ये वासनाएँ परिष्कृत संवेदनाओं का रूप ग्रहण करती हैं। यही भावों का विरेचन है और कविता का यही वास्तविक प्रभाव और कार्य होता है। अरस्तू ने कहा कि काव्य कल्पना पर आधारित होती है। वह वास्तविकता का चित्रण नहीं होता बल्कि उसका (काव्य) आधार सम्भावना है। काव्य वास्तव में अनुकरण है किंतु यही उसकी विशिष्टता है। लेकिन कवि वस्तुओं की पुनर्रचना करता है, नकल नहीं। अनुकरण के कारण ही काव्य आनंददायक होता है। उससे शिक्षा प्राप्त हो सकती है किंतु उसका उद्देश्य शिक्षा प्रदान करना नहीं है। इस प्रकार अरस्तू ने प्लेटो के काव्य संबंधी विचारों एवं आरोपों का निराकण किया। औदात्य-सिद्धान्त प्लेटो और अरस्तू के बाद यूनानी काव्य-समीक्षा के क्षेत्र में एक प्रतिनिधि काव्यशास्त्री लोंजाइनस का नाम भी प्रमुखता से आता है। उन्होंने औदात्य-सिद्धांत का प्रतिपादन किया। लोंजाइनस के इस सिद्धांत की अवधारणा ने साहित्येतर इतिहास, दर्शन और धर्म जैसे विषयों को भी अपने अंतर्गत समावेशित किया। उनके अनुसार औदात्य वाणी का उत्कर्ष, कांति और वैशिष्ट्य है जिसके कारण महान कवियों, इतिहासकारों, दर्शनिकों को प्रतिष्ठा सम्मान और ख्याति प्राप्त हुई है। इसी से उनकी कृतियाँ गरिमामय बनी हैं और उनका प्रभाव युग-युगांतर तक प्रतिष्ठित हो सका है। उन्होंने ‘उदात्त’ को काव्य का प्रमुख तत्त्व माना। उनके अनुसार विचारों की उदात्तता, भावों की उदात्तता, अलंकारों की उदात्तता, शब्द-विन्यास की उदात्तता तथा वाक्य-विन्यास की उदात्तता किसी भी काव्य को श्रेष्ठ बनाती है। एक श्रेष्ठ कविता लोगों को आनंद प्रदान करती है तथा दिव्य-लोक में पहुँचाती है। इस सिद्धांत ने पाश्चात्य जगत को काफ़ी प्रभावित किया। धीरे-धीरे समय के साथ यूनानी समीक्षा कमज़ोर पड़ने लगी और रोमन समीक्षा का प्रभाव बढ़ा। रोम कला, साहित्य और संस्कृति संबंधी विचार-विमर्श का केंद्र बना। वहाँ के सिसरो तथा वर्जिल जैसे समीक्षकों ने पाश्चात्य काव्यशास्त्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। होरेस ने कहा कि- काव्य में सामंजस्य और औचित्य का होना आवश्यक है। काव्य में श्रेष्ठ विचारों के सामंजस्य के साथ ही पुरातन एवं नवीन का समन्वय होना चाहिए। काव्य के भावपक्ष तथा कलापक्ष दोनों की उत्कृष्टता के प्रति कवि को सजग तथा प्रयत्नशील होना चाहिए। मध्ययुगीन समीक्षा पाँचवीं से लेकर पंद्रहवीं शताब्दी के समय को पाश्चात्य काव्यशास्त्र की दृष्टि से अंधायुग माना जाता है। इस दौरान चर्च और पादरियों के प्रभाव के कारण काव्य तथा समीक्षा बुरी तरह से प्रभावित हुई। काव्य में उपेदशात्मकता को अधिक महत्त्व दिया गया। इस काल के काव्यशास्त्रियों में दांते प्रमुख हैं। उनका समय 1265 से 1391 के बीच का माना गया है। उन्होंने गरिमामण्डित स्तरीय जन- भाषा को काव्य के लिए सबसे उपयुक्त माना। काव्य में जन- भाषा के आग्रही दांते ने कहा कि प्रतिभा के साथ ही कवि के लिए परिश्रम और अभ्यास भी आवश्यक है। उनके मुताबिक उच्च विचार, राष्ट्र-प्रेम, मानवप्रेम और सौंदर्यप्रेम काव्य को महत्त्व प्रदान करते हैं। पुनर्जागरण काल मध्ययुगीन समीक्षा चर्च और पादरियों के प्रभाव में उपदेशात्मक हो गयी थी। रिनेसाँ या पुनर्जागरण काल में सिडनी और बेन जॉनसन ने उसे मुक्त कराया। सिडनी ने कहा कि आदिकाल से अब तक कविता ही ज्ञान-विज्ञान के प्रसार का माध्यम रही है तथा इसकी उपयोगिता प्रत्येक परिस्थिति में बनी रहेगी। काव्य का उद्देश्य सदाचरण की शिक्षा देने के साथ ही आनंद प्रदान करता है। प्रकृति के अनुकरण का अर्थ नकल नहीं बल्कि उसे भव्यतम रूप में प्रस्तुत कर प्रकृति के प्रति अनुराग उत्पन्न करना है। उसका वास्तविक अर्थ सृजनशीलता है। इसी काल के दूसरे प्रसिद्ध समीक्षक बेन जॉनसन ने भौतिकता के निर्वाह पर बल दिया तथा क्लासिक साहित्य के अनुकरण तथा अनुशीलन को रेखांकित किया। नव्यशास्त्रवाद सत्रहवीं और अट्ठारहवीं शताब्दी के बीच के समय को नव्यशास्त्रवादी समीक्षा के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापनाओं के अनुसार साहित्य में उन्नत विचारों का गाम्भीर्य होना चाहिए। साहित्य में उपदेशात्मकता, अपेक्षित साहित्य रचना के लिए अभ्यास तथा अध्ययन का महत्त्व होता है। हृदय पक्ष की तुलना में बुद्धि और तर्क का महत्त्व अधिक है। इस समीक्षा के अंतर्गत उत्कृष्ट प्राचीन साहित्य के अध्ययन की अभिरुचि, पुरातन साहित्यिक मानदण्डों के पालन, साहित्य के वाह्य पक्ष की उत्कृष्टता तथा कलात्मक सौष्ठव पर बल दिया गया। स्वच्छंदतावाद अट्ठारहवीं सदी के उत्तरार्ध तथा उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में स्वच्छंदतावाद ने ज़ोर पकड़ा और वर्ड्सवर्थ, कॉलरिज, शेली तथा कीट्स जैसे कवियों ने स्वच्छंदतावादी काव्य के ज़रिये स्वछंदतावाद नियामक समीक्षा सिद्धांत की प्रस्थापना दी। इसके तहत काव्य में कवि-कल्पना को महत्त्व प्रदान किया गया। आत्मानुभूति की अभिव्यक्ति पर अधिक बल तथा काव्य के भाव पक्ष को केंद्र में रखा गया। काव्य का उद्देश्य स्वांतःसुखाय तथा आनंद मानते हुए स्वच्छंदतावादी काव्य में प्रेरणा, प्रतिभा तथा कल्पना को प्रमुखता मिली। यथार्थवाद इस समीक्षा सिद्धांत में वस्तुस्थिति तथा तथ्यपरकता का आग्रह था। साहित्य की नवीनता, प्राचीन साहित्यिक मानदण्डों, परम्पराओं तथा रूढ़ियों को नकारने की प्रवृत्ति तथा शिल्पगत नवीनता आदि के आग्रह के कारण यर्थाथवाद का काफ़ी विकास हुआ और आगे चलकर इसी के गर्भ से प्रगतिवाद, समाजवादी यर्थाथवाद तथा मनोवैज्ञानिक यर्थाथवाद का विकास हुआ। कलावाद इस के अनुसार कला कला के लिए हैं। रचना किसी सिद्धि के लिए नहीं होती। नैतिकता, उपदेश या मनोरंजन काव्य का उद्देश्य नहीं है अपितु वह स्वांतःसुखाय है। इसके अंतर्गत अनुभूति की मौलिकता एवं नवीनता पर विशेष ज़ोर रहा। अभिव्यंजनावाद इस सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए बेनेदितो क्रोचे ने कहा कि काव्य-वस्तु नहीं बल्कि काव्यशैली महत्त्वपूर्ण है। अर्थ की अपेक्षा शब्द महत्त्वपूर्ण हैं। और काव्य का सौंदर्य विषय पर नहीं बल्कि शैली पर निर्भर है। अभिव्यंजना ही काव्य का काव्यतत्त्व है। प्रतीकवाद उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध्द में बादलेयर, मेलार्मे, बर्लेन, तथा वैलरी आदि ने प्रतीकवाद को बल प्रदान किया। 1886 में कवि ज्याँ मोरेआस ने फ़िगारो नामक पत्र में प्रतीकवाद का घोषणापत्र प्रकाशित किया। इस समीक्षा-सम्प्रदाय ने काव्य में शब्द का महत्त्व सर्वोपरि बताया और कहा कि कविता शब्दों से लिखी जाती है, विचारों से नहीं। काव्य सर्वसाधारण के लिए नहीं बल्कि उसे समझ सकने वाले लोगों के लिए होता है। कवि किसी अन्य के प्रति नहीं अपनी आत्मा के प्रति प्रतिबद्ध होता है। शब्द अनुभूतियों और विचारों के प्रतीक होते हैं। बीसवीं शताब्दी आते-आते समीक्षा की कई प्राणालियाँ विकसित हुईं। आधुनिक युग के इस दौर पर प्रमुख रूप से टी.एस. इलियट तथा आई.ए. रिचर्ड्स ने काफ़ी प्रभाव डाला। टी.एस. एलियट ने परम्परा तथा वैयक्तिक प्रतिभा के समन्वय, निर्वैयक्तिकता के सिद्धांत, वस्तुनिष्ठ समीकरण के सिद्धांत तथा अतीत की वर्तमानता के सिद्धांत का प्रतिपादन करके तुलनात्मकता के माध्यम से वस्तुनिष्ठ समीक्षा का तानाबाना खड़ा किया। आई.ए. रिचर्ड्स ने आधुनिक ज्ञान के आलोक में मूल्य-सिद्धांत की नयी व्याख्या करते हुए व्यावहारिक समीक्षा का सिद्धांत प्रस्तुत किया। इसी शताब्दी में न्यू क्रिटिसिज़्म तथा शिकागो समीक्षा का भी प्रभाव देखा गया। काव्य के प्रमुख तत्त्व के रूप में स्ट्रक्चर व टेक्स्चर के माध्यम से वस्तुनिष्ठ समीक्षा असरदार बनी। शैली वैज्ञानिक समीक्षा-प्रणाली भी इसी दौर की देन है। देखें भारतीय काव्यशास्त्र सन्दर्भ 1. भागीरथ मिश्र (1996), काव्यशास्त्र, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी. 2. सभापति मिश्र (2008-2009), साहित्यशास्त्र और हिंदी आलोचना, ग्रीनवर्ल्ड पब्लिकेशंस, इलाहाबाद. 3. सत्येंद्र सिंह, प्रकाश उदय और दुर्गा प्रसाद ओझा, साहित्यशास्त्र और हिंदी आलोचना, प्रकाशन केंद्र, लखनऊ. काव्यशास्त्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%97%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5%20%E0%A4%AA%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
जगन्नाथ पहाड़िया
जगन्नाथ पहाड़िया एक भारतीय राजनीतिज्ञ तथा राजस्थान के मुख्यमंत्री थे। वे हरियाणा के राज्यपाल रहे। व्यक्तिगत जीवन राजनीतिक जीवन जगन्नाथ पहाड़िया जी राजस्थान के प्रथम दलित मुख्यमंत्री थे जगन्नाथ पहाड़िया जी ने मात्र 25 वर्ष की उम्र में राजनीति में प्रवेश किया जगन्नाथ पहाड़िया जी 6 जून 1980 से 14 जुलाई 1981 मात्र 13 महीनों के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे 1957 में जगन्नाथ पहाड़िया जी प्रथम बार सवाई माधोपुर सीट से चुनाव लड़े और लोकसभा पहुंचे और लोकसभा के सबसे युवा सांसद रहे राजस्थान में पूर्ण रूप से शराब बंदी करने वाले प्रथम मुख्यमंत्री रहे जगन्नाथ पहाड़िया जी 4 बार सांसद और 4 बार विधायक रहे पहाड़िया जी सन 1957,1967,1971 & 1980 चार बार सांसद रहे और जगन्नाथ जी 1980,1985,1999,& 2003 मैं 4 बार विधायक रहे 1989 से 1990 तक बिहार के राज्यपाल रहे 2009 से 2014 तक हरियाणा के राज्यपाल भी रहे सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ 1932 में जन्मे लोग २०२१ में निधन राजस्थान के मुख्यमंत्री राजनीतिज्ञ हरियाणा के राज्यपाल बिहार के राज्यपाल
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डीडी गोवा
डीडी गोवा सार्वजनिक सेवा प्रसारक दूरदर्शन द्वारा संचालित एक द्विभाषी भारतीय राज्य के स्वामित्व वाला स्थलीय टेलीविजन स्टेशन है। पूर्व में डीडी पणजी के रूप में जाना जाता था, यह दूरदर्शन का क्षेत्रीय टेलीविजन स्टेशन है, जो भारतीय राज्य गोवा की राजधानी पणजी से प्रसारित होता है। कार्यक्रम कोंकणी और मराठी भाषाओं में प्रसारित किए जाते हैं। चैनल दूरदर्शन के डीटीएच प्लेटफॉर्म डीडी फ्री डिश पर उपलब्ध है। संदर्भ मराठी टीवी चैनल हिन्दी टीवी चैनल भारत में हिन्दी टी वी चैनल
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हथेली का छाप
हथेली का छाप संदर्भित करता है हाथ की हथेली की तस्वीर या छाप किसी वस्तु पर। यह तस्वीरे ऑनलाइन भी हो सकती है जेसे की कंप्यूटर मैं या स्कैनर से ले हुए और ऑफलाइन तस्वीर भी हो सकती है स्याही और कागज पर ली हुए। हथेली पर प्रमुख लाइन होती है ,झुर्रियों और एपिडर्मल लकीरें जिसकी मदद से विश्लेषण किया जाता है। हथेली के छाप उंगली जेसे ही होते है पर उनके बनावट, इंडेंट और अंक उगंली के छाप से अलग होती है उन्हें एक दुसरे से मिलने मैं मदद करते हैं। हथेली के छाप अपराधी को पकड़ने मैं मदद करते हैं। हथेली के छाप व्यावसायिक अनुप्रयोगों मैं भी इस्तमाल होते हैं। बॉयोमीट्रिक्स मैं भी हथेलिओ के निशान इस्तमाल होते हैं। अपराधिक स्थान पर हथेली के निशान मिल जाते है, जब अपराधी का गलती से हाथ फिसल गया हो या उसका हाथ कही लग गया हो। सन्दर्भ न्यायालयिक विज्ञान व्यक्तिगत पहचान
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सूफ्यान स्टीवंस
सूफ्यान स्टीवंस (Sufjan Stevens, ; जन्म 1 जुलाई, 1975) एक अमेरिकी गायक, गीतलेखक और बहु-वाद्ययंत्री हैं। उन्होंने अन्य कलाकारों के साथ नौ एकल स्टूडियो एल्बम और कई सहयोगी एल्बम जारी किए हैं। स्टीवंस को ग्रैमी और अकादमी पुरस्कार नामांकन प्राप्त हुआ है। उनका पहला एल्बम, अ सन केम, 2000 में अस्थमैटिक किटी लेबल पर जारी किया गया था, जिसे उन्होंने अपने सौतेले पिता के साथ सह-स्थापित किया था। उन्हें अपने 2005 एल्बम इलिनोइ के लिए व्यापक पहचान मिली, जो बिलबोर्ड टॉप हीटसीकर्स चार्ट पर नंबर एक पर पहुंच गया, और उस एल्बम के एकल गीत " शिकागो " के लिए। स्टीवंस ने बाद में 2017 की फिल्म कॉल मी बाय योर नेम के साउंडट्रैक में योगदान दिया। उन्हें साउंडट्रैक के मुख्य एकल, " मिस्ट्री ऑफ लव " के लिए सर्वश्रेष्ठ मूल गीत के लिए अकादमी पुरस्कार नामांकन और विजुअल मीडिया के लिए लिखे गए सर्वश्रेष्ठ गीत के लिए ग्रैमी नामांकन मिला। स्टीवंस ने अलग-अलग शैलियों के एल्बम जारी किए हैं, जिनमें द एज ऑफ एडज़ के इलेक्ट्रॉनिका और सेवन स्वांस के लो-फाई लोक से लेकर इलिनोइस के सिम्फोनिक इंस्ट्रूमेंटेशन और क्रिसमस-थीम वाले गाने "सॉंग्स फॉर क्रिसमस" शामिल हैं। वह विभिन्न वाद्यों का उपयोग करते हैं, अक्सर उनमें से कई को एक ही रिकॉर्डिंग पर स्वयं बजाते हैं। स्टीवंस का संगीत विभिन्न विषयों, विशेषकर धर्म और आध्यात्मिकता की खोज के लिए भी जाना जाता है। स्टीवंस का दसवां और दूसरा सबसे हालिया स्टूडियो एल्बम, ए बिगिनर्स माइंड, एंजेलो डी ऑगस्टीन के साथ बनाया गया था और 2021 में रिलीज़ किया गया था।
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क्रिमिनल केस (वीडियोगेम)
क्रिमिनल केस एक जासूसी खेल है जिसमे कुछ छिपे हुए वस्तुओ को खोजकर निकालना पड़ता है। यह खेल १५ नवम्बर २०१२ को फेसबुक पर प्रकाशित किया गया था। इसके बाद इस खेल को आई ओ एस पे २८ अगस्त २०१४ मे तथा ऍड्रोएड वर्जन मे १५ अप्रैल २०१५ मे किया गया था। इस खेल को फ्रॉस के इंडी स्टुडीओ द्वारा डिवेलप एवॅ प्रकाशित किया गया था। यह एक सरल एवॅ रोमॉचक खेल है जिसका औसत एक करोड़ से भी ज्यॉदा मॉसिक खिलाड़ी है। यह २०१३ से एक लोकप्रिय खेल बन चुका है। इसका सबसे बड़ा प्रतियोगी कैन्डी क्रस सागा खेल है जिसका इससे भी अधिक खिलाड़ी है। क्रिमिनल केस को २०१३ मे फेसबुक द्वारा उस साल का सबसे अच्छे खेल का ताज पहनाया गया था। इस खेल मे खिलाड़ी एक जासूस के तरह किसी हत्या स्थल पर उपस्थित रहकर उस स्थल से सुसॅगत सुरागो को ढ़ूँढ़कर उस हत्या मामला का हल करते है। सुरागो को जल्दी ढ़ूँढ़ लेने से ज़्यादा स्कोर की जा सकती है। स्कोर करने से खिलाड़ी को स्टार मिलता है जिससे वह अगले मामले के तरफ बढ़ सकते है। इन स्टारो का प्रयोग हम सबूतइकट्ठठा करने मे तथा मामले के सॅदेहयुक्त व्यक्तियो की पुछताछ करने मे कर सकते है। खेल के दौरान खिलाड़ी को मृत व्यक्ति की शव परीक्षण करनी होती है तथा उसका जॉच भी करना होता है जिसमे कुछ वक्त लगता है। खिलाड़ी को दोषी व्यक्ति के वृत्तॉत को देखकर चार से पाँच संदेहयुक्त व्यक्तियो मे से असली दोषी को निकालना पड़ता है। हर शेष स्तर पर खिलाड़ी को असली दोषी को निकालना पड़ता है तथा उसके लिए उपयुक्त कारण बताना पड़ता है। अगर खिलाड़ी असली दोषी को ढूंढने मे सफल रहता है तो वह अतिरिक्त स्तरो पर प्रस्थान कर सकता है। इन सभी अतिरिक्त स्तरो की सफ़लतापुर्वक समाधान करने से वह अगली घटना के तरफ बढ़ सकता है। इस खेल मे कुछ पहेलियॉ भी होती है। बहुत सारे न्याय-सॅबॅधी खेलो को भी डाला गया है जिससे खेल मे विविधता आती है। खेल मे आए हुए अतिरिक्त स्थलो का तभी जॉच हो सकता है जब खिलाड़ी के पास पर्याप्त संखक स्टार हो। इस खेल मे खिलाड़ी को दो स्थलो मे अंतर खोजना पड़ता है तथा एक कम निर्धारित समय मे चीज़ों को ढूँढना पड़ता है। इस वक्त खेल मे कुल २३१ मामलाऍ है एवॅ हर मामला मे ४५ स्टार है(जिसमे पहली मामला में १५ स्टार एवॅ दूसरी मामला मे ३० स्टार है। हर मामला में ३ मेडल और ३ रींग अर्जित की जा सकती है। किसी मामले के सारे उपलब्ध स्टार को पा लेने से सोने के मेडल मिलते है। इन सोने के मेडलों से विविध पालतू पशुओ के दुकान को अनलॉक की जा सकती है जिससे पुलिसी कुत्तो को खरीद सकते है। ये कुत्ते हर मामला मे अधिक ऊर्जा, अनुभव अंक तथा शुभ कार्ड देके खिलाड़ी की मदद करते है। इसके अलावा , और सारे बचे हुए स्टार ऊर्जा, मुहर एवॅ स्टिकर पैक की खरीद मे इस्तेमाल की जाती है। दोस्तो से शुभ कार्ड मिल सकती है जिससे विविध प्रकार के सामग्री खरीदी जा सकती है जैसे की अनुभव अंक एवॅ कुछ सहायता सूचक संकेत। इस खेल मे एक ऊर्जा मिटर होती है। यहा हर अपराध क्षेत्र की जाँच करने के लिए ऊर्जा की ज़रूरत होती है। इस ऊर्जा मिटर को भरने के लिए संतरे के रस का डिब्बा, आलु चिप्स तथा बर्गर का व्यवहार होता है। ऊर्जा मिटर को पूरी तरह से भरने के बाद भी भरा जा सकता है, यह जितना ज़्यादा भरा रहेगा उतना ही ज़्यादा बार खिलाड़ी इस खेल को खेल पाएगा। विषय यह संयुक्त राज्य अमेरिका मे कल्पित एक समकालीन खेल है जिसमे खिलाड़ी अपने पसंदीदा नाम डालके एक रूकी पुलिस के रूप मे खेल सकता है। यहॉपे दिखाया जाता है की यह पुलिस गृम्स्बोरों पुलिस बिभाग मे काम करता है जो गृम्स्बोरों शहर की एक कानून स्थापित करने वाली संस्था है। यह न्यूयोर्क शहर जैसे बनाया गया है। यहॉपे खिलाड़ी के साथ इंस्पेक्टर डेविड जोंस भी है जो एक आलसी एवॅ हास्यपूर्ण वरिष्ठ जासूस है। खिलाड़ी जल्द ही प्रतिभाशाली सावित होता है जो की क्रूर हत्यारो एवॅ क्रमिक हत्यारो को ढूँढकर मेयर की दृष्टि भी आकर्षण कर लेते है। इस खेल के मामलाओ के स्तरो को विभिन्न अध्यायो मे बॉटा गया है एवॅ एक दृश्य उपन्यास के तरह प्रस्तुत किया गया है। गृम्स्बोरो मे छप्पन मामलाओ को सुलझाके खिलाड़ी उस शहर मे शांति वापस लाने मे कामयाब हो जाता है जिसके वजह से उसे प्रशॉत खाड़ी पुलिस बिभाग मे एक प्रमुख पदोन्नति दी जाती है। यह प्रशॉत खाड़ी की प्राथमिक कानून प्रवर्तन एजन्सि है। यह कल्पित शहर लॉस एंजिल्स कैलिफोर्निया जैसी बनाई गयी है। इसके बाद खिलाड़ी को गृम्स्बोरो से विदाई समारोह प्राप्त होती है। खिलाड़ी यहा से यादे और सम्मान लेके विदा होता है। गृम्स्बोरो से निकालने के बाद वह प्रशॉत खाड़ी की ओर बढ़ता है। अब वह अफसर अमी यंग एवॅ जासूस फ़्रांक नाइट के साथ प्रशॉत खाड़ी पर काम करता। प्रशॉत खाड़ी के कुल ५९ मामलाओ का समाधान करके वह उस क्षेत्र मे शांति लाने मे सक्षम हो जाता है एवॅ उसकी पदोन्नति विश्व के शीर्ष एजन्सि द बुरेऔ मे हो जाती है। खिलाड़ी जासूस फ़्रांक नाइट के अंतिम संस्कार के लिए कुछ देर रुक जाता है। प्रशॉत खाड़ी को छोड़कर खिलाड़ी दुनिया संस्करण के लिए निकल पड़ता है जो दुनिया के सारे देशो को शामिल करती है।यहा उसको कुलीन बल एजेंट जैक अर्चर तथा कुलीन जासूस कार्मेन मरतीनेज के साथ काम दिया जाता है। दुनिया संस्करन को समाप्त करके एजेंट जैक अर्चर खिलाड़ी को कोंकोडिया के सहर का कहानी बताते है जिससे खिलाड़ी अपने आप को उस परिस्थिति मे होने की कल्पना करता है, जिससे वह अतीत के रहस्यो की जॉच करता है, जो अतीत यानि उन्नीसवी शताब्दी मे घटी थी और इसमे ६ मामलाए है। अब खिलाड़ी को जासूस मेडेलीन ओ माले एवॅ वरिष्ठ अन्वेषक आइसक बांटेंप्त केडबल्यू साथ कम पे डाला गया जो उड़ान दस्ते अगेंगी के सदस्य थे। अब खिलाड़ी  को कोंकोर्डिया के खूनियों को ज़रूर ढूंढ़ना पड़ेगा एवॅ उस क्षेत्र मे शांति फैलानी पड़ेगी। वीडियो गेम
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टॉयलेट सीट
टॉयलेट सीट, टॉयलेट का वह भाग है जिस पर नितम्ब रखकर बैठकर मल त्याग का कार्य किया जाता है। यह प्रायः कब्जे (हिंज) से जुड़ा होता है। यह फ्लश टाइप के टॉयलेट और सूखे टॉयलेट दोनों में लगा हो सकता है। यह प्रायः उर्ध्वाधर स्थिति में रहता है और जब प्रयोग करना होता है तो इसे क्षैतिज स्थिति में लाकर इसपर बैठा जाता है। शौच कर लेने के बाद फ्लश करके या तो सीट को उर्ध्वाधर कर दिया जाता है या इसे क्षैतिज छोड़ते हुए इस पर 'ठक्कन' लगा दिया जाता है। कहीं कहीं ढक्कन नहीं होता। प्रयोग सीट-विहीन टॉयलेट बिना सीट वाले टॉयलेट में टॉयलेट सीट नहीं होती है। यह टॉयलेट सीट की तुलना में बहुत अधिक साफ और आसान हो सकता है। इसकी चीनी मिट्टी से बनी संरचनात्मक रूप से मजबूत बॉडी पर बिना सीट के भी बैठा जा सकता है। यह सभी देखें टॉयलेट सीट कवर टॉयलेट सीट रिसर बिडेट (bidet) संदर्भ बाहरी कड़ियाँ हम्माद सिद्दीकी द्वारा टॉयलेट सीट अप बनाम डाउन परिदृश्य की एक परीक्षा सैन फ्रांसिस्को में आइसोटोप कॉमिक्स - कॉमिक्स रॉकस्टार टॉयलेट सीट संग्रहालय का घर कष्टप्रद शौचालय सीट: ऊपर या नीचे? तीन योजनाएँ
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